PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में केन्द्र और राज्यों के बीच प्रशासकीय, वैधानिक और वित्तीय सम्बन्धों की विवचेना कीजिए।
(Discuss the administrative, legislative and financial relations between the union and the states.)
उत्तर-
केन्द्र राज्य सम्बन्धों का वर्णन हमें भारतीय संविधान के भाग XI की 19 धाराओं (Art 245-263) में मिलता है। इसके अतिरिक्त संविधान के अनेक अनुच्छेद इस प्रकार के हैं जोकि संघ राज्यों के सम्बन्धों को निर्धारित करते हैं। उदाहरणस्वरूप, संकटकालीन व्यवस्था से सम्बन्धित अनुच्छेद, वे अनुच्छेद जो राज्यसभा की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, एकीकृत न्याय व्यवस्था, एक ही निर्वाचन आयोग की व्यवस्था से सम्बन्धित अनुच्छेद इत्यादि। अध्ययन की सुविधा के लिए केन्द्र-राज्य सम्बन्धों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-वैधानिक, प्रशासकीय तथा वित्तीय।
नोट-वैधानिक, प्रशासकीय और वित्तीय सम्बन्धों के लिए प्रश्न नं० 2, 4 और 5 देखें।

प्रश्न 2.
कानून निर्माण सम्बन्धी शक्तियों का केन्द्र तथा राज्य की सरकारों के बीच किस प्रकार बंटवारा किया गया है ?
(How have the legislative powers been distributed between the centre and the states.)
अथवा भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के वैधानिक सम्बन्धों का वर्णन करो।
(Discuss the legislative relations between the centre and states in Indian Constitution.)
उत्तर-
संघ व राज्यों के वैधानिक सम्बन्धों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है, जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची कहा जाता है।

1. संघ सूची (Union List)-संघ-सूची में 97 विषय हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद् को है। इन विषयों में प्रतिरक्षा (Defence); विदेशी सम्बन्ध (Foreign Relations), युद्ध और शान्ति (War and Peace), यातायात तथा संचार, रेलवे, डाक व तार, नोट तथा मुद्रा, बीमा, बैंक, विदेशी व्यापार, जहाज़रानी, वायुसेना (Civil Aviation) आदि राष्ट्रीय महत्त्व के विषय जो सारे देश के नागरिकों से समान रूप में सम्बन्धित हैं। इन विषयों पर बने कानून सब राज्यों और सब नागरिकों पर बराबर रूप से लागू होते हैं।

2. राज्य सूची (State List)-राज्य-सूची में 66 विषय हैं और उन पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के विधानमण्डलों को है । इस सूची में शामिल 66 विषयों में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस व जेल, स्थानीय सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सड़कें पुल, उद्योग, पशुओं और गाड़ियों पर टैक्स, विलासिता तथा मनोरंजन पर कर आदि महत्त्वपूर्ण विषय आते हैं ।

3. समवर्ती सूची (Concurrent List)-इस सूची में 47 विषय हैं । इस सूची में विवाह, विवाह-विच्छेद, दण्ड विधि (Criminal Law), दीवानी कानून (Civil Procedure), न्याय (Trust) समाचार-पत्र, पुस्तकें तथा छापाखानों, बिजली, मिलावट, आर्थिक तथा सामाजिक योजना, कारखाने आदि हैं । इस पर कानून बनाने का अधिकार संघ तथा राज्य दोनों को प्राप्त है । यदि एक ही विषय पर केन्द्र तथा राज्य द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हो तो ऐसी स्थिति में संघीय कानून को प्राथमिकता मिलती है और राज्य सरकार का कानून उस सीमा तक रद्द हो जाता है जिस सीमा तक राज्य का कानून संघीय कानून का विरोध करता है ।।

संघ सरकार अधिक शक्तिशाली है (Union Govt. is more Powerful)-शक्तियों के विभाजन से स्पष्ट है कि संघ सरकार राज्य सरकारों से अधिक शक्तिशाली है जबकि राज्य सरकार संघ की शक्तियों को प्रयुक्त नहीं कर सकती।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध

1. अवशिष्ट शक्तियां (Residuary Powers)-अनुच्छेद 248 के अनुसार उन सब विषयों को जिनका वर्णन समवर्ती सूची और राज्य सूची में नहीं आया उन्हें अवशिष्ट शक्तियां माना गया है । इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद् को है । संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विट्जरलैंड में अवशिष्ट शक्तियां राज्यों को दी गई हैं।
2. संघ सरकार को राज्य सूची पर अधिकार (Power of the Union on the State List)-निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद् विधानमण्डलों के वैधानिक अधिकारों का अपहरण कर सकती है-

  • राज्यसभा के प्रस्ताव पर (At the resolution of Rajya Sabha)-अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्यसभा में उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्य दो-तिहाई बहुमत से किसी प्रस्ताव को पास कर दें या घोषित करें कि राज्यसूची में दिए गए किसी विषय पर संसद् द्वारा कानून बनाना राष्ट्रीय हित में होगा तो संसद् उस विषय पर सारे भारत या किसी विशेष राज्य के लिए कानून बना सकेगी ।
  • युद्ध, बाहरी आक्रमण व सशस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न हुए संकट के समय-यदि युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल की घोषणा की गई तो संसद् राज्य सूची के किसी भी विषय पर सारे देश या उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकती है और कानून संकट की घोषणा समाप्त हो जाने के 6 महीने बाद तक लागू रह सकता
  • राज्यों में संवैधानिक मशीनरी के असफल होने पर-संविधान की धारा 356 के अन्तर्गत जब किसी राज्य में संवैधानिक यन्त्र (Machinery) के फेल होने पर वहां का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ मे ले ले, तो संसद् को यह अधिकार है कि वह राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाए । यह कानून केवल संकटकाल वाले राज्य में ही लागू होगा । संसद् की इच्छा हो तो वैधानिक शक्ति राष्ट्रपति को दे दे ।
  • दो या दो से अधिक राज्यों की प्रार्थना पर-अनुच्छेद 252 के अनुसार जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल संसद् से राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाने की प्रार्थना करे तो संसद् इस मामले पर कानून बना सकेगी । परन्तु ऐसा कानून प्रार्थना करने वाले राज्यों पर ही लागू होगा ।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों और सम्मेलनों के निर्णयों को लागू करने के लिए-यदि संघीय सरकार ने विदेशी सरकार से कोई सन्धि कर ली हो, तो संसद् उसको व्यावहारिक रूप देने के लिए किसी प्रकार का भी कानून बना सकती है, भले ही वह विषय राज्य सूची में ही क्यों न हो ।
  • कुछ विशेष प्रकार के बिलों के लिए राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक है-राज्यपाल राज्य विधानमण्डल द्वारा पास किए गए किसी भी बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखने की शक्ति रखता है । राष्ट्रपति ऐसे बिलों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है ।
  • बिल पेश करने से पूर्व स्वीकृति-राज्य विधानमण्डल में पेश करने से पहले कुछ बिलों के लिए पूर्व स्वीकृति की ज़रूरत होती है ।
  • राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने और नए राज्य स्थापित करने का अधिकार-किसी राज्य की सीमा में परिवर्तन करना, पुराने राज्य को समाप्त करना, नए राज्यों की स्थापना करना तथा उसका नाम बदलना भी संसद् की शक्तियां हैं । संसद् यह सब कार्य साधारण बहुमत से करती है ।
  • राज्य में विधानपरिषद् स्थापित व समाप्त करने का अन्तिम अधिकार- यदि राज्य की विधानसभा अपने राज्य में विधानपरिषद् की स्थापना करने अथवा समाप्त करने के लिए प्रस्ताव पास करके उसे संसद् के पास भेजे तो संसद् कानून पास करके उस राज्य में विधानपरिषद् स्थापित या समाप्त कर सकती है ।
  • संघीय सूची में कुछ प्रकार के विषयों का वर्णन किया गया है जिनके द्वारा संघ सरकार राज्य सरकारों पर नियन्त्रण रख सकती है । इस सम्बन्ध में दो विषयों का उल्लेख किया जा सकता है-चुनाव तथा लेखों की जांच । राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी संसद् के नियन्त्रण में रखे गए हैं । इसके अतिरिक्त राज्य के लेखों की जांच भी केन्द्र का विषय है ।

वैधानिक सम्बन्धों की आलोचना (Criticism of Legislative Relations) संघ और राज्यों में वैधानिक सम्बन्धों की आलोचनात्मक समीक्षा से स्पष्ट पता चलता है कि केन्द्र अधिक शक्तिशाली है और वह अपनी विशिष्ट कानूनी सर्वोच्चता के माध्यम से राज्यों पर अपनी इच्छा थोप सकता है। संघीय सूची में सभी महत्त्वपूर्ण विषय सम्मिलित किए गए हैं और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने के मामले मे केन्द्र को ही सर्वोच्चता दी गई है । राज्य विधानमण्डलों का अधिकार क्षेत्र बहुत ही सीमित है । के० वी० राव (K.V. Rao) ने ठीक ही कहा है कि राज्य सूची पर एक नज़र डालने से पता चल जाएगा कि ये विषय कितने महत्त्वहीन और कितने अस्पष्ट हैं।

राज्य विधानसभाओं द्वारा पास किए गए कानूनों पर राष्ट्रपति के निषेधाधिकार (Veto Power) को आशंका की भावना से देखा जाता है । उदाहरण के लिए जिस प्रकार केन्द्र ने 1958 में केरल शिक्षा अधिनियम (Kerala Education Bill) के सम्बन्ध में कार्यवाही की, उससे स्पष्ट हो जाता है कि राज्य की वैधानिक शक्तियां केन्द्र की दया-दृष्टि पर निर्भर करती हैं । कई व्यावहारिक मामलों के आधार पर एस० एन० जैन (S. N. Jain) और एलिस जैकब (Alice Jacob) के अनुसार कहा जा सकता है कि “केन्द्र ने अपनी स्वीकृति देते हुए राज्यों पर नीतियों को थोपने की कोशिश की है। हालांकि वास्तव में बहुत ही कम स्थितियों में इस प्रकार की स्वीकृति दी गई है।”

प्रश्न 3.
संघ सरकार और राज्य सरकारों के बीच प्रशासनिक सम्बन्धों का वर्णन करें ।
(Describe the administrative relations between the union and the states.
उत्तर-
संघात्मक सरकार तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक सम्बन्ध बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। विभिन्न सरकारों के बीच सहयोग और समन्वय, इस सम्बन्ध का मूल सिद्धान्त है। डी० डी० बसु (D.D. Basu) के शब्दों में, “संघ सरकार की सफलता और दृढ़ता सरकार के बीच अधिकाधिक सहयोग तथा समन्वय पर निर्भर करती है ।” भारतीय संविधान निर्माता इस तथ्य से भली-भांति परिचित थे। अत: उन्होंने इस सम्बन्ध में अनेक अनुच्छेदों की व्यवस्था की है।

संघीय सूची का प्रशासन संघ के अधीन जबकि राज्य सूची व समवर्ती सूची का प्रशासन राज्य सरकारों के अधीन-संघ का प्रशासन विषयक अधिकार उन सभी विषयों पर लागू होता है जो संघ सूची में दिए गए हैं। राज्यों के प्रशासनिक विषय के अधिकार क्षेत्र में न केवल वे ही विषय आते हैं जो राज्य सूची में दिए गए हैं बल्कि वे विषय भी आते हैं जो समवर्ती सूची में दिए गए हैं। संसद् समवर्ती सूची में दिए विषयों पर कानून तो बना सकती है, पर उन कानूनों को लागू करना राज्य का कार्य है।

संघीय सरकार अधिक शक्तिशाली-संघीय कार्यपालिका राज्य की कार्यपालिकाओं पर निम्नलिखित ढंग से प्रभाव डाल सकती है-

1. राज्यपाल की नियुक्ति-राज्य के मुखिया की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है । राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है । राष्ट्रपति ही राज्यपाल को पद से हटा सकता है। राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के बावजूद भी राज्यपाल केन्द्रीय सरकार का प्रतिनिधि है।
2. राज्यों को निर्देश देने का अधिकार-भारतीय संविधान की धारा 257 में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी राज्य सरकार को आवश्यकतानुसार निर्देश दे सकता है। तीन उदाहरण निम्नलिखित दिए गए हैं-

(क) यह निश्चित करने के लिए कि कोई राज्य सरकार अपने प्रशासन विषयक अधिकारों का प्रयोग इस प्रकार करेगी की उससे केन्द्रीय सरकार के प्रशासन विषयक अधिकारों के मार्ग में रुकावट न हो, राष्ट्रपति राज्य सरकार को आवश्यक निर्देश दे सकता है।
(ख) राष्ट्रपति राज्य सरकारों को ऐसे संवहन और संचार साधनों के निर्माण और उसकी देखभाल के निर्देश दे सकता है जिन्हें राष्ट्रीय अथवा सैनिक महत्त्व का घोषित कर दिया जाए।
(ग) राष्ट्रपति किसी भी राज्य को निर्देश दे सकता है कि अपने राज्य की सीमा के अन्दर रेलों और जलमार्गों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कार्यवाही करे । ध्यान रहे,(ख) तथा (ग) में दिए निर्देशों का पालन करने में राज्यों को जो अतिरिक्त व्यय करना पड़े वह व्यय केन्द्रीय सरकार देगी।

3. केन्द्रीय सुरक्षा पुलिस-यदि केन्द्रीय सरकार किसी राज्य में शान्ति भंग होने का खतरा अनुभव करे तो वह उस राज्य में केन्द्रीय सम्पत्ति की रक्षा हेतु केन्द्रीय सुरक्षा पुलिस भेज सकती है। 4. संकटकालीन घोषणा-जब राष्ट्रपति बाहरी आक्रमण, युद्ध या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकटकालीन अवस्था की घोषणा करे, तो वह राज्यों को अपनी कार्यपालिका शक्ति को विशेष ढंग से इस्तेमाल करने का आदेश दे सकता है।
5. राज्य में राष्ट्रपति का शासन-यदि केन्द्रीय सरकार द्वारा दिए गए आदेश का पालन कोई राज्य सरकार न करे या राज्य की सरकार संविधान की धाराओं के अनुसार न चले तो संविधान की धारा 356 के अनुसार राष्ट्रपति राज्य सरकार को विघटित करके राज्य के प्रशासन को अपने हाथ में ले सकता है।
6. राज्य के उच्च अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी-राज्य के उच्च पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी, जिनको केन्द्रीय सरकार नियुक्त करती है, कार्य करते हैं।
7. चुनाव आयोग-राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त निर्वाचन आयोग, संघ तथा राज्यों के निर्वाचन पर नियन्त्रण रखता है।
8. महालेखा परीक्षक-केन्द्र तथा राज्य सरकारों के हिसाब-किताब के निरीक्षण तथा नियन्त्रण के लिए राष्ट्रपति नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) को नियुक्त करता है।
9. अन्तर्राज्यीय नदियों के विवादों को हल करना-ऐसी नदियों के सम्बन्ध में जो एक से अधिक राज्यों में से होकर गुज़रती है, सभी झगड़ों को निपटने और उनके सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार संसद् को है। ऐसे किसी झगड़े में उसे अधिकार है कि वह कानून बनाकर मामले को न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र (सर्वोच्च न्यायालय) से बाहर घोषित कर दे।
10. राज्य की सरकारों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन-संघीय सरकार भारत के सारे राज्यों में शासन सम्बन्धी एकरूपता स्थापित करने के लिए राज्य की सरकारों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुला सकती है तथा उनको कुछ सिफ़ारिशें भी कर सकती है।
11. अन्तर्राज्यीय परिषद्-राज्यों के आपसी झगड़े निपटाने के लिए राष्ट्रपति अन्तर्राज्यीय परिषद् बना सकता है। अन्तर्राज्यीय परिषद् (Inter-State Council) के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • राज्यों में आपसी झगड़ों की छानबीन करके उसके सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट देना।
  • संघ तथा राज्यों के सामूहिक हितों पर विचार करना।
  • संघीय सरकार द्वारा अन्तर्राज्य सम्बन्धी पूछे गये विषयों पर सलाह देना।

12. राष्ट्रपति अनुसूचित, आदिम जातियों तथा पिछड़ी जातियों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए राज्यों को आवश्यक आदेश भी दे सकता है।
13. राज्यपाल की प्रार्थना पर और राष्ट्रपति की स्वीकृति से संघीय लोक सेवा आयोग राज्य की किसी ज़रूरत के लिए कार्य कर सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)—वैधानिक क्षेत्र की तरह प्रशासनिक क्षेत्र में भी केन्द्रीय सरकार की स्थिति अत्यधिक प्रभावशाली है। राज्यपाल संवैधानिक मुखिया होने के बावजूद भी केन्द्रीय सरकार का प्रतिनिधि होता है। केन्द्रीय सरकार अनुच्छेद 356 का प्रयोग करके विरोधी दलों की सरकारों को अपदस्थ करके राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध

प्रश्न 4.
संघ और राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों की व्याख्या करें।
(Discuss the financial relations between the Union and States in India.)
उत्तर-
डी० डी० बसु का कहना है कि, “कोई भी संघ राज्य सफल नहीं हो सकता जब तक कि संविधान द्वारा प्रदत्त उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए संघ तथा राज्यों के पास पर्याप्त आर्थिक साधन न हों।” परन्तु वित्तीय स्वायत्तता के इस सिद्धान्त को भी पूर्णतः अपनाया नहीं गया है। कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया में इकाइयों की आय के साधन इतने अपर्याप्त हैं कि केन्द्रीय सहायता के बिना उनका काम नहीं चल सकता। दूसरी ओर स्विट्ज़रलैंड में संघ सरकार को आर्थिक सहायता के लिए राज्य सरकारों पर आश्रित रहना पड़ता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में संघ तथा राज्य सरकार को पूर्ण वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने की कोशिश की गई है। भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के आय के साधनों का विभाजन कानून बनाने की शक्तियों के साथ कर दिया गया है।

1. कर निर्धारण की शक्ति का वितरण और करों से प्राप्त आय का विभाजन-भारतीय संविधान में वित्तीय धाराओं की. दो विशेषतायें हैं- एक तो संघ व राज्यों के मध्य कर निर्धारण की शक्ति का पूर्ण विभाजन कर दिया गया है और दूसरे करों से प्राप्त आय का विभाजन किया गया है
संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार केन्द्र तथा राज्यों में राजस्व का विभाजन निम्नलिखित ढंग से किया गया-
(क)संघीय सरकार की आय के साधन-संघीय सरकार को आय के अलग साधन प्राप्त हैं। इन साधनों में कृषि आय को छोड़ कर आय-कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, निगम कर, कृषि भूमि को छोड़ कर अन्य सम्पत्ति शुल्क, निर्यात शुल्क, व्यावसायिक उद्यमों पर कर आदि प्रमुख हैं।।
(ख) राज्यों की आय के साधन-राज्यों की आय के साधन अलग कर दिए गए हैं। उनमें भू-राजस्व, कृषि, आय-कर, कृषि भूमि कर, उत्तराधिकार शुल्क, सम्पत्ति शुल्क, उत्पादन कर, बिक्री-कर, यात्री-कर, मनोरंजन-कर, मुद्रांक शुल्क (Stamp duty), पशु कर, बिजली खपत आदि मुख्य हैं।

2. करों की वसूली व उनके बंटवारे की व्यवस्था-संघीय सूची में करों की आय को केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित किया गया है। इनको चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है

  • ऐसे कर जो केन्द्र द्वारा लगाए गए तथा इकट्ठे किए जाते हैं, परन्तु उनका विभाजन केन्द्र तथा राज्यों में किया जाता है, जैसे आय-कर (Income Tax) ।
  • ऐसे कर जो केन्द्र द्वारा लगाए जाते हैं, केन्द्र द्वारा एकत्र किए जाते हैं और इनकी पूर्ण आय केन्द्र के पास रहती है। जैसा आयात-निर्यात कर (Custom Duty), आयकर तथा अन्य करों पर सरचार्ज।
  • ऐसे कर जो केन्द्र द्वारा लगाए जाते हैं पर राज्यों द्वारा एकत्र और व्यय होते हैं जैसे स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty), दवाइयों तथा मद्य-पदार्थों तथा श्रृंगार प्रसाधन वाली वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क आदि।
  • ऐसे कर जो केन्द्र द्वारा लगाए तथा इकट्ठे किए जाते हैं परन्तु राज्यों में बांट दिए जाते हैं। कृषि भूमि के अतिरिक्त सम्पत्ति उत्तराधिकार पर शुल्क, कृषि भूमि के अतिरिक्त सम्पत्ति पर भू-सम्पत्ति शुल्क, रेल, वायु तथा समुद्री जहाज़ द्वारा लाए गए यात्रियों तथा माल पर कर, रेल के किरायों तथा माल भाड़ों पर कर आदि।

3. अनुदान (Grants in aid)—संविधान द्वारा यह भी व्यवस्था है कि केन्द्रीय सरकार राज्यों को सहायक अनुदान दे। यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शक्ति है जिसके द्वारा संघ राज्यों पर नियन्त्रण रख सकता है।
संघीय सरकार ही अनुदान की राशि और अनुदान की शर्तों को नियत करती है जिसके अनुसार राज्य सरकारें इन अनुदानों का प्रयोग कर सकती हैं।

4. ऋण (Borrowing)-संविधान में यह लिखा है कि राज्य सरकार अपने राज्य विधानमण्डलों द्वारा बनाए गए नियमों के अन्तर्गत अपनी संचित निधि की जमानत पर केन्द्रीय सरकार से ऋण ले सकती है। ध्यान रहे, राज्य किसी दूसरे देश से ऋण नहीं ले सकता। संघीय सरकार भी अपनी संचित निधि की जमानत पर संसद् की आज्ञानुसार ऋण ले सकती है।

5. वित्तीय आयोग (Finance Commission)-संविधान द्वारा यह भी व्यवस्था की गई है कि देश की आर्थिक परिस्थिति के अध्ययन के लिए समय-समय पर हमारे राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की नियुक्ति करेंगे। संविधान में लिखा है कि इस संविधान के आरम्भ होने से दो साल की अवधि के भीतर राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा जिसका एक सभापति होगा और उसमें चार अन्य सदस्य होंगे। हर पांच साल के बाद एक नया वित्त आयोग स्थापित किया जाएगा। संसद् इस आयोग के लिए योग्यताएं और उसकी नियुक्ति का तरीका निश्चित करेगी। वित्त आयोग का मुख्य कार्य केन्द्र और राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों को सुधारने के लिए सलाह देना है।

6. करों की विमुक्ति (Exemption from Taxation) अनुच्छेद 285 के अनुसार जब तक संसद् विधि द्वारा कोई प्रतिबन्ध न लगा दे, राज्यों द्वारा संघ की सम्पत्ति पर कर नहीं लगाया जा सकता। भारत सरकार की रेलवे द्वारा प्रयोग में आने वाली बिजली पर संसद् की अनुमति के अभाव में राज्य किसी प्रकार का शुल्क नहीं लगा सकता। दूसरी ओर संघ सरकार राज्य की सम्पत्ति और आय पर कर लगा सकती है।

7. वित्तीय आपात्कालीन शक्तियां (Financial Emergency Powers)-अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपात्कालीन शक्तियां प्रदान करता है। वित्तीय आपात्काल की घोषणा होने पर राज्यों की आय सीमा उन्हीं करों तक सीमित रहती है जो राज्य सूची में उल्लिखित हैं। वित्तीय आपात्काल में राष्ट्रपति संविधान के किसी भी ऐसे अनुच्छेद को निलम्बित कर सकता है जिसका सम्बन्ध या तो अनुदानों से हो या संघ के करों की आय के भाग को बांटने से हो।

8. भारत के नियन्त्रण एवं महालेखा परीक्षक द्वारा नियन्त्रण-नियन्त्रण एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति मन्त्रिमण्डल के परामर्श से राष्ट्रपति करता है। यह संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों के हिसाब का लेखा रखने के ढंग और उनकी निष्पक्ष रूप से जांच करता है। संसद् नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के द्वारा ही राज्यों की आय पर नियन्त्रण रखती है।
वित्तीय सम्बन्धों की आलोचना (Criticism of Financial Relations)-वित्तीय क्षेत्र में भी राज्यों की स्थिति काफ़ी शोचनीय है। राज्यों के आय के साधन इतने सीमित हैं कि राज्य अपनी विकासशील नीतियों को बिना केन्द्रीय सहायता के लागू नहीं कर पाते। अत: राज्यों को केन्द्र पर वित्तीय सहायता के लिए निर्भर रहना पड़ता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission), केन्द्रीय कल्याण बोर्ड (Central Welfare Board) और योजना आयोग राज्यों को सशर्त अनुदान केन्द्र के अभाव में अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। वित्त कमीशन की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और राज्यों को इस सम्बन्ध में कोई शक्ति प्राप्त नहीं है। राष्ट्रपति वित्तीय संकट को घोषित करके राज्यों के वित्तीय प्रबन्ध को अपने हाथ में ले सकता है। केन्द्र विरोधी दलों की सरकारों को अनुदान देने में मतभेद की नीति का अनुसरण करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघ और राज्यों के बीच वैधानिक शक्तियों का विभाजन कितनी सूचियों में किया गया है ? वर्णन करें।
उत्तर-
संघ और राज्यों के वैधानिक सम्बन्धों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची कहा जाता है।

(क) संघ सूची-संघ सूची में 97 विषय हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद् को प्राप्त है। इन विषयों में युद्ध और शान्ति, डाक-तार, प्रतिरक्षा, नोट और मुद्रा आदि महत्त्वपूर्ण विषय सम्मिलित हैं।
(ख) राज्य सूची-राज्य सूची में 66 विषय हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के विधानमण्डलों के पास है। इस सूची में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और जेल, स्थानीय सरकार, सड़कें, पुल इत्यादि विषय शामिल
(ग) समवर्ती सूची-इस सूची में 47 विषय हैं। इस सूची में न्याय, समाचार-पत्र, पुस्तकें तथा छापाखाना, बिजली इत्यादि विषय सम्मिलित हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र तथा राज्यों को प्राप्त है।

प्रश्न 2.
राज्य सूची से आप क्या समझते हैं ? इस सूची के प्रमुख विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
वह सूची, जिसके विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्यों के विधानमण्डलों के पास है, राज्य सूची कहलाती है। राज्य सूची में कुल 66 विषय हैं। इस सूची में शामिल 66 विषयों में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा जेल, स्थानीय सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सड़कें, पुल, उद्योग, पशुओं और गाड़ियों पर टैक्स, विलासिता तथा मनोरंजन पर टैक्स इत्यादि महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 26 संघ और राज्यों में सम्बन्ध

प्रश्न 3.
केन्द्र, राज्यों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार करता है ?
उत्तर-
राज्य सरकारों के साधन इतने पर्याप्त नहीं हैं कि केन्द्रीय सरकार की सहायता के बिना उनका कार्य सुचारू रूप से चल सके। अतः राज्यों को अपने कार्य को सम्पन्न करने के लिए केन्द्रीय सरकार की आर्थिक सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। केन्द्रीय सरकार, राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति निम्न ढंग से करती है

  • करों की वसूली तथा उनके बंटवारे की व्यवस्था-संघीय सूची के विषयों पर लगाए गए करों की आय को केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित किया गया है।
  • अनुदान राज्यों की आय के पर्याप्त साधन न होने के कारण उन्हें संघीय सरकार द्वारा दी गई आर्थिक सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। संघीय सरकार प्रत्येक वर्ष राज्यों को सहायक अनुदान देकर उनकी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
  • ऋण-राज्य सरकार अपने राज्य विधानमण्डलों द्वारा बनाए गए नियमों के अन्तर्गत अपनी संचित निधि की ज़मानत पर केन्द्रीय सरकार से ऋण ले सकती है।

प्रश्न 4.
समवर्ती सूची से आप क्या समझते हैं ? इस सूची में कौन-कौन से प्रमुख विषय आते हैं ?
उत्तर-
समवर्ती सूची में ऐसे विषय सम्मिलित किए गए हैं, जिन पर संसद् तथा राज्य विधानमण्डल दोनों ही कानून बना सकते हैं। यदि राज्य विधानमण्डल और संसद् द्वारा समवर्ती सूची पर बनाए गए कानून में मतभेद हो तो संसद् के कानून को प्राथमिकता दी जाती है और राज्य का कानून उस सीमा तक रद्द हो जाता है जिस सीमा तक राज्य का कानून संघीय कानून का विरोध करता है। समवर्ती सूची में 47 विषय हैं। इसके अन्तर्गत विवाह, विवाह-विच्छेद, दण्ड विधि, दीवानी कानून, न्याय, समाचार-पत्र, पुस्तकें और छापाखाना, सामाजिक सुरक्षा आदि विषय आते हैं।

प्रश्न 5.
संसद् राज्य सूची में दिए गए विषयों पर कब कानून बना सकती है ?
उत्तर-
निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद् राज्य सूची में दिए गए विषयों पर कानून बना सकती है-

  • यदि राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित कर दे तो संसद् उस विषय पर कानून बना सकती है।
  • संकटकाल की घोषणा के दौरान संसद् राज्य सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।
  • दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डलों की प्रार्थना पर संसद् उन राज्यों के लिए कानून बना सकती है।
  • जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है तब उस राज्य के लिए संसद् राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।

प्रश्न 6.
वित्त आयोग पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
संविधान द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि देश की आर्थिक परिस्थिति के अध्ययन के लिए समय-समय पर हमारे राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की नियुक्ति करेंगे। संविधान में लिखा है कि इस संविधान के आरम्भ होने से दो साल की अवधि के भीतर राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा जिसका एक सभापति होगा और इसमें चार अन्य सदस्य होंगे। हर पांच साल के बाद एक नया वित्त आयोग स्थापित किया जाएगा। संसद् इस आयोग के लिए योग्यताएं और उसकी नियुक्ति का तरीका निश्चित करेगी। 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन० के० सिंह की अध्यक्षता में 15वां वित्त आयोग नियुक्त किया गया।

वित्त आयोग निम्नलिखित बातों के बारे में सलाह देता है-

  • केन्द्र और राज्यों में राजस्व का विभाजन।
  • केन्द्र और राज्यों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर राज्य सरकारों को दिए जाने वाले अनुदान की मात्रा का सुझाव देता है।
  • यह केन्द्रीय सरकार तथा राज्यों की सरकारों के बीच किए गए किसी समझौते को तथा उसमें परिवर्तन करने के लिए भी राष्ट्रपति को सिफ़ारिश कर सकता है।
  • अन्य जो भी मामले राष्ट्रपति द्वारा वित्त आयोग को सौंपे जाएंगे उन सब की जांच-पड़ताल करना।

प्रश्न 7.
सरकारिया आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
केन्द्र व राज्यों के सम्बन्धों पर विचार करने के लिए 1983 में प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने सरकारिया आयोग की स्थापना की। सरकारिया आयोग ने अक्तूबर, 1987 में अपनी रिपोर्ट पेश की और रिपोर्ट में अग्रलिखित सिफ़ारिशें की-

  • सरकारिया आयोग ने केन्द्र व राज्यों के विवादों को हल करने के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना स्थायी तौर से करने की सिफ़ारिश की।
  • राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व उस राज्य के मुख्यमन्त्री की सलाह लेनी चाहिए।
  • समवर्ती सूची के विषय पर कानून बनाने से पूर्व केन्द्र को राज्यों की सलाह लेनी चाहिए।
  • आयोग ने राज्यों की सरकारों के वित्तीय साधन में वृद्धि करने पर बल दिया।

प्रश्न 8.
अन्तर्राज्यीय परिषद् पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति को सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए एक अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना करने का अधिकार है। राष्ट्रपति इस परिषद् द्वारा किए जाने वाले कार्यों और संगठन की प्रक्रिया को निश्चित कर सकता है। इस परिषद् के कार्य इस प्रकार हैं-

  • राज्यों के मध्य पैदा होने वाले विवादों की जांच-पड़ताल करना और उन्हें हल करने के बारे में सलाह देना।
  • उन विषयों की जांच-पड़ताल करना जो कुछ या सभी राज्यों या संघ और एक या एक से अधिक राज्यों के सामूहिक हितों में हों।
  • सामूहिक हित के विषय के बारे में खासतौर पर उन विषयों के बारे में नीति और कार्यवाही के अच्छे तालमेल के लिए सिफ़ारिश करना।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघ और राज्यों के बीच वैधानिक शक्तियों का विभाजन कितनी सूचियों में किया गया है ? वर्णन करें।
उत्तर-
संघ और राज्यों के वैधानिक सम्बन्धों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
संघ सूची पर नोट लिखें।
उत्तर-
संघ सूची में 97 विषय हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद् को प्राप्त है। इन विषयों में युद्ध और शान्ति, डाक-तार, प्रतिरक्षा, नोट और मुद्रा आदि महत्त्वपूर्ण विषय सम्मिलित हैं।

प्रश्न 3.
राज्य सूची से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह सूची, जिसके विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्यों के विधानमण्डलों के पास है, राज्य सूची कहलाती है। राज्य सूची में कुल 66 विषय हैं। इस सूची में शामिल 66 विषयों में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा जेल, स्थानीय सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सड़कें, पुल, उद्योग, पशुओं और गाड़ियों पर टैक्स, विलासिता तथा मनोरंजन पर टैक्स इत्यादि महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश है।

प्रश्न 4.
समवर्ती सूची से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
समवर्ती सूची में ऐसे विषय सम्मिलित किए गए हैं, जिन पर संसद् तथा राज्य विधानमण्डल दोनों ही कानून बना सकते हैं। यदि राज्य विधानमण्डल और संसद् द्वारा समवर्ती सूची पर बनाए गए कानून में मतभेद हो तो संसद् के कानून को प्राथमिकता दी जाती है। समवर्ती सूची में 47 विषय हैं।

प्रश्न 5.
वित्त आयोग पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
संविधान द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि देश की आर्थिक परिस्थिति के अध्ययन के लिए समय-समय पर हमारे राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की नियुक्ति करेंगे। संविधान में लिखा है कि इस संविधान के आरम्भ होने से दो साल की अवधि के भीतर राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा जिसका एक सभापति होगा और इसमें चार अन्य सदस्य होंगे। 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन० के० सिंह की अध्यक्षता में 15वां वित्त आयोग नियुक्त किया गया।

प्रश्न 6.
सरकारिया आयोग की दो मुख्य सिफ़ारिशें कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • सरकारिया आयोग ने केन्द्र व राज्यों के विवादों को हल करने के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना स्थायी तौर से करने की सिफारिश की।
  • राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व उस राज्य के मुख्यमन्त्री की सलाह लेनी चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. केन्द्र व राज्यों के बीच एक वैधानिक सम्बन्ध बताएं।
उत्तर- केन्द्र व राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है।

प्रश्न 2. राज्य में राष्ट्रपति शासन किस अनुच्छेद के अन्तर्गत लगाया जाता है ?
उत्तर-अनुच्छेद 356 के अनुसार।

प्रश्न 3. संघीय सरकार की आय के कोई दो साधन बताएं।
उत्तर-

  1. सीमा शुल्क
  2. उत्पाद शुल्क।

प्रश्न 4. राज्यों की आय के कोई दो साधन बताएं।
उत्तर-

  1. भू-राजस्व
  2. उत्पादन कर।

प्रश्न 5. सरकारिया आयोग का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-केन्द्र-राज्य सम्बन्ध।

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प्रश्न 6. किन्हीं दो देशों के नाम लिखो जहां पर अवशेष शक्तियां राज्यों के पास हैं?
उत्तर-

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2. स्विट्जरलैंड।

प्रश्न 7. किसी एक परिस्थिति का वर्णन करें जब केन्द्र राज्य सूची पर भी कानून बना सकता है?
उत्तर-राज्य सभा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करके कानून बनाने की शक्ति संसद् को दे सकती है।

प्रश्न 8. 30 अप्रैल, 1977 को जनता सरकार ने जिन राज्यों की विधान सभाओं को भंग करने का निर्णय किया उनमें से किन्हीं दो राज्यों का नाम लिखें।
उत्तर-

  1. पंजाब
  2. हरियाणा।

प्रश्न 9. केन्द्र और प्रान्तों के बीच एक वित्तीय सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-केन्द्र प्रान्तों को अनुदान देता है।

प्रश्न 10. संघ सूची में कितने विषय हैं ?
उत्तर-97 विषय।

प्रश्न 11. राज्य सूची में कितने विषय हैं ?
उत्तर-राज्य सूची में 66 विषय हैं।

प्रश्न 12. समवर्ती सूची के विषयों की संख्या बताओ।
उत्तर-समवर्ती सूची में 47 विषय हैं।

प्रश्न 13. संघ सूची पर कौन कानून बनाता है?
उत्तर-संघ सूची पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है।

प्रश्न 14. राज्य सूची पर कौन कानून बनाता है?
उत्तर-राज्य सूची पर राज्य सरकार कानून बनाती है।

प्रश्न 15. संघ तथा राज्य सूची का एक-एक विषय लिखो।
उत्तर-मुद्रा व रेलवे संघ सूची के विषय हैं जबकि पुलिस व सड़क परिवहन राज्य सूची के विषय हैं।

प्रश्न 16. समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार किसके पास है?
उत्तर-संसद् तथा राज्य विधानमण्डल दोनों के पास है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कुछ बिलों पर ………… की अनुमति आवश्यक है।
2. अनुच्छेद ……… के अनुसार राष्ट्रपति राज्य सरकार को आवश्यकतानुसार निर्देश दे सकता है।
3. संविधान के अनुच्छेद ………. के अनुसार राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति कर सकता है।
4. नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति ………… के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।
5. राज्य सरकार अपने राज्य विधान मण्डल द्वारा दिये गए नियमों के अन्तर्गत अपनी ……….. की जमानत पर केन्द्रीय सरकार से ऋण ले सकती है।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपति
  2. 257
  3. 280
  4. मन्त्रिमण्डल
  5. संचित निधि।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।

1. भारत में संघ एवं राज्यों में कोई सम्बन्ध नहीं पाया जाता।
2. केन्द्र एवं राज्यों के सम्बन्धों का वर्णन भारतीय संविधान के भाग XI की 19 धाराओं (अनुच्छेद 245-263) में मिलता है।
3. संघ सूची पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को ही है।
4. राज्य सूची पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को ही है।
5. राज्यपाल की नियुक्ति मुख्यमंत्री करता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के अन्तर्गत संघीय सूची में कितने विषय हैं ?
(क) 66
(ख) 44
(ग) 97
(घ) 107
उत्तर-
(ग) 97

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से एक संघीय सूची का विषय है-
(क) सिंचाई
(ख) कानून-व्यवस्था
(ग) भू-राजस्व
(घ) प्रतिरक्षा।
उत्तर-
(घ) प्रतिरक्षा।

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प्रश्न 3.
यह किसने कहा था-“भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है पर भावना में एकात्मक है ?”
(क) डी० एन० बैनर्जी
(ख) दुर्गादास बसु
(ग) डॉ० अम्बेदकर
(घ) के० सी० व्हीयर।
उत्तर-
(क) डी० एन० बैनर्जी

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