PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

PSEB 11th Class Economics संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
न्यादर्श किसे कहते हैं?
उत्तर-
न्यादर्श सांख्यिकी सर्वेक्षण की वह विधि है जिसमें अनुसन्धानकर्ता सभी मदों के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित न करके केवल कुछ ऐ मदों के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित करता है जो सब का प्रतिनिधित्व करती हैं।

प्रश्न 2.
संगणना विधि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संगणना विधि वह विधि है जिसमें किसी अनुसन्धान से सम्बन्धित समग्र या जनसंख्या की प्रत्येक मद के सम्बन्ध में आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इनके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 3.
निदर्शन का कोई एक आवश्यक तत्त्व लिखिए।
उत्तर-
न्यादर्श इस प्रकार का होना चाहिए कि वह समग्र की सभी विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे। यह तभी सम्भव हो सकता है जब समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श के रूप में चुने जाने का समान अवसर प्राप्त हो।

प्रश्न 4.
दैव निदर्शन (Random Sampling) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
दैव निदर्शन वह विधि है जिसके अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के समान अवसर होते हैं।

प्रश्न 5.
स्तरित (Stratified) अथवा मिश्रित (Mixed) निदर्शन किसे कहते हैं?
उत्तर-
स्तरित निदर्शन विधि के अन्तर्गत समग्र की इकाइयों को उनकी विशेषताओं के अनुसार विभिन्न भागों (Strata) में बांट लिया जाता है तथा प्रत्येक भाग से दैव निदर्शन की विधि द्वारा अलग-अलग न्यादर्श का चुनाव किया जाता है जो उस भाग का प्रतिनिधित्व करते हों।

प्रश्न 6.
व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
व्यवस्थित निदर्शन विधि में समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वर्णात्मक आधार पर क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इनमें से न्यादर्श की पहली इकाई का चुनाव करके दैव निदर्शन विधि द्वारा न्यादर्श प्राप्त कर लिया जाता है।

प्रश्न 7.
सविचार निदर्शन (Deliberate or Purpose Sampling) किसे कहते हैं?
उत्तर-
इस पद्धति में चयन करने वाला न्यादर्श की इकाइयों का चयन समझ-बूझ कर करता है। चयन करते समय वह प्रयत्न करता है कि समग्र की सब विशेषताएं न्यादर्श में आ जाएं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह समग्र की प्रत्येक प्रकार की विशेषता को प्रकट करने वाले पदों को अपने न्यादर्श में सम्मिलित करता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 8.
जब किसी अनुसन्धान के लिए समग्र तथा जनसंख्या की प्रत्येक इकाई से सूचना इकट्ठी की जाती है तो इसको …………….. कहा जाता है।
(a) न्यादर्श
(b) गणना
(c) दैव निदर्शन
(d) तरतीबवार निदर्शन।
उत्तर-
(b) गणना।

प्रश्न 9.
जब समग्र में से प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के बराबर मौके हों तो इसको …………. न्यादर्श कहा जाता है।
(a) दैव निदर्शन
(b) सविचार निदर्शन
(c) स्तरित निदर्शन
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) दैव निदर्शन।

प्रश्न 10.
जब सभी इकाइयों के स्थान पर उनके प्रतिनिधियों से सूचना इकट्ठी की जाती है तो इसको …………. कहा जाता है।
उत्तर-
न्यादर्शन।

प्रश्न 11.
जब अनुसन्धानकर्ता समग्र की प्रत्येक इकाई से सूचना इकट्ठी करता है तो इसको न्यादर्श विधि कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 12.
स्तरित निदर्शन अथवा मिश्रित निदर्शन में समूह की इकाइयों को उनकी विशेषता के आधार पर भागों में बांट के दैव निदर्शन लिए जाते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
न्यादर्श संपूर्ण समग्र की विशेषताओं वाला हो और निष्कर्ष निकालने योग्य हो।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
दैव विधि वह विधि है जिसको समग्र की प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के सामान्य अवसर होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
सविचार निदर्शन मे अनुसंधानकर्ता समग्र में उन इकाइयों को चुनता है जो उसके अनुसार समग्र की प्रतिनिधिता करती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
जब समग्र में से उन इकाइयों का चुनाव किया जाता है जो अनुसंधानकर्ता के अनुसार समग्र की प्रतिनिधिता करती है इसको ……….. विधि कहा जाता है।
(a) दैव विधि
(b) सविचार निदर्शन
(c) मिश्रित निदर्शन
(d) सुविधा अनुसार निदर्शन।
उत्तर-
(b) सविचार निदर्शन।

प्रश्न 17.
जब निदर्शन विधि अनुसार समग्र की इकाइयों की संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वरणात्मक आधार पर कर्मबद्ध किया जाता हैं तो उसको ………… विधि कहा जाता है।
(a) दैव विधि
(b) सविचार निदर्शन
(c) व्यवस्थित निदर्शन
(d) सुविधा अनुसार निदर्शन।
उत्तर-
(c) व्यवस्थित निदर्शन।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संगणना विधि से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
संगणना प्रणाली (Census Method) संगणना प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई (Statistical Unit) का अध्ययन किया जाता है और उसमें निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत अनुसन्धान को विस्तृत रूप से लिया जाता है और समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है ताकि निष्कर्ष शुद्धता से परिपूर्ण हो भारत में जनसंख्या का अनुसन्धान इस संगणना विधि पर ही आधारित है।

प्रश्न 2.
निदर्शन प्रणाली से क्या आशय है ?
उत्तर-
निदर्शन प्रणाली (Sampling Method) संगणना प्रणाली के विपरीत इस प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन नहीं किया जाता, बल्कि समय में से कुछ इकाइयों को छांट कर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, “समस्त समूह के एक अंश का अध्ययन किया जाता है, सम्पूर्ण समूह या समग्र का नहीं।” उदाहरणार्थ अगर किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थियों का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं और जो निष्कर्ष निकालेंगे वे सम्पूर्ण समग्र पर लागू होंगे। निदर्शन प्रणाली का आधार यह है कि “छांटे हुए न्यादर्श” (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएँ होती हैं जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।”

प्रश्न 3.
निदर्शन इकाइयां किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
निदर्शन इकाइयां (Sampling Units)-न्यादर्श लेने से पहले समग्र को निदर्शन इकाइयों में बांटा जाता है। ये इकाइयां ही वास्तविक निदर्शन विधि का आधार होती हैं। उदाहरणत: किसी देश की जनगणना में ‘व्यक्ति’ निदर्शन इकाई है। कई सर्वेक्षणों में व्यक्तियों का समूह अर्थात् ‘परिवार’ भी निदर्शन इकाई हो सकता है। ये इकाइयां प्राकृतिक (Natural) व कृत्रिम निदर्शन इकाई का एक उदाहरण ‘एक मानचित्र पर आयताकार क्षेत्र’ दिया है। एक समस्या के सर्वेक्षण में निदर्शन इकाइयां एक से अधिक भी हो सकती हैं। यदि हम एक जिले के गांवों में रहने योग्य मकानों के बारे में सर्वेक्षण करना चाहें तो निदर्शन इकाई पहले चरण में ‘गांव’ और दूसरे चरण में मकान हो सकते हैं।

प्रश्न 4.
न्यादर्श के आकार का चुनाव आप कैसे करेंगे ?
उत्तर-
न्यादर्श के आकार का चुनाव (Choice of Sampling Size) सर्वेक्षण करते समय यह निश्चित करना बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि न्यादर्श का आकार क्या हो। यदि यह आकार छोटा हो तो वह समग्र का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। ऐसी हालत में न्यादर्श के निष्कर्मों को समग्र पर लागू नहीं किया जा सकेगा। सामान्यतः न्यादर्श का आकार जितना कम होगा, परिणाम उतने ही कम विश्वसनीय होंगे और न्यादर्श का आकार जितना ज्यादा होगा, परिणामों की विश्वसनीयता उतनी ही ज्यादा होगी। दूसरी ओर यदि न्यादर्श का आकार बड़ा होता जाए तो इसमें लागत अधिक आएगी और समंक एकत्र करने में समय व श्रम भी ज्यादा लगेगा। इससे फिर संगणना तथा निदर्शन विधियों में कोई खास अन्तर नहीं रह जाएगा।

इससे स्पष्ट है कि न्यादर्श के आकार का निर्णय लेना एक कठिन कार्य है और इसका निर्णय बहुत सावधानी से करना पड़ता है। लागत तथा विश्वसनीयता में एक तरह का तालमेल रखना पड़ेगा।

प्रश्न 5.
न्यादर्श के आकार का निर्णय करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. समग्र का आकार-समग्र का आकार यदि बड़ा है तो न्यादर्श का आकार भी बड़ा होना चाहिए।
  2. उपलब्ध साधन-यदि उपलब्ध साधन बहुत हैं तो न्यादर्श का बड़ा आकार लिया जा सकता है।
  3. वांछित शुद्धता का स्तर-यदि किसी सांख्यिकी जांच में वांछित शुद्धता का स्तर बहुत ऊंचा है तो न्यादर्श का आकार बड़ा होना चाहिए।
  4. समग्र का स्वभाव-यदि समग्र सजातीय है तो न्यादर्श को छोटा आकार उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।5. प्रतिदर्श विधि-अनुकूलतम
  5. आकार प्रतिदर्श विधि पर निर्भर करता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में अन्तर (Difference between Census Method and Sample Method)-

संगणना विधि (Census Method) न्यादर्श विधि  (Sample Method)
(1) इस विधि में समग्र की हर एक इकाई का अध्ययन किया जाता है। (1) इस विधि में समग्र की कुछ इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।
(2) इसमें वित्त, समय तथा परिश्रम की काफी मात्रा चाहिए। (2) इसमें धन, समय तथा परिश्रम की कम मात्रा चाहिए।
(3) संगणना विधि में सभी इकाइयों का अध्ययन होता है, इसलिए निकाले गए निष्कर्ष भरोसेमन्द होते हैं। (3) न्यादर्श विधि में कुछ इकाइयों का अध्ययन होता है, इसलिए निकाले गए निष्कर्ष कम भरोसेमन्द होते हैं।
(4) यह विजातीय समग्र के लिए अनुकूल है। (4) यह सजातीय समग्र के लिए अनुकूल है।
(5) यह विधि तब प्रयोग नहीं हो सकती यदि समग्र का समग्र का एक भाग न भी हो। (5) यह विधि उस समय भी प्रयोग हो जाती है जब एक भाग न हो।
(6) यह विधि उन अनुसन्धानों के लिए उपयुक्त है जहां अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित है। (6) यह विधि उन अनुसन्धानों के लिए उपयुक्त है जहां अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत है।
(7) इस विधि में आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अधिक अन्वेषकों की नियुक्ति करनी होती है। (7) इस विधि में थोड़े-से शिक्षित अन्वेषक आंकड़ों का संकलन करते हैं।
(8) इस विधि में अध्ययन निश्चितता के आधार पर होता  है। (8) इस विधि में अध्ययन सम्भावनाओं के आधार पर होता है।
(9) इस विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना अधिक विश्वसनीय तथा विशुद्ध होती है। (9) इस विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना में शुद्धता तथा विश्वसनीयता कम होती है।
(10) इस विधि में अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना कठिन नहीं होता है। (10) इस विधि में अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना कठिन होता है।

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प्रश्न 2.
संगणना विधि तथा निदर्शन विधि में चयन करते समय किन कारकों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
सभी अनुसन्धानों में अनुसन्धानकर्ता को संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में से एक का चयन करना पड़ता है। यह चयन निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है

  1. समग्र का आकार (Size of Population)-यदि समग्र (Universe) का आकार बहुत छोटा है तो संगणना विधि को प्राथमिकता दी जाती है। जब समय का आकार विस्तृत हो तब न्यादर्श विधि का चयन किया जाता है।
  2. साधनों की उपलब्धता (Availability of Resources) यदि अनुसन्धानकर्ता के पास बहुत अधिक मात्रा में वित्त तथा श्रम हों, तो संगणना विधि का चयन किया जाता है किन्तु यदि यह साधन कम मात्रा में हैं तो न्यादर्श विधि को चुनना चाहिए।
  3. समग्र का स्वभाव (Nature of Population)-यदि समग्र असंख्या तथा नष्ट होने वाला हो तो संगणना विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता, वहां न्यादर्श विधि का प्रयोग करना पड़ता है।
  4. वांछित शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy Desired)–यदि अनुसन्धान में वांछित शुद्धता का स्तर बहुत ऊंचा है तो हमें संगणना विधि को अपनाना चाहिए। इसके विपरीत दशा में हम न्यादर्श विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  5. जांच का उद्देश्य (Purpose of the Enquiry)—यदि जांच का उद्देश्य ऐसा है कि समग्र की हर इकाई का अध्ययन करना है तो न्यादर्श विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इस दशा में संगणना विधि का प्रयोग ही किया जाता है।

प्रश्न 3.
सविचार निदर्शन तथा दैव निदर्शन में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
सविचार निदर्शन तथा दैव निदर्शन में अन्तर (Difference between Purposive Sampling and Random Sampling)-

सविचार निदर्शन(Purposive Sampling) दैव निदर्शन (Random Sampling)
(1) सविचार निदर्शन में जान-बूझ कर स्वेच्छा से इकाइयां जाती हैं। (1) दैव निदर्शन में इकाइयां दैव के आधार पर चुनी छोटी ली जाती हैं।
(2) सविचार निदर्शन में एक ही दिशा का संचयी विभ्रम कारण क्षतिपूरक होता है। (2) दैव निदर्शन का विभ्रम सम एवं विषय होने के हो सकता है।
(3) सविचार निदर्शन पक्षपात से प्रभावित हो सकता है। (3) दैव निदर्शन पक्षपात रहित होता है या पक्षपात की सम्भावना कम रहती है।
(4) सविचार निदर्शन ऐसी खोजों के लिए उपयुक्त है, जहां समग्र में एक ही प्रकार की इकाइयां हों। (4) दैव निदर्शन में यह आवश्यक नहीं है कि इकाइयाँ एक ही प्रकार की हों।

प्रश्न 4.
विभिन्न न्यादर्श विधियों में किस विधि का चुनाव सर्वोत्तम है ?
उत्तर-
समग्र में न्यादर्श को चुनने की अनेक विधियां हैं। इन्हें न्यादर्श विधियां (Sampling Techniques) कहा जाता है। इन विधियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।
1. दैव न्यादर्श विधियां (Random Sampling Rechniques)-इन विधियों में दैव न्यादर्श विधि, स्तरित विधि, क्रमबद्ध विधि (Systematic Sampling) तथा बहु-स्तरीय विधियों को शामिल किया जाता है। कुछ लेखकों ने क्रमबद्ध विधि (Systematic Sampling), बहुस्तरीय विधि तथा स्तरित विधि को पूर्ण रूप से दैव न्यादर्श विधियां नहीं माना, बल्कि अधूरी न्यादर्श विधि तकनीकें (Restricted random sampling techniques) कहा है।

2. गैर-दैव न्यादर्श विधियां (Non-random Sampling Techniques)-इन विधियों में सविचार कोटा तथा सुविधानुसार न्यादर्श विधियों को शामिल किया गया है। अब प्रश्न यह है कि इन विधियों में से सबसे अच्छी विधि कौन-सी है जो कि अनुसंधान में प्रयोग की जानी चाहिए। सब विधियों के अपने-अपने गुण व दोष हैं। किसी अनुसंधान के लिए अनुकूल या उपयुक्त विधि का चुनाव कई तत्त्वों पर निर्भर करता है।

ये तत्त्व हैं-

  1. समय की उपलब्धता (Availability of Time)
  2. वित्त की उपलब्धता (Availability of Finance)
  3. श्रम की उपलब्धता (Availability of Labour)
  4. वांछित शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy Desired)
  5. अन्वेषक की पदवी (Position of Investigator)
  6. समग्र का स्वभाव (Nature of Population)।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अनुसन्धान की संगणना प्रणाली से आप क्या समझते हैं ? अनुसन्धान की संगणना प्रणाली के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का उल्लेख करें।
(What do you mean by Census Method ? Discuss the Main Conditions for Census Enquire.)
उत्तर-
आंकड़ों को दो विधियों से एकत्रित किया जा सकता है अथवा यों कह सकते हैं कि सांख्यिकीय जांच दो रीतियों से की जाती है-

  1. संगणना विधि (Census Method) और
  2. निदर्शन विधि (Sample Method)।

1. संगणना प्रणाली (Census Method) संगणना प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई (Statistical Unit) का अध्ययन किया जाता है और उसमें निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत अनुसन्धान को विस्तृत रूप से लिया जाता है और समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है ताकि निष्कर्ष शुद्धता से परिपूर्ण हो भारत में जनसंख्या का अनुसंधान इस संगणना विधि पर ही आधारित है।

संगणना अनुसंधान का प्रयोग कहां उचित है-

  • जब समग्र या क्षेत्र का आकार सीमित हो।
  • जहां सांख्यिकीय इकाई (Statistical Unit)) में विविध गुण पाए जाते हों।
  • जहाँ परिशुद्धता को अधिक मात्रा की आवश्यकता हो,
  • जहां विस्तृत अध्ययन या सूचनाएं एकत्रित करनी हों।

संगणना अनुसंधान के लिए उपयुक्त परिस्थितियां (Proper Conditions for Census Enquiry)-नीचे दी हुई परिस्थितियों में ही इस प्रणाली का प्रयोग करना उचित है –

  1. क्षेत्र सीमित (Limited Scope)-यह रीति उस समय काम में लाई जाती है जब अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित हो। यदि क्षेत्र व्यापक हुआ तो अनुसन्धान करने में अधिक धन, समय व व्यक्तियों की आवश्यकता होगी।
  2. आंकड़े कम परिवर्तनशील (Less Flexible Data)-जिस समय के विषय में अनुसन्धान किया जा रहा हो, तत्सम्बन्धी आकंड़ों की प्रकृति व गुण यथासम्भव बहुत कम परिवर्तनशील हों अन्यथा परिवर्तन के उपरान्त प्राप्त आंकड़े महत्त्वहीन हो जाएंगे।
  3. गहरा अध्ययन अपेक्षित (Intensive Study Required)-यह प्रणाली उस समय अपनाई जाती है जब अनुसन्धान विषय से सम्बन्धित पूरी बातों का गहरा अध्ययन अपेक्षित हो।
  4. अधिक.शुद्धता आवश्यक (MoreAccuracy Required)-जहां परिणाम में अधिक-से अधिक शुद्धता प्राप्त करना आवश्यक हो और थोड़ी-सी ढील से भी अनुसन्धान का प्रयोजन व्यर्थ हो जाने की आशंका हो।
  5. न्यादर्श लेने में कठिनाई (Difficulty in Having Sample)-जहां इकाइयां एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न हो, अर्थात् उनमें एकरूपता न हो और प्रत्येक पद में कोई विशेषता या मौलिकता हो, वहाँ न्यादर्श लेना कठिन ही नहीं असम्भव भी होता है। ऐसी स्थिति में संगणना रीति का ही सहारा रह जाता है।

प्रश्न 2.
संगणना प्रणाली के गुण लिखिए। (Write down the merits of Census Method.)
उत्तर-
गुण (Merits)-

  1. गहन अध्ययन सम्भव होना (Possibility of Intensive Study)-इस रीति के द्वारा विषय का गहरा अध्ययन सम्भव है और इस प्रकार अनुसन्धानकर्ता को उस विषय का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। उसे उन बातों का भी अच्छी तरह पता लग जाता है जो अक्सर ही ध्यान से ओझल हो जाती हैं।
  2. अप्रत्यक्ष अध्ययन सम्भव होना (Possibility of Indirect Study)-इस रीति द्वारा उन समस्याओं का भी अध्ययन अप्रत्यक्ष रूप से सम्भव हो जाता है जिनका अध्ययन सांख्यिकी प्रत्यक्ष रूप से करने में असमर्थ होती है, जैसे दरिद्रता, ईमानदारी, बेरोज़गारी आदि।
  3. उच्च स्तर की शुद्धता होना (Accuracy of High Degree)-इस रीति का अनुसरण करने पर उच्च स्तर की शुद्धता की आशा होती है। कारण यह है कि अनुसन्धान के प्रत्येक अंग का व्यक्तिगत निरीक्षण हो जाता है जिससे परिणाम बहुत अंश तक शुद्ध होते हैं।
  4. इकाइयों की भिन्नता में उपयुक्त होना (Suitable in case of Heterogenous units)—यह रीति वहां बहुत उपयुक्त है जहां इकाइयां एक-दूसरे से भिन्न हों और निदर्शन पद्धति (Sample Method) का सफल होना कठिन हो।
  5. अनुसन्धान की प्रकृति (Nature of Investigation) यदि जांच की प्रकृति ही ऐसी है कि सभी पदों का समावेश आवश्यक है, तो समग्र अनुसन्धान आवश्यक होती है, जैसे-जनगणना।
  6. कम पक्षपात (Less Favouritism)-इस विधि का एक लाभ यह भी है कि आविष्कारक पक्षपात नहीं कर सकता। पक्षपात करने की बहुत कम सम्भावना होती है।

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प्रश्न 3.
संगणना प्रणाली के दोष लिखिए। (Write down the demerits of Census Method.)
उत्तर-
दोष (Demerits)-

  1. असुविधाजनक होना (Inconvenient)-यह प्रणाली बहुत अधिक असुविधाजनक है। कारण यह है कि इसमें बहुत अधिक व्यय होता है और इसके लिए अलग से एक पूरा बड़ा विभाग बनाना पड़ता है जिससे प्रबन्ध सम्बन्धी कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं।
  2. सबके लिए सम्भव न होना (Not Possible for An)-इस रीति का प्रयोग बहुत धनी व शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति या संस्थाएं ही कर सकती हैं। सबके लिए इसका प्रयोग सम्भव नहीं है।
  3. सब परिस्थितियों में सम्भव न होना (Not Possible under all Circumstances)-अधिकांश परिस्थितियों में कई कारणों से समग्र अनुसन्धान सम्भव नहीं होता। जहां क्षेत्र विशाल व जटिल हो, जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्पर्क स्थापित करना सम्भव न हो वहां संगणना अनुसन्धान करना असम्भव हो जाता है।
  4. अधिक समय व परिश्रम लगना (More Time and Labour)-इस रीति में समय बहुत लगता है तथा अनुसन्धानकर्ता को बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
  5. अधिक खर्चीली (Costly)-यह विधि बहुत महंगी होती है। समग्र की हर एक इकाई का अध्ययन करने के लिए बहुत धन खर्च करना पड़ता है।
  6. सांख्यिकीय विभ्रम का ज्ञान न होना (No knowledge of Statistical Error)-इस रीति में एक दोष यह है कि सांख्यिकीय विभ्रम का पता नहीं लगाया जा सकता।
  7. नाशवान मदें (Perishable Items) संगणना विधि उन मदों के सांख्यिकी अनुसन्धान के लिए भी उपयोगी नहीं है जो जांच के दौरान ही समाप्त हो जाती है। मानो आपने 200 रसगुल्ले के एक समग्र की संगणना विधि से जांच करनी है। यदि आप प्रत्येक रसगुल्ले को चख कर उसके बारे में सूचना एकत्रित करेंगे तो जब तक आप अपनी जांच समाप्त करेंगे सभी रसगुल्ले समाप्त हो जाएंगे।

प्रश्न 4.
निदर्शन प्रणाली से क्या आशय है ? इस रीति के प्रयोग के क्या कारण हैं ? (What is a meant by Sampling Method ? What are the causes for the line of this Method ?)
उत्तर-
निदर्शन प्रणाली (Sampling Method) संगणना प्रणाली के विपरीत इस प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन नहीं किया जाता, बल्कि समय में से कुछ इकाइयों को छांट कर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, “समस्त समूह के एक अंश का अध्ययन किया जाता है, सम्पूर्ण समूह या समग्र का नहीं।” उदाहरणार्थ अगर किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थियों का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं और जो निष्कर्ष निकालेंगे वे सम्पूर्ण समग्र पर लागू होंगे। निदर्शन प्रणाली का आधार यह है कि “छांटे हुए न्यादर्श” (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएं होती हैं जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।”

सांख्यिकीय अनुसन्धान में निदर्शन प्रणाली का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। क्योंकि इस प्रणाली में अनेक गुण हैं। इस प्रणाली को संगणना प्रणाली के विपरीत अधिक अच्छा समझा जाता है क्योंकि संगणना प्रणाली की समस्त सीमाओं को निदर्शन प्रणाली द्वारा दूर कर दिया जाता है। निदर्शन प्रणाली का प्रयोग कहीं-कहीं तो अत्यावश्यक हो जाता है क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएं व समग्र होते हैं जहां संगणना प्रणाली का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता।

निदर्शन रीति के प्रयोग के कारण-हम निदर्शन रीति के प्रयोग के निम्न कारण पाते हैं-
1. संगणना प्रणाली का प्रयोग सम्भव नहीं (No Possibility of Census Method)-कुछ ऐसी भी वस्तुएं हैं जिनकी जांच संगणना प्रणाली से सम्भव ही नहीं है क्योंकि जांच करने में ही वे समाप्त हो जाएंगी। जैसे, यदि किसी डिब्बे के मक्खन की जांच खाकर करनी हो तो निदर्शन रीति ही अपनानी पड़ेगी अन्यथा सारा मक्खन जांच में समाप्त हो जाएगा।

2. अधिक व्यय (More Expenditure) संगणना रीति में व्यय अधिक होता है, समय तथा परिश्रम भी अधिक लगता है और फल लगभग वही निकलता है जो निदर्शन रीति से।

3. सम्पूर्ण सामग्री का मिलना असम्भव (No Possibility of Complete Data)-कभी-कभी ऐसी भी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जब सम्पूर्ण सामग्री का मिलना असम्भव हो जाता है। ऐसी दशा में निदर्शन रीति का ही सहारा लेना पड़ता है। जैसे, मान लीजिए कि किसी गोदाम में आग लग गई और अनाज के केवल पांच बोरे ही बच पाए।

4. शीघ्र परिवर्तनशील वस्तुएं (Very Changeable Goods)-जब वस्तुओं की प्रकृति शीघ्र परिवर्तनशील न हो तो समय को अपनाने में अधिक समय लगने के कारण फल असन्तोषजनक रहेगा और इस दशा में निदर्शन रीति का ही प्रयोग करना उपयुक्त होगा।

प्रश्न 5.
निदर्शन प्रणाली के गुण लिखें। (Write down the merits of Census Method.)
उत्तर-
गुण (Merits)

  • सरल प्रणाली (Simple Method)-इस प्रणाली का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह बड़ी सरल तथा सुगम है। इसे आसानी से समझा जा सकता है।
  • कम खर्चीली (Less Expensive)-यह रीति कम खर्चीली है। इसको अपनाने पर समय, धन तथा श्रम सभी की बचत होती है।
  • कम समय (Less Time)-चूंकि इस रीति में समय कम लगता है, इसीलिए शीघ्रता से बदलती हुई सामाजिक व आर्थिक समस्याओं से सम्बन्धित अनुसन्धानों के लिए बहुत उपयुक्त है।
  • श्रम की बचत (Labour Saving)-न्यादर्श विधि में क्योंकि समग्र की कुछ इकाइयों को ही लेना होता है, श्रम की भी बचत होती है। न्यादर्श विधि प्रशासनिक पक्ष से संगणना विधि से अधिक उपयुक्त विधि है।
  • फल प्रायः वही (Similar Results) यदि बुद्धिमानी से दैविक निदर्शन या आकस्मिक प्रवरण (random sampling) द्वारा चुनाव किया जाए तो फल लगभग वही होगा जो समग्र रीति द्वारा अनुसन्धान में होगा।
  • वैज्ञानिक (Scientific)-यह रीति अधिक वैज्ञानिक है क्योंकि उपलब्ध समंकों की दूसरे न्यादर्शों या नमूनों द्वारा जांच की जा सकती है।
  • जांच विस्तृत (Detailed Enquiry)-चूंकि चुनी हुई सामग्री बहुत थोड़ी-सी है अत: उसकी विस्तृत जांच की जा सकती है।
  • लोचशीलता (Flexibility) संगणना विधि की तुलना में न्यादर्श विधि अधिक लोच वाली है।
  • विश्वसनीय (Accurate)-यदि न्यादर्श (Sample) को उचित आधार पर छांटा जाए तो उसके निष्कर्ष पूर्णतया विश्वसनीय होंगे।
  • सांख्यिकीय विभ्रम ज्ञात होना (Knowledge of Statistical Error)–अनुसन्धानकर्ता केवल न्यादर्श के आकार से ही अपने अनुसन्धान में सांख्यिकीय विभ्रम ज्ञात कर सकता है और यह भी ज्ञात कर सकता है कि यह विभ्रम सार्थक है अथवा नहीं।

प्रश्न 6.
निदर्शन प्रणाली के दोष लिखिए। (Write down the demerits of Sample Method.)
उत्तर-
दोष (Demerits) –

  1. उच्च स्तरीय शुद्धता के लिए अनुपयुक्त (Not Suitable for High Degree Accuracy)-यदि रीति वहां । के लिए उपयुक्त नहीं जहां बहुत उच्च स्तर की शुद्धता, अपेक्षित हो।
  2. परिणाम भ्रमोत्पादक (Result not Dependable)–यदि न्यादर्श लेने की अच्छी रीति न अपनाई जाए या न्यादर्श की मात्रा अपर्याप्त हो तो परिणाम बहुत भ्रमोत्पादक हो सकते हैं।
  3. पक्षपात (Favouritsm) इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि जांचकर्ता केवल मदों की उन संख्याओं का चयन कर सकता है जो उसे अच्छी लगती हैं। वह मनमर्जी के निष्कर्ष निकाल सकता है जिससे पक्षपात की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।
  4. सजातीयता के अभाव में अनुपयुक्त (Unsuitable in case of Lack of Homogeneity)-जहां सजातीयता का पूर्ण अभाव हो अर्थात् इकाई भिन्न प्रकार की प्रकृति की हो वहां यह प्रणाली नहीं अपनाई जा सकती।
  5. जटिल विधि (Complicated Method) इस प्रणाली को समझने के लिए पूरा तजुर्बा और ज्ञान होना चाहिए। बिना ज्ञान के मदों की संख्या के प्रति चयन का चुनाव बहुत कठिन होता है।
  6. प्रतिनिधि सैम्पल के चुनाव की कठिनाई (Selecting Representative Sample is Difficult) कई बार मदों की संख्याओं में से प्रतिनिधि सैम्पल का चयन करने में बड़ी कठिनाई होती है। यदि प्रतिनिधि सैम्पल का चयन ठीक नहीं होगा तो प्राप्त निष्कर्ष ठीक नहीं हो सकते।
  7. कुछ स्थितियों में इसे प्रयोग नहीं किया जा सकता (It cannot be used under some conditions)न्यादर्श विधि को उस स्थिति में प्रयोग नहीं किया जा सकता. जहां समग्र की प्रत्येक इकाई सम्बन्धी सूचना लेना चाहते हों।
  8. बहुत छोटा समग्र (Very Small Population) यदि समग्र इतना छोटा है कि जिसमें बहुत कम इकाइयां हैं तो उस समय का अध्ययन न्यादर्श विधि से लाभदायक नहीं होगा।

प्रश्न 7.
निदर्शन प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य लिखिए। निदर्शन अनुसन्धान के लिए उपयुक्त दशाएं लिखिए तथा न्यायदर्श लेने की शर्ते लिखें। (Write down the main objectives of Sampling. Explain the conditions for sampling.)
उत्तर-
निदर्शन के उद्देश्य (Objectives of Sampling)-निदर्शन प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. समग्र की विशेषताएं ज्ञात करना-निदर्शन प्रणाली का प्रथम उद्देश्य यह है कि कम समय, कम खर्च तथा कम श्रम के समय की विशेषताएं ज्ञात करना।
  2. विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति-विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने एवं विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु निदर्शन अनुसंधान का ही प्रयोग किया जाता है।
  3. परिणामों की सत्यता की जांच-संगणना अनुसंधान से प्राप्त परिणामों की सत्यता जांचने के लिए भी निदर्शन रीति अपनायी जाती है।
  4. निरन्तर जानकारी प्राप्त होना-जिन इकाइयों के व्यवहार के सम्बन्ध में निरन्तर जानकारी प्राप्त करनी हो, वहां पर निदर्शन रीति ही अपनाई जाती है।

निदर्शन अनुसन्धान के लिए उपयुक्त दशाएं-निम्न दशाओं में निदर्शन द्वारा अनुसन्धान किया जा सकता है –

  • जब अनुसन्धान का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो।
  • जहां संगणना अनुसन्धान असम्भव होता है। उदाहरण के लिए, यदि यह ज्ञात करना हो कि भारत की कोयले की खानों में कुल कितना और किस श्रेणी का कोयला है तो इसके लिए निदर्शन पद्धति ही उपयुक्त है। यहां संगणना अनुसन्धान असम्भव व अवांछनीय है।
  • जहां व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो।
  • जहां अनुसन्धान से सम्बन्धित वस्तुएं शीघ्र परिवर्तनशील हों और संगणना रीति अपनाने पर वस्तुओं के गुण व प्रकृति में काफी परिवर्तन हो जाने की सम्भावना हो।
  • जहां पर्याप्त मात्रा में धन, समय व कर्मचारी उपलब्ध न हों।
  • जहां बहुत उच्च स्तर की शुद्धता प्राप्त करना आवश्यक न हो।

न्यादर्श लेने की शर्ते अथवा आवश्यक तत्त्व (Conditions or Essentials of Sampling)निदर्शन प्रणाली में निष्पक्ष एवं यथार्थ निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-

  1. स्वतन्त्रता (Independence)-समग्र के भिन्न-भिन्न पद एक-दूसरे के स्वतन्त्र होने चाहिएं और प्रत्येक पद को न्यादर्श में चुन लिए जाने का समान अवसर होना चाहिए।
  2. सजातीयता (Homogeneity)-उस समय में जहां अनुसन्धान हो रहा है, किसी विशेष प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए अर्थात् पदों के गुण व प्रकृति में परिवर्तन वांछनीय नहीं है।
  3. प्रतिनिधित्वता (Representativeness)-न्यादर्श ऐसा होना चाहिए कि उसमें मूल वस्तु के सभी गुण विद्यमान हों। यदि एक ही समग्र के दो न्यादर्श के लिए जाएं तो दोनों बिल्कुल समान हों।
  4. पर्याप्तता (Adequacy)-न्यादर्श पर्याप्त होना चाहिए। विभिन्न परिस्थितियों पर विचार करके यह निश्चित किया जाएगा कि कहां के लिए यह कितना प्रर्याप्त है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 8.
निदर्शन नीतियां कौन-कौन सी हैं ? सविचार निदर्शन के गुण तथा दोष बताएं।
(What are the methods of Sampling ? Explain the merits and demerits of Deliberate Sampling.)
उत्तर-
न्यादर्श लेने के ढंग (Methods of Sampling)-न्यादर्श चुनने की कई रीतियां हैं। इनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं-

  1. सविचार निदर्शन (Deliberate, Purposive, Conscious or Representative Sampling),
  2. दैविक अथवा आकस्मिक निदर्शन (Random Sampling or Chance Selection),
  3. मिश्रित या स्तरित निदर्शन (Mixed or Stratified Sampling),
  4. सुविधानुसार निदर्शन (Convenience Sampling),
  5. कोटा निदर्शन (Quota Sampling),
  6. बहुत-से स्तरों पर क्षेत्रीय दैविक निदर्शन (Multi-stage Area Random Sampling),
  7. बहुचरण निदर्शन (Multi-stage Sampling),
  8. विस्तृत निदर्शन (Extensive Sampling),
  9. व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling)

सविचार निदर्शन (Deliberate or Purposive Sampling)इस पद्धति में चयन करने वाला न्यादर्श की इकाइयों का चयन समझ-बूझ कर करता है। चयन करते समय वह प्रयत्न करता है कि समय की सब विशेषताएं न्यादर्श में आ जाएं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह समग्र की प्रत्येक प्रकार की विशेषता को प्रकट करने वाले पदों को अपने न्यादर्श में सम्मिलित करता है। साधारणतः वह कोई प्रमाप निश्चित कर लेता है और उसी के आधार पर पदों का चयन करता है।

सविचार निदर्शन की तीन प्रमुख रीतियां हैं-
(क) केवल औसत गुण वाली इकाइयों को चुनना ताकि निकाले हुए फल समय को प्रकट कर सकें। बहुत उच्च एवं बहुत कम गुण वाली इकाइयों को छोड़ देना चाहिए ताकि बहुमत पर बुरा प्रभाव न पड़े।

(ख) उद्देश्य के अनुसार जान-बूझ कर न्यादर्श को छांटना चाहिए ताकि कोई महत्त्वपूर्ण इकाई छूटने न पाए।

(ग) प्रत्येक समूह को उसी अनुपात से शामिल किया जाता है जिस अनुपात में वह अनुसन्धान के क्षेत्र में है।

इस प्रकार के चयन करने में चयन करने वाले की भावना का चयन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। चयन पर चयन करने वाले की प्रवृतियों और उसकी पक्षपात की भावना का प्रभाव पड़ता है और इसलिए इस प्रकार से निकाले गए परिणाम वैज्ञानिक दृष्टि से विश्वसनीय नहीं होते। उदाहरणार्थ, यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसकी धारणा यह है कि किसी विशेष स्थान के मजदूरों की दशा अच्छी है तो इस प्रकार का न्यादर्श लेते समय उसके चयन में अच्छी दशा वाले परिवार आ जाएंगे और निष्कर्ष यह होगा कि वहां के मज़दूरों की दशा अच्छी है। परन्तु यदि इसके विपरीत, उसकी पूर्व धारणा यह है कि उस स्थान के मजदूरों की दशा बहुत बुरी है तो चयन करते समय बहुत बुरी दशा वाले परिवार ही उसके चुनाव में जाएंगे और परिणाम यह निकलेगा कि वहां के मजदूरों की दशा बहुत बुरी है।
गुण (Merits)-

  1. निदर्शन की यह पद्धति बहुत सरल है।
  2. यह विधि कम खर्चीली है।
  3. इस विधि में कम समय लगता है।
  4. प्रमाप निश्चित कर लेने व योजना बना लेने से न्यादर्श का चुनाव ठीक होने की सम्भावना होती है।
  5. यह उस अनुसन्धान के लिए उपयुक्त है जहां कुछ इकाइयां इतनी महत्त्वपूर्ण हों कि उन्हें शामिल करना अनिवार्य हो। . .

दोष (Demerits)

  • चयन करने वाले की पूर्व धारणाओं का चयन पर बहुत प्रभाव पड़ता है जो निष्कर्ष को अशुद्ध बना देता है।
  • यह विधि अधिक विश्वसनीय तथा शुद्ध नहीं है।
  • आविष्कारक लापरवाही कर सकता है।
  • इस विधि द्वारा पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है।
  • इस विधि में संयोग तत्त्व नहीं होता अत: न्यादर्श समस्याओं के समाधान के लिए सम्भावना के सिद्धान्त (Theory of Probability) का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  • न्यादर्श विभ्रमों (Sampling Errors) का अनुमान लगाना भी कठिन होता है।

प्रश्न 9.
दैव निदर्शन से क्या अभिप्राय है? इस विधि के गुण तथा दोष बताएँ। (What is meant by Random Method ? Explain the merits and demerits of this method.)
उत्तर-
दैव अथवा आकस्मिक निदर्शन (Random Sampling or Chance Selection)-
इसमें चयन करने वाले को कोई बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। चयन आकस्मिक ढंग से हो जाता है। किसी पद को चयन में शामिल करने का कोई कारण नहीं होता। इसमें समग्र के किसी भी भाग के न्यादर्श में आ जाने की समान रूप से सम्भावना होती है । दैव निदर्शन में इकाइयों का चयन “अवसर के नियमों” (Laws of Chance) से निर्धारित होता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि न्यादर्श को व्यक्तिगत इकाइयों का चयन मानवीय निर्णय से पूर्णतया स्वतन्त्र होना चाहिए । ऐसा ही करके न्यादर्श में सूक्ष्मता व सत्यता लाई जा सकती है ।

दैव निदर्शन रीति से न्यादर्श लेने के निम्नलिखित ढंग हैं –
1. लाटरी डालना (Lottery System)-इस रीति में सभी पदों के लिए अलग-अलग संख्या या चिह्न निश्चित कर लेते हैं और सबको एक-साथ किसी ढोल या डिब्बे में रख कर उसे हाथ से या किसी अन्य यन्त्र से घुमा देते हैं और फिर उनमें से कुछ बिना सोचे-विचारे उठा लेते हैं। जिन पदों को ये संख्याएं या चिह्न प्रकट करते हैं, उन्हें न्यादर्श में शामिल कर लिया जाता है।

2. आँख बन्द करके चुनना (Blindfold Selection)-इस रीति में चुनने वाला पदों की चिह्नित पर्चियों में से आँख बन्द करके कुछ को उठा लेता है और वे ही न्यादर्श में शामिल किए जाते हैं। यह रीति कहीं-कहीं दूसरे ढंग से काम मे लाई जाती है । किसी दीवार या खम्भे पर एक बड़ा वृत्ताकार या चौकोर मानचित्र लटका दिया जाता है । उसमें बराबर आकार व समान रूप से उतने खाने बने होते हैं जितनी पदों की संख्या होती है । एक खाना बिना किसी क्रम के पद का प्रतीक होता है। चुनने वाला आँख पर पट्टी बाँध कर उस मानचित्र पर उतनी बार तीर छोड़ता है जितने पद न्यादर्श में शामिल करने होते हैं । तीर जिन खानों पर लगता है, उन्हें न्यादर्श में सम्मिलित कर लिया जाता है।

3. पदों को किसी रीति से सजा कर (Arrangement of Items in same order)—इस रीति में पहले दो पदों को किसी ढंग से-उदाहरणार्थ, भौगोलिक, वर्णात्मक (alphabetical) या संख्यात्मक ढंग से सजा लेते हैं और उनमें से आकस्मिक ढंग से कुछ पदों को चुन लेते हैं । इसे ही नियमानुसार दैव निदर्शन (Systematic random sampling) कहते हैं। उदाहरण के लिए, कुल 105 इकाइयों में से 15 इकाइयों को चुनना है तो नियमानुसार ढंग के 15 समूह बना लिए जाएंगे। प्रत्येक समूह में सात-सात इकाइयां होंगी। अब प्रत्येक समूह में से दैविक निदर्शन द्वारा एकएक पद चुन लिया जाएगा।

4. ढोल घुमा कर (By Rotating the Drum)-इस रीति में एक ढोल में समान आकार के लकड़ी लोहे या अन्य किसी धातु के गोल टुकड़े जिन पर समय के विभिन्न पदों के लिए संख्या या चिह्न अंकित कर लेते हैं रख कर ढोल को हाथ या बिजली से घुमाते हैं और फिर जितने पद न्यादर्श में लेने होते हैं, उतने टुकड़े कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति निकाल लेता है । ये टुकड़े जिन पदों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें न्यादर्श में शामिल कर लिया जाता है।

5. टिपेट की संख्याओं अथवा दैविक निदर्शन सारणियों द्वारा (By Means of Tipett’s Numbers of Random Tables)-प्रसिद्ध सांख्यिक टिपेट ने 41,600 अंकों के प्रयोग से 10,400 चार अंकों (digits) की संख्याएं बिना किसी क्रम के सारणी में दी हैं । इस प्रकार सारणियां अन्य सांख्यिकी विशेषज्ञों तथा संस्थाओं के द्वारा भी तैयार की गई हैं। इन सारणियों की सहायता से न्यादर्श का चुनाव सरल होता है। सबसे पहले सभी पदों के लिए संख्याएं निश्चित कर लेते हैं और फिर बाद में सारणी की सहायता से किन्हीं पन्द्रह या पचास या अन्य संख्याओं को चुन लेते हैं। ये संख्याएं जिन पदों को प्रकट करती हैं उन्हें न्यादर्श में सम्मिलित कर लिया जाता है।

गुण (Merits)-

  1. पक्षपात रहित-इस रीति से चुनाव करने में पक्षपात के लिए गुंजाइश नहीं रहती है । सभी पदों को चुने जाने का समान अवसर होता है।
  2. अनायास चयन-चयन करने वाले को कोई बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। वह अनायास चयन करता है।
  3. चयन के लिए योजना नहीं-चयन के लिए कोई विस्तृत योजना नहीं बनानी पड़ती है ।
  4. मितव्ययिता-इस रीति में धन, समय व परिश्रम कम खर्च होता है।
  5. शुद्धता की जांच सम्भव-इस रीति में न्यादर्श की शुद्धता की जांच भी दूसरे न्यादर्श से लेकर की जा सकती है तथा निर्देशन विभ्रमों की माप की जा सकती है।
  6. समग्र का वास्तविक दिग्दर्शन-सांख्यिकीय नियमितता नियम और लाटरी नियम पर आधारित होने के कारण इसमें न्यादर्श इकाइयों द्वारा समग्र की वास्तविक विशेषताओं का प्रकटीकरण सम्भव होता है। वास्तव में वह समग्र का एक छोटा रूप बन जाता है।
  7. सम्भावना सिद्धात-संयोग तत्त्व (Chance factor) पर पूरी तरह निर्भर होने के कारण सम्भावना सिद्धान्त की समस्याओं के हल के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

दोष (Demerits)

  1. पूर्ण सूची बनाना-यह विधि समग्र की सभी इकाइयों की सूची की मांग करती है तथा ऐसी सूची उपलब्ध नहीं होती जिन कारण कई जांचों में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। यदि समग्र के एक भाग का ज्ञान है, तो इस विधि का प्रयोग नहीं हो सकता।
  2. विजातीय समन-यदि समग्र में भिन्नता बहुत अधिक हो तो दैविक न्यादर्श की विधि हो सकती है यदि प्रतिनिधि न्यादर्श न दे सके । मानो एक कक्षा में 80 विद्यार्थी हैं जिन में से 30 विद्याथियों के 40% से कम अंक हैं तथा 50 विद्यार्थियों के 70% से अधिक अंक हैं । दैविक न्यादर्श विधि से 10 विद्यार्थियों का न्यादर्श लेना है । यह सम्भव हो सकता है कि दसवां विद्यार्थी दूसरे भाग (अर्थात् जिनके अंक 70% से अधिक हैं) से सम्बन्धित हो, चाहे सम्भावना इसकी कम है । यदि ऐसा है तो हमारा न्यादर्श प्रतिनिधि न्यादर्श नहीं होगा । .
  3. न्यादर्श का आकार-एक निश्चित शुद्धता प्राप्त करने के लिए दैव न्यादर्श विधि के लिए न्यादर्श, स्तरित न्यादर्श . विधि (Stratified Sample Method) की तुलना में बड़ा होना चाहिए ।
  4. खर्चीली विधि-फील्ड सर्वे में यह समझा जाता है कि दैव न्यादर्श विधि द्वारा चुने गए न्यादर्श दूर-दूर स्थानों पर स्थित होते हैं तथा आंकड़े एकत्र करने के लिए समय व धन बहुत अधिक लगता है ।
  5. योग्यता की आवश्यकता-अनियमित प्रतिचयन का प्रयोग करने के लिए योग्यता की आवश्यकता है । एक साधारण व्यक्ति इस विधि का प्रयोग नहीं कर सकता ।

प्रश्न 10.
मिश्रित निदर्शन से क्या अभिप्राय है ? इस विधि के गुण और दोष बताएं। (What is meant by Mixed or Stratified Sampling ? Give its merits and demerits.)
उत्तर-
मिश्रित या स्तरित निदर्शन (Mixed or Stratified Sampling)- यह प्रणाली सविचार निदर्शन और दैव निदर्शन दोनों का सम्मिश्रण है । इसमें सबसे पहले सविचार निदर्शन द्वारा सम्पूर्ण को किसी गुण विशेष के आधार पर कई भागों में बांट देते हैं । इसके उपरान्त दैव निदर्शन द्वारा प्रत्येक भाग में से कुछ पदों को चुन लिया जाता है ।

उदाहरणार्थ, यदि किसी कक्षा में 25 विद्यार्थी हैं और इनमें से न्यादर्श लेना है तो सबसे पहले सविचार निदर्शन द्वारा इन विद्यार्थियों को तीन श्रेणियों में विभक्त कर दिया जैसे प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी व तृतीय श्रेणी। मान लिया कि प्रथम श्रेणी में 5, द्वितीय में 10 और तृतीय में 10 विद्यार्थी हैं। अब दैव निदर्शन प्रणाली से प्रत्येक श्रेणी में से संख्या के अनुपात में विद्यार्थी चुन लिए जाएं, अर्थात् प्रथम श्रेणी से 1, द्वितीय श्रेणी से 2 और तृतीय श्रेणी से 2 विद्यार्थी चुन लिए जाएंगे। इस प्रकार से चुने हुए पांच विद्यार्थी कक्षा का अधिकतम प्रतिनिधित्व करेंगे।

गुण (Merits)—

  • अधिक प्रतिनिधित्व-इस विधि में अधिक प्रतिनिधित्व पाया जाता है । इसमें जनसंख्या को अलग-अलग भागों में समान रूप में बांट दिया जाता है और अनियमित प्रतिचयन द्वारा हर वर्ग में से चयन करने के पश्चात् सैम्पल में शामिल की जाती है।
  • अधिक शुद्धता-इस विधि द्वारा प्रत्येक वर्ग को समान मदों के आधार पर बांटा जाता है। हर वर्ग में से अनियमित प्रतिचयन प्रणाली द्वारा इकाइयों का चयन करने के पश्चात् सैम्पल में शामिल की जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष शुद्धता रखते हैं।
  • कम समय-इस विधि द्वारा कम समय लगता है ।
  • कम खर्च-इस विधि द्वारा कम खर्च आता है ।
  • विषम वितरण-यह विधि न्यादर्श लेने की सबसे अच्छी विधि होती है जब समय धनात्मक दिशा (+ve side) की ओर या फिर ऋणात्मक दिशा (-ve side) की ओर विषम हो।।
  • तुलनात्मक अध्ययन-इस विधि में विभिन्न स्तर के तत्त्वों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता
  • इकाइयों का चयन-विभिन्न भागों से इकाइयों का चयन इस प्रकार किया जा सकता है कि वे सब एक ही भौगोलिक क्षेत्र में केन्द्रित हों ।

दोष (Demerits)- इस विधि के निम्न दोष हैं-

  1. जटिल-दूसरी विधियों की तुलना में यह विधि जटिल है । यह इस कारण है कि इसमें वर्ग बनाने की प्रक्रिया पाई जाती है ।
  2. वर्गों को बनाना-स्तरित न्यादर्श विधि में समग्र की बांट विभिन्न समरूप वर्गों में करनी पड़ती है। इसके लिए सांख्यिकीय दक्षता की आवश्यकता है।
  3. समग्र सम्बन्धी सूचना-जब तक समग्र सम्बन्धी सूचना उपलब्ध न हो, स्तरित न्यादर्श सम्भव नहीं होती। यदि किसी उद्योग की 500 इकाइयों में से हमें 50 इकाइयों का न्यादर्श स्तरित विधि द्वारा लेना है, तो वर्गीकरण करने के लिए उसकी बिक्री, लाभ, निवेश सम्बन्धी सूचना का मिलना आवश्यक है। – इन दोषों के होते हुए भी, इस विधि को सबसे अच्छी विधि माना जाता है।
  4. कोटा निदर्शन-यह प्रणाली यद्यपि मिश्रित प्रणाली की तरह है, फिर भी इसमें और मिश्रित प्रणाली दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। मिश्रित प्रणाली में समग्र की इकाइयों के वर्गीकरण के बाद अनुसन्धानकर्ता स्वयं प्रत्येक वर्ग से आवश्यकतानुसार इकाइयां छांटता है, परन्तु इस प्रणाली में इकाइयां छांटने का काम गणकों पर छोड़ दिया जाता है। गणकों को ऐसा करने के लिए अनुसन्धानकर्ता द्वारा पर्याप्त सूचनाएं दे दी जाती हैं और बता दिया जाता है कि उन्हें किस भाग से कितनी इकाइयों का चुनाव करना है।

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गुण (Merits)-
यदि गुणक अपना काम ईमानदारी व बुद्धिमत्ता से करें तो यह प्रणाली उसी प्रकार सन्तोषजनक फल दे सकती है जैसे मिश्रित प्रणाली द्वारा पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
क्रमबद्ध निदर्शन से क्या अभिप्राय है ? इस विधि के गुण तथा दोष बताएँ ।)
(What is meant by Systematic Sampling ? Explain merits and demerits of this method ?)
उत्तर-
क्रमबद्ध या व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling)—व्यवस्थित निदर्शन विधि में समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वर्णात्मक (Alphabetical) आधार पर क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इनमें से प्रत्येक इकाई का चयन कर के न्यादर्श प्राप्त कर लिया जाता है। उदाहरणार्थ यदि 100 विद्यार्थियों में से 10 चुनने हैं तो इन्हें संख्यात्मक आधार पर क्रमबद्ध करके प्रत्येक दसवें विद्यार्थी को न्यादर्श में शामिल किया जाएगा। यदि पहली संख्या 5वीं है तो शेष संख्याएं 15वीं, 25वीं, 35वीं, 45वीं, 55वीं, 65वीं, 75वीं, 85वीं तथा 95वीं होगी। यह विधि दैव निदर्शन विधि का ही एक रूप है।

गुण (Merits)

  • यह एक सरल तथा सुगम प्रणाली है । इससे न्यादर्श प्राप्त करने आसान होने हैं ।
  • इस प्रणाली में पक्षपात की सम्भावना कम होती है।

दोष (Demerits)

  • इस विधि में प्रत्येक इकाई को चयन का समान अवसर प्राप्त नहीं होता क्योंकि पहली इकाई का चयन दैव निदर्शन के आधार पर किया जाता है।
  • यदि सभी इकाइयों की विशेषताएं एक समान हैं तो निष्कर्ष प्राप्त नहीं होंगे।

निष्कर्ष (Conclusion)-निदर्शन प्रणाली की उपर्युक्त सभी रीतियां अपने-अपने दृष्टिकोणों से महत्त्वपूर्ण हैं। सभी रीतियों के गुण व दोष हैं। यह कहना कि इन सब रीतियों में से कौन-सी रीति अधिक श्रेष्ठ है अत्यन्त कठिन कार्य है, “क्योंकि रीति का निर्वाचन बहुत कुछ सीमा तक समग्र की प्रकृति, इकाइयों की विशेषता, समग्र का आकार, शुद्धता की मात्रा, समय व साधन पर निर्भर करता है।” वैसे सामान्यतः दैव निदर्शन व स्तरित रीति का प्रयोग अधिक किया जाता है क्योंकि ये दोनों रीतियां निदर्शन के सिद्धान्त पर पूरी तरह से आधारित हैं।

प्रश्न 12.
निदर्शन गलतियां तथा गैर-निदर्शन गलतियां स्पष्ट करें। (Explain the Sampling Errors and Non-Sampling Errors.)
उत्तर-
जब निदर्शन का चुनाव किया जाता है तो दो प्रकार की गलतियां होती हैं
1. निदर्शन (सैंपलिंग) गलतियां (Sampling Errors) ।
2. गैर निदर्शन गलतियां (Non Sampling Errors)।

1. निदर्शन (सैंपसिंग गलतियां) (Sampling Errors) निदर्शन लेते समय कुछ गलतियां हो जाती हैं जो कि इस प्रकार हैं-

  • जन-संख्यक गलती (Population Errors) खोज कर्ता को समझ में नहीं आता कि किन लोगों से आंकड़े इकट्ठे किए जाएं। सुबह के नाश्ते में परिवार के बुजुर्ग, जवान तथा बच्चे अलग अलग तरजीव से नाश्ता करते हैं। चुनाव के समय किन लोगों के आंकड़े लिए जाएं जहां गलती हो सकती हो।
  • गलत नमूना (Wrong Sample)-यदि नमूने का चुनाव गलत हो जाए तो परिणाम गलत हो जाते हैं।
  • जवाब न देना (No Response)-जिन लोगों से आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं यदि वह जवाब नहीं देते तो गल्ती की सम्भावना होती है।
  • गलत चुनाव (Wrong Selection) यदि निदर्शन का चुनाव गलत हो जाता है तो भी ठीक परिणाम प्राप्त नहीं होते। गरीबी देखने के लिए मध्य वर्ग के लोगों से आंकड़े इकट्ठे किए जाएं तो भी गल्ती हो सकती है।
  • सैंपल का आकार (Size of Sample)-सैंपल का आकार यदि बहुत छोटा है तो उचित निष्कर्ष नहीं होगा।

2. गैर-निदर्शन गलतियां (Non-Sampling Errors)

  • माप के समय गलती (Error of Measurement)-यह गलती नमूने के स्केल (Scale) में अन्तर कारण हो सकती है। यदि दौड़ में समय का माप कभी किलोमीटर और कभी प्रति मील में किया जाए तो निष्कर्ष उचित नहीं होगा।
  • प्रश्न समझने में गलती (Error of Mis-Interpretation)- यदि प्रश्नावली ठीक नहीं बनाई गई तो प्रश्न के समझने में गलती हो सकती है तथा निष्कर्ष ठीक नहीं होंगे।
  • उचित सूचना न देना (No Proper Response)-यदि खोजकर्ता को जवाब देने वाले उचित तथा ठीक सूचना नहीं देते तो भी नतीजे में गलती हो सकती है।
  • गणितिक गलती (Error of Calculation)-इकट्ठी की गई सूचना को गणना करते समय गलती हो जाए तो भी प्राप्त नतीजों में गलती हो सकती है।

प्रश्न 13.
भारत में जनगणना पर नोट लिखें। (Write a note on Census in India.)
उत्तर-
भारत में हर 10 वर्ष के पश्चात् जनसंख्या की गणना की जाती है। 2011 तक 15 बार जनगणना हो चुकी है। 1872 सबसे पहले Mayor ने जनगणना की। उसके पश्चात् 1881 में विधिपूर्वक जनगणना की गई। इसके पश्चात् 1891, 1901, 1911, 1921, 1931, 1941 में जनगणना की गई। आज़ादी के पश्चात् 1951, 1961, 1971, 1981, 1991, 2001, 2011 में जनगणना की गई। आज़ादी के बाद जनसंख्या का विवरण इस प्रकार है-

वर्ष जनसंख्या (करोड़ों में) वर्ष जनसंख्या करोड़ों में
1951 36 1991 84
1961 43 2001 102
1971 54 2011 121
1981 67

अब 2021 में जनसंख्या के आंकड़े इकट्ठे किए जाएंगे। भारत की जनसंख्या की विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  1. चीन की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक है और भारत की जनसंख्या का दूसरा स्थान है।
  2. विश्व की जनसंख्या में भारत का प्रत्येक 7वां मनुष्य भारतीय है।
  3. भारत की जनसंख्या में 1000 पुरुषों के अनुपात में 896 औरतें हैं।
  4. 2011 की जनगणना से स्पष्ट होता है कि गरीब क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है।

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