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लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules.

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. टैनिस कोर्ट की लम्बाई = 78 फुट या (23.77 मी०)
  2. कोर्ट की चौड़ाई = 27 फुट या (8.23 मी०)
  3. जाल की ऊँचाई = 3 फुट या ( 0.91 मी०)
  4. जाल में तार का व्यास = 3′ (0.8 सैं०मी०)
  5. स्तम्भों की ऊंचाई = 3′ 6″ (1.07 मी०)
  6. स्तम्भों का व्यास = 6″ (15 सैं०मी०)
  7. स्तम्भों की केन्द्र से दूरी = 3 फुट (0.91 मी०)
  8. सर्विस रेखाओं की दूरी = 21 फुट (6.4 सैं०मी०)
  9. रेखाओं की चौड़ाई। = 2 फुट 5 सैं०मी०
  10. गेंद का व्यास = \(2 \frac{1}{2}\)” (6.35-6.67 सैं०मी०)
  11. गेंद का भार = 2 से \(2 \frac{1}{2}\) औंस
  12. पुरुषों के सैटों की गिनती = 5
  13. स्त्रियों के सैटों की गिनती = 3
  14. गेंद का रंग = सफेद
  15. डबल्ज़ खेल में कोर्ट की चौड़ाई = 36 फुट (10.97 मी०)

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लॉन टेनिस का इतिहास और नियम लिखें।
उत्तर-
लॉन टेनिस का इतिहास
(History of Lawn Tennis)
लॉन-टैनिस संसार का एक प्रसिद्ध खेल बन चुका है। इसका टूर्नामैंट करवाने के लिए बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। लॉन-टैनिस की उत्पत्ति के बारे में यह कहा जा सकता है कि लॉन-टैनिस 12वीं शताब्दी में फ्रांस में पहली बार घास के मैदान में खेला गया। पहले पहल खिलाड़ी हाथ द्वारा यह खेल खेला करते थे। शुरू में यह खेल कुछ साधनों द्वारा खेला जाता था पर बाद में यह खेल हाई जैनटरी की पसंद बन गया। उसके बाद लॉन-टैनिस मध्यम वर्ग के लोगों की पसंद बन गया। असल में इस खेल के विकास का श्रेय मेजर डब्लयू सी० विंगलीफड को जाता है। उसने 19वीं शताब्दी में इस खेल को इंग्लैंड में शुरू किया और स्पेन के लिमिंगटन में 1872 में पहले लॉन-टैनिस कलब बनाया गया। पहले विबलडन चैम्पियनशिप 1877 में पुरुषों के लिए करवाया गया। 1884 में विबलडन चैम्पियनशिप महिलाओं के लिए करवाया गया। ओलिम्पिक खेलों में लॉन टेनिस 1924 तक ओलिम्पिक का भाग बना रहा और दोबारा 1988 सियोल ओलिम्पिक में शामिल किया गया। अब यह खेल भारत के साथ-साथ बहुत देशों में खेला जाता है।

लॉन टेनिस के नये नियम
(New Rules of Lawn Tennis)

  1. टैनिस कोर्ट की लम्बाई 78 फुट, 23.77 मीटर चौड़ाई 27 फुट, 8.23 मीटर होती है।
  2. जाल की ऊंचाई 3 फुट 0.91 मीटर और उसमें धागे या धातु की तार का अधिक-सेअधिक व्यास 1/3 इंच या 0.8 सैं० मी० चाहिए।
  3. स्तम्भों का व्यास 6 इंच या 15 सैं० मी० ओर प्रत्येक ओर कोर्ट के बाहर खम्भे से केन्द्र की दूरी 3 फुट या 0.91 मीटर होती है।
  4. टैनिस गेंद का व्यास 2 – इंच या 6.34 सैं० मी० और इसका भार 2 औंस या 56.7 ग्राम, जब गेंद को 100 इंच या 20.54 मीटर की ऊंचाई से फेंका जाए तो उसका उछाल 53 इंच या 1.35 मीटर होगा।
  5. टेनिस खेल में अधिक-से-अधिक सैटों की संख्या पुरुषों के लिए 5 और स्त्रियों के लिए 3 होती है।

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लान टेनिस कोर्ट के बारे संक्षिप्त हाल लिखें।
उत्तर-
लॉन टेनिस का कोर्ट
(Court of Lawn Tennis)
कोर्ट आयताकार होगा। यह 78 फुट (23.77 मी०) लम्बा तथा 27 फुट (8.23 मी०) चौड़ा होना चाहिए। ये मध्य में रस्सी या धातु की तार के साथ लटके जाल द्वारा बंटा होना चाहिए। इस रस्सी या तार का व्यास 1/3 इंच (0.8 सैंटीमीटर) होना चाहिए जिसके दो बराबर रंगे हुए खम्भों के ऊपरी सिरों से गुज़रने चाहिएं। ये खम्भे 3 फुट 6 इंच (1.07 मी०) ऊंचे होने चाहिएं तथा 6 इंच (15 सैं०मी०) के चौरस या 6 इंच (15 सैं० मी०) व्यास के होने चाहिएं। इनका मध्य कोर्ट के दोनों ओर 3 फुट (0.914 मी०) बाहर की ओर होना चाहिए। जाल पूरी तरह तना होना चाहिए ताकि यह दोनों खम्भों के मध्यवर्ती स्थान को ढक ले तथा इसके छिद्र इतने बारीक होने चाहिएं कि उनमें से गेंद न निकल सके। जाल की ऊंचाई मध्य में 3 फुट (0.914 मी०) होगी तथा यह एक स्ट्रैप से नीचे कस कर बंधा होगा जो सफ़ेद रंग का तथा 2 इंच (5 सैंटीमीटर) से अधिक चौड़ा नहीं होगा। धातु की तार तथा जाल के ऊपरी सिरे को एक बैंड ढक कर रखेगा जोकि प्रत्येक ओर 2 इंच (5 सेंटीमीटर) से कम तथा \(2 \frac{1}{2}\) इंच (6.34 सैंटीमीटर) से अधिक
लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
गहरा नहीं होगा। यह सफ़ेद रंग का होना चाहिए। जाल, स्ट्रैप, बैंड या सिंगल्ज़ स्ट्रिक्स पर कोई विज्ञापन नहीं होना चाहिए। कोर्ट के लिए तथा साइडों को घेरने वाली रेखाएं बेस लाइनें तथा साइड लाइनें कहलाती हैं। जाल की प्रत्येक ओर 0.21 फुट (6.00 सैं० मी०) की दूरी पर तथा इसके समानान्तर सर्विस लाइनें खींची जाएंगी। जाल की प्रत्येक ओर सर्विस लाइन तथा साइड लाइन मध्यवर्ती स्थान को दो भागों में बांटेगी जिसे सर्विस कोर्ट कहते हैं। यह लाइन 2 इंच (5 सैं० मी०) चौड़ी होगी तथा साइड लाइन के मध्य में तथा उसके समानान्तर होगी।

प्रत्येक बेस लाइन सर्विस लाइन द्वारा काटी जाएगी जो 4 इंच (10 सैं० मी०) लम्बी और 2 इंच (5 सैं० मी०) चौड़ी होगी, इसको सैंटर मार्क कहा जाता है। यह मार्क कोर्ट के बीच बेस लाइनों के समकरण तथा इसके साथ लगा होता है। अन्य सभी लाइनों बेस लाइनों को छोड़ कर 1 इंच (2.5 सैं०मी०) से कम तथा 2 इंच (4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होनी चाहिएं। बेस लाइन 4 इंच (10 सैं० मी०)चौड़ी हो सकती है तथा सभी पैमाइशें लाइनों के बाहर से की जानी चाहिएं।
कोर्ट की स्थायी चीज़ों में न केवल जाल, खम्भे, सिंगल स्ट्रिक्स, धागा या धातु की तार, स्ट्रैप तथा बैंड सम्मिलित होंगे, अपितु बैंड तथा साइड स्ट्रैप, स्थायी तथा हिला सकने वाली सीटें, इर्द-गिर्द की कुर्सियां भी सम्मिलित होंगी। अन्य सभी कोर्ट, अम्पायर, इसकी जजों, लाइनमैनों तथा बाल ब्वाइज़ के गिर्द लगी चीजें अपनी ठीक सतह पर होंगी।

प्रश्न
लान टेनिस गेंद के बारे में लिखें।
उत्तर-
लान टेनिस का गेंद (The Lawn Tennis Ball)-गेंद की बाहरी सतह समतल होनी चाहिए तथा या सफ़ेद या पीले रंग का होगा। यदि कोई सीनें हो तो टांके के बिना होनी चाहिएं। गेंद का व्यास 2/2 इंच (5.35 सैं० मी०) से अधिक तथा 25/8 इंच (6.67 सैंटीमीटर) से कम नहीं होना चाहिए। इसका भार 2 औंस (56.7 ग्राम) से अधिक तथा 21/2 औंस (500 ग्राम) से कम होना चाहिए। जब गेंद को एक कंकरीट बेस पर 100 इंच
लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
(254 सैं० मी०) ऊंचे से फेंका जाए तो उसकी उछाल 53 इंच (175 सैं मी०) से अधिक तथा 58 इंच (147 सैं० मी०) से कम होनी चाहिए। गेंद का 18 पौंड भार से आगे की विकार 220 इंच (.55 सैं०मी०) से अधिक तथा 290 इंच (.75 सैं०मी०) से कम होना चाहिए तथा वापसी विकार के अंग गेंद के लिए तीन अक्षों के तीन निजी पाठनों की औसत होगी तथा कोई भी दो निजी पाठनों में 0.30 इंच (0.80 सैंमी०) से अधिक अन्तर नहीं होगा।

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लान टैनिस कैसे शुरू होती है ?
उत्तर-
खिलाड़ी (Player)-खिलाड़ी जाल की विरोधी साइडों पर खड़ें होंगे। वह खिलाड़ी जो पहले गेंद देता है और सर्वर (Server) कहा जाएगा तथा दूसरे को रिसीवर (Receiver) । साइडों का चुनाव तथा सर्वर या रिसीवर बनने के चुनाव का फैसला टॉस (Toss) से किया जाता है। टॉस जीतने वाला खिलाड़ी साइड का चुनाव करता है या अपने विरोधी को ऐसा करने के लिए कह सकता है। यदि एक खिलाड़ी साइड चुनता है तो दूसरा खिलाड़ी सर्वर या रिसीवर बनने का अधिकार चुनता है।

सर्विस (Service)-सर्विस निम्नलिखित ढंग से की जाएगी। सर्विस आरम्भ करने से पहले सर्वर दोनों पांव पीछे की ओर टिका कर खड़ा होगा, (बेस लाइन से जाल से दूर)। यह स्थान सैंटर मार्क तथा सैंटर लाइन की कल्पित सीध में होगा। फिर सर्वर हाथ से गेंद को वायु में किसी भी दिशा में उछालेगा। इसके ज़मीन पर गिरने से पहले रैकेट से मारेगा तथा गेंद या रैकेट से डिलीवरी पूरी मानी जाएगी। खिलाड़ी अपने एक बाजू से रैकेट को बचाव के लिए प्रयोग कर सकते हैं।
सर्वर सर्विस होने, डिलीवरी होने तक—

  1. चल कर या दौड़ कर अपनी पोजीशन नहीं बदलेगा।
  2. अपने पांव से कोई क्षेत्र नहीं स्पर्श करेगा सिवाए उस क्षेत्र के जो बेस लाइन के पीछे सैंटर मार्क तथा साइड लाइन की कल्पित वृद्धि की सीध में हो।
  3. सर्विस देने के बाद सर्वर बारी-बारी दायें तथा बायें कीर्डों में खड़ा होगा तथा शुरू वह दाईं ओर से करेगा। यदि कोर्ट के गलत अर्द्ध में से सर्विस होती है तथा इसका पता नहीं चलता तो इस गलत सर्विस या सर्विस से हुई कमी के कारण खेल कायम रहेगी परन्तु पता चलने पर स्थिति की गलती को ठीक करना होगा।
  4. सर्विस किया गया गेंद जाल को पार करके सर्विस कोर्ट में रिसीवर के रिटर्न करने से पहले भूमि के साथ टकराना चाहिए जोकि नगनल रूप में सामने होता है या कोर्ट की किसी अन्य लाइन के साथ टकराये।

प्रश्न
लान टेनिस के कोई पांच नियम लिखें।
उत्तर-
साधारण नियम
(General Rules)

  1. सर्वर तब तक सर्विस नहीं करेगा जब तक कि रिसीवर तैयार न हो। यदि रिसीवर सर्विस रिटर्न करने की कोशिश करता है तो तैयार समझा जाएगा।
  2. सर्विस लेट होती है—
    • यदि सर्विस किया गया गेंद, जाल, स्ट्रैप या बैंड को स्पर्श करता है तथा उस प्रकार ही ठीक या जाल, स्ट्रैप या बैंड को स्पर्श करके रिसीवर को या जो वस्तु उसने पहनी या उठाई हुई है स्पर्श करता है।
    • यदि एक सर्विस या फाल्ट डिलीवर हो जबकि रिसीवर तैयार न हो।
  3. पहली गेम के बाद रिसीवर सर्वर तथा सर्वर रिसीवर बनेगा। मैच की बाकी गेमों से इस प्रकार बदल-बदल कर होगा।
  4. सर्वर प्वाइंट जीत लेता है-यदि सर्विस क्रिया गेम नियम 2 के अनुसार लेट नहीं तथा यह ज़मीन को लगने से पहले रिसीवर को या उस द्वारा पहनी या उठाई हुई किसी चीज़ को स्पर्श कर ले।
  5. यदि खिलाड़ी जान-बूझकर या अनिच्छापूर्वक कोई ऐसा काम करता है जो अम्पायर की नज़र में उसके विरोधी खिलाड़ी को शॉट लगाने में रुकावट पहुंचाता है तो अम्पायर पहली दशा में विरोधी खिलाड़ी को एक प्वाइंट दे देगा तथा इसकी दशा में उस प्वाइंट को पुनः खेलने के लिए कहेगा।
  6. यदि खेल में गेंद किसी स्थायी कोर्ट फिटिंग (जाल, खम्भे, सिगनल्ज़, धागे या धातु की तार, स्ट्रैप या बैंड) को छोड़ कर ज़मीन से स्पर्श करती है तथा खिलाड़ी जिसने प्रहार किया होता है, प्वाइंट जीत लेता है। यदि यह पहले ज़मीन को स्पर्श करती है तो विरोधी प्वाइंट जीत लेता है।
  7. यदि एक खिलाड़ी अपना पहला प्वाइंट जीत लेता है तो उस खिलाड़ी के दूसरे प्वाइंट जीतने पर स्कोर 15 होगा तीसरा प्वाइंट जीतने पर स्कोर 30 होगा तथा चौथा प्वाइंट जीतने पर उसका स्कोर 40 होगा। चौथा प्वाइंट प्राप्त करने पर गेम स्कोर हो जाती है।।
    • यदि दोनों खिलाड़ी अगला प्वाइंट जीत लें तो स्कोर ड्यूस (Deuce) कहलाता है तथा अगला प्वाइंट खिलाड़ी द्वारा स्कोर करने से उस खिलाड़ी के लिए लाभ स्कोर कहलाता है।
    • यदि वह खिलाड़ी अगला प्वाइंट जीत ले तो गेम जीत लेता है। यदि अगला प्वाइंट विरोधी जीते तो स्कोर फिर ड्यूस कहलाता है तथा आगे इस तरह जब तक खिलाड़ी ड्यूस स्कोर होने के बाद दो प्वाइंट नहीं जीत लेता।
  8. प्रत्येक खिलाड़ी जो पहली छः गेम जीत लेता है वह ठीक सैट जीत लेता है, सिवाए इसके कि वह अपने विरोधी से दो गेमें अधिक जीता है। जब तक यह सीमा प्राप्त नहीं होती, सैट की अवधि बढ़ा दी जाएगी।
  9. खिलाड़ी प्रत्येक सैट की बदलती गेम तथा पहली और तीसरी गेमों के बाद सिरे बदल लेंगे। वे प्रत्येक सैट के अन्त में भी सिरे बदलेंगे। बशर्ते सैट में गेमों की संख्या सम नहीं होती। उस दशा में अगले सैट की पहली गेम के अन्तर में फिर सिरे बदले जाएंगे।
  10. एक मैच में सैटों की अधिक-से-अधिक संख्या पुरुषों के 5 तथा स्त्रियों के लिए 3 होती है।
  11. यदि खेल स्थगित कर दी जाए तथा दूसरे किसी दिन शुरू न होनी हो तो तीसरे सैट के पश्चात् (जब स्त्रियां भाग लेती हों तो दूसरे सैट के बाद) विश्राम किया जा सकता है। यदि खेल किसी अन्य दिन के लिए स्थगित कर दी गई हो तो अधूरा सैट पूरा करना एक सैट गिना जाएगा। इन व्यवस्थाओं की पूरी व्याख्या की जानी चाहिए तथा खेल को कभी भी स्थगित, लेट या रुकावट युक्त नहीं होने देना चाहिए जिससे एक खिलाड़ी को अपनी शक्ति पूरा करने का अवसर मिले।
  12. अम्पायर ऐसे स्थगनों या अन्य विघ्नों का एकमात्र जज होगा तथा दोषी को चेतावनी देकर उसे अयोग्य घोषित कर सकता है।
  13. सिरे बदलने के लिए पहली गेम समाप्त होने के पश्चात् उस समय तक अधिकसे-अधिक 1 मिनट का समय लगना चाहिए जबकि खिलाड़ी अगली गेम खेलने के लिए तैयार हो जाएं।

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लान टेनिस के कौशल लिखें।
उत्तर-
लान टेनिस के मुख्य कौशल
(Basic Fundamentals of Lawn Tennis)

  1. रैकट को पकड़ना (Grip of the Racket)
  2. स्टांस (Stance)
  3. फुट वर्क (Foot work)
  4. फुट वर्क ऑन गार्ड स्टांस (Foot work on guard stance)
  5. पिवट (Pivot)
  6. फोरहँड रिटर्न तथा फुट वर्क (Work for Forehead Return)
  7. बैक कोर्ट रिटर्न तथा फुटवर्क (Foot work for a Back court Returm)
  8. सर्विस (Service)
  9. स्ट्रोक (Stroke)
    • फोरहैड स्ट्रोक (Forehead Strokes),
    • बैक हैड स्ट्रोक (Back Head Strokes),
    • ओवर हैड स्ट्रोक (Overhead Stroke),
    • नैट स्ट्रोक (Net Stroke)।

स्कोर (Scoring) – यदि एक खिलाड़ी प्वाइंट ले लेता है तो उसका स्कोर 15 हो जाता है। दूसरा प्वाइंट जीतने से 30 और तीसरा जीतने से 40 हो जाता है इस प्रकार जिस खिलाड़ी ने 40 स्कोर कर लिया हो वह अपने सैट की गेम जीत लेता है।

लान टेनिस (Lawn Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लान टेनिस में डबल गेम में कोर्ट का साइज लिखें।
उत्तर-
डबल्ज़ खेल
(Doubles Game)
कोर्ट (The Court)-डबल्ज़ गेम के लिए कोर्ट 36 फुट (10.97 मी०) चौड़ा होना चाहिए अर्थात् सिंगल्ज़ गेम से हर ओर \(4 \frac{1}{2}\) फुट (1.49 मी०) अधिक चौड़ा होना चाहिए। जो भाग सिंगल्ज़ लाइनों तथा दो सर्विस लाइनों के मध्य में होते हैं उन्हें साइड लाइन कहते हैं। दूसरी बातों में यह कोर्ट सिंगल्ज गेम के कोर्ट के साथ मिलता है। परन्तु यदि चाहो तथा सिंगल्ज़ साइड लाइनों के बेस तथा सर्विस लाइनों के भागों को छोड़ा जा सकता है।
साधारण नियम
(General Rules)

  1. प्रत्येक सैट के शुरू होने पर सर्विस के क्रम का फैसला निम्नलिखित अनुसार किया जाता है
    • जिस जोड़े ने पहले सैट में सर्विस करनी होती है वह फैसला करता है कि कौन-सा पार्टनर सर्विस करेगा तथा दूसरे सैट में विरोधी जोड़ा इस बात के लिए फैसला करेगा।
    • उस खिलाड़ी का पार्टनर जिसने दूसरे गेम में सर्विस की है वह तीसरी गेम में सर्विस करेगा। खिलाड़ी का पार्टनर जिसने दूसरी गेम में सर्विस की है वह चौथी गेम में सर्विस करेगा तथा इस प्रकार सैट के शेष अंकों में होगा।
  2. रिटर्न सर्विस प्राप्त करने का क्रम प्रत्येक सैट के शुरू में निम्नलिखित के अनुसार निश्चित होगा
    • जिस जोड़े ने पहले गेम में सर्विस प्राप्त करनी होती है वह इस बात का निश्चय करेगा कि कौन-सा पार्टनर सर्विस प्राप्त करे तथा वह पार्टनर सारे सैट में प्रत्येक विषय गेम में सर्विस प्रगत करेगा।
    • इसी प्रकार विरोधी जोड़ा यह निश्चय करेगा कि दूसरी गेम में कौन-सा पार्टनर सर्विस प्राप्त करेगा तथा वह पार्टनर उस सैट की प्रत्येक सम गेम में सर्विस प्राप्त करेगा। पार्टनर बारी-बारी हर गेम में सर्विस प्राप्त करेगा।
  3. यदि कोई पार्टनर अपनी बारी के बिना सर्विस वह पार्टनर जिसे सर्विस करनी चाहिए थी स्वयं सर्विस करेगा जबकि गलती का पता लग जाए। परन्तु इसका पता लगाने से पहले स्कोर किए गए सारे प्वाइंट तथा शेष गिने जाएंगे। यदि ऐसा पता लगने से पहले गेम समाप्त हो जाए तो सर्विस का क्रम बदलता रहता है।
  4. यदि गेम के दौरान सर्विस करने का क्रम रिसीवर द्वारा बदला जाता है, यह उस गेम की समाप्ति तक ऐसा रहता है जिस में इसका पता चलता है परन्तु पार्टनर सैट की अगली गेम में अपने वास्तविक क्रम को दोबारा शुरू करेंगे जिससे वह सर्विस के रिसीवर है।
  5. गेंद बारी-बारी विरोधी जोड़े के एक या दूसरे खिलाड़ी द्वारा खेला जाना चाहिए। यदि खिलाड़ी खेल में गेंद को अपने रैकट के साथ ऊपर दिए गए नियम के विरुद्ध स्पर्श करता है तो उसका विरोधी प्वाईंट जीत लेता है।

लान टैनिस खेल के अर्जुन अवार्ड विजेता
(Arjuna Awardee)

  1. आनन्द अमृतराज,
  2. विजय अमृतराज,
  3. राम नाथन कृष्णन,
  4. रमेश कृष्णन,
  5. लैंडर पेस,
  6. जैदीप,
  7. नरेश कुमार,
  8. महेश भूपति।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें

PSEB 10th Class Agriculture Guide आषाढ़ी की फ़सलें Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
आषाढ़ी की तेल बीज फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर-
राईया, अलसी।

प्रश्न 2.
गेहूँ की दो उन्नत किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
एच०डी०-2967, डी०बी०डब्ल्यू०-17.

प्रश्न 3.
राईया की एक एकड़ फसल के लिए कितना बीज चाहिए?
उत्तर-
1.5 कि०ग्रा० बीज़ प्रति एकड़।

प्रश्न 4.
चनों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों के नाम लिखिए।
उत्तर-
दीमक, चने की संडी।

प्रश्न 5.
गेहूँ की दो बीमारियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
करनाल बंट, कांगियारी।

प्रश्न 6.
गेहूँ के दो खरपतवारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुल्ली-डण्डा, सेंजी, मैना, मैनी।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें

प्रश्न 7.
किस फसल को चारों का बादशाह कहा जाता है ?
उत्तर-
बरसीम को।

प्रश्न 8.
मसूर की बुआई का समय लिखें।
उत्तर-
अक्तूबर का दूसरा पखवाड़ा।

प्रश्न 9.
जौं की दो उन्नत किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
पी० एल-807, पी० एल०-426.

प्रश्न 10.
सूर्यमुखी के बीजों में कितना (प्रतिशत) तेल होता है ?
उत्तर-
40-43%.

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
गेहूँ को प्रति एकड़ मुख्य खाद्य तत्व की कितनी आवश्यकता है ?
उत्तर-
50 कि०ग्रा० नाइट्रोजन, 25 कि०ग्रा० फॉस्फोरस तथा 12 कि०ग्रा० पोटाश की प्रति एकड़ आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
गेहूँ पर आधारित दो फसली चक्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
चावल-गेहूँ, कपास-गेहूँ।

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प्रश्न 3.
टोटल खरपतवार नाशक किस फसल के कौन-से खरपतवार की रोकथाम के लिए प्रयुक्त होती है ?
उत्तर-
टोटल खरपतवार नाशक का प्रयोग गेहूँ की फसल में गुल्ली-डण्डा की रोकथाम के लिए प्रयोग होता है।

प्रश्न 4.
जवी के चारे के लिए कटाई कब करनी चाहिए ?
उत्तर-
फसल गोभ में बल्ली बनने से लेकर दूध वाले दानों की हालत में कटाई की जाती है।

प्रश्न 5.
बरसीम में इटसिट की रोकथाम बताएँ।
उत्तर-
जिन खेतों में इटसिट की समस्या है उन खेतों में बरसीम में राईया मिलाकर बोना चाहिए तथा इटसिट वाले खेतों में बोबाई अक्तूबर के दूसरे सप्ताह तक पछेती करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
सूर्यमुखी की कटाई कब करनी चाहिए ?
उत्तर-
जब शीर्ष का रंग निचली तरफ से पीला-भूरा हो जाए तथा डिस्क सूखने लग जाए तो फसलों की कटाई करें।

प्रश्न 7.
कनौला सरसों किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गोभी सरसों की एक श्रेणी कनौला सरसों है।

प्रश्न 8.
जौं की बुआई का समय तथा विधि लिखिए।
उत्तर-
जौं की बुआई का समय 15 अक्तूबर से 15 नवम्बर है। समय पर बुआई के लिए 22.5 सैं०मी० तथा बरानी तथा पिछेती बुआई के लिए 18 से 20 सैं०मी० की दूरी पर सियाड़ (खाल) होने चाहिए। उसको गेहूँ की तरह बिना जोते ही बोया जा सकता है।

प्रश्न 9.
देसी चनों की बुआई का समय तथा प्रति एकड़ बीज की मात्रा लिखिए।
उत्तर-
देसी चनों की बुआई का समय बरानी बुआई के लिए 10 से 25 अक्तूबर है तथा सिंचाई योग्य अवस्था में 25 अक्तूबर से 10 नवम्बर है।
बीज की मात्रा 15-18 कि०ग्रा० प्रति एकड़ है।

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प्रश्न 10.
मसूर की खेती कौन-सी ज़मीनों में नहीं करनी चाहिए ?
उत्तर-
मसूर की खेती क्षारीय, कलराठी तथा सेम वाली भूमि पर नहीं करनी चाहिए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच – छः वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
गेहूँ की बुआई का समय तथा विधि लिखिए।
उत्तर-
गेहूँ की बुआई के लिए उचित समय अक्तूबर से चौथे सप्ताह से लेकर नवम्बर से चौथे सप्ताह तक का है। गेहूँ की बुआई समय पर न की जाए तो बुआई में प्रत्येक सप्ताह की पछेत के कारण 150 कि०ग्रा० प्रति एकड़ प्रति सप्ताह पैदावार कम हो जाती है।
गेहूँ की बुआई बीज-खाद ड्रिल से की जाती है। बुआई के लिए फासला 20 से 22 सै०मी० होना चाहिए तथा बोबाई 4-6 सैं०मी० गहराई पर करनी चाहिए । गेहूँ की दोहरी बुआई करनी चाहिए। इसका भाव है कि आधी खाद तथा बीज एक तरफ तथा बाकी आधी दूसरी तरफ। इस प्रकार करने से प्रति एकड़, दो क्विंटल पैदावार बढ़ जाती है। गेहूँ की बुआई चौड़ी मेढ़ों पर बैड प्लांटर द्वारा की जा सकती है। इस विधि द्वारा 30 कि०ग्रा० प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता पड़ती है तथा पानी की बचत भी होती है।

प्रश्न 2.
बरसीम की बुआई की विधि लिखिए।
उत्तर-
बरसीम की बुआई के लिए उचित समय सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्तूबर का पहला सप्ताह है।
बरसीम की बुआई खड़े पानी में छीटा विधि द्वारा की जाती है। यदि हवा चल रही हो तो सूखे खेत में बीज का छीटा दें तथा बाद में छापा फिरा कर पानी लगा देना चाहिए।

प्रश्न 3.
सूर्यमुखी की सिंचाई करने के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
सूर्यमुखी की फसल को पहली सिंचाई बुआई से एक माह बाद करनी चाहिए। इसके बाद अगली सिंचाइयां 2 से 3 सप्ताह के अन्तर पर करनी चाहिए। फसल को फूल लगने तथा दाने बनने के समय सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। कुल 6-9 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
तेल बीज फसलों के लिए सल्फर (गंधक) तत्त्व का महत्त्व लिखिए।
उत्तर-
साधारणतया गंधक की आवश्यकता पौधों को कम मात्रा में होती है। परन्तु तेल बीज वाली फसलों को गंधक तत्त्व की अधिक आवश्यकता होती है। गंधक (सल्फर) की कमी होने से तेल बीज फसलों की पैदावार कम हो जाती है। गंधक का प्रयोग नाइट्रोजन के प्रयोग के लिए भी आवश्यक है। एनजाइमों की गतिविधियों तथा तेल के संश्लेषण के लिए भी सल्फर बहुत आवश्यक है। इसीलिए तेल बीज फसलों में फॉस्फोरस तत्त्व के लिए सुपर फास्फेट खाद को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि इसमें सल्फर (गंधक) तत्त्व भी होता है। यदि यह खाद न मिले तो 50 कि०ग्रा० जिप्सम प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें

प्रश्न 5.
राइया की किस्में तथा खाद्य तत्त्वों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
राइया की किस्में-आर० एल० सी०-1, पी० बी० आर० -201, पी० बी० आर०-91.

राडया के लिए उर्वरक, पौष्टिक तत्त्व-राईया के लिए 40 कि०ग्रा० नाइट्रोजन तथा 12 कि०ग्रा० फॉस्फोरस प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। पोटाश तत्त्व का प्रयोग भूमि की जांच करके ही करना चाहिए। यह तेल बीज फसल है तथा इसको सल्फर तत्त्व की आवश्यकता भी है। इस लिए फॉस्फोरस तत्त्व के लिए सुपर फास्फेट खाद का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इसमें सल्फर तत्त्व भी होता है। यदि यह खाद न मिले तो 50 कि०ग्रा० जिप्सम प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB आषाढ़ी की फ़सलें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
आषाढ़ी की फसलें हैं –
(क) अनाज
(ख) दालें
(ग) तेल बीज और चारा
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 2.
गेहूँ की विकसित किस्में हैं
(क) एच० डी० 2976
(ख) पी० बी० डब्ल्यू० 343
(ग) बडानक
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 3.
गेहूँ के रोग हैं –
(क) पीली कुंगी
(ख) कांगियारी
(ग) मम्णी तथा टुंडू
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 4.
जौं की बिजाई का समय
(क) 15 अक्तूबर से 15 नबम्बर
(ख) जुलाई
(ग) 15 जनवरी से 15 फरवरी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 15 अक्तूबर से 15 नबम्बर

प्रश्न 5.
काबली चने की किस्म है
(क) पी० बी० जी० 1
(ख) एल० 552
(ग) जी० पी० एफ० 2
(घ) पी० डी० जी० 4.
उत्तर-
(ख) एल० 552

प्रश्न 6.
सूरजमुखी के लिए …… बीज प्रति एकड़ का प्रयोग करें।
(क) 5 किलो
(ख) 10 किलो
(ग) 2 किलो
(घ) 25 किलो।
उत्तर-
(ग) 2 किलो

प्रश्न 7.
कौन-सी फसल को चारों का बादशाह कहा जाता है-
(क) मक्की
(ख) बरसीम
(ग) जबी
(घ) लूसर्न।
उत्तर-
(ख) बरसीम

॥. ठीक/गलत बताएँ-

1. गेहूँ की पैदावार में चीन विश्व में अग्रणी देश है।
2. गेहूँ की बुआई के लिए ठण्डा मौसम ठीक रहता है।
3. गुल्ली डंडा की रोकथाम के लिए स्टोप का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
4. जौं का औसत उत्पादन 15-16 क्विंटल प्रति एकड़ है।
5. शफतल आषाढ़ी की चारे वाली फसल है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. गलत
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. गेहूँ के लिए बीज की मात्रा ………….. किलो बीज प्रति एकड़ है।
2. ……….. की कमी दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग किया जाता
3. जौ की पैदावार में ………. सब से आगे हैं।
4. बाथू ……………… पत्ते वाला खरपतवार है।
5. ओ०एल-9 …………… की किस्म है।
उत्तर-

  1. 40
  2. जिंक
  3. रूस फैडरेशन
  4. चौड़े
  5. जीव।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आषाढ़ी की फसलों को कितनी श्रेणियों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
तीन श्रेणियों में-अनाज, दालें तथा तेल बीज, चारे की फसलें।

प्रश्न 2.
गेहूँ की पैदावार सबसे अधिक किस देश में है ?
उत्तर-
चीन में।

प्रश्न 3.
भारत में गेहूँ की पैदावार में अग्रणी राज्य कौन-सा है ?
अथवा
भारत का कौन-सा राज्य गेहूँ की सबसे अधिक पैदावार करता है ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 4.
पंजाब में गेहूँ की कृषि के लिए कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
35 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 5.
पंजाब में गेहूँ की पैदावार कितनी है ?
उत्तर-
10-20 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार।

प्रश्न 6.
गेहूँ वाला फसली चक्र बताएं।
उत्तर-
मक्की-गेहूँ, मांह-गेहूं, मूंगफली-गेहूं।

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प्रश्न 7.
पासता बनाने के लिए गेहूँ की कौन-सी किस्म का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
वडानक गेहूँ।

प्रश्न 8.
गेहूँ की बुआई के लिए खरपतवारों की समस्या हो तो जुताई किए बिना कौन-सा खरपतवार नाशक प्रयोग होता है ?
उत्तर-
बुआई से पहले ग्रामैकसोन।

प्रश्न 9.
कटाई किए चावल के खेत में कौन-सी मशीन दवारा गेहूँ की सीधी बुआई की जाती है ?
उत्तर-
हैपी सीडर द्वारा।

प्रश्न 10.
गेहूँ के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
40 किलो ग्राम बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 11.
यदि फलीदार फ़सल के बाद गेहूँ की बोवाई की जाए तो कितनी नाइट्रोजन कम डाली जाती है ?
उत्तर-
25% नाइट्रोजन कम डाली जाती है।

प्रश्न 12.
यदि गेहूँ की बुआई एक सप्ताह देर से की जाए तो कितनी पैदावार कम हो जाती है ?
उत्तर-
150 कि० ग्रा० प्रति एकड़ प्रति सप्ताह ।

प्रश्न 13.
गेहूँ की दोहरी बुआई से प्रति एकड़ कितने क्विंटल पैदावार बढ़ जाती है ?
उत्तर-
दो क्विंटल।

प्रश्न 14.
गेहूँ की बुआई चौड़ी मेढ़ों पर किससे की जाती है ?
उत्तर-
बैड प्लांटर से।

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प्रश्न 15.
गेहूँ में गुल्ली डण्डा की रोकथाम के लिए कोई दो नदीननाश्क (खरपतवार नाशक) बताएं।
उत्तर-
टोपिक, लीडर, टरैफलान।

प्रश्न 16.
चौड़े पत्ते वाले नदीनों के नाम लिखो।
उत्तर-
बाथु, कंडियाली पालक, मैना, मैनी।

प्रश्न 17.
जिंक की कमी कौन-सी भूमि में आती है ?
उत्तर-
हल्की भूमि में।

प्रश्न 18.
जिंक की कमी को दूर करने के लिए कौन-सी खाद का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जिंक सल्फेट।

प्रश्न 19.
मैंगनीज़ की कमी दूर करने के लिए कौन-सी खाद का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मैंगनीज़ सल्फेट।

प्रश्न 20.
गेहूँ को कितनी सिंचाइयों की आवश्यकता है ?
उत्तर-
4-5 सिंचाइयों की।

प्रश्न 21.
जौं की पैदावार में कौन सबसे आगे है ?
उत्तर-
रूस फैडरेशन।

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प्रश्न 22.
भारत में जौं की पैदावार सबसे अधिक कहाँ होती है ?
उत्तर-
राजस्थान में।

प्रश्न 23.
पंजाब में जौं की कृषि कितने क्षेत्रफल में होती है ?
उत्तर-
12 हज़ार हेक्टेयर।

प्रश्न 24.
जौं की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
15-16 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 25.
जौं वाला फसल चक्र बताओ।
उत्तर-
चावल-जौं, कपास-जौं, बाजरा-जौं।

प्रश्न 26.
जौं की उन्नत किस्म बताओ।
उत्तर-
पी० एल० 807, वी० जे० एम० 201, पी० एल० 426

प्रश्न 27.
सेंजु बोबाई के लिए जौं के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
35 कि० ग्राम।

प्रश्न 28.
जोंधर की रोकथाम के लिए कौन-सी दवाई का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
आईसोप्रोटयुरान या एबाडैक्स बी० डब्ल्यू० ।

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प्रश्न 29.
जौं को कितनी सिंचाई की आवश्यकता है ?
उत्तर-
1-2 सिंचाई की।

प्रश्न 30.
आषाढ़ी की दाल वाली दो फसलों के नाम बताएं।
उत्तर-
चने तथा मसूर।

प्रश्न 31.
आषाढ़ी (रबी) की तेल बीज वाली चार फसलों के नाम लिखो ।
उत्तर-
गोभी सरसों, तोरिया, तारामीरा, अलसी तथा सूर्यमुखी।

प्रश्न 32.
दालों की पैदावार कौन-से देश में सबसे अधिक है ?
उत्तर-
भारत में।

प्रश्न 33.
भारत में सबसे अधिक दालें कहाँ पैदा होती हैं ?
अथवा
भारत का कौन-सा राज्य दालों की सबसे अधिक पैदावार करता है ?
उत्तर-
राजस्थान में।

प्रश्न 34.
पंजाब में चने की कृषि के नीचे कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
दो हज़ार हेक्टेयर।

प्रश्न 35.
पंजाब में चने की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
पांच क्विंटल प्रति एकड़।

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प्रश्न 36.
चना आधारित फसल चक्रों के नाम लिखें।
उत्तर-
बाजरा-चने, चावल-मक्की -चने।

प्रश्न 37.
सेंजू या सिंचाई योग्य चने की किस्म बताओ।
उत्तर-
जी० पी० एफ-2, पी० बी० जी०-1.

प्रश्न 38.
बरानी देसी चने की किस्म बताओ।
उत्तर-
पी० डी० जी०-4 तथा पी० डी० जी०-3.

प्रश्न 39.
काबली चने की किस्म बताओ।
उत्तर-
एल-552, बी० जी० 1053.

प्रश्न 40.
देसी चने के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
15-18 कि० ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 41.
काबली चने के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
37 कि० ग्रा० प्रति एकड़।

प्रश्न 42.
देसी चने के लिए बरानी बुआई का उचित समय बताओ।
उत्तर-
10 से 25 अक्तूबर।

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प्रश्न 43.
काबली चने के लिए बुआई का उचित समय बताओ।
उत्तर-
25 अक्तूबर से 10 नवम्बर।

प्रश्न 44.
चने के लिए सिंचाई से सियाड़ का फासला (अंतर) बताओ।
उत्तर-
30 सैं० मी०।

प्रश्न 45.
चने को कितनी सिंचाइयों की आवश्यकता है ?
उत्तर-
एक पानी की।

प्रश्न 46.
मसूर की कृषि के नीचे कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
1100 हेक्टेयर।

प्रश्न 47.
मसूर की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
2-3 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 48.
मसूर वाला फसल चक्र बताओ।
उत्तर-
चावल-मसर, कपास-मसर, मूंगफली-मसर।

प्रश्न 49.
मसूर के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
12-15 कि० ग्रा० प्रति एकड़।

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प्रश्न 50.
मसूर के लिए सियाड़ों में फासला (अंतर) बताएं।
उत्तर-
22.5 सैं० मी०।

प्रश्न 51.
मसूर को कितने पानी की आवश्यकता है ?
उत्तर-
1-2 सिंचाइयों की।

प्रश्न 52.
मसूर को कौन-सा कीड़ा लगता है ?
उत्तर-
छेद करने वाली सुंडी।

प्रश्न 53.
राईया को व्यापारिक आधार पर कौन-सी श्रेणी में रखा जाता है ?
उत्तर-
मस्टर्ड श्रेणी में।

प्रश्न 54.
राईया वाला फसल चक्र बताओ।
उत्तर-
मक्की-बाजरा-राईया-गर्म ऋतु की मूंगी, कपास-राईया।

प्रश्न 55.
राईया की उन्नत किस्में बताओ।
उत्तर-
आर० एल० सी०-1, पी० बी० आर०-210, पी० बी० आर०-91.

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प्रश्न 56.
राईया के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
1.5 कि० ग्रा० बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 57.
राईया की बुआई के लिए पंक्तियों (लाइनों) में दूरी बताओ।
उत्तर-
30 सैं० मी०।

प्रश्न 58.
यदि सुपरफास्फेट उपलब्ध न हो तो राईया में कौन-सी खाद डालनी चाहिए ?
उत्तर-
जिप्सम।

प्रश्न 59.
गोभी सरसों को व्यापारिक स्तर पर कौन-सी श्रेणी में गिना जाता है ?
उत्तर-
रेप सीड श्रेणी में।

प्रश्न 60.
गोभी सरसों वाले फसल चक्र बताओ।
उत्तर-
चावल-गोभी सरसों-गर्म मौसम की मुंगी, कपास-गोभी सरसों, मक्की-गोभी सरसों-गर्म ऋतु की मूंग।

प्रश्न 61.
गोभी सरसों की किस्मों के बारे में बताएं।
उत्तर-
पी० जी० एस० एच०-51, जी०एस०एल०-2.

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प्रश्न 62.
कनौला की किस्में बताओ।
उत्तर-
जी० एस० सी०-6, जी० एस० सी०-5.

प्रश्न 63.
गोभी सरसों के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
1.5 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 64.
गोभी सरसों के लिए बुआई के समय पंक्तियों में दूरी बताओ।
उत्तर-
45 सैं० मी०।

प्रश्न 65.
दुनिया में सूर्यमुखी की पैदावार सबसे अधिक कहां होती है ?
उत्तर-
यूक्रेन में।

प्रश्न 66.
पंजाब में सूर्यमुखी की कृषि के नीचे कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
20-21 हजार हेक्टेयर।

प्रश्न 67.
सूर्यमुखी की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
6.5 क्विंटल प्रति एकड़।

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प्रश्न 68.
कौन-सी भूमि सूर्यमुखी के लिए ठीक नहीं है ?
उत्तर-
कलराठी भूमि।

प्रश्न 69.
सूर्यमुखी आधारित फसल चक्करों के नाम लिखें।
उत्तर-
चावल मक्की-आलू-सूर्यमुखी, चावल-तोरिया-सूर्यमुखी, नरमा-सूर्यमुखी, बासमती-सूरजमुखी।

प्रश्न 70.
सूर्यमुखी की उन्नत किस्में बताओ।
उत्तर-
पी० एस० एच०-996, पी० एस० एच०-569, ज्वालामुखी।

प्रश्न 71.
सूर्यमुखी के लिए पंक्तियों में फासला बताएं।
उत्तर-
60 सैं० मी०।

प्रश्न 72.
सूर्यमुखी को मेड़ के शीर्ष पर कितना नीचे बोना चाहिए ?
उत्तर-
6-8 सैं० मी०।

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प्रश्न 73.
सूर्यमुखी के लिए खरपतवारों की रोकथाम के लिए क्या प्रयोग होता है ?
उत्तर-
सटोंप।

प्रश्न 74.
सूर्यमुखी को कितनी सिंचाई की आवश्यकता है ?
उत्तर-
6-9 सिंचाइयों की।

प्रश्न 75.
एक बड़े पशु को लगभग कितना चारा चाहिए ?
उत्तर-
40 किलोग्राम प्रतिदिन।

प्रश्न 76.
आषाढ़ी (रबी) की दो चारे वाली चार फसलों के नाम लिखो ।
उत्तर-
बरसीम, शफतल, लूसन, जवी, राई घास, सेंजी।

प्रश्न 77.
बरसीम की दो उन्नत किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
बी एल 42, वी एल-10.

प्रश्न 78.
बरसीम के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
8-10 कि० ग्रा० प्रति एकड़।

प्रश्न 79.
बरसीम की बुआई के लिए उचित समय बताओ।
उत्तर-
सितम्बर का अंतिम सप्ताह से अक्तूबर का पहला सप्ताह।

प्रश्न 80.
बरसीम में बुईं खरपतवार की रोकथाम के लिए क्या प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
वासालीन।

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प्रश्न 81.
बरसीम के लिए इटसीट की समस्या हो तो क्या मिला कर बोना चाहिए ?
उत्तर-
राईया।

प्रश्न 82.
बरसीम का पहली कटाई कितने दिनों में तैयार हो जाती है ?
उत्तर-
बोबाई से लगभग 50 दिन बाद।

प्रश्न 83.
जवी की किस्में बताओ।
उत्तर-
ओ० एल०-9, कैंट।

प्रश्न 84.
जवी के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
25 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 85.
जवी के लिए बुआई का समय बताओ।
उत्तर-
अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से अक्तूबर के अंत तक।

प्रश्न 86.
जवी के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
रौणी सहित 3-4 (सिंचाइयों की आवश्यकता है।)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गेहूँ की बुआई के समय ठंड की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
अधिक गर्मी होने से इस फसल के पौधों की वृद्धि कम होती है तथा रोग भी अधिक लग जाते हैं।

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प्रश्न 2.
गेहूँ के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
गेहूँ के लिए कल्लर तथा सेम वाली भूमियों के अलावा सभी प्रकार की भूमि ठीक है। मध्यम मैरा भूमि, जिसमें पानी न रुकता हो, सबसे अच्छी है। गेहूँ की वडानक किस्मों के लिए मध्यम से भारी भूमि अच्छी रहती है।

प्रश्न 3.
गेहूँ के खेत में गुल्ली डण्डा की समस्या कैसे कम की जा सकती है ?
उत्तर-
जिन खेतों में गुल्ली डण्डा की समस्या हो वहां गेहूँ वाले खेत में बरसीम, आलू, राईया आदि को बदल-बदल कर बोने से गुल्ली डण्डा की समस्या कम की जा सकती है।

प्रश्न 4.
गेहूँ में जिंक की कमी हो जाए तो क्या चिन्ह दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
जिंक की कमी साधारणतया हल्की भूमि में होती है। जिंक की कमी से पौधों की बढ़ोत्तरी रुक जाती है। पौधे झाड़ी जैसे हो जाते हैं। पत्ते मध्य से पीले पड़ जाते हैं तथा लटक जाते हैं।

प्रश्न 5.
गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज़ की कमी हल्की भूमि में होती है। इसकी कमी से पौधों के बीच वाले पत्तों, नीचे वाले भाग तथा नाड़ी के बीच धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद मे धारियां बन जाते हैं। परन्तु पत्ते की नाड़ियां हरी ही रहती हैं।

प्रश्न 6.
जौं के लिए भूमि की किस्म के बारे में लिखो।
उत्तर-
जौं की फसल रेतली तथा कल्लर वाली भूमि में अच्छी हो सकती है। कलराठी भूमि में सुधार के आरंभिक समय में इन भूमियों में जौं की बोबाई की जा सकती है।

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प्रश्न 7.
फलीदार फ़सलों के बाद गेहूँ को नाइट्रोजन कम क्यों डाली जाती है ?
उत्तर-
फलीदार फ़सलें हवा में से नाइट्रोजन को भूमि में जमा करती हैं इसलिए 25% नाइट्रोजन कम डाली जाती है।

प्रश्न 8.
जौं के लिए बीज की मात्रा तथा शोध के बारे में बताओ।
उत्तर-
सेंजु तथा समय पर बुआई के लिए 35 कि० ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। बरानी तथा पिछेती बुआई के लिए 45 कि० ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है। बीज की सुधाई के लिए फफूंदीनाशक दवाई का प्रयोग कर लेना चाहिए।

प्रश्न 9.
जौं की फसल के लिए खादों के बारे में बताओ।
उत्तर-
जौं के लिए 25 कि० ग्रा० नाइट्रोजन, 12 कि० ग्रा० फास्फोरस तथा 6 कि० ग्रा० पोटाश प्रति एकड़ के अनुसार आवश्यकता होती है। पोटाश का प्रयोग मिट्टी की जांच के बाद ही करना चाहिए। सभी खादों को बुआई के समय ही ड्रिल कर देना चाहिए।

प्रश्न 10.
जौं में खरपतवार की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
चौड़े पत्ते वाले खरपतवार जैसे बाथू की रोकथाम के लिए 2, 4 डी या एलग्रिप, जोंधर (जंगली जवी) के लिए आइसोप्रोटयुरान या एवाडैक्स बी० डब्ल्यू० तथा गुल्ली डण्डे के लिए पिऊमा पावर या टौपिक दवाई का प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है।

प्रश्न 11.
जौं में कीट तथा रोगों के बारे में बताओ।
उत्तर-
जौं के मुख्य कीट हैं-चेपा। जौं के रोग हैं-धारियों का रोग, कांगियारी तथा पीली कुंगी।

प्रश्न 12.
दालों का आयात क्यों करना पड़ता है ?
उत्तर-
भारत दालों की पैदावार में अग्रणी देश है परन्तु हमारे देश में दालों का प्रयोग भी बहुत अधिक होता है। इसलिए हमें दालों का आयात करना पड़ता है।

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प्रश्न 13.
चने के लिए जलवायु के बारे में बताएं।
उत्तर-
चने के लिए अधिक ठंड तथा कोरा हानिकारक हैं परन्तु अगेती गर्मी से भी फसल जल्दी पक जाती है तथा पैदावार कम हो जाती है। यह फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अधिक अच्छी है।

प्रश्न 14.
चने के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
चने की फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतली या हल्की भल्ल वाली भूमि बहुत अच्छी रहती है। यह फसल हल्की भूमि, जहां अन्य फसल नहीं होती, में भी होती है। इस फसल के लिए क्षारीय, कलराठी तथा सेम वाली भूमियां बिल्कुल ठीक नहीं रहतीं।

प्रश्न 15.
चने के लिए भूमि की तैयारी के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
चने की फसल की बुआई के लिए खेत को बहुत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती। परन्तु यदि गहरी जुताई की जाए तो चने को उखेड़ा रोग कम लगता है तथा फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 16.
चने के लिए सिंचाई के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
चने की फसल को साधारणतया एक बार पानी देने की आवश्यकता होती है। पर पानी दिसम्बर के मध्य से जनवरी के अंतिम समय तक देना चाहिए। परन्तु बुआई से पहले पानी कभी नहीं देना चाहिए।

प्रश्न 17.
चने की कटाई के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
जब ढोढ (कली) पक जाएं तथा पौधा सूख जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।

प्रश्न 18.
मसूर के लिए कैसी जलवायु तथा भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
मसूर की फसल के लिए ठंड का मौसम बहुत अच्छा रहता है। यह कोहरा तथा बहुत ही ठंड को भी सहन कर लेती है।

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प्रश्न 19.
मसूर के लिए भूमि की तैयारी कैसे की जाती है ?
उत्तर-
मसूर की फसल के लिए भूमि को दो-तीन बार जोत कर तथा जोतने के बाद सुहागा फेरना चाहिए। ऐसे भूमि की तैयारी हो जाती है।

प्रश्न 20.
मसूर के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
मसूर को 5 कि० ग्रा० नाइट्रोजन प्रति एकड़ की आवश्यकता है। यदि बीज को जीवाणु का टीका लगाकर सोधा गया हो तो 8 कि० ग्रा० फास्फोरस तथा टीका न लगा हो तो 16 कि ग्रा० फास्फोरस की आवश्यकता होती है। उन दोनों खादों को बुआई के समय ही डाल देना चाहिए।

प्रश्न 21.
मसूर के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
मसूर की फसल को सिंचाई के लिए 1-2 बार पानी देने की आवश्यकता पड़ती है। यदि एक पानी देना हो तो बुआई के छः सप्ताह बाद पानी देना चाहिए। परन्तु जब दो पानी देने हों तो पहला पानी 4 सप्ताह के बाद तथा दूसरा फूल लगने के समय या फलियों के लगने समयं देना चाहिए।

प्रश्न 22.
मसूर की फसल की कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब पत्ते सूख जाएं तथा फलियां पक जाएं तो फसल काट लेनी चाहिए।

प्रश्न 23.
राईया के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
राईया की फसल मध्यम से भारी वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उचित है। इसकी बुआई ऐसे ही कर सकते हैं।

प्रश्न 24.
राईया के लिए बुआई का ढंग बताओ।
उत्तर-
राईया की बुआई 30 सैं० मी० के अन्तर वाली लाइनों में करनी चाहिए तथा बुआई से तीन सप्ताह बाद फसल को 10-15 सैं० मी० का अन्तर रखकर खुला करना चाहिए।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें

प्रश्न 25.
राईया के लिए खेत की तैयारी पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
राईया के लिए खेत की तैयारी के लिए भूमि को 2 से 4 बार जोतना चाहिए तथा प्रत्येक बार जोतने के बाद सुहागा फेरना चाहिए। राईया को जीरो टिल ड्रिल द्वारा बिना जुताई के बोया जा सकता है।

प्रश्न 26.
राईया के लिए कटाई तथा गहाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब फली पीली पड़ जाती है तो फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। इस की कटाई के सप्ताह बाद गहाई कर लेनी चाहिए।

प्रश्न 27.
गोभी सरसों के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
गोभी सरसों की फसल मध्यम से भारी वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उचित है। इसके लिए हर तरह की भूमि ठीक रहती है।

प्रश्न 28.
गोभी सरसों के लिए बीज की मात्रा तथा खेत की तैयारी के बारे लिखो।
उत्तर-
गोभी सरसों के लिए 1.5 कि० ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती

प्रश्न 29.
सूर्यमुखी से प्राप्त तेल के बारे में जानकारी दी।
उत्तर-
सर्यमुखी के तेल में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है। इसलिए इस से खाने के लिए शुद्ध किया हुआ तेल बनाया जाता है। इसका तेल साबुन आदि बनाने के लिए भी प्रयोग होता है।

प्रश्न 30.
सूर्यमुखी के लिए कैसी भूमि ठीक है ?
उत्तर-
सूर्यमुखी के लिए अच्छे जल निकास वाली मध्यम भूमि सबसे अच्छी रहती है। इसकी कृषि के लिए कलराठी भूमि ठीक नहीं रहती है।

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प्रश्न 31.
सूर्यमुखी के लिए भूमि की तैयारी तथा बीज की मात्रा तथा सोध के बारे में बताओ।
उत्तर-
सूर्यमुखी के लिए फफूंदीनाशक दवाई से सोधा हुआ 2 कि० ग्रा० बीज प्रति एकड़ ठीक रहता है। भूमि की तैयारी के लिए खेत को 2-3 बार जोत कर तथा हर बार जुताई के बाद सुहागा फेरा जाता है।

प्रश्न 32.
सूर्यमुखी में गुडाई तथा नदीन की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
सूर्यमुखी में पहली गुडाई नदीन उगने के 2-3 सप्ताह बाद तथा उसके बाद 3 सप्ताह बाद करें। नदीन की रोकथाम के लिए स्टोंप का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 33.
सूर्यमुखी की कटाई तथा गहाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब किनारों का रंग नीचे से पीला भूरा हो जाए तथा डिस्क सूखनी शुरू हो जाए तो फसल काटने के लिए तैयार होती है। कटाई किए किनारों की उसी समय थरैशर से गहाई कर लेनी चाहिए।

प्रश्न 34.
बरसीम से कितनी कटाइयां ली जा सकती हैं ?
उत्तर-
बरसीम के चारे की नवम्बर से जून के मध्य तक बहुत ही पौष्टिक तथा सुस्वादी कई बार कटाई की जा सकती है।

प्रश्न 35.
बरसीम के बीज को काशनी के बीज से कैसे अलग किया जाता है ?
उत्तर-
बरसीम के बीज को पानी में डुबो कर रखा जाता है तथा काशनी का बीज तैरने लगता है तथा ऊपर आ जाता है। इसको छलनी से अलग कर लिया जाता है।

प्रश्न 36.
बरसीम के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
बरसीम के लिए बुआई के समय 6 टन गले सड़े गोबर की खाद तथा 20 किलो फॉस्फोरस प्रति एकड़ की आवश्यकता है। यदि गले सड़े गोबर (रुड़ी खाद) उपलब्ध न हो सके तो 10 कि० ग्रा० नाइट्रोजन तथा 30 कि० ग्रा० फॉस्फोरस प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 37.
बरसीम के लिए सिंचाई के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
बरसीम के लिए पहली सिंचाई 6-8 दिनों बाद करनी आवश्यक है। इसके बाद गर्मियों में 8-10 दिनों के बाद तथा सर्दियों में 10-15 दिनों बाद पानी देते रहना चाहिए।

प्रश्न 38.
बरसीम की कटाई पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
बुआई के लगभग 50 दिनों के बाद पहली कटाई तैयार हो जाती है। इसके बाद 40 दिनों बाद सर्दी में तथा फिर 30 दिन बाद कटाई की जा सकती हैं।

प्रश्न 39.
जवी के लिए कैसी भूमि की आवश्यकता है ?
उत्तर-
जवी को सेम तथा कल्लर वाली भूमि के अलावा हर तरह की भूमि में उगाया जा सकता है।

प्रश्न 40.
जवी की बुआई का समय तथा ढंग बताओ।
उत्तर-
जवी की बुआई का समय अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से अक्तूबर के अंत तक है।
इसकी बुआई 20 सें. मी. दूरी के खालियों में की जाती है। बिना जोते जीरो टिल ड्रिल से भी बुआई की जा सकती है।

प्रश्न 41.
जवी के लिए गुडई तथा सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
साधारणतया इसको गुडाई की आवश्यकता नहीं होती। परन्तु खरपतवार होने पर गुडाई कर देनी चाहिए। रौणी सहित तीन-चार सिंचाइयां काफ़ी हैं।

प्रश्न 42.
जवी के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
8 कि० ग्रा० फॉस्फोरस, 18 कि० ग्रा० नाइट्रोजन प्रति एकड़ बुआई के समय डालें, बुआई से 30-40 दिनों बाद 15 कि० ग्रा० नाइट्रोजन प्रति एकड़ की अतिरिक्त आवश्यकता होती है।

दीर्य उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गेहूँ की कृषि का विवरण निम्नलिखित अनुसार दें –
(i) उन्नत किस्में (ii) चावल के बाद खेत की तैयारी (iii) सिंचाई (iv) कीड़े तथा रोग।
उत्तर-
(i) उन्नत किस्में-पी० बी० डब्ल्यू०-621, डी० बी० डब्ल्यू०-17, पी० बी० डब्ल्यू०-343, पी० डी० डब्ल्यू०-291 आदि।
(ii) चावल की कटाई के बाद खेत की तैयारी-चावल के बाद गेहूँ की बुआई करनी हो तो खेत में पहले ही काफ़ी नमी होती है यदि न हो तो रौणी कर लेनी चाहिए। भूमि को उचित नमी युक्त (वत्तर) स्थिति में तवियों से जोत दें तथा कंबाइन से कटे चावल की पुआल को भूमि में ही जोतना हो तो तवियों से कम-से-कम दो बार जोतना चाहिए तथा बाद में सुहागा चला देना चाहिए। इसके बाद कल्टीबेटर से एक बार तथा भूमि भारी हो तो दो बार जुताई के बाद सुहागा चलाना चाहिए। कंबाइन से कटाई किए चावल के खेत में हैपी सीडर मशीन से सीधी बुआई की जा सकती है।
(iii) सिंचाई-यदि गेहूँ की बोबाई अक्तूबर में की हो तो पहला पानी बुआई के तीन सप्ताह बाद तथा बाद में बोई गई गेहूँ की फसल को चार सप्ताह के बाद पानी देना चाहिए। इस समय गेहूँ में विशेष प्रकार की जड़ें, जिन्हें क्राऊन जड़ें कहते हैं बनती हैं। गेहूँ को 4-5 पानी देने की आवश्यकता है।
(iv) कीड़े तथा रोग-सैनिक सूंडी, चेपा, दीमक तथा अमरीकन सूंडी गेहूँ को लगने वाले कीड़े हैं। गेहूँ को पीली कुंगी, भूरी कुंगी, कांगियारी, ममनी तथा टुंडु तथा करनाल बंट रोग लगते हैं।

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प्रश्न 2.
जौं की कृषि का विवरण निम्न लिखे अनुसार दें
(i) उन्नत किस्म (ii) जलवायु (i) बुआई का समय (iv) खालियों का अन्तर (v) सिंचाई।
उत्तर-
(i) उन्नत किस्म-वी०जी०एम०-201, पी०एल०-426, पी०एल०-807।
(ii) जलवायु-जौं के लिए आरम्भ में ठण्ड तथा पकने के समय गर्म तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यह अच्छी हो सकती है।
(iii) बुआई का समय-15 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक।
(iv) खालियों का अन्तर-समय पर बुआई की हो तो 22.5 सैं०मी० तथा पिछेती बुआई के लिए 18 से 29 सैं०मी० ।
(v) सिंचाई-1-2 सिंचाइयों की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अनुसार चने की कृषि का विवरण दें
(i) जलवायु (ii) भूमि (iii) फसल चक्र (iv) उन्नत किस्म (v) बीज की मात्रा (vi) खरपतवारों की रोकथाम (vii) कटाई (vii) कीड़े तथा रोग।
उत्तर-
देखो उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 3.
मसर की कृषि का विवरण दें(i) जलवायु तथा भूमि (ii) उन्नत किस्में (ii) फसल चक्र (iv) बीज की मात्रा तथा सुधाई (v) बुआई का समय तथा ढंग (vi) खादें (vii) सिंचाई (vii) कटाई।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।।

प्रश्न 4.
राईया की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 5.
गेहूँ, जौ, चने तथा मसूर के लिए खाद का विवरण दें।
उत्तर-
प्रति एकड़ के अनुसार खाद का विवरण इस प्रकार है-
PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 3 आषाढ़ी की फ़सलें 3

प्रश्न 6.
गेहूँ की बीजाई करने के लिए खेत की तैयारी करने सम्बन्धी जानकारी दो।
उत्तर-स्वयं करें।

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प्रश्न 7.
सूरजमुखी की बुआई का समय और विधि के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-स्वयं करें।

प्रश्न 8.
काबुली चने की खेती का विवरण निम्नलिखित अनुसार दीजिए :
(क) ज़मीन (ख) दो उन्नत किस्में (ग) बीज की मात्रा प्रति एकड़ (घ) बुआई का समय (ङ) सिंचाई (च) कटाई।
उत्तर-
(क) ज़मीन-चने की फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतली या हल्की भल्ल वाली ज़मीन बहुत अच्छी रहती है। यह फसल हल्की ज़मीन, जहां अन्य फसल नहीं होती, में भी होती है। इस फसल के लिए क्षारीय, कलराठी तथा सेम वाली ज़मीन बिल्कुल ठीक नहीं रहती।
(ख) दो उन्नत किस्में-एल-552, बी० जी० 1053 ।
(ग) बीज की मात्रा-37 कि०ग्रा० प्रति एकड़
(घ) बुआई का समय-25 अक्तूबर से 10 नवम्बर।
(ङ) सिंचाई-एक सिंचाई की आवश्यकता है।
(च) कटाई-जब ढोढ (कली) पक जाएं तथा पौधा सूख जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।

आषाढ़ी की फ़सलें PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • अक्तूबर-नवम्बर में बोई जाने वाली फसलों को आषाढ़ की फसलें कहते हैं।
  • आषाढ़ी की फसलों को मार्च-अप्रैल में काटा जाता है।
  • आषाढ़ी की फसलों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है-अनाज, दालें तथा तेल बीज, चारे वाली फसलें।
  • अनाज वाली फसलों में गेहूँ तथा जौं मुख्य हैं।
  • गेहूँ की पैदावार में चीन दुनिया का अग्रणी देश है।
  • भारत में उत्तर प्रदेश गेहूँ की पैदावार में अग्रणी राज्य है।
  • पंजाब में गेहूँ लगभग 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोई जाने वाली फसल है।
  • गेहूँ की औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • गेहूँ की बुआई के लिए ठंडा मौसम ठीक रहता है।
  • गेहूँ के लिए मैरा मध्यम भूमि जिसमें पानी न रुकता होता हो सबसे बढ़िया है।
  • गेहूँ की उन्नत किस्में हैं -एच०डी०-2967, पी०बी०डब्ल्यू०-343, डी० बी० डब्ल्यू ०-17, वडानक गेहूँ आदि।
  • पासता बनाने के लिए वडानक गेहूँ का आटा प्रयोग किया जाता है।
  • खेत में गेहूँ की बुआई से पहले यदि खरपतवारों की समस्या हो तो बिना तैयारी के खेत में ग्रामैक्सोन का स्प्रे करें।
  • गेहूँ के लिए बीज की मात्रा 40 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर है।
  • गेहूँ की बिजाई अक्तूबर के अंतिम या नवम्बर के पहले सप्ताह की जाए तो खरपतवार कम हो जाते हैं।
  • चौड़े पत्तों वाले नदीन जैसे-मैना, मैनी, बाथ, कंडियाली पालक, सेंजी आदि की रोकथाम के लिए एलग्रिप या ऐम का प्रयोग किया जाता है।
  • गुल्ली डंडे की रोकथाम के लिए टापिक, लीडर, स्टोंप आदि में से किसी एक । खरपतवार नाशक का प्रयोग किया जाता है
  • गेहूँ को 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस तथा 12 किलो पोटाश की । प्रति एकड़ के लिए आवश्यकता है।
  • जिंक तथा मैंगनीज़ की कमी अक्सर हल्की भूमियों में आती है।
  • दीमक, चेपा, सैनिक सूंडी तथा अमरीकन सूंडी गेहूँ के मुख्य कीट हैं।
  • गेहूँ के रोग हैं-पीली कुंगी, भूरी कुंगी, कांगियारी, मम्णी तथा टुंड्र आदि।
  • भारत में जौं की पैदावार सबसे अधिक राजस्थान में होती है।
  • पंजाब में जौं की कृषि 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है।
  • जौं की औसत पैदावार 15-16 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • जौं की फसल रेतली तथा कॅलर वाली भूमि में भी अच्छी हो जाती है।
  • जौं की किस्में हैं-पी०एल० 807, वी०जी०एम० 201, पी०एल० 426।
  • जौं के बीज की मात्रा है 35 कि०ग्रा० प्रति एकड़ सिंचाई योग्य (सेंजू या सिंचित) तथा समय पर बीजाई के लिए परन्तु बरानी (असिंचित) तथा पिछेती फसल की बुआई के लिए 45 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
  • जौं की बुआई 15 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक करनी चाहिए।
  • जौं में भिन्न-भिन्न प्रकार के खरपतवार नाशकों के प्रयोग की सिफारिश की जाती है; जैसे-बाथू के लिए 2,4-डी, जौंधर के लिए एवाडैक्स बी०डब्ल्यू० तथा गुल्ली डंडे के लिए पिऊमा पावर आदि।
  • जौं के लिए 25 कि०ग्रा० नाइट्रोजन, 12 कि०ग्रा० फॉस्फोरस तथा 6 कि०ग्रा० पोटाश प्रति एकड़ के लिए आवश्यकता है।
  • जौं का कीड़ा है चेपा तथा रोग हैं-धारियों का रोग, कांगियारी तथा पीली कुंगी।
  • पंजाब में आषाढ़ी के दौरान मसर, चने तथा मटरों की कृषि कम क्षेत्रफल में की जाती है।
  • पंजाब में चने की बुआई दो हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है तथा औसत पैदावार पांच क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • चने की फसल कम वर्षा वाले इलाकों के लिए ठीक रहती है।
  • चने के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतली या हल्की भल्ल वाली भूमि अच्छी । रहती है।
  • चने की उन्नत किस्में हैं-जी०पी०एफ०-2 तथा पी०बी०जी०-1 सिंचाई योग्य (सेंजू) देसी चने की, पी०डी०जी०-4 तथा पी०डी०जी०-3 बरानी देसी चने की किस्में हैं।
  • काबली चने की किस्में हैं-एल०-552 तथा बी०जी०-1053।
  • देसी चने के लिए बीज की मात्रा 15-18 कि०ग्रा० प्रति एकड़ तथा काबली चने के लिए 37 कि०ग्रा० प्रति एकड़ है।
  • देसी चने की बरानी बुआई का उचित समय 10 से 30 अक्तूबर है।
  • चने में खरपतवार की रोकथाम के लिए टरैफलान अथवा सटोंप का प्रयोग किया जा सकता है।
  • देसी तथा काबली चने को 6 कि०ग्रा० नाइट्रोजन प्रति एकड़, देसी चने को 8 कि०ग्रा० फॉस्फोरस तथा काबली चने के लिए 16 कि०ग्रा० प्रति एकड़ की
    आवश्यकता होती है।
  • चने को दीमक तथा चने की सूंडी लग जाती है।
  • चने को झुलस रोग, उखेड़ा तथा तने का गलना रोग हो जाते हैं।
  • मसूर की कृषि 1100 हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है।
  • मसूर की औसत पैदावार 2-3 क्विंटल प्रति एकड़ के लगभग है।
  • मसूर की फसल क्षारीय, कलराठी तथा सेम वाली भूमि को छोड़कर प्रत्येक तरह की भूमि में हो जाती है।
  • मसूर की उन्नत किस्में हैं-एल०एल०-931 तथा एल०एल०-699।
  • मसूर के लिए 12-15 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • मसूर की बोबाई अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में होती है।
  • मसूर के लिए 5 कि०ग्रा० नाइट्रोजन प्रति एकड़, यदि बीज को जीवाणु टीका लगा हो तो 8 कि०ग्रा० फॉस्फोरस तथा यदि टीका न लगा हो तो 16 कि०ग्रा० फॉस्फोरस प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • मसर में छेद करने वाली सुंडी इसका मुख्य कीट है तथा झुलस रोग तथा कुंगी इसके मुख्य रोग हैं।
  • विश्व में सबसे अधिक तेल बीज पैदा करने वाला देश संयुक्त राज्य अमेरिका है।
  • भारत में सबसे अधिक तेल बीज राजस्थान में पैदा किए जाते हैं।
  • आषाढ़ी में बोये जाने वाले तेल बीज हैं-राईया, गोभी सरसों, तोरिया, तारामीरा, अलसी, कसुंभ, सूरजमुखी आदि।
  • राईया मध्यम से भारी वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उचित है।
  • राईया को हर प्रकार की भूमि में बोया जा सकता है।
  • राईया की उन्नत किस्में हैं -आर०एल०सी०-1, पी०बी०आर०-201, पी०बी०आर०-91 ।
  • राईया के लिए बीज की मात्रा है 1.5 कि०ग्रा० प्रति एकड़।
  • राईया के लिए बोबाई का समय मध्य अक्तूबर से मध्य नवम्बर है।
  • राईया के लिए 40 कि० ग्रा० नाइट्रोजन, 12 कि०ग्रा० फॉस्फोरस प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • राईया के कीट हैं-चितकबरी सूंडी, चेपा, सलेटी सूंडी, पत्ते का सुरंगी कीट।
  • राईया के रोग हैं-झुलस रोग, सफेद कुंगी, हरे पत्ते का रोग, पीले धब्बे का रोग।
  • गोभी सरसों की एक श्रेणी कनौला सरसों की है। इस तेल में इरुसिक अमल तथा खल में गलुको-सिनोलेटस कम होते हैं।
  • गोभी सरसों की किस्में हैं-पी०जी०एस०एच०-51, जी०एस०एल०-2, जी०एस०एल०-1
  • कनौला किस्में हैं-जी०एस०सी०-6, जी०एस०सी-5।
  • गोभी सरसों के लिए 1.5 कि०ग्रा० प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • गोभी सरसों के लिए 1.5 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • गोभी सरसों के नदीनों की रोकथाम के लिए वासालीन, बुआई से पहले तथा आईसोप्रोटयुरान का बुआई के बाद प्रयोग कर सकते हैं।
  • सूर्यमुखी के बीजों में 40-43% तेल होता है जिसमें कोलेस्ट्रोल कम होता है।
  • दुनिया में सबसे अधिक सूर्यमुखी यूक्रेन में पैदा होता है।
  • पंजाब में सूर्यमुखी की कृषि 20-21 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। इसकी औसत पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • अच्छे जल निकास वाली मध्यम भूमि सूर्यमुखी के लिए ठीक है।
  • सूर्यमुखी की उन्नत किस्में हैं-पी० एच० एस०-996, पी०एस०एच०-569, ज्वालामुखी।
  • सूर्यमुखी के लिए 2 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़ का प्रयोग किया जाता है।
  • सूर्यमुखी की बोबाई जनवरी माह के अन्त तक कर लेनी चाहिए।
  • एक बड़े पशु के लिए 40 कि०ग्रा० हरा चारा प्रतिदिन चाहिए होता है।
  • आषाढ़ी में चारे वाली फसलें हैं-बरसीम, शफ्तल, लूसण, जवी, राई घास तथा सेंजी।
  • बरसीम को चारों का बादशाह कहा जाता है।
  • बरसीम की किस्में हैं-बी०एल०-42, बी०एल०-10।
  • बरसीम के बीज की 8 से 10 किलो प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • बरसीम के बीज में से काशनी खरपतवार के बीजों को अलग कर लेना चाहिए।
  • सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्तूबर के पहले सप्ताह बरसीम की बुआई करनी | चाहिए।
  • बरसीम में बुई खरपतवार की रोकथाम के लिए वासालीन का प्रयोग करें।
  • जवी पौष्टिकता के आधार पर बरसीम के बाद दूसरे नंबर की चारे वाली फसल है।
  • जवी की किस्में हैं-ओ०एल०-9, कैंट।
  • जवी के बीज की 25 कि०ग्रा० प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • जवी की बुआई अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से अक्तूबर के अंत तक करें।
  • जवी में गुडाई करके खरपतवारों पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
  • जवी को 15 कि०ग्रा० नाइट्रोजन तथा 8 कि०ग्रा० फॉस्फोरस की प्रति एकड़ के हिसाब से बोबाई के समय आवश्यकता है।
  • जवी को रौणी सहित तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट

PSEB 10th Class Home Science Guide घर की आन्तरिक सजावट Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की आन्तरिक सजावट के लिए किन-किन मुख्य वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
घर को सजाने के लिए अनेकों वस्तुएं मिलती हैं और प्रयोग की जा सकती हैं। परन्तु मुख्य रूप में घर की सजावट के लिए निम्नलिखित वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं

  1. फर्नीचर
  2. पर्दे
  3. कालीन/गलीचे
  4. गद्दियां/कुशन
  5. सजावट के लिए सहायक सामान।

प्रश्न 2.
फर्नीचर का चयन करते समय कौन-सी मुख्य दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
फर्नीचर खरीदते समय सबसे ज़रूरी बात बजट अर्थात् आप फर्नीचर पर कितना पैसा खर्च कर सकते हो। उस के अनुसार ही आपको उसकी मज़बूती और डिज़ाइन देखना पड़ेगा। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि किस काम के लिए फर्नीचर खरीदना है उदाहरणतया यदि पढ़ने वाला मेज़ (Study Table) लेना है तो उसकी ऊंचाई, किताबें रखने के लिए जगह ध्यान देने वाली बातें हैं। इसी तरह कुर्सी की ऊंचाई, बाजुओं की ऊँचाई इतनी होनी चाहिए कि आदमी उसमें आराम से बैठ सके।

प्रश्न 3.
बैठक के लिए किस प्रकार के फर्नीचर की आवश्यकता होती है?
उत्तर-
बैठक परिवार के सभी सदस्यों और मेहमानों के बैठने के लिए प्रयोग की जाती है। खेलने, पढ़ने, लिखने, संगीत सुनने के काम यहां किए जाते हैं। इसलिए बैठक में सोफा, कुर्सियां और दीवान रखे जा सकते हैं। इनके बीच एक कॉफ़ी मेज़ रखना चाहिए। सोफे और कुर्सियों के आस-पास भी छोटे मेज़ (Peg table) चाय, पानी के गिलास, कप और एशट्रे (Ashtray) रखने चाहिएं।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट

प्रश्न 4.
घर में फर्नीचर पॉलिश बनाने का एक ढंग बताएं।
अथवा
फर्नीचर की पॉलिश बनाने के दो ढंग बताएं।
उत्तर-
घर में लकड़ी के फर्नीचर की पॉलिश निम्नलिखित ढंग से बनाई जा सकती है(1) तारपीन का तेल
= 2 भाग मैथिलेटिड स्पिरिट = 1 भाग
अलसी का तेल (Linseed) = 2 भाग
सिरका = 1 भाग
ऊपरलिखित चार वस्तुओं को एक बोतल में डालकर हिलाओ। यह पॉलिश गहरे रंग की लकड़ी पर प्रयोग की जा सकती है। इसमें तारपीन के तेल और सिरका चिकनाहट के दागों को खत्म करता है। अलसी का तेल लकड़ी को ठीक स्थिति में रखता है जबकि मैथिलेटिड स्पिरिट सूखने में मदद करती है। (2) शहद की मक्खी का मोम = 15 ग्राम
तारपीन का तेल = 250 मि०ली० मोम को हल्के सेक से पिघला लें। आग से नीचे उतारकर उसमें तारपीन का तेल डालें। तब तक हिलाएं जब तक मोम तेल में अच्छी तरह घुल न जाए।

प्रश्न 5.
कपड़े से ढके हुए फर्नीचर की देखभाल कैसे करनी चाहिए?
उत्तर-
कपड़े से ढके हुए फर्नीचर को वैक्यूम कलीनर से साफ़ किया जा सकता है। इसके न होने से गर्म कपड़े झाड़ने वाले ब्रुश से भी इसको साफ़ किया जा सकता है। यदि कपड़ा फिट जाए या अधिक गन्दा हो जाए तो 2 गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच सिरका मिलाकर इसमें साफ़ मुलायम कपड़ा भिगोकर अच्छी तरह निचोड़ कर फर्नीचर के कवर को साफ़ करो। इससे कपड़ा साफ़ हो जाता है और चमक भी आ जाती है। चिकनाहट के दागों को पेट्रोल या पानी में डिटर्जेंट घोलकर साफ़ कीजिए। बाद में साफ़ पानी में कपड़ा भिगोकर साफ़ कीजिए ताकि डिटर्जेंट निकल जाए।

प्रश्न 6.
आजकल प्लास्टिक का फर्नीचर क्यों प्रचलित हो रहा है?
उत्तर-
आजकल प्लास्टिक के प्रयोग के बढ़ने के कई कारण हैं

  1. यह जल्दी नहीं टूटता।
  2. इस पर खरोंच और निशान आदि नहीं पड़ते।
  3. यह पानी नहीं चूसता इसलिए इसको आसानी से धोकर साफ़ किया जा जाता है।
  4. इसको कोई कीड़ा या दीमक नहीं लगता।
  5. यह कई रंगों में मिल जाता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट

प्रश्न 7.
घर में पर्दे क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर-
पर्दो के बिना घर अच्छा नहीं लगता इसलिए पर्दे घर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए लगाए जाते हैं। परन्तु इसके साथ ही ये घर को तेज़ हवा और रोशनी, धूलमिट्टी से भी बचाते हैं। पर्दे लगाने से कमरों में एकांत की भावना पैदा होती है।

प्रश्न 8.
कालीन या पर्दे खरीदते समय रंग का क्या महत्त्व होता है?
उत्तर-
पर्दे या कालीन खरीदते समय इनके रंग का चुनाव घर की दीवारों और फर्नीचर के रंग और डिज़ाइन के अनुसार होना चाहिए। सर्दियों में गहरे और गर्मियों में हल्के रंगों के पर्दे अच्छे रहते हैं। यदि कालीन और सोफा डिजाइनदार हो तो पर्दे प्लेन एक रंग के होने चाहिएं, इसके अतिरिक्त छोटे कमरे में प्लेन या छोटे डिज़ाइन के पर्दे ही अच्छे रहते हैं। इस तरह कालीन का चुनाव करते समय भी सोफे और पर्दो को ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि पर्दे प्लेन हैं तो कालीन डिज़ाइनदार अधिक रंगों वाला खरीदा जा सकता है। यदि कमरा बड़ा हो तो कालीन बड़े डिज़ाइन और गहरे रंग का होना चाहिए परन्तु यदि कमरा छोटा हो तो कालीन फीके प्लेन रंग का होना चाहिए।

प्रश्न 9.
पुष्प सज्जा के लिए फूलों का चयन कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
पुष्प सज्जा के लिए फूलों का चुनाव करते समय कमरे और कमरे की रंग योजना को ध्यान में रखना चाहिए। खाने वाले कमरे में सुगन्ध रहित फूलों का प्रयोग करना चाहिए जबकि अन्य कमरों में सुगन्धित। फूलों का रंग कमरे की योजना से मेल खाता होना चाहिए। फूलों का आकार फूलदान के आकार के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 10.
स्टैम होल्डर किस काम आता है और ये किस आकार में मिलते हैं?
उत्तर-
स्टैम होल्डर फूलों को अपने स्थान पर टिकाने के काम आते हैं। ये भारी होने चाहिएं ताकि फूलों के वज़न से हिल कर न गिरें। यह कई आकार के मिलते हैं जैसे, वर्गाकार, आयताकार, त्रिकोणाकार, अर्द्ध-चन्द्रमा की शक्ल और टी (T) आकार में मिलते हैं।

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प्रश्न 11.
पुष्प सज्जा के मुख्य ढंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
पुष्प सज्जा के लिए मुख्य ढंग हैं

  1. जापानी
  2. अमरीकन।।

जापानी ढंग संकेतक है इसमें तीन फूलों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें सबसे ऊँचा फूल परमात्मा, मध्य का मानव और सब से नीचे वाला धरती का प्रतीक होता है। इसमें एक ही रंग के एक ही किस्म के फूल होते हैं।
अमरीकन ढंग में कई रंगों के इकट्ठे फूल प्रयोग किए जाते हैं। इसलिए इसको समूह ढंग भी कहा जाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 12.
फर्नीचर घर की आन्तरिक सजावट के लिए क्यों ज़रूरी है?
उत्तर–
प्रत्येक परिवार की खाने, आराम करने, लेटने और आराम करने की प्रारम्भिक आवश्यकताएं हैं। इनको पूरा करने के लिए फर्नीचर की आवश्यकता होती है। इसलिए इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ यदि घर की सुन्दरता में बढ़ोत्तरी कर सकें तो सोने पर सुहागे वाली बात है। घर की सजावट में बढ़ोत्तरी करने के लिए फर्नीचर का डिज़ाइन, ढांचा और आकार परिवार की आवश्यकताओं और कमरे के आकार के अनुसार होना चाहिए। छोटे घरों में पलंग और दीवानों में लकड़ी के खाली बक्से होने चाहिए ताकि उनमें परिवार के कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं रखी जा सकें।

प्रश्न 13.
फर्नीचर का चयन और खरीदते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है?
उत्तर-
आजकल बाजार में कई प्रकार का फर्नीचर उपलब्ध है इसलिए उसके चुनाव के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. डिज़ाइन-फर्नीचर का आकार और डिज़ाइन कमरे के आकार और अन्य वस्तुओं के आकार अनुसार ही होना चाहिए। यदि कमरा छोटा है तो फीके और प्लेन रंग के कपड़े वाला या हल्के रंग की लकड़ी वाला फर्नीचर होना चाहिए।
  2. कीमत-फर्नीचर की कीमत परिवार के बजट के अनुसार होनी चाहिए।
  3. आकार- फर्नीचर का आकार कमरे और अन्य वस्तुओं के आकार से मेल खाता होना चाहिए।
  4. फर्नीचर के कार्य-जिस काम के लिए फर्नीचर खरीदा जाए वह पूरा होना चाहिए। जैसे कि यदि अलमारी खरीदनी है तो वह आपकी आवश्यकताएं पूर्ण करती हो।
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  5. लकड़ी की किस्म और अन्य सामग्री-लकड़ी की बढ़िया किस्म होनी चाहिए। यदि स्टील या एल्यूमीनियम का खरीदना है तो बढ़िया किस्म की स्टील चाहिए जिसमें जंग न लगे।
  6. मज़बूती-मज़बूती देखने के लिए उसको ज़ोर से हिलाकर या उठाकर देखो। ज़मीन पर पूरी तरह टिकने वाला हो।
  7. बनावट-फर्नीचर की बनावट के लिए उसके जोड़, पॉलिश और सफ़ाई देखनी आवश्यक है।
  8. मीनाकारी-अधिकतर मीनाकारी वाला फर्नीचर अच्छा नहीं रहता क्योंकि इसकी सफ़ाई अच्छी तरह से नहीं हो सकती।
  9. कपड़े से ढका हुआ फर्नीचर-कपड़े का रंग, डिज़ाइन और गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए।

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प्रश्न 14.
कमरों में फर्नीचर की व्यवस्था करते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है?
उत्तर-
कमरों में फर्नीचर की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है

  1. उपयोगिता या प्रयोग (Use)- फर्नीचर की व्यवस्था उसकी उपयोगिता या प्रयोग पर निर्भर करती है। बैठक में जहां बैठकर बातचीत करनी हो तो वहां सोफा या कुर्सियां आदि ही प्रयोग करनी चाहिएं। उनको इस ढंग से रखें कि एक इकाई नज़र आए। हमेशा ऐसे फर्नीचर को प्राथमिकता देनी चाहिए। जिसका दोहरा प्रयोग हो सके जैसे सोफा कम बैड या बॉक्स वाला दीवान आदि।
  2. आकार (Size)-फर्नीचर का आकार कमरे के अनुसार होना चाहिए। यदि कमरा बड़ा है तो कपड़े से ढका हुआ फर्नीचर प्रयोग किया जा सकता है। परन्तु छोटे कमरे में बैंत, लकड़ी या रॉट आयरन (Wrought iron) का फर्नीचर प्रयोग कीजिए।
  3. लय (Rythm)- फर्नीचर की व्यवस्था इस ढंग से करो कि विस्तार का प्रभाव पड़े। बड़ी वस्तुओं को पहले टिकाओ फिर छोटी और फिर आवश्यकता अनुसार अन्य वस्तुएं रखी जा सकती हैं।
  4. अनुरूपता (Harmony)- फर्नीचर की भिन्न-भिन्न वस्तुओं का आपस में और इन वस्तुओं का कमरे के आकार और रंग से ताल-मेल होना चाहिए।
  5. बल (Emphasis)-कमरे में किसी स्थान पर बल देने के लिए फर्नीचर का प्रयोग किया जा सकता है।
  6. आरामदायक (Comfort)- फर्नीचर की व्यवस्था इस ढंग से हो कि परिवार के सदस्यों को उससे आराम मिल सके। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं
    1. कमरे में आने-जाने के रास्ते का ध्यान रखना।
    2. कमरे में अधिक फर्नीचर न रखें।
    3. लकड़ी, बैंत या राट आयरन के फर्नीचर को गद्दियों से सजाओ।
    4. फर्नीचर दीवारों से जोड़कर रखें और न कमरे के बीच रखें।
    5. फर्नीचर की उपयोगिता को ध्यान में रखकर उनका समूहीकरण कीजिए।

प्रश्न 15.
बैठक में फर्नीचर की व्यवस्था कैसे करोगे?
उत्तर-
बैठक में फर्नीचर इस तरह रखना चाहिए कि उसमें करने वाले कार्य जैसे आराम, खेल या संगीत आदि अच्छी तरह किया जा सके। बैठक में एक ओर सोफा, उसके सामने दीवान और अन्य कुर्सियां रखी जा सकती हैं। यह सारा सामान आपस में मेल खाता होना चाहिए। बैठक में पढ़ने के लिए एक मेज़ कुर्सी भी रखी जा सकती है। जिस पर किताबें और ट्यूब लाइट (Tube Light) होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त टी० वी०, रेडियो और संगीत के लिए पियानो रखें। एक कोने में कैरम बोर्ड, चैस या ताश भी रखी जा सकती है। दीवारों पर कुछ सुन्दर तस्वीरें लगाई जा सकती हैं। हो सके तो फूलदान में कुछ फूल या फिर गमले भी कमरे में रखे जा सकते हैं।

प्रश्न 16.
सोने के कमरे और खाने के कमरे में फर्नीचर की व्यवस्था कैसे करोगे?
उत्तर-

1. सोने वाला कमरा-सोने वाले कमरे में सबसे महत्त्वपूर्ण फर्नीचर सोने के लिए चारपाई या बैड होते हैं। ये पूर्ण आरामदायक होने चाहिएं। इनके सिर वाला भाग दीवार से लगाकर रखें। पलंग के आस-पास इतना स्थान अवश्य हो कि पलंग को झाड़पोंछ कर पलंग पोश बिछाया जा सके। हो सके तो पलंग के दोनों ओर एक छोटा-सा मेज़ रखा जाए। आजकल बैड के साथ ही साइड टेबल मिलते हैं जो टेबल लैंप या प्रयोग में आने वाला सामान रखने के काम आते हैं। इसके अतिरिक्त कमरे में दो कुर्सियां या मूड़े, एक छोटा मेज़ भी रखना चाहिए। तैयार होने के लिए प्रयोग किया जाने वाला शीशा या ड्रेसिंग टेबल को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ काफ़ी रोशनी पहुंचती हो। सोने वाले कमरे में अल्मारी भी ज़रूरी है। कई बार यह दीवार में ही बनी होती हैं नहीं तो स्टील या लोहे की अल्मारी भी रखी जा सकती है जिसमें कपड़े और जूते रखने के लिए पूरा स्थान हो।

2. खाना खाने वाला कमरा-इस कमरे में सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु खाने वाला मेज़ और कुर्सियां होती हैं। इनका आकार और संख्या परिवार के सदस्यों और मेहमानों के अनुसार होनी चाहिए। खाने के मेज़ वाली कुर्सियों पर गद्दियां होनी चाहिएं जो बाजू के बिना और पीछे से सीधी हों। इस मेज़ को कमरे के बीच में रखना चाहिए। खाने के कमरे में एक अल्मारी (Cupboard) भी रखी जा सकती है जिसमें बर्तन, टेबल सैट, कटलरी और इस कमरे से सम्बन्धित सामान रखा जा सके।

प्रश्न 17.
लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल के लिए निम्नलिखित ढंग हैं —
लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल-लकड़ी के फर्नीचर को प्रतिदिन साफ़ कपड़े के साथ झाड़-पोंछ कर साफ़ करना चाहिए। लकड़ी को आमतौर पर सींक लग जाती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर दीमक लग जाए तो दीमक की दवाई का खराब हिस्से पर छिड़काव (स्प्रे) करो। साल में एक दो बार लकड़ी के फर्नीचर को धूप लगवा लेनी चाहिए। अगर धूप बहुत तेज़ हो तो कुछ समय के लिए ही लगाओ। पॉलिश किए मेज़ पर गर्म सब्जी के बर्तन या ठण्डे पानी के गिलास सीधे ही नहीं रखने चाहिए, नहीं तो मेज़ पर दाग पड़ जाते हैं। इनके नीचे प्लास्टिक, कारक या जूट आदि के मैट रखने चाहिए। फर्नीचर से दाग उतारने के लिए गुनगुने पानी में सिरका मिलाकर या हल्का डिटरजेंट मिला कर कपड़ा इस घोल में गीला करके साफ करो। परन्तु फर्नीचर को ज्यादा गीला नहीं करना चाहिए। गीला साफ़ करने के बाद फर्नीचर को सूखे कपड़े के साथ साफ़ करो और स्पिरिट में भीगी रूई आदि से फिर साफ़ करो। अगर लकड़ी ज्यादा खराब हो गई हो तो इसको रेगमार से रगड़ कर पॉलिश किया जा सकता है। यदि लकड़ी में छेद हो गए हों तो उसे मधुमक्खी के मोम से भर लो।

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प्रश्न 18.
भिन्न-भिन्न प्रकार के फर्नीचर की देखभाल भिन्न-भिन्न तरीके से क्यों की जाती है?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न फर्नीचर भिन्न-भिन्न वस्तुएं जैसे-लकड़ी, कपड़ा, प्लास्टिक, बैंत और लोहे का बना होता है। प्रत्येक वस्तु की बनावट भिन्न होती है जैसे लकड़ी के फर्नीचर को दीमक और चूहे का डर होता है जबकि लोहे के फर्नीचर को इन दोनों वस्तुओं से कोई नुकसान नहीं होता, परन्तु इसको जंग लग जाता है। इस तरह कपड़ा भी दीमक, चूहे, सिल, मिट्टी, धूल से खराब हो जाता है, परन्तु प्लास्टिक और बैंत अलग किस्म के हैं। प्लास्टिक पर पानी या सिल का कोई प्रभाव नहीं होता। ये गर्म वस्तु और धूप से खराब होता है। इस तरह बैंत के फर्नीचर की सम्भाल अन्य फर्नीचर से भिन्न होती है। इसलिए फर्नीचर भिन्न-भिन्न तरह के पदार्थों से बने होने के कारण उनकी सम्भाल भी भिन्न-भिन्न है।

प्रश्न 19.
पर्दे लगाने के क्या लाभ हैं? पर्दो के लिए कपड़ा कैसा खरीदना चाहिए?
उत्तर-

  1. पर्दे लगाने से घर सुन्दर, आकर्षक और मेहमानों का सत्कार करने वाला लगता है।
  2. पर्दो से कमरे में एकान्त (Privacy) की भावना पैदा होती है।
  3. पर्दे लगाने से यदि खिड़कियां और दरवाज़े के फ्रेम अच्छे न हों तो उनको ढका जा सकता है।
  4. ये अधिक हवा और रोशनी को भीतर आने से रोकते हैं।

पर्दे हमेशा प्लेन, प्रिंटिड, सूती, रेशमी, टपेस्ट्री, केसमैंट, खद्दर, हाथ करघे का बना कपड़ा या सिल्क साटन के ही प्रयोग किए जा सकते हैं। पर्यों के लिए बुर वाला कपड़ा प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अपने देश में मिट्टी आंधी काफ़ी है, जिससे मिट्टी को पर्दे पकड़ लेते हैं। सबसे बढ़िया सूती पर्दे ही रहते हैं क्योंकि इन द्वारा हवा आर-पार गुज़र सकती है और ये रोशनी भी रोक लेते हैं।

प्रश्न 20.
कालीन का चयन कैसे करना चाहिए?
उत्तर-
कालीन का चुनाव करते समय उसकी मज़बूती, रंग, रूप और आकार सम्बन्धी बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। बड़े कमरे में कालीन गहरे रंग का डिजाइनदार बिछाया जा सकता है। परन्तु यह कमरे की रंग योजना से मिलता-जुलता हो। परन्तु छोटे कमरे में प्लेन और फीके रंग का कालीन ही ठीक रहता है। प्लेन कालीन पर अन्य वस्तुएं अधिक उभरती हैं। कालीन की लम्बाई, चौड़ाई कमरे के अनुसार होनी चाहिए।

प्रश्न 21.
फर्श पर बिछाने के लिए कालीन को सबसे अच्छा क्यों समझा जाता है?
उत्तर-
कालीन बिछाने से कमरे की सुन्दरता बढ़ती है। इससे टूटा-फूटा फर्श भी ढका जाता है। कालीन फर्श से थोड़ा ऊपर उठा होने के कारण उस क्षेत्र को अन्य कमरे से अलग कर आकर्षित बनाता है। कालीन बिछाने से कमरे की अन्य वस्तुएं भी सुन्दर दिखाई देती हैं और सर्दियों में कमरा गर्म रहता है।

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प्रश्न 22.
फूलों को सजाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखोगे?
उत्तर-
फूलों को सजाने के समय फूलों में अनुरूपता, अनुपात, लय, सन्तुलन और बल का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

  1. अनुरूपता (Harmony)-भिन्न-भिन्न प्रकार के एक रंग के फूल सजाकर उनमें अनुरूपता लाई जा सकती है। जैसे केवल लाल रंग या केवल सफ़ेद रंग से ही। यदि भिन्न-भिन्न फूल हों तो भी उनको दोहराने से अनुरूपता पैदा की जा सकती है। फूल का तालमेल फूलदान और कमरे से भी होना चाहिए।
  2. अनुपात (Proportion)-फूलों के आकार के अनुसार ही फूलदान प्रयोग किया जाना चाहिए। ग्लैडियोलस के फूल एक शीशे के फूलदान में सुन्दर लगते हैं। साथ ही सबसे ऊँचे फूल की लम्बाई फूलदान से 1/2 गुना होनी चाहिए और एक चपटे (Flat) फूलदान में सबसे ऊँचे फूल की ऊँचाई फूलदान की लम्बाई और चौड़ाई जितनी होनी चाहिए।
  3. लय (Rhythm)-फूल व्यवस्था में लय का होना बहुत आवश्यक है। हमारी नज़र लय से ही घूमती है। फूल व्यवस्था में गोल या त्रिकोण व्यवस्था के कारण लय लाई जा सकती है। इस तरह एक रंग के भिन्न-भिन्न शेड वाले फूल प्रयोग करके भी लय पैदा की जा सकती है।
  4. बल (Emphasis)-फूल व्यवस्था में भी एक केन्द्र बिन्दु होना चाहिए और यह बिन्दु व्यवस्था के बीच होना चाहिए।
  5. सन्तुलन (Balance)-फूल व्यवस्था में सन्तुलन होना भी बहुत आवश्यक है। इसमें कई बार फूल एक ओर गिरते नज़र आते हैं जो सन्तुलन को खराब करते हैं। सन्तुलन बनाने के लिए सबसे बड़ा और गहरे रंग का फूल फूलदान के बीच लगाएं अन्य फूल पत्ते उसके आस-पास दोनों बराबरी पर रखें।

प्रश्न 23.
सजावट के लिए फूलों का चयन कैसे किया जाता है और कैसे इकट्ठा किया जाता है?
उत्तर-
फूलों का चुनाव-

  1. फूलों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखो कि खाना-खाने वाले कमरे में सुगन्ध हीन फूल हों और अन्य कमरों में सुगन्धित।
  2. फूलों का रंग कमरे की रंग योजना से मिलता-जुलता हो।
  3. फूलों का आकार फूलदान के अनुसार होना चाहिए।

फूलों को इकट्ठा करना-फूल सब से कोमल होते हैं। इनको सुबह-शाम ही तोड़ें जब इन पर धूप न पड़ती हो। फूलों को काटने के लिए तेज़ छुरी का प्रयोग करो
और टहनी हमेशा तिरछी काटो ताकि डण्डी का अधिकतर भाग, पानी सोख सके। फूलों को काटने के पश्चात् आधे घण्टे के लिए पानी की बाल्टी में भिगो दीजिए और किसी ठण्डे और अन्धेरे वाले स्थान पर रखें। फूल तोड़ते समय ध्यान रखें कि फूल पूरा न खिला हो। फूलों को अधिक समय तक ठीक रखने के लिए पानी में नमक, लाल दवाई, फिटकरी और कोयले का चूरा प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 24.
फूलदान और स्टैम होल्डर कैसे हो सकते हैं?
उत्तर-
आजकल बाज़ार में कई रंगों और डिज़ाइनों के फूलदान मिलते हैं, परन्तु अधिक डिजाइन वाला फूलदान फूल व्यवस्था के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। फूलदान का चुनाव फूलों के रंग, आकार और जिस स्थान पर करना हो, पर निर्भर करता है। यदि फूल व्यवस्था खाने वाले मेज़ या. बैंठक के कॉफी टेबल पर करनी हो तो फूलदान छोटा और कम गहरा होना चाहिए। इस फूलदान का आकार मेज़ के आकार के अनुसार होना चाहिए। बड़े, भारी फूलों के लिए कम खरवें फूलदान प्रयोग करने चाहिए। आजकल फूलदान चीनी मिट्टी, पीतल और तांबे आदि के मिलते हैं। नर्म फूलों के लिए कांच और चांदी के फूलदान ठीक लगते हैं।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट 2
स्टैम होल्डर फूलों को सही स्थान पर टिकाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और फिर कई आकारों में मिलते हैं। जैसे गोल, वर्गाकार, त्रिकोणीय, आयताकार और अर्द्ध चन्द्रमा आकार में। स्टैम होल्डर खरीदते समय यह देखना आवश्यक है कि यह भारी हो, इसकी कीलों या पिनों में बहुत अधिक दूरी न हो। स्टैम होल्डर का चुनाव फूल व्यवस्था के अनुसार ही किया जाता है।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 25.
घर की आन्तरिक सजावट से क्या अभिप्राय है और कैसे की जाती है?
उत्तर-
प्रत्येक औरत में सुन्दरता और सजावट वाली वस्तु को परखने के लिए प्राकृतिक योग्यता होती है। घर की सजावट गृहिणी की रचनात्मक योग्यता को प्रकट करती है। इसलिए इसको रचनात्मक कला कहा जाता है। इसलिए घर के प्रत्येक कमरे और समूचे घर की सजावट को ही घर के अन्दर की सजावट कहा जाता है। अभिप्राय यह कि घर का प्रत्येक कमरा कला और डिज़ाइन के मूल अंशों और सिद्धान्तों के अनुसार सजाना ही घर के अन्दर की सजावट है। घर की सजावट घर को आकर्षक और सुन्दर बनाने के लिए की जाती है। परन्तु यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि सजावट से परिवार के सदस्यों के आराम और काम करने में रुकावट न पड़े।

घर की सजावट के लिए फर्नीचर, पर्दे, कालीन, कुशन, पुष्प सज्जा और तस्वीरें आदि प्रयोग की जाती हैं । परन्तु इन सभी वस्तुओं का चुनाव एक-दूसरे पर निर्भर करता है ताकि प्रत्येक कमरा अपने आप में डिज़ाइन की एक पूरी इकाई लगे। फर्नीचर-यह घर की सजावट का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। परन्तु इसका चुनाव परिवार के बजट, परिवार की आवश्यकताओं, कमरे के आकार और रंग के हिसाब से करना चाहिए। क्योंकि भिन्न-भिन्न कमरों में भिन्न-भिन्न तरह का फर्नीचर प्रयोग में आता है जैसे बैठक में सोफे, कुर्सियां और दीवान आदि, सोने वाले कमरे में बैड, अल्मारी, कुर्सियां, ड्रेसिंग टेबल आदि और खाना खाने वाले कमरे में मेज़, कुर्सियां और हो सके तो बर्तनों के लिए शीशे वाली अल्मारी। यह सारा फर्नीचर बना भी भिन्न-भिन्न किस्म का होता है। यह सामान लकड़ी, कपड़े, लोहे, स्टील, बैंत या प्लास्टिक का बना हो सकता है। यह भी चुनाव करते समय ध्यान देने की बात है कि यदि कमरा बड़ा है तो कपड़े से ढका हुआ फर्नीचर रखा जा सकता है। परन्तु यदि कमरा छोटा है तो सादे डिज़ाइन में लकड़ी, बैंत या लोहे का फर्नीचर अच्छा लगता है।

पर्दे-सजावट में पर्दो की भूमिका भी बड़ी महत्त्वपूर्ण है। पर्यों के बिना घर की सजावट अधूरी लगती है। यह घर को सुन्दर बनाने के साथ-साथ घर का तापमान और हवा पर नियन्त्रण रखते हैं। पर्दे हमेशा सूती ही प्रयोग करने चाहिए। वैसे तो बाज़ार में साटन, सिल्क, टपैस्ट्री, हथ करघे के बने कपड़े मिलते हैं। पर्यों का रंग और डिज़ाइन का भी कमरे के अन्य सामान के साथ तालमेल होना चाहिए। खुले और बड़े कमरे में गहरे और बड़े डिज़ाइन वाले पर्दे अच्छे लगते हैं क्योंकि इससे कमरा छोटा दिखाई देता है जबकि छोटे कमरे में हल्के रंगों के प्लेन पर्दे ही अच्छे लगते हैं। इससे कमरा खुलाखुला सा लगता है।

कालीन-कालीन भी कमरे की सजावट में बढ़ोत्तरी करता है। आजकल कई रंगों और डिज़ाइनों के कालीन बाज़ार में उपलब्ध हैं। परन्तु कालीन खरीदते समय इसकी मज़बूती, रंग और आकार कमरे के रंग व्यवस्था के अनुसार होना चाहिए। छोटे कमरों के लिए, हल्के रंगों के प्लेन कालीन ठीक रहते हैं। इन पर सामान अन्य अधिक सुन्दर लगता है जबकि बड़े कमरे के लिए गहरे रंग में डिज़ाइनदार कालीन बिछाया जाए तो सुन्दर लगता है।

पुष्प सज्जा-पुष्प सज्जा भी घर की सजावट का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसमें याद रखने योग्य बात यह है कि खाने के कमरे में सुगन्धहीन फूलों की व्यवस्था होनी चाहिए और अन्य कमरों में सुगन्धित फूलों की। फूल व्यवस्था यदि खाने वाले या कॉफी टेबल पर करनी हो तो उसकी ऊँचाई उससे 4 इंच होनी चाहिए। पर यदि किसी कोने या किसी विशेष काम करने के मेज़ आदि पर रखनी हो तो बड़े आकार में की जा सकती है। पुष्प सज्जा के लिए फूलदान का चुनाव में बहुत आवश्यक है। फूलदान फूलों के रंग से मिलता-जुलता होना चाहिए जो बहुत बढ़िया हरे और ग्रे रंग में फूलदान प्रयोग किए जा सकते हैं। कोमल फूलों के लिए शीशे और चांदी के फूलदान प्रयोग करने चाहिए। फूल व्यवस्था की ऊँचाई फूलदान से 12 गुणा होनी चाहिए तभी यह ठीक अनुपात में लगती है।

तस्वीरें-घर के अन्दर की सजावट के लिए कमरों की दीवारों पर कुछ तस्वीरें भी लगाई जा सकती हैं। बड़ी दीवार पर एक बड़ी तस्वीर लगानी चाहिए। यदि एक आकार की हल्की मेल खाती छोटी तस्वीरें हैं तो उनका समूह बनाकर लगाया जा सकता है। तस्वीरों को दीवार पर बहुत ऊँचा नहीं लगाना चाहिए। ये इतनी ऊंचाई पर हों कि खड़े होकर या बैठकर बिना गर्दन ऊपर किए आराम से देख सकें।

इसके अतिरिक्त घर की सजावट के लिए लकड़ी, पीतल, तांबे, कांच, क्रिस्टल आदि के शो-पीस भी प्रयोग किए जाते हैं। छोटे-छोटे अधिक टुकड़ों से एक बड़ी सजावट की वस्तु अधिक बढ़िया लगती है। यदि तस्वीर अधिक छोटी है तो उनको एक समूह में किसी टेबल या शैल्फ (Shelf) पर सजाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त टेबल लैंप और किताबें भी कमरे की सजावट का एक भाग हैं। किताबों से कमरे को चरित्र मिलता। है। बाहर से आने वाले को किताबें देखकर ही आपके चरित्र का ज्ञान हो जाता है।

ये ऊपरलिखित वस्तुएं घर की सजावट के लिए बहुत आवश्यक हैं, परन्तु उससे भी आवश्यक उनका चुनाव और व्यवस्था करने का ढंग है जो घर की सजावट को चार चाँद लगाता है।

प्रश्न 26.
पुष्प सज्जा किस सिद्धान्त पर और कैसे की जाती है?
उत्तर-
पुष्प सज्जा करने का सिद्धान्त-कोई भी डिज़ाइन बनाने के लिए डिज़ाइन के मूल अंश जैसे कि रंग, आकार, लाइनें और रचना और डिज़ाइन के मूल सिद्धान्तों की जानकारी होनी आवश्यक है। फूलों की व्यवस्था करते समय फूल, फूलदान और अन्य आवश्यक सामग्री को मिलाकर इस तरह का डिज़ाइन बनाना चाहिए जोकि सबको अपनी ओर आकर्षित करे। फूलों की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है

1. अनुरूपता (Harmony)-भिन्न-भिन्न तरह के एक रंग के फूल सजाकर उनमें अनुरूपता लायी जा सकती है जैसे कि सफ़ेद रंग के वरबीना, फ्लोक्स, स्वीट पीज़ और पिटूनिया को मिलाकर फूलों की व्यवस्था करना। एक ही तरह के फूलों के एक रंग के भिन्न-भिन्न शेड (Shade) के फूल प्रयोग करने से भी अनुरूपता लायी जा सकती है। यदि भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल लगाए जाएं तो भी उनको दोहराने से अनुरूपता का एहसास होता है। सभी को अलग-अलग किस्मों और रंगों के फूल प्रयोग करने से परेशानी पैदा होती है। फूलों का तालमेल फूलदान और फूल रखने के आस-पास भी होना आवश्यक है। एक छोटे कमरे में बहुत बड़ा फूलदान रखा हुआ अच्छा नहीं लगता।

2. अनुपात (Proportion)-फूलदान के अनुसार ही फूलों का आकार होना चाहिए। छोटे या हल्के कांच के फूलदान में भारी फूल अच्छे नहीं लगते। एक मध्यम या लम्बे फूलों के लिए सबसे ऊँचे फूल की ऊँचाई फूलदान से 172 गुना होनी चाहिए। चपटे (Flat) फूलदान में सबसे ऊँचे फूल की ऊँचाई फूलदान की लम्बाई और चौड़ाई जितनी होनी चाहिए।

3. सन्तुलन (Balance)- फूलों की व्यवस्था का सन्तुलन ठीक होना चाहिए ताकि फूल एक ओर गिरते दिखाई न दें। यदि फूल एक ओर छोटे और दूसरी ओर बड़े लगाए जाएं या एक ओर सभी हल्के रंग के और दूसरी ओर गहरे रंग के लगाए जाएं तो फूलों का एक ओर भार अधिक लगता है जोकि देखने को उचित नहीं लगता। सही सन्तुलन बनाने के लिए सबसे लम्बा, बड़ा या रंग में गहरा फूल फूलदान के बीच लगाना चाहिए। बाकी के फूल और पत्ते इस केन्द्र बिन्दु के आस-पास इस तरह लगाओ कि दोनों ओर बराबर दिखाई दें। आस-पास के फूल थोड़े छोटे या हल्के रंग के हों तो केन्द्र पर अधिक ध्यान जाता है और देखने वाले को अधिक अच्छा लगता है।

4. लय (Rhythm)-एक अच्छी फूल व्यवस्था में लय का होना भी बहुत आवश्यक है जब किसी वस्तु को देखने के लिए हमारी नज़र आसानी से घूमती है तो वह लय के कारण ही होता है। गोल या त्रिकोणीय फूल व्यवस्था करने से लय पैदा की जा सकती है। जब फूलों के पीछे पत्ते लगाकर S या C आकार की फूल व्यवस्था की जाए जिसका केन्द्र में अधिक बल हो तो भी लय ठीक रहती है। फूलों की व्यवस्था में एक अच्छी लय दर्शाने के लिए मध्य में एक सीधा लम्बा फूल लगाओ और इसकी एक ओर तिरछी टहनी वाले पहले फूल से छोटे एक या दो फूल लगाओ और दूसरी ओर छोटे ओर तिरछे फूल लगाओ। एक ही रंग के भिन्न-भिन्न शेड के फूल प्रयोग करके भी लय उत्पन्न की जा सकती है। नज़र गहरे रंग से फीके रंग की ओर जाएगी।

5. बल (Emphasis)-फूलों की व्यवस्था में एक केन्द्र बिन्दु होना चाहिए जो आपके ध्यान को अधिक आकर्षित करे। यह केन्द्र बिन्दु व्यवस्था के बीच नीचे को होना चाहिए, बड़े, गहरे या उत्तेजित रंग के फूल के साथ यह एहसास दिलाया जा सकता है। फूलदान सादा होना चाहिए ताकि बल फूल पर हो और आपका ध्यान फूल व्यवस्था की ओर हो जाए। आस-पास के फूल छोटे, कम उत्तेजित और विरले लगाने चाहिए इस तरह करने से भी केन्द्र बिन्दु पर अधिक ध्यान जाता है।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की आन्तरिक सजावट 3
पीछे दिए सिद्धान्तों को मन में रखते हुए यदि पुष्प सज्जा की जाए तो देखने को बहुत सुन्दर लगेगी और कमरा भी अधिक सजा हुआ दिखाई देगा।
फूलों को सजाने के लिए मुख्य दो ढंग हैं-
(i) जापानी
(ii) अमरीकन।
(i) जापानी-यह ढंग सांकेतिक होता है। इसमें तीन फूल प्रयोग किए जाते हैं, जिनमें सबसे बड़ा (ऊंचा) फूल परमात्मा, बीच का मानव और सबसे नीचे का धरती का प्रतीक होते हैं। इसमें फूल की किस्म और एक ही रंग के होते हैं।
(ii) अमरीकन-इस ढंग में कई किस्मों के और कई रंगों के फूल इकठे प्रयोग किए जाते हैं इसलिए इस को समूह ढंग भी कहा जाता है। एक प्रकार की फूल व्यवस्था में भिन्न-भिन्न किस्म और भिन्न-भिन्न रंगों के फूल प्रयोग किए जाते हैं। इस तरह की व्यवस्था बड़े कमरे में ही की जा सकती है या किसी विशेष अवसर पर भी की जा सकती है।
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इन ढंगों के अतिरिक्त और भी कई प्रकार के फूलों की व्यवस्था की जाती है जैसे कि ऊपरलिखित दोनों ढंगों को मिलाकर जिसमें दोनों ही ढंगों के अच्छे गुण लिए जाते हैं। छोटे फूलों से निचले बर्तन में भी फूलों की व्यवस्था की जाती है।

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प्रश्न 27.
कमरों की सजावट में कौन कौन-सी सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
कमरों की सजावट के लिए फर्नीचर, पर्दे और कालीन के अतिरिक्त तस्वीरें और अन्य सामान प्रयोग किया जा सकता है। इनमें तस्वीरें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

बैठक में साधारण शौक की तस्वीरें जैसे कि कोई दृश्य आदि की तस्वीर लगानी चाहिए। एक कमरे में एक ही प्रकार की तस्वीरें लगानी चाहिएं। यदि ये अधिक महंगी होने के कारण न खरीदी जा सकें तो इनकी प्रतिलिपियां भी लगाई जा सकती हैं। अधिक छोटी-छोटी तस्वीरें लगाने की अपेक्षा एक या दो बड़ी तस्वीरें लगानी अधिक अच्छी लगती हैं। एक कमरे की सभी तस्वीरों के फ्रेम एक से ही होने चाहिए। अधिक तस्वीरों से कमरा रंग-बिरंगा लगता है। यदि अधिक तस्वीरों लगानी भी हैं तो उनको इकट्ठा करके लगाएं। तस्वीरें अधिक ऊँची नहीं लगानी चाहिए ताकि उनके देखने के लिए आँखों और गर्दन पर कोई बोझ न पड़े।

तस्वीरों के अतिरिक्त घर को सजाने के लिए पीतल, तांबे, लकड़ी, दांत खण्ड, क्रिस्टल, शीशे और चीनी मिट्टी की कई वस्तुएं मिलती हैं। यह भी अधिक छोटी वस्तुएं खरीदने से कुछ बड़ी वस्तुएं खरीदना ही अच्छा रहता है। इनको ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पड़ी सुन्दर लगें। साधारण घरों में दीवार में छोटे झरोखे रखे जाते हैं। इन वस्तुओं को वहां रखा जा सकता है या फिर किसी मेज़ आदि पर रखी जा सकती हैं। इनकी रोज़ाना झाड़-पोंछ करनी चाहिए और जब आवश्यकता हो इनको पॉलिश करना चाहिए।
किताबों से कमरे को चरित्र मिलता है। कमरे में बाहर से आने वाले को आपके मिलने से पहले ही आपके चरित्र का पता चल जाता है। किताबों का अस्तित्व बातचीत का भी एक साधन बन जाता है। इसके अतिरिक्त किताबें सजावट में भी योगदान देती हैं।

पुस्तकों के अतिरिक्त टेबल लैंप भिन्न-भिन्न बनावट, किस्म और रंगों के मिलते हैं। इस तरह अनेकों किस्मों की घड़ियां भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। यदि ठीक तरह इनका चुनाव किए जाए तो यह घर की शान को दुगुना कर देते हैं।

प्रश्न 28.
घर की सजावट में फर्नीचर सबसे महत्त्वपूर्ण कैसे है?
उत्तर-
फर्नीचर घर की सजावट का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है क्योंकि यह महंगा होने से जल्दी बदला नहीं जा सकता। घर में भिन्न-भिन्न कमरे और भाग होते हैं और प्रत्येक कमरे में उसके प्रयोग के अनुसार ही फर्नीचर रखा जाता है और देखभाल भी भिन्न-भिन्न होती है।

बैठक-बैठक में फर्नीचर को इस तरह रखना चाहिए कि उसमें करने वाले कार्य जैसे कि आराम, खेल या संगीत आदि को अच्छी तरह किया जा सके। एक ओर सोफा, दीवान और कुर्सियां आदि रखें ताकि और मेहमानों को बैठाया जा सके। इसके बीच या एक ओर कॉफी की मेज़ रखो। कॉफी की मेज़ का आकार 45 सें० मी० x 90 सें० मी० होना चाहिए। सोफे और कुर्सियों के आस-पास छोटे मेज़ भी रखे जा सकते हैं जिन पर सिग्रेट ऐशट्रे या चाय, कॉफी के प्याले या शर्बत के गिलास रखे जाते हैं। एक ओर संगीत का सामान जैसे कि पियानो या स्टीरियो सैट या टेप रिकार्ड आदि रखे जा सकते हैं और एक कोने में कैरम, चैस या ताश मेज़ पर रखी जा सकती है। यदि पढ़ने का कमरा अलग न हो तो बैठक में ही एक ओर किताबों की अल्मारी या शैल्फ रखें और एक मेज़ और कुर्सी लिखने-पढ़ने के लिए रखे जा सकते हैं। पढ़ने वाली मेज़ पर टेबल लैंप रखा जा सकता है या इसको रोशनी के निकट होना चाहिए। आजकल कई घरों में बैठक में टी० वी० भी रखा जाता है।

दीवारों पर साधारण शौक की कुछ तस्वीरें लगाई जा सकती हैं। कमरे में एक या दो गमले या फूलों के फूलदान रखे जा सकते हैं। पीतल या लकड़ी की सजावट के सामान से भी कमरे को सजाया जा सकता है। सामान को इस ढंग से रखें कि कमरा खुलासा लगे।

सोने के कमरे-सोने के कमरे के फर्नीचर में पलंग ही प्रमुख होते हैं। पलंगों के सिर वाली साइड दीवार के साथ होनी चाहिए। पलंगों के आस-पास इतना स्थान होना चाहिए कि उनके गिर्द जाकर बिस्तर झाड कर और पलंग पोश बिछाया जा सके। पलंगों को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए कि दरवाज़ा या खिड़की खुली होने पर भी बाहर से पलंग नज़र न आएं। आजकल डॉक्टर सख्त पलंग पर सोने की राय देते हैं। भारत में अधिक लोग सन, मुंजी, रस्सी या निवार के बनी चारपाई पर सोते हैं। यह चारपाई हल्की होती है और गर्मियों में इनको कमरे से बाहर भी निकाला जा सकता है। पलंगों के अतिरिक्त सोने वाले कमरे में दो-तीन कुर्सियां या दीवान या 2-3 मूढे और एक मेज़ भी रखे जा सकते हैं।

कई बार सोने वाले कमरे का एक भाग तैयार होने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। कमरे के एक ओर शीशे और दराजों वाली मेज़ रखें और इसके सामने एक सैटी या ‘स्टूल रखें। कमरा बड़ा होने की स्थिति में इस भाग को पर्दा लगाकर भिन्न भी किया जा

सकता है। दीवार पर शीशा टांग कर उसके नीचे एक शैल्फ बनाकर श्रृंगार मेज़ का काम । लिया जा सकता है। इसके निकट ही दीवार में एक अल्मारी बनी होनी चाहिए जिसमें कपड़े रखे जा सकें। यदि दीवार में अल्मारी न हो तो स्टील या लकड़ी की अल्मारी का प्रयोग किया जा सकता है।

खाना खाने का कमरा-खाना खाने के कमरे में खाने की मेज़ और कुर्सियां मुख्य फर्नीचर होती हैं। मेज़ 4, 6 या 8 आदमियों के लिए या इससे भी बड़ा हो सकता है। घर में खाना खाने वाले व्यक्तियों की संख्या और बाहर से आने वाले मेहमानों की संख्या अनुसार ही मेज़ का आकार होना चाहिए। खाना खाने वाली कुर्सियां छोटी, बिना बाजू की और सीधी पीठ वाली होती हैं। प्रायः कमरे के बीच मेज़ रखी जाती है और इसके आसपास कुर्सियां रखी जाती हैं। इस कमरे में चीनी के बर्तन और गिलास, छुरियां, चम्मच आदि रखने के लिए एक अल्मारी भी रखी जाती है। यह अल्मारी दीवार के बीच भी बनाई जा सकती है, कई घरों में बैठक और खाना खाने का कमरा इकट्ठा ही बनाया जाता है। इस तरह के कमरे में जो भाग बाहर की ओर लगता है वह बैठक और अन्दर रसोई के साथ लगता भाग खाना खाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

पढ़ने-लिखने का कमरा-इसमें किताबों की अल्मारी या शैल्फ होने चाहिएं। कमरे के बीच या एक दीवार के साथ वाली मेज़ और उसके सामने एक कुर्सी रखी जाती है। इसके अतिरिक्त दो तीन आराम कुर्सियां भी रखी जा सकती हैं।

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प्रश्न 29.
फर्नीचर की देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
अलग-अलग तरह के फर्नीचर की देखभाल के लिए निम्नलिखित ढंग हैं —

1. लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल -लकड़ी के फर्नीचर को हर रोज़ साफ कपड़े के साथ झाड़-पोंछ कर साफ करना चाहिए। लकड़ी को आमतौर पर सींक लग जाती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर सींक लग जाए तो सींक की दवाई का खराब हिस्से पर छिड़काव (स्प्रे) करो। साल में एक दो बार लकड़ी के फर्नीचर को धूप लगवा लेनी चाहिए। अगर धूप बहुत तेज़ हो तो कुछ समय के लिए ही लगाओ। पालिश किए मेड़ पर गर्म सब्जी के बर्तन या ठण्डे पानी के गिलास सीधे ही नहीं रखने चाहिए, नहीं तो मेज़ पर दाग पड़ जाते हैं। इनके नीचे प्लास्टिक, कारक या जूट आदि के मैट रखने चाहिए। फर्नीचर से दाग उतारने के लिए गुनगुने पानी में सिरका मिलाकर या हल्का डिटरजेंट मिला कर, कपड़ा इस घोल में गीला करके साफ करो। परन्तु फर्नीचर को ज्यादा गीला नहीं करना चाहिए ! गीला साफ़ करने के बाद फर्नीचर को सूखे कपड़े के साथ साफ करो और स्पिरट में भीगी रूई आदि से फिर साफ करो। अगर लकड़ी ज्यादा खराब हो गई हो तो इसको रेगमार से रगड़ कर पॉलिश किया जा सकता है।
यदि लकड़ी में छेद हो गए हों तो उसे मधुमक्खी के मोम से भर- लो।

2. पेंट (रंग रोगन) किए हुए फर्नीचर की देखभाल — ऐसे फर्नीचर को धोया जा सकता है। ज्यादा गन्दा होने की स्थिति में गुनगुने पानी में डिटरजेंट मिला कर साफ करो। किसी खुरदरी वस्तु से फर्नीचर को नहीं रगड़ना चाहिए नहीं तो खरोंचें पड़ जाएंगी और कोई जगहों से पेंट उतर भी सकता है। दोबारा पेंट करना हो तों पहले पेंट को अच्छी तरह उतार लेना चाहिए।

3. बैंत के फर्नीचर की देखभाल — ऐसे फर्नीचर का प्रयोग आमतौर पर बैठक या (बग़ीचे) में किया जाता है। केन के बने डाइनिंग मेज़, कुर्सियां और सोफे भी मिल जाते हैं। नाइलोन वाली केन को ज्यादा धूप में नहीं रखना चाहिए क्योंकि धूप में यह खराब हो जाती है। इसको सूखे या गीले कपड़े से साफ़ किया जा सकता है। ज्यादा गन्दा हो तो नमक या डिटरजैंट वाले पानी से इसे धो लो और साफ कपड़े से सुखा लो। मोम वाले केन को रोज़ साफ सूखे कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। ज्यादा खराब होने से रेती कागज़ से सभी तरफ से रगड़ कर दोबारा वैक्स पॉलिश कर लो। पेंट किए केन को लगभग दो सालों बाद दोबारा साफ़ करवा लेना चाहिए।

4. कपड़े से कवर किये (ढके) फर्नीचर की देखभाल — ऐसे फर्नीचर को बिजली के झाड़ (वैकऊम कलीनर) से या गर्म कपड़े से साफ करने वाले बुर्श से साफ करना चाहिए। कपड़े का रंग फीका पड़ गया हो तो दो गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच सिरका मिला कर नर्म कपड़ा इसमें भिगो लो और अच्छी तरह निचोड़ कर कवर साफ करने से कपड़े में चमक आ जाती हैं और साफ भी हो जाता
है। चिकनाई के दाग़ पेट्रोल या पानी में डिटरजैंट मिला कर उसकी झाग से साफ़ किये जाते हैं। झाग से साफ करने के बाद गीले कपड़े से साफ़ करो।

5. प्लास्टिक के फर्नीचर की देखभाल — प्लास्टिक का फर्नीचर रासायनिक पदार्थों से बनता हैं। प्लास्टिक को पिघला कर अलग-अलग आकारों और डिज़ाइनों का फर्नीचर बनाया जाता है। प्लास्टिक के फर्नीचर को पानी से धोया जा सकता है। बुर्श या स्पंज आदि को साबुन वाले पानी से भिगो कर प्लास्टिक के फर्नीचर को साफ़ करके धो के सुखा लो।

6. रैक्सीन या चमड़े के फर्नीचर की देखभाल — नकली चमड़े (रैक्सीन) का फर्नीचर बहुत महंगा नहीं होता और इसे साफ़ करना भी आसान है। इसका प्रयोग आमतौर पर बैंकों, दफ्तरों, गाड़ियों आदि में किया जाता है। यह सर्दियों को ठण्डा और गर्मियों को गर्म हो जाता है इसलिये घरों में इसका प्रयोग कम ही होता है। इसको गीले कपड़े से साफ़ किया जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर धोया भी जा सकता है। चमड़े का फर्नीचर बहुत महंगा होता है इसलिये इसका प्रयोग कम ही किया जाता है। इसकी हर रोज़ झाड़-पोंछ करनी चाहिए और बरसात में यह अच्छी तरह सूखा होना चाहिए ताकि इसको फंगस न लगे। चमड़े के फर्नीचर को साल में दो बार दो हिस्से अलसी का तेल और एक-एक हिस्सा सिरका मिला कर बने घोल से पालिश करना चाहिए।

Home Science Guide for Class 10 PSEB घर की आन्तरिक सजावट Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की आन्तरिक सजावट के लिए क्या कुछ प्रयोग होता है?
उत्तर-
पर्दे, ग़लीचे, फूल, फर्नीचर आदि।

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प्रश्न 2.
प्लास्टिक के फर्नीचर का लाभ बताओ।
उत्तर-
इसे दीमक नहीं लगती।

प्रश्न 3.
पर्दे तथा ग़लीचे कैसे होने चाहिए?
उत्तर-
दीवारों तथा फर्नीचर के रंगों के अनुसार।

प्रश्न 4.
फूलों को सजाने के लिए ढंग बताओ।
उत्तर-
जापानी तथा अमरीकन।

प्रश्न 5.
बैठक में कैसा काम किया जाता है?
उत्तर-
खेलने, लिखने, पढ़ने, मनोरंजन आदि का।

प्रश्न 6.
घर की सुन्दरता बढ़ाने के अलावा पर्दो के लाभ बताओ।
उत्तर-
तेज़ हवा, प्रकाश तथा मिट्टी धूल आदि से बचाते हैं।

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प्रश्न 7.
पर्दे लगाने से कमरों में कैसी भावना पैदा होती है?
उत्तर-
एकांत की भावना।

प्रश्न 8.
सर्दियों में (ठंडे देशों) किस रंग के पर्दे लगाए जाते हैं?
उत्तर-
गहरे रंग के।

प्रश्न 9.
छोटे कमरे में कैसे पर्दे ठीक रहते हैं?
उत्तर-
प्लेन तथा छोटे डिज़ाइन वाले।

प्रश्न 10.
खाने वाले कमरे में कैसे फूल प्रयोग करने चाहिए?
उत्तर-
सुगंध रहित।

प्रश्न 11.
जापानी ढंग में बड़ा (ऊँचा) फूल किसका प्रतीक होता है?
उत्तर-
परमात्मा का।

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प्रश्न 12.
जापानी ढंग में छोटा फल किस का प्रतीक होता है?
उत्तर-
धरती का।

प्रश्न 13.
फूल कब तोड़ने चाहिए?
उत्तर-
सुबह या शाम जब धूप कम हो।

प्रश्न 14.
फूलदान किस पदार्थ के बने होते हैं?
उत्तर-
चीनी मिट्टी, पीतल, तांबे आदि के।

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प्रश्न 15.
प्लास्टिक के फर्नीचर को किस से बचा कर रखना चाहिए?
उत्तर-
धूप तथा सर्दी से।

प्रश्न 16.
जापानी ढंग में कौन-सा फूल धरती की तरफ संकेत करता है?
उत्तर-
छोटा फूल।

प्रश्न 17.
फूलों को ठीक स्थान पर टिकाने के लिए किस वस्तु का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
स्टैम होल्डर।

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प्रश्न 18.
जापानी ढंग में सबसे नीचे वाला फूल किस तरफ संकेत करता है?
उत्तर-
धरती की तरफ।

प्रश्न 19.
किस किस्म की फूल व्यवस्था में कई किस्म तथा कई रंगों के फूलों का प्रयोग होता है?
उत्तर-
अमरीकन ढंग में।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गद्दियाँ/कुशन कमरे की सुन्दरता किस प्रकार बढ़ाते हैं?
उत्तर-
गद्दियाँ या कुशन कमरे की सुन्दरता बढ़ाते हैं। गद्दियाँ भिन्न-भिन्न आकार तथा _रंगों में मिल जाती हैं। इनका चुनाव फर्नीचर पर निर्भर करता है। प्लेन सोफे पर डिज़ाइन वाले कुशन, फीके रंग पर गहरे रंग के कुशन रखने से कमरे की सुन्दरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 2.
फूलों को सजाने के ढंग बताएं।
उत्तर-
स्या उत्तर दें।

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प्रश्न 3.
बैठक तथा खाना खाने वाले कमरे का आयोजन किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 4.
फूलों की व्यवस्था करने समय फूलों को कैसे इकट्ठा किया जाता है तथा फूलदान का चयन कैसे किया जाता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
फर्नीचर की देखभाल के बारे विस्तार में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
फर्नीचर ख़रीदते समय उसके डिजाइन का ध्यान किस प्रकार रखना चाहिए?
उत्तर-
फर्नीचर ख़रीदते समय धान रखना चाहिए कि इस का डिज़ाइन कमरे में रखी ।। अन्य वस्तुओं के आकार अनुसार हो तथा कमरे के आकार के अनुसार भी हो। बड़े प्रिंट वाले कपड़े वाला फर्नीचर प्रयोग किया जाए तो कई बार कमरे का आकार छोटा लगने लगता है। फर्नीचर का रंग तथा बनावट कमरे की वस्तुओं से मिलता-जुलता भी होना चाहिए।

प्रश्न 7.
फर्नीचर का चुनाव किस प्रकार करना चाहिए ? विस्तार से बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 8.
फर्नीचर का चुनाव करते समय उसके डिज़ाइन और आकार के बारे में क्या ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 9.
फूल व्यवस्था करते समय फूलदान का चुनाव किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
घर की आन्तरिक सजावट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
घर के प्रत्येक कमरे तथा समूचे घर की सजावट को घर की आन्तरिक सजावट कहा जाता है। घर के प्रत्येक कमरे को डिज़ाइन के मूल अंशों तथा सिद्धान्तों के अनुसार सजाना ही घर की आन्तरिक सजावट है। घर की सजावट घर को सुन्दर तथा आकर्षक बनाने के लिये की जाती है तथा घर की सजावट के लिये फर्नीचर; पर्दे, कालीन फूल व्यवस्था तथा तस्वीरों का प्रयोग किया जाता है। घर को सजाते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि परिवार के सदस्यों के आराम में बाधा न पड़े।

प्रश्न 11.
फूलों को सजाने का जापानी ढंग क्या है?
उत्तर-
फूलों को सजाने का जापानी ढंग संकेतक होता है। इसमें तीन फूल प्रयोग किया जाते हैं जिनमें सबसे बड़ा (ऊँचा) फूल परमात्मा, मध्य का मानव तथा सबसे निचला (छोटा) धरती का प्रतीक होते हैं। इसमें फूल एक ही किस्म पर एक जैसे रंग के होते हैं।

प्रश्न 12.
बैठक तथा सोने वाले कमरे में फर्नीचर की व्यवस्था किस प्रकार करोगे?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 13.
पुष्प सज्जा के जापानी और अमरीकन ढंगों के बारे में लिखो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 14.
कालीन के चुनाव के लिए रंग तथा आकार का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 15.
आन्तरिक सजावट के लिए पर्यों का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 16.
सोने वाले कमरे तथा रसोई का आयोजन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 17.
पढ़ने वाले कमरे तथा स्टोर का आयोजन किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 18.
लकड़ी तथा कपड़े से ढके फर्नीचर की देखभाल के बारे में बताएँ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 19.
फलों को सजाने के अमरीकन ढंग के बारे में लिखो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 20.
मिट्टी वाले इलाके के लिए आप फर्नीचर का चयन किस आधार पर करेंगे?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 21.
फूलों की व्यवस्था करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई चार प्रकार के फर्नीचर की देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 2.
फूलों की व्यवस्था पर नोट लिखो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 3.
फर्नीचर खरीदते समय कौन-सी बातों को मन में रखना चाहिए?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 4.
घर में भिन्न-भिन्न कमरों का आयोजन कैसे करना चाहिए?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 5.
फर्नीचर का चयन कैसे किया जाता है? विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
फूलों की व्यवस्था के सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 7.
फूलों को सजाने के कौन-से मुख्य ढंग हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. जापानी ढंग में सब से बड़ा (ऊँचा) फूल ……………….. का प्रतीक है।
  2. ……………. किस्म की फूल व्यवस्था में कई प्रकार तथा कई रंगों के फूल इक्ट्ठे प्रयोग किए जाते हैं।
  3. …………… फूलों को ठीक स्थान पर टिकाने के लिए प्रयोग होते हैं।
  4. जापानी ढंग में मध्यम फूल ………………. का प्रतीक है।

उत्तर-

  1. परमात्मा,
  2. अमरीकन,
  3. स्टैम होल्डर,
  4. मानव।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. प्लास्टिक के फर्नीचर को दीमक लग जाती है।
  2. फूलों की सजावट के जापानी ढंग में दस फूलों का प्रयोग होता है।
  3. अमरीकन ढंग में कई रंगों के फूलों का प्रयोग होता है।
  4. पर्दे घर की आन्तरिक सजावट के लिए प्रयोग होते हैं।
  5. जापानी ढंग में बड़ा फूल ईश्वर का प्रतीक होता है।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. ग़लत,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में ठीक है
(क) फूलों को सजाने का जापानी ढंग संकेतक है।
(ख) जापानी ढंग में नीचे वाला फूल धरती की तरफ संकेत करता है।
(ग) सर्दी में गहरे रंग के पर्दे लगाएं।
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में ठीक है
(क) खाने वाले कमरे में सुगंधित फूल होने चाहिए।
(ख) फूल दोपहर को तोड़ें।
(ग) फूलों का आकार फूलदान के अनुसार हो।
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(ग) फूलों का आकार फूलदान के अनुसार हो।

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घर की आन्तरिक सजावट PSEB 10th Class Home Science Notes

  • घर के अन्दर की सजावट के लिए फर्नीचर, पर्दे, गलीचे, कुशन, फूल, गुलदस्ते आदि वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है।
  • फर्नीचर का चुनाव करते समय अपने बजट और आवश्यकता का ध्यान रखना चाहिए।
  • प्लास्टिक के फर्नीचर का प्रयोग आजकल इसलिए बढ़ गया है क्योंकि यह सस्ता होता है। जल्दी खराब नहीं होता और इसको दीमक नहीं लगता।
  • पर्दे और गलीचे घर की दीवारों और फर्नीचर के रंग के अनुसार ही खरीदने चाहिएं।
  • घर में फूलों को सजाने के लिए जापानी और अमेरिकन ढंगों का प्रयोग किया जा सकता है।
  • फूल व्यवस्था के लिए फूलों का चुनाव करते समय कमरे की रंग योजना को ध्यान में रखना चाहिए।
  • सोने वाले कमरे का फर्नीचर आरामदायक और आकर्षित होना चाहिए।
  • हर प्रकार के फर्नीचर को सम्भालने की जानकारी गृहिणी के पास होनी चाहिए।
  • फूलों को सजाने के लिए सुमलता, अनुपात, संतुलन, लय, बल आदि सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

घर को यदि अन्दर से सजाया जाए तो वह देखने में सुन्दर लगता है। प्रत्येक औरत में सुन्दरता और घर को सजाने वाली वस्तु को परखने की कुदरती योग्यता होती है। घर के अन्दर की सजावट, जगह, सजावट के सामान को परिवार के सदस्यों की प्रारम्भिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। घर को सजाने के लिए अलग तरह का सामान और अच्छे ढंग-तरीके प्रयोग किए जाते हैं। घर की सजावट में औरत की रचनात्मक और कलात्मक योग्यता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

PSEB 10th Class Social Science Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
इसी विशालता के कारण ही भारत को एक उप-महाद्वीप (Indian sub-continent) कहकर पुकारा जाता है। उपमहाद्वीप एक विशाल और स्वतंत्र क्षेत्र होता है। जिसके भू-खंड की सीमाएँ विभिन्न प्राकृतिक भू-आकृतियों (Natural Features) द्वारा बनाई जाती हैं, जो उसे आस-पास के क्षेत्रों से अलग करती हैं। भारत को भी उत्तर दिशा में हिमालय के पार अगील (Aghil), मुझतघ (Muztgh), कुनलुन (Kunlun), कराकोरम, हिन्दुकुश और जसकर पर्वत श्रेणियाँ तिब्बत से, दक्षिणी दिशा में पाक-जल ढमरू मध्य और मन्नार की खाड़ी श्रीलंका से, पूर्वी दिशा में अराकान योमा मियांमार (Burma) से और पश्चिमी दिशा. में विशाल थार मरुस्थल, पाकिस्तान से अलग करते हैं। भारत के इतने विशाल क्षेत्र के कारण ही अनेक सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। परन्तु इसके बावजूद भी देश में जलवायु, संस्कृति आदि में एकता पाई जाती है।

(a) भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है?
(b) देश की अनेकता में एकता’ बनाए रखने में कौन-कौन से तत्त्वों का योगदान है ?
उत्तर-
(a) अपने विस्तार और स्थिति के कारण भारत को उप-महाद्वीप का दर्जा दिया जाता है। उप-महाद्वीप एक विशाल तथा स्वतन्त्र भू-भाग होता है जिसकी सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं। ये स्थलाकृतियां इसे अपने आस-पास के क्षेत्रों से अलग करती हैं। भारत के उत्तर में हिमालय से पार अगील (Agill), मुझतघ (Mugtgh), कुनलुन (Kunlun), कराकोरम, हिन्दुकुश आदि पर्वत श्रेणियां उसे एशिया के उत्तर-पश्चिमी भागों से अलग करती हैं। दक्षिण में पाक जलडमरू मध्य तथा मन्नार की खाड़ी इसे श्रीलंका से अलग करते हैं। पूर्व में अराकान योमा इसे म्यनमार से अलग करते हैं। थार का मरुस्थल इसे पाकिस्तान के बहुत बड़े भाग से अलग करता है। इतना होने पर भी हम वर्तमान भारत को उपमहाद्वीप नहीं कह सकते। भारतीय उप-महाद्वीप का निर्माण अविभाजित भारत, नेपाल, भूटान तथा बांग्लादेश मिल कर करते हैं।
(b) भारत विभिन्नताओं का देश है। फिर भी हमारे समाज में एक विशिष्ट एकता दिखाई देती है। भारतीय समाज को एकता प्रदान करने वाले मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं —

  1. मानसूनी ऋतु-मानसून पवनें अधिकांश वर्षा ग्रीष्म ऋतु में करती हैं। इससे देश की कृषि भी प्रभावित होती है और अन्य व्यवसाय भी। मानसूनी पवनें पहाड़ी प्रदेशों में वर्षा करके बिजली की आपूर्ति को विश्वसनीय बनाती हैं। वास्तव में मानसूनी वर्षा पूरे देश की अर्थव्यवस्था का आधार है।
  2. धार्मिक संस्कृति-धार्मिक संस्कृति के पक्ष में दो बातें हैं। एक तो यह कि धार्मिक स्थानों ने देश के लोगों को एक सूत्र में बांधा है। दूसरे, धार्मिक सन्तों ने अपने उपदेशों द्वारा भाईचारे की भावना पैदा की है। तिरूपती, जगन्नाथपुरी, अमरनाथ, अजमेर, हरिमन्दिर साहिब, पटना, हेमकुण्ट साहिब तथा अन्य तीर्थ स्थानों पर देश के सभी भागों से लोग आते हैं और पूजा करते हैं। सन्तों ने भी धार्मिक समन्वय पैदा करने का प्रयास किया है।
  3. भाषा तथा कला-लगभग सारे उत्तरी भारत में वेदों का प्रचार संस्कृत भाषा में हुआ। इसी भाषा के मेल से मध्य युग में उर्दु का जन्म हुआ। अंग्रेज़ी सम्पर्क भाषा है और हिन्दी राष्ट्र भाषा है। इन सब ने मिलकर एक-दूसरे को निकट से समझने का अवसर प्रदान किया है। इसी तरह लोकगीतों तथा लोक-कलाओं ने भी लोगों को समान भावनाएं व्यक्त करने का अवसर जुटाया है।
  4. यातायात तथा संचार के साधन-रेलों तथा सड़कों ने विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को समीप लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूरदर्शन तथा समाचार-पत्रों जैसे संचार के साधनों ने भी लोगों की राष्ट्रीय सोच देकर राष्ट्रीय धारा से जोड़ दिया है।
  5. प्रवास-गांवों के कई लोग शहरों में आकर बसने लगे हैं। उनमें जातीय विभिन्नता होते हुए भी वे एक-दूसरे को समझने लगे हैं और इस प्रकार वे एक-दूसरे के निकट आए हैं।
    सच तो यह है कि अनेक प्राकृतिक और सांस्कृतिक तत्त्वों ने हमारे देश को एकता प्रदान की है।

(2)

हिमालय के साथ लगते विशाल उत्तरी मैदान देश की 40% जनसंख्या को निवास व जीवन-यापन प्रदान करते हैं। इनकी उपजाऊ मिट्टी, उपयुक्त जलवायु, समतल धरातल ने दरियाओं, नहरों, सड़कों, रेलों व शहरों के प्रसार व विस्तृत तथा कृषि के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसीलिए यह मैदानी क्षेत्र देश के अन्न भंडार होने का गौरव रखते हैं। इन मैदानों ने आर्य लोगों से लेकर अब तक एक विशेष प्रकार की सभ्यता व समाज का निर्माण किया है। सारे देश के लोग गंगा को अभी भी एक पवित्र नदी मानते हैं और इसकी घाटी में बसे ऋषिकेश, हरिद्वार, मथुरा, प्रयाग, अयोध्या, कांशी आदि स्थान देश के विभिन्न भागों में रहने वाले सूफी सन्त और धार्मिक लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इन मैदानी भागों में बाद में सिख गुरु, महात्मा बुद्ध, महावीर जैन जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया और अलग-अलग धर्म स्थापित हुए। इसका गहरा प्रभाव हिमालय पर्वत और दक्षिण भारत में भी देखा जा सकता है।

(a) उत्तर के विशाल मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित प्रमुख भू-आकृतियों के नाम बताइए।
(b) विशाल उत्तरी मैदानों का देश के विकास में योगदान बताइए।
उत्तर-
(a) उत्तरी मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित भू-आकार हैं-जलोढ़ पंख, जलोढ़ शंकु, सर्पदार मोड़, दरियाई सीढ़ियां, प्राकृतिक बांध तथा बाढ़ के मैदान।
(b) हिमालय क्षेत्रों का देश के विकास में निम्नलिखित योगदान है —

  1. वर्षा-हिन्द महासागर से उठने वाली मानसून पवनें हिमालय पर्वत से टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। इस प्रकार यह उत्तरी मैदान में वर्षा का दान देता है। इस मैदान में पर्याप्त वर्षा होती है।
  2. उपयोगी नदियां-उत्तरी भारत में बहने वाली सभी मुख्य नदियां गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां सारा वर्ष बहती रहती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ इन नदियों को जल देती है।
  3. फल तथा चाय-हिमालय की ढलाने चाय की खेती के लिए बड़ी उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त पर्वतीय ढलानों पर फल भी उगाए जाते हैं।
  4. उपयोगी लकड़ी-हिमालय पर्वत पर घने वन पाए जाते हैं। ये वन हमारा धन हैं। इनसे प्राप्त लकड़ी पर भारत के अनेक उद्योग निर्भर हैं। यह लकड़ी भवन-निर्माण कार्यों में भी काम आती है।
  5. अच्छी चरागाहें-हिमालय पर सुन्दर और हरी-भरी चरागाहें मिलती हैं। इनमें पशु चराये जाते हैं।
  6. खनिज पदार्थ-इन पर्वतों में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

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(3)

‘जलवाय’ अथवा ‘पवन-पानी’ शब्द से तात्पर्य यह है कि किसी स्थान में लम्बी अवधि की मौसमी स्थितियाँ. जिनमें उस स्थान का तापमान वहाँ से बह रही वायु में जल की कितनी मात्रा है। ये स्थितियाँ मुख्य रूप से उस स्थान की धरातलीय विभिन्नता, समुद्र-तट से दूरी तथा भूमध्य रेखा से दूरी जैसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों के द्वारा निर्धारित की जाती है। इसका मानव एवम् मानवीय क्रिया-कलापों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
भारत एक विशाल देश है। जिसकी विशाल धरातलीय इकाइयां, प्रायद्वीपीय स्थिति और कर्क रेखा का इसके बीच से होकर गुज़रना इसकी जलवायु पर गहरा प्रभाव डालते हैं। देश की विशालतम धरातलीय विभिन्नताओं के कारण ही इसमें तापमान, वर्षा, पवनों व बादलों आदि की विभिन्नताएं मिलती हैं।

(a) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले (दो) तत्त्वों को बताइए।
(b) भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
(a) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्व हैं-

  1. भूमध्य रेखा से दूरी,
  2. धरातल का स्वरूप,
  3. वायुदाब प्रणाली,
  4. मौसमी पवनें और
  5. हिन्द महासागर से समीपता।

(b) भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं निम्नलिखित हैं

  1. सर्दियों में हिमालय पर्वत के कारगिल क्षेत्रों में तापमान-45° सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है परन्तु उसी समय तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) महानगर में यह 20° सेंटीग्रेड से भी अधिक होता है। इसी प्रकार गर्मियों की ऋतु में अरावली पर्वत की पश्चिमी दिशा में स्थित जैसलमेर का तापमान 50° सेन्टीग्रेड को भी पार कर जाता है, जबकि श्रीनगर में 20° सेन्टीग्रेड से कम तापमान होता है।
  2. खासी पर्वत श्रेणियों में स्थित माउसिनराम (Mawsynaram) में 1141 सेंटीमीटर औसतन वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। परन्तु दूसरी ओर पश्चिमी थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा का औसत 10 सेंटीमीटर से भी कम है।
  3. बाड़मेर और जैसलमेर में लोग बादलों के लिए तरस जाते हैं परन्तु मेघालय में सारा साल आकाश बादलों से ढका रहता है।
  4. मुम्बई तथा अन्य तटवर्ती नगरों में समुद्र का प्रभाव होने के कारण तापमान वर्ष भर लगभग एक जैसा ही रहता है। इसके विपरीत राष्ट्रीय क्षेत्र दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में सर्दी एवं गर्मी के तापमान में भारी अन्तर पाया जाता है।

(4)

किसी भी देश या क्षेत्र के आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक विकास में वहां की जलवायु का गहरा प्रभाव होता है। उस क्षेत्र की आर्थिक प्रगति का अनुमान वहाँ की कृषि, उद्योग, खनिज-सम्पदा के विकास से लगाया जा सकता है। भारतीय जीवन लगभग पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। जिसके विकास में मानसूनी वर्षा ने एक प्रमुख एवम् सुदृढ़ आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मानसून को देश का केंद्रीय ध्रुव (Pivotal Point) माना जाता है। इस पर कृषि के अलावा समूचा आर्थिक ढाँचा निर्भर करता है। मानसूनी वर्षा जब समय से तथा उचित मात्रा में होती है तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है तथा चारों तरफ हरियाली व खुशहाली होती है। परन्तु इसकी असफलता के परिणामस्वरूप फसलें सूख जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज के भंडारों में कमी आ जाती है।

(a) भारत में मानसूनी वर्षा की (कोई तीन) महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताइए।
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था (बजट) को मानसून पवनों का जुआ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
(a) भारत में मानसूनी वर्षा मुख्यतः जुलाई से सितम्बर के महीनों में होती है। देश में इसका विस्तार दक्षिणपश्चिमी मानसून पवनों के विस्तार के साथ होता है। मानसूनी वर्षा की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. अस्थिरता-भारत में मानसून भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एक-समान होती रहे। वर्षा की इसी अस्थिरता के कारण ही भुखमरी और अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
  2. असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
  3. अनिश्चितता-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंचकर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप देश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(b) “भारतीय अर्थव्यवस्था मानसून पवनों का जुआ है”-यह वक्तव्य इस बात को प्रकट करता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की उन्नति या अवनति इस बात पर निर्भर करती है कि किसी वर्ष वर्षा का समय, वितरण तथा मात्रा कितनी उपयुक्त है। यदि वर्षा समय पर आती है और उसका वितरण और मात्रा भी उपयुक्त है, तो कृषि की अच्छी फसल की आशा की जा सकती है। उदाहरण के लिए अच्छी मानसून के कारण फसलें अच्छी होती हैं, तो तीन बातें घटित होती हैं।

  1. कारखानों के लिए उचित कच्चा माल उपलब्ध होता है। कपास, पटसन, तिलहन, ईख इत्यादि की अधिकता से सम्बन्धित उद्योग फलते-फूलते हैं।
  2. अच्छी मानसून से जब कृषि और उद्योगों को बल मिलता है, तो उत्पादकता बढ़ती है। एक ओर निर्यात को बढ़ावा मिलता है, तो दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार फलता-फूलता है। देश में धन की वृद्धि होती है और लोगों का जीवन स्तर उन्नत होता है।
  3. अच्छी मानसून के कारण नदियों में जल की वृद्धि होती है। बांधों का जलस्तर ऊंचा उठता है। इस जल से जहां जल-विद्युत् के उत्पादन में सहयोग मिलता है, वहां सिंचाई की व्यवस्था में सुधार होता है। इससे देश में आर्थिक गतिविधियों में हलचल पैदा होती है।
    इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आज विज्ञान की उन्नति के कारण हम मानसून के अभाव में भी अच्छी फसल उगा सकते हैं, परन्तु हमें सोचना यह है कि क्या सभी किसान वर्षा के अभाव में या वर्षा के असमान वितरण से लाभ उठा सकते हैं। अच्छी मानसून पूरे देश के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करती है। यदि मानसून उपयुक्त है, तो देश का आर्थिक विकास सुनिश्चित है। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून पवनों का जुआ कहना उचित है।

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(5)

कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में एक अहम् भूमिका है। कृषि क्षेत्र देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र से कुल राष्ट्रीय आय का 29.0 भाग प्राप्त होता है और विदेश निर्यात में भी कृषि उत्पादों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कृषि के अनेकों उत्पादन हमारे कल-कारखानों में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं। कृषि के क्षेत्र में तरक्की के कारण ही प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि जो 1950 के वर्षों में 395 ग्राम थी, 1991 में बढ़कर 510 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन तक पहुंच गयी है। रासायनिक खादों के उपयोग में भी भारत का स्थान, विश्व में चौथा है। हमारे देश में दालों के अन्तर्गत क्षेत्र, विश्व में सबसे अधिक हैं। कपास उत्पाद के क्षेत्र में भारत विश्व में पहला देश है जहां उन्नत किस्म की कपास पैदा करने के प्रयास सबसे पहले किये गये। देश ने झींगा मछली का बीज तैयार करने तथा कीट संवर्धन (pest culture) तकनीकी विकास में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर ली हैं।

(a) भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
(b) कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
(a) भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।
(b) कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।

  1. कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
  2. कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
  3. अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।

(6)

दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि में पंजाब एवं देश के अन्य भागों में इतनी गिरावट चिन्ता का एक विषय है। ऐसा लगता है कि ‘हरित क्रांति’ की लहर, जिसने देश में गेहूँ व चावल के उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है, दालों के उत्पादन को बढ़ाने में कोई विशेष योगदान नहीं कर पाया है। असल में अगर यह कहा जाये कि नुकसान पहुंचाया है तो कोई गलत नहीं होगा। क्योंकि ‘हरित क्रांति’ के बाद के वर्षों में दालों का क्षेत्रफल काफी मात्रा में गेहूँ एवं चावल जैसी अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की ओर मोड़ दिया गया है। ऐसा विशेष तौर पर पंजाब जैसे व्यावसायिक कृषि प्रधान राज्यों में काफी बड़े स्तर पर हुआ है।
(a) पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है? (b) दालों के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
(a) हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्रा 95 हजार हेक्टेयर रह गया।
(b) पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
  2. कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया है।
  3. बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।

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(7)

हमारा देश भी खनिज सम्पदा की दृष्टि से काफी सम्पन्न माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में विश्व के कुल लौह अयस्क (Iron ore) भण्डार का एक चौथाई भाग है। लौह-इस्पात उद्योग में काम आने वाले प्रमुख खनिज मैंगनीज़ के भी विशाल भण्डार भारत में पाये जाते हैं। देश में कोयला, चूने का पत्थर, बाक्साइट तथा अभ्रक के भी प्रचुर भण्डार हैं। लेकिन अलौह खनिजों (Non-ferrous) जैसे जस्ता, सीसा, तांबा, और सोने के भण्डार बहुत ही सीमित मात्रा में हैं। देश में गंधक का भण्डार लगभग नहीं के बराबर है, जबकि गंधक आधुनिक रासायन उद्योग का प्रमुख आधार है। हमारे यहां जल शक्ति के संसाधन तथा परमाणु खनिज भी काफी हैं। इनका शक्ति साधनों के रूप में उपयोग इनकी शक्ति क्षमता तथा वातावरण के साथ बहुत कम छेड़-छाड़ करने के कारण तेज़ी से बढ़ रहा है। इसी कारण सौर-ऊर्जा भी शक्ति साधन के रूप में इस्तेमाल हो रही है। सौर ऊर्जा ईश्वर की दी अमूल्य शक्ति भंडार है। इसका उपयोग भविष्य में तेज़ी से शक्ति के स्रोत के रूप में बढ़ेगा।

प्रश्न
(a) खनिजों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान है?
(b) सौर ऊर्जा को भविष्य की ऊर्जा का स्त्रोत क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
(a) खनिजों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी

  1. देश का औद्योगिक विकास मुख्य रूप से खनिजों पर निर्भर करता है। लोहा और कोयला मशीनी युग का आधार हैं। हमारे यहां संसार के लौह-अयस्क के एक-चौथाई भण्डार हैं। भारत में कोयले के भी विशाल भण्डार पाये जाते हैं।
  2. खनन कार्यों से राज्य सरकारों को आय में वृद्धि होती है और लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
  3. कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि खनिज ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
  4. खनिजों से तैयार उपकरण कृषि की उन्नति में सहायक हैं।

(b) कोयला और खनिज तेल समाप्त होने वाले साधन हैं। एक दिन ऐसा आएगा जब विश्व के लोगों को इनसे पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलेगी। इनके भण्डार समाप्त हो चुके होंगे। इनके विपरीत सूर्य ऊर्जा कभी न समाप्त होने वाला साधन है। इससे विपुल मात्रा में ऊर्जा मिलती है। जब कोयले और खनिज तेल के भण्डार समाप्त हो जाएंगे तब सौर बिजली घरों से शक्ति प्राप्त होगी और हम अपने घरेलू कार्य और संयन्त्रों से सुगमता से कर लेंगे।

(8)

प्राकृतिक वनस्पति में वह सारे वृक्ष, कंटीली झाड़ियाँ, पौधे व घास आदि शामिल किये जाते हैं जो कि मानव हस्तक्षेप के बिना ही उगते हैं। इसका अध्ययन प्रारम्भ करने से पहले वनस्पति जाति (Flora), वनस्पति (Vegetation) और वन (Forests) जैसे सम्बन्धित शब्दों की जानकारी होना अनिवार्य है। वनस्पति जाति में किसी निश्चित समय तथा निश्चित क्षेत्र में उगने वाले पौधों की भिन्न-भिन्न किस्में (Species) शामिल की जाती हैं। किसी निश्चित वातावरण में किसी स्थान पर पैदा होने वाली झाड़ियों, पौधे, घास आदि को वनस्पति कहा जाता है। जबकि सघन व एक दूसरे पास उगे हुए पेड़, पौधे, कंटीली झाड़ियों आदि से घिरे हुए एक बड़े क्षेत्र को वन कहा जाता है। जंगल शब्द का प्रयोग सबसे अधिक वातावरण वैज्ञानिक और वन रक्षक तथा भूगोलवेत्ता करते हैं। हर एक किस्म की विकसित वनस्पति को अपने वातावरण के साथ एक नाजुक सन्तुलन (Delicate Balance) बना कर एक लम्बे जीवन-चक्र में से निकलना पड़ता है, जो इसके आपसी सामंजस्य और मौसमानुसार ढलने की क्षमता के गुण पर निर्भर करता है। हमारे देश में मिलने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति (Flora) स्थानीय नहीं है, बल्कि इसका 40% भाग विदेशी जातियों का है जिन को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण-खण्डीय (Paleo-Tropical) जातियाँ कहा जाता है।

(a) देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों के (i) नाम तथा (i) मात्रा बताइए।
(b) पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
(a) देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण खण्डीय (PaleoTropical) के नाम से पुकारते हैं। (ii) भारत की वनस्पति में विदेशी वनस्पति की मात्रा 40% है।
(b) वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उप-भागों में बाँटा जा सकता है।

  1. आई पतझड़ वन- इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 से०मी० तक होती है। इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परन्तु इनकी ऊँचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चन्दन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं।
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति- इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। इसकी लम्बी पट्टी पंजाब से आरम्भ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। कीकर, बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

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(9)

हमारे देश में वनस्पति की विविधता के साथ-साथ जीव-जन्तुओं में भी बहुत बड़ी विविधता पायी जाती है। वास्तव में दोनों के बीच गहरा अन्तर्सम्बन्ध है। देश में जीव-जन्तुओं की लगभग 76 हज़ार जातियां मिलती हैं। देश के ताजे और खारे पानी में 2500 जाति की मछलियाँ पायी जाती हैं। इसी प्रकार पक्षियों की भी 2000 जातियां हैं। सांपों की 400 जातियों भारत में मिलती हैं। इसके अतिरिक्त उभयचारी, सरीसृप, स्तनधारी तथा छोटे कीट और कृमि भी पाये जाते हैं।

स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाले पशु हाथो प्रमुख हैं। यह विषुवतरेखीय उष्म आई वनों का जीव है। हमारे देश में यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। यहां भारी वर्षा होती है तथा जंगल भी बहुत घने हैं। इसके विपरीत ऊंट और जंगली गधे बहुत ही गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाये जाते हैं। ऊँट थार मरुस्थल का सामान्य पशु है, जबकि जंगली पौधे केवल कच्छ के रन (Rann of Kuchh) में ही मिलते हैं। इनकी विपरीत दिशा में एक सींग वाला गैंडा रहता है। ये असम और पश्चिमी बंगाल के ऊत्तरी भागों में दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। भारतीय जन्तुओं में भारतीय गौर (बाइसन), भारतीय भैंसा तथा नील गाय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हिरण भारतीय जीव जगत की विशेषता है।

(a) हिमालय में मिलने वाले जीवों के नाम बताओ।
(b) देश में जीव-जन्तुओं की देख-रेख के लिए कौन-कौन में कार्य किये जा रहे हैं?
उत्तर-
(a) हिमालय में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन (एक लम्बे सींग वाली जंगली बकरी) तथा टैपीर आदि जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जबकि उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पांडा तथा हिमतेंदुआ नामक जन्तु मिलते हैं।
(b)

  1. 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (देश का 2.7 प्रतिशत तथा कुल वन क्षेत्र का 12 प्रतिशत भाग) को राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य प्राणी अभ्याकरण घोषित कर दिया गया।
  2. संकटापन्न (Near Extinction) वन्य जीवों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।
  3. पशु-पक्षियों की गणना का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आरम्भ किया गया है।
  4. देश के विभिन्न भागों में इस समय बाघों के 16 आरक्षित क्षेत्र हैं।
  5. असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है। सच तो यह है कि देश में अब तक 18 जीव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) स्थापित किये जाय है।
    योजना के अधीन सबसे पहले जीवन आरक्षण क्षेत्र नीलगिरि में बनाया गया था। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक. जन्तु का संरक्षण अनिवार्य है। यह प्राकृतिक धरोहर (Natural heritage) भावी पीढ़ियों के लिए है।

(10)

पृथ्वी के धरातल पर मिलने वाले हल्के, ढीले और असंगठित चट्टानी चूरे व बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मृदा/मिट्टी कहा जाता है, जिसमें पौधों को जन्म देने की शक्ति होती है।
इस मिश्रण का जमाव 15-30 सैं०मी० से लेकर कई मीटर तक की गहरी तहों में मिलता है। लेकिन मदा वैज्ञानिक, मिट्टी के रंग, बनावट, कणों के आकार आदि की मात्रा के आधार व गहराई में क्रमवार, ए०बी० व सी० नामक तीन परतों में बाँटा जाता है।’ए’ होराईजन वाली मिट्टियों में गल्लढ़ (ह्यूमस) मात्रा अधिक होने के कारण इनका रंग काला होना शुरू हो जाता है। लेकिन इस परत पर निक्षालय क्षेत्र (Zone of leaching) में स्थित होने के कारण खनिज घुलकर नीचे चले जाते . हैं व रंग हल्का काला होना शुरू हो जाता है। इस परत के नीचे ‘बी’ होराईजन वाली उप-परत का रंग ऊपरी परत से रिस कर आए खनिज पदार्थ के कारण रंग भूरा होता है। लेकिन इसमें ह्यूमस की मात्रा कम हो जाती है। इस परत के नीचे ‘सी’ होराईजन वाली मिट्टी की परत मिलती है। जिसमें उपरोक्त चट्टानों से अलग हुए पदार्थों में कोई खास तबदीली नहीं होती व आगे चलकर मुख्य आधार वाली चट्टान से जा मिलती है। इस उप-चट्टानी सतह का रंग सलेटी या हल्का भूरा होता है।

(a) मिट्टी की परिभाषा बताइए।
(b) मिट्टियों के जन्म में प्राथमिक चट्टानों का क्या योगदान है ?
उत्तर-
(a) पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले हल्के, ढीले तथा असंगठित चट्टानी चूरे (शैल चूर्ण) तथा बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मिट्टी अथवा मृदा कहा जाता है।
(b) देश में प्राथमिक चट्टानों में उत्तरी मैदानों की तहदार चट्टानें अथवा पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें आती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खनिज होते हैं। इसलिए इनसे अच्छी किस्म की मिट्टी बनती है।
प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करता है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में, जलवायु में रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव तथा ह्यूमस के कारण मृदा अति विकसित होती है। परन्तु राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसी तरह अधिक वर्षा तथा तेज़ पवनों वाले क्षेत्र में मिट्टी का कटाव अधिक होता है। परिणामस्वरूप उपजाऊपन कम हो जाता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

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आज के जानकारी एवं सूचना आधारित (knowledge and information based) विश्व में मानव संसाधनों के महत्त्वपूर्ण योगदान का राष्ट्रीय निर्माण एवं विकास में पहले की अपेक्षा ज्यादा बेहतर ढंग से महसूस किया जाने लगा है। आज विश्व के सभी देश, विशेषकर विकासशील देश, मानव संसाधनों के विकास की ओर पहले से ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। बच्चो क्या आप सोच सकते हैं, ऐसा क्यों है ? ‘ऐशियन टाईगर’ के नाम से जाने वाले दक्षिणी कोरिया, ताईवान, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया आदि देशों में बड़ी तेजी से हो रहे आर्थिक विकास का श्रेय वहाँ पिछले कुछ दशकों में मानव संसाधनों के विकास पर हुए भारी निवेश को दिया जा रहा है। मानव संसाधन विकास में न केवल शिक्षा, तकनीकी कुशलता, स्वास्थ्य एवं पोषण जैसे मापकों को बल्कि मानव-आचार-विचार, सभ्यता-संस्कृति, प्रजाति एवं राष्ट्र-गर्व जैसे मापकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद ही मानव संसाधन विकास एक सम्पूर्ण विचारधारा बन सकेगा।

(a) किसी देश का सबसे बहुमूल्य संसाधन क्या होता है?
(b) देश की जनसंख्या की संरचना का अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
(a) बौद्धिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ नागरिक।
(b) किसी देश की जनसंख्या की संरचना को जानना क्यों आवश्यक है, इसके कई कारण हैं-

  1. सामाजिक एवं आर्थिक नियोजन के लिए किसी भी देश की जनसंख्या के विभिन्न लक्षणों जैसे जनसंख्या की आयु-संरचना, लिंगसंरचना, व्यवसाय संरचना आदि के आंकड़ों की जरूरत पड़ती है।
  2. जनसंख्या की संरचना के विभिन्न घटकों का देश के आर्थिक विकास से गहरा सम्बन्ध है। जहाँ एक और से जनसंख्या संरचना घटक आर्थिक विकास से प्रभावित होते हैं, वहीं वे आर्थिक विकास की प्रगति एवं स्तर के प्रभाव से भी अछूते नहीं रह पाते। उदाहरण के लिए यदि किसी देश की जनसंख्या की आयु संरचना में बच्चों तथा बूढ़े लोगों का प्रतिशत बहुत अधिक है तो देश को शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं पर अधिक-से-अधिक वित्तीय साधनों को खर्च करना पड़ेगा। दूसरी ओर, आयु संरचना में कामगार आयु-वर्गों (Working age-groups) का भाग अधिक होने से देश के आर्थिक विकास की दर तीव्र हो जाती है।

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जनसंख्या वितरण के क्षेत्रीय प्रारूप का अध्ययन, जनसंख्या के सभी जनसांख्यिकीय घटकों को समझने के लिए आधार प्रदान करता है। इस कारण से जनसंख्या के वितरण के क्षेत्रीय प्रारूप को समझना बहुत आवश्यक है। यहां सबसे पहले हमें जनसंख्या वितरण एवं जनसंख्या घनत्व के बीच अन्तर को भी स्पष्ट कर लेना ज़रूरी है।
जनसंख्या वितरण का सम्बन्ध स्थान से तथा घनत्व का सम्बन्ध अनुपात से है। जनसंख्या वितरण से यही अर्थ निकलता है कि देश के किसी एक हिस्से में जनसंख्या का क्षेत्रीय प्रारूप (Pattern) कैसा है, यानि जनसंख्या प्रारूप फैलाव (nucleated) लिए है या एक ही जगह पर इकट्ठा जमाव (agglomerated) है। दूसरी तरफ घनत्व में, जिसका सम्बन्ध जनसंख्या आकार एवं क्षेत्र से होता है, मनुष्य तथा क्षेत्र (area) के अनुपात पर ध्यान दिया जाता है।
भारत में मानव बस्तियों का इतिहास बहुत पुराना है। इसी कारण देश का हर वह भाग जो मानव निवास के योग है जनसंख्या निवास करती है। फिर भी जनसंख्या का वितरण भूमि के उपजाऊपन से बहुत अधिक प्रभावित होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण, जनसंख्या वितरण का प्रारूप कृषि-उत्पादकता (agricultural productivity) पर निर्भर करता है। इसी कारण जिन प्रदेशों में कृषि-उत्पादकता अधिक है जनसंख्या का जमाव भी उतना ही अधिक है। कृषि उत्पादकता के अलावा, प्राकृतिक कारकों (physical factors) की विभिन्नता, औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक तत्वों का भी भारत के जनसंख्या वितरण प्रारूप को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

(a) देश के सबसे अधिक और सबसे कम जनसंख्या वाले राज्यों के नाम बताइए।
(b) देश में जनसंख्या वितरण के प्रादेशिक प्रारूप की प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए प्रारूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(a) देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश और सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम
(b) भारत में जनसंख्या वितरण का प्रादेशिक प्रारूप तथा उसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. भारत में जनसंख्या का वितरण बहुत असमान है। नदियों की घाटियों और समुद्र तटीय मैदानों में जनसंख्या बहुत सघन है, परन्तु पर्वतीय, मरुस्थलीय एवं अभाव-ग्रस्त क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत ही विरल है। उत्तर के पहाड़ी प्रदेशों में देश के 16 प्रतिशत भू-भाग पर मात्र 3 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जबकि उत्तरो मैदानों में देश के 18 प्रतिशत भूमि पर 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। राजस्थान में देश के मात्र 6 प्रतिशत भू-भाग पर 6 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
  2. अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में बसी है। देश की कुल जनसंख्या का लगभग 71% भाग ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 29% भाग शहरों में निवास करता है। शहरी जनसंख्या का भारी जमाव बड़े शहरों में है। कुल शहरी जनसंख्या का दो-तिहाई भाग एक लाख या इससे अधिक आबादी वाले प्रथम श्रेणी के शहरों में रहता है।
  3. देश के अल्पसंख्यक समुदायों का जमाव अति संवेदनशील एवं महत्त्वपूर्ण बाह्य सीमा क्षेत्रों में है। उदाहरण के लिए उत्तर-पश्चिमी भारत में भारत-पाक सीमा के पास पंजाब में सिक्खों तथा जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों का बाहुल्य है। इसी तरह उत्तर-पूर्व में चीन व बर्मा (म्यनमार) की सीमाओं के साथ ईसाई धर्म के लोगों का जमाव है। इस तरह के वितरण से अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक कठिनाइयां सामने आती हैं।
  4. एक ओर तटीय मैदानों एवं नदियों की घाटियों में जनसंख्या घनी है तो दूसरी ओर पहाड़ी, पठारी एवं रेगिस्तानी भागों में जनसंख्या विरल है। यह वितरण एक जनसांख्यिकी विभाजन (Demographic divide) जैसा लगता है।