PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
फसल के लिए आवश्यक कोई दो प्रमुख पोषक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस, नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन आदि।

प्रश्न 2.
फसलों के लिए आवश्यक कोई दो लघु तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
जिंक, मैंगनीज़।

प्रश्न 3.
नाइट्रोजन की कमी वाले पौधों के पत्तों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पीला।

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प्रश्न 4.
पौधे को बीमारियों से लड़ने में सहायक किसी एक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व, पोटाशियम तत्त्व।

प्रश्न 5.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाले पौधों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पौधे के पत्ते पहले पीले तथा कुछ समय बाद भूरे हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
पौधों के अंदर सैल बनाने में सहायक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व पौधे के अंदर नई कोशिकाएं बनाने में सहायक है।

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प्रश्न 7.
नाइट्रोजन की कमी की पूर्ति के लिए प्रयोग में आने वाली कोई दो रासायनिक खादों के नाम लिखो।
उत्तर-
यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड।

प्रश्न 8.
फॉस्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति के लिए पौधों को कैसी खाद डाली जा सकती है ?
उत्तर-
डाईअमोनीयम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट

प्रश्न 9.
रेतली भूमि में मैंगनीज़ की कमी से कौन-सी फसल अधिक प्रभावित होती है?
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल।

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प्रश्न 10.
गंधक की कमी आने पर कौन-सी खाद का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जिप्सम, सुपर फास्फेट में फास्फोरस के साथ गंधक तत्त्व भी मिल जाता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों के लिए आवश्यक मुख्य तत्त्व और लघु तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
मुख्य तत्त्व-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, गंधक, ऑक्सीजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनीशियम।
लघु तत्त्व-लोहा, जिंक, मैंगनीज़, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, तांबा।

प्रश्न 2.
पौधे में जिंक कौन-से प्रमुख कार्य करता है ?
उत्तर-
जिंक एन्जाइमों का अभिन्न अंग है यह पौधे की वृद्धि में सहायक है, अधिक हार्मोनज़ तथा स्टार्च बनने में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 3.
पौधे में मैंगनीज़ के क्या कार्य होते हैं ?
उत्तर-
यह अधिक क्लोरोफिल बनाने में सहायता करता है। यह कई एन्जाइमों का अभिन्न अंग भी है।

प्रश्न 4.
फास्फारेस तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
कमी के कारण पत्ते पहले गहरे हरे रंग के तथा कुछ समय बाद पुराने पत्तों का रंग बैंगनी हो जाता है।

प्रश्न 5.
धान की फसल में जिंक की कमी आने पर किस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पुराने पत्तों में पीलापन आ जाता है तथा कहीं-कहीं पीले से भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे मिल कर बड़े हो जाते हैं। इनका रंग गहरा भूरा, जैसे लोहे को जंग लगा हो, हो जाता है। पत्ते छोटे रह जाते हैं तथा सूख कर झड़ जाते हैं। फसल देर से पकती है तथा उत्पादन कम हो जाता है।

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प्रश्न 6.
लोहे की कमी आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
यदि भूमि का पी०एच०मान 6 से 6.5 के बीच न हो तो पौधे लोहा तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकते। क्षारीय भूमियों में पी०एच० 6.5 से अधिक होने पर यह समस्या होती है। सेम वाली भूमियों में लोहे की कमी हो जाती है। यदि अन्य तत्त्व वाली खादों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाए तो भी लोहा तत्त्व पौधों को प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 7.
गेहूँ में मैंगनीज़ तत्त्व की पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
सप्ताह-सप्ताह के अन्तर से दो-तीन बार मैंगनीज़ सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ में एक स्प्रे पहली सिंचाई से दो-तीन दिन पहले करें तथा दो-तीन छिड़काव उसके बाद सप्ताह-सप्ताह के अंतर पर करें।

प्रश्न 8.
गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी आने से कैसे लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पत्ते के नीचे वाले भाग की नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन दिखाई देता है जो ऊपरी सिरे की तरफ बढ़ता है। यह कमी पहले तो पत्ते के निचले 2/3 भाग तक सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक स्लेटी भूरे रंग के दानेदार धब्बे पड़ जाते हैं जो अधिक कमी होने पर बढ़ जाते हैं तथा नाड़ियों के बीच लाल मटमैली धारियां बन जाती हैं। नाड़ियां हरी रहती हैं। बल्लियाँ बहुत कम निकलती हैं तथा दाती जैसे मुड़ी दिखाई देती हैं।

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प्रश्न 9.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाली प्रमुख फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
गेहूँ, धान, आलू, टमाटर, सेब, गोभी आदि।

प्रश्न 10.
लोहे की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
एक किलो फेरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से पत्तों के ऊपर छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए। पौधे द्वारा भूमि से लोहा प्राप्ति प्रभावकारी नहीं है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य बताएं।
उत्तर-
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं—

  1. नाइट्रोजन पौधों में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का अभिन्न अंग है।
  2. नाइट्रोजन की ठीक मात्रा होने पर पौधों की वृद्धि तेज़ी से होती है।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) का प्रयोग उचित प्रकार से करने में सहायक है।
  4. फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग में सहायक है।

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प्रश्न 2.
फसलों में नाइट्रोजन तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन तत्त्व की कमी सब से पहले पुराने नीचे वाले पत्तों में दिखाई देती है। पुराने पत्ते नोक से नीचे की ओर पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं। कमी बनी रही तो पीलापन ऊपरी पत्तों की ओर बढ़ जाता है। शाखाएं कम निकलती हैं तथा पौधे का फैलाव कम होता है। पोरियाँ (गाँठ) छोटी रह जाती हैं । बल्लियाँ छोटी रह जाती हैं। इस कारण उत्पादन कम हो जाता है।

प्रश्न 3.
फास्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व की कमी पूरी करने के लिए डाईमोनियम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट खाद की आवश्यकता अनुसार सिफ़ारिश की गई मात्रा को बीज बोते समय ही ड्रिल कर दिया जाता है। यह तत्त्व भूमि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलने के समर्थ नहीं है। इस तत्त्व की पूर्ति के लिए मिश्रित खादों जैसे सुपरफास्फेट, एन०पी०के०, डी०ए०पी० आदि का भी प्रयोग किया जाता है। रबी की फसलों पर इस तत्त्व वाली खाद का अधिक प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
फसलों में जिंक की कमी आने के मुख्य कारण और इसकी पूर्ति के संबंध में लिखें।
उत्तर-
कमी के कारण-जिन भूमियों में फास्फोरस तत्त्व तथा कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है, उन भूमियों में जिंक की कमी प्रायः देखी जाती है।
जिंक की पूर्ति-भूमि में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। यदि जिंक की कमी अधिक हो तो जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
फसलों में लोहे की कमी के लक्षण और इसकी पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
लोहे की कमी के लक्षण-

  1. लोहे की कमी के लक्षण पहले नए पत्तों पर दिखाई देते हैं।
  2. पहले नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन नज़र आता है तथा बाद में नाडियां भी पीली हो जाती हैं।
  3. यदि अधिक कमी हो तो पत्तों का रंग उड़ जाता है तथा यह सफेद हो जाते हैं।

कमी की पूर्ति-लोहे की कमी की पूर्ति निम्नलिखित अनुसार करें—
जब पीलेपन की निशानियां नज़र आएं तो फसल को जल्दी-जल्दी खुला पानी दें। एक सप्ताह के अंतर पर एक प्रतिशत एक किलोग्राम फैरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि लोहे की पूर्ति भूमि द्वारा प्रभावकारक नहीं है।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या 17 है।

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प्रश्न 2.
पौधों का रंग किस तत्त्व के कारण गहरा होता है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन क्लोरोफिल का आवश्यक अंग है, इससे पौधों का रंग गहरा हो जाता है।

प्रश्न 3.
कुछ तत्त्वों के नाम बताओ जो आवश्यक तो नहीं हैं पर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी करने के लिए इनका होना अनिवार्य है ?
उत्तर-
ऐसे तत्त्व हैं-सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व जब पौधे के पांच अथवा छ: पत्ते हों, तो पत्तों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी कमी से पत्तों की नाड़ियों का रंग लाल अथवा जामुनी हो जाता है तथा कमी के चिन्ह पत्ते के मध्य से तने की तरफ के भाग पर होते हैं। अधिक कमी होने पर पौधे बोने रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों में पोटाशियम की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
पोटाशियम की कमी से पत्तों का झुलसना तथा धब्बे पड़ना नीचे वाले पत्तों से शुरू होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर मूल की तरफ बढ़ता है। अधिक कमी होने पर सारा पत्ता सूख जाता है। पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक तथा फसल का उत्पादन कम होता है।

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प्रश्न 5.
पौधों में नाइट्रोजन की कमी के क्या चिन्ह हैं ?
उत्तर-
नाइट्रोजन की कमी से पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलापन निम्न पत्तों से आरंभ होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर पीलापन पत्ते के अंतिम भाग की ओर बढ़ता है। अधिक कमी होने की सूरत में सारा पत्ता सूख जाता है। पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक होते हैं तथा फसल की पैदावार कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
फास्फोरस के पौधों को क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
पौधों के लिए फास्फोरस के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. नए सैल (डी०एन०ए०, आर०एन०ए०) अधिक बनते हैं।
  2. फूल, फल तथा बीज बनने में सहायता करती है।
  3. जड़ों में वृद्धि बहुत तेजी से होती है।
  4. तने को मजबूत करता है तथा इस तरह फसल को गिरने से बचाती है।
  5. फलीदार फसलों की हवा से नाइट्रोजन इकट्ठा करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
  6. बीमारियां लगने की संभावना को घटाती है।

प्रश्न 7.
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को नुकसान—

  1. फसल पकने में देरी लगती है।
  2. तना कमज़ोर हो जाता है तथा पौधे गिर जाते हैं।
  3. कीड़े तथा बीमारियां अधिक लगती हैं।

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प्रश्न 8.
गेहूं पर जिंक की कमी. का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
गेहं पर जिंक की कमी का प्रभाव-जिंक की कमी से पौधों की वद्धि धीरे होती है। पौधे छोटे तथा झाड़ी की तरह दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पहले पानी देते समय तथा फिर जब पौधा पैदा होता है तो कुछ समय पहले दिखाई देते हैं। कमी के पहचान चिन्ह ऊपर से तीसरे अथवा चौथे पत्ते से आरम्भ होते हैं। पत्ते के मध्य में पीले अथवा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके पश्चात् पत्तों की नाड़ियों के बीच पीली-सफ़ेद धारियां पड़ जाती हैं तथा पत्ते बीच में से मुड़ जाते हैं।

प्रश्न 9.
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी के पहचान-चिन्ह पौधे के बीच के पत्तों से आरंभ होते हैं। किनारे पर डंडी वाली दिशा को छोड़कर पत्ते के बाकी हिस्से पर पीले रंग तथा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में यह धब्बे सारे पत्ते पर फैल जाते हैं। यदि मैंगनीज़ की कमी अधिक हो तो पत्ते सूख जाते हैं।

प्रश्न 10.
खाद्य तत्त्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों के फलने-फूलने के लिए इन्हें भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में शामिल सभी तत्त्वों को खाद्य तत्त्व कहते हैं। यह खाद्य तत्त्व दो तरह के होते हैं। मुख्य तथा सूक्ष्म तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, फास्फोरस, नाइट्रोजन, जिंक, तांबा, बोरोन, कोबाल्ट आदि। पौधे ये तत्त्व हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 11.
खाद्य तत्त्वों का पौधों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्वों का महत्त्व—

  1. आवश्यक खाद्य तत्त्वों के बिना पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकते।
  2. आवश्यक खाद्य तत्त्वों की कमी के चिन्ह उसी खाद्य तत्त्व को डालने से ठीक किए जा सकते हैं, किसी अन्य तत्त्व के डालने से नहीं।
  3. आवश्यक खाद्य तत्त्व पौधे के आंतरिक रासायनिक परिवर्तनों में सीधा योगदान देते हैं।

प्रश्न 12.
पौधों के लिए कौन-कौन से खाद्य तत्त्वों की ज़रूरत है ? इन खाद्य तत्त्वों की कसौटी क्या है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, मैंगनीज़, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीन तथा कोबाल्ट आदि तत्त्वों की ज़रूरत है। इन खाद्य तत्त्वों को पौधे हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

कई खाद्य तत्त्व पौधों को अधिक मात्रा तथा कई कम मात्रा में अनिवार्य होते हैं। पौधों में पाए जाते लगभग 90 तत्त्वों में से 17 खाद्य तत्त्व पौधों के लिए अधिक अनिवार्य हैं।

कुछ अन्य तत्त्व जो ज़रूरी तो नहीं, पर उनका अस्तित्व खासकर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी कर सकता है, यह तत्त्व सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम हैं।

प्रश्न 13.
धान को जिंक की कमी कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
धान में जिंक की कमी-धान के पौधों में जिंक की कमी के चिन्ह पौधे लगाने से 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पुराने पत्तों से आरंभ होते हैं।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व नाड़ियों के बीच से पत्तों का रंग पीला अथवा सफ़ेद हो जाता है। पत्ते जंग लगे से नज़र आते हैं। पौधे छोटे तथा बल्लियां देरी से निकलती हैं। फसल की पैदावार कम होती है।

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प्रश्न 14.
पौधों के लिए गंधक के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-

  1. यह क्लोरोफिल बनने में सहायक है।
  2. गंधक प्रोटीन तथा एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
  3. यह बीज बनने में सहायक होती है।
  4. फलीदार फसलों की जड़ों में हवा की नाइट्रोजन पकड़ने वाली गांठें अधिक बनती

प्रश्न 15.
पौधों में कैल्शियम की कमी की निशानियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
नए पत्ते, कोंपलें तथा डोडियों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। पत्तों की नोकें तथा किनारे सूख जाते हैं। कई बार पत्ते मुड़े ही रहते हैं, पूरी तरह खुलते नहीं। जड़ें छोटी तथा गुच्छेदार बन जाती हैं। इसकी कमी के कारण आलू में होलो हार्ट रोग हो जाते हैं तथा आलू अंदर से नर्म रह जाते हैं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों के लिए अनिवार्य खाद्य तत्त्वों तथा उनके स्त्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-

       अधिक मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व                                            कम मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व
अधिक हवा तथा पानी से भूमि गैसों से भूमि ठोसों से
कार्बन नाइट्रोजन लोहा
हाइड्रोजन फास्फोरस मैंगनीज़
ऑक्सीजन पोटाशियम जिंक
मैग्नीशियम तांबा
गंधक बोरोन
कैल्शियम माल्बडीनम
कोबाल्ट

 

प्रश्न 2.
नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाशियम के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
I. नाइट्रोजन के लाभ—

  1. पौधे के पत्तों का हरा रंग इस तत्त्व के कारण ही होता है।
  2. पत्तों का रंग गहरा हो जाता है तथा पत्ते चौड़े, लंबे तथा रसदार बन जाते हैं।
  3. पौधों का फैलाव अधिक तथा तेज़ होता है।
  4. पौधे अधिक चमकीले तथा कोमल हो जाते हैं।
  5. ‘पौधों की टहनियां पतली तथा नर्म हो जाती हैं।
  6. प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।

II. फास्फोरस के लाभ-

  1. फसल जल्दी पकती है।
  2. दाने मोटे तथा भारी होते हैं।
  3. अनाज की मात्रा तूड़ी से अधिक हो जाती है।
  4. पौधों की जड़ें काफ़ी फल-फूल सकती हैं।
  5. पौधों के तने मज़बूत तथा पक्के बन जाते हैं तथा फसल गिरती नहीं।
  6. रोग का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ती है।
  7. फलों का स्वाद मीठा होता है तथा फल बड़े हो जाते हैं।
  8. फसलों की पैदावार बहुत बढ़ जाती है।

III. पोटाशियम के लाभ—

  1. पोटाशियम से अच्छी प्रकार का फल तैयार होता है।
  2. यह तत्त्व तने को मजबूत करता है।
  3. पौधों में निशास्ता तथा चीनी की मात्रा बढ़ जाती है।
  4. फसलों में रोगों तथा कीड़ों का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  5. नाइट्रोजन के प्रभाव को धीमा करती है।
  6. पौधे काफ़ी लंबे समय के लिए हरे-भरे रहते हैं।
  7. इसकी मौजूदगी में पौधे दूसरे तत्त्वों को अच्छी तरह ग्रहण कर सकते हैं।
  8. पोटाशियम कार्बन-चूषण क्रिया के लिए आवश्यक है।

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प्रश्न 3.
फास्फोरस की कमी की निशानियां बताओ।
उत्तर-

  1. फास्फोरस की कमी से फसल की वृद्धि धीमी, कद छोटा तथा फसल देरी से पकती है।
  2. फास्फोरस की कमी के चिन्ह निचले पत्तों से आरंभ होते हैं। पत्तों का रंग गहरा हरा, बैंगनी हो जाता है, खासकर नाड़ियों के बीच के हिस्से का। कई बार पत्तियों की डंडियों तथा टहनियों का रंग भी बैंगनी हो जाता है।
  3. फसल छोटी रह जाती है। गेहूं में निचले पत्तों का रंग पीला भूरा हो जाता है।

प्रश्न 4.
पौधों में लोहे के लाभ तथा कमी के चिन्हों पर रोशनी डालें।
उत्तर-
लोहे के लाभ—

  1. लोहा अधिक क्लोरोफिल बनने में सहायता करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो पौधे में ऑक्सीजन तथा लघुकरण क्रियाएं लाते हैं।
  3. लोहा प्रोटीन बनने के लिए आवश्यक है।

लोहे की कमी के चिन्ह-लोहे की कमी के चिन्ह नए पत्ते तथा टहनियों से आरंभ होते हैं। पत्तों की नाड़ियों के बीच के हिस्से का रंग पीला हो जाता है तथा पुराने पत्ते हरे रहते हैं। पौधे का कद छोटा तथा तना पतला हो जाता है। अधिक कमी की सूरत में तो सारा पत्ता नाड़ियों समेत पीला हो जाता है, नए पत्ते बहुत पीले अथवा सफ़ेद हो जाते हैं। कई बार पत्तों पर लाल भूरे रंग की लकीरें पड़ जाती हैं तथा पत्ते सूख भी जाते हैं।

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प्रश्न 5.
गेहूं में मैंगनीज़ के लाभ तथा इसकी कमी के चिन्ह के बारे में बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज़ के लाभ—

  1. यह क्लोरोफिल बनने में मदद करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो ऑक्सीजन तथा लघुकरण की क्रियाओं में तेजी लाते हैं। यह पौधे के सांस लेने तथा अधिक प्रोटीन बनने में मदद करते हैं।

गेहूं में मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह-इस फसल पर मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह बीच के पत्तों पर लगभग पहला पानी लगाने के समय दिखाई देते हैं। कमी पहले पत्ते से नीचे दो-तिहाई हिस्से पर सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक सलेटी भूरे रंग के दानेदार दाग पड़ जाते हैं। अधिक कमी हो तो यह दानेदार दाग लाल भूरी धारियां बन जाती हैं। पत्ते सूख भी जाते हैं। पौधों के कद तथा जड़े छोटी रह जाती हैं।

फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पौधे के फलने-फूलने के लिए 17 पोषक तत्त्व आवश्यक हैं।
  • पौधे में रासायनिक परिवर्तन में पोषक तत्त्वों की सीधी भूमिका है।
  • मुख्य पोषक तत्त्व हैं-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, पोटाशियम, फास्फोरस, ऑक्सीजन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक (सल्फर)।
  • लघु तत्त्व हैं-लोहा, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़।
  • पौधे हवा में से ऑक्सीजन तथा कार्बन प्राप्त करते हैं तथा हाइड्रोजन तत्त्व को पानी से।
  • कई फलीदार फसलें हवा में से नाइट्रोजन को अपनी वृद्धि के लिए प्रयोग कर सकती हैं।
  • नाइट्रोजन पौधे में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का आवश्यक अंग है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व की आवश्यकता फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग के लिए होती है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व वाली खादें हैं-यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड आदि।
  • फास्फोरस तत्त्व पौधे में नई कोशिकाओं को बनाने, फूल, फल तथा बीज बनाने में सहायक है।
  • फास्फोरस तत्त्व वाली खादें हैं-डाया, सुपर फास्फेट, डी०ए०पी०, एन०पी०के०
  • आषाढ़ी की फसलों पर फास्फोरस तत्त्व का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • पोटाशियम रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
  • पोटाशियम की पूर्ति के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश खाद का प्रयोग होता है।
  • गंधक, प्रोटीन तथा एन्जाइमों का अभिन्न अंग है।
  • गंधक, पत्तों में क्लोरोफिल बनाने में सहायक है।
  • गंधक की कमी होने से जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
  • यदि गंधक की कमी हो तो सुपरफास्फेट का प्रयोग करना चाहिए इसमें फास्फोरस के साथ-साथ गंधक भी होती है।
  • बहुत-से एन्जाइमों में जिंक होता है।
  • अधिक मात्रा में फास्फोरस तथा कार्बोनेट वाली भूमियों में जिंक की कमी देखी जाती है।
  • जिंक की कमी होने से धान की फसल देर से पकती है तथा उत्पादन बहुत कम हो जाता है।
  • गेहूँ में जिंक की कमी के कारण बल्लियाँ देर से निकलती हैं तथा देर से पकती
  • जिंक की कमी दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए।
  • लोहा क्लोरोफिल तथा प्रोटीन बनाने के लिए आवश्यक है।
  • लोहे की कमी होने पर फैरस सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।
  • रेतीली भूमि में बोई गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी हो जाती है।
  • मैंगनीज़ की कमी को दूर करने के लिए मैंगनीज़ सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।

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(क) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/ एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
पंजाब किस भाषा के शब्द-जोड़ से बना है? इसके अर्थ भी लिखें।
उत्तर-
‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। जिसका अर्थ है-पांच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं (नदियों) की धरती।

प्रश्न 2.
भारत के बंटवारे का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
भारत के बंटवारे से पंजाब भी दो भागों में बंट गया।

प्रश्न 3.
पंजाब को ‘सप्तसिन्धु’ किस काल में कहा जाता था तथा क्यों?
उत्तर-
पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिन्धु’ कहा जाता था क्योंकि उस समय यह सात नदियों का प्रदेश था।

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प्रश्न 4.
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दर्रे हैं-खैबर, कुर्रम, टोची तथा बोलान।

प्रश्न 5.
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह कैसा इलाका होता?
उत्तर-
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह इलाका शुष्क तथा ठण्डा बन कर रह जाता।

प्रश्न 6.
‘दोआबा’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच के भाग को दोआबा कहते हैं।

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प्रश्न 7.
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को क्या कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को ‘मालवा’ कहा जाता है। यहां के निवासियों को मलवई कहते हैं।

प्रश्न 8.
दोआबा बिस्त का यह नाम क्यों पड़ा ? इसके किन्हीं दो प्रसिद्ध शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
दोआबा बिस्त ब्यास तथा सतलुज नदियों के बीच का प्रदेश है जिनके नाम के पहले अक्षरों के जोड़ से ही इस दोआबा का नाम बिस्त पड़ा है। जालन्धर तथा होशियारपुर इस दोआबे के दो प्रसिद्ध शहर हैं।

प्रश्न 9.
दोआबा बारी को ‘माझा’ क्यों कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दोआबा बारी पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण माझा कहलाता है। इसके निवासियों को ‘मझैल’ कहते हैं।

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(ख) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय की पहाड़ियों के कोई तीन लाभ लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पहाड़ियों के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. हिमालय से निकलने वाली नदियां सारा साल बहती हैं। ये नदियां पंजाब की भूमि को उपजाऊ बनाती हैं।
  2. हिमालय की पहाड़ियों पर घने वन पाये जाते हैं। इन वनों से जड़ी-बूटियां तथा लकड़ी प्राप्त होती है।
  3. इस पर्वत की ऊंची बर्फीली चोटियां शत्रु को भारत पर आक्रमण करने से रोकती हैं। (कोई तीन लिखें)
  4. हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोक कर वर्षा लाने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
किन्हीं तीन दोआबों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-

  1. दोआबा सिन्ध सागर-इस दोआबे में दरिया सिन्ध तथा दरिया जेहलम के मध्य का प्रदेश आता है। यह भाग अधिक उपजाऊ नहीं है।
  2. दोआबा चज-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआबा के नाम से पुकारते हैं। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. दोआबा रचना-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के दरियाओं ने इसके इतिहास पर क्या प्रभाव डाला है?
उत्तर-
पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने सदा शत्रु के बढ़ते कदमों को रोका। बाढ़ के दिनों में तो यहां के दरिया (नदियां) समुद्र का रूप धारण कर लेते हैं और उन्हें पार करना असम्भव हो जाता है। यहां के दरिया (नदियां) जहां आक्रमणकारियों के मार्ग में बाधा बने, वहां ये उनके लिए मार्ग-दर्शक भी बने। लगभग सभी आक्रमणकारी अपने विस्तार क्षेत्र का अनुमान इन्हीं नदियों की दूरी के आधार पर ही लगाते थे। पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं दरियाओं (नदियों) से ही लिया। यहाँ के दरियाओं (नदियों) ने पंजाब के मैदानों को उपजाऊ बनाया और लोगों को समृद्धि प्रदान की।

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प्रश्न 4.
विभिन्न कालों में पंजाब की सीमाओं की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
पंजाब की सीमाएं समय-समय पर बदलती रही हैं —

  1. ऋग्वेद में बताए गए पंजाब में सिन्ध, जेहलम, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज तथा सरस्वती नदियों का प्रदेश सम्मिलित था।
  2. मौर्य तथा कुषाण काल में पंजाब की पश्चिमी सीमा हिन्दुकुश के पर्वतों तक चली गई थी तथा तक्षशिला इसका एक भाग बन गया था।
  3. सल्तनत काल में पंजाब की सीमाएं लाहौर तथा पेशावर तक थीं जबकि मुग़ल काल में पंजाब दो प्रान्तों में बंट गया था-लाहौर तथा मुल्तान।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब (लाहौर) राज्य का विस्तार सतलुज नदी से पेशावर तक था।
  5. लाहौर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के पश्चात् इसका नाम पंजाब रखा गया।
  6. भारत विभाजन के समय पंजाब के मध्यवर्ती प्रदेश पाकिस्तान में चले गए।
  7. पंजाब भाषा के आधार पर तीन राज्यों में बंट गया-पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 5.
पंजाब के इतिहास को हिमालय पर्वत ने किस तरह से प्रभावित किया?
उत्तर-
हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर निम्नलिखित प्रभाव डाले हैं —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों से भारत का द्वार पथ रहा। इन पर्वतीय श्रेणियों में स्थित दरों को पार करके अनेक आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते रहे।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या-पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। जो शासक इस भाग में स्थित दरों की उचित रक्षा नहीं कर सके, उन्हें पतन का मुंह देखना पड़ा।
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा-हिमालय पर्वत ऊंचा है तथा हमेशा बर्फ से ढका रहता है। इस लिये इसे पार करना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप पंजाब उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सदा सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि-हिमालय के कारण पंजाब एक समृद्ध प्रदेश बना। हिमालय की नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी ला-लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा।

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(ग) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पहाडियों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब का धरातल अनेक विशेषताओं से सम्पन्न है। इस प्रदेश का आकार त्रिकोण है। यह उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सिन्ध तथा राजस्थान तक फैला हुआ है। पश्चिम में इसकी सीमा सुलेमान तथा पूर्व में यमुना नदी को छूती हैं। अपनी सीमाओं के भीतर पंजाब अंगड़ाइयां लेता हुआ दिखाई देता है।
‘हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के इस भौतिक भाग का वर्णन इस प्रकार है.
1. हिमालय-हिमालय की पहाड़ियां पंजाब में श्रृंखलाबद्ध हैं। इन पहाड़ियों को ऊंचाई के अनुसार तीन भागों में बांटा जाता है-महान् हिमालय, मध्य हिमालय तथा बाहरी हिमालय।

  1. महान् हिमालय-महान् हिमालय की पहाड़ियां पूर्व में नेपाल तथा तिब्बत की ओर चली जाती हैं। पश्चिम में भी इन्हें महान् हिमालय कहा जाता है। यह श्रृंखला पंजाब के लाहौल-स्पीति तथा कांगड़ा ज़िला को कश्मीर से अलग करती है। इन पहाड़ी इलाकों में कुल्लू की रमणीक घाटी तथा रोहतांग दर्रा है। इस श्रृंखला की ऊंचाई लगभग 5851 मीटर से लेकर 6718 मीटर के बीच है। ये पहाड़ियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं।
  2. मध्य हिमालय-मध्य हिमालय को प्रायः पांगी पहाड़ियों की श्रृंखला कहा जाता है। ये पहाड़ियां रोहतांग दर्रे से आरम्भ होती हैं। ये चम्बा में से निकलती हुई चिनाब तथा रावी दरियाओं की घाटियों को अलग करती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 2155 मीटर है।
  3. बाहरी हिमालय-बाहरी हिमालय की पहाड़ियां चम्बा तथा धर्मशाला के बीच से गुज़रती हैं। ये कश्मीर से रावलपिंडी, जेहलम तथा गुजरात जिलों के प्रदेश तक जा पहुंचती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 923 मीटर है। इन पहाड़ियों को ‘धौलाधार की पहाड़ियां’ भी कहा जाता है।

2. उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के उत्तर-पश्चिम में हिमालय की पश्चिमी शाखाएं स्थित हैं। इन शाखाओं में किरथार तथा सुलेमान की पर्वत-श्रेणियां सम्मिलित हैं। इन पर्वतों की ऊंचाई अधिक नहीं है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें अनेक रॆ हैं इन दरों में खैबर का दर्रा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अधिकतर आक्रमणकारियों के लिए यही दर्रा प्रवेश-द्वार बना रहा।

प्रश्न 2.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब का मैदानी भाग जितना विस्तृत है उतना समृद्ध भी है। यह पंजाब का रंगमंच था जिस पर इतिहास रूपी नाटक खेला गया। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। इस मैदान की गणना संसार के सबसे अधिक उपजाऊ मैदानों में की जाती है।

  1. मैदानी क्षेत्र के दो मुख्य भाग-पंजाब के मैदानी क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है-पूर्वी मैदान तथा पश्चिमी मैदान। यमुना तथा रावी के मध्य स्थित भाग को ‘पूर्वी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ है। यहां की जनसंख्या भी घनी है। रावी तथा सिंध के मध्य वाले भाग को ‘पश्चिमी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश पूर्वी मैदान की तुलना में कम समृद्ध है।
  2. पाँच दोआब-दो नदियों के बीच की भूमि को दोआब कहते हैं। पंजाब का मैदानी भाग निम्नलिखित पाँच दोआबों से घिरा हुआ है।
    1. सिन्ध सागर दोआब-जेहलम तथा सिन्ध नदियों के बीच के प्रदेश को सिन्ध सागर दोआब कहा जाता है। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ नहीं है। जेहलम तथा रावलपिंडी यहां के प्रसिद्ध नगर हैं।
    2. रचना दोआब-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखूपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    3. बिस्त-जालन्धर दोआब-इस दोआब में सतलुज तथा ब्यास नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है। यह प्रदेश बड़ा उपजाऊ है। जालन्धर और होशियारपुर इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    4. बारी दोआब-ब्यास तथा रावी नदियों के बीच के प्रदेश को बारी दोआब कहा जाता है। यह अत्यन्त उपजाऊ क्षेत्र है। पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण इसे ‘माझा’ भी कहा जाता है। पंजाब के दो सुविख्यात नगर लाहौर तथा अमृतसर इसी दोआब में स्थित हैं। घज दोआब-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआब के नाम से पुकारा जाता है। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. मालवा तथा बांगर-पांच दोआबों के अतिरिक्त पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज तथा यमुना के मध्य का विस्तृत मैदानी क्षेत्र भी सम्मिलित है। इसको दो भागों में बांटा जा सकता है-मालवा तथा बांगर।
    1. मालवा-सतलुज तथा घग्घर नदियों के मध्य में फैले प्रदेश को ‘मालवा’ कहते हैं। लुधियाना, पटियाला, नाभा, संगरूर, फरीदकोट, भटिंडा आदि प्रसिद्ध नगर इस भाग में स्थित हैं।
    2. बांगर अथवा हरियाणा-यह प्रदेश घग्घर तथा यमुना नदियों के मध्य में स्थित है। इसके मुख्य नगर अम्बाला, कुरुक्षेत्र, पानीपत, जीन्द, रोहतक, करनाल, गुड़गांव तथा हिसार हैं। यह भाग एक ऐतिहासिक मैदान भी है जहां अनेक निर्णायक युद्ध लड़े गए।

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PSEB 10th Class Social Science Guide पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
किस मुगल शासक ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा?
उत्तर-
मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को किस नाम से पुकारा जाने लगा था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ‘लाहौर राज्य’ के नाम से पुकारा जाने लगा था।

प्रश्न 3.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई० में मिलाया गया।

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प्रश्न 4.
पंजाब को भाषा के आधार पर कब बांटा गया?
उत्तर-
पंजाब को भाषा के आधार पर 1966 ई० में बांटा गया।

प्रश्न 5.
हिमालय के पश्चिमी दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली किन्हीं चार जातियों के नाम बताओ।
उत्तर-
इन दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली चार जातियां थीं-आर्य, शक, यूनानी तथा कुषाण।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को कौन-कौन से दो भागों में विभक्त किया जाता है?
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को पूर्वी मैदान.तथा पश्चिमी मैदान में विभक्त किया जाता है।

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प्रश्न 7.
भारतीय पंजाब में अब कौन-से दो दरिया रह गये हैं?
उत्तर-
सतलुज तथा ब्यास।

प्रश्न 8.
रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
सेकिया।

प्रश्न 9.
दिल्ली को भारत की राजधानी किस गवर्नर-जनरल ने बनाया?
उत्तर-
लार्ड हार्डिंग ने।

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प्रश्न 10.
हिमालय की पश्चिमी श्रृंखलाओं में स्थित किन्हीं दो दरों के नाम बताओ।
उत्तर-
खैबर तथा टोची।

प्रश्न 11.
दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी?
उत्तर-
1911 में।

प्रश्न 12.
सिकंदर ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर-
326 ई० पू० में।

प्रश्न 13.
शाह जमान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण कब किया?
उत्तर-
1798 ई० में।

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प्रश्न 14.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच कौन-सा दरिया सीमा का काम करता था?
उत्तर-
सतलुज।

प्रश्न 15.
आज किस दरिया का कुछ भाग हिन्द-पाक सीमा का काम करता है?
उत्तर-
रावी।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
लाहौर।

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प्रश्न 17.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को वास्तविक पंजाब’ क्यों कहा गया है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
यह क्षेत्र अत्यन्त उपजाऊ है और समस्त पंजाब की समृद्धि का आधार है।

प्रश्न 18.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के किन्हीं चार दोआबों के नाम लिखो।
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के चार दोआब हैं-बिस्त-जालन्धर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब तथा चज दोआब।

प्रश्न 19.
मालवा प्रदेश किन नदियों के बीच स्थित है?
उत्तर-
मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है।

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प्रश्न 20.
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम किसके नाम पर पड़ा?
उत्तर-
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम यहां बसने वाले मालव कबीले के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 21.
पंजाब के किन्हीं चार नगरों के नाम बताओ जहां निर्णायक ऐतिहासिक युद्ध हुए।
उत्तर-
तराइन, पानीपत, पेशावर तथा थानेसर में निर्णायक युद्ध हुए।

प्रश्न 22.
पाकिस्तानी पंजाब को किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
पश्चिमी पंजाब।

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प्रश्न 23.
हिंदी-बाखत्री तथा हिन्दी-पारथी राजाओं के अधीन पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
साकला (सियालकोट)।

प्रश्न 24.
‘सप्तसिंधु’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
‘सप्तसिंधु’ शब्द से भाव सात नदियों के प्रदेश अर्थात् वैदिक काल के पंजाब से है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पंजाब को …………… काल में सप्तसिंधु कहा जाता था।
  2. दो दरियाओं के बीच के भाग को …………. कहते हैं।
  3. मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को ………… प्रांतों में बांटा।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ………….. राज्य के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को ………. कहा जाता था।
  6. सिकंदर ने भारत पर ………………. ई० पू० में आक्रमण किया।

उत्तर-

  1. वैदिक,
  2. दोआबा,
  3. दो,
  4. लाहौर,
  5. सेकिया,
  6. 326.

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया
उत्तर-
(A) 1947 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1849 ई० में
(D) 1889 ई० में।
उत्तर-
(C) 1849 ई० में

प्रश्न 2.
पंजाब को भाषा के आधार पर दो भागों में बांटा गया
(A) 1947 ई० में
(B) 1966 ई० में
(C) 1950 ई० में
(D) 1971 ई० में।
उत्तर-
(B) 1966 ई० में

प्रश्न 3.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच सीमा का काम करता था-
(A) सतलुज दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) रावी दरिया
(D) ब्यास दरिया।
उत्तर-
(A) सतलुज दरिया

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प्रश्न 4.
आज हिन्द-पाक सीमा का काम कौन-सा दरिया करता है?
(A) रावी दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) ब्यास दरिया
(D) सतलुज दरिया।
उत्तर-
(A) रावी दरिया

प्रश्न 5.
शाह ज़मान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण किया
(A) 1811 ई० में
(B) 1798 ई० में
(C) 1757 ई० में
(D) 1794 ई० में।
उत्तर-
(B) 1798 ई० में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिंधु’ कहा जाता था।
  2. लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया।
  3. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी अमृतसर थी।
  4. मालवा प्रदेश सतलुज और घग्गर नदियों के बीच में स्थित है।
  5. पंजाब को भाषा के आधार पर 1947 में बांटा गया।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – बिस्त दोआब
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – सेकिया
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – दोआबा
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – लाहौर राज्य।

उत्तर-

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – दोआबा,
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – लाहौर राज्य,
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – बिस्त दोआब,
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – सेकिया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब ने भारतीय इतिहास. में क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर-
पंजाब ने अपनी अद्वितीय भौगोलिक स्थिति के कारण भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रदेश भारत में सभ्यता का पालना बना। भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता (सिन्धु घाटी की सभ्यता) इसी क्षेत्र में फलीफूली। आर्यों ने भी अपनी सत्ता का केन्द्र इसी प्रदेश को बनाया। उन्होंने वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना की। पंजाब ने भारत के प्रवेश द्वार के रूप में भी कार्य किया। मध्यकाल तक भारत में आने वाले सभी आक्रमणकारी पंजाब के मार्ग से ही भारत आये। अतः पंजाब वासियों ने बार-बार आक्रमणकारियों के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए बार-बार उनसे युद्ध किए। इसके अतिरिक्त पंजाब हिन्दू तथा सिक्ख धर्म की जन्म-भूमि भी रहा है। गुरु नानक देव जी ने अपना पावन सन्देश इसी धरती पर दिया। यहीं रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पन्थ की स्थापना की और मुग़लों के धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया। बन्दा बहादुर तथा महाराजा रणजीत सिंह के कार्य भी भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। निःसन्देह पंजाब ने भारत के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 2.
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब के भौतिक भागों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब को मुख्य रूप से तीन भौतिक भागों में बांटा जा सकता है-

  1. हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय श्रेणियां
  2. तराई प्रदेश तथा
  3. मैदानी क्षेत्र। पंजाब के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत फैला है। इसकी ऊंची-ऊंची चोटियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। हिमालय की तीन श्रेणियां हैं जो एक-दूसरे के समानान्तर फैली हैं। हिमालय की उत्तर-पश्चिमी शाखाओं में अनेक महत्त्वपूर्ण दर्रे हैं जो प्राचीन काल में आक्रमणकारियों, व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों को मार्ग जुटाते रहे। पंजाब का दूसरा भौतिक भाग तराई (तलहटी) प्रदेश है। यह पंजाब के पर्वतीय तथा उपजाऊ मैदानी भाग के मध्य में विस्तृत है। इस भाग में जनसंख्या बहुत कम है। पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण भौतिक भाग इसका उपजाऊ मैदानी प्रदेश है। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। यह हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी से बना है और आरम्भ से ही पंजाब की समृद्धि का आधार रहा है।

प्रश्न 3.
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को अपने-अपने ढंग से प्रभावित किया है।

  1. हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों ने अनेक आक्रमणकारियों को मार्ग दिया। अतः पंजाब के शासकों के लिए उत्तरी-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा सदा एक समस्या बनी रही। इसके साथ-साथ हिमालय की बर्फ से ढकी ऊंचीऊंची चोटियां पंजाब की आक्रमणकारियों (उत्तर की ओर से) से रक्षा भी करती रहीं।
  2. हिमालय के कारण पंजाब में अपनी एक विशेष संस्कृति का भी विकास हुआ।
  3. पंजाब का उपजाऊ एवं धनी प्रदेश आक्रमणकारियों के लिए सदा आकर्षण का कारण बना रहा। फलस्वरूप इस धरती पर बार-बार युद्ध हुए।
  4. तराई प्रदेश ने संकट के समय सिक्खों को शरण दी। यहां रहकर सिक्खों ने अत्याचारी शासकों का विरोध किया और अपने अस्तित्व को बनाए रखा। अतः स्पष्ट है कि पंजाब का इतिहास वास्तव में इस प्रदेश के भौतिक तत्त्वों की ही देन है।

प्रश्न 4.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब और किसने मिलाया ? स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब को 1849 में लॉर्ड डल्हौज़ी ने अंग्रेजी राज्य में मिलाया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब का योगदान अद्वितीय था। पंजाब में ही भाई राम सिंह ने कूका आन्दोलन की नींव रखी। 20वीं शताब्दी में सिंह सभा लहर, गदर पार्टी, गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन, बब्बर अकाली आन्दोलन, नौजवान सभा तथा अकाली दल के माध्यम से यहां के वीरों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को सक्रिय बनाया। भगत सिंह ने मातृभूमि की जंजीरें तोड़ने के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया। करतार सिंह सराभा तथा सरदार ऊधम सिंह जैसे पंजाबी वीरों ने भी हँसते-हँसते भारत माता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। अन्ततः 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के साथ पंजाब भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

प्रश्न 5.
पंजाब की पर्वतीय तलहटी अथवा तराई प्रदेश की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
तराई प्रदेश हिमाचल प्रदेश के उच्च प्रदेशों और पंजाब के मैदानी प्रदेशों के मध्य स्थित है। इसकी ऊंचाई 308 से 923 मीटर तक है। यह भाग अनेक घाटियों के कारण हिमालय पर्वत श्रेणियों से अलग-सा दिखाई देता है। इस भाग में सियालकोट, कांगड़ा, होशियारपुर, गुरदासपुर तथा अम्बाला का कुछ क्षेत्र सम्मिलित है। सामान्य रूप से यह एक पर्वतीय प्रदेश है। अतः यहां उपज बहुत कम होती है। वर्षा के कारण यहां अनेक रोग फैलते हैं। यहां आने-जाने के साधनों का भी पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है। इसलिए यहां की जनसंख्या कम है। यहां के लोगों को अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इस परिश्रम ने उन्हें बलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट बना दिया है।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास को कहां तक प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब के इतिहास पर पंजाब के मैदानी प्रदेश की स्पष्ट छाप दिखाई देती है।

  1. इस प्रदेश की भूमि अत्यन्त उपजाऊ है जिसके कारण यह प्रदेश सदा समृद्ध रहा। पंजाब के मैदानों की यह सम्पन्नता बाह्य शत्रुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई।
  2. पंजाब निर्णायक युद्धों का केन्द्र बना रहा। पेशावर, कुरुक्षेत्र, करी, थानेश्वर, तराइन, पानीपत आदि नगरों में घमासान युद्ध हुए। केवल पानीपत के मैदान में तीन बार निर्णायक युद्ध हुए।
  3. अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण जहां पंजाबियों ने अनेक युद्धों का सामना किया, वहां निर्मम अत्याचारों का सामना भी किया। उदाहरण के लिए तैमूर ने पंजाब के लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए थे।
  4. निरन्तर युद्धों में उलझे रहने के कारण पंजाब के लोगों में वीरता एवं निर्भीकता के विशेष गुण उत्पन्न हुए।
  5. पंजाब के मैदानी प्रदेश में आर्यों ने हिन्दू धर्म का विकास किया। इसी प्रदेश ने मध्यकाल में गुरु नानक साहिब जैसे महान् सन्त को जन्म दिया जिनकी सरल शिक्षाएं सिक्ख धर्म के रूप में प्रचलित हुई। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास में अनेक अध्यायों का समावेश किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
“हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में एक विशाल दीवार की भान्ति स्थित है। इस पर्वत ने पंजाब के इतिहास को पूरी तरह प्रभावित किया है —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ — हिमालय की-पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों में भारत का द्वार पथ रहा। आर्यों से लेकर ईरानियों तक सभी आक्रमणकारी इन्हीं मार्गों द्वारा भारत पर आक्रमण करते रहे। परन्तु सर्वप्रथम उन्हें पंजाब के लोगों से संघर्ष करना पड़ा। इस प्रकार पंजाब भारत के लिए द्वार की भूमिका निभाता रहा है।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या — पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। भारतीय शासकों को इनकी रक्षा के लिए काफ़ी धन व्यय करना पड़ा। डॉ० बुध प्रकाश ने ठीक ही कहा है, “जब कभी शासकों का इस प्रदेश (उत्तर-पश्चिमी सीमा) पर नियन्त्रण ढीला पड़ गया, तभी उनका साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर अदृश्य हो गया।”
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा — हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है और सदा बर्फ से ढका रहता है। परिणामस्वरूप यह प्रदेश उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि — हिमालय के कारण पंजाब एक समद्ध प्रदेश बना। इसकी नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा। उपजाऊ भूमि के कारण यहां अच्छी फसल होती रही और यहां के लोग समद्ध होते चले गए।
  5. विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध — उत्तर-पश्चिमी पर्वत श्रेणियों में स्थित दरों के कारण पंजाब के विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए। एशिया के देशों के व्यापारी इन्हीं दरों के मार्ग से यहां आया करते थे और पंजाब के व्यापारी उन देशों में जाया करते थे।
  6. पंजाब की विशेष संस्कृति — हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों द्वारा यहां ईरानी, अरब, तुर्क, मुग़ल, अफ़गान आदि जातियां आईं और यहां अनेक भाषाओं जैसे संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की आदि का संगम हुआ। इस मेल-मिलाप से पंजाब में एक विशिष्ट संस्कृति का जन्म हुआ जिसमें देशी तथा विदेशी तत्त्वों का संगम था।

पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव PSEB 10th Class History Notes

  • पंजाब (अर्थ)-पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। पंज का अर्थ है-पांच तथा आब का अर्थ है–पानी, जो नदी का प्रतीक है। अतः पंजाब से अभिप्राय है-पांच नदियों का प्रदेश।
  • पंजाब के बदलते नाम-पंजाब को भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। ये नाम हैं-सप्तसिन्धु, पंचनद, लाहौर सूबा, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त आदि।
  • भौतिक भाग-भौगोलिक दृष्टि से पंजाब को तीन भागों में बांटा जा सकता है
    1. हिमालय तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां
    2. उप-पहाड़ी क्षेत्र (पहाड़ की तलहटी के क्षेत्र)
    3. मैदानी क्षेत्र।
  • मालवा प्रदेश-मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है। प्राचीन काल में इस प्रदेश में ‘मालव’ नाम का एक कबीला निवास करता था। इसी कबीले के नाम से इस प्रदेश का नाम ‘मालवा’ रखा गया।
  • हिमालय का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं में स्थित दरों के कारण पंजाब भारत का द्वार बना। मध्यकाल तक भारत पर आक्रमण करने वाले लगभग सभी आक्रमणकारी इन्हीं दरों द्वारा भारत आये।
  • पंजाब के मैदानी भाग-पंजाब का मैदानी भाग बहुत समृद्ध था। इस समृद्धि ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।
  • पंजाब की नदियों का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-पंजाब की नदियों ने आक्रमणकारियों के लिए बाधा का काम किया। इन्होंने पंजाब की प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं नदियों से ही लिया।
  • तराई प्रदेश-पंजाब का तराई प्रदेश घने जंगलों से घिरा हुआ है। संकट के समय में इन्हीं वनों ने सिक्खों को आश्रय दिया। यहाँ रहकर उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाई और अत्याचारियों से टक्कर ली।
  • पंजाब में रहने वाली विभिन्न जातियाँ-पंजाब में विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। इनमें से जाट, सिक्ख, राजपूत, पठान, खत्री, अरोड़े, गुज्जर, अराइन आदि प्रमुख हैं।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 2 सन्तुलित भोजन

PSEB 10th Class Physical Education Guide सन्तुलित भोजन Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रोटीन कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखें।
(Name the type of Protein.)
उत्तर-
प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन।

प्रश्न 2.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या है ?
(What is Carbohydrates ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन और हाइड्रोजन का मिश्रण है।

प्रश्न 3.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ?
(Mention the types of Vitamins ?)
उत्तर-
विटामिन छ: प्रकार के होते हैं-A, B, C, D, E और K.

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 4.
कौन-से विटामिन पानी में घलनशील नहीं हैं ?
(Which Vitamins are not soluble in water ?)
उत्तर-
विटामिन C, D, E और K.

प्रश्न 5.
छोटे बच्चे के लिए कौन-सा दूध अच्छा होता है ?
(Which Milk is better for a child ?)
उत्तर-
मां का दूध।।

प्रश्न 6.
हमारे दैनिक भोजन में प्रोटीन की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much Proteins we should take in our daily by meals ?)
उत्तर-
70 से 100 ग्राम।

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प्रश्न 7.
कार्बोहाइड्रेट किन दो रूपों में मिलते हैं ?
(Mention the forms of Carbohydrates.)
उत्तर-
स्टार्च तथा शक्कर के रूप में।

प्रश्न 8.
प्रोटीन किन तत्त्वों का मिश्रण है ?
(Which elements Protein in mixture ?)
उत्तर-
कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा गन्धक।

प्रश्न 9.
जीवन तत्त्व किन्हें कहते हैं ?
(Which thing is known as life saving ?)
उत्तर-
विटामिनों को।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 10.
हमारे भोजन में चर्बी (वसा) की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much fat one should take daily ?)
उत्तर-
50 से 70 ग्राम।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भोजन क्या होता है ? हम भोजन क्यों करते हैं ?
(What is Food ? Why we take food ?)
उत्तर-
भोजन क्या होता है ? (What is Food ?)-भोजन एक ऐसी वस्तु का नाम है जो हमारे शरीर में जा कर शरीर का भाग बन जाती है, नई वस्तुओं का निर्माण करती है, भीतरी टूट-फूट की मुरम्मत करती है और शरीर में गर्मी तथा शक्ति उत्पन्न करती है।

  1. क्षतिपूर्ति या नए तन्तुओं का बनाना (Formation of new Tissues)-मानव शरीर के हर समय क्रियाओं के करने से शरीर के तन्तु (Tissues) टूटते-फूटते रहते हैं। उचित भोजन के द्वारा शरीर के पुराने तन्तुओं की मुरम्मत होती है और नए तन्तुओं का निर्माण होता है।
  2. भोजन शरीर को शक्ति देता है (Food supplies energy to Body)-दैनिक जीवन के कार्यों को करने के लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है। भोजन के जलने (Combustion) से ताप पैदा होता है जिससे शरीर में काम करने के लिए शक्ति पैदा होती है।
  3. भोजन शरीर को ताप प्रदान करता है (Food supplies heat to Body)भोजन द्वारा शरीर को ताप मिलता है। यदि शरीर में ताप की मात्रा कम हो जाती है तो जीवन असम्भव हो जाता है।
  4. भोजन शरीर की वृद्धि में सहायक होता है (Food helps in the growth of Body)-भोजन द्वारा शरीर के अंगों में विकास होता है। यदि किसी बच्चे को भोजन न

मिले या उचित मात्रा में न मिले तो उसके शरीर के अंगों का उचित विकास नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भोजन के कौन-कौन से मुख्य कार्य हैं ?
(What are the main functions of Food ?)
उत्तर-
हम जो भोजन खाते हैं, वह पचने के बाद शरीर में कई कार्य करता है। उन कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

  1. शारीरिक वृद्धि में सहायक-भोजन शरीर की वृद्धि में सहायता करता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण और वृद्धि होती है।
  2. शरीर को शक्ति प्रदान करता है-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है। हमारा शरीर कई प्रकार की क्रियाएं करता है। इन क्रियाओं के लिए आवश्यक शक्ति भोजन से ही प्राप्त होती है।
  3. शरीर में गर्मी पैदा करना-भोजन शरीर में गर्मी पैदा करता है। जब खाया हुआ भोजन पचकर सांस द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन में मिलकर खून में उबलता है तो गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी शरीर के लिए बहुत ही ज़रूरी है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते।
  4. नए तन्तुओं का निर्माण और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना-भोजन टूटेफूटे तन्तुओं की मुरम्मत करता है। भोजन से नए तन्तु भी बनते हैं। शरीर में चल रही क्रियाओं के कारण कुछ तन्तु नष्ट हो जाते हैं और कुछ टूट जाते हैं। भोजन का सबसे बड़ा काम टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना होता है। नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी भोजन ही तैयार करता है।
  5. बीमारियों से रक्षा-भोजन शरीर की बीमारियों से रक्षा करता है। भोजन खाने से शक्ति उत्पन्न होती है। यह शक्ति हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाती है। इस प्रकार हम कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते हैं।
    ऊपर बताए गए सभी कार्य भोजन के मुख्य कार्य होते हैं।

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प्रश्न 3.
विटामिन क्या होते हैं ? ये हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(What are Vitamins ? Why these are needed for our body ?)
उत्तर-
विटामिन-विटामिन ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं जो हमारे शरीर के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। अब तक कई प्रकार के विटामिनों की खोज की जा चुकी है। परन्तु प्रमुख विटामिन छ: ही हैं। ये हैं-विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’। इनमें विटामिन ‘बी’ और ‘सी’ पानी में घुलनशील हैं और रोप विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ चर्बी में घुलनशील होते हैं। विटामिन एक प्रकार के विशेष पदार्थों में पाए जाते हैं। भोजन में विटामिनों का उचित मात्रा में होना बहुत ज़रूरी है। विटामिन का जीवन के लिए बहुत अधिक महत्त्व अनुभव करते हुए इन्हें ‘जीवनदाता’ भी कहा जाता है। विटामिन डी धूप से मिलता है।
विटामिनों की शरीर को आवश्यकता — विटामिनों की हमारे शरीर के लिए आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों से बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है

  1. विटामिन हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखते हैं।
  2. ये हमारी शारीरिक वृद्धि में सहायता करते हैं।
  3. ये हमारी पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  4. ये हमारा खून साफ़ करते हैं और खून की मात्रा को बढ़ाते हैं।
  5. ये हड्डियों और दांतों को मज़बूत बनाते हैं।
  6. ये हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाते हैं।
  7. विटामिनों के प्रयोग से चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  8. विटामिन शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4.
कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई (वसा) हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(Why Carbohydrates and Fats are necessary for us ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स-ये हमें शक्कर तथा स्टॉर्च के रूप में मिलने वाले पदार्थों से प्राप्त होते हैं; जैसे कि-आम, गन्ने का रस, गुड़, शक्कर , अंगूर, खजूर, गाजर, सूखे मेवे, गेहूं, मक्की, जौ, ज्वार, शकरकन्दी, अखरोट, केले आदि से प्राप्त होता है।
आवश्यकता-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर को गर्मी तथा शक्ति देते हैं।
  2. ये शरीर में चर्बी पैदा करते हैं।
  3. ये चर्बी से सस्ते होते हैं।
  4. ग़रीब तथा कम आय वाले लोग भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। चिकनाई

यह हमें वनस्पति तथा पशुओं की चर्बी से प्राप्त होती है। यह सब्जियों, सूखे मेवों, फलों, अखरोट, बादाम, मूंगफली, बीजों से प्राप्त तेल, घी, दूध, मक्खन, मछली का तेल, अण्डे आदि में मिलती है।
आवश्यकता-

  1. चिकनाई शरीर में शक्ति पैदा करती है
  2. इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है।
  3. यह शरीर में ईंधन का काम करती है।
  4. चर्बी से शरीर मोटा हो जाता है।

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बड़े उत्तरों ले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ? इनके मुख्य कार्य बताओ। यह किन-किन खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं ?
(Give the types of Vitamins. Describe their main functions and sources.)
उत्तर-
अब तक बहुत-से विटामिनों की खोज हो चुकी है, परन्तु प्रसिद्ध विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ ही माने जाते हैं। इनमें से प्रत्येक विटामिन के मुख्य कार्य और प्राप्ति स्रोत निम्नलिखित हैं
1. विटामिन ‘ए’-विटामिन ‘ए’ के कार्य निम्नलिखित हैं—

  1. इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है।
  2. भूख बढ़ती है।
  3. पाचन-शक्ति ठीक रहती है।
  4. यह विटामिन शरीर के विकास और शक्ति की वृद्धि में योगदान देते हैं।

कमी से हानियां—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 1

  1. इसकी कमी से अन्धराता हो जाता है।
  2. त्वचा शुष्क हो जाती है।
  3. गर्दन, नाक और आंखों की त्वचा को प्रत्येक छूत की बीमारी शीघ्र लगती है।
  4. शरीर दुर्बल हो जाता है और वृद्धि रुक जाती है।
  5. फेफड़े कमजोर हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत—ये अधिकतर दूध, दही, मक्खन, पनीर, अण्डों, मछली, पत्तों वाली सब्जियों जैसे पालक और ताज़ी सब्जियों; जैसे-गाजर, बन्दगोभी, टमाटर तथा केले, संगतरे, आम, पपीता और अनानास आदि फलों में मिलते हैं।

2. विटामिन ‘बी’—विटामिन ‘बी’ के कार्य इस प्रकार हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 2

  1. इस विटामिन से नर्वस सिस्टम (नाड़ी (बी) प्रणाली) ठीक रहता है।
  2. यह नाड़ियों, पेशियों, दिल और दिमाग़ को शक्ति प्रदान करता है।
  3. भूख को बढ़ाता है।
  4. चमड़ी रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. भूख कम लगती है।
  2. बच्चों का विकास रुक जाता है।
  3. बेरी-बेरी रोग तथा त्वचा के कई रोग लग जाते हैं।
  4. जिह्वा पर छाले पड़ जाते हैं।
  5. बाल झड़ने लग पड़ते हैं।

प्राप्ति स्त्रोत — -यह दूध, दही, मक्खन, पनीर, दालों, अनाज, सोयाबीन, मटर, अण्डे, हरी और पत्तों वाली सब्जियों जैसे-पालक, बन्दगोभी, शलगम, टमाटर, प्याज़ और सलाद आदि में पाया जाता है।

3. विटामिन ‘सी’—विटामिन ‘सी’ के निम्नलिखित कार्य हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 3

  1. यह विटामिन लहू (खून, रक्त) को साफ़ रखता है।
  2. दांतों को मजबूत करता है।
  3. ज़ख्मों और टूटी हुई हड्डियों को भी शीघ्र ठीक करता है।
  4. शरीर की छूत की बीमारियों से रक्षा करता है।
  5. गले को ठीक रखता है।
  6. जुकाम से बचाता है।

कमी से हानियां—

  1. दांतों को पायोरिया रोग लग जाता है।
  2. हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  3. घाव शीघ्र ठीक नहीं होते।
  4. अनीमिया हो जाता है।
  5. रक्त बहना शीघ्र बन्द नहीं होता।

प्राप्ति स्त्रोत — यह प्रायः रसदार और खट्टे पदार्थों में से होता है; जैसे-संगतरा, माल्टा, मुसम्मी, अंगूर, अनार, नींबू, अमरूद और आंवला आदि। इसके अतिरिक्त हरी सब्जियों, जैसे टमाटर, बन्दगोभी, गाजर, पालक, शलगम आदि में भी मिलता है।

4. विटामिन ‘डी’—विटामिन ‘डी’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 4

  1. यह विटामिन हड्डियों और दांतों का निर्माण करता है।
  2. उन्हें मज़बूत भी बनाता है।
  3. बच्चों के शारीरिक विकास के लिए इसकी बहुत आवश्यकता होती है।

कमी से हानियां—

  1. हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
  2. दांत ठीक समय पर नहीं निकलते।
  3. मिरगी, हिस्टीरिया और सोकड़ा हो जाता है।
  4. मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।

प्राप्ति स्त्रोत—यह दूध, अण्डे की ज़र्दी, मक्खन, घी, मछली के तेल आदि में बहुत होता है। यह विटामिन सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्वयं ही बनता रहता है।

5. विटामिन ‘ई’—विटामिन ‘ई’ के कार्य इस प्रकार हैं
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 5

  1. यह विटामिन स्त्रियों और पुरुषों में सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति को बढ़ाता है।
  2. यह नपुंसकता और बांझपन को रोकता

कमी से हानियां—

  1. फोड़े फिनसियां निकलती हैं।
  2. बांझपन का रोग हो जाता है।

प्राप्ति स्रोत–यह बन्दगोभी, गाजर, सलाद, मटर, प्याज, टमाटर, फूलगोभी में होता है। इसके अतिरिक्त शहद, गेहूं, चावल, बीजों के तेल, अण्डे की जर्दी, बादाम, पिस्ता, चने की दाल और दलिया में अधिक मात्रा में होता है।

6. विटामिन ‘के’-विटामिन ‘के’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 6

  1. यह विटामिन जख्मों से रिस रहे रक्त को रोकता है।
  2. उसके जमाव में सहायता करता है।
  3. यह चमड़ी के रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. रक्त जमने की क्रिया में रुकावट पड़ती है।
  2. त्वचा के रोग हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत-यह अधिकतर बन्दगोभी, पालक, मछली, सोयाबीन, टमाटर की ज़र्दी आदि में होता है।

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प्रश्न 2.
मुख्य भोज्य पदार्थों और उनके गुणों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the main constituents of food and give their advantages.)
उत्तर-
अनाज, दालें, सब्जियां, फल, सूखे फल (मेवे), दूध, मांस, मछली आदि खाद्य पदार्थ मुख्य हैं। इसके गुण इस प्रकार हैं

  1. अनाज-गेहूं, चावल, चने, जौ, मक्की और बाजरा आदि अनाज प्रायः खाए जाते गुण-अनाज के गुण निम्नलिखित अनुसार हैं
    • इनसे हमारे शरीर का निर्माण होता है।
    • ये शरीर को शक्ति भी प्रदान करते हैं।
    • इनमें कार्बोहाइड्रेट्स अधिक मात्रा में होते हैं।
    • इनके छिलकों में लोहा, चूना, विटामिन और प्रोटीन होते हैं।
  2. दालें-सोयाबीन, मांह, मूंगी, मसूर, अरहर, सूखे मटर, राजमांह आदि की गणना मुख्य दालों में होती है। गुण-दालों के निम्नलिखित गुण हैं
    • इनका प्रयोग करने से शरीर को शक्ति मिलती है।
    • भूख बढ़ती है।
    • पाचन शक्ति तेज़ होती है। इनमें विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अधिक मात्रा में होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें प्रोटीन, खनिज लवण, लोहा, फॉस्फोरस भी होते हैं।
  3. सब्जियां-बन्दगोभी, पालक, सरसों का साग, मेथी, गाजर, मूली, सलाद, चुकन्दर, टमाटर, आलू, मटर, करेला, बैंगन, भिंडी, फूलगोभी और शलगम आदि मुख्य सब्जियां हैं।
    गुण-सब्जियों के गुण इस प्रकार हैं

    • ये शरीर की रक्षा करती हैं।
    • ये शरीर को स्वस्थ रखती हैं।
    • ये खून को साफ़ करती हैं।
    • ये कब्ज नहीं होने देती।
  4. फल-अंगूर, अमरूद, आंवला, नारंगी, संगतरा, माल्टा, अनार, मुसम्मी, नींबू, आम, केला, सेब, नाशपाती और आलू बुखारा आदि फलों का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
    गुण-फलों में गुण निम्नलिखित प्रकार हैं

    • ये शरीर की सफ़ाई में सहायता करते हैं।
    • इनमें लोहा, लवण और सारे विटामिन होते हैं।
    • ये शरीर की रोगों से सुरक्षा करते हैं।
  5. सूखे मेवे (फल)-बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू, खजूर और मूंगफली आदि सूखे मेवे होते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और चर्बी बहुत होती है।
    गुण-

    • ये शारीरिक विकास में सहायता करते हैं।
    • ये दिमागी ताकत को बढ़ाते हैं।
  6. दूध और उससे बनने वाले पदार्थ-मक्खन, घी, दही, पनीर और लस्सी आदि दूध से तैयार होते हैं। इनमें भोजन के सारे तत्त्व होते हैं। ये शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा करते हैं। ये शरीर का विकास करते हैं और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत भी करते हैं। ये साफ खून भी तैयार करते हैं।
  7. मांस, मछली, अण्डे आदि-मांस, मछली और अण्डों का प्रयोग बहुत किया जाता है। इनमें प्रोटीन, चर्बी, कैल्शियम, लोहा और विटामिन ए, बी और डी अधिक मात्रा में होते हैं। ये शरीर के विकास में सहायता करते हैं और इसे कई रोगों से बचाते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक खनिज लवणों का वर्णन करो।
(Why the different salts are useful for our body ?)
उत्तर-
हमारे शरीर में कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयोडीन, क्लोरीन और गन्धक जैसे तत्त्वों की बहुत आवश्यकता है। हमारे भोजन में इन खनिज लवणों का होना नितान्त आवश्यक है। ये खनिज लवण हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत आवश्यक हैं। इन खनिज लवणों की हमारे शरीर के लिए उपयोगिता का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

  1. कैल्शियम और फॉस्फोरस-ये खनिज लवण दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियां तथा ताज़ा फलों, दलिया, दालों और बादामों में अधिक होते हैं। इनसे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड्डियों का निर्माण होता है। ये दिल और दिमाग के लिए लाभदायक होते हैं।
  2. लोहा-लोहा हरी सब्जियों, फलों, अनाजों, अण्डों और मांस में अधिक होता है। यह नया खून उत्पन्न करता और भूख को बढ़ाता है। यह रक्त को साफ करता है।
  3. सोडियम-यह प्रायः भिण्डी, अंजीर, नारियल, आलू बुखारा, मूली, गाजर और शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और गुर्दो की कई बीमारियों को रोकता है।
  4. पोटाशियम-यह नाशपाती, आलू बुखारा, नारियल, नींबू, अंजीर, बन्दगोभी, करेला, मूली, शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और दिल को शक्ति प्रदान करता है तथा कब्ज को दूर करता है।
  5. आयोडीन – यह समुद्री मछली, समुद्री लवण, प्याज, लहसुन, टमाटर, पालक, गाजर और दूध आदि से प्राप्त होती है। इससे शरीर का भार और शक्ति बढ़ती है। इस की कमी से गिलट का रोग हो जाता है।
  6. मैग्नीशियम- यह नारंगी, संगतरे, अंजीर, आलू-बुखारे, टमाटर और पालक आदि में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह चर्म रोगों की रोकथाम करता है और पट्ठों को मजबूत बनाता है।
  7. गन्धक-यह प्याज, मूली, बन्दगोभी, फूलगोभी में बहुत होती है। यह नाखूनों और बालों को बढ़ाती है तथा चमड़ी को साफ रखती है।
  8. क्लोरीन-यह प्याज़, पालक, मूली, गाजर, बन्दगोभी और टमाटर में बहुत होती है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों को बाहर निकालती है। यह शरीर की सफ़ाई करती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) सन्तुलित भोजन
(ख) प्रोटीन
(ग) कैल्शियम
(घ) फॉस्फोरस
(ङ) विटामिनों की कमी।
[Write down a brief note on the following:
(a) Balanced diet
(b) Proteins
(c) Calcium
(d) Phosphorus
(e) Lack of Vitamins.)
उत्तर-
(क) सन्तुलित भोजन-जिस भोजन में सारे आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में विद्यमान हों और जो शरीर की सारी की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के योग्य हो, उसे सन्तुलित भोजन कहते हैं। सन्तुलित भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, खनिज लवण, विटामिन और पानी उचित मात्रा में होने चाहिएं। शरीर के पूर्ण विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें सन्तुलित भोजन ही करना चाहिए। कोई भी अकेला भोज्य पदार्थ सन्तुलित भोजन नहीं। केवल दूध ही एक ऐसा पदार्थ है जिसमें सभी पौष्टिक तत्त्व मिलते हैं।

(ख) प्रोटीन-प्रोटीन, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और गन्धक के रासायनिक मिश्रण से बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन। पशु प्रोटीन मांस, मछली, अण्डे और दूध आदि से प्राप्त होते हैं। वनस्पति प्रोटीन दालों, मटर, फूल गोभी, सोयाबीन, चने, पालक, हरी मिर्च, प्याज और सूखे मेवों में मिलते हैं। प्रोटीन शरीर में शक्ति पैदा करते हैं। हड्डियों का निर्माण और भोजन के पचाने में सहायता करते हैं। इनके कम प्रयोग से शरीर कमज़ोर हो जाता है।

(ग) कैल्शियम-कैल्शियम दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों, ताजे फलों, लवणों, दलिए, दालों और बादाम में अधिक मात्रा में होता है। इससे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड़ियों के लिए यह बहुत लाभदायक हैं। यह दिल और दिमाग के लिए लाभदायक है। इसकी कमी से हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं और दांत गिर जाते हैं।

(घ) फॉस्फोरस-फॉस्फोरस दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों और ताजे फलों में होती है। इससे भी हड्डियां और दांत मज़बूत होते हैं। इसकी कमी से हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।

(ङ) विटामिनों की कमी-मुख्य विटामिन ए, बी, सी, डी, ई और के हैं। इनकी कमी से शरीर में जो विकार उत्पन्न होते हैं उनका विवरण क्रमानुसार इस प्रकार है

  1. विटामिन ‘ए’
    • इसकी कमी से अन्धराता रोग हो जाता है।
    • गले तथा नाक के रोग लग जाते हैं।
    • फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं।
    • चमड़ी के रोग लग जाते हैं।
    • छूत के रोग लग जाते हैं।
  2. विटामिन ‘बी’-
    • भूख नहीं लगती।
    • चमड़ी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
    • बाल झड़ने लगते हैं।
    • जिह्वा में छाले पड़ जाते हैं।
    • खून की कमी हो जाती है।
  3. विटामिन ‘सी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • घाव शीघ्र नहीं भरते।
    • आंखों में मोतिया (मोती बिन्द) उत्पन्न हो जाता है।
    • पायोरिया रोग लग जाता है।
    • इसकी कमी से स्कर्वी रोग उत्पन्न हो जाता है।
  4. विटामिन ‘डी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • मिर्गी तथा सोकड़े के रोग हो जाते हैं।
    • हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।
    • मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  5. विटामिन ‘ई’
    • इसकी कमी से नपुंसकता तथा बांझपन के रोग लग जाते हैं।
    • फोड़े-फुन्सियां निकल आते हैं।
    • शरीर कमज़ोर हो जाता है।
  6. विटामिन ‘के’-
    • चमड़ी के रोग हो जाते हैं।
    • घावों से बहता रक्त शीघ्र बन्द नहीं होता।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 5.
सन्तुलित भोजन के भिन्न-भिन्न तत्त्व कौन-से हैं ?
(What are the various constituents of Balanced Diet ?)
उत्तर-
सन्तुलित भोजन (Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन वह भोजन है जिसमें शरीर के लिए ज़रूरी सभी आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में होते हैं जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण, विटामिन, जल तथा फोट तत्त्वों की मात्रा व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य तथा कार्य पर निर्भर करती है।
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सन्तुलित भोजन के तत्त्व (Constituents of Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन के विभिन्न तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं

  1. प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना एक मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन।
  2. प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)
    • वनस्पति प्रोटीन-यह सोयाबीन, मूंगफली, काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाया जाता है।
    • पशु प्रोटीन-यह मांस, मछली, कलेजी, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाया जाता है।

प्रोटीन के लाभ (Advantages)-

  1. इससे शारीरिक वृद्धि और विकास होता है।
  2. ये शरीर के टूटे-फूटे सैलों की मुरम्मत करते हैं।
  3. ये शरीर का तापमान ठीक रखते हैं।
  4. शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स या वसा की मात्रा कम हो जाती है तो शक्ति पैदा करने का कार्य भी प्रोटीन ही करते हैं।

प्रोटीन की कमी से हानियां -प्रोटीन की कमी से निम्नलिखित रोग लग जाते हैं—

  1. क्वाशियोरकर (Kwashiorkar)—प्रोटीन की कमी से एक वर्ष से लेकर तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को यह रोग हो जाता है। पहले बच्चे की टांगें सूख जाती हैं
    और फिर उसके मुंह और सारे शरीर में सूजन हो जाती है। त्वचा खुरदरी और लाल हो जाती है। बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है।
  2. सोका-प्रोटीन की कमी से बच्चों को सोका नामक रोग लग जाता है। बच्चा पतला और कमजोर हो जाता है। उसके मांस के नीचे हड्डियां दिखाई देती हैं।
  3. भूख के कारण सूजन (Hunger edema)-भूखे रहने तथा प्रोटीन की कमी के कारण मनुष्य के शरीर में कम खुराक पहुंचती है तथा सैलों में पानी अधिक एकत्र हो जाता है तथा सारा शरीर सूजा हुआ नज़र आता है।
  4. प्लैगरा (Pellagra) -इस रोग के कारण त्वचा खुरदरी और शुष्क हो जाती है।
  5. जिगर की खराबी-प्रोटीन की कमी से जिगर खराब हो जाता है।

प्रोटीन की अधिकता से हानियां–प्रोटीन की अधिक मात्रा लेने से गुर्दो की कई. बीमारियां लग जाती हैं। रक्त नाड़ियों की लचक में भी अन्तर आता है और जोड़ों के दर्द भी हो जाते हैं।
प्रोटीन की उचित मात्रा (Proper Quantity)-एक वर्ष से लेकर छ: वर्ष तक की आयु के बच्चों को प्रोटीन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) (P.S.E.B. 2002 C, 2003 E, 2011B)कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को शक्ति और गर्मी प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन का 70-80% भाग इसी तत्त्व से पूरा किया जाता है।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)-कार्बोहाइड्रेट्स गेहूं, चावल, ज्वार, जौ, मक्की, चीनी, शकरकन्दी, आल आदि वस्तुओं में पाये जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स के लाभ (Advantages)—

  1. कार्बोहाइड्रेट्स से शरीर को शक्ति और गर्मी प्राप्त होती है।
  2. वे वसा को बचाने में सहायता करते हैं।
  3. इनसे अमाशय तथा आंतों की सफ़ाई होती है।
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कमी से हानियां-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा न मिलने से रक्त में एलक्लीन कम हो जाती है तथा तेज़ाब (Acidity) बढ़ जाता है। इस दशा में व्यक्ति बेहोश हो सकता है। ऐसी दशा अधिक भूखा रहने से मधुमेह (Diabetes) के रोगी की हो सकती है।
  2. आंतों की पूरी तरह सफ़ाई नहीं होती।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से शरीर की वसा ठीक प्रकार से हज़म नहीं की जा सकती।
  4. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से अमाशय में तेज़ाबी तत्त्वों की वृद्धि हो जाती है जिससे शरीर को हानि पहुंचती है।
  5. इनकी अधिक कमी से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है तथा व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

अधिकता की हानियां-कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से शरीर में मोटापा आ जाता है और उच्च रक्त चाप, मधुमेह तथा जोड़ों के दर्द आदि रोग हो जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा (Proper Quantity)-हमारे भोजन में 50-80% कार्बोहाइड्रेट्स तत्त्व होते हैं। सन्तुलित भोजन का 50-60% भाग कार्बोहाइड्रेट्स का ही होता है। एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन 400 से 700 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

3. वसा या चिकनाई (Fats) —वसा या चिकनाई दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)—
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  1. वनस्पति वसा-यह सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, अखरोट, बादाम, मूंगफली, सोयाबीन आदि में पाई जाती है।
  2. पशु वसा-यह घी, मक्खन, दूध, मांस, मछली, अण्डों आदि में पाई जाती है। वसा के लाभ (Advantages)
    • इससे शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है।
    • यह शरीर के तापमान को स्थिर रखती |
    • शरीर के सभी अंगों की बाहरी चोट मछली का तेल से रक्षा करती है।
    • यह विटामिन ए, डी, ई तथा के को शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सम्भाल कर रखती है।

कमी से हानियां–वसा की कमी से कई हानियां होती हैं—

  1. त्वचा (Skin) शुष्क हो जाती है। ।
  2. विटामिन ए, डी, ई तथा के की कमी | हो जाती है।
  3. वसा-तेज़ाबों की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती है।

अधिकता से हानियां—भोजन में वसा की अधिक मात्रा भी हानिकारक होती है।

  1. शरीर में मोटापा आ जाता है।
  2. हृदय के रोग लग जाते हैं।
  3. हाजमा खराब हो जाता है।
  4. मधुमेह (Diabetes) रोग हो जाता है।
  5. पेट में पत्थरी (Stone) बन जाती है।

वसा की उचित मात्रा (Proper Quantity) —एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम वसा की मात्रा होनी चाहिए।

4. खनिज लवण (Mineral Salts)-हमारे शरीर में खनिज लवण 4% होते हैं। फ़ॉस्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, पोटाशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, आयोडीन तथा जिंक आदि मुख्य खनिज लवण हैं।
प्राप्ति के स्रोत (Sources)—ये खनिज हरे पत्तों वाले साग तथा फलों, मांस, मछली, दूध आदि में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में लोहे की मात्रा कम परन्तु अन्य सभी खनिज लवण प्राप्त हो जाते हैं।
अधिकता से लाभ (Advantages)—

  1. ये दांतों तथा हड्डियों को मजबूत बनाते
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) का विकास करते हैं।
  3. ये रक्त के रंग को लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम खून के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. खनिज लवण शरीर के सभी कार्यों को ठीक तरह से चलाते हैं।

कमी से हानियां (Disadvantages)—

  1. कैल्शियम की कमी से हड्डियां और दांत कमजोर हो जाते हैं।
  2. शरीर प्रत्येक रोग का जल्दी शिकार हो जाता है।
  3. लोहे की कमी से त्वचा का रंग पीला हो जाता है।
  4. आयोडीन की कमी से गिल्लड़ नामक रोग हो जाता है।

5. पानी (Water)-हमारे शरीर का 2/3 भाग पानी का होता है। यह ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के मेल से बनता है। इसका हमारे शरीर के लिए उतना ही महत्त्व है जितना कि वायु का।
स्रोत (Sources)—पानी हमें कई प्रकार के भोजन के तत्त्वों दूध, फल तथा सब्जियों में शुद्ध रूप में मिलता है। पानी के लाभ (Advantages of Water)

  1. पानी सैलों के निर्माण में सहायता देता है।
  2. यह सैलों तक खुराक पहुंचाता है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों का निकास करता
  3. यह भोजन को पचाने में सहायता करता है।
  4. यह हमारे शरीर की गर्मी को नियमबद्ध करता है।
  5. पानी के द्वारा भोजन के तत्त्व रक्त में मिलते हैं।
  6. यह शरीर के जोड़ों तथा अंगों को नर्म रखता है।
  7. पानी के सहारे ही शरीर में रक्त चक्कर लगाता है।

पानी की कमी से हानियां (Harm of taking less water)—पानी की कमी से बहुत-सी हानियां होती हैं।

  1. पानी कम पीने से खाया हुआ भोजन भली भान्ति नहीं पचता।
  2. अमाशय भारी रहता है।
  3. कब्ज हो जाती है।
  4. सिर सदा थका सा महसूस होता है।
  5. शरीर कमजोर हो जाता है।
  6. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  7. शरीर से गन्दे पदार्थों का कम निकास होता है।
  8. जोड़ों का दर्द हो जाता है।
  9. गुर्दो में पत्थरी बन जाती है।

पानी की अधिकता से हानियां (Harm of taking excess water)-पानी सदा उचित मात्रा में ही पीना चाहिए। अधिक पानी पीने से अमाशय भरा रहता है और भूख कम लगती है। भोजन करते समय साथ-साथ पानी पीने से भोजन शीघ्र ही हज़म हो जाता है।

पानी की उचित मात्रा (Proper Quantity)-पानी की मात्रा में ऋतु, व्यवसाय या खुराक के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। साधारणतया एक दिन में 5-6 गिलास पानी पीना चाहिए।

6. विटामिन (Vitamins) -2016 भोजन में विटामिन भी उचित मात्रा में होने चाहिएं। इनका मानव शरीर के लिए विशेष महत्त्व है। इनके बिना शरीर का कोई काम नहीं हो सकता। विटामिनों से रहित भोजन सन्तुलित भोजन नहीं कहला सकता। विटामिन, प्राय: ताजे फल, हरी तरकारियों तथा अण्डों में मिलते हैं। ये मुख्यतः 6 प्रकार के होते हैं। विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के।
लाभ (Advantages)-

  1. ये पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  2. विभिन्न रोगों को रोकते हैं।
  3. हमारे शरीर की चर्म रोगों से रक्षा करते हैं।
  4. हमारी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई की प्राप्ति के क्या साधन हैं तथा इनकी उचित मात्रा कितनी होनी चाहिए ? (What are the sources of carbohydrates, fats and proteins ? How much quantity we should take all of these ?)
उत्तर-
(क) प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन। वनस्पति प्रोटीन सोयाबीन, मूंगफली, बादाम, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाई जाती है। पशु प्रोटीन मांस, ‘ मछली, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाई जाती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।

(ख) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को गर्मी और शक्ति प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन में तो 70-80% तक ही यह तत्त्व पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति के दैनिक भोजन में 400 से 700 ग्राम तक कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

(ग) वसा की मात्रा (Quantity of Fats)—वसा शरीर को शक्ति देती है। वसा दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा। वनस्पति वसा सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, सोयाबीन, अखरोट, बादाम, मूंगफली, अखरोट आदि में पाई जाती है। घी, मक्खन, दूध, मछली, मांस, अण्डे आदि पशु वनस्पति के मुख्य स्रोत हैं।
एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 से 75 ग्राम तक वसा की मात्रा होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
खनिज लवण तथा विटामिनों के लाभ बताओ।
(Describe the advantages of Mineral Salts and Vitamins.)
उत्तर-
खनिज लवणों के लाभ (Advantages of Mineral Salts) मानव शरीर में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट्स, वसा तथा पानी की मात्रा 96% होती है तथा शेष 4% खनिज लवण होते हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, क्लोरीन, सल्फर, आयरन, आयोडीन आदि मुख्य खनिज लवण हैं। खनिज लवणों के निम्नलिखित लाभ हैं

  1. ये दांतों तथा हड्डियों की वृद्धि करते हैं और इन्हें मज़बूत बनाते हैं।
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) की वृद्धि करते हैं।
  3. ये रक्त का रंग लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम रक्त के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. ये शरीर का सारा काम ठीक ढंग से चलाने के लिए आवश्यक हैं। विटामिनों के लाभ (Advantages of Vitamins) विटामिन भोजन के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। ये संख्या में छः हैं-विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के। इनके लाभ क्रमशः इस प्रकार हैं

विटामिन ‘ए’ के लाभ

  1. यह आंखों की सेशनी तेज़ करता है।
  2. यह आंखों, आमाशय तथा आंतों की झिल्लियों को मज़बूत बनाता है।
  3. छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  4. यह शरीर को बढ़ाने तथा विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।
  5. यह भूख बढ़ाता है और पाचन-क्रिया को ठीक रखता है।

विटामिन ‘बी’ के लाभ—

  1. यह मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है।
  2. यह हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  3. बच्चों की वृद्धि में सहायता पहुंचाता है।
  4. इससे पाचन-शक्ति ठीक होती है और भूख लगती है।
  5. त्वचा को ठीक रखता है।

विटामिन ‘सी’ के लाभ—

  1. शरीर की छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  2. दांतों तथा मसूड़ों को मजबूत बनाता है।
  3. घावों को भरने तथा टूटी हड्डियों को ठीक करने में सहायता करता है।

विटामिन ‘डी’ के लाभ-हड्डियों को मजबूत करता है।
विटामिन ‘ई’ के लाभ-यह प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है।
विटामिन ‘के’ के लाभ-यह रक्त के जमने की क्रिया में सहायता पहुंचाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 8.
एक सामान्य खिलाड़ी के लिए उचित खराक की मात्रा बताओ।
(Describe the Balanced Diet of an ordinary sports person.)
उत्तर-
एक सामान्य साधारण खिलाड़ी के लिए उचित खुराक की मात्रा नीचे दी जाती है—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 10
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 11
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 12
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 13
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम अतिरिक्त चिकनाई एवं तेल जोड़ा जा सकता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

SST Guide for Class 7 PSEB नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
किन्हीं चार तीर्थ स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर-
ननकाना साहिब (आधुनिक पाकिस्तान में), अमृतसर, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथ पुरी आदि मुख्य तीर्थ स्थान हैं।

प्रश्न 2.
मुग़ल साम्राज्य के कोई दो राजधानी नगरों के नाम लिखें।
उत्तर-
मुग़ल काल के दो प्रमुख राजधानी नगर दिल्ली तथा आगरा थे।

प्रश्न 3.
अमृतसर नगर की नींव किस गुरु साहिबान ने तथा कब रखी थी ?
उत्तर-
अमृतसर सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। इसकी नींव चौथे सिख गुरु श्री गुरु रामदास जी ने 1577 ई० में रखी थी। आरम्भ में अमृतसर का नाम चक्क गुरु रामदासपुरा था। श्री गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा में अमृतसर और सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई का काम आरम्भ किया था। परन्तु उनके ज्योति-जोत समा जाने के बाद पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी ने इस कार्य को सम्पूर्ण करवाया।

महत्त्व-1604 ई० में अमृतसर के श्री हरमन्दर साहिब में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश किया गया। 1609 ई० में यहां छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने श्री हरमन्दर साहिब के पास श्री अकाल तख्त का निर्माण करवाया। गुरु जी यहां बैठकर गुर-सिखों से घोड़ों और हथियारों की भेंट स्वीकार करते थे। यहां बैठकर राजनीतिक मामलों पर भी विचार-विमर्श किया जाता था। आज भी सिख धर्म से संबंधित धार्मिक निर्णयों की घोषणा यहां पर ही की जाती है। 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने श्री हरमन्दर साहिब के गुम्बदों पर सोने का पत्र लगवाया। तब से इसका नाम स्वर्ण मन्दर पड़ गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 4.
सूरत कहां पर स्थित है ?
उत्तर-
सूरत एक प्रसिद्ध बन्दरगाह और व्यापारिक नगर है। यह गुजरात राज्य में स्थित है। यह बड़े उद्योगों तथा व्यापार का केन्द्र है। शिवाजी मराठा ने इसे दो बार लूटा था और उसके हाथ बहुत-सी धन-दौलत लगी थी। 1512 ई० में इस पर पुर्तगालियों का अधिकार हो गया। 1573 ई० में सूरत अकबर के अधिकार में आ गया। अकबर के अधीन सूरत भारत का प्रमुख व्यापारिक नगर बन गया। 1612 ई० में अंग्रेज़ों ने सम्राट जहांगीर से यहां व्यापार करने की रियायतें प्राप्त कर लीं। यहां पुर्तगालियों, डचों और फ्रांसीसियों ने अपने-अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये। 1759 ई० में अंग्रेजों ने सूरत के किले पर अधिकार कर लिया परन्तु पूरी तरह सूरत पर उनका अधिकार 1842 ई० में हुआ। यहां स्थित ख्वाजा साहिब की मस्जिद तथा नौ सैय्यदों की मस्जिद प्रसिद्ध है। यहां का स्वामी नारायण का मन्दिर और जैनियों के पुराने मन्दिर बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. अमृतसर की नींव …………….. द्वारा रखी गई।
  2. लाहौर …………….. तक तुर्क साम्राज्य की राजधानी थी।
  3. सूरत एक ……………. है।
  4. ननकाना साहिब …………… में स्थित है।
  5. भारत में बहुत सारे बन्दरगाह ……………. हैं।

उत्तर-

  1. श्री गुरु रामदास जी
  2. इल्तुतमिश
  3. प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा व्यापारिक नगर
  4. पाकिस्तान
  5. नगर।

III. निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिहन लगाएं

  1. मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों का राजधानी नगर था।
  2. 1629 ई० में शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
  3. सूरत एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान था।
  4. फतेहपुर सीकरी मुग़लों का एक राजधानी नगर था।
  5. लाहौर मध्यकालीन युग में एक व्यापारिक नगर था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

PSEB 7th Class Social Science Guide नगर, व्यापारी तथा कारीगर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उन स्रोतों का वर्णन करो जो मुग़ल काल के नगरों की जानकारी देते हैं।
उत्तर-
1. भारत की यात्रा करने वाले एक पुर्तगाली यात्री दुर्त बारबोसा तथा एक अंग्रेज़ यात्री गल्फ़ फिज्ज के वृत्तान्तों से हमें उस काल के नगरों की जानकारी मिलती है।

2. होनडिऊ (Hondiu) द्वारा तैयार किये गए ‘मुग़ल साम्राज्य 1629 ई० में’ के नक्शे में थट्टा, लाहौर, सूरत और मुलतान आदि स्थान दिखाये गए हैं।

3. मुग़लों के भूमि-लगान के सरकारी दस्तावेज़ों और भूमि ग्रांटों से भी हमें नये तथा पुराने नगरों के बारे पता चलता है।

प्रश्न 2.
मध्यकाल से सम्बन्धित निम्नलिखित की सूची बनाइये ( प्रत्येक के चार-चार)
(क) राजधानी नगर
(ख) बन्दरगाह नगर
(ग) व्यापारिक नगर।
उत्तर-
(क) राजधानी नगर-लाहौर, फतेहपुर सीकरी, दिल्ली तथा आगरा।
(ख) बन्दरगाह नगर-कोचीन, सूरत, भड़ौच तथा सोपारा।
(ग) व्यापारिक नगर-दिल्ली, आगरा, सूरत तथा अहमदनगर।

प्रश्न 3.
मुगलकाल के शासन-प्रबन्ध की जानकारी के दो स्रोत बताओ।
उत्तर-

  1. विदेशी यात्री बर्नियर का वृत्तान्त
  2. विलियम हाकिन्ज़ तथा सर टॉमस रो द्वारा तैयार किए गए नक्शे।

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प्रश्न 4.
नगरों का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
कृषि की खोज के बाद आदि मानव अपने खेतों के समीप ही रहने लगा। समय बीतने पर जब काफ़ी संख्या में लोग गांवों में रहने लगे, तो इनमें से बहुत से गांव उन्नति करके नगर बन गये। इनमें से कुछ नगर धार्मिक व्यक्तियों, व्यापारियों, कारीगरों और शासक वर्ग की गतिविधियों के कारण विकसित हुए थे। कुछ का दरबारी (राजधानी) नगरों, तीर्थ स्थानों, बन्दरगाह नगरों और कुछ का व्यापारिक नगरों के रूप में विकास हुआ।

प्रश्न 5.
प्राचीन काल से लेकर मुग़ल काल तक राजधानी अथवा दरबारी नगरों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
प्राचीन काल-

  1. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों के राजधानी नगर थे।
  2. वैदिक काल में अयोध्या और इन्द्रप्रस्थ राजधानी नगर थे।
  3. 600 ई० पूर्व में 16 महाजनपदों के अपने-अपने राजधानी नगर थे। इनमें से कौशाम्बी, पाटलिपुत्र और वैशाली प्रमुख थे।

राजपूत काल-
(1) राजपूत शासकों के अधीन (800-1200 ई०) तक अजमेर, कन्नौज, त्रिपुरी, दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) दक्षिण भारत में कांची, बदामी, कल्याणी, वैंगी, देवगिरि, मानखेत, तंजौर और मदुरै आदि राजधानी नगर थे।

दिल्ली सल्तनत तथा मुग़ल काल-
(1) दिल्ली सल्तनत के समय लाहौर और दिल्ली का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) मुग़ल काल में दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि राजधानी नगर थे।

प्रश्न 6.
भारत में बहुत से बन्दरगाह नगरों का विकास हुआ; क्यों?
उत्तर-
भारत के तीन ओर समुद्र लगते हैं। इसी कारण भारत में बहुत से व्यापारिक नगरों का विकास हुआ।

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प्रश्न 7.
मध्यकालीन युग में भारत की पूर्वी तट की दो प्रमुख बन्दरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
विशाखापट्टनम (आधुनिक आन्ध्र प्रदेश में) तथा ताम्रलिप्ती।

प्रश्न 8.
भारत के आर्थिक विकास में व्यापारियों तथा कारीगरों के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
भारत में आर्थिक विकास में भारतीय व्यापारियों और कारीगरों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय कारीगर कई प्रकार का बढ़िया माल तैयार करने में निपुण थे। वे कपड़ा-उद्योग में भी बहुत कुशल थे। उनके द्वारा तैयार किया गया ऊनी, सूती और रेशमी कपड़ा संसार भर में विख्यात था। उनके द्वारा बनाया गया चमड़े का सामान भी बहुत लोकप्रिय था।

मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों का योगदान-मध्यकालीन युग में धातुएं बनाने की कला का बहुत अधिक विकास हुआ। लोहार और सुनियार उत्तम कोटि का माल तैयार करते थे। इस माल को भारत के व्यापारियों ने दूसरे देशों में भेजा। इस प्रकार भारतीय कारीगरों और व्यापारियों ने भारत को धनी एवं समृद्ध बनाने में सहायता की।

भारत के व्यापारियों और कारीगरों ने अपने-अपने गिल्ड (संघ) स्थापित कर लिये। इन संघों ने अलग-अलग प्रकार का उच्च कोटि का माल तैयार करने में कारीगरों और व्यापारियों की सहायता की। विदेशी माल इस माल का मुकाबला नहीं कर पाते थे।

प्रश्न 9.
लाहौर नगर के ऐतिहासिक महत्त्व बारे लिखो।
उत्तर-
लाहौर पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध शहर है। मध्यकाल में यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण नगर था। भारत पर तुर्कों के आक्रमण के समय लाहौर हिन्दूशाही वंश के शासकों की राजधानी थी। इसके बाद लाहौर कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश की राजधानी रहा। इल्तुतमिश ने बाद में दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया।

भारत पर बाबर के आक्रमण के समय दौलत खां लोधी पंजाब का राज्यपाल था। मुग़लों के राज्यकाल में लाहौर पंजाब प्रान्त की राजधानी था। 1761 ई० में लाहौर पर सिखों ने नियन्त्रण कर लिया। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। 1849 ई० में लाहौर पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। 1849 ई० से 1947 ई० तक लाहौर पंजाब राज्य की राजधानी रहा। भारत-विभाजन के बाद लाहौर पाकिस्तान का भाग बन गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

(क) सही जोड़े बनाइट :

  1. सूरत, कोचीन – राजधानी नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – तीर्थ स्थान
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – व्यापारिक नगर
  4. अहमदाबाद अहमदनगर – बंदरगाह नगर।

उत्तर-

  1. सूरत, कोचीन – बंदरगाह नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – राजधानी नगर
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – तीर्थ स्थान
  4. अहमदाबाद , अहमद नगर – व्यापारिक नगर।

(ख) सही उत्तर चुनिए ।

प्रश्न 1.
मध्यकाल में कौन-सा नगर बंदरगाह नगर नहीं था ?
(i) कोचीन
(ii) लाहौर
(iii) सूरत।
उत्तर-
(ii) लाहौर।

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प्रश्न 2.
मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों के संघ बने हुए थे। बताइए ये क्या कहलाते थे ?
(i) गिल्ड
(ii) गाइड
(iii) गोपुरम् ।
उत्तर-
(i) गिल्ड।

प्रश्न 3.
चित्र में दिखाया गया भवन सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान है। क्या आप बता सकते हैं कि यह कहां स्थित है ?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर 1
(i) कुरुक्षेत्र
(ii) अमृतसर
(iii) जगन्नाथपुरी।
उत्तर-
(ii) अमृतसर।

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नगर, व्यापारी तथा कारीगर PSEB 7th Class Social Science Notes

  • नगरों का विकास – कृषि की खोज के बाद गांव अस्तित्व में आए। गांवों का विस्तार होने पर नगरों का विकास हुआ।
  • विभिन्न प्रकार के नगर – नगर विभिन्न प्रकार के थे; जैसे-राजधानी नगर, तीर्थ स्थान, बन्दरगाह नगर, व्यापारिक नगर आदि।
  • व्यापारी तथा कारीगर – मध्यकाल में भारतीय कारीगर उच्चकोटि का माल बनाते थे। भारतीय व्यापारियों ने इस माल को विदेशों में भेजा और प्राप्त धन से देश को धनी तथा समृद्ध बनाया।
  • सूरत – सूरत मध्यकाल में एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक तथा व्यापारिक नगर था।
  • लाहौर – लाहौर आधुनिक पाकिस्तान में स्थित है। यह लम्बे समय तक पंजाब की राजधानी रहा।
  • अमृतसर – यह सिखों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। मध्यकाल में यह एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नगर था। यहां स्थित हरमन्दर साहिब विश्व भर में प्रसिद्ध है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

PSEB 10th Class Agriculture Guide फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में कितनी किस्म के चूहे मिलते हैं ?
उत्तर-
8 किस्मों के।

प्रश्न 2.
झाड़ियों का चूहा पंजाब के किस इलाके में मिलता है ?
उत्तर-
रेतीले तथा खुश्क इलाके में मिलता है।

प्रश्न 3.
सियालू मक्की उगने के समय चूहे कितना नुकसान कर देते हैं ?
उत्तर-
10.7%.

प्रश्न 4.
जहरीला चुग्गा प्रति एकड़ कितने स्थानों पर रखना चाहिए ?
उत्तर-
40 स्थानों पर 10 ग्राम के हिसाब से प्रत्येक स्थान पर रखो।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 5.
चूहों को खाने वाले दो मित्र पक्षियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
उल्लू तथा गिद्ध।

प्रश्न 6.
फसलों को कौन-सा पक्षी सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है ?
अथवा
कृषि में सबसे हानिकारक पक्षी कौन-सा है?
उत्तर-
तोता।

प्रश्न 7.
उजका (डरावा) फसल से कम-से-कम कितना ऊंचा होना चाहिए ?
उत्तर-
एक मीटर।

प्रश्न 8.
एक चिड़िया एक दिन में अपने बच्चों को कितनी बार चुग्गा देती है ?
उत्तर-
250 बार।

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प्रश्न 9.
टिटिहरी अपना घोंसला कहां बनाती है ?
उत्तर-
भूमि पर।

प्रश्न 10.
चक्की राहा अपनी खराक में क्या खाता है?
उत्तर-
कीड़े-मकौड़े।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
खेती-उत्पादों को हानिकारक जीवों से बचाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
कृषि के क्षेत्र में हुई उन्नति तभी बनी रह सकती है यदि कृषि उत्पादों को अच्छी तरह सम्भाल कर रखा जाए। कृषि उत्पादकों को हानि पहुंचाने वाले जीवों से रक्षा करना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
चूहों को आदत डालने का क्या ढंग है?
उत्तर-
अधिक चूहे पकड़े जाएं इसके लिए चूहों को पिंजरों में आने के लिए आदत डालें। इसके लिए प्रत्येक पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा अथवा ज्वार अथवा गेहूं का दलिया, जिसमें 2% पिसी हुई चीनी तथा मूंगफली अथवा सूरजमुखी का तेल भरा हो, 23 दिन तक रखते रहें तथा पिंजरों का मुँह खुला रहने दें।

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प्रश्न 3.
बरोमाडाइलोन के प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर-
बरोमाडाइलोन का प्रभाव विटामिन ‘के’ के प्रयोग से कम किया जा सकता है। इस विटामिन का प्रयोग डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिए।

प्रश्न 4.
ग्रामीण स्तर पर चूहे को मारने के अभियान के द्वारा चूहों का खात्मा कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
थोड़े क्षेत्र में चूहों की रोकथाम का कोई अधिक लाभ नहीं होता क्योंकि साथ वाले खेतों से चूहे फिर आ जाते हैं। इसलिए अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए चूहे मारने 1. के अभियान को गांव स्तर पर अपनाना बहुत ही आवश्यक है। इसके अन्तर्गत गांव की सारी भूमि (बोई हुई, बागों वाली, जंगलात वाली तथा खाली) पर सामूहिक तौर पर चूहों का खात्मा किया जाता है।

प्रश्न 5.
उजका (डरावा) से क्या अभिप्राय है ? फसलों की रक्षा में इसकी क्या भूमिका है ?
उत्तर-
एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 6.
तोते से तेल बीजों वाली फसलों का बचाव कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।

प्रश्न 7.
सघन वृक्षों वाले स्थानों के पास सूर्यमुखी की फसल क्यों नहीं बोयी जानी चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि वृक्षों पर पक्षियों का घर होता है तथा वह इन पर आसानी से बैठतेउठते रहते हैं तथा फसलों को आसानी से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

प्रश्न 8.
मित्र पक्षी फसलों की रक्षा में किसान की कैसे मदद करते हैं ?
उत्तर-
मित्र पक्षी जैसे उल्लू, गिद्ध, बाज, शिकरे आदि चूहों को खा लेते हैं, तथा कुछ अन्य पक्षी जैसे नीलकंठ, गाय, बगुला, छोटा उल्लू / चुगल टटिहरियां आदि हानिकारक कीड़े-मकौड़े खाकर किसान की सहायता करते हैं।

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प्रश्न 9.
गाय बगुले की पहचान आप कैसे करेंगे ?
उत्तर-
यह सफेद रंग का पक्षी है जिसकी चोंच पीली होती है। इस पक्षी को अक्सर खेत को जोतते समय ट्रैक्टर अथवा बैलों के पीछे भूमि पर कीड़े खाते देख सकते हैं।

प्रश्न 10.
जहरीले चुग्गे का प्रयोग करते समय आवश्यक सावधानियों के बारे में आप क्या जानते हो? . .
उत्तर-
जहरीले चोगे के प्रयोग सम्बन्धी सावधानियां-

  • चोगे में ज़हरीली दवाई मिलाने के लिए डंडे अथवा खुरपे की सहायता लो, नहीं – तो हाथों पर रबड़ के दस्ताने पहन लो। मुंह, नाक तथा आंखों को ज़हर से बचा कर रखो।
  • चूहेमार दवाइयां तथा ज़हरीला चोगा बच्चों तथा पालतू जानवरों से दूर रखना चाहिए।
  • ज़हरीला चोगा कभी भी रसोई के बर्तनों में न बनाओ।
  • जहरिला चोगा रखने तथा ले जाने के लिए पॉली थिन के लिफाफे का प्रयोग करो तथा बाद में इन्हें मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • मरे हुए चूहे इकट्ठे करके तथा बचा चोगा मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • जिंक फॉस्फाइड मनुष्यों के लिए काफ़ी हानिकारक है। इसलिए हादसा होने पर मरीज़ के गले में उंगलियां मारकर उल्टी करवा देनी चाहिए तथा मरीज़ को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चूहे कितनी किस्म के होते हैं ? पंजाब में भिन्न-भिन्न इलाकों में मिलने वाले चूहों का विवरण दीजिए।
उत्तर-
पंजाब के खेतों में मुख्यत: 8 किस्मों के चूहे तथा चुहियां मिलती हैं। यह हैंझाड़ियों का चूहा, भूरा चूहा, नर्म चमड़ी का चूहा, अन्धा चूहा, घरों की चुहिया, भूरी चुहिया तथा खेतों की चुहिया।
अन्धा चूहा तथा नर्म चमड़ी वाला चूहा गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में मिलते हैं। नर्म चमड़ी वाला चूहा कल्लरी भूमि में, झाड़ियों का चूहा तथा भूरा चूहा रेतीले तथा खुश्क इलाकों में तथा झाड़ियों का चूहा कण्डी के इलाके (ज़िला होशियारपुर) में पाया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 2.
जहरीला चुग्गा तैयार करने की दो विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर-
1. 2% जिंक फॉस्फाइड (काली दवाई) वाला चोगा-1 किलो बाजरा, ज्वार अथवा गेहूं का दलिया अथवा इन सभी अनाजों का मिश्रण लेकर उसमें 20 ग्राम तेल तथा 25 ग्राम जिंक फॉस्फाइड दवाई डालकर अच्छी तरह मिला लो, चोगा तैयार है। इसका ध्यान रखें कि इस चोगे में कभी भी पानी न डाला जाए तथा हमेशा ताज़ा तैयार किया चोगा ही प्रयोग करो।

2. 0.005% ब्रोमाइडिलोन तथा चोगा-0.25% ताकत का 20 ग्राम ब्रोमाइडिलोन पाऊडर, 20 ग्राम तेल तथा 20 ग्राम पिसी हुई चीनी को एक किलो पिसी हुई गेहूं अथवा किसी अन्य अनाज के आटे में डाल कर यह चोगा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 3.
बहुद्देश्यीय योजना से चूहों की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
किसी एक तरीके से कभी भी सारे चूहे नहीं मारे जा सकते। किसी एक समय चूहों की रोकथाम करने के पश्चात् बचे हुए चूहे बड़ी तेजी से बच्चे पैदा करके अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं। इसलिए एक-से-अधिक तरीके अपनाकर चूहों को मारना चाहिए। खेतों में पानी लगाते समय चूहों को डंडों से मारो। फसल बोने के पश्चात् उचित समयों पर रासायनिक ढंग प्रयोग करो। ज़हरीला चोगा खेतों में डालने के पश्चात् बचे खड्डों में गैस वाली गोलियां भी डाल दो। जिंक फॉस्फाइड दवाई के प्रयोग से तुरन्त पश्चात् आवश्यक हो तो ब्रोमाइडिलोन अथवा गैस वाली गोलियों का प्रयोग करो।

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प्रश्न 4.
पक्षियों से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव के लिए कौन-से परम्परागत तरीके हैं ?
उत्तर-
पक्षियों के कारण फसलों को होने वाली हानि से बचाव के पारंपरिक ढंग-

  • कई कीमती फसलें जैसे सूरजमुखी तथा मक्की आदि को बचाने के लिए इन फसलों के इर्द-गिर्द बाहर वाली दो-तीन पंक्तियों में बैंचा या बाजरा जैसी कम कीमत वाली फसलें लगा देनी चाहिए।
    पक्षी इन फसलों को पसंद करते हैं तथा इनको पहले खाते हैं तथा मुख्य फसल बच जाती है।
  • पक्षियों के बैठने वाले स्थान जैसे घने वृक्ष तथा बिजली की तारों के पास सूरजमुखी की बोबाई नहीं करनी चाहिए।
  • सूरजमुखी तथा मक्की की फसल को तोते द्वारा हानि से बचाने के लिए इनकी बुआई कम-से-कम दो तीन एकड़ के क्षेत्र में करो। तोता फसल के अंदर जाकर फसल को कम हानि पहुंचाता है।

प्रश्न 5.
भिन्न-भिन्न यांत्रिक विधियों से आप फसलों का पक्षियों से बचाव कैसे कर सकते हो ?
उत्तर-
यांत्रिक विधियों द्वारा फसलों का पक्षियों से बचाव-

  • धमाका करना-भिन्न-भिन्न समय पर पक्षी उड़ाने के लिए बंदूक से धमाका करना चाहिए।
  • डरने का प्रयोग-एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।
  • कौओं के पुतले लगाना-तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।
  • पटाखों की रस्सी का प्रयोग-एक रस्सी के साथ छ: से आठ ईंच की दूरी पर पटाखों के छोटे-छोटे बडंल बांध दिए जाते हैं तथा रस्से के निचले भाग को सुलगा दिया जाता है। इस तरह थोड़ी-थोड़ी देर बाद धमाके होते रहते हैं तथा पक्षी डर कर उड़ जाते हैं। बीज अंकुरित हो रहे हों तो रस्सी खेत में तथा फसल पकने के समय खेत के किनारे . से दूर लटकानी चाहिए।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
किसानों के मित्र पक्षी हैं –
(क) नीलकंठ
(ख) गुटार
(ग) गाय बगला
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 2.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
(क) 4-5
(ख) 8-10
(ग) 1-2
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(क) 4-5

प्रश्न 3.
टिटहरी अपना घोंसला कहां बनाती है?
(क) भूमि पर
(ख) वृक्षों पर
(ग) पानी में
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) भूमि पर

प्रश्न 4.
चूहे मारने के लिए प्रयोग होने वाले रसायन हैं
(क) सोडियम
(ख) पोटाशियम क्लोराइड
(ग) जिंक फास्फाइड
(घ) सभी।
उत्तर-
(ग) जिंक फास्फाइड

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 5.
पंजाब में कितनी किस्म के पक्षी मिलते हैं?
(क) 100
(ख) 50
(ग) 300
(घ) 500.
उत्तर-
(ग) 300

प्रश्न 6.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला वृक्षों की गुहायों (खोड़ों) में बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) नीलकंठ।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

प्रश्न 7.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला समूहों में वृक्षों के ऊपर बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) उल्लू।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 8.
गेहूँ के उगते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
(क) 2.9%
(ख) 10.7%
(ग) 4.5%
(घ) 1.1%
उत्तर-
(क) 2.9%

II. ठीक/गलत बताएँ

1. नीलकंठ पक्षी कीड़े-मकौड़े तथा चूहों को खाता है।
2. पंजाब के खेतों में 8 प्रकार के चूहे मिलते हैं।
3. कृषि में सब से हानिकारक पक्षी तोता है।
4. चूहे मारने के लिए प्रयोग में आने वाला रसायन जिंक फास्फाइड है।
5. उल्लू, बाज आदि किसान के मित्र पक्षी हैं।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. डरना (बजूका) फ़सलों से कम से कम ………… मीटर ऊँचा होना चाहिए।
2. चूहों को पकड़ने के लिए कम से कम ……………… पिंजरे प्रति एकड़ के हिसाब से रखे जाते हैं।
3. घुग्गीयां, कबूतर तथा बया वर्ष में लगभग ………….. रुपये मूल्य का धान खा जाते हैं।
4. …………… पक्षी की चोंच का रंग पीला होता है।
5. कल्लरी भूमि में …………. चमड़ी का चूहा होता है।
उत्तर-

  1. एक
  2. 16
  3. दो करोड़
  4. गाय बगुला
  5. नर्म।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहे कहां रहते हैं ?
उत्तर-
चूहे बिलों में रहते हैं।

प्रश्न 2.
गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में कौन-से चूहे होते हैं ?
उत्तर-
अन्धा तथा नर्म चमड़ी वाले चूहे।

प्रश्न 3.
कल्लरी भूमि में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
नर्म चमड़ी वाला।

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प्रश्न 4.
कण्डी के इलाके में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
झाड़ियों का चूहा।

प्रश्न 5.
गेहूं के उगने तथा पकने के समय चूहों द्वारा कितना नुकसान किया जाता है?
उत्तर-
उगने के समय 2.9% तथा पकने के समय 4.5% ।

प्रश्न 6.
मटरों में पकते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
1.1.% ।

प्रश्न 7.
बेट के इलाके में गेहूं के पकने तक चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
25% |

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प्रश्न 8.
सिंचाई के समय बिलों से निकले चूहों को कैसे मारोगे ?
उत्तर-
डंडों से।

प्रश्न 9.
चूहे पकड़ने के लिए एक एकड़ में कितने पिंजरे रखने चाहिएं ?
उत्तर-
16 पिंजरे।

प्रश्न 10.
पिंजरों का दुबारा प्रयोग कितने दिनों बाद करना चाहिए ?
उत्तर-
30 दिनों के फासले के पश्चात्।

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प्रश्न 11.
जिंक फॉस्फाइड वाला एक किलो चोगा कितने क्षेत्र के लिए प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
29 एकड़ के लिए।

प्रश्न 12.
चूहों की प्राकृतिक रोकथाम कैसे की जाती है ?
उत्तर-
कुछ पक्षी तथा जानवर कैसे गिद्ध, उल्लू, बाज़, शिकरा, सांप, बिल्लियां, नेवला तथा गीदड़ चूहों को मारकर खा जाते हैं।

प्रश्न 13.
पंजाब में कितनी किस्मों के पक्षी मिलते हैं ?
उत्तर-
300 किस्मों के।

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प्रश्न 14.
घुग्गियां, कबूतर तथा बया वार्षिक कितने मूल्य का धान खा जाते
उत्तर-
2 करोड़ रुपए मूल्य का।

प्रश्न 15.
डरने के स्थान, दिशा तथा पोशाक कितने दिनों के पश्चात् बदलनी चाहिए ?
उत्तर-
दस दिनों के बाद।

प्रश्न 16.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
उत्तर-
4-5 चूहे।

प्रश्न 17.
चूहे मारने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम बताओ।
उत्तर-
जिंक फॉस्फाइड।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हमें अपने आसपास पक्षियों को बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?
उत्तर-

  • हमें अपने आसपास पारंपरिक वृक्ष जैसे बरगद, पीपल, कीकर, शीशम, शहतूत आदि लगाने चाहिए।
  • लकड़ी तथा मिट्टी के बनावटी घोंसले लाकर पक्षियों को घोंसलों के लिए स्थान उपलब्ध करवाने चाहिए।

प्रश्न 2.
नीलकंठ के बारे बताओ।
उत्तर-
इसका पेट हल्के पीले रंग का तथा छाती भूरे रंग की होती है। इसका आकार कबूतर जैसा होता है। इसका आहार कीड़े-मकौड़े होते हैं। इसका घोंसला वृक्षों की खोखलों में होता है।

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प्रश्न 3.
टटिहरी के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
इस पक्षी का सिर, छाती तथा गर्दन का रंग काला होता है। यह ऊपर से सुनहरी रंग तथा नीचे से सफेद होता है। यह कीड़े-मकौड़े तथा घोघे खाता है तथा अपना घोंसला भूमि पर बनाता है।

प्रश्न 4.
बिजूका/डरने से फसलों की रखवाली कैसे की जाती है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहों को मारने के रासायनिक ढंगों के बारे में लिखें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
मशीनी ढंगों से चूहों से फसलों को कैसे बचाया जाता है ?
उत्तर-

  • चूहों को मारना-फसल की कटाई के बाद पानी देने से बिलों में पानी भरने से चूहे बाहर निकलते हैं। उन्हें डंडे से मारो।
  • पिंजरों का प्रयोग-स्वयं लिखें।
  • आदत डालना-स्वयं लिखें।

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प्रश्न 3.
पिंजरों का उपयोग करके फसलों को चूहों से कैसे बचाते हैं ?
उत्तर-
पिंजरों का प्रयोग करके चूहे पकड़कर पानी में डुबोकर मार दिए जाते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दो खानों वाला पिंजरा विकसित किया गया है। इससे एक बार में ही कई चूहे पकड़े जा सकते हैं। खेतों में प्रति एकड़ के हिसाब से 16 पिंजरे चूहों के आने-जाने वाले रास्तों, चूहों के नुकसान वाले स्थानों पर रखने चाहिएं। घरों, मुर्गी खानों, गोदामों आदि में एक पिंजरा 4 से 8 प्रति वर्ग मी० के हिसाब से दीवारों के साथ, कमरों के कोनों, अनाज जमा करने वाली वस्तुओं तथा सन्दूकों आदि के पीछे रखने चाहिएं। कोल्ड स्टोरों में पिंजरों को अखबार के कागज़ में लपेट कर रखना चाहिए। चूहों को पकड़ने के लिए उन्हें पहले पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा, 2% पिसी हुई चीनी तथा 2% मूंगफली के तेल मिले हुए चोगे की आदत डालनी चाहिए। इस तरह चूहों को तीन दिन तक पकड़ो तथा इस तरह पिंजरों का प्रयोग करके चूहों को पकड़कर फसलों की हानि होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
हमें फसलों के लिए लाभदायक पक्षियों को क्यों नहीं मारना चाहिए?
उत्तर-
लाभदायक पक्षी चूहों तथा कीड़े-मकौड़ों को खा जाते हैं। यहां तक कि चिड़िया तथा बया अपने बच्चों को कीड़े-मकौड़े खिलाते हैं। कई पक्षी जैसे उल्ल, चील, बाज आदि भी चूहों को खा जाते हैं। एक उल्लू एक दिन में 4-5 चूहों को खा लेता है। इस तरह यह पक्षी किसान के मित्र हैं तथा इन्हें मारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 5.
चूहे मारने के लिए जहरीला चोगा प्रयोग करते समय किन-किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
आप कठफोड़वे की पहचान कैसे करेंगे ?
उत्तर-
इस की चोंच लम्बी, नुकीली तथा थोड़ी सी मुड़ी होती है। इस के पंख, शरीर तथा पूंछ के ऊपरी तरफ सफेद तथा काले रंग की धारियां होती हैं। इसके सिर पर कलगी होती है।

फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • हमारे देश में मिलने वाले पक्षियों में से लगभग 98% पक्षियों की जातियां किसानों के लिए लाभदायक हैं।
  • लाभदायक पक्षी हैं-कोतवाल, टिटहरी, नीलकंठ, गुटार, गाय बगला, कठफोड़वा आदि।
  • यह पक्षी कीड़े-मकौड़े तथा चूहों को खाते हैं।
  • चूहे फसलों का काफी नुकसान करते हैं।
  • चूहे बिलों में रहते हैं।
  • पंजाब के खेतों में 8 किस्मों के चूहे मिलते हैं। अन्धा चूहा, नर्म चमड़ी चूहा, झाड़ियों का चूहा, भूरा चूहा, घरों की चुहिया, खेतों की चुहिया तथा भूरी चुहिया।
  • फसलों का मुख्य नुकसान उगने तथा पकने के समय होता है।
  • चूहों को पकड़ने के लिए कम-से-कम 16 पिंजरे प्रति एकड़ के हिसाब से रखने चाहिएं।
  • पिंजरे में पकड़े चूहों को पानी में डुबो कर मार देना चाहिए तथा पिंजरों का प्रयोग कम-से-कम 30 दिनों बाद करना चाहिए।
  • चूहों को मारने के लिए ज़हरीला चोगा डाला जाता है।
  • ज़हरीले चोगे में जिंक फॉस्फाइड, ब्रोमाडाइलोन आदि का प्रयोग होता है।
  • ज़हरीले चोगे तथा मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए।
  • ज़हरीले चोगे मानवों के लिए भी हानिकारक हैं, इनका प्रयोग बड़े ध्यान से करना चाहिए।
  • चूहों को उल्लू, गिद्ध, शिकरे, बिल्लियां, बाज़, नेवला तथा गीदड़ आदि खा लेते |
  • एक फसल में 2 बार जिंक फॉस्फाइड दवाई के प्रयोग के बीच फासला कम से-कम 2 महीने होना चाहिए।
  • चूहे मारने का अभियान गांव स्तर पर चलाया जाना चाहिए।
  • पंजाब में 300 किस्म के पक्षी मिलते हैं। इनमें से बहुत कम ऐसे हैं जो कृषि को हानि पहुंचाते हैं।
  • तोता सबसे अधिक हानिकारक पक्षी है। यह लगभग सभी फसलों तथा फलों को हानि पहुंचाता है।
  • घुग्गियां, कबूतर तथा बया वर्ष में लगभग 2 करोड़ रुपए मूल्य का धान खा जाते हैं।
  • पक्षी उड़ाने के लिए बन्दूक के धमाके किए जाते हैं तथा डराने का प्रयोग किया जाता है।
  • तोते से बचाव के लिए मरे हुए कौओं को लाठी पर लटका कर रखो।
  • कीमती फसलों को बचाने के लिए फसलों के इर्द-गिर्द हैं, अथवा बाजरे जैसी फसलों को बो देना चाहिए। पक्षी इन फसलों को अधिक पसन्द करते हैं।
  • उल्लू एक दिन में 4-5 चूहे खा जाते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई Notes.

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों की मरम्मत की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर-
जब कभी कपड़ा अचानक किसी तेज़ वस्तु से अटक कर कट या फट जाता है तो कपड़ों की मरम्मत करने की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 2.
फटे कपड़े की मरम्मत के कौन-कौन से तरीके हैं ?
उत्तर-
साधारण सिलाई, पैबन्द लगाना, रफू करना।

प्रश्न 3.
साधारण सिलाई कब की जाती है ?
उत्तर-
कपड़े के लम्बाई की ओर से फट जाने पर।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 4.
पैबन्द कब लगाया जाता है ?
उत्तर-
जब कपड़े में छेद या बड़ा सुराख हो जाए।

प्रश्न 5.
रफू कब की जाती है ?
उत्तर-
जब कपड़ा कहीं से घिस जाये या ब्लेड, चाकू या झाड़ी आदि में अड़कर फट जाए।

प्रश्न 6.
हाथ से बने ऊनी कपड़े प्रायः कहाँ से फटते हैं ?
उत्तर–
गले, कोहनी या घुटनों के पास से, क्योंकि इन स्थानों पर अन्य भाग की अपेक्षा अधिक दबाव पड़ता है।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 7.
पैबन्द लगाना किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कभी कपड़ा ऐसे फटता है या उसमें ऐसे छेद होता है कि उसमें रफू कस्ने से सफ़ाई नहीं आती तो ऐसे छेद वाले स्थान पर उसी कपड़े का अलग टुकड़ा लगाकर छेद बन्द किया जाता है। इसे ही पैबन्द लगाना कहते हैं।

प्रश्न 8.
पैबन्द किस फटे कपड़े पर लगाना चाहिए ?
उत्तर-
जो अच्छी हालत में हो और एक या दो धुलाई के बाद ही फटने की स्थिति में न हो।

प्रश्न 9.
पैबन्द लगाने के लिए कपड़े का रंग कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
पैबन्द लगाने के लिए कपड़े का रंग उस वस्त्र के रंग का ही होना चाहिए जिसमें पैबन्द लगानी है।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 10.
छपे हुए कपड़े पर पैबन्द किस प्रकार लगाना चाहिए ?
उत्तर-
जिससे छपाई या फूल-पत्तियों का रूप न बिगड़े।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सामान्यतः कपड़े किन कारणों से फट जाते हैं ?
उत्तर-
सामान्यतः कपड़े निम्नलिखित कारणों से फटते हैं-

  1. कील या काँटों में अटककर
  2. धुलाई करते समय पटकने के कारण
  3. कपड़े पर अम्ल या क्षार गिरने से ।
  4. चूहे या अन्य किसी जन्तु द्वारा कुतरने से
  5. वस्त्रों के कई भाग जैसे कोहनी आदि अधिक प्रयोग से कमज़ोर पड़कर।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 2.
सादे या छपे हुए कपड़े की मरम्मत करने के कौन-से तरीके हैं ?
उत्तर-
सादे या छपे हुए कपड़े की मरम्मत करने के निम्नलिखित तीन तरीके हैं-

  1. साधारण सिलाई करना।
  2. पैबन्द लगाना।
  3. रफू करना
    • सादा रफू।
    • कटे हुए स्थान को रफू करना।

प्रश्न 3.
कपड़े की मरम्मत में साधारण सिलाई की क्या उपयोगिता है ?
उत्तर-
कपड़े के लम्बाई की ओर से फट जाने पर साधारण सिलाई की जा सकती है। साधारण सिलाई करते समय केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसका कपड़े की नाप पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता, कपड़े का रूप बिगड़े बिना सिलाई की जा सके तो साधारण सिलाई ही ठीक रहती है।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 4.
पैबन्द लगाकर कपड़ों की मरम्मत कब की जाती है ? पैबन्द का आकार किस प्रकार का होना चाहिए ?
उत्तर-
जब कपड़े इस प्रकार फटते हैं कि उनमें सुराख या छेद हो जाते हैं तो उन्हें पैबन्द लगाकर ही ठीक किया जा सकता है। पैबन्द उसी कपड़े का लगाया जाता है जो मूल वस्त्र बनाने में प्रयोग किया गया हो। कटे हुए स्थान के अनुसार पैबन्द गोल, तिकोना या वर्गाकार किसी भी रूप में लगाया जा सकता है लेकिन चैक या लाइनदार कपड़े में पैबन्द चौकोर या वर्गाकार भी हो सकता है। प्रिंटेड कपड़े में क्योंकि प्रिंट के साथ प्रिंट मिलाना आवश्यक है इसलिए इसका रूप निर्धारित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
रफू किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
जब कपड़े की एक जगह शेष कपड़े की अपेक्षा घिसकर पतली हो जाती है या चाकू, ब्लेड, झाड़ी आदि से कपड़ा तिरछी लाइन में कट जाता है तब ऐसी जगह पर नये धागे लगाकर उस पर दुबारा उसी प्रकार की बुनाई की जाती है तो उसे रफू कहते हैं।
रफू निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

  1. घिसे हुए स्थान का रफू या सादा रफू
  2. कटे हुए स्थान पर रफू
    • चाकू, छुरी या ब्लेड से कटने पर
    • कील, झाड़ी या काँटों से अड़कर कटने पर।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

प्रश्न 6.
पैबन्द लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है ?
उत्तर-
पैबन्द लगाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है-

  1. पैबन्द लगाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि शेष कपड़ा अच्छी हालत में हो। ऐसे कपड़े की मरम्मत नहीं करनी चाहिए जो एक-दो धुलाई के बाद ही फटने की स्थिति में हो।
  2. जिस स्थान पर पैबन्द लगाना हो उसके लिए उसी रंग और डिज़ाइन के टुकड़े का चुनाव करना चाहिए।
  3. चुने हुए कपड़े को धोकर इस्तरी कर लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कपड़ा धोने से सिकुड़ जाये।
  4. पैबन्द इस प्रकार लगाना चाहिए कि कपड़े में झोल न पड़े और न ही पैबन्द कमज़ोर पड़े।
  5. धागे के रंग और मोटाई को कपड़े के अनुरूप ही रखा जाना चाहिए। यदि हो सके तो धागा कपड़े में से ही निकालना चाहिए।
  6. चैक और लाइनदार कपड़े पर पैबन्द लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि धारियाँ परस्पर ठीक से मिल जायें।
  7. छपे हुए कपड़े पर पैबन्द इस प्रकार लगाना चाहिए कि छपाई या फूल-पत्तियों का क्रम न बिगड़े।
  8. पैबन्द इस प्रकार लगाया जाना चाहिए कि मरम्मत होने के बाद कपड़ा देखने पर मन को बुरा न लगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पैबन्द लगाने की विधि का वर्णन करो।
उत्तर-
सादा पैबन्द-कपड़ा मुरम्मत करने का एक तरीका फटी हुई जगह पर पैबन्द लगाना है। कई बार वस्त्र पर तेज़ाब गिरने से, आग के अंगारे से या गर्म प्रैस से कपड़ों में छिद्र हो जाता है। बड़े छिद्र पर रफू करने से कपड़े में सफाई नहीं आती। इसलिए छिद्र वाले स्थान पर कपड़े के रंग का तथा उसी प्रकार तथा उतना ही पुराना कपड़ा लगाकर मुरम्मत की जाती है। पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का पैबन्द नहीं लगाना चाहिए। पैबन्ध के ताने के धागे, कपड़े के ताने के धागों के समानान्तर तथा पैबन्द के बाने के धागे कपड़े के बाने के धागों के समानान्तर होने चाहिएं। पैबन्द को बिल्कुल सीधा करना चाहिए तथा पैबन्द के अन्दर कपड़ा
PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 1
चित्र 6.1
मोड़ने के बाद भी किनारा सीधा ही रखना चाहिए। ऊनी वस्त्रों के किनारों को मोड़ा नहीं जाता है। ऊनी वस्त्रों के लिए या सिल्की धागा, सूती या लिनन के कपड़ों के लिए सूती धागा तथा सिल्क के कपडे के लिए सिल्की धागा इस्तेमाल करना चाहिए।

चौकोर पैबन्द-चौकोर पैबन्द छिद्र के चारों ओर 1 इंच फालतू कपड़ा रखकर पैबन्द काटते हैं। पैबन्द को पहले दोनों तरफ़ के किनारों की ओर 1/8″ पैबन्द के सीधी ओर मोड़ते हैं। इसी तरह बाने के धागों वाली ओर भी मोड़ते हैं। ताने वाले किनारे को अंगठे के नाखन । से सीधा करते हैं और बाने के छोरों को अँगूठे से दबा कर सीधा करते हैं। कोने हमेशा नोकदार होने चाहिएं। पैबन्द को रूमाल की तरह चार परतें करके हाथ से दबाते हैं ताकि तह का निशान बन जाए। पैबन्द का सीधा किनारा कपड़े के छिद्र वाले स्थान पर उल्टी ओर रखते हैं। यह ध्यान रहे कि पैबन्द के ताने के धागे कपड़े के है। समानान्तर होने चाहिएं। पैबन्द के मध्य बिन्दु छिद्र के मध्य में आए। दोनों ताने वाले किनारा पर एक-एक पिन लगाते हैं तथा फिर बाने वाले
PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 2
चित्र 6.2
PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 3
चित्र 6.3
किनारों पर पिन लगाते हैं। ताने के एक किनारे के मध्य में से शुरू करके किनारे के साथसाथ चारों ओर कच्चा करते हैं। ताने वाले किनारे के मध्य में शुरू करके चारों तरफ़ लेते
PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 4
चित्र 6.4
कपड़े को सीधा कर लेते हैं ताकि छिद्र वाला भाग आपके सामने हो। छिद्र वाली जगह तिरछी तह के निशान बनाते हैं। तहों के कोनों पर 1/4″ चिह्न लगाते हैं। कैंची का निचला फल कपड़े तथा पैबन्द की तह के बीच डालते हैं तथा तिरछी रेखाओं पर लगे 1/4″ के चिह्न तक चारों कोनों से काटते हैं। इन पल्लों को मोड़कर तह का निशान बनाते हैं तथा निशान पर चारों कोनों से हटाते हैं ताकि छिद्र 1चौकोर बन जाए। छिद्र की तिरछी रेखाओं के कोनों से 1/8″ के चिह्न लगा लेते हैं तथा यह 1/8″ चारों ओर से अन्दर मोड़ देते हैं। सूई द्वारा कोनों से वस्त्र अन्दर को करके कोने सीधे कर लेते हैं। छिद्र को मोड़े हुए किनारों के साथ-साथ कच्चा कर लेते हैं । छिद्र के किनारे जहाँ पैबन्द से जुड़ते हों तो दोनों को मिलाते हैं तथा ऊपर के सिरे से खड़ी तुरपाई या काज टाँके से लाइन पूरी करते हैं। कोने पर तिरछा टाँका बनाते हैं। इस तरह बाकी के तीनों किनारे पूरे करते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई

कढ़ाई के नमूने

PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 5
PSEB 8th Class Home Science Practical पैबन्द लगाना और कढ़ाई 6
चित्र 6.5

पैबन्द लगाना और कढ़ाई PSEB 8th Class Home Science Notes

  • कपड़ों में मरम्मत करने का एक तरीका फटी हुई जगह पर पैबन्द लगाना है।
  • पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का पैबन्द नहीं लगाना चाहिए।
  • पैबन्द को बिल्कुल सीधा काटना चाहिए तथा पैबन्द के अन्दर कपड़ा मोड़ने के बाद भी किनारा सीधा ही रखना चाहिए।
  • छिद्र को नाप कर पैबन्द लगाने वाले कपड़े को 1″ चारों ओर से अतिरिक्त रखकर काटना चाहिए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

PSEB 12th Class Geography Guide आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

प्रश्न 1.
खनिजों को कौन से दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
खनिजों को निम्नलिखित दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. धातु खनिज (Metallic Minerals)
  2. अधातु खनिज (Non-Metallic Minerals)

प्रश्न 2.
देश के घरेलू उत्पादन में खनिजों का तथा उद्योगों का फ़ीसद हिस्सा कितना-कितना है ?
उत्तर-
देश के घरेलू उत्पादन में खनिजों का हिस्सा 2.2% से 2.5% है तथा उद्योगों का 10% से 11% तक बनता

प्रश्न 3.
कौन-सी धातु आधुनिक सभ्यता की रीढ़ की हड्डी है ?
उत्तर-
लोहा आधुनिक सभ्यता की रीढ़ की हड्डी है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न 4.
हल्के भूरे पीले रंग का लोहा, कौन-सी किस्म का हो सकता है ?
उत्तर-
लिमोनाइट किस्म का लोहा हल्के भूरे पीले रंग का होता है।

प्रश्न 5.
मयूरभंज और क्योंझर खाने कौन से राज्य में पड़ती हैं ?
उत्तर-
मयूरभंज और क्योंझर खाने उड़ीसा राज्य में पड़ती हैं।

प्रश्न 6.
प्राचीन मनुष्य किस धातु का अधिक उपयोग करता था ?
उत्तर-
तांबा का उपयोग प्राचीन मनुष्य सबसे अधिक करता था।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न 7.
भारत में तांबे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है ?
उत्तर-
भारत में तांबे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश है।

प्रश्न 8.
एल्यूमीनियम बनाने के लिए किस खनिज का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
एल्यूमीनियम बनाने के लिए बॉक्साइट खनिज का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 9.
इस्पात बनाने के लिए कौन-सा खनिज प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
लोहे से इस्पात बनाया जाता है तथा इसके लिए मैंगनीज़ का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न 10.
‘काला सोना’ कौन से खनिज पदार्थ को कहते हैं ?
उत्तर-
‘काला सोना’ कोयले को कहते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में सर्वोत्तम कोयला कौन से क्षेत्र से निकाला जाता है ?
उत्तर-
भारत में सर्वोत्तम कोयला जम्मू कश्मीर से निकाला जाता है।

प्रश्न 12.
डिगबोई तथा अंकलेश्वर में क्या समानता है ?
उत्तर-
डिगबोई तथा अंकलेश्वर दोनों ही भारत के प्रमुख पैट्रोलियम उत्पादक केन्द्र हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न 13.
कोझिकोड़ तथा फिरोजगंज कौन-सी ऊर्जा के उत्पादन के केन्द्र हैं ?
उत्तर-
कोझिकोड़ पवन ऊर्जा का तथा फिरोजगंज बिजली उत्पादन के केन्द्र हैं।

प्रश्न 14.
स्रोतों की संभाल संबंधी 1992 को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कहां पर हुआ था ?
उत्तर-
ब्राजील के शहर रिओ डी जनेरियो में 1992 को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में स्रोतों की संभाल की सख्ती के साथ वकालत की गई।

प्रश्न 15.
IREDA का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
Indian Renewable Energy Development Agency भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेन्सी।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
कोयला, ऊर्जा का दोहरा स्रोत कैसे है ?
उत्तर-
कोयला हमारे देश की आर्थिकता को जितनी मज़बूती देता है उतना ही महत्त्व यह ऊर्जा के क्षेत्र में भी रखता है। भारत में आर्थिकता की वृद्धि दर 8 से 10% प्रति वर्ष है इसके साथ ही ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। अब कोयले से बिजली भी पैदा की जा रही है। इसलिए कोयले को ऊर्जा का दोहरा स्रोत कहते हैं।

प्रश्न 2.
बंबे हाई के साथ संक्षिप्त जान पहचान करवाएं।
उत्तर-
बंबे हाई मुंबई शहर से 176 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम की तरफ अरब सागर में स्थित है तथा यहाँ तेल और प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार मिलते हैं। जिस कारण इसकी विशेषता में वृद्धि होती जा रही है।

प्रश्न 3.
जैविक और अजैविक खनिजों की दो-दो उदाहरणे दो।
उत्तर-
जैविक और अजैविक खनिजों की उदाहरणे हैंजैविक स्त्रोत-जंगल, फसलें इत्यादि। अजैविक स्त्रोत-भूमि, पानी इत्यादि।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

प्रश्न 4.
कच्चे लोहे की चार किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
कच्चे लोहे के चार प्रकार निम्नलिखित हैं—

  1. मैग्नेटाइट
  2. हैमेटाइट
  3. लिमोनाइट
  4. साइडेराइट।

प्रश्न 5.
तांबे की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
तांबे की तीन विशेषताएं निम्नलिखित हैं—

  1. तांबा हल्के गुलाबी भूरे रंग की धातु है यह समूह में मिलती है।
  2. तांबा बिजली और ताप का अच्छा संचालक है।
  3. इससे जंग नहीं लगता।
  4. इसको किसी भी धातु के साथ मिलाकर मिश्रित धातु बनाई जा सकती है।

प्रश्न 6.
बॉक्साइट का उपयोग कौन-कौन से कार्यों में किया जाता है ?
उत्तर-

  1. बॉक्साइट का उपयोग एल्यूमीनियम बनाने में किया जाता है।
  2. इसके अतिरिक्त बॉक्साइट का उपयोग सीमेंट बनाने में, आग रोकने वाली भट्टी बनाने इत्यादि कार्यों के लिए भी किया जाता है।

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प्रश्न 7.
मैंगनीज कैसी धातु है और कहाँ पर मिलती है ?
उत्तर-
मैंगनीज हल्के स्लेटी रंग की धातु है, जो कि साधारणतया कच्चे लोहे के साथ ही खानों के बीच हमें मिलती है। लोहे से इस्पात बनाने के लिए मुख्य रूप में इसका उपयोग किया जाता है। भारत में यह उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश इत्यादि राज्यों से मिलता है।

प्रश्न 8.
वायु ऊर्जा उत्पादन में भारत के मुख्य राज्य हैं ?
उत्तर-
वायु ऊर्जा उत्पादन में भारत के मुख्य राज्य हैं-तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तथा केरल इत्यादि।

प्रश्न 9.
ज्वारीय ऊर्जा किस तरह उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
ज्वारीय ऊर्जा अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तरह एक भरोसे-योग्य ऊर्जा है। समद्र में ज्वार-भाटा तथा सागरीय धाराओं के साथ चलने वाली टरबाइनें, पानी की पिछली सतह पर लगाई जाती हैं। इस तरह ज्वारीय ऊर्जा पैदा की जाती है। सौभाग्यवश से दक्षिणी भारत तीनों सिरों से समुद्र के साथ घिरा हुआ है। इस तरह यहाँ ज्वारीय शक्ति के साथ बिजली पैदा करने की संभावना तथा योग्यता है।

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प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
कच्चे लोहे की किस्मों का वर्णन करो।
उत्तर-
कच्चे लोहे के प्रकार निम्नलिखित हैं—

  1. मैग्नेटाइट-यह सबसे उच्च कोटि का कच्चा लोहा है। इसके बीच 72% शुद्ध लोहे के अंश मिलते हैं। इसके गुण चुंबकीय होने के कारण इसको मैग्नेटाइट कहते हैं।
  2. हैमेटाइट-इस किस्म के कच्चे लोहे में 60 से लेकर 70 प्रतिशत तक शुद्ध लोहे के अंश होते हैं। इसे दूसरे स्तर का हैमेटाइट लोहा भी कहते हैं।
  3. लिमोनाइट-इसका रंग पीला या हल्का भूरा होता है। इसमें 40 से 60 प्रतिशत तक शुद्ध कच्चे लोहे के अंश होते हैं। इससे तीसरे स्तर का लिमोनाइट लोहा कहते हैं।
  4. साइडेराइट- यह खासकर काफी अशुद्धियों से भरा होता है इसमें 40 से 50 प्रतिशत तक ही शुद्ध लोहे के अंश होते हैं। इसकी गिनती चौथे स्तर के कच्चे लोहे के रूप में की जाती है।

प्रश्न 2.
भारत में तांबे के उत्पादन के व्यापार से पहचान करवाओ।
उत्तर-
तांबे का उपयोग मनुष्य प्राचीन काल से ही कर रहा है। तांबे के उत्पादन तथा व्यापार का वर्णन निम्नलिखित है—
भारत में तांबे के भंडार बहुत ही कम हैं। हमारा देश संसार का कुल 2% तांबा पैदा कर रहा है। देश में तांबे के अन्तर्गत कुल 69 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। इसमें सिर्फ 20 हजार वर्ग किलोमीटर में से ही तांबा निकाला जाता है। तांबे के मुख्य उत्पादक राज्य हैं—

1.मध्य प्रदेश-यह तांबे का भारत में सबसे बड़ा उत्पादक प्रदेश है। मलंजखंड, तारेगऊ, पट्टी, मध्य प्रदेश में तांबे का उत्पादन सबसे अधिक करते हैं। यह पट्टी बालाघाट प्रांत में है, जहाँ 8.33 मिलियन कच्चे तांबे के भंडार में से 1,006 हजार टन धातु मौजूद है।

2. राजस्थान-राजस्थान तांबा उत्पादन करने वाला दूसरा बड़ा राज्य है, जो भारत का 40 प्रतिशत तांबा पैदा करता है। तांबे के भंडार अरावली क्षेत्र में मौजूद हैं। राजस्थान के प्रांत अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डुगरपुर, जयपुर, झुनझुनु, पाली, सीकर, सिरोही तथा उदयपुर में 6 करोड़ टन कच्चे तांबे के भंडार हैं।

3. झारखंड-झारखंड में सिंहभूमि प्रांत के मोसाबनि, खोडाई रख्खा, पारसनाथ, बरखानाथ इत्यादि प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
भारत का तांबे का उत्पादन बहुत कम है। इसलिए हम तांबा विदेशों में से मंगवा रहे हैं। मुख्य तौर पर अमेरिका, कैनेडा, जिम्बाब्बे, जापान तथा मैक्सिको मुख्य तांबा निर्यातकर्ता देश हैं।

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प्रश्न 3.
बॉक्साइट के उपयोग तथा व्यापार के बारे में संक्षिप्त से बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज एक हल्के रंग की धातु है जो कि मुख्य रूप में कच्चे लोहे के साथ ही खानों में मिलती है। लोहे से अगर इस्पात बनाया जाता है, तब मैंगनीज का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ब्लीचिंग पाऊडर, कीटनाशक, रंग तथा टार्च बनाने में भी मैंगनीज का उपयोग किया जाता है। साल 2012-13 में इस खनिज का उत्पादन 23 लाख से 22 हजार टन हो गया है। उत्पादन के लिहाज से उड़ीसा (44%) सबसे बड़ा भारत का उत्पादक देश है, उसके बाद कर्नाटक (22%), मध्य प्रदेश (13%), महाराष्ट्र (8%), आन्ध्रप्रदेश (4%), झारखंड तथा गोआ (3%), राजस्थान, गुजरात तथा पश्चिमी बंगाल मिलकर 3% मैंगनीज का उत्पादन करते हैं।

साल 2012-13 में मैंगनीज़ का निर्यात 72 हजार टन था। भारतीय मैंगनीज का मुख्य खरीददार चीन (99%) ही है। उपयोग योग्य मैंगनीज की पूर्ति कम होने के कारण भारत को मैंगनीज बाहर से मंगवाना पड़ता है। 2012-13 के सालों में 23 लाख 30 हजार टन मैंगनीज़ आयात किया गया।

प्रश्न 4.
कोयले की किस्मों तथा उनके गुणों के बारे में संक्षिप्त में बताओ।
उत्तर-
कोयले की किस्में तथा उनके गुण इस प्रकार हैं—
1. ऐन्थेसाइट- इस प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा 85 प्रतिशत से अधिक होती है। यह एक बेहतरीन प्रकार का कोयला होता है। यह बहुत सख्त होता है और देर तक जलता है जिसके कारण अधिक ऊर्जा देता है और धुएं की कमी होती है।

2. बिटुमिनस-इस तरह के कोयले में कार्बन की मात्रा 50 से 85 प्रतिशत तक होती है। यह भी सख्त किस्म का कोयला होता है तथा इसमें कार्बन की मात्रा अधिक होती है। ऊर्जा बहुत देता है तथा धुएं की कमी होती है। कोकिंग कोयला तथा स्टीम कोयला इस प्रकार का होता है।

3. लिग्नाइट-इस तरह के कोयले में कार्बन की मात्रा 35 से 50 प्रतिशत तक होती है। इसको भूरे काले रंग वाला कोयला कहते हैं। इस प्रकार के कोयले में धुएं की भी अधिक मात्रा होती है। इसका प्रयोग ताप विद्युत् में किया जाता है।

4. पीट-इस प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा 35 प्रतिशत से भी कम होती है। यह सबसे घटिया किस्म का कोयला होता है। यह भूरे रंग का कोयला है और जलने के बाद धुएं की बहुत मात्रा निकलती है।

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प्रश्न 5.
भारत में पैट्रोलियम के उत्पादक क्षेत्र कौन से हैं ?
उत्तर-
भारत में पैट्रोलियम के उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. असम-असम भारत के पैट्रोल निकालने वाले क्षेत्रों में सबसे पुराना केन्द्र है। डिगबोई, बप्पायुंग, हंसापुंग, सुरमाघाटी में बदरपुर, मसीमपुर, पथरिया इत्यादि पैट्रोल उत्पादक क्षेत्र हैं।
  2. नहरकटिया क्षेत्र-असम में यह एक नवीन तेल क्षेत्र है जिसमें नहरकटिया, हुगरीजन, मोरान, लकवा इत्यादि मुख्य केन्द्र हैं।
  3. गुजरात में अंकलेश्वर कैम्बे, लयुनेज़, कलोल, डोलका, सनंदा, बेवल बाकल तथा कटान इत्यादि पैट्रोल तथा प्राकृतिक गैस के मुख्य उत्पादक केन्द्र हैं।
  4. बंबे हाई-यह शहर मुंबई शहर से 176 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में अरब सागर में आता है। यहाँ तेल तथा प्राकृतिक गैस के अच्छे भंडार हैं।

प्रश्न 6.
भारत में सौर ऊर्जा के उत्पादन तथा वितरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी पर हर एक ऊर्जा का जन्म सौर ऊर्जा द्वारा हुआ माना जाता है। वस्तुओं को सुखाने, उन्हें गर्म करने, खाना बनाने तथा फोटोवोलटिक पैनलों के द्वारा बिजली बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
भारत में 6 अप्रैल, 1917 तक सौर ऊर्जा का सामर्थ्य 12.28 GW गीगावाट के करीब था। भारत सरकार ने 2022 तक एक लाख मैगावाट सौर ऊर्जा के साथ बिजली तैयार करने का उद्देश्य रखा है।

वितरण-आर्थिक साल 2016-17 में आन्ध्र प्रदेश में 1,294.26 MW मैगावाट उत्पादन का योगदान डाला था। इस नाम में 1000 किलोवाट = 1 मैगावाट, 1 गीगावाट = 1000 मैगावाट। दूसरे नंबर पर कर्नाटक फिर तेलंगाना, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि स्थान शामिल होते हैं। 2017 साल में विश्व बैंक ने सौर ऊर्जा के विकास के लिए एक अरब डालर का कर्ज दिया है जोकि विश्व के बाकी देशों से सबसे अधिक है।

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प्रश्न 7.
स्थायी विकास पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
स्थायी विकास उस विकास को कहते हैं जिसमें मौजूदा पीढ़ी की आवश्यकताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है तथा साथ ही आने वाली पीढ़ी की आवश्यकताओं तथा मांगों का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। हमारे वर्तमान समाज की यह एक जोरदार मांग भी है ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए स्रोतों की संभाल की जा सके और वे भी इन स्रोतों का पूरा-पूरा लाभ उठा सकें। हालांकि विकसित देशों के द्वारा अपनाये गए विकास मॉडल जिन्होंने उन्हें विकसित बनाया है, इसमें अधिकतर सिर्फ वर्तमान को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं। इस तरह ये भविष्य के लिए खतरा भी सिद्ध हुए हैं। इसलिए ज़रूरी है कि अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे के साथ हम अपने ग्रह के प्राकृतिक साधन बचा सकें ताकि गरीबी से छुटकारा पाकर खुशहाल जिन्दगी व्यतीत कर सकें तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति प्राप्त कर सकें।

प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
प्राकृतिक स्रोतों की संभाल के बारे में किए प्रयत्नों की जरूरत से पहचान करवाओ।
उत्तर-
किसी भी देश का विकास उस देश के प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करता है। क्योंकि सभी उद्योग प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करते हैं। इस तरह देश के हर पक्ष से विकास के लिए स्रोतों के उपयोग की बहुत ज़रूरत होती है, परन्तु प्रत्येक देश अपने आर्थिक विकास के कारण स्रोतों का अन्धाधुंध उपयोग कर रहे हैं जिसके कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है। महात्मा गांधी जी ने इस लूट का कारण लिखा है कि धरती पर हर व्यक्ति की ज़रूरत के लिए बहुत स्रोत हैं पर किसी के भी लालच के लिए कोई नहीं। ब्राजील के शहर रीओ डी जेनेरियो में 1992 में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान स्रोतों की संभाल की सख्ती के साथ वकालत की गई।

मनुष्य अपनी ज़रूरतों को पूरी करने के लिए प्राकृतिक स्रोतों को अधिक से अधिक लूट रहे हैं। अगर हम इन प्राकृतिक स्रोतों की इस प्रकार ही लूटते चले गए, तो आने वाले पीढ़ी के लिये कुछ भी साफ सुथरा छोड़ कर नहीं जा सकेंगे इसलिए स्रोतों की संभाल की आवश्यकता है। क्योंकि—
1. स्रोत पारिस्थितिक तंत्र को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक हैं।

2. प्राकृतिक प्रजातियों को बचाने की योग्यता बनाये रखने के लिए जो प्राकृतिक जीव इत्यादि मिलते हैं उनको नुकसान पहुंचाने पर रोक होनी चाहिए।

3. मौजूदा और आने वाली पीढ़ी के लिए स्रोत बरकरार रखने के लिए स्रोतों का फालतू उपयोग नहीं करना चाहिए। सिर्फ अपनी ज़रूरत के अनुसार उनका उपयोग करना चाहिए, ताकि स्रोतों का अधिक नुकसान न हो तथा आने वाली पीढ़ी के लिए यह स्रोत बचे रहें तथा वे भी इसका लाभ उठा सकें।

4. मनुष्य की रक्षा के लिए स्थायी या निरंतर विकास (Sustainable Development)-स्थाई या निरंतर विकास वह विकास होता है जिसमें मौजूदा पीढ़ी तथा आने वाली पीढ़ी के बारे ध्यान रखा जाता है। मौजूदा समाज को विकास के इस मॉडल की आवश्यकता है, ताकि वर्तमान के साथ-साथ भविष्य का भी ध्यान रखा जा सके। हालांकि विकसित देशों की तरफ अपनाये गए विकास मॉडल जिन्होंने उनको विकसित बनाया है में से अधिकतर सिर्फ वर्तमान को मुख्य रख कर बनाये गये थे। ये भविष्य के लिए खतरा भी सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे के साथ हम अपने ग्रह के प्राकृतिक साधन बचा सकें, ताकि गरीबी से छुटकारा पाकर खुशहाल जिन्दगी व्यतीत कर सकें और राष्ट्रीय शान्ति प्राप्त कर सकें।

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प्रश्न 2.
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा पैदा करने की क्या संभावनाएं हैं ? वायु ऊर्जा उत्पादन से पहचान करवाओ।
उत्तर-
विश्व में तेल, कोयला तथा गैस की मांग लगातार बढ़ने के कारण ऊर्जा संकट पैदा हो गया। इसलिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग आवश्यक हो गया। इसमें कोयला, प्राकृतिक गैस, पैट्रोल इत्यादि के प्रयोग को कम करने के लिए सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है तथा इनकी महत्ता में भी वृद्धि हो रही है। यह स्रोत नवीकरणीय हैं, कोई प्रदूषण नहीं करते, पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसी ऊर्जा का उपयोग दूर-दराज के क्षेत्रों में किया जाता है। यह ऊर्जा भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने योग्य है। इस ऊर्जा का महत्त्व समझते हुए भारत सरकार ने 1987 में नवीकरणीय ऊर्जा विकास संबंधी ऐजेंसी IREDA का संगठन किया तथा 1992 में गैर परंपरागत विकास ऊर्जा स्रोत मन्त्रालय का गठन किया। यह मन्त्रालय अब तेजी के साथ इस दिशा में काम कर रहा है।

भारत में 6 अप्रैल, 1917 तक कुल सौर ऊर्जा की योग्यता 12.28 GW गीगावाट थी। भारत सरकार ने 2022 तक 1,00,000 मैगावाट सौर ऊर्जा के साथ बिजली तैयार करने का लक्ष्य रखा है। 2016-17 में आंध्र प्रदेश ने 1,294.26 मैगावाट उत्पादन का योगदान डाला था। (इस नाप में 1000 किलोवाट = 1 मैगावाट, 1 गीगावाट = 1000 मैगावाट।) दूसरे नंबर पर कर्नाटक (888.38 MW) तथा फिर तेलंगाना (759.13 MW) फिर राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि राज्य शामिल हैं विश्व बैंक ने इसके लिए एक अरब डालर का कर्जा दिया है जोकि विश्व के किसी और देश से अधिक है क्योंकि भारत का 1,00,000 मैगावाट का लक्ष्य भी संसार में सबसे अधिक है। स्पष्ट है कि भविष्य की जरूरतों को मुख्य रखकर देश की तरफ से ऊर्जा क्षेत्रों में बड़ी कोशिशें की गई हैं।
देश में नवीकरणीय स्रोतों का विकास निम्नलिखित हैं—

क्षेत्र सामर्थ्य विकास
वायु ऊर्जा 20.000 MW 900 MW
सौर ऊर्जा 20 MW/sq. KM 810 MW
पानी गर्म करके सिस्टम 4,20,000
सोलर कुक्कर 4,57,000
बायोगैस 12 Million 2.5 million
धुएं रहित चुल्हे 120 million 23.7 million

वायु ऊर्जा-वायु ऊर्जा एक परंपरागत ऊर्जा साधन है। वायु वेग के साथ टरबाइन चला कर बिजली पैदा की जाती हैं। वायु ऊर्जा का सफलतापूर्वक प्रयोग सबसे पहले नीदरलैंड्स में किया गया है। कैलिफोर्निया में भी ऊर्जा का विकास किया गया है। इसके लिए महंगी तकनोलॉजी तथा अधिक पूंजी की ज़रूरत होती है क्योंकि वायु साफ होती है और प्रदूषण रहित है। इसलिए इसकी काफी उपलब्धि है। 2016-17 में वायु ऊर्जा 5400 मैगावाट और 2017-18 में 6000 मैगावाट होने के उम्मीद है। देश में अलग-अलग राज्यों के अनुसार वायु ऊर्जा उत्पादन का वितरण इस प्रकार है—
Installed wind capacity by State as of Oct. 2016

State Total capacity (MW)
Tamilnadu 7,684.31
Maharashtra 4,664,08
Gujarat 4,227.31
Rajasthan 4,123.35
Karnataka 3,082.45
Madhya Pradesh 2,288.60
Andhra Pradesh 1,366.35
Telangana 98.70
Kerala 43.50

 

प्रश्न 3.
कोयला उत्पादन में भारत के अलग-अलग राज्यों की स्थिति क्या है ? नोट लिखो।
उत्तर-
कोयले के उपयोग तथा उद्योगों के बीच इसके विशेष महत्त्व के कारण कोयले को काला सोना भी कहते हैं क्योंकि जिस तरह सोना आर्थिकता को मज़बूती देता है, उसी तरह कोयला भी ऊर्जा क्षेत्र में काफी महत्त्व रखता है। कोयला एक तहदार चट्टान है जोकि करोड़ों साल पहले जंगलों के धरती के नीचे दब जाने के कारण बनी थी। जिस पर भार और उच्च तापमान के कारण कोयले में तबदील हो गया। कोयले की मांग तथा ज़रूरतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। आजकल तो कोयले से बिजली भी पैदा की जा रही है।
कोयले के प्रकार (Types of coal)—

  1. एंथेसाइट
  2. बिटुमिनस
  3. लिग्नाइट
  4. पीट

भारत में कोयले के उत्पादन के अधीन भारत के अलग-अलग राज्यों की स्थिति इस प्रकार है—
1. झारखंड-भारत के कुल कोयला उत्पादन में झारखंड पहला स्थान रखता है जो कि कुल कोयला उत्पादन में 27.3 प्रतिशत हिस्सा डालता है। झारखंड में कोयला उत्पादन के मुख्य स्थान हैं-दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो, कर्णपुर, गिरिडीह, डालटनगंज, जमशेदपुर, आसनसोल, दुर्गपुर तथा बोकारो, राजमहल इत्यादि।

2. उड़ीसा-उड़ीसा भारत के कुल कोयला उत्पादन में 24 प्रतिशत हिस्सा डालता है। इसके प्रमुख स्थान हैं सांबलपुर, तालचेर, गणापुर, हिमगिरि इत्यादि।

3. छत्तीसगढ़-छत्तीसगढ़ भारत के कुल कोयला उत्पादन में 18 प्रतिशत तक का हिस्सा डालता है। इस राज्य में 12 कोयले की खाने हैं और इन खानों में 44 अरब, 48 करोड़, 30 लाख टन कोयला भंडार होने का एक अनुमान है। इसके मुख्य कोयला उत्पादक केंद्र हैं-सिंगरौली, कोरबा, सुहागपुर, रामपुर, पत्थर खेड़ा, सोनहट, सुरगुजा इत्यादि। इस राज्य का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान है।

4. मध्य प्रदेश-मध्य प्रदेश के उमारिया, सुहागपुर, सिंगरौली इत्यादि प्रमुख कोयला उत्पादक स्थान हैं।

5. आन्ध्र प्रदेश-इस क्षेत्र के पश्चिमी गोदावरी नदी घाटी में सिंगरौली, कोठगुडम तथा तंदूर खाने हैं।

6. तेलंगाना-प्रणीहता गोदावरी घाटी अपने पास कोयले के भंडारों के कारण काफी प्रसिद्ध है। अदीनबाद, करीमनगर खम्म, निजामाबाद, वारंगल प्रांत में उत्तरी आसिफाबाद उत्तर तथा दक्षिणी गोदावरी में सिंगरेनी प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र हैं। महाराष्ट्र में वर्धा घाटी में चंद्रपुर तथा बल्लारपुर इत्यादि। पश्चिमी बंगाल के रानीगंज आसनसोल इत्यादि स्थानों से कोयला निकाला जाता है।

भारत ने 2015-16 के साल में पहली बार 2 से 3 मिलियन टन कोयला पड़ोसी देश बंगलादेश को निर्यात किया। कोयले का उत्पादन साल 2015-16 में 8.5 प्रतिशत तक बढ़ गया।
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प्रश्न 4.
बीमार प्रांत कौन से हैं ? इनमें से तांबे का उत्पादन कौन से राज्य करते हैं?
उत्तर-
20वीं सदी में भारत के बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए एक कहावत प्रसिद्ध हो गई कि ये बीमार राज्य थे तथा यह नाम काफी प्रचलित रहा। इनको यह नाम देने का कारण यह था कि यहाँ विकास की दर काफी धीमी थी जबकि यहाँ जनसंख्या बहुत अधिक थी। पर आज के समय में यह स्थिति बदलती जा रही है। उस समय झारखंड भी बिहार राज्य का ही एक हिस्सा था और भरपूर स्रोतों के बावजूद विकास का न होना इन राज्यों पर एक धब्बा था।
बीमार प्रान्तों में आजकल हालात बदलते जा रहे हैं। इनमें विकास हो रहा है। इनमें मुख्य तांबा उत्पादक राज्य इस प्रकार हैं—

1. मध्य प्रदेश-मध्य प्रदेश में सबसे अधिक तांबे का उत्पादन होता है तथा 20वीं सदी में यह बीमार सबे की पंक्ति में आता है। मध्य प्रदेश के मालंजखंड, तारोगाऊ पट्टी सब बड़े तांबा उत्पादक क्षेत्र हैं। इनके अतिरिक्त बालाघाट प्रांत में ही 8.33 मिलियन कच्चे तांबे के भंडार हैं जहाँ पर 1,006 हजार टन तांबा प्राप्त किया जाता है।

2. राजस्थान-भारत में राजस्थान तांबे के उत्पादन में दूसरा प्रमुख क्षेत्र है। इस स्थान पर भारत का 40 प्रतिशत तांबा प्राप्त किया जाता है। तांबे के भंडार मुख्य रूप में अरावली पर्वत श्रेणी में मौजूद हैं। अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, झुनझुनु, पाली, सीकर, सिरोही तथा उदयपुर प्रांतों में तांबे के प्रमुख भंडार हैं जो राजस्थान में मौजूद हैं।

3.  झारखंड-झारखंड राज्य के हजारी बाग तथा सिंहभूमि जिलों में से तांबा प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 5.
खनिज पदार्थ के विभाजन के अलग-अलग तरीके क्या हैं ? विस्तार से चर्चा करो और उदाहरण भी दो।
उत्तर-
किसी भी औद्योगिक विकास के लिए खनिज विशेष महत्त्व रखते हैं। इन्हें उद्योगों की रीढ़ की हड्डी कहते हैं। खनिज सामान बनाने, मशीनों, आटोमोबाइल, डिफैंस का सामान बनाने, रेलवे के इंजन, जहाज़ इत्यादि बनाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। खास कर इनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर खनिजों को आगे दो भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. धातु खनिज (Metallic Minerals)
  2. अधातु खनिज (Non-Metallic Minerals)

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खनिजों को उनके रंग, सख्त, प्राकृतिक तथा भौतिक, रासायनिक गुणों के आधार पर आगे दो भागों धातु और अधातु में विभाजित किया जाता है। इनके अतिरिक्त कुछ खनिजों को ऊर्जा स्रोतों के रूप में भी उपयोग किया जाता है जैसे कि कोयला तथा पैट्रोलियम इत्यादि।

1. धातु खनिज (Metallic Minerals)-इनमें सारे धातु शामिल हैं। इन खनिजों में कुछ नर्म होते हैं और कुछ सख्त होते हैं जैसे कि कच्चा लोहा, बॉक्साइट, इस्पात, सोना इत्यादि।

  • लौह धातु (Ferrous Minerals)-जिन खनिजों में लौह अंश मौजूद होते हैं उन्हें लौह धातु कहते हैं जैसे कि मैंगनीज, कच्चा लोहा इत्यादि।
  • अलौह धातु (Non-Ferrous Minerals)-जिन खनिजों में लोहे के अंश मौजूद नहीं होते हैं वह अलौह धातु कहलाते हैं। इनकी उदाहरण हैं सोना, लैड, जिंक इत्यादि। ये धातुएं, बिजली का सामान बनाने, अभियान्त्रिकी का सामान बनाने तथा रासायनिक उद्योगों के लिए काफी उपयोगी हैं।।

2. अधातु खनिज (Non-Metallic Minerals)-जिन खनिजों में धातु कम होती हैं अधातु खनिज कहते हैं। यह खासकर नर्म तथा चमकीले होते हैं, जैसे कि सल्फर, चूना पत्थर, साल्टपीटर इत्यादि।

3. खनिज पदार्थ (Mineral Fuels)-इनके अन्तर्गत खासकर कोयला, पैट्रोल, प्राकृतिक गैस इत्यादि आ जाते हैं। कोयला जिसको काला सोना कहते हैं ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है। यह एक तहदार चट्टान है जो कि करोड़ों साल पहला जंगलों की धरती के नीचे दब जाने के बाद भार और उच्च तापमान के कारण कोयले में बदल गया। अब कोयले की सहायता से बिजली पैदा की जा रही है। पैट्रोलियम तहदार चट्टानों में से निकाले खनिज तेल को साफ करके बनाया जाता है। इसमें सबसे अधिक ज्वलनशीलता होती है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक गैस भी ऊर्जा का एक मुख्य स्रोत है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

Geography Guide for Class 12 PSEB आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में दक्षिणी अफ्रीका का सबसे अग्रणी पैट्रोलियम उत्पादक राज्य कौन सा है ?
(A) भारत
(B) पेरू
(C) वेनेजुएला
(D) लीबिया।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 2.
भारत के कुल घरेलू उत्पादन में खनिज कितना हिस्सा डालते हैं ?
(A) 5% से 10%
(B) 2.2% से 2.5%
(C) 8% से 10%
(D) 2.5% से 2.9%।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 3.
मैग्नेटाइट में शुद्ध कच्चे लोहे के कितने प्रतिशत अंश होते हैं ?
(A) 72%
(B) 70%
(C) 69%
(D) 79%.
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सी लोहे की किस्म नहीं है ?
(A) मैग्नेटाइट
(B) हैमेटाइट
(C) लिमोनाइट
(D) लिगनाइट।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 5.
भारत में कच्चे लोहे का उत्पादन सबसे अधिक किस राज्य में होता है ?
(A) कर्नाटक
(B) रांची
(C) बिहार
(D) गोआ।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किस धातु का उपयोग मनुष्य द्वारा प्राचीन काल से किया जा रहा है ?
(A) लोहा
(B) कोयला
(C) तांबा
(D) पीतल।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 7.
भारत में तांबे का क्षेत्र कितने वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ?
(A) 69 हजार
(B) 65 हजार
(C) 70 हजार
(D) 62 हजार।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से भारत किस देश से तांबा आयात करता है ?
(A) अमेरिका
(B) बंगलादेश
(C) पाकिस्तान
(D) अफ्रीका।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 9.
एल्यूमीनियम को किस धातु से बनाया जाता है ?
(A) बॉक्साइट
(B) मैंगनीज़
(C) इस्पात
(D) मीका।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन से स्रोत परंपरागत ऊर्जा के स्रोत नहीं हैं ?
(A) कोयला
(B) खनिज तेल
(C) सौर ऊर्जा
(D) प्राकृतिक गैस।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित खनिजों में से किसका झारखंड बड़ा उत्पादक राज्य है ?
(A) बाक्साइट
(B) कच्चा लोहा
(C) इस्पात
(D) तांबा।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 12.
सबसे कठोर खनिज कौन सा है ?
(A) डायमंड
(B) ग्रेनाइट
(C) गैबरो
(D) बसाल्ट।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 13.
हैमेटाइट में शुद्ध लौह धातु के कितने अंश होते हैं ?
(A) 60 से 70%
(B) 20 से 30%
(C) 30 से 40%
(D) 40 से 50%.
उत्तर-
(A)

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में महाराष्ट्र के कौन-से जिले में मैंगनीज़ का उत्पादन नहीं होता ?
(A) नागपुर
(B) बंधारा
(C) रत्नागिरी
(D) पूना।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 15.
ऊर्जा के स्रोतों में किसको काला सोना कहते हैं ?
(A) कोयला
(B) तांबा
(C) पैट्रोल
(D) सौर ऊर्जा।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 16.
ब्राजील के शहर रीओ डी जेनेरियो में राष्ट्रीय सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 1992
(B) 1993
(C) 1994
(D) 1995.
उत्तर-
(A)

प्रश्न 17.
मध्य प्रदेश में नागदा पहाड़ियों में कितने मैगावाट का पवन ऊर्जा फार्म लगाया गया है ?
(A) 15
(B) 17
(C) 18
(D) 20.
उत्तर-
(A)

प्रश्न 18.
ONGC मैंगलोर शोधनशाला भारत के किस राज्य में है ?
(A) महाराष्ट्र
(B) कर्नाटक
(C) तमिलनाडु
(D) केरल।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य 20वीं सदी में बीमार राज्य के तौर पर जाना जाता था ?
(A) बिहार
(B) पंजाब
(C) महाराष्ट्र
(D) गुजरात।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 20.
निम्नलिखित में से कौन सी मैंगनीज की महत्ता नहीं है ?
(A) इस्पात बनाता है |
(B) कीटनाशक बनाती है
(C) ब्लीचिंग पाऊडर बनाता है
(D) कपड़े बनाता है।
उत्तर-
(D)

B. खाली स्थान भरें :

  1. खनिज, लोहा, तांबा, सोना इत्यादि को ………….. तथा ………. धातु में विभाजित किया जाता है।
  2. भारत में बिहार ………… ……….. तथा …………. राज्यों के लिए 20वीं सदी में बीमार राज्य’ नाम प्रसिद्ध हुआ।
  3. मैग्नेटाइट में …….. गुण होने के कारण इसको मैग्नेटाइट कहते हैं।
  4. ……. संसार का पांचवां बड़ा लोहा आयातक देश है।
  5. भारत में बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक ………. राज्य है।
  6. ……….. स्रोत बेजान होते हैं।
  7. पवन ऊर्जा ……….. स्रोतों की उदाहरण है।
  8. ……. सबसे बढ़िया किस्म का कोयला है।

उत्तर-

  1. लौह, अलौह,
  2. मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश,
  3. चुंबकीय,
  4. भारत,
  5. उड़ीसा,
  6. अजैविक,
  7. नवीकरणीय
  8. एंथ्रासाइट

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C. निम्नलिखित कथन सही (V) हैं या गलत (x):

  1. अभ्रक, चूना पत्थर, ग्रेफाइट इत्यादि अजैविक खनिज हैं।
  2. पहले झारखंड भी बिहार राज्य का ही हिस्सा होता था।
  3. पीट सबसे अच्छा किस्म का कोयला है।
  4. साइडेराइट कच्चे लोहे में किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं होती।
  5. मैंगनीज हल्के स्लेटी रंग की धातु है।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. गलत,
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले उत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर खनिजों को कौन-से दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
धातु और अधातु खनिज।

प्रश्न 2.
लौह खनिज के चार प्रकार बताओ।
उत्तर-
मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, लिमोनाइट, साइडेराइट।

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प्रश्न 3.
भारत में लौह खनिज के उत्पादक तीन राज्य बताओ।
उत्तर-
झारखंड, उड़ीसा, कर्नाटक।

प्रश्न 4.
तांबा उत्पादक तीन देश बताओ।
उत्तर-
संयुक्त राज्य, चिल्ली, रूस।।

प्रश्न 5.
कोयले के चार प्रमुख प्रकार बताओ।
उत्तर-
पीट, लिगनाइट, बिटुमिनस, एंथ्रासाइट।

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प्रश्न 6.
वित्तीय वर्ष 2015-16 में कोयले का भारत में उत्पादन कितना था ?
उत्तर-
63 करोड़ 92 लाख 34 हजार टन।

प्रश्न 7.
मुंबई हाई कहां स्थित है ?
उत्तर-
यह मुंबई शहर से 176 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की ‘फ अरब सागर में है।

प्रश्न 8.
भारत में पैट्रोल का कुल उत्पादन कितना है ?
उत्तर-
3.24 करोड़ टन।

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प्रश्न 9.
भारत में तेल की सबसे बड़ी रिफाइनरी कौन सी है ?
उत्तर-
जमुना नगर (गुजरात)

प्रश्न 10.
भारत में कच्चे लोहे का कुल उत्पादन कितना होता है ?
उत्तर-
7.5 करोड़ टन।

प्रश्न 11.
परंपरागत ऊर्जा के स्रोतों की उदाहरण दो।
उत्तर-
कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस तथा लकड़ी इत्यादि।

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प्रश्न 12.
जैविक स्त्रोत कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
वे स्रोत जिनमें जान होती है जैविक स्रोत कहलाते हैं, जैसे-जंगल।

प्रश्न 13.
भारत में किस राज्य में कोयले का सबसे अधिक उत्पादन होता है ?
उत्तर-
झारखण्ड।

प्रश्न 14.
भारत में कोयले के उत्पादन में वृद्धि के कोई दो कारण बताओ।
उत्तर-
रेलवे तथा दो विश्वयुद्ध।

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प्रश्न 15.
कोई दो अलौह धातुएं के नाम बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज तथा निक्कल।

प्रश्न 16.
भारत में कुल कितनी तेल रिफाइनरी हैं ?
उत्तर-
23 तेल रिफाइनरियां।

प्रश्न 17.
भारत में कौन-सा राज्य पवन ऊर्जा पैदा करने में आगे है ?
उत्तर-
तमिलनाडु।

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प्रश्न 18.
केरल के किस जिले पर पवन ऊर्जा फार्म योग्यता है ?
उत्तर-
पालाकोड़ जिले में कोजीकोड़ के स्थान पर योग्यता है।

प्रश्न 19.
उड़ीसा में पवन ऊर्जा योग्यता अधिक क्यों है ?
उत्तर-
क्योंकि उड़ीसा एक तटीय प्रांत है।

प्रश्न 20.
भारत में कितनी ज्वारीय ऊर्जा पैदा करने की योग्यता है ?
उत्तर-
8000 से 9000 मैगावाट।

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प्रश्न 21.
भारत सरकार ने 2022 तक कितनी ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य रखा है ?
उत्तर-
17.5 गीगावाट।

प्रश्न 22.
अधातु खनिजों को आगे कौन से दो भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
जैविक तथा अजैविक खनिज।

प्रश्न 23.
तांबे की कोई एक विशेषता बताओ।
उत्तर-
तांबे को जंग नहीं लगता।

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प्रश्न 24.
मैंगनीज़ का कोई एक उपयोग बताओ।
उत्तर-
इससे ब्लीचिंग पाऊडर बनता है।

प्रश्न 25.
गैर-अपारंपरिक स्रोतों की कोई दो उदाहरणे दो।
उत्तर-
कोयला, प्राकृतिक गैस।

प्रश्न 26.
सबसे बेहतरीन प्रकार का कोयला कौन सा है तथा इसमें शुद्ध कोयले का कितने % अंश होते हैं ?
उत्तर-
ऐन्थेसाइट, इसमें शुद्ध कोयले के 85% अंश होते हैं।

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प्रश्न 27.
लिग्नाइट कोयले का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-
यह अधिक धुआं छोड़ता है तथा जलने के बाद राख अधिक बचती है।

प्रश्न 28.
बिटुमिनस किस्म का कोयला कौन-से राज्यों में मिलता है ?
उत्तर-
झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश।

प्रश्न 29.
भारत में सबसे बढ़िया क्वालिटी के कच्चे लोहे के भंडार कहां पर मिलते हैं ?
उत्तर-
छत्तीसगढ़ में बलाड़िला, कर्नाटक में बेलारी, झारखण्ड तथा उड़ीसा में मिलते हैं।

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प्रश्न 30.
भारत के प्रमुख बॉक्साइट आयातक देश कौन से हैं ?
उत्तर-
चीन, कुवैत तथा कतर।

प्रश्न 31.
सुरक्षित पैट्रोलियम भंडारगृह देश के संकट समय कितने दिन तक सहायता कर सकते हैं ?
उत्तर-
10 दिन तक।

प्रश्न 32.
पवन की तेज़ गति के साथ टरबाइन चला कर बिजली क्यों पैदा की जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि पवन साफ, प्रदूषण रहित तथा बड़ी मात्रा में उपलब्ध होती है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खनिज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
खनिज धरती पर प्राकृतिक रूप में मिलने वाला पदार्थ है जिसकी अलग रासायनिक रचना होती है। हम खनिज को चट्टानों से प्राप्त करते हैं। खनिज एक या एक से अधिक तत्वों से मिलकर बनता है तथा इसका निश्चित रासायनिक संगठन होता है।

प्रश्न 2.
खनिज कितने किस्मों के होते हैं ? उदाहरणों के साथ लिखो।
उत्तर-
खनिज को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. धातु खनिज (Metallic Minerals)-जिन खनिजों में धातवीय गुण मौजूद होते हैं, उन्हें धातु खनिज कहते हैं। यह नर्म तथा कठोर दोनों तरह के होते हैं। इसमें लोहा, तांबा, एल्यूमीनियम, सोना, चांदी, खनिज पदार्थ शामिल किए जाते हैं जिनसे कई धातुएं तैयार की जाती हैं।
  2. अधातु खनिज (Non-Metallic Minerals) इसमें धातु गुण कम होते हैं, यह नर्म, गैर-चमकीले होते हैं। इसमें नमक, अभ्रक, चूने का पत्थर, ग्रेफाइट, डोलोमाइट, पोटाश, जिप्सम इत्यादि खनिज शामिल हैं। इनसे धातुएं नहीं बनाई जातीं।
  3. ईंधन खनिज पदार्थ (Fuel Minerals)—इसमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस शामिल हैं। इन्हें शक्ति के साधन भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
खनन की किस्में बताओ।
उत्तर-
खनन मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है—

  1. Open Cast Mining
  2. Shaft Mining
  3. Off-shore Drilling

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प्रश्न 4.
खनिजों का महत्त्व बताओ।
उत्तर-

  1. खनिज किसी भी देश के औद्योगिक विकास की रीढ़ की हड्डी हैं।
  2. खनिज उपकरण, मशीनें, कृषि उपकरण, बचाव उपकरण, मोटरगाड़ियां, रेल इंजन इत्यादि बनाने के लिए ज़रूरी
  3. खनिज पदार्थ जेवर, सिक्के, बर्तन तथा सजावट का सामान बनाने के लिए आवश्यक हैं।
  4. घर, मकान, पुल इत्यादि बनाने के लिए ज़रूरी हैं।

प्रश्न 5.
क्या भारत खनिज स्रोतों में सबसे समर्थ है ?
उत्तर-
भारत अपनी आवश्यकताओं पूरी करने के लिए अधिकतर खनिज स्रोतों में समर्थ है। भारत में कोयला, कच्चा लोहा, चूना पत्थर, बॉक्साइट तथा मैंगनीज़ में कुछ खनिजों को आयात किया जाता है। भारत में कोयले तथा तेल के भंडार कम हैं, पर नये तेल भंडार को ढूंढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

प्रश्न 6.
बीमार राज्यों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत में 20वीं सदी के समय बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश को बीमार राज्य कहा जाता हैं क्योंकि यहां जनसंख्या अधिक होने के पश्चात् भी विकास की दर काफी कम थी। इन हालातों में अब काफी हद तक परिवर्तन हो गया है। यहां स्रोतों की मौजूदगी थी पर फिर भी विकास में कमी थी।

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प्रश्न 7.
कच्चे लोहे के मुख्य प्रकारों के बारे में बताओ।
उत्तर-
कच्चे लोहे में धातु के अंश के अनुसार लोहा चार प्रकार का होता है—

  1. मैग्नेटाइट-इस बढ़िया प्रकार के लोहे में 70% से 72% धातु अंश होता है। इसका रंग लाल होता है।
  2. हैमेटाइट-इस किस्म में 60 से 70 प्रतिशत तक धातु अंश होते हैं।
  3. लिमोनाइट-इस पीले रंग के लोहे में 40 से 60 प्रतिशत तक लोहे का अंश होता है।
  4. साइडेराइट-इस घटिया भूरे रंग के लोहे में धातु अंश 20% से 30% होता है।

प्रश्न 8.
तांबे की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
तांबे की मुख्य विशेषताएं हैं—

  1. यह धातु हल्के गुलाबी या भूरे रंग की होती है जो समूह में मिलती है।
  2. प्राचीन काल से मनुष्य इसका प्रयोग कर रहा है।
  3. इसको जंग नहीं लगता।
  4. यह बिजली तथा ताप का अच्छा सुचालक है।
  5. इससे मिश्रित धातु बनाई जा सकती है।

प्रश्न 9.
बॉक्साइट धातु का उपयोग तथा मुख्य उत्पादक राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
बॉक्साइट धातु की सहायता से एल्यूमीनियम बनाया जाता है। बाक्साइट एल्यूमीनियम ऑक्साइड की चट्टान है। इसका गुलाबी, सफेद या लाल रंग होता है। भारत में बाक्साइट विशेषकर उड़ीसा, गुजरात, झारखण्ड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तमिलनाडु, मध्य प्रदेश इत्यादि राज्यों में मिलता है।

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प्रश्न 10.
मैंगनीज किस तरह की धातु है तथा यह भारत में कहां-कहां मिलती है ?
उत्तर-
मैंगनीज़ हल्के स्लेटी रंग की धातु है जो खास कर कच्चे लोहे के साथ ही खानों में मिलती है। जब लोहे से इस्पात बनाया जाता है तब मैंगनीज़ का प्रयोग किया जाता है। लोहे का भारत में उत्पादन विशेष उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य-प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड, गोआ, राजस्थान, गुजरात तथा पश्चिमी बंगाल इत्यादि में किया जाता है।

प्रश्न 11.
ऊर्जा के स्रोतों तथा किसी देश के विकास का आपस में क्या संबंध है ?
उत्तर-
ऊर्जा के स्रोत किसी भी देश के आर्थिक विकास की आरम्भिक सीढ़ी है। किसी भी देश के लिए विकास करने रहने के लिए आवश्यक है कि वे ऊर्जा के क्षेत्र में विकास करते हैं क्योंकि जनसंख्या की वृद्धि के कारण कृषि से संबंधित मशीनें, औद्योगीकरण तथा यातायात के साधनों में वृद्धि के कारण अब इन उद्योगों को चलाने तथा बनाने के लिए ऊर्जा के साधनों की मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए हम कह सकते हैं कि ऊर्जा के स्रोतों तथा किसी देश के विकास के बीच गहरा संबंध है।

प्रश्न 12.
ऊर्जा के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ? बताओ।
उत्तर-
ऊर्जा के स्रोत इस प्रकार हैं—

  1. नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत
  2. गैर-नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत
  3. पारंपरिक स्रोत
  4. गैर-पारंपरिक स्रोत
  5. जैविक स्रोत
  6. अजैविक स्रोत

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प्रश्न 13.
ऐन्थेसाइट कोयले के गुणों पर नोट लिखो।
उत्तर-
ऐन्थेसाइट कोयले के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं—

  1. यह सबसे उच्च कोटि का कोयला है।
  2. यह काफी कठोर होता है।
  3. यह अधिक समय जलता है तथा ऊर्जा अधिक देता है।
  4. जलने के बाद यह राख कम छोड़ता है।

प्रश्न 14.
खनिज पदार्थ के आर्थिक महत्त्व बताओ।
उत्तर-
खनिज पदार्थ भू तल के नीचे मिलने वाली प्राकृतिक सम्पत्ति है। खनिज पदार्थ औद्योगिक विकास की नींव हैं। इसलिए खनिज पदार्थों को उद्योगों के विटामिन भी कहा जाता है। वर्तमान युग में यंत्र, यातायात के साधन, भवन निर्माण, शक्ति के साधन इत्यादि खनिज पदार्थों पर निर्भर करते हैं। भविष्य में अणु शक्ति भी यूरेनियम, थोरियम इत्यादि खनिज पदार्थों पर निर्भर करेगी। इसलिए इसे वर्तमान सभ्यता भी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
लोहे के आर्थिक महत्त्व बताओ।
उत्तर-
लोहा सबसे अधिक उपयोगी खनिज है। लोहा किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला है। मशीनों, उपकरणों के निर्माण का आधार लोहा है। लोहे से यातायात के साधन, कृषि के उपकरण, भारी मशीनें, पुल, बाँध बनाने वाले औद्योगिक प्लांट बनाए जाते हैं। इसलिए इस युग को लोहा-इस्पात युग भी कहते हैं। लोहे को औद्योगिक विकास की कुंजी भी कहा जाता है।

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प्रश्न 16.
संसार में कोयले का शक्ति के साधन के रूप में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में कोयले को शक्ति का प्रमुख साधन माना जाता है। कोयले को उद्योग का जन्मदाता भी कहते हैं। कई उद्योगों के लिए कोयला एक कच्चे माल का काम करता है। कोयले को औद्योगिक क्रांति का आधार माना जाता है। संसार के अधिकतर औद्योगिक प्रदेश कोयला क्षेत्रों के नज़दीक स्थित हैं। किसी हद तक आधुनिक सभ्यता कोयले पर निर्भर करती है।

प्रश्न 17.
संसार में अधिकतर औद्योगिक प्रदेश कोयला क्षेत्रों के पास स्थित हैं ? क्यों ?
उत्तर-
कोयला आधुनिक युग में शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। औद्योगिक क्रांति का जन्म कोयले पर आधारित है। संसार के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र कोयला खानों के आस-पास स्थित हैं। भारत में दामोदर घाटी का औद्योगिक क्षेत्र, झरिया तथा रानीगंज कोयला क्षेत्र के आस-पास स्थित हैं।

प्रश्न 18.
एल्यूमीनियम के उपयोग बताओ।
उत्तर-
एल्यूमीनियम एक हल्की धातु है इसके उपयोग निम्नलिखित हैं—

  1. इसका उपयोग हवाई जहाज़, रेलगाड़ियां, मोटरकार, भवन निर्माण इत्यादि में किया जाता है।
  2. इसको जंग नहीं लगता।
  3. इससे पतली चादरें, बर्तन, सिक्के, फर्नीचर, डिब्बे बनाए जाते हैं।
  4. यह बिजली तथा ताप का उत्तम संचालक है।
  5. इसका प्रयोग बिजली के यंत्र, रेडियो, टी.वी. इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 19.
खनिज तेल का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
पैट्रोलियम का महत्त्व-तेल का व्यापारिक उपयोग सन् 1859 में शुरू हुआ जबकि संसार में खनिज तेल का पहला कुआँ 22 मीटर तक गहरा यू० एस० ए० में टिटसविले नामक स्थान पर खोदा गया। आधुनिक समय में पैट्रोलियम शक्ति का सबसे बड़ा साधन है। इसका उपयोग मोटर गाड़ियों, हवाई जहाजों, रेल इंजनों, कृषि के उपकरणों में किया जाता है। इससे दैनिक प्रयोग की लगभग 5,000 वस्तुएं तैयार की जाती हैं। इसके साथ ग्रीस, रंग, दवाइयां, नकली रबड़, प्लास्टिक, लाईलोन, खाद इत्यादि का उत्पादन होता है।

प्रश्न 20.
मध्य पूर्व में तेल उत्पादक देशों के नाम बताओ।।
उत्तर-
मध्य पूर्व या दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में प्रमुख तेल उत्पादक देश कुवैत, साऊदी अरेबिया, ईरान तथा ईराक हैं। इसके अतिरिक्त आबूधाबी, कतर, बहरीन, ओमान इत्यादि देशों में भी कुछ तेल मिलता है।

प्रश्न 21.
पवन ऊर्जा से क्या भाव है ?
उत्तर-
पवन ऊर्जा एक परंपरागत ऊर्जा साधन है। पवन वेग के साथ टरबाइन चलाकर बिजली पैदा की जाती है। पवन ऊर्जा का सफलतापूर्वक प्रयोग सबसे पहले नीदरलैंड में किया गया है। कैलिफोर्निया में भी पवन ऊर्जा का विकास किया गया है। इसके लिए महंगी तकनीक तथा अधिक पूंजी की जरूरत है।

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प्रश्न 22.
पन बिजली को सफेद कोयला क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
पन बिजली ऊर्जा का एक समाप्त न होने वाला स्रोत है। इसका नवीकरण होता रहता है। इसके महत्त्व के कारण इसकी तुलना कोयला के साथ की जाती है। परन्तु पन-बिजली को आसानी से बिना किसी धुएं के प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए इसको सफेद कोयला कहा जाता है।

प्रश्न 23.
लोहा इस्पात का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
लोहा इस्पात उद्योग आधुनिक उद्योग का नींव पत्थर है। लोहा कठोर, प्रबल तथा सस्ता होने के कारण दूसरी धातु की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसके साथ कई तरह की मशीनें, यातायात के साधन, कृषि उपकरण, ऊंचेऊंचे पुल, सैनिक हथियार, टैंक, रॉकेट तथा दैनिक प्रयोग के लिए कई वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लौह-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लोहे-इस्पात पर निर्भर करती है। इसलिए वर्तमान युग को इस्पात युग कहते हैं।

प्रश्न 24.
स्त्रोत प्राकृतिक तौर पर हमें मिलते रहते हैं, फिर भी इनकी संभाल की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
हम अगर प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग इस तरह करते रहे तो ये स्रोत हमारे आने वाली पीढ़ियों तक खत्म हो जाएंगे, क्योंकि इनको बनने में लाखों साल लग जाते हैं। हमें इनकी संभाल की बहुत ज़रूरत है, ताकि—

  1. स्रोतों के पारिस्थितिक तंत्र को ठीक रखा जा सके।
  2. प्राकृतिक प्रजातियों को बचाया जा सके।
  3. मनुष्य की रक्षा की जा सके।

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प्रश्न 25.
स्थायी या निरंतर विकास क्या है ?
उत्तर-
स्थायी या निरंतर विकास का अर्थ है कि प्राकृतिक स्रोतों को ध्यान के साथ प्रयोग किया जाए तथा इस तरह किया जाए कि स्रोत बेकार में खराब न हों और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए ये स्रोत बच सकें तथा वह भी इसका लाभ उठा सकें। इसलिए हमारे आज के समय की यह एक मुख्य ज़रूरत भी है। इसलिए बहुत सारे देशों ने इसको विकास मॉडल के रूप में अपनाया है तथा इनको विकसित बनाया है। अत: ज़रूरी है कि राष्ट्रीय भाईचारे के साथ हम अपनी धरती के इन प्राकृतिक स्रोतों को बचाएं ताकि गरीबी से छुटकारा पाया जा सके तथा देश को खुशहाल बनाया जा सके।

प्रश्न 26.
सुरक्षित पैट्रोलियम भंडार पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत ने एक नीति के पक्ष से देश में सख्त आवश्यकता के समय के लिए एक तेल भंडार को सुरक्षित रखा है जिसमें 5 मिलीयन तक का तेल भंडारण है, जो कि मंगलौर, विशाखापट्टनम तथा उदपी के पास पादूर में स्थित है। यह तेल के भंडार देश में 10 दिन तक संकट के समय सहायता कर सकते हैं।

प्रश्न 27.
बायोगैस ऊर्जा से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
कृषि के बचे तथा बेकार पदार्थों से ऊर्जा पैदा की जाती है तथा भारत में लगभग 25 लाख बायोगैस प्लांट हैं। इनके विकास से देश में 75 लाख टन ईंधन की बचत होती है। धुआं रहित चूल्हा इस पर निर्भर है। इससे हर साल 360 लाख टन हरी खाद तैयार होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कच्चे लोहे के प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
कच्चे लोहे की किस्में (Types of Iron Ore) खनिज लोहे में धातु के अंश के अनुसार लोहा मुख्य रूप में चार प्रकार का होता है—

  1. मैग्नेटाइट- यह कच्चे लोहे की सबसे बढ़िया किस्म है। इसका रंग लाल होता है। इसमें 70% से 72% तक धातु अंश होते हैं। इसमें चुंबकीय गुण भी मौजूद होते हैं।
  2. हैमेटाइट-इस काले लाल रंग के कच्चे लोहे में 55% से 69% तक धातु अंश होता है।
  3. लिमोनाइट-यह कच्चा लोहा पीले रंग का होता है। इसमें 30% से 60% तक लौह अंश होते हैं।
  4. साइडेराइट-इस घटिया भूरे रंग के लोहे में धातु अंश 20% से 30% होता है।

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प्रश्न 2.
भारत में प्रमुख कच्चे लोहे के उत्पादन क्षेत्र बताओ।
उत्तर-

  1. कर्नाटक-इस क्षेत्र में भारत के कुल लोहे के उत्पादन का 1/4 हिस्सा आता है। यह भारत का सबसे बड़ा कच्चा लोहा उत्पाद क्षेत्र है। इसमें एक मंगलूर जिले में बाबा बूढ़न की पहाड़ियां, केमानगुंडीखान, संदूर पर होसथेट, चितुरदुर्ग इत्यादि काफी प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर मैगनेटाइट तथा हैमेटाइट किस्म का लोहा मिलता है।
  2. उड़ीसा-यह राज्य भारत का 22%, कच्चा लोहा पैदा करता है। इस राज्य में मयूरभंज, क्योंझर तथा बोनाई क्षेत्रों में लोहा मिलता है।
  3. छत्तीसगढ़-यह राज्य भारत का 22% कच्चा लोहा पैदा करता है। यहाँ थाली-राजहारा पहाड़ियां तथा बस्तर क्षेत्र काफी प्रसिद्ध हैं।
  4. गोआ-यह राज्य भारत का 18% कच्चा लोहा पैदा करता है। यहाँ मोरमुगाओ बंदरगाह तथा मांडवी नदी लोहे के लिए प्रसिद्ध हैं।
  5. झारखण्ड-इस राज्य में भारत का 25% कच्चा लोहा पैदा होता है। इस राज्य में सिंहभूमि जिले में नोआमण्डी तथा पनसिरा बुडु की प्रसिद्ध खाने हैं। नोआमण्डी खान एशिया में सबसे बड़ी लोहे की खान है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वस्तुओं में से हर एक के उपयोग बताओ।
(A) तांबा
(B) एल्यूमीनियम
(C) यूरेनियम,
(D) थोरियम।
उत्तर-
(A) तांबा (Copper) तांबा एक अलौह धातु है। यह धातु बिजली की उत्तम चालक है। इसका उपयोग रेडियो, टेलीफोन, टेलीविज़न, टैलीग्राफ, बिजली की तार, रेल इंजन, हवाई जहाज़, समुद्री जहाज़ इत्यादि में होता है। इस धातु के प्राचीन काल में उपकरण, सिक्के इत्यादि बनाए जाते रहे हैं। यह एक उत्तम मिश्रित धातु है। इसको और धातुओं के साथ मिला कर कांसा, पीतल इत्यादि धातु बनाई जा सकती हैं।

(B) एल्यूमीनियम-एल्यूमीनियम एक हल्की धातु है। इसका प्रयोग हवाई जहाज, रेल-गाड़िया, मोटरकारें, भवन निर्माण में किया जाता है। इसको जंग नहीं लगता। इससे पतली चादरें, बर्तन, सिक्के, फर्नीचर, डिब्बे इत्यादि बनाए जाते हैं। यह बिजली तथा ताप का उत्तम सुचालक है इसलिए इसका प्रयोग बिजली की तार, उपकरण, रेडियो, टी०वी० इत्यादि में किया जाता है।

(C) यूरेनियम- यूरेनियम एक भारी, कठोर, रेडियोधर्मी धातु होती है। इस धातु का परमाणु शक्ति के निर्माण के कारण सैनिक महत्त्व है। यह धातु परमाणु बम बनाने में प्रयोग की जाती है।

(D) थोरियम- यह एक भूरे रंग की धातु है। परमाणु शक्ति के विकास के कारण थोरियम का आर्थिक तथा सैनिक महत्त्व बढ़ गया है। थोरियम का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत मोनोजाइट है। थोरियम को नाभकीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इससे तार और शीटें बनाई जाती हैं।

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प्रश्न 4.
खनिज किसे कहते हैं ? इसकी मुख्य किस्मों में अन्तर बताओ।
उत्तर-
खनिज एक या एक से अधिक तत्त्वों से मिलकर बनता है तथा इसका निश्चित रासायनिक संगठन होता है। संसार में लगभग 70-80 खनिज मिलते हैं जिनका आर्थिक उपयोग किया जाता है। इन्हें तीन भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. धातु खनिज (Metallic Minerals)-इसमें लोहा, तांबा, एल्यूमीनियम, सोना, चाँदी, खनिज पदार्थ शामिल किए जाते हैं जिनसे कई धातुएं तैयार की जाती हैं।
  2. अधातु खनिज (Non-Metallic Minerals)—इसमें नमक, अभ्रक, चूने का पत्थर, ग्रेफाइट, डोलोमाइट, पोटाश, जिप्सम इत्यादि खनिज शामिल हैं। इनसे धातुएं नहीं बनाई जातीं।
  3. ईंधन खनिज पदार्थ (Fuel Minerals)-इसमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस शामिल हैं। इन्हें शक्ति के साधन भी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
भारत में प्रमुख तांबा क्षेत्र बताओ।
उत्तर-

  1. मध्य प्रदेश–यह राज्य भारत का सबसे बड़ा तांबा उत्पादक है। यहां मालेजखंड, तारेगाऊ, बालाघाट, बारागाँव प्रसिद्ध तांबा उत्पादक जिले हैं।
  2. राजस्थान- इस राज्य में भारत का 40% तांबा मौजूद है। यहाँ अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, झुनझुनु, डूंगरपुर, पाली, सीकर, सिरोही पर, उदयपुर इत्यादि जिले तांबा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।
  3. झारखण्ड-झारखण्ड में सिंहभूमि जिले के मोसबनी, चोड़ाई रखा, पारसनाथ, बरखानाथ इत्यादि जिले उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 6.
मैंगनीज के निर्यात तथा आयात पर नोट लिखो।
उत्तर-
निर्यात (Export)-2012-13 के सालों में मैंगनीज़ का 72 हज़ार टन निर्यात किया गया। भारत के मैंगनीज का मुख्य खरीददार देश चीन है। भारत में पैदा किया जाने वाला मैंगनीज़ उच्च दर्जे का होता है।

आयात (Import)-क्योंकि मैंगनीज का उत्पादन पूर्ति से कम होता है। इसलिए भारत को मैंगनीज़ बाहर और देशों से आयात भी करना पड़ता है। 2012-13 के सालों में 20 से लेकर 30 हजार टन मैंगनीज का आयात किया गया है। इसमें 43% हिस्सा दक्षिणी अमेरिका, 32% ऑस्ट्रेलिया, गैबीन से 90% तथा कोटे-डी-आईबोरे से 4% आयात किया गया था।

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प्रश्न 7.
ऊर्जा के स्रोतों पर नोट लिखो।
उत्तर-
किसी भी देश की आर्थिकता उस देश के ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भर करती है क्योंकि उद्योगों इत्यादि को चलाने के लिए ऊर्जा के स्रोतों की आवश्यकता होती है। बढ़ रहे उद्योगों के कारण ऊर्जा के स्रोतों की मांग में वृद्धि हो रही है।

  1. परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोत-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस इत्यादि।
  2. गैर परंपरागत ऊर्जा के स्त्रोत-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, समुद्री, ताप ऊर्जा इत्यादि।
  3. नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि।
  4. गैर नवीकरणीय ऊर्जा के स्त्रोत-कोयला, प्राकृतिक गैस, खनिज तेल, परमाणु ऊर्जा ।
  5. जैविक स्त्रोत-जंगल, फसलें, जानवर, इन्सान इत्यादि।
  6. अजैविक स्रोत-जैसे भूमि, पानी, खनिज पदार्थ इत्यादि।

प्रश्न 8.
कोयले के मुख्य प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
रचना तथा कोयले की किस्में (Formation and Types of Coal) कार्बन की मात्रा के अनुसार कोयले की निम्नलिखित किस्में हैं—

  1. ऐन्थेसाइट-यह उत्तम प्रकार का कोयला होता है जिसमें 85% तक कार्बन होता है तथा यह सख्त किस्म का होता है तथा जलने के बाद धुएं की कमी होती है।
  2. बिटुमिनस-इस मध्यम श्रेणी के कोयले में 50% से 85% तक कार्बन होता है, कोकिंग कोयला तथा स्टीम कोयला इस प्रकार का होता है।
  3. लिग्नाइट-इस कोयले में 35 से 50% तक कार्बन की मात्रा होती है। इसका प्रयोग ताप बिजली पैदा करने में किया जाता है।
  4. पीट-इस कोयले में 35% से भी कम कार्बन की मात्रा होती है। यह घटिया किस्म का कोयला है। इसका रंग भूरा होता है तथा जलने के बाद धुएं की मात्रा अधिक होती है।

प्रश्न 9.
भारत के प्रमुख कोयला क्षेत्र बताओ।
उत्तर-
भारत में सबसे पहले 1814 में कोयले की खुदाई आरम्भ हुई तथा लगातार क्षेत्रों का विस्तार बढ़ता गया। भारत के कोयला क्षेत्र हैं—

  1. पश्चिमी बंगाल-इस प्रदेश में 1267 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई रानीगंज की प्राचीन खान है। यहाँ से भारत का 30% कोयला मिलता है।
  2. झारखण्ड-यह राज्य भारत का 50% कोयला पैदा करता है। यहां दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो, करणपुर, गिरिहीड़ तथा डाल्टनगंज प्रमुख खाने हैं। झरिया का कोयला क्षेत्र सबसे बड़ी खान है। यहां बढ़िया प्रकार का कोक कोयला मिलता है जो इस प्रकार के इस्पात उद्योग में जमशेदपुर, आसन-सोल, दुर्गापुर तथा बोकारो के कारखानों में प्रयोग होता है।
  3. उड़ीसा-यह राज्य भारत का 24% कोयला पैदा करता है। तालाचेर, सावलपुर, राणापुर, हिमगिर मुख्य कोयला क्षेत्र हैं।
  4. छत्तीसगढ़- यहां भारत का 18% कोयला पैदा होता है। 5. मध्य प्रदेश-इस प्रदेश में नदी घाटियों में कई खाने जैसे सोन घाटी में सुहागपुर, कोरबा, उमरिया, रामपुर, तत्तापानी प्रमुख खाने हैं।

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प्रश्न 10.
कोयले के संरक्षण के लिए कौन-सी विधियों को अपनाया जाना चाहिए ?
उत्तर-
कोयले के संरक्षण के लिए जिन विधियों की ज़रूरत है वे इस प्रकार हैं—

  1. कोयले की खुदाई वैज्ञानिक विधियों द्वारा की जाए, ताकि कोयला कम मात्रा में नष्ट हो।
  2. ईंधन के लिए घरों में तथा रेलों में कोयले का उपयोग कम से कम किया जाए।
  3. पन बिजली का प्रयोग करके कोयले के भंडारों को सुरक्षित किया जा सकता है।
  4. कोयले के नए भण्डारों की खोज की जाए।
  5. कोयले का योजनाबद्ध उपयोग किया जाए ताकि इसके भण्डार एक लम्बे समय तक प्रयोग किए जा सकें।

प्रश्न 11.
“पेट्रोलियम के भण्डार अधिक देर तक नहीं चलेंगे।” व्याख्या करो।
उत्तर-
पेट्रोलियम एक समाप्त होने वाला शक्ति का साधन है। पृथ्वी पर पेट्रोलियम के भण्डार सीमित मात्रा में मिलते हैं। जिन क्षेत्रों से एक बार खनिज तेल निकाल लिया जाता है वे भण्डार सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं। आधुनिक युग में पेट्रोलियम की मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इस कारण भविष्य में खनिज तेल की काफी कमी हो जाएगी। अधिकतर वैज्ञानिकों का मत है कि पेट्रोलियम के भण्डार कुछ शताब्दियों में ही समाप्त हो जाएंगे। ये भण्डार अधिक समय तक नहीं चल सकेंगे। ये सन् 2050 ई० तक ही पर्याप्त होंगे। इसका मुख्य कारण है कि खनिज तेल अधिक मात्रा में निकाला जा रहा है। नये क्षेत्रों का विकास कम हुआ है। खनिज तेल निकालने तथा साफ करने में बहुत सा तेल नष्ट हो जाता है। तेल की कीमत में लगातार वृद्धि हो रही है। इसलिए प्रत्येक देश अपने भण्डारों की अधिक से अधिक कीमत प्राप्त करने के लिए अधिक मात्रा में तेल का शोषण कर रहा है। खनिज तेल के स्थान पर दूसरे साधनों का प्रयोग भी कम है। इसलिए यह अनुमान ठीक है कि पेट्रोलियम के भण्डार अधिक समय तक नहीं चल सकेंगे।

प्रश्न 12.
पेट्रोलियम के संरक्षण के लिए कौन-कौन सी विधियों को अपनाना आवश्यक है ?
उत्तर-
एक अनुमान के अनुसार ये भण्डार अधिक देर तक नहीं चल सकेंगे। इसलिए इन साधनों का संरक्षण अति आवश्यक है। पेट्रोलियम साधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग आवश्यक है—

  1. पेट्रोलियम का सदुपयोग किया जाए तथा प्रत्येक बूंद को नष्ट होने से बचाया जाए।
  2. खनिज तेल को निकालने तथा साफ करने के लिए वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके नष्ट होने वाले तेल को बचाया जाए।
  3. तेल के स्थान पर दूसरे साधनों का प्रयोग अधिक किया जाए।
  4. तेल के नए क्षेत्रों की खोज की जाए।
  5. तेल युक्त चट्टानों से तेल के अतिरिक्त अन्य वस्तुएं अधिक से अधिक प्राप्त की जाएं।
  6. तेल धीरे-धीरे से निकालने से सभी कुओं में उच्च दबाव रहता है तथा तेल के भण्डार अधिक समय तक चल सकते हैं।

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प्रश्न 13.
भारत के प्रमुख तेल उत्पादक प्रदेश बताओ।
उत्तर-
भारत के मुख्य तेल (Major Oil Fields) क्षेत्र निम्नलिखित हैं—

  1. डिगबोई क्षेत्र (Digboi Oil Field)—यह असम प्रदेश में भारत का सबसे प्राचीन तथा अधिक तेल वाला क्षेत्र है। यहाँ से भारत का 60% खनिज तेल प्राप्त किया जाता है। 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तीन तेलकूप हैंडिगबोई, बप्पायुंग तथा हंसायुग।
  2. गुजरात क्षेत्र (Gujarat Oil Field) कैम्बे तथा कच्छ की खाड़ी के निकट अंकलेश्वर, लयुनेज़, कलोल स्थानों पर तेल का उत्पादन आरम्भ हो गया है। इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 30 लाख टन तेल प्राप्त होता है।
  3. बॉम्बे हाई क्षेत्र (Bombay High Oil Field) खाड़ी कच्छ के कम गहरे समुद्री भाग में भी तेल मिल गया है। यहाँ बॉम्बे हाई तथा बसीन क्षेत्र हैं।

प्रश्न 14.
किसी स्थान पर जल-बिजली का विकास किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
जल बिजली का विकास निम्नलिखित भौगोलिक तथा आर्थिक तत्त्वों पर निर्भर करता है—

  1. ऊँची-नीची भूमि (Uneven Relief)-जल बिजली के विकास के लिए ऊँची-नीची तथा ढालू भूमि होनी चाहिए। इस दृष्टि से पर्वतीय तथा पठारी प्रदेश जल बिजली के विकास के लिए आदर्श क्षेत्र होते हैं। अधिक ऊँचाई से गिरने वाला जल अधिक मात्रा में जल बिजली उत्पन्न करता है।
  2. अधिक वर्षा (Abundant Rainfall)-जल बिजली के लिए सारा वर्ष निरन्तर जल की मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए।
  3. विशाल नदियों तथा जल प्रपातों का होना (Waterfalls & Huge Rivers) नदियों में जल की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि वर्ष भर समान रूप से जल प्राप्त हो सके। पर्वतीय प्रदेशों में बनने वाले प्राकृतिक जल प्रपात जल बिजली विकास में सहायक होते हैं। जैसे उत्तरी अमेरिका में नियाग्रा जल प्रपात।

प्रश्न 15.
कोयले तथा खनिज तेल के साथ जल-बिजली शक्ति के तुलनात्मक महत्त्व का अध्ययन करो।
उत्तर-
पिछले कुछ सालों से जल बिजली का कोयले तथा खनिज तेल से अधिक महत्त्व है। इसके कई कारण हैं :

  1. स्थायी साधन-कोयला तथा तेल समाप्त हो जाने वाले साधन हैं इनके भण्डार सीमित हैं। धातु जल बिजली एक स्थायी साधन है।
  2. स्वच्छ साधन-कोयला तथा तेल धुएँ इत्यादि के कारण पर्यावरण को दूषित कर देते हैं परन्तु जल बिजली एक स्वच्छ साधन है तथा इसका सुविधापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। इसको सफेद कोयता भी कहते हैं।
  3. कम (खर्च)-जल बिजली एक सस्ता साधन है।
  4. उद्योगों का विकेंद्रीकरण-जल बिजली द्वारा उद्योगों का विकेंद्रीकरण आसानी के साथ किया जा सकता है।

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प्रश्न 16.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में अन्तर बताओ।
उत्तर-

धात्विक खनिज अधात्विक खनिज
1. इन खनिजों को और नये पदार्थ बनाने के लिए की प्राप्ति नहीं होती। 1. अधात्विक खनिजों को गलाने से भी किसी धातु पिघलाया जा सकता है।
2. उदाहरणे-लोहा, तांबा, बाक्साइट, मैंगनीज धात्विक खनिज हैं। 2. कोयला, अभ्रक, संगमरमर, पोटाश अधात्विक खनिज हैं।
3. ये खनिज प्रायः आग्नेय चट्टानों में पाए जाते हैं। 3. ये खनिज प्रायः तलछटी चट्टानों में पाए जाते हैं।
4. इन्हें दोबारा पिघला कर भी प्रयोग किया जा सकता है। 4. इन्हें पिघलाकर प्रयोग नहीं किया जा सकता।

 

प्रश्न 17.
भारत में सौर ऊर्जा के उपयोग क्या हैं ?
उत्तर-
भारत में सौर ऊर्जा के उपयोग निम्नलिखित हैं—

  1. यह ऊर्जा हर स्थान पर मिलती है। सूर्य ऊर्जा को खाना बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  2. सर्दी में ताप देने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  3. इसको गलियों तथा घरों में रोशनी देने के लिए उपयोग किया जाता है।
  4. फसलों को खुश्क करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 18.
पवन ऊर्जा पर नोट लिखो।
उत्तर-
पवन ऊर्जा एक नवीकरणीय स्रोत है तथा प्रदूषण रहित ऊर्जा है। हवा की गति जो कि एक निरन्तर वेग के साथ चलती है, पवन ऊर्जा पैदा करने में सहायता करती है। पवन चक्कियां ऊर्जा पैदा करने के लिए लगाई जाती हैं। पवन ऊर्जा भोजन पदार्थों को पीसने (Grinding) के लिए भी प्रयोग की जाती हैं। कुआँ इत्यादि में से पानी निकालने के लिए भी पवन चक्की का प्रयोग किया जाता है। टरबाइनों को चलाकर बिजली भी पैदा की जाती है। भारत में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पवन ऊर्जा पैदा की जाती है।

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प्रश्न 19.
ज्वारीय ऊर्जा पर नोट लिखो।
उत्तर-
ज्वारीय ऊर्जा बड़े ज्वार-भाटों से तटीय राज्यों में मिलती है। इस ऊर्जा को सागर के प्रवेशिका पर बाँध बना कर प्राप्त किया जा सकता है। सागर में ज्वारभाटा पर सागरीय धाराओं के साथ चलने वाली टरबाइनें पानी की सतह के नीचे लगाई जाती हैं जिसके साथ बिजली पैदा की जाती है। कैम्बे की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी पर गंगा, सुन्दरवन डेल्टा ज्वारीय ऊर्जा पैदा करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान हैं।

प्रश्न 20.
गैर परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोतों के विकास की ज़रूरत क्यों है ? कारण बताओ।
उत्तर-
गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों के विकास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि इन ऊर्जा के स्रोतों को दुबारा से बनाया जा सकता है। इन स्रोतों को प्राकृतिक साधनों-सूर्य, हवा, पानी इत्यादि का प्रयोग करके दुबारा बनाया जा सकता है। जब हम जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करते हैं, तब उसके साथ हमारी पृथ्वी के ऊपर वाले साधन दूषित हो जाते हैं तथा खराब होते हैं और पर्यावरण दूषित होता है। ईंधन खनिजों जैसे कि कोयला इत्यादि के जलने के बाद पर्यावरण में प्रदूषण भी फैलता है। खनिज तेल की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ने के कारण आने वाले समय के लिए इसके भंडार समाप्त होते नज़र आ रहे हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोत ही एक विकल्प हैं तथा इनके विकास की अब काफ़ी ज़रूरत है। कुछ महत्त्वपूर्ण गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोत हैं-सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, प्राकृतिक गैस, ज्वारीय ऊर्जा इत्यादि।

प्रश्न 21.
खनिज तेल के गुण तथा नुकसान बताओ।
उत्तर-

खनिज तेल के गण (Advantages of Oil) खनिज तेल के नुकसान (Disadvantages of Oil)
1. खनिज तेल सस्ता तथा यातायात के लिए काफी सुविधाजनक है। इसको पाइप लाइन द्वारा आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जा सकता है। 1. पैट्रोल के झलकाव के कारण प्रदूषण फैलता है तथा पानी में पैदा होने वाले जीवों का नुकसान होता है।
2. मुख्य रूप में पैट्रो रसायन उद्योगों के लिए धुरे का काम करते हैं। 2. प्रदूषक निकलने के साथ तेज़ाबी वर्षा की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
3. खोज निर्माण कौशल काफी महंगा है।
4. यह नवीकरणीय स्रोत नहीं है।

 

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प्रश्न 22.
निरन्तर विकास से आपका क्या अर्थ है ? इसके मुख्य सिद्धान्त बताओ।
उत्तर-
साधनों का विकास बिना पर्यावरण को दूषित किए किया जा सके तथा आने वाली पीढ़ी की आवश्यकताओं को मुख्य रूप में रखकर उपयोग किया जाए। इस तरह के विकास को निरन्तर विकास का नाम दिया जाता है। निरन्तर विकास के मुख्य सिद्धान्त हैं—

  1. हर एक की जीवन गुणवत्ता में वृद्धि
  2. पृथ्वी के अलग-अलग स्रोतों की संभाल
  3. प्राकृतिक स्रोतों का रिक्तीकरण कम करना।
  4. पर्यावरण के लिए एक उचित ढंग अपनाना।
  5. समाज को अपने पर्यावरण की संभाल करने में सहायता करना।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
कच्चे लोहे के प्रकारों तथा भारत में लोहे के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
लोहा किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला है। पृथ्वी की कुल चट्टानों के 5% भाग में लोहे की कच्ची धातु मिलती है। संसार में लोहे के अधिकतर भण्डार मध्य अक्षांशों में स्थित देशों तथा अन्य महासागर के तटवर्ती देशों में मिलते हैं। लोहे का उपयोग मनुष्य प्राचीन काल से करता आ रहा है। यह धरती की पपड़ी में एक खनिज है। इसका प्रयोग इस्पात बनाने के लिए भी किया जाता है। इस्पात हमारे इतिहास में निर्माण के लिए सबसे प्रसिद्ध है तथा तीसरी तथा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से 18वीं सदी तक भारत का लोहा काफी प्रसिद्ध रहा है।
लोहे को हमारे आधुनिक उद्योगों के लिए रीढ़ की हड्डी भी कहते हैं। किसी भी देश के लोगों का जीवन स्तर भी कई प्रकार से इस पर निर्भर करता है। कच्चा लोहा खानों से निकाला जाता है तथा इसकी मुख्य किस्में इस प्रकार हैं—

  1. मैग्नेटाइट (Magnetite)-इस प्रकार के बढ़िया लोहे में 72% धातु अंश होते हैं। चुंबकीय गुणों के कारण इसे मैग्नेटाइट कहा जाता है।
  2. हैमेटाइट (Hematite)-इस लाल रंग के लोहे में 60% से 70% तक धातु अंश होता है। यह रक्त की तरह लाल रंग का होता है।
  3. लिमोनाइट (Limonite)—इस पीले रंग के लोहे में 40% से 50% तक लोहे का अंश होता है।
  4. सिडेराइट (Siderite)—इस भूरे रंग के लोहे में धातु अंश 48% होता है।

इस लोहे में अशुद्धियाँ अधिक होती भारत संसार का 5% लोहा उत्पन्न करता है तथा आठवें स्थान पर है। भारतीय लोहे में कम अशुद्धियाँ हैं तथा इसमें 75% धातु अंश होता है। देश में एक लम्बे समय के प्रयोग के लिए 2300 करोड़ टन लोहे के भंडार हैं। इस प्रकार संसार के 20% भंडार भारत में हैं। भारत में अधिकतर लोहा हैमेटाइट जाति का मिलता है जिसमें 60% से अधिक लौह-अंश मिलता है। भारत में लगभग हर साल ₹1700 करोड़ का लोहा विदेशों को निर्यात किया जाता है। भारत में कच्चे लोहे हैमेटाइट के भंडार 12 अरब 31 करोड़ 73 लाख टन है तथा मैगनेटाइट 5 अरब 39 करोड़ 52 लाख है। सबसे बढ़िया प्रकार के कच्चे लोहे के भंडार छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, झारखण्ड इत्यादि में मिलते हैं।

लोहा क्षेत्रों का वितरण (Distribution)-भारत में कर्नाटक राज्य सबसे अधिक लोहा का उत्पादन करता है। बिहार तथा उड़ीसा भारत का 75% लोहा उत्पन्न करते हैं। इसे भारत का लोहा क्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में भारत के मुख्य इस्पात कारखाने हैं।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल खनिज तथा ऊर्जा स्रोत 3
विभिन्न राज्यों में उत्पादन निम्नलिखित हैं :
1. कर्नाटक-कर्नाटक राज्य में सबसे अधिक लोहे का उत्पादन होता है। यहाँ भारत का 1/4 हिस्सा लोहा पैदा किया जाता है। इस राज्य में मुख्य रूप में बाबा बूढ़न पहाड़ियों में केमनगुंडी तथा चिकमंगलूर में कुद्रेमुख क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यह लोहा भद्रावती इस्पात कारखाने में प्रयोग होता है।

2. उड़ीसा-यह राज्य देश का 13% लोहा उत्पन्न करता है। इस राज्य में मयूरभंज, क्योंझर तथा बनाई जिलों में खानें हैं।

  • मयूरभंज में गुरमहासिनी, सुलेपत, बादाम पहाड़ खाने हैं।
  • क्योंझर में बगियां बुडु खान है।
  • बोनाई में किरिबुरु खान से प्राप्त लोहा जापान को निर्यात होता है तथा राऊरकेला इस्पात कारखाने में प्रयोग किया जाता है।

3. छत्तीसगढ़-यह राज्य भारत का 18% कच्चे लोहे का उत्पादन करता है। इस राज्य में धाली-राजहरा की पहाड़ियां लोहे के प्रसिद्ध क्षेत्र हैं। बस्तर क्षेत्र में बैलाडिला तथा रावघाट के नए क्षेत्रों में लोहे की खाने हैं। यहाँ से लोहा जापान को निर्यात किया जाता है तथा भिलाई कारखाने में प्रयोग होता है।

4. गोआ-गोआ राज्य भारत के कुल लोहा भंडार में 18% हिस्सा डालता है। गोआ में लौह अयस्क के नए भंडारों के पता लगने से उत्पादन में वृद्धि हुई है। उत्तरी गोआ तथा दक्षिणी गोआ में प्रमुख खानें हैं।

5. झारखण्ड-इस राज्य में भारत के 25% लोहे के भण्डार हैं और यह कुल उत्पादन में 14% हिस्सा डालता है। इस राज्य में कोल्हन जगीर में सिंहभूमि क्षेत्र प्रमुख है। यहां पर नोआ मंडी, पनसिरा बुडु, बुडाबुरु प्रसिद्ध लोहे के भण्डार हैं। नोआ मंडी खान एशिया में सबसे बड़ी लोहे की खान है। इस लोहे को जमशेदपुर व दुर्गापुर कारखानों में भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त राजस्थान में धनौरा व धन चोली क्षेत्र, हरियाणा में महेंद्रगढ़ क्षेत्र, जम्मू कश्मीर में ऊधमपुर क्षेत्र, महाराष्ट्र में चांदा तथा रत्नागिरी क्षेत्र में लोहारा तथा पीपल गाँव खान क्षेत्र, आंध्र प्रदेश में कुढ़पा तथा करनूल क्षेत्र।

भारत संसार का पांचवा बड़ा लोहा निर्यात देश है। देश का 50 से 60% लोहा जापान, जर्मनी, इटली, कोरिया देशों को निर्यात किया जाता है। जबकि कुल लोहे का तीन चौथाई भाग जापान को निर्यात किया जा रहा है। जापान भारत के लोहे का सबसे बड़ा खरीददार है। भारत से लोहा मारमागांव, विशाखापट्टनम, पाराद्वीप तथा मंगलौर बंदरगाहों से निर्यात किया जाता है।

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प्रश्न 2.
भारत में तांबे के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
तांबा एक प्राचीन धातु है आधुनिक युग में लोहे के पश्चात् तांबे का दूसरा स्थान है। संसार में लगभग 40 देशों में तांबा मिलता है, परन्तु तांबे के मुख्य भण्डार पांच देशों में मिलते हैं। सोवियत रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, मध्य अफ्रीका, एण्डीज़ पर्वत तथा कनाडा का पठार तांबे के मुख्य देश हैं। तांबे से हम अच्छी तरह से परिचित हैं। यह एक हल्के गुलाबी भूरे रंग की धातु है जो कि हमें चट्टानों के रूप में मिलती है। तांबा लचकीला होता है तथा लचकीलेपन के कारण बिजली तथा ताप का अच्छा सुचालक है। कई बिजली उद्योगों में इसका प्रयोग किया जाता है। इसको जंग नहीं लगता तथा इसके प्रयोग से मिश्रित धातु बनाई जा सकती है। तांबे का प्रयोग मनुष्य ने एक धातु के रूप में लोहे से पहले शुरू किया था। तांबे का प्रयोग बर्तन बनाने तथा सिक्के बनाने में काफी किया जा रहा है। इसके साथ बिजली का सामान, तारें इत्यादि भी बनाई जाती हैं।

भारत में तांबे के भंडार काफी सीमित हैं। तांबे के उत्पादन में भारत काफी भाग्यशाली भी है। हमारा देश संसार का तक़रीबन 2% तांबा पैदा करता है। 1950-51 से 1970-71 तक तांबे का उत्पादन काफी अच्छा है, पर यह वृद्धि धीरेधीरे हुई। 1970-71 से 1990-91 तक तांबे का उत्पादन तेजी से बढ़ा। इस समय में तांबे का उत्पादन 5,255 हजार टन रिकॉर्ड किया गया। इसके बाद 1996-97 में इसके उत्पादन में थोड़ी गिरावट आई यह उत्पादन 3,896 हजार टन तक पहुंच गया। 1997-98 में इसके उत्पादन में काफी कमी आई। यह कम होकर सिर्फ 233 हजार टन रह गया तथा 1997-98 तक उत्पादन कम ही रहा।
Production and Distribution

State

Production (Lakh Tonnes)

Percentage of all India
Madhya Pradesh 87 56.86
Rajasthan 62 40.52
Jharkhand 4 2.62
All India 153 100.00

 

Trends in Production of Copper Ore in India

Year Quantity (Thousand Tonnes) Value (₹ Crore)
1950-51 375 1.94
1960-61 423 2.29
1970-71 666 4.95
1980-81 2109 42.70
1990-91 5255 169.97
1994-95 4767 208.92
1996-97 3896 241.59
1997-98 233 395.97
1998-99 199 337.72
1999 165 310.56
2000-01 164 324.32
2002-03 153 242.96

यह 153 हजार टन 2002-03 तक पहुँच गया। भारत में खास कर तांबा मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा झारखण्ड में मिलता है।
1. मध्य प्रदेश-मध्य प्रदेश तांबे का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में इसने कर्नाटक, राजस्थान तथा झारखण्ड को उत्पादन के रिकॉर्ड में पीछे छोड़ दिया है। 2002-03 के सालों में इस राज्य में देश का 56.86% तांबे का उत्पादन किया गया। तारे गाँव जिले में इस राज्य की सबसे बड़ी पट्टी है। इसके अतिरिक्त मलंजखंड, बालाघाट ज़िले भी काफी प्रसिद्ध हैं। इन प्रांतों में 84.83 मिलियन टन तांबा पैदा किया जाता है। इसके अतिरिक्त बेतूल बासगाँव क्षेत्र तांबे के लिए प्रसिद्ध हैं।

2. राजस्थान-राजस्थान ने भी तांबे के उत्पादन में काफी विकास किया है तथा तांबे के उत्पादन के लिए भारत का दूसरा स्थान है। यह भारत का 40% तांबा पैदा करता है। ज्यादातर तांबे का उत्पादन अरावली पर्वत श्रेणी में मौजूद है। इस राज्य में अलवर, अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, झुनझुनु, पाली सीकर, सिरोही तथा
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उदयपुर तांबे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। इन जिलों में एक अनुमान अनुसार 65.08 मिलियन टन तांबे का उत्पादन होता है। राजस्थान के ज़िले खेत सिंहाणा, झुनझुनु में तांबा मिलता है। यह बेल्ट उत्तरी पूर्वी से लेकर दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र तक 80 किलोमीटर के घेरे में फैली है। खेती सिंहाणा में आमतौर पर 1.8 मिलियन टन तक का उत्पादन होता है।

3. झारखण्ड-शुरुआत में झारखण्ड बिहार का ही एक हिस्सा होता है। 1980 तक यह तांबा उत्पादन का एक विशेष क्षेत्र था पर धीरे-धीरे यहाँ उत्पादन कम होने लगा तथा झारखण्ड तांबा उत्पादक में तीसरा स्थान पर आ गया, इसका कारण इसके अपने जिले में उत्पादन का कम होना तथा बाकी ज़िलों में उत्पादन में वृद्धि होने से है। राज्य में तांबे का उत्पादन 62% तक 1977-78 से कम हो गया तथा 2002-03 में हालात अधिक नाजुक हो गए। झारखण्ड के सिंहभूमि जिले के मोसाबनी, खेडाई रखा, धोबानी, पारसनाथ, बरखानाथ इत्यादि प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र हैं।
आयात (Import)-भारत में तांबे का उत्पादन हमारी मांग से कम हुआ है। इस कारण भारत को तांबा बाहर से आयात करना पड़ता है। मुख्य रूप में भारत यू०एस०ए०, कैनेडा, जापान तथा मैक्सिको से तांबा आयात करता है। हर साल माँग के हिसाब से आयात किया जाता है। हर साल मांग के हिसाब से आयात की दर बढ़ती-कम होती जाती है।

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प्रश्न 3.
भारत में बाक्साइट के उत्पादन तथा वितरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
बाक्साइट एक महत्त्वपूर्ण धातु है जिसका प्रयोग एल्यूमीनियम बनाने के लिए किया जाता है। असल में यह बाक्साइट एल्यूमीनियम आक्साइड की चट्टान ही होती है। यह कोई निश्चित खनिज नहीं पर एक चट्टान का टुकड़ा है। जिसमें हाईड्रेटिड एल्यूमीनियम आक्साइड शामिल होता है। यह गुलाबी, सफेद या लाल रंग का होता है। इसका रंग इसमें मौजूद आयरन पर निर्भर करता है।

उत्पादन तथा वितरण (Production and Distribution)—देश में कुल भंडार 31076 मिलियन टन है। जिसका रिकॉर्ड 1 अप्रैल, 2000 में किया गया। साल 2012-13 में बाक्साइट का उत्पादन 15 हजार 360 टन हो गया था जोकि पिछले साल से 13% अधिक था। ज्यादातर बाक्साइट झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात तथा राजस्थान प्रदेश से प्राप्त किया जाता है।
जम्मू कश्मीर, केरल, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में भी बाक्साइट के होने का पता चलता है।

1. उड़ीसा (Orissa)-उड़ीसा सबसे बड़ा बाक्साइट उत्पादक प्रदेश है। उड़ीसा का 95 प्रतिशत बाक्साइट पूर्वी घाट, राज्य के दक्षिणी पश्चिमी भाग के जिला कोरापुट, रायगढ़, कालाहांडी से आता है। मुख्य रूप में इस राज्य के बाक्साइट की बेल्ट कालाहांडी तथा कोरापुट जिलों में है जो आँध्र प्रदेश तक फैली हुई हैं।
Production of Bauxite in India 2002–03
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2. गुजरात-गुजरात भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण बाक्साइट उत्पादक राज्य है। यह देश का 15 प्रतिशत बाक्साइट पैदा करता है। इस स्थान पर कुल बाक्साइट 87.5 मिलियन टन तक मिलता है जो मुख्य रूप में जमुनानगर, जूनागढ़, खेड़ा, कच्छ सांबरकांधा, अमरेली तथा भावनगर में पाया जाता है। प्रमुख तौर पर कच्छ की खाड़ी से अरब सागर किनारे की यह पट्टी मुख्य ज़िलों भावनगर, जूनागढ़ तथा अमरेली ज़िलों में फैली हुई है तथा 48 किलोमीटर लम्बी तथा 3 से लेकर 4.5 किलोमीटर तक चौड़ी है।

3. झारखण्ड-इस राज्य में से 63.5 मिलियन टन बाक्साइट के भंडार मिलते हैं। यह भंडार मुख्य रूप में रांची, लोहारदागां, पलामू तथा गुमला इत्यादि स्थानों से मिलते हैं। हारदागां से बढ़िया किस्म का बाक्साइट मिलता है।

4. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र के क्षेत्र में से 10 प्रतिशत के लगभग बाक्साइट मिलता है। कोलापुर के पठारी भाग, उदयगिरि, रांधनगड़ी, इंजरगंज प्रमुख बाक्साइट उत्पादक जिले हैं। ठाणे, रत्नागिरी, सतारा तथा पुणे क्षेत्रों में भी बाक्साइट का उत्पादन किया जाता है। डांगरवाड़ी तथा इंदरगंज जिले एल्यूमीनियम के लिए प्रसिद्ध हैं।

5. छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ भारत के कुल उत्पादन में 6 प्रतिशत तक का हिस्सा डालते हैं। बिलासपुर के दुर्ग जिलों में मैकाल पर्वत श्रेणी तथा अमरकंटक पठारी भाग्य में सूरगुजा, रायगढ़ तथा बिलासपुर जिले बाक्साइट के उत्पादन के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।

6. तमिलनाडु-तमिलनाडु के एक करोड़ 72 लाख टन बाक्साइट भंडार नीलगिरि, सेलम तथा मदुराय में पाए जाते हैं।

7. मध्य प्रदेश-यहां पाइकल पर्वत श्रेणी के शाहडोल, मांडला, बालाघाट तथा जबलपुर जिले के कोटली क्षेत्र बाक्साइट के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। बाक्साइट का निर्यात 2011-12 में 4 लाख एक हजार टन से अगले साल 2012-13 में 34 लाख 10 हज़ार हो गया था। चीन (91%), कुवैत (3%) तथा कतर (2%) भारत के बाक्साइट के आयातक देश हैं।

प्रश्न 4.
मैंगनीज के भारत में उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
मैंगनीज एक प्राकृतिक धातु नहीं है। यह हमेशा लोहे से इस्पात बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह हल्के स्लेटी रंग की धातु है जो कि कच्चे लोहे के साथ ही खानों में मिलती है। यह मुख्य रूप में लौह-इस्पात उद्योग के लिए प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने के लिए 6 किलोग्राम मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाइयां, रंग तथा बैटरियां इत्यादि बनाने में भी किया जाता है।

भारत में मैंगनीज का उत्पादन तथा वितरण (Manganese Ore Distribution in India)-भारत जिम्बाब्वे के बाद मैंगनीज भंडारों में संसार में दूसरा स्थान रखता है तथा 430 मिलियन टन मैंगनीज़ का भंडार करता है।
भारत संसार में उत्पादन के लिहाज़ से पांचवां स्थान रखता है क्रमवार चीन, गैबोन, दक्षिणी अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया में मैंगनीज का बढ़िया उत्पादन होता है। भारत में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्रा प्रदेश तथा कर्नाटक मुख्य मैंगनीज उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश दोनों ही मैंगनीज का आधा भाग पैदा करते हैं।
(State Wise Reserves of Maganese)
Odisa (44%)
Karnataka (22%)
Madhya Pradesh (13%)
Maharashtra (8%)
Andhra Pradesh (4%)
Jharkhand and Goa (3%)
Rajasthan, Gujarat and
West Bengal (3%).

  1. उड़ीसा-यह भारत का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यह भारत के कुल बाक्साइट उत्पादन में 44% का हिस्सा डालता है। मुख्य उत्पादक जिलों में सुन्दरगढ़ जिले की खान, गंगपुर कालाहांडी, कोरापुट तथा बोनाई क्षेत्र प्रसिद्ध हैं।
  2. कर्नाटक-कर्नाटक भारत की कुल मैंगनीज के 22 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन करता है। उत्तर कन्नड़, शिमोगा, बिलारी, चितलदुर्ग तथा टुमकुर ज़िले प्रमुख मैंगनीज उत्पादन केन्द्र हैं।
  3. मध्य प्रदेश-यह प्रदेश देश की पैदावार में 13% तक का योगदान डालता है। यहाँ मैंगनीज बालाघाट, छिंदवाड़ा तथा जबलपुर जिलों में से मिलती है।
  4. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र में नागपुर तथा भंडारा क्षेत्र तथा रत्नागिरी ज़िले मैंगनीज के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।
  5. आन्ध्र प्रदेश-आन्ध्र प्रदेश में मुख्य रूप में मैंगनीज पट्टी श्रीकाकुलम और विशाखापट्टनम जिले में से मिलता है। श्रीकाकुलम सबसे पुरानी मैंगनीज की खान है। इसके अतिरिक्त कुड़प्पा, विजयनगर, गंटूर मैंगनीज के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

इसके अतिरिक्त गोआ, पंचमहल, गुजरात, उदयपुर, बनसवांग, राजस्थान मैंगनीज के उत्पादन के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। निर्यात (Export)-2012-13 में मैंगनीज का उत्पादन 72 हजार टन था। मुख्य भारतीय मैंगनीज का खरीददार चीन था। भारतीय मैंगनीज उच्च स्तर का होता है।

आयात (Import)—मैंगनीज की पूर्ति की मांग से कम होने के कारण भारत को मैंगनीज बाहर से मंगवानी पड़ती हैं। 2012-13 के सालों में 23 लाख 30 हजार टन मैंगनीज का आयात किया जाता है। आयात मुख्य रूप में अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, गैबीन के स्थानों से किया जाता है।
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प्रश्न 5.
भारत में कोयले के उत्पादन तथा वितरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
आधुनिक युग में कोयला शक्ति का प्रमुख साधन है। कोयले को उद्योग की जननी भी कहा जाता है। कई उद्योगों के लिए कोयला एक कच्चे माल का पदार्थ है। कोयले से बचे पदार्थ बैनज़ोल, कोलतार, मैथनोल इत्यादि का प्रयोग कई रासायनिक उद्योगों में किया जाता है। रंग-रोगन, नकली रबड़, प्लास्टिक, रिबन, लेम्प इत्यादि अनेक वस्तुएं कोयले से तैयार की जाती हैं। इस उपयोगिता के कारण कोयले को काला सोना भी कहा जाता है। कोयले को औद्योगिक क्रान्ति का आधार माना जाता है। संसार के अधिकांश औद्योगिक प्रदेश कोयले क्षेत्रों के निकट स्थित हैं, किसी सीमा तक आधुनिक सभ्यता कोयले पर निर्भर करती है। कोयला मुख्य रूप में चार किस्मों में विभाजित किया जाता है।

1. एंथेसाइट-यह उत्तम प्रकार का कोयला होता है जिसमें 85% तक कार्बन होता है। इसमें धुएँ की कमी होती है। इसका रंग काला होता है। इस प्रकार कठोर कोयले के भण्डार कम मिलते हैं।

2. बिटुमिनस-इस मध्यम श्रेणी के कोयले में 85% तक कार्बन होता है। कोकिंग कोयला इस प्रकार का होता है। इसे धातु गलाने तथा जलयानों में प्रयोग किया जाता है।

3. लिगनाइट-इस कोयले में 50% तक कार्बन की मात्रा होती है। इसका प्रयोग ताप विद्युत् में किया जाता है। इसमें से धुआँ बहुत निकलता है।

4. पीट-यह घटिया किस्म का भूरे रंग का कोयला है जिसमें 35% से कम कार्बन होता है। यह कोयला निर्माण की प्रथम अवस्था है। इसकी जलन क्षमता कम होने के कारण इसका प्रयोग कम होता है।

उत्पादन तथा वितरण-भारत में सबसे पहले कोयले का उत्पादन 1774 में पश्चिमी बंगाल में रानीगंज खान से आरंभ हुआ तथा निरंतर कोयले के उत्पादन में वृद्धि होती रही। स्वतन्त्रता के पश्चात् 30 वर्ष में कोयले के उत्पादन में 6 गुना वृद्धि हुई। भारत में कोयला मुख्य रूप में-झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश इत्यादि क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है। 2015-16 के साल में भारत में कोयले का उत्पादन 63 करोड़ 92 लाख 34 हजार टन था जो कि 2014-15 में 60 करोड़ 91 लाख 79 हजार टन से 3 करोड़ 55 हज़ार टन से अधिक था। भारत में कोयले की मांग के मुख्य क्षेत्र इस्पात उद्योग, शक्ति उत्पादन, रेलवे, घरेलू खपत तथा अन्य उद्योग हैं। सन् 1972 में भारत ने कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया है तथा कोल इंडिया लिमिटेड नाम की सरकारी संस्था स्थापित की है। कोयले के उत्पादन में सरकारी तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों का योगदान निम्नलिखित सारणी के अनुसार है—
Production of Raw Coal during the year 2015-16 (CMT)
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भारत में कोयला प्राप्ति के दो प्रकार के क्षेत्र हैं—
I. गोंडवाना कोयला क्षेत्र (Gondwana Coal Fields)—
1. पश्चिमी बंगाल-इस प्रदेश से 1267 वर्ग किलोमीटर में फैली रानीगंज की प्राचीन तथा सबसे गहरी खान है। यहां उच्च कोटि के कोयला भंडार हैं। यहाँ भारत का 30% कोयला मिलता है।

2. झारखण्ड-यह राज्य भारत का 27.3% कोयला उत्पन्न करता है। यहां दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो, कर्णपुर, गिरिडीह तथा डाल्टनगंज प्रमुख खाने हैं। झरिया का कोयला क्षेत्र सबसे बड़ी खान है। यहाँ बढ़िया प्रकार का कोक कोयला मिलता है जो इस प्रकार के इस्पात के उद्योग में जमशेदपुर, आसनसोल, दुर्गापुर तथा बोकारो के कारखानों में प्रयोग होता है।

3. उड़ीसा-उड़ीसा भारत के कुल कोयले का 24 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है। तालेचर, संबलपुर तथा रामपुर हिमगिर महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। इकक्ला तलेचर, उड़ीसा का % हिस्सा पैदा करता है।

4. छत्तीसगढ़-छत्तीसगढ़ भारत का 18 प्रतिशत कोयले का उत्पादन करता है। यहां कोयले की 12 खाने हैं। इस राज्य का कोयला नदी घाटियों की खानों से मिलता है। यहां सिंगरौली कोयला क्षेत्र तथा कोरबा क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यहां से ताप बिजली घरों तथा भिलाई इस्पात केंद्र को कोयला भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त सुहागपुर, रामपुर, पत्थर खेड़ा, सोनहल अन्य प्रमुख कोयला भंडार हैं।

5. मध्य प्रदेश-यहाँ कई नदी घाटियों में कोयला खाने हैं। बोकारो, उमरिया, रामपुर, तत्तापानी प्रमुख खाने हैं।

6. आन्ध्र प्रदेश-आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी नदी घाटी में सिंगरौली कोठगुडम तथा तंदूर खाने हैं।

7. अन्य क्षेत्र-महाराष्ट्र में बर्धा घाटी में चन्द्रपुर तथा बल्लारपुर पश्चिमी बंगाल में रानीगंज, आन्ध्र प्रदेश में सिंगरौला, कोठगुड़म, महाराष्ट्र में अन्य खाने हैं।

II. टरशरी कोयला क्षेत्र (Tertiary Coal Fields)-इस किस्म का लिग्नाइट कोयला असम में लमीमपुर तथा माकूम क्षेत्र में मिलता है। राजस्थान में बीकानेर जिले में पालना नामक क्षेत्र में लिग्नाइट कोयला मिलता है। मेघालय में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों में। तमिलनाडु में दक्षिणी अरकाट में नेवेली में लिग्नाइट कोयला मिलता है। जम्मू कश्मीर में पुंछ, रियासी तथा ऊधमपुर में निम्नकोटि का कोयला मिलता है। भारत में 12000 करोड़ टन कोयले के सुरक्षित भंडार हैं। परन्तु बढ़िया प्रकार का कोयला सिर्फ 100 सालों के लिए काफी है। इसलिए बढ़िया किस्म के कोयले को बचाया जाता है। संसार में कोयले के उत्पादन में भारत का आठवां स्थान है। देश की 800 से अधिक कोयला खानों में से 3000 लाख टन कोयला निकाला गया है। इन कोयला खानों में लगभग 4 लाख मज़दूर काम करते हैं। 1972 में भारत सरकार ने कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया है।
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प्रश्न 6.
भारत में पैट्रोलियम के महत्त्व, उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
पैट्रोलियम शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है (Petra = rock, Oleum = oil) इसलिए इसे चट्टानी तेल भी कहते हैं क्योंकि यह चट्टानों से प्राप्त किया जाता है। खनिज तेल कार्बन तथा हाइड्रोजन का मिश्रण है। पृथ्वी के नीचे दबी हुई समुद्री वनस्पति तथा जीव जन्तुओं से लाखों वर्षों के बाद अधिक ताप तथा दबाव के कारण खनिज तेल बन जाता है। तकनीकी तौर पर पैट्रोलियम एक ज्वलनशील तरल पदार्थ है जो कि हाइड्रोकार्बन का बना होता है। इसमें 90 से 95 प्रतिशत पैट्रोलियम के तथा बाकी जैविक पदार्थों तथा कुछ भाग ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर इत्यादि होती है।

प्राचीन काल में पैट्रोलियम का प्रयोग दवाइयों, खनिज प्रकाश व लेप इत्यादि कार्यों के लिए किया जाता था। पैट्रोलियम तथा पैट्रोलियम से बने पदार्थों का उपयोग मुख्य रूप में ऊर्जा पैदा करने के लिए किया जाता है। यह घनी तथा सुविधाजनक तरल ईंधन है। आधुनिक युग में खनिज तेल का व्यापारिक उपयोग सन् 1859 में शुरू हुआ जबकि संसार में खनिज तेल का पहला कुआँ 22 मीटर गहरा यू०एस०ए० में टटिसविले नामक स्थान पर खोदा गया। आधुनिक युग में पैट्रोलियम शक्ति का सबसे बड़ा साधन है। इसे खनिज तेल भी कहते हैं। इससे हर भाग पानी, हवा तथा धरती पर क्रांति आई है। कोई भी सामान आसानी से पैदावार देशों से उपभोक्ता देशों तक पहुँचाया जा सकता है। इसका प्रयोग मोटर-गाड़ियों, वायुयान, जलयान, रेल इंजन, कृषि यंत्रों में किया जाता है। इससे दैनिक प्रयोग की लगभग 5,000 वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। इसमें स्नेहक, रंग, दवाइयां, नकली रबड़ व प्लास्टिक, नाइलोन, खाद इत्यादि पदार्थों का उत्पादन होता है।

भारत का बहुत बड़ा हिस्सा तलछटी चट्टानों (Sedimentary Rocks) ने घेरा हुआ है। परन्तु तेल के भंडारों में समानता नहीं है। भारतीय खनिज साल की किताब 1982 के एक अनुमान अनुसार भारत में 468 मिलियन टन जमा तेल है जिनमें 328 मिलियन टन मुम्बई हाई में मिलता है तथा 1984 के जमा आँकड़ों के अनुसार यह 500 मिलियन टन हो गया था।

उत्पादन-आज़ादी के समय भारत पैट्रोलियम के उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र था। मुंबई हाई की जगह से बढ़िया पैट्रोलियम बड़े पैमाने पर पैदा किया जाता था। समुद्रगामी उत्पादन 1970 के शताब्दी तक शुरू नहीं हुआ था तथा सारा उत्पादन तटवर्ती समुद्र के तरफ से मिलता था। 1980-81 के मध्य तक कच्चे तेल का उत्पादन समुद्र से आता था तथा बाकी बचता समुद्रगामी स्थानों से प्राप्त किया जाता है। पर 1990-91 से 2003-04 तक उत्पादन कच्चे तेल समुद्रगामी स्थानों से आना शुरू हो गया।
Production of Petroleum (Crude) in India (Million Tonnes)
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Production of Petroleum (Crude) in India 2002-03 (Million Tonnes)
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भारत में प्रमुख पैट्रोल उत्पादक क्षेत्र—

  1. सबसे पुराने पैट्रोल निकालने के केन्द्र असम में है। डिगबोई, बापापुंग, हुंसापुग, सुरमा घाटी तथा बदरपुर, मसीमपुर अन्य पैट्रोल उत्पादन के केन्द्र हैं।
  2. असम में नाहरकटिया, रुदरसागर, मोरा, हुगरीजन अन्य पैट्रोल उत्पादन के केन्द्र हैं।
  3. गुजरात में कैंबे तथा कच्छ की खाड़ी के निटक अंकलेश्वर, लयुनेज, कलोल नामक स्थान पर तेल का उत्पादन आरंभ हो गया है। इस राज्य में तेल क्षेत्र बड़ौदा, सूरत, मेहसना ज़िलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मेहासना, ढोल्का, नवगाम, सानन्द इत्यादि कई स्थानों पर तेल मिला है।
  4. नाहरकटिया असम में यह एक नवीन तेल क्षेत्र है जिसमें नहरकटिया लकवा प्रमुख तेलकूप हैं।
  5. बसीन तेल क्षेत्र-बंबई हाई के दक्षिण में स्थित इस क्षेत्र से तेल निकालना शुरू हो गया है।
  6. सुरमा घाटी में बदरपुर, मसीमपुर, पथरिया नामक कूपों में घटिया प्रकार का तेल थोड़ी मात्रा में मिला है।
  7. बंबई हाई क्षेत्र-खाड़ी कच्छ के कम गहरे समुद्री भाग में तेल मिल गया है। 19 फरवरी, 1974 को ‘सागर सम्राट’ नामक जहाज़ द्वारा की गई खुदाई से Bombay High के क्षेत्र में तेल मिला है। इस क्षेत्र से 21 मई, 1976 से तेल निकलना आरंभ हो गया। यहाँ से प्रतिवर्ष 150 लाख टन तेल निकालने का लक्ष्य है। यह क्षेत्र बंबई से उत्तर-पश्चिमी में 176 कि०मी० दूरी पर स्थित है।

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प्रश्न 7.
“कोयला भूतकाल का ईंधन है, पैट्रोलियम वर्तमान का और बिजली शक्ति भविष्य का ईंधन है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
कोयला, पैट्रोलियम तथा बिजली शक्ति आधुनिक युग में ईंधन के प्रमुख साधन हैं। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ इन शक्ति के साधनों का तुलनात्मक महत्त्व बदलता रहा है। यह कथन ठीक है कि कोयला भूतकाल, पैट्रोलियम वर्तमान तथा बिजली शक्ति भविष्य का ईंधन है।

प्राचीन काल में शक्ति के साधनों तथा ईंधन की कमी थी। लकड़ी को जलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता था। 18वीं शताब्दी में दो आविष्कारों के कारण कोयले का महत्त्व बढ़ता गया। 1769 में भाप के इंजन की खोज से परिवहन के साधनों में कोयले का उपयोग अधिक हो गया। कोक कोयले का धातु गलाने के उद्योग विशेषकर लोहाइस्पात उद्योगों में प्रयोग होने से विशेष परिवर्तन हुआ। इस प्रकार कोयले का उपयोग कारखानों के लिए चालक शक्ति के रूप में भी बढ़ता गया। कोयले का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करके कई रंग रोगन, नकली रबड़, प्लास्टिक, खाद इत्यादि भी तैयार किए जाने लगे। घरेलू जीवन में भी कोयले का प्रयोग मकानों को गर्म करने तथा ईंधन के रूप में किया जाने लगा। इस प्रकार 20वीं शताब्दी के आरम्भ में कोयला समस्त शक्ति का 90% भाग प्रदान करता है। कोयला एक सीमित साधन है। इसलिए कोयले के स्थान पर अन्य साधनों की खोज की गई। पैट्रोल, जल बिजली तथा परमाणु शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार कोयले का महत्त्व कम होना शुरू हो गया। 1950 में संसार की कुल शक्ति का 60% भाग कोयले से प्राप्त होता था। फिर आधुनिक सभ्यता के विकास के लिए कोयला आवश्यक है। कुछ उद्योगों में कोयले के सिवाय दूसरे ईंधन प्रयोग नहीं किए जा सकते। कोयले के भण्डार सीमित हैं। अधिक प्रयोग से यह कम हो रहे हैं। दूसरे साधनों का प्रयोग कई सुविधाओं के कारण बढ़ता जा रहा है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोयला भूतकाल का ईंधन है।
संसार में शक्ति साधनों का उपयोग (%) में
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ईंधन का दूसरा प्रमुख साधन पैट्रोलियम है। तेल की खोज सन् 1859 में हुई। इससे पहले पैट्रोलियम का उपयोग घरेलू रूप में कई देशों में किया जाता था। परन्तु इसका व्यापारिक उपयोग 20वीं शताब्दी में ही आरम्भ हुआ। पिछले 100 वर्षों में पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस का प्रयोग परिवहन तथा चालक शक्ति के रूप में निरन्तर बढ़ता जा रहा है। कई सुविधाओं के कारण कारखानों तथा परिवहन में कोयले की अपेक्षा पैट्रोलियम शक्ति का प्रमुख स्रोत बन गया है। आधुनिक मशीनी युग पैट्रोलियम पर ही टिका हुआ है जिससे चिकने पदार्थ प्राप्त होते हैं। तेल से अनेक प्रकार की वस्तुएं जैसे ईंधन पदार्थ, दवाइयां, रंग-रोगन, मशीनों के तेल तैयार किए जाते हैं। आजकल सभ्य समाज में विभिन्न घरेलू कार्यों के लिए पैट्रोलियम को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। आर्थिक महत्त्व के कारण पैट्रोलियम की मांग तथा प्रयोग में निरन्तर वृद्धि हो रही है। आधुनिक सभ्यता की तेल के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए इसे हम वर्तमान का ईंधन कह सकते हैं क्योंकि निकट भविष्य में ही पैट्रोलियम के साधन समाप्त हो जाएंगे।

पिछले कुछ समय से पैट्रोलियम की कीमतों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। इसलिए यह एक महंगा साधन बनता जा रहा है। कोयले के भण्डार भी अधिक देर तक नहीं चलाये जा सकते। इसलिए अनेक देशों में बिजली शक्ति का विकास किया जा रहा है। इटली तथा जापान जैसे देश जल शक्ति के सहारे ही संसार में उन्नति के शिखर पर पहुँचे हैं। जल बिजली एक अक्षय साधन है। इसे सुविधापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए इसे श्वेत कोयला (White Coal) भी कहते हैं। संसार के कई प्रदेशों में जल बिजली के विशाल संभाव्य साधन मौजूद हैं, जैसे अफ्रीका में। निकट भविष्य में इन प्रदेशों में कई योजनाओं की सहायता से जल बिजली शक्ति का अधिक मात्रा में विकास किया जाएगा। जिन देशों में कोयला और पैट्रोलियम की कमी है वहाँ औद्योगिक विकास के लिए जल बिजली योजनाएँ बनाई गई हैं। इसी दिशा में अणु शक्ति एक नवीनतम साधन के रूप में उभर रही है परन्तु कई राजनीतिक तथा आर्थिक कठिनाइयों के कारण इसका भविष्य धुंधला है। अतः बिजली शक्ति को ही भविष्य का ईंधन भी कहा जा सकता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 5 आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत

आर्थिक भूगोल : खनिज तथा ऊर्जा स्रोत PSEB 12th Class Geography Notes

  • किसी देश की आर्थिक खुशहाली उसके खनिजों की उपलब्धता तथा उद्योगों के विकास पर निर्भर करती है।
  • हमारे देश की GDP में खनिजों का 2.2% से 2.5% और उद्योगों का 10% से 11% तक का हिस्सा है। |
  • खनिजों को मुख्य रूप में धातु तथा अधातु में विभाजित किया जाता है।
  • खनिजों को लौह तथा अलौह धातु में विभाजित किया जाता है। जिस धातु में लोहा होता है उसे लौह और जिसमें नहीं होता, उन्हें अलौह धातु कहते हैं।
  • लोहा प्राचीन काल से ही बहुत प्रसिद्ध है। इसको आधुनिक सभ्यता की नींव कहते हैं। इसको मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, लिमोनाइट, साइडेराइट चार प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
  • एल्यूमीनियम बाक्साइट धातु से बनता है। भारत में उड़ीसा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
  • लोहे से इस्पात बनाने के लिए मैंगनीज मिलाया जाता है। यह हल्के स्लेटी रंग की धातु है। भारत में उड़ीसा मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। कोयले को काला सोना कहा जाता है। यह मुख्य रूप में ऐन्थेसाइट, बिटुमिनस, लिग्नाइट, पीट इत्यादि चार प्रकार का होता है।
  • ऊर्जा किसी भी देश की आर्थिकता की वृद्धि और विकास की बुनियाद है। ऊर्जा को कई हिस्सों में विभाजित किया जाता है, जैसे कि नवीनीकरण स्रोत, गैर नवीकरणीय स्रोत, परंपरागत स्रोत, गैर पारंपरिक स्रोत, जैविक और अजैविक स्रोत।
  • पैट्रोलियम को तहदार चट्टानों में से निकाले खनिज तेल को साफ करके बनाया जाता है। भारत में पैट्रोल के 27 बेसिन हैं। भारत में प्रमुख पैट्रोल उत्पादक क्षेत्र हैं डिगबोई, बप्यायुंग, सुरमा घाटी में बदरपुर, मसीमपुर, असम और गुजरात इत्यादि।
  • भारत सरकार ने 2022 तक 17.5 गीगावाट ऊर्जा पैदा करने का उद्देश्य रखा है जिसमें 60 GW जलविद्युत् गैस, 100 GW सौर ऊर्जा तथा जैव शक्ति से 10 GW तथा जल शक्ति से 5 GW बिजली पैदा करना है।
  • रिओ डी जेनेरियो में 1992 में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान स्रोतों की संभाल की सख्ती के साथ वकालत की गई है।
  • खनिज पदार्थ-भारत में बड़ी संख्या में खनिज पदार्थ मिलते हैं। 100 खनिज पदार्थ अनुमानतः भारत में मिलते हैं। मुख्य रूप में खनिज दामोदर घाटी में मिलते हैं। खनिज मुख्य रूप में दो तरह के होते हैं—
    • धातु खनिज
    • अधातु खनिज।
  • बीमार राज्य–बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश को 20 वीं सदी में बीमार राज्य कहते थे क्योंकि यहाँ विकास दर कम थी।
  • लोहे की मुख्य किस्में-लोहे के मुख्य चार प्रकार हैं
    • मैग्नेटाइट-यह सबसे बढ़िया प्रकार 72% शुद्ध लोहा।
    • हैमेटाइट-60% से 70% शुद्ध लोहा
    • लिमोनाइट-40% से 60% शुद्ध लोहा
    • साइडेराइट-40% से 50% लौह अंश
  • खनिज पेटियां-भारत में तीन खनिज पेटियां हैं-उत्तरी पूर्वी पठार, दक्षिण-पश्चिमी पठार, उत्तर पश्चिमी प्रदेश।
  • ऊर्जा संसाधन- भारत में कोयला, खनिज तेल, जलविद्युत् गैस, अणुशक्ति प्रमुख ऊर्जा संसाधन हैं।
  • गैर अपारंपरिक ऊर्जा के स्रोत-कोयला, प्राकृतिक गैस, खनिज तेल, खनिज तथा परमाणु ऊर्जा इत्यादि।
  • जैविक स्त्रोत-वे स्रोत जिनमें जान होती है, जैसे कि जानवर, फसलें, इन्सान इत्यादि।
  • नवीकरणीय तथा गैर नवीकरणीय स्रोत-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस तथा लकड़ी गैर नवीकरणीय और वायु ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा इत्यादि नवीकरणीय स्रोत हैं।
  • रक्षित पैट्रोलियम भंडार-भारत ने भविष्य की जरूरतों के लिए एक तेल भंडार रक्षित रखा है, जिसमें 50 लाख मीट्रिक टन तेल का भंडार है।
  • निरंतर विकास-जब हम आज की पीढ़ी तथा आने वाली पीढ़ी, दोनों की जरूरतों का ध्यान रखते हैं उसे निरंतर विकास कहते हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फूलों की खेती

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फूलों की खेती Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 3 फूलों की खेती

PSEB 11th Class Agriculture Guide फूलों की खेती Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
डंडी वाले फूल के रूप में उगाई जाने वाली मुख्य फसल कौन सी है ?
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स।

प्रश्न 2.
डंडी रहित फूल वाली मुख्य फसल का नाम लिखो।
उत्तर-
गेंदा।

प्रश्न 3.
पंजाब में कुल कितने क्षेत्रफल में फूलों की खेती की जा रही है ?
उत्तर-
2160 हैक्टेयर क्षेत्रफल के अधीन जिसमें 1300 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर ताज़े तोड़ने वाले फूलों की कृषि होती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फूलों की खेती

प्रश्न 4.
पंजाब में उगाई जाने वाली फूलों की फसलों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
दो भागों में-
(i) डंडी रहित फूल।
(ii) डंडी वाले फूल।

प्रश्न 5.
ग्लैडीऑल्स की गांठों की बुआई कब की जाती है ?
उत्तर-
सितम्बर से मध्य नवम्बर।

प्रश्न 6.
गुलदाउदी की कलमें किस महीने में तैयार की जाती हैं ?
उत्तर-
जून के अन्त से मध्य जुलाई तक।

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प्रश्न 7.
जरबरा के पौधे कैसे तैयार किए जाते हैं ?
उत्तर-
टिशु कल्चर द्वारा।

प्रश्न 8.
पंजाब में डंडी रहित फूलों के लिए कौन से रंग का गुलाब लगाया जाता
उत्तर-
लाल गुलाब।

प्रश्न 9.
तेल निकालने के लिए कौन-कौन से फूल उपयोग में लाए जाते हैं ?
उत्तर-
रजनीगंधा, मोतिया के फूल।

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प्रश्न 10.
सुरक्षित ढांचों में कौन-से फूलों की कृषि की जाती है ?
उत्तर-
जरबरा।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
डंडी वाले फूलों की परिभाषा दो और डंडी वाले मुख्य फूलों के नाम बताओ।
उत्तर-
डंडी वाले फूल वह होते हैं जिनको लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है। इसके मुख्य फूल हैं-ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा, गुलाब, लिली आदि।

प्रश्न 2.
ग्लैडीऑलस फूल की डंडियों की कटाई और स्टोर करने के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाए।
ग्लैडीऑल्स की फूल डंडियों को पानी में रख कर नौ दिनों के लिए कोल्ड स्टोर में इनका भंडारण किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
गुलाब के पौधे कैसे तैयार किए जाते हैं ?
उत्तर-
डंडी वाले फूलों की किस्मों को टी (T) -विधि द्वारा प्योंद करके तैयार किया जाता है। डंडी के बिना फूलों वाले लाल गुलाब को कलमों द्वारा तैयार किया जाता

प्रश्न 4.
गेंदे की नर्सरी किन महीनों में तैयार की जाती है ?
उत्तर-
गेंदे की पनीरी बरसात के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक सर्दियों के लिए मध्य सितम्बर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है।

प्रश्न 5
मौसमी फूलों की बुआई का समय बताओ।
उत्तर-
मौसमी फूल एक वर्ष में या एक मौसम में अपना जीवन-चक्र पूर्ण कर लेते हैं। इनकी बुवाई का समय है –

1. गर्मी के फूल-पनीरी-फरवरी-मार्च में।
खेत में चार सप्ताह की पनीरी होने पर।
2. बरसात के फूल-पनीरी-जून का पहला सप्ताह।
खेत में-जुलाई के पहले सप्ताह।
3. सर्दी के फूल-पनीरी-सितम्बर के मध्य में।
खेत में-अक्तूबर के मध्य में।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित फूलों को कब तोड़ा जाता है ?
(क) ग्लैडीऑल्स
(ख) डंडी वाला गुलाब
(ग) मोतिया।
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स-कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाता है।
(ख) डंडी वाला गुलाब-डंडी वाले फूलों को बंद अवस्था में तोड़ा जाता है।
(ग) मोतिया-मोतिया के फूल को जब इसकी कलियां पूर्ण रूप से न खुली हों, तोड़कर बेचा जाता है।

प्रश्न 7.
अफ्रीकन और फ्रांसीसी गेंदे के पौधों में कितनी दूरी रखी जाती है ?
उत्तर-
अफ्रीकन किस्मों के लिए दूरी 40×30 सैं०मी० तथा फ्रांसीसी किस्मों के लिए 60×60 सैं०मी० रखी जाती है।

प्रश्न 8.
जरबरा के पौधे किस महीने में लगाए जाते हैं ? यह फसल कितने समय तक फूल देती है ?
उत्तर-
जरवरा के पौधे सितम्बर से अक्तूबर माह में लगाए जाते हैं। तीन साल तक यह फसल खेत में रहती है।
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PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फूलों की खेती

प्रश्न 9.
डंडी रहित फूलों के नाम और उनके उपयोग के बारे में लिखो।
उत्तर-
डंडी के बिना फूल हैं-गेंदा, गुलाब, मोतिया, गुलदाऊदी आदि। इन सारे फूलों | को हार बनाने के लिए, पूजा के कार्यों या अन्य सजावटी कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता

प्रश्न 10.
मोतिया की फसल के लिए उपयुक्त ज़मीन कौन-सी है ?
उत्तर-
मोतिया की खेती के लिए मध्यम से भारी भूमियां, जिनमें पानी न ठहरता हो, अच्छी रहती है।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मनुष्य जीवन में फूलों के महत्त्व के बारे में विस्तार से बताओ।
उत्तर-
फूलों का मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे आस-पास की दुनिया । को रंगीन तथा सुंदरता प्रदान करने में इनका बहुत योगदान है। हमारे रीति-रिवाजों के साथ फूलों का गहरा संबंध है। शादी, जन्म दिवस आदि के अवसरों पर फूलों का बहुत प्रयोग होता है। धार्मिक स्थलों, मंदिरों आदि में फूलों के प्रयोग से भगवान् के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। अन्य समागमों में मुख्य मेहमान का स्वागत करने के लिए हम फूलों के गुलदस्ते तथा हार का प्रयोग करते हैं। फूलों को औरतों द्वारा अपने शृंगार के लिए भी प्रयोग किया जाता है। फूलों की कृषि आर्थिक पक्ष से भी एक लाभदायक धंधा बन गई है। इस प्रकार फूलों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है।

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प्रश्न 2.
डंडी रहित और डंडी वाले फूलों में क्या अंतर है ? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर-
डंडी रहित फूल-यह ऐसे फूल होते हैं जिनको डंडी के बिना तोड़ा जाता है। यह फूल हैं-गेंदा, गुलाब, मोतिया, गुलदाउदी आदि। इनका प्रयोग हार बनाने के लिए, पूजा के लिए एवं अन्य सजावटी कार्यों के लिए किया जाता है।

डंडी वाले फूल-डंडी वाले फूल वह होते हैं जिनको लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है। इनको डंडी के साथ ही बेचा जाता है। इन फूलों का प्रयोग साधारणतः गुलदस्ते बनाने के लिए होता है। इनको तोहफे के रूप में देने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरण-ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा, गुलाब तथा लिली आदि।

प्रश्न 3.
मोतिया के फूल के महत्त्व के बारे में बताते हुए इसकी कृषि पर नोट लिखें।
उत्तर-
मोतिया सुगंध प्रदान करने वाले फूलों में से एक महत्त्वपूर्ण फूल है। इन फूलों में से सुगंधित तेल प्राप्त किया जाता है तथा इनका पूजा पाठ के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
जलवायु-अधिक तापमान तथा शुष्क मौसम मोतिया की पैदावार के लिए उचित है।
भूमि-मोतिया की भूमि के लिए मध्यम से भारी भूमियां, जिनमें पानी न ठहरता हो, अच्छी रहती है।
कटाई-पौधों को दूसरे वर्ष के बाद कटाई करके 45 से 60 सैं०मी० की ऊंचाई पर ही रखना चाहिए।।
फूलों का समय-फूल अप्रैल से जुलाई-अगस्त माह तक मिलते हैं।
तुड़ाई-मोतिया के फूल की जब कलियाँ अभी पूरी खुली न हों, तोड़ कर बेचे जाते हैं।
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प्रश्न 4.
गेंदे की बुआई, तुड़ाई और पैदावार पर नोट लिखें।
उत्तर-
गेंदा एक डंडी के बिना तोड़े जाने वाला फूल है। पंजाब में इसकी कृषि सारा वर्ष होती है। गेंदे की फसल के लिए पंजाब की मिट्टी बहुत ही उचित है।
नर्सरी तैयार करना-गेंदे की नर्सरी बरसातों के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक, सर्दियों के लिए मध्य सितंबर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है। यह पनीरी लगभग एक महीने में खेतों में लगाने के लिए तैयार हो जाती है।

किस्में-गेंदे की दो किस्में हैं-अफ्रीकन तथा फ्रांसीसी।
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फासला 40×30 सैं०मी० तथा फ्रांसीसी किस्म के लिए 60 x 60 सैं०मी०।
फूलों की प्राप्ति-50 से 60 दिनों के बाद फूलों की प्राप्ति होने लगती है। तुड़ाई का मण्डीकरण-फूल पूरे खुल जाने के बाद तोड़ कर मण्डीकरण किया जाता है।
पैदावार ( उत्पादन)-बरसात में औसत पैदावार 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सर्दियों में 150 से 170 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित फूलों की फसलों की पौध वृद्धि कैसे की जाती है ?
(क) ग्लैडीऑल्स
(ख) रजनीगंधा
(ग) गुलदाउदी
(घ) जरबरा।
उत्तर-
(क) ग्लैडीऑल्स-ग्लैडीऑल्स की बुआई बल्बों (गांठों) से की जाती है।
(ख) रजनीगंधा-रजनीगंधा के बल्ब (गांठे) लगाए जाते हैं।
(ग) गुलदाउदी-गुलदाउदी की कलमें पुराने पौधों के टूसों से तैयार की जाती है।
(घ) जरबरा-टिशु कल्चर द्वारा तैयार किए जाते हैं।

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Agriculture Guide for Class 11 PSEB फूलों की खेती Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में ताजे तोड़ने वाले फूलों की कृषि के अधीन क्षेत्रफल लिखो।
उत्तर-
1300 हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा किस तरह के फूल हैं ?
उत्तर-
डंडी वाले।

प्रश्न 3.
गुलाब, मोतिया कैसे फूल हैं ?
उत्तर-
डंडी रहित।

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प्रश्न 4.
ग्लैडीऑल्स की कृषि किससे की जाती है ?
उत्तर-
बल्बों (गांठों) से।

प्रश्न 5.
ग्लैडीऑल्स के बल्ब कब बोए जाते हैं?
उत्तर-
सितंबर से आधे नवंबर तक।

प्रश्न 6.
पंजाब में गेंदे की कृषि कब की जा सकती है?
उत्तर-
पंजाब में गेंदे की कृषि सारा वर्ष की जा सकती है।

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प्रश्न 7.
गेंदे की फसल के लिए कौन-सी मिट्टी ठीक है?
उत्तर-
गेंदे की फसल के लिए पंजाब की सारी भूमियां ठीक हैं।

प्रश्न 8.
गेंदे की किस्में बताओ।
उत्तर-
अफ्रीकन तथा फ्रांसीसी।

प्रश्न 9.
एक एकड़ नर्सरी के लिए गेंदे के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
600 ग्राम।

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प्रश्न 10.
बरसात के लिए गेंदे की पनीरी कब लगाई जाती है ?
उत्तर-
जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह।

प्रश्न 11.
गेंदे के फूल कितने दिनों बाद मिलने लगते हैं?
उत्तर-
50 से 60 दिनों बाद।

प्रश्न 12.
गेंदे की बरसातों के मौसम में उत्पादन बताओ।
उत्तर-
लगभग 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

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प्रश्न 13.
गेंदे के फूलों का सर्दियों में उत्पादन बताओ।
उत्तर-
150-170 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

प्रश्न 14.
गुलदाउदी की कलमें कहां से ली जाती हैं ?
उत्तर-
पुराने पौधों के टूसों से।

प्रश्न 15.
गुलदाउदी की कलमें कब तैयार की जाती हैं ?
उत्तर-
जून के अंत से मध्य जुलाई तक।

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प्रश्न 16.
गुलदाउदी की कलमें खेतों में कब लगाई जाती हैं?
उत्तर-
मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक।

प्रश्न 17.
गुलदाउदी के पौधों का फासला बताओ।
उत्तर-
30 x 30 सै०मी०।

प्रश्न 18.
गुलदाउदी के फूल कब आते हैं ?
उत्तर-
नवंबर-दिसंबर।

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प्रश्न 19.
गुलदाउदी के फूलों को भूमि से कितनी दूरी पर काटा जाता है ?
उत्तर-
भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर।
आ।

प्रश्न 20.
पंजाब में गुलाब के फूल कब प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
नवंबर से फरवरी-मार्च तक।

प्रश्न 21.
जरबरे के फूलों का रंग बताओ।
उत्तर-
लाल, संतरी, सफेद, गुलाबी, पीले।

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प्रश्न 22.
जरबरा के पौधे कब लगाए जाते हैं?
उत्तर-
सितंबर-अक्तूबर।।

प्रश्न 23.
रजनीगंधा कितनी किस्मों में आते हैं ?
उत्तर-
सिंगल तथा डबल किस्म में।

प्रश्न 24.
रजनीगंधा की कौन-सी किस्म सुगंध वाली है?
उत्तर-
सिंगल किस्में।

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प्रश्न 25.
रजनीगंधा के बल्ब कब लगाए जाते हैं?
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

प्रश्न 26.
रजनीगंधा के फूल कब लगते हैं ?
उत्तर-
जुलाई-अगस्त ।

प्रश्न 27.
रजनीगंधा की पैदावार बताओ।
उत्तर-
80000 फूल डंडियों वाले या 2 – 2.5 टन प्रति एकड़ डंडी के बिना फूलों का उत्पादन मिलता है।

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प्रश्न 28.
एक सुगंध वाले फूल का नाम बताओ।
उत्तर-
मोतिया।

प्रश्न 29.
मोतिया के फूलों का रंग बताओ।
उत्तर-
सफेद।

प्रश्न 30.
मोतिया के फल कब आते हैं?
उत्तर-
अप्रैल से जुलाई-अगस्त।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लैडीऑल्स के बल्बों को अगले साल के लिए कैसे तैयार किया जाता है?
उत्तर-
फूल डंडियां काटने से 6-8 सप्ताह बाद भूमि में से बल्बों (गांठों) को निकाल कर छाया में सुखा कर अगले वर्ष की बुवाई के लिए कोल्ड स्टोर में रख लिया जाता है।

प्रश्न 2.
गेंदे की नर्सरी कब लगाई जाती है? .
उत्तर-
बरसातों के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक, सर्दियों के लिए मध्य सितंबर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है।

प्रश्न 3.
गुलदाउदी की कलमों को कब तैयार किया जाता है ?
उत्तर-
कलमों को जून के अंत से मध्य जुलाई तक पुराने पौधे के टूसों से तैयार किया जाता है। मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक खेतों में लगाया जाता है।
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प्रश्न 4.
गुलदाउदी के फूल कब आते हैं तथा इनकी तुड़ाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलदाउदी के फूल नवंबर-दिसंबर में लगते हैं तथा डंडी वाले फूलों को भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर काटा जाता है जबकि डंडी के बिना फूलों को पूरा खुलने पर तोड़ा जाता है।

प्रश्न 5.
गुलाब के फूल कब आते हैं तथा इनकी तुड़ाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलाब के फूल पंजाब में नवंबर से फरवरी-मार्च तक आते हैं। गुलाब की डंडी वाले फलों को बंद अवस्था में तथा डंडी रहित फूलों को पूरे खुलने पर तोड़ा जाता है।
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प्रश्न 6.
रजनीगंधा की किस्मों के बारे में बताओ।
उत्तर-
रजनीगंधा की दो किस्में हैं-सिंगल तथा डबल। सिंगल किस्में अधिक सुगंधित हैं तथा इनमें से तेल भी निकाला जाता है।
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प्रश्न 7.
रजनीगंधा के बल्ब कब लगाए जाते हैं तथा फूल कब आते हैं?
उत्तर-
बल्ब (गांठे) फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं तथा फूल जुलाई-अगस्त में आते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लैडीऑल्स की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स पंजाब में डंडी वाले फूलों में से मुख्य फूल हैं।
बीज-ग्लैडीऑल्स की बुवाई के लिए बल्ब (गांठे) का प्रयोग किया जाता है।
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बोवाई का समय-सितंबर से मध्य नवंबर।
फासला-30 x 20 सै०मी० ।
कटाई-डंडियों की कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाए।
स्टोर करना-फूल डंडियों को पानी में रख कर नौ दिनों के लिए कोल्ड स्टोर में स्टोर किया जा सकता है।
अगले वर्ष का बीज-जब फूल डंडियां काट ली जाती हैं तो 6-8 सप्ताह बाद भूमि में से बल्ब (गांठे) निकाल कर छाया में सुखा लिए जाते हैं। इनको अगले वर्ष की बुवाई के लिए कोल्ड स्टोर में स्टोर किया जाता है।

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प्रश्न 2.
गुलदाउदी की कृषि के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलदाउदी के फूल डंडी वाले तथा डंडी रहित भी हो सकते हैं । इनको गमलों में । लगाया जा सकता है।
कलमें तैयार करना-कलमों को जून के अंत से मध्य जुलाई तक पुराने पौधों के टूसियों से तैयार किया जाता है।
बुवाई का समय-कलमों को मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक खेतों में लगाया जाता है।
फासला-30 x 30 सैं० मी० फूल आने का समय-नवंबर-दिसंबर में।
कटाई-डंडी वाले फूलों को भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर काटा जाता है। परन्तु डंडी रहित फूलों को पूरा खुलने पर तोड़ा जाता है।

फूलों की खेती PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • भारतीय समाज में फूलों की महत्ता प्राचीन समय से ही बनी हुई है।
  • फूलों का प्रयोग पूजा के लिए, विवाह-शादियों के लिए तथा अन्य सामाजिक समारोहों के लिए बड़े स्तर पर किया जाता है।
  • पंजाब में 2160 हैक्टेयर क्षेत्रफल फूलों की कृषि के अधीन है।
  • पंजाब में 1300 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर ताज़े तोड़ने वाले फूलों की कृषि होती है।
  • पंजाब में मुख्य फूलों वाली फसलों को दो भागों में बांटा जाता है-डंडी रहित फूल (Loose flower), डंडी वाले फूल (Cut flower)।।
  • डंडी रहित फूलों को लम्बी डंडी के बिना तोड़ा जाता है। उदाहरण-गेंदा, गुलाब, मोतिया आदि।
  • डंडी वाले फूलों को लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है; जैसे-ग्लैडीऑल्स जरबरा, लिली आदि।
  • ग्लैडीऑल्स, पंजाब में डंडी वाले फूलों की कृषि वाली मुख्य फसल है।
  • ग्लैडीऑल्स की कृषि बल्बों से की जाती है।
  • गेंदा पंजाब का डंडी रहित फूलों वाला मुख्य फूल है।
  • गेंदा दो प्रकार का है-अफ्रीकन, फ्रांसीसी।
  • गेंदे की कृषि के लिए एक एकड़ की नर्सरी के लिए 600 ग्राम बीज की आवश्यकता है।
  • गुलदाउदी डंडी वाला तथा डंडी रहित फूल दोनों तरह प्रयोग होते हैं।
  • गुलदाउदी की कलमें जून के अन्त से मध्य जुलाई तक पुराने पौधों के टूसों से तैयार की जाती हैं।
  • गुलाब की कृषि भी डंडी वाले तथा डंडी रहित फूलों के लिए की जाती है।
  • गुलाब की डंडी वाले फूलों को बंद अवस्था में तथा डंडी के बिना फूलों को पूरी तरह खुलने पर तोड़ा जाता है।
  • जरबरा के लाल, संतरी, सफेद, गुलाब तथा पीले रंग के फूलों की अधिक मांग है।
  • रजनीगंधा के फूल बिना डंडी के, डंडी के साथ तथा तेल निकालने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
  • रजनीगंधा के बल्ब गांठे फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं।
  • रजनीगंधा से 80,000 फूल डंडियों वाले या 2-2.5 टन प्रति एकड़ डंडी रहित फूलों की पैदावार मिल जाती है।
  • मोतिया के फूल सफेद रंग के तथा खुश्बूदार होते हैं।
  • मोतिया की कृषि के लिए मध्यम से भारी भूमि, जिनमें पानी न ठहरता हो अच्छी रहती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी-परीक्षण करवाने का नमूना कितनी गहराई तक लेना चाहिए ?
उत्तर-
6 इंच की गहराई तक।

प्रश्न 2.
मिट्टी-परीक्षण करवाने हेतु लिए जाने वाले नमूने की मात्रा बताएं।
उत्तर-
आधा किलोग्राम।

प्रश्न 3.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्ढा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
3 फुट गहरा।

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प्रश्न 4.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण हेतु नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्डा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
6 फुट गहरा।

प्रश्न 5.
सिंचाई के लिए जल-परीक्षण करवाने हेतु नमूना लेने के लिए कितना समय ट्यूबवैल चलाना चाहिए ?
उत्तर-
आधा घंटा।

प्रश्न 6.
मिट्टी और जल-परीक्षण कितने समय बाद करवा लेना चाहिए ?
उत्तर-
प्रत्येक तीन वर्ष बाद।

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प्रश्न 7.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो लघु तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
जिंक, लोहा, मैंगनीज़।

प्रश्न 8.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो मुख्य तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन, फास्फोरस

प्रश्न 9.
क्या पानी का नमूना लेने के लिए प्रयोग में ली जाने वाली बोतल को साबुन से धोना चाहिए ?
उत्तर-
नहीं धोना चाहिए।

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प्रश्न 10.
जल-परीक्षण से मिलने वाले किसी एक परिणाम का नाम लिखो।
उत्तर-
पानी का खारापन, चालकता का पानी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
मिट्टी का नमूना लेने का सही समय क्या होता है ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने लेने का सही समय फसल काटने के बाद का है।

प्रश्न 2.
खड़ी फसल में से नमूना लेने का सही तरीका बताएं।
उत्तर-
खड़ी फसल में से नमूना लेना हो तो फसल की कतारों में से नमूना लेना चाहिए।

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प्रश्न 3.
मिट्टी और जल-परीक्षण के लिए सही तरीके से नमूना लेना क्यों आवश्यक
उत्तर-
गलत तरीके से मिट्टी तथा पानी का नमूना लेकर तथा परीक्षण करवाने से सही जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए नमूना सही ढंग से लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों के बहुत सारे ज़मीनी क्षेत्रों में भूमिगत पानी की क्या समस्या है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत सारे क्षेत्र में भूमिगत जल नमकीन अथवा खारा है।

प्रश्न 5.
मिट्टी के नमूने की थैली पर क्या जानकारी लिखनी चाहिए ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने की थैली पर निम्नलिखित जानकारी लिखनी चाहिए

  1. खेत का नंबर
  2. किसान का नाम तथा पता
  3. नमूना लेने का तरीका।

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प्रश्न 6.
बाग लगाने के लिए मिट्टी का नमूना लेते समय कंकड़ों की परत मिलने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि कंकड़ों की परत मिल जाए तो इसका नमूना अलग से भरना चाहिए तथा इसकी गहराई तथा मोटाई की जानकारी भी नोट करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
मिट्टी का परीक्षण किन तीन उद्देश्यों के लिए करवाया जाता है ?
उत्तर-

  1. फसलों के लिए उर्वरकों की आवश्यकता तथा उनकी मात्रा पता करने के लिए
  2. कल्लराठी भूमि के सुधार के लिए
  3. बाग लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

प्रश्न 8.
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से ज़मीन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर–
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से भूमि कल्लराठी हो जाती है।

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प्रश्न 9.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण करवाते समय एक जगह से कितने नमूने लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाते समय एक स्थान से लगभग 6-7 नमूने लिए जाते हैं।

प्रश्न 10.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना कितनी-कितनी गहराई से लिया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्डा खोदा जाता है। जिसमें 0-6, 6-12, 12-24 तथा 24-36 इंच गहराई से नमूने लिए जाते हैं।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
मिट्टी-परीक्षण की महत्ता के बारे में लिखो।
उत्तर-
अधिक उपज तथा गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त करने के लिए खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण करने से मिट्टी में कौन-से आवश्यक तत्त्वों की कमी है तथा कितनी है, इसकी जानकारी मिलती है। इस तरह खादों का उचित प्रयोग हो सकता है। खाद का आवश्यकता से अधिक प्रयोग भूमि के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

मिट्टी की जांच करवाने से हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, जैविक मादा, खारी अंग, आवश्यक तत्त्वों की मात्रा का पता लगता है। इस प्रकार मिट्टी की परख का बहुत ही महत्त्व है ताकि इससे सफल फसल प्राप्त की जा सके।

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प्रश्न 2.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण कराने हेतु नमूना लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
भूमि की ऊपरी सतह से छः फुट की गहराई तक नमूना लिया जाता है। यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होना चाहिए। यह चित्र में दिखाए अनुसार लेना चाहिए।

पहला नमूना 6 इंच तक फिर 6 इंच से 1 फुट तक, 1 फुट से 2 फुट तक, 2 फुट से 3 फुट तक, 3 से 4 फुट तक, 4 से 5 फुट तक, 5 से 6 फुट तक अर्थात् प्रत्येक फुट के निशान तक नमूना लिया जाता है। (1 फुट = 12 इंच)
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 1
नमूना गड्ढे के सीधी तरफ से खुरपे की सहायता से लिया जाता है। एक इंच मोटी सतह एक जैसे निकाली जाती है।
नमूना लेने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—

  1. यदि भूमि की सतह सख़्त अथवा कंकड़ों वाली हो तो इसका नमूना अलग भरना चाहिए और इसकी गहराई और मोटाई नोट कर लेनी चाहिए।
  2. प्रत्येक तह के लिए विभिन्न नमूने लेने चाहिएं। प्रत्येक नमूना आधा किलो का होना चाहिए।
  3. हर थैली के अंदर और बाहर लेबल लगा देने चाहिएं उस पर नमूने का विवरण हो।

प्रश्न 3.
ट्यूबवैल के पानी का सही नमूना लेने का तरीका लिखो।
उत्तर-
ट्यूबवैल का बोर करते समय पानी की प्रत्येक सतह से प्राप्त नमूने का परीक्षण करवाना चाहिए। पानी का नमूना लेने के लिए कुएँ या ट्यूबवैल को आधा घंटा तक चलाना चाहिए। पानी का नमूना साफ़ बोतल में लेना चाहिए। बोतल पर अग्रलिखित सूचना का पर्चा चिपका देना चाहिए—

  1. नाम,
  2. गाँव और डाकखाना,
  3. ब्लाक,
  4. तहसील,
  5. ज़िला,
  6. पानी की सतह,
  7. मिट्टी की किस्म जिसे पानी लगता है।

बोतल को साफ़ कार्क लगाकर, अच्छी तरह बंद कर दें और प्रयोगशाला में भेज दें। बोतल को साबुन अथवा कपड़े धोने वाले सोडे से साफ नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
मिट्टी और जल-परीक्षण कहाँ से करवाया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी और जल-परीक्षण किसी नज़दीक की मिट्टी जांच प्रयोगशाला से करवाया जा सकता है। मिट्टी तथा पानी की जांच पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में भी करवाई जा सकती है। पी० ए० यू० के क्षेत्रीय खोज केंद्र गुरदासपुर तथा बठिंडा से भी यह परख करवाई जा सकती है। कृषि विभाग पंजाब तथा कुछ अन्य संस्थाओं द्वारा भी मिट्टी तथा पानी परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इनसे भी किसान मिट्टी तथा पानी की जांच करवा सकता है।

प्रश्न 5.
मिट्टी और जल-परीक्षण में मिलने वाले परिणामों से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
मिट्टी का परीक्षण करवाने से निम्नलिखित जानकारी मिलती है—
मिट्टी की किस्म, इसके क्षारीय अंग, नमकीन पदार्थ (चालकता), जैविक कार्बन, पोटाश, नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे मुख्य तत्त्वों तथा लघु तत्त्वों; जैसे-लोहा, जिंक, मैंगनीज़ आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
इसी प्रकार पानी की जांच से पानी का खारापन, चालकता, क्लोरीन तथा पानी में सोडे की किस्म तथा मात्रा की जानकारी प्राप्त होती है।
मिट्टी तथा पानी की जांच प्रत्येक तीन वर्ष बाद करवाते रहना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण से हमें भूमि के बारे में मिलने वाली जानकारी का एक पक्ष बताओ।
उत्तर-
भूमि की उपजाऊ शक्ति का पता चलता है।

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प्रश्न 2.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए किस आकार का गड्ढा खोदा जाता है ?
उत्तर-
अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ आकार का।

प्रश्न 3.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी की जांच करवाने के लिए नमूना कितने स्थानों से लेना चाहिए ?
उत्तर-
7-8 स्थानों से।

प्रश्न 4.
मिट्टी के नमूने अलग-अलग कब भरने चाहिएं ?
उत्तर-
जब मिट्टी की किस्म तथा उपजाऊ शक्ति भिन्न-भिन्न हो।

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प्रश्न 5.
कल्लर वाली भूमि से मिट्टी की जांच करवाने के लिए गड्ढा किस आकार का होता है ?
उत्तर-
यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होता है।

प्रश्न 6.
खारे पानी से लगातार सिंचाई करते रहने से भूमि की उपजाऊ शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। प्रश्न 7. पी० ए० यू० के कौन-से क्षेत्रीय खोज केंद्र में मिट्टी, पानी का परीक्षण करवाया जा सकता है ? उत्तर-गुरदासपुर तथा बठिंडा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण करवाने का क्या मंतव्य है ?
उत्तर-
फसलों के लिए खादों की आवश्यकता का पता लगाना, कल्लराठी भूमि का सुधार करना तथा बाग़ लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

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प्रश्न 2.
कल्लरी भूमि और साधारण भूमि में से मिट्टी का नमूना लेने में क्या अंतर है ?
उत्तर-
कल्लरी भूमि में एक गड्डा 3 फीट तक खोदा जाता है जबकि साधारण भूमि में विभिन्न गड्डे 6 इंच तक खोदे जाते हैं।
कल्लरी भूमि में एक गड्ढे में से 6 इंच, 1 फुट, 2 फुट, 3 फुट इत्यादि गहराइयों से नमूने लेने के लिए विभिन्न थैलियां बनाई जाती हैं जबकि साधारण भूमि में विभिन्न स्थानों की मिट्टी मिलाकर एक ही थैली में डाली जाती है।

प्रश्न 3.
किस मिट्टी में खाली स्थान अधिक होता है ?
उत्तर-
जिस मिट्टी की बनावट कणों वाली हो और जिसमें जैविक पदार्थ हों। उसमें खाली स्थान अधिक होता है।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि कितनी किस्म की होती है ?
उत्तर-
यह तीन किस्म की है-लवणी, क्षारीय और लवणी-क्षारीय।

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प्रश्न 5.
लवणी भूमि का क्षारीय अंश और लवणों की मात्रा कितनी होती है ?
उत्तर-
लवणों की मात्रा 0.8 मिली प्रति सेमी० से अधिक और क्षारीय अंश 8.7 से कम होता है।

प्रश्न 6.
क्षारीय भूमि लवणी भूमि से कैसे अलग है ?
उत्तर-
क्षारीय भूमि में सोडियम के लवणों की मात्रा अधिक होती है। लवण युक्त भूमि में इसकी मात्रा बहुत कम या नाममात्र होती है।

प्रश्न 7.
लवणी-क्षारीय भूमियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
इन भूमियों में खारापन और नमक दोनों ही अधिक मात्रा में होते हैं।

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प्रश्न 8.
तेजाबी भूमि के सुधार के लिए क्या किया जाता है ?
उत्तर-
इसके लिए चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त गन्ना मिल की गंदगी और लकड़ी की राख प्रयोग में लाई जा सकती है।

प्रश्न 9.
जिप्सम की प्राप्ति कहां से की जा सकती है ?
उत्तर-
यह 50 किलो के बंद बोरों में मार्केटिंग फैडरेशन अथवा भूमि-विकास और बीज कॉर्पोरेशन से तहसील और ब्लॉक स्तर पर मिल जाता है।

प्रश्न 10.
बाग के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
उपजाऊ, मल्हड़ और अच्छे निकास वाली।

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प्रश्न 11.
बाग कैसी भूमि पर नहीं लगाना चाहिए ?
उत्तर-
सेम युक्त, क्षारीय या कल्लर वाली भूमि।

प्रश्न 12.
कैसा पानी सिंचाई के लिए कभी नहीं प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जिस पानी में नमक की मात्रा अधिक हो उसे कभी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

प्रश्न 13.
मिट्टी का परीक्षण करवाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
मिट्टी के भौतिक तथा रासायनिक गुणों के बारे में जानकारी लेने तथा मिट्टी में मौजूद खुराकी (आहारीय) तत्त्वों की उपलब्धता के बारे में जानकारी लेने के लिए मिट्टी का परीक्षण करवाया जाता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी खेत में से मिट्टी का नमूना लेने की विधि बताएं।
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए किसान के पास कुदाल, खुरपा और तसला होना चाहिए। यदि रासायनिक खादों के प्रयोग की सिफ़ारिश के लिए नमूना लेना हो तो निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करें—

सबसे पहले खेत का कोरे कागज़ पर नक्शा तैयार करें। इस नक्शे का खसरे के साथ कोई संबंध नहीं है। इस नक्शे पर अपने हिसाब से कोई भी नंबर लगाओ। नक्शे से हर वक्त पता चलता रहेगा कि नमूना किस खेत में से लिया है। चित्र देखें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 2
खेत में से नमूना भरने के लिए 10-15 स्थानों से मिट्टी लें। खेत के किसी निशान पर खड़े हो जाएं। यहां कुदाल से गहरा गड्ढा बनाओ। यह अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ के आकार का बनेगा।

इसे खुरपे से सीधा करें। इस सीधी की गई दिशा की ओर 6″ गहराई पर निशान लगाएं और धरती से एक अंगुली की मोटाई पर एक पपड़ी 6″ के निशान तक काटकर तसले में डाल दें। इस तरह सारे खेत में से 10 से 15 यहां-वहां ठिकानों से मिट्टी इकट्ठा करें। तसले में सारी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाएं और छाया में सुखाकर एक कपड़े की थैली में भर लें।

प्रश्न 2.
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के साथ कौन-सी सूचना भेजी जाती है?
उत्तर-
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के नमूने के साथ निम्नलिखित सूचना भेजनी चाहिए—

  1. खेत का नंबर और नाम
  2. नमूना कब लिया।
  3. किसान का नाम पता।
  4. नमूने की गहराई।
  5. फसल चक्कर।
  6. सिंचाई के साधन।
  7. खेत में प्रयोग की गई खादों का विवरण।

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प्रश्न 3.
मिट्टी का नमूना लेने सम्बन्धी कौन-सी हिदायतें हैं ?
उत्तर-

  1. भूमि की ऊपरी सतह से घास-फूस हटा दें, पर मिट्टी न खुरचें।
  2. अगर मिट्टी में कोई ढेला हो तो उसे तोड़कर मिला दें।
  3. जहां पुरानी बाड़ या खाद के ढेर या खाद बिखरी हो उस स्थान से मिट्टी का नमूना नहीं लेना चाहिए।
  4. मिट्टी का नमूना साल में कभी भी लिया जा सकता है, पर गेहूँ की कटाई के बाद श्रावण की फसल की बिजाई से पहले नमूना लेना लाभदायक है।
  5. अगर पत्थर या कंकड़ हों, तो इन्हें ऐसे ही रहने दें, इन्हें तोड़ने की आवश्यकता नहीं।
  6. गीली मिट्टी को छाया में सुखा लेना चाहिए। मिट्टी को धूप या आग पर नहीं सुखाना चाहिए।
  7. यदि एक खेत में मिट्टी का कुछ हिस्सा अलग प्रकार का हो तो उसका नमूना अलग तौर से लें। अन्य खेत की मिट्टी में इस स्थान का नमूना नहीं मिलाना चाहिए।
  8. 3-4 वर्ष के बाद खेत की मिट्टी का परीक्षण ज़रूर करवाएं। कोशिश करें कि एक पूरे फसली चक्कर के बाद मिट्टी का परीक्षण हो।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि में से नमूने लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
कल्लरी भूमि में क्षार और लवणों की मात्रा पानी के उतार-चढ़ाव से बढ़तीघटती रहती है। इस मिट्टी के नमूने गहराई से लेने चाहिएं।
कल्लरी मिट्टी के नमूने लेने के लिए कल्लर वाले खेत में चित्र अनुसार 3 फुट गहरा गड्ढा खोदें। गड्डे का नमूना चित्र में दिया गया है। नमूना लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें—
1. गड्डे के ऊपरी तरफ भूमि के स्तर से नीचे की ओर 6 इंच, एक फुट, दो फुट और तीन फुट के फासले पर निशान लगाएं।

2. 6 इंच के निशान पर तसला रखकर भूमि की सतह से नीचे 6 इंच के निशान तक एक-जैसा टुकड़ा निकालें, यह आधा किलो के लगभग होना चाहिए।

3. इस तरह मिट्टी के एक-जैसे टुकड़े (लगभग आधा किलो मिट्टी) भूमि की निचली सतहों में से जैसे कि 6 इंच से एक फुट, एक फुट से दो फुट, दो फुट से तीन फुट आदि के निशान के बीच में से नमूने लें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 3

4. यदि भूमि की सतह सख्त अथवा रोड़ी वाली हो तो इसकी गहराई और मोटाई को माप कर इसका नमूना अलग लें।

5. इनके नमूनों को अलग तौर पर साफ़ कपड़े की थैलियों में डालें। सही नमूने पर ध्यान से लेबल लगाएं। एक थैली के अंदर और दूसरा थैली के बाहर। यह सूचना भी साफ़ लिखें जिससे मिट्टी की गहराई का पता चल सके।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • खाद के उचित प्रयोग के लिए मिट्टी परीक्षण आवश्यक है।
  • हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, उसके क्षारीय अंग, जैविक कार्बन तथा आवश्यक तत्त्वों की मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण से मिलती है।
  • फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करना हो तो ‘V’ आकार का छः इंच गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • कल्लर वाली भूमियों से मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए खेत में 6 फुट गहरा गड्ढा बनाया जाता है।
  • दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत-से क्षेत्रफल का भूमिगत जल नमकीन है।
  • ट्यूबवैल से पानी का नमूना लेने के लिए ट्यूबवैल को कम-से-कम आधा घंटा चलता रहने देना चाहिए।
  • मिट्टी तथा पानी का परीक्षण पी० ए० यू०. लुधियाना में किया जाता है तथा कुछ अन्य संस्थाएं भी यह निरीक्षण करती हैं।
  • किसानों को प्रत्येक तीसरे वर्ष मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
गेहूँ की दो मक्सीकन किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लरमा रोहो, सोनारा 64.

प्रश्न 2.
बीज साफ करने वाली मशीन का नाम लिखिए।
उत्तर-
सीड ग्रेडर।

प्रश्न 3.
गेहूं की दो नई विकसित किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
डब्ल्यू० एच० 1105, पी० बी० डल्ल्यू० 621.

प्रश्न 4.
प्रमाणित बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगते हैं?
उत्तर-
दो, हरा तथा नीला।

प्रश्न 5.
बुनियादी बीज पर कौन-से रंग का टैग लगता है ?
उत्तर-
सफेद टैग।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
टी० एल० बीज का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
टरुथफुली लेबलड (Truthfully Labelled)।

प्रश्न 7.
बीज कानून कौन-से वर्ष में बना था?
उत्तर-
वर्ष 1966 में।

प्रश्न 8.
गेहूँ के प्रमाणीकृत बीज की कम-से-कम कितनी उर्वरक शक्ति होनी चाहिए?
उत्तर-
85% से कम नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
धान के प्रमाणीकृत बीज के लिए कम-से-कम कितनी शुद्धता होती है?
उत्तर-
98%.

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प्रश्न 10.
नरमे के किसी एक आनुवंशिकी (पुश्तैनी) गुण का नाम लिखिए।
उत्तर-
टींडों की संख्या, टींडों का औसत भार ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीज अधिनियम के क्या उद्देश्य हैं तथा इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर-
इस एक्ट का उद्देश्य था किसानों को उचित नस्ल का बीज उचित दाम पर प्रदान करवाना। इस कानून को 1966 में लागू किया गया।

प्रश्न 2.
नरमे की फसल के दो आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
नरमे की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-टीडों की संख्या, टीडों का औसत भार, फलदार शाखाओं की संख्या आदि।

प्रश्न 3.
बुनियादी बीज से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बुनियादी बीज वह बीज है जिससे प्रमाणित बीज तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 4.
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था (Punjab State Seed Certification Authority) है।

प्रश्न 5.
गेहूँ की फ़सल के तीन महत्त्वपूर्ण आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-प्रति पौधा शाख की संख्या, प्रति बल्ली दानों की संख्या, दानों का वजन, बल्ली की लम्बाई आदि।

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प्रश्न 6.
ब्रीडर बीज किस संस्था की ओर से तैयार किया जाता है?
उत्तर-
जिस संस्था द्वारा उस किस्म की खोज की जाती है वह प्राथमिक बीज तैयार करती है।

प्रश्न 7.
बीज के कोई तीन बाहरी आभा वाले गुणों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बीज के बाहरी दिखाई देने वाले गुण हैं-बीज का रंग-रूप, आकार, भार आदि।

प्रश्न 8.
प्रमाणीकृत बीज की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज वह बीज है जो निश्चित किए गए मानकों के अनुसार पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था की निगरानी अधीन पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज उत्पादन में विलक्षण दूरी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इस तरह दूसरी फ़सलों का प्रभाव बीज की गुणवत्ता पर नहीं पड़ता।

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प्रश्न 10.
अनजान पौधों को बीज फसल में से निकालना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
इस तरह बीज गुणवत्ता वाले मिलते हैं तथा मिलावटी नहीं होते।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीजों के आनुवंशिकी तथा बाहरी आभा वाले गुणों में क्या तर है ?
उत्तर-
बीज की बाहरी दिखावट वाले गुण-बीज का रंग-रूप, आकार, भार, टूट फूट रहित, कूड़ा-कर्कट रहित, नदीन रहित तथा अन्य फ़सलों के बीजों की मिलावट से रहित बीजों को अच्छी गुणवत्ता के शुद्ध बीज माना जाता है।
फसलों के आनुवंशिक गुण-यह वह गुण है जो बाहर से देख कर पता नहीं लगते, यह बीज के अंदर होते हैं, यह एक फ़सल से अगली फसल में प्रवेश करते हैं। इन्हें नसली गुण भी कहा जाता है। भिन्न-भिन्न पौधों के नस्ली गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी फ़सल की भिन्न-भिन्न किस्मों में जो अन्तर दिखाई देते है वह इन्हीं गुणों के कारण है।

प्रश्न 2.
बीज फसल के कोई तीन स्तर लिखिए।
उत्तर-

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में रोग वाले पौधों की संख्या।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीज गुणवत्ता के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणित बीजों का उत्पादन करने के लिए दो तरह के मानकों की पालना की जाती है-

  1. खेत में बीज वाली फसल के मानक
  2. बीजों के मानक।

1. खेत में बीज वाली फसल के मानक-बीज फसल को फेल या पास करने के लिए निम्नलिखित मानक हैं –

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में बीमारी वाले पौधों की संख्या।

2. बीजों के मानक-प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की जांच करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

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प्रश्न 4.
व्यापारिक स्तर पर प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए विधि लिखिए।
उत्तर-
व्यापारिक स्तर पर यह धंधा शुरू करने के लिए ढंग इस तरह हैं-

  • यह धंधा शुरू करने से पहले बीज उत्पादन सम्बन्धी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यह जानकारी पी० ए० यू० लुधियाना, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विभाग, पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था, पनसीड जैसी संस्था, विभागों से ली जा सकती है।
  • कौन-सी फसल का उत्पादन करना है उसकी चयन, बीज उत्पादन के लिए आवश्यक ढांचा, मण्डीकरण आदि के बारे में उचित योजनाबंदी करना आवश्यक है।
  • कंपनी बना कर कृषि विभाग से लाइसेंस लेना।
  • बीज साफ करने वाली मशीन, पक्का फर्श, स्टोर, थैले सिलने वाली मशीन, बीज पैक करने वाली थैलियां आदि प्राथमिक आवश्यकताएं हैं जिनके बारे में फैसला करने के लिए पूर्ण जानकारी तथा अनुभव की आवश्यकता है।
  • बुनियादी बीज को निर्देशक बीज, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से लिया जा सकता है। बीज का बिल फर्म/कंपनी के नाम पर होना ज़रूरी है।
  • फाऊंडेशन बीज से सिफ़ारिश अनुसार फसल पैदा करके फसल को पंजाब राज्य सीड सर्टीफिकेशन विभाग में रजिस्ट्रेशन करवानी चाहिए।
  • फसल में अन्य पौधे, रोग वाले पौधे तथा नदीनों को निकालते रहना चाहिए। ऊपर बताए विभाग द्वारा फसल का दो तीन बार निरीक्षण किया जाता है।
  • फसल काट कर साफ करके उचित ढंग से पैक करना चाहिए तथा आवश्यक टैग बीज वाले थैले पर लगा देने चाहिए। इससे पहले बीज को विभाग द्वारा बीज जांच प्रयोगशाला में जांचा जाता है।

प्रश्न 5.
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दु इस तरह है-

  • इस बात की अच्छी तरह जांच कर लें कि कौन-सी फसल का बीज उत्पादन अच्छा लाभ,देगा तथा इसको पैदा करना सरल है या नहीं।
  • फसल का चयन क्षेत्र के अनुसार करें या जिसकी कृषि करते हो उसे चुनो।
  • बड़े स्तर पर उपयोग होने वाला बीज चुनना चाहिए, जैसे-गेहूँ का।
  • पनसीड के रजिस्टर्ड किसान बन कर बीज पनसीड को बेचा जा सकता है।
  • जिस भी क्षेत्र से सम्बन्धित बीज उत्पादन करना है। उस की अच्छी जांच-पड़ताल करके, पूर्ण जानकारी तथा ट्रेनिंग ले कर ही धंधा शुरू करें।
  • हाइब्रीड बीज का उत्पादन करके अच्छा लाभ लिया जा सकता है परन्तु इसके लिए बहुत मेहनत, प्रशिक्षण तथा सब्र की आवश्यकता है।
  • इस कार्य के लिए प्राथमिक ढांचा तैयार करना पड़ता है जिस पर पैसा खर्च होता है। प्राथमिक ढांचे में स्टोर, पक्का फ़र्श, सीड ग्रेडर तथा अन्य मशीनों आदि की आवश्यकता होती है।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्रमाणित बीज उत्पादन Important Questions and Answers

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बीज की श्रेणियां हैं.
(क) प्राथमिक
(ख) ‘ब्रीडर
(ग) बुनियादी तथा प्रमाणिक
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 2.
बुनियादी बीज के थैले पर कौन-से रंग का टैग होता है ?
(क) सफेद
(ख) नीला
(ग) लाल
(घ) पीला।
उत्तर-
(क) सफेद

प्रश्न 3.
जनक (ब्रीडर) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(क) गोल्डन

प्रश्न 4.
गेहूँ को नई विकसित किस्में जिनको रोग कम लगता है
(क) डब्ल्यू० एच० 1105
(ख) पी० बी० डब्ल्यू० 621
(ग) एच० डी० 3086
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 5.
प्रमाणिक बीज के थैले पर सरकारी टैग का रंग क्या होता है?
(क) नीला
(ख) हरा
(ग) सफेद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) नीला

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प्रश्न 6.
बुनियादी (फाऊंडेशन) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(ख) सफेद

प्रश्न 7.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगे होते हैं ?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 5
(घ) 4.
उत्तर-
(क) 2

प्रश्न 8.
धान के प्रमाणित बीजों की कम-से-कम शुद्धता कितनी होनी चाहिए ?
(क) 98%
(ख) 80%
(ग) 85%
(घ) 13%.
उत्तर-
(क) 98%

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II. ठीक/गलत बताएँ-

1. आनुवंशिक गुणों को नस्ली गुण भी कहा जाता है।
2. पी० बी० डब्ल्यू० 621 गेहूँ की किस्म है।
3. प्रमाणित बीजों के थैले पर दो टैग लगे होते हैं।
4. लरमा रोहो गेहूँ की मैक्सीकन किस्म है।
5. धान के प्रमाणीकृत बीज की कम से कम शुद्धता 98% है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. टींडों की संख्या ……………… का एक आनुवंशिक गुण है।
2. प्रमाणीकृत बीज के बैग पर सरकारी विभाग की तरफ से ………… रंग का टैग लगा होता है।
3. हरित क्रांति का मूल ……………… गेहूँ की किस्में हैं।
4. गोल्डन (सुनहरा) रंग का टैग ……………. बीज के थैले पर लगा होता है।
5. बुनियादी बीज के बैग पर …………… टैग लगा होता है।
उत्तर-

  1. नरमा
  2. नीले
  3. मैक्सीकन
  4. ब्रीडर
  5. सफेद।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि पहली बार कब की गई ?
उत्तर-
1955-56 में।

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प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति का मूल कहां से बना ?
उत्तर-
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि से।

प्रश्न 3.
मक्की की फसल के आनुवंशिक गुण बताओ।
उत्तर-
मक्की की लम्बाई तथा मोटाई, प्रति छल्ली दानों की औसत संख्या, 1000 दानों का औसत भार, पकने के लिए समय आदि।

प्रश्न 4.
चावल के प्रमाणित बीज में उगने योग्य शक्ति के बारे में बताओ।
उत्तर-
उगने योग्य शक्ति 70% से कम नहीं होनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज के बैग तथा सरकारी विभाग द्वारा कौन-से रंग का बैग लगाया जाता है ?
उत्तर-
नीले रंग का।

प्रश्न 6.
पनसीड द्वारा गेहूँ के बीज तैयार करने के कितने रुपए सरकार द्वारा निश्चित मूल्य से अधिक दिए जाते हैं ?
उत्तर-
250/- रुपये प्रति क्विंटल।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छे बीजों का अहसास किसानों को कब हुआ ?
उत्तर-
लगभग 50 वर्ष पहले जब मैक्सीकन गेहूँ की बौनी किस्मों की कृषि की गई तथा पैदावार एकदम दोगुणा हो गई।

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प्रश्न 2.
बीज क्या है ?
उत्तर-
ऐसे दाने या पौधे के भाग, जैसे कि जड़ें, तना, ट्यूबर, गांठे आदि जिनको बो कर नई फसल पैदा की जाती है। इन सब को बीज कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीजों के गुण बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज के निम्नलिखित गुण हैं –

  • यह बीज़ निश्चित शुद्धता वाला होता है।
  • रोग तथा नदीनों के बीजों से रहित होता है।
  • निश्चित उगने योग्य शक्ति वाला होता है।

प्रश्न 4.
गेहूँ के प्रमाणित बीज़ के संभव गुण बताओ।
उत्तर-

  • उगने योग्य शक्ति -85% से कम न हो।
  • शुद्धता-98% से कम न हो।
  • नमी-12% से अधिक न हो।

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प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज पर लगे हरे टैग से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
टैग के ऊपर बीज के उगने योग्य शक्ति, शुद्धता, रोग तथा अन्य मानकों का पूरा विवरण दिया होता है।

प्रश्न 6.
पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था का मुख्य कार्यालय कहां है ?
उत्तर-
क्षेत्रीय कार्यालय लुधियाना, जालन्धर, कोटकपुरा में है।

प्रश्न 7.
प्रमाणित बीज तक कैसे पहुंचा जाता है ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज से ब्रीडर बीज मिलता है, ब्रीडर बीज से बुनियादी बीज तथा बुनियादी बीज से प्रमाणित बीज मिलता है।

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प्रश्न 8.
भिन्न-भिन्न बीजों की थैलियों से कैसे टैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
ब्रीडर बीज पर गोल्डन टैग, बुनियादी बीज पर सफेद टैग, प्रमाणित बीज पर नीले टैग लगाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज कानून अनुसार बीज कितनी किस्म के हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज, ब्रीडर बीज, बुनियादी बीज़, प्रमाणित बीज, चार प्रकार के हैं।

प्रश्न 10.
टी० एल० बीज के बारे में बताओ।
उत्तर-
यदि किसी बीज की प्रमाणिकता नहीं करवाई गई तो इसको (Truthfully Labelled) टी० एल० कहा जाता है परन्तु ऐसे बीज की गुणवत्ता, जैसे आनुवंशिक शुद्धता, उगने योग्य शक्ति आदि ठीक होनी चाहिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज के संबंध में लाभ-हानि की संभावना तथा मण्डीकरण के बारे में बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज का धंधा लाभ वाला होता है। ऐसे बीजों की कीमत साधारण बीजों से अधिक होती है। परन्तु उन्हें पैदा करने के लिए कुछ प्राथमिक खर्चे भी होते हैं, जैसे-फाऊंडेशन बीज का खर्चा, सर्टीफिकेशन फीस, सील करना तथा बीज को स्टोर करना आदि। एक अनुमान के अनुसार गेहूँ तथा चावल के बीज पैदा करने पर ₹ 200 प्रति क्विंलट बीज का खर्चा हो जाता है। अप्रैल 2017 में गेहूँ का प्रमाणित बीज मार्किट में प्रमाणित बीज उत्पादन 2500 रु० प्रति क्विंटल से भी अधिक बेचा गया जबकि कुल लागत सारे खर्चे डाल कर 1825 रुः प्रति क्विंटल बनती थी। इस तरह बीज उत्पादन का धंधा प्रमाणित तथा हाइब्रीड बीज बहुत लाभदायक है।

इस धंधे में भी हानि होने का डर अन्य धंधों जैसे ही होता है। कई बार बीज बिना बिके ही रह जाता है तथा यह फेल भी हो सकता है। परन्तु बिना बिके रहने की संभावना बहुत ही कम होती है क्योंकि बीज की पहले ही इतनी मांग है कि जो पूरी नहीं हो रही। इसलिए यह धंधा बहुत ही लाभदायक है।

प्रश्न 2.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज का क्या अर्थ है ? इसके तीन गुण लिखो।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 3.
बीज परख प्रयोगशाला में बीजों की परख करके कौन-कौन से चार मानकों की पड़ताल की जाती है ?
उत्तर-
प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की परख करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

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प्रमाणित बीज उत्पादन PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • गेहूँ की मैक्सीकन बौने कद वाली किस्में हैं –’लरमा रोहो’ ‘सोनारा-64’ ।
  • किसानों का बीज़ों की गुणवत्ता के बारे में ज्ञान अधूरा है।
  • बाहरी दिखावट (आभा) के हिसाब से अच्छी गुणवत्ता के बीजों से भाव है;
  • बीज़ों का रंग-रूप, आकार, वजन, टूट-फूट रहित होना, कूड़ा-कर्कट रहित होना, नदीन के बिना तथा अन्य फसलों के बीजों का मिलावट रहित होना।
  • आनुवंशिक (पुश्तैनी) गुण बीज द्वारा एक फसल से अगली फसल में प्रवेश करते हैं। इन्हें नसली गुण भी कहा जाता है।
  • गेहूँ की नई किस्में जिन्हें रोग कम लगते हैं तथा पैदावार भी अधिक होती है डब्ल्यू० एच० 1105, पी० बी० डब्ल्यू० 621, एच० डी० 3086, पी० बी० डब्ल्यू 677.
  • आनुवंशिक गुण कैसे हों, यह पी० ए० यू० द्वारा छपी पुस्तक ‘पंजाब की फसलों के लिए सिफ़ारिशें’ में से पता लग सकता है।
  • प्रमाणीकृत बीज किसी विश्वसनीय संस्था से खरीदने चाहिए।
  • वे बीज जो निश्चित किए गए मानकों के अनुसार पंजाब राज्य बीज प्रमाणीकरण प्राधिकरण की निगरानी अधीन पैदा किए जाते हैं, सर्टीफाइड या प्रमाणिक बीज कहलाते हैं।
  • प्रमाणित बीजों के थैले के ऊपर दो टैग लगे होते हैं, एक नीला तथा एक हरा। नीला सरकारी तथा हरा कंपनी की तरफ से लगा होता है।
  • 1966 में एक कानून “बीज एक्ट 1966” लागू किया गया।
  • इस कानून के अनुसार बीजों को चार श्रेणियों में बांटा गया है- प्राथमिक, ब्रीडर, बुनियादी, प्रमाणिक बीज।
  • ब्रीडर बीज के ऊपर गोल्डन टैग, बुनियादी बीज के थैले के ऊपर सफेद टैग प्रमाणिक बीज के ऊपर नीले रंग का टैग पैकिंग के समय लगाया जाता है।
  • जो बीज प्रमाणित नहीं हैं तो उसे टी० एल० (Truthfully Labelled) बीज कहा जाता है।
  • पंजाब में गेहूँ लगभग 35 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बोई जाती है तो इस प्रकार 35 लाख क्विटल से अधिक बीज की आवश्यकता पड़ती है।
  • गेहूँ का बीज तैयार करने पर पनसीड की तरफ से 250/- रु० प्रति क्विंटल, किसानों को सरकारी निश्चित भाव से अधिक दिए जा रहे हैं। इसी तरह चावल के बीज के पीछे 200 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिल रहे हैं।
  • मल्टी नैशनल कम्पनियां हाइब्रीड बीजों का करोड़ों अरबों का कारोबार कर रही है।
  • बीज उत्पादन का धंधा किसानों के लिए एक वरदान है, खुशहाली का मार्ग है।