PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 5 पदावली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 5 पदावली

Hindi Guide for Class 11 PSEB पदावली Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुरु तेग बहादुर जी के अनुसार गुरमुख में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
उत्तर:
गुरु तेग बहादुर जी के अनुसार गुरमुख में ये गुण होने चाहिए कि वह मन का मान अहंकार त्याग दें, कामक्रोध और बुरे लोगों की संगति को भी त्याग दें, सुख-दुख को एक जैसा माने, हर्ष-शोक को भी समान माने, उसे प्रशंसा और निन्दा की चिंता नहीं होनी चाहिए। जो गुरमुख संसार में रहते हुए मान-अपमान में अन्तर न करते हुए इन्हें एक समान मानते हैं और विपरीत स्थितियों में अपने पथ से विचलित नहीं होते वे ही मुक्ति के अधिकारी होते हैं।

प्रश्न 2.
कहु नानक प्रभु बिरद पछानउ तब हउ पतित तरउ’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति का भाव यह है कि कोई विद्वान् पुरुष अथवा सद्गुरु का उपदेश ही मुझ पतित को इस संसार रूपी सागर से पार उतार सकता है। जन्म लेने के बाद गुरु का ज्ञान ही तो प्रभु से मिलने का रास्ता बताता है।

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प्रश्न 3.
गुरु जी ने नाम सिमरन पर बल क्यों दिया है ?
उत्तर:
गुरु जी का कहना है कि यदि सिमरन से हाथी का कष्ट दूर हो गया था तो हमारा क्यों नहीं होगा। इसलिए अभिमान का त्याग कर मनुष्य को नाम सिमरन करना चाहिए। सिमरन से कुबुद्धि भी नष्ट हो जाती है और मनुष्य प्रभु को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 4.
संकलित पदों के आधार पर गुरु तेग़ बहादुर जी की भक्ति भावना का वर्णन करें।
उत्तर:
गुरु जी की वाणी में नाम सिमरन की महत्ता पर बल दिया गया है क्योंकि नाम सिमरन से मुक्ति मिल सकती है तथा मनुष्य भव सागर से पार हो सकता है। गुरु जी ने मनुष्य को अभिमान त्याग कर, सुख-दुख को समान जानने का भी उपदेश दिया है। साथ ही उन्होंने अज्ञान के भ्रम को दूर कर मन को स्थिर करके, विषय वासना का त्याग कर प्रभु की शरण में जाने को कहा है।

प्रश्न 5.
गुरु तेग बहादुर जी ने अपने पदों में सांसारिक नश्वरता का संकेत किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर;
गुरुजी ने सांसारिक नश्वरता को ध्यान में रख कर मनुष्य को कहा है कि मनुष्य को बार-बार जन्म नहीं मिलता है। इसलिए उसे इस नश्वर संसार से पार पाने के लिए प्रभु का स्मरण करना चाहिए। मन, वचन, कर्म से परम सत्ता के प्रति स्वयं को लगा देना चाहिए। गुरु के ज्ञान से ईश्वर के नाम का परिचय मिल सकता है। आडम्बर रचने से ईश्वर कभी प्राप्त नहीं होता। मनुष्य का शरीर भी बार-बार प्राप्त नहीं होता। इसकी प्राप्ति सद्कर्मों से ही होती है। इसलिए अज्ञान के अन्धकार और मोह-ममता से दूर होकर ईश्वर के प्रति उन्मुख हो जाना चाहिए। गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर ही सांसारिक नश्वरता से मुक्ति पाई जा सकती है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide पदावली Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्ख गुरु-परम्परा में नौवें गुरु कौन हैं ?
उत्तर-गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1621 में अमृतसर में।

प्रश्न 3.
गुरु तेग बहादुर जी ने कौन-सा नगर बसाया था ?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर साहिब बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर:
खालसा की जन्मभूमि।

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर गुरु पद पर कब शोभायमान हुए ?
उत्तर:
गुरु हरिकृष्ण के पद छोड़ने के बाद।

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादर जी ने औरंगजेब के अत्याचारों से किसे बचाया था ?
उत्तर:
कश्मीरी पंडितों को बचाया था।

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प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपने पदों में किसकी संगति न करने पर बल दिया है ?
उत्तर:
दुष्टों की संगति।

प्रश्न 8.
गुरु जी ने किसकी स्थापना पर बल दिया था ?
उत्तर:
गुरु जी ने मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल दिया था।

प्रश्न 9.
गुरु जी ने किसे अनमोल बताया है ?
उत्तर:
गुरु जी ने मनुष्य जन्म को अनमोल बताया है।

प्रश्न 10.
संसार रूपी सागर को पार करने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर:
संसार रूपी सागर को पार करने के लिए गुरु के उपदेश को पहचानना ज़रूरी है।

प्रश्न 11.
गुरु जी ने अपने पदों में किसे त्यागने की बात कही है ?
उत्तर:
अहंकार, काम, क्रोध और मोह-माया को।।

प्रश्न 12.
गुरु जी ने भक्तिभावना और …………….. की स्थापना पर बल दिया ।
उत्तर:
सांसारिक नश्वरता।

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प्रश्न 13.
किसे व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए ?
उत्तर:
मानव जन्म।

प्रश्न 14.
गुरु जी के अनुसार सुख का आधार क्या है ?
उत्तर:
सांसारिक विषय-विकारों में निर्लिप्त रहना सुख का आधार है।

प्रश्न 15.
प्रभु को कौन पहचान सकता है ?
उत्तर:
कोई भी विद्वान् व्यक्ति।

प्रश्न 16.
गुरु जी ने …………. से अपने आप को शरण में लेने की प्रार्थना की है ।
उत्तर:
प्रभु।

प्रश्न 17.
मानव का मन ………… के अंधेरे में उलझा हुआ है ।
उत्तर:
महामोह और अज्ञान।

प्रश्न 18.
मानव ने अपना सारा जन्म ……………. में भटकते हुए बिता दिया ।
उत्तर:
भ्रम।

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प्रश्न 19.
मानव दिन-रात किसमें डूबा रहा ?
उत्तर:
विषय-वासनाओं में।

प्रश्न 20.
सिमरन से किसका कष्ट दूर हो गया था ?
उत्तर:
हाथी।

प्रश्न 21.
गुरु जी की वाणी में किसकी महत्ता पर बल दिया गया है ?
उत्तर:
नाम सिमरन पर।

प्रश्न 22.
सिमरन से क्या नष्ट हो जाती है ?
उत्तर:
कुबुद्धि।

प्रश्न 23.
पतित का उद्धार कौन करता है ?
उत्तर:
परमात्मा।

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प्रश्न 24.
जन्म लेने के बाद …………… प्रभु से मिलन का रास्ता है ।
उत्तर:
गुरु का ज्ञान।

प्रश्न 25.
गुरु जी ने बाह्य आडम्बरों का विरोध किया था ?
उत्तर:
सत्य।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुरु परंपरा में गुरु तेग बहादुर जी कौन-से स्थान पर आते हैं ?
(क) आठवें
(ख) नौंवें
(ग) दसवें
(घ) ग्यारहवें।
उत्तर:
(ख) नौंवें

प्रश्न 2.
गुरु तेग बहादुर जी ने कौन-सा नगर बसाया था ?
(क) आनन्दपुर साहिब
(ख) अमृतसर
(ग) जालंधर
(घ) फतेहगढ़ साहिब।
उत्तर:
(क) आनन्दपुर साहिब

प्रश्न 3.
गुरु जी ने किसको सर्वश्रेष्ठ माना है ?
(क) मानवतावाद
(ख) समाजवाद
(ग) प्रयोगवाद
(घ) प्रगतिवाद।
उत्तर:
(क) मानवतावाद।

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पदावली सप्रसंग व्याख्या

रागु गउड़ी महला 9

1. साधो मन का मानु तिआगउ ॥
कामु क्रोधु संगति दुरजन की ता ते अहनिसि भागउ ॥रहाउ॥
सुख दुख दोनों सम करि जानै अउरु मानु अपमाना ॥
हरख सोग ते रहै अतीता तिनि जगि ततु पछाना ॥1॥
उसतति निंदा दोऊ तिआगै खोजै पदु निरबाना ॥2॥
जनु नानक इहु खेलु कठनु है किनहू गुरमुखि जाना॥
                                      (राग गउड़ी महला-9)॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मानु = अहँकार ।तिआगउ = छोड़ो, त्यागो । कामु = काम वासना। अहनिसि = दिन-रात। भागउ = भागो, दूर रहो। सम = समान। हरख सोग = हर्ष और शोक। अतीता = दूर, पृथक् । तिनि = उन्होंने। जगि ततु = संसार का सार। उसतति = प्रशंसा । निरबाना = मोक्ष, मुक्ति। इह खेलु = यह खेल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर द्वारा रचित वाणी के अन्तर्गत ‘रागु गउड़ी महला-9’ से उद्धृत किया गया है। इसमें गुरु जी ने व्यक्ति को सांसारिक विकारों से दूर रहने तथा मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करते रहने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं–अरे सांसारिक लोगो ! अपने मन से अहंकार का भाव त्याग दो। काम, क्रोध तथा दुर्जन की संगति से रात-दिन दूर रहो। किसी भी दिन में किसी भी क्षण दुष्टों की संगति न करो। सुख-दुःख, मान तथा अपमान को समान रूप से जानो। जो हर्ष और शोक की भावना से दूर रहते हैं-उनसे प्रभावित नहीं होते, वे ही संसार के तत्व को तथा संसार की वास्तविकता को जान लेते हैं। जो व्यक्ति स्तुति और निन्दा को त्याग देते हैं भाव यह कि जो लोग विषम परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होते, उन्हें ही मुक्ति प्राप्त होती है। नानक के जन, गुरु नानक के भक्त ! सुख-दुःख, मान-अपमान में समान रहने का यह खेल बड़ा कठिन है। सुख-दुःख आदि की अवस्थाओं में समान रहना बड़ा कठिन है। कोई ही अर्थात् बिरला गुरमुख (गुरु का चेला) व्यक्ति इस तत्व को पहचान सकता है।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों में गुरु तेग बहादुर जी ने मानसिक विकारों से सदैव दूर रहने का उपदेश दिया है।
  2. सांसारिक विषय-विकारों से निर्लिप्त रहना ही सुख का आधार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  4. सधुक्कड़ी शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. प्रसाद गुण है।
  7. शान्त रस है।
  8. गेयता का गुण विद्यमान है।

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धनासरी महला 9

2. अब मैं कउनु उपाय करउ ।
जह विधि मन को संसा चूकै भउनिधि पारि परउ ॥ रहाउ॥
जनमु पाइ कछु भलो न कीनो ता ते अधिक डरउ ॥
मन बच क्रम हरि गुन नहीं गाए यह जीअ सोच धरउ ॥
गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ ॥
कहु नानक प्रभ बिरद् पछानउ तब हउ पतित तरउ ॥1॥
                                                    (धनासरी महला)

कठिन शब्दों के अर्थ :
कउनु = कौन सा। जिह विधि = जिस तरीके से । संसा = संशय । चूकै = मिटे। भउनिधि = भवसागर। न कीनो = नहीं किया। ता ते = इस से, इसलिए। वच = वचन। क्रम = कर्म। गुरमति = गुरु के उपदेश। न उपजिओ = नहीं उत्पन्न हुआ। उदरु = पेट। विरद = विद्वान्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु धनासरी महला 9 में से लिया गया है। इसमें गुरु जी ने गुरु के उपदेश को संशय दूर करने वाला एवं संसार रूपी सागर से पार उतारने वाला बताया है।

व्याख्या:
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि अब मैं कौन-सा उपाय करूँ, जिस से मेरे मन का संशय दूर हो या मिट जाए और मैं संसार रूपी सागर से पार उतर जाऊँ। मैंने मनुष्य जन्म प्राप्त करके भी शुभ कर्म नहीं किए इसी कारण मैं अधिक डर रहा हूँ। मैंने मन, वचन और कर्म से भगवान् के गुणों का गान नहीं किया। यही मेरे मन में विचार आ रहा है। गुरु के उपदेश को सुन कर भी मेरे मन में कुछ ज्ञान नहीं उत्पन्न हुआ। मेरा जीवन तो पशु समान ही रहा जो केवल पेट भरना ही जानता है। गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि प्रभु को कोई विद्वान् व्यक्ति ही पहचान सकता है। तभी मैं पतित तर सकता हूँ अर्थात् इस संसार रूपी सागर से पार जा सकता हूँ।

विशेष :

  1. संसार रूपी सागर को पार करने के लिए गुरु के उपदेश को पहचानना ज़रूरी है।
  2. भाषा सरल, सरस एवं सहज है।
  3. तद्भव, तत्सम एवं पंजाबी शब्दावली है।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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3. सोरठि महलामन की मन ही माहि रही।
ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी काल गही ॥ रहाउ॥
दारा मीत पूत रथ संपति धन पूरन सभ मही ॥
अवर सगल मिथिआ ए जानऊ भजनु राम को सही ॥
फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही॥
नानक कहत मिलन की बरीआ सिमरत कहा नहीं ।
                                            (सोरठि महला 9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
चोटि = केश। काल = काल, मृत्यु। गही = पकड़ी।दारा = पत्नी। मीत = मित्र। मही = धरती। अबर = और, दूसरा। सकल = सारा, सब कुछ। सही = ठीक। जुग = समय। लही = ली, मिली। बरीआ = अवसर। सिमरत = स्मरण। कहा नहीं = क्यों नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु सोरठि महला 9 में से लिया गया है। इसमें गुरु जी ने मनुष्य को ईश्वर के नाम को स्मरण करने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि मेरे मन की बात या इच्छा मन में ही रह गई। क्योंकि जीवन में मैंने ईश्वर का भजन नहीं किया और मृत्यु ने आकर मेरी चोटी (बाल) पकड़ ली। पत्नी, मित्र, पुत्र, रथ, संपत्ति धन आदि से धरती परिपूर्ण थी। मुझे सब कुछ प्राप्त था किन्तु मैंने ईश्वर का भजन नहीं किया। मैंने जाना कि अन्य सारी बातें तो मिथ्या हैं। ईश्वर का भजन ही ठीक है। मुझे भटकते-भटकते बहुत समय बीत गया जबकि मुझे मनुष्य देह मिली थी अर्थात् मनुष्य योनि में जन्म लेकर मुझे ईश्वर का भजन करना चाहिए था। गुरु जी कहते हैं कि ईश्वर से मिलने के लिए इस अवसर का (मनुष्य जन्म लेने का) लाभ उठाते हुए तुम ईश्वर के नाम का स्मरण क्यों नहीं करते।

विशेष :

  1. मनुष्य देह प्राप्त करके मनुष्य को ईश्वर का स्मरण, भजन अवश्य करना चाहिए।
  2. भाषा सरल है।
  3. शब्दावली मिश्रित है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शान्त रस।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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4. माई मैं किहि बिधि लखउ गुसाईं।
महा मोह अगिआन तिमरि मो मनु रहिओ उरझाई ॥ (रहाउ)
सगल जनम भरम ही भरम खोइओ नह असथिरु मति पाई ॥॥
बिखिआ सकत रहिओ निस बासुर नह छूटी अधमाई ॥
साध संगु कबहु नहीं कीना नह कीरति प्रभ गाई ॥
जन नानक मैं नाहिं कोऊ गुनु राखि लेहु सरनाई ॥2॥
                                               (सोरठि महला  9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
माई = हे माँ। किहि बिधि = किस तरीके से।लखउ = दर्शन करूँ। गुसाईं = प्रभु। अगिआन = अज्ञान, अविद्या। तिमिर = अंधकार। खोइओ नह = नष्ट नहीं हुआ।मति = बुद्धि। बिखिआ सकत = विषय वासनाओं में डूबा हुआ।निस वासुर = दिन-रात । अधमाई = नीचता। कीरति = यश । रखिलेहु = रख लो। सरनाई = अपनी शरण में।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु सोरठि महला-9 में से लिया गया है। इस पद में गुरु जी ने प्रभु से अपने आप को शरण में लेने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि हे माँ! मैं किस तरीके से प्रभु के दर्शन पाऊँ। महामोह और अज्ञान के अन्धेरे में मेरा मन उलझा हुआ है। भटक रहा है। मैंने अपना सारा जन्म भ्रम में भटकते हुए बिता दिया। इस भ्रम का नाश नहीं किया जिससे मेरी बुद्धि अस्थिर ही रही। मैं दिन-रात विषय वासनाओं में ही डूबा रहा। मेरी नीचता दूर नहीं हुई। मैंने कभी भी या जीवन भर साधुओं की संगति नहीं की और न ही प्रभु के यश का गान किया। गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि मुझ में कोई गुण नहीं है फिर भी प्रभु आप मुझे अपनी शरण में ले लो।

विशेष :

  1. मनुष्य प्रभु से कहता है कि वह कितना ही बुरा है फिर भी आप मुझे अपनी शरण में अवश्य ले लें।
  2. भाषा सरल, सरस एवं सहज है।
  3. पंजाबी, तत्सम, तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शान्त रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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5. साधो गोबिन्द के गुन गावह ।
मानस जनम अमोलक पाइओ बिरथा काहि गवावह ॥1॥ रहाउ॥
पतित पुनीत दीन बंध हरि सरनि ताहि तुम आवहु ॥
गज को त्रासु मिटिओ जिह सिमरत तुम काहे बिसरावहु ॥1॥
तजि अभिमान मोह माइआ फुनि भजन राम चितु लावऊ ॥
नानक कहत मुकति पंथ इहु गुरमुखि होइ तुम पावउ ॥ ॥2॥
                                                  (राग गाउड़ी, महला 9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
गोबिन्द = ईश्वर। गावहु = गाओ। मानस जनमु = मनुष्य का जन्म । अमोलकु = अनमोल, अमूल्य। बिरथा = व्यर्थ। काहि = किस लिए। पतित = गिरा हुआ, भ्रष्ट। पुनीत = पवित्र। दीन-बन्धु = परमात्मा। सरनि = शरण में। गज = हाथी । त्रास = दुःख। बिसरावहु = भूलता है। फुनि = फिर। मुकति पंथ = मोक्ष का मार्ग। गुरमुखि = गुरु का शिष्य।

प्रसंग :’
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर द्वारा रचित वाणी ‘गउड़ी महला 9’ से उद्धृत किया गया है। इसमें गुरु जी ने संसार के लोगों को सन्देश दिया है कि मानव-जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।

व्याख्या :
गुरु जी कहते हैं-हे ईश्वर भक्तो ! तुम ईश्वर के गुणों का गायन करो, ईश्वर का भजन करते रहो। यह मनुष्य-जन्म अनमोल है, इसको प्राप्त कर सांसारिक विषयों में पड़कर इसे व्यर्थ क्यों गंवा रहे हो। परम पावन ईश्वर पतित, गिरे हुए, भ्रष्ट लोगों का उद्धार करने वाला दीन बन्धु की शरण में तुम्हें जाना चाहिए। भगवान् का स्मरण करते ही उसने हाथी को मगरमच्छ के मुँह से छुड़ाकर उसका दुःख दूर कर दिया था। ऐसे पतित उद्वारक परमात्मा को तुम क्यों भुला रहे हो। अरे मानव ! तुम अहंकार एवं मोह-माया को छोड़कर फिर से भगवान् राम के स्मरण करने में अपने चित्त को लगा ले। श्री गुरु जी के अनुसार मुक्ति का मार्ग यही है इसलिए गुरु का शिष्य बन कर तुम इसे पा सकते हो।

विशेष :

  1. मनुष्य-जन्म सब प्राणियों से श्रेष्ठ है। यह अनमोल है। इसे सांसारिक विषय-वासना में फंस कर गँवाना अनुचित है।
  2. भाषा सरस, सहज एवं सरल है।
  3. पंजाबी, तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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पदावली Summary

पदावली 

गुरु-परम्परा में नवें गुरु तेग बहादुर जी को संयम, त्याग, सहनशीलता एवं करुणा के कारण अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मीरी और पीरी की तलवारें धारण करने वाले गुरु श्री हरगोबिन्द साहिब के घर माता नानकी जी के गर्भ से इनका जन्म सन् 1621 को अमृतसर में हुआ था। गुरु गद्दी पर बैठने के पश्चात् आप कई गुरु धामों की यात्रा करते हुए कीरतपुर साहिब पहुंचे। उन्होंने सन् 1666 ई० में पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदकर आनन्दपुर सहिब नामक नगर बसाया जो बाद में खालसा की जन्मभूमि’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा के साथ इन्होंने अध्यात्म-विद्या तथा शस्त्र-विद्या की शिक्षा ग्रहण की। गुरु हरिकृष्ण जी के बाद वे गुरु पद पर शोभायमान हुए। उस समय गुरु जी की आयु 43 वर्ष की थी।

गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब के अत्याचारों से पीडित कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था। यह बलिदान जिस जगह पर हुआ वह दिल्ली में गुरुद्वारा सीस गंज के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु जी अति महान् व्यक्तित्व के स्वामी और तपस्वी थे जिन्होंने निरंकार ईश्वर का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने 59 स्वर तथा 57 श्लोकों की रचना पंजाबी से प्रभावित ब्रजभाषा में की थी। इनकी रचनाओं में संसार की नश्वरता, सांसारिक व्यवहार में कटुता, राम-नाम की महिमा, बाह्य आडम्बरों का विरोध और सहजता की प्रत्यक्षता को महत्त्व दिया गया है। उन्होंने संयम, समभाव, ईश्वर प्रेम, सात्विक व्यवहार, मानवतावाद और शुद्ध चिन्तन को श्रेष्ठतम माना था।

पदावली का सार

प्रस्तुत पदावली में गुरु तेग बहादुर जी के श्रेष्ठ पदों को सम्मिलित किया गया है। गुरु जी ने अपने पदों में अहंकार, काम, क्रोध और मोह-माया को त्यागने के लिए कहा है। उन्होंने भक्ति भावना और सांसारिक नश्वरता के साथ-साथ गुरु जी ने मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल दिया है। मनुष्य सभी बन्धनों से मुक्त होकर साधु संगति में लीन होकर व्यक्ति प्रभु को पा सकता है। मानव जन्म संसार में बहुत दुर्लभ है। फिर इसको व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए अपितु इसे सार्थक बनाने के लिए मन को प्रभु में लीन करना आवश्यक है। प्रभु भक्ति से ही मनुष्य संसार रूपी भवसागर से पार हो सकता है और यह सब तभी सम्भव है जब मनुष्य गुरु के बताए उपदेशों को अच्छी तरह समझे। मनुष्य यह समझे कि मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता। यह अनमोल है इसे सांसारिक विषय-वासना में फंसा कर गंवाना अनुचित है।

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