PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपत्र डेल्टा।

प्रश्न (ख)
विश्व की सबसे बड़ी कैनियन कौन-सी है ?
उत्तर-
अमेरिका की कोलोरा नदी पर ग्रांड कैनियन।

प्रश्न (ग)
डेल्टा और मियाँडर (Meander) (घुमाव ) शब्द कहाँ से लिए गए हैं ?
उत्तर-
डेल्टा यूनानी भाषा के चौथे अक्षर (A) से लिया गया है। मियाँडर तुर्की भाषा का शब्द है।

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प्रश्न (घ)
कोसी नदी के जलोढ़ पंखे की लंबाई-चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
154 किलोमीटर लंबा और 143 किलोमीटर चौड़ा।

प्रश्न (ङ)
डेल्टा किसे कहते हैं ? इसकी कोई एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
समुद्र के निकट दरिया के निक्षेप से बने त्रिकोण आकार के मलबे को डेल्टा कहते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसका उदाहरण है।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
भौतिक मौसमीकरण।
उत्तर-
जब यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-फूट कर चूरा-चूरा हो जाती हैं, तब उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार मौसमीकरण से चट्टानों की टूट-फूट (Disintegration) होती है। इससे रासा

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प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

प्रश्न (ग)
जैविक मौसमीकरण।
उत्तर-
पौधों, जानवरों और मनुष्यों की गतिविधियों के कारण जब चट्टानों का विघटन हो जाता है, तब इसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं। पौधे अपनी जड़ों से चट्टानों में दरारें डाल देते हैं।

प्रश्न (घ)
अपरदन।
उत्तर-
भू-तल पर काट-छाँट, कुरेदने और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं। नदी, हवा, हिमनदी इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ङ)
मानवीय गतिविधियों का मौसमीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
मनुष्य मकानों, सुरंगों, रेलमार्गों, खदानों आदि को बनाने के लिए चट्टानों को तोड़-फोड़ कर कमज़ोर कर देता है।

प्रश्न (च)
मौसमीकरण की क्रिया से क्या अभिप्राय है ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर-
बाहरी शक्तियों के कारण धरती के आकार को बदलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार धरती की सतह के ऊपर मौसम के प्रभाव से होने वाली तोड़-फोड़ को मौसमीकरण कहते हैं। जलवायु, नमी, वर्षा, कोहरे आदि के कारण चट्टानें टूटती, फैलती अथवा सिकुड़ती हैं, जिसे मौसमीकरण कहते हैं।

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3. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अनावृत्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? भू-निर्माण (Aggragation) और भू-निमान (निम्न) (Degradation) में अंतर व्याख्या सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
भीतरी और बाहरी शक्तियाँ- भूपटल पर भीतरी (Endogenetic) और बाहरी (Exogenetic) दो प्रकार की शक्तियाँ परिवर्तन लाती हैं। भीतरी शक्तियों द्वारा भूपटल के कुछ भाग ऊँचे उठकर पर्वत, पठार और मैदान बन जाते हैं। कई भाग नीचे धंस जाते हैं और दरारों, घाटियों आदि का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार धरातल समतल नहीं होता बल्कि ऊँचा-नीचा हो जाता है। भूपटल की इस असमानता को बाहरी शक्तियाँ (Exogenetic or External Forces) दूर करती हैं। वास्तव में भीतरी और बाहरी शक्तियाँ एक-दूसरे के विपरीत काम करती हैं। जैसे ही धरातल पर भीतरी शक्तियों द्वारा किसी भू-स्थल की रचना होती है, तो बाहरी शक्तियाँ उसे घिसाने का काम आरम्भ कर देती हैं। इन शक्तियों का एक ही काम होता है-धरातल की असमानता को दूर करके भूतल को समतल बनाना। बाहरी शक्तियों को परिवर्तन के बाहरी कारक (External Agents of change) भी कहते हैं।

अनावरण (Denudation)-

मौसमीकरण (Weathering) भूपटल पर परिवर्तन लाने वाली वह बाहरी शक्ति है, जो चट्टानों का विघटन और अपघटन करके उन्हें नष्ट करती है। इसके अलावा एक और प्रक्रिया है, जो चट्टानों को धीरे-धीरे घिसाकर उन्हें नंगा कर देती है और इन चट्टानों से प्राप्त सामग्री को उठाकर ले जाती है, इस प्रक्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं। मौसमीकरण और अपरदन के मिले-जुले प्रभाव को अनावरण कहते हैं। अनावरण चट्टानों को अलग-अलग साधनों द्वारा तोड़-फोड़ कर नंगा करने और फिर उन्हें सपाट करने की क्रिया को कहते हैं। (Denudation means to lay the rocks bare.)

अनावरण के कार्य (Works of Denudation)—अनावरण की क्रिया में नीचे लिखे तीन प्रकार के कार्य होते हैं-

1. अपरदन (Erosion) बहता जल, हिमनदी, वायु आदि शक्तियों के साथ बहते पत्थर, कंकर, रेत आदि भू तल को घिसाते और कुरेदते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।

2. स्थानांतरण (Transportation)-ये कारक अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। सामग्री को इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया को ,स्थानांतरण कहते हैं। स्थानांतरण की इस क्रिया में चट्टानों के टुकड़े, पत्थर, कंकड़ आदि आपस में
टकराकर टूटते भी रहते हैं।

3. निक्षेपण (Deposition)—ये कारक अपरदन से प्राप्त मलबे को ले जाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देते हैं। इसे निक्षेपण कहते हैं।

इसी प्रकार निचले स्थान को सपाट करने की क्रिया को भू-निर्माण (Aggaradation) कहते हैं और ऊँचे भाग को नीचा करने की क्रिया को भू-निमान (Degradation) कहते हैं।

प्रश्न (ख)
नदी की युवा अवस्था क्या है ? इस अवस्था में नदी कौन-कौन सी आकृतियाँ बनाती है ?
उत्तर-
नदी की युवा अवस्था अथवा प्राथमिक भाग नदी के स्रोत से लेकर मैदानी भाग तक होता है। इस भाग में जल की गति तेज़ होती है, तेज़ ढलान के कारण गहरा कटाव होता हैं और तंग घाटी बनती है। नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है और इसे युवा नदी कहते हैं।

नदी के कार्य (Works of River)-

भूमि-तल को समतल करने वाली बाहरी शक्तियों में से नदी का सबसे अधिक महत्त्व है। वर्षा का जो पानी धरातल पर बहते हुए पानी (Run-off ) के रूप में बह जाता है, वह नदियों का रूप धारण कर लेता है। नदी के कार्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपरदन (Erosion)
  2. स्थानांतरण (Transportation)
  3. निक्षेप (Deposition)

1. अपरदन (Erosion)-नदी का प्रमुख कार्य अपने तल और किनारों पर अपरदन करना है। नदियों का मुख्य . उद्देश्य धरती को समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.)

अपरदन की विधियाँ (Methods of Erosion)-नदी का अपरदन नीचे लिखे तरीकों से होता है-

(i) रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—यह अपरदन घुलन क्रिया (Solution) द्वारा होता है। नदी के जल के संपर्क में आने वाली चट्टानों के नमक (Salts) घुलकर पानी में मिल जाते हैं।

(ii) भौतिक अपरदन (Mechanical Erosion)-नदी के साथ बहने वाले कंकड़, पत्थर आदि नदी के तल और किनारों को काटते हैं। किनारों के कटने से नदी चौड़ी और तल के कटने से नदी गहरी होती है। भौतिक कटाव तीन प्रकार के होते हैं –

(क) तल का कुरेदना (Down cutting)
(ख) किनारों का कुरेदना अथवा तटीय अपरदन (Side Cutting)
(ग) तोड़-फोड़ (Attrition)

नदी के अपरदन की मात्रा आगे लिखी बातों पर निर्भर करती है

यनिक परिवर्तन नहीं होता। सूर्य का ताप और कोहरा इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

  1. पानी का परिमाण (Volume of water)
  2. धरातल की ढलान (Slope of the land)
  3. पानी का वेग (Velocity of water)
  4. नदी का भार (Load of water)
  5. चट्टानों की रचना (Nature of the Rocks)

नदी में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण अपरदन अधिक होता है।
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती हैं। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (square) का अनुपात होता है-

अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2
नदी के अपरदन के द्वारा नीचे लिखे भू-आकार बनते हैं-

1. ‘V’ आकार की घाटी (‘V’ Shaped valley)—नदी पहाड़ी भाग में अपने तल को गहरा करती है, जिसके कारण ‘V’ आकार की गहरी घाटी बनती है। ऐसी तंग, गहरी घाटियों को कैनियन (Canyons) अथवा प्रपाती घाटी भी कहते हैं।
उदाहरण-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलोराडो घाटी में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) 480 किलोमीटर लंबी और 2000 मीटर गहरी है।

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2. गहरी घाटी/गॉर्ज (Gorges)—पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत गहरे और तंग नदी मार्गों को गॉर्ज (Gorge) अथवा कंदरा कहते हैं। पहाड़ी क्षेत्र ऊँचे उठते रहते हैं, परन्तु नदियाँ निरंतर गहरे कटाव करती रहती हैं। इस प्रकार ऐसे नदी मार्गों का निर्माण होता है, जिनकी दीवारें लंबरूप में होती हैं। उदाहरण-हिमालय पर्वत में सिंध नदी, असम में ब्रह्मपुत्र नदी और हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी गहरे गॉर्ज बनाती है।

3. चश्मे और झरने (Rapids and Water-falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे जल का झरना अथवा जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

(क) जब कठोर चट्टानों की परत नरम चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) रूप में हो, तो निचली नरम चट्टानें जल्दी कट जाती हैं, तब चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।

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उदाहरण-

(i) यू० एस० ए० में नियागरा (Niagra) जल-प्रपात जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है। (ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है। (iii) जब कठोर और नरम चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (vertical) में हों, तब कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

उदाहरण-अमेरिका में यैलो स्टोन नदी (Yellow Stone River) का जल-प्रपात।
चश्मे (Rapids)—जब कठोर और मुलायम चट्टानों की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछी हों और कुछ झुकी हों, तो चश्मों की एक लड़ी बन जाती है।

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उदाहरण-कांगो नदी (Cango River) में लिविंगस्टोन फॉल्ज़ (Living Stone Falls) नामक 32 झरनों की एक लड़ी है।

प्रश्न (ग)
जमा करने की क्रिया के दौरान नदी का भू-आकृतियों का धरातल (Topography) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
नदी का परिवहन कार्य (Transportation Work of River) –
नदी अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री (Load) को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। नदी द्वारा इस सामग्री के स्थान-परिवर्तन की क्रिया को नदी-परिवहन कहते हैं। इस सामग्री का स्थान-परिवर्तन अनेक प्रकार से होता है, जो आगे लिखे अनुसार है

1. जल में रगड़ के साथ (Traction)—इसमें बड़े चट्टानी टुकड़े, भारी पत्थर आदि नदी के तल के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं।

2. जल में उठाया हुआ मलबा (Load in Suspension)—मध्यवर्ती और सूक्ष्म श्रेणी की सामग्री नदी के जल के साथ तैरती जाती है।

3. जल में घुलकर (Solution)—जो सामग्री घुलनशील होती है, वह जल-धारा में घुले हुए रूप में प्रवाह करती है। नदी की परिवहन शक्ति दो तत्त्वों पर निर्भर करती है –

(i) नदी का वेग (Velocity of the River)
(ii) नदी के जल की मात्रा (Volume of water)-नदी के परिवहन और वेग में छठी शक्ति का अनुपात होता है –

नदी की परिवहन शक्ति = (नदी का वेग)6

नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)-

नदी का वेग जब कम हो जाता है और उसमें सामग्री की अधिकता हो जाती है, तो इस सामग्री का निक्षेप आरंभ हो जाता है। नदी की इस क्रिया को नदी का निक्षेपण (River Deposition) कहते हैं। इस प्रकार नदियों द्वारा निक्षेपण उनकी अपरदन क्रिया का प्रतिफल है। भारी पदार्थों का मैदानी मार्ग के ऊपरी भागों में और सूक्ष्म कणों का डेल्टा के भागों में निक्षेपण होता है।

नदी का निक्षेपण तब होता है, जब-

1. नदी का जल और अपरदन शक्ति कम हो जाए। 2. मुख्य नदी और सहायक नदियों का भार बढ़ जाए। 3. नदी की ढलान कम हो। 4. नदी का वेग धीमा हो।

नदी निक्षेपण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms produced by River Deposition)-

नदी अपने मैदानी मार्ग में अपरदन और निक्षेपण दोनों काम करती है, परंतु डेल्टाई भागों में इसका एक ही निक्षेपण का काम होता है। निक्षेपण क्रिया के फलस्वरूप नीचे लिखी भू-आकृतियों का निर्माण होता है-

1. जलोढ़ पंखे अथवा कोन (Alluvial Fan or Cone)–नदी जब पर्वतीय भागों को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है, तो भूमि की ढलान के कम हो जाने के कारण इसका बहाव धीमा हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाए चट्टानों के टुकड़ों, पत्थरों, कंकड़ों आदि को आगे ले जाने में असमर्थ हो जाती है और इस सामग्री को पर्वतों के पैरों में छोड़ देती है। यह निक्षेप ढेर के रूप में पर्वतों के सहारे एकत्र हो जाता है। यह ढेर एक कोण के आकार का होता है। इसे जलोढ़ी पंखा भी कहा जाता है।

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2. नदी विसर्पण अथवा नदी में घुमाव (River Meanders)—प्रौढ़ अवस्था में नदी की ढाल कम हो जाती है और नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है। नदी की धाराएँ अपने मार्ग में आने वाली छोटी-सी रुकावट के कारण भी मुड़ जाती हैं और एक किनारे की ओर से दूसरे किनारे की तरफ बहने लगती हैं। ये रुकावट वाले किनारे पर निक्षेपण और दूसरे किनारे पर अपरदन करती हैं। अपरदित किनारे से फिर पहले किनारे की ओर मुड़ जाती हैं और फिर वे किनारों को काटती हैं। इस प्रकार ये दोनों किनारे क्रम से कट जाते हैं। साथ-हीसाथ अपरदित सामग्री का किनारों पर निक्षेप भी होता है। इस प्रकार यदि किनारे का एक भाग कट के पीछे हटता है, तो इसी किनारे का दूसरा भाग इस पदार्थ को प्राप्त करके नदी की ओर बढ़ता है। ऐसी ही क्रिया दूसरे किनारे पर भी होती है। परिणामस्वरूप नदी में घुमाव आने शुरू हो जाते हैं। इन घुमावों को ही नदी विसर्पण कहते हैं। तुर्की देश की मिएंडर (Meanders) नदी के मार्ग में ऐसे अनेक घुमाव या विसर्पण हैं। इसीलिए इस नदी के घुमावों को मिएंडर (Meanders) कहते हैं।

3. धनुषदार झील (Oxbow Lake)-ज्यों-ज्यों नदी में विसर्प बड़े हो जाते हैं, वैसे-वैसे उनका आकार वृत्ताकार होता जाता है। इस अवस्था में नदी बाढ़ के समय मोड़ों को छोड़कर इसके निकटवर्ती भाग को काटकर बहने लगती है। यह सीधा प्रवाह-मार्ग बाढ़ के बाद भी बना रहता है। ऐसी अवस्था में मोड़ वाला भाग झील का रूप धारण कर लेता है। इसे धनुषदार झील कहते हैं। आकार में यह बैल के खुर या धनुष के समान प्रतीत होती है, इसलिए इसे गाय-खुर झील भी कहते हैं।

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4. प्राकृतिक बाँध अथवा तटीय बाँध और बाढ़ के मैदान (Natural Embankments or Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में नदी में अचानक बाढ़ आ जाती है, जिसके कारण नदी का जल तटों को पार करके निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने का यत्न करता है परंतु ये तट उसके फैलने पर रोक लगाते हैं, इसलिए वह अपना अधिकतर मलबा तटों पर ही इकट्ठा कर देती है। इससे ये किनारे ऊँचे उठ जाते हैं और बाँध के रूप में बाढ़ के पानी को निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने से रोकते हैं। इन्हें तटीय बाँध कहते हैं। ह्वांग-हो, गंगा और मिसीसिपी नदियों की निचली घाटियों में कई तटीय बाँध बन गए हैं। भयंकर बाढ़ के कारण जब ये बाँध टूट जाते हैं, तो उनकी रेत को नदी निकटवर्ती क्षेत्र में निक्षेप कर देती है। इस क्षेत्र को बाढ़ का मैदान कहते हैं।

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5. डेल्टा (Delta) सागर में प्रवेश करने से पहले ढलान बहुत कम होने के कारण नदी की शक्ति और वेग बहुत कम हो जाता है। फलस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाई सामग्री को अपने मुहाने पर ही एकत्र कर देती है और अपना मार्ग बंद कर लेती है। नदी अपना प्रवाह बनाए रखने के लिए नया मार्ग खोजती है। इस स्थल आकृति को डेल्टा कहा जाता है। इसका आकार यूनानी भाषा की वर्णमाला का चौथा अक्षर डेल्टा (Δ) से मिलता है।गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बने सुंदर वन डेल्टा और नील नदी का डेल्टा इसके विशेष उदाहरण हैं। डेल्टा के निर्माण के लिए नीचे लिखी स्थितियों का होना ज़रूरी है –
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  • नदी का स्रोत पर्वतों में हो, जहाँ से यह काफ़ी मात्रा में सामग्री बहाकर ला सके।
  • पर्वत और मैदानी मार्गों में कई सहायक नदियाँ मिलनी चाहिए, ताकि अधिक सामग्री प्राप्त हो सके।
  • नदी का मैदानी मार्ग अधिक लंबा होना चाहिए, ताकि उसका प्रवाह धीमा हो जाए और नदी द्वारा लाई सामग्री सीधी सागर में न जा गिरे।
  • नदी के मार्ग में कोई झील नहीं होनी चाहिए। मार्ग में यदि कोई झील होगी, तो सामग्री का निक्षेप उसमें हो जाएगा और डेल्टा के निर्माण के लिए सामग्री नहीं रहेगी।
  • नदी के मुहाने के पास सागर शांत होना चाहिए, नहीं तो सागर की धाराएँ, लहरें और ज्वारभाटा सामग्री को गहरे सागर में ले जाएंगे और मुहाने के पास निक्षेप नहीं होगा।

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प्रश्न (घ)
नदी अपरदन की क्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें।
उत्तर-
नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of the River)-

नदी द्वारा प्रवाहित पत्थर, कंकड़, रेत आदि नदी घाटी को घिसाते, कुरेदते और चट्टानों की तोड़-फोड़ करते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।
नदी सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। नदी का मुख्य उद्देश्य धरती को काटकर समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.) नदी आगे लिखे तरीकों से अपरदन करती है-

  1. भौतिक अपरदन (Physical Erosion)—इसमें नदी किनारों के कटाव (Side Cutting) और तल के कटाव (Down Cutting) का काम करती है।
  2. रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—नदी घुलनशील चट्टानों को घोलकर नष्ट कर देती है।

नदी के अपरदन के प्रकार (Types of River Erosion)-

  1. रगड़न (Abrasion)–नदी बहते पत्थर, कंकड़, बज़री आदि के साथ रगड़ने की क्रिया करती है।
  2. सहरगड़न (Attrition)—पत्थर, कंकड़ आदि आपस में टकराते हैं।
  3. घुलकर (Solution)-नदी का जल कई चट्टानों को घोल देता है। अनुमान है कि नदियाँ हर वर्ष 500 करोड़ टन खनिज पदार्थ घोलकर समुद्र में ले जाती हैं।
  4. जल-दबाव क्रिया (Hydraulic action) नदी के जल के दबाव के साथ भी चट्टानें टूटती रहती हैं।

नदी अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling River Erosion)-नदी अपरदन को नीचे लिखे कारक नियंत्रित करते हैं-

1. नदी में जल की मात्रा (Volume of water in a River) नदी में जल की मात्रा अधिक होने से अपरदन भी अधिक होता है। यही कारण है कि जिन नदियों में बाढ़ें अधिक आती हैं, उनमें अपरदन भी अधिक होता है।

2. नदी के जल की गति (Velocity of River Water)—तेज़ी से प्रवाह करती हुई नदी में अधिक शक्ति होती है। नदी का वेग नदी घाटी की ढलान और जल प्राप्ति पर निर्भर करता है। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती है। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (Square) का अनुपात होता है
अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2

3. नदी जल में सामग्री की मात्रा (Volume of Load in a River)–नदी अपने जल के साथ घाटी से प्राप्त अनेक प्रकार की सामग्री का प्रवाह करती है। कुछ सामग्री जल में घुली हुई, कुछ तैरती हुई अवस्था में और कुछ तल के साथ-साथ लुढ़कती हुई चलती है। यह सामग्री नदी के उपकरण (Tools) होते हैं।

4. चट्टानों की कठोरता (Solidity of Rocks) नदी तल पर चट्टानों की संरचना और उनके लक्षणों पर भी अपरदन निर्भर करता है। तल की चट्टानों के कठोर होने के कारण कटाव धीरे-धीरे होता है। नदी तल पर चट्टानों में दरारें अपरदन में सहायता करती हैं।

प्रश्न (ङ)
अंतर बताएं :
(i) झरना-चश्मा (उछलकायें)
(ii) जलोढ़ कोन-जलोढ़ पंखा
(iii) जल कुंड-प्राकृतिक बांध
(iv) बाढ़ के मैदान-डेल्टा
उत्तर-
(i) झरना (Waterfall)

  1. जब नरम चट्टानों के ऊपर क्षैतिज अवस्था में कठोर चट्टानों की परत हो, तो झरना बनता है।
  2. नील नदी इसका उदाहरण है।

चश्मा (Rapid)-

  1. जब कठोर और नरम चट्टानों की परतें लंब रूप में होती हैं, जिसके फलस्वरूप जल चश्मे के रूप में बहना शुरू हो जाता है।
  2. नियागरा झरना इसका उदाहरण है।

(ii) जलोढ़ कोन (Alluvial Cone)-

  1. जब नदी पर्वतीय भाग से निकलकर पहाड़ों के दामन में निक्षेप करती है, तो जलोढ़ कोन बनते हैं।
  2. हिमालय के दामन में कई जलोढ़ कोन हैं।

जलोढ़ पंखे (Alluvial Fans)-

  1. कई जलोढ़ी कोन मिलकर एक जलोढ़ी पंखे का निर्माण करते हैं।
  2. कोसी नदी का जलोढ़ पंखा।

(iii) जलकुंड-
नदी के मार्ग में छोटे-छोटे गड़े बन जाते हैं। धीरे-धीरे ये गड्ढे बड़े होकर जलकुंड बन जाते हैं।

प्राकृतिक बाँध-
नदी के निचले भाग में नदी घाटी के मार्ग में निक्षेप के कारण एक बाँध बन जाता है जिसे प्राकृतिक बाँध कहते हैं।

(iv) बाढ़ के मैदान-
नदी का पानी अपने निचले मार्ग पर किनारों के बाहर बहता है, तब तलछट के निक्षेप से बाढ़ का मैदान बन जाता है।

डेल्टा –
समुद्र में गिरने से पहले नदी एक त्रिकोण के आकार की भू-आकृति बनाती है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
किन्हीं तीन बाहरी शक्तियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हवा, नदी, हिमनदी।

प्रश्न 2.
अनावृत्तिकरण की क्रिया के दो कारक बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 3.
Mass Wasting से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
फ्लाक के अनुसार मलबे का परिवहन।

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प्रश्न 4.
कार्बनीकरण की क्रिया किन क्षेत्रों में होती है ?
उत्तर-
चूने की चट्टानों के क्षेत्र में।

प्रश्न 5.
जलकरण की क्रिया का एक क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
विंध्याचल पहाड़ियाँ।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के दो साधन बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और वर्षा।

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प्रश्न 7.
मौसमीकरण में सहायक एक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
ढलान।

प्रश्न 8.
सूर्य के ताप के माध्यम से मौसमीकरण किस प्रदेश में अधिक होता है ?
उत्तर-
मरुस्थल।

प्रश्न 9.
कोहरा पड़ने पर पानी के जम जाने से आयतन कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
1/11 गुणा।

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प्रश्न 10.
भारत में खाइयाँ (Ravines) किस प्रदेश में मिलती हैं ?
उत्तर-
चंबल घाटी।

प्रश्न 11.
भारत में मिट्टी के काम किस प्रदेश में मिलते हैं ?
उत्तर-
स्पीति घाटी।

प्रश्न 12.
ऑक्सीकरण की क्रिया के लिए कौन-सी गैस काम करती है ?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 13.
कार्बनीकरण का एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
गुफाओं का बनना।

बहुविकल्पी प्रश्न नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
ऑक्सीकरण क्रिया में कौन-सी गैस काम करती है ?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) कार्बन-डाइऑक्साइड
(घ) ओज़ोन।
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 2.
मिट्टी का निर्माण किस क्रिया से होता है?
(क) मौसमीकरण
(ख) अपरदन
(ग) परिवहन
(घ) निक्षेप।
उत्तर-
मौसमीकरण।

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प्रश्न 3.
जम जाने पर पानी का आयतन कितना बढ़ जाता है।
क) \(\frac{1}{2}\)
(ख) \(\frac{2}{3}\)
(ग) \(\frac{3}{4}\)
(घ) \(\frac{1}{10}\)
उत्तर-
\(\frac{1}{10}\)

प्रश्न 4.
कार्बन-डाइऑक्साइड किस चट्टान को घोल देती है ?
(क) चूने का पत्थर
(ख) ग्रेनाइट
(ग) बसालट
(घ) शैल।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

प्रश्न 5.
वर्षा के जल से कौन-सी क्रिया होती है ?
(क) भूमि का खिसकना
(ख) घोल
(ग) जलकरण
(घ) ऑक्सीकरण।
उत्तर-
भूमि का खिसकना।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न – (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—वायुमंडल की शक्तियों द्वारा चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अनावरण (Denudation)-चट्टानों को तोड़-फोड़ कर नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपरदन की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
अपरदन (Erosion)—दरियाओं के मौसमीकरण द्वारा हुई टूट-फूट को अपने साथ बहाकर ले जाना अपरदन कहलाता है।

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प्रश्न 4.
विघटन की परिभाषा दें।
उत्तर-
विघटन (Disintegration)—जब चट्टानें अपने स्थान पर ही टूटती हैं, तो उसे विघटन कहते हैं।

प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अपघटन (Decomposition)—जब चट्टानों के टूटने से उनकी रासायनिक संरचना बदल जाती है, तो उसे अपघटन कहते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक मौसमीकरण की परिभाषा दें।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-जब यांत्रिक शक्तियों के कारण चट्टानें टूट-फूट जाती हैं, तो उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 7.
रासायनिक मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-जब गैसों के प्रभाव से चट्टानें टूटती हैं, तो उसे रासायनिक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8.
जैविक मौसमीकरण क्या है ?
उत्तर-
जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-जब मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि चट्टानों को तोड़ने-फोड़ने में मदद करते हैं, तो उसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपवाह क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वह प्रदेश, जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और सहायक नदियों में बहता है, उसे नदी का अपवाह क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 10.
नदी के मार्ग को तीन भागों में बाँटें।
उत्तर-

  • ऊपरी भाग
  • मैदानी भाग
  • डेल्टा भाग।

प्रश्न 11.
नदी के अपरदन के अनुसार तीन अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर-

  • युवावस्था (Young Stage)
  • प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)
  • वृद्धावस्था (Old Stage)।

प्रश्न 12.
नदी अपरदन के दो तरीके बताएँ।
उत्तर-

  • भौतिक अपरदन
  • रासायनिक अपरदन।

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प्रश्न 13.
नदी के अपरदन और नदी के वेग में क्या संबंध है ?
उत्तर-
नदी की अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)। इस प्रकार नदी के अपरदन और वेग में वर्ग का अनुपात है।

प्रश्न 14.
नदी का अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर-

  • नदी में जल की मात्रा
  • नदी में जल की गति
  • नदी में उठाया सामान
  • चट्टानों की कठोरता।

प्रश्न 15.
गहरी घाटी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के पर्वतीय भाग में गहरे और तंग मार्ग को गहरी घाटी (Gorge) कहते हैं।

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प्रश्न 16.
भारत में गहरी घाटियों के दो उदाहरण दें।
उत्तर-
सतलुज नदी का गॉर्ज और ब्रह्मपुत्र नदी का गॉर्ज।

प्रश्न 17.
ग्रैंड कैनियन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तंग और गहरी नदी घाटी को कैनियन कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो नदी का ग्रैंड कैनियन 480 कि०मी० लम्बा और 1906 मीटर गहरा है।

प्रश्न 18.
झरना किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-
जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग से सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे झरना कहते हैं। अमेरिका में नियागरा झरना बहुत प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 19.
नदी के घुमाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी जब मोड़ खाती हुई चक्कर बना कर बहती है, तो उन्हें घुमाव अथवा मिएंडर (Meauders) कहते हैं।

प्रश्न 20.
किन्हीं तीन बाढ़ के मैदानों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गंगा नदी, मिसीसिपी नदी और ह्वांग हो नदी के मैदान।

प्रश्न 21.
गो-खुर झील (Oxbow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी में बाढ़ के समय एक मोड़ का किनारा जब दूसरे मोड़ के किनारे के निकट आ जाता है, तो नदी के मार्ग में एक मोड़ अलग होकर रह जाता है। इस नाम के खुर जैसे मोड़ को गो-खुर झील कहते हैं।

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प्रश्न 22.
डेल्टा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
नदी जब समुद्र में निक्षेप करती है, तो त्रिकोण आकार का थल रूप बनता है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 23.
संसार के प्रमुख डेल्टा के नाम बताएँ।
उत्तर-
नील नदी का डेल्टा, गंगा नदी का डेल्टा, मिसीसिपी नदी का डेल्टा, नाईज़र नदी का डेल्ट, यंगसी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 24.
पंजा डेल्टा क्या होता है?
उत्तर-
जब नदी कई शाखाओं में बँटकर निक्षेप करती है, तो उसकी धाराएँ उँगली के समान फैल जाती हैं, उसे पंजा डेल्टा कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अपरदन और मौसमीकरण में अंतर बताएँ-
उत्तर-
अपरदन (Erosion)-

  1. भू-तल पर काट-छाँट, खुरचन और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं।
  2. अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है।
  3. अपरदन गतिशील कारकों के द्वारा होता है जैसे नदी, हिमनदी, हवा आदि।
  4. मौसमीकरण अपरदन की क्रिया में मदद करता है।

मौसमीकरण (Weathering)-

  1. चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।
  2. मौसमीकरण एक छोटे क्षेत्र की क्रिया है।
  3. मौसमीकरण सूर्य के ताप, कोहरा और रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होता है।
  4. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में मदद करता है।

प्रश्न 2.
भौतिक मौसमीकरण और रासायनिक मौसमीकरण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-

  1. इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानें टूटकर चूर चूर-चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों की खनिज रचना में कोई अंतर नहीं आता।
  3. यह मौसमीकरण शुष्क और ठंडे प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. भौतिक मौसमीकरण की मुख्य शक्तियाँ ताप, कोहरा, वर्षा और हवा हैं।

रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-

  1. इसमें रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानें टूट-फूट कर चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों के खनिज भी बदल जाते हैं।
  3. यह मौसमीकरण उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. रासायनिक मौसमीकरण में कार्बन-डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव होता है।

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प्रश्न 3.
सूर्य का ताप किस प्रकार मौसमीकरण का काम करता है ?
उत्तर-
सूर्य का ताप (Temperature) सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एकदम गर्म होकर फैलती हैं और रात को तेज़ी से ठंडी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं फलस्वरूप ये टूटती हैं और चूरा-चूरा हो जाती है। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्य के ताप के द्वारा मौसमीकरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  • मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक और जल्दी मौसमीकरण होता है।
  • काले रंग की चट्टानों पर अधिक मौसमीकरण होता है।
  • पहाड़ी ढलानों और मरुस्थलों में मौसमीकरण महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में ताप में अधिक अंतर के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की आवाज़ जैसी होती है।

प्रश्न 4.
शीत प्रदेशों में कोहरा किस प्रकार मौसमीकरण का कार्य करता है ?
उत्तर-
कोहरा (Frost)—पहाड़ी ठंडे प्रदेशों में कोहरा मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में पानी भर जाता है। यह पानी सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग से दबाव डालता है। इस दबाव के साथ चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ रोड़ी (Scree) के रूप में जमा होता रहता है। हिमालय के पहाड़ी प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

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प्रश्न 5.
ऑक्सीकरण किस प्रकार मौसमीकरण की क्रिया में सहायक है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों तथा रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) भी कहते हैं। यह रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है आक्सीकरण (Oxidation)-चट्टानों के लौह खनिज के साथ ऑक्सीजन के मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं।

उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्षों में ही जंग लग गया।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण के प्रभाव (Effects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। यह मिट्टी वनस्पति और कृषि का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बनाकर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण के कारण ही घाटियाँ चौडी होती रहती हैं।

प्रश्न 7.
अपरदन और मौसमीकरण में अन्तर बताएँ।
नोट-
उत्तर के लिए प्रश्न नं० 1 (लघु उत्तरात्मक प्रश्न) देखें।

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प्रश्न 8.
भू-निर्माण (Aggradation) और भू-निमान (Degradation) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
धरती की बाहरी शक्तियाँ लगातार परिवर्तन करती रहती हैं। धरती का आकार बदलता रहता है। भू-आकार मिटते रहते हैं और नए भू-आकार बनते रहते हैं। भीतरी शक्तियाँ भू-आकारों का निर्माण करती है और बाहरी शक्तियां भू-आकारों को समतल करने का काम करती रहती हैं। इस प्रकार चट्टानों को तोड़-फोड़ और नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं।

भू-निर्माण (Aggradation) वह क्रिया है, जिसमें निक्षेप के द्वारा ऊँचे प्रदेशों का निर्माण होता है। बाहरी शक्तियाँ कुरेदे हुए मलबे को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और निचले स्थानों पर जमा कर देती हैं। इस प्रकार एक नए स्तर का अथवा तल का निर्माण होता है।

भू-निमान (Degradation) वह क्रिया है, जिसमें बाहरी शक्तियाँ अपरदन और मौसमीकरण के द्वारा ऊँचे प्रदेशों की ऊँचाई को कम कर देती हैं। इसमें अपरदन और मौसमीकरण किसी तल को नीचा करने का काम करते हैं। इस प्रकार भू-निर्माण और भू-निमान एक-दूसरे की विपरीत क्रियाएँ हैं, पर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं।

प्रश्न 9.
नदी मार्ग को स्रोत से लेकर मुहाने तक अलग-अलग भागों में बाँटें।
उत्तर-
नदी के भाग (Sections of a river)-
नदी का विस्तार किसी पहाड़ी प्रदेश से लेकर समुद्र तक होता है। नदी के निकास से लेकर नदी के मुहाने तक नदी को तीन भागों (Sections) में बाँटा जाता है। प्रत्येक भाग में नदी का कार्य, घाटी का रूप और भू-आकार अलग-अलग होते हैं।

1. पहाड़ी भाग अथवा आरंभिक भाग (Mountain Stage or Upper Course)—इस भाग में नदी की गति 10 मीटर प्रति कि०मी० से अधिक होती है। इसे युवा भाग (Young Stage) भी कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 9

2. घाटी वाला भाग अथवा मध्य भाग (Valley Stage or Middle Course)-इस भाग में नदी की गति 2 मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की प्रौढ़ अवस्था (Mature Stage) भी कहते हैं।

3. मैदानी भाग अथवा निचला भाग (Plain Stage or Lower Course)—इस भाग में नदी की गति मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की वृद्धावस्था (Old Stage) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
“नदी का अपरदन पानी की मात्रा और धरती की ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर-
नदी का अपरदन मुख्य रूप में पानी के वेग की मात्रा और घाटी की ढलान पर निर्भर करता है। अधिक ढलान के कारण नदी का वेग बढ़ जाता है और पर्वतीय भाग में कटाव अधिक होता है। बर्फ से ढके ऊँचे पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ अधिक पानी के कारण गहरी घाटियाँ बनाती हैं। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो नदी की अपरदन-शक्ति चौगुनी हो जाती है।

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प्रश्न 11.
धनुषदार झील (Ox-bow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी-मार्ग में बनने वाले मोड़ बड़े होकर पूरी तरह गोल हो जाते हैं। इनका आकार अंग्रेज़ी अक्षर ‘S’ जैसा हो जाता है। कई बार दो मोड़ एक-दूसरे के बहुत नज़दीक आ जाते हैं, तो गर्दन जैसे आकार का मोड़ बन जाता है। नदी के एक मोड़ का किनारा दूसरे किनारे से मिल जाता है। इस प्रकार नदी का एक मोड़ धनुष के आकार की झील के रूप में नदी से कट जाता है।

प्रश्न 12.
डेल्टा की रचना किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
समुद्र में गिरने से पहले नदी अपने मलबे के साथ डेल्टा की रचना करती है। नदी का अंतिम भाग समतल और धीमी ढलान वाला होता है। इसलिए मलबे का निक्षेप आसानी से हो जाता है। डेल्टा तब बनता है, यदि नदी के मुहाने पर ज्वारभाटे की कमी हो, समुद्र कम गहरा हो, कोई तेज़ धारा न बहती हो और नदी के मार्ग में कोई झील न हो, ताकि नदी का भार कम न हो जाए।

प्रश्न 13.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तेज़ ढलान होती है। यहाँ नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं, इसलिए मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। मलबे की कमी के कारण डेल्टा नहीं बनता। पश्चिमी तट की चौड़ाई भी कम है, इसलिए डेल्टा की रचना के लिए समतल भूमि की कमी है।

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प्रश्न 14.
जल-प्रपात की रचना के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जल-प्रपात (Water-Falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र में नीचे गिरता है, तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

1. जब कठोर चट्टानों की परत नर्म चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में हो, तो नीचे की नर्म चट्टानें जल्दी कट जाती हैं। उन चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।
उदाहरण-(i) यू०एस०एस० में नियागरा जल-प्रपात, जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है।
(ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है।

2. जब कठोर और नर्म चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (Vertical) हों, तो कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

प्रश्न 15.
‘V’ आकार घाटी और ‘U’ आकार घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
‘V’ आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-

  1. नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है।
  2. जब यह घाटी और अधिक गहरी हो जाती है, तो ‘I’ आकार की बन जाती है और इसे कैनियन कहते हैं।
  3. इसके किनारे पूरी तरह लंब रूप नहीं होते।
  4. नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है।

‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-

  1. हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
  2. यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती। इससे ऊँचाई से बनने वाली घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
  3. इसकी दीवारें लंब रूप में होती हैं।
  4. हिमनदी नदी घाटी का रूप बदलकर ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 16.
घुमाव/मोड़ (Meanders) कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
घुमाव/मोड़ (Meanders)—जब नदी मोड़ खाती हुई बहती है, तो उसके टेढ़े-मेढ़े रास्तों में छोटे-मोटे मोड़ पड़ जाते हैं, जिन्हें नदी के मोड़/घुमाव (Meanders) कहते हैं। नदी के अवतल किनारों (Concave Sides) के बाहरी तट पर तेज़ धारा के कारण कटाव होते हैं, पर नदी के उत्तल किनारों (Convex Sides) के भीतरी तट पर धीमी धारा के कारण निक्षेप होता है। इस प्रकार ये मोड़ और घुमाव धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं। तुर्की में मिएंडर (Meander) नदी के घुमाव को देखकर ही यह नाम रखा गया है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण की परिभाषा दें। इसकी अलग-अलग शक्तियों के कार्य बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—मौसम के भिन्न-भिन्न तत्त्वों द्वारा चट्टानों की टूट-फूट के कारण चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। (Weathering is the breaking up of Rocks by the elements of weather.) प्रसिद्ध भूगोलकार लॉबेक (Lobeck) के अनुसार, “मौसमीकरण चट्टानों के विघटन और अपघटन की प्रक्रियाओं के द्वारा होता है।” (Weathering results from the processes of rock disintegration and decomposition.)

चट्टानों की यह तोड़-फोड़ अथवा मौसमीकरण नीचे दी गई क्रियाओं से होती है-

  • विघटन (Disintegration)-ताप-अंतर के कारण जब चट्टानें टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं, तो उसे विघटन कहा जाता है।
  • अपघटन (Decomposition)-रासायनिक क्रियाओं द्वारा जब चट्टानें धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं, तो उसे अपघटन कहा जाता है। इस प्रकार चट्टानें ताप-अंतर द्वारा टूटती हैं और रासायनिक क्रिया द्वारा घिसती हैं और नष्ट होती हैं। इन चट्टानों का विघटन और अपघटन उनके अपने स्थान पर ही होता है।

मौसमीकरण को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Weathering)-

प्रत्येक स्थान पर मौसमीकरण एक समान नहीं होता क्योंकि भूतल पर चट्टानें और जलवायु सदा एक जैसी नहीं होतीं। मौसमीकरण नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करता है-

1. चट्टानों की संरचना (Structure of Rocks) असंगठित, घुलनशील और मुसामदार चट्टानों पर मौसमीकरण का प्रभाव बड़ी तेजी से होता है। नर्म चट्टानें जल्दी ही टूट जाती हैं, पर कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।

2. भूमि की ढलान (Slope of the Land)—वे क्षेत्र, जिनकी ढलान अधिक होती है, वहां मौसमीकरण तेज़ी से होता है। ढलान के कारण चट्टानों का संगठन कमज़ोर पड़ जाता है क्योंकि गुरुत्वा शक्ति के फलस्वरूप नीचे को खिसककर चट्टानें अपने आप ही टूटने लगती हैं और मार्ग में आने वाली चट्टानों को भी तोड़ देती हैं।

3. जलवायु में भिन्नता (Difference in Climate)-संसार के उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में तापमान की अधिकता और जल की अधिकता के कारण नर्म और घुलनशील चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं। इसके विपरीत उष्ण और शुष्क जलवायु के क्षेत्रों में दिन और रात के ताप में अंतर होने के कारण चट्टानें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस कारण इनका भौतिक मौसमीकरण होता है।

4. वनस्पति का प्रभाव (Effect of Vegetation) वनस्पति से रहित प्रदेशों में दिन के समय सूर्य-ताप के प्रभाव के कारण चट्टानें फैलती हैं और रात के समय ताप कम होने के कारण वही चट्टानें सिकुड़ने लगती हैं। इसी कारण उनका भौतिक विघटन होता है। इसके विपरीत वनों वाले क्षेत्रों में पेड़-पौधों की जड़ें चट्टानों को पकड़ कर रखती हैं।

5. चट्टानों के जोड़ व दरारें (Joints)-चट्टानों में जोड़ और दरारें तोड़-फोड़ में मदद करती हैं। इन दरारों में उगे पेड़ चट्टानों को चौड़ा करके उन्हें तोड़ देते हैं।

मौसमीकरण के प्रकार (Types of Weathering)-

मौसमीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)
  2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)
  3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)

1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)-जब चट्टानें भौतिक क्रिया द्वारा विघटित (Disintegrate) होती हैं और उनकी टूट-फूट होती है, तो उसे भौतिक मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। इसके कारण चट्टानों के खनिजों और गुणों में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि उनके खनिजों के टुकड़े हो जाते हैं। यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने स्थान पर ही टूट-फूट कर चूरा हो जाती हैं। इसे भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering) अथवा यांत्रिक मौसमीकरण (Mechanical Weathering) कहते हैं। भौतिक मौसमीकरण के नीचे लिखे तीन कारक हैं –

(i) सूर्य का ताप (Insolation) चट्टानों के भौतिक मौसमीकरण में सूर्य के ताप (Insolation) का बहुत महत्त्व है, जो कि उष्ण और शुष्क मरुस्थल में अपना प्रभाव डालता है।

(क) पिंड विघटन (Block Disintegration)—इन प्रदेशों में वर्षा की कमी और दिन-रात के तापमान में बहुत अंतर होने के कारण दिन में चट्टानें फैलती रहती हैं और रात के समय सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने को पिंड विघटन (Block Disintegration) कहते हैं। उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में अधिक तापमान के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की गोली की आवाज़ जैसी होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 10

(ख) अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation)—दिन के समय मरुस्थलों में तीखी गर्मी पड़ती है, जिसमें चट्टानों की ऊपरी परत गर्म हो जाती है व फैल जाती है। इस प्रकार उनका आयतन बढ़ जाता है और उनकी बाहरी परत छिलके के समान अलग हो जाती है। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation) कहा जाता है।
उदाहरण-चट्टानों के टूट कर चूर्ण होने के कारण बने मलबे को टालस (Talus) कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 11

(ii) कोहरा (Frost)—ऊँचे अक्षांशों और ऊँचे पर्वतों पर अत्यधिक सर्दी होती है और बर्फ पड़ती है। दिन के समय सूर्य-ताप के कारण कुछ बर्फ पिघलकर जल का रूप धारण कर लेती है और फिर वह जल चट्टानों की दरारों में प्रवेश कर जाता है। ठंड होने पर फिर यह जल बर्फ का रूप धारण कर लेता है और इसका फैलाव बढ़ जाता है। जमने से पानी का आयतन 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी अपने आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस फैलाव के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है और दरारें बड़ी हो जाती हैं और टूट जाती हैं। ढलान पर पड़ी चट्टानें नीचे को लुढ़क जाती हैं और पर्वतों के पैरों में इकट्ठी हो जाती हैं। इस एकत्र हुए पदार्थ को चट्टानी मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है।
उदाहरण-हिमालय पर्वत के पहाड़ी प्रदेश में इस मौसमीकरण के कारण बड़े-बड़े टुकड़े टूटते रहते हैं।

(iii) वर्षा (Rainfall)-वर्षा का पानी बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है और प्रभाव डालता है।
(क) मिट्टी का अपरदन (Soil Erosion)-ढलान वाली भूमि और नदी घाटियों में वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले आता है। जैसे भारत में गंगा नदी हर रोज़ 10 लाख टन मिट्टी समुद्र तक बहाकर ले जाती है।

(ख) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land)-ज़ोर से वर्षा होने के कारण जल नालियाँ (Gullies) और खाइयाँ (Ravines) बन जाती हैं जिसके फलस्वरूप बंजर बिखरा हुआ धरातल बन जाता है, जैसे-भारत की चंबल घाटी में।

(ग) मिट्टी के खंभे (Earth Pillars)-वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है, पर कठोर चट्टानें एक टोपी (Cap) का काम करती हैं और मिट्टी के खंभे खड़े हो जाते हैं, जैसे–इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमाचल के स्पीति प्रदेश में।

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(घ) भू-स्खलन (Landslides)—वर्षा का पानी नर्म चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी बना देता है और चट्टानें ढलान की तरफ फिसल जाती हैं। सड़क मार्ग रुक जाते हैं। गढ़वाल क्षेत्र में भू-स्खलन के कारण सैंकड़ों मनुष्य दबकर मर गए थे।

(iv) हवा (Wind) हवा के कारण मौसमीकरण मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों अथवा वनस्पति-रहित प्रदेशों में होता है। रेत युक्त हवाएँ एक रेगमार (Sand Paper) के समान चट्टानों को चूर-चूर कर देती हैं।

(क) मरुस्थलों में से निकलने वाली रेलगाड़ियों को हर वर्ष रंग (Paint) करना पड़ता है।
(ख) टेलीग्राफ की तारें हवा के प्रहार से जल्दी घिस जाती हैं।
(ग) समुद्र तट की ओर के साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं,जैसे दानेदार शीशे (Frosted Glass) हों।
(घ) चट्टानों का आकार अजीब-सा हो जाता है। जैसे-राजस्थान में मांऊट आबू के पास Toad Rock |
(ङ) कई बार आकाशीय बिजली भी चट्टानों को तोड़-फोड़ देती है या पिघला देती है।

2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीज़न, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों और रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) कहते हैं। वर्षा का जल और गैसें रासायनिक मौसमीकरण के प्रमुख कारण हैं। मौसमीकरण अम्ल (Acid) और गैस मिले जल द्वारा होता है। रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है-

(क) ऑक्सीकरण (Oxidation)—इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौह युक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग (Rust) लगा देती है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष तक ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्ष में ही जंग लग गया।

(ख) कार्बनीकरण (Carbonation)-कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और पानी मिलकर चूने के पत्थर, जिप्सम, संगमरमर आदि को घोल देते हैं। चट्टानों के नष्ट होने से गुफाएँ बनती हैं।
उदाहरण-(i) यू०एस०ए० में Mammoth Caves (ii) भारत में खासी और चेरापूंजी, देहरादून प्रदेश।

(ग) जलकरण (Hydration)-हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें अंदर ही अंदर घिसकर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Keolin) का जन्म इस प्रकार फैलसपार (Felespar) चट्टानों के विघटन से हुआ है।

(घ) घोल (Solution)—पानी कई खनिजों को घोल देता है। ये खनिज घुलकर बह जाते हैं, जैसे चूना मिट्टी में से घुलकर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटराइट (Latrite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-वनस्पति, जीव-जंतुओं और मानवों द्वारा चट्टानों का जो मौसमीकरण होता है,उसे जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering) अथवा (OrganicWeathering) कहा जाता है।
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  • वनस्पति (Vegetation)-वनस्पति जैविक मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण कारक है। वनस्पति द्वारा चट्टानों का मौसमीकरण यांत्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार से होता है। चट्टानों की दरारों में पेड़-पौधे उग आते हैं। उनकी जड़ें चट्टानों को कमजोर कर देती हैं।
  • जीव-जंतु (Animals)-चट्टानों में मांदें बनाकर रहने वाले जीव जैसे-चूहे, खरगोश, लोमड़ी, चींटियां, कीड़े-मकौड़े, केंचुए, दीमक आदि चट्टानों को खोखला बना देते हैं। इससे चट्टानें असंगठित होकर टूट जाती हैं। इसके बाद वायु, जल आदि उन्हें बहाकर ले जाते हैं। चित्र-जैविक मौसमीकरण होमज़ के अनुसार प्रति एकड़ मिट्टी में 1,50,000 केंचुए हो सकते हैं, जो एक वर्ष के समय में 10 से 15 चट्टानों को उत्तम प्रकार की मिट्टी में बदल कर नीचे से ऊपर ले आते हैं।
  • मनुष्य (Man)-मनुष्य भी भूमि पर अनेक प्रकार के परिवर्तन करता है। वह भूमि से खनिज प्राप्त करने के लिए खदानें खोदकर चट्टानों को नर्म कर देता है। इमारतें और बाँध बनाने के लिए सामग्री जैसे-ईंटें, पत्थर, चूना, सीमेंट आदि चट्टानों को तोड़कर ही प्राप्त करता है।

मौसमीकरण के प्रभाव (Affects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। वह मिट्टी वनस्पति और खेती का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बना कर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण से ही नदी घाटियाँ चौड़ी होती रहती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 2.
नदी और नदी बेसिन की परिभाषा बताएँ। अलग-अलग अवस्थाओं में नदी के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
नदी (River)-
भूमि पर वर्षा के जल का कुछ भाग वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल में लोप हो जाता है और कुछ भाग भूमि की पारगामी चट्टानों में से होता हुआ धरती में चला जाता है, परंतु जल का अधिकतर भाग धरातल पर प्रवाहित (Run off ) होकर बह जाता है। वह प्रदेश जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और उसकी सहायक नदियों में बहता हो, वह प्रदेश नदी का अपवाह क्षेत्र (Drainage Area) अथवा बेसिन (Basin) कहलाता है।
जिन नदियों में पूरा वर्ष पानी बहता रहता है, उन्हें स्थायी नदियाँ (Perennial Rivers) कहा जाता है। जिन नदियों में जल केवल वर्षा ऋतु में ही बहता हो, उन्हें मौसमी नदियाँ (Seasonal Rivers) कहते हैं।

नदी की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of a River)-

नदी के स्रोत (Source) से लेकर मुहाने (Mouth) तक इसके विकासक्रम को तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। ये तीन अवस्थाएं नीचे लिखी हैं-

1. युवावस्था (Youthful Stage)—इस अवस्था में नदी पर्वतों में प्रवाह करती है, इसलिए नदी के इस मार्ग को पर्वतीय मार्ग (Mountain Track) भी कहते हैं। नदी की ढलान 50 फुट प्रति मील होती है। ढलान सीधी होने के कारण जल का बहाव तेज़ होता है। वेग तेज़ होने के कारण अपरदन कार्य तेज़ी से होता है और घाटी गहरी होती है। इस अवस्था में नदी का कार्य प्रमुख रूप से अपरदन का ही होता है। (The mountain stage as a whole, is the stage of erosion) नदी के पर्वतीय भाग को युवा नदी घाटी (Young River Valley) कहते हैं। इस भाग में कैनियन, गॉर्ज, चश्मे और झरने बनते हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-इस अवस्था में नदी मैदानों में से बहती है, इसलिए नदी के इस भाग को मैदानी मार्ग (Plain Track) भी कहते हैं। यहां भूमि की ढलान कम होती है, जो कि 10 फुट प्रति मील होती है। इस भाग की प्रमुख नदी में अनेक सहायक नदियाँ आकर मिल जाती हैं, इसलिए नदी में पानी की मात्रा काफ़ी अधिक हो जाती है, परंतु प्रवाह की गति कम हो जाने के कारण भारी पदार्थों और कंकड़ आदि का प्रवाह रुक जाता है और इसका निक्षेप होना शुरू हो जाता है। नदी के मैदानी भाग को प्रौढ़ नदी घाटी (Mature River Valley) भी कहते हैं। इस भाग में नदी, किनारे पर अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा घाटी को निरंतर चौड़ा करती रहती है। इस भाग में U-आकार घाटी, घुमाव, मोड़, गोखुर झील, तट, बांध आदि बनते हैं। वृद्धावस्था (Old Stage)-नदी-मुहाने (River Mouth) से पहले, मैदान के निचले भाग में ढलान बहुत ही कम हो जाने के कारण जल का प्रवाह अत्यंत मद्धम हो जाता है। नदी की ढलान 1 फुट प्रति मील हो जाती है, फलस्वरूप अपरदन कार्य बिल्कुल समाप्त हो जाता है और निक्षेप तेज़ी से होने लगता है। यह ही नदी की वृद्धावस्था है। नदी के इस मार्ग को डेल्टा मार्ग (Delta Track) भी कहते हैं और नदी की घाटी यहां प्रौढ़ नदी घाटी (Old River Valley) कहलाती है। प्रौढ़ नदी घाटी में नदी का केवल एक काम निक्षेप करना होता है।

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