PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव

PSEB 9th Class Home Science Guide मनुष्य के विकास के पड़ाव Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के विकास के कितने पड़ाव होते हैं? नाम बताओ।
उत्तर-
मानवीय विकास के निम्नलिखित पड़ाव हैं —

  1. बचपन
  2. किशोरावस्था
  3. बालिग
  4. बुढ़ापा।

प्रश्न 2.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा जा सकता है?
उत्तर-बचपन को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा जाता है–

  1. जन्म से दो वर्ष तक
  2. दो से तीन वर्ष तक
  3. तीन से छः वर्ष का बच्चा
  4. छ: से किशोरावस्था तक।

प्रश्न 3.
कितने महीने का बच्चा बिना सहारे खड़ा होने लगता है?
उत्तर-
9 माह का बच्चा बिना सहारे के खड़ा होने लगता है।

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प्रश्न 4.
किस उमर में बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेज़ गति से होता है?
उत्तर-
2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेज़ी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है।

प्रश्न 5.
कितनी आयु का बच्चा कानूनी रूप से वयस्क समझा जाता है?
उत्तर-
पहले 21 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता था परन्तु अब 18 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता है जबकि 20 वर्ष की आयु तक उसका शारीरिक विकास होता रहता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 6.
किशोरावस्था के दौरान लड़कों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-

  1. किशोरावस्था में लड़कों की दाड़ी तथा मूंछ फूटनी आरम्भ हो जाती है।
  2. उनकी टांगें-बांहें अधिक लम्बी हो जाती हैं तथा आवाज़ फटती है। उनके लिए यह अनोखी बात होती है।
  3. उनके गले की हड्डी बाहर को उभर आती है।
  4. लड़के स्वयं को बड़ा समझने लगते हैं तथा उनसे माता-पिता की ओर से लगाई गई पाबन्दियां बर्दाश्त नहीं होती।
  5. वह कभी बड़ों की तरह तथा कभी बच्चों की तरह बर्ताव करने लगते हैं।
  6. किशोरावस्था में लड़के अधिक भावुक हो जाते हैं।
  7. अपने शरीर में आए जिस्मानी परिवर्तनों के बारे उनमें जानने की इच्छा पैदा होती है।

प्रश्न 7.
किशोरावस्था के दौरान माता-पिता के उनके बच्चों के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं?
उत्तर-

  1. बच्चों को लिंग शिक्षा सम्बन्धी पूरी जानकारी देनी चाहिए। बच्चों को एड्स जैसी जानलेवा बीमारी तथा नशों के बुरे परिणामों के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए।
  2. किशोर बच्चों से माता-पिता के मित्रों वाले सम्बन्ध होने बहुत आवश्यक हैं ताकि बच्चा बिना परेशानी अपनी शारीरिक तथा मानसिक परेशानी उनके साथ साझी कर सके तथा मां-बाप द्वारा दिये सुझावों का पालन कर सके।
  3. मां-बाप तथा अध्यापकों को किशोरों से अपना व्यवहार एक जैसा रखना चाहिए। किसी हालत में उन्हें छोटा तथा कभी बड़ा कहकर उनके मन में उलझन पैदा नहीं करनी चाहिए। इस तरह उसे यह समझ नहीं आता कि वह वास्तव में बड़ा हो गया है या अभी छोटा ही है।
  4. माता-पिता को भी इस अवस्था में अपने बच्चे के प्रति पूर्ण विश्वास वाला तथा हिम्मत वाला व्यवहार करना चाहिए ताकि उनका सर्वपक्षीय विकास ठीक ढंग से हो सके।
    अपनी ऊर्जा (शक्ति) खर्च करने के लिए कई प्रकार की रुचियों में रुझाने के लिए समय मिलना चाहिए जैसे खेल-कूद, कहानी पढ़ना, गाना-बजाना आदि।

प्रश्न 8.
प्रौढ़ावस्था में मनुष्य के सामाजिक कर्त्तव्य क्या होते हैं?
उत्तर-

  1. मनुष्य इस आयु में सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करता है।
  2. मनुष्य उचित व्यवसाय का चुनाव करता है तथा अपने जीवन साथी का चुनाव करके घर बसा लेता है।
  3. बच्चे पालता है, दुनियादारी निभाता है, माता-पिता, छोटे बहन-भाइयों तथा अन्य रिश्तेदारों की जिम्मेवारी सम्भालता है।

प्रश्न 9.
बच्चा और बूढ़ा एक समान क्यों कहा जाता है? संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है। उसके लिए चलना, फिरना, उठना, बैठना कठिन हो जाता है। आँखों से दिखाई देना तथा कानों से सुनना कम हो जाता है। ज्ञानेन्द्रियां अपना कार्य करना बन्द कर देती हैं। कई रंगों की पहचान नहीं कर सकते तथा कइयों को अंधराता हो जाता है।
इस तरह वृद्धों को विशेष देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। जैसे छोटे बच्चों को होती है। इसीलिए बच्चे तथा वृद्ध को एक जैसा कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
स्कूल बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में सहायक होता है। कैसे?
उत्तर-
स्कूल में बच्चे अपने साथियों से पढ़ना तथा खेलना तथा कई बार बोलना भी सीखते हैं। इस तरह उनमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा जब अपने स्कूल का कार्य करता है तो उसमें ज़िम्मेदारी का बीज बो दिया जाता है। जब वह अध्यापक का कहना मानता है तो उसमें बड़ों के प्रति आदर की भावना पैदा होती है।
बच्चा स्कूल में अपने साथियों से कई नियम सीखता है तथा कई अच्छी आदतें सीखता है जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक हो सकती हैं।

प्रश्न 11.
किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों में होने वाले परिवर्तनों का तुलनात्मक वर्णन करो।
उत्तर-

किशोर लड़के किशोर लड़कियां
(1) इस आयु में लड़कों की दाढ़ी तथा आने लगती हैं। (1) लड़कियों को माहवारी आने लगती मूंछे है।
(2) उनका शरीर बेढंगा (टांगें, बाजू लम्बी होने होना) हो जाता है तथा आवाज़ फटने लगती है। (2) इनके विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा लगती है तथा कई आन्तरिक बदलाव जैसे दिल तथा फेफड़ों के आकार में वृद्धि होती है।
(3) इस आयु में लड़कों को खेल, पढ़ाई, कम्प्यूटर, समाज सेवा आदि सीखने पर जोर देना चाहिए। (3) लड़कियों को पढ़ाई, कढ़ाई, कम्प्यूटर, स्वैटर बुनना, संगीत, पेंटिंग आदि ज़ोर सीखने पर देना चाहिए।

प्रश्न 12.
प्रारम्भिक वर्षों में माता-पिता बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार योगदान डालते हैं?
उत्तर-
बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में माता-पिता का बड़ा योगदान होता है क्योंकि बच्चा जब अभी छोटा ही होता है तभी माता-पिता की भूमिका उसकी ज़िन्दगी में आरम्भ हो जाती है। बच्चे के प्रारम्भिक वर्षों में बच्चे को भरपूर प्यार देना, उस द्वारा किये प्रश्नों के उत्तर देना, बच्चे को कहानियां सुनाना आदि से बच्चे का व्यक्तित्व उभरता है तथा माता-पिता इसमें काफ़ी सहायक होते हैं।

प्रश्न 13.
बच्चों को टीके लगवाने क्यों ज़रूरी हैं ? बच्चों को कौन-से टीके किस आयु में लगवाने चाहिएं? और क्यों?
उत्तर-
बच्चों को कई खतरनाक जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें टीके लगाये जाते हैं। इन टीकों का सिलसिला जन्म के पश्चात् आरम्भ हो जाता है। बच्चों को 2 वर्ष की आयु तक चेचक, डिप्थीरिया, खांसी, टिटनस, पोलियो, हेपेटाइटस, बी०सी०जी० तथा टी०बी० आदि के टीके लगवाये जाते हैं। छ: वर्ष में बच्चों को कई टीकों की बूस्टर डोज़ भी दी जाती है।

प्रश्न 14.
बच्चे में 3 से 6 वर्ष की आयु तक होने वाले विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
इस आयु में बच्चे की शारीरिक वृद्धि तेजी से होती है तथा उसकी भूख कम हो जाती है। वह अपना कार्य स्वयं करना चाहता है।
बच्चे को रंगों तथा आकारों का ज्ञान हो जाता है तथा उसकी रुचि ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलने तथा कहानियां सुनने की ओर अधिक हो जाती है।
बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करने लग जाता है।

प्रश्न 15.
दो से तीन वर्ष के बच्चे में होने वाले भावनात्मक विकास सम्बन्धी जानकारी दो।
उत्तर-
इस आयु के दौरान बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊंची आवाज़ में रोता है, ज़मीन पर लोटता है, तथा हाथ-पैर मारने लगता है। कई बार वह खाना-पीना भी छोड़ देता है। माता-पिता को ऐसी हालत में चाहिए कि उसको न डांटें परन्तु जब वह शांत हो जाए तो उसे प्यार से समझाना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
किशोरावस्था के दौरान लिंग शिक्षा देना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
किशोरावस्था आने पर बच्चों के शरीर में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। उनके प्रजनन अंगों का विकास होता है। लड़कियों को माहवारी आने लगती है। शरीर के विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा होनी आरम्भ हो जाती है। किशोरावस्था में बच्चे में विरोधी लिंग के प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है। बच्चों को इन सभी परिवर्तनों की जानकारी नहीं होती तथा वह यह जानकारी अपने दोस्तों-मित्रों से हासिल करने की कोशिश करते हैं अथवा ग़लत किताबें पढ़ते हैं तथा अपने मन में ग़लत धारणाएं बना लेते हैं। वैसे तो हमारे समाज में लड़केलड़कियों के मिलने के अवसर कम ही होते हैं परन्तु कई बार यदि उन्हें इकट्ठे रहने का मौका मिल जाये तो इसके ग़लत परिणाम भी निकल सकते हैं।
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किशोरों को माता-पिता तथा अध्यापक अच्छी तरह लिंग शिक्षा प्रदान करें। उनके साथ स्वयं मित्रों वाला व्यवहार करें तथा उनकी समस्याओं को समझें तथा सुलझाएं ताकि उन्हें ग़लत संगति में जाने से रोका जा सके। उन्हें एड्स जैसी भयानक बीमारी की भी जानकारी देनी चाहिए।

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प्रश्न 17.
बच्चों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखने से उनमें कौन-से सद्गुण विकसित होते हैं? विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
बच्चे के व्यक्तित्व तथा भावनात्मक विकास में माता-पिता के प्यार तथा मित्रतापूर्वक व्यवहार की बड़ी महत्ता है। माता-पिता के प्यार से बच्चे को यह विश्वास हो जाता है कि उसकी प्राथमिक ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। माता-पिता की ओर से बच्चे द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देने पर बच्चे का दिमागी विकास होता है। उसे स्वयं पर विश्वास होने लगता है। माता-पिता द्वारा बच्चे को कहानियां सुनाने पर उसका मानसिक विकास होता है। कई बार बच्चा मां का कहना नहीं मानना चाहता तथा ज़बरदस्ती करने पर गुस्सा होता है। ऊँची आवाज़ में रोता है, हाथ-पैर मारता है तथा ज़मीन पर लोटने लग जाता है। ऐसी हालत में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा शांत होने पर उसे प्यार से माता-पिता द्वारा समझाया जाना चाहिए कि वह ऐसे ग़लत करता है। इस तरह बच्चे को पता चल जाता है कि माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं।

बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखने पर बच्चों को अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए ग़लत रास्तों पर नहीं चलना पड़ता अपितु उनमें यह विश्वास पैदा होता है कि माता-पिता उसे सही मार्ग बताएंगे।

वह ग़लत संगति से बच जाता है। उसमें अच्छी रुचियां जैसे ड्राईंग, पेंटिंग, संगीत. अच्छी किताबें पढ़ना आदि पैदा होती हैं। वह अपनी शक्ति का प्रयोग अच्छे कार्यों में करता है। इस तरह वह एक अच्छा व्यक्तित्व बन कर उभरता है।

प्रश्न 18.
वृद्धावस्था में पैसे के साथ प्यार क्यों बढ़ जाता है?
उत्तर-
वृद्धावस्था मनुष्य की ज़िन्दगी का अन्तिम पड़ाव होता है। इस पड़ाव पर पहुंच कर अलग-अलग मानवों पर अलग-अलग प्रभाव होता है। कई तो अभी भी ऐसे हँसमुख तथा स्वस्थ रहते हैं तथा कई हर समय यही सोचते हैं कि वह बूढ़े हो गये हैं, अब उन्हें और भी कई बीमारियां लग जाएंगी तथा वह और भी बूढ़े हो जाते हैं। इस उम्र में कमजोरी तो आती है जोकि मानसिक तथा शारीरिक दोनों तरह की होती है। कइयों की नेत्र ज्योति घट जाती है। कई बार ज्ञानेन्द्रियां कमजोर हो जाती हैं। दाँत टूट जाते हैं। शरीर काम नहीं कर सकता : कइयों की रंगों को पहचानने की शक्ति कम हो जाती है तथा कइयों को अंधराता हो जाता है। परन्तु ऐसी हालत में भी मनुष्य यह चाहता है कि वह आर्थिक पक्ष से रिश्तेदारों का मोहताज न हो, उसके पास अपने पैसे हों तथा उसकी स्वतन्त्रता को कोई फर्क न पड़े। धन तो अब वह कमा नहीं सकता इसलिए वह प्रत्येक पैसे को खर्च करते समय कई बार सोचता है। इस तरह वृद्धावस्था में धन के प्रति उसका मोह बढ़ जाता है। वृद्धावस्था में नींद भी कम आती है, कानों से कम सुनाई देता है। सांसारिक वस्तुओं से प्यार कम हो जाता है तथा परमात्मा की ओर ध्यान बढ़ जाता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB मनुष्य के विकास के पड़ाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें-

  1. प्रौढ़ावस्था के . ……………… पड़ाव हैं।
  2. महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है।
  3. ……………… वर्ष के बच्चे बालिग हो जाते हैं।
  4. छः वर्ष में बच्चों को …………………. डोज़ भी दी जाती है।
  5. ………………… वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।

उत्तर-

  1. दो,
  2. 10,
  3. 18,
  4. टीकों की बूस्टर,
  5. दो।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
कितने माह का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है?
उत्तर-
9 माह का।

प्रश्न 2.
प्रौढ़ावस्था की पहली अवस्था कब तक होती है?
उत्तर-
40 वर्ष तक।

प्रश्न 3.
कितनी आयु में लड़कियों के फेफड़ों की वृद्धि पूर्ण हो जाती है?
उत्तर-
17 वर्ष।

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प्रश्न 4.
औरतों में माहवारी किस आयु में बंद हो जाती है?
उत्तर-
45 से 50 वर्ष।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
  2. वृद्ध अवस्था का प्रभाव सभी पर एक जैसा होता है।
  3. स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
  4. 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  5. 6 वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं।
  6. किशोर अवस्था में लड़कों की दाड़ी तथा मूंछ निकलनी शुरू हो जाती है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ठीक,
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कितनी देर का बच्चा स्वयं उठ कर खड़ा हो सकता है –
(A) 6 माह का
(B) 1 वर्ष का
(C) 3 महीने का
(D) 8 महीने का।
उत्तर-
(B) 1 वर्ष का

प्रश्न 2.
कानूनी रूप में बच्चा कितनी आयु में वयस्क हो जाता है –
(A) 15 वर्ष
(B) 20 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष।
उत्तर-
(C) 18 वर्ष

प्रश्न 3.
कौन-सा तथ्य ठीक है –
(A) किशोरावस्था में लड़के अधिक भावुक हो जाते हैं।
(B) बच्चे तथा वृद्ध को एक समान कहा जाता है।
(C) किशोर अवस्था को तूफानी तथा दबाव वाली अवस्था माना गया है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्म से दो वर्ष तक के बच्चे में सामाजिक तथा भावनात्मक विकास के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
इस आयु का बच्चा जिन आवाज़ों को सुनता है, उनका मतलब समझने की कोशिश करता है। वह प्यार तथा क्रोध की आवाज़ को समझता है। वह अपने आस-पास के लोगों को पहचानना आरम्भ कर देता है। जब बच्चे को अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूरा लाड़-प्यार मिलता है तथा उसकी प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसकी ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। उसका इस तरह भावनात्मक तथा सामाजिक विकास आरम्भ हो जाता है।

प्रश्न 2.
दो से तीन वर्ष के बच्चे के विकास बारे तम क्या जानते हो?
उत्तर-
शारीरिक विकास-2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेज़ी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है। __मानसिक विकास-इस आयु का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है। वह पहले से अधिक बातें समझना आरम्भ कर देता है। वह अपने आस-पास के बारे में कई प्रकार के प्रश्न पूछता है। इस समय माता-पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चे के प्रश्नों के उत्तर ज़रूर दें। बच्चे को प्यार से पास बिठा कर कहानियां सुनाने से उसका मानसिक विकास होता है।

सामाजिक विकास-इस आय में बच्चे को दूसरे बच्चों की मौजूदगी का अहसास होने लग जाता है। अपनी मां के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से भी प्यार करने लगता है। अब वह अपने कार्य जैसे भोजन करना, कपड़े पहनना, नहाना, बुट पालिश करना आदि स्वयं ही करना चाहता है।
भावनात्मक विकास-इस आयु में बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊँची आवाज़ में रोता, हाथ-पैर मारता तथा ज़मीन पर लेटने लगता है। कई-कई बार खाना-पीना भी छोड़ देता है। गुस्से की अवस्था में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा जब वह शांत हो जाये तो प्यार से उसे समझाना चाहिए। इस तरह बच्चे में मातापिता के प्रति प्यार तथा विश्वास की भावना पैदा होती है तथा उसे यह अहसास होने लगता है कि उसके माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं।

प्रश्न 3.
तीन से छः वर्ष के बच्चे के विकास के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
शारीरिक विकास- इस आयु में बच्चे की वृद्धि तेज़ी से होती है परन्तु उसको भूख कम लगती है। वह परिवार के बड़े सदस्यों के साथ बैठकर वही भोजन खाना चाहता है जो वे खाते हैं। बच्चे के शारीरिक विकास के लिए बच्चे की खुराक में दूध, अण्डा, पनीर तथा अन्य प्रोटीन वाले भोजन पदार्थ अधिक मात्रा में शामिल करने चाहिएं। बच्चा धीरे-धीरे अपना कार्य करने लगता है तथा उसे जहां तक हो सके अपने काम स्वयं करने देने चाहिएं। इस तरह वह आत्म-निर्भर बनता है।
मानसिक विकास- इस आयु के बच्चे में ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलना तथा कहानियां सुनने आदि में रुचि पैदा होती है। उसे रंगों तथा आकारों का भी ज्ञान हो जाता है।
सामाजिक तथा भावनात्मक विकास-बच्चा जब दूसरे बच्चों से मिलता-जुलता है उसमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करता है इसलिए जहां तक हो सके उसके सामने कोई ऐसी बात न करो जिसका उसके मन पर बुरा प्रभाव पड़े जैसे सिग्रेट पीना।

प्रश्न 4.
किशोरावस्था में लड़कियों में आने वाले परिवर्तनों के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. इस आयु में लड़कियों को माहवारी आने लगती है। क्योंकि उन्हें इसके कारण का पता नहीं होता, कई बार वे घबरा जाती हैं।
  2. इस आयु में लड़कियां अधिक समझदार हो जाती हैं तथा कई बार पढ़ाई में भी तेज़ हो जाती हैं।
  3. इस आयु में लड़कियां जल्दी भावुक हो जाती हैं। कई बार छोटी-सी बात पर रोने लगती हैं। उदास तथा नाराज़ भी रहने लगती हैं।
  4. वह अपनी आलोचना नहीं सहन कर सकतीं तथा शीघ्र रुष्ट हो जाती हैं।
  5. इस आयु में जागते ही सपने देखना आरम्भ कर देती हैं।

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प्रश्न 5.
किशोरावस्था क्या है तथा इसमें होने वाले विकास के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब लड़कों की मस फूटती है तथा लड़कियों को माहवारी आने लगती है, इसको किशोरावस्था कहते हैं। यह एक ऐसा पड़ाव है जब बच्चा न तो बच्चों में गिना जाता है न ही बालिगों में। उसमें शारीरिक परिवर्तन आने के साथ-साथ बच्चे की ज़िम्मेदारियां, फर्ज़ तथा दूसरों से रिश्तों में भी परिवर्तन आता है।
इसके दो भाग होते हैं-प्राथमिक तथा बाद की किशोरावस्था।

शारीरिक विकास-इस आयु में शारीरिक परिवर्तनों की गति कम हो जाती है तथा प्रजनन अंगों का विकास होता है। इस पड़ाव पर लड़कियां अपना कद पूरा कर लेती हैं तथा शरीर के विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा होनी आरम्भ हो जाती है। बाह्य परिवर्तनों के साथ-साथ शरीर में कुछ आन्तरिक परिवर्तन भी होते हैं जैसे पाचन प्रणाली में पेट का आकार लम्बा हो जाता है तथा आंतों की लम्बाई तथा चौड़ाई भी बढ़ती है। पेट तथा आंतों की मांसपेशियां मज़बूत हो जाती हैं। जिगर का भार भी बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त किशोरावस्था में दिल की वृद्धि भी तेजी से होती है। 17,18 वर्ष की आयु तक इसका भार जन्म के भार से 12 गुणा बढ़ जाता है। श्वास प्रणाली में 17 वर्ष की आयु में लड़कियों के फेफड़ों की वृद्धि पूर्ण हो जाती है। इस आयु में प्रजनन अंगों तथा उनसे सम्बन्धित गलैंड्स का भी तेजी से विकास होता है तथा अपना कार्य करना आरम्भ कर देता हैं।

भावनात्मक तथा मानसिक विकास-कई मनोवैज्ञानिक किशोरावस्था को तूफानी तथा दबाव (Storm and Stress) वाली अवस्था मानते हैं। इसमें भावनाएं बड़ी तीव्र तथा बेकाबू हो जाती हैं परन्तु जैसे-जैसे आयु बढ़ती है भावनात्मक व्यवहार में परिवर्तन आता है। इस आयु में बच्चे को बच्चे की तरह समझने से भी वह गुस्सा मनाते हैं। वह अपना गुस्सा चुप रह कर अथवा ऊँची आवाज़ में नाराज़ करने वाली की आलोचना करते हैं। इसके अतिरिक्त जो बच्चे उससे पढ़ाई में अथवा व्यवहार के तौर पर बढ़िया हों उनके प्रति ईर्ष्यालु हो जाते हैं। परन्तु धीरे-धीरे इन सभी भावनाओं पर बच्चा काबू पाना सीखता है। वह सभी के सामने अपना क्रोध ज़ाहिर नहीं कर सकता। पूरे भावनात्मक विकास वाला बच्चा अपने व्यवहार को स्थिर रखता है। इस अवस्था के दौरान बच्चे की सामाजिक दिलचस्पी तथा व्यवहार पर हम उमर मित्रों का अधिक प्रभाव पड़ता है। इस अवस्था में बच्चे की मनोरंजक, शैक्षणिक, धार्मिक तथा फैशन प्रति नई रुचियां विकसित होती हैं । किशोरावस्था में बच्चे में विपरीत लिंग प्रति आकर्षण भी पैदा हो जाता है तथा वह इस कम्पनी में आनन्द महसूस करता है। इस अवस्था का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि बच्चों का व पारिवारिक रिश्तों प्रति लगाव कम होना आरम्भ हो जाता है। बच्चा अपने व्यक्तित्व तथा अस्तित्व प्रति अधिक चेतन हो जाता है। सामाजिक वातावरण के अनुसार बच्चा अपने व्यक्तित्व के विकास तथा अस्तित्व जताने की कोशिश करता है परन्तु कई बार घर के हालात तथा आर्थिक कारण उसके उद्देश्यों की पूर्ति में रुकावट बन जाते हैं। इन परिस्थितियों में कई बार बच्चा हार जाने तथा घटियापन के अहसास का शिकार हो जाता है तथा बच्चे का व्यवहार साधारण नहीं रहता तथा व्यक्तित्व के विकास प्रक्रिया में बिगाड़ पैदा हो जाता है।

प्रश्न 6.
बुढ़ापे की क्या खास विशेषताएं हैं?
उत्तर-
बुढ़ापे की कुछ विशेषताएं हैं जो इसे मानवीय ज़िन्दगी की एक विलक्षण अवस्था बनाती हैं। इस आयु में शारीरिक तथा मानसिक कमज़ोरी आने लगती है इस आयु में बुजुर्गों की पाचन शक्ति, चलना-फिरना, बीमारियां सहने की शक्ति, सुनने तथा देखने की शक्ति घट जाती है। इसके साथ बालों का सफ़ेद होना, चमड़ी पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। बुर्जुगों की शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन उनके सामाजिक तथा पारिवारिक जीवन (Adjustment) को प्रभावित करती हैं। इन परिवर्तनों का बुजुर्गों की बाह्य दिखावट, कपड़े पहनने, मनोरंजन, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।
इस आयु में मनुष्य सामाजिक ज़िम्मेदारी से धीरे-धीरे पीछे हटता जाता है तथा उसकी धार्मिक गतिविधियों में वृद्धि होती है। इस आयु में व्यक्ति को बहुत सारी बीमारियां भी आ घेरती हैं जिनसे छुटकारा पाने के लिए उसकी निर्भरता परिवार पर बढ़ जाती है । इस अवस्था में परिवार के सदस्यों का बुजुर्गों प्रति व्यवहार बुजुर्गों के लिए खुशी अथवा उदासी का कारण बनता है। बुजुर्गों में एकांकीपन, परिवार पर बोझ, सामाजिक सम्मान घटने का अहसास मानसिक परेशानी का कारण बन जाता है।
जीवन के अन्तिम पड़ाव पर पहुंचते हुए बुजुर्ग सभी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए एक छोटे बच्चे की तरह पूर्णतः परिवार पर निर्भर हो जाता है। इस अवस्था दौरान कई बार बुजुर्गों में बच्चों वाली आदतें उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 7.
जन्म से दो वर्ष तक होने वाले शारीरिक विकास के पड़ावों का वर्णन करो।
उत्तर-
जन्म से दो वर्ष के दौरान होने वाले शारीरिक विकास निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. 6 हफ्ते की आयु तक बच्चा मुस्कुराता है तथा किसी रंगीन वस्तु की ओर टिकटिकी लगाकर देखता है।
  2. 3 महीने की आयु तक बच्चा चलती-फिरती वस्तु से अपनी आँखों को घुमाने लगता है।
  3. 6 महीने का बच्चा सहारे से तथा 8 महीने का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है। (4) 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  4. 10 महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है तथा सरल, सीधे शब्द जैसे-काका, पापा, मामा, टाटा आदि बोल सकता है।
  5. 1 वर्ष का बच्चा स्वयं उठकर खड़ा हो सकता है तथा उंगली पकड़कर अथवा स्वयं चलने लगता है।
  6. 11 वर्ष का बच्चा बिना किसी सहारे के चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ सकता है।

प्रश्न 8.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है?
उत्तर-
छ: वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं ताकि उन्हें कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सके।

मनुष्य के विकास के पड़ाव PSEB 9th Class Home Science Notes

  • मानवीय जीवन का आरम्भ बच्चे के मां के गर्भ में आने से होता है।
  • मानवीय विकास के विभिन्न पड़ाव होते हैं जैसे ; बचपन, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था।
  • बच्चा जन्म से लेकर दो वर्ष तक बेचारा-सा तथा दूसरों पर निर्भर होता है।
  • 12 वर्ष का बच्चा स्वयं चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
  • दो वर्ष के बच्चों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं।
  • दो से तीन वर्ष का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है।
  • छ: वर्ष तक बच्चे की,खाने, पीने, सोने, टट्टी-पेशाब तथा शारीरिक सफ़ाई की आदतें पक्की हो जाती हैं।
  • स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
  • जब लड़कों की मस फूटती है तथा लड़कियों को माहवारी आने लग जाती है तो इस आयु को किशोसवस्था कहते हैं।
  • किशोरों के माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने बच्चों को लिंग शिक्षा सही ढंग से दें।
  • इस आयु में बच्चे स्वयं को बालिग समझने लगते हैं।
  • पहले बच्चे कानूनी तौर पर 21 वर्ष की आयु पर बालिग हो जाते थे तथा अब 18 वर्ष की आयु के बच्चे को कानूनी तौर पर बालिग करार दे दिया जाता है।
  • प्रौढ़ावस्था के दो पड़ाव हैं। 40 वर्ष तक पहली तथा 40 से 60 वर्ष की पिछली प्रौढ़ावस्था।
  • 45 से 50 वर्ष की आयु में औरतों को माहवारी बन्द हो जाती है।
  • वृद्धावस्था के प्रत्येक व्यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव होता है।
  • वृद्धावस्था में नींद कम आती है तथा दाँत खराब होने के कारण भोजन ठीक तरह नहीं खाया जा सकता।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान

PSEB 9th Class Home Science Guide वस्त्र धोने के लिए सामान Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त्र धोने में प्रयोग होने वाले सामान को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-

  1. स्टोर करने के लिए सामान
  2. वस्त्र धोने के लिए सामान
  3. वस्त्र सुखाने के लिए सामान
  4. वस्त्र इस्तरी करने के लिए सामान।

प्रश्न 2.
वस्त्र संग्रह करने के लिए हमें क्या-क्या सामान चाहिए?
उत्तर-
इसके लिए हमें अलमारी, लांडरी बैग अथवा गंदे वस्त्र रखने के लिए टोकरी की ज़रूरत होती है। मर्तबान तथा प्लास्टिक के डिब्बे भी आवश्यक होते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान

प्रश्न 3.
वस्त्र धोने के लिए हम पानी कहां से प्राप्त करते हैं?
उत्तर-
वस्त्र धोने के लिए वर्षा का पानी, दरिया का पानी, चश्मे का पानी तथा कुएं आदि स्रोतों से पानी प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
हल्के और भारी पानी में क्या अन्तर है?
उत्तर

भारी पानी हल्का पानी
(1) इसमें अशुद्धियां होती हैं। (1) इसमें अशुद्धियां नहीं होती।
(2) इसमें साबुन की झाग नहीं बनती। (2) इसमें आसानी से साबुन की झाग बन जाती है।

प्रश्न 5.
भारी पानी को हल्का कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर-
भारी पानी को उबाल कर तथा चूने के पानी से मिलाकर हल्का बनाया जा सकता है अथवा फिर कास्टिक सोडा अथवा सोडियम बाइकार्बोनेट से प्रक्रिया करके इसको हल्का बनाया जाता है।

प्रश्न 6.
स्थाई और अस्थाई भारी पानी में क्या अन्तर हैं ?
उत्तर-

अस्थाई भारी पानी स्थाई भारी पानी
(1) इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम क्लोराइड तथा सल्फेट घुले होते हैं। (1) इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण होते हैं।
(2) इसको उबालकर तथा चूने के पानी से मिलाकर हल्का बनाया जाता है। (2) कास्टिक सोडा अथवा सोडियम बाइ-कार्बोनेट से प्रक्रिया करके छानकर इसको हल्का बनाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 7.
वस्त्रों की धुलाई में पानी का क्या महत्त्व है?
उत्तर-

  1. पानी को विश्वव्यापी घोलक कहा जाता है। इसलिए वस्त्रों पर लगे दाग तथा मिट्टी आदि पानी में घुल जाते हैं तथा वस्त्र साफ़ हो जाते हैं।
  2. पानी वस्त्र को गीला करके अन्दर तक चला जाता है तथा उसको साफ़ कर देता है।

प्रश्न 8.
पानी के स्त्रोत के आधार पर पानी का वर्गीकरण कैसे करोगे?
उत्तर-
पानी के स्रोत के आधार पर पानी का वर्गीकरण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है

  1. वर्षा का पानी-यह पानी का सबसे शुद्ध रूप होता है। यह हल्का पानी होता है, परन्तु हवा की अशुद्धियां इसमें घुली होती हैं। इसको वस्त्र धोने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  2. दरिया का पानी-पहाड़ों की बर्फ पिघल कर दरिया बनते हैं। जैसे-जैसे यह पानी मैदानी इलाकों में आता रहता है इसमें अशुद्धियों की मात्रा बढ़ती रहती है तथा पानी गंदा सा हो जाता है। यह पानी पीने के लिए ठीक नहीं होता, परन्तु इससे वस्त्र धोए जा सकते हैं।
  3. चश्मे का पानी-धरती के नीचे इकट्ठा हुआ पानी किसी कमज़ोर स्थान से बाहर निकल आता है, इसको चश्मा कहते हैं। इस पानी में कई खनिज लवण घुले होते हैं इसको कई बार दवाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। वस्त्र धोने के लिए यह पानी ठीक है।
  4. कुएँ का पानी-धरती को खोदकर जो पानी बाहर निकलता है वह पानी पीने के लिए ठीक होता है। इसको कुएँ का पानी कहते हैं। इससे वस्त्र धोए जा सकते हैं।
  5. समुद्र का पानी-इस पानी में काफ़ी अधिक अशुद्धियां होती हैं। यह पीने के लिए तथा वस्त्र धोने के लिए भी ठीक नहीं होता।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान

प्रश्न 9.
वस्त्र धोने के लिए पानी के अतिरिक्त अन्य कौन-कौन सा सामान चाहिए?
उत्तर-
वस्त्र धोने के लिए पानी के अतिरिक्त साबुन, टब, बाल्टियां, चिल्मचियां, मग, रगड़ने वाला ब्रुश तथा फट्टा, पानी गर्म करने वाली देग, वस्त्र धोने वाली मशीन, सक्शन वाशर आदि सामान ज़रूरत होती है।

प्रश्न 10.
वस्त्र सुखाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए? महानगरों और फ्लैटों में रहने वाले लोग वस्त्र कैसे सखाते हैं?
उत्तर-
वस्त्रों को सुखाने के लिए प्राकृतिक धूप तथा हवा की ज़रूरत होती है। परन्तु अन्य सामान जिसकी ज़रूरत होती है, वह है

  1. रस्सी अथवा तार,
  2. क्लिप तथा हैंगर
  3. वस्त्र सुखाने वाला रैक,
  4. वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट।

बड़े शहरों में फ्लैटों में रहने वाले लोग कपड़ों को सुखाने के लिए रैकों का प्रयोग करते हैं। ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन की सहायता भी ली जा सकती है।

प्रश्न 11.
वस्त्र सुखाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए? हमारे देश में वस्त्र सुखाने के लिए कौन-सा ढंग अपनाया जाता है?
उत्तर-
वस्त्र धोने के लिए सामान-देखें प्रश्न 10 का उत्तर।
हमारे देश में साधारणतः घर खुले से होते हैं। छतों अथवा चौबारों पर जहां धूप आती हो रस्सियां अथवा तारों को ठीक ऊंचाई पर बांधकर इन पर वस्त्र सुखाने के लिए लटकाये जाते हैं।
बड़े शहरों में जहां घर खुले नहीं होते तथा लोग फ्लैटों में रहते हैं, वस्त्रों को रैकों पर सुखाया जाता है।
आजकल वाशिंग मशीनों का प्रयोग तो हर कहीं होने लगा है। इनके साथ भी वस्त्र सुखाये जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को इस्तरी करना क्यों ज़रूरी है और कौन-कौन से सामान की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर-
वस्त्र धोकर जब सुखाये जाते हैं, इनमें कई सिलवटें पड़ जाती हैं तथा वस्त्र की दिखावट बुरी-सी हो जाती है। कपड़ों को प्रैस करके इनकी सिलवटें आदि तो निकल ही जाती हैं साथ ही वस्त्र में चमक भी आ जाती है तथा वस्त्र साफ़-सुथरा लगता है।
वस्त्र प्रैस करने के लिए निम्नलिखित सामान की ज़रूरत पड़ती है
बिजली अथवा कोयले से चलने वाली प्रैस, प्रेस करने के लिए फट्टा आदि।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 13.
धुलाई के लिए प्रयोग होने वाले सही सामान के चयन से समय और श्रम की बचत कैसे होती है?
उत्तर-
धुलाई के लिए प्रयोग होने वाला सामान इस तरह है

  1. स्टोर करने के लिए सामान
  2. वस्त्र धोने के लिए सामान
  3. वस्त्र सुखाने के लिए सामान
  4. वस्त्र प्रैस करने के लिए सामान।

जब धोने वाले वस्त्र पहले ही इकट्ठे करके एक अल्मारी अथवा टोकरी आदि में रखे जाएं जो कि धोने वाले स्थान के नज़दीक रखी हो तो वस्त्र धोते समय सारे घर से विभिन्न कमरों से पहले वस्त्र इकट्ठे करने का समय बच जाता है। यह आदत गृहिणी को सारे घर के सदस्यों को डालनी चाहिए कि जो भी धोने वाला कपड़ा हो उसे इस काम के लिए बनाई अलमारी अथवा टोकरी में रखें।

घर में साबुन, डिटर्जेंट, नील, ब्रुश आदि आवश्यक सामान पहले ही मौजूद होना चाहिए। इस तरह नहीं होना चाहिए कि उधर से वस्त्र धोने आरम्भ कर लिये जाएं तथा बाद में पता चले घर में तो साबुन अथवा कोई अन्य आवश्यक सामान नहीं है। इस तरह समय तथा मेहनत दोनों नष्ट होते हैं।

धोने के लिए पानी भी हल्का ही प्रयोग करना चाहिए क्योंकि भारी पानी में साबुन की झाग नहीं बनती तथा वस्त्र अच्छी तरह नहीं निखरते। इसलिए पानी को गर्म करके अथवा अन्य तरीके से पानी को हल्का बना लेना चाहिए। वस्त्र सुखाने का भी ठीक प्रबन्ध होना चाहिए। रस्सियों आदि को अच्छी तरह बांधना चाहिए तथा कपड़ों पर क्लिप आदि लगा लेने चाहिए ताकि हवा चले तो वस्त्र उड़ न जाएं। यदि रैक हैं तो इन्हें पहले ही खोल लेना चाहिए। इस तरह विभिन्न आवश्यक सामान पहले ही इकट्ठा किया हो तो समय तथा मेहनत की त्चत हो जाती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान

प्रश्न 14.
वस्त्र धुलाई के समान को किन-किन भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
स्टोर करने के लिए सामान-

  1. अलमारी-धोने वाले कमरे के नज़दीक अलमारी होनी चाहिए जिसमें साबुन, नील, मावा, रीठे, दाग उतारने वाला सामान आदि होना चाहिए।
  2. लाऊण्डरी बैग अथवा वस्त्र रखने के लिए टोकरी-इसमें घर के गंदे वस्त्र रखे जाते हैं।
  3. मर्तबान तथा प्लास्टिक के डिब्बे-रीठे, दाग उतारने का सामान, नील, डिटर्जेंट आदि इनमें रखा जाता है।

वस्त्र धोने के लिए सामान-

  1. पानी-पानी एक विश्वव्यापी घोलक है। इसमें सभी तरह की मैल घुल जाती है तथा इस तरह इसका कपड़ों की धुलाई में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पानी को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। वर्षा का पानी, दरिया का पानी, चश्मे का पानी, कुएँ के पानी का प्रयोग वस्त्र धोने के लिए किया जा सकता है।
  2. साबुन-वस्त्र धोने के लिए कई सफ़ाईकारी पदार्थ, साबुन तथा डिटर्जेंट मिलते हैं। वस्त्र साफ़ करने में इनका बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  3. टब तथा बाल्टियां- इनमें वस्त्र भिगोकर रखे, धोये तथा खंगाले जाते हैं। यह लोहे, प्लास्टिक अथवा पीतल के होते हैं। इनमें नील देने, रंग देने तथा मावा देने का भी कार्य किया जाता है।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (1)
  4. चिल्मचियां तथा मग-इनमें नील, मावा आदि देने का कार्य किया जाता है। यह प्लास्टिक, तामचीनी तथा पीतल आदि के होते हैं।
  5. लकड़ी का चम्मच तथा डण्डा-इससे नील अथवा मावा घोलने का कार्य किया जाता है। चद्दरें, खेस आदि को डण्डे अथवा थापी से पीट कर साफ़ किया जाता है।
  6. हौदी-धुलाई वाले कमरे में पानी की टूटी के नीचे सीमेंट की हौदी बनी हई होनी चाहिए। इससे काम आसान हो जाता है। हौदी के दोनों ओर सीमेंट अथवा लकड़ी के फट्टे लगे होने चाहिएं ताकि धोकर वस्त्र इन पर रखे जा सकें। इनकी ढलान हौदी की ओर होनी चाहिए।
  7. रगड़ने वाला ब्रुश तथा फट्टा-प्लास्टिक के ब्रुशों का प्रयोग वस्त्र के अधिक मैले हिस्से को रगड़कर मैल उतारने के लिए किया जाता है। फट्टा लकड़ी, स्टील अथवा जस्त का बना होता है। इस पर रखकर वस्त्र को रगड़कर मैल निकाली जाती है।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (2)
  8. गर्म पानी-वस्त्र धोने के लिए या तो बिजली के बायलर में पानी गर्म किया जाता है या फिर आग के सेक से बर्तन में डालकर पानी गर्म किया जाता है।
  9. वस्त्र धोने वाली मशीन-इससे समय तथा. शक्ति दोनों की बचत होती, अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार इसको खरीदा जा सकता है।
  10. सक्शन वाशर-भारी, ऊनी, कम्बल, साड़ियां तथा अन्य वस्त्र इसके प्रयोग से आसानी से धोए जा सकते हैं।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (3)

वस्त्र सुखाने के लिए सामान — वस्त्रों को धोने के पश्चात् साधारणतः प्राकृतिक धूप तथा हवा में सुखाया जाता है। अन्य आवश्यक सामान इस तरह हैं —

  1. रस्सी अथवा तार-रस्सी को अथवा तार को खींचकर खूटियों तथा खम्बों में बांधा जाता है। रस्सी नायलॉन, सन अथवा सूत की हो सकती है। जंग रहित लोहे की तार भी हो सकती है।
  2. क्लिप तथा हैंगर-वस्त्र तार पर लटका कर क्लिप लगा दी जाती है ताकि हवा चलने पर वस्त्र नीचे गिरकर खराब न हो जाएं। बढ़िया किस्म के वस्त्र हैंगर में डालकर सुखाए जा सकते हैं।
  3. वस्त्र सुखाने वाले रैक-बरसातों में अथवा बड़े शहरों में जहां लोग फ्लैटों में रहते हैं वहां रैकों पर वस्त्र सुखाये जाते हैं । यह एल्यूमीनियम अथवा लकड़ी के हो सकते हैं। इन्हें फोल्ड करके सम्भाला भी जा सकता है।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (4)
  4. वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट-विकसित देशों में प्रायः इसका प्रयोग होता है। खासकर जहां अधिक ठण्ड अथवा वर्षा होती है उन देशों में इनका प्रयोग साधारण है।
    इनके अतिरिक्त ऑटोमैटिक वाशिंग मशीनों से भी वस्त्र सुखाये जा सकते हैं।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (5)

वस्त्र प्रैस करने वाला सामान —

  1. प्रेस-वस्त्र प्रैस करने के लिए बिजली अथवा कोयले वाली प्रेस का प्रयोग किया जाता है। प्रैस लोहे, पीतल तथा स्टील की मिलती है।
  2. प्रैस करने वाला फट्टा — यह लकड़ी का होता है, फट्टे के स्थान पर बैंच अथवा मेज आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है । इस पर एक कम्बल बिछा कर ऊपर पुरानी चादर बिछा लेनी चाहिए।
    PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 11 वस्त्र धोने के लिए सामान (6)

प्रश्न 15.
वस्त्र धोने के लिए पानी कहां से प्राप्त किया जा सकता है और क्यों? कैसा पानी वस्त्र धोने के लिए उपयुक्त नहीं और क्यों?
उत्तर-
देखो प्रश्न 8 का उत्तर।
समुद्र के पानी का प्रयोग वस्त्र धोने के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें बहुत सारी अशुद्धियां मिली होती हैं।

Home Science Guide for Class 9 PSEB वस्त्र धोने के लिए सामान Important Questions and Answers

वस्तुनिक प्रश्न

रिक्त स्थान भरें-

  1. पानी घोलक है।
  2. हल्के पानी में …………….. की झाग शीघ्र बनती है।
  3. …………….. पानी में बहुत-सी अशुद्धियां होती हैं।
  4. स्रोत के आधार पर पानी को …………………. किस्मों में बांटा गया है।
  5. ……………… भारी पानी में कैल्शियम क्लोराइड होता है।

उत्तर-

  1. यूनिवर्सल,
  2. साबुन,
  3. समुद्र के,
  4. पांच,
  5. स्थायी।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारे पानी में कौन-से लवण होते हैं?
उत्तर-
कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लत्रण।

प्रश्न 2.
स्वाद के अनुसार पानी कितने प्रकार का है?
उत्तर-
दो प्रकार का।

प्रश्न 3.
फ्लैटों में रहने वाले लोग कपड़े कहां सुखाते हैं?
उत्तर-
रैकों में।

प्रश्न 4.
साबुन को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
सफाईकारी।

प्रश्न 5.
बिजली की कैबिनेट का प्रयोग कपड़े सुखाने के लिए किन देशों में हो रहा
उत्तर-
विकसित देशों में।

ठीक ग़लत बताएं

  1. लांडरी बैग में धोने वाले कपड़े एकत्र किए जाते हैं।
  2. पानी एक विश्वव्यापी घोलक है।
  3. पानी दो प्रकार का होता है हल्का तथा भारी।
  4. हल्के पानी में साबुन की झाग नहीं बनती।
  5. समुद्र का पानी पीने के लिए तथा कपड़े धोने के लिए ठीक नहीं होता।
  6. कपड़ों को धूप में सुखाना ठीक है।

उत्तर-

  1. ठोक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ठीक,
  6. ठीक।

बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धुलाई के लिए प्रयोग होने वाला सामान है
(A) स्टोर करने वाला
(B) कपड़े धोने वाला
(C) कपड़े सुखाने वाला
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
कपड़े धोने के लिए सामान है
(A) पानी
(B) साबुन
(C) टब, बाल्टियां
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
ठीक तथ्य हैं
(A) फ्लैटों में रहने वाले रैकों पर कपड़े सुखाते हैं
(B) धूप में कपड़े सुखाना अच्छा है
(C) समुद्र के पानी से कपड़े नहीं धो सकते
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धोबी को वस्त्र देने के क्या नुकसान हैं?
उत्तर-

  1. धोबी कई बार वस्त्र साफ़ करने के लिए ऐसी विधियों का प्रयोग करता है जिससे वस्त्र जल्दी फट जाते हैं अथवा फिर कमजोर हो जाते हैं।
  2. कई बार वस्त्रों के रंग खराब हो जाते हैं।
  3. छूत की बीमारियां होने का भी डर रहता है।
  4. धोबी से वस्त्र धुलाना महंगा पड़ता है।

प्रश्न 2.
जल चक्र क्या है?
उत्तर-
प्राकृतिक रूप में पानी कुओं, चश्मों, दरियाओं तथा समुद्रों में से मिलता है। धरती पर सूर्य की धूप से यह पानी भाप बनकर उड़ जाता है तथा वायुमण्डल में जलवाष्प के रूप में इकट्ठा होता रहता है तथा बादलों का रूप धारण कर लेता है। जब यह भारी हो जाते हैं तो वर्षा, ओलों तथा बर्फ के रूप में पानी दुबारा धरती पर आ जाता है। यह पानी शुरू से दरियाओं द्वारा होता हुआ समुद्र में मिल जाता है। तथा यह चक्र इसी तरह चलता रहता है।

प्रश्न 3.
स्वादानुसार पानी का वर्गीकरण कैसे किया गया है?
उत्तर-
स्वादानुसार पानी दो तरह का होता है-

  1. मीठा अथवा हल्का पानी-इस पानी का स्वाद मीठा होता है।
  2. खारा पानी-यह पानी स्वाद में नमकीन-सा होता है।

प्रश्न 4.
पानी का वर्गीकरण अशुद्धियों के अनुसार किस प्रकार किया गया है?
उत्तर-
अशुद्धियों के अनुसार पानी दो प्रकार का है

  1. हल्का पानी-इसमें अशुद्धियां नहीं होतीं तथा यह पीने में स्वादिष्ट होता है। इसमें साबुन की झाग भी शीघ्र बनती है।
  2. भारी पानी-इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण घुले होते हैं। यह साबुन से मिलकर झाग नहीं बनाता। यह भी दो तरह का होता है अस्थाई भारी पानी तथा स्थाई भारी पानी।

प्रश्न 5.
वस्त्र धोने के लिए थापी अथवा डण्डे का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए? वस्त्र धोने वाला फट्टा क्या होता है?
उत्तर-
थापी का अधिक प्रयोग किया जाये तो कई बार वस्त्र फट जाते हैं, वस्त्र धोने वाला फट्टा स्टील अथवा लकड़ी का बना होता है। इस पर रखकर वस्त्रों को साबुन लगाकर रगड़ा जाता है। इस तरह वस्त्र से मैल उतर जाती है।

प्रश्न 6.
आप वस्त्र सुखाने के लिए लोहे के तार का प्रयोग करोगे अथवा नाइलॉन की रस्सी का?
उत्तर-
वैसे तो दोनों का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु लोहे की तार को जंग लग जाता है जिससे वस्त्र पर दाग पड़ जाते हैं। इसलिए नाइलॉन की रस्सी अधिक उपयुक्त रहेगी।

वस्त्र धोने के लिए सामान PSEB 9th Class Home Science Notes

  • घर में वस्त्र कपड़े धोने के लिए कई तरह का सामान चाहिए।
  • वस्त्र धोने का सामान अपनी आर्थिक हालत अनुसार तथा आवश्यकतानुसार ही लो।
  • लाऊण्डरी बैग में धोने वाले वस्त्र इकट्ठे किये जाते हैं।
  • पानी एक विश्वव्यापी घोलक है, इसमें साधारणतः प्रत्येक प्रकार की मैल घुल जाती है।
  • पानी प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोत हैं। वर्षा, दरिया, कुएं, चश्मे तथा समुद्र का पानी।
  • समुद्र का पानी वस्त्र धोने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  • पानी दो तरह का होता है-हल्का तथा भारी।
  • हल्के पानी में साबुन की झाग शीघ्र बनती है।
  • भारी पानी स्थाई तथा अस्थाई दो तरह का होता है। अस्थाई भारे पानी को उबाल कर हल्का किया जा सकता है।
  • साबुनों को सफ़ाईकारी कहा जाता है। यह चर्बी तथा खारों के मिश्रण से बनता
  • टब, बाल्टियां, चिल्मचियां आदि का प्रयोग नील देने, मावा देने, वस्त्र भिगोने, खंगालने आदि के लिए किया जाता है।
  • फ्लैटों में रहने वाले लोग वस्त्र सुखाने के लिए रैकों का प्रयोग करते हैं।
  • विकसित देशों में वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट का प्रयोग किया जाता है।
  • वस्त्र को साफ़-सुथरी, चमकदार, सिलवट रहित दिखावट प्रदान करने के लिए इस्तरी किया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 4 घरेलू सफ़ाई

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 4 घरेलू सफ़ाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 4 घरेलू सफ़ाई

PSEB 9th Class Home Science Guide घरेलू सफ़ाई Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
घर की सफाई में किस प्रकार का सामान प्रयोग में आता है ?
उत्तर-
घर की सफाई के लिए पांच प्रकार के सामान का प्रयोग होता हैपोचा तथा पुराने कपड़े, झाड़ तथा ब्रुश, बर्तन, सफाई के लिए साबुन तथा अन्य प्रतिकारक, सफाई करने वाले यन्त्र।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 4 घरेलू सफ़ाई

प्रश्न 2.
सफाई करने के कौन-कौन से ढंग हैं ?
उत्तर-
सफाई विभिन्न ढंगों से की जाती है जैसे-झाड़ तथा ब्रुश से, पानी से धोना, कपड़े से झाड़कर पोंछना, बिजली की मशीन (वैक्यूम क्लीनर) से।

प्रश्न 3.
दैनिक सफाई और मासिक सफाई में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
दैनिक सफाई-प्रतिदिन की जाने वाली सफाई को दैनिक सफाई कहते हैं। रोजाना सफाई में प्रत्येक कमरे में झाड़-पोचा लगाया जाता है।
मासिक सफाई- यह सफाई महीने बाद तथा महीने में एक बार की जाती है। जैसेरसोई तथा अल्मारियों की सफाई आदि।

प्रश्न 4.
वैक्यूम क्लीनर कैसा उपकरण है ?
उत्तर-
यह एक बिजली से चलने वाली मशीन है। जब इसको बिजली से जोड़कर सफाई करने वाले स्थान पर चलाया जाता है तो सारी मिट्टी आदि इसके अन्दर खींची जाती है तथा एक थैली में इकट्ठी हो जाती है। यह मशीन प्रयोग करने से धूल नहीं उड़ती तथा सफाई भी अच्छी तरह से हो जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
घर की सफाई क्यों ज़रूरी होती है ?
उत्तर-

  1. सफाई करने से घर साफ तथा सुन्दर लगता है जो कि गृहिणी की सुघड़ता का सूचक होता है।
  2. गन्दे घर की हवा दूषित होती है जिसमें सांस लेने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सफाई करने से घर की हवा भी साफ हो जाती है।
  3. अधिक समय गन्दा रखने से घर का सामान जल्दी खराब हो जाता है। गन्दी जगह पर बैठने को किसी का मन नहीं करता।
  4. गन्दे घर में कई प्रकार के कीटाणु, मक्खी, मच्छर आदि पैदा होते हैं जो कई तरह की बीमारियां फैलाते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 4 घरेलू सफ़ाई

प्रश्न 6.
घर की सफाई करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
घर की सफाई के समय ध्यान में रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें

  1. घर के सभी सदस्यों को घर की सफाई के प्रति दिलचस्पी होनी चाहिए। क्योंकि सदस्यों को घर की सफाई के दौरान सभी सदस्यों का सहयोग अनिवार्य होता है।
  2. सफाई करने से पहले योजना बना लेनी चाहिए क्योंकि बिना योजना से की जाने वाली सफाई में अधिक समय खराब होता है।
  3. सफाई करते समय ज़रूरत का सारा सामान एक जगह पर इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  4. सफाई के साधनों का प्रयोग करने के पश्चात् उन्हें फिर से साफ करके रख लेना चाहिए ताकि वह दोबारा प्रयोग में लाए जा सके जैसे पॉलिश करने के पश्चात् ब्रुश मिट्टी के तेल से साफ करके सम्भाल लेना चाहिए ताकि वह दोबारा प्रयोग किया जा सके।
  5. सफाई करते समय ठीक प्रकार की सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। इससे सफाई भी ठीक ढंग से होती है तथा समय तथा शक्ति की भी बचत होती है।
  6. सफाई सही ढंग तथा ध्यान से करनी चाहिए। लापरवाही से की गई सफाई घर को साफ बनाने के स्थान पर और भी बदसूरत बना देती है।

प्रश्न 7.
घर की सफाई करने के लिए कौन-कौन सा सामान चाहिए ?
उत्तर-
घर की सफाई के लिए सामान का विवरण इस प्रकार है –

  1. पोचा तथा पुराने कपड़े-दरवाजे, खिड़कियां झाड़ने के लिए चारों तरफ से उलेडा हुआ मोटा कपड़ा चाहिए। फर्श की सफाई के लिए खद्दर, टाट, खेस के टुकड़े को पोचे के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। पॉलिश करने तथा चीज़ों को चमकाने के लिए फ्लालेन आदि जैसे कपड़े की ज़रूरत है। शीशे की सफाई के लिए पुराने सिल्क के कपड़े का प्रयोग किया जा सकता है।
  2. झाड़ तथा ब्रश-विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग ब्रश मिल जाते हैं। कालीन तथा दरी साफ करने के लिए सख्त ब्रुश, बोतलें साफ करने के लिए लम्बा तथा नर्म ब्रुश, रसोई की हौदी साफ करने के लिए छोटा पर साफ ब्रुश, फर्श साफ करने के लिए तीलियों का ब्रुश आदि । इसी तरह सूखा कूड़ा इकट्ठा करने के लिए नर्म झाड़ तथा फर्शों की धुलाई के लिए बांसों वाला झाड़ आदि मिल जाते हैं।
  3. सफाई के लिए बर्तन-रसोई में सब्जियों आदि के छिलके डालने के लिए ढक्कन वाला डस्टबिन तथा अन्य कमरों में प्लास्टिक के डिब्बे अथवा टोकरियां रखनी चाहिएं। इन्हें रोज़ खाली करके दोबारा इनके स्थान पर रख देना चाहिए।
  4. सफाई के लिए साबुन आदि-सफाई करने के लिए साबुन, विम सोडा, नमक, सर्फ, पैराफिन आदि की ज़रूरत होती है। दाग-धब्बे दूर करने के लिए नींबू, सिरका, हाइड्रोक्लोरिक तेज़ाब आदि की ज़रूरत होती है। कीटाणु समाप्त करने के लिए फिनाइल तथा डी० डी० टी० आदि की ज़रूरत होती है।
  5. सफाई करने वाले उपकरण-वैक्यूम क्लीनर एक ऐसा उपकरण है जिससे फर्श, सोफे, गद्दियां आदि से धूल तथा मिट्टी साफ की जा सकती है। यह बिजली से चलता है।

प्रश्न 8.
सफाई करने के कौन-कौन से ढंग हैं ?
उत्तर-
सफाई विभिन्न ढंगों से की जा सकती है जैसे-झाड़ तथा ब्रुश -से, पानी से धोकर, कपड़े से झाड़ कर पोंछना, बिजली की मशीन से।
सीमेंट, चिप्स, पत्थर आदि वाले फर्श की सफाई झाड से की जाती है जबकि घास तथा कालीन के लिए तीलियों वाला झाड़ का प्रयोग किया जाता है।
बाथरूम तथा रसोई को रोज़ धोकर साफ किया जाता है।
घर के साजो-सामान पर पड़ी धूल-मिट्टी को कपड़े से झाड़-पोंछ कर साफ किया जाता
है।

प्रश्न 9.
सफाई करने के लिए क्या बिजली की कोई मशीन है ? यदि हां, तो कौन-सी और कैसे प्रयोग में लाई जाती है ?
उत्तर-
बिजली से चलने वाली सफाई मशीन वैक्यूम क्लीनर है। इससे फर्श, पर्दे, दीवारें, सोफा, दरियां, फर्नीचर, कालीन आदि साफ किये जा सकते हैं।
यह एक ऊंचे हैण्डल वाली मोटर है। इसमें एक थैली लगी होती है। जब इसको चलाया जाता है तो सारी मिट्टी इसमें चली जाती है। यह मिट्टी थैली में इकट्ठी हो जाती है। सफाई कर लेने के पश्चात् थैली को उतार कर झाड़ लिया जाता है। इस मशीन के प्रयोग से मिट्टी नहीं उड़ती तथा सफाई भी अच्छी होती है।

प्रश्न 10.
सफाई करने के लिए कौन-कौन से झाड़ और ब्रुश की ज़रूरत पड़ती
उत्तर-

1. ब्रुश-सफाई के लिए कई तरह के ब्रुशों का प्रयोग किया जाता है। ब्रुश खरीदने के लिए एक विशेष बात का ध्यान रखें कि उसे किस चीज़ की सफाई के लिए प्रयोग करना है। कालीन तथा दरी साफ करने के लिए सख्त ब्रुश, रसोई की हौदी साफ करने के लिए छोटा परन्तु सख्त ब्रुश, दीवारें साफ करने के लिए नर्म ब्रुश, फर्श को साफ करने के लिए तीलियों का ब्रुश, बोतलें साफ करने के लिए लम्बा तथा नर्म ब्रुश, छोटी वस्तुएं साफ करने के लिए दांतों वाले ब्रुश, फर्श से काई उतारने के लिए तारों वाले सख्त ब्रुश की ज़रूरत होती है। फर्नीचर की पॉलिश करने के लिए नर्म ब्रुश का प्रयोग किया जाता है। दीवारों पर सफेदी करने के लिए मूंजी की कूची तथा दरवाजे, खिड़कियां तथा अल्मारियों को पेंट अथवा पॉलिश करने के लिए 1½ इंच वाले तथा दीवारों पर पेंट अथवा डिस्टैंपर करने के लिए तीन-चार इंच वाले ब्रुशों की ज़रूरत पड़ती है। बाथरूम में फ्लशों को साफ करने के लिए विशेष प्रकार के गोल, नर्म ब्रुश प्रयोग किये जाते हैं। दीवारों से जाले उतारने के लिए भी लम्बी डण्डी वाले ब्रुश होते हैं।

2. झाड़-घर को तथा घर के और सामान को साफ करने के लिए विभिन्न प्रकार के झाड़ प्रयोग में लाये जाते हैं। सूखा कूड़ा इकट्ठा करने के लिए नर्म जैसे झाड़ तथा फर्शों की धुलाई के लिए अथवा घास पर फेरने के लिए तीलियों वाले मोटे बांस के झाड़ की ज़रूरत होती है। सफाई करने के लिए कई बार खजूर तथा नारियल के पत्तों के झाड़ भी प्रयोग किये जाते हैं। आजकल बाज़ार में लम्बे डंडे वाले झाड़ नुमा ब्रुश भी मिल जाते हैं जिनसे खड़ेखड़े फर्शों की सफाई की जाती है।

प्रश्न 11.
घर में सफाई की व्यवस्था कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
घर में सफाई की व्यवस्था को पांच भागों में बांटा जा सकता है :

  1. दैनिक सफाई
  2. साप्ताहिक सफाई
  3. मासिक सफाई
  4. वार्षिक सफाई
  5. विशेष अवसर पर सफाई।

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प्रश्न 12.
दैनिक सफाई से आप क्या समझते हो ? इसके क्या लाभ हैं? .
उत्तर-
दैनिक सफाई दैनिक सफाई में वे कार्य शामिल किये जाते हैं जो प्रतिदिन किये जाते हैं। इसके कई लाभ हैं। दैनिक सफाई करने से कोई भी सामान अधिक गन्दा नहीं होता। यदि बहुत गन्दे सामान को साफ करना हो तो समय, शक्ति तथा धन भी अधिक खर्च होता है। परन्तु प्रतिदिन करने से बिल्कुल अनुभव नहीं होता। दैनिक सफाई सुबह ही करनी चाहिए। क्योंकि रात को सारा गरदा, मिट्टी चीजों पर जम जाती है। इसलिए साफ करना कठिन होता है। दैनिक सफाई के लिए बहुत योजनाबन्दी की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि यह सभी कार्य करने की आदत ही बन चुकी होती है। यह सारे कार्य या तो गृहिणी स्वयं करती है अथवा फिर परिवार के सदस्यों की सहायता ली जाती है तथा कई बार नौकरों से करवाए जाते हैं।

दैनिक सफाई के लिए सबसे पहले परदे पीछे करके कांच की खिड़कियां खोल देनी चाहिएं जिससे ताजा हवा तथा रोशनी घर में आ सके। फिर कमरों की चादरें झाड कर बिछा दें। बिखरे हुए सामान को अपनी-अपनी जगह पर रखें। फिर कमरों में रखे कूडेदानों को खाली करके सभी कमरों, बरामदे तथा आंगन में झाड़ लगाओ। फिर कपड़ा लेकर मेज़, कुर्सियां, टेबल तथा अन्य कमरों में पड़े सामान की झाड़-पोंछ करनी चाहिए। झाड़-पोचा करते समय कपड़ा ज़ोर से पटक कर न मारें, इस तरह करने से धूल एक स्थान से उड़कर दूसरी जगह पड़ जाती है तथा चीजें टूटने का भी डर रहता है। इसके पश्चात् कोई मोटा कपड़ा जैसे पुराना तौलिया आदि लेकर, बाल्टी में पानी लेकर, कपड़ा गीला करके सभी कमरों में पोचा लगाना चाहिए। भिन्न-भिन्न सामान को ठीक करके टिकाने पर रखा जाता है। इस तरह पूरा घर साफ-सुथरा हो जाता है। यदि घर में कहीं कच्ची जगह है तो पहले वहां हल्का सा पानी का छिड़काव कर लेना चाहिए ताकि झाड़ लगाने पर अधिक मिट्टी न उड़े।

प्रश्न 13.
दैनिक तथा साप्ताहिक सफाई में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
दैनिक सफाई-दैनिक सफाई में वह कार्य शामिल हैं जो रोज़ किये जाते हैं।
साप्ताहिक सफाई-यह सफाई सप्ताह के बाद तथा सप्ताह में एक बार की जाती है।
साप्ताहिक सफाई के अन्तर्गत किये जाने वाले कार्य समय सीमित होने के कारण गृहिणी के लिए यह सम्भव नहीं कि वह घर की प्रत्येक चीज़ को रोज़ साफ करे। वैसे ही कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनकी रोज़ाना सफाई की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए ऐसे सारे कार्य जैसे चादरों, गिलाफों अथवा सोफे के कपड़ों को रोजाना बदलने की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए ऐसे कार्य जैसे कालीन की सफाई, गिलाफ, फ्रिज की सफाई, रसोई की शैल्फ तथा गैस स्टोव की सफाई, रसोई घर के डिब्बों की सफाई, बाथरूम की बाल्टियां, मग तथा साबुनदानी आदि की सफाई साप्ताहिक सफाई में ही आते हैं।

इसके अतिरिक्त यदि गृहिणी के पास समय हो तो कपड़ों वाली अल्मारियों को साफ किया जा सकता है जिससे ज़रूरत पड़ने पर सामान आसानी से ढूंढा जा सकता है। साप्ताहिक सफाई में घर के सभी कमरों, बरामदों आदि से जाले उतारने बहुत ज़रूरी हैं। गृहिणी को यह योजना बनाकर (जबानी अथवा लिखित) रखनी चाहिए कि इस सप्ताह के कार्य कौन-से हैं।

प्रश्न 14.
वार्षिक सफाई और विशेष अवसर पर सफाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-

  1. वार्षिक सफाई वार्षिक सफाई, रोज़ाना, साप्ताहिक तथा मासिक सफाई से अधिक विस्तृत होती है। यह कम-से-कम छ:-सात दिन का कार्य होता है। इस कार्य में समय, शक्ति तथा धन भी अधिक खर्च होता है। इसलिए इस कार्य के लिए गृहिणी को पूरी योजनाबन्दी करनी चाहिए। परिवार के अलग-अलग नौकरों तथा सदस्यों को भी कार्य बांटे जाते हैं। घर का सारा सामान एक तरफ करके विस्तृत रूप में सफाई की जाती है ताकि घर से धूल-मिट्टी तथा कीड़े-मकौड़े समाप्त हो सकें। इस सफाई के दौरान घर के टूटे-फूटे सामान की मुरम्मत, पॉलिश तथा अनावश्यक सामान को भी निकाला जाता है। कीड़े-मकौड़े समाप्त करने के लिए घर में सफेदी भी कराई जानी चाहिए। पेटियों तथा अल्मारियों आदि के सामान को धूप लगवानी चाहिए
  2.  विशेष अवसरों तथा त्योहारों के लिए सफाई-हमारे देश में त्योहारों तथा विशेष अवसरों पर घर की सफाई की जाती है। जैसे दीवाली पर घर में सफेदी करवाई जाती है तथा साथ ही घर की सफाई भी की जाती है। यदि परिवार में किसी बच्चे का विवाह हो तो वार्षिक सफाई वाली सभी क्रियाएं की जाती हैं। पर कई अवसर ऐसे होते हैं जब घर का कुछ हिस्सा ही साफ करके सजाया जाता है। जैसे कि जन्म दिन को मनाने के समय अथवा किसी परिवार को खाने पर बुलाने के मौके पर केवल ड्राईंग रूम की ही खास सफाई की जाती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 15.
घर की सफाई गृहिणी की सुघड़ता का सूचक है। कैसे ?
उत्तर-
एक साफ-सुथरा तथा सजा हुआ घर गृहिणी की सूझ-बूझ तथा कुशलता का प्रत्यक्ष रूप है। इसलिए सफाई निम्नलिखित बातों के कारण भी महत्त्वपूर्ण हैं –

  1. सफाई न करने से घर की हवा दूषित हो जाती है जिसमें सांस लेने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  2. गन्दे स्थान पर मक्खियां-मच्छर तथा अन्य कई रोग पैदा करने वाले कीटाणु भी अधिक बढ़ते हैं जो बीमारियों की,जड़ हैं।
  3. गन्दे घर में बैठकर काम करने को दिल नहीं करता। यहां तक कि आस-पड़ोस के लोग भी गन्दगी देखकर घर आना पसन्द नहीं करते।
  4. सफाई करने से घर सजा हुआ दिखाई देता है। यदि सफाई न की जाये तो घर की प्रत्येक वस्तु पर मिट्टी, धूल तथा कूड़ा-कर्कट इकट्ठा हो जाता है जिससे घर गन्दा होने के साथ-साथ घर का सामान भी खराब होना आरम्भ हो जाता है।
  5. साफ-सुथरे सजे हुए घर से गृहिणी की समझदारी का पता चलता है। घर के अन्य कार्यों में से घर की सफाई एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।

प्रश्न 16.
घर की सफाई कैसे की जाती है और इसके लिए क्या सामान आवश्यक है ?
उत्तर-
सफाई विभिन्न ढंगों से की जा सकती है जैसे-झाड़ तथा ब्रुश से, पानी से धोकर, कपड़े से झाड़कर पोंछना, बिजली की मशीन से।
सीमेंट, चिप्स तथा पत्थर आदि वाली फर्श की सफाई फूल झाड़ से की जाती है जबकि घास तथा कालीन के लिए तीलियों वाला झाड़ प्रयोग किया जाता है।
गुसलखाना तथा रसोई आदि को रोज़ धोकर साफ किया जाता है। घर के साजो-सामान पर पड़ी धूल-मिट्टी को कपड़े से झाड़-पोंछ कर साफ किया जाता है।
घर की सफाई के लिए सामान का विवरण इस प्रकार है –

  1. पोचा तथा पुराने कपड़े-दरवाजे, खिड़कियां झाड़ने के लिए चारों तरफ से उलेड़ा हुआ मोटा कपड़ा चाहिए। फर्श की सफाई के लिए खद्दर, टाट, खेस के टुकड़े पोचे के तौर पर प्रयोग किए जाते हैं। पॉलिश करने तथा चीज़ों को चमकाने के लिए फलालेन आदि जैसे कपड़े की ज़रूरत है। कांच की सफाई के लिए पुराने सिल्क के कपड़े का प्रयोग किया जा सकता है।
  2. झाड़ तथा बुश-विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग ब्रुश मिल जाते हैं। कालीन तथा दरी साफ करने के लिए सख्त ब्रुश, बोतलें साफ करने के लिए लम्बा तथा नर्म ब्रुश, रसोई की हौदी साफ करने के लिए छोटा पर साफ ब्रुश, फर्श साफ करने के लिए तीलियों का ब्रुश आदि। इसी तरह सूखा कूड़ा इकट्ठा करने के लिए नर्म झाड़ तथा फर्शों की धुलाई के लिए बांसों वाला झाड़ आदि मिल जाते हैं।
  3. सफाई के लिए बर्तन-रसोई में सब्जियों आदि के छिलके डालने के लिए ढक्कन वाला डस्टबिन तथा अन्य कमरों में प्लास्टिक के डिब्बे अथवा टोकरियां रखनी चाहिएं। इन्हें रोज़ खाली करके दोबारा इनके स्थान पर रख देना चाहिए।
  4. सफाई के लिए साबुन आदि-सफाई करने के लिए साबुन, विम सोडा, नमक, सर्फ, पैराफिन आदि की ज़रूरत होती है। दाग-धब्बे दूर करने के लिए नींबू, सिरका, हाइड्रोक्लोरिक तेज़ाब आदि की ज़रूरत होती है। कीटाणु समाप्त करने के लिए फिनाइल तथा डी० डी० टी० आदि की ज़रूरत होती है।
  5. सफाई करने वाले उपकरण-वैक्यूम क्लीनर एक ऐसा उपकरण है जिससे फर्श, सोफे, गद्दियां आदि से धूल तथा मिट्टी झाड़ी जा सकती है। यह बिजली से चलता है।

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प्रश्न 17.
घर की सफाई की व्यवस्था कैसे और किस आधार पर की जाती है ?
उत्तर-
गृहिणी हर रोज़ सारे घर की सफाई नहीं कर सकती क्योंकि यह थका देने वाला कार्य है। इसलिए इस कार्य को करने के लिए सूझ-बूझ से योजना बनाई जाती है। गृहिणी अपनी सुविधा के अनुसार सफाई कर सकती है। घर की सफाई की व्यवस्था को पांच भागों में बांटा जा सकता है –

  1. रोज़ाना सफाई
  2. साप्ताहिक सफाई
  3. मासिक सफाई
  4. वार्षिक सफाई
  5. विशेष अवसरों पर सफाई।

1. रोज़ाना अथवा दैनिक सफाई-रोज़ाना सफाई से हमारा अभिप्राय उस सफाई से है जो घर में रोज़ की जाती है। इसलिए गृहिणी का यह मुख्य कर्त्तव्य है कि वह घर के उठने-‘ बैठने, पढ़ने-लिखने, सोने के कमरे, रसोई घर, आंगन, बाथरूम, बरामदा तथा लैटरिन की हर रोज़ सफाई करें। रोजाना सफाई में साधारणतः इधर-उधर बिखरी चीज़ों को ठीक तरह लगाना, फर्नीचर को झाड़ना-पोंछना, फर्श पर झाड़ लगाना, गीला पोचा लगाना आदि आते हैं।

2. साप्ताहिक सफाई-एक अच्छी गृहिणी को घर के रोज़ाना जीवन में अनेक कार्य करने पड़ते हैं। इसलिए यह सम्भव नहीं कि वह एक ही दिन में घर की पूरी सफाई कर सके। समय की कमी के कारण घर में जो चीजें हर रोज़ साफ नहीं की जातीं उन्हें सप्ताह में अथवा पन्द्रह दिनों में एक बार अवश्य साफ कर लेना चाहिए। अगर ऐसा न किया गया तो दरवाजों तथा दीवारों की छतों पर जाले इकट्ठे हो जायेंगे। दरवाज़ों तथा खिड़कियों के शीशों, फर्नीचर की सफाई, बिस्तर झाड़ना तथा धूप लगवाना, अल्मारियों की सफाई तथा दरी, कालीन को झाड़ना तथा धूप लगवाना आदि कार्य सप्ताह में एक बार अवश्य किये जाने चाहिएं।

3. मासिक सफाई-जिन कमरों अथवा वस्तुओं की सफाई सप्ताह में एक बार न हो सके, उन्हें महीने में एक बार जरूर साफ करना चाहिए। साधारणत: सारे महीने की खाद्यसामग्री एक बार ही खरीदी जाती है। इसलिए भण्डार गृह में रखने से पहले भण्डार घर को अच्छी तरह झाड़-पोंछ कर ही उसमें खाद्य सामग्री रखी जानी चाहिए। मासिक सफाई के अन्तर्गत अनाज, दालों, अचार, मुरब्बे तथा मसाले आदि को धूप लगवानी चाहिए। अल्मारी के जाले, बल्बों के शेड आदि भी साफ करने चाहिएं।

4. वार्षिक सफाई-वार्षिक सफाई का अभिप्राय वर्ष में एक बार सारे घर की पूरी तरह सफाई करना है। वार्षिक सफाई के अन्तर्गत घर में सफेदी करना, टूटे स्थानों की मरम्मत, दरवाजों, खिड़कियों तथा दहलीज़ों की मरम्मत तथा सफाई तथा रंग-रोगन करवाना, फर्नीचर तथा अन्य सामान की मरम्मत, वार्निश, पॉलिश आदि आती है। कमरों में से सारे सामान को हटाकर चूना, पेंट अथवा डिस्टैंपर करवाना सफाई के पश्चात् फर्श को रगड़ कर धोना तथा दागधब्बे हटाना, सफाई के पश्चात् सारे सामान को दोबारा व्यवस्थित करना वार्षिक कार्य है। इस प्रकार की सफाई से कमरों को नवीन रूप प्रदान होता है। रज़ाई, गद्दों को खोलकर रुई साफ करवाना, धुनाई आदि भी वर्ष में एक बार किया जाता है।

हमारे देश में जब वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है, दशहरे अथवा दीवाली के समय वार्षिक सफाई की जाती है, लीपने-पोचने तथा पॉलिश करवाने से सुन्दरता तो बढ़ती ही है, रोग फैलाने वाले कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं । इसलिए स्वास्थ्य के पक्ष में भी एक बार घर की पूरी सफाई आवश्यक है।

5. विशेष अवसरों तथा त्योहारों के लिए सफाई -हमारे देश में त्योहारों तथा विशेष अवसरों पर घर की सफाई की जाती है। जैसे दीवाली पर घर में सफेदी करवाई जाती है तथा साथ ही घर की सफाई भी की जाती है। यदि परिवार में किसी बच्चे को विवाह हो तो भी वार्षिक सफाई वाली सभी क्रियाएं की जाती हैं। पर कई अवसर ऐसे होते हैं जब घर का कुछ भाग ही साफ करके सजाया जाता है जैसे कि जन्म दिन को मनाने के समय अथवा किसी परिवार को खाने पर बुलाने के अवसर पर केवल ड्राईंग-रूम की ही खास सफाई की जाती है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB घरेलू सफ़ाई Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें

  1. रसोई तथा अल्मारियों की सफ़ाई ………… ….. सफ़ाई है।
  2. घर के सभी सदस्यों की …………………. के प्रति रुचि होनी चाहिए।
  3. सूखा कूड़ा एकत्र करने के लिए …………………. झाड़ का प्रयोग करें।
  4. पॉलिश करने के लिए तथा चीज़ों को चमकाने के लिए …………………. कपड़े का प्रयोग करें।

उत्तर-

  1. मासिक
  2. सफ़ाई
  3. नर्म
  4. फलालेन या लिनन।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
शीशे को चमकाने के लिए कैसे कपड़े का प्रयोग ठीक रहता है ?
उत्तर-
सिल्क।

प्रश्न 2.
चांदी की सफाई के लिए पॉलिश का नाम बताएं।
उत्तर-
सिल्वो।

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प्रश्न 3.
सबसे पहले किस कमरे की सफाई करनी चाहिए ?
उत्तर-
खाना बनाने वाले कमरे की।

प्रश्न 4.
फ्रिज़ को कब साफ़ करना चाहिए ?
उत्तर-
सप्ताह में एक बार।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. घर की सफ़ाई के प्रति घर के सभी सदस्यों की रुचि होनी चाहिए।
  2. मासिक सफ़ाई महीने बाद की जाती है।
  3. स्नानागृह को महीने बाद धोना चाहिए न कि प्रतिदिन।
  4. बिजली से चलने वाली सफ़ाई वाली मशीन है माइक्रोवेव।
  5. धूल के कण, गंदगी का प्राकृतिक कारण है।
  6. पेंट वाली लकड़ी को प्रतिदिन झाड़न वाले कपड़े से पोंछे।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव विकार है –
(A) कफ़
(B) थूक
(C) पसीना
(D) सभी।
उत्तर-(D) सभी।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं –
(A) गंदे घर में बैठ कर कार्य करने का मन नहीं करता
(B) साफ़ सुन्दर सजे हुए घर से गृहिणी की सूझबूझ का पता चलता है
(C) सप्ताह वाली सफ़ाई सप्ताह में एक बार की जाती है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-(D) सभी ठीक।

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प्रश्न 3.
सफ़ाई के लिए प्रयोग वाला सामान है –
(A) झाड़
(B) बिजली की मशीन
(C) ब्रश
(D) सभी ठीक।
उत्तर-(D) सभी ठीक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दैनिक सफ़ाई में क्या-क्या कार्य करने आवश्यक होते हैं ?
उत्तर-
दैनिक सफ़ाई में निम्नलिखित कार्य आवश्यक रूप से करने होते हैं –

  1. घर के सारे कमरों के फ़र्श, खिड़कियां, दरवाजे, मेज़ तथा कुर्सी की झाड़-पोंछ करना।
  2. घर में रखे कडेदान आदि की सफाई करना।
  3. शौचालय तथा स्नानघर आदि की सफाई करना।
  4. रसोई में काम आने वाले बर्तनों की सफ़ाई तथा रख-रखाव।

प्रश्न 2.
घर में गन्दगी होने के मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक कारण-धूल के कण, वर्षा और बाढ़ के पानी के बहाव के कारण आने वाली गन्दगी, मकड़ी के जाले, पक्षियों और अन्य जीवों द्वारा फैलाई गन्दगी।
  2. मानव विकार-मल-मूत्र, कफ, थूक, खांसी, पसीना तथा बालों का झड़ना।
  3. घरेलू कार्य-खाद्य पदार्थों की सफ़ाई से निकलने वाली गन्दगी, साग-सब्जी, फ़ल आदि के छिलके, खाने वाली वस्तुएं, बर्तन आदि का धोना, कपड़ों की धुलाई, साबुन की झाग, मैल, नील, स्टार्च, रद्दी कागज़ के टुकड़े, सिलाई से निकलने वाले कपड़ों के टुकड़े, कताई की रूई तथा उसका झाड़न आदि।

प्रश्न 3.
दैनिक सफ़ाई क्यों आवश्यक है ? तथा घर की सफ़ाई कैसे करनी चाहिए ?
उत्तर-
दैनिक सफ़ाई से हमारा अभिप्राय उस सफ़ाई से है जो घर में रोजाना की जाती है। इसलिए गृहिणी का कर्तव्य है कि वह घर के उठने-बैठने, पढ़ने-लिखने, सोने के कमरे, रसोई, आंगन, बाथरूम, बरामदा तथा शौचालय की प्रतिदिन सफ़ाई करे। दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत साधारणतः इधर-उधर बिखरी हुई वस्तुओं को ठीक तरह टिकाना, फर्नीचर को झाड़ना-पोंछना, फ़र्श पर झाड़ करना, गीला पोछा करना आदि आते हैं।

प्रश्न 4.
शौचालय, बाथरूम में फिनाइल क्यों छिड़कायी जाती है.?
उत्तर-
शौचालय, बाथरूम को रोजाना फिनाइल से धोना चाहिए तथा इन्हें खुली हवा लगनी चाहिए। नहीं तो यह मक्खी, मच्छर के घर बन जाएंगे। जिससे कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं।

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प्रश्न 5.
घर में फर्नीचर की पॉलिश कैसे तैयार की जाती है ?
उत्तर-
फर्नीचर की पॉलिश तैयार करने के लिए अलसी का तेल दो हिस्से, तारपीन का तेल-एक हिस्सा, सिरका एक हिस्सा, मैथिलेटिड स्पिरिट-एक हिस्सा लेकर मिला लो। इस तरह पॉलिश तैयार हो जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फर्नीचर की देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
लकड़ी के फर्नीचर को नर्म साफ़ कपड़े से साफ़ किया जाता है क्योंकि कठोर ब्रुश का प्रयोग करने से लकड़ी पर खरोंचें पड़ सकती हैं। लकड़ी को गीला नहीं करना चाहिए। फर्नीचर की लकड़ी को पेंट अथवा पॉलिश की जाती है। पेंट तथा पॉलिश को विभिन्न विधियों से अलग किया जाता है।

पॉलिश की लकड़ी की सम्भाल-इसको प्रतिदिन नर्म कपड़े से साफ़ करना चाहिए। अधिक गन्दी होने की सूरत में साबुन वाले पानी से धोकर फ्लालेन के कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। कम गन्दी लकड़ी को साफ़ करने के लिए आधे लीटर गुनगुने पानी में दो बड़े चम्मच सिरके के मिलाकर घोल तैयार किया जाता है। इस घोल में गीला करके फ्लालेन के कपड़े से फर्नीचर को साफ़ करो। यदि फर्नीचर की लकड़ी की पॉलिश काफ़ी खराब हो गई हो अथवा चमक घट जाए तो मैन्शन पॉलिश अथवा क्रीम का प्रयोग करके सफ़ाई की जाती है। सनमाइका लगे फर्नीचर को साफ़ करना आसान होता है। इसको गीले कपड़े से पोंछा जा सकता है तथा दाग उतारने के लिए साबुन का प्रयोग किया जा सकता है।

पेंट की हई लकडी-पेंट वाली लकडी प्रतिदिन झाडने वाले कपड़े से पोंछो। यदि ज़रूरत हो तो कुछ दिनों के पश्चात् साबुन वाले गुनगुने पानी तथा फ्लालेन के कपड़े से इसे साफ़ करो। कोनों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है। अधिक गन्दे हिस्सों को साफ़ करने के लिए साफ़ ब्रुश प्रयोग करो। पेंट से चिकनाहट के दाग उतारने के लिए पानी में थोड़ी पैराफिन मिला ली जाती है परन्तु पैराफिन का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाए तो पेंट खराब हो जाता है।

कपड़ा चढ़ा हुआ फर्नीचर-इसको रोज़ सूखे कपड़े से झाड़ना चाहिए। कभी-कभी गर्म कपड़े साफ़ करने वाले ब्रुश से साफ़ करो। रैक्सिन अथवा चमड़े वाले फर्नीचर को रोज़ गीले कपड़े से साफ़ करो। चिकनाहट के दाग उतारने के लिए कपड़े को साबुन वाले गुनगुने पानी से भिगो कर रगड़ो। कभी-कभी थोड़ा सा अलसी का तेल कपड़े पर लगाकर चमड़े के फर्नीचर पर रगड़ने से चमड़ा मुलायम रहता है तथा दरारें नहीं पड़तीं।

घरेलू सफ़ाई PSEB 9th Class Home Science Notes

  • गन्दे घर का घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा कई प्रकार की बीमारियां फैल सकती हैं।
  • गन्दे घर में कई तरह के कीटाणु, मक्खी-मच्छर आदि पैदा होते हैं तथा बीमारियां फैलाते हैं।
  • सफाई सही ढंग से करनी चाहिए। लापरवाही तथा बिना ढंग से सफाई की जाये तो साफ होने के स्थान पर घर और भी बदसूरत हो जायेगा।
  • सफाई के लिए प्रयोग में आने वाला सामान पांच प्रकार का होता है –
    पोचा तथा पुराने कपड़े, झाड़ तथा ब्रुश, बर्तन, सफाई करने वाले यन्त्र, सफाई के लिए साबुन तथा अन्य प्रतिकारक।
  • सफाई करने के कई ढंग हैं –
    झाड़ तथा ब्रुश से, पानी से धोकर, कपड़े से झाड़कर पोंछना, बिजली की मशीन (वैक्यूम क्लीनर) से।
  • लकड़ी के फर्नीचर को नर्म, साफ कपड़े से साफ करना चाहिए।
  • घर की व्यवस्था को पांच भागों में बांटा जा सकता है –
    रोज़ाना सफाई, साप्ताहिक सफाई, मासिक सफाई, वार्षिक सफाई, विशेष अवसर पर सफाई।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ और विशेषताओं की व्याख्या करें। (Discuss the meaning and features of Unitary Government.)
उत्तर–
आधुनिक राज्य क्षेत्र व जनसंख्या में इतने विशाल हैं कि प्रत्येक राज्य को प्रान्तों अथवा इकाइयों में बांटा गया है। इन प्रान्तों अथवा इकाइयों को प्रान्तीय शासन चलाने के लिए कुछ अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त होती हैं। इन प्रान्तीय सरकारों का केन्द्रीय सरकारों से क्या सम्बन्ध है, इस आधार पर सरकारों का वर्गीकरण एकात्मक तथा संघात्मक रूपों में किया जाता है। एकात्मक सरकार में शासन की समस्त शक्तियां अन्तिम रूप में केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं जबकि संघात्मक सरकार में शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं।

एकात्मक सरकार की परिभाषाएं (Definitions of Unitary Government)-एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं घटा-बढ़ा भी सकती है। एकात्मक शासन की भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • डायसी (Dicey) के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का स्वाभाविक प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।” (“Unitary government is the habitual exercise of supreme legislative authority by one central power.”)
  • डॉ० फाइनर (Finer) के अनुसार, “एकात्मक शासन वह होता है जहां एक केन्द्रीय सरकार में सम्पूर्ण शासन शक्ति निहित होती है और जिसकी इच्छा व जिसके प्रतिनिधि कानूनी दृष्टि में सर्वशक्तिमान होते हैं।”
  • प्रोफेसर स्ट्रांग (Strong) के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह है जो एक केन्द्रीय शासन के अधीन संगठित हो।” (“A unitary state is one organised under a single central government.”)
    • प्रो० गार्नर (Garner) के अनुसार, “जब संविधान द्वारा सरकार की सब शक्तियां अकेले केन्द्रीय अंग तथा अन्य अंगों को दी जाएं, जिससे स्थानीय सरकारें अपनी शक्तियां और स्वतन्त्रता तथा अपना अस्तित्व तक प्राप्त करती हों, वहां एकात्मक सरकार होती है।”
      इंग्लैण्ड, फ्रांस, जापान, श्रीलंका, चीन, इटली तथा जर्मनी में एकात्मक शासन प्रणाली पाई जाती है।
  • PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

एकात्मक सरकार के लक्षण (Features of Unitary Government)-
एकात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • शक्तियों का केन्द्रीयकरण (Centralization of Powers)—एकात्मक शासन में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं। शासन की सुविधा के लिए राज्यों को प्रान्तों में बांटा गया होता है और उन्हें कुछ अधिकार तथा शक्तियां दी जाती हैं। केन्द्र जब चाहे प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीन सकता है और उनकी शक्तियां जब चाहे घटा-बढ़ा सकता है। इन प्रान्तों अथवा इकाइयों का अस्तित्व केन्द्र के ऊपर निर्भर करता है।
  • प्रभुसत्ता (Sovereignty)-एकात्मक शासन में प्रभुसत्ता केन्द्र में निहित होती है
  • इकहरी नागरिकता (Single Citizenship)-एकात्मक शासन में एक ही नागरिकता होती है। इंग्लैण्ड में नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है।
  • इकहरा शासन (Single Administration)-एकात्मक शासन में इकहरी शासन व्यवस्था होती है। इसमें एक ही विधानपालिका, एक ही कार्यपालिका तथा एक ही सर्वोच्च न्यायपालिका होती है।
  • लिखित अथवा अलिखित संविधान (Written or Unwritten Constitution)-एकात्मक शासन में संविधान लिखित हो सकता है और अलिखित भी। इंग्लैण्ड का संविधान अलिखित है जबकि जापान का संविधान लिखित है।
  • कठोर अथवा लचीला संविधान (Rigid or Flexible Constitution) एकात्मक शासन का संविधान कठोर अथवा लचीला हो सकता है। इंग्लैण्ड का संविधान लचीला है जबकि जापान का संविधान कठोर है।
  • प्रान्तों का अस्तित्व केन्द्र पर निर्भर करता है (Existence of the Provinces depends upon Centre)प्रान्तीय सरकारों का अस्तित्व और उनकी शक्तियां केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर होती हैं। प्रान्तों के अस्तित्व तया शक्तियों में परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार के गुणों और दोषों की व्याख्या करें। (Discuss the merits and demerits of Unitary Government.)
उत्तर-
एकात्मक शासन के गुण (Merits of Unitary Government)-एकात्मक शासन के निम्नलिखित गुण हैं-

  • शक्तिशाली शासन (Strong Administration)-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है। सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं। प्रान्तीय सरकारें केन्द्रीय सरकार के आदेशानुसार कार्य करती हैं। कानूनों को बनाने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी केन्द्र पर होती है। इस तरह शासन शक्तिशाली होता है जिस कारण देश की विदेश नीति भी प्रभावशाली होती है।
  • सादा शासन (Simple Administration)-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है। शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते। सादा शासन होने के कारण एक अनपढ़ व्यक्ति को भी अपने देश के शासन के संगठन का ज्ञान होता है।
  • लचीला प्रशासन (Flexible Government)-संविधान अधिक कठोर न होने के कारण समयानुसार आसानी से बदला जा सकता है। संकटकाल के लिए यह शासन-प्रणाली बहुत उपयुक्त है। केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी समय प्रान्तों की शक्तियों को कम किया जा सकता है।
  • कम खर्चीला शासन (Less Expensive)—एकात्मक शासन प्रणाली संघात्मक सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली होती है। इसमें एक ही विधानपालिका तथा एक ही कार्यपालिका होती है जिससे खर्च कम होता है। प्रान्तों में विधानमण्डल तथा कार्यपालिका न होने के कारण धन की बचत होती है।
  • शासन की एकरूपता (Uniformity in Administration)-कानून बनाने के लिए एक ही विधानपालिका होती है तथा कानूनों को लागू करने के लिए एक ही कार्यपालिका होती है। इससे सारे राज्य में शासन की एकरूपता बनी रहती है। एक नागरिक देश के किसी भी भाग में क्यों न चला जाए उसे एक ही तरह के कानूनों का पालन करना होता है।
  • राष्ट्रीय एकता (National Unity)—एकात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रीय एकता की भावनाओं में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि सभी नागरिकों को एक से कानून का पालन करना पड़ता है और उन्हें एक ही नागरिकता प्राप्त होती है। नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न नहीं होती जिससे राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
  • कार्यकुशल शासन (Efficient Administration)-एकात्मक शासन प्रणाली में शासन में कुशलता आ जाती है क्योंकि इस शासन व्यवस्था में केन्द्र तथा प्रान्तों में मतभेद तथा गतिरोध उत्पन्न नहीं होते। एकात्मक सरकार में शासन में कुशलता होती है क्योंकि समस्त निर्णय केन्द्र द्वारा लिए जाते हैं। केन्द्र शीघ्र निर्णय लेकर उन्हें शीघ्रता से लागू करता है। इससे शासन में कुशलता का आना स्वाभाविक है।
  • संकटकाल के लिए उपयुक्त (Suitable in time of Emergency) शासन की समस्त शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं, जिसके कारण सरकार शक्तिशाली होती है। संकट के समय केन्द्र शीघ्र निर्णय लेकर संकट का सामना दृढ़ता से कर सकता है।
  • इकहरी नागरिकता (Single Citizenship) एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता होती है और प्रत्येक व्यक्ति समस्त देश का नागरिक होता है, किसी प्रान्त का नहीं। इससे उनकी वफ़ादारी अविभाजित रहती है और वह देश के प्रति वफ़ादार रहता है।
  • छोटे-छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त (Suitable for Small States)-एकात्मक शासन प्रणाली छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त है। कम क्षेत्र वाले प्रदेश को छोटे-छोटे प्रान्तों में बांटना ठीक नहीं होता क्योंकि प्रत्येक छोटे क्षेत्र में अलग सरकार स्थापित करने से ख़र्च भी बहुत बढ़ जाते हैं।
  • वैदेशिक सम्बन्धों में दृढ़ता (Strong and Firm in Foreign Relations)-एकात्मक सरकार दूसरे राज्यों से अपने सम्बन्ध स्थापित करने और उनके संचालन में दृढ़ता से काम ले सकती है। अन्य राज्यों से सन्धि करते समय केन्द्रीय सरकार को प्रान्तीय सरकारों से सलाह करने की आवश्यकता नहीं होती।
  • उत्तरदायित्व निश्चित किया जा सकता है (Responsibility can be fixed)-सारे देश का शासन केन्द्रीय शासन के अधीन होता है जिसके कारण उत्तरदायित्व निश्चित करना आसान है।

एकात्मक शासन के दोष (Demerits of Unitary Government)-

बहुत-से राज्य एकात्मक शासन प्रणाली को अपनाए हुए हैं। एकात्मक शासन प्रणाली के बहुत-से अवगुण भी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • केन्द्र निरंकुश बन जाता है (Centre becomes Despotic)-एकात्मक शासन में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का सदा भय बना रहता है।
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती (Local needs are not fulfilled)—प्रत्येक प्रान्त की अपनी समस्याएं होती हैं जिनके लिए विशेष प्रकार के कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूरा ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। वह तो एक ही कानून सब प्रान्तों के लिए बनाती है।
  • बड़े राज्यों के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable for big States)-एकात्मक सरकार उन राज्यों के लिए जिनका क्षेत्रफल तथा जनसंख्या बहुत अधिक होती है, उपयुक्त नहीं है क्योंकि केन्द्रीय सरकार दूर-दूर फैले हुए भागों में शासन की व्यवस्था अच्छी प्रकार से लागू नहीं कर सकती।
  • केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है (Central Government becomes over-burdened)—एकात्मक सरकार में सारे देश का शासन केन्द्र के द्वारा चलाया जाता है। जिससे केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है। केन्द्रीय सरकार को ही देश की समस्याओं तथा विदेशी मामलों को सुलझाना पड़ता है। शासन के सभी निर्णय केन्द्र के द्वारा लिए जाते हैं जिससे केन्द्र का कार्यभार बहुत बढ़ जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि केन्द्र प्रत्येक कार्य को कुशलता से नहीं कर पाता और कई समस्याओं को सुलझाने के लिए केन्द्र को समय ही नहीं मिल पाता है।
  • नौकरशाही का प्रभाव (Influence of Bureaucracy)-एकात्मक शासन में स्थानीय शासन नहीं होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की शक्ति तथा प्रभाव बहुत बढ़ जाता है। प्रान्तों का शासन जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा नहीं चलाया जाता बल्कि प्रान्तों के शासन के लिए सरकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं जो जनता की समस्याओं के प्रति उदासीन होते हैं। सरकारी कर्मचारी अपनी मनमानी करते हैं, क्योंकि उन पर स्थानीय नियन्त्रण नहीं होता।
  • शासन में दक्षता नहीं आती (Administration does not become efficient)—एकात्मक शासन में राष्ट्रीयता तथा प्रान्तीय मामलों का प्रबन्ध केन्द्र को ही करना पड़ता है। इससे उसके काम इतने बढ़ जाते हैं कि वह कोई भी काम ठीक प्रकार से नहीं कर सकती, यहां तक कि राष्ट्रीय महत्त्व के कार्य भी ठीक समय पर और अच्छी तरह नहीं हो पाते।
  • लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती (People do not get Political Education)—प्रान्तों में सारा प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा होता है और वहां की जनता को शासन के साथ सम्मिलित नहीं किया जाता है। प्रान्तीय विधानमण्डलों के अभाव में समय-समय पर चुनाव आदि भी नहीं होते, इसलिए जनता को राजनीति में भाग लेने का अवसर कम मिलता है।
  • नागरिकों की सार्वजनिक कार्यों में अरुचि (No interest of Citizens towards Local Affairs)एकात्मक शासन में स्थानीय समस्याओं से सम्बन्धित सभी निर्णय केन्द्रीय सरकार के द्वारा किए जाते हैं। स्थानीय समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें सुलझाने के लिए वहां के लोगों को स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती। इससे जनता में स्थानीय समस्याओं में कोई रुचि नहीं रहती और उनका उत्साह भी कम हो जाता है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता स्वयं शासन में रुचि ले और अपनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करें।

निष्कर्ष (Conclusion) एकात्मक शासन के गुण भी हैं और दोष भी। किसी देश में यह प्रणाली ठीक सिद्ध होती है और किसी देश में उचित नहीं समझी जाती।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

प्रश्न 3.
संघवाद से क्या अभिप्राय है ?
(What is the meaning of federalism ?)
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार प्रान्तों को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। संघात्मक शासन में दोहरी सरकार होती है। प्रभुसत्ता न तो केन्द्रीय सरकार में निहित होती है और न ही प्रान्तीय सरकारों में और न ही प्रभुसत्ता केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती है। प्रभुसत्ता वास्तव में राज्य के पास होती है।

संघवाद को अंग्रेज़ी भाषा में ‘फेडरलिज्म’ (Federalism) कहते हैं। फेडरलिज्म शब्द लेटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। संघात्मक सरकार इस प्रकार समझौते का परिणाम होती है। जिस तरह किसी समझौते के लिए एक से अधिक पक्षों का होना आवश्यक होता है उसी तरह संघात्मक राज्य की स्थापना करने के लिए दो या दो से अधिक राज्यों के बीच समझौते की आवश्यकता होती है। उदाहरणस्वरूप प्रारम्भ में अमेरिका के 13 राज्यों ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की स्थापना की। आज अमेरिका के 50 राज्य हैं। भारत, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका तथा कनाडा में संघात्मक सरकारें पाई जाती हैं।

संघात्मक सरकार की परिभाषाएं (Definitions of Federal Government)-

संघात्मक सरकार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं की गई हैं-

  • माण्टेस्कयू (Montesquieu) के अनुसार, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत से एकजैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने को सहमत हो जाते हैं।” (“Federal Government is a convention by which several similar states agree to become members of a large one.”)
  • हैमिल्टन (Hamilton) के अनुसार, “संघात्मक शासन राज्यों का एक समुदाय है जो एक नए राज्य का निर्माण करता है।” (“Federation is an association of states that form a new one.”)
  • डॉ० फाईनर (Dr. Finer) के शब्दों में, “संघात्मक राज्य वह है जिसमें अधिकार और शक्ति का कुछ भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित हो व दूसरा भाग एक केन्द्रीय संस्था के पास हो जिसको स्थानीय क्षेत्रों के समुदाय ने अपनी इच्छा से बनाया हो।”
  • अमेरिकन सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, “संघात्मक राज्य तोड़े न जा सकने वाले राज्यों का बना, तोड़ा जा सकने वाला संघ है।” (“Destructible union composed of indestructible states.”)
  • गार्नर (Garmer) की परिभाषा स्पष्ट तथा अन्य परिभाषाओं से श्रेष्ठ है। उसके अनुसार, “संघात्मक एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक सामान्य प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें अपने निश्चित क्षेत्र में जिसको संविधान अथवा संसद् का कोई अधिनियम निश्चित करता है, सर्वोच्च होती हैं। संघ सरकार जैसा कि प्रायः यह कह दिया जाता है कि अकेली सरकार केन्द्रीय ही नहीं होती वरन् यह केन्द्र तथा स्थानीय सरकारों को मिला कर बनती है। स्थानीय सरकार संघ का उतना ही भाग है जितना कि केन्द्रीय सरकार, यद्यपि वह न तो केन्द्र द्वारा बनाई जाती है और न ही उसके अधीन होती है।”

प्रश्न 4.
संघात्मक शासन व्यवस्था में जो तीन सामान्य सिद्धान्त अपनाये जाते हैं, उनका वर्णन कीजिए।
(Describe the three general principles that are followed in federalism.)
अथवा
संघात्मक सरकार के आवश्यक तत्त्वों की व्याख्या करें।
(Discuss the essential features of a federal government.)
उत्तर-
संघात्मक सरकार के निम्नलिखित आवश्यक तत्त्व तथा विशेषताएं होती हैं-

1. लिखित संविधान (Written Constitution)-संघात्मक सरकार का संविधान सदैव लिखित होना चाहिए ताकि केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन निश्चित तथा स्पष्ट किया जा सके। यदि संविधान अलिखित होगा तो दोनों सरकारों में झगड़े तथा गतिरोध उत्पन्न होते हैं क्योंकि दोनों सरकारों की शक्तियां निश्चित तथा स्पष्ट नहीं होती। अतः समझौते के अनुच्छेद लिखित होने चाहिएं अर्थात् संविधान लिखित होना चाहिए।

2. संविधान की सर्वोच्च (Supremacy of the Constitution)—संघात्मक सरकार में संविधान की सर्वोच्चता होना अति आवश्यक है। संविधान की सर्वोच्चता का अर्थ है कि समझौते की शर्ते जिसके द्वारा संघ राज्य की स्थापना की गई है, केन्द्र तथा प्रान्तीय सरकारों के ऊपर लागू होती हैं। न तो केन्द्र और न ही प्रान्त संविधान का उल्लंघन कर सकता है क्योंकि ऐसा करना समझौते का उल्लंघन करना है जिसके द्वारा संघात्मक राज्य की स्थापना की गई है। कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समुदाय या संस्था संविधान से ऊपर नहीं है। संविधान का उल्लंघन करने का अधिकार किसी को प्राप्त नहीं होता। जब कभी केन्द्र तथा प्रान्तों में गतिरोध उत्पन्न हो जाए तो दोनों को संविधान की धाराओं के अनुसार कार्य करना होता है। केन्द्र तथा प्रान्त अपने अधिकार तथा शक्तियां संविधान से प्राप्त करते हैं, इसलिए संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है। अमेरिका, भारत, स्विट्ज़रलैण्ड आदि संघात्मक राज्यों में संविधान सर्वोच्च है।

3. कठोर संविधान (Rigid Constitution) संविधान की सर्वोच्चता तभी कायम रह सकती है यदि संविधान कठोर हो। संविधान में संशोधन केन्द्रीय संसद् अथवा प्रान्तीय विधानमण्डल द्वारा साधारण कानून निर्माण की विधि से नहीं होना चाहिए। संविधान में संशोधन करने का अधिकार यदि केन्द्रीय सरकार को प्राप्त होगा तो केन्द्रीय सरकार अपनी इच्छानुसार संविधान में संशोधन करके प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीनने की चेष्ठा करेगी और शीघ्र ही एकात्मक शासन की स्थापना हो जाएगी। संविधान में संशोधन केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों, दोनों की स्वीकृति से होना चाहिए। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैण्ड इत्यादि संघात्मक राज्यों के संविधान कठोर हैं। अमेरिका का संविधान विश्व के शेष सब संविधानों से कठोर है।

4. शक्तियों का विभाजन (Distribution of Powers)—संघात्मक सरकार का अनिवार्य तत्त्व यह है कि शासन प्रणाली में राज्य की सभी शक्तियां केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बंटी होती है। शक्तियों का बंटवारा प्रायः इस तरीके से किया जाता है कि जो विषय सारे देश से सम्बन्धित होते हैं ते केन्द्रीय सरकार को सौंप दिए जाते हैं और जो विषय स्थानीय महत्त्व के होते हैं उन्हें प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिया जाता हे।

इस प्रकार सुरक्षा, विदेशी सम्बन्ध, विदेशी व्यापार, साता भात के साधन, मुद्रा आदि महत्त्वपूर्ण विषय केन्द्रीय सरकार के पास रहते हैं और स्थानीय महत्त्व के विषय जैसे कि शिक्षा, जेल, पुलिस, कृषि, स्वास्थ्य, सफ़ाई आदि प्रान्तों के पास रहते हैं। शक्तियों के विभाजन के लिए तीन तरीके अपनाए जाते हैं-

  • प्रथम, केन्द्रीय सरकार की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष अधिकार (Residuary Powers) प्रान्तों तथा इकाइयों को दे दिए जाते हैं। इस प्रणाली को अमेरिका में अपनाया गया है।
  • द्वितीय, प्रान्तीय सरकारों अथवा इकाइयों की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष अधिकार केन्द्र को दे दिए जाते हैं। इस प्रणाली को कनाडा में अपनाया गया है।
  • तृतीय, केन्द्र तथा प्रान्तों दोनों की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष शक्तियों का भी वर्णन कर दिया जाता है जिन्हें समवर्ती विषय (Concurrent Subjects) कहा जाता है। समवर्ती विषयों पर केन्द्र तथा प्रान्त दोनों ही कानून बना सकते हैं और यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्तों के कानूनों में झगड़ा उत्पन्न हो जाए तो केन्द्र का कानून लागू होता है। भारत में इसी प्रणाली को अपनाया गया है।

5. न्यायपालिका की श्रेष्ठता (Supremacy of the Judiciary)-संघात्मक सरकार में एक स्वतन्त्र, निष्पक्ष तथा सर्वोच्च न्यायपालिका का होना आवश्यक है। संघात्मक सरकार में न्यायपालिका को तीन मुख्य कार्य करने पड़ते

  • केन्द्र तथा प्रान्तों के झगड़ों को निपटाना-संघात्मक सरकार में केन्द्र तथा प्रान्तों में शक्तियों का बंटवारा होता है। इस विभाजन के कारण कई बार केन्द्र तथा प्रान्तों में अथवा दो प्रान्तों में पारस्परिक झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं। इन झगड़ों को निपटाने के लिए निष्पक्ष न्यायपालिका का होना अति आवश्यक है ताकि ऐसे झगड़ों पर निष्पक्ष निर्णय दिया जा सके।
  • संविधान की व्याख्या करना-संघात्मक सरकार का संविधान लिखित होता है जिस कारण कई बार संविधान की धाराओं की व्याख्या करने की आवश्यकता पड़ जाती है। संविधान की व्याख्या करने का यह अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त होता है और न्यायपालिका का निर्णय अन्तिम होता है।
  • संविधान की रक्षा-संघात्मक सरकार में संविधान सर्वोच्च होता है। इसकी सर्वोच्चता को कायम रखने की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका पर होती है। न्यायपालिका यह देखती है कि केन्द्रीय सरकार अथवा प्रान्तीय सरकार संविधान का उल्लंघन तो नहीं करती। यदि केन्द्र सरकार अथवा प्रान्तीय सरकारें कोई ऐसा कानून बनाती हैं जो संविधान का उल्लंघन करता हो तो न्यायपालिका इस कानून को अवैध घोषित कर सकती है। भारत तथा अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति प्राप्त है।

6. द्वि-सदनीय विधानमण्डल (Bicameral Legislature)—संघात्मक शासन प्रणाली में द्वि-सदनीय विधानमण्डल का होना आवश्यक है। एक सदन समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है जबकि दूसरा सदन प्रान्तों अथवा इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है। निम्न सदन (Lower House) का कार्य सारे राष्ट्र के हितों की रक्षा करना होता है जबकि ऊपरी सदन (Upper House) का मुख्य कार्य प्रान्तों के हितों की रक्षा करना होता है। भारत में संसद् के दो सदन हैं : लोकसभा तथा राज्यसभा। अमेरिका में भी कांग्रेस के दो सदन हैं : प्रतिनिधि सदन तथा सीनेट।

7. दोहरी नागरिकता (Double Citizenship)-संघात्मक प्रणाली की एक विशेषता यह भी होती है कि इसमें नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। नागरिकों को एक तो सारे राष्ट्र की नागरिकता प्राप्त होती है और एक उस राज्य की नागरिकता प्राप्त होती है जिसमें वे रहे होते हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले व्यक्ति (विदेशियों को छोड़कर) को संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता के अतिरिक्त उस राज्य की नागरिकता भी प्राप्त होती है जिसमें उसका निवास स्थान होता है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार के गुणों और दोषों की व्याख्या करें।
(Discuss the merits and demerits of Federal Government.)
उत्तर-
संघात्मक सरकार में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं
संघात्मक सरकार के गुण (Merits of Federal Government)-

1. विभिन्नता में एकता (Unity in Diversity)-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता की प्राप्ति की जाती है। जिन देशों में धार्मिक, भाषायी तथा जातीय विभिन्नता पाई जाती है, उन देशों में संघात्मक सरकार द्वारा राष्ट्रीय एकता को कायम रखा जा सकता है। संघात्मक सरकार में इकाइयां अपनी स्वायत्तता भी बनाए रखती हैं क्योंकि संघ की इकाइयां अपने कार्यों में स्वतन्त्र होती हैं।

2. यह निर्बल राज्यों की शक्तिशाली राज्यों से सुरक्षा करता है (It safeguards the Weak States from Stronger Ones)—संघात्मक सरकार में छोटे-छोटे राज्य मिल कर शक्तिशाली संगठन बनाकर अपनी रक्षा कर सकते हैं। बिना संघात्मक सरकार के यह सम्भव है कि छोटे-छोटे राज्य राज्यों के हाथों में स्वतन्त्रता भी खो बैठें। आज यदि अमेरिका शक्तिशाली है तो सिर्फ संघ शासन के कारण। जो सम्मान आज अमेरिका के राज्यों को प्राप्त है वह कभी उन्हें न मिलता यदि इन राज्यों ने मिलकर संघ की स्थापना न की होती। इसके अतिरिक्त आज राज्य की सुरक्षा के लिए बहुत अधिक धन ख़र्च होता है जिसे कोई भी छोटा राज्य सहन नहीं कर सकता। अतः संसदीय शासन द्वारा ही छोटे-छोटे राज्य अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।

3. शासन में कार्यकुशलता (Efficiency in Administration) शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा प्रान्तों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का बोझ नहीं बढ़ता। कार्य के विभाजन के कारण दोनों सरकारें अपना कार्य कुशलता से करती हैं। किसी के पास कार्य अधिक नहीं होता। कार्यभार अधिक न होने के कारण प्रत्येक समस्या को सुलझाने के शीघ्र निर्णय ले लिया जाता है। केन्द्रीय सरकार को छोटी-छोटी बातों की चिन्ता नहीं होती जिससे केन्द्र अपना कीमती समय बड़ी-बड़ी समस्याओं में लगा सकता है। अतः शक्तियों के इस विभाजन से कार्य कुशलता में वृद्धि होती है। एकात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार के पास कार्य-भार अधिक होने के कारण प्रत्येक निर्णय में देरी होती है। इंग्लैण्ड में संसद् के पास काम अधिक और समय कम होता है।

4. आर्थिक विकास के लिए लाभदायक (Useful for Economic Progress)—संघात्मक सरकार से अधिक आर्थिक उन्नति होती है। छोटे-छोटे राज्यों के आर्थिक साधन इतने नहीं होते कि वे उन्नति कर सकें। संघात्मक राज्य के साधन बहुत बढ़ जाते हैं जिससे समस्त देश की उन्नति होती है।

5. यह केन्द्रीय सरकार को निरंकुश बनने से रोकती है (It checks the despotism of Central Government)-संघात्मक सरकार में शक्तियों के विभाजन के कारण केन्द्र की शक्तियां सीमित होती हैं। सीमित शक्तियों के कारण केन्द्र निरंकुश नहीं बन सकता। इस तरह संघ राज्य में नागरिकों की स्वतन्त्रता सुरक्षित रहती है।

6. यह बड़े राज्यों के लिए उपयुक्त है (It is suitable for big States)-संघात्मक सरकार उन राज्यों के लिए जिनका क्षेत्रफल विशाल होता है तथा जिनकी जनसंख्या बहुत अधिक होती है, उपयुक्त है। बड़े राज्यों का शासन केन्द्र ठीक तरह से नहीं चला सकता। बड़े राज्यों को प्रान्तों में बांट कर स्थानीय शासन उन्हें सौंप दिया जाना चाहिए ताकि केन्द्र का भार हल्का हो जाए।

7. यह नागरिकों की प्रतिष्ठा बढ़ाती है (It enhances the Prestige of the Citizens)-संघ की नागरिकता से नागरिकों की प्रतिष्ठा बढ़ती है। पंजाब या असम अथवा हरियाणा जैसे छोटे राज्य का नागरिक होने की अपेक्षा भारत का नागरिक होना अधिक गौरव की बात है।

8. राजनीतिक शिक्षा (Political Education)—संघात्मक सरकार में लोगों को एकात्मक शासन की अपेक्षा राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है। केन्द्र के अतिरिक्त प्रान्तों में विधानमण्डल होने के कारण बार-बार चुनाव होते हैं जिससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

9. स्थानीय मामलों में रुचि (Interest in Local Affairs)-संघात्मक सरकार में स्थानीय प्रशासन लोगों के अपने हाथों में होता है जिसके कारण लोग स्थानीय मामलों में रुचि लेते हैं। लोगों में शासन के प्रति उदासीनता समाप्त हो जाती है क्योंकि शासन उनका अपना होता है।

10. यह विश्व राज्य के लिए एक आदर्श है (It is model for the World State)-संघात्मक सरकार विश्व राज्य की स्थापना की ओर एक कदम है। जब छोटे राज्य संघ बना कर सफलता से कार्य कर सकते हैं तो संसार के सभी देश विश्व राज्य की स्थापना करके भी सफलता से कार्य कर सकते हैं।

11. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा (International Prestige)-संघीय शासन व्यवस्था के अधीन सदस्य राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मान-प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। आज संसार में अमेरिका को अधिक शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है, क्योंकि अमेरिका 50 राज्यों का सम्मिलित राज्य है।

12. बचत (Economy)-संघ प्रणाली का एक अन्य गुण बचत है क्योंकि इसके अनेक प्रकार के राज्य अपनी प्रभुसत्ता का त्याग करके एक बड़ा राज्य बना लेते हैं जिसके फलस्वरूप उन राज्यों की सुरक्षा के लिए सेना, पुलिस आदि पर इतना खर्च नहीं होता जितना कि उनके अलग-अलग रहने पर होता है।

संघात्मक सरकार की हानियां (Disadvantages of Federal Government)-

संघात्मक सरकार के गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं। इसके मुख्य अवगुण वही हैं जो कि एकात्मक शासन प्रणाली के गुण हैं

1. दुर्बल शासन (Weak Government)-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है। केन्द्रीय सरकार न तो प्रत्येक विषय पर कानून बना सकती है और न ही प्रान्तों में हस्तक्षेप कर सकती है। केन्द्र के बनाए हुए कानूनों को सर्वोच्च न्यायपालिका अवैध घोषित कर सकती है। प्रो० डायसी के मतानुसार, “संघीय संविधान एकात्मक संविधान की अपेक्षा कमज़ोर होता है।”

2. राष्ट्रीय एकता को ख़तरा (Danger to National Unity)—इस शासन प्रणाली में प्रान्तों को काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिससे नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं। नागरिक प्रान्तीय भावनाओं में फंस कर राष्ट्र के हित को भूल जाते हैं। प्रत्येक सम्प्रदाय अपना अलग प्रान्त चाहता है और उसकी प्राप्ति के लिए वह आन्दोलन भी करता है। प्रत्येक प्रान्त अपने बारे में सोचता है न कि देश के लिए। कई बार प्रान्त यह सोचने लगता है कि केन्द्रीय सरकार उनके साथ अन्याय कर रही है। वे केन्द्र से सहयोग करना छोड़ देते हैं।

3. संघ के टूटने का भय (Fear of disintegration of Federation)—संघ शासन प्रणाली में यह भय सदा बना रहता है कि कहीं एक इकाई या कुछ इकाइयां मिलकर संघ से अलग होने का प्रयास न करें। प्रान्तों की अपनी सरकार होती है और वह अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्त का आपस में मतभेद हो जाए तो वह संघ से अलग होने का प्रयत्न करेगा। उदाहरणस्वरूप सोवियत संघ में संघात्मक सरकार पाई जाती थी। दिसम्बर, 1991 में सोवियत संघ के 15 राज्य अलग होकर स्वतन्त्र राज्य बन गए और इस प्रकार सोवियत संघ नाम का देश ही समाप्त हो गया।

4. विदेश नीति में कमज़ोर (Weak in Foreign Policy)-अधिकांश राज्यों की सरकारें विदेशी के साथ किए गए समझौतों की शर्तों को पूरा करने में अनेक प्रकार की अड़चनें डाल कर संघात्मक सरकार के मार्ग में कठिनाई उत्पन्न कर देती हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार विदेश नीति को दृढ़ता से नहीं अपना सकती क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास नहीं होता कि राज्यों की सरकारें उसकी नीति का समर्थन करेंगी अथवा नहीं।

5. केन्द्र और राज्यों में झगड़े (Conflicts between Central and State Government)—संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्यों में अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी झगड़े प्रायः उत्पन्न हो जाते हैं। संघात्मक शासन में प्रायः राज्य की सीमाओं पर झगड़े चलते रहते हैं। भारत इस तथ्य की पुष्टि करता है।

6. खर्चीला शासन (Expensive Government)—संघात्मक शासन एक खर्चीला शासन है क्योंकि इसमें दो प्रकार की सरकारें होती हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा अलग खर्च होता है और प्रान्तीय सरकारों द्वारा अलग। दोहरे शासन के कारण खर्चा भी लगभग दोहरा होता है। जनता को अधिक कर देने पड़ते हैं जिससे तंग आकर साधारण जनता विद्रोह करने के लिए भी तैयार हो जाती है। बार-बार चुनावों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं।

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7. संविधान समय के अनुसार नहीं बदलता (Constitution does not change with Time)—संघात्मक सरकार में संविधान कठोर होता है, जिसके कारण संविधान में आसानी से संशोधन नहीं किया जा सकता। इसका परिणाम यह निकलता है कि कुछ देर बाद देश का संविधान समय से बहुत पीछे रह जाता है और वह समाज की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाता। कई बार कठोर संविधान क्रान्ति का कारण बन जाता है।

8. शासन की एकरूपता का न होना (No Uniformity of Administration)—संघात्मक प्रणाली का यह अवगुण है कि समस्त देश में एक-सी शासन व्यवस्था नहीं मिलती। प्रत्येक प्रान्त एक ही विषय पर अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाता तथा कर लगाता है। इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न प्रकार के कानून होते हैं और कर भी अलग-अलग लगते हैं। इससे लोगों में प्रान्तीयता की भावना भी आ जाती है।

9. बुरे प्रशासन के लिए किसी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता (No body can be held responsible for bad Administration)-संघात्मक शासन में अकेले केन्द्र को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं। प्रशासनिक असफलता के लिए एक सरकार दूसरी को दोषी ठहराने का प्रयत्न करती है।

10. दोहरी नागरिकता हानिकारक है (Double Citizenship is Harmful)-संघात्मक प्रणाली में नागरिक को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है, परन्तु दोहरी नागरिकता हानिकारक है। नागरिकों को दो सरकारों के प्रति वफादार रहना पड़ता है, जिस के कारण नागरिक दोनों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा सकता।

11. न्यायपालिका का अनावश्यक महत्त्व (Undue Importance of Judiciary)—संघ सरकार में संविधान की व्याख्या के लिए न्यायपालिका की आवश्यकता होती है। कई बार यह देखा गया है कि न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या कानून की भावना के अनुसार नहीं बल्कि अपनी दृष्टिकोण के अनुसार करती है। जिस न्यायपालिका के न्यायाधीश खुले रूप में ही कहें कि “हम संविधान के अधीन हैं पर संविधान क्या है यह हम बतलाएंगे” तो वहां संविधान न्यायपालिका के हाथ में खिलौना बन जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)—यह ठीक है कि संघ सरकार की त्रुटियां हैं। पर आधुनिक युग में अधिक-से-अधिक देशों में इसी शासन को स्थापित किया जा रहा है क्योंकि इसमें न केवल लोगों को अपने स्थानीय मामलों में आवश्यक शिक्षा मिलती है अपितु कई देशों ने इस व्यवस्था द्वारा अनुकरणीय उन्नति की है। अमेरिका तथा रूस इस बात के साक्षी हैं। लॉस्की (Laski) ने ठीक ही कहा, “क्योंकि आज का समाज संघीय है, इसलिए शक्ति की बांट भी होनी चाहिए।” (Because society is federal authority must also be federal.)

प्रश्न 6.
संघात्मक और एकात्मक सरकारों में अन्तर करें।
(Distinguish between Federal and the Unitary form of Government.)
उत्तर-
केन्द्र तथा राज्यों के आपसी सम्बन्धों और शासन की शक्तियों की अवस्थिति (Location) के आधार पर शासन एकात्मक होता है। एकात्मक या संघात्मक शासन प्रणाली में समस्त शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं और इकाइयों पर इसका पूर्ण नियन्त्रण होता है, परन्तु संघात्मक प्रणाली में केन्द्र और इकाइयों में शक्तियां बंटी होती हैं और दोनों ही अपने क्षेत्र में स्वायत्तता से कार्य करती हैं।

एकात्मक और संघात्मक सरकारों में भिन्नता (Distinction between Unitary and Federal forms of Government) उपर्युक्त चर्चा के आधार पर दोनों सरकारों में अन्तर को विस्तारपूर्वक नीचे दर्शाया गया है : –

1. सरकारों की संख्या (Number of Governments)-एकात्मक प्रणाली के अधीन एक राज्य में एक ही सरकार होती है। नेपाल, श्रीलंका, इंग्लैण्ड और फ्रांस ऐसी प्रणाली के उदाहरण हैं। संघात्मक प्रणाली में केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त इकाइयों की अपनी अलग-अलग सरकार होती है।

2. शासन का संगठन (Government Set-up) -एकात्मक सरकार में शासन का संगठन इकहरा होता है। सारे राज्य में एक ही सरकार होने के नाते देश-भर में एक समान कानून होते हैं, एक जैसी कार्यपालिका और न्यायपालिका की व्यवस्था होती है। इंग्लैंड के नागरिक चाहे वे अपने देश के किसी भी भाग में रहते हों सब एक प्रकार के कानून के अधीन होते हैं। संघात्मक सरकार में शासन का संगठन दोहरा होता है। हर नागरिक का सम्बन्ध दो व्यवस्थापिकाओं, दो कार्यपालिकाओं और न्यायपालिकाओं से होता है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब में रहने वाला व्यक्ति रेलगाड़ी, डाक व तार विषयों के लिए केन्द्रीय सरकार से सम्बन्धित है और पुलिस, मोटर, बस, सिनेमाघर, शिक्षा आदि विषयों के लिए पंजाब सरकार के सम्बद्ध है।

3. आपसी सम्बन्ध (Mutual Relations)-एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत भी एक से अधिक सरकारें होती हैं जैसे भारत में सन् 1935 से पहले थीं। परन्तु ऐसी स्थिति में प्रान्तीय सरकारों का स्तर अधीनता (Subordination) का होता है। ये सरकारें अपने हर कार्य में केन्द्रीय सरकार के अधीन होती हैं। प्रान्तीय सरकारों के पास किसी प्रकार की स्वायत्तता (Autonomy) नहीं होती। संघात्मक प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं और एक सरकार दूसरी सरकार की शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अमेरिका, कैनेडा और वर्तमान भारत में ऐसी ही व्यवस्था है।

4. शक्तियों का स्त्रोत (Sources of Powers) एकात्मक प्रणाली में प्रान्तीय सरकारों की शक्तियों का स्रोत केन्द्रीय सरकार होती है अर्थात् प्रान्तीय सरकारें उन्हीं शक्तियों का प्रयोग करती हैं जो केन्द्र सरकार उन्हें प्रदत्त (Delegate) करती है। केन्द्रीय सरकार कभी भी इन शक्तियों को परिवर्तित कर सकती हैं। संघात्मक प्रणाली में केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारें अपनी-अपनी शक्तियां राज्य के संविधान से प्राप्त करती हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार के पास अधिकार नहीं होता कि प्रान्तों की शक्तियों में कोई भी परिवर्तन कर सके। ऐसा परिवर्तन केवल संविधान में संशोधन द्वारा ही सम्भव है।

5. संविधान की प्रकृति (Nature of Constitution)-वैसे तो आजकल लिखित संविधान की प्रणाली लगभग हर देश में अपनाई जाती है। हां, एकात्मक प्रणाली के लिए लिखित और कठोर संविधान आवश्यक नहीं है। इंग्लैण्ड का संविधान न लिखित ही है और न ही कठोर। परन्तु संघात्मक प्रणाली के लिए संविधान का लिखित और कठोर होना अनिवार्य है।

6. नागरिकता (Citizenship)—एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों को इकहरी नागरिकता (Single Citizenship) प्राप्त होती है, जैसा कि इंग्लैंड, फ्रांस आदि राज्यों में है। संघात्मक प्रणाली के अधीन दोहरी नागरिकता (Double Citizenship) प्राप्त हो सकती है, जैसा कि अमेरिका में।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं भी घटा-बढ़ा सकती है। एकात्मक शासन की भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. डायसी के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।”
  2. डॉ० फाइनर के मतानुसार, “एकात्मक शासन वह होता है जहां एक केन्द्रीय सरकार में सम्पूर्ण शासन निहित होता है और जिसकी इच्छा व जिसके प्रतिनिधि कानूनी दृष्टि में सर्वशक्तिमान् होते हैं।”
  3. प्रोफेसर स्ट्रांग के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह राज्य है जो केन्द्रीय शासन के अधीन हो।”

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • शक्तियों का केन्द्रीयकरण-एकात्मक शासन में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं। शासन की सुविधा के लिए राज्यों को प्रान्तों में बांटा गया होता है और उन्हें कुछ अधिकार तथा शक्तियां दी जाती हैं। केन्द्र जब चाहे प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीन सकता है।
  • प्रभुसत्ता-एकात्मक शासन में प्रभुसत्ता केन्द्र में निहित होती है ।
  • इकहरी नागरिकता-एकात्मक शासन में एक ही नागरिकता होती है। इंग्लैंड में नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है।
  • इकहरा शासन-एकात्मक शासन में इकहरी शासन व्यवस्था होती है।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार के चार गुण बताइए।
उत्तर-
एकात्मक शासन के निम्नलिखित गुण हैं-

  • शक्तिशाली शासन-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है । सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं। प्रान्तीय सरकारें केन्द्रीय सरकार के आदेशानुसार कार्य करती हैं । कानूनों को बनाने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी केन्द्र पर ही होती है । इस तरह शासन शक्तिशाली होता है जिस कारण देश की विदेश नीति भी प्रभावशाली होती है ।
  • सादा शासन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है । शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते। सादा शासन होने के कारण एक अनपढ़ व्यक्ति को भी अपने देश के शासन के संगठन का ज्ञान होता है ।
  • लचीला प्रशासन-संविधान अधिक कठोर न होने के कारण समयानुसार आसानी से बदला जा सकता है । संकटकाल के लिए यह शासन प्रणाली बहुत उपयुक्त है। केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी समय प्रान्तों की शक्तियों को कम किया जा सकता है।
  • कम खर्चीला शासन-एकात्मक शासन प्रणाली संघात्मक सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली होती है।

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प्रश्न 4.
एकात्मक सरकार के चार दोषों का वर्णन करें।
उत्तर-
एकात्मक सरकार में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • केन्द्र निरंकुश बन जाता है-एकात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का भय होता है ।
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती–प्रत्येक प्रान्त की अपनी अलग समस्याएं होती हैं जिसके लिए उन्हें विशेष कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार एक ही कानून को सब प्रान्तों पर लागू कर देती है।
  • बड़े राज्यों के लिए अनुपयुक्त-एकात्मक शासन प्रणाली उन राज्यों के लिए उपयुक्त नहीं है जिनका क्षेत्रफल या जनसंख्या बहुत अधिक है क्योंकि केन्द्रीय सरकार दूर-दूर तक फैले हुए भागों में शासन व्यवस्था अच्छी प्रकार से लागू नहीं कर सकती।
  • कार्यभार में वृद्धि-एकात्मक सरकार में सारे देश का शासन केन्द्र द्वारा चलाया जाता है, जिससे केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दिए गए कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं । संघात्मक शासन में दोहरी सरकार होती है। प्रभुसत्ता न तो केन्द्रीय सरकार में निहित होती है और न ही प्रान्तीय सरकारों में और न ही प्रभुसत्ता केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती है। प्रभुसत्ता वास्तव में राज्यों के पास होती है।।

संघवाद को अंग्रेज़ी भाषा में ‘फेडरलिज्म’ (Federalism) कहते हैं। फेडरलिज्म शब्द लेटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। संघात्मक सरकार इस प्रकार समझौते का परिणाम होती है। जिस तरह किसी समझौते के लिए एक से अधिक पक्षों का होना आवश्यक होता है उसी तरह संघात्मक राज्य की स्थापना करने के लिए दो या दो से अधिक राज्यों के बीच समझौते की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6.
संघात्मक सरकार की कोई तीन परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
संघात्मक सरकार की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • माण्टेस्क्यू के अनुसार, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत-से एक जैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने को सहमत हो जाते हैं।”
  • डॉ० फाइनर के शब्दों में, “संघात्मक राज्य वह है जिसमें अधिकार व शक्तियों का कुछ भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित हो व दूसरा भाग एक केन्द्रीय संस्था के पास हो जिसको स्थानीय क्षेत्रों के समुदायों ने अपनी इच्छा से बनाया हो।”
  • गार्नर की परिभाषा स्पष्ट तथा अन्य परिभाषाओं से श्रेष्ठ हैं। उनके अनुसार, “संघात्मक एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक सामान्य प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें अपने निश्चित क्षेत्र में जिसको संविधान अथवा संसद् का कोई अधिनियम निश्चित करता है, सर्वोच्च होती है। संघ सरकार जैसा कि प्रायः कह दिया जाता है कि अकेली केन्द्रीय सरकार ही नहीं होती वरन् यह केन्द्र तथा स्थानीय सरकारों को मिला कर बनती है। स्थानीय सरकार संघ का उतना ही भाग है जितना कि केन्द्रीय सरकार का यद्यपि वह न तो केन्द्र द्वारा बनाई जाती है न ही उसके अधीन होती है।

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प्रश्न 7.
संघात्मक शासन की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
संघात्मक शासन प्रणाली में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  • लिखित संविधान-संघात्मक सरकार का संविधान सदैव लिखित होना चाहिए ताकि केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन स्पष्ट एवं निश्चित किया जा सके। यदि शक्तियों का विभाजन स्पष्ट नहीं होगा तो दोनों सरकारों के मध्य गतिरोध की सम्भावना रहेगी।
  • संविधान की सर्वोच्चता-संघात्मक शासन प्रणाली में संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है क्योंकि कभीकभी केन्द्र और राज्यों में शक्तियों के विभाजन को लेकर आपस में विवाद हो जाता है तब उस विवाद को संविधान की धाराओं के अनुसार सुलझाया जाता है।
  • कठोर संविधान-संघात्मक शासन प्रणाली में संविधान का कठोर होना भी आवश्यक है ताकि केन्द्रीय सरकार उसमें आसानी से संशोधन करके राज्य सरकारों की शक्तियों को घटा-बढ़ा न सके। संविधान में संशोधन केन्द्र और राज्य सरकारों की अनुमति से होना चाहिए।
  • शक्तियों का विभाजन-संघात्मक सरकार का अनिवार्य तत्त्व यह है, कि शासन प्रणाली में राज्य की सभी शक्तियां केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बंटी होती हैं।

प्रश्न 8.
संघात्मक शासन प्रणाली के चार गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
संघात्मक सरकार में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-

  • विभिन्नता में एकता-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता पाई जाती है। इस शासन प्रणाली में विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं, सम्प्रदायों आदि के राज्यों को मिला कर एक मज़बूत केन्द्रीय सरकार की स्थापना की जाती है।
  • शासन में कार्य-कुशलता-शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का अधिक बोझ नहीं होता। कार्य में विभाजन के कारण कार्य भार कम हो जाता है तथा निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं। शक्तियों के विभाजन से कार्य में कुशलता आती है।
  • आर्थिक विकास के लिए लाभदायक-संघात्मक शासन प्रणाली में उन्नति में वृद्धि होती है। छोटे-छोटे राज्यों के पास इतने अधिक आर्थिक साधन नहीं होते कि वे अपनी उन्नति कर सकें। संघात्मक राज्य के साधन बहुत बढ़ जाते हैं जिससे समस्त देश की उन्नति होती है।
  • राजनीतिक शिक्षा-संघात्मक सरकार में लोगों को एकात्मक शासन की अपेक्षा राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है।

प्रश्न 9.
संघात्मक शासन प्रणाली के कोई चार दोष लिखें।
उत्तर-
संघात्मक शासन प्रणाली में निम्नलिखित मुख्य दोष पाए जाते हैं-

  • दुर्बल शासन-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है। केन्द्रीय सरकार न तो प्रत्येक विषय पर कानून बना सकती है और न ही प्रान्तों के कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार रखती है।
  • राष्ट्रीय एकता को खतरा-नागरिक प्रान्तीय भावनाओं में फंस कर राष्ट्रीय हितों को भूल जाते हैं। प्रत्येक प्रान्त राष्ट्रीय हित में न सोचकर अपने हित में सोचता है। इससे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा होता है।
  • संघ के टूटने का भय-संघीय शासन प्रणाली में सदा यह भय बना रहता है कि कोई इकाई या कुछ इकाइयां मिलकर संघ से अलग होने का प्रयत्न न करें। प्रान्तों की अपनी सरकार होती है और वह अपने कार्यों में स्वतन्त्र होती है। यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्त में मतभेद हो जाएं तो वह संघ से अलग होने का प्रयत्न करेगा।
  • केन्द्र और राज्यों में झगड़े-संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्यों में अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी झगड़े प्रायः उत्पन्न हो जाते हैं।प्रश्न 10. एकात्मक सरकार और संघात्मक सरकार में कोई चार अन्तर बताएं।
    उत्तर-एकात्मक सरकार और संघात्मक सरकार में निम्नलिखित तीन मुख्य अन्तर पाए जाते हैं-
  • सरकारों की संख्या-एकात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्य में एक ही सरकार होती है जबकि संघात्मक शासन प्रणाली में एक केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त राज्यों की सरकारें भी होती हैं।
  • शासन का संगठन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन इकहरा होता है। परन्तु संघात्मक सरकार में दोहरी शासन व्यवस्था होती है।
  • आपसी सम्बन्ध- एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत भी एक से अधिक सरकारें हो सकती हैं, परन्तु ऐसी स्थिति में वे पूर्णतया सरकार के अधीन होती हैं। प्रान्तीय सरकारों के पास किसी भी तरह की स्वायत्तता नहीं होती। संघात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं और एक सरकार दूसरी सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
  • नागरिकता-एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों को इकहरी नागरिकता प्राप्त होती है, जबकि संघात्मक प्रणाली के अधीन दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं भी घटा-बढ़ा सकती है।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार के दो गुण बताइए।
उत्तर-

  1. शक्तिशाली शासन-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है । सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं।
  2. सादा शासन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है। शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार के दो दोषों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. केन्द्र निरंकुश बन जाता है-एकात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का भय होता है।
  2. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती–प्रत्येक प्रान्त की अपनी अलग समस्याएं होती हैं जिसके लिए उन्हें विशेष कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार एक ही कानून को सब प्रान्तों पर लागू कर देती है।

प्रश्न 4.
संघात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दिए गए कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
संघात्मक शासन प्रणाली के दो गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. विभिन्नता में एकता-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता पाई जाती है।
  2. शासन में कार्य-कुशलता-शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का अधिक बोझ नहीं होता। कार्य में विभाजन के कारण कार्य भार कम हो जाता है तथा निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं। शक्तियों के विभाजन से कार्य में कुशलता आती है।

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प्रश्न 6.
संघात्मक शासन प्रणाली के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. दुर्बल शासन-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है।
  2. राष्ट्रीय एकता को खतरा-इस शासन प्रणाली में प्रान्तों को काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिससे नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. एकात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं।

प्रश्न 2. एकात्मक सरकार की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-प्रो० स्ट्रांग के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह है, जो एक केन्द्रीय शासन के अधीन संगठित हो।”

प्रश्न 3. एकात्मक सरकार का कोई एक लक्षण लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं।

प्रश्न 4. एकात्मक सरकार का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है।

प्रश्न 5. एकात्मक सरकार का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में केन्द्र के निरंकुश बनने का डर बना रहता है।

प्रश्न 6. इंग्लैण्ड में किस प्रकार का शासन है?
उत्तर-इंग्लैण्ड में एकात्मक शासन है।

प्रश्न 7. अमेरिका में कैसा शासन पाया जाता है?
उत्तर-अमेरिका में संघात्मक शासन पाया जाता है।

प्रश्न 8. भारत में किस प्रकार का शासन पाया जाता है ?
उत्तर- भारत में संघात्मक शासन पाया जाता है।

प्रश्न 9. संघात्मक सरकार की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर-हेमिल्टन के अनुसार, “कुछ राज्यों के संयोजन से बने हुए नए राज्य को संघ कहते हैं।”

प्रश्न 10. संघात्मक सरकार की कोई एक विशेषता बताओ।
उत्तर-संघीय शासन प्रणाली में संविधान लिखित होता है।

प्रश्न 11. संघात्मक सरकार का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-संघीय सरकार निर्बल राज्यों की शक्तिशाली राज्यों से रक्षा करती है।

प्रश्न 12. संघात्मक सरकार का कोई एक दोष बताओ।
उत्तर-इसमें सरकार दुर्बल होती है।

प्रश्न 13. संघात्मक और एकात्मक सरकार में कोई एक भेद बताओ।
उत्तर-संघात्मक सरकार का संविधान लिखित होता है, परन्तु एकात्मक सरकार का संविधान अलिखित भी हो सकता है।

प्रश्न 14. एकात्मक शासन में सभी शक्तियां कहां पर केन्द्रित होती हैं ?
उत्तर-एकात्मक शासन में शक्तियां एक केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होती हैं।

प्रश्न 15. संघात्मक शासन में संविधान लिखित होता है, या अलिखित?
उत्तर-संघात्मक शासन में संविधान लिखित होता है।

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प्रश्न 16. फैडरलिज्म शब्द किस भाषा से निकला है?
उत्तर-फैडरलिज्म शब्द लातीनी भाषा से निकला है।

प्रश्न 17. फोइडस (Foedus) का क्या अर्थ है?
उत्तर-फोइडस का अर्थ सन्धि अथवा समझौता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. एकात्मक सरकार में केन्द्र सुविधा के अनुसार ………. की स्थापना करती है।
2. ……….. सरकार जब चाहे प्रान्तों की सीमाएं घटा-बढ़ा सकती है।
3. एकात्मक सरकार ………… के समय उपयुक्त होती है।
4. आलोचकों के अनुसार केन्द्रीय सरकार में …….. आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती।
5. एकात्मक सरकार में केन्द्रीय सरकार का ………. बढ़ जाता है।
उत्तर-

  1. प्रान्तों
  2. केन्द्रीय
  3. संकटकाल
  4. स्थानीय
  5. कार्य।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।

1. संघवाद को अंग्रेज़ी में फेडरलिज्म (Federalism) कहते हैं।
2. फेडरलिज्म शब्द लैटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है, जिसका अर्थ है, सन्धि अथवा समझौता।
3. संघात्मक सरकार झगड़े का परिणाम होती है।
4. संघात्मक सरकार में लिखित संविधान की आवश्यकता नहीं होती।
5. संघात्मक सरकार में संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस देश में एकात्मक शासन व्यवस्था पाई जाती है ?
(क) भारत
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ग) स्विट्ज़रलैंड
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किस देश में संघात्मक शासन प्रणाली पाई जाती है ?
(क) इंग्लैंड
(ख) जापान
(ग) साम्यवादी चीन
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।”
(क) डॉ० फाइनर
(ख) लॉर्ड ब्राइस
(ग) डायसी
(घ) गैटेल।
उत्तर-
(ग) डायसी।

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “संघात्मक शासन राज्यों का एक समुदाय है, जोकि नए राज्य का निर्माण करता
(क) माण्टेस्कयू
(ख) डॉ० फाइनर
(ग) जैलीनेक
(घ) हैमिल्टन।
उत्तर-
(घ) हैमिल्टन।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

SST Guide for Class 9 PSEB पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
पंजाब के रेखाचित्र में अंकित करें :
उत्तर-

  1. होशियारपुर शिवालिक तथा रोपड़ शिवालिक शृंखालायें
  2. सतलुज का बेट क्षेत्र।

प्रश्न 2.
अर्ध पर्वतीय, मैदानी तथा दक्षिण-पश्चिम रेतीले टीलों वाले क्षेत्रों में पड़ते जिलों की सारणियां बनाकर कक्षा में लगाएं।
नोट-विद्यार्थी यह प्रश्न अध्याय में दिए गए मानचित्र की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें :

प्रश्न 1.
प्राचीन जलोढ़ निर्मित क्षेत्र को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
बांगर।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
खाडर (खादर) या बेट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खाडर अथवा बेट नई जलोढ़ मिट्टी के मैदान हैं। यह मिट्टी नदियों के किनारों पर निचले क्षेत्रों में पाई जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब के मैदानों को किन भागों में वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब के मैदानों को पांच भागों में बांटा जाता है-

  1. चो वाले मैदान,
  2. बाढ़ के मैदान,
  3. नैली,
  4. जलोढ़ के मैदान,
  5. जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले टीले।

प्रश्न 4.
पंजाब में रेत के टीले किस दिशा में थे/हैं।
उत्तर-
रेतीले टिब्बे पंजाब के दक्षिण पश्चिम में राजस्थान की सीमा के साथ-साथ पाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
चंगर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आनंदपुर साहिब के नज़दीक कंडी क्षेत्र को चंगर कहा जाता है।

प्रश्न 6.
सही और गलत कथन बताएं-
(i) हिमालय की बाहरी श्रेणी का नाम शिवालिक है। ( )
(ii) कंडी क्षेत्र रूपनगर व पटियाला ज़िलों के दक्षिण में है। ( )
(iii) होशियारपुर शिवालिक, सतलुज व व्यास नदियों के बीच है। ( )
(iv) पंजाब के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में घग्गर के जलोढ़ मैदान, नैली में मिलते हैं। ( )
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3.  सही,
  4. सही।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें:

प्रश्न 1.
कंडी क्षेत्र की विशेषताएं लिखें तथा बतायें ये क्षेत्र कौन-से जिलों में पड़ते हैं ?
उत्तर-
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों के पश्चिम तथा रूपनगर (रोपड़) जिले की नूरपुर बेदी तहसील के पूर्व में स्थित मैदानी प्रदेश को स्थानीय भाषा में कंडी क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. यह क्षेत्र पंजाब के 5 लाख हेक्टेयर भू-भाग में फैला हुआ है जो पंजाब के कुल क्षेत्रफल का 10% हिस्सा है।
  2. इस क्षेत्र की मृदा मुसामदार (Porons) है।
  3. इसमें बहुत से चोअ मिलते हैं।
  4. यहां जल-स्तर काफ़ी गहरा है।

ज़िले-इस क्षेत्र में होशियारपुर, रूपनगर (रोपड़) आदि जिले शामिल हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
चोअ क्या होते हैं ? उदाहरण देकर बतायें।
उत्तर-
चोअ एक प्रकार के बरसाती नाले हैं। ये नाले वर्षा के मौसम में भरकर बहने लगते हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी सूख जाता है। ऐसे नालों को मौसमी चोअ कहते हैं। रूपनगर (रोपड़) के शिवालिक प्रदेश में बहुत अधिक मौसमी नाले पाए जाते हैं। यहाँ पर इन्हें राओ और घाड़ (Rao & Ghar) भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों की उत्पत्ति के विषय पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब का 70% भू-भाग जलोढ़ी मैदानों से घिरा हुआ है। यह मैदान भारत के गंगा और सिंध के मैदान का भाग है। इनकी उत्पत्ति हिमालय क्षेत्र से नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से हुई है। इन नदियों में सिंध और उसकी सहायक नदियों सतलुज, रावी, व्यास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। समुद्र तल से इन मैदानों की ऊंचाई 200 मीटर से 300 मीटर तक है।

प्रश्न 4.
गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक पर नोट लिखें।
उत्तर-
गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक की पहाड़ी श्रेणी का विस्तार गुरदासपुर और पठानकोट जिलों के बीच है। पठानकोट जिले का धार कलां ब्लॉक पूरी तरह शिवालिक पहाड़ों के बीच स्थित है। इन पहाड़ों की औसत ऊंचाई 1000 मीटर के लगभग है।
इस क्षेत्र की पहाड़ी ढलाने, पानी के तेज बहाव के कारण किनारों से कट गई हैं जिससे ये काफी तीखी हो गई
इस क्षेत्र में बहने वाली मौसमी नदियाँ (Seasonal River) चक्की खड्ड और उसकी सहायक नदियां व्यास नदी में गिरती हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
पंजाब का अधिकतर भू-भाग कैसा है ?
(क) पहाड़ी
(ख) मैदानी
(ग) पठारी
(घ) मरुस्थलीय।
उत्तर-
(ख) मैदानी.

प्रश्न 2.
पंजाब के शिवालिक पहाड़ों की उत्पत्ति किन दो भू-भागों के टकराने का परिणाम थी ?
(क) गोंडवाना लैंड तथा भाबर मैदान
(ख) अंगारा लैंड तथा शिवालिक मैदान
(ग) गोंडवाना लैंड तथा यूरेशिया प्लेट
(घ) अंगारालैंड तथा यूरेशिया प्लेट।।
उत्तर-
(ग) गोंडवाना लैंड तथा यूरेशिया प्लेट

प्रश्न 3.
बारी दोआब का एक अन्य नाम कौन-सा है ?
(क) मालवा
(ख) चज
(ग) नैली
(घ) माझा।
उत्तर-
(घ) माझा।

प्रश्न 4.
पंजाब के तराई प्रदेश का चोओं से घिरा प्रदेश क्या कहलाता है ?
(क) कंडी
(ख) बारी दोआब
(ग) बेट
(घ) बेला।
उत्तर-
(क) कंडी

प्रश्न 5.
घग्गर के जलोढ़ मैदानों का एक नाम है-
(क) चो
(ख) नैली
(ग) टैथीज़
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) नैली

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पंजाब के ……………. में रेत के टीले मिलते हैं।
  2. कंडी क्षेत्र पंजाब के कुल क्षेत्रफल का ……….. प्रतिशत भाग है।
  3. सिरसा नदी के निकट कंडी क्षेत्र को …………. कहा जाता है।
  4. पंजाब का 70% भू-भाग ………….. मैदान है।
  5. पंजाब के मैदान ………. तथा ………… के मैदानों का भाग है।

उत्तर-

  1. दक्षिण-पश्चिम,
  2. 10,
  3. घाड़,
  4. जलोढ़ी,
  5. गंगा, सिंध।

उचित मिलान :

1. बारी दोआब – (i) होशियारपुर शिवालिक
2. बाढ़ के मैदान – (ii) रोपड़ शिवालिक
3. सतलुज-घग्गर – (iii) बेट
4. ब्यास-सतलुज – (iv) माझा।
उत्तर-

  1. माझा।
  2. बेट
  3. रोपड़ शिवालिक
  4. होशियारपुर शिवालिक।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवालिक की पहाड़ियां पंजाब के किस ओर स्थित हैं ?
उत्तर-
पूर्व और उत्तर-पूर्व में।

प्रश्न 2.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियां किस राज्य की सीमाओं को छूती हैं ?
उत्तर-
हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 3.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की औसत ऊंचाई कितनी है ?
उत्तर-
600 मीटर से 1500 मीटर तक।

प्रश्न 4.
पठानकोट जिले का कौन-सा ब्लॉक पूरी तरह गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित है ?
उत्तर-
धार कलां।

प्रश्न 5.
होशियारपुर शिवालिक का सबसे ऊँचा ब्लॉक/विकास खण्ड कौन-सा है ?
उत्तर-
तलवाड़ा (741 मीटर)

प्रश्न 6.
होशियारपुर शिवालिक के दो प्रमुख चोओं के नाम बताओ।
उत्तर-
कोट मैंरा, ढल्ले की खड्ड।

प्रश्न 7.
किस नदी के कारण रोपड़ शिवालिक श्रेणी की निरंतरता टूट जाती है ?
उत्तर-
सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण।

प्रश्न 8.
कंडी क्षेत्र का निर्माण कौन-सी भू-रचनाओं के आपस में मिलने से हुआ है ?
उत्तर-
जलोढ़ पंख।

प्रश्न 9.
पंजाब के जलोढ़ मैदान कौन-कौन सी भौगोलिक इकाइयों में बंटे हुए हैं ?
उत्तर-
बारी दोआब, बिस्त दोआब, सिज दोआब।

प्रश्न 10.
पंजाब में नदियों के रास्ता बदलने से बने ढाए (Dhaiya) कहां देखे जा सकते हैं ? (कोई एक स्थान)
उत्तर-
फिल्लौर।

प्रश्न 11.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों में नदियों से दूर ऊंचे क्षेत्रों को क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
बांगर।

प्रश्न 12.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की लगभग लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
280 कि०मी०।

प्रश्न 13.
होशियारपुर शिवालिक अपने दक्षिणी भाग में क्या कहलाता है ?
उत्तर-
कटार की धार।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 14.
होशियारपुर शिवालिक की लंबाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
होशियारपुर शिवालिक की लंबाई 130 किलोमीटर और चौड़ाई 5 से 8 किलोमीटर तक है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब के धरातल में भिन्नता पाई जाती है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
पंजाब के धरातलीय नक्शे पर सरसरी दृष्टि डालने पर यह एक मैदानी क्षेत्र दिखाई देता है परंतु भौगोलिक दृष्टि और भू-वैज्ञानिक रचना के अनुसार इसमें काफी भिन्नता पाई जाती है।
पंजाब के मैदान संसार के सबसे ऊपजाऊ मैदानों में से एक हैं। पंजाब के पूर्व और उत्तर-पूर्व में शिवालिक की पहाडियां हैं। पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में रेत के टीले भी मिलते हैं। राज्य में जगह-जगह चोअ दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में शिवालिक की पहाड़ियों का विस्तार बताएं। इसके तीन भाग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
शिवालिक की पहाड़ियां बाह्य हिमालय का भाग हैं। यह पर्वत पंजाब के पूर्व में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ-साथ 280 किलोमीटर की लंबाई में फैले हुए हैं।
शिवालिक की पहाड़ियों के तीन भाग हैं-

  1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक-ये पहाड़ियां रावी और ब्यास नदियों तक फैली हैं।
  2. होशियारपुर शिवालिक-ये पहाड़ियां ब्यास और सतलुज नदियों तक हैं।
  3. रोपड़ शिवालिक-इसका विस्तार सतलुज और घग्गर नदी तक है।

प्रश्न 3.
पंजाब के कंडी क्षेत्र का निर्माण कहां और कैसे हुआ है ?
उत्तर-
कंडी क्षेत्र का निर्माण शिवालिक की तराई में बने गिरीपद मैदानों (Foothill planes) में हुआ है। इनके निर्माण में जलोढ़ पंखों का हाथ है। ये भू-रचनाएं गिरीपद मैदानों में आपस में मिलती हैं और कंडी क्षेत्र बनाती हैं। इस प्रदेश में भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे है।

प्रश्न 4.
होशियारपुर शिवालिक को दक्षिण में ‘कटार की धार’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
होशियारपुर शिवालिक की ढलाने नालीदार अपरदन के कारण बहुत अधिक फटी-कटी हैं। इसके अतिरिक्त यहां बहने वाले चोओं ने भी इन पहाड़ियों को कई स्थानों पर बुरी तरह काट दिया है। कटी-फटी पहाड़ियों के सिरे तीखे होने के कारण इन पहाड़ियों को ‘कटार की धार’ कहते हैं।

प्रश्न 5.
रोपड़ शिवालिक की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. शिवालिक की यह श्रेणी सतलुज और घग्गर नदियों के बीच स्थित है। इसका विस्तार रूपनगर (रोपड़) जिले में हिमाचल प्रदेश की सीमा के उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
  2. यह पहाड़ उत्तर में नंगल से शुरू होकर चंडीगढ़ के नजदीक घग्गर नदी तक चले जाते हैं।
  3. इस श्रेणी की लंबाई 90 किलोमीटर तक है। इस श्रेणी की निरंतरता (Continuity) सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण टूट जाती है।
  4. दूसरी शिवालिक श्रेणियों की तरह यह श्रेणी भी मौसमी चोओं से भरी हुई है। इन्हें राओ (Rao) तथा घाड़ (Ghar) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों का दोआबो के अनुसार वर्गीकरण करते हुए एक सूची बनाएं।
उत्तर-
पंजाब के जलोढ़ मैदान

बारी दोआब (ब्यास-रावी) बिस्त दोआब (ब्यास-सतलुज) सिज-दोआब (सतलुज-जमना)
रावी-सक्की किरन पश्चिमी दोआब कोटकपूरा पठार
सकी किरन-उदियारा मंजकी दोआब नैली
उदियारा-कसूर ढक दोआब पभाध
बेट/खाडर बाढ़ के मैदान
पट्टी-ब्यास रेतीले टिब्बे

प्रश्न 7.
शिवालिक पहाड़ों (पहाड़ियों) की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर-
शिवालिक पहाड़ियों की उत्पत्ति भी हिमालय की तरह टैथीज़ सागर से हुई। इनका निर्माण सागर में जमा कीचड़, चिकनी मिट्टी, ककड़-पत्थर आदि के ऊँचा उठने से हुआ। एक विचार के अनुसार मायोसीन (Miocene) काल में हिमालय के निर्माण के समय हिमालय के सामने एक छिछला सागर अस्तित्व में गया। लाखों वर्षों तक इसमें गाद जमा होती रही। कुछ समय बाद यूरेशिया प्लेट के गोंडवाना लैड से टकराने पर जमा पदार्थों ने ऊपर उठकर पहाड़ों का रूप ले लिया। यही पहाड़ शिवालिक पहाड़ कहलाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 8.
पंजाब के मैदानों का सबसे बड़ा क्षेत्र कौन-सा है ? इसमें शामिल ज़िलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब के मैदानों का सबसे बड़ा क्षेत्र मालबा है। इसमें फिरोजपुर, फरीदकोट का उत्तरी भाग, मोगा, लुधियाना, बरनाला, संगरूर, पटियाला, पश्चिमी रूपनगर, साहिबजादा अजीत सिंह नगर (मोहाली), फतेहगढ़ साहिब आदि ज़िले शामिल हैं।

प्रश्न 9.
पंजाब के किन्हीं दो दोआबों के नाम लिखो तथा उनमें शामिल ज़िलों के बारे में बताओ।
उत्तर-
बारी दोआब तथा बिस्त दोआब पंजाब के दो प्रमुख दोआब हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है

  1. बारी दोआब-पंजाब में रावी और सतलुज नदियों के बीच का क्षेत्र बारी दोआब कहलाता है। इसे ‘माझा क्षेत्र’ भी कहा जाता है। इसमें पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर और तरनतारन के ज़िले आते हैं।
  2. बिस्त दोआब-बिस्त दोआब ब्यास और सतलुज नदियों के बीच का क्षेत्र है। इसमें जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर और शहीद भगत सिंह नगर (नवांशहर) के जिले आते हैं।

प्रश्न 10.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले टीलों पर नोट लिखो।
उत्तर-
सतलुज नदी के दक्षिणी भाग में पानी का बहाव घग्गर नदी की ओर है। इस क्षेत्र में बाढ़ के दिनों में पानी के बह जाने से रेत के टीले बन गए हैं। बाढ़ों से बचाव के लिए कई स्थानों पर नाले तथा नालियां बनाई गई हैं। अब इन टीलों को कृषि योग्य बना लिया गया है।

प्रश्न 11.
पंजाब के दक्षिण पश्चिमी भाग में स्थित रेतीले टीलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान के साथ लगती सीमा पर जगह-जगह रेतीले टीले दिखाई देते हैं। इस प्रकार के टीले प्रायः भठिंडा, मानसा, फाजिल्का, फरीदकोट, संगरूर, मुक्तसर तथा पटियाला ज़िलों के दक्षिणी भागों में मिलते हैं। फिरोजपुर जिले के मध्यवर्ती भागों में भी कुछ टीले पाए जाते हैं। इन टीलों की ढलान टेढ़ी मेढ़ी है।
इस क्षेत्र की जलवायु अर्ध शुष्क है। अब पंजाब में रेत के टीलों को समतल करके खेती की जाने लगी है। पंजाब के मेहनती किसानों ने सिंचाई की सहायता से कृषि को उन्नत किया है। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की प्राकृतिक भौगोलिक विशेषता लगभग लुप्त हो गई है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब को धरातल के अनुसार हम कौन-कौन से भागों में बांट सकते हैं ? शिवालिक की पहाड़ियों का विस्तृत वर्णन करो।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब अपने विशाल उपजाऊ मैदानों के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। परंतु यह केवल मैदानी क्षेत्र नहीं है। इसके धरातल में काफी भिन्नता पाई जाती है। इसके पूर्व और उत्तर-पूर्व में शिवालिक की पहाड़ियां हैं। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में रेत के टीले भी हैं। पंजाब के धरातल को हम नीचे लिखे क्षेत्रों में बांट सकते हैं

  1. शिवालिक की पहाड़ियां
  2. विशाल जलोढ़ी मैदान
  3. जलोढ़ मैदानों के मध्य (दक्षिण-पश्चिम के) रेतीले टीले।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब धरातलभू-आकृतियां 1

शिवालिक की पहाड़ियां बाह्य हिमालय का भाग हैं। ये पर्वत पंजाब के पूर्व में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथसाथ 280 किलोमीटर की लंबाई में फैले हुए हैं।
इस पर्वत श्रेणी की औसत चौड़ाई 5 से 12 किलोमीटर तक है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 600 से 1500 मीटर तक है।
शिवालिक की पहाड़ियों के भाग-शिवालिक की पहाड़ियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक रावी और ब्यास नदियों तक,
  2. होशियारपुर शिवालिक ब्यास और सतलुज नदियों तक
  3. रोपड़ शिवालिक सतलुज और घग्गर तक।

इन भागों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक इस पहाड़ी श्रेणी का विस्तार गुरदासपुर और पठानकोट जिलों के बीच है। पठानकोट जिले का धार कलां ब्लॉक पूरी तरह शिवालिक पहाड़ों के बीच स्थित है। इन पहाड़ों की औसत ऊंचाई 1000 मीटर के लगभग है।
इस क्षेत्र की पहाड़ी ढलाने, पानी के तेज बहाव के कारण किनारों से कट जाती हैं जिससे गहरी खाइयां/खड्डे (Gullies) बन जाती हैं। इस क्षेत्र में बहने वाली मौसमी नदियाँ (Seasonal River) चक्की खड्डु और उसकी सहायक नदियां ब्यास नदी में गिरती हैं।

2. होशियारपुर शिवालिक होशियारपुर शिवालिक का क्षेत्र ब्यास और सतलुज के मध्य होशियारपुर, शहीद भगत सिंह (नवांशहर) और रूपनगर जिले के नूरपूर बेदी ब्लॉक के बीच फैला हुआ है। इसकी लंबाई 130 किलोमीटर और चौड़ाई 5 से 8 किलोमीटर तक है। उत्तर में ये पहाड़ियाँ अधिक चौड़ी हैं परंतु दक्षिण में नीची तथा तंग हो जाती हैं। इसका सबसे ऊँचा ब्लॉक तलवाड़ा है और जिसकी ऊँचाई 741 मीटर तक है। शिवालिक की ये ढलाने नालीदार अपरदन (Gully Erosion) का बुरी तरह शिकार हैं और बहुत ज्यादा कटी फटी हैं। प्रत्येक किलोमीटर बाद प्रायः एक चोअ (Choe) आ जाता है। इन चोओं के अपरदन (Headward Erosion) के कारण ये पहाड़ कई स्थानों पर कटे हुए हैं। होशियारपुर के दक्षिण में इन्हें कटार की धार भी कहा जाता है। इसका बीच वाला भाग गढ़शंकर के पूर्व में स्थित है। कोट, मैरां, डले की खड़ यहां के प्रमुख चोअ हैं।

3. रोपड़ शिवालिक-शिवालिक की यह श्रेणी सतलुज और घग्गर नदियों के बीच स्थित है। यह रूपनगर (रोपड़) जिले में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व ओर फैली हुई है। ये पहाड़ उत्तर में नंगल से शुरू होकर चंडीगढ़ के नजदीक घग्गर नदी तक चले जाते हैं। इनकी लंबाई 90 किलोमीटर तक है। इस श्रेणी की निरंतरता (Continuity) सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण टूट जाती है। अन्य शिवालिक श्रेणियों की तरह यह श्रेणी भी मौसमी नालों से भरी हुई है। यहां पर इन नालों को राओ और घार (Rao & Ghare) भी कहा जाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
पंजाब के मैदान की उत्पत्ति कैसे हुई ? इनकी भौगोलिक दृष्टि से बांट करो।
उत्तर-
पंजाब के मैदान गंगा और सिंध के मैदान का भाग हैं। ये मैदान सिंध और उसकी सहायक नदियों रावी, ब्यास, सतलुज और उसकी सहायक नदियों द्वारा हिमालय से बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से है। इन मैदानों की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 200 मी० से 300 मी० तक है। इनकी ढलान पूर्व से पश्चिम की ओर है।
भौगोलिक बांट-भौगोलिक दृष्टि से पंजाब के मैदानों को 5 भागों में बांटा जा सकता है-

  1. चो (नालों) वाले क्षेत्रों के मैदान
  2. बाढ़ के मैदान
  3. नैली
  4. जलोढ़ के मैदान
  5. जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले (बालू के) टीले

(i) चोअ (नालों) वाले क्षेत्रों के मैदान-ये मैदान शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित हैं। यह प्रदेश चोओं से घिरा है। वर्षा के मौसम में इन चोओं में प्रायः बाढ़ आ जाती है। इससे जान-माल की बहुत हानि होती है। इन मैदानों की मिट्टी में कंकड़ पाए जाते हैं। इसके नीचे पानी का स्तर काफी नीचा होता है।

(ii) बाढ़ के मैदान-इन मैदानों में रावी, ब्यास तथा सतलुज़ के बाढ़ वाले मैदान शामिल हैं। इन मैदानों को बेट भी कहा जाता है। पंजाब में फिल्लौर बेट, आनंदपुर बेट तथा नकोदर बेट इसके मुख्य उदाहरण हैं।

(iii) नैली-पंजाब के दक्षिण-पूर्व में घग्गर नदी ने जलोढ़ के मैदानों का निर्माण किया है। इन मैदानों को स्थानीय भाषा में नैली कहते हैं। इन नैलियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ें आ जाती हैं। घुड़ाम, समाना तथा सरदूलगढ़ इन मैदानों के मुख्य उदाहरण हैं।
(iv) जलोढ़ के मैदान-बारी तथा बिस्त दोआब के प्रदेश जलोढ़ी मिट्टी से बने हैं। इन मैदानों में खाडर तथा बांगर दोनों प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं।

(v) जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित बालू टीले-सतलुज नदी के दक्षिणी भाग में पानी का बहाव घग्गर नदी की
ओर है। बाढ़ के दिनों में यहां पानी के बहने से रेत के टीले बन जाते हैं। बाढ़ों से बचाव के लिए कई स्थानों पर नाले तथा नालियाँ बनाई गई हैं। अब इन टीलों को कृषि योग्य बना लिया गया है।

पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां PSEB 9th Class Geography Notes

  • पंजाब का भौतिक मानचित्र देखने में पंजाब मुख्य एक मैदानी प्रदेश दिखाई देता है। परंतु यहाँ अन्य भी कई भू-आकार देखने को मिलते हैं।
  • पंजाब के मैदान संसार के सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक हैं।
  • भौतिक दृष्टि से पंजाब के मैदानों को पांच भागों में बांटा जा सकता है : चोअ वाले मैदान, बाढ़ के मैदान, नैली, जलोढ़ मैदान तथा बालू (रेत) के टिब्बे।
  • दोआब का अर्थ है दो नदियों के बीच का प्रदेश।
  • पंजाब के पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी भाग में शिवालिक की पहाड़ियां स्थित हैं।
  • शिवालिक श्रेणी के अध्ययन के लिए इसे गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक, होशियारपुर शिवालिक तथा रोपड़ शिवालिक आदि भागों में बांटा गया है।
  • पंजाब का कंडी क्षेत्र विच्छेदित लहरदार मैदानों से बना है। इसमें काफी चोअ हैं।
  • पंजाब सरकार ने डेरा बस्सी, चंडीगढ़, रोपड़-बलाचौर, होशियारपुर तथा मुकेरियाँ के पूरे क्षेत्र को कंडी क्षेत्र घोषित किया हुआ है।
  • बारी दोआब का एक और नाम माझा भी है।
  • मंड, बेट, चंगर, घाड़, बेला आदि नदियों के समीप पड़ने वाले निचले क्षेत्रों के नाम हैं।
  • नैली, घग्गर नदी द्वारा बनाए गए जलोढ़ मैदानों का स्थानीय नाम है।
  • पंजाब के किसानों ने सुदूर दक्षिण-पश्चिम के टीलों को लगभग समाप्त कर दिया है। अब इस भाग में सिंचाई द्वारा सफल खेती की जाने लगी है।
  • जलोढ़ मैदानों में खादर तथा बांगर दो प्रकार की मिट्टियां मिलती हैं।
  • खादर नई जलोढ़ मिट्टी होती है जो बहुत ही उपजाऊ होती है। बांगर पुरानी जलोढ़ होने के कारण कंकड़-पत्थरों से भरी होती है।
  • बारी तथा बिस्त दोआब के प्रदेश जलोढ़ी मिट्टी से बने हैं। इन मैदानों में खादर तथा बांगर दोनों प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं।
  • मैदान बाढ़ के मैदान नदियों के किनारे पर निचले भागों में मिलते हैं। इनका निर्माण बाढ़ के पानी द्वारा मिट्टी के जमाव से होता है।

 

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : धरातल/भू-आकृतियां Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र में अंकित करें :
उत्तर-

  • कराकोरम, पीर पंजाल, शिवालिक, सतपुड़ा, पटकोई वम्म, खासी और गारो की पहाड़ियां।
  • कंचनजुंगा, गोडविन, ऑस्टिन, धौलगिरी, गुरु शिखर व अनाईमुटी पहाड़ियां।
  • कोई पांच दर्रे और तीन पठारी क्षेत्र।
    नोट-विद्यार्थी यह प्रश्न अध्याय में दिए गए मानचित्रों की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न 1.
भारत को भू-आकृति आधार पर वर्गीकृत करते हुए दो भागों के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत को भू-आकृति के आधार पर पांच भागों में बांटा जा सकता है-

  1. हिमालय पर्वत
  2. उत्तरी विशाल मैदान व मरुस्थल
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. भारतीय द्वीप समूह।

प्रश्न 2.
अगर आप गुरु शिखर पर हैं, तो कौन-सी पर्वत श्रृंखला में हैं ?
उत्तर-
माऊंट आबू (अरावली पहाड़ी)।।

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प्रश्न 3.
भारतीय उत्तरी मैदान की लंबाई व चौड़ाई कितनी है ?
उत्तर-
भारत के उत्तरी मैदान की लंबाई लगभग 2400 किलोमीटर तथा चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है।

प्रश्न 4.
भारतीय द्वीपों को कैसे वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
भारतीय द्वीपों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है-

  1. अंडेमान निकोबार द्वीप समूह तथा
  2. लक्षद्वीप समूह।

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा नाम मैदान का नहीं है ?
(i) भाबर
(ii) बांगर
(iii) केयाल
(iv) कल्लर।
उत्तर-
(iii) केयाल।

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सी झील नहीं है ?
(i) सैडल
(ii) सांबर
(iii) चिल्का
(iv) वैबानंद।
उत्तर-
(i) सैडल।

प्रश्न 7.
इनमें से कौन-सा नाम अलग पहचान का हैं ?
(i) शारदा
(ii) कावेरी
(ii) गोमती
(iv) यमुना।
उत्तर-
(i) कावेरी।

प्रश्न 8.
कौन-सी पर्वतीय श्रृंखला हिमालियाई नहीं है ?
(i) रक्शपोशी
(ii) डफ़ला
(iii) जास्कर
(iv) नीलगिरी।
उत्तर-
(iv) नीलगिरी।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें:

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
जहां आज हिमालय हैं, वहां कभी टैथीज (Tythes) नाम का एक गहरा सागर लहराता था। यह दो विशाल भू-खंडों से घिरा एक लंबा और उथला सागर था। इसके उत्तर में अंगारा लैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड नाम के दो भू-खंड थे। लाखों वर्षों तक इन दो भू-खंडों का अपरदन होता रहा। अपरदित पदार्थ अर्थात् कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टैथीज सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भू-खंड धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। सागर में जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी की सतह से ऊपर आ गये। कालांतर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।

प्रश्न 2.
खाडर मैदानों के विषय में बताएं कि ये बेट से अलग कैसे हैं ?
उत्तर-
खाडर एक प्रकार की नई जलोढ़ मिट्टी वाला मैदान है। इस मिट्टी को नदियां अपने साथ लाकर निचले प्रदेशों में बिछाती हैं। यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है। पंजाब में इस प्रकार की मिट्टी वाले प्रदेशों को ‘बेट’ भी कहा जाता है। इस प्रकार बेट खाडर मिट्टी वाले मैदानों का स्थानीय नाम है।

प्रश्न 3.
मध्य हिमालय पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
मध्य हिमालय को लघु हिमालय भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई 5050 मीटर तक है। इन श्रेणियों की पहाड़ियां 60 से 80 किलोमीटर की चौड़ाई में मिलती हैं।

  1. श्रेणियाँ-जम्मू कश्मीर में पीर पंजाल व नागा टिब्बा, हिमाचल में धौलाधार, नेपाल में महाभारत, उत्तराखंड में मसूरी और भूटान में थिम्पू इस पर्वतीय भाग की मुख्य पर्वत श्रेणियां हैं।
  2. घाटियाँ-इस भाग में कश्मीर घाटी के कुछ भाग, कांगड़ा घाटी, कुल्लू घाटी, भागीरथी घाटी व मंदाकिनी घाटी जैसी लाभकारी व स्वास्थ्यवर्द्धक घाटियां मिलती है।
  3. स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान-इस क्षेत्र में शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि प्रमुख स्वास्थ्यवर्द्धक व रमणीय केंद्र हैं।

प्रश्न 4.
पश्चिम और पूर्वी घाटों में क्या अंतर है ?
उत्तर-

  1. पश्चिम घाट उत्तर से दक्षिण तक अरब सागर के समांतर फैले हैं। इसके विपरीत पूर्वी घाट का विस्तार खाड़ी बंगाल के साथ-साथ है।
  2. पश्चिम घाट के पर्वत एक लंबी श्रृंखला बनाते हैं। परंतु पूर्वी घाट नदियों द्वारा कट जाने के कारण अलग-अलग पहाड़ियों के रूप में दिखाई देते हैं।
  3. पश्चिम घाट के पर्वत पूर्वी घाट की अपेक्षा अधिक ऊंचे तथा स्पष्ट हैं।
  4. पूर्वी घाट की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरि है। इसके विपरीत पश्चिम घाट की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुदी है।
  5. पश्चिम घाट में थाल घाट, भोर घाट, पाल घाट, शेनकोटा आदि दरें हैं। परंतु पूर्वी घाट में कोई भी महत्त्वपूर्ण दर्रा नहीं है।

प्रश्न 5.
भारतीय द्वीप समूहों का वर्गीकरण कीजिए तथा द्वीपों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारतीय द्वीपों की कुल संख्या 267 है। इन्हें निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है

  1.  बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडेमान-निकोबार द्वीप समूह-ये द्वीप उत्तर-पूर्वी पर्वत श्रेणी अराकान योमा (म्यांमार में) का भी विस्तार हैं। इनकी संख्या 204 है। सैडल (Saddle Peak) अंडेमान की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 737 मीटर है। निकोबार में 19 द्वीप शामिल हैं। जिनमें से ग्रेटर निकोबार सबसे बड़ा द्वीप है।
  2. अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप समूह-इन द्वीपों की कुल संख्या 34 है। इसके उत्तर में अमिनदिवी (Amindivi) तथा दक्षिण में मिनीकोय (Minicoy) द्वीप स्थित हैं। इन द्वीपों का मध्यवर्ती भाग लक्कादिव (Laccadive) कहलाता है।

प्रश्न 6.
भाबर और तराई में अंतर बताएं।
उत्तर-
भाबर वे मैदानी प्रदेश होते हैं जहां नदियां पहाड़ों से निकल कर मैदानी प्रदेश में प्रवेश करती हैं और अपने साथ लाए रेत, कंकड़, बजरी, पत्थर आदि का यहां निक्षेप (जमा) करती हैं। भाबर क्षेत्र में नदियां भूमि तल पर बहने की बजाए भूमि के नीचे बहती हैं।
जब भाबर मैदानों की भूमिगत नदियां पुनः भूमि पर उभरती हैं, तो ये दलदली क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। शिवालिक पहाड़ियों के समानांतर फैली ऐसी आर्द्र दलदली भूमि की पट्टी को तराई प्रदेश कहते हैं। यहां घने वन भी पाये जाते हैं तथा जंगली जीव-जंतु भी अधिक संख्या में मिलते हैं।

(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दें:

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय पठार और उनकी पर्वतीय श्रृंखलाओं के विषय में विस्तार में लिखें।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार भारत के मध्य से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ है। यह पठार क्रिस्टलीय आग्नेय तथा
रूपांतरित चट्टानों से बना है। त्रिभुज के आकार के इस प्राचीन भू-भाग का शीर्ष बिन्दु कन्याकुमारी है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यहां की वन-संपदा है। इन पठारों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है। इन भागों तथा उनमें स्थित पर्वत श्रेणियों का वर्णन इस प्रकार है

1. मध्य भारत का पठार-यह पठारी प्रदेश मारवाड़ प्रदेश के पूर्व में फैला है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 250500 मी० तक है। इसकी दरार घाटी में चंबल तथा उसकी सहायक नदियां बहती हैं। यह पठार अपनी गहरी घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। इस पठार के पूर्व में यमुना के निकट बुंदेलखंड का प्रदेश स्थित है।

2. मालवा पठार-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में बुंदेलखंड तथा बघेलखंड, पूर्व में छोटा नागपुर, राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग के पठार तक और दक्षिण की ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों तक घिरा हुआ पठार मालवा का पठार कहलाता है। इसका शीर्ष शिलांग के पठार पर है। इस पठार की उत्तरी सीमा अवतल चापाकार की तरह है। इस पठार में बनास, चंबल, केन तथा बेतवा नामक नदियां बहती हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मी० है। पारसनाथ तथा नैत्रहप्पाट इसकी मुख्य चोटियां हैं। इसकी तीन पर्वत श्रेणियां हैं-अरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
अरावली पर्वत श्रेणी सबसे पुरानी पर्वत श्रेणी है। इसकी लंबाई लगभग 800 किलोमीटर तक है। इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर (1722 मी०) है। इसमें गोरनघाट नामक एक दर्रा भी स्थित है। सतपुड़ा की पहाड़ियां 900 किलोमीटर की लंबाई में फैली हैं। इस पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी (धूपगढ़ 1350 मी०) है। अमरकंटक दूसरी ऊंची चोटी है।

3. दक्कन (दक्षिण) का पठार-इसकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है। इसके धरातल को मौसमी नदियों ने कांट-छांट कर सात स्पष्ट भागों में बांटा हुआ है-

  1. महाराष्ट्र का टेबल लैंड,
  2. दंडकारण्य-छत्तीसगढ़ क्षेत्र,
  3. तेलंगाना का पठार,
  4. कर्नाटक का पठार,
  5. पश्चिमी घाट,
  6. पूर्वी घाट,
  7. दक्षिणी पहाड़ी समूह।

पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई 1200 मीटर और पूर्वी घाट की 500 मीटर है। दक्षिण भारत की सभी महत्त्वपूर्ण नदियां पश्चिमी घाट से निकलती हैं। उत्तर से दक्षिण तक पश्चिमी घाट में चार प्रसिद्ध दर्रे हैं-थालघाट, भोरघाट, पालघाट तथा शेनकोटा। पूर्वी घाट पश्चिमी घाट की अपेक्षा अधिक चौड़े कटे-फटे तथा टूटी पहाड़ियों वाला है। पूर्वी घाट की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरी (1500 मी०) है।

पश्चिमी और पूर्वी घाट जहां जाकर मिलते हैं, उन्हें नीलगिरि पर्वत कहते हैं। इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी दोदाबेटा है अथवा डोडाबेटा जो 2637 मीटर ऊंची है।
सच तो यह है कि प्रायद्वीपीय पठार खनिज पदार्थों का भंडार है और इसका भारत की आर्थिकता में बड़ा महत्त्व है। यहां चाय, रबड़, गन्ना, कॉफ़ी आदि की कृषि भी की जाती है।

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प्रश्न 2.
गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानों की बनावट व उनके क्षेत्रीय वर्गीकरण पर नोट लिखें।
उत्तर-
(क) गंगा के मैदान-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान के मुख्य भौगोलिक पक्षों का वर्णन इस प्रकार है

  1. स्थिति-यह मैदान उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल राज्यों में स्थित है। यह पश्चिम में यमुना, पूर्व में बंगलादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा, उत्तर में शिवालिक तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी विस्तार के मध्य फैला हुआ है।
  2. नदियाँ-इस मैदान में गंगा, यमुना, घागरा, गण्ड्क, कोसी, सोन, बेतवा तथा चंबल नदियां बहती हैं।
  3. भू-आकारीय नाम-गंगा के तराई वाले उत्तरी क्षेत्रों में बनी दलदली पेटियों को ‘कौर (caur) कहा जाता है। इसकी दक्षिणी सीमा में बड़े-बड़े खड्ड (Ravines) मिलते हैं जिन्हें ‘जाला’ व ‘ताल’ (Jala & Tal) अथवा बंजर भूमि कहते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त मैदान में पुरानी जमीं बांगर और नई बिछी खादर की जलोढ़ पट्टियों को ‘खोल’ (Khols) कहा जाता है। गंगा और यमुना दोआब में पवनों के निक्षेप द्वारा निर्मित बालू के टीलों को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद तथा बिजनौर जिलों में ‘भूर’ (Bhur) के नाम से जाना जाता है।
  4. ढलान तथा क्षेत्रफल-गंगा के मैदान की ढलान पूर्व की ओर है।
    महाराष्ट्र टेबल लैंड बेसाल्ट के लावे से बना है। कर्नाटक के पठार में बाबा बूदन की पहाड़ियों में स्थित मूल्नगिरी (1913 मी०) सबसे ऊँची चोटी है।
  5. विभाजन-ऊँचाई के आधार पर गंगा के मैदानों को निम्नलिखित तीन उप-भागों में विभाजित किया जा सकता है
    • ऊपरी मैदान-इन मैदानों को गंगा-यमुना दोआब भी कहते हैं। इनके पश्चिम में यमुना नदी है तथा 100 मीटर की ऊंचाई तक मध्यम ढाल वाले क्षेत्र इसकी पूर्वी सीमा बनाते हैं। रुहेलखंड तथा अवध का मैदान भी इन्हीं मैदानों में सम्मिलित हैं।
    • मध्यवर्ती मैदान-इस मैदान को बिहार के मैदान या मिथिला (Mithila) मैदान भी कहते हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग 50 से 100 मीटर के बीच है। यह घागरा नदी से लेकर कोसी नदी तक फैला है। इस मैदान की लंबाई 600 कि०मी० तथा चौड़ाई 330 कि०मी० है।
    • निचले मैदान-गंगा के ये मैदानी भाग समुद्र तल से लगभग 50 मीटर ऊंचे हैं। इसकी लंबाई 580 कि०मी० तथा चौड़ाई 200 कि०मी० है। ये राजमहल तथा गारो पर्वत श्रेणियों के मध्य एक समतल डेल्टाई क्षेत्र बनाते हैं। इसके उत्तर में तराई पट्टी के द्वार (Duar) मिलते हैं तथा दक्षिण में विश्व का सबसे बड़ा सुंदरवन डेल्टा स्थित है।

(ख) ब्रह्मपुत्र के मैदान-इस मैदान को आसाम (असम) का मैदान भी कहा जाता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 250 मी० से लेकर 550 मी० तक है।

प्रश्न 3.
भारत के तटीय मैदानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तटवर्ती मैदान अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ फैले हुए हैं। इन्हें दो भागों में बांटा जाता है-पश्चिमी तट के मैदान तथा पूर्वी तट के मैदान। इनका वर्णन इस प्रकार है
पश्चिमी मैदान-

  1. इसके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियां हैं।
  2. इन मैदानों की लंबाई 1500 कि०मी० और चौड़ाई 65 कि०मी० है। इन मैदानों में डेल्टाई निक्षेप का अभाव है।
  3. पश्चिमी मैदानों को धरातलीय विस्तार के आधार पर चार भागों में बांटते हैं-गुजरात का तटीय मैदान, कोंकण का तटीय मैदान, मालाबार तट का मैदान, केरल का मैदान। गुजरात का मैदान कच्छ से महाराष्ट्र होते हुए खंबात की खाड़ी तक चला जाता है। इसका निर्माण साबरमती, माही, लूनी तथा तापी नदियों द्वारा लाकर बिछाई गई मिट्टी से हुआ है। कोंकण का मैदान दमन से गोवा तक 500 मीटर की लंबाई में फैला है। मुंबई इस तट की प्रमुख बंदरगाह है। कोंकण तट को कारावली तथा केनारा भी कहा जाता है। मालावार का तटवर्ती मैदान मंगलूर से कन्याकुमारी तक फैला है। झीलों अथवा लैगूनों वाले इस मैदान की लंबाई 845 कि०मी० है। बैबानंद द्रत मैदान की सबसे बड़ी झील है।।
  4. इन मैदानों में नर्मदा तथा ताप्ती नदियां बहती है। ये डेल्टा बनाने की बजाए ज्वारनदमुख बनाती हैं।
  5. पश्चिमी मैदान में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है। यह वर्षा दक्षिण-पश्चिम पवनों के कारण होती है। ।

पूर्वी तट के मैदान-

  1. पूर्वी तट के मैदानों के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में पूर्वी घाट की पहाड़ियां हैं।
  2. इन मैदानों की लंबाई 2000 कि०मी० है और इनकी औसत चौड़ाई 150 कि०मी० है। ये अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं तथा इनमें जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप है।
  3. पूर्वी तटीय मैदान के दो भाग हैं-उत्तरी तटीय मैदान तथा दक्षिण तटीय मैदान। उत्तरी मैदान को उत्तरी सरकार या गोलकुंडा या काकीनाडा भी कहते हैं। दक्षिण तटीय मैदान को कोरोमंडल तट कहा जाता हैं।
  4. इस मैदान की प्रमुख नदियां महानदी, कावेरी, गोदावरी तथा कृष्णा है।
  5. इस मैदान में पुलिकट तथा चिल्का नामक झीलें पाई जाती हैं। उड़ीसा की चिल्का झील भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है।

प्रश्न 4.
निम्न पर नोट लिखें
(i) राजस्थान के मैदान और मरुस्थल
(ii) मालवा का पठार
(iii) उच्चतम हिमालय।
उत्तर-
(i) राजस्थान के मैदान और मरुस्थल-यह मरुस्थल पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात के रण ऑफ़ कच्छ तक फैला हुआ है। यह समतल तथा शुष्क मरुस्थल थार मरुस्थल के नाम से जाना जाता है। अरावली पर्वत श्रेणी इसकी पूर्वी सीमा बनाती है। इसके पश्चिम में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा लगती है। यह लगभग 650 कि०मी० लंबा तथा 250 कि० मी० चौड़ा है। अति प्राचीन काल में यह क्षेत्र समुद्र के नीचे दबा हुआ था। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि यह मरुस्थल किसी समय उपजाऊ रहा होगा। परंतु वर्षा की मात्रा बहुत कम होने के कारण आज यह क्षेत्र रेत के बड़े-बड़े टीलों में बदल गया है। थार मरुस्थल के पूर्वी भाग को ‘राजस्थान बांगर’ भी कहा जाता है।

(ii) मालवा का पठार-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में बुंदेलखंड तथा बघेलखंड पूर्व में छोटा नागपुर, राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग के पठार तक और दक्षिण की ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों तक घिरा हुआ पठार मालवा का पठार कहलाता है। इसका शीर्ष शिलांग के पठार पर है। इस पठार की उत्तरी सीमा अवतल चापाकार की तरह है। इस पठार में बनास, चंबल, केन तथा बेतवा नामक नदियां बहती हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मी० है। पारसनाथ तथा नैत्रहप्पाट इसकी मुख्य चोटियां हैं। इसको तीन पर्वत श्रेणियां हैं-अरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।

(iii) उच्चतम हिमालय-इसे महान् हिमालय भी कहते हैं। हिमालय का यह विशाल भाग पश्चिम में सिंधु नदी की घाटी से लेकर उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र की दिहांग घाटी तक फैला हुआ है। इसकी मुख्य धरातलीय विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. यह देश की सबसे लंबी तथा ऊंची पर्वत श्रेणी है। इसमें ग्रेनाइट तथा नीस जैसी परिवर्तित रवेदार चट्टानें मिलती हैं।
  2. इसकी चोटियां बहुत ऊंची हैं। संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर) इसी पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यहां की चोटियां सदा बर्फ से ढकी रहती हैं।
  3. इसमें अनेक दर्रे हैं जो पर्वतीय मार्ग जुटाते हैं।
  4. इसमें काठमांड तथा कश्मीर जैसी महत्त्वपूर्ण घाटियां स्थित हैं।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत और दक्षिण पठार के लाभों की तुलना करें।
उत्तर-
हिमालय पर्वत तथा ढक्कन का पठार भारत के दो महत्त्वपूर्ण भू-भाग हैं। ये दोनों ही भू-भाग अपने-अपने ढंग से भारत देश को समृद्ध बनाते हैं। इनके लाभों की तुलना इस प्रकार की जा सकती है
हिमालय के लाभ-

  1. वर्षा-हिंद महासागर से उठने वाली मानसून पवनें हिमालय पर्वत से टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। इस प्रकार यह उत्तरी मैदान में वर्षा का दान देता है। इस मैदान में पर्याप्त वर्षा होती है।
  2. उपयोगी नदियां-उत्तरी भारत में बहने वाली सभी मुख्य नदियां गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां सारा साल बहती रहती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ इन नदियों को जल देती है।
  3. फल तथा चाय-हिमालय की ढलाने चाय की खेती के लिए बड़ी उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त पर्वतीय ढलानों पर फल भी उगाए जाते हैं।
  4. उपयोगी लकड़ी-हिमालय पर्वत पर घने वन पाये जाते हैं। ये वन हमारा धन हैं। इनसे प्राप्त लकड़ी पर भारत के अनेक उद्योग निर्भर हैं। यह लकड़ी भवन निर्माण कार्यों में भी काम आती है।
  5. अच्छे चरागाह-हिमालय पर हरी-भरी चरागाहें मिलती हैं। इनमें पशु चराये जाते हैं।
  6. खनिज पदार्थ-इन पर्वतों में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।
  7. पर्यटन-हिमालय में अनेक सुंदर और रमणीक घाटियां हैं। कश्मीर घाटी ऐसी ही एक प्रसिद्ध घाटी है। इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाता है। अन्य प्रमुख घाटियां हिमाचल प्रदेश में कुल्लू तथा कांगड़ा और उत्तरांचल में कुमायूँ की घाटियाँ हैं। सारे संसार से पर्यटक इन घाटियों की मनोहर छटा को निहारने के लिए यहां आते हैं।

दक्कन (दक्षिणी) पठार के लाभ

  1. दक्षिण का पठार खनिजों से संपन्न है। देश के 98% खनिज भंडार दक्षिणी पठार में ही मिलते हैं यहां कोयला, लोहा, तांबा, मैंगनीज़, अभ्रक, सोना आदि बहुमूल्य खनिज पाये जाते हैं।
  2. यहां की मिट्टी, कपास, चाय, रबड़, गन्ना, कॉफी, मसालों, तंबाकू आदि के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  3. यहां नदियां जलप्रपात बनाती हैं जो जलविद्युत् के उत्पादन के लिये उपयोगी है।
  4. इस भाग में साल, सागवान, चंदन आदि के वन पाये जाते हैं।
  5. यहां उटकमंड, पंचमढ़ी, महाबालेश्वर आदि पर्यटन स्थानों का विकास हुआ है।

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PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : धरातल/भू-आकृतियां Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई है-
(क) 9848 मी०
(ख) 7048 मी०
(ग) 8848 मी०
(घ) 6848 मी०।
उत्तर-
(ग) 8848 मी०

प्रश्न 2.
पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर कौन-सा है ?
(क) डोडाबेटा
(ख) महेन्द्रगिरी
(ग) पुष्पागिरी
(घ) कोलाईमाला।
उत्तर-
(ख) महेन्द्रगिरी

प्रश्न 3.
हिमालय का अधिकतर भाग फैला है-
(क) भारत में
(ख) नेपाल में
(ग) तिब्बत में
(घ) भूटान में।
उत्तर-
(ग) तिब्बत में

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वतों की उत्पत्ति हुई है-
(क) टैथीज़ सागर से
(ख) अंध-महासागर से
(ग) हिंद महासागर से
(घ) खाड़ी बंगाल से।
उत्तर-
(क) टैथीज़ सागर से

प्रश्न 5.
रावी और ब्यास के मध्य भाग को कहा जाता है-
(क) बिस्त दोआब
(ख) प्रायद्वीपीय पठार
(ग) चज दोआब
(घ) मालाबार दोआब।
उत्तर-
(क) बिस्त दोआब

प्रश्न 6.
कोंकण तट का विस्तार है-
(क) दमन से गोआ तक
(ख) मुम्बई से गोआ तक
(ग) दमन से बंगलौर तक
(घ) मुम्बई से दमन तक।
उत्तर-
(क) दमन से गोआ तक

प्रश्न 7.
पश्चिमी घाट की प्रमुख चोटी है-
(क) गुरु शिखर
(ख) कालस्थाए
(ग) कोंकण शिखर
(घ) माऊंट
उत्तर-
(ख) कालस्थाए

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प्रश्न 8.
सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों से बना मैदान कहलाता ह-
(क) दक्षिणी विशाल मैदान
(ख) पूर्वी विशाल मैदान
(ग) उत्तरी विशाल मैदान
(घ) तिब्बत का मैदान।
उत्तर-
(ग) उत्तरी विशाल मैदान

रिक्त स्थानों की पूर्ति :

1. ट्रांस हिमालय की औसत ऊंचाई …………. मीटर है।
2. दफा बम्म तथा ……………. हिमालय की पूर्वी शाखाओं की प्रमुख चोटियां हैं।
3. ………….. विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।
4. त्रिभुजाकार भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिंदु ………….. है।
5. थाल घाट, भोर घाट तथा …………. पश्चिमी घाट के दर्रे हैं।
6. चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी …………… पानी की झील है।
7. ………… नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है।
8. ……….. हिमालय भारत की सबसे लंबी और ऊंची पर्वत श्रृंखला है।
9. मालाबार तट का विस्तार गोआ से ………….. तक है।
10. छत्तीसगढ़ का मैदान ……………… द्वारा बना है।
उत्तर-

  1. 6000
  2. सारामती
  3. माऊंट एवरेस्ट
  4. कन्याकुमारी
  5. पाल घाट
  6. खारे
  7. नर्मदा
  8. बृहत्
  9. मंगलौर
  10. महानदी।

सत्य-असत्य कथन :

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं-
1. ट्रांस हिमालय को तिब्बत हिमालय भी कहा जाता है।
2. हिमालय के अधिकतर स्वास्थ्यवर्धक स्थान बृहत् हिमालय में स्थित हैं।
3. उत्तरी विशाल मैदान की रचना में कावेरी तथा कृष्णा नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
4. पश्चिम घाट में थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट नामक तीन दर्रे स्थित हैं।
5. पश्चिमी घाट को सहाद्रि भी कहा जाता है। |
उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)

उचित मिलान :

1. उत्कल – सहयाद्रि
2. सागर मथ्था – अरब सागर
3. पश्चिमी घाट – तटवर्ती मैदान
4. लक्षद्वीप – माऊंट ऐवरेस्ट।
उत्तर-

  1. तटवर्ती मैदान
  2. माऊंट ऐवरेस्ट।
  3. घाट–सहयाद्रि
  4. लक्षद्वीप

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत श्रेणी की आकृति कैसी है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत श्रेणी की आकृति एक चाप (Curve) जैसी है।

प्रश्न 2.
हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों का जन्म कैसे हुआ ?
उत्तर-
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की उत्पत्ति टेथिस सागर में जमा गाद में बल पड़ने से हुई।

प्रश्न 3.
ट्रांस हिमालय की प्रमुख चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
ट्रांस हिमालय की मुख्य चोटियां हैं—विश्व की दूसरी ऊंची चोटी माऊंट के (गाडविन ऑस्टिन), गशेरबम-I तथा गशेरबम-II

प्रश्न 4.
बृहत् हिमालय में 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-
बृहत् हिमालय की 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां हैं-माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर), कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरी, अन्नपूर्णा आदि।

प्रश्न 5.
भारत की युवा एवं प्राचीन पर्वत मालाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत भारत के युवा पर्वत हैं और वहां के प्राचीन पर्वत अरावली, विंध्याचल, सतपुड़ा आदि हैं।

प्रश्न 6.
देश में रिफ्ट या दरार घाटियां कहां मिलती हैं ?
उत्तर-
भारत में दरार घाटियां प्रायद्वीपीय पठार में पाई जाती हैं।

प्रश्न 7.
डेल्टा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के निचले भागों में बने स्थल-रूप को डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के मुख्य डेल्टाई क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत के प्रमुख डेल्टाई क्षेत्र हैं-गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र, गोदावरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कावेरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कृष्णा नदी डेल्टा क्षेत्र तथा महानदी का डेल्टा क्षेत्र।

प्रश्न 9.
हिमालय पर्वत के दरों के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत में पाये जाने वाले मुख्य दरे हैं-बुरज़िल, जोझीला, लानक ला, चांग ला, खुरनक ला, बाटा खैपचा ला, शिपकी ला, नाथु ला, तत्कला कोट इत्यादि।

प्रश्न 10.
लघु हिमालय की मुख्य पर्वतीय श्रेणियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय की पर्वत श्रेणियां हैं-

  1. कश्मीर में पीर पंजाल तथा नागा टिब्बा,
  2. हिमाचल में धौलाधार तथा कुमाऊं,
  3. नेपाल में महाभारत,
  4. उत्तराखंड में मसूरी,
  5. भूटान में थिम्पू।

प्रश्न 11.
लघु हिमालय में स्थित स्वास्थ्यवर्धक घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय के मुख्य स्वास्थ्यवर्धक स्थान शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीतालं, दार्जिलिंग तथा चकराता हैं।

प्रश्न 12.
देश की प्रमुख ‘दून’ घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
देश की मुख्य दून घाटियां हैं-देहरादून, पतली दून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि।

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प्रश्न 13.
हिमालय क्षेत्र की पूर्वी किनारे वाली प्रशाखाओं (Eastern off shoots) के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय की प्रमुख पूर्वी श्रेणियां पटकोई बम्म, गारो, खासी, जयंतिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 14.
उत्तर-पश्चिमी मैदान में कौन-कौन से अंतर-दोआब (Inter fluxes) मिलते हैं ?
उत्तर-

  1. बारी दोआब तथा माझा का मैदान,
  2. बिस्त दोआब,
  3. मालवा का मैदान,
  4. हरियाणा का मैदान।

प्रश्न 15.
ब्रह्मपुत्र के मैदानों की औसत ऊंचाई कितनी है ?
उत्तर-
250-550 मी०।

प्रश्न 16.
(i) अरावली पर्वत श्रेणी का विस्तार कहां से कहां तक है तथा
(ii) इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है ?
उत्तर-

  1. अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक फैली हुई है।
  2. इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम गुरु शिखर है।

प्रश्न 17.
थारमरुस्थल (भारत) की तीन खारे पानी की झीलों के नाम बताओ।
उत्तर-
सांभर, चिदवाना तथा सारमोल।

प्रश्न 18.
पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियों के नाम बताइए।
उत्तर-
जवद्दी (Jawaddi), गिन्गी, शिवराई, कौलईमाला, पंचमलाई, गोंडुमलाई इत्यादि पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 19.
दक्षिणी पठार के पहाड़ी भागों पर कौन-कौन से रमणीय स्थान ( हिल स्टेशन ) हैं ?
उत्तर-
दोदाबेटा, ऊटाकमुंड, पलनी तथा कोडाईकनाल।

प्रश्न 20.
अरब सागर में मिलने वाले द्वीपों के नाम बताओ।
उत्तर-
अरब सागर में स्थित उत्तरी द्वीपों को अमीनोदिवी (Aminolivi), मध्यवर्ती द्वीपों को लक्काद्वीप तथा दक्षिणी भाग को मिनीकोय कहा जाता है।

प्रश्न 21.
देश का दक्षिणी सीमा बिंदु कहां स्थित है ?
उत्तर-
देश का दक्षिणी सीमा बिंदु ग्रेट निकोबार के इंदिरा प्वाइंट (Indira Point) पर स्थित है।

प्रश्न 22.
तटीय मैदानों से समस्त भारत को मिलने वाले तीन प्रमुख लाभों को बताओ।
उत्तर-

  1. गहरे प्राकृतिक पोताश्रय
  2. लैगून तथा
  3. उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी की प्राप्ति।

प्रश्न 23.
ट्रांस हिमालय को ‘तिब्बत हिमालय’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि ट्रांस हिमालय का अधिकतर भाग तिब्बत में है।

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प्रश्न 24.
दून किसे कहते हैं ?
उत्तर-
‘दून’ बाह्य हिमालय में स्थित वे झीलें हैं जो मिट्टी से भर गई हैं।

प्रश्न 25.
विश्व की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी कौन-सी है ?
उत्तर-
K2

प्रश्न 26.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिंदु कौन-सा है ?
उत्तर-
कन्याकुमारी।

प्रश्न 27.
भारत के किस राज्य में पश्चिमी घाट नीलगिरी के नाम से विख्यात है ?
उत्तर-
तमिलनाडु।

प्रश्न 28.
कौन-सी नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है ?
उत्तर-
नर्मदा।

प्रश्न 29.
भारत के प्रमुख द्वीप समूह कौन-कौन से हैं और ये कहां स्थित हैं ?
उत्तर-

  1. भारत के प्रमुख द्वीप समूह अंडमान तथा निकोबार और लक्षद्वीप हैं।
  2. ये क्रमश: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में स्थित हैं।

प्रश्न 30.
हिमालय की कौन-सी श्रेणी शिवालिक कहलाती है ?
उत्तर-
बाह्य हिमालय।

प्रश्न 31.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में किस-किस जल प्रवाह प्रणाली का योगदान रहा है ?
उत्तर-
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों का योगदान है।

प्रश्न 32.
गोआ से मंगलौर तक का समुद्री तट क्या कहलाता है ?
उत्तर-
मालाबार तट।

प्रश्न 33.
कोंकण तट कहां से कहां तक फैला है ?
उत्तर-
कोंकण तट दमन से गोआ तक फैला है।

प्रश्न 34.
भारत का कौन-सा भू-भाग खनिजों का विशाल भंडार है ?
उत्तर–
प्रायद्वीपीय पठार।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत के क्रमवार उत्थान (uplifts) के बारे में कोई दो प्रमाण दीजिए।
उत्तर-
हिमालय का जन्म आज से लगभग 400 लाख वर्ष पहले टैथीज (Tythes) सागर से हुआ है। एक लंबे समय तक तिब्बत पठार तथा दक्षिण पठार की नदियां टैथीज सागर में तलछट लाकर जमा करती रहीं। फिर दोनों पठार एक-दूसरे की ओर खिसकने लगे। इससे तलछट में मोड़ पड़ने लगे और यह ऊंचा उठने लगा। इसी उठाव से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है। यह क्रमिक उठाव आज भी जारी है।

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प्रश्न 2.
हिमालय पर्वत माला एवं दक्षिण के पठार के बीच क्या समानताएं पायी जाती हैं ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत तथा दक्षिण के पठार में निम्नलिखित समानताएं पायी जाती हैं-

  1. इन दोनों भू-भागों का निर्माण एक-दूसरे की उपस्थिति के कारण हुआ।
  2. हिमालय पर्वतों की भांति दक्षिणी पठार में भी अनेक खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।
  3. इन दोनों भौतिक भागों में वन पाये जाते हैं जो देश में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 3. क्या हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है ?
उत्तर-इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है। इनकी उत्पत्ति नदियों द्वारा टैथीज सागर में बिछाई गई तलछट से हुई है। बाद में इसके दोनों ओर स्थित भूखंडों के एक-दूसरे की ओर खिसकने से तलछट में मोड़ पड़ गया जिससे हिमालय पर्वतों की ऊंचाई बढ़ गई। आज भी ये पर्वत ऊंचे उठ रहे हैं। इसके अतिरिक्त इन पर्वतों का निर्माण देश के अन्य पर्वतों की तुलना में काफ़ी बाद में हुआ। अतः हम कह सकते हैं कि हिमालय पर्वत अभी भी अपनी युवा अवस्था में है।

प्रश्न 4.
उत्तरी विशाल मैदानी भाग में किस-किस जलोढ़ी मैदान का निर्माण हुआ है ?
उत्तर-
उत्तरी विशाल मैदान में निम्नलिखित जलोढ़ मैदानों का निर्माण हुआ है-

  1. खाडर के मैदान,
  2. बांगर के मैदान,
  3. भाबर के मैदान,
  4. तराई के मैदान,
  5. रेह व कल्लर मिट्टी के बंजर मैदान,
  6. भूर।

प्रश्न 5.
स्थिति के आधार पर भारत के द्वीपों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ? उदाहरणों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
स्थिति के अनुसार भारत के द्वीपों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है-तट से दूर स्थित द्वीप तथा तट के निकट स्थित द्वीप।

  1. तट से दूर स्थित द्वीप-इन द्वीपों की कुल संख्या 230 के लगभग है। ये समूहों में पाये जाते हैं। दक्षिणी-पूर्वी
    अरब सागर में स्थित ऐसे द्वीपों का निर्माण प्रवाल भित्तियों के जमाव से हुआ है। इन्हें लक्षद्वीप कहते हैं। अन्य द्वीप क्रमशः अमीनदिवी, लक्काद्वीप तथा मिनीकोय के नाम से प्रसिद्ध हैं। बंगाल की खाड़ी में तट से दूर स्थित द्वीपों के नाम हैं-अंडमान द्वीप समूह, निकोबार, नारकोडम तथा बैरन आदि।
  2. तट के निकट स्थित द्वीप-इन द्वीपों में गंगा के डेल्टे के निकट स्थित सागर, शोरट, ह्वीलर, न्युमूर आदि द्वीप शामिल हैं। इस प्रकार के अन्य द्वीप हैं-भासरा, दीव, बन, ऐलिफैंटा इत्यादि।

प्रश्न 6.
तटवर्ती मैदानों की देश को क्या महत्त्वपूर्ण देन है ?
उत्तर-
तटीय मैदानों की देश को निम्नलिखित देन है-

  1. तटीय मैदान बढ़िया किस्म के चावल, खजूर, नारियल, मसालों, अदरक, लौंग, इलायची आदि की कृषि के लिए विख्यात हैं।
  2. ये मैदान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अग्रणी हैं।
  3. इन मैदानों से समस्त देश में बढ़िया प्रकार की समुद्री मछलियां भेजी जाती हैं।
  4. तटीय मैदानों में स्थित गोआ, तमिलनाडु तथा मुंबई के समुद्री बीच पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
  5. देश में प्रयोग होने वाला नमक पश्चिमी तटीय मैदानों में तैयार किया जाता है।

प्रश्न 7.
तट के मैदान न केवल संकरे हैं, बल्कि डेल्टाई निक्षेपण से भी विहीन हैं, व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारत के पश्चिमी तट के मैदान संकरे हैं और यहां डेल्टाई निक्षेप का भी अभाव है। इसके कारण निम्नलिखित हैं

  1. पश्चिमी तट पर सागर दूर तक अंदर चला गया है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी घाट की पहाड़ियां कटी-फटी नहीं हैं। परिणामस्वरूप पश्चिमी तट के मैदानों के विस्तार में बाधा आ गई है। इसी कारण ये मैदान संकरे हैं।
  2. जो नदियां पश्चिमी घाट से होकर अरब सागर में गिरती हैं, उनका बहाव तेज़ है, परंतु बहाव क्षेत्र कम है। परिणामस्वरूप ये नदियां (नर्मदा, ताप्ती) डेल्टे नहीं बनातीं, अपितु ज्वारनदमुख बनाती हैं।

प्रश्न 8.
प्रायद्वीपीय पठार का देश के लिए क्या महत्त्व रहा है ? कोई तीन बिंदु लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवाना लैंड का भाग है जो खनिज पदार्थों में धनी है। अतः यह देश के लिए खनिज पदार्थों का बहुत बड़ा स्रोत रहा है।
  2. प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर घाटों पर बने जल-प्रपात तटीय मैदानों को सिंचाई के लिए जल तथा औद्योगिक विकास के लिए बिजली देते हैं।
  3. यहां के वन देश के अन्य भागों में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
(i) बांगर और खादर/खाडर
(ii) नाले (चो), नदी और बंजर भूमि।
उत्तर-

  1. बांगर और खादर/खाडर-उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में बहने वाली नदियों में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आ जाती है और वे अपने आस-पास के क्षेत्रों में मिट्टी की नई परतें बिछा देती हैं। बाढ़ से प्रभावित इस तरह के मैदानों को खादर के मैदान भी कहा जाता है।
    बांगर वह ऊंची भूमि होती है जो बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होती और जिसमें चूने के कंकड़-पत्थर अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसे रेह तथा कल्लर भूमि भी कहते हैं।
  2. नाले (चो), नदी और बंजर भूमि-चो वे छोटी-छोटी नदियां होती हैं जो वर्षा ऋतु में अकस्मात् सक्रिय हो उठती हैं। ये भूमि में गहरे गड्ढे बनाकर उसे कृषि के अयोग्य बना देते हैं।
    बहते हुए जल को नदी कहते हैं। इसका स्रोत किसी पर्वतीय स्थान (हिमानी) पर होता है। यह अंततः किसी सागर या भूमिगत स्थान पर जा मिलती है। बंजर भूमि से अभिप्राय ऐसी भूमि से है जिसकी उपजाऊ क्षमता न के बराबर होती है। ऐसी भूमि खेती के अयोग्य होती है। भारत में उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार तथा पश्चिमी शिवालिक पहाड़ियों के आस-पास बंजर भूमि का विस्तार है।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. ये पर्वत भारत के उत्तर में स्थित हैं। ये एक चाप की तरह कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं। संसार का कोई भी पर्वत इनसे अधिक ऊंचा नहीं है। इनकी लंबाई 2400 किलोमीटर और चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।
  2. हिमालय पर्वत की तीन समानांतर शृंखलाएं हैं। उत्तरी श्रृंखला सबसे ऊंची है तथा दक्षिणी श्रृंखला सबसे कम ऊंची है। इन श्रृंखलाओं के बीच बड़ी उपजाऊ घाटियां हैं।
  3. इन पर्वतों की मुख्य चोटियां ऐवरेस्ट, नागा पर्वत, गाडविन ऑस्टिन (K2), नीलगिरि, कंचनजंगा आदि हैं। ऐवरेस्ट संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है।
  4. हिमालय की पूर्वी शाखाएं.भारत तथा म्यनमार की सीमा बनाती हैं। हिमालय की पश्चिमी शाखाएं पाकिस्तान में हैं। इनके नाम सुलेमान तथा किरथर पर्वत हैं। इन शाखाओं में खैबर तथा बोलान के प्रे स्थित हैं।

प्रश्न 11.
भारत के विशाल उत्तरी मैदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारत की अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत का विशाल उत्तरी मैदान हिमालय पर्वत के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व तक फैला हुआ है। इसका विस्तार राजस्थान से असम तक है। इसके कुछ पश्चिमी रेतीले भाग को छोड़कर शेष सारा मैदान बहुत ही उपजाऊ है। इनका निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से हुआ है। इसलिए इसे जलोढ़ मैदान भी कहते हैं। इसे चार भागों में बांटा जा सकता है–

  1. पंजाब-हरियाणा का मैदान,
  2. थार मरुस्थलीय मैदान,
  3. गंगा का मैदान,
  4.  ब्रह्मपुत्र का मैदान। भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार यही विशाल मैदान है। यहां नाना प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। इसके पूर्वी भागों में खनिज पदार्थों के विशाल भंडार विद्यमान हैं।

प्रश्न 12.
भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों की तुलना करो।
उत्तर-

पश्चिमी तटीय मैदान पूर्वी तटीय मैदान
1. ये मैदान पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित हैं। 1. ये मैदान पूर्वी घाट तथा खाड़ी बंगाल के बीच स्थित हैं।
2. ये मैदान बहुत ही असमतल एवं संकुचित हैं। 2. ये मैदान अपेक्षाकृत समतल एवं चौड़े हैं
3. इस मैदान में कई ज्वारनदमुख और लैगून हैं। 3. इस मैदान में कई नदी डेल्टा हैं।

प्रश्न 13.
किन्हीं चार बातों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार तथा उत्तर के विशाल मैदानों की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर-

  1. उत्तर के विशाल मैदानों का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ है जबकि प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण प्राचीन ठोस चट्टानों से हुआ है।
  2. उत्तर के विशाल मैदानों की समुद्र तल से ऊंचाई प्रायद्वीपीय पठार की अपेक्षा बहुत कम है।
  3. विशाल मैदानों की नदियां हिमालय पर्वत से निकलने के कारण सारा वर्ष बहती हैं। इसके विपरीत पठारी भाग की नदियां केवल बरसात के मौसम में ही बहती हैं।
  4. विशाल मैदानों की भूमि उपजाऊ होने के कारण यहां गेहूं, जौ, चना, चावल आदि की कृषि होती है। दूसरी ओर पठारी भाग में कपास, बाजरा तथा मूंगफली की कृषि की जाती है।

प्रश्न 14.
ट्रांस हिमालय से क्या भाव है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत की ये विशाल श्रेणियां भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित पामीर की गांठ (Pamir’s Knot) से उत्तर-पूर्वी दिशा के समानांतर फैली हुई हैं। इसका अधिकतर भाग तिब्बत में है। इसलिए इन्हें ‘तिब्बत हिमालय’ भी कहा जाता है। इनकी कुल लंबाई 1000 किलोमीटर और चौड़ाई (दोनों किनारों पर) 40 किलोमीटर है परंतु इसका केंद्रीय भाग 222 किलोमीटर के लगभग हो जाता है। इनकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। इसकी मुख्य पर्वतीय श्रेणियां जास्कर, कराकोरम, लद्दाख और कैलाश हैं। यह पर्वतीय क्षेत्र बहुत ऊंची एवं मोड़दार चोटियों तथा विशाल हिमानियों (Glaciers) के लिए प्रसिद्ध है। माऊंट K2 इस क्षेत्र की सबसे ऊंची एवम् संसार की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है।

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प्रश्न 15.
बाह्य हिमालय पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
बाह्य हिमालय को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय और दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पर्वत श्रेणियां लघु हिमालय के दक्षिण भाग के समानांतर पूर्व से पश्चिम की तरफ फैली हुई हैं। इनकी औसत लंबाई 2400 किलोमीटर मीटर तथा चौड़ाई 50 से 15 किलोमीटर तक है। इस क्षेत्र का निर्माण टरशरी युग में हुआ था। इस क्षेत्र में लंबी व गहरी तलछटी चट्टानें मिलती हैं जिनकी रचना चिकनी मिट्टी, रेत, पत्थर, स्लेट आदि के निक्षेपों द्वारा हुई है जो हिमालय से अपरदन द्वारा इन क्षेत्रों में जमा किया जाता रहा है। इस भाग की प्रसिद्ध घाटियां देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, छोखंभा, ऊधमपुर तथा कोटली हैं।

प्रश्न 16.
हिमालय की पूर्वी तथा पश्चिमी शाखाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) पूर्वी शाखाएं-इन शाखाओं को पूर्वांचल (Purvanchal) भी कहते हैं। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी की दिहांग गॉर्ज से लेकर ये श्रृंखलाएं भारत और म्यनमार (बर्मा) की सीमा बनाती हुई दो भागों में बँट जाती हैं

  1. गंगा-ब्रह्मपुत्र द्वारा निर्मित शाखाएं बंगलादेश के मैदानों तक पहुंचती हैं जिसमें दफा बम्म, पटकोई बम्म, गारो, खासी, जयंतिया व त्रिपुरा की पहाड़ियाँ आती हैं।
  2. ये शाखाएं पटकोई बम्म से शुरू होकर नागा पर्वत, बरेल, लुशाई से होती हुई इरावदी के डेल्टे तक पहुंचती हैं। . हिमालय की इन पूर्वी शाखाओं में दफा बम्म और सारामती प्रमुख ऊंची चोटियां हैं।

(ख) पश्चिमी शाखाएं-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गांठ से हिमालय श्रेणियों की आगे दो उप-शाखाएं बन जाती हैं। एक शाखा पाकिस्तान के मध्य में से सॉल्ट रेंज, सुलेमान व किरथर होती हुई दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में अरब सागर तक पहुंचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान से होकर हिंदुकुश तथा कॉकेशस पर्वत की श्रृंखला से जा मिलती है।
भारत-प्रमुख पर्वत चोटियां
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प्रश्न 17.
विशाल उत्तरी मैदानों की चार धरातलीय विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
विशाल उत्तरी मैदानों की चार प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समतल मैदान-संपूर्ण उत्तरी भारतीय मैदान समतल और सपाट है।
  2. नदियों का जाल-इस संपूर्ण मैदानी क्षेत्र में दरियाओं व नदनालों (Choes) का जाल सा बिछा हुआ है। इनके कारण यहां दोआब क्षेत्रों का निर्माण हुआ है। पंजाब राज्य का नाम भी पांच नदियों के बहने के कारण तथा एकसार मिट्टी जमा होने के कारण पंज-आब पड़ा है।
  3. भू-आकार-इन मैदानों में जलोढ़ पंखे, जलोढ़ीय शंकु, विसर्पाकार नदियां, प्राकृतिक सीढ़ी बंध, बाढ़ के मैदान जैसे भू-आकार देखने को मिलते हैं।
  4. मैदानी तलछट-इन मैदानों के तलछट में चिकनी मिट्टी (clay), बालू, दोमट और सिल्ट ज्यादा मोटाई में मिलती है। चिकनी मिट्टी अर्थात् पांडु मिट्टी नदियों के मुहानों के समीप अधिक मिलती है और ऊपरी भागों में बालू की मात्रा में वृद्धि होती जाती है।

प्रश्न 18.
विशाल उत्तरी मैदानों में पाये जाने वाले चार जलोढ़क मैदानों का वर्णन करो।
उत्तर-
विशाल उत्तरी मैदानों में पाये जाने वाले चार जलोढक मैदानों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. खादर के मैदान-उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल की नदियों में हर साल बाढ़ों के आने के कारण मृदा की नई तहें बिछ जाती हैं। इन नदियों के आस-पास बाढ़ वाले क्षेत्रों को खादर के मैदान कहा जाता है।
  2. बांगर के मैदान-ये वे ऊंचे मैदानी क्षेत्र हैं जहाँ पर बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। यहाँ की पुरानी तलछटों में चूने के कंकड़ अधिक मात्रा में मिलते हैं।
  3. भाबर के मैदान-उत्तर भारत में जब दरिया शिवालिक के पहाड़ी प्रदेशों को छोड़कर, समतल प्रदेश में प्रवेश करते हैं तो यह अपने साथ लाई बालू, कंकड़, बजरी, पत्थर आदि के जमाव द्वारा जिन मैदानों का निर्माण करते हैं, उसे भाबर के मैदान कहा जाता है। ऐसे मैदानी क्षेत्रों में छोटी-छोटी नदियों का पानी अक्सर धरती के नीचे बहता है।
  4. तराई के मैदान-जब भाबर क्षेत्रों में अलोप हुई नदियों का पानी पुनः धरातल से निकल आता है तब पानी के इकट्ठे हो जाने के कारण दलदली क्षेत्र (Marshy Lands) बन जाते हैं। इसमें गर्मी व नमी के कारण सघन वन हो जाते हैं और जंगली जीव-जंतुओं की भरमार हो जाती है।

प्रश्न 19.
पंजाब-हरियाणा मैदान की चार विशेषताएं लिखो। .
उत्तर-

  1. यह मैदान सतलुज, रावी, ब्यास व घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों के जमाव से बना है। 1947 में भारत व पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बन जाने के कारण इसका अधिकतर भाग पाकिस्तान में चला गया है।
  2. उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक इनकी लंबाई 640 किलोमीटर तथा औसत चौड़ाई 300 किलोमीटर है।
  3. इस मैदान की औसत ऊंचाई 300 मीटर तक है।
  4. इस उपजाऊ मैदान का क्षेत्रफल 1.75 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 20.
ब्रह्मपुत्र के मैदान पर एक भौगोलिक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र के मैदान को असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के सुदूर उत्तर-पूर्व में सादिआ (Sadiya) तक फैला हुआ है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 250-550 मी० है। इसका निर्माण ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी से हुआ है। इस तंग मैदान में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ों के कारण नवीन तलछटों का निक्षेप होता रहता है। इस मैदान का ढलान उत्तर-पूर्वी तथा पश्चिम की ओर है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत को धरातलीय आधार पर विभिन्न भागों में बांटो तथा किसी एक भाग का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
धरातल के आधार पर भारत को हम पांच भौतिक विभागों में बांट सकते हैं-

  1. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र
  2. उत्तर के मैदान व मरुस्थल
  3. प्रायद्वीपीय पर्वत
  4. तट के मैदान
  5.  भारतीय द्वीप समूह।

इनमें से हिमालय पर्वतीय क्षेत्र का वर्णन इस प्रकार है
हिमालय पर्वत-हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक चाप के रूप में फैले हैं। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लंबाई 2400 कि० मी० तथा कश्मीर हिमालय में इसकी चौड़ाई 400 से 500 कि० मी० तक है।
ऊंचाई के आधार पर हिमालय पर्वतों को निम्नलिखित पांच उपभागों में बांटा जा सकता

  1. ट्रांस हिमालय-इस विशाल पर्वत-श्रेणी का अधिकांश भाग तिब्बत में होने के कारण इसे तिब्बती हिमालय भी कहा जाता है। इसकी कुल लंबाई 1000 कि० मी० तथा चौड़ाई (किनारों पर) 40 कि० मी० है। इन पर्वतों की औसत ऊंचाई 6000 मी० है। भारत की सबसे ऊँची चोटी माऊंट K2 गॉडविन ऑस्टिन तथा गशेरबम I तथा II इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटियां हैं।
  2. महान् (उच्चतम) हिमालय- यह भारत की सबसे लंबी तथा ऊंची पर्वत-श्रेणी है। इसकी लंबाई 2400 कि० मी० तथा औसत ऊँचाई 5100 मी० है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। संसार की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मी०) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है।
  3. लघु-हिमालय-इसे मध्य हिमालय भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई 5050 मी० से लेकर 5050 मी० तक है। इस पर्वत श्रेणी की ऊंची चोटियां शीत ऋतु में बर्फ से ढक जाती हैं। यहां शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि स्वास्थ्यवर्धक स्थान पाये जाते हैं।
  4. बाह्य हिमालय-इस पर्वत श्रेणी को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय तथा दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। इन पर्वतों के दक्षिण में कई झीलें पायी जाती थीं। बाद में इनमें मिट्टी भर गई और इन्हें दून (Doon) (पूर्व में इन्हें द्वार (Duar) कहा जाता है) कहा जाने लगा। इनमें देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि शामिल हैं।
  5. पहाड़ी शाखाएं-हिमालय पर्वतों की दो शाखाएं हैं–पूर्वी शाखाएं तथा पश्चिमी शाखाएं। पूर्वी शाखाएं-इन शाखाओं को पूर्वांचल भी कहा जाता है। इन शाखाओं में ढफा बुम, पटकाई बुम, गारो, खासी, जैंतिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां सम्मिलित हैं।
    पश्चिमी शाखाएं-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गांठ से हिमालय की दो उपशाखाएं बन जाती हैं। एक शाखा पाकिस्तान की साल्ट रेंज, सुलेमान तथा किरथर होते हुए दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर तक पहुंचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान में स्थित हिंदुकुश तथा कॉकेशस पर्वत श्रेणी से जा मिलती है।

प्रश्न 2.
हिमालय की उत्पत्ति एवं बनावट पर लेख लिखो और बताइए कि क्या हिमालय अभी भी बढ़ रहे हैं ?
उत्तर-
हिमालय की उत्पत्ति तथा बनावट का वर्णन इस प्रकार है-
उत्पत्ति-जहां आज हिमालय है, वहां कभी टैथीज (Tythes) नाम का सागर लहराता था। यह दो विशाल भू-खंडों से घिरा एक लंबा और उथला सागर था। इसके उत्तर में अंगारा लैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड नाम के दो भू-खंड थे। लाखों वर्षों तक इन दो भू-खंडों का अपरदन होता रहा। अपरदित पदार्थ अर्थात् कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टैथीज सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भू-खंड धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। सागर में जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी की सतह से ऊपर आ गये। कालान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।

बनावट-हिमालय पर्वतीय क्षेत्र एक उत्तल चाप (Convex Curve) जैसा दिखाई देता है जिसका मध्यवर्ती भाग नेपाल की सीमा तक झुका हुआ है। इसके उत्तर-पश्चिमी किनारे सफ़ेद कोह, सुलेमान तथा किरथर की पहाड़ियों द्वारा अरब सागर में पहुंच जाते हैं। इसी प्रकार के उत्तर-पूर्वी किनारे टैनेसरीम पर्वत श्रेणियों के माध्यम से बंगाल की खाड़ी तक पहुंच जाते हैं।

हिमालय पर्वतों की दक्षिणी ढाल भारत की ओर है। यह ढाल बहुत ही तीखी है। परंतु इसकी उत्तरी ढाल साधारण है। यह चीन की ओर है। दक्षिणी ढाल के अधिक तीखा होने के कारण इस पर जल-प्रपात तथा तंग नदी-घाटियां पाई जाती हैं।

ऊंचाई की दृष्टि से हिमालय की पर्वत श्रेणियों को पांच उपभागों में बांटा जा सकता है-

  1. ट्रांस हिमालय,
  2. महान् हिमालय,
  3. लघु हिमालय,
  4. बाह्य हिमालय तथा
  5. पहाड़ी शाखाएं।

हिमालय पर्वत की मुख्य विशेषता यह है कि ये आज भी ऊंचे उठ रहे हैं।

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प्रश्न 3.
देश के विशाल उत्तरी मैदानों के आकार, जन्म एवं क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के विशाल उत्तरी मैदानों के आकार, जन्म तथा क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन इस प्रकार है
आकार-रावी नदी से लेकर गंगा नदी के डैल्टे तक इस मैदान की कुल लंबाई लगभग 2400 कि० मी० तथा चौड़ाई 150 से 200 कि० मी० तक है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 180 मी० के लगभग है। अनुमान है कि इसकी गहराई 5 कि० मी० से लेकर 32 कि० मी० तक है। इसका कुल क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग कि० मी० है।
जन्म-भारत का उत्तरी मैदान उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में विशाल प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई हुई मिट्टी से बना है। लाखों, करोड़ों वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल में उत्तरी मैदान के स्थान पर टैथीज नामक एक सागर लहराता था। इस सागर से विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम हिमालय के नाम से पुकारते हैं। हिमालय की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ उस पर नदियां तथा अनाच्छादन के दूसरे कारक सक्रिय हो गए। इन कारकों ने पर्वत प्रदेश का अपरदन किया और यह भारी मात्रा में गाद ला-ला कर टैथीज सागर में जमा करने लगे। सागर सिकुड़ने लगा। नदियां जो मिट्टी इसमें जमा करती रहीं, वह बारीक पंक जैसी थी। इस मिट्टी को जलोढ़क कहते हैं। अत: टैथीज सागर के स्थान पर जलोढ़ मैदान अर्थात् उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ।
क्षेत्रीय विभाजन-विशाल उत्तरी मैदान को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-

  1. पंजाब हरियाणा का मैदान-इस मैदान का निर्माण सतलुज, रावी, ब्यास तथा घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों से हुआ है। इसमें बारी दोआब, बिस्त दोआब, मालवा का मैदान तथा हरियाणा का मैदान शामिल है।
  2. थार मरुस्थल का मैदान-पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात में स्थित कच्छ की रण तक के इस मैदान को थार मरुस्थल का मैदान कहते हैं।
  3. गंगा का मैदान-गंगा का मैदान उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में स्थित है।
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान-इसे असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के अति उत्तरी भाग सादिया (Sadiya) तक लगभग 720 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। समुद्र तल से इतनी औसत ऊंचाई 250-550 मी० है।

प्रश्न 4.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार के भौतिक लक्षणों की तुलना कीजिए तथा अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार की तुलना भूगोल की दृष्टि से बड़ी रोचक है।

  1. बनावट-हिमालय तलछटी शैलों से बना है और यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक है। इसकी औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।
    इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार का जन्म आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकैम्बरीअन महाकाल में हुआ था। ये आग्नेय शैलों से निर्मित हुआ है।
  2. विस्तार-हिमालय जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसके पूर्व में पूर्वी श्रेणियां और पश्चिम में पश्चिमी श्रेणियां हैं। पूर्वी श्रेणियों में खासी, गारो, जयंतिया तथा पश्चिमी श्रेणियों में हिंदुकुश तथा किरथर श्रेणियां पाई जाती हैं। हिमालय के पांच भाग हैं-ट्रांस हिमालय, महान् हिमालय, लघु हिमालय, बाह्य हिमालय तथा पहाड़ी शाखाएं।
  3. इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं-मालवा का पठार तथा दक्कन का पठार । ये अरावली पर्वत से लेकर शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसमें पाई जाने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैंअरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
    इसके अतिरिक्त यहां पूर्वी घाट की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा नीलगिरि पर्वत आदि पाये जाते हैं।
  4. नदियां-हिमालय से निकलने वाली नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण सारा साल बहती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की नदियां बरसाती नदियां हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी का अभाव हो जाता है।
  5. आर्थिक महत्त्व-प्रायद्वीपीय पठार में अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
पश्चिमी तथा पूर्वी हिमालय की उप-शाखाओं की चित्र सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार की तुलना भूगोल की दृष्टि से बड़ी रोचक है।

  1. बनावट-हिमालय तलछटी शैलों से बना है और यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक है। इसकी औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।
    इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार का जन्म आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकैम्बरीअन महाकाल में हुआ था। ये आग्नेय शैलों से निर्मित हुआ है।
  2. विस्तार-हिमालय जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसके पूर्व में पूर्वी श्रेणियां और पश्चिम में पश्चिमी श्रेणियां हैं। पूर्वी श्रेणियों में खासी, गारो, जयंतिया तथा पश्चिमी श्रेणियों में हिंदुकुश तथा किरथर श्रेणियां पाई जाती हैं। हिमालय के पांच भाग हैं-ट्रांस हिमालय, महान् हिमालय, लघु हिमालय, बाह्य हिमालय तथा पहाड़ी शाखाएं।
  3. इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं-मालवा का पठार तथा दक्कन का पठार । ये अरावली पर्वत से लेकर शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसमें पाई जाने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैंअरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
    इसके अतिरिक्त यहां पूर्वी घाट की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा नीलगिरि पर्वत आदि पाये जाते हैं।
  4. नदियां-हिमालय से निकलने वाली नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण सारा साल बहती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की नदियां बरसाती नदियां हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी का अभाव हो जाता है।
  5. आर्थिक महत्त्व-प्रायद्वीपीय पठार में अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर नोट लिखो-
1. विन्ध्याचल,
2. सतपुड़ा,
3. अरावली पर्वत,
4. नीलगिरि की पहाडियां।
उत्तर-

  1. विंध्याचल-विंध्याचल पर्वत श्रेणियों का पश्चिमी भाग लावे से बना है। इसका पूर्वी भाग कैमूर तथा भानरेर की श्रेणियां कहलाता है। इसकी दक्षिणी ढलानों के पास नर्मदा नदी बहती है।
  2. सतपुड़ा-सतपुड़ा की पहाड़ियां नर्मदा नदी के दक्षिण किनारे के साथ-साथ पूर्व में महादेव तथा मैकाल की पहाड़ियों के सहारे बिहार में स्थित छोटा नागपुर की पहाड़ियों तक जा पहुंचती हैं। इसकी मुख्य चोटियां हैं-धूपगढ़ तथा अमरकंटक। इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई 1120 मी० है।
  3. अरावली पर्वत-अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक 800 कि० मी० की लंबाई में फैला हुआ है। इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम है और यहां अब पहाड़ियों के बचे-खुचे टुकड़े ही रह गये हैं। इसकी सबसे ऊंची चोटी माऊंट आबू (1722 मी०) है।
  4. नीलगिरि की पहाड़ियां-पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा पूर्वी घाट की पहाड़ियां दक्षिण में जहां जाकर आपस में मिलती हैं, उन्हें दक्षिणी पहाड़ियां या नीलगिरि की पहाड़ियां कहते हैं। इन्हें नीले पर्वत भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
“क्या भारत के भिन्न-भिन्न भौतिक भाग एक-दूसरे से अलग स्वतंत्र इकाइयां हैं या ये एक-दूसरे के पूरक हैं ?” इस कथन की उदाहरणों सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि भारत की भिन्न-भिन्न भौतिक इकाइयां एक-दूसरे की पूरक हैं। वे देखने में अलग अवश्य लगते हैं, परंतु उनका अस्तित्व अलग नहीं है। यदि हम उनके जन्म और उनके मिलने वाले प्राकृतिक भंडारों का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जायेगा कि वे पूरी तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(क) जन्म-

  1. हिमालय पर्वत का जन्म ही प्रायद्वीपीय पठार के अस्तित्व में आने के पश्चात् हुआ है।
  2. उत्तरी मैदानों का जन्म उन निक्षेपों से हुआ है, जिनके लिए प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वत की नदियां उत्तरदायी हैं।
  3. प्रायद्वीपीय पठार की पहाड़ियां, दरार घाटियां तथा अपभ्रंश हिमालय के दबाव के कारण ही अस्तित्व में आए हैं।
  4. तटीय मैदानों का जन्म प्रायद्वीपीय घाटों की मिट्टी से हुआ है।

(ख) प्राकृतिक भंडार-

  1. हिमालय पर्वत बर्फ का घर है। इसकी नदियां जल प्रपात बनाती हैं और इनसे जो बिजली बनाई जाती है, उसका उपयोग पूरा देश करता है।
  2. भारत के विशाल मैदान उपजाऊ मिट्टी के कारण पूरे देश के लिए अन्न का भंडार है। इसमें बहने वाली गंगा नदी सारे भारत को प्रिय है।
  3. प्रायद्वीपीय पठार में खनिजों का खज़ाना दबा पड़ा है। इसमें लोहा, कोयला, तांबा, अभ्रक, मैंगनीज़ आदि कई प्रकार के खनिज दबे पड़े हैं, जो देश के विकास के लिए अनिवार्य हैं।
  4. तटीय मैदान देश को चावल, मसाले, अदरक, लौंग, इलायची जैसे व्यापारिक पदार्थ प्रदान करते हैं।
    सच तो यह है कि देश की भिन्न-भिन्न इकाइयां एक दूसरे की पूरक हैं और ये देश के आर्थिक विकास में अपना विशेष योगदान देती हैं।

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प्रश्न 8.
पश्चिमी तटीय मैदानों का उसके उपभागों सहित विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी तटीय मैदान कच्छ के रण से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। ये विस्तृत संकरे मैदान हैं। इनकी चौड़ाई 65 कि.मी. के लगभग है। इनका ढलान दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इन मैदानों को धरातलीय विशेषताओं के आधार पर चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. गुजरात का तटवर्ती मैदान,
  2. कोंकण का तटवर्ती मैदान,
  3. मालाबार का तटवर्ती मैदान,
  4. केरल का मैदान।

1. गुजरात का तटवर्ती मैदान-इस तटवर्ती मैदानी भाग में साबरमती, माही, लुनी, बनास, नर्मदा, ताप्ती आदि नदियों के तलछट के जमाव से कच्छ तथा काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय मैदान और सौराष्ट्र के लंबवत् मैदानों का निर्माण हुआ है। कच्छ का क्षेत्र अभी भी दलदली तथा समुद्र तल से नीचा है। काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय भाग में लावा युक्त गिर पर्वतीय श्रेणियां भी मिलती हैं। यहाँ की गिरनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ चोटी की ऊंचाई सबसे अधिक है। गुजरात का यह तटवर्ती मैदान 400 किलोमीटर लंबा तथा 200 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी औसत ऊंचाई 300 मीटर है।

2. कोंकण का तटवर्ती मैदान-दमन से लेकर गोआ तक का मैदान कोंकण तट कहलाता है। इसके अधिकतर तटवर्ती भागों में धंसने की क्रिया होती रहती है। इसीलिए इस 500 किलोमीटर लंबे मैदान की पट्टी की चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक रह जाती है। इस मैदानी भाग में तीव्र समुद्री लहरों द्वारा बनी संकरी खाड़ियां, आंतरिक कटाव (Coves) और समुद्री बालू में बीच (Beach) आदि भू-आकृतियां मिलती हैं। थाना की संकरी खाड़ी में प्रसिद्ध मुंबई द्वीप स्थित है।

3. मालाबार का तटवर्ती मैदान-यह गोआ से लेकर मंगलौर तक लगभग 225 किलोमीटर लंबा तथा 24 किलोमीटर चौड़ा मैदान है। इसे कर्नाटक का तटवर्ती मैदान भी कहते हैं। यह उत्तर की ओर संकरा परंतु दक्षिण की ओर चौड़ा है। कई स्थानों पर इसका विस्तार कन्याकुमारी तक भी माना जाता है। इस मैदान में मार्मागोआ, मान्ढवी तथा शेरावती नदियों के समुद्री जल में डूबे हुए मुहाने (Estuaries) मिलते हैं।

4. केरल के मैदान-मंगलौर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किलोमीटर लंबे, 10 किलोमीटर चौड़े तथा 300 मीटर ऊंचे भू-भाग केरल के मैदान कहलाते हैं। इनमें बहुत-सी झीलें (Lagoons) तथा काईल अथवा क्याल (Kayals) पाये जाते हैं। क्याल झीलों का स्थानीय नाम है। यहाँ पर बैंबानद (Vembanad) और अष्टमुदई (Astamudi) की झीलों वाले क्षेत्रों में नौकाओं का व्यापारिक स्तर पर प्रयोग होता है।

भारत : धरातल/भू-आकृतियां PSEB 9th Class Geography Notes

  • विज्ञान की वह शाखा जो भू-आकृतियों के निर्माण तथा इसके लिए उत्तरदायी कारकों का अध्ययन करती है, ‘भू-आकृति विज्ञान’ कहलाती है।
  • भारत के कुल क्षेत्रफल का 43% मैदानी, 29.3% पहाड़ी और 27.7% पठारी प्रदेश है।
  • धरातल के अनुसार भारत को पांच भागों में बांटा जा सकता है-
    1. हिमालय पर्वत,
    2. उत्तर के विशाल मैदान व मरुस्थल,
    3. प्रायद्वीपीय पठार का क्षेत्र
    4. तट के मैदान
    5. भारतीय द्वीप समूह।
  • 12 करोड़ वर्ष पहले हिमालय के स्थान पर टेथिस नामक एक कम गहरा सागर था।
  • संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माऊंट एवरेस्ट तथा भारत की गॉडविन-ऑस्टन (K2) है।
  • उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध दर्रे बृहत् हिमालय में स्थित हैं। मध्य हिमालय अपने रमणीक स्थानों के लिए प्रसिद्ध है।
  • भाबर, तराई, बांगर, खाडर, रेह, भूर आदि विभिन्न प्रकार के मैदान हैं।
  • बिस्त तथा बारी दोआब भारत में है और चज दोआब पाकिस्तान में है।
  • सुंदर वन का अर्थ है-सुंदरी नामक वृक्षों से भरा हुआ वन (जंगल)।
  • मध्य भारत का पठार, मालवा का पठार और दक्कन का पठार भारत के पठारी क्षेत्र हैं। ये भारत के प्रायद्वीपीय पठार के भाग हैं।
  • थाल घाट, भोर घाट, पाल घाट तथा शेनकोश पश्चिमी घाट के दर्रे हैं।
  • पूर्वी घाट का पठारी क्षेत्र खनिजों का भंडार है।
  • कच्छ, कोंकण, मालाबार, कोरोमंडल और उत्कल तटवर्ती मैदानों के भाग हैं।
  • भारतीय द्वीप समूह में लगभग 267 द्वीप हैं। इन्हें दो भागों में बांटा जाता है-बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडेमान-निकोबार तथा अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप समूह।
  •  मालवा का पठार त्रिभुज के आकार का है। खनिज पदार्थों के लिए प्रसिद्ध छोटा नागपुर का पठार भी मालवा के पठार का एक भाग है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Geography Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

SST Guide for Class 8 PSEB प्राकृतिक संसाधन Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 20-25 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
भूमि को मुख्यतः किस-किस धरातली वर्गों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
भूमि को मुख्यत: तीन धरातली वर्गों में बांटा जा सकता है-पर्वत, पठार तथा मैदान।

प्रश्न 2.
मैदानों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
मैदान कृषि योग्य तथा घनी आबादी वाले क्षेत्र होते हैं। ये मनुष्य की अनेक ज़रूरतों को पूरा करते हैं। कृषि तथा वनस्पति के अनुरूप मैदानी भूमि को बहुत ही बहुमूल्य माना जाता है।

प्रश्न 3.
वे कौन-से तत्त्व हैं जो मिट्टी की रचना में अपनी भूमिका अदा करते हैं ?
उत्तर-
प्रमुख चट्टानें, जलवायु, पौधे तथा जीव-जन्तु।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 4.
भारत में कितने प्रकार की मिट्टी (मृदा) पाई जाती है ? किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारत में निम्नलिखित 6 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है-

  1. जलौढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लाल मृदा
  4. लेटराइट मृदा
  5. वनीय तथा पर्वतीय मृदा
  6. मरुस्थलीय मृदा।

प्रश्न 5.
काली मिट्टी में कौन-कौन सी उपजें उगाई जा सकती हैं ?
उत्तर-
काली मिट्टी कपास, गेहूँ, ज्वार, अलसी, तम्बाकू, सूरजमुखी आदि फ़सलें उगायी जा सकती हैं। यदि सिंचाई का प्रबन्ध हो तो इसमें चावल तथा गन्ने की खेती भी की जा सकती है।

प्रश्न 6. जल के मुख्य स्रोतों के नाम लिखो।
उत्तर-जल के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. वर्षा
  2. नदियां और नाले
  3. नहरें
  4. तालाब
  5. भूमिगत जल।

प्रश्न 7. प्राकृतिक वनस्पति से मानव को क्या-क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक वनस्पति से मानव को लकड़ी मिलती है जिसका प्रयोग ईंधन के रूप में तथा बड़े-बड़े उद्योगों में होता है।
  2. इससे हमें फल, दवाइयां तथा अन्य कई प्रकार के उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8. भारत में वनों की कौन-सी किस्में पाई जाती हैं ?
उत्तर-भारत में वनों की निम्नलिखित किस्में पाई जाती हैं-

  1. सदाबहार वन
  2. पतझड़ी वन
  3. मरुस्थलीय वन
  4. पर्वतीय वन
  5. डैल्टाई वन।

प्रश्न 9.
पक्षी क्या हैं और ये कहाँ से आते हैं ?
उत्तर-
जो पक्षी सर्दी के मौसम में अत्यधिक ठण्डे प्रदेशों से भारत आते हैं उन्हें प्रवासी पक्षी कहते हैं। ये मुख्यत: साइबेरिया तथा चीन से आते हैं।

II. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 70-75 शब्दों में लिखो :

प्रश्न 1.
भारत में भूमि का प्रयोग किस तरह किया जा रहा है ?
उत्तर-
भारत में भूमि का प्रयोग भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए होता है-

  1. वन-भारत के क्षेत्रफल का 23% भाग वनों के अन्तर्गत आता है जो वैज्ञानिक दृष्टि से कम है। वैज्ञानिक दृष्टि से देश का 33% क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए।
  2. कृषि योग्य भूमि-भारत का 46% क्षेत्रफल कृषि योग्य भूमि है। इसमें विभिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाती है
  3. कृषि अयोग्य भूमि-देश की 14% भूमि गांवों, शहरों, सड़कों, रेलवे लाइनों, नदियों तथा झीलों के अधीन है। इसमें बंजर भूमि भी शामिल है।
  4. कृषि के बिना छोड़ी हुई भूमि-भारत की बहुत-सी भूमि कृषि के बिना छोड़ी हुई है। इस पर कृषि तो की जाती है। परन्तु इसे 1 से 5 वर्ष तक खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह अपनी उपजाऊ शक्ति फिर से प्राप्त कर ले।
  5. अन्य-
    • भारत की 5% भूमि कृषि योग्य, परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि है। इस पर कृषि तो की जा सकती है, परन्तु कुछ कारणों से इस पर कृषि नहीं की जाती।
    • भारत की 4% भूमि चरागाहें हैं जिस पर पशु चराये जाते हैं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन 1

प्रश्न 2.
मिट्टी के प्रकार बता कर जलोढ़ मिट्टी के महत्त्व के बारे में लिखो।
उत्तर-
मिट्टी के प्रकार-मिट्टी (मृदा) मुख्य रूप से 6 प्रकार की होती है

  1. जलौढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लाल मृदा
  4. लेटराइट मृदा
  5. वनीय तथा पर्वतीय मृदा
  6. मरुस्थलीय मृदा।

जलौढ़ मिट्टी का महत्त्व-जलौढ़ मिट्टी बारीक कणों से बनी होती है। ये कण मिट्टी को उपजाऊ बना देते हैं। इसलिए जलौढ़ मिट्टी द्वारा बने मैदान कृषि के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। भारत के सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान इसी प्रकार के मैदान हैं।

प्रश्न 3.
मिट्टी संसाधन की सम्भाल किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर-
मिट्टी की सम्भाल नीचे दिए गए तरीकों से की जा सकती हैमिट्टी के संसाधन के महत्त्व को देखते हुए हमें-

  • मिट्टी के अपरदन को रोकना चाहिए।
  • नदियों पर बांध बनाकर बाढ़ों के पानी को रोकना चाहिए।
  • अधिक पानी का निकास करके सीलन (सेम). की समस्या से छुटकारा पाना चाहिए।
  • बाढ़ों को रोकने से मिट्टी अपरदन भी रोका जा सकता है और नदियों के आस-पास पड़ी अतिरिक्त भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
  • कृषि के गलत तरीकों से भी मिट्टी कमजोर होती है। इसलिए आवश्यक है कि कृषि के ढंग अच्छे हों।
    यदि हम मिट्टी का प्रयोग अच्छे ढंग तथा समझदारी से करेंगे तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति अधिक समय तक बनी रहेगी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 4.
जल संसाधन में नदियों और नहरों के महत्त्व के बारे में लिखें।
उत्तर-
मानव सभ्यता के विकास में नदियों तथा नहरों की आरम्भ से ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मनुष्य ने आरम्भ में अपने आवास नदियों के आस-पास ही बनाये थे, ताकि उसे जल प्राप्त होता रहे। कई स्थानों पर मनुष्य ने नदियों पर बांध बना कर अपने लाभ के लिए नहरें निकाली हैं। इन नहरों के जल का प्रयोग सिंचाई तथा मानव के अन्य उपयोगों के लिए किया जाता है। सिंचाई संसाधनों के विस्तार से कृषि में एक नई क्रान्ति आ गई है।

प्रश्न 5.
जल की सम्भाल कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
जल एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। अतः इसकी सम्भाल अति आवश्यक है। इसकी सम्भाल निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है

  • जल का ज़रूरत से अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • सिंचाई की नई विधियों का प्रयोग किया जाए। उदाहरण के लिए फव्वारों द्वारा सिंचाई।
  • वर्षा के जल को भूमिगत कुओं द्वारा भूमि के अन्दर ले जाया जाये ताकि भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो।
  • प्रयोग किये गये जल को पुनः प्रयोग करने योग्य बनाया जाए।
  • सीवरेज के जल को साफ़ करके सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में जल का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए और इसे व्यर्थ बह जाने से रोकना चाहिए।

प्रश्न 6.
पतझड़ वनों पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
पतझड़ वन वे वन हैं जिन वृक्षों के पत्ते एक विशेष मौसम में झड़ जाते हैं। बसंत के मौसम में इन पर फिर से पत्ते आ जाते हैं। इस प्रकार के वन भारत में अधिक मिलते हैं। लकड़ी प्राप्त करने के लिए ये वन बहुत अधिक महत्त्व रखते हैं। इन वनों में मुख्यतः साल, टीक, बांस, शीशम (टाहली) तथा खैर के वृक्ष पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
जंगली जीवों के बचाव और सम्भाल के लिए भारत सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाये हैं ?
उत्तर-
भारत सरकार की ओर से जंगली जीवों के बचाव और सम्भाल के लिए बहुत से कदम उठाये गए हैं-

  • 1952 में “जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड” की स्थापना की गई।
  • जंगली जीवों के बचाव के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर 1973’ तथा ‘प्रोजेक्ट ऐलीफैंट 1992’ आदि प्रोग्राम चलाये जा रहे हैं।
  • इस उद्देश्य से 1972 तथा 2002 में विभिन्न एक्ट पास किए गए।
  • बहुत-से राष्ट्रीय पार्क तथा जंगली जीव सैंक्चुरियां बनाई गई हैं। इनमें जंगली जीव अपनी प्राकृतिक अवस्था में सुरक्षित रह सकते हैं। इस समय भारत में 89 राष्ट्रीय पार्क तथा 490 जंगली जीव सैंक्चुरियां हैं।
  • जंगली जीवों के शिकार पर रोक लगाई गई है।

प्रश्न 8.
मिट्टी से जुड़ी समस्याओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मिट्टी मनुष्य के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य की भोजन सम्बन्धी अधिकतर आवश्यकताएं मिट्टी से ही पूरी होती हैं। इसके लिए उपजाऊ मिट्टी की ज़रूरत होती है। परन्तु निम्नलिखित समस्याओं के कारण मिट्टी सदैव उपजाऊ नहीं रह पाती-

  1. मिट्टी का अपरदन
  2. लगातार खेती
  3. मिट्टी में रेत कण
  4. मिट्टी में सेम (अधिक पानी) की समस्या
  5. मिट्टी में तेजाब या लवणता
  6. मिट्टी का समर्थता से अधिक प्रयोग।

III. नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर लगभग 250 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
प्राकृतिक संसाधन कौन-से हैं ? मिट्टी और प्राकृतिक वनस्पति की किस्में और महत्त्व लिखो।
उत्तर-
प्रकृति द्वारा प्रदान किए गये उपहारों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन संसाधनों में भूमि,जल, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, जंगली जीव, खनिज पदार्थ आदि शामिल हैं।

1. मिट्टी-मिट्टी की मुख्य किस्में निम्नलिखित हैं-

  • जलौढ़ मिट्टी
  • काली मिट्टी
  • लाल मिट्टी
  • लेटराइट मिट्टी
  • वनीय तथा पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी।

महत्त्व-मिट्टी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। ये फ़सलें उगाने के लिए अनिवार्य है। उपजाऊ मिट्टी विशेष रूप से उन्नत कृषि का आधार है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए तो मिट्टी का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यहां भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं।

2. प्राकृतिक वनस्पति-भारत में मिलने वाली प्राकृतिक वनस्पति की मुख्य किस्में निम्नलिखित हैं(1) सदाबहार वन (2) पतझड़ी वन (3) मरुस्थलीय वन (4) पर्वतीय वन (5) डैल्टाई वन।
महत्त्व-मिट्टी की तरह वनस्पति भी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। यह मनुष्य की अनेक ज़रूरतों को पूरा करती है-

  • वनस्पति से हमें ईंधन, भवन बनाने तथा फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी मिलती है। वनों की नर्म लकड़ी से कागज़ तथा माचिसें बनाई जाती हैं। वनों पर अन्य भी कई उद्योग निर्भर हैं।
  • वनों से लाख, गोंद, गंदा बिरोज़ा, रबड़ आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  • वनों की घास पर पशु चरते हैं।
  • वन अनेक पशु-पक्षियों को आश्रय देते हैं।
  • वनों से अनेक जड़ी-बूटियां मिलती हैं जिनसे दवाइयां बनाई जाती हैं।
  • वन अनेक प्रकार के फल प्रदान करते हैं।
  • वन मिट्टी के अपरदन को रोकते हैं तथा वनों के विस्तार को नियन्त्रित करते हैं।
  • वन बाढ़ों को नियन्त्रित करते हैं।
  • ये वर्षा लाने तथा प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने में सहायता करते हैं। . सच तो यह है कि वनों से अनेक लोगों को रोजगार मिलता है।

प्रश्न 2.
जल और जंगली जीवों की सम्भाल कैसे की जा सकती है ‘? अपने विचार प्रकट करो।
उत्तर-
जल की सम्भाल-जल एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। अतः इसकी सम्भाल अति आवश्यक है। इसकी सम्भाल निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है

  • जल का ज़रूरत से अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • सिंचाई की नई विधियों का प्रयोग किया जाए। उदाहरण के लिए फव्वारों द्वारा सिंचाई।
  • वर्षा के जल को भूमिगत कुओं द्वारा भूमि के अन्दर ले जाया जाये ताकि भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो।
  • प्रयोग किये गये जल को पुनः प्रयोग करने योग्य बनाया जाए।
  • सीवरेज के जल को साफ़ करके सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में जल का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए और इसे व्यर्थ बह जाने से रोकना चाहिए।

जंगली जीवों की सम्भाल-जंगली जीव हमारी धरती की शोभा हैं। परन्तु मानव द्वारा शिकार किये जाने के कारण इनकी कई किस्में समाप्त हो चुकी हैं और कई अन्य समाप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए जंगली जीवों की सम्भाल करना अति आवश्यक है। इसके लिए अग्रलिखित पग उठाए जाने चाहिए-

  • हमें सरकार द्वारा जंगली जीवों की रक्षा के लिए बनाए गये कानूनों का पूरी तरह पालन करना चाहिए।
  • हमें राष्ट्रीय पार्कों तथा जंगली-जीव सैंक्चुरियों के रख-रखाव में सरकार को सहयोग देना चाहिए।
  • हमें अपनी ओर से जंगली जीवों तथा पक्षियों का शिकार नहीं करना चाहिए।
  • वन जंगली जीवों तथा पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम वनों को न काटें, ताकि जीवों के घर नष्ट न हों।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

PSEB 8th Class Social Science Guide प्राकृतिक संसाधन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. भारत का लगभग ………….. प्रतिशत भाग पर्वतीय है।
2. ………… मिट्टी को रेगुर भी कहा जाता है।
3. डैल्टाई वनों में ……………के वृक्ष अधिक संख्या में मिलते हैं।
उत्तर-

  1. 30
  2. काली
  3. सुन्दरी।

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं :

1. पतझड़ी वनों को मानसूनी वन भी कहा जाता है।
2. दक्षिण भारत में नहरें लोगों के लिए बहुत बड़ा जल साधन हैं।
3. संसार में जल का सबसे अधिक प्रयोग कृषि के लिए होता है।
उत्तर-

(ग) सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस स्रोत के जल का प्रयोग मनुष्य नहीं कर सकता ?
(i) समुद्र
(ii) नहरें
(iii) तालाब
(iv) भूमिगत जल।
उत्तर-
(i) समुद्र

प्रश्न 2.
जल के संरक्षण का कौन-सा उपाय नहीं है ?
(i) भूमिगत कुएं
(ii) बांध बनाना
(iii) पुनः प्रयोग
(iv) नदियों में बहा देना।
उत्तर-
(iv) नदियों में बहा देना,

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायु में अधिक घने वन मिलते हैं ?
(i) कम वर्षा तथा कम तापमान
(ii) अधिक वर्षा और उच्च तापमान
(iii) अधिक वर्षा तथा कम तापमान
(iv) कम वर्षा तथा उच्च तापमान।
उत्तर-
(iii) अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान।

(घ) सही जोड़े बनाइए :

1. मरुस्थलीय मिट्टी – पूर्वी तथा पश्चिमी घाट
2. काली मिट्टी – राजस्थान
3. जलोढ़ मिट्टी – महाराष्ट्र
4. वनी एवं पर्वतीय मिट्टी – भारत का उत्तरी मैदान।
उत्तर-1. राजस्थान,
2. महाराष्ट्र,
3. भारत का उत्तरी मैदान,
4. पूर्वी तथा पश्चिमी घाट।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
धरती पर भूमि और पानी की बांट लिखें।
उत्तर-
धरती का केवल 29% भाग भूमि है। शेष 71% भाग पानी है।

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प्रश्न 2.
भारत में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाने की आवश्यकता है। क्यों?
उत्तर-
भारत जैसे घनी जनसंख्या वाले देश का 33% क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए। परन्तु भारत का केवल 22.2 प्रतिशत क्षेत्र ही वनों के अधीन है। इसलिए भारत में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाये जाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
कृषि योग्य परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि क्या होती है?
उत्तर-
कृषि योग्य परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि ऐसी भूमि होती है जिस पर कृषि तो की जा सकती है, परन्तु कुछ कारणों से इस पर कृषि नहीं की जाती। इन कारणों में जल की कमी, मिट्टी अपरदन, अधिक लवणता, पानी का अधिक समय तक खड़ा रहना आदि बातें शामिल हैं।

प्रश्न 4.
वनीय एवं पर्वतीय मिट्टी कहां मिलती है? इसकी कोई दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
वनीय एवं पर्वतीय मिट्टी वनों तथा पर्वतीय ढलानों पर मिलती है। विशेषताएं-(1) इस मिट्टी में जैविक तत्त्व अधिक होते हैं।
(2) इसमें पोटाश, फ़ास्फोरस तथा चूने की कमी होती है। इसलिए इसमें कृषि करने के लिए उर्वरकों की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टी क्या होती है?
उत्तर-
जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी है जो बारीक गाद के निक्षेपण से बनती है। यह गाद नदियां अपने साथ बहा कर लाती हैं। समुद्र तट के निकट समुद्री लहरें भी इस प्रकार की मिट्टी का जमाव करती हैं। जलोढ़ मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है।

प्रश्न 6.
काली मिट्टी को कपास की मिट्टी क्यों कहा जाता है ? इसका एक अन्य नाम बताओ।
उत्तर-
काली मिट्टी कपास की फ़सल के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इसलिए इसे कपास की मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का एक अन्य नाम रेगुर मिट्टी है।

प्रश्न 7.
भारत में मरुस्थलीय मिट्टी कहां-कहां पाई जाती है? .
उत्तर-
भारत में मरुस्थलीय मिट्टी राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है। गुजरात के कुछ भागों में भी इस प्रकार की मिट्टी मिलती है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी को ‘जल ग्रह’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
पृथ्वी का अधिकतर भाग जल है जो लगभग 71% है। जल की अधिकता के कारण ही पृथ्वी को ‘जल • ग्रह’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पृथ्वी पर सबसे अधिक जल किस रूप में मिलता है? यह कुल जल का कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पृथ्वी पर सबसे अधिक जल समुद्रों, सागरों तथा नमकीन जल की झीलों के रूप में मिलता है। यह कुल जल का 97.20% है।

प्रश्न 10.
संसार में सबसे अधिक जल का प्रयोग किस कार्य के लिए होता है? यह कुल जल का कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
संसार में सबसे अधिक जल का प्रयोग कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। यह कुल जल का लगभग 93.37% है।

प्रश्न 11.
तालाब प्रायः किन क्षेत्रों में पाये जाते हैं ?
उत्तर-
तालाब प्रायः उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां सारा साल बहने वाली नदियों तथा नहरों की कमी होती है। इन क्षेत्रों में भूमिगत जल भी बहुत गहरा है। भारत में तालाब मुख्यतः दक्षिणी भारत में पाये जाते हैं।

प्रश्न 12.
मरुस्थलीय वनस्पति की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
मरुस्थलीय वनस्पति कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। यह वनस्पति विरली होती है। इसमें खजूर, कैक्टस तथा कांटेदार झाड़ियां ही मिलती हैं। भारत में इस प्रकार की वनस्पति राजस्थान, गुजरात तथा हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है।

प्रश्न 13.
पर्वतीय वनस्पति के किन्हीं चार वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. फर
  2. देवदार
  3. ओक तथा
  4. अखरोट।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जलौढ़ (जलौद) मिट्टी पर एक नोट लिखो। इसे कौन-कौन से दो भागों में बांटा जाता है?
उत्तर-
जलौढ़ मिट्टी देश के लगभग 45% भाग में पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी का हमारी कृषि में बहुत अधिक योगदान है। यह मिट्टी नदियों तथा नहरों के पानी द्वारा बिछाई जाती है। समुद्र तट के साथ-साथ समुद्री लहरें भी इस प्रकार की मिट्टी का जमाव करती हैं। बाढ़ आने पर पानी में घुले मिट्टी के बारीक कण धरातल पर आ जाते हैं। ये कण मिट्टी को बहुत अधिक उपजाऊ बना देते हैं। भारत के उपजाऊ उत्तरी मैदानों में प्रमुख रूप से जलौढ़ मिट्टी ही पाई जाती है। __ जलौढ़ मिट्टी के भाग-जलौढ़ मिट्टी को दो भागों में बांटा जाता है-खादर तथा बांगर । खादर मिट्टी के नये जमाव को कहा जाता है, जबकि बांगर मिट्टी का पुराना जमाव होता है।

प्रश्न 2.
काली मिट्टी की मुख्य विशेषताएं बताओ। भारत में यह मिट्टी कहां-कहां पाई जाती है?
उत्तर-
काली मिट्टी कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। इसे रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है। क्योंकि यह मिट्टी कपास की उपज के लिए अति उत्तम मानी जाती है, इसलिए इसे कपास की मिट्टी भी कहते हैं।
विशेषताएं-

  • काली मिट्टी आग्नेय चट्टानों से बनी है।
  • यह मिट्टी अपने अन्दर नमी को लम्बे समय तक बनाये रखती है।
  • यह बहुत ही उपजाऊ होती है। इसमें कपास, गेहूं, ज्वार, अलसी, तम्बाकू, सूरजमुखी आदि फ़सलें उगाई जाती हैं। सिंचाई क. सबन्ध होने पर इसमें चावल तथा गन्ने जैसी फसलें भी उगाई जा सकती हैं।

प्रदेश-काली मिट्टी भारत के लगभग 16.6% भाग पर पाई जाती है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात तथा तमिलनाडु राज्यों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
मरुस्थलीय मिट्टी पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
मरुस्थलीय मिट्टी में रेत के कणों की अधिकता होती है। इसलिए यह अधिक उपजाऊ नहीं होती। इस मिट्टी में जल को समा कर रखने की शक्ति भी बहुत कम होती है, क्योंकि जल जल्दी से नीचे चला जाता है। अतः इस प्रकार की मिट्टी में अधिक जल वाली फ़सलें नहीं उगाई जा सकती। इसमें प्राय: जौ, बाजरा, मक्की तथा दालों की खेती की जाती है। जिन प्रदेशों में नहरी सिंचाई की सुविधा प्राप्त है, वहां कृषि उन्नत हो रही है। भारत में कुल भूमि के लगभग 4.3% भाग पर मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है। यह मुख्यत: राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में मिलती है। गुजरात के कुछ भागों में भी मरुस्थलीय मिट्टी का विस्तार है।

प्रश्न 4.
लाल मिट्टी की विशेषताओं तथा भारत में इसके वितरण के बारे में लिखो।
उत्तर-

  • लाल मिट्टी को इसके लाल रंग के कारण इस नाम से पुकारा जाता है। वैसे इसकी रचना तथा रंग इसकी मूल चट्टान पर निर्भर करता है।
  • इस मिट्टी में चूने, मैग्नीशियम, फास्फेट, नाइट्रोजन तथा जैविक तत्त्वों की कमी होती है।
  • फ़सलें उगाने के लिए यह मिट्टी अधिक उपयोगी नहीं होती। परन्तु अच्छी सिंचाई सुविधाएं मिलने पर इसमें गेहूं, कपास, दालें, आलू, फल आदि फ़सलें उगाई जा सकती हैं।

वितरण-भारत की कुल भूमि के 10.6% भाग पर लाल मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी मुख्य रूप से तमिलनाडु, दक्षिण-पूर्वी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, राजस्थान आदि राज्यों में मिलती है।

प्रश्न 5.
लेटराइट मिट्टी की विशेषताएं बताओ। यह भारत में कहां पाई जाती है?
उत्तर-
लेटराइट मिट्टी 90-100% तक लौह अंश, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम और मैंगनीज़ आक्साइड से बनी होती है। ऐसी मिट्टी प्रायः उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। अधिक वर्षा के कारण इसके उपजाऊ तत्त्व घुलकर पृथ्वी की भीतरी परतों में चले जाते हैं और ऑक्साइड पृथ्वी के ऊपर रह जाते हैं। उपजाऊ तत्त्वों की कमी हो जाने के कारण यह मिट्टी कृषि योग्य नहीं रहती। परन्तु सिंचाई सुविधाओं तथा रासायनिक खादों के उपयोग से इसमें चाय, रबड़, कॉफी तथा नारियल जैसी फ़सलें पैदा की जा सकती हैं।

भारत में वितरण-लेटराइट मिट्टी देश की कुल मिट्टी क्षेत्रफल के 7.5% भाग में पाई जाती है। यह मुख्यतः पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, राजमहल की पहाड़ियों, विंध्याचल, सतपुड़ा और मालवा के पठार में मिलती है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, केरल, झारखण्ड तथा असम राज्य के कुछ भागों में भी इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 6.
जंगली जीवों से क्या भाव है? भारत के जंगली जीवों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
जंगलों में रहने वाले जीवों को जंगली जीव कहा जाता है। इनमें बड़े-बड़े जानवरों से लेकर छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े शामिल हैं। जंगलों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षी भी पाये जाते हैं। संसार के बड़े-बड़े जंगलों तथा घास के मैदानों में तरह-तरह के जंगली जीव मिलते हैं। भारत में भी 80,000 से अधिक प्रकार के जंगली जीव मिलते हैं। इनमें हाथी, शेर, चीता, बाघ, गैंडा, भालू, यॉक, हिरण, गीदड़, नील गाय, बन्दर, लंगूर आदि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त हमारे देश में नेवले, कछुए तथा कई प्रकार के सांप भी पाये जाते हैं। यहां अनेक प्रकार के पक्षी तथा मछलियां भी मिलती हैं। सर्दियों में कई प्रकार के पक्षी संसार के ठण्डे प्रदेशों से हमारे देश में आते हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक संसाधनों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ? इसके मुख्य क्षेत्र हमारे देश में कहां-कहां
उत्तर-
प्रकृति द्वारा प्रदान किये गए संसाधनों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन संसाधनों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। ये संसाधन किसी देश की खुशहाली तथा शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए इन्हें किसी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी’ कहा जाता है। __भारत में प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र-

  1. भारत का 30% भाग पर्वतीय है। इन पर्वतों को संसाधनों का भण्डार कहते हैं। ये जल तथा वन संसाधनों में धनी हैं।
  2. देश का 27% भाग पठारी है। इस क्षेत्र से हमें कई प्रकार के खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। इनमें कृषि भी होती है।
  3. देश का शेष 43% भाग मैदानी है। उपजाऊ मिट्टी के कारण यहां की कृषि बहुत ही उन्नत है। इसलिए ये मैदान देश के ‘अन्न-भण्डार’ भी कहलाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के लिए ताजे जल (fresh water) के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पृथ्वी पर बहुत अधिक खारा तथा ताजा जल पाया जाता है। मनुष्य इसमें से कुछ सीमित तथा ताज़े जल के स्रोतों का ही प्रयोग करता है। इन स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. वर्षा-वर्षा पृथ्वी पर जल-पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। परन्तु वर्षा के जल की प्राप्ति में काफ़ी भिन्नताएं पाई जाती हैं। कहीं वर्षा बहुत अधिक होती है तो कहीं बहुत ही कम। भारत में औसत रूप से 118 सें०मी० वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा का यह सारा जल मनुष्य के प्रयोग में नहीं आता। इसका बहुत-सा भाग रिस-रिस कर धरातल में चला जाता है जिससे भूमिगत जल में वृद्धि होती है।
  2. नदियां एवं नहरें-मनुष्य के विकास में नदियों तथा नहरों की आरम्भ से ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मनुष्य ने आरम्भ में अपने आवास नदियों के आसपास ही बनाये थे, ताकि उसे जल प्राप्त होता रहे। कई स्थानों पर मनुष्य ने नदियों पर बांध बना कर अपने लाभ के लिए नहरें निकाली हैं। इन नहरों के जल का प्रयोग सिंचाई तथा मानव के अन्य उपयोगों के लिए किया जाता है। सिंचाई संसाधनों के विस्तार से कृषि में एक नई क्रान्ति आ गई है।
  3. तालाब-तालाब अधिकतर उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां सारा साल बहने वाली नदियों या नहरों की कमी होती है। इन भागों में भूमिगत जल भी बहुत गहरा होता है जिसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए लोग वर्षा के जल को तालाबों में इकट्ठा कर लेते हैं और आवश्यकता के समय इसका प्रयोग करते हैं। दक्षिण भारत में तालाब लोगों के लिए बहुत बड़ा जल संसाधन हैं।
  4. भूमिगत जल-भूमिगत जल मानव के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इसे कुओं और ट्यूबवेलों द्वारा धरती से बाहर निकाला जाता है। यह जल मुख्य रूप से पीने या सिंचाई के काम आता है। भूमिगत जल की मात्रा चट्टानों की बनावट तथा उस प्रदेश में होने वाली वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या अभिप्राय है? यह किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ? भारत की किन्हीं चार किस्मों की प्राकृतिक वनस्पति का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़-पौधों को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। प्राकृतिक वनस्पति जलवायु, मिट्टी तथा जैविक तत्त्वों पर निर्भर करती है। इनमें से जलवायु सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। संसार के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। वनस्पति की किस्मों को जलवायु, मिट्टी के प्रकार, समुद्र तल से ऊंचाई आदि तत्त्व प्रभावित करते हैं।
भारत की वनस्पति की किस्में- भारत की वनस्पति की चार मुख्य किस्मों का वर्णन इस प्रकार है

1. सदाबहार वन-सदाबहार वन सारा साल हरे-भरे रहते हैं। इनके पत्ते किसी भी मौसम में पूरी तरह से नहीं झड़ते। सदाबहार वनस्पति अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। यह अधिकतर दक्षिण भारत के पश्चिमी तट, बंगाल, असम के उत्तर-पूर्व में और हिमालय की निचली ढलानों पर पायी जाती है। कर्नाटक के कुछ भागों में भी इस प्रकार के वन पाये जाते हैं, जहां लौटती हुई मानसून पवनें वर्षा करती हैं। हिमालय की ढलानों पर टीक तथा रोज़वुड और कर्नाटक में अलबनी, नीम तथा इमली आदि के वृक्ष मिलते हैं।

2. मरुस्थलीय वन-मरुस्थलीय वनस्पति कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। वर्षा कम होने के कारण यह वनस्पति बहुत ही विरली होती है। इस प्रकार की वनस्पति राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है। इन वनों में खजूर, कैक्टस और कांटेदार झाड़ियां ही मिलती हैं। बढ़िया लकड़ी प्राप्त करने की दृष्टि से इस प्रकार की वनस्पति अधिक महत्त्व नहीं रखती।

3. पर्वतीय वनस्पति-पर्वतीय वनस्पति पर्वतों की ढलानों पर मिलती है। असम से लेकर कश्मीर तक हिमालय पर्वत की ढलानों में अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। इन वनों की लकड़ी बहुत ही उपयोगी होती है। यहां मिलने वाले मुख्य वृक्ष फर, चील, देवदार, ओक, अखरोट, मैपल तथा पापूलर आदि हैं। इन वृक्षों की लकड़ी महंगी और बढ़िया प्रकार की होती है। इसका प्रयोग भवन बनाने, रेल के डिब्बे, माचिस तथा बढ़िया प्रकार का फर्नीचर बनाने में होता है। पर्वतीय वनस्पति की पेटी में कई प्रकार के फल जैसे सेब, बादाम, अखरोट और आलूबुखारा आदि भी मिलते हैं।

4. डैल्टाई वन-डैल्टाई वन समुद्री तटों के समीप मिलते हैं। नदियां समुद्रों में प्रवेश करने से पहले डैल्टा बनाती हैं। इन डैल्टों में उगने वाली वनस्पति को ही डैल्टाई वनों का नाम दिया जाता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र या दक्षिण भारत की कुछ नदियों के डैल्टाई भागों में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। यहां सुन्दरी, नीमा और पाम आदि के वृक्ष मिलते हैं। सुन्दरी वृक्ष की लकड़ी, मनुष्य के प्रयोग के लिए बहुत अधिक महत्त्व रखती है। इस प्रकार की वनस्पति में ‘सुन्दरी’ के वृक्षों की अधिकता के कारण ही गंगा-ब्रह्मपुत्र डैल्टा को ‘सुन्दर वन डैल्टा’ कहा जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्राकृतिक संसाधन PSEB 8th Class Social Science Notes

  • प्राकृतिक संसाधन – प्रकृति द्वारा प्रदान किये गये उपहारों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। ये संसाधन मानव को समृद्धि तथा विकास का आधार हैं।
  • मुख्य प्राकृतिक संसाधन – मिट्टी, भूमि, जल, प्राकृतिक वनस्पति, जंगली जीव तथा खनिज और ऊर्जा संसाधन
    मुख्य प्राकृतिक संसाधन हैं।
    भूमि संसाधन – भूमि संसाधन कृषि और मानव क्रियाओं के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत में भूमि प्रयोग – (1) वनों के अधीन भूमि
    (2) कृषि अधीन भूमि ।
    (3) कृषि के अतिरिक्त भूमि
    (4) कृषि के लिए खाली छोड़ी हुई भूमि
    (5) कृषि योग्य परन्तु व्यर्थ भूमि।
    (6) चरागाह तथा जंगलात भूमि।
  • मिट्टी संसाधन | मिट्टी फ़सलें और पौधे पैदा करने के लिए आवश्यक संसाधन हैं । इसलिए मिट्टी संसाधन में आने वाली समस्याओं का निदान तथा मिट्टी की सम्भाल बहुत ही आवश्यक है।
  • मिट्टी के प्रकार | जलौढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, मरुस्थलीय मिट्टी, लेटराइट मिट्टी तथा वनीय एवं पर्वतीय मिट्टी।
  • जल संसाधन – जल एक बहुमूल्य संसाधन है। पीने तथा सिंचाई के अतिरिक्त यह धुलाई, खाना पकाना जैसे कई अन्य कार्यों में भी प्रयोग होता है।
  • जल के स्त्रोत – वर्षा, नहरें, नदियां, तालाब तथा भूमिगत जल।
  • प्राकृतिक वनस्पति – यह संसाधन जलवायु, मिट्टी के प्रकार, स्थान तथा समुद्र तल से ऊंचाई पर निर्भर करती है।
  • वनों के प्रकार – सदाबहार, पतझड़ी, मरुस्थलीय, पर्वतीय और डैल्टाई वनस्पति।
  • जंगली जीव – इन्हें बचाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय-पार्क तथा जीव सैंक्चुरियां स्थापित की हैं। हमारा भी कर्तव्य है कि हम इनकी रक्षा करें।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

SST Guide for Class 9 PSEB भारतीय संसदीय लोकतंत्र Textbook Questions and Answers

(क) रिक्त स्थान भरें :

  1. …………….. सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति करते हैं।
  2. भारत के राष्ट्रपति महोदय अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग …………………. के परामर्श से करते हैं।

उत्तर-

  1. राष्ट्रपति
  2. प्रधानमंत्री।

(ख) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारत में कानून निर्माण की अंतिम शक्ति किसके पास है ?
(अ) मंत्रिमंडल
(आ) संसद्
(इ) लोकसभा
(ई) राष्ट्रपति।
उत्तर-
(ई) राष्ट्रपति

प्रश्न 2.
मंत्रिमंडल की सभाओं की अध्यक्षता करता है :
(अ) राष्ट्रपति
(आ) राज्यपाल (इ) प्रधानमंत्री
(ई) दल का प्रमुख।
उत्तर-
(इ) प्रधानमंत्री।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

(ग) निम्नलिखित कथनों में सही के लिए तथा गलत के लिए चिन्ह लगाएं :

  1. प्रधानमंत्री देश का संवैधानिक प्रमुख होता है।
  2. भारतीय संसद् में लोकसभा, राज्यसभा व राष्ट्रपति सम्मिलित हैं।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में संघ व राज्यों में कौन-सी शासन प्रणाली अपनाई गई है ?
उत्तर-
भारत में संघ व राज्यों में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है।

प्रश्न 2.
संसदीय प्रणाली में देश की वास्तविक कार्यपालिका कौन होता है ?
उत्तर-
संसदीय प्रणाली में देश की वास्तविक कार्यपालिका प्रधानमंत्री व उसका मंत्रिमंडल होते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में नाममात्र कार्यपालिका कौन है ?
उत्तर-
भारत में राष्ट्रपति नाममात्र कार्यपालिका है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रपति के चुनाव में कौन-कौन भाग लेता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति को एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है जिसमें लोकसभा, राज्यसभा तथा राज्य विधानसभाओं (दिल्ली, पुड्डुचेरी तथा जम्मू-कश्मीर भी) के चुने हुए सदस्य होते हैं।

प्रश्न 5.
संसदीय प्रणाली की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. संसदीय प्रणाली में देश का मुखिया नाममात्र कार्यपालिका होता है।
  2. चुनाव के पश्चात् संसद् (लोक सभा) में जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, वह सरकार का निर्माण करता है।

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प्रश्न 6.
भारत में संसद् के निम्न सदन को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
भारत में संसद् के निम्न सदन को लोकसभा कहा जाता है।

प्रश्न 7.
राज्यसभा में राष्ट्रपति कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्य मनोनीत कर सकता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान व समाज सेवा के क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव व विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 8.
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर-
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है परंतु एक तिहाई सदस्य दो वर्षों के पश्चात् रिटायर हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
कैनेडा व ऑस्ट्रेलिया में देश के प्रमुख के पद का नाम क्या है ?
उत्तर-
कैनेडा व आस्ट्रेलिया में देश के प्रमुख पद को गवर्नर जनरल कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रधानमंत्री व मंत्रियों को उनके पद की शपथ ग्रहण कौन करवाता है ?
उत्तर-
प्रधानमंत्री व मंत्रियों को उनके पद की शपथ ग्रहण राष्ट्रपति करवाता है।

प्रश्न 11.
मंत्रिमंडल की सभाओं की अध्यक्षता कौन करता है ?
उत्तर-
मंत्रिमंडल की सभाओं की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।

प्रश्न 12.
कार्यपालिका व विधानपालिका के पारस्परिक संबंधों के आधार पर शासन प्रणाली के कौन-से दो रूप होते हैं ?
उत्तर-

  1. संसदात्मक-इसमें मंत्रिमंडल अपने कार्यों के लिए विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
  2. प्रधानात्मक-इसमें कार्यपालिका को विधानपालिका द्वारा हटाया नहीं जा सकता।

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प्रश्न 13.
संसदीय शासन प्रणाली किस देश से ली गई है ?
उत्तर-
संसदीय शासन प्रणाली इंग्लैंड से ली गई है।

प्रश्न 14.
इंग्लैंड में संसद् के उच्च व निम्न सदन को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
इंग्लैंड में संसद् के उच्च सदन को ‘हाऊस आफ़ लार्ड्स’ (House of Lords) तथा निम्न सदन को ‘हाऊस आफ कॉमनस’ (House of Commons) कहा जाता है।।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है ?
उत्तर-
लोकसभा के चुनावों के पश्चात् जिस दल या दलों के गठबंधन को बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह अपना एक नेता चुनता है तथा उस नेता को राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। उस नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त कर देते हैं तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिमंडल की नियुक्ति हो जाती है।

प्रश्न 2.
मंत्रियों की सम्मिलित ज़िम्मेदारी से क्या भाव है ?
उत्तर-

  1. मंत्रियों की सम्मिलित ज़िम्मेदारी का अर्थ है कि संपूर्ण मंत्रिमंडल संसद् अथवा विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होता है। इसका अर्थ है कि चाहे कोई मंत्री मंत्रिमंडल के किसी निर्णय से असहमति रखता हो उसे संसद् के अंदर उस निर्णय का समर्थन करना ही पड़ता है।
  2. यदि संसद् में किसी मंत्री के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए तो इसे संपूर्ण मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास समझा जाएगा तथा प्रधानमंत्री व संपूर्ण मंत्रिमंडल को त्याग-पत्र देना पड़ेगा।
  3. संसद् सदस्य मंत्रियों से उनके विभाग से संबंधित प्रश्न भी पूछ सकते हैं।

प्रश्न 3.
विधानपालिका मंत्रियों पर किस प्रकार नियंत्रण रखती है ?
उत्तर-

  1. यदि संसद् में किसी मंत्री के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए तो इसे संपूर्ण मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास समझा जाएगा तथा प्रधानमंत्री व संपूर्ण मंत्रिमंडल को त्याग-पत्र देना पड़ेगा।
  2. संसद् सदस्य मंत्रियों से उनके विभाग से संबंधित प्रश्न भी पूछ सकते हैं।

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प्रश्न 4.
प्रधानमंत्री के किन्हीं तीन कार्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्रधानमंत्री परिषद् का निर्माण करता है।
  2. प्रधानमंत्री अलग-अलग मंत्रियों को उनके विभागों का वितरण करता है।
  3. प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच एक कड़ी का कार्य करता है।
  4. वह राष्ट्रपति को सलाह देकर लोकसभा को उसका समय पूर्ण होने से पहले भंग भी करवा सकता है।
  5. वह मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता करता है।

प्रश्न 5.
लोकसभा की संरचना पर नोट लिखो।
उत्तर-
लोकसभा को निम्न सदन भी कहा जाता है। इसके अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं। इन 552 में से 530 सदस्य राज्यों में से चुन कर आएंगे, 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों में से चुन कर आएंगे तथा 2 सदस्यों को राष्ट्रपति एंग्लो भारतीय समुदाय (Anglo Indian Community) में से नियुक्त करेगा अगर उसे लगेगा कि इनका लोकसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है। वर्तमान में लोकसभा के 545 सदस्य हैं जिनमें 530 राज्यों से, 13 केंद्र शासित प्रदेशों से चुन कर आते हैं तथा 2 सदस्यों को राष्ट्रपति ने मनोनीत किया है।।

प्रश्न 6.
राज्यसभा के सदस्यों का चयन कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
राज्यसभा के अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं। इन 250 में से 238 सदस्य राज्यों में से चुन कर आते हैं तथा 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज सेवा का विशेष ज्ञान व व्यावहारिक अनुभव है। 238 सदस्यों को राज्य विधानसभाओं के चुने हुए सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर इकहरी परिवर्तित वोट द्वारा चुना जाता है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रपति की कोई चार शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की चार शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  1. प्रशासनिक शक्तियां-भारत का समस्त प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है और भारत सरकार के सभी निर्णय औपचारिक रूप से उसी के नाम पर लिए जाते हैं। देश का सर्वोच्च शासक होने के नाते वह नियम तथा अधिनियम भी बनाता है।
  2. मंत्रिपरिषद् से संबंधित शक्तियां-राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और उसके परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। वह प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रियों को अपदस्थ कर सकता है।
  3. सैनिक शक्तियां-राष्ट्रपति राष्ट्र की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है। वह स्थल, जल तथा वायु सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है। वह फील्ड मार्शल की उपाधि भी प्रदान करता है। वह राष्ट्रीय रक्षा समिति का अध्यक्ष है।
  4. राज्यपालों की नियुक्ति-राष्ट्रपति राज्यों के राज्यपालों को अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करता है।

प्रश्न 8.
मंत्रिपरिषद् के गठन पर नोट लिखें।
उत्तर-
संघीय मंत्रीपरिषद् का निर्माण संविधान की धारा 75 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा और फिर उसकी सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। परंतु राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति अपनी इच्छा से नहीं कर सकता। जिस दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। अपनी नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमंत्री अपने साथियों अर्थात् अन्य मंत्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति उस सूची के अनुसार ही अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य सभा की संरचना पर नोट लिखें।
उत्तर-राज्यसभा के अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं। इन 250 में से 238 सदस्य राज्यों में से चुन कर आते हैं तथा 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज सेवा का विशेष ज्ञान व व्यावहारिक अनुभव है। 238 सदस्यों को राज्य विधानसभाओं के चुने हुए सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर इकहरी परिवर्तित वोट द्वारा चुना जाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

प्रश्न 2.
संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत के राज्य प्रबंध में प्रधानमंत्री को बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। राष्ट्रपति राज्य का मुखिया है जबकि सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्री देश का वास्तविक शासक है।
नियुक्ति-प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकता। वह केवल उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त पार्टी का नेता हो।
प्रधानमंत्री के कार्य तथा शक्तियां

  1. मंत्रिमंडल का नेता-प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का नेता है। मंत्रिमंडल को बनाने वाला और नष्ट करने वाला प्रधानमंत्री है।
  2. मंत्रिमंडल का निर्माण-राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है।
  3. विभागों का विभाजन-प्रधानमंत्री अपने मंत्रियों में विभागों का विभाजन करता है।
  4. मंत्रिमंडल का सभापति-प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का सभापति होता है। मंत्रिमंडल के अधिकतर निर्णय वास्तव में प्रधानमंत्री के ही निर्णय होते हैं।
  5. मंत्रियों की पदच्युति-संविधान के अनुसार मंत्री राष्ट्रपति की प्रसन्नता तक अपने पद पर रहते हैं, परंतु वास्तव में मंत्री तब तक अपने पद पर रह सकते हैं जब तक उन्हें लोकसभा का समर्थन प्राप्त है।
  6. प्रधानमंत्री का समन्वयकारी रूप-प्रधानमंत्री सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों तथा उनके कार्यों में तालमेल रखता है।
  7. राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार राष्ट्रपति प्रशासन के प्रत्येक मामले पर प्रधानमंत्री की सलाह लेता है। राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार ही शासन चलाना पड़ता है।
  8. संसद् का नेता–प्रधानमंत्री को संसद् का नेता माना जाता है। सरकार की नीतियों की सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएं प्रधानमंत्री द्वारा की जाती हैं। प्रधानमंत्री की सलाह पर ही राष्ट्रपति संसद् का अधिवेशन बुलाता है।
  9. लोक सभा को भंग करने का अधिकार-प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देकर लोकसभा को भंग करवा सकता है।
  10. नियुक्तियां-शासन के सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति करता है।
  11. संकटकालीन शक्तियां-राष्ट्रपति अपनी संकटकालीन शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की सलाह से करता

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति के निर्वाचन की योग्यता, चुनाव व कार्यकाल का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रपति को देश का संवैधानिक मुखिया कहा जाता है। निर्वाचन की योग्यताएं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 35 वर्ष से ऊपर हो।
  3. वह लोकसभा का सदस्य बनने की सभी योग्यताएं रखता हो।
  4. वह केंद्रीय सरकार या राज्य सरकारों के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर न हो।

चुनाव-भारत के राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष ढंग से चुना जाता है उसे एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है जिसमें लोक सभा, राज्य सभा तथा राज्य विधानसभाओं के केवल चुने हुए सदस्य होते हैं (दिल्ली व पुड्डुचेरी भी)। मनोनीत सदस्य इस चुनाव में भाग नहीं ले सकते। – कार्यकाल-भारत के राष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्षों के लिए होता है। परंतु उसे महादोष का महाभियोग (Impeachment) लगाकर 5 वर्ष से पहले भी हटाया जा सकता है। नए राष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति की अवधि खत्म होने से पहले चुना जाता है। अगर ऐसा न हो तो कार्यवाहक राष्ट्रपति उस समय तक अपने पद पर रहता है जब तक नए राष्ट्रपति को निर्वाचित न कर लिया जाए। अगर राष्ट्रपति त्यागपत्र दे दे या उसे महाभियोग पास करके हटा दिया जाए तो छः महीने के अंदर नए राष्ट्रपति का चुनाव करना पड़ता है। इस स्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 4.
मंत्रिपरिषद् की सामूहिक व व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी (दायित्व) से क्या अभिप्राय है ? व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. सामूहिक उत्तरदायित्व-भारतीय संविधान की धारा 75 (3) में स्पष्ट किया गया है कि मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। भारतीय मंत्रिमंडल उसी समय तक अपने पद पर रह सकता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। यदि लोकसभा का बहुमत मंत्रिमंडल के विरुद्ध हो जाए तो उसे अपना त्याग-पत्र देना पड़ेगा। मंत्रिमंडल एक इकाई की तरह काम करता है और यदि लोकसभा किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर दे तो सब मंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ता है।
  2. व्यक्तिगत उत्तरदायित्व- अगर सभी मंत्रियों का सामूहिक दायित्व है तो उनका कुछ व्यक्तिगत दायित्व भी है। सभी मंत्री अपने विभाग के लिए व्यक्तिगत रूप से भी उत्तरदायी होते हैं। अगर किसी विभाग में कोई गलत कार्य हो तो उस मंत्री से प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर किसी विभाग का कार्य ठीक ढंग से न चल रहा हो तो प्रधानमंत्री उससे त्यागपत्र भी मांग सकता है। यदि वह त्यागपत्र नहीं देता तो प्रधानमंत्री उसे राष्ट्रपति को कहकर निष्कासित भी करवा सकता है।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारतीय संसदीय लोकतंत्र Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारतीय संसद् के कितने सदन हैं ?
(क) 1
(ख) 2
(ग) 3
(घ) 4.
उत्तर-
(ख) 2

प्रश्न 2.
भारतीय संसद् के उपरि सदन को क्या कहते हैं ?
(क) राज्य सभा
(ख) लोकसभा
(ग) विधानपरिषद्
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) राज्य सभा

प्रश्न 3.
भारतीय संसद् के निचले सदन को क्या कहते हैं ?
(क) राज्य सभा
(ख) लोकसभा
(ग) विधानसभा
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) लोकसभा

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

प्रश्न 4.
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति कौन हैं ?
(क) श्रीमती सोनिया गांधी
(ख) श्रीमती सुषमा स्वराज ।
(ग) श्री हामिद अंसारी
(घ) श्री रामनाथ कोविंद।
उत्तर-
(घ) श्री रामनाथ कोविंद।

प्रश्न 5.
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री कौन हैं ?
(क) नरेंद्र मोदी
(ख) प्रणव मुखर्जी
(ग) लाल कृष्ण आडवाणी
(घ) अर्जुन सिंह।
उत्तर-
(क) नरेंद्र मोदी

प्रश्न 6.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है ?
(क) राष्ट्रपति
(ख) स्पीकर
(ग) राज्यपाल
(घ) उप-राष्ट्रपति।
उत्तर-
(क) राष्ट्रपति

प्रश्न 7.
2019 में 17वीं लोकसभा का स्पीकर किसे चुना गया ?
(क) ओम बिरला
(ख) प्रणव मुखर्जी
(ग) सोनिया गांधी
(घ) राहुल गांधी।
उत्तर-
(क) ओम बिरला

प्रश्न 8.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है ?
(क) प्रधानमंत्री
(ख) राष्ट्रपति
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) स्पीकर।
उत्तर-
(ख) राष्ट्रपति

प्रश्न 9.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का मासिक वेतन कितना है ?
(क) 50,000
(ख) 2,80,000
(ग) 1,50,000
(घ) 2,00,000
उत्तर-
(ख) 2,80,000

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

प्रश्न 10.
भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कौन करता है ?
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमंत्री
(ग) सर्वोच्च न्यायालय
(घ) स्पीकर।
उत्तर-
(ग) सर्वोच्च न्यायालय

रिक्त स्थान भरें :

  1. भारत में देश के मुखिया को ……………….. कहते हैं।
  2. 2014 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् ………………. की सरकार बनी थी।
  3. भारत में वास्तविक शक्तियां …………………. के पास होती हैं।
  4. संसद् में लोकसभा, राज्यसभा तथा …………………. शामिल हैं।
  5. लोकसभा के अधिकतम ………………… सदस्य हो सकते हैं।
  6. राज्यसभा के अधिकतम …………………. सदस्य हो सकते हैं।
  7. राष्ट्रपति ………….. समुदाय के 2 सदस्य लोकसभा में मनोनीत कर सकते हैं।
  8. भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए ……………….. आयु कम-से-कम होनी चाहिए।

उत्तर-

  1. राष्ट्रपति
  2. नरेंद्र मोदी
  3. प्रधानमंत्री
  4. राष्ट्रपति
  5. 552
  6. 250
  7. एंग्लो इंडियन
  8. 85 वर्ष।

सही/गलत :

  1. भारत में प्रधानात्मक व्यवस्था है।
  2. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पास होने से सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ जाता है।
  3. मंत्री बनने के लिए संसद् सदस्य होना आवश्यक नहीं है।
  4. लोकसभा इंग्लैंड के हाऊस आफ़ कॉमन की तरह है।
  5. राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्य मनोनीत करता है।
  6. लोकसभा के अध्यक्ष को स्पीकर कहते हैं।
  7. साधारण बिल के लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✓)
  6. (✓)
  7. (✗)

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संसद् के कितने सदन हैं ? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
भारतीय संसद् के दो सदन हैं-लोकसभा व राज्यसभा।

प्रश्न 2.
भारतीय संसद् के निम्न तथा उपरि सदन का नाम बताइए।
उत्तर-
लोकसभा संसद् का निम्न सदन है और राज्यसभा उपरि सदन है।

प्रश्न 3.
राज्यसभा किस का प्रतिनिधित्व करती है ?
उत्तर-
राज्यसभा राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है।

प्रश्न 4.
राज्यसभा की कुल संख्या कितनी हो सकती है और आजकल कितनी है ?
उत्तर-
राज्यसभा की कुल संख्या 250 हो सकती है परंतु आजकल 245 है।

प्रश्न 5.
राज्यसभा के कितने सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत करता है।

प्रश्न 6.
राज्यसभा के सदस्य कितने वर्ष के लिए चुने जाते हैं ?
उत्तर-
राज्यसभा के सदस्य छः वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

प्रश्न 7.
राज्यसभा की अध्यक्षता कौन करता है ?
उत्तर-
उप-राष्ट्रपति राज्यसभा की अध्यक्षता करता है।

प्रश्न 8.
लोकसभा का अधिवेशन कौन बुलाता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति जब चाहे लोकसभा का अधिवेशन बुला सकता है।

प्रश्न 9.
संसद् के दोनों सदनों में से कौन-सा सदन शक्तिशाली है ?
उत्तर-
लोकसभा।

प्रश्न 10.
साधारण बिल संसद् के किस सदन में पहले पेश किया जाता है ?
उत्तर-
साधारण बिल संसद् के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।

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प्रश्न 11.
वित्त विधेयक संसद् के किस सदन में पेश किया जाता है ?
उत्तर-
लोकसभा।

प्रश्न 12.
लोकसभा के अध्यक्ष को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
लोकसभा के अध्यक्ष को स्पीकर कहते हैं।

प्रश्न 13.
लोकसभा के सदस्य कितने समय के लिए चुने जाते हैं ?
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

प्रश्न 14.
संसद् की कोई एक शक्ति लिखें।
उत्तर-
संसद् देश के लिए कानून बनाती है।

प्रश्न 15.
संसद् की सर्वोच्चता पर एक प्रतिबंध बताएं।
उत्तर-
देश का संविधान लिखित है, जो संसद् की शक्तियों को सीमित करता है।

प्रश्न 16.
लोकसभा की कुल सदस्य संख्या कितनी हो सकती है और आजकल कितनी है ?
उत्तर-
लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 552 हो सकती है, परंतु आजकल 545 है।

प्रश्न 17.
राज्यसभा के अध्यक्ष का कोई एक कार्य बताइए।
उत्तर-
राज्यसभा का अध्यक्ष राज्यसभा के अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।

प्रश्न 18.
किस एक परिस्थिति में संसद् का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है ?
उत्तर-
संसद् के दोनों सदनों के विवादों को हल करने के लिए संसद् के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है।

प्रश्न 19.
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कोई एक योग्यता बताएं।
उत्तर-
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम 30 वर्ष आयु होनी चाहिए।

प्रश्न 20.
राज्यसभा की किसी एक विशेष शक्ति का वर्णन करें।
उत्तर-
राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करके संसद् को इस पर कानून बनाने के अधिकार दे सकती है।

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प्रश्न 21.
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए किसी एक योग्यता का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकसभा का सदस्य बनने वाले उम्मीदवार की आयु 25 वर्ष से कम न हो।

प्रश्न 22.
लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव में क्या अंतर है ?
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, जबकि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा होता है।

प्रश्न 23.
क्या राज्यसभा एक गौण सदन है ? इसके पक्ष में एक तर्क दें।
उत्तर-
राज्यसभा को धन संबंधी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 24.
लोकसभा तथा राज्यसभा के समान अधिकारों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
लोकसभा तथा राज्यसभा को साधारण बिलों पर समान अधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 25.
लोकसभा की कोई एक शक्ति लिखें।
उत्तर-
लोकसभा मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके उसे हटा सकती है।

प्रश्न 26.
लोकसभा अध्यक्ष का कोई एक कार्य बताएं।
उत्तर-
लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करता है।

प्रश्न 27.
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कौन करता है ?
उत्तर-
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्य अपने में से ही करते हैं।

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प्रश्न 28.
2019 में 17वीं लोकसभा का अध्यक्ष किसे चुना गया ?
उत्तर-
2019 में 17वीं लोकसभा का अध्यक्ष ओम बिरला को चुना गया।

प्रश्न 29.
साधारण विधेयक तथा वित्त विधेयक में एक अंतर बताएं।
उत्तर-
साधारण विधेयक संसद् के किसी भी सदन में पेश किए जा सकते हैं, जबकि वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश हो सकता है।

प्रश्न 30.
सामूहिक उत्तरदायित्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सामूहिक उत्तरदायित्व से अभिप्राय मंत्रियों का संसद् के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होना है। किसी एक मंत्री की नीति गलत सिद्ध होने पर संपूर्ण मंत्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।

प्रश्न 31.
भारत में किस प्रकार की शासन प्रणाली को अपनाया गया है ?
उत्तर-
भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 32.
संसद् मंत्रिमंडल को किस प्रकार हटा सकती है ?
उत्तर-
संसद् मंत्रिमंडल को अविश्वास प्रस्ताव पास करके हटा सकती है।

प्रश्न 33.
संसद् के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है ?
उत्तर-
संसद् के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता स्पीकर करता है।

प्रश्न 34.
लोकसभा को कौन भंग कर सकता है ?
उत्तर-
लोकसभा को मंत्रिपरिषद् की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति भंग कर सकता है।

प्रश्न 35.
केंद्रीय कार्यपालिका में कौन-कौन शामिल हैं ?
उत्तर-
केंद्रीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद् शामिल है।

प्रश्न 36.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है ?
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक चुनाव मंडल द्वारा होता है।

प्रश्न 37.
राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में कौन-कौन सम्मिलित होता है ?
उत्तर-
निर्वाचक मंडल में संसद् के दोनों सदनों के चुने हुए सदस्य और प्रांतीय विधानसभाओं (दिल्ली तथा पुड्डुचेरी भी) के चुने हुए सदस्य सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 38.
राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना है ? उसे क्या दोबारा चुना जा सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष है और उसे दोबारा चुने जाने का अधिकार है।

प्रश्न 39.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति का नाम लिखें।
उत्तर-
प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद और वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद हैं।

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प्रश्न 40.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है।

प्रश्न 41.
मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है ?
उत्तर-
प्रधानमंत्री।

प्रश्न 42.
मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रियों को नियुक्त करता है।

प्रश्न 43.
प्रधानमंत्री की अवधि बताइए।
उत्तर-
प्रधानमंत्री की अवधि निश्चित नहीं होती। उसकी अवधि लोकसभा के समर्थन पर निर्भर करती है।

प्रश्न 44.
राष्ट्रपति का मासिक वेतन कितना है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का मासिक वेतन ₹ 5 लाख है।

प्रश्न 45.
राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा कब कर सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में कर सकता है।

प्रश्न 46.
संकटकाल कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
संकटकाल तीन प्रकार का होता है।

प्रश्न 47.
राष्ट्रपति कब अध्यादेश जारी कर सकता है ?
उत्तर-
जब संसद् का अधिवेशन न हो रहा हो और संकटकालीन परिस्थितियां बाध्य करती हों, तब राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।

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प्रश्न 48.
राष्ट्रपति लोकसभा में कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति लोकसभा में 2 एंग्लो इंडियन सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।

प्रश्न 49.
राष्ट्रपति की एक कार्यकारी शक्ति लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है।

प्रश्न 50.
राष्ट्रपति की कोई एक वैधानिक शक्ति लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति संसद् का अधिवेशन बुला और उसे स्थगित कर सकता है।

प्रश्न 51.
राष्ट्रपति की एक वित्तीय शक्ति लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति करता है।

प्रश्न 52.
भारतीय मंत्रिमंडल की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
संसद् एवं मंत्रिमंडल में घनिष्ठ संबंध है।

प्रश्न 53.
केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का कोई एक कार्य लिखें।
उत्तर-
केंद्रीय मंत्रिपरिषद् गृह एवं विदेश नीति निर्धारित करती है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकसभा तथा राज्यसभा के कितने सदस्य होते हैं ?
उत्तर-
लोकसभा की अधिकतम कुल संख्या 552 हो सकती है पर आजकल 545 है। इनमें 543 निर्वाचित सदस्य हैं और दो ऐंग्लो इंडियन हैं। राज्यसभा की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है पर आजकल 245 हैं। इनमें 233 राज्य के प्रतिनिधि हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं।

प्रश्न 2.
राज्यसभा के अध्यक्ष के कोई तीन कार्य बताइए।
उत्तर-

  1. वह राज्यसभा के अधिवेशन का सभापतित्व करता है।
  2. वह राज्यसभा में शांति बनाए रखने तथा उसकी बैठकों को ठीक प्रकार से चलाने के लिए जिम्मेदार है।
  3. वह सदस्यों को बोलने की आज्ञा देता है।

प्रश्न 3.
लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव में क्या अंतर है ?
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं और प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो, वोट डालने का अधिकार प्राप्त होता है। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही उम्मीदवार का चुनाव होता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं उसे ही विजयी घोषित किया जाता है। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस तरह राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा होता है।

प्रश्न 4.
लोकसभा की कोई तीन शक्तियां लिखें।
उत्तर-

  1. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिल कर कानून बनाती है।
  2. लोकसभा मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके उसे हटा सकती है।
  3. वित्त विधेयक लोकसभा में पेश किया जाता है।

प्रश्न 5.
लोकसभा का सदस्य होने के लिए व्यक्ति में क्या योग्यताएं होनी चाहिए ?
उत्तर-
लोकसभा का सदस्य वही व्यक्ति बन सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।।
  3. वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अंतर्गत किसी लाभदायक पद पर आसीन न हो।

प्रश्न 6.
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिए ?
उत्तर-
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निश्चित हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह संसद् द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।

प्रश्न 7.
स्पीकर के तीन कार्य लिखें।
उत्तर-

  1. सदन की कार्यवाही चलाने के लिए सदन में शांति और व्यवस्था बनाए रखना स्पीकर का कार्य है।
  2. स्पीकर सदन के नेता से सलाह करके सदन का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
  3. स्पीकर सदन की कार्यवाही-नियमों की व्याख्या करता है। स्पीकर ही कार्यवाही के नियमों पर की गई आपत्ति पर निर्णय देता है जोकि अंतिम होता है।

प्रश्न 8.
संसद् की सर्वोच्चता से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
संसद् की सर्वोच्चता से अभिप्राय यह है कि संसद् देश की सर्वोच्च संस्था है। इसमें जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य होते हैं। अतः इसके द्वारा बनाए गए कानून वास्तव में जनता स्वयं बनाती है। मंत्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकारी आय-व्यय पर भी इसका नियंत्रण रहता है। अतः स्पष्ट है कि संसद् ही वास्तव में देश की सर्वोच्च संस्था है।

प्रश्न 9.
लोकसभा का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर-
लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। परंतु राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सिफ़ारिश पर इसे पांच वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है। संकटकालीन स्थिति में इसका कार्यकाल एक समय में संसद् द्वारा एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 10.
अविश्वास प्रस्ताव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्री तब तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक उन्हें लोकसभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त है। यदि लोकसभा इसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे, तो इन्हें अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ता है।

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प्रश्न 11.
लोकसभा के सदस्यों के चुनाव की विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के आधार पर होता है। सभी नागरिकों को जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, चुनाव में वोट डालने का अधिकार है। चुनाव गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। 5 लाख से साढ़े सात लाख की जनसंख्या के आधार पर एक सदस्य चुना जाता है।

प्रश्न 12.
लोकसभा की वित्तीय शक्तियाँ लिखें।
उत्तर-

  1. बजट तथा धन बिल सर्वप्रथम लोकसभा में ही पेश हो सकते हैं।
  2. राज्यसभा अधिक-से-अधिक धन बिल को 14 दिन तक रोक सकती है।
  3. देश के धन पर वास्तविक नियंत्रण लोकसभा का है।

प्रश्न 13.
राज्यसभा की कोई तीन शक्तियां लिखें।
उत्तर-

  1. साधारण बिल राज्यसभा में पेश हो सकता है। दोनों सदनों द्वारा पास होने पर ही साधारण बिल राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है।
  2. संवैधानिक मामलों में राज्यसभा को लोकसभा के समान अधिकार प्राप्त हैं।
  3. राज्यसभा धन बिल या बजट को अधिक-से-अधिक 14 दिन तक रोक सकती है।

प्रश्न 14.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का चुनाव एक चुनाव मंडल द्वारा होता है जिसमें संसद् के दोनों सदनों के चुने हुए सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं (दिल्ली, पुड्डुचेरी तथा जम्मू-कश्मीर भी) के चुने हुए सदस्य सम्मिलित होते हैं। उनका चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में एक सदस्य एक मत वाली विधि नहीं अपनाई गई। वैसे एक मतदाता को केवल एक ही मत मिलता है। परंतु उसके मत की गणना नहीं होती बल्कि उसका मूल्यांकन होता है। राष्ट्रपति पद पर चुने जाने के लिए यह आवश्यक है कि उम्मीदवार को मतों का पूर्ण बहुमत अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

प्रश्न 15.
राष्ट्रपति राज्य का नाममात्र मुखिया है। कैसे ?
उत्तर-
समस्त शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलता है, परंतु वह नाममात्र का मुखिया है जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति राज्य का वास्तविक मुखिया है। इसका कारण यह है कि अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है जबकि भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमंडल की सलाह से करता है। वास्तविक कार्यपालिका मंत्रिमंडल है। अभी तक चौदह राष्ट्रपति हुए हैं और सभी ने संवैधानिक मुखिया के रूप में कार्य किया है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रपति की तीन विधायनी शक्तियां लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की मुख्य विधायनी शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रपति की संसद् के अधिवेशन बुलाने और सत्रावसान संबंधी शक्तियां-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों का अधिवेशन बुला सकता है। अधिवेशन का समय बढ़ा सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा संसद् में भाषण-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों को अलग-अलग या दोनों के सम्मिलित अधिवेशन को संबोधित कर सकता है। नई संसद् का तथा वर्ष का पहला अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से ही आरंभ होता है।
  3. राज्यसभा के 12 सदस्य मनोनीत करना-राष्ट्रपति राज्यसभा के लिए ऐसे 12 सदस्यों को मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान या सामाजिक सेवा के विषय में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।

प्रश्न 17.
क्या राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति तानाशाह नहीं बन सकता और अगर संकटकाल में भी तानाशाह बनना चाहे तो भी नहीं बन सकता। इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है और इसमें राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। राष्ट्रपति की शक्तियों का वास्तव में प्रयोग प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति यदि मनमानी करने की कोशिश करे तो उसे संसद् महाभियोग द्वारा हटा सकती है। राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा मंत्रिपरिषद् की लिखित सलाह से ही कर सकता है। संसद् साधारण बहुमत से प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति को संकटकाल समाप्त करने को कह सकती है।

प्रश्न 18.
प्रधानमंत्री कैसे नियुक्त होता है ?
उत्तर-
प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है, परंतु ऐसा करने में वह अपनी इच्छा से काम नहीं ले सकता। प्रधानमंत्री के पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। आम चुनाव के बाद जिस राजनीतिक दल को सदस्यों का बहुमत प्राप्त होगा, उस दल के नेता को राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। यदि किसी राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो भी राष्ट्रपति को इस बारे में पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिलती बल्कि कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसी दशा में उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है जो लोकसभा के बहुमत सदस्यों का सहयोग प्राप्त कर सकता हो।

प्रश्न 19.
प्रधानमंत्री की किन्हीं तीन शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रधानमंत्री की निम्नलिखित मुख्य शक्तियां हैं-

  1. प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का निर्माण करता है-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  2. विभागों का विभाजन-प्रधानमंत्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है। वह किसी मंत्री को कोई भी विभाग दे सकता है और जब चाहे इसमें परिवर्तन कर सकता है।
  3. प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का सभापति-प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल का सभापति होता है। वह कैबिनेट की बैठकों में सभापतित्व करता है।

प्रश्न 20.
प्रधानमंत्री की स्थिति की चर्चा करो।
उत्तर-
प्रधानमंत्री की शक्तियों तथा कार्यों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह हमारे संविधान में सबसे अधिक शक्तिशाली अधिकारी है। संविधान द्वारा कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं, परंतु इनका प्रयोग प्रधानमंत्री द्वारा ही किया जाता है, वह देश की वास्तविक मुख्य कार्यपालिका है। एक प्रसिद्ध लेखक के शब्दों में, प्रधानमंत्री की अन्य मंत्रियों में वह स्थिति है जो सितारों में चंद्रमा (Shining moon among the lesser stars) की होती है।

प्रश्न 21.
मंत्रिपरिषद् के किन्हीं तीन कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
मंत्रिपरिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय नीति का निर्माण-मंत्रिमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य नीति-निर्माण करना है।
  2. विदेशी संबंधों का संचालन-मंत्रिमंडल विदेश नीति का भी निर्माण करता है और विदेशी संबंधों का संचालन करता है।
  3. प्रशासन पर नियंत्रण-प्रशासन का प्रत्येक विभाग किसी-न-किसी मंत्री के अधीन होता है और संबंधित मंत्री अपने विभाग को सुचारु ढंग से चलाने का प्रयत्न करता है।

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प्रश्न 22.
केंद्रीय मंत्रिपरिषद् में कितने प्रकार के मंत्री होते हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
केंद्रीय मंत्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं-कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री तथा उपमंत्री।

  1. कैबिनेट मंत्री-मंत्रिपरिषद् के सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री कहा जाता है और कैबिनेट मंत्री महत्त्वपूर्ण विभाग के अध्यक्ष होते हैं।
  2. राज्य मंत्री-राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्री के सहायक के रूप में कार्य करते हैं। ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते तथा न ही ये कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं।
  3. उपमंत्री-ये किसी विभाग के स्वतंत्र रूप में अध्यक्ष नहीं होते। इनका कार्य केवल किसी दूसरे मंत्री के कार्य में सहायता देना होता है।

प्रश्न 23.
भारत के राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन करो।
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां इस प्रकार हैं

  1. भारतीय राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा कर सकता है, यदि उसे विश्वास हो जाए कि देश में गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।
  2. राष्ट्रपति को जब राज्यपाल अथवा किसी अन्य स्रोत से विश्वास हो जाए, कि किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी असफल हो गई है, तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
  3. राष्ट्रपति को यदि यह विश्वास हो जाए कि भारत या इसके किसी क्षेत्र में वित्तीय स्थायित्व संकट में है, तो तब राष्ट्रपति वित्तीय आपात्काल की घोषणा कर सकता है।

प्रश्न 24.
क्या प्रधानमंत्री तानाशाह बन सकता है ?
उत्तर-
प्रधानमंत्री तानाशाह नहीं बन सकता क्योंकि

  1. प्रधानमंत्री संसद् के प्रति उत्तरदायी है और संसद् प्रधानमंत्री को निरंकुश बनने से रोकती है।
  2. प्रधानमंत्री जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकता।
  3. प्रधानमंत्री को सदैव विरोधी पार्टी का ध्यान रखना पड़ता है।

प्रश्न 25.
प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद् के आपसी संबंधों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
प्रधानमंत्री लोकसभा के बहुमत दल का नेता होता है। वह स्वयं ही मंत्रिपरिषद् का निर्माण करता है। वह मंत्रियों में विभागों का बंटवारा करता है एवं मंत्रिपरिषद् की अध्यक्षता करता है। यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री की नीति अनुसार कार्य नहीं करता तो उसे त्याग-पत्र देना पड़ता है। यदि वह मंत्री त्याग-पत्र न दे, तो प्रधानमंत्री त्याग-पत्र देकर मंत्रिपरिषद् को भंग कर सकता है तथा नवीन मंत्रिपरिषद् का गठन करता है, जिसमें उस मंत्री को शामिल नहीं करता।

प्रश्न 26.
राष्ट्रपति की कोई तीन न्यायिक शक्तियां बताइए।
उत्तर-
राष्ट्रपति की तीन न्यायिक शक्तियां इस प्रकार हैं-

  1. राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के मुख्य तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
  2. राष्ट्रपति जटिल कानूनी प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श मांग सकता है।
  3. राष्ट्रपति को क्षमादान करके तथा अपराधी के दंड को कम करने की शक्ति प्राप्त है।

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प्रश्न 27.
सरकार की शक्तियां क्या हैं ?
उत्तर-
सरकार के तीन अंग हैं-विधानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका। इन तीनों अंगों के अपने अलगअलग कार्य हैं-

  1. विधानपालिका देश के लिए कानून बनाती है।
  2. कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है तथा सरकार का संचालन करती है।
  3. न्यायपालिका न्याय प्रदान करती है तथा कानूनों का उल्लंघन करने वालों को दंड देती है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संसद् की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
संसद् की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. विधायिनी शक्तियां-संसद् का मुख्य कार्य कानून निर्माण करना है। संसद् की कानून बनाने की शक्तियां बड़ी व्यापक हैं। संघीय सूची में दिए गए सभी विषयों पर इसे कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची पर संसद् और राज्यों की विधानपालिका दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार है परंतु यदि किसी विषय पर संसद् और राज्य की विधानपालिका के कानून में पारस्परिक विरोध हो तो संसद् का कानून लागू होता है। कुछ परिस्थितियों में राज्यसूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार संसद् को प्राप्त है।
  2. वित्तीय शक्तियां-संसद् राष्ट्र के धन पर नियंत्रण रखती है। वित्तीय वर्ष के आरंभ होने से पहले बजट संसद् में पेश किया जाता है। संसद् इस पर विचार करके अपनी स्वीकृति देती है। संसद् की स्वीकृति के बिना सरकार जनता पर कोई टैक्स नहीं लगा सकती और न ही धन खर्च कर सकती है।
  3. कार्यपालिका पर नियंत्रण-हमारे देश में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। राष्ट्रपति संवैधानिक अध्यक्ष होने के नाते संसद् के प्रति उत्तरदायी नहीं है जबकि मंत्रिमंडल अपने समस्त कार्यों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी है। मंत्रिमंडल तब तक अपने पद पर रह सकता है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहे।
  4. राष्ट्रीय नीतियों को निर्धारित करना-भारतीय संसद् केवल कानून ही नहीं बनाती बल्कि वह राष्ट्रीय नीतियां भी निर्धारित करती है।
  5. न्यायिक शक्तियां-संसद् राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को यदि वे अपने कार्यों का ठीक प्रकार से पालन न करें तो महाभियोग चलाकर अपने पद से हटा सकती है। संसद् के दोनों सदन सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के जजों को हटाने का प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। कुछ अन्य पदाधिकारियों को पद से हटाए जाने का प्रस्ताव भी संसद् के द्वारा पास किया जा सकता है।
  6. संवैधानिक शक्तियां-भारतीय संसद् को संविधान में संशोधन करने का भी अधिकार प्राप्त है।
  7. सार्वजनिक मामलों पर वाद-विवाद-संसद् में जनता के प्रतिनिधिं होते हैं और इसलिए यह सार्वजनिक मामलों पर वाद-विवाद का सर्वोत्तम साधन है। संसद् में ही सरकार की नीतियों तथा निर्णयों पर वाद-विवाद होता है और उनकी विभिन्न दृष्टिकोणों से आलोचना की जाती है।
  8. निर्वाचन संबंधी अधिकार-संसद् उप-राष्ट्रपति का चुनाव करती है। संसद् राष्ट्रपति के चुनाव में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लोकसभा अपने स्पीकर तथा डिप्टी स्पीकर का चुनाव करती है और राज्यसभा अपने उप-अध्यक्ष का चुनाव करती है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रपति की महत्त्वपूर्ण कार्यकारी शक्तियां लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की मुख्य कार्यकारी शक्तियां अग्रलिखित हैं-

  1. प्रशासनिक शक्तियां-भारत का समस्त प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है और भारत सरकार के सभी निर्णय औपचारिक रूप से उसी के नाम पर लिए जाते हैं। देश का सर्वोच्च शासक होने के नाते वह नियम तथा अधिनियम भी बनाता है।
  2. मंत्रिपरिषद् से संबंधित शक्तियां-राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और उसके परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। वह प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रियों को अपदस्थ कर सकता है।
  3. सैनिक शक्तियां-राष्ट्रपति राष्ट्र की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है। वह स्थल, जल तथा वायु सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है। वह फील्ड मार्शल की उपाधि भी प्रदान करता है । वह राष्ट्रीय रक्षा समिति का अध्यक्ष
  4. नियुक्तियां-संघ सरकार की सभी महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।
  5. केंद्रीय प्रदेशों का प्रशासन-केंद्रीय प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर ही चलाया जाता है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति की विधायिनी शक्तियां लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की मुख्य विधायिनी शक्तियां निम्नलिखित हैं

  1. राष्ट्रपति की संसद् के अधिवेशन बुलाने और सत्रावसान संबंधी शक्तियां-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों का अधिवेशन बुला सकता है। अधिवेशन का समय बढ़ा सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है। राष्ट्रपति ही अधिवेशन का समय और स्थान निश्चित करता है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा संसद् में भाषण-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों को अलग-अलग या दोनों के सम्मिलित अधिवेशन को संबोधित कर सकता है। नयी संसद् का तथा वर्ष का पहला अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से ही आरंभ होता है।
  3. राज्यसभा के 12 सदस्य मनोनीत करना-राष्ट्रपति राज्यसभा के लिए ऐसे 12 सदस्यों को मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान या सामाजिक सेवा के विषय में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।
  4. अध्यादेश-जब संसद् का अधिवेशन न हो रहा हो तब राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
  5. राष्ट्रपति को 2 एंग्लो-इंडियनों को लोकसभा का सदस्य मनोनीत करने का अधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 4.
मंत्रिपरिषद् पर संसदीय नियंत्रण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
हमारे देश में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। संसद् कई तरीकों से मंत्रिमंडल पर प्रभाव डाल सकती है और उस पर नियंत्रण रख सकती है और उसे अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर सकती

  1. प्रश्न–संसद् के सदस्य मंत्रियों से उनके विभागों के कार्यों के संबंध में प्रश्न पूछ सकते हैं जिनका मंत्रियों को उत्तर देना पड़ता है।
  2. बहस-संसद् राष्ट्रपति के उद्घाटन भाषण पर बहस करती है जबकि सरकार की समस्त नीति की आलोचना की जाती है।
  3. काम-रोको प्रस्ताव-किसी गंभीर समस्या पर विचार करने के लिए संसद् के सदस्यों द्वारा काम-रोको प्रस्ताव (Adjournment Motion) भी पेश किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य यह होता है कि सदन के निश्चित कार्यक्रम को रोककर उस गंभीर समस्या पर पहले विचार किया जाए। इसमें सरकार की काफ़ी आलोचना की जाती है।
  4. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव-जब लोकसभा का अधिवेशन चल रहा हो तो उस समय यदि कोई सदस्य सदन का ध्यान किसी आवश्यक घटना की ओर आकर्षित करना चाहता हो तो वह ध्यानाकर्षण प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है। ऐसे प्रस्ताव सभा का ध्यान किसी महत्त्वपूर्ण घटना की ओर आकर्षित करने के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं।
  5.  मंत्रिमंडल को हटाना–संसद् यदि मंत्रिमंडल की नीतियों और कार्यों से संतुष्ट न हो तो वह मंत्रिमंडल को अपने पद से हटा सकती है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा द्वारा ही पास किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
संसदीय प्रणाली की कुछ विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
संसदीय सरकार वह शासन व्यवस्था है जिसमें मंत्रिमंडल विधानपालिका अर्थात् संसद् के लोकप्रिय सदन के समक्ष अपनी राजनीतिक नीतियों व कार्यों के लिए उत्तरवादी होता है जबकि राज्य का अध्यक्ष जोकि नाममात्र की कार्यपालिका है उत्तरदायी नहीं होता।
विशेषताएं-

  1. देश का मुखिया नाममात्र कार्यपालिका–संसदीय व्यवस्था में देश का मुखिया अर्थात् राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। क्योंकि वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री व मंत्रिमंडल के पास होती है।
  2. स्पष्ट बहुमत-संसदीय व्यवस्था में शासन उस राजनीतिक दल द्वारा चलाया जाता है जिसे चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिल जाता है। वह दल चुनाव जीतने के पश्चात् अपने नेता का चुनाव करता है जिसे राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है।
  3. संसद् की सदस्यता अनिवार्य-मंत्री बनने के लिए यह आवश्यक है कि उनके पास संसद् की सदस्यता हो। अगर कोई संसद् सदस्य नहीं है तो प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति उसे मंत्री तो बना सकता है परंतु उसे 6 महीने के भीतर संसद् सदस्य बनना आवश्यक है अन्यथा उसे पद छोड़ना पड़ सकता है।
  4. सामूहिक दायित्व-मंत्रिमंडल अपने कार्यों के लिए सामूहिक रूप से विधानपालिका अर्थात् संसद् के प्रति उत्तरदायी होता है। उनसे संसद् में किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछा जा सकता है। अगर संसद (लोकसभा) चाहे तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास करके उन्हें त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य भी कर सकती है।
  5. प्रधानमंत्री का नेतृत्व-संसदीय व्यवस्था में मंत्रिमंडल का नेता हमेशा प्रधानमंत्री होता है। राष्ट्रपति अलगअलग मंत्रियों की नियुक्ति उसके परामर्श के अनुसार ही करता है। वह अलग-अलग मंत्रियों के कार्यों को देखता है तथा उनमें सामंजस्य बैठाने का प्रयास करता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय संसदीय लोकतंत्र

भारतीय संसदीय लोकतंत्र PSEB 9th Class Civics Notes

  • सरकार के तीन अंग होते हैं-विधानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका। विधानपालिका का कार्य है-कानून बनाना, कार्यपालिका का कार्य है-कानूनों को लागू करना तथा न्यायपालिका का कार्य है कानूनों को लागू करना।
  • हमारे देश में संसदीय कार्यप्रणाली है अर्थात् मंत्रिमंडल के सदस्यों के लिए संसद् का सदस्य होना आवश्यक है। मंत्री उस समय तक अपने पद पर बने रह सकते हैं जब तक उन्हें विधानपालिका में बहुमत प्राप्त होता है।
  • संसदीय कार्यप्रणाली में देश का एक संवैधानिक मुखिया होता है जिसके पास बहुत-सी शक्तियां होती हैं। परंतु वह व्यावहारिक रूप से इन शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता। ये शक्तियां मंत्रिमंडल उसके नाम पर प्रयोग करता है।
  • इस व्यवस्था में देश का शासन उस राजनीतिक दल द्वारा निश्चित समय के लिए चलाया जाता है जिसके पास संसद् (लोक सभा) में बहुमत होता है।
  • संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का नेतृत्व करता है तथा वह बहुमत दल का नेता होता है। राष्ट्रपति की सभी शक्तियों का प्रयोग भी वह ही करता है।
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 के अंतर्गत भारत में संसद् की व्यवस्था की गई है जिसमें लोक सभा, राज्य सभा व राष्ट्रपति शामिल है।
  • लोकसभा को संपूर्ण जनता द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार द्वारा चुना जाता है तथा यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है। राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है तथा इसके सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं द्वारा किया जाता है।
  • देश के संवैधानिक मुखिया को राष्ट्रपति कहते हैं जिसे निर्वाचक मंडल के चुने हुए सदस्यों द्वारा चुना जाता है। देश का संपूर्ण शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलता है।
  • राष्ट्रपति को संविधान ने बहुत-सी शक्तियां दी हैं परंतु यह व्यवस्था भी की गई है कि वह अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमंडल की सलाह पर ही करेगा। उसे कई प्रकार की वैधानिक कार्यकारी, वित्तीय, न्यायिक आपातकालीन शक्तियां दी गई हैं।
  • प्रधानमंत्री की सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल नियुक्त किया जाता है जिसमें तीन प्रकार के मंत्री होते हैं तथा वह हैं-कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री तथा उपमंत्री। इन मंत्रियों को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति नियुक्त करता है।
  • संसदीय सरकार में वास्तविक शासन प्रधानमंत्री ही चलाता है। जिस दल को लोकसभा के चुनाव में बहुमत प्राप्त होता है वह अपने एक नेता का चुनाव करता है जिसे राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त कर देता है।
  • चाहे प्रधानमंत्री की शक्तियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह देश का सर्वोसर्वा होता है परंतु ऐसा नहीं है। उसकी शक्तियां भी एक दायरे में बँधी होती हैं तथा वह भी जनादेश का विरोध नहीं कर सकता।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक आलोचनात्मक नोट लिखो। (Write a critical note on the Preamble to the Indian Constitution.)
अथवा
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की क्या महत्ता है ? (What is the significance of the Preamble to the Constitution of India ?)
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है, हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन (Basic Philosophy) हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है जिसे के० एम० मुन्शी ने राजनीतिक जन्मपत्री (Political Horoscope) का नाम दिया है।

प्रस्तावना (Preamble)-संविधान सभा ने 1947 में एक उद्देश्य सम्बन्धी प्रस्ताव पास किया था जिसमें उसने अपने सामने कुछ उद्देश्यों को रखा था और उसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान का निर्माण हुआ। संविधान के बनने के बाद संविधान सभा ने प्रस्तावना सहित ही उस संविधान को स्वीकार किया। संविधान की प्रस्तावना में उन भावनाओं का वर्णन है, जो 13 दिसम्बर, 1946 को पं० जवाहरलाल नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution) के तत्त्व थे। उद्देश्य प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान-सभा घोषित करती है कि इसका ध्येय व दृढ़ संकल्प भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाना है और इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल प्रस्तावना में किया गया है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवाद (Socialist), धर्म-निरपेक्ष (Secular) तथा अखण्डता (Integrity) के शब्दों को प्रस्तावना में अंकित किया गया है। हमारे वर्तमान संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है-

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने और उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर, अपनी इस संविधान सभा में, आज 26 नवम्बर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हज़ार छ: विक्रमी) को एतद् द्वारा, इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।

“We, the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic, and to secure to all its citizens, Justice, social, economic and political liberty of thought, expression, belief, faith and worship, Equality of status and of opportunity, and to promote among them all, Fraternity assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation.

In our Constituent Assembly, this twenty-sixth day of November 1949, do hereby Adopt, Enact, and Give to ourselves this Constitution.”
संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है। जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और उसका अर्थ स्पष्ट न हो तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या हो सकती है। प्रस्तावना से हमें यह पता चलता है कि संविधान निर्माताओं की भावनाएं क्या थीं।

“प्रस्तावना संविधान बनाने वालों के मन की कुंजी है।”
सर्वोच्च न्यायालय के भू० पू० मुख्य न्यायाधीश श्री सुब्बाराव ने एक निर्णय देते हुए कहा था, “जिस उद्देश्य की प्राप्ति की संविधान से आशा की गई है, वह स्पष्ट रूप से इसकी प्रस्तावना में दिया गया है। इसमें इसके आदर्श तथा आकांक्षाएं निहित हैं।” इस प्रकार हमारे संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्यों, लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा हमारे स्वप्नों का स्पष्ट पता चल जाता है। सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री गजेन्द्र गडकर के अनुसार, संविधान की प्रस्तावना से संविधान के मूल दर्शन का ज्ञान होता है। संविधान सभा के सदस्य पंडित ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना की सराहना करते हुए कहा था, “प्रस्तावना संविधान का सबसे मूल्यवान अंग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का रत्न है।” कुछ वर्ष पूर्व श्री० एन० ए० पालकीवाला ने सुप्रीमकोर्ट में 28वें और 29वें संशोधनों की आलोचना करते समय कहा था कि प्रस्तावना संविधान का एक अनिवार्य अंग है।

1973 में केशवानन्द भारती के मुकद्दमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि प्रस्तावना संविधान का अंग है।
वी० एन० शुक्ला (V.N. Shukla) ने प्रस्तावना के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखा है, “यह सामान्यतया राजनीतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों का स्पष्टीकरण करती है जिन्हें संविधान प्रोत्साहित करना चाहता है।”
भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है-

(क) संवैधानिक शक्ति का स्रोत क्या है ? (ख) भारतीय शासन-व्यवस्था कैसी है ? (ग) संविधान के उद्देश्य या लक्षण क्या हैं ?
(क) संवैधानिक शक्ति का स्रोत (Source of Constitutional Authority)—प्रस्तावना से ही हमें पता चलता है कि इस संविधान को बनाने वाला कौन है। संविधान का निर्माण करने वाले और उसे अपने पर लागू करने वाले भारत के लोग हैं, कोई अन्य शक्ति नहीं। प्रस्तावना इन्हीं शब्दों से आरम्भ होती है, “हम भारत के लोग………उस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।” ये शब्द इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता की सर्वोच्च शक्ति है। संविधान को विदेशी शक्ति ने भारतीयों पर नहीं लादा बल्कि जनता ही समस्त शक्ति का मूल स्रोत है।

(ख) भारतीय शासन व्यवस्था का स्वरूप (Nature of Indian Constitutionl System)—संविधान की प्रस्तावना से हमें भारत की शासन व्यवस्था के स्वरूप का भी पता चलता है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाए जाने के लिए घोषणा की है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी व धर्म-निरपेक्ष शब्दों को अंकित किया गया है, अतः भारतीय शासन व्यवस्था की निम्नलिखित पांच विशेषताएं हैं

  1. भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)
  2. भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)
  3. भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)
  4. भारत लोकतन्त्रीय राज्य है (India is a Democratic State)
  5. भारत एक गणराज्य है (India is a Republic State)

(ग) संविधान के उद्देश्य (Objectives of the Constitution)—प्रस्तावना से इस बात का भी स्पष्ट पता चलता है कि संविधान द्वारा किन उद्देश्यों की पूर्ति की आशा की गई है। वे उद्देश्य कई प्रकार के हैं-

  • न्याय (Justice)-संविधान का उद्देश्य है कि भारत के सभी नागरिकों को न्याय मिले और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक किसी भी क्षेत्र में नागरिकों के साथ अन्याय न हो। इस बहुमुखी न्याय से ही नागरिकों के जीवन का पूर्ण विकास सम्भव है और इसकी प्राप्ति लोकतन्त्रात्मक ढांचे से ही हो सकती है।
  • स्वतन्त्रता (Liberty)—प्रस्तावना में नागरिकों की स्वतन्त्रताओं का उल्लेख किया गया है, जैसे कि विचार रखने की स्वतन्त्रता, विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता, अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार किसी भी बात में विश्वास रखने की स्वतन्त्रता, अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता।
  • समानता (Equality)—प्रस्तावना में नागरिकों को प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता प्रदान की गई है। प्रतिष्ठा की समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्ति कानून की दृष्टि में समान हैं तथा सभी को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त है। अवसर की समानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के आधार पर विकसित होने का समान अवसर प्राप्त है।
  • बन्धुत्व (Fraternity)-प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है।
  • प्रस्तावना में व्यक्ति के गौरव को बनाए रखने की घोषणा की गई है।
  • संविधान का उद्देश्य राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को बनाए रखना है।

निष्कर्ष (Conclusion)-संविधान की प्रस्तावना सत्तारूढ़ दल के लिए, चाहे वह कोई भी हो, मार्गदर्शक का काम देती है और संविधान के विभिन्न उपबन्धों की व्याख्या करने और उसके बारे में उत्पन्न मतभेद या वाद-विवाद को सुलझाने में सहायता करती है। (“It is a key to open the minds of the maker.”) प्रस्तावना उद्देश्य है, जबकि संविधान उसकी पूर्ति का साधन है, इसलिए प्रस्तावना के महत्त्व को हम कम नहीं कर सकते। एम० वी० पायली (M.V. Pylee) के अनुसार, “प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। इसमें भारतीय लोगों का एक संकल्प है कि वे मिलकर न्याय, स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृभाव के कार्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करेंगे।”

प्रश्न 2.
“भारत प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रीय गणराज्य है।” व्याख्या कीजिए।
(“India is a Sovereign Socialist, Secular, Democratic, Republic.” Explain and Discuss.)
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना से हमें भारत की शासन व्यवस्था के स्वरूप का पता चलता है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाए जाने की घोषणा की गई है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी व धर्म-निरपेक्ष शब्दों को अंकित किया गया है। इस प्रकार अब भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। ये पांचों शब्द भारतीय संवैधानिक प्रणाली के मुख्य आधार हैं-

  1. भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)
  2. भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)
  3. भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)
  4. भारत लोकतन्त्रीय राज्य है (India is a Democratic State)
  5. भारत एक गणराज्य है (India is a Republic State)

1. भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)-प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्वसम्पन्न राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। वह किसी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है। भारत न तो अब ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 से पहले था तथा न ही अधिराज्य अथवा उपनिवेश जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 से लेकर 26 जनवरी, 1950 तक रहा है। इसके विपरीत, भारत वैसे ही पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है जैसे कि इंग्लैण्ड, अमेरिका, रूस आदि। किसी भी विदेशी शक्ति को इसकी विदेशी नीति तथा गृह-नीति में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यह ठीक है कि भारत आज भी राष्ट्रमण्डल का सदस्य है, परन्तु इसकी सदस्यता स्वतन्त्रता पर कोई बन्धन नहीं है। भारत जब चाहे राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को छोड़ सकता है।

भारत का संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य होना भी उसकी स्वतन्त्रता पर कोई प्रभाव नहीं डालता। भारत अपनी इच्छा से सदस्य बना है और जब चाहे इसकी सदस्यता को छोड़ सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत एक प्रभुत्त्व-सम्पन्न राज्य है और राष्ट्रमण्डल का सदस्य और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने से इसकी प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

2. भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)-42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके ‘समाजवादी’ (Socialist) शब्द अंकित किया गया है। समाजवाद के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही 42वें संशोधन के अन्तर्गत राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों को मौलिक अधिकारों से श्रेष्ठ घोषित किया गया। सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए अनेक कदम उठाए हैं। 42वें संशोधन द्वारा राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में कुछ समाजवादी सिद्धान्त सम्मिलित किए गए हैं। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 39 (F) में यह लिखा गया है कि, “राज्य विशेष रूप से ऐसी नीति का निर्माण करे जिसके द्वारा……… बच्चों को स्वतन्त्रता तथा गौरव की अवस्थाओं में समग्र रूप में विकसित होने के लिए अवसर तथा सुविधाएं प्राप्त हो सकें तथा बच्चों तथा युवकों की रक्षा हो सके।” अनुच्छेद 39-A द्वारा निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है। इस धारा के अन्तर्गत आर्थिक पक्ष से कमज़ोर लोगों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था के लिए सरकार को निर्देश दिया गया।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

अनुच्छेद 43-A में यह व्यवस्था की गई है कि, “राज्य उचित कानूनी या किसी अन्य विधि से इस कानून के लिए प्रयत्न करेगा कि किसी उद्योग से सम्बन्धित कारोबार के प्रयत्न में अथवा अन्य संस्थाओं में श्रमिकों को भाग लेने का अवसर प्राप्त हो।”

श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए 20-सूत्रीय कार्यक्रम अपनाया और इस 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने के लिए राज्यों को कड़े निर्देश दिए गए। 10 जून, 1976 को मास्को में एक सार्वजनिक सभा में भाषण देते हुए प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था, “हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए यत्न कर रहे हैं जिनसे लोगों को राजनीतिक निर्णय करने तथा आर्थिक विकास में भाग लेने के पूर्ण अवसर प्राप्त होंगे। हम चाहेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति को गणना का एक अंक नहीं मिलेगा बल्कि एक विशेष व्यक्तित्व का स्वामी समझा जाये।”

मार्च, 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार ने स्पष्ट शब्दों में समाजवादी समाज की स्थापना करने की घोषणा की। जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर ने 1 मई, 1977 को जनता पार्टी की सभा में भाषण देते हुए समाजवादी समाज के निर्माण के लिये भरसक प्रयत्न करने की घोषणा की। श्री राजीव गांधी की सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए भरसक प्रयत्न किए और 20-सूत्रीय कार्यक्रम लागू करने के लिए राज्यों को कड़े निर्देश दिए थे।

3. भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)-42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द अंकित करके भारत को स्पष्ट शब्दों में धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है, भारतीय संविधान में ऐसी ही व्यवस्था की गई है जो भारत को निःसन्देह धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाती है। भारत में सभी धर्म के लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता दी गई है। कोई व्यक्ति जिस धर्म को चाहे मान सकता है, धर्म का प्रचार कर सकता है और राज्य धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य किसी विशेष धर्म की किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकता।

4. भारत एक लोकतान्त्रिक राज्य है (India is a Democratic State)-संविधान की प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्रीय राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि शासन शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में नहीं बल्कि समस्त जनता के पास है। लोग शासन चलाने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और ये प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिए समस्त जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। भारत के प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी धर्म, सम्प्रदाय तथा जाति से सम्बन्धित हो, समान अधिकार दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करके संयुक्त चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है। भारत में राजनीतिक प्रजातन्त्र की स्थापना के साथ-साथ प्रस्तावना में आर्थिक व सामाजिक प्रजातन्त्र की स्थापना का आदर्श भी प्रस्तुत किया गया है।

5. भारत एक गणराज्य है (India is a Republican State)—प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ गणराज्य भी घोषित किया है। गणराज्य की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैण्ड व जापान गणराज्य नहीं है, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक है, परन्तु भारत एक गणराज्य है क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिये चुना जाता है। अत: भारत अमेरिका व स्विट्जरलैंड की तरह पूर्ण रूप से गणराज्य है।

कुछ लोगों का कहना है कि भारत की गणराज्य की स्थिति उसकी राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से मेल नहीं खाती है। आस्ट्रेलिया के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री सर राबर्ट मेन्ज़ीज़ (Sir Robert Menzies) ने 1949 में कहा था, “यह समझ नहीं आता कि भारत एक तरफ़ गणराज्य है और उसकी ब्रिटिश क्राऊन के प्रति कोई निष्ठा नहीं है। दूसरी तरफ़ वह राष्ट्रमण्डल का सदस्य है जिसकी ब्रिटिश क्राऊन के प्रति पूर्ण और अविच्छेद निष्ठा है।” परन्तु अब राष्ट्रमण्डल की वह स्थिति नहीं है जो पहले थी। अब यह ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के स्थान पर केवल राष्ट्रमण्डल है जिसके सदस्य स्वतन्त्र राज्य हैं जो पारस्परिक हितों के कारण एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। भारत का अध्यक्ष ब्रिटिश सम्राट् न होकर भारत का राष्ट्रपति है। भारतीयों की ब्रिटिश सम्राट् के प्रति कोई निष्ठा नहीं है, अतः राष्ट्रमण्डल की सदस्यता भारत की गणराज्य की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं डालती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान की प्रस्तावना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश में संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है। विश्व के अन्य संविधानों की तरह हमारे संविधान का आरम्भ भी प्रस्तावना से होता है। संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है। जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और इसका अर्थ स्पष्ट न हो तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या हो सकती है। प्रस्तावना से यह पता चलता है कि संविधान निर्माताओं की भावनाएं क्या थीं। चाहे यह संविधान का कानूनी अंग नहीं है फिर भी यह संविधान की कुंजी, संविधान की आत्मा और संविधान का रत्न है। इसीलिए के० एम० मुन्शी ने प्रस्तावना को राजनीतिक जन्म पत्री का नाम दिया है।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘गणराज्य’ शब्द की व्याख्या करो।
अथवा
गणराज्य शब्द का अर्थ बताओ।
उत्तर-
प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ ‘गणराज्य’ भी घोषित किया गया है। ‘गणराज्य’ में राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैंड और जापान गणराज्य नहीं हैं, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक हैं, परन्तु भारत एक गणराज्य है, क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है। गणराज्य की परिभाषा करते हुए मिस्टर मैडीसन (Madison) ने कहा है कि, “गणराज्य एक ऐसी सरकार है जिसकी शक्तियों का स्रोत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जनता का महान् समूह है तथा जिसकी शक्तियों का प्रयोग उन लोगों द्वारा होता है जो अपने पद पर निश्चित समय के लिए जनता की प्रसन्नता या अपने सद्व्यवहार तक रहते हैं।” मैडीसन द्वारा दी गई परिभाषा भारत पर पूर्ण रूप से लागू होती है। भारत में सरकार की शक्तियों का अन्तिम स्रोत जनता है और शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है। संविधान में संशोधन करने का अधिकार भी संसद् को दिया गया है। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, संसद् सदस्य, राज्यपाल आदि का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित किया गया है।

प्रश्न 3.
सार्वभौमिक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना में भारत को सार्वभौमिक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाये रखने की घोषणा की गई है। सार्वभौमिक का अर्थ है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है और वह किसी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है। प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्रीय राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि शासन शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में नहीं बल्कि समस्त जनता के पास है। लोग शासन चलाने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिये समस्त जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। प्रस्तावना में लोकतन्त्र के साथ-साथ गणराज्य भी घोषित किया गया है। भारत एक गणराज्य है क्योंकि राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है।

प्रश्न 4.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘सामाजिक’, ‘आर्थिक’ तथा ‘राजनीतिक न्याय’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
सामाजिक न्याय (Social Justice) सामाजिक न्याय का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होने दिया जाएगा। सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए संविधान के तीसरे भाग में समानता का अधिकार दिया गया है।

आर्थिक न्याय (Economic Justice)-आर्थिक न्याय से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के समान अवसर प्राप्त हों तथा उसके कार्य के लिए उचित वेतन प्राप्त हो। आर्थिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन के साधन कुछ व्यक्तियों के हाथों में नहीं होने चाहिएं। राष्ट्रीय धन पर सभी का नियन्त्रण और अधिकार समान होना चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संविधान के चौथे भाग में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्त दिए गए

राजनीतिक न्याय (Political Justice)—राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

प्रश्न 5.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त बन्धुत्व’ की स्थापना का अर्थ एवं महत्त्व बताइए।
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है। डॉ० अम्बेदकर के अनुसार, बन्धुत्व का तात्पर्य सभी भारतीयों में भ्रातृ-भाव है। उनके शब्दों में यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो सामाजिक जीवन को एकत्व एवं सुदृढ़ता प्रदान करता है। डॉ० अम्बेदकर के मतानुसार, “बिना बन्धुत्व के स्वतन्त्रता और समानता केवल ऊपरी रंग की तरह अधिक टिकाऊ नहीं रह सकती। स्वतन्त्रता और समानता और बन्धुत्व के उद्देश्यों को हम एक-दूसरे से पृथक नहीं कर सकते, बल्कि हमें इन तीनों को एक साथ लेकर चलना पड़ेगा।” साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद इत्यादि बुराइयों को तभी जड़ से उखाड़ कर फैंका जा सकता है जब सभी नागरिकों में बन्धुत्व की भावना पाई जाती हो।

प्रश्न 6.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त राष्ट्र की एकता’ और ‘अखण्डता’ शब्दों का महत्त्व बताइए।
उत्तर-
संविधान निर्माता अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति से अच्छी तरह वाकिफ थे। अंग्रेज़ों की इसी नीति के कारण भारत का विभाजन हुआ था। इसीलिए संविधान निर्माता भारत की एकता को बनाए रखने के लिए बड़े इच्छुक थे। अतः संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की एकता को बनाए रखने की घोषणा की गई। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया गया, सभी नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई, समस्त देश के लिए एक ही संविधान की व्यवस्था की गई तथा 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता दी गई। 42वें संशोधन द्वारा राष्ट्र की एकता के साथ अखण्डता (Integrity) शब्द जोड़ा गया है।

प्रश्न 7.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘धार्मिक विश्वास, निष्ठा तथा उपासना की स्वतन्त्रता’ का क्या महत्त्व है ?
उत्तर–
प्रस्तावना में धार्मिक स्वतन्त्रता तथा धर्म-निरपेक्षता पर बल दिया गया है। प्रस्तावना में सभी नागरिकों को किसी भी धर्म में विश्वास रखने तथा अपनी इच्छानुसार इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता दी गई है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह जिस धर्म में चाहे, विश्वास रखे और अपने देवता या परमात्मा की जिस तरह चाहे पूजा करे। किसी भी नागरिक को कोई विशेष धर्म ग्रहण करने के लिए या किसी विशेष ढंग से पूजा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। राज्य को नागरिक के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। भारत के विभिन्न धर्मों के लोगों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना को बनाए रखने के लिए धर्म की स्वतन्त्रता पर बल देना अति आवश्यक था।

प्रश्न 8.
42वें संवैधानिक संशोधन (1976) के द्वारा प्रस्तावना में कौन-कौन से परिवर्तन किए गए ?
उत्तर-
42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में प्रभुसत्ता सम्पन्न, लोकतन्त्रीय, गणतन्त्र शब्दों के स्थान पर, प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रीय, गणराज्य शब्द शामिल किए गए हैं। इसके अतिरिक्त राष्ट्र की एकता शब्द की जगह पर राष्ट्र की एकता और अखण्डता शब्द शामिल किए गए हैं।

प्रश्न 9.
प्रस्तावना के अनुसार भारत में शक्ति का स्रोत क्या है ?
उत्तर-
प्रस्तावना के अनुसार भारत में शक्ति का स्रोत संविधान का निर्माण करने वाले और उसे अपने पर लागू करने वाले भारत के लोग हैं, कोई अन्य शक्ति नहीं। प्रस्तावना इन शब्दों से आरम्भ होती है, “हम भारत के लोग ……… इस संविधान को स्वीकृत, अधिनियमित और आत्म-अर्पित करते हैं। ये शब्द इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता ही सर्वोच्च शक्ति है। संविधान को किसी विदेशी शक्ति ने भारत पर नहीं थोपा है बल्कि यह सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है।”

प्रश्न 10.
“भारत प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतन्त्रीय गणराज्य है।” व्याख्या करो।
उत्तर-

  1. भारत पूर्ण रूप से प्रभुत्व सम्पन्न राज्य है। भारत अपने आन्तरिक मामलों और बाहरी मामलों में स्वतन्त्र है।
  2. संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत सरकार का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है।
  3. भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है। भारत का अपना कोई धर्म नहीं है। सभी नागरिकों को धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।
  4. भारत में लोकतन्त्र है। शासन की सभी शक्तियों का स्रोत जनता है। शासन जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
  5. भारत एक गणराज्य है। राष्ट्रपति भारत राज्य का अध्यक्ष है जोकि अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।

प्रश्न 11.
प्रस्तावना में शामिल संविधान के उद्देश्य कौन-से हैं ?
उत्तर-
प्रस्तावना में शामिल संविधान के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. संविधान का उद्देश्य यह है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले और जीवन के किसी भी क्षेत्र में नागरिकों के साथ अन्याय न हो।
  2. प्रस्तावना में नागरिकों की स्वतन्त्रता का उल्लेख किया गया है; जैसे-विचार प्रकट करने, विचार रखने, अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता।
  3. प्रस्तावना में नागरिकों को प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता प्रदान की गई है।
  4. प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान की प्रस्तावना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश में संविधान का मल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है। विश्व के अन्य संविधानों की तरह हमारे संविधान का आरम्भ भी प्रस्तावना से होता है। संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘गणराज्य’ शब्द की व्याख्या करो।
उत्तर-
प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ ‘गणराज्य’ भी घोषित किया गया है। ‘गणराज्य’ में राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैंड और जापान गणराज्य नहीं हैं, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक हैं, परन्तु भारत एक गणराज्य है, क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. प्रस्तावना में किस प्रकार के न्याय का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 2. प्रस्तावना किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रस्तावना एक संविधान का आमुख होता है, जिसमें उसके कारणों एवं उद्देश्यों का वर्णन किया गया होता है।

प्रश्न 3. भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है ?
उत्तर-भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।

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प्रश्न 4. संविधान की प्रस्तावना में अखंडता’ शब्द किस संवैधानिक संशोधन द्वारा समाविष्ट किया गया है ?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।

प्रश्न 5. संविधान में प्रस्तावना का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-संविधान की प्रस्तावना से संवैधानिक शक्ति के स्रोतों, भारतीय शासन व्यवस्था के स्वरूप एवं संविधान के उद्देश्यों का पता चलता है।

प्रश्न 6. भारतीय संविधान की मौलिक प्रस्तावना में भारत को क्या घोषित किया गया था?
उत्तर- भारतीय संविधान की मौलिक प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुत्व सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित किया गया था।

प्रश्न 7. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरम्भ किससे होता है?
उत्तर- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरम्भ ‘हम भारत के लोग’ से आरम्भ होता है।

प्रश्न 8. संविधान के उद्देश्य का वर्णन कहां पर होता है?
उत्तर-संविधान के उद्देश्य का वर्णन प्रस्तावना में होता है।

प्रश्न 9. कौन-से संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ व ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए हैं?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।

प्रश्न 10. भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को क्या घोषित करती है ?
उत्तर-भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, प्रजातन्त्रात्मक गणतन्त्र घोषित करती है।

प्रश्न 11. भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर किस देश के संविधान की प्रस्तावना का प्रभाव पड़ा?
उत्तर-अमेरिका।

प्रश्न 12. संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार किसके पास है?
उत्तर-संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार संसद् को है।

प्रश्न 13. संविधान की प्रस्तावना में अब तक कितनी बार संशोधन किया जा चुका है?
उत्तर-एक बार।

प्रश्न 14. प्रस्तावना में किस प्रकार के न्याय का वर्णन किया गया है?
उत्तर-प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 15. प्रस्तावना किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रस्तावना एक संविधान का आमुख होता है, जिसमें उसके कारणों एवं उद्देश्यों का वर्णन किया गया होता है।

प्रश्न 16. भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है?
उत्तर-भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।

प्रश्न 17. संविधान की प्रस्तावना में ‘अखंडता’ शब्द किस संवैधानिक संशोधन द्वारा समाविष्ट किया गया है?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. भारत के संविधान का मूल दर्शन ……… में निहित है।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना ………… से आरंभ होती है।
3. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद व धर्म-निरपेक्ष शब्द ………. द्वारा जोड़े गए हैं।
4. ………….. ने प्रस्तावना को जन्म-पत्री कहा है।
5. 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में ………. ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया।
उत्तर-

  1. प्रस्तावना
  2. हम भारत के लोग
  3. 42वें संशोधन
  4. के० एम० मुंशी
  5. पं० नेहरू।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।

1. भारत के संविधान का मूल दर्शन प्रस्तावना में निहित है।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना “भारत एक गणराज्य है” से आरंभ होती है।
3. संविधान सभा में 1949 में एक उद्देश्य संबंधी प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें उसने अपने सामने कुछ उद्देश्यों को रखा और उसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान का निर्माण हुआ।
4. के० एम० मुंशी के अनुसार, प्रस्तावना संविधान बनाने वालों के मन की कुंजी है।
5. 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष तथा अखंडता के शब्दों को अंकित किया गया है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरंभ कैसे होता है ?
(क) हम भारत के लोग
(ख) भारत के लोग
(ग) भारत को संपूर्ण
(घ) भारत एक समाजवादी।
उत्तर-
(क) हम भारत के लोग

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना

प्रश्न 2.
संविधान के दर्शन में शामिल होते हैं-
(क) न्याय
(ख) स्वतंत्रता
(ग) समानता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
प्रभुत्व संपन्न कौन है ?
(क) लोकसभा
(ख) राष्ट्रपति
(ग) जनता
(घ) संविधान।
उत्तर-
(ग) जनता

प्रश्न 4.
संविधान के उद्देश्य का वर्णन कहां मिलता है ?
(क) प्रस्तावना में
(ख) मौलिक अधिकारों में
(ग) संकटकालीन धाराओं में
(घ) राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांत में।
उत्तर-
(क) प्रस्तावना में।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 19 सरकार के अंग-न्यायपालिका

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 19 सरकार के अंग-न्यायपालिका Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 19 सरकार के अंग-न्यायपालिका

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
न्यायपालिका के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(Describe in brief the functions of the Judiciary.)
उत्तर-
न्यायपालिका सरकार का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका मुख्य कार्य विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों की व्याख्या करना तथा परस्पर झगड़ों को निपटाना है। इस अंग की कुशल व्यवस्था पर ही नागरिकों के हितों तथा अधिकारों की रक्षा निर्भर करती है। न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करते समय कई नए कानूनों को भी जन्म देती है। संघात्मक राज्यों में न्यायपालिका केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों के झगड़ों को निपटाती है तथा संविधान की रक्षा करती है। न्यायपालिका का महत्त्व इतना बढ़ चुका है कि शासन की कार्यकुशलता का अनुमान न्यायपालिका की कुशलता से ही लगाया जाता है।

लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) ने ठीक ही लिखा है, “किसी शासन की श्रेष्ठता जांचने के लिए उसकी न्याय व्यवस्था की कुशलता से बढ़कर और कोई अच्छी कसौटी नहीं है, क्योंकि किसी और वस्तु का नागरिकों की सुरक्षा और हितों पर इतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना उसके इस ज्ञान से कि एक निश्चित, शीघ्र तथा निष्पक्ष न्याय शासन पर निर्भर रह सकता है।” न्यायपालिका का कर्त्तव्य है कि वह अमीर अथवा गरीब, शक्तिशाली अथवा निर्बल, सरकारी अथवा गैर-सरकारी का भेदभाव किए बिना न्याय करे। जब किसी नागरिक पर अत्याचार होता है तो वह न्यायपालिका के संरक्षण में जाता है और इस विश्वास से जाता है कि उचित न्याय मिलेगा। प्रजातन्त्र राज्यों में न्यायपालिका का महत्त्व दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि न्यायपालिका को अनेक कार्य करने पड़ते हैं।

मैरियट (Merriot) ने ठीक ही लिखा है, “सरकार के जितने भी मुख्य कार्य हैं, न्याय कार्य उनमें निःसन्देह अति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध नागरिकों से होता है। चाहे कानून बनाने की मशीनरी कितनी ही विस्तृत और वैज्ञानिक क्यों न हो, चाहे कार्यपालिका का संगठन कितना ही पूर्ण क्यों न हो, परन्तु फिर भी नागरिक का जीवन दुःखी हो सकता है तथा उसकी सम्पत्ति को खतरा उत्पन्न हो सकता है यदि न्याय करने में देरी हो जाए या न्याय में दोष रह जाए अथवा कानून की व्यवस्था पक्षतापूर्ण या भ्रामक हो।” गार्नर ने तो यहां तक लिखा है कि न्यायपालिका के बिना एक सभ्य राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। न्यायपालिका के अभाव में चोरों, डाकुओं तथा अन्य शक्तिशाली शक्तियों का निर्बलों की सम्पत्ति पर कब्जा हो जाएगा और चारों ओर अन्याय का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। लोग कानूनों का ठीक प्रकार से पालन करें और दूसरों के अधिकारों का हनन न करें, इसके लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। इस लोकतन्त्रात्मक युग में न्यायपालिका के अभाव में किसी भी राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती।

न्यायपालिका के कार्य (Functions of Judiciary)-

न्यायपालिका के कार्य विभिन्न प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। संविधान की प्रकृति, राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप, न्यायपालिका के संगठन इत्यादि पर न्यायपालिका के कार्य निर्भर करते हैं। आधुनिक लोकतन्त्रात्मक प्रणाली में न्यायपालिका को मुख्यता निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं-

1. न्याय करना (To do Justice)न्यायपालिका का मुख्य कार्य न्याय करना है। विधानमण्डल के बनाए गए कानूनों को कार्यपालिका लागू करती है, परन्तु राज्य के अन्तर्गत कई नागरिक ऐसे होते हैं जो कानूनों का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका ऐसे नागरिकों को पकड़कर न्यायपालिका के सामने पेश करती है ताकि कानून तोड़ने वाले नागरिकों को सज़ा दी जा सके। न्यायपालिका उन मुकद्दमों को सुनकर निर्णय करती है। न्यायपालिका उन समस्त मुकद्दमों को सुनती है जो उसके सामने आते हैं। अतः न्यायपालिका फौजदारी तथा दीवानी दोनों तरह के मुकद्दमों को सुनती है। न्यायपालिका व्यक्तियों के बीच हुए झगड़ों तथा सरकार और नागरिकों के बीच हुए झगड़ों का निर्णय करती है। न्यायपालिका न्याय करके नागरिकों को बुरे नागरिकों तथा सरकार के अत्याचारों से बचाती है।

2. कानून की व्याख्या करना (To Interpret Laws)-न्यायपालिका विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों की व्याख्या करती है। विधानमण्डल के बनाए हुए कानून कई बार स्पष्ट नहीं होते जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने लाभ के लिए उस कानून की व्याख्या करता है। अत: कानून की स्पष्टता की आवश्यकता पड़ती है। न्यायपालिका उन कानूनों की व्याख्या करती है जो स्पष्ट नहीं होते। न्यायपालिका द्वारा की गई कानून की व्याख्या अन्तिम होती है और कोई भी व्यक्ति उस व्याख्या को मानने से इन्कार नहीं कर सकता। अमेरिका तथा भारत में न्यायपालिका को कानून की व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है।

3. कानूनों का निर्माण (Making of Laws)-साधारणतया कानून निर्माण का कार्य विधानमण्डल करता है, परन्तु कई दशाओं में न्यायपालिका भी कानूनों का निर्माण करती है। कानून की व्याख्या करते समय न्यायाधीश कई नए अर्थों को जन्म देते हैं जिनसे कानून का अर्थ ही बदल जाता है और एक नए कानून का निर्माण हो जाता है। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों की व्याख्या करते समय कई नए कानूनों को निर्माण किया है। कई बार न्यायपालिका के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जहां कानून बना नहीं होता। ऐसे समय पर न्यायाधीश न्याय के नियमों, निष्पक्षता, समानता तथा ईमानदारी के आधार पर निर्णय करते हैं। यही निर्णय भविष्य में कानून बन जाते हैं। इस प्रकार न्यायपालिका कानूनों का निर्माण भी करती है।

4. संविधान का संरक्षक (Guardian of the Constitution)—जिन देशों में संविधान लिखित होता है वहां पर प्रायः संविधान को राज्य का सर्वोच्च कानून माना जाता है। संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका पर होती है। न्यायपालिका को अधिकार प्राप्त होता है कि यदि विधानपालिका कोई ऐसा कानून बनाए जो संविधान की धाराओं के विरुद्ध हो तो उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दे। न्यायपालिका की इस शक्ति को न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) की शक्ति का नाम दिया गया है। संविधान की व्याख्या करने का अधिकार भी न्यायपालिका को ही प्राप्त होता है। इस प्रकार न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है। अमेरिका तथा भारत में न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार तथा न्यायिक पुनर्निरीक्षण का अधिकार प्राप्त है।

5. संघ का संरक्षक (Guardian of Federation)-जिन देशों में संघात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है वहां न्यायपालिका संघ के संरक्षक के रूप में भी कार्य करती है। संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र तथा राज्य अपनी शक्तियां संविधान से प्राप्त करते हैं। परन्तु कई बार केन्द्र तथा राज्यों के बीच कई प्रकार के झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं। इन पारस्परिक झगड़ों का निर्णय न्यायपालिका के द्वारा ही किया जाता है। न्यायपालिका का यह कार्य होता है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि केन्द्र राज्यों के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करे और न ही राज्य केन्द्र के क्षेत्र में दखल दे।

6. व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण (Guardian of Individual Rights)-भारत, जापान, अमेरिका, कनाडा इत्यादि देशों के संविधानों में व्यक्ति के अधिकारों का वर्णन किया गया है। व्यक्ति के अधिकारों का संविधान में वर्णन ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि उन अधिकारों को लागू करना तथा उनको सुरक्षित करना और भी महत्त्वपूर्ण है। न्यायपालिका ही व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है तथा दूसरे व्यक्तियों अथवा सरकार को व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करने से रोकती है, भारत में प्रत्येक नागरिक को अधिकार है कि वह सुप्रीम कोर्ट अथवा हाई कोर्ट के पास अपील कर सकता है यदि उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट विधानमण्डल के कानूनों को भी रद्द कर सकती है यदि वे कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों।

7. सलाह देना (Advisory Functions)-कई देशों में न्यायपालिका कानूनी मामलों में सलाह भी देती है। इंग्लैण्ड में प्रिवी-कौंसिल (Privy Council) की न्यायिक समिति से संवैधानिक समस्याओं पर परामर्श लिया जाता है। भारत में राष्ट्रपति किसी भी विषय पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह ले सकता है, परन्तु सुप्रीम कोर्ट की सलाह मानना अथवा न मानना राष्ट्रपति पर निर्भर करता है। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को सलाह देने से इन्कार कर दिया है। कैनेडा का गवर्नर-जनरल भी कुछ बातों पर सर्वोच्च न्यायालय की सलाह ले सकता है।।

8. प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions)-कई देशों में न्यायालयों को प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते हैं। भारत में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा निम्न न्यायालयों पर प्रशासकीय नियन्त्रण करती है।

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9. आज्ञा-पत्र जारी करना (To Act Injunctions and Writs of Mandamus)-न्यायपालिका जनता को आदेश दे सकती है कि वे प्रमुख कार्य नहीं कर सकते और साथ ही कोई कार्य जिनके करने से लोग बचना चाहते हों, करवा सकती है। यदि वे कार्य न किए जाएं तो न्यायालयों का अपमान माना जाता है, जिस पर न्यायालय बिना अभियोग चलाए दण्ड दे सकता है। कई बार न्यायालय मानहानि का अभियोग लगाकर जुर्माना आदि भी कर सकता है।

10. कोर्ट ऑफ़ रिकार्ड के कार्य (To Act as a Court of Record)-न्यायपालिका कोर्ट ऑफ़ रिकार्ड का भी कार्य करती है जिसका अर्थ है कि न्यायपालिका को भी सभी मुकद्दमों में निर्णयों तथा सरकार को दिए गए परामर्शों का रिकार्ड रखना पड़ता है। ये निर्णय तथा परामर्श की प्रतियां किसी भी समय प्राप्त की जा सकती हैं।

11. विविध कार्य (Miscellaneous Functions)-न्यायपालिका उपरलिखित कार्यों के अतिरिक्त कुछ और भी कार्य करती है
(क) न्यायपालिका नाबालिगों की सम्पत्ति की देख-रेख के लिए संरक्षक (Trustee) नियुक्त करती है।
(ख) जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति के स्वामित्व के सम्बन्ध में झगड़ा उत्पन्न होता है, तब न्यायालय उस सम्पत्ति को अपने अधिकार में ले लेता है और उस समय तक प्रबन्ध करता है जब तक उस झगड़े का फैसला न हो जाए।
(ग) न्यायपालिका नागरिक विवाह (Civil Marriage) की अनुमति देती है। (घ) न्यायपालिका विवाह-विच्छेद (Divorce) के मुकद्दमे भी सुनती है। (ङ) शस्त्र इत्यादि रखने के लिए लाइसेंस जारी करती है।
(च) भारत में निर्वाचन सम्बन्धी अपीलें हाई कोर्ट सुनती है। उच्च अधिकारियों को शपथ दिलवाना न्यायपालिका का ही कार्य है।

निष्कर्ष (Conclusion)-किसी भी सरकार का न्यायपालिका अंग अपने कार्यों व शक्तियों का निर्धारण स्वयं नहीं करता। वह निर्धारण राज्य के संविधान और विधानपालिका के कानूनों द्वारा किया जाता है। इस कारण हर राज्य में न्यायपालिका के कार्य सदा एक समान नहीं होते। इसके अतिरिक्त एक प्रजातन्त्रात्मक ढांचे में न्यायपालिका को संविधान और लोगों के अधिकारों का रक्षक माना जाता है। अच्छे प्रजातन्त्र के आवश्यक तत्त्वों में निपुण और स्वतन्त्र न्यायपालिका का प्रमुख स्थान है।

प्रश्न 2.
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता से क्या अभिप्राय है ? यह किस तरह से प्राप्त की जा सकती है ?
(What is meant by ‘Independence of Judiciary’ ? How can it be secured ?)
उत्तर-
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ (Meaning of Independence of Judiciary)-वर्तमान युग में न्यायपालिका का महत्त्व इतना बढ़ चुका है कि न्यायपालिका इन कार्यों को निष्पक्षता तथा कुशलता से तभी कर सकती है जब न्यायपालिका स्वतन्त्र हो। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ है कि न्यायाधीश स्वतन्त्र, निष्पक्ष तथा निडर होने चाहिएं। न्यायाधीश निष्पक्षता से न्याय तभी कर सकते हैं, जब उन पर किसी प्रकार का दबाव न हो। न्यायपालिका विधानमण्डल तथा कार्यपालिका के अधीन नहीं होनी चाहिए और विधानमण्डल तथा कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। यदि न्यायपालिका कार्यपालिका के अधीन कार्य करेगी तो न्यायाधीश नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की रक्षा नहीं कर सकेंगे।

न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का महत्त्व (Importance of Independence of Judiciary)-आधुनिक युग में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की रक्षा कर सकती है। अमीर-गरीब, शक्तिशाली, निर्बल, पढ़े-लिखे, अनपढ़ तथा सरकारी, गैर-सरकारी सभी को न्याय तभी मिल सकता है जब न्यायाधीश स्वतन्त्र हों। यदि न्यायाधीश विधानमण्डल के अधीन होंगे तो वे विधानमण्डल के कानूनों को असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकेंगे और इस तरह वे संविधान की रक्षा नहीं कर सकेंगे। लोकतन्त्र की सफलता के लिए न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है। माण्टेस्क्यू ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए ही शक्तियों का पृथक्करण का सिद्धान्त दिया ताकि सरकार के तीनों अंग स्वतन्त्र होकर कार्य कर सकें।

संघीय राज्यों में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का महत्त्व और भी अधिक है। संघ राज्यों में केन्द्र तथा प्रान्तों में शक्तियों का विभाजन होता है। कई बार शक्तियों के विभाजन पर केन्द्र तथा प्रान्तों में झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं। इन झगड़ों को निपटाने के लिए एक स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। बिना स्वतन्त्र न्यायपालिका के संघीय शासन सफलतापूर्वक चल ही नहीं सकता है।

अमेरिकन राष्ट्रपति टाफ्ट ने न्यायपालिका के महत्त्व के विषय में कहा है, “सभी मामलों में, चाहे वे व्यक्ति तथा राज्य के बीच में हों, चाहे अल्पसंख्यक वर्ग और बहुमत के बीच में हों, न्यायपालिका को निष्पक्ष रहना चाहिए और बिना किसी भय के निर्णय देना चाहिए।” डॉ० गार्नर (Garner) ने न्यायपालिका के महत्त्व का वर्णन करते हुए लिखा है, “यदि न्यायाधीशों में प्रतिभा और निर्णय देने की स्वतन्त्रता न हो तो न्यायपालिका का यह सारा ढांचा खोखला प्रतीत होगा और ऊंचे उद्देश्य की सिद्धि नहीं होगी जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है।” (“If judges lack wisdom, probity and freedom of decision, the high purposes for which the Judiciary is established cannot be realised.’) अत: व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान की रक्षा के लिए, संघ की सफलता के लिए, न्याय के लिए तथा लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना अनिवार्य है।

न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को स्थापित करने वाले तत्त्व (Factors that Establish the Independence of Judiciary)—प्रत्येक लोकतन्त्रीय राज्य में न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाने के लिए कोशिश की जाती है। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तत्त्व सहायक हैं-

1. न्यायाधीशों की नियुक्ति का ढंग (Mode of Appointment of Judges)-न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उनकी नियुक्ति किस ढंग से की जाती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के तीन ढंग हैं
(क) जनता द्वारा चुनाव (Election by the People)
(ख) विधानमण्डल द्वारा चुनाव (Election by the Legislature)
(ग) कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति (Appointment by the Executive)

(क) जनता द्वारा चुनाव-न्यायाधीशों की नियुक्ति के सब ढंगों में जनता द्वारा चुने जाने का ढंग सबसे अधिक दोषपूर्ण है। इसलिए यह पद्धति अधिक प्रचलित नहीं है।
(ख) विधानमण्डल द्वारा चुनाव-स्विट्ज़रलैण्ड तथा रूस में न्यायाधीशों का चुनाव विधानमण्डल द्वारा किया जाता है। यह पद्धति भी न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के लिए उचित नहीं है।
(ग) कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति-न्यायाधीशों की नियुक्ति का सबसे अच्छा ढंग कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति है। संसार के मुख्य देशों में इसी प्रणाली को ही अपनाया गया है। भारत में सुप्रीमकोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश राष्ट्रपति सीनेट की अनुमति से नियुक्त करता है। इंग्लैण्ड, कैनेडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी अफ्रीका में न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका के द्वारा ही की जाती है। यह प्रणाली इसलिए अच्छी समझी जाती है क्योंकि कार्यपालिका योग्य व्यक्तियों को नियुक्त कर सकती है। इससे राजनीतिक दलों का प्रभाव भी कम हो जाता है।

2. नौकरी की सुरक्षा (Security of Service) न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि उनको नौकरी की सुरक्षा प्राप्त हो। उनको हटाने का तरीका काफ़ी कठिन होना चाहिए ताकि कार्यपालिका अपनी इच्छा से उन्हें न हटा सके। यदि न्यायाधीशों को नौकरी की चिन्ता रहेगी तो वह अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकेंगे। यदि न्यायाधीशों को यह पता हो कि उन्हें तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक वे भ्रष्टाचारी साधनों का प्रयोग नहीं करते तो इससे वे बिना किसी डर के न्याय कर सकते हैं। न्यायाधीश कार्यपालिका के अत्याचारों के विरुद्ध तभी निर्णय दे सकते हैं जब उनकी अपनी नौकरी सुरक्षित हो और न्यायाधीश की नौकरी तभी सुरक्षित हो सकती है यदि उन्हें हटाने की विधि कठोर हो। इसलिए संसार के अधिकांश देशों में न्यायाधीशों की नौकरी को सुरक्षित रखा गया है ताकि वे स्वतन्त्र होकर अपना कार्य कर सकें। भारत में सुप्रीमकोर्ट तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीश को राष्ट्रपति उसी समय हटा सकता है जब संसद् के दोनों सदन अपने कुल सदस्यों के उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से एक प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति से किसी न्यायाधीश को हटाने की सिफ़ारिश करते हैं।

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3. लम्बा कार्यक्रम (Long Tenure)-न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायाधीशों का कार्यक्रम काफ़ी लम्बा हो। यदि न्यायाधीशों का कार्यकाल थोड़ा हो तो न्यायाधीश कभी भी स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होकर कार्य नहीं कर सकते। जब न्यायाधीशों को कार्यकाल छोटा होता है तब न्यायाधीश रिश्वतें लेकर थोड़े समय में अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने की कोशिश करते हैं। कार्यकाल थोड़ा होने की दशा में न्यायाधीशों को दोबारा न चुने जाने की चिन्ता रहती है। इसलिए न्यायाधीशों का कार्यकाल काफ़ी लम्बा होना चाहिए। इसके अतिरिक्त लम्बे कार्यकाल का यह भी होता है कि न्यायाधीशों को अपने कार्य का अनुभव हो जाता है जिससे वे अपने कार्य को अधिक कुशलतापूर्वक करते हैं। संसार के प्रायः सभी देशों में न्यायाधीशों को अपने कार्य का अनुभव हो जाता है जिससे वे अपने कार्य को अधिक कुशलतापूर्वक करते हैं। संसार के प्रायः सभी देशों में न्यायाधीशों का कार्यकाल काफ़ी लम्बा रखा जाता है। भारत में सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक सदाचार पर्यन्त अपने पद पर बने रहते हैं। इंग्लैण्ड में न्यायाधीश सदाचार पर्यन्त अपने पद पर रहते हैं। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सदाचार के आधार पर जीवन भर अपने पद पर रहते हैं।

4. न्यायाधीशों को अच्छा वेतन तथा पैन्शन (Good Salary and Pension to Judges)-न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि उन्हें अच्छा वेतन मिले ताकि वे अपना गुजारा अच्छी तरह कर सकें और अपने जीवन स्तर को अपने पद के अनुसार रखें। यदि न्यायाधीशों को अच्छा वेतन नहीं मिलेगा तो वे अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचारी साधनों का प्रयोग करेंगे। भारतवर्ष में न्यायाधीशों को बहुत अच्छा वेतन मिलता है-सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रुपये तथा न्यायाधीशों को 2,50,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है जबकि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 2,50,000 रुपये तथा अन्य न्यायाधीशों को 2,25,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है।

अच्छे वेतन के अतिरिक्त न्यायाधीशों को रिटायर होने के पश्चात् पैन्शन भी मिलनी चाहिए ताकि न्यायाधीशों को रिटायर होने के पश्चात् अपनी रोजी की चिन्ता न रहे। यदि उन्हें रिटायर होने के पश्चात् पैन्शन न दी जाए तो इसका अर्थ होगा कि वे अपने कार्यकाल में अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने की कोशिश करेंगे ताकि रिटायर होने के पश्चात् उनका जीवन सुख से व्यतीत हो सके। इससे न्यायाधीश भ्रष्टाचार के रास्ते पर चलने लगेंगे। भारतवर्ष तथा अमेरिका में न्यायाधीशों को रिटायर होने के पश्चात् अच्छी पैन्शन दी जाती है।

5. सेवा की शर्तों में हानिकारक परिवर्तन न होना (No change in the terms of their disadvantage)न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के पश्चात् उनकी हानि के लिए वेतन, पैन्शन, छुट्टियों के नियमों में कोई परिवर्तन न किया जाए।

6. न्यायाधीशों की उच्च योग्यताएं (High Qualifications of Judges)-न्यायाधीश तभी स्वतन्त्र रह सकते हैं जब उनकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर हुई हो तथा न्यायाधीशों के लिए उच्च योग्यताएं निश्चित होनी चाहिएं। अयोग्य न्यायाधीश जिनकी नियुक्ति सिफ़ारिश पर की जाती है कभी भी निष्पक्ष नहीं रह सकते और न ही अपने कार्य को कुशलता से कर सकते हैं। यदि न्यायाधीशों को कानून का पूर्ण ज्ञान नहीं होगा तो वे चतुर वकीलों की बातों में आ जाएंगे और न्याय निष्पक्षता से नहीं कर पाएंगे। भारत में सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश वही व्यक्ति बन सकता है जो हाई कोर्ट में पांच वर्ष न्यायाधीश रहा हो अथवा दस वर्ष तक हाई कोर्ट में एडवोकेट रहा तो अथवा राष्ट्रपति की दृष्टि में एक प्रसिद्ध कानूनज्ञाता हो।

7. रिटायर होने के पश्चात् वकालत की मनाही (No Practice after Retirement) न्याय की निष्पक्षता के लिए आवश्यक है कि उन्हें रिटायर होने के पश्चात् वकालत करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। यदि न्यायाधीशों को रिटायर होने के पश्चात् वकालत करने का अधिकार होगा तो इससे न्याय दूषित होगा। जब कोई न्यायाधीश रिटायर होने के पश्चात् कोर्ट के सामने वकील की हैसियत से पेश होता है तो उसके साथी न्यायाधीश उसका पक्षपात करेंगे, जिससे न्याय निष्पक्ष नहीं होगा। भारत में न्यायाधीश को वकालत करने की बिल्कुल मनाही है।

8. अवकाश प्राप्ति के पश्चात् न्यायाधीशों की सेवाओं पर प्रतिबन्ध (Restrictions on utilising services of Judges after Retirement) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायाधीशों को रिटायर होने के पश्चात् किसी भी प्रकार का राजकीय अथवा अर्द्ध-राजकीय पद नहीं दिया जाना चाहिए।

9. न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण (Separation of Judiciary from the Executive)न्यायपालिका को स्वतन्त्र रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखा जाये तथा कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार न दिया जाये। यदि एक ही व्यक्ति के हाथों में कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की शक्तियां दे दी जाएं तो वह उनका दुरुपयोग करेगा अर्थात् यदि मुकद्दमा चलाने वाला ही न्यायाधीश हो तो इससे नागरिकों को न्याय नहीं मिलेगा।

10. न्यायपालिका को व्यापक अधिकार (Sufficient Powers to Judiciary) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायपालिका को काफ़ी अधिकार प्राप्त हों। न्यायपालिका को साधारणतया विधानमण्डल तथा कार्यपालिका से निर्बल माना जाता है क्योंकि विधानमण्डल का नियन्त्रण देश के वित्त पर होता है जबकि कार्यपालिका का नियन्त्रण देश की शक्ति (सेना) पर होता है। इसलिए न्यायपालिका को सम्मान का स्थान देने के लिए आवश्यक हो जाता है कि इसको भी काफ़ी शक्तियां प्राप्त हों ताकि न्यायपालिका अपना कार्य स्वतन्त्रता से कर सके। अत: न्यायपालिका को विधानमण्डल के कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।

11. कार्य की स्वतन्त्रता (Liberty of Action)-न्यायाधीश को अपने कार्य में पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। वे जब किसी भी मुकद्दमे का निर्णय कर रहे हों, किसी अन्य व्यक्ति को उनके काम में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। न्यायाधीशों के कार्यों की सार्वजनिक आलोचना भी नहीं होनी चाहिए। भारत में प्रत्येक न्यायालय उनके काम में हस्तक्षेप करने वाले तथा उसका अनादर करने वाले के विरुद्ध स्वयं मुकद्दमा चला कर उसे दण्ड दे सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion) उपर्युक्त विचारों से स्पष्ट है कि न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाने के लिए यह आवश्यक है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका के द्वारा की जाए। एक बार नियुक्ति करने पर उनका कार्यकाल सदाचारपर्यन्त लम्बा हो, उनको हटाने का तरीका कठिन हो, उसकी नियुक्ति के लिए उच्च योग्यताएं निश्चित हों, उन्हें अच्छा वेतन मिले तथा रिटायर होने के पश्चात् पैन्शन दी जाए तथा न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखा जाये। अतः ये सब तत्त्व मिल कर ही न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को कायम रख सकते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायपालिका के चार कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-
न्यायपालिका के मुख्य तीन कार्य निम्नलिखित हैं

  1. न्याय करना-विधानमण्डल के बनाए गए कानूनों को कार्यपालिका लागू करती है, परन्तु राज्य के अन्तर्गत कई नागरिक ऐसे भी होते हैं जो इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका ऐसे व्यक्तियों को पकड़कर न्यायपालिका के समक्ष पेश करती है। न्यायपालिका मुकद्दमों को सुनकर न्याय करती है।
  2. कानून की व्याख्या-न्यायपालिका, विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों की व्याख्या करती है। कई बार विधानमण्डल के बनाए हुए कानून स्पष्ट नहीं होते। अतः कानूनों की स्पष्टता की आवश्यकता पड़ती है। तब न्यायपालिका उन कानूनों की व्याख्या कर उन्हें स्पष्ट करती है।
  3. कानूनों का निर्माण-साधारणतया कानूनों का निर्माण विधानपालिका के द्वारा किया जाता है, परन्तु कई दशाओं में न्यायपालिका भी कानूनों का निर्माण करती है। कानूनों की व्याख्या करते समय न्यायाधीश कई नए अर्थों को जन्म देते हैं जिससे उस कानून का अर्थ ही बदल जाता है और एक नए कानून का निर्माण होता है।
  4. संविधान का संरक्षक-न्यायपालिका संविधान की संरक्षक मानी जाती है।

प्रश्न 2.
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ तथा महत्त्व लिखें।
उत्तर-
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ-वर्तमान युग में न्यायपालिका का महत्त्व इतना बढ़ चुका है कि न्यायपालिका इन कार्यों को तभी सफलता एवं निष्पक्षता से कर सकती है जब न्यायपालिका स्वतन्त्र हो। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ है कि न्यायाधीश स्वतन्त्र, निष्पक्ष तथा निडर होने चाहिएं। न्यायाधीश निष्पक्षता से न्याय तभी कर सकते हैं जब उन पर किसी प्रकार का दबाव न हो। न्यायपालिका विधानमण्डल तथा कार्यपालिका के अधीन नहीं होनी चाहिए और विधानमण्डल तथा कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि न्यायपालिका, कार्यपालिका के अधीन कार्य करेगी तो न्यायाधीश जनता के अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाएंगे।

न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का महत्त्व-आधुनिक युग में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की रक्षा कर सकती है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना आवश्यक है। संघीय राज्यों में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का महत्त्व और भी अधिक है। संघ राज्यों में शक्तियों का केन्द्र और राज्यों में विभाजन होता है। कई बार शक्तियों के विभाजन पर केन्द्र और राज्यों में झगड़ा हो जाता है। इन झगड़ों को निपटाने के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाने के लिए कोई चार शर्ते लिखें।
उत्तर-
न्यायपालिका को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा स्वतन्त्र बनाया जा सकता है-

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति का ढंग-न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उनकी नियुक्ति किस ढंग से की जाती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के क्रमश: तीन ढंग हैं-
    (1) जनता द्वारा चुनाव (2) विधानमण्डल द्वारा चुनाव (3) कार्यपालिका द्वारा चुनाव। न्यायाधीशों की नियुक्ति का सबसे अच्छा ढंग कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति है।
  2. नौकरी की सुरक्षा-न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि उन्हें नौकरी की सुरक्षा प्राप्त हो। उन्हें हटाने का तरीका काफ़ी कठिन होना चाहिए ताकि वे निष्पक्षता और कुशलता से अपना कार्य कर सकें।
  3. लम्बा कार्यकाल-न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के लिए यह भी आवश्यक है कि न्यायाधीशों का कार्यकाल लम्बा हो। यदि न्यायाधीशों का कार्यकाल थोड़ा होगा तो वे कभी भी स्वतन्त्रतापूर्वक एवं निष्पक्षता से अपना कार्य नहीं कर सकेंगे।
  4. अच्छा वेतन-न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है, कि उन्हें अच्छा वेतन मिले।

प्रश्न 4.
बंदी उपस्थापक अथवा प्रत्यक्षीकरण लेख (Writ of Habeas Corpus) का अर्थ बताएं।
उत्तर-
‘हैबियस कॉर्पस’ लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है, ‘हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो।’ (Let us have the body.) इस आदेश के अनुसार, न्यायालय किसी अधिकारी को, जिसने किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी ढंग से बन्दी बना रखा हो, आज्ञा दे सकता है कि कैदी को समीप के न्यायालय में उपस्थित किया जाए ताकि उसके गिरफ्तारी के कानूनों का औचित्य अथवा अनौचित्य का निर्णय किया जा सके। अनियमित गिरफ्तारी की दशा में न्यायालय उसको स्वतन्त्र करने का आदेश दे सकता है।

प्रश्न 5.
परमादेश लेख (Writ of Mandamus) का अर्थ बताएं।
उत्तर-
‘मैण्डमस’ शब्द लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है, “हम आदेश देते हैं” (We Command)। इस आदेश द्वारा न्यायालय किसी अधिकारी, संस्था अथवा निम्न न्यायालय को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाधित कर सकता है। इस आदेश द्वारा न्यायालय राज्य के कर्मचारियों से ऐसे कार्य करवा सकता है जिनको वे किसी कारण न कर रहे हों तथा जिनके न किए जाने से किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 19 सरकार के अंग-न्यायपालिका

प्रश्न 6.
न्यायपालिका को सरकार के अन्य अंगों से क्यों खास महत्त्व दिया जाता है ?
उत्तर-
न्यायपालिका को राज्य सरकार के तीनों अंगों में विशेष महत्त्व प्राप्त होता है। ब्राइस के अनुसार, “यदि किसी राज्य के प्रशासन की जानकारी आप को प्राप्त करनी है तो आपके लिए यह आवश्यक है कि आप वहां की न्यायपालिका का अध्ययन करें और यदि न्याय व्यवस्था अच्छी व सुचारु है तो प्रशासन बढ़िया है।” न्यायपालिका को निम्नलिखित कारणों द्वारा खास महत्त्व प्राप्त है-

  • न्यायपालिका संविधान की रक्षक है।
  • न्यायपालिका लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करती है।
  • जिन देशों में संघात्मक शासन प्रणाली है वहां न्यायपालिका संघ के संरक्षक के रूप में काम करती है।
  • न्यायपालिका विधानमण्डल के बनाए कानूनों की व्याख्या करती है।
  • कई देशों में न्यायपालिका कानूनी मामलों में सलाह भी देती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायपालिका के दो कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. न्याय करना-न्यायपालिका मुकद्दमों को सुनकर न्याय करती है।
  2. कानून की व्याख्या-न्यायपालिका, विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों की व्याख्या करती है।

प्रश्न 2.
न्यायपालिका स्वतन्त्रता का अर्थ लिखें।
उत्तर-
वर्तमान युग में न्यायपालिका का महत्त्व इतना बढ़ चुका है कि न्यायपालिका इन कार्यों को तभी सफलता एवं निष्पक्षता से कर सकती है जब न्यायपालिका स्वतन्त्र हो। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ है कि न्यायाधीश स्वतन्त्र, निष्पक्ष तथा निडर होने चाहिएं। न्यायाधीश निष्पक्षता से न्याय तभी कर सकते हैं जब उन पर किसी प्रकार का दबाव न हो। न्यायपालिका विधानमण्डल तथा कार्यपालिका के अधीन नहीं होनी चाहिए और विधानमण्डल तथा कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि न्यायपालिका, कार्यपालिका के अधीन कार्य करेगी तो न्यायाधीश जनता के अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाएंगे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. संविधान की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बुल्जे के अनुसार, “संविधान उन नियमों का समूह है, जिनके अनुसार सरकार की शक्तियां, शासितों के अधिकार तथा इन दोनों के आपसी सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है।”

प्रश्न 2. संविधान के कोई दो रूप/प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. विकसित संविधान
  2. निर्मित संविधान।

प्रश्न 3. विकसित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो संविधान ऐतिहासिक उपज या विकास का परिणाम हो, उसे विकसित संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 4. लिखित संविधान किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-लिखित संविधान उसे कहा जाता है, जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों।

प्रश्न 5. अलिखित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-अलिखित संविधान उसे कहते हैं, जिसकी धाराएं लिखित रूप में न हों, बल्कि शासन संगठन अधिकतर रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं पर आधारित हो।

प्रश्न 6. कठोर एवं लचीले संविधान में एक अन्तर लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान की अपेक्षा लचीले संविधान में संशोधन करना अत्यन्त सरल है।

प्रश्न 7. लचीले संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर- लचीला संविधान समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो लिखित संविधान का समर्थन करता है?
उत्तर-डॉ० टॉक्विल ने लिखित संविधान का समर्थन किया है।

प्रश्न 9. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता।

प्रश्न 10. एक अच्छे संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-संविधान स्पष्ट एवं सरल होता है।

प्रश्न 11. अलिखित संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-यह समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 12. अलिखित संविधान का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अलिखित संविधान में शक्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।

प्रश्न 13. लिखित संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान निश्चित तथा स्पष्ट होता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 19 सरकार के अंग-न्यायपालिका

प्रश्न 14. लिखित संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान समयानुसार नहीं बदलता।

प्रश्न 15. जिस संविधान को आसानी से बदला जा सके, उसे कैसा संविधान कहा जाता है ?
उत्तर-उसे लचीला संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 16. जिस संविधान को आसानी से न बदला जा सकता हो, तथा जिसे बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाया जाता हो, उसे कैसा संविधान कहते हैं ?
उत्तर-उसे कठोर संविधान कहते हैं। प्रश्न 17. लचीले संविधान का एक दोष लिखें। उत्तर-यह संविधान पिछड़े हुए देशों के लिए ठीक नहीं।

प्रश्न 18. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान निश्चित एवं स्पष्ट होता है।

प्रश्न 19. कठोर संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है।

प्रश्न 20. शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Power) का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर-शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त मान्टेस्क्यू ने प्रस्तुत किया।

प्रश्न 21. संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कौन हैं ?
उत्तर-संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कार्ल-मार्क्स हैं।

प्रश्न 22. संविधानवाद के मार्ग की एक बड़ी बाधा लिखें।
उत्तर-संविधानवाद के मार्ग की एक बाधा युद्ध है।

प्रश्न 23. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन किया।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………. संविधान उसे कहा जाता है, जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके।
2. जिस संविधान को सरलता से न बदला जा सके, उसे …………… संविधान कहते हैं।
3. लिखित संविधान एक ……………. द्वारा बनाया जाता है।
4. ……………. संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
5. ……………. में क्रांति का डर बना रहता है।
उत्तर-

  1. लचीला
  2. कठोर
  3. संविधान सभा
  4. अलिखित
  5. लिखित संविधान।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. अलिखित संविधान अस्पष्ट एवं अनिश्चित होता है।
2. लचीले संविधान में क्रांति की कम संभावनाएं रहती हैं।
3. कठोर संविधान अस्थिर होता है।
4. एक अच्छा संविधान स्पष्ट एवं निश्चित होता है।
5. कठोर संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत ।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कठोर संविधान का गुण है
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता
(ख) संघात्मक राज्य के लिए उपयुक्त नहीं है
(ग) समयानुसार नहीं बदलता
(घ) संकटकाल में ठीक नहीं रहता।
उत्तर-
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता

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प्रश्न 2.
एक अच्छे संविधान का गुण है-
(क) संविधान का स्पष्ट न होना
(ख) संविधान का बहुत विस्तृत होना
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय
(घ) बहुत कठोर होना।
उत्तर-
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय

प्रश्न 3.
“संविधान उन नियमों का समूह है, जो राज्य के सर्वोच्च अंगों को निर्धारित करते हैं, उनकी रचना, उनके आपसी सम्बन्धों, उनके कार्यक्षेत्र तथा राज्य में उनके वास्तविक स्थान को निश्चित करते हैं।” किसका कथन है ?
(क) सेबाइन
(ख) जैलिनेक
(ग) राबर्ट डाहल
(घ) आल्मण्ड पावेल।
उत्तर-
(ख) जैलिनेक

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से एक अच्छे संविधान की विशेषता है-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित
(ख) अस्पष्टता
(ग) कठोरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित