PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Practical बटन लगाना और काज बनाना Notes.

PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बटन हमेशा किस कपड़े पर लगाना चाहिए ?
उत्तर-
बटन हमेशा दोहरे कपड़े पर लगाना चाहिए।

प्रश्न 2.
कमीज़ वाले बटनों में कितने छिद्र होते हैं ?
उत्तर-
कमीज़ वाले बटनों में दो या चार छिद्र होते हैं।

प्रश्न 3.
काज किस प्रकार के कपड़ों पर बनाना चाहिए ?
उत्तर-
काज हमेशा दोहरे कपड़ों पर बनाना चाहिए।

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प्रश्न 4.
धागा कहाँ लपेटना चाहिए ?
उत्तर-
धागा डंडी के आस-पास लपेटना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बटन लगाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
बटन लगाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सभी बटनों की डंडी बनानी ज़रूरी है। डंडी के साथ बटन कपड़े के नीचे से ऊँचा रहता है। इससे बटन बंद करना आसान होता है और बटन के नीचे का कपड़ा नहीं घिसता।
  2. डंडी के आस-पास भी धागा लपेटना चाहिए ताकि काज के साथ रगड़ खाकर जल्दी टूट न जाए।
  3. जहाँ तक संभव हो टाँके बटन के छिद्र की सीध में ही होना चाहिए।
  4. बटन सफ़ाई और मज़बूती से लगाए जाने चाहिए।
  5. बटन हमेशा दोहरे कपड़े पर लगाना चाहिए।

PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना

प्रश्न 2.
कमीज़ में दो छिद्रों वाले बटन कैसे लगाते हैं ?
उत्तर-
कमीज़ में दो छिद्रों वाले बटन लगाने के लिए बटन को अपनी जगह पर ही रखते हैं और छिद्र में से सूई कपड़े के नीचे से निकालते हैं और दूसरे छिद्र में डालकर कपड़े के नीचे ले जाते हैं। इस तरह तीन, चार, पाँच टाँके लगाने के बाद डंडी बनाते हैं।

प्रश्न 3.
कमीज़ में चार छिद्रों वाले बटन कैसे लगाते हैं ?
उत्तर-
कमीज़ में चार छिद्रों वाले बटनों को क्रॉस (×) बनाकर सीधी लाइनों में या चौरस शक्ल के टाँके लगाकर बनाते हैं। धागे को छेदों से इतनी बार निकालते हैं कि छिद्र भर जाए। बाद में डंडी बनाकर धागे को नीचे ले जाते हैं और एक बखिए का टाँका लगाकर कपड़े की दो तहों में से सूई निकालकर धागा तोड़ देते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
काज बनाने की विधि का सचित्र वर्णन करो।
उत्तर-
1. काज हमेशा दोहरे कपड़े पर बनाना चाहिए। जिस जगह पर काज बनाना हो वहाँ बटन के आकार के अनुसार पेंसिल का निशान लगाना चाहिए, फिर ब्लेड से या छोटी कैंची से वहाँ काट देना चाहिए। उतना ही काटना चाहिए जिसमें बटन जरा मुश्किल से निकल सके। अधिक खुले काज में से बटन अपने आप निकल जाते हैं।
PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना 1
चित्र 5.1 काज बनाना

2. पतली लम्बी सूई में धागा डालते हैं। धागे को गाँठ नहीं लगाते हैं।

3. सूई को काज के बाएँ किनारे से ले जाते हैं और कपड़े की ऊपर वाली तह के बीच से दो-तीन धागे को लेकर सूई निकालते हैं। धागे का 14″ किनारा छोड़कर धागा खींच लेते हैं। इसे ” धागे के पहले कुछ टाँकों में दबा देते हैं।

4. काटे हुए किनारे का काज टाँका बनाते हैं।
PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना 2
चित्र 5.2 काज बनाना
चित्र 5.3 काज बनाना

5. काज का गोल किनारा बनाने के लिए किनारे के साथ-साथ 9 या 7 सीधे टाँके लगाते हैं। बीच वाला टाँका कटाव के बिल्कुल मध्य में होना चाहिए। टाँकों की लम्बाई बराबर होनी चाहिए और किनारा गोल बनाना चाहिए।
PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना 3
चित्र 5.4 काज बनाना

6. काटे गए दूसरे किनारे पर काज टाँका बनाते हैं।

7. किनारे पर पहुँच कर सूई पहले टाँके की गाँठ में डालते हैं और आखिरी टाँके के सिरे से निकालते हैं। पहले और आखिरी टाँके एक सिरे से दूसरे सिरे तक 9 या 7 टाँके काज टाँके की सीध में बनाते हैं। इन टाँकों की गिनती गोलाई वाले टाँकों के बराबर होनी चाहिए।
PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना 4
चित्र 5.5 काज बनाना
चित्र 5.6 काज बनना
PSEB 8th Class Home Science Practical बटन लगाना और काज बनाना 5
चित्र 5.7 काज बनाना
चित्र 5.8 काज बनना

8. सूई को उल्टी तरफ़ ले जाते हैं और पिछली तरफ़ के टाँकों में से धागा निकालते हैं और तोड़ देते हैं। पिछली तरफ़ से टाँके भी सामने के भाग की तरफ़ एक समान और एक सीध में रखते हैं।

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बटन लगाना और काज बनाना PSEB 8th Class Home Science Notes

  • बटन हमेशा दोहरा कपड़ों पर लगाना चाहिए।
  • कमीज़ वाले बटनों में दो या चार छिद्र होते हैं।
  • काज हमेशा दोहरे कपड़े पर बनाना चाहिए।
  • कपड़े में कटाव उतना ही होना चाहिए जिसमें से बटन ज़रा मुश्किल से निकल सके।
  • काज का गोल किनारा बनाने के लिए किनारे के साथ-साथ 9 से 7 सीधे टाँके लगाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

SST Guide for Class 10 PSEB भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-

  1. गुट-निरपेक्षता की नीति में विश्वास।
  2. पंचशील के सिद्धान्तों में विश्वास।
  3. संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध। (कोई एक लिखें)

प्रश्न 2.
पंचशील से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई ने जो पांच सिद्धान्त स्वीकार किए। उन्हें सामूहिक रूप से पंचशील कहते हैं।

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता की नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय सैनिक गुटों से अलग रहने की नीति से है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

प्रश्न 4.
भारत और संयुक्त राज्य में सम्बन्ध बिगड़ने का एक मुख्य कारण लिखो।
उत्तर-
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में सम्बन्ध बिगड़ने का एक मुख्य कारण यह है कि अमेरिका पाकिस्तान को सैनिक सहायता देता रहता है।

प्रश्न 5.
भारत की परमाणु नीति क्या है?
उत्तर-
भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। परंतु हमारी विदेश नीति शांतिप्रियता पर आधारित है। इसलिए भारत की परमाणु नीति का आधार शांतिप्रिय लक्ष्यों की प्राप्ति करना और देश का विकास करना है। वह किसी पड़ोसी देश को अपनी परमाणु शक्ति के बल पर दबाने के पक्ष में नहीं है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध की स्थिति में भी हम परमाणु शक्ति का प्रयोग करने की पहल नहीं करेंगे।

प्रश्न 6.
सुरक्षा परिषद् में स्थायी और अस्थायी सदस्य कितने हैं?
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् 5 सदस्य स्थायी तथा 10 सदस्य अस्थायी हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र का जन्म कब हुआ और कितने देश इसके मूल सदस्य थे?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र का जन्म 24 अक्तूबर, 1945 ई० को हुआ। इसके मूल सदस्य 51 देश थे।

(ख) निम्नलिखित की व्याख्या करो

  1. विश्व शान्ति में भारत की भूमिका
  2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
  3. निःशस्त्रीकरण (Disarmament)
  4. महासभा (General Assembly)
  5. भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण।

उत्तर-

  1. भारत ने विश्व-शान्ति को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कार्य किए
    (क) गुट-निरपेक्षता की नीति पर चलते हुए भारत ने सदा आक्रामक शक्तियों की निन्दा की।
    (ख) भारत ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से शान्ति सेनाओं के लिए सैनिक भेजे तथा निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायाधीश होते हैं। इसका मुख्य कार्यालय हेग [Hague, हालैण्ड में है। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रों के आपसी झगड़ों का निर्णय करना है।
  3. निःशस्त्रीकरण से अभिप्राय शस्त्रों की होड़ को कम करना है। हमने आरम्भ से ही घातक शस्त्रों का विरोध किया है क्योंकि ये विश्व-शान्ति के लिए सदा खतरा रहे हैं।
  4. महासभा-यह एक तरह से संयुक्त राष्ट्र की संसद् है। इसमें प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के पांच प्रतिनिधि होते हैं।
  5. भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण-भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण दोनों देशों में सीमा विवाद है। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके इस विवाद को और गहन बना दिया।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
29 अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित नेहरू और चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई की दिल्ली में संयुक्त वार्ता हुई। इस वार्ता में उन्होंने आपसी सम्बन्धों को पांच सिद्धान्तों के अनुसार ढालने का निर्णय लिया। इन्हीं पांच सिद्धान्तों को ‘पंचशील’ कहा जाता है। ये पांच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. परस्पर प्रभुसत्ता और एकता का आदर।
  2. एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
  4. समानता और परस्पर सहयोग।
  5. शान्तिमय सह-अस्तित्व। पंचशील का मुख्य उद्देश्य विश्व शान्ति को बनाये रखना और मानव जाति को युद्धों के विनाश से बचाना है। चीन के पश्चात् संसार के अन्य देशों ने पंचशील को मान्यता प्रदान की। आज पंचशील भारतीय विदेश नीति का आधार स्तम्भ है।

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प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष नीति का अर्थ और भारत का इसे अपनाने का क्या कारण है?
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष नीति भारतीय विदेश नीति के मूल सिद्धान्तों में से एक है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अलग रहना। इसका यह भाव नहीं है कि हम अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दर्शक बने रहेंगे बल्कि गुण के आधार पर निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। हम अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहेंगे।

भारत द्वारा गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने का कारण-भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व दो मुख्य शक्ति गुटोंऐंग्लो-अमरीकन शक्ति गुट और रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था। विश्व की सारी राजनीति इन्हीं गुटों के गिर्द घूम रही थी और दोनों में शीत युद्ध चल रहा था। नव स्वतन्त्र भारत इन शक्ति गुटों के संघर्ष से दूर रह कर ही उन्नति कर सकता था। इसीलिए पं० नेहरू ने गुट-निरपेक्षता को विदेश नीति का आधार स्तम्भ बनाया।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के छ: अंगों में से एक है। यह संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके कुल 15 सदस्य हैं। इनमें से पांच स्थायी सदस्य और दस अस्थायी सदस्य हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, चीन और फ्रांस इसके स्थायी सदस्य हैं। इन्हें वीटो का अधिकार है। वीटो से अभिप्राय यह है कि यदि इनमें से कोई भी एक सदस्य किसी प्रस्ताव का विरोध करता है तो वह प्रस्ताव रद्द हो जाता है। सुरक्षा परिषद् के मुख्य कार्य हैं

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाए रखना।
  2. राष्ट्रों के परस्पर झगड़ों को शान्तिपूर्वक सुलझाना।
  3. महासचिव के पद के लिए सिफ़ारिश करना।
  4. संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए नए राष्ट्रों की सिफ़ारिश करना।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
भारत संयुक्त राष्ट्र के 51 मूल सदस्यों में से एक है। आरम्भ से ही भारतीय नेताओं ने इस महान् संस्था में अपनी आस्था रखी है और इस देश ने निम्नलिखित ढंग से संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में क्रियाशील भूमिका निभाई है

  1. भारत ने अन्य देशों के साथ मिलकर 1950 में उप-निवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध महासभा में प्रस्ताव पास करवाया।
  2. भारत ने मिस्र, कांगो, कोरिया तथा हिन्द-चीन के देशों में हुए युद्धों में संयुक्त राष्ट्र के शान्ति प्रयासों में सहयोग दिया।
  3. नस्ली भेदभाव और रंगभेद के सन्दर्भ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध आवाज़ उठाई और उसके विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध में भाग लिया।
  4. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से प्रत्येक उस देश के विरुद्ध आवाज़ उठाई जिसने मानव अधिकारों का उल्लंघन करने का प्रयास किया।
  5. विश्व में आतंकवाद की समाप्ति की प्रक्रिया में भारत संयुक्त राष्ट्र के साथ है।

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प्रश्न 5.
भारत और संयुक्त राष्ट्र अमरीका के परस्पर सम्बन्धों का संक्षेप में नोट लिखो।
उत्तर-
भारत का संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धान्तों में पूर्ण विश्वास है। हमने संयुक्त राष्ट्र के प्रत्येक अंग और विशेष एजेंसियों के कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत संयुक्त राष्ट्र को विश्व-शान्ति का रक्षक मानता है। इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सैनिक सहायता प्रत्येक सम्भव ढंग से की है। भारत ने सदा संयुक्त राष्ट्र में इस बात पर जोर दिया है कि वह राजनीतिक मामलों तक ही अपने को सीमित न करे, बल्कि मानव की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाने का भी प्रयास करे। ऐसी समस्याओं को सुलझाने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र को आर्थिक सहायता और पूरा सहयोग दिया है। 22 दिसम्बर, 1994 को भारतीय संसद् के दोनों सदनों ने एक प्रस्ताव पास कर संयुक्त राष्ट्र के प्रति भारत की वचनबद्धता को दोहराया है।

प्रश्न 7.
भारत पाकिस्तान सम्बन्ध तथा इनके बीच तनाव के मुख्य तीन कारणों पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध आरम्भ से ही तनावपूर्ण तथा शत्रुतापूर्ण रहे हैं। इनके बीच तनाव का मुख्य कारण
कश्मीर समस्या है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। परन्तु पाकिस्तान इस प्रदेश पर अपना दावा जताता रहता है। 1999 में पाकिस्तान तथा भारत के बीच कारगिल युद्ध के कारण तनाव और अधिक बढ़ गया। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान, सीमा पार से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। ये एक अच्छे पड़ोसी के लक्षण नहीं हैं। भारत आज भी पाकिस्तान से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है और इसके लिए प्रयास कर रहा है। परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है, जब पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समाप्त करे और युद्ध-विराम की शर्तों का पालन करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण बताइए।
उत्तर-
पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा जताता रहता है, जबकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
अथवा
पाकिस्तान द्वारा विदेशी सहायता से शस्त्रों का भण्डार भी दोनों देशों के मध्य तनाव का एक कारण है।

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प्रश्न 2.
भारत की वर्तमान विदेश नीति के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
पं० जवाहर लाल नेहरू।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त बताओ।
उत्तर-
गुट निरपेक्षता।

प्रश्न 4.
पंचशील के सिद्धान्तों को कब अपनाया गया?
उत्तर-
29 अप्रैल, 1954 को।

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प्रश्न 5.
पंचशील का समझौता किन दो नेताओं के बीच हुआ?
उत्तर-
पंचशील का समझौता भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमन्त्री चाउ-एन-लाई के बीच हुआ।

प्रश्न 6.
पंचशील के सिद्धान्तों को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में मान्यता कब दी गई?
उत्तर-
14 दिसम्बर, 1959 को।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पंचशील के सिद्धान्तों को मान्यता देने वाले देशों की संख्या कितनी थी?
उत्तर-
82.

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प्रश्न 8.
सार्क (दक्षेस) की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
7 दिसम्बर, 1985 को।

प्रश्न 9.
‘दक्षेस’ का पूरा नाम क्या है?
उत्तर-
दक्षेस का पूरा नाम है दक्षिण-एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन।

प्रश्न 10.
भारत ने पोखरन (राजस्थान) में परमाणु धमाका (प्रयोग) कब किया?
उत्तर-
1974 में।

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प्रश्न 11.
भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता कब ग्रहण की थी?
उत्तर-
17 मई, 1945 को।

प्रश्न 12.
आजकल राष्ट्रमण्डल के सदस्यों की संख्या कितनी है?
उत्तर-
49.

प्रश्न 13.
भारत के दो पड़ोसी देशों के नाम बताओ जो परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं।
उत्तर-
चीन तथा पाकिस्तान।

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प्रश्न 14.
भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व कौन-कौन से दो शक्ति गुटों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व ऐंग्लो-अमेरिकन शक्ति गुट तथा रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था।

प्रश्न 15.
द्वितीय विश्वयुद्ध कब-से-कब तक चला?
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला।

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र का चार्टर कब और कहां स्वीकार किया गया?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र का चार्टर सानफ्रांसिसको में 26 जून, 1945 को स्वीकार किया गया।

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प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
24 अक्तूबर, 1945 को।

प्रश्न 18.
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को कितने देशों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया?
अथवा
स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र के कितने सदस्य थे?
उत्तर-
51.

प्रश्न 19.
आज (2017) संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की लगभग संख्या कितनी है?
उत्तर-
195.

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प्रश्न 20.
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों ( 5) को क्या विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर-
वीटो।

प्रश्न 21.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल कितने न्यायाधीश होते हैं?
उत्तर-
15.

प्रश्न 22.
संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय के अध्यक्ष को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
महासचिव।

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प्रश्न 23.
भारत ने महासभा में दक्षिणी अफ्रीका द्वारा नस्ली भेदभाव का त्याग करने संबंधी प्रस्ताव कब पेश किया?
उत्तर-
1962 में।

प्रश्न 24.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने मानव अधिकारों की सर्वव्यापी घोषणा कब की?
उत्तर-
10 दिसम्बर, 1948 को।

प्रश्न 25.
भारत की श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र की सभा में प्रथम महिला प्रधान कब चुनी गई?
उत्तर-
1954 में।

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प्रश्न 26.
बांग्लादेश कब और किस युद्ध के परिणामस्वरूप बना?
उत्तर-
बांग्लादेश 1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप बना।

प्रश्न 27.
भारत ने किस परमाणु सन्धि पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया है?
उत्तर-
परमाणु अप्रसार संधि ।

प्रश्न 28.
चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1949 में।

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प्रश्न 29.
भारत-चीन युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1962 में।

प्रश्न 30.
नेहरू-लियाकत अली समझौता कब हुआ?
उत्तर-
1960 में।

प्रश्न 31.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक देशों के नाम बताइए।
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक राष्ट्र हैं-भारत, युगोस्लाविया तथा मिस्री

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प्रश्न 32.
सुरक्षा परिषद् का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बताओ।
उत्तर-
विश्व शान्ति और सुरक्षा में योगदान देना।

प्रश्न 33.
मानव अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
मनुष्य की सामाजिक प्रकृति में निहित अधिकारों को मानव अधिकार कहते हैं।

प्रश्न 34.
निःशस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
मानव जाति को सर्वनाश से बचाने के लिए।

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II. रिक्त स्थानों की पर्ति

  1. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या ………..
  2. सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या ………… है।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म …………… को हुआ।
  4. संयुक्त राष्ट्र के मूला सदस्यों की संस्था :……….. थी।
  5. भारत की वर्तमान विदेश नीति के संस्थापक …………… थे।
  6. आज संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों की संख्या ……….. है।
  7. संयुक्त राष्ट्र में निषेधाधिकार अथवा वीटो का अधिकार संस्था के ………….. सदस्यों को प्राप्त है।
  8. भारत-चीन युद्ध………… में हुआ।

उत्तर-

  1. 5,
  2. 10;
  3. 24 अक्टूबर, 1945,
  4. 51,
  5. पं० जवाहरलाल नेहरू,
  6. 195,
  7. स्थायी,
  8. 1962।

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा सिद्धान्त भारत की विदेश नीति का नहीं है?
(A) परमाणु शस्त्रों में वृद्धि
(B) संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास
(C) पंचशील के सिद्धांतों में विश्वास
(D) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध ।
उत्तर-
(A) परमाणु शस्त्रों में वृद्धि

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य नहीं है?
(A) रूस
(B) चीन
(C) भारत
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(C) भारत

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प्रश्न 3.
बंगलादेश की स्थापना कब हुई?
(A) 1969
(B) 1971
(C) 1973
(D) 1975
उत्तर-
(B) 1971

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा देश परमाणु शक्ति है?
(A) भारत
(B) चीन
(C) पाकिस्तान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल न्यायाधीश हैं
(A) 15
(C) 11
(B) 10
(D) 25
उत्तर-
(A) 15

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में छः स्थायी सदस्य देश हैं।
  2. भारत सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य है।
  3. 26 जनवरी, 1950 को पंचशील के सिद्धान्तों को अपनाया गया।
  4. भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता 17 मई, 1945 को ग्रहण की।
  5. भारत पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने में विश्वास रखता है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. गुट-निरपेक्षता — भारत, यूगोस्लाविया तथा मित्र
  2. महासचिव — चीन, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान
  3. गुट-निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक राष्ट्र — भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धान्त
  4. भारत के पड़ोसी राष्ट्र — संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का अध्यक्ष

उत्तर-

  1. गुट-निरपेक्षता — भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धान्त,
  2. महासचिव — संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का अध्यक्ष,
  3. गुट-निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक राष्ट्र — भारत, यूगोस्लाविया तथा मिस्र,
  4. भारत के पड़ोसी राष्ट्र — चीन, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अब भारत को सुरक्षा की अधिक आवश्यकता क्यों है? दो तर्क दें।
उत्तर-
प्राचीन काल में भारत की सीमाओं की रक्षा करना अपेक्षाकृत सरल था। उत्तर में स्थित हिमालय एक दीवार का कार्य करता था। दक्षिण में समुद्र भारत की रक्षा करता था। परन्तु अब न तो ऊंचे पर्वत और न ही विशाल समुद्र देश की रक्षा में कोई योगदान दे सकते हैं। आज विज्ञान की उन्नति के कारण पहाड़ और समुद्र बाधा नहीं रहे। इसलिए भारत की सीमाओं की रक्षा करना आवश्यक हो गया है। दूसरे, कुछ पड़ोसी देशों से हमारे अच्छे सम्बन्ध नहीं हैं। हमें उनसे अपनी रक्षा करनी है। इसलिए भारत को सुरक्षा की अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण अंगों के नाम लिखें। प्रत्येक अंग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र के चार महत्त्वपूर्ण अंग हैं-साधारण सभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय।
कार्य —

  1. साधारण सभा सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का चुनाव करती है।
  2. सुरक्षा परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की व्यवस्था करती है।
  3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् मानव जाति की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयास करती है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय सदस्य राष्ट्रों के बीच झगड़ों पर विचार करता है।

प्रश्न 3.
भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार के कुछ उपाय बताओ।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्धों में दोनों देशों के सामान्य हितों को बढ़ावा देकर निश्चित रूप से सुधार लाया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित पग उठाने होंगे —

  1. दोनों देशों में व्यापार सम्बन्धों को मजबूत बनाया जाए।
  2. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक आदान-प्रदान किया जाए।
  3. दोनों देशों में खेल–सम्बन्धों को सुदृढ़ किया जाए। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि ये उपाय तभी सफल हो सकते हैं, जब पाकिस्तान आतंकवाद का दामन छोड़ें।

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प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई थी? इसके उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को हुई। इसके आरम्भिक सदस्यों की संख्या 51 थी। परन्तु आज इनकी संख्या 195 हो गई है। भारत इसके आरम्भिक सदस्यों में से एक है।
उद्देश्य-संयुक्त राष्ट्र का अपना संविधान है, जिसे चार्टर कहते हैं। चार्टर में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि इन उद्देश्यों की पूर्ति किस प्रकार की जाएगी। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं —

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना करना।
  2. राष्ट्रों के बीच अच्छे सम्बन्धों को बढ़ावा देना। ये सम्बन्ध समानता तथा आपसी सहयोग पर आधारित होंगे।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना।

प्रश्न 5.
I.L.O., UNESCO, F.A.O. तथा W.H.0. के पूरे नाम लिखो। इनमें से किन्हीं दो संगठनों के कार्य लिखो।
उत्तर-
I.L.O., UNESCO, F.A.O. तथा W.H.O. संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट समितियां हैं।

  1. I.L.O. — इसका पूरा नाम अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) है। इसका कार्य श्रमिकों के काम की दशाओं में सुधार लाना है। यह संगठन इस बात का भी प्रयास करता है कि श्रमिकों को कुछ न्यूनतम अधिकार प्राप्त हों।
  2. UNESCO — इसका पूरा नाम संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (The U.N. Educational, Scientific and Cultural Organisation) है। यह संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के बीच वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
  3. F.A.O. — इसका पूरा नाम खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricultural Organisation) है। विश्वभर में यह कृषि के विकास तथा खाद्यान्न पूर्ति के कार्य करता है।
  4. W.H.O. — इसका पूरा नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) है। विश्व भर में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य इसका विशेष उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखो
(क) सार्क
(ख) निषेधाधिकार।
उत्तर-
(क) सार्क-सार्क का पूरा नाम है-दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन। हिन्दी में इसका संक्षिप्त नाम है-दक्षेस। यह दक्षिण एशिया के विकासशील देशों का संगठन है। इसके प्रमुख सदस्य भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका तथा मालदीव हैं। इन देशों की संस्कृति तथा आर्थिक समस्याओं में कई समानताएं पाई जाती हैं। इन्हीं समानताओं के कारण ही ये राष्ट्र आपस में संगठित हुए हैं। ये आपसी सहयोग से अपना विकास करना चाहते हैं।
(ख) निषेधाधिकार-निषेधाधिकार (वीटो) सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों (संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस तथा चीन) को प्राप्त है। सुरक्षा परिषद् के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर इन पांचों सदस्यों की सहमति होना अनिवार्य है। यदि इनमें से एक भी सदस्य किसी निर्णय का विरोध करता है, तो उस निर्णय को रद्द माना जाता है।

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प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति की छः विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
भारत की विदेश नीति की निम्नलिखित छ: विशेषताएं हैं —

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा के लिए प्रयास करना।
  2. उपनिवेशों की जनता के लिए आत्म-निर्णय के अधिकार का समर्थन करना।
  3. जातिवाद का विरोध करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से निपटारा करना।
  5. संयुक्त राष्ट्र तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग करना।
  6. गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण करना तथा विश्व के सैनिक गुटों से दूर रहना।

प्रश्न 8.
भारत-चीन सम्बन्धों के सकारात्मक पहलू बताओ।
उत्तर-

  1. सीमा विवाद को आपसी बातचीत द्वारा हल करने का प्रयास किया जा रहा है।
  2. एक समझौते के अनुसार दोनों देश आपस में आर्थिक सहयोग तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर वचन बद्ध हैं।
  3. विश्व शांति सम्मेलनों में दोनों देशों के प्रतिनिधि एक-दूसरे का भरोसा जीतने का प्रयास करते रहते हैं।

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भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र PSEB 10th Class Civics Notes

  • विदेश नीति का अर्थ तथा उद्देश्य-विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो कोई देश दूसरे देशों के प्रति तथा प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति अपनाता है। इसका मुख्य उद्देश्य देश की प्रतिरक्षा तथा विश्व शान्ति को बनाए रखना है।
  • भारत की विदेश नीति के आधार-भारत की विदेशी नीति का मुख्य आधार गुटनिरपेक्षता है। इसका अर्थ है कि भारत विश्व के सैनिक गुटों से दूर रहता है। हमारी विदेश नीति के आधार हैं-संयुक्त राष्ट्र से सहयोग तथा पड़ोसी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के आरम्भिक सदस्य भारत, यूगोस्लाविया तथा मिस्र थे। भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने गुट-निरपेक्षता की नीति का समर्थन किया। परन्तु आज इस नीति को अपनाने वाले देशों की संख्या बहुत अधिक हो गई है और इस नीति ने एक शक्तिशाली आन्दोलन का रूप धारण कर लिया है। इसी कारण गुट-निरपेक्ष देशों के समूह को ‘तृतीय विश्व’ या ‘तीसरी दुनिया’ कह कर पुकारा जाता है।
  • भारत तथा उसके पड़ोसी देश-हमारे मुख्य पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन, बांग्ला देश तथा श्रीलंका हैं। हमारे अन्य पड़ोसी भृटान, नेपाल तथा बर्मा (म्यनमार) हैं। भारत इनके साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है। परन्तु इनके साथ हमारे सम्बन्धों के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।
  • भारत तथा पाकिस्तान-पाकिस्तान के साथ हमारे सम्बन्ध कभी भी सद्भावनापूर्ण नहीं रहे। इसके मुख्य कारण हैं-प्रथम, भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामी राज्य है। द्वितीय, कश्मीर के मामले पर दोनों देशों में मतभेद हैं।
  • भारत तथा चीन-1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के पश्चात् भारत-चीन सम्बन्धों में कटुता आ गई। आज सीमा पर चीन की घुसपैठ के प्रयासों के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है।
  • भारत-बांग्ला देश सम्बन्ध-दोनों देशों में सीमावाद, बांग्ला शरणार्थियों की भारत में घुसपैठ की समस्या तथा फरक्का बांध की समस्या तनाव के कारण थे। परन्तु 1996 में गंगा जल के बंटवारे पर हुए समझौते के पश्चात् दोनों देशों में सहयोग की आशा बढ़ गई।
  • पंचशील-पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व शान्ति के लिए पांच सिद्धान्त बनाए। इसे पंचशील का नाम दिया गया है। इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के बीच सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ाना है ताकि उनकी प्रभुसत्ता और अखण्डता बनी रहे।
  • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका-भारत के साथ अमेरिका के सम्बन्धों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। तनाव का एक मुख्य कारण है–भारत द्वारा “परमाणु अप्रसार” सन्धि पर हस्ताक्षर न करना, क्योंकि यह सन्धि भेदभावपूर्ण है। फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका भारत को आर्थिक सहायता देने वाला प्रमुख देश है।
  • भारत और रूस-रूस के साथ भारत के सम्बन्ध सदा ही अच्छे रहे हैं। यह देश भारत को हर पक्ष में सहयोग देता रहा है। हमारी स्वतन्त्रता तथा हमारे आर्थिक विकास में रूस का अत्यधिक योगदान रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र-संयुक्त राष्ट्र की स्थापना (24 अक्तूबर, 1945) युद्धों को रोकने तथा विश्व शान्ति बनाए रखने के लिए हुई। इसके छ: अंग तथा इसकी विशिष्ट समितियां विश्व-शान्ति, जनकल्याण तथा पिछड़े राष्ट्रों के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
  • भारत तथा संयुक्त राष्ट्र भारत की संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों में पूरी आस्था है। इसलिए भारत की विदेश नीति का एक लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र को विश्व शान्ति की स्थापना तथा विवादों को आपसी बातचीत द्वारा सुलझाने में समर्थन देना भी है। इस प्रकार भारत संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से विश्व शान्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

PSEB 7th Class Physical Education Guide खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
खेलों में लगने वाली चोटों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ब्राजील में सन 2014 में विश्व कप फुटबाल में ब्राजील विश्व कप जीतने का मुख्य दावेदार था। ब्राजील की टीम पूरे जोश के साथ सभी विरोधी टीमों को पराजित करती हुई विश्व चैम्पियनशिप जीतने की ओर बढ़ रही थी कि अचानक एक मैच में ब्राजील के होनहार खिलाड़ी ‘नेमार’ की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई जिसके कारण नेमार अगले मैचों में खेल नहीं सका और आने वाले दोनों मैच ब्रा हार गया। इस प्रकार ब्राजील विश्व कप विजेता होने से चूक गया।

कोई भी कार्य करते समय मनुष्य के जीवन में चोट लगने का भय बना रहता है। थोड़ी-सी असावधानी से चोट लग सकती है। इस तरह खिलाड़ियों को भी खेल के मैदान में चोटें लगती रहती हैं। खिलाड़ी जितनी मर्जी सावधानी का प्रयोग करे पर उस को चोट लग ही जाती है। खेल के मैदान में लगने वाली चोटें, कामकाज में लगने वाली चोटों से भिन्न होती हैं। यदि खिलाड़ी तैयारी और सावधानी से खेल के मैदान में उतरता है तो उसे दूसरे खिलाड़ियों की उपेक्षा कम चोटें लगती हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के खेल जीवन में कोई-नकोई चोट अवश्य लगती है। साधारण चोट लगने पर एक-दो दिन में ठीक हो जाता है परन्तु गम्भीर चोट लगने पर खिलाड़ी कई दिन मैदान से दूर रहता है और खेल पाने में अमसर्थ होता है। कई चोटों के कारण खेलने योग्य भी नहीं रहता। खेल के मैदान में खिलाड़ियों को लगने वाली चोटें खेल चोटें (Sports Injuries) कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष चोटें क्या होती हैं?
उत्तर-
प्रत्यक्ष चोटें (Exposed Injuries)-इस प्रकार की चोटें खिलाड़ियों को आम लगती रहती हैं। इस प्रकार की चोटें शरीर के किसी बाहर के भाग पर लगती हैं और इन्हें देखा जा सकता है। खेलते समय गिरने या किसी बाहर की वस्तु से टकराने के कारण चोट लगती है। इन चोटों को कई भागों में बांटा जा सकता है।

1. रगड़ (Abrasion)-इस प्रकार की चोट में त्वचा का ऊपरी अथवा भीतरी भाग छिल जाता है। खेल मैदान में खिलाड़ी के गिरने के कारण लगती है। इस प्रकार की चोट से त्वचा का बाहरी भाग छिल जाता है और रक्त बहने लगता है। रगड़ लगने वाले स्थान पर मिट्टी आदि पड़ने के कारण संक्रमण हो सकता है। इस प्रकार की चोट के घाव को अच्छी तरह साफ करके उस पर मरहम पट्टी कर देनी चाहिए।

2. त्वचा का फटना (Incision)-कई बार खेल में खिलाड़ी अपने विरोधी से टकरा जाते हैं। खिलाड़ी को कुहनी, घुटना या कोई तीखा भाग टकराने से खिलाड़ी की त्वचा फट जाती है। खिलाड़ी को इस प्रकार की चोट किसी कठोर वस्तु के टकराने से लगती है। खिलाड़ी की त्वचा कट जाती है और उससे रक्त बहने लगता है। कट गहरा होने के कारण रक्त तेज़ी से बहता है। इसके उपचार के लिए घाव को साफ करके पट्टी करनी चाहिए।

3. गहरा घाव (Punctured Wound)-खेल में यह चोट गंभीर होती है। यह चोट खेल के समय किसी नोकीली वस्तु के लगने के कारण होती है जैसे जैवेलिन या कीलों वाले स्पाइक्स की कीलें लगने के कारण होती है। इस चोट में खिलाड़ी को गहरा घाव लगता है और रक्त अधिक मात्रा में निकलने लगता है। इस प्रकार की चोट लगने के कारण शीघ्र खिलाड़ी को डाक्टर के पास ले जाना चाहिए।

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प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष चोटें किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष (परोक्ष) चोटें (Unexposed Injuries) इस प्रकार की चोटें शरीर के बाहरी भाग में दिखाई नहीं देतीं। इन्हें भीतरी चोटें भी कहा जा सकता है। इस प्रकार की चोटें मांसपेशियों अथवा जोड़ों पर लगती हैं। इनका मुख्य कारण मांसपेशियों व जोड़ों पर अधिक दबाव या तनाव होता है। इस प्रकार की चोट में खिलाड़ी को तीव्र दर्द होता है और ठीक होने में समय लग जाता है।

प्रश्न 4.
जोड़ का उत्तरना तथा हड्डी के टूटने में क्या अन्तर है?
उत्तर-
इस चोट में जोड़ के ऊपर अधिक दबाव पड़ने के कारण अथवा झटका लगने के कारण हड्डी जोड़ से बाहर आ जाती है जिससे जोड़ गति करना बंद कर देता है और खिलाड़ी खेलने में असमर्थ हो जाता है। किसी पोल, मेज से टकराने अथवा गिरते समय जोड़ के अधिक मुड़ जाने के कारण यह चोट लग सकती है।

जब चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाते हैं, उसे हड्डी का टूटना कहते हैं। हड्डी का टूटना गम्भीर चोट है। इसमें खिलाड़ी को बहुत दर्द होता है और ठीक होने में भी काफी समय लगता है। हड्डी टूटने के बहुत प्रकार हैं-इनमें कुछ साधारण व कुछ गम्भीर प्रकार की टूटन है। खेल के मैदान में सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करने के कारण ये चोटें लग सकती हैं।

जोड़ का उत्तरना हड्डी का टूटना
(1) जोड़ का आकार बदल जाता है। (1) हड्डी का आकार बदल जाता है।
(2) अंग की गतिशीलता बंद हो जाती है। (2) हड्डी टूटने वाले स्थान पर तेज़ दर्द होने लगता है।
(3) चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द लगती है। (3) हड्डी के हिलाने पर आवाज़ आने होता है।
(4) जोड़ पर सूजन आ जाती है। (4) हड्डी टूटने वाला अंग कार्य करना बन्द कर देता है।

 

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प्रश्न 5.
मोच क्या है ? इसके कारण, लक्षण तथा ईलाज के बारे में लिखिए।
उत्तर-
मोच जोड़ों की चोट है। इस चोट में जोड़ों को बांधने वाले तन्तु टूट जाते हैं या फट जाते हैं। खेल के मैदान में दौड़ते समय खिलाड़ी का संतुलन बिगड़ने के कारण अथवा जोड़ों के अधिक मुड़ने के कारण खिलाड़ी के जोड़ों पर दबाव पड़ जाता है और जोड़ के तन्तुओं में खिंचाव आ जाता है। इसे मोच कहते हैं।
लक्षण-

  1. चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  2. चोट वाले जोड़ पर सूजन आ जाती है।
  3. चोट वाले स्थान का रंग लाल हो जाता है।
  4. चोट वाले जोड़ को हिलाने से खिलाड़ी को तीव्र दर्द होता है।

उपचार-चोट लगने के स्थान पर शीघ्र बर्फ लगनी चाहिए। इससे जोड़ में बह रहा रक्त बंद हो जाता है। बर्फ मलने से चोट वाले स्थान पर सूजन कम हो जाती है। चोट लगने के पश्चात् 24 घण्टे बर्फ की टकोर करनी चाहिए और चोट पर मालिश नहीं करनी चाहिए। न ही गर्म सेक देना चाहिए। जोड़ को सहारा देने के लिए पट्टी बांध लेनी चाहिए। चोट ठीक होने के पश्चात् जोड़ को हल्का व्यायाम करना चाहिए। इससे चोट ठीक होने में काफी समय लग सकता है।

प्रश्न 6.
खेलों में लगने वाली चोटों के मुख्य कारण कौन से हैं ?
उत्तर-

  1. अपर्याप्त जानकारी
  2. उचित प्रशिक्षण का अभाव
  3. असावधानी
  4. ठीक तरह से शरीर न गर्माने के कारण
  5. खेल मैदान का सही न होना।।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

Physical Education Guide for Class 7 PSEB खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेल के मैदान में क्या नहीं होना चाहिए ?
उत्तर-
कंकर, कांच के टुकड़े और पत्थर आदि।

प्रश्न 2.
मैदान की सीमा रेखा के निकट क्या नहीं होना चाहिए ?
उत्तर-
तार अथवा दीवार।

प्रश्न 3.
खेलों का सामान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय स्टैण्डर्ड का बहुत बढ़िया।

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प्रश्न 4.
कौन-सी भावना से खेल नहीं खेलना चाहिए ?
उत्तर-
बदले की।

प्रश्न 5.
खेल का मैदान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
समतल।

प्रश्न 6.
खेलों में चोट लगने के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. अपर्याप्त जानकारी
  2. उचित प्रशिक्षण का अभाव।

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प्रश्न 7.
खेल चोटें कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर-
खेल चोटें दो प्रकार की होती हैं—

  1. प्रत्यक्ष चोटें
  2. अप्रत्यक्ष चोटें।

प्रश्न 8.
मोच क्या है ?
उत्तर-
मोच में जोड़ों को बांधने वाले तन्तु टूट जाते हैं।

प्रश्न 9.
खिंचाव क्या है ?
उत्तर-
यह चोट शरीर की भारी मांसपेशियों पर लगती है और मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है।

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प्रश्न 10.
हड्डी का उतरना क्या है ?
उत्तर-
जोड़ के ऊपर अधिक दबाव पड़ने के कारण हड्डी जोड़ से बाहर आ जाती है।

प्रश्न 11.
हड्डी का टूटना क्या है ?
उत्तर-
चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाने को हड्डी का टूटना कहा जाता

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हड्डी के उतरने के लक्षण लिखें।
उत्तर-

  1. जोड़ का आकार बदल जाता है।
  2. अंग की गतिशीलता बंद हो जाती है।
  3. चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  4. जोड़ पर सूजन आ जाती है।

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प्रश्न 2.
हड्डी के टूटने के लक्षण लिखें।
उत्तर-

  1. हड्डी का आकार बदल जाता है।
  2. हड्डी टूटने वाले स्थान पर तेज़ दर्द होने लगता है।
  3. हड्डी के हिलाने पर आवाज़ आने लगती है।
  4. हड्डी टूटने वाला अंग कार्य करना बन्द कर देता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेल में लगने वाली चोटों के भिन्न-भिन्न कारण लिखो।
उत्तर-
खेलों में खिलाड़ियों के चोट लगने के कई कारण हो सकते हैं जो इस प्रकार—
1. अपर्याप्त जानकारी-खेलों के नियम, खेल सामग्री के बारे में खिलाड़ी को पूरी जानकारी होनी चाहिए। कई बार खिलाड़ी को खेल सामग्री की जानकारी नहीं होती जिससे उसे चोट लग सकती है।

2. उचित प्रशिक्षण का अभाव-खेलों में बढ़िया प्रदर्शन के लिए अच्छा प्रशिक्षण ज़रूरी है। यदि प्रशिक्षण के बिना खिलाड़ी खेलता है तो उसके शरीर में शक्ति, गति व लचक की कमी के कारण चोट लग सकती है।

3. असावधानी-“सावधानी हटी और दुर्घटना घटी” खेल के मैदान में थोडी-सी लापरवाही से चोट लग सकती है। यदि खिलाड़ी खेल नियमों का पालन नहीं करता तो भी चोटें लग सकती हैं।

4. ठीक तरह से शरीर न गर्माने के कारण-खेल के अनुसार गर्माना ज़रूरी है जिससे खिलाड़ी की मांसपेशियां खेल के दबाव को सहन कर सकें। यदि खिलाड़ी शरीर को पूर्ण रूप से गर्माता नहीं तो उसकी मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है।

5. खेल के मैदान का सही न होना-खेलते समय मैदान समतल होना आवश्यक है। मैदान में गड्ढे, तीखी चीजें, कांच, कील बिखरे होने के कारण खिलाड़ी को चोट लग सकती है। अतः खेलने से पहले खेल मैदान की जांच कर लेनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
खिंचाव क्या होता है ? उसके लक्षण और उपचार लिखो।
उत्तर-
यह मांसपेशियों की चोट है और शरीर की भारी मांसपेशियों पर लगती है। इसमें खिलाड़ियों की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है जिससे वहां तेज दर्द होने लगता है। खिलाड़ी चलने, फिरने, दौड़ने में अमसर्थ हो जाता है। इस चोट के कई कारण हो सकते हैं। थकावट, शरीर को अच्छी तरह से गर्माना, मांसपेशियों पर अधिक तनाव।
लक्षण-

  1. चोट वाले स्थान पर तीव्र पीड़ा होती है।
  2. खिलाड़ी को दौड़ने, चलने में कठिनाई होती है।
  3. चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
  4. खिलाड़ी की मुद्रा (Posture) में बदलाव आ जाता है।

उपचार-चोट के पश्चात् खिलाड़ी को अति शीघ्र मैदान से बाहर कर देना चाहिए और आराम से लिटा देना चाहिए। चोट वाले स्थान पर बर्फ लगानी चाहिए और 48 घण्टे तक बर्फ लगाते रहना चाहिए। तीसरे दिन गुनगुने पानी की टकोर करनी चाहिए। उसके पश्चात् ठण्डे पानी की टकोर करनी चाहिए। चौथे और पांचवें दिन तक इस प्रक्रिया को दोहराते रहना चाहिए। जब तक चोट पूर्ण रूप से ठीक न हो खेलना नहीं चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 3.
हड्डी का टूटना (Fracture) क्या होता है ? उसके लक्षण और उपचार बताएं।
उत्तर-
जब चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाते हैं, उसे हड्डी का टूटना कहते हैं।
हड्डी का टूटना गम्भीर चोट है। इसमें खिलाड़ी को बहुत दर्द होता है और ठीक होने में भी काफी समय लगता है। हड्डी टूटने के बहुत प्रकार हैं-इनमें कुछ साधारण व कुछ गम्भीर प्रकार की टूटन है। खेल के मैदान में सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करने के कारण ये चोटें लग सकती हैं।
लक्षण-

  1. जहां हड्डी टूटी हो उसका आकार बदल जाता है।
  2. टूटी हड्डी के स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  3. हड्डी के हिलाने पर ‘चर-चर’ की आवाज़ आती है।
  4. चोटिल अंग कार्य नहीं कर सकता।

उपचार–हड्डी टूटी होने पर खिलाड़ी को चोट वाले स्थान पर हड्डी को लकड़ी अथवा लोहे की पट्टियों द्वारा सहारा देना चाहिए। जहां चोट लगी हो उसे हिलाना नहीं चाहिए। रक्त बहने पर रक्त रोकना चाहिए। खिलाड़ी को शीघ्र डाक्टरी सहायता दिलानी चाहिए। जिसे एक्सरे करके चोट द्वारा टूटी हड्डी का पता लगाया जा सके। डाक्टरी परामर्श के अनुसार इलाज करना चाहिए और पूरी तरह ठीक होने तक खिलाड़ी पूर्ण रूप से आराम करते रहना चाहिए।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science Geography Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल

SST Guide for Class 6 PSEB पृथ्वी के परिमण्डल Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
थलमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर-
थलमण्डल से अभिप्राय पृथ्वी के भूमि वाले भाग से है। इसे धरातल अथवा भू-पर्पटी भी कहते हैं। इसका निर्माण विभिन्न प्रकार की शैलों से हुआ है। इसकी औसत मोटाई 60 किलोमीटर है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के प्रमुख भू-रूपों के नाम लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी पर मुख्य रूप से तीन प्रकार के भू-रूप पाये जाते हैं। इनके नाम हैं – पर्वत, पठार तथा मैदान।

प्रश्न 3.
पृथ्वी के सभी परिमण्डल एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी के सभी परिमण्डल आपस में जुड़े हुए हैं। ये एक-दूसरे के अस्तित्व का आधार हैं। किसी एक परिमण्डल का सन्तुलन बिगड़ने से अन्य परिमण्डलों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। उदाहरण के लिए, अधिक पेड़-पौधे काटने से जैवमण्डल में असन्तुलन पैदा हो जाता है। इसका प्रभाव वायुमण्डल पर पड़ता है और वह प्रदूषित हो जाता है। इससे वर्षा में कमी आती है, जिसका जलमण्डल पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल

प्रश्न 4.
पर्वत-श्रेणी किसे कहते हैं?
उत्तर-
अपने आस-पास के धरातल से ऊंचे उठे भू-भाग को पर्वत कहते हैं। इनका ऊपरी सिरा नुकीला होता है। पर्वत प्रायः एक समूह के रूप में पाए जाते हैं। पर्वतों के समूह को पर्वत-श्रेणी कहते हैं।

प्रश्न 5.
विश्व के प्रसिद्ध पठारों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. भारत का दक्षिणी पठार
  2. उत्तरी अमेरिका का अपलेशियन पठार
  3. मध्य अफ्रीका का पठार तथा
  4. तिब्बत का पठार।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल जीवन प्रणाली को जीने में कैसे सहायता करता है?
उत्तर-
वायुमण्डल जीवन प्रणाली को जीवित रखने में निम्नलिखित ढंग से सहायता करता है –

  1. इससे ऑक्सीजन लेकर जीव साँस लेते हैं।
  2. यह पृथ्वी पर एक कम्बल का काम करता है और सूर्य के ताप का ठीक रूप में वितरण करता है। इसके कारण पृथ्वी का कोई स्थान इतना अधिक गर्म अथवा ठंडा नहीं होता कि वहाँ जीवित न रहा जा सके।
  3. वायुमण्डल से प्राप्त नाइट्रोजन गैस से पेड़-पौधों की वृद्धि होती है जिनसे मनुष्य को भोजन मिलता है।
  4. वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर हरे पेड़-पौधे अपना भोजन बनाते हैं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल

प्रश्न 7.
मेज़ भू-रूप किसे और क्यों कहते हैं?
उत्तर-
पठार को मेज़ भू-रूप कहा जाता है। इसका कारण यह है कि इसका ऊपरी सिरा मेज़ की तरह चपटा होता है।

प्रश्न 8.
जलमण्डल का मनुष्य के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जलमण्डल में महासागर, सागर, झीलें, नदियां आदि शामिल हैं। इनका मनुष्य के लिए निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. जलमण्डल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव है। इसका कारण यह है कि मनुष्य, जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे जल के बिना जीवित नहीं रह सकते।
  2. जलमण्डल वर्षा लाने में सहायता करता है जिससे वायुमण्डल ठंडा होता है।
  3. जलमण्डल में मछलियां मिलती हैं जिनसे मनुष्य को भोजन मिलता है।
  4. जलमण्डल में नौका-परिवहन होता है। इससे व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
  5. जलमण्डल से हमें नमक प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
महाद्वीप किसे कहते हैं?
उत्तर-
थल के वे बड़े भाग जो तीनों अथवा चारों ओर से जल से घिरे होते हैं, महाद्वीप कहलाते हैं।

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प्रश्न 10.
पृथ्वी पर कितने महाद्वीप हैं? इनके नाम लिखो। सबसे बड़ा महाद्वीप कौन-सा है?
उत्तर-
पृथ्वी पर कुल सात महाद्वीप हैं। इनके नाम हैं –

  1. एशिया
  2. अफ्रीका
  3. यूरोप
  4. उत्तरी अमेरिका
  5. दक्षिणी अमेरिका
  6. ऑस्ट्रेलिया
  7. अंटार्कटिका।

इनमें से एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप है।

प्रश्न 11.
महासागरों के नाम बताओ। यह भी बताओ कि ग्लोब पर महासागरों को किस रंग से दर्शाया जाता है?
उत्तर-
संसार में चार महासागर हैं। इनके नाम हैं –

  1. प्रशान्त महासागर
  2. अंध महासागर
  3. हिन्द महासागर
  4. आर्कटिक महासागर।

ग्लोब पर महासागरों ह्यको नीले रंग से दर्शाया जाता है।

प्रश्न 12.
जीवमण्डल किसे कहते हैं? इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी दो।।
उत्तर-
जीवमण्डल धरातल का वह सीमित क्षेत्र है, जहाँ भूमि, जल और वायु एकदूसरे के सम्पर्क में आते हैं। यह पृथ्वी की सतह से कुछ नीचे पानी में तथा पृथ्वी की सतह से कुछ ऊपर वायु तक फैला हुआ है। यहाँ जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पाई जाती हैं। अतः यहां विभिन्न प्रकार के जीव और पेड़-पौधे पाये जाते हैं। जीवमण्डल को दो भागों में बांटा जाता है-प्राणी जगत् तथा वनस्पति जगत्। प्राणी जगत् में मनुष्य तथा अन्य जीव-जन्तु शामिल हैं। वनस्पति जगत् में पेड़-पौधे आते हैं।

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प्रश्न 13.
उत्तरी गोलार्द्ध को ‘थल या पृथ्वी गोलार्द्ध’ और दक्षिणी गोलार्द्ध को ‘जल गोलार्द्ध’ क्यों कहते हैं?
उत्तर-
उत्तरी गोलार्द्ध का अधिकतर भाग थल है। इस भाग में जल का विस्तार कम है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध का अधिकतर भाग जल से घिरा है। इस गोलार्द्ध में थल का विस्तार कम है। इसी कारण उत्तरी गोलार्द्ध को थल गोलार्द्ध अथवा पृथ्वी-गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध को जल गोलार्द्ध कहा जाता है।

प्रश्न 14.
मनुष्य को जीवमण्डल का प्रमुख प्राणी होने के कारण किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
जीवमण्डल का प्रमुख प्राणी होने के नाते मनुष्य को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाई जानी आवश्यक है। ऐसा करके ही जैवमण्डल के तत्त्वों पर दबाव को कम किया जा सकता है तथा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
  2. प्राकृतिक साधनों का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए ताकि जैवमण्डल को साफ़-सुथरा रखा जा सके।
  3. मनुष्य को ‘जियो और जीने दो’ का नियम अपनाना चाहिए। तभी पृथ्वी पर मानव-जीवन बना रह सकता है।

II. रिक्त स्थान भरो

  1. ………… सबसे छोटा महाद्वीप है।
  2. ………… दूसरे नंबर पर सबसे बड़ा महाद्वीप है।
  3. आर्कटिक सागर ने ……….. ध्रुव को चारों ओर से घेरा हुआ है।
  4. दक्षिणी महासागर ने ………… महाद्वीप को घेरा हुआ है।
  5. पृथ्वी का 2/3 भाग ………… ने घेरा हुआ है।
  6. ………… महाद्वीप को सफ़ेद महाद्वीप कहते हैं।
  7. ……….. परिमण्डल को तीनों परिमण्डल प्रभावित करते हैं।

उत्तर-

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2. अफ्रीका
  3. उत्तरी
  4. अंटार्कटिक
  5. जीव।
  6. जल
  7. अंटार्कटिक

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III. निम्नलिखित का मिलान करो

  1. महाद्वीप – आर्कटिक
  2. भू-रूप – जीवमण्डल
  3. जीवन – अंटार्कटिक
  4. महासागर – पठार

उत्तर-

  1. महाद्वीप – अंटार्कटिक
  2. भू-रूप – पठार
  3. जीवन – जीवमण्डल
  4. महासागर – आर्कटिक।

PSEB 6th Class Social Science Guide पृथ्वी के परिमण्डल Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी का कौन-सा परिमंडल वायु तथा जल दोनों में फैला हुआ है?
उत्तर-
जीव मंडल।

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प्रश्न 2.
कौन-सा महासागर एशिया और आस्ट्रेलिया को उत्तरी अमेरिका से अलग करता है?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

प्रश्न 3.
एशिया और यूरोप को कौन-सी पर्वतमाला अलग करती है?
उत्तर-
यूराल।

बह-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिया गया चित्र निम्नलिखित में से क्या दर्शाता है?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल 1
(क) जीवमंडल की गैसें।
(ख) ग्लोबल वार्मिंग की गैसें।
(ग) वायुमंडल की गैसें ।
उत्तर-
(ग) वायुमंडल की गैसें

प्रश्न 2.
निम्न में से किस महासागर ने धरती का ½ भाग घेरा हुआ है?
(क) प्रशांत महासागर
(ख) अंध महासागर
(ग) हिन्द महासागर।
उत्तर-
(क) प्रशांत महासागर।

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सही (✓) या गलत (✗) कथन

  1. दक्षिणी अमरीका महाद्वीप पानामा नहर द्वारा उत्तरी अमरीका से जुड़ा है।
  2. आस्ट्रेलिया सबसे बड़ा महाद्वीप है।
  3. आर्कटिक महासागर ने दक्षिणी ध्रुव को घेरा हुआ है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर सर्वप्रथम जीवन का विकास किस परिमण्डल में हुआ था?
उत्तर-
जल परिमण्डल में।

प्रश्न 2.
एशिया महाद्वीप को कौन-कौन से तीन महासागरों नेश्वेरा हुआ है?
उत्तर-
हिन्द महासागर, प्रशान्त महासागर तथा आर्कटिक महासागर।

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प्रश्न 3.
एशिया महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम बताओ।
उत्तर-
माऊंट एवरेस्ट।

प्रश्न 4.
एशिया महाद्वीप का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश कौन-सा है?
उत्तर-
चीन।

प्रश्न 5.
महासागरों में सबसे गहरा स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
मैरियाना खाई, 11022 मीटर गहरी।

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प्रश्न 6.
सबसे बड़ा महाद्वीप कौन-सा है?
उत्तर-
एशिया।

प्रश्न 7.
उस महाद्वीप का नाम बताओ जहाँ मनुष्य स्थायी रूप से नहीं बसे हैं।
उत्तर-
अंटार्कटिका।

प्रश्न 8.
उस महासागर का नाम बताओ जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है।
उत्तर-
हिन्द महासागर।

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प्रश्न 9.
वायुमण्डल की कौन-सी गैस जीवनदायिनी गैस समझी जाती है?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर जल और थल का बँटवारा बताएँ।
उत्तर-
पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल है। इसका थल भाग केवल 29 प्रतिशत है।

प्रश्न 11.
महासागर किसे कहते हैं?
उत्तर-
महाद्वीपों को एक-दूसरे से अलग करने वाले जल के बड़े-बड़े भागों को महासागर कहते हैं।

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प्रश्न 12.
सबसे बड़े महासागर का नाम बताएँ।
उत्तर-
संसार का सबसे बड़ा महासागर शांत (प्रशांत) महासागर है।

प्रश्न 13.
वे कौन-से महाद्वीप हैं जो थल से आपस में जुड़े हुए हैं?
उत्तर-

  1. एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका और
  2. उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका थल द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 14.
कौन-सा महाद्वीप बर्फ से ढका रहता है?
उत्तर-
अंटार्कटिका महाद्वीप बर्फ से ढका रहता है।

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प्रश्न 15.
आयु के अनुसार पर्वत कौन-कौन से दो प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
युवा तथा प्राचीन।

प्रश्न 16.
समान्तर श्रेणियों के युवा पर्वतों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 17.
दो प्राचीन पर्वतों के नाम बताइए।
उत्तर-
आल्पस तथा हिमालय।

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प्रश्न 18.
द्वीप किसे कहते हैं?
उत्तर-
वह छोटा सा भू-भाग जो चारों ओर से जल से घिरा हो, द्वीप कहलाता है।

प्रश्न 19.
भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है? .
उत्तर-
भारत एशिया महाद्वीप का भाग है। परन्तु यह तीन ओर से पानी से घिरा हुआ है। इसलिए भारत को उपमहाद्वीप कहा जाता है।

प्रश्न 20.
सागर और खाड़ी में अन्तर बताओ।
उत्तर-
सागर-सागर महासागरों के छोटे जल भाग हैं। खाड़ी-कुछ सागर दूर थल भाग में प्रवेश कर गए हैं। इन्हें खाड़ी कहते हैं।

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प्रश्न 21.
पृथ्वी का कौन-सा परिमंडल वायु तथा जल दोनों में फैला हुआ है?
उत्तर-
जीव मंडल।

प्रश्न 22.
कौन-सा महासागर एशिया और आस्ट्रेलिया को उत्तरी अमेरिका से अलग करता है?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

प्रश्न 23.
एशिया और यूरोप को कौन-सी पर्वतमाला अलग करती है?
उत्तर-
यूराल।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रशान्त महासागर की तीन विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-

  1. प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है। इसका क्षेत्रफल सभी महासागरों के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक है।
  2. यह अन्य महासागरों की अपेक्षा अधिक गहरा है। विश्व का सबसे गहरा स्थान मैरियाना खाई इसी में स्थित है।
  3. इसके एक ओर एशिया और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप हैं तथा दूसरी ओर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप हैं।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पृथ्वी को चारों ओर से घेरे वायु के आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। यह धरातल से लगभग 1600 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला हुआ है। वायुमण्डल में ऊँचाई के साथ-साथ वायु विरल होती जाती है।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल की भिन्न-भिन्न गैसें कौन-सी हैं? ऊँचाई के साथ इनके अनुपात में क्या परिवर्तन आ जाता है?
उत्तर-
वायुमण्डल की भिन्न-भिन्न गैसें निम्नलिखित हैं –
नाइट्रोजन = 78 प्रतिशत
ऑक्सीजन = 21 प्रतिशत
आरगन = 0.91 प्रतिशत
कार्बन डाइऑक्साइड = 0.03 प्रतिशत।
पृथ्वी से 5-6 किलोमीटर की ऊँचाई तक गैसों के अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु इससे ऊपर जाने पर वायु में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। बहुत अधिक ऊँचाई पर वायु में केवल हाइड्रोजन और हीलियम गैसें मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
महाद्वीप अथवा स्थलमण्डल का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
महाद्वीप स्थलमण्डल के भाग हैं। इनका निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. स्थल भाग पर खेती-बाड़ी की जाती है।
  2. यह मनुष्यों तथा कई जीव-जन्तुओं को आवास प्रदान करता है।
  3. स्थल भाग को खोद कर मूल्यवान् खनिज पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं।
  4. स्थलमण्डल कई प्रकार की मानवीय क्रियाओं का आधार है।

प्रश्न 5.
पर्वत और पठार में अन्तर बताओ।
उत्तर-
पर्वत-पर्वत धरातल के वे भू-भाग हैं जो आस-पास के क्षेत्र से ऊँचे उठे होते हैं। इनके शिखर तीखे तथा ढाल तेज़ होते हैं। अधिकांश भूगोलवेत्ताओं के अनुसार पर्वत की ऊँचाई 600 मीटर से अधिक होनी चाहिए।

पठार-पठार भी धरातल के ऊँचे उठे भाग होते हैं, परन्तु इनका शिखर विस्तृत तथा सपाट होता है। इनकी ऊँचाई और विस्तार भी अलग-अलग होता है।

प्रश्न 6.
मैदान से क्या अभिप्राय है? संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
भूतल के निचले प्रदेश मैदान कहलाते हैं। ये लगभग समतल और लक्षणहीन होते हैं। समुद्र तल से इनकी ऊँचाई 300 मीटर से भी कम होती है। संसार के अधिकांश मैदानों का निर्माण नदियों के निक्षेप से हुआ है।

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प्रश्न 7.
कौन-कौन से महाद्वीप दोनों गोलार्डों में फैले हैं?
उत्तर-
अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका और अंटार्कटिका दोनों ही गोलार्डों में स्थित हैं। इनका कुछ भाग उत्तरी गोलार्द्ध में तथा शेष भाग दक्षिणी गोलार्द्ध में है।

प्रश्न-कारण बताओ
प्रश्न 8.
(क) पृथ्वी एक अद्वितीय ग्रह है।
उत्तर-सूर्य के आठ ग्रह हैं जिनमें से पृथ्वी भी एक है, परन्तु पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन पाया जाता है। इसलिए पृथ्वी को अद्वितीय ग्रह कहते हैं।

प्रश्न 8.
(ख) यूरोप और एशिया को यूरेशिया भी कहते हैं।
उत्तर-यूरोप और एशिया को कोई भी महासागर अलग नहीं करता। इसी कारण इन दोनों महाद्वीपों के नामों को मिलाकर इन्हें यूरेशिया भी कहते हैं। यह इन दोनों महाद्वीपों का सामूहिक नाम है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार में कितने महाद्वीप हैं? उनका संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
संसार में कुल सात महाद्वीप हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. एशिया-यह संसार का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह एक ओर यूरोप महाद्वीप से जुड़ा है। इसलिए इन दोनों महाद्वीपों को यूरेशिया के नाम से भी पुकारते हैं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल 2

2. यूरोप-यह संसार के समृद्ध महाद्वीपों में से एक है। इसका विस्तार केवल उत्तरी गोलार्द्ध में है।

3. अफ्रीका-यह संसार का दूसरा बड़ा महाद्वीप है। इसे स्वेज़ नहर एशिया से अलग करती है। यह महाद्वीप दोनों गोलार्डों में फैला हुआ है।

4. उत्तरी अमेरिका-इस महाद्वीप का विस्तार उत्तरी गोलार्द्ध में है।

5. दक्षिणी अमेरिका-यह महाद्वीप अफ्रीका महाद्वीप की भाँति दोनों गोलार्डों में फैला है, परन्तु इसका अधिकतर विस्तार दक्षिणी गोलार्द्ध में है।

6. ऑस्ट्रेलिया-यह संसार का सबसे छोटा महाद्वीप है। इसका विस्तार केवल . दक्षिणी गोलार्द्ध में ही है।

7. अंटार्कटिका-इस महाद्वीप का विस्तार भी केवल दक्षिणी गोलार्द्ध में ही है। इसका क्षेत्रफल यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के सम्मिलित क्षेत्रफल से भी अधिक है। यह सदा बर्फ से ढका रहता है।

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प्रश्न 2.
महासागर से क्या अभिप्राय है? संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
धरातल के विस्तृत जलीय भाग, जिन्हें महाद्वीप एक-दूसरे से अलग करते हैं, महासागर कहलाते हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. प्रशान्त महासागर-यह संसार का सबसे बड़ा और गहरा महासागर है। इसका क्षेत्रफल संसार के सभी महासागरों के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक है। संसार की सबसे गहरी खाई, मैरियाना इसी महासागर में है। यह खाई 11022 मीटर गहरी है।

2. अन्ध महासागर-यह संसार का दूसरा बड़ा महासागर है। इसका क्षेत्रफल प्रशान्त महासागर से लगभग आधा है।

3. हिन्द महासागर-विस्तार की दृष्टि से यह संसार का तीसरा बड़ा महासागर है। संसार में यही एकमात्र ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश (भारत) के नाम पर रखा गया है।

4. आर्कटिक-यह संसार का चौथा बड़ा महासागर है। इसका अधिकांश भाग सारा साल बर्फ से जमा रहता है। इसलिए इसे उत्तरी हिम महासागर भी कहते हैं।

5. दक्षिणी महासागर-दक्षिणी गोलार्द्ध में अंध महासागर, प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर आपस में मिल जाते हैं। इस विशाल महासागर को दक्षिणी महासागर कहते हैं। इस महासागर ने अंटार्कटिक महासागर को चारों ओर से घेरा हुआ है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी के स्थल भाग की प्रमुख आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पृथ्वी का सारा स्थल भाग समतल नहीं है। यह कहीं कम ऊँचा है, तो कहीं अधिक ऊँचा। इस दृष्टि से स्थल को तीन प्रमुख भागों में बाँट सकते हैं –
1. पहाड़ या पर्वत
2. पठार
3. मैदान।

1. पहाड़ या पर्वत-अपने आस-पास के क्षेत्र से ऊँचे उठे भू-भाग पर्वत कहलाते हैं। इनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक होती है। इनकी ढाल प्रायः खड़ी या तीव्र होती है। रचना के अनुसार पर्वत चार प्रकार के होते हैं-वलित पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत, ब्लॉक पर्वत तथा अवशिष्ट पर्वत। वलित पर्वत तलछटी शैलों में बल पड़ने के कारण बनते हैं और ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण लावे से होता है। ब्लॉक पर्वत धरती में दरार (भ्रंश) पड़ने से बनते हैं। अवशिष्ट पर्वत वे प्राचीन पर्वत हैं जो अपरदन के कारण कम ऊँचे रह गए हैं।

2. पठार-पठार सामान्य रूप से ऊँचे उठे वे भू-भाग हैं जो ऊपर से लगभग समतल होते हैं। ये प्रायः मेज़ या टेबल की आकृति के होते हैं। इसलिए इन्हें टेबल लैण्ड भी कहा जाता है। इनका एक से अधिक किनारा खड़ी ढाल बनाता है। पठार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-अंतरापर्वतीय पठार, विच्छेदित पठार, गिरिपदीय अथवा लावा पठार। अन्तरापर्वतीय पठार वे पठार होते हैं जो दो या दो से अधिक पर्वत श्रेणियों से घिरे होते हैं। विच्छेदित पठार नदियों के काँट-छाँट से बनते हैं। गिरिपदीय पठार पहाड़ों की तलहटी में स्थित होते हैं।

3. मैदान-धरातल के सबसे अधिक समतल भाग मैदान कहलाते हैं। इनकी समुद्रतल से ऊँचाई 300 मीटर से कम होती है। बनावट के अनुसार मैदान तीन प्रकार के होते हैं-नदी घाटी मैदान, सरोवरी मैदान तथा तटीय मैदान।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 5 पृथ्वी के परिमण्डल

पृथ्वी के परिमण्डल PSEB 6th Class Social Science Notes

  • महाद्वीप – समुद्र तल से ऊपर उठा पृथ्वी का विशाल भूखण्ड।
  • महासागर – पृथ्वी के स्थल भाग को घेरे हुए विस्तृत जलीय भाग।
  • पृथ्वी-एक जलीय ग्रह – पृथ्वी को जल की अधिकता के कारण जलीय ग्रह कहा जाता है।
  • मैरियाना – महासागरों में सबसे गहरी खाई ।
  • एशिया – संसार का सबसे बड़ा महाद्वीप।
  • पर्वत – पृथ्वी का वह क्षेत्र जो आस-पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचा उठा हो।
  • पठार – आस-पास की भूमि से सीधा उठा हुआ विस्तृत और समतल भू-भाग।
  • प्रशान्त महासागर – सबसे बड़ा महासागर ।
  • वायुमण्डल – पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु का आवरण।
  • जैवमण्डल – वह संकीर्ण पट्टी जहां पृथ्वी के तीनों परिमण्डल (थल, जल और वायु) एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 गर्भावस्था

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 9 गर्भावस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 9 गर्भावस्था

PSEB 10th Class Home Science Guide गर्भावस्था Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
गर्भावस्था गर्भ धारण करने से लेकर जन्म तक के समय को कहा जाता है जोकि साधारणतया 280 दिन का होता है। परन्तु कई बार कई कारणों से यह समय कमसे-कम 190 तथा अधिक-से-अधिक 330 दिन भी हो सकता है। बच्चे के वि स की दृष्टि से यह समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस समय एक अण्डकोश से ही वह पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।

प्रश्न 2.
गर्भ के समय को हम कितने तथा कौन-से भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर जन्म तक की अवस्था को गर्भावस्था कहा जाता है। हम इस समय को तीन भागों में बांट सकते हैं। गर्भ समय में बच्चा एक अण्डकोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage) समय-गर्भधारण से दो सप्ताह तक
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage) समय-दूसरे सप्ताह से शुरू होकर दूसरे महीने के अन्त तक।
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage) समय-तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक।

प्रश्न 3.
अण्डे की अवस्था से आप क्या समझते हैं तथा यह कितनी देर की होती है?
उत्तर-
अण्डे की अवस्था (ओवम अवस्था) का समय गर्भ आरम्भ होने से दो सप्ताह तक गिना जाता है। इस काल के दौरान इसमें कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आता। इस समय के दौरान यह अपनी जर्दी पर जीवित रहता है। इस समय यह फैलोपियन ट्यूब से बच्चेदानी में पहुंचता है तथा अपने आपको बच्चेदानी की दीवार के साथ जोड़कर मां के आहार पर निर्भर हो जाता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 गर्भावस्था

प्रश्न 4.
भ्रूण की पूर्व अवस्था से आप क्या समझते हैं तथा यह कितनी देर की होती है?
उत्तर-
यह अवस्था गर्भ के दूसरे सप्ताह से आरम्भ होकर दूसरे माह के अंत तक चलती है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी रगें बनती हैं। इस काल में बच्चे के शारीरिक विकास में बहुत तीव्र गति से वृद्धि होती है। इस अवस्था के अन्त में एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है।

प्रश्न 5.
प्लेसैंटा क्या होता है?
उत्तर-
जहां अण्डा अपने आपको बच्चेदानी से जोड़ देता है वहां पर ही प्लेसेंटा बनने लग जाता है तथा होने वाले बच्चे को मां के शरीर से खुराक पहुंचाता है। यह एक ओर बच्चेदानी तथा दूसरी ओर बच्चे की नाभिनाल से जुड़ा होता है।

प्रश्न 6.
नाभिनाल से आप क्या समझते हैं? गर्भ के दौरान इसका क्या कार्य है?
अथवा
नाभिनाल क्या है?
उत्तर-
नाभिनाल एक ओर एम्ब्रियो के पेट की दीवार से तथा दूसरी ओर प्लेसैंटा से जुड़ा होता है। यह रस्सी की बनावट का होता है। गर्भ के अन्त तक यह 10 से 20 इंच तक हो जाता है। नाभिनाल द्वारा एम्ब्रियो का मल-मूत्र छनकर प्लेसैंटा द्वारा मां के रक्त की नलियों में चला जाता है तथा मां के शरीर द्वारा बाहर आ जाता है।

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प्रश्न 7.
ऐमनियोटिक सैक का गर्भ समय क्या कार्य होता है?
उत्तर-
ऐमनियोटिक सैक एम्ब्रियो के समय बढ़ता है। यह एक थैली जैसा होता है। इसमें एक लेसदार तरल पदार्थ होता है जिसमें बच्चा रहता है। यह तरल पदार्थ बच्चे को चोट लगने से बचाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 8.
भ्रूण के बढ़ने से किन-किन सहायक अंगों का ढांचा तैयार होता है?
अथवा
एम्ब्रियो के बढ़ने में कौन-कौन से सहायक अंग काम करते हैं? बताएं।
अथवा
एम्ब्रियो के बढ़ने से कौन-कौन से सहायक अंग बन जाते हैं?
उत्तर-
गर्भ अवस्था दौरान एम्ब्रियो के बढ़ने का समय दूसरे सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक होता है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने वाली छोटी-छोटी नसों का विकास होता है, इस दौरान बच्चे की वृद्धि तेज़ी से होती है। इस समय दौरान एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है। एम्ब्रियो के अपने बढ़ने के साथसाथ इस समय दौरान विशेष सहायक अंगों का ढांचा भी तैयार हो जाता है जिसको प्लेसैंटा, नाभिनाल तथा ऐमनियोटिक सैक कहा जाता है। यह विशेष ढांचा पैदा होने तक बच्चे को खुराक पहुंचाने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
भ्रूण की अवस्था कितनी लम्बी होती है तथा इस दौरान भ्रूण में क्याक्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण की होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नए अंग नहीं बनते परन्तु एम्ब्रियो अवस्था के समय के बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई तीन इंच हो जाती है। पांचवें माह तक बच्चे के सभी अंग मनुष्य की तरह विकास करने लगते हैं। मां को पेट में बच्चे की हरकत अनुभव होने लगती है। सातवें माह में बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में होता है। इसकी चमड़ी लाल होती है। जन्म के समय तक बच्चे की लम्बाई 19-20 इंच हो जाती है तथा साधारण बच्चे का भार 7 पौंड के लगभग होता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 गर्भावस्था

प्रश्न 10.
कौन-कौन से कारक भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
इस प्रश्न के उत्तर के लिए देखें प्रश्न नम्बर 12 में से भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक वाला भाग लिखें।

प्रश्न 11.
गर्भ के समय की आम तकलीफें कौन-कौन सी होती हैं?
अथवा
गर्भ के समय की तीन तकलीफों के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की अवस्था से आप क्या समझते हो ? भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
भ्रूण की अवस्था-गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण की होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नए अंग नहीं बनते, परन्तु एम्ब्रियो की अवस्था के समय बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई तीन इंच हो जाती है। गर्भ की इस अवस्था में पांचवें माह तक भीतर के सभी अंग बड़े मनुष्य के समान ही बनने लगते हैं तथा मां अपने शरीर में बच्चे की हरकतें अनुभव करने लगती है। सातवें माह तक बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में आ जाता है। जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19-20 इंच तथा भार 7 पौंड के लगभग हो जाता है।
भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक जन्म के समय प्रत्येक बच्चे की लम्बाई तथा भार अलग-अलग होता है। इसके बहुतसे कारण हैं जो गर्भावस्था के समय बच्चे के विकास पर प्रभाव डालते हैं-

  1. मां का पोषण – गर्भावस्था दौरान बच्चे को भोजन मां से मिलता है। मां की खुराक का प्रभाव भ्रूण के विकास पर पड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि मां आवश्यकता अनुसार सन्तुलित भोजन ले ताकि बच्चे को खुराक के सभी आवश्यक तत्त्व मिल जाएं।
  2. मां-बाप की आयु – खोज द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि बच्चे को जन्म देने के लिए मां की सबसे अच्छी आयु 21 से 35 वर्ष तक है। इससे बड़ी या छोटी आयु की मां ऐसे बच्चों को जन्म देती है जिनमें कई कमियां रह सकती हैं।
  3. मां का स्वास्थ्य – मां के स्वास्थ्य का भ्रूण की वृद्धि से सीधा सम्बन्ध है। यदि मां किसी छूत की बीमारी से पीड़ित हो या किसी भयानक बीमारी की पकड़ में हो तो बच्चा अन्धा, गूंगा या बहरा हो सकता है तथा रोगी भी। मां के एड्स या एच० आई० वी० पोज़ीटिव का शिकार होने पर यह रोग बच्चे में भी जा सकता है जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं।
  4. नशीले पदार्थों का सेवन-यदि गर्भावस्था के समय मां सिगरेट, शराब आदि का सेवन करे तो बच्चा मानसिक तौर पर रोगी हो सकता है तथा उसके दिल की धड़कन भी सामान्य बच्चों से तीव्र होती है।
  5. माता-पिता का दृष्टिकोण-यदि मां गर्भावस्था में बच्चे के लिंग प्रति ज्यादा चिन्ताग्रस्त रहे तो बच्चे की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, उसका विकास रुक जाता है तथा बच्चे में जन्म के साथ ही शारीरिक तथा मानसिक विकार पैदा हो जाते हैं।
  6. आर० एच० तत्त्व – जिस मनुष्य में आर० एच० तत्त्व होता है उसको आर० एच० पोज़ीटिव (RH+) कहते हैं। जिसमें यह तत्त्व नहीं होता उसको आर० एच० नैगिटिव (RH) कहते हैं। यदि मां तथा पिता के आर० एच० मेल न खाते हों तो सम्भव है कि बच्चे तथा मां का आर० एच० तत्त्व अलग हो सकता है। आर० एच० तत्त्व अलग होने पर रक्त में लाल कण नष्ट होने के कारण बच्चा अनीमिया का शिकार हो सकता है या जन्म के तुरन्त पश्चात् मर भी सकता है। इसलिए गर्भ धारण करने से पूर्व आदमी तथा औरत को अपने आर० एच० तत्त्व की जांच करवा लेनी चाहिए।
  7. एक्स-रे (X-Rays) – गर्भावस्था दौरान कई बार एक्सरे करवाना पड़ सकता है। यदि बार-बार एक्स-रे करवाना पड़े तो गर्भपात हो सकता है या बच्चे में शारीरिक तथा मानसिक विकार भी पैदा हो सकते हैं। एक्स-रे के प्रभाव से बच्चे मन्द बुद्धि या अंगहीन भी पैदा हो सकते हैं। इसलिए केवल आवश्यकता पड़ने पर ही एक्स-रे करवाना चाहिए।

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प्रश्न 13.
गर्भावस्था को कितने भागों में बांटा जा सकता है? इस दौरान क्याक्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक के समय को गर्भावस्था कहा जाता है। यह समय साधारणतया 280 दिनों का होता है। यह समय बच्चे के विकास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस समय दौरान ही बच्चा एक कोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।
गर्भावस्था के इस समय को हम तीन भागों में बांट सकते हैं

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage)
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)।

1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)—यह समय गर्भ आरम्भ होने से दो सप्ताह तक गिना जाता है। इस समय में उपजाऊ अण्डा ज्यादा नहीं बदलता क्योंकि उसको खुराक सातवें माह में बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में होता है। इसकी चमड़ी लाल होती है। भ्रूण एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि यदि बच्चा किसी कारण वक्त से पहले पैदा हो जाए तो उसके बचने की सम्भावना होती है। परन्तु ऐसा बच्चा कमजोर होता है।

जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19 से 20 इंच तथा एक साधारण बच्चे का भार लगभग 7 पौंड या इससे अधिक होता है।
पहुंचाने का बाहरी साधन अभी तक नहीं बना होता तथा यह अपनी जर्दी पर ही जीवित रहता है। इसी समय ही फैलोपियन ट्यूब से गर्भ स्थान या बच्चेदानी में जाता है। इसका नया जीवन आरम्भ होने के दस दिन से चौदह दिनों के अन्दर अपने आपको गर्भ स्थान की दीवार से जोड़ लेता है तथा मां के आहार पर निर्भर हो जाता है।

2. एम्ब्रियो (भ्रूण की प्रथम अवस्था) की अवस्था (Embryo Stage)—यह अवस्था गर्भ के दूसरे सप्ताह से शुरू होकर दूसरे माह के अन्त तक चलती है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी रगें बन जाती हैं। इस समय पैदा होने वाले बच्चे के शारीरिक विकास में बहुत तेजी से वृद्धि होती है। इस अवस्था में एम्ब्रियो की लम्बाई डेढ़ से दो इंच तथा भार 2-3 औंस हो जाता है। इस अवस्था के अन्त में एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है तथा चेहरे के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण अंग बन जाते हैं। आंखें, नाक, कान, होंठ उभरे हुए दिखाई देने लग पड़ते हैं। टांगें तथा बाहों का विकास आरम्भ हो जाता है। हाथों तथा पैरों की उंगलियां बनने लग पड़ती हैं तथा बाहरी लिंग अंग भी मामूली से दिखाई देने लग पड़ते हैं।
एम्ब्रियो के बढ़ने के साथ-साथ इस दौरान एक विशेष ढांचा भी तैयार हो जाता है जिसको सहायक अंग (प्लेसैंटा, नाभिनाल तथा ऐमनियोटिक सैक) कहा जाता है। यह विशेष ढांचा पैदा होने तक बच्चे को खुराक पहुंचाने के लिए आवश्यक है।
सहायक अंग

  1. प्लेसैंटा-जहां अण्डा बच्चेदानी की दीवार से अपने आपको जोड़ लेता है वहीं प्लेसैंटा बनने लग जाता है। प्लेसैंटा ही होने वाले बच्चे को मां के शरीर से खुराक पहुंचाता है। क्योंकि यह एक ओर बच्चेदानी तथा दूसरी ओर से जुड़ा होता है।
  2. नाभिनाल-नाभिनाल एक ओर एम्ब्रियो के पेट की बाहरी दीवार से तथा दूसरी ओर प्लेसेंटा से जुड़ी होती है। यह रस्सी जैसा होता है। गर्भ के अन्त तक नाभि नाल एक पुरुष के अंगूठे की मोटाई जितनी हो जाती है तथा इसकी लम्बाई 10 इंच से 20 इंच तक हो जाती है। नाभिनाल द्वारा एम्ब्रियो का मलमूत्र छनकर प्लेसैंटा द्वारा मां के रक्त की नलियों में चला जाता है तथा मां के शरीर द्वारा बाहर आ जाता है।
  3. ऐमनियोटिक सैक-तीसरा अंग जो एम्ब्रियो के समय बढ़ता है, ऐमनियोटिक सैक या थैली है। यह थैली प्लेसैंटा से जुड़ी होती है तथा बीच में एक लेसदार तरल पदार्थ होता है जिसमें बच्चा रहता है। यह तरल पदार्थ बच्चे को चोट लगने से बचाता है।

3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)-गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नये अंग नहीं बनते परन्तु एम्ब्रियो की अवस्था समय बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई लगभग तीन इंच हो जाती है। गर्भ की इस अवस्था में पांचवें माह तक भीतर के सभी अंग बड़े मनुष्य के समान ही बनने लग पड़ते हैं तथा मां अपने शरीर में बच्चे की हरकतें अनुभव करने लग पड़ती है। पांचवें माह में ही बच्चे के दिल की धड़कन की आवाज़ ऊंची हो जाती है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB गर्भावस्था Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भ अवस्था कितने दिनों की होती है?
उत्तर-
280 दिनों की।

प्रश्न 2.
गर्भ अवस्था कितने भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
तीन भागों में।

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प्रश्न 3.
गर्भ अवस्था के तीन भागों के नाम बताएं।
उत्तर-
अण्डे की अवस्था, एम्ब्रियो की अवस्था, भ्रूण की अवस्था।

प्रश्न 4.
अण्डे की अवस्था का समय गर्भ शुरू होने से कितने सप्ताह तक होता है?
उत्तर-
दो सप्ताह तक।

प्रश्न 5.
एम्ब्रिया अवस्था कितनी देर की होती है?
उत्तर-
गर्भ समय के दूसरे सप्ताह से दूसरे महीने के अन्त तक।

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प्रश्न 6.
नाभिनाल की लम्बाई बताएं।
उत्तर-
10 से 20 इंच।

प्रश्न 7.
जन्म समय तक बच्चे की लम्बाई कितनी हो जाती है?
उत्तर-
19-20 इंच।

प्रश्न 8.
प्रायः जन्म के समय बच्चे का भार कितना होता है?
उत्तर-
7 पौंड।

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प्रश्न 9.
बच्चे को जन्म देने के लिए मां की उचित आयु क्या है?
उत्तर-
21 से 35 तक।

प्रश्न 10.
गर्भ समय बार-बार एक्सरे करवाने की क्या हानि है?
उत्तर-
इससे गर्भपात हो सकता है।

प्रश्न 11.
एम्ब्रियो के सहायक अंग बताओ।
उत्तर-
प्लेसैंटा, नाभिनाल, एमनियोटिक सैक।

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प्रश्न 12.
भ्रूण अवस्था का समय बताओ।
अथवा
गर्भ अवस्था की कौन-सी अवस्था सब से लम्बी होती है?
उत्तर-
गर्भ समय के तीसरे माह से जन्म समय तक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भ के समय की कोई दो तीन तकलीफों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
गर्भवती स्त्री की पीठ और मांस-पेशियों में दर्द क्यों होता है?
उत्तर–
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 3.
ऐमनियोटिक सैक क्या है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 4.
गर्भ के समय नशीले पदार्थों का सेवन क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
गर्भ के समय दिल क्यों मितलाता है तथा पीठ में दर्द क्यों रहता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
भ्रूण की वृद्धि पर मां-बाप की आयु का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
गर्भ के समय औरत के शरीर पर खुजली क्यों होती है तथा छाले क्यों पड़ जाते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 8.
अण्डे, एम्ब्रियो तथा भ्रूण की अवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 9.
भ्रूण की अवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
R.H. कारक में क्या जानते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 11.
एम्ब्रियो के विकास में कौन-कौन से सहायक अंग काम करते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था से क्या अभिप्राय है? इस दौरान गर्भवती औरत को कौन-सी साधारण तकलीफें हो सकती हैं?
अथवा
गर्भावस्था में कौन-कौन से दुःख होते हैं, विस्तार में बताओ।
अथवा
गर्भवती स्त्री को कौन-से कष्टों से निकलना पड़ता है?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक मां के पेट के अन्दर बच्चे की अवस्था को गर्भावस्था कहते हैं। साधारणतया यह समय 280 दिन का होता है पर कई बार मां को किसी बीमारी या अन्य कारण से यह समय कम होकर 190 दिन भी हो सकता है तथा अधिक-से-अधिक 330 दिन। इस दौरान बच्चे का विकास एक अण्डकोश से लेकर एक पूर्ण मानवीय जीव के रूप में होता है। इस काल का प्रभाव जीवन भर रहता है। गर्भावस्था को तीन भागों में बांटा जा सकता है

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage)
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)।

गर्भवती औरत की तकलीफें-गर्भावस्था की तकलीफें सभी औरतों को नहीं होतीं। कई औरतें गर्भ के पूरे 9 माह पूरे आराम से गुज़ार लेती हैं। पर कई औरतों को पूरे 9 माह कोई-न-कोई तकलीफ रहती है। गर्भ समय होने वाली साधारण तकलीफें निम्नलिखित हैं

  1. जी मितलाना-यह अधिकतर सुबह के समय होता है परन्तु कई बार किसी समय भी हो सकता है जिससे खाने को मन नहीं करता। आम तौर पर यह तकलीफ गर्भ के पहले तीन महीने ही होती है। इस तकलीफ का होना गर्भ की प्राकृतिक अवस्था समझा जाता है। इसको मार्निंग सिकनैस भी कहा जाता है। इसको खुराक तथा आराम से ठीक किया जा सकता है। बिस्तर से उठने से पूर्व हल्की नींबू वाली चाय तथा मीठा बिस्कुट खाने से आराम मिलता है।
  2. कब्ज़-गर्भ के दौरान औरतों को कब्ज़ की शिकायत साधारण हो जाती है। उसकी रोज़ाना खुराक, कसरत तथा शौच जाने की आदत इस तरह हो कि उसको कब्ज़ न हो। साधारणतया पानी अधिक पीने तथा सन्तुलित भोजन लेने से यह शिकायत दूर हो जाती है। नाश्ते में फल तथा रूक्षांश वाले पदार्थ तथा फल विशेषकर सेब खाने से कब्ज़ की शिकायत दूर होती है।
  3. दिल की जलन तथा बदहजमी – गर्भ के महीनों में कई बार मां को दिल की जलन अनुभव होती है जिससे बदहजमी हो जाती है। इसका दिल से कोई सम्बन्ध नहीं पर यह जलन पाचन प्रणाली में होती है। ज्यादा मसालेदार, तली हुई, ज्यादा घी वाली तथा गैस वाली चीज़ों से परहेज़ करने से इस तकलीफ से छुटकारा पाया जा सकता है।
  4. सिर चकराना तथा बेहोश होना-गर्भवती औरत का ज्यादा काम करना, बहुत सुबह उठना, बहुत देर तक खड़े होने से या ज्यादा चलने से सिर चकराने लग पड़ता है तथा खून का दबाव कम हो जाने से कई बार बेहोश भी हो जाती है। यदि सिर चकराने लगे या बेहोशी-सी अनुभव हो तो पैरों तथा शरीर के स्तर से सिर नीचा करके लेट जाएं। घबराहट या सिर चकराने की स्थिति में एक गिलास ठण्डा नींबू पानी पी लेना चाहिए।
  5. पैरों की सूजन – गर्भ के अन्तिम महीनों में कई बार गर्भवती मां के पैर सूज जाते हैं। यह तकलीफ विशेषकर गर्मी के महीनों में होती है। यह एक प्राकृतिक अवस्था समझी जाती है तथा बच्चा पैदा होने के बाद अपने आप पहली अवस्था में आ जाते हैं। आराम करते समय पैर तथा टांगें शरीर से ऊंचे रखने से इस स्थिति में सुधार आता है।
  6. योनि में से खून बहना-यदि कभी गर्भवती स्त्री की योनि में से खून निकलने लग जाए तो उसको अपने पैर ऊँचे करके लेटना चाहिए तथा डॉक्टर की सलाह जल्दी लेनी चाहिए। ज्यादा खून निकलने से कई बार गर्भपात हो जाता है या बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है। जब तक डॉक्टर की सहायता न पहुंचे, कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए।
  7. शरीर पर खारिश होना – कभी-कभी गर्भवती स्त्री को शरीर पर खारिश होने लग जाती है। इसके बारे में डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। सुबह नहाने के पानी में थोड़ा-सा मीठा सोडा पाने से भी लाभ होता है जो योनि के आसपास किसी किस्म की खारिश हो तो डॉक्टर को बताकर इलाज करवाना चाहिए।
  8. चमड़ी पर धब्बे पड़ने – कई औरतों के मुंह पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। गर्भ की अन्तिम स्थिति में कई बार औरतों के बाल ज्यादा खुष्क रहते हैं तथा झड़ने लग पड़ते हैं। इस के बारे में ज्यादा चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। बच्चा पैदा होने के पश्चात् यह अपने आप प्राकृतिक अवस्था में आ जाते हैं। बालों को रोज़ कंघी करनी चाहिए तथा तेल की मालिश सिर तथा बालों के लिये लाभदायक है।
  9. पीठ तथा पट्ठों में दर्द – गर्भ के अन्तिम दिनों में पीठ, पट्ठों तथा टांगों में दर्द होना साधारण बात है। बच्चेदानी के बढ़ने से फेफड़ों तथा टांगों पर ज्यादा भार पड़ता है। बच्चा शरीर में हरकत करके अपनी स्थिति तथा जगह बदलता है तो दर्द होती है। यह दर्द कम एड़ी वाली चप्पल पहनने तथा आराम करने से कम हो जाती है। यदि अन्तिम दिनों में पीठ में इस प्रकार की दर्द हो जैसे मासिक धर्म के दिनों में होती है तो डॉक्टर को जल्दी बुलाना चाहिए। यह बच्चा होने समय की दर्द हो सकती है।
  10. कुछ अन्य तकलीफें- उपरोक्त गर्भ की तकलीफों के अतिरिक्त कुछ अन्य तकलीफें जैसे सिर दर्द, नज़र में कमज़ोरी, मुंह तथा हाथों पर सूजन, बुखार, अचानक शरीर के किसी अंग विशेषकर पीठ, टांगों तथा पेट में दर्द, ज्यादा उल्टियां आना, योनि में से ज़ोर से पानी निकलना तथा रुक-रुक कर सांस आना आदि हो सकती हैं।

इनमें से यदि कोई भी तकलीफ हो तो डॉक्टर की सलाह तुरन्त लेनी चाहिए क्योंकि इनके प्रति लापरवाही करने से कई बार खतरा भी हो सकता है। थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् डॉक्टर को दिखाने से इन तकलीफों को रोका जा सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. गर्भ अवस्था …………………. दिनों की होती है।
  2. ………………. होने वाले बच्चे को मां के शरीर से आहार पहुंचाता है।
  3. नाडु की लम्बाई ………… होती है।
  4. गर्भ अवस्था को ………………. भागों में बांटा गया है।
  5. अण्डे की अवस्था को ………… भी कहा जाता है।

उत्तर-

  1. 280,
  2. प्लेसैंटा,
  3. 10-20 इंच,
  4. तीन,
  5. ओवम अवस्था ।

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II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. गई अवस्था सामान्यत: 280 दिन की होती है।
  2. एम्ब्रियों की अवस्था गर्भ-धारण से दूसरे सप्ताह से शुरु होती है।
  3. जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19-20 ईंच होती है।
  4. नाडु की लम्बाई 10-20 इंच होती है।
  5. जन्म समय बच्चे का भार 4 पौंड होता है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ग़लत।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एम्ब्रियो के सहायक अंग हैं
(क) प्लेसैंटा
(ख) नाडु
(ग) एमनियोटीकसैक
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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प्रश्न 2.
नाडु की लम्बाई होती है
(क) 10-20 ईंच
(ख) 30 ईंच
(ग) 30-40 ईंच
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 10-20 ईंच

प्रश्न 3.
भ्रूण अवस्था का समय है
(क) गर्भ समय से तीसरे महीने से
(ख) पहला सप्ताह
(ग) दूसरे सप्ताह से
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) गर्भ समय से तीसरे महीने से

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गर्भावस्था PSEB 10th Class Home Science Notes

  • गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक की अवस्था को गर्भावस्था कहा जाता है।
  • गर्भावस्था के तीन भाग होते हैं।
  • भ्रूण अवस्था सबसे लम्बी होती है।
  • प्लेसैंटा द्वारा बच्चा मां के शरीर से खुराक प्राप्त करता है।
  • एम्ब्रियो अवस्था में ही सहायक अंगों का ढांचा तैयार हो जाता है।
  • मां के स्वास्थ्य तथा खुराक का बच्चे के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चे की गर्भावस्था के स्वास्थ्य का जीवन भर स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
  • गर्भावस्था में मां द्वारा किए गये नशीले पदार्थों के सेवन का बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • गर्भ धारण से पहले पुरुष तथा औरत को आर०एच० तत्त्व की जांच करवा लेनी चाहिए।

गर्भ धारण से लेकर जन्म तक के समय को गर्भावस्था कहा जाता है। यह समय साधारणतया 280 दिनों का होता है। यह काल बच्चे के विकास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस काल का प्रभाव जीवन भर रहता है। इसी समय दौरान बच्चा एक अण्डकोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।

PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई Notes.

PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हाथ से सिलाई करने के लिए कपड़े के टुकड़े को कैसे पकड़ना चाहिए ?
उत्तर-
हाथ से सिलाई करने के लिए कपड़े के टुकड़े को बराबर करके पकड़ना चाहिए।

प्रश्न 2.
पक्की सिलाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
पक्की सिलाई के लिए तीन सादा टाँकों के पश्चात् एक बखिया टाँका लिया जाता है।

प्रश्न 3.
कपड़े की पूरी और बढ़िया सिलाई के लिए कौन-सा टाँका व्यवहार में लेना चाहिए ?
उत्तर-
कपड़े की पूरी और बढ़िया सिलाई के लिए बखिया टाँका व्यवहार में लेना चाहिए।

PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सादी सिलाई आप कैसे करोगे ?
उत्तर-
यह सिलाई सबसे आसान है। इसका प्रयोग कपड़े के टुकड़ों को स्थाई रूप से जोड़ने के लिए किया जाता है। इसमें टाँके की लम्बाई कपड़े की मोटाई पर निर्भर करती है। पतले कपड़े पर छोटा टाँका लगाया जाता है। यह दाईं ओर से शुरू की जाती है। इसमें पहला और अन्तिम टाँका बखिया का लिया जाता है। सूई को थोड़ा-थोड़ा स्थान छोड़कर कपड़े के ऊपर-नीचे निकाला जाता है। पक्की सिलाई के लिए तीन सादा टाँकों के पश्चात् एक बखिया टाँका लिया जाता है।
PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई 1
चित्र 4.1 सादी सिलाई

PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई

प्रश्न 2.
फ्रैंच सिलाई आप कैसे करोगे ?
उत्तर-
इस सिलाई को दोहरी या चोर सिलाई भी कहते हैं। कपड़ों के सिरों से धागे निकालने से रोकने के लिए सबसे पहले कपड़े के दोनों भागों को उल्टी तरफ एक-दूसरे । के ऊपर दोनों सिरे मिलाकर रखते हैं। सिरों से लगभग 1/8″ की दूरी से सादा टाँका लगाते हैं। अब उन्हीं सिरों को उल्टा कर इस तरह मोड़ देते हैं कि सिलाई किए गए सिरों की पट्टी अन्दर की तरफ़ कपड़ों के बीच में आ जाए और उधड़ रहे धागों के अन्दर छिपा दिया जाता है। धागों को छिपाने के बाद ली गई पट्टी पर उल्टी तरफ़ से हाथ की सादी या बखिया टाँका प्रयोग करके सिलाई की जाती
PSEB 8th Class Home Science Practical हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई 2
चित्र 4.2 फ्रैंच सिलाई
है। यह सिलाई मर्दाना कमीजों पर की जाती है। यह सिलाई बढ़िया, बारीक, महँगे, रेशमी और बनावटी रेशों वाले कपड़ों पर की जाती है।

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हाथ से सादी सिलाई और फ्रैंच सिलाई PSEB 8th Class Home Science Notes

  • हाथ से सिलाई करने के लिए कपड़े के टुकड़े को बराबर करके पकड़ना चाहिए।
  • पक्की सिलाई के लिए तीन सादा टाँकों के पश्चात् एक बखिया टाँका लिया जाता है।
  • प्रायः कपड़े की पूरी और बढ़िया सिलाई के लिए बखिया टाँका व्यवहार में लेना चाहिए।
  • फ्रैंच सिलाई को दोहरी या चोर सिलाई भी कहते हैं।
  • फ्रैंच सिलाई पुरुषों की कमीज़ों पर की जाती है। यह सिलाई बढ़िया, बारीक, महँगे रेशमी और बनावटी रेशों वाले कपड़ों पर की जाती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किस विचारक ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है ?
उत्तर-
एल० क्रोबर (L. Kroeber) ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्रियों तथा अर्थशास्त्रियों द्वारा अध्ययन किये जाने वाले कुछ विषयों के नाम बताइये।
उत्तर-
पूँजीवाद, औद्योगिक क्रान्ति, मज़दूरी के संबंध, विश्वव्यापीकरण इत्यादि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका दोनों समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 3.
मानवविज्ञान के अध्ययन के कोई दो क्षेत्र बताइये।
उत्तर-
भौतिक मानव विज्ञान तथा सांस्कृतिक मानव विज्ञान।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र कहा जाता है। समाजशास्त्र में समूहों, संस्थाओं, संगठन तथा समाज के सदस्यों के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है तथा यह अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से होता है। साधारण शब्दों में समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है। यह मुख्य रूप से उन सामाजिक समूहों का अध्ययन करता है जो राज्य की स्वयं की सत्ता में आते हैं। इसके अध्ययन का मुद्दा शक्ति, राजनीतिक व्यवस्थाएं, राजनीतिक प्रक्रियाएं, सरकार के प्रकार तथा कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, संविधान इत्यादि होते हैं।

प्रश्न 3.
शारीरिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भौतिक मानवविज्ञान, मानवविज्ञान की ही एक शाखा है जो मुख्य रूप से मनुष्य के उद्भव तथा उद्विकास, उनके वितरण तथा उनके प्रजातीय लक्षणों में आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। यह आदि मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करके प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृतियों को समझने का प्रयास करती है।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सांस्कृतिक मानव विज्ञान, मानव विज्ञान की वह शाखा है जो संस्कृति के उद्भव, विकास तथा समय के साथ-साथ उसमें आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। मानवीय समाज की अलग-अलग संस्थाएं किस प्रकार सामने आईं, उनका अध्ययन भी मानव विज्ञान की यह शाखा करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों से संबंधित है। यह हमारे पास मौजूद संसाधनों तथा कम हो रहे संसाधनों को संभाल कर रखने के ढंगों के बारे में बताता है। यह कई क्रियाओं जैसे कि उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा लेन-देन से भी संबंधित है।

प्रश्न 6.
इतिहास किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इतिहास बीत गई घटनाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। यह तारीखों, स्थानों, घटनाओं तथा संघर्ष का अध्ययन है। यह मुख्य रूप से पिछली घटनाओं तथा समाज पर उन घटनाओं के पड़े प्रभावों से संबंधित है। इतिहास को पिछले समय का माइक्रोस्कोप, वर्तमान का राशिफल तथा भविष्य का टैलीस्कोप भी कहते हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान के मध्य कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज तथा सामाजिक संबंधों का विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र संगठित, असंगठित तथा अव्यवस्थित समाजों का अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक तौर पर संगठित समाजों का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषयक्षेत्र बहुत बड़ा अर्थात् असीमित है जबकि राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र बहुत ही सीमित है।
  • समाजशास्त्र एक साधारण विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र मनुष्य का सामाजिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्यों का राजनीतिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के बीच क्या संबंध है ? दो बिन्द बताइये।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीत चुके समय का अध्ययन करता है। यह आरंभ से लेकर अब तक मानवीय समाज का क्रमवार वर्णन करता है। केवल इतिहास पढ़कर ही पता चलता है कि समज, इसकी संस्थाएं, संबंध, रीति रिवाज इत्यादि कैसे उत्पन्न हुए। इसमें विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक संबंधों, परंपराओं, संस्थाओं, रीति रिवाजों, संस्कृति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार समाजशास्त्र वर्तमान समाज की संस्थाओं, अलग-अलग संबंधों इत्यादि का अध्ययन करता है। अगर हम दोनों विज्ञानों का संबंध देखें तो इतिहास प्राचीन समाज के प्रत्येक पक्ष अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र उस समाज के वर्तमान पक्ष का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञानों को अपना अध्ययन करने के लिए एक दूसरे की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि एक-दूसरे की सहायता किए बिना यह अपना कार्य नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य संबंधों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मानव विज्ञान को अपनी संस्कृति व सामाजिक क्रियाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की मदद लेनी पड़ती है, मानव वैज्ञानिकों ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण किया है। इसके आधार पर प्राचीन समाज का अध्ययन अधिक सुचारु रूप से किया जाता है। संस्कृति प्रत्येक समाज का एक हिस्सा होती है। बिना संस्कृति के हम किसी समाज बारे सोच भी नहीं सकते। यह सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानव विज्ञान को सामूहिक स्थिरता को पैदा करने वाले सांस्कृतिक व सामाजिक तत्त्वों के साथ-साथ उन तत्त्वों का अध्ययन भी करता है जो समाज में संघर्ष व विभाजन पैदा करते हैं।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र किस प्रकार अर्थशास्त्र से संबंधित है ? संक्षेप में बताइये।
उत्तर-
किसी भी आर्थिक समस्या का हल करने के लिए हमें सामाजिक तथ्य का भी सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए बेकारी की समस्या के हल के लिए अर्थशास्त्र केवल आर्थिक कारणों का पता लगा सकता है परन्तु सामाजिक पक्ष इसको सुलझाने के बारे में विचार देता है कि बेकारी की समस्या का मुख्य कारण सामाजिक कीमतों की गिरावट है। इस कारण आर्थिक क्रियाएं सामाजिक अन्तक्रियाओं का ही परिणाम होती हैं इनको समझने के लिए अर्थशास्त्र को समाजशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के पश्चात् सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। समाजशास्त्र ने जब सामाजिक सम्बन्धों के टूटने या समाज की व्यक्तिवादी दृष्टि क्यों है का अध्ययन करना होता है तो उसे अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थशास्त्र समाज में पैसे की बढ़ती आवश्यकता इत्यादि जैसे कारणों को बताता है। इसके अतिरिक्त कई सामाजिक बुराइयां जैसे नशा करना भी मुख्य कारण से आर्थिक क्षेत्र से ही जुड़ा हुआ है। इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए समाजशास्त्र को अर्थशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

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प्रश्न 5.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य सम्बन्ध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मनोविज्ञान, समाजशास्त्रियों को आधुनिक उलझे समाज की समस्याओं को सुलझाने में मदद देता है। मनोविज्ञान प्राचीन व्यक्तियों का अध्ययन करके समाजशास्त्री को आधुनिक समाज को समझने में मदद करता है। इस प्रकार समाजशास्त्री को मनो वैज्ञानिक द्वारा एकत्रित की सामग्री पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इस तरह मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को काफी योगदान है।

मनोविज्ञान को व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की ज़रूरत पड़ती है। कोई भी व्यक्ति समाज से बाहर नहीं रह सकता इसी कारण अरस्तु ने भी मनुष्य को एक सामाजिक पशु कहा है। मनोवैज्ञानिक को मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए उसकी सामाजिक स्थितियों का ज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी हो जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत व्यवहार को जानने के लिए समाजशास्त्र की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान में जब भी कानून बनाते हैं तो सामाजिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना पड़ता है, क्योंकि यदि सरकार कोई भी कानून बिना सामाजिक स्वीकृति के बना देती है तो लोग आन्दोलन की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में समाज के विकास में रुकावट पैदा हो जाती है। इस कारण राजनीतिक विज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

किसी भी समाज में बिना नियन्त्रण के विकास नहीं होता। राजनीति विज्ञान द्वारा समाज पर नियन्त्रण बना रहता है। बहु विवाह की प्रथा, सती प्रथा, विधवा विवाह इत्यादि जैसी सामाजिक बुराइयां जो समाज की प्रगति के लिए रुकावट बन गई हैं, को समाप्त करने के लिए राजनीति विज्ञान का सहारा लेना पड़ा है। इस प्रकार समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें राजनीति विज्ञान से मदद लेनी पड़ती है।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. समाजशास्त्र आधुनिक समाज की आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, कला आदि का अध्ययन अपने ही ढंग से करता है अर्थात् यह केवल सामाजिक आकार, सामाजिक संगठन व विघटन का अध्ययन करता है। परन्तु सामाजिक मानव-विज्ञान की विषय-वस्तु किसी एक समाज की राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक संगठन, धर्म, कला आदि प्रत्येक वस्तु का अध्ययन करता है व यह सम्पूर्ण समाज की पूर्णता का अध्ययन करता है।

2. मानव विज्ञान अपने आप को समस्याओं के अध्ययन तक सीमित रखता है। परन्तु समाजशास्त्र भविष्य तक भी पहुंचता है।

3. समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित है व मानव विज्ञान समाज की सम्पूर्णता से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार दोनों समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में ही आते हैं।

4. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मानव विज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है क्योंकि यह समाजशास्त्र का ही एक हिस्सा है।

5. समाजशास्त्र आधुनिक, सभ्य तथा जटिल समाजों का अध्ययन करता है जबकि मानव विज्ञान प्राचीन तथा अनपढ़ समाजों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का वर्णन करता है व अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक हिस्से का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र की इकाई दो या दो से अधिक व्यक्ति होते हैं परन्तु अर्थशास्त्र की इकाई मनुष्य व उसके आर्थिक हिस्से के अध्ययन से है। .
  • समाजशास्त्र में ऐतिहासिक, तुलनात्मक विधियों का प्रयोग होता है जबकि अर्थशास्त्र में निगमन व आगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में भी अन्तर होता है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का चित्र पेश करता है। इस कारण इसका क्षेत्र विशाल होता है परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से का अध्ययन करने तक सीमित होता है। इस कारण इसका विषय क्षेत्र सीमित होता है।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-

  • मनोविज्ञान मनुष्य के मन का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र समूह से संबंधित है।
  • मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत है जबकि समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।
  • मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है।
  • समाजशास्त्र मानवीय व्यवहार के सामाजिक पक्ष का अध्ययन करता है जबकि मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार के मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है।

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. इतिहास में सामाजिक इतिहास की नई शाखा का विकास, समाजशास्त्र के कई संकल्पों, विचारों व विधियों आदि को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल कर लिया है। इस प्रकार इतिहासकार को कई तरह की समस्याओं को सुलझाने में समाजशास्त्र से मदद मिलती है।

2. समाजशास्त्र व इतिहास में अलग-अलग विधियों को इस्तेमाल किया जाता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है तो वहां इतिहास में वर्णनात्मक विधि का।

3. दोनों विज्ञान की विश्लेषण की इकाइयों में भिन्नता है। समाजशास्त्र की विश्लेषण की इकाई मानवीय समूह है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र कैसे अन्य सामाजिक विज्ञानों से भिन्न है ? किसी दो पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
व्यक्ति का जीवन कई दिशाओं से सम्बन्धित है। जब समाजशास्त्र को किसी भी समाज का अध्ययन करना हो तो उसको अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान इत्यादि से भी सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थ वैज्ञानिक उत्पादन, वितरण, उपभोग इत्यादि सम्बन्धी बताता है, इतिहास हमें प्राचीन घटनाओं का ज्ञान देता है, इत्यादि। समाजशास्त्र इनकी सहायता से विस्तारपूर्वक अध्ययन योग्य हो जाती है। इसलिए इसे सभी सामाजिक विज्ञानों की मां भी कहते इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र के विषय प्रति अलग-अलग समाजशास्त्रियों की अलग-अलग धारणाएं हैं, जैसे कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार यह एक स्वतन्त्र विज्ञान है और दूसरे विद्वानों के अनुसार यह शेष सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण है। हरबर्ट स्पैंसर जैसे समाजशास्त्रियों ने यह बताया है कि समाजशास्त्र संपूर्ण तौर पर बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें सभी सामाजिक विज्ञानों के विषय वस्तु को अध्ययन हेतु प्रयोग किया जाता है। मैकाइवर ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ में इस बात का जिक्र किया है कि हम इन सभी सामाजिक विज्ञानों को बिल्कुल एक-दूसरे से अलग करके अध्ययन नहीं कर सकते। इन विद्वानों के अनुसार, समाजशास्त्र की अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं अपितु यह शेष विज्ञानों का मिश्रण है।

कई समाजशास्त्री इसको एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं। जैसे गिडिंग्स, वार्ड कहते हैं कि समाज शास्त्र को अपने विषय क्षेत्र को समझने हेतु समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होना पड़ता है परन्तु जब यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है तो इसे बाकी सामाजिक विज्ञानों के विषय-क्षेत्र का अध्ययन करने की आवश्यकता पड़ती है।

बार्स (Barmes) के अनुसार, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक विज्ञानों की रखैल है और न ही दासी अपितु उनकी बहन है।”

इस तरह हम देखते हैं कि दूसरा कोई भी सामाजिक विज्ञान सामाजिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, सम्बन्धों इत्यादि का अध्ययन नहीं करता केवल समाजशास्त्र इनका अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का सम्पूर्ण अध्ययन करता है। इसकी अपनी विषय-वस्तु है। समाज के जिन भागों का अध्ययन समाज-विज्ञान करता है उनका अध्ययन दूसरे सामाजिक विज्ञान नहीं करते।

उपरोक्त वर्णन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि यदि समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के लिए दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेता है तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह सहायता लेनी ही जानता है पर देनी नहीं। दे तो वो सकता है यदि हम इस बात को स्वीकार लें कि इसकी अपनी विषय-वस्तु भी है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि किसी भी सामाजिक समस्या का हल ढूंढ़ना हो तो अकेले किसी भी सामाजिक विज्ञान के लिए सम्भव नहीं कि वह ढूंढ़ सके। यदि समस्या आर्थिक क्षेत्र से सम्बन्धित है तो केवल अर्थशास्त्री ही नहीं उस समस्या का हल ढूंढ़ सकते, अपितु दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता भी हमें लेनी पड़ती है। इसीलिए यह सभी सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं परन्तु इनकी विषय-वस्तु अलग भी है।

(i) समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology Economics)-

समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

(ii) समाजशास्त्र तथा राजनीतिक विज्ञान में अंतर (Difference between Sociology and Political Science)-

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।” __ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था। जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और इतिहास में संबंधों पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इतिहास और समाजशास्त्र दोनों मानव समाज का अध्ययन करते हैं। इतिहास आदिकाल से लेकर अब तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है और उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है। समाजशास्त्र और इतिहास दोनों मानवीय समाज का अध्ययन करते हैं। वास्तविकता में समाज शास्त्र की उत्पत्ति इतिहास से हुई है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधियों का प्रयोग किया जाता है जो इतिहास से ली गई हैं।

इतिहास मानव समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह आदिकाल से लेकर अब तक के मानवीय समाज का कालबद्ध वर्णन तैयार करता है। इतिहास केवल ‘क्या था’ का ही वर्णन नहीं करता अपितु ‘कैसे हुआ’ का भी विश्लेषण करता है। इसलिए इतिहास पढ़ने से हमें पता चलता है कि समाज किस तरह पैदा हुआ, इसमें सम्बन्ध, संस्थाएं, रीति-रिवाज कैसे आए। इस प्रकार इतिहास हमारे भूतकाल से सम्बन्धित है कि भूतकाल में क्याक्या हुआ, क्यों और कैसे हुआ।

इसके विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान के मानवीय समाज का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, संस्थाओं आदि का अध्ययन होता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में मानवीय संस्कृति, संस्कृति के अलग-अलग स्वरूपों का भी अध्ययन किया जाता है। इस तरह समाजशास्त्र वर्तमान समाज के अलग-अलग सम्बन्धों, संस्थाओं इत्यादि का अध्ययन करता है।

दोनों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इतिहास बीते हुए समाज के प्रत्येक पहलू का अध्ययन करता है और समाजशास्त्र उसी कार्य को वर्तमान में आगे बढ़ाते हैं।

इतिहास का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of History to Sociology)- समाजशास्त्र इतिहास द्वारा दी गई सामग्री का प्रयोग करता है। मानवीय समाज पुराने समय से चले आ रहे सामाजिक सम्बन्धों का जाल है जिसे समझने के लिए किसी-न-किसी समय पूर्व-काल में जाना पड़ता है। जीवन की उत्पत्ति, ढंग, सारा कुछ अतीत का भाग है। इनका अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्री को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है क्योंकि इतिहास से ही सामाजिक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए वर्तमान को समझने के लिए इतिहास की आवश्यकता पड़ती है।

समाज शास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग अलग-अलग संस्थाओं की तुलना करने के लिए किया जाता है। इस तरह करने के लिए ऐतिहासिक सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। दुर्थीम द्वारा किए गए ‘सामाजिक तथ्य’ में भी इतिहास द्वारा दी गई सूचनाओं का प्रयोग किया गया है। वास्तविकता में तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने वाले समाजशास्त्रियों को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है।

अलग-अलग सामाजिक संस्थाएं एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं। इन प्रभावों के कारण ही इनमें परिवर्तन आते रहते हैं। इन परिवर्तनों को देखने के लिए दूसरी संस्थाओं के प्रभाव को देखना आवश्यक हो जाता है। ऐतिहासिक सामग्री इन सबको समझने में सहायता करती है।

समाजशास्त्र का इतिहास को योगदान (Contribution of Sociology to History)- इतिहास भी समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है। आधुनिक इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया है। इसलिए सामाजिक इतिहास नाम की नयी शाखा का निर्माण हुआ है। सामाजिक इतिहास किसी राजा का नहीं, अपितु किसी संस्था के क्रमिक विकास अथवा किसी कारण से हुए परिवर्तनों का अध्ययन करता है। इस प्रकार इतिहास जो चीज़ पहले फिलॉसफी से उधार लेता था, अब वह समाजशास्त्र से उधार लेता

अन्तर (Differences) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference of point of view)-दोनों एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोणों से अध्ययन करते हैं। इतिहास युद्ध का वर्णन करता है लेकिन समाजशास्त्र उन घटनाओं का अध्ययन करता है जो युद्ध का कारण बनीं। समाजशास्त्री उन घटनाओं का सामाजिक ढंग के साथ अध्ययन करता है। इस तरह इतिहास पुराने ज़माने पर बल देता है और समाजशास्त्र वर्तमान के ऊपर बल देता है।

2. विषय क्षेत्र में अन्तर (Difference of subject matter)-समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र इतिहास के विषय क्षेत्र से ज्यादा व्यापक है क्योंकि इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का या नियमों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं का या नियमों से अध्ययन करता है। इतिहास सिर्फ यह बताता है कि कोई घटना क्यों हुई, पर समाजशास्त्र अलग-अलग घटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के बीच रुचि रखता है और फिर घटनाओं के कारण बताने की कोशिश करता है।

3. विधियों में अन्तर (Difference of methods) समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है। इतिहास किसी घटना का वर्णन करता है और उसके विकास के अलग-अलग पड़ावों (stages) का अध्ययन करता है, जिसके लिए वर्णन विधि ही उचित है। इसके विपरीत समाजशास्त्र किसी घटना के अलग-अलग देशों और अलग-अलग समय में मिलने वाले स्वरूपों का अध्ययन करके उस घटना में होने वाले परिवर्तनों के नियमों को स्थापित करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इतिहास और समाजशास्त्र की विधियों में भी काफ़ी अन्तर पाया जाता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-समाजशास्त्र के विश्लेषण की इकाई मानवीय समाज और समूह है जबकि इतिहास मानव के कारनामों या कार्यों के अध्ययन पर बल देता है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक वैज्ञानिकों के लिए समाजशास्त्रीय समझ क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
राजनीतिक विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाजशास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर दिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की प्रणाली और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

दूसरी ओर, समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अगल-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीतिक विज्ञान उसी राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिज्ञ कैसे कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। यदि राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने के हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन ‘ करने के लिए समाज शास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 4.
मनोविज्ञान समाजशास्त्र को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान, दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है। यह दोनों ही विज्ञान मानव के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। क्रैच एंड क्रैचफील्ड ने अपनी पुस्तक ‘सोशल साईकोलोजी’ में बताया “सामाजिक मनोविज्ञान समाज में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।
संक्षेप में हम देखते हैं कि समाजशास्त्र का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करना है और मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के मानसिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। अब हम सामाजिक मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ देखेंगे।

सामाजिक मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Social Psychology)-सबसे पहली बात तो इस सम्बन्ध में यह कही जाती है कि यह व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करता है अर्थात् समाज का जो प्रभाव उसके मानसिक भाग पर पड़ता है, उसका अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन को समझने के लिए, वह उसकी सामाजिक परिस्थितियों को नहीं देखता अपितु तन्तु ग्रन्थी प्रणाली के आधार पर करता है।

मानसिक प्रक्रियाओं जिनका अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान करता है; यह है मन, प्रतिक्रिया, शिक्षा, प्यार, नफरत, भावनाएं इत्यादि। मनोविज्ञान इन सामाजिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।

हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक प्रकटन के वैज्ञानिक अध्ययन का आधार मनोवैज्ञानिक है और इनका हम सीधे तौर पर ही निरीक्षण कर सकते हैं। अतः इस तरह हम यह विश्लेषण करते हैं कि ये दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। अब हम इस सम्बन्धी चर्चा करेंगे कि इन दोनों विज्ञानों की आपस में एक-दूसरे को देन है और इन दोनों में पाए गए नज़दीकी सम्बन्धों के आधार पर मनोविज्ञान की नई शाखा का जन्म हुआ, जो है सामाजिक मनोविज्ञान।

मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Psychology to Sociology) समाज शास्त्र में हम सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। सामाजिक सम्बन्धों को समझने हेतु व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है क्योंकि मानव की मानसिक और शारीरिक आवश्यकताएं दूसरे व्यक्ति के साथ सम्बन्धों को प्रभावित करती हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति मानव की इन मानसिक प्रक्रियाओं, विचारों, मनोभावों इत्यादि का सूक्ष्म अध्ययन करती है। समाजशास्त्र की व्यक्ति को या समाज के व्यवहारों को समझने हेतु मनोविज्ञान की आवश्यकता ज़रूर पड़ती है। ऐसा करने के लिए मनोविज्ञान की शाखा सामाजिक मनोविज्ञान सहायक होती है जो मनुष्य को सामाजिक स्थितियों में रखकर उनके अनुभवों, व्यवहारों और उनके व्यक्तित्व का अध्ययन करती है।

समाजशास्त्री यह भी कहते हैं कि समाज में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक आधार बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज को समझने के लिए व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है और यह काम मनोविज्ञान का है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
पुस्तक Das Capital के लेखक कौन हैं ?
(A) वैबर
(B) दुर्थीम
(C) मार्क्स
(D) स्पैंसर।
उत्तर-
(C) मार्क्स।

प्रश्न 2.
इनमें से किसके साथ अर्थशास्त्र का सीधा सम्बन्ध नहीं है ?
(A) उपभोग
(B) धार्मिक क्रियाएं
(C) उत्पादन
(D) वितरण।
उत्तर-
(B) धार्मिक क्रियाएं।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र का इतिहास को क्या योगदान है ?
(A) इतिहास समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है
(B) इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने क्षेत्र में शामिल किया है
(C) सामाजिक इतिहास किसी संस्था के क्रमिक विकास तथा परिवर्तनों का अध्ययन करता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
यह शब्द किसके हैं ? “समाज व्यक्ति का विस्तृत रूप है।” .
(A) मैकाइवर
(B) अरस्तु
(C) वैबर
(D) दुर्थीम।
उत्तर-
(B) अरस्तु।

III. सही/गलत (True/False) :

1. तारा विज्ञान प्राकृतिक विज्ञान है।
2. अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझाने में समाजशास्त्र की सहायता लेता है।
3. अरस्तु को राजनीति विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
4. विज्ञान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
5. राजनीति विज्ञान का दृष्टिकोण सामाजिक होता है।
6. अर्थशास्त्र में आगमन व निगमन विधियों का प्रयोग होता है।
7. अर्थशास्त्र उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से संबंधित होता है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Word/line Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास…………..की तरफ देखता है।
उत्तर-
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास भूत की तरफ देखता है।

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प्रश्न 2.
मानवशास्त्र …………से सम्बन्ध रखता है।
उत्तर-
मानवशास्त्र मानव के विकास एवं वृद्धि से सम्बन्ध रखता है।

प्रश्न 3.
मानवशास्त्र का कौन-सा हिस्सा समाजशास्त्र से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
मानवशास्त्र का हिस्सा, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानव विज्ञान समाजशास्त्र से सम्बन्धित है।

प्रश्न 4.
समाज किसके साथ बनता है ?
उत्तर-
समाज व्यक्तियों के साथ बनता है।

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प्रश्न 5.
इतिहास किसके अध्ययन पर बल देता है ?
उत्तर-
इतिहास मनुष्य के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विज्ञान की कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
रसायन विज्ञान, पौधा विज्ञान, भौतिक विज्ञान इत्यादि सभी प्राकृतिक विज्ञान हैं।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र को क्या समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है।

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प्रश्न 8.
इतिहास किस प्रकार का विज्ञान है ?
उत्तर-
इतिहास मूर्त विज्ञान है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र किस चीज़ को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

प्रश्न 10.
इतिहास में कौन-सी विधि का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र किससे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र, उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से सम्बन्धित है।

प्रश्न 12.
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के क्या होते हैं ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के अनुपूरक तथा प्रतिपूरक होते हैं।

प्रश्न 13.
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता………….को माना जाता है।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता अरस्तु को माना जाता है।

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प्रश्न 14.
किताब ‘अर्थशास्त्र’ का लेखक………था।
उत्तर-
किताब अर्थशास्त्र का लेखक कौटिल्य था।

प्रश्न 15.
राजनीति शास्त्र किस प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करता है ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र केवल राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
शास्त्र को हम कितने भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
शास्त्र को हम दो भागों में बांट सकते हैं-प्राकृतिक शास्त्र तथा सामाजिक शास्त्र।

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प्रश्न 17.
प्राकृतिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
प्राकृतिक शास्त्र वे शास्त्र होते हैं, जो जीव वैज्ञानिक घटनाओं से तथा प्राकृतिक घटनाओं से सम्बन्धित होते हैं जैसे रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, वनस्पति शास्त्र इत्यादि।

प्रश्न 18.
सामाजिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
सामाजिक शास्त्र में वे शास्त्र शामिल किए जाते हैं जो मानवीय समाज से सम्बन्धित घटनाओं, प्रक्रियाओं, विधियों इत्यादि से सम्बन्धित हों जैसे अर्थशास्त्र, मनोशास्त्र, मानवशास्त्र।

प्रश्न 19.
समाजशास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित किस नई शाखा का विकास हुआ है?
उत्तर-
समाज शास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित नई शाखा ऐतिहासिक समाजशास्त्र का निर्माण हुआ है।

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प्रश्न 20.
इतिहास क्या होता है?
उत्तर-
इतिहास आदि काल से लेकर आज तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है तथा उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 21.
बार्स ने समाजशास्त्र और सामाजिक शास्त्रों के सन्दर्भ में क्या शब्द कहे थे?
उत्तर-
बार्स ने कहा था कि, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक शास्त्रों की रखैल है तथा न ही दासी बल्कि उनकी बहन है।”

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विज्ञानों का विभाजन।
उत्तर-
विज्ञान में हम सिद्धांतों तथा विधियों को ढूंढ़ते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है तथा वह हैं:(i) प्राकृतिक विज्ञान (ii) सामाजिक विज्ञान।

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प्रश्न 2.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह विज्ञान होता है जिसका संबंध प्रकृति तथा जैविक घटना से होता है, जिनका संबंध, तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि को ढूंढ़ने का प्रयास करता है। जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान।

प्रश्न 3.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज से संबंधित तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जैसे अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मानव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक जीवन की विचारधारा को समझने तथा उसे समझाने का प्रयास करता है।

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प्रश्न 5.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण तथा उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए, इन सबका अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
शब्द समाज शास्त्र अंग्रेजी भाषा के शब्द Sociology का हिन्दी रूपांतर है। Socio का अर्थ है समाज तथा Logos का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन व्यवस्था इत्यादि से संबंधित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके कार्यों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में प्रयोग होने वाली विधियाँ।
उत्तर-
समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि (Historical Method), तुलनात्मक विधि (Comparative method) का प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र में आगमन विधि तथा निगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।

लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह होता है जिसका सम्बन्ध प्राकृतिक व जैविक घटनाओं से होता है जिनसे यह सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों, इत्यादि को ढूंढने का यत्न करते हैं जैसे भौतिक विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, तारा विज्ञान, जीव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 2.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान वह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज का सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों आदि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन की वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। जैसे अर्थ विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, मानव विज्ञान, समाजशास्त्र इत्यादि।

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प्रश्न 3.
समाजशास्त्र बाकी सामाजिक विज्ञान से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान में विषय क्षेत्र का अंतर नहीं बल्कि दृष्टिकोण में ही केवल अंतर होता है परन्तु सभी सामाजिक विज्ञान केवल मानवीय समाज का ही अध्ययन करते हैं जिस कारण हम समाजशास्त्र को इन बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं कर सकते। जैसे अर्थशास्त्र, आर्थिक समस्याओं से चाहे सम्बन्धित है परन्तु ये समस्याएं समाज का ही एक हिस्सा है। किसी भी समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए बाकी विज्ञानों का भी सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के भूतकाल का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक ज़िन्दगी की विचारधारा को समझने का यत्न करता है। इस प्रकार यह “क्या था” व “किस से हुआ” दोनों अवस्थाओं का विश्लेषण करता है। इस प्रकार इतिहास के द्वारा हमें मानवीय इतिहास के सामाजिक संगठन, रीति-रिवाजों, परम्पराओं इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र व इतिहास कैसे एक-दूसरे से अलग होते हैं ?
उत्तर-
ये दोनों सामाजिक विज्ञान एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं में नियमों की खोज करता है व इनके अन्तर्सम्बन्धों का वर्णन करता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि व इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र मानवीय समूह का विश्लेषण करता है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर जोर देता है। इतिहास का सम्बन्ध भूतकाल की घटनाओं से है जबकि समाजशास्त्र समाज से ही अपना सम्बन्ध रखता है।

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प्रश्न 6.
समाजशास्त्र इतिहास पर आधारित।
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए प्राचीन समाज का सहारा लेना पड़ता है। इतिहास से ही इसके प्राचीन समाज के सामाजिक तत्त्व प्राप्त होते हैं। तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने के लिए भी इतिहास से प्राप्त सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जिस कारण समाजशास्त्र को इस पर आधारित होना पड़ता है। अलगअलग सामाजिक संस्थाएं जिनमें एक-दूसरे के प्रभाव के कारण परिवर्तन होता है तो इस परिवर्तन को समझने के लिए ऐतिहासिक सामग्री ही हमारी मदद करती है। ऐतिहासिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक ऐसी शाखा है जिसके द्वारा सामाजिक परिस्थितियों को समझा जा सकता है।

प्रश्न 7.
मानव विज्ञान।
उत्तर-
मानव विज्ञान का अंग्रेजी रूपान्तर दो यूनानी शब्दों (Two Greeks Words) से मिलकर बना है Anthropo का अर्थ है मनुष्य व logy का अर्थ है विज्ञान अर्थात् मनुष्य का विज्ञान। इस विज्ञान का विषय बहुत विशाल है जिस कारण हम इसे तीन भागों में बांटते हैं

  • शारीरिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-इसमें मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, जिसमें मनुष्य की उत्पत्ति, विकास व नस्लों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • पूर्व ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-historic Archedogy)-इस शाखा में मनुष्य के प्राथमिक इतिहास की खोज की जाती है जिस के लिए हमें कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता जैसे खण्डहरों की खुदाई आदि करके।
  • सामाजिक व सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social And Cultural Anthropology)-इसमें सम्पूर्ण मानवीय समाज का पूरा अध्ययन किया जाता है। सामाजिक मानव विज्ञान में आदिम (Primitive) समाज का अध्ययन किया जाता है अर्थात् गांव, कबीले, इत्यादि।

प्रश्न 8.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाओं को सामाजिक संस्थाओं से अलग नहीं किया जा सकता। आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण व उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए इसका वर्णन किया जाता है। अर्थ विज्ञान, आर्थिक सम्बन्धों व उनसे पैदा होने वाले संगठनों, संस्थाओं व समूहों का अध्ययन करता है। आर्थिक घटनाएं सामाजिक ज़रूरतों द्वारा ही निर्धारित होती हैं।

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प्रश्न 9.
मनोविज्ञान।
उत्तर-
मनोविज्ञान व्यक्तिगत का अध्ययन करता है व यह व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं व व्यवहार को समझने के लिए तन्तु ग्रन्थी प्रणाली द्वारा ही करता है। इसमें यादादश्त बुद्धि, योग्यताएं, हमदर्दी इत्यादि आती है। इसमे मानव से सम्बन्धित तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति होता है। इसी कारण यह व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

प्रश्न 10.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन प्रणाली आदि से सम्बन्धित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके देश का अध्ययन करता है। इसके द्वारा राजनीतिक शक्ति व सत्ता को व्यक्त किया जाता है।

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V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित करें।
उत्तर-
समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में क्या सम्बन्ध है ? अन्तरों सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। . दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था।

जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान अलग होते हुए भी एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
समाजशास्त्र की उत्पत्ति का स्रोत इतिहास है जबकि मानव विज्ञान की उत्पत्ति का स्रोत जीव-विज्ञान है। यदि इन दोनों की विधियों, विषय-क्षेत्र को देखें तो यह अलग-अलग हैं, पर इन दोनों का सम्बन्ध बहुत गहरा है। इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। यह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए एक-दूसरे से सहायता लेते रहते हैं। इन दोनों को समझने हेतु इन दोनों की विषय-सामग्री की ओर देखें तो इन दोनों के रिश्तों को समझने में आसानी होगी।

समाजशास्त्र आधुनिक समाज का अध्ययन है। समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक समूहों और उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में संस्कृति के अलग-अलग भागों, समाज में मिलने वाली कई प्रकार की संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

मानव विज्ञान (Anthropology) दो यूनानी शब्दों को मिलाकर बना है। Anthropos, जिसका अर्थ है ‘मनुष्य’ और ‘Logies’ जिसका अर्थ है ‘विज्ञान’। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ है ‘मानव विज्ञान’। मानव विज्ञान मनुष्य का विज्ञान है। मानव विज्ञान मनुष्य विज्ञान, मनुष्य की उत्पत्ति और विकास के भौतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक . . दृष्टिकोण का अध्ययन है।।

मानव विज्ञान का विषय और क्षेत्र काफ़ी विशाल है। इसलिए इसे तीन भागों में बांटा गया है।
1. भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)- मानव विज्ञान की यह शाखा मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करती है जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति और विकास हुआ।

2. पूर्व-ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-Historical Archeology)-इसमें मनुष्य के इतिहास की खोज करना है जिनके बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है। पुराने खण्डहरों की खुदाई करके, हड्डियों, पुरानी वस्तुओं से उस समय के बारे में पता लगाया जाता है। इन भौतिक सबूतों के आधार पर मनुष्य की उत्पत्ति, उसके विकास, संस्कृति इत्यादि के ऊपर रोशनी डाली जाती है। इस प्रकार यह पुराने समय के मनुष्य की संस्कृति को ढूंढ़ता

3. सामाजिक और सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social and Cultural Anthropology)- यह मानवीय समाज का पूर्णतया से अध्ययन करता है। यह एक समाज की आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक व्याख्या, धर्म, कला, विश्वासों इत्यादि प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करता है। इसमें प्राचीन और आधुनिक समाज में उनके समकालीन ढांचों, संस्थाओं और व्यवहारों का विश्लेषणात्मक और तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

सामाजिक मानव विज्ञान वाली मानव विज्ञान की शाखा समाजशास्त्र से काफ़ी सम्बन्धित है जबकि समाज शास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, संस्थाओं, समूहों और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इन दोनों विज्ञानों के उद्देश्य एक-दूसरे से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। इसीलिए यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

उपरोक्त लिखे विवरण से स्पष्ट है कि मानव विज्ञान में आदिम समाज का अध्ययन किया जाता है। आदिम समाज का अर्थ उन समूहों से है जो छोटे-से भौगोलिक क्षेत्र में, कम संख्या में रहते थे और जिनका बाह्य दुनिया से कम सम्बन्ध था और जो साधारण तकनीक का प्रयोग करते हैं। संक्षेप में, सामाजिक मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज का पूर्णता से अध्ययन करता है।

मानव विज्ञान की समाज शास्त्र को देन (Contribution of Anthropology to Sociology)- समाज शास्त्र मानव विज्ञान के अध्ययन का काफ़ी लाभ उठाता है। भौतिक मानव विज्ञान जो समूहों और नस्लों का ज्ञान उपलब्ध करवाता है, उसे समाजशास्त्री अलग-अलग संस्थाओं और व्यवस्थाओं को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्रियों ने सामाजिक स्तरीकरण को प्रजातीय आधार पर समझने की कोशिश की है। इसके अतिरिक्त मानव विज्ञान यह भी बताता है कि आदिम समाज की संस्थाएं, व्यवस्था और संगठन बहुत सरल थे जिसकी सहायता से समाजशास्त्र आज के समाज को समझ सका है। मानव विज्ञान ने धर्म की उत्पत्ति की सामग्री समाजशास्त्र को दी है। इस प्रकार आदिम समाज का अध्ययन जो कि मानव विज्ञान का विषय वस्तु है। उसमें समाज शास्त्र की दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई है। वास्तविकता में समाजशास्त्र की प्रमुख शाखा सामाजिक उत्पत्ति और कुछ नहीं, अपितु सामाजिक मानव विज्ञान है। समाजशास्त्र ने तो कुछ संकल्प, जैसे-सांस्कृतिक क्षेत्र, सांस्कृतिक गुण, सांस्कृतिक जटिलता, सांस्कृतिक पीड़ा इत्यादि मानव विज्ञान से उधार लिये हैं और इनका प्रयोग समाजशास्त्रियों के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध हुआ है। तभी तो समाजशास्त्र में एक नयी शाखा सांस्कृतिक समाजशास्त्र का विकास हुआ है।

समाजशास्त्र का मानव विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Anthropology)केवल समाजशास्त्र ही नहीं, अपितु मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता लेता है। मानव विज्ञान को संस्कृति की उत्पत्ति और विकास के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों को समझना पड़ता है जो समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। संस्कृति के बिना कोई समाज नहीं हो सकता और इसकी उत्पत्ति अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों पर निर्भर करती है।

समाजशास्त्र का एक दूसरा योगदान मानव विज्ञान को यह है कि मानव विज्ञान ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण करके आदिम समाज का अध्ययन किया है, जिनसे मानव विज्ञान को अपनी विषय सामग्री समझने में काफ़ी सहायता मिली है।

मानव विज्ञान ने समाजशास्त्र के कुछ विषयों, संकल्पों और विधियों को अपने क्षेत्र में शामिल करके अपनी विषय सामग्री को सम्बोधित किया है। मानव विज्ञान ने सामूहिक एकता को उत्पन्न करने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक तथ्यों के साथ-साथ और तथ्यों का भी अध्ययन किया है जिनके कारण संघर्ष की आदत मानव में आई।

समाजशास्त्र और मानव विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Anthropology)-
1. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान की विषय-वस्तु में भी अन्तर डाला गया है। समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों, संगठन, संरचना, सामाजिक व्यवस्था इत्यादि का अध्ययन करता है और मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज के अध्ययन से अपने आपको सम्बन्धित रखता है अर्थात् कि इसमें समाज की धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि भाव के हर पक्ष का अध्ययन करता है। इसीलिए इसे सामाजिक विरासत का विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ही संस्कृति संभाल कर रखी जाती है।

2. मानव विज्ञान उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है, जो छोटी और स्थिर होती हैं। परन्तु समाजशास्त्र उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है जो विशाल और परिवर्तनशील होती हैं। इस आधार पर हम देखते हैं कि मानव विज्ञान तेजी से विकसित होता है और समाजशास्त्र से बढ़िया समझा जाता है।

3. मानव विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों अलग-अलग विज्ञान हैं। मानव विज्ञान प्राचीन समय में पाए गए मानव और उसकी संस्कृति का अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इसी विषय वस्तु को आधुनिक व्यवस्था से सम्बन्धित रखकर अध्ययन करता है।
इस प्रकार समाजशास्त्र भविष्य तक भी ले जाता है परन्तु दूसरी ओर मानव विज्ञान समस्याओं के अध्ययन तक अपने आपको सीमित रखता है।

4. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान दोनों में अध्ययन की अलग-अलग विधियां प्रयोग की जाती हैं। मानव विज्ञान में अवलोकन, आगमन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र सर्वेक्षण, प्रश्नावली, अनुसूची, आंकड़ों आदि पर आधारित है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को क्या योगदान है ? दोनों विज्ञानों के बीच अंतरों का भी वर्णन करें।
उत्तर-
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Psychology)मनोविज्ञान को मानव के व्यवहार को समझने हेतु समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मनुष्य के व्यवहार को समाज की संस्कृति प्रभावित करती है और संस्कृति सम्बन्धी आवश्यक जानकारी समाजशास्त्र देता है।

मानव एक सामाजिक प्राणी है। पशुओं के स्थान पर मानव अपने मां-बाप और समाज पर अधिक निर्भर करता है। समाज में रहते हुए उसमें समाजीकरण की प्रक्रिया के कारण कई गुणों का विकास होता है। प्रत्येक समाज में रहने के कुछ नियम होते हैं। यह नियम व्यक्ति समाज में रहकर सीख सकता है और इन नियमों का पीढी दर पीढी विकास होता है और परिवर्तन भी होता रहता है। प्रत्येक संस्कृति एक व्यक्तित्व बनाती है और यह व्यक्तित्व बचपन के सांस्कृतिक अनुभवों का परिणाम होता है। मनोविज्ञान के लिए मानव के व्यवहार और मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक है कि वह उनका सामाजिक वातावरण में ज्ञान प्राप्त करे जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है। यह सब विषय समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। इसीलिए इस प्रकार के ज्ञान के लिए मनोविज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञान एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर ही नहीं, अपितु एक-दूसरे के पूरक भी हैं। दोनों में से कोई भी एक विज्ञान दूसरे के क्षेत्र में जाए बिना अपने विशेष विषय का पूर्ण तौर पर अध्ययन नहीं कर सकता। जिस प्रकार मनोविज्ञान को मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं की वास्तविकता को समझने के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ता है, उसी प्रकार सामाजिक व्यवहारों, सम्बन्धों और अन्तक्रियाओं सम्बन्धी सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों पर निर्भर होना पड़ता है।

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Psychology) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference in Outlook)-मनोविज्ञान के अनुसार मानव के व्यवहार का आधार । मन और चेतना है जबकि समाजशास्त्र के अनुसार सामाजिक आधार मानव का समूह में रहने का स्वभाव है। इस प्रकार मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत और समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।

2. अध्ययन विधियों में अन्तर (Difference in Methods)—मनोविज्ञान में अधिकतर प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है, जिसका कि समाजशास्त्र में काफ़ी कम प्रयोग होता है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि, तुलनात्मक विधि, संगठनात्मक कार्यात्मक विधि इत्यादि का अधिकतर प्रयोग होता है।

3. विषय-सामग्री में अन्तर (Difference in subject matter)-मनोविज्ञान एक ही व्यक्ति की अलगअलग क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र अनेकों व्यक्तियों में होने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-मनोविज्ञान में हमेशा एक व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में कम-से-कम दो व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।

इस प्रकार उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञानों में कोई भी पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं है। दोनों एक-दूसरे की सहायता कर रहे हैं। एक-दूसरे के बिना यह नहीं रह सकते। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए इनको एकदूसरे की सहायता करनी और लेनी ही पड़ती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कई पक्ष होते हैं जैसे कि आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक इत्यादि। इस प्रकार समाजशास्त्र को समाज के अलग-अलग पक्षों का अध्ययन करने के लिए अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेनी पड़ती है।
  • समाजशास्त्र चाहे अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों से कुछ सामग्री उधार लेता है परन्तु वह उन्हें भी अपनी सामग्री प्रयोग करने के लिए देता है। इस प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञान अपने अध्ययन के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है तथाराजनीति विज्ञान समाज के एक पक्ष का विज्ञान है जिसमें राज्य तथा सरकार प्रमुख हैं। दोनों विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर करते हैं जिस कारण इनमें बहुत ही गहरा रिश्ता है। परन्तु इनमें बहुत से अंतर भी पाए जाते हैं।
  • इतिहास अतीत की घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र वर्तमान घटनाओं का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञान मानवीय समाज का अध्ययन अलग-अलग पक्ष से करते हैं। इतिहास की जानकारी समाजशास्त्र प्रयोग करता है तथा समाजशास्त्र की सामग्री इतिहासकार प्रयोग करते हैं। इस कारण यह एक दूसरे पर निर्भर करते हैं परन्तु इनमें काफी अंतर भी होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में भी काफ़ी गहरा रिश्ता है क्योंकि आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। हमारे सामाजिक संबंध आर्थिक संबंधों से निश्चित रूप से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सहायता लेते तथा देते भी हैं।
  • समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से भी काफी गहरा रिश्ता है। मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है तथा मनुष्य का अध्ययन आवश्यक है। इस प्रकार दोनों विज्ञान अपने अध्ययनों में एक दूसरे की सहायता लेते हैं तथा एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  • मानव विज्ञान से भी समाजशास्त्र का गहरा रिश्ता है। मानव विज्ञान पुरातन समाज का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र वर्तमान समाज का। दोनों विज्ञानों को एल० क्रोबर (Kroeber) ने जुड़वा बहनों (Twin Sisters) का नाम दिया है। मानव वैज्ञानिक अध्ययनों से समाजशास्त्री काफी सामग्री उधार लेते हैं। इस प्रकार मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता पुरातन मानवीय समाज को समझने के लिए करता है।
  • सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Cultural Anthropology)—मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के बीच सांस्कृतिक अंतरों का अध्ययन करती हैं।
  • पुरातत्त्व (Archaeology)—यह पुरातन समय की मानवीय क्रियाओं का ज़मीन के अंदर से मिली वस्तुओं की सहायता से अध्ययन करती है। .
  • राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology)-समाजशास्त्र की वह शाखा जो यह अध्ययन करती है कि किस प्रकार बहुत-सी सामाजिक शक्तियां इकट्ठे होकर राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करती हैं।
  • भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के उद्भव, उनमें आए परिवर्तनों तथा वातावरण से अनुकूलता करने के उसके तरीकों के बारे में बताती है।
  • सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology)-वह वैज्ञानिक अध्ययन जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार लोगों के विचार तथा व्यवहार अन्य लोगों की मौजूदगी से प्रभावित होते हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के बारे में प्राप्त जानकारी के आधार पर सिन्धु घाटी के लोगों के जीवन के बारे में बताएं।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता से हमारा अभिप्राय उस प्राचीन सभ्यता से है जो सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिभा का परिचय दिया।

श्री के० एम० पानिक्कर के शब्दों में-“सैंधव लोगों ने उच्चकोटि की सभ्यता का विकास कर लिया था।” (“A very high state of civilization had been reached by the people of the Indus.”’) इस सभ्यता के विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है :-

I. नगर योजना

1. नगर के दो भाग-मोहनजोदड़ो और हड़प्पा का घेरा चार-पांच किलोमीटर था। ये नगर मुख्यत: दो भागों में बंटे हुए थे-गढ़ी और नगर।

(क) गढ़ी-हड़प्पा की गढ़ी का आकार समानान्तर चतुर्भुज जैसा था। इसकी लम्बाई 410 मीटर और चौड़ाई 195 मीटर थी। इस सभ्यता की अन्य गढ़ियों की तरह इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण की ओर थी और चौड़ाई पूरब से पश्चिम की ओर। गढ़ी का निर्माण मुख्य रूप से प्रशासकीय एवं धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे सुरक्षा के लिए भी प्रयोग किया जाता था।

(ख) नगर या कस्बा-गढ़ी के नीचे कस्बे की भी चारदीवारी होती थी। कस्बे की योजना भी उत्तम थी। उसकी मुख्य सड़कें काफ़ी चौड़ी थीं। सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम की ओर थी और यह नगर को आयताकार टुकड़ों में बांटती थीं।

2. विशाल भवन-मोहनजोदड़ो की गढ़ी में विशाल अन्न भण्डार था। हड़प्पा में यह भण्डार गढ़ी से बाहर था। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की गढ़ी में एक सरोवर भी मिला है जो 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा था। यह उस समय का विशाल स्नानकुंड (Great Bath) था। विशाल स्नानकुंड में पानी निकट स्थित कुएं में से डाला जाता था। स्नानकुंड का फर्श पक्की ईंटों का बना हुआ था। इसमें जाने के लिए ईंटों की सीढ़ियां थीं। ऐसा अनुमान है कि इसका प्रयोग किसी महत्त्वपूर्ण धार्मिक रीति के लिए होता था।

3. निवास स्थान-मकानों के लिए पक्की ईंटों का उपयोग होता था। बड़े मकानों में रसोई, शौचघर एवं कुएं के अतिरिक्त बीस-बीस कमरे थे। परन्तु साधारण मकानों में लगभग आधा दर्जन कमरे थे। कुछ मकानों में केवल एक या दो कमरे भी थे। प्रत्येक मकान में वायु और प्रकाश के लिए दरवाजे और खिड़कियां थीं। स्नान एवं शौचालय के पानी के निकास के लिए ढकी हुई नालियों की उत्तम व्यवस्था थी।

II. तकनीकी विज्ञान

हडप्पा संस्कृति के लोगों के तकनीकी विज्ञान में काफ़ी सीमा तक एकरूपता पाई जाती है। सभी नगरों में लगभग एकसी बनावट के तांबे और कांसे के औज़ार प्रयोग में लाए जाते थे। ये औज़ार नमूने एवं बनावट में सादे थे। नगरों में कुशल शिल्पी तांबे और कांसे के कटोरे, प्याले, थालियां, मनुष्य एवं पशुओं की मूर्तियां और छोटी खिलौना बैल-गाड़ियां बनाते थे। मोहरें बनाने की कला भी अत्यन्त विकसित थी। मनके बनाने का काम भी कम उत्कृष्ट न था, विशेषकर लम्बे इन्द्रगोप (cornelian) के मनके। सिन्धु घाटी के लोगों की बढ़इगिरी में प्रवीणता की जानकारी उनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली आरी से मिलती है। इस आरी के दांते ऊंचे-नीचे हैं ताकि लकड़ी का बुरादा आसानी से निकल सके। सच तो यह है कि तकनीकी विज्ञान में हड़प्पा के लोग मिस्र और बेबीलोन वालों से कहीं आगे थे। इतने बड़े इलाके में फैली हुई तकनीकी समरूपता के कारण यह सभ्यता प्राचीन काल में संसार भर में अद्वितीय थी।।

सिन्धु घाटी के लोग शस्त्र निर्माण में भी निपुण थे। उनके मुख्य शस्त्र छोटी तलवार, भाला, तीर का सिरा, कुल्हाड़ी और चाकू थे। ये अधिकतर तांबे और कांसे के बने हुए थे। धातु के हथियारों के अतिरिक्त शत्रु पर वार करने के लिए पत्थर के गदा और आग में पकाई गई गोलियों का प्रयोग किया जाता था। दूर से वार करने के लिए गुलेल प्रयोग में लाई जाती थी।

III. कृषि तथा व्यापार

1. कृषि-सिन्धु नदी का क्षेत्र उपजाऊ था। अत: यहां के लोगों ने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया। वे मुख्यतः गेहूँ और जौ की कृषि करते थे जो उनके मुख्य खाद्यान्न थे। खाने वाली अन्य वस्तुएं दाल और खजूर थीं। तिल और सरसों का तेल भी प्रयोग में आता था। भेड़, बकरियां और मवेशी प्रमुख पालतू पशु थे। इस सभ्यता के लोगों की अति महत्त्वपूर्ण उपज कपास थी जिससे कपड़ा बनाया जाता था। इस समय दुनिया के और किसी भाग में न तो कपास का उत्पादन होता था और न ही कपड़ा बनता था। सिन्धु घाटी की सभ्यता में नहरों द्वारा सिंचाई नहीं होती थी। गहरी खुदाई करने वाले हल से वे अपरिचित थे। बाढ़ के जल से सिंचाई के लिए बांध बनाए जाते थे। हैरो जैसे यन्त्र का प्रयोग फसल बोने के लिए होता था।

2. व्यापार-सिन्धु घाटी के लोग अनेक वस्तुओं का व्यापार करते थे। व्यापार में कच्चा माल भी शामिल था और तैयार माल भी। व्यापार के लिए भार-वाहक जानवरों, पशु-गाड़ियों तथा छोटी-छोटी नौकाओं का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु घाटी से निर्यात होने वाली वस्तुओं में सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत तथा हाथी दांत से बनी वस्तुओं प्रमुख थीं। लंगूर, बन्दर, मोर आदि जीव-जन्तु भी बाहर भेजे जाते थे। लोथल कस्बे से जोकि एक प्रमुख बन्दरगाह थी, मोतियों का निर्यात होता था। सिन्धु घाटी के लोगों के आयात में अनेक बहुमूल्य पदार्थ शामिल थे। वे राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत से सोना, चाँदी और संगमरमर मंगवाते थे। सोना तथा चाँदी अफ़गानिस्तान से भी मंगवाया जाता था। यहां से तांबा भी आता था। मध्य एशिया से हीरे, फिरोज़े आदि का आयात किया जाता था।

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि सिन्धु घाटी की नगर योजना सिन्धु घाटी के लोगों के उच्च जीवन-स्तर की प्रतीक है। उसका तकनीकी ज्ञान मैसोपोटामिया तथा अन्य समकालीन सभ्यताओं से किसी प्रकार कम नहीं था। निःसन्देह सिन्धु घाटी के लोगों ने कृषि तथा व्यापार में भी पर्याप्त उन्नति की थी। संक्षेप में, हम जॉन मार्शल के इन शब्दों से सहमत हैं, “लोग सैधव (अच्छे बने) नगरों में निवास करते थे। उनकी संस्कृति परिपक्व थी जिसमें कला तथा कारीगरी अपने उत्कर्ष पर थी।” (“People lived in well-built cities and had a mature culture with a high standard of art and craftsmanship.”)

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म, कला, मुहरों तथा लिपि की विशेषताओं पर लेख लिखें।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता प्राचीन काल में सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ धर्म, कला, मुहरों तथा लिपि से सम्बद्ध नवीनता का परिचय दिया। इन नवीन तथ्यों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है

I. धर्म

सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
1. प्रमुख देवता-सिन्धु घाटी के देवी-देवताओं का पता हमें उनकी मुहरों से लगता है। खुदाई से मिली कुछ मुहरों पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है जिसके तीन मुख हैं। यह चित्र चार पशुओं के साथ योग मुद्रा में दिखाया गया है। इन पशुओं में एक बैल भी है। प्रायः बैल के साथ शिवजी महाराज का नाम जुड़ा हुआ है। इसलिए सर जॉन मार्शल (Sir John Marshall) का अनुमान है कि यह शिवजी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग शिव पूजा में विश्वास रखते थे। खुदाई में मिली मुहरों पर एक अर्द्ध-नग्न नारी भी अंकित है। उसकी कमर पर भाला और शरीर पर विशेष प्रकार का वस्त्र है। सर जॉन मार्शल ने इसे मातृ देवी कहा है। उनका विचार है कि सिन्धु घाटी के लोग मातृ देवी की पूजा किया करते थे।

2. अन्य धार्मिक विश्वास-खुदाई में लिंग तथा योनि की मूर्तियां भी मिली हैं। सिन्धु घाटी के लोग जनन शक्ति के रूप में इन मूर्तियों की पूजा करते थे। इससे यह भी स्पष्ट है कि उनका मूर्ति पूजा में विश्वास था। खुदाई से मिली कुछ मुहरों पर हाथी, बैल, बाघ आदि के चित्र मिले हैं। इस बात से यह संकेत मिलता है कि उनमें पशु-पक्षियों की पूजा प्रचलित थी। पशुओं के अतिरिक्त सिन्धु घाटी के लोग पीपल आदि वृक्षों तथा अग्नि की पूजा करते थे। उनमें सम्भवतः सांपों तथा नदियों की पूजा भी प्रचलित थी। सिन्धु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार तीन प्रकार से करते थे। कुछ लोग मुर्दो को धरती में दबा देते थे, परन्तु कुछ उन्हें जला देते थे। कई लोग मुर्दे को जला कर उनकी राख तथा अस्थियों को किसी पात्र में रखकर उसे धरती में दबा देते थे। पात्र के साथ मृतक व्यक्ति की मन पसन्द वस्तुएं भी रख दी जाती थीं।

II. कला

सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों द्वारा निर्मित कलाकृतियां काफ़ी उच्च स्तर की थीं। नाचती हुई मुद्रा में खड़ी लड़की की लघु कांस्य प्रतिमा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।

वहां की मूर्तिकला के अनेक नमूने उपलब्ध हुए हैं। इनमें मानव एवं पशु दोनों की आकृतियां मिलती हैं। सिर और कंधों की टूटी हुई दाढ़ी वाले व्यक्ति की एक मूर्ति सिन्धु घाटी की कला का प्रभावशाली नमूना है।

सिन्धु घाटी की कुछ मूर्तियां पालथी मारकर बैठी हुई आकृति की हैं। इसे देव प्रतिमा समझा जाता है। वहां से कुछ पशुओं की मूर्तियां भी मिली हैं। उनमें शक्ति और वीरता झलकती है। खुदाई में एक संयुक्त पशु-मूर्ति भी मिली है जो किसी प्रकार की दैवी प्रतिमा प्रतीत होती है। एक अन्य प्रतिमा शिव के नटाज रूप का आदि स्वरूप प्रतीत होती है।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 1

पकी मिट्टी की लघु प्रतिमाएं काफ़ी संख्या में मिली हैं। इनमें पशु और मानवीय प्रतिमाएं दोनों शामिल हैं। बहुत-सी लघु प्रतिमाएं स्त्रियों की हैं। इनमें से कुछ बिस्तर नृत्य मुद्रा में खड़ी लड़की पर बच्चों के साथ या अकेली लेटी हुई दिखाई गई हैं। पशुओं की प्रतिमाओं में काफ़ी सारे पशु हैं। इनमें कूबड़ बैल, भैंसा, कुत्ता, भेड़, गैंडा, बन्दर, समुद्री कछुआ और कुछ मानवीय सिरों वाले पशु शामिल हैं। यहां गाय की कोई प्रतिमा नहीं मिली है। ठोस पहियों वाली पकी मिट्टी की बैलगाड़ियां भी मिली हैं। हड़प्पा से तांबे से बनी एक इक्कानुमा गाड़ी मिली है। मिट्टी के बर्तन प्रायः कुम्हार के चाक पर बनाए हुए हैं। उनके हाथ से बने बर्तन भी मिले हैं। सिन्धु घाटी के मिट्टी के बर्तनों में अधिकतर पर फूल, पत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र बने हुए हैं। अंगूठियों और चूड़ियों के अतिरिक्त वहां सोने, चांदी, तांबे, फेस, चाक पत्थर, कीमती पत्थर और शंख के बने अनेक सुन्दर मनके मिले हैं। इन मनकों को पिरो कर माला बनाई जाती थी।
दाढ़ी वाला आदमी (मोहनजोदड़ो)
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 2

III. मोहरें

मोहरें प्राचीन शिल्पकला को सिन्धु घाटी की विशिष्ट देन समझी जाती हैं। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। ये कृतियां भले ही छोटी हैं फिर भी इन की कला इतनी श्रेष्ठ है कि इनके चित्रों में शक्ति और ओज झलकता है। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा के लिए किया जाता था। ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि मोहरों का प्रयोग एक प्रकार का प्रतिरोधक (taboo) लगाने के लिए होता था। इन मोहरों से ऐसा भी प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी के समाज में विभिन्न पदवियों और उपाधियों की व्यवस्था प्रचलित थी। इन मोहरों पर पशुओं तथा मनुष्यों की आकृतियां बनी हुई हैं। पशुओं से सम्बन्धित आकृतियां बड़ी कलात्मक हैं। परन्तु मोहरों पर बनी मानवीय आकृतियां उतनी कलात्मकता से नहीं बनी हुई हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने उनकी किसी धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता हैं, बाईं ओर गैंडा और भैंसा हैं। उनके नीचे दो बारहसिंगे या बकरियां हैं। इन ‘पशुओं के स्वामी’ को शिव का पशुपति रूप समझा जाता है। मोहरों पर पीपल के वृक्ष के बहुत चित्र मिले हैं।

IV. लिपि

सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। उनकी यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई पाई गई है। इसमें कुल 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है। इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं, तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अतः जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तथ्य प्रकाश में आ जाएंगे।

यदि गहनता से सिन्धु घाटी की सभ्यता का अध्ययन किया जाए तो इतिहास की अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं। सिन्धु घाटी का धर्म आज के हिन्दू धर्म से मेल खाता है। उनकी कला-कृतियां उत्कृष्टता लिए हुए थीं। उनकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई। इसे पढ़े जाने पर सिन्धु घाटी का चित्र अधिक स्पष्ट हो जाएगा।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज कब हुई ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज 1922 ई० में हुई।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्र थे।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी के लोगों के दो देवी-देवताओं के नाम लिखो।
उत्तर-
पशुपति शिव तथा मातृदेवी।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा आजकल किस देश में हैं ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा आजकल पाकिस्तान में हैं।

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प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो की खोज किसने की थी ?
उत्तर-
आर० डी० बैनर्जी ने।

प्रश्न 6.
हड़प्पा की खोज करने वाले व्यक्ति का नाम बताओ।
उत्तर-
दयाराम साहनी।

प्रश्न 7.
मृतकों का टीला किस स्थान के लिए प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो के लिए।

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प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी का पूजनीय पशु कौन-सा था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी का पूजनीय पशु कुबड़ा बैल था।

प्रश्न 9.
सिन्धु घाटी के नगर मुख्य रूप से कौन-कौन से दो भागों में बंटे हुए थे ?
उत्तर-
दुर्ग और सामान्य नगर।

प्रश्न 10.
सिन्धु घाटी के धर्म की वे दो विशेषताएं बताओ जो आज भी हिन्दू धर्म का अंग हैं ।
उत्तर-
शिव-पूजा तथा पीपल-पूजा।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) ………. भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है।
(ii) सिन्धु घाटी की सभ्यता लगभग …….. वर्ष पुरानी है।
(iii) ……… की सभ्यता सिंधु घाटी की समकालीन सभ्यता थी।
(iv) सिन्धु घाटी के मकान ……… ईंटों के बने हुए थे।
(v) सिन्धु सभ्यता के स्थलों की खुदाई करने वाले पुरातत्ववेत्ता सर ……….. थे।
उत्तर-
(i) सिन्धु घाटी की सभ्यता
(ii) 5,000
(iii) मैसोपोटामिया
(iv) पकी
(v) जॉन मार्शल।

3. सही/ग़लत कथन सही कथनों के लिए (√) तथा ग़लत कथनों के लिए (×) का निशान लगाएं।

(i) सिन्धु घाटी के लोग लिंग और योनि की मूर्तियों की पूजा करते थे। — (√)
(ii) सिन्धु घाटी के लोग शिलाजीत का प्रयोग मसाले के रूप में करते थे।– (×)
(iii) सिन्धु घाटी का विशाल स्नानागार हड़प्पा में मिला है। — (×)
(iv) सिन्धु घाटी के लोगों की लिपि चित्रमय थी। — (√)
(v) पंजाब में संघोल (‘लुधियाना जिले’) में सिंधु सभ्यता के अवशेष मिले हैं। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
सिन्धु सभ्यता में लोथल क्या था ?
(A) एक देवता
(B) एक बन्दरगाह
(C) एक स्नानागार
(D) लेखन कला केंद्र।
उत्तर-
(C) एक स्नानागार

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प्रश्न (ii)
सिन्धु सभ्यता का कौन-सा केन्द्र आज पंजाब में स्थित है ?
(A) मोहनजोदड़ो
(B) धौलावीरा
(C) रोपड़
(D) अमरी।
उत्तर-
(C) रोपड़

प्रश्न (iii)
हरियाणा में स्थित सिन्धु सभ्यता का स्थल है ?
(A) बनावली
(B) मिताथल
(C) राखीगढ़ी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न (iv)
सिन्धु घाटी की खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति बनी हुई है ?
(A) कांसे की
(B) पीतल की
(C) सोने की
(D) तांबे की।
उत्तर-
(A) कांसे की

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प्रश्न (v)
सिन्धु घाटी की सभ्यता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है-
(A) ऊंचे भवन
(B) सुनियोजित जल-निकासी व्यवस्था
(C) पॉलिशदार मकान
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(B) सुनियोजित जल-निकासी व्यवस्था

॥. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

विशेष नोट-विद्यार्थी प्रत्येक अध्याय में इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें। ये प्रश्न उन्हें विषय-वस्तु को बारीकी से समझने में सहायता करेंगे। साथ ही, ये वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को हल करने में उपयोगी सिद्ध होंगे।

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई करवाने वाले चार व्यक्तियों के नाम बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई करवाने वाले चार व्यक्तियों के नाम थे : आर० डी० बनर्जी, एम० एस० वत्स, दया राम साहनी तथा सर जान मार्शल।

प्रश्न 2.
वर्तमान भारत के कौन-से चार राज्य हैं, जिनमें सिन्धु घाटी की सभ्यता के केन्द्र मिले हैं ? (Sure)
उत्तर-
वर्तमान भारत के चार राज्य पंजाब (रोपड़). राजस्थान (कालीबंगन), उत्तर प्रदेश (आलमगीरपुर) तथा गुजरात में सिन्धु घाटी सभ्यता के केन्द्र मिले हैं।

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प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के कोई चार केन्द्रों के नाम बताओ जो अब पाकिस्तान में हैं।
उत्तर-
पाकिस्तान में सिन्धु घाटी सभ्यता के चार केन्द्र चन्हुदड़ो, कोटडीजी, मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा हैं।

प्रश्न 4.
हडप्पा संस्कृति का काल बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति का आरम्भ 2300 ई० पू० से भी पहले हुआ और इस संस्कृति का विकास 1900 ई० पू० तक जारी रहा।

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी सभ्यता में किन तीन दों या आकारों की बस्तियां मिली हैं और इनमें से सबसे बड़े केन्द्र कौनसे हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता गांव, कस्बे तथा शहर-इन तीन दर्जी अथवा आकारों की बस्तियों में विकसित थी। इनमें सबसे बड़े केन्द्र मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा थे।

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प्रश्न 6.
हड़प्पा की गढ़ी की लम्बाई तथा चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा की गढ़ी की लम्बाई 410 मीटर चौड़ाई 195 मीटर थी।

प्रश्न 7.
विशाल स्नान-कुण्ड कहां मिला है तथा इसकी लम्बाई, चौड़ाई व गहराई क्या है ?
उत्तर-
विशाल स्नान-कुण्ड मोहनजोदड़ो की गढ़ी में मिला है। यह 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा है।

प्रश्न 8.
मकानों के भीतरी भाग की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के मकान हवादार तथा पकी ईंटों से बने थे। मकानों में रसोई घर, स्नानागार तथा नालियां भी थीं।

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प्रश्न 9.
सिन्धु सभ्यता के लोगों के प्रयोग में आने वाले किन्हीं चार हथियारों के नाम लिखो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के प्रयोग में आने वाले हथियारों में छोटी तलवार, भाला, तीर और चाकू थे।

प्रश्न 10.
मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़कों की दिशा क्या थी ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो की सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर थी।

प्रश्न 11.
सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु के आधार पर सिन्धु सभ्यता को क्या नाम दिया गया है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी में सबसे अधिक कांसे का प्रयोग होता था। इसीलिए इस सभ्यता को कांस्य युग की सभ्यता भी कहा गया है।

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प्रश्न 12.
किन्हीं चार धातुओं के नाम बताओ जिनसे सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग परिचित थे।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग सोना, चांदी, तांबा तथा कांसे की धातुओं से परिचित थे।

प्रश्न 13.
सिन्धु घाटी की दो मुख्य फसलों तथा खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की दो मुख्य फसलें गेहूँ और जौ थीं। वहां के दो खाद्य पदार्थ भी गेहूँ और जौ ही थे।

प्रश्न 14.
खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सिन्धु घाटी की सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण उपज क्या थी और इसका क्या प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर-
खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सिन्धु घाटी की सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण उपज कपास थी। इससे कपड़ा बनाया जाता था।

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प्रश्न 15.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने की दो विधियां लिखो।
उत्तर-
मिट्टी के बर्तन आमतौर पर कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे। वे हाथ से भी बर्तन बनाते थे।

प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों पर बने चार प्रकार के नमूनों के नाम लिखो।
उत्तर-
इन चार प्रकार के नमूनों में फूल, पत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र सम्मिलित हैं।

प्रश्न 17.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग माला में कौन-कौन से चार प्रकार के मनके पिरोते थे ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग सोने, चांदी, तांबे तथा कांसे के मनकों को माला में पिरोते थे।

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प्रश्न 18.
सिन्धु घाटी में लोथल कस्बा कौन-से दो काम देता था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी में लोथल कस्बा बन्दरगाह और गोदाम का काम देता था।

प्रश्न 19.
केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहरों की संख्या बताएं। इन मोहरों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो से 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 20.
सिन्धु घाटी से प्राप्त मोहरों पर कौन-कौन से पशुओं के चित्र अंकित हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की मोहरों पर सांड, शेर, हाथी तथा बारहसिंगा के चित्र अंकित हैं।

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प्रश्न 21.
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के प्राप्त वर्णों की संख्या तथा यह किन चार चीजों पर मिलती है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के अब तक 270 वर्ण प्राप्त हो चुके हैं। यह लिपि फलकों, मिट्टी के बर्तनों, आलेखों और मोहरों पर लिखी है।

प्रश्न 22.
भारत तथा एशिया के चार क्षेत्र बताओ जिनके साथ इस सभ्यता के लोगों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर-
भारत के दो क्षेत्र थे राजस्थान तथा मैसूर। एशिया के दो क्षेत्रों में अफगानिस्तान तथा मैसोपोटामिया के नाम लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 23.
सिन्धु घाटी में नर्तकी की धातु की मूर्ति कहां से मिली है ? यह किस धातु की बनी है ?
उत्तर-
नर्तकी की धातु की मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है। यह कांसे की बनी है।

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प्रश्न 24.
सिन्धु घाटी से निर्यात की जाने वाली चार वस्तुओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी से मुख्य रूप से सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत और इससे बनी वस्तुएं निर्यात की जाती थीं।

प्रश्न 25.
सिन्धु घाटी के लोगों के धर्म की चार विशेषताएं बताओ जो बाद के समय में भी कायम रहीं।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के धर्म की स्थायी विशेषताओं में पशुपति शिव तथा मातृदेवी की पूजा सम्मिलित थी। वे लोग वृक्षों तथा पशुओं की भी पूजा करते थे।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा संस्कृति की खोज कब हुई ? इसके विस्तार का वर्णन करते हुए बताओ कि इसे हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति की खोज 1921 ई० में हुई। इस संस्कृति का विस्तार बहुत अधिक था। इसमें पंजाब, सिन्ध, राजस्थान, गुजरात तथा बिलोचिस्तान के कुछ भाग और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भाग सम्मिलित थे। इस प्रकार इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बिलोचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। उस समय कोई अन्य संस्कृति इतने बड़े क्षेत्र में विकसित नहीं थी। इस संस्कृति को हड़प्पा संस्कृति का नाम इसलिए दिया जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम इस सभ्यता से सम्बन्धित जिस स्थान की खोज हुई, वह हड़प्पा था। यह स्थान अब पाकिस्तान में स्थित है।

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प्रश्न 2.
हड़प्पा संस्कृति के मुख्य केन्द्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत था। अब तक इस संस्कृति से सम्बन्धित 1000 से भी अधिक केन्द्रों की खोज हो चुकी है। इनमें से 6 केन्द्र विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं। ये हैं-हडप्पा, मोहनजोदडो, चन्दडो, लोथल, कालीबंगां और बनावली। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो पाकिस्तान में स्थित हैं और इनमें 483 किलोमीटर की दूरी है। हड़प्पा संस्कृति के कुछ अन्य केन्द्र सुतकांगेडोर और सुरकोतड़ा हैं। ये दोनों ही समुद्रतटीय नगर हैं। गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी में हड़प्पा संस्कृति की उत्तर अवस्था के चिन्ह मिलते हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा संस्कृति के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :

  • भोजन-ये लोग गेहूँ, चावल, सब्जियां तथा दूध का प्रयोग करते थे। मांस-मछली तथा अण्डे भी भोजन के अंग थे।
  • वेश-भूषा-हड़प्पा संस्कृति के लोग सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। पुरुष प्रायः धोती और शाल धारण करते थे। स्त्रियां प्राय: रंगदार और बेल-बूटों वाले वस्त्र पहनती थीं। स्त्रियां और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे।
  • मनोरंजन के साधन-लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन घरेलू खेल थे। वे प्रायः नृत्य, संगीत और चौपड़ आदि खेल कर अपना मन बहलाया करते थे। बच्चों के खेलने के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौने थे।

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प्रश्न 4.
हडप्पा संस्कृति के लोगों के जीवन-यापन के स्त्रोतों का वर्णन करो।
अथवा
सिन्धु घाटी के लोगों के आर्थिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों का आर्थिक जीवन अनेक व्यवसायों पर आधारित था। इन्हीं व्यवसायों द्वारा उनका जीवनयापन होता था। इन व्यवसायों का वर्णन इस प्रकार है-

  • कृषि-सिन्धु घाटी के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। वे लोग मुख्य रूप से गेहूँ, जौ, चावल और कपास की खेती करते थे। खेती के लिए वे लकड़ी के हल का प्रयोग करते थे। उन्होंने सिंचाई की बड़ी अच्छी व्यवस्था की हुई थी।
  • पशु पालन-सिन्धु घाटी के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशु पालन था। वे मुख्य रूप से गाय, बैल, हाथी, बकरियां, भेड़, कुत्ते आदि पशु पालते थे।
  • व्यापार-व्यापार सिन्धु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय था। नगरों में आपसी व्यापार होता था। अफ़गानिस्तान तथा ईराक के साथ भी उनकी व्यापार चलता था।
  • उद्योग-यहां के कुछ लोग छोटे-छोटे उद्योग-धन्धों में भी लगे हुए थे। मिट्टी, तांबा तथा पीतल के बर्तन बनाने में वहां के कारीगर बड़े कुशल थे। वे सोने-चांदी के सुन्दर आभूषण भी बनाते थे। ..

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी की सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति के कोई ऐसे तत्त्व बताओ जो आज भी भारतीय जीवन में दिखाई देते हैं।
अथवा
भारतीय सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति की क्या देन है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता के निम्नलिखित चार तत्त्व आज भी भारतीय जीवन में देखे जा सकते हैं :

  • नगर योजना-सिन्धु घाटी के नगर एक योजना के अनुसार बसाए गए थे। नगर में चौड़ी-चौड़ी सड़कें और गलियां थीं। यह विशेषता आज के नगरों में देखी जा सकती है।
  • निवास स्थान-सिन्धु घाटी के मकानों में आज की भान्ति खिड़कियां और दरवाज़े थे। हर घर में एक आंगन, स्नान गृह तथा छत पर जाने के लिए सीढ़ियां थीं।
  • आभूषण एवं श्रृंगार-आज की स्त्रियों की भान्ति सिन्धु घाटी की स्त्रियां भी श्रृंगार का चाव रखती थीं। वे सुर्जी तथा पाऊडर का प्रयोग करती थीं और विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनती थीं। उन्हें बालियां, कड़े तथा गले का हार पहनने का बहुत शौक था।
  • धार्मिक समानता-सिन्धु घाटी के लोगों का धर्म आज के हिन्दू धर्म से बहुत हद तक मेल खाता है। वे शिव, मात देवी तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। आज भी हिन्दू लोगों में उनकी पूजा प्रचलित है।

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प्रश्न 6.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की नगर योजना की विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की नगर योजना उच्च कोटि की थी। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार से है :-
1. नगर के दो भाग-मोहनजोदड़ो और हड़प्पा का घेरा चार-पांच किलोमीटर था। ये नगर मुख्यतः दो भागों में बंटे हुए थे-गढ़ी और नगर।

(क) गढ़ी- हड़प्पा की गढ़ी का आकार समानान्तर चतुर्भुज जैसा था। इसकी लम्बाई 410 मीटर और चौडाई 195 मीटर थी। गढ़ी का निर्माण मुख्य रूप से प्रशासकीय एवं धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे सुरक्षा के लिए भी प्रयोग किया जा सकता था।

(ख) नगर या कस्बा-गढ़ी के नीचे कस्बे की चारदीवारी होती थी । कस्बे की योजना भी उत्तम थी। उसकी मुख्य सड़कें चौड़ी थीं। सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम की ओर थी और नगर को आयताकार टुकड़ों में बांटती थीं।

2. विशाल भवन-मोहनजोदड़ो की गढ़ी में विशाल अन्न भण्डार था। हड़प्पा में यह भण्डार गढ़ी से बाहर था। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की गढ़ी में एक सरोवर भी मिला है जो 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा था। यह उस समय का विशाल स्नानकुंड (Great Bath) था। इसका प्रयोग संभवतः किसी महत्त्वपूर्ण धार्मिक रीति के लिए होता था।

3. निवास स्थान-मकानों के लिए पकी ईंटों का उपयोग होता था। बड़े मकानों में रसोई, शौचघर एवं कुएं के अतिरिक्त बीस-बीस कमरे थे। परन्तु कुछ मकानों में केवल एक या दो कमरे भी थे। प्रत्येक में वायु और प्रकाश के लिए दरवाज़े और खिड़कियां थीं। गंदे पानी के निकास के लिए ढकी हुई नालियों की व्यवस्था थी।।

प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी की सभ्यता का तकनीकी विज्ञान किस प्रकार का था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों के तकनीकी विज्ञान (तकनॉलोजी) में काफ़ी समरूपता थी। सभी नगरों में तांबे और कांसे के लगभग एक-जैसी बनावट वाले औजार प्रयोग में लाए जाते थे। औज़ार देखने में सादे और काम करने में अच्छे थे। नगरों में कुशल शिल्पी तांबे और कांसे के कटोरे, प्याले, थालियां, मनुष्य एवं पशुओं की मूर्तियों और छोटी खिलौना बैलगाड़ियां बनाते थे। बर्तन बनाने के लिए कुम्हार के चाक का प्रयोग किया जाता था। मुहरें बनाना अत्यन्त विकसित कला थी। मनके बनाने का काम भी कम उत्कृष्ट न था। सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की बढ़इगिरी में प्रवीणता का पता उनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली आरी से चलता है। इस आरी के दांते ऊंचे-नीचे हैं ताकि लकड़ी का बुरादा आसानी से निकल सके। हड़प्पा संस्कृति के लोग नावें तथा अस्त्र-शस्त्र बनाना भी जानते थे। सच तो यह है कि सिन्धु घाटी के निवासी तकनीकी विज्ञान में मिस्र और बेबीलोन वालों से भी आगे थे।

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प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर-
खुदाई में एक मोहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है। देवता के चारों ओर कुछ पशु दिखाए गए हैं। इनमें से एक बैल भी है। सर जॉन मार्शल का कहना है कि यह पशुपति महादेव की मूर्ति है और लोग इसकी पूजा करते थे। खुदाई में मिली एक अन्य मोहर पर एक नारी की मूर्ति बनी हुई है। इसने विशेष प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं। विद्वानों का मत है कि यह धरती माता (मातृ देवी) की मूर्ति है और हड़प्पा संस्कृति के लोगों में इसकी पूजा प्रचलित थी। लोग पशुपक्षियों, वृक्षों तथा लिंग की पूजा में भी विश्वास रखते थे। वे जिन पशुओं की पूजा करते थे, उनमें से कूबड़ वाला बैल, सांप तथा बकरा प्रमुख थे। उनका मुख्य पूजनीय वृक्ष पीपल था। खुदाई में कुछ तावीज़ इस बात का प्रमाण हैं कि सिन्धु घाटी के लोग अन्धविश्वासी थे और जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 9.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की कला की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा बनी कलाकृतियां उच्चकोटि की थीं। खुदाई में एक लघु कांस्य प्रतिमा मिली है जो नृत्य की मुद्रा में है। इस मूर्ति से उन लोगों की मूर्तिकला में निपुणता का पता चलता है। यहां मूर्तियों के कई नमूने उपलब्ध हुए हैं। इनमें मानव एवं पशु दोनों की आकृतियां मिलती हैं। सिर और कंधों की टूटी हुई दाढ़ी वाले व्यक्ति की एक मूर्ति सिन्धु घाटी की कला का प्रभावशाली नमूना है। यहां की कुछ मूर्तियां पालथी मारकर बैठी हुई आकृति की हैं, जिसको कोई देव प्रतिमा समझा जाता है। यहां से प्राप्त पकी मिट्टी की लघु प्रतिमाओं की संख्या बहुत अधिक है। पशुओं की प्रतिमाओं में कूबड़ वाला बैल, भैंसा, कुत्ता, भेड़, हाथी, गैंडा, बन्दर, समुद्री कछुआ और कुछ मानवीय सिरों वाले-पशु देखे जा सकते हैं। मिट्टी के बर्तन आमतौर पर कुम्हार के चाक पर बनाए हुए हैं। हाथ से बने बर्तन भी मिले हैं। इन बर्तनों में अधिकांश पर फूलपत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र बने हुए हैं। अंगूठियों और चूड़ियों के अतिरिक्त यहां सोने, चांदी, तांबे, फैंस, चाक पत्थर, कीमती पत्थर और शंख बने अनेक सुन्दर मनके हैं। इन मनकों को पिरो कर माला बनाई जाती थी।

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प्रश्न 10.
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में अब तक क्या पता चल सका है ? ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई भी पाई गई है। इनमें 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है, इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अत: जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तत्त्व प्रकाश में आएंगे।

प्रश्न 11.
मोहनजोदड़ो से किस प्रकार की मोहरें मिली हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी से मिली मोहरें उनकी उन्नत शिल्पकला की परिचायक हैं। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनकी निर्माण कला इतनी श्रेष्ठ है कि छोटा आकार होते हुए भी इनके चित्रों में से शक्ति और ओज झलकता है। इन मोहरों का प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता है। इन पर कई प्रकार से पशु तथा मानवीय एवं अर्द्ध-मानवीय आकृतियां बनी हुई हैं। पशु आकृतियों में छोटे सींगों वाला सांड, शेर, हाथी, बारहसिंगा, खरगोश, गरुड़ आदि प्रमुख हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने लोगों की धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता है, बाईं ओर गैंडा और भैंसा है। उनके नीचे दो बारहसिंगा या बकरियां हैं। इस पशु स्वामी को शिव का पशुपति रूप माना जाता है।

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प्रश्न 12.
इस (सिन्धु घाटी की) सभ्यता के पतन के कारण बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता के पतन के अनेक कारण बताए जाते हैं :-

  • बाढ़-कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि यह सभ्यता सिन्धु नदी में बाढ़ें आने के कारण लुप्त हुई।
  • बाहरी आक्रमण-कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों तथा अन्य विदेशी जातियों ने यहां के लोगों पर अनेक आक्रमण किए। इन युद्धों में यहां के निवासी हार गए. और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • वर्षा की कमी-कुछ विद्वानों का कहना है कि इस सभ्यता का अन्त वर्षा की कमी के कारण हुआ। उनका अनुमान है कि इस प्रदेश में काफ़ी लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • भूकम्प-कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह सभ्यता भूकम्प आने के कारण नष्ट हुई।
  • अन्य कारण-(i) कुछ विद्वानों के विचार में इस प्रदेश में भयानक महामारियां फैली होंगी। इससे अनेक लोग मारे गए और जो लोग बचे होंगे, वे मृत्यु के भय से यह प्रदेश छोड़ गए होंगे। (ii) एक अन्य मत के अनुसार शायद सिन्धु नदी ने अपना रास्ता बदल लिया होगा जिससे इस प्रदेश की भूमि बंजर हो गई होगी। लोग इस बंजर भूमि को छोड़ कर कहीं और चले गए होंगे।

इन सब कारणों को दृष्टि में रखते हुए बी० जी० गोखले (B.G. Gokhale) ने ठीक कहा है- “मानव और प्रकृति ने सामूहिक रूप से इस सभ्यता का पूर्ण विनाश किया होगा।” (Nature and man must have combined to cause its complete annihilation.)

प्रश्न 13.
सिन्धु घाटी के लोगों के किन-से सीधे या अन्य माध्यम द्वारा सम्पर्क थे ?
उत्तर–
सिन्धु घाटी के लोगों का विश्व तथा देश के अन्य भागों के निवासियों के साथ सीधा या अन्य माध्यम से सम्पर्क था। राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत के लोगों के साथ उनका सीधा सम्बन्ध था। देश के इन भागों से वे संगमरमर, चांदी तथा सोना मंगवाते थे। बाहरी देशों जैसे अफ़गानिस्तान, मध्य एशिया तथा सुमेर के लोगों के साथ उनके गहरे सम्बन्ध थे। अफ़गानिस्तान से वे लोग सोना, चांदी और तांबा मंगवाते थे। मध्य एशिया से वे हरे रंग के हीरे, फिरोज़े आदि मंगवाते थे। उनके मैसोपोटामिया के लोगों के साथ भी अप्रत्यक्ष सम्बन्ध थे।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 14.
सिन्धु घाटी के लोगों की व्यापारिक वस्तुओं के विषय में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग अनेक वस्तुओं का व्यापार करते थे। सिन्धु घाटी से निर्यात होने वाली वस्तुओं में सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत तथा हाथी दांत से बनी वस्तुएं प्रमुख थीं। लंगूर, बन्दर, मोर आदि जीव-जन्तु बाहर भी भेजे जाते थे। लोथल कस्बे से जोकि एक प्रमुख बन्दरगाह थी, मोतियों का निर्यात होता था। सिन्धु घाटी के लोगों के आयात में अनेक बहुमूल्य पदार्थ शामिल थे। वे राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत से सोना, चांदी और संगमरमर मंगवाते थे। सोना, चांदी तथा तांबा अफ़गानिस्तान से भी मंगवाया जाता था। मध्य एशिया से हीरे, फिरोज़े आदि का आयात किया जाता था।

प्रश्न 15.
सिन्धु घाटी के लोग किन हथियारों का प्रयोग करते थे ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग तांबे तथा कांसे से बने अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते थे। बढ़ई का मुख्य हथियार आरी था जिसके दाँत ऊंचे-नीचे होते थे। खेती में मुख्यत: हैरो जैसे यन्त्र का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु घाटी के लोग युद्ध-प्रिय न होने के कारण युद्ध-शस्त्रों को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। फिर भी वे कुछ युद्ध-शस्त्र अवश्य बनाते थे। इन शस्त्रों में तांबे तथा कांसे की बनी तलवारें, बर्छियां, तीर, कुल्हाड़ियां, गुलेल और चाकू मुख्य थे। इन शस्त्रों के अतिरिक्त शत्रु पर फेंकने के लिए पत्थर के बने भालों का भी प्रयोग किया जाता था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी की सभ्यता कब फली-फूली ? इसके निर्माता कौन थे ? इस काल में लोगों के सामाजिक जीवन का वर्णन करो।
उत्तर–
सिन्धु घाटी की सभ्यता कब पनपी, इस विषय में सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता की उत्पत्ति तथा विकास 2500 ई० पू० से 1500 ई० पू० के बीच हुआ। इसके विपरीत सर जॉन मार्शल इस सभ्यता का जन्म आज से लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व बताते हैं। प्रायः इसी मत को ठीक माना जाता है। सिन्धु घाटी के लोगों के विषय में भी इतिहासकारों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ विद्वान् उन्हें आर्य जाति का मानते हैं और कुछ उन्हें सुमेरियन जाति का बताते हैं। इस विषय में सबसे अधिक मान्य मत यह है कि सिन्धु घाटी में अनेक जातियों के लोग रहते थे।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-
1. भोजन तथा वस्त्र-सिन्धु घाटी के लोग गेहूँ, चावल, दूध, खजूर तथा सब्जियों का प्रयोग करते थे। वे मांस, मछली और अण्डे भी खाते थे। कुछ घरों में सिल-बट्टे भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि वे लोग चटनी जैसी कोई चीज़ भी खाते थे। सिन्धु घाटी के लोग सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। वे कुर्ता, धोती और कन्धों पर शाल या दुपट्टे आदि का प्रयोग करते थे। कढ़ाई किए हुए शाल ओढ़ने का भी रिवाज था।

2. आभूषण-सिन्धु घाटी के पुरुष और स्त्रियां दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। उस समय हार, बालियां, अंगूठी, कंगन, चूड़ियां और पांवों में कड़े पहनने का रिवाज़ था। धनी लोग सोने, चांदी तथा हाथी दांत के आभूषण पहनते थे। गरीब लोग केवल तांबे आदि के आभूषण ही प्रयोग में लाते थे। आभूषण बनाने वाले कारीगर बड़े निपुण थे। सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चांदी के इन आभूषणों को देखकर ऐसा लगता है जैसे “ये आज से पांच हजार साल पहले बने हए नहीं सिन्धु घाटी के आभूषण बल्कि अभी लन्दन के जौहरी बाज़ार से खरीदे गए हैं।

3. श्रृंगार-स्त्रियां काजल, सुर्जी, सुगन्धित तेल तथा दर्पण का प्रयोग करती थीं। दर्पण कांसी के बने हए होते थे। वे कई तरीकों से अपने बाल गूंथती थीं। पुरुष दाढ़ी मुंडवाते थे और कई तरह के बाल बनवाते थे। वे बालों को संवारने के लिए कंघी का प्रयोग करते थे।

4. मनोरंजन-सिन्धु घाटी के लोग नाच और गाने से अपना दिल बहलाया करते थे। उन्हें घरों में खेले जाने वाले खेल अधिक पसन्द थे। खुदाई से प्राप्त कुछ मोहरों से पता चलता है कि लोग जुआ भी खेलते थे। उनका एक खेल आधुनिक शतरंज जैसा था। बच्चों के लिए प्रत्येक घर में खिलौने हुआ करते थे। खुदाई में हिरणों तथा बारहसिंगा के सींग भी मिले हैं। इनसे यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु घाटी के लोगों को शिकार खेलने का भी चाव था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 3

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक जीवन-सिन्धु घाटी के लोगों के आर्थिक जीवन का वर्णन इस प्रकार है :

  • कृषि–सिन्धु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। वे गेहूँ, जौ, कपास, फल, सब्जियों आदि की खेती करते थे।
  • पशु पालन-सिन्धु घाटी के लोगों का दूसरा बड़ा व्यवसाय पशु पालना था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरियां, कुत्ते, सूअर आदि पालते थे।
  • व्यापार—यहां के लोगों का व्यापार काफ़ी उन्नत था। वे विदेशों के साथ भी व्यापार करते थे। प्रोफैसर चाइड लिखते हैं कि सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा बनी वस्तुएं दजला और फरात की घाटी के बाजारों में बिका करती थीं। वस्तुओं को तोलने के लिए बाट थे।
  • कुटीर उद्योग-सिन्धु घाटी के कांसी तथा पीतल के बहुत सुन्दर बर्तन बनाते थे। उनके बनाए हुए खिलौने बड़े ही सुन्दर होते थे। सूत कातना, कपड़ा बुनना, आभूषण बनाना, पकी ईंटें बनाना आदि भी उनके प्रमुख उद्योग-धन्धे थे।

धार्मिक जीवन-सिन्धु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन इस प्रकार है :-

  • शिव उपासना-खुदाई में एक ऐसी मूर्ति मिली है जिसकी तीन आँखें और तीन मुँह हैं। इस मूर्ति में एक बैल का चित्र भी है। प्रायः बैल के साथ शिवजी महाराज का नाम जुड़ा हुआ है। इसलिए सर जॉन मार्शल का अनुमान है कि यह शिवजी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग इसकी पूजा किया करते थे।
  • मातृदेवी की पूजा-खुदाई में मिली मोहरों पर एक अर्धनग्न नारी का चित्र बना हुआ है। विद्वानों का विचार है कि यह मातृदेवी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग इसकी पूजा करते थे।
  • मूर्ति पूजा–खुदाई में शिवलिंग तथा कई मूर्तियां मिली हैं। अनुमान है कि सिन्धु घाटी के लोग इन मूर्तियों की पूजा करते थे।
  • पशु पूजा-खुदाई से मिली कुछ मोहरों पर हाथी, बैल, बाघ आदि के चित्र मिले हैं। सिन्धु घाटी के लोग इन पशुओं की भी पूजा किया करते थे।
  • जादू-टोनों में विश्वास-खुदाई में कुछ तावीज़ भी मिले हैं। इनसे यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु घाटी के लोग जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।
  • मृतक संस्कार-सिन्धु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार तीन प्रकार से किया करते थे। कुछ लोग मुर्दो को धरती में दबा देते थे और कुछ उन्हें जला देते थे। कई लोग मुर्दो को जलाकर उनकी राख तथा अस्थियों को किसी पात्र में रखकर उसे धरती में गाढ़ देते थे।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लुप्त होने के क्या कारण (पतन के कारण) बताए जाते हैं ?
उत्तर-

  • बाढ़ें–कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि सिन्धु नदी की घाटी में आने वाली बाढ़ों ने इस सभ्यता को नष्टभ्रष्ट कर दिया।
  • बाहरी आक्रमण-कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों तथा अन्य विदेशी जातियों ने यहां के लोगों पर अनेक आक्रमण किए। इन युद्धों में यहां के निवासी हार गए इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • वर्षा की कमी-कुछ विद्वानों का कहना है कि इस सभ्यता का अन्त वर्षा की कमी के कारण हुआ। इनका अनुमान है कि इस प्रदेश में काफी लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • भूकम्प-कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह सभ्यता भूकम्प आने के कारण नष्ट हुई।
  • अन्य कारण-
    • कुछ विद्वानों के विचार में इस प्रदेश में भयानक महामारियां फैली होंगी। इससे अनेक लोग मारे गए और जो लोग बचे होंगे, वे मृत्यु के भय से यह प्रदेश छोड़ गए होंगे।
    • एक अन्य मत के अनुसार शायद सिन्धु नदी ने अपना रास्ता बदल लिया होगा जिससे इस प्रदेश की भूमि बंजर हो गई होगी। लोग बंजर भूमि को छोड़ कर कहीं और चले गए होंगे।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

PSEB 7th Class Physical Education Guide शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
शारीरिक ढांचे से क्या अभिप्राय है ? हमारा शरीर दोनों टांगों पर कैसे सीधा खड़ा रहता है ?
उत्तर-
शारीरिक ढांचे (Posture) शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों की एक-दूसरे से सम्बद्ध स्थिति को बढ़िया सन्तुलित शारीरिक ढांचा कहा जा सकता है। अच्छे शारीरिक ढांचे वाले व्यक्ति के खड़े होने, बैठने, चलने और पढ़ने में स्वाभाविकता और सुन्दरता झलकती है। जब शरीर के ऊपरी अंगों का भार समान रूप से निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ रहा हो तो हमारा पोस्चर ठीक होगा। इससे अभिप्राय हमारे शरीर की बनावट है। यदि शरीर की बनावट देखने में सुन्दर, सीधी और स्वाभाविक लगे और इसका भार ऊपर वाले अंगों से निचले अंगों पर ठीक तरह आ जाए तो शारीरिक ढांचा ठीक होता है। परन्तु यदि उठने-बैठने, चलने और पढ़ने के समय शरीर टेढ़ा-मेढ़ा और दुखदायी प्रतीत हो तो शारीरिक ढांचा खराब होता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं 1
हमारे शरीर के आगे-पीछे आवश्यकतानुसार मांसपेशियां होती हैं। ये हड्डियों को उचित स्थान पर स्थिर रखती हैं। पांवों की मांसपेशियां पांवों की शक्ल को ठीक रखती हैं और शरीर को सीधा खड़ा रखने में उचित आधार प्रदान करती हैं। टांग के अगले और पिछले भाग की मांसपेशियां टांगों को पांवों पर सीधा खड़ा रखने में सहायता करती हैं। इसी प्रकार कमर के आस-पास की मांसपेशियां शरीर के ऊपरी भाग को पीछे की ओर खींचकर रखती हैं। पेट और छाती की मांसपेशियां धड़ और सिर को अधिक पीछे नहीं जाने देतीं। इसलिए हमारा शारीरिक ढांचा मांसपेशियों की सहायता से ठीक ढंग से सीधा और स्वाभाविक रूप में रहता है।

प्रश्न 2.
बढिया शारीरिक ढांचा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
शरीर के अंगों की एक-दूसरे के सम्बन्ध में उचित स्थिति को बढ़िया शारीरिक ढांचा कहा जाता है। जब शरीर के ऊपरी अंगों का भार समान रूप में निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ रहा हो तो उसे हम संतुलित पोस्चर कह सकते हैं। ऊपर चित्र में बढ़िया शारीरिक ढांचा दिखाया गया है। ऐसे ढांचे में शरीर के ऊपरी अंगों का भार ठीक तरह से नीचे वाले अंगों पर पड़ रहा है। ऐसा ढांचा बैठने-उठने, सोने में सुविधाजनक और चुस्त रहता है।

प्रश्न 3.
अच्छे शारीरिक ढांचे के हमें क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
अच्छा शारीरिक ढांचा (Balanced Posture)-संतुलित शारीरिक ढांचे के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं—

  1. अच्छा पोस्चर होने से हमें कोई शारीरिक काम करते समय कम-से-कम शक्ति लगानी पड़ती है।
  2. अच्छा पोस्चर होने से शरीर में हिलजुल आसान हो जाती है।
  3. अच्छे पोस्चर वाला व्यक्ति दूसरों को बहुत प्रभावित करता है।
  4. अच्छे पोस्चर व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा करता है।
  5. अच्छा पोस्चर वाला व्यक्ति प्रत्येक काम में चुस्त और फुर्तीला होता है।

अच्छा शारीरिक ढांचा देखने में सुन्दर लगता है। हमें बैठने-उठने, दौड़ने और पढ़ने आदि में सुविधा और चुस्ती महसूस होती है। बढ़िया ढांचे में स्वास्थ्य ठीक रहता है। बढ़िया शारीरिक ढांचे में दिल, फेफड़ों और गुर्दो आदि के काम में कोई रुकावट नहीं पड़ती। अच्छे शारीरिक ढांचे की मांसपेशियों को कम ज़ोर लगाना पड़ता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 4.
शारीरिक ढांचा कैसे कुरूप हो जाता है ? इसकी मुख्य कुरूपताओं (Deformities) के नाम लिखो।
उत्तर-
जब मांसपेशियों में परस्पर तालमेल और सन्तुलन ठीक न रहे तो हमारा शरीर आगे या पीछे की ओर झुक जाता है। मांसपेशियों की कमजोरी के कारण तथा हड्डियों के टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण शारीरिक ढांचे में कई तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। यदि बच्चों की आदतों की ओर विशेष ध्यान न दिया जाए तो भी शारीरिक ढांचा कुरूप हो जाता है। बड़ी आयु में किसी विशेष आदत के कारण शारीरिक ढांचा कुरूप हो सकता है। बच्चों की खुराक की ओर यदि ध्यान न दिया जाए तो भी शारीरिक ढांचा कुरूप हो जाता है। शारीरिक ढांचे की मुख्य कुरूपताएं निम्नलिखित हैं—

  1. कूबड़ का निकलना (Kyphosis)
  2. कूल्हों का आगे की ओर निकलना (Lordosis)
  3. रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा हो जाना (Spinal Curvature)
  4. कूबड़ सहित कूल्हों का आगे निकलना (Sclerosis)
  5. घुटनों का भिड़ना (Knee Locking)
  6. पांवों का चपटे होना (Flat Foot)
  7. दबी हुई छाती (Depressed Chest)
  8. कबूतर की तरह छाती अथवा चपटी छाती (Flat Chest)
  9. टेढ़ी गर्दन (Sliding Neck)

शरीर की इन कुरूपताओं को दूर करने के लिए भिन्न-भिन्न व्यायाम करने पड़ते हैं।

प्रश्न 5.
हमारी रीढ़ की हड्डी में कुब (Kyphosis) कैसे पड़ जाता है ? इसको ठीक करने के लिए कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिएं ?
उत्तर-
जब गर्दन और पीठ की मांसपेशियां ढीली होकर लम्बी हो जाती हैं और छाती की मांसपेशियां सिकुड़ कर छोटी हो जाती हैं तो रीढ़ की हड्डी में कूबड़ आ जाता है। इस दशा में गर्दन आगे की ओर निकल जाती है तथा सिर आगे की ओर झुका हुआ दिखाई देता है। रीढ़ की हड्डी पीछे की ओर निकल जाती है तथा कूल्हे आगे को घूम जाते हैं।
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कूबड़पन निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होता है (Causes of Kyphosis)—

  1. नज़र का कमज़ोर होना या ऊंचा सुनाई देना।
  2. कम रोशनी में आगे झुक कर पढ़ना।
  3. बैठने के लिए खराब किस्म का एवं निकम्मा फर्नीचर होना।
  4. कसरत न करने से मांसपेशियों का कमजोर हो जाना।
  5. तंग और गलत ढंग के कपड़े पहनना।
  6. शरीर का तेजी से बढ़ना।
  7. लड़कियों का जवान होने पर शरमा कर आगे को झुक कर चलना।
  8. आवश्यकता से अधिक झुक कर काम करने की आदत।
  9. कई धन्धों जैसे बढ़ई का आरा खींचना, माली का क्यारियों की गुड़ाई करना, दफ्तरों में फाइलों पर आंखें टिकाये रखना और दर्जी का कपड़े सीना आदि।
  10. बीमारी या दुर्घटना आदि के कारण।

कूबड़पन दूर करने की विधियां (Methods of Rectify Deformities)—
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  1. उठते-बैठते और चलते समय ठोडी थोड़ी-सी ऊपर की ओर, छाती और सिर को सीधा रखो।
  2. कुर्सी पर बैठकर पीठ बैक के साथ लगाकर तथा सिर पीछे की ओर रखकर ऊपर देखना। हाथों को पीछे पकड़ लेना चाहिए।
  3. पीठ के नीचे तकिया रखकर लेटना।
  4. दीवार से लगी सीढ़ी से लटकना, इस समय पीठ सीढ़ी की ओर होनी चाहिए।
  5. पेट के बल लेटना, हाथों पर भार डाल कर सिर और धड़ के अगले भाग को ऊपर की ओर उठाना।
  6. प्रतिदिन सांस खींचने वाली कसरतों को करना या लम्बे सांस लेना।
  7. डंड निकालना, तैरना तथा छाती के लिए अन्य कसरतें करना।
  8. एक कोने में खड़े होकर दोनों दीवारों पर एक-एक हाथ लगा कर शरीर के भार से बारी-बारी एक बाजू को कोहनी से झुकाना और सीधा करना।

इन कसरतों के अतिरिक्त शारीरिक ढांचे को ठीक रखने वाली स्वस्थ बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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प्रश्न 6.
हमारी कमर के अधिक आगे निकल जाने के कारण बताओ। इस कुरूपता को दूर करने के लिए कुछ कसरतें लिखो।
उत्तर-
कई बार कूल्हों की मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं और पेट की मांसपेशियां ढीली पड़कर लम्बी हो जाती हैं। रीढ़ की हड्डी का नीचे वाला मोड़ अधिक आगे हो जाने के कारण पेट आगे निकल जाता है। इससे सांस लेने की क्रिया में काफी बदलाव आ जाता है। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं—

  1. छोटे बच्चों में पेट आगे निकल कर चलने की आदत
  2. छोटी उम्र में बच्चों को सन्तुलित भोजन का न मिलना।
  3. कसरत न करना।
  4. ज़रूरत से ज्यादा भोजन करना।
  5. स्त्रियों का ज्यादा बच्चे पैदा करना।

पीछे लिखे कारणों के कारण कमर आगे निकल जाती है। इस कुरूपता को दूर करने के लिए आगे लिखी कसरतें करनी चाहिएं—
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  1. सीधे खड़े होकर शरीर का ऊपरी भाग आगे झुकाना और सीधा करना चाहिए।
  2. पीठ के बल लेट कर उठना और फिर लेटना।
  3. पीठ के बल लेटकर शरीर के सिर वाले और टांगों वाले भागों को बारी-बारी ऊपर उठाना।।
  4. पीठ के बल लेटकर टांगों को धीरे-धीरे 45° तक ऊपर को उठाना तथा फिर नीचे लाना।
  5. सावधान अवस्था में खड़े होकर बार-बार पैरों को स्पर्श करना।
  6. सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  7. हल आसन का अभ्यास करना।

यदि ऊपर लिखी कसरतों को लगातार किया जाए तो बाहर निकली कमर ठीक हो जाती है।

प्रश्न 7.
हमारे पांव चपटे कैसे हो जाते हैं ? चपटे पांव की परख बताते हुए इसको दूर करने की कसरतें भी लिखो।
उत्तर-
चपटे पांव (Flat Foot)—जब पांवों की मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं तो डाटें सीधी हो जाती हैं और पांव चपटा हो जाता है। इसके अतिरिक्त यदि शरीर ज्यादा भारी हो, कसरत न की जाए, गलत बनावट के जूते पहने जाएं तो भी पांव चपटे हो जाते हैं। अगर हर रोज़ लगातार काफ़ी समय तक खड़े होना पड़े या शारीरिक ढांचे सम्बन्धी ग़लत आदतें हों तो भी पांव चपटे हो जाते हैं।
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(क) ठीक पांव
(ख) चपटा पांव

चपटे पांवों की परख-थोड़ी-सी नर्म और गीली मिट्टी लो। इसे धरती पर समतल बिछा दो। इस पर पांव रखते हुए आगे की ओर चलो। यदि पांव ठीक हो तो इसके तल का निशान चित्र नं०

  1. में दिखाए गए चित्र के अनुरूप होगा परन्तु यदि पांव चपटा हो तो इसका निशान चित्र नं०
  2. के अनुरूप होगा।

व्यायाम-चपटे पांव को ठीक करने के लिए निम्नलिखित कसरतें करनी चाहिएं—
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  1. एड़ियों के भार चलना और धीरे-धीरे दौड़ना।
  2. पंजों के बल चलना और दौड़ना।।
  3. पंजों के बल साइकिल चलाना।
  4. डंडेदार सीढ़ियों पर चढ़ना-उतरना।
  5. पांव को इकट्ठा करके एड़ी और उंगलियों के सहारे चलना।
  6. नाचना।
  7. लकड़ी के तिकोने फट्टे की ढलान पर पांव रखकर चलना।

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प्रश्न 8.
छाती की हड्डियों में कौन-कौन सी कुरूपताएं आ जाती हैं ? इनको कैसे ठीक किया जा सकता है ?
उत्तर-
छाती की हड्डियों में तीन प्रकार की कुरूपताएं आ जाती हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है—

  1. दबी हुई छाती (Depressed Chest)—इस प्रकार की छाती अन्दर की ओर दबी हुई होती है।
  2. कबूतर जैसी छाती (Pigeon type Chest)-इस प्रकार की छाती की हड्डी ऊपर की ओर उभरी हुई होती है।
  3. चपटी छाती (Flat Chest)-इस प्रकार की छाती में पसलियां अधिक इधर-उधर उभरने की बजाय छाती की हड्डी के लगभग समतल होती हैं।

छाती की हड्डियों में कुरूपता के कारण—

  1. कसरत की कमी।
  2. भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी।
  3. भयानक बीमारियां।
  4. अत्यधिक आगे को झुक कर बैठना, खड़े होना या चलना आदि।

व्यायाम—

  1. डंड निकालना।
  2. प्रतिदिन सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  3. भुजाओं और धड़ की कसरतों का अभ्यास करना।
  4. चारा काटने वाली मशीन को हाथ से चलाकर चारा काटना।
  5. किसी चीज़ से लटक कर डंड निकालना।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित कुरूपताओं के कारण बताते हुए इनको ठीक करने वाली कसरतें भी लिखो—
(क) टेढ़ी गर्दन,
(ख) घुटनों का भिड़ना,
(ग) चपटी छाती।
उत्तर-
(क) टेढ़ी-गर्दन (Sliding Neck)-कई बार गर्दन के एक तरफ की मांसपेशियां ढीली होकर लम्बी हो जाती हैं। दूसरी ओर की मांसपेशियां सिकुड़ जाने के कारण छोटी हो जाती हैं। गर्दन एक ओर झुकी रहती है। इससे गर्दन टेढ़ी हो जाती है।
कारण (Causes) गर्दन टेढ़ी होने के निम्नलिखित मुख्य कारण होते हैं—

  1. बच्चों को छोटी उम्र में एक ओर ही लेटे रहने देना।
  2. बच्चों को प्रतिदिन एक ओर ही उठाना और कन्धे से लगाए रखना।
  3. पढ़ने का गलत ढंग अपनाना।
  4. एक ओर गर्दन झुकाकर देखने की आदत।
  5. एक आंख की नज़र का कमज़ोर होना।

दोष ठीक करने के उपाय (Remedies)—

  1. सीधी गर्दन रखकर चलने और पढ़ने की आदत डालनी चाहिए।
  2. प्रतिदिन गर्दन की कसरत करनी चाहिए।

(ख) घुटनों का भिड़ना (Knee Loebing)-छोटे बच्चों के भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण उनकी हड्डियां कमज़ोर होकर टेढ़ी हो जाती हैं। उनकी टांगें शरीर का भार न सहन कर सकने के कारण घुटनों से अन्दर की ओर टेढ़ी हो जाती हैं। इस कारण बच्चों के घुटने भिड़ने लग जाते हैं। बच्चा सावधान अवस्था में खड़ा नहीं हो सकता। ऐसा बच्चा भली-भान्ति दौड़ नहीं सकता।

दोष ठीक करने के उपाय (Remedies)-इस दोष को दूर करने के लिए बच्चे को निम्नलिखित कसरतें करवानी चाहिएं—

  1. बच्चे से साइकिल चलवाना चाहिए।
  2. बच्चे को प्रतिदिन सैर करवानी चाहिए।
  3. बच्चे को सीमेण्ट या लकड़ी के घोड़े पर प्रतिदिन बिठाया जाए।

(ग) चपटी छाती (Flat Chest) चपटी छाती में पसलियां अधिक उभरने की बजाय समतल फैल जाती हैं। इस दोष के कारण श्वास-क्रिया में रुकावट आती है।
कारण (Causes)-चपटी छाती होने के निम्नलिखित कारण हैं—

  1. भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी।
  2. कसरत न करना।
  3. शारीरिक ढांचे की गन्दी आदतें, जैसे-अधिक आगे की ओर झुक कर बैठना, खड़े होना या चलना।
  4. भयानक बीमारियां।

ठीक करने के उपाय (Remedies)–यदि चपटी छाती हो तो निम्नलिखित कसरतें करनी चाहिएं—

  1. प्रतिदिन सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  2. डंड पेलना।
  3. चारा काटने वाली मशीन चलाना।
  4. किसी चीज़ से लटक कर डंड निकालना।
  5. भुजाओं और धड़ की कसरतों का अभ्यास आदि करना।

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प्रश्न 10.
शारीरिक ढांचे को अच्छा बनाने के लिए कुछ सेहतमन्द आदतों का वर्णन करो।
उत्तर-
शारीरिक ढांचे को अच्छा बनाने के लिए निम्नलिखित आदतें अपनानी चाहिएं—

  1. भोजन में बच्चों को आवश्यकतानुसार कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ देना चाहिए।
  2. सप्ताह में एक दो बार बच्चों को नंगे शरीर धूप में बिठाकर मालिश करनी चाहिए।
  3. पढ़ते समय अच्छी रोशनी और अच्छे फर्नीचर का प्रयोग करना चाहिए।
  4. कभी-कभी बच्चों की नज़र टैस्ट करवा लेनी चाहिए।
  5. बच्चों को बैठने, उठने, चलने और पढ़ने के लिए अच्छे ढंग सिखलाने चाहिएं।
  6. पांवों के बल अधिक देर तक खड़ा नहीं होना चाहिए।
  7. प्रतिदिन सांस की कसरत का अभ्यास करना चाहिए।
  8. तंग जूते और तंग कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।
  9. प्रतिदिन कसरत करनी चाहिए।
  10. बैठने के लिए अच्छे फर्नीचर का प्रयोग करना चाहिए।

पीछे की ओर कूबड़ को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Kyphosis)—
1. चित्त अवस्था अर्थात् पीठ के बल लेट जाएं, घुटनों को ऊपर की ओर उठाएं, ताकि पैरों के तलवे ज़मीन पर स्पर्श कर सकें। फिर दोनों हाथों को कंधों के बराबर खोलें। हथेलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए। अपने हाथों को सिर की ओर ले जायें और हथेलियां एक-दूसरे की ओर हों। कुछ देर इस स्थिति में रहें। उसके बाद अपने हाथों को कंधों के बराबर ले आएं। इस क्रिया को आठ या दस बार दोहराएं।

2. छाती के बल लेट जायें। अपने हाथों को अपनी पीठ पर रखें। फिर अपने धड़ को ज़मीन से कुछ ऊपर उठायें। इस क्रिया को करते समय आपकी ठोड़ी अंदर की ओर हो। इस अवस्था में रुक कर इस क्रिया को आठ या दस बार करें।

3. एक छड़ी को लेकर सिर के ऊपर दोनों हाथों को काफी खुला रखते हुए हॉरीजोन्टल पोजीशन में बैठ जायें। उसके बाद छड़ी सहित दोनों, सिर व कंधों को पीछे की ओर करते हुए धीरे से नीचे की ओर ले जायें और फिर ऊपर करें। इस क्रिया को करते हुए सिर या धड़ को सीधा रखें और इस क्रिया को आठ या दस बार करें।

आगे की ओर रीढ़ की अस्थि को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Lordosis)—
1. छाती के बल लेट जायें। दोनों हाथ पीठ पर रखें। फिर कूल्हों तथा कंधों की ओर रखें। पेट पर हाथों से ऊपर की ओर जोर डालें। पीठ के नीचे के भाग को ऊपर उठाने का प्रयास करें।

2. घुटनों को आगे की ओर मोड़ें ताकि कूल्हे पीछे मुड़ सकें। इस अवस्था में कमर सीधी रखें। घुटने पैरों की दशा में ही रहने चाहिए। फिर नीचे की ओर जायें जब तक पट (Thies) ठीक समानान्तर न हो जायें। फिर सीधे खड़े हो जायें, तब इस प्रक्रिया को दोहराएं।

3. आगे की ओर लम्बा डग (style) करें। पिछले पैर का घुटना ज़मीन पर लगायें। अगला पैर घुटने के आगे रहना चाहिए। दोनों हाथ अगले वाले घुटनों पर रखें। पिछली टांग के कूल्हे आगे की ओर ले जाकर कूल्हे को सीधा रखें। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। यह क्रिया टांग बदलकर भी करें।

4. कर्सी पर पैर चौडे करके बैठ जायें और आगे की ओर झुकें। कंधे दोनों घुटनों के बीच तक ले जायें। हाथों को नीचे से कुर्सी की पीठ के नीचे तक ले जायें। कुछ देर इस स्थिति में रहें।

5. फर्श पर पीठ के बल लेट जायें। अपने कंधों की चौड़ाई के अनुसार अपने दोनों हाथों की हथेलियां फर्श पर रखें और फिर पैलविस को फर्श पर रखते हुए धड़ को ऊपर की ओर ले जायें। कुछ समय तक इस स्थिति में रहें।

6. घुटने फैलाकर बैठ जायें। दोनों पैर आपस में मिले होने चाहिए। उसके बाद आगे की ओर झुककर उंगलियों से पैरों के अंगूठों को पकड़ें। इसी अवस्था में कुछ देर फिर वापस आकर इसी प्रक्रिया को दोहराएं।

रीढ़ की अस्थि के एक ओर झुकाव को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Scoliosis)
1. छाती के बल लेट जायें। दायें बाजू को ऊपर करें फिर बायें बाजू को ऊपर करें। उसके बाद दायें बाजू को सिर के ऊपर बायीं ओर ले जायें। बायें हाथ से उसे दबाएं। बायें कूल्हे को थोड़ा-सा ऊपर की ओर ले जायें।

2. पैरों की आपसी दूरी के बराबर खड़े हो जायें। उसके पश्चात् बायीं एड़ी और कूल्हों को ऊपर उठायें। दायें बाजू को चाप के रूप में सिर के ऊपर फिर बायीं ओर ले जायें। बायें हाथ से दायें ओर वाली पसली को दबाएँ।

3. पैरों के बीच कुछ इंच की दूरी रखते हुए सीधे खड़े हो जायें। बायें हाथ की उंगलियों के पोरों को बायें कंधे पर रखें तथा शरीर के ऊपर के भाग को दायीं ओर झुकायें।
शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं यदि रीढ़ की हड्डी का कर्व (Curve) ‘C’ के विपरीत हो। यदि ‘C’ की स्थिति के बीच न हो। यदि वक्र ‘C’ की स्थिति में हो तो दायें हाथ की उंगलियों के पोरों को दायें कंधे पर रखकर शरीर के ऊपरी भाग को दाईं ओर झुकाएं। ‘C’ वक्र की स्थिति के अनुसार इस क्रिया को कुछ समय दोहराएं।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

Physical Education Guide for Class 7 PSEB शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य ने दो टांगों पर खड़े होने का ढांचा कितने समय में अपनाया ?
उत्तर-
लाखों सालों में।

प्रश्न 2.
हड्डियों के आगे-पीछे आवश्यकतानुसार क्या लगा होता है ?
उत्तर-
मांसपेशियां।

प्रश्न 3.
यदि मांसपेशि का परस्पर तालमेल और सन्तुलन ठीक न रहे तो क्या होता है ?
उत्तर-
शरीर झुक जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 4.
सीधा शरीर देखने में कैसे लगता है ?
उत्तर-सुन्दर।

प्रश्न 5. शारीरिक ढांचा कितनी आयु तक अच्छा या खराब हो सकता है ?
उत्तर-
20 वर्ष तक।

प्रश्न 6.
शरीर को ठीक रखने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
कसरत।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 7.
कैसे पांव शरीर के भार को अच्छी प्रकार नहीं सम्भाल सकते ?
उत्तर-
चपटे पांव।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शारीरिक ढांचे की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
शारीरिक ढांचे की परिभाषा के बारे में सभी विद्वानों की एक राय नहीं है। यदि शरीर का पिंजर देखने में सुन्दर लगे और इसके ऊपर के अंगों का भार निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ता हो तो उसे सन्तुलित अथवा अच्छा पोस्चर कहते हैं। इस तरह के शारीरिक ढांचे की अच्छी या गन्दी स्थिति को उसके काम द्वारा ही बनाया जा सकता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 2.
छाती की हड्डियों में कौन-कौन सी कुरूपताएं आ जाती हैं ?
उत्तर-

  1. दबी हुई छाती (Depressed Chest)
  2. कबूतर जैसी छाती (Pigeon Type Chest)
  3. चपटी छाती (Flat Chest)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

महाराजा रणजीत सिंह का चरित्र एवं व्यक्तित्व (Character and Personality of Maharaja Ranjit Singh)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के चरित्र और शख्सीयत का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। (Explain in detail the character and personality of Maharaja Ranjit Singh)
अथवा
रणजीत सिंह का एक मनुष्य के रूप में वर्णन करें। (Describe Ranjit Singh as a man)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। (Give a character estimate of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की एक व्यक्ति, एक सेनानी, एक शासक और एक राजनीतिज्ञ के रूप में चर्चा करें।
(Discuss Maharaja Ranjit Singh as a man, a general, a ruler and a diplomat.)
अथवा
आप रणजीत सिंह को इतिहास में क्या स्थान देंगे ? उसे शेर-ए-पंजाब क्यों कहा जाता है ?
(What place would you assign to Ranjit Singh in the history ? Why is he called Sher-i-Punjab ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की गणना न केवल भारत के अपितु विश्व के महान् व्यक्तियों में की जाती है। वह बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। वह अपने गुणों के कारण पंजाब में एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की स्थापना करने में सफल हुआ। उसे ठीक ही पंजाब का शेर-ए-पंजाब कहा जाता है। महाराजा रणजीत सिंह के आचरण और व्यक्तित्व का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. मनुष्य के रूप में
(As a Man)

1. शक्ल सूरत (Appearance)—महाराजा रणजीत सिंह की शक्ल-सूरत अधिक आकर्षक नहीं थी। उसका कद मध्यम तथा शरीर पतला था। बचपन में चेचक हो जाने के कारण उसकी एक आँख भी जाती रही थी। इसके बावजूद महाराजा के व्यक्तित्व में इतना आकर्षण था कि कोई भी भेंटकर्ता उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। उसके चेहरे से एक विशेष प्रकार की तेजस्विता झलकती थी।

2. परिश्रमी एवं सक्रिय (Hard-working and Active)-महाराजा रणजीत सिंह बहुत परिश्रमी एवं सक्रिय व्यक्ति था। वह इस बात में विश्वास रखता था कि महान् व्यक्तियों को सदैव परिश्रमी एवं सक्रिय रहना चाहिए। महाराजा सुबह से लेकर रात को देर तक राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था। वह राज्य के बड़े-से-बड़े कार्य से लेकर लघु-से-लघु कार्य की ओर व्यक्तिगत ध्यान देता था।

3. साहसी एवं वीर (Courageous and Brave)—महाराजा रणजीत सिंह बहुत ही साहसी एवं वीर व्यक्ति था। उसे बाल्यकाल से ही युद्धों में जाने, शिकार खेलने, तलवार चलाने और घुड़सवारी करने का बहुत शौक था। उसने अल्पायु में ही हशमत खान चट्ठा का सिर काटकर अपनी वीरता का प्रमाण प्रस्तुत किया था। वह भयंकर लड़ाइयों के समय भी बिल्कुल घबराता नहीं था अपितु युद्ध में प्रथम कतार में लड़ता था।

4. अनपढ़ किंतु बुद्धिमान (Illiterate but Intelligent)—महाराजा रणजीत सिंह की पढ़ाई में रुचि नहीं थी। फलस्वरूप वह अशिक्षित ही रहा। अशिक्षित होने पर भी वह बहुत तीक्ष्ण बुद्धि और अद्भुत स्मरण-शक्ति का स्वामी था। उसे अपने राज्य के गाँवों के हज़ारों नाम और उनकी भौगोलिक दशा मौखिक रूप से याद थे। वह जिस व्यक्ति को एक बार देख लेता था उसे वह कई वर्षों के पश्चात् भी पहचान लेता था। उसकी समझ-बूझ इतनी थी कि विदेशों से आए यात्री भी चकित रह जाते थे।

5. दयालु स्वभाव (Kind Hearted)-महाराजा रणजीत सिंह अपनी दया के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था। महाराजा ने कभी भी अपने शत्रुओं के साथ भी अत्याचारपूर्ण व्यवहार नहीं किया। लाहौर के इस शासक ने जिन्हें युद्ध-भूमि में पराजित किया, न केवल गले से लगाया, बल्कि उनकी संतान को भी जागीरें तथा पुरस्कार प्रदान किए। वह निर्धनों, पीड़ितों तथा कृषकों की सहायता के लिए प्रत्येक क्षण तैयार रहता था। उसकी दया की कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।
प्रसिद्ध लेखक फकीर सैयद वहीदुदीन के अनुसार,
“लोक दिलों में रणजीत सिंह की लोकप्रिय तस्वीर एक विजयी नायक अथवा एक शक्तिशाली सम्राट की अपेक्षा एक दयालु पितामह के लिए अधिक छाई है। उनमें ये तीनों गुण थे, परंतु उनकी दयालुता उनकी आन-शान तथा राज्य शक्ति पीछे छोड़ आई है तथा अभी तक जीवित है।”1.

6. सिख-धर्म का श्रद्धालु अनुयायी (A devoted follower of Sikhism)-महाराजा रणजीत सिंह को सिख धर्म में अटल विश्वास था। वह अपना प्रतिदिन का कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनता था तथा अरदास करता था। वह अपनी इन विजयों के लिए धन्यवाद हेतु दरबार साहिब अमृतसर जाकर भारी चढ़ावा चढ़ाता था। वह स्वयं को गुरुघर का और सिख पंथ का ‘कूकर’ मानता था। वह अपनी सरकार को ‘सरकार-एखालसा’ और दरबार को ‘दरबार खालसा जी’ कहता था। उसने सिंह साहिब की उपाधि को धारण किया था।. उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ तथा ‘गोबिंद सहाय’ शब्द अंकित थे। उसकी शाही मोहर पर ‘अकाल सहाय’ शब्द अंकित थे। महाराजा रणजीत सिंह ने बहुत-से गुरुद्वारों में नवीन भवनों का निर्माण करवाया। हरिमंदिर साहिब के गुंबद पर सीने का काम करवाया। संक्षेप में कहें तो वह तन-मन से सिख धर्म का अनन्य श्रद्धालु था।

6. सहिष्णु (Tolerant) यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का पक्का श्रद्धालु था फिर भी वह अन्य धर्मों का सम्मान करता था। वह धार्मिक पक्षपात तथा सांप्रदायिकता से कोसों दूर था। उसके दरबार में उच्च पदों पर सिख, हिंदू, मुसलमान, डोगरे तथा यूरोपीय नियुक्त थे। उदाहरणतया उसका विदेश मंत्री फकीर अज़ीज-उद्दीन मुसलमान, प्रधानमंत्री ध्यान सिंह डोगरा और सेनापति मिसर दीवान चंद हिंदू थे। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोगों को अपने रस्मों-रिवाज की पूरी स्वतंत्रता थी। डॉ० भगत सिंह के अनुसार,

“प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय इतिहास का कोई भी शासक रणजीत सिंह की सहिष्णुता की नीति की समानता नहीं कर सकता।”2

1. “Ranjit Singh’s popular image is that of a kindly patriarch rather than that of conquering ‘ hero or a mighty monarch. He was all three, but his humanity has outlived his splendour and power.” Fakir Syed Waheeduddin, The Real Ranjit Singh (Patiala : 1981) p. 8.
2. “No ruler of ancient or medieval Indian history could match Ranjit Singh in his cosmopolitan approach.” Dr. Bhagat Singh, Life and Times of Maharaja Ranjit Singh (New Delhi : 1990) p. 337.

II. एक सेनानी तथा विजेता के रूप में
(As a General and Conqueror)
महाराजा रणजीत सिंह की गणना विश्व के महान् सेनानियों में की जाती है। उसने अपने जीवन में जितने भी युद्ध किए किसी में भी पराजय का मुख नहीं देखा। वह बड़ी से बड़ी विपदा आने पर भी नहीं घबराता था। उदाहरणतया 1823 ई० में नौशहरा की लड़ाई में खालसा सेना ने साहस छोड़ दिया था। ऐसे समय महाराजा रणजीत सिंह भाग कर युद्ध क्षेत्र में सबसे आगे पहुँचा तथा सैनिकों में नया जोश भरा।

निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह एक महान् विजेता भी था। 1797 ई० में जब रणजीत सिंह शुकरचकिया मिसल की गद्दी पर विराजमान हुआ तो उसके अधीन बहुत कम क्षेत्र था। उसने अपनी योग्यता तथा वीरता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में बदल दिया था। उसके राज्य में लाहौर, अमृतसर, कसूर, स्यालकोट, काँगड़ा, गुजरात, जम्मू, अटक, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश समिलित थे। महाराजा की विजयों के कारण उसका साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक और पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिमी में पेशावर तक फैला था। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० गंडा सिंह के अनुसार, “वह (महाराजा रणजीत सिंह) भारत के महान् नायकों में से एक था।”3

III. एक प्रशासक के रूप में
(As an Administrator) : निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह एक उच्चकोटि का प्रशासक था। उसके शासन का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण था। प्रशासन चलाने के लिए महाराजा ने कई योग्य तथा ईमानदार मंत्री नियुक्त किए थे। महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्रांतों में विभक्त किया हुआ था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मौजा अथवा गाँव थी। गाँव का प्रशासन पंचायत के हाथ होता था। प्रजा की स्थिति जानने के लिए महाराजा प्रायः भेष बदलकर राज्य के विभिन्न भागों का भ्रमण करता था। किसानों तथा निर्धनों को राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं। परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह के समय प्रजा बड़ी समृद्ध थी।

महाराजा रणजीत सिंह यह बात भी भली-भाँति समझता था कि साम्राज्य की सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का होना अत्यावश्यक है। वह प्रथम भारतीय शासक था जिसने अपनी सेना को यूरोपीय पद्धति का सैनिक प्रशिक्षण देना आरंभ किया। महाराजा स्वयं सेना का निरीक्षण करता था। सैनिकों का ‘हुलिया’ रखने तथा घोड़ों को ‘दागने’ की प्रथा भी आरंभ की गई। सैनिकों तथा उनके परिवारों का राज्य की ओर से पूरा ध्यान रखा जाता था। डॉ० एच० आर० गुप्ता का यह कहना बिल्कुल ठीक है, “वह भारतीय इतिहास के उत्तम शासकों में से एक था।”4

3. “Rightly he may claim to be one of the greatest heroes of India.” Dr. Ganda Singh, Maharaja Ranjit Singh, Quoted from, the Panjab Past and Present (Patiala : Oct. 1980) Vol. XIV, p. 15.
4. “He was one of the best rulers in Indian history.” Dr. H. R. Gupta, History of the Sikhs (New Delhi : 1991) Vol. 5, p. 596.

IV. एक कूटनीतिज्ञ के रूप में
(As a Diplomat)
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल कूटनीतिज्ञ था। अपने राजनीतिक जीवन के शुरू में उसने शक्तिशाली मिसल सरदारों के सहयोग से दुर्बल मिसलों पर अधिकार किया। तत्पश्चात् उसने एक-एक करके इन शक्तिशाली मिसलों को भी अपने अधीन कर लिया। वह जिन शासकों को पराजित करता था उन्हें आजीविका के लिए जागीरें भी प्रदान करता था। इसलिए वे महाराजा का विरोध नहीं करते थे। महाराजा ने अपनी कूटनीति से जहाँदद खाँ से अटक का किला बिना युद्ध किए ही प्राप्त कर लिया था। 1835 ई० में जब अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ आक्रमण करने आया तो महाराजा ने ऐसी चाल चली कि वह लड़े बिना ही युद्ध क्षेत्र से भाग गया।

1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से मित्रता करके अपने राजनीतिक विवेक का प्रमाण दिया। यह उसकी दुर्बलता नहीं अपितु उसके राजनीतिक विवेक तथा दूरदर्शिता का प्रमाण था। उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति के संबंध में भी महाराजा ने राजनीतिक समझदारी का प्रमाण दिया। अफ़गानिस्तान पर आक्रमण न करना महाराजा की बुद्धिमत्ता का एक अन्य प्रमाण था। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० भगत सिंह के अनुसार,
“कूटनीति में उसे परास्त करना कोई सहज कार्य नहीं था।”5

5. “It was not easy to beat him in diplomacy.” Dr. Bhagat Singh, op. cit., p. 339.

V. पंजाब के इतिहास में उसका स्थान . (HIs Place in the History of the Punjab)
महाराजा रणजीत सिंह की गणना न केवल भारत अपितु विश्व के महान् शासकों में की जाती है। विभिन्न इतिहासकार महाराजा रणजीत सिंह की तुलना मुग़ल बादशाह अकबर, मराठा शासक शिवाजी, मिस्र के शासक महमत अली एवं फ्रांस के शासक नेपोलियन आदि से करते हैं। इतिहास का निष्पक्ष अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ इन शासकों से कहीं अधिक थीं। जिस समय महाराजा रणजीत सिंह सिंहासन पर बैठा तो उसके पास केवल नाममात्र का राज्य था। किंतु महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी योग्यता एवं कुशलता के साथ एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। ऐसा करके उन्होंने सिख साम्राज्य के स्वप्न को साकार किया। महाराजा रणजीत सिंह का शासन प्रबंध भी बहुत उच्चकोटि का था। उनके शासन प्रबंध का मुख्य उद्देश्य प्रजा की भलाई करना था। प्रजा के दुःखों को दूर करने के लिए महाराजा सदैव तैयार रहता था तथा प्रायः राज्य का भ्रमण भी किया करता था। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। उनके दरबार में सिख, हिंदू, मुसलमान, यूरोपियन इत्यादि सभी धर्मों के लोग उच्च पदों पर नियुक्त थे। महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाकर उन्हें एक सूत्र में बाँधा। वह एक महान् दानी भी थे। उन्होंने अपने साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार के लिए एक शक्तिशाली सेना का भी निर्माण किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ मित्रता स्थापित करके अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रमाण दिया। इन सभी गुणों के कारण आज भी लोग महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरए-पंजाब’ के नाम से स्मरण करते हैं। निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह को पंजाब के इतिहास में एक गौरवमयी स्थान प्राप्त है।
अंत में हम डॉ० एच० आर० गुप्ता के इन शब्दों से सहमत हैं,
“एक व्यक्ति, योद्धा, जरनैल, विजेता, प्रशासक, शासक तथा राजनीतिवेत्ता के रूप में रणजीत सिंह को . विश्व के महान् शासकों में उच्च स्थान प्राप्त है।”6

6. “As a man, warrior, general, conqueror, administrator, ruler and diplomat, Ranjit Singh occupies a high position among the greatest sovereigns of the world.” Dr. H.R. Gupta, op. cit., p. 596.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का एक व्यक्ति के रूप में आप कैसे वर्णन करेंगे?
(How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a man ?)
अथवा
एक मनुष्य के रूप में महाराजा रणजीत सिंह के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Ranjit Singh as a man ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की शख्सियत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the personality of Maharaja Ranjit Singh ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के चरित्र और व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ बताएँ।
(Mention the three characteristics of the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह शक्ल-सूरत से अधिक आकर्षक नहीं था, तथापि प्रकृति ने उसे अद्भुत स्मरण शक्ति तथा अदम्य साहस का वरदान देकर इस कमी को पूरा किया। महाराजा रणजीत सिंह का स्वभाव बड़ा दयालु था। वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता था। उसने अपने शासनकाल के दौरान किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया था। महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का सच्चा सेवक था। इसके बावजूद उनका अन्य धर्मों के साथ व्यवहार बड़ा सम्मानजनक था।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह एक दयालु शासक था । कैसे ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी दया के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था। अपने शासनकाल के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने उन शासकों को जिन्हें युद्ध-भूमि में पराजित किया उन्हें जागीरें तथा पुरस्कार प्रदान किए। महाराजा ने अपने शासनकाल के दौरान किसी भी अपराधी को मृत्यु-दंड नहीं दिया था। वह निर्धनों, पीड़ितों तथा कृषकों की सहायता के लिए प्रत्येक क्षण तैयार रहता था। उसकी दया की कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का श्रद्धालु अनुयायी था । अपने पक्ष में तर्क दीजिए।
(Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपना प्रतिदिन का कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनता था तथा अरदास करता था। वह अपनी विजयों को उस परमात्मा की कृपा समझता था। वह स्वयं को गुरु घर का और सिख पंथ का ‘कूकर’ मानता था। वह अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ कहता था। वह स्वयं को ‘महाराजा’ कहलवाने के स्थान पर ‘सिंह साहिब’ कहलवाता था। महाराजा रणजीत सिंह ने बहुत-से नवीन गुरुद्वारों का निर्माण करवाया। वह तन-मन-धन से सिख धर्म का अनन्य श्रद्धालु था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह एक धर्म-निरपेक्ष शासक थे। कैसे ?
(Maharaja Ranjit Singh was a secular ruler. How ?)
उत्तर-
यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का पक्का श्रद्धालु था फिर भी वह अन्य धर्मों को सम्मान की दृष्टि से देखता था। वह अपनी सहिष्णुता की नीति से विभिन्न धर्मों के लोगों के दिल जीतने में सफल रहा। उसके राज्य में नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। उसके दरबार में उच्च पदों पर सिख , हिंदू, मुसलमान, डोगरे तथा यूरोपीय नियुक्त थे। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोगों को अपने रस्मों-रिवाजों की पूरी स्वतंत्रता थी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह का एक प्रशासक के रूप में उल्लेख कीजिए।
(Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
अथवा
एक शासन प्रबंधक के रूप में महाराजा रणजीत सिंह के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Maharaja Ranjit Singh as an administrator ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह सिख पंथ का महान् विजेता था तथा एक उच्चकोटि का शासक प्रबंधक था। उसने प्रशासन को कुशलता से चलाने के उद्देश्य से योग्य व ईमानदार मन्त्रियों को नियुक्त किया गया था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मौजा अथवा गाँव थी। गाँव का प्रशासन पंचायत के हाथ में होता था। प्रजा की स्थिति जानने के लिए महाराजा भेष बदल कर राज्य का भ्रमण भी किया करता था। महाराजा रणजीत सिंह ने इसके साम्राज्य की सुरक्षा व विस्तार के लिए शक्तिशाली सेना का भी गठन किया था।

प्रश्न 6.
“महाराजा रणजीत सिंह एक महान् सेनानी एवं विजेता था।” व्याख्या करें।
(“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.)
अथवा
“एक सैनिक और जरनैल के रूप” में महाराजा रणजीत सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Maharaja Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक महान् सेनापति एवं विजेता था। उसने अपनी योग्यता तथा वीरता से अपने राज्य को एक विशाल साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था। उसके राज्य में लाहौर, अमृतसर, स्यिालकोट, काँगड़ा, गुजरात जम्मू, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश शामिल थे। महाराजा की विजयों के कारण उसका साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक और पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला हुआ था।

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह को शेरे-पंजाब क्यों कहा जाता है ? (Why Maharaja Ranjit Singh is called Sher-i-Punjab ?)
अथवा
आप रणजीत सिंह को इतिहास में क्या स्थान देंगे? उनको शेरे-पंजाब क्यों कहा जाता है ?
(What place would you assign in History to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता होने के साथ-साथ वह एक कुशल प्रबंधक भी सिद्ध हुआ। उसके शासन प्रबंध का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण करना था। महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई थी। उसने सेना का पश्चिमीकरण किया। उसने अंग्रेजों के साथ मित्रता करके पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित होने से बचाए रखा। इन सभी गुणों के कारण रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब कहा जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
एक मनुष्य के रूप में महाराजा रणजीत सिंह की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का स्वभाव बड़ा दयालु था।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह को किस घोड़े से विशेष लगाव था ?
उत्तर-
लैली।

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प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह सिख-धर्म का श्रद्धालु अनुयायी था। इसके संबंध में कोई एक प्रमाण दीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को सरकार-ए-खालसा कहता था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को क्या कहते थे ?
उत्तर-
सरकार-ए-खालसा।

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह अपने आप को क्या कह कर बुलाते थे ?
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह अपने आप को क्या कहा करता था ?
उत्तर-
सिख पंथ का कूकर।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबार को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
दरबार-ए-खालसा।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के एक गैर-सिख मंत्री का नाम बताएँ।
उत्तर-
फकीर अज़ीज़-उद्दीन।

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार का नाम बताएँ।
उत्तर-
सोहन लाल सूरी।

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प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह को एक महान् सेनानायक क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह को किसी भी लड़ाई में पराजय का सामना नहीं करना पड़ा था।

प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल कूटनीतिज्ञ था। इसके संबंध में कोई एक प्रमाण दीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गानिस्तान पर अधिकार न करके अपनी सूझ-बूझ का प्रमाण दिया।

प्रश्न 11.
पंजाब के किस शासक को शेर-ए-पंजाब के नाम से याद किया जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह को।

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प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह को विशाल सिख साम्राज्य तथा उत्तम शासन व्यवस्था की स्थापना की।

प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह को पारस क्यों कहा जाता था ?
उत्तर-
क्योंकि वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था।

(ii) रिक्त स्थान भरें । (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह की शक्ल सूरत………नहीं थी।
उत्तर-
(आकर्षक)

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह को सबसे अधिक……..नामक घोड़े से प्यार था।
उत्तर-
(लैली)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह स्वयं को सिख पंथ का……..समझते थे।
उत्तर-
(कूकर)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को……..कहते थे। .
उत्तर-
(सरकार-ए-खालसा)

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह अपने दरबार को………..कहते थे।
उत्तर-
(दरबार खालसा जी)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह शराब के बहुत………थे।
उत्तर-
(शौकीन)

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह को……….के नाम से याद किया जाता है।
उत्तर-
(शेर-ए-पंजाब)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
महाराजा सिंह बड़ा मेहनती तथा फुर्तीला था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह को लैली नामक घोड़े से बहुत प्यार था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह अपने आप को सिख धर्म का कूकर समझते थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को सरकार-ए-खालसा कहते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह को केवल सिख धर्म के साथ प्रेम था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह शराब के साथ बहुत घृणा करते थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह न केवल एक महान् विजेता थे बल्कि एक उच्च कोटि के शासन प्रबंधक भी थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को आज भी लोग शेर-ए-पंजाब के नाम से याद करते हैं।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
एक मनुष्य के रूप में महाराजा रणजीत सिंह की क्या विशेषता थी ?
(i) वह बहुत परिश्रमी और सक्रिय था
(ii) उसका स्वभाव बहुत दयालु था
(iii) वह अनपढ़ किंतु बुद्धिमान था
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह को किस घोड़े से विशेष लगाव था ?
(i) लैली
(ii) सैली
(iii) चेतक
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को क्या कहकर बुलाता था ?
(i) सरकार-ए-आम
(ii) सरकार-ए-खास
(iii) सरकार-ए-खालसा
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबार का सबसे प्रसिद्ध विद्वान् कौन था ?
(i) सोहन लाल सूरी
(ii) फ़कीर अज़ीजुद्दीन
(iii) राजा ध्यान सिंह
(iv) दीवान मोहकम चंद।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 5.
पंजाब के कौन-से शासक को शेरे-पंजाब के नाम से याद किया जाता है ?
(i) महाराजा रणजीत सिंह को
(ii) मझराजा दलीप सिंह को
(iii) महाराजा शेर सिंह को
(iv) महाराजा खड़क सिंह को।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के समय ‘शाही मोहर’ पर कौन-से शब्द अंकित थे ?
(i) नानक सहाय
(ii) अकाल सहाय
(iii) गोबिंद सहाय
(iv) तेग़ सहाय।
उत्तर-
(ii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का एक व्यक्ति के रूप में आप कैसे वर्णन करेंगे ? (How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a man ?)
अथवा
एक मनुष्य के रूप में महाराजा रणजीत सिंह के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Ranjit Singh as a man ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के आचरण एवं व्यक्तित्व का वर्णन करें। (Write about the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह चाहे अनपढ़ थे, परंतु वह बड़ी तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी थे। उनको हज़ारों गाँवों के नाम तथा उनकी भौगोलिक स्थिति मौखिक रूप से स्मरण थी। वह जिस व्यक्ति को एक बार देख लेते उसको कई वर्षों बाद भी पहचान लेते थे। महाराजा रणजीत सिंह का स्वभाव बड़ा दयालु था। वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपने शत्रुओं से कभी भी निर्दयतापूर्वक व्यवहार नहीं किया था। महाराजा ने अपने शासन काल के दौरान किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया था। महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म के सच्चे सेवक थे। वह अपना प्रतिदिन का कार्य प्रारंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनते तथा अरदास करते थे। वह अपनी सरकार को सरकार-ए-खालसा कहते थे। उन्होंने नानक सहाय और गोबिंद सहाय नाम के सिक्के जारी किए। उन्होंने गुरुद्वारों को भारी दान दिया। इसके बावजूद महाराजा रणजीत सिंह का अन्य धर्मों के साथ व्यवहार रिवाज मनाने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। महाराजा अन्य धर्म के लोगों को भी दिल खोल कर दान दिया करते थे।

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प्रश्न 2.
एक मनुष्य के रूप में महाराजा रणजीत सिंह की छः विशेषताएँ क्या थी ? (What were the six features of Maharaja Ranjit Singh as a man ?),
उत्तर-
1. शक्ल सूरत-महाराजा रणजीत सिंह की शक्ल-सूरत अधिक आकर्षक नहीं थी। उसका कद मध्यम तथा शरीर पतला था। बचपन में चेचक हो जाने के कारण उसकी एक आँख भी जाती रही थी। परंतु महाराजा के व्यक्तित्व में इतना आकर्षण था कि कोई भी भेंटकर्ता उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।

2. परिश्रमी एवं सक्रिय—महाराजा रणजीत सिंह बहुत परिश्रमी एवं सक्रिय व्यक्ति था। महाराजा सुबह से लेकर रात को देर तक राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था। वह राज्य के बड़े-से-बड़े कार्य से लेकर लघु-से-लघु कार्य की ओर व्यक्तिगत ध्यान देता था।

3. साहसी एवं वीर-महाराजा रणजीत सिंह बहुत ही साहसी एवं वीर व्यक्ति था। उसे बाल्यकाल से ही युद्धों में जाने, शिकार खेलने, तलवार चलाने और घुड़सवारी करने का बहुत शौक था। वह भयंकर लड़ाइयों के समय भी बिल्कुल घबराता नहीं था अपितु युद्ध में प्रथम कतार में लड़ता था।

4. दयालु स्वभाव-महाराजा रणजीत सिंह अपनी दया के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था। महाराजा ने कभी भी अपने शत्रुओं के साथ भी अत्याचारपूर्ण व्यवहार नहीं किया। वह निर्धनों, पीड़ितों तथा कृषकों की सहायता के लिए प्रत्येक क्षण तैयार रहता था।

5. सिख-धर्म का श्रद्धालु अनुयायी-महाराजा रणजीत सिंह को सिख धर्म में अटल विश्वास था। वह अपना प्रतिदिन का कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनता था तथा अरदास करता था। वह स्वयं को . गुरुघर का और सिख पंथ का ‘कूकर’ मानता था। वह अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ और दरबार को ‘दरबार खालसा जी’ कहता था।

6. शिक्षा का संरक्षक-महाराजा रणजीत सिंह यद्यपि स्वयं अनपढ़ था। परंतु उसने शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक स्कूल खोले। आपने फ़ारसी, उर्दू, हिंदी तथा गुरमुखी पढ़ाने वाली संस्थाओं को अनुदान तथा जागीरें प्रदान की।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह एक दयालु शासक था। कैसे ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी दया के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था। अपने शासनकाल के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने सिख मिसलदारों, राजपूत राजाओं, पठान शासकों तथा अफ़गान सम्राटों को एक-एक करके विजित किया। आश्चर्य की बात यह है कि महाराजा ने कभी भी अपने शत्रुओं के साथ अत्याचारपूर्ण व्यवहार नहीं किया। उस समय काबुल तथा दिल्ली के सम्राट् जो सिंहासन के स्वामी बनते रहे, वे न केवल अन्य निकट दशा में दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ते रहे। ऐसे समय लाहौर के इस शासक ने जिन्हें युद्ध-भूमि में पराजित किया, न केवल गले से लगाया, बल्कि उनकी संतान को भी जागीरें तथा पुरस्कार प्रदान किए। महाराजा ने अपने शासनकाल के दौरान किसी भी अपराधी को मृत्यु-दंड नहीं दिया था। वह निर्धनों, पीड़ितों तथा कृषकों की सहायता के लिए प्रत्येक क्षण तैयार रहता था। उसकी दया की कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का श्रद्धालु अनुयायी था। अपने पक्ष में तर्क दीजिए।
(Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह को सिख धर्म में अटल विश्वास था। वह अपना प्रतिदिन का कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनता था तथा अरदास करता था। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी की एक कलगी अपने तोशेखाने में रखी हुई थी जिसको छूना वह अपने लिए सौभाग्य मानता था। वह अपनी विजयों को उस परमात्मा की कृपा समझता था। इन विजयों के लिए धन्यवाद हेतु वह दरबार साहिब अमृतसर जाकर भारी चढ़ावा चढ़ाता था। वह स्वयं को गुरु घर का और सिख पंथ का ‘कूकर’ मानता था। वह अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ कहता था। वह स्वयं को ‘महाराजा’ कहलवाने के स्थान पर ‘सिंह साहिब’ कहलवाता था। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ तथा ‘गोबिंद सहाय’ के शब्द अंकित थे। उसकी शाही मोहर पर ‘अकाल सहाय’ शब्द अंकित थे। सेना में ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह’ का जय घोष किया जाता था। सरकारी कार्यों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मुख शपथ दिलाई जाती थी। महाराजा रणजीत सिंह ने बहुत-से नवीन गुरुद्वारों का निर्माण करवाया तथा उनकी देख-रेख के लिए बड़ी-बड़ी जागीरें दीं। संक्षेप में, कहें तो वह तन-मन-धन से सिख धर्म का अनन्य श्रद्धालु था।

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह एक धर्म-निरपेक्ष शासक थे। कैसे ? (Maharaja Ranjit Singh was a Secular ruler. How ?)
उत्तर-
यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का पक्का श्रद्धालु था फिर भी वह अन्य धर्मों को सम्मान की दृष्टि से देखता था। वह धार्मिक पक्षपात तथा साँप्रदायिकता से कोसों दूर था। वह यह बात भली-भाँति जानता था कि एक शक्तिशाली तथा चिरस्थाई साम्राज्य की स्थापना के लिए सभी धर्मों के लोगों का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है। वह अपनी सहिष्णुता की नीति से विभिन्न धर्मों के लोगों के दिल जीतने में सफल रहा। उसके राज्य में नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। उसके दरबार में उच्च पदों पर सिख, हिंदू, मुसलमान, डोगरे तथा यूरोपीय नियुक्त थे। उदाहरणतया उसका विदेश मंत्री फकीर अजीज-उद्दीन मुसलमान, प्रधानमंत्री ध्यान सिंह डोगरा, वित्त मंत्री दीवान भवानी दास और सेनापति मिसर दीवान चंद हिंदू थे। इसी तरह जनरल मैतूरा, कोर्ट, गार्डनर इत्यादि यूरोपीय थे। दान देने के विषय में भी महाराजा किसी धर्म से किसी प्रकार का कोई भेद-भाव नहीं करता था। उसने हिंदू मंदिरों, मुस्लिम मस्जिदों तथा मकबरों की देख-रेख के लिए पर्याप्त धन दिया। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोगों को अपने रस्मो-रिवाज की पूरी स्वतंत्रता थी।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह का एक प्रशासक के रूप में उल्लेख कीजिए।
(Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
अथवा
एक शासन प्रबंधक के रूप में महाराजा रणजीत सिंह के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Ranjit Singh as an administrator ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक उच्च कोटि का शासन प्रबंधक था। उसके शासन का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण था। प्रशासन में सहयोग प्राप्त करने के लिए महाराजा ने कई योग्य तथा ईमानदार मंत्री नियुक्त किए थे। प्रशासन को कुशलता से चलाने के लिए महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्रांतों में विभक्त किया हुआ था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मौजा अथवा गाँव थी। गाँव का प्रशासन पंचायत के हाथ में होता था। महाराजा पंचायतों के कार्य में कभी हस्तक्षेप नहीं करता था। वह प्रजा हित को कभी दृष्टिविगतं नहीं होने देता था। उसने राज्य के अधिकारियों को भी यह आदेश दिया था कि वे जन हित के लिए विशेष प्रयत्न करें। प्रजा की स्थिति जानने के लिए महाराजा प्रायः भेष बदल कर राज्य का भ्रमण किया करता था। महाराजा के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को दंड दिया जाता था। किसानों तथा निर्धनों को राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ दी गई थीं। परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह के समय में प्रजा बड़ी समृद्ध थी।

प्रश्न 7.
“महाराजा रणजीत सिंह एक महान् सेनानी एवं विजेता था।” व्याख्या करें। (“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.).
अथवा
“एक सैनिक और जरनैल के रूप” में महाराजा रणजीत सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Maharaja Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपने समय का एक महान् सेनानी था। अपने जीवन में उसने जितने भी युद्ध किए, किसी में भी पराजय का मुख नहीं देखा। वह बड़ी-से-बड़ी विपदा आने पर भी नहीं घबराता था। महाराजा अपने सैनिकों के कल्याण का पूरा ध्यान रखता था। बदले में वे भी महाराजा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते थे। महान् सेनानी होने के साथ-साथ महाराजा रणजीत सिंह एक महान् विजेता भी था। 1797 ई० में जब रणजीत सिंह शुकरचकिया मिसल की गद्दी पर विराजमान हुआ तो उसके अधीन बहुत कम क्षेत्र था। उसने अपनी योग्यता तथा वीरता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था। उसके राज्य में लाहौर, अमृतसर, कसूर, स्यालकोट, काँगड़ा, गुजरात, जम्मू, अटक, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश सम्मिलित थे। इन प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह को कई भयंकर युद्ध लड़ने पड़े। महाराजा की विजयों के कारण उसका साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक और पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला हुआ था।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को शेरे पंजाब क्यों कहा जाता है ? (Why is Maharaja Ranjit Singh called Sher-i-Punjab ?)
अथवा
आप रणजीत सिंह को इतिहास में क्या स्थान देंगे ? उनको शेरे-पंजाब क्यों कहा जाता है ?
(What place would you assign in history to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की गणना न केवल भारत अपितु विश्व के महान् शासकों में की जाती है। विभिन्न इतिहासकार महाराजा रणजीत सिंह की तुलना मुग़ल बादशाह अकबर, मराठा शासक शिवाजी, मिस्र के शासक मेहमत अली एवं फ्राँस के शासक नेपोलियन आदि से करते हैं। इतिहास का निष्पक्ष अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ इन शासकों से कहीं अधिक थीं। जिस समय महाराजा रणजीत सिंह सिंहासन पर बैठा तो उसके पास केवल नाममात्र का राज्य था। किंतु महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी योग्यता एवं कुशलता के साथ एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। ऐसा करके उन्होंने सिख साम्राज्य के स्वप्न को साकार किया। महाराजा रणजीत सिंह का शासन प्रबंध भी बहुत उच्चकोटि का था। उसके शासन प्रबंध का मुख्य उद्देश्य प्रजा की भलाई करना था। प्रजा के दुःखों को दूर करने के लिए महाराजा सदैव तैयार रहता था तथा प्रायः राज्य का भ्रमण भी किया करता था महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। उनके दरबार में सिख, हिंदू, मुसलमान, यूरोपियन इत्यादि सभी धर्मों के लोग उच्च पदों पर नियुक्त थे। महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपना कर उन्हें एक सूत्र में बाँधा। वह एक महान् दानी भी थे। उन्होंने अपने साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार के लिए एक शक्तिशाली सेना का भी निर्माण किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ मित्रता स्थापित करके अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रमाण दिया। इन सभी गुणों के कारण आज भी लोग महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेर-ए-पंजाब’ के नाम से स्मरण करते हैं। निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह को पंजाब के इतिहास में एक गौरवमयी स्थान प्राप्त है।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
महाराजा रणजीत सिंह को सिख धर्म में अटल विश्वास था। वह अपना प्रतिदिन का कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ सुनता था तथा अरदास करता था। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी की एक कलगी अपने तोशेखाने में रखी हुई थी जिसको छूना वह अपने लिए सौभाग्य मानता था। वह अपनी विजयों को उस अकाल पुरख की कृपा समझता था। इन विजयों के लिए धन्यवाद हेतु वह दरबार साहिब अमृतसर जाकर भारी चढ़ावा चढ़ाता था। वह स्वयं को गुरुघर का और सिख पंथ का ‘कूकर’ मानता था। वह अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ और दरबार को ‘दरबार खालसा जी’ कहता था। वह स्वयं को ‘महाराजा’ कहलवाने के स्थान पर ‘सिंह साहिब’ कहलवाता था। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ तथा ‘गोबिंद सहाय’ शब्द अंकित थे। उसकी शाही मोहर पर ‘अकाल सहाय’ शब्द अंकित थे।

  1. महाराजा रणजीत सिंह को सिख धर्म में अटल विश्वास था ? कोई एक उदाहरण दें।
  2. कूकर से क्या भाव है ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को क्या कहता था ?
  4. महाराजा रणजीत सिंह की शाही मोहर पर कौन-से शब्द अंकित थे ?
  5. महाराजा रणजीत सिंह के सिक्कों पर ………… तथा ……….. के शब्द अंकित थे।

उत्तर-

  1. वह अपना दैनिक कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ सुनता तथा अरदास करता था।
  2. कूकर से भाव है-दास एवं नौकर।
  3. महाराजा रणजीत सिंह अपनी सरकार को सरकार-ए-खालसा कहता था।
  4. महाराजा रणजीत सिंह की शाही मोहर पर अकाल सहाय शब्द अंकित थे।
  5. नानक सहाय, गोबिंद सहाय।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

2
यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म का पक्का श्रद्धालु था फिर भी वह अन्य धर्मों को सम्मान की दृष्टि से देखता था। वह धार्मिक पक्षपात तथा सांप्रदायिकता से कोसों दूर था। वह यह बात भली-भाँति जानता था कि एक शक्तिशाली तथा चिरस्थाई साम्राज्य की स्थापना के लिए सभी धर्मों के लोगों का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है। वह अपनी सहिष्णुता की नीति से विभिन्न धर्मों के लोगों के दिल जीतने में सफल रहा। उसके राज्य में नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। उसके दरबार में उच्च पदों पर सिख, हिंदू, मुसलमान, डोगरे तथा यूरोपीय नियुक्त थे। उदाहरणतया उसका विदेश मंत्री फकीर अज़ीज-उद्दीन मुसलमान, प्रधानमंत्री ध्यान सिंह डोगरा, वित्त मंत्री दीवान भवानी दास और सेनापति मिसर दीवान चंद हिंदू थे। इसी तरह जनरल वेंतूरा, कोर्ट, गार्डनर इत्यादि यूरोपीय थे।

  1. महाराजा रणजीत सिंह एक सहनशील शासक था। कैसे ?
  2. ध्यान सिंह डोगरा कौन था ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री कौन था ?
  4. दीवान भवानी दास कौन था ?
  5. महाराजा रणजीत सिंह का सेनापति ………… था।

उत्तर-

  1. वह सभी धर्मों का आदर करता था।
  2. ध्यान सिंह डोगरा महाराजा रणजीत सिंह का प्रधानमंत्री था।
  3. महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री फ़कीर अज़ीजुद्दीन था।
  4. दीवान भवानी दास महाराजा रणजीत सिंह का वित्त मंत्री था।
  5. मिसर दीवान चंद।

महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व PSEB 12th Class History Notes

  • मनुष्य के रूप में (As a Man)-महाराजा रणजीत सिंह की शक्ल सूरत अधिक आकर्षक नहीं थी-परंतु उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार की तेजस्विता झलकती थी-वह बहुत ही परिश्रमी थेउन्हें शिकार खेलने, तलवार चलाने और घुड़सवारी का बहुत शौक था-वह तीक्ष्ण बुद्धि और अद्भुत स्मरण शक्ति के स्वामी थे महाराजा रणजीत सिंह अपनी दयालुता के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे-उन्हें सिख धर्म में अटल विश्वास था-महाराजा रणजीत सिंह पक्षपात तथा सांप्रदायिकता से कोसों दूर थे।
  • एक सेनानी तथा विजेता के रूप में (As a General and Conqueror)-महाराजा रणजीत सिंह की गणना विश्व के महान् सेनानियों में की जाती है-उन्होंने अपने किसी भी युद्ध में पराजय का मुख नहीं देखा था-वे अपने सैनिकों के कल्याण का पूरा ध्यान रखते थें– उन्होंने अपनी वीरता और योग्यता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में बदल दिया-उनके राज्य में लाहौर, अमृतसर, काँगड़ा, जम्मू, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश सम्मिलित थे-उनका साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक और पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला था।
  • एक प्रशासक के रूप में (As an Administrator)-महाराजा रणजीत सिंह एक उच्चकोटि के प्रशासक थे-महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्रांतों में विभक्त किया हुआ था-प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मौजा अथवा गाँव थी-गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथ में था—योग्य तथा ईमानदार व्यक्ति मंत्री के पदों पर नियुक्त किए जाते थे किसानों तथा निर्धनों को राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं-सैन्य प्रबंधों की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया था-महाराजा ने अपनी सेना को यूरोपीय पद्धति का सैनिक प्रशिक्षण दिया–परिणामस्वरूप, सिख सेना शक्तिशाली तथा कुशल बन गई थी।
  • एक कूटनीतिज्ञ के रूप में (As a Diplomat)—हाराजा रणजीत सिंह एक सफल कूटनीतिज्ञ थे-अपनी कूटनीति से ही उन्होंने समस्त मिसलों को अपने अधीन किया था उन्होंने अपनी कूटनीति से अटक का किला बिना युद्ध किए ही प्राप्त किया-यह उनकी कूटनीति का ही परिणाम था कि अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ बिना युद्ध किए भाग गया-1809 ई० में अंग्रेज़ों के साथ मित्रता उनके राजनीतिक विवेक तथा दूरदर्शिता का अन्य प्रमाण था।