PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

SST Guide for Class 7 PSEB पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
धरती की कितनी पर्ते हैं? इनके नाम लिखो।
उत्तर-
धरती की तीन पर्ते हैं-स्थल मण्डल, मैंटल तथा केन्द्रीय भाग। इन्हें क्रमशः सियाल, सीमा तथा नाइफ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
धरती पर कितनी प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर-
धरती पर कई प्रकार की चट्टानें (शैलें) पाई जाती हैं। निर्माण के आधार पर चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय चट्टानें, तलछटी या तहदार चट्टानें तथा परिवर्तित चट्टानें।

प्रश्न 3.
धरती के मैंटल भाग के बारे में लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी की ऊपरी पर्त के नीचे पृथ्वी का मैंटल भाग है। इसकी सामान्य मोटाई 2900 किलोमीटर है। इनको दो भागों में बांटा जाता है-ऊपरी मैंटल और निचली मैंटल।

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प्रश्न 4.
धरती की सियाल परत को इस नाम से क्यों पुकारा जाता है?
उत्तर-
धरती की सियाल परत में सिलिकॉन (Si) तथा एल्युमीनियम (AI) तत्त्वों की अधिकता है। इसी कारण इस परत को सियाल (Si + Al = SIAL) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
धरती के आन्तरिक भाग (परत) को क्या कहते हैं? यह कौन-कौन से तत्त्वों की बनी हुई है?
उत्तर-
पृथ्वी के आन्तरिक भाग को ‘नाइफ़’ कहते हैं। यह परत निक्कल तथा लोहे से बनी है।

प्रश्न 6.
धरती के भूमि कटाव से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर-
धरती को निम्नलिखित उपायों द्वारा भूमि कटाव से बचाया जा सकता है –

  1. अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाकर
  2. खेतीबाड़ी के अच्छे ढंग अपनाकर
  3. पशुओं की चराई को घटाकर।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में दो।

प्रश्न 1.
अग्नि (आग्नेय) चट्टानें किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार की हैं? अंतर्वेदी (अंतर्वेधी) चट्टानों के बारे में लिखो।
उत्तर-
अग्नि (आग्नेय) चट्टान वह चट्टान है जिसका निर्माण मैग्मा तथा लावा के ठण्डा होने से हुआ है। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-अंतर्वेदी (अन्तर्वेधी) चट्टानें तथा बाहरवेदी (बहिर्वेधी) चट्टानें।

अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें-कभी-कभी मैग्मा पृथ्वी के अन्दर ही धीरे-धीरे ठण्डा होकर जम जाता है। इस प्रकार बनी चट्टानों को अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें कहते हैं। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-पातालीय आग्नेय चट्टानें तथा . मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें।

1. पातालीय आग्नेय चट्टानें-जब पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मैग्मा बहुत अधिक गहराई पर चट्टान का रूप ले लेता है, तो उस चट्टान को पाताली अग्नि (पातालीय आग्नेय) चट्टान कहा जाता है। ग्रेनाइट इसी प्रकार की चट्टान है ।

2. मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें-कभी कभी मैग्मा पृथ्वी के मध्य भागों की दरारों में जम जाता है। इस प्रकार जो चट्टानें बनती हैं उन्हें मध्यवर्ती अग्नि (आग्नेय) चट्टानें कहते हैं। डाइक तथा सिल इन चट्टानों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
पर्तदार (सतहदार) चट्टानें किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार की हैं?
उत्तर-
पर्तदार (सतहदार) चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पर्तों (परतों) के रूप में पाई जाती हैं। ये अनाच्छादन के कारकों की जमाव क्रिया से बनती हैं। ये जमाव पृथ्वी के निचले स्थानों पर पाए जाते हैं।
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पृथ्वी के तल पर वर्षा, वायु, गर्मी, सर्दी, नदी तथा हिमनदी के कारण शैलें टूटती रहती हैं। नदी-नाले इन टूटे हुए शैल कणों को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। जब ये नदी-नाले समुद्र में जाकर गिरते हैं तो सारा तलछट समुद्र की तह में जमा हो जाता है। वायु भी अनेक शैल कण उड़ाकर समुद्र में फेंकती है। समुद्र में जमा होने वाली इस सामग्री को तलछट अथवा अवसाद कहते हैं। समय बीतने के साथ-साथ नदियां तलछट की परतों पर परतें बिछाती रहती हैं। लाखों वर्षों के पश्चात् दबाव के कारण तलछट की परतें कठोर हो जाती हैं और तलछटी अथवा तहदार चट्टानों का रूप धारण कर लेती हैं। रचना के आधार पर तलछटी शैलें दो प्रकार की होती हैं-जैविक तथा अजैविक।

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प्रश्न 3.
रूपान्तरित चट्टानों के बारे में लिखो, इन चट्टानों के प्रमुख उदाहरण दो।
उत्तर-
धरती के अंदर ताप एवं दबाव या दोनों के संयुक्त प्रभाव के कारण, आग्नेय और तहदार चट्टानों के रंग, रूप, संरचना, कठोरता आदि में परिवर्तन आ जाता है। इन परिवर्तनों के कारण मूल रूप से बदल जाने वाली इन चट्टानों को परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टानें कहते हैं। रूपान्तरण दो प्रकार का होता है, तापीय और क्षेत्रीय।

तापीय रूपान्तरण-जब दरारों और नालियों आदि में बहता हुआ मैग्मा चट्टानों के सम्पर्क में आता है, तो वह अपने उच्च तापमान के कारण उनको पिघला देता है। इसे तापीय रूपान्तरण कहते हैं।

क्षेत्रीय रूपान्तरण-किसी बड़े क्षेत्र में ऊपर की चट्टानों के अत्यन्त दबाव के कारण नीचे की चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन आ जाता है। इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण कहते हैं।
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प्रश्न 4.
धरती में मिलने वाले खनिज पदार्थों का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
धरती में पाये जाने वाले खनिजों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जा सकता है –

  1. धात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु के अंश होते हैं। लोहा, तांबा, टिन, एल्युमीनियम, सोना, चांदी आदि खनिज धात्विक खनिज हैं।
  2. अधात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु के अंश नहीं होते। सल्फर (गंधक), अभ्रक, जिप्सम, पोटाश, फॉस्फेट आदि खनिज अधात्विक खनिज हैं।
  3. शक्ति खनिज-इन खनिजों से ज्वलन शक्ति तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा से कारखाने, मोटरगाड़ियां आदि चलाई जाती हैं। इन खनिजों में कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि शामिल हैं।

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प्रश्न 5.
अभ्रक (अबरक) किस प्रकार का खनिज है? यह कौन से काम आता है?
उत्तर-
अभ्रक (अबरक) एक अधात्विक खनिज है। इसके कई लाभ हैं जिसके कारण यह एक महत्त्वपूर्ण खनिज बन गया है।

  1. इस खनिज का अधिकतर उपयोग बिजली का सामान बनाने में किया जाता है।
  2. इसका उपयोग लैंप की चिमनियों, रंग-रोगन, रबड़, कागज़, दवाइयों, मोटरों, पारदर्शी चादरों आदि के निर्माण . में किया जाता है।
  3. अभ्रक की पतली शीटें बिजली की मोटरों और गर्म करने वाली वस्तुओं में ताप नष्ट होने और करंट लगने से बचाव के लिए डाली जाती हैं।

प्रश्न 6.
तरल सोना किसे कहते हैं? इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर-
तरल सोना खनिज तेल को कहा जाता है। इसे यह नाम इसलिए दिया जाता है क्योंकि यह एक तरल खनिज है और बहुत ही उपयोगी है। इसे पेट्रोलियम अथवा चालक शक्ति भी कहते हैं। क्योंकि खनिजों की तरह इसे भी धरती में से निकाला जाता है, इसलिए इसे खनिज तेल कहा जाता है। इसे पेट्रोलियम नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह दो शब्दों-पेट्रो और उलियम के जोड़ से बना है। लातीनी भाषा में पैट्रो का अर्थ होता है चट्टान और उलियम का अर्थ होता है-तेल। इस प्रकार पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ चट्टान से प्राप्त खनिज तेल है। यह वनस्पति और मरे हुए जीव-जन्तुओं के परतदार चट्टानों के बीच दब जाने से बना है।

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प्रश्न 7.
पृथ्वी पर मिट्टी का क्या महत्त्व है? इसके बारे में लिखो ।
उत्तर-
मिट्टी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमि साधन है। मिट्टी का महत्त्व इसकी उपजाऊ शक्ति में निहित है। उपजाऊ मिट्टी सदैव मनुष्य को आकर्षित करती रही है, क्योंकि मनुष्य को भोजन की वस्तुएं इसी से प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि मनुष्य आरम्भ से ही उपजाऊ भूमियों पर रहना पसन्द करता है। प्राचीन सभ्यताओं का जन्म एवं विकास भी संसार की उपजाऊ नदी-घाटियों में ही हुआ है। इसमें सिन्ध, नील, दजला-फरात, यंगसी घाटियों का विशेष योगदान रहा है। आज भी उपजाऊ नदी-घाटियों और मैदानों में ही घनी जनसंख्या पाई जाती है। भारत अपनी उपजाऊ मिट्टी के कारण ही इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए भोजन पैदा करने में समर्थ हो सका है।

प्रश्न 8.
भारत में लोहा, कोयला व पैट्रोलियम कहां-कहां पाया जाता है ?
उत्तर-
भारत में ये खनिज क्रमश: निम्नलिखित प्रदेशों में पाया जाता है –

  1. लोहा- भारत में लोहा उड़ीसा, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक तथा गोवा में पाया जाता है।
  2. कोयला- भारत में कोयला मुख्य रूप से दामोदर घाटी में पाया जाता है। इसके अन्य उत्पादक प्रदेश पश्चिम बंगाल तथा मध्य प्रदेश हैं।
  3. पैट्रोलियम-पैट्रोलियम मुख्य रूप से भारत के तटीय क्षेत्रों में मिलता है। इसके मुख्य उत्पादक राज्य गुजरात, असम तथा महाराष्ट्र हैं।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125-130 शब्दों में दो।

प्रश्न 1.
धरती पर मिलने वाली चट्टानों (शैलों) के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी की ऊपरी पर्त जिन पदार्थों से मिलकर बनी है, उन सभी पदार्थों को शैल कहते हैं। शैलें पत्थर की तरह कठोर भी होती हैं और रेत की तरह नर्म भी। कुछ शैलें बहुत कठोर होती हैं और देर से टूटती हैं। कुछ शैलें नर्म होती हैं और शीघ्र टूट जाती हैं। शैलें तीन प्रकार की होती हैं –

1. आग्नेय शैलें-आग्नेय का अर्थ होता है-आग या अग्नि से सम्बन्धित। यहां अग्नि से भाव है-उच्च तापमान अथवा गर्मी से है। आग्नेय शैलें पृथ्वी की आन्तरिक गर्मी से बनती हैं। इसलिए इनका नाम आग्नेय शैलें पड़ गया है। पृथ्वी के भीतरी भाग में बहुत गर्मी होती है। यहां सब पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होते हैं। इन पिघले हुए पदार्थों को मैग्मा कहते हैं। पृथ्वी के बाहर आने वाले मैग्मा को लावा कहा जाता है। बाहर निकलने पर गर्म लावा धीरे-धीरे ठण्डा होकर ठोस बन जाता है। इस प्रकार आग्नेय शैलों का निर्माण होता है। आग्नेय शैलें दो प्रकार की होती हैं –
(i) अन्तर्वेधी शैलें तथा
(ii) बहिर्वेधी शैलें।
(i) अन्तर्वेधी शैलें-ये शैलें धरातल के भीतर बनती हैं। ये भी दो प्रकार की होती हैं-पातालीय तथा मध्यवर्ती।
(a) पातालीय आग्नेय शैलें-कई बार लावा धरातल के नीचे ही ठण्डा होकर जम जाता है। धरातल के नीचे बनी इस प्रकार की आग्नेय शैलों को पातालीय आग्नेय शैलें कहा जाता है। ग्रेनाइट इस प्रकार की चट्टान है।
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(b) मध्यवर्ती आग्नेय शैलें-प्रायः लावा पृथ्वी के धरातल को फाड़कर बाहर निकलने का प्रयास करता है। परन्तु कभी यह धरातल पर नहीं पहुंच पाता और धरातल की दरारों में ही ठण्डा होकर कठोर रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार बनी आग्नेय चट्टानों को मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें कहते हैं। डाइक, सिल, डोलोराइट आदि आग्नेय शैलों का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(ii) बहिर्वेधी शैलें-ये शैलें धरातल पर लावे के ठण्डा होने से बनती हैं।

2. तलछटी या अवसादी शैलें-पृथ्वी के धरातल की शैलें वर्षा, वायु, नदी, हिमनदी और गर्मी-सर्दी के कारण टूटती-फूटती रहती हैं। इनके टूटे-फूटे कणों को नदियां और हिमनदियां अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और किसी एक स्थान पर इकट्ठा कर देती हैं। धीरे-धीरे इन कणों की तहें एक-दूसरे पर जमा होने लगती हैं। हज़ारों सालों तक दबाव के कारण ये तहें कठोर हो जाती हैं। इस तरह ये तहें तलछटी चट्टानों का रूप धारण कर लेती हैं। इन शैलों को अवसादी या परतदार शैलें भी कहते हैं। गंगा और सिन्धु का मैदान तथा हिमालय पर्वत भी इसी प्रकार की शैलों से बना है।

3. रूपान्तरित शैलें-ये चट्टानें आग्नेय तथा तहदार चट्टानों की संरचना के रंग-रूप तथा गुण आदि बदलने से बनती हैं। यह रूपान्तरण पृथ्वी के भीतर की गर्मी और दबाव के कारण होता है। उदाहरण के लिए चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है, जो एक रूपान्तरित शैल है। भारत का दक्षिणी पठार रूपान्तरित चट्टानों से बना है।

रूपान्तरित चट्टानें धरातल के नीचे बहुत अधिक गहराई में पाई जाती हैं। ये दो प्रकार से बनती हैं-तापीय रूपान्तरण द्वारा तथा क्षेत्रीय रूपान्तरण द्वारा।
(i) तापीय रूपान्तरण द्वारा-जब गर्म मैग्मा पृथ्वी के भीतर की दरारों तथा नालियों में से गुज़रता है, तो यह अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों को पका देता है। इसे तापीय रूपान्तर कहते हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानें बनती हैं।

(ii) क्षेत्रीय रूपान्तरण द्वारा-कभी-कभी एक बड़े क्षेत्र में ऊपरी शैलों के दबाव के कारण निचली शैलों का मूल रूप बदल जाता है। इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण कहते हैं।

रूपान्तरित चट्टान में मूल चट्टान के कुछ गुण अवश्य रह जाते हैं। उदाहरण के लिए तहदार चट्टान से बनी रूपान्तरित चट्टान भी तहदार होती है। इसी प्रकार आग्नेय चट्टान से बनी परिवर्तित (रूपान्तरित) चट्टान के कुछ गुण मूल चट्टान से मिलते-जुलते होते हैं।

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प्रश्न 2.
खनिज पदार्थ किसे कहते हैं? हमारी धरती पर कौन-से खनिज पदार्थ मिलते हैं? इनका वर्गीकरण करो। धातु खनिजों के बारे में भी जानकारी दें।
उत्तर-
चट्टानों का निर्माण करने वाले पदार्थों को खनिज पदार्थ कहते हैं। इन्हें धरती को खोदकर निकाला जाता है। हमारी धरती पर अनेक प्रकार के खनिज मिलते हैं।
खनिजों का वर्गीकरण-इन खनिजों को तीन वर्गों में बांटा गया है –

  1. धात्विक (धातु) खनिज-इन में धातु के अंश होते हैं। इनमें लोहा, तांबा, टिन, एल्युमीनियम, सोना, चांदी आदि खनिज शामिल हैं।
  2. अधात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु का अंश नहीं होता। इनमें सल्फर, जिप्सम, अभ्रक, फॉस्फोरस, पोटाश आदि खनिज शामिल हैं।
  3. शक्ति खनिज-इन खनिजों से ज्वलन शक्ति, ऊर्जा आदि मिलते हैं। इनसे हमारे थर्मल प्लांट, कारखाने, मोटर गाड़ियां आदि चलती हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि मुख्य शक्ति खनिज हैं।

धात्विक खनिज-मुख्य धात्विक खनिजों का वर्णन इस प्रकार है –
1. लोहा-लोहे का उपयोग छोटी-सी कील से लेकर बड़े-बड़े समुद्री जहाज़ बनाने में होता है। पूरी औद्योगिक मशीनरी, मोटर कारों, रेलों, खेती के लिए मशीनरी आदि का निर्माण भी इसी खनिज पर आधारित है। लोहे और इस्पात ने औद्योगिक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। लोहा लगभग संसार के सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। भारत में उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और गोवा लोहे के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

2. तांबा-तांबा मनुष्य द्वारा खोजी गई सबसे पहली धातु थी। इसके औद्योगिक महत्त्व को देखते हुए लोहे के बाद तांबे का ही स्थान आता है। धातु-युग का आरम्भ तांबे के प्रयोग से ही हुआ था। इससे कई प्रकार के बर्तन बनाए जाते हैं। आज के युग में इसका महत्त्व और भी बढ़ गया है। इसका उपयोग बिजली का सामान बनाने के लिए किया जाता है। यह बिजली का सुचालक है। इसी कारण बिजली की तारें अधिकतर तांबे की ही बनाई जाती हैं। टेलीफोन-केबल तारें, रेलवे-इंजन, हवाई-जहाज़ और घड़ियों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
चिली (दक्षिण अमेरिका) संसार में सबसे अधिक तांबा पैदा करता है। दूसरे नम्बर पर संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) आता है। अफ्रीका महाद्वीप में भी तांबे के पर्याप्त भण्डार हैं। इसके अतिरिक्त भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया में भी तांबे का उत्पादन होता है। भारत में झारखण्ड, मध्य प्रदेश, सीमांध्र, राजस्थान राज्यों में तांबे के भण्डार पाए जाते हैं।

3. बॉक्साइट-बॉक्साइट से एल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है। एल्युमीनियम हल्के भार वाली धातु है, जिसका अधिकतर उपयोग हवाई जहाज़ बनाने में किया जाता है। रेल-गाड़ियों, मोटरों, बसों, कारों और बिजली की तारों में भी इसका उपयोग होता है। इससे बर्तन बनाए जाते हैं। इससे बर्तन भी बनाए जाते हैं। इससे बनी वस्तुओं को जंग नहीं लगता। इसलिए ये वस्तुएं बहुत देर तक प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
संसार में सबसे अधिक बॉक्साइट ऑस्ट्रेलिया में निकाला जाता है। भारत में बॉक्साइट महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में पाया जाता है।

4. मैंगनीज़-मैंगनीज़ भी एक अति महत्त्वपूर्ण खनिज पदार्थ है। इसका अधिक उपयोग कच्चे लोहे (जो कि धरती में से मिलता है) से स्टील बनाने में किया जाता है। यह ब्लीचिंग पाऊडर, कीट-नाशक दवाएं, रंग-रोगन और शीशा बनाने के लिये भी उपयोग में लाया जाता है। रूस, जार्जिया, यूक्रेन, कज़ाखिस्तान में मैंगनीज़ के काफ़ी भण्डार हैं। इनके अतिरिक्त दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील (दक्षिणी अमेरिका) और भारत भी मैंगनीज़ के मुख्य उत्पादक देश हैं। भारत में मध्य-प्रदेश से सबसे अधिक मैंगनीज़ प्राप्त होता है। तेलंगाना, सीमांध्र, कर्नाटक, उड़ीसा और झारखण्ड में भी मैंगनीज़ मिलता है।

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प्रश्न 3.
शक्ति खनिज किसे कहते हैं? किसी एक शकिा खनिज के विषय में जानकारी दें।
उत्तर-
वे खनिज जिनसे कारखाने, मोटर गाड़ियां आदि चलाने के लिए ऊर्जा तथा ज्वलन ऊर्जा प्राप्त होती है, शक्ति खनिज कहलाते हैं। मुख्य शक्ति खनिज कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि हैं। इनमें से कोयले तथा खनिज तेल का औद्योगिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. कोयला-कोयला मुख्य शक्ति खनिज है। अब कोयले का सीधे शक्ति के रूप में उपयोग.कम हो गया है। अब इससे बिजली पैदा करके शक्ति प्राप्त की जाने लगी है। इस उद्देश्य के लिए उपयोग में लाया जाने वाला कोयला प्रत्थरी कोयला है। यह कोयला हजारों साल पहले वनों के धरती की गहरी परतों में दबे रहने और उन पर धरती की गर्मी और ऊपर की तहों के दबाव के कारण बना था। इस प्रक्रिया में करोड़ों वर्ष लग गए।

संसार में कोयले के अधिकतर भण्डार 35° से 65° अक्षांशों में पाये जाते हैं। संसार का 90% कोयला चीन, यू० एस० ए०, रूस और यूरोपीय देशों में मिलता है। इनके अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और एशिया महाद्वीप में भी कोयले के विशाल भण्डार हैं। जापान और थाइलैण्ड में भी कोयला पाया जाता है। भारत संसार का 5% कोयला पैदा करता है। भारत में दामोदर घाटी प्रमुख कोयला क्षेत्र है। पश्चिमी बंगाल और मध्य-प्रदेश राज्यों में भी कोयला पाया जाता है।

2. खनिज तेल-खनिज तेल को तरल सोना भी कहा जाता है। इसे यह नाम इसके बढ़ते हुए उपयोग तथा महत्त्व
के कारण दिया गया है। इसे पेट्रोलियम तथा चालक शक्ति भी कहते हैं। क्योंकि खनिजों की तरह इसे भी धरती में से निकाला जाता है, इस कारण इसे खनिज तेल कहा जाता है। इसे पेट्रोलियम नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह दो शब्दों-‘पेट्रो’ और ‘ओलियम’ के जोड़ से बना है। लातीनी भाषा में पैट्रा का अर्थ है-चट्टान और ओलियम का अर्थ है-तेल। इस प्रकार पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ चट्टान से प्राप्त खनिज तेल है। यह वनस्पति और मरे हुए जीव-जन्तुओं के परतदार चट्टानों के बीच दब जाने से बना है। जो पेट्रोल हमें धरती के नीचे से मिलता है, वह अशुद्ध और अशोधित होता है। इसे कच्चा तेल कहा जाता है। कच्चे तेल को शोधक कारखानों में शुद्ध करके इससे कई वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जैसे-पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी का तेल, गैस, चिकनाहट वाले तेल, ग्रीस, मोम आदि।

संसार में सबसे बड़े तेल भण्डार दक्षिण-पश्चिमी एशिया में हैं। इस क्षेत्र में सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत तथा यू० ए० ई० (यूनाइटिड अरब अमीरात) शामिल हैं।
नोट : विद्यार्थी दोनों में से कोई एक लिखें।

प्रश्न 4.
भारत में पायी जाने वाली मिट्टी की किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
मिट्टी (मृदा) एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। यह कृषि का आधार है। भारत में मुख्य रूप से छः प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है –
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1. जलोढ़ मिट्टी-जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी है जो नदियों द्वारा लाई गई तलछट के जमाव से बनती है। यह संसार को सबसे उपजाऊ मिट्टियों में से एक है। भारत में यह मिट्टी सतलुज-गंगा के मैदान और महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी के डेल्टों में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी का प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण होता रहता है। इसका कारण यह है कि नदियां हर वर्ष नई मिट्टी लाकर बिछाती हैं। नई जलोढ़ मिट्टी को खादर तथा पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर कहते हैं।

2. काली मिट्टी-लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनी मिट्टी को काली मिट्टी कहते हैं। इसमें फॉस्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन की बहुत कमी होती है, जबकि मैग्नीशियम, लोहा, चूना तथा जीवांश काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। यह मिट्टी नमी को काफ़ी समय तक समाए रखती है। यह मिट्टी कपास की उपज के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसलिए इसे कपास की मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। हमारे देश में काली मिट्टी उत्तरी महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश और पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है।

3. लाल मिट्टी-इस मिट्टी का निर्माण आग्नेय शैलों से हुआ है। इसमें लोहे का अंश अधिक होता है। इसी कारण ही इसका रंग लाल या पीला होता है। यह मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं होती। परन्तु खादों के उपयोग द्वारा इस मिट्टी से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। भारत में लाल मिट्टी प्रायद्वीप के दक्षिण तथा पूर्व के गर्म-शुष्क प्रदेशों में फैली हुई है।

4. लैटराइट मिट्टी-यह मिट्टी अधिक वर्षा वाले गर्म प्रदेशों में मिलती है। भारी वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण इस मिट्टी के पोषक तत्त्व घुल कर मिट्टी के नीचे चले जाते हैं। इस क्रिया को निक्षालन (Deaching) कहते हैं। पोषक तत्त्वों की कमी के कारण यह मिट्टी कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं होती। भारत में यह मिट्टी पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर के पठार तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के कुछ भागों में फैली हुई है।

5. शुष्क रेतीली अथवा मरुस्थली मिट्टी-इस मिट्टी में रेत के कणों की अधिकता होती है, परन्तु इसमें ह्यूमस का अभाव होता है। इसलिए यह मिट्टी उपजाऊ नहीं होती। भारत में यह मिट्टी राजस्थान तथा गुजरात के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

6. पर्वतीय (पर्वती) मिट्टी-पर्वतीय मिट्टी कम गहरी तथा पतली सतह वाली होती है। इसमें लोहे का अंश अधिक होता है। पर्याप्त वर्षा मिलने पर इस मिट्टी में चाय की कृषि की जाती है। भारत में यह मिट्टी हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है।

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PSEB 7th Class Social Science Guide पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी पर्वत कैसे बनता है? इसका एक उदाहरण दें।
उत्तर-
ज्वालामुखी पर्वत धराबल में से बाहर निकलने वाले लावे के इकट्ठा होने से बनता है। जापान का फियूजीयामा पर्वत इस का एक उत्तम उदाहरण है।

प्रश्न 2.
छिद्रदार (Porous) तथा छिद्रहीन (Non Porous) चट्टानों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
छिद्रदार चट्टानों में रेत की मात्रा अधिक होती है, जबकि छिद्रहीन चट्टानों में चिकनी मिट्टी की मात्रा अधिक होती है।

प्रश्न 3.
पानी समा सकने के आधार पर चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर–
पानी समा सकने के आधार पर चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-पारगामी (पारगम्य) तथा अपारगामी (अपार-गम्य)। पारगामी चट्टानों में पानी आसानी से प्रवेश कर जाता है, परन्तु अपारगामी चट्टानों में पानी प्रवेश नहीं कर पाता।

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प्रश्न 4.
रासायनिक रचना के आधार पर चट्टानें कौन-कौन से दो प्रकार की होती हैं?
उत्तर-

  1. क्षारीय चट्टानें तथा
  2. तेज़ाबी अथवा अम्लीय चट्टानें।

प्रश्न 5.
मैग्मा तथा लावा में क्या अन्तर है?
उत्तर-
धरातल के अन्दर पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा कहलाता है। जब यह मैग्मा दरारों में से होकर धरातल पर आ जाता है, तो इसे लावा कहते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक चट्टानें किन्हें कहते हैं और क्यों? इनकी दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर सबसे पहले इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ था।
विशेषताएं-

  1. आग्नेय चट्टानें रवेदार पिण्डों में पाई जाती हैं। इसलिए इनमें तहें या परतें नहीं होती।
  2. इन चट्टानों में वनस्पति और जीव-जन्तुओं के अवशेष भी नहीं पाये जाते।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

प्रश्न 7.
मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर-
मिट्टी धरातल के ऊपर का वह भाग है जो चट्टानों की टूट-फूट से बनती हैं। इसके कण बहुत बारीक, कोमल और अलग-अलग होते हैं ताकि पौधों की जड़ें इसमें आसानी से प्रवेश कर सकें।

प्रश्न 8.
मिट्टी में कौन-से दो प्रकार के तत्त्व होते हैं?
उत्तर-
मिट्टी में दो प्रकार के तत्त्व अथवा पदार्थ होते हैं-खनिज पदार्थ और कार्बनिक पदार्थ। मिट्टी को खनिज पदार्थ मूल चट्टान से प्राप्त होते हैं। मिट्टी में शामिल वनस्पति और जीव-जन्तुओं के गले-सड़े पदार्थ को ‘कार्बनिक पदार्थ’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
मिट्टी (मृदा) की रचना में कौन-से कारक सहायक होते हैं?
उत्तर-
मिट्टी (मृदा) की रचना में निम्नलिखित कई कारक सहायक होते हैं –
1. मूल शैल-मूल शैल से अभिप्राय उस शैल से है जिससे मृदा अथवा मिट्टी का निर्माण होता है। मृदा की विशेषताएं जनक शैल के अनुरूप होती हैं। उदाहरण के लिए शैल (Shale) से चीका मिट्टी बनती है, जबकि बलुआ पत्थर से बालू के कण प्राप्त होते हैं।

2. जलवाय-मदा निर्माण को प्रभावित करने वाले जलवायु के कारकों में तापमान और वर्षा प्रमुख हैं। तापमान में बार-बार परिवर्तन होने और वायुमण्डल में जल की उपस्थिति से अपक्षय की दर बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप मृदा के निर्माण की गति में तेजी आ जाती है।

3. स्थलाकृति-किसी क्षेत्र की स्थलाकृति उसके अपवाह को प्रभावित करती है। तीव्र ढाल पर अपक्षयित शैल कण टिक नहीं पाते। जल के द्वारा तथा गुरुत्व बल के प्रभाव से ये कण ढाल पर नीचे की ओर सरक जाते हैं। इसके विपरीत मैदानों और मंद ढालों पर मृदा बिना किसी बाधा के टिकी रहती है।

4.. मृदा में विद्यमान मृत पौधे तथा जीव-जन्तु-मृत पौधों और जीव-जन्तुओं से मृदा को हमस प्राप्त होती है। ह्यमस वाली मृदा अधिक उपजाऊ होती है।

5. समय-मृदा निर्माण के कारक के रूप में समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मृदा के निर्माण में जितना अधिक समय लगता है, उतनी ही अधिक मोटी उसकी परत होती है।

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प्रश्न 10.
मिट्टी के अपरदन अथवा भूमि कटाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तेज़ वायु तथा बहता जल मिट्टी की ऊपरी सतह को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। इसे मिट्टी का अपरदन अथवा भूमि का कटाव कहते हैं। इसके कारण मिट्टी कृषि योग्य नहीं रहुती। यह क्रिया उन स्थानों पर अधिक होती है जहां भूमि की ढाल बहुत तीव्र हो और जहां वर्षा बहुत तेज़ बौछारों के रूप में होती है। भूमि कटाव उन क्षेत्रों में भी अधिक होता है, जहां वनस्पति कम हो, जैसे कि मरुस्थलीय क्षेत्र में।

प्रश्न 11.
किस मिट्टी को कपास की मिट्टी कहा जाता है और क्यों?
उत्तर-
काली अथवा रेगड़ मिट्टी को कपास की मिट्टी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि यह मिट्टी कपास की फसल के लिए आदर्श होती है।

प्रश्न 12.
जलोढ़ मिट्टी की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. इस मिट्टी में पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।
  2. इस मिट्टी में नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।

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प्रश्न 13.
काली अथवा रेगड़ मिट्टी की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. काली मिट्टी लावा के प्रवाह से बनी है।
  2. यह मिट्टी कपास की फसल के लिए अधिक उपयोगी है।

प्रश्न 14.
लैटराइट मिट्टी की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. लैटराइट मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
  2. यह मिट्टी घास और झाड़ियों के पैदा होने के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 15.
मरुस्थलीय मिट्टी को कृषि के लिए उपयोगी कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर-
सिंचाई की सुविधाएं जुटा कर मरुस्थलीय मिट्टी को कृषि के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. आज तक विश्व ग्लोबल गांव नहीं बन सका।
  2. जीव जगत में पेड़-पौधे शामिल नहीं हैं।
  3. समुद्र का धरती पर सबसे अधिक प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।
  4. बुध ग्रह के इर्द-गिर्द वायुमण्डल नहीं है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓)

(ख) सही जोड़े बनाएं:

  1. धातु खनिज – अत्यधिक उपजाऊ
  2. अधातु खनिज – सोना, चांदी
  3. रेतीली मिट्टी – पोटाश, फास्फेट
  4. जलौढ़ मिट्टी – ह्यूमस की कमी

उत्तर-

  1. धातु खनिज – सोना, चांदी
  2. अधातु खनिज – पोटाश, फास्फेट
  3. रेतीली मिट्टी – ह्यूमस की कमी
  4. जलौढ़ मिट्टी – अत्यधिक उपजाऊ।

(ग) सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
जापान का फ्यूजीयामा पर्वत लावे से बना है। यह लावा कहां से आता है?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप 5
(i) ऊँचे पर्वतों से
(ii) धरती के आन्तरिक भाग से
(iii) पर्तदार या तलछटी चट्टानों के जमने से ।
उत्तर-
(ii) धरती के आन्तरिक भाग से।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

प्रश्न 2.
भारत में गंगा सतलुज का मैदान एक विशेष प्रकार की सामग्री से बना है। इस सामग्री का जमाव कैसे होता
(i) बहते हुए पानी के द्वारा
(ii) हिमनदी तथा वायु द्वारा
(iii) इन सबके द्वारा।
उत्तर-
(iii) इन सबके द्वारा।

पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप PSEB 7th Class Social Science Notes

  • स्थलमण्डल – इसमें पृथ्वी की ऊपरी कठोर परत आती है, जिसे सियाल कहते हैं। इस भाग की साधारण मोटाई 100 किलोमीटर के लगभग है। इसमें सिलिकॉन और एल्युमीनियम के तत्त्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
  • खनिज – खनिज वे प्राकृतिक पदार्थ हैं जो किसी एक या एक से अधिक तत्त्वों के मेल से बने हैं।
  • चट्टान (शैल) – प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले खनिजों के मिश्रण को चट्टान कहते हैं। निर्माण के आधार पर ये तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय, तलछटी तथा रूपांतरित।
  • मैग्मा – पृथ्वी की गहराई में अधिकांश पदार्थ पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। इसे मैग्मा कहते हैं।
  • लावा – जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर पहुंचता है, तो वह लावा कहलाता है।
  • आग्नेय शैल तथा रूपान्तरित शैल – आग्नेय शैल पिघले हुए लावे के ठण्डा होकर जमने से बनती है। जबकि रूपान्तरित शैलों का निर्माण तलछटी या आग्नेय शैलों के गुण तथा रंग-रूप बदलने से होता है। उदाहरण के लिए ग्रेनाइट एक आग्नेय शैल है, जबकि ग्रेनाइट के रूप परिवर्तन से बनी नीस एक रूपान्तरित शैल है।
  • धात्विक खनिज – इन खनिजों में धातु के अंश पाये जाते हैं; जैसे-लोहा, सोना, चांदी, तांबा आदि चिल्ली (दक्षिणी अमेरिका) संसार में सबसे अधिक तांबा पैदा करता है।
  • अधात्विक खनिज – इन खनिजों में धातु के अंश नहीं पाये जाते; जैसे-अभ्रक, पोटाश, जिप्सम आदि।
  • खनिजों का संरक्षण – खनिजों के निर्माण में सैंकड़ों वर्ष लग जाते हैं। इसलिए इनका संरक्षण आवश्यक है।
  • चालक शक्ति – जिस शक्ति (ऊर्जा) से हमारे वाहन चलते हैं, उसे चालक शक्ति कहते हैं।

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions योग (Yoga) Game Rules.

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide योग (Yoga) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द संस्कृत की किस धातु से लिया गया है ?
उत्तर-
योग शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘जोड़’ या ‘मेल’।

प्रश्न 2.
प्राणायाम की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम
(Pranayama)
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है, ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण। प्राणायाम वह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती हैं।”

प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayama)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ … समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार हैं।
रेचक-सांस बाहर को छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर खींचते हैं तो इसे पूरक कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—

  1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
  2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बड़ी आन्तों में यही प्राण होता है। यह टट्टी, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
  3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और एडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
  4. उदाना–गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदान कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
  5. ध्यान-यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।

प्राणायाम की किस्में
(Kinds of Pranayama)
शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गए हैं, परन्तु प्रायः यह आठ होते हैं—

  1. सूर्य-भेदी प्राणायाम
  2. उजयी प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. शीतली प्राणायाम
  5. भस्त्रिका प्राणायाम
  6. भ्रमरी प्राणायाम
  7. मुर्छा प्राणायाम
  8. कपालभाती प्राणायाम

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
योग की कोई छः किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
योग की छ: किस्में-अष्टांग योग, हठ योग, जनन योग, मंत्र योग, भक्ति योग, कुंडली योग।

प्रश्न 4.
अष्टांग योग के तत्वों के नाम लिखें।
उत्तर-
यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान तथा समाधि अष्टांग योग के तत्त्व हैं।

प्रश्न 5.
ताड़ासन की विधि लिखें।
उत्तर-
ताड़ासन (Tarasan)—इस आसन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर खींचा जाता है।
ताड़ासन की स्थिति (Position of Tarasan)-इस आसन में स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होती है।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
ताड़ासन
ताड़ासन की विधि (Technique of Tarasan) खड़े होकर पांव की एड़ियों और अंगुलियों को जोड़ कर भुजाओं को ऊपर सीधा करें। हाथों की अंगुलियां एक-दूसरे हाथ में फंसा लें। हथेलियां ऊपर और नज़र सामने हो। अपना पूरा सांस अन्दर की ओर खींचें। एड़ियों को ऊपर उठा कर शरीर का सारा भार पंजों पर ही डालें। शरीर को ऊपर की ओर खींचे। कुछ समय के बाद सांस छोड़ते हुए शरीर को नीचे लाएं। ऐसा दस पन्द्रह बार करो।
ताड़ासन के लाभ (Advantages of Tarasan)-

  1. इससे शरीर का मोटापा दूर होता है।
  2. इससे कब्ज दूर होती है।
  3. इससे आंतों के रोग नहीं लगते।
  4. प्रतिदिन ठण्डा पानी पी कर इस आसन को करने से पेट साफ रहता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
पश्चिमोत्तानासन की विधि लिखें।
उत्तर-
पश्चिमोत्तानासन (Paschimotanasana)—इसमें पांवों के अंगूठों को अंगुलियों से पकड़ कर इस प्रकार बैठा जाता है कि धड़ एक ओर ज़ोर से चला जाए।
पश्चिमोत्तानासन की स्थिति (Position of Paschimotanasana)-इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ा जाता है।
पश्चिमोत्तानासन की विधि (Technique of Paschimotansana)-दोनों टांगें आगे की ओर फैला कर भूमि पर बैठ जाएं। दोनों हाथों से पांवों के अंगूठे पकड़ कर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए घुटनों को छूने की कोशिश करो। फिर धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठाएं और पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यह आसन हर रोज़ 10-15 बार करना चाहिए।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
पश्चिमोत्तानासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से जंघाओं को शक्ति मिलती है।
  2. नाड़ियों की सफाई होती है।
  3. पेट के अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. शरीर की बढ़ी हुई चर्बी कम होती है।
  5. पेट की गैस समाप्त होती है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB योग (Yoga) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
योग का इतिहास लिखें।
उत्तर-
योग का इतिहास उत्तर
(History of Yoga)
‘योग’ का इतिहास वास्तव में बहुत पुराना है। योग के उद्भव के बारे में दृढ़तापूर्वक व स्पष्टता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। केवल यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में हुआ था। उपलब्ध तथ्य यह दर्शाते हैं कि योग सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। उस समय व्यक्ति योग किया करते थे। गौण स्रोतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में लगभग 3000 ई० पू० हुआ था। 147 ई० पू० पतंजलि (Patanjali) के द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक लिखी गई थी। वास्तव में योग संस्कृत भाषा के ‘युज्’ शब्द से लिया गया है। जिसका अभिप्राय है ‘जोड़’ या ‘मेल’। आजकल योग पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। आधुनिक युग को तनाव, दबाव व चिंता का युग कहा जा सकता है। इसलिए अधिकतर व्यक्ति खुशी से भरपूर व फलदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। पश्चिमी देशों में योग जीवन का एक भाग बन चुका है। मानव जीवन में योग बहुत महत्त्वपूर्ण है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
यौगिक व्यायाम के नए नियम लिखे।
उत्तर-
यौगिक व्यायाम के नये नियम
(New Rules of Yogic Exercise)

  1. यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  3. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  4. भोजन करने के बाद कम-से-कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिए।
  5. यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिए और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
  6. अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
  7. दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
  8. शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिए, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।

बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में निम्नलिखित यौगिक व्यायाम सम्मिलित किए गए हैं जिनके दैनिक अभ्यास द्वारा एक साधारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहता है—

  1. ताड़ासन
  2. अर्द्धचन्द्रासन
  3. भुजंगासन
  4. शलभासन
  5. धनुरासन
  6. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  7. पश्चिमोत्तानासन
  8. पद्मासन
  9. स्वास्तिकासन
  10. सर्वांगासन
  11. मत्स्यासन
  12. हलासन
  13. योग मुद्रा
  14. मयूरासन
  15. उड्डियान
  16. प्राणायाम : अनुलोम विलोम
  17. सूर्य नमस्कार
  18. शवासन

प्रश्न 3.
भुजंगासन की विधि बताकर इसके लाभ लिखें।
उत्तर-
भुजंगासन (Bhujangasana)-इसमें चित्त लेट कर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)—इसे सर्पासन भी कहते हैं। इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सर्पासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरेधीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
लाभ (Advantages)—

  1. भुजंगासन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  3. रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
  4. कब्ज दूर होती है।
  5. बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
  6. फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
    योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
    भुजंगासन

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
धनुरासन और अर्द्धमत्स्येन्द्रासन की विधि और लाभ लिखें।
उत्तर-
धनुरासन (Dhanurasana)—इसमें चित्त लेट कर और टांगों को ऊपर खींच कर पांवों को हाथों से पकड़ा जाता है।
धनुरासन की विधि (Technique of Dhanurasana)-इससे शरीर की स्थिति कमान की तरह होती है। धनुरासन करने के लिए पेट के बल भूमि पर लेट जाएं। घुटनों को पीछे की ओर मोड़ कर रखें। टखनों के समीप पांवों
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
धनुरासन
को हाथ से पकड़ें। लम्बी सांस लेकर छाती को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं। अब पांव अकड़ायें जिससे शरीर का आकार कमान की तरह बन जाए। जितने समय तक सम्भव हो ऊपर वाली स्थिति में रहें। सांस छोड़ते समय शरीर को ढीला रखते हुए पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इस आसन को तीन-चार बार करें। भुजंगासन और धनुरासन दोनों ही आसन बारी-बारी करने चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से शरीर का मोटापा कम होता है।
  2. इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
  3. गठिया और मूत्र रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. मेहदा तथा आंतें अधिक ताकतवर बनती हैं।
  5. रीढ़ की ‘हड्डी तथा मांसपेशियां मज़बूत और लचकीली बनती हैं।

अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana) इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पावों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बाएं पांव की एड़ी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ। जिससे एडी का भाग गदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्षस्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएँ।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
लाभ—

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन, वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hernia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 5.
पद्मासन, मयूरासन, सर्वांगासन और मत्स्यासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
पद्मासन (Padamasana)-इसमें टांगों की चौंकड़ी लगा कर बैठा जाता है। पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मार कर बैठने के बाद दायां पांव बाईं जांघ पर इस तरह रखें कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठा कर उसी प्रकार दायें पांव की जांघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तान कर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा इस आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
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पद्मासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन में पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
  3. कमर दर्द दूर होता है।
  4. दिल के तथा पेट के रोग नहीं लगते।
  5. मूत्र के रोगों को दूर करता है।

मयूरासन (Mayurasana)
विधि (Technique)-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कहनियों को आपस में मिला कर ज़मीन पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर दे कर घुटनों और पैरों को जमीन से उठाए रखो।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7
मयूरासन
लाभ (Advantages)—

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों तथा हाथों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है।
  4. इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  5. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Sarvangasana)—सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भान्ति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठा कर हथेलियों द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएँ।
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सर्वांगासन
सारे शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरे-धीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ा कर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
  2. बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर धंसता है।
  3. शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
  4. पेट की गैस नष्ट होती है।
  5. रक्त का संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
  6. बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।

मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर Supine लेते हुए और पीछे की ओर arch बनाते हैं।
विधि (Technique)—पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
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मत्स्यासन
लाभ (Advantages)—

  1. वह आसन चेहरे को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा मेरूदण्ड में लचक आती है, कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र दोषों को दूर करता है।
  5. यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
हलासन और शवासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
हलासन (Halasana)—इसमें Supine लेते हुए, टांगें उठा कर और सिर से परे रखी जाती हैं।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 10
हलासन
विधि (Technique)—दोनों टांगों को ऊपर उठाएं, सिर को पीछे रखें और दोनों पांवों को सिर के पीछे ज़मीन पर रखें। पैरों के अंगूठे ज़मीन को छू लें। यह स्थिति जब तक हो सके रखें। इसके पश्चात् अपनी टांगें पहले वाले स्थान पर लाएं जहां से आरम्भ किया था।
लाभ (Advantages)—

  1. हल आसन औरतों और मर्दो के लिए हर आयु में लाभदायक है।
  2. यह आसन रक्त के दबाव अधिक और कम के लिए भी फायदेमंद है। जिस व्यक्ति को दिल की बीमारी हो उसके लिए भी लाभदायक है।
  3. रक्त का दौरा नियमित हो जाता है।
  4. इस आसन को करने से व्यक्ति की वसा कम हो जाती है और कमर व पेट पतले हो जाते हैं।
  5. रीढ़ की हड्डी लचकदार हो जाती है।

शवासन (Shavasana)—चित्त लेट कर मीटर को ढीला छोड़ दें।
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)—शवासन में पीठ के बल सीधा लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरे-धीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेट कर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच एक डेढ़ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों को आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तान हो कर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू या अन्त में करना ज़रूरी है।
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शवासन
महत्त्व (Importance)—

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. यह दिल और दिमाग को ताज़ा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

योग मुद्रा (Yog Mudra)—इसमें व्यक्ति पद्मासन में बैठता है, धड़ को झुकाता है और भूमि पर सिर को विश्राम देता है।
मयूरासन (Mayurasana)—इसमें शरीर को क्षैतिज रूप में कुहनियों पर सन्तुलित किया जाता है। हथेलियां भूमि पर टिकाई होती हैं।
उड्डियान (Uddiyan)—पांवों को अलग-अलग करके खड़ा होकर धड़ को आगे की ओर झुकाएं। हाथों को जांघों पर रखें। सांस बाहर निकालें और पसलियों के नीचे अन्दर को सांस खींचने की नकल करें।

प्राणायाम : अनुलोम विलोम (Pranayam : Anulom Vilom)—बैठकर निश्चित अवधि के लिए बारीबारी सांस को अन्दर खींचें, ठोडी की सहायता से सांस रोकें और सांस बाहर निकालें।

लाभ (Advantages)—प्राणायाम आसन द्वारा रक्त, नाड़ियों और मन की शुद्धि होती है।
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar)—सूर्य नमस्कार के 16 अंग हैं परन्तु 16 अंगों वाला सूर्य सम्पूर्ण सृष्टि के लय होने के समय प्रकट होता है। साधारणतया इसके 12 अंगों का ही अभ्यास किया जाता है।

लाभ (Advantages)—यह श्रेष्ठ यौगिक व्यायाम है। इससे व्यक्ति को आसन, मुद्रा और प्राणायाम के लाभ प्राप्त होते हैं। अभ्यासी का शरीर सूर्य के समान चमकने लगता है। चर्म सम्बन्धी रोगों से बचाव होता है। कोष्ठ बद्धता दृर होती है। मेरूदण्ड और कमर लचकीली होती है। गर्भवती स्त्रियों और हर्निया के रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 7.
वज्रासन, शीर्षासन, चक्रासन और गरुड़ासन की विधि एवं लाभ लिखें।
उत्तर-
वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि (Technique)—

  1. घुटने मोड़ कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलुओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हों।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।

लाभ (Advantages)—
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वज्रासन

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिंत हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

शीर्षासन (Shirsh Asana)-इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि (Technique)—

  1. एक दरी या कम्बल बिछा कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ (Advantages)—
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शीर्षासन

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां (Precautions)—

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दें।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सके तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो। इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।

चक्रासन (Chakar Asana) की स्थिति-इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
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चक्रासन
विधि (Technique)—

  1. पीठ के भार लेट कर, घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को जमीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को चक्रासन या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ (Advantages)—

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्निया तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मजबूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दे की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

गरुड़ आसन (Garur Asana) की स्थिति- गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खड़ा होना होता है।
विधि (Technique)—

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ (Advantages)—
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गरुड़ासन

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिाली बनाता है।
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 8.
अष्टांग योग के अंगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
अष्टांग योग
(Ashtang Yoga)
अष्टांग योग के आठ अंग हैं, इसलिए इसका नाम अष्टांग योग है।
योगाभ्यास की पतजंलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतजंलि ऋषि का अष्टांग योग भी कहते हैं—

  1. यम (Yama, Forbearnace)
  2. नियम (Niyama, Observance)
  3. आसन (Asana, Posture)
  4. प्राणायाम (Pranayama, Regulation of Breathing)
  5. प्रत्याहार (Pratyahara, Abstracition)
  6. धारणा (Dharna, Concentration)
  7. ध्यान (Dhyana, Meditation)
  8. समाधि (Samadhi, Trance)।

योग की ऊपरी बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है। इन सभी अवस्थाओं को आगे फिर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है—
1. यम (Yama, Forbearance) यम के निम्नलिखित पांच अंग हैं—

  • अहिंसा (Ahimsa, Non-violence)
  • सत्य (Satya, Truth)
  • अस्तेय (Astey, Conquest of the sense of mind)
  • अपरिग्रह (Aprigraha, Non-receiving)
  • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya, Celibacy)।

2. नियम (Niyama, Observance)-नियम के निम्नलिखित पांच अंग हैं :—

  • शौच (Shauch, Obeying the call of nature)
  • सन्तोष (Santosh, Contentment)
  • तप (Tapas, Penance)
  • स्वाध्याय (Savadhyay, Self-study)
  • ईश्वर परिधान (Ishwar Pridhan, God Consciousness)।

3. आसन (Asana or Posture) आसनों की संख्या उतनी है जितनी कि इस संसार में पशु-पक्षियों की। आसन-शारीरिक क्षमता, शक्ति के अनुसार, प्रतिदिन सांस द्वारा हवा को बाहर निकलने, सांस रोकने और फिर सांस लेने से करने चाहिएं।

4. प्राणायाम (Pranayma, Regulation of Breathing), प्राणायाम उपासना की मांग है। इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है—

  • पूरक (Purak, Inhalation)।
  • रेचक (Rechak, Exhalation) और
  • कुम्भक (Kumbhak, Holding of Breath)। कई प्रकार से सांस लेने तथा इसे रोककर बाहर निकालने को प्राणायाम कहते हैं।

5. प्रत्याहार (Pratyahara)– प्रत्याहार से अभिप्राय: है वापिस लाना तथा सांसारिक प्रसन्नताओं से मन को मोड़ना।

6. धारणा (Dharna)-अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने को धारणा कहते हैं जो बहुत कठिन है।

7. ध्यान (Dhyana)–जब मन पर नियन्त्रण हो जाता है तो ध्यान लगना आरम्भ हो जाता है। इस अवस्था में मन और शरीर नदी के प्रवाह की भान्ति हो जाते हैं जिसमें पानी की धाराओं का कोई प्रभाव नहीं होता।

8. समाधि (Samadhi)-मन की वह अवस्था जो धारणा से आरम्भ होती है, समाधि में समाप्त हो जाती है। इन सभी अवस्थाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों के कीट और बीमारियाँ Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
धान की फसल की किस बीमारी से बंगाल में अकाल पड़ा ?
उत्तर-
भूरी चित्ती की बीमारी।

प्रश्न 2.
पंजाब में कपास की फसल का 1996-2002 तक किस कीट ने सबसे अधिक नुकसान किया ?
उत्तर-
अमरीकन सुंडी।

प्रश्न 3.
उन फसलों को क्या कहते हैं, जिनमें किसी अन्य जीव/जंतु के जीन जाते हैं ?
उत्तर-
ट्रांसजेनिक।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 4.
क्या रासायनिक दवाइयाँ मनुष्य के लिए हानिकारक हैं ?
उत्तर-
रासायनिक दवाइयां मनुष्य के लिए हानिकारक हैं क्योंकि यह ज़हर होती हैं।

प्रश्न 5.
किसी एक फसल के जीवाणु रोग का नाम लिखो।
उत्तर-
तने का गलना।

प्रश्न 6.
किसी एक फसल के विषाणु रोग का नाम लिखो।
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 7.
कोई दो रस चूसने वाले कीटों के नाम लिखो।
उत्तर-
तेला, चेपा।

प्रश्न 8.
कोई दो फल और तना छेदक कीटों के नाम लिखो।
उत्तर-
गन्ने का कीट, चितकबरी सुंडी, बैंगन की सुंडी, मक्की की फसल की शाख की मक्खी ।

प्रश्न 9.
पौधों की बीमारियों का फैलाव कैसे होता है ?
उत्तर-
बीमारी वाले बीज, बामारी वाले खेत, वर्षा तथा तेज़ हवा के कारण।

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प्रश्न 10.
क्या एक कीट कई फसलों का नुकसान कर सकता है ? उदाहरण दें।
उत्तर-
हां, कर सकता है, जैसे-तेला, कपास, मक्की, धान आदि को हानि पहुंचाता

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
पौध-संरक्षण के कौन-कौन से ढंग हैं ?
उत्तर-
पौध संरक्षण के ढंग हैं-रासायनिक दवाइयां, रोग सहन करने वाली किस्में, भिन्न कीटनाशकों का प्रयोग, फसल की काश्त संबंधी व्यवस्थित तरीके; जैसे-बिजाई का समय, सिंचाई और खाद प्रबन्धन आदि कई मकैनिकल तरीके।

प्रश्न 2.
ट्रांसजेनिक विधि क्या होती है ?
उत्तर-
यह पौध संरक्षण का आधुनिक ढंग है। इस विधि में किसी भी जीव-जंतु से आवश्यक जीन फसलों में डाल कर पौध संरक्षण किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
पौध-संरक्षण के असफल होने से कैसी स्थिति पैदा हो जाती है ?
उत्तर-
पौध संरक्षण के फेल होने से अकाल जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।

प्रश्न 4.
अलग-अलग फसलों के रस चूसने वाले कीट कौन-से हैं ?
उत्तर-

रस चूसने वाला कीट फसल का नाम
1. तेला कपास, भिंडी, आम आदि
2. चेपा तेल बीज, गेहूँ, आड़ आदि
3. सफेद मक्खी कपास, टमाटर, पपीता आदि
4. मिली बग्ग कपास, आम, नींबू जाति के फल आदि।।

 

प्रश्न 5.
विषाणु रोग का फैलाव कैसे होता है और रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पौधों में कीड़े-मकौड़ों द्वारा विषाणु रोग फैलते हैं। इनकी प्रभावशाली तरीके से रोकथाम मुश्किल है।

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प्रश्न 6.
फंगस से होने वाली फसलों की मुख्य बीमारियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-
फंगस या फंफूद से होने वाली बीमारियां हैं-झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिटों रोग।

प्रश्न 7.
कीड़े-मकौड़ों की कौन-सी मुख्य विशेषताएं हैं, जिनके कारण वह धरती पर अधिक संख्या में विद्यमान हैं ?
उत्तर-
शारीरिक बनावट, फलने-फूलने का ढंग, भिन्न-भिन्न भोजन पदार्थों की खाने की समर्था, फुर्तीलापन आदि ऐसे गुण हैं।

प्रश्न 8.
तना छेदक और फल छेदक कीट फसल का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
ये कीट पौधे के भिन्न-भिन्न भागों के अन्दर जाकर नुकसान करते हैं; जैसेतने में छेद करते हैं, सब्जियों तथा फलों के अन्दर जाते हैं।

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प्रश्न 9.
पत्ते खाने वाले कीट फसल का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
यह कीट पत्तों को खाकर पौधे की प्रकाश संश्लेषण की समर्था को कम कर देते हैं।

प्रश्न 10.
रासायनिक दवाइयों के प्रयोग के लिए किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-
रासायनिक दवाइयों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए। प्रयोग के समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए, यदि ये जहर चढ़ जाए तो तुरंत डॉक्टर को बुला लेना चाहिए।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
हानिकारक कीट फसलों को किन-किन तरीकों से नुकसान पहुँचाते
उत्तर-
हानिकारक कीट फसलों को अलग-अलग ढंग से हानि पहुंचाते हैं—
1. कई कीट ; जैसे-तेला, चेपा, सफेद मक्खी , मिली बग्ग आदि पत्तों में से रस चूस कर इनमें से हरा मादा तथा खनिज पदार्थों की कमी कर देते हैं। इस तरह पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 1
चित्र-फसल रस चूसने वाले कीट
चित्र-रस चूसने वाले कीट
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 2
चित्र-कपास की फसल पर टींडे की सुंडी का हमला
चित्र-तना छेदक कीट का हमला
चित्र-पत्ते को काट कर खाने वाली स्लेटी सुंडी

2. कुछ कीट पौधों के फलों तथा तनों आदि में जाकर नुकसान करते हैं; जैसे-गन्ने का कीट, मक्की की फसल में शाख की मक्खी, कपास की अमरीकन सुंडी आदि।

3. कुछ कीट पत्तों को खाकर प्रकाश संश्लेषण की समर्था कम कर देते हैं। यह या तो पत्तों को किनारों से मुख्य नाड़ी की तरफ खा जाते हैं या पत्तों का हरा मादा खा जाते हैं तथा पत्ते को छननी जैसा बना देते हैं। यह हैं-टिड्डे, सैनिक सुंडी, कंबल कीड़ा, हड्डा भंग आदि।

4. कुछ कीट जैसे दीमक, सफेद सुंडी ज़मीन के नीचे वाले भाग, जैसे-जडें, तना आदि को खा जाते हैं तथा पौधा मर जाता है।

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प्रश्न 2.
फसलों की बीमारियों के मुख्य रूप से क्या-क्या कारण हैं ?
उत्तर-
फसलों को भिन्न-भिन्न अवस्था में फंगस, जीवाणु, विषाणु आदि से कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। पौधे की बीमारियां मुख्य रूप से बीमारी वाले बीजों, बीमारी वाले खेतों, वर्षा तथा तेज़ हवा के कारण एक खेत से दूसरे खेत में फैलती हैं।
फंगस से होने वाली बीमारियां—
फफूंद से होने वाली बीमारियां हैं—
झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिंटो रोग।
जीवाणुओं से होने वाली बीमारियां-तने का गलना, पत्तों का धब्बा रोग आदि। विषाणुओं से होने वाले रोग-जैसे ठुठ्ठी रोग, चितकबरा रोग।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 3
चित्र-बीज गलन रोग
चित्र-मूंगी का चितकबरा रोग
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 4
चित्र-कपास का ठूठी रोग

प्रश्न 3.
फसल-संरक्षण की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
कृषि के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई है। बहुत उन्नत किस्में तथा नई तकनीकें खोज ली गई हैं परन्तु अधिक पैदावार लेने के लिए कीटों तथा रोगों से फसल का बचाव करना भी बहुत आवश्यक है। प्रत्येक वर्ष कीटों तथा रोगों के कारण एक तिहाई पैदावार का नुकसान हो जाता है। यह बचाव ही पौध संरक्षण है या फसल सुरक्षा है। यदि फसल की रोगों तथा कीटों के हमले से सुरक्षा नहीं की जाएगी तो अकाल पड़ सकता है, जैसे कि 1943 में बंगाल में धान को भूरी चित्ती के रोग के कारण हुआ था तथा 1996-2002 के दौरान पंजाब में कपास पर अमरीकन सुंडी के हमले के कारण सारी फसल ही नष्ट होने की कगार पर पहुंच गई थी। इसलिए फसल को सुरक्षित रख कर ही अधिक पैदावार तथा अधिक लाभ लिया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
बीमारी या कीट के हमले से पहले पौध-संरक्षण के लिए कौन-से ढंग और सावधानियां अपनानी चाहिएं ?
उत्तर-
बीमारी या कीट के हमले से पहले अपनाए जाने वाले ढंग और सावधानियां इस प्रकार हैं—

  1. ऐसी किस्मों का चयन करें जो रोग सहने की समर्था रखती हों।
  2. बीजों की सुधाई करके बोना चाहिए।
  3. कुछ बीमारियों तथा कीटों से बचाव, खेतों को धूप में खुला रख कर किया जा सकता है।
  4. सिंचाई, खादें तथा दवाइयों का प्रयोग सही मात्रा में करना चाहिए, अनावश्यक नहीं ।
  5. खेतों के आस-पास मेडों पर खरपतवार को समाप्त करने से कीटों का हमला कम होता है।

प्रश्न 5.
बीमारी या कीट के हमले के बाद पौध-संरक्षण के लिए कौन-से ढंग और सावधानियां अपनानी चाहिएं ?
उत्तर-
बीमारी या कीटों का हमला होने के बाद प्रयोग किए जाने वाले ढंग इस प्रकार

  1. सबसे पहले बीमारी कौन-सी है, इसका कारण क्या है पता लगाएं। इसी प्रकार कीटों की पहचान करना भी आवश्यक है। इसके बाद इनकी रोकथाम की योजना तैयार करनी चाहिए। जैसे विषाणु रोग में इसको फैलाने वाले कीटों की रोकथाम करनी आवश्यक है।
  2. शुरू में ही जब बीमारी या कीटों का हमला कम होता है। ऐसे पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  3. कीट या बीमारी के कारण हुए नुकसान के लिए दिए गए चेतावनी वाले स्तर पर ही रासायनिक कीटनाशकों/फंफूदी नाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
  4. रासायनिक दवाइयों का चुनाव कीट के स्वभाव, हमले की निशानियां तथा बीमारी के कारण के अनुसार ही करना चाहिए।
  5. रासायनिक दवाइयों का सही मात्रा तथा सही समय का ध्यान रख कर ही प्रयोग करना चाहिए।

योग्यता विस्तार–अलग-अलग फसलों/सब्जियों पर बीमारियों के हमले वाले नमूने इकट्ठे करके एक फाइल तैयार करो।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों के कीट और बीमारियाँ Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
तेला कौन-सी फसलों को नुकसान पहुंचाता है ?
उत्तर-
कपास, भिण्डी, मक्का, आम आदि।

प्रश्न 2.
चेपा कौन-सी फसलों को हानि करता है ?
उत्तर-
गेहूं, तेल बीज, गाजरी पौधे, आडू

प्रश्न 3.
सफेद मक्खी कौन-सी फसलों को हानि पहुंचाती है ?
उत्तर-
नरमा, दालें, टमाटर, पपीता आदि।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 4.
मिली बग्ग कौन-सी फसलों को हानि पहुंचाता है ?
उत्तर-
नरमा, आम, नींबू जाति के फल, पपीता आदि।

प्रश्न 5.
किसी तना छेदक कीट का नाम बताएं।
उत्तर-
मक्की की फसल में शाख की मक्खी, कमाद का कीट।

प्रश्न 6.
फल छेदक कीट की पहचान कैसे की जाती है ?
उत्तर-
कीट द्वारा छोड़े गए मल-मूत्र से।

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प्रश्न 7.
फल छेदक कीट का उदाहरण दें।
उत्तर-
अमरीकन सुंडी, बैंगन की सुंडी।

प्रश्न 8.
पत्तों को काटकर खाने वाले कीट पत्ते को कैसे खाते हैं ?
उत्तर-
यह पत्तों को किनारों से मुख्य नाड़ी की तरफ खाते हैं।

प्रश्न 9.
पत्तों को काट कर खाने वाले कीटों का उदाहरण दें।
उत्तर-
टिड्डे, सैनिक सुंडी, स्लेटी सुंडी, लाल सुंडी, भुंग आदि।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 10.
पत्तों को छननी बनाने वाले कीट पत्तों का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
यह पत्तों का हरा मादा खा जाते हैं परन्तु पत्तों की नाड़ियों को नुकसान नहीं करते जिस कारण पत्ते छननी जैसे हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
पत्तों को छननी जैसा बनाने वाले कीटों के नाम बताओ।
उत्तर-
हड्डा भुंग, कंबल कीड़ा, गोभी की तितली।

प्रश्न 12.
जड़ को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के नाम बताओ।
उत्तर-
दीमक, सफेद सुंडी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 13.
झुलस रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पानी रिसते धब्बे पत्तों तथा तनों पर बनते हैं। सफेद फंफूद पत्तों के निचली ओर दिखाई देती है।

प्रश्न 14.
बीज गलन रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
ज़मीन के अन्दर ही बीज गल जाता है।

प्रश्न 15.
कंगियारी के लक्षण बताओ।
उत्तर-
इसमें दानों के स्थान पर काला धुड़ा बन जाता है।

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प्रश्न 16.
चिटों रोग कौन-सी फसल को लगते हैं ?
उत्तर-
बेर, मटर, आदि।

प्रश्न 17.
विषाणु रोग कैसे फैलते हैं ?
उत्तर-
विषाणु रोग कीड़े-मकौड़ों द्वारा फैलते हैं।

प्रश्न 18.
नरमे (कपास) में सफेद मक्खी कौन-सा रोग फैलाती है ?
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

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प्रश्न 19.
क्या विषाणु रोगों की रोकथाम आसानी से हो जाती है ?
उत्तर-
नहीं, इनकी रोकथाम मुश्किल है।

प्रश्न 20.
ठुठ्ठी रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पत्ते किनारों से अन्दर की ओर मुड जाते हैं।

प्रश्न 21.
चितकबरा रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पत्तों पर बिना क्रम के पीले तथा हरे धब्बे पड़ जाते हैं।

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प्रश्न 22.
पपीते को लगने वाला एक विषाणु रोग बताओ।
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

प्रश्न 23.
मूंगी को लगने वाला एक विषाणु रोग बताओ।
उत्तर-
चितकबरा रोग।

प्रश्न 24.
कीटों तथा बीमारियों की उचित रोकथाम को कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
दो भागों में।

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प्रश्न 25.
कीटों या बीमारियों को समाप्त करने के लिए रसायनों का चुनाव किस अनुसार करना चाहिए ?
उत्तर-
कीट के स्वभाव, हमले की निशानियां तथा बीमारी के कारण के अनुसार।

प्रश्न 26.
यदि किसी को जहर चढ़ जाए तो क्या पिला कर उल्टी करवानी चाहिए ?
उत्तर-
नमक वाला पानी पिला कर।

प्रश्न 27.
उल्टी किस स्थिति में नहीं करवानी चाहिए ?
उत्तर-
जब मरीज़ बेहोश हो जाए।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि कीटनाशक दवाइयां किसी की आंखों में पड़ जाएं तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
आंखों की पलकें खुली रखें और डॉक्टर के आने तक पानी से धोते रहें। डॉक्टर के बिना बताए कोई भी दवाई आँखों में न डालें।

प्रश्न 2.
कीटों का फसलों के विकास से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
कई कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे उपज कम हो जाती है। कुछ कीट लाभकारी होते हैं; जैसे-मधुमक्खियां जो परागण क्रिया द्वारा फसलों की उपज बढ़ाने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 3.
कीटनाशक दवाइयों की खाली बोतलों और डिब्बों को क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
खाली बोतलों और डिब्बों को जलाने की बजाय भूमि में दबा देना चाहिए।

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प्रश्न 4.
कृषि ज़हर छिड़काव करने वाले के खाने-पीने के बारे में बताएं।
उत्तर-
भूखे पेट छिड़काव न करें तथा छिड़काव के दौरान कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। पहले ही पेट भरकर खाना खा लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
सांस द्वारा अंदर गए जहर से बचाव के बारे में बताएं।
उत्तर-
रोगी को शीघ्र खुली हवा में ले जाएं तथा बंद कमरे की सभी खिड़कियां तथा दरवाजे खोल दें। रोगी के कपड़ों को ढीला कर दें। यदि सांस बंद हो रही हो या चाल में परिवर्तन नज़र आए तो उसे बनावटी सांस दें, परन्तु छाती पर भार न डालें। रोगी को सर्दी न लगने दें उसे कंबल आदि दें। रोगी को बोलने न दें। रोगी को घबराहट हो तो उसे अन्धेरे कमरे में रखें। वहां शोर आदि न करें।

प्रश्न 6.
रोमों द्वारा अंदर गए जहर से बचाव के बारे में बताएं।
उत्तर–
पानी से शरीर को गीला करें तथा रोगी के सारे कपड़े उतारकर शरीर पर लगातार पानी डालें। शरीर को पानी से लगातार साफ़ करें। शरीर को जल्दी धो लें, क्योंकि इससे काफ़ी फर्क पड़ता है।

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प्रश्न 7.
जहरीली दवाई आंख में पड़ जाने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
ऐसी हालत में निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए—

  1. आंखों की पलकें खुली रखें।
  2. बहते पानी से जितनी जल्दी हो आंखों को धीरे-धीरे धोएं।
  3. डॉक्टर के आने तक आंखों को धोते रहें।
  4. किसी दवाई का प्रयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें। ग़लत दवाई हानिकारक हो सकती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि जहर से बचाव के आम साधन बताएं।
उत्तर-
रोगी को ठंड से बचाने के लिए हल्के कंबल का प्रयोग करें। इस काम के लिए गर्म पानी वाली बोतल का प्रयोग न करें। रोगी का बिस्तर पांव की तरफ से ऊंचा रखें तथा टांग और बाजुओं को फीतों से बांध दें। रोगी को चुस्ती के लिए हाइपोडरमिक टीके जैसे कैफीन तथा एपाइनाफ्रिन लगाएं। डेक्सटरोज 5% का घोल नाड़ी से शरीर में भेजें। रोगी को खून या प्लाज़मा भी दें। रोगी को तेज़ तथा ज्यादा दवाइयां देकर न थकाएं।

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प्रश्न 2.
कृषि ज़हरों के उचित प्रयोग का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कृषि ज़हरों के उचित प्रयोग के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है, जो इस प्रकार हैं—

  1. पहले कीड़े, बीमारी तथा नदीनों की पहचान करके ही बताए गए ज़हर को उचित मात्रा में प्रयोग करें। हर कीड़े, बीमारी तथा नदीन के लिए अलग-अलग ज़हर अलग-अलग मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
  2. दुकानदार की ग़लत राय न मानें बल्कि कृषि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करें।
  3. कभी भी कीटनाशक और नदीननाशकों को कृषि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किए बगैर मिलाकर न छिड़कें।
  4. कृषि ज़हरों का छिड़काव जिस दिन हवा न चल रही हो या कम हवा चलने के दौरान ही किया जाना चाहिए। छिड़काव करने वाले व्यक्ति का मुँह भी हवा की दिशा से उल्टा होना चाहिए।
  5. यदि छिड़काव करने के 24 घंटे के भीतर वर्षा हो जाए तो दोबारा छिड़काव करें।

प्रश्न 3.
कृषि ज़हरों के सुरक्षित प्रयोग के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
इनके सुरक्षित प्रयोग के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए—

  1. घरों में इन कीटनाशकों को खाने-पीने की वस्तुओं तथा दवाइयों से दूर रखें।
  2. कृषि ज़हर की शीशी या डिब्बे पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़कर ही उसे प्रयोग में लाएं।
  3. कीटनाशक दवाइयों वाली बोतलों और डिब्बों का दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  4. कृषि ज़हरों को घर में हमेशा बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  5. यदि छिड़काव करते समय नोजल बंद हो जाए तो कभी भी मुँह से फूंक मारकर इसे खोलने की कोशिश न करें।
  6. छिड़काव करने से पहले ही पेट भर खाना खा लेना चाहिए। कभी भी खाली पेट छिड़काव न करें। खाने-पीने से पहले अच्छी तरह साबुन से हाथ धो लें।
  7. छिड़काव करने वाले व्यक्ति को दिन में 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए।
  8. कीटनाशक दवाइयों को पानी में घोलते समय छींटा वगैरह नहीं पड़ने देना चाहिए।
  9. तेज़ हवा वाले दिन छिड़काव न करें।
  10. छिड़काव का काम खत्म करके पहने हुए कपड़े बदलकर साबुन से अच्छी तरह धो लें।
  11. दवाई वाले खाली डिब्बों को न जलाएं बल्कि इन्हें भूमि में दबा दें।

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प्रश्न 4.
निगली हुई कीटनाशक दवाई से बचाव के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि कृषि ज़हर निगल लिया हो तो उल्टी करवानी चाहिए। इसके लिए एक चम्मच नमक गर्म पानी में घोलकर रोगी को दें तथा तब तक देते रहें जब तक उल्टी न हो जाए। गले को उंगली से धीरे-धीरे टटोलें या चम्मच की पिछली तरफ को गले में रखने से जब पेट नमकीन पानी से भर जाए तो उल्टी आसानी से होगी।

यदि रोगी पहले ही उल्टी कर दे तो उसे बिना नमक के गर्म पानी ज्यादा मात्रा में दें। साथ बताए गए निर्देशों का पालन करें। यदि रोगी बेहोश हो जाए तो उल्टी की दवाई न दें।

फसलों के कीट और बीमारियाँ PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • फसलों की अधिक पैदावार के लिए फसलों की कीटों तथा बीमारियों से सुरक्षा बहुत आवश्यक है।
  • प्रत्येक वर्ष बीमारियों तथा कीटों के कारण एक तिहाई पैदावार का नुकसान हो जाता है।
  • बंगाल में 1943 में धान में भूरी चित्ती की बीमारी के कारण अकाल पड़ गया था।
  • पंजाब में 1996 से 2002 तक अमरीकन सुंडी के हमले के कारण कपास की फसल तबाह हो गई थी।
  • कीड़े-मकौड़ों की जातियां अन्य सभी प्राणियों से अधिक हैं। ये अपने आप को प्रत्येक वातावरण में ढाल लेते हैं।
  • फसल को मुख्य रूप से चार प्रकार के कीट नुकसान पहुँचाते हैं।
  • रस चूसने वाले कीट हैं-तेला, चेपा, सफेद मक्खी आदि।
  • फल और तना छेदक कीट हैं-गन्ने का कीट, गुलाबी सुंडी, शाख की मक्खी, अमरीकन तथा चितकबरी सुंडी, बैंगन की सुंडी आदि।
  • पत्तों को खाने वाले कीट-टिड्डे, सैनिक सुंडी, लाल भंग, स्लेटी भंग आदि।
  • पत्तों को छननी बनाने वाले कीट हैं-हड्डा भंग, कंबल कीड़ा, गोभी की तितली आदि।
  • जड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-दीमक, सफेद सुंडी आदि।
  • फसलों को बीमारियां, फंगस, जीवाणु, विषाणु आदि से लगती हैं।
  • फफूंद से लगने वाली बीमारियां हैं-झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिंटो रोग।
  • विषाणुओं से लगने वाले रोग हैं-ठुठ्ठी रोग, चितकबरा रोग।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

मिसलों की उत्पत्ति तथा विकास (Origin and Development of Misls)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास का विवरण दीजिए।
(Trace the origin and development of Sikh Misls in the Punjab.)
अथवा
‘मिसल’ शब्द का आप क्या अर्थ समझते हैं ? सिख मिसलों की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl? ? Describe the origin of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसल की परिभाषा दीजिए। आप सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में क्या जानते हैं ?
(Define Misl. What do you know about the origin and growth of Sikh Misls ?)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है ? प्रमुख सिख मिसलों के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl’ ? Give an account of the history of the important Sikh Misls.)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से क्या भाव है ? सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करें।
(What do you mean by word Misl ? Describe the origin and growth of Sikh Misls.)
उत्तर-
शताब्दी में पंजाब में सिख मिसलों की स्थापना यहाँ के इतिहास के लिए एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।
(क) सिख मिसल से अभिप्राय (The Meaning of the Sikh Misl)-मिसल अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है एक समान या बराबर। 18वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में पंजाब में सिखों ने 12 मिसलें स्थापित कर ली थीं। प्रत्येक मिसल का सरदार दूसरी मिसल के सरदारों के साथ एक जैसा व्यवहार करता था परंतु वे अपना आंतरिक शासन चलाने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे। सिख जत्थों की इस सामान्य विशेषता के कारण उनको मिसलें कहा जाता था।

(ख) सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)—मुग़लों के सिखों पर बढ़ रहे अत्याचारों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण को देखते हुए नवाब कपूर सिंह ने सिखों में एकता की कमी अनुभव की। इस उद्देश्य से 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में वैशाखी के दिन दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। प्रत्येक जत्थे का अपना अलग सरदार और झंडा था। इन जत्थों को ही मिसल कहा जाता था। इन मिसलों ने सन् 1767 ई० से 1799 ई० के दौरान पंजाब के विभिन्न भागों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे।

(ग) सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misls)-1767 ई० से लेकर 1799 ई० के दौरान जमुना और सिंध नदियों के बीच के क्षेत्रों में सिखों ने 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित की। इन मिसलों के विकास और उनके इतिहास संबंधी संक्षेप जानकारी निम्नलिखित अनुसार है—
1. फैजलपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैज़लपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैज़लपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। फैजलपुरिया मिसल के अधीन जालंधर, लुधियाना, पट्टी, नूरपुर तथा बहिरामपुर आदि प्रदेश सम्मिलित थे। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल (Bhangi Misl) भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। इस मिसल का लाहौर, अमृतसर, गुजरात एवं स्यालकोट आदि प्रदेशों पर अधिकार था। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा। .

3. आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl) आहलूवालिया मिसल की स्थापना सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने की थी। क्योंकि वह लाहौर के निकट आहलू गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम आलहूवालिया पड़ा। वह एक महान् नेता था। उसे 1748 ई० में दल खालसा का प्रधान सेनापति बनाया गया था। उसने लाहौर, कसूर एवं सरहिंद पर अधिकार करके अपनी वीरता का प्रमाण दिया। उसे सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह आहलूवालिया ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। उसने दीपालपुर, कलानौर, बटाला, उड़मुड़ टांडा, हरिपुर एवं करतारपुर नामक प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया। .

5. शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। उसने ऐमनाबाद, गुजराँवाला, स्यालकोट, वजीराबाद, चकवाल, जलालपुर तथा रसूलपुर
आदि प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

6. कन्हैया मिसल (Kanahiya Misl) कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफी बहादुर था। उसने मुकेरियाँ, गुरदासपुर, पठानकोट तथा काँगड़ा के क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

7. फूलकियाँ मिसल (Phulkian Misl)-फूलकियाँ मिसल की स्थापना चौधरी फूल नामक एक जाट ने की थी। इसमें पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेश शामिल थे। पटियाला के प्रख्यात फूलकियाँ सरदार बाबा आला सिंह, अमर सिंह तथा साहिब सिंह, नाभा के हमीर सिंह एवं जसवंत सिंह तथा जींद के गजपत सिंह एवं भाग सिंह थे।

8. डल्लेवालिया मिसल (Dallewalia Misl)–डल्लेवालिया मिसल का संस्थापक गुलाब सिंह था। तारा सिंह घेबा इस मिसल का प्रख्यात सरदार था। इस मिसल का फिल्लौर, राहों, नकोदर, बद्दोवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार था।

9. नकई मिसल (Nakkai Misl)—नकई मिसल का संस्थापक सरदार हीरा सिंह था। उसने नक्का, चुनियाँ, दीपालपुर, कंगनपुर, शेरगढ़, फरीदाबाद आदि प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल का विस्तार किया। रण सिंह नकई सरदारों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने कोट कमालिया तथा शकरपुर के प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल में शामिल किया।

10. निशानवालिया मिसल (Nishanwalia Misl)-इस मिसल का संस्थापक सरदार संगत सिंह था। इस मिसल के सरदार दल खालसा का झंडा या निशान उठाकर चलते थे, जिस कारण इस मिसल का नाम निशानवालिया मिसल पड़ गया। संगत सिंह ने अंबाला, शाहबाद, सिंघवाला, साहनेवाल, दोराहा आदि प्रदेशों पर कब्जा करके अपनी मिसंल का विस्तार किया। उसने सिंघवाला को अपनी राजधानी बनाया। 1774 ई० में संगत सिंह की मृत्यु के बाद उसका भाई मोहन सिंह इस मिसल का सरदार बना।

11. शहीद मिसल (Shahid Misl) शहीद मिसल का संस्थापक सरदार सुधा सिंह था। क्योंकि इस मिसल के सरदार अफ़गानों के साथ हुई लड़ाइयों में शहीद हो गए थे इस कारण इस मिसल को शहीद मिसल कहा जाने लगा। बाबा दीप सिंह जी, इस मिसल के सबसे लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने 1757 ई० में अमृतसर में अफ़गानों से लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी। कर्म सिंह और गुरबख्श सिंह इस मिसल के दो अन्य दो अन्य ख्याति प्राप्त नेता थे। इस मिसल में सहारनपुर, शहजादपुर और केसनी नाम के क्षेत्र शामिल थे। इस मिसल के अधिकतर लोग निहंग थे जो नीले वस्त्र पहनते थे। इसलिए शहीद मिसल को निहंग मिसल भी कहा जाता है।

12. करोड़सिंधिया मिसल (Krorsinghia Misl)—इस मिसल का संस्थापक करोड़ा सिंह था जिस कारण इसका नाम करोड़सिंघिया मिसल पड़ गया। क्योंकि करोड़ा सिंह पंजगड़िया गाँव का रहने वाला था इसलिए इस मिसल को पंजगड़िया मिसल भी कहा जाता है। 1764 ई० में करोड़ा सिंह की मृत्यु के पश्चात् बघेल सिंह इस मिसल का मुखिया बना। वह करोड़सिंघिया मिसल के मुखियों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने करनाल के निकट स्थित चलोदी को अपनी राजधानी बनाया। उसने नवांशहर और बंगा के क्षेत्रों को अपनी मिसल में सम्मिलित किया। बघेल सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जोध सिंह मिसल का सरदार बना। उसने मालवा के कई प्रदेशों पर कब्जा कर लिया था।

सिख मिसलों के शासक अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप में शासन करते थे, परंत उनकी विशेष बात यह थी कि वे समस्त सिख जाति के साथ संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए विशेष अवसरों पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में एकत्र होते थे। यहाँ वे गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में प्रस्ताव पास करते थे। इन्हें गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख सम्मान करते थे। इस कारण उनमें आपसी संबंध बने रहे।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

मिसल का राज्य प्रबंध (Administration of the Misls)

प्रश्न 2.
सिख मिसलों के संगठन पर एक नोट लिखें। (Write a note on the Organisation of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के संगठन की प्रकृति का वर्णन कीजिए। (Discuss the nature of the Organisation of Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के राज प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ लिखिए। (Bring out the main features of the Administration of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के नागरिक तथा सैनिक प्रबंध का विवरण दें। (Give an account of Civil and Military Administration of the Misls.)
अथवा
सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में आप क्या जानते हो ? (What do you know about the origin and growth of the Sikh Misls ?)
अथवा
मिसलों के अंदरूनी शासन प्रबन्ध की व्याख्या करो।
(Describe the internal administration system of the Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. गुरमता (Gurmata)
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। इसका शाब्दिक अर्थ है, “गुरु का मत या निर्णय”। दूसरे शब्दों में गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते हैं उनको गुरमता कहते हैं। सरबत खालसा के सम्मेलनों में सिख पंथ के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मामलों से संबंधित गुरमते पास किए जाते थे। सभी सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा मान कर पालना करते थे।

II. मिसलों का आंतरिक संगठन (Internal Organisation of the Misls)
1. सरदार और मिसलदार (Sardar and Misldar)-प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार की तरह मिसलदारों के पास भी अपनी सेना होती थी। सरदार जीते हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। प्रारंभ में सरदार का पद पैतृक नहीं होता था। धीरे-धीरे सरदार का पद पैतृक हो गया। चाहे सरदार निरंकुश थे पर वे अत्याचारी नहीं थे। वे प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे।

2. जिले (Districts) मिसलों को कई जिलों में बाँटा गया था। प्रत्येक जिले के मुखिया को कारदार कहा जाता था। वह ज़िले का शासन प्रबंध चलाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

3. गाँव (Villages)-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में होता था। गाँव के लगभग सारे मामले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लंबरदार, पटवारी और चौकीदार गाँव के महत्त्वपूर्ण कर्मचारी थे।

III. मिसलों का आर्थिक प्रबंध (Financial Administration of the Misls)
1. लगान प्रबंध (Land Revenue Administration) मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ–पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा (Rakhi System)-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन (Other Sources of Income)—इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, _ भेंटों और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय (Expenditure)-मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़े, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

IV. न्याय प्रबंध (Judicial Administration)
1. पंचायत (Panchayat) मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। पंचायत प्रत्येक गाँव में होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर का रूप समझकर उसका फैसला स्वीकार कर लेते थे।

2. सरदार की अदालत (Sardar’s Court)—प्रत्येक मिसल का सरदार अपनी अलग अदालत लगाता था। इसमें वह दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय करता था। वह किसी भी अपराधी को मृत्यु का दंड देने का भी अधिकार रखता था परंतु वे आम तौर पर अपराधियों को नर्म सज़ाएँ ही देते थे।

3. सरबत खालसा (Sarbat Khalsa)-सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत माना जाता था। मिसलदारों के आपसी झगड़ों और सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई सरबत खालसा द्वारा की जाती थी। सरबत खालसा मुकद्दमों का फैसला करने के लिए अकाल तख्त अमृतसर में एकत्रित होता था। उस द्वारा पास किए गए गुरमत्तों की सभी सिख पालना करते थे।

4. कानून और सजाएँ (Laws and Punishments) सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं था। मुकद्दमों के फैसले प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किये जाते थे। उस काल की सज़ाएँ कड़ी नहीं थीं। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था।

V. सैनिक प्रबंध (Military Administration)
1. घुड़सवार सेना (Cavalry)-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक (Infantry)-मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती (Recruitment)-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान (Weapons and Equipment of the Soldiers)-सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बौँ का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग (Mode of Fighting)–मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना (Total Strength of the Misls)-मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। बी० सी० ह्यगल के अनुसार मिसलों के समय सिख सैनिकों की संख्या 69,500 थी। फ्रोस्टर के अनुसार मिसल सैनिकों की कुल संख्या दो लाख के लगभग थी। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।
अंत में हम एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“मिसल संगठन बिना शक बेढंगा था, परंतु यह उस समय के अनुरूप था। इसकी अपनी ही सफलताएँ और महान् प्राप्तियाँ थीं।”1

1. “The Misl organisation was undoubtedly. crude but it suited the times. It had its triumphs and grand achievements to its credit.” S.S. Gandhi, Struggle of the Sikhs for Sovereignty (Delhi : 1980) p. 300.

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संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ? मिसलों की उत्पत्ति कैसे हुई ? (What do you mean by the word Misl ? How did the Misls originate ?)
अथवा
मिसलों की उत्पत्ति का संक्षिप्त वर्णन करें। (Explain in brief about the origin of Misls.) (P.S.E.B. Mar. 2007, July 09)
अथवा
मिसलों से आपका क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में उनकी उत्पत्ति के बारे में लिखें। (What do you understand by Misls ? Describe in brief about their origin.)
उत्तर-
मिसल से अभिप्राय फाइल से है जिसमें मिसलों के विवरण दर्ज किए जाते थे। बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब के मुग़ल सूबेदारों ने सिखों पर घोर अत्याचार किए। परिणामस्वरूप सिखों ने पहाड़ों और जंगलों में जाकर शरण ली। मुग़लों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। कालांतर में इन जत्थों ने पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित की।

प्रश्न 2.
मिसलों के संगठन के स्वरूप पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the nature of Misl organisation.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन के स्वरूप के बारे में इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न मत प्रकट किए हैं। इसका कारण यह था कि मिसलों का राज्य प्रबंध किसी निश्चित शासन प्रणाली के अनुसार नहीं चलाया जाता था। अलगअलग सरदारों ने शासन प्रबंध चलाने के लिए आवश्यकतानुसार अपने-अपने नियम बना लिए थे। जे० डी० कनिंघम के विचारानुसार, सिख मिसलों के संगठन का स्वरूप धर्मतांत्रिक, संघात्मक और सामंतवादी.था। डॉ० ए० सी० बैनर्जी के विचारानुसार, “मिसलों का संगठन बनावट में प्रजातंत्रीय और एकता प्रदान करने वाले सिद्धांतों में धार्मिक था।”

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प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह के जीवन का संक्षिप्त में वर्णन करें।
(Give a brief account of the life of Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह कौन थे। उनकी सफलताओं का वर्णन करो। (Who was Nawab Kapoor Singh ? Describe his achievements.)
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक थे। 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ ने उन्हें नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर दी। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों को दो जत्थों-बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना की। उन्होंने सिख पंथ का घोर कठिनाइयों के समय नेतृत्व किया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 4.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। 1761 ई० में जस्सा सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की सेना से डट कर मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर उसे आहलूवालिया मिसल की राजधानी घोषित किया। 1783 ई० में वह हम से सदा के लिए बिछुड़ गए।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफ़लताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, टाँडा, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसके नेतृत्व में यह मिसल उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Mahan Singh.)
उत्तर-
1774 ई० में महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बना। महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महां सिंह ने सभी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 7.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Wrie a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। उसने 1765 ई० में अहमद शाह
अब्दाली से समझौता किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। जींद में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

प्रश्न 8.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
आला सिंह पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक था। उसने 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान मुग़लों की सहायता की। शीघ्र ही आला सिंह ने बुढलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्यों ने आला सिंह को अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने का निर्देश दिया, परंतु शीघ्र ही वह इस संसार से कूच कर गए।

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प्रश्न 9.
खालसा के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you understand by Sarbat Khalsa ?)
अथवा
सरबत खालसा के बारे में नोट लिखें। (Write a note on Sarbat Khalsa.)
उत्तर-
सरबत खालसा का आयोजन सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार के लिए हर वर्ष दीवाली और बैसाखी के अवसर पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में किया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को बताता था। निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

प्रश्न 10.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें।
(What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता के बारे में आप क्या जानते हो?
(What do you know about Gurmata ?)
अथवा
गुरमता से क्या भाव है ? गुरमता के तीन विशेष कार्य बताएँ। (What is meant by Gurmata ? Discuss about the three main works of Gurmata.)
उत्तर-
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुर का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय लिए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के महत्त्वपूर्ण कार्य थे-सिखों की नीति तैयार करना, दल खालसा के नेता का चुनाव करना, शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म का प्रचार का प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई तीन विशेषताएँ बताओ। (Mention any three features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें।
(Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Describe the main features of Misl Administration.)
अथवा
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Write five features of internal organisation of the Sikh Misls.)
उत्तर-
मिसल का प्रधान सरदार कहलाता था। सरदार अपनी प्रजा से स्नेह रखते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। मिसलों का न्याय प्रबंध साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता था। सज़ाएँ अधिक सख्त नहीं थीं। आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। सरदार गाँव के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते थे।

प्रश्न 12.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi system.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi system ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
(What do you know about Rakhi system ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? (What is Rakhi system ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi system’ ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन गया। लोगों को सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए बहुत-से गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। सिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूटपाट से बचाते थे। इसके अतिरिक्त वे स्वयं भी इन गाँवों पर कभी आक्रमण नहीं करते थे। राखी प्रणाली से लोगों का जीवन सुरक्षित हुआ।

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प्रश्न 13.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल में मिसलों की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होता था। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग तक होता था। भू-राजस्व के बाद मिसलों की आय का दूसरा मुख्य साधन राखी प्रथा था। मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़ों तथा हथियारों पर खर्च करते थे। वे गुरुद्वारों तथा मंदिरों को दान भी देते थे।

प्रश्न 14.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें।
(Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सजाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी।

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प्रश्न 15.
सिख मिसलों के सैनिकों प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(Describe the main features of military administratidn of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य तीन विशेषताएँ लिखिए। (Write three main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-

  1. मिसलों के काल में घुड़सवार सेना को सेना का महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता था।
  2. लोग अपनी इच्छा से सेना में भर्ती होते थे।
  3. इन सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था तथा उन्हें नकद वेतन भी नहीं दिया जाता था।
  4. उस समय सैनिकों का कोई विवरण नहीं रखा जाता था।
  5. सिख सैनिक सीमित साधनों के कारण छापामार ढंग से दुश्मन का मुकाबला करते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
मिसल शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
समान।

प्रश्न 2.
मिसल किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-
अरबी।

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प्रश्न 3.
मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
उत्तर-
12.

प्रश्न 4.
पंजाब में सिख मिसलें किस शताब्दी में स्थापित हुईं ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी।

प्रश्न 5.
किसी एक प्रमुख मिसल का नाम लिखें।
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल।

प्रश्न 6.
फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

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प्रश्न 7.
फैज़लपुरिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ।
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 8.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 9.
नवाब कपूर सिंह ने किस मिसल की स्थापना की?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल।

प्रश्न 10.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया।

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प्रश्न 11.
आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि जस्सा सिंद्र लाहौर के नज़दीक स्थित आहलू गाँव से संबंधित था।

प्रश्न 12.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
कपूरथला।

प्रश्न 13.
जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 14.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
श्री हरगोबिंदपुर।

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प्रश्न 15.
रामगढ़िया मिसल के किसी एक सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ ।
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया।

प्रश्न 16.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
उत्तर-
रामगढ़िया मिसल का सबसे शक्तिशाली सरदार।

प्रश्न 17.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
छज्जा सिंह।

प्रश्न 18.
भंगी मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भांग पीने की बहुत आदत थी।

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प्रश्न 19.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
उत्तर-
शुकरचकिया मिसल।

प्रश्न 20.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चढ़त सिंह।

प्रश्न 21.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर-
गुजराँवाला।

प्रश्न 22.
महा सिंह कौन था ?
उत्तर-
महा सिंह 1774 ई० में शुकरचकिया मिसल का नेता बना।

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प्रश्न 23.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जय सिंह।

प्रश्न 24.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चौधरी फूल।

प्रश्न 25.
बाबा आला सिंह कौन था ?
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 26.
बाबा आला सिंह की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
बरनाला।

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प्रश्न 27.
अहमद शाह अब्दाली ने किसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
बाबा आला सिंह को।

प्रश्न 28.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे योग्य नेता कौन था ?
उत्तर-
तारा सिंह घेबा।

प्रश्न 29.
शहीद मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
सरदार सुधा सिंह।

प्रश्न 30.
शहीद मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
इस मिसल के नेताओं द्वारा दी गई शहीदियों के कारण ।

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प्रश्न 31.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
अथवा
सिखों की केंद्रीय संस्था का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरमता।

प्रश्न 32.
गुरमता से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरु का फैसला।

प्रश्न 33.
गुरुमता के पीछे कौन-सी शक्ति काम करती थी ?
उत्तर-
धार्मिक।

प्रश्न 34.
सरबत खालसा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब, अमृतसर में आयोजित किया जाने वाला सिख सम्मेलन।।

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प्रश्न 35.
सरबत खालसा की सभाएँ कहाँ बुलाई जाती थीं ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 36.
सिख मिसलों के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सरदार।

प्रश्न 37.
सिख मिसलों के प्रशासन की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
सिख मिसलों के सरदार अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे।

प्रश्न 38.
राखी प्रणाली से क्या भाव है ?
अथवा
राखी प्रथा क्या है ?
उत्तर-
राखी प्रणाली के अंतर्गत आने वाले गाँवों को सिख सुरक्षा प्रदान करते थे।

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प्रश्न 39.
मिसल सेना की लड़ने की विधि कौन सी थी ?
उत्तर-
गुरिल्ला विधि।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में पंजाब में…….स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित हुईं।
उत्तर-
(12)

प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह……मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
(फैजलपुरिया)

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह ने…….में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
(1748 ई०)

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प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक……..था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह आहलूवालिया)

प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने ………….को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
(कपूरथला)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर-
(खुशहाल सिंह)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता………था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह रामगढ़िया)

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प्रश्न 8.
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम………था।
उत्तर-
(श्री हरिगोबिंद पुर)

प्रश्न 9.
झंडा सिंह……….मिसल का एक प्रसिद्ध नेता था।
उत्तर-
(भंगी)

प्रश्न 10.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चढ़त सिंह)

प्रश्न 11.
1774 ई० में………शुकरचकिया मिसल का नया नेता बना।
उत्तर-
(महा सिंह)

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प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम……….था।
उत्तर-
(गुजराँवाला)

प्रश्न 13.
बाबा दीप सिंह जी …………. मिसल के साथ संबंध रखते थे।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने………में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
(1792 ई०)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(जय सिंह)

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प्रश्न 16.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चौधरी फूल)

प्रश्न 17.
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर
(बाबा आला सिंह)

प्रश्न 18.
बाबा आला सिंह ने…………को अपनी राजधानी बनाया। .
उत्तर-
(बरनाला)

प्रश्न 19.
डल्लेवालिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम……….था।
उत्तर
(तारा सिंह घेबा)

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प्रश्न 20.
शहीद मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(सुधा सिंह)

प्रश्न 21.
बाबा दीप सिंह जी का संबंध………मिसल के साथ था।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 22.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम……….था।
उत्तर-
(गुरमता)

प्रश्न 23.
मिसल काल में मिसल के मुखिया को…………..कहा जाता था। .
उत्तर-
(सरदार)

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प्रश्न 24.
सिख मिसलों के समय आमदन का मुख्य स्रोत………..था।
उत्तर-
(भूमि लगान)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा पंजाब में………….शताब्दी में प्रचलित हुई।
उत्तर-
(18वीं)

प्रश्न 26.
मिसल काल में अपराधियों से अधिकतर………….वसूल किया जाता था।
उत्तर-
(जुर्माना)

प्रश्न 27.
सिख मिसलों के समय सैनिक……….से अपने दुश्मनों का सामना करते थे।
उत्तर-
(छापामार ढंग)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
18वीं सदी में पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलों की स्थापना हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बराबर।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
फैजलपुरिया मिसल को आहलूवालिया मिसल भी कहा जाता है। .
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
नवाब कपूर सिंह ने 1734 ई० में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
नवाब कपूर सिंह दल खालसा का प्रधान सेनापति था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
नवाब कपूर सिंह की मृत्य 1753 ई० में हुई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
1748 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया। गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला को अपनी राजधानी बनाया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
जस्सा सिंह रामगढ़िया ने करतारपुर को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 14.
भंगी मिसल का यह नाम इसके नेताओं द्वारा भांग पीने के कारण पड़ा।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 16.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम लाहौर था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
जय सिंह कन्हैया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
रानी जिंदा कन्हैया मिसल की आगू थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल के सब से प्रसिद्ध नेता बाबा दीप सिंह जी थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 21.
बाबा आला सिंह ने बरनाला को अपनी राजधानी बनाया था। .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
बाबा आला सिंह की मृत्यु 1762 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
1765 ई० में अहमद सिंह पटियाला की गद्दी पर बैठा था। . .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 24.
अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को ‘राजा-ए-राजगान बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 25.
निशानवालिया मिसल का संस्थापक हमीर सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 26.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम गुरमता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27.
मिसल के मुखिया को मिसलदार कहा जाता था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 28.
18वीं सदी में पंजाब में राखी प्रथा का प्रचलन हुआ।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 29.
मिसल काल में सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत कहा जाता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 30.
सिख मिसलों के सैनिक अपने दुश्मनों का मुकाबला छापामार ढंग से करते थे।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
पंजाब में स्थापित मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
(i) 5
(ii) 10
(iii) 12
(iv) 15
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
(i) फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) आहलूवालिया मिसल का नेता।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह
(ii) भाग सिंह
(iii) फ़तह सिंह
(iv) खुशहाल सिंह।
उत्तर-(i)

प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
(i) अमृतसर
(ii) कपूरथला
(iii) लाहौर
(iv) श्री हरगोबिंदपुर।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 5.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) खुशहाल सिंह
(iii) जोध सिंह
(iv) भाग सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) नंद सिंह
(iii) खुशहाल सिंह
(iv) जोध सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी का क्या नाम था ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) लाहौर
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 8.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) छज्जा सिंह
(iii) गुलाब सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 9.
भंगी मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) झंडा सिंह
(iii) गंडा सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
(i) शुकरचकिया मिसल
(ii) भंगी मिसल
(iii) कन्हैया मिसल
(iv) फुलकियाँ मिसल।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 11.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) खुशहाल सिंह
(ii) नवाब कपूर सिंह
(iii) छज्जा सिंह
(iv) चढ़त सिंह।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ ।
(i) अमृतसर
(ii) लाहौर
(iii) गुजराँवाला
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से किस नगर पर चढ़त सिंह ने अधिकार नहीं किया था ?
(i) स्यालकोट
(ii) चकवाल
(iii) गुजराँवाला
(iv) अलीपुर
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 14.
महा सिंह की मृत्यु कब हुई ?
अथवा
रणजीत सिंह कब शुकरचकिया मिसल का नेता बना ?
(i) 1770 ई० में
(ii) 1780 ई० में
(iii) 1782 ई० में
(iv) 1792 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जय सिंह
(ii) सदा कौर
(iii) बाबा आला सिंह
(iv) जस्सा सिंह आहलूवालिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 16.
सदा कौर कौन थी ?
(i) कन्हैया मिसल की नेता
(i) महा सिंह की सास
(iii) भंगी मिसल की नेता
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 17.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) चौधरी फूल
(ii) छज्जा सिंह
(iii) नवाब कपूर सिंह
(iv) गंडा सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
पटियाला रियासत का संस्थापक कौन था ?
(i) अमर सिंह
(ii) बाबा आला सिंह
(ii) हमीर सिंह
(iv) गजपत सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
बाबा आला सिंह ने किसको पटियाला रियासत की राजधानी बनाया ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) बरनाला
(iv) गुजरांवाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे प्रसिद्ध सरदार कौन था ?
(i) गुलाब सिंह
(ii) तारा सिंह घेबा
(iii) जय सिंह
(iv) बाबा आला सिंह।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 21.
शहीद मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) सुधा सिंह
(ii) बाबा दीप सिंह जी
(iii) कर्म सिंह
(iv) गुरबख्श सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 22.
नकई मिसल का संस्थापक कौन था?
(i) नाहर सिंह
(ii) हीरा सिंह
(iii) राम सिंह
(iv) काहन सिंह ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
(i) राखी प्रथा
(ii) जागीरदारी
(iii) गुरमता
(iv) मिसल।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 24.
मिसल काल में जिले के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
(i) ज़िलेदार
(ii) कारदार
(iii) थानेदार
(iv) सरदार।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा क्या थी ?
(i) विदेशी आक्रमणकारियों से गाँव की रक्षा करनी
(ii) फसलों की देखभाल करनी
(iii) स्त्रियों की रक्षा करनी
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
मिसल काल में सबसे महत्त्वपूर्ण किस सेना को माना जाता था ?
(i) घुड़सवार सेना को
(ii) पैदल सेना को
(iii) रथ सेना को
(iv) नौसेना को।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

प्रश्न 3.
पंजाब की किन्हीं छ: मिसलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Explain briefly any six Misls of Punjab.) a
उत्तर-
1. फैजलपुरिया मिसल-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैजलपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल-भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा।

3. रामगढ़िया मिसल-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. शुकरचकिया मिसल-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

5. कन्हैया मिसल-कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफ़ी बहादुर था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

6. आहलूवालिया मिसल-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया था। उसने जालंधर दोआब तथा बारी दोआब के इलाकों पर कब्जा करके अपनी वीरता का परिचय दिया। उसे सुल्तानउल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह ने शासन किया।

प्रश्न 4.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कपूर सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Nawab Kapoor Singh ?)..
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह सिखों के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे। वह फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक थे। उनका जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद. तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। जकरिया खाँ सिखों की बढ़ती हुई शक्ति को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने 1735 ई० में सिखों को दी गई जागीर को वापस ले लिया। उसने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए। नवाब कपूर सिंह के नेतृत्व में खालसा ने इतने भयानक कष्टों को खुशी-खुशी सहन किया किंतु उन्होंने जकरिया खाँ के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया। नवाब कपूर सिंह ने 1736 ई० में सरहिंद में भयंकर लूटमार की। नवाब कपूर सिंह ने 1739 ई० में नादिरशाह को दिन में तारे दिखा दिए थे। उसने 1748 ई० में अमृतसर को अपने अधीन कर लिया था। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान कार्य किया। नवाब कपूर सिंह न केवल एक वीर योद्धा था अपितु वह सिख पंथ का एक महान् प्रचारक भी था। उसने बड़ी संख्या में लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। निस्संदेह सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह ने बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें। (Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया 18वीं शताब्दी में सिखों का एक योग्य एवं वीर नेता था। वह आहलूवालिया मिसल का संस्थापक था। उसका जन्म 1718 ई० में लाहौर के निकट स्थित आहलू नामक गाँव में हुआ था। आप के पिता का नाम बदर सिंह था। जस्सा सिंह अभी छोटे ही थे कि उनके पिता का देहांत हो गया। नवाब कपूर सिंह ने जस्सा सिंह आहलूवालिया को अपने पुत्र की तरह पालन-पोषण किया। 1739 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में सिखों ने नादिरशाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। निस्संदेह यह एक अत्यंत साहसी कार्य था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के वे जौहर दिखाए कि उनकी ख्याति दूरदूर तक फैल गई। 1747 ई० में अमृतसर के फ़ौजदार सलाबत खाँ ने दरबार साहिब में सिखों के प्रवेश पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे। परिणामस्वरूप जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कुछ सिखों को साथ लेकर अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सलाबत खाँ मारा गया एवं सिखों का अमृतसर पर अधिकार हो गया। जस्सा सिंह आहलूवालिया अपनी वीरता एवं प्रतिभा के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1748 ई० में उन्हें दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का कुशलतापूर्वक नेतृत्व करके सिख पंथ की महान सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे समय भी जस्सा सिंह आहलूवालिया ने अहमदशाह अब्दाली की सेना का बड़ी बहादुरी से सामना किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया। इस प्रकार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सिख पंथ के लिए महान् उपलब्धियाँ प्राप्त की। 1783 ई० में इस महान् नेता की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफलताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे महान् नेता था। उसने सिख पंथ में बहुत कठिन परिस्थितियों में योग्य नेतृत्व किया था। उनका जन्म 1723 ई० में लाहौर के निकट स्थित गाँव इच्छोगिल में सरदार भगवान सिंह के घर हुआ था। आपको सिख पंथ की सेवा करना विरासत में प्राप्त हुआ था। उनके नेतृत्व में रामगढ़िया मिसल ने अद्वितीय उन्नति की। जस्सा सिंह रामगढ़िया पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग़ के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। जस्सा सिंह रामगढ़िया इसे सहन न कर सका। वह तुरंत उनकी सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के हवाले कर दिया। जस्सा सिंह रामगढ़िया ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु की पश्चात् पंजाब में अराजकता फैल गई। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर जस्सा सिंह रामगढिया ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह रामगढ़िया के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया ने सदैव के लिए हमसे अलविदा ले ली। उनका जीवन आने वाले सिख नेताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहा।

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प्रश्न 7.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Maha Singh.).
उत्तर-
चढ़त सिंह की मृत्यु के पश्चात् 1774 ई० में उसका पुत्र महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बमा। उस समय महा सिंह की आयु केवल दस वर्ष की थी। इसलिए उसकी माँ देसाँ ने कुछ समय के लिए बड़ी समझदारी से मिसल का नेतृत्व किया। शीघ्र ही महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महा सिंह ने रसूलपुर नगर का नाम बदल कर रामनगर और अलीपुर का नाम बदल कर अकालगढ़ रख दिया। महा सिंह ने भंगी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। महा सिंह की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जय सिंह कन्हैया उससे बड़ी ईर्ष्या करने लग पड़ा। इसलिए उसको सबक सिखाने के लिए महा सिंह ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के साथ मिलकर कन्हैया मिसल पर आक्रमण कर दिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। जय सिंह ने अपनी पौत्री मेहताब कौर की सगाई महा सिंह के पुत्र रणजीत सिंह के साथ कर दी। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 8.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। 1764 ई० में उसने सरहिंद पर विजय प्राप्त की। 1764 ई० में उसने अहमद शाह अब्दाली से समझौता किया। 1765 ई० में आला सिंह के पश्चात् अमर सिंह तथा साहब सिंह ने शासन किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। उसके पश्चात् उसका बेटा जसवंत सिंह गद्दी पर बैठा। जींद में फलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने पानीपत तथा करनाल के प्रदेशों को विजय किया था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

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प्रश्न 9.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने बरनाला को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। 1768 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की थी। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बुहत बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1762 ई० में अपने छठे,आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्य उससे रुष्ट हो गए और उसे अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने हेत कहा, परंतु शीघ्र ही आला सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 10.
सरबत खालसा तथा गुरमता के विषय में आप क्या जानते हैं ?, (What do you understand by Sarbat Khalsa and Gurmata ?)
अथवा
‘सरबत खालसा’ और ‘गुरमता’ के बारे में अपने विचार लिखें। (Write your views on ‘Sarbat Khalsa’ and ‘Gurmata’.)
उत्तर-
1. सरबत खालसा-सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार दीवाली और वैशाखी के अवसर पर सरबत खालसा का समागम अकाल तख्त साहिब अमृतसर में बुलाया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् गुरुवाणी का कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे विचार-विमर्श करने के लिए प्रत्येक पुरुष व स्त्री को पूरी छूट होती थी। कोई भी निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

2. गुरमता-गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता पंजाबी के दो शब्दों गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुरु का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सारे सिख बड़े सत्कार से पालन करते थे। गुरमता के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य ये थे-दल खालसा के नेता का चुनाव करना, सिखों की विशेष नीति तैयार करना, सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही के लिए योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म के प्रचार के लिए प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें। (What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Gurmata ?)
उत्तर-
गुरमता एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसके द्वारा अनेक राजनीतिक, सैनिक, धार्मिक तथा न्याय संबंधी कार्य किए जाते थे।

  1. इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य दल खालसा के सर्वोच्च सेनापति की नियुक्ति करना था।
  2. इसके द्वारा सिखों की विदेश नीति को तैयार किया जाता था।
  3. इसके द्वारा सिखों के सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया जाता था।
  4. यह सिख मिसलों के सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करता था।
  5. इसमें सिख धर्म के प्रचार तथा सिख धर्म से संबंधित अन्य समस्याओं से संबंधित विचार किया जाता था तथा कार्यक्रम तैयार किया जाता था।
  6. इसके द्वारा विभिन्न मिसल सरदारों के अथवा व्यक्तिगत सिखों के झगड़ों का निपटारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा सिख मिसलों के उत्तराधिकार एवं सीमा संबंधी झगड़ों का निर्णय भी किया जाता था।

सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार बैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अकाल तख्त में सरबत खालसा का आयोजन किया जाता था। वे अकाल तख्त साहिब के प्रांगण में रखे गए गुरु ग्रंथ साहिब जी को माथा टेक कर स्थान ग्रहण करते थे। उनके पीछे उनके अनुयायी तथा अन्य सिख संगत होती थी। आयोजन का आरंभ कीर्तन द्वारा किया जाता था। इसके पश्चात् अरदास की जाती थी। इसके पश्चात् ग्रंथी खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे में सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए सरबत खालसा के सभी सदस्यों को पूर्ण स्वतंत्रता होती थी।

प्रश्न 12.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई छः विशेषताएँ बताओ। (Mention any six features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें। (Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main features of Misl Administration.)
उत्तर-
प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार विजित किए हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। कई बार मिसलदार सरदार से अलग होकर अपनी स्वतंत्र मिसल स्थापित कर लेते थे। सरदार अपनी प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। गाँव के लगभग सभी मसले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लोग पंचायत का बड़ा आदर करते थे। सिख मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला उस समय के प्रचलित रीतिरिवाजों के अनुसार किया जाता था। अपराधियों को सख्त सज़ाएँ नहीं दी जाती थीं। उनसे आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न रहता था। यह आमतौर पर 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार वसूल किया जाता था। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था।

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प्रश्न 13.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi System.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए। (What do you know about Rakhi System ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi System’ ?)
अथवा
मिसल प्रशासन में राखी प्रणाली का क्या महत्त्व था? (What was the importance of Rakhi System under the Misl Administration ?)
उत्तर-
18वीं शताब्दी पंजाब में जिन महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना हुई उनमें से राखी प्रणाली सबसे महत्त्वपूर्ण थी। —
1. राखी प्रणाली से अभिप्राय-राखी शब्द से अभिप्राय है रक्षा करना। वे गाँव जो अपनी इच्छा से सिखों की रक्षा के अधीन आ जाते थे उन्हें बाह्य आक्रमणों के समय तथा सिखों की लूटमार से सुरक्षा की गारंटी दी जाती थी। इस सुरक्षा के बदले उन्हें अपनी उपज का पाँचवां भाग सिखों को देना पड़ता था।

2. राखी प्रणाली का आरंभ-पंजाब में मुग़ल सूबेदारों की दमनकारी नीति, नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई थी। पंजाब में कोई स्थिर सरकार भी नहीं थी। इस वातावरण के कारण पंजाब में कृषि, उद्योग तथा व्यापार को काफ़ी हानि पहुँची। पंजाब के स्थानीय अधिकारी तथा ज़मींदार किसानों का बहुत शोषण करते थे तथा वे जब चाहते तलवार के बल पर लोगों की संपत्ति आदि लूट लेते थे। ऐसे अराजकता के वातावरण में दल खालसा ने राखी प्रणाली का आरंभ किया।

3. राखी प्रणाली की विशेषताएँ-राखी प्रणाली के अनुसार जो गाँव स्वयं को सरकारी अधिकारियों, ज़मींदारों, चोर-डाकुओं तथा विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करना चाहते थे वे सिखों की शरण में आ जाते थे। सिखों की शरण में आने वाले गाँवों को इन सभी की लूटमार से बचाया जाता था। इस सुरक्षा के कारण प्रत्येक गाँव को वर्ष में दो बार अपनी कुल उपज का 1/5वां भाग दल खालसा को देना पड़ता था।

4. राखी प्रणाली की महत्ता-18वीं शताब्दी में पंजाब में राखी प्रणाली की स्थापना अनेक पक्षों से लाभदायक सिद्ध हुई। प्रथम, इसने पंजाब में सिखों की राजनीतिक शक्ति के उत्थान की ओर प्रथम महान् पग उठाया। दूसरा, इस कारण पंजाब के लोगों को सदियों बाद सुख का साँस मिला। वे अत्याचारी जागीरदारों तथा भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचारों से बच गए। तीसरा, उन्हें विदेशी आक्रमणकारियों की लूटमार का भय भी ने रहा। चौथा, पंजाब में शाँति स्थापित होने के कारण यहाँ की कृषि, उद्योग तथा व्यापार को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 14.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. लगान प्रबंध-मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ-पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन-इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, भेंटों से और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय-मिसल सरदार अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग सेना, घोड़ों, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

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प्रश्न 15.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सज़ाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। बार-बार अपराध करने वाले अपराधी के शरीर का कोई अंग काट दिया जाता था। मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी। इसमें दीवानी और फ़ौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय किया जाता था। वह पंचायत के फैसलों के विरुद्ध भी अपीलें सुनता था। सरबत खालसा सिखों की सर्वोच्च अदालत थी। इसमें मिसल सरदारों के आपसी झगड़ों तथा सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाती थी तथा इनका निर्णय गुरमतों द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 16.
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (Describe the main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-
1. घुड़सवार सेना-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक–मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान–सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग-मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना–मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
नवाब कपूर सिंह फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक था। उसने सबसे पहले अमृतसर के निकट फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया। इस गाँव का नाम बदल कर सिंघपुर रखा गया। इसी कारण फैजलपुरिया मिसल को सिंघपुरिया मिसल भी कहा जाता है। सरदार कपूर सिंह का जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह बाल्यकाल से ही अत्यंत वीर और निडर थे। उन्होंने भाई मनी सिंह से अमृत छका था। शीघ्र ही वह सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल के रूप में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान् कार्य किया। वास्तव में सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह का योगदान बड़ा प्रशंसनीय था। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक कौन थे ?
  2. फैज़लपुरिया को अन्य किस नाम से जाना जाता था ?
  3. सरदार कपूर सिंह ने कब तथा किससे नवाब का दर्जा प्राप्त किया था ?
  4. नवाब कपूर सिंह की कोई एक सफलता के बारे में बताएँ।
  5. दल खालसा की स्थापना ……….. में की गई।

उत्तर-

  1. फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक नवाव कपूर सिंह थे।
  2. फैज़लपुरिया को सिंघपुरिया मिसल के नाम से जाना जाता था।
  3. सरदार कपूर सिंह ने 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का दर्जा प्राप्त किया था।
  4. उन्होंने 1734 ई० में बुड्डा दल तथा तरुणा दल का गठन किया।
  5. 1748 ई०।

2
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह था। वह लाहौर के निकट स्थित गाँव आहलू का निवासी था। इस कारण इस मिसल का नाम आहलूवालिया मिसल पड़ गया। जस्सा सिंह अपने गुणों के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1739 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने नादिर शाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के बड़े जौहर दिखाए। परिणामस्वरूप उनका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का नेतृत्व करके सिख पंथ की महान् सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर जीत प्राप्त की। यह सिखों की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विजय थी। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय भी जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की फ़ौजों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया और इसके शासक जैन खाँ को मौत के घाट उतार दिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया।

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
  2. आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह आहलूवालिया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब कब्जा किया ?
    • 1761 ई०
    • 1768 ई०
    • 1778 ई०
    • 1782 ई०।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया, आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे।
  2. क्योंकि जस्सा सिंह आहलूवालिया आहलू गाँव का निवासी था।.
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम कपूरथला था।
  4. उन्होंने 1761 ई० में लाहौर में विजय प्राप्त की।
  5. 1778 ई०।

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3
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। उसके नेतृत्व में यह मिसल अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। जस्सा सिंह पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। अपने भाइयों पर आए इस संकट को देखकर जस्सा सिंह के खून ने जोश मारा। वह अदीना बेग की नौकरी छोड़कर सिखों की सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह के सुपुर्द कर दिया। जस्सा सिंह ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। इससे ही उसकी मिसल का नाम रामगढ़िया पड़ गया। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का क्या नाम रखा ?
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह रामगढ़िया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. ………. में मीर मन्नू की मृत्यु हुई।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया, रामगढ़िया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता थे।
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का नाम बदलकर रामगढ़ रखा।
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था।
  4. उसने सिखों को रामरौणी किले में मुग़लों के घेरे से बचाया था।
  5. 1753 ई०।

4
पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने 1731 ई० में जालंधर दोआब के और मालेरकोटला के फ़ौजदारों की संयुक्त सेना को करारी हार दी थी। आला सिंह ने बरनाला को अपनी सरगर्मियों का केंद्र बनाया। उसने लौंगोवाल, छजली, दिरबा और शेरों नाम के गाँवों की स्थापना की। 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेंट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने भट्टी भाइयों जोकि उसके कट्टर शत्रु थे, को हरा कर बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1761 ई० में आला सिंह ने अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध मराठों की मदद की थी। इसलिए 1762 ई० में अपने छठे आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1764 ई० में आला सिंह ने दल खालसा के अन्य सरदारों के साथ मिलकर सरहिंद पर आक्रमण कर इसके सूबेदार जैन खाँ को यमलोक पहँचा दिया था। इसी वर्ष अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया एवं उसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया।

  1. आला सिंह कौन था ?
  2. आला सिंह की राजधानी का क्या नाम था ?
  3. अहमद शाह अब्दाली ने कब आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था ?
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को कहाँ का सूबेदार नियुक्त किया था ?
  5. आला सिंह को कब सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया गया ?
    • 1748 ई०
    • 1761 ई०
    • 1762 ई०
    • 1764 ई०।

उत्तर-

  1. आला सिंह पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक था।
  2. आला सिंह की राजधानी का नाम बरनाला था।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने 1762 ई० में आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था।
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया था।
  5. 1764 ई०।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप PSEB 12th Class History Notes

  • मिसल शब्द से भाव (Meaning of the word Misl)—कनिंघम और प्रिंसेप के अनुसार मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘बराबर’-डेविड आक्टरलोनी मिसल शब्द को स्वतंत्र शासन करने वाले कबीले या जाति से जोड़ते हैं-अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार मिसल शब्द का अर्थ फाइल है।
  • सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)-सिख मिसलों की उत्पत्ति किसी पूर्व निर्धारित योजना या निश्चित समय में नहीं हुई थी-मुग़ल सूबेदारों के बढ़ते अत्याचारों के कारण 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दियाउन्होंने ही 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की-दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए-इन्हें ही मिसल कहा जाता था।
  • सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misls)-सिखों की महत्त्वपूर्ण मिसलों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
    • फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था-उस मिसल के अधीन अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पट्टी और नूरपुर आदि के प्रदेश आते थे।
    • आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह था-इस मिसल के अधीन सरहिंद और कपूरथला आदि के महत्त्वपूर्ण प्रदेश आते थे।
    • रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-इस मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था—इस मिसल के अधीन बटाला, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, हरगोबिंदपुर और करतारपुर आदि के प्रदेश आते थे।
    • शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक चढ़त सिंह था-इस मिसल की राजधानी गुजराँवाला थी-महाराजा रणजीत सिंह इसी मिसल से संबंध रखता था।
    • अन्य मिसलें (Other Misis)—अन्य मिसलों में भंगी मिसल, फुलकियाँ मिसल, कन्हैया मिसल, ___ डल्लेवालिया मिसल, शहीद मिसल, नकई मिसल, निशानवालिया मिसल और करोड़ सिंघिया मिसल आती थीं।
  • मिसलों का राज्य प्रबंध (Administration of the Misls) गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी-सारे सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा समझकर पालना करते थे-प्रत्येक मिसल का मुखिया सरदार कहलाता था-उसके अधीन कई मिसलदार थे-प्रत्येक मिसल कई जिलों में बंटी होती थी-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी-मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान और राखी प्रथा थी- मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था-आधुनिक इतिहासकार मिसलों के समय सैनिकों की कुल संख्या एक लाख के करीब मानते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Practical जाँघिया Notes.

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया 1
चित्र 6.1

माप-आयु – 2-3 वर्ष ।
लम्बाई – 11′
चौड़ाई – 16” ( चौड़ाई)
कागज़ का माप-लम्बाई 22″, चौड़ाई 16”

  1. चौड़ाई की ओर से कागज़ को दोहरा करते हैं।
  2. लम्बाई की ओर से कागज़ को दोहरा करते हैं।

दो बार दोहरे वाले भाग को बाईं ओर तथा एक बार दोहरे किए भाग को निचली ओर रखते हैं। चारों कोनों पर उ, अ, इ, स के चिन्ह लगाते हैं। उ, अ को दो बराबर भागों में बांटकर ह का चिन्ह लगाते हैं।

  • इ, स को दो बराबर भागों में बांटकर क का चिन्ह लगाते हैं।
  • ह तथा क को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • उ, इ तथा अ, स को तीन बराबर भागों में बाँटकर रेखा लगाते हैं।
  • उ से 1″ नीचे को चिन्ह लगाकर ख का नाम देते हैं।
  • अ से 1” अन्दर की ओर लेकर ग का चिन्ह लगाते हैं।
  • ख तथा ग को थोड़ी सी गोलाई वाली रेखा से मिलाते हैं।
  • क से 1, स, इ वाली रेखा लेकर घ का चिन्ह लगाते हैं।
  • स से 1 खाना + 1” ऊपर लेकर झ का चिन्ह लगाते हैं।
  • झ ग को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • फिर घ झ को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • घ झ को दो भागों में बाँटकर च का निशान लगाते हैं।
  • च से ऊपर आधा इंच लेकर छ का निशान लगाते हैं और एक इंच ऊपर ज का निशान लगाते हैं।
  • घ, छ और झ को पिछली टाँग की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।
  • घ, छ और झ को टाँग की आगे की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।
  • घ, ज और झ को टाँग की आगे की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

कपड़ा-36” चौड़ाई की 26” लम्बी सफ़ेद या अन्य किसी हल्के रंग की पापलीन या कैम्बिक लगाई जा सकती है।
सिलाई-छोरों पर रन एण्ड फैल सिलाई करते हैं। टाँग वाली गोलाई को अन्दर थोड़ा-सा मोड़कर लेस लगाते हैं।
कमर-3/4” अन्दर की ओर मोड़कर तुरपाई कर लेते हैं तथा ” चौड़ा तथा 12” लम्बा इलास्टिक डाल देते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions स्रोत आधारित प्रश्न.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्रोत को पढ़ें तथा साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
19वीं सदी में प्राकृतिक विज्ञानों ने बहुत प्रगति की। प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों द्वारा प्राप्त सफलता ने बड़ी संख्या में समाज, विचारकों को उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि यदि प्राकतिक विज्ञान की पद्धतियों से भौतिक विश्व में भौतिक या प्राकृतिक प्रघटनाओं को सफलतापूर्वक समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को समझने में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे विद्वानों तथा अन्य समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन विज्ञान की पद्धतियों से करने का समर्थन किया क्योंकि वे प्राकृतिक वैज्ञानिकों की खोजों से प्रेरित थे और समान तरीके से ही समाज का अध्ययन करना चाहते थे।

(i) किस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए ?
(ii) किन समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन किया ?
(ii) समाजशास्त्रियों का प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों के बारे में क्या विचार था ?
उत्तर-
(i) 19वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को काफी सफलता प्राप्त हुई। इस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए।
(ii) अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने समाज का गहनता से अध्ययन किया।
(iii) समाजशास्त्रियों का मानना था कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से प्राकृतिक घटनाओं को आसानी से समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों की सहायता से सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को भी सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।

प्रश्न 2.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यूरोप और अमेरिका में, 19वीं सदी के बाद समाजशास्त्र एक विषय के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में, यह न केवल थोड़ी देर से उभरा अपितु अध्ययन के एक विषय के रूप में इसे कम महत्त्व दिया गया। तथापि, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत में समाजशास्त्र के महत्त्व में वृद्धि हुई और देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम मे एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक विषय के रूप मे भी पहचान बनायी। राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० धुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाडिया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई इत्यादि कुछ महत्त्पूर्ण विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।

(i) एक विषय के रूप में समाजशास्त्र यूरोप में कब विकसित हुआ ?
(ii) कुछ भारतीय समाजशास्त्रियों के नाम बताएं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(iii) भारत में समाजशास्त्र कैसे विकसित हुआ ?
उत्तर-
(i) यूरोप तथा अमेरिका में समाजशास्त्र एक विषय के रूप में 19वीं शताब्दी के पश्चात् काफी तेज़ी से विकसित हुआ।
(ii) राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० घुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाड़िया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान दिया।
(iii) 1947 से पहले भारत में समाजशास्त्र का विकास तेज़ी से न हो पाया क्योंकि भारत पराधीन था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में समाजशास्त्र तेजी से विकसित हुआ तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। इसके अतिरिक्त, इसे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण यह तेजी से विकसित हुआ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति तथा इतिहास के दर्शन में हैं। इस कारण से समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक समस्या का एक राजनीतिक कारण है। राजनीतिक व्यवस्था या शक्ति संरचना की प्रकृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन समाज में भी परिवर्तन लाता है। विभिन्न राजनीतिक घटनाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से मदद लेता है। इसी तरह, राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र पर पर निर्भर करता है। राज्य अपने नियमों, अधिनियमों और कानूनों का निर्माण सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं तथा मूल्यों के आधार पर करता है। अतः बिना समाजशास्त्रियों पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा होगा। लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति सामाजिक है तथा इन राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

(i) मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र राजनीति पर क्यों निर्भर है ?
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्यों अधूरा है ?
(ii) किस प्रकार राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
(i) गिंसबर्ग के अनुसार ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति व इतिहास के दर्शन में हैं। इसलिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर है।
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार राज्य जब भी अपने नियम अथवा कानून बनाता है, उसे सामाजिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्पराओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है।
(iii) गिंसबर्ग के अनुसार लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति समाज में से ही होती है तथा समाज का अध्ययन समाजशास्त्र करता है। इस लिए जब भी राजनीति विज्ञान को समाज का अध्ययन करना होता है, उसे समाजशास्त्र की सहायता लेनी ही पड़ती है।

प्रश्न 4.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
विभिन्न समाज विज्ञानों में समाज का भिन्न अर्थ लगाया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक इकाइयों के संदर्भ में होता है। समाजशास्त्र का मुख्य ध्यान मानव समाज पर तथा इसमें पाये जाने वाले सम्बन्धों के नेटवर्क/जाल पर होता है। एक समाज में समाजशास्त्री सामाजिक प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं तथा यह ज्ञात करते हैं कि एक विशिष्ट स्थिति में एक व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है, उसे दूसरों से क्या उम्मीद करनी चाहिए तथा दूसरे उससे क्या उम्मीदें/अपेक्षाएं करते हैं।

(i) समाज शब्द का प्रयोग अलग-अलग समाज विज्ञानों में अलग-अलग क्यों है ?
(ii) समाजशास्त्र में समाज का क्या अर्थ है ?
(iii) समाज व एक समाज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
(i) अलग-अलग समाज विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का अध्ययन करते हैं। जैसे अर्थशास्त्र पैसे से संबंधित विषय का अध्ययन करता है। इस कारण वह समाज शब्द का अर्थ भी अलग-अलग ही लेते हैं।
(ii) समाजशास्त्र में सम्बन्धों के जाल को समाज कहा जाता है। जब लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो समाज का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।
(iii) जब हम समाज की बात करते हैं तो यह सभी समाजों को इक्ट्ठे लेते हैं तथा अमूर्त रूप से उसका अध्ययन करते हैं परन्तु एक समाज में हम किसी विशेष समाज की बात कर रहे होते हैं जैसे कि भारतीय समाज या अमेरिकी समाज। इस कारण यह मूर्त समाज हो जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं। समुदाय से अभिप्राय लोगों के एक समुच्चय से भी लिया जाता है जो समान प्रकार के कार्य या गतिविधियों में संलग्न रहते हैं जैसे प्रजातीय समुदाय, धार्मिक समुदाय, एक राष्ट्रीय समुदाय, एक जाति समुदाय या एक भाषायी समुदाय इत्यादि। इस अर्थ में यह समान विशेषताओं या पक्षों वाले एक सामाजिक, धार्मिक या व्यावसायिक समूह का प्रतिनिधित्व करता है तथा वहद समाज जिसमें यह रहता है, से स्वयं को कुछ अर्थों में भिन्न प्रदर्शित करता है। अत: समुदाय का अभिप्राय एक विशाल क्षेत्र में फैले लोगों से है जो एक या अन्य किसी प्रकार से समानताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समदाय’ या ‘एन० आर० आई० समुदाय’ जैसे शब्द समान विशेषताओं से निर्मित कुछ सुसंगत समूहों के रूप में साहित्य में प्रयुक्त किये जाते हैं।

(i) समुदाय का क्या अर्थ है ?
(ii) समुदाय की कुछ उदाहरण दीजिए।
(iii) समुदाय तथा समिति में दो अंतर बताएं।
उत्तर-
(i) समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, भारतीय समुदाय, पंजाबी समुदाय इत्यादि समुदाय के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) (a) समुदाय स्वयं ही निर्मित हो जाता है परन्तु समिति को जानबूझ कर किसी विशेष उद्देश्य से निर्मित किया जाता है।
(b) सभी लोग स्वत: ही किसी न किसी समुदाय का सदस्य बन जाते हैं परन्तु समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है अर्थात् व्यक्ति जब चाहे किसी समिति की सदस्यता ले तथा छोड़ सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
सामाजिक समूह व्यक्तियों का संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अंतः क्रियाएँ पाई जाती हैं। इसमें वे व्यक्ति आते हैं, जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और अपने को अलग सामाजिक इकाई मानते हैं। समूह में सदस्यों की संख्या को दो से सौ व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके साथ, सामाजिक समूह की प्रकृति गतिशील होती है, इसकी गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन आता रहता है। सामाजिक समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों में अंतक्रियाएँ व्यक्तियों को अन्यों से पहचान के लिए भी प्रेरित करती हैं। समूह, आमतौर पर स्थिर तथा सामाजिक इकाई है। उदाहरण के लिए, परिवार, समुदाय, गाँव आदि, समूह विभिन्न संगठित क्रियाएँ करते हैं, जोकि समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(i) सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या भीड़ को समूह कहा जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ?
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
(i) व्यक्तियों के उस संगठन को सामाजिक समूह कहा जाता है, जिसमें व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएँ पाई जाती हैं। जब लोग एक-दूसरे के साथ अन्तक्रियाएं करते हैं तो उनके बीच समूह का निर्माण होता है।
(ii) जी नहीं, भीड़ को समूह नहीं कहा जा सकता क्योंकि भीड में लोगों के बीच अन्तक्रिया नहीं होगी।
अगर अन्तक्रिया नहीं होगी तो उनमें संबंध नहीं बन पाएंगे। जिस कारण समूह का निर्माण नहीं हो पाएगा।
(iii) प्राथमिक समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा सीधा, प्रत्यक्ष ब रोज़ाना का संबंध होता है उसे हम प्राथमिक समूह कहते हैं। जैसे-परिवार, मित्र समूह, स्कूल इत्यादि। द्वितीय समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा प्रत्यक्ष व रोज़ाना का संबंध नहीं होता उसे हम द्वितीय
समूह कहते हैं। जैसे कि मेरे पिता का ऑफिस।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 7.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर देंद्वितीय समूह लगभग प्राथमिक समूह के विपरीत होते हैं। कूले ने द्वितीय समूह के बारे में नहीं बताया, जब वह प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में बता रहे थे। बाद में, विचारकों ने प्राथमिक समूह से द्वितीय समूह के विचार को समझा। द्वितीय समूह वे समूह हैं, जो आकार में बड़े होते हैं तथा थोड़े समय के लिए होते हैं। सदस्यों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, उपयोग-आधारित, विशेष तथा अस्थायी होता है। क्योंकि इसके सदस्य अपनी-अपनी, भूमिकाओं तथा किये जाने वाले कार्यों के कारण ही आपस में जुड़ें होते हैं। दुकान के मालिक एवं ग्राहक, क्रिकेट मैच में इकट्टे हुए लोग तथा औद्योगिक संगठन इसके उत्तम उदाहरण हैं। कारखाने के मजदूर, सेना, कॉलेज का विद्यार्थी-संगठन-विश्व-विद्यालय के विद्यार्थी, एक राजनैतिक दल आदि भी द्वितीय समूह के अन्रा उदाहरण हैं।

(i) द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) द्वितीय समूह की कुछ उदाहरण दें।
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूहों में दो अंतर दें।
उत्तर-
(i) वह समूह जिनके साथ हमारा सीधा व प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से ग्रहण करके कभी भी छोड़ सकते हैं, उसे द्वितीय समूह कहा जा सकता है।
(ii) पिता का दफ़तर, माता का ऑफिस, पिता का मित्र समूह, राजनीतिक दल, कारखाने के मजदूर इत्यादि द्वितीय समूह की उदाहरण हैं।
(iii) (a) प्राथमिक समूह आकार में काफ़ी छोटे होते हैं परन्तु द्वितीय समूह आकार में काफी बड़े होते हैं।
(b) प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच अनौपचारिक व प्रत्यक्ष संबंध होते हैं परन्तु द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक व अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
संस्कृतियां एक समाज से दूसरे समाज तक भिन्नता रखती हैं तथा हर एक संस्कृति के अपने मूल्य तथा मापदण्ड होते हैं। सामाजिक मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहारों के नियम हैं जबकि मूल्य से अभिप्राय, उस सामान्य पक्ष से है कि “क्या ठीक है या अभिलाषित व्यवहार है” तथा “क्या नहीं होना चाहिए”मान्य से संबंधित है। उदाहरण के लिए किसी एक संस्कृति में सत्कार को उच्च सामाजिक मूल्य माना जाता है जबकि अन्य समाज मे ऐसा नहीं होता। सामान्यतः कुछ समाजों में बहुपत्नी प्रथा को एक पारम्परिक रूप का विवाह माना जाता है जबकि अन्य समाजों में इसे एक उपयुक्त प्रथा नहीं माना जाता।

(i) संस्कृति का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या दो देशों की संस्कृति एक सी हो सकती है?
(iii) संस्कृति के प्रकार बताएं।
उत्तर-
(i) आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे विचार अनुभव, विज्ञान, तकनीक, वस्तुएं, मूल्य, परंपराएं इत्यादि सब कुछ संस्कृति का ही हिस्सा हैं।
(ii) जी नहीं, दो देशों की संस्कृति एक सी नहीं हो सकती। चाहे दोनों देशों के लोग एक ही धर्म से क्यों न संबंध रखते हों, उनके विचारों, आदर्शों, मूल्यों इत्यादि में कुछ न कुछ अंतर अवश्य रहता है। इस कारण उनकी संस्कृति भी अलग होती है।
(iii) संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-
(a) भौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख व स्पर्श कर सकते हैं, भौतिक संस्कृति कहलाता है। उदाहरण के लिए कार, मेज़, कुर्सी, पुस्तकें, पैन, इमारतें इत्यादि। (b) अभौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, उसे अभौतिक संस्कृति कहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे मूल्य, परंपराएं, विचार, आदर्श इत्यादि।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 9.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
जीवन के विभिन्न स्तरों के दौरान व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्थाओं, समुदायों तथा व्यक्तियों के संपर्क में आता है। अपने संपूर्ण जीवन के दौरान वे बहुत कुछ सीखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में विभिन्न अभिकरण तथा संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं तथा संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का संस्थापन करते हैं। प्रत्येक समाज के समाजीकरण के अभिकरण होते हैं जैसे व्यक्ति, समूह, संगठन तथा संस्थाएं जो कि जीवन क्रम के समाजीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा प्रदान करते हैं। अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसके द्वारा स्वयं विचारों, विश्वासों एवं संस्कृति के व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेक स्थानों को ढूंढ़ने में सहायता करते हैं उसी प्रकार जैसे वे समाज के वृद्धावस्था को नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते हैं।

(i) समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
(ii) समाजीकरण के साधनों के नाम बताएं।
(iii) अभिकरण क्या है ?
उत्तर-
(i) समाजीकरण एक सीखने की प्रक्रिया है। पैदा होने से लेकर जीवन के अंत तक मनुष्य कुछ न कुछ सीखता रहता है जिसमें जीवन जीने व व्यवहार करने के तरीके शामिल होते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया को हम समाजीकरण कहते हैं।
(ii) परिवार, स्कूल, खेल समूह, राजनीतिक संस्थाएं, मूल्य, परम्पराएं इत्यादि समाजीकरण के साधन अथवा अभिकरण के रूप में कार्य करती हैं।
(iii) अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसकी सहायता से व्यक्ति विचारों विश्वास व संस्कृति में व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेकों स्थानों को ढूंढने में सहायता करते हैं। इस प्रकार वृद्धावस्था में नए उत्तरदायित्वों को संभालने को तैयार होता है।

प्रश्न 10.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यद्यपि धर्म की महत्ता लोगों में अब कम हो गई है जबकि कुछ पीढ़ियां पहले, यह हमारे विचारों, मूल्यों और व्यवहारों को भी काफी प्रभावित करती थीं। भारत जैसे देश में धर्म हमारे जीवन के हर पक्ष को नियंत्रित करता है और यह समाजीकरण का एक शक्तिशाली अभिकर्ता (एजेंट) होता है।
कई प्रकार के धार्मिक संस्कार एवं कर्मकाण्ड, विश्वास एवं श्रद्धा, मूल्य एवं मापदण्ड धर्म के अनुसार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होते हैं। धार्मिक त्योहार आमतौर पर सामूहिक रूप से निभाये जाते हैं जोकि समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। धर्म के सहारे ही एक बच्चा एक अलौकिक शक्ति (भगवान) के बारे में सीखता है कि यह हमें बुरी आत्माओं तथा बुराई से बचाती है। यह देखा जाता है कि अगर एक व्यक्ति के माता-पिता धार्मिक होते हैं तो जब एक बच्चा बड़ा होगा वो भी धार्मिक बनता जाएगा।

(i) धर्म क्या है ?
(ii) धर्म की समाजीकरण में क्या भूमिका है ?
(iii) क्या आज धर्म का महत्त्व कम हो रहा है ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर-
(i) धर्म और कुछ नहीं बल्कि एक अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारी पहुँच से बहुत दूर है। यह विश्वासों, मूल्यों, परंपराओं इत्यादि की व्यवस्था है जिसमें इस धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं।
(ii) धर्म का समाजीकरण में काफी महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति धर्म के मूल्यों, परंपराओं के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता । बचपन से ही बच्चों को धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है जिस कारण व्यक्ति शुरू से ही अपने धर्म से जुड़ जाता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार धर्म व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है और उसका समाजीकरण भी करता है।
(iii) यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। लोग आजकल अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं व विज्ञान की तरफ उनका झुकाव काफी बढ़ रहा है। परन्तु धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं होता जो विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार लोग अब धर्म के स्थान पर विज्ञान को महत्त्व दे रहे हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
विवाह महिलाओं एवं पुरुषों की शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए निर्मित एक संस्था है। यह पुरुष एवं महिला को परिवार निर्मित करने हेतु एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देता है। विवाह का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी सम्बन्धों के द्वारा यौनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। सरल शब्दों में, विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पुरुषों एवं महिलाओं को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देने तथा पति, पत्नी तथा बच्चों से सम्बन्धित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है। समाज एक पुरुष एवं महिला के मध्य वैवाहिक सम्बन्धों को एक धार्मिक संस्कार के रूप में अपनी अनुमति प्रदान करता है। विवाहित दंपति एक दूसरे के प्रति तथा सामान्य तौर पर समाज के प्रति अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हैं। विवाह एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य को भी पूरा करता है यह उत्तराधिकार से सम्बद्ध सम्पत्ति अधिकार को परिभाषित करता है। इस प्रकार, हम समझ सकते हैं कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच बहु-आयामी सम्बन्धों को व्यक्त करता है।

(i) विवाह का क्या अर्थ है ?
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को क्या कहते हैं ?
(iii) क्या आजकल विवाह का महत्त्व कम हो रहा है ?
उत्तर-
(i) विवाह एक ऐसी संस्था है जो पुरुष-स्त्री को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देना तथा पति-पत्नी व बच्चों से संबंधित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है।
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि विवाह बहुत से धार्मिक अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है।
(iii) जी हाँ, यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। आजकल विवाह को धार्मिक
संस्कार न मानकर समझौता माना जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल तो बहुत से युवक व युवतियों ने बिना विवाह किए इक्ट्ठे रहना शुरू कर दिया है जिससे विवाह का महत्त्व कम हो रहा है।

प्रश्न 12.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
परिवार का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुषों और स्त्रियों तथा बच्चों को एक स्थाई सम्बन्धों में बांधकर मानव समाज के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्कृति का हस्तान्तरण परिवारों के भीतर होता है। सामाजिक प्रतिमानों, प्रथाओं तथा मूल्यों के विषय में सांस्कृतिक समझ तथा ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे परिवार को समरक्त परिवार कहते हैं जिसके सदस्य रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे भाई एवं बहिन तथा पिता और पुत्र इत्यादि।वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है उसे ‘प्रजनन का परिवार’ या दापत्यमूलक परिवार कहते हैं जो ऐसे व्यस्क सदस्यों से निर्मित होता है जिनके बीच यौनिक सम्बन्ध होते हैं।

(i) परिवार किसे कहते हैं ?
(ii) जन्म का परिवार व दापत्यमूलक परिवार किसे कहते हैं ? ।
(ii) परिवार का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
(i) परिवार पुरुष व स्त्री के मेल से बनी ऐसी संस्था है जिसमें उन्हें लैंगिक संबंध स्थापित करने, संतान उत्पन्न करने व उनका भरण पोषण करने की आज्ञा होती है।
(ii) एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार कहते हैं। वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है इसे दापत्यमूलक अथवा प्रजनन परिवार कहते हैं।
(iii) परिवार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुष, स्त्री व बच्चों को एक स्थायी बंधन में बाँधकर रखता है। इससे परिवार समाज निर्माण मे महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार ही संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता है। सामाजिक प्रथाओं, प्रतिमानों, व्यवहार करने के तरीकों में हस्तांतरण में भी परिवार समाज की सहायता करता है। इस प्रकार परिवार हमारे जीवन में व समाज निर्माण में सहायक होता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science Civics Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार

SST Guide for Class 6 PSEB ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Textbook Questions and Answers

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न I.
ग्रामीण स्थानीय सरकार की इकाइयों का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम कितनी आयु होनी चाहिए?
(क) 20 साल
(ख) 22 साल
(ग) 21 साल।
उत्तर-
21 साल।

प्रश्न II.
मतदाताओं (वोटरों) द्वारा पंचायत समिति में सीधे चुने जाने वाले सदस्यों की कम से कम तथा अधिक से अधिक संख्या कितनी हो सकती है?
(क) 9 से 25
(ख) 15 से 25
(ग) 6 से 29।
उत्तर-
15 से 251

प्रश्न III.
मतदाताओं (वोटरों) द्वारा जिला परिषद् में सीधे चुने जाने वाले सदस्यों की कम से कम तथा अधिक से अधिक संख्या कितनी हो सकती है?
(क) 10 से 25
(ख) 12 से 25
(ग) 14 से 25।
उत्तर-
10 से 25।

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प्रश्न IV.
पंचायत की आय-व्यय का हिसाब रखने वाले कर्मचारी को क्या कहते हैं?
(क) अधीक्षक (सुपरिन्टेंडेंट)
(ख) सचिव।
उत्तर-
सचिव।

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखो

प्रश्न 1.
भारत में गाँवों की संख्या कितनी है?
उत्तर-
लगभग 6 लाख।

प्रश्न 2.
पंचायती राज्य का क्या अर्थ है?
उत्तर-
गाँवों की तीन स्तरों वाली स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायत राज्य अथवा पंचायती राज कहते हैं। सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है। यह गाँव की स्थानीय सरकार है। इससे ऊपर पंचायत समिति और सबसे ऊपर जिला परिषद् होती है। पंचायत समिति जिला परिषद् तथा ग्राम पंचायत के बीच कड़ी का काम करती है।

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प्रश्न 3.
पंचायती राज्य की प्रारम्भिक तथा उच्च संस्था के नाम लिखो।
उत्तर-
पंचायती राज की प्रारम्भिक संस्था ग्राम पंचायत है। इसकी उच्च संस्था ज़िला परिषद् है।

प्रश्न 4.
पंजाब में ग्राम पंचायत के सदस्यों की (कम-से-कम और अधिक-सेअधिक) संख्या कितनी होती है?
उत्तर-
कम-से-कम 5 और अधिक-से-अधिक 13

प्रश्न 5.
ज़िला परिषद् के दो कार्य लिखो।
उत्तर-
जिला परिषद् की स्थापना ग्राम विकास के लिए की जाती है।

  1. इसका मुख्य कार्य पंचायत समितियों की देखभाल करना तथा उनमें तालमेल बनाए रखना है। यह सरकार तथा पंचायत समितियों के बीच कड़ी का काम करती है।
  2. यह सरकार को विकास कार्यों के बारे में राय देती है।

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प्रश्न 6.
वर्तमान समय में गांवों में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं?
उत्तर-
वर्तमान समय में भारत सरकार के प्रयत्नों से गाँवों में निम्नलिखित अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं –

1. शिक्षा का प्रसार-शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूल और कॉलेज खोले गए हैं। 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है। अशिक्षित प्रौढ़ों के लिए ‘प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र’ स्थापित किए गए हैं।

2. कृषि का विकास-ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। आजादी के बाद कृषि के विकास के लिए कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई । यहाँ कृषि के लिए उत्तम बीजों की खोज की जाती है। कृषकों के लिए वर्ष में एक बार प्रदर्शनी लगाई जाती है। इसमें कृषि वैज्ञानिक किसानों को उन्नत कृषि के लिए परामर्श देते हैं। किसानों को उत्तम किस्म के बीजों और फ़सलों के लिए आवश्यक कीटनाशक दवाइयों का वितरण किया जाता है। इससे उपज में वृद्धि हुई है।
भारत सरकार ने भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके चकबन्दी भी कर दी है ताकि मशीनों द्वारा कृषि की जा सके।

3. स्त्री शिक्षा तथा स्वास्थ्य-गाँवों में स्त्री शिक्षा में विस्तार के लिए लड़कियों को विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं। लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र खोले गए हैं। इन केन्द्रों में ग्रामीण लोगों को हर प्रकार की डॉक्टरी सहायता दी जाती है।

4. अन्य परिवर्तन –
(i) फ़सलों के मंडीकरण के लिए देश के लगभग सभी गाँवों को पहुँच मार्ग द्वारा राजमार्गों से जोड़ने के प्रयत्न किए गए हैं।
(ii) केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा गाँवों की आर्थिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से ग्रामीणों को लघु उद्योग लगाने के लिए सस्ते दर पर ऋण दिए जाते हैं।
(iii) गांवों में पीने के पानी का प्रबन्ध और विद्युतीकरण करने के हर सम्भव प्रयत्न किए जा रहे हैं।
(iv) सहकारी कृषि और सरकारी बैंकों के खुलने से भी कई गाँवों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

प्रश्न 7.
पंचायत की बनावट के बारे में संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
ग्राम पंचायत 200 से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में बनाई जाती है। पंजाब में ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या 5 से 13 तक हो सकती है।
पंचों का चुनाव-ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों (जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित रखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त पिछड़ी जातियों तथा कबीलों के सदस्यों की संख्या उनकी जनसंख्या तथा गांव की कुल जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निश्चित की जाती है।

सरपंच – प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरपंच होता है। उसका चुनाव भी ग्राम सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से करते हैं।
पंचायत सचिव-पंचायत के कार्यों में सहायता के लिए एक सरकारी कर्मचारी भी होता है जिसे पंचायत सचिव कहते हैं। वह पंचायत के आय व्यय का हिसाब रखता है। वह पंचायत के कार्यों की रिपोर्ट तैयार करके ब्लॉक पंचायत के अधिकारी को देता है।

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प्रश्न 8.
ग्राम सभा से क्या तात्पर्य है? ग्राम सभा और ग्राम पंचायत में क्या अंतर है?
उत्तर-
ग्राम सभा ग्राम पंचायत का चुनाव करने वाली एक सभा होती है। 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले सभी ग्रामीण इसके सदस्य होते हैं। इसके सदस्य ही मतदान द्वारा ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं। इसके विपरीत ग्राम पंचायत, ग्राम सभा द्वारा चुनी गई एक समिति होती है। यह गाँव की उन्नति के लिए कार्य करती है। इसे अपने हिसाब-किताब को हर साल ग्राम सभा के सामने रखना पड़ता है।

प्रश्न 9.
पंचायत समिति का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन-सा है?
उत्तर-
पंचायत समिति का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्बन्धित ग्राम पंचायतों के लिए आवश्यक नियम बनाना और गांवों में नागरिक सुविधाएं प्रदान करना है।

प्रश्न 10.
आपके क्षेत्र की पंचायत समिति अपने ब्लॉक के वातावरण को सुधारने के लिए क्या करती है?
उत्तर-
पंचायत समिति अपने ब्लॉक की पंचायतों के विकास तथा ब्लॉक के वातावरण को सुधारने के लिए कई प्रकार के कार्य करती है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

1. कृषि का विकास-(i) पंचायत समिति अपने क्षेत्र में कृषि की उपज बढ़ाने के लिए उत्तम बीजों और खाद वितरण का कार्य करती है। (ii) इसके अतिरिक्त यह कृषि कार्यों के लिए ऋण देने, अधिक भूमि को सिंचाई योग्य बनाने तथा कृषि के लिए अधिक बिजली देने के कार्य भी करती है।

2. पशु एवं मत्स्य पालन-पंचायत समिति अपने क्षेत्र में पशु एवं मत्स्य पालन को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य दूध, अण्डे, मांस आदि की आपूर्ति को बढ़ाना है।

3. यातायात-पंचायत समिति सड़कों तथा पुलियों को बनवाने तथा उनकी मुरम्मत , कार्य करती है।

4. स्वास्थ्य तथा सफ़ाई-पंचायत समिति गांवों में स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के कार्य ती है। यह ग्रामीणों को पीने के लिए स्वच्छ जल की सुविधाएं प्रदान करती है और उन्हें स्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देती है।
(1) इसके अतिरिक्त यह हानिकारक कीटों को नष्ट करती है।
(2) यह ग्रामीणों को धुआं रहित चूल्हों का प्रयोग करने के लिए भी प्रेरित करती है।

5. सामाजिक शिक्षा-पंचायत समिति लोगों को नागरिक शिक्षा देने के लिए मनोरंजन न्द्रों तथा पुस्तकालयों की व्यवस्था करती है। यह शारीरिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देती है।

6. ग्रामीण एवं लघु उद्योग-इनमें हथकरघा, विद्युत् करघा, खादी, रेशम के कीड़े लना आदि लघु उद्योग आते हैं। पंचायत समिति इन उद्योगों को उन्नत बनाने का प्रयास रती है।

7. प्रशासनिक कार्य-पंचायत समिति अपने क्षेत्र की पंचायतों के कार्यों की ख-रेख करती है। ये उन्हें आदेश भी दे सकती है और सलाह भी दे सकती है।

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I. नीचे लिखे रिक्त स्थान भरो

  1. भारत में ……… राज्य और ……… केन्द्र प्रशासित क्षेत्र हैं।
  2. पंचायत समिति पंचायती राज्य की ……… संस्था है।
  3. ग्राम पंचायत और पंचायत समिति का कार्यकाल ……… साल होता है।
  4. पंजाब में ……… जिला परिषद् हैं।
  5. पंचायती राज्य की सबसे ऊंची संस्था ……… है।

उत्तर-

  1. 28, 8
  2. मध्य की
  3. 5
  4. 22
  5. जिला परिषद्।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर सही (✓) या ग़लत (✗) का निशान लगाओ

  1. अंग्रेज़ी राज्य के समय गांवों की आर्थिक दशा बहुत खराब थी।
  2. ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए सीटें आरक्षित नहीं होती।
  3. जिला प्रबन्ध को ठीक प्रकार से चलाने के लिए अलग-अलग विभागों के जिला अधिकारी होते हैं।
  4. जिला परिषद् को जिला पंचायत भी कहा जाता है।
  5. पंचायत/ब्लॉक समिति 100 गांवों के लिए बनाई जाती है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 6th Class Social Science Guide ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज का क्या उद्देश्य है?
उत्तर-
ग्रामीण विकास।

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प्रश्न 2.
भारत में अक्तूबर 2019 में एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदिया गया है। उस राज्य का क्या नाम था?
उत्तर-
जम्मू कश्मीर।

प्रश्न 3.
ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच कहलाता है। उसका चुनाव कौन कर है?
उत्तर-
मतदाता (वोटर)।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज के अन्तर्गत महिलाओं के लिए आरक्षित अंश कितना है
उत्तर-
पंचायती राज के अन्तर्गत महिलाओं के लिए कम-से-कम एक तिहाई (1/3 4 स्थान आरक्षित होते हैं।

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प्रश्न 2.
पंचायतों की आय के दो प्रमुख साधन बताओ।
उत्तर-
सरकारी अनुदान और सार्वजनिक सम्पत्ति की बिक्री से प्राप्त आय।

प्रश्न 3.
गांवों में छोटे-छोटे झगड़ों का फैसला किस संस्था द्वारा किया जाता है ।
उत्तर-
गांवों में छोटे-छोटे झगड़ों का फैसला न्याय पंचायत द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के प्रधान को क्या कहते हैं?
उत्तर-
सरपंच।

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प्रश्न 5.
पंचायत समिति के अध्यक्ष का चनाव कौन करता है?
उत्तर-
पंचायत समिति के सभी सदस्य मिलकर एक अध्यक्ष का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 6.
सामुदायिक विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी किसे माना जातः ।
उत्तर-
खण्ड विकास अधिकारी (बी० डी० ओ०) सामुदायिक विकास का सब महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता है।

प्रश्न 7.
जिला परिषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उनके कार्यकाल के दौरा किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर-
जिला परिषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।

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प्रश्न 8.
अंग्रेज़ी राज्य में गांवों की अवस्था कैसी थी?
उत्तर-
अंग्रेजी राज्य में भारत के गांवों की दशा दयनीय थी। सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण गांवों की आत्मनिर्भरता भंग हो गई और गांव पिछड़ गए। उनकी आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गई। किसान ऋण से घिर गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव कैसे होता है? उसके दो प्रमुख कार्यों “का उल्लेख करो।
उत्तर-
पंचायतों के प्रधान को कुछ राज्यों में गांव की वयस्क जनता चुनती है। परन्तु कुछ स्थानों पर इसका चुनाव ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है। उसे प्रायः सरपंच कहा जाता है। पंचायत का प्रधान मुख्य रूप से दो कार्य करता है –

  1. वह पंचायत की बैठकें बुलाता है।
  2. वह पंचायत की बैठकों का सभापतित्व करता है।

प्रश्न 2.
ग्राम पंचायतों की आय के साधन कौन-कौन से हैं? वे इस धन को किस प्रकार खर्च करती हैं?
उत्तर-
आय के साधन-पंचायतों की आय के अनेक साधन हैं –

  1. मेलों और दुकानों से प्राप्त कर।
  2. पशु-मेलों में पशुओं के क्रय-विक्रय की रजिस्ट्री फीस।
  3. गांव के मकानों पर कर।
  4. सरकार से प्राप्त अनुदान।
  5. सार्वजनिक सम्पत्ति का विक्रय।
    धन का व्यय-ग्राम पंचायतें अपनी आय को गांवों के विकास कार्यों पर खर्च करती हैं।

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प्रश्न 3.
न्याय पंचायत में किस प्रकार के मुकद्दमों की सुनवाई होती है?
उत्तर-
न्याय पंचायत में केवल निम्न स्तर के दीवानी और फौजदारी मुकद्दमों की सुनवाई होती है। न्याय पंचायतों को जुर्माना करने का अधिकार है परन्तु जेल भेजने का अधिकार नहीं है। न्याय पंचायतों में वकील आदि की आवश्यकता नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति न्याय पंचायत के फैसले से सन्तुष्ट न हो तो वह ऊपरी अदालतों में जा सकता है।

प्रश्न 4.
पंचायतें गांव की भलाई के लिए कौन-कौन से कार्य करती हैं?
उत्तर-
पंचायतें मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करती हैं –
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार 1

  1. गांव की गलियां पक्की करवाना तथा उनकी मरम्मत करवाना।
  2. पीने के पानी का प्रबन्ध करना।
  3. गांव में सफ़ाई का प्रबन्ध करना तथा बीमारियों की रोकथाम करना।
  4. गांव में प्रकाश का प्रबन्ध करना।
  5. गांव के छोटे-छोटे झगड़ों का निपटारा करना।

प्रश्न 5.
खण्ड विकास एवं पंचायत अधिकारी (बी० डी० पी० ओ०) की ग्राम विकास में क्या भूमिका है?
उत्तर-
खण्ड विकास एवं पंचायत अधिकारी निम्नलिखित कार्य करता है –

  1. वह पंचायत समिति के निर्णयों को लागू करता है।
  2. वह विकास योजनाओं को कार्य रूप देता है।
  3. वह ग्रामीण विकास कार्यों में मार्ग-दर्शन करता है।

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प्रश्न 6.
जिला परिषद् के कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ज़िला-परिषद् की स्थापना ग्राम विकास के लिए की जाती है। इसका मुख्य कार्य पंचायत समितियों की देखभाल करना तथा उनमें तालमेल बनाए रखना है। यह सरकार तथा पंचायत समितियों के बीच कड़ी का काम करती है। यह सरकार को विकास कार्यों के बारे में राय देती है।

प्रश्न 7.
ग्राम सभा से क्या अभिप्राय है? यह कौन-कौन से कार्य करती है?
उत्तर-
ग्राम सभा में गांव के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के सदस्य शामिल होते हैं। इन सभी सदस्यों के नाम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज होते हैं। गांव की सभी स्त्रियां तथा पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष अथवा इस से अधिक हो, ग्राम सभा के सदस्य होते हैं।
ग्राम सभा के कार्य –

  1. गाँव का बजट तैयार करना।
  2. पंचायत की वार्षिक रिपोर्ट की समीक्षा करना।
  3. आगामी वर्ष के लिए विकास योजनाएं बनाना।

प्रश्न 8.
पंचायत को विशेष अनुदान क्यों मिलता है?
उत्तर-
पंचायतों को ग्रामीण विकास के लिए अनेक कार्य करने पड़ते हैं। परन्तु उनकी आय के स्रोत कम हैं। इसलिए पंचायत को राज्य सरकार की ओर से विशेष अनुदान दिया जाता है।

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प्रश्न 9.
पंचायती राज प्रणाली में राज्य सरकार क्या भूमिका निभाती है?
उत्तर-
राज्य सरकारें पंचायतों तथा पंचायती राज को शक्तिशाली बनाने के लिए हर प्रकार की सहायता करती हैं। हमारे गांवों में अधिकतर लोग निर्धन तथा अशिक्षित हैं। अतः राज्य सरकार को पंचायती राज पर अधिक कठोरता से नियन्त्रण रखना पड़ता है। वह इसके कार्यों पर कड़ी निगरानी रखती है।

प्रश्न 10.
जिला परिषद् की रचना पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
ज़िला परिषद् की रचना इस प्रकार होती है –

1. सदस्यता-(1) ज़िला परिषद् के क्षेत्र में आने वाली सभी पंचायत समिति के अध्यक्ष जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। (2) सम्बन्धित जिले में पड़ने वाली विधान सभा, विधान परिषद् तथा संसद् के सदस्य भी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। (3) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन-जातियों तथा इनसे सम्बन्धित महिलाओं के लिए जिला परिषद में कुछ स्थान आरक्षित होते हैं।

2. अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष-ज़िला परिषद् के सदस्य निर्वाचित सदस्यों में से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। जिला परिषद् उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।

3. जिला परिषद की कार्यावधि-ज़िला परिषद् की कार्यावधि 5 वर्ष की होती है। परन्तु यदि जिला परिषद् शक्तियों का दुरुपयोग करे अथवा राज्य सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करे तो राज्य सरकार उसे समय से पूर्व भी भंग कर सकती है।

प्रश्न 11.
जिला परिषद् की आय के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
जिला परिषद् की आय के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. कर तथा अनुदान-पंचायत समितियों की भान्ति जिला परिषद् की आय भी करों तथा राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अनुदान पर निर्भर करती है।
  2. प्रशासन न्यास तथा दान-जिला परिषदों को प्रशासन न्यासों अथवा दान से आय होती है।
  3. किराए-ज़िला परिषदों को घरों अथवा दुकानों से किराए के रूप में कुछ आय प्राप्त हो जाती है।
  4. उद्योग चलाने के लिए अनुदान-ज़िला परिषदों को घरेलू, ग्रामीण तथा छोटे पैमाने के उद्योग चलाने के लिए सर्व भारतीय संस्थाओं से अनुदान मिल जाते हैं।

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ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार PSEB 6th Class Social Science Notes

  • गांवों का देश – भारत में लगभग 6 लाख गांव हैं। यहां की 75% जनसंख्या गांवों में रहती है।
  • पंचायती राज – गाँवों के विकास के लिए त्रि-स्तरीय व्यवस्था।
  • ग्राम पंचायत – पंचायती राज का सबसे निचला स्तर जो अपने गाँव के विकास के लिए कार्य करती है।
  • ग्राम सभा – गाँव के वयस्क नागरिकों का समूह जो पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं।
  • न्याय पंचायत – गाँव में न्याय का कार्य करने वाली संस्था।
  • पंचायत समिति – यह संस्था ब्लॉक स्तर पर ग्रामीण विकास का कार्य करती है।
  • जिला परिषद् – यह संस्था जिला स्तर पर ग्रामीण विकास का कार्य करती है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भारत में कृषि विकास Textbook Questions and Answers

I. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दो

प्रश्न 1.
“भारत में कृषि रोजगार का मुख्य साधन है।” इस पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
हमारी अर्थ-व्यवस्था में कृषि रोज़गार का मुख्य स्रोत है। 2014-15 में कार्यशील जनसंख्या का 46.2% भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है।

प्रश्न 2.
भारत के मुख्य भूमि सुधार कौन-से हैं ? कोई एक लिखो।
उत्तर-

  1. ज़मींदारी प्रथा को समाप्त कन्ना।
  2. काश्तकारी प्रथा में सुधार
  3. भूमि की जोतों पर उच्चतम सीमा का निर्धारण
  4. भूमि की पूरे देश में चकबंदी की गई है।
  5. सहकारी खेती
  6. भूदान यज्ञ का आरम्भ।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति से आशय कृषि उत्पादन विशेष रूप से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि में अधिक उपज वाले 4 जों के प्रयोग की नई तकनीक अपनाने के कारण सम्भव हुई।

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प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति भारत की खाद्य समस्या के समाधान में किस प्रकार सहायक हुई है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के कारण 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में फसलों के उत्पादन में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई। वर्ष 1967-68 में, जिसे हरित क्रान्ति का वर्ष माना जाता है, अनाज का उत्पादन बढ़कर 950 लाख टन हो गया था। 2017-18 में अनाज का उत्पादन 2775 लाख टन था।

II. लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थ-व्यवस्था में कृषि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय अर्थ-व्यवस्था के लिए कृषि का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है —

  1. आजीविका का प्रमुख स्त्रोत — इस व्यवसाय में भारत की कुल जनसंख्या का 46.2% भाग प्रत्यक्ष रूप से संलग्न है। अतः कृषि भारतीयों की आजीविका का प्रमुख साधन है।
  2. राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान — कृषि राष्ट्रीय आय में एक बड़ा भाग प्रदान करती है। राष्ट्रीय आय का लगभग 15.3% भाग कृषि से ही प्राप्त होता है।
  3. रोज़गार का साधन — भारतीय कृषि भारत की श्रम संख्या के सर्वाधिक भाग को रोज़गार प्रदान करती है और करती रहेगी।
  4. उद्योगों का योगदान — भारत के अनेक उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आधारित हैं, जैसे-सूती वस्त्र, जूट, चीनी, तिलहन, हथकरघा, वनस्पति घी इत्यादि सभी उद्योग कृषि पर ही तो आधारित हैं।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में योगदान — भारत अपने कुल निर्यात का प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से 18% भाग कृषि उपजों से बने पदार्थों के रूप में निर्यात करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

PSEB 10th Class Social Science Guide भारत में कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
कृषि क्या है?
उत्तर-
फसलों को उगाने की कला व विज्ञान है।

प्रश्न 2.
भारत का कोई एक भूमि पुधार बताएं।
उत्तर-
काश्तकारी प्रथा में सुधार।

प्रश्न 3.
दालों का अधिकतम उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

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प्रश्न 4.
व्यावसायिक कृषि का एक उपकरण बताएं।
उत्तर-
आधुनिक तकनीक।

प्रश्न 5.
भारतीय कृषि विकास के लिए एक उपाय बताएं।
उत्तर-
सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि।

प्रश्न 6.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का कारण बताएं।
उत्तर-
खेतों का छोटा आकार।

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प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का श्रेय किसे दिया जाता है?
उत्तर-
डॉ० नॉरमेन वेरलोग तथा डॉ० एम० एन० स्वामीनाथन।

प्रश्न 8.
भारत में हरित क्रान्ति के लिए उत्तरदायी एक तत्त्व बताएं।
उत्तर-
आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग।

प्रश्न 9.
हरित क्रान्ति का एक लाभ बताएं।
उत्तर-
खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।

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प्रश्न 10.
हरित क्रान्ति का एक दोष बताएं।
उत्तर-
कुछ फसलों तक सीमित।

प्रश्न 11.
हरित क्रान्ति कब आई थी?
उत्तर-
1967-68 में।

प्रश्न 12.
भारत में सिंचाई का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर-
भूमिगत जल।

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प्रश्न 13.
भारतीय राष्ट्रीय आय में कृषि का मुख्य अंश कितना है?
उत्तर-
17.4 प्रतिशत।

प्रश्न 14.
2007-08 में जी० डी० पी० में कृषि का योगदान कितना था?
उत्तर-
15.3 प्रतिशत।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति क्या है?
उत्तर-
एक कृषि नीति जिसका उपयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 16.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या अब जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है?
उत्तर-
लगभग 49 प्रतिशत।

प्रश्न 17.
भारत में हरित क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
किसानों की दशा में सुधार।

प्रश्न 18.
औद्योगिक विकास में कृषि के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उद्योगों को कच्चा माल कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कृषि बहुत-सी औद्योगिक वस्तुओं के लिए बाजार का स्रोत है।

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प्रश्न 19.
भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव से तात्पर्य है कि प्रति वर्ष आने वाली नई श्रम शक्ति को रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है जिससे वे कृषि पर निर्भर हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
आधुनिक कृषि तकनीक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
आधुनिक कृषि तकनीक से अभिप्राय रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाइयों, उत्तम बीजों व समय पर सिंचाई के उपयोग से सम्बन्धित है।

प्रश्न 21.
भारत में कृषि के पिछड़ेपन के दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. सिंचाई सुविधाओं की कमी
  2. अच्छे बीजों और रासायनिक उर्वरकों की कमी।

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प्रश्न 22.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के दो उपाय बताइए।
उत्तर-

  1. वैज्ञानिक कृषि का प्रसार ।
  2. भूमि सुधार।

प्रश्न 23.
चकबन्दी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
चकबन्दी वह क्रिया है जिसके द्वारा किसानों को इस बात के लिए मनाया जाता है कि वे अपने इधर-उधर बिखरे हुए खेतों के बदले में उसी किस्म और कुल उतने ही आकार के एक या दो खेत ले लें।

प्रश्न 24.
भारत में किए गए तीन भूमि सुधारों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. मध्यस्थों का उन्मूलन
  2. भूमि की चकबन्दी
  3. भूमि की अधिकतम हदबन्दी।

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प्रश्न 25.
जोतों की उच्चतम सीमा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
जोतों की उच्चतम सीमा से अभिप्राय यह है कि भूमि-क्षेत्र की एक ऐसी सीमा निश्चित करना जिससे अधिक भूमि पर किसी व्यक्ति अथवा परिवार का अधिकार न रहे।

प्रश्न 26.
कृषि क्षेत्र को पर्याप्त साख-सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से भारत सरकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए किसानों को कम ब्याज पर उचित मात्रा में कर्ज दिलाने के लिए सहकारी साख समितियों का विकास किया गया है।

प्रश्न 27.
भारत में हरित क्रान्ति लाने का श्रेय किन व्यक्तियों को जाता है?
उत्तर-
भारत में हरित क्रान्ति लाने का श्रेय डॉ० नोरमान वरलोग तथा डॉ० एम० एन० स्वामीनाथन को जाता है।

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प्रश्न 28.
भारत में हरित क्रान्ति के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. उन्नत बीजों का प्रयोग
  2. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग।

प्रश्न 29.
हरित क्रान्ति के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर-

  1. खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि
  2. किसानों के जीवन स्तर में वृद्धि।

प्रश्न 30.
हरित क्रान्ति के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर-

  1. क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि
  2. केवल बड़े कृषकों को लाभ।

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प्रश्न 31.
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति एक कृषि नीति है जिसका प्रयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 32.
HYV का विस्तार रूप बताएँ।
उत्तर-
High Yielding Variety Seeds.

प्रश्न 33.
कौन-सा देश दालों का सबसे अधिक उत्पादक है?
उत्तर-
भारत।

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प्रश्न 34.
व्यावसायिक खेती के आगतों के नाम बताएं।
उत्तर-
आधुनिक तकनीकी, HYV बीज।

प्रश्न 35.
कृषि में निम्न भूमि उत्पादकता क्यों है?
उत्तर-
क्योंकि इसमें उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है।

प्रश्न 36.
पुरातन कृषि की निर्भरता के दो तत्त्व बताएं।
उत्तर-
मानसून और प्राकृतिक उत्पादकता।

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प्रश्न 37.
भारत में कितने प्रतिशत संख्या अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है?
उत्तर-
लगभग 48.9 प्रतिशत।

प्रश्न 38.
तीन क्रियाओं के नाम बताइए जो कृषि सेवक से सम्बन्धित हैं।
उत्तर-

  1. पशुपालन,
  2. वानिकी,
  3. मत्स्यपालन।

प्रश्न 39.
वर्ष 2011-12 में कृषि का GDP में कितना हिस्सा था?
उत्तर-
लगभग 13.9 प्रतिशत।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. फसलों को उगाने की कला व विज्ञान ……….. है। (कृषि/विनिर्माण)
  2. भारत में हरित क्रान्ति का उद्भव ………… में हुआ। (1948-49/1966-67)
  3. वर्ष 1950-51 में कृषि का भारत की राष्ट्रीय आय में योगदान ………… प्रतिशत था। (48/59)
  4. ……….. दालों का उत्पादक सबसे बड़ा देश है। (पाकिस्तान/भारत)
  5. ………… भारत में सिंचाई का मुख्य साधन है। (भूमिगत जल/ट्यूबवैल)
  6. भारत में हरित क्रान्ति का श्रेय ……….. को दिया जाता है। (जवाहर लाल नेहरू/डॉ० नारमन वरलोग)
  7. वर्तमान में कृषि भारत की राष्ट्रीय आय में ……….. प्रतिशत का योगदान दे रही है। (14.6 / 15.3)

उत्तर-

  1. कृषि,
  2. 1966-67,
  3. 59,
  4. भारत,
  5. भूमिगत जल,
  6. डॉ० नारमन वरलोग,
  7. 15.3.

III. बहुविकल्पीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
भारत का एक भूमि सुधार बताएं।
(A) चकबन्दी
(B) मध्यस्थों का उन्मूलन
(C) भूमि की उच्चतम सीमा
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 2.
वर्ष 2007-08 के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का क्या योगदान था?
(A) 14.6
(B) 15.9
(C) 17.1
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(A) 14.6

प्रश्न 3.
कौन-सा देश दालों का अधिकतम उत्पादक देश है?
(A) भारत
(B) पाकिस्तान
(C) श्रीलंका
(D) नेपाल।
उत्तर-
(A) भारत

प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति का उद्भव कब हुआ?
(A) 1966-67
(B) 1969-70
(C) 1985-86
(D) 1999-2000
उत्तर-
(A) 1966-67

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प्रश्न 5.
वर्तमान में कषि का भारत की राष्ट्रीय आय में क्या योगदान है?
(A) 12.6
(B) 15.3
(C) 14.2
(D) 15.8.
उत्तर-
(B) 15.3

प्रश्न 6.
HYV का अर्थ है
(A) Haryana Youth Variety
(B) Huge Yeild Variety
(C) High Yeilding Variety
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(C) High Yeilding Variety

IV. सही/गलत

  1. हरित क्रान्ति भारत में वर्ष 1947 में आई।
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है।
  3. भारत में हरित क्रान्ति का जनक डा० नारमन बरलोग है।
  4. चकबन्दी भूमि सुधार का एक प्रकार है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
“कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।” इस कथन का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर-
कृषि का भारतीय अर्थ-व्यवस्था में एक केन्द्रीय स्थान हैं। कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था में रोजगार की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इससे राष्ट्रीय आय में 15.3% की प्राप्ति होती है। कृषि क्षेत्र में कार्यशील जनसंख्या का 46.2% भाग प्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ है। इसके अतिरिक्त बहुत-से व्यक्ति कृषि पर निर्भर व्यवसायों में कार्य करके जीविका प्राप्त करते हैं। यह औद्योगिक विकास में भी सहायक है। कृषि जनसंख्या की भोजन आवश्यकताओं को पूरा करती है। यह व्यापार, यातायात व अन्य सेवाओं के विकास में भी सहायक है। वास्तव में, हमारी अर्थ-व्यवस्था की सम्पन्नता कृषि की सम्पन्नता पर निर्भर करती है। अत: यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।

प्रश्न 2.
भारत में निम्न कृषि उत्पादकता के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन प्रमुख कारकों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. भूमि पर जनसंख्या के दबाव में वृद्धि-भूमि पर जनसंख्या दबाव में वृद्धि के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति भू-उपलब्धता में कमी हुई है, जिससे कृषि में आधुनिक तरीकों को अपनाने में कठिनाई आती है।
  2. कृषकों का अशिक्षित होना-भारत में अधिकांश कृषक अशिक्षित हैं। अत: उन्हें कृषि के उन्नत तरीके सिखाने में समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  3. साख, विपणन, भण्डारण आदि सेवाओं की कमी-इन सेवाओं की कमी के कारण किसानों को बाध्य होकर अपनी फसल को कम कीमत पर बेचना पड़ता है।

प्रश्न 3.
“कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं न कि प्रतिद्वन्द्वी।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
कृषि और उद्योग एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी नहीं बल्कि पूरक हैं । कृषि द्वारा उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। उद्योग श्रमिकों की पूर्ति करते हैं। कई प्रकार के अनेक उद्योगों को कच्चे माल की पूर्ति कृषि द्वारा ही की जाती है, जैसे-कच्ची कपास, जूट, तिलहन, गन्ना ऐसे ही कृषि उत्पाद हैं जो उद्योगों को कच्चे माल के रूप में दिए जाते हैं। दूसरी ओर भारतीय कृषि हमारे औद्योगिक उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण खरीददार है, कृषि के लिए कृषि उपकरण जैसे-ट्रैक्टर, कम्बाइन, ड्रिल, हार्वेस्टर इत्यादि उद्योगों से प्राप्त होते हैं। कृषि को डीज़ल, बिजली, पेट्रोल उद्योगों से ही तो प्राप्त होते हैं। अतः हम देखते हैं कि कृषि तथा उद्योग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

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प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अभिप्राय कृषि उत्पादन में उस तेज़ वृद्धि से है जो थोड़े समय में उन्नत किस्म के बीजों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के फलस्वरूप हुई है। हरित क्रान्ति योजना को कृषि की नई नीति भी कहा जाता है। इसे 1966 में शुरू किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अनाज का उत्पादन बढ़ाकर आत्म-निर्भर होना है। भारत जैसी घनी जनसंख्या और समय-समय पर अनाज की कमी वाले देश में इस योजना का बहुत ही अधिक महत्त्व है।
इस योजना के अधीन विभिन्न राज्यों में कुल बोए जाने वाले क्षेत्र के चुने हुए भागों में गेहूँ तथा चावल की नई , किस्में तथा देश में विकसित अधिक उपज देने वाली मक्का, ज्वार, बाजरा की किस्मों का प्रयोग किया गया है। इसके साथ ही बहु-फसली कार्यक्रम, सिंचाई की व्यवस्था व पानी का ठीक प्रबन्ध तथा सूखे क्षेत्रों का योजनाबद्ध विकास किया गया जिससे अनेक फसलों का उत्पादन बढ़ा।
यह क्रान्ति पंजाब और हरियाणा में आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई।

प्रश्न 5.
भारत में जोतों की चकबन्दी के लाभ बताइए।
उत्तर-
भारत में चकबन्दी के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

  1. चकबन्दी के पश्चात् वैज्ञानिक ढंग से खेती की जा सकती है।
  2. एक खेत से दूसरे खेत में जाने से जो समय नष्ट होता है वह बच जाता है।
  3. किसान को अपनी भूमि की उन्नति के लिए कुछ रुपया व्यय करने का साहस हो जाता है।
  4. चकबन्दी के कारण खेती की मुंडेर बनाने के लिए भूमि बेकार नहीं करनी पड़ती है।
  5. सिंचाई अच्छी प्रकार से की जाती है।
  6. नई प्रकार की खेती करने से व्यय कम होता है और आय बढ़ जाती है।
  7. गांव में मुकद्दमेबाज़ी कम हो जाती है।
  8. चकबन्दी के बाद जो फालतू भूमि निकलती है, उसमें बगीचे, पंचायत, घर, सड़कें, खेल के मैदान बनाए जा सकते हैं।

संक्षेप में चकबन्दी के द्वारा विखण्डन की समस्या सुलझ जाती है। खेतों का आकार बड़ा हो जाता है। इससे कृषि उपज बढ़ाने में बहुत अधिक सहायता मिलती है।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए सुझाव दें।
उत्तर-

  1. सहकारी साख समितियों को सुदृढ़ बनाना चाहिए तथा कृषकों को साख उत्पादन क्षमता के आधार पर प्रदान करनी चाहिएं।
  2. सेवा सहकारिताओं द्वारा उर्वरक, दवाइयां, उन्नत बीज, सुधरे हुए कृषि यन्त्र तथा अन्य उत्पादन की आवश्यकताएं उपलब्ध करानी चाहिएं। साख कृषकों को सरलता से प्राप्त होनी चाहिए।
  3. चावल, गेहूं और मोटे अनाजों के लिए प्रेरणादायक मूल्य दो वर्ष पूर्व घोषित किए जाने चाहिएं।
  4. कृषि उपज के विपणन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  5. प्रत्येक गांव को सघन कृषि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उनकी शैक्षणिक, तकनीकी और फार्म प्रबन्ध से सम्बन्धित सहायता करनी चाहिए।

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प्रश्न 7.
सिंचाई किसे कहते हैं? यह आवश्यक क्यों है?
उत्तर-
सिंचाई से अभिप्राय प्रायः मानवकृत स्रोतों के उपयोग से है, जिससे भूमि को जल प्रदान किया जाता है। सिंचाई के साधनों का कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है। कृषि की नई नीति के अनुसार खाद, उन्नत बीजों का प्रयोग तभी सम्भव हो सकता है जब सिंचाई की व्यवस्था हो। भारत में अभी तक केवल 35% कृषि क्षेत्रफल पर सिंचाई की व्यवस्था है। इसे बढ़ाने के लिए प्रत्येक योजना में विशेष रूप से प्रयत्न किया गया है। सिंचाई के फलस्वरूप देश में बहुफसली खेती सम्भव होगी।

प्रश्न 8.
भारत में सिंचाई के प्रमुख स्रोत लिखें।
उत्तर-
सिंचाई के स्रोत-सिंचाई के लिए जल दो मुख्य साधनों से प्राप्त होता है —

  1. भूमि के ऊपर का जलयह जल नदियों, नहरों, तालाबों, झीलों आदि से प्राप्त होता है।
  2. भूमिगत जल-यह जल भूमि के अन्दर से कुएं या ट्यूबवैल आदि खोद कर प्राप्त होता है। अतएव कुएं, तालाब, नहरें आदि सिंचाई के साधन कहलाते हैं। भारत में सिंचाई के साधनों को तीन भागों में बांटा गया है —
    1. बड़ी सिंचाई योजनाएं-बड़ी योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 10 हज़ार हैक्टेयर से अधिक कृषि योग्य व्यापक क्षेत्र में सिंचाई की जाती है।
    2. मध्यम सिंचाई योजनाएं-मध्यम योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 2 हज़ार से 10 हज़ार हैक्टेयर तक भूमि पर सिंचाई की जाती है।
    3. लघु सिंचाई योजनाएं-अब लघु योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 2 हज़ार हैक्टेयर से कम भूमि पर सिंचाई की जाती है।

प्रश्न 9.
क्या हम उत्पादन को अधिकतम करने में सफल हुए हैं विशेषकर खाद्यान्न के उत्पादन को?
उत्तर-
कृषि के विकास में योजनाओं का योगदान दो प्रकार का है, एक तो कृषि में भूमि सुधार किए गए हैं। इन भूमि सुधारों ने उन्नत खेती के लिए वातावरण तैयार किया है। दूसरे 1966 से कृषि के तकनीकी विकास पर जोर दिया गया है। इसके फलस्वरूप हरित क्रान्ति हो चुकी है। योजनाओं की अवधि में खाद्यान्न का उत्पादन तिगुना बढ़ा है। 1951-52 में अनाज का उत्पादन 550 लाख टन हुआ था जबकि 1995-96 में यह खाद्यान्न का उत्पादन बढ़कर 1851 लाख टन हो गया और 2017-18 में यह उत्पादन बढ़कर 2775 लाख टन हो गया। अतः हम कह सकते हैं कि हम उत्पादन को बढ़ाने में काफ़ी हद तक सफल हुए हैं।

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प्रश्न 10.
हरित क्रान्ति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में ही क्यों लगी रही?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में ही इसलिए लगी रही क्योंकि उद्योग क्षेत्र और सेवा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की अत्यधिक मात्रा को नहीं खपा सके। बहुत से अर्थशास्त्री इसे 1950-1990 के दौरान अपनाई गई नीतियों की असफलता मानते हैं।

प्रश्न 11.
विक्रय अधिशेष क्या है?
उत्तर-
एक देश में किसान अगर अपने उत्पादन को बाज़ार में बेचने के स्थान पर स्वयं ही उपभोग कर लेता है तो उसका अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और अगर किसान पर्याप्त मात्रा में अपना उत्पादन बाजार में बेच देता है तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। किसानों द्वारा उत्पादन का बाज़ार में बेचा गया अंश ही ‘विक्रय अधिशेष’ कहलाता है।

प्रश्न 12.
कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का स्वामित्व था। यह खेतों में बिना कोई कार्य किए केवल लगान वसूलते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को यू० एस० ए० से अनाज आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू-सुधारों की आवश्यकता हुई जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था।
भूमि सुधारों के प्रकार —

  1. ज़मींदारी उन्मूलन
  2. काश्तकारी खेती
  3. भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण
  4. चकबंदी इत्यादि।

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प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति क्या है ? इसे क्यों लागू किया गया और इससे किसानों को कैसे लाभ पहुँचा? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति-भारत में यन्त्रीकरण के फलस्वरूप सन् 1967-68 में अनाज के उत्पादन में 1966-67 की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत वृद्धि हुई। किसी एक वर्ष में अनाज के उत्पादन में इतनी वृद्धि किसी क्रान्ति से कम नहीं थी। इसलिए अर्थशास्त्रियों ने इसे हरित क्रान्ति का नाम दिया।
कारण-इसे लागू करने का मुख्य कारण कृषि क्षेत्र में अच्छे किस्म के बीज, रासायनिक खाद, आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग करने कृषि उत्पादन को बढ़ाना था ताकि देश को खाद्यान्न पदार्थों के लिए विदेशों के आयात पर निर्भर न रहना पड़े।
लाभ-

  1. इससे उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और किसानों का जीवन स्तर ऊँचा उठा।
  2. किसानों को आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।
  3. हरित क्रान्ति के कारण सरकार, पर्याप्त खाद्यान्न प्राप्त कर सुरक्षित स्टॉक बन सकी।
  4. इसमें किताबों को अच्छे किस्म के बीज, खाद आदि का प्रयोग करने की प्रेरणा दी गई।

प्रश्न 14.
भूमि की उच्चतम सीमा क्या है?
उत्तर-
भूमि की उच्चतम सीमा (Ceiling on Land Holding)-भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है, “एक व्यक्ति या परिवार अधिक-से-अधिक कितनी खेती योग्य भूमि का स्वामी हो सकता है। उच्चतम सीमा से अधिक भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी। उन्हें इसके बदले मुआवजा दिया जाएगा।” इस प्रकार जो भूमि ली जाएगी उसे छोटे किसानों, काश्तकारों या भूमिहीन कृषि मजदूरों में बांट दिया जाएगा। भूमि की उच्चतम सीमा का उद्देश्य भूमि के समान तथा उचित प्रयोग को प्रोत्साहन देना है।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति भारत की खाद्य समस्या के समाधान में किस प्रकार सहायक हुई है?
उत्तर-
इसके मुख्य कारण हैं —

  1. उत्पादन में वृद्धि-हरित क्रान्ति के फलस्वरूप 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में फसलों में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  2. फसलों के आयात में कमी-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान्न के आयात पहले की अपेक्षा कम होने लगे हैं।

इसका मुख्य कारण देश में उत्पादन का अधिक होना है। – (ii) व्यापार में वृद्धि-हरित क्रान्ति के फलस्वरूप उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। इससे कृषि उत्पादों को बाज़ार पूर्ति में वृद्धि हुई है, इससे घरेलू व विदेशी व्यापार बढ़ा है। बढ़ा हुआ कृषि उत्पादन निर्यात भी किया जाने लगा है।

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प्रश्न 16.
भारतीय कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये सरकार का क्या योगदान रहा है?
उत्तर-
भारतीय कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सरकार ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं —

  1. भूमि सुधार
  2. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार
  3. वितरण प्रणाली में सुधार
  4. कृषि अनुसंधान एवं विकास
  5. कृषि योग्य भूमि का विकास
  6. कृषि विपणन में सुधार
  7. साख सुविधाओं का विस्तार आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि क्षेत्र की क्या समस्याएं हैं?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र की निम्न समस्याएं हैं —

  1. विपणन की समस्या (Problem of Marketing) — भारत में कृषि उत्पादन की बिक्री व्यवस्था ठीक नहीं है जिसके कारण किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती। यातायात के साधन विकसित न होने के कारण किसानों को अपनी फसल गांवों में ही कम कीमत पर बेचनी पड़ती है।
  2. वित्त सुविधाओं की समस्या (Problem of Credit Facilities) — भारत के किसानों के सामने वित्त की समस्या भी एक मुख्य समस्या है। उन्हें बैंकों तथा अन्य सहायक समितियों से समय पर साख उपलब्ध नहीं हो पाती है जिससे उन्हें महाजनों से अत्यधिक ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है। अतः वित्त की समस्या भारतीय कृषि की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
  3. ग्रामीण ऋणग्रस्तता की समस्या (Problem of Rural Indebtness) — भारतीय कृषि में ऋणग्रस्तता भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। भारतीय किसान जन्म से ही ऋण में दबा होता है। एम० एस० डार्लिंग के अनुसार, “भारतीय किसान कर्ज़ में जन्म लेता है, उसमें ही रहता है तथा उसमें ही मर जाता है।”
  4. कीमत अस्थिरता की समस्या (Problem of Price Instability) — हरित क्रांति के फलस्वरूप एक और समस्या कृषि क्षेत्र में आ गई है जिससे अधिक उत्पादन होने के फलस्वरूप कीमतों में कमी आने की समस्या आ गई है। जिससे किसानों को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरणा कम मिलती है। कीमतों में आने वाले उतार चढ़ाव भी कृषि क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
  5. सिंचाई व्यवस्था की समस्या (Problem of Irrigation Facility) — भारतीय कृषि में सिंचाई की व्यवस्था भी एक समस्या है। भारत में केवल 20 प्रतिशत कृषि पर ही सिंचाई की उचित सुविधा है। बाकी कृषि मानसून के भरोसे होती है। अगर मानसून सही समय पर आए और बारिश हो तो फसल अच्छी होगी अन्यथा नहीं।
  6. छोटे जोतों की समस्या (Problem of small holding) — भारतीय कृषि में जोतों का आकार बहुत छोटा है और यह छोटे-छोटे जोत बिखरे पड़े हुए हैं। इनका आकार छोटा होने के कारण इन पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग संभव नहीं हो पाता है जिससे कि उत्पादकता कम रहती है।

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प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का स्वामित्व था। यह खेतों में बिना कोई कार्य किए केवल लगान वसूलते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को यू० एस० ए० से अनाज आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू-सुधारों की आवश्यकता हुई जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था।
भूमि सुधारों के प्रकार —

  1. ज़मींदारी उन्मूलन
  2. काश्तकारी खेती
  3. भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण
  4. चकबंदी इत्यादि।

बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख किसानों का सरकार से सीधा संपर्क हो गया तथा वे ज़मींदारों के द्वारा किए गये शोषण से मुक्त हो गये।

भारत में कृषि विकास PSEB 10th Class Economics Notes

  1. कृषि-एक खेत में फसलों व पशुओं के उत्पादन सम्बन्धी कला या विज्ञान को कृषि कहते हैं।
  2. कृषि का महत्त्व-राष्ट्रीय आय में योगदान, खाद्य पूर्ति का साधन, रोज़गार का माध्यम, उद्योग का आधार, जीवन का साधन, कृषि व विदेशी व्यापार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, यातायात के लिए आधार, सरकारी आय तथा पूंजी निर्माण आदि में कृषि महत्त्वपूर्ण है।
  3. कृषि की समस्याएं-मानवीय समस्याएं जैसे भूमि पर जनसंख्या का दबाव, सामाजिक वातावरण, संस्थागत समस्याएं जैसे जोतों का छोटा आकार, काश्तकारी व्यवस्था। तकनीकी समस्याएं जैसे सिंचाई की कम सुविधाएं, पुराने कृषि उपकरण, पुरानी उत्पादन तकनीकें, अच्छे बीजों का अभाव, खाद की समस्या, त्रुटिपूर्ण कृषि बाज़ार व्यवस्था, फसलों की बीमारियां व कीड़े-मकौड़े, साख सुविधाओं का अभाव तथा कमज़ोर पशु आदि कृषि की समस्याएं हैं।
  4. हरित क्रांति-हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि उत्पादन विशेष रूप से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि में अधिक उपज वाले बीजों के प्रयोग की नई तकनीक अपनाने से सम्भव हुई है।
  5. हरित क्रांति की सफलता के मुख्य तत्त्व-अधिक उपज वाले बीज, रसायन खादें, सिंचाई, आधुनिक कृषि यंत्रीकरण, साख-सुविधाएं, कृषि की नई तकनीक, पौध संरक्षण, कीमत सहयोग, ग्रामीण विद्युतीकरण, भू-संरक्षण, बाज़ार सुविधाएं आदि हरित क्रांति की सफलता के मुख्य तत्त्व हैं।
  6. भूमि सुधार-भूमि सुधार से अभिप्राय मनुष्य तथा भूमि में पाए जाने वाले संबंध के योजनात्मक तथा संस्थागत पुनर्गठन से है।
  7. कृषि नीति-कृषि नीति से अभिप्राय संस्थागत सुधारों को अपनाने से है जिससे कृषि का सर्वांगीण विकास हो सके।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

प्रश्न 1.
मौसम यंत्रों की बनावट, कार्य-विधि और प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर-
1. सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम तापमापी यंत्र (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) यह दिन का उच्चतम और न्यूनतम तापमान मापने का यंत्र है। इसकी खोज (Invention) जे. सिक्स (J. Six) नामक वैज्ञानिक ने की थी। उसके नाम पर ही इसे ‘सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम थर्मामीटर’ (Six’s Maximum and Minimum Termometer) कहते हैं।

बनावट (Construction)-इस तापमापी यंत्र में ‘यू’ आकार की शीशे की एक नली होती हैं। इस नली के दोनों सिरों पर बल्ब लगे होते हैं, जिनमें अल्कोहल भरी होती हैं। एक बल्ब अल्कोहल से पूरा और दूसरा आधा भरा होता है। नली के निचले हिस्से में पारा (Mercury) भरा होता है। दोनों नलियों में एक-एक सूचक (Index) लगा होता है। यह सूचक चुंबक के द्वारा नीचे किए जाते हैं। नली के आधे खाली बल्ब के नीचे नली में अंक नीचे से ऊपर की ओर लिखे होते हैं। नली का यह भाग उच्चतम तापमान दर्शाता है। नली के दूसरे हिस्से में अंक ऊपर से नीचे की ओर दिए होते हैं, इसलिए यह भाग न्यूनतम तापमान दर्शाता है।

कार्य-विधि और प्रयोग (Working and Use)—सबसे पहले सूचकों को चुंबक के द्वारा पारे के तल पर लाया जाता है। तापमान के ऊँचा होने पर अल्कोहल फैलता है और उच्चतम तापमान दर्शाने वाली नली में पारा ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है और इस भाग में सूचक को ऊपर की ओर धकेलता है। पूरे भरे हुए भाग में अल्कोहल पारे को ऊपर नहीं चढ़ने देती।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 1

तापमान कम होने पर अल्कोहल सिकुड़ती है; जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम तापमान वाली नली में पारा नीचे की ओर गिरने लग जाता है और न्यूनतम तापमान वाली नली में ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। इसके साथ-साथ न्यूनतम नली का सूचक भी ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। उच्चतम तापमान वाली नली का सूचक कमानी के कारण नीचे नहीं गिरता। इस प्रकार 24 घंटों अर्थात् एक दिन में उच्चतम तापमान वाली नली के सूचक का निचला सिरा उच्चतम तापमान और न्यूनतम तापमान नली के सूचक का निचला सिरा न्यूनतम तापमान दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

2. निद्भव हवा-दबाव मापक यंत्र (Aneroid Barometer)-इस यंत्र से हवा-दबाव मापते हैं। इसमें किसी द्रव (Liquid) का प्रयोग न करने के कारण इसे Aneroid कहते हैं। Aneroid शब्द का अर्थ है-द्रव रहित (A = without, neroid = Liquid)।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 2

बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)—यह यंत्र घड़ी जैसा होता है। पतली धातु से एक गोल खोखले डिब्बे (Shallow Metallic Box) को बनाकर उसमें से हवा निकाल ली जाती है। इसके ऊपर एक पतला लचकीला ढक्कन (Flexible Lid) लगा होता है, जो हवा के दबाव से ऊपर-नीचे होता रहता है। इस ढक्कन के ऊपरी हिस्से में एक लीवर (Lever) के द्वारा एक सूचक सूई लगी होती है, जोकि हवा के दबाव के बढ़ने से घड़ी की सुइयों की दिशा में (Clockwise) एक गोलाकार पैमाने पर घूमती है। हवा के दबाव के कम होने पर यह सूचक सुई घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा (Anti-Clockwise) में घूमती है। गोलाकार पैमाने पर हवा का दबाव इंच, सैंटीमीटर और मिलीबार में लिखा होता है। इस पैमाने पर मौसम की दशा बताने वाले शब्द अर्थात् वर्षा, (Rain), साफ (Clear), तूफानी (Stormy), बादल (Cloudy) और शुष्क (Dry) लिखे होते हैं। इनसे हमें मौसम अवस्था का ज्ञान होता है।

प्रयोग (Use)-इसे किसी स्थान के हवा के दबाव को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सहायता से किसी स्थान की ऊँचाई मापी जा सकती है। घड़ी के समान आकार में छोटा होने के कारण इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

3. हवा-दिशा सूचक यंत्र (Wind-vane)—इस यंत्र से हम हवा की दिशा के बारे में पता लगाते हैं। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)-लोहे की एक लंबवत छड़ी (Rod) पर लोहे की पतली चादर से बना एक मुर्गा (Weather Cock) या तीर लगा होता है। यह लोहे की छड़ी इस मुर्गे या तीर के लिए धुरी का काम करती है। हवा के वेग से यह मुर्गा या तीर घूमता है और हवा की दिशा का संकेत देता है। पवनमुख (Wind Ward Side) की ओर तीर या मुर्गे की पूँछ होती है। पवन विमुख की ओर (Leeward Side) मुर्गे का मुँह या तीर की नोक होती है। मुर्गे या तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ-उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दर्शायी होती हैं। इस यंत्र को किसी ऊँचे स्थान पर रखते हैं, जहाँ हवा के चलने में कोई रुकावट न हो।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 3

4. शुष्क व नम बल्ब थर्मामीटर (Wet and Dry Bulb Thermometer)-इसे मेसन हाईग्रोमीटर (Mason Hygrometer) भी कहते हैं। इस यंत्र के द्वारा हवा की सापेक्ष नमी (Relative Humidity) मापी जाती है। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)लकड़ी से बने एक तख्ते पर तापमापी यंत्र (Thermometer) लटके होते हैं। एक थर्मामीटर (तापमापी यंत्र) के बल्ब पर बारीक मलमल का कपड़ा (Muslin Cloth) लपेटा होता है, जिसका एक सिरा साफ पानी में भरे एक छोटे-से बर्तन में डूबा रहता है। एक को गीला (नम) थर्मामीटर और दूसरे को शुष्क थर्मामीटर कहते हैं। कोशिकाक्रिया (Capillary Action) से पानी मलमल के कपड़े के द्वारा बल्ब को आर्द्रता प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप इस थर्मामीटर में वाष्पीकरण (Evaporation) होता रहता है, जिसके कारण इस यंत्र का तापमान निम्न रहता है। शुष्क थर्मामीटर में पानी की मात्रा न होने के कारण उसका तापमान उच्च होता है। इस प्रकार दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अंतर हो जाता है। इस अंतर के द्वारा एक तालिका की सहायता से सापेक्ष आर्द्रता निकाल ली जाती है। दोनों थर्मामीटरों में तापमान में कम अंतर होने पर सापेक्ष नमी अधिक और अधिक अंतर होने पर सापेक्ष नमी कम होती है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 4

5. वर्षामापी यंत्र (Rain Gauge)-यह यंत्र वर्षा की मात्रा मापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
बनावट (Construction)—इसमें नीचे लिखी अलग-अलग चीजें होती हैं-

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

(i) बेलनाकार बर्तन (Cylinderical Pot) तांबे का बना हुआ एक 12.5 सैं०मी० (5 इंच) या 20 सैं०मी० (8 इंच) व्यास का एक बेलनाकार बर्तन होता है। तांबा हर प्रकार के मौसमी प्रभाव को सहन करने की योग्यता रखता है, इसलिए आमतौर पर यह बर्तन तांबे का ही बना होता है।

(ii) कीप (Funnel)—एक बेलनाकार बर्तन के मुख पर तांबे से बनी उतने ही व्यास की एक कीप होती है। इस कीप के ऊपरी सिरे पर 1.2 सैं०मी० ( इंच) ऊँचा किनारा (Rim) लगा होता है, ताकि वर्षा के पानी की.छीटें बाहर न जाएँ।

(iii) शीशे का बर्तन या बोतल (Glass Container or Bottle)-तांबे के बेलनाकार बर्तन के अंदर एक तंग मुँह वाला शीशे का बर्तन या बोतल होती है, जिसमें कीप के द्वारा पानी जाता है। इसका तंग मुँह पानी का वाष्पीकरण रोकने के लिए होता है।

(iv) चिन्हित शीशे का बेलन (Graduated Glass Cylinder)-इससे वर्षा की मात्रा मापते हैं। यह शीशे का एक बेलन होता है, जिसके बाहर वर्षा को मापने के लिए पैमाना अंकित होता है। कार्य-विधि (Working)-वर्षा का पानी कीप के द्वारा बर्तन या बोतलों में एकत्र हो जाता है। इसी पानी को चिन्हित शीशे के बेलन में डालकर माप लिया जाता है। कीप के क्षेत्रफल और चिन्हित बेलन के मुख के क्षेत्रफल में एक निर्धारित अनुपात रखा जाता है। इस अनुपात पर चिन्हित बेलन का पैमाना आधारित होता है। तांबे के बेलनाकार बर्तन में 2.5 सैं०मी० (1 इंच) पानी की ऊँचाई चिन्हित बेलन में 25.4 सैं०मी० (10 इंच) दिखाई जाती है। इस यंत्र में 1/10 सैं०मी० (1/100 इंच) तक की वर्षा मापने की व्यवस्था होती है।

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बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules.

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. रिंग का आकार = वर्गाकार
  2. एक भुजा की लम्बाई = 20 फुट
  3. रस्सों की संख्या = तीन अथवा पांच
  4. भारों की संख्या = 11
  5. पट्टी की लम्बाई = 8′ 4″
  6. पट्टी की चौड़ाई = \(1 \frac{1}{4}\)“
  7. रिंग की फर्श से ऊंचाई = 3′ 4″
  8. सीनियर प्रतियोगिता का समय = 3-1-3-1-3
  9. जुनियर के लिए समय = 2-1-2-2
  10. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए समय = 2-1-2-1-2-1-2-1-2
  11. अधिकारी = जज (अधिकतम 5 या 3), टाइम कीपर-1, रेफरी-1, घंटा ऑपरेटर-1, प्रर्यवेक्षक-1 उद्घोषक 1, रिकार्डर 1
  12. मुक्केबाजी दस्तानों का भार = 10 औंस, 12 औंस
  13. रिंग के कोनों का रंग = 1 लाल, 1 नीला, 2 सफेद
  14. राऊंड टाइम = 3 राउंड (प्रत्येक 3 मिनट)
  15. रस्सियों के पारस्परिक अंतर = रिंग के फर्श से (1) 40 सेंटीमीटर (2) 70 सेंटीमीटर, (3) 100 सेंटीमीटर, (4) 130 सेंटीमीटर।
  16. सलाखों की लम्बाई = = 2.5 मी.
  17. पट्टियों की चौड़ाई = 5 सेंटीमीटर
  18. बॉक्सर का तकनीकी नाम = पुगिलिटश
  19. अंडर 17 वर्ष के लड़कों के लिये प्रतियोगिताओं में कुल भार = 13

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी

  1. बाक्सिग में रिंग का आकार वर्गाकार और एक भुजा की लम्बाई 20 फुट होती है।
  2. रिंग में रस्सों की गिनती तीन होती है और साइडों का रंग एक नीला तथा दूसरा लाल होता है।
  3. बाक्सिग के लिए भार के वर्गों की गिनती 12 होती है।
  4. दस्तानों का भार 10 औंस से अधिक नहीं होना चाहिए।
  5. पट्टी की लम्बाई 8 फुट 4 इंच और चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच 4.4 सैं० मी० होनी चाहिए।
    बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1

PSEB 11th Class Physical Education Guide बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुक्केबाज़ का तकनीकी नाम लिखें।
उत्तर-
पुगिलिटस।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
मुक्केबाज़ (लड़के) अंडर-17 मुकाबले में कुल कितने भार वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
कुल 13 भार वर्ग।

प्रश्न 3.
मुक्केबाज़ के मैच में RSC से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रैफरी के द्वारा मुक्केबाज़ को चोट लगने पर बाऊट को रोक दिया जाना।

प्रश्न 4.
मुक्केबाजी के मैच में DSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मुक्केबाज़ बार-बार किसी नियम की उल्लंघना करता है तो उस समय रैफरी द्वारा उसे अयोग्य घोषित कर देना।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
मुक्केबाज़ी के मैच में wo क्या होता है ?
उत्तर-
जब किसी खिलाड़ी को बाऊट के बिना ही विजयी घोषित कर दिया जाए।

प्रश्न 6.
मुक्केबाज़ी मुकाबले में एक राऊंड कितने समय का होता है ?
उत्तर-
4 मिनट का (प्रत्येक राऊंड के लिए)।

प्रश्न 7.
मुक्केबाज़ी रिंग के कोनों का रंग लिखें।
उत्तर-
लाल, नीला और सफेद।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाक्सिंग में भार अनुसार कितने प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं ?
उत्तर-
मुक्केबाज़ी के भारों का वर्गीकरण
(Weight Categories in Boxing)

  1. लाइट फलाई वेट (Light Fly Weight) = 48 kg
  2. फलाई वेट (Fly Weight) = 51 kg
  3. बैनटम वेट (Bentum Weight) = 54 kg
  4. फ़ैदर वेट (Feather Weight) = 57 kg
  5. लाइट वेट (Light Weight) = 60 kg
  6. लाइट वैल्टर वेट (Light Welter Weight) = 63.5 kg
  7. वैल्टर वेट (Welter Weight) = 67 kg
  8. लाइट मिडल वेट (Light Middle Weight) = 71 kg
  9. मिडल वेट (Middle Weight) = 75 kg
  10. लाइट हैवी वेट (Light Heavy Weight) = 81 kg से 91 kg तक
  11. हैवी वेट (Heavy Weight) = 91 kg से अधिक 100 kg तक
  12. सुपर हैवी वेट (Super Heavy Weight) = 100 kg से ऊपर

प्रश्न 2.
बाक्सिग में रिंग, रस्सा, प्लेटफ़ार्म, अंडर-कवर, पोशाक और पट्टियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
रिंग (Ring)—सभी प्रतियोगिताओं में रिंग का आन्तरिक माप 12 फुट से 20 फुट (3 मी० 66 सैं० मी० से 6 मी० 10 सैं० मी०) वर्ग में होगा। रिंग की सतह से सबसे ऊपरी रस्से की ऊंचाई 16”, 28”, 40”, 50” होगी।
रस्सा (Rope)—रिंग चार रस्सों के सैट से बना होगा जोकि लिनन या किसी नर्म पदार्थ से ढका होगा।
प्लेटफ़ार्म (Platform)-प्लेटफार्म सुरक्षित रूप में बना होगा। यह समतल तथा बिना किसी रुकावटी प्रक्षेप के होगा। यह कम-से-कम 18 इंच रस्सों की लाइन से बना रहेगा उस पर चार कार्नर पोस्ट लगे होंगे जो इस प्रकार बनाए जाएंगे कि कहीं चोट न लगे।

अंडर-कवर (Under-cover)-फर्श एक अण्डर-कवर से ढका होगा जिस पर कैनवस बिछाई जाएगी।
पोशाक (Costumes)-प्रतियोगी एक बनियान (Vest) पहन कर बाक्सिंग करेंगे जोकि पूरी तरह से छाती और पीठ ढकी रखेगी। शार्ट्स उचित लम्बाइयों की होगी जोकि जांघ के आधे भाग तक जाएगी। बूट या जूते हल्के होंगे। तैराकी वाली पोशाक पहनने की आज्ञा नहीं दी जाएगी। प्रतियोगी उन्हें भिन्न-भिन्न दर्शाने वाले रंग धारण करेंगे जैसे कि कमर के गिर्द लाल या नीले कमर-बन्द, दस्ताने (Gloves) स्टैंडर्ड भार के होंगे। प्रत्येक दस्ताना 8 औंस (227 ग्राम) भारी होगा।

पट्टियां (Bandages)-एक नर्म सर्जिकल पट्टी जिसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच (2.5 मी०) से अधिक तथा चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक न हो या एक वैल्यियन टाइप पट्टी जो 6 फुट 6 इंच से अधिक लम्बी तथा \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होगी, प्रत्येक हाथ पर पहनी जा सकती है।
अवधि (Duration)—सीनियर मुकाबलों तथा प्रतियोगिताओं के लिए खेल की अवधि निम्नलिखित होगी—
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
प्रतियोगिताएं (Competitions)—
Senior National Level
3-1-3-1-3 तीन-तीन मिनट के तीन राऊण्ड
Junior National Level 2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के तीन राऊण्ड
International Level 2-1-2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के पांच राऊण्ड

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
बाक्सिग में ड्रा, बाई, वाक ओवर के बारे में लिखें।
उत्तर-
ड्रा, बाई, वाक ओवर (The Draw, Byes and Walk-over)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के लिए भार तोलने तथा डॉक्टरी निरीक्षण के बाद ड्रा किया जाएगा।
  2. वे प्रतियोगिताओं में जिनसे चार से अधिक प्रतियोगी हैं, पहली सीरीज़ में बहुत-सी बाई निकाली जाएंगी ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम रह जाए।
  3. पहली सीरीज़ में जो मुक्केबाज़ (Boxer) बाई में आते हैं वे दूसरी सीरीज़ में पहले बाक्सिग करेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषय हो तो अन्तिम बाई का बाक्सर दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता के साथ मुकाबला करेगा।
  4. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई ओर दूसरी सीरीज़ में वाक ओवर नहीं प्राप्त कर सकता या दो प्रतियोगियों के नाम ड्रा निकाला जाएगा जोकि अब भी मुकाबले में हों। इसका अर्थ इन प्रतियोगियों के लिए विरोधी प्रदान करना है जोकि पहली सीरीज़ में पहले ही वाक ओवर ले चुके हैं।

सारणी-बाऊट से बाइयां निकालना
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
प्रतियोगिता की सीमा (Limitation of Competitors)-किसी भी प्रतियोगिता में 4 से लेकर 8 प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है। यह नियम किसी ऐसोसिएशन द्वारा आयोजित किसी चैम्पियनशिप पर लागू नहीं होता। प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली क्लब को अपना एक सदस्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है, परन्तु शर्त यह है कि वह सदस्य प्रतियोगिता में सम्मिलित न हो।
नया ड्रा (Fresh Draw) यदि किसी एक ही क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा किया जाएगा।

वापसी (Withdrawl)-ड्रा किए जाने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी सन्तोषजनक कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो इन्चार्ज अधिकारी इन दशाओं में एसोसिएशन को रिपोर्ट करेगा।

रिटायर होना (Retirement) यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण प्रतियोगिता से रिटायर होना चाहता है तो उसे इन्चार्ज अधिकारी को सूचित करना होगा।
बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए निश्चित समय के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे इन्चार्ज अधिकारी सहमत हो। सैकिण्ड (Second)—प्रत्येक प्रतियोगी के साथ एक सैकिण्ड (सहयोगी) होगा तथा राऊंड के दौरान वह सैकिण्ड प्रतियोगी को कोई निर्देश या कोचिंग नहीं दे सकता।

केवल पानी की आज्ञा (Only water allowed) बाक्सर को बाऊट से बिल्कुल पहले या मध्य में पानी के अतिरिक्त कोई अन्य पीने वाली चीज़ नहीं दी जा सकती।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
बाक्सिंग में बाऊट को नियन्त्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)
1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफ़री, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा निश्चित किए जाएंगे। रैफ़री रिंग में होगा। जब तीन से कम जज होंगे तो रैफ़री स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफ़री द्वारा कण्ट्रोल किए जाएंगे।

2. रैफ़री एक स्कोर पैड या जानकारी सलिप का प्रयोग बाक्सरों के नाम तथा रंगों का रिकार्ड रखने के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफ़री इस पर कारण रिपोर्ट करके इंचार्ज अधिकारी को देगा।

3. टाइम कीपर रिंग के एक ओर बैठेगा तथा जज अन्य तीन ओर बैठेंगे। सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे बाक्सिग को सन्तोषजनक ढंग से देख सकें। ये दर्शकों से अलग होंगी। रैफ़री बाऊट को नियमानुसार कण्ट्रोल करने के लिए अकेला ही उत्तरदायी होगा तथा जज स्वतन्त्रतापूर्वक प्वाइंट देंगे।

4. प्रमुख टूर्नामेंट में रैफ़री सफेद कपड़े धारण करेगा।

प्वाईंट देना (Awarding of Points)—

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देगा।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे, भिन्नों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा या उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे। जज का नाम बड़े अक्षरों (Block Letters) में लिखा जाएगा। उसे स्कोरिंग स्लिपों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

प्रश्न 5.
बाक्सिग में स्कोर कैसे मिलते हैं ?
उत्तर-
स्कोरिंग (Scoring)
1. जो बाक्सर अपने विरोधी को सबसे अधिक मुक्के मारेगा उसे प्रत्येक राऊंड के अन्त में 20 प्वाईंट दिए जाएंगे। दूसरे बाक्सर को उसी अनुपात में अपने स्कोरिंग मुक्कों में कम प्वाईंट मिलेंगे।

2. जब जज यह देखता है कि दोनों बाक्सरों ने एक जितने मुक्के मारे हैं तो प्रत्येक प्रतियोगी को 20 प्वाईंट दिए जाएंगे।

3. यदि बाक्सरों को मिले प्वाईंट बाऊट के अन्त में बराबर हों तो जज अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अधिक पहल दिखाई हो, परन्तु यदि समान हो उस बाक्सर के पक्ष में जिसने बेहतर स्टाइल दिखाया हो। यदि वह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर हैं तो वह अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

परिभाषाएं (Definitions)-उपर्युक्त नियम निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा लागू होता है—
(A) स्कोरिंग मुक्के या प्रहार (Scoring Blows)—वे मुक्के जो किसी भी दस्ताने के नक्कल से रिंग के सामने या साइड की ओर या शरीर के बैल्ट के ऊपर मारे जाएं।
(B) नान-स्कोरिंग मुक्के (Non-Scoring Blows)—

  • नियम का उल्लंघन करके मारे गए मुक्के।
  • भुजाओं या पीठ पर मारे गए मुक्के।
  • हल्के मुक्के या बिना ज़ोर की थपकियां।

(C) पहल करना (Leading Off)-पहला मुक्का मारना या पहला मुक्का मारने की कोशिश करना। नियमों का उल्लंघन पहल करने के स्कोरिंग मूल्य को समाप्त कर देता है।
(D) सुरक्षा (Defence)–बाक्सिग, पैरिंग, डकिंग, गार्डिंग, साइड स्टैपिंग द्वारा प्रहरों से बचाव करना।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
बाक्सिग में कोई दस त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां (Fouls)-जजों या रैफ़री का फ़ैसला अन्तिम होगा। रैफ़री को निम्नलिखित कार्य करने पर बाक्सर को चेतावनी देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार है—

  1. खुले दस्ताने से चोट करना, हाथ के आन्तरिक भाग या बट के साथ चोट करना, कलाइयों से चोट करना या बन्द दस्ताने के नक्कल वाले भाग को छोड़कर किसी अन्य भाग से चोट करना।
  2. कुलनी से मारना।
  3. बैल्ट के नीचे मारना।
  4. किडनी पंच (Kidney Punch) का प्रयोग करना।
  5. पिवट ब्लो (Pivot Blow) का प्रयोग करना।
  6. गर्दन या सिर के नीचे जानबूझ कर चोट करना।
  7. नीचे पड़े प्रतियोगी को मारना।
  8. पकड़ना।
  9. सिर या शरीर के भार लेटना।
  10. बैल्ट के नीचे किसी ढंग से डकिंग (Ducking) करना जोकि विरोधी के लिए खतरनाक हो।
  11. बाक्सिग का सिर पर खतरनाक प्रयोग।
  12. रफिंग (Roughing)
  13. कन्धे मारना।
  14. कुश्ती करना।
  15. बिना मुक्का लगे जान-बूझ कर गिरना।
  16. निरन्तर ढक कर रखना।
  17. रस्सों का अनुचित प्रयोग करना।
  18. कानों पर दोहरी चोट करना।

ब्रेक (Break)-जब रैफ़री दोनों प्रतियोगियों को ब्रेक (To Break) की आज्ञा देता है तो दोनों बाक्सरों को पुनः बाक्सिग शुरू करने से पहले एक कदम पीछे हटना ज़रूरी है। ‘ब्रेक’ के समय एक बाक्सर को विरोधी को मारने की आज्ञा नहीं होती।

डाऊन तथा गिनती (Doun and Count)-एक बाक्सर को डाऊन (Doun) समझा जाता है जब शरीर का कोई भाग सिवाए उसके पैरों के फर्श पर लग जाता है या जब वह रस्सों से बाहर या आंशिक रूप में बाहर होता है या वह रस्सी पर लाचार लटकता है।
बाऊट रोकना (Stopping the Bout)—

  1. यदि रैफ़री के मतानुसार एक बाक्सर चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या वह बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है। यह निर्णय करने का अधिकार रैफ़री को होता है जोकि डॉक्टर का परामर्श ले सकता है।
  2. रैफ़री को बाऊट रोकने का अधिकार है यदि उसकी राय में प्रतियोगी को मात हो गई है या वह बाऊट जारी रखने के योग्य नहीं है।

बाऊट पुनः शुरू करने में असफल होना (Failure to resume Bout) सभी बाऊटों में यदि कोई प्रतियोगी समय कहे जाने पर बाऊट को पुनः शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

नियमों का उल्लंघन (Breach of Rules) बाक्सर या उसके सैकिण्ड (Second) द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन से उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा। एक प्रतियोगी जो अयोग्य घोषित किया गया हो उसे कोई ईनाम नहीं मिलेगा।

शंकित फाऊल (Suspected Foul) -यदि रैफ़री को किसी फ़ाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा, वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है।