PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
अन्तर्विवाह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह विवाह जिसमें व्यक्ति को एक निश्चित समूह, जाति या उपजाति के अंदर ही विवाह करवाना पड़े, अन्तर्विवाह होता है।

प्रश्न 2.
विवाह संस्था की उत्पत्ति के कोई दो महत्त्वपूर्ण आधार बताइये।
उत्तर-
शारीरिक आवश्यकता, भावात्मक आवश्यकता, समाज को आगे बढ़ाना तथा बच्चों का पालन-पोषण करके विवाह की संस्था सामने आयी।

प्रश्न 3.
एक विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक पुरुष का एक समय में एक स्त्री के साथ विवाह होता है तो इसे एक विवाह का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 4.
साली विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक व्यक्ति अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् उसकी बहन से विवाह कर लेता है तो उसे साली विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 5.
बहुपति विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-भातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई होते हैं तथा अभ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते।

प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-द्वि-पत्नी विवाह जिसमें एक व्यक्ति की दो पत्नियाँ होती हैं तथा बहुपत्नी विवाह जिसमें व्यक्ति की कई पत्नियाँ होती हैं।

प्रश्न 7.
अन्तर्विवाह के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
मुसलमानों में शिया तथा सुन्नी अन्तर्वैवाहिक समूह हैं। ईसाइयों में रोमन कैथोलिक तथा प्रोटैस्टैंट अन्तर्वैवाहिक समूह है।

प्रश्न 8.
विवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
लुण्डबर्ग के अनुसार, “विवाह के नियम तथा तौर-तरीके होते हैं जो पति पत्नी के एक-दूसरे के प्रति अधिकारों, कर्तव्यों तथा विशेष अधिकारों का वर्णन करते हैं।”

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प्रश्न 9.
परिवार के दो प्रकार्य बताइये।
उत्तर-

  1. परिवार बच्चों का समाजीकरण करता है।
  2. परिवार बच्चे को सम्पत्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
आकार के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
आकार के आधार पर परिवार के तीन प्रकार होते हैं-केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार।

प्रश्न 11.
सत्ता के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सत्ता के आधार पर परिवार के दो प्रकार होते हैं-पितृसत्तात्मक व मातृसत्तात्मक।

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प्रश्न 12.
वैवाहिक सम्बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह नातेदारी जो विवाह के पश्चात् बनती है, उसे वैवाहिक नातेदारी कहते हैं। उदाहरण के लिए सास, ससुर, जमाई, बहू इत्यादि।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह परिवार जिसमें दो से अधिक पीढ़ियों के लोग रहते हैं तथा एक रसोई में खाना खाते हैं, संयुक्त परिवार होता है।

प्रश्न 14.
नातेदारी से आप क्या समझते हैं ? .
उत्तर-
नातेदारी में वह संबंध शामिल होते हैं जो काल्पनिक या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित तथा समाज द्वारा प्रभावित होते हों।

प्रश्न 15.
नातेदारी के प्रकार बताइये।
उत्तर-
नातेदारी दो प्रकार की होती है :- वैवाहिक तथा रक्त संबंधी।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्था शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है तथा न ही संगठन है। संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रियाओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिसके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
अधिमान्य नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक संस्था के कुछ अधिमान्य नियम होते हैं जिन्हें सबको मानना पड़ता है। उदाहरण के लिए विवाह एक ऐसी संस्था है जो पति-पत्नी के बीच संबंधों को नियमित करती है। इस प्रकार शैक्षिक संस्थाओं के रूप में स्कूल तथा कॉलेज के अपने-अपने नियम तथा कार्य करने के तौर-तरीके होते हैं।

प्रश्न 3.
अनुलोम तथा प्रतिलोम क्या है ?
उत्तर-

  • अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
  • प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

प्रश्न 4.
बहुविवाह के दो प्रकारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-

  1. बहपति विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक स्त्री के कई पति होते हैं तथा इसके दो प्रकार होते हैं। भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई होते हैं तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई नहीं होते।
  2. बहुपत्नी विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक पति की एक समय में कई पत्नियाँ होती हैं।

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प्रश्न 5.
भ्रातृत्व बहपति विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पत्नी के कई पति होते हैं तथा वह सभी आपस में भाई होते हैं। बच्चों का पिता बड़े भाई को माना जाता है तथा पत्नी से संबंध बनाने से पहले बड़े भाई की आज्ञा लेनी पड़ती है।

प्रश्न 6.
निकटाभिगमन निषेध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
निकटाभिगमन निषेध का अर्थ है शारीरिक अथवा वैवाहिक संबंध उन दो व्यक्तियों के बीच एक-दूसरे के साथ रक्त संबंधित हैं अथवा एक परिवार से संबंध रखते हैं। इस प्रकार के संबंध सभी मानवीय समाजों में वर्जित हैं। किसी भी संस्कृति में रक्त संबंधियों के बीच किसी प्रकार के लैंगिक संबंधों की आज्ञा नहीं होती है।

प्रश्न 7.
गोत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखीय संतान होते हैं। पूर्वज साधारणतया कल्पित ही होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। यह बहिर्वैवाहिक समूह होते हैं। यह वंश समूह का ही विस्तृत रूप है जोकि माता या पिता के अनुरेखित रक्त संबंधियों से बनता है।

प्रश्न 8.
सलिंग तथा विलिंग सहोदर विवाह के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-

  • सलिंग विवाह एक प्रकार का विवाह है जिसमें दो भाइयों या दो बहनों के बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। मुसलमानों में यह विवाह प्रचलित है।
  • विलिंग सहोदर विवाह में व्यक्ति के मामा की बेटी या बुआ की लड़की के साथ विवाह हो जाता है। इस प्रकार के विवाह गोंड, उराओं तथा खड़िया जनजातियों में प्रचलित हैं।

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प्रश्न 9.
निकटता तथा दूरी के आधार पर नातेदारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
निकटता तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार की नातेदारी होती है-

  • प्राथमिक रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जिनके साथ हमारा सीधा तथा नज़दीक का रक्त संबंध होता है जैसे कि माता-पिता, भाई-बहन।
  • द्वितीय रिश्तेदार-यह हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि पिता के पितादादा।
  • तृतीय रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जो हमारे द्वितीय संबंधियों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि चाचा की पत्नी-चाची।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. विवाह-विवाह सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है जिसकी सहायता से व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाने तथा बच्चे पैदा करने की आज्ञा होती है। विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण होता है।

2. परिवार-जब व्यक्ति विवाह करता है तथा बच्चे पैदा करता है तो परिवार का निर्माण होता है। परिवार ही व्यक्ति को जीवन जीने के तरीके सिखाता है तथा उसे समाज में रहने के तरीके सिखाता है।

3. नातेदारी-नातेदारी रिश्तेदारों की व्यवस्था है जिसमें रक्त संबंधी व वैवाहिक संबंधी रिश्तेदार शामिल होते हैं। रिश्तेदारी के बिना व्यक्ति जीवन जी नहीं सकता है।

प्रश्न 2.
विवाह की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है।
  • विवाह लैंगिक संबंधों को सीमित तथा नियन्त्रित करता है।
  • विवाह से व्यक्ति के लैंगिक संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।
  • विवाह से स्त्री व पुरुष को सामाजिक स्थिति प्राप्त हो जाती है।
  • अलग-अलग समाजों में अलग-अलग प्रकार के विवाह होते हैं।
  • इसकी सहायता से धार्मिक रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखा जाता है।

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प्रश्न 3.
विवाह के स्वरूपों के रूप में एक विवाह तथा बहविवाह के बीच विवाह के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-
1. एक विवाह-आजकल के समय में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष एक समय में एक ही स्त्री से विवाह करवा सकता है। इसमें एक पति या पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। पति-पत्नी के संबंध गहरे, स्थायी तथा प्यार से भरपूर होते हैं।

2. बहुविवाह-बहुविवाह का अर्थ है एक से अधिक विवाह करवाना। अगर एक स्त्री या पुरुष एक से अधिक विवाह करवाए तो इसे बहुविवाह कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है-बहुपत्नी विवाह तथा बहुपति विवाह । बहुपति विवाह दो प्रकार का होता है-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह।

प्रश्न 4.
परिवार के प्रकार्यों को समझाइये।
उत्तर-

  • परिवार में बच्चे का समाजीकरण होता है। परिवार में व्यक्ति समाज में रहने के तौर-तरीके सीख़ता है तथा अच्छा नागरिक बनता है।
  • परिवार हमारी संस्कृति को संभालता है। प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को संस्कृति देता है जिससे संस्कृति का पीढ़ी दर पीढ़ी संचार होता रहता है।
  • परिवार में व्यक्ति की संपत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है तथा इससे व्यक्ति के जीवन भर की कमाई सुरक्षित रह जाती है।
  • पैसे की आवश्यकता व्यक्ति की आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए होती हैं तथा इस कारण ही परिवार पैसे का भी प्रबन्ध करता है।
  • परिवार व्यक्ति के ऊपर नियन्त्रण रखता है ताकि वह गलत रास्ते पर न जाए।

प्रश्न 5.
(अ) अनुलोम (ब) प्रतिलोम (स) लेवीरेट/ देवर विवाह (द) सोरोरेट/साली विवाह जैसी अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(अ) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(ब) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(स) देवर विवाह-विवाह की इस प्रथा में पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी पति के छोटे भाई से विवाह कर लेती है। इससे परिवार की जायदाद सुरक्षित रह जाती है तथा परिवार टूटने से बच जाता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।

(द) साली विवाह-इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपनी साली से विवाह करवा लेता है। यह दो प्रकार का होता है-सीमित साली विवाह तथा समकालीन साली विवाह।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
संस्था से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएं बताइये।
उत्तर-
संस्था का अर्थ (Meaning of Institution)-हम अपने जीवन में हजारों बार इस संस्था शब्द का प्रयोग करते हैं। एक आम इन्सान की नज़र में संस्था का अर्थ किसी इमारत (Building) तक ही सीमित रहता है जबकि एक समाज शास्त्री की नज़र में इसका अर्थ किसी इमारत या लोगों के समूह से नहीं लिया जाता। समाज शास्त्री तो संस्था का अर्थ विस्तृत शब्दों में तथा समाज के अनुसार करते हैं। इनके अनुसार एक संस्था नियमों तथा परिमापों की व्यवस्था है जो मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में मदद करती हैं। इस तरह संस्था तो व्यक्तियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का समूह है। यह तो वह प्रक्रिया है जिनकी मदद से व्यक्ति अपने कार्य करता है। संस्था तो सम्बन्धों की वह संगठित व्यवस्था है जिसमें समाज की कीमतें शामिल होती हैं तथा जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका कार्य मनुष्य की आवश्यताओं को पूरा करना होता है तथा मनुष्य के कार्य तथा व्यवहारों को पूरा करना होता है। इसमें पदों तथा भूमिकाओं का भी जाल होता है तथा इन्हें विभाजित किया जाता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि संस्था मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यविधियां, व्यवस्थाओं तथा नियमों का संगठन है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अनेक समूहों का सदस्य बनना पड़ता है। हर समूह में अपने सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कोशिशें होती रहती हैं। बहुत-सी सफल तथा असफल कोशिशों के बाद समूह अपने सदस्य की ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके ढूंढ लेता है तथा समूह के सभी सदस्य इन तरीकों को मान लेते हैं। इस तरह समूह के सभी नहीं तो ज्यादातर सदस्य इनको मान लेते हैं। इस तरह समाज में कुछ विशेष हालातों के लिए कुछ विशेष प्रकार के तरीके निर्धारित हो जाते हैं तथा इन तरीकों के विरुद्ध काम करना ठीक नहीं समझा जाता। इस तरह मनुष्यों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करना तथा सभी के द्वारा मान्यता प्राप्त कार्यविधियों को संस्था कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  • मैरिल तथा एलडरिज़ (Meril and Eldridge) के अनुसार, “सामाजिक संस्थाएं सामाजिक प्रतिमान हैं जोकि मनुष्य प्राणियों के अपने मौलिक कार्यों को करने में व्यवस्थित व्यवहार को स्थापित करती है।”
  • एलवुड (Elwood) के अनुसार, “संस्था इकट्ठे मिलकर रहने के प्रतिमानित तरीके हैं जो समुदाय की सत्ता द्वारा स्वीकृत, व्यवस्थित तथा स्थापित किए गए हों।”
  • सुदरलैंड (Sutherland) के अनुसार, “समाजशास्त्रीय भाषा में संस्था उन लोक रीतों तथा रूढ़ियों का समूह है जो मनुष्यों के उद्देश्यों या लक्षणों को प्राप्ति में केन्द्रित हो जाता है।”

इस तरह उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्था का विकास किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही हुआ है। इसलिए यह रीति-रिवाजों, परिमापों, नियमों, कीमतों आदि का भी समूह है। समनर (sumner) ने अपनी पुस्तक “Folkways” में, सामाजिक संरचना को भी संस्था में शामिल कर लिया है। संस्था व्यक्ति को व्यक्तिगत व्यवहार के तरीके पेश करती है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि संस्था क्रियाओं का वह संगठन होता है, जिसे समाज किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वीकार कर लेता है। समाज में अलगअलग सभाएं पाई जाती हैं तथा हर एक सभा की अपनी ही संस्था होती है, जिसके द्वारा वह अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेती है। उदाहरण के लिए राज्य की संस्था सरकार होती है। यह संस्थाएं व्यक्तियों को आपस में बाँध कर रखती हैं।

संस्था की विशेषताएं (Characteristics of Institution) –

1. यह सांस्कृतिक तत्त्वों से बनती है (It is made up of cultural things)-समाज में संस्कृति के जो तत्त्व मौजूद होते हैं जैसे रूढ़ियों, लोकरीतियों, परिमाप, प्रतीमान के संगठन को संस्था कहते हैं। एक समाज शास्त्री ने तो इसे प्रथाओं का गुच्छा कहा है। जब समाज में मिलने वाली प्रथाएं रीति-रिवाज, लोकरीतियां, रूढियां संगठित हो जाती हैं तथा एक व्यवस्था का रूप धारण कर लेती हैं तो यह संस्था है। इस तरह व्यवस्था संस्कृति में मिलने वाले तत्त्वों से बनती है तथा यह फिर मनुष्य की अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करती है।

2. यह स्थायी होती है (It is Permanent) एक संस्था तब तक उपयोगी नहीं हो सकती जब तक वह ज्यादा समय तक लोगों की ज़रूरतों को पूरा न करे। अगर वह कम समय तक लोगों की आवश्यकता को पूरा करती है तो वह संस्था नहीं बल्कि सभा कहलाएगी। इस तरह संस्था अधिक समय तक लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि संस्था कभी भी अलोप हो सकती है। किसी भी संस्था मांग समय के अनुसार होती है। किसी विशेष समय में किसी संस्था की मांग कम भी हो सकती है तथा अधिक भी। अगर किसी समय में किसी संस्था की आवश्यकता नहीं होती या कोई संस्था अगर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती तो वह धीरे-धीरे अलोप हो जाती है।

3. इसके कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं (It has some special motives or objectives)-जब भी संस्था का निर्माण होता है तो उसका कोई विशेष उद्देश्य होता है। संस्था को यह ज्ञान होता है कि अगर वह बन रही है तो उसके क्या उद्देश्य हैं। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों की विशेष प्रकार की ज़रूरतों को पूरा करना है। इस तरह लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना ही इनका विशेष उद्देश्य होता है परन्तु फिर भी यह हो सकता है कि समय बदलने के साथ-साथ संस्था लोगों की आवश्यकताओं को पूरा न कर सके तो फिर इन स्थितियों में उसकी जगह कोई और संस्था उत्पन्न हो जाती है।

4. संस्कृति के उपकरण (Cultural Equipments)-संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्कृति के भौतिक पक्ष का सहारा लिया जाता है, जैसे फर्नीचर, ईमारत इत्यादि। इनका रूप तथा व्यवहार दोनों ही निश्चित किए जाते हैं। इस तरह अगर संस्था को अपने उद्देश्य पूरे करने हैं तो उसे भौतिक संस्कृति से बहुत कुछ लेना पड़ता है। अभौतिक संस्कृति जैसे विचार, लोक रीतियां, रूढ़ियां इत्यादि तो पहले ही संस्था में रहते हैं।

5. अमूर्तता (Abstractness)—जैसे कि ऊपर बताया गया है कि संस्था का विकास लोक रीतियों, रूढ़ियों, रिवाजों के साथ होता है। ये सभी अभौतिक संस्कृति का ही भाग हैं तथा अभौतिक संस्कृति के इन पक्षों को हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं। इस तरह संस्था में अमूर्त्तता का पक्ष शामिल होता है। इसे स्पर्श नहीं सकते केवल महसूस किया जा सकता है। संस्था किसी स्पर्श करने वाली वस्तुओं का संगठन नहीं बल्कि नियमों, कार्य प्रणालियों, लोक रीतों का संगठन है जोकि मनुष्य की ज़रूरत को पूरा करने के लिए विकसित होती है।

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प्रश्न 2.
एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

प्रश्न 3.
विवाह के विभिन्न प्रकारों अथवा स्वरूपों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
प्रत्येक समाज अपने आप में दूसरे समाज से अलग है। प्रत्येक समाज के अपने-अपने नियम, परम्पराएं व संस्थाएं होती हैं व प्रत्येक समाज में अलग-अलग संस्थाओं के भिन्न-भिन्न प्रकार होते हैं। क्योंकि प्रत्येक समाज में इन प्रकारों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बनाया जाता है। इस तरह विवाह नामक संस्था की अलगअलग समाजों में उनकी आवश्यकताओं के मुताबिक प्रकार किस्में या रूप हैं। इन रूपों का वर्णन निम्नलिखित है-

1. एक विवाह (Monogamy)-आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन अधिक है। इस तरह से विवाह में एक आदमी एक समय में एक ही औरत से विवाह करवा सकता है। एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थाई, गहरे, प्यार व हमदर्दी पूर्ण होते हैं। इसमें बच्चों का पालन-पोषण सही ढंग से हो सकता है और उन्हें माता-पिता का भरपूर प्यार मिलता है। इस तरह के विवाह में पति-पत्नी में पूरा तालमेल होता है जिससे परिवार में झगड़े होने की सम्भावना काफ़ी कम रहती है। किन्तु इस तरह के विवाह में कई समस्याएं भी हैं। पत्नी अथवा पति के अस्वस्थ होने पर सारे काम रुक जाते हैं व बच्चों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया जा सकता।

2. बहु पति विवाह (Polyandry)- इसमें एक स्त्री के कई पति होते हैं। यह आगे दो प्रकार का होता है।

(i) भ्रातृ बहुपति विवाह (Fraternal Polyandry)-इस विवाह के अनुसार स्त्री के सारे पति आपस में भाई होते हैं पर कभी-कभी ये सगे भाई न होकर एक ही जाति के व्यक्ति भी होते हैं। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है और उसके सब भाई उस पर पत्नी के रूप में अधिकार मानते हैं व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी पत्नी भी सब भाइयों की पत्नी होती है जितने बच्चे होते हैं वह सब बड़े भाई के माने जाते हैं व सम्पत्ति में अधिकार भी सबसे अधिक बड़े भाई या सबसे पहले पति का होता है। भारत में ये प्रथा मालाबार, पंजाब, नीलगिरि, लद्दाख, सिक्किम व आसाम में पाई जाती है।

(ii) गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non Fraternal Polyandry) बहुपति विवाह के इस प्रकार में एक स्त्री के पति आपस में भाई नहीं होते। यह सब पति भिन्न-भिन्न स्थान के रहने वाले होते हैं। ऐसे हालात में स्त्री निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है व फिर दूसरे के पास व फिर तीसरे के पास। इस तरह सम्पूर्ण वर्ष वह अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय में एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दौरान दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने के पश्चात् कोई एक पति एक विशेष संस्कार से उसका पिता बन जाता है। वह गर्भावस्था में स्त्री को तीर कमान भेंट करता है व उसे बच्चे का पिता मान लिया जाता है। बारी-बारी सभी पतियों को ऐसा करने दिया जाता है।

3. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह की प्रथा भारतवर्ष में पुराने समय में प्रचलित थी। राजा और उसके बड़े-बड़े मन्त्री बहुत सी पत्नियों को रखा करते थे। उस समय राजा के स्तर का अनुमान उसके द्वारा रखी गयी पत्नियों से होता था। मध्यकाल में भी मुग़ल वंशों में बहुत-सी पत्नियां रखने की प्रथा प्रचलित थी और अब भी मुसलमानों में चार विवाहों की प्रथा प्रचलित है। पुरुष की लैंगिक इच्छा को पूरा करने और परिवार की इच्छा को पूरा करने के कारण विवाह की इस प्रथा को अपनाया गया। इस प्रथा से समाज में बहुत सी समस्याएं पैदा हो गयी हैं और समाज में स्त्री को निम्न स्तर प्राप्त होता है।

4. साली विवाह (Sarorate-Marriage)—इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की बहन के साथ विवाह करता है। साली के साथ विवाह दो तरह का होता है। साली विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकाली साली विवाह में पति अपनी पत्नी की सभी छोटी बहनों को अपनी पत्नी जैसा समझ लेता है। विवाह की इस पहली प्रथा का प्रचलन दूसरी प्रथा से अधिक प्रचलित है। इस प्रथा में परिवार के टूटने की शंका नहीं रहती और बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह से हो जाता है।

5. देवर विवाह (Levirate Marriage)-विवाह की इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति की मौत के बाद पति के छोटे भाई से विवाह करती है। इस प्रथा के कारण ही एक तो घर की जायदाद सुरक्षित रहती है और दूसरा परिवार भी टूटने से बच जाता है, तीसरा बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है। इस प्रथा के अनुसार लड़के के माता-पिता को लड़की के माता-पिता का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

6. प्रेम विवाह (Love Marriage)-आधुनिक समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है। इस विवाह में लड़का और लड़की में कॉलेज में पढ़ते हुए या इकट्ठे दफ्तर में नौकरी करते हुए पहली नज़र में ही प्यार हो जाता है। उनमें आपस की मुलाकातों का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। वह दोनों होटल, सिनेमा, पार्क आदि में मिलते रहते हैं। वह सच्चे प्यार और आपस में जीने मरने की कसमें खाते हैं। समाज उनको विवाह करने से रोकता है और उनके रास्ते में कई तरह की समस्याएं खड़ी करने की कोशिश की जाती है पर वह दोनों अपने फैसले पर अटल रहते हैं। यदि लड़का और लड़की के माता-पिता उनके विवाह को इजाजत नहीं देते हैं। वह दोनों अदालत में जाकर कानूनी तौर पर विवाह कर लेते हैं। इस तरह इस विवाह को प्रेम विवाह कहा जाता है।

7. अन्तर्विवाह (Endogamy)—अन्तर्विवाह के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी ही जाति की स्त्री से विवाह करवाना पड़ता था। अन्तर्विवाह के गुणों का वर्णन इस प्रकार है। इसके साथ रक्त की शुद्धता को सम्भाल कर रखा जाता है। इसके साथ समाज में एकता को बनाये रखा जाता है। इसके साथ सामूहिक जाति की सम्पत्ति सुरक्षित रहती है। इस विवाह में स्त्रियां काफ़ी खुश रहती हैं क्योंकि अपनी ही संस्कृति मिलने से उनका आपस में तालमेल अच्छा बैठता है। परन्तु दूसरी तरफ इस तरह का विवाह देश की एकता में रुकावट पैदा करता है। इस तरह जातिवाद को बढ़ावा मिलता है जिससे सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा होती है।

8. बहिर्विवाह (Exogemy)-बहिर्विवाह का अर्थ अपने गोत्र अपने गांव के बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना है। एक ही गोत्र और गांव के आदमी और औरत आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्टमार्क के अनुसार ऐसे विवाह का उद्देश्य नज़दीकी रिश्तेदारी में यौन सम्बन्धों को स्थापित न करना। यह विवाह प्रगतिवाद का सूचक है। इस विवाह से अलग-अलग समूहों में सम्बन्ध बढ़ता है। जैविक दृष्टिकोण से भी इस विवाह को उचित माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें लड़का और लड़की को एक-दूसरे के विचारों को समझने में मुश्किल होती है। बर्हिविवाह करने से अलग-अलग समूहों में प्यार बढ़ता है। इस तरह राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिलता है।

9. अनुलोम विवाह (Anulom Marriage)-अनुलोम हिन्दू विवाह का एक नियम है जिसमें उच्च जाति या पुरुष अपने से नीची जाति की लड़कियों से विवाह कर सकता है। उदाहरण के तौर पर एक ब्राह्मण व्यक्ति क्षत्रिय, वैश्य और निम्न जाति की लड़की के साथ विवाह कर सकता था। इसका मुख्य कारण निम्न जाति के लोग उच्च जाति में विवाह करना अपनी इज्जत समझते थे क्योंकि इस तरह के विवाह से उनको भी समाज में उच्च स्थान मिल जाता था।

10. प्रतिलोम विवाह (Pratilom Marriage)–इस तरह के विवाह में निम्न जाति के पुरुष उच्च जाति की स्त्रियों के साथ विवाह करते थे। मनु ने इस तरह के विवाह का सख्त विरोध किया है। मनु के अनुसार इस तरह के विवाह से पैदा हुई सन्तान को अस्पृश्य माना जाता है। मनु ने ब्राह्मण स्त्री और निम्न जाति पुरुष से पैदा हुई सन्तान को चंडाल की संज्ञा दी थी। इसलिए इस तरह का विवाह हमेशा संकीर्णता के साथ देखा गया है। इस तरह से पैदा हुई सन्तान को किसी भी वंश के नाम को धारण नहीं कर सकती थी।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 4.
विवाह को परिभाषित कीजिए। जीवन साथी चुनने के नियमों को विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

साथी के चुनाव के नियम (Rules of Mate Selection)—प्रत्येक समाज में जीवन साथी के चुनाव के नियम पाए जाते हैं, जो व्यक्ति को यह बताते हैं कि वह किस लड़की या लड़के से विवाह करवा सकता है व किससे नहीं करवा सकता यह नियम निम्नलिखित है-

  1. अन्तर्विवाह (Endogamy)
  2. बहिर्विवाह (Exogamy) –
  3. अनुलोम (Hyperpamy)
  4. प्रतिलोम (Hypogamy)

अन्तर्विवाह (Endogamy)-अन्तर्विवाह के नियम के द्वारा व्यक्ति को अपनी जाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति आगे उप-जातियों में (Sub-caste) बंटी हुई थी। इस प्रकार व्यक्ति को उपजाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति प्रथा के समय अन्तः विवाह के इस नियम को बहुत सख्ती से लागू किया गया था। यदि कोई व्यक्ति इस नियम की उल्लंघना करता था तो उसको जाति में से बाहर निकाल दिया जाता था व उससे हर तरह के सम्बन्ध भी तोड़ लिए जाते थे। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार समाज को चार जातियों में बांटा हुआ था।

यह जातियां आगे उप-जातियों में बंटी हुई थीं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी उप-जाति में ही विवाह करवाता था। वर्तमान भारतीय समाज में विवाह के इस रूप में काफ़ी परिवर्तन देखने को मिलता है।

होईबल (Hoebal) के अनुसार, “अन्तर्विवाह एक सामाजिक नियम है जो यह मांग करता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक समूह में जिसका वह सदस्य है विवाह करवाए।”
(“Endogamy is a social rule which demands that a person should marry with in a group at in which he is a member.”)

बहिर्विवाह (Exogamy) – विवाह की संस्था एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। कोई भी समाज किसी जोडे को बिना विवाह के पति-पत्नी के सम्बन्धों को स्थापित करने की स्वीकृति नहीं देता। इसी कारण प्रत्येक समाज विवाह स्थापित करने के लिए कुछ नियम बना लेता है। सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य साथी का चुनाव करना होता है। बहिर्विवाह में भी साथी के चुनाव करने का नियम होता है।

कई समाज में जिन व्यक्तियों में रक्त के सम्बन्ध होते हैं या अन्य किसी किस्म से वह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों तो ऐसी अवस्था में उन्हें विवाह करने की स्वीकृति नहीं दी जाती।

इस प्रकार बहिर्विवाह का अर्थ होता है कि व्यक्ति को अपने समूह में विवाह करवाने की मनाही होती है। एक ही माता-पिता के बच्चों को आपस में विवाह करने से रोका जाता है।

मुसलमानों में माता-पिता के रिश्तेदारों में विवाह करने की इजाजत दी जाती है। इंग्लैण्ड के रोमन कैथोलिक चर्च में व्यक्ति को अपनी पत्नी की मौत के पश्चात अपनी साली से विवाह करने की इजाजत नहीं दी जाती।
ऑस्ट्रेलिया में लड़का अपने पिता की पत्नी से विवाह कर सकता है यदि वह उसकी सगी मां नहीं है।

बर्हिविवाह के नियम अनुसार व्यक्ति को अपनी जाति, गोत्र, स्पर्वर, सपिंड आदि में विवाह करवाने की आज्ञा नहीं दी जाती इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं

1. गोत्र बहिर्विवाह-गोत्र बहिर्विवाह का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति को अपने गोत्र में विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती। अर्थात् एक ही गोत्र के व्यक्तियों में विवाहित सम्बन्ध स्थापित नहीं किए जा सकते। गोत्र का अर्थ गायों को पालने वाला समूह होता है। मैक्स मूलर के अनुसार जो लोग अपनी गायों को एक ही स्थान पर बाँधते थे, उनमें नैतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते थे जिस कारण वह आपस में विवाह नहीं करवा सकते थे। इस प्रकार गोत्र में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें नैतिक सम्बन्ध या रक्त सम्बन्ध पाए जाएं। इसी कारण एक गोत्र के व्यक्ति को दूसरे गोत्र के व्यक्ति से विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती।

2. स्पर्वर बहिर्विवाह-स्पर्वर बहिर्विवाह के नियम अनुसार एक ही पर्वर (Pravara) के लड़के व लड़की को विवाह करवाने की इजाजत नहीं होती। पर्वर में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें साझे ऋषि-पूर्वज होते हैं। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने पर्वर के पूर्वजों से सम्बन्धित औरत से विवाह नहीं करवा सकता।

3. सपिंडा बहिर्विवाह-सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम अनुसार उन सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी एक ही होते हैं। पुत्र के शरीर में माता-पिता दोनों के रक्त कण होते हैं। वैज्ञानिकों ने रक्त से सम्बन्धित रिश्तेदारों में माता द्वारा पांच पीढ़ियों व पिता द्वारा सात पीढ़ियों के व्यक्तियों को शामिल किया है। इस तरह से सम्बन्धित लोगों में पुरुष व स्त्री विवाह नहीं करवा सकते। माता व पिता की तरफ से पीढ़ियों को निश्चित करना समाज के अपने ऊपर निर्भर करता है।

गांव बहिर्विवाह-इस नियम के अनुसार एक गांव के व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। उत्तरी भारत में विवाह का यह नियम काफ़ी प्रचलित है। एक ही गांव के व्यक्तियों को आपस में सगे-सम्बन्धियों से भी अधिक माना जाता है। जैसे पंजाब में आमतौर से यह शब्द कहे जाते हैं कि गांव की बहन बेटी सबकी ही होती इसके अतिरिक्त गांव में लोग एक-दूसरे को रिश्तेदारियों के नाम से ही बुलाना शुरू कर देते हैं।

5. टोटम बहिर्विवाह-इस विवाह के नियम के अनुसार एक टोटम की पूजा करने वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। टोटम का अर्थ किसी पौधे या जानवर आदि को अपना देवता मान लेते हैं। इस प्रकार का नियम भारत के कबाईली लोगों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति अपने टोटम से बर्हिविवाह करवाता है।

अनुलोम विवाह (Hypergamy)-अनुलोम विवाह का वह नियम होता है जिसमें लड़की का विवाह उसके बराबर या उससे ऊंची जाति वाले लड़के के साथ किया जाता है। दूसरे अर्थ अनुसार उच्च जाति का पुरुष, निम्न जाति की स्त्री से जब विवाह करवाता था तो उसे अनुलोम विवाह का नाम दिया जाता था। इस प्रकार के विवाह को कुलीन विवाह का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार के विवाह में ब्राह्मण लड़की, केवल ब्राह्मण लड़के से ही विवाह करवा सकती है। क्षत्रिय लड़की क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है। वैश्य लड़की वैश्य लड़के या क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है।

इसके अतिरिक्त ब्राह्मण लड़का किसी भी जाति की लड़की से विवाह करवा सकता है। क्षत्रिय लड़का ब्राह्मण लड़की के अलावा बाकी किसी भी लड़की से विवाह करवा सकता है। वैश्य लड़का ब्राह्मण व क्षत्रिय लड़की के अलावा किसी भी लड़की से व निम्न जाति का लड़का केवल निम्न जाति की लड़की से ही विवाह करवा सकता है। जब अन्तः विवाह के द्वारा समाज में समस्याएं पैदा होनी आरम्भ हो गईं तो अनुलोम विवाह को प्रोत्साहन मिला।

कुलीन विवाह भी अनुलोम विवाह की भान्ति थे। इस नियम अनुसार एक ही जाति का व्यक्ति, उसी जाति या निम्न जाति की लड़की से विवाह करवा सकता था। कुलीन विवाह के पाए जाने के कुछ कारण भी थे। एक तो यह कि प्रत्येक कोई अपनी लड़की का विवाह उच्च जाति के लड़के से करना चाहता था। उच्च जाति में लड़कियों की कमी होनी शुरू हो जाती थी। इस कारण कई लड़कों को बिना विवाह के ही ज़िन्दगी गुजारनी पड़ जाती थी। लड़की की कीमत बढ़ जाती थी। कई बार उच्च जाति का वर ढूंढ़ते समय उन्हें बड़ी उम्र के व्यक्ति से अपनी लड़की का विवाह करना पड़ जाता था। बहु विवाह की प्रथा भी इसी नियम के कारण ही पाई जाती थी। इसके अतिरिक्त अनैतिकता में भी बढ़ोत्तरी हुई व औरत की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई। इस प्रकार कुलीन विवाह की प्रथा ने भी हमारे भारतीय समाज में कई सामाजिक बुराइयां पैदा की जिन्हें समाप्त करने के लिए सरकार को कई कानून बनाने पड़े।

प्रतिलोम विवाह (Hypogamy)-अन्तर्जातीय विवाह का दूसरा नियम प्रतिलोम है। यह नियम अनुलोम के बिल्कुल विपरीत है। इस नियम के अनुसार निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था। जैसे ब्राह्मण जाति की लड़की क्षत्रिय जाति के लड़के से विवाह करवाए या फिर क्षत्रिय जाति का लड़का ब्राह्मण लड़की से। प्रतिलोम विवाह के नियम में यदि निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था तो उससे पैदा सन्तान किसी भी जाति में नहीं रखी जाती थी व उसको चाण्डाल कहा जाता था।

अन्तर्जातीय विवाह के दोनों रूप हमारे भारतीय समाज में विकसित रहे हैं। वर्तमान समाज में अन्तर्जातीय विवाह की पाबन्दी नहीं है। जाति प्रथा का भेद-भाव भी हमारे भारतीय समाज में समाप्त हो गया है। अन्तर्जातीय विवाह की मदद से हम भारतीय समाज में पाई जा रही कई सामाजिक बुराइयों का खात्मा कर सकेंगे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
परिवार किसे कहते हैं ? परिवार की मूलभूत विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
यदि हम मानवीय समाज का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि सबसे पहला समूह परिवार ही है। प्राचीन समय में तो श्रम-विभाजन परिवारों के आधार पर ही होता था। हमें कोई भी समाज ऐसा नहीं मिलेगा जहां कि परिवार नाम की संस्था न हो। आदिम समाज से लेकर आधुनिक समाज तक प्रत्येक स्थान पर यह संस्था मौजूद रही है। चाहे और बहुत सारी संस्थाएं विकसित हैं या समाप्त हो गईं पर परिवार की संस्था वहीं पर ही खड़ी है। चाहे आजकल के विकसित समाज में परिवार का महत्त्व कुछ कम हो गया है, परिवार के बहुत सारे कार्य अन्य संस्थाओं ने ले लिए हैं, परन्तु आजकल भी मानव की अधिकतर क्रियाएं परिवार को केन्द्र मानकर ही होती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिस तरह का परिवार बच्चे को प्राप्त होता है, उसी प्रकार का चरित्र बच्चे का बनता है व वह उसी अनुसार आगे चलकर कार्य करता है। सामाजिक विघटन व समाज की बहुत सारी समस्याओं के कारण ही परिवार में विघटन होता है।

परिवार सामाजिक संगठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण समूह है, अंग्रेजी शब्द ‘Family’ रोमन भाषा के शब्द ‘Famulous’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नौकर’। रोमन कानून के अनुसार इस शब्द का अर्थ ऐसे समूह से है, जिसमें नौकर, दास या मालिक वह सभी सदस्य शामिल होते हैं जो रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। यह एक ऐसा समूह है, जो आदमी व औरत की लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज द्वारा बनाया जाता है। बच्चा परिवार में पल कर बड़ा होता है व समाज का एक नागरिक बनता है।

साधारण शब्दों में परिवार का अर्थ पति-पत्नी व उनके बच्चों से है, पर समाज शास्त्र में इसका अर्थ केवल लोगों का संग्रह ही नहीं बल्कि उनके आपसी सम्बन्धों की व्यवस्था है व इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना, समाजीकरण करना व लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति करना है।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. मैकाइवर (Maclver) के अनुसार, “परिवार बच्चों की उत्पत्ति व पालन-पोषण की व्यवस्था करने के लिए काफ़ी रूप से निश्चित व स्थायी यौन सम्बन्धों से परिभाषित एक समूह है।”

2. जी० पी० मर्डोक (G. P. Murdock) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है, जिसकी विशेषताएं साझी रिहायश, आर्थिक सहयोग व सन्तान की उत्पत्ति या प्रजनन हैं। इसमें दोनों लिंगों के बालिग शामिल होते हैं, जिनमें कम-से-कम दो में समाज द्वारा स्वीकृत लैंगिक सम्बन्ध होता है व लैंगिक सम्बन्धों में बने इन बालिगों में अपने या स्वीकृत एक या अधिक बच्चे होते हैं।”

3. एच० एम० जॉनसन (H. M. Johnson) के अनुसार, “परिवार रक्त, विवाह या गोद लेने के आधार पर सम्बद्ध दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह है। इन सभी व्यक्तियों को एक परिवार का सदस्य समझा जाता है।”

इस प्रकार परिवार वह समूह है जिसमें आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को समाज के द्वारा स्वीकृत किया जाता है। यह एक सर्व व्यापक समूह है। इसके अर्थ के बारे में अन्त में हम यह कह सकते हैं कि परिवार एक जैविक इकाई है जिसको लैंगिक सम्बन्धों के लिए एक संस्था के तौर पर स्वीकृत किया जाता है। इसमें सदस्य एक दूसरे से निजी रूप से प्रजनन की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि परिवार में मातापिता व बच्चों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्येक समाज में विकसित हैं।

विशेषताएं (Characteristics)-

1. सर्वव्यापकता (Universality)-परिवार एक सामाजिक समूह है। यह मानवीय इतिहास में पहली संस्था के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्रत्येक समय पर प्रत्येक समाज में यह किसी-न-किसी किस्म में विकसित रहा है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य ज़रूर होता है।

2. भावात्मक आधार (Emotional Basis)-परिवार मानवीय समाज की नींव होता है जो व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होती है जैसे-सन्तान उत्पत्ति, पति-पत्नी सम्बन्ध, वंश परम्परा कायम रखना, जायदाद की सुरक्षा आदि जैसी भावनाएं भी इसमें सम्मिलित होती हैं व इसके साथ ही सहयोग, प्यार, त्याग इत्यादि की भावना का भी विकास होता है जो समाज की प्रगति व विकास के लिए भी आवश्यक होता है।

3. रचनात्मक प्रभाव (Formative Influence) सामाजिक संरचना में परिवार को एक महत्त्वपूर्ण इकाई माना जाता है। परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी रचनात्मक प्रभाव डालता है। परिवार ही पहली ऐसी संस्था होती है जिसमें रहकर बच्चा सामाजिक व्यवहार के बारे में जानकारी लेता है। व्यक्ति का बहुपक्षीय विकास परिवार की संस्था में ही हो सकता है।

4. लघु आकार (Small Size)-परिवार का आकार सीमित होता है क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया होता है या जिनमें विवाह के सम्बन्ध होते हैं उसे ही परिवार में शामिल किया जाता है। प्राचीन समय में जब कृषि प्रधान समाज होता था तो संयुक्त परिवार पाया जाता था जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताया-ताई इकट्ठे मिलकर रहते थे। जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का विकास हुआ, स्त्रियों का नौकरी करना आरम्भ हुआ इत्यादि के साथ मूल परिवार अस्तित्व में आया जिसमें माता-पिता व बच्चे ही केवल शामिल किए जाते हैं। छोटे आकार का अर्थ होता है कि परिवार में व्यक्ति की सदस्यता केवल जन्म पर आधारित होती है व इसमें रक्त सम्बन्ध भी पाए जाते हैं।

5. सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थान (Central position in the Social Structure)-परिवार पर हमारा सारा समाज आधारित होता है व अलग-अलग सभाओं का निर्माण भी परिवार से ही होता है। इसी कारण सामाजिक संरचना में इसको केन्द्रीय स्थान प्राप्त होता है। आरम्भिक समाज में संगठन परिवार पर ही आधारित होता था। सामाजिक प्रगति भी इस पर आधारित होती थी। चाहे आजकल के समय में अन्य संस्थाओं ने परिवार के कई काम ले लिए हैं परन्तु फिर भी कुछ काम समाज के लिए परिवार जो कर सकता है, वह दूसरी संस्थाएं नहीं कर सकती।

6. सदस्यों की ज़िम्मेदारी (Responsibility of the members)—परिवार का प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे से जुड़ा होता है व परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को भी संभालते हैं। इसमें किसी भी सदस्य में स्वार्थ की भावना नहीं होती बल्कि वह जो कुछ भी करता है अपने परिवार के विकास के लिए ही करता है। यहां तक कि उसमें त्याग की भावना का विकास भी परिवार में रहकर ही होता है। जिस तरह के निजी सम्बन्ध परिवार के सदस्यों में पाए जाते हैं उस प्रकार के सम्बन्ध किसी दूसरी संस्था में नहीं पाए जाते। परिवार में यदि कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो दूसरे सदस्य अपना फर्ज़ समझने लगते हैं कि उस व्यक्ति की सेवा करें। इस प्रकार उनमें सहयोग की भावना का भी विकास हो जाता है।

7. यौन सम्बन्ध (Sexual relation)-परिवार के द्वारा ही आदमी व औरत में यौन सम्बन्धों की स्थापना होती है क्योंकि समाज के द्वारा स्वीकृति भी विवाह के पश्चात् ही परिवार का निर्माण करने की होती है। आरम्भिक समाज में यौन सम्बन्धों की उत्पत्ति से सम्बन्धित किसी प्रकार के कोई नियम नहीं होते थे तो परिवार का वास्तविक रूप भी नहीं था। हमारे सामने समाज भी विघटन की दिशा की ओर अग्रसर था।

प्रश्न 6.
परिवार के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझाइये ।
उत्तर-
अलग-अलग समाजों में अलग-अलग आधारों पर कई प्रकार के परिवार पाए जाते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(A) सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Authority)-सत्ता के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. पित प्रधान परिवार (Patriarchal Family)
  2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)

1. पितृ प्रधान परिवार (Patriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार की किस्म में सम्पूर्ण शक्ति आदमी के हाथ में होती है। परिवार का मुखिया भी आदमी को बनाया जाता है। वंश परम्परा भी पिता पर ही निर्भर होती है। विवाह के पश्चात् औरत, आदमी के घर रहने लग जाती है व जायदाद भी केवल लडकों के बीच बांटी जाती है। घर में सबसे बड़े लड़के को सबसे अधिक आदर व सम्मान मिलता है। उसकी घर में इज्ज़त पिता के बराबर ही होती है। घर के हर तरह के ज़रूरी मामलों में भी आदमियों की ही दखलअंदाजी को ठीक समझा जाता है। यदि हम प्राचीन हिन्दू समाज की तरफ देखें तो भी वैदिक ग्रन्थों के अनुसार आदमी को ही औरत के लिए परमात्मा समझा जाता था। पिता के मरने के पश्चात् उसके सारे अधिकार उनके पुत्र को मिल जाते हैं।

2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार में स्त्री जाति की ही समाज में प्रधानता होती थी। घर की सारी जायदाद की मलकीयत भी उसके हाथ में होती थी। परिवार की स्त्रियों का ही सम्पत्ति पर अधिकार होता है। विवाह के पश्चात् लड़का-लड़की के घर रहने चला जाता था। पुरोहितों का काम भी स्त्रियां ही करती थीं। परिवार की जायदाद का विभाजन भी स्त्रियों के बीच ही होता था। स्त्री की वंश- परम्परा ही आगे चलती थी। मैकाइवर ने मात प्रधान परिवार की कुछ विशेषताओं का वर्णन किया जो निम्नानुसार है –

  • इन बच्चों का वंश परिवार में मां के वंश के साथ निर्धारित होता है। इसलिए बच्चे पिता के कुल के नहीं बल्कि मां के कुल से सम्बन्धित समझे जाते हैं।
  • स्त्री व उसकी मां, भाई-बहन व बहनों के बच्चे शामिल होते हैं।
  • इन परिवारों के बीच पुत्र को पिता से कोई सम्पत्ति नहीं प्राप्त होती क्योंकि सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार माता द्वारा निश्चित किए जाते हैं।
  • सामाजिक सम्मान के पद पुत्र की बजाए भांजे को मिलते हैं।
  • इन परिवारों का अर्थ यह नहीं कि समाज में सभी अधिकार औरतों के होते हैं, आदमियों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते। कई क्षेत्रों में पुरुषों को कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु मिलते औरतों के द्वारा ही हैं।

(B) विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Marriage)विवाह के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygamous Family)
  3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)

1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)-जब एक पुरुष एक स्त्री से या एक स्त्री एक पुरुष से विवाह करवाती है तो इस विवाह के आधार पर जो परिवार पाया जाता है उसको एक विवाह परिवार का नाम दिया जाता है। आधुनिक समय में इस परिवार को अधिक महत्ता प्राप्त है। इस परिवार की किस्म में सदस्यों का रहन-सहन का दर्जा ऊंचा होता है। बच्चों की परवरिश बहुत अच्छे ढंग से होती है। पुरुष व स्त्री के सम्बन्धों में भी बराबरी पाई जाती है। इसमें बच्चों की संख्या भी बहुत कम होती है। जिस कारण परिवार का आकार छोटा होता है।

2. बहु-पत्नी परिवार (Polygamous Family)-परिवार की इस प्रकार में एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाह करवाता है। आरम्भ के राजा-महाराजाओं के समय इस प्रकार के विवाह द्वारा पाए गए परिवार को महत्ता प्राप्त थी। राजा-महाराजा कितने-कितने विवाह करवा लेते थे व पैदा हुए बच्चों का सम्मान भी काफ़ी होता था। फर्क कई बार यह होता था कि पहली पत्नी से पैदा हुए बच्चे को राजगद्दी दी जाती थी। आधुनिक समय में भारत में कानून द्वारा इस प्रकार के विवाह की पाबन्दी लगा दी है।

3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)-इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के कितने ही पति होते थे। इसमें दो प्रकार पाए जाते हैं। इस प्रकार के परिवार को भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है व दूसरे प्रकार के परिवार में स्त्री के सभी पतियों का भाई होना ज़रूरी नहीं होता। इस कारण इसको गैर भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है। इस प्रकार के परिवार में स्त्री बारी-बारी सभी पतियों के पास रहती है। कुछ कबायली समाज में अभी भी इस प्रकार के विवाह की प्रथा के आधार पर परिवार पाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर देहरादून के ‘ख़स’ कबीले व आस्ट्रेलिया के कुछ कबीलों में भी इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

(C) वंश के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Nomenclature)-

  1. पितृ वंशी परिवार (Patrilineal)
  2. मातृ वंशी परिवार (Matrilineal)
  3. दो वंश-नामी परिवार (Bilinear)
  4. अरेखकी परिवार (Nonunilineal)

पितृ वंशी परिवार में व्यक्ति का वंश अपने पिता वाला होता है। इस प्रकार का परिवार आजकल भी पाया जा रहा है। मात वंशी परिवार में मां के वंश नाम ही बच्चों को प्राप्त होता है। दो वंश नामी परिवार में माता व पिता दोनों का वंश साथ-साथ चलता है व अरेखकी परिवार में वंश के रिश्तेदार जो माता द्वारा या पिता द्वारा होते हों, इसके आधार पर पाया जाता है।

(D) रहने के स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Residence)—इस आधार पर परिवार के तीन प्रकार हैं-

  1. पितृ स्थानीय परिवार (Patrilocal Family)
  2. मातृ स्थानीय परिवार (Matrilocal Family)
  3. नव-स्थानीय परिवार (Neolocal Family)

पितृ स्थानीय परिवार में विवाह के बाद लड़की पति के घर जाकर रहने लग जाती है व मातृ स्थानीय परिवार में पति विवाह के पश्चात् पत्नी के घर रहने लग जाता है व नव स्थानीय परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी दोनों अपना अलग किस्म का घर बनाकर रहने लग जाते हैं।

(E) रिश्तेदारी के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Relatives)- लिंटन ने इस प्रकार के परिवारों को दो भागों में बांटा है-

  1. रक्त सम्बन्धी परिवार (Consanguine family)
  2. विवाह सम्बन्धी परिवार (Conjugal family)

रक्त सम्बन्धी परिवार में केवल लिंग सम्बन्ध नहीं बल्कि दूसरे ही शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार में सम्बन्ध व्यक्ति के जन्म पर आधारित होते हैं। यह तलाक होने पर भी टूटता नहीं। विवाह सम्बन्धी परिवार में पतिपत्नी व उनके अविवाहित बच्चे पाए जाते हैं।
इस प्रकार का परिवार पति-पत्नी के तलाक होने के पश्चात् टूट जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
समकालीन समय में परिवार संस्था में होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आधुनिक समय में परिवार नामक संस्था में हर पक्ष से परिवर्तन आ गए हैं क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहे हैं, उसी तरह से पारिवारिक व्यवस्था भी बदल रही है। परिवार की बनावट और कामों पर नए हालातों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। अब हम देखेंगे कि परिवार के ढांचे और कामों में किस तरह के परिवर्तन आए हैं-

1. स्थिति में परिवर्तन-पुराने समय में लडकी के जन्म को शाप माना जाता था। उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए, औरत ने भी शिक्षा लेनी प्रारम्भ कर दी। पहले विवाह के बाद औरत सिर्फ़ पति पर ही निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफ़ी औरतें आर्थिक पक्ष से आज़ाद हैं और वह पति पर कम निर्भर हैं। कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज़्यादा है। इन हालातों में पारिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है। इसके अलावा पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहं एक-दूसरे से नीचा नहीं होता। इस कारण दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण हैं जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे काफ़ी बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।

शैक्षिक कार्यों में परिवर्तन-समाज में परिवर्तन आने के साथ इसकी सारी संस्थाओं में भी परिवर्तन आ रहे हैं। परिवार जो भी काम पहले अपने सदस्यों के लिए करता था। उनमें भी ख़ासा परिवर्तन आया है। प्राचीन समाजों में बच्चा शिक्षा परिवार में ही लेता था और शिक्षा भी परिवार के परम्परागत काम से सम्बन्धित होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी और जो काम पिता करता था वही काम पुत्र भी करता था और पिता के अधीन पुत्र भी उस काम में माहिर हो जाता था। धीरे-धीरे आधुनिकता के अधीन बच्चा पढ़ाई करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में जाने लग गया और इसके कारण वह अब परिवार के परम्परागत कामों से दूर होकर कोई अन्य कार्य अपनाने लग गया है। इस तरह परिवार का शिक्षा का परम्परागत काम उससे कट कर शिक्षण संस्थाओं के पास चला गया है।

2. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन-पहले समय में परिवार आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र होता था। रोटी कमाने का सारा काम परिवार ही करता था जैसे-आटा पीसने का काम, कपड़ा बनाने का काम, आदि। इस तरह जीने के सारे साधन परिवार में ही उपलब्ध थे। पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके साथ-साथ परिवार के यह सारे काम बड़े-बड़े उद्योगों ने ले लिए हैं, जैसे कपड़ा बनाने का काम कपड़े की मिलें कर रही हैं, आटा चक्की पर पीसा जाता है। इस तरह परिवार के आर्थिक कार्य कारखानों में चले गए हैं। इस तरह आर्थिक उत्पादन की ज़िम्मेदारी परिवार से दूसरी संस्थाओं ने ले ली है।

3. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन-पुराने समय में परिवार का एक मुख्य काम परिवार के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा देना होता है। परिवार में ही बच्चे को नैतिकता और धार्मिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं। पर जैसे-जैसे नई वैज्ञानिक खोजें और आविष्कार सामने आएं, वैसे-वैसे लोगों का दृष्टिकोण बदलकर धार्मिक से वैज्ञानिक हो गया। पहले ज़माने में धर्म की बहुत महत्ता थी, परन्तु विज्ञान ने धार्मिक क्रियाओं की महत्ता कम कर दी है। इस प्रकार परिवार के धार्मिक काम भी अब पहले से कम हो गए हैं।

4. सामाजिक कार्यों में परिवर्तन-परिवार के सामाजिक कार्यों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है। पराने ज़माने में पत्नी अपने पति को परमेश्वर समझती थी। पति का यह फर्ज़ होता था कि वह अपनी पत्नी को खुश रखे। इसके अलावा परिवार अपने सदस्यों पर सामाजिक नियन्त्रण रखने का भी काम करता था, पर अब सामाजिक नियन्त्रण का कार्य अन्य एजेंसियां, जैसे पुलिस, सेना, कचहरी आदि, के पास चला गया है। इसके अलावा बच्चों के पालनपोषण का काम भी परिवार का होता था। बच्चा घर में ही पलता था और बड़ा हो जाता था और घर के सारे सदस्य उसको प्यार करते थे। पर धीरे-धीरे आधुनिकीकरण के कारण औरतों ने घर से निकलकर बाहर काम करना शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश के लिए क्रैच खुल गए जहां बच्चों को दूसरी औरतों द्वारा पाला जाने लग गया। इस तरह परिवार के इस काम में भी कमी आ गई है।

5. पारिवारिक एकता में कमी-पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे, पर आजकल परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए हैं। हर किसी के अपने-अपने आदर्श हैं। कोई एक-दूसरे की दखलअंदाजी पसंद नहीं करता। इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं, खाते-पीते हैं पर एक-दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते। उनमें एकता का अभाव होता है।

प्रश्न 8.
नातेदारी को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रकारों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी का अर्थ (Meaning of Kinship)-Kin शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जोकि शब्द Cynn से निकला है जिसका अर्थ केवल ‘रिश्तेदार’ होता है और समाज शास्त्रियों और मानव वैज्ञानियों ने अपने अध्ययन के वक्त इस ‘रिश्तेदार’ शब्द को मुख्य रखा है। नातेदारी शब्द में रिश्तेदार होते हैं ; जैसे रक्त सम्बन्धी, सगे और रिश्तेदार।

आम शब्दों में समाज शास्त्र में नातेदारी व्यवस्था से मतलब उन नियमों के संकूल से है जो वंश क्रम, उत्तराधिकार, विरासत, विवाह, विवाह के बाहर लैंगिक सम्बन्धों, निवास आदि का नियमन करते हुए समाज विशेष में मनुष्य या उसके समूह की स्थिति उसके रक्त के सम्बन्धों या विवाहिक सम्बन्धों के पक्ष से निर्धारित करते हों। इसका यह अर्थ हुआ कि असली या रक्त और विवाह द्वारा बनाए और विकसित सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था नातेदारी व्यवस्था कहलाती है। इसका साफ़ एवं स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि वह सम्बन्ध जो खून द्वारा बनाए होते हैं और विवाह द्वारा बन जाते हैं वह सभी नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं। इसमें वह सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं जोकि खून और विवाह द्वारा बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, ताया-ताई, भाई-बहन, सास-ससुर, साला-साली आदि। यह सभी हमारे रिश्तेदार होते हैं और नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  1. लूसी मेयर (Lucy Mayor) के अनुसार, “बंधुत्व या नातेदारी में, सामाजिक सम्बन्धों को जैविक शब्दों में व्यक्त किया जाता है।”
  2. चार्ल्स विनिक (Charles Winick) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वह सम्बन्ध शामिल किए जाते हैं जो कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित और समाज द्वारा प्रभावित होते हैं।”
  3. लैवी टास (Levi Strauss) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था एक निरंकुश व्यवस्था है।”
  4. रैडक्लिफ ब्राऊन (Redcliff Brown) के अनुसार, “परिवार और विवाह के अस्तित्व से पैदा हुए या इसके परिणामस्वरूप पैदा हुए सारे सम्बन्ध नातेदारी व्यवस्था में होते हैं।”
  5. डॉ० मजूमदार (Dr. Majumdar) के अनुसार, “सारे समाजों में मनुष्य भिन्न प्रकार के बन्धनों में समूह में बंधे हुए हैं। इन बन्धनों में सबसे सर्वव्यापक और सबसे ज़्यादा मौलिक वह बन्धन है जोकि सन्तान पैदा करने पर आधारित है जोकि आन्तरिक मानव प्रेरणा है। यही नातेदारी कहलाती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि दो व्यक्ति रिश्तेदार होते हैं यदि उनके पूर्वज एक ही हों तो वह एक व्यक्ति की संतान होते हैं। नातेदारी व्यवस्था रिश्तेदारों की व्यवस्था है जोकि रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होता है। नातेदारी व्यवस्था सांस्कृतिक है और इसकी बनावट सारे संसार में अलगअलग है। नातेदारी व्यवस्था में उन सभी असली या नकली रक्त-सम्बन्धों को शामिल किया जाता है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। एक नाजायज़ बच्चे को नातेदारी में ऊंचा स्थान प्राप्त नहीं हो सकता, पर एक गोद लिए बच्चे को नातेदारी व्यवस्था में ऊंचा स्थान प्राप्त हो जाता है। यह एक विशेष नातेदारी समूह की व्यवस्था है जिसमें सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं और जो एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियां समझते हैं। इस तरह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त असली या नकली रक्त के और विवाह द्वारा स्थापित और गहरे सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था को नातेदारी व्यवस्था कहा जाता है।

नातेदारी के प्रकार (Types of Kinship)-व्यक्ति की नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। नातेदारी में सभी रिश्तेदारों में एक जैसे सम्बन्ध नहीं पाए जाते हैं। जो सम्बन्ध हमारे अपने माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चों के साथ होंगे वह हमारे अपने चाचे-भतीजे, मामा-मामी के साथ नहीं हो सकते क्योंकि हमारा अपने माता-पिता, पति-पत्नी के साथ जो सम्बन्ध है वह चाचा, भतीजे, मामा आदि के साथ नहीं हो सकता। उनमें बहुत ज्यादा गहरे सम्बन्ध नहीं पाए जाते। इस नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. प्राथमिक रिश्तेदार (Primary relatives)-पहली श्रेणी की नातेदारी में प्राथमिक रिश्तेदार जैसे, पतिपत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, माता-पुत्री, पिता-पुत्री, बहन-बहन, भाई-बहन, बहन-भाई, भाई-भाई आदि आते हैं। मरडोक के अनुसार, यह आठ प्रकार के होते हैं। यह प्राथमिक इसलिए होते हैं क्योंकि इनमें सम्बन्ध प्रत्यक्ष और गहरे होते हैं।

2. गौण सम्बन्धी (Secondary relations)-हमारे कुछ रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं जैसे, माता, पिता, बहन, भाई आदि। इनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता होता है। पर कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं जिनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता बल्कि, हम उनके साथ प्राथमिक रिश्तेदार के माध्यम के साथ जुड़े होते हैं जैसे-माता का भाई, पिता का भाई, माता की बहन, पिता की बहन, बहन का पति, भाई की पत्नी आदि। इन सब के साथ हमारा गहरा रिश्ता नहीं होता बल्कि यह गौण सम्बन्धी होते हैं। मर्डोक के अनुसार, यह सम्बन्ध 33 प्रकार के होते हैं।

3. तीसरे दर्जे के सम्बन्धी (Tertiary Kins) सबसे पहले रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं और फिर गौण सम्बन्धी अर्थात् प्राथमिक सम्बन्धों की मदद के साथ रिश्ते बनते हैं। तीसरी प्रकार के सम्बन्धी वह होते हैं जो गौण सम्बन्धियों के प्राथमिक रिश्तेदार हैं। जैसे पिता के भाई का पुत्र, माता के भाई की पत्नी-(मामी), पत्नी के भाई की पत्नी अर्थात् साले की पत्नी, माता की बहन का पति अर्थात् मौसा जी इत्यादि। मर्डोक ने इनकी संख्या 151 दी है।

इस प्रकार यह तीन श्रेणियों की नातेदारी होती है पर यदि हम चाहें तो हम चौथी और पांचवीं श्रेणी के बारे में ज्ञान सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 9.
सामाजिक जीवन में नातेदारी के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी व्यवस्था का सामाजिक संरचना में एक विशेष स्थान है। इसके साथ ही समाज की बनावट बनती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो समाज एक संगठन की तरह नहीं बन सकेगा और सही तरीके से काम नहीं कर सकेगा। इसलिए इसका महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है जिसका वर्णन अग्रलिखित है

1. नातेदारी सम्बन्धों के माध्यम से ही कबाइली और खेती वाले समाजों के बीच अधिकार और परिवार एवं विवाह, उत्पादन और उपभोग की पद्धति और राजनीतिक सत्ता के अधिकारों का निर्धारण होता है। शहरी समाजों में भी विवाह और पारिवारिक उत्सवों के समय नातेदारी सम्बन्धों का महत्त्व देखने को मिलता है।

2. नातेदारी, परिवार और विवाह में गहरा सम्बन्ध है। नातेदारी के माध्यम से ही इस बात का निर्धारण होता है कि कौन किसके साथ विवाह कर सकता है और कौन-कौन से सम्बन्धों की शब्दावली भी है। नातेदारी से ही वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान का निर्धारण होता है और वंश, गोत्र और खानदान में बहिर्विवाह का सिद्धान्त पाया जाता है।

3. पारिवारिक जीवन, वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान के सदस्यों के बीच नातेदारी के आधार पर ही जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों एवं कर्म-काण्डों में किसका क्या अधिकार और ज़िम्मेदारी है, इसका निर्धारण होता है, जैसे ; विवाह के संस्कार और इसके साथ जुड़े कर्म-काण्डों में बड़े भाई, मां और बुआ का विशेष महत्त्व है। मृत्यु के बाद आग कौन देगा, इसका सम्बन्ध भी नातेदारी पर निर्भर करता है। जिन लोगों को आग देने का अधिकार होता है, नातेदारी उनके उत्तराधिकार को निश्चित करती है। सामाजिक संगठन (जन्म, विवाह, मौत) और सामूहिक उत्सवों के मौकों और नातेदारी या रिश्तेदारों को बुलाया जाना जरूरी होता है, ऐसा करने के साथ सम्बन्धों में और मज़बूती बढ़ती है।

4. नातेदारी व्यवस्था के साथ समाज को मज़बूती मिलती है। नातेदारी व्यवस्था सामाजिक संगठन को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो सामाजिक संगठन टूट जाएगा और समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

5. नातेदारी व्यवस्था लैंगिक सम्बन्धों को निश्चित करती है। नातेदारी व्यवस्था में लैंगिक सम्बन्ध बनाने, हमारे समाज में वर्जित है। यदि नातेदारी व्यवस्था न हो तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी और नाजायज़ लैंगिक सम्बन्ध और अवैध बच्चों की भरमार होगी जिसके साथ समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

6. नातेदारी व्यवस्था विवाह निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने गोत्र में विवाह नहीं करवाना, माता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, पिता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, यह सब कुछ नातेदारी व्यवस्था पर भी निर्भर करता है। यदि यह व्यवस्था न हो तो विवाह करने में किसी भी नियम की पालना नहीं होगी जिसके कारण समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

7. नातेदारी व्यवस्था मनुष्य को मानसिक शान्ति प्रदान करती है। आजकल के औद्योगिक समाज में चाहे हमारे विचार Practical हो चुके हैं पर फिर भी मनुष्य नातेदारी के बन्धनों से मुक्त नहीं हो सका है। वह अपने बुजुर्गों की तस्वीरें घर में टांग कर रखता है, उनकी तस्वीरों का संग्रह करता है, मरने के बाद उनका श्राद्ध करता है। मनुष्य जाति नातेदारी पर आधारित समूहों में रही है। नातेदारी के बिना व्यक्ति एक मरे हुए व्यक्ति के समान है। हमारे रिश्तेदार हमें सबसे ज्यादा जानते हैं, पहचानते हैं। वह अपने आपको अपने परिवार का हिस्सा समझते हैं। यदि हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारे रिश्तेदार हमें मानसिक तौर पर शान्त करते हैं। हम अपने रिश्तेदारों में ही रह कर सबसे ज्यादा प्रसन्नता और आनन्द महसूस करते हैं।

8. हमारी नातेदारी ही हमारे विवाह और परिवार का निर्धारण करती है कि किसके साथ विवाह करना है, किसके साथ नहीं करना है। सगोत्र, अन्तर्जातीय विवाह सब कुछ ही नातेदारी पर ही निर्भर करता है। परिवार में ही खून और विवाह के सम्बन्ध पाए जाते हैं। नातेदारी के कारण ही विवाह और नातेदारी में व्यवस्था पैदा होती है।

प्रश्न 10.
वैवाहिक तथा रक्त सम्बन्धों में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
(i) रक्त संबंधी नातेदारी (Consanguinity) सगोत्र नातेदारी शुरुआती परिवार के आधार पर और इसमें पैदा हुए असली या नकली रक्त के वंश परम्परागत सम्बन्धों को सगोत्र नातेदारी कहते हैं। आम शब्दों में वह सभी रिश्तेदार या व्यक्ति जो रक्त के बन्धनों में बन्धे होते हैं उनको सगोत्र नातेदारी कहते हैं। रक्त का सम्बन्ध चाहे असली हो या नकली इसको नातेदारी व्यवस्था में तो ही ऊंचा स्थान प्राप्त होता है। यदि इस सम्बन्ध को समाज की मान्यता प्राप्त हो। उदाहरण के तौर पर नाजायज़ बच्चे को, चाहे उसके साथ भी रक्त सम्बन्ध होता है, समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती क्योंकि उसको समाज की मान्यता प्राप्त नहीं होती और गोद लिए बच्चे को, चाहे उसके साथ रक्त सम्बन्ध नहीं होता, समाज में मान्यता प्राप्त होती है और वह सगोत्र प्रणाली का हिस्सा होते हैं। रक्त सम्बन्धों को हर प्रकार के समाजों में मान्यता प्राप्त है।

इस तरह इस चर्चा से स्पष्ट है कि शुरुआती परिवार के आधार पर रक्त-वंश परम्परागत सम्बन्धों से पैदा हुए सारे रिश्तेदार इस सगोत्र नातेदारी प्रणाली में शामिल है। हम उदाहरण ले सकते हैं बहन-भाई, मामा, चाचा, ताया, नाना-नानी, दादा-दादी आदि। यहाँ यह बताने योग्य है कि रक्त सम्बन्ध सिर्फ़ पिता वाली तरफ से ही नहीं होता बल्कि माता वाली तरफ से भी होता है। इस तरह पिता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को पितृ पक्ष रिश्तेदार कहते हैं और माता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को मात पक्ष रिश्तेदार।

वर्गीकरण-खून के आधार पर आधारित रिश्तेदारों को अलग-अलग नामों के साथ जाना जाता है। एक ही मां-बाप के बच्चे, जो आपस में सगे भाई-बहन होते हैं, को सिबलिंग (Sibling) कहते हैं और सौतेले बहन-भाई को हॉफ़ सिबलिंग (Half sibling) कहते हैं। पिता वाली तरफ सिर्फ आदमियों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ आदमी होते हैं उनको सगा-सम्बन्धी (Agnates) कहते हैं और इसी तरह माता वाली तरफ सिर्फ औरतों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ औरतें होती हैं, उनको (Utrine) कहते हैं। इसी तरह वह लोग जो रक्त सम्बन्धों के कारण सम्बन्धित हों, उनको रक्त सम्बन्धी रिश्तेदार (Consanguined kin) कहा जाता है। इन रक्त सम्बन्धियों को दो हिस्सों में बांटा जाता है।

  • एक रेखकी रिश्तेदार (Unilineal Kin)-इस प्रकार की रिश्तेदारी में वह व्यक्ति आते हैं जो वंश क्रम की सीधी रेखा द्वारा सम्बन्धित हों जैसे पिता, पिता का पिता, पुत्र और पुत्र का पुत्र ।
  • कुलेटरल या समानान्तर रिश्तेदार (Collateral Kin)-इस प्रकार के रिश्तेदार वह व्यक्ति होते हैं, जो हर रिश्तेदारों के द्वारा असीधे तौर पर सम्बन्धित हों जैसे पिता का भाई चाचा, मां की बहन मौसी, मां का भाई मामा आदि।

(ii) विवाह संबंधी नातेदारी (Affinity)—इसको सामाजिक नातेदारी का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार की नातेदारी में उस तरह के रिश्तेदार शामिल होते हैं जो किसी आदमी या औरत के विवाह करने से पैदा होते हैं। जब किसी लड़के का लड़की से विवाह होता है तो उसका सिर्फ लड़की के साथ ही सम्बन्ध स्थापित नहीं होता बल्कि लड़की के माध्यम से उसके परिवार के बहुत सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसी तरह जब लड़की का लड़के के साथ विवाह होता है तो लड़की का भी लड़के के परिवार के सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इस तरह सिर्फ विवाह करवाने के साथ ही लड़का-लड़की के कई प्रकार के नए रिश्ते अस्तित्व में आ जाते हैं। इस तरह विवाह पर आधारित नातेदारी को विवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर जीजा-साला, साढू-जमाई, ससुर, ननद, भाभी, बहु, सास आदि। इस तरह की नातेदारी की प्राणीशास्त्री महत्ता के साथ-साथ सामाजिक महत्ता भी होती है। प्राणीशास्त्रीय महत्त्व तो पति-पत्नी के लिए है पर सास-ससुर, देवर, ननद, भाभी, साढ़, साली, साला, जमाई आदि रिश्ते सामाजिक होते हैं। मॉर्गन ने दुनिया के कई भागों में प्रचलित साकेदारियों का अध्ययन किया और इनको वर्णनात्मक और व्यक्तिनिष्ठ नामकरण के साथ तो मनुष्य श्रेणियों में बांटा है। वर्णनात्मक प्रणाली में आम-तौर पर विवाहिक सम्बन्धियों के लिए एक ही नाम दिया जाता है। ऐसे नाम नातेदारी की तुलना में सम्बन्ध के बारे में ज्यादा बताते हैं। व्यक्तिनिष्ठ शब्द असली सम्बन्धों के बारे में बताते हैं। जैसे-अंकल को हम मामा, चाचा, फुफड़ और मौसा के लिए प्रयोग करते हैं। यह पहले प्रकार की उदाहरण है। परन्तु फादर या पिता के लिए कोई शब्द प्रयोग नहीं हो सकते।

इस तरह Nephew को भतीजे या भांजे के लिए, cousin को मामा, चाचा, ताया, मासी, बुआ के बच्चों के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह Sister-in-law को साली और ननद और Brother-in-law को देवर तथा साले के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस तरह आधुनिक समाज में नए-नए शब्दों का प्रयोग किया जाता है। असल में यह सारे शब्द नातेदारी के सूचक हैं और विवाहिक नातेदारी पर आधारित होते हैं। जैसे व्यक्ति को जमाई का दर्जा, पति का दर्जा, औरत को बहू और पत्नी का दर्जा विवाह के कारण ही प्राप्त होता है। इस तरह हम बहुत सारी वैवाहिक रिश्तेदारियों को गिन सकते हैं।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
समाज की आधारभूत इकाई कौन-सी होती है ?
(A) परिवार
(B) विवाह
(C) नातेदारी
(D) सरकार।
उत्तर-
(A) परिवार।

प्रश्न 2.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी है जिसे ……. कहते हैं।
(A) विवाह
(B) परिवार
(C) सरकार
(D) नातेदारी।
उत्तर-
(A) विवाह।

प्रश्न 3.
बच्चे का समाजीकरण कौन शुरू करता है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) पड़ोस
(D) खेल समूह।
उत्तर-
(B) परिवार।

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प्रश्न 4.
कौन अगली पीढ़ी को संस्कृति का हस्तांतरण करता है ?
(A) पड़ोस
(B) सरकार
(C) परिवार
(D) समाज।
उत्तर-
(C) परिवार।

प्रश्न 5.
यौन इच्छा ने किस संस्था को जन्म दिया ?
(A) परिवार
(B) समाज
(C) सरकार
(D) विवाह।
उत्तर-
(D) विवाह।

प्रश्न 6.
मातुलेय परिवारों में किन रिश्तेदारों में निकटता होती है ?
(A) मामा-भांजा
(B) माता-पुत्री
(C) पिता-पुत्र
(D) चाचा-भतीजा।
उत्तर
(A) मामा-भांजा।

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प्रश्न 7.
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्धी ……. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(A) प्राथमिक।

प्रश्न 8.
जो सम्बन्ध हमारे माता पिता के लिए प्राथमिक होता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) प्राथमिक सम्बन्ध
(B) द्वितीय सम्बन्ध
(C) तृतीय सम्बन्ध
(D) चतुर्थ सम्बन्ध।
उत्तर-
(B) द्वितीय सम्बन्ध।

प्रश्न 9.
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे ……….. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(C) तृतीय।

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प्रश्न 10.
बच्चे की प्रथम पाठशाला कौन सी होती है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) खेल समूह
(D) पड़ोस।
उत्तर-
(B) परिवार।

प्रश्न 11.
उस परिवार को क्या कहते हैं जिसमें पति पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं ?
(A) केंद्रीय परिवार
(B) संयुक्त परिवार ।
(C) विस्तृत परिवार
(D) नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
(A) केन्द्रीय परिवार।

प्रश्न 12.
इनमें से कौन सा परिवार का कार्य है ?
(A) बच्चे का समाजीकरण
(B) बच्चों पर नियंत्रण
(C) बच्चे का पालन-पोषण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 13.
विवाह के आधार पर परिवार का प्रकार बताएं।
(A) एक विवाह परिवार
(B) बहु विवाही परिवार
(C) समूह विवाही परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
नातेदारी के कितने प्रकार होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर-
(B) दो।

प्रश्न 15.
प्राथमिक रिश्तेदार कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) पाँच
(B) छः
(C) आठ
(D) दस।
उत्तर-
(C) आठ।

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प्रश्न 16.
द्वितीयक सम्बन्धी कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) 30
(B) 33
(C) 36
(D) 39.
उत्तर-
(B) 33.

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ……….. परिवार में पिता की सत्ता चलती है।
2. ………… परिवार में माता की सत्ता चलती है।
3. ………….. विवाह में अपने समूह में ही विवाह करवाया जाता है।
4. ……….. परिवार में दो या अधिक पीढ़ियों में परिवार इकट्ठे रहते हैं।
5. बहुपति विवाह …………….. प्रकार का होता है।
6. आकार के आधार पर परिवार ……….. प्रकार के होते हैं।
7. सत्ता के आधार पर परिवार …………… प्रकार के होते हैं।
उत्तर-

  1. पितृसत्तात्मक,
  2. मातृसत्तात्मक,
  3. अन्तः,
  4. संयुक्त,
  5. दो,
  6. तीन,
  7. दो।

III. सही/गलत (True/False) :

1. एकाकी परिवार में संपूर्ण नियंत्रण पिता के हाथों में होता है।
2. स्त्रियों की संख्या कम होने के कारण बहुपति विवाह होते हैं।
3. बहुविवाह संसार में सबसे अधिक प्रचलित हैं।
4. नातेदारी के दो प्रकार होते हैं।
5. परिवार संस्कृति के वाहक के रूप में कार्य करता है।
6. मातृवंशी परिवार में सम्पत्ति पुत्री को नहीं मिलती है।
7. परिवार के सदस्यों में रक्त संबंध होते हैं।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. सही,
  6. गलत,
  7. सही।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
एक विवाह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है तो उसे एक विवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
बहुविवाह के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर-
बहुविवाह के तीन प्रकार हैं।

प्रश्न 3.
द्विविवाह में एक पुरुष की कितनी पत्नियां होती हैं ?
उत्तर-
द्विविवाह में एक पुरुष की दो पत्नियां होती हैं।

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प्रश्न 4.
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कितने पति हो सकते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कई पति हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
अन्तर्विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति केवल अपनी ही जाति में विवाह करवा सकता हो उसे अंतर्विवाह कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बर्हिविवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपनी गोत्र के बाहर परंतु अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना पड़े तो उसे बर्हिविवाह कहते हैं।

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प्रश्न 7.
यह शब्द किसके हैं, “विवाह एक समझौता है जिसमें बच्चों की पैदाइश तथा देखभाल होती
उत्तर-
यह शब्द मैलीनोवस्की के हैं।

प्रश्न 8.
संसार में विवाह का कौन-सा प्रकार सबसे अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
संसार में विवाह का सबसे अधिक प्रचलित प्रकार एक विवाह है।

प्रश्न 9.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 10.
बहु-पति विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब कई पुरुष मिलकर एक स्त्री से विवाह करते हैं, तो उसे बहु-पति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 11.
एफिनिटी क्या होता है ?
उत्तर-
सामाजिक सम्बन्ध जो विवाह पर आधारित होते हैं, उन्हें एफिनिटी कहते हैं।

प्रश्न 12.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए सामाजिक मान्यता प्राप्त संस्था कौन-सी है ?
उत्तर-
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी हुई है, जिसे परिवार कहते हैं।

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प्रश्न 13.
यौन इच्छा ने किस प्रथा को जन्म दिया ?
उत्तर-
यौन इच्छा ने विवाह नामक प्रथा को जन्म दिया।

प्रश्न 14.
विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
यौन सम्बन्धों को समाज ने एक प्रथा के द्वारा मान्यता दी हुई है, जिसे विवाह कहते हैं।

प्रश्न 15.
कुलीन विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक ही जाति में ऊंचे कुलों से सम्बन्धित लड़के-लड़की का विवाह होता है तो उसे कुलीन विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 16.
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम क्या है ?
उत्तर-
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम गंधर्व विवाह है।

प्रश्न 17.
भ्रातृक बहुपति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
अगर सभी भाई एक स्त्री से इकट्ठे विवाह करें तो उसे भ्रातृक बहुपति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 18.
कौन-से पुरुष को पूर्ण पुरुष कहा जाता है ?
उत्तर-
जिस पुरुष के स्त्री तथा बच्चे हों, उसे पूर्ण पुरुष कहा जाता है।

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प्रश्न 19.
अन्तर्विवाह का कोई कारण बताओ।
उत्तर-
रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए अन्तर्विवाह की आवश्यकताएं पड़ी।

प्रश्न 20.
प्राथमिक सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? ।
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्ध प्राथमिक सम्बन्ध होते हैं, जैसे कि पिता, माता, भाई, बहन इत्यादि।

प्रश्न 21.
द्वितीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
जो हमारे माता या पिता का प्राथमिक सम्बन्धी होता है वह हमारे लिए द्वितीय सम्बन्धी होता है, जैसे मामा, चाचा, ताया, बुआ इत्यादि।

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प्रश्न 22.
तृतीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? .
उत्तर-
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे तृतीय सम्बन्धी होते हैं, जैसे पिता की बहन का पति, माता के भाई की पत्नी इत्यादि।

प्रश्न 23.
समूह विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब बहुत सारी स्त्रियों का बहुत सारे पुरुषों के साथ इकट्ठे विवाह होता है, उसे समूह विवाह कहते

प्रश्न 24.
बहिर्विवाह में किससे बाहर विवाह करना पड़ता है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह में अपने सपिण्ड, प्रवर तथा गोत्र से बाहर करना पड़ता है।

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प्रश्न 25.
अन्तर्विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपने समूह या जाति के अन्दर विवाह करना पड़े तो उसे अन्तर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 26.
प्रतिलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब निम्न जाति का पुरुष उच्च जाति की स्त्री से विवाह करता है तो उसे प्रतिलोम विवाह कहते हैं।

प्रश्न 27.
कौन-सी संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है।

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प्रश्न 28.
किस संस्था से समाज विघटन से बचता है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था के कारण समाज का विघटन नहीं होता।

प्रश्न 29.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

प्रश्न 30.
बहु-पति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक स्त्री के कई पति हों तो उस विवाह को बहुपति विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 31.
बहु-पति विवाह के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह के दो प्रकार-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रात बहुपति विवाह होते हैं।

प्रश्न 32.
एक विवाह को आदर्श क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि इससे परिवार अधिक स्थायी रहते हैं।

प्रश्न 33.
पितृ सत्तात्मक परिवार में ……….. शक्ति अधिक होती है।
उत्तर-
पितृ सत्तात्मक परिवार में पिता की शक्ति अधिक होती है।

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प्रश्न 34.
मातृ सत्तात्मक परिवार में …………… की सत्ता चलती है।
उत्तर-
मातृ सत्तात्मक परिवार में माता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 35.
रक्त सम्बन्धी परिवार में कौन-से सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी परिवार में रक्त सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 36.
सदस्यों के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार होते हैं।

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प्रश्न 37.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार के दो प्रकार-एक विवाही परिवार तथा बहुविवाही परिवार होते हैं।

प्रश्न 38.
वंश के आधार पर कितने प्रकार के परिवार होते हैं ?
उत्तर-
चार प्रकार के परिवार ।

प्रश्न 39.
केन्द्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर-
वह परिवार जिसमें पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हों उसे केन्द्रीय परिवार कहा जाता है।

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प्रश्न 40.
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह एक्ट कब पास हुआ था ?
उत्तर-
सन् 1856 में।

प्रश्न 41.
शब्द Family किस भाषा के शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द का अंग्रेज़ी रूपान्तर है।

प्रश्न 42.
शब्द Family लातीनी भाषा के किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द Famulus से निकला है।

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प्रश्न 43.
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन का एक कारण बताओ।
उत्तर-
आजकल स्त्रियां घर से जाकर दफ्तरों में काम करने लगी हैं जिससे उनकी परिवार तथा पति पर निर्भरता काफ़ी कम हो गई है।

प्रश्न 44.
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है। कैसे ?
उत्तर-
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है क्योंकि यह प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पाया जाता है।

प्रश्न 45.
परिवार में सदस्यों के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध होते हैं ?
उत्तर-
परिवार में सदस्यों के बीच रक्त सम्बन्ध होते हैं।

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प्रश्न 46.
समाज में परिवार का किस प्रकार का स्थान होता है ?
उत्तर-
समाज में परिवार का केन्द्रीय स्थान होता है।

प्रश्न 47.
परिवार के सदस्यों में किस प्रकार के गुण पाए जाते हैं ? ।
उत्तर-
परिवार के सदस्यों में हमदर्दी, त्याग, प्रेम जैसे गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न 48.
परिवार के दो जैविक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार में ही व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता है।
  2. परिवार में ही सन्तान उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 49.
परिवार के दो आर्थिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सदस्यों के खाने का प्रबन्ध करता है।
  2. परिवार एक उत्पादक इकाई के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 50.
परिवार में उत्तराधिकार का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर-
बेटों में जायदाद का समान विभाजन कर दिया जाता है।

प्रश्न 51.
परिवार के दो सामाजिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार व्यक्ति को सामाजिक स्थिति प्रदान करता है।
  2. परिवार संस्कृति को अगली पीढ़ी को सौंप देता है।

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प्रश्न 52.
कौन-सी संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है ?
उत्तर-
परिवार नामक संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
विवाह के कारण व्यक्ति को समाज में कई सारे पद मिल जाते हैं, जैसे-पति, पिता, जीजा, दामाद इत्यादि। इन सभी पदों में ज़िम्मेदारी होती है। विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है।

प्रश्न 2.
मनु ने प्रतिलोम विवाह के बारे में कौन-से विचार व्यक्त किए हैं ?
उत्तर-
मनु के अनुसार निम्न जाति के पुरुष का उच्च जाति की स्त्री से विवाह करना पाप है। इसे उन्होंने निषेध करार दिया है। इस प्रकार के विवाह से पैदा होने वाली सन्तान को उन्होंने चण्डाल कहा है।

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प्रश्न 3.
अनुलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह करता है तो उसे अनुलोम विवाह कहते हैं। इस प्रकार के विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त है तथा इस प्रकार के विवाह साधारणतया होते रहते थे।

प्रश्न 4.
विवाह पर प्रतिबन्ध।
उत्तर-
कई समाजों में विवाह करवाने के ऊपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध होते हैं कि किस समूह में विवाह करना है तथा किस में नहीं। साधारणतया रक्त सम्बन्धी, एक ही गोत्र वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते।

प्रश्न 5.
गैर-भातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
बहुपति विवाह का वह प्रकार जिसमें पत्नी के सभी पति आपस में भाई नहीं होते गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह होता है। विवाह के पश्चात् पत्नी निश्चित समय के लिए अलग-अलग पतियों के साथ रहती है।

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प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
यह विवाह का वह प्रकार है जिसमें एक व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां होती हैं। यह दो प्रकार का होता है-प्रतिबन्धित तथा अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह । इस प्रकार का विवाह आजकल वर्जित है।

प्रश्न 7.
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति।
उत्तर-
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है क्योंकि उसे कई पुरुषों से विवाह तथा संबंध रखने पड़ते हैं। इसका उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा उनकी सामाजिक स्थिति भी निम्न होती है।

प्रश्न 8.
एक विवाह पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
जब एक ही स्त्री से एक ही पुरुष विवाह करवाता है तो विवाह को एक विवाह कहते हैं। जब तक दोनों जीवित हैं अथवा एक दूसरे से तलाक नहीं ले लेते, वह दूसरा विवाह नहीं करवा सकते।

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प्रश्न 9.
बहु-पति विवाह के दो अवगुण।
उत्तर-

  1. इस प्रकार के विवाह में स्त्री का स्वास्थ्य खराब हो जाता है क्योंकि उसे कई पतियों की लैंगिक इच्छा को पूर्ण करना पड़ता है।
  2. इस प्रकार के विवाह में स्त्री के लिए पतियों में झगडे होते रहते हैं।

प्रश्न 10.
एक विवाह के दो गुण।
उत्तर-

  1. एक विवाह में पति-पत्नी के संबंध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इस विवाह में बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।
  3. इस विवाह में पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  4. इसमें पति-पत्नी में तालमेल रहता है।

प्रश्न 11.
बहुपत्नी विवाह के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन संबंधों की इच्छा के कारण बहुपत्नी विवाह सामने आए।
  2. लड़कियां पैदा होने के कारण तथा लड़का होने की इच्छा के कारण यह विवाह बढ़ गए।
  3. राजा-महाराजाओं के अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण यह विवाह सामने आए।

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प्रश्न 12.
परिवार क्या होता है ?
उत्तर-
परिवार उस समूह को कहते हैं जो यौन सम्बन्धों पर आधारित है और जो इतना छोटा व स्थायी है कि उससे बच्चों की उत्पत्ति तथा पालन-पोषण हो सके। इसमें सभी रक्त संबंधी शामिल होते हैं।

प्रश्न 13.
पितृ सत्तात्मक परिवार कौन-सा होता है ?
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार पिता के हाथ में होते हैं, परिवार पिता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर पिता का पूरा नियन्त्रण होता है। घर के सभी सदस्यों को पिता की आज्ञा के अनुसार कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
मातृ-सत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार माता के हाथ में होते हैं, परिवार माता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर माता का नियन्त्रण होता है। सम्पत्ति पर माता का अधिकार होता है तथा माता के पश्चात् सम्पत्ति पुत्री को प्राप्त होती है।

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प्रश्न 15.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते हैं-

  1. एक विवाही परिवार
  2. बहु विवाही परिवार।

प्रश्न 16.
परिवार में शिक्षा संबंधी कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर–
पहले परिवार बच्चों को शिक्षा देता था परन्तु अब इसमें परिवर्तन आ गया है। अब परिवार का यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों ने लिया है। पहले परिवार के बड़े बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे परन्तु अब यह कार्य औपचारिक संस्थाओं के पास है।

प्रश्न 17.
परिवार की केंद्रीय स्थिति।
उत्तर-
परिवार की समाज में केन्द्रीय स्थिति है क्योंकि परिवार के बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता तथा प्रत्येक व्यक्ति समाज में ही रहना पसंद करता है। परिवार के कारण ही समाज अस्तित्व में आता है।

प्रश्न 18.
बच्चों का पालन-पोषण।
उत्तर-
बच्चों का पालन-पोषण परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि परिवार ही बच्चों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण करता है। परिवार उसे अच्छा नागरिक बनाने के लिए सभी चीजें उपलब्ध करवाता है।

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प्रश्न 19.
घर की व्यवस्था।
उत्तर-
परिवार अपने सदस्यों के लिए घर की व्यवस्था करता है। घर के बिना परिवार न तो बन सकता है तथा न ही प्रगति कर सकता है। इस प्रकार घर की व्यवस्था करके परिवार सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास भी करता है।

प्रश्न 20.
परिवार में सहयोग।
उत्तर-
पति तथा पत्नी एक-दूसरे से सहयोग करते हैं ताकि परिवार का कल्याण हो सके। वह अपने बच्चों तथा परिवार को अच्छा जीवन देने के लिए एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। पति-पत्नी के सहयोग के कारण ही परिवार सामने आता है।

प्रश्न 21.
साझे परिवार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर-
साझे परिवार में रहने वाले व्यक्ति पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के अधीन आ रहे हैं। इस कारण वह अपने सांझे परिवारों को छोड़ रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार बसा रहे हैं। इस तरह साझे परिवार खत्म हो रहे हैं।

प्रश्न 22.
परिवार के दो कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. परिवार में व्यक्ति की सम्पत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँच जाती है तथा किसी तीसरे व्यक्ति के पास नहीं जाती।
  2. बच्चों के पालन-पोषण तथा सुरक्षा का कार्य परिवार का ही होता है तथा उनका सही विकास परिवार में ही हो सकता है।

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प्रश्न 23.
परिवार के कार्यों में कोई दो परिवर्तन।
उत्तर-

  1. आजकल के परिवार अधिक प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. स्त्रियां घरों से बाहर निकल कर कार्य कर रही हैं जिस कारण उनके कार्य बदल रहे हैं।
  3. परिवार के मुखिया का नियन्त्रण कम हो गया है तथा सभी अपनी इच्छा से कार्य करते हैं।

प्रश्न 24.
नवस्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी अपने माता-पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि अपना नया घर बसाते हैं तथा बिना रोक-टोक के रहते हैं। आजकल इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संस्था।
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है और न ही संगठन है। सामाजिक संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमाप की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण क्रिया के आस-पास केन्द्रित रूढियों और लोक रीतों का जाल है। संस्थाएं तो संरचिंत प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
संस्था के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व बताइये।
उत्तर-

  1. निश्चित उद्देश्य-संस्था विशेष मानवीय आवश्यकता के लिए विकसित होती है। बिना उद्देश्य के संस्था नहीं होती है। इस प्रकार संस्था किसी निश्चित उद्देश्य के लिए बनती है।
  2. एक विचार-विचार ही संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी भी आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसको समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा हेतु वह संस्था को विकसित करता है।

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प्रश्न 3.
संस्था की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. संस्था व्यवस्था एक इकाई है।
  2. संस्था के स्पष्ट तौर पर परिभाषित उद्देश्य हैं।
  3. संस्था अमूर्त होती है।
  4. संस्था की एक परम्परा व प्रतीक होता है।

प्रश्न 4.
संस्था के कोई चार कार्य बतायें।
उत्तर-

  1. संस्था समाज के ऊपर नियन्त्रण रखती है।
  2. संस्था व्यक्ति को पद एवं भूमिका प्रदान करती है।
  3. संस्था उद्देश्य को पूरा करने में मदद करती है।
  4. संस्था सांस्कृतिक एकसारता प्रदान करती है।
  5. संस्था संस्कृति की वाहक है।

प्रश्न 5.
संस्था कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं, पर साधारणतया संस्थाएं चार प्रकार की होती हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं (Social Institutions)
  2. राजनैतिक संस्थाएं (Political Institutions)
  3. आर्थिक संस्थाएं (Economic Institutions)
  4. धार्मिक संस्थाएं (Religious Institutions)।

प्रश्न 6.
विवाह का अर्थ।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में परिवार की स्थापना के लिए स्त्री व पुरुष के लिंगक सम्बन्धों को स्थापित करने की मान्यता विवाह द्वारा दी जाती है। इस प्रकार लिंग सम्बन्धों को निश्चित करने व संचालित करने के लिए बच्चों के पालनपोषण की ज़िम्मेदारी को निर्धारित करने व परिवार को स्थाई रूप देने के लिए बनाए गए नियमों को विवाह कहते हैं। परिवार बसाने के लिए दो या दो से अधिक स्त्रियों व पुरुषों के बीच ज़रूरी सम्बन्ध स्थापित करने व उन्हें स्थिर रखने के लिए संस्थात्मक व्यवस्था को विवाह कहते हैं। जिसका उद्देश्य घर की स्थापना, यौन सम्बन्धों में प्रवेश व बच्चों का पालन-पोषण है।

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प्रश्न 7.
एक विवाह।
उत्तर-
आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस तरह के विवाह में एक पुरुष एक ही समय, एक ही स्त्री के साथ विवाह कर सकता है। एक विवाह में पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह करना गैरकानूनी माना जाता है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध गहरे, स्थायी और प्यार हमदर्दी वाले होते हैं। इसमें बच्चों का पालनपोषण अच्छे ढंग से हो जाता है। उनको माता-पिता का पूरा प्यार मिलता है। पति-पत्नी में प्यार और तालमेल होता है। इसमें पुरुष और स्त्री के सम्बन्धों में समान अधिकार पाये जाते हैं।

प्रश्न 8.
एक विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इसमें बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह होता है।
  3. पति-पत्नी में तालमेल अधिक रहता है।
  4. पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  5. व्यक्ति मनोवैज्ञानिक और जैविक तनावों से मुक्त रहता है।
  6. लड़का और लड़की दोनों को समान अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
एक विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. बीमारी या गर्भावस्था में पति-पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रख सकता इसलिए वह बाहर जाना आरम्भ कर देता है।
  2. बाहरी सम्बन्धों की वजह से अनैतिकता बढ़ती है।
  3. कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  4. पति का पत्नी के बीमार होने से घरेलू काम रुक जाते हैं, जिससे बच्चों का पालन-पोषण सही नहीं हो पाता।

प्रश्न 10.
बहिर्विवाह से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह का अर्थ है कि अपनी गोत्र, अपने सपिण्ड और टोटम से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध पैदा करने पड़ते हैं। एक ही गोत्र, सपिण्ड और टोटम के पुरुष और स्त्री आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्ट मार्क के अनुसार इस विवाह का उद्देश्य नज़दीक के रिश्तेदारों में यौन सम्बन्ध स्थापित न होने देना है। ये विवाह प्रगतिवाद का सूचक है और ये विवाह भिन्न-भिन्न वर्गों में सम्पर्क बढ़ाता है। जैविक दृष्टिकोण से यह विवाह ठीक माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें वर-वधू को एक-दूसरे के विचारों को जानने में बड़ी मुश्किलें आती हैं।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह।
उत्तर-
अन्तर्विवाह में व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करना पड़ता था। इसमें विवाह का एक बन्धन क्षेत्र होता है जिसके अनुसार आदमी औरत एक निश्चित सामाजिक समूह के अधीन ही विवाह कर सकते हैं। इसके साथ समूह की एकता रखी जा सकती है। यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा करती है। इसके साथ जातिवाद की भावना को भी बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 12.
दो पत्नी विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष का विवाह दो स्त्रियों के साथ होता है। ये दोनों स्त्रियां उस पुरुष की पत्नियां होती हैं। इसलिये इस विवाह को दो पत्नी विवाह कहा जाता है। इसमें पुरुष को दो पत्नियां रखने की इजाजत दी जाती है।

प्रश्न 13.
बहु-पत्नी प्रथा।
उत्तर-
यह बहु-विवाह का एक अन्य रूप है। इस तरह के विवाह में व्यक्ति एक से अधिक पत्नियों के साथ विवाह करवाता है। रिउटर के अनुसार बहु-पत्नी विवाह विवाह का वह रूप है, जिसमें व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों को रख सकता है। ये प्रथा संसार के सभी समाजों में पाई जाती है। पुरुष में यौन की इच्छा और बड़े परिवार की चाह के कारण इस विवाह प्रथा को अपनाया गया।

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प्रश्न 14.
बहु-पत्नी विवाह के कारण।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छाओं के कारण बहु विवाह होते हैं।
  2. बड़े परिवार की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  3. लड़कियां होने पर लड़कों की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  4. स्त्रियों की गणना बढ़ने के कारण भी यह विवाह होते थे।
  5. राजाओं, महाराजाओं की अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण इस प्रकार के विवाह होते थे।

प्रश्न 15.
बहु-पत्नी विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. बच्चों का बढ़िया पालन-पोषण हो जाता है।
  2. मर्दो की अधिक यौन इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।
  3. सम्पत्ति घर में ही रहती है।
  4. सन्तान शक्तिशाली और सेहतमंद पैदा होती है।
  5. एक पत्नी के बीमार होने से घर के काम चलते रहते हैं।
  6. लिंग सम्बन्धों की पूर्ति के कारण अनैतिकता नहीं फैलती।

प्रश्न 16.
बहु-पत्नी विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. इसके साथ स्त्रियों का दर्जा निम्न होता है।
  2. स्त्रियों की यौन इच्छा पूरी नहीं होती, जिसके लिये वह बाहर जाती हैं और अनैतिकता फैलती है।
  3. अधिक पत्नियों के कारण उनमें झगड़ा रहता है।
  4. परिवार में अशान्ति रहती है।
  5. परिवार में आर्थिक बोझ बढ़ता है।

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प्रश्न 17.
कुलीन विवाह।
उत्तर-
हिन्दू समाज में बहु-पत्नी विवाह का सबसे मुख्य उदाहरण कुलीन बहु-विवाह है। सभी चाहते हैं कि उनकी लड़कियों का विवाह बड़ी जाति के लड़कों के साथ हो पर कुलीन वंश की गिनती अधिक नहीं थी। एक-एक कुलीन ब्राह्मण 100-100 लड़कियों के साथ विवाह करवाता था। इस कारण दहेज प्रथा बढ़ गई और समाज में अनैतिकता भी बढ़ गई।

प्रश्न 18.
साली विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की बहन के साथ विवाह करता है। ये विवाह दो तरह का होता है। सीमित साली विवाह, समकालीन साली विवाह, सीमित साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की मौत के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकालीन साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की सभी-बहनों को अपनी पत्नियों के समान मानता है। पहली किस्म का प्रचलन अधिक है। इनमें परिवार नहीं टूटता और बच्चों का पालन-पोषण अधिक अच्छी तरह होता है।

प्रश्न 19.
देवर विवाह।
उत्तर-
विवाह की इस प्रथा में पत्नी अपने पति की मौत के बाद उसके भाई के साथ विवाह करवाती है। इसके साथ परिवार की सम्पत्ति सुरक्षित रह जाती है। परिवार टूटने से बचता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक हो जाता है। इस विवाह के साथ लड़के के माता-पिता को लड़की का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

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प्रश्न 20.
बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में एक स्त्री बहुत से पतियों के साथ विवाह करती है। एक ही समय में वह सभी की पत्नी होती है इसके दो प्रकार हैं। भ्रात बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं और गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई नहीं होते। ग़रीबी और स्त्रियों की कम गिनती के कारण ये प्रथा बढ़ी।

प्रश्न 21.
भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह की प्रथा के अनुसार स्त्री के सारे पति परस्पर भाई हुआ करते थे अथवा एक ही जाति के व्यक्ति होते थे। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है तथा उसके सब भाइयों का उस पर पत्नी रूप में अधिकार होता है व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी भी पत्नी सब भाइयों की पत्नी होती है, जो बच्चे होते हैं वो सब बड़े भाई के नाम से माने जाते हैं व सम्पत्ति पर भी अधिकार बड़े भाई का अधिक होता है।

प्रश्न 22.
गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर–
बहु-पति विवाह की इस प्रकार में एक औरत के पति आपस में भाई नहीं होते। यह पति सब भिन्न-भिन्न स्थानों में रहते हैं। ऐसे समय में औरत निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है इस प्रकार दूसरे, तीसरे, चौथे के पास। इस तरह सारा साल अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने पर एक विशेष संस्कार अनुसार पति उसका पिता बन जाता है जो वह गर्भावस्था में स्त्री को धनुष (तीर-कमान) भेंट करता है। उसे उस बच्चे का पिता मान लिया जाता है।

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प्रश्न 23.
परिवार का अर्थ।
उत्तर-
परिवार एक ऐसी संस्था है जिससे स्त्री व पुरुष समाज से मान्यता प्राप्त लिंग सम्बन्ध स्थापित करता है। परिवार व्यक्तियों का वह समूह है जो एक विशेष नाम से पहचाना जाता है जिसमें पति-पत्नी के स्थाई लिंग सम्बन्ध होते हैं जिसमें सदस्यों के पालन-पोषण की पूर्ण व्यवस्था होती है जिससे सदस्यों में खून के सम्बन्ध होते हैं व इसके सदस्य एक खास निवास स्थान पर रहते हैं।

प्रश्न 24.
परिवार की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सर्वव्यापक है।
  2. परिवार लिंग सम्बन्धों से उत्पन्न समूह है।
  3. परिवार का सामाजिक आधार में केन्द्रीय स्थान होता है।
  4. परिवार में रक्त सम्बन्धों का बन्धन होता है।
  5. परिवार में सदस्यों की ज़िम्मेदारी अन्य सदस्य चुनते हैं।
  6. परिवार सामाजिक नियन्त्रण का आधार होता है।

प्रश्न 25.
परिवार व सामाजिक नियन्त्रण।
उत्तर-
परिवार ही बच्चों पर नियन्त्रण रखता है व उसको नियन्त्रण में रहना सिखाता है। परिवार उस पर इस प्रकार से नियन्त्रण रखता है कि उसमें ग़लत आदतें न उत्पन्न हो सकें। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इस तरह बच्चा अनुशासन में रहना सीखता जाता है। इस प्रकार परिवार बच्चे पर निगरानी रखकर एक तरह से सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

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प्रश्न 26.
परिवार व समाजीकरण।
उत्तर-
परिवार माता-पिता व बच्चों की स्थायी संस्था है, जिसका प्रथम कार्य बच्चों का समाजीकरण करना है। परिवार में बच्चा हमदर्दी, प्यार व ज़िम्मेदारी की पालना करना सीखता है। परिवार से ही वह छोटे, बराबर के व बड़ों के प्रति व्यवहार प्रकट करना सीखता है। परिवार में उसकी आदतों, अनुभवों, शिक्षाओं व कार्यों से ही आगे जाकर समाज में उसका काम व आचरण निश्चित होता है। परिवार में ही वह सामाजिक रीति-रिवाजों, रस्मों, आचरण, नियमों, सामाजिक बन्धनों की पालना इत्यादि सीखता है। इस प्रकार परिवार समाजीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न 27.
एकाकी परिवार क्या है ?
उत्तर-
इकाई परिवार वह परिवार है जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग घर कायम कर लेते हैं। यह सबसे छोटे परिवार होते हैं। यह परिवार अधिक प्रगतिशील होते हैं व उनके फैसले तर्क के आधार पर होते हैं। इसमें पति-पत्नी को बराबर का दर्जा हासिल होता है। आजकल इकाई परिवार का अधिक चलन है।

प्रश्न 28.
इकाई परिवार की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. केन्द्रीय परिवार या इकाई परिवार आकार में छोटा होता है।
  2. इकाई परिवार में सम्बन्ध सीमित होते हैं।
  3. परिवार के प्रत्येक सदस्य को महत्त्व मिलता है।
  4. परिवार की सत्ता साझी होती है।

प्रश्न 29.
इकाई परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. इकाई परिवारों में औरतों की स्थिति ऊंची होती है।
  2. इसमें रहने-सहने का दर्जा उच्च वर्ग का होता है।
  3. व्यक्ति को मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।
  4. व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
  5. सदस्यों में सहयोग की भावना होती है।

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प्रश्न 30.
इकाई परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. यदि माता या पिता में से कोई बीमार पड़ जाए तो घर के कामों में रुकावट आ जाती है।
  2. इसमें बेरोज़गार व्यक्ति का गुजारा मुश्किल से होता है।
  3. पति की मौत के पश्चात् यदि औरत अशिक्षित हो तो परिवार की पालना कठिन हो जाती है।
  4. कई बार आर्थिक मुश्किलों के कारण पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।

प्रश्न 31.
संयुक्त परिवार।
उत्तर-
संयुक्त परिवार एक मुखिया की ओर से शासित अनेकों पीढ़ियों के रक्त सम्बन्धियों का एक ऐसा समूह है जिनका निवास, चूल्हा व सम्पत्ति संयुक्त होते हैं। वह सब कर्तव्यों व बन्धनों में बंधे रहते हैं। संयुक्त परिवार की विशेषताएं हैं-(1) साझा चूल्हा (2) साझा निवास (3) साझी सम्पत्ति (4) मुखिया का शासन (5) बड़ा आकार। आजकल इस प्रकार के परिवारों की बजाय केन्द्रीय परिवार चलन में आ गए हैं।

प्रश्न 32.
संयुक्त जायदाद या ‘संयुक्त सम्पत्ति’।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में सम्पत्ति पर सभी सदस्यों का बराबर अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार इस सम्पत्ति में अपना योगदान डालता है। जिस व्यक्ति को जितनी आवश्यकता होती है वह उतनी सम्पत्ति खर्च कर लेता है। परिवार का कर्त्ता साझी जायदाद की देख-रेख करता है।

प्रश्न 33.
साझा रसोई-घर।
उत्तर-
संयुक्त परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके सभी सदस्य एक ही रसोई घर का इस्तेमाल करते हैं। भाव यह कि उनका खाना एक ही जगह बनता है व उसे वह इकट्ठे ही मिलकर खाते हैं। ऐसा करते समय वह अपने विचार एक-दूसरे से बांटते हैं। इससे उनका आपसी प्यार व हमदर्दी बनी रहती है।

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प्रश्न 34.
साझे परिवार में कर्ता।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में घर के मुखिया की मुख्य भूमिका होती है जिसको कर्ता कहते हैं। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य परिवार का मुखिया या कर्ता होता है। परिवार से सम्बन्धित सारे महत्त्वपूर्ण फैसले उसके द्वारा लिए जाते हैं। वह परिवार की साझी सम्पत्ति की देखभाल करता है। परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। कर्ता की मृत्यु के पश्चात् परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसके सबसे बड़े बेटे पर आ जाती है और वह परिवार का कर्ता बन जाता है।

प्रश्न 35.
संयुक्त परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार संस्कृति व समाज की सुरक्षा करता है।
  2. संयुक्त परिवार बच्चों का पालन-पोषण करता है।
  3. संयुक्त परिवार सामाजिक नियन्त्रण व मनोरंजन का केन्द्र होता है।
  4. संयुक्त परिवार सम्पत्ति के विभाजन को रोकता है, उत्पादन में बढ़ोत्तरी व खर्च में कमी करता है।
  5. बुजुर्गों व बीमार सदस्यों की मदद करता है।

प्रश्न 36.
संयुक्त परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता।
  2. संयुक्त परिवार में औरतों का निम्न दर्जा होता है।
  3. इनमें व्यक्तियों की खाली रहने की आदत पड़ जाती है।
  4. चिंता न होने से अधिक संतान उत्पत्ति होती है।
  5. लड़ाई-झगड़े अधिक होते हैं।
  6. पति-पत्नी को एकान्त प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 37.
क्यों संयुक्त परिवार टूट रहे हैं ?
उत्तर-
संयुक्त परिवारों के टूटने के कई कारण हैं; जैसे-

  1. धन की बढ़ती महत्ता के कारण।
  2. पश्चिमी प्रभाव के कारण।
  3. औद्योगीकरण के बढ़ने के कारण।
  4. सामाजिक गतिशीलता के सामने आने के कारण।
  5. जनसंख्या की बढ़ती दर के कारण।
  6. यातायात के साधनों का विकास की वजह से।
  7. स्वतन्त्रता व समानता के आदर्श के सामने आने से।
  8. औरतों के आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने से।

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प्रश्न 38.
पितृ-मुखी परिवार क्या है ?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के सम्पूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियन्त्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है व पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस प्रकार के परिवार मिलते हैं।

प्रश्न 39.
मातृ-वंशी परिवार।
अथवा
मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। सम्पत्ति का वारिस पुत्र नहीं बल्कि मां का भाई या भांजा होता है। परिवार मां के नाम से चलता है। इस प्रकार का परिवार भारत में कुछ कबीलों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाता है।

प्रश्न 40.
परिवार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. लैंगिक सम्बन्धों की पूर्ति करता है।
  2. सन्तान पैदा करना।
  3. सदस्यों की सुरक्षा व पालन-पोषण करता है।
  4. सम्पत्ति की देखभाल व आय-व्यय का प्रबन्ध करता है।
  5. धर्म की शिक्षा देना।
  6. बच्चों का समाजीकरण करता है।
  7. संस्कृति का संचार व विकास करता है।
  8. परिवार सामाजिक नियन्त्रण में मदद करता है।

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प्रश्न 41.
परिवार के कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर-

  1. परिवार अधिकतर प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. धार्मिक उत्तरदायित्वों की पालना की भावना कम हो रही है।
  3. पारिवारिक महत्त्व काफ़ी कम हो गया है।
  4. औरतें काम करने के लिए बाहर जाती हैं, इसलिए उनके काम बदल रहे हैं।
  5. संयुक्त परिवार कम हो रहे हैं।

प्रश्न 42.
रक्त सम्बन्धी परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में रक्त-सम्बन्ध का स्थान सर्वोच्च होता है। इनमें किसी प्रकार के लिंग सम्बन्ध नहीं होते। इसमें पति-पत्नी भी होते हैं परन्तु वह परिवार के आधार नहीं होते। इसमें सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। तलाक भी इन परिवारों को भिन्न नहीं कर सकता और यह स्थाई होते हैं।

प्रश्न 43.
पितृ स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में लड़की विवाह के उपरान्त अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है और पति के माता-पिता व पति के साथ वहीं घर बसाती है। इस प्रकार के परिवार आमतौर से प्रत्येक समाज में मिल जाते हैं।

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प्रश्न 44.
नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार पहली दोनों किस्मों से भिन्न हैं। इसमें पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि वह किसी और स्थान पर जाकर नया घर बसाते हैं। इसलिए इसको नव स्थानीय परिवार कहते हैं। आजकल के औद्योगिक समाज में इस तरह के परिवार आम पाए जाते हैं।

प्रश्न 45.
नातेदारी क्या होती है ?
अथवा
नातेदारी।
उत्तर-
चार्लस विनिक के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वे सम्बन्ध शामिल किये जाते हैं जोकि कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों के ऊपर आधारित एवं समाज के द्वारा प्रभावित होते हैं।”

प्रश्न 46.
नातेदारी को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
निम्न तीन में बांटा जा सकता है-

  1. व्यावहारिक नातेदारी।
  2. सगोत्र नातेदारी।
  3. कल्पित या रस्मी नातेदारी।

प्रश्न 47.
सगोत्र नातेदारी क्या होती है ?
उत्तर-
वह सभी व्यक्ति जिनमें रक्त का बन्धन है, सगोत्र नातेदारी का ही भाग होते हैं। रक्त का सम्बन्ध यद्यपि वास्तविक हो या कल्पित तो ही इसी आधार के ऊपर सम्बन्धित व्यक्तियों को नातेदारी व्यवस्था में स्थान प्राप्त है यदि इसको सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।

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प्रश्न 48.
वंश समूह क्या होता है ?
उत्तर-
वंश समूह माता या पिता में से किसी एक के रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इन सभी सम्बन्धियों के किसी एक स्त्री या पुरुष के साथ वास्तविक वंश परम्परागत होते (Ties) हैं। सभी सदस्य वास्तविक साझे पूर्वज की सन्तान होने के कारण अपने वंश समूह में विवाह नहीं करवाते। इस प्रकार वंश समूह उन रक्त के सम्बन्धियों का समूह होता है। जो साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होते है और जिनकी पहचान को अनुरेखित किया जाता
है।

प्रश्न 49.
गोत्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
गोत्र वंश समूह का ही विस्तृत रूप है, जोकि माता-पिता के किसी एक के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इस तरह गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है, जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होती है। पूर्वज आमतौर पर कल्पित ही होते हैं। क्योंकि इनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है। यह बहिर्विवाही समूह होते हैं।

प्रश्न 50.
वैवाहिक नातेदारी।
उत्तर-
वैवाहिक नातेदारी पति-पत्नी के यौन सम्बन्धों पर आधारित होती है। यद्यपि उनमें कोई रक्त सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु उनमें विवाह के बाद सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। विवाह के बाद व्यक्ति को पति के साथ जवाई, फूफड़, जीजा, सांदू आदि के रुतबे हासिल होते हैं। इस तरह स्त्री को भी पत्नी के साथ-साथ, देवराणी, जेठानी, चाची, ताई इत्यादि का रुतबा प्राप्त होता है। इस तरह के रुतबों को वैवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
विवाह की विशेषताओं का वर्णन नीचे दिया गया है-
1. विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है (It is an universal insitutions)-विवाह की संस्था चाहे प्राचीन थी, चाहे आधुनिक है, सभी समाजों में पाई जाती है। यह सर्वव्यापक है। इस संस्था के बिना किसी स्थिर समाज की हम कल्पना तक नहीं कर सकते।

2. इस संस्था के द्वारा आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है (Social sanction)-बिना सामाजिक मान्यता के यह सम्बन्ध गैर कानूनी करार दिए जाते हैं। इस संस्था का सदस्य बन कर व्यक्ति अपने दूसरे अधिकारों को भी जान जाता है व उसका दायरा कुछ सीमित हो जाता है।

3. दो विरोधी लिंगों का सम्बन्ध इस संस्था को जन्म देता है (Development of institution)-इससे मानव अपनी जैविक ज़रूरत को भी पूरा कर लेता है। पशुओं में भी विरोधी लिंगों का मेल होता है। लेकिन मानवों के इस मेल के द्वारा विवाह की संस्था का जन्म होता है परन्तु जानवरों का इस संस्था से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता।

4. विवाह की संस्था के द्वारा व्यक्ति को सामाजिक स्थिति भी प्राप्त हो जाती है (Provide social status)-विवाह के पश्चात् पुरुष व स्त्री, पति-पत्नी के रूप में स्वीकृत किए जाते हैं। बच्चा पैदा होने के बाद उनकी सामाजिक स्थिति माता-पिता से सम्बन्धित हो जाती है जिसके साथ परिवार का जन्म हो जाता है।

5. विवाह को एक समझौता भी समझा जाता है (Social Contract)—इसमें आदमी व औरत न केवल अपनी लिंग इच्छाओं की पूर्ति करते हैं बल्कि बच्चों के पालन-पोषण का बोझ भी सम्भालते हैं व पारिवारिक उत्तरदायित्वों को भी अदा किया जाता है।

6. विवाह के प्रकार अलग-अलग समाजों में अलग-अलग पाए जाते हैं (Different types in different societies)—प्रत्येक समाज की अपनी ही संस्कृति होती है जिसकी सुरक्षा से बाकी संस्थाएं जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए मुसलमानों की संस्कृति एक से अधिक विवाह की आज्ञा दे देती है परन्तु हिन्दुओं की संस्कृति इसके विपरीत है अर्थात् एक से अधिक विवाह को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं होती।

7. विवाह के द्वारा व्यक्ति को कानूनन मान्यता प्राप्त हो जाती है (Legal Sanction)-इससे पुरुष व स्त्री के विवाह सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं।

8. इस संस्था के द्वारा धार्मिक रीति-रिवाज भी सुरक्षित रहते हैं। चाहे आधुनिक समय में कोर्ट-मैरिज होने लगी है, परन्तु धार्मिक संस्कार अभी भी इस संस्था से जुड़े हुए हैं।

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प्रश्न 2.
एक विवाह का क्या अर्थ है ? इसके कारणों, लाभों तथा कमियों का वर्णन करें।
उत्तर-
आधुनिक समय में अधिकतर पाई जाने वाली विवाह का प्रकार ‘एक विवाह’ है। एक विवाह का अर्थ है जब एक आदमी, एक समय एक ही औरत से या एक औरत, एक समय, एक ही आदमी से विवाह करवाती है तो इसको एक विवाह का नाम दिया गया है। आजकल के सांस्कृतिक समाजों में इसको काफ़ी महत्ता प्राप्त है।

मैलिनोवस्की (Malinoviski) के अनुसार, “एक विवाह ही, विवाह का वास्तविक प्रकार है, जो पाई जा रही है व पाई जाती रहेगी।”
पीडीगंटन (Piddington) के अनुसार, “एक विवाह, विवाह का वह स्वरूप है, जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों के साथ एक ही समय पर विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता।”

वुकेनोविक के अनुसार, “उसी विवाह को एक विवाह कहना ठीक होता है, जिसमें न केवल एक व्यक्ति की पत्नी या पति हो, बल्कि किसी की भी मौत हो जाने पर दूसरा विवाह न करे। आमतौर पर एक पति या पत्नी के जीते जी किसी से न विवाह करना ही एक विवाह माना जाता है।”

भारतीय समाज में हिन्दू धर्म के अनुसार भी एक विवाह को ही आदर्श विवाह माना जाता है। प्राचीन समय से ही स्त्री के लिए उसका पति ही परमेश्वर होता था। पति की मौत के साथ वह औरत आप भी सती होना बेहतर समझती थी। भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के अधीन भी बहु-विवाह को समाप्त कर दिया गया व एक विवाह करने की ही स्वीकृति हो गई। आधुनिक समय में तो कानून इतने सख्त हैं कि तलाक लिए बिना आदमी व औरत दूसरा विवाह नहीं करवा सकते। कुछ हालातों में दूसरे विवाह की इजाजत दी गई जैसे सन्तान न होने की सूरत में. पति या पत्नी में कोई एक ला-इलाज बीमारी से सम्बन्धित हो आदि।

कारण (Causes)-

1. आधुनिक समाज में एक विवाह की प्रथा ही प्रचलित रही है। इस प्रथा के आने से ही हमारे समाज में भी प्रगति हुई है। जहां एक विवाह की प्रथा पाई गई उस समाज में प्रगति भी अधिक हुई। समाज की प्रगति के लिए भी एक विवाह को आवश्यक समझा गया।

2. स्त्रियों व पुरुषों की जनसंख्या की दर में बराबरी पाए जाने के कारण भी एक विवाह ही ज़रूरी समझा गया। इस अनुपात की बराबरी के कारण समाज में स्थिरता भी आ गई।

3. एकाधिकार की भावना के कारण भी एक विवाह को स्वीकृति प्राप्त हुई। आदिम समाज में जब विवाह की संस्था अधिक नियमित नहीं थी हुई तो कोई भी आदमी, किसी भी औरत से सम्बन्ध रख लेता था। कुछ देर के बाद उनमें ईर्ष्या की भावना पैदा होनी शुरू हो गई क्योंकि प्रत्येक आदमी यह इच्छा रखने लगा कि उसकी औरत, दूसरे आदमी के पास न जाए। उस समय जो आदमी शारीरिक तौर पर अधिक बलवान् थे, उन्होंने स्त्री पर एकाधिकार रखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आजकल के समय में आदमी व औरत दोनों के द्वारा एकाधिकार की भावना को अपनाया जाने लगा व आधुनिक समाज में एक विवाह के प्रकार को अपनाया गया।

4. प्राचीन समय में स्त्री का मूल्य रखा जाता था। जो भी पुरुष उस कीमत को अदा कर देता था उसको वह स्त्री दे दी जाती थी। इसके अतिरिक्त परिवार की स्थिरता के कारण एक पुरुष व एक स्त्री का विवाह प्रचलित था।

एक विवाह के लाभ (Advantages of Monogamy)-

1. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the Status of Women)–प्राचीन समय से स्त्रियों की समाज में काफ़ी निम्न स्थिति थी। पुरुष ने जिस तरह चाहा, उसी तरह का स्त्री से व्यवहार किया। यहां तक कि आश्रम व्यवस्था में स्त्री ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकती थी। उस का कार्य केवल बच्चे पैदा करना, घर का काम करना इत्यादि तक सीमित था।

इसके अतिरिक्त यदि जाति-प्रथा पर नजर डालें तो वहां भी औरत के जन्म को बुरा समझा जाता था। बिना पुरुष के उसको समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं होता था वह पति की मौत पर अपने आप को सती कर देती थी। धीरे-धीरे जब शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन हुआ तो उनकी स्थिति पुरुषों के समान हो गई। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के साथ स्त्री ने अपनी स्थिति को स्त्री के समान ही समझा। इस विवाह के प्रकार ने स्त्री की स्थिति में अधिक परिवर्तन किया।

2. बच्चों का पालन-पोषण (Up-bringing of Children)-एक विवाह के प्रकार के आधार पर जो परिवार पाया गया, उसमें बच्चों की परवरिश पहले से अधिक अच्छे ढंग से हो गई। दूसरे विवाह के प्रकारों में बच्चों में ईर्ष्या की भावना रहती थी। यहां तक कि परिवार के सभी सदस्यों में प्यार केवल दिखावा मात्र तक ही सीमित था। इस विवाह की किस्म से माता-पिता द्वारा बच्चों को सम्पूर्ण प्यार प्राप्त हुआ। उनकी हर तरह की ज़रूरतों की ओर ध्यान दिया गया। बच्चों में योग्यता व ज्ञान बढ़ा। उसके व्यक्तित्व का भी विकास हुआ।

3. परिवार की स्थिरता (Stability of Family)-एक विवाह से परिवार पहले से अधिक स्थिर हो गए। आदमी व औरत को एक-दूसरे के विचार समझने का मौका मिला। परिवार तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक पुरुष व स्त्री दोनों में सूझ-बूझ न हो। बहु-विवाह में लड़ाई-झगड़ा अधिक रहता था, न तो पुरुष स्त्री को पूरा प्यार दे सकता था न ही स्त्री पुरुष को पूरा प्यार दे सकती थी। तनाव की स्थिति तकरीबन विकसित रहती थी। इस स्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़ता था जिससे बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता था। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के द्वारा ही पारिवारिक जिन्दगी को अधिक स्थिरता प्राप्त हुई।

4. जायदाद का विभाजन (Division of Property)-जायदाद का विभाजन बहु-विवाह में एक समस्या बन जाती थी। कई बार तो भाई-भाई आपस में एक-दूसरे को मारने के लिए भी तैयार हो जाते थे। परन्तु एक विवाह की प्रथा में इस समस्या का हल हो गया। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी जायदाद उसके बच्चों में बराबरी से विभाजित कर दी जाती थी।

5. रहन-सहन का उच्च-स्तर (Higher Standard of living)-आधुनिक समय में व्यक्ति की ज़िन्दगी प्राचीन समय से अधिक आरामदायक हो गई। एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री व एक स्त्री को केवल एक ही पुरुष की देखभाल करनी पड़ती थी। हरेक व्यक्ति अपने बच्चों को अपनी इच्छा अनुसार अधिक-से-अधिक अच्छी शिक्षा दे सकता है व अपने आराम की सहूलतें भी प्राप्त कर लेता है। बहु-विवाह की प्रथा में अधिक बच्चों की परवरिश भी मुश्किल हो जाती थी। एक विवाह की प्रथा से सीमित परिवार को ज्यादातर अपनाया गया।

एक विवाह की कमियां (Demerits of Monogamy)-

1. एक विवाह की प्रथा में जब स्त्री बच्चा पैदा करने की अवस्था में होती है तो वह पुरुष को पूरा सहयोग नहीं दे सकती इसके अतिरिक्त बीमारी के समय पुरुष अपनी लैंगिक इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर जाना शुरू हो गया जिससे वेश्याओं को समाज में जगह मिल गई। कई स्थितियों में पुरुष व स्त्री को मजबूरन इकटे रहना पड़ता है चाहे उनमें आपसी प्यार न हो तो भी पुरुष व स्त्री दोनों अपनी जैविक भूख को मिटाने के लिए घर से बाहर जाने लगे हैं।

2. दूसरी कमी एक विवाह की प्रथा का कारण यह रहा कि यदि घर में पति या पत्नी दोनों में से कोई भी एक बीमार हो या दोनों, ऐसी स्थिति में घर बिलकुल बेहाल हो जाता है। बच्चों को खाने-पीने की समस्या का सामना करना पड़ जाता है व कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

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प्रश्न 3.
बहु-विवाह की परिभाषाओं, प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
बहु-विवाह का अर्थ है जब तक एक से अधिक आदमी या औरतों से विवाह करने की स्वीकृति हो, उसको बह-विवाह का नाम दिया गया है। बलसेरा (Balsera) के अनुसार, “विवाह की वह प्रकार जिसमें पतियों व पत्नियों की बहुलता होती है, वह बहु-विवाह कहलाता है।”
बहु-विवाह के आगे भी कुछ प्रकार पाए गए हैं जो निम्नलिखित अनुसार है-

  1. दो-पत्नी विवाह (Bigamy)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)
  3. बहु-पति विवाह (Polyandry)

दो-पत्नी विवाह (Bigamy)-विवाह की इस प्रथा में एक पुरुष को केवल दो स्त्रियों से विवाह करवाने की आज्ञा होती है। विवाह का यह प्रकार पंजाब में भी प्रचलित रहा था।

बहु-पत्नी विवाह (Polygyny) विवाह के इस प्रकार का अर्थ है जब एक पुरुष का विवाह अधिक स्त्रियों से कर दिया जाता है, तो उसको बहु-पत्नी विवाह कहा जाता है।

के० एम० कपाड़िया (Kapadia) के अनुसार, “बहु-पत्नी विवाह, विवाह का वह प्रकार होता है, जिसमें पुरुष एक ही समय एक से अधिक स्त्रियां रख सकता है।”
जी० डी० मिचैल (G.D. Mitchell) के अनुसार, “एक पुरुष यदि एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाता है तो उसको बहु-पत्नी विवाह का नाम दिया जाता है।

यह दो प्रकार का होता है :

  1. प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny Marriage) .
  2. अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny Marriage)

प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह के इस प्रकार में पत्नियों की संख्या सीमित कर दी जाती है। व्यक्ति उस सीमा से अधिक पत्नियां व्यक्ति नहीं रख सकता। मुसलमानों में प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह की प्रथा अनुसार एक व्यक्ति के लिए पत्नियों की संख्या भी निश्चित कर दी जाती है।

अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny)–इस प्रथा के अनुसार कोई भी पुरुष जितनी मर्जी पत्नियां रख सकता है। भारत में भी प्राचीन समय में विवाह की यह प्रथा ही प्रचलित थी।

बहु-पत्नी विवाह के कारण (Causes of Polygyny)-वैस्टर मार्क ने बहु-पत्नी विवाह के कई कारण दिए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. स्त्रियों के पुरुषों से जल्दी बूढ़े हो जाने के कारण बहु-पत्नी विवाह प्रचलित रहा। बच्चा पैदा होने के पश्चात् स्त्रियों की सेहत भी कमजोर हो जाती थी। ऐसा अधिकतर असभ्य समाजों में पाया गया है।
  2. विवाह के पश्चात् कुछ समय स्त्री व पुरुष के वैवाहिक सम्बन्धों पर पाबन्दी लगा दी जाती थी। उदाहरण के तौर पर गर्भवती स्त्री के लिए भी यौन सम्बन्धों पर पाबन्दी होती थी। इस कारण भी एक से अधिक विवाह की आज्ञा दी जाती थी।
  3. पुरुषों में अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छा भी इस विवाह के कारणों में मुख्य थी व कई बार पुरुषों द्वारा परिवर्तन चाहने के कारण भी बहु-पत्नी विवाह प्रचलित था।
  4. विशाल परिवार को प्राचीन समय में अच्छा दर्जा प्राप्त होता था। बड़े आकार के परिवार की इच्छा भी बहुपत्नी विवाह को प्रभावित करती थी।
  5. प्राचीन कबीले-समाजों में समाज को सम्मान प्राप्त करने के लिए भी कबीले के सरदार एक से अधिक विवाह करवाने में विश्वास रखते थे। क्योंकि लोग उसको अधिक अमीर परिवार से सम्बन्धित कर देते थे।

बहु-पत्नी विवाह के लाभ (Merits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा से बच्चों का पालनपोषण बहुत बढ़िया ढंग से हो जाता था क्योंकि कई औरतें मिल कर उनकी देखभाल कर लेती थीं। यदि एक औरत बीमार हो जाती थी तो दूसरी औरत उसके बच्चों को रोटी इत्यादि दे देती थी।
  2. इस विवाह का लाभ यह भी था कि वेश्याओं के पास पुरुष को जाकर पैसा बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। घर में ही उसको अधिक काम इच्छा के लिए आवश्यक नवीनता भी प्राप्त हो जाती थी। इसकारण घर की सम्पत्ति भी सुरक्षित रहती थी।
  3. इस प्रथा से बच्चे भी स्वस्थ होते थे। क्योंकि एक स्त्री को ही अकेले बहुत बच्चों को जन्म देने के लिए उपयोग नहीं किया जाता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह से जब कुलीन विवाह पाया गया तो निम्न जाति की लड़की भी उच्च जाति के लड़के से शादी करने लगी जिसके परिणामस्वरूप समाज में भाईचारे की भावना भी अधिक जागृत हुई।

बहु-पत्नी विवाह की हानियां (Demerits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की सबसे बड़ी कमी यह थी कि स्त्रियों का दर्जा समाज में बहुत निम्न था। क्योंकि स्त्री को केवल पुरुष के मनोरंजन के साधन रूप में ही समझा जाता था। आदमी के लिए औरत के प्रति प्यार की भावना नहीं थी बल्कि वह उसको केवल लिंग इच्छा की पूर्ति से ही सम्बन्ध रखता था। औरत की भावनाओं की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता था। समाज में तो औरत की कोई पहचान ही नहीं थी।
  2. स्त्रियां जब लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति से अधूरी रह जाती थी तो वह घर से बाहर जाकर अपने यौन सम्बन्ध कायम करने लग जाती थी क्योंकि एक पुरुष बहु-पत्नियों से विवाह करवा कर अपनी सन्तुष्टि तो कर सकता है परन्तु स्त्रियों की सन्तुष्टि नहीं हो सकती।
  3. परिवार में विवाह की इस प्रथा के साथ-माहौल दुःखदायक ही रह जाता था क्योंकि अधिक पत्नियां होने से आपस में लड़ाई-झगड़ा लगा रहता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा के कारण समाज में परिवार के मुखिया पर आर्थिक बोझ अधिक होता था क्योंकि कमाने वाला एक होता था व बाकी परिवार के सभी सदस्य उस पर ही निर्भर होते थे। परिवार के रहन-सहन का दर्जा काफ़ी निम्न हो जाता था।
  5. बहु-पत्नी विवाह में परिवार का आकार बड़ा होता था जिस कारण मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा रहती थीं।

प्रश्न 4.
बहु-पति विवाह के प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
संसार के कई समाजों में बहु-पति विवाह की प्रथा प्रचलित है। बहु-पति विवाह का अर्थ विवाह की वह प्रथा है जिसमें एक औरत एक ही समय में एक से अधिक आदमियों से विवाह करवाए। उसको बह-पति विवाह का नाम दिया जाता है। अधिकतर यह विवाह तिब्बत (Tibet) पोलीनेशिया (Polynesia) के मार्कयूज़नीम, मालाबार के टोडा (Todas) मलायाद्वीप के कुछ कबीलों में अभी भी प्रचलित है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में महाभारत के अनुसार पांच पाण्डव भाइयों की भी एक ही पत्नी थी। भारत में देहरादून के खस कबीले, मध्य भारत के टोडा कबीले, केरल के कोट कबीले में भी बह-पति विवाह की प्रथा अभी भी प्रचलित है। इसके अतिरिक्त कई पहाडी कबीलों में भी इसी प्रथा को मान्यता प्राप्त हुई है। बहु-पति विवाह के बारे अलग-अलग विद्वानों के विचार नीचे दिए जा रहे हैं-

के० एम० कपाड़िया (K.M. Kapadia) के अनुसार, “बहु-पति विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें एक स्त्री के एक ही समय एक से अधिक पति होते हैं या इस प्रथा के अनुसार सभी भाइयों की सामूहिक रूप से एक पत्नी या कई पत्नियां होती हैं।” ___* जी० डी० मिचैल (G. D. Mitchell) के अनुसार, “एक स्त्री का दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह की प्रथा बहु-पति विवाह है।” इस प्रकार जिस विवाह में एक स्त्री के एक से अधिक पति हों को बहु-पति विवाह कहा जाता है।

बहु-पति विवाह के प्रकार (Types of Polyandrous Marriage)-बहु-पति विवाह के दो मुख्य रूप पाए होते हैं :

  1. भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)
  2. गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)

भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)-बहु-पति विवाह के इस प्रकार के अनुसार स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं। बड़े भाई को बच्चे का पिता समझा जाता था व बाकी छोटे भाई उस औरत के पति होते हैं व वह अपने बड़े भाई की आज्ञा के बिना यौन सम्बन्ध नहीं स्थापित कर सकते थे। घर में बड़े भाई की आज्ञा ही चलती थी व उसकी ही ज़िम्मेदारी होती थी कि वह बच्चों का पालन-पोषण करे। विवाह के पश्चात् यदि पति का और भाई भी जन्म लेता है तो उसको भी उस औरत का पति ही समझा जाता था। यदि बड़े के अलावा कोई और भाई भी किसी और जगह विवाह कर ले तो भी उसकी औरत के बाकी भाइयों से पत्नी वाले सम्बन्ध ही होते थे। यदि भाई इस बात को न मानें, अपनी पत्नी पर केवल अपना अधिकार ही समझे तो उसको जायदाद में से बेदखल कर दिया जाता था। भारत में नीलगिरी, लद्दाख, सिक्किम, असम इत्यादि में भी यह प्रथा पाई जाती है।

गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)-बहुपति विवाह के इस प्रकार में स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते बल्कि वह सब अलग-अलग स्थान पर रहते हैं। औरत के लिए समय निश्चित किया जाता है कि उसने कितने समय के लिए एक पति के पास रहना है। निश्चित समय समाप्त होने पर वह दूसरे पति के साथ रहती है। इस प्रकार बारी-बारी वह सब पतियों के साथ रहती है। इस प्रकार में यदि स्त्री की मृत्यु हो जाए तो सारे पतियों को विधुर सा जीवन जीना पड़ता है। कई कबीले जिनमें यह प्रथा पाई जाती है तो सब जब स्त्री गर्भवती होती है तो गर्भ अवस्था में जो पति उसको तीरकमान भेंट करता है तो उसी को बच्चे का पिता स्वीकार कर लिया जाता है व बारी-बारी सभी पतियों को इस रस्म के अदा करने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार इस प्रथा अनुसार यह भी नियम होता है कि एक निश्चित समय के लिए वह जिस पति के साथ रह रही होती है तो बाकी पतियों के उसके साथ लिंग सम्बन्धों की आज्ञा नहीं होती।

बहु-पति विवाह के कारण (Causes of Polyandry)-

1. प्राचीन कबीलों में रहते हुए लोगों के लिए एक व्यक्ति द्वारा पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी मुश्किल होती थी जिस कारण व्यक्ति मिल कर एक स्त्री से विवाह करवा लेते थे। डॉ० कपाड़िया के अनुसार यह प्रथा कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण भी पाई जाती थी। प्राचीन समय में रोजी रोटी के लिए व्यक्ति को बहुत लम्बा समय अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था इस कारण कुछ व्यक्ति इस काम में व्यस्त रहते थे व बाकी पुरुष परिवार की देख-रेख के लिए घर रहते थे।

2. बढ़ती हुई जनसंख्या को सीमित करने के लिए भी विवाह की यह प्रथा पाई गई। इसमें परिवार सीमित रहता है। क्योंकि बच्चे कम पैदा होते हैं।

3. कई स्थानों पर रोजी रोटी के साधन सीमित होने के कारण भी यह प्रथा पाई गई क्योंकि कमाने वालों की संख्या सीमित साधनों के कारण अधिक थी व खाने वाले कम हो जाते थे, जिससे उनमें खुशहाली भी थी।

4. कई समाज शास्त्रियों के अनुसार विवाह की इस प्रथा के प्रचलित होने का कारण औरतों की संख्या का मर्दो की संख्या से कम होना भी है। ___5. कुछ क्षेत्रों में लड़की की कीमत अदा करने पर ही उसको पत्नी बनाया जा सकता था व कई बार लड़की की कीमत इतनी अधिक होती थी कि अकेले व्यक्ति की हैसियत से बाहर होती थी। इस कारण कई व्यक्ति मिलकर उसको पत्नी बनाने के लिए कीमत अदा करने के काबिल होते थे। इसी कारण वह सभी मिलकर एक ही औरत को अपनी पत्नी स्वीकार कर लेते थे।

बहुपति विवाह के लाभ (Merits of Polyandry)-
1. बहु-पति विवाह की प्रथा से जनसंख्या सीमित की जा सकती है क्योंकि कई समाजों में ग़रीबी का कारण भी बढ़ती. आबादी द्वारा होता है, इस प्रथा से बच्चों की संख्या कम हो जाती है।

2. इस प्रथा से जैसे जनसंख्या सीमित होती है उसी तरह रहन-सहन का दर्जा ऊंचा हो जाता है, क्योंकि कमाने वाले पर परिवार का बोझ काफ़ी कम होता है। कमाने वालों की संख्या अधिक होती है जिस कारण परिवार पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पड़ता।

3. संयुक्त परिवार इस प्रथा के द्वारा ही पाया जाता है व साथ ही परिवार का आकार भी सीमित होता है। इस कारण लड़ाई-झगड़े भी कम हो जाते हैं क्योंकि प्रत्येक परिवार का सदस्य, परिवार के साझे लाभ के लिए ही मेहनत करता है।

4. बहुपति विवाह की प्रथा में बच्चों का पालन-पोषण अधिक स्थिर ढंग से होता है क्योंकि बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी परिवार के सभी सदस्यों की साझी होती है। माता व पिता का प्यार जो बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए पाया जाता है, भी बच्चों को प्राप्त हो जाता है। संघर्ष की स्थिति बहुत कम पाई जाती है।

बहुपति विवाह की हानियाँ (Demerits of Polyandry)-
1. बहुपति विवाह का सबसे बड़ा नुकसान औरतों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि एक स्त्री को कितने ही पुरुषों की लैंगिक इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती है जिस कारण उनका स्वास्थ्य कमज़ोर हो जाता था।

2. विवाह की इस प्रथा से जन्म दर बहुत कम होती थी। यदि यह विवाह कुछ कबीलों में विकसित रहा तो आने वाले वर्षों में हो सकता है कि समाज भी समाप्त हो जाए।

3. सभी पुरुषों की काम वासना पूरी नहीं की जा सकती क्योंकि औरत के लिए प्रत्येक आदमी के पास रहने का समय निश्चित किया जाता है। जब वह निश्चित समय एक आदमी के पास रह रही होती है तो बाकी आदमियों को उसके साथ सहवास करने की मनाही होती है। ऐसी स्थिति में आदमी अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार परिवार व समाज दोनों के बीच झगड़े से अनैतिकता में अधिकता पाई जाती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
विवाह की संस्था में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
1. सरकार द्वारा लाए गए परिवर्तन-जब विवाह को एक संस्था के रूप में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हुई तो इस संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन भी लाए गए। विवाह सम्बन्धी कानून पास किए गए जिनमें हिन्दू मैरिज एक्ट सन् 1955 (Hindu Marriage Act 1955) में पास किया गया। इस कानून के तहत बहु-विवाह की प्रथा पर पाबन्दी लगा दी गई। एक विवाह को ही समाज द्वारा स्वीकारा गया व एक आदर्श विवाह भी माना गया। बाल विवाह जैसी बुराई जो बहुत समय से इस समाज में चली आ रही थी, को भी समाप्त किया गया व कानून की उल्लंघना करने वाले को कठोर सज़ा दिए जाने का भी प्रावधान बना। तलाक सम्बन्धी कानून भी पास किया ताकि आदमी व औरत की ज़िन्दगी तनाव भरपूर न रहे। पुराने समय में औरत से चाहे पति दुर्व्यवहार करे तो भी उसको अपनी सारी ज़िन्दगी बितानी पड़ती थी परन्तु अब आदमी व औरत दोनों को छूट दी गई है कि कोई भी अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि सुख से भरपूर जीवन व्यतीत कर सके।

2. विवाह को सामाजिक समझौते से सम्बन्धित किया गया-पुरानी विचारधारा के अनुसार आदमी व औरत के लिए विवाह एक धार्मिक बन्धन तक ही सीमित होता था, परन्तु आजकल की विचारधारा के अनुसार विवाह को इस बात तक सही बताया कि यदि पुरुष व स्त्री के बीच अच्छे सम्बन्ध हैं तो ठीक है, नहीं तो इस समझौते को तोड़ा भी जा सकता है। कई हालातों में जबरदस्ती विवाह कर दिया जाता है तो बाद में सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए पति-पत्नी के द्वारा आप भी फ़ैसला लिया जा सकता है क्योंकि दोनों के लिए नियम भी समान के बनाए जाते हैं। आधुनिक समय में विवाह को निजी खुशी से सम्बन्धित किया है ताकि परिवार में बच्चों की देखभाल भी ठीक ढंग से हो सके।

3. औरतों की स्थिति में परिवर्तन-जैसे-जैसे औरतें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में हिस्सा लेने लगी हैं वैसे-वैसे विवाह का स्वरूप भी बदल गया है। शुरू में समाज में औरत आर्थिक पक्ष से बिलकुल ही दूसरों पर आधारित होती थी। इस तरह वह हर तरह का दुःख भी बर्दाश्त कर लेती थी। परन्तु धीरे-धीरे औरत ने जब शिक्षा प्राप्त कर ली तो उससे वह आर्थिक तौर पर स्वतन्त्र हो गई। वह अपने फ़ैसले आप लेने लगी। कानूनी पक्ष से भी उसे काफ़ी मदद प्राप्त हुई। पति के जुल्म करने की स्थिति में वह उससे अलग होकर अपना जीवन अधिक अच्छी तरह गुज़ारने लगी। इस प्रकार जब औरत ने समाज में अपनी एक जगह बना ली तो विवाह की संस्था में स्वयं परिवर्तन आ गया। तलाक दर में तेजी आई। औरत की स्थिति पहले से अधिक अच्छी हो गई।

4. शिक्षा के विकास द्वारा परिवर्तन-शुरू में शिक्षा की ओर कोई महत्त्व नहीं दिया जाता था। इसी कारण धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए विवाह की प्रथा विकसित रही। परन्तु जैसे-जैसे शिक्षा में बढ़ोत्तरी हुई तो विवाह को ज़रूरी न समझा गया व न ही छोटी उम्र में लड़की व लड़के की शादी की गई। शिक्षित बच्चे अपनी मर्जी से विवाह करवाने की इच्छा जाहिर करने लगे।

5. औद्योगीकरण के विकास द्वारा लाया परिवर्तन-पुराने समाज में विवाह सम्बन्धी नियम इतने कठोर होते थे कि हर एक व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करवाना पड़ता था। यदि वह उस नियम की उल्लंघना भी करता तो उसको सज़ा दी जाती थी। परन्तु जैसे-जैसे पैसे का महत्त्व समाज में बढ़ा तो विवाह के सम्बन्धों में परिवर्तन आ गया। प्राचीन समय की भान्ति विवाह में पवित्रता नहीं रही। आदमी व औरत ने अपने सम्बन्धों को भी काफ़ी हद तक पैसे के सुपुर्द कर दिया जिस कारण कई बार उनका एक-दूसरे पर विश्वास भी समाप्त हो जाता है व वह अलग रहना शुरू कर देते हैं। इसके अतिरिक्त औरतों व आदमियों दोनों तरफ से कुछ कमियां पैदा हो गई हैं जिनसे विवाह की संस्था की प्रबलता में भी कमी आई।

प्रश्न 6.
परिवार के मुख्य कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने परिवार के कार्यों को अपने-अपने ढंग से वर्गीकृत किया। इनका वर्णन अग्रलिखित अनुसार है
I. जैविक कार्य (Biological Functions of Family)

1. लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति (Satisfaction of Sexual desire) परिवार का यह ज़रूरी कार्य तब से पाया जा रहा है जब से मानवीय समाज पाया गया है क्योंकि लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति परिवार का प्रारम्भिक कार्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति ही आदमी व औरत को लम्बे समय तक जोड़े रखती है, जिसके साथ इनमें शख्सियत का भी निर्माण होता है। यदि हम इस इच्छा को दबा देते हैं तो इससे कई ऐसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिनसे सामाजिक सम्बन्ध भी टूट जाते हैं।

2. सन्तान उत्पत्ति (Reproduction)—मानवीय समाज को जीवित रखने के लिए भी यह ज़रूरी होता है कि हम मानवीय नस्ल को आगे से आगे बढ़ाएं। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार व्यक्ति को तब तक मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती जब तक उसके पुत्र पैदा नहीं होता। समाज भी परिवार से बाहर पैदा हुए बच्चे को गैर-कानूनी करार दे देता है। इसी कारण परिवार को ही सन्तान उत्पत्ति का मनोरथ कहा जाता है।

3. रहने की व्यवस्था (Provision of Shelter)-परिवार के द्वारा व्यक्ति की सुरक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है। व्यक्ति के रहने के लिए घर की व्यवस्था की जाती है ताकि रोज़ाना के कार्यों से वापिस आकर वह घर में अपने परिवार सहित रह सके। आजकल के समय में क्लबों, होटलों आदि में चाहे आदमी को रहने के लिए जगह मिल जाती है परन्तु घर उसके लिए स्वर्ग के समान होता है क्योंकि जो आराम उसको घर में रहकर मिलता है वह कहीं और नहीं मिलता।

4. बच्चों का पालन-पोषण (Upbringing of Children) बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी का कार्य भी परिवार का ही होता है। बच्चा पैदा करने का अर्थ यह नहीं कि उसको परिवार की ज़रूरत नहीं बल्कि बच्चे का सही विकास माता-पिता की देख-रेख में ही ठीक हो सकता है। यह ठीक है कि आधुनिक समय में औरतों के रोज़गार में आ जाने से बच्चों की सम्भाल परिवार से बाहर क्रैचों में जाकर होने लगी है, परन्तु फिर भी हम यह देखते हैं कि जो बच्चे माता-पिता की देख-रेख में बड़े होते हैं, उनमें अधिक गुणों का भी विकास हुआ होता है। हैवलॉक (Havelock) के अनुसार अमेरिका में माँ का दूध पीने वाले बच्चों के बीच मृत्यु दर, दूसरा दूध पीने वाले बच्चों से बहुत कम है। इस प्रकार परिवार की सहायता के साथ ही हम बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से कर सकते हैं व इससे ही बच्चे का सम्पूर्ण विकास भी हो सकता है।

II. आर्थिक कार्य (Economic Functions)-परिवार को शुरू से आर्थिक कार्यों का केन्द्र माना जाता रहा है क्योंकि अपने सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा भी इसी से प्राप्त होती है। परंपरागत समाजों में तो काफ़ी चीजें घर में रहकर ही बनाई जाती थीं। परिवार के आर्थिक कार्य इस प्रकार हैं-

1. जायदाद की सुरक्षा (Protection of Property)—परिवार में व्यक्ति की जायदाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है। प्राचीन समय में अधिकतर पितृ प्रधान परिवार में जायदाद का विभाजन केवल लड़कों में ही किया जाता था परन्तु आजकल के आधुनिक समय में जायदाद का विभाजन कानून के द्वारा लड़के व लड़की दोनों के बीच किया जाने लगा है। यदि कोई व्यक्ति विवाहित नहीं होता तो उसकी मौत के बाद जायदाद के विभाजन पीछे, रिश्तेदारों के बीच भी लड़ाई शुरू हो जाती है। इस प्रकार जायदाद परिवार के सदस्यों के बीच परिवार के मुखिया की इच्छा के मुताबिक विभाजित कर दी जाती है।

2. पैसे का प्रबन्ध (Provision of Money)-पैसे की ज़रूरत परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए होती है। इस कारण परिवार के मुखिया द्वारा ही प्राचीन समय में पैसे का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल आदमी व औरत दोनों मिलकर मेहनत करके परिवार के सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं।

III. परिवार के सामाजिक कार्य(Social functions of family)—

1. समाजीकरण (Socialization)-परिवार में व्यक्ति समाज के बीच रहने के तौर-तरीके सीखकर ही एक अच्छा नागरिक बनता है व परिवार के द्वारा ही बच्चे का सामाजिक सम्पर्क भी स्थापित होता है। व्यक्ति का जन्म परिवार में होता है व सबसे पहले वह अपने माता-पिता के सम्पर्क में आता है क्योंकि उसकी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति भी इन्हीं से ही होती है। स्थिति व भूमिका की प्राप्ति भी व्यक्ति के परिवार में ही रहकर होती है। प्रदत्त पद की प्राप्ति भी परिवार से ही होती है।

परिवार में रहकर ही बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता है। यह सामाजिक विशेषता उसको परिवार में रहकर ही प्राप्त होती है। सैण्डरसन ने व्यक्ति की पशु प्रवृत्तियों को नियन्त्रण में रखना, अच्छी आदतों का निर्माण करना, ज़िम्मेदारियों को समझना व व्यक्ति में स्वः विश्वास का विकास करना भी परिवार के द्वारा किए जाने वाले कार्यों के रूप में स्वीकार किया गया है। सहयोग, प्यार, कुर्बानी, अनुशासन इत्यादि जैसे गुणों का विकास भी बच्चे में परिवार के बीच रहकर ही होता है। जिस प्रकार की शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर प्राप्त करता है, उस प्रकार का असर बच्चे में समाज के लिए भी विकसित हो जाता है। उसको हर तरह से समाज में व्यवहार करने के बारे में पता लग जाता है।

2. सामाजिक संस्कृति को सुरक्षित रखना व आगे पहुंचाना (Protection and transmission of culture)-परिवार हमारी संस्कृति को सम्भालता है व यह संस्कृति ही हमारी सामाजिक विरासत होती है। इसमें निरन्तरता बनी रहती है। प्रत्येक परिवार अपनी यह ज़िम्मेदारी समझता है कि वह नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार, आदतें, रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि प्रदान करे, बच्चा वह हर चीज़ अचेतन प्रक्रिया में ही सीखता रहता है। क्योंकि वह जो कुछ भी अपने माता-पिता को करता देखता है वही वह आप करने लग जाता है। प्रत्येक परिवार के अपने रीति-रिवाज होते हैं जिन पर वह आधारित होता है। परिवार कुछ चीजें बच्चों को चेतन रूप में भी सिखाता है ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए आदर्शों के मुताबिक चले। इस प्रकार इस निरन्तरता के आधार पर ही परिवार की संस्कृति सुरक्षित भी रहती है व अगली पीढ़ी तक भी पहुंच जाती है।

3. सामाजिक नियन्त्रण (Social Control)-परिवार को सामाजिक नियन्त्रण की एक एजेंसी के रूप में महत्ता प्राप्त है क्योंकि यह पहली एजेंसी होती है जिसमें बच्चे पर नियन्त्रण रखा जाता है ताकि गलत आदतों का निर्माण उसमें न हो सके। उदाहरण के लिए माता-पिता बच्चे के झूठ बोलने पर नियन्त्रण रखते हैं, बड़ों के साथ गलत व्यवहार आदि पर नियन्त्रण करते हैं ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए कुछ नियमों की पालना करे। प्रत्येक सदस्य परिवार के लिए ऐसा काम करना चाहता है जिससे समाज में उसके परिवार का गौरव अधिक बढ़े। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इससे बच्चा आज्ञाकारी व अनुशासन प्रिय बन जाता है। यदि घर का एक बच्चा अपने बड़े भाई बहन या माता-पिता से गलत तरीके से व्यवहार करेगा तो समाज के बाकी सदस्यों के साथ भी वह दुर्व्यवहार करने लग जाता है। जैसे चोरी करना जोकि समाज के कानूनों के द्वारा जुर्म करार दिया जाता है। उसकी आदत भी कई बार परिवार के बड़े सदस्यों को देखकर सीखी जाती है। यदि परिवार के माता-पिता बच्चे के किसी प्रकार की वस्तु चोरी करके घर लाने पर मनाही नहीं करेंगे तो बच्चा बड़ा होकर यही काम करने लगेगा। इसी तरह से परिवार बच्चे पर हर तरह की निगरानी रखकर सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

4. स्थिति प्रदान करना (Provide Status)-परिवार में रहकर बच्चे को अपने स्थान व भूमिका का पता · चलता है। प्राचीन समाज में तो बच्चा जैसे भी परिवार में पैदा होता था उसी तरह का आदर उसको प्राप्त होने लग जाता था। जैसे अमीर परिवार, राजा-महाराजा के परिवार, जागीरदार के परिवार आदि में पैदा हुए बच्चे को उतना ही सम्मान समाज में प्राप्त होता था जितना उसके माता-पिता को। उसकी स्थिति वही होती थी। एक गरीब घर में पैदा हुए बच्चे की स्थिति भी निम्न होती थी। चाहे आजकल के समय में बच्चा समाज के बीच अपनी स्थिति परिश्रम से प्राप्त करने लगा है परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक बच्चा जिस तरह के परिवार में जन्म लेता है उसको उसी प्रकार कम या अधिक परिश्रम करना पड़ता है।

IV. शिक्षा सम्बन्धी कार्य (Educational Function)-परिवार बच्चे की शिक्षा के लिए प्राथमिक साधन होता है क्योंकि सबसे प्रथम शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर ही प्राप्त करता है। अच्छी आदतें सीखना व और अन्य कई गुण आदि परिवार से ही सम्बन्धित होते हैं। प्राचीन समाजों में व्यापार सम्बन्धी शिक्षा, धर्म सम्बन्धी शिक्षा, अच्छा नागरिक बनने सम्बन्धी, बच्चा परिवार में ही प्राप्त करता है। चाहे आज के समाज में बच्चे के शिक्षात्मक कार्य दूसरी संस्थाओं के पास चले गए हैं परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक परिवार अभी भी इस शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को अदा कर रहा है।

V. राजनीतिक कार्य (Political Function)-राजनीतिक क्षेत्र के लिए परिवार को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं। कनफ्यूशियस के अनुसार मनुष्य सबसे पहला सदस्य परिवार का है व बाद में राज्य का। आदिम (Primitve) समाज में परिवार की महत्ता राजनीतिक पक्ष से अधिक प्रबल होती थी। समाज अलग-अलग कबीलों में बंटा हुआ था। इन कबीलों के ऊपर सबसे बड़ी आयु वाले व्यक्तियों को मुखिया बनाया जाता था। परिवार में भी सबसे बड़ी आयु वाला मुखिया होता था व परिवार के बाकी सदस्य उसके मुताबिक चलते थे। भारतीय संयुक्त परिवार प्रणाली में भी परिवार के मुखिया की ही प्रतिनिधिता होती थी। यह मुखिया परिवार का दादा, पड़दादा आदि हो सकता था। परिवार के सदस्यों को अलग-अलग स्थितियां व रोल दिए जाते थे जिन्हें निभाना परिवार के प्रत्येक सदस्य का फर्ज होता था। परिवार की स्थिरता भी इसी कारण होती थी। आधुनिक समाज में परिवार के असंगठन का कारण ही परिवार के राजनीतिक कार्यों की कमी होती है। परिवार ही व्यक्ति को एक राजनीतिक व्यक्ति बनाने में मदद करता है जिससे व्यक्ति समाज का एक अच्छा नागरिक बन सकता है। यह राजनीतिक संगठन ही एक.ऐसा ताकतवर संगठन होता है जो व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्धों को भी नियमित करता है। सो पारिवारिक संगठन ही हमारे सामाजिक संगठन के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार परिवार राजनीतिक कार्य भी अदा करता है।

VI. धार्मिक कार्य (Religious Function)-धार्मिक संस्कारों के बारे जानकारी व्यक्ति को परिवार से ही प्राप्त होती है। जैसे हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार तब तक धार्मिक संस्कार अधूरे होते हैं जब तक पत्नी न हो। परिवार धार्मिक क्रियाओं का केन्द्र होता है। भारतीय समाज में विवाह को ही धार्मिक बन्धन का नाम दिया जाता है। धार्मिक क्रियाओं के द्वारा ही इसको पूरा किया जाता है। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के धार्मिक संस्कार परिवार द्वारा अदा किए जाते हैं। व्यक्ति में नैतिकता का विकास भी धर्म के द्वारा होता है। धर्म एक प्रकार से व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है। इससे व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है जैसे कुर्बानी अथवा त्याग की भावना, प्यार, सहयोग इत्यादि।

धर्म के आधार पर ही पारिवारिक जीवन भी निर्भर करता है। इस प्रकार धर्म अपने सदस्यों को धार्मिक आदर्शों, नियमों आदि प्रति पहचान करवाता है जिससे व्यक्तियों में एकता इत्यादि की भावना भी कायम रहती है। चाहे आजकल के समाज में लोगों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया है परन्तु फिर भी परिवार धार्मिक रिवाजों को कायम रख रहा है।

VII. मनोरंजन के कार्य (Recreational Function) परिवार अपने सदस्यों के मनोरंजन के लिए भी सहूलतें प्रदान करता है। शुरू के समाज में व्यक्ति रात के समय परिवार में इकट्ठे बैठकर एक-दूसरे से अपनी रोज़ाना की बातचीत करते थे व परिवार के बुजुर्ग सदस्य अपनी बाल कथाएं आदि सुनाकर शेष का मनोरंजन करते थे। उस समय मनोरंजन के दूसरे साधन विकसित नहीं थे। इसके अतिरिक्त त्योहारों के समय भी परिवार के सदस्य इकट्ठे मिल कर नाचते, गाना गाते थे जिनसे सबका मनोरंजन होता था।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
गोत्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गोत्र को वंश समूह का विस्तृत रूप कह सकते हैं। जब कोई वंश समूह विकास के कारण बढ़ जाता है तो वह गोत्र का रूप धारण कर लेता है। यह माता या पिता के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों को मिलाकर बनता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि गोत्र रक्त के रिश्तेदारों का समूह होता है और वह सभी किसी साझे पूर्वज के एक रेखकी सन्तान होते हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि यह साझे पूर्वज काल्पनिक होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को पता नहीं होता है।

गोत्र किसी ऐसे व्यक्ति या पूर्वज से शुरू होता है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। क्योंकि यह माना जाता है कि उसने ही परिवार को या उस गोत्र को शुरू किया था इसलिए उसको संस्थापक मान लिया जाता है। उस गोत्र का नाम भी उसके पूर्वज के नाम के साथ रख लिया जाता है। गोत्र हमेशा एक तरफ को चलती है मतलब किसी बच्चे के माता-पिता के गोत्र एक नहीं हो सकते वह हमेशा अलग-अलग होंगे। यह एक पक्ष का ही होता है। इसका यह अर्थ है कि माता की गोत्र अलग परिवारों का इकट्ठ है और पिता की गोत्र भिन्न परिवारों का इकट्ठ है। इस तरह यह गोत्र बाहर व्यक्ति का समूह होता है। एक ही गोत्र में विवाह नहीं हो सकता।

परिभाषाएं (Definitions) –

(1) मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “एक क्लैन या सिब अक्सर कुछ वंश समूहों का जुट होता है जोकि आपसी उत्पत्ति एक कल्पित पूर्वज से मानते हैं जोकि मनुष्य या मनुष्य की तरह, पशु, वृक्ष, पौधा या निर्जीव वस्तु हो सकता है।”
(“A clan or sib is often the combination of a few lineages and descent into may be ultimately traced to a mythical ancestor, who may be human, human like, animal, plant or even in animate.”)

(2) पिंडिगटन (Pidington) के अनुसार, “एक गोत्र जिसको कभी-कभी कुल (Sib) भी कहते हैं, एक बाहर विवाही सामाजिक समूह है जिसके सदस्य अपने आपको एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित समझते हैं, जो आमतौर पर अपनी उत्पत्ति एक काल्पनिक वंशानुक्रम द्वारा किसी बड़े-बूढ़ों से मानते हैं।”
(“A clan some times called sib is an exogamous social group whose members regard themselves as being related to each other usually by functional descent from a common ancestor.”)

(3) रिवर्ज़ (Rivers) के अनुसार, “गोत्र में कबीले का एक बाहर विवाहित विभाजन है जिसके सदस्य अपने ही कुछ बन्धनों द्वारा एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित रहते हैं। इस बन्धन का आकार एक साझे पूर्वज की सन्तान या वंश होने में विश्वास एक साझा टोटम या एक साझे भू-भाग में निवास हो सकता है।”(“Clan is an exogamous division of tribe the members of which are held to be related to one another by same common lies, it may be descent from a common ancestor, possession of a common totom or hibitationed of a common territory.”) .

इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि गोत्र एक काफ़ी बड़ा रक्त समूह होता है जोकि एक वंश के सिद्धान्त पर आधारित होता है। गोत्र अपने आप में एक पूरा सामाजिक संगठन है जोकि एक समाज की अलगअलग गोत्रों को एक खास रूप अर्थात् और काम प्रदान करती है। गोत्र या तो मातृ वंशी होती है या फिर पितृ वंशी, मतलब कि बच्चे या तो पिता की गोत्र के सदस्य होते हैं या फिर माता की गोत्र के सदस्य । एक गोत्र बाहरी समूह होता है अर्थात् विवाह गोत्र से बाहर होना चाहिए है। इसलिए माता-पिता के गोत्र अलग-अलग होने चाहिए।

गोत्र की विशेषताएं (Characteristics of Clan) –

1. गोत्र की सदस्यता वंश पर आधारित होती है (Membership of Clan depends upon Lineage)गोत्र की सदस्यता वंश परम्परा पर आधारित होती है। यह चाहे पितृ वंशी या मातृ वंशी हो सकता है जोकि उस समाज पर निर्भर करता है। व्यक्ति की गोत्र उसके हाथ में नहीं होती। यह उसकी इच्छा पर भी आधारित नहीं होती। यह तो जन्म पर आधारित होता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है उसका सदस्य बन जाता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है, उसमें ही बड़ा होता है और उसमें ही मर जाता है।

2. हर गोत्र का नाम होता है (Each clan has a name)-हर गोत्र का एक खास नाम होता है। चाहे यह नाम, पशु, वृक्ष, किसी प्राकृतिक वस्तु आदि से भी लिया जा सकता है। यह चार प्रकार के होते हैं-भू-भागी नाम, टोटम वाले नाम, उपनाम, ऋषि नाम।

3. एक पक्ष (Unilateral)–गोत्र हमेशा एक पक्ष का होता है। यह कभी भी दो पक्ष की नहीं हो सकती। इसका मतलब यह हुआ कि गोत्र या पितृ वंशी समूह होगा या मातृ वंशी समूह। पितृ वंशी समूह से मतलब है कि वह बच्चा पिता के वंश का सदस्य होगा और मातृ वंशी से मतलब है कि वह माता के वंश का सदस्य होगा। इस तरह सिर्फ एक पक्ष होगा दोनों तरफ से नहीं।

4. गोत्र के सदस्य एक स्थान पर नहीं रहते (Member of a clan do not live at one place)-गोत्र के सदस्यों में खून का सम्बन्ध होता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्थान पर रहते हों। इनका निवास स्थान साझा नहीं होता।

5. साझा पूर्वज (Common Ancestor)—गोत्र का एक साझा पूर्वज होता है चाहे उस पूर्वज के बारे में किसी को पता नहीं होता। यह साझा पूर्वज हमेशा कल्पना पर आधारित होता है। चाहे वह पूर्वज असल में भी हो सकते हैं पर यह आमतौर पर कल्पित भी हो सकता है।

6. बर्हिविवाही समूह (Exogamous group)-गोत्र एक बर्हिविवाही समूह है। इसका मतलब है कि कोई भी एक ही गोत्र में विवाह नहीं करवा सकता। यह वर्जित होता है। यह इस वज़ह के कारण होता है क्योंकि गोत्र के सारे सदस्य एक साझे असली या कल्पित पूर्वज की पैदावार होते हैं और उन सभी में खून के सम्बन्ध होते हैं। इस वज़ह के कारण उस रिश्ते में बहन-भाई हुए और इनमें वर्जित है। विवाह अपनी गोत्र से बाहर ही करवाया जा सकता है

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

विवाह, परिवार तथा नातेदारी PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक समाज ने अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कुछ संस्थाओं का निर्माण किया होता है। संस्था सामाजिक व्यवस्था का एक ढांचा है जो एक समुदाय के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करती है। यह विशेष प्रकार की आवश्यकता को पूर्ण करती है जो समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
  • संस्थाओं की कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह विशेष आवश्यकताएं पूर्ण करती हैं, यह नियमों का एक गुच्छा हैं, यह अमूर्त व सर्वव्यापक होती हैं, यह स्थायी होती हैं जिनमें आसानी से परिवर्तन नहीं आते, इनमें प्रकृति सामाजिक होती है इत्यादि।
  • विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है। यह समाज की एक मौलिक संस्था . है। विवाह से दो विरोधी लिंगों के व्यक्तियों को पति-पत्नी के रूप में इकट्ठे रहने की आज्ञा मिल जाती है। वह लैंगिक संबंध स्थापित करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं तथा समाज के आगे बढ़ने में योगदान देते हैं।
  • वैसे तो समाज में विवाह के कई प्रकार मिलते हैं परन्तु एक विवाह तथा बहु विवाह ही प्रमुख हैं। बहुविवाह आगे दो भागों में विभाजित हैं-बहुपति विवाह तथा बहुपत्नी विवाह । बहुपति विवाह कई जनजातीय समाजों में प्रचलित है तथा बहुपत्नी विवाह पहले हमारे समाजों में प्रचलित था।
  • हमारे समाज में जीवन साथी के चुनाव के कई तरीके प्रचलित हैं जिनमें से अन्तर्विवाह (Endogamy) तथा बहिर्विवाह (Exogamy) प्रमुख हैं। अन्तर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह के अंदर ही विवाह करना पड़ता है तथा बहिर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह से बाहर विवाह करवाना पड़ता है।
  • विवाह की संस्था में पिछले कुछ समय में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं। इन परिवर्तनों के कई मुख्य कारण हैं जैसे कि औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिक शिक्षा, नए कानूनों का बनना, स्त्रियों की स्वतन्त्रता, पश्चिमी समाजों का प्रभाव इत्यादि।
  • परिवार एक ऐसी सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में मौजद है। व्यक्ति केजीवन में परिवार नामक संस्था का काफ़ी अधिक प्रभाव है तथा इसके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।
  • परिवार के कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह सर्वव्यापक संस्था है, इसका भावात्मक आधार होता है, इसका आकार छोटा होता है यह स्थायी तथा अस्थायी दोनों प्रकार का होता है, यह व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करता है इत्यादि।
  • परिवार के कई प्रकार होते हैं तथा इनके रहने के स्थान, सत्ता, सदस्यों इत्यादि के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  • पिछले कुछ समय में परिवार नामक संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं जैसे कि आकार का छोटा होना, परिवारों का टूटना, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन, नातेदारी के संबंधों का कमज़ोर होना, कार्यों में परिवर्तन इत्यादि।
  • नातेदारी व्यक्ति के रिश्तों की व्यवस्था है। इसमें कई प्रकार के रिश्ते आते हैं। नातेदारी को दो आधारों पर विभाजित किया जा सकता है। वह दो आधार हैं-रक्त संबंध तथा विवाह।
  • नज़दीकी तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार के रिश्तेदार पाए जाते हैं-प्राथमिक, द्वितीय तथा तृतीय प्रकार के रिश्तेदार। प्राथमिक रिश्तेदार माता-पिता, बहन-भाई होते हैं। द्वितीय रिश्तेदार हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे पिता का पिता-दादा। तृतीय प्रकार के रिश्तेदार द्वितीय रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे-चाचा का पुत्र-चचेरा भाई।
  • पितृसत्तात्मक (Patriarchal)-वह परिवार जहाँ पिता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • मातृसत्तात्मक (Matriarchal)—वह परिवार जहाँ माता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • एकाकी परिवार (Nuclear Family)—वह परिवार जहाँ पति, पत्नी व उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हों।
  • संयुक्त परिवार (Joint Family)-वह परिवार जिसमें दो या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे रहते हों तथा एक ही रसोई में से खाना खाते हों।
  • अन्तर्विवाह (Endogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि जाति में ही विवाह करवाना।
  • बहिर्विवाह (Exogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि गोत्र या परिवार से बाहर विवाह करवाना।
  • एक विवाह (Monogamy)-जब एक स्त्री का एक पुरुष से विवाह हो उसे एक विवाह कहते हैं।
  • बहु विवाह (Polygamy)-जब एक पुरुष या स्त्री दो या अधिक विवाह करवाएं तो उसे बहुविवाह कहते है।
  • विवाह मूलक नातेदारी (Affinal Kinship)—वह रिश्तेदारी जो व्यक्ति के विवाह के पश्चात् बनती है जैसे कि जमाई, जीजा, इत्यादि।
  • रक्त मूलक नातेदारी (Consanguineous Kinship)—वह नातेदारी जो व्यक्ति के जन्म के पश्चात् ही बन जाती है जैसे-पुत्र, पुत्री, माता, पिता, भाई, बहन इत्यादि।
  • नातेदारी (Kinship)-सामाजिक संबंध जो वास्तविक या काल्पनिक आधारों पर रक्त या विवाह के अनुसार बनते हों।

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions योग (Yoga) Game Rules.

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide योग (Yoga) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द संस्कृत की किस धातु से लिया गया है ?
उत्तर-
योग शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘जोड़’ या ‘मेल’।

प्रश्न 2.
प्राणायाम की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम
(Pranayama)
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है, ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण। प्राणायाम वह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती हैं।”

प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayama)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ … समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार हैं।
रेचक-सांस बाहर को छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर खींचते हैं तो इसे पूरक कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—

  1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
  2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बड़ी आन्तों में यही प्राण होता है। यह टट्टी, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
  3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और एडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
  4. उदाना–गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदान कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
  5. ध्यान-यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।

प्राणायाम की किस्में
(Kinds of Pranayama)
शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गए हैं, परन्तु प्रायः यह आठ होते हैं—

  1. सूर्य-भेदी प्राणायाम
  2. उजयी प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. शीतली प्राणायाम
  5. भस्त्रिका प्राणायाम
  6. भ्रमरी प्राणायाम
  7. मुर्छा प्राणायाम
  8. कपालभाती प्राणायाम

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
योग की कोई छः किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
योग की छ: किस्में-अष्टांग योग, हठ योग, जनन योग, मंत्र योग, भक्ति योग, कुंडली योग।

प्रश्न 4.
अष्टांग योग के तत्वों के नाम लिखें।
उत्तर-
यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान तथा समाधि अष्टांग योग के तत्त्व हैं।

प्रश्न 5.
ताड़ासन की विधि लिखें।
उत्तर-
ताड़ासन (Tarasan)—इस आसन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर खींचा जाता है।
ताड़ासन की स्थिति (Position of Tarasan)-इस आसन में स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होती है।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
ताड़ासन
ताड़ासन की विधि (Technique of Tarasan) खड़े होकर पांव की एड़ियों और अंगुलियों को जोड़ कर भुजाओं को ऊपर सीधा करें। हाथों की अंगुलियां एक-दूसरे हाथ में फंसा लें। हथेलियां ऊपर और नज़र सामने हो। अपना पूरा सांस अन्दर की ओर खींचें। एड़ियों को ऊपर उठा कर शरीर का सारा भार पंजों पर ही डालें। शरीर को ऊपर की ओर खींचे। कुछ समय के बाद सांस छोड़ते हुए शरीर को नीचे लाएं। ऐसा दस पन्द्रह बार करो।
ताड़ासन के लाभ (Advantages of Tarasan)-

  1. इससे शरीर का मोटापा दूर होता है।
  2. इससे कब्ज दूर होती है।
  3. इससे आंतों के रोग नहीं लगते।
  4. प्रतिदिन ठण्डा पानी पी कर इस आसन को करने से पेट साफ रहता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
पश्चिमोत्तानासन की विधि लिखें।
उत्तर-
पश्चिमोत्तानासन (Paschimotanasana)—इसमें पांवों के अंगूठों को अंगुलियों से पकड़ कर इस प्रकार बैठा जाता है कि धड़ एक ओर ज़ोर से चला जाए।
पश्चिमोत्तानासन की स्थिति (Position of Paschimotanasana)-इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ा जाता है।
पश्चिमोत्तानासन की विधि (Technique of Paschimotansana)-दोनों टांगें आगे की ओर फैला कर भूमि पर बैठ जाएं। दोनों हाथों से पांवों के अंगूठे पकड़ कर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए घुटनों को छूने की कोशिश करो। फिर धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठाएं और पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यह आसन हर रोज़ 10-15 बार करना चाहिए।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
पश्चिमोत्तानासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से जंघाओं को शक्ति मिलती है।
  2. नाड़ियों की सफाई होती है।
  3. पेट के अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. शरीर की बढ़ी हुई चर्बी कम होती है।
  5. पेट की गैस समाप्त होती है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB योग (Yoga) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
योग का इतिहास लिखें।
उत्तर-
योग का इतिहास उत्तर
(History of Yoga)
‘योग’ का इतिहास वास्तव में बहुत पुराना है। योग के उद्भव के बारे में दृढ़तापूर्वक व स्पष्टता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। केवल यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में हुआ था। उपलब्ध तथ्य यह दर्शाते हैं कि योग सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। उस समय व्यक्ति योग किया करते थे। गौण स्रोतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में लगभग 3000 ई० पू० हुआ था। 147 ई० पू० पतंजलि (Patanjali) के द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक लिखी गई थी। वास्तव में योग संस्कृत भाषा के ‘युज्’ शब्द से लिया गया है। जिसका अभिप्राय है ‘जोड़’ या ‘मेल’। आजकल योग पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। आधुनिक युग को तनाव, दबाव व चिंता का युग कहा जा सकता है। इसलिए अधिकतर व्यक्ति खुशी से भरपूर व फलदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। पश्चिमी देशों में योग जीवन का एक भाग बन चुका है। मानव जीवन में योग बहुत महत्त्वपूर्ण है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
यौगिक व्यायाम के नए नियम लिखे।
उत्तर-
यौगिक व्यायाम के नये नियम
(New Rules of Yogic Exercise)

  1. यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  3. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  4. भोजन करने के बाद कम-से-कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिए।
  5. यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिए और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
  6. अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
  7. दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
  8. शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिए, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।

बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में निम्नलिखित यौगिक व्यायाम सम्मिलित किए गए हैं जिनके दैनिक अभ्यास द्वारा एक साधारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहता है—

  1. ताड़ासन
  2. अर्द्धचन्द्रासन
  3. भुजंगासन
  4. शलभासन
  5. धनुरासन
  6. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  7. पश्चिमोत्तानासन
  8. पद्मासन
  9. स्वास्तिकासन
  10. सर्वांगासन
  11. मत्स्यासन
  12. हलासन
  13. योग मुद्रा
  14. मयूरासन
  15. उड्डियान
  16. प्राणायाम : अनुलोम विलोम
  17. सूर्य नमस्कार
  18. शवासन

प्रश्न 3.
भुजंगासन की विधि बताकर इसके लाभ लिखें।
उत्तर-
भुजंगासन (Bhujangasana)-इसमें चित्त लेट कर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)—इसे सर्पासन भी कहते हैं। इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सर्पासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरेधीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
लाभ (Advantages)—

  1. भुजंगासन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  3. रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
  4. कब्ज दूर होती है।
  5. बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
  6. फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
    योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
    भुजंगासन

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
धनुरासन और अर्द्धमत्स्येन्द्रासन की विधि और लाभ लिखें।
उत्तर-
धनुरासन (Dhanurasana)—इसमें चित्त लेट कर और टांगों को ऊपर खींच कर पांवों को हाथों से पकड़ा जाता है।
धनुरासन की विधि (Technique of Dhanurasana)-इससे शरीर की स्थिति कमान की तरह होती है। धनुरासन करने के लिए पेट के बल भूमि पर लेट जाएं। घुटनों को पीछे की ओर मोड़ कर रखें। टखनों के समीप पांवों
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
धनुरासन
को हाथ से पकड़ें। लम्बी सांस लेकर छाती को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं। अब पांव अकड़ायें जिससे शरीर का आकार कमान की तरह बन जाए। जितने समय तक सम्भव हो ऊपर वाली स्थिति में रहें। सांस छोड़ते समय शरीर को ढीला रखते हुए पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इस आसन को तीन-चार बार करें। भुजंगासन और धनुरासन दोनों ही आसन बारी-बारी करने चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से शरीर का मोटापा कम होता है।
  2. इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
  3. गठिया और मूत्र रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. मेहदा तथा आंतें अधिक ताकतवर बनती हैं।
  5. रीढ़ की ‘हड्डी तथा मांसपेशियां मज़बूत और लचकीली बनती हैं।

अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana) इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पावों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बाएं पांव की एड़ी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ। जिससे एडी का भाग गदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्षस्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएँ।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
लाभ—

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन, वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hernia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 5.
पद्मासन, मयूरासन, सर्वांगासन और मत्स्यासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
पद्मासन (Padamasana)-इसमें टांगों की चौंकड़ी लगा कर बैठा जाता है। पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मार कर बैठने के बाद दायां पांव बाईं जांघ पर इस तरह रखें कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठा कर उसी प्रकार दायें पांव की जांघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तान कर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा इस आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6
पद्मासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन में पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
  3. कमर दर्द दूर होता है।
  4. दिल के तथा पेट के रोग नहीं लगते।
  5. मूत्र के रोगों को दूर करता है।

मयूरासन (Mayurasana)
विधि (Technique)-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कहनियों को आपस में मिला कर ज़मीन पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर दे कर घुटनों और पैरों को जमीन से उठाए रखो।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7
मयूरासन
लाभ (Advantages)—

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों तथा हाथों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है।
  4. इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  5. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Sarvangasana)—सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भान्ति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठा कर हथेलियों द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएँ।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 8
सर्वांगासन
सारे शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरे-धीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ा कर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
  2. बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर धंसता है।
  3. शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
  4. पेट की गैस नष्ट होती है।
  5. रक्त का संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
  6. बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।

मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर Supine लेते हुए और पीछे की ओर arch बनाते हैं।
विधि (Technique)—पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
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मत्स्यासन
लाभ (Advantages)—

  1. वह आसन चेहरे को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा मेरूदण्ड में लचक आती है, कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र दोषों को दूर करता है।
  5. यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

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प्रश्न 6.
हलासन और शवासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
हलासन (Halasana)—इसमें Supine लेते हुए, टांगें उठा कर और सिर से परे रखी जाती हैं।
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हलासन
विधि (Technique)—दोनों टांगों को ऊपर उठाएं, सिर को पीछे रखें और दोनों पांवों को सिर के पीछे ज़मीन पर रखें। पैरों के अंगूठे ज़मीन को छू लें। यह स्थिति जब तक हो सके रखें। इसके पश्चात् अपनी टांगें पहले वाले स्थान पर लाएं जहां से आरम्भ किया था।
लाभ (Advantages)—

  1. हल आसन औरतों और मर्दो के लिए हर आयु में लाभदायक है।
  2. यह आसन रक्त के दबाव अधिक और कम के लिए भी फायदेमंद है। जिस व्यक्ति को दिल की बीमारी हो उसके लिए भी लाभदायक है।
  3. रक्त का दौरा नियमित हो जाता है।
  4. इस आसन को करने से व्यक्ति की वसा कम हो जाती है और कमर व पेट पतले हो जाते हैं।
  5. रीढ़ की हड्डी लचकदार हो जाती है।

शवासन (Shavasana)—चित्त लेट कर मीटर को ढीला छोड़ दें।
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)—शवासन में पीठ के बल सीधा लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरे-धीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेट कर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच एक डेढ़ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों को आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तान हो कर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू या अन्त में करना ज़रूरी है।
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शवासन
महत्त्व (Importance)—

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. यह दिल और दिमाग को ताज़ा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

योग मुद्रा (Yog Mudra)—इसमें व्यक्ति पद्मासन में बैठता है, धड़ को झुकाता है और भूमि पर सिर को विश्राम देता है।
मयूरासन (Mayurasana)—इसमें शरीर को क्षैतिज रूप में कुहनियों पर सन्तुलित किया जाता है। हथेलियां भूमि पर टिकाई होती हैं।
उड्डियान (Uddiyan)—पांवों को अलग-अलग करके खड़ा होकर धड़ को आगे की ओर झुकाएं। हाथों को जांघों पर रखें। सांस बाहर निकालें और पसलियों के नीचे अन्दर को सांस खींचने की नकल करें।

प्राणायाम : अनुलोम विलोम (Pranayam : Anulom Vilom)—बैठकर निश्चित अवधि के लिए बारीबारी सांस को अन्दर खींचें, ठोडी की सहायता से सांस रोकें और सांस बाहर निकालें।

लाभ (Advantages)—प्राणायाम आसन द्वारा रक्त, नाड़ियों और मन की शुद्धि होती है।
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar)—सूर्य नमस्कार के 16 अंग हैं परन्तु 16 अंगों वाला सूर्य सम्पूर्ण सृष्टि के लय होने के समय प्रकट होता है। साधारणतया इसके 12 अंगों का ही अभ्यास किया जाता है।

लाभ (Advantages)—यह श्रेष्ठ यौगिक व्यायाम है। इससे व्यक्ति को आसन, मुद्रा और प्राणायाम के लाभ प्राप्त होते हैं। अभ्यासी का शरीर सूर्य के समान चमकने लगता है। चर्म सम्बन्धी रोगों से बचाव होता है। कोष्ठ बद्धता दृर होती है। मेरूदण्ड और कमर लचकीली होती है। गर्भवती स्त्रियों और हर्निया के रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 7.
वज्रासन, शीर्षासन, चक्रासन और गरुड़ासन की विधि एवं लाभ लिखें।
उत्तर-
वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि (Technique)—

  1. घुटने मोड़ कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलुओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हों।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।

लाभ (Advantages)—
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वज्रासन

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिंत हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

शीर्षासन (Shirsh Asana)-इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि (Technique)—

  1. एक दरी या कम्बल बिछा कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ (Advantages)—
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शीर्षासन

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां (Precautions)—

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दें।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सके तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो। इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।

चक्रासन (Chakar Asana) की स्थिति-इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
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चक्रासन
विधि (Technique)—

  1. पीठ के भार लेट कर, घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को जमीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को चक्रासन या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ (Advantages)—

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्निया तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मजबूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दे की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

गरुड़ आसन (Garur Asana) की स्थिति- गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खड़ा होना होता है।
विधि (Technique)—

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ (Advantages)—
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 15
गरुड़ासन

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिाली बनाता है।
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 8.
अष्टांग योग के अंगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
अष्टांग योग
(Ashtang Yoga)
अष्टांग योग के आठ अंग हैं, इसलिए इसका नाम अष्टांग योग है।
योगाभ्यास की पतजंलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतजंलि ऋषि का अष्टांग योग भी कहते हैं—

  1. यम (Yama, Forbearnace)
  2. नियम (Niyama, Observance)
  3. आसन (Asana, Posture)
  4. प्राणायाम (Pranayama, Regulation of Breathing)
  5. प्रत्याहार (Pratyahara, Abstracition)
  6. धारणा (Dharna, Concentration)
  7. ध्यान (Dhyana, Meditation)
  8. समाधि (Samadhi, Trance)।

योग की ऊपरी बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है। इन सभी अवस्थाओं को आगे फिर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है—
1. यम (Yama, Forbearance) यम के निम्नलिखित पांच अंग हैं—

  • अहिंसा (Ahimsa, Non-violence)
  • सत्य (Satya, Truth)
  • अस्तेय (Astey, Conquest of the sense of mind)
  • अपरिग्रह (Aprigraha, Non-receiving)
  • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya, Celibacy)।

2. नियम (Niyama, Observance)-नियम के निम्नलिखित पांच अंग हैं :—

  • शौच (Shauch, Obeying the call of nature)
  • सन्तोष (Santosh, Contentment)
  • तप (Tapas, Penance)
  • स्वाध्याय (Savadhyay, Self-study)
  • ईश्वर परिधान (Ishwar Pridhan, God Consciousness)।

3. आसन (Asana or Posture) आसनों की संख्या उतनी है जितनी कि इस संसार में पशु-पक्षियों की। आसन-शारीरिक क्षमता, शक्ति के अनुसार, प्रतिदिन सांस द्वारा हवा को बाहर निकलने, सांस रोकने और फिर सांस लेने से करने चाहिएं।

4. प्राणायाम (Pranayma, Regulation of Breathing), प्राणायाम उपासना की मांग है। इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है—

  • पूरक (Purak, Inhalation)।
  • रेचक (Rechak, Exhalation) और
  • कुम्भक (Kumbhak, Holding of Breath)। कई प्रकार से सांस लेने तथा इसे रोककर बाहर निकालने को प्राणायाम कहते हैं।

5. प्रत्याहार (Pratyahara)– प्रत्याहार से अभिप्राय: है वापिस लाना तथा सांसारिक प्रसन्नताओं से मन को मोड़ना।

6. धारणा (Dharna)-अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने को धारणा कहते हैं जो बहुत कठिन है।

7. ध्यान (Dhyana)–जब मन पर नियन्त्रण हो जाता है तो ध्यान लगना आरम्भ हो जाता है। इस अवस्था में मन और शरीर नदी के प्रवाह की भान्ति हो जाते हैं जिसमें पानी की धाराओं का कोई प्रभाव नहीं होता।

8. समाधि (Samadhi)-मन की वह अवस्था जो धारणा से आरम्भ होती है, समाधि में समाप्त हो जाती है। इन सभी अवस्थाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions स्रोत आधारित प्रश्न.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्रोत को पढ़ें तथा साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
19वीं सदी में प्राकृतिक विज्ञानों ने बहुत प्रगति की। प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों द्वारा प्राप्त सफलता ने बड़ी संख्या में समाज, विचारकों को उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि यदि प्राकतिक विज्ञान की पद्धतियों से भौतिक विश्व में भौतिक या प्राकृतिक प्रघटनाओं को सफलतापूर्वक समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को समझने में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे विद्वानों तथा अन्य समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन विज्ञान की पद्धतियों से करने का समर्थन किया क्योंकि वे प्राकृतिक वैज्ञानिकों की खोजों से प्रेरित थे और समान तरीके से ही समाज का अध्ययन करना चाहते थे।

(i) किस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए ?
(ii) किन समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन किया ?
(ii) समाजशास्त्रियों का प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों के बारे में क्या विचार था ?
उत्तर-
(i) 19वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को काफी सफलता प्राप्त हुई। इस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए।
(ii) अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने समाज का गहनता से अध्ययन किया।
(iii) समाजशास्त्रियों का मानना था कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से प्राकृतिक घटनाओं को आसानी से समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों की सहायता से सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को भी सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।

प्रश्न 2.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यूरोप और अमेरिका में, 19वीं सदी के बाद समाजशास्त्र एक विषय के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में, यह न केवल थोड़ी देर से उभरा अपितु अध्ययन के एक विषय के रूप में इसे कम महत्त्व दिया गया। तथापि, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत में समाजशास्त्र के महत्त्व में वृद्धि हुई और देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम मे एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक विषय के रूप मे भी पहचान बनायी। राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० धुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाडिया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई इत्यादि कुछ महत्त्पूर्ण विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।

(i) एक विषय के रूप में समाजशास्त्र यूरोप में कब विकसित हुआ ?
(ii) कुछ भारतीय समाजशास्त्रियों के नाम बताएं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(iii) भारत में समाजशास्त्र कैसे विकसित हुआ ?
उत्तर-
(i) यूरोप तथा अमेरिका में समाजशास्त्र एक विषय के रूप में 19वीं शताब्दी के पश्चात् काफी तेज़ी से विकसित हुआ।
(ii) राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० घुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाड़िया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान दिया।
(iii) 1947 से पहले भारत में समाजशास्त्र का विकास तेज़ी से न हो पाया क्योंकि भारत पराधीन था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में समाजशास्त्र तेजी से विकसित हुआ तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। इसके अतिरिक्त, इसे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण यह तेजी से विकसित हुआ।

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प्रश्न 3.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति तथा इतिहास के दर्शन में हैं। इस कारण से समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक समस्या का एक राजनीतिक कारण है। राजनीतिक व्यवस्था या शक्ति संरचना की प्रकृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन समाज में भी परिवर्तन लाता है। विभिन्न राजनीतिक घटनाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से मदद लेता है। इसी तरह, राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र पर पर निर्भर करता है। राज्य अपने नियमों, अधिनियमों और कानूनों का निर्माण सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं तथा मूल्यों के आधार पर करता है। अतः बिना समाजशास्त्रियों पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा होगा। लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति सामाजिक है तथा इन राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

(i) मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र राजनीति पर क्यों निर्भर है ?
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्यों अधूरा है ?
(ii) किस प्रकार राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
(i) गिंसबर्ग के अनुसार ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति व इतिहास के दर्शन में हैं। इसलिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर है।
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार राज्य जब भी अपने नियम अथवा कानून बनाता है, उसे सामाजिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्पराओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है।
(iii) गिंसबर्ग के अनुसार लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति समाज में से ही होती है तथा समाज का अध्ययन समाजशास्त्र करता है। इस लिए जब भी राजनीति विज्ञान को समाज का अध्ययन करना होता है, उसे समाजशास्त्र की सहायता लेनी ही पड़ती है।

प्रश्न 4.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
विभिन्न समाज विज्ञानों में समाज का भिन्न अर्थ लगाया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक इकाइयों के संदर्भ में होता है। समाजशास्त्र का मुख्य ध्यान मानव समाज पर तथा इसमें पाये जाने वाले सम्बन्धों के नेटवर्क/जाल पर होता है। एक समाज में समाजशास्त्री सामाजिक प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं तथा यह ज्ञात करते हैं कि एक विशिष्ट स्थिति में एक व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है, उसे दूसरों से क्या उम्मीद करनी चाहिए तथा दूसरे उससे क्या उम्मीदें/अपेक्षाएं करते हैं।

(i) समाज शब्द का प्रयोग अलग-अलग समाज विज्ञानों में अलग-अलग क्यों है ?
(ii) समाजशास्त्र में समाज का क्या अर्थ है ?
(iii) समाज व एक समाज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
(i) अलग-अलग समाज विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का अध्ययन करते हैं। जैसे अर्थशास्त्र पैसे से संबंधित विषय का अध्ययन करता है। इस कारण वह समाज शब्द का अर्थ भी अलग-अलग ही लेते हैं।
(ii) समाजशास्त्र में सम्बन्धों के जाल को समाज कहा जाता है। जब लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो समाज का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।
(iii) जब हम समाज की बात करते हैं तो यह सभी समाजों को इक्ट्ठे लेते हैं तथा अमूर्त रूप से उसका अध्ययन करते हैं परन्तु एक समाज में हम किसी विशेष समाज की बात कर रहे होते हैं जैसे कि भारतीय समाज या अमेरिकी समाज। इस कारण यह मूर्त समाज हो जाता है।

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प्रश्न 5.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं। समुदाय से अभिप्राय लोगों के एक समुच्चय से भी लिया जाता है जो समान प्रकार के कार्य या गतिविधियों में संलग्न रहते हैं जैसे प्रजातीय समुदाय, धार्मिक समुदाय, एक राष्ट्रीय समुदाय, एक जाति समुदाय या एक भाषायी समुदाय इत्यादि। इस अर्थ में यह समान विशेषताओं या पक्षों वाले एक सामाजिक, धार्मिक या व्यावसायिक समूह का प्रतिनिधित्व करता है तथा वहद समाज जिसमें यह रहता है, से स्वयं को कुछ अर्थों में भिन्न प्रदर्शित करता है। अत: समुदाय का अभिप्राय एक विशाल क्षेत्र में फैले लोगों से है जो एक या अन्य किसी प्रकार से समानताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समदाय’ या ‘एन० आर० आई० समुदाय’ जैसे शब्द समान विशेषताओं से निर्मित कुछ सुसंगत समूहों के रूप में साहित्य में प्रयुक्त किये जाते हैं।

(i) समुदाय का क्या अर्थ है ?
(ii) समुदाय की कुछ उदाहरण दीजिए।
(iii) समुदाय तथा समिति में दो अंतर बताएं।
उत्तर-
(i) समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, भारतीय समुदाय, पंजाबी समुदाय इत्यादि समुदाय के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) (a) समुदाय स्वयं ही निर्मित हो जाता है परन्तु समिति को जानबूझ कर किसी विशेष उद्देश्य से निर्मित किया जाता है।
(b) सभी लोग स्वत: ही किसी न किसी समुदाय का सदस्य बन जाते हैं परन्तु समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है अर्थात् व्यक्ति जब चाहे किसी समिति की सदस्यता ले तथा छोड़ सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
सामाजिक समूह व्यक्तियों का संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अंतः क्रियाएँ पाई जाती हैं। इसमें वे व्यक्ति आते हैं, जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और अपने को अलग सामाजिक इकाई मानते हैं। समूह में सदस्यों की संख्या को दो से सौ व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके साथ, सामाजिक समूह की प्रकृति गतिशील होती है, इसकी गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन आता रहता है। सामाजिक समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों में अंतक्रियाएँ व्यक्तियों को अन्यों से पहचान के लिए भी प्रेरित करती हैं। समूह, आमतौर पर स्थिर तथा सामाजिक इकाई है। उदाहरण के लिए, परिवार, समुदाय, गाँव आदि, समूह विभिन्न संगठित क्रियाएँ करते हैं, जोकि समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(i) सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या भीड़ को समूह कहा जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ?
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
(i) व्यक्तियों के उस संगठन को सामाजिक समूह कहा जाता है, जिसमें व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएँ पाई जाती हैं। जब लोग एक-दूसरे के साथ अन्तक्रियाएं करते हैं तो उनके बीच समूह का निर्माण होता है।
(ii) जी नहीं, भीड़ को समूह नहीं कहा जा सकता क्योंकि भीड में लोगों के बीच अन्तक्रिया नहीं होगी।
अगर अन्तक्रिया नहीं होगी तो उनमें संबंध नहीं बन पाएंगे। जिस कारण समूह का निर्माण नहीं हो पाएगा।
(iii) प्राथमिक समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा सीधा, प्रत्यक्ष ब रोज़ाना का संबंध होता है उसे हम प्राथमिक समूह कहते हैं। जैसे-परिवार, मित्र समूह, स्कूल इत्यादि। द्वितीय समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा प्रत्यक्ष व रोज़ाना का संबंध नहीं होता उसे हम द्वितीय
समूह कहते हैं। जैसे कि मेरे पिता का ऑफिस।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 7.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर देंद्वितीय समूह लगभग प्राथमिक समूह के विपरीत होते हैं। कूले ने द्वितीय समूह के बारे में नहीं बताया, जब वह प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में बता रहे थे। बाद में, विचारकों ने प्राथमिक समूह से द्वितीय समूह के विचार को समझा। द्वितीय समूह वे समूह हैं, जो आकार में बड़े होते हैं तथा थोड़े समय के लिए होते हैं। सदस्यों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, उपयोग-आधारित, विशेष तथा अस्थायी होता है। क्योंकि इसके सदस्य अपनी-अपनी, भूमिकाओं तथा किये जाने वाले कार्यों के कारण ही आपस में जुड़ें होते हैं। दुकान के मालिक एवं ग्राहक, क्रिकेट मैच में इकट्टे हुए लोग तथा औद्योगिक संगठन इसके उत्तम उदाहरण हैं। कारखाने के मजदूर, सेना, कॉलेज का विद्यार्थी-संगठन-विश्व-विद्यालय के विद्यार्थी, एक राजनैतिक दल आदि भी द्वितीय समूह के अन्रा उदाहरण हैं।

(i) द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) द्वितीय समूह की कुछ उदाहरण दें।
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूहों में दो अंतर दें।
उत्तर-
(i) वह समूह जिनके साथ हमारा सीधा व प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से ग्रहण करके कभी भी छोड़ सकते हैं, उसे द्वितीय समूह कहा जा सकता है।
(ii) पिता का दफ़तर, माता का ऑफिस, पिता का मित्र समूह, राजनीतिक दल, कारखाने के मजदूर इत्यादि द्वितीय समूह की उदाहरण हैं।
(iii) (a) प्राथमिक समूह आकार में काफ़ी छोटे होते हैं परन्तु द्वितीय समूह आकार में काफी बड़े होते हैं।
(b) प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच अनौपचारिक व प्रत्यक्ष संबंध होते हैं परन्तु द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक व अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
संस्कृतियां एक समाज से दूसरे समाज तक भिन्नता रखती हैं तथा हर एक संस्कृति के अपने मूल्य तथा मापदण्ड होते हैं। सामाजिक मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहारों के नियम हैं जबकि मूल्य से अभिप्राय, उस सामान्य पक्ष से है कि “क्या ठीक है या अभिलाषित व्यवहार है” तथा “क्या नहीं होना चाहिए”मान्य से संबंधित है। उदाहरण के लिए किसी एक संस्कृति में सत्कार को उच्च सामाजिक मूल्य माना जाता है जबकि अन्य समाज मे ऐसा नहीं होता। सामान्यतः कुछ समाजों में बहुपत्नी प्रथा को एक पारम्परिक रूप का विवाह माना जाता है जबकि अन्य समाजों में इसे एक उपयुक्त प्रथा नहीं माना जाता।

(i) संस्कृति का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या दो देशों की संस्कृति एक सी हो सकती है?
(iii) संस्कृति के प्रकार बताएं।
उत्तर-
(i) आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे विचार अनुभव, विज्ञान, तकनीक, वस्तुएं, मूल्य, परंपराएं इत्यादि सब कुछ संस्कृति का ही हिस्सा हैं।
(ii) जी नहीं, दो देशों की संस्कृति एक सी नहीं हो सकती। चाहे दोनों देशों के लोग एक ही धर्म से क्यों न संबंध रखते हों, उनके विचारों, आदर्शों, मूल्यों इत्यादि में कुछ न कुछ अंतर अवश्य रहता है। इस कारण उनकी संस्कृति भी अलग होती है।
(iii) संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-
(a) भौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख व स्पर्श कर सकते हैं, भौतिक संस्कृति कहलाता है। उदाहरण के लिए कार, मेज़, कुर्सी, पुस्तकें, पैन, इमारतें इत्यादि। (b) अभौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, उसे अभौतिक संस्कृति कहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे मूल्य, परंपराएं, विचार, आदर्श इत्यादि।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 9.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
जीवन के विभिन्न स्तरों के दौरान व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्थाओं, समुदायों तथा व्यक्तियों के संपर्क में आता है। अपने संपूर्ण जीवन के दौरान वे बहुत कुछ सीखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में विभिन्न अभिकरण तथा संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं तथा संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का संस्थापन करते हैं। प्रत्येक समाज के समाजीकरण के अभिकरण होते हैं जैसे व्यक्ति, समूह, संगठन तथा संस्थाएं जो कि जीवन क्रम के समाजीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा प्रदान करते हैं। अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसके द्वारा स्वयं विचारों, विश्वासों एवं संस्कृति के व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेक स्थानों को ढूंढ़ने में सहायता करते हैं उसी प्रकार जैसे वे समाज के वृद्धावस्था को नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते हैं।

(i) समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
(ii) समाजीकरण के साधनों के नाम बताएं।
(iii) अभिकरण क्या है ?
उत्तर-
(i) समाजीकरण एक सीखने की प्रक्रिया है। पैदा होने से लेकर जीवन के अंत तक मनुष्य कुछ न कुछ सीखता रहता है जिसमें जीवन जीने व व्यवहार करने के तरीके शामिल होते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया को हम समाजीकरण कहते हैं।
(ii) परिवार, स्कूल, खेल समूह, राजनीतिक संस्थाएं, मूल्य, परम्पराएं इत्यादि समाजीकरण के साधन अथवा अभिकरण के रूप में कार्य करती हैं।
(iii) अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसकी सहायता से व्यक्ति विचारों विश्वास व संस्कृति में व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेकों स्थानों को ढूंढने में सहायता करते हैं। इस प्रकार वृद्धावस्था में नए उत्तरदायित्वों को संभालने को तैयार होता है।

प्रश्न 10.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यद्यपि धर्म की महत्ता लोगों में अब कम हो गई है जबकि कुछ पीढ़ियां पहले, यह हमारे विचारों, मूल्यों और व्यवहारों को भी काफी प्रभावित करती थीं। भारत जैसे देश में धर्म हमारे जीवन के हर पक्ष को नियंत्रित करता है और यह समाजीकरण का एक शक्तिशाली अभिकर्ता (एजेंट) होता है।
कई प्रकार के धार्मिक संस्कार एवं कर्मकाण्ड, विश्वास एवं श्रद्धा, मूल्य एवं मापदण्ड धर्म के अनुसार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होते हैं। धार्मिक त्योहार आमतौर पर सामूहिक रूप से निभाये जाते हैं जोकि समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। धर्म के सहारे ही एक बच्चा एक अलौकिक शक्ति (भगवान) के बारे में सीखता है कि यह हमें बुरी आत्माओं तथा बुराई से बचाती है। यह देखा जाता है कि अगर एक व्यक्ति के माता-पिता धार्मिक होते हैं तो जब एक बच्चा बड़ा होगा वो भी धार्मिक बनता जाएगा।

(i) धर्म क्या है ?
(ii) धर्म की समाजीकरण में क्या भूमिका है ?
(iii) क्या आज धर्म का महत्त्व कम हो रहा है ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर-
(i) धर्म और कुछ नहीं बल्कि एक अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारी पहुँच से बहुत दूर है। यह विश्वासों, मूल्यों, परंपराओं इत्यादि की व्यवस्था है जिसमें इस धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं।
(ii) धर्म का समाजीकरण में काफी महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति धर्म के मूल्यों, परंपराओं के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता । बचपन से ही बच्चों को धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है जिस कारण व्यक्ति शुरू से ही अपने धर्म से जुड़ जाता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार धर्म व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है और उसका समाजीकरण भी करता है।
(iii) यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। लोग आजकल अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं व विज्ञान की तरफ उनका झुकाव काफी बढ़ रहा है। परन्तु धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं होता जो विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार लोग अब धर्म के स्थान पर विज्ञान को महत्त्व दे रहे हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
विवाह महिलाओं एवं पुरुषों की शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए निर्मित एक संस्था है। यह पुरुष एवं महिला को परिवार निर्मित करने हेतु एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देता है। विवाह का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी सम्बन्धों के द्वारा यौनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। सरल शब्दों में, विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पुरुषों एवं महिलाओं को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देने तथा पति, पत्नी तथा बच्चों से सम्बन्धित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है। समाज एक पुरुष एवं महिला के मध्य वैवाहिक सम्बन्धों को एक धार्मिक संस्कार के रूप में अपनी अनुमति प्रदान करता है। विवाहित दंपति एक दूसरे के प्रति तथा सामान्य तौर पर समाज के प्रति अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हैं। विवाह एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य को भी पूरा करता है यह उत्तराधिकार से सम्बद्ध सम्पत्ति अधिकार को परिभाषित करता है। इस प्रकार, हम समझ सकते हैं कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच बहु-आयामी सम्बन्धों को व्यक्त करता है।

(i) विवाह का क्या अर्थ है ?
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को क्या कहते हैं ?
(iii) क्या आजकल विवाह का महत्त्व कम हो रहा है ?
उत्तर-
(i) विवाह एक ऐसी संस्था है जो पुरुष-स्त्री को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देना तथा पति-पत्नी व बच्चों से संबंधित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है।
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि विवाह बहुत से धार्मिक अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है।
(iii) जी हाँ, यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। आजकल विवाह को धार्मिक
संस्कार न मानकर समझौता माना जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल तो बहुत से युवक व युवतियों ने बिना विवाह किए इक्ट्ठे रहना शुरू कर दिया है जिससे विवाह का महत्त्व कम हो रहा है।

प्रश्न 12.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
परिवार का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुषों और स्त्रियों तथा बच्चों को एक स्थाई सम्बन्धों में बांधकर मानव समाज के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्कृति का हस्तान्तरण परिवारों के भीतर होता है। सामाजिक प्रतिमानों, प्रथाओं तथा मूल्यों के विषय में सांस्कृतिक समझ तथा ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे परिवार को समरक्त परिवार कहते हैं जिसके सदस्य रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे भाई एवं बहिन तथा पिता और पुत्र इत्यादि।वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है उसे ‘प्रजनन का परिवार’ या दापत्यमूलक परिवार कहते हैं जो ऐसे व्यस्क सदस्यों से निर्मित होता है जिनके बीच यौनिक सम्बन्ध होते हैं।

(i) परिवार किसे कहते हैं ?
(ii) जन्म का परिवार व दापत्यमूलक परिवार किसे कहते हैं ? ।
(ii) परिवार का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
(i) परिवार पुरुष व स्त्री के मेल से बनी ऐसी संस्था है जिसमें उन्हें लैंगिक संबंध स्थापित करने, संतान उत्पन्न करने व उनका भरण पोषण करने की आज्ञा होती है।
(ii) एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार कहते हैं। वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है इसे दापत्यमूलक अथवा प्रजनन परिवार कहते हैं।
(iii) परिवार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुष, स्त्री व बच्चों को एक स्थायी बंधन में बाँधकर रखता है। इससे परिवार समाज निर्माण मे महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार ही संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता है। सामाजिक प्रथाओं, प्रतिमानों, व्यवहार करने के तरीकों में हस्तांतरण में भी परिवार समाज की सहायता करता है। इस प्रकार परिवार हमारे जीवन में व समाज निर्माण में सहायक होता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

प्रश्न 1.
मौसम यंत्रों की बनावट, कार्य-विधि और प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर-
1. सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम तापमापी यंत्र (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) यह दिन का उच्चतम और न्यूनतम तापमान मापने का यंत्र है। इसकी खोज (Invention) जे. सिक्स (J. Six) नामक वैज्ञानिक ने की थी। उसके नाम पर ही इसे ‘सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम थर्मामीटर’ (Six’s Maximum and Minimum Termometer) कहते हैं।

बनावट (Construction)-इस तापमापी यंत्र में ‘यू’ आकार की शीशे की एक नली होती हैं। इस नली के दोनों सिरों पर बल्ब लगे होते हैं, जिनमें अल्कोहल भरी होती हैं। एक बल्ब अल्कोहल से पूरा और दूसरा आधा भरा होता है। नली के निचले हिस्से में पारा (Mercury) भरा होता है। दोनों नलियों में एक-एक सूचक (Index) लगा होता है। यह सूचक चुंबक के द्वारा नीचे किए जाते हैं। नली के आधे खाली बल्ब के नीचे नली में अंक नीचे से ऊपर की ओर लिखे होते हैं। नली का यह भाग उच्चतम तापमान दर्शाता है। नली के दूसरे हिस्से में अंक ऊपर से नीचे की ओर दिए होते हैं, इसलिए यह भाग न्यूनतम तापमान दर्शाता है।

कार्य-विधि और प्रयोग (Working and Use)—सबसे पहले सूचकों को चुंबक के द्वारा पारे के तल पर लाया जाता है। तापमान के ऊँचा होने पर अल्कोहल फैलता है और उच्चतम तापमान दर्शाने वाली नली में पारा ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है और इस भाग में सूचक को ऊपर की ओर धकेलता है। पूरे भरे हुए भाग में अल्कोहल पारे को ऊपर नहीं चढ़ने देती।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 1

तापमान कम होने पर अल्कोहल सिकुड़ती है; जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम तापमान वाली नली में पारा नीचे की ओर गिरने लग जाता है और न्यूनतम तापमान वाली नली में ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। इसके साथ-साथ न्यूनतम नली का सूचक भी ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। उच्चतम तापमान वाली नली का सूचक कमानी के कारण नीचे नहीं गिरता। इस प्रकार 24 घंटों अर्थात् एक दिन में उच्चतम तापमान वाली नली के सूचक का निचला सिरा उच्चतम तापमान और न्यूनतम तापमान नली के सूचक का निचला सिरा न्यूनतम तापमान दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

2. निद्भव हवा-दबाव मापक यंत्र (Aneroid Barometer)-इस यंत्र से हवा-दबाव मापते हैं। इसमें किसी द्रव (Liquid) का प्रयोग न करने के कारण इसे Aneroid कहते हैं। Aneroid शब्द का अर्थ है-द्रव रहित (A = without, neroid = Liquid)।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 2

बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)—यह यंत्र घड़ी जैसा होता है। पतली धातु से एक गोल खोखले डिब्बे (Shallow Metallic Box) को बनाकर उसमें से हवा निकाल ली जाती है। इसके ऊपर एक पतला लचकीला ढक्कन (Flexible Lid) लगा होता है, जो हवा के दबाव से ऊपर-नीचे होता रहता है। इस ढक्कन के ऊपरी हिस्से में एक लीवर (Lever) के द्वारा एक सूचक सूई लगी होती है, जोकि हवा के दबाव के बढ़ने से घड़ी की सुइयों की दिशा में (Clockwise) एक गोलाकार पैमाने पर घूमती है। हवा के दबाव के कम होने पर यह सूचक सुई घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा (Anti-Clockwise) में घूमती है। गोलाकार पैमाने पर हवा का दबाव इंच, सैंटीमीटर और मिलीबार में लिखा होता है। इस पैमाने पर मौसम की दशा बताने वाले शब्द अर्थात् वर्षा, (Rain), साफ (Clear), तूफानी (Stormy), बादल (Cloudy) और शुष्क (Dry) लिखे होते हैं। इनसे हमें मौसम अवस्था का ज्ञान होता है।

प्रयोग (Use)-इसे किसी स्थान के हवा के दबाव को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सहायता से किसी स्थान की ऊँचाई मापी जा सकती है। घड़ी के समान आकार में छोटा होने के कारण इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

3. हवा-दिशा सूचक यंत्र (Wind-vane)—इस यंत्र से हम हवा की दिशा के बारे में पता लगाते हैं। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)-लोहे की एक लंबवत छड़ी (Rod) पर लोहे की पतली चादर से बना एक मुर्गा (Weather Cock) या तीर लगा होता है। यह लोहे की छड़ी इस मुर्गे या तीर के लिए धुरी का काम करती है। हवा के वेग से यह मुर्गा या तीर घूमता है और हवा की दिशा का संकेत देता है। पवनमुख (Wind Ward Side) की ओर तीर या मुर्गे की पूँछ होती है। पवन विमुख की ओर (Leeward Side) मुर्गे का मुँह या तीर की नोक होती है। मुर्गे या तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ-उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दर्शायी होती हैं। इस यंत्र को किसी ऊँचे स्थान पर रखते हैं, जहाँ हवा के चलने में कोई रुकावट न हो।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 3

4. शुष्क व नम बल्ब थर्मामीटर (Wet and Dry Bulb Thermometer)-इसे मेसन हाईग्रोमीटर (Mason Hygrometer) भी कहते हैं। इस यंत्र के द्वारा हवा की सापेक्ष नमी (Relative Humidity) मापी जाती है। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)लकड़ी से बने एक तख्ते पर तापमापी यंत्र (Thermometer) लटके होते हैं। एक थर्मामीटर (तापमापी यंत्र) के बल्ब पर बारीक मलमल का कपड़ा (Muslin Cloth) लपेटा होता है, जिसका एक सिरा साफ पानी में भरे एक छोटे-से बर्तन में डूबा रहता है। एक को गीला (नम) थर्मामीटर और दूसरे को शुष्क थर्मामीटर कहते हैं। कोशिकाक्रिया (Capillary Action) से पानी मलमल के कपड़े के द्वारा बल्ब को आर्द्रता प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप इस थर्मामीटर में वाष्पीकरण (Evaporation) होता रहता है, जिसके कारण इस यंत्र का तापमान निम्न रहता है। शुष्क थर्मामीटर में पानी की मात्रा न होने के कारण उसका तापमान उच्च होता है। इस प्रकार दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अंतर हो जाता है। इस अंतर के द्वारा एक तालिका की सहायता से सापेक्ष आर्द्रता निकाल ली जाती है। दोनों थर्मामीटरों में तापमान में कम अंतर होने पर सापेक्ष नमी अधिक और अधिक अंतर होने पर सापेक्ष नमी कम होती है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 4

5. वर्षामापी यंत्र (Rain Gauge)-यह यंत्र वर्षा की मात्रा मापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
बनावट (Construction)—इसमें नीचे लिखी अलग-अलग चीजें होती हैं-

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

(i) बेलनाकार बर्तन (Cylinderical Pot) तांबे का बना हुआ एक 12.5 सैं०मी० (5 इंच) या 20 सैं०मी० (8 इंच) व्यास का एक बेलनाकार बर्तन होता है। तांबा हर प्रकार के मौसमी प्रभाव को सहन करने की योग्यता रखता है, इसलिए आमतौर पर यह बर्तन तांबे का ही बना होता है।

(ii) कीप (Funnel)—एक बेलनाकार बर्तन के मुख पर तांबे से बनी उतने ही व्यास की एक कीप होती है। इस कीप के ऊपरी सिरे पर 1.2 सैं०मी० ( इंच) ऊँचा किनारा (Rim) लगा होता है, ताकि वर्षा के पानी की.छीटें बाहर न जाएँ।

(iii) शीशे का बर्तन या बोतल (Glass Container or Bottle)-तांबे के बेलनाकार बर्तन के अंदर एक तंग मुँह वाला शीशे का बर्तन या बोतल होती है, जिसमें कीप के द्वारा पानी जाता है। इसका तंग मुँह पानी का वाष्पीकरण रोकने के लिए होता है।

(iv) चिन्हित शीशे का बेलन (Graduated Glass Cylinder)-इससे वर्षा की मात्रा मापते हैं। यह शीशे का एक बेलन होता है, जिसके बाहर वर्षा को मापने के लिए पैमाना अंकित होता है। कार्य-विधि (Working)-वर्षा का पानी कीप के द्वारा बर्तन या बोतलों में एकत्र हो जाता है। इसी पानी को चिन्हित शीशे के बेलन में डालकर माप लिया जाता है। कीप के क्षेत्रफल और चिन्हित बेलन के मुख के क्षेत्रफल में एक निर्धारित अनुपात रखा जाता है। इस अनुपात पर चिन्हित बेलन का पैमाना आधारित होता है। तांबे के बेलनाकार बर्तन में 2.5 सैं०मी० (1 इंच) पानी की ऊँचाई चिन्हित बेलन में 25.4 सैं०मी० (10 इंच) दिखाई जाती है। इस यंत्र में 1/10 सैं०मी० (1/100 इंच) तक की वर्षा मापने की व्यवस्था होती है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 5

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules.

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. रिंग का आकार = वर्गाकार
  2. एक भुजा की लम्बाई = 20 फुट
  3. रस्सों की संख्या = तीन अथवा पांच
  4. भारों की संख्या = 11
  5. पट्टी की लम्बाई = 8′ 4″
  6. पट्टी की चौड़ाई = \(1 \frac{1}{4}\)“
  7. रिंग की फर्श से ऊंचाई = 3′ 4″
  8. सीनियर प्रतियोगिता का समय = 3-1-3-1-3
  9. जुनियर के लिए समय = 2-1-2-2
  10. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए समय = 2-1-2-1-2-1-2-1-2
  11. अधिकारी = जज (अधिकतम 5 या 3), टाइम कीपर-1, रेफरी-1, घंटा ऑपरेटर-1, प्रर्यवेक्षक-1 उद्घोषक 1, रिकार्डर 1
  12. मुक्केबाजी दस्तानों का भार = 10 औंस, 12 औंस
  13. रिंग के कोनों का रंग = 1 लाल, 1 नीला, 2 सफेद
  14. राऊंड टाइम = 3 राउंड (प्रत्येक 3 मिनट)
  15. रस्सियों के पारस्परिक अंतर = रिंग के फर्श से (1) 40 सेंटीमीटर (2) 70 सेंटीमीटर, (3) 100 सेंटीमीटर, (4) 130 सेंटीमीटर।
  16. सलाखों की लम्बाई = = 2.5 मी.
  17. पट्टियों की चौड़ाई = 5 सेंटीमीटर
  18. बॉक्सर का तकनीकी नाम = पुगिलिटश
  19. अंडर 17 वर्ष के लड़कों के लिये प्रतियोगिताओं में कुल भार = 13

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी

  1. बाक्सिग में रिंग का आकार वर्गाकार और एक भुजा की लम्बाई 20 फुट होती है।
  2. रिंग में रस्सों की गिनती तीन होती है और साइडों का रंग एक नीला तथा दूसरा लाल होता है।
  3. बाक्सिग के लिए भार के वर्गों की गिनती 12 होती है।
  4. दस्तानों का भार 10 औंस से अधिक नहीं होना चाहिए।
  5. पट्टी की लम्बाई 8 फुट 4 इंच और चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच 4.4 सैं० मी० होनी चाहिए।
    बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1

PSEB 11th Class Physical Education Guide बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुक्केबाज़ का तकनीकी नाम लिखें।
उत्तर-
पुगिलिटस।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
मुक्केबाज़ (लड़के) अंडर-17 मुकाबले में कुल कितने भार वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
कुल 13 भार वर्ग।

प्रश्न 3.
मुक्केबाज़ के मैच में RSC से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रैफरी के द्वारा मुक्केबाज़ को चोट लगने पर बाऊट को रोक दिया जाना।

प्रश्न 4.
मुक्केबाजी के मैच में DSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मुक्केबाज़ बार-बार किसी नियम की उल्लंघना करता है तो उस समय रैफरी द्वारा उसे अयोग्य घोषित कर देना।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
मुक्केबाज़ी के मैच में wo क्या होता है ?
उत्तर-
जब किसी खिलाड़ी को बाऊट के बिना ही विजयी घोषित कर दिया जाए।

प्रश्न 6.
मुक्केबाज़ी मुकाबले में एक राऊंड कितने समय का होता है ?
उत्तर-
4 मिनट का (प्रत्येक राऊंड के लिए)।

प्रश्न 7.
मुक्केबाज़ी रिंग के कोनों का रंग लिखें।
उत्तर-
लाल, नीला और सफेद।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाक्सिंग में भार अनुसार कितने प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं ?
उत्तर-
मुक्केबाज़ी के भारों का वर्गीकरण
(Weight Categories in Boxing)

  1. लाइट फलाई वेट (Light Fly Weight) = 48 kg
  2. फलाई वेट (Fly Weight) = 51 kg
  3. बैनटम वेट (Bentum Weight) = 54 kg
  4. फ़ैदर वेट (Feather Weight) = 57 kg
  5. लाइट वेट (Light Weight) = 60 kg
  6. लाइट वैल्टर वेट (Light Welter Weight) = 63.5 kg
  7. वैल्टर वेट (Welter Weight) = 67 kg
  8. लाइट मिडल वेट (Light Middle Weight) = 71 kg
  9. मिडल वेट (Middle Weight) = 75 kg
  10. लाइट हैवी वेट (Light Heavy Weight) = 81 kg से 91 kg तक
  11. हैवी वेट (Heavy Weight) = 91 kg से अधिक 100 kg तक
  12. सुपर हैवी वेट (Super Heavy Weight) = 100 kg से ऊपर

प्रश्न 2.
बाक्सिग में रिंग, रस्सा, प्लेटफ़ार्म, अंडर-कवर, पोशाक और पट्टियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
रिंग (Ring)—सभी प्रतियोगिताओं में रिंग का आन्तरिक माप 12 फुट से 20 फुट (3 मी० 66 सैं० मी० से 6 मी० 10 सैं० मी०) वर्ग में होगा। रिंग की सतह से सबसे ऊपरी रस्से की ऊंचाई 16”, 28”, 40”, 50” होगी।
रस्सा (Rope)—रिंग चार रस्सों के सैट से बना होगा जोकि लिनन या किसी नर्म पदार्थ से ढका होगा।
प्लेटफ़ार्म (Platform)-प्लेटफार्म सुरक्षित रूप में बना होगा। यह समतल तथा बिना किसी रुकावटी प्रक्षेप के होगा। यह कम-से-कम 18 इंच रस्सों की लाइन से बना रहेगा उस पर चार कार्नर पोस्ट लगे होंगे जो इस प्रकार बनाए जाएंगे कि कहीं चोट न लगे।

अंडर-कवर (Under-cover)-फर्श एक अण्डर-कवर से ढका होगा जिस पर कैनवस बिछाई जाएगी।
पोशाक (Costumes)-प्रतियोगी एक बनियान (Vest) पहन कर बाक्सिंग करेंगे जोकि पूरी तरह से छाती और पीठ ढकी रखेगी। शार्ट्स उचित लम्बाइयों की होगी जोकि जांघ के आधे भाग तक जाएगी। बूट या जूते हल्के होंगे। तैराकी वाली पोशाक पहनने की आज्ञा नहीं दी जाएगी। प्रतियोगी उन्हें भिन्न-भिन्न दर्शाने वाले रंग धारण करेंगे जैसे कि कमर के गिर्द लाल या नीले कमर-बन्द, दस्ताने (Gloves) स्टैंडर्ड भार के होंगे। प्रत्येक दस्ताना 8 औंस (227 ग्राम) भारी होगा।

पट्टियां (Bandages)-एक नर्म सर्जिकल पट्टी जिसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच (2.5 मी०) से अधिक तथा चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक न हो या एक वैल्यियन टाइप पट्टी जो 6 फुट 6 इंच से अधिक लम्बी तथा \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होगी, प्रत्येक हाथ पर पहनी जा सकती है।
अवधि (Duration)—सीनियर मुकाबलों तथा प्रतियोगिताओं के लिए खेल की अवधि निम्नलिखित होगी—
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
प्रतियोगिताएं (Competitions)—
Senior National Level
3-1-3-1-3 तीन-तीन मिनट के तीन राऊण्ड
Junior National Level 2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के तीन राऊण्ड
International Level 2-1-2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के पांच राऊण्ड

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
बाक्सिग में ड्रा, बाई, वाक ओवर के बारे में लिखें।
उत्तर-
ड्रा, बाई, वाक ओवर (The Draw, Byes and Walk-over)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के लिए भार तोलने तथा डॉक्टरी निरीक्षण के बाद ड्रा किया जाएगा।
  2. वे प्रतियोगिताओं में जिनसे चार से अधिक प्रतियोगी हैं, पहली सीरीज़ में बहुत-सी बाई निकाली जाएंगी ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम रह जाए।
  3. पहली सीरीज़ में जो मुक्केबाज़ (Boxer) बाई में आते हैं वे दूसरी सीरीज़ में पहले बाक्सिग करेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषय हो तो अन्तिम बाई का बाक्सर दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता के साथ मुकाबला करेगा।
  4. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई ओर दूसरी सीरीज़ में वाक ओवर नहीं प्राप्त कर सकता या दो प्रतियोगियों के नाम ड्रा निकाला जाएगा जोकि अब भी मुकाबले में हों। इसका अर्थ इन प्रतियोगियों के लिए विरोधी प्रदान करना है जोकि पहली सीरीज़ में पहले ही वाक ओवर ले चुके हैं।

सारणी-बाऊट से बाइयां निकालना
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
प्रतियोगिता की सीमा (Limitation of Competitors)-किसी भी प्रतियोगिता में 4 से लेकर 8 प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है। यह नियम किसी ऐसोसिएशन द्वारा आयोजित किसी चैम्पियनशिप पर लागू नहीं होता। प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली क्लब को अपना एक सदस्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है, परन्तु शर्त यह है कि वह सदस्य प्रतियोगिता में सम्मिलित न हो।
नया ड्रा (Fresh Draw) यदि किसी एक ही क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा किया जाएगा।

वापसी (Withdrawl)-ड्रा किए जाने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी सन्तोषजनक कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो इन्चार्ज अधिकारी इन दशाओं में एसोसिएशन को रिपोर्ट करेगा।

रिटायर होना (Retirement) यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण प्रतियोगिता से रिटायर होना चाहता है तो उसे इन्चार्ज अधिकारी को सूचित करना होगा।
बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए निश्चित समय के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे इन्चार्ज अधिकारी सहमत हो। सैकिण्ड (Second)—प्रत्येक प्रतियोगी के साथ एक सैकिण्ड (सहयोगी) होगा तथा राऊंड के दौरान वह सैकिण्ड प्रतियोगी को कोई निर्देश या कोचिंग नहीं दे सकता।

केवल पानी की आज्ञा (Only water allowed) बाक्सर को बाऊट से बिल्कुल पहले या मध्य में पानी के अतिरिक्त कोई अन्य पीने वाली चीज़ नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 4.
बाक्सिंग में बाऊट को नियन्त्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)
1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफ़री, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा निश्चित किए जाएंगे। रैफ़री रिंग में होगा। जब तीन से कम जज होंगे तो रैफ़री स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफ़री द्वारा कण्ट्रोल किए जाएंगे।

2. रैफ़री एक स्कोर पैड या जानकारी सलिप का प्रयोग बाक्सरों के नाम तथा रंगों का रिकार्ड रखने के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफ़री इस पर कारण रिपोर्ट करके इंचार्ज अधिकारी को देगा।

3. टाइम कीपर रिंग के एक ओर बैठेगा तथा जज अन्य तीन ओर बैठेंगे। सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे बाक्सिग को सन्तोषजनक ढंग से देख सकें। ये दर्शकों से अलग होंगी। रैफ़री बाऊट को नियमानुसार कण्ट्रोल करने के लिए अकेला ही उत्तरदायी होगा तथा जज स्वतन्त्रतापूर्वक प्वाइंट देंगे।

4. प्रमुख टूर्नामेंट में रैफ़री सफेद कपड़े धारण करेगा।

प्वाईंट देना (Awarding of Points)—

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देगा।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे, भिन्नों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा या उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे। जज का नाम बड़े अक्षरों (Block Letters) में लिखा जाएगा। उसे स्कोरिंग स्लिपों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

प्रश्न 5.
बाक्सिग में स्कोर कैसे मिलते हैं ?
उत्तर-
स्कोरिंग (Scoring)
1. जो बाक्सर अपने विरोधी को सबसे अधिक मुक्के मारेगा उसे प्रत्येक राऊंड के अन्त में 20 प्वाईंट दिए जाएंगे। दूसरे बाक्सर को उसी अनुपात में अपने स्कोरिंग मुक्कों में कम प्वाईंट मिलेंगे।

2. जब जज यह देखता है कि दोनों बाक्सरों ने एक जितने मुक्के मारे हैं तो प्रत्येक प्रतियोगी को 20 प्वाईंट दिए जाएंगे।

3. यदि बाक्सरों को मिले प्वाईंट बाऊट के अन्त में बराबर हों तो जज अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अधिक पहल दिखाई हो, परन्तु यदि समान हो उस बाक्सर के पक्ष में जिसने बेहतर स्टाइल दिखाया हो। यदि वह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर हैं तो वह अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

परिभाषाएं (Definitions)-उपर्युक्त नियम निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा लागू होता है—
(A) स्कोरिंग मुक्के या प्रहार (Scoring Blows)—वे मुक्के जो किसी भी दस्ताने के नक्कल से रिंग के सामने या साइड की ओर या शरीर के बैल्ट के ऊपर मारे जाएं।
(B) नान-स्कोरिंग मुक्के (Non-Scoring Blows)—

  • नियम का उल्लंघन करके मारे गए मुक्के।
  • भुजाओं या पीठ पर मारे गए मुक्के।
  • हल्के मुक्के या बिना ज़ोर की थपकियां।

(C) पहल करना (Leading Off)-पहला मुक्का मारना या पहला मुक्का मारने की कोशिश करना। नियमों का उल्लंघन पहल करने के स्कोरिंग मूल्य को समाप्त कर देता है।
(D) सुरक्षा (Defence)–बाक्सिग, पैरिंग, डकिंग, गार्डिंग, साइड स्टैपिंग द्वारा प्रहरों से बचाव करना।

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प्रश्न 6.
बाक्सिग में कोई दस त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां (Fouls)-जजों या रैफ़री का फ़ैसला अन्तिम होगा। रैफ़री को निम्नलिखित कार्य करने पर बाक्सर को चेतावनी देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार है—

  1. खुले दस्ताने से चोट करना, हाथ के आन्तरिक भाग या बट के साथ चोट करना, कलाइयों से चोट करना या बन्द दस्ताने के नक्कल वाले भाग को छोड़कर किसी अन्य भाग से चोट करना।
  2. कुलनी से मारना।
  3. बैल्ट के नीचे मारना।
  4. किडनी पंच (Kidney Punch) का प्रयोग करना।
  5. पिवट ब्लो (Pivot Blow) का प्रयोग करना।
  6. गर्दन या सिर के नीचे जानबूझ कर चोट करना।
  7. नीचे पड़े प्रतियोगी को मारना।
  8. पकड़ना।
  9. सिर या शरीर के भार लेटना।
  10. बैल्ट के नीचे किसी ढंग से डकिंग (Ducking) करना जोकि विरोधी के लिए खतरनाक हो।
  11. बाक्सिग का सिर पर खतरनाक प्रयोग।
  12. रफिंग (Roughing)
  13. कन्धे मारना।
  14. कुश्ती करना।
  15. बिना मुक्का लगे जान-बूझ कर गिरना।
  16. निरन्तर ढक कर रखना।
  17. रस्सों का अनुचित प्रयोग करना।
  18. कानों पर दोहरी चोट करना।

ब्रेक (Break)-जब रैफ़री दोनों प्रतियोगियों को ब्रेक (To Break) की आज्ञा देता है तो दोनों बाक्सरों को पुनः बाक्सिग शुरू करने से पहले एक कदम पीछे हटना ज़रूरी है। ‘ब्रेक’ के समय एक बाक्सर को विरोधी को मारने की आज्ञा नहीं होती।

डाऊन तथा गिनती (Doun and Count)-एक बाक्सर को डाऊन (Doun) समझा जाता है जब शरीर का कोई भाग सिवाए उसके पैरों के फर्श पर लग जाता है या जब वह रस्सों से बाहर या आंशिक रूप में बाहर होता है या वह रस्सी पर लाचार लटकता है।
बाऊट रोकना (Stopping the Bout)—

  1. यदि रैफ़री के मतानुसार एक बाक्सर चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या वह बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है। यह निर्णय करने का अधिकार रैफ़री को होता है जोकि डॉक्टर का परामर्श ले सकता है।
  2. रैफ़री को बाऊट रोकने का अधिकार है यदि उसकी राय में प्रतियोगी को मात हो गई है या वह बाऊट जारी रखने के योग्य नहीं है।

बाऊट पुनः शुरू करने में असफल होना (Failure to resume Bout) सभी बाऊटों में यदि कोई प्रतियोगी समय कहे जाने पर बाऊट को पुनः शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

नियमों का उल्लंघन (Breach of Rules) बाक्सर या उसके सैकिण्ड (Second) द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन से उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा। एक प्रतियोगी जो अयोग्य घोषित किया गया हो उसे कोई ईनाम नहीं मिलेगा।

शंकित फाऊल (Suspected Foul) -यदि रैफ़री को किसी फ़ाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा, वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

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PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

प्रश्न 1.
समोच्च रेखाओं का सिद्धांत बताएँ। इनके गुण-दोष बताएँ।
उत्तर-
धरातल को दर्शाने वाली विधियाँ-धरातल को नक्शों पर चित्रित करने के लिए नीचे लिखी विधियों का प्रयोग किया जाता है

  1. हैशओर (Hachures)
  2. आकार रेखाएँ (Form-lines)
  3. समोच्च रेखाएँ (Contours)
  4. ऊँचाई दर्शक बिंदु (Spot Heights)
  5. निर्देश चिन्ह (Bench Marks) और तिकोने स्टेशन (Trignometrical Stations)
  6. पर्वतीय छायाकरण (Hill Shading)
  7. रंग-चित्रण (Layer tints)

समोच्च रेखा-समोच्च वह कल्पित रेखा है, जो औसत समुद्री सतह से समान ऊँचाई वाले स्थानों को आपस में मिलाकर खींची जाती है। (A contour is an imaginary line which joins the places of equal height above mean sea land.) यदि किसी पहाड़ी की परिक्रमा की जाए (बिना ऊपर-नीचे गए ताकि एक ही ऊँचाई पर परिक्रमा हो), तो यह रास्ता एक समोच्च रेखा होगी।

लंबात्मक अंतर और क्षितिज अंतर-

1. लंबात्मक अंतर (Vertical Interval) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की ऊँचाई को लंबात्मक अंतर कहा जाता है। इसे संक्षेप में VI भी लिखा जाता है। यह किसी एक नक्शे पर स्थित (Constant) होता है। यदि समोच्च रेखाएं 50, 100, 150, 200, 250 आदि खींची जाएँ, तो लंबात्मक अंतर 50 मीटर होगा।

2. क्षितिज अंतर (Horizontal Equivalent) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की क्षितिज दूरी को क्षितिज अंतर कहते हैं। इसे संक्षेप में H.E. भी लिखा जाता है। यह ढलान के अनुसार बदलता रहता है। हल्की ढलान के लिए H.E. अधिक होता है, पर तीखी ढलान के लिए कम होता है।

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समोच्च रेखाओं की प्रमुख विशेषताएँ–समोच्च रेखाओं की विशेषताएँ नीचे लिखी हैं-

  1. ये कल्पित रेखाएँ होती हैं।
  2. ये रेखाएँ आम तौर पर भूरे (Brown) रंग से दिखाई जाती हैं।
  3. इनकी ऊँचाई समोच्च रेखाओं पर लिखी जाती हैं।
  4. ये रेखाएँ एक बंद चक्र बनाती हैं, ये एकदम शुरू या समाप्त नहीं होती।
  5. समोच्च रेखाएँ सदा एक निश्चित लंबात्मक अंतर पर खींची जाती हैं।
  6. जब समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे के निकट होती हैं, तो तीखी ढलान प्रकट करती हैं, पर जब समोच्च रेखाएँ दूर – दूर होती हैं, तो हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

गुण (Merits)

  1. धरातल को दिखाने के लिए यह सबसे बेहतर विधि है।
  2. इस विधि से अलग-अलग भू-आकारों को आसानी से दर्शाया जा सकता है।
  3. इस विधि से किसी क्षेत्र की ऊँचाई और ढलान पता लगाई जा सकती है।
  4. यह विधि गणित पर आधारित है और उचित है।

दोष (Demerits)-

1. जब लंबात्मक अंतर बड़ा हो, तो छोटे-छोटे भू-आकार नक्शे पर नहीं दिखाए जा सकते। 2. जब नक्शे पर पर्वतीय और मैदानी धरातल साथ-साथ दिखाना हो, तो कई मुश्किलें आती हैं। अलग-अलग भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाना1. समतल ढलान (Uniform Slope)—यह ढलान एक समान होती है, इसलिए समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर
खींची जाती हैं।

2. उत्तल ढलान (Convex Slope)—यह ढलान निचले भाग में तीखी होती है, पर ऊँचाई पर ऊपरी भाग में हल्की होती है। शुरू में समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और ऊँचाई बढ़ने से दूर-दूर होती जाती हैं।

3. अवतल ढलान (Concave Slope)—यह ढलान निचले भाग में हल्की और ऊपरी भाग में तीखी होती है। इसमें शुरू में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होती हैं, परंतु ऊँचाई पर पास-पास होती जाती हैं।

4. सीढ़ीदार ढलान (Terraced Slope)—यह ढलान सीढ़ी की तरह आगे बढ़ती जाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ जोड़ों में होती हैं। दो रेखाएँ पास-पास और कुछ दूरी पर फिर दो रेखाएँ पास-पास होती हैं।

5. शंकु आकार की पहाड़ी (Conical Hill)—यह पहाड़ी दो आकार की होती है। इसकी ढलान चारों तरफ एक जैसी होती है। इसकी समोच्च रेखाएँ समकेंद्रीय चक्रों (Concentric Circles) जैसी होती हैं। केंद्र में पहाड़ी के शिखर को दिखाया जाता है।

6. पठार (Plateau)—पठार ऐसे प्रदेश को कहते हैं, जिसका शिखर समतल चौड़ा (Flat) हो और उसके किनारे पर तीखी ढलान हो। इसके किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं, पर बीच में समतल स्थान होने के कारण कोई समोच्च रेखा नहीं होती।

7. कटक (Ridge) कम ऊँची और लंबी पहाड़ियों की श्रृंखला को कटक कहते हैं। इसके Contour लंबे और कम चौड़े होते हैं।

8. काठी (Saddle)-दो पर्वतीय शिखरों के बीच स्थित निचले भाग को काठी कहते हैं। इसका आकार घोड़े की काठी जैसा होता है।

9. टीला (Knoll) कम ऊँची और छोटी-सी कोण आकार की पहाड़ी को टीला कहते हैं। यह एक प्रकार का अलग टीला होता है। इसे एक या दो गोल आकार की समोच्च रेखाओं से दिखाया जाता है।

10. ‘वी’-आकार की घाटी (V-Shaped Valley) नदी अपने गहरे कटाव से V-आकार की घाटी बनाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ अंग्रेज़ी के अक्षर ‘V’ जैसी होती हैं। इसके अंदर ऊँचाई कम होती है और V के शिखर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

11. ‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-यह घाटी हिम नदी के कटाव से बनती है और इसका आकार ‘U’ अक्षर के समान होता है। इसकी समोच्च रेखाएँ भी ‘U’ अक्षर के समान होती हैं। दोनों किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और तीखी ढलान होती हैं। इसके भीतरी भाग में कम ऊँचाई और बाहर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

12. पर्वत-स्कंध (Spur)—किसी ऊँचे प्रदेश से निचले प्रदेश की ओर जीभ की तरह आगे बढ़े हुए भू-भाग को पर्वत-स्कंध कहते हैं। इसमें समोच्च रेखाएँ उल्टे ‘V’ अक्षर के समान होती हैं। इसके भीतरी भाग में अधिव ऊँचाई होती है और बाहर की ओर कम।

13. कांधी (Cliff)—समुद्री तट रेखा पर एक ऊँची और खड़ी ढलान वाली चट्टान को कांधी कहते हैं। इस समोच्च रेखाएँ आपस में मिल जाती हैं, जो खड़ी ढलान प्रकट करती हैं। ऊँचे भाग की समोच्च रेखाएँ । दूर होती हैं और हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

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PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

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PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

प्रश्न-
स्थल-आकृतिक नक्शे क्या होते हैं ? इन पर प्रयोग किए जाने वाले रूढ़- चिह्नों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्थल-आकृतिक नक्शे-धरती के किसी क्षेत्र के प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों को दर्शाने वाले नक्शों को स्थल-आकृतिक नक्शे कहा जाता है। ये नक्शे छोटे-से क्षेत्र का एक समचा दृश्य प्रकट करते हैं। ये नक्शे बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं। ये नक्शे बहु-उद्देशीय नक्शे होते हैं, जिनमें किसी क्षेत्र का सर्वे करके विस्तारपूर्वक चित्रण किया जाता है। प्राकृतिक तत्त्व जैसे धरातल, नदियाँ, वनस्पति तथा मानवीय और सांस्कृतिक तत्त्व जैसे-सड़कें, रेलें, शहर, गाँव आदि नक्शे पर दिखाए जाते हैं। भारतीय सर्वे विभाग (Survey of India) ऐसे ही नक्शे तैयार करता है।

रूढ़ चिह्न-धरती के प्राकृतिक और सांस्कृतिक तत्त्वों को नक्शों पर चिह्नों (Symbols) की सहायता से दिखाया जाता है। इन चिह्नों को रूढ़ चिह्न (Conventional signs) कहा जाता है। विश्व के नक्शों पर ये चिह्न दिखाने की एक परंपरा बन गई है। कई लक्षण नक्शे के पैमाने के अनुसार नहीं दिखाए जा सकते क्योंकि वे बहुत छोटे होते हैं। ये आमतौर पर उन स्थल-आकृतियों से मिलते-जुलते होते हैं, इसलिए इन्हें रूढ़ चिह्न कहा जाता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

रंगों का प्रयोग-
भारतीय सर्वे विभाग स्थल-आकृतियों के नक्शों पर नीचे लिखे रंग प्रयोग करता है-

  1. लाल रंग-भवनों और सड़कों के लिए।
  2. पीला रंग-कृषि की जमीन के लिए।
  3. हरा रंग-वनस्पति के लिए।
  4. नीला रंग-नदियों और पानी के स्रोत के लिए।
  5. काला रंग-रेलमार्ग और सीमाओं के लिए।
  6. कत्थई रंग-समोच्च रेखाओं के लिए।
  7. भूरा रंग-पर्वतीय छाया के लिए।

रूढ़ चिह्न-धरती पर प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को स्थल-आकृतिक नक्शों पर रूढ़ चिह्नों की मदद से दिखाया जाता है। सुविधा के लिए ये चिह्न स्थल-आकृतिक नक्शे के निचले भाग पर दिखाए जाते हैं। सर्वे विभाग द्वारा इन चिह्नों को एक चार्ट पर दिखाया गया है, इसे लक्षण-चार्ट (Characteristic Sheet) कहते हैं। अलग-अलग शीर्षकों के अंतर्गत प्रयोग किए जाने वाले चिह्न : स प्रकार हैं-

1. सांस्कृतिक लक्षण (Cultural Features)-
1. मंदिर 2. धर्च 3. मस्जिर 4. मकबरा 5. पगोडा 6. ईदगाह 7. छाता 8. सर्वेक्षित गाँव 9. सीमाबद्ध गाँव 10. खंडहर गाँव 11. वीरान गाँव 12. बिखरी हुई झोंपड़ियाँ 13. सर्वेक्षित किला 14. खेल का मैदान 15. कब्रिस्तान 16. तेल का कुआँ 17. खदान 18. निशानबद्ध क्षेत्र 19. हवाई अड्डा 20. सर्वेक्षित हवाई अड्डा 21. सर्वेक्षित हवाई पट्टी 22. हवाई जहाज़ उतरने की पट्टी 23. कुआँ 24. चश्मा 25. पाइपलाईन।

2. प्राकृतिक लक्षण (Physical Features)- जल-मार्ग (Drainage) वनस्पति (Vegetation)- 1. पक्का तालाब 2. दलदल 3. सदा बहने वाली नदी 4. सदा बहने वाली नहर 5. शुष्क नदी 6. पक्का बाँध 7. बाग 8. अंगूर का बाग 9. घास 10. कोणधारी वन 11. खजूर के पेड़ 12. बाग 13. समोच्च रेखा 14. खंड रेखाएँ 15. ट्रिगनोमैट्रिकल स्टेशन 16. बैंच मार्क।

3. भवन (Buildings) और सीमाएँ (Boundaries)-1. सीमा पत्थर 2. लोहे के तार की सीमा 3. तहसील की सीमा 4. जले की सीम 5. प्रांतीय सीमा 6. अंतर्राष्ट्रीय सीमा (बिना सर्वे के) 7. सर्वेक्षित अंतर्राष्ट्रीय सीमा 8. बिना सर्वे किया हुआ सीमा पत्थर 9. रैस्ट हाऊस 10. पुलिस थाना 11. पोस्ट ऑफिस 12. तारघर 13. सर्किट हाऊस 14. डाक बंगला 15. सुरक्षित वन 16. शासकीय वन 17. किला 18. पड़ाव 19. प्रकाश-स्तंभ।

4. आवाजाही के साधन (Means of Transport)-1. रेलवे लाइन 2. स्टेशन सहित रेलवे लाइन 3. छोटी लाइन (डबल) 4. छोटी लाइन (सिंगल) 5. पावर लाइन 6. टैलीफोन लाइन 7. पक्की सड़क 8. कच्ची सड़क 9. पगडंडी 10. फुटपाथ 11. नदी पर सड़क का पुल 12. नावों का पुल 13. रेल लाइन के ऊपर सड़क 14. सड़क के ऊपर रेलवे लाइन 15. पुल, रेलवे सुरंग।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

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PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

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PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

PSEB 11th Class Geography Guide भूचाल या भूकंप Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भूचाल (भूकंप) क्या होते हैं ?
उत्तर-
धरती पर अचानक झटकों को भूचाल (भूकंप) कहते हैं।

प्रश्न 2.
हाईपोसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
भूचाल के केंद्र को हाईपोसैंटर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अधिकेंद्र या ऐपीसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
धरती के ऊपर जिस स्थान पर भूचाल पैदा होता है, उसे अधिकेंद्र या एपीसैंटर कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 4.
फोकस और अधिकेंद्र क्या होते हैं ? इनके चित्र भी बनाएँ।
उत्तर-
भूचाल जिस स्थान से आरंभ होता है, उसे फोकस कहते हैं। धरातल के जिस स्थान पर सबसे पहले भूचाल अनुभव होता है, उसे अधिकेंद्र कहते हैं।
(नोट-चित्र के लिए देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न)

प्रश्न 5.
भूचाल मापने वाले यंत्र को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
सिस्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न-1)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 7.
प्लेट टैक्टॉनिक का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी का क्रस्ट कई प्लेटों में बँटा हुआ है। ये प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हें प्लेट टैक्टॉनिक कहते हैं।

प्रश्न 8.
मानवीय कारण भूचाल के लिए कैसे ज़िम्मेदार हैं ?
उत्तर-
खानों को गहरा करने, डैम, सड़कों और रेल पटरियों को बिछाने के लिए ऐटमी धमाके करने से भूचाल आते हैं।

प्रश्न 9.
भूचाल की तीव्रता क्या होती है? भूचाल की तीव्रता कैसे मापी जाती है ?
उत्तर-
भूचाल की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर पैमाने का प्रयोग किया जाता है। भूचाल की तीव्रता उसमें पैदा हुई शक्ति को कहा जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 10.
अग्नि-चक्र क्या है ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर के इर्द-गिर्द ज्वालामुखियों की श्रृंखला को अग्नि-चक्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूचालों के विश्व-विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में निबंधात्मक प्रश्न सं.-2)

प्रश्न 12.
भारत में भूचाल क्षेत्रों के बारे में लिखें।
उत्तर-
भारत में प्रायद्वीप पठार स्थित खंड भूचाल रहित होते हैं। अधिकतर भूचाल हिमालय पर्वत, गंगा के मैदान और पश्चिमी तट पर आते हैं।

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प्रश्न 13.
सुनामी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सागर तल पर आए भूचाल (भूकंप) के कारण उत्पन्न हुई विशाल लहरों को सुनामी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
क्या भूचालों की भविष्यवाणी की जा सकती है ?
उत्तर-
भूचालों की भविष्यवाणी करना भूचाल वैज्ञानिकों के लिए बहुत मुश्किल काम है या यह कह लीजिए कि लगभग असंभव है। केवल आम भूचालों से ग्रस्त क्षेत्र और धरती की पपड़ी पर प्लेट टैक्टॉनिक का नक्शा और प्लेट सीमा का गहन अध्ययन भूचालों के बारे में अनुमान लगाना आसान कर सकता है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB भूचाल या भूकंप Important Questions and Answers

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)-प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार, जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के नीचे लिखे कारण हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)–ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 ई० में काराकटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया था।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इन्हीं के सहारे भू-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरक जाते हैं और जिससे भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल ‘सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth)-धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परंतु अब धीरे धीरे यह ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं। इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं। .

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल के अलग-अलग प्रकार बताएँ। भूचाली लहरों का वर्णन करें।
उत्तर-
भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes) –
भूचाल के पैदा होने के कई कारण होते हैं-
गहराई के आधार पर भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes according to Depth)-प्रसिद्ध वैज्ञानिकों गुटनबर्ग (Gutenberg) और रिचर (Ritchter) ने गहराई के आधार पर भूचालों को तीन वर्गों में बाँटा है।

जिन भूचालों की लहरें (Shock) 50 किलोमीटर या इससे कम गहराई पर उत्पन्न होती हैं, उन्हें साधारण भूचाल (Normal Earthquakes) कहते हैं। जब लहरें 70 से 250 किलोमीटर की गहराई से उत्पन्न होती हैं, तो इन्हें मध्यवर्ती भूचाल (Intermediate Earthquakes) कहते हैं। जब लहरों की उत्पत्ति 250 से 700 किलोमीटर की गहराई के बीच होती है तो इन्हें गहरे केंद्रीय भूचाल (Deep Focus earthquakes) कहते हैं।

भूमि-कंपन लहरें (Earthquake Waves) –
भूचाल संबंधी ज्ञान को भूचाल विज्ञान (Semology) कहते हैं। भूचाल की तीव्रता और उत्पत्ति-स्थान की तीव्रता पता करने के लिए भूचाल मापक-यंत्र (Seismograph) की खोज हुई है। इस यंत्र में लगी एक सूई द्वारा ग्राफ पेपर के ऊपर भूचाल के साथ-साथ ऊँची-नीची (लहरों के रूप में) रेखाएँ बनती रहती हैं। जिस स्थान-बिंदु से भूचाल आरंभ होता है, उसे भूचाल उत्पत्ति केंद्र (Seismic Focus) कहते हैं। भू-तल पर जिस स्थान-बिंदु पर भूचाल का अनुभव सबसे पहले होता है, उसे अधिकेंद्र (Epicentre) कहते हैं। यह भूचाल उत्पत्ति केंद्र के ठीक ऊपर से आरंभ होता है। भूचाल लहरें (Earthquake Waves) उत्पत्ति केंद्र में उत्पन्न होकर शैलों में कंपन करती हुई सबसे पहले अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र में पहुँचती हैं। परंतु भूचाल का सबसे अधिक प्रभाव अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र पर पड़ता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 1

भूचाली लहरों को रेखाओं में लिया जाता है, जोकि अक्सर अंडे के आकार (Elliptical) की होती हैं। इन्हें भूचाल उत्पत्ति रेखाएँ (Homoseismal lines) कहा जाता है। ऐसे स्थानों को, जिन्हें एक जैसी लहरों के पहुँचने के कारण एक जैसी हानि हुई हो, तो मानचित्र पर रेखाओं द्वारा मिला दिया जाता है। इन रेखाओं को सम-भूचाल रेखाएँ (Isoseismal lines) कहते हैं।

भूचाल लहरें-उत्पत्ति केंद्र से उत्पन्न होने वाली भूमि-कंपन लहरें एक जैसी नहीं होती और न ही इनकी गति में समानता होती है। इन तथ्यों को आधार मानकर इन तरंगों को नीचे लिखे तीन भागों में बाँटा गया है-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 2

1. प्राथमिक लहरें (Primary or Push or ‘P’ waves)—ये लहरें ध्वनि लहरों (Sound waves) के समान आगे-पीछे (to and fro) होती हुई आगे बढ़ती हैं। ये ठोस भागों में तीव्र गति से आगे बढ़ती हैं और अन्य प्रकार की लहरों की अपेक्षा तीव्र चलने वाली लहरें होती हैं। इनकी गति 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिंड होती है। प्राथमिक लहरें तरल और ठोस पदार्थों को एक समान रूप में पार करती हैं।

2. गौण लहरें (Secondary or ‘S’ Waves)-ये लहरें ऊपर-नीचे (Up and down) होती हुई आगे बढ़ती _हैं। इनकी गति 4 से 6 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये द्रव्य पदार्थों को पार करने में असमर्थ होती हैं और ये उसमें ही अलोप हो जाती हैं।

3. धरातलीय लहरें (Surface or ‘L’ waves)-इनकी गति 3 से 5 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये धरती की ऊपरी परतों में ही चलती हैं अर्थात् ये भू-गर्भ की गहराइयों में प्रवेश नहीं करतीं। ये अत्यंत ऊँची और नीची होकर चलती हैं जिससे भू-तल पर अपार धन-माल की हानि होती है।

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प्रश्न 2.
भूचाल किसे कहते हैं ? भूचालों की उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? विश्व में भूचाल क्षेत्रों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जब धरातल का कोई भाग अचानक काँप उठता है, तो उसे भूचाल कहते हैं। इस हलचल के कारण धरती हिलने लगती है और आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सकरती है। इन्हें झटके (Termors) कहते हैं। (An Earthquake is a simple shiver on the skin of our planet.)

भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)—प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के लिए उत्तरदायी कारण नीचे लिखे हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)-ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं
और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 में काराकाटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इनके सहारे भूमि-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरकने से भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल “सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth) धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परन्तु अब धीरे धीरे ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक-शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं।

6. साधारण कारण (General Causes)-हल्के या छोटे भूचाल कई कारणों से पैदा हो जाते हैं-

  • पहाड़ी भागों में भू-स्खलन (Landslide) और हिम-स्खलन (Avalanche) होने से।
  • गुफाओं की छतों के बह जाने से।
  • समुद्री तटों से तूफानी लहरों के टकराने से।
  • धरती के तेज़ घूमने से।
  • अणु-बमों (Atom Bombs) के विस्फोट और परीक्षण से।
  • रेलों, ट्रकों और टैंकों के चलने से।

विश्व के भूचाल-क्षेत्र (Earthquake Zones of the World)-

  1. ज्वालामुखी क्षेत्रों में।
  2. नवीन बलदार पहाड़ों के क्षेत्रों में।
  3. समुद्र तट के क्षेत्र में।

भूचाल कुछ निश्चित पेटियों (Belts) में मिलते हैं-

  • प्रशांत महासागरीय पेटी (Circum Pacific Belt)—यह विशाल भूचाल क्षेत्र प्रशांत महासागर के दोनों तटों (अमेरिकी और एशियाई) के साथ-साथ फैला हुआ है। यहाँ विश्व के 68% भूचाल आते हैं। इसमें कैलीफोर्निया, अलास्का, चिली, जापान, फिलीपाइन प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में तो हर रोज़ लगभग 4 भूचाल आते हैं। हर तीसरे दिन एक बड़ा भूचाल आता है।
  • मध्य-महाद्वीपीय पेटी (Mid-world Belt)—यह पेटी यूरोप और एशिया महाद्वीप के बीच बलदार पर्वतों (अल्पस और हिमालय) के सहारे पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली है। यहाँ संसार के 11% भूचाल आते हैं। भारत के भूचाल-क्षेत्र 1. भारत के उत्तरी भाग में अधिक भूचाल आते हैं। 2. मध्यवर्ती मैदानी-क्षेत्र में कम भूचाल अनुभव होते हैं।
  • दक्षिणी भारत एक स्थिर भाग है। यहाँ भूचाल बहुत कम आते हैं।
  • भारत में आए हुए प्रसिद्ध भूचाल हैंकच्छ (1819), असम (1897), कांगड़ा (1903), बिहार (1934)।

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प्रश्न 3.
मानवीय जीवन पर भूचाल के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
भूचाल के प्रभाव (Effects of Earthquakes)-भूचाल पृथ्वी की एक भीतरी शक्ति है, जो अचानक (Sudden) परिवर्तन ले आती है। यह जादू के खेल के समान क्षण-भर में अनेक परिवर्तन ले आती है। भूचाल मनुष्य के लिए लाभदायक और हानिकारक दोनों ही है। विनाशकारी प्रभाव के कारण इसे शाप माना गया है, परंतु इसके कई लाभ भी हैं। भूचालों से होने वाली हानियों व लाभों का वर्णन नीचे दिया गया है-

हानियाँ (Disadvantages)-
1. जान व माल का नाश (Loss of Life and Property)-भूचाल से जान व माल की बहुत हानि होती है। 1935 में क्वेटा के भूचाल से 60,000 लोग मारे गए थे। एक अनुमान के अनुसार पिछले 4000 वर्षों में 1/2 करोड़ आदमी भूचाल के कारण मारे जा चुके हैं।

2. नगरों का नष्ट होना (Distruction of Cities) भूचाल से पूरे के पूरे नगर नष्ट हो जाते हैं। पुल टूट जाते हैं, सड़कें टूट जाती हैं, रेल की पटरियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं जिससे आवाजाही रुक जाती है।

3. आग का लगना (Fire Incidents)-भूचाल से अचानक आग लग जाती है। 18 अप्रैल, 1906 ई० में सैन फ्रांसिस्को में आग से शहर का काफी बड़ा भाग जल गया था।

4. दरारों का निर्माण (Formation of Faults)-धरातल फटने से दरारें बनती हैं। असम में 1897 ई० के भूचाल के कारण 11 किलोमीटर चौड़ी और 20 किलोमीटर लंबी दरार बन गई थी।

5. भू-स्खलन (Landslide)-पहाड़ी क्षेत्रों के अलग-अलग शिलाखंड और हिमखंड (Avalanche) टूटकर नीचे गिरते रहते हैं। समुद्र में बर्फ के शैल (Iceberge) तैरने लगते हैं।

6. बाढ़ें (Floods)-नदियों के रास्ते बदलने से बाढ़ें आती हैं। 1950 ई० में असम में भूचाल से ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आई थी।

7. तूफानी लहरें (Tidal waves)-समुद्र में तूफानी लहरें तटों पर नुकसान करती हैं। इन्हें सुनामी (Tsunami) कहते हैं। 1775 ई० में लिस्बन (पुर्तगाल) में भूचाल से 12 मीटर ऊँची लहरों के कारण वह शहर नष्ट हो गया था।

8. तटीय भाग का धंसना (Sinking of the Coast)-भूचाल से तटीय भाग नीचे धंस जाते हैं। जापान में 1923 ई० के संगामी खाड़ी के भूचाल से सागर तल का कुछ भाग 300 मीटर नीचे धंस गया था।

लाभ (Advantages)-

  • भूचाल से निचले पठारों, द्वीपों और झीलों की रचना होती है।
  • भूचाल से कई चश्मों का (Springs) का जन्म होता है।
  • तटीय भागों में गहरी खाइयाँ बन जाती हैं, जहाँ प्राकृतिक बंदरगाह बन जाते हैं।
  • भूचाल द्वारा अनेक खनिज पदार्थ धरातल पर आ जाते हैं।
  • कृषि के लिए नवीन उपजाऊ क्षेत्र बन जाते हैं।
  • भूचाली लहरों द्वारा धरती के भू-गर्भ (Interior) के बारे में जानकारी मिलती है।
  • चट्टानों के टूटने से उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 4.
सुनामी से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
सुनामी (Tsunami)—’सुनामी’ जापानी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है-‘तटीय लहरें’। ‘TSU’ , शब्द का अर्थ है-तट और ‘Nami’ शब्द का अर्थ है-तरंगें। इन्हें ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूचाली तरंगें (Seismic Waves) भी कहा जाता है।

सुनामी अचानक ऊँची उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे पानी में हिलजुल होती है। इसकी ऊँचाई आमतौर पर 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस हालत में पैदा होती है, जब सागर के तल में भूचाली क्रिया के कारण हिलजुल होती है और महासागर में सतह के पानी का लंब रूप में विस्थापन होता है। हिंद महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम महसूस की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशांत महासागर में घटित होती है।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami)-भीतरी दृष्टि से पृथ्वी एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूचाल टैक्टॉनिक प्लेटों (Tectonic Plates) की सीमाओं पर पैदा होते हैं। सुनामी अधिकतर सबडक्शन जोन (Subduction Zone) के भूचाल के कारण पैदा होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ दो प्लेटें एक-दूसरे में विलीन (Coverage) हो जाती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेटें हल्की प्लेटों के नीचे खिसक जाती हैं। समुद्र के गहरे तल का विस्तार होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूचाल को पैदा करती है।

26 दिसंबर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004)-प्रातः 7.58 बजे, एक काले रविवार (Black Sunday) 26 दिसंबर, 2004 को, क्रिसमस से एक दिन बाद सुनामी दुर्घटना घटी। यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिंद महासागर के तटीय प्रदेश से टकराई। इस लहर के कारण इंडोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख आदमी विनाश के शिकार हुए थे।

महासागरीय तल पर एक भूचाल पैदा हुआ, जिसका अधिकेंद्र सुमात्रा (इंडोनेशिया) के 257 कि०मी० दक्षिण-पूर्व में था। यह भूचाल रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था। इन लहरों के ऊँचे उठने पर पानी की एक ऊँची दीवार बन गई थी।

आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् दुर्घटना के रूप में लिखी जाएगी। सन् 1900 के बाद, यह चौथा बड़ा भूचाल था। इस भूचाल के कारण पैदा हुई सुनामी लहरों से हिरोशिमा बम की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ था। इसलिए इसे भूचाल प्रेरित विनाशकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारत और म्यांमार के प्लेटों के

मिलन स्थान पर घटी थी, जहाँ लगभग 1000 किलोमीटर प्लेट-सीमा खिसक गई थी। इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊपर उठ गया और ऊपरी पानी हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया था। इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घंटा थी। इसे अपने उत्पत्ति स्थान से भारतीय तट तक पहुँचने में दो घंटे का समय लगा। इस दुर्घटना ने तटीय प्रदेशों के इतिहास और भूगोल को बदलकर रख दिया है।

सुनामी दुर्घटना के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster)-
हिंद महासागर के तटीय देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, म्याँमार, भारत, श्रीलंका और मालदीव में सनामी दुर्घटना के विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में तमिलनाडु, पांडेचेरी, आंध्र-प्रदेश, केरल आदि राज्य सबसे अधिक प्रभावित हुए। अंडमान और निकोबार द्वीप में इस लहर का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। इंडोनेशिया में लगभग 1 लाख आदमी, थाईलैंड में 10,000 आदमी, श्रीलंका में 30,000 आदमी तथा भारत में 15,000 आदमी इस विनाश के शिकार हुए।

भारत में सबसे अधिक नुकसान तमिलनाडु के नागापट्नम जिले में हुआ, जहाँ पानी शहर के 1.5 कि०मी० अंदर तक पहुँच गया था। संचार, परिवहन के साधन और बिजली की सप्लाई में भी मुश्किलें पैदा हुईं। अधिकतर श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के तट (Beach) के सागरीय पानी में बह गए। तट की विनाशकारी वापिस लौटती हुई लहरें हज़ारों लोगों को बहाकर ले गईं। मरीना तट (एशिया का सबसे बड़ा तट) पर 3 कि०मी० लंबे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की चपेट में आ गए। यहाँ लाखों रुपयों के चल व अचल संसाधनों की बर्बादी हुई।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 3

कलपक्कम अणु-ऊर्जा केंद्र में पानी प्रवेश करने पर अणु-ऊर्जा के रिएक्टरों को बंद करना पड़ा। मामलापुरम् के विश्व प्रसिद्ध मंदिर को तूफानी लहरों से बहुत नुकसान हुआ। सबसे अधिक मौतें अंडमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर, जोकि भूचाल के केंद्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौसेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का अधिकांश क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया हो। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया है और यहाँ फिर से मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश की मुसीबतों के शब्दकोश में एक नया शब्द ‘सुनामी मुसीबत’ जुड़ गया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से हिल गई और इसका परिभ्रमण तेज़ हो गया है, जिस कारण दिन हमेशा के लिए एक सैकंड कम हो गया है। सुनामी लहरें सचमुच ही प्रकृति का कहर होती हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
पानीपत के पहले दो युद्धों के बीच की राजनीतिक घटनाओं की रूप रेखा बताएं।
उत्तर-
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 ई० तथा दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इन दो युद्धों के मध्य राजनीतिक घटनाएं चार व्यक्तियों के गिर्द घूमती हैं। ये व्यक्ति हैं-बाबर, हुमायूं, शेरशाह एवं उसके उत्तराधिकारी तथा अकबर। इन व्यक्तियों ने अपने-अपने ढंग से राजनीतिक घटनाओं को प्रभावित किया। संक्षेप में इनका वर्णन इस प्रकार है :

I. बाबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

पानीपत की विजय (1526 ई०) द्वारा बहुत बड़ा प्रदेश बाबर के अधिकार में आ गया। बाबर ने दिल्ली के सिंहासन को काबुल के सिंहासन की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया और हिन्दुस्तान में ही रहने का निर्णय किया।

(i) राणा सांगा के साथ संघर्ष-बाबर के भारत में रहने के निर्णय के कारण उसका मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह से संघर्ष होना अवश्यम्भावी था। राणा सांगा के अधीन मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था। जब बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाके से अफ़गानों को निकालना आरम्भ किया, तो उनमें से कुछ ने राणा सांगा से सहायता मांगी। राणा सांगा तो पहले ही उत्तरी भारत पर बाबर के अधिकार को अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए रोड़ा समझता था। बाबर के विरुद्ध राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले महत्त्वपूर्ण अफ़गानों में सुल्तान इब्राहीम लोधी का भाई महमूद लोधी और मेवात का शासक हसन खां थे। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर की सेना से उसका सामना फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ। दस घण्टों के घमासान युद्ध में बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। इस युद्ध में बाबर ने उन्हीं युद्ध-चालों का प्रयोग किया जो उसने पानीपत के युद्ध में अपनाई थीं। खनुआ ने युद्ध से मेवाड़ की शक्ति और सम्मान को गहरा आघात पहुंचा और बाबर के लिए भारत विजय के द्वार खुल गए।

(ii) बाबर के अन्य सैनिक अभियान और मृत्यु-एक-एक कर बाबर ने अपने विरोधी अफ़गानों को समाप्त करना शुरू कर दिया। खनुआ की लड़ाई के शीघ्र ही बाद उसने हसन खां मेवाती की राजधानी अलवर पर अधिकार कर लिया। बाबर ने महमूद लोधी को बिहार से खदेड़ दिया। महमूद लोधी ने बंगाल के शासक नुरसत शाह की शरण ली। अफ़गानों ने महमूद लोधी के नेतृत्व में मई, 1529 ई० में बाबर के विरुद्ध घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया। उस युद्ध में बाबर को ही विजय मिली। नुसरत शाह ने बाबर को दिल्ली का बादशाह स्वीकार कर लिया। उसने यह भी मान लिया कि वह अफ़गानों को शरण नहीं देगा। इस प्रकार लोधियों का सारा प्रदेश अब बाबर के अधिकार में आ गया। दिसम्बर, 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई और उसका पुत्र हुमायूं राजगद्दी पर बैठ गया।

II. हुमायूं के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

(i) राज्य का विभाजन-हुमायूं ने अपने पिता से मिले राज्य को अपने भाइयों में बांट दिया। उसने कामरान को काबुल और पंजाब का प्रदेश और अस्करी तथा हिन्दाल को क्रमशः सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

(ii) आरम्भिक विजयें तथा विद्रोह-इसके उपरान्त हुमायूं ने कालिंजर के शासक पर आक्रमण किया और उसे नज़राना देने के लिए विवश किया। 1532 ई० में उसने जौनपुर की ओर बढ़ते हुए महमूद लोधी को पराजित किया। तत्पश्चात् उसने 1534 ई० में अपने रिश्तेदार मिर्जा मुहम्मद ज़मां और मुहम्मद सुल्तान के विद्रोह को कुचला।

(iii) मालवा और गुजरात पर अस्थायी अधिकार-हुमायूं ने अब अपना ध्यान गुजरात की ओर लगाया। उसके विरोधी अफ़गानों तथा मिर्जा मुहम्मद जमां को शरण देकर बहादुरशाह भी अब हुमायूं का शत्रु बन गया था। उसने मालवा को 1531 ई० में विजय करके अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ा लिया था। उसने अगले दो वर्षों में राजस्थान के कई किलों पर अधिकार जमा लिया। हुमायूं ने शीघ्र बहादुरशाह के विरुद्ध कूच किया। बहादुरशाह को अपना राज्य छोड़ना पड़ा। हुमायूं ने अपने भाई अस्करी को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया। फरवरी 1532 ई० में हुमायूं मालवा लौटा। शीघ्र ही बहादुरशाह ने चम्पानेर और अहमदाबाद सहित गुजरात पर पुनः अधिकार कर लिया।

(iv) हुमायूं का भारत से निष्कासन-गुजरात से वापसी पर हुमायूं ने पूर्व में शेरशाह की ओर ध्यान दिया। अक्तूबर 1532 ई० में हुमायूं ने चुनार के किले को घेर लिया जो शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था। यह मज़बूत किला बंगाल की ओर जाने वाले रास्ते पर था। इस पर अधिकार करने में छः माह लग गए । किला हुमायूं के अधिकार में आने के एक महीने बाद ही शेरखां ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया। हुमायूं अब उसके विरुद्ध चल पड़ा। शेरखां ने स्थिति को समझते हुए हुमायूं से लड़ाई न की । हुमायूं ने आसानी से बंगाल पर अधिकार कर लिया किन्तु शेरखां ने बिहार पर आक्रमण करके हुमायूं की वापसी के रास्ते को रोक लिया। बंगाल से वापस लौटते समय शेरखां ने उसे पहले चौसा के स्थान पर तथा फिर कन्नौज के स्थान पर पराजित किया। अन्त में हुमायूं भारत छोड़कर भाग गया।

III. शेरशाह और उसके उत्तराधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं –

(i) शेरशाह द्वारा राज्य का विस्तार-शेरशाह ने कामरान को पंजाब से निकाल कर सिन्धु नदी तक के इलाके को अपने अधीन कर लिया। 1542 ई० में उसने मालवा को जीता। अगले वर्ष उसने मध्य भारत में स्थित रायसीन की चौहान रियासत को नष्ट कर दिया। 1543 में उसने मारवाड़ के मालदेव को पराजित किया। शेरशाह ने मेवाड़ तथा रणथम्भौर पर भी अधिकार कर लिया। उसने राजस्थान के अन्य इलाकों पर भी विजय प्राप्त की। इस प्रकार सारे राजस्थान पर शेरशाह का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1544 ई० के अन्तिम चरण में उसने कालिन्जर को घेर लिया तथा 22 मई, 1545 को उसने कालिन्जर को जीत लिया। उसी दिन धावा बोलते समय बारूद में आग लगने से उसकी मृत्यु हो गई। जब शेरशाह की मृत्यु हुई तब गुजरात को छोड़ कर लगभग सारा उत्तरी भारत उसके अधीन था।

(ii) शेरशाह के उत्ताधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं-शेरशाह की मृत्यु के बाद उसके छोटे पुत्र जलालखां ने इस्लामशाह की उपाधि धारण कर लगभग आठ वर्षों अर्थात् 1553 ई० तक शासन किया। उसने पूर्वी बंगाल को अपने राज्य में मिला लिया।

इस्लामशाह की मृत्यु (30 अक्तूबर, 1553) के बाद उसका बारह वर्षीय पुत्र फिरोज़ उत्तराधिकारी बना। किन्तु गद्दी पर बैठने के तीन दिन बाद ही उसके मामा मुबारिज़ खां ने उसका वध कर दिया। मुबारिज़ खां मुहम्मद आदिलशाह के नाम पर सिंहासन पर बैठा। उसे अफ़गान लोग अन्धा कहते थे। उसने पुराने अमीरों के विश्वास को जीतने का असफल प्रयत्न किया। किसी पठान की जगह आदिलशाह ने हेम को अपना वज़ीर बनाया जिससे अफ़गान अमीरों का रोष और भी बढ़ गया और वे स्वतन्त्र होने के बारे में सोचने लगे। शीघ्र ही शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य पांच भागों में बंट गया।

(iii) हुमायूं का पुनः शक्ति में आना-हुमायूं ने स्थिति का लाभ उठाया। वह ईरान के शासक से सैनिक सहायता लेकर काबुल तक पहुंच चुका था। उसने 1554 के अन्त में पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया और छः महीनों के भीतर ही उसे हथिया लिया। सिकन्दरशाह सूर की सरहिन्द के निकट जून 1555 में पराजय हुई। हुमायूं ने दिल्ली पर और बाद में आगरा पर अधिकार कर लिया। किन्तु सात मास के पश्चात् हुमायूं की मृत्यु हो गई।

IV. अकबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं हुमायूं की मृत्यु के समय अकबर की आयु 13 वर्ष थी। उसके संरक्षक बैरम खां ने उसका कलानौर में राजतिलक किया। उसके बाद वह दिल्ली की ओर चल दिया।

हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र ही बाद हेमू ने आदिलशाह की ओर से आगरा पर अधिकार कर लिया और दिल्ली की तरफ चल पड़ा। मुग़ल सेनापति तारदी बेग पराजित हुआ। वह पंजाब की ओर भाग गया। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। उसके बाद अकबर ने पानीपत के युद्ध में नवम्बर 1556 ई० में हेमू को पराजित किया।

इस तरह पानीपत के प्रथम युद्ध की भान्ति पानीपत के दूसरे युद्ध ने भी मुग़लों के ही भाग्य को चमकाया। बाबर की विजय अस्थायी रही, परन्तु अकबर ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ किया और एक विशाल राज्य की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों के अधीन दक्कन में मुग़ल साम्राज्य के विस्तार से सम्बन्धित मुख्य घटनाएं क्या थी ?
उत्तर-
दक्कन का प्रदेश नर्मदा के पार स्थित था। अकबर से पूर्व किसी भी मुसलमान शासक ने दक्कन के किसी प्रदेश को अपने राज्य का भाग नहीं बनाया। अकबर पहला बादशाह था जिसके राज्य के तीन प्रान्त दक्षिण से सम्बन्धित थे। अकबर के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने दक्कन में पूरी रुचि दिखाई। औरंगजेब ने तो अपना आधा शासनकाल दक्कन में ही व्यतीत कर दिया और उसकी मृत्यु भी वहीं हुई। संक्षेप में अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों की दक्कन में विस्तारवादी-नीति का वर्णन इस प्रकार है :

I. अकबर के अधीन दक्कन नीति 1591 ई० में अकबर ने अपने प्रतिनिधियों अर्थात वकीलों को दक्षिणी राज्यों (खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा) भेजा ताकि उनके शासक उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर लें। इनमें सबसे कम शक्तिशाली तथा उत्तरी भारत के सबसे निकट खानदेश का शासक राजा अली खां था। उसने तुरन्त अकबर के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया और आजीवन स्वामिभक्त रहा। परन्तु उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी मीरा बहादुरशाह ने मुग़लों की अधीनता को त्यागने का निश्चय किया। अकबर ने तुरन्त खानदेश की राजधानी बुरहानपुर को अपने अधिकार में ले लिया। उसने राज्य के महत्त्वपूर्ण किले आसीरगढ़ पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार खानदेश 1601 ई० में मुग़ल साम्राज्य का एक प्रान्त बन गया। अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों ने अकबर के वकीलों का परामर्श मानने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप कई सैनिक अभियान अहमदनगर के विरुद्ध भेजे गए। आखिर 1599 ई० में दौलताबाद पर अधिकार कर लिया गया। अहमदनगर सल्तनत की राजधानी अहमदनगर पर भी 1600 ई० में मुग़लों का अधिकार हो गया। अकबर ने अहमदनगर राज्य को समाप्त नहीं किया बल्कि उसने वहां के प्रदेशों का एक अलग प्रान्त बना दिया। अकबर की मृत्यु से पूर्व दक्कन अर्थात् विंध्य पर्वत और कृष्णा नदी के बीच के प्रदेश में तीन अधीनस्थ रियासतें बन चुकी थीं-खानदेश, बरार और अहमदनगर। इस तरह मुग़ल अपने साम्राज्य को नर्मदा के उस पार तक ले जाने में सफल हुए।

II. जहांगीर की दक्कन नीति-

जहांगीर ने दक्कन में प्रथम अभियान 1608 ई० में भेजा था। किन्तु उसे 1617 ई० में सफलता प्राप्त हुई जब शाहज़ादा खुर्रम ने अहमदनगर के सुल्तान को सन्धि करने के लिए बाध्य किया। सन्धि की शर्त यह थी कि सुल्तान विजित प्रदेश मुग़लों को सौंप दे। चार वर्षों के पश्चात् खुर्रम ने न केवल अहमदनगर के सुल्तान को अपितु बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों को भी खिराज देने के लिए विवश कर दिया। उन्होंने क्रमशः बारह, अठारह और बीस लाख रुपए वार्षिक खिराज देना स्वीकार कर लिया। यह दक्कन में जहांगीर की सफलता का उत्कर्ष था। परन्तु 1627 ई० में उसकी मृत्यु के समय दक्कन में मुग़ल स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।

III. शाहजहां की दक्कन नीति –

(i) गोलकुण्डा के साथ शाहजहां की सन्धि-1636 ई० में शाहजहां ने गोलकुण्डा के सुल्तान को अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। सुल्तान को यह शर्त भी माननी पड़ी कि गोलकुण्डा के सिक्कों पर तथा खुतबे में शाहजहां के नाम के अतिरिक्त पहले चारों खलीफों के नाम भी हों। यह शर्त शाहजहां ने इसलिए रखी थी क्योंकि गोलकुण्डा का सुल्तान शिया होने के नाते केवल मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को खलीफा मानता था। उसने 16 वर्षों के बकाया 128 लाख रुपया देना तो स्वीकार कर ही लिया, साथ में आठ लाख रुपए वार्षिक खिराज देना भी स्वीकार कर लिया। इसके बदले में मुग़ल सम्राट को गोलकुण्डा के सुल्तान की बीजापुर और मराठों से रक्षा करनी थी

(ii) बीजापुर के साथ शाहजहां की सन्धि-इसी समय मुग़ल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण किया। बीजापुर का सुल्तान समझौते के लिए राजी हो गया। उसने मुग़ल सम्राट् की प्रभुसत्ता को स्वीकार कर लिया। उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि वह गोलकुण्डा पर आक्रमण नहीं करेगा। उसने शाहजहां को 20 लाख रुपया देना और उसकी मध्यस्थता को भी स्वीकार कर लिया। बदले में मुग़ल सम्राट ने बीजापुर के जीते हुए कुछ प्रदेश उसे लौटा दिए। साथ में उसे अहमदनगर राज्य के कुछ नये प्रदेश भी दिए गए। इसके बाद बीस वर्षों तक मुग़ल बादशाह को बीजापुर तथा गोलकुण्डा के विरुद्ध अभियान नहीं भेजना पड़ा।

(iii) गोलकुण्डा तथा बीजापुर पर आक्रमण-1636 ई० को सन्धियों के पश्चात् गोलकुण्डा और बीजापुर के सुल्तानों ने अपनी-अपनी शक्ति और प्रदेश में वृद्धि कर ली। उन्होंने विजयनगर राज्य के प्रदेशों को हड़प कर अपने राज्य का विस्तार किया। शाहजहां ने दक्कन के तत्कालीन गवर्नर औरंगजेब को आज्ञा दी कि वह गोलकुण्डा और बीजापुर से बकाया खिराज वसूल करे। अत: औरंगज़ेब ने फरवरी 1656 ई० में गोलकुण्डा के किले को घेर लिया। औरंगजेब के डर से गोलकुण्डा का सुल्तान शाहजहां को पहले ही अपने एलची भेज चुका था। जब औरंगजेब की जीत होने वाली थी उसी समय उसे बादशाह की आज्ञा मिली कि वह गोलकुण्डा का घेरा उठा ले और वापस आ जाए। बादशाह ने गोलकुण्डा से स्वयं खिराज वसूल किया।

1656 ई० के बाद शाहजहां ने औरंगजेब को बीजापुर को विजय करने की आज्ञा दी। औरंगज़ेब ने तुरन्त ही बीदर और कल्याणी पर अधिकार कर लिया और बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। 1657 ई० में बीजापुर के सुल्तान ने डेढ़ करोड़ रुपए देना और मांगे सभी प्रदेशों को वापस करना स्वीकार कर लिया। परन्तु तभी औरंगजेब को युद्ध बन्द कर देने और पीछे हटने का आदेश मिला। औरंगज़ेब निराश होकर 1658 ई० के आरम्भ में औरंगाबाद लौट आया। .

IV. औरंगजेब की दक्कन नीति-

औरंगज़ेब एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट् था और वह सारे भारत पर मुग़ल पताका फहराना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसे दक्षिण में शिया रियासतों का अस्तित्व भी पसन्द नहीं था। दक्षिण के मराठे भी काफ़ी शक्तिशाली होते जा रहे थे। वह उनकी शक्ति को कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने बीजापुर राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1686 ई० में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को भी अपने अधीन कर लिया। परन्तु इन दो राज्यों की विजय उसकी निर्णायक सफलता नहीं थी बल्कि उसकी कठिनाइयों का आरम्भ थी। अब उसे शक्तिशाली मराठों से सीधी टक्कर लेनी पड़ी। इससे पूर्व उसने वीर मराठा सरदार शिवाजी को दबाने के अनेक प्रयत्न किए थे, परन्तु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। अब मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शंभू जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता भी एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। इसके विपरीत औरंगजेब का बहुत-सा धन और समय दक्षिण के अभियानों में व्यर्थ नष्ट हो गया। यहां तक कि 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगजेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान कब किया?
उत्तर-
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान 1519 ई० में किया।

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प्रश्न 2.
बाबर के भारत आक्रमण के समय दिल्ली का शासक कौन था ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी।

प्रश्न 3.
पानीपत की पहली लड़ाई किस-किस के बीच हुई?
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई बाबर एवं इब्राहीम लोधी के बीच हुई।

प्रश्न 4.
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर कौन था?
उत्तर-
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी था।

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प्रश्न 5.
हुमायूं की माता का क्या नाम था ?
उत्तर-
हुमायूं की माता का नाम महम बेगम था।

प्रश्न 6.
हुमायूं सिंहासन पर कब बैठा?
उत्तर-
हुमायूं 30 दिसम्बर, 1530 ई० में सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 7.
किस रानी ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी?
उत्तर-
रानी कर्णवती ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी।

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प्रश्न 8.
शेर खां ने शिक्षा कहां प्राप्त की?
उत्तर-
शेर खां ने जौनपुर में शिक्षा प्राप्त की।

प्रश्न 9.
शेर खां ने कौन-कौन से ग्रन्थों का अध्ययन किया था?
उत्तर-
शेर खां ने गुलस्तां, बोस्ता, सिकन्दरनामा आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया था।

प्रश्न 10.
फरीद को शेर खां की उपाधि किसने दी?
उत्तर-
फरीद को शेर खां की उपाधि बहार खां लोहानी ने दी।

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प्रश्न 11.
शेर खां के सम्राट् बनने की भविष्यवाणी किस मुग़ल सम्राट् ने की थी?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट् बाबर ने शेर खां के सम्राट बनने की भविष्यवाणी की थी।

प्रश्न 12.
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक कौन था?
उत्तर-
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक हेमू था।

प्रश्न 13.
बैरम खां का वध किसने किया?
उत्तर-
बैरम खां का वध मुबारक खां ने किया।

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प्रश्न 14.
अकबर ने किस निर्णायक युद्ध द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था ?
उत्तर-
अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था।

प्रश्न 15.
किस राजपूत राजा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी?
उत्तर-
राजपूत राजा राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।

प्रश्न 16.
शाहजहां का सिंहासनारोहण कब हुआ ?
उत्तर-
शाहजहां का सिंहासनारोहण 1627 ई० में हुआ।

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प्रश्न 17.
शाहजहां ने किस बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया ?
उत्तर-
शाहजहां ने जोझार सिंह ओरछा बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया।

प्रश्न 18.
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी कौन-सी थी?
उत्तर-
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी मुमताज महल थी।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(i) बाबर के पिता का नाम
(ii) बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण ………………… लोधी ने दिया।
(iii) हुमायूं की मृत्यु ………………… ई० में हुई।
(iv) शेरशाह सूरी का जन्म …………. ई० में हुआ।
(v) ………………… सूर साम्राज्य का संस्थापक था।
(vi) सूर साम्राज्य का अंतिम शासक …………… था।
(vii) ‘अकबरनामा’ का लेखक ……………. था।
(viii) ……………. अकबर का संरक्षक था।
(ix) जहाँगीर का वास्तविक नाम ………………… था।
(x) गुरु …………… की शहीदी के लिए जहाँगीर उत्तरदायी था।
(xi) शाहजहाँ के बचपन का नाम ……………… था।
(xii) औरंगजेब की मृत्यु ……………… ई० में अहमदनगर में हुई।
उत्तर-
(i) उमरशेख मिर्जा
(ii) दौलत खां
(iii) 1556
(iv) 1472
(v) शेरशाह सूरी
(vi) सिकंदर सूर
(vii) अबुल फज़ल
(viii) बैरम खां
(ix) मुहम्मद सलीम
(x) अर्जन देव जी
(xi) खुर्रम
(xii) 1707.

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3. सही/गलत कथन

(i) बाबर के आक्रमण के समय उत्तरी भारत का मेवाड़ सबसे शक्तिशाली हिन्दू राज्य था। — (√)
(ii) इब्राहीम लोधी मेरठ का शासक था। — (×)
(iii) भारत में बाबर की अंतिम लड़ाई पानीपत की लड़ाई थी। — (×)
(iv) शेर खां का पिता हसन खां जमाल खां के पास नौकरी करता था। — (√)
(v) शेर खां ने हुमायूं को सूरजगढ़ के युद्ध में पराजित किया। — ()
(vi) शेरशाह का मकबरा सहसराम नामक स्थान पर स्थित है। — (√)
(vii) अकबर का सिंहासनारोहण अमरकोट में हुआ। — (×)
(viii) नूरजहाँ ने राजकुमार खुसरो का वध करवाया। — (×)
(xi) जहाँगीर के शासनकाल में सर टॉमस रो भारत आया। — (√)
(x) औरंगजेब के शासनकाल में गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी दी। — (×)

4. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
बाबर का पिता शासक था-
(A) कन्वाहा का
(B) फरगाना का
(C) काबुल का
(D) सिंध का
उत्तर-
(B) फरगाना का

प्रश्न (ii)
बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक था
(A) इब्राहीम लोधी
(B) दौलत खां लोधी
(C) राणा संग्राम सिंह
(D) आधम खां लोधी।
उत्तर-
(C) राणा संग्राम सिंह

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प्रश्न (iii)
चन्देरी का युद्ध हुआ
(A) 1528 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1556 ई० में
(D) 1530 ई० में ।
उत्तर-
(A) 1528 ई० में

प्रश्न (iv)
‘तुजके बाबरी’ का लेखक है
(A) अकबर
(B) बाबर
(C) जहांगीर
(D) अबुल फज़ल ।
उत्तर-
(B) बाबर

प्रश्न (v)
हुमायूं तथा शेर खां के बीच चौसा का युद्ध हुआ
(A) 1526 ई० में
(B) 1530 ई० में
(C) 1556 ई० में।
(D) 1539 ई० में ।
उत्तर-
(D) 1539 ई० में ।

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प्रश्न (vi)
शेर खां ने हुमायूं को हराया
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(C) चौसा के युद्ध में

प्रश्न (vii)
शेरशाह की मृत्यु हुई
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(D) कालिंजर के युद्ध में ।

प्रश्न (viii)
राजकुमार खुसरो का वध करवाया
(A) खुर्रम ने
(B) जहांगीर ने
(C) नूरजहां ने
(D) मुहम्मद सलीम ने ।
उत्तर-
(A) खुर्रम ने

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प्रश्न (ix)
औरंगजेब अपनी निम्न नीति द्वारा मुग़ल साम्राज्य को पतन की ओर ले गया
(A) हिंदू नीति
(B) राजपूत नीति
(C) दक्षिण नीति
(D) उपरोक्त सभी ।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी ।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मुग़ल साम्राज्य के इतिहास के लिए चार प्रकार के स्त्रोतों के नाम बताएं।
उत्तर-
ऐतिहासिक स्त्रोत (अकबरनामा आदि), भवन, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा मुग़लकालीन सिक्के मुग़ल इतिहास की जानकारी कराते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में मुगल शासक अपने आपको किसका उत्तराधिकारी समझते थे और उसकी राजधानी कौनसी थी ?
उत्तर-
भारत के मुग़ल शासक अपने आपको तैमूर का उत्तराधिकारी मानते थे। उसकी राजधानी समरकन्द थी।

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प्रश्न 3.
बाबर के पिता का क्या नाम था और वह किस रियासत का शासक था ?
उत्तर-
बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्जा था। वह फरगाना का शासक था।

प्रश्न 4.
उज़बेक कौन थे तथा उनके नेता का नाम बताएं।
उत्तर-
उज़बेक एक.प्रकार की जाति थी जो तैमूर के उत्तराधिकारियों से लड़ते रहते थे। उनका नेता शैबानी खां था।

प्रश्न 5.
शैबानी खां को ईरान के किस राजवंश के कौन-से शासक ने कब हराया ?
उत्तर-
शैबानी खां को ईरान के सफवी राजवंश के संस्थापक शाह इस्माइल ने 1510 में हराया।

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प्रश्न 6.
बाबर ने काबुल किस वर्ष जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार किस वर्ष में अधिकार किया ?
उत्तर-
बाबर ने काबुल 1504 में जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार 1511 में अधिकार किया।

प्रश्न 7.
बाबर को कौन-से वर्ष में बारूद के प्रयोग की सम्भवानाओं का पता चला और उसने अपने तोपखाने के लिए किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
बाबर को 1514 में बारूद के प्रयोग की सम्भावनाओं का पता चला और उसने तोपखाने के लिए अली नामक एक अनुभवी उस्ताद को नियुक्त किया।

प्रश्न 8.
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्य-दिल्ली, लाहौर, मेवाड़ तथा बंगाल थे।

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प्रश्न 9.
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों में से एक दौलत खां लोधी और दूसरा आलम खां लोधी था।

प्रश्न 10.
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध कहां और कब हुआ ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध पानीपत में 1526 ई० में हुआ।

प्रश्न 11.
इब्राहीम लोधी के विरुद्ध बाबर की विजय के दो मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-
बाबर की विजय का मुख्य कारण उत्तम युद्धनीति तथा सामरिक चालों के साथ तोपखाने का प्रयोग था।

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प्रश्न 12.
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य कौन-सा था और उसके शासक का नाम क्या था.?
उत्तर-
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य मेवाड़ था। उसके शासक का नाम राणा संग्राम सिंह था।

प्रश्न 13.
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदार महमूद लोधी और हसन खां थे।

प्रश्न 14.
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में हुआ ?
उत्तर-
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध 1527 ई० में फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 15.
बाबर ने महमूद लोधी से युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में किया ?
उत्तर-
बाबर ने महमूद लोधी से मई 1529 ई० में घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया।

प्रश्न 16.
बाबर ने पंजाब पर किस वर्ष में अधिकार किया और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
बाबर ने पंजाब पर 1524 ई० में अधिकार किया। उसकी मृत्यु 1530 ई० में हुई।

प्रश्न 17.
बाबर के चार बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाबर के चार बेटे हुमायूं, कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल थे।

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प्रश्न 18.
हुमायूं ने कौन-से चार प्रदेश अपने भाइयों को सौंप दिए ?
उत्तर-
हुमायूं ने अपने भाइयों को-पंजाब, काबुल, सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

प्रश्न 19.
हुमायूं के कौन-से दो रिश्तेदारों ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया ?
उत्तर-
हुमायूं के दो रिश्तेदारों मिर्जा मुहम्मद जमां और मिर्ज़ा मुहम्मद सुल्तान ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 20.
हुमायूं ने गुजरात किस सुल्तान से जीता था और वहां का सूबेदार किसको नियुक्त किया ?
उत्तर-
हुमायूं ने गुजरात सुल्तान बहादुरशाह से जीता। उसने अपने भाई अस्करी को वहां का सूबेदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 21.
गुजरात के दो प्रधान नगरों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुजरात के दो प्रधान नगर-चम्पानेर और अहमदाबाद थे।

प्रश्न 22.
पूर्व तथा पश्चिम में हुमायूं के दो प्रमुख प्रतिद्वन्द्वियों ने नाम बताएं।
उत्तर-
पूर्व में शेरखां और पश्चिम में बहादुरशाह हुमायूं के प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी थे।

प्रश्न 23.
शेरखां किस कबीले से था और उसने आरम्भ में किस प्रदेश में अपनी शक्ति को संगठित किया ?
उत्तर-
शेरखां पठान कबीले से था। उसने दक्षिण बिहार में अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 24.
शेरशाह ने किन वर्षों में बंगाल के शासक को दो बार हराया ?
उत्तर-
उसने बंगाल के शासक को पहले 1534 ई० में और फिर 1536 ई० में पराजित किया।

प्रश्न 25.
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते में किस किले पर घेरा डाला और यह किसके अधिकार में था ?
उत्तर-
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते चुनार के किले पर घेरा डाला। यह किला शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था।

प्रश्न 26.
हुमायूं तथा शेरखां के बीच दो निर्णायक युद्ध किन स्थानों पर तथा कब हुए ?
उत्तर-
हुमायूं तथा शेरखां के बीच पहला युद्ध चौसा के स्थान पर जून 1539 ई० में और दूसरा युद्ध कन्नौज में मई 1540 ई० में हुआ।

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प्रश्न 27.
शेरखां ने शेरशाह की उपाधि कब धारण की और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
चौसा के युद्ध के बाद शेरखां ने शेरशाह की उपाधि धारण की। उसकी मृत्यु 22 मई, 1545 ई० को हुई।

प्रश्न 28.
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने कौन-सी चार विजयें प्राप्त की ?
उत्तर-
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने पंजाब, मालवा, रायसिन तथा रणथम्भौर के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 29.
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए कौन-से दो कार्य किए ?
उत्तर-
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए सड़कें बनवाईं और उनके साथ-साथ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनवाईं।

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प्रश्न 30.
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से किन्हें लाभ हुआ ?
उत्तर-
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से राज्य तथा कृषकों को लाभ हुआ।

प्रश्न 31.
शेरशाह के बाद राज करने वाले चार सूर सुल्तानों के नाम बताएं।
उत्तर-
शेरशाह के बाद इस्लाम शाह, फिरोज, मुहम्मद आदिलशाह तथा सिकन्दर शाह सूर सुल्तान बने।

प्रश्न 32.
शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य किन पांच भागों में बंट गया तथा इनके शासक कौन थे ?
उत्तर-
ये पांच भाग थे-पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार, बंगाल, मालवा, दिल्ली तथा आगरा और पंजाब। इनके शासक क्रमशः आदिलशाह सूर, मुहम्मद शाह, बाज़बहादुर, इब्राहीम शाह सूर तथा सिकन्दरशाह सूर थे।

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प्रश्न 33.
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को किस देश के कौन-से शासक से सहायता मिली ?
उत्तर-
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को ईरान के शाह ताहमस्प की सहायता मिली।

प्रश्न 34.
हुमायूं ने फिर से पंजाब कब जीता और उसकी मुत्यु कब हुई ?
उत्तर-
हुमायूं ने 1555 ई० में फिर से पंजाब जीता। उसकी 1556 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 35.
अकबर का राज्याभिषेक कहां हुआ तथा उस समय उसकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
अकबर का राज्याभिषेक कलानौर में हुआ। उस समय उसकी आयु 13 वर्ष थी।

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प्रश्न 36.
अकबर के अभिभावक का नाम बताएं तथा कौन-से वर्षों में उसका प्रभाव रहा ?
उत्तर-
अकबर के अभिभावक का नाम बैरम खां था। उसका प्रभाव 1556 ई० से 1560 ई० तक रहा।

प्रश्न 37.
पानीपत का दूसरा युद्ध किस वर्ष में हुआ तथा इसमें अफ़गान सेनाओं का सेनापति कौन था ?
उत्तर-
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इस युद्ध में अफ़गान सेनाओं का नेतृत्व हेमू ने किया।

प्रश्न 38.
अकबर ने अपने राज्यकाल के आरम्भिक वर्षों में किन दो शक्तिशाली अमीरों से और कब छुटकारा प्राप्त किया ?
उत्तर-
अकबर ने आरम्भिक वर्षों में बैरम खां तथा आधम खां नामक अमीरों से क्रमशः 1560 ई० तथा 1562 ई० में छुटकारा प्राप्त किया।

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प्रश्न 39.
अकबर के सौतेले भाई का क्या नाम था और वह किस प्रदेश का शासक था ?
उत्तर-
अकबर के सौतेले भाई का नाम मिर्जा हकीम था। वह काबुल का शासक था।

प्रश्न 40.
1560 ई० से 1570 ई० के बीच अकबर ने किन चार राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाया ?
उत्तर-
इस अवधि के दौरान अकबर ने मालवा, मारवाड़, मेड़ता तथा गढ़-कटंगा आदि प्रदेशों को अपने साम्राज्य में मिलाया।

प्रश्न 41.
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतें थीं : जयपुर, कालिन्जर, बीकानेर तथा रणथम्भौर।

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प्रश्न 42.
अकबर ने गुजरात, बंगाल तथा उड़ीसा की विजयें कब प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने गुजरात को 1572-73, बंगाल को 1574-76 तथा उड़ीसा को 1591 ई० में विजय किया।

प्रश्न 43.
अकबर ने काबुल, कश्मीर, सिन्ध तथा बिलोचिस्तान की विजयें कौन-से वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने काबुल को 1581 ई०, कश्मीर को 1585 ई०, सिन्ध को 1591 ई० तथा बलुचिस्तान को 1595 ई० में विजय किया।

प्रश्न 44.
अकबर ने दक्षिण की कौन-सी चार सल्तनतों की ओर अपने वकील भेजे ?
उत्तर-
अकबर ने खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा में अपने वकील भेजे।

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प्रश्न 45.
सबसे पहले अकबर की अधीनता मानने वाला दक्षिण के किस राज्य का शासक था तथा उसका नाम क्या था ?
उत्तर-
सबसे पहले दक्षिण के खानदेश राज्य के शासक ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। उसका नाम राजा अली खां था।

प्रश्न 46.
खानदेश की राजधानी कौन-सी थी और इसके किस महत्त्वपूर्ण किले पर अकबर ने अधिकार किया ?
उत्तर-
खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी। अकबर ने इसके असीरगढ़ नामक किले पर अधिकार किया।

प्रश्न 47.
अकबर ने किन वर्षों में बरार, दौलताबाद, अहमदनगर तथा खानदेश को जीत लिया ?
उत्तर-
अकबर ने बरार को 1596 ई०, दौलताबाद को 1599 ई०, अहमदनगर को 1600 ई० तथा खानदेश को 1601 ई० में जीता।

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प्रश्न 48.
दक्कन में अकबर ने कौन-से दो प्रान्त बनाए ?
उत्तर-
अकबर ने वहां खानदेश तथा बरार नाम के दो प्रान्त बनाए।

प्रश्न 49.
जहांगीर का आरम्भिक नाम क्या था तथा वह कब गद्दी पर बैठा ?
उत्तर-
जहांगीर का आरम्भिक नाम सलीम था। वह 1605 ई० में गद्दी पर बैठा।

प्रश्न 50.
जहांगीर ने नूरजहां से कब विवाह किया तथा उसका आरम्भिक नाम क्या था ?
उत्तर-
जहांगीर ने नूरजहां से 1611 ई० में विवाह किया। उसका आरम्भिक नाम मेहरुन्निसा था।

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प्रश्न 51.
नूरजहां के पिता और भाई के नाम बताएं ।
उत्तर-
नूरजहां के पिता का नाम ग्यासबेग तथा भाई का नाम आसफ खां था।

प्रश्न 52.
मेवाड़ के किस शासक ने और कब जहांगीर की अधीनता स्वीकार की ?
उत्तर-
मेवाड़ के राणा अमरसिंह ने 1615 ई० में जहांगीर की अधीनता स्वीकार की।

प्रश्न 53.
जहांगीर ने कांगड़ा का किला कब जीता और वहां कौन-सा अधिकारी नियुक्त किया ?
उत्तर-
जहांगीर ने कांगड़ा का किला 1620 ई० में जीता। उसने वहां अपना फौजदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 54.
जहांगीर के समय कन्धार मुग़लों से कब छिन गया तथा इस पर किसने अधिकार किया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय कन्धार 1622 ई० में छिन गया। इस पर ईरान के शाह अब्बास ने अधिकार किया।

प्रश्न 55.
जहांगीर के समय दक्कन की किन सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा की सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 56.
अहमदनगर कौन-से बादशाह के समय और कब मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया ?
उत्तर-
अहमदनगर को शाहजहां के समय 1633 ई० में मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

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प्रश्न 57.
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित था तथा वह किसको पहला खलीफा मानता था ?
उत्तर-
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के शिया सम्प्रदाय से सम्बन्धित था। वह मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को पहला खलीफा मानता था।

प्रश्न 58.
शाहजहां ने कन्धार पर फिर से अधिकार कब किया गया तथा उस समय कन्धार का गवर्नर कौन था ?
उत्तर-
शाहजहां ने 1638 ई० में कन्धार पर फिर से अधिकार कर लिया गया। उस समय कन्धार का गवर्नर अली मर्दान खां था।

प्रश्न 59.
कन्धार मुगलों से हमेशा के लिए कब छिन गया और इस पर किस देश का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
कन्धार मुग़लों से 1649 ई० में छिन गया। इस पर ईरान का अधिकार स्थापित हो गया।

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प्रश्न 60.
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए कौन-से शहजादों को और किन वर्षों में भेजा ?
उत्तर-
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए मुराद को 1644 ई० और औरंगज़ेब को 1647 ई० में भेजा।

प्रश्न 61.
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम बताएं।
उत्तर-
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम दारा, शुजा, मुराद और औरंगजेब थे।

प्रश्न 62.
उत्तराधिकार के युद्ध कब हुए और औरंगजेब ने दारा को किन दो लड़ाइयों में हराया ?
उत्तर-
उत्तराधिकार के युद्ध अप्रैल तथा मई, 1658 ई० में हुए। औरंगजेब ने दारा को धरमत तथा सामूगढ़ की लड़ाइयों में हराया।

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प्रश्न 63.
शाहजहां का राज्य किस वर्ष जाता रहा और वह कब तक जीवित रहा ?
उत्तर-
शाहजहां का राज्य जून, 1658 ई० में जाता रहा। वह 1666 ई० तक जीवित रहा।

प्रश्न 64.
यूसुफजई पठानों ने किस वर्ष में तथा किन इलाकों में मुगलों के विरुद्ध सिर उठाया ?
उत्तर-
यूसुफजई पठानों ने 1667 ई० में पेशावर, अटक और हज़ारा नामक इलाकों में मुग़लों के विरुद्ध सिर उठाया।

प्रश्न 65.
अफरीदियों ने किस वर्ष मुगलों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तथा इन्हें किस कवि का समर्थन प्राप्त था ?
उत्तर-
अफरीदियों ने 1672 ई० में मुग़लों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। इन्हें कवि खुशाल खां का समर्थन प्राप्त था।

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प्रश्न 66.
मारवाड़ की राजधानी कौन-सी थी और इसका राजा कौन था एवं उसकी मृत्यु किस वर्ष हुई ?
उत्तर-
मारवाड़ की राजधानी जोधपुर थी। इसका राजा जसवन्त सिंह था जिसकी मृत्यु 1678 ई० में हुई।

प्रश्न 67.
शहजादा अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कब किया तथा उसे कौन-सी दो राजपूत रियासतों का समर्थन मिला ?
उत्तर-
शहजादा अकबर ने 1681 ई० में मेवाड़ और मारवाड़ के समर्थन से औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 68.
औरंगजेब दक्कन में किस वर्ष से किस वर्ष तक रहा ?
उत्तर-
औरंगज़ेब दक्कन में 1682 ई० से 1707 ई० तक रहा।

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प्रश्न 69.
औरंगजेब ने बीजापुर कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगजेब ने 1686 ई० में बीजापुर को जीता। उस समय इसका सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह था।

प्रश्न 70.
औरंगजेब ने गोलकुण्डा कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगज़ेब ने 1687 ई० में गोलकुण्डा को जीता। उस समय इसका सुल्तान अबुल हसन था।

प्रश्न 71.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ क्या थी ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ औरंगजेब की दक्षिण नीति थी।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर तथा लोधी अफ़गानों के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर और लोधी अफ़गानों के बीच पांच वर्ष तक संघर्ष चला। सर्वप्रथम बाबर ने सिकन्दर लोधी को 1525 ई० में पंजाब में पराजित किया। तत्पश्चात् उसने इब्राहीम लोधी के साथ पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में 1526 ई० में टक्कर ली। इब्राहीम लोधी अपने कई हजार सैनिकों के साथ मारा गया। युद्ध में बाबर ने श्रेष्ठ युद्ध नीति का प्रदर्शन किया। इसके अतिरिक्त उसके तोपखाने ने भी शत्रुओं का साहस तोड़ दिया। बाबर ने शीघ्र ही दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने लोधी अफ़गानों को अपने प्रदेश से निकालना आरम्भ किया। अतः उन्होंने राणा संग्राम सिंह से सहायता मांगी। कनवाहा की लड़ाई (1527 ई०) में उन्होंने राणा सांगा का साथ दिया। इस युद्ध में बाबर की ही विजय हुई। 1529 ई० में अफगानों ने घाघरागंगा-संगम के निकट बाबर से युद्ध किया। इस बार भी बाबर विजयी रहा। इस तरह बाबर अफ़गानों की शक्ति कुचलने में सफल रहा।

प्रश्न 2.
बाबर तथा राणा सांगा के बीच युद्ध के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर तथा राणा सांगा के बीच 1527 ई० में युद्ध हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया। यह बात मेवाड़ के शासक राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षाओं के मार्ग में बाधा थी। मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य था। इसी बीच बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाकों से अफ़गानों को निकालना आरम्भ कर दिया। तंग आकर कुछ अफ़गान सरदारों ने राणा सांगा से सहायता मांगी। वह तुरन्त उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गया। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर अपनी सेना को लेकर फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ आ पहुंचा। दोनों पक्षों में दस घण्टे तक युद्ध हुआ। बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। राणा सांगा की प्रतिष्ठा को बड़ा आघात पहुंचा और एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई। भारत में बाबर के लिए विजय द्वार खुल गए।

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प्रश्न 3.
हुमायूं तथा बहादुरशाह के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ हुमायूं के सम्बन्ध आरम्भ से ही शत्रुतापूर्ण थे। बहादुरशाह उन अफ़गानों को आश्रय दे रहा था जिन पर मुग़ल साम्राज्य के प्रति विद्रोह का आरोप था। वह दिल्ली पर अधिकार करने का भी आकांक्षी था। हुमायूं पहले तो शान्त रहा, परन्तु जब बहादुरशाह सभी युद्धों से निपट चुका, तब हुमायूं ने उस पर आक्रमण किया। उसने बहादुरशाह की सेना को मन्दसौर के स्थान पर घेरा। बहादुरशाह अपने पांच साथियों सहित शिविर बन्द करके भाग निकला। हुमायूं ने उसका मांडू तथा चम्पानेर तक पीछा किया। बहादुरशाह खम्बात की ओर भागने को विवश हो गया। हुमायूं वापिस लौट आया और उसने चम्पानेर पर अधिकार कर लिया। यहां हुमायूं ने फिर भूल की। वह विजित प्रदेशों का प्रबन्ध किए बिना ही आगरा लौट आया। परिणामस्वरूप उसके जाते ही शत्रुओं ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया।

प्रश्न 4.
हुमायूं तथा शेरशाह सूरी के बीच संघर्ष के बारे में बताएं। .
उत्तर-
शेर खां भारत के पूर्वी प्रदेशों में अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। 1531 ई० में हुमायूं शेर खां के विरुद्ध बढ़ा। परन्तु उसने पहले मार्ग में स्थित चुनार के किले को जीतना उचित समझा। इस अवसर का लाभ उठाकर शेर खां ने अपनी शक्ति दृढ़ कर ली। उधर उसके सैनिकों ने हुमायूं को मार्ग में तेहरिया गढ़ी के स्थान पर रोक दिया और उसे बंगाल की राजधानी गौड़ की ओर न बढ़ने दिया। इसी बीच शेर खां ने गौड़ का कोष और अफ़गान परिवार रोहतासगढ़ भेज दिए। इसके बाद ही हुमायूं गौड़ को जीत सका। यहां वह रंगरलियों में डूब गया। हुमायूं जब वापिस चला तो चौसा के स्थान पर दोनों पक्षों में पुनः युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ। शेर खां हुमायूं का पीछा करता हुआ कन्नौज तक बढ़ आया। हुमायूं के लिए यह संकट की घड़ी थी। उसने 1000 सैनिक इकट्ठे किए और एक बार फिर कन्नौज की ओर बढ़ा। दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। चौसा की भान्ति यहां भी हुमायूं पराजित हुआ।

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प्रश्न 5.
शेरशाह किन कार्यों के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी ने 1540 ई० से 1545 ई० तक शासन किया। उसने मुग़ल राज्य (1540), मालवा (1542), मारवाड़ (1543) तथा रोहतासगढ़ तक के प्रदेश को विजय किया। इन महत्त्वपूर्ण विजयों के अतिरिक्त शेरशाह कई अन्य कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। उसने अनेक सड़कें बनवाईं और सड़कों के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सराएं बनवाईं। उसके द्वारा बनवाई गई सबसे लम्बी सड़क शाही सड़क (जी० टी० रोड) थी जो बंगाल से सिन्ध नदी तक जाती थी। सड़कों के कारण सेनाओं, व्यापारियों तथा जनसाधारण को लाभ पहुंचा। शेरशाह सूरी ने अपने राज्य में शान्ति स्थापित की तथा एक उत्तम प्रकार की लगान व्यवस्था आरम्भ की। इस लगान व्यवस्था से राज्य तथा कृषकों को बड़ा लाभ पहुंचा। सच तो यह है कि शेरशाह एक सफल विजेता तथा उच्चकोटि का प्रबन्धक था।

प्रश्न 6.
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में हुई। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप भारत में सुल्तानों के राज्य का अन्त हुआ और मुगल वंश की स्थापना हुई। इस लड़ाई के कई कारण थे। मध्य-एशिया के युद्धों में बाबर को असफलता का मुंह देखना पड़ा था। फरगाना का राज्य भी उससे छिन गया था। भारत में दिल्ली सल्तनत बहुत कमजोर हो चुकी थी। इसी समय दौलत खां लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। इस प्रकार परिस्थितियां बाबर के लिए अनुकूल थीं। उसने इनका लाभ उठाया और अपनी सेनाओं सहित भारत आ पहुंचा। पानीपत के निकट आकर उसने बड़े अच्छे ढंग से मोर्चाबन्दी की और युद्ध की तैयारी करने लगा। 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः बाबर और इब्राहीम लोधी की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। इब्राहीम लोधी बाबर जैसा योग्य सेनापति नहीं था। अतः वह युद्ध में हार गया और मारा गया। युद्ध में विजय पाने के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 7.
बैरम खां के अधीन मुगल साम्राज्य का स्थिरीकरण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-
बैरम खां अकबर का संरक्षक था। उसी ने 1556 ई० में अकबर को कलानौर में हुमायूं का उत्तराधिकारी घोषित किया। इसीलिए शासन के आरम्भिक चार वर्षों में (1556 ई० से 1560 ई० तक) बैरम खां का मुग़ल दरबार में अत्यधिक प्रभाव रहा। हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र बाद ही हेमू ने मुगल सेनापति तारदी बेग को पराजित कर दिया था। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। इसके बाद उसने अकबर को दिल्ली जाने का परामर्श दिया। 1556 ई० में पानीपत के मैदान में हेमू और मुग़ल सेनाओं में जम कर लड़ाई हुई। हेमू पराजित हुआ। इसी बीच उसके स्वामी आदिल शाह को बंगाल के खिज्र खां ने मार डाला। बैरम खां के प्रयत्नों के कारण सिकन्दर सूर ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा बिहार में जागीर स्वीकार कर ली। बैरम खां ने ग्वालियर को भी जीता। इस प्रकार 1560 ई० तक बैरम खां ने काबुल से जौनपुर और पंजाब की पहाड़ियों से लेकर अजमेर तक फैले अकबर के राज्य को स्थिरता प्रदान की।

प्रश्न 8.
आपके विचार में भारत के मुसलमान शासकों में शेरशाह सूरी का क्या स्थान है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी को भारत के मुसलमान शासकों में एक बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। एक साधारण जागीरदार के पुत्र की स्थिति से उठकर वह भारत का सम्राट बना। इस प्रकार उसने अपनी योग्यता, बल और उच्च कोटि के नेतृत्व का परिचय दिया। उसने केवल पांच वर्ष ही राज्य किया। इस थोड़े से समय में ही उसने शान्ति, सुरक्षा और सुव्यवस्था स्थापित करके देश को सुदृढ़ बनाया। वह प्रजा का हितैषी था। उसने अनुभव किया कि हिन्दू जनता का सहयोग प्राप्त किए बिना कोई भी राज्य स्थायी नहीं रह सकता। इसलिए उसने धार्मिक कट्टरता से मुक्त होकर हिन्दुओं के प्रति उदारता और सहनशीलता की नीति अपनाई। इस प्रकार शेरशाह ने अपने शासन सम्बन्धी सुधारों और धार्मिक उदारता की नीति से सम्राट अकबर के महान कार्य के लिए उचित वातावरण तैयार किया। यदि उसे राष्ट्र-निर्माता भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।

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प्रश्न 9.
“शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था” सिद्ध करो।
उत्तर-
निम्नलिखित चार बातों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था :-
1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी कभी भी अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कठोर परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बांटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को उनके नाम बदलकर अपनाया।

3. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अपने राज्य में सड़कें बनवाईं और सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाए। यात्रियों की सुविधा के लिए उसने सराएं बनवाईं। अकबर ने भी राज्य में सड़कों का जाल बिछाया। उसने अनेक सरायें बनवाईं, अस्पताल खुलवाए और कुएं खुदवाए।

4. धार्मिक सहनशीलता-शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई। अकबर ने भी इसी उदारता की नीति को अपनाया।

प्रश्न 10.
“अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।” क्यों ?
उत्तर-
अकबर पहला मुस्लिम सम्राट् था जिसने किसी धर्म या सम्प्रदाय को उन्नत करने की बजाए राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा दिया। उसने समस्त उत्तरी भारत को विजय करके एक सूत्र में बांधा। उसने समस्त राज्य में समान कानून तथा शासनप्रणाली लागू की। पहली बार हिन्दू-जनता को मुसलमानों के समान धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। जज़िया समाप्त कर दिया गया। मुग़ल सम्राट अकबर ने न केवल राजपूत राजकुमारियों से विवाह ही किया बल्कि उन्हें पूरी तरह हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की अनुमति भी दे रखी थी। दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक सहनशीलता की चरम सीमा थी। उसने यह धर्म हिन्दू तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए आरम्भ किया था। इन सभी कार्यों द्वारा अकबर देश में राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

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प्रश्न 11.
अकबर की धार्मिक नीति के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
अकबर आरम्भ में परम्परावादी मुसलमान था परन्तु धीरे-धीरे उसके धार्मिक विचारों में उदारता आने लगी। उसने तीर्थ-कर और जजिया कर हटा दिये। उसने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना बनवाया जहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोग धार्मिक विषय पर चर्चा करते थे। इन सभी विचारों के सम्मिश्रण से अकबर ने एक नवीन धर्म का प्रारम्भ किया जिसे दीन ए-इलाही का नाम दिया जाता है। अकबर ने इस धर्म में अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों का संग्रह किया। इसके अतिरिक्त अकबर ने राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। सभी हिन्दू रानियों को हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतन्त्रता प्राप्त थी। अकबर ने नौकरियों के द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खोल रखे थे। इस प्रकार मुस्लिम युग में पहली बार किसी मुसलमान शासक के अधीन धार्मिक सहनशीलता का वातावरण अस्तित्व में आया।

प्रश्न 12.
दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं ? उसके मुख्य सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक भावनाओं के विकास की चरम सीमा थी। उसने इबादतखाने में हुए वादविवादों से यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्म मूल रूप से एक हैं। इस बात से प्रेरणा लेकर उसने 1582 ई० में दीन-ए-इलाही धर्म प्रचलित किया। उसने इसमें सभी धर्मों के मौलिक सिद्धान्तों का समावेश किया। देवी-देवताओं तथा पीर-पैगम्बरों का इस नए धर्म में कोई स्थान न था। इसके अनुसार ईश्वर एक है और अकबर उसका सबसे बड़ा पुजारी है। इस धर्म के अनुयायियों के लिए मांस खाने की मनाही थी। इसके मानने वाले “अल्लाह-हु-अकबर” कहकर एक-दूसरे का स्वागत करते थे। वे . सम्राट के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए भी तैयार रहते थे। परन्तु दीन-ए-इलाही अधिक लोकप्रिय न हो सका। अकबर ने इसके प्रचार के लिए भी कोई विशेष पग न उठाया। परिणामस्वरूप अकबर की मृत्यु के साथ ही इस धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 13.
अकबर की राजपूतों के प्रति नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
अकबर की राजपूत नीति उसकी राजनीतिक बुद्धिमता का प्रमाण थी। वह जानता था कि राजपूतों के सहयोग के बिना वह राष्ट्रीय शासक नहीं बन सकता। अतः उसने राजपूतों के प्रति मित्रता और सहनशीलता की नीति अपनाई। उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किए, राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया और उनको धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने अम्बर (जयपुर) के राजा बिहारीमल, बीकानेर तथा जैसलमेर के राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। भगवान् दास, मानसिंह, उदय सिंह आदि राजपूत अकबर के समय के उच्च सैनिक अधिकारी थे। उसने न तो राजपूतों के पवित्र मन्दिरों को तोड़ा और न ही अपने किसी युद्ध को जिहाद (धर्मयुद्ध) का नाम दिया। अकबर की राजपूत नीति का यह परिणाम हुआ कि राजपूत अकबर के मित्र बन गए। इस हिन्दू-मुस्लिम सहयोग के कारण ही अकबर आगे चलकर राष्ट्र-निर्माण के उद्देश्य में सफल हो सका।

प्रश्न 14.
एक शासक के रूप में जहांगीर के प्रमुख कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
जहांगीर अपने पिता अकबर की मृत्यु के बाद 1605 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। उसने मेवाड़ के साथ चले आ रहे लगभग 40 वर्षों के संघर्ष को समाप्त किया। उसने बंगाल में शान्ति स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की। 1622 ई० में उसका स्वास्थ्य गिर जाने के कारण राजनीति की बागडोर उसकी पत्नी नूरजहां के हाथ आ गई जिसके साथ उसने 1611 ई० में विवाह किया था। जहांगीर को अपने दूसरे पुत्र खुर्रम (शाहजहां) के विद्रोह के कारण कन्धार का किला भी खोना पड़ा। तत्पश्चात् उसे अपने एक सरदार महावत खां के विद्रोह में उलझना पड़ा जहां से उसे नूरजहां ने बचाया। उसने अकबर द्वारा स्थापित मनसबदारी प्रणाली में कुछ परिवर्तन किए। उदाहरण के लिए उसने सवार के औसत वेतन को घटा दिया और इस प्रणाली में दुअस्पाह-सिह-अस्पाह व्यवस्था का समावेश किया। इस नई व्यवस्था के अनुसार इस पदवी के मनसबदार को उसके सवार की पदवी के आधार पर निश्चित सैनिकों से दुगुने सैनिक रखने पड़ते थे। इसके लिए उसे वेतन भी दुगुना ही दिया जाता था। 1627 ई० में जहांगीर की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 15.
नूरजहां पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
नूरजहां का असली नाम मेहरून्निसा था। वह एक ईरानी सरदार ग्यासबेग की पुत्री थी। ग्यासबेग काम की तलाश में भारत आ रहा था। काफिले के सरदार मलिक मसऊद की सहायता से ग्यासबेग को अकबर के दरबार में छोटी-सी नौकरी मिल गई। 1595 ई० में मेहरून्निसा का विवाह एक ईरानी नवयुवक अली कुली खां से हो गया। अली कुली खां को सलीम से शेर अफ़गान की उपाधि भी प्राप्त हुई। सलीम जब राजा (जहांगीर) बना तो उसने शेर अफ़गान को बर्दवान का सूबेदार बना दिया। परन्तु 1607 ई० में शेर अफ़गान का वध कर दिया गया। इसके चार वर्ष बाद जहांगीर ने नूरजहां से स्वयं विवाह कर लिया। नूरजहां एक कुशल स्त्री थी। उसने शासन में काफ़ी अधिकार प्राप्त कर लिए। धीरे-धीरे शासन के सभी कार्य वह स्वयं करने लगी। प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिंस्टन के मतानुसार, “नूरजहां बड़ी तीव्र बुद्धि की स्त्री थी जिसने फर्नीचर, आभूषणों तथा नवीन वेशभूषा का आविष्कार किया।”

प्रश्न 16.
शासक के रूप में शाहजहां के कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां अपने पिता जहांगीर की मृत्यु के बाद 1628 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। अगले ही वर्ष उसने कन्धार पर फिर से मुगलों का अधिकार स्थापित किया, परन्तु लगभग 20 वर्ष बाद ईरानियों ने इस प्रदेश को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। कन्धार के बाद शाहजहां ने मध्य एशिया में बल्ख और बदख्शां को विजय करने का प्रयत्न किया, परन्तु कन्धार की भान्ति ये प्रदेश भी मुग़ल राज्य का स्थायी अंग न बन सके। शाहजहां ने कला तथा प्रशासन के क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की। उसके द्वारा बनवाए गए आगरा तथा दिल्ली के भवन कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। उसने मनसबदारी प्रथा में एक परिवर्तन किया। अब प्रत्येक सरकार को अपनी सवार पदवी के आधार पर निश्चित संख्या के एक-तिहाई सवारों को रखना पड़ता था। कुछ परिस्थितियों में यह संख्या एक-चौथाई अथवा पांचवां भाग भी होती थी। शाहजहां ने अपनी सेना को भी सुदृढ़ बनाया। 1666 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 17.
औरंगजेब की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और वह सुन्नी सम्प्रदाय के अतिरिक्त किसी भी धर्म को फलता-फूलता नहीं देख सकता था। अतः उसने सभी गैर-मुस्लिम सम्प्रदायों के विरुद्ध असहनशीलता की नीति अपनाई। उसने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर नष्ट-भ्रष्ट कर दिए और उन पर लगे करों में वृद्धि कर दी। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ नामक धार्मिक कर भी फिर से लेना आरम्भ कर दिया। 1671 ई० में एक आदेश द्वारा उसने प्रशासन में नियुक्त सभी हिन्दुओं को उनके पदों से हटा दिया। उसने उनके उत्सवों पर भी रोक लगा दी और इस बात की मनाही कर दी कि कोई भी हिन्दू पालकी में बैठकर नहीं जा सकता। इतना ही नहीं, उसने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए बल और प्रलोभन दोनों का प्रयोग किया। उसके इन कार्यों से सभी हिन्दू जातियां मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध हो गईं और स्थान-स्थान पर विद्रोह होने लगे। फलस्वरूप सारा प्रशासनिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया।

प्रश्न 18.
औरंगजेब की राजपूत नीति क्या थी और इसके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
राजपूतों के प्रति औरंगजेब की नीति अकबर की नीति के बिल्कुल विपरीत थी। अकबर ने उन्हें सीने से लगाया, परन्तु औरंगजेब ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा। उसने अपने दो राजपूत सेनानायकों राजा जसवन्त सिंह तथा राजा जयसिंह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। राजा जयसिंह को उसने विष दिलवा दिया और जसवन्त सिंह को अटक के पार भेज कर मौत के मुंह में धकेल दिया। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जसवन्त सिंह की जमरूद में मृत्यु हो गई और मुग़लों ने बड़ी सरलता से जोधपुर पर अधिकार कर लिया। वहां फौजदार, किलादार, कोतवाल तथा अमीन के पदों पर मुसलमानों को नियुक्त कर दिया गया। औरंगज़ेब राजा जसवन्त सिंह के पुत्र अजीत सिंह को अपने अधिकार में रखना चाहता था। इसलिए औरंगज़ेब और मारवाड़ में एक लम्बा युद्ध चला, जिसमें मेवाड़ का राजा भी सम्मिलित हो गया। औरंगज़ेब का अपना पुत्र अकबर भी राजपूतों से मिल गया। औरंगज़ेब की राजपूत नीति के कारण राजपूत मुग़ल साम्राज्य के कट्टर विरोधी हो गए थे। उनकी यह शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के विनाश का कारण बनी।

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प्रश्न 19.
औरंगजेब की दक्षिण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को दक्षिण की शिया रिसायतों का अस्तित्व पसन्द नहीं था। वह मराठों की शक्ति को भी कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने गोलकुण्डा राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1687 ई० में वह इस राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को अपने अधीन कर लिया। दक्षिण में मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शम्भा जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
औरंगज़ेब भारत का राज्य लेने में किस तरह सफल हुआ ?
उत्तर-
1657 ई० में अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर औरंगजेब ने बड़ी चालाकी से काम लिया। वह उस समय दक्षिण का सूबेदार था। उसने अपने भाई मुराद को, जो उस समय गुजरात का सूबेदार था, आधे राज्य का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। दोनों की संयुक्त सेनाएं आगरा की ओर बढ़ीं। मार्ग में उन्होंने राजा जसवन्त सिंह को हराया और फिर सामूगढ़ के मैदान में अपने बड़े भाई दारा को पराजित किया। तत्पश्चात् औरंगज़ेब ने अपने भाई मुराद को शराब पिला कर बन्दी बना लिया और ग्वालियर के किले में कैद कर लिया। बाद में उसे फांसी दे दी गई। उसने अपने पिता शाहजहां को भी कैद कर लिया। कुछ समय पश्चात् उसने दारा और उसके पुत्र सुलेमान शिकोह को मरवा दिया। इसी बीच उसके भाई शुजा का अराकान में वध हो चुका था। इस प्रकार अपने सभी शत्रुओं से मुक्त हो कर औरंगज़ेब भारत की राजगद्दी प्राप्त करने में सफल रहा।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर के प्रारम्भिक जीवन, उसकी विजयों और चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रारम्भिक जीवन-बाबर का जन्म 1483 ई० को फरगाना की राजधानी अन्दीजन में हुआ। उसका पिता उमर शेख मिर्जा फरगाना का शासक था। जब बाबर 11 वर्ष का था तो उसके पिता का देहान्त हो गया। आरम्भ में बाबर ने तैमूर की राजधानी समरकन्द को जीतने का प्रयत्न किया, परन्तु वह इसमें असफल रहा। इस चक्कर में उसकी पैतृक सम्पत्ति फरगाना भी उनसे छिन गई। इतना होने पर भी बाबर ने साहस नहीं छोड़ा। 1504 ई० में उसने काबुल और गज़नी पर अधिकार कर लिया और अपने राज्य की स्थापना की।

बाबर की भारत-विजय-काबुल और गज़नी में राज्य स्थापित करने के पश्चात् बाबर ने भारत को विजय करने की योजना बनाई। आरम्भ में उसने कई भारतीय प्रदेशों पर आक्रमण किए, परन्तु उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण लड़ाई दिल्ली के शासक इब्राहीम लोधी के विरुद्ध थी। यह लड़ाई 1526 ई० में पानीपत के मैदान में हुई। बाबर के तोपखाने के सामने इब्राहिम लोधी की सेना न टिक सकी। इस युद्ध में इब्राहीम लोधी मारा गया और बाबर विजयी हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने दिल्ली और आगरा पर भी अधिकार कर लिया।

दिल्ली विजय के पश्चात् बाबर को राजपूत शासक राणा सांगा से टक्कर लेनी पड़ी। 1527 ई० में आगरा के समीप कनवाहा नामक गांव में बाबर और राणा सांगा के बीच भयंकर युद्ध हुआ। राणा सांगा अन्त में मैदान छोड़कर भाग निकला और बाबर को विजय प्राप्त हुई। 1529 ई० में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़गानों को परास्त किया। इस प्रकार भारत पर बाबर का अधिकार हो गया।

बाबर का चरित्र-बाबर एक सफल शासक तथा अनुभवी सैनिक था। वह विद्वान् और कला-प्रेमी था। इसके अतिरिक्त वह बड़ा साहसी और धैर्यवान था। कठिनाइयों में वह कभी नहीं घबराया। एक व्यक्ति के रूप में भी उसका चरित्र बड़ा प्रभावशाली था। वह एक अच्छा पिता, दयालु स्वामी तथा उदार मित्र था। वह हंसमुख और मिलनसार था। वह सदा अपने से बड़ों का आदर तथा छोटों से प्रेम करता था। इन गुणों के बावजूद बाबर में शराब तथा विषय-भोग जैसे अवगुण भी थे। परन्तु यह अवगुण उसके कर्त्तव्यपालन के मार्ग में कभी बाधा नहीं बन पाये। सच तो यह है कि भारतीय इतिहास में बाबर को एक बहुत उच्च स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 2.
बाबर के पश्चात् हुमायूं के सामने कौन-कौन सी कठिनाइयां थीं ?
उत्तर-
1530 ई० में बाबर की मृत्यु के पश्चात् हुमायूं राजसिंहासन पर बैठा। परन्तु गद्दी पर बैठते ही उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का वर्णन इस प्रकार है :

1. अस्थिर और अव्यवस्थित राज्य-हुमायूं को उत्तराधिकार में एक ऐसा राज्य मिला जो न तो सुदृढ़ था और न ही सुव्यवस्थित। बाबर ने न तो बंगाल को अपने अधीन किया था और न ही गुजरात को। राजपूत बाबर से पराजित अवश्य हुए थे, परन्तु उनकी शक्ति को पूर्णतः कुचला नहीं गया था। इस प्रकार हुमायूं चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था।

2. विभाजित राज्य-राजगद्दी पर बैठते ही हुमायूं ने राज्य को अपने तीन भाइयों में बांट दिया। उसके तीनों भाई बड़े ही अयोग्य थे। उन्होंने हुमायूं की सहायता करने की बजाय उसके मार्ग में बाधाएं डालनी आरम्भ कर दी।

3. अफ़गानों का विरोध-पानीपत तथा घाघरा की लड़ाई में परास्त होकर भी अफ़गान शक्ति नष्ट नहीं हुई थी। बड़ेबड़े अफ़गान सरदार दिल्ली के सिंहासन को वापस लेना चाहते थे। प्रसिद्ध अफगान सरदार शेर खां तो हुमायूं के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया था।

4. खाली राजकोष-हुमायूँ के पिता बाबर ने अपनी उदारता के कारण अपना काफ़ी सारा धन व्यर्थ में व्यय कर दिया। फलस्वरूप हुमायूँ को एक ऐसा राजकोष मिला जो लगभग खाली हो चुका था। धन के अभाव में हुमायूँ के लिए शासन चलाना सरल नहीं था।

5. विश्वासपात्र सैनिकों का अभाव हुमायूं की सेना में किसी एक जाति के लोग नहीं थे। उसमें चुगताई, तुर्क, उजबेग, मुग़ल, अफ़गान और ईरानी सभी लोग शामिल थे। परिणामस्वरूप सेना में एकता का बड़ा अभाव था। सैनिक संगठन की कमी के कारण हुमायूं की कठिनाइयां और भी बढ़ गईं।

6. व्यक्तिगत दोष-हुमायूँ बड़ा ही विलासी व्यक्ति था। वह हर समय अफीम खाकर मस्त रहता था। शेर खां और बहादुरशाह जब उसके लिए खतरा बने हुए थे तो उसने अपना कीमती समय रंगरलियों में खो दिया। परिणामस्वरूप उसके शत्रुओं को शक्ति बढ़ाने को अवसर मिल गया।
इस प्रकार हुमांयू जीवन-भर इन कठिनाइयों से घिरा रहा। उसने अपनी भूलों से अपनी कठिनाइयों को और अधिक बढा दिया।

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प्रश्न 3.
शासक के रूप में हुमायूं की असफलता के क्या कारण थे ?
अथवा
हुमायूँ की भूलों का वर्णन करो।
उत्तर-
हुमायूं अपनी निम्नलिखित भूलों के कारण शासक के रूप में असफल रहा :

1. हुमायूं द्वारा राज्य का मूर्खतापूर्ण विभाजन-गद्दी पर बैठते ही हुमायूं के कदम लड़खडा गये। उसने अपने भाइयों में राज्य का विभाजन राज्य के हितों को ध्यान में रखकर न किया, बल्कि अपने भाइयों की इच्छाओं को ध्यान में रखकर किया। उसने कामरान को काबुल तथा कन्धार, अस्करी को सम्भल और हिन्दाल को अलवर का शासक बना दिया। शीघ्र ही उसे अपनी भूल के परिणाम भुगतने पड़े। कामरान कुछ ही दिनों में अपने असली रूप में प्रकट हुआ। वह हुमायूं को राज्याभिषेक पर बधाई देने की आड़ में पंजाब की ओर बढ़ आया और वहां अपना अधिकार जमा लिया। इससे हुमायूं का आधा राज्य जाता रहा और उसकी सैनिक शक्ति काफ़ी दुर्बल हो गई। उसके अन्य भाइयों ने भी उसके लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न की।

2. समय तथा धन की बर्बादी-हुमायूँ समय तथा धन के महत्त्व को नहीं समझता था। उसने अपने आरम्भिक वर्षों में दिल्ली तथा आगरा में धन को पानी की तरह बहाया। उसने राज्याधिकारियों को बहुमूल्य पुरस्कार दिए। “उसने अपना काफ़ी समय और धन दिल्ली में एक विशाल दुर्ग बनाने की योजना में नष्ट किया।” यह सब काम उसने उस समय किया जब गुजरात का बहादुरशाह उसके शत्रुओं को पनाह दे रहा था और अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ था। समय और धन की यह बर्बादी हुमायूं की दूसरी बड़ी भूल थी।

3. गुजरात अभियान की भूलें-गुजरात अभियान में हुमायूं ने अनेक भूलें कीं। उसने रानी कर्णवती की पेशकश को ठुकरा कर राजपूतों की मित्रता से हाथ धो लिया। उसका समय पर बहादुरशाह पर आक्रमण न करना भी उसकी भूल थी। जब बहादुरशाह कर्णवती के विरुद्ध उलझा हुआ था तो हुमायूं रंगरलियों में डूब गया। फिर जब हुमायूं ने बहादुरशाह का पीछा किया तो उसका वध किए बिना ही वापस लौट आया। यह उसकी बड़ी भूल थी, क्योंकि कुछ समय के पश्चात् बहादुरशाह दियु से लौटकर हुमायूं के लिए समस्या बन गया। उसे गुजरात का शासन अस्करी को नहीं सौंपना चाहिए था। अस्करी न तो इतना योग्य था और न ही हुमायूँ का स्वामिभक्त । अतः उसके अधीन गुजरात की शासन-व्यवस्था बिगड़ गई और यह प्रान्त मुग़लों के हाथों से निकल गया।

4. शेर खां के विरुद्ध संघर्ष में उसकी भूल- शेर खां के विरुद्ध अभियान में भी हुमायूँ ने अनेक भूलें कीं। उसने चुनार पर घेरा डालकर गौड़ खो दिया। फिर गौड़ की रंगीनियों में डूबकर आगरा जाने वाला मार्ग छिनवा बैठा। गौड़ की वापसी पर भी उसने सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया। चौसा के मैदान में काफ़ी समय पड़ा रहना हुमायूं की भारी भूल थी। उसे शीघ्रातिशीघ्र आगरा पहुंचना चाहिए था। चौसा के मैदान में उसने पहरेदारी का काम एक विश्वासघाती को सौंप रखा था। शेर खां ने सोये हुए मुग़ल सैनिकों पर पौ फटने से पहले ही आक्रमण किया था। हुमायूं को इसकी कोई खबर तक न हुई। उसे तो स्वयं नदी में कूद कर अपनी जान बचानी पड़ी। हुमायूं की इन भूलों ने उसे भारत छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 4.
“शेरशाह सूरी योग्यता तथा कूटनीति में अकबर का. अग्रगामी था।” कोई पांच तर्क देकर व्याख्या कीजिए।
अथवा
शेरशाह सूरी को अकबर का अग्रगामी कहना कहां तक उचित है ?
उत्तर-
शेरशाह तथा अकबर में वही सम्बन्ध था जो मार्गदर्शक तथा मार्ग पर चलने वालों में होता है। शेरशाह ने मार्ग तैयार किया। अकबर उस मार्ग पर चला भी और उसने वह मार्ग संवारा भी। निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जायेगा कि शेरशाह अकबर का अग्रगामी था :

1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी ने उच्च राजकीय आदर्श स्थापित किए। वह कभी भोग-विलास में अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कड़ा परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बाँटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को अपनाया। अन्तर केवल दोनों के समय के अधिकारियों और प्रशासनिक इकाइयों के नामों में था।

3. भूमि-कर-प्रबन्ध-शेरशाह ने भूमि की पैमाइश करवाई, उपज को तीन श्रेणियों में बाँटा, एक-चौथाई भूमि-कर नियत किया तथा किसानों की सुविधा के लिए अनेक अन्य पग उठाये। अकबर ने भी शेरशाह की भूमि-प्रणाली को अपनाया, उसने भूमि को बाँसों के गजों से नपवाया और भूमि को चार भागों में बांटा। उसने किसानों को भी सुविधाएं प्रदान की।

4. धार्मिक सहनशीलता-धार्मिक सहनशीलता में भी शेरशाह सूरी ने अकबर का पथ-प्रदर्शन किया। शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसनें हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई थी। अकबर ने तो क्षेत्र में एक नवीन आदर्श स्थापित किया। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ लेना बन्द कर दिया और उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त किया।

5. सैनिक प्रबन्ध-सैनिक संगठन में भी शेरशाह सूरी अकबर का अग्रगामी था। अकबर ने शेरशाह की भान्ति स्थायी

6. मुद्रा-प्रणाली-शेरशाह ने मुद्रा-प्रणाली में प्रशासकीय सुधार किए। अकबर ने भी उसी द्वारा प्रचलित मुद्रा-प्रणाली को . अपनाया, परन्तु आवश्यकतानुसार उसका थोड़ा-सा रूप बदल दिया।

7. भवन-निर्माण कला-अकबर को भवन बनवाने का बड़ा चाव था, परन्तु इसकी प्रेरणा भी उसने शेरशाह सूरी से ही ली थी। शेरशाह ने सहसराम का मकबरा बनवाकर भवन-निर्माण में योगदान दिया था। अकबर ने भी अनेक सुन्दर भवन बनवाये। फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाज़ा, “जामा मस्जिद’, रानियों के महल तथा अन्य भवन उसने शेरशाह से प्रेरित होकर ही बनवाये थे।

8. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अनेक प्रजा-हितार्थ कार्य किये। उसने कई सड़कें बनवाईं। सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाये और यात्रियों की सुविधा के लिए सरायों की व्यवस्था की। शेरशाह सूरी का अनुकरण करते हुए अकबर ने भी ये सभी प्रजा-हितार्थ कार्य किए। उसने कुछ सामाजिक सुधार भी किए।

9. सच तो यह है कि शेरशाह सूरी ने लगभग हर क्षेत्र में अकबर का मार्ग-दर्शन किया। डॉ० कानूनगो के शब्दों में, “शेरशाह ने अपने प्रशासकीय तथा आर्थिक सुधारों और सहनशील धार्मिक नीति द्वारा अकबर की महानता की नींव रखी।” (“Sher Shah laid the foundaitons of Akbar’s greatness by his administrative and economic reforms and the policy of religious toleration.”) अतः उसे अकबर का अग्रसर कहना उचित ही है।

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प्रश्न 5.
“अकबर ने सारे उत्तरी भारत को एकता के सूत्र में बांध दिया।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
अकबर की
(क) उत्तरी भारत तथा
(ख) दक्षिणी भारत की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अकबर एक महान् विजेता था। वह 1556 ई० में राजगद्दी पर बैठा। अल्प आयु होने के कारण बैरम खां ने उसका संरक्षण किया और उसके लिए अनेक प्रदेश विजय किए। उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को पराजित करके दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने मेवात को भी विजय किया। सिकन्दर सूरी की सेना ने उसके सामने आत्म-समर्पण कर दिया। तत्पश्चात् अकबर ने निम्नलिखित प्रदेश विजय किये :- .

(क) उत्तरी भारत की विजय-
1. मालवा की विजय-1560 ई० में अकबर ने मालवा पर विजय प्राप्त की और मालवा का प्रदेश पीर मुहम्मद को सौंप दिया गया। परन्तु पीर मुहम्मद शासन चलाने में असफल रहा और वहां के शासक बाज बहादुर ने मालवा को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। 1562 ई० में अकबर ने उसके विरुद्ध एक बार फिर विशाल सेना भेजी। इस बार वह मालवा पर पूर्ण विजय प्राप्त करने में सफल रहा।

2. राजपूताना की विजय-1562 ई० में अकबर ने राजपूताना पर आक्रमण कर दिया। आमेर के राजा बिहारीमल ने शीघ्र ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अपनी बेटी का विवाह भी अकबर से कर दिया। इसके साथ कई अन्य राजपूत शासकों ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली, जैसे-कालिन्जर, मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर आदि।

3. मेवाड़ से संघर्ष-मेवाड़ का शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहता था। 1568 ई० में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। परन्तु फिर भी महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। वह अन्त तक मुग़लों से संघर्ष करता रहा।

4. गुजरात पर विजय-1572-73 ई० में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त कर ली।

5. बिहार-बंगाल की विजय-1574-76 ई० में अकबर ने अफ़गानों को पराजित करके बिहार और बंगाल पर विजय प्राप्त कर ली।

6. अन्य विजयें-अकबर ने धीरे-धीरे कश्मीर, सिन्ध, उड़ीसा, बिलोचिस्तान तथा कन्धार पर भी विजय प्राप्त कर ली।

(ख) दक्षिणी भारत की विजयें उत्तरी भारत में अपनी शक्ति संगठित कर अकबर ने दक्षिणी भारत की ओर ध्यान दिया। दक्षिण में उसने निम्नलिखित विजयें प्राप्त की :

  • बीजापुर तथा गोलकुण्डा की विजय-1591 ई० में अकबर ने बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर विजय प्राप्त कर ली।
  • खानदेश की विजय-1601 ई० में खानदेश के सुल्तान अली खां ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • अहमदनगर पर अधिकार-1600 ई० में अकबर की सेनाओं ने अहमदनगर की संरक्षिका चांद बीबी को परास्त कर दिया तथा अहमदनगर पर विजय पा ली।
  • बरार पर अधिकार-अकबर ने दक्षिणी भारत के बरार प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार अकबर ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 6.
“शाहजहां के राज्यकाल को मुगल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है।” आप इस विचार से कहां तक सहमत हैं ?
अथवा
मुगलकालीन इतिहास को शाहजहां की क्या देन थी ? किन्हीं पांच देनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां महान् मुग़ल शासकों में से एक था। उसके राज्य को मुग़ल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है। शाहजहां के काल में देश में चारों ओर शान्ति और समृद्धि थी तथा कला के हर क्षेत्र में अतुलनीय प्रगति हो रही थी। हिन्दू और मुसलमानों में एकता थी तथा व्यपार और वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। इन सभी बातों के कारण शाहजहां के काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। इसका विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है :-

1. पूर्ण शान्ति-शाहजहां के शासन काल मे सब ओर शान्ति का वातावरण था। राजपूत राज्य के शुभचिन्तक थे। उत्तरपश्चिम में कन्धार को छोड़कर शेष सम्पूर्ण मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह सुरक्षित था। दक्षिण की ओर से अब कोई भय न था। इस काल में अहमदनगर भी मुग़ल साम्राज्य में मिल चुका था। पुर्तगालियों की शक्ति का भी पतन हो रहा था परंतु उनका स्थान किसी अन्य शक्तिशाली यूरोपीय जाति ने अभी नहीं लिया था। तात्पर्य यह कि शाहजहां के राज्य में पूर्ण सुख-शान्ति थी और देश आन्तरिक विद्रोहों तथा विदेशी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित था। .

2. अच्छी आर्थिक अवस्था तथा समृद्धि-देश में सुख और शान्ति बने रहने के कारण लोग अपने-अपने व्यवसायों में जुटे हुए थे। इस प्रकार उनकी आर्थिक दशा बहुत सुदृढ़ हो रही थी। राज्य प्रबन्ध अकबर के समय से ही बहुत अच्छा था।

3. भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में उन्नति-शाहजहां का शासनकाल भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में अनुपम उन्नति के लिए विशेषकर प्रसिद्ध है। उसने आगरा, दिल्ली और कई अन्य स्थानों पर सुन्दर भवनों का निर्माण करवाया। ताजमहल इस काल की एक अनूठी कृति थी। यह प्रसिद्ध मकबरा सम्राट ने अपनी प्यारी मलिका मुमताज महल की याद में बनवाया था और यह अब भी विश्व में दाम्पत्य-प्रेम और अनुराग का एक अद्वितीय स्मारक है। ताज के अतिरिक्त आगरा में स्थित मोती मस्जिद और दिल्ली में जामा मस्जिद तथा दीवाने खास शाहजहां के कुछ अन्य शानदार भवन हैं। सम्राट् ने लगभग एक करोड़ की लागत से प्रसिद्ध तख्ते-ताऊस का निर्माण भी करवाया।

4. अन्य ललित कलाओं का विकास-चित्रकला तथा संगीत कला को शाहजहां के काल में काफ़ी प्रोत्साहन मिला। उसके शासनकाल का सबसे प्रसिद्ध चित्रकार मुहम्मद नादिर समरकन्दी था। उसके दरबार के सर्वप्रसिद्ध संगीतकार थे जगन्नाथ, महापतेर, राम दास. और लाल खां जो तानसेन का जमाता था। शाहजहां के काल में साहित्य भी किसी अन्य कला से पीछे नहीं था। उसके दरबार में काज़बीकी, अब्दुल हमीद लाहौरी, पीर अबुल कासिम ईरानी, मिर्जा जयाबुद्दीन, शेख बहलोल कादरी आदि बड़े-बड़े विद्वान् थे। इन मुसलमान विद्वानों के अतिरिक्त इस काल में बहुत से हिन्दू विद्वान् भी थे, जैसे सुन्दरदास, चिन्तामणि, कवीन्द्राचार्य और जगन्नाथ।

5. सबके लिए एस समान न्याय-शाहजहां बड़ा न्यायप्रिय शासक था। न्याय करते समय वह बड़े-बड़े अधिकारियों को भी दोषी होने पर क्षमा नहीं करता था। उसके काल में दण्ड बड़े कठोर थे। इसलिए अपराध करने का किसी को साहस नहीं होता था।”

6. व्यापार और वाणिज्य में उन्नति-शाहजहां के काल में व्यापार तथा वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। विदेशों के साथ भारत का व्यापार काफ़ी उन्नति पर था। परिणामस्वरूप बहुत-सा विदेशी धन भारत में आने लगा।

7. प्रजा हितार्थ कार्य-शाहजहां ने प्रजा की भलाई के लिए बहुत से तालाब, नहरें, सड़कें, पुल तथा सराएं आदि बनवाईं। उसने लाहौर के निकट के खेतों की सिंचाई के लिए एक लाख रुपए के व्यय से रावी नदी से एक बड़ी नहर निकलवाई और फिरोजशाह तुग़लक द्वारा बनवाई गई पश्चिमी यमुना नहर की मुरम्मत करवाई। शाहजहां के राजकीय इतिहासकार अब्दुल हमीद के अनुसार शाहजहां ने अकाल पीड़ितों की खुले दिल से सहायता की, मुफ्त लंगर खुलवाये और लोगों के लगान माफ कर दिए। इन सब बातों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि शाहजहां का काल वास्तव में ही मुग़ल इतिहास का स्वर्ण युग था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

प्रश्न 7.
औरंगजेब की राजपूत नीति तथा उसके परिणामों की व्याख्या कीजिए। उसकी यह नीति मुग़ल साम्राज्य के पतन के लिए कहां तक उत्तरदायी थी ?
अथवा
औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति कैसी नीति अपनाई ? उसकी यह नीति मुगल साम्राज्य के लिए किस प्रकार घातक सिद्ध हुई ?
उत्तर-
औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसके हृदय में राजपूतों के लिए कोई प्रेम नहीं था। वह राजपूतों को अपने दरबार मे उच्च पद देने के पक्ष में नहीं था। परन्तु जब तक दो वीर राजपूत-सरदार मिर्जा राजा जयसिंह तथा जसवन्त सिंह राठौर-जीवित रहे, उसने राजूपतों के विरुद्ध कोई कठोर पग न उठाया। उनकी मृत्यु के पश्चात् औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति दमन की नीति अपनाई। औरंगज़ेब की राजपूतों के प्रति ऐसी नीति और उसके परिणामों का वर्णन इस प्रकार है :-

जसवन्त सिंह की मृत्यु-जसवन्त सिंह राठौर मारवाड़ का शासक था। वह शाहजहां के राज्यकाल में मुग़ल दरबार का मनसबदार था। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जमरूद में जसवन्त सिंह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु के पश्चात औरंगजेब के लिए मारवाड़ पर अधिकार करना सरल हो गया। औरंगज़ेब ने जसवन्त सिंह के सिंहासन पर नागौड़ के राजपूत सरदार इन्द्र सिंह को बिठाया। उसे 36 लाख रुपए दिए गए और वह अपने यहां मुसलमान अधिकारी रखने के लिए राजी हो गया। परन्तु शीघ्र ही औरंगज़ेब के इस कार्य का विरोध होने लगा।

अजीत सिंह तथा दुर्गादास-औरंगज़ेब जसवन्त सिंह के नवाजात शिशु अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। उसने अजीत सिंह को दिल्ली में ही कैद कर लिया। परन्तु दुर्गादास राठौर के प्रयत्नों से जसवन्त सिंह की दोनों रानियां और अजीत सिंह जोधपुर पहुंचने में सफल हुए।

मारवाड़ पर आक्रमण-मारवाड़ की जनता ने अजीत सिंह के पक्ष में विद्रोह कर दिया और इन्द्र सिंह को शासक मानने से इन्कार कर दिया। औरंगज़ेब ने अपने पुत्र अकबर को मेवाड़ पर अक्रमण करने का आदेश दिया। इस युद्ध में राजपूत पराजित हुए और इस प्रकार मारवाड़ फिर मुग़लों के अधिकार में आ गया। विवश होकर राजपूतों ने पर्वतों तथा वनों में आश्रय लिया और यहीं से उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा।

मेवाड़ तथा मारवाड़ का संगठन-मारवाड़ के पतन से मेवाड़ के राणा को बड़ा दुःख हुआ। उसने राठौरों और वीर सिसौदियों के साथ मुग़लों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया, परन्तु औरंगजेब की विशाल सेना के समक्ष यह संयुक्त मोर्चा विफल साबित हुआ। राजपूतों ने अब मुग़लों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई और काफ़ी सीमा तक सफल भी रहे।

अकबर का राजपूतों से गठजोड़ तथा विद्रोह-राजकुमार अकबर राजपूतों के सहयोग से दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने औरंगज़ेब के प्रति विद्रोह कर दिया। राजपूतों ने अकबर को हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया। परन्तु यह मित्रता ज्यादा दिनों तक नहीं चली। औरंगज़ेब राजपूतों और अकबर के मध्य फूट डालने में सफल रहा।

उदयपुर की सन्धि-24 जून, 1681 ई० को औरंगज़ेब और मेवाड़ के राणा जयसिंह के बीच एक सन्धि हुई। इस सन्धि के अनुसार राजपूतों ने मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी सहायता न करने का वचन दिया। जयसिंह को मेवाड़ का महाराणा मान लिया गया। उसे पांच हज़ारी मनसबदार भी नियुक्त किया गया।

उदयपुर की सन्धि के बाद भी राजपूतों ने मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। पहले दुर्गादास और फिर अजीत सिंह के नेतृत्व में उनका संघर्ष चलता रहा। 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् अजीत सिंह ने जोधपुर के मुग़ल सूबेदार को मार भगाया और स्वयं मारवाड़ का स्वतन्त्र शासक बना।

राजपूत नीति के परिणाम-

  1. राजभक्त राजपूत मुग़लों के शत्रु बन गए। उनकी शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।
  2. राजस्थान की शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। वहां की अव्यवस्था से पड़ोसी मुग़ल प्रदेश में अराजकता फैल गई।
  3. राजपूतों की मित्रता से वंचित होने के कारण सम्राट को अन्य अभियानों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
  4. साम्राज्य को जन और धन की अपार हानि उठानी पड़ी।
  5. शाही प्रतिष्ठा को भारी ठेस लगी। राजपूतों के आकस्मिक हमलों ने मुग़ल साम्राज्य की जड़ें खोखली करने का कार्य किया।

सच तो यह है कि औरंगजेब की राजपूत नीति महान् राजनीतिक आदर्शों से प्रेरित न थी। उनका सहयोग प्राप्त करके मुग़ल साम्राज्य को सुदृढ़ करने के स्थान पर उसने राजपूतों को अपना शत्रु बना लिया। राजपूतों की मित्रता के कारण मुग़ल साम्राज्य सशक्त बना था और उनकी शत्रुता के कारण मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ।

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प्रश्न 8.
शेरशाह सूरी के शासन-प्रबन्ध अथवा प्रशासनिक सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
शेरशाह सूरी एक योग्य एवं प्रजाहितकारी शासक था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शेरशाह एक योग्य शासक था। उसने केवल पांच वर्ष राज्य किया। इतने कम समय में उसने इतना अच्छा राज्य प्रबन्ध किया कि इतिहास में उसका नाम अमर हो गया। उसके शासन-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :-

1. केन्द्रीय शासन-केन्द्रीय शासन का मुखिया शेरशाह स्वयं था। सारे काम उसकी आज्ञा से होते थे। उसकी सहायता के लिए अनेक मन्त्री भी थे। वह लोगों की भलाई का ध्यान रखता था। वह राज्य का भ्रमण करके लोगों की शिकायतें सुनता था। प्रजा उससे बड़ी प्रसन्न थी।

2. प्रान्तीय शासन-शेरशाह ने अपने राज्य को अनेक प्रान्तों में बांटा हुआ था। प्रान्तों को सरकारों अथवा ज़िलों में विभक्त किया गया था। प्रत्येक सरकार परगनों में बंटी हुई थी। शासन की इन इकाइयों में शेरशाह ने बड़े योग्य अधिकारी नियुक्त किए हुए थे। गांव के प्रबन्ध के लिए पंचायतें थीं।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना 1

3. भूमि प्रबन्ध-शेरशाह ने सारे राज्य की भूमि की पैमाइश करवाई और उपज के आधार पर इसे तीन भागों में . बांटा-उत्तम, मध्यम तथा निम्न। उपज के आधार पर ही भूमिकर नियत किया गया जो उपज का एक-तिहाई भाग होता था।

4. कृषकों से अच्छा व्यवहार-शेरशाह सदा कृषकों की भलाई का ध्यान रखता था। उन्हें अकाल के दिनों में ऋण दिया जाता था। शेरशाह ने अपने सैनिकों को चेतावनी दी हुई थी कि वे चलते समय किसी कृषक की फसल को हानि न पहुँचाएं।

5. पुलिस-जनता के धन-माल तथा जीवन की रक्षा के लिए शेरशाह सूरी ने पुलिस की उत्तम-व्यवस्था की। अंपराधों के लिए स्थानीय अधिकारी स्वयं ज़िम्मेदार होते थे।

6. गुप्तचर विभाग-शेरशाह ने देश में गुप्तचर विभाग स्थापित किया। गुप्तचर राजा को सभी घटनाओं से सूचित करते रहते थे।

7. न्याय-शेरशाह एक प्रसिद्ध सम्राट् था। न्याय करते समय छोटे-बड़े या अमीर-ग़रीब का भेदभाव नहीं रखा जाता था। उसके दण्ड बड़े कठोर थे। दण्ड देते समय वह अपने सरदारों और निकट सम्बन्धियों को भी नहीं छोड़ता था।

8. सड़कों का निर्माण तथा डाक व्यवस्था-शेरशाह सूरी ने पुरानी सड़कों की मुरम्मत करवाई और नई सड़कों का निर्माण करवाया। उसकी बनवाई हुई सड़कों में से पहली सड़क पेशावर से सुनार गांव तक जाती है। दूसरी आगरा से बुरहानपुर तक जाती थी। तीसरी सड़क आगरा से जोधपुर तक और चौथी सड़क लाहौर से मुल्तान तक चली गई थी। शेरशाह सूरी ने डाक लाने और ले जाने के लिए सड़कों पर डाक चौकियों की स्थापना भी की।

9. प्रजा की भलाई के कार्य-शेरशाह सूरी ने प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए कुएँ खुदवाए और सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये। रात को ठहरने के लिए थोड़-थोड़ी दूरी पर सराएं भी बनवाई गईं।

सच तो यह है कि शेरशाह सूरी एक महान् शासन-प्रबन्धक था। उसके शासन-प्रबन्ध की प्रशंसा करते हुए कीन ने ठीक ही कहा है, “किसी भी सरकार ने, यहां तक कि अंग्रेजी सरकार ने भी, इस पठान, (शेरशाह) जैसी योग्यता नहीं दिखाई।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

PSEB 11th Class Physical Education Guide शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थान भरो : (Fill in the blanks)

  1. मानवीय शरीर एक ……………….. मशीन है।
  2. मानवीय शरीर के भिन्न-भिन्न अंग मिलकर शरीर की को चलाते हैं।

उत्तर-

  1. उलझी
  2. क्रिया प्रणाली।

प्रश्न 2.
कोशिका क्या है ? (What is cell ?)
उत्तर-
कोशिका (Cell) कोशिका अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के पैदा होने के साथ हुआ है।
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यह मानवीय जीवन की प्राथमिक इकाई होती है। इन्हें नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इनका काम अपने :अन्दर भोजन को एकत्रित करके रखना है और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा पैदा करना होता है।
सैल के प्रकार (Types of Cell)—सैल दो प्रकार के होते हैं-यूकेरेओटिक तथा प्रकोरीओटिक। यूकेरेओटिक सैल पौधों, जानवरों तथा मनुष्यों में पाया जाता है।
यूकेरेओटिक सैलों के आधारभूत ढांचों में डी०एन०ए० (DNA) रिबोसोम, एंडोप्लास्मिक रैटीक्यूलम, गॉलजी उपकरण, साइटोस्केलेटन, माईटोकॉड्रिया, सैंटीअलाइज़, लाइसोम, प्लाज्मा झिल्ली और साइटोप्लाज्म आदि शामिल होते हैं। ।
सैल की बनावट तथा फंक्शन चार्ट
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PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय 3
Fig. Different types of cells

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प्रश्न 3.
हड्डियाँ क्या हैं ? इनकी किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें। (What are the bones ? Write in detail about their types.)
उत्तर-
“हड्डियां” (Bones)-मनुष्य के शरीर की रचना अनगिनत कोशिकाओं (Cells) से बनी हुई है। मनुष्य शरीर के अंग भिन्न-भिन्न किस्म की कोशिकाओं से बने हुए हैं जो अलग-अलग तरह के काम में लगे हुए हैं। शरीर के सारे अंग चमड़ी द्वारा ढके हुए हैं। चमड़ी शरीर के अंगों की रक्षा करती है। यदि शरीर में किसी भाग को ज़ोर से दबाकर देखा जाए तो हमें कुछ चीज़ महसूस होगी। ये सख्ती हड्डियों के कारण होती है। हड्डियां कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के मिलाप से बनती हैं। ये संवेदनशील अंगों की रक्षा करती हैं। हमारे शरीर में 206 हड्डियां होती हैं।

हड्डी की कड़क एवं रचना (Stiffiness and Construction of Bones)-शरीर के लगभग सारे अंगों में हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां कई प्रकार की मज़बूत और कठोर कोशिकाओं से बनी होती हैं। हड्डियों में कड़क कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों के कारण होती है। इनमें प्रमुख लक्षण कैल्शियम कारबोनेट, मैग्नीशियम फास्फेट और कैल्शियम फास्फेट की बड़ी हड्डियों के साथ-साथ छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं जो इन तत्त्वों से ही बनी होती हैं।

मनुष्य का अस्थि पिंजर (Human Skeleton)-शरीर के अन्दर मिलने वाली बड़ी और छोटी हड्डियां मिलकर एक पिंजर की रचना करती हैं। ये पिंजर की भिन्न-भिन्न हड्डियां जब मिलकर शरीर के लिए काम करती हैं तो इसको हम मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) कहते हैं।
मानवीय अस्थि पिंजर के कार्य (Functions of Human Skeleton)—

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक विशेष प्रकार की शक्ल देता है।
  2. ये शरीर को सीधा रखता है।
  3. पेशी प्रबन्ध और अन्य अंगों को सहारा देता है और उसके साथ मिलकर शरीर के अलग-अलग अंगों को हिलने और चलने-फिरने की शक्ति देता है।
  4. मनुष्य पिंजर में स्थान-स्थान पर उत्तोलक (Levers) बनते हैं।
  5. पिंजर का कुछ भाग जैसे पसलियां (Ribs) और सीना हड्डी (Sternum) की खास क्रिया सहायक होता है।
  6. अनियमित हड्डियां (Irregular Bones)-जैसे रीढ़ की हड्डियां।

हड्डियों का वर्गीकरण (Different Types of Bones)—

  1. लम्बी हड्डियां-ये अपने आकार में लम्बी होती हैं। ये लम्बी सॉफ्ट से मिलकर बनती हैं जिसके दो सिरे होते हैं। ये आमतौर पर सघन होती हैं, परंतु हड्डी के अंत में ये गुद्देदार होती हैं । टांग (फीमर), बाजू (ह्यूमर्स) आदि लम्बी हड्डियों की उदाहरण हैं।
  2. छोटी हड्डियां-ये आमतौर पर लम्बकारी, चपटी और आकार में छोटी हड्डियां होती हैं। ये ज्यादातर स्पंजी हड्डियां हैं जो कि सघन हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। छोटी हड्डियों में कलाई तथा ऐड़ी की हड्डियां शामिल होती हैं।
  3. चपटी हड्डियां-पतली, स्टीपांड और आमतौर पर समतल होती हैं; जैसे-खोपड़ी तथा कुछ चेहरे की हड्डियां।
  4. अनियमित हड्डियां-हड्डियां जो कि उपरोक्त तीनों श्रेणियों में नहीं आती, वह मुख्य तौर पर खोखली हड्डियां होती हैं। ये आमतौर पर स्पंजी हड्डियां होती हैं जो कि कॉमपैक्ट हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। रीढ़ की हड्डी तथा कुछ खोपड़ी की हड्डियां इसी की उदाहरण हैं।
  5. तिल रूप की हड्डियां-ये हड्डियां जोड़ों को पकड़ने में सहायक होती हैं। ये बीज के आकार की होती हैं। ये जोड़ों के नज़दीक मांस-पेशियों में पाई जाती हैं।

अस्थि पिंजर की कुल हड्डियों की गिनती
(Total Number of Bones in Human Skelton)

हड्डियां कुल गिनती
खोपड़ी और चेहरे की हड्डियां 22
धड़ की हड्डियां 33
पसलियों की हड्डियां 24
छाती की हड्डी 01
कॉलर की हड्डियां 02
कंधे की हड्डियां 02
बाजुओं की हड्डियां 60
टांगों की हड्डियां 62
कुल हड्डियां 206

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Fig. Different Types of Bones

मानव हड्डियों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :—
खोपड़ी की हड्डियां (Bones of the Skull)-खोपड़ी की हड्डियों में दिमाग घर की हड्डियां (Bones of the craniãUm) और चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) शामिल हैं। ये कुल 22 हड्डियां हैं। 8 हड्डियां दिमाग घर और 14 चेहरे की हैं।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय 5
Fig. Bones of the Skull

दिमाग घर की हड्डियां (Bones at the skull)-दिमाग घर की हड्डियां इस प्रकार हैं—

  1. माथे की हड्डी या ललाट हड्डी (Fronta-1 Bone)—ये हड्डी सामने माथे और ऊपरी भाग का निर्माण करती
  2. मोति अस्थि या टोकरी की हड्डियां (Parietal Bones)—ये हड्डियां गिनती में 2 हैं। ये खोपड़ी को दो बराबर भागों में बांटती हैं। इस प्रकार ये दाएं-बाएं और बाएं-दाएं का निर्माण करती हैं।
  3. कनपटी की हड्डियां (Temporal Bones)—ये गिनती में 2 हैं। ये दाएं कनपटी और बाईं कनपटी की बनाक्ट करती हैं।
  4. पंचर हड्डी (Sphenoid Bone)-इस हड्डी द्वारा खोपड़ी के आधार (Base) का निर्माण होता है। इसकी शक्ल चमगादड़ (Bat) या खुले हुए पंख जैसी होती है। कनपटी की हड्डियों और पिछली कपाल अस्थि (Dicipital Bones) में मिलती है।
  5. पिछली कपाल अस्थि (Occipital Bones)-ये हड्डी सिर के पिछले भाग का निर्माण करती है।
  6. छानगी हड्डी (Ethnoid Bone)-ये हड्डी नाक की छत का निर्माण करती है। ये पंचर हड्डी के आगे होती है। ये कनपटी को दो बराबर भागों में बांटती है। यह सामने की तरफ की ललाट हड्डी Frontal Bones से मिलती है।

चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) चेहरे की कुल 14 हड्डियां हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. ऊपरी जबड़े की दो हड्डियां (Superior Maxillary Bones)
  2. निचले जबड़े की हड्डी (Inferior Maxillary Bones)
  3. तालू की दो हड्डियां (Palate Bones)
  4. नाक की हड्डियां (Nasal Bones)
  5. गोल की दो हड्डियां (Molar Bones)
  6. सीप आकार की दो हड्डियां (Spongy Bones)
  7. अश्रु की हड्डियां (Lachrymal bones) ये छोटी-छोटी दो हड्डियां हैं जो आंखों के रगेल का अगला भाग बनाती हैं।
  8. नाक के पर्दे वाली हड्डी (Vomer bone) एक ऐसी हड्डी है जो नाक के पर्दे का निर्माण करती है।

धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk)-मानवीय शरीर के गर्दन से लेकर कमर तक के भाग को धड़ (Trunk) कहते हैं। डायाफ्राम (Diaphragm) इस भाग के आधे में होता है जो उसको दो भागों में बांटता है। सामने की ओर सीना हड्डी (Breast Bones Sternum) और पिछले भाग में रीढ़ की हड्डी है। इन दोनों तरह की हड्डियों से पसली की हड्डियां जुड़ी होती हैं। इन सब हड्डियों को हम धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk) कहते हैं।

हम ऐसे भी कह सकते हैं कि धड़ की हड्डियों में रीढ़ की हड्डी पसलियां, कंधे की हड्डी, डायाफ्राम और गुर्दे की हड्डियां हैं। इन सबका बारी-बारी वर्णन निम्नलिखित है—

रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को मानवीय शरीर का आधार कहा जाता है। ये गर्दन से शुरू होकर मल-मूत्र के निकास स्थान तक जाती है। आदमी के शरीर में इसकी लम्बाई 70 सैंटीमीटर और औरतों के शरीर में 60 सैंटीमीटर होती है। इस बीच 33 मोहरे या मनके (Vertebral) हैं। इन 33 मनकों के संग्रह को हम रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column) कहते हैं। रीढ़ की हड्डी का बीच का भाग खोखला होता है। ये मोहरे की नली (Neural Canal) का निर्माण करती है। इस बीच सुषम्ना नाड़ी (Spinal Cord) निकलती है।
रीढ़ की हड्डी के भाग (Parts of Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को हम निम्नलिखित पांच प्रमुख भागों में बांट सकते हैं—

1. गर्दन के मनके (Cervical Vertebrae)-पहले सात मनकों को हम गर्दनी मनके कहते हैं। ये कंधे के ऊपर होते हैं। सब से पहले मनके को सिर का आधार स्थान (Atlas) कहते हैं। ये सिर को सहारा देता है। दूसरे गर्दन के मनके को (Axis) कहते हैं। पहले दोनों मनकों की बनावट शेष मनकों से अलग है।

2. पीठ के मनके (Dorsal Vertebrae)-ये 12 मनकों का समूह है। इन मनकों के आगे पसलियां होती हैं। ये सब मनके सामने की पसलियों के साथ और पीछे पीठ की रीढ़ की हड्डी से जुड़े होते हैं।

3. कमर के मनके (Lumber vertebrae)-ये पांच मनके होते हैं जो कमर का निर्माण करते हैं। इसकी कुल लम्बाई 18 सैंटीमीटर होती है। ये हिलने वाले मनके होते हैं। सबसे नीचे वाला मनका कीमत की या तिडागी की . हड्डी (Sacrum) ऊपर टिका होता है।
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4. तिलम की या तिड़ागी हड्डी (Sacrum)—इस बीच पांच मनके होते हैं जो मिलकर एक तिकोणी हड्डी का निर्माण करते हैं, जो मुलेह के ऊपरी और पिछले भाग में स्थित हैं। ये कूल्हे के बीच दोनों हड्डियों के बीच एक पंचर की तरह होती है।

5. हड्डियां (Bones)-ये रीढ़ की हड्डी का सबसे निचला भाग है। ये चार मनकों का संग्रह है। छाती की हड्डी (Stornum)-ये लगभग 6-7 इंच लम्बी होती है। इसका ऊपरी भाग चौड़ा और नीचे वाला भाग पतला होता है। इसके ऊपरी भाग या चौड़े भाग में गर्दनी मनके (Cervical vertabrae) दोनों ओर जुड़े होते हैं। ये गर्दनी मनके ऊपर और नीचे (Cortal Cartilages) द्वारा पड़ती है।

पसलियां (Ribs)-छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड़ी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती VERTEBRAL FLOATING पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।
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भुजाओं की हड्डियां (Bones of the upper limbs)-भुजाओं की हड्डियों की गिनती 64 है। भुजाओं की गिनती 2 है। इस तरह प्रत्येक भुजा में 32 हड्डियां हैं। भुजाओं की हड्डियों में कंधे व हाथों की हड्डियां शामिल हैं। आइए इन हड्डियों का अलग-अलग तौर पर वर्णन करें—

(क) कंधे की हड्डियां (Bones of the shoulders)-कन्धे की हड्डियों में दो प्रमुख हड्डियां हैं—
1. हंसली हड्डियां या छाती की हड्डियां (Clavicles or Collar Bones)

(ख) मौर की हड्डी (Scapula)-इनका विस्तार से वर्णन नीचे किया गया है—
1. हंसली हड्डी या मौर की हड्डी (Clavicles or Collar Bones)-हंसली हड्डी की शक्ल अंग्रेजी के अक्षर S की तरह होती है। यह छाती के ऊपरी भाग में अगली तरफ स्थित होती है। यह एक तरफ छाती की हड्डी के सिरे के साथ व दूसरी तरफ कंधे की हड्डी के साथ जुड़ी होती है। दूसरा मुख्य काम कंधे की हड्डी को अपनी जगह पर स्थिर रखना है। छाती की हड्डी से जुड़े हुए हिस्से को छाती का बाहरी तल (External surface) व मौर की हड्डी के साथ जुड़ने वाले हिस्से को अर्सकुट तल (Acrominal surface) कहते हैं।
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Fig. Clavicles or Collar Bones
मौर की हड्डी (Scapula)—यह चौड़ी व तिकोने आकार की होती है। यह पीठ के ऊपरी भाग में होती है। इसके ऊपर वाले बाहरी कोण पर एक चिकना अंडे की तरह का गड्ढा होता है। इसमें डौले की हड्डी ठीक तरह बैठती है।
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बाजू की हड्डी (Bones of upper Arms)-बाजू की हड्डियों का वर्णन नीचे किया गया है—
डौले की हड्डी (Humerus)-डौले की एक लम्बी हड्डी होती है। इसका ऊपरी भाग गोल होता है जो कि कंधे की हड्डी में ठीक बैठता है। इसका निचला भाग बीणी व दोनों हड्डियों से मिल कर कुहनी के जोड़ (Elbow Joint) का निर्माण करती है।
बाज के अगले भाग की हड़ियां (Bones of for Arms)

1. छोटी वीण-हड्डी रेडियस (Radius)-यह बाजू के अगले भाग में अंगठे की तरफ एक बड़ी हड्डी है। इस हड्डी का ऊपरी सिरा गोल होता है। यह दोनों की हड्डी के साथ जुड़ा होता है। इसका नीचे का भाग हाथ के पास हड्डियों से जुड़ा होता है।

2. बड़ी वीण हड्डी (UIna)—यह बाजू के बीच में होता है। यह रेडियस या छोटी वीण हड्डी से कुछ बड़ी होती है। इसके तीन भाग होते हैं—
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(1) ऊपरी
(2) बीच वाला
(3) नीचे वाला
यह डौले की हड्डी के साथ कुहनी के जोड़ के द्वारा मिलती है। इसके
ऊपरी सिरे पर एक हड्डी बाहर को निकली रहती है। जिस के साथ कुहनी पर नोकदार उभार (Obsecranon) वाला है। जिसका निचला सिरा छोटा व गोल होता है, जोकि हाथ के पास हड्डियों से मिलता है।

3. कलाई की हड्डियां (Carpal Bones)—यह छोटी-छोटी 8 हड्डियां हैं जो कि चार-चार की दो लाइनों में स्थित हैं। यह इनके द्वारा जुड़ कर अपने स्थान पर ठीक तरह कायम रहती हैं। यह हड्डी के ऊपरी भाग बड़ी वीण हड्डी व निचली तरफ हथेली हड्डी के साथ जुड़ी होती है।

4. हथेली की हड्डियां (Metacarpal bones)–हथेली की पांच छोटी व पांच बड़ी हड्डियां हैं। ये एक तरफ उंगलियों की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।

5. उंगलियों की हड्डियां (Bones of the fingers or Phalanges)-उंगलियों में कुल 14 हड्डियां हैं। प्रत्येक उंगली में तीन-तीन व अंगूठे में दो हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां छोटी व मज़बूत होती हैं। हथेली की तरफ प्रत्येक हड्डी हथेली की हड्डियों से जुड़ी होती है। यह अंगुली के भीतर उंगली हड्डी जोड़ का निर्माण करती है।

टांग की हड्डियां (Bones of leg)-टांग की हड्डियों का वर्णन निम्नलिखित किया गया है—
1. हिप की हड्डी (The Hip Bone)-इस हड्डी की शक्ल बेढंगी सी होती है। ये काफ़ी बड़ी होती है। ये ऊपर और नीचे फैली हुई होती है और बीच से पतली होती है। ये हड्डी अगले तरफ दूसरे तरफ की साथी हड्डी से जुड़ती है। ये दोनों हड्डियां हड्डी Loccyx और तिड़ागी हड्डी (Sacrum) से मिलकर, पेडू गर्लड (Pelvic Girdle) का निर्माण करती है। हिप की हड्डी के नीचे लिखे तीन प्रमुख भाग हैं—

  1. पेडू अस्थि (Illum)-ये कूल्हे का ऊपरी चौड़ा भाग है।
  2. आसन अस्थि (Ischenum)—ये कूल्हे का निचला भाग है।
  3. पिऊबिस (Pubis)—ये कूल्हे का निचला भाग है।

ये तीन भाग बच्चों में उप-अस्थि से जुड़े होते हैं परन्तु आयु के बढ़ने के साथ जवानी तक ये हड्डी द्वारा जुड़ जाते हैं। कूल्हे के ये तीन भाग ही हड्डी से मिलकर एक प्याले या टोपी की शक्ल का निर्माण करते हैं। इस प्याले को एसीटैनबुलम (Acetabulum) कहते हैं। इस बीच जांघ की हड्डी (Femur) का गोल सिरा घूमता है। पेडू-अस्थि Pelvis की शक्ल एक बर्तन की तरह होती है जिसको निचली टांगें सहारा देकर रखती हैं। यह बर्तन पेट के कोमल अंगों की रक्षा करता है।
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2. जांघ की हड्डी (The Femur)-हमारे शरीर की जांघ की हड्डी सबसे लम्बी हड्डी है। यह शरीर की सभी … हड्डियों से शक्तिशाली होती है। यह डोलों की हड्डी की तरह होती है। इस का नीचे वाला भाग चौड़ा होता है व यह पिंडी की टिबिया (Tibia) हड्डी के साथ जोड़ का निर्माण करती है। इसके ऊपरी भाग पर गोल आकार की एक टोपी या प्याले जैसे होती है जो कि ऐसीटेबुलम (Acetabulum) में फंस कर चूल्हे के जोड़ का निर्माण करती है।
3. पिंजनी अस्थि या टिबिया (The Tibia)—यह टांग की दोनों हड्डियों से मोटी व बलशाली होती है। यह शरीर में लम्बाई व ताकत में जांच की हड्डी के बाद दूसरे नम्बर पर है। इसका रूप कुछ चपटा होता है। इस के दो सिरे उभरे होते हैं—

  1. ऊपरी भाग (Upper end)—यह मोटा होता है। इसका रूप कुछ चपट होता है।
  2. नीचे वाला भाग (Lower end) यह नीचे पैर के पास हड्डियों के साथ मिलता है। इसकी शाफ्ट (Shaft) तिकोनी होती है।

4. बाहरी पिंजनी अस्थि (The Fibula)—यह आकार में पिंजनी अस्थि (Tibia) से पतली है। यह पिंजनी वाली तरफ स्थित होती है। यह शरीर का सारा भार उठाती है। इस के नीचे लिखे मुख्य भाग हैं—
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1. ऊपरी
2. मध्य वाला
3. नीचे वाला

इसका ऊपरी व नीचे वाला भाग दोनों ही मजबूती के साथ जुड़े होते हैं। इस कारण यह पिंजनी अस्थि टिबिया के आसपास नहीं घूम सकती। यह टिबिया के बिल्कुल समानान्तर होती है। पिंजनी अस्थि (Tibia) व बाहरी पिंजनी अस्थि (Fibula) दोनों मिल कर नीचे के जोड़ का निर्माण करती हैं।

5. घुटने की हड्डी (Knee Cap or Patella)यह तिकोने आकार की हड्डी होती है। यह चौदह मज़बूत तंतुओं द्वारा स्थित रहती है। यह घुटने के जोड़ के ऊपर होती है व जोड़ की रक्षा करती है।
6. पैर की हड्डियां (Bones of the foot)-पैर की हड़ियां मुख्य रूप में नीचे लिखे तीन तरह की होती हैं—
(i) टखने की हड्डियां
(ii) पंजे की हड्डियां
(ii) उंगलियों की हड्डियां

  1. टखने की हड्डियां (Ankle Bones or Tarsal Bones) ये संख्या में सात हैं। ये छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं। ये पैर के पिछले आधे भाग यानि एड़ी रखने व पैर का निर्माण करती हैं। ये हड्डियां कलाई की हड्डी से मोटी व मज़बूत होती हैं। ये शरीर का सारा भार बांट कर उठाती हैं। ये भी कलाई की हड्डियों की तरह दो लाइनों में होती हैं।
  2. पंजे की हड्डियां (In-stepbones, Meta Carpal Bones)—इनकी संख्या भी पांच है। यह आकार में पतली व लम्बी होती हैं। ये अगली तरफ उंगलियों व पिछली तरफ टखने की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।
  3. उंगलियों की हड्डियां (The Phalenges of the foot or toes) हाथों की उंगलियों की हड्डियों की तरह पैर की उंगलियों की हड्डियों की संख्या में व बनावट में मिलती-जुलती हैं। अंगूठे में दो व प्रत्येक उंगली में तीनतीन हड्डियां होती हैं। यह हाथ की उंगलियों की हड्डियों के मुकाबले में लम्बाई में छोटी होती हैं।

पैरों को शरीर का सारा भार उठाना पड़ता है। इस कारण पैरों की हड्डियों की तरफ़ से ही भारी, चपटी व मजबूत होती है। पैरों में एक खाली स्थान (ARCH) होता है, जो मनुष्य को चलने में मदद करता है।

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प्रश्न 4.
जोड़ क्या हैं ? इनकी किस्में लिखें। किसी एक जोड़ की पूरी जानकारी दीजिए। (What are joints ? Names their types and explain any one type in detail.)
उत्तर-
परिभाषा (Definition)-प्रत्येक वह जगह जहां की दो या दो से अधिक हड्डियों से सिरे मिलते हैं, उनको जोड़ (Joints) कहते हैं।
जोड़ों की बनावट (Structure of Joints)-लम्बी हड्डियां अपने सिरों, बेडौल हड्डियां अपने तलों के कुछ हिस्सों व चपटी हड़ियां अपने किनारों के साथ जोड़ों का निर्माण करती हैं।
जोड़ मानव पिंजर (Human skeleton) को लचक देते हैं। आम तौर पर जोड़ों के तल हड्डियों के शाफ्टों से मोटे होते हैं।
जोड़ों की किस्में या श्रेणियों में बांट (Kinds, Types, Classification of Joints)—जोड़ों के कार्य और इनकी बनावट के आधार पर हम इनको निम्नलिखित मुख्य श्रेणियों में बांट सकते हैं—

  1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल (Synovial) जोड़।
  2. रेशेदार जोड़।
  3. उप-अस्थि जोड़।

जोड़ों की इन श्रेणियों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया गया है—
1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़ (Synovial Joints)-शरीर में इस प्रकार के काफ़ी जोड़ हैं, जैसे कि टांगों और भुजाओं के जोड़। इन जोड़ों के अन्दर बहुत ही मुलायम सिनोवीयल (Synovial) झिल्ली होती है। इस प्रकार के जोड़ों में रक्त की नाड़ियां (Blood Vessels) और लसीका वाहनियों (Lymphatic Vessels) का बहुत प्रसार होता है। यह जोड़ों के ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए आवश्यक हैं। ये जोड़ शेष दो प्रकार के जोड़ों से काफ़ी अलग प्रकार के हैं।
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Fig. Synovial Joint
Fig. Section of Synovial Joint
रिसावदार जोड़ों की किस्में (Classification of Synovial Joints)-गति के आधार पर रिसावदार जोड़ों को हम निम्नलिखित मुख्य भागों में बांट सकते हैं—

1. कब्जेदार जोड़ (Hinged Joints)-इन जोड़ों में विरोधी तल इस प्रकार लगे होते हैं कि गति केवल एक ओर ही हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ों की हड्डियां बहुत ही सुदृढ़ उप-अस्थियों के साथ बन्धी हुई हैं, जैसे-टखनों और उंगलियों के जोड़।

2. घूमने वाले जोड़ (Pivot Joints)—इस प्रकार को जोड़ों की गति चक्र में होती है। इस प्रकार के जोड़ में एक हड्डी छल्ला बनाती है और दूसरी इसमें एक धुरी की भांति फंसी हुई होती है। यह छल्ला एक सख़्त हड्डी और उपअस्थि का बना होता है। इसी प्रकार के जोड़ का निर्माण एटलस (Atlas) और एक्सिस (Axis) कशेरुकाओं के साथ होता है।
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Fig. Hinged Joint

3. फिसलनदार जोड़ (Sliding Joints)—इन जोड़ों में गति फिसलनदार होती है। इन जोड़ों की गति इनका निर्माण करने वाले तन्तुओं (Ligaments) के ऊपर निर्भर करती है। इस प्रकार के जोड़ साधारणतया तलों की विरोधता से बनते हैं। इस प्रकार के जोड़ प्राय: कलाई, घुटने और रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं में मिलते हैं।

4. गेंद और छेद वाले जोड़ (Ball and Socket Joints)-इस प्रकार के जोड़ में हड्डी का एक सिरा गेंद
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Fig. Ball and Socket Joints
की भांति गोल और दूसरा एक प्याले की भांति होता है। गेंद वाला भाग प्याले में फिट होता है। इस प्रकार गेंद वाली हड्डी किसी भी दिशा में घूम सकती है। इस प्रकार के जोड़ कन्धे और कूल्हे में होते हैं।

5. कोनडिलॉयड जोड़ (Condyloid Joint)—ये कब्जेदार जोड़ जैसे ही जोड़ होते हैं। परंतु इनमें गति दोनों तरफ होती है। इस तरह के जोड़ों में लचकता, फैलाव जैसी गतियां या हलचलें पैदा की जाती हैं।

6. सैडल जोड़ (Saddle Joint)—इस प्रकार के जोड़ों में हड्डी उत्तल तथा अवतल प्रकार से जुड़ी होती है। अंगूठे का जोड़ इसका उदाहरण है।

2. रेशेदार जोड़ (Fibrous Joints)-वे जोड़ जिनमें हड्डियों के तल धागे जैसे बारीक रेशों से बन्धे हुए होते. हैं, रेशेदार जोड़ कहलाते हैं। ये जोड़ गतिहीन होते हैं, जैसे कपाल की हड़ियों के जोड़।
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Fig. Fibrous Joints
Fig. Cartilagenous Joints

3. उप-अस्थि जोड़ (Cartilaginous Joints)-इन विरोधी हड्डियों के सिरे उप-अस्थियों के साथ जुड़े होते हैं और इनमें गति किसी विशेष सीमा तक ही होती है। यह उप-अस्थि अन्त में हड्डी का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार की उप-अस्थियों में सीधा रक्त प्रसार नहीं होता। वे अपनी खुराक जोड़ के अन्दर से सिनोवीयल रस से प्राप्त करते हैं। यह स्वस्थ मांस पट्टी काफ़ी सुदृढ़ होती है और इसमें काफ़ी लचक भी होती है परन्तु जब जोड़ों में से सिनोवीयल रस की मात्रा समाप्त हो जाती है तो ये सख्त हो जाते हैं और इसी कारण जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
रीढ़ की हड्डी के मनके होते हैं ?
उत्तर-
रीढ़ की हड्डी के कुल 33 मनके होते हैं।

प्रश्न 2.
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

प्रश्न 3.
जोड़ों की किस्में होती हैं :
(a) रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़
(b) रेशेदार जोड़
(c) उप-अस्थि जोड़।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
रिसावदार की किस्में होती हैं.
(a) चार
(b) तीन
(c) दो
(d) पाँच।
उत्तर-
(a) चार।

प्रश्न 5.
(1) बड़ी वीण हड्डी (UIna)
(2) छोटी वीण हड्डी-हड्डी रेडियस (Radius) ये हड्डियाँ कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर–
बाजू की हड्डियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
रिसावदार जोड़ों की कितनी किस्में हैं ?
उत्तर-
रिसावदार जोड़ों की चार किस्में हैं।

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प्रश्न 7.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर-
लम्बी हड्डियां शरीर में बाजू और टांगों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
मनुष्य में कुल मिला कर कितनी हड्डियां होती हैं ?
उत्तर-
मनुष्य में कुल मिलाकर 206 हड्डियां होती हैं।

प्रश्न 9.
जोड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक स्थान पर मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

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प्रश्न 10.
अनाटमी क्या है ?
उत्तर-
अनाटमी वह विज्ञान है जो शरीर की बनावट और सभी अंगों का आपसी सम्बन्ध की जानकारी देते हैं।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा और खेलों के बीच अनाटमी और फिजिओलोजी के दो लाभ लिखें।
उत्तर-

  1. खिलाड़ियों के प्रदर्शन में वृद्धि होती है।
  2. अच्छी सेहत बनती है।

प्रश्न 2.
कोशिकाएं (Cells) क्या हैं ?
उत्तर-
कोशिकाएं जीवन की प्राथमिक इकाई हैं। इन कोशिकाओं और कोशिका अंगों को नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। ये अपने भीतर को एकत्रित करके रखते हैं और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग शारीरिक क्रियाएं करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 3.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहां पाई जाती हैं ?
उत्तर-
इस किस्म की हड्डियां टांगों तथा बाजुओं में पाई जाती हैं। यह हमें चलने-फिरने तथा क्रियाएं करने में मदद करती हैं। इन हड़ियों के बिना शारीरिक क्रियाएं करना असम्भव है। इन हड्डियों के दो सिरे तथा एक शाफ्ट होती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अस्थि पिंजर के कोई तीन कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक खास प्रकार की शक्ल देता है।
  2. यह शरीर को सीधा रखता है।
  3. मनुष्य पिंजर में जगह-जगह पर उतोलक (Livers) बनते हैं।

प्रश्न 2.
हड्डियों की किस्में लिखो।
उत्तर-

  1. लम्बी हड्डियाँ
  2. छोटी हड्डियाँ
  3. चपटी हड्डियाँ
  4. बेढंगी हड्डियाँ
  5. तिल रूपी हड्डियाँ।

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प्रश्न 3.
शारीरिक रचना विज्ञान क्या है ?
उत्तर-
मानवीय शरीर रचना विज्ञान का अध्ययन करने से पता लगता है कि शारीरिक अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के उत्पन्न होने के साथ हुआ है। कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक (टिशु) बनते हैं, और उतकों का समूह एकत्रित होकर अंग और अंगों के सुमेल से प्रबंध बनते हैं।

प्रश्न 4.
ऊतक तथा प्रबन्ध का वर्णन करो।
उन्नर-
1. ऊतक (Tissue)-कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक बनते हैं। जब एक ही आकृति और काम करने वाली कोशिकाओं के समूह मिलकर काम करते हैं, तो उन्हें ऊतक कहा जाता है। इन ऊतकों में 60% से 90 तक पानी होता है। मानवीय शरीर में चार तरह के ऊतक पाये जाते हैं, जैसे-संयोजक ऊतक, मांसपेशियां ऊतक एवं नाड़ी ऊतक।

2. प्रबंध (System).-सैल के समूह ऊतक, ऊतक के समूह से अलग-अलग अंग तथा एक जैसे काम करने वाले अलग-अलग अंग मिलकर प्रबंध (System) बनाते हैं। साधारण शब्दों में शरीर के अलग-अलग अंगों के मिश्रण से प्रबंध बनते हैं, जैसे-श्वास प्रबंध, रक्त प्रवाह प्रबंध, मांसपेशियां प्रबंध, नाड़ी प्रबंध, मल त्याग आदि। ये अंग अपनाअपना काम लय और दूसरे अंगों के सहयोग के साथ करते हैं।

प्रश्न 5.
उड़ती या तैरती पसलियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती ” की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड्डी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं। जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न | (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक क्रियाओं और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी का योगदान तथा लाभ के बारे में लिखें।
उत्तर-
आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा और खेलों का मानवीय जीवन में बहुत महत्व हैं। ये व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करने में सहायक होते है। खिलाड़ियों की तरफ से रोज़ खेल के मैदान में अलग-अलग प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं। इन खेल क्रियाओं के अभ्यास से खिलाड़ियों के खेल प्रदर्शन में सुधार होता रहता है। जिससे खिलाड़ियों के अंगों और प्रबंधों के कार्य करने की समर्था में वृद्धि होती है। इसलिए खेल क्रियाओं में सुधार के लिए विभिन्न अंगों की बनावट और काम को समझना अनिवार्य है। शरीर को नया निरोग, ताकतवर रखने के लिए, शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान (Anatomy and Physiology) के बारे में जानकारी होना बहुत अनिवार्य है।
शारीरिक शिक्षा और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी के लाभ—

  1. ये खिलाड़ी की समार्थ्यता के मूटयांकन में मदद करता है।
  2. ये मानवीय शरीर पर अभ्यासों के प्रभावों के अध्ययन में मदद करता है।
  3. ये ट्रेनिंग सैशन के दौरान शरीर की सही स्थिति बनाने में मदद करता है।
  4. ये चोटों की किस्मों की पहचान करने में मदद करता है।
  5. यह स्पोर्टस पोषण की आधारभूत जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।
  6. ये खेल की चोटों के शीघ्र उपचार करने में मदद करता है।
  7. ये किसी खिलाड़ी की स्पोर्टस कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  8. ये खिलाड़ी को शरीरिक शक्ति के अनुसार किसी खेल का चुनाव करने में मदद करता है।
  9. ट्रेनिंग सैशन के दौरान हुई थकावट की रिकवरी में मदद करता है।
  10. ये किसी खिलाड़ी के शारीरिक ढांचे के सकारात्मक या नकारात्मक पहलुओं की जानकारी प्रदान करता है।

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प्रश्न 2.
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Human Skeletal System)-व्यायाम के मानवीय अस्थि पिंजर पर क्या प्रभाव पड़ते हैं ? इस बात को समझने के लिए कम समय और लगातार व्यायाम करते रहना भाव प्रशिक्षण (Training) में अन्तर डालना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी और लगातार व्यायाम करने के लिए मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) के ऊपर कई प्रभाव पड़ जाते हैं। कभी-कभी अनियमित ढंग के साथ व्यायाम करने के साथ शरीर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं, थोड़ी देर के लिए (अस्थायी) होते हैं। अगर इस प्रकार के व्यायाम को कुछ दिन न किया जाए तो शरीर पहले की अवस्था पर आ जाता है, परन्तु कुछ महीनों तक लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने पर शरीर में पूरी तरह परिवर्तन आ जाता है। जिनकी पहचान बहुत आसानी के साथ की जा सकती है।
लागातार व्यायाम करते रहने से मानवीय अस्थि पिंजर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं वह इस प्रकार हैं—

1. लम्बाई में वृद्धि (Increase in Height)-कुछ समय लगातार व्यायाम करने के साथ नवयुवकों की हड़ियों की लम्बाई में रुकावट की वृद्धि होती है। जिस कारण उनके शरीर की लम्बाई में बढ़ोत्तरी होती है। परन्तु इसमें याद रखने योग्य बात यह है कि वृद्धि बचपन की अवस्था के अन्त तक होती है।

2. जोड़ के तन्तुओं की ताकत में वृद्धि (Increase in the strength of ligaments of Joints) लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने के साथ हड्डियों और जोड़ के तन्तुओं में मजबूती आ जाती है। जिस के साथ वह ज्यादा खिंच सहने योग्य हो जाते हैं।

3. शरीर सामर्थ्य में वृद्धि और शरीर के पित्त वाले विकारों की समाप्ति (Increase in physical capacity and elimination of physical defects)-शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि होती है और शरीर के पित्त वाले विकार भी काफ़ी ज्यादा खत्म हो जाते हैं।

4. जोड़ों में तड़क (Flexibility of Joints) लगातार व्यायाम करने के कारण जोड़ों में तड़क उत्पन्न होती

5. आसन सम्बन्धी अवगुणों का दूर होना (Removing Postural defects) लगातार व्यायाम करने के कारण शरीर के आसन सम्बन्धी अवगुण जिस तरह कुबड़ापन या रीढ़ की हड्डी आदि का सिकुड़ना दूर हो जाते हैं।

6. प्रणालियों को दोषों से मुक्त करना (Preventing defects in systems) लगातार व्यायाम करते रहने से आसन सम्बन्धी दोषों को दूर करके शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।