PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 9 लिंग समानता

Punjab State Board PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 9 लिंग समानता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Welcome Life Chapter 9 लिंग समानता

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB लिंग समानता InText Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या लड़के और लड़की में भेदभाव करना सही है?
उत्तर-
नहीं, लड़के और लड़की में भेदभाव करना सही नहीं है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी पर पुरुष और स्त्री का अनुपात क्या है?
उत्तर-
अधिकतर समान या 50 : 50.

प्रश्न 3.
अपनी कक्षा में कितने लड़के और लड़कियां हैं?
उत्तर-
हमारी कक्षा में 30 लड़कियां और 20 लड़के हैं।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 9 लिंग समानता

प्रश्न 4.
उन कार्यों के नाम लिखो जिसे समाज सोचता है कि ये कार्य केवल लड़के कर सकते हैं?
उत्तर-
वे कार्य जो प्रकृति से यान्त्रिक होते हैं और उनके लिए अधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है। इस के साथ ही समाज यह भी सोचता है कि लड़कों को बाहरी कार्य करने चाहिए।

प्रश्न 5.
उन कार्यों के नाम लिखो जिसे समाज सोचता है कि ये कार्य केवल लड़कियों को करना चाहिए।
उत्तर-
अधिकतर घरेलू कार्य और जिनमें कम शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6.
क्या समाज में लिंग असमानता अच्छी है या बुरी।
उत्तर-
समाज में लिंग समानता अच्छी है।

प्रश्न 7.
जो परिजन लड़की के जन्म पर खुशी व्यक्त नहीं करते वे अच्छे हैं। इस कथन के विषय में आपका क्या विचार है?
उत्तर-
नहीं, वे अच्छे परिजन नहीं हैं।

प्रश्न 8.
उन कुछेक कार्यों का नाम लिखो जो परम्परागत रूप में लड़कियों के लिए नहीं हैं परन्तु आजकल भी लड़कियां उनको कर रही हैं।
उत्तर-
लड़कियों ने गाड़ी चलाना, अभियन्ता और कुलियों आदि का कार्य शुरू कर दिया है।

प्रश्न 9.
लिंग समानता का क्या अर्थ है?
उत्तर-
साधारण शब्दों में इसका अर्थ है लड़कों और लड़कियों को उनके लिंग के आधार पर समान अवसर प्रदान करना।

प्रश्न 10.
क्या हमें कृषि करती लड़की का मजाक उड़ाना चाहिए?
उत्तर-
नहीं हमें कृषि करती लड़की का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए।

प्रश्न 11.
क्या हमें अपने विद्यालय की देखभाल नहीं करनी चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें अपने विद्यालय की देखभाल करनी चाहिए जैसे कि ये विद्या के मन्दिर हैं।

प्रश्न 12.
आजकल समाज में असमानता के तीन उदाहरण कौन-से हैं?
उत्तर-
असमान भत्ते, पुरुषों के लिए कुछेक कार्य आरक्षित रखना, स्त्रियों को गृह कार्य करने के लिए बाध्य करना आदि।

प्रश्न 13.
क्या हमें लिंग असमानता या लिंग समानता का समर्थन करना चाहिए?
उत्तर-
हमें लिंग समानता को समर्थन करना चाहिए और लिंग असमानता के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए।

प्रश्न 14.
क्यों स्त्रियों को रेलगाड़ी चलाने और विमान उड़ाने की आज्ञा दी जानी चाहिए?
उत्तर-
हां. स्त्रियों को रेलगाड़ी चलाने और विमान उड़ाने की आज्ञा दी जानी चाहिए।

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प्रश्न 15.
क्या हमें बहुत योग्य स्त्री को अपने नेता के रूप में चुनना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, हमें बहुत योग्य स्त्री को अपने नेता के रूप में चुनना चाहिए।

प्रश्न 16.
क्या भाई होने के नाते आप अपनी बहन का समर्थन करेंगे यदि वह तैराक या पहलवान बनना चाहती है?
उत्तर-
हां, मैं उसका समर्थन करूंगा।

प्रश्न 17.
क्या स्त्रियों को देर रात तक कार्य करने की आज्ञा होनी चाहिए?
उत्तर-
हां, स्त्रियों को देर रात तक कार्य करने की आज्ञा होनी चाहिए।

प्रश्न 18.
उन तीन स्त्रियों के नाम बताओ जिनकी आप उनकी प्राप्तियों के लिए प्रशंसा करते हैं?
उत्तर-
हिमा दास, कल्पना चावला और मैरी कॉम।

प्रश्न 19.
दो प्रसिद्ध महिला वैज्ञानिकों के नाम लिखो।
उत्तर-
मैरी क्यूरी (भौतिकी और रसायन वैज्ञानिक) एवं जानकी अम्मल (वनस्पति वैज्ञानिक)।

प्रश्न 20.
उस स्त्री का नाम लिखो जो भारत की प्रधानमन्त्री थी।
उत्तर-
इन्दिरा गाँधी।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग समानता के विषय में संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर-
लिंग समानता शब्द का अर्थ है कि लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। स्त्रियों और पुरुषों को सब प्रकार से समान समझा जाना चाहिए। स्त्रियां पुरुषों के समान अवसर प्राप्त करें और उन्हें किसी कार्य के लिए पुरुषों के समान भत्ते दिए जाने चाहिए।

प्रश्न 2.
क्या अतीत में लिंग समानता थी?
उत्तर-
नहीं, अतीत में लिंग समानता नहीं थी। आज भी विश्व के कई भागों में लिंग समानता नहीं है। स्त्रियों को पुरुषों से कम समझा जाता है। उन्हें घर के अन्दर रहने और गृह कार्य करने के लिए विवश किया जाता है।

प्रश्न 3.
लिंग असमानता की क्या हानियां हैं?
उत्तर-
निम्नलिखित कुछेक लिंग असमानता की हानियां हैं

  1. यह उचित शारीरिक और मानसिक विकास को रोकता है।
  2. जीवन वातावरण सामंजस्यपूर्ण नहीं होगा।
  3. सभी राष्ट्र और समाज की उन्नति में योगदान देने के योग्य नहीं होंगे।
  4. राष्ट्र की G.D.P. (सकल घरेलू उत्पाद) निम्न रहेगी।
  5. सभी ज़िन्दगी का पूर्ण आनन्द नहीं ले सकते।

प्रश्न 4.
लिंग समानता के मुख्य लक्षण कौन-से हैं?
उत्तर-
लिंग समानता के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. लड़कों और लड़कियों को समान समझना।
  2. जो भी कार्य करने के योग्य है, उसे कार्य करना चाहिए।
  3. भत्ते निश्चित होने चाहिए यह विचार किए बिना कि कार्य कौन कर रहा है।
  4. स्त्रियां वे सभी कार्य करने के योग्य हैं जो केवल पुरुष कर सकते हैं।

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प्रश्न 5.
लिंग समानता का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
यदि समाज में लिंग समानता है तो हमारे पास निम्नलिखित होगा

  1. स्त्रियों और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा नहीं।
  2. समाज में आर्थिक समृद्धि।
  3. उच्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
  4. बहुत सुखद पारिवारिक और सामाजिक वातावरण।

प्रश्न 6.
लिंग असमानता का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर-
लिंग असमानता के लिए उत्तरदायी बहुत-से तत्त्व हैं। उनमें से कुछेक हैं:

  1. समाज की छोटी सोच।
  2. स्त्रियों की योग्यता के बारे में तुच्छ सोच।
  3. पुरुषों को स्त्रियों का रखवाला समझना।
  4. पुरुषों में झूठी श्रेष्ठता समझने की भावना।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न माग

प्रश्न 1.
उन कुछेक स्त्रियों के नाम लिखो जिन पर भारत को मान है।
उत्तर-
हमारे यहाँ ऐसी बहुत-सी स्त्रियां हैं जिन्होंने भारत के लिये ख्याति अर्जित की है। उनमें से कुछेक हैं

  1. इन्दिरा गांधी-वह पहली स्त्री थी जो भारत की प्रधानमन्त्री बनी। उन्होंने जनवरी, 1966 से मार्च, 1977 तक तथा पुनः जनवरी 1980 से उनकी हत्या किए जाने तक अक्तूबर, 1984 तक प्रधानमन्त्री के रूप में सेवा की। वह आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध है।
  2. मैरी कॉम-वह भारत की मुक्केबाजी की स्टार है। उन्होंने छ: बार विश्व अव्यवसायी मुक्केबाजी प्रतियोगिता जीती। भारत को उन पर मान है।
  3. हिमा दास-वह भारत की सेवानिवृत्त ऐथलीट है। उन्होंने 2019 में पांच स्वर्ण पदक जीते।
  4. कल्पना चावला-वह अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री, अभियंता और अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली स्त्री थी।
  5. मदर टेरेसा-उन्होंने अपना जीवन गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता करने को समर्पित किया और 1979 ई० में नोबल शान्ति पुरस्कार जीतने वाली पहली स्त्री थी।
  6. आनन्दी गोपाल जोशी-वह पहली स्त्री थी जो भारत में डॉक्टर बनी।

प्रश्न 2.
हमारा समाज बदल रहा है। इस कथन को लिंग समानता के आधार पर समायोजित करें।
उत्तर-
हमारा समाज बदल रहा है विशेषतया जब हम लड़कियों के प्रति मनोदृष्टि की बात करते हैं। कुछेक बिन्दु जो इस परिवर्तन को दर्शाते हैं, वे निम्नानुसार हैं:

  1. परिजन लड़कियों के जन्म-दिन और उनकी प्राप्तियों पर खुशी मनाते हैं।
  2. परिजन लड़कियों को वे कार्य करने से भी नहीं रोकते जो कभी केवल लड़कों के करने योग्य समझे जाते थे।
  3. लड़कियां समाज में बहुत उच्च पदों पर आसीन हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे दिखाई देती हैं।
  4. लोग अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सहायक हैं।
  5. समाज के सभी क्षेत्रों में लड़कों और लड़कियों के लिए समान अवसर हैं।
  6. लड़कियां पुलिस अफ्सर, पायलट, प्रशासन अधिकारी आदि बन रही हैं।
  7. स्त्रियां राष्ट्र की उन्नति में भी अद्भुत कार्य करके अपना योगदान दे रही हैं।
  8. बहुत-सी स्त्रियां न केवल खेलों में भाग ले रही हैं बल्कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीत रही हैं। इन सभी बिन्दुओं से कोई भी सरलता से जान सकता है कि हमारा समाज बदल रहा है और लिंग समानता की अवधारणा का समर्थन कर रहा है।

प्रश्न 3.
पुरुष और स्त्री में भेदभाव करना क्या सही है? अपने उत्तर के सन्दर्भ में विचार दें।
उत्तर-
पुरुष और स्त्री में भेदभाव करना सही नहीं है। निम्न बिन्दु इस उत्तर का समर्थन करते हैं।

  1. स्त्रियां पुरुषों की भान्ति ही महत्त्वपूर्ण हैं । वे समाज के दो स्तंभ हैं।
  2. यदि हम बेटियों को शिक्षा नहीं देंगे तो हमारे पोत्तों-नवासों को कौन शिक्षा देगा।
  3. यदि हम उन्हें चिकित्सा व्यवसाय में जाने की अनुमति नहीं देंगे तो हमारी माताओं, बहनों और बेटियों का उपचार कौन करेगा।
  4. यदि हम उन्हें खेलों में जाने की अनुमति नहीं देंगे तो हम अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक तालिका में ऊपर तक कैसे जा सकते हैं।
  5. यदि हम अपनी बेटियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं करेंगे तो दूसरे कैसे उनके साथ सम्मान से पेश आएंगे। उपरोक्त बातों से कोई भी सरलता से लिंग समानता के समर्थन की महत्ता को समझ सकता है।

प्रश्न 4.
लड़कियों को समान अवसर और समान भत्ते देकर हम अप्रत्यक्ष रूप से केवल उनकी सहायता कर रहे हैं। क्या आप इस कथन से सहमत या असहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में बताएं।
उत्तर-
मैं उक्त कथन से सहमत हूँ कि लड़कियों को समान अवसर और समान भत्ते देकर हम अप्रत्यक्ष रूप से केवल उनकी सहायता कर रहे हैं। मेरे उत्तर के पक्ष में निम्नलिखित बिन्दु हैं,

  1. यदि मेरी माता एक कार्यरत महिला हैं और उनको कम भत्ता दिया जाता है तो यह हमारे लिए कम पैसे लाएँगी।
  2. हमें अपनी बहनों, बेटियों और माताओं के उपचार के लिए महिला डॉक्टरों की आवश्यकता है। हम उन्हें तभी पा सकते हैं यदि स्त्रियां डॉक्टरी शिक्षा ग्रहण करेंगी।
  3. हमें महिला नौं की आवश्यकता है क्योंकि केवल वे ही हैं जो हमारी स्त्रियों की देखभाल कर सकती हैं।
  4. हमें महिला अध्यापिकाओं की आवश्यकता अपनी बहनों और बेटियों की शिक्षा के लिए है।
  5. हमें महिला खिलाड़ियों की आवश्यकता है नहीं तो हम अंतर्राष्ट्रीय खेलों के दौरान तालिका में उच्च स्थान प्राप्त नहीं कर सकते।
  6. हमें और बहुत-से वैज्ञानिकों, कम्प्यूटर विशेषज्ञों और तकनीशियनों की आवश्यकता है। यह तभी सम्भव है जब हम लड़कियों को समान अवसर प्रदान करते हैं।
  7. यदि पुरुष और स्त्री दोनों मिल कर कार्य करेंगे तो हमारा देश सुपर शक्ति बन सकता है। अतः हम विकसित राष्ट्र बनने की कल्पना नहीं कर सकते यदि हम लड़कियों को समान अवसर प्रदान नहीं करेंगे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
लिंग समानता सुनिश्चित करती है
(क) स्त्रियों के प्रति हिंसा
(ख) पुरुष प्रधान समाज
(ग) सभी लोगों के लिए समान अवसर
(घ) लड़कों के लिए अधिक रोज़गार।
उत्तर-
(ग) सभी लोगों के लिए समान अवसर।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन लिंग समानता के लिए उपयुक्त है?
(क) लड़कों और लड़कियों के लिए रोजगार के अधिक अवसर
(ख) गृह कार्यों में पुरुषों की भागीदारी नहीं
(ग) स्त्रियों का खेलों में भाग न लेना
(घ) यह सभी।
उत्तर-
(क) लड़कों और लड़कियों के लिए रोजगार के अधिक अवसर।

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प्रश्न 3.
नारीवादी आन्दोलनों का लक्ष्य है
(क) स्वतन्त्रता
(ख) समानता
(ग) सहभागिता
(घ) शक्ति।
उत्तर-
(ख) समानता।

प्रश्न 4.
भारत में स्त्रियों से ……. में भेदभाव किया जाता है।
(क) राजनीतिक जीवन
(ख) सामाजिक जीवन
(ग) आर्थिक जीवन
(घ) सभी ग़लत हैं।
उत्तर-
(घ) सभी ग़लत हैं।

प्रश्न 5.
लिंग आधारित मजदूरी का विभाजन दर्शाता है कि
(क) कार्य पुरुषों और स्त्रियों के बीच में विभाजन तय करता है
(ख) जाति पुरुषों और स्त्रियों के बीच विभाजन का आधार है
(ग) शिक्षा के आधार पर काम का विभाजन
(घ) सभी ग़लत हैं।
उत्तर-
(क) कार्य पुरुषों और स्त्रियों के बीच में विभाजन तय करता है।

प्रश्न 6.
समान मज़दूरी अधिनियम व्यक्त करता है
(क) घरेलू और परिवार सम्बन्धी मामलों को कैसे नियन्त्रित करना है।
(ख) कि स्त्रियों और पुरुषों दोनों को समान कार्य के लिए समान भत्ता दिया जाना चाहिए।
(ग) कि सभी कार्य स्त्रियों और पुरुषों द्वारा सीमा में रहते हुए किये जाते हैं।
(घ) कि लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
उत्तर-
(ख) कि स्त्रियों और पुरुषों दोनों को समान कार्य के लिए समान भत्ता दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
लिंग विभाजन आमतौर पर ………… का उल्लेख करता है।
(क) पुरुषों और स्त्रियों के बीच जैविक अन्तर।
(ख) असमान साक्षरता दर ।
(ग) समाज द्वारा पुरुषों और स्त्रियों को असमान भूमिकाएं सौंपी गई हैं ,
(घ) स्त्रियों को मताधिकार न देना।
उत्तर-
(ग) समाज द्वारा पुरुषों और स्त्रियों को असमान भूमिकाएं सौंपी गई हैं।

प्रश्न 8.
स्त्रियों का उत्तरदायित्व ………… है।
(क) केवल बच्चों की देखभाल करना
(ख) केवल घरेलू कार्य करना
(ग) निर्णय लेने और अन्य गतिविधियों में भाग लेना
(घ) कोई भी सही नहीं है।
उत्तर-
(ग) निर्णय लेने और अन्य गतिविधियों में भाग लेना।

प्रश्न 9.
पुरुषों को ……………….. नहीं करना चाहिए।
(क) गृह कार्यों में योगदान
(ख) बच्चों की देखभाल
(ग) स्त्रियों का शोषण
(घ) स्त्रियों का सम्मान।
उत्तर-
(ग) स्त्रियों का शोषण।

प्रश्न 10.
कथन (क): लिंग समानता हम सब के लिए अच्छी है।
कथन (ख): स्त्रियां पुरुषों से कम हैं। निम्न में से कौन-सा विकल्प सही है?
(क) कथन क सही है। कथन ख गलत है।
(ख) कथन क गलत है। कथन ख सही है।
(ग) दोनों कथन सही हैं।
(घ) इन में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) कथन क सही है। कथन ख गलत है।

प्रश्न 11.
लड़कियों को …………… में अवश्य भाग लेना चाहिए।
(क) खेल गतिविधियों
(ख) कृषि और बागबानी कार्यों
(ग) यांत्रिक कार्यों
(घ) इन सभी में।
उत्तर-
(घ) इन सभी में।

प्रश्न 12.
पक्षपातीय लिंग ……….. का परिणाम है।
(क) समाज की संकीर्ण सोच
(ख) कार्यवाही की कमी
(ग) समाज की पुरुष प्रधान प्रकृति
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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रिक्त स्थान भरोः

  1. ……….. लिंग असमानता का कारण है जो सोचता है कि लड़कियां कमज़ोर हैं।
  2. समाज की ………… के लिए लिंग समानता बहुत ज्यादा आवश्यक है।
  3. स्त्रियां और पुरुष दोनों समाज का ………………. अंग हैं।
  4. लिंग समानता स्त्रियों के विरुद्ध ……………. को रोकता है।
  5. लिंग समानता घर पर या कार्य स्थल पर स्त्रियों और पुरुषों दोनों को समान ………… को निश्चित करती है।
  6. …………. लिंग सम्बन्धी रूढ़ प्रारूप को तोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
  7. लिंग समानता एक मानवीय ……….. है।
  8. लड़कों को ………….. गतिविधियों में शामिल होना चाहिए।
  9. स्त्रियों को शिक्षित करना उसके ………….. को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  10. भेदभाव साधारणतः ………….. बनाया जाता है।

उत्तर-

  1. संकीर्ण विचारधारा
  2. उन्नति
  3. अपरिहार्य
  4. हिंसा
  5. अवसर
  6. शिक्षा
  7. अधिकार
  8. घरेलू
  9. आत्म-सम्मान
  10. सामाजिक रूप से।

सही/गलत:

  1. हमें लड़कों और लड़कियों में भेदभाव करना चाहिए।
  2. लड़कियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के अवसर मिलने चाहिए।
  3. यान्त्रिक और चालक कार्य लड़कियों की पहुँच से दूर हैं।
  4. लड़कियों को कृषि और बागबानी कार्य में भाग लेना चाहिए।
  5. लिंग समानता करना उचित व्यवहार नहीं है।
  6. लड़कों और लड़कियों को आगे बढ़ने के समान अवसर दिए जाने चाहिए।
  7. लड़कियों को उनके द्वारा सामना किए गए दुर्व्यवहार के बारे में किसी को नहीं बताना चाहिए।
  8. लड़कों और लड़कियों दोनों को पौष्टिक भोजन दिया जाना चाहिए।
  9. लिंग असमानता उनके लिंग पर आधारित व्यक्तिगत असमान बर्ताव को प्रस्तुत करती है।
  10. लिंग समानता का मुख्य उद्देश्य समाज की रचना करना है जिसमें पुरुष और स्त्रियां समान अधिकारों का आनन्द मानें।

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत
  6. सही
  7. ग़लत
  8. सही
  9. सही
  10. ग़लत।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

Punjab State Board PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Welcome Life Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान InText Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक सम्पत्ति क्या है?
उत्तर-
ऐसी सम्पत्ति जो लोगों से एकत्र किए कर से चलती है।

प्रश्न 2.
किसी एक सार्वजनिक सम्पत्ति का नाम बताओ।
उत्तर-
सार्वजनिक पुस्तकालय।

प्रश्न 3.
किसी एक व्यक्तिगत सम्पत्ति का नाम बताओ।
उत्तर-
अपना घर।

प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सी सार्वजनिक सम्पत्ति नहीं है? बंगला, पार्क और संग्रहालय।
उत्तर-
बंगला।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी सार्वजनिक सम्पत्ति है? बंगला, पार्क और संग्रहलय।
उत्तर–
पार्क और संग्रहालय।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

प्रश्न 6.
सार्वजनिक सम्पत्तियों का रख-रखाव और रक्षा करना सरकार का कार्य है। क्या यह कथन सही या गलत है?
उत्तर-
नहीं, सार्वजनिक सम्पत्तियों का रख-रखाब और रक्षा करना सरकार, सहित हम सबका कर्त्तव्य है।

प्रश्न 7.
क्या हमें सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचानी चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए।

प्रश्न 8.
क्या हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों के निर्माण, रख-रखाव और रक्षा में योगदान देना चाहिए?
उत्तर-
हां, हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों के निर्माण, रख-रखाव और रक्षा में योगदान देना चाहिए।

प्रश्न 9.
कुछ सम्पत्तियों को सार्वजनिक सम्पत्तियां क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
क्योंकि ये जनता से आए पैसे से बनाई, रक्षित और रख-रखाव की जाती हैं।

प्रश्न 10.
क्या हमें संग्रहालय की दीवारों पर लिखना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, संग्रहालय की दीवारों पर नहीं लिखना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक सम्पत्ति है।

प्रश्न 11.
क्या हमें अपने विद्यालय का ध्यान नहीं रखना चाहिए?
उत्तर-
हूँ, हमें अपने विद्यालय का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ये शिक्षा के मन्दिर हैं।

प्रश्न 12.
समाज की सेवा का सबसे बढ़िया ढंग कौन-सा है?
उत्तर-
समाज की सेवा का सबसे बढ़िया ढंग सार्वजनिक सम्पत्ति को बनाने, रख-रखाव करने, रक्षा करने और बचाने में योगदान देना।

प्रश्न 13.
यदि हम हार जाएं तो क्या हमें प्रेरणाहीन अनुभव करना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, यदि हम हार जाएं तो हमें स्वयं को प्रेरणाहीन नहीं समझना चाहिए।

प्रश्न 14.
यदि हम जीतने में असफल हों तो क्या हमें खेलना बन्द कर देना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें अपनी कमियों और असफलता से सीखना चाहिए और अगली बार जीतने के लिए कड़ा परिश्रम करने का यत्न करना चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

प्रश्न 15.
क्या सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही होनी चाहिए?
उत्तर-
हाँ, सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाना किस प्रकार का व्यवहार है?
उत्तर-
यह समाज विरोधी व्यवहार है या पूर्ण समाज के विरुद्ध अपराध है।

प्रश्न 17.
क्या हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों की साफ़-सफ़ाई का ध्यान नहीं रखना चाहिए?
उत्तर-
हमें ध्यान रखना चाहिए कि सार्वजनिक सम्पत्तियों को साफ़-सुथरा रखना चाहिए।

प्रश्न 18.
क्या रेलवे स्टेशन और बस स्टाप सार्वजनिक सम्पत्तियां हैं?
उत्तर-
हां, रेलवे स्टेशन और बस स्टॉप सार्वजनिक सम्पत्तियां हैं।

प्रश्न 19.
सड़क और फार्मलैंड में से कौन-सी सार्वजनिक सम्पत्ति है?
उत्तर-
सड़क सार्वजनिक सम्पत्ति है।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक सम्पत्ति को कौन उपयोग कर सकता है?
उत्तर-
हम सब सार्वजनिक सम्पत्ति का उपयोग कर सकते हैं।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक सम्पत्ति के अर्थ की व्याख्या करें।
उत्तर-
सार्वजनिक सम्पत्तियां समाज की विशिष्ट सम्पत्तियां हैं। ये सभी बड़े यत्नों से बनाई गई हैं। इनको बनाने और इनके रख-रखाव में बहुत बड़ी मात्रा में पैसे का निवेश होता है। इन सम्पत्तियों को सार्वजनिक सम्पत्तियां कहा जाता है। क्योंकि ये लोगों से कर के रूप में एकत्र किए पैसे से चलती हैं। विद्यालय, अस्पताल, पुस्तकालय, बैंक, रेलवे, बसें, पार्क आदि सार्वजनिक सम्पत्तियां हैं।

प्रश्न 2.
निजी सम्पत्ति, सार्वजनिक सम्पत्ति से कैसे भिन्न होती है?
उत्तर-
निजी सम्पत्ति, सार्वजनिक सम्पत्ति से निम्नानुसार भिन्न है

  1. सार्वजनिक सम्पत्ति अकसर निजी सम्पत्ति से बड़ी होती है।
  2. सार्वजनिक सम्पत्ति हम सबसे करो के रूप में एकत्र किए धन से बनायी और चलायी जाती है। दूसरी ओर निजी सम्पत्ति मालिक द्वारा बनाई जाती है और रख-रखाव की जाती है।
  3. सार्वजनिक सम्पत्ति सामान्य सम्पत्ति है जो सभी द्वारा उपयोग की जाती है। निजी सम्पत्ति केवल मालिक द्वारा उपयोग की जाती है।
  4. सार्वजनिक सम्पत्ति के रख-रखाव को बनाए रखना हम सबका कर्त्तव्य है। निजी सम्पत्ति का रख-रखाव मालिक द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक सम्पत्तियों की हम कैसे रक्षा कर सकते हैं?
उत्तर-
निम्न कुछेक विधियां हैं जिससे हम सार्वजनिक सम्पत्तियों की रक्षा कर सकते हैं।

  1. हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए।
  2. हमें उन लोगों की सहायता करनी चाहिए जो सार्वजनिक सम्पत्ति का रख-रखाव और रक्षा कर रहे हैं।
  3. हम सबको सार्वजनिक सम्पत्तियों के महत्त्व के बारे में जागरुकता फैलानी चाहिए।
  4. सार्वजनिक सम्पत्तियों की रक्षा के लिए कानून और नियम होने चाहिए।
  5. जो लोग सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाने का यत्न करते हैं या वास्तव में क्षति पहुंचाते हैं, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक सम्पत्तियों के लिए धन के स्त्रोत क्या हैं?
उत्तर-
जिस सम्पत्ति पर हम सबका समान अधिकार हो उसे सार्वजनिक सम्पत्ति कहा जाता है। सार्वजनिक सम्पत्तियों के लिए धन के मुख्य साधन ये हैं

  1. प्रत्यक्ष कर जैसे कि आयकर।
  2. अप्रत्यक्ष कर जैसे कि बिक्री कर, उत्पाद और सीमा शुल्क।
  3. लोगों से दान, जो सोचते हैं कि समाज के प्रति यह उनकी नैतिक जिम्मेवारी है।

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प्रश्न 5.
विद्यालय की सम्पत्ति के बारे में कुछेक पंक्तियां लिखो।
उत्तर-
विद्यालय की सम्पत्ति में, कुर्सियां, मेज़, डैस्क, विज्ञान प्रयोगशालाएं, खेल के मैदान और पुस्तकालय शामिल होते हैं। विद्यार्थियों को विद्यालय की सम्पत्ति को नष्ट नहीं करना चाहिए। विद्यालय की सम्पत्ति का निर्माण सरकार और जनता दोनों द्वारा किया जाता है। हमें विद्यालय की सम्पत्ति की देखभाल में सहायता के लिए कक्षासमितियां बनानी चाहिएं।

प्रश्न 6.
निम्न पहेलियों को सुलझाने का यत्न करें

  1. मेरे पास बहुत-सी कुर्सियां, मेज़, समाचार-पत्र और किताबों से भरी बहुत-सी अलमारियां हैं।
  2. मेरे पास सुन्दर लॉन है और बहुत-से सुन्दर फूल और पौधे हैं।
  3. मैं बहुत-से कमरों वाली प्रयोगशालाओं, पुस्तकालय, खेल के मैदान, रसोई शनिका वाली बड़ी
    इमारत हूँ और औपचारिक शिक्षा देने का स्थान हूँ।

उत्तर-

  1. यह पुस्तकालय है।
  2. यह पार्क है।
  3. यह एक विद्यालय है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुछेक सार्वजनिक सम्पत्तियों का नाम लिखो और इनके महत्त्व बताओ।
उत्तर-
सार्वजनिक सम्पत्तियां वे सम्पत्तियां हैं जो जनता के पैसे से बनाई जाती हैं और उनका रख-रखाव किया जाता है,। कुछेक सार्वजनिक सम्पत्तियां और उनका महत्त्व निम्नलिखित है

  1. सार्वजनिक पुस्तकालय-यह सबको पढ़ने और पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करती है। अत: यह बढ़िया समाज को बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
  2. सार्वजनिक खेल के मैदान-ये विभिन्न बाहरी खेलों को सीखने और खेलने में हमारी सहायता करते हैं। ये हमारी ऊर्जा और समय को सकारात्मक ढंग से उपयोग करने में सहायता करते हैं।
  3. पार्क और बाग-ये वे स्थान हैं जहां हम योगा, कसरत और सैर कर सकते हैं। हम अच्छा और चिन्तामुक्त अनुभव करते हैं जब हम सुन्दर फूलों को देखते हैं। अतः ये वे स्थान हैं जो हमारा तनाव कम करने में सहायता करते हैं।
  4. सार्वजनिक यातायात-बसें और रेलगाड़ियां सार्वजनिक यातायात का महत्त्वपूर्ण भाग हैं। ये ईंधन बचाने और प्रदूषण कम करने में सहायता करती हैं।
  5. अस्पताल-सार्वजनिक अस्पताल स्वस्थ रहने में हमारी सहायता करते हैं और बहुत कम लागत पर उपचार लेने को हमारी सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दें

  1. क्या सार्वजनिक सम्पत्तियों के बगैर बढ़िया जीवन की कल्पना कर सकते हैं?
  2. जो सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाते हैं, उनसे हमें कैसे व्यवहार करना चाहिए?
  3. सार्वजनिक सम्पत्तियों की क्षति हमारी अपनी क्षति है, सिद्ध करें।
  4. आप दूसरों की सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाने से दूर रहने के लिए किस प्रकार उत्साहित करेंगे?

उत्तर-

  1. नहीं, हम सार्वजनिक सम्पत्तियों के बगैर बढ़िया जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। उदाहरणत: हमें कम पैसे खर्चे पर दूर स्थानों तक यात्रा करने के लिए बसों और रेलगाड़ियों की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार कम लागत पर उपचार प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक अस्तपालों की आवश्यकता है।
  2. कुछेक लोग सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाते हैं। हमें किसी को भी सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने से रोकना चाहिए और जागरूक करना चाहिए।
  3. सार्वजनिक सम्पत्तियां जनता के पैसे से बनाई और चलाई जाती हैं। हम सरकार को कर अदा करते हैं और सरकार एकत्रित धन में से कुछ सार्वजनिक सम्पत्तियों के रख-रखाव पर खर्च करती है। यदि हम सार्वजनिक सम्पत्तियों को क्षति पहुंचाएंगे तो सरकार हम पर भारी कर लगाएगी। अतः हमें उनकी क्षति पूर्ति के लिए धन अदा करना है। साधारण शब्दों में यदि हम सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाते हैं तो हम स्वयं को क्षति पहुंचा रहे हैं।
  4. सार्वजनिक स्थानों का ध्यान रखना हमारा सामूहिक उत्तरदायित्व है। हमें यह हमारे इर्द-गिर्द सभी को बताना होगा। हम सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने से रोकने के लिए लोगों के लिए नारे तैयार कर सकते हैं। हम सार्वजनिक सम्पत्तियों की रक्षा के लिए जागरुकता फैलाने के लिए पोस्टर बना सकते हैं, खेल खेलते हैं, ड्रामा आदि दिखा सकते हैं।

प्रश्न 3.
विद्यालय की सम्पत्ति का ध्यान रखना प्रत्येक विद्यार्थी के लिए महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-
अग्रलिखित वे कारण हैं जो प्रत्येक विद्यार्थी के लिए विद्यालय की सम्पत्ति का ध्यान रखने की व्याख्या करते हैं

  1. विद्यालय एक सार्वजनिक सम्पत्ति है और इस स्थान की आवश्यकता ज्ञान प्राप्त करने और औपचारिक शिक्षा ग्रहण के लिए है।
  2. यदि हम अपने विद्यालय की सम्पत्ति को हानि पहुंचाएंगे तो आवश्यकता के समय उसका उपयोग नहीं कर सकेंगे।
  3. यदि हम पुस्तकालय से पुस्तकें चुराते हैं या फाड़ते हैं तो आवश्यकता के समय हम पुस्तकें प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
  4. यदि हम प्रयोगशाला में उपकरणों और यन्त्रों को तोड़ते हैं तो हम प्रयोग नहीं कर सकते।
  5. यदि हम विद्यालय के लॉन को खराब करते हैं तब हमें असुखद परिवेश में बैठना पड़ेगा।
  6. यदि हम खेल के मैदानों का उपयोग कूड़ा-कर्कट फैंकने के लिए करेंगे तो हमें खेलने के लिए कोई स्थान नहीं मिलेगा।
  7. यदि हम कक्षा में फर्नीचर को क्षति पहुंचाएंगे तो हमारे पास बैठने के लिए अच्छा फर्नीचर नहीं होगा। ऊपरी तथ्यों से, प्रत्येक व्यक्ति विद्यालय की सम्पत्तियों के ध्यान रखने के महत्त्व को सरलता से समझ सकता है।

प्रश्न 4.
निम्न प्रश्नों का उत्तर दें:
(i) हमें सार्वजनिक यातायात का क्यों ध्यान रखना चाहिए?
(ii) हमें पार्कों और बागों का क्यों ध्यान रखना चाहिए?
(iii) हमें सड़कों और रेल मार्गों को क्षति क्यों नहीं पहुंचानी चाहिए?
उत्तर-
(i) सार्वजनिक यातायात सस्ता, टिकाऊ और सबके लिए उपलब्ध साधन है। हम सबको, चाहे वह अमीर हो या गरीब, दूरस्थ स्थानों पर यात्रा करने के लिए सार्वजनिक यातायात की आवश्यकता होती है। यह तब और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब हम दुर्गम और बीहड़ स्थानों पर जाना चाहते हैं। इनका प्रयोग करके हम सभी मौसमों में यात्रा कर सकते हैं और हम बिना थकावट के यात्रा कर सकते हैं । हम खुशी अनुभव करेंगे यदि सार्वजनिक यातायात साफ और अच्छी स्थिति में होगा। यह तभी सम्भव है यदि हम अच्छी तरह ध्यान रखेंगे और इनको किसी प्रकार की क्षति न पहुंचाएं।

(ii) अच्छी तरह से साफ और रख-रखाव किए हुए पार्क लोगों को लम्बी सैर, पिकनिक मनाने, खेल गतिविधियों या केवल आराम करने के लिए सुरक्षित और आनन्ददायक स्थान उपलब्ध करवाते हैं। वे हमारे वातावरण और पानी की गुणवत्ता को सुधारते हैं। हम कई प्रकार के फूलों, पौधों और जानवरों के बारे में जानते हैं। पार्कों और बागों में जाकर सीख सकते हैं। पार्कों और बागों को साफ़ रखना प्रत्येक आने वाले का कार्य हैं। अतः हमारे अपने लाभ के लिए हमें पार्कों और बागों की अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए।

(iii) हमें सड़कों और रेलमार्गों को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए क्योंकि यदि ये क्षतिपूर्ण होंगे तो हमारी यात्रा धीमी और असुखद होगी। हमें अपने निर्धारित स्थान पर पहुंचने में अधिक समय लगेगा। यदि सड़क या रेल मार्ग खराब होंगे तो दुर्घटनाओं की सम्भावनाएं अधिक होंगी। यह बहुत से लोगों के जीवन को खतरे में डाल देगी। अतः हमें अपनी सुरक्षा और उन्नति के लिए सड़कों और रेलमार्गों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
स्कूल वह स्थान है जहां हम
(क) खेलते समय सीखते हैं
(ख) अनौपचारिक विधि से सीखते हैं
(ग) औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं
(घ) ये सभी।
उत्तर-
(ग) औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी सार्वजनिक सम्पत्ति नहीं है?
(क) स्कूल
(ख) खेल का मैदान
(ग) पार्क
(घ) ये सभी सार्वजनिक सम्पत्ति हैं।
उत्तर-
(घ) ये सभी सार्वजनिक सम्पत्ति हैं।

प्रश्न 3.
सभी सार्वजनिक सम्पत्तियां जनता के पैसे से बनाई जाती हैं।
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) इनमें कुछेक जनता के पैसे से बनाई जाती हैं
(घ) सभी गलत हैं।
उत्तर-
(क) सत्य।

प्रश्न 4.
हमें ………………….. चाहिए।
(क) सार्वजनिक सम्पत्ति की देखभाल नहीं करनी
(ख) सार्वजनिक सम्पत्ति की देखभाल करनी।
(ग) सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचानी
(घ) सभी गलत हैं।
उत्तर-
(ख) सार्वजनिक सम्पत्ति की देखभाल करनी।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक सम्पत्ति के लिए पैसे ……………. से आता है।
(क) आमदन कर
(ख) बिक्री कर
(ग) सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(क) सभी सही हैं।

प्रश्न 6.
हम पढ़ने के लिए विभिन्न विषयों पर बहुत-सी पुस्तकें कहां पाते हैं?
(क) निजी पुस्तकालय में
(ख) सार्वजनिक पुस्तकालय में
(ग) अस्पताल में
(घ) पार्क में।
उत्तर-
(ख) सार्वजनिक पुस्तकालय में।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

प्रश्न 7.
सार्वजनिक सम्पत्तियां समाज की महत्त्वपूर्ण सम्पत्तियां होती हैं।
(क) महत्त्वपूर्ण
(ख) प्रतिष्ठा
(ग) बहुमूल्य
(घ) सभी सत्य हैं।
उत्तर-
(घ) सभी सत्य हैं।

प्रश्न 8.
हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों के निर्माण के लिए ……….. योगदान देना चाहिए।
(क) अधिक से अधिक जितना हो सके
(ख) कुछ भी नहीं
(ग) सब कुछ
(घ) कोई भी सही नहीं है।
उत्तर-
(क) अधिक-से-अधिक जितना हो सके।

प्रश्न 9.
यह सभी का प्रमुख कर्तव्य है कि
(क) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना
(ख) सार्वजनिक सम्पत्ति का रख-रखाव करना
(ग) सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाना
(घ) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और रख-रखाव करना।
उत्तर-
(घ) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और रख-रखाव करना।

प्रश्न 10.
कथन क : सार्वजनिक सम्पत्ति का निर्माण जनता से एकत्र किए धन से होता है।
कथन ख : सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। निम्न में से कौनसा विकल्प सही है?
(क) कथन क सही है और कथन ख गलत है
(ख) कथन क गलत है और कथन ख सही है
(ग) दोनों कथन सही हैं
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) कथन क सही है और कथन ख गलत है।

प्रश्न 11.
निम्न में से कौन-सा सबका कर्तव्य है?
(क) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा और रख रखाव
(ख) सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति न पहंचाना
(ग) सार्वजनिक सम्पति को बढ़िया बनाने के लिए पैसा दान करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
जो सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाते हैं उनके विरुद्ध किस प्रकार की कार्यवाही की जानी चाहिए?
(क) कोई कार्यवाही नहीं
(ख) सख्त कार्यवाही
(ग) कोमल कार्यवाही
(घ) केवल थोड़ा सा जुर्माना करना चाहिए।
उत्तर-
(ख) सख्त कार्यवाही।

रिक्त स्थान भरो:

  1. खेल के मैदान और पार्क …………. सम्पत्ति हैं।
  2. हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों का रख-रखाव और …………. करने का यत्न करना चाहिए।
  3. सार्वजनिक सम्पत्तियां हम सबके ……………… लिए हैं।
  4. सार्वजनिक सम्पत्तियां ………………….. निवेश से बनती हैं।
  5. सार्वजनिक सम्पत्तियों का बढ़िया ……………. सभ्य समाज का चिन्ह है।
  6. लोगों से ……………. द्वारा एकत्र किए पैसे से चलने वाली सम्पत्तियों को सार्वजनिक सम्पत्तियां कहते हैं।
  7. सार्वजनिक सम्पत्तियों की रक्षा और रख-रखाव करना हम सबका ………………….. है।
  8. जो सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाते हैं, उनके विरुद्ध …………. कार्यवाही करनी चाहिए।
  9. हमें …………… जैसे कि रेलों में गन्दगी नहीं फैलानी चाहिए।
  10. सार्वजनिक सम्पत्तियां समाज के प्रत्येक व्यक्ति की …………. करती हैं।

उत्तर-

  1. सार्वजनिक
  2. रक्षा
  3. उपयोग
  4. विशाल
  5. रख-रखाव
  6. टैक्सों
  7. कर्त्तव्य
  8. सख्त
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति
  10. सेवा।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 स्कूल और सार्वजनिक सम्पत्ति का सम्मान

सही/ग़लत:

  1. हमें सार्वजनिक पुस्तकालय में शान्ति बनाए रखनी चाहिए।
  2. बसों और रेलों में सफाई व्यवस्था को बनाए रखना सामूहिक उत्तरदायित्व है।
  3. हमें सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए।
  4. हमें सार्वजनिक पुस्तकालय में किताबों से पन्ने फाड़ने चाहिए।
  5. हमें सार्वजनिक बागों और पार्कों में से फूल तोड़ने चाहिए।
  6. सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने वाले के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।
  7. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा और रख-रखाव करना हम सबका कर्त्तव्य है।
  8. हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों की दीवारों पर नहीं लिखना चाहिए।
  9. हमें सार्वजनिक सम्पत्तियों की रक्षा के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए।
  10. सार्वजनिक सम्पत्तियां लोगों से एकत्र करों पर चलती हैं।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत
  6. सही
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. सही।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

Punjab State Board PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 6 निर्णय लेना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Welcome Life Chapter 6 निर्णय लेना

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB निर्णय लेना InText Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्णय लेने को परिभाषित करें।
उत्तर-
निर्णय लेना एक व्यक्ति सभी सम्भावित विकल्पों में से चुनाव करने की योग्यता है।

प्रश्न 2.
क्या निर्णय लेना केवल अव्यवस्थित विकल्प बनाना है?
उत्तर-
नहीं, यह केवल अव्यवस्थित विकल्प बनाना नहीं है।

प्रश्न 3.
निर्णय लेने का मुख्य बिन्दु कौन-सा है?
उत्तर-
यह प्रत्येक विकल्प के बारे में तर्कसंगत सोच पर आधारित है।

प्रश्न 4.
क्या हमें हमेशा शीघ्रता से निर्णय लेना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, अधिकतर स्थितियों में हमें अति शीघ्रता से निर्णय नहीं लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
क्या बढ़िया निर्णय लेना एक गुण है?
उत्तर-
हाँ, बढ़िया निर्णय लेना एक गुण है।

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प्रश्न 6.
क्या हमें निर्णय लेने से पहले समस्या के कारण के बारे में जानना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, निर्णय लेने से पहले हमें समस्या के कारण के बारे में जानना चाहिए।

प्रश्न 7.
क्या कार्य करने से पहले समस्या का विश्लेषण करना बढ़िया है?
उत्तर-
हाँ, कार्य करने से पहले समस्या का विश्लेषण करना अच्छा है।

प्रश्न 8.
क्या समाधान ढूंढने का प्रत्यन करने से पहले समस्या की प्रकृति के बारे में जानना अच्छा है?
उत्तर-
हाँ, समाधान ढूंढने का प्रयत्न करने से पहले समस्या की प्रकृति के बारे में जानना अच्छा है।

प्रश्न 9.
क्या निर्णय लेने से पहले हमें सभी सम्भावित विकल्पों पर विचार करना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, निर्णय लेने से पहले हमें सभी सम्भावित विकल्पों पर विचार करना चाहिए।

प्रश्न 10.
क्या हमें अपने निर्णय पर स्थिर रहना चाहिए यदि यह समस्या को और गम्भीर बना दे?
उत्तर-
नहीं, हमें अपने निर्णय पर स्थिर नहीं रहना चाहिए यदि यह समस्या को और गम्भीर बना दे।

प्रश्न 11.
क्या प्रत्येक विकल्प/समाधान के बारे में पूर्ण जानकारी एकत्र करना बढ़िया है?
उत्तर-
हाँ, प्रत्येक विकल्प/समाधान के बारे में पूर्ण जानकारी एकत्र करना बढ़िया है।

प्रश्न 12.
निर्णय लेना सरल क्यों नहीं है?
उत्तर-
क्योंकि इसमें विश्लेषण करना, जानकारी प्राप्त करना और दूसरों से चर्चा करना शामिल है।

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प्रश्न 13.
जब हमारे पास अपनी समस्या के लिए बहुत-से विकल्प हों तो कौन-सा विकल्प चुना जाना चाहिए?
उत्तर-
हमें कम लागत के साथ बढ़िया परिणाम वाले विकल्प को चुनना चाहिए।

प्रश्न 14.
क्या निर्णय लेने से पूर्व सभी विकल्पों की तुलना करना अच्छा है?
उत्तर-
हाँ, निर्णय लेने से पूर्व सभी विकल्पों की तुलना करना अच्छा है।

प्रश्न 15.
हमें अपने निर्णय को लागू करने से पहले दूसरे के साथ चर्चा क्यों करनी चाहिए?
उत्तर-
क्योंकि यह हमें अपने निर्णय में उपयुक्त परिवर्तन करने के लिए सहायता करेगा ताकि बढ़िया परिणाम प्राप्त किए जा सकें।

प्रश्न 16.
क्या पूर्व निर्णयों के नकारात्मक परिणामों के आधार पर अपने निर्णय को बदलना अच्छा है?
उत्तर-
हाँ, पूर्व निर्णयों के नकारात्मक परिणामों के आधार पर अपने निर्णय को बदलना अच्छा है।

प्रश्न 17.
क्या नया निर्णय लेने से पहले पूर्व निर्णयों के परिणामों के बारे में जानना अच्छा है?
उत्तर-
हाँ, नया निर्णय लेने से पहले पूर्व निर्णयों के परिणामों के बारे में जानना बढ़िया है।

प्रश्न 18.
हम बढ़िया निर्णय कैसे ले सकते हैं?
उत्तर-
हम बढ़िया निर्णय केवल पूर्ण विश्लेषण, उपलब्ध विभिन्न विकल्पों की तुलना और दूसरों से बातचीत करने के पश्चात् ले सकते हैं।

प्रश्न 19.
क्या हमें सभी समाधानों के सभी सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के बारे में सोचना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, हमें सभी समाधानों के सभी सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के बारे में सोचना चाहिए।

प्रश्न 20.
यदि हमारे पूर्व निर्णय सही नहीं थे तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-
हमें उस निर्णय को दिमाग में रखना चाहिए और भविष्य में समस्या के समाधान में कभी लागू नहीं करना चाहिए।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्णय लेना क्या है ? संक्षेप में बताएँ।
उत्तर-
निर्णय लेना वह योग्यता है जो सभी सम्भावित विकल्पों में से सही को चुनने के योग्य बनाती है। यह प्रत्येक विकल्प के बारे में तर्कसंगत सोच पर आधारित है जोकि अव्यवस्थित विकल्प पर।

प्रश्न 2.
निर्णय लेने की प्रक्रिया में कौन-से पग शामिल हैं?
उत्तर-
महत्त्वपूर्ण पग ये हैं:

  1. हमें समस्या के बारे में, इसके कारणों और इसकी प्रकृति के विषय में जानना चाहिए।
  2. हमें समस्या के समाधान के लिए उपलब्ध विकल्पों के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करना चाहिए।
  3. हमें दूसरों के साथ अपने निर्णय पर बातचीत करनी चाहिए।
  4. हमें अपने पूर्व निर्णयों को इस जैसी स्थिति में याद करना चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

प्रश्न 3.
क्या यह आवश्यक है कि हमें समस्या के लिए उत्तरदायी विभिन्न तत्त्वों का विश्लेषण करना चाहिए?
उत्तर-
समस्या के लिए उत्तरदायी विभिन्न तत्त्वों का विश्लेषण करना आवश्यक है क्योंकि कई बार विशेष तत्त्व को केवल हटाने से ही समस्या का समाधान हो सकता है। उदाहरणतया यदि किसी को किसी तत्त्व से एलर्जी है तो दवाई से उसका उपचार नहीं किया जा सकता। इस मामले में, समस्या का समाधान एलर्जी फैलाने वाले तत्त्व को हटा कर ही किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
तर्कसंगत सोच से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तर्कसंगत सोच सोचने की एक विधि है जिसमें हम समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न करने से पहले समस्या के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करते हैं। इस प्रकार की सोच में, हम समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं की तुलना करते हैं।

प्रश्न 5.
पूर्व अनुभव से सीखना निर्णय लेने में हमेशा सहायक होता है। सिद्ध करो।
उत्तर-
हम प्रतिदिन निर्णय लेते हैं। हमारे निर्णयों में से कुछ सही और लाभदायक सिद्ध होते हैं परन्तु कुछेक ग़लत या कम लाभदायक होते हैं। अतः यदि हम पूर्व निर्णयों और उनके परिणामों को दिमाग में रखते हैं तो हमारे लिए भविष्य में सही व लाभदायक निर्णय लेने में सरलता होगी। इसके कारण जब हमारा वैसी ही समस्या से सामना होगा तो हम ग़लत या कम लाभदायक निर्णय नहीं लेंगे। इसलिए पूर्व अनुभव से सीखना निर्णय लेने में हमेशा सहायक होता है।

प्रश्न 6.
स्व-विश्लेषण या आत्म-निरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आत्म-निरीक्षण या स्व-विश्लेषण एवं प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति के विचारों और भावनाओं को भीतर से जानना शामिल है। जिसमें जब आप परीक्षा में कम अंक प्राप्त करने के कारणों का किसी दूसरे से मशवरा किए बगैर विश्लेषण करते हैं, यह इसकी उदाहरण है। यह आपको भविष्य में बढ़िया कर्ता बनने में सहायता करेगा। हम सबको आत्म-निरीक्षण करना चाहिए।

प्रश्न 7.
यदि आपको पता चलता है कि आपकी टेबल लैम्प कार्य नहीं कर रही तो अपने निर्णय का फ्लोचार्ट बनाओ।
उत्तर-
यदि हमारी टेबल लैम्प कार्य नहीं कर रही तो इसके बहुत-से कारण हो सकते हैं और हम निम्न फ्लोचार्ट के आधार पर अपने कार्य को निश्चित कर सकते हैं

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना 1

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
एक प्रभावशाली निर्णय लेने के लिए विभिन्न पग लिखें।
उत्तर-
एक प्रभावशाली निर्णय लेने के लिए निम्नलिखित पगों की आवश्यकता है

  1. निर्णय की पहचान-यह पहला पग है जो बहुत महत्त्वपूर्ण है। आपने जो निर्णय किया है उसके प्रति स्पष्ट रहो।
  2. सम्बन्धित जानकारी एकत्र करना-निर्णय लेने से पूर्व पूरी सम्बन्धित जानकारी एकत्र करो।
  3. विकल्पों की पहचान-आप सभी सम्भव और इच्छित विकल्पों की सूची बनाओ।
  4. विकल्पों की परख-आपको विकल्पों की परख अवश्य करनी चाहिए। इन विकल्पों को स्थिति की मांग के आधार पर प्राथमिक क्रम में रखो। इसके बाद बढ़िया विकल्प को चुनो जिसको कम लागत की आवश्यकता हो और अधिक परिणाम दें।
  5. निर्णय को लागू करना-सभी आवश्यक कार्य करने के पश्चात् आपको क्रिया करनी चाहिए।
  6. अपने निर्णय और इसके परिणामों की समीक्षा करें-अन्त में देखो कि परिणाम क्या है। यदि परिणाम अच्छा नहीं है या लक्ष्य तक नहीं है तो विभिन्न तत्वों पर विचार करें जहां आपको सुधारों की आवश्यकता है।
    इस पूरी प्रक्रिया को निम्न चित्र की सहायता से दिखा जा सकता है।
    PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना 2

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

प्रश्न 2.
रोजमर्रा की ज़िन्दगी में बढ़िया निर्णय लेने की आवश्यकता या महत्ता के बारे में लिखें।
उत्तर-
बढ़िया निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि:

  1. यदि अब हम ग़लत निर्णय लेते हैं तो हमें अपने जीवन में इसे पुनः दोहराना पड़ सकता है।
  2. सही व्यवसाय के बारे में राय बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है नहीं तो हमारी पूरी ज़िन्दगी के लिए हमें कुछ ऐसा करना पडेगा जो हमारे स्वभाव के विरुद्ध है।
  3. बढ़िया निर्णय हमें खुश रखता है और निर्धारित क्षेत्र में उन्नति करने और विशिष्ट बनने के लिए उत्साहित करता है।
  4. अपनी योजना और लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात् हम दिल लगा कर और अपनी पूरी योग्यता से कार्य कर सकते हैं।
  5. हमारे अपने निर्णयों के साथ हम निरन्तर कार्य करते हैं जो हमारी सफलता को निश्चित करता है। चाहे हमें सफलता शीघ्रता से या देरी से मिलेगी परन्तु हमारी सफलता निश्चित है।

प्रश्न 3.
दिए गए पगों को पुनर्व्यवस्थित करें, जिनका बढ़िया निर्णय लेते समय पालन किया जाना चाहिए।

  1. निर्णय की समीक्षा
  2. समस्या का विश्लेषण
  3. सभी समाधानों या विकल्पों की परख
  4. सभी समाधानों या विकल्पों की पहचान
  5. क्रिया करना
  6. जानकारी एकत्र करना
  7. समाधानों या विकल्पों में से चुनना।

उत्तर-
हमें ऊपर बताए पगों के साथ निम्न क्रम में चलना चाहिए

  1. समस्या का विश्लेषण
  2. सभी समाधानों या विकल्पों की पहचान
  3. जानकारी एकत्र करना
  4. सभी समाधानों या विकल्पों की परख
  5. समाधानों या विकल्पों में से चुनना
  6. क्रिया करना
  7. निर्णय की समीक्षा।

प्रश्न 4.
उन ढंगों को सुचीबद्ध करो जिनमें आप अपनी निर्णय लेने की कुशलता को सुधार सकते हैं।
उत्तर-
यहां ऐसे बहुत-से ढंग हैं जिनसे हम अपनी निर्णय लेने की कुशलता को सुधार सकते हैं

  1. पहली और महत्त्वपूर्ण कुशलता अपने धैर्य को बनाए रखना है।
  2. हमें कठिन परिस्थितियों में कभी भी घबराहट महसूस नहीं करनी चाहिए।
  3. यदि हम एक समय पर एक से अधिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो हमें प्राथमिकता तय करनी चाहिए।
  4. हमें समस्या और इसके कारणों का विश्लेषण करना चाहिए।
  5. हमें हमारे लिए उपलब्ध सभी विकल्पों पर विचार करना चाहिए और उनकी परख करनी चाहिए।
  6. हमें पूर्ण सम्बन्धित जानकारी एकत्र करनी चाहिए और सबसे बढ़िया सम्भव विकल्प को चुनना चाहिए।
  7. हमें अपने निर्णय के बारे में दूसरों से विचार विमर्श करना चाहिए और अपने पूर्व के निर्णय के साथ मिलाकर जांचना चाहिए।
  8. हमें अपने निर्णय को तय करने के पश्चात् कार्य करना चाहिए।
  9. हमारे निर्णय के लिए हम उत्तरदायी हैं और हमें इसकी उपयोगिता या अपयोगिता के लिए समीक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
मान लो आपका नाम x है और आपके मित्र का है जिसे आप उसके घर में मिलते हो। Y ने अपने पिता की अलमारी में से सिगरेट चुराई और पीने लगा। उसने आपको भी सिगरेट पेश की। आप इस स्थिति में क्या करेंगे? निर्णय लेने के लिए अपने विकल्प दो। यह आपके जीवन में अच्छा निर्णय लेने में आपकी सहायता करेगा। जब कभी भी आपको कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने हैं या आप सही या गलत के बीच दुविधा में हैं। सही निर्णय तक पहुंचने के लिए आवश्यक छः पगों को बताओ।
उत्तर-
निर्णय लेने की क्रिया को निम्नलिखित ढंग से पूरा किया जा सकता है

  1. समस्या की पहचान-यहां मैंने समस्या की पहचान कर ली है जैसे सिगरेट पीने के बारे में निर्णय लेना है।
  2. विकल्पों के बारे में विचार करना-मेरे पास दो विकल्प हैं या तो सिगरेट पीऊं या न।
  3. एक विकल्प या अनुसरण करने के परिणाम-मैं जानता हूँ कि सिगरेट पीना बुरी आदत है और मेरे जीवन को बर्बाद कर सकती है। अत: यदि मैं सिगरेट पीता हूँ तो मैं अपने जीवन को बर्बाद कर लूंगा और यदि मैं सिगरेट नहीं पीता तो मैं अपने जीवन को बर्बाद होने से बचा लूंगा।
  4. सही विकल्प के बारे में तय करना-क्योंकि मैं जानता हूँ, सिगरेट पीना बहुत हानिकारक है और जीवन के लिए खतरनाक है। अत: सिगरेट पीने का निर्णय गलत निर्णय होगा। अत: सही विकल्प सिगरेट पीने की पेशकश को अस्वीकार करना होगा।
  5. अन्तिम निर्णय-मेरा अन्तिम निर्णय मेरे मित्र के प्रस्ताव को छोड़ देना है। मैं अपने मित्र को सब कुछ बताऊंगा और वह मुझ से सहमत होता है और अपनी सिगरेट पीने की आदत के विरुद्ध निर्णय लेगा।
  6. मेरे निर्णय की समीक्षा-सिगरेट न पीने का मेरा निर्णय एकदम सही है। इसने मुझे खुश किया है जैसे कि मैंने अपने मित्र को सिगरेट पीने की बुरी आदत को छोड़ने के लिए आश्वस्त किया है।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

प्रश्न 6.
मध्यांतर में, आपने देखा कि आपका परम मित्र किसी दूसरे विद्यार्थी के बैग से कुछ निकाल रहा है। आपके मित्र ने यह नहीं देखा कि आप उसे देख रहे हो। मध्यांतर के पश्चात् अध्यापक ने कक्षा में घोषणा की कि किसी ने एक विद्यार्थी के बैग से पैसे चुरा लिए हैं। आप क्या करोगे? एक निर्णय लो और निम्न प्रश्नों का उत्तर दें।

  1. समस्या क्या है?
  2. आपके पास क्या विकल्प हैं?
  3. प्रत्येक विकल्प का परिणाम क्या है?
  4. कौन-सा विकल्प अधिक बढ़िया है और क्यों?
  5. आपका क्या निर्णय है?
  6. क्या आप सोचते हो कि आपने सही निर्णय किया? क्यों?

उत्तर-
इस स्थिति में प्रश्नों के उत्तरों के आधार पर मेरा निर्णय है:

  1. यह सारी समस्या मेरे मित्र द्वारा किए कार्य के कारण है जोकि पूर्ण रूप से ग़लत कार्य है।
  2. मेरे पास विभिन्न विकल्प हैं जैसे कि मित्र के कार्य को नज़र अंदाज़ कर देना, प्रयत्न करना कि मेरा मित्र पुनः ऐसा कार्य न करे जोकि ग़लत हो।
  3. यदि मैं मित्र के कार्य को नज़र अंदाज़ कर देता हूँ तो वह बुरा व्यक्ति बन सकता है। यदि मैं प्रयत्न करता हूँ तो उसको अच्छा व्यक्ति बना सकता है।
  4. दूसरा विकल्प बढ़िया है क्योंकि यह मेरे मित्र व समाज की भलाई के लिए होगा।
  5. मेरा अन्तिम निर्णय अध्यापक को बताना है कि मेरे मित्र ने पैसे चोरी किए हैं। मुझे अध्यापक और सहपाठियों को विश्वास दिलाना चाहिए कि भविष्य में वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा और उसे क्षमा कर देना चाहिए।
  6. हाँ, मेरे विचार से मेरा निर्णय सही है क्योंकि इससे सबको लाभ होगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
निर्णय लेने का सार है
(क) समस्या का समाधान
(ख) विकल्पों में से चुनना
(ग) कार्य के विकल्प का पाठ्यक्रम विकसित करना
(घ) निगरानी।
उत्तर-
(ख) विकल्पों में से चुनना।

प्रश्न 2.
निर्णय लेना एक व्यक्ति की ……………. बनाने की योग्यता है।
(क) सभी सम्भव विकल्पों में से एक को चुनना
(ख) समस्या के समाधान के लिए सभी सम्भावनों की सूची
(ग) समस्या के सभी कारणों की सूची
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(क) सभी सम्भव विकल्पों में से एक को चुनना।

प्रश्न 3.
निर्णय लेना है:
(क) अव्यवस्थित विकल्प बनाना
(ख) केवल अव्यवस्थित विकल्प न बनाना
(ग) हमारे बुजुर्गों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(ख) केवल अव्यवस्थित विकल्प न बनाना।

प्रश्न 4.
हमें तर्कसंगत बनना चाहिए जब:
(क) निर्णय लेना हो
(ख) स्नान करना हो
(ग) अध्यापकों का अभिनंदन करना
(घ) कोई भी सही नहीं है।
उत्तर-
(क) निर्णय लेना हो।

प्रश्न 5.
हमें समस्या का विश्लेषण करना चाहिए:
(क) कार्य करने से पहले
(ख) कार्य करने के बाद
(ग) कार्य करते समय
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(क) कार्य करने से पहले।

प्रश्न 6.
निर्णय तब बढ़िया होता है यदि हम ……… का विचार विमर्श करने के बाद इसे लेते हैं।
(क) इसके सकारात्मक परिणाम
(ख) इसके नकारात्मक परिणाम
(ग) इसके हानिकारक या हानिरहित परिणामों
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(घ) सभी सही हैं।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

प्रश्न 7.
निर्णय लेने से पहले यदि हम हमारे ………. से विचार विमर्श करते हैं तो यह बढ़िया है।
(क) मित्रों
(ख) परिजनों
(ग) अध्यापकों
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(घ) सभी सही हैं।

प्रश्न 8.
हमारे पूर्व निर्णयों के परिणामों से सीख हमारी निम्न में सहायता करती है:
(क) दूसरे के प्रति हमारी सोच को बदलने में
(ख) हमारी निर्णय लेने की योग्यता को बनाए रखने में
(ग) हमारी निर्णय लेने की योग्यता में सुधार में
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(ग) हमारी निर्णय लेने की योग्यता में सुधार में।

प्रश्न 9.
निर्णय लेने की बढ़िया योग्यता वाले व्यक्ति …………. हैं।
(क) दूसरों से अच्छे
(ख) दूसरों से अच्छे नहीं
(ग) दोनों सही हैं
(घ) कोई भी सही नहीं हैं।
उत्तर-
(क) दूसरों से अच्छे।

प्रश्न 10.
कथन (क) समस्या का विश्लेषण निर्णय लेने का पहला चरण है। कथन (ख) एक व्यक्ति जो बढ़िया निर्णय ले सकता है वह बढ़िया नेता है। निम्न में से कौन-सा विकल्प सही है?
(क) कथन क सही है और कथन ख गलत है
(ख) कथन क ग़लत है और कथन ख सही है।
(ग) दोनों कथन सही हैं
(घ) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) दोनों कथन सही हैं।

प्रश्न 11.
निम्न में से निर्णय लेने का कौन-सा मुख्य तत्त्व है?
(क) समस्याओं का विश्लेषण करना
(ख) मित्रों, अध्यापकों, परिजनों व अनुभवी व्यक्तियों से परामर्श करना
(ग) विभिन्न परिणामों और उनके प्रभावों के प्रति सम्पूर्ण जानकारी द्वारा
(घ) सभी सही हैं।
उत्तर-
(घ) सभी सही हैं।

प्रश्न 12.
जब आज रात को बाहर जाते हैं तो आपके पास किस वस्तु का होना अति आवश्यक है?
(क) पैंसिल
(ख) चाकू
(ग) टार्च
(ख) रोटी।
उत्तर-
टार्च।

रिक्त स्थान भरो:

  1. सभी सम्भावित विकल्पों में से सही को चुनना एक व्यक्ति की ……………….. की योग्यता है।
  2. निर्णय लेना केवल ………………. विकल्प चुनना नहीं है।
  3. निर्णय लेना प्रत्येक विकल्प पर ……………… विचार करने पर आधारित है।
  4. किसी समस्या पर कार्य करने से पूर्व हमें समस्या का ……………… करना चाहिए।
  5. हमें समस्या के …………… लिए विभिन्न समाधानों की भाल करनी चाहिए।
  6. हमें सभी समाधानों के सही और गलत ……… के बारे में सोचना चाहिए।
  7. हमें विकल्पों/समाधानों के विषय में परिजनों व मित्रों से …………….. करना चाहिए।
  8. हमें प्रत्येक विकल्प/समाधान सम्बन्धी सम्पूर्ण …………… एकत्र करनी चाहिए।
  9. हमें हमारे …………….. को अन्तिम रूप देने से पहले सभी समाधानों/विकल्पों की तुलना करनी चाहिए।
  10. नए निर्णय लेने से पूर्व हमें पूर्व निर्णयों के ………….. के बारे में सोचना चाहिए।
  11. हमें हमारे निर्णय में परिवर्तन हमारे पूर्व निर्णयों के ……………. परिणामों के आधार पर करना चाहिए।

उत्तर-

  1. निर्णय लेना
  2. अव्यवस्थित
  3. तर्कसंगत
  4. विश्लेषण
  5. हल
  6. पहलुओं
  7. चर्चा
  8. जानकारी
  9. निर्णय
  10. परिणामों
  11. गलत।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 6 निर्णय लेना

सही/ग़लत:

  1. निर्णय लेने से पूर्व समस्या का विश्लेषण करना बढ़िया है।
  2. हमें समस्या के समाधान के लिए विभिन्न समाधानों पर विचार करना चाहिए।
  3. हमें सभी समाधानों के विभिन्न पहलुओं पर विचार नहीं करना चाहिए।
  4. पशु अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत-से कानून हैं।
  5. हमें सभी परिस्थितियों के लिए एक ही निर्णय लागू करना चाहिए।
  6. सभी विकल्पों के बारे में पूर्ण जानकारी लेना समय की बर्बादी है।
  7. हमें हमेशा हमारे परिजनों, अध्यापकों व मित्रों के साथ चर्चा करने के पश्चात् निर्णय लेना चाहिए।
  8. हमें अति सरल समाधान चुनना चाहिए।
  9. हमें अपना निर्णय नहीं बदलना चाहिए चाहे यह स्थिति को और बिगाड़ दे।
  10. सभी सम्भावित विकल्पों में से एक को चुनना व्यक्ति की निर्णय लेने की योग्यता है।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत
  6. ग़लत
  7. सही
  8. सही
  9. ग़लत
  10. सही।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 32 जिला प्रशासन

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जिला प्रशासन क्या कार्य करता है ?
(What functions does the District Administration perform ?) (Textual Question)
अथवा जिला प्रशासन की परिभाषा दो। भारतीय प्रशासन में जिला प्रशासन के योगदान का भी वर्णन करो।
(Define District Administration. Also explain the role of district administration in Indian Administration.)
उत्तर-
ज़िला भारतीय प्रशासन की एक आधारभूत इकाई है। समस्त राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों को भी जिलों में बांटा गया है। भारतीय भूमि का एक इंच भाग भी ऐसा नहीं है जो किसी-न-किसी ज़िले का अंग न हो। प्रत्येक व्यक्ति ज़िला प्रशासन के अधीन आता है। जिला प्रशासन का अर्थ किसी भी क्षेत्र में सरकार की सभी संस्थाओं तथा विभागों के प्रतिनिधि कर्मचारियों के स्थित होने से है अर्थात् ज़िले में सरकार के सभी विभागों के प्रतिनिधि कर्मचारी स्थित होते हैं और वे अपने विभाग से सम्बन्धित कानूनों को लागू करते हैं तथा जनता के जीवन को सुखी बनाने से सम्बन्धित कार्यवाहियां करते हैं। जिला प्रशासन एक जिलाधीश या कलैक्टर के अधीन होता है जो राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। वह जिले में सरकार के समस्त प्रशासन का उत्तरदायी है। जिले की परिभाषा देते हुए किसी ने कहा है कि, “एक ज़िला एक काफ़ी बड़े क्षेत्र को कहा जाता है जो एकता के सूत्र में बन्धा हुआ हो और जिसमें आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक दशाएं सामान्य हों।” श्री खेरा ने जिला प्रशासन की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “ज़िले में सरकार के समस्त कार्यों के संग्रह को जिला प्रशासन कहा जा सकता है।”

भारतीय प्रशासन में जिला प्रशासन का महत्त्व (Role of District Administration in Indian Administration)-जिला भारतीय प्रशासन की एक मुख्य इकाई है और जिला स्तर पर सभी सरकारी विभागों के कार्यालय स्थापित किए गए हैं। यहां तक कि केन्द्रीय सरकार ने भी अपने विभागों के कार्यालय जिला स्तर पर स्थापित किए हैं। जैसे-आयकर अधिकारी के कार्यालय (Offices of the Income Tax Officers)। सरकार अपना समस्त प्रशासन जिला अधिकारियों के द्वारा चलाती है और जनता की जानकारी भी जिला प्रशासन के द्वारा ही प्राप्त करती है। सरकार की सभी शक्तियां जिला प्रशासन के अध्यक्ष जिलाधीश या कलैक्टर को दी गई हैं और इसलिए उनके बारे में Palanda ने कहा है कि, “कलैक्टर प्रान्तीय सरकार की आंखें, कान, मुंह और हाथ सब कुछ है।” (“The collector is the eyes, the ears, the mouth and the hands of the provincial government in the district.”) निम्नलिखित बातों के आधार पर भारतीय प्रशासन में जिला प्रशासन के महत्त्व का पता लगता है-

1. कानून और व्यवस्था (Law and Order) शान्ति स्थापित करना और कानून व्यवस्था को बनाए रखना राज्य का एक आवश्यक कार्य है, परन्तु इसमें जिला प्रशासन का ही मुख्य योगदान है। जिलाधीश अपने जिले के अन्दर शान्ति स्थापित करने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायी होता है। इस कार्य में जिले का पुलिस अधीक्षक उसकी सहायता करता है। इसमें शक नहीं कि पुलिस अधीक्षक जिले में अपराधियों को पकड़ने तथा अपराधों को कम करने का उत्तरदायी है, परन्तु जब भी जिले के किसी भाग में कोई गड़बड़ी पैदा होती है या होने की सम्भावना रहती है तो जिलाधीश उसे रोकने और शान्ति को बनाए रखने का समुचित प्रयत्न करता है।

2. न्याय (Justice) देश में अधिकतर लोगों के अधिकतर झगड़ों का निर्णय जिला प्रशासन द्वारा ही किया जाता है। प्रत्येक जिले में जिला न्यायालय स्थित है और इनके न्याय के विरुद्ध उच्च-न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में कुछ प्रतिशत लोग ही जा पाते हैं। अपराधियों को दण्ड देने और लोगों को सच्चा न्याय देकर कानून के शासन (Rule of Law) की व्यवस्था करना जिला प्रशासन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान है।

3. राजस्व (Revenue)—प्रत्येक राज्य की आर्थिक स्थिति राजस्व के ठीक प्रकार से इकट्ठे किये जाने पर निर्भर रहती है। राज्य का समस्त राजस्व जैसे कि भूमि का लगान, उत्पादन शुल्क, सम्पत्ति कर, बिक्री कर आदि जिला प्रशासन द्वारा ही एकत्रित किए जाते हैं। इतना ही नहीं केन्द्रीय सरकार ने भी सभी जिलों में अपने कर्मचारी अपने करों को इकट्ठा करने के लिए नियुक्त किए हैं, जैसे कि आयकर अधिकारी (Income Tax Officer)। प्रत्येक जिले में एक जिला कोष भी है जिसमें संघ तथा राज्य सरकारों के सभी टैक्स जमा किए जाते हैं और वहीं से खर्च करने के लिए सरकार पैसा निकालती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन

4. सार्वजनिक सेवा कार्य (Public Service Functions)-राज्य जनता की सेवा और कल्याण के लिए जो कुछ भी कार्य करते हैं, वे भी जिला प्रशासन द्वारा ही संचालित किए जाते हैं। प्रत्येक जिले में एक ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी, एक सिविल सर्जन, एक जिला शिक्षा अधिकारी, एक जिला खाद्य अधिकारी (District Food and Supply Officer), एक कार्यकारी इंजीनियर (Executive Engineer), एक जिला कृषि अधिकारी आदि होते हैं जो अपने विभाग से सम्बन्धित कार्यों का संचालन जिले में करते हैं और जिले के लोगों का जीवन सुखी तथा विकसित बनाने का प्रयत्न करते हैं। जिले में खाद्य वस्तुओं में मिलावट को रोकने, किसी बीमारी को फैलने से रोकने, खाद्य वस्तुओं की व्यवस्था करने, बनावटी या नकली दवाइयों को पकड़ने, मजदूरों की दशा को अच्छा बनाने, शिक्षा का प्रसार करने आदि के सब काम ज़िलाधिकारियों द्वारा ही किए जाते हैं।

5. प्राकृतिक संकट में लोगों की सहायता (Help to the people in Natural Calamities)-आज राज्य का काम लोगों के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करने के अतिरिक्त उनके जीवन को सुखी और विकसित बनाने के लिए उचित वातावरण पैदा करना भी है। सरकार संकट में पड़े व्यक्तियों की हर प्रकार से सहायता करती है। सरकार का काम भी जिला स्तर पर आरम्भ होता है और जिला प्रशासन द्वारा सम्पन्न किया जाता है। जब कभी किसी भाग में बाढ़ आ जाए, सूखा पड़े, भूचाल आए या कोई महामारी फैल जाए तो लोगों को उस संकट से छुटकारा दिलाने का काम भी ज़िला अधिकारी करते हैं। जिलाधीश संकट के पैदा होते ही समस्त जिला प्रशासन को उस संकट का मुकाबला करने के लिए प्रयोग करता है और लोगों की सहायता की जाती है। जिला प्रशासन के अभाव में लोगों की इतनी शीघ्र सहायता करना सम्भव नहीं है।

6. सामुदायिक विकास परियोजनाएं (Community Development Projects) भारत में ग्रामीण लोगों के जीवन का बहुमुखी विकास करने के लिए जो सामुदायिक विकास परियोजनाएं लागू की गई हैं, वे भी जिला प्रशासन की देख-रेख में ही कार्यान्वित होती हैं। इन सामुदायिक विकास परियोजनाओं ने जिला प्रशासन के उत्तरदायित्वों को बढ़ा दिया है और उनकी सफलता भी जिला प्रशासन पर निर्भर है। जिलाधीश जिले में इन सभी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करवाने का सामान्य रूप से उत्तरदायी है।

7. आम चुनाव (General Election)-भारत में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए एक चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है, परन्तु लोकसभा विधानसभा आदि के चुनावों का वास्तविक कार्य जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है। जिलाधीश जिले में सभी चुनाव कार्यों का इन्चार्ज होता है और उनका प्रबन्ध करता है। प्रत्येक जिले में एक चुनाव कार्यालय है जो जिला प्रशासन के कर्मचारियों की सहायता से मतदाताओं की सूची तैयार करवाता है। जिला प्रशासन के कर्मचारी ही जिले में चुनावों का सब प्रबन्ध करते हैं। चुनाव आयोग या चुनाव आयुक्त तो केवल नियम बनाते हैं और आदेश देते हैं।

8. स्थानीय स्वशासन पर देख-रेख (Supervision over the Local Self-government Institutions)भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं स्थापित की गई हैं। नगरों में नगरपालिकाएं तथा कहीं-कहीं नगर निगम भी हैं। ग्रामों में पंचायतें, पंचायत समितियां तथा जिला परिषद् स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। बेशक ये संस्थाएं अपनी इच्छानुसार काम करती हैं, परन्तु इनके कार्यों पर देखभाल रखने और इनका पथ-प्रदर्शन करने का काम भी ज़िला प्रशासन को ही सौंपा गया है।

9. अन्य कार्य (Other Functions)-इन उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त और भी बहुत-से कार्य हैं जो भारतीय प्रशासन में महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु वे भी जिला प्रशासन द्वारा ही किए जाते हैं। जिलाधीश अपने जिले में जेलों की दशा पर निगरानी रखता है, लोगों को अस्त्र-शस्त्र रखने, लाने या ले जाने, खरीदने और बेचने के लाइसेंस देता है, मन्त्रियों तथा अन्य उच्चाधिकारियों की सुरक्षा की व्यवस्था करता है और कानून तथा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उचित कदम उठा सकता है। जनगणना का काम भी जिला प्रशासन के कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। सरकार का शायद ही ऐसा कोई काम हो जो जिला प्रशासन की सहायता किए बिना हो सकता हो।

स्पष्ट है कि भारतीय प्रशासन की दृष्टि से लोगों के जीवन में जिला प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्री एस० एस० खेड़ा का यह कथन सत्य ही है कि “जिला प्रशासन एक अच्छी इकाई प्रमाणित हुआ है। यह एक व्यावहारिक या यथार्थ इकाई भी सिद्ध हुआ है। यह समय के परीक्षण में पूरा उतरा है।” (“A district has proved a good unit of administration. It has proved a practical unit. It has stood the test of times—S.S. Khera”)

प्रश्न 2.
ज़िलाधीश की नियुक्ति, शक्तियों, कार्यों तथा स्थिति का विवेचन करो।
(Discuss the appointment, powers, functions and position of the Deputy Commissioner.)
उत्तर-
ज़िला भारतीय प्रशासन की एक प्रमुख इकाई है। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, “भारत की भूमि का प्रत्येक इंच जिले का भाग होता है और हर जिले का प्रमुख एक अधिकारी होता है। जिसे कुछ प्रान्तों में कलैक्टर (Collector) तथा कुछ प्रान्तों में जिलाधीश के नाम से पुकारा जाता है।” जिले का समस्त प्रशासन एक जिला अधिकारी (District Officer) के अधीन होता है जिसे पंजाब और हरियाणा में जिलाधीश (उपायुक्त या Deputy Commissioner), उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में कलैक्टर (Collector) और कुछ अन्य राज्यों में जिला मैजिस्ट्रेट (District Magistrate) के नाम से पुकारा जाता है।

जिलाधीश की नियुक्ति (Appointment of the Deputy Commissioner)-जिलाधीश के पद पर भारतीय प्रशासकीय सेवा (I.A.S.) का वरिष्ठ सदस्य ही नियुक्त किया जाता है। कई बार राज्य असैनिक सेवा के किसी वरिष्ठ सदस्य को भी इस पद पर नियुक्त कर देता है। जिले में जिलाधीश की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है और वह उसी समय तक इस पद पर रहता है जब तक राज्य सरकार चाहे। राज्य सरकार उसे पद से हटा कर किसी अन्य पद पर नियुक्त कर सकती है।

शक्तियाँ तथा कार्य (Powers and Functions)-ज़िलाधीश को जिले में राज्य सरकार के कान, आँख, मुँह और हाथ कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि उसे कई रूप में कार्य करना पड़ता है। वह जिलाधीश है, कलैक्टर है, जिला मैजिस्ट्रेट है, ज़िले का मुख्य कार्यकारी अधिकारी है तथा सभी स्वशासन संस्थाओं पर निगरानी रखता है। विभिन्न क्षेत्रों में उसकी शक्तियां तथा कार्य निम्नलिखित हैं-

1. कलैक्टर के रूप में (As a Collector)-जिलाधीश कलैक्टर के रूप में निम्नलिखित कार्य करता है-

  • वह ज़िले के राजस्व प्रशासन का अध्यक्ष है और जिले में भू-राजस्व इकट्ठा करने का उत्तरदायित्व उसी का है।
  • राजस्व विभाग के अन्य सभी अधिकारी तथा कर्मचारी जैसे कि डिप्टी कलैक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, कानूनगो, पटवारी, लम्बरदार आदि ज़िलाधीश के अधीन कार्य करते हैं।
  • वह राजस्व के मामलों में अन्य अधिकारियों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनता है।

2. जिला मैजिस्ट्रेट के रूप में (As a District Magistrate)-ज़िलाधीश को जिला मैजिस्ट्रेट के अधिकार भी प्राप्त हैं। इस रूप में वह निम्नलिखित कार्य करता है

  • वह समस्त जिले में शान्ति स्थापित करने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने का ज़िम्मेदार है।
  • जब भी ज़िले या उसके किसी भाग में कानून और शान्ति के गड़बड़ होने की सम्भावना हो तो वह उचित कार्यवाही कर सकता है।
  • कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उसे धारा 144 लगाने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत वह सभाओं, जुलूसों तथा चार से अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर प्रतिबन्ध लगा सकता है।
  • जिले में स्थित पुलिस अधिकारियों को कानून और व्यवस्था के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के आदेश दे सकता है।
  • वह जिले में स्थित सब जेलों का निरीक्षण कर सकता है और कैदियों को उचित सुविधाएं प्रदान करने के बारे में आदेश दे सकता है।
  • वह हथियारों, विस्फोटकों, पेट्रोल आदि के बारे में लाइसेंस देता है तथा उसकी आज्ञा के बिना कोई व्यक्ति अस्त्र नहीं रख सकता और न ही उन्हें बेच सकता है।
  • वह जिले में पुलिस थानों का निरीक्षण कर सकता है और शासन व्यवस्था सम्बन्धी आदेश दे सकता है।
  • वह पासपोर्ट (Passport) तथा वीजा (Visas) जारी करने के लिए सिफ़ारिश करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन

3. जिले के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में (As a Chief Executive Officer of the District)जिलाधीश जिले का मुख्य कार्यकारी अधिकारी है और जिले के अन्दर सभी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करता है तथा शासन व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायी है। इस रूप में उसे अग्रलिखित कार्य करने पड़ते हैं

  • वह ज़िले में शासन व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायी है।
  • वह जिले में राज्य सरकार का प्रतिनिधि है और उसके सभी कानूनों तथा आदेशों को जिले में लागू करने का उत्तरदायी है तथा जिले में सरकार के हितों की देखभाल करता है।
  • जिले की प्रशासन सम्बन्धी रिपोर्ट सरकार को भेजना उसका कर्तव्य है।
  • जिला प्रशासन के सभी कर्मचारी और विशेषकर राजस्व विभाग तथा न्याय प्रशासन सम्बन्धी कर्मचारी उसके अधीन काम करते हैं।
  • जिले में स्थित अन्य सभी सरकारी विभाग उसकी देख-रेख में कार्य करते हैं।
  • वह प्रशासन के विरुद्ध जनता की सब प्रकार की शिकायतें सुनता है और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करता है।
  • जिला स्तर पर काम करने वाले तथा गांव में काम करने वाले बहुत-से अधिकारियों की नियुक्ति ज़िलाधीश करता है जैसे कि गांव का चौकीदार, लम्बरदार, जैलदार, चपरासी और कई राज्यों में क्लर्क आदि भी।
  • वह मुख्य कार्यकारी अधिकारी होने के नाते जिले में स्थित सभी पागलखानों, सुधारालयों, अन्धविद्यालयों, अनाथ आश्रमों तथा अपाहिज घरों आदि के कार्यों की देख-रेख करता है और उनमें सुधार के लिए आवश्यक कदम भी उठा सकता है।
  • वह राज्य सरकार को जिले का अनुमानित बजट पेश करता है।
  • वह जिले में स्थित स्थानीय स्व-शासन संस्थाओं जैसे कि पंचायत समिति, जिला परिषद्, नगरपालिका आदि के काम पर निगरानी रखता है और यदि आवश्यक समझे तो उसके किसी प्रस्ताव को पास होने या लागू होने से रोक सकता है।

4. (As the Chief Development Officer of the District),

  • वह जिले में सभी विकास और निर्माण कार्यों के कार्यान्वित किए जाने का जिम्मेवार है।
  • वह ज़िले की विकास तथा नियोजन सम्बन्धी समिति का अध्यक्ष होता है और जिले के विकास तथा योजना सम्बन्धी सभी कार्यक्रम उसके परामर्श से ही बनते हैं।
  • पंचायती राज के अन्तर्गत सामुदायिक विकास के सभी कार्य पंचायत समितियों तथा जिला परिषदों को सौंप दिए गए हैं। जिलाधीश जिला परिषद् का पदेन सदस्य होता है।
  • जिलाधीश को पंचायती राज संस्थाओं द्वारा पास किए गए प्रस्तावों को रद्द करने का अधिकार है।
  • वह अपने जिले में कृषि सहकारिता, पशु-पालन, घरेलू उद्योग आदि का विकास करने के लिए आवश्यक आदेश दे सकता है।

5. चुनाव अधिकारी के रूप में (As a Returning Officer)-जिलाधीश जिले में संसद् तथा विधानसभा तथा अन्य किसी स्तर के चुनाव के लिए पूर्ण सहायता देता है। वह ज़िले में चुनाव का उचित प्रबन्ध करने के लिए जिम्मेवार होता है। अपने जिले से चुनाव शान्तिपूर्वक तथा निष्पक्ष ढंग से करवाने के लिए वह अनेक अधिकारियों को नियुक्त करता है और उन्हें उचित प्रशिक्षण देता है।

6. ज़िला जनगणना अधिकारी के रूप में (As A District Census Officer) ज़िलाधीश जिले की जनगणना के लिए उत्तरदायी होता है। वह इस कार्य के लिए अधिकारियों को नियुक्त करता है उन्हें उचित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी करता है। जिले की जनगणना के पश्चात् वह जनगणना के आंकड़े राज्य सरकार को भेजता है।

ज़िलाधीश की स्थिति (Position of the Deputy Commissioner)-ज़िलाधीश का पद एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण पद है। वह अंग्रेजों के समय में तो जिले का निरंकुश शासक हुआ करता था। पलांदे ने जिलाधीश को “ज़िले में प्रान्तीय सरकार की आँखं, कान, मुंह और हाथ बताया है।” (According to Plande the Deputy Commissioner is, “The eyes, the ears, the mouth and the hands” of the provincial in the district.) यह बात काफ़ी सीमा तक सत्य है। राज्य सरकार ने अपने सभी कार्य जिलाधीश के कन्धों पर डाल दिए हैं। सरकार जिले में जो भी कार्य करना चाहती है, उसे जिलाधीश को सौंप दिया जाता है। जिले में कोई भी काम उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं हो सकता। एक लेखक का कहना है कि “इस समय जिला प्रशासन के समस्त सूत्र डिप्टी कमिश्नर के हाथों में ही केन्द्रित हैं।”

स्वतन्त्रता के पश्चात् उसकी स्थिति में परिवर्तन होते हुए भी उसका महत्त्व कम नहीं हुआ। वह आज भी ज़िला प्रशासन का अध्यक्ष है और जिले में राज्य सरकार का हर उद्देश्य से प्रतिनिधि है। आज भी राज्य सरकारें प्रशासन के सभी कामों में जिलाधीश की ओर देखती हैं और जिला प्रशासन की सफलता जिलाधीश की योग्यता, क्षमता, बुद्धिमत्ता और व्यक्तिगत चरित्र पर बहुत कुछ निर्भर है। एक योग्य जिलाधीश अपने जिले की बहुत उन्नति कर सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जिला प्रशासन की कोई चार विशेषताएं बताइये।
उत्तर-
जिला प्रशासन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • विकास का परिणाम- भारत में वर्तमान जिला प्रशासन एक लम्बी ऐतिहासिक और विकासकारी प्रक्रिया का परिणाम है। जिला प्रशासन का अस्तित्व मुग़ल व ब्रिटिश शासन से पहले था।
  • भारतीय प्रशासन की मुख्य इकाई-जिला प्रशासन भारतीय प्रशासन की मुख्य इकाई है क्योंकि जिला स्तर पर सभी सरकारी विभागों के कार्यकाल स्थापित किए गए हैं। इन्हीं विभागों के माध्यम से सरकार अपना कार्य करती है।
  • जिला प्रशासन राज्य सरकार के अधीन-जिला प्रशासन राज्य सरकार के नियन्त्रण में कार्य करता है। राज्य सरकार जिला प्रशासन को अनेक तरीकों से अपने नियन्त्रण में रखती है।
  • कार्यों का विभाजन-जिला प्रशासन के प्रशासनिक कुशलता व सुविधा की दृष्टि से उप-मण्डलों, तहसीलों, उप-तहसीलों में विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 2.
जिला प्रशासन के किन्हीं चार अधिकारियों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर-
जिला स्तर पर कार्यरत प्रमुख अधिकारी इस प्रकार हैं-

  • जिलाधीश-ज़िलाधीश समस्त जिला प्रशासन का अध्यक्ष होता है। वह जिले में राज्य सरकार का प्रतिनिधि है और सरकार की समस्त शक्तियां, अधिकार तथा दायित्व उसमें निहित हैं।
  • पुलिस अधीक्षक-जिले में पुलिस विभाग का अध्यक्ष पुलिस अधीक्षक होता है। जिले के समस्त पुलिस कर्मचारी उसकी देख-रेख में कार्य करते हैं। वह जिले में शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जिलाधीश के अधीन होता है और कार्य करता है।
  • ज़िला तथा सैशन जज-ज़िले का न्याय संगठन एक ज़िला तथा सैशन जज के अधीन होता है। जिला तथा सैशन जज उच्च न्यायालय के अधीन होता है।
  • जिला शिक्षा अधिकारी-ज़िले में शिक्षा विभाग के सभी कार्य जिला शिक्षा अधिकारी की देख-रेख में होते हैं जिसकी नियुक्ति शिक्षा विभाग द्वारा होती है। वह प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूलों पर नियन्त्रण रखता है। जिले में शिक्षा का प्रबन्ध करने और उसके सुप्रबन्ध के लिए वह उत्तरदायी है।

प्रश्न 3.
जिला प्रशासन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ज़िला प्रशासन भारतीय प्रशासन की एक मुख्य इकाई है। जिला स्तर पर ही राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के कार्यालय स्थापित होते हैं। यहां तक कि केन्द्रीय सरकार के भी कई कार्यालय जिला स्तर पर स्थापित हैं। राज्य सरकार अपना समस्त प्रशासन जिला अधिकारियों के द्वारा ही चलाती है और जनता की जानकारी भी ज़िला प्रशासन के द्वारा ही प्राप्त करती है। सरकार की सभी शक्तियां जिला स्तर पर जिला प्रशासन के अध्यक्ष ज़िलाधीश को दी गई हैं। जिला प्रशासन के द्वारा ही सरकार कानून और व्यवस्था को बनाए रखती है, राजस्व एकत्र करती है और यहां तक कि आपातकाल में पीड़ितों को सहायता भी प्रदान करती है। जिला प्रशासन की मदद से ही अनेक सामुदायिक विकास योजनाएं लागू की जाती हैं। सरकार जिला प्रशासन के माध्यम से ही सुनती, देखती और क्रिया करती है। राज्य सरकारों की कुशलता व अकुशलता जिला प्रशासन पर निर्भर करती है। सरकार की नीतियों का निर्माण नई दिल्ली और राज्य की राजधानियों में होता है, लेकिन उनका क्रियान्वयन (Implementation) जिला प्रशासन द्वारा ही होता है। अतः जिला प्रशासन का भारतीय प्रशासन में मौलिक योगदान है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन

प्रश्न 4.
कलैक्टर के रूप में जिलाधिकारी की भूमिका की विवेचना कीजिए। (Textual Ouestion)
उत्तर-
जिलाधीश की नियुक्ति सबसे पहले राजस्व इकट्ठा करने के उद्देश्य से ही की गई थी। जिले में राजस्व इकट्ठा करने का वह उत्तरदायी है और अन्य सभी प्रकार के टैक्स इकट्ठा करवाने की ओर ध्यान देता है। लगान वसूल करने के कारण ही उसे कलैक्टर अर्थात् इकट्ठा करने वाला कहा जाता है। इस रूप में उसके निम्नलिखित कार्य हैं-

  • वह जिले के राजस्व प्रशासन का अध्यक्ष है और जिले में भू-राजस्व इकट्ठा करने का उत्तरदायित्व उसी का है।
  • राजस्व विभाग के अन्य सभी अधिकारी तथा कर्मचारी जैसे कि डिप्टी कलैक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, कानूनगो, पटवारी, लम्बरदार आदि जिलाधीश के अधीन कार्य करते हैं।
  • वह राजस्व के मामलों में अन्य अधिकारियों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनता है।
  • आवश्यकता पड़ने पर वह तकावी ऋण का विभाजन करता है और तकावी ऋण को वसूल करने का उत्तरदायी है।
  • वह भूमि व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक विषयों का प्रशासन करता है और भूमि रिकॉर्ड के सभी कर्मचारी उसके अधीन काम करते हैं।
  • वह जिले में भूमि-सम्बन्धी तथा कृषि-सम्बन्धी आंकड़ों का प्रबन्ध करता है और उन्हें एकत्रित करवाता है।
  • जिले में अन्य सभी प्रकार के ऋण उसके माध्यम से दिए जाते हैं और वह उन्हें वसूल करता या करवाता है।
  • वह भूमि प्राप्ति के कार्य (Land Acquisition Work) का जिले में प्रशासन करता है।
  • जिले का कोष उसके अधीन तथा उसके नियन्त्रण में रहता है और वह जब चाहे खज़ानों तथा उप-खज़ानों का निरीक्षण करता है।

प्रश्न 5.
‘जिले का मुख्य कार्यालय राज्य की एक उप-राजधानी सा लगता है।’ इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
जिला मुख्यालय (District Headquarter) जिला प्रशासन की महत्त्वपूर्ण शीर्षस्थ इकाई है। जिला मुख्यालय कई विभागों में बंटा होता है, जिसके पद सोपान के शीर्ष पर जिलाधीश होता है। जिलाधीश ज़िले का प्रथम नागरिक, सेवक तथा मुख्य कार्यकारी होता है। जिला मुख्यालय के प्रत्येक विभाग को उप-विभागों, शाखाओं, सैक्शनों तथा उप-सैक्शनों में विभाजित किया जाता है। एक जिले में लागू होने वाली सभी नीतियां एवं कार्यक्रम जिला मुख्यालय स्तर पर ही तैयार होती हैं। जिले की सभी नीतियां जिला अधिकारियों द्वारा लागू की जाती हैं। जिले का समस्त सरकारी वर्ग जिला मुख्यालय में ही होता है। इसीलिए जिला मुख्यालय को जिला प्रशासन का हृदय व केन्द्र कहा जाता है। राज्य प्रशासन में जिला मुख्यालय की व्यवस्थित तथा महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए जिला मुख्यालय को लघु सचिवालय अथवा राज्य की उप-राजधानी का नाम दिया गया है।

प्रश्न 6.
जिलाधीश के जिला मैजिस्ट्रेट के रूप में दो कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. ज़िलाधीश समस्त ज़िले में शान्ति स्थापित करने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है। जब भी ज़िले या उसके किसी भाग में कानून या शान्ति के गड़बड़ होने की सम्भावना हो तो वह उचित कार्यवाही कर सकता है।
  2. जिलाधीश को कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए धारा-144 लगाने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत वह सभाओं, जुलूसों तथा चार से अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर प्रतिबन्ध लगा सकता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जिला प्रशासन की कोई दो विशेषताएं बताइये।
उत्तर-
ज़िला प्रशासन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  1. विकास का परिणाम- भारत में वर्तमान जिला प्रशासन एक लम्बी ऐतिहासिक और विकासकारी प्रक्रिया का परिणाम है। जिला प्रशासन का अस्तित्व मुग़ल व ब्रिटिश शासन से पहले था।
  2. भारतीय प्रशासन की मुख्य इकाई-जिला प्रशासन भारतीय प्रशासन की मुख्य इकाई है क्योंकि जिला स्तर पर सभी सरकारी विभागों के कार्यकाल स्थापित किए गए हैं। इन्हीं विभागों के माध्यम से सरकार अपना कार्य करती है।

प्रश्न 2.
कलैक्टर के रूप में जिलाधिकारी की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर-

  1. वह जिले के राजस्व प्रशासन का अध्यक्ष है और जिले में भू-राजस्व इकट्ठा करने का उत्तरदायित्व उसी का है।
  2. राजस्व विभाग के अन्य सभी अधिकारी तथा कर्मचारी जैसे कि डिप्टी कलैक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, कानूनगो, पटवारी, लम्बरदार आदि ज़िलाधीश के अधीन कार्य करते हैं।

प्रश्न 3.
जिलाधीश के जिला मैजिस्ट्रेट के रूप में दो कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. जिलाधीश समस्त जिले में शान्ति स्थापित करने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है।
  2. जिलाधीश को कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए धारा-144 लगाने का अधिकार है।

प्रश्न 4.
जिलाधीश के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो कार्य लिखें।
उत्तर-

  1. ज़िलाधीश जिले में शासन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है।
  2. जिले में स्थित अन्य सभी सरकारी विभाग जिलाधीश की देख-रेख में कार्य करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. भारतीय प्रशासन की आधारभूत इकाई क्या है ?
उत्तर-ज़िला।

प्रश्न 2. जिला प्रशासन का कोई एक कार्य लिखें।
उत्तर-कानून व व्यवस्था को बनाये रखना।

प्रश्न 3. जिलाधीश की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-राज्य सरकार।

प्रश्न 4. भारतीय प्रशासन व्यवस्था की प्रमुख इकाई क्या है ?
उत्तर–भारतीय प्रशासन व्यवस्था की प्रमुख इकाई जिला प्रशासन है।

प्रश्न 5. भारत में किस वर्ष कलैक्टर का पद सजित किया गया ?
उत्तर- भारत में जिला कलैक्टर के पद का सृजन 1872 में हुआ।

प्रश्न 6. जिला प्रशसन को वैज्ञानिक ढंग से संगठित करने का श्रेय किसे है ?
उत्तर भारत में जिला प्रशासन को वैज्ञानिक ढंग से संगठित करने का श्रेय लॉर्ड कार्नवालिस को है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 32 जिला प्रशासन

प्रश्न 7. जिला प्रशासन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – एक क्षेत्र में, जिसे कानून द्वारा जिले के नाम से पुकारा जाता है, में सरकार के सभी कार्यों का बन्दोबस्त

प्रश्न 8. जिला प्रशासन के अध्यक्ष को क्या कहा जाता है ?
उत्तर – जिले के प्रशासनिक अध्यक्ष को जिलाधीश कहा जाता है।

प्रश्न 9. जिला प्रशासन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-जिला प्रशासन का मुख्य उद्देश्य अपने क्षेत्र में शान्ति-व्यवस्था की स्थापना करना है।

प्रश्न 10. हरियाणा व पंजाब में जिला प्रशासन व राज्य प्रशासन के मध्य किसकी स्थापना की गई है ?
उत्तर-जिला प्रशासन व राज्य प्रशासन के मध्य हरियाणा व पंजाब में ‘मण्डल’ (Division) की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 11. मण्डल के मुख्य अधिकारी को क्या कहते हैं ?
उत्तर-मण्डल के मुख्य अधिकारी को मण्डल आयुक्त कहते हैं।

प्रश्न 12. मण्डल आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-मण्डल आयुक्त की नियुक्ति राज्य मुख्यालय की सिफ़ारिश पर राज्यपाल द्वारा की जाती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. समस्त राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों को ………….. में बांटा गया है।
2. …………….. के अनुसार कलैक्टर प्रान्तीय सरकार की आंखें, कान, मुंह और हाथ सब कुछ है।
3. जिलाधीश के पद पर ………… का वरिष्ठ सदस्य ही नियुक्त किया जाता है।
उत्तर-

  1. ज़िलों
  2. प्लांदे
  3. भारतीय प्रशासनिक सेवा।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. भारतीय भूमि का एक-एक इंच जिले का भाग है।
2. प्राकृतिक संकट के समय जिला प्रशासन लोगों की कोई मदद नहीं कर पाता।
3. जिलाधीश जिले में शासन व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायी होता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यह कथन किसका है, “ज़िले में सरकार के समस्त कार्यों के संग्रह को जिला प्रशासन कहा जाता
(क) श्री खेरा
(ख) कौटिल्य
(ग) एम० पी० शर्मा
(घ) बलदेव सिंह।
उत्तर-
(क) श्री खेरा।

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प्रश्न 2.
जिलाधीश निम्न में से कौन-सा कार्य करता है ?
(क) भू-राजस्व एकत्र करना
(ख) ज़िले में शाति एवं व्यवस्था बनाये रखना।
(ग) राज्य सरकार को जिले का अनुमानित बजट पेश करना।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 31 राज्य विधानमण्डल

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 31 राज्य विधानमण्डल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 31 राज्य विधानमण्डल

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य की विधानसभा की रचना और शक्तियां बताओ।
(Explain the composition and powers of the State Legislative Assembly.)
उत्तर-
सभी राज्यों में कानून-निर्माण के लिए विधानमण्डल की व्यवस्था की गई है। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं और कुछ में केवल एक ही सदन रखा गया है। विधानसभा दोनों ही प्रकार के विधानमण्डलों में है। विधानसभा विधानमण्डल का निम्न सदन है जो जनता का प्रतिनिधित्व करता है।

रचना (Composition) संविधान में विधानसभा के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई बल्कि अधिकतम और न्यूनतम संख्या निर्धारित की गई है। अनुच्छेद 170 (1) के अनुसार विधानसभा में सदस्यों की संख्या 60 से कम और 500 से अधिक नहीं हो सकती। राज्य की विधानसभा की संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाती है। पंजाब की विधानसभा में 117 सदस्य हैं। सबसे अधिक सदस्य उत्तर प्रदेश में हैं जिसकी विधानसभा की सदस्य संख्या 403 है। विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं और भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मत डालने का अधिकार है ! अनुसूचित, आदिम व पिछड़ी हुई जातियों के लिए स्थान तो निश्चित हैं, परन्तु उनका निर्वाचन संयुक्त प्रणाली के आधार पर ही होता है। राज्यपाल एंग्लो-इण्डियन समुदाय का एक सदस्य विधानसभा में मनोनीत कर सकता है, यदि उसकी दृष्टि में इस समुदाय की जनसंख्या राज्य में विद्यमान हो और उसको चुनाव में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिला हो।

योग्यताएं (Qualifications)-राज्य विधानसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह किसी सरकारी लाभदायक पद पर न हो।
  4. संघीय संसद् द्वारा बनाई गई योग्यताएं रखता हो।
  5. वह दिवालिया या पागल न हो तथा।
  6. किसी न्यायालय द्वारा इस पद के लिए अयोग्य घोषित न किया गया हो।

अवधि (Term) विधानसभा की अवधि पांच वर्ष है। इसके सभी सदस्यों का चुनाव एक साथ होता है। राज्यपाल 5 वर्ष से पहले भी जब चाहे विधानसभा को भंग करके दोबारा चुनाव करवा सकता है। संकट के समय विधानसभा की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।

अधिवेशन (Sessions)-राज्यपाल विधानसभा और विधानपरिषद् के अधिवेशन किसी समय भी बुला सकता है। परन्तु दो अधिवेशनों के बीच 6 मास से अधिक समय नहीं बीतना चाहिए। राज्यपाल दोनों सदनों का सत्रावसान भी कर सकता है।

गणपूर्ति (Quorum) विधानसभा की बैठकों में कार्यवाही प्रारम्भ होने के लिए यह आवश्यक है कि विधानसभा की कुल सदस्य संख्या का 1/10वां भाग उपस्थित हो।

वेतन और भत्ते (Salary and Allowances)-विधानसभा के सदस्यों के वेतन तथा भत्ते राज्य के विधानमण्डल द्वारा निश्चित किए जाते हैं।

सदस्यों को विशेषाधिकार (Privileges of the Members)-विधानसभा के सदस्यों को लगभग वही विशेषाधिकार प्राप्त हैं जो संसद् के सदस्यों को प्राप्त हैं। विधानसभा के सदस्यों को सदन में भाषण देने की स्वतन्त्रता दी गई है। उनके द्वारा सदन में प्रकट किए गए किसी विचार या कही गई किसी बात के आधार पर किसी न्यायालय में कोई मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता है। विधानसभा के सदस्यों को सदन के अधिवेशन के आरम्भ होने से 40 दिन पहले से लेकर अधिवेशन के समाप्त होने के 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

विधानसभा के पदाधिकारी (Officers of the Legislative Assembly)-विधानसभा का एक अध्यक्ष (Speaker) होता है और एक उपाध्यक्ष। इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही होता है। अध्यक्ष का काम सभा की बैठकों में सभापतित्व करना, उनमें शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखना, सदस्यों को बोलने की स्वीकृति देना, बिलों पर मतदान करवाना तथा निर्णयों की घोषणा करना है।

missing (Powers and Functions of the Legislative Assembly)—fG राज्यों में विधानमण्डल का एक सदन है वहां पर विधानमण्डल की सभी शक्तियों का प्रयोग विधानसभा द्वारा किया जाता है और जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहां पर भी विधानसभा अधिक प्रभावशाली है। विधानसभा की मुख्य शक्तियां निम्नलिखित हैं-

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 31 राज्य विधानमण्डल

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)—विधानसभा को राज्य-सूची तथा समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने के लिए बिल पास करने का अधिकार है। यदि विधानमण्डल द्विसदनीय है तो विधेयक वहां से विधानपरिषद् के पास जाता है। विधानपरिषद् यदि उसे रद्द कर दे या तीन महीने तक उस पर कोई कार्यवाही न करे या उसमें ऐसे संशोधन कर दे जो विधानसभा को स्वीकृत न हों तो विधानसभा उस विधेयक को दोबारा पास कर सकती है और उसे विधानपरिषद् के पास भेजा जाता है। यदि विधानपरिषद् उस बिल पर दोबारा एक महीने तक कोई कार्यवाही न करे या उसे रद्द कर दे या उसमें ऐसे संशोधन कर दे जो विधानसभा को स्वीकृत न हों, तो इन अवस्थाओं में वह बिल दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाएगा। दोनों सदनों या एक सदन के पास होने के बाद बिल राज्यपाल के पास जाता है।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)-राज्य के वित्त पर विधानसभा का ही नियन्त्रण है। धन-बिल केवल विधानसभा में ही पेश हो सकते हैं। वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने से पहले राज्य का वार्षिक बजट भी इसी के सामने प्रस्तुत किया जाता है। विधानसभा की स्वीकृति के बिना राज्य सरकार न कोई टैक्स लगा सकती है और न ही धन खर्च कर सकती है। विधानसभा के पास होने के बाद धन-बिल विधानपरिषद् के पास भेजा जाता है। (यदि विधानमण्डल द्विसदनीय है) जो उसे अधिक-से-अधिक 14 दिन तक पास होने से रोक सकती है। विधानपरिषद् चाहे धन-बिल को रद्द करे या 14 दिन तक उस पर कोई कार्यवाही न करे, तो वह दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाता है और राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है जिसे धन-बिल पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive)-विधानमण्डल को कार्यकारी शक्तियां भी मिली हुई हैं। विधानसभा का मन्त्रिपरिषद् पर पूर्ण नियन्त्रण है। मन्त्रिपरिषद् अपने समस्त कार्यों व नीतियों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। विधानसभा के सदस्य मन्त्रियों की आलोचना कर सकते हैं, प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं। विधानसभा चाहे तो मन्त्रिपरिषद् को हटा भी सकती है। विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके अथवा धन-बिल को अस्वीकृत करके अथवा मन्त्रियों के वेतन में कटौती करके अथवा सरकार के किसी महत्त्वपूर्ण बिल को अस्वीकृत करके मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देने के लिए मजबूर कर सकती है।

4. संवैधानिक कार्य (Constitutional Functions) संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद हैं जिनमें संसद् अकेले संशोधन नहीं कर सकती। ऐसे अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति भी आवश्यक होती है। अतः विधानपरिषद् के साथ मिलकर (यदि विधानमण्डल द्विसदनीय है) विधानसभा संविधान के संशोधन में भाग लेती है।

5. चुनाव सम्बन्धी कार्य (Electoral Functions)

  • विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। यह अधिकार विधानपरिषद् को प्राप्त नहीं है।
  • विधानसभा के सदस्य विधानपरिषद् में 1/3 सदस्यों को चुनते हैं।
  • विधानसभा के सदस्य ही राज्यसभा में राज्य के प्रतिनिधियों को चुन कर भेजते हैं।
  • राज्य विधानसभा के सदस्य अपने में से एक को अध्यक्ष और किसी दूसरे को उपाध्यक्ष चुनते हैं।

6. अन्य कार्य (Other Functions)-राज्य की विधानसभाओं को कुछ और भी कार्य करने पड़ते हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  • विधानसभा 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके विधानपरिषद् की स्थापना तथा समाप्ति की प्रार्थना कर सकती है और संसद् इस प्रार्थना के अनुसार कानून बनाती है।
    7 अप्रैल, 1993 को पंजाब की विधानसभा ने विधानपरिषद् की स्थापना के लिए प्रस्ताव पास किया।
  • विधानसभा विधानपरिषद् के साथ मिलकर (यदि विधानपरिषद् हो) लोक सेवा आयोग की शक्तियों को बढ़ा सकती हैं।
  • विधानसभा विधानपरिषद् के साथ मिल कर आकस्मिक कोष स्थापित कर सकती है।
  • राज्य की विधानसभा किसी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकारों के उल्लंघन करने पर दण्ड दे सकती है।
  • यदि कोई सदस्य विधानसभा का अनुशासन भंग करता है और सदन की कार्यवाही शान्तिपूर्वक नहीं चलने देता, तब सदन उस सदस्य को सदन से निलम्बित कर सकता है।
  • विधानसभा विरोधी दल के नेता को सरकारी मान्यता देने के लिए और उसे अन्य सुविधाएं देने के लिए बिल पास कर सकती है।

विधानसभा की स्थिति (Position of the Legislative Assembly)-राज्य के प्रशासन में विधानसभा का विशेष महत्त्व है। जिन राज्यों में विधानमण्डल का एक सदन है जैसे कि पंजाब, हरियाणा में, वहां पर राज्य की समस्त वैधानिक शक्तियां विधानसभा के पास हैं और जहां पर विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहां पर भी कानून बनाने में विधानसभा ही प्रभावशाली सदन है। विधानपरिषद् विधानसभा द्वारा पास किए गए बिल को अधिक-से-अधिक चार महीने तक रोक सकती है। राज्य के धन पर पूर्ण नियन्त्रण विधानसभा का है। विधानपरिषद् धन बिल को केवल 14 दिन तक रोक सकती है। विधानसभा की स्वीकृति के बिना न कोई टैक्स लगाया जा सकता है और न ही कोई धन ख़र्च किया जा सकता है। मन्त्रिपरिषद् इसके प्रति उत्तरदायी है और विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव पास करके इसको हटा सकती है। यहां तक कि विधानपरिषद् का अस्तित्व भी विधानसभा पर निर्भर करता है। विधानसभा की राज्यों में वही स्थिति है जो केन्द्र में लोकसभा की है।

प्रश्न 2.
राज्य की विधानपरिषद् की रचना, शक्तियों और कार्यों का वर्णन करो।
(Discuss the composition, powers and functions of State Legislative Council.)
उत्तर-
भारत के अनेक राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन पाए जाते हैं जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना। जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन पाए जाते हैं, वहां पर विधानमण्डल के ऊपरि सदन को विधानपरिषद् कहा जाता है। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश इत्यादि राज्यों में विधानपरिषद् नहीं पाई जाती क्योंकि इन राज्यों में विधानमण्डल का एक ही सदन है। 7 अप्रैल, 1993 को पंजाब की विधानसभा ने विधानपरिषद् की स्थापना के लिए बहुमत से प्रस्ताव पारित किया।

रचना (Composition)—किसी भी राज्य की विधानपरिषद् के सदस्यों की संख्या 40 से कम और विधानसभा के 1/3 भाग से अधिक नहीं हो सकती। परन्तु जम्मू-कश्मीर की विधानपरिषद् में कुल 36 सदस्य हैं। उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् की सदस्य संख्या 100 है। विधानपरिषद् में कुल सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं चुने जाते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप में निम्नलिखित तरीके से चुने जाते हैं-

  1. लगभाग 1/3 सदस्य स्थानीय संस्थाओं के द्वारा चुने जाते हैं।
  2. लगभग 1/3 सदस्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
  3. लगभग 1/12 सदस्य राज्य में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों द्वारा चुने जाते हैं जो कम-से-कम तीन वर्ष से किसी विश्वविद्यालय में स्नातक हों।
  4. लगभग 1/12 सदस्य राज्य की माध्यमिक पाठशालाओं या इससे उच्च शिक्षा संस्थाओं में कम-से-कम तीन वर्ष से अध्यापन कार्य करने वाले अध्यापकों द्वारा चुने जाते हैं।
  5. शेष लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से मनोनीत होते हैं जिन्हें विज्ञान, कला, साहित्य, समाज-सेवा आदि के क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।

योग्यताएं (Qualifications) विधानपरिषद् का सदस्य निर्वाचित या मनोनीत होने के लिए किसी भी व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह किसी सरकारी लाभदायक पद पर आसीन न हो।
  4. वह विधि द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।
  5. वह संसद् द्वारा बनाए गए किसी कानून के अनुसार विधानपरिषद् का सदस्य बनने के लिए अयोग्य न हो।
  6. वह दिवालिया न हो, पागल न हो और किसी न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो। यदि निर्वाचित होने के बाद भी उसमें ऐसी कोई अयोग्यता उत्पन्न हो जाए या लगातार 60 दिन तक सदन की स्वीकृति के बिना अधिवेशनों में अनुपस्थित रहे तो उसका स्थान रिक्त घोषित किया जा सकता है।

अवधि (Term)-विधानपरिषद् एक स्थायी सदन है जिसके सदस्य राज्यसभा की भान्ति 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। परन्तु सभी सदस्य एक साथ नहीं चुने जाते। इनके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के पश्चात् अवकाश ग्रहण करते हैं परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाले सदस्य दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं। राज्यपाल विधानपरिषद् को भंग नहीं कर सकता।

गणपूर्ति (Quorum)-संविधान के अनुसार विधानपरिषद् का अधिवेशन आरम्भ होने के लिए आवश्यक है कि इसके सदस्यों का 1/10वां भाग सदस्य उपस्थित हों।

अधिवेशन (Session)-राज्यपाल विधानपरिषद् का अधिवेशन किसी भी समय बुला सकता है, परन्तु दो अधिवेशनों के बीच 6 मास से अधिक समय नहीं बीतना चाहिए। राज्यपाल प्रायः राज्य के विधानमण्डल के दोनों सदनों का अधिवेशन एक ही समय बुलाता है।

पदाधिकारी (Officials)-विधानसभा का एक सभापति और एक उप-सभापति होता है। इसका चुनाव विधानपरिषद् के सदस्य अपने में से ही करते हैं। इन्हें प्रस्ताव पास करके सदस्यों द्वारा हटाया भी जा सकता है परन्तु ऐसा प्रस्ताव उस समय तक पेश नहीं किया जा सकता जब तक कि इस आशय की पूर्व सूचना कम-से-कम 14 दिन पहले न दी गई हो। सभापति विधानपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है और अनुशासन बनाए रखता है ताकि विधानपरिषद् अपना कार्य ठीक प्रकार से कर सके। सभापति की शक्तियां व कार्य वहीं हैं जोकि विधानसभा के स्पीकर की हैं। सभापति की अनुपस्थिति में उप-सभापति इसकी अध्यक्षता करता है।

वेतन और भत्ते (Salary and Allowances)-विधानपरिषद् के सदस्यों को विधानमण्डल द्वारा निश्चित वेतन और भत्ते मिलते हैं जोकि विधानसभा के सदस्यों के समान होते हैं। इन्हें भी भाषण की स्वतन्त्रता है और सदन में कहे गए किसी शब्द के आधार पर इनके विरुद्ध कोई मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता।

शक्तियां और कार्य (Powers and Functions)-राज्य की विधानपरिषद् को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers) विधानपरिषद् में उन सभी विषयों के सम्बन्ध में साधारण बिल पेश किया जा सकता है जिनका वर्णन राज्य सूची और समवर्ती सूची में पेश किया गया है। परन्तु उस बिल को तब तक राज्यपाल के पास नहीं भेजा जा सकता जब तक विधानसभा पास न करे अर्थात् विधानसभा की स्वीकृति के बिना कोई बिल कानून नहीं बन सकता। परन्तु विधानपरिषद् विधानसभा द्वारा पास किए गए बिल को अधिक-से-अधिक चार महीने (पहली बार तीन महीने और दूसरी बार एक महीना) तक रोक सकती है।

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2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)-धन-बिल विधानपरिषद् में पेश नहीं हो सकता। बजट या धन-बिल विधानसभा के पास होने के बाद ही इसके पास आता है। यह बजट और धन-बिल पर विचार कर सकती है, परन्तु उसे रद्द नहीं कर सकती। विधानपरिषद् यदि धन-बिल को रद्द कर दे या 14 दिन तक उस पर कोई कार्यवाही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो विधानसभा को अस्वीकृत हों, तो वह बिल इन सभी दशाओं में दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाएगा। स्पष्ट है कि राज्य के वित्त पर विधानपरिषद् को नाममात्र का अधिकार प्राप्त है।

3. कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers) विधानपरिषद् कार्यपालिका को प्रभावित कर सकती है, परन्तु उस पर नियन्त्रण नहीं रख सकती। विधानपरिषद् के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं और ‘काम रोको’ प्रस्ताव पेश करके मन्त्रिमण्डल की कमियों और भ्रष्टाचार पर प्रकाश डाल सकते हैं तथा उनकी आलोचना कर सकते हैं। बजट पर विवाद करते हुए भी विधानपरिषद् के सदस्य मन्त्रियों की कड़ी आलोचना कर सकते हैं। परन्तु मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है और इसलिए विधानसभा मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर उसे अपदस्थ नहीं कर सकती।

4. संवैधानिक कार्य (Constitutional Function) विधानपरिषद् विधानसभा के साथ मिलकर संविधान के संशोधन में भाग लेती है परन्तु उसी समय जब कोई संशोधन बिल राज्यों की अनुमति के लिए भेजा जाए। परन्तु संविधान का बहुत कम भाग ऐसा है जिसे इस विधि से बदला जा सकता है।

विधानपरिषद् की स्थिति (Position of the Legislative Council) विधानपरिषद् विधानसभा के मुकाबले में एक बहुत ही गौण सदन है। यह अपने अस्तित्व के लिए विधानसभा पर निर्भर है। विधानसभा विधानपरिषद् की समाप्ति के लिए प्रार्थना कर सकती है और संसद् उस प्रस्ताव के आधार पर कानून बना देगी। इस एकमात्र कारण के आधार पर यह विधानसभा के सामने सिर नहीं उठा सकती, इसका मुकाबला करने की बात तो बहुत दूर की है। इसे न राज्य के कानून-निर्माण में कोई प्रभाव डालने का अधिकार है और न ही राज्य के प्रशासन को भी प्रभावित करने का। विधानपरिषद् विधानसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून पास नहीं कर सकती जबकि विधानपरिषद् विधानसभा द्वारा पास किए गए बिल को अधिक-से-अधिक चार मास के लिए रोक सकती है। कार्यपालिका पर विधानपरिषद् का नियन्त्रण नाममात्र का है। विधानपरिषद् के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं, मन्त्रियों की आलोचना कर सकते हैं, परन्तु अविश्वास प्रस्ताव पास करके हटा नहीं सकते। राज्य के वित्त पर भी इस सदन का कोई नियन्त्रण नहीं है। धनबिल को विधानपरिषद् केवल 14 दिन तक रोक सकती है। संक्षेप में, विधानपरिषद् विधानसभा के मुकाबले में बिल्कुल शक्तिहीन तथा गौण सदन है।

प्रश्न 3.
राज्य विधानमण्डल की रचना की व्याख्या करा। राज्य विधानमण्डल की शक्तियां संक्षेप रूप में वर्णित करो।
(Discuss the Composition of State Legislature. Explain briefly the powers of the State Legislature.)
उत्तर-
प्रत्येक राज्य में कानून निर्माण के लिए विधानमण्डल की स्थापना की गई है। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं जबकि कुछ राज्यों में विधानमण्डल का एक सदन है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, जम्मू-कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में विधानमण्डल के दो सदन हैं जबकि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, केरल, आसाम, उड़ीसा इत्यादि में एक सदन है।
विधानमण्डल की रचना (Composition of State Legislature)-जिन राज्यों में द्विसदनीय विधानमण्डल है वहां विधानमण्डल के दो सदन हैं-विधानसभा तथा विधानपरिषद् । एक सदन वाले विधानमण्डल में केवल विधानसभा ही होती है।

(क) विधानसभा (Legislative Assembly)-प्रत्येक विधानण्डल में विधानसभा का होना आवश्यक है। यह सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है और इसके सभी सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। राज्यपाल को ऐंग्लो-इण्डियन जाति का एक सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है, यदि चुनाव में इस समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त न हो सका हो। संविधान के अनुसार विधानसभा में अधिक-से-अधिक 500 तथा कम-से-कम 60 सदस्य हो सकते हैं। पंजाब विधानसभा की सदस्य संख्या 117 है जबकि हरियाणा में 90 सदस्य हैं।
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति-

  1. भारत का नागरिक हो।
  2. 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. किसी सरकारी लाभदायक पद पर आसीन न हो।
  4. कानून द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।
  5. पागल, दिवालिया, न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो।
  6. विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले आजाद उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक है कि उसका नाम दस प्रस्तावकों द्वारा अनुमोदित किया जाए।

विधानसभा की अवधि 5 वर्ष है। परन्तु राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह पर इसे 5 वर्ष की अवधि से पहले भी भंग कर सकता है। संकटकाल में इसकी अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। विधानसभा का एक अध्यक्ष (Speaker) और एक उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) होता है, जिनका कार्य सदन में शान्ति बनाए रखना तथा सदन के काम का सुचारु रूप से संचालन करना है। ये दोनों अधिकारी विधानसभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही चुने जाते हैं।

(ख) विधानपरिषद् (Legislative Council) विधानपरिषद् राज्य विधानमण्डल का ऊपरि सदन है। इसके सदस्यों की संख्या 40 से कम और विधानसभा की सदस्य संख्या के 1/3 से अधिक नहीं हो सकती। यह जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं चुने जाते बल्कि इनका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से निम्नलिखित विधि के आधार पर होता है-

  1. लगभग 1/3 सदस्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित।
  2. लगभग 1/3 सदस्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा निर्वाचित।
  3. लगभग 1/2 सदस्य राज्य में रहने वाले ऐसे सदस्यों द्वारा जो कम-से-कम तीन वर्ष से किसी विश्वविद्यालय के स्नातक हों, निर्वाचित।
  4. लगभग 1/12 सदस्य राज्य की माध्यमिक पाठशालाओं या इससे उच्च शिक्षा संस्थाओं में कम-से-कम तीन वर्षों से अध्यापन करने वाले अध्यापकों द्वारा निर्वाचित।
  5. शेष अर्थात् लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत ।

विधानपरिषद् का सदस्य वही नागरिक बन सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह किसी सरकारी लाभदायक पद पर आसीन न हो।
  4. वह कानून द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।
  5. वह पागल अथवा दिवालिया न हो, किसी न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो।

विधानपरिषद् एक स्थायी सदन है और इसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। राज्यपाल विधानसभा को भंग नहीं कर सकता। विधानपरिषद् का भी एक सभापति तथा एक उप-सभापति होता है जिसका चुनाव इसके सदस्य अपने में से ही करते हैं।

विधानमण्डल की शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of the State Legislature)-राज्य विधानमण्डल को संसद् की तरह की प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं जिन्हें निम्नलिखित श्रेणियों के अन्तर्गत बांटा जा सकता है-

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)—राज्य विधानमण्डल उन विषयों पर जो राज्य के अधिकार क्षेत्र में हैं, कानून बना सकता है अर्थात् राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में दिए गए सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमण्डल को है। परन्तु समवर्ती सूची में दिए गए सभी विषयों पर बनाया गया कानून संसद् द्वारा उसी विषय पर पास किए हुए कानून के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। विधानमण्डल के द्वारा पास होने के बाद बिल राज्यपाल के पास जाता है और उसकी स्वीकृति मिलने के बाद ही वह कानून बन सकता है। राज्यपाल को साधारण बिलों पर एक बार निषेधाधिकार प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त है।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)-राज्य के वित्त पर विधानमण्डल का ही नियन्त्रण है। सरकार विधानमण्डल की स्वीकृति के बिना न कोई टैक्स लगा सकती है और न ही कोई धन ख़र्च कर सकती है। राज्यपाल का यह कर्त्तव्य है कि वह नया वर्ष आरम्भ होने से पहले अगले वर्ष का बजट विधानमण्डल के सामने पेश करवा, विधानमण्डल बजट पर विचार करता है और उसे पास या रद्द कर सकता है। राज्यपाल विधानमण्डल द्वारा पास किए गए धन-विधेयक पर अपनी स्वीकृति देने से इन्कार नहीं कर सकता।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive)-विधानमण्डल के सदस्य मन्त्रियों से प्रशासन के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं, काम रोको प्रस्ताव पेश कर सकते हैं और विभिन्न तरीकों से सरकार के कार्यों तथा नीतियों की आलोचना करके उसे प्रभावित कर सकते हैं। विधानसभा के विश्वास-पर्यन्त ही मन्त्रिपरिषद् अपने पद पर रह सकती है। विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर दे या किसी मन्त्री के वेतन में कमी करने का प्रस्ताव पास कर दे तो ये बातें मन्त्रिपरिषद् में विधानसभा के अविश्वास की सूचक हैं और मन्त्रिपरिषद् को अपना त्याग-पत्र देना ही पड़ता है।

4. अन्य कार्य (Other Functions)–

  • राज्य विधानमण्डल का निम्न सदन अर्थात् विधानसभा राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेता है। केवल निर्वाचित सदस्य ही भाग लेते हैं ; अनिर्वाचित सदस्यों को यह अधिकार नहीं है।
  • राज्य में विधानपरिषद् में चुने जाने वाले सदस्य भी विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
  • राज्य विधानमण्डल संविधान की महत्त्वपूर्ण धाराओं के संशोधन में भाग लेता है। संविधान की महत्त्वपूर्ण धाराओं को संशोधित करने के लिए आवश्यक है कि ऐसा प्रस्ताव संसद् के दोनों सदनों के 2/3 बहुमत से पास होकर राज्यों के पास जाता है और वह उस समय तक लागू नहीं हो सकता जब तक कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डल उसे स्वीकृत न कर लें। 42वें संशोधन और 44वें संशोधन को राज्यों के विधानमण्डलों के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 31 राज्य विधानमण्डल

राज्य विधानमण्डल की शक्तियों पर सीमाएं (Limitations on the Powers of the State Legislature)-राज्य विधानमण्डल की शक्तियों पर निम्नलिखित सीमाएं हैं-

  1. राज्य विधानमण्डल एक ऐसी संस्था है जिसके पास पूर्ण अधिकार नहीं हैं क्योंकि ये संविधान में संशोधन नहीं कर सकते।
  2. कई ऐसे बिल भी हैं जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना विधानमण्डल में पेश नहीं किए जा सकते। उदाहरणस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने के विषय में बिल, व्यापार व वाणिज्य पर प्रतिबन्ध लगाने वाले बिल, आदि।
  3. विधानमण्डलों द्वारा पास किए कुछ बिलों को राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए रख सकता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना ये बिल पास नहीं हो सकते।
  4. संसद् राज्य सूची में लिखित विषयों के बारे में कानून बना सकती है। यह तभी होता है जब राज्यसभा इस उद्देश्य का प्रस्ताव पास कर दे कि अमुक विषय राष्ट्रीय महत्त्व का विषय बन गया है।
  5. संवैधानिक संकट के समय संसद् को राज्यसूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
  6. किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी के असफल हो जाने की घोषणा के समय केन्द्रीय संसद् को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  7. विदेशी शक्तियों से किए गए समझौते अथवा सन्धियों को क्रियात्मक रूप देने के लिए संसद् कोई भी कानून बनाकर राज्यों पर लागू कर सकती है।
  8. राज्यपाल की स्वेच्छाचारी शक्तियां भी राज्य की व्यवस्थापिका की शक्तियों पर प्रतिबन्ध हैं।

प्रश्न 4.
राज्य विधानमण्डल में बिल कैसे पास होता है ?
(How does a Bill become an Act in the State Legislature)

प्रश्न 4.
राज्य विधानमण्डल में अपनाई गई विधायिनी प्रक्रिया का वर्णन करो।
(Describe the Legislative procedure adopted in the State Legislative.)
अथवा राज्य विधानमण्डल में एक विधेयक कानून किस तरह बनता है ?
(How does a Bill become an act in the State Legislature ?)
उत्तर-
विधानमण्डल का मुख्य कार्य राज्य के लिए कानून बनाना है तथा उसका बहुत समय इस कार्य पर लगता है। संसद् की भान्ति इसमें भी साधारण तथा धन-बिल प्रस्तुत होते हैं तथा भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में से गुज़र कर एक्ट का रूप धारण करते हैं। साधारण बिल न केवल मन्त्रियों अपितु विधानसभा अथवा विधानपरिषद् के सदस्यों द्वारा पेश किए जा सकते हैं। साधारण बिल के पास होने की विधि का वर्णन इस प्रकार है-

1. बिल का प्रस्तुत होना तथा प्रथम वाचन (Introduction of the Bill and its First Reading)-सरकारी बिलों के लिए कोई नोटिस देने की आवश्यकता नहीं है। मन्त्री जब चाहे बिल को पेश कर सकते हैं। परन्तु गैर-सरकारी बिलों के लिए एक महीने का नोटिस देना आवश्यक है। गैर-सरकारी बिल को पेश करने की तिथि निश्चित कर दी जाती है। निश्चित तिथि को बिल पेश करने वाला सदस्य बिल को प्रस्तुत करने के लिए सदन से आज्ञा मांगता है तथा इसके पश्चात् बिल के शीर्षक को पढ़ता है। यदि उचित समझे तो इस अवसर पर बिल के सम्बन्ध में एक छोटा-सा भाषण भी दे सकता है। इसके पश्चात् शीघ्र ही सदन का अध्यक्ष अथवा सभापति उपस्थित सदस्यों की सम्मति लेता है। यदि सदन की बहुसंख्या आज्ञा देने के पक्ष में हो तो बिल प्रस्तुत करने की आज्ञा मिल जाती है। इसके पश्चात् बिल को सरकारी गजट में मुद्रित कर दिया जाता है। सरकारी बिल को बिना नोटिस दिए सरकारी गजट में छाप दिया जाता है। यही बिल का प्रथम वाचन समझा जाता है।

2. द्वितीय वाचन (Second Reading)—प्रथम वाचन के कुछ दिनों के पश्चात् बिल को प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति सदन से यह प्रार्थना करता है कि उसके बिल पर विचार किया जाए। इस पर बिल के सिद्धान्तों तथा धाराओं पर साधारण विवाद होता है। इस विवाद के पश्चात् यदि सदन चाहे तो इसको रद्द कर सकता है नहीं तो इसकी प्रत्येक धारा पर विस्तारपूर्वक विचार किया जाता है।

3. समिति अवस्था (Select Committee) कभी-कभी ऐसे बिलों को, जो विचाराधीन हों, प्रवर समिति को सौंप दिया जाता है। प्रवर समिति में विधानमण्डल के 25 से 30 तक सदस्य होते हैं जो बिल की अच्छी प्रकार से छानबीन करते हैं। इसके पश्चात् प्रवर समिति अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है, जिस पर सदस्य पुनः विचार करते हैं।

4. प्रतिवेदन अवस्था (Report Stage)-प्रवर समिति में की गई छान-बीन द्वारा संशोधित किया गया बिल समिति के प्रतिवेदन द्वारा पुनः सदन के सम्मुख आता है। इसको प्रतिवेदन अवस्था कहा जाता है। इस अवस्था में कमेटी में दिए प्रत्येक सुझाव पर विचार किया जाता है तथा प्राय: इस समिति के प्रतिवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है।

5. तृतीय वाचन (Third Reading) द्वितीय वाचन के पश्चात् बिल प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति सदन में यह प्रार्थना करता है कि बिल पास कर दिया जाए। यदि सदस्यों का बहुमत इसके पक्ष में हो (प्रायः यह होता ही है) तो बिल पास हो जाता है तथा सदन का मुख्य अधिकारी इस पर हस्ताक्षर कर देता है। इस दशा में बिल की धाराओं में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता, परन्तु बिल के विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए बिल की भाषा में शब्दों का परिवर्तन हो सकता है। इसको बिल का तृतीय वाचन कहते हैं।

6. बिल दूसरे सदन में (The Bill in the Other House)-जब बिल को एक सदन पास कर देता है तो इसके पश्चात् इसको विधानमण्डल के दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। इस सदन में भी बिल के तीन वाचन होते हैं। यदि यह सदन भी बिल को पास कर दे तो उसको राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिए प्रस्तुत किया जाता है। यदि किसी समय विधानपरिषद् इस बिल को पास न करे अथवा इसमें ऐसे संशोधन कर दे, जिससे विधानसभा सहमत न हो अथवा तीन मास तक बिल पर कोई कार्यवाही न करे, तब ऐसी अवस्था में विधानसभा इस बिल पर पुनः विचार करके इसको विधानपरिषद में भेजती है। यदि विधानपरिषद् बिल को अस्वीकार कर दे अथवा इसमें ऐसे संशोधन करे जिससे विधानसभा सहमत न हो अथवा इसको एक मास में पास न करे तो बिल दोनों सदनों द्वारा पास किया हुआ समझा जाता है। इससे स्पष्ट है कि विधानपरिषद् एक बिल को अधिक-से-अधिक चार मास के लिए रोक सकती है। इसलिए उसके पास इससे अधिक अन्य कोई शक्ति नहीं।

7. राज्यपाल की स्वीकृति (Governor’s Assent) जब राज्य विधानमण्डल के दोनों सदन बिल को पास कर देते हैं तो इसको राज्यपाल की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। या तो राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर कर इसको पास कर देता है अथवा अपने सुझावों सहित बिल को विधानमण्डल को पुनः विचार के लिए वापस भेज देता है। यदि राज्य विधानमण्डल इस बिल को राज्यपाल द्वारा दिए गए सुझावों सहित अथवा उनके बिना पुनः पास कर देता है तो राज्यपाल को बिल पर हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं तथा बिल पास हो जाता है। कुछ ऐसे बिल भी होते हैं जिनको राज्यपाल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज सकता है तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के पश्चात् ही कानून का रूप धारण करते हैं। जुलाई 1994 को तमिलनाडु विधानसभा ने राज्य में 69 प्रतिशत आरक्षण के वास्ते बिल पास किया और उसे राज्यपाल की मन्जूरी के लिए भेज दिया। राज्यपाल एन० चन्ना रेड्डी ने उस बिल को राष्ट्रपति की मन्जूरी के लिए भेज दिया। राष्ट्रपति की मन्जूरी मिलने पर उस बिल ने कानून का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 5.
विधानसभा तथा विधानपरिषद् के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन करो।
(Explain the mutual relations of Legislative Assembly and Legislative Council.)
उत्तर-
राज्य विधानसभा के दोनों सदनों को समान शक्तियां प्राप्त नहीं हैं। दोनों सदनों में विधानसभा अधिक शक्तिशाली है। दोनों सदनों के सम्बन्ध इस प्रकार हैं-

1. साधारण बिलों के सम्बन्धों में (In respect of Oridnary Bills)—साधारण बिल दोनों में से किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। विधानपरिषद् द्वारा पास किया गया साधारण बिल उस समय तक राज्यपाल के पास नहीं भेजा जा सकता जब तक विधान सभा भी उसे पास न कर दे। विधानसभा उसे रद्द कर सकती है। विधानसभा द्वारा पास होने के बाद साधारण बिल विधानपरिषद् के पास आता है, परन्तु वह उसे पूर्ण रूप से रद्द नहीं कर सकती। यदि विधानपरिषद् तीन महीने तक उस पर कोई कार्यवाही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो विधानसभा को स्वीकृत न हों या उसे रद्द कर दे तो सभी दशाओं में विधानसभा उस बिल को दोबारा साधारण बहुमत से पास कर सकती है और वह बिल फिर विधानपरिषद् के सामने आता है। दूसरी बार विधानपरिषद् यदि उस बिल को रद्द कर दे या एक महीने तक उस पर कोई कार्यवाही न करे या उसमें ऐसे संशोधन कर दे जो विधानसभा को स्वीकृत न हों तो तीनों दशाओं में वह बिल दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाएगा। स्पष्ट है कि विधानपरिषद् विधानसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून नहीं बना सकती और विधानसभा के रास्ते में अधिक-से-अधिक 4 महीने तक बाधा उत्पन्न कर सकती है।

2. धन-बिलों के सम्बन्ध में (In respect of Money Bills)-राज्य के धन पर वास्तविक नियन्त्रण विधानसभा का है न कि विधानपरिषद् का। धन-बिल केवल विधानसभा में ही पेश हो सकते हैं, विधानपरिषद् में नहीं। यदि विधानपरिषद् धन विधेयक को रद्द कर दे या ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो विधानसभा को स्वीकृत न हों या 14 दिन तक उस पर कोई कार्यवाही न करे तो इन सभी दशाओं में वह बिल दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि राज्य के वित्त पर विधानसभा को ही नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त है, विधानपरिषद् को नहीं।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive)—कार्यपालिका पर वास्तविक नियन्त्रण विधानसभा का है न कि विधानपरिषद् का। वैसे तो दोनों सदनों के सदस्यों को मन्त्रिपरिषद् से साधारण प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछने, ‘काम रोको’ प्रस्ताव पेश करने और मन्त्रिपरिषद् की नीतियों के कार्यों की आलोचना करके कार्यपालिका को प्रभावित करने का अधिकार है, परन्तु मन्त्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्रिपरिषद् तब तक अपने पद पर रह सकती है जब तक उसे विधानसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो। विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास करके उसे अपदस्थ कर सकती है परन्तु विधानपरिषद् को अविश्वास प्रस्ताव पास करके नहीं हटा सकती है।

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4. संविधान में संशोधन के सम्बन्ध में संविधान में कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं जिनमें संशोधन आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति से ही हो सकता है। इस तरह का संशोधन विधेयक दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होना आवश्यक है। अतः इस सम्बन्ध में विधानमण्डल के दोनों सदनों की शक्तियां समान हैं।

5. राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में-राष्ट्रपति के चुनाव में विधानसभा के सदस्य भाग लेते हैं, विधानपरिषद् के सदस्य नहीं। दोनों सदनों के पारस्परिक सम्बन्धों से स्पष्ट है कि विधानपरिषद् विधानसभा के मुकाबले में बहुत ही शक्तिहीन सदन है। डॉ० एम० पी० शर्मा के शब्दों में, “जो समानता का ढोंग लोकसभा और राज्यसभा के बीच है, वह विधानसभा और विधानपरिषद् के बीच नहीं।”

प्रश्न 6.
राज्य विधानसभा के स्पीकर की नियुक्ति, शक्तियां व स्थिति की व्याख्या करो। (Explain the Election, Powers and Position of Speaker of State Legislative Assembly.)
उत्तर-
विधानसभा का एक अध्यक्ष होता है, जिसे स्पीकर कहा जाता है। विधानसभा स्पीकर की अध्यक्षता में ही अपने सभी कार्य करती है।
चुनाव (Election)-स्पीकर का चुनाव विधानसभा के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही किया जाता है। वास्तव में बहुमत दल की इच्छानुसार ही कोई व्यक्ति स्पीकर चुना जा सकता है क्योंकि यदि स्पीकर के पद के लिए मुकाबला होता है तो बहुमत दल का उम्मीदवार ही विजयी होता है।

कार्यकाल (Term of Office)-स्पीकर की अवधि 5 वर्ष है। यदि विधानसभा को भंग कर दिया जाए तो स्पीकर अपने पद का त्याग नहीं करता। जून, 1986 को सुरजीत सिंह मिन्हास को पंजाब विधानसभा का स्पीकर चुना गया और वह इस पद पर 24 फरवरी, 1992 तक रहे। स्पीकर को 5 वर्ष की अवधि से पूर्व भी हटाया जा सकता है और स्पीकर स्वयं भी त्याग-पत्र दे सकता है। परन्तु स्पीकर के हटाए जाने का प्रस्ताव विधानसभा में उसी समय पेश हो सकता है जबकि कम-से-कम 14 दिन पहले इस आशय की एक पूर्व सूचना उसे दी जा चुकी हो। हटाए जाने के प्रस्ताव के कारण स्पष्ट होने चाहिए। यदि नहीं हो तो प्रस्ताव पेश करने की आज्ञा नहीं भी दी जा सकती। 20 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने स्पीकर धनी राम वर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया।

स्पीकर की शक्तियां व कार्य (Powers and Functions of the Speaker)-स्पीकर को विधानसभा का अध्यक्ष होने के नाते कार्य करने पड़ते हैं जोकि मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं

  • स्पीकर विधानसभा में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है।
  • स्पीकर विधानसभा के नेता से सलाह करके सभा का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
  • स्पीकर सभा की कार्यवाही-नियमों की व्याख्या करता है।
  • जब किसी बिल पर या विषय पर वाद-विवाद हो जाता हो तो स्पीकर उस पर मतदान करवाता है, वोटों की गिनती करता है तथा परिणाम घोषित करता है।
  • साधारणतः स्पीकर अपना वोट नहीं डालता, परन्तु जब किसी विषय पर वोट समान हों तो वह अपना निर्णायक वोट दे सकता है।
  • प्रस्तावों व व्यवस्था सम्बन्धी मुद्दों को स्वीकार करना।
  • स्पीकर ही इस बात का निश्चय करता है कि सदन की गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य उपस्थित हैं अथवा नहीं।
  • स्पीकर सदन के सदस्यों की जानकारी के लिए या किसी विशेष महत्त्व के मामले पर सदन को सम्बोधित करता है।
  • स्पीकर सदन के नेता की सलाह पर सदन की गुप्त बैठक की आज्ञा देता है। (10) स्पीकर की आज्ञा के बिना कोई सदस्य विधानसभा में नहीं बोल सकता।
  • यदि कोई सदस्य सदन में अनुचित शब्दों का प्रयोग करे तो स्पीकर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करने वाले सदस्य को अपने शब्द वापस लेने के लिए कह सकता है और वह विधानसभा की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को काट सकता है जो उसकी सम्मति में अनुचित तथा असभ्य हों।
  • यदि कोई सदस्य सदन में गड़बड़ करे तो स्पीकर उसको सदन से बाहर जाने के लिए कह सकता है।
  • यदि कोई सदस्य अध्यक्ष के आदेशों का उल्लंघन करे तथा सदन के कार्य में बाधा उत्पन्न करे तो स्पीकर उसे निलम्बित (Suspend) कर सकता है। यदि कोई सदस्य उसके आदेशानुसार सदन से बाहर न जाए तो वह मार्शल की सहायता से उसे बाहर निकाल सकता है।
  • सदन की मीटिंग में गड़बड़ होने की दशा में स्पीकर को सदन का अधिवेशन स्थगित करने का अधिकार है।
  • यदि सदन किसी व्यक्ति को अपने विशेषाधिकार का उल्लंघन करने के लिए दण्ड दे तो उसे लागू करवाना स्पीकर का काम है।
  • स्पीकर का अपना सचिवालय होता है जिसमें काम करने वाले कर्मचारी उसके नियन्त्रण में काम करते हैं।
  • प्रेस तथा जनता के लिए दर्शक गैलरी में व्यवस्था करना स्पीकर का काम है।
  • विधानसभा जब किसी बिल पर प्रस्ताव पास कर देती है तब उसे दूसरे सदन अथवा राज्यपाल के पास स्पीकर ही हस्ताक्षर कर के भेजता है।

अध्यक्ष की स्थिति (Position of the Speaker) विधानसभा के अध्यक्ष का पद बड़ा महत्त्वपूर्ण तथा महान् आदर व गौरव का है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य विधानमण्डल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राज्य में संघात्मक सरकार होने के कारण केन्द्र के अतिरिक्त राज्यों में भी कानून बनाने के लिए राज्य विधानमण्डल की व्यवस्था की गई है। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं और कुछ राज्यों में एक सदन है। राज्य विधानसभा के निम्न सदन को विधानसभा और ऊपरि सदन को विधानपरिषद् कहते हैं।

प्रश्न 2.
राज्य विधानमण्डल का सदस्य बनने के लिए कौन-सी योग्यताओं की आवश्यकता है ?
उत्तर-
राज्य विधानमण्डल का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • विधानसभा के लिए 25 वर्ष या इससे अधिक और विधान परिषद् के लिए 30 वर्ष या इससे अधिक आयु हो।
  • वह सरकारी पद पर न हो।
  • उसमें वे सभी योग्यताएं होनी चाहिएं जो विधानमण्डल द्वारा निश्चित की गई हों।

प्रश्न 3.
विधानसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
संविधान में विधानसभा के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई बल्कि अधिकतम और न्यूनतम संख्या निर्धारित की गई है। अनुच्छेद 170 (1) के अनुसार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 60 से कम और 500 से अधिक नहीं हो सकती। राज्य की विधानसभा की संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाती है। पंजाब की विधानसभा में 117 सदस्य हैं। सबसे अधिक सदस्य उत्तर प्रदेश में हैं जिसकी विधानसभा की निर्वाचित सदस्य संख्या 403 है। विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं और भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मत डालने का अधिकार है। अनुसूचित, आदिम व पिछड़ी हुई जातियों के लिए स्थान तो निश्चित हैं, परन्तु उनका निर्वाचन संयुक्त प्रणाली के आधार पर ही होता है।

प्रश्न 4.
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो।
  • वह सरकारी पद पर न हो।
  • न्यायालय द्वारा किसी अपराध के कारण अयोग्य घोषित न किया गया हो।
  • उसमें वे सभी योग्यताएं होनी चाहिएं जो समय-समय पर विधानसभा द्वारा निश्चित की गई हों।
  • विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले आजाद उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक है कि उसका नाम दस प्रस्तावकों द्वारा प्रस्तावित हो।

प्रश्न 5.
विधानसभा की चार शक्तियों का वर्णन करो।
उत्तर-
विधानसभा की मुख्य शक्तियां अनलिखित हैं-

  1. विधायिनी शक्तियां-विधानसभा को राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। यदि विधानमण्डल द्वि-सदनीय है तो विधेयक यहां से विधानपरिषद् के पास जाता है।
  2. वित्तीय शक्तियां-राज्य के वित्त पर विधानसभा का ही नियन्त्रण है। धन बिल केवल विधानसभा में ही पेश हो सकते हैं। वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने से पहले राज्य का वार्षिक बजट भी इसी के सामने प्रस्तुत किया जाता है। विधानसभा की स्वीकृति के बिना राज्य सरकार कोई टैक्स नहीं लगा सकती और न ही धन खर्च कर सकती है।
  3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण-विधानमण्डल को कार्यकारी शक्तियां मिली हुई हैं। विधानसभा का मन्त्रिपरिषद् पर पूर्ण नियन्त्रण है। मन्त्रिपरिषद् अपने समस्त कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। विधानसभा के सदस्य मन्त्रियों की आलोचना कर सकते हैं। प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं। विधानसभा चाहे तो मन्त्रिपरिषद् को अविश्वास प्रस्ताव पास करके हटा सकती है।
  4. संवैधानिक कार्य-जिन अनुच्छेदों में संशोधन के लिए आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति की आवश्यकता होती है, वहां विधानसभा संविधान संशोधन में भाग लेती है।

प्रश्न 6.
विधानपरिषद् की रचना लिखें।
उत्तर-
किसी भी राज्य को विधानपरिषद् के सदस्यों की संख्या 40 से कम और विधानसभा के 1/3 भाग से अधिक नहीं हो सकती। परन्तु जम्मू-कश्मीर की विधानपरिषद् में कुल 36 सदस्य हैं। विधानपरिषद् में कुल सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं चुने जाते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप में निम्नलिखित तरीके से चुने जाते हैं-

  1. लगभग 1/3 सदस्य स्थानीय संस्थाओं के द्वारा चुने जाते हैं।
  2. लगभग 1/3 सदस्य विधानसभा के सदस्यं द्वारा चुने जाते हैं।
  3. लगभग 1/12 सदस्य राज्य में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों द्वारा चुने जाते हैं जो कम-से-कम तीन वर्ष पहले किसी विश्वविद्यालय में स्नातक हों।
  4. लगभग 1/12 सदस्य राज्य की माध्यमिक पाठशालाओं या इससे उच्च शिक्षा संस्थाओं में कम-से-कम तीन वर्ष के अध्यापन-कार्य करने वाले अध्यापकों द्वारा चुने जाते हैं।
  5. शेष लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से मनोनीत होते हैं जिन्हें विज्ञान, कला, साहित्य, समाज-सेवा आदि के क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।

प्रश्न 7.
विधानपरिषद् का सदस्य बनने के लिए कौन-सी योग्यताएं आवश्यक हैं ?
उत्तर-
योग्यताएं (Qualifications)-विधानपरिषद् का सदस्य निर्वाचित या मनोनीत होने के लिए किसी भी व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह किसी सरकारी लाभदायक पद पर आसीन न हो।
  4. वह विधि द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।
  5. वह संसद् द्वारा बनाए गए किसी कानून के अनुसार विधानपरिषद् का सदस्य बनने के लिए अयोग्य न हो।
  6. वह दिवालिया न हो, पागल न हो और किसी न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो। यदि निर्वाचित होने के बाद भी उसमें ऐसी कोई अयोग्यता उत्पन्न हो जाए या लगातार 60 दिन तक सदन की स्वीकृति के बिना अधिवेशनों में अनुपस्थित रहे तो उसका स्थान रिक्त घोषित किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
विधानपरिषद् की किन्हीं चार उपयोगिताओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. विधानसभा को स्वेच्छाचारी बनने से रोकती है तथा शक्ति को सन्तुलित बनाए रखती है।
  2. विधानपरिषद् में विज्ञान, साहित्य तथा कला में प्रसिद्ध व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व दिया जाता है, जिससे राज्य को उनके ज्ञान में लाभ पहुंचता है।
  3. विधानपरिषद् बिल की त्रुटियों को दूर करती है।
  4. विधानपरिषद् बिल के पास होने में आवश्यक देरी करवाता है। इस देरी का लाभ यह होता है कि जनता उसके गुण-दोषों पर विचार कर सकती है।

प्रश्न 9.
विधानपरिषद् की चार शक्तियों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य की विधानपरिषद् को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-

  1. विधायिनी शक्तियां-विधानपरिषद में उन सभी विषयों के सम्बन्ध में साधारण बिल पेश किया जा सकता है, जिनका वर्णन राज्य सूची और समवर्ती सूची में किया गया है।
  2. वित्तीय शक्तियां-धन-बिल विधानपरिषद् में पेश नहीं हो सकता। यह बजट और धन बिल पर विचार कर सकती है परन्तु उसे रद्द नहीं कर सकती। विधानपरिषद् धन बिल को अधिक-से-अधिक 14 दिन तक रोकने की शक्ति रखती है।
  3. कार्यपालिका शक्तियां-विधानपरिषद् कार्यपालिका को प्रभावित कर सकती है, परन्तु उस पर नियन्त्रण नहीं रख सकती। विधानपरिषद् के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं और ‘काम रोको’ प्रस्ताव पेश करके मन्त्रिमण्डल की कमियों और भ्रष्टाचार पर प्रकाश डाल सकते हैं तथा उनकी आलोचना कर सकते हैं।
  4. संवैधानिक कार्य-विधानपरिषद् विधानसभा के साथ मिलकर संविधान के संशोधन में भाग लेती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 31 राज्य विधानमण्डल

प्रश्न 10.
विधानपरिषद् को किस प्रकार स्थापित अथवा समाप्त किया जा सकता है ?
उत्तर-
अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्य विधानसभा अपने कुल सदस्यों के बहुमत से उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके राज्य में विधानपरिषद् की स्थापना या समाप्ति के लिए संसद् में प्रार्थना कर सकती है। संसद् राज्य विधानसभा के प्रस्ताव के आधार पर कानून बना देगी। परन्तु यहां पर यह स्पष्ट नहीं है कि क्या राज्य विधानसभा द्वारा विधानपरिषद् की समाप्ति के प्रस्ताव के अनुसार संसद् के लिए कानून बनाना अनिवार्य है या नहीं। यह समस्या 1970 में उत्पन्न हुई थी। 1970 में बिहार विधानसभा ने विधानपरिषद् को समाप्त करने के सम्बन्ध में प्रस्ताव पास किया, परन्तु संसद् ने इस प्रस्ताव के आधार पर कोई कानून नहीं बनाया। 24 नवम्बर, 1970 को लोकसभा के स्पीकर सरदार गुरदियाल सिंह ढिल्लों ने इस बात के स्पष्टीकरण का आदेश दिया। 8 दिसम्बर, 1970 को कानून मन्त्री के० हनुमंतय्या ने लोकसभा में कहा कि विधानसभा के प्रस्ताव के आधार पर कानून बनाना संसद् की इच्छा पर निर्भर करता है। 7 अप्रैल, 1993 को पंजाब विधानसभा ने पंजाब में दुबारा से विधानपरिषद् की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव द्वारा जब केन्द्र कानून का निर्माण करेगा उस समय पंजाब विधानपरिषद् की पुनः स्थापना हो जाएगी।

प्रश्न 11.
राज्य विधानमण्डल की शक्तियों पर कोई चार सीमाएं बताएं।
उत्तर-
राज्य विधानमण्डल की शक्तियों पर निम्नलिखित सीमाएं हैं-

  1. राज्य विधानमण्डल एक ऐसी संस्था है जिसके पास पूर्ण अधिकार नहीं है क्योंकि ये संविधान में संशोधन नहीं कर सकते।
  2. कई ऐसे बिल भी हैं जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना विधानमण्डल में पेश नहीं किए जा सकते। उदाहरणस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने के विषय में बिल, व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबन्ध लागने वाले बिल आदि।
  3. विधानमण्डलों द्वारा पास किए कुछ बिलों को राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए रख सकता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना ये बिल पास नहीं हो सकते।
  4. संसद् राज्य सूची में लिखित विषयों के बारे में कानून बना सकती है। यह तभी होता है जब राज्यसभा इस उद्देश्य का प्रस्ताव पास कर दे कि अमुक विषय राष्ट्रीय महत्त्व का विषय बन गया है।

प्रश्न 12.
विधानसभा के स्पीकर का चुनाव तथा कार्यकाल लिखें।
उत्तर-
चुनाव-स्पीकर का चुनाव विधानसभा के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही किया जाता है। वास्तव में बहुमत दल की इच्छानुसार ही कोई व्यक्ति स्पीकर चुना जा सकता है क्योंकि यदि स्पीकर के पद के लिए मुकाबला होता है तो बहुमत दल का उम्मीदवार ही विजयी होता है।

कार्यकाल-स्पीकर की अवधि 5 वर्ष है। यदि विधानसभा को भंग कर दिया जाए तो स्पीकर अपने पद का त्याग नहीं करता। जून, 1986 में अकाली दल के सुरजीत सिंह मिन्हास पंजाब विधानसभा के स्पीकर चुने गए। अगस्त, 1987 में पंजाब की विधानसभा के भंग होने के बाद भी श्री मिन्हास फरवरी, 1992 तक स्पीकर पद पर बने रहे। स्पीकर को 5 वर्ष की अवधि से पूर्व भी हटाया जा सकता है और स्पीकर स्वयं भी त्याग-पत्र दे सकता है। परन्तु स्पीकर के हटाए जाने का प्रस्ताव विधानसभा में उसी समय पेश हो सकता है जबकि कम-से-कम 14 दिन पहले इस आशय की एक पूर्व सूचना उसे दी जा चुकी हो। हटाए जाने का प्रस्ताव के कारण स्पष्ट होने चाहिएं। यदि नहीं तो प्रस्ताव पेश करने की आज्ञा नहीं भी दी जा सकती। मार्च, 1984 में हरियाणा विधानसभा के स्पीकर तारा सिंह के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी, लोक दल तथा जनता पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया परन्तु पास न हो सका। 20 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश विधानसभा के स्पीकर धनी राम वर्मा के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके उन्हें उनके पद से हटा दिया गया।

प्रश्न 13.
विधानसभा और विधानपरिषद् का कार्यकाल बताओ।
उत्तर-
विधानसभा का कार्यकाल-विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष है। इसके सभी सदस्यों का चुनाव एक साथ होता है। राज्यपाल 5 वर्ष से पहले जब चाहे विधानसभा को भंग करके दोबारा चुनाव करवा सकता है। राज्यपाल प्रायः मुख्यमन्त्री की सलाह से विधानसभा को भंग करता है। संकटकाल के समय विधानसभा की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है। यह अवधि एक समय में एक वर्ष के लिए और संकटकाल की स्थिति के समाप्त होने के बाद अधिक-से-अधिक 6 महीने तक बढ़ाई जा सकती है। अवधि बढ़ाने का अधिकार संसद् को है।

विधानपरिषद् का कार्यकाल-विधानपरिषद् एक स्थायी सदन है जिसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। परन्तु सभी सदस्य एक साथ नहीं चुने जाते। इसके एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष के पश्चात् अवकाश ग्रहण करते हैं, परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाले सदस्य दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं। राज्यपाल विधानपरिषद् को भंग नहीं कर सकता है।

प्रश्न 14.
विधानसभा के स्पीकर की किन्हीं चार शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
विधानसभा के स्पीकर के पास निम्नलिखित शक्तियां होती हैं-

  1. स्पीकर सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है।
  2. स्पीकर सभा की कार्यवाही के नियमों की व्याख्या करता है।
  3. स्पीकर वाद-विवाद वाले बिलों पर मतदान करवा कर परिणाम घोषित करता है।
  4. जब किसी विषय के पक्ष और विपक्ष में वोट समान हों तो स्पीकर को निर्णायक मत डालने का अधिकार है।

प्रश्न 15.
राज्य में विधानपरिषद् को समाप्त करने के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-

  1. विधानपरिषद् के कारण दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है।
  2. विधानपरिषद् से खर्चा बढ़ता है जिससे ग़रीब जनता पर बोझ पड़ता है।
  3. दूसरे सदन में प्रायः उन राजनीतिज्ञों को स्थान दिया जाता है जो विधानसभा का चुनाव हार जाते हैं।
  4. विशेष हितों तथा अल्पसंख्यकों को पहले सदन में ही प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य विधानमण्डल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राज्य में संघात्मक सरकार होने के कारण केन्द्र के अतिरिक्त राज्यों में भी कानून बनाने के लिए राज्य विधानमण्डल की व्यवस्था की गई है। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं और कुछ राज्यों में एक सदन है। राज्य विधानसभा के निम्न सदन को विधानसभा और ऊपरि सदन को विधानपरिषद् कहते हैं।

प्रश्न 2.
राज्य विधानमण्डल का सदस्य बनने के लिए कौन-सी योग्यताओं की आवश्यकता है ?
उत्तर-
राज्य विधानमण्डल का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं(1) वह भारत का नागरिक हो। (2) विधानसभा के लिए 25 वर्ष या इससे अधिक और विधान परिषद् के लिए 30 वर्ष या इससे अधिक आयु हो।

प्रश्न 3.
विधानसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
संविधान में विधानसभा के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई बल्कि अधिकतम और न्यूनतम संख्या निर्धारित की गई है। अनुच्छेद 170 (1) के अनुसार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 60 से कम और 500 से अधिक नहीं हो सकती। राज्य की विधानसभा की संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाती है। पंजाब की विधानसभा में 117 सदस्य हैं।

प्रश्न 4.
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो।

प्रश्न 5.
विधानसभा की दो शक्तियों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1.  विधायिनी शक्तियां-विधानसभा को राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार हैं। यदि विधानमण्डल द्वि-सदनीय है तो विधेयक यहां से विधानपरिषद् के पास जाता है।
  2. वित्तीय शक्तियां- राज्य के वित्त पर विधानसभा का ही नियन्त्रण है। धन बिल केवल विधानसभा में ही पेश हो सकते हैं। वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने से पहले राज्य का वार्षिक बजट भी इसी के सामने प्रस्तुत किया जाता है।

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प्रश्न 6.
विधानपरिषद् की रचना लिखें।
उत्तर-
किसी भी राज्य को विधानपरिषद् के सदस्यों की संख्या 40 से कम और विधानसभा के 1/3 भाग से अधिक नहीं हो सकती। परन्तु जम्मू-कश्मीर की विधानपरिषद् में कुल 36 सदस्य हैं। विधानपरिषद् में कुल सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं चुने जाते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।

प्रश्न 7.
विधानपरिषद् की दो शक्तियों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य की विधानपरिषद् को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-

  1. विधायिनी शक्तियां-विधानपरिषद् में उन सभी विषयों के सम्बन्ध में साधारण बिल पेश किया जा सकता है, जिनका वर्णन राज्य सूची और समवर्ती सूची में किया गया है।
  2. वित्तीय शक्तियां-धन-बिल विधानपरिषद् में पेश नहीं हो सकता। यह बजट और धन बिल पर विचार कर सकती है परन्तु उसे रद्द नहीं कर सकती। विधानपरिषद् धन बिल को अधिक-से-अधिक 14 दिन तक रोकने की शक्ति रखती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. पंजाब में कितने सदनीय विधानमण्डल की व्यवस्था की गई है ?
उत्तर-एक सदनीय।

प्रश्न 2. पंजाब में विधानमण्डल के कितने सदस्य हैं ?
उत्तर-117 सदस्य।

प्रश्न 3. राज्य विधानमण्डल का सदस्य बनने के लिए कितनी आयु होनी चाहिए ?
उत्तर-25 वर्ष।

प्रश्न 4. विधानमण्डल का कोई एक कार्य बताएं।
उत्तर-विधानमण्डल बजट पास करती है।

प्रश्न 5. विधानसभा का सदस्य बनने के लिए कोई एक योग्यता बताएं।
उत्तर-वह भारत का नागरिक हो।

प्रश्न 6. राज्य विधानसभा की कोई एक शक्ति बताएं।
उत्तर-विधानसभा विधानपरिषद् के साथ मिलकर और जहां केवल एक सदन है, वहां विधानसभा अकेले कानून बनाती है।

प्रश्न 7. भारत में उन चार राज्यों के नाम लिखें जहां विधानमण्डल के दो सदन पाए जाते हैं।
उत्तर-बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक में विधानमण्डल के दो सदन पाए जाते हैं।

प्रश्न 8. किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखें जहां विधानमण्डल का एक सदन पाया जाता है ?
उत्तर-हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश मध्य प्रदेश इत्यादि में विधानमण्डल का एक सदन (विधानसभा) ही पाया ‘जाता है।

प्रश्न 9. विधानपरिषद् के सदस्यों की कोई एक योग्यता बताएं।
उत्तर-वह भारत का नागरिक हो।।

प्रश्न 10. विधानसभा की अवधि कब बढ़ाई जा सकती है ?
उत्तर-विधानसभा की अवधि 5 वर्ष है, परन्तु संकट के समय में इसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता है। यह अवधि एक समय में एक वर्ष के लिए और संकटकाल की स्थिति समाप्त होने के बाद अधिक-से-अधिक 6 महीने तक बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 11. क्या विधानसभा को अवधि से पूर्व भी भंग किया जा सकता है ?
उत्तर-विधानसभा को 5 वर्ष की अवधि से पूर्व भी भंग किया जा सकता है।

प्रश्न 12. राज्य विधानसभा के सदस्यों का चुनाव कैसे होता है ?
उत्तर-विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं और भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मत डालने का अधिकार है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. विधानसभा को ………. तथा समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने के लिए बिल पास करने का अधिकार है।
2. विधानसभा के ……….. सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है।
3. विधानसभा के सदस्य विधानपरिषद् में ……… सदस्यों को चुनते हैं।
4. उत्तर प्रदेश में ……………. विधानमण्डल पाया जाता है। 5. विधानपरिषद धन बिल को अधिक-से-अधिक ……… दिनों तक रोक सकती है।
उत्तर-

  1. राज्यसूची
  2. निर्वाचित
  3. 1/3
  4. द्वि-सदनीय
  5. 14.

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. स्पीकर विधानसभा के नेता से सलाह करके विधानसभा का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
2. धन बिल के सम्बन्ध में विधानसभा एवं विधानपरिषद की शक्तियां समान हैं।
3. विधानसभा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है।
4. 30 वर्ष का व्यक्ति ही विधानपरिषद का सदस्य बन सकता है।
5. विधानसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
निम्न में से किस राज्य के विधानसभा के सदस्यों की संख्या सबसे अधिक है?
(क) हरियाणा
(ख) पंजाब
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) उत्तर-प्रदेश।
उत्तर-
(घ) उत्तर-प्रदेश।

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प्रश्न 2.
विधानसभा को शक्तियां प्राप्त हैं-
(क) विधायिनी शक्तियां
(ख) वित्तीय शक्तियां
(ग) कार्यपालिका शक्तियां
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
विधानपरिषद का सदस्य बनने के लिए क्या होना चाहिए-
(क) वह भारत का नागरिक हो।
(ख) उसकी आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।
(ग) वह किसी सरकारी लाभदायक पद पर असीन न हो।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
विधानसभा के स्पीकर का चुनाव कौन करता है ?
(क) राज्यपाल
(ख) मुख्यमंत्री
(ग) राष्ट्रपति
(घ) विधानसभा के सदस्य।
उत्तर-
(घ) विधानसभा के सदस्य।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 ग्रामीण समाज

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज दो वर्गों में विभाजित है-
(क) स्वामी एवं दास
(ख) शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग
(ग) उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग
(घ) पूँजीपति तथा मज़दूर।
उत्तर-
(ख) शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग।

प्रश्न 2.
अधिक अनाज पैदावार हेतु नई तकनीकों के परिचय में सहायक है।
(क) श्वेत क्रान्ति
(ख) नीली क्रान्ति
(ग) पीत क्रान्ति
(घ) हरित क्रान्ति।
उत्तर-
(घ) हरित क्रान्ति।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

प्रश्न 3.
समूह में ही साथी का चुनाव कहलाता है
अथवा
समूह के अन्दर साथी के चुनाव को कहते हैं
(क) बहिर्विवाह
(ख) अन्तर्विवाह
(ग) समूह विवाह
(घ) एकल विवाह।
उत्तर-
(ख) अन्तर्विवाह।

प्रश्न 4.
जजमानी व्यवस्था किसके संबंध पर आधारित है ?
(क) जजमान
(ख) कामीन
(ग) जजमान तथा कामीन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) जजमान तथा कामीन।

प्रश्न 5.
ग्रामीण समाज में ऋणग्रस्तता का कारण है
(क) विकास
(ख) गरीबी तथा घाटे वाली व्यवस्था
(ग) आत्मनिर्भरता
(घ) जीविका अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
(ख) गरीबी तथा घाटे वाली व्यवस्था।

प्रश्न 6.
नवीन कृषि तकनीक ने किसानों को बना दिया है-
(क) बाज़ारोन्मुख
(ख) श्रमिक वर्ग
(ग) आत्मपर्याप्त
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) बाज़ारोन्मुख।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. ग्राम के मुखिया को …………… जाना जाता था।
2. ग्रामीण समाज आकार में …………. है।
3. …………. व्यवस्था कमीन के शोषण पर आधारित है।
4. ग्रामीण समाज में सामाजिक नियन्त्रण ………… प्रकृति में है।
5. ………. तथा ………… ग्रामीण समाज में सामाजिक अपेक्षा के उदाहरणों में प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-

  1. ग्रामिणी
  2. छोटा
  3. जजमानी
  4. अनौपचारिक
  5. जाति पंचायत तथा ग्राम पंचायत।

C. सही/गलत पर निशान लगाएं-

1. ग्राम भारत की सामाजिक व राजनीतिक संगठन की इकाई है।
2. ग्रामीण ऋणग्रस्तता कमज़ोर वित्तीय ढाँचे की सूचक है।
3. कृषि में साधनों तथा खादों, कीटनाशकों, कृषि संयंत्रों इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
4. ग्रामों में पंचायतों की स्थापना से राजनीतिक जागृति में वृद्धि हुई है।
5. नई तकनीक अपनाने से कृषि रोज़गार के प्रोत्साहन को तीव्रता प्रदान की है।
उत्तर-

  • सही
  • सही
  • सही
  • सही
  • गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
प्रत्यक्ष सम्बन्ध — ऋणग्रस्तता
परिवार का मुखिया — उच्च पैदावार विविधता बीज
समूह के अन्दर विवाह — प्रगाढ़ सम्बन्ध
मुकद्दमेबाज़ी — कर्ता
गेहूँ, चावल व अन्य फसलें — अन्तर्विवाह।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
प्रत्यक्ष सम्बन्ध — प्रगाढ़ सम्बन्ध
परिवार का मुखिया — कर्ता
समूह के अन्दर विवाह — अन्तर्विवाह।
मुकद्दमेबाज़ी — ऋणग्रस्तता
गेहूँ, चावल व अन्य फसलें — उच्च पैदावार विविधता बीज

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

II अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. “वास्तविक भारत गाँवों में बसता है।” किसका कथन है ?
उत्तर-महात्मा गाँधी का।

प्रश्न 2. भारत में पूंजीवादी कृषि की वृद्धि में किस क्रान्ति ने सहायता प्रदान की?
उत्तर- हरित क्रान्ति ने।

प्रश्न 3. किस कमीशन ने ठीक कहा है कि, “भारतीय किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण में रहता है तथा ऋण में मर जाता है।”
उत्तर-रॉयल कमीशन (Royal Commission) ने।

प्रश्न 4. उच्च पैदावार विविधता उत्पादों के कृषि उत्पादन में कौन-सी क्रान्ति पैदा की है?
उत्तर-हरित क्रान्ति।

प्रश्न 5. अपने समूह से बाहर विवाह क्या कहलाता है ?
उत्तर-बहिर्विवाह।

प्रश्न 6. प्राचीन समय के दौरान गाँव के मुखिया को कैसे जाना जाता था?
उत्तर-प्राचीन समय में गाँव के मुखिया को ग्रामीणी कहते थे।

प्रश्न 7. किसने कहा “वास्तविक भारत इसके गाँवों में बसता है।”
उत्तर-यह शब्द महात्मा गाँधी के थे।

प्रश्न 8. जजमानी व्यवस्था किसके मध्य संबंधों पर आधारित है ?
उत्तर-जजमानी व्यवस्था जजमानी तथा कमीन के बीच रिश्तों पर आधारित है।

प्रश्न 9. HYV’s का पूर्ण रूप क्या है ?
उत्तर-HYV’s का पूरा अर्थ है High Yielding Variety Seeds.

प्रश्न 10. क्या गरीबी ऋणग्रस्तता का मुख्य कारण है ?
उत्तर-जी हाँ, निर्धनता ऋणग्रस्तता के मुख्य कारणों में से एक है।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संयुक्त परिवार क्या है ?
उत्तर-
संयुक्त परिवार, परिवार का वह प्रकार है जिसमें कम-से-कम तीन पीढ़ियों के लोग इकट्ठे मिल कर एक ही छत के नीचे रहते हैं। वह एक ही रसोई में बना खाना खाते हैं तथा एक ही कार्य-कृषि करते हैं। वह सभी साझी सम्पत्ति का प्रयोग करते हैं तथा घर के मुखिया का कहना मानते हैं।

प्रश्न 2.
ऋणग्रस्तता क्या है ?
उत्तर-
जब एक व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए दूसरे व्यक्ति से कुछ पैसे ब्याज पर उधार लेता है तो इसे ऋण कहते हैं। जब पहला व्यक्ति ऋण वापस नहीं कर पाता तथा ब्याज लग कर ऋण बढ़ता जाता है तो इसे ऋणग्रस्तता कहते हैं।

प्रश्न 3.
ग्रामीण ऋणग्रस्तता के दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  • निर्धनता के कारण ऋण बढ़ता है। कम वर्षा के कारण या जब बारिश नहीं होती तो किसान को नई फसल तैयार करने के लिए ऋण लेना पड़ता है।
  • किसानों का अपने रिश्तेदारों के साथ भूमि के लिए मुकद्दमा चलता रहता है जिस कारण उन्हें साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है।

प्रश्न 4.
मुकद्दमेबाजी के बारे आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गाँव के लोग साधारणतया किसी मुसीबत में फंसे रहते हैं जैसे कि पारिवारिक विवाद, फसल की चोरी, भूमि का विभाजन। इस कारण उन्हें अदालत में मुकद्दमे करने पड़ते हैं, इसे ही मुकद्दमेबाज़ी कहते हैं। इस कारण भी ऋणग्रस्तता की समस्या बढ़ती है।

प्रश्न 5.
हरित क्रान्ति क्या है ? ।
उत्तर-
1960 के दशक में कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक कार्यक्रम चलाया गया जिसे हरित क्रान्ति कहते हैं। इसमें HYV बीजों का प्रयोग, कीटनाशकों तथा नए उर्वरकों का प्रयोग, आधुनिक मशीनों का प्रयोग तथा सिंचाई के आधुनिक साधनों का प्रयोग शामिल था।

प्रश्न 6.
ग्रामीण समाज में हुए दो परिवर्तनों के बारे लिखो।
उत्तर-

  1. अब ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं तथा उनके स्थान पर केन्द्रीय परिवार सामने आ रहे हैं।
  2. अब ग्रामीण लोग अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं जिस कारण वे धीरे-धीरे नगरों की तरफ बढ़ रहे हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न –

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज।
उत्तर-
ग्रामीण समाज एक ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ तकनीक का कम प्रयोग, प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता, छोटा आकार होता है तथा जहाँ की अधिकतर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इस प्रकार ग्रामीण समुदाय वे समुदाय होते हैं जो एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, आकार में बहुत छोटे होते हैं, जहाँ नज़दीक के तथा प्राथमिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को नज़दीक से जानते हैं तथा लोगों का मुख्य पेशा कृषि या कृषि से सम्बन्धित होता है।

प्रश्न 2.
ग्रामीण समाज की तीन विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  • ग्रामीण समाज का मुख्य पेशा कृषि या उस पर आधारित कार्य होते हैं क्योंकि ग्रामीण समाज प्रकृति के काफ़ी नज़दीक होता है। लगभग सभी लोग ही कृषि या सम्बन्धित कार्यों में लगे होते हैं।
  • ग्रामीण लोगों का जीवन काफ़ी साधारण तथा सरल होता है क्योंकि उनका जीवन प्रकृति से गहरे रूप से जुड़ा होता है। __ (iii) गांवों की जनसंख्या नगरों की तुलना में काफ़ी कम होती है। लोग दूर-दूर तक छोटे-छोटे समूह बना कर बसे होते हैं तथा इन समूहों को ही गाँव का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 3.
ऋणग्रस्तता के लिए उत्तरदायी तीन कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. निर्धनता-गाँव के लोग निर्धन होते हैं तथा उन्हें बीज, मशीनें, जानवर इत्यादि खरीदने के लिए ऋण लेना पड़ता है तथा वे ऋणग्रस्त हो जाते हैं।
  2. बुजुर्गों का ऋण-कई लोगों को अपने पिता या दादा द्वारा लिया गया ऋण भी उतारना पड़ता है जिस कारण वे निर्धन ही रह जाते हैं।
  3. कृषि का पिछड़ापन-भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है तथा अभी भी कृषि की पुरानी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस कारण कृषि का उत्पादन कम होता है तथा किसान अधिक पैसा नहीं कमा सकते।

प्रश्न 4.
पंजाब में हरित क्रान्ति पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
देश में कृषि के विकास के मामले में पंजाब ने असाधारण प्रगति की है। पंजाब की कृषि में विकास मुख्य रूप से हरित क्रान्ति से गहरे रूप से सम्बन्धित है। इसमें गेहूँ, चावल तथा अन्य फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन वाले बीजों (HYV Seeds) का उत्पादन तथा प्रयोग किया गया। इस कारण ही 1966 के बाद पंजाब में गेहूँ तथा चावल का उत्पादन काफ़ी अधिक बढ़ गया। पंजाब की आर्थिक प्रगति कई चीजों में प्रयोग, तकनीकी आविष्कारों के कारण हुई जिनमें अधिक उत्पादन वाले बीजों का प्रयोग, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, ट्यूबवैल, डीज़ल पम्प, ट्रैक्टर कंबाइन इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 5.
हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक कारणों तथा व नकारात्मक कारणों के बारे में लिखिए।
अथवा
हरित क्रान्ति के कोई दो प्रभाव लिखो।
उत्तर-
सकारात्मक परिणाम-

  1. हरित क्रान्ति की प्रमुख सफलता यह थी कि इससे गेहूँ व चावल के उत्पादन में असाधारण बढ़ौतरी हुई।
  2. हरित क्रान्ति के कारण खेतों में मजदूरों की माँग काफ़ी बढ़ गई जिस कारण बहुत से लोगों को कृषि के क्षेत्र में रोजगार मिल गया।
    नकारात्मक परिणाम-(i) हरित क्रान्ति का लाभ केवल अमीर किसानों को हुआ जिन्होंने अपने पैसे के बल पर आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया। निर्धन किसानों को इसका काफ़ी कम लाभ हुआ।
  3. हरित क्रान्ति के कारण लोगों की आय में काफ़ी अन्तर बढ़ गया। अमीर अधिक अमीर हो गए तथा निर्धन और निर्धन हो गए।

अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज से आपका क्या आशय है ? इसकी विशेषताओं का विस्तृत विवेचन करें।
अथवा
ग्रामीण समाज को परिभाषित कीजिए। ग्रामीण समाज की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
अथवा
ग्रामीण समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
भारत एक ग्रामीण देश है जहां की अधिकतर जनसंख्या गांवों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां तकनीक का कम प्रयोग, प्राथमिक सम्बन्धों की प्राथमिकता, आकार में छोटा होता है तथा जहां पर अधिकतर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। ग्रामीण संस्कृति शहरी संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होती है। चाहे ग्रामीण तथा शहरी संस्कृति एक सी नहीं होती परन्तु फिर भी इन में अन्तर्सम्बन्धता ज़रूर होती है। यह कई कारणों के कारण शहरी समाज से अलग होता है। चाहे यह सम्पूर्ण समाज का ही हिस्सा होता है। इसमें मिलने वाले कई प्रकार के कारक जैसे कि आर्थिक, भौगोलिक, सामाजिक इत्यादि इसे शहरी समाज से अलग करते हैं। कई विद्वानों ने ग्रामीण समाज को परिभाषित करने का प्रयास किया है जिनका वर्णन इस प्रकार है :

  • ए० आर० देसाई (A.R. Desai) के अनुसार, “ग्रामीण समाज गांव की एक इकाई होता है। यह एक थियेटर है, जिसमें ग्रामीण जीवन अधिक मात्रा में अपने आप को तथा कार्यों को प्रकट करता है।”
  • आर० एन० मुखर्जी (R.N. Mukherjee) के अनुसार, “गांव वह समुदाय है जिसके विशेष लक्षण सापेक्ष, एकरूपता, सादगी, प्राथमिक समूहों की प्रधानता, जनसंख्या की कम घनता तथा कृषि मुख्य पेशा होता है।”
  • पीक (Peake) के अनुसार, “ग्रामीण समुदाय सम्बन्धित तथा असम्बन्धित व्यक्तियों का समूह है जो एक परिवार से बड़ा विस्तृत एक बहुत बड़े घर में या परस्पर साथ-साथ स्थित घरों में या कभी अनियमित रूप से तथा कभी एक गली में रहता है, जो मूल रूप से कृषि योग्य भूमि पर साधारण तौर पर कृषि करता है। मैदानी भूमि को आपस में बांटता है तथा इर्द-गिर्द की बेकार भूमि पर पशु चरवाता है तथा जिसके ऊपर निकटवर्ती समुदायों की सीमाओं तक वह अपने अधिकार का दावा करता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि ग्रामीण समुदाय वह समुदाय होते हैं जो एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, आकार में बहुत छोटे-छोटे होते हैं, निकट सम्बन्ध पाए जाते हैं तथा प्राथमिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को नज़दीक से जानते हैं तथा लोगों का मुख्य पेशा कृषि या कृषि से सम्बन्धित होता है।

ग्रामीण समाज की विशेषताएं (Characteristics of Rural Society)-

1. कृषि-मुख्य पेशा (Agriculture-Main Occupation)—ग्रामीण समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि पेशा या उस पर आधारित कार्य होते हैं क्योंकि ग्रामीण समाज प्रकृति के बहुत ही नज़दीक होता है। क्योंकि इनमें प्रकृति के साथ बहुत ही नज़दीकी के सम्बन्ध होते हैं इस कारण यह जीवन को एक अलग ही दृष्टिकोण से देखते हैं। चाहे गांवों में और पेशों को अपनाने वाले लोग भी होते हैं जैसे कि बढ़ई, लोहार इत्यादि परन्तु यह बहुत कम संख्या में होते हैं तथा यह भी कृषि से सम्बन्धित चीजें ही बनाते हैं। ग्रामीण समाज में भूमि को बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता है तथा लोग यहीं पर रहना पसन्द करते हैं क्योंकि उनका जीवन भूमि पर ही निर्भर होता है। यहां तक कि लोगों तथा गांव की आर्थिक व्यवस्था तथा विकास कृषि पर निर्भर करता है।

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2. साधारण जीवन (Simple Life)-गांव के लोगों का जीवन बहुत ही सादा तथा सरल होता है। प्राचीन ग्रामीण समाजों में लोग अपनी ज़रूरतें पूर्ण करने के लिए कड़ा परिश्रम करते थे तथा इस परिश्रम के कारण वह ऐशो-आराम से बहुत दूर थे। लोग अपने बच्चों को भी कृषि के कार्यों में ही लगा देते थे क्योंकि वह शिक्षा ग्रहण नहीं करते थे। उनमें मानसिक संघर्ष भी नहीं होता था। गांव के लोग आज भी एक-दूसरे से बहुत प्यार से रहते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुःख में वह एक-दूसरे की पूरी मदद करते हैं। किसी की बहू-बेटी को गांव की बहू-बेटी माना जाता है। लोगों की ज़रूरतें भी सीमित होती हैं क्योंकि उनकी आय भी सीमित होती है। लोग साधारण तथा सादा जीवन जीते हैं।

3. कम जनसंख्या तथा एकरूपता (Scarcity of Population and Homogeneity)-गांव की जनसंख्या शहरों की तुलना में काफ़ी कम होती है। लोग दूर-दूर तक छोटे-छोटे समूह बनाकर बसे होते हैं तथा इन समूहों को ही गांव का नाम दे दिया जाता है। गांव में कृषि के अलावा और पेशे कम ही होते हैं जिस कारण लोग शहरों की तरफ भागते हैं तथा जनसंख्या भी कम ही होती है। लोगों के बीच नज़दीकी के सम्बन्ध होते हैं तथा समान पेशा, कृषि, होने के कारण उनके दृष्टिकोण भी एक जैसे ही होते हैं। गांव के लोगों की लोक रीतियां, रूढ़ियां, परम्पराएं इत्यादि एक जैसी ही होती हैं तथा उनके आर्थिक, नैतिक, धार्मिक जीवन में कोई विशेष अंतर नहीं होता है। गांव में लोग किसी दूर के इलाके से रहने नहीं आते बल्कि यह तो गांव में रहने वाले मूल निवासी ही होते हैं या फिर नज़दीक रहने वाले लोग होते हैं। इस कारण लोगों में एकरूपता पायी जाती है।

पड़ोस का महत्त्व (Importance of Neighbourhood) ग्रामीण समाज में पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है जिसमें काफ़ी समय खाली मिल जाता है। इस पेशे में ज्यादा समय नहीं लगता है। इस कारण लोग एक-दूसरे से मिलते रहते हैं, बातें करते रहते हैं, एक-दूसरे से सहयोग करते रहते हैं। लोगों के अपने पड़ोसियों से बहुत गहरे सम्बन्ध होते हैं। पड़ोस में जाति समानता होती है जिस कारण उनकी स्थिति बराबर होती है। लोग वैसे भी पड़ोसियों का सम्मान करना, उनको सम्मान देना अपना फर्ज समझते हैं। एक दूसरे के सुख-दुःख में पड़ोसी ही सबसे पहले आते हैं, रिश्तेदार तो बाद में आते हैं। इस कारण पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है।

5. परिवार का नियन्त्रण (Control of Family)-ग्रामीण समाजों में परिवार का व्यक्ति पर पूरा नियन्त्रण होता है। गांवों में ज्यादातर पितृसत्तात्मक परिवार होते हैं तथा परिवार का प्रत्येक छोटा बड़ा निर्णय परिवार का मुखिया ही लेता है। गांवों में तथा परिवार में श्रम विभाजन लिंग के आधार पर होता है। आदमी कृषि करते हैं या फिर घर से बाहर जाकर पैसा कमाते हैं तथा औरतें घर में रहकर घर की देखभाल करती हैं। गांवों में संयुक्त परिवार प्रथा होती है तथा व्यक्ति परिवार के परम्परागत पेशे को अपनाता है। सभी व्यक्ति परिवार में मिल कर कार्य करते हैं जिस कारण उनमें सामुदायिक भावना भी होती है। परिवार को प्राथमिक समूह कहा जाता है। छोटे बड़ों का आदर करना अपना फर्ज समझते हैं। एक ही पेशा होने के कारण उनमें सहयोग भी काफी होता है। परिवार के सभी सदस्य त्योहारों, धार्मिक क्रियाओं इत्यादि में मिलकर भाग लेते हैं। व्यक्ति को कोई भी कार्य करने से पहले परिवार की सलाह लेनी पड़ती है। इस तरह उस पर परिवार का सम्पूर्ण नियन्त्रण होता है।

6. समान संस्कृति (Common Culture)-गांवों के लोग कहीं बाहर से रहने नहीं आते बल्कि गाँव के ही मूल निवासी होते हैं जिस कारण उनकी संस्कृति एक ही होती है। उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि भी समान ही होती हैं।

7. सामुदायिक भावना (Community Feeling)-ग्रामीण समाज में लोगों के बीच आपसी सम्बन्ध सहयोग पर आधारित होते हैं जिस कारण वहां पर सामुदायिक भावना पायी जाती है। गांव के सभी व्यक्ति ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद करने को तैयार रहते हैं। यहां पर लोगों में एकता की भावना होती है क्योंकि लोगों के बीच सीधे तथा प्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं। अगर गांव के ऊपर तथा गांव के किसी व्यक्ति पर कोई मुश्किल आती है तो सभी व्यक्ति उसका इकट्ठे होकर सामना करते हैं। सभी गांव के रीति-रिवाजों और परम्पराओं का सम्मान करते हैं तथा एक-दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होते हैं।

8. स्थिरता (Stability) ग्रामीण समाज एक स्थिर समाज होता है क्योंकि यहां पर गतिशीलता बहुत ही कम होती है। ग्रामीण समाज के भौगोलिक अथवा बहुत-से ऐसे कारण हैं जिनके कारण यह और समाजों से बिल्कुल ही अलग होता है। यह स्थिर समाज होते हैं क्योंकि यह अपने आप में स्व: निर्भर होते हैं।

प्रश्न 2.
ऋणग्रस्तता क्या है ? ऋणग्रस्तता के लिए उत्तरदायी कारक कौन से हैं ?
अथवा
ग्रामीण ऋणग्रस्तता क्या है ? ग्रामीण ऋणग्रस्तता के लिए जिम्मेवार कारण लिखो।
उत्तर-
ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था में आढ़ती का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। अधिकतर क्षेत्रों में साहूकार शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो ब्याज पर पैसे अथवा ऋण देता है। अलग-अलग स्थानों पर इसे अलगअलग नामों से पुकारा जाता है। प्राचीन भारतीय समाज में ऋण लेने तथा देने की व्यवस्था कानूनों पर आधारित नहीं थी। इस प्रकार ऋण लेने वाले तथा देने वाले के बीच बहुत अच्छे आपसी रिश्ते होते थे। अंग्रेज़ों के आने के बाद जब समझौतों (agreements) के लिए नए कानून बनें तो ऋण देने वालों को जल्दी अमीर बनने का मौका प्राप्त हुआ। अब ऋण लेने तथा देने वाले के रिश्ते व्यक्तिगत न रहे। यह कानून तथा पैसे पर आधारित हो गए।

चाहे प्राचीन भारतीय समाज में किसानों की स्थिति बहुत अच्छी थी परन्तु अंग्रेज़ी राज्य के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई तथा आज भी हालात उसी प्रकार चल रहे हैं। साधारणतया भारत में किसान ग़रीब होते हैं। परन्तु इसके साथ ही वह समाज में अपनी स्थिति तथा इज्ज़त बना कर रखना चाहते हैं जिसके लिए वह कुछ मौकों पर, विशेषतया विवाहों पर, अपनी हैसियत से अधिक भी खर्च कर देते हैं। इस प्रकार ऋणग्रस्तता भारत में आवश्यक रूप में मौजूद है। भारत के लगभग सभी राज्यों में ऐसे किसान हैं जो सदियों से कर्जे के बोझ के नीचे दबे चले आ रहे हैं। इसके साथ ही खर्च भी बढ़ रहे हैं। जनसंख्या में हरेक बढ़ौतरी के साथ उसी अनुपात में भूमि पर भी बोझ बढ़ता है। आमतौर पर लोग अपनी लड़कियों के विवाह के लिए कर्जा लेते हैं तथा उनमें से अधिकतर वह कर्जा वापिस नहीं कर पाते हैं। भारत में कृषि वर्षा पर आधारित है तथा अगर वर्षा कम हो तो स्थिति और भी खराब हो जाती है। कम वर्षा के कारण उत्पादन कम होता है जिस कारण किसान को ऋण लेना पड़ता है तथा वह और कर्जे के नीचे दब जाता है।

ऋणग्रस्तता की समस्या (Problem of Indebtedness)-आमतौर पर ऋण व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर दिए जाते है। परन्तु अब ऋण किसान की भूमि पर दिया जाता है। Indian Agreement Act तथा Civil Procedure Code से ऋण देने वाले के हाथ मज़बूत हुए हैं। इससे साहूकार को न केवल उस किसान की भूमि पर कब्जा करने का अधिकार प्राप्त हुआ जोकि निश्चित समय में ऋण वापिस न कर सके तथा साथ ही साथ उसको किसान के घर की वस्तुओं पर भी कब्जा लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। साहूकार उन पर केस चलवाकर जेल भी करवा सकता है। इस प्रकार The Registration of Document Act of 1864 तथा The Transfer of Property Act of 1882 ने साहूकारों की काफ़ी मदद की। इन कानूनों के पास होने के बाद साहूकार और अमीर होते गए तथा ऋणग्रस्तता की भूमि साहूकारों के हाथों में जाने लग गई। इसके साथ ही साहूकारों की संख्या तथा ऋण में भी बढ़ौतरी हो गई। 1911 में ग्रामीण ऋण लगभग 300 करोड़ रुपये था। सर एम० एल० डार्लिंग (Sir. M. L. Darling) के अनुसार 1924 में यह 600 करोड़ के लगभग था जो 1930 में 900 करोड़ रुपये में लगभग हो गया। डॉ० राधा कमल मुखर्जी के अनुसार 1955 में यह 1200 करोड़ रुपये था। उन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि अंग्रेज़ी राज्य के दौरान यह ऋण तेज़ी से बढ़ा है। उसके बाद तो इसमें तेजी से बढ़ौतरी हुई है।

ऋणग्रस्तता के कारण (Causes of Indebtedness):
ऋणग्रस्तता के बढ़ने के कई कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार हैं

1. आवश्यक कानूनों की कमी (Absence of Necessary Laws)-ऋणग्रस्तता का सबसे बड़ा कारण है ऋण के बोझ के नीचे दबे व्यक्ति की सुरक्षा के लिए आवश्यक कानूनों की कमी। अपनी उच्च स्थिति के कारण साहूकार किसी भी ऋणग्रस्तता को अपने ऋण में से नहीं निकलने देते जिसने उन से ऋण लिया होता है। गांवों में अगर कोई व्यक्ति एक बार ऋण ले लेता है वह अपनी तमाम उम्र के दौरान ऋण के चक्र में से नहीं निकल सकता है।

2. सरकार द्वारा बेरुखी (Neglect by Government)-ब्रिटिश सरकार ने किसानों को साहूकारों के हाथों में से बचाने के लिए अधिक कोशिशें नहीं की, चाहे बहुत-से समाज सुधारकों ने सरकार को इसके बारे में कई बार चेताया। स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने कई कानून इस मामले में बनाए ताकि किसानों को साहूकारों के हाथों से बचाया जा सके। परन्तु इन कानूनों की कुछ कमियों के कारण तथा साहूकारों द्वारा अपने पैसे की मदद से इन कानूनों का ही शोषण होता रहा। किसान इस प्रकार साहूकारों में ऋण के नीचे दबे रहे।

3. आर्थिक अस्थिरता (Economic Disturbances)-1929 में आर्थिक अस्थिरता आई जिससे किसानों की स्थिति और खराब हो गई तथा वह ऋण के नीचे दबे रहे। इसके बाद वह कभी भी ऋण में से बाहर न निकल सके। स्वतन्त्रता के बाद कृषि की लागत बढ़ने के कारण, महंगाई के कारण, बिजली के न होने के कारण तथा डीज़ल पर निर्भर होने के कारण भी वह हमेशा ही साहूकारों में ऋण के नीचे ही दबे रहे।

4. आवश्यकता से अधिक खर्चे (More Expenditure)-चाहे बहुत-से किसान निर्धन होते हैं तथा ऐशो आराम की चीजें खरीदना उनकी हैसियत में नहीं होता है परन्तु फिर भी वह आराम की चीजें खरीदते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण समाजों में अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च करने की आदत होती है। वह विवाहों विशेषतया लड़की के विवाह पर ज़रूरत से अधिक खर्च करते हैं तथा अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज भी देते हैं। इसलिए उनको ऋण लेना पड़ता है। इस तरह इस कारण भी उन पर ऋण बढ़ता है।

5. ऋण लेने की सहूलियत (Facility in taking Loans)-जिस आसानी से गांव के लोगों को ऋण प्राप्त हो जाता है उससे भी किसान ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। अगर हम किसी बैंक के पास ऋण लेने चले जाएं तो हमें बैंक की बहुत-सी Formalities पूरी करनी पड़ती हैं। परन्तु साहूकारों से ऋण लेते समय ऐसी कोई समस्या नहीं आती है। वहां केवल व्यक्तिगत जान-पहचान तथा अंगूठा लगा देने से ही ऋण प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार ऋण मिलने में आने वाली आसानी भी ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।

6. साहूकारों की चालाकियां (Tricks of Money-lenders)-साहूकारों की चालाकियों ने भी ऋणग्रस्तता की प्रथा को हमारे देश में बढ़ाया है। आमतौर पर साहूकार ऋण पर बहुत अधिक ब्याज लेते हैं जिस कारण व्यक्ति उस को वापिस नहीं कर सकता है। कई बार तो ऋण देते समय साहूकार पहले ही मूल धन में से ब्याज काट लेते हैं जिस कारण किसान को बहुत ही कम पैसे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कुछ ही समय में ऋण ब्याज से दोगुना अथवा तीन गुना हो जाता है जिस कारण किसानों के लिए ब्याज देना ही मुश्किल हो जाता है।

इसके साथ ही ग्रामीण लोगों में एक आदत होती है कि वह अपने बुजुर्गों द्वारा लिए ऋण को वापस करना अपना फर्ज़ समझते हैं। इस प्रकार ऋण पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। ग्रामीण लोगों की अनपढ़ता भी ऋणग्रस्तता का महत्त्वपूर्ण कारण है। साहूकार ऋण तो कम देते हैं तथा पैसे अधिक लिख लेते हैं तथा उसकी अनपढ़ता का लाभ उठाते हैं। वह किसान से एक कोरे कागज़ पर अंगूठा लगवा लेते हैं तथा इसकी मदद से कुछ समय बाद किसान का सारा कुछ अपने नाम कर लेते हैं। भारतीय गांवों में साहूकार आमतौर पर उच्च जातियों से सम्बन्धित होते हैं तथा अन्य जातियों के लोग में इतनी शक्ति नहीं होती कि वह उच्च जाति के लोगों का विरोध कर सकें इस तरह इन कारणों के कारण भी ऋणग्रस्तता की समस्या बढ़ती है।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति की परिभाषा दें। इसके घटकों का विस्तार से विवेचन करें।
उत्तर-
हरित क्रान्ति कृषि उत्पादन को बढ़ाने का एक नियोजित तथा वैज्ञानिक तरीका है। पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन करने के पश्चात् यह साफ हो गया कि अगर हमें फसलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी है तो उत्पादन सम्बन्धी नए तरीकों तथा तकनीकों का प्रयोग करना पड़ेगा। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारत में 1966-67 में कृषि में तकनीकी परिवर्तन शुरू हुए। इसमें अधिक उत्पादन वाले बीजों, सिंचाई के विकसित साधनों, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाने लगा। कृषि में विकसित साधनों के प्रयोग को ही हरित क्रान्ति का नाम दिया गया। यहां शब्द ‘हरित’ को ग्रामीण क्षेत्रों के हरे-भरे खेतों के लिए प्रयोग किया गया तथा ‘क्रान्ति’ शब्द बहुपक्षीय परिवर्तन को दर्शाता है। हरित क्रान्ति के प्रथम भाग में ‘गहन कृषि जिला कार्यक्रम’ शुरू किए गए जिसमें पहले तीन ज़िलों तथा बाद में 16 जिलों को शामिल किया गया। चुने हुए जिलों में कृषि की उन्नत विधियों, उर्वरक, बीजों, सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया गया।

1967-68 में इस कार्यक्रम को देश के अन्य भागों में भी लागू कर दिया गया। इस कार्यक्रम में किसानों में कृषि सम्बन्धी नई तकनीक, ज्ञान व उत्पादन के नए साधन बांटे गए ताकि उत्पादन में बढ़ौतरी की जा सके। सरकार ने इस कार्यक्रम को पूर्णतया सहायता दी तथा यह कामयाब हो गया। देश गेहूँ तथा चावल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया।
हरित क्रान्ति के मुख्य तत्त्व (Major Elements of Green Revolution) हरित क्रान्ति के मुख्य तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है-

  • अधिक उत्पादन वाले बीजों के प्रयोग से फसलों का उत्पादन बढ़ गया।
  • रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग ने भी कृषि उत्पादन को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका अदा की।
  • आधुनिक कृषि की मशीनें जैसे कि ट्रैक्टर, थ्रेशर, कंबाइन, पंप सैट, स्परेयर (Eprayer) इत्यादि ने भी उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
  • कृषि के बढ़िया ढंगों विशेषतया जापानी ढंग के प्रयोग ने भी उत्पादन बढ़ाया।
  • किसानों को नई सिंचाई सुविधाओं के बारे में बताया गया जिससे कृषि उत्पादन बढ़ गया।
  • एक वर्ष में कई बार फसल बीजने तथा काटने की प्रक्रिया ने भी उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
  • किसानों को सस्ते ब्याज पर ऋण देने के लिए कई संस्थाओं की स्थापना की गई ; जैसे कि को-आप्रेटिव सोसायटी, ग्रामीण बैंक, इत्यादि। इनसे ऋण लेकर किसान कृषि उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
  • सरकार द्वारा किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने का विश्वास दिलाया गया जिस कारण किसानों ने उत्पादन बढ़ाया।
  • Soil Conservation जैसे कार्यक्रमों ने भूमि की उत्पादन शक्ति को संभालने तथा बढ़ाने में सहायता की।
  • कृषि के सामान की बिक्री के लिए मार्किट कमेटियों, को-आप्रेटिव मार्केटिंग सोसायटियां बनाई गईं ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके।
  • सरकार ने भूमि सुधारों पर काम किया ताकि बिचौलियों का खात्मा, कार्य की सुरक्षा, किसानों को मालिकाना अधिकार, भूमि की चकबन्दी इत्यादि ने भी उत्पादन बढ़ाने में सहायता दी।
  • सरकार ने ग्रामीण समाज से सम्बन्धित कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति क्या है ? इसके प्रभावों का विस्तार से विवेचन करें।
उत्तर-
हरित क्रान्ति कृषि उत्पादन को बढ़ाने का एक नियोजित तथा वैज्ञानिक तरीका है। पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन करने के पश्चात् यह साफ हो गया कि अगर हमें फसलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी है तो उत्पादन सम्बन्धी नए तरीकों तथा तकनीकों का प्रयोग करना पड़ेगा। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारत में 1966-67 में कृषि में तकनीकी परिवर्तन शुरू हुए। इसमें अधिक उत्पादन वाले बीजों, सिंचाई के विकसित साधनों, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाने लगा। कृषि में विकसित साधनों के प्रयोग को ही हरित क्रान्ति का नाम दिया गया। यहां शब्द ‘हरित’ को ग्रामीण क्षेत्रों के हरे-भरे खेतों के लिए प्रयोग किया गया तथा ‘क्रान्ति’ शब्द बहुपक्षीय परिवर्तन को दर्शाता है। हरित क्रान्ति के प्रथम भाग में ‘गहन कृषि जिला कार्यक्रम’ शुरू किए गए जिसमें पहले तीन ज़िलों तथा बाद में 16 जिलों को शामिल किया गया। चुने हुए जिलों में कृषि की उन्नत विधियों, उर्वरक, बीजों, सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया गया।

1967-68 में इस कार्यक्रम को देश के अन्य भागों में भी लागू कर दिया गया। इस कार्यक्रम में किसानों में कृषि सम्बन्धी नई तकनीक, ज्ञान व उत्पादन के नए साधन बांटे गए ताकि उत्पादन में बढ़ौतरी की जा सके। सरकार ने इस कार्यक्रम को पूर्णतया सहायता दी तथा यह कामयाब हो गया। देश गेहूँ तथा चावल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया।
हरित क्रान्ति के मुख्य तत्त्व (Major Elements of Green Revolution) हरित क्रान्ति के मुख्य तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है-

  • अधिक उत्पादन वाले बीजों के प्रयोग से फसलों का उत्पादन बढ़ गया।
  • रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग ने भी कृषि उत्पादन को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका अदा की।
  • आधुनिक कृषि की मशीनें जैसे कि ट्रैक्टर, थ्रेशर, कंबाइन, पंप सैट, स्परेयर (Eprayer) इत्यादि ने भी उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
  • कृषि के बढ़िया ढंगों विशेषतया जापानी ढंग के प्रयोग ने भी उत्पादन बढ़ाया।
  • किसानों को नई सिंचाई सुविधाओं के बारे में बताया गया जिससे कृषि उत्पादन बढ़ गया।
  • एक वर्ष में कई बार फसल बीजने तथा काटने की प्रक्रिया ने भी उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
  • किसानों को सस्ते ब्याज पर ऋण देने के लिए कई संस्थाओं की स्थापना की गई ; जैसे कि को-आप्रेटिव सोसायटी, ग्रामीण बैंक, इत्यादि। इनसे ऋण लेकर किसान कृषि उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
  • सरकार द्वारा किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने का विश्वास दिलाया गया जिस कारण किसानों ने उत्पादन बढ़ाया।
  • Soil Conservation जैसे कार्यक्रमों ने भूमि की उत्पादन शक्ति को संभालने तथा बढ़ाने में सहायता की।
  • कृषि के सामान की बिक्री के लिए मार्किट कमेटियों, को-आप्रेटिव मार्केटिंग सोसायटियां बनाई गईं ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके।
  • सरकार ने भूमि सुधारों पर काम किया ताकि बिचौलियों का खात्मा, कार्य की सुरक्षा, किसानों को मालिकाना अधिकार, भूमि की चकबन्दी इत्यादि ने भी उत्पादन बढ़ाने में सहायता दी।
  • सरकार ने ग्रामीण समाज से सम्बन्धित कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके।

हरित क्रान्ति के प्रभाव-हरित क्रान्ति के प्रभावों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं-सकारात्मक व नकारात्मक। इनका वर्णन इस प्रकार है-

1. सकारात्मक प्रभाव-

  • अनाज के उत्पादन में बढ़ौतरी-इस कार्यक्रम की सबसे प्रमुख सफलता यह थी कि इसने अनाज, विशेषतया चावल तथा गेहूँ के उत्पादन में काफ़ी अधिक बढ़ौतरी कर दी। चाहे चावल का उत्पादन पहले भी अच्छा हो रहा था परन्तु गेहूँ के उत्पादन में बेतहाशा वृद्धि हुई। हरित क्रान्ति में मक्की, ज्वार, बाजरा, रागी तथा अन्य फसलों को शामिल नहीं किया गया।
  • व्यापारिक फसलों में उत्पादन में बढ़ौतरी-हरित क्रान्ति को लाने का मुख्य उद्देश्य अनाज के उत्पादन में बढ़ौतरी करना था। शुरू में इस क्रान्ति से व्यापारिक फसलों के उत्पादन में कोई बढ़ौतरी नहीं हुई जैसे कि गन्ना, कपास, जूट, तेल के बीज, आलू इत्यादि। परन्तु 1973-74 के बाद गन्ने के उत्पादन में काफ़ी बढ़ौतरी हुई। इस तरह तेल के बीजों तथा आलू के उत्पादन में बाद में काफ़ी बढ़ौतरी हुई।
  • फसलों की संरचना में परिवर्तन-हरित क्रान्ति के कारण फसलें बीजने की संरचना में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आया। सबसे पहले तो अनाज के उत्पादन में 3%-4% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ौतरी होने लग गई परन्तु दाल का उत्पादन या तो वहीं रह गया या कम हो गया। दूसरा अनाज उत्पादन में चावल का हिस्सा कम हो गया तथा गेहूँ का हिस्सा काफ़ी बढ़ गया।
  • रोज़गार को बढ़ावा-नई तकनीक के प्रयोग के कारण कृषि से सम्बन्धित रोज़गार में भी काफ़ी बढ़ौतरी हो गई। इससे कई प्रकार की तथा प्रत्येक वर्ष में कई फसलें बीजने के कारण नई नौकरियां बढ़ गईं। साथ ही मशीनों के प्रयोग से कृषि से सम्बन्धित मजदूरों को भी काम से निकाल दिया गया।

2. नकारात्मक प्रभाव-

  • भारत में पूँजीपति कृषि की शुरुआत-नए कृषि के कार्यक्रम में काफ़ी अधिक पैसे में निवेश की आवश्यकता थी जैसे कि बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई के साधनों पर। यह निवेश छोटे तथा मध्यम किसान नहीं कर सकते थे। इस प्रकार इसने देश में पूँजीपति कृषि की शुरुआत की। निर्धन तथा छोटे किसानों को हरित क्रान्ति का कोई सीधा लाभ न हुआ।
  • भारतीय कृषि का संस्थागत सुधारों से दूर होना-नई कृषि के प्रोग्राम में कृषि के संस्थागत सुधारों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। बहुत बड़ी संख्या में किसानों के पास भूमि की मलकियत नहीं थी। बड़े स्तर पर भूमि को खाली करवाया गया। इस कारण किसानों को फसल को बाँटने की स्थिति माननी पड़ी।
  • आय में अन्तर का बढ़ना-कृषि में तकनीकी परिवर्तनों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय में अन्तर बढ़ा दिया। बड़े किसानों ने नई तकनीकों का प्रयोग करके अपनी आय कई गुणा बढ़ा ली परन्तु छोटे किसान ऐसा न कर सके। इस प्रकार मजदूरों की स्थिति और भी खराब हो गई।
  • श्रमिकों को उजाड़ने की समस्या-हरित क्रान्ति के साथ-साथ देश में उद्योग लगाने पर भी बल दिया गया। कृषि वाली भूमि पर उद्योग लगाए गए जिस कारण कृषि श्रमिक बेरोज़गार हो गए। इस बेरोज़गारी की समस्या ने आर्थिक व राजनीतिक मोर्चे पर कई प्रकार की नई समस्याएं उत्पन्न की। देश के कई भागों में चल रहा नक्सली आन्दोलन इसका ही परिणाम है।

प्रश्न 5.
ग्रामीण समाज की परिभाषा दें। ग्रामीण समाज में हो रहे विविध परिवर्तनों का विवेचन करें।
अथवा
ग्रामीण समाज में आ रहे परिवर्तनों को बताइए।
अथवा
ग्रामीण समाज में आ रहे परिवर्तनों को दर्शाइए।
उत्तर-
ग्रामीण समाज की परिभाषा-देखें प्रश्न 1-अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न।
परिवर्तन-परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसे कोई नहीं बदल सकता है। संसार की प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन आता है। इस प्रकार ही ग्रामीण समाज भी परिवर्तन की प्रक्रिया में से गुज़र रहा है। आधुनिक समाज तथा तकनीक ने ग्रामीण समाज के प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन ला दिया है। इन परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होते ग्रामीण शहरी अन्तर (Decreasing Rural-Urban Differences)—पहले ग्रामीण समाज तथा शहरी समाज में बहुत अन्तर हुआ करते थे। परन्तु अब दोनों समाजों में धीरे-धीरे अन्तर कम हो रहे हैं। यह इस कारण नहीं है कि ग्रामीण लोग शहरी लोगों की नकल करते हैं बल्कि इस कारण है कि खुली मण्डी व्यवस्था के कारण ग्रामीण लोगों के शहरों के लोगों के साथ सम्बन्ध बढ़ रहे हैं। वह अपना उत्पादन शहर में जाकर बेचते हैं तथा वह नए पेशे अपना रहे हैं जिस कारण उनके बाहर के लोगों से सम्पर्क बढ़ रहे हैं। इस कारण ही ग्रामीण लोगों के रहने-सहने, खानेपीने, सोचने, जीवन जीने के ढंग शहरी लोगों की तरह बनते जा रहे हैं। यातायात तथा संचार के साधनों के कारण गांव शहरों में मिलने वाली हरेक सहूलियत को प्राप्त कर रहे हैं। पेशों की गतिशीलता के कारण शहरों जैसा वातावरण बढ़ रहा है तथा ग्रामीण शहरी अन्तर कम हो रहे हैं।

2. कम होता अन्तर (Decreasing difference of area)-ग्रामीण समाज में सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आ रहा है कि गांवों तथा शहरों में अन्तर धीरे-धीरे कम हो रहे हैं। शहर धीरे-धीरे बढ़कर गांवों की तरफ जा रहे हैं तथा गांव शहरों के नज़दीक आ रहे हैं। यातायात के साधन, पक्की सड़कें, शिक्षा के प्रसार तथा संचार के साधनों ने गांव को शहरों के काफ़ी नज़दीक ला दिया है। अब ग्रामीण लोग भी शहरों की तरफ तेज़ी से बढ़ रहे हैं। वह शहरों में अपना कार्य करके एक ही दिन में गांव में वापस चले जाते हैं।

3. कृषि के ढांचे में परिवर्तन तथा कृषि का व्यापारीकरण (Change in the structure of agriculture and marketization of Agriculture)-अगर हम प्राचीन समय की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि हमारे देश में कृषि का उत्पादन केवल अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए होता था। उत्पादन के साधन बहुत ही साधारण तथा प्रकृति के नज़दीक थे। कृषि का कार्य हल तथा बैल की मदद से होता था। कृषि के सभी कार्य हाथों से ही होते थे। यहां तक कि नहरों का, कुओं आदि को खुदवाने का कार्य बेगार (forced labour) से ही पूर्ण होता था। लोग स्थानीय स्तर पर ही अपनी ज़रूरतें पूर्ण कर लेते हैं तथा चीज़ों और सेवाओं का लेन-देन ही होता था।

परन्तु तकनीक तथा विज्ञान के आने से तथा कृषि से सम्बन्धित संस्थाओं के शुरू होने से कृषि का ढांचा ही बदल गया है। नई मशीनों जैसे कि ट्रैक्टर, थ्रेशर इत्यादि के आने से सिंचाई की सहूलियतें बढ़ने से, नहरों तथा Drip irrigation के बढ़ने से नए बीजों तथा रासायनिक उर्वरकों के आने से तथा मण्डियों के बढ़ने से कृषि अब जीवन निर्वाह के स्तर से व्यापारिक स्तर अथवा मण्डी के स्तर पर पहुँच गई है। अब कृषि केवल आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए नहीं होती बल्कि लाभ कमाने के लिए होती है। अब चीज़ों के विनिमय की जगह पैसे की मदद से लेन-देन होने लग गया है। अब साल में लोग 4-4 फसलें पैदा कर लेते हैं। उत्पादन बहुत बढ़ गया है। पहले अनाज आयात होता था अब निर्यात होता है।

विज्ञान की मदद से कृषि का कार्य आसान हो गया है। अब कृषि का कार्य शारीरिक शक्ति से नहीं बल्कि मशीनों से होना शुरू हो गया है। कृषि के संस्थात्मक ढांचे जैसे कि ज़मींदारी, रैय्यतवाड़ी, महलवाड़ी इत्यादि खत्म हो गए हैं। कृषि से सम्बन्धित सहायक पेशे जैसे कि डेयरी, पिगरी, पोलट्री, मछली पालन इत्यादि खुल गए हैं।

4. धर्म का कम होता प्रभाव (Decreasing effect of Religion)-प्राचीन समय में ग्रामीण लोगों पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। कृषि की प्रत्येक गतिविधि के ऊपर धर्म का प्रभाव होता था जोकि अब खत्म हो चुका है। पहले कई पेड़ों, पक्षियों, जानवरों इत्यादि को पवित्र समझा जाता था परन्तु आजकल के समय में यह कम हो गया है। ग्रामीण लोगों के धार्मिक विश्वासों, रस्मों-रिवाजों में बहुत परिवर्तन आया है। आजकल के मशीनी युग में ग्रामीण समाज का रोज़ाना जीवन मन्दिरों, गुरुद्वारों इत्यादि के प्रभाव से दूर होता जा रहा है।

5. ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन (Change in Rural Social Structure)—मार्क्स का कहना था कि आर्थिक ढांचे में परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन होता है। यह बात आजकल ग्रामीण समाज में देखी जा सकती है। कृषि के व्यापारीकरण तथा मशीनीकरण से न केवल आर्थिक खुशहाली आई है बल्कि पुराने रिश्तों में भी परिवर्तन आ रहा है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। माता-पिता के अधिकार तथा सम्मान कम हो रहा है, तर्कशील सोच के कारण नयी तथा पुरानी पीढ़ी में टकराव बढ़ रहा है, कृषि के कार्यों के विभाजन में परिवर्तन आ रहा है, सामाजिक कद्रों-कीमतों में गिरावट आ रही है, मानसिक तनाव बढ़ रहा है, औरतों की स्थिति में परिवर्तन इत्यादि जैसे कई पक्ष हैं जिन में हम परिवर्तन देख रहे हैं।

जन्म, विवाह, मृत्यु से सम्बन्धित रस्मों का समय भी बहुत कम हो रहा है। जजमानी व्यवस्था खत्म हो रही है, सामाजिक नातेदारी का प्रभाव कम हो रहा है, प्राथमिक समूहों का महत्त्व भी कम हो रहा है। लोग रिश्तों की जगह पदार्थक खुशी की तरफ बढ़ रहे हैं। जातियों के सम्बन्धों में भी बहुत परिवर्तन आ गए हैं। ब्राह्मणों की सर्वोच्चता खत्म हो गई है। लोग परम्परागत पेशों को छोड़ कर और पेशों को अपना रहे हैं। अस्पृश्यता खत्म हो गई है। जाति व्यवस्था के खत्म होने के कारण पेशों की गतिशीलता भी बढ़ रही है। अब ग्रामीण लोग अपनी मर्जी से पेशा बदलते हैं।

6. विज्ञान का बढ़ता प्रभाव (Increasing effect of Science)-प्राचीन समय में ऋतुओं, वातावरण सम्बन्ध विश्वास प्रकृति पर निर्धारित होते थे तथा ग्रामीण जीवन का आधार होते थे। भूमि को पवित्र माना जाता था। फसल की बिजाई समय को सामने रख कर की जाती थी परन्तु आजकल प्राचीन लोक विश्वास खत्म हो रहे हैं। किसान चाहे वैज्ञानिक नहीं हैं परन्तु फिर भी वैज्ञानिक ढंगों के प्रयोग के कारण वह प्राचीन विश्वास भूलते जा रहे हैं। पहले लोग अपनी भूमि पर रासायनिक उर्वरक डालने से कतराते थे, अब वह अधिक-से-अधिक उर्वरकों तथा मशीनों का प्रयोग करते हैं ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके।

7. प्रकृति पर कम होती निर्भरता (Decreasing dependency on Nature)—प्राचीन समय में किसान कृषि के उत्पादन के लिए केवल प्रकृति पर ही निर्भर रहता था। जैसे अगर किसी वर्ष बारिश नहीं पड़ती थी तो भूमि से उत्पादन लेना असम्भव होता था। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक शक्तियों से व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता था परन्तु आजकल के समय में ऐसा नहीं है। आजकल लोग सिंचाई के लिए वर्षा की जगह नहरों, ट्यूबवैल इत्यादि का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों से उत्पादन नए ढंगों से लिया जा रहा है। अब लोगों में गर्मी, सर्दी, बाढ़ इत्यादि से बचने का सामर्थ्य है। अब मौसम विभाग पहले ही बाढ़, सूखे, कम, अधिक वर्षा के बारे में पहले से ही सूचना दे देता है जिस कारण किसान उससे निपटने के लिए पहले ही तैयार हो जाता है। .

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8. ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार (Change in the level of Rural Life)-ग्रामीण समाज में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने में आया है तथा वह है ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार। आंकड़े बताते हैं कि कुछ वर्गों को छोड़कर सम्पूर्ण ग्रामीण जीवन में सुधार आया है। शिक्षा के प्रसार से, विज्ञान के आने से तथा सरकारी और गैर-सरकारी कोशिशों से मनुष्य का जीवन लम्बा हो गया है तथा बहुत-सी बीमारियां तो खत्म हो गई हैं। रहने-सहने के स्थानों में भी सुधार हुआ है। पक्के मकान, पक्की नालियां, गलियां, सड़कें, स्ट्रीट लाइटें, स्कूल, डिस्पेंसरियां इत्यादि आम गांव में भी देखी जा सकती हैं। मनोरंजन के साधन बढ़ रहे हैं तथा खेलों की सहूलियतें बढ़ रही हैं। निरक्षरता कम हो रही है। इस तरह ग्रामीण जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।

9. खाने-पीने तथा पहरावे में परिवर्तन (Change in Feeding and Wearing)-प्राचीन समय में जाति व्यवस्था के प्रभाव के कारण कुछ जातियां कुछ विशेष वस्तुओं का सेवन नहीं करती थीं तथा पहरावा भी सादा तथा विशेष प्रकार का पहनते थे। आजकल के समय में जाति प्रथा के प्रभाव के घटने के कारण लोगों की खाने-पीने तथा पहनने की आदतों में परिवर्तन आ गया है। आजकल ब्राह्मण भी मीट अथवा शराब का प्रयोग करते हैं। लोग अब सादे खाने की जगह बनावटी खाना जैसे कि बर्गर, पिज़्ज़ा, हाट डॉग, नूडल्ज़ इत्यादि का प्रयोग कर रहे हैं। पहले लोग धोती तथा कुर्ते पहनते थे परन्तु अब पैंटें, जीन्स, कमीजें इत्यादि पहनते हैं। अब स्त्रियां आधुनिक गहने डालती हैं। पर्दे की प्रथा तो लगभग खत्म हो गयी है।

प्रश्न 6.
ग्रामीण समाज पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवार का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि कृषि प्रधान समाजों में परिवार का बहुत महत्त्व होता है। वैसे तो गांवों में परिवार के कई स्वरूप देखने को मिलते हैं परन्तु संयुक्त परिवार ही ऐसा परिवार है जो सभी ग्रामीण समाजों में पाया जाता है। भारत के बहुत-से क्षेत्रों में पितृ प्रधान संयुक्त परिवार पाए जाते हैं। इसलिए हम ग्रामीण समाज में मिलने वाले संयुक्त परिवार का वर्णन करेंगे।
संयुक्त परिवार एक ऐसा समूह है जिसमें कई पुश्तों के सदस्य इकट्ठे रहते हैं। इसका अर्थ है कि दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, उनके बच्चे, लड़कों की पत्नियां तथा बिन ब्याहे बच्चे इत्यादि सभी एक ही निवास स्थान पर रहते हैं।

कार्वे (Karve) के अनुसार, “संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह होता है जिसमें साधारणतया सभी एक ही घर में रहते हैं, जोकि साझी रसोई में पका भोजन खाते हैं तथा साझी जायदाद के मालिक होते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार से दूसरे व्यक्ति के रक्त से सम्बन्धित होते हैं।”

आई०पी० देसाई (I.P. Desai) के अनुसार, “हम उस परिवार को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमें मूल परिवार से अधिक पीढ़ियों के सदस्य शामिल होते हैं तथा यह सदस्य आपकी जायदाद, आय तथा आपसी अधिकारों और फर्जी से सम्बन्धित हों।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं को देखकर हम संयुक्त परिवार के निम्नलिखित लक्षणों के बारे में बता सकते हैं:

  1. इनका आकार बड़ा होता है।
  2. इस परिवार के सदस्यों में सहयोग की भावना होती है।
  3. परिवार में जायदाद पर सभी का समान अधिकार होता है।
  4. परिवार के सभी सदस्य एक ही निवास स्थान पर रहते हैं।
  5. परिवार के सभी सदस्यों की आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक गतिविधियां एक जैसी ही होती हैं।

देसाई का कहना है कि जिस किसी भी समाज में कृषि से सम्बन्धित पेशे बहुत अधिक होते हैं वहां पितृ प्रधान संयुक्त परिवार होते हैं। कृषि प्रधान समाजों में संयुक्त परिवार एक आर्थिक सम्पत्ति की तरह कार्य करता है। पितृ प्रधान ग्रामीण संयुक्त परिवार के बहुत-से ऐसे पहलू हैं, जैसे कि क्रियात्मक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि जो इसको शहरी परिवार व्यवस्था से अलग करते हैं।
इस तरह इस चर्चा से स्पष्ट है कि ग्रामीण समाजों में साधारणतया पितृ प्रधान संयुक्त परिवार ही पाए जाते हैं। इन परिवारों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :

ग्रामीण परिवार की विशेषताएं (Characteristics of Rural Family)-

  1. बड़ा आकार।
  2. कृषि पर निर्भरता।
  3. अधिक सामूहिक भावना अथवा एकता।
  4. अधिक अन्तर्निर्भरता तथा अनुशासन।
  5. पारिवारिक अहं का अधिक होना।
  6. पिता का अधिक अधिकार।।
  7. पारिवारिक कार्यों में अधिक हिस्सेदारी। अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे।

1. बड़ा आकार (Large in Size) ग्रामीण परिवार की सबसे पहली विशेषता यह है कि यह आकार में काफ़ी बड़े होते हैं क्योंकि इसमें कई पीढ़ियों के सदस्य एक ही जगह पर इकट्ठे रहते हैं। हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या भी इस बड़े आकार के लिए उत्तरदायी है। कई स्थानों पर तो कई परिवारों के सदस्यों की संख्या 60-70 तक भी पहुंच जाती है। परन्तु साधारणतया एक ग्रामीण परिवार में 6 से 15 तक सदस्य होते हैं जिस कारण यह आकार में बड़े होते हैं।

2. कृषि पर निर्भरता (Dependency upon Agriculture) ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है जिस कारण ग्रामीण परिवार के सभी सदस्य कृषि के कार्यों में लगे रहते हैं। उदाहरण के लिए खेत में हल चलाने का कार्य कोई और करता है तथा पशुओं का चारा काटने के लिए कोई और कार्य करता है। ग्रामीण परिवार में स्त्रियां खेतों में कार्य करती हैं जिस कारण ही ग्रामीण परिवार शहरी परिवार से अलग होता है। बहुत-सी स्त्रियां खेतों में अपने पतियों की मदद करने के लिए तथा मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए कार्य करती हैं। इसके साथ ही घर में रहने वाली स्त्रियां भी बिना किसी कार्य के नहीं बैठती हैं। वह पशुओं को चारा डालने तथा पानी पिलाने का कार्य करती रहती हैं। खेतों में इकट्ठे कार्य करने के कारण उनकी सोच तथा विचार एक जैसे ही हो जाते हैं।

3. अधिक एकता (Greater Unity)-ग्रामीण परिवार की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता इस में एकता का होना है। ग्रामीण परिवारों में शहरी परिवारों की तुलना में अधिक एकता होती है। जैसे पति-पत्नी, दादा-पोता, माता-पिता में अधिक भावनात्मक तथा गहरे रिश्ते पाए जाते हैं। अगर ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ ध्यान से देखें तो यह पता चलता है कि ग्रामीण लोग समहों में रहना अधिक पसन्द करते हैं तथा उनमें एकता किसी खुशी अथवा दु:ख के मौके पर देखी जा सकती है। ग्रामीण परिवार के सदस्यों की इच्छाएं, विचार, कार्य, गतिविधियां तथा भावनाएं एक जैसी ही होती हैं। वह लगभग एक जैसे कार्य करते हैं तथा एक जैसा ही सोचते हैं। सदस्य के निजी जीवन का महत्त्व परिवार से कम होता है। सभी सदस्य एक ही सूत्र में बन्धे होते हैं तथा परिवार के आदर्शों और परम्पराओं के अनुसार ही अपना जीवन जीते हैं।

4. अधिक अन्तर्निर्भरता तथा अनुशासन (More Inter-dependency and Discipline)-शहरी परिवारों के सदस्यों की तुलना में ग्रामीण परिवार के सदस्य एक-दूसरे पर अधिक निर्भर होते हैं। शहरों में मनुष्य की बहुत-सी आवश्यकताएं परिवार से बाहर ही पूर्ण हो जाती हैं। परन्तु ग्रामीण परिवार में मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि आवश्यकताएं परिवार में ही पूर्ण होती हैं। इसका कारण यह है कि इन आवश्यकताओं की पूर्ति गांवों में परिवार के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं कर सकता है तथा व्यक्ति अकेले ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। जैसे गांव में कोई लड़का तथा लड़की अपने आप ही विवाह नहीं करवा सकते बल्कि उनके परिवार ही विवाह का प्रबन्ध करते हैं। अधिक अन्तर्निर्भरता के कारण परिवार के सदस्य अपने बड़ों के नियन्त्रण के अन्तर्गत तथा अनुशासन में रहते हैं। परिवार का छोटा सदस्य बड़े सदस्य की प्रत्येक बात मानता है चाहे बड़ा सदस्य गलत ही क्यों न हो।

5. पारिवारिक अहं का अधिक होना (More Pride of Family)-ग्रामीण परिवार का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण परिवार के अहं का अधिक होना है। परिवार के सदस्यों की अधिक अन्तर्निर्भता तथा एकता के कारण ग्रामीण परिवार एक ऐसी इकाई का रूप ले लेता है जिसमें एक सदस्य की जगह परिवार का अधिक महत्त्व होता है। साधारण शब्दों में ग्रामीण परिवार में परिवार का महत्त्व अधिक तथा एक सदस्य का महत्त्व कम होता है। परिवार के किसी भी सदस्य की तरफ से किया गया कोई भी अच्छा या गलत कार्य परिवार के सम्मान या कलंक का कारण बनता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य से यह आशा की जाती है कि वह परिवार के सम्मान को बरकरार रखे। पारिवारिक अहं की उदाहरण हम देख सकते हैं कि परिवार के सम्मान के लिए कई बार गांव के अलग-अलग परिवारों में झगड़े भी हो जाते हैं तथा कत्ल भी हो जाते हैं।

6. पिता के अधिक अधिकार (More Powers of Father)-ग्रामीण परिवारों में पिता के अधिकार अधिक होते हैं। पिता ही पूर्ण परिवार का कर्ता-धर्ता होता है। परिवार के सदस्यों को लिंग तथा उम्र के आधार पर कार्यों के विभाजन, बच्चों के विवाह करने, आय का ध्यान रखना, सम्पूर्ण घर को सही प्रकार से चलाना इत्यादि कई ऐसे कार्य हैं जो पिता अपने ढंग से करता है। पिता का ग्रामीण परिवार पर इतना अधिक प्रभाव होता है कि परिवार का कोई भी सदस्य उसके आगे बोल नहीं सकता है। ग्रामीण परिवार शहरी परिवारों के बिल्कुल ही विपरीत होते हैं जहां परिवार के प्रत्येक सदस्य का अपना ही महत्त्व होता है।

7. पारिवारिक कार्यों में अधिक भागीदारी (More participation in Household Affairs)-ग्रामीण परिवार की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि परिवार के सभी सदस्य परिवार के कार्यों में गहरे रूप से शामिल होते हैं। कृषि ढांचा होने के कारण परिवार के सभी सदस्य अपना अधिकतर समय एक-दूसरे के साथ व्यतीत करते हैं जिस कारण परिवार के सदस्य घर की प्रत्येक गतिविधि तथा कार्य में भाग लेते हैं। दिन के समय खेतों में इकट्ठे कार्य करने के कारण तथा रात के समय घर के कार्य इकट्ठे करने के कारण सभी सदस्य एक-दूसरे के बहुत ही नज़दीक होते हैं।

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इन विशेषताओं के अतिरिक्त ग्रामीण परिवार की और भी विशेषताएं हो सकती हैं जैसे कि :

  1. धर्म का अधिक महत्त्व।
  2. स्त्रियों की निम्न स्थिति।
  3. पूर्वजों की पूजा।
  4. संयुक्त परिवारों का महत्त्व। इस प्रकार ऊपर ग्रामीण परिवार की विशेषताओं का वर्णन किया गया है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

v. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज का किससे सीधा सम्बन्ध होता है ?
(क) प्रकृति
(ख) पड़ोस
(ग) नगर
(घ) महानगर।
उत्तर-
(क) प्रकृति।

प्रश्न 2.
हमारे देश की कितनी जनसंख्या गाँवों तथा नगरों में रहती है ?
(क) 70% व 30%
(ख) 32% व 68%
(ग) 68% व 32%
(घ) 25% व 75%.
उत्तर-
(ग) 68% व 32%.

प्रश्न 3.
ग्रामीण समाज का मुख्य पेशा क्या होता है ?
(क) उद्योग
(ख) अलग-अलग पेशे
(ग) तकनीक
(घ) कृषि।
उत्तर-
(घ) कृषि।

प्रश्न 4.
जजमानी व्यवस्था में सेवा देने वाले को क्या कहते हैं ?
(क) जजमान
(ख) प्रजा
(ग) कमीन
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) कमीन।

प्रश्न 5.
जजमानी व्यवस्था में सेवा लेने वाले को क्या कहते हैं ?
(क) राजा
(ख) जजमान
(ग) प्रजा
(घ) कमीन।
उत्तर-
(ख) जजमान।

प्रश्न 6.
किसने कहा था कि, “वास्तविक भारत गाँव में बसता है।”
(क) महात्मा गाँधी
(ख) जवाहर लाल नेहरू
(ग) बी० आर० अम्बेदकर
(घ) सरदार पटेल।
उत्तर-
(क) महात्मा गाँधी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. गाँव के मुखिया को …………. कहते थे।
2. 2011 में ………… करोड़ लोग गाँवों में रहते थे।
3. ……..ई० में ग्रामीण समाजशास्त्र की प्रथम पुस्तक छपी थी।
4. ग्रामीण समाज के लोगों का मुख्य पेशा ……….. होता है।
5. ग्रामीण समाज में ………….. परिवार पाए जाते हैं।
उत्तर-

  1. ग्रामिणी
  2. 83.3
  3. 1916
  4. कृषि
  5. संयुक्त ।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. ग्रामीण लोग उद्योगों में अधिक कार्य करते हैं।
2. जजमान सेवा ग्रहण करता है।
3. हरित् क्रान्ति 1956 में शुरू हुई थी।
4. ऋणग्रस्तता के कारण बहुत से किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
5. ग्रामीण समाज में बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं।
6. पंचायत गांव की सरकार का कार्य करती है।
उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही,
  5. सही,
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर-

प्रश्न 1. भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है ?
उत्तर-भारत की 68.84% जनसंख्या गांवों में रहती है।

प्रश्न 2. राबर्ट रैडफील्ड ने ग्रामीण समाज की कितनी विशेषताएं दी हैं ?
उत्तर-राबर्ट रैडफील्ड के अनुसार ग्रामीण समाज की मुख्य विशेषताएँ हैं-छोटा आकार, अलगपन, समानता व स्व: निर्भरता।

प्रश्न 3. गाँवों की कितने प्रतिशत जनसंख्या कृषि या सम्बन्धित कार्यों में लगी हुई है ?
उत्तर-गाँवों की कम-से-कम 75% जनसंख्या कृषि या सम्बन्धित कार्यों में लगी हुई है।

प्रश्न 4. 2011 में गाँवों में कितने लोग रहते थे ?
उत्तर-2011 में 83.3 करोड़ लोग गाँवों में रहते थे।

प्रश्न 5. ग्रामीण समाजशास्त्र के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना क्या थी ?
उत्तर-अमेरिका में Country Life कमीशन की स्थापना ग्रामीण समाजशास्त्र के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी।

प्रश्न 6. ग्रामीण समाजशास्त्र की सबसे प्रथम पुस्तक किसने तथा कब छापी थी ?
उत्तर-ग्रामीण समाजशास्त्र की सबसे प्रथम पुस्तक J.N.Gillettee ने 1916 में छापी थी।

प्रश्न 7. ग्रामीण समाजशास्त्र से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रियों के नाम बताएं।
उत्तर-एस० सी० दूबे, ऑस्कर लेविस, एम० एन० श्रीनिवास, मैरीयट, बैली, गॅफ, के० एल० शर्मा, आन्द्रे बेते इत्यादि।

प्रश्न 8. ग्रामीण समाज की जनसंख्या कैसी होती है ?
उत्तर-ग्रामीण समाज की जनसंख्या नगरों की तुलना में काफ़ी कम होती है।

प्रश्न 9. ग्रामीण समाज के लोगों के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध होते हैं ?
उत्तर–ग्रामीण समाज के लोगों में काफ़ी गहरे व आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 10. ग्रामीण समाज में किस प्रकार के परिवार मिलते हैं ?
उत्तर-ग्रामीण समाज में संयुक्त परिवार मिलते हैं।

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प्रश्न 11. संयुक्त परिवार क्या है ?
उत्तर-वे परिवार जिसमें तीन या अधिक पीढ़ियों के लोग एक ही छत के नीचे रहते तथा एक ही रसोई में खाना खाते हैं।

प्रश्न 12. गांवों में कौन-सा विवाह सबसे अधिक मिलता है ?
उत्तर-गांवों में एक विवाह सबसे अधिक मिलता है।

प्रश्न 13. 73वां संवैधानिक संशोधन कब हआ था ?
उत्तर-73वां संवैधानिक संशोधन 1992 में हुआ था।

प्रश्न 14. ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे छोटी राजनीतिक इकाई कौन-सी है?
उत्तर-ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे छोटी राजनीतिक इकाई पंचायत है।

प्रश्न 15. पंचायती राज्य के तीन स्तरों के नाम बताएं।
उत्तर-पंचायत-ग्राम स्तर पर, ब्लॉक समिति-ब्लॉक स्तर पर तथा जिला परिषद्-जिला स्तर पर।

प्रश्न 16. ग्रामीण समाज में सामने आए दो मुख्य मुद्दे क्या हैं ?
उत्तर- गाँव में सामने आए दो मुख्य मुद्दे हैं-ऋणग्रस्तता की समस्या तथा हरित क्रान्ति के प्रभाव।

प्रश्न 17. ऋणग्रस्तता क्या है ?
उत्तर-जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य के लिए पैसे लेता है तो इसे ऋणग्रस्तता कहते हैं।

प्रश्न 18. HYV बीज का क्या अर्थ है ?
उत्तर-अधिक उत्पादन देने वाले बीजों को HYV बीज कहते हैं।

प्रश्न 19. किसे भारत में हरित क्रान्ति का पिता कहा जाता है ?
उत्तर-प्रो० स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रान्ति का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 20. IADP का क्या अर्थ है ?
उत्तर-IADP का अर्थ है Intensive Agriculture District Programme.

प्रश्न 21. हरित क्रान्ति कब शुरू हुई थी ?
उत्तर-हरित क्रान्ति 1966 में शुरू हुई थी।

प्रश्न 22. हरित क्रान्ति के कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व बताएं।
उत्तर-HYV बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मशीनें, नए सिंचाई के साधनों का प्रयोग इत्यादि।

प्रश्न 23. ग्रामीण समाज की एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-ग्रामीण समाज आकार में छोटे होते हैं तथा वहाँ पर सामाजिक एकरूपता होती है।

प्रश्न 24. पन्निकर ने किसे भारतीय सामाजिक व्यवस्था का सशक्त आधार माना है?
उत्तर-जाति व्यवस्था, ग्रामीण जीवन व्यवस्था व संयुक्त परिवार व्यवस्था को पन्निकर ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार माना है।

प्रश्न 25. किसे ग्रामीण क्षेत्रों में अनाचार के लिए जाना जाता है?
उत्तर-साहूकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में अनाचार के लिए जाना जाता है।

प्रश्न 26. ऋणग्रस्तता का एक परिणाम बताएँ।
उत्तर–किसान ऋण के जाल में फंस जाता है तथा अंत में उसकी जमीन साहूकार के कब्जे में चली जाती है।

प्रश्न 27. पंजाब में हरित क्रान्ति से किन फ़सलों का उत्पादन काफ़ी बढ़ गया?
उत्तर-पंजाब में हरित क्रान्ति के कारण गेहूँ तथा चावल का उत्पादन काफ़ी बढ़ गया।

III. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज।
उत्तर-
ग्रामीण समाज वह समाज होता है जो प्रकृति के काफ़ी नज़दीक होता है, जिसमें लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है, जहाँ के लोगों के बीच नज़दीक के सम्बन्ध तथा समानता होती है, जो एक विशेष क्षेत्र में रहते हैं तथा काफ़ी हद तक आत्मनिर्भर होते हैं।

प्रश्न 2.
ग्रामीण समाज की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  1. ग्रामीण समाज नगरीय समाज की तुलना में छोटे आकार के होते हैं तथा इनकी जनसंख्या भी कम होती है।
  2. यहाँ रहने वाले लोगों के बीच गहरे व सीधे सम्बन्ध होते हैं।

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प्रश्न 3.
जाति पंचायत।
उत्तर-
पुराने समय की जाति व्यवस्था में प्रत्येक जाति की एक पंचायत होती थी जो जाति के सदस्यों के बीच के मामले सुलझाती थी। इसके पास प्रत्येक प्रकार की न्याय करने की तथा जुर्माना लगाने की शक्ति होती थी।

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार।
उत्तर-
संयुक्त परिवार ऐसा परिवार होता है जिसमें तीन या अधिक पीढ़ियों के लोग इकट्ठे मिलकर एक ही छत के नीचे रहते हैं, एक ही साझी रसोई में खाना खाते हैं तथा परिवार की सम्पत्ति पर समान अधिकार होता है।

प्रश्न 5.
पंचायत।
उत्तर-
गाँव के स्तर पर जिस स्थानीय सरकार का गठन किया गया है, उसे पंचायत कहते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव गाँव की ग्राम सभा करती है तथा इसे निश्चित समय अर्थात् 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। यह गाँव का विकास करती है।

प्रश्न 6.
अन्तर्विवाह।
उत्तर-
जब व्यक्ति को एक विशेष समूह में ही विवाह करवाना पड़ता है तथा इस प्रकार के विवाह को अन्तर्विवाह कहते हैं। पुराने नियमों के अनुसार व्यक्ति को अपनी ही जाति या उपजाति में ही विवाह करवाना पड़ता था नहीं तो उसे जाति से बाहर निकाल दिया जाता था।

प्रश्न 7.
बहिर्विवाह।
उत्तर-
जब व्यक्ति को एक विशेष समूह से बाहर विवाह करवाना पड़ता है तो इस प्रकार के व्यक्ति को बहिर्विवाह कहते हैं। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को अपने परिवार, रिश्तेदारी, गोत्र इत्यादि से बाहर विवाह करवाना पड़ता है।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण समाज।
उत्तर-
ग्रामीण समाज एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां तकनीक का कम प्रयोग, प्राथमिक सम्बन्धों की प्राथमिकता, छोटा आकार होता है तथा जहां अधिकतर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इस प्रकार ग्रामीण समुदाय वह समुदाय होते हैं जो एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, आकार में बहुत छोटे होते हैं, नज़दीक के सम्बन्ध पाए जाते हैं तथा प्राथमिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को नज़दीक से जानते हैं तथा लोगों का मुख्य पेशा कृषि अथवा कृषि से सम्बन्धित होता है।

प्रश्न 2.
ग्रामीण समाज की दो परिभाषाएं।
उत्तर-
ए० आर० देसाई (A. R. Desai) के अनुसार, “ग्रामीण समाज गांव की एक इकाई है। यह एक थियेटर है जिसमें ग्रामीण जीवन अधिक मात्रा में अपने आपको तथा कार्यों को प्रकट करता है।”
आर० एन० मुखर्जी (R. N. Mukherjee) के अनुसार, “गांव वह समुदाय है जिसके विशेष लक्षण सापेक्ष एकरूपता, सादगी, प्राथमिक समूहों की प्रधानता, जनसंख्या का कम घनत्व तथा कृषि मुख्य पेशा होता है।”

प्रश्न 3.
ग्रामीण समुदाय-मुख्य पेशा कृषि।
उत्तर-
ग्रामीण समाज का मुख्य पेशा कृषि अथवा कृषि पर आधारित कार्य होते हैं क्योंकि ग्रामीण समाज प्रकृति के काफ़ी नज़दीक होते हैं। यह प्रकृति के काफ़ी नज़दीक होते हैं इसलिए यह जीवन को अलग ही दृष्टि से देखते हैं। चाहे गांवों में और भी पेशे होते हैं परन्तु वह काफ़ी कम संख्या में होते हैं तथा वह कृषि से सम्बन्धित चीजें भी बनाते हैं। ग्रामीण समाज में भूमि को बहुत ही महत्त्वपूर्ण वस्तु समझा जाता है तथा लोग यहां ही रहना पसन्द करते हैं क्योंकि उनका जीवन भूमि पर ही निर्भर होता है। यहां तक कि लोगों तथा गांवों की आर्थिक व्यवस्था तथा विकास भी कृषि पर ही निर्भर करता है।

प्रश्न 4.
ग्रामीण समुदाय-कम जनसंख्या तथा एकरूपता।
उत्तर-
गांवों की जनसंख्या शहरों की तुलना में बहुत कम होती है। लोग दूर-दूर तक छोटे-छोटे समूह बना कर बसे होते हैं तथा इन समूहों को गांव का नाम दिया जाता है। गांव में कृषि के अतिरिक्त और पेशे कम ही होते हैं जिस कारण लोग शहरों की तरफ भागते हैं तथा जनसंख्या भी कम ही होती है। लोगों के बीच नज़दीक के सम्बन्ध होते हैं तथा एक जैसा पेशा, कृषि होने के कारण उनके विचार भी एक जैसे ही होते हैं। गांव के लोगों की लोक-रीतियां, रूढ़ियां, परम्पराएं इत्यादि भी एक जैसे ही होते हैं तथा उनके आर्थिक, नैतिक, धार्मिक जीवन में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है। गांव में लोग किसी दूर के क्षेत्र से रहने नहीं आते हैं, बल्कि यह तो गांव में रहने वाले मूल निवासी ही होते हैं अथवा नज़दीक रहने वाले लोग होते हैं। इस कारण लोगों में एकरूपता होती है।

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प्रश्न 5.
ग्रामीण समुदाय-पड़ोस का महत्त्व।
उत्तर-
ग्रामीण समाज में पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है जिसमें उन्हें काफ़ी समय खाली मिल जाता है। कृषि के पेशे में अधिक समय नहीं लगता है। इस कारण लोग एक-दूसरे से मिलते रहते हैं, बातें करते हैं, एक-दूसरे से सहयोग करते रहते हैं। लोगों के अपने पड़ोसियों से बहुत गहरे सम्बन्ध होते हैं। पड़ोस में जातीय समानता होती है जिस कारण उनकी स्थिति भी समान होती है। लोग वैसे तो पड़ोसियों का सम्मान, उनका आदर करना अपना फर्ज़ समझते हैं परन्तु इसके साथ ही एक-दूसरे के सुख-दुःख में पड़ोसी ही सबसे पहले आते हैं, रिश्तेदार तो बाद में आते हैं। इस कारण पड़ोस का काफ़ी महत्त्व होता है।

प्रश्न 6.
ग्रामीण समाज में परिवार का नियन्त्रण।
उत्तर-
ग्रामीण समाजों में परिवार का व्यक्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। गांवों में अधिकतर पितृसत्तात्मक परिवार होते हैं तथा परिवार का प्रत्येक छोटा-बड़ा निर्णय परिवार का मुखिया ही लेता है। गांव में तथा परिवार में श्रम विभाजन लिंग के आधार पर होता है। मर्द कृषि करते हैं अथवा घर से बाहर जाकर पैसा कमाते हैं तथा स्त्रियां घर में रह कर घर की देखभाल करती हैं। गांवों में संयुक्त परिवार प्रथा होती है। सभी व्यक्ति परिवार में मिल कर कार्य करते हैं। परिवार के सभी सदस्य त्योहारों, धार्मिक क्रियाओं इत्यादि में मिलकर भाग लेते हैं। व्यक्ति को कोई भी कार्य करने से पहले परिवार की सलाह लेनी पड़ती है। इस प्रकार उसके ऊपर परिवार का पूर्ण नियन्त्रण होता है।

प्रश्न 7.
ग्रामीण समाज तथा प्रकृति से निकटता।
उत्तर-
गांवों में लोग कृत्रिम वातावरण से दूर रहते हैं इसलिए इनका प्रकृति से गहरा सम्बन्ध होता है। इनका मुख्य पेशा कृषि होता है इसलिए यह प्रकृति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होते हैं। इनका जीवन प्रकृति पर ही निर्भर करता है इसलिए यह सूर्य, वरुण, इन्द्र देवता इत्यादि की पूजा करते हैं। यह लोग प्राकृतिक शक्तियों जैसे कि वर्षा, बाढ़, सूखा इत्यादि से बहुत डरते हैं क्योंकि इन पर ही कृषि निर्भर करती है। यह प्राकृतिक शक्तियां इनके पूर्ण वर्ष के परिश्रम को तबाह कर सकती हैं। इस कारण ही यह लोग रूढ़िवादी होते हैं तथा इनका दृष्टिकोण भी सीमित होता है। इस तरह यह प्रकृति के निकट होते हैं। .

प्रश्न 8.
ग्रामीण समाज-स्त्रियों की निम्न स्थिति।
उत्तर-
गांवों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है क्योंकि स्त्रियां केवल घरेलू कार्य करने तक ही सीमित होती हैं। प्राचीन समय में तो गांवों में श्रम विभाजन लिंग के आधार पर ही होता था। स्त्रियां घर का कार्य करती थीं तथा मर्द घर से बाहर का कार्य करते थे। उनको घर से बाहर निकलने की आज्ञा नहीं थी। उसको कोई भी अधिकार नहीं थे। घर के निर्णय करते समय उनसे पूछा भी नहीं जाता था। उसको केवल पैर की जूती समझा जाता था। चाहे अब समय बदल रहा है तथा लोग अपनी लड़कियों को पढ़ा रहे हैं परन्तु स्त्रियों के प्रति उनका दृष्टिकोण अब भी वही है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण समाज में आ रहे परिवर्तन।
उत्तर-

  • ग्रामीण समाज तथा शहरी समाजों में अन्तर कम हो रहे हैं।
  • कृषि के ढांचे में परिवर्तन तथा कृषि का व्यापारीकरण।
  • धर्म का कम होता प्रभाव।
  • विज्ञान का प्रभाव बढ़ रहा है।
  • प्रकृति पर किसानों की निर्भरता कम हो रही है।
  • शिक्षा का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

प्रश्न 10.
ग्रामीण समाज-धर्म का कम होता प्रभाव।
उत्तर-
प्राचीन समय में ग्रामीण लोगों पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। कृषि की प्रत्येक गतिविधि पर धर्म का प्रभाव होता था परन्तु अब यह खत्म हो चुका है। पहले कई पेड़ों, पक्षियों तथा जानवरों इत्यादि को पवित्र समझा जाता था परन्तु आजकल के समय में यह कम हो गया है। ग्रामीण लोगों के धार्मिक विश्वासों, रस्मों-रिवाजों में बहुत परिवर्तन आ गया है तथा नई पीढ़ी ने इन्हें मानना बन्द कर दिया है। आजकल के मशीनी युग में ग्रामीण समाज का रोज़ाना जीवन मन्दिरों, गुरद्वारों के प्रभाव से दूर होता जा रहा है।

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प्रश्न 11.
ग्रामीण परिवार।
अथवा
संयुक्त परिवार।
उत्तर-
ग्रामीण परिवार आमतौर पर पितृसत्तात्मक तथा संयुक्त परिवार होते हैं। ग्रामीण परिवारों में पिता की सत्ता चलती है तथा परिवार के सभी सदस्य एक ही घर में रहते हैं। एक ही घर में रहने के कारण एक ही चूल्हे में खाना बनता है तथा सामुदायिक भावना बहुत अधिक होती है। इस प्रकार ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार पाए जाते हैं जिस में कई पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे रहते हैं। यह आकार में बड़े होते हैं तथा इनमें सम्पत्ति पर भी सभी का बराबर अधिकार होता है।

प्रश्न 12.
ग्रामीण परिवार-पितृसत्तात्मक परिवार।
अथवा ग्रामीण परिवारों में पिता का अधिक अधिकार।
उत्तर-
ग्रामीण परिवारों में पिता के अधिकार अधिक होते हैं। पिता ही पूर्ण परिवार का कर्ता-धर्ता होता है। परिवार के सदस्यों को लिंग तथा आयु के आधार पर कार्यों का विभाजन, बच्चों के विवाह करने, आय का ध्यान रखना, सारे घर को ठीक ढंग से चलाना इत्यादि जैसे कई कार्य हैं जो पिता अपने तरीके से करता है। पिता का ग्रामीण परिवार पर इतना अधिक प्रभाव होता है कि परिवार का कोई भी सदस्य उसके आगे बोल नहीं सकता है। ग्रामीण परिवार शहरी परिवारों के बिल्कुल विपरीत होते हैं। इनमें तो पिता की इच्छा का ही महत्त्व होता है।

प्रश्न 13.
ग्रामीण परिवार की विशेषताएं।
अथवा संयुक्त परिवार की चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  1. ग्रामीण परिवार आकार में बड़े होते हैं।
  2. ग्रामीण परिवार कृषि पर निर्भर करते होते हैं।
  3. ग्रामीण परिवारों में अधिक सामूहिक भावना अथवा एकता होती है।
  4. ग्रामीण परिवारों में अधिक अन्तर्निर्भरता तथा अनुशासन होता है।
  5. पिता को अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
  6. पारिवारिक कार्यों में व्यक्ति की अधिक भागीदारी होती है।

प्रश्न 14.
ग्रामीण परिवारवाद।
उत्तर-
गांवों में मिलने वाली प्रत्येक प्रकार की संस्था के ऊपर ग्रामीण परिवार का काफ़ी प्रभाव होता है। इस कारण ही ग्रामीण समाज में परिवार को अधिक महत्त्व प्राप्त होता है तथा व्यक्ति को कम। इसको ही परिवारवाद कहते हैं। जब एक या दो व्यक्तियों की जगह पूरे परिवार को महत्त्व दिया जाए तो उसको परिवारवाद कहते हैं। पारिवारिक गुणों के सामाजिक, राजनीतिक संगठनों पर प्रभाव को भी परिवारवाद कहा जाता है।

प्रश्न 15.
ग्रामीण विवाह।
उत्तर-
कृषि प्रधान समाजों में विवाह को काफ़ी आवश्यक समझा जाता है क्योंकि इसे धार्मिक संस्कारों को पूरा करने तथा खानदान को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक समझा जाता है। इस प्रकार ग्रामीण विवाह आदमी तथा औरत के बीच बनाया गया रिश्ता है जिसका उद्देश्य परिवार बनाना, घर बसाना, बच्चे पैदा करना, समाज को आगे बढ़ाना तथा धार्मिक संस्कारों को पूर्ण करना है। ग्रामीण विवाह में दो परिवार इकट्ठे होते हैं तथा लड़का-लड़की की सहायता से एक-दूसरे से सम्बन्ध बनाते हैं। ग्रामीण समाज में गोत्र से बाहर तथा जाति के अन्दर विवाह करवाना आवश्यक समझा जाता है।

प्रश्न 16.
ग्रामीण विवाह एक धार्मिक संस्कार होता है।
उत्तर-
ग्रामीण समाजों में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि इसका उद्देश्य धार्मिक होता है। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा हुआ है कि व्यक्ति विवाह करके अपना घर बसाएगा, सन्तान पैदा करके समाज को आगे बढ़ाएगा तथा अपने ऋण उतारेगा। व्यक्ति अपने ऋण केवल विवाह करके तथा सन्तान पैदा करके ही उतार सकता है। ग्रामीण समाज में व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक कई संस्कारों में से निकलना पड़ता है। इस कारण ही इसे धार्मिक संस्कार माना गया है।

प्रश्न 17.
व्यवस्थित विवाह।
उत्तर-
ग्रामीण समाजों में विवाह को एक मर्द तथा स्त्री का मेल नहीं, बल्कि दो परिवारों, दो समूहों अथवा दो गांवों का मेल समझा जाता है। इस कारण माता-पिता अपने बच्चों का साथी ढूंढ़ने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार जो विवाह माता-पिता द्वारा निश्चित किया जाए उसे व्यवस्थित विवाह कहते हैं। विवाह निश्चित करने के लिए परिवार के आकार, स्थिति, नातेदारी तथा आर्थिक स्थिति को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। इसके साथ-साथ बच्चे के निजी गुणों को भी ध्यान में रखा जाता है। यदि बच्चे में कोई निजी कमी है तो उसका विवाह करने में काफ़ी समस्या आती है। माता-पिता ही बच्चों का विवाह करते हैं तथा धूमधाम से विवाह करने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 18.
ग्रामीण क्षेत्र में साथी के चुनाव की कसौटियां।
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्रों में साथी के चुनाव के लिए कपाड़िया ने तीन नियम दिए हैं तथा वे निम्नलिखित हैं(i) चुनाव का क्षेत्र (The field of selection) (ii) चुनाव करने के लिए विरोधी पार्टी (Parties for selection) (iii) चुनाव की कसौटियां (Criteria of selection)।

प्रश्न 19.
गांव बहिर्विवाह।
अथवा ग्रामीण विजातीय विवाह।
उत्तर-
गांव बहिर्विवाह के नियम के अनुसार एक गांव के व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। व्यक्ति को अपने गांव से बाहर विवाह करवाना पड़ता है। यह समझा जाता है कि गांव में रहने वाले सभी व्यक्ति एक ही मातापिता की सन्तान हैं। एक गांव के व्यक्तियों को आपस में सगे-सम्बन्धी समझा जाता है। पंजाब के गांवों में यह शब्द आम सुने जा सकते हैं कि गांव की बेटी, बहन सब की साझी बेटी, बहन होती है। इसलिए व्यक्ति को अपने गांव से बाहर विवाह करना पड़ता है। इसे ही गांव बहिर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 20.
दहेज।
उत्तर-
परम्परागत भारतीय समाज में विवाह के समय लड़की को दहेज देने की प्रथा चली आ रही है। विवाह के समय माता-पिता लड़की को लड़के के घर भेजते समय लड़के तथा उसके माता-पिता को कुछ उपहार भी देते हैं। इन उपहारों को ही दहेज का नाम दिया जाता है। प्रत्येक परिवार अपनी आर्थिक स्थिति तथा लड़के वालों की सामाजिक स्थिति के अनुसार दहेज देता है। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है वह अधिक दहेज देते हैं तथा जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है वह कम दहेज देते हैं। आजकल के समय में यह प्रथा काफ़ी बढ़ गई है तथा सभी भारतीय समाजों में समान रूप से प्रचलित है।

प्रश्न 21.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित होती है तथा कृषि भूमि पर निर्भर होती है। इसलिए ग्रामीण समाज तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भूमि का सबसे अधिक महत्त्व होता है। हमारे देश की लगभग 70% जनसंख्या कृषि अथवा
कृषि से सम्बन्धित पेशों में लगी हुई है। चाहे और पेशे भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में होते हैं परन्तु कृषि का महत्त्व सबसे . अधिक होता है। लोग भूमि पर फसल उत्पन्न करके उत्पादन करते हैं। उत्पादन की विधि अभी भी प्राचीन है। चाहे देश
के कुछ भागों में मशीनों तथा आधुनिक तकनीक की सहायता से कृषि हो रही है परन्तु फिर भी देश के अधिकतर भागों में कृषि के लिए पुराने ढंगों का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 22.
ऋणग्रस्तता।
उत्तर-
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की एक मुख्य विशेषता किसानों का ऋणग्रस्त होना है। ग्रामीण परिवार आकार में बड़े होते हैं। उनकी आय चाहे कम होती है परन्तु बड़ा परिवार होने के कारण खर्चे बहुत अधिक होते हैं। खर्चे पूरे करने के लिए उन्हें ब्याज पर साहूकार से कर्जा लेना पड़ता है। इस तरह वह ऋणग्रस्त हो जाते हैं। वैसे भी आजकल कृषि पर खर्चा बहुत बढ़ गया है जैसे कि उर्वरकों तथा बीजों के बढ़े हुए दाम, डीज़ल का खर्चा, पानी के लिए पम्पों का प्रयोग, उत्पादन का कम मूल्य इत्यादि। इन सबके कारण उसके खर्चे पूर्ण नहीं हो पाते हैं तथा उन्हें बैंकों अथवा साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है।

प्रश्न 23.
जजमानी व्यवस्था।
उत्तर-
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जजमानी व्यवस्था का काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान है। जजमान का अर्थ है सेवा करने वाला अथवा यज्ञ करने वाला। समय के साथ-साथ यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाने लगा जो दूसरे लोगों से सेवाएं ग्रहण करते हैं। इस सेवा को ग्रहण करने तथा सेवा करने के अलग-अलग जातियों के पुश्तैनी सम्बन्धों को ही जजमानी व्यवस्था कहते हैं। इस व्यवस्था के अनुसार पुजारी, दस्तकार तथा और निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों को अपनी सेवाएं देते थे। इनकी सेवाओं की एवज में उस घर अथवा किसान से उत्पादन में से हिस्सा ले लेते हैं। इस तरह मनुष्यों के जीवन की ज़रूरतें स्थानीय स्तर पर ही पूर्ण हो जाती हैं। इस तरह जजमानी व्यवस्था से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सही ढंग से चलती रहती है।

प्रश्न 24.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएं।
उत्तर-

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है तथा लोगों का जीवन है इस पर ही आधारित होता है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उत्पादन कृषि से होता है तथा उत्पादन के ढंग अभी प्राचीन ही हैं।
  • ग्रामीण समाज में भूमि ही सभी प्रकार के सम्बन्धों का आधार होती है तथा भूमि पर किसान का अधिकार होता है।
  • ग्रामीण जनसंख्या अधिक होती है जिस कारण भूमि पर अधिक उत्पादन करने के लिए दबाव बढ़ता है। (v) ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कर्जे की बहुत समस्या होती है तथा किसान हमेशा ही कर्जे में डूबे रहते हैं।

प्रश्न 25.
ग्रामीण समाज में ऋणग्रस्तता के कारण।
उत्तर-

  • किसानों की आय के साधन अस्थिर होते हैं जिस कारण उन्हें आवश्यकता पड़ने पर ऋण लेना पड़ता है।
  • किसानों के परिवारों की जनसंख्या अधिक परन्तु आय सीमित ही होती है जिस कारण उन्हें ऋण लेना पड़ता है।
  • किसानों को दिखावा करने की आदत होती है जिस कारण वह आवश्यकता से अधिक खर्च करते हैं। इसलिए उन्हें ऋण लेना पड़ता है।
  • किसानों को साहूकारों से आसानी से ऋण प्राप्त हो जाता है जिस कारण वह ऋण लेने के लिए उत्साहित होते हैं।
  • साहूकार भी ऋणग्रस्त किसान को आसानी से अपने चंगुल से निकलने नहीं देते। इस कारण भी किसान इस चक्र में फंसे रहते हैं।

प्रश्न 26.
ज़मींदारी प्रथा।
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता से पहले हमारे देश के ग्रामीण समाज में ज़मींदारी प्रथा चल रही थी। इस प्रथा में भूमि के बहुत ही बड़े टुकड़े का स्वामी एक व्यक्ति अर्थात् ज़मींदार होता था। वह स्वयं तो ऐश करता था तथा स्वयं कोई भी कार्य नहीं करता था। परन्तु वह अपनी भूमि छोटे किसानों को काश्त करने के लिए दे देता था। उत्पादन का थोड़ा-सा हिस्सा वह उन छोटे किसानों को दे देता था। इस प्रकार बिना परिश्रम किए वह बहुत साधन प्राप्त कर लेता था तथा ऐश करता था। स्वतन्त्रता के बाद इस प्रथा को खत्म कर दिया गया था।

प्रश्न 27.
मज़दूरी से सम्बन्धित सुधार।
उत्तर-
पंचवर्षीय योजनाओं में मजदूरी से सम्बन्धित सुधारों के मुख्य उद्देश्य थे-(i) मज़दूरों की सुरक्षा। (ii) किराए को कम करना (iii) मज़दूर की मल्कीयत। ज़मींदारी प्रथा के खात्मे के बाद भी बहुत बड़े क्षेत्र पर मज़दूरी ही चलती रही। इसलिए कई राज्यों में इससे सम्बन्धित कदम उठाए गए जिन्हें Tenancy Reforms कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर मजदूरों की सुरक्षा तथा सही किराए को निश्चित करना जिस से मज़दूर प्रत्यक्ष रूप से राज्य के सम्पर्क में आ गए। इन सुधारों को नवम्बर, 1969 तथा सितम्बर, 1970 में हुई मुख्यमन्त्रियों की बैठकों में Revive किया गया तथा यह सिफ़ारिश की गई कि सरकारी प्रयास अधिक होने चाहिएं ताकि मजदूरों की स्थिति में सुधार हो सके।

प्रश्न 28.
पंचायती राज्य संस्थाएं।
उत्तर-
हमारे देश में स्थानीय क्षेत्रों का विकास करने के लिए दो प्रकार के ढंग हैं। शहरी क्षेत्रों का विकास करने के लिए स्थानीय सरकारें होती हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए पंचायती राज्य संस्थाएं होती हैं। हमारे देश की लगभग 70% जनता ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए जो संस्थाएं बनाई गई हैं उन्हें पंचायती राज्य संस्थाएं कहते हैं। इसमें तीन स्तर होते हैं। ग्राम स्तर पर विकास करने के लिए पंचायत होती है, ब्लॉक स्तर पर विकास करने के लिए ब्लॉक समिति होती है तथा जिला स्तर पर विकास करने के लिए जिला परिषद् होती है। इन सभी के सदस्य चुने भी जाते हैं तथा मनोनीत भी होते हैं।

प्रश्न 29.
ग्राम सभा।
उत्तर-
गांव की पूरी जनसंख्या में से बालिग व्यक्ति जिस संस्था का निर्माण करते हैं उसे ग्राम सभा कहते हैं। गांव के सभी वयस्क व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं तथा यह गांव की पूर्ण जनसंख्या की एक सम्पूर्ण इकाई है। यह वह मूल इकाई है जिस पर हमारे लोकतन्त्र का ढांचा टिका हुआ है। जिस गांव की जनसंख्या 250 से अधिक होती है वहां ग्राम सभा बन सकती है। यदि एक गांव की जनसंख्या कम है तो दो गांव मिलकर ग्राम सभा बनाते हैं। ग्राम सभा में गांव का प्रत्येक वह बालिग अथवा वयस्क व्यक्ति सदस्य होता है जिसे वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है। प्रत्येक ग्राम सभा का एक प्रधान तथा कुछ सदस्य होते हैं जो 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

प्रश्न 30.
ग्राम पंचायत।
उत्तर-
प्रत्येक ग्राम सभा अपने क्षेत्र में से एक ग्राम पंचायत का चुनाव करती है। इस प्रकार ग्राम सभा एक कार्यकारी संस्था है जो ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करती है। इस में एक सरपंच तथा 5 से 13 तक पंच होते हैं। यह 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है परन्तु यदि यह अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करे तो उसे 5 वर्ष से पहले भी भंग किया जा सकता है। पंचायत में पिछड़ी श्रेणियों तथा स्त्रियों के लिए स्थान आरक्षित हैं। ग्राम पंचायत में सरकारी कर्मचारी तथा मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकते। ग्राम पंचायत गांव में सफाई, मनोरंजन, उद्योग तथा यातायात के साधनों का विकास करती है तथा गांव की समस्याएं दूर करती है।

प्रश्न 31.
ग्राम पंचायत के कार्य।
उत्तर-

  • ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है।
  • गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती है।
  • ग्राम पंचायत ग्रामीण समाज में मनोरंजन के साधन जैसे कि फिल्में, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी खुलवाने का भी प्रबन्ध करती है।
  • पंचायत लोगों को कृषि की नई तकनीकों के बारे में बताती है, नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबन्ध करती है।
  • यह गांव में कुएं, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबन्ध करती है तथा नदियों के पानी की भी व्यवस्था करती है।
  • यह गांवों का औद्योगिक विकास करने के लिए गांव में उद्योग लगवाने का भी प्रबन्ध करती है।

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प्रश्न 32.
न्याय पंचायत।
उत्तर-
गांवों के लोगों में झगड़े होते रहते हैं जिस कारण उनके झगड़ों का निपटारा करना आवश्यक होता है। इसलिए 5-10 ग्राम सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत का निर्माण किया जाता है। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगड़ों को खत्म करने में सहायता करती है। इसके सदस्य चुने जाते हैं तथा सरपंच पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन सदस्यों को पंचायत से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।

प्रश्न 33.
पंचायत समिति अथवा ब्लॉक समिति।
उत्तर-
पंचायती राज्य संस्थाओं के तीन स्तर होते हैं। सबसे निचले गांव के स्तर पर पंचायत होती है। दूसरा स्तर ब्लॉक का होता है जहां पर ब्लॉक समिति अथवा पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें, पंचायत समिति के सदस्य होते हैं तथा इन पंचायतों के प्रधान अथवा सरपंच इसके सदस्य होते हैं।

पंचायत समिति के इन सदस्यों के अतिरिक्त और सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह गांवों के विकास के कार्यक्रमों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण करने के लिए निर्देश देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

प्रश्न 34.
जिला परिषद्।
उत्तर-
पंचायती राज्य के सबसे ऊंचे स्तर पर है ज़िला परिषद् जो कि जिले के बीच आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक प्रकार की कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन चुने हुए सदस्य, उस क्षेत्र के लोक सभा, राज्य सभा तथा विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में आने वाले गांवों के विकास का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई, बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने जैसे कार्य करती है।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण परिवार क्या होता है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवार का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि कृषि प्रधान समाजों में परिवार का बहुत महत्त्व होता है। वैसे तो गांवों में परिवार के कई स्वरूप देखने को मिलते हैं परन्तु संयुक्त परिवार ही ऐसा परिवार है जो सभी ग्रामीण समाजों में पाया जाता है। भारत के बहुत-से क्षेत्रों में पितृ प्रधान संयुक्त परिवार पाए जाते हैं। इसलिए हम ग्रामीण समाज में मिलने वाले संयुक्त परिवार का वर्णन करेंगे।
संयुक्त परिवार एक ऐसा समूह है जिसमें कई पुश्तों के सदस्य इकट्ठे रहते हैं। इसका अर्थ है कि दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, उनके बच्चे, लड़कों की पत्नियां तथा बिन ब्याहे बच्चे इत्यादि सभी एक ही निवास स्थान पर रहते हैं।

कार्वे (Karve) के अनुसार, “संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह होता है जिसमें साधारणतया सभी एक ही घर में रहते हैं, जोकि साझी रसोई में पका भोजन खाते हैं तथा साझी जायदाद के मालिक होते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार से दूसरे व्यक्ति के रक्त से सम्बन्धित होते हैं।”

आई०पी० देसाई (I.P. Desai) के अनुसार, “हम उस परिवार को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमें मूल परिवार से अधिक पीढ़ियों के सदस्य शामिल होते हैं तथा यह सदस्य आपकी जायदाद, आय तथा आपसी अधिकारों और फर्जी से सम्बन्धित हों।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं को देखकर हम संयुक्त परिवार के निम्नलिखित लक्षणों के बारे में बता सकते हैं:

  1. इनका आकार बड़ा होता है।
  2. इस परिवार के सदस्यों में सहयोग की भावना होती है।
  3. परिवार में जायदाद पर सभी का समान अधिकार होता है।
  4. परिवार के सभी सदस्य एक ही निवास स्थान पर रहते हैं।
  5. परिवार के सभी सदस्यों की आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक गतिविधियां एक जैसी ही होती हैं।

देसाई का कहना है कि जिस किसी भी समाज में कृषि से सम्बन्धित पेशे बहुत अधिक होते हैं वहां पितृ प्रधान संयुक्त परिवार होते हैं। कृषि प्रधान समाजों में संयुक्त परिवार एक आर्थिक सम्पत्ति की तरह कार्य करता है। पितृ प्रधान ग्रामीण संयुक्त परिवार के बहुत-से ऐसे पहलू हैं, जैसे कि क्रियात्मक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि जो इसको शहरी परिवार व्यवस्था से अलग करते हैं।
इस तरह इस चर्चा से स्पष्ट है कि ग्रामीण समाजों में साधारणतया पितृ प्रधान संयुक्त परिवार ही पाए जाते हैं। इन परिवारों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :

ग्रामीण परिवार की विशेषताएं (Characteristics of Rural Family)-

  1. बड़ा आकार।
  2. कृषि पर निर्भरता।
  3. अधिक सामूहिक भावना अथवा एकता।
  4. अधिक अन्तर्निर्भरता तथा अनुशासन।
  5. पारिवारिक अहं का अधिक होना।
  6. पिता का अधिक अधिकार।।
  7. पारिवारिक कार्यों में अधिक हिस्सेदारी। अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे।

1. बड़ा आकार (Large in Size) ग्रामीण परिवार की सबसे पहली विशेषता यह है कि यह आकार में काफ़ी बड़े होते हैं क्योंकि इसमें कई पीढ़ियों के सदस्य एक ही जगह पर इकट्ठे रहते हैं। हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या भी इस बड़े आकार के लिए उत्तरदायी है। कई स्थानों पर तो कई परिवारों के सदस्यों की संख्या 60-70 तक भी पहुंच जाती है। परन्तु साधारणतया एक ग्रामीण परिवार में 6 से 15 तक सदस्य होते हैं जिस कारण यह आकार में बड़े होते हैं।

2. कृषि पर निर्भरता (Dependency upon Agriculture) ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है जिस कारण ग्रामीण परिवार के सभी सदस्य कृषि के कार्यों में लगे रहते हैं। उदाहरण के लिए खेत में हल चलाने का कार्य कोई और करता है तथा पशुओं का चारा काटने के लिए कोई और कार्य करता है। ग्रामीण परिवार में स्त्रियां खेतों में कार्य करती हैं जिस कारण ही ग्रामीण परिवार शहरी परिवार से अलग होता है। बहुत-सी स्त्रियां खेतों में अपने पतियों की मदद करने के लिए तथा मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए कार्य करती हैं। इसके साथ ही घर में रहने वाली स्त्रियां भी बिना किसी कार्य के नहीं बैठती हैं। वह पशुओं को चारा डालने तथा पानी पिलाने का कार्य करती रहती हैं। खेतों में इकट्ठे कार्य करने के कारण उनकी सोच तथा विचार एक जैसे ही हो जाते हैं।

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3. अधिक एकता (Greater Unity)-ग्रामीण परिवार की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता इस में एकता का होना है। ग्रामीण परिवारों में शहरी परिवारों की तुलना में अधिक एकता होती है। जैसे पति-पत्नी, दादा-पोता, माता-पिता में अधिक भावनात्मक तथा गहरे रिश्ते पाए जाते हैं। अगर ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ ध्यान से देखें तो यह पता चलता है कि ग्रामीण लोग समहों में रहना अधिक पसन्द करते हैं तथा उनमें एकता किसी खुशी अथवा दु:ख के मौके पर देखी जा सकती है। ग्रामीण परिवार के सदस्यों की इच्छाएं, विचार, कार्य, गतिविधियां तथा भावनाएं एक जैसी ही होती हैं। वह लगभग एक जैसे कार्य करते हैं तथा एक जैसा ही सोचते हैं। सदस्य के निजी जीवन का महत्त्व परिवार से कम होता है। सभी सदस्य एक ही सूत्र में बन्धे होते हैं तथा परिवार के आदर्शों और परम्पराओं के अनुसार ही अपना जीवन जीते हैं।

4. अधिक अन्तर्निर्भरता तथा अनुशासन (More Inter-dependency and Discipline)-शहरी परिवारों के सदस्यों की तुलना में ग्रामीण परिवार के सदस्य एक-दूसरे पर अधिक निर्भर होते हैं। शहरों में मनुष्य की बहुत-सी आवश्यकताएं परिवार से बाहर ही पूर्ण हो जाती हैं। परन्तु ग्रामीण परिवार में मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि आवश्यकताएं परिवार में ही पूर्ण होती हैं। इसका कारण यह है कि इन आवश्यकताओं की पूर्ति गांवों में परिवार के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं कर सकता है तथा व्यक्ति अकेले ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। जैसे गांव में कोई लड़का तथा लड़की अपने आप ही विवाह नहीं करवा सकते बल्कि उनके परिवार ही विवाह का प्रबन्ध करते हैं। अधिक अन्तर्निर्भरता के कारण परिवार के सदस्य अपने बड़ों के नियन्त्रण के अन्तर्गत तथा अनुशासन में रहते हैं। परिवार का छोटा सदस्य बड़े सदस्य की प्रत्येक बात मानता है चाहे बड़ा सदस्य गलत ही क्यों न हो।

5. पारिवारिक अहं का अधिक होना (More Pride of Family)-ग्रामीण परिवार का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण परिवार के अहं का अधिक होना है। परिवार के सदस्यों की अधिक अन्तर्निर्भता तथा एकता के कारण ग्रामीण परिवार एक ऐसी इकाई का रूप ले लेता है जिसमें एक सदस्य की जगह परिवार का अधिक महत्त्व होता है। साधारण शब्दों में ग्रामीण परिवार में परिवार का महत्त्व अधिक तथा एक सदस्य का महत्त्व कम होता है। परिवार के किसी भी सदस्य की तरफ से किया गया कोई भी अच्छा या गलत कार्य परिवार के सम्मान या कलंक का कारण बनता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य से यह आशा की जाती है कि वह परिवार के सम्मान को बरकरार रखे। पारिवारिक अहं की उदाहरण हम देख सकते हैं कि परिवार के सम्मान के लिए कई बार गांव के अलग-अलग परिवारों में झगड़े भी हो जाते हैं तथा कत्ल भी हो जाते हैं।

6. पिता के अधिक अधिकार (More Powers of Father)-ग्रामीण परिवारों में पिता के अधिकार अधिक होते हैं। पिता ही पूर्ण परिवार का कर्ता-धर्ता होता है। परिवार के सदस्यों को लिंग तथा उम्र के आधार पर कार्यों के विभाजन, बच्चों के विवाह करने, आय का ध्यान रखना, सम्पूर्ण घर को सही प्रकार से चलाना इत्यादि कई ऐसे कार्य हैं जो पिता अपने ढंग से करता है। पिता का ग्रामीण परिवार पर इतना अधिक प्रभाव होता है कि परिवार का कोई भी सदस्य उसके आगे बोल नहीं सकता है। ग्रामीण परिवार शहरी परिवारों के बिल्कुल ही विपरीत होते हैं जहां परिवार के प्रत्येक सदस्य का अपना ही महत्त्व होता है।

7. पारिवारिक कार्यों में अधिक भागीदारी (More participation in Household Affairs)-ग्रामीण परिवार की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि परिवार के सभी सदस्य परिवार के कार्यों में गहरे रूप से शामिल होते हैं। कृषि ढांचा होने के कारण परिवार के सभी सदस्य अपना अधिकतर समय एक-दूसरे के साथ व्यतीत करते हैं जिस कारण परिवार के सदस्य घर की प्रत्येक गतिविधि तथा कार्य में भाग लेते हैं। दिन के समय खेतों में इकट्ठे कार्य करने के कारण तथा रात के समय घर के कार्य इकट्ठे करने के कारण सभी सदस्य एक-दूसरे के बहुत ही नज़दीक होते हैं।

इन विशेषताओं के अतिरिक्त ग्रामीण परिवार की और भी विशेषताएं हो सकती हैं जैसे कि :

  1. धर्म का अधिक महत्त्व।
  2. स्त्रियों की निम्न स्थिति।
  3. पूर्वजों की पूजा।
  4. संयुक्त परिवारों का महत्त्व। इस प्रकार ऊपर ग्रामीण परिवार की विशेषताओं का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 2.
ग्रामीण परिवारवाद के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो।
उत्तर-
ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवार एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है। गांवों में मिलने वाली प्रत्येक प्रकार की संस्था के ऊपर ग्रामीण परिवार का बहुत अधिक प्रभाव होता है। इस कारण ही ग्रामीण समाज में परिवार को अधिक महत्त्व प्राप्त होता है तथा व्यक्ति को कम महत्त्व प्राप्त होता है। इसको ही परिवारवाद कहते हैं। जब एक या दो व्यक्तियों की जगह पूर्ण परिवार को महत्त्व दिया जाए तो इसको परिवारवाद कहते हैं। ___ समाजशास्त्रियों का कहना है कि कृषि प्रधान समाजों में सामाजिक तथा राजनीतिक संगठनों में परिवार के गुण पाए जाते हैं जोकि ग्रामीण समाज की प्राथमिक तथा सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है। पारिवारिक गुणों के सामाजिक, राजनीतिक संगठनों पर प्रभाव को ही परिवारवाद कहा जाता है।

सोरोकिन (Sorokin) के अनुसार, “क्योंकि परिवार ग्रामीण समाज की प्राथमिक सामाजिक संस्था है, इसलिए स्वाभाविक ही यह आशा की जाती है कि कृषि समूहों के ऊपर सामाजिक संस्थाओं तथा ग्रामीण परिवारों की विशेषताओं की छाप हो। दूसरे शब्दों में ग्रामीण समाज के सभी सामाजिक संगठनों के प्राथमिक सामाजिक सम्बन्धों के नमूने, ग्रामीण पारिवारिक सम्बन्धों के अनुसार बने होते हैं। परिवारवाद शब्द ऐसे ही सामाजिक संगठनों के लिए प्रयोग किया गया है।”
इस प्रकार जब गांव की राजनीतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के ऊपर परिवार का प्रभाव हो तो इसको परिवारवाद कहते हैं। परिवारवाद की विशेषताएं इस प्रकार हैं :

1. परिवार एक आदर्श के रूप में (Family in the form of an Ideal)-परिवार को समाज के एक आदर्श के रूप में देखा जाता है। परिवार में नैतिक माप दण्ड, धार्मिक विश्वास, सामाजिक धारणाएं होती हैं तथा अगर कोई इनको तोड़ने तथा परिवार की स्थिरता को कमजोर करने की कोशिश करता है तो उसकी निन्दा की जाती है।

2. परिवार सामाजिक उत्तरदायित्व की इकाई (Family a unit of Social Responsibility)-किसी भी ग्रामीण समाज की प्राथमिक इकाई परिवार होता है। इसकी सभी ज़िम्मेदारियां परिवार ही निभाता है तथा परिवार ही सामूहिक रूप से कर अदा करता है। गांव में किसी व्यक्ति की पहचान भी उसके परिवार से ही होती है। किसी भी व्यक्ति को निजी तौर पर पहचाना नहीं जाता है।

3. परिवार का राजनीतिक संस्थाओं पर प्रभाव (Effect of family on Political Institutions)-कृषि प्रधान समाजों में राजनीतिक संस्थाओं का रूप भी ग्रामीण परिवारों जैसा ही होता है। शासक तथा आम लोगों के बीच का रिश्ता परिवार के मुखिया तथा सदस्यों के बीच के रिश्ते जैसा होता है। राजा, शासक इत्यादि को पिता प्रधान परिवार के मुखिया के जैसा ही समझा जाता है। गांव की राजनीतिक गतिविधियों में परिवार का मुखिया ही परिवार का प्रतिनिधि होता है। परिवार जहां पर भी कह दे सदस्य वहीं पर ही वोट भी डालते हैं।

4. सहयोग से भरपूर रिश्ते (Relations full of Co-operation)-शहरी समाजों में रिश्ते सहयोग वाले नहीं बल्कि समझौते पर आधारित होते हैं। व्यक्ति कार्य खत्म होने के बाद रिश्ता भी खत्म कर देता है। परन्तु कृषि प्रधान तथा ग्रामीण समाजों में रिश्ते समझौते पर आधारित न होकर बल्कि सहयोग, हमदर्दी, प्यार तथा मेल मिलाप वाले होते हैं। इकट्ठे रहने, इकट्ठे कार्य करने, एक जैसे विचारों तथा विश्वासों को मानने तथा परिवार के प्रति निष्ठा और एकता के कारण सहयोग से भरपूर रिश्ते सामने आते हैं।

5. परिवार-उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन की इकाई (Family a unit of Production, Consumption and Exchange) ग्रामीण समाज के आर्थिक ढांचे में भी ग्रामीण परिवार के गुण पाए जाते हैं। ग्रामीण परिवार में ही उत्पादन होता है तथा उपभोग भी। इसका अर्थ है कि परिवार की आवश्यकताओं के अनुसार ही उत्पादन किया जाता है तथा परिवार ही उस उत्पादन का उपभोग करता है। गांव में विभाजन बहुत ही साधारण तरीके से होता है। पैसे के लेन-देन की जगह चीज़ों का लेन-देन कर लिया जाता है। परिवार ही विनिमय का आधार होता है।

6. बहुत अधिक प्रथाएं (Many Customs)-कृषि प्रधान समाजों में सभी ही ग्रामीण जीवन की प्रक्रियाएं प्रथाओं के इर्द-गिर्द ही चलती हैं। जीवन के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित प्रथाएं ग्रामीण समाज में मौजूद होती हैं तथा यह व्यक्ति के जीवन में हरेक पक्ष को प्रभावित करती रहती हैं।

7. पितृ पूजा की प्रमुखता (Dominance of Ancestoral Worship)-ग्रामीण समाज में धर्म का बहुत अधिक महत्त्व होता है। परिवार के सभी सदस्यों को परिवार की प्रथाओं, परम्पराओं इत्यादि को मानना ही पड़ता है। ग्रामीण परिवारों में पूजा बहुत होती है। बुजुर्गों की पूजा ग्रामीण समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। लोग देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ पूर्वजों की पूजा भी कर लेते हैं।
इस प्रकार जिन समाजों में परिवारवाद की प्रधानता होती है वहां परिवार की अपनी ही कुछ विशेषताएं होती हैं।

प्रश्न 3.
ग्रामीण विवाह क्या होता है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
साधारणतया किसी भी समाज में विवाह करवाना आवश्यक समझा जाता है क्योंकि समाज को आगे बढ़ाने के लिए विवाह करवाना आवश्यक है। विवाह के बिना पैदा हई सन्तान को समाज की तरफ से मान्यता प्राप्त नहीं होती है। कृषि प्रधान समाजों में तो इसको बहुत ही आवश्यक समझा जाता है। ग्रामीण समाजों में बच्चों का विवाह करना आवश्यक समझा जाता है। लड़की को तो एक बोझ ही समझा जाता है। इस कारण ही लड़की का विवाह जल्दी कर दिया जाता है। इस प्रकार विवाह पुरुष तथा स्त्री के बीच बनाया गया रिश्ता है जिसका उद्देश्य परिवार बनाना, घर बसाना, बच्चे पैदा करना तथा समाज को आगे बढ़ाना है।।

विवाह व्यक्ति के जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। भारतीय समाज काफ़ी हद तक एक ग्रामीण समाज है जिस कारण ग्रामीण विवाह में विवाह को पारिवारिक मामला समझा जाता है। विवाह से दो परिवार इकट्ठे होते हैं तथा लड़का-लड़की एक दूसरे से सम्बन्ध बनाते हैं। ग्रामीण समाज में गोत्र से बाहर विवाह करवाना तथा जाति के अंदर विवाह करवाना आवश्यक समझा जाता है। विवाह से दो परिवारों की स्थिति का पता चलता है।
ग्रामीण समाजों में विवाह को एक समझौता नहीं बल्कि धार्मिक संस्कार समझा जाता है। गांवों में विवाह परम्परागत ढंग से तथा पूर्ण रीति-रिवाजों से किए जाते हैं। विवाह से पहले देवी-देवताओं की पूजा होती है। लड़की के घर बारात जाती है, विवाह से सम्बन्धित कई प्रकार की रस्में पूर्ण की जाती हैं तथा विवाह सम्पन्न होता है। चाहे शहरों में रस्में कम होती जा रही हैं परन्तु ग्रामीण समाजों में विवाह पूर्ण संस्कारों तथा रीति-रिवाजों के साथ होते हैं। ग्रामीण विवाह में शहरों जैसी तड़क-भड़क (Pomp and Show) तो नज़र नहीं आती परन्तु यह होता पूर्ण परम्परा से है।
इस प्रकार ग्रामीण समाजों में जो विवाह पूर्ण धार्मिक संस्कारों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं इत्यादि के साथ होता है उसको ग्रामीण विवाह का नाम दिया जाता है। इस विवाह से न केवल धर्म की पालना की जाती है बल्कि यौन सन्तुष्टि तथा सन्तान पैदा करना भी इसके उद्देश्य हैं।

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ग्रामीण विवाह की विशेषताएँ (Characteristics of Rural Marriage)-

1. धार्मिक संस्कार (Religious Sacrament) ग्रामीण समाजों में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि इसका उद्देश्य धार्मिक होता है। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा हुआ है कि व्यक्ति विवाह करके अपनी गृहस्थी बसाएगा, सन्तान पैदा करके समाज को आगे बढ़ाएगा तथा अपने ऋण उतारेगा। व्यक्ति अपने ऋण केवल विवाह करके तथा सन्तान पैदा करके ही उतार सकता है। ग्रामीण समाज में व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक कई संस्कारों में से गुजरना पड़ता है। इस कारण ही इसे धार्मिक संस्कार माना जाता है।

2. धर्म से सम्बन्धित (Related with Religion)-ग्रामीण विवाह हमेशा धर्म से सम्बन्धित होता है क्योंकि ग्रामीण विवाह पूर्ण धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ पूर्ण किया जाता है। चाहे शहरों में धार्मिक रीति-रिवाज कम हो गए हैं परन्तु ग्रामीण समाजों में यह अभी भी चल रहे हैं। धार्मिक रीति-रिवाज पूर्ण करने के कारण व्यक्ति के बहुत-से कर्तव्य बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति ने अपने जीवन में कई ऋण उतारने हैं तथा कई प्रकार के यज्ञ करने हैं। यज्ञ पूर्ण करने के लिए विवाह करना आवश्यक होता है क्योंकि विवाह के बिना व्यक्ति यज्ञ नहीं कर सकता है। इस प्रकार ग्रामीण विवाह धर्म से सम्बन्धित होता है।

3. परम्पराओं से विवाह करना (Marriage to be done with full Traditions)-ग्रामीण समाज में परम्परागत रूप से तथा पूर्ण परम्पराएं निभा कर विवाह किया जाता है। परम्पराएं जैसे कि लड़के का घोड़ी पर चढ़ कर बारात लेकर लड़की के घर जाना, बारातियों का नाचते हुए जाना, लड़की से फेरे लेने, लड़की का डोली में बैठकर लड़के के घर जाना, वहां कई प्रकार की रस्में पूर्ण करना इत्यादि हैं जिनसे कि ग्रामीण विवाह पूर्ण होता है। ये प्रथाएं तथा परम्पराएं न केवल ग्रामीण विवाह में बल्कि हिंदू विवाह में भी मौजूद होती हैं। इन परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों को पूर्ण किए बिना ग्रामीण समाजों में विवाह को पूर्ण नहीं समझा जाता है।

4. विवाह टूट नहीं सकता है (Marriage cannot be Broken)-ग्रामीण समाज में विवाह को समझौता नहीं बल्कि धार्मिक संस्कार समझा जाता है। अगर इसको समझौता समझा जाए तो इसको कभी भी तोड़ा जा सकता है जैसे कि शहरी समाजों में होता है। परन्तु ग्रामीण समाजों में विवाह को धार्मिक संस्कार समझा जाता है जिसको कभी भी तोड़ा नहीं जा सकता। विवाह को तो सात जन्मों का बन्धन समझा जाता है जो कि कभी भी तोड़ा नहीं जा सकता।

5. विवाह आवश्यक है (Marriage is Necessary) ग्रामीण समाजों में विवाह को बहुत ही आवश्यक समझा जाता है क्योंकि बिन ब्याहे बच्चों को माता-पिता पर बोझ समझा जाता है। विशेषतया लड़कियों के लिए तो विवाह बहुत ही आवश्यक है क्योंकि अगर लड़की का विवाह नहीं होता तो यह समझा जाता है कि माता-पिता अपना फर्ज़ पूर्ण नहीं कर रहे हैं। ग्रामीण समाजों में यह समझा जाता है कि स्त्रियों के लिए मां बनना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि इसके साथ ही समाज आगे चलता है। लड़के के विवाह से लड़की का विवाह आवश्यक समझा जाता है क्योंकि लड़के के चाल चलन के बारे में कोई डर नहीं होता परन्तु लड़की के बारे में यह डर होता है तथा लड़की के गलत चाल चलन से परिवार की स्थिति निम्न हो सकती है।

6. माता-पिता द्वारा व्यवस्थित विवाह (Arranged marriage by Parents)-ग्रामीण समाजों में विवाह को एक पुरुष तथा स्त्री का मेल नहीं बल्कि दो परिवारों, दो समूहों अथवा दो गांवों का मेल समझा जाता है। इस कारण माता-पिता अपने बच्चे का साथी ढूंढ़ने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विवाह निश्चित करने के लिए परिवार के आकार, परिवार की स्थिति, नातेदारी तथा परिवार की आर्थिक स्थिति को बहुत महत्त्व दिया जाता है। इसके साथसाथ बच्चे के निजी गुणों को भी ध्यान में रखा जाता है। अगर बच्चे में कोई व्यक्तिगत कमी है तो उसका विवाह करने में काफ़ी मुश्किल आती है। माता-पिता ही बच्चे का विवाह करते हैं तथा कोशिश यह ही होती है कि विवाह धूमधाम से किया जाए।

7. धार्मिक व्यक्ति की भूमिका (Role of Priest)—विवाह में पण्डित की बहुत बड़ी भूमिका होती है। लगभग सभी समाजों में ही विवाह को निश्चित करने से पहले लड़के तथा लड़की की जन्म पत्री पण्डित को दिखाई जाती है। अगर कुण्डली मिलती है तो विवाह पक्का कर दिया जाता है। परन्तु अगर कुण्डली नहीं मिलती है तो विवाह पक्का नहीं किया जाता है। विवाह पक्का करने के बाद शगुन लेने-देने, मंगनी के समय तथा विवाह करवाने में पण्डित की बहुत बड़ी भूमिका होती है क्योंकि पण्डित ने ही सभी धार्मिक क्रियाओं को पूर्ण करने के बाद ही विवाह करवाना है। पण्डित मन्त्र पढ़कर तथा पूर्ण विधि विधान से विवाह करवाता है। इस प्रकार ग्रामीण विवाह में पण्डित या धार्मिक व्यक्ति की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

इसके साथ ही एक महत्त्वपूर्ण चीज़ यह है कि गांव में मंगनी के बाद तथा विवाह से पहले लड़के लड़की को मिलने की इजाजत नहीं होती है। चाहे शहरों में यह बात आम हो गई है। इस समय को बहुत ही नाजुक समझा जाता है क्योंकि लड़का-लड़की में किसी बात पर तकरार होने पर रिश्ता टूट भी सकता है। इस तरह ग्रामीण समाज में विवाह से पहले लड़का तथा लड़की पर बहुत पाबन्दियां होती हैं।

प्रश्न 4.
ग्रामीण समाज में साथी के चुनाव के कौन-कौन से नियम हैं ? उनका वर्णन करो।
उत्तर-
किसी भी समाज में बुजुर्ग माता-पिता के सामने सबसे बड़ा प्रश्न अपने बच्चों के विवाह करने का होता है। विवाह के लिए साथी की आवश्यकता होती है तथा साथी का चुनाव ही सबसे बड़ी मुश्किल होती है। साथी चुनाव का अर्थ होने वाले जीवन-साथी के चुनाव से है। साथी के चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव के क्षेत्र का निर्धारण हो कि कहां पर विवाह करना है तथा कहां पर विवाह नहीं करना है। साथी के चुनाव के लिए हमारे समाजों में कुछ नियम बनाए गए हैं कि गोत्र, सपिण्ड इत्यादि में विवाह नहीं करना है परन्तु जाति अथवा उपजाति के अन्दर ही विवाह करना है। वैसे तो नियम प्रत्येक समाज के अलग-अलग होते हैं तथा यह समय तथा समाज के अनुसार बदलते रहते हैं। साथी का चुनाव व्यक्ति की इच्छा पर ही आधारित नहीं होता बल्कि समाज द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार . भी होता है। इसलिए कपाडिया (Kapadia) ने साथी के चुनाव को तीन भागों में बांटा है

  1. चुनाव का क्षेत्र (The field of Selection)
  2. चुनाव करने के लिए दूसरा पक्ष (Parties for Selection)
  3. चुनाव की कसौटियां (Criteria of Selection)! अब हम इसका वर्णन विस्तार से करेंगे

1. चुनाव का क्षेत्र (Field of Selection)-हिन्दू समाज में विवाह करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जैसे कि अन्तर्विवाह तथा बहिर्विवाह। इन नियमों को मानने के साथ विवाह का क्षेत्र सीमित हो जाता है। अन्तर्विवाह तथा बहिर्विवाह के नियम इस प्रकार हैं

(i) अन्तर्विवाह (Endogamy)-अन्तर्विवाह के नियम के द्वारा व्यक्ति को अपनी जाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति आगे उपजातियों में (Sub-caste) बंटी हुई थी। व्यक्ति को उपजाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति प्रथा के समय अन्तर्विवाह के इस नियम को बहुत सख्ती से लागू किया गया था। यदि कोई व्यक्ति इस नियम की उल्लंघना करता था तो उसको जाति में से बाहर निकाल दिया जाता था व उससे हर तरह के सम्बन्ध तोड़ लिए जाते थे। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार समाज को चार जातियों में बांटा हुआ था तथा ये जातियां आगे उप-जातियों में बंटी हुई थीं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी उप-जाति में ही विवाह करवाता था। होइबल (Hoebal) के अनुसार, “आन्तरिक विवाह एक सामाजिक नियम है जो यह मांग करता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक समूह में जिसका वह सदस्य है विवाह करवाए।”

अन्तर्विवाह के भारत में पाए जाने वाले रूप(1) कबाइली अन्तर्विवाह। (2) जाति अन्तर्विवाह। (3) वर्ग-अन्तर्विवाह। (4) उप-जाति अन्तर्विवाह। (5) नस्ली अन्तर्विवाह।

(ii) बहिर्विवाह (Exogamy)-विवाह की संस्था एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। कोई भी समाज किसी जोड़े को बिना विवाह के पति-पत्नी के सम्बन्धों को स्थापित करने की स्वीकृति नहीं देता। इसी कारण प्रत्येक समाज विवाह स्थापित करने के लिए कुछ नियम बना लेता है। सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य साथी का चुनाव करना होता है। बहिर्विवाह में भी साथी के चुनाव करने का नियम होता है। कई समाजों में जिन व्यक्तियों में खून के सम्बन्ध होते हैं या अन्य किसी किस्म से वह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों तो ऐसी अवस्था में उन्हें विवाह करने की स्वीकृति नहीं दी जाती। इस प्रकार बहिर्विवाह का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति को अपने समूह में विवाह करवाने की मनाही होती है। एक ही माता-पिता के बच्चों को आपस में विवाह करने से रोका जाता है। मुसलमानों में माता-पिता के रिश्तेदारों में विवाह करने की इजाज़त दी जाती है। इंग्लैंड के रोमन कैथोलिक चर्च (Roman Catholic Church) में व्यक्ति को अपनी पत्नी की मौत के पश्चात् अपनी साली से विवाह करने की आज्ञा नहीं दी जाती। ऑस्ट्रेलिया में लड़का अपने पिता की पत्नी से विवाह कर सकता है यदि वह उसकी सगी मां नहीं है।

बहिर्विवाह के नियम अनुसार व्यक्ति को अपनी जाति, गोत्र, स्पर्वर, सपिण्ड आदि में विवाह करवाने की आज्ञा नहीं दी जाती। इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं

  • गोत्र बहिर्विवाह।
  • स्पर्वर बहिर्विवाह।
  • सपिण्ड बहिर्विवाह।
  • गांव से बहिर्विवाह।
  • टोटम बहिर्विवाह।

2. चुनाव करने के लिए दूसरा पक्ष (Parties for Selection)–विवाह करने के लिए साथी के चुनाव के क्षेत्र के नियम तो समाज ने बना दिए हैं परन्तु विवाह करने के लिए दूसरे पक्ष का होना भी आवश्यक है। दूसरा पक्ष ढूंढ़ने के लिए कई प्रकार के ढंग प्रचलित हैं। सबसे पहला ढंग तो यह है कि विवाह के लिए साथी का चुनाव लड़के अथवा लड़की के रिश्तेदार करें। वह अपने लड़के या लड़की के लिए रिश्ते ढूंढें, घर-बार देखने के बाद ही रिश्ता पक्का करें। इस को व्यवस्थित विवाह (Arranged marriage) भी कहा जाता है। दूसरी प्रकार में विवाह के लिए साथी का चुनाव अपने मित्रों, रिश्तेदारों की सलाह से किया जाता है। भारतीय समाज की उच्च श्रेणी में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। तीसरी प्रकार में लड़का या लड़की अपनी पसन्द का साथी चुनते हैं तथा उससे विवाह करते हैं। इसको प्रेम विवाह (Love Marriage) भी कहा जाता है।

विवाह के साथी का चुनाव करने में रिश्तेदार तथा मित्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो विवाह के लिए माता-पिता किसी मध्यस्थ अथवा रिश्तेदार को भी कह देते हैं ताकि वह उनके बच्चों के लिए साथी चुन सके। नाई अथवा ब्राह्मण भी इस समय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वह अलग-अलग गांवों में जाते रहते हैं तथा उनको गांव के बिन ब्याहे लड़के तथा लड़कियों के बारे में पता होता है। घर के मर्दो का इस सम्बन्ध में निर्णय अन्तिम होता है। अगर कोई मध्यस्थ विवाह करवाने में सफल हो जाता है तो उसको दोनों परिवारों की तरफ से ईनाम दिया जाता है। क्योंकि ग्रामीण समाजों में गांव में विवाह करवाना मना होता है इसलिए वह गांव, गोत्र, स्पर्वर इत्यादि से बाहर ही रिश्ता ढूंढ़ते हैं। यह प्रक्रिया काफ़ी समय तक चलती रहती है। चाहे आजकल मध्यस्थों का महत्त्व कम हो गया है तथा यातायात और संचार के साधनों के बढ़ने के कारण माता-पिता अपने आप ही रिश्ता तथा उनके बारे में पूछताछ करने लग गए हैं। · वैसे तो आजकल के समय में माता-पिता बच्चे से पूछ कर उसकी पसन्द के अनुसार विवाह करवाना ही पसन्द करते हैं। आजकल लड़का तथा लड़की अपनी मर्जी से विवाह करवाना ही पसन्द करते हैं जिस कारण प्रेम विवाहों का चलन भी बढ़ रहा है। प्रेम विवाह के कारण अन्तर्जातीय विवाह आगे आ रहे हैं।

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3. चुनाव की कसौटियां (Criteria of Selection)-यह ठीक है कि विवाह के लिए साथी का चुनाव करने के नियम भी हैं तथा पक्ष भी हैं परन्तु इन पक्षों को निश्चित करने के लिए कुछ कसौटियां भी होती हैं। ये कसौटियां दूसरे पक्ष से सम्बन्धित होती हैं। जैसे कि दूसरे पक्ष का परिवार, व्यक्तिगत, गुण, दहेज इत्यादि। उनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) परिवार (Family)—प्राचीन समय में विवाह करने के लिए लड़का-लड़की को कम बल्कि परिवार को अधिक महत्त्व दिया जाता था। यह देखा जाता था कि परिवार अपने धार्मिक कर्तव्यों को पूर्ण कर रहा है अथवा नहीं। अगर परिवार अपने धार्मिक कर्त्तव्यों को पूर्ण कर रहा होता था तो उस परिवार को विवाह के लिए सही माना जाता था तथा विवाह हो जाता था नहीं तो उस परिवार को विवाह के लिए शुभ नहीं समझा जाता था। इसके साथ ही इस बात का ध्यान भी रखा जाता था कि परिवार की समाज में कोई स्थिति भी हो।

ग्रामीण समाजों में विवाह को केवल लड़के तथा लड़की के बीच ही रिश्ता नहीं समझा जाता बल्कि इसको दो परिवारों, दो समूहों तथा दो गांवों में रिश्ता समझा जाता है। परिवार के बड़े बुजुर्ग विवाह में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लड़के लड़की की अपनी पसन्द को बहुत ही कम महत्त्व दिया जाता है। विवाह केवल सामाजिक तथा धार्मिक कर्त्तव्य पूर्ण करने के लिए किए जाते हैं। इस कारण ही विवाह में व्यक्तिगत पसन्द का महत्त्व कम तथा बड़े बुजुर्गों की मर्जी अधिक होती है। विवाह के लिए साथी के चुनाव के समय दूसरे पक्ष के परिवार की सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, परिवार का आकार, परिवार की रिश्तेदारी इत्यादि को मुख्य रखा जाता है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि दूसरे पक्ष के पास कृषि योग्य कितनी भूमि है।

(ii) साथी के व्यक्तिगत गुण (Individual abilities of the Mate)-जीवन साथी के चुनाव के लिए परिवार देखने के साथ-साथ साथी के व्यक्तिगत गुणों को भी देखा जाता है। आजकल के समय में ग्रामीण समाजों में भी बच्चे पढ़-लिख रहे हैं जिस कारण वह होने वाले साथी के व्यक्तिगत गुणों को भी बहुत महत्त्व देते हैं। यह गुण हैं जैसे कि साथी का चरित्र, उसकी उम्र, शिक्षा का स्तर, आय, रंग, ऊंचाई, सुन्दरता, स्वभाव, घर के कार्य करने आना इत्यादि। अगर लड़का ढूंढ़ना होता है तो यह देखा जाता है कि वह कोई नशा तो नहीं करता है अथवा उसकी दोस्ती ठीक है अथवा नहीं। अगर लड़के अथवा लड़की की सुन्दरता कम है अथवा रंग काला है, अपाहिज है, बहुत गुस्सा आता है तो ऐसे हालातों में साथी ढूंढ़ने के मौके बहुत कम हो जाते हैं।

(iii) दहेज (Dowry)-परम्परागत भारतीय समाज में विवाह के समय लड़की को दहेज देने की प्रथा चली आ रही है। विवाह के समय माता-पिता लड़की को लड़के के घर भेजते समय लड़की, लड़के तथा लड़के के माता-पिता को कुछ उपहार भी देते हैं। इन उपहारों को ही दहेज का नाम दिया जाता है। हरेक परिवार अपनी आर्थिक स्थिति तथा लड़के वालों की सामाजिक स्थिति के अनुसार दहेज देता है। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है वह अधिक दहेज देते हैं तथा जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है वह कम दहेज देते हैं।

आजकल के समय में यह प्रथा काफ़ी बढ़ गई है तथा यह सम्पूर्ण भारतीय समाज में समान रूप से प्रचलित है। चाहे 1961 के Dowry Prohibition Act के अनुसार दहेज लेना तथा देना गैर-कानूनी है तथा दहेज लेने तथा देने वाले को सज़ा भी हो सकती है परन्तु यह प्रथा ज़ोर-शोर से चल रही है। इस प्रथा के कारण साथी के चुनाव का क्षेत्र काफ़ी सीमित हो गया है। इसका कारण यह है कि सभी लोग अधिक-से-अधिक दहेज प्राप्त करना चाहते हैं तथा सभी लोग अधिक दहेज दे नहीं सकते हैं। इस दहेज प्रथा के कारण सैकड़ों लड़कियां प्रत्येक वर्ष मर जाती हैं। ग्रामीण समाजों में दहेज लेने का चलन भी काफ़ी अधिक है। साथी का चुनाव करते समय यह देखा जाता है कि कौन-सा परिवार कितना दहेज दे सकता है। . इस प्रकार इन आधारों के आधार पर ग्रामीण समाजों में साथी का चुनाव किया जाता है। चाहे अब बढ़ती शिक्षा के कारण, कई प्रकार के कानूनों के कारण तथा पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण इन नियमों का महत्त्व कम हो रहा है तथा अन्तर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं परन्तु फिर भी यह नियम विवाह के समय बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 5.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
अथवा ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
अगर हम ग्रामीण समाज का अध्ययन करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में समझना पड़ेगा क्योंकि ग्रामीण समाजों में सम्बन्धों के आर्थिक आधार का बहुत महत्त्व है। ग्रामीण समाज में भूमि को बहुत महत्त्व दिया जाता है क्योंकि ग्रामीण आर्थिकता का मुख्य आधार ही भूमि होती है। हमारे देश की लगभग 70% के करीब जनसंख्या कृषि अथवा कृषि से सम्बन्धित कार्यों में लगी हुई है तथा कृषि प्रत्यक्ष रूप से भूमि से सम्बन्धित कार्यों में लगी हुई है। भूमि का ग्रामीण समाज की आर्थिक तथा सामाजिक संरचना पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

देश की अधिकतर जनसंख्या के कृषि में लगे होने के कारण हमारे देश की आर्थिकता भी मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भर करती है। देश की लगभग आधी आय कृषि से सम्बन्धित कार्यों से ही आती है। चाहे गांवों में और बहुत-से पेशे होते हैं परन्तु वह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से सम्बन्धित होते हैं। गांव की कई जातियां कई और जातियों को अपनी सेवाएँ भी देती हैं तथा उसकी एवज़ में उन्हें पैसा अथवा उत्पादन में से हिस्सा मिलता है। गांवों में अगर शारीरिक तौर पर कार्य करते हैं तो वह भी कृषि से ही सम्बन्धित होते हैं जैसे कि कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाले मजदूर। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि गांवों में लगभग सभी कार्य कृषि से सम्बन्धित होते हैं इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएं भी कृषि अथवा भूमि से सम्बन्धित होती हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :

1. मुख्य पेशा-कृषि (Main occupation-Agriculture) हमारे देश में ग्रामीण लोगों का मुख्य पेशा कृषि है तथा कृषि ही शहरी तथा ग्रामीण समाजों की आर्थिकता का मुख्य अन्तर है। साधारण ग्रामीण लोगों के लिए जीने का ढंग भी कृषि है। ग्रामीण लोगों के रहने सहने, रोज़ाना के कार्य, विचार, आदतें, सोच इत्यादि सभी कुछ कृषि पर आधारित होते हैं। ग्रामीण समाज में उत्पादन का मुख्य साधन कृषि ही है तथा भूमि को सामाजिक स्थिति का निर्धारण समझा जाता है। भूमि के साथ-साथ पशुओं को भी सम्पत्ति के रूप में गिना जाता है। कई प्रकार के और पेशे जैसे कि बढ़ई, लोहार, दस्तकारी के कार्य इत्यादि भी ग्रामीण समाज की आर्थिकता का हिस्सा हैं।

2. उत्पादन तथा उत्पादन की विधि (Production and Method of Production)—चाहे प्राचीन समय में ग्रामीण समाजों में कृषि का कार्य हल तथा बैलों की मदद से होता था परन्तु आजकल कृषि का कार्य ट्रैक्टरों, थ्रेशरों, कम्बाइनों इत्यादि से होता है। किसान गेहूँ, ज्वार, मकई, चावल, कपास इत्यादि का उत्पादन करते हैं परन्तु अब किसान और कई प्रकार की फसलें उगाने लग गए हैं। इनके साथ ही वह कई प्रकार की सब्जियां तथा फल भी उत्पन्न करने लग गए हैं। लोग अब सहायक पेशे जैसे कि पिगरी, पोलट्री, डेयरी, मछली पालन इत्यादि जैसे कार्य कर रहे हैं। सिंचाई के लिए नहरों, ट्यूबवैल इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो बहुत-से किसान अपनी भूमि पर कृषि करते हैं परन्तु कई किसान अपनी भूमि को और किसानों को ठेके पर कृषि करने के लिए दे देते हैं। हरित क्रान्ति से पहले भूमि से उत्पादन काफ़ी कम था परन्तु हरित क्रान्ति के आने के बाद नए बीजों तथा उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन काफ़ी बढ़ गया है। अब किसान रासायनिक उर्वरकों तथा नए बीजों का प्रयोग कर रहे हैं।

3. भूमि की मल्कियत (Ownership of Land)—प्राचीन समय में भारत में जमींदारी, रैय्यतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रथाएं प्रचलित थीं जिन के अनुसार किसान केवल भूमि पर कृषि करते थे। वह भूमि के मालिक नहीं थे। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् इन प्रथाओं को खत्म कर दिया गया। अब किसान स्वयं ही मालिक तथा स्वयं ही काश्तकार हैं। बड़े किसान बहुत ही कम जनसंख्या में हैं जिनके पास बहुत अधिक भूमि है। सीमान्त अथवा छोटे किसानों की संख्या बहुत अधिक है जिनके पास भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हैं। जनसंख्या के बढ़ने के कारण किसानों की भूमि उनके बच्चों में बँटती जा रही है। कई किसानों के पास तो इतनी कम भूमि रह गई है कि उनके लिए अपने जीवन का निर्वाह करना मुश्किल हो गया है। इनके लिए सरकार ने बहुत-से कार्यक्रम चलाए हैं ताकि उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके।

4. अधिक जनसंख्या (More Population)-ग्रामीण समाजों में बहुत ही अधिक जनसंख्या होती है। हमारे देश की लगभग 2/3 जनसंख्या गांवों में रहती है। सम्पूर्ण संसार में जनसंख्या के हिसाब से हमारा देश चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। क्योंकि बहुत-से लोग ग्रामीण समाजों में रहते हैं तथा कृषि पर निर्भर करते हैं इसलिए देश की आर्थिकता भी कृषि पर निर्भर करती है। हमारे देश की लगभग आधी आय कृषि अथवा उससे सम्बन्धित पेशों पर निर्भर करती है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण अलग-अलग क्षेत्रों में विकास हमें न के बराबर ही नज़र आता है।

5. ऋण (Indebtedness)-भारतीय ग्रामीण समाज की आर्थिकता की एक और मुख्य विशेषता किसानों के ऊपर ऋण का होना है। किसानों के ऊपर ऋण होने के बहुत-से कारण है। ग्रामीण परिवार आकार में बड़े होते हैं। उनकी आय तो चाहे कम होती है परन्तु बड़ा परिवार होने के कारण खर्चे बहुत ही अधिक होते हैं। खर्चे पूर्ण करने के लिए उनको साहूकारों से ब्याज पर पैसा लेना पड़ता है जिस कारण वह ऋणग्रस्त हो जाते हैं। आजकल कृषि करने में व्यय भी काफ़ी बढ़ गया है जैसे आधुनिक उर्वरकों तथा नए बीजों के मूल्य बढ़ गए हैं, बिजली के न होने के कारण उन्हें डीज़ल के पंपों से पानी का प्रबन्ध करना पड़ता है, वर्षा न होने के कारण कृषि का खर्चा बढ़ जाता है, फसल के अच्छे दामों पर न बिकने के कारण घाटा अथवा उत्पादन की गुणवत्ता अच्छी न होने के कारण कम मूल्य मिलना इत्यादि ऐसे कारण है जिन की वजह से किसान अपने खर्चे पूर्ण नहीं कर सकता है। इस कारण उनको बैंकों से अथवा साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है। वह ब्याज अधिक होने के कारण ऋण वापिस नहीं कर सकते तथा धीरे-धीरे ऋण में फँस जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा इत्यादि जैसे प्रदेशों में किसानों में ऋण के कारण आत्म हत्या करने की प्रवृत्ति तथा संख्या बढ़ रही है। इस प्रकार ग्रामीण आर्थिकता में ऋण एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

6. ग्रामीण उद्योग (Rural Industries)—ग्रामीण आर्थिकता का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू है ग्रामीण उद्योगों का होना। यह ग्रामीण उद्योग छोटे-छोटे होते हैं। प्राचीन समय में छोटे उद्योग तो जाति पर आधारित होते थे परन्तु आजकल के ग्रामीण उद्योग विज्ञान पर आधारित होते हैं। जनसंख्या के बढ़ने के कारण तथा गरीबों की बढ़ रही जनसंख्या को देखते हुए सरकार भी ग्रामीण समाजों में लोगों को स्वैः रोज़गार देने के लिए छोटे तथा लघु उद्योगों को प्रोत्साहित कर रही है। दरियां, खेस तथा और कपड़ों की बुनाई, सिलाई, कढ़ाई तथा और कई प्रकार के उद्योग हैं जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गए हैं।

7. उत्पादन सम्बन्ध (Production Relations)-कृषि उत्पादन में संस्थात्मक सम्बन्धों का विशेष स्थान है। अच्छे सम्बन्ध उत्पादन को बढ़ा सकते हैं तथा खराब सम्बन्ध उत्पादन को कम कर सकते हैं। चाहे आजकल के समय में कृषि के संस्थात्मक सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आ गए हैं परन्तु फिर भी भारतीय ग्रामीण आर्थिकता में इन सम्बन्धों का बहुत महत्त्व है। इन सम्बन्धों में जजमानी व्यवस्था सबसे महत्त्वपूर्ण है।

जजमान का अर्थ है सेवा करने वाला अथवा यज्ञ करने वाला। समय के साथ-साथ यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाने लग गया जो दूसरे लोगों से सेवाएं ग्रहण करते थे। इस सेवा ग्रहण करने तथा सेवा करने के अलगअलग जातियों में पुश्तैनी सम्बन्धों को ही जजमानी व्यवस्था कहते हैं। इस व्यवस्था के अनुसार पुजारी, दस्तकार तथा और छोटी जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों को अपनी सेवाएं देते हैं। जैसे कोई पण्डित किसी विशेष जाति के लिए पुरोहित अथवा पुजारी का कार्य करता है, नाई उसकी दाढ़ी बनाता तथा बाल काटता है तथा धोबी उस जाति के कपड़े धोता है। इस तरह उस जाति के सभी सदस्य उस ब्राह्मण, धोबी तथा नाई के जजमान हैं।

जजमानी व्यवस्था में सम्पूर्ण ग्रामीण आर्थिकता कृषि तथा किसान के इर्द-गिर्द घूमती हैं। किसान का ग्रामीण आर्थिकता में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा और जातियों के सहायक पेशे किसानों के सहायक जैसे होते हैं। किसान तो भूमि को कृषि के योग्य बनाता है परन्तु दूसरी जातियां कृषि के कार्यों को पूर्ण करने के लिए अपनी सेवाएँ देती हैं। बदले में उन्हें किसान से उत्पादन में से हिस्सा मिलता है। लोहार कृषि से सम्बन्धित औजार बनाता है, चर्मकार जूते बनाता है इत्यादि। जजमानी व्यवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि मनुष्य के जीवन की आवश्यकताएं स्थानीय स्तर पर ही पूर्ण हो जाती हैं। इस प्रकार जजमानी व्यवस्था से ग्रामीण अर्थव्यवस्था ठीक प्रकार से चलती रहती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में किसान-आढ़ती अथवा किसान-बनिए का सम्बन्ध भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इतिहास को देखने से हमें पता चलता है कि भारतीय किसान सदियों से आढ़तियों के कर्जे के नीचे दबा हुआ है। किसान को अलग-अलग कार्यों जैसे कि विवाह, मृत्यु इत्यादि के लिए पैसे की ज़रूरत पड़ती है तथा उसकी यह आवश्यकता आढ़ती पूर्ण करता है। यह कहा जाता है कि किसान आढ़ती के कर्जे के नीचे पैदा होता है, पलता है, बड़ा होता है तथा मरता भी कर्जे के नीचे ही है। इस प्रकार ग्रामीण आर्थिकता में यह सम्बन्ध भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

इसके साथ-साथ किसान तथा मजदूर का सम्बन्ध भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहले मज़दूर जातियां जजमानी व्यवस्था के अनुसार अपने जजमानों के लिए मजदूरी करती थीं तथा किसान उनकी मज़दूरी के लिए उत्पादन में से कुछ हिस्सा उनको देते थे। परन्तु अब जजमानी व्यवस्था के कम होते प्रभाव तथा पैसे से सम्बन्धित आर्थिकता के बढ़ने के कारण इन सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आया है। आजकल मज़दूर किसान के पास कार्य करने के लिए नकद पैसे लेता है। अब जजमानी व्यवस्था की जगह समझौते की भावना वाले सम्बन्ध आगे आ चुके हैं।

ग्रामीण आर्थिकता का प्रकृति से भी बहुत गहरा सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए अगर वर्षा अच्छी हो जाती है तो उत्पादन भी काफ़ी अच्छा हो जाता है। परन्तु अगर वर्षा कम होती है तो सूखे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है और उत्पादन भी कम होता है। यहां तक कि विज्ञान भी किसान की प्रकृति के ऊपर निर्भरता कम नहीं कर सका है। इस प्रकार ग्रामीण आर्थिकता में इन सम्बन्धों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। – इस प्रकार इन विशेषताओं को देख कर हम कह सकते हैं कि ग्रामीण समाज की आर्थिकता मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है। ग्रामीण समाज में मिलने वाले सभी प्रकार के सम्बन्ध कृषि से ही सम्बन्धित होते हैं।

प्रश्न 6.
ऋणग्रस्तता के परिणामों तथा इसे दूर करने के तरीके बताएं।
उत्तर-
ऋणग्रस्तता के परिणाम (Results of Indebtedness)-भारत के बहुत-से गांवों में हम बढ़ती ऋणग्रस्तता के परिणामों को देख सकते हैं। ऋणग्रस्तता के कुछ परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-

1. गुलामी (Slavery)-ऋणग्रस्तता का सबसे बुरा परिणाम देखने को मिलता है भूमिहीन मज़दूरों की बढ़ती संख्या में। साहूकार अनपढ़ तथा लाचार किसानों की अज्ञानता का लाभ उठाते हैं तथा उनकी भूमि छीन लेते है। इस प्रकार एक किसान मज़दूर बन जाता हैं तथा अपनी ही भूमि दर साहूकार के पास अपना ऋण उतारने के लिए कार्य करना पड़ता हैं तथा यह स्थिति नौकर से ऊपर नहीं होती है। कई गांवों में तो यह प्रथा है कि माता-पिता साहूकारों से कर्जा लेते हैं तथा अपने बच्चे को कार्य करने के लिए साहूकारों के पास भेज देते हैं। इन बच्चों की स्थिति गुलामों के जैसे होती है। इस प्रकार इस ऋणग्रस्तता की समस्या ने हज़ारों किसानों को गुलामी का जीवन जीने के लिए मजबूर किया है।

2. निर्धनता का बढ़ना (Increase in Poverty)-ऋणग्रस्तता का सबसे बुरा परिणाम लोगों की निर्धनता के बढ़ने में देखने को मिलता है। अगर एक व्यक्ति एक बार ऋण के चक्र में फंस गया तो वह जितने मर्जी प्रयास कर ले, ऋण के चक्र में से निकल नहीं सकता तथा वह हमेशा निर्धन ही रहेगा। उसके लिए ऋण उतारना बहुत ही मुश्किल होता है। कई परिवारों में तो दादा का ऋण उसका पौत्र उतारता है।

3. कृषि का नुकसान (Deterioration of Agriculture)-ऋणग्रस्तता के परिणामस्वरूप कृषि की स्थिति भी दयनीय होती है क्योंकि किसान को साहूकार की भूमि पर नौकर बन कर कार्य करना पड़ता है। इस कारण किसान कृषि की तरफ अधिक ध्यान नहीं देते जोकि वह अपनी भूमि पर कार्य करते हुए देते हैं। इससे उत्पादन भी कम होता है तथा भूमि की उत्पादन शक्ति भी कम होती है।

4. आत्महत्याएं (Suicides) अगर एक किसान ऋण के नीचे आ जाता है तो वह दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होता जाता है क्योंकि उसे हमेशा ऋण वापिस करने की चिन्ता लगी रहती है। कई लोग तो ऋण उतारने के लिए ज़रूरत से अधिक परिश्रम करते हैं। परन्तु जब उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिलता तो उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। इस प्रकार ऋणग्रस्तता से व्यक्ति आत्महत्या भी कर लेते हैं।

ऋणग्रस्तता दूर करने के उपाय (Ways to Remove Indebtedness)-

ऋणग्रस्तता की समस्या को दूर करने के लिए कई प्रकार के सुझाव आगे आए हैं जिन का वर्णन इस प्रकार है:

  • कम ब्याज पर सरकारी ऋण (Governmental loans at Low Interest)-सरकार को कम ब्याज पर सरकारी कर्जे उपलब्ध करवाने चाहिएं ताकि किसान ऊँचे ब्याज वाले साहूकारों के ऋण वापिस कर सकें। सरकारी ऋण को वापिस करने के लिए भी छोटी-छोटी किश्तें बाँध देनी चाहिए ताकि किसान आसानी से सरकारी ऋण उतार सकें।
  • सहकारी संस्थाएं तथा बैंक (Co-operative Societies and Banks)-गांव के स्तर पर ही सरकारी ऋण उपलब्ध करवाने के लिए गांव में ही सहकारी संस्थाएं तथा सहकारी बैंक खुलवाने चाहिएं। इससे किसानों को कम ब्याज पर आसानी से गांव में ही ऋण प्राप्त हो सकता है।
  • दिवालिया घोषित करने का प्रबन्ध (Arrangement for declaration of Bankruptcy)-कई बार किसानों पर ऋण, ऋण का ब्याज तथा ऋण पर ब्याज इतना अधिक हो जाता है कि उसके लिए अपना ऋण लगभग असम्भव हो जाता है। इसलिए उनको दिवालिया घोषित करने का भी प्रबन्ध किया जाना चाहिए ताकि किसान से उसकी भूमि न छीनी जा सके तथा वह कम-से-कम अपनी रोजी-रोटी कमा सके।
  • भूमि का कब्जा लेने से रोकने के लिए कानून (Law for preventing possession of Land)-सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिएं कि अगर कोई साहूकार किसी किसान की भूमि पर ऋण के कारण कब्जा करने की कोशिश करता है तो उसको कानून की मदद से रोका जा सके।
  • ब्याज की दर पर नियन्त्रण (Control over Rate of Interest) साहूकार किसानों से बहुत अधिक ब्याज लेते हैं। कई स्थितियों में तो यह 5-10% प्रति माह भी हो जाता है। सरकार को गांवों में अधिक-से-अधिक लेने वाली ब्याज दर को निश्चित करना चाहिए। जो साहूकार अधिक ब्याज लेते हैं उनसे सख्ती से पेश आना चाहिए।
  • साहकारों की किताबें चैक करना (Checking of accounts of the Money-lenders) सरकार को साहूकारों को अपने खाते तथा किताबें सही प्रकार से बना कर रखने के लिए कानून बनाने चाहिएं तथा समय-समय पर उनके खातों तथा किताबों को चैक करना चाहिए। अगर किसी भी साहूकार के खाते में हेर-फेर हो तो उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
    इस प्रकार इन ढंगों की सहायता से वह काफ़ी हद तक ऋणग्रस्तता की समस्या को नियन्त्रण में रख सकते हैं।

प्रश्न 7.
पंचायती राज्य की धारणा के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
हमारे देश में स्थानीय क्षेत्रों के विकास के लिए दो प्रकार की पद्धतियां हैं। शहरी क्षेत्रों का विकास करने के लिए स्थानीय सरकारें होती हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए पंचायती राज्य की संस्थाएं होती हैं। स्थानीय सरकार की संस्थाएं श्रम विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित होती हैं क्योंकि इनमें सरकार तथा स्थानीय समूहों में कार्यों को बांटा जाता है। हमारे देश की 70% जनता ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों को जिस स्थानीय सरकार की संस्था द्वारा शासित किया जाता है उसे पंचायत कहते हैं। पंचायती राज्य सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के संस्थागत ढांचे को ही दर्शाता है।

जब भारत में अंग्रेजी राज्य स्थापित हुआ था तो सारे देश में सामन्तशाही का बोलबाला था। 1935 में भारत सरकार ने एक कानून पास किया जिसने प्रान्तों को पूर्ण स्वायत्तता दी तथा पंचायती कानूनों को एक नया रूप दिया गया। पंजाब में 1939 में पंचायती एक्ट पास हुआ जिसका उद्देश्य पंचायतों को लोकतान्त्रिक आधार पर चुनी हुई संस्थाएं बना कर ऐसी शक्तियां प्रदान करना था जो उनके स्वः शासन की इकाई के रूप में निभायी जाने वाली भूमिका के लिए ज़रूरी थीं। 2 अक्तूबर, 1961 ई० को पंचायती राज्य का तीन स्तरीय ढांचा औपचारिक रूप से लागू किया गया। 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन हुआ जिनमें शक्तियों का स्थानीय स्तर तक विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। इससे पंचायती राज्य को बहुत-सी वित्तीय तथा अन्य शक्तियां दी गईं।

भारत के ग्रामीण समुदाय में पिछले 50 सालों में बहुत-से परिवर्तन आए हैं। अंग्रेजों ने भारतीय पंचायतों से सभी प्रकार के अधिकार छीन लिए थे। वह अपनी मर्जी के अनुसार गांवों को चलाना चाहते थे जिस कारण उन्होंने गांवों में एक नई तथा समान कानून व्यवस्था लागू की। आजकल की पंचायतें तो आजादी के बाद ही कानून के तहत सामने आयी हैं।

ए० एस० अलटेकर (A.S. Altekar) के अनुसार, “प्राचीन भारत में सुरक्षा, लगान इकट्ठा करना, कर लगाने तथा लोक कल्याण के कार्यक्रमों को लागू करना इत्यादि जैसे अलग-अलग कार्यों की ज़िम्मेदारी गांव की पंचायत की होती थी। इसलिए ग्रामीण पंचायतें विकेन्द्रीकरण, प्रशासन तथा शक्ति की बहुत ही महत्त्वपूर्ण संस्थाएं हैं।”

के० एम० पानीकर (K.M. Pannikar) के अनुसार, “ये पंचायतें प्राचीन भारत के इतिहास का पक्का आधार हैं। इन संस्थाओं ने देश की खुशहाली को मज़बूत आधार प्रदान किया है।”

संविधान के Article 30 के चौथे हिस्से में कहा गया है कि, “गांव की पंचायतों का संगठन-राज्य को गांव की पंचायतों के संगठन को सत्ता तथा शक्ति प्रदान की जानी चाहिए ताकि ये स्वः सरकार की इकाई के रूप में कार्य कर सकें।”
गांवों की पंचायतें गांव के विकास के लिए बहुत-से कार्य करती हैं जिस लिए पंचायतों के कुछ मुख्य उद्देश्य रखे गए हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

पंचायतों के उद्देश्य (Aims of Panchayats) :

  • पंचायतों को स्थापित करने का सबसे पहला उद्देश्य है लोगों की समस्याओं को स्थानीय स्तर पर ही हल करना। ये पंचायतें लोगों के बीच के झगड़ों तथा समस्याओं को हल करती हैं।
  • गांव की पंचायतें लोगों के बीच सहयोग, हमदर्दी, प्यार की भावनाएं पैदा करती हैं ताकि सभी लोग गांव की प्रगति में योगदान दे सकें।
  • पंचायतों को गठित करने का एक और उद्देश्य है लोगों को तथा पंचायत के सदस्यों को पंचायत का प्रशासन ठीक प्रकार से चलाने के लिए शिक्षित करना ताकि सभी लोग मिल कर गांव की समस्याओं के हल निकाल सकें। इस तरह लोक कल्याण का कार्य भी पूर्ण हो जाता है।

गांवों की पंचायतों का संगठन (Organisation of Village Panchayats)-गांवों में दो प्रकार की पंचायतें होती हैं। पहली प्रकार की पंचायतें वे होती हैं जो सरकार द्वारा बनाए कानूनों अनुसार चुनी जाती हैं तथा ये औपचारिक होती हैं। दूसरी पंचायतें वे होती हैं जो अनौपचारिक होती हैं तथा इन्हें जाति पंचायतें भी कहा जाता है। इनकी कोई कानूनी स्थिति नहीं होती है परन्तु यह सामाजिक नियन्त्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

पंचायतों में तीन तरह का संगठन पाया जाता है-

  1. ग्राम सभा (Gram Sabha)
  2. ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)
  3. न्याय पंचायत (Nyaya Panchayat)।

1. ग्राम सभा (Gram Sabha)–गांव की सम्पूर्ण जनसंख्या में से बालिग व्यक्ति इस ग्राम सभा का सदस्य होता है तथा यह गांव की सम्पूर्ण जनसंख्या की एक सम्पूर्ण इकाई है। यह वह मूल इकाई है जिसके ऊपर हमारे लोकतन्त्र का ढांचा टिका हुआ है। जिस ग्राम की जनसंख्या 250 से अधिक होती है वहां ग्राम सभा बन सकती है। अगर एक गांव की जनसंख्या कम है तो दो गांव मिलकर ग्राम सभा का निर्माण करते हैं। ग्राम सभा में गांव का प्रत्येक वह बालिग़ सदस्य होता है जिस को वोट देने का अधिकार होता है। प्रत्येक ग्राम सभा का एक प्रधान तथा कुछ सदस्य होते हैं। यह पांच वर्षों के लिए चुने जाते हैं।

ग्राम सभा के कार्य (Functions of Gram Sabha)—पंचायत के सालाना बजट तथा विकास के लिए किए जाने वाले कार्यक्षेत्रों को ग्राम सभा पेश करती है तथा उन्हें लागू करने में मदद करती है। यह समाज कल्याण के कार्य, प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम तथा परिवार कल्याण के कार्यों को करने में मदद करती है। यह गांवों में एकता रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

2. ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) हर एक ग्राम सभा अपने क्षेत्र में से एक ग्राम पंचायत को चुनती है। इस तरह ग्राम सभा एक कार्यकारिणी संस्था है जो ग्राम पंचायत के लिए सदस्य चुनती है। इनमें 1 सरपंच तथा 5 से लेकर 13 पंच होते हैं। पंचों की संख्या गांव की जनसंख्या के ऊपर निर्भर करती है। पंचायत में पिछड़ी श्रेणियों तथा औरतों के लिए स्थान आरक्षित होते हैं। यह 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है। परन्तु अगर पंचायत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करे तो राज्य सरकार उसे 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकती है। अगर किसी ग्राम पंचायत को भंग कर दिया जाता है तो उसके सभी पद भी अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। ग्राम पंचायत के चुनाव तथा पंचों को चुनने के लिए गांव को अलग-अलग हिस्सों में बांट लिया जाता है। फिर ग्राम सभा के सदस्य पंचों तथा सरपंच का चुनाव करते हैं। ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए आरक्षित सीटें कुल सीटों का एक तिहाई (1/3) होती हैं तथा पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित सीटें गांव या उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार होती हैं। ग्राम पंचायत में सरकारी नौकर तथा मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकते । ग्राम पंचायतें गांव में सफ़ाई, मनोरंजन, उद्योग, संचार तथा यातायात के साधनों का विकास करती हैं तथा गांव की समस्याओं का समाधान करती हैं।

पंचायतों के कार्य (Functions of Panchayats)-ग्राम पंचायत गांव के लिए बहुत-से कार्य करती है जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है। गांव में बहुत-सी सामाजिक बुराइयां भी पायी जाती हैं। पंचायत लोगों को इन बुराइयों को दूर करने के लिए प्रेरित करती है तथा उनके परम्परागत दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करती हैं।
  • किसी भी क्षेत्र के सर्वपक्षीय विकास के लिए यह आवश्यक है कि उस क्षेत्र से अनपढ़ता ख़त्म हो जाए तथा भारतीय समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण भी यही है। भारतीय गांव भी इसी कारण पिछड़े हुए हैं। गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती है। बालिगों को पढ़ाने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खुलवाने का भी प्रबन्ध करती है।
  • गांव की पंचायत गांव की स्त्रियों तथा बच्चों की भलाई के लिए भी कार्य करती है। वह औरतों को शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध करती है। बच्चों को अच्छी खुराक तथा उनके मनोरंजन के कार्य का प्रबन्ध भी पंचायत ही करती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के साधन नहीं होते हैं। इसलिए पंचायतें ग्रामीण समाजों में मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाने का प्रबन्ध भी करती है। पंचायतें गांव में फिल्मों का प्रबन्ध, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी इत्यादि खुलवाने का प्रबन्ध करती हैं।
  • कृषि प्रधान देश में उन्नति के लिए कृषि के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होनी ज़रूरी होती है। पंचायतें लोगों को नई तकनीकों के बारे में बताती है, उनके लिए नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबन्ध करती है ताकि उनके कृषि उत्पादन में भी बढ़ौतरी हो सके।
  • गांवों के सर्वपक्षीय विकास के लिए गांवों में छोटे-छोटे उद्योग लगवाना भी जरूरी होता है। इसलिए पंचायतें गांव में सरकारी मदद से छोटे-छोटे उद्योग लगवाने का प्रबन्ध करती हैं। इससे गांव की आर्थिक उन्नति भी होती है तथा लोगों को रोज़गार भी प्राप्त होता है।
  • कृषि के अच्छे उत्पादन में सिंचाई के साधनों का अहम रोल होता है। ग्राम पंचायत गांव में कुएँ, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबन्ध करती है तथा नहरों के पानी की भी व्यवस्था करती है ताकि लोग आसानी से अपने खेतों की सिंचाई कर सकें।
  • गांव में लोगों में आमतौर पर झगड़े होते रहते हैं। पंचायतें उन झगड़ों को ख़त्म करके उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करती हैं।

इन कार्यों के अलावा पंचायत और बहुत-से कार्य करती है जैसे कि

  1. डेयरी, पशुपालन तथा मुर्गीखाने से सम्बन्धित कार्य।
  2. छोटे उद्योगों की स्थापना।
  3. घरेलू दस्तकारी।
  4. सड़कों तथा यातायात के साधनों का प्रबन्ध।
  5. अनौपचारिक तथा औपचारिक शिक्षा का प्रबन्ध ।
  6. सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रबन्ध इत्यादि।

भारत में 21 अप्रैल, 1994 को पंचायती राज्य अधिनियम लागू किया गया। इस एक्ट से तीन स्तरीय पंचायती राज्य लागू हुआ। इन से ग्रामीण समुदाय में बहुत-से परिवर्तन आए। पंचायती राज्य से गांवों की आर्थिकता का काफ़ी सुधार हुआ। पंचायतें गांव की भलाई के प्रत्येक प्रकार के कार्य करती हैं।

3. न्याय पंचायत (Nayaya Panchayat)-गांव के लोगों में झगड़े होते रहते हैं। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगड़ों का निपटारा करती है। 5-10 ग्राम सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत बनायी जाती है। इसके सदस्य चुने जाते हैं तथा सरपंच 5 सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन को पंचायतों से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।

पंचायत समिति (Panchayat Samiti)-एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें पंचायत समिति की सदस्य होती हैं तथा इन पंचायतों के सरपंच इसके सदस्य होते हैं। पंचायत समिति के सदस्यों का सीधा-चुनाव होता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है, गांवों के विकास कार्यों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण के लिए निर्देश भी देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

जिला परिषद् (Zila Parishad)—पंचायती राज्य का सबसे ऊँचा स्तर है जिला परिषद् जोकि जिले में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन, चुने हुए सदस्य, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में पड़ते गांवों के विकास कार्यों का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने इत्यादि जैसे कार्य करती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 ग्रामीण समाज

प्रश्न 8.
73वें संवैधानिक संशोधन में पंचायती राज्य सम्बन्धी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
दिसम्बर, 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन संसद् में पास हुआ तथा अप्रैल, 1993 में राष्ट्रपति ने इस संशोधन को मान्यता दे दी। इस संवैधानिक संशोधन द्वारा जो पंचायती राज्य प्रणाली स्थापित की गयी, उसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • 73वीं संवैधानिक संशोधन से पहले स्थानीय स्तर पर स्वः-शासन के सम्बन्ध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं थी। इस संशोधन से संविधान में नयी अनुसूची तथा नया भाग जोड़ा गया। इस अनुसूची तथा भाग में सम्पूर्ण व्यवस्थाएं पंचायती राज्य प्रणाली से सम्बन्धित हैं कि नयी व्यवस्था में किस तरह की व्यवस्थाएं हैं।
  • इस संशोधन से संविधान में ग्राम सभा की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार पंचायत के क्षेत्र में आने वाले गांव या गांव के जिन लोगों का नाम वोटर सूची में दर्ज है, वह सभी लोग ग्राम सभा के सदस्य होंगे। राज्य विधानमण्डल कानून द्वारा ग्राम सभा की व्यवस्था कर सकता है तथा उसको कुछ कार्य सौंप सकता है। इस तरह ग्राम सभा की स्थापना राज्य विधानमण्डल की तरफ से पास किए गए कानून के द्वारा होगी तथा वह ही उसके कार्य भी निश्चित करेगा।
  • ग्राम सभा की परिभाषा के साथ ही पंचायत की परिभाषा दी गयी है तथा कहा गया कि पंचायत स्व:-शासन पर आधारित ऐसी संस्था है जिस की स्थापना ग्रामीण क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
  • इस संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि अब ग्रामीण क्षेत्र में स्व:-शासन की तीन स्तरीय पंचायती राज्य प्रणाली की स्थापना की जाएगी। सबसे निम्न स्तर गांव पर पंचायत, बीच के स्तर ब्लॉक पर ब्लॉक समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् होगी परन्तु राज्य सरकार इन को कोई और नाम भी दे सकती है।
  • इस संवैधानिक संशोधन में यह कहा गया है कि नयी प्रणाली के अन्तर्गत सम्पूर्ण जिले को पंचायती स्तर पर चुनाव क्षेत्रों में बाँटा जाएगा तथा पंचायतों, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद् के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा अर्थात् वह प्रत्यक्षं तौर पर लोगों द्वारा बालिग वोट अधिकार के आधार पर चुने जाएंगे।
  • इस संशोधन के अनुसार पंचायत के अलग-अलग स्तरों पर चुनाव के लिए, वोटरों की संख्या तथा सूची तैयार करवाने की ज़िम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग की होगी। इस आयोग में राज्य चुनाव कमिश्नर को राज्य का राज्यपाल नियुक्त करेगा। उसका कार्यकाल, सेवा की शर्ते इत्यादि भी राज्य विधान मण्डल की तरफ से बनाए गए नियमों के अनुसार निश्चित किए जाएंगे। राज्य चुनाव कमिश्नर को उस तरीके से हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के जज को हटाया जा सकता है।
  • गाँव की पंचायत के प्रधान के बारे में 73वीं शोध में यह व्यवस्था की गई है कि गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव सीधे तौर पर लोगों द्वारा किया जाएगा।
  • गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव करने के साथ-साथ यह भी व्यवस्था की गई है कि पंचायत के प्रधान को उसके कार्यकाल खत्म होने से पहले भी हटाया जा सकता है और उसको हटाने का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है।
  • ग्राम सभा सरपंच को तब ही उसके पद से हटा सकती है यदि उस क्षेत्र की पंचायत इस बात की सिफारिश करे। इस प्रकार की सिफ़ारिश के लिए यह ज़रूरी है कि उस सिफ़ारिश के पीछे पंचायत के सभी सदस्यों का बहुमत
    और मौजूदगी अनिवार्य है। इसके लिए एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी और इस बैठक में ग्राम सभा के 50% सदस्य होने ज़रूरी हैं। यदि इस बैठक में ग्राम सभा उस सिफ़ारिश को मौजूद सदस्यों के बहुमत के साथ पास कर दे तो सरपंच या प्रधान को हटाया जा सकता है।
  • इसी तरह पंचायती समिति या ब्लॉक समिति और जिला परिषद् के सदस्य भी लोगों द्वारा चुने जाएंगे और इनके प्रधान इनके सदस्यों द्वारा और उनके बीच में से ही चुने जाएंगे। पंचायत की तरह इनके प्रधानों को भी हटाया जा सकता है। प्रधान को दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है।

इन तीनों स्तरों पर स्थान भी आरक्षित रखे गए हैं।

  • निम्न जातियों एवं कबीलों में प्रत्येक पंचायत में स्थान आरक्षित रखे गए हैं। आरक्षित करने की गिनती उनके उस क्षेत्र की उपज के अनुपात में होगी।
  • इन आरक्षित स्थानों में एक-तिहाई सीटें औरतों के लिए आरक्षित रखी जाएंगी।
  • पंचायतों, ब्लॉक समितियों और जिला परिषदों में भी स्त्रियों के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखे जाएंगे। इसके साथ-साथ इन संस्थाओं के प्रधानों के लिए भी स्थान औरतों के लिए आरक्षित रखे जाएंगे।

(11) इस शोध के अनुसार इन सभी संस्थाओं का कार्यकाल 5 सालों के लिए निश्चित कर दिया गया। किसी भी संस्था का कार्यकाल 5 साल से ज्यादा नहीं हो सकता। यदि राज्य सरकार को किसी पंचायत के अव्यवस्थित प्रबंधन के बारे में पता चले तो वह उसको 5 साल से पहले ही भंग कर सकती है परन्तु 6 महीने के अंदर उसका दोबारा चुनाव किया जाना जरूरी है। यदि कोई पंचायत 5 साल से पहले भंग हो तो नई चुनी गई पंचायत बाकी रहता कार्यकाल पूरा
करेगी।

(12) यदि कोई व्यक्ति राज्य के कानून अधीन राज्य विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ सकता तो वह पंचायत का चुनाव भी नहीं लड़ सकता परन्तु यहां उम्र में फ़र्क है। राज्य विधान सभा का चुनाव लड़ने हेतु 25 साल की उम्र होना आवश्यक है परन्तु पंचायत के चुनाव के लिए 21 वर्ष की आयु निश्चित की गई है।

(13) राज्य विधान मण्डल के कानून के अधीन पंचायत को कुछ अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ दी जाएंगी। पंचायत को आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय हेतु योजनाएं तैयार करने और लागू करने के अधिकार दिए गए हैं।

(14) इसके साथ-साथ राज्य विधान मण्डल कानून पास करके पंचायत को कुछ छोटे-छोटे टैक्स लगाने की शक्ति भी दे सकता है ताकि वह अपनी आमदनी में भी वृद्धि कर सकें। इसके साथ राज्य सरकार अपने द्वारा लगाए टैक्सों अथवा शुल्कों में से कुछ हिस्सा पंचायतों को भी देगी और साथ ही उनको गांवों के विकास के लिए सहायता के रूप में ग्रांट देने की व्यवस्था भी करेगी। – इस प्रकार हम देख सकते हैं कि 73वीं संवैधानिक शोध द्वारा पंचायती राज के लिए कई महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएं की गई हैं जिसके साथ पंचायती राज्य की महत्ता काफ़ी बढ़ गई है। नई व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं और अब पंचायती राज्य प्रणाली काफ़ी प्रभावशाली बन गई है।

ग्रामीण समाज PSEB 12th Class Sociology Notes

  • भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी लगभग 70% (68.84%) जनसंख्या गाँवों में रहती है। गाँव में रहने वाले
    लोग साधारण जीवन व्यतीत करते हैं, एक-दूसरे से काफ़ी कुछ साझा करते हैं तथा उनमें काफ़ी समानताएँ होती हैं। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि, “वास्तविक भारत तो गांवों में रहता है।”
  • ग्रामीण समाज की कई विशेषताएँ होती हैं, जैसे कि छोटा आकार, सामाजिक समानता, एक-दूसरे से नज़दीक
    के रिश्ते, संयुक्त परिवार प्रथा, कम सामाजिक गतिशीलता, कृषि मुख्य पेशा, धर्म का अधिक प्रभाव इत्यादि।
  • ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार की प्रधानता होती है जिसमें कम-से-कम तीन पीढ़ियों के लोग इकट्ठे मिल कर रहते हैं। ये परिवार आकार में बड़े होते हैं तथा एक ही छत के नीचे रहते हैं।
  • 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन हुआ तथा देश में तीन स्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था लागू की गई। यह तीन स्तर हैं – गाँव के स्तर पर पंचायत, ब्लॉक के स्तर पर ब्लॉक समिति तथा जिले के स्तर पर जिला परिषद् । इनका प्रमुख कार्य ग्रामीण क्षेत्रों का बहुपक्षीय विकास करना है।
  • 1960 के दशक में देश में हरित क्रान्ति लाई गई ताकि किसानों को अपने खेतों से उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिल सके। इस क्रान्ति में काफ़ी सकारात्मक परिणाम सामने आए जैसे कि इसका लाभ केवल अमीर किसानों को हुआ, अमीर तथा गरीब किसानों में अन्तर बढ़ गया इत्यादि।
  • गांवों के किसान आजकल एक बहुत ही गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं तथा वह है ऋणग्रस्तता की समस्या। बहुत से किसान ऋणग्रस्तता के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। ऋणग्रस्तता के कई कारण हैं, जैसे कि निर्धनता, पिता की ऋणग्रस्तता, मुकद्दमे, कृषि का पिछड़ापन, आवश्यकता से अधिक खर्चा, ऋण पर अधिक ब्याज इत्यादि।
  • आजकल ग्रामीण समाज परिवर्तन के दौर से निकल रहा है। अब पुराने रिश्ते-नाते खत्म हो रहे हैं, जाति पंचायतों
    का नियन्त्रण खत्म हो रहा है, अपराध बढ़ रहे हैं, जजमानी व्यवस्था तो खत्म ही हो गई है, शिक्षा बढ़ने के कारण लोग नगरों की तरफ बढ़ रहे हैं इत्यादि।
  • ग्रामीण समाज (Rural Society) वह समाज जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है तथा जिसकी कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि छोटा आकार, जनसंख्या का कम घनत्व, कृषि-मुख्य पेशा, जनसंख्या में समानता, जाति आधारित स्तरीकरण, संयुक्त परिवार इत्यादि।
  • अन्तर्विवाह (Endogamy) विवाह का वह प्रकार जिसमें व्यक्ति को अपने समूह में ही विवाह करवाना पड़ता है जैसे कि जाति या उपजाति। समूह से बाहर विवाह करवाने की आज्ञा नहीं होती है।
  • बहिर्विवाह (Exogamy) विवाह का वह प्रकार जिसमें व्यक्ति को एक विशेष समूह से बाहर ही विवाह करवाना पड़ता है; जैसे कि परिवार, गोत्र, रिश्तेदारी इत्यादि। व्यक्ति अपने समूह में विवाह नहीं करवा सकता।
  • हरित क्रान्ति (Green Revolution)-अधिक उत्पादन वाले बीजों की सहायता से कृषि के उत्पादन में जो बढ़ौतरी हुई है उसे हरित् क्रान्ति कहते हैं।
  • ऋणग्रस्तता (Indebtedness) कृषि अथवा अन्य किसी कारण की वजह से किसी व्यक्ति से पैसे उधार लेने ‘ को ऋणग्रस्तता कहते हैं। किसान कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए भी ऋण लेते हैं, जैसे कि जन्म, विवाह तथा मृत्यु पर होने वाले खर्चे के कारण, मुकद्दमा लड़ने के लिए। इस ऋणों के कारण ही उत्पादन में बढ़ौतरी नहीं होती जिस कारण ग्रामीण लोग इस समस्या में फंस जाते हैं।
  • संयुक्त परिवार (Joint Family)—वह परिवार जिसमें कम-से-कम तीन पीढ़ियों के लोग रहते हैं, जैसे कि दादा-दादी, माता-पिता व उनके बच्चे। वह एक ही छत के नीचे रहते हैं, एक ही रसोई में खाना खाते हैं तथा एक ही प्रकार के आर्थिक कार्य करते हैं।
    पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

PSEB 8th Class Agriculture Guide पनीरियाँ तैयार करना Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सब्जियों के बीजों की शोध किस औषधि से की जाती है ?
उत्तर-
कैप्टान या थीरम।

प्रश्न 2.
टमाटर की पनीरी की बिजाई बोआई का उपयुक्त समय बताएं।
उत्तर-
नवम्बर का पहला सप्ताह, जुलाई का पहला पखवाड़ा।

प्रश्न 3.
मिर्च की पनीरी कब बोनी चाहिए ?
उत्तर-
अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से आधे नवम्बर।

प्रश्न 4.
ग्रीष्म ऋतु के दो फूलों के नाम बताएँ।
उत्तर-
सूरजमुखी, जीनिया।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 5.
शर्द ऋतु के दो फूलों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गुलेअशरफी, बरफ

प्रश्न 6.
सफैदे की नर्सरी लगाने का उपयुक्त समय कौन-सा है ?
उत्तर-
फरवरी-मार्च या सितम्बर-अक्तूबर।

प्रश्न 7.
पापलर की नर्सरी लगाने के लिए कलमों की लम्बाई कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
20-25 सैं०मी०

प्रश्न 8.
उस विधि का नाम बताएँ जिससे एक जैसी फलदार प्रजाति के पौधे तैयार किए जा सकते हैं ?
उत्तर-
वनस्पति द्वारा; जैसे-कलमों के साथ।

प्रश्न 9.
प्याज की एक एकड़ की पनीरी तैयार करने के लिए कितना बीज बीजना चाहिए ?
उत्तर-
4-5 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 10.
दो फलों के नाम बताओ जो कि प्योंद आरोपन से तैयार किए जा सकते हैं ?
उत्तर-
आम, अमरूद, सेब, नाशपाती।

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
कौन-कौन सी सब्जियाँ पनीरी द्वारा लगाई जा सकती हैं ?
उत्तर-
शिमला मिर्च, बैंगन, प्याज, टमाटर, बंदगोभी, बरोकली, चीनी बंदगोभी, मिर्च आदि।

प्रश्न 2.
टमाटर तथा मिर्च की पनीरी की तैयारी के लिए बोआई का समय व प्रति एकड़ बीज की मात्रा के संबंध में बताएँ ।
उत्तर-

सब्जी बिजाई का समय प्रति एकड़ बीज की मात्रा
टमाटर नवम्बर का पहला सप्ताह, जुलाई का पहला पखवाड़ा (प्रथम पक्ष) 100 ग्राम
मिर्च अक्तूबर के अंतिम सप्ताह से अर्द्ध नवम्बर तक 200 ग्राम

 

प्रश्न 3.
सर्दी के कौन-कौन से दो फूल हैं और उनकी बोआई कब हो सकती है ?
उत्तर-
गेंदा, गुलअशर्फी समय सितम्बर से मार्च का है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 4.
सब्जियों की नर्सरी में पनीरी की जीवन रक्षा के लिए कौन-सी दवा डालनी चाहिए ?
उत्तर-
पनीरी को मरने से बचाने के लिए कैपटान या थीरम दवाई का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
वनस्पति द्वारा कौन-कौन से फलयुक्त (फलदार) पौधे तैयार किए जाते
उत्तर-
वनस्पति द्वारा निम्नलिखित फलदार पौधे तैयार किए जाते हैं-आम, अमरूद, आलूचा, नींबू जाति, आड़, अंगूर, अनार, अंजीर, सेब, नाशपाती आदि।

प्रश्न 6.
बीज द्वारा कौन-कौन से फलयुक्त (फलदार) पौधे अच्छी तरह तैयार होते हैं ?
उत्तर-
बीज के द्वारा फलदार पौधे जैसे- पपीता, करौंदा, जामुन, फालसा आदि तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
पापलर की पनीरी तैयार करने हेतु उपयुक्त विधि बताएँ।
उत्तर-
इसकी नर्सरी एक साल के पौधों से तैयार करनी चाहिए। कलमें 20-25 सैं०मी० लम्बाई वाली हों और 2-3 सैं०मी० मोटाई वाली हो। दीमक और बीमारियों से बचाने के लिए कलमों को क्लोरपेरीफास और एमिसान के साथ सुधाई कर लें। इन्हें अर्द्ध जनवरी से अर्द्ध मार्च तक लगाया जाना चाहिए। कलमों की एक आँख ऊपर रखकर शेष को भूमि में दबा दें तथा भूमि को गीला रखें जब तक कलम अंकुरित न हो जाए।

प्रश्न 8.
धरेक की नर्सरी तैयार करने हेतु बीज कैसे एकत्र करना चाहिए ?
उत्तर-
डेक की नर्सरी के लिए सेहतमंद अच्छे बढ़ने वाले और सीधे जाने वाले वृक्षों से ही बीज इकट्ठे करने चाहिए। गटोलियों को नवम्बर-दिसम्बर के महीने में इकट्ठा करना चाहिए।

प्रश्न 9.
फलयुक्त पौधों की नर्सरी किन विधियों से तैयार की जाती है ?
उत्तर-
फलदार पौधों की नर्सरी बीज के द्वारा और वनस्पति के द्वारा तैयार की जाती है। वनस्पति के द्वारा तैयार करने के ढंग हैं-कलमों द्वारा, दाब के साथ पौधे तैयार करना, प्योंद चढ़ाना, जड़ मूढ़ पर आँख फिट करना।

प्रश्न 10.
कलम के द्वारा पौधे तैयार करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
कलम द्वारा पौधे कम समय में आसानी से तथा सस्ते तैयार हो जाते हैं। पौधे एकसार और एक ही नसल तथा आकार के तैयार किए जाते हैं।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

(इ) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पनीरी तैयार करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-

  1. बीज कीमती हैं और पनीरी तैयार करने के लिए इनकी ज़रूरत होती है।
  2. कई बीज बहुत ही छोटे आकार के होते हैं। इनको सीधा खेत में बीजना मुश्किल होता है।
  3. नर्सरी कम जगह में तैयार हो जाती है। इसलिए इसकी देखभाल अच्छी तरह से की जा सकती है।
  4. भूमि का अच्छा प्रयोग हो जाता है, पनीरी तैयार होने तक, खाली जमीन को किसी अन्य फसल के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  5. कमज़ोर और खराब पौधों को खेत में लगाने से पहले ही निकाला जा सकता है।
  6. कम जगह होने के कारण पनीरी को गर्मी और सर्दी की मार से आसानी से बचाया जा सकता है।
  7. पनीरी को कीड़ों और बीमारियों से बचाना आसान है और खर्चा भी कम होता
  8. पनीरी आवश्यकता अनुसार अगेती तथा पछेती बोई जा सकती है तथा फसल से अधिक लाभ लिया जाता है।

प्रश्न 2.
सब्जियों की पनीरी तैयार करने के लिए भूमि की शुद्धि के विषय में बताएँ।
उत्तर-
सब्जियों की पनीरी तैयार करने के लिए भूमि का चुनाव करके आवश्यकता अनुसार उचित क्यारियाँ बनाई जाती हैं। इन क्यारियों की मिट्टी को बीज बोने से पहले शुद्ध पनीरियाँ तैयार करना किया जाता है। ताकि पनीरी को मिट्टी से कोई बीमारी न लग सके। मिट्टी को फार्मालीन दवाई 15-20% ताकत के घोल के साथ शुद्ध किया जाता है। ये घोल एक लीटर पानी में तैयार करना हो तो 15-20 मिलीलीटर दवाई का प्रयोग किया जाता है। परन्तु एक वर्ग की ज़मीन के लिए 2-3 लीटर घोल की ज़रूरत होती है। इस घोल से भूमि की 15 सैं०मी० ऊपरी सतह को अच्छी तरह से गीला (लबालब) किया जाता है। फिर इस मिट्टी को पालीथीन की शीट से ढक के शीट के किनारों को मिट्टी में दबा दिया जाता है। इसको 72 घण्टों के लिए ढक के रखा जाता है और इस तरह दवाई में से निकलने वाली गैस बाहर नहीं निकलती और इससे अच्छा असर हो जाता है। इसके बाद 3-4 दिनों तक क्यारियों की मिट्टी को पलटा दीजिए ताकि फार्मालीन का प्रभाव समाप्त हो जाए और क्यारियों में बुआई कर दो।

प्रश्न 3.
दाब से फलयुक्त (फलदार) पौधे कैसे तैयार किए जा सकते हैं ?
उत्तर-
इस ढंग में माँ पौधे से नया पौधा अलग किए बगैर पहले ही उसके ऊपर जड़ें पैदा की जाती हैं। फलदार पौधे की एक शाख खींच कर इसको भूमि के पास लाकर बांध दिया जाता है। इसके निचले हिस्से में एक कट लगा कर इसको मिट्टी के साथ ढक दिया जाता है। इस तरह जड़ें जल्दी बनती हैं। इस शाख के पत्तों वाला भाग हवा में ही रखा जाता है। कुछ सप्ताह बाद जब इसकी जड़ें निकल आएं तो नए पौधे को काट कर गमले में या नर्सरी में लगा दिया जाता है।

प्रश्न 4.
सफैदे की नर्सरी तैयार करने संबंधी संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर-
सफैदे की नर्सरी तैयार करने के लिए अच्छे ढंग के साथ कृषि किए गए 4 साल की आयु से बड़े सफैदों में से सेहतमंद और ज्यादा तने वाले 2-3 पेड़ चुन के इनमें से बीज लिया जाता है। बीज लेने के लिए पौधे के ऊपर से शाख काटकर उससे लेने चाहिए न कि बीज ज़मीन से उठाने चाहिए। अच्छे पौधे से इकट्ठा किया गया बीज ही अच्छी पैदावार करता है। नर्सरी बोने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च से सितम्बर-अक्तूबर का है। नर्सरी गमलों में या उभरी क्यारियों में बोनी चाहिए।

प्रश्न 5.
प्योंद चढ़ाने की विधि बताएँ।
उत्तर-
इस तरीके में माँ पौधे की एक शाख जिस के ऊपर 2-3 आँखें हों, को जड़मुढ पौधे के ऊपर प्योंद किया जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि आँख उस पौधे से ली जाए जो अच्छा फल या फूल दे रहा हो और बीमारी से रहित हो। स्वस्थ आँख को चाकू की मदद से माँ पौधे से उतार दिया जाता है। जड़-मुढ़ पौधे के मुढ़ के ऊपर छील में इस प्रकार से कट लगाया जाता है ताकि आँख इसमें फिट हो सके। आँख को फिट करके इसके चारों तरफ से लपेट दिया जाता है तांकि कट बंद हो जाए। इस विधि का प्रयोग बसंत ऋतु में या बरसात में किया जाता है। आम, सेब, नाशपती, गुलाब आदि के लिए यह तरीका आजमाया जाता है।

प्रश्न 6.
शीशम की नर्सरी तैयार करने के लिए संक्षेप में जानकारी दें।
उत्तर-
टाहली (शीशम) की नर्सरी तैयार करने के लिए इसकी पकी हुई फलियों को दिसम्बर से जनवरी के महीने में सेहतमंद और सीधे तने वाले पेड़ों से इकट्ठी करनी चाहिए। नर्सरी गमलों, लिफाफों या क्यारियों में तैयार की जा सकती है। नर्सरी तैयार करने का सही समय जनवरी-फरवरी और जुलाई-अगस्त है। बोवाई से पहले फलियों या बीजों को 48 घण्टों के लिए ठंडे पानी में डूबो कर रखना चाहिए। बीज को 1 से 1.5 सैं० मी० गहरा बीजना चाहिए। 10-15 दिनों बाद बीज अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं। जब पौधे 5-10 सैं०मी० ऊँचे हो जाएं तो इनको 15 × 10 सैं०मी० दूरी पर खुला रखना चाहिए। एक एकड़ में नर्सरी की क्यारियाँ तैयार करने के लिए 2-3.5 किलो फलियों की ज़रूरत होती है। इसमें से 60,000 पौधे तैयार हो सकते हैं।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 7.
फूलों की पनीरी तैयार करने की विधि बताएँ।
उत्तर-
फूलों की पनीरी तैयार करने के लिए ऊँची क्यारियाँ या गमलों का प्रयोग किया जाता है। फूलों की पनीरी तैयार करने के लिए एक घन मीटर के हिसाब के साथ एक हिस्सा मिट्टी, एक हिस्सा पत्तों की खाद और एक हिस्सा रूड़ी की खाद में 45 ग्राम मियूरेट ऑफ़ पोटाश, 75 ग्राम किसान खाद, 75 ग्राम सुपरफास्फेट का मिश्रण मिलाओ। पनीरी तैयार करने के लिए बनाई क्यारियों के ऊपर तैयार खाद के मिश्रण की 2-3 सैं०मी० परत डालो। फिर इस सतह के ऊपर बीज बिखेर दो और इसी मिश्रण के साथ इसको ढक दो। तुरन्त फव्वारे के साथ पानी दीजिए। यदि ये बीज नंगे हो जाएं तो इसे फिर मिश्रण के साथ ढक दीजिए। क्यारियों को लगातार गीला रखना चाहिए। पनीरी तैयार होने को 30-40 दिन लगते हैं।

प्रश्न 8.
क्यारियाँ तैयार करने के विषय में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
सब्जियों की पनीरी तैयार करने के लिए क्यारियाँ तैयार की जाती हैं। इसलिए खेत की अच्छी तरह से जुताई की जाती है और इसमें 1-1.25 मीटर चौड़ाई वाली क्यारियाँ तैयार की जाती हैं। यह ज़मीन से 15 सैं०मी० ऊँची बनाई जाती है। अगर खेत समतल हो तो इनको 3-4 मीटर से भी लम्बा बनाया जाता है, नहीं तो 3-4 मीटर लम्बी तो बनाई जाती हैं। क्यारियाँ तैयार करने से पहले ज़मीन में 3-4 क्विंटल गली-सड़ी गोबर की खाद प्रति मरले के हिसाब के साथ मिला देनी चाहिए। क्यारियों में बोवाई से कम-से-कम 10 दिन पहले पानी दो ताकि नदीनों को उगने का मौका मिल जाए, इस तरह बाद में नर्सरी में नदीनों की समस्या नहीं आएगी।

प्रश्न 9.
भूमि का चुनाव करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
पनीरी तैयार करने के लिए जमीन का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य बातें—

  1. जगह ऐसी हो जहाँ कम-से-कम 8 घंटे सूरज की रोशनी पड़ती हो।
  2. यहाँ पेड़ों की छाया नहीं होनी चाहिए।
  3. ज़मीन में पत्थर-रोड़े नहीं होने चाहिए।
  4. पानी का उचित प्रबन्ध होना।
  5. पानी निकास का उचित प्रबन्ध हो।
  6. रेतीली मैरा ज़मीन या चिकनी मैरा ज़मीन नर्सरी तैयार करने के लिए अच्छी मानी जाती है।

प्रश्न 10.
फलदार पौधों की नर्सरी किन विधियों से तैयार करनी चाहिए ?
उत्तर-
फलदार पौधों की नर्सरी को दो तरीकों के साथ तैयार किया जा सकता है(—
(1) बीज द्वारा
(2) वनस्पति द्वारा।

  1. बीज द्वारा नर्सरी तैयार करना-बीज द्वारा पौधे तैयार करना आसान और सस्ता तरीका है, पर इस तरीके के साथ तैयार किए पौधे एकसार नसल के नहीं होते और आकार
  2. वनस्पति द्वारा इस विधि द्वारा पौधे तैयार करने के तरीके हैं—
    • कलमों द्वारा
    • दाब के साथ पौधे तैयार करना
    • प्योंद चढ़ाना
    • जड़-मुढ़ पर आँख चढ़ाना।

इस तरीके के साथ पौधे एकसार नसल और आकार के होते हैं। फल भी जल्दी देते हैं। इसलिए वनस्पति द्वारा नर्सरी तैयार करने को पहल दी जाती है।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB पनीरियाँ तैयार करना Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सब्जियों की पनीरी तैयार करने का कमाई पक्ष के हिसाब से भविष्य कैसा है ?
उत्तर-
बहुत अच्छा है।

प्रश्न 2.
पनीरी वाली जगह पर सूरज की रोशनी कितने घंटे पड़नी चाहिए ?
उत्तर-
कम-से-कम 8 घण्टे।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 3.
पनीरी तैयार करने के लिए कौन-सी मिट्टी अच्छी है ?
उत्तर-
रेतीली मैरा या चिकनी मैरा।

प्रश्न 4.
सब्जी की पनीरी के लिए क्यारी की चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
1.0-1.25 मीटर चौड़ाई।

प्रश्न 5.
सब्जी की पनीरी के लिए क्यारियाँ ज़मीन से कितनी ऊँची होनी चाहिए ?
उत्तर-
15 सैं०मी०।

प्रश्न 6.
सब्जी की पनीरी के लिए क्यारी की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
कम-से-कम 3-4 मीटर।

प्रश्न 7.
सब्जी की पनीरी के लिए तैयार क्यारियों की शोध के लिए कौन-सी दवाई है?
उत्तर-
फार्मालीन 15-20% ताकत।

प्रश्न 8.
सब्जी की पनीरी के बीज की शोध कौन-सी दवाई के साथ की जाती है ?
उत्तर-
कैप्टान या थीरम।

प्रश्न 9.
बैंगन की पनीरी लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
अक्तूबर-नवम्बर, फरवरी-मार्च और जुलाई।

प्रश्न 10.
अगेती फूलगोभी की पनीरी लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
मई-जून।

प्रश्न 11.
मुख्य फसल के लिए फूलगोभी की पनीरी लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
जुलाई-अगस्त।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 12.
पिछेती फूलगोभी के लिए पनीरी लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
सितम्बर-अक्तूबर।

प्रश्न 13.
आषाढ़ी के प्याज की पनीरी लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
मध्य अक्तूबर से मध्य जून तक।

प्रश्न 14.
सावनी के प्याज लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
मध्य मार्च से मध्य जन तक।

प्रश्न 15.
बैंगन, शिमला मिर्च की पनीरी लगाने के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक एकड़ के लिए बीज की मात्रा 400 ग्राम मात्रा और इसी तरह मिर्च के लिए 200 ग्राम है।

प्रश्न 16.
फूलगोभी के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
500 ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 17.
फूलगोभी का मुख्य और पछेती फसल के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
250 ग्राम प्रति एकड़ दोनों के लिए।

प्रश्न 18.
अच्छा फायदा देने वाले फूल कौन-से हैं ?
उत्तर-
गलदाऊदी, डेलिया, मौसमी फूल।

प्रश्न 19.
फूलों की पनीरी कितने दिनों में तैयार हो जाती है ?
उत्तर-
30-40 दिनों में।

प्रश्न 20.
कलमों द्वारा तैयार किए जाने वाले फलदार पौधे कौन-से हैं ?
उत्तर-
अनार, मिट्ठा, आलूचा, अंजीर आदि।

प्रश्न 21.
कलम की लम्बाई और आँखों की गिनती बताओ।
उत्तर-
लम्बाई 6-8 ईंच और आँखों की गिनती 3-5.

प्रश्न 22.
उस पौधे को क्या कहते हैं? जिसके ऊपर प्योंद की जाती है।.
उत्तर-
जड़ मुढ़।

प्रश्न 23.
कौन-से फूल को प्योंद चढ़ा कर तैयार किया जाता है ?
उत्तर-
गुलाब।

प्रश्न 24.
वन खेती वाले पौधे कौन-से हैं ?
उत्तर-
पापलर, सफेदा, डेक, टाहली।

प्रश्न 25.
पापलर की कलम की लम्बाई तथा मोटाई बताओ।
उत्तर-
20-25 सैं०मी० लम्बी और 2-3 सैं०मी० मोटी।

प्रश्न 26.
पापलर की कलमों को दीमक और बीमारियों से बचाने के लिए कौन-सी दवाई है ?
उत्तर-
क्लोरपेरीफास और एमीसान।

प्रश्न 27.
पापलर की नर्सरी के लिए अच्छा समय बताओ।
उत्तर-
मध्य जनवरी से मध्य मार्च।

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प्रश्न 28.
पापलर के कितने साल वाले पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं ?
उत्तर-
एक साल के।

प्रश्न 29.1
सफेदे की पनीरी लगाने के लिए सही समय बताएं।
उत्तर-
फरवरी-मार्च या सितम्बर-अक्तूबर।

प्रश्न 30.
डेक की गटोलियाँ कब इकट्ठी की जाती हैं ?
उत्तर-
नवम्बर-दिसम्बर में।

प्रश्न 31.
डेक की नर्सरी बीजने का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

प्रश्न 32.
डेक के बीज कितने समय में अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं ?
उत्तर-
तीन सप्ताह के बाद।

प्रश्न 33.
पंजाब का राज्य वृक्ष कौन-सा है ?
उत्तर-
टाहली।

प्रश्न 34.
टाहली के बीजों को बोने से पहले कितने घंटे पानी में डूबो कर रखना चाहिए ?
उत्तर-
48 घंटों के लिए ठंडे पानी में।

प्रश्न 35.
एक एकड़ के लिए नर्सरी बोने के लिए टाहली की कितनी फलियां चाहिए ?
उत्तर-
2.0 से 3.5 किलो फलियां।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किस तरह की सब्जी की पनीरी तैयार की जा सकती है ?
उत्तर-
ऐसी सब्जियां जो उखाड़ कर दोबारा लगाने का झटका सह सकती हैं, उनकी पनीरी सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है।

प्रश्न 2.
सब्जियों की पनीरी के लिए कैसी भूमि का चुनाव करना चाहिए?
उत्तर-
जहाँ पर कम-से-कम 8 घंटे सूरज की रोशनी उपलब्ध हो और वृक्ष की छांव न हो और भूमि में पत्थर न हों।

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प्रश्न 3.
पनीरी के लिए रेतीली मैरा या चिकनी मैरा मिट्टी बढ़िया क्यों है ?
उत्तर-
इस मिट्टी में मल्ल और चिकनी मिट्टी ठीक मात्रा में होती है इसलिए।

प्रश्न 4.
सब्जियों की पनीरी के लिए क्यारियों के आकार के बारे में बताओ।
उत्तर–
क्यारियों की चौड़ाई 1.0 से 1.25 मीटर भूमि से 15 सैंमी० ऊँचाई और 3-4 मीटर लम्बी बनाओ।

प्रश्न 5.
भूमि की शुद्धि के बाद फार्मालीन का असर कैसे खत्म किया जाता है ?
उत्तर-
3-4 दिनों के लिए एक से दो बार क्यारियों की मिट्टी पलट कर फार्मालीन का असर खत्म किया जाता है।

प्रश्न 6.
सब्जियों के बीज की गहराई तथा पंक्तियों में फासला बताओ।
उत्तर-
बीज को 1-2 सैं०मी० गहराई और पंक्तियों में फासला 5 सैं०मी० रखकर बुवाई कीजिए।

प्रश्न 7.
सब्जियों की पनीरी को उखाड़ कर खेत में लगाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातें बताइए।
उत्तर-

  1. जब सब्जियों की पनीरी 4-6 सप्ताह की हो जाए तो उखाड़ने के योग्य हो जाती है।
  2. पनीरी को उखाड़ने के 3-4 दिन पहले नर्सरी को पानी नहीं देना चाहिए।
  3. पनीरी को हमेशा शाम को उखाड़ कर खेतों में लगाना चाहिए।
  4. पनीरी खेत में लगाने के बाद तुरन्त पानी लगा देना चाहिए।

प्रश्न 8.
मौसमी फूलों की पनीरी तैयार करने के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
75 ग्राम किसान खाद, 75 ग्राम सुपरफास्फेट, 45 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का मिश्रण, एक हिस्सा मिट्टी, एक हिस्सा पत्तों की खाद और एक हिस्सा रूढ़ी खाद प्रति घन मीटर के हिसाब से मिलाया जाता है।

प्रश्न 9.
बीज द्वारा तैयार फलदार पौधों में क्या समस्या आती है ?
उत्तर-
बीज से तैयार पौधे एक जैसे नहीं होते, आकार में भी बड़े हो जाते हैं और इनकी देखभाल मुश्किल होती है।

प्रश्न 10.
वनस्पति द्वारा तैयार पौधों का क्या लाभ है ?
उत्तर-
यह एक जैसे नसल और एक आकार के होते हैं। यह फल भी जल्दी देते हैं। इनके फलों के आकार, रंग और गुण भी एक जैसे होते हैं।

प्रश्न 11.
पापलर की कलमों के बारे में बताओ।
उत्तर–
पापलर की कलमें एक साल की आयु में पौधों से तैयार करनी चाहिए न कि कांट-छांट और टहनियों से। यह 20-25 सैं०मी० लम्बी और 2-3 सैं०मी० मोटी होनी चाहिए।

प्रश्न 12.
पापलर की कलमों को दीमक और बीमारियों से बचाने का क्या तरीका है ?
उत्तर-
कलमों को 0.5 प्रतिशत क्लोरपेरीफास, 20 ताकत के घोल में 10 मिनट डुबोने के बाद 0.5% एमिसान पाऊडर के घोल में 10 मिनट के लिए डूबो कर प्रयोग किया जाता

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विभिन्न फलों के लिए पत्ते लेने की विधि बताओ।
उत्तर-

फल पत्ते लेने की विधि
आम मार्च-अप्रैल में 5-7 महीनों के 30 पत्ते लो। जिन शाखों से पत्ते लेने हैं उन्हें फल तथा फूल न लगे हों।
आलूचा उसी वर्ष की शाखों (फोट) के बीच से मध्य मई से मध्य जुलाई तक में 3-4 महीने के 100 पत्ते लो।
आडू उसी वर्ष की शाखों (फोट) के बीच से मध्य मई से मध्य जुलाई में 3-4 महीने के 100 पत्ते लो।
अमरूद 5-7 महीने पुरानी बीच वाली शाखों से (जहां फल न लगे हों) अगस्तअक्तूबर में 50-60 पत्ते लो।
नींबू जाति फल के बिल्कुल पीछे से 4-8 महीने पुराने 100 पत्ते जुलाई-अक्तूबर तक लो।
बेर उसी वर्ष की शाखों (फोट) के बीच से 5-7 महीने के 70-80 पत्ते नवम्बर-जनवरी में लो।
नाशपाती उसी वर्ष की शाखों (फोट) के बीच से 4-6 महीने के 50-60 पत्ते जुलाई-सितम्बर में लो।

 

प्रश्न 2.
आम की प्योंद करने के बारे आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
आमों की कृषि प्योंद द्वारा की जाती है। इस उद्देश्य के लिए अच्छी तरह तैयार किए खेत में आम की गुठलियों को अगस्त महीने में बो देना चाहिए। इन्हें उगने में 2 हफ्ते लगते हैं। उगने के पश्चात् जब पत्ते हल्के रंग के ही हों तथा पत्ते का आकार साधारण से 1/4 हिस्सा हो तो यह पौधे उखाड़ लें। पौध के लिए पौधे अप्रैल तक पूरी तरह तैयार हो जाते हैं। प्योंद करने से पहले साफ-सुथरी तथा मज़बूत आंख तैयार कर लेनी चाहिए। प्योंद डाली का चुनाव करके उसके पत्ते उतार दें। 7-10 दिनों में डंडियां सूख कर गिर जाएंगी तथा आंखें थोड़ा ऊपर आ जाती हैं। इस प्योंद डाली को काट कर प्योंद कर दें। इस तरह प्योंद हुई डाली के निचले सिरे पर भी तिरछी कट लगा दें तथा उससे भी छील उतार दो। इस डाली की लम्बाई 8 सें० मी० से अधिक भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिक लम्बाई से प्योंद डाली टूट सकती है। तैयार की हुई प्योंद काटे हुए छिलके के नीचे फंसा दी जाती है। बाद में कटे हुए छिलके को उसकी वास्तविक स्थिति में लाया जाता है। प्योंद किए भाग को 150200 गेज की पॉलीथीन पट्टियों से कस कर बांध दो। प्योंद करने के पश्चात् पौधे का ऊपरी सिरा वहीं रहने दिया जाता है तथा प्योंद की आंख फूट पड़ने के बाद पौधे का उससे ऊपरी हिस्सा काट दिया जाता है। इस विधि से आम की प्योंद मार्च से अक्तूबर महीने तक करनी चाहिए पर मई से अक्तूबर के महीने इसकी सफलता कम होती है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

प्रश्न 3.
नाशपाती, आड़ तथा अलूचे की पनीरी तैयार करने के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-

  1. नाशपाती-इसकी प्योंद जंगली नाशपाती अथवा कैंथ के पौधों से की जाती है। टंग ग्राफ्टिंग जनवरी-फरवरी के महीने जबकि टी-बडिंग तरीके से पौध जून से अगस्त महीने में की जाती है। एक वर्ष से तीन वर्ष तक के पौधे सर्दियों में मध्य फरवरी तक तथा बड़ी आयु के पौधे दिसम्बर के अन्त तक लगाने चाहिएं।
  2. आलूचा-आलूचा जनवरी के मध्य तक लगाने चाहिएं। इन दिनों में पौधे सुप्तावस्था में होते हैं। आलूचे को सीधा काबल ग्रीन गेज की कलम पर ग्राफ्ट करके लगाओ। उनके निचले 5-7.5 सें० मी० हिस्से को आई० ऐ० 100 पी० पी० एम० के घोल में 24 घण्टे के लिए डुबो कर रखना चाहिए।
  3. आड़-उनकी वृद्धि पौध द्वारा अथवा आंख चढ़ा कर की जाती है। आडुओं की नस्ली वृद्धि के लिए शर्बती अथवा देसी किस्म के आड़ जैसे खुमानी के बीजों से तैयार हुई पौधों की जाती है। क्योंकि फ्लोरिडाशन किस्म के बीज कम होते हैं, इसलिए नस्लीय वृद्धि के लिए इनका प्रयोग नहीं किया जाता।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. शीशम पंजाब का राज्य वृक्ष है
  2. सब्जियों के बीज की सुधाई कैपटान से की जाती है।
  3. सूर्यमुखी सर्दी का फूल है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
सर्दी का फूल है—
(क) गेंदा
(ख) बर्फ
(ग) फलोक्स
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

प्रश्न 2.
अगेती फूल गोभी की पनीरी लगाने का समय है—
(क) मई-जून
(ख) जनवरी
(ग) दिसंबर
(घ) कोई नहीं
उत्तर-
(क) मई-जून

प्रश्न 3.
वन्य कृषि वाला पौधा है—
(क) पापलर
(ख) पीपल
(ग) अमरूद
(घ) आम।
उत्तर-
(क) पापलर

रिक्त स्थान भरें

  1. गुलशर्फी ………. ऋतु का फूल है।
  2. शिमला मिर्च की सब्जी ………… द्वारा लगाई जाती है।
  3. फूलगोभी की मुख्य फसल के लिए बीज की मात्रा है …………… ग्राम प्रति एकड़ है।

उत्तर-

  1. सर्दी,
  2. पनीरी,
  3. 250

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 2 पनीरियाँ तैयार करना

पनीरियाँ तैयार करना PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • पनीरी कम भूमि में तैयार हो जाती है और यह एक लाभदायक व्यवसाय है।
  • सब्ज़ियाँ, फूलों, फलों और वनस्पति के पौधों की पनीरी तैयार करके अच्छी आय ली जा सकती है।
  • बीज मूल्यवान होते हैं और पनीरी तैयार करके इनका समुचित प्रयोग किया जा सकता है।
  • छोटे किसान स्वयं पनीरी उगा कर सब्जी की फसल की तुलना में कई गुणा ज़्यादा फायदा ले सकते हैं।
  • उन सब्जियों की ही पनीरी सफलता से उगाई जा सकती है, जो ऊखाड़ कर फिर दोबारा लगाए जाने के झटके (आघात) को सहन कर सके।
  • पनीरी लगाई जाने वाले स्थान पर कम-से-कम 8 घंटे सूरज की रोशनी पड़नी चाहिए।
  • पनीरी वाली क्यारियाँ भूमि से 15 सैं०मी० ऊँची होनी चाहिए।
  • क्यारियों की मिट्टी को बीज बोने से पहले फारमालीन दवाई से शुद्ध कर लेना चाहिए।
  • पनीरी वाले बीज को कैप्टान या थीरम से शुद्ध करके बोना चाहिए।
  • सब्जियों की पनीरी जब 4-6 सप्ताह की हो जाए तो उन्हें उखाड़ कर मुख्य खेत में लगा दीजिए।
  • गर्मी ऋतु के फूल हैं-सूरजमुखी, जीनिया, कोचिया आदि।
  • शर्द ऋतु के फूल हैं-गेंदा, गुलशर्फी, बरफ, गार्डन पी, फलोक्स आदि।
  • मौसमी फूलों की पनीरी 30-40 दिनों में तैयार हो जाती है।
  • फलयुक्त पौधे जैसे कि पपीता, जामुन, फालसा, करौंदा को जड़ आधार पद्धति से तैयार किए जाते हैं।
  • कलमों द्वारा तैयार किए जाते पौधे हैं-बारामासी नींबू, मिठा, आलूचा, अनार और अंजीर।
  • फलों के पौधे जैसे-किन्नू, आम, अमरूद, नाशपाती, आड़, सेब आदि को प्योंद द्वारा तैयार किया जाता है।
  • वन कृषि में पापलर, सफैदा, डेक (धरक) और (टाहली) आदि लगाए जाते हैं।
  • डेक की नर्सरी बीजों द्वारा तैयार की जाती है।
  • टाहली (शीशम) पंजाब का राज्य वृक्ष है।
  • कलमों को दीमक और बीमारियों से बचाने के लिए क्लोरपेरीफास और एमिसान का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

SST Guide for Class 8 PSEB ग्रामीण जीवन तथा समाज Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें:

प्रश्न 1.
स्थायी बन्दोबस्त किसने, कब तथा कहां आरंभ किया ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त लार्ड कार्नवालिस ने 1793 ई० में बंगाल में आ म किया। बाद में यह व्यवस्था बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में भी लागू की गई।

प्रश्न 2.
रैयतवाड़ी व्यवस्था किसने, कब तथा कहां-कहां शुरू की गई ? (P.B. 2009 Set-B)
उत्तर-
रैयतवाड़ी व्यवस्था 1820 ई० में अंग्रेज़ अधिकारी थॉमस मुनरो ने मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में शुरू की।

प्रश्न 3.
महलवाड़ी व्यवस्था कौन-से तीन क्षेत्रों में लाग की गयी?
उत्तर-
महलवाड़ी व्यवस्था उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू की गयी।

प्रश्न 4.
कृषि का वाणिज्यीकरण कैसे हुआ ?
उत्तर-
अंग्रेजी शासन से पूर्व कृषि गांव के लोगों की जरूरतों को ही पूरा करती थी। परन्तु अंग्रेजों द्वारा नई भूमिकर प्रणालियों के बाद किसान मण्डी में बेचने के लिए फसलें उगाने लगे ताकि अधिक-से-अधिक धन कमाया जा सके। इस प्रकार गांवों में कृषि का वाणिज्यीकरण हो गया।

प्रश्न 5.
वाणिज्यीकरण की मुख्य फ़सलें कौन-सी थीं ?
उत्तर-
वाणिज्यीकरण की मुख्य फ़सलें गेहूँ, कपास, तेल के बीज, गन्ना, पटसन आदि थीं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

प्रश्न 6.
कृषि के वाणिज्यीकरण के दो मुख्य लाभ बतायें।
उत्तर-

  1. कृषि के वाणिज्यीकरण के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाने लगीं। इससे पैदावार में भी वृद्धि हुई।
  2. फ़सलों को नगर की मण्डियों तक ले जाने के लिए यातायात के साधनों का विकास हुआ।

प्रश्न 7.
कृषि के वाणिज्यीकरण के दो मुख्य दोष लिखें।
उत्तर-

  1. भारतीय किसान पुराने ढंग से कृषि करते थे। अतः मण्डियों में उनकी फ़सलें विदेशों में मशीनी कृषि द्वारा उगाई गई फ़सलों का मुकाबला नहीं कर पाती थीं। परिणामस्वरूप उन्हें अधिक लाभ नहीं होता था।
  2. मण्डी में किसान को अपनी फ़सल आढ़ती की सहायता से बेचनी पड़ती थी। आढ़ती मुनाफ़े का एक बड़ा भाग अपने पास रख लेते थे।

प्रश्न 8.
स्थायी बन्दोबस्त क्या था तथा उसके क्या आर्थिक प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त एक भूमि प्रबन्ध था। इसे 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खजाने में जमा करवाते थे। परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी।

आर्थिक प्रभाव-स्थायी बन्दोबस्त से सरकार की आय तो निश्चित हो गई, परन्तु किसानों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ज़मींदार उनका शोषण करने लगे। ज़मींदार भूमि-सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। फलस्वरूप किसान की पैदावार दिन-प्रतिदिन घटने लगी।

प्रश्न 9.
कृषि वाणिज्यीकरण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से पहले गांव आत्मनिर्भर थे। लोग कृषि करते थे जिसका उद्देश्य गांव की ज़रूरतों को पूरा करना होता था। फ़सलों को बेचा नहीं जाता था। गांव के अन्य कामगार जैसे कुम्हार, बुनकर, चर्मकार, बढ़ई, लुहार, धोबी, बारबर आदि सभी मिलकर एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते थे। परन्तु अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद गांवों की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई। नई भूमि-कर प्रणालियों के अनुसार किसानों को लगान की निश्चित राशि निश्चित समय पर चुकानी होती थी। पैसा पाने के लिए किसान अब मण्डी में बेचने के लिए फ़सलें उगाने लगे ताकि समय पर लगान चुकाया जा सके। इस प्रकार कृषि का उद्देश्य अब धन कमाना हो गया। इसे कृषि का वाणिज्यीकरण कहा जाता है। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद भारत में कृषि के वाणिज्यीकरण की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई। अब किसानों को ऐसी फ़सलें उगाने के लिए विवश किया गया जिनसे इंग्लैण्ड के कारखानों को कच्चा माल मिल सके।

प्रश्न 10.
नील विद्रोह पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
नील विद्रोह नील की खेती करने वाले किसानों द्वारा नील उत्पादन पर अधिक लगान के विरोध में किये गये। 1858 ई० से 1860 ई० के बीच बंगाल तथा बिहार के एक बहुत बड़े भाग में नील विद्रोह हुआ। यहां के किसानों ने नील उगाने से इन्कार कर दिया। सरकार ने उन्हें बहुत डराया-धमकाया। परन्तु वे अपनी जिद्द पर अड़े रहे। जब सरकार ने कठोरता से काम लिया तो वे अंग्रेज़ काश्तकारों की फैक्टरियों पर हमला करके लूटमार करने लगे। उन्हें रोकने के लिए सभी सरकारी प्रयास असफल रहे।

1866-68 ई० में नील की खेती के विरुद्ध बिहार के चम्पारण जिले में विद्रोह हुआ। यह विद्रोह 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक जारी रहा। उनके समर्थन में गांधी जी आगे आए। तभी समस्या का समाधान हो सका।

प्रश्न 11.
महलवाड़ी व्यवस्था पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
महलवाड़ी व्यवस्था रैयतवाड़ी प्रबन्ध के दोषों को दूर करने के लिए की गयी। इसे उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू किया गया। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाईचारे के साथ होता था। भूमि-कर देने के लिए गांव का समूचा भाईचारा ही उत्तरदायी होता था। भाई-चारे में यह निश्चित कर दिया गया था कि प्रत्येक किसान को क्या कुछ देना है। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी प्राप्ति गांव के भाई-चारे से की जाती थी। … इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि-कर (लगान) देना पड़ता था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

प्रश्न 12.
रैयतवाड़ी व्यवस्था के लाभ लिखें।
अथवा
रैयतवाड़ी प्रबन्ध पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
1820 ई० में थॉमस मुनरो मद्रास (चेन्नई) का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नये ढंग से किया, जिसे रैयतवाड़ी व्यवस्था के नाम से पुकारा जाता है। इसे मद्रास तथा बम्बई में लागू किया गया। इसके अनुसार सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो स्वयं कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया गया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक अच्छा था। इसमें कृषकों को भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनका लगान निश्चित कर दिया गया जो उपज का 40% से 55% तक था। इससे सरकारी आय में भी वृद्धि हुई।

इस प्रथा में कुछ दोष भी थे। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा और गांव की पंचायतों का महत्त्व कम हो गया। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा किसानों का शोषण होने लगा। कई ग़रीब किसानों को लगान चुकाने के लिए साहूकारों से धन उधार लेना पड़ा। इसके लिए उन्हें अपनी ज़मीनें गिरवी रखनी पड़ी।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. ठेकेदार किसानों को अधिक-से-अधिक …………… थे।
2. स्थायी बंदोबस्त के कारण …………… भूमि के मालिक बन गए।
3. ज़मींदार किसानों पर ………….. करते थे।
4. भारत में अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारतीय लोगों का प्रमुख कार्य………….करना था।
उत्तर-

  1. लूटते,
  2. ज़मींदार,
  3. बहुत जुल्म/अत्याचार,
  4. कृषि।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं :

1. भारत में अंग्रेज़ी शासन हो जाने से गांवों की आत्मनिर्भर व्यवस्था को बहुत लाभ हुआ। (✗)
2. महलवाड़ी प्रबन्ध गांव के सामूहिक भाईचारे से किया जाता था। (✓)
3. बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त अनुसार अंग्रेज़ों ने बिक्री कानून लागू किया। (✓)

IV. सही जोड़े बनाएं:

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज 1

PSEB 8th Class Social Science Guide ग्रामीण जीवन तथा समाज Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही विकल्प चुनिए:

प्रश्न 1.
महलवाड़ी व्यवस्था कहां लागू की गई ?
(i) उत्तर प्रदेश
(ii) पंजाब
(iii) मध्य भारत
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी

प्रश्न 2.
थामस मुनरो द्वारा लागू भूमि व्यवस्था कौन-सी थी ?
(i) रैय्यतवाड़ी
(ii) महलवाड़ी
(iii) स्थायी बंदोबस्त
(iv) ठेका व्यवस्था।
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी

प्रश्न 3.
नील विद्रोह कहाँ फैला ?
(i) पंजाब तथा उत्तर प्रदेश
(ii) बंगाल तथा बिहार
(iii) राजस्थान तथा मध्य भारत
(iv) दक्षिणी भारत।
उत्तर-
बंगाल तथा बिहार।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों से भारतीय उद्योग क्यों तबाह हो गए ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों ने भारत में कुछ नये उद्योग स्थापित किए। इनका उद्देश्य अंग्रेजी हितों को पूरा करना था। परिणामस्वरूप भारतीय उद्योग तबाह हो गए।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारत में लगान (भूमि-कर) के कौन-कौन से तीन नए प्रबन्ध लागू किए ?
उत्तर-
(1) स्थायी बन्दोबस्त (2) रैयतवाड़ी प्रबन्ध तथा (3) महलवाड़ी प्रबन्ध।

प्रश्न 3.
अंग्रेज़ों की भूमि सम्बन्धी नीतियों का मुख्य उद्देश्य क्या था ? .
उत्तर-
भारत से अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करना।

प्रश्न 4.
अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी कब प्राप्त हुई ? वहां लगान इकट्ठा करने का काम किसे सौंपा गया ?
उत्तर-
अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी 1765 ई० में प्राप्त हुई। वहां से लगान इकट्ठा करने का काम आमिलों को सौंपा गया।

प्रश्न 5.
इज़ारेदारी किसने लागू की थी ? इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
इज़ारेदारी लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्ज़ ने लागू की थी। इसका अर्थ है-ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध।

प्रश्न 6.
रैयतवाड़ी प्रबन्ध में लगान की राशि कितने वर्षों बाद बढ़ाई जाती थी ?
उत्तर-
20 से 30 वर्षों बाद।

प्रश्न 7.
महलवाड़ी प्रबन्ध का मुख्य दोष क्या था ?
उत्तर-
इसमें किसानों को बहुत अधिक लगान देना पड़ता था।

प्रश्न 8.
कृषि का वाणिज्यीकरण कौन-कौन से पांच क्षेत्रों में सबसे अधिक हुआ ?
उत्तर-
पंजाब, बंगाल, गुजरात, खानदेश तथा बरार में।

प्रश्न 9.
बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त के अनुसार लागू किया गया बिक्री कानून क्या था ?
उत्तर-
बिक्री कानून के अनुसार जो ज़मींदार हर साल 31 मार्च तक लगान की राशि सरकारी खज़ाने में जमा नहीं करवाता था, उसकी ज़मीन किसी दूसरे ज़मींदार को बेच दी जाती थी।

प्रश्न 10.
किसान विद्रोहों का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
किसान विद्रोहों का मुख्य कारण अधिक लगान तथा इसे कठोरता से वसूल करना था। इससे किसानों की दशा खराब हो गई। इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉर्ड वारेन हेस्टिग्ज़ द्वारा लागू इजारेदारी प्रथा पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
इज़ारेदारी का अर्थ है-ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध। यह प्रथा वारेन हेस्टिग्ज़ ने आरम्भ की। इसके अनुसार भूमि का पांच साला ठेका दिया जाता था। जो ज़मींदार भूमि की सबसे अधिक बोली देता था उसे उस भूमि से पांच साल तक लगान वसूल करने का अधिकार दे दिया जाता था। 1777 ई० में पांच साला ठेके के स्थान पर एक साला ठेका दिया जाने लगा। परन्तु ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध बहुत ही दोषपूर्ण था। ज़मींदार (ठेकेदार) किसानों को बहुत अधिक लूटते थे। इसलिए किसानों की आर्थिक दशा खराब हो गई।

प्रश्न 2.
स्थायी बन्दोबस्त से किसानों की अपेक्षा ज़मींदारों को अधिक लाभ कैसे पहुंचा ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त के कारण ज़मींदारों को बहुत लाभ हुआ। अब वे भूमि के स्थायी स्वामी बन गए। उनको भूमि बेचने या बदलने का अधिकार मिल गया। वे निश्चित लगान कम्पनी को देते थे परन्तु वे किसानों से अपनी इच्छानुसार लगान वसूल करते थे। यदि कोई किसान लगान न दे पाता तो उससे भूमि छीन ली जाती थी। अधिकतर जमींदार शहरों में विलासी जीवन बिताते थे जबकि किसान ग़रीबी और भूख के वातावरण में अपने दिन बिताते थे। अत: हम कह सकते थे कि स्थायी बन्दोबस्त से किसानों की अपेक्षा ज़मींदारों को अधिक लाभ पहुंचा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई नई भू-राजस्व व्यवस्थाओं के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई नई भू-राजस्व व्यवस्थाओं के बहुत बुरे प्रभाव पड़े-

  • ज़मींदार किसानों का बहुत अधिक शोषण करते थे। लगान वसूल करते समय उन पर तरह-तरह के अत्याचार भी किये जाते थे। सरकार उन्हें अत्याचार करने से नहीं रोकती थी।
  • ज़मींदार सरकार को निश्चित लगान देकर भूमि के स्वामी बन गए। वे किसानों से मनचाहा कर वसूल करते थे। इससे ज़मींदार तो धनी होते गए, जबकि किसान दिन-प्रतिदिन ग़रीब होते गए।
  • जिन स्थानों पर रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रबन्ध लागू किए गए, वहां सरकार स्वयं किसानों का शोषण करती थी। इन क्षेत्रों में उपज का 1/3 भाग से लेकर 1/2 भाग तक भूमि-कर के रूप में वसूल किया जाता था। लगान की दर हर साल बढ़ती जाती थी।
  • भूमि के निजी सम्पत्ति बन जाने के कारण इसका परिवार के सदस्यों में बंटवारा होने लगा। इस प्रकार भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटती गई।
  • किसानों को निश्चित तिथि पर लगान चुकाना होता था। अकाल, बाढ़, सूखे आदि की दशा में भी उनका लगान माफ़ नहीं किया जाता था। इसलिए लगान चुकाने के लिए उन्हें अपनी ज़मीन साहूकार के पास गिरवी रख कर धन उधार लेना पड़ता था। इस प्रकार वे अपनी ज़मीनों से भी हाथ धो बैठे और उनका ऋण भी लगातार बढ़ता गया जिसे वे जीवन भर नहीं उतार पाये।
  • सच तो यह है कि अंग्रेज़ी सरकार की कृषि-भूमि सम्बन्धी नीतियों का मुख्य उद्देश्य अधिक-से-अधिक धन प्राप्त करना तथा अपने प्रशासनिक हितों की पूर्ति करना था। अतः इन नीतियों ने किसानों को ग़रीबी तथा ऋण की जंजीरों में जकड़ लिया।

प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजों के शासन के समय लागू किये गए स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी प्रबन्ध ( व्यवस्था) तथा महलवाड़ी प्रबन्ध (व्यवस्था) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रबन्ध अंग्रेजों द्वारा लागू नई लगान प्रणालियां थीं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :
1. स्थायी बन्दोबस्त- भूमि का स्थायी बन्दोबस्त 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में भी लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी मान लिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खजाने में जमा करवाते थे। परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी।
स्थायी बन्दोबस्त से सरकार की आय तो निश्चित हो गई, परन्तु किसानों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ज़मींदार उनका शोषण करने लगे।

2. रैयतवाड़ी व्यवस्था-1820 ई० में थॉमस मुनरो मद्रास (चेन्नई) का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नये ढंग से किया, जिसे रैयतवाड़ी व्यवस्था के नाम से पुकारा जाता है। इसे मद्रास तथा बम्बई में लागू किया गया। सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो स्वयं कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया गया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक अच्छा था। इसमें कृषकों के अधिकार बढ़ गये तथा सरकारी आय में भी वृद्धि हुई।

इस प्रथा में कुछ दोष भी थे। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा और गांव की पंचायतों का महत्त्व कम हो गया। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा किसानों का शोषण होने लगा। कई गरीब किसानों को लगान चुकाने के लिए साहूकारों से धन उधार लेना पड़ा। इसके लिए उन्हें अपनी ज़मीनें गिरवी रखनी पड़ी।

3. महलवाड़ी व्यवस्था (प्रबंध)-महलवाड़ी प्रबन्ध रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोषों को दूर करने के लिए किया गया। इसे उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू किया गया। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाई-चारे के साथ होता था। भूमि-कर देने के लिए गांव का समूचा भाई-चारा ही उत्तरदायी होता था। भाई-चारे में यह निश्चित कर दिया गया था कि प्रत्येक किसान को क्या कुछ देना है। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी प्राप्ति गांव के भाई-चारे से की जाती थी। इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि कर (लगान) देना पड़ता था।

प्रश्न 3.
स्थायी बन्दोबस्त क्या है तथा इसके मुख्य लाभ तथा हानियां भी बताएं।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त एक भूमि प्रबन्ध था। इसे 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खज़ाने में जमा करवाते थे, परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी। इससे किसान की पैदावार दिन-प्रतिदिन घटने लगी।

स्थायी बन्दोबस्त के लाभ-स्थायी बंदोबस्त का लाभ मुख्यतः सरकार तथा ज़मींदारों को पहुंचा –

  1. इस बन्दोबस्त द्वारा ज़मींदार भूमि के स्वामी बन गए।
  2. अंग्रेजी सरकार की आय निश्चित हो गई।
  3. ज़मींदार धनी बन गए। उन्होंने अपना धन उद्योग स्थापित करने तथा व्यापार के विकास में लगाया।
  4. भूमि का स्वामी बना दिए जाने के कारण ज़मींदार अंग्रेजों के वफ़ादार बन गए। उन्होंने भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींव को मज़बूत बनाने में सहायता की।
  5. लगान को बार-बार निश्चित करने की समस्या न रही।
  6. ज़मींदारों के प्रयत्नों से कृषि का बहुत विकास हुआ।

हानियां अथवा दोष-स्थायी बन्दोबस्त में निम्नलिखित दोष थे-

  1. ज़मींदार किसानों पर बहुत अधिक अत्याचार करने लगे।
  2. सरकार की आय निश्चित हो गई थी, परन्तु उसका खर्चा लगातार बढ़ रहा था। इसलिए सरकार को लगातार हानि होने लगी।
  3. करों का बोझ उन लोगों पर पड़ने लगा जो खेती नहीं करते थे।
  4. सरकार का किसानों के साथ कोई सीधा सम्पर्क न रहा।
  5. इस बन्दोबस्त ने बहुत से ज़मींदारों को आलसी तथा ऐश्वर्यप्रिय बना दिया।

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प्रश्न 4.
किसान विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर–
किसान विद्रोहों के निम्नलिखित कारण थे-

1. अधिक लगान-अंग्रेजों ने भारत के जीते हुए प्रदेशों में अलग-अलग लगान-प्रणालियां लागू की थीं। इनके अनुसार किसानों को बहुत अधिक लगान देना पड़ता था। इसलिए वे साहूकारों के ऋणी हो गए जिससे उनकी आर्थिक दशा खराब हो गई।

2. बिक्री कानून-बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त के अनुसार सरकार ने बिक्री कानून लागू किया। इसके अनुसार जो जमींदार हर साल अपना लगान मार्च तक सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाता था, उस की भूमि छीन कर किसी और ज़मींदार को बेच दी जाती थी। इसके कारण ज़मींदारों तथा उनकी भूमि पर खेती करने वाले किसानों में रोष फैला हुआ था।

3. ज़मीनें जब्त करना-मुग़ल बादशाहों द्वारा राज्य के जागीरदारों को कुछ ज़मीनें ईनाम में दी गई थीं। ये ज़मीनें कर-मुक्त थीं। परन्तु अंग्रेजों ने ये ज़मीनें जब्त कर ली और इन पर फिर से कर लगा दिया। इतना ही नहीं लगान में वृद्धि भी कर दी गई। उनसे लगान वसूल करते समय कठोरता से काम लिया जाता था।

मुख्य किसान विद्रोह-

(1) अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के पश्चात् शीघ्र ही बंगाल में एक विद्रोह हुआ। इसमें किसानों, संन्यासियों तथा फ़कीरों ने भाग लिया। उन्होंने शस्त्र धारण करके जत्थे बना लिये। इन जत्थों ने अंग्रेजी सैनिक टुकड़ियों को बहुत अधिक परेशान किया। इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ी सरकार को लगभग 30 वर्ष लग गये।

(2) 1822 ई० में रामोसी किसानों ने चित्तौड़, सतारा तथा सूरत में अधिक लगान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 1825 में सरकार ने सेना तथा कूटनीति के बल पर विद्रोह को दबा दिया। उनमें से कुछ विद्रोहियों को पुलिस में भर्ती कर लिया गया, जबकि अन्य विद्रोहियों को ग्रांट में ज़मीनें देकर शांत कर दिया गया।

(3) 1829 में सेंडोवे जिले के किसानों ने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने नेता के नेतृत्व में अंग्रेज़ी पुलिस पर हमले किये और बड़ी संख्या में उन्हें मार डाला।

(4) 1835 ई० में गंजम जिले के किसानों ने धनंजय के नेतृत्व में विद्रोह किया। यह विद्रोह फरवरी, 1837 ई० तक चलता रहा। विद्रोहियों ने वृक्ष गिरा कर अंग्रेज़ी सेना के रास्ते बन्द कर दिए। अन्त में सरकार ने एक बहुत बड़े सैनिक बल की सहायता से विद्रोह का दमन कर दिया।

(5) 1842 ई० में सागर में अन्य किसान विद्रोह हुआ। इसका नेतृत्व बुन्देल ज़मींदार माधुकर ने किया। इस विद्रोह में किसानों ने कई पुलिस अफसरों को मौत के घाट उतार दिया तथा अनेक कस्बों में लूटमार की।

सरकार द्वारा अधिक लगान लगाने तथा ज़मीनें जब्त करने के विरोध में देश के अन्य भागों में भी किसान विद्रोह हुए। इन विद्रोहों में पटियाला तथा रावलपिंडी (आधुनिक पाकिस्तान में) के किसान विद्रोहों का नाम लिया जा सकता है।

प्रश्न 5.
भारत में अंग्रेजों के राज्य के समय हुए कृषि के वाणिज्यीकरण के बारे में लिखो।
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना से पहले गांव आत्मनिर्भर थे। लोग कृषि करते थे जिसका उद्देश्य गांव की ज़रूरतों को पूरा करना होता था। फ़सलों को बेचा नहीं जाता था। गांव के अन्य कामगार जैसे कुम्हार, जुलाहे, चर्मकार, बढ़ई, लुहार, धोबी, बार्बर आदि सभी मिलकर एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते थे। परन्तु अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद गांवों की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई। नई भूमि-कर प्रणालियों के अनुसार किसानों को लगान की निश्चित राशि निश्चित समय पर चुकानी होती थी। पैसा पाने के लिए किसान अब मंडी में बेचने के लिए फ़सलें उगाने लगे ताकि समय पर लगान चुकाया जा सके। इस प्रकार कृषि का उद्देश्य अब धन कमाना हो गया। इसे कृषि का वाणिज्यीकरण कहा जाता है। इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारत में कृषि के वाणिज्यीकरण की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई। अब किसानों को ऐसी फ़सलें उगाने के लिए विवश किया गया जिनसे इंग्लैंड के कारखानों को कच्चा माल मिल सके।

वाणिज्यीकरण के प्रभाव –
लाभ-

  1. भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाने से उत्पादन बढ़ गया।
  2. फ़सलों को नगरों की मण्डियों तक ले जाने के लिए यातायात के साधनों का विकास हुआ।
  3. नगरों में जाने वाले किसान कपड़ा तथा घर के लिए अन्य ज़रूरी वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर खरीद कर ला सकते थे।
  4. शहरों के साथ सम्पर्क हो जाने से किसानों का दृष्टिकोण विशाल हुआ। परिणामस्वरूप उनमें धीरे-धीरे राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न होने लगी।

हानियां-

  1. भारतीय किसान पुराने ढंग से कृषि करते थे। अतः मण्डियों में उनकी फ़सलें विदेशों में मशीनी कृषि द्वारा उगाई गई फ़सलों का मुकाबला नहीं कर पाती थीं। परिणामस्वरूप उन्हें अधिक लाभ नहीं मिल पाता था।
  2. मण्डी में किसान को अपनी फ़सल आढ़ती की सहायता से बेचनी पड़ती थी। आढ़ती मुनाफ़े का एक बड़ा भाग अपने पास रख लेते थे। इसके अतिरिक्त कई बिचौलिए भी थे। इस प्रकार किसान को उसकी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता था।

ग्रामीण जीवन तथा समाज PSEB 8th Class Social Science Notes

  • अंग्रेज़ों की भूमि-कर व्यवस्था – कम्पनी को 1765 ई० में शाह आलम से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिली थी। फलस्वरूप कम्पनी ने इन प्रान्तों से लगान (भू-राजस्व) वसूल करना आरम्भ कर दिया। कम्पनी अधिक-से-अधिक लगान प्राप्त करना चाहती थी। अत: उसने नई-नई भू-व्यवस्थाएं लागू की।
  • इजारेदारी – आरम्भ में कम्पनी ने भूमि का ठेका देना शुरू किया। सबसे अधिक बोली देने वाले इजारेदार को, उस इलाके से कर उगाहने का अधिकार दे दिया जाता था। यह प्रथा अधिक सफल न हुई।
  • नये भूमि प्रबन्ध – इजारेदारी के बाद अंग्रेजों ने भारत में भूमि का प्रबन्ध भिन्न-भिन्न ढंग से किया। इनमें
    से स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी और महलवाड़ी प्रबन्ध प्रमुख थे।
  • स्थायी बन्दोबस्त-भूमि का स्थायी बन्दोबस्त लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई० में बंगाल में किया। इसके अनुसार ज़मींदारों को भूमि का स्थायी स्वामी मान लिया गया।
  • रैयतवाड़ी प्रबन्ध – रैयतवाड़ी व्यवस्था तत्कालीन मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में लागू की गई।
    इसके अनुसार सरकारी अधिकारी किसानों से सीधे राजस्व वसूल करते थे।
  • महलवाड़ी प्रबन्ध – भूमि का यह प्रबन्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा दिल्ली में लागू किया गया। भूमि-कर प्रणालियों अंग्रेजों की
  • भूमि-कर प्रणालियों का प्रभाव – ने किसानों को निर्धन बनाया और उन्हें ऋण की जंजीरों में जकड़ दिया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 11 प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 11 प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 11 प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास

SST Guide for Class 8 PSEB प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दो :

प्रश्न 1.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए कब तथा कौन-सा एक्ट पारित किया गया?
उत्तर-
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए 1773 ई० में रेग्यूलेटिंग एक्ट पारित किया गया।

प्रश्न 2.
बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल कब तथा किस एक्ट के अधीन बना? इसके कितने सदस्य थे ?
उत्तर-
बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल 1784 में पिट्स इण्डिया एक्ट के अधीन बना। इसके 6 सदस्य थे।

प्रश्न 3.
भारत में सिविल सर्विस का संस्थापक कौन था? ।
उत्तर-
सिविल सर्विस का संस्थापक लार्ड कार्नवालिस था।

प्रश्न 4.
कब तथा कौन-सा पहला भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर सका था?
उत्तर-
सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने वाला पहला भारतीय सतिन्द्रनाथ टैगोर था। उसने 1863 ई० में यह परीक्षा पास की थी।

प्रश्न 5.
सेना में भारतीय सैनिकों को दी जाने वाली सबसे बड़ी पदवी कौन-सी थी?
उत्तर-
सेना में भारतीय सैनिकों को दी जाने वाली सबसे बड़ी पदवी सूबेदार थी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 11 प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास

प्रश्न 6.
कौन-से गवर्नर-जनरल ने पुलिस विभाग में सुधार किए तथा क्यों?
उत्तर-
पुलिस विभाग में लार्ड कार्नवालिस ने सुधार किए। इसका उद्देश्य राज्य में कानून व्यवस्था तथा शान्ति स्थापित करना था।

प्रश्न 7.
इण्डियन ला-कमीशन की स्थापना कब तथा क्यों की गई?
उत्तर-
इण्डियन ला-कमीशन की स्थापना 1833 ई० में की गई। इसकी स्थापना कानूनों का संग्रह करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 8.
रेग्यूलेटिंग एक्ट से क्या भाव है?
उत्तर-
1773 ई० में भारत में अंग्रेज़ी ईस्ट कम्पनी के कार्यों की जांच करने के लिए एक एक्ट पास किया गया। इसे रेग्यूलेटिंग एक्ट कहते हैं। इस एक्ट के अनुसार

  • ब्रिटिश संसद् को भारत में अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यों की जांच करने का अधिकार मिल गया।
  • बंगाल में गवर्नर-जनरल तथा चार सदस्यों की एक कौंसिल स्थापित की गई। इसे शासन-प्रबन्ध के सभी मामलों के निर्णय बहुमत से करने का अधिकार प्राप्त था।
  • गवर्नर-जनरल तथा उसकी कौंसिल को युद्ध, शान्ति तथा राजनीतिक संधियों के मामलों में बम्बई तथा मद्रास की सरकारों पर नियन्त्रण रखने का अधिकार था।

प्रश्न 9.
पिट्स इण्डिया एक्ट पर नोट लिखो।
उत्तर-
पिट्स इण्डिया एक्ट 1784 में रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने के लिए पास किया गया। इसके अनुसार

  • कम्पनी के व्यापारिक प्रबन्ध को इसके राजनीतिक प्रबन्ध से अलग कर दिया गया।
  • कम्प के कार्यों को नियन्त्रित करने के लिए इंग्लैण्ड में एक बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल की स्थापना की गई। इसके 6 सदस्य थे।
  • गवर्नर-जनरल की परिषद् में सदस्यों की संख्या चार से घटा कर तीन कर दी गई।
  • मुम्बई तथा चेन्नई में भी इसी प्रकार की व्यवस्था की गई। वहां के गवर्नर की परिषद् में तीन सदस्य होते थे। ये गवर्नर पूरी तरह गवर्नर-जनरल के अधीन हो गए।

प्रश्न 10.
1858 ई० के बाद सेना में कौन-से परिवर्तन किए गए?
उत्तर-
1857 के महान् विद्रोह के पश्चात् सेना का नये सिर से गठन करना आवश्यक हो गया। अंग्रेज़ यह नहीं चाहते थे कि सैनिक फिर से कोई विद्रोह करें। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए

  • अंग्रेज़ सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई।
  • तोपखाने में केवल अंग्रेजों को ही नियुक्त किया जाने लगा।
  • मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) की सेना में भारतीय तथा यूरोपियनों को 2 : 1 में रखा गया।
  • भौगोलिक तथा सैनिक दृष्टि से सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों पर यूरोपियन टुकड़ियां रखी गईं।
  • अब एक सैनिक टुकड़ी में विभिन्न जातियों तथा धर्मों के लोग भर्ती किए जाने लगे ताकि यदि एक धर्म अथवा जाति के लोग विद्रोह करें तो दूसरी जाति के लोग उन पर गोली चलाने के लिए तैयार रहें।
  • अवध, बिहार तथा मध्य भारत के सैनिकों ने 1857 ई० के विद्रोह में भाग लिया था। अतः उन्हें सेना में बहुत कम भर्ती किया जाने लगा। सेना में अब गोरखों, सिक्खों तथा पठानों को लड़ाकू जाति मानकर अधिक संख्या में भर्ती किया जाने लगा।

प्रश्न 11.
न्याय व्यवस्था (अंग्रेज़ी शासन के अधीन) पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ों ने भारत में महत्त्वपूर्ण न्याय व्यवस्था स्थापित की। लिखित कानून इसकी मुख्य विशेषता थी।

  • वारेन हेस्टिंग्ज़ ने जिलों में दीवानी तथा सदर निज़ामत अदालतें स्थापित की।
  • 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। इसके न्यायाधीशों के मार्ग दर्शन के लिए लार्ड कार्नवालिस ने कार्नवालिस कोड नामक एक पुस्तक तैयार करवाई।
  • 1832 में लार्ड विलियम बैंटिंक ने बंगाल में ज्यूरी प्रथा की स्थापना की।
  • 1833 ई० के चार्टर एक्ट द्वारा कानूनों का संग्रह करने के लिए ‘इण्डियन ला कमीशन’ की स्थापना की गई। सभी कानून बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल को दिया गया।
  • देश में कानून का शासन लागू कर दिया गया। इसके अनुसार सभी भारतीयों को बिना किसी भेदभाव के कानून की नज़र में बराबर समझा जाने लगा।

इतना होने पर भारतीयों के प्रति भेदभाव जारी रहा और उन्हें कुछ विशेष अधिकारों से वंचित रखा गया। उदाहरण के लिए भारतीय जजों को यूरोपियनों के मुकद्दमे सुनने का अधिकार नहीं था। 1883 ई० में लार्ड रिपन ने इल्बर्ट बिल द्वारा भारतीय जजों को यह अधिकार दिलाने का प्रयास किया, परन्तु असफल रहा।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. 1886 ई० में लार्ड …………….. ने 15 सदस्यों का पब्लिक सर्विस कमीशन नियुक्त किया।
2. भारतीय एवं यूरोपियों की संख्या में 2:1 का अनुपात………………..ई० के विद्रोह के उपरान्त किया गया।
3. 1773 ई० के रेग्यूलेटिंग एक्ट के अनुसार …………. में सर्वोच्च अदालत की स्थापना की गई।
उत्तर-

  1. रिपन,
  2. 1857,
  3. कलकत्ता।

III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं :

1. अंग्रेजों की भारत में नई नीतियों का उद्देश्य भारत में केवल अंग्रेजों के हितों की रक्षा करना था। (✓)
2. कार्नवालिस के समय भारत में प्रत्येक थाने पर दरोगा का नियन्त्रण होता था। (✓)
3. 1773 ई० के रेग्यूलेटिंग एक्ट के अनुसार कलकत्ता में सर्वोच्च अदालत (न्यायालय) की स्थापना की गई। (✓)

PSEB 8th Class Social Science Guide प्रशासकीय संरचना, बस्तीवादी सेना तथा सिविल प्रशासन का विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
पिट्स इंडिया एक्ट कब पारित हुआ ?
(i) 1773 ई०
(ii) 1784 ई०
(iii) 1757 ई०
(iv) 1833 ई०।
उत्तर-
1784 ई०

प्रश्न 2.
इंग्लैंड में हैली बरी कॉलेज की स्थापना कब हुई ?
(i) 1833 ई०
(ii) 1853 ई०
(iii) 1806 ई०
(iv) 1818 ई०।
उत्तर-
1806 ई०

प्रश्न 3.
बंगाल में ज्यूरी प्रथा की स्थापना किसने की ?
(i) लार्ड हार्डिंग
(ii) लार्ड कार्नवालिस
(iii) वारेन हेस्टिंग्ज़
(iv) लार्ड विलियम बैंटिंक।
उत्तर-
लार्ड विलियम बैंटिंक।

(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. केन्द्रीय लोक सेवा कमीशन की स्थापना – 1935 ई०
2. संघीय लोक सेवा कमीशन की स्थापना – 1926 ई०
3. पृथक् विधानपालिका की स्थापना । – 1832 ई०
4. बंगाल में ज्यूरी प्रथा की स्थापना – 1853 ई०
उत्तर-

  1. 1926 ई०
  2. 1935 ई०
  3. 1853 ई०
  4. 1832 ई०

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अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों की प्रशासनिक नीतियों का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
भारत में अपने हितों की रक्षा करना।

प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेज़ी प्रशासन के मुख्य अंग (आधार ) कौन-कौन से थे ?
उत्तर-
सिविल सर्विस, सेना, पुलिस तथा न्याय व्यवस्था।

प्रश्न 3.
रेग्यूलेटिंग तथा पिट्स इंडिया एक्ट कब-कब पास हुए ?
उत्तर-
क्रमश: 1773 ई० तथा 1784 ई० में।

प्रश्न 4.
इंग्लैंड में बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल’ की स्थापना क्यों की गई ? इसके कितने सदस्य थे?
उत्तर-
इंग्लैंड में बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल की स्थापना कम्पनी के कार्यों पर नियंत्रण करने के लिए की गई। इसके 6 सदस्य थे।

प्रश्न 5.
हेलिबरी कॉलेज कब, कहां और क्यों खोला गया ?
उत्तर-
हेलिबरी कॉलेज 1806 ई० में इंग्लैंड में खोला गया। यहां भारत आने वाले सिविल सर्विस के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था।

प्रश्न 6.
ली कमीशन की स्थापना कब की गई ? इसने क्या सिफारिश की ?
उत्तर-
ली कमीशन की स्थापना 1923 ई० में की गई। इसने केंद्रीय लोक सेवा कमीशन तथा प्रांतीय लोक सेवा कमीशन स्थापित करने की सिफ़ारिश की।

प्रश्न 7.
अंग्रेजों की भारतीयों के प्रति नीति भेदभावपूर्ण थी। इसके पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-

  1. सिविल सर्विस, सेना तथा पुलिस में भारतीयों को उच्च पद नहीं दिए जाते थे।
  2. भारतीयों को अंग्रेजों की तुलना में बहुत कम वेतन दिया जाता था।

प्रश्न 8.
इल्बर्ट बिल क्या था ?
उत्तर-
इल्बर्ट बिल 1883 में भारत के वायसराय लार्ड रिपन ने पेश किया था। इसके द्वारा भारतीय जजों को यूरोपियनों के मुकद्दमें सुनने का अधिकार दिलाया जाना था। परन्तु यह बिल पारित न हो सका।

प्रश्न 9.
कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना किस एक्ट द्वारा की गई ?
उत्तर-
कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 1773 ई० के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा की गई।

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प्रश्न 10.
बंगाल की ज्यूरी प्रथा की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
बंगाल की ज्यूरी प्रथा की स्थापना 1832 ई० में लार्ड विलियम बैंटिंक ने की।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में 1858 ई० से पहले सिविल सेवाओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1858 ई० से पहले कम्पनी के अधिकतर कर्मचारी भ्रष्ट थे। वे निजी व्यापार करते थे और घूस, उपहारों आदि द्वारा खूब धन कमाते थे। क्लाइव तथा वारेन हेस्टिंग्ज़ ने इस भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहा, परन्तु वे अपने उद्देश्य में सफल न हुए। वारेन हेस्टिंग्ज़ के पश्चात् कार्नवालिस भारत आया। उसने व्यक्तिगत व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया और घूस तथा उपहार लेने की मनाही कर दी। उसने कर्मचारियों के वेतन बढ़ा दिए ताकि वे घूस आदि के लालच में न पड़ें। 1853 ई० तक भारत आने वाले अंग्रेज़ी कर्मचारियों की नियुक्ति कम्पनी के डायरैक्टर ही करते थे, परन्तु 1853 के चार्टर एक्ट के पश्चात् कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगिता परीक्षा शुरू कर दी गई। इस समय तक सिविल सर्विस की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि भारतीयों को इससे बिल्कुल वंचित रखा गया।

प्रश्न 2.
लॉर्ड कार्नवालिस को सिविल सेवाओं का प्रवर्तक (मुखी) क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
कार्नवालिस से पहले भारत के अंग्रेज़ी प्रदेशों में शासन सम्बन्धी सारा कार्य कम्पनी के संचालक ही करते थे। वे कर्मचारियों की नियुक्ति अपनी मर्जी से करते थे, परन्तु कार्नवालिस ने प्रबन्ध कार्य के लिए सिविल कर्मचारियों की नियुक्ति की। उसने उनके वेतन बढ़ा दिए। लोगों के लिए सिविल सेवाओं का आकर्षण इतना बढ़ गया कि इंग्लैण्ड के ऊंचे घरों के लोग भी इसमें आने लगे। इसी कारण ही लॉर्ड कार्नवालिस को भारत में सिविल सेवाओं का प्रवर्तक कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अंग्रेजी सेना में भारतीय और अंग्रेजों के बीच की जाने वाली भेदभावपूर्ण नीति पर नोट लिखें।
उत्तर-
कम्पनी की सेना में नियुक्त अंग्रेजों तथा भारतीयों के बीच भेदभावपूर्ण नीति अपनाई जाती थी। अंग्रेज़ सैनिकों की तुलना में भारतीयों को बहुत कम वेतन मिलता था। उनके आवास तथा भोजन का प्रबन्ध भी घटिया किस्म का होता था। भारतीय सैनिकों का उचित सम्मान नहीं किया जाता था। उन्हें बात-बात पर अपमानित भी किया जाता था। भारतीय अधिक-से-अधिक उन्नति करके सूबेदार के पद तक ही पहुंच सकते थे। इसके विपरीत अंग्रेज़ सीधे ही अधिकारी पद पर भर्ती होकर आते थे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में अंग्रेज़ी सरकार द्वारा किए गए संवैधानिक परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में निम्नलिखित संवैधानिक परिवर्तन किए-

1. रेग्युलेटिंग एक्ट-1773 ई० में भारत में अंग्रेज़ी ईस्ट कम्पनी के कार्यों की जांच करने के लिए एक एक्ट पास किया गया। इसे रेग्यूलेटिंग एक्ट कहते हैं। इस एक्ट के अनुसार

  • ब्रिटिश संसद् को भारत में अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यों की जांच करने का अधिकार मिल गया।
  • बंगाल में गवर्नर-जनरल तथा चार सदस्यों की एक कौंसिल स्थापित की गई। इसे शासन-प्रबन्ध के सभी मामलों के निर्णय बहुमत से करने का अधिकार प्राप्त था।
  • गवर्नर-जनरल तथा उसकी कौंसिल को युद्ध, शान्ति तथा राजनीतिक संधियों के मामलों में बम्बई तथा मद्रास की सरकारों पर नियन्त्रण रखने का अधिकार था।

2. पिट्स इण्डिया एक्ट-पिट्स इण्डिया एक्ट 1784 में रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने के लिए पास किया गया। इसके अनुसार

  • कम्पनी के व्यापारिक प्रबन्ध को इसके राजनीतिक प्रबन्ध से अलग कर दिया गया।
  • कम्पनी के कार्यों को नियन्त्रित करने के लिए इंग्लैण्ड में एक बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल की स्थापना की गई। इसके 6 सदस्य थे।
  • गवर्नर-जनरल की परिषद् में सदस्यों की संख्या चार से घटा कर तीन कर दी गई।
  • बम्बई (मुम्बई) तथा मद्रास (चेन्नई) में भी इसी प्रकार की व्यवस्था की गई। वहां के गवर्नर की परिषद् में तीन सदस्य होते थे। ये गवर्नर पूरी तरह गवर्नर-जनरल के अधीन हो गए।

3. चार्टर एक्ट, 1833-

  • 1833 के चार्टर एक्ट द्वारा कम्पनी को व्यापार करने से रोक दिया गया, ताकि वह अपना पूरा ध्यान शासन-प्रबन्ध की ओर लगा सके।
  • बंगाल के गवर्नर जनरल तथा उसकी कौंसिल को भारत का गवर्नर जनरल तथा कौंसिल का नाम दिया गया।
  • देश के कानून बनाने के लिए गवर्नर जनरल की कौंसिल में कानूनी सदस्य को शामिल किया गया। प्रेजीडेंसी सरकारों से कानून बनाने का अधिकार छीन लिया गया।

इस प्रकार केन्द्रीय सरकार को बहुत ही शक्तिशाली बना दिया गया।

4. चार्टर एक्ट, 1853-1853 में एक और चार्टर एक्ट पास किया गया। इसके अनुसार कार्यपालिका को विधानपालिका से अलग कर दिया गया। विधानपालिका में कुल 12 सदस्य थे। अब कम्पनी के प्रबन्ध में केन्द्रीय सरकार का हस्तक्षेप बढ़ गया। अब वह कभी भी कम्पनी से भारत का शासन अपने हाथ में ले सकती थी।

प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजों के साम्राज्य के समय सिविल सर्विस व्यवस्था के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।।
उत्तर-
भारत में सिविल सर्विस का प्रवर्तक लार्ड कार्नवालिस को माना जाता है। उसने रिश्वतखोरी को समाप्त करने के लिए अधिकारियों के वेतन बढ़ा दिए। उन्हें निजी व्यापार करने तथा भारतीयों से भेंट (उपहार) लेने से रोक दिया गया। उसने उच्च पदों पर केवल यूरोपियनों को ही नियुक्त किया।
लार्ड कार्नवालिस के बाद 1885 तक सिविल सर्विस का विकास-

(1) 1806 ई० में लार्ड विलियम बैंटिंक ने इंग्लैण्ड में हेलिबरी कॉलेज की स्थापना की। यहां सिविल सर्विस के नव-नियुक्त अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें भारत भेजा जाता था।

(2) 1833 ई० के चार्टर एक्ट में कहा गया था कि भारतीयों को धर्म, जाति या रंग के भेदभाव के बिना सरकारी नौकरियां दी जायेंगी। परन्तु उन्हें सिविल सर्विस के उच्च पदों से वंचित रखा गया।

(3) 1853 ई० तक भारत आने वाले अंग्रेज़ कर्मचारियों की नियुक्ति कम्पनी के डायरेक्टर ही करते थे, परन्तु 1853 के चार्टर एक्ट के पश्चात् कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगिता परीक्षा शुरू कर दी गई। यह परीक्षा इंग्लैण्ड में होती थी और इसका माध्यम अंग्रेज़ी था। परीक्षा में भाग लेने के लिए अधिकतम आयु 22 वर्ष निश्चित की गई। यह आयु 1864 में 21 वर्ष तथा 1876 में 19 वर्ष कर दी गई। सतिन्द्रनाथ टैगोर सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने वाला पहला भारतीय था। उसने 1863 ई० में यह परीक्षा पास की थी।

(4) कम आयु में भारतीयों के लिए अंग्रेजी की यह परीक्षा दे पाना कठिन था और वह भी इंग्लैण्ड में जाकर। अतः भारतीयों ने परीक्षा में प्रवेश की आयु बढ़ाने की मांग की। उन्होंने यह मांग भी की कि परीक्षा इंग्लैंड के साथ-साथ भारत में भी ली जाये। लार्ड रिपन ने इस मांग का समर्थन किया। परंतु भारत सरकार ने यह मांग स्वीकार न की।

1886 के बाद सिविल सर्विस का विकास-

(1) 1886 ई० में वायसराय लार्ड रिपन ने 15 सदस्यों का पब्लिक सर्विस कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन ने सिविल सर्विस निम्नलिखित तीन भागों में बांटने की सिफारिश की

  • इंपीरियल अथवा इंडियन सिविल सर्विस-इसके लिए परीक्षा इंग्लैंड में हो।
  • प्रांतीय सर्विस-इसकी परीक्षा अलग-अलग प्रांतों में हो।
  • प्रोफैशनल सर्विस-इसके लिए कमीशन परीक्षा में प्रवेश की आयु 19 वर्ष से बढ़ा कर 23 वर्ष करने की सिफ़ारिश की।
    1892 ई० में भारत सरकार ने इन सिफ़ारिशों को मान लिया।

(2) 1918 में माँटेग्यू-चैम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा यह सिफ़ारिश की गई कि सिविल सर्विस में 33% स्थान भारतीयों को दिए जाएं और धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ाई जाये। इस रिपोर्ट को भारत सरकार, 1919 द्वारा लागू किया गया।

(3) 1926 में केंद्रीय लोक सेवा कमीशन और 1935 में संघीय लोक सेवा कमीशन तथा कुछ प्रांतीय लोक सेवा कमीशन स्थापित किए गए।
यह सच है कि इंडियन सिविल सर्विस में भारतीयों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया गया। फिर भी कुछ उच्च पदों पर प्रायः अंग्रेज़ों को ही नियुक्त किया जाता था।

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प्रश्न 3.
भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य के समय सैनिक, पुलिस तथा न्याय प्रबंध के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
अंग्रेज़ी साम्राज्य में भारत में सैनिक, पुलिस तथा न्याय प्रबंध का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :
1. सैनिक प्रबंध-सेना अंग्रेजी प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण अंग थी। इसने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना तथा विस्तार में उल्लेखनीय योगदान दिया था। 1856 में अंग्रेज़ी सेना में 2,33,000 भारतीय तथा लगभग 45,300 यूरोपीय सैनिक शामिल थे। भारतीय सैनिकों को अंग्रेज़ सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन तथा भत्ते दिए जाते थे। वे अधिक से अधिक सूबेदार के पद तक पहुंच सकते थे। अंग्रेज़ अधिकारी भारतीय सैनिकों से बहुत बुरा व्यवहार करते थे। इसी कारण 1857 में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

1857 के महान् विद्रोह के पश्चात् सेना का नये सिरे से गठन करना आवश्यक हो गया। अंग्रेज़ यह नहीं चाहते थे कि सैनिक फिर से कोई विद्रोह करें। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए’

  • अंग्रेज़ सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई।
  • तोपखाने में केवल अंग्रेज़ों को ही नियुक्त किया जाने लगा।
  • उदास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) की सेना में भारतीय तथा यूरोपियनों को 2:1 में रखा गया।
  • भौगोलिक तथा सैनिक दृष्टि से सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों पर यूरोपियन टुकड़ियां रखी गईं।
  • अब एक सैनिक टुकड़ी में विभिन्न जातियों तथा धर्मों के लोग भर्ती किए जाने लगे ताकि यदि एक धर्म अथवा जाति के लोग विद्रोह करें तो दूसरी जाति के लोग उन पर गोली चलाने के लिए तैयार रहें।
  • अवध, बिहार तथा मध्य भारत के सैनिकों ने 1857 ई० के विद्रोह में भाग लिया था। अतः उन्हें सेना में बहुत कम भर्ती किया जाने लगा। सेना में अब गोरखों, सिक्खों तथा पठानों को लड़ाकू जाति मानकर अधिक संख्या में भर्ती किया जाने लगा।

2. पुलिस-साम्राज्य में शांति एवं कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए पुलिस व्यवस्था को लॉर्ड कार्नवालिस ने एक नया रूप दिया था। उसने प्रत्येक जिले में एक पुलिस कप्तान की नियुक्ति की। जिले को अनेक थानों में बांटा गया और प्राचीन थाना-प्रणाली को नये रूप में ढाला गया। प्रत्येक थाने का प्रबंध एक दरोगा को सौंपा गया। गांवों में पुलिस का कार्य गांव के चौकीदार ही करते थे। पुलिस विभाग में भारतीयों को उच्च पदों पर नहीं लगाया जाता था। उनके वेतन भी अंग्रेजों की अपेक्षा बहुत कम थे। अंग्रेज़ पुलिस कर्मचारी भारतीयों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे।

3. न्याय-व्यवस्था-अंग्रेजों ने भारत में यह महत्त्वपूर्ण न्याय-व्यवस्था स्थापित की। लिखित कानून इसकी मुख्य विशेषता थी।

  • वारेन हेस्टिंग्ज़ ने जिलों में दीवानी तथा सदर निज़ामत अदालतें स्थापित की।
  • 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। इसके न्यायाधीशों के मार्गदर्शन के लिए लार्ड कार्नवालिस ने ‘कार्नवालिस कोड’ नामक एक पुस्तक तैयार करवाई।
  • 1832 ई० में लार्ड विलियम बैंटिंक ने बंगाल में ज्यूरी प्रथा की स्थापना की।
  • 1833 ई० के चार्टर एक्ट द्वारा कानूनों का संग्रह करने के लिए ‘इंडियन ला कमीशन’ की स्थापना की गई। सभी कानून बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल को दिया गया।
  • देश में कानून का शासन लागू कर दिया गया। इसके अनुसार सभी भारतीयों को बिना किसी भेदभाव के कानून की नज़र में बराबर समझा जाने लगा।

इतना होने पर भारतीयों के प्रति भेदभाव जारी रहा और उन्हें कुछ विशेष अधिकारों से वंचित रखा गया। उदाहरण के लिए भारतीय जजों को यूरोपियनों के मुकद्दमें सुनने का अधिकार नहीं था। 1883 ई० में लार्ड रिपन ने इल्बर्ट बिल द्वारा भारतीय जजों को यह अधिकार दिलाने का प्रयास किया परंतु असफ़ल रहा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना

SST Guide for Class 8 PSEB भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
भारत में पहुंचने वाला प्रथम पुर्तगाली कौन था ?
उत्तर-
भारत में पहुंचने वाला प्रथम पुर्तगाली वास्को-डि-गामा था।

प्रश्न 2.
भारत में पुर्तगालियों की चार बस्तियों के नाम लिखें।
उत्तर-
गोआ, दमन, सालसेट तथा बसीन।

प्रश्न 3.
डच लोगों ने भारत में कहां-कहां बस्तियों की स्थापना की?
उत्तर-
डच लोगों ने भारत में अपनी बस्तियां कोचीन, सूरत, नागापट्टम, पुलिकट तथा चिन्सुरा में स्थापित की।

प्रश्न 4.
अंग्रेजों को बंगाल में बिना चुंगी-कर के व्यापार करने का अधिकार किस मुग़ल सम्राट से तथा कब मिला ?
उत्तर-
अंग्रेजों को बंगाल में बिना चुंगी कर के व्यापार करने का अधिकार मुग़ल सम्राट् फर्रुखसियर से 1717 ई० में मिला।

प्रश्न 5.
कर्नाटक का पहला युद्ध कौन-सी यूरोपीयन कम्पनियों के मध्य हुआ तथा इस युद्ध में किस की विजय हुई ?
उत्तर-
कर्नाटक का पहला युद्ध अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच हुआ। इस युद्ध में फ्रांसीसियों की विजय हुई।

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प्रश्न 6.
प्लासी का युद्ध कब तथा किसके मध्य हुआ ?
उत्तर–
प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई० को अंग्रेजों तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के मध्य हुआ।

प्रश्न 7.
बक्सर का युद्ध कब तथा किसके मध्य हुआ ?.
उत्तर-
बक्सर का युद्ध 1764 ई० में अंग्रेज़ों तथा बंगाल के नवाब मीर कासिम के मध्य हुआ। इस लड़ाई में अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने मीर कासिम का साथ दिया।

प्रश्न 8.
कर्नाटक के तीसरे युद्ध पर नोट लिखो।
उत्तर-
कर्नाटक का तीसरा युद्ध 1756 ई० से 1763 ई० तक लड़ा गया। दूसरे युद्ध की भान्ति इस युद्ध में फ्रांसीसी पराजित हुए और अंग्रेज़ विजयी रहे।
कारण-1756 ई० में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया। परिणाम यह हुआ कि भारत में भी फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया

घटनाएं-फ्रांस की सरकार ने भारत में अंग्रेज़ी शक्ति को कुचलने के लिए काउंट डि कोर्ट लाली को भेजा। परन्तु वह असफल रहा। 1760 ई० में एक अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने वंदिवाश की लड़ाई में भी फ्रांसीसियों को बुरी तरह हराया। 1763 ई० में पेरिस की सन्धि के अनुसार यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध बन्द हो गया। परिणामस्वरूप भारत में दोनों जातियों में युद्ध समाप्त हो गया।

परिणाम-

  • फ्रांसीसियों की शक्ति लगभग नष्ट हो गई। उनके पास अब व्यापार के लिए केवल पाण्डिचेरी, माही तथा चन्द्रनगर के प्रदेश रह गये। उन्हें इन प्रदेशों की किलेबन्दी करने की अनुमति नहीं थी।
  • अंग्रेज़ भारत की सबसे बड़ी शक्ति बन गए।

प्रश्न 8A.
अंग्रेजों द्वारा बंगाल की विजय का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
अंग्रेजों ने बंगाल पर अधिकार करने के लिए बंगाल के नवाब से दो युद्ध लड़े–प्लासी का युद्ध तथा बक्सर का युद्ध । प्लासी का युद्ध 1757 ई० में हुआ। उस समय बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला था। अंग्रेज़ों ने षड्यन्त्र द्वारा उसके सेनापति मीर जाफ़र को अपनी ओर मिला लिया, जिसके कारण सिराजुद्दौला की हार हुई। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बना दिया। कुछ समय पश्चात् अंग्रेज़ों ने मीर जाफ़र को गद्दी से उतार दिया और मीर कासिम को नवाब बनाया, परन्तु थोड़े ही समय में अंग्रेज़ उसके भी विरुद्ध हो गए। बक्सर के स्थान पर मीर कासिम और अंग्रेजों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में मीर कासिम हार गया और बंगाल अंग्रेजों के अधिकार में आ गया।

प्रश्न 9.
प्लासी के युद्ध पर नोट लिखो।
उत्तर-
प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई० को अंग्रेज़ी ईस्ट :ण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के मध्य लड़ा गया। नवाब कई कारणों से अंग्रेज़ों से नाराज़ था। उसने कासिम बाज़ार पर हमला करके अंग्रेज़ों को बड़ी हानि पहुंचाई। इसका बदला लेने के लिए क्लाइव ने षड्यन्त्र द्वारा बंगाल के सेनापति मीर जाफ़र को अपनी ओर मिला लिया। जब लड़ाई आरम्भ हुई तो मीर जाफ़र युद्ध के मैदान में एक ओर खड़ा रहा। इस विश्वासघात के कारण सिराजुद्दौला का साहस टूट गया और वह युद्ध भूमि से भाग गया। मीर जाफ़र के पुत्र मीरेन ने उसका पीछा किया और उसका वध कर दिया। ऐतिहासिक दृष्टि से यह युद्ध अंग्रेजों के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। अंग्रेज़ बंगाल के वास्तविक शासक बन गए और उनके लिए भारत विजय के द्वार खुल गए।
PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1

प्रश्न 10.
बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली पर नोट लिखो।
उत्तर-
क्लाइव ने बंगाल में शासन की एक नयी प्रणाली आरम्भ की। इसके अनुसार बंगाल का शासन दो भागों में बांट दिया गया। कर इकट्ठा करने का काम अंग्रेजों के हाथ में रहा, परन्तु शासन चलाने का कार्य नवाब को दे दिया गया। शासन चलाने के लिए उसे एक निश्चित धनराशि दी जाती थी। इस तरह बंगाल में दो प्रकार का शासन चलने लगा। इसी कारण यह प्रणाली दोहरी (द्वैध) शासन प्रणाली के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रणाली द्वारा बंगाल की वास्तविक शक्ति तो अंग्रेजों के हाथ में आ गई। परंतु उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी। दूसरी ओर नवाब के पास न तो कोई वास्तविक शक्ति थी और न ही आय का कोई साधन । परन्तु शासन की सारी ज़िम्मेदारी उसी की थी। इसलिए बंगाल के लोगों के लिए यह शासन प्रणाली मसीबत बन गई।

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प्रश्न 11.
सहायक सन्धि से क्या भाव है ?
उत्तर-
सहायक सन्धि 1798 ई० में लॉर्ड वैलजली ने चलाई थी। वह भारत में कम्पनी राज्य का विस्तार करके कम्पनी को भारत की सबसे बड़ी शक्ति बनाना चाहता था। यह काम तभी हो सकता था, जब सभी देशी राजा तथा नवाब शक्तिहीन होते। उन्हें शक्तिहीन करने के लिए ही उसने सहायक सन्धि का सहारा लिया।

सन्धि की शर्ते-सहायक सन्धि कम्पनी और देशी राजा के बीच होती थी। कम्पनी सन्धि स्वीकार करने वाले राजा को आन्तरिक तथा बाहरी खतरे के समय सैनिक सहायता देने का वचन देती थी। इसके बदले में देशी राजा को निम्नलिखित शर्तों का पालन करना पड़ता था

  • उसे कम्पनी को अपना स्वामी मानना पड़ता था। वह कम्पनी की आज्ञा के बिना कोई युद्ध अथवा सन्धि नहीं कर सकता था।
  • उसे अपनी सहायता के लिए अपने राज्य में एक अंग्रेज़ सैनिक टुकड़ी रखनी पड़ती थी, जिसका व्यय उसे स्वयं देना पड़ता था।
  • उसे अपने दरबार में एक अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखना पड़ता था।

प्रश्न 12.
लैप्स की नीति पर नोट लिखो।
उत्तर-
लैप्स की नीति लॉर्ड डलहौज़ी ने अपनायी। इसके अनुसार यदि कोई देशी राजा निःसन्तान मर जाता था, तो उसका राज्य अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया जाता था। वह अंग्रेज़ों की आज्ञा के बिना पुत्र गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकता था। डलहौज़ी के शासनकाल में पुत्र गोद लेने की स्वीकृति नहीं दी जाती थी। इस प्रकार बहुत-से देशी राज्य अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिए गए।

लैप्स के सिद्धान्त का सतारा, सम्भलपुर, जैतपुर, उदयपुर, झांसी, नागपुर आदि राज्यों पर प्रभाव पड़ा। इन सभी राज्यों के शासक निःसन्तान मर गए और उनके राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. अंग्रेज़ों, शुजाऊद्दौला एवं मुग़ल बादशाह आलम के मध्य………के युद्ध के पश्चात् 1765 ई० में इलाहाबाद की संधि हुई।
2. 1772 ई० में बंगाल में ………….. प्रणाली समाप्त कर दी गई।
3. लॉर्ड वैलज़ली ने अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करने के लिए ……….. प्रणाली शुरू की।
उत्तर-

  1. बक्सर
  2. दोहरी शासन
  3. सहायक संधि।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. पुर्तगाली कप्तान वास्को-डि-गामा 27 मई, 1498 ई० को भारत में कालीकट नामक स्थान पर पहुंचा। – (✓)
  2. अंग्रेज़ों तथा फ्रांसीसियों के मध्य कर्नाटक के दो युद्ध लड़े गए। – (✗)
  3. अंग्रेजों के साथ प्लासी के युद्ध के समय बंगाल का नवाब मीर जाफ़र था। – (✓)

PSEB 8th Class Social Science Guide भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
लैप्स की नीति (लार्ड डल्हौज़ी) द्वारा अंग्रेज़ी राज्य में मिलाई गई रियासत थी
(i) झांसी
(ii) उदयपुर
(iii) सतारा
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी

प्रश्न 2.
अवध को अंग्रेज़ी राज्य में कब मिलाया गया ?
(i) 1828 ई०
(ii) 1843 ई०
(iii) 1846 ई०
(iv) 1849 ई०।
उत्तर-
1843 ई०

प्रश्न 3.
पंजाब को अंग्रेज़ी साम्राज्य में किसने मिलाया ?
(i) लार्ड हेस्टिग्ज़
(ii) लार्ड हार्डिंग
(iii) लार्ड डल्हौज़ी
(iv) लार्ड विलियम बैंटिंक।
उत्तर-
लार्ड डल्हौज़ी।

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(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. प्लासी का युद्ध – लार्ड हेस्टिंग्ज़
2. बक्सर का युद्ध – सिराजुद्दौला
3. अराकाट पर हमला – मीर कासिम
4. अंग्रेज़ गोरखा युद्ध – राबर्ट क्लाइव।
उत्तर-

  1. सिराजुद्दौला
  2. मीर कासिम
  3. राबर्ट क्लाइव
  4. लार्ड हेस्टिंग्ज़।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोप से भारत पहुंचने के नये समुद्री मार्ग की खोज किसने की ?
उत्तर-
यूरोप से भारत पहुंचने के नये समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली नाविक (कप्तान) वास्को-डि-गामा ने की।

प्रश्न 2.
वास्को-डि-गामा भारत में कब और किस बन्दरगाह पर पहुंचा ?
उत्तर-
27 मई, 1498 ई० को कालीकट की बन्दरगाह पर।

प्रश्न 3.
अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
31 दिसम्बर, 1600 ई० को।

प्रश्न 4.
फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1664 ई० में।

प्रश्न 5.
भारत में दो फ्रांसीसी गवर्नरों के नाम बताओ जिनके अधीन फ्रांसीसी शक्ति का विस्तार हुआ।
उत्तर-
डूमा तथा डुप्ले।

प्रश्न 6.
अंग्रेज़ों ने व्यापार में रियायतें लेने के लिए मुग़ल बादशाह जहांगीर के दरबार में कौन-से दो प्रतिनिधि भेजे थे ?
उत्तर-
विलियम हाकिन्स तथा सर टामस रो।

प्रश्न 7.
चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकत्ता) के नज़दीक फ्रांसीसी बस्तियों के नाम बतायें।
उत्तर-
चेन्नई के निकट पाण्डिचेरी तथा कोलकाता के नज़दीक चन्द्रनगर फ्रांसीसी बस्तियां थीं।

प्रश्न 8.
कर्नाटक का तीसरा युद्ध कौन-सी यूरोपियन कम्पनियों के मध्य हुआ ?
उत्तर-
यह युद्ध फ्रांस की ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मध्य हुआ।.

प्रश्न 9.
कर्नाटक के प्रथम युद्ध (1746-48) का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के प्रश्न पर इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया। इसके परिणामस्वरूप भारत में भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया।

प्रश्न 10.
कर्नाटक का प्रथम युद्ध कब समाप्त हुआ ? इसका एक परिणाम लिखो।
उत्तर-
कर्नाटक का प्रथम युद्ध 1748 ई० में समाप्त हुआ। शान्ति सन्धि के अनुसार अंग्रेज़ों को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) का प्रदेश वापस मिल गया।

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प्रश्न 11.
कर्नाटक के दूसरे युद्ध का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
फ्रांसीसियों ने हैदराबाद तथा कर्नाटक में अपने प्रभाव के उत्तराधिकारियों अर्थात् हैदराबाद में नासिर जंग को और कर्नाटक में चन्दा साहब को वहां का शासन सौंप दिया। अंग्रेज़ इसे सहन नहीं कर सके। उन्होंने विरोधी उत्तराधिकारियों को मान्यता देकर युद्ध आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 12.
कर्नाटक के दूसरे युद्ध का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर-
कर्नाटक के दूसरे युद्ध में फ्रांसीसी पराजित हुए। इससे भारत में अंग्रेज़ी शक्ति की धाक जम गई।

प्रश्न 13.
कर्नाटक के दूसरे युद्ध में कौन-सी भारतीय शक्तियां लपेट में आईं ?
उत्तर-
कर्नाटक के दूसरे युद्ध में अग्रलिखित शक्तियां लपेट में आईं

  • कर्नाटक राज्य के उत्तराधिकारी।
  • हैदराबाद राज्य के उत्तराधिकारी।

प्रश्न 14.
कर्नाटक के तीसरे युद्ध (1756-1763) का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
1756 ई० में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच सपावर्षीय युद्ध छिड़ गया। परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। यह कर्नाटक का दूसरा युद्ध था।

प्रश्न 15.
कर्नाटक का तीसरा युद्ध कब हुआ ? इसमें कौन पराजित हुआ ?
उत्तर-
कर्नाटक का तीसरा युद्ध 1756 ई० में आरम्भ हुआ। इसमें फ्रांसीसी पराजित हुए।

प्रश्न 16.
कर्नाटक के तीसरे युद्ध का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर-
कर्नाटक के तीसरे युद्ध के परिणामस्वरूप भारत में फ्रांसीसी शक्ति का सूर्यास्त हो गया। अंग्रेज़ भारत की सबसे बड़ी शक्ति बन गए।

प्रश्न 17.
डुप्ले कौन था ? उसकी योजना क्या थी ?
उत्तर-
डुप्ले भारत में एक फ्रांसीसी गवर्नर था। उसने सारे दक्षिणी भारत पर फ्रांसीसी प्रभाव बढ़ाने की योजना बनाई।

प्रश्न 18.
डुप्ले को वापस क्यों बुलाया गया ?
उत्तर-
डुप्ले को इसलिए वापस बुलाया गया क्योंकि कर्नाटक के दूसरे युद्ध में फ्रांसीसियों की पराजय हुई थी।

प्रश्न 19.
राबर्ट क्लाइव कौन था ? उसने कर्नाटक के दूसरे युद्ध में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
राबर्ट क्लाइव बड़ा ही योग्य अंग्रेज़ सेनापति था। उसने कर्नाटक के दूसरे युद्ध में चन्दा साहब की राजधानी अर्काट पर अधिकार करके चन्दा साहिब को त्रिचनापल्ली छोड़ने के लिए विवश कर दिया। इसी के परिणामस्वरूप इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई।

प्रश्न 20.
पारस की सन्धि कब और किस-किस के बीच हुई ? भारत पर इस सन्धि का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
पेरिस की सन्धि 1763 ई० में फ्रांस और इंग्लैण्ड के बीच हुई। इस सन्धि के परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेज़ों तथा फ्रांसीसियों के बीच कर्नाटक का तीसरा युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 21.
कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसीसियों के विरुद्ध अंग्रेज़ों की सफलता का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ों के पास एक शक्तिशाली समुद्री बेड़ा था। वे इस बेड़े की सहायता से अपनी सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंचा सकते थे।

प्रश्न 22.
प्लासी का युद्ध किस-किस के मध्य में हुआ ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के मध्य। ।

प्रश्न 23.
प्लासी के युद्ध का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
अंग्रेज़ अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कलकत्ता (कोलकाता) की किलेबन्दी कर रहे थे। कलकत्ता (कोलकाता) नवाब के राज्य का एक भाग था। इसलिए अंग्रेजों और नवाब के बीच शत्रुता उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 24.
प्लासी के युद्ध का कोई एक परिणाम लिखो।
उत्तर-
इस युद्ध में नवाब सिराजुद्दौला पराजित हुआ और मीर जाफर बंगाल का नया नवाब बना। मीर जाफ़र ने अंग्रेजों को बहुत-सा धन और 24 परगने का प्रदेश दिया।

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प्रश्न 25.
प्लासी के युद्ध का अंग्रेजों के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
इस युद्ध में अंग्रेजों की शक्ति और प्रतिष्ठा में बड़ी वृद्धि हुई। वे अब भारत के सबसे बड़े और धनी प्रान्त बंगाल के स्वामी बन गए। परिणामस्वरूप भारत विजय की कुंजी अंग्रेजों के हाथ में आ गई।

प्रश्न 26.
बक्सर के युद्ध का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
अंग्रेजी कम्पनी को बंगाल में कर मुक्त व्यापार करने का अनुमति-पत्र मिला हुआ था। परन्तु कम्पनी के कर्मचारी इसकी आड़ में निजी व्यापार कर रहे थे। इससे बंगाल के नवाब को आर्थिक क्षति पहुंच रही थी।

प्रश्न 27.
“क्लाइव को भारत में अंग्रेज़ी राज्य का संस्थापक माना जाता है।” इसके पक्ष में एक तर्क दो।
उत्तर-
क्लाइव ने भारत में अंग्रेजों के लिए कर्नाटक का दूसरा युद्ध जीता और प्लासी की लड़ाई जीती। ये दोनों विजयें अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के लिए आधारशिला सिद्ध हुईं।

प्रश्न 28.
मीर जाफ़र कौन था ? वह कब-से-कब तक बंगाल का नवाब रहा ?
उत्तर-
मीर जाफ़र बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का विश्वासघाती सेनापति था। वह 1757 ई० से 1760 ई० तक बंगाल का नवाब रहा।

प्रश्न 29.
इलाहाबाद की सन्धि कब और किस-किस के बीच में हुई ?
उत्तर-
इलाहाबाद की सन्धि 3 मई, 1765 ई० को हुई। यह सन्धि क्लाइव (अंग्रेज़ों) और अवध के नवाब तथा मुग़ल सम्राट् शाह आलम के बीच में हुई।

प्रश्न 30.
इलाहाबाद की सन्धि की कोई एक शर्त लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ी कम्पनी को मुग़ल सम्राट शाह आलम से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। इस तरह अंग्रेज़ बंगाल के वास्तविक शासक बन गए।

प्रश्न 31.
“बक्सर ने प्लासी के काम को पूरा किया।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
बक्सर की लड़ाई के पश्चात् अंग्रेज़ बंगाल के वास्तविक शासक बन गए। अवध का नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाह आलम भी पूरी तरह अंग्रेजों के अधीन हो गए। इसलिए यह कहा जाता है कि बक्सर ने प्लासी के काम को पूरा किया।

प्रश्न 32.
लॉर्ड वैलज़ली ने अपनी विस्तारवादी नीति के लिए किस सन्धि को लागू किया ?
उत्तर-
लॉर्ड वैलज़ली ने अपनी विस्तारवादी नीति के लिए सहायक सन्धि को लागू किया।

प्रश्न 33.
लैप्स सिद्धान्त के अधीन प्रभावित दो राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
लैप्स सिद्धान्त से झांसी तथा नागपुर के राज्य प्रभावित हुए। इन्हें अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।

प्रश्न 34.
अंग्रेजों ने अवध पर अधिकार कब किया ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने अवध पर 1856 ई० में अधिकार किया।

प्रश्न 35.
सहायक सन्धि की एक शर्त लिखिए।
उत्तर-
सहायक सन्धि के अनुसार देशी राजा कम्पनी की अनुमति के बिना किसी बाहरी शक्ति अथवा अन्य देशी राजा से किसी प्रकार का राजनीतिक सम्बन्ध नहीं रख सकता था।

प्रश्न 36.
सहायक व्यवस्था के अन्तर्गत अंग्रेजी कम्पनी देशी राजाओं को क्या वचन देती थी ?
उत्तर-
सहायक व्यवस्था के अन्तर्गत अंग्रेजी कम्पनी देशी राजा को सुरक्षा प्रदान करने का वचन देती थी। उसने राज्य में आन्तरिक विद्रोह अथवा बाहरी आक्रमण के समय देशी राजा की रक्षा की जिम्मेदारी का वचन दिया।

प्रश्न 37.
सहायक-व्यवस्था से अंग्रेज़ी कम्पनी को क्या लाभ पहुंचा ? कोई एक लाभ लिखो।
उत्तर-
सहायक व्यवस्था के परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजी कम्पनी की राजनीतिक स्थिति काफ़ी मज़बूत हो गई।

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प्रश्न 38.
सहायक व्यवस्था का देशी राज्यों पर क्या प्रभाव पड़ा ? कोई एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
देशी राजा आन्तरिक और बाहरी खतरों से निश्चिन्त होकर भोग-f:लास का जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें अपनी निर्धन जनता की कोई चिन्ता न रही।

प्रश्न 39.
बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली कब समाप्त हुई ?
उत्तर-
1772 ई० में।

प्रश्न 40.
उन तीन गवर्नर-जनरलों के नाम बताओ जिनके अधीन अंग्रेज़ी साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार हुआ।
उत्तर-
लॉर्ड वैलज़ली, लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ तथा लॉर्ड डलहौज़ी।

प्रश्न 41.
स्वतन्त्र मैसूर राज्य की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
स्वतन्त्र मैसूर राज्य की स्थापना 1761 ई० में हैदरअली ने की।

प्रश्न 42.
पहला मैसूर युद्ध कब हुआ ? इसमें किसकी विजय हुई ?
उत्तर-
पहला मैसूर युद्ध 1767-1769 ई० में हुआ। इसमें हैदरअली की विजय हुई।

प्रश्न 43.
हैदरअली की मृत्यु कब हुई ? उसके बाद मैसूर का सुल्तान कौन बना ?
उत्तर-
हैदरअली की मृत्यु 1782 में हुई। उसके बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर का सुल्तान बना।

प्रश्न 44.
टीपू सुल्तान की मृत्यु कब और किस प्रकार हुई ?
उत्तर-
टीपू सुल्तान की मृत्यु 1799 ई० में हुई। वह मैसूर के चौथे युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ता हुआ मारा गया।

प्रश्न 45.
बसीन तथा देवगांव की सन्धियां कब-कब हुई ?
उत्तर-
क्रमशः 1802 ई० तथा 1803 ई० में।।

प्रश्न 46.
देवगांव की सन्धि किस-किस के बीच हुई ? इस सन्धि से अंग्रेजों को कौन-कौन से दो प्रदेश प्राप्त हुए ?
उत्तर-
देवगांव की सन्धि मराठा सरदार भौंसले तथा अंग्रेजों के बीच हुई। इस सन्धि से अंग्रेजों को कटक तथा बलासौर के प्रदेश प्राप्त हुए।

प्रश्न 47.
लॉर्ड हेस्टिंग्ज के समय राजस्थान की कितनी रियासतों ने अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की ? इनमें से चार मुख्य रियासतों के नाम बताओ।
उत्तर-
लॉर्ड हेस्टिंग्ज के समय राजस्थान की 19 रियासतों ने अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की। इनमें से चार मुख्य रियासतें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर तथा बीकानेर थीं।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में यूरोप की व्यापारिक कम्पनियों के बीच टकराव क्यों हुआ और इसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर-
टकराव के कारण-भारत में कई यूरोपियन कम्पनियां व्यापार करने के लिए आई थीं। इन कम्पनियों के व्यापारी बड़े लालची, स्वार्थी और महत्त्वाकांक्षी थे। सभी कम्पनियां भारत के व्यापार पर पूरी तरह अपना अधिकार स्थापित करना चाहती थीं। अतः उनके हित आपस में टकराते थे, जिसके कारण उनमें भयंकर टकराव होने लगा।

टकराव और उनके परिणामः-सबसे पहले पुर्तगालियों को डचों ने हरा कर सारा व्यापार अपने हाथों में ले लिया। इसी बीच अंग्रेजों ने अपनी गतिविधियां तेज़ की। उन्होंने डचों को पराजित किया और व्यापार पर अपना अधिकार कर लिया। डेन्स स्वयं भारत छोड़ कर चले गए। इस तरह भारत में केवल अंग्रेज़ और फ्रांसीसी ही रह गए। इन दोनों जातियों के बीच एक लम्बा संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अंग्रेज़ विजयी रहे और भारत के व्यापार पर उनका एकाधिकार स्थामित हो गया। धीरे-धीरे उन्होंने भारत में अपनी राजनीतिक सत्ता भी स्थापित कर ली।

प्रश्न 2.
कर्नाटक के पहले युद्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
यूरोप में 1740-48 के बीच में ऑस्ट्रिया क सिंहासन के लिए युद्ध आरम्भ हुआ। इस युद्ध में इंग्लैण्ड और फ्रांस एक-दूसरे के विरुद्ध लड़े। परिणामस्वरूप 1746 ई० में भारत में भी इन दोनों जातियों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। फ्रांसीसियों ने अंग्रेजों के व्यापारिक केन्द्र फोर्ट सेंट जॉर्ज (चेन्नई) को लूटा। कर्नाटक के नवाब ने जब उनके विरुद्ध अपनी सेना भेजी, तो उसे भी फ्रांसीसियों के हाथों पराजित होना पड़ा। उन दिनों डुप्ले फ्रांसीसियों का गवर्नर था। भारत में फ्रांसीसियों की प्रतिष्ठा को चार चांद लग गए। 1748 में यूरोप में फ्रांस और इंग्लैण्ड के बीच युद्ध बन्द हो गया। इसी वर्ष भारत में भी दोनों पक्षों में सन्धि हो गई। इस सन्धि के अनुसार फ्रांसीसियों ने मद्रास (चेन्नई) अंग्रेज़ों को लौटा दिया।

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प्रश्न 3.
द्वितीय कर्नाटक युद्ध के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-

  • चन्दा साहब मारा गया और अर्काट पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।
  • अंग्रेजों ने महम्मद अली को कर्नाटक का शासक घोषित किया।
  • हैदराबाद में फ्रांसीसी प्रभाव बना रहा। वहां उन्हें राजस्व वसूल करने का अधिकार मिल गया और उन्होंने वहां अपनी सेना की टुकड़ी रख दी।
  • इस युद्ध के परिणामस्वरूप क्लाइव नामक एक अंग्रेज़ उभर कर सामने आया। यही बाद में अंग्रेजी राज्य का संस्थापक बना।

प्रश्न 4.
कर्नाटक के तीसरे युद्ध के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर-
कर्नाटक का तीसरा युद्ध 1756 ई० में आरम्भ हुआ और 1763 ई० में समाप्त हुआ। इसके निम्नलिखित परिणाम निकले

  • फ्रांसीसियों के हाथों से हैदराबाद निकल गया और वहां अंग्रेज़ों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
  • अंग्रेज़ों को उत्तरी सरकार का प्रदेश मिला।
  • भारत में फ्रांसीसी शक्ति का अन्त हो गया और अब अंग्रेजों के लिए भारत को विजय करना सरल हो गया।

प्रश्न 5.
18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के मध्य शत्रुता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में दोनों जातियों के मध्य शत्रुता के तीन मुख्य कारण थे-

  • इंग्लैण्ड और फ्रांस काफ़ी समय से एक-दूसरे के शत्रु बने हुए थे।
  • भारत में दोनों जातियों के मध्य व्यापारिक प्रतियोगिता चल रही थी।
  • दोनों जातियां भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित करना चाहती थीं।
    वास्तव में जब कभी इंग्लैण्ड और फ्रांस का यूरोप में युद्ध आरम्भ होता था, तो भारत में भी दोनों जातियों का संघर्ष आरम्भ हो जाता था।

प्रश्न 6.
इलाहाबाद की संन्धि की क्या शर्ते थीं ?
उत्तर-
इलाहाबाद की सन्धि (1765 ई०) की शर्ते निम्नलिखित थीं-

  • अंग्रेज़ों और अवध के नवाब ने युद्ध के समय एक-दूसरे की सहायता करने का वचन दिया।
  • युद्ध की क्षति-पूर्ति के लिए बंगाल के नवाब ने अंग्रेजों को 50 लाख रुपये देने का वचन दिया।
  • मुग़ल सम्राट् शाह आलम ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी सौंप दी। बदले में अंग्रेजों ने शाह आलम को 26 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन देना स्वीकार कर लिया।.
  • अवध के नवाब ने यह वचन दिया कि वह मीर कासिम को अपने राज्य में आश्रय नहीं देगा।

प्रश्न 7.
कर्नाटक के तीन युद्धों में सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध क्रौन-सा था और क्यों ?
उत्तर-
कर्नाटक के तीन युद्धों में दूसरा युद्ध सबसे महत्त्वपूर्ण था। यह युद्ध अंग्रेजों की कूटनीतिक विजय का प्रतीक
काफ़ी मज़बूत हो गई थी। कर्नाटक के दूसरे युद्ध में भी अंग्रेज़ पराजय की कगार पर थे। परन्तु रॉबर्ट क्लाइव ने अपनी चतुराई से युद्ध की स्थिति ही बदल दी। उसने फ्रांसीसियों की युद्ध योजना को पूरी तरह विफल बना दिया। इस युद्ध के बाद फ्रांसीसी शक्ति कभी भी पूरी तरह न उभर सकी। परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों ने कर्नाटक के तीसरे युद्ध में फ्रांसीसियों को आसानी से हरा दिया। यदि अंग्रेज़ कर्नाटक के दूसरे युद्ध में हार जाते तो उन्हें न केवल भारतीय व्यापार से ही हाथ – धोना पड़ता, बल्कि पुर्तगालियों तथा डचों की भान्ति भारत छोड़कर भी भागना पड़ता।

प्रश्न 8.
प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला क्यों हारा ?
उत्तर-
प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की हार के निम्नलिखित कारण थे-

  • क्लाइव का षड्यन्त्र-क्लाइव ने अपने षड्यन्त्र से सिराजुद्दौला की कमर तोड़ दी। उसने सेनापति मीर जाफ़र को अपने साथ मिलाकर सिराजुद्दौला को आसानी से हरा दिया।
  • सिराजुद्दौला में दूरदर्शिता का अभाव-सिराजुद्दौला दूरदर्शी शासक नहीं था। यदि वह दूरदर्शी होता तो अंग्रेज़ों की गतिविधियों तथा विरोधियों पर पूरी नज़र रखता और षड्यन्त्र का पहले से ही पता लगा लेता। अत: उसकी अदूरदर्शिता भी उसकी पराजय का कारण बनी।
  • सैनिक त्रुटियां-सिराजुद्दौला का सैनिक संगठन त्रुटिपूर्ण था। उसके सैनिक न तो अंग्रेज़ी सैनिकों जैसे प्रशिक्षित थे और न ही उनके पास अंग्रेज़ों जैसे आधुनिक शस्त्र थे। युद्ध में नवाब के सैनिक एक भीड़ की भान्ति लड़े। उनमें अनुशासन बिल्कुल भी नहीं था।

प्रश्न 9.
भारत में अंग्रेज़ों एवं फ्रांसीसियों के टकराव में अंग्रेजों की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
भारत में फ्रांसीसियों के विरुद्ध अंग्रेजों की सफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  • अंग्रेजों की शक्तिशाली नौ सेना-अंग्रेज़ी नौ सेना फ्रांसीसी नौ सेना से अधिक शक्तिशाली थी। अंग्रेज़ों के पास एक शक्तिशाली समुद्री बेड़ा था। इसकी सहायता से वे आवश्यकता के समय इंग्लैण्ड से सैनिक और युद्ध का सामान मंगवा सकते थे।
  • अच्छी आर्थिक दशा-अंग्रेजों की आर्थिक दशा काफ़ी अच्छी थी। वे युद्ध के समय भी अपना व्यापार जारी रखते थे। परन्तु फ्रांसीसी राजनीति में अधिक उलझे रहते थे जिसके कारण उनके पास धन का अभाव रहता था।
  • अंग्रेजों की बंगाल विजय-बंगाल विजय के कारण भारत का एक धनी प्रान्त अंग्रेजों के हाथ आ गया। युद्ध जीतने के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है। युद्ध के दिनों में अंग्रेज़ों का बंगाल में व्यापार चलता रहा। यहां से प्राप्त धन के कारण उन्हें दक्षिण के युद्धों में विजय मिली।
  • अच्छी स्थल सेना और योग्य सेनानायक-अंग्रेजों की स्थल सेना फ्रांसीसी स्थल सेना से काफ़ी अच्छी थी। अंग्रेज़ों में क्लाइव, सर आयरकूट और मेजर लारेंस आदि अधिकारी बड़े योग्य थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी सेनानायक डुप्ले, लाली और बुसे इतने योग्य नहीं थे। यह बात भी अंग्रेजों की विजय का कारण बनी।

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प्रश्न 10.
सिराजुद्दौला की अंग्रेज़ों से (प्लासी की) लड़ाई के क्या कारण थे ?
उतर-
सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के बीच टकराव (लड़ाई) के निम्नलिखित कारण थे-

  • अंग्रेज़ों ने सिराजुद्दौला को बंगाल का नवाब बनने पर कोई भेंट नहीं दी थी। इस कारण वह अंग्रेजों से नाराज़ था।
  • अंग्रेज़ों ने नवाब के एक विद्रोही अधिकारी को अपने यहां शरण दी। नवाब ने अंग्रेजों से मांग की कि वे इस देशद्रोही को वापस लौटा दें। परन्तु अंग्रेज़ों ने उसकी एक न सुनी।।
  • अंग्रेजों ने कलकत्ते (कोलकाता) में किलेबन्दी आरम्भ कर दी। नवाब के मना करने पर भी वे किलेबन्दी करते रहे। इसलिए नवाब उनसे नाराज़ हो गया।
  • नवाब के ढाका के खजाने से गबन हुआ था। नवाब का विचार था कि गबन की राशि अंग्रेजों के पास है। उसने अंग्रेजों से यह राशि वापस मांगी, परन्तु उन्होंने इसे लौटाने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 11.
भारतीय इतिहास में बक्सर की लड़ाई का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
बक्सर की लड़ाई का भारत के इतिहास में प्लासी की लड़ाई से भी अधिक महत्त्व है। इस लड़ाई के कारण बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अंग्रेजों की स्थिति मजबूत हो गई। यहां तक कि उनका प्रभाव दिल्ली तक पहुंच गया। अवध का नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट् शाह आलम भी पूरी तरह अंग्रेजों के अधीन हो गये। इस प्रकार अंग्रेजों के लिए समस्त भारत पर अधिकार करने का रास्ता साफ हो गया।

प्रश्न 12.
बक्सर की लड़ाई के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बक्सर के युद्ध के कारण निम्नलिखित हैं-

  • अंग्रेजी कम्पनी के कर्मचारी अपनी व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहे थे, जिसके कारण बंगाल के नवाब की आय में कमी हो रही थी।
  • मीर कासिम ने अपनी सेना को मज़बूत बनाया, शस्त्रों का कारखाना स्थापित किया और खज़ाना कलकत्ता (कोलकाता) से मुंगेर ले गया। अंग्रेजों को ये बातें पसन्द नहीं थीं।
  • मीर कासिम ने अंग्रेज़ों के साथ-साथ भारतीय व्यापारियों को भी बिना कर दिए व्यापार करने की आज्ञा दे दी। परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों तथा नवाब के बीच शत्रुता बढ़ गई।

प्रश्न 13.
टीपू सुल्तान कौन था ? उसके अंग्रेजों के साथ संघर्ष का वर्णन करो।
उत्तर-
टीपू सुल्तान मैसूर के शासक हैदर अली का पुत्र था। वह 1782 में हैदर अली की मृत्यु के बाद मैसूर का सुल्तान बना। उस समय मैसूर का दूसरा युद्ध चल रहा था। टीपू ने युद्ध को जारी रखा। आरम्भ में तो उसे कुछ सफलता मिली, परन्तु मैसूर के तीसरे युद्ध (1790-92 ई०) में वह पराजित हुआ। उसे अपने राज्य का काफ़ी सारा प्रदेश अंग्रेज़ों को देना पड़ा। इस पराजय का बदला लेने के लिए उसने अंग्रेज़ों से एक बार फिर यद किया। इस युद्ध (1799 ई०) में टीपू सुल्तान मारा गया और राज्य का बहुत-सा भाग अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। राज्य का शेष भाग मैसूर के पुराने राजवंश के राजकुमार कृष्णराव को दे दिया गया!

प्रश्न 14.
अंग्रेज़-गोरखा युद्ध (1814-1816 ई०) पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
नेपाल के गोरखों ने सीमावर्ती क्षेत्र में अंग्रेजों के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। अतः लॉर्ड हेस्टिग्ज़ ने गोरखों की शक्ति को कुचलने के लिए एक विशाल सेना भेजी। इसका नेतृत्व अरन्तरलोनी ने किया। इस युद्ध में गोरखों की हार हुई। अतः उन्हें बहुत-से प्रदेश अंग्रेज़ों को देने पड़े। इसके अतिरिक्त नेपाली सरकार ने अपनी राजधानी काठमाण्डू में एक ब्रिटिश रेजीडेंट रखना स्वीकार कर लिया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यापारवाद तथा व्यापार युद्धों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
भारत तथा यूरोप के बीच प्राचीनकाल से ही व्यापारिक सम्बन्ध थे। इस व्यापार के तीन मुख्य मार्ग थे-

  1. पहला उत्तरी मार्ग था। यह मार्ग अफगानिस्तान, कैस्पियन सागर तथा काला सागर से होकर जाता था।
  2. दूसरा मध्य मार्ग था जो ईरान, इराक तथा सीरिया से होकर जाता था।
  3. तीसरा दक्षिणी मार्ग था। यह मार्ग हिन्द महासागर, अरब सागर, लाल सागर तथा मित्र से होकर जाता था।

15वीं शताब्दी में पश्चिमी एशिया तथा दक्षिण-पूर्वी यूरोप के प्रदेशों पर तुर्कों का अधिकार हो गया। इससे भारत तथा यूरोप के बीच व्यापार के पुराने मार्ग बन्द हो गये। इसलिए यूरोपीय देशों ने भारत पहुंचने के लिए नए समुद्री मार्ग ढूंढ़ने आरम्भ कर दिए। सर्वप्रथम पुर्तगाली नाविक वास्को-डि-गामा 27 मई, 1498 को भारत की कालीकट बन्दरगाह पर पहुंचा। अत: पुर्तगालियों ने भारत के साथ व्यापार करना आरम्भ कर दिया। इस प्रतिमा को व्यापारवाद कहा जाता है जिसका उद्देश्य धन कमाना था।

व्यापार युद्ध-पुर्तगालियों को धन कमाते देख डचों, अंग्रेज़ों तथा फ्रांसीसियों ने भी भारत के साथ व्यापार सम्बन्ध स्थापित कर लिए। भारतीय व्यापार पर अपना अधिकार करने के लिए उनके बीच युद्ध आरम्भ हो गये। इन युद्धों को व्यापार युद्ध कहा जाता है। धीरे-धीरे उन्होंने भारत में अपनी बस्तियां स्थापित कर ली।

  • भारत में पुर्तगालियों की प्रमुख बस्तियां गोआ, दमन, सालसेट, बसीन, बम्बई, सैंट-टोम तथा हुगली थीं।
  • डचों की मुख्य बस्तियां कोचीन, सूरत, नागापट्टम, पुलिकट तथा चिनसुरा थीं।
  • अंग्रेजों की मुख्य बस्तियां सूरत, अहमदाबाद, बलोच (भड़ौच), आगरा, बम्बई तथा कलकत्ता थीं।
  • फ्रांसीसियों की मुख्य बस्तियां थीं-पांडिचेरी, चन्द्रनगर तथा कारीकल।

समय बीतने के साथ-साथ इन चारों यूरोपीय शक्तियों के बीच एक-दूसरे की बस्तियों पर अधिकार करने के लिए संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 17वीं शताब्दी तक भारत में पुर्तगालियों तथा डचों का प्रभाव कम हो गया। अब भारत में केवल अंग्रेज़ और फ्रांसीसी ही रह गये। इनके बीच भी काफ़ी समय तक भारतीय व्यापार पर एकाधिकार के लिए संघर्ष होता रहा। इस संघर्ष में अंग्रेज़ों को अन्तिम विजय प्राप्त हुई।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना

प्रश्न 2.
अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना का वर्णन करो।
उत्तर-
कम्पनी की स्थापना-पुर्तगालियों और डचों के लाभदायक व्यापार को देखकर अंग्रेजों ने भी भारत के साथ व्यापार करने का निश्चय किया। 31 दिसम्बर, 1600 ई० को इंग्लैण्ड के व्यापारियों के मर्चेट एडवेंचर्स नामक एक समूह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की। इस कम्पनी को इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिज़ाबेथ ने भारत के साथ 15 वर्षों तक व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। कम्पनी ने पहले पूर्वी द्वीप समूह के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित
ला।

करने चाहे। परन्तु पूर्वी द्वीप समूहों पर डचों का अधिकार था। डचों ने ब्रिटिश व्यापारियों का विरोध किया। इसलिए वे वहां अपने उद्देश्य में सफल न हो सके।मुग़ल सम्राट् से सुविधाएं-1607 ई० में अंग्रेज़ी कप्तान विलियम हाकिन्स ने मुग़ल सम्राट जहांगीर से व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने का प्रयास किया, परन्तु वह असफल रहा। 1615 ई० में सर टामस रो इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम का राजदूत बनकर जहांगीर के दरबार में आया। उसने जहांगीर से सूरत में कोठियां बनाने की अनुमति लेने के साथसाथ और भी कई प्रकार की सुविधाएं प्राप्त कर लीं। इस प्रकार सूरत अंग्रेजों का व्यापारिक केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों ने अहमदाबाद, भड़ौच तथा आगरा में भी अपनी बस्तियां स्थापित की।

कम्पनी की शक्ति का विकास-

  • 1640 ई० में अंग्रेज़ों ने मद्रास (चेन्नई) के निकट कुछ भूमि मोल लेकर मद्रास (चेन्नई) नगर की स्थापना की और एक फैक्टरी का निर्माण किया।
  • 1674 में सूरत के स्थान पर बम्बई (मुम्बई)को कम्पनी का मुख्य केन्द्र बना लिया गया।
  • 1690 ई० में अंग्रेजों ने कलकत्ता (कोलकाता) में अपनी बस्ती स्थापित की और वहां फोर्ट विलियम नामक किले का निर्माण करवाया।
  • 1717 ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मुग़ल सम्राट फर्रुखसियर से 3000 रुपए वार्षिक के बदले बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा में बिना चुंगी दिए व्यापार करने का अधिकार मिल गया।

अंग्रेज़ भारत में कलई, पारा, सिक्का तथा कपड़ा भेजते थे। बदले में वे भारत से सूती तथा रेशमी कपड़ा, गर्म मसाले, नील तथा अफ़ीम मंगवाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया। इस तरह उन्होंने भारत में बहुत अधिक शक्ति पकड़ ली।

प्रश्न 3.
ऐंग्लो-फ्रांसीसी संघर्ष का वर्णन करो।
उत्तर-
अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष दक्षिण भारत में हुआ। यह संघर्ष कर्नाटक के युद्धों के नाम से विख्यात है। इस संघर्ष में अग्रलिखित पड़ाव आए कर्नाटक का पहला युद्ध-कर्नाटक का पहला युद्ध 1746 ई० से 1748 ई० तक हुआ। इस युद्ध का वर्णन इस प्रकार है
कारण-

  • अंग्रेज़ और फ्रांसीसी भारत के सारे व्यापार पर अपना-अपना अधिकार करना चाहते थे। इसलिए उनमें शत्रुता बनी हुई थी।
  • इसी बीच यूरोप में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में लड़ाई शुरू हो गई।

घटनाएं-1746 ई० में फ्रांसीसियों ने अंग्रेजों पर आक्रमण करके मद्रास (वर्तमान चेन्नई) पर अधिकार कर लिया। क्योंकि मद्रास (चेन्नई) कर्नाटक राज्य में स्थित था, इसलिए अंग्रेजों ने कर्नाटक के नवाब से रक्षा की प्रार्थना की। नवाब ने दोनों पक्षों के युद्ध को रोकने के लिए 10 हजार सैनिक भेज दिए। इस सेना का सामना फ्रांसीसियों की एक छोटीसी सैनिक टुकड़ी से हुआ। फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेनाओं को बुरी तरह पराजित कर दिया। 1748 ई० में यूरोप में युद्ध बन्द हो गया। परिणामस्वरूप भारत में दोनों जातियों के बीच युद्ध समाप्त हो गया।

परिणाम-

  • इस युद्ध में फ्रांसीसी विजयी रहे और भारत में उनकी शक्ति की धाक जम गई।
  • शान्ति सन्धि के अनुसार चेन्नई (मद्रास) अंग्रेजों को वापस मिल गया।

कर्नाटक का दूसरा युद्ध-कर्नाटक का दूसरा युद्ध 1748 ई० से 1755 ई० तक हुआ।
कारण-कर्नाटक का दूसरा युद्ध हैदराबाद तथा कर्नाटक राज्यों की स्थिति के कारण हुआ। इन दोनों राज्यों में राजगद्दी के लिए दो-दो प्रतिद्वन्द्वी खड़े हो गये। हैदराबाद में नासिर जंग तथा मुजफ्फर जंग और कर्नाटक में अनवरुद्दीन तथा चन्दा माहिब । फ्रांसीसी सेना नायक डुप्ले ने मुजफ्फर जंग और चन्दा साहिब का साथ दिया और उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया। अीज़ भी शान्त न रहे। उन्होंने हैदराबाद में नासिर जंग तथा कर्नाटक में अनवरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली का साथ दिया और युद्ध में उतर आए।

घटनाएं-युद्ध के आरम्भ में फ्रांसीसियों को सफलता मिली। चन्दा साहिब ने फ्रांसीसियों की सहायता से त्रिचनापल्ली में अपने शत्रुओं को घेर लिया। परन्तु अंग्रेज़ सेनापति रॉबर्ट क्लाइव ने युद्ध की स्थिति बदल दी। उसने चन्दा साहिब की राजधानी अर्काट पर घेरा डाल दिया। चन्दा साहिब अपनी राजधानी की रक्षा के लिए त्रिचनापल्ली से भाग गया। परन्तु न तो वह अपनी राजधानी को बचा पाया और न ही अपने आपको। इस प्रकार कर्नाटक पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

परिणाम-

  • 1755 ई० में दोनों पक्षों में सन्धि हो गई। दोनों ने यह निर्णय किया कि वे देशी राजाओं के झगड़ों में भाग नहीं लेंगे।
  • इस युद्ध से अंग्रेजों की साख बढ़ गई। कर्नाटक का तीसरा युद्ध-कर्नाटक का तीसरा युद्ध 1756 से 1763 ई० तक हुआ।

कारण-1756 ई० में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में फ्रांस और इंग्लैण्ड एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे। अत: भारत में भी इन दोनों शक्तियों में युद्ध आरम्भ हो गया।

घटनाएं-फ्रांसीसी सरकार ने 1758 में काऊण्ट लाली को भारत में फ्रांसीसियों का गवर्नर-जनरल तथा सेनापति बना कर भेजा। फ्रांसीसी सरकार ने उसे आदेश दिया कि वह भारत के तटीय प्रदेशों को ही विजय करने का प्रयास करे। परन्तु वह असफल रहा। 1760 ई० में अंग्रेज सेनापति आयरकूट ने बंदिवाश के स्थान पर फ्रांसीसियों को बुरी तरह हराया। बुस्से को बन्दी बना लिया गया। 1761 ई० में अंग्रेजों ने पाण्डिचेरी पर भी अपना अधिकार कर लिया। 1763 ई० में पेरिस की सन्धि के अनुसार यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध बन्द हो गया। इसके साथ ही भारत में भी दोनों शक्तियों में युद्ध समाप्त हो गया।

परिणाम-हैदराबाद में फ्रांसीसियों के प्रभाव का अन्त हो गया। अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को चन्द्रनगर, माही, पाण्डिचेरी और कुछ अन्य प्रदेश लौटा दिये। वे अब इन प्रदेशों में केवल व्यापार ही कर सकते थे। इस प्रकार भारत में राज्य स्थापित करने की उनकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया।

प्रश्न 4.
लॉर्ड वैलज़ली के शासनकाल के समय अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार का वर्णन करें।
उत्तर-
लॉर्ड वैलज़ली 1798 ई० में गवर्नर-जनरल बनकर भारत आया। वह भारत में अंग्रेज़ी राज्य का विस्तार करना चाहता था। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने भिन्न-भिन्न साधन अपनाये और अनेक प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। संक्षेप में, उसने निम्नलिखित ढंग से भारत में अंग्रेजी राज्य का विस्तार किया-

1. युद्धों द्वारा-1799 ई० में वैलज़ली ने टीपू सुल्तान को मैसूर के चौथे युद्ध में हरा कर काफ़ी सारा क्षेत्र अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया। 1802 ई० में उसने मराठों को भी पराजित किया और दिल्ली, आगरा, कटक, बलासोर, भड़ौच, बुन्देलखण्ड आदि को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया। वेलज़ली ने मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर की राजधानी इंदौर पर भी अधिकार कर लिया।

2. सहायक सन्धि द्वारा-वैलज़ली ने अंग्रेजी राज्य का विस्तार करने के लिए अधीन मित्र राज्य अथवा सहायक सन्धि की नीति अपनाई। इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राजा या नवाब के लिए यह आवश्यक था कि वह अपने आपको कम्पनी के अधीन समझे। वह अपने राज्य में अंग्रेजों की एक सैनिक टुकड़ी रखे और अंग्रेज़ों की आज्ञा के बिना किसी से युद्ध या सन्धि न करे। ये शर्ते मानने वाले देशी शासक की आन्तरिक तथा बाहरी खतरे से रक्षा की ज़िम्मेदारी
अंग्रेज़ों पर होती थी।

इस सन्धि को सबसे पहले 1798 ई० में निज़ाम हैदराबाद ने स्वीकार किया। उसने अपने कुछ प्रदेश भी अंग्रेजों को दे दिए। निज़ाम के बाद अवध के नवाब ने इस सन्धि को स्वीकार किया। सेना का खर्च चलाने के लिए उसने रुहेलखण्ड तथा गंगा-यमुना के दोआब का क्षेत्र कम्पनी को दे दिया।

3. पेंशनों द्वारा-1800 ई० में वैलज़ली ने सूरत के राजा को पेन्शन देकर सूरत को अंग्रेज़ी राज्य में सम्मिलित कर लिया। 1801 ई० में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। अंग्रेज़ों ने उसके पुत्र की भी पेन्शन निश्चित कर दी और उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।
इस प्रकार लॉर्ड वैलज़ली ने भारत में अंग्रेजी राज्य का खूब विस्तार किया।

प्रश्न 5.
लॉर्ड डलहौज़ी के शासनकाल के समय अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर-
लॉर्ड डलहौजी ने भारत में निम्नलिखित चार तरीकों से अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार किया – 1. विजयों द्वारा 2. लैप्स की नीति द्वारा 3. कुशासन के आधार पर 4. पदवियां तथा पेन्शनें समाप्त करके

1. युद्धों अथवा विजयों द्वारा-

  • 1848 में उसने पंजाब में मूलराज तथा चतर सिंह के विरोध का लाभ उठाकर लाहौर दरबार के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। इसे दूसरा अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध (1848-49 ई०) कहा जाता है। इसमें अंग्रेज़ों की विजय हुई। परिणामस्वरूप 29 मार्च, 1849 को पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।
  • 1850 ई० में लॉर्ड डलहौजी ने सिक्किम पर आक्रमण करके वहां के शासक को पराजित किया। इस प्रकार सिक्किम को भी अंग्रेजी राज्य में शामिल कर लिया गया।
  • सिक्किम के बाद बर्मा की बारी आई। 1852 ई० में दूसरे अंग्रेज़ बर्मा युद्ध में अंग्रेज़ विजयी रहे। अत: डलहौज़ी ने बर्मा के परोम तथा पेगू प्रदेश अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिये।

2. लैप्स की नीति-लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतीय रियासतों को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिलाने के लिए लैप्स की नीति अपनाई। इसके अनुसार जिन भारतीय शासकों की कोई संतान नहीं थी, उन्हें पुत्र गोद लेने की अनुमति नहीं दी जाती थी। ऐसे शासकों की मृत्यु के बाद उनके राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया जाता था। इस नीति द्वारा लॉर्ड डलहौज़ी ने सतारा, सम्भलपुर, बघाट, उदयपुर, झांसी आदि कई रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।

3. कुशासन के आधार पर-1856 में लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध के ना कशासन (ख़राब शासन) का आरोप लगाया और उसके राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल कर लिया। डलहौज़ा का यह कार्ग बिल्कुल अनुचित था।

4. पदवियां तथा पेंशनें समाप्त करके-लॉर्ड डलहौज़ी ने कर्नाटक, पूना, तंजौर तथा सूरत रियासतों के शासकों की पदवियां छीन ली और उनकी पेंशनें बन्द कर दीं। इन रियासतों को भी अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 10 भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना

प्रश्न 6.
1823 से 1848 ई० तक भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर-
1823 से 1848 ई० तक अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार लॉर्ड एमहर्ट, लॉर्ड विलियम बैंटिंक, लॉर्ड ऑकलैण्ड, लॉर्ड एलनबरो तथा लॉर्ड हार्डिंग ने किया जिसका वर्णन इस प्रकार है-

  • लॉर्ड एमहर्ट ने पहले अंग्रेज़-बर्मा युद्ध (1824-26 ई०) में विजय प्राप्त की और अराकान तथा असम के प्रदेश अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिये।
  • इसके पश्चात् लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने कच्छ, मैसूर तथा कुर्ग पर अधिकार कर लिया। 1832 में उसने सिन्ध के अमीरों के साथ एक व्यापारिक सन्धि की। इससे महाराजा रणजीत सिंह का इस दिशा में विस्तार रुक गया।
  • लॉर्ड ऑकलैण्ड ने 1839 ई० में सिन्ध के अमीरों के साथ सहायक सन्धि करके अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार किया।
  • लॉर्ड एलनबरो के समय में चार्ल्स नेपियर ने 1843 ई० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया और इसे अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया।
  • लॉर्ड हार्डिंग ने पहले अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध में सिखों को हराया। परिणामस्वरूप जालन्धर, कांगड़ा तथा कश्मीर के प्रदेशों पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

प्रश्न 7.
मराठों के इलाकों को अंग्रेज़ों ने कैसे जीत लिया ?
उत्तर-
1772 ई० तक मराठों का मुखिया पेशवा शक्तिशाली रहा। उसके बाद मराठा सरदार नाना फड़नवीस ने मराठों की शक्ति को किसी-न-किसी प्रकार बनाए रखा। उस समय के बड़े-बड़े मराठा सरदार सिन्धिया, भौंसले, होल्कर तथा गायकवाड़ थे। अंग्रेजों ने बारी-बारी पेशवा तथा इन सरदारों की शक्ति को समाप्त किया।

1. पेशवा का पतन-1772 ई० में चौथे पेशवा माधव राव की मृत्यु पर उसका पुत्र नारायण राव पेशवा बना। परन्तु उसके चाचा राघोबा ने उसका वध करवा दिया। इस संकट की घड़ी में नाना फड़नवीस ने मराठों का नेतृत्व किया। उसने नारायण राव के शिशु पुत्र को पेशवा घोषित कर दिया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया। उसने अंग्रेजों के साथ बड़े लम्बे समय तक युद्ध लड़ा, परन्तु सहायक सन्धि स्वीकार न की। उसकी मृत्यु के पश्चात् मराठा सरदारों में आपसी फूट पड़ गई। पेशवा, मराठा सरदार होल्कर से भयभीत था। इसलिए उसने 1802 ई० में अंग्रेजों की शरण ली और बसीन की सन्धि के अनुसार सहायक सन्धि स्वीकार कर ली।

2. सिन्धिया और भौंसले की शक्ति का अन्त-पेशवा द्वारा सहायक सन्धि स्वीकार करना सिन्धिया तथा भौंसले को अच्छा न लगा। उन्होंने इसे मराठा जाति का अपमान समझा। बदला लेने के लिए उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। गायकवाड़ ने अंग्रेज़ों का साथ दिया। लॉर्ड लेक ने सिन्धिया को पराजित करके दिल्ली, आगरा और अलीगढ़ पर अधिकार कर लिया। इधर कटक तथा बालासोर के क्षेत्र भी अंग्रेजों के अधीन हो गए। सिंधिया तथा भौंसले ने सहायक सन्धि स्वीकार कर ली।

3. अन्य मराठा सरदारों की शक्ति का अन्त-पेशवा ने एक बार फिर मराठों में एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया। 1817 ई० में लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ ने पेशवा, भौंसले तथा होल्कर की सेनाओं को पराजित किया। पेशवा को पेंशन देकर उसका पद समाप्त कर दिया गया। उसका सारा क्षेत्र अंग्रेज़ी राज्य में शामिल कर लिया गया। इसके बाद मराठा सरदारों ने भी अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। इस प्रकार अंग्रेजों ने मराठों के सभी इलाकों को जीत लिया।

प्रश्न 8.
अंग्रेज़-मैसूर युद्धों,का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मैसूर राज्य काफ़ी शक्तिशाली था। हैदर अली के अधीन यह राज्य काफ़ी समृद्ध बना और राज्य की सैनिक शक्ति बढ़ी। अंग्रेजों ने इस राज्य की शक्ति को कुचलने के लिए हैदर अली के शत्रुओं-मराठों तथा हैदराबाद के निजाम के साथ गठजोड़ कर लिया। हैदर अली इसे सहन न कर सका। इसलिए उसका अंग्रेजों के साथ युद्ध छिड़ गया।

1. मैसूर का पहला युद्ध–यह युद्ध हैदर अली तथा अंग्रेजों के बीच 1767 ई० से 1769 ई० तक हुआ। इस युद्ध में हैदर अली बढ़ता हुआ मद्रास (चेन्नई) तक जा पहुंचा। 1769 ई० में दोनों पक्षों में एक रक्षात्मक सन्धि हो गई। इसके अनुसार दोनों ने एक-दूसरे के जीते हुए प्रदेश वापिस कर दिए।

2. मैसूर का दूसरा युद्ध-मैसूर के दूसरे युद्ध (1780-84) में भी हैदर अली ने बड़ी वीरता दिखाई। परन्तु फ्रांसीसियों से अपेक्षित सहायता न मिलने के कारण वह पोर्टोनोवा के स्थान पर पराजित हुआ। 1782 ई० में हैदर अली की मृत्यु हो गई और टीपू सुल्तान ने युद्ध को जारी रखा। आखिर 1784 ई० में मंगलौर की सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटा दिए।

3. मैसूर का तीसरा युद्ध-मैसूर के तीसरे युद्ध (1790-92 ई०) में टीपू सुल्तान ने अंग्रेज़ी सेना पर करारे प्रहार किए। परन्तु अन्त में वह लॉर्ड कार्नवालिस के हाथों पराजित हुआ। श्रीरंगापट्टनम की सन्धि के अनुसार टीपू सुल्तान को अपना आधा राज्य और 3 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को देने पड़े।

4. मैसूर का चौथा युद्ध-मैसूर के चौथे युद्ध (1799 ई०) में टीपू सुल्तान अपनी राजधानी की रक्षा करते हुए मारा गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने मैसूर राज्य का कुछ क्षेत्र वहां के पुराने राजवंश को तथा कुछ भाग हैदराबाद के निज़ाम को देकर शेष भाग अपने नियन्त्रण में ले लिया।
इस प्रकार अंग्रेज़ों ने हैदर अली और टीपू सुल्तान की शक्ति को पूरी तरह समाप्त कर दिया।

भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना PSEB 8th Class Social Science Notes

  • नवीन मुद्री मार्ग की खोज – पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने 1498 ई० में यूरोप से भारत पहुंचने के लिए नये समुद्री मार्ग की खोज की।
  • भारत में यूरोपीय जातियां – पुर्तगाली, अंग्रेज़, फ्रांसीसी, डच आदि जातियां भारत में व्यापार करने के लिए आईं।
  • फैक्टरी – भारत में यूरोप की कम्पनियों के व्यापारिक केन्द्रों को फैक्टरी कहते थे।
  • अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी – अंग्रेजों ने 1600 ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की, भारत में व्यापारिक केन्द्र खोले और अन्य यूरोपीय जातियों के प्रसार को रोका।
  • फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी – यद्यपि फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1664 ई० में हुई, फिर भी इसने भारत में बहुत उन्नति की। डुप्ले फ्रांसीसियों का सबसे योग्य गवर्नर था।
  • कर्नाटक के युद्ध -कर्नाटक के युद्ध अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच हुए। इनमें अंग्रेजों की विजय हुई।
  • बंगाल विजय – अंग्रेज़ों ने 1757 ई० में प्लासी की लड़ाई और 1764 ई० में बक्सर की लड़ाई जीत कर बंगाल पर विजय पाई।
  • दीवानी की प्राप्ति – बक्सर की लड़ाई के बाद इलाहाबाद की सन्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी मिल गई। अब अंग्रेज़ वहां से भूमि कर इकट्ठा कर सकते थे।
  • साम्राज्य विस्तार के साधन – अंग्रेजों ने अपने राज्य का विस्तार पांच साधनों द्वारा किया। सहायक सन्धि, लैप्स की नीति, युद्ध, कुशासन का आरोप तथा पेंशनों की समाप्ति।।
  • मराठा शक्ति अंग्रेजों ने शक्तिशाली मराठा सरदारों को एक-एक करके पराजित किया और उन्हें सहायक सन्धि मानने के लिए विवश किया।
  • मैसूर विजय – मैसूर पर विजय पाने के लिए अंग्रेज़ों ने हैदर अली और टीपू सुल्तान के साथ कुल मिलाकर चार लड़ाइयां लड़ीं। इनमें अंतिम विजय अंग्रेजों को मिली।
  • सहायक सन्धि – यह सन्धि लॉर्ड वेलेजली ने अंग्रेज़ी साम्राज्य के विस्तार के लिए चलाई। इसे मानने वाली देशी सत्ता पूरी तरह अंग्रेजों की शरण में आ जाती थी।
  • विलय (लैप्स की)नीति- यह नीति लॉर्ड डलहौज़ी ने चलाई। इसके अनुसार निःसन्तान मरने वाले देशी राजा काराज्य अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया जाता था। सतारा, नागपुर, झांसी आदि अनेक राज्य इसी प्रकार अंग्रेजी राज्य का अंग बने।
  • पंजाब विजय -1849 ई० में अंग्रेज़ों ने सिक्खों को हरा कर पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।
    इस प्रकार अंग्रेज़ लगभग पूरे भारत के स्वामी बन गए।