गतका (Gattka) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions गतका (Gattka) Game Rules.

गतका (Gattka) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. गतके के प्लेटफार्म का आकार = गोल
  2. प्लेटफार्म का व्यास = 30”- 34″
  3. गतके छड़ की लम्बाई = 39 इंच
  4. छड़ी का भार = 500 ग्राम (लगभग)
  5. छड़ी बनी है = बैंत की
  6. छड़ी की मोटाई = लगभग % इंच
  7. बाउट का समय = 5 मिनट
  8. खिलाड़ियों की पोशाक = जर्सी या कमीज़, सिर पर पटका आवश्यक
  9. अधिकारी = 4 सदस्यों की रैफरी काउंसिल (1 मैदान के भीतर 3 बाहर साईड रैफरी) 2 स्कोरर, 1 टाइम कीपर
  10. फ्री का आकार = 9 इंच व्यास (लगभग)
  11. प्रतियोगिता का समय = 3 मिन्ट (1.5 मिन्ट + 1.5 मिनट)(अन्तराल 30 सैकंड)
  12. गतके के मैदान का परिमाप (घेरा) = भीतरी परिमाप (घेरा) 30 फुट व्यास, बाहरी परिमाप (घेरा) 34 फुट व्यास

शस्त्रों (हथियारों) की सूची

  1. तलवार
  2. ढाल
  3. वर्षा
  4. गंडासी
  5. कमंद तोड़
  6. छड़ी
  7. कटार
  8. गदा
  9. खण्डा
  10. तेग।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

गतका खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Gattka)

  1. गतके की खेल में सात खिलाड़ी होते हैं जिनमें पांच प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। दो खिलाड़ी बदलने होते हैं।
  2. गतके का प्लेटफार्म गोल और यह 71 मीटर रेडियम का होता है।
  3. गतके की लम्बाई हत्थी से तीन फुट (3′) की होती है जो बैंत की बनी होती है।
  4. गतके की बाऊट का समय पांच मिनट होता है।
  5. गतके की खेल में तीन जज, एक रैफरी और एक टाईम कीपर होता है।

PSEB 11th Class Physical Education Guide गतका (Gattka) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गतके की प्रतियोगिता में कौन-कौन से आय वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
अंडर 17 वर्ष, अंडर 19 वर्ष, अंडर 22 वर्ष, अंडर 25 वर्ष।

प्रश्न 2.
गतके की प्रतियोगिता में सिंगल लाठी टीम इवेंट में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
गतके की प्रतियोगिता में सिंगल लाठी टीम इवेंट में खिलाड़ियों की गिनती 3 + 1 = 4.

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प्रश्न 3.
गतके की प्रतियोगिता में ग्राउंड को कितने भागों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
तीन भागों में खेल क्षेत्र, बाहर का क्षेत्र और आरक्षित क्षेत्र।

प्रश्न 4.
गतके की प्रतियोगिता में बाहरी क्षेत्र क्या होता है ?
उत्तर-
गतके के खेल क्षेत्र से बाहर वाले भाग को खेल का बाहरी क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 5.
गतके की प्रतियोगिता के लिये साधारण नियम कौन से हैं ?
उत्तर-

  1. सभी प्रतियोगिता के लिए ड्रा निकालने से पहले बाऊट के लिए खिलाड़ियों के नाम A, B, C, D, E लिए जाते हैं।
  2. गतके की प्रतियोगिता में A नाम वाला खिलाड़ी विरोधी की टीम के A वाले खिलाड़ी से बाऊट में भाग लेना।
  3. उन मुकाबलों में जिनमें चार से अधिक प्रतियोगी हों पहली सीरीज़ के लिए बाई निकाली जाती है ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम हो जाए।
  4. पहली सीरीज़ में जिन खिलाड़ियों को बाई मिलती है वह दूसरी सीरीज़ में पहले गतका खेलेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषम हो तो अंतिम बाई प्राप्त करने वाला खिलाड़ी दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता से बाऊट में भाग लेगा।
  5. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई और दूसरी सीरीज़ में Walk Over नहीं ले सकता न ही किसी को लगातार दो वाक ओवर मिलते हैं।

प्रश्न 6.
गतके के खेल को सिक्खों के किस गुरु का आशीर्वाद प्राप्त है?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और गुरु गोबिंद सिंह जी का।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB गतका (Gattka) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
गतका के प्लेटफार्म, पोशाक और समय के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्लेटफार्म-गतके का प्लेटफार्म गोल दायरा होता है जो 15 मीटर का होता है। पोशाक-प्रतियोगी जर्सी अथवा कमीज़ पहन सकता है परन्तु सिर पर पटका होना आवश्यक है।
गतके का साइज़-गतका बैत का होता है जिसकी हत्थी होती है और उस से लगी तीन फुट की बैत की छड़ लगी होती है।
समय-प्रत्येक बाऊट का समय पांच मिनट होता है।

प्रश्न 2.
गतका में ड्रा, बाई और वाक ओवर के बारे में बताइए।
उत्तर-
डा, बाई और वाक ओवर
Draw, Byes and Walkover

  1. सभी प्रतियोगिता के लिए ड्रा निकालने से पहले बाऊट के लिए खिलाड़ियों के नाम A, B, C, D, E लिये जाते
  2. गतके की प्रतियोगिता के A नाम वाला खिलाड़ी विरोधी की टीम के A वाले खिलाड़ी से बाऊट में भाग लेगा।
  3. उन मुकाबलों में जिनमें चार से अधिक प्रतियोगी हों। पहली सीरीज़ के लिए बाई निकाली जाती है ताकि दूसरी सीरीज़ से प्रतियोगियों की संख्या कम हो जाए।
  4. पहली सीरीज़ में जिन खिलाडियों को बाई मिलती है वह दूसरी सीरीज़ के पहले गतका खेलेंगे यदि बाइयों की संख्या विषम हो तो अन्तिम बाई प्राप्त करने वाला खिलाड़ी दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के जेतू के बाऊट में भाग लेगा।
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  5. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाईं और दूसरी सीरीज़ में walkover नहीं ले सकता न ही किसी को लगातार दो वाक ओवर मिलते हैं।
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प्रश्न 3.
गतका खेल में 20 प्रतियोगियों की बाऊट निकालने की सारणी बनाओ।
उत्तर-
सारणी-बाऊट की बाइयां निकालना

प्रविष्टियों की संख्या बाऊट बाई
5. 1 3
6. 2 2
7. 3 1
8. 4
9. 1 7
10. 2 6
11. 3 5
12. 4 4
13. 5 3
14. 6 2
15. 7 1
16. 8
17. 1 15
18. 2 14
19. 3 13
20. 4 12

 

प्रश्न 4.
गतका खेल की प्रतियोगिता कैसे करवाई जाती है ?
उत्तर-
गतके की प्रतियोगिता
(Competition of Gattka)
प्रतियोगिताओं की सीमा-किसी भी प्रतियोगिता में पांच प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है।
नया ड्रा (Fresh Draw)—यदि किसी एक ही स्कूल/कॉलेज/अथवा क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा निकाला जाएगा।

वापसी (Withdraw)-ड्रा निकालने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो अधिकारी प्रबन्धकों को इसकी सूचना देगा।

रिटायर होना (Retirement)—यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण मुकाबले से रिटायर होना चाहता है तो उसे अधिकारी को सूचित करना होगा।

बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे अधिकारी सहमत हो।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
गतका प्रतियोगिता में बाऊट को कौन नियन्त्रण करता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफरी, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा करवाए जाते हैं। जब तीन से कम जज हों तो रैफरी स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफरी द्वारा कण्ट्रोल किया जाएगा।
  2. रैफरी एक स्कोर पैड या जानकारी स्लिप का प्रयोग खिलाड़ियों के नाम के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब कि बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफरी इस पर रिपोर्ट करके अधिकारी को देगा।
  3. टाइम कीपर प्लेटफार्म के एक ओर बैठेगा तथा जज तीन ओर बैठेंगे।

सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे खिलाड़ियों को संतोषजनक ढंग से देख सके। ये दर्शकों से अलग होंगे।

प्वाईंट देना
(Awarding of Points)

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देंगे।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे।

स्कोरिंग
(Scoring)

  1. जो गतके का खिलाड़ी अपने विरोधी को सबसे अधिक बार गतके से छूएगा उसे उतने ही अंक मिलेंगे। सिर पर छू लेने के 2 अंक बाकी एक अंक मिलेगा।
  2. यदि बाऊट में दोनों खिलाड़ियों के मिले अंक बराबर हों तो सिर को जिस खिलाड़ी ने अधिक बार छूआ हो उसे विजेता घोषित किया जाएगा। यदि जज यह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर है तो वह अपना निर्णय उस खिलाड़ी के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

बाऊट रोकना
(Stopping the Bout)

  1. यदि रैफरी के मतानुसार एक खिलाड़ी को चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
  2. रैफरी को बाऊट रोकने का अधिकार है।
  3. यदि कोई प्रतियोगी समय पर बाऊट को शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

शक्ति फाऊल
(Suspected Foul)
यदि रैफरी को फाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है ।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
गतका खेल में त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां
(Fouls)

  1. कोहनी को मारना
  2. गर्दन या सिर के नीचे जान-बूझ कर चोट लगाना।
  3. गिरे हुए प्रतियोगी को मारना।
  4. पकड़ना।
  5. सिर या शरीर के भार लेटना।
  6. रफिंग।
  7. कन्धे मारना।
  8. कुश्ती करना।
  9. निरन्तर सिर ढक कर रखना।
  10. कानों पर दोहरी चोट मारना।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपत्र डेल्टा।

प्रश्न (ख)
विश्व की सबसे बड़ी कैनियन कौन-सी है ?
उत्तर-
अमेरिका की कोलोरा नदी पर ग्रांड कैनियन।

प्रश्न (ग)
डेल्टा और मियाँडर (Meander) (घुमाव ) शब्द कहाँ से लिए गए हैं ?
उत्तर-
डेल्टा यूनानी भाषा के चौथे अक्षर (A) से लिया गया है। मियाँडर तुर्की भाषा का शब्द है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (घ)
कोसी नदी के जलोढ़ पंखे की लंबाई-चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
154 किलोमीटर लंबा और 143 किलोमीटर चौड़ा।

प्रश्न (ङ)
डेल्टा किसे कहते हैं ? इसकी कोई एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
समुद्र के निकट दरिया के निक्षेप से बने त्रिकोण आकार के मलबे को डेल्टा कहते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसका उदाहरण है।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
भौतिक मौसमीकरण।
उत्तर-
जब यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-फूट कर चूरा-चूरा हो जाती हैं, तब उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार मौसमीकरण से चट्टानों की टूट-फूट (Disintegration) होती है। इससे रासा

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प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

प्रश्न (ग)
जैविक मौसमीकरण।
उत्तर-
पौधों, जानवरों और मनुष्यों की गतिविधियों के कारण जब चट्टानों का विघटन हो जाता है, तब इसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं। पौधे अपनी जड़ों से चट्टानों में दरारें डाल देते हैं।

प्रश्न (घ)
अपरदन।
उत्तर-
भू-तल पर काट-छाँट, कुरेदने और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं। नदी, हवा, हिमनदी इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ङ)
मानवीय गतिविधियों का मौसमीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
मनुष्य मकानों, सुरंगों, रेलमार्गों, खदानों आदि को बनाने के लिए चट्टानों को तोड़-फोड़ कर कमज़ोर कर देता है।

प्रश्न (च)
मौसमीकरण की क्रिया से क्या अभिप्राय है ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर-
बाहरी शक्तियों के कारण धरती के आकार को बदलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार धरती की सतह के ऊपर मौसम के प्रभाव से होने वाली तोड़-फोड़ को मौसमीकरण कहते हैं। जलवायु, नमी, वर्षा, कोहरे आदि के कारण चट्टानें टूटती, फैलती अथवा सिकुड़ती हैं, जिसे मौसमीकरण कहते हैं।

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3. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अनावृत्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? भू-निर्माण (Aggragation) और भू-निमान (निम्न) (Degradation) में अंतर व्याख्या सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
भीतरी और बाहरी शक्तियाँ- भूपटल पर भीतरी (Endogenetic) और बाहरी (Exogenetic) दो प्रकार की शक्तियाँ परिवर्तन लाती हैं। भीतरी शक्तियों द्वारा भूपटल के कुछ भाग ऊँचे उठकर पर्वत, पठार और मैदान बन जाते हैं। कई भाग नीचे धंस जाते हैं और दरारों, घाटियों आदि का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार धरातल समतल नहीं होता बल्कि ऊँचा-नीचा हो जाता है। भूपटल की इस असमानता को बाहरी शक्तियाँ (Exogenetic or External Forces) दूर करती हैं। वास्तव में भीतरी और बाहरी शक्तियाँ एक-दूसरे के विपरीत काम करती हैं। जैसे ही धरातल पर भीतरी शक्तियों द्वारा किसी भू-स्थल की रचना होती है, तो बाहरी शक्तियाँ उसे घिसाने का काम आरम्भ कर देती हैं। इन शक्तियों का एक ही काम होता है-धरातल की असमानता को दूर करके भूतल को समतल बनाना। बाहरी शक्तियों को परिवर्तन के बाहरी कारक (External Agents of change) भी कहते हैं।

अनावरण (Denudation)-

मौसमीकरण (Weathering) भूपटल पर परिवर्तन लाने वाली वह बाहरी शक्ति है, जो चट्टानों का विघटन और अपघटन करके उन्हें नष्ट करती है। इसके अलावा एक और प्रक्रिया है, जो चट्टानों को धीरे-धीरे घिसाकर उन्हें नंगा कर देती है और इन चट्टानों से प्राप्त सामग्री को उठाकर ले जाती है, इस प्रक्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं। मौसमीकरण और अपरदन के मिले-जुले प्रभाव को अनावरण कहते हैं। अनावरण चट्टानों को अलग-अलग साधनों द्वारा तोड़-फोड़ कर नंगा करने और फिर उन्हें सपाट करने की क्रिया को कहते हैं। (Denudation means to lay the rocks bare.)

अनावरण के कार्य (Works of Denudation)—अनावरण की क्रिया में नीचे लिखे तीन प्रकार के कार्य होते हैं-

1. अपरदन (Erosion) बहता जल, हिमनदी, वायु आदि शक्तियों के साथ बहते पत्थर, कंकर, रेत आदि भू तल को घिसाते और कुरेदते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।

2. स्थानांतरण (Transportation)-ये कारक अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। सामग्री को इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया को ,स्थानांतरण कहते हैं। स्थानांतरण की इस क्रिया में चट्टानों के टुकड़े, पत्थर, कंकड़ आदि आपस में
टकराकर टूटते भी रहते हैं।

3. निक्षेपण (Deposition)—ये कारक अपरदन से प्राप्त मलबे को ले जाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देते हैं। इसे निक्षेपण कहते हैं।

इसी प्रकार निचले स्थान को सपाट करने की क्रिया को भू-निर्माण (Aggaradation) कहते हैं और ऊँचे भाग को नीचा करने की क्रिया को भू-निमान (Degradation) कहते हैं।

प्रश्न (ख)
नदी की युवा अवस्था क्या है ? इस अवस्था में नदी कौन-कौन सी आकृतियाँ बनाती है ?
उत्तर-
नदी की युवा अवस्था अथवा प्राथमिक भाग नदी के स्रोत से लेकर मैदानी भाग तक होता है। इस भाग में जल की गति तेज़ होती है, तेज़ ढलान के कारण गहरा कटाव होता हैं और तंग घाटी बनती है। नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है और इसे युवा नदी कहते हैं।

नदी के कार्य (Works of River)-

भूमि-तल को समतल करने वाली बाहरी शक्तियों में से नदी का सबसे अधिक महत्त्व है। वर्षा का जो पानी धरातल पर बहते हुए पानी (Run-off ) के रूप में बह जाता है, वह नदियों का रूप धारण कर लेता है। नदी के कार्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपरदन (Erosion)
  2. स्थानांतरण (Transportation)
  3. निक्षेप (Deposition)

1. अपरदन (Erosion)-नदी का प्रमुख कार्य अपने तल और किनारों पर अपरदन करना है। नदियों का मुख्य . उद्देश्य धरती को समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.)

अपरदन की विधियाँ (Methods of Erosion)-नदी का अपरदन नीचे लिखे तरीकों से होता है-

(i) रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—यह अपरदन घुलन क्रिया (Solution) द्वारा होता है। नदी के जल के संपर्क में आने वाली चट्टानों के नमक (Salts) घुलकर पानी में मिल जाते हैं।

(ii) भौतिक अपरदन (Mechanical Erosion)-नदी के साथ बहने वाले कंकड़, पत्थर आदि नदी के तल और किनारों को काटते हैं। किनारों के कटने से नदी चौड़ी और तल के कटने से नदी गहरी होती है। भौतिक कटाव तीन प्रकार के होते हैं –

(क) तल का कुरेदना (Down cutting)
(ख) किनारों का कुरेदना अथवा तटीय अपरदन (Side Cutting)
(ग) तोड़-फोड़ (Attrition)

नदी के अपरदन की मात्रा आगे लिखी बातों पर निर्भर करती है

यनिक परिवर्तन नहीं होता। सूर्य का ताप और कोहरा इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

  1. पानी का परिमाण (Volume of water)
  2. धरातल की ढलान (Slope of the land)
  3. पानी का वेग (Velocity of water)
  4. नदी का भार (Load of water)
  5. चट्टानों की रचना (Nature of the Rocks)

नदी में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण अपरदन अधिक होता है।
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती हैं। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (square) का अनुपात होता है-

अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2
नदी के अपरदन के द्वारा नीचे लिखे भू-आकार बनते हैं-

1. ‘V’ आकार की घाटी (‘V’ Shaped valley)—नदी पहाड़ी भाग में अपने तल को गहरा करती है, जिसके कारण ‘V’ आकार की गहरी घाटी बनती है। ऐसी तंग, गहरी घाटियों को कैनियन (Canyons) अथवा प्रपाती घाटी भी कहते हैं।
उदाहरण-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलोराडो घाटी में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) 480 किलोमीटर लंबी और 2000 मीटर गहरी है।

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2. गहरी घाटी/गॉर्ज (Gorges)—पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत गहरे और तंग नदी मार्गों को गॉर्ज (Gorge) अथवा कंदरा कहते हैं। पहाड़ी क्षेत्र ऊँचे उठते रहते हैं, परन्तु नदियाँ निरंतर गहरे कटाव करती रहती हैं। इस प्रकार ऐसे नदी मार्गों का निर्माण होता है, जिनकी दीवारें लंबरूप में होती हैं। उदाहरण-हिमालय पर्वत में सिंध नदी, असम में ब्रह्मपुत्र नदी और हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी गहरे गॉर्ज बनाती है।

3. चश्मे और झरने (Rapids and Water-falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे जल का झरना अथवा जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

(क) जब कठोर चट्टानों की परत नरम चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) रूप में हो, तो निचली नरम चट्टानें जल्दी कट जाती हैं, तब चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।

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उदाहरण-

(i) यू० एस० ए० में नियागरा (Niagra) जल-प्रपात जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है। (ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है। (iii) जब कठोर और नरम चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (vertical) में हों, तब कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

उदाहरण-अमेरिका में यैलो स्टोन नदी (Yellow Stone River) का जल-प्रपात।
चश्मे (Rapids)—जब कठोर और मुलायम चट्टानों की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछी हों और कुछ झुकी हों, तो चश्मों की एक लड़ी बन जाती है।

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उदाहरण-कांगो नदी (Cango River) में लिविंगस्टोन फॉल्ज़ (Living Stone Falls) नामक 32 झरनों की एक लड़ी है।

प्रश्न (ग)
जमा करने की क्रिया के दौरान नदी का भू-आकृतियों का धरातल (Topography) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
नदी का परिवहन कार्य (Transportation Work of River) –
नदी अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री (Load) को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। नदी द्वारा इस सामग्री के स्थान-परिवर्तन की क्रिया को नदी-परिवहन कहते हैं। इस सामग्री का स्थान-परिवर्तन अनेक प्रकार से होता है, जो आगे लिखे अनुसार है

1. जल में रगड़ के साथ (Traction)—इसमें बड़े चट्टानी टुकड़े, भारी पत्थर आदि नदी के तल के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं।

2. जल में उठाया हुआ मलबा (Load in Suspension)—मध्यवर्ती और सूक्ष्म श्रेणी की सामग्री नदी के जल के साथ तैरती जाती है।

3. जल में घुलकर (Solution)—जो सामग्री घुलनशील होती है, वह जल-धारा में घुले हुए रूप में प्रवाह करती है। नदी की परिवहन शक्ति दो तत्त्वों पर निर्भर करती है –

(i) नदी का वेग (Velocity of the River)
(ii) नदी के जल की मात्रा (Volume of water)-नदी के परिवहन और वेग में छठी शक्ति का अनुपात होता है –

नदी की परिवहन शक्ति = (नदी का वेग)6

नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)-

नदी का वेग जब कम हो जाता है और उसमें सामग्री की अधिकता हो जाती है, तो इस सामग्री का निक्षेप आरंभ हो जाता है। नदी की इस क्रिया को नदी का निक्षेपण (River Deposition) कहते हैं। इस प्रकार नदियों द्वारा निक्षेपण उनकी अपरदन क्रिया का प्रतिफल है। भारी पदार्थों का मैदानी मार्ग के ऊपरी भागों में और सूक्ष्म कणों का डेल्टा के भागों में निक्षेपण होता है।

नदी का निक्षेपण तब होता है, जब-

1. नदी का जल और अपरदन शक्ति कम हो जाए। 2. मुख्य नदी और सहायक नदियों का भार बढ़ जाए। 3. नदी की ढलान कम हो। 4. नदी का वेग धीमा हो।

नदी निक्षेपण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms produced by River Deposition)-

नदी अपने मैदानी मार्ग में अपरदन और निक्षेपण दोनों काम करती है, परंतु डेल्टाई भागों में इसका एक ही निक्षेपण का काम होता है। निक्षेपण क्रिया के फलस्वरूप नीचे लिखी भू-आकृतियों का निर्माण होता है-

1. जलोढ़ पंखे अथवा कोन (Alluvial Fan or Cone)–नदी जब पर्वतीय भागों को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है, तो भूमि की ढलान के कम हो जाने के कारण इसका बहाव धीमा हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाए चट्टानों के टुकड़ों, पत्थरों, कंकड़ों आदि को आगे ले जाने में असमर्थ हो जाती है और इस सामग्री को पर्वतों के पैरों में छोड़ देती है। यह निक्षेप ढेर के रूप में पर्वतों के सहारे एकत्र हो जाता है। यह ढेर एक कोण के आकार का होता है। इसे जलोढ़ी पंखा भी कहा जाता है।

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2. नदी विसर्पण अथवा नदी में घुमाव (River Meanders)—प्रौढ़ अवस्था में नदी की ढाल कम हो जाती है और नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है। नदी की धाराएँ अपने मार्ग में आने वाली छोटी-सी रुकावट के कारण भी मुड़ जाती हैं और एक किनारे की ओर से दूसरे किनारे की तरफ बहने लगती हैं। ये रुकावट वाले किनारे पर निक्षेपण और दूसरे किनारे पर अपरदन करती हैं। अपरदित किनारे से फिर पहले किनारे की ओर मुड़ जाती हैं और फिर वे किनारों को काटती हैं। इस प्रकार ये दोनों किनारे क्रम से कट जाते हैं। साथ-हीसाथ अपरदित सामग्री का किनारों पर निक्षेप भी होता है। इस प्रकार यदि किनारे का एक भाग कट के पीछे हटता है, तो इसी किनारे का दूसरा भाग इस पदार्थ को प्राप्त करके नदी की ओर बढ़ता है। ऐसी ही क्रिया दूसरे किनारे पर भी होती है। परिणामस्वरूप नदी में घुमाव आने शुरू हो जाते हैं। इन घुमावों को ही नदी विसर्पण कहते हैं। तुर्की देश की मिएंडर (Meanders) नदी के मार्ग में ऐसे अनेक घुमाव या विसर्पण हैं। इसीलिए इस नदी के घुमावों को मिएंडर (Meanders) कहते हैं।

3. धनुषदार झील (Oxbow Lake)-ज्यों-ज्यों नदी में विसर्प बड़े हो जाते हैं, वैसे-वैसे उनका आकार वृत्ताकार होता जाता है। इस अवस्था में नदी बाढ़ के समय मोड़ों को छोड़कर इसके निकटवर्ती भाग को काटकर बहने लगती है। यह सीधा प्रवाह-मार्ग बाढ़ के बाद भी बना रहता है। ऐसी अवस्था में मोड़ वाला भाग झील का रूप धारण कर लेता है। इसे धनुषदार झील कहते हैं। आकार में यह बैल के खुर या धनुष के समान प्रतीत होती है, इसलिए इसे गाय-खुर झील भी कहते हैं।

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4. प्राकृतिक बाँध अथवा तटीय बाँध और बाढ़ के मैदान (Natural Embankments or Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में नदी में अचानक बाढ़ आ जाती है, जिसके कारण नदी का जल तटों को पार करके निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने का यत्न करता है परंतु ये तट उसके फैलने पर रोक लगाते हैं, इसलिए वह अपना अधिकतर मलबा तटों पर ही इकट्ठा कर देती है। इससे ये किनारे ऊँचे उठ जाते हैं और बाँध के रूप में बाढ़ के पानी को निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने से रोकते हैं। इन्हें तटीय बाँध कहते हैं। ह्वांग-हो, गंगा और मिसीसिपी नदियों की निचली घाटियों में कई तटीय बाँध बन गए हैं। भयंकर बाढ़ के कारण जब ये बाँध टूट जाते हैं, तो उनकी रेत को नदी निकटवर्ती क्षेत्र में निक्षेप कर देती है। इस क्षेत्र को बाढ़ का मैदान कहते हैं।

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5. डेल्टा (Delta) सागर में प्रवेश करने से पहले ढलान बहुत कम होने के कारण नदी की शक्ति और वेग बहुत कम हो जाता है। फलस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाई सामग्री को अपने मुहाने पर ही एकत्र कर देती है और अपना मार्ग बंद कर लेती है। नदी अपना प्रवाह बनाए रखने के लिए नया मार्ग खोजती है। इस स्थल आकृति को डेल्टा कहा जाता है। इसका आकार यूनानी भाषा की वर्णमाला का चौथा अक्षर डेल्टा (Δ) से मिलता है।गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बने सुंदर वन डेल्टा और नील नदी का डेल्टा इसके विशेष उदाहरण हैं। डेल्टा के निर्माण के लिए नीचे लिखी स्थितियों का होना ज़रूरी है –
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  • नदी का स्रोत पर्वतों में हो, जहाँ से यह काफ़ी मात्रा में सामग्री बहाकर ला सके।
  • पर्वत और मैदानी मार्गों में कई सहायक नदियाँ मिलनी चाहिए, ताकि अधिक सामग्री प्राप्त हो सके।
  • नदी का मैदानी मार्ग अधिक लंबा होना चाहिए, ताकि उसका प्रवाह धीमा हो जाए और नदी द्वारा लाई सामग्री सीधी सागर में न जा गिरे।
  • नदी के मार्ग में कोई झील नहीं होनी चाहिए। मार्ग में यदि कोई झील होगी, तो सामग्री का निक्षेप उसमें हो जाएगा और डेल्टा के निर्माण के लिए सामग्री नहीं रहेगी।
  • नदी के मुहाने के पास सागर शांत होना चाहिए, नहीं तो सागर की धाराएँ, लहरें और ज्वारभाटा सामग्री को गहरे सागर में ले जाएंगे और मुहाने के पास निक्षेप नहीं होगा।

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प्रश्न (घ)
नदी अपरदन की क्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें।
उत्तर-
नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of the River)-

नदी द्वारा प्रवाहित पत्थर, कंकड़, रेत आदि नदी घाटी को घिसाते, कुरेदते और चट्टानों की तोड़-फोड़ करते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।
नदी सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। नदी का मुख्य उद्देश्य धरती को काटकर समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.) नदी आगे लिखे तरीकों से अपरदन करती है-

  1. भौतिक अपरदन (Physical Erosion)—इसमें नदी किनारों के कटाव (Side Cutting) और तल के कटाव (Down Cutting) का काम करती है।
  2. रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—नदी घुलनशील चट्टानों को घोलकर नष्ट कर देती है।

नदी के अपरदन के प्रकार (Types of River Erosion)-

  1. रगड़न (Abrasion)–नदी बहते पत्थर, कंकड़, बज़री आदि के साथ रगड़ने की क्रिया करती है।
  2. सहरगड़न (Attrition)—पत्थर, कंकड़ आदि आपस में टकराते हैं।
  3. घुलकर (Solution)-नदी का जल कई चट्टानों को घोल देता है। अनुमान है कि नदियाँ हर वर्ष 500 करोड़ टन खनिज पदार्थ घोलकर समुद्र में ले जाती हैं।
  4. जल-दबाव क्रिया (Hydraulic action) नदी के जल के दबाव के साथ भी चट्टानें टूटती रहती हैं।

नदी अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling River Erosion)-नदी अपरदन को नीचे लिखे कारक नियंत्रित करते हैं-

1. नदी में जल की मात्रा (Volume of water in a River) नदी में जल की मात्रा अधिक होने से अपरदन भी अधिक होता है। यही कारण है कि जिन नदियों में बाढ़ें अधिक आती हैं, उनमें अपरदन भी अधिक होता है।

2. नदी के जल की गति (Velocity of River Water)—तेज़ी से प्रवाह करती हुई नदी में अधिक शक्ति होती है। नदी का वेग नदी घाटी की ढलान और जल प्राप्ति पर निर्भर करता है। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती है। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (Square) का अनुपात होता है
अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2

3. नदी जल में सामग्री की मात्रा (Volume of Load in a River)–नदी अपने जल के साथ घाटी से प्राप्त अनेक प्रकार की सामग्री का प्रवाह करती है। कुछ सामग्री जल में घुली हुई, कुछ तैरती हुई अवस्था में और कुछ तल के साथ-साथ लुढ़कती हुई चलती है। यह सामग्री नदी के उपकरण (Tools) होते हैं।

4. चट्टानों की कठोरता (Solidity of Rocks) नदी तल पर चट्टानों की संरचना और उनके लक्षणों पर भी अपरदन निर्भर करता है। तल की चट्टानों के कठोर होने के कारण कटाव धीरे-धीरे होता है। नदी तल पर चट्टानों में दरारें अपरदन में सहायता करती हैं।

प्रश्न (ङ)
अंतर बताएं :
(i) झरना-चश्मा (उछलकायें)
(ii) जलोढ़ कोन-जलोढ़ पंखा
(iii) जल कुंड-प्राकृतिक बांध
(iv) बाढ़ के मैदान-डेल्टा
उत्तर-
(i) झरना (Waterfall)

  1. जब नरम चट्टानों के ऊपर क्षैतिज अवस्था में कठोर चट्टानों की परत हो, तो झरना बनता है।
  2. नील नदी इसका उदाहरण है।

चश्मा (Rapid)-

  1. जब कठोर और नरम चट्टानों की परतें लंब रूप में होती हैं, जिसके फलस्वरूप जल चश्मे के रूप में बहना शुरू हो जाता है।
  2. नियागरा झरना इसका उदाहरण है।

(ii) जलोढ़ कोन (Alluvial Cone)-

  1. जब नदी पर्वतीय भाग से निकलकर पहाड़ों के दामन में निक्षेप करती है, तो जलोढ़ कोन बनते हैं।
  2. हिमालय के दामन में कई जलोढ़ कोन हैं।

जलोढ़ पंखे (Alluvial Fans)-

  1. कई जलोढ़ी कोन मिलकर एक जलोढ़ी पंखे का निर्माण करते हैं।
  2. कोसी नदी का जलोढ़ पंखा।

(iii) जलकुंड-
नदी के मार्ग में छोटे-छोटे गड़े बन जाते हैं। धीरे-धीरे ये गड्ढे बड़े होकर जलकुंड बन जाते हैं।

प्राकृतिक बाँध-
नदी के निचले भाग में नदी घाटी के मार्ग में निक्षेप के कारण एक बाँध बन जाता है जिसे प्राकृतिक बाँध कहते हैं।

(iv) बाढ़ के मैदान-
नदी का पानी अपने निचले मार्ग पर किनारों के बाहर बहता है, तब तलछट के निक्षेप से बाढ़ का मैदान बन जाता है।

डेल्टा –
समुद्र में गिरने से पहले नदी एक त्रिकोण के आकार की भू-आकृति बनाती है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
किन्हीं तीन बाहरी शक्तियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हवा, नदी, हिमनदी।

प्रश्न 2.
अनावृत्तिकरण की क्रिया के दो कारक बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 3.
Mass Wasting से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
फ्लाक के अनुसार मलबे का परिवहन।

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प्रश्न 4.
कार्बनीकरण की क्रिया किन क्षेत्रों में होती है ?
उत्तर-
चूने की चट्टानों के क्षेत्र में।

प्रश्न 5.
जलकरण की क्रिया का एक क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
विंध्याचल पहाड़ियाँ।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के दो साधन बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और वर्षा।

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प्रश्न 7.
मौसमीकरण में सहायक एक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
ढलान।

प्रश्न 8.
सूर्य के ताप के माध्यम से मौसमीकरण किस प्रदेश में अधिक होता है ?
उत्तर-
मरुस्थल।

प्रश्न 9.
कोहरा पड़ने पर पानी के जम जाने से आयतन कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
1/11 गुणा।

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प्रश्न 10.
भारत में खाइयाँ (Ravines) किस प्रदेश में मिलती हैं ?
उत्तर-
चंबल घाटी।

प्रश्न 11.
भारत में मिट्टी के काम किस प्रदेश में मिलते हैं ?
उत्तर-
स्पीति घाटी।

प्रश्न 12.
ऑक्सीकरण की क्रिया के लिए कौन-सी गैस काम करती है ?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

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प्रश्न 13.
कार्बनीकरण का एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
गुफाओं का बनना।

बहुविकल्पी प्रश्न नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
ऑक्सीकरण क्रिया में कौन-सी गैस काम करती है ?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) कार्बन-डाइऑक्साइड
(घ) ओज़ोन।
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 2.
मिट्टी का निर्माण किस क्रिया से होता है?
(क) मौसमीकरण
(ख) अपरदन
(ग) परिवहन
(घ) निक्षेप।
उत्तर-
मौसमीकरण।

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प्रश्न 3.
जम जाने पर पानी का आयतन कितना बढ़ जाता है।
क) \(\frac{1}{2}\)
(ख) \(\frac{2}{3}\)
(ग) \(\frac{3}{4}\)
(घ) \(\frac{1}{10}\)
उत्तर-
\(\frac{1}{10}\)

प्रश्न 4.
कार्बन-डाइऑक्साइड किस चट्टान को घोल देती है ?
(क) चूने का पत्थर
(ख) ग्रेनाइट
(ग) बसालट
(घ) शैल।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

प्रश्न 5.
वर्षा के जल से कौन-सी क्रिया होती है ?
(क) भूमि का खिसकना
(ख) घोल
(ग) जलकरण
(घ) ऑक्सीकरण।
उत्तर-
भूमि का खिसकना।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न – (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—वायुमंडल की शक्तियों द्वारा चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अनावरण (Denudation)-चट्टानों को तोड़-फोड़ कर नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपरदन की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
अपरदन (Erosion)—दरियाओं के मौसमीकरण द्वारा हुई टूट-फूट को अपने साथ बहाकर ले जाना अपरदन कहलाता है।

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प्रश्न 4.
विघटन की परिभाषा दें।
उत्तर-
विघटन (Disintegration)—जब चट्टानें अपने स्थान पर ही टूटती हैं, तो उसे विघटन कहते हैं।

प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अपघटन (Decomposition)—जब चट्टानों के टूटने से उनकी रासायनिक संरचना बदल जाती है, तो उसे अपघटन कहते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक मौसमीकरण की परिभाषा दें।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-जब यांत्रिक शक्तियों के कारण चट्टानें टूट-फूट जाती हैं, तो उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 7.
रासायनिक मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-जब गैसों के प्रभाव से चट्टानें टूटती हैं, तो उसे रासायनिक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8.
जैविक मौसमीकरण क्या है ?
उत्तर-
जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-जब मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि चट्टानों को तोड़ने-फोड़ने में मदद करते हैं, तो उसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपवाह क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वह प्रदेश, जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और सहायक नदियों में बहता है, उसे नदी का अपवाह क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 10.
नदी के मार्ग को तीन भागों में बाँटें।
उत्तर-

  • ऊपरी भाग
  • मैदानी भाग
  • डेल्टा भाग।

प्रश्न 11.
नदी के अपरदन के अनुसार तीन अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर-

  • युवावस्था (Young Stage)
  • प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)
  • वृद्धावस्था (Old Stage)।

प्रश्न 12.
नदी अपरदन के दो तरीके बताएँ।
उत्तर-

  • भौतिक अपरदन
  • रासायनिक अपरदन।

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प्रश्न 13.
नदी के अपरदन और नदी के वेग में क्या संबंध है ?
उत्तर-
नदी की अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)। इस प्रकार नदी के अपरदन और वेग में वर्ग का अनुपात है।

प्रश्न 14.
नदी का अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर-

  • नदी में जल की मात्रा
  • नदी में जल की गति
  • नदी में उठाया सामान
  • चट्टानों की कठोरता।

प्रश्न 15.
गहरी घाटी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के पर्वतीय भाग में गहरे और तंग मार्ग को गहरी घाटी (Gorge) कहते हैं।

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प्रश्न 16.
भारत में गहरी घाटियों के दो उदाहरण दें।
उत्तर-
सतलुज नदी का गॉर्ज और ब्रह्मपुत्र नदी का गॉर्ज।

प्रश्न 17.
ग्रैंड कैनियन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तंग और गहरी नदी घाटी को कैनियन कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो नदी का ग्रैंड कैनियन 480 कि०मी० लम्बा और 1906 मीटर गहरा है।

प्रश्न 18.
झरना किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-
जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग से सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे झरना कहते हैं। अमेरिका में नियागरा झरना बहुत प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 19.
नदी के घुमाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी जब मोड़ खाती हुई चक्कर बना कर बहती है, तो उन्हें घुमाव अथवा मिएंडर (Meauders) कहते हैं।

प्रश्न 20.
किन्हीं तीन बाढ़ के मैदानों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गंगा नदी, मिसीसिपी नदी और ह्वांग हो नदी के मैदान।

प्रश्न 21.
गो-खुर झील (Oxbow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी में बाढ़ के समय एक मोड़ का किनारा जब दूसरे मोड़ के किनारे के निकट आ जाता है, तो नदी के मार्ग में एक मोड़ अलग होकर रह जाता है। इस नाम के खुर जैसे मोड़ को गो-खुर झील कहते हैं।

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प्रश्न 22.
डेल्टा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
नदी जब समुद्र में निक्षेप करती है, तो त्रिकोण आकार का थल रूप बनता है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 23.
संसार के प्रमुख डेल्टा के नाम बताएँ।
उत्तर-
नील नदी का डेल्टा, गंगा नदी का डेल्टा, मिसीसिपी नदी का डेल्टा, नाईज़र नदी का डेल्ट, यंगसी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 24.
पंजा डेल्टा क्या होता है?
उत्तर-
जब नदी कई शाखाओं में बँटकर निक्षेप करती है, तो उसकी धाराएँ उँगली के समान फैल जाती हैं, उसे पंजा डेल्टा कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अपरदन और मौसमीकरण में अंतर बताएँ-
उत्तर-
अपरदन (Erosion)-

  1. भू-तल पर काट-छाँट, खुरचन और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं।
  2. अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है।
  3. अपरदन गतिशील कारकों के द्वारा होता है जैसे नदी, हिमनदी, हवा आदि।
  4. मौसमीकरण अपरदन की क्रिया में मदद करता है।

मौसमीकरण (Weathering)-

  1. चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।
  2. मौसमीकरण एक छोटे क्षेत्र की क्रिया है।
  3. मौसमीकरण सूर्य के ताप, कोहरा और रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होता है।
  4. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में मदद करता है।

प्रश्न 2.
भौतिक मौसमीकरण और रासायनिक मौसमीकरण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-

  1. इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानें टूटकर चूर चूर-चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों की खनिज रचना में कोई अंतर नहीं आता।
  3. यह मौसमीकरण शुष्क और ठंडे प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. भौतिक मौसमीकरण की मुख्य शक्तियाँ ताप, कोहरा, वर्षा और हवा हैं।

रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-

  1. इसमें रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानें टूट-फूट कर चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों के खनिज भी बदल जाते हैं।
  3. यह मौसमीकरण उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. रासायनिक मौसमीकरण में कार्बन-डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव होता है।

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प्रश्न 3.
सूर्य का ताप किस प्रकार मौसमीकरण का काम करता है ?
उत्तर-
सूर्य का ताप (Temperature) सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एकदम गर्म होकर फैलती हैं और रात को तेज़ी से ठंडी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं फलस्वरूप ये टूटती हैं और चूरा-चूरा हो जाती है। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्य के ताप के द्वारा मौसमीकरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  • मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक और जल्दी मौसमीकरण होता है।
  • काले रंग की चट्टानों पर अधिक मौसमीकरण होता है।
  • पहाड़ी ढलानों और मरुस्थलों में मौसमीकरण महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में ताप में अधिक अंतर के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की आवाज़ जैसी होती है।

प्रश्न 4.
शीत प्रदेशों में कोहरा किस प्रकार मौसमीकरण का कार्य करता है ?
उत्तर-
कोहरा (Frost)—पहाड़ी ठंडे प्रदेशों में कोहरा मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में पानी भर जाता है। यह पानी सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग से दबाव डालता है। इस दबाव के साथ चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ रोड़ी (Scree) के रूप में जमा होता रहता है। हिमालय के पहाड़ी प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

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प्रश्न 5.
ऑक्सीकरण किस प्रकार मौसमीकरण की क्रिया में सहायक है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों तथा रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) भी कहते हैं। यह रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है आक्सीकरण (Oxidation)-चट्टानों के लौह खनिज के साथ ऑक्सीजन के मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं।

उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्षों में ही जंग लग गया।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण के प्रभाव (Effects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। यह मिट्टी वनस्पति और कृषि का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बनाकर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण के कारण ही घाटियाँ चौडी होती रहती हैं।

प्रश्न 7.
अपरदन और मौसमीकरण में अन्तर बताएँ।
नोट-
उत्तर के लिए प्रश्न नं० 1 (लघु उत्तरात्मक प्रश्न) देखें।

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प्रश्न 8.
भू-निर्माण (Aggradation) और भू-निमान (Degradation) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
धरती की बाहरी शक्तियाँ लगातार परिवर्तन करती रहती हैं। धरती का आकार बदलता रहता है। भू-आकार मिटते रहते हैं और नए भू-आकार बनते रहते हैं। भीतरी शक्तियाँ भू-आकारों का निर्माण करती है और बाहरी शक्तियां भू-आकारों को समतल करने का काम करती रहती हैं। इस प्रकार चट्टानों को तोड़-फोड़ और नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं।

भू-निर्माण (Aggradation) वह क्रिया है, जिसमें निक्षेप के द्वारा ऊँचे प्रदेशों का निर्माण होता है। बाहरी शक्तियाँ कुरेदे हुए मलबे को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और निचले स्थानों पर जमा कर देती हैं। इस प्रकार एक नए स्तर का अथवा तल का निर्माण होता है।

भू-निमान (Degradation) वह क्रिया है, जिसमें बाहरी शक्तियाँ अपरदन और मौसमीकरण के द्वारा ऊँचे प्रदेशों की ऊँचाई को कम कर देती हैं। इसमें अपरदन और मौसमीकरण किसी तल को नीचा करने का काम करते हैं। इस प्रकार भू-निर्माण और भू-निमान एक-दूसरे की विपरीत क्रियाएँ हैं, पर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं।

प्रश्न 9.
नदी मार्ग को स्रोत से लेकर मुहाने तक अलग-अलग भागों में बाँटें।
उत्तर-
नदी के भाग (Sections of a river)-
नदी का विस्तार किसी पहाड़ी प्रदेश से लेकर समुद्र तक होता है। नदी के निकास से लेकर नदी के मुहाने तक नदी को तीन भागों (Sections) में बाँटा जाता है। प्रत्येक भाग में नदी का कार्य, घाटी का रूप और भू-आकार अलग-अलग होते हैं।

1. पहाड़ी भाग अथवा आरंभिक भाग (Mountain Stage or Upper Course)—इस भाग में नदी की गति 10 मीटर प्रति कि०मी० से अधिक होती है। इसे युवा भाग (Young Stage) भी कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 9

2. घाटी वाला भाग अथवा मध्य भाग (Valley Stage or Middle Course)-इस भाग में नदी की गति 2 मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की प्रौढ़ अवस्था (Mature Stage) भी कहते हैं।

3. मैदानी भाग अथवा निचला भाग (Plain Stage or Lower Course)—इस भाग में नदी की गति मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की वृद्धावस्था (Old Stage) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
“नदी का अपरदन पानी की मात्रा और धरती की ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर-
नदी का अपरदन मुख्य रूप में पानी के वेग की मात्रा और घाटी की ढलान पर निर्भर करता है। अधिक ढलान के कारण नदी का वेग बढ़ जाता है और पर्वतीय भाग में कटाव अधिक होता है। बर्फ से ढके ऊँचे पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ अधिक पानी के कारण गहरी घाटियाँ बनाती हैं। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो नदी की अपरदन-शक्ति चौगुनी हो जाती है।

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प्रश्न 11.
धनुषदार झील (Ox-bow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी-मार्ग में बनने वाले मोड़ बड़े होकर पूरी तरह गोल हो जाते हैं। इनका आकार अंग्रेज़ी अक्षर ‘S’ जैसा हो जाता है। कई बार दो मोड़ एक-दूसरे के बहुत नज़दीक आ जाते हैं, तो गर्दन जैसे आकार का मोड़ बन जाता है। नदी के एक मोड़ का किनारा दूसरे किनारे से मिल जाता है। इस प्रकार नदी का एक मोड़ धनुष के आकार की झील के रूप में नदी से कट जाता है।

प्रश्न 12.
डेल्टा की रचना किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
समुद्र में गिरने से पहले नदी अपने मलबे के साथ डेल्टा की रचना करती है। नदी का अंतिम भाग समतल और धीमी ढलान वाला होता है। इसलिए मलबे का निक्षेप आसानी से हो जाता है। डेल्टा तब बनता है, यदि नदी के मुहाने पर ज्वारभाटे की कमी हो, समुद्र कम गहरा हो, कोई तेज़ धारा न बहती हो और नदी के मार्ग में कोई झील न हो, ताकि नदी का भार कम न हो जाए।

प्रश्न 13.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तेज़ ढलान होती है। यहाँ नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं, इसलिए मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। मलबे की कमी के कारण डेल्टा नहीं बनता। पश्चिमी तट की चौड़ाई भी कम है, इसलिए डेल्टा की रचना के लिए समतल भूमि की कमी है।

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प्रश्न 14.
जल-प्रपात की रचना के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जल-प्रपात (Water-Falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र में नीचे गिरता है, तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

1. जब कठोर चट्टानों की परत नर्म चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में हो, तो नीचे की नर्म चट्टानें जल्दी कट जाती हैं। उन चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।
उदाहरण-(i) यू०एस०एस० में नियागरा जल-प्रपात, जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है।
(ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है।

2. जब कठोर और नर्म चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (Vertical) हों, तो कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

प्रश्न 15.
‘V’ आकार घाटी और ‘U’ आकार घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
‘V’ आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-

  1. नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है।
  2. जब यह घाटी और अधिक गहरी हो जाती है, तो ‘I’ आकार की बन जाती है और इसे कैनियन कहते हैं।
  3. इसके किनारे पूरी तरह लंब रूप नहीं होते।
  4. नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है।

‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-

  1. हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
  2. यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती। इससे ऊँचाई से बनने वाली घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
  3. इसकी दीवारें लंब रूप में होती हैं।
  4. हिमनदी नदी घाटी का रूप बदलकर ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 16.
घुमाव/मोड़ (Meanders) कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
घुमाव/मोड़ (Meanders)—जब नदी मोड़ खाती हुई बहती है, तो उसके टेढ़े-मेढ़े रास्तों में छोटे-मोटे मोड़ पड़ जाते हैं, जिन्हें नदी के मोड़/घुमाव (Meanders) कहते हैं। नदी के अवतल किनारों (Concave Sides) के बाहरी तट पर तेज़ धारा के कारण कटाव होते हैं, पर नदी के उत्तल किनारों (Convex Sides) के भीतरी तट पर धीमी धारा के कारण निक्षेप होता है। इस प्रकार ये मोड़ और घुमाव धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं। तुर्की में मिएंडर (Meander) नदी के घुमाव को देखकर ही यह नाम रखा गया है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण की परिभाषा दें। इसकी अलग-अलग शक्तियों के कार्य बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—मौसम के भिन्न-भिन्न तत्त्वों द्वारा चट्टानों की टूट-फूट के कारण चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। (Weathering is the breaking up of Rocks by the elements of weather.) प्रसिद्ध भूगोलकार लॉबेक (Lobeck) के अनुसार, “मौसमीकरण चट्टानों के विघटन और अपघटन की प्रक्रियाओं के द्वारा होता है।” (Weathering results from the processes of rock disintegration and decomposition.)

चट्टानों की यह तोड़-फोड़ अथवा मौसमीकरण नीचे दी गई क्रियाओं से होती है-

  • विघटन (Disintegration)-ताप-अंतर के कारण जब चट्टानें टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं, तो उसे विघटन कहा जाता है।
  • अपघटन (Decomposition)-रासायनिक क्रियाओं द्वारा जब चट्टानें धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं, तो उसे अपघटन कहा जाता है। इस प्रकार चट्टानें ताप-अंतर द्वारा टूटती हैं और रासायनिक क्रिया द्वारा घिसती हैं और नष्ट होती हैं। इन चट्टानों का विघटन और अपघटन उनके अपने स्थान पर ही होता है।

मौसमीकरण को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Weathering)-

प्रत्येक स्थान पर मौसमीकरण एक समान नहीं होता क्योंकि भूतल पर चट्टानें और जलवायु सदा एक जैसी नहीं होतीं। मौसमीकरण नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करता है-

1. चट्टानों की संरचना (Structure of Rocks) असंगठित, घुलनशील और मुसामदार चट्टानों पर मौसमीकरण का प्रभाव बड़ी तेजी से होता है। नर्म चट्टानें जल्दी ही टूट जाती हैं, पर कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।

2. भूमि की ढलान (Slope of the Land)—वे क्षेत्र, जिनकी ढलान अधिक होती है, वहां मौसमीकरण तेज़ी से होता है। ढलान के कारण चट्टानों का संगठन कमज़ोर पड़ जाता है क्योंकि गुरुत्वा शक्ति के फलस्वरूप नीचे को खिसककर चट्टानें अपने आप ही टूटने लगती हैं और मार्ग में आने वाली चट्टानों को भी तोड़ देती हैं।

3. जलवायु में भिन्नता (Difference in Climate)-संसार के उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में तापमान की अधिकता और जल की अधिकता के कारण नर्म और घुलनशील चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं। इसके विपरीत उष्ण और शुष्क जलवायु के क्षेत्रों में दिन और रात के ताप में अंतर होने के कारण चट्टानें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस कारण इनका भौतिक मौसमीकरण होता है।

4. वनस्पति का प्रभाव (Effect of Vegetation) वनस्पति से रहित प्रदेशों में दिन के समय सूर्य-ताप के प्रभाव के कारण चट्टानें फैलती हैं और रात के समय ताप कम होने के कारण वही चट्टानें सिकुड़ने लगती हैं। इसी कारण उनका भौतिक विघटन होता है। इसके विपरीत वनों वाले क्षेत्रों में पेड़-पौधों की जड़ें चट्टानों को पकड़ कर रखती हैं।

5. चट्टानों के जोड़ व दरारें (Joints)-चट्टानों में जोड़ और दरारें तोड़-फोड़ में मदद करती हैं। इन दरारों में उगे पेड़ चट्टानों को चौड़ा करके उन्हें तोड़ देते हैं।

मौसमीकरण के प्रकार (Types of Weathering)-

मौसमीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)
  2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)
  3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)

1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)-जब चट्टानें भौतिक क्रिया द्वारा विघटित (Disintegrate) होती हैं और उनकी टूट-फूट होती है, तो उसे भौतिक मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। इसके कारण चट्टानों के खनिजों और गुणों में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि उनके खनिजों के टुकड़े हो जाते हैं। यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने स्थान पर ही टूट-फूट कर चूरा हो जाती हैं। इसे भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering) अथवा यांत्रिक मौसमीकरण (Mechanical Weathering) कहते हैं। भौतिक मौसमीकरण के नीचे लिखे तीन कारक हैं –

(i) सूर्य का ताप (Insolation) चट्टानों के भौतिक मौसमीकरण में सूर्य के ताप (Insolation) का बहुत महत्त्व है, जो कि उष्ण और शुष्क मरुस्थल में अपना प्रभाव डालता है।

(क) पिंड विघटन (Block Disintegration)—इन प्रदेशों में वर्षा की कमी और दिन-रात के तापमान में बहुत अंतर होने के कारण दिन में चट्टानें फैलती रहती हैं और रात के समय सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने को पिंड विघटन (Block Disintegration) कहते हैं। उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में अधिक तापमान के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की गोली की आवाज़ जैसी होती है।

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(ख) अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation)—दिन के समय मरुस्थलों में तीखी गर्मी पड़ती है, जिसमें चट्टानों की ऊपरी परत गर्म हो जाती है व फैल जाती है। इस प्रकार उनका आयतन बढ़ जाता है और उनकी बाहरी परत छिलके के समान अलग हो जाती है। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation) कहा जाता है।
उदाहरण-चट्टानों के टूट कर चूर्ण होने के कारण बने मलबे को टालस (Talus) कहते हैं।

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(ii) कोहरा (Frost)—ऊँचे अक्षांशों और ऊँचे पर्वतों पर अत्यधिक सर्दी होती है और बर्फ पड़ती है। दिन के समय सूर्य-ताप के कारण कुछ बर्फ पिघलकर जल का रूप धारण कर लेती है और फिर वह जल चट्टानों की दरारों में प्रवेश कर जाता है। ठंड होने पर फिर यह जल बर्फ का रूप धारण कर लेता है और इसका फैलाव बढ़ जाता है। जमने से पानी का आयतन 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी अपने आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस फैलाव के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है और दरारें बड़ी हो जाती हैं और टूट जाती हैं। ढलान पर पड़ी चट्टानें नीचे को लुढ़क जाती हैं और पर्वतों के पैरों में इकट्ठी हो जाती हैं। इस एकत्र हुए पदार्थ को चट्टानी मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है।
उदाहरण-हिमालय पर्वत के पहाड़ी प्रदेश में इस मौसमीकरण के कारण बड़े-बड़े टुकड़े टूटते रहते हैं।

(iii) वर्षा (Rainfall)-वर्षा का पानी बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है और प्रभाव डालता है।
(क) मिट्टी का अपरदन (Soil Erosion)-ढलान वाली भूमि और नदी घाटियों में वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले आता है। जैसे भारत में गंगा नदी हर रोज़ 10 लाख टन मिट्टी समुद्र तक बहाकर ले जाती है।

(ख) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land)-ज़ोर से वर्षा होने के कारण जल नालियाँ (Gullies) और खाइयाँ (Ravines) बन जाती हैं जिसके फलस्वरूप बंजर बिखरा हुआ धरातल बन जाता है, जैसे-भारत की चंबल घाटी में।

(ग) मिट्टी के खंभे (Earth Pillars)-वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है, पर कठोर चट्टानें एक टोपी (Cap) का काम करती हैं और मिट्टी के खंभे खड़े हो जाते हैं, जैसे–इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमाचल के स्पीति प्रदेश में।

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(घ) भू-स्खलन (Landslides)—वर्षा का पानी नर्म चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी बना देता है और चट्टानें ढलान की तरफ फिसल जाती हैं। सड़क मार्ग रुक जाते हैं। गढ़वाल क्षेत्र में भू-स्खलन के कारण सैंकड़ों मनुष्य दबकर मर गए थे।

(iv) हवा (Wind) हवा के कारण मौसमीकरण मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों अथवा वनस्पति-रहित प्रदेशों में होता है। रेत युक्त हवाएँ एक रेगमार (Sand Paper) के समान चट्टानों को चूर-चूर कर देती हैं।

(क) मरुस्थलों में से निकलने वाली रेलगाड़ियों को हर वर्ष रंग (Paint) करना पड़ता है।
(ख) टेलीग्राफ की तारें हवा के प्रहार से जल्दी घिस जाती हैं।
(ग) समुद्र तट की ओर के साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं,जैसे दानेदार शीशे (Frosted Glass) हों।
(घ) चट्टानों का आकार अजीब-सा हो जाता है। जैसे-राजस्थान में मांऊट आबू के पास Toad Rock |
(ङ) कई बार आकाशीय बिजली भी चट्टानों को तोड़-फोड़ देती है या पिघला देती है।

2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीज़न, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों और रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) कहते हैं। वर्षा का जल और गैसें रासायनिक मौसमीकरण के प्रमुख कारण हैं। मौसमीकरण अम्ल (Acid) और गैस मिले जल द्वारा होता है। रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है-

(क) ऑक्सीकरण (Oxidation)—इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौह युक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग (Rust) लगा देती है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष तक ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्ष में ही जंग लग गया।

(ख) कार्बनीकरण (Carbonation)-कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और पानी मिलकर चूने के पत्थर, जिप्सम, संगमरमर आदि को घोल देते हैं। चट्टानों के नष्ट होने से गुफाएँ बनती हैं।
उदाहरण-(i) यू०एस०ए० में Mammoth Caves (ii) भारत में खासी और चेरापूंजी, देहरादून प्रदेश।

(ग) जलकरण (Hydration)-हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें अंदर ही अंदर घिसकर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Keolin) का जन्म इस प्रकार फैलसपार (Felespar) चट्टानों के विघटन से हुआ है।

(घ) घोल (Solution)—पानी कई खनिजों को घोल देता है। ये खनिज घुलकर बह जाते हैं, जैसे चूना मिट्टी में से घुलकर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटराइट (Latrite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-वनस्पति, जीव-जंतुओं और मानवों द्वारा चट्टानों का जो मौसमीकरण होता है,उसे जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering) अथवा (OrganicWeathering) कहा जाता है।
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  • वनस्पति (Vegetation)-वनस्पति जैविक मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण कारक है। वनस्पति द्वारा चट्टानों का मौसमीकरण यांत्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार से होता है। चट्टानों की दरारों में पेड़-पौधे उग आते हैं। उनकी जड़ें चट्टानों को कमजोर कर देती हैं।
  • जीव-जंतु (Animals)-चट्टानों में मांदें बनाकर रहने वाले जीव जैसे-चूहे, खरगोश, लोमड़ी, चींटियां, कीड़े-मकौड़े, केंचुए, दीमक आदि चट्टानों को खोखला बना देते हैं। इससे चट्टानें असंगठित होकर टूट जाती हैं। इसके बाद वायु, जल आदि उन्हें बहाकर ले जाते हैं। चित्र-जैविक मौसमीकरण होमज़ के अनुसार प्रति एकड़ मिट्टी में 1,50,000 केंचुए हो सकते हैं, जो एक वर्ष के समय में 10 से 15 चट्टानों को उत्तम प्रकार की मिट्टी में बदल कर नीचे से ऊपर ले आते हैं।
  • मनुष्य (Man)-मनुष्य भी भूमि पर अनेक प्रकार के परिवर्तन करता है। वह भूमि से खनिज प्राप्त करने के लिए खदानें खोदकर चट्टानों को नर्म कर देता है। इमारतें और बाँध बनाने के लिए सामग्री जैसे-ईंटें, पत्थर, चूना, सीमेंट आदि चट्टानों को तोड़कर ही प्राप्त करता है।

मौसमीकरण के प्रभाव (Affects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। वह मिट्टी वनस्पति और खेती का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बना कर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण से ही नदी घाटियाँ चौड़ी होती रहती हैं।

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प्रश्न 2.
नदी और नदी बेसिन की परिभाषा बताएँ। अलग-अलग अवस्थाओं में नदी के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
नदी (River)-
भूमि पर वर्षा के जल का कुछ भाग वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल में लोप हो जाता है और कुछ भाग भूमि की पारगामी चट्टानों में से होता हुआ धरती में चला जाता है, परंतु जल का अधिकतर भाग धरातल पर प्रवाहित (Run off ) होकर बह जाता है। वह प्रदेश जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और उसकी सहायक नदियों में बहता हो, वह प्रदेश नदी का अपवाह क्षेत्र (Drainage Area) अथवा बेसिन (Basin) कहलाता है।
जिन नदियों में पूरा वर्ष पानी बहता रहता है, उन्हें स्थायी नदियाँ (Perennial Rivers) कहा जाता है। जिन नदियों में जल केवल वर्षा ऋतु में ही बहता हो, उन्हें मौसमी नदियाँ (Seasonal Rivers) कहते हैं।

नदी की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of a River)-

नदी के स्रोत (Source) से लेकर मुहाने (Mouth) तक इसके विकासक्रम को तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। ये तीन अवस्थाएं नीचे लिखी हैं-

1. युवावस्था (Youthful Stage)—इस अवस्था में नदी पर्वतों में प्रवाह करती है, इसलिए नदी के इस मार्ग को पर्वतीय मार्ग (Mountain Track) भी कहते हैं। नदी की ढलान 50 फुट प्रति मील होती है। ढलान सीधी होने के कारण जल का बहाव तेज़ होता है। वेग तेज़ होने के कारण अपरदन कार्य तेज़ी से होता है और घाटी गहरी होती है। इस अवस्था में नदी का कार्य प्रमुख रूप से अपरदन का ही होता है। (The mountain stage as a whole, is the stage of erosion) नदी के पर्वतीय भाग को युवा नदी घाटी (Young River Valley) कहते हैं। इस भाग में कैनियन, गॉर्ज, चश्मे और झरने बनते हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-इस अवस्था में नदी मैदानों में से बहती है, इसलिए नदी के इस भाग को मैदानी मार्ग (Plain Track) भी कहते हैं। यहां भूमि की ढलान कम होती है, जो कि 10 फुट प्रति मील होती है। इस भाग की प्रमुख नदी में अनेक सहायक नदियाँ आकर मिल जाती हैं, इसलिए नदी में पानी की मात्रा काफ़ी अधिक हो जाती है, परंतु प्रवाह की गति कम हो जाने के कारण भारी पदार्थों और कंकड़ आदि का प्रवाह रुक जाता है और इसका निक्षेप होना शुरू हो जाता है। नदी के मैदानी भाग को प्रौढ़ नदी घाटी (Mature River Valley) भी कहते हैं। इस भाग में नदी, किनारे पर अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा घाटी को निरंतर चौड़ा करती रहती है। इस भाग में U-आकार घाटी, घुमाव, मोड़, गोखुर झील, तट, बांध आदि बनते हैं। वृद्धावस्था (Old Stage)-नदी-मुहाने (River Mouth) से पहले, मैदान के निचले भाग में ढलान बहुत ही कम हो जाने के कारण जल का प्रवाह अत्यंत मद्धम हो जाता है। नदी की ढलान 1 फुट प्रति मील हो जाती है, फलस्वरूप अपरदन कार्य बिल्कुल समाप्त हो जाता है और निक्षेप तेज़ी से होने लगता है। यह ही नदी की वृद्धावस्था है। नदी के इस मार्ग को डेल्टा मार्ग (Delta Track) भी कहते हैं और नदी की घाटी यहां प्रौढ़ नदी घाटी (Old River Valley) कहलाती है। प्रौढ़ नदी घाटी में नदी का केवल एक काम निक्षेप करना होता है।

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PSEB 11th Class History Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
जीते हुए प्रदेशों की व्यवस्था के सन्दर्भ में महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान और विजयों की चर्चा करें।
उत्तर-
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के पिता महा सिंह की मृत्यु हो गई। महाराजा रणजीत सिंह उस समय अवयस्क था। इसीलिए शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1796 ई० तक उसकी माता राज कौर तथा दीवान लखपत राय के हाथों में रही। 1796 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने भी इस मिसल के शासन प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण भाग लिया। परन्तु 1797 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शासन का सारा कार्यभार स्वयं सम्भाल लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने जिस समय शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तब उसके अधीन गुजरांवाला, वज़ीराबाद, पिंड दादन खां और कुछ अन्य गांव थे। परन्तु कुछ ही समय में उसने लगभग सारे पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसकी विजयों का वर्णन इस प्रकार है

शक्ति का उत्थान एवं विजयें-

1. लाहोर तथा सिक्ख-मुस्लिम संघ पर विजय-महाराजा रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सातारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा और उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह की इस विजय को देखकर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासक भयभीत हो उठे। अतः उन्होंने संगठित होकर महाराजा रणजीत सिंह से लड़ने का निश्चय किया और उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ बना लिया। महाराजा रणजीत सिंह अपने इन शत्रुओं का सामना करने के लिए लाहौर से आगे बढ़ा। 1803 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध होना था परन्तु शत्रु सेनाओं के सेनापति गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु हो जाने से युद्ध न हुआ और बिना किसी खून खराबे के महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा।

2. सिक्ख मिसलें, कसूर, कांगड़ा और मुल्तान पर विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथों में थी। अवसर पाकर महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खां उसका अधिक समय तक सामना न कर सकी। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को भी अपने राज्य में मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों की ओर अपना ध्यान दिया। उसने मिसलों के नेताओं को युद्ध में पराजित करके उनकी मिसलों पर अधिकार कर लिया। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर के शासक कुतुबुद्दीन को हराकर इस प्रदेश पर भी अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने कांगड़ा के राजा की गोरखों के विरुद्ध सहायता करके उससे काँगड़ा का प्रदेश प्राप्त कर लिया। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति मिसर दीवान चन्द तथा अपने बड़े पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए भेजे ! वहां घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुल्तान का नवाब मारा गया और मुल्तान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।

3. कश्मीर, डेरा गाज़ी खां, डेरा इस्माइल खां, मानकेरा तथा पेशावर पर विजय-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक सेना कश्मीर विजय के लिए भेजी। कश्मीर का गवर्नर जाबर खाँ सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। परन्तु सुपान नामक स्थान पर उसकी करारी हार हुई। 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खां पर विजय प्राप्त करने के लिए जमांदार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। उसने वहाँ के शासक जमान खां को पराजित करके डेरा गाजी खां पर अपना अधिकार कर लिया। 1821 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा इस्माइल खां तथा मानकेरा के नवाब अहमद खां के विरुद्ध चढ़ाई की! अहमद खां को महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। 1834 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर आक्रमण किया परन्तु उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आखिर पेशावर जीत लिया गया और सिक्ख राज्य में मिला लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने हरि सिंह नलवा को पेशावर का गवर्नर नियुक्त किया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक विजयें प्राप्त करके अपनी छोटी-सी मिस्ल को एक विशाल राज्य का रूप दे दिया। उसका राज्य उत्तर में लद्दाख तथा उत्तर-पश्चिम में सुलेमान को पहाड़ियों तक विस्तृत था। दक्षिण-पूर्व में उसके राज्य की सीमाएं सतलुज नदी को छूती थीं। दक्षिण-पश्चिम में शिकारपुर उसके राज्य की सीमा थी।

विजित प्रदेशों की व्यवस्था-

1. विजित प्रदेशों के प्रति अच्छी नीति-महाराजा रणजीत सिंह ने विजित प्रदेशों के प्रति लगभग एक-जैसी नीति अपनाई। कुछ प्रदेशों के सिक्ख, मुसलमान तथा हिन्दू शासकों को केवल महाराजा की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा गया और उन्हें अपने-अपने प्रदेश का शासक बना रहने दिया गया। ये महाराजा को वार्षिक कर और आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। जिन शासकों के राज्य छीन लिए गए उनमें से अनेक को यह छूट दी गई कि वे महाराज की नौकरी करके जागीरें प्राप्त कर लें। बहुत-से शासकों ने महाराजा की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिन शासकों ने यह शर्त स्वकर न की उन्हें भी उनकी स्थिति के अनुसार छोटी-छोटी जागीरें दे दी गईं। यह ढंग महाराजा रणजीत सिंह ने सभी शासकों के प्रति अपनाया चाहे कोई सिक्ख था, हिन्दू था या मुसलमान। इस प्रकार महाराजा को विजित प्रदेशों में शान्ति बनाए रखने में काफ़ी सहायता मिली। इन प्रदेशों से महाराजा को अनेक योग्य व्यक्तियों की सेवाएं प्राप्त हुईं।

2. शक्ति का प्रयोग-कुछ विजित प्रदेशों में महाराजा रणजीत सिंह ने शक्ति का प्रयोग किया। पहले तो यह प्रयास किया गया कि स्थानीय जमींदार महाराजा की अधीनता स्वीकार करके अपने-अपने प्रदेशों का शासन प्रबन्ध चलाते रहें। कुछ ज़मींदारों ने तो इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या उनके नेताओं ने विरोध न छोड़ा वहां कठोरता से काम लिया गया। ऐसे प्रदेशों में किले बना कर सैनिक रख दिये गए। सरकारी कामों के लिए स्थानीय कर्मचारी नियुक्त किए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों में लगभग पहले वाला शासन प्रबन्ध ही चलता रहा। लगान निर्धारित करने और इसे वसूल करने का ढंग भी पहले जैसा ही रहा।

3. सुदृढ़ सेना का संगठन-महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता र क सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मनबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाई गई। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
(ii) उसके पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ।
(ii) उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।

प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी ?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।

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प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया ?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे।

प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे ?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।

प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया ?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) महाराजा रणजीत सिंह ने ………… ई० में अपनी सास …………. की सहायता से लाहौर को जीता।
(ii) महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 ई० में ………… के साथ अमृतसर की संधि की।
(iii) सरदार खुशहाल सिंह महाराजा रणजीत सिंह के अधीन …………के पद पर आसीन था।
(iv) महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु ………….. ई० में हुई।
(v) ………….. ई० में पंजाब/लाहौर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।
उत्तर-
(i) 1799, सदा कौर
(ii) अंग्रेजों
(iii) ड्योढ़ीदार
(iv) 1839
(v) 1849.

3. सही गलत कथन

(i) अमृतसर की संधि (1809) के समय अंग्रेज़ों का वक़ील चार्ल्स मेटकॉफ था। –(✓)
(ii) 1831 में महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेज़ गवर्नर लार्ड डल्हौज़ी से भेंट हुई। –(✗)
(iii) 1830 ई० में अंग्रेजों ने सिंध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के विस्तार में सहायता दी। –(✗)
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के लोगों को संरक्षण दिया। –(✓)
(v) महाराजा रणजीत सिंह के अधीन कानूनगो तथा मुकद्दम कारदार की सहायता करते थे। –(✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के बीच भेंट (1831 ई०) हुई ?
(A) रोपड़ में
(B) अमृतसर में
(C) लाहौर में
(D) सरहिंद में।
उत्तर-
(A) रोपड़ में

प्रश्न (ii)
महाराजा रणजीत सिंह के कहां के शासक के साथ राजनीतिक संबंध नहीं थे ?
(A) नेपाल
(B) बीजापुर
(C) राजस्थान
(D) कश्मीर।
उत्तर-
(B) बीजापुर

प्रश्न (iii)
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन निम्न मुग़ल प्रांत का बहुत-सा भाग शामिल था
(A) कश्मीर
(B) लाहौर
(C) मुलतान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iv)
महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री था
(A) दीवान मिसर चंद
(B) हरि सिंह नलवा
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन
(D) शेर सिंह
उत्तर-
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन

प्रश्न (v)
लाहौर राज्य का अंतिम सिख शासक था
(A) खड़क सिंह
(B) दलीप सिंह
(C) शेर सिंह
(D) जोरावर सिंह।
उत्तर-
(B) दलीप सिंह

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में चार स्रोत हैं : सोहन लाल सूरी का उमदा-उत्-तवारीख, गणेशदास वढेरा की चार बागे पंजाब, यूरोपीय यात्रियों के वृत्तान्त तथा खालसा दरबार के रिकार्ड।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार तथा उसकी कृति का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार का नाम सोहन लाल सूरी था। उसकी कृति का नाम उमदा-उत्तवारीख था।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा वह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 ई० को हुआ। वह सरदार महा सिंह का पुत्र था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह किस वर्ष गद्दी पर बैठा और उस समय उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1792 ई० में गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में कौन-से अफ़गान शासक ने किन वर्षों के बीच में पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में जमानशाह ने पंजाब पर 1796 से 1798 के बीच में आक्रमण किए।

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय कब और किसकी सहायता से प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय 7 जुलाई, 1799 ई० को रानी सदा कौर की सहायता से प्राप्त की।

प्रश्न 7.
भसीन में किन दो शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया तथा महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर किनसे जीता ?
उत्तर-
भसीन में भंगी शासकों तथा कसूर के पठानों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया। महाराजा रणजीत सिंह ने भंगियों से अमृतसर जीता।

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प्रश्न 8.
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने किन चार सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात के साहिब सिंह भंगी, चिनियोट के जस्सा सिंह दूल्लू, अकालगढ़ के दल सिंह तथा स्यालकोट के जीवन सिंह के इलाके जीते।

प्रश्न 9.
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महासजा रणजीत सिंह ने किन तीन सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महाराजा रणजीत सिंह ने बुद्ध सिंह से जालन्धर का इलाका, बघेल सिंह से हरियाणा एवं होशियारपुर का इलाका तथा तारा सिंह डल्लेवालिया से राहों का इलाका जीता।

प्रश्न 10.
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन सिक्ख शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन शासक जोध सिंह रामगढ़िया, फतेह सिंह आहलूवालिया तथा रानी सदा कौर थे।

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प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों तथा सदा कौर के इलाके किन वर्षों में जीते ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों का इलाका 1815 में तथा सदा कौर का इलाका 1821 ई० में जीता।

प्रश्न 12.
फतेह सिंह आहलूवालिया किस वर्ष में कपूरथला छोड़ कर सतलुज के पार चला गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता कब स्वीकार कर ली ?
उत्तर-
1826 ई० में फतेह सिंह आहलूवालिया कपूरथला छोड़कर सतलुज के पार चला गया। उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता 1827 ई० में स्वीकार कर ली।

प्रश्न 13.
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार कौन-से चार इलाकों पर अधिकार कर लिया ?
उत्तर-
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार धर्मकोट, बधणी, जगरावां और नारायणगढ़ नामक चार इलाकों पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 14.
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जिन सिक्ख राज्यों से खिराज लिया उनमें से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पटियाला, नाभा, जींद तथा कलसिया नामक राज्यों से खिराज लिया।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कब और कहां की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ 1809 ई० में अमृतसर में सन्धि की।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुल्तान, कश्मीर तथा पेशावर की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक 1813, मुल्तान 1818, कश्मीर 1819 और पेशावर 1823 ई० में विजय किया।

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प्रश्न 17.
सिन्ध नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त कौन-से चार इलाकों पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्ज़ा हो गया ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्धु नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त झंग, साहीवाल, खुशाब तथा पिंडी भट्टियां के चार इलाकों पर अधिकार किया।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग कितनी पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया तथा उनमें से किन्हीं चार के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 20 से भी अधिक पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया। इनमें से चार इलाकों के नाम कांगड़ा, कुल्लू, जम्मू तथा राजौरी थे।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कौन-से चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लाहौर, कश्मीर, मुल्तान तथा काबुल नामक चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था।

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प्रश्न 20.
यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त । बनाया ?
उत्तर-
उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन, रेजीमैंट तथा बैटरी सेना के कौन-से अंगों से स’ म्बन्धित थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन पैदल, रेजीमैंट घुड़सवारों तथा बैटरी तोपखाना नाम .क अंगों से सम्बन्धित थी।

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पदों के नाम बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पद थे-कमांडेंट, एडजूटैंट (कुमेदान), मेजर और सूबेदार।

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प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को किन दो रूपों में वेतन देता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन देता था।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर कौन-सो दो व्यक्ति रहे थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर सरदार खुशहाल सिंह तथा सरदार ध्यान सिंह आसीन रहे।

प्रश्न 25.
मिसर बेलीराम तथा फकीर अजीजद्दीन कौन-से कार्य सम्भालते थे ?
उत्तर-
मिसर बेलीराम खजाने को तथा फकीर अजीजुद्दीन विदेशी मामलों को सम्भालते थे।

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प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबे थे-जालन्धर-दोआब, माझा, कांगड़ा, वजीराबाद, पिण्ड दादन खां, हज़ारा, पेशावर तथा मुल्तान।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम अथवा सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम दीवान सावनमल, सरदार लहणा सिंह मजीठिया, मिसर रूप लाल तथा कर्नल मीहा सिंह थे।

प्रश्न 28.
सूबे की छोटी प्रशासकीय इकाई के दो नाम क्या थे तथा इसके अधिकारी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सूबे की छोटी प्रशासनिक इकाई के दो नाम परगना तथा तालुका थे। इनके अधिकारी को कारदार कहते थे।

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प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कुछ स्थानों पर तालुका थे। परन्तु गांवों के बीच अन्य दो इकाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में गांवों के बीच तप्प तथा तोप नामक दो इकाइयां थीं।

प्रश्न 30.
कारदार की सहायता करने वाले दो स्थानीय अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
कारदार की सहायता कानूनगो तथा मुकद्दम करते थे।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम थे-काज़ी तथा अदालती।

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प्रश्न 32.
गांवों में समस्याओं को कौन-सी संस्था किस आधार पर हल करती थी ?
उत्तर-
गांवों में समस्याओं को पंचायत स्थानीय रिवाजों के आधार पर हल करती थी।

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में जिन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे वे सिक्ख, क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा राजपूत थे।

प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसरों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसर अलारड तथा वेन्तूरा थे।

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प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल तथा राजा गुलाब सिंह थे।

प्रश्न 36.
शासक वर्ग के सदस्यों को वेतन किस रूप में दिया जाता था तथा वे किन-किन कार्यों में महाराजा की सहायता करते थे ?
उत्तर-
शासक वर्ग के सदस्यों को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन मिलता था। वे शान्ति स्थापित करने, लगान वसूल करने तथा सेना तैयार रखने में महाराजा की सहायता करते थे।

प्रश्न 37.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कौन चुनते थे तथा कृषकों को कर्ज किन वस्तुओं के लिए दिया जाता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। उन्हें बीज और औजार खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था।

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प्रश्न 38.
महाराजा रणजीत सिंह से संरक्षण किन धर्मों के लोगों को तथा किस रूप में मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को संरक्षण दिया। वह इन धर्मों के धार्मिक स्थानों को लगान मुक्त भूमि दान में देता था।

प्रश्न 39.
महाराजा रणजीत सिंह के किन चार समकालीन शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों तथा अफ़गानिस्तान, नेपाल और राजस्थान के शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 40.
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेजों का वकील कौन था ? इस सन्धि द्वारा किस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेज़ों का वकील चार्ल्स मेटकॉफ था। इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों का सतलुज पार के क्षेत्र पर अधिकार हो गया।

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प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह कौन-से अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल से कब और कहाँ मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से 1831 में रोपड़ नामक स्थान पर मिला। .

प्रश्न 42.
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने किन दो इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका ?
उत्तर-
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने सिन्ध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका।

प्रश्न 43.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारियों के तथा उनमें से किसी एक की मां का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारी महाराजा खड़क सिंह, महाराजा शेर सिंह तथा महाराजा दलीप सिंह थे। महाराजा दलीप सिंह की मां का नाम महारानी जिन्दा था।

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प्रश्न 44.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई तथा लाहौर राज्य का अन्त कब हुआ ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 ई० में हुई और लाहौर राज्य का अन्त 1849 ई० में हुआ।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने जीते हुए इलाकों की व्यवस्था कैसे की ?
उत्तर-
जीते हुए सभी इलाकों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह की नीति लगभग समान थी। पराजित शासक चाहे वह हिन्द, सिक्ख या मुसलमान हो, को सामन्त के रूप में उसके इलाके में रहने दिया गया। उन्हें महाराजा को खिराज देना पड़ता था। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सेना भी देनी पड़ती थी। कुछ शासकों को यह स्वतन्त्रता दी गई कि वे महाराजा के अधीन नौकरी कर लें और जागीर ले लें। जिन्होंने यह शर्त स्वीकार नहीं की, उनको भी उनके स्तर के अनुसार निर्वाह के लिए छोटी-छोटी. जागीरें दे दी गईं। इसके परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को जीते हुए इलाकों में शान्ति स्थापित रखने में सहयोग भी .. मिला और उसे श्रेष्ठ व्यक्तियों की सेवा प्राप्त हुई।

सच तो यह है कि जीते हुए इलाकों में महाराजा ने शक्ति और मेल-मिलाप दोनों का प्रयोग किया। स्थानीय ज़मींदारों को प्रबन्ध में प्राथमिकता दी गई। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या नेताओं ने उनका विरोध किया, वहां सख्ती से भी काम लिया गया। जीते हुए इलाकों में किले बनवा कर किलेदार नियुक्त किए गए। सरकारी कार्यों के लिए स्थानीय कर्मचारी वहीं रहने दिए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों का लगभग पहले वाला प्रबन्ध जारी रहा। लगान को निश्चित करने और उगाहने के ढंग भी पहले वाले ही रहने दिए गए।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने सेना के संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेजी कम्पनी की सेना को छोड़कर आए सिपाहियों को अपनी सेना में रखा। सेना को यूरोपीय ढंग से संगठित किया गया। इसके लिए यूरोपीय अफसरों को नियुक्त किया गया। उनकी सहायता से पैदल, घुड़सवार सेना और तोपखाने को सशक्त बनाया गया। सेना के विभिन्न अंगों के संगठन के लिए पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी स्थापित करने की प्रथा चलाई गई। इनके अधिकारियों में भी कमान्डेन्ट (कुमेदान) ऐड्जूटैन्ट, मेजर और सूबेदार नियुक्त किए गए। समय बीतने पर कई सैनिक टुकड़ियों को मिला करे एक ‘जनरल’ के अधीन रखा जाने लगा। प्रत्येक टुकड़ी के साथ बेलदार, मिस्त्री, घड़याली और टहलिया आदि भी होते थे। सेना का निरीक्षण स्वयं महाराजा करता था। चेहरा नवीसी और घोड़े दागने की प्रथा भी आरम्भ की गई ताकि सैनिक अधिकारी और जागीरदार निश्चित संख्या से कम घोड़े और सिपाही न रख सकें। महाराजा ने तोपें, बन्दूकें और अन्य शस्त्र बनाने के लिए कारखाने स्थापित किए। इनमें पंजाबी और कई अनुभवी यूरोपीय लोग बारूद तैयार करते थे।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किस पृष्ठ भूमि के लोग थे तथा उनके महाराजा के साथ किस तरह के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक अधीनस्थ राजाओं को अपना भागीदार बनाकर शासक वर्ग का अंग बना लिया। इन राजाओं के जागीरदारों को भी प्रशासनिक प्रबन्ध में सम्मिलित किया गया। इनके अतिरिक्त महाराजा ने कई नए व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार छोटे-बड़े पदों पर नियुक्त किया। ऐसे जागीरदारों की सामाजिक पृष्ठ भूमि भिन्नभिन्न थी। उनमें कई जाट सिक्ख थे तथा कई खत्री थे। इनमें ब्राह्मण, राजपूत, पठानों और सैय्यदों के अतिरिक्त कई पूर्वी हिन्दोस्तानी और यूरोपीय लोगों को भी इस श्रेणी में जगह दी गई। उदाहरण के लिए जमांदार खुशहाल सिंह और अलारड तथा वेन्तूरा के नाम लिए जा सकते हैं। महाराजा के प्रमुख जागीरदारों में उल्लेखनीय सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल, राजा गुलाब सिंह, राजा ध्यान सिंह, फकीर अजीजुद्दीन और शेख गुलाम मुइउद्दीन थे। यह सारा शासक वर्ग शासन कार्यों में महाराजा का भागीदार था।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह का प्रजा के प्रति कैसा व्यवहार था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक प्रजापालक शासक था। उसने अपने नाज़िमों और कारदारों को यह आदेश दे रखा था कि वे प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनकी भलाई का ध्यान रखें। कृषकों के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था। कई स्थानों पर लगान की दर भी घटा दी गई। लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। लाहौर दरबार उन्हें बीज और औज़ार आदि खरीदने के लिए ऋण भी देता था। प्रजा राजा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर सकती थी। जब भी महाराजा राज्य के किसी प्रदेश का भ्रमण करता तो वह कृषकों से उनके सुख-दुःख के बारे में पूछा करता था। अत्याचारी नाज़ियों या कारदारों की बदली कर दी जाती थी। कई बार उन पर जुर्माने भी किए जाते थे।

महाराजा महाराजा रणजीत सिंह का संरक्षण केवल सिक्खों तक सीमित नहीं था बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इससे प्रभावित थे। लगान की कुल आय का जितना भाग धर्मार्थ के लिए महाराजा ने दिया, उतना शायद मुग़लों के समय में भी नहीं दिया गया था। महाराजा की ओर से करवाई गई हरमंदर साहिब की सेवा की गवाही आज भी हरमंदर साहिब के द्वार पर सोने के पत्र पर उभरी हुई मिलती है। निःसन्देह महाराजा उदार स्वभाव का व्यक्ति था।

प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 1806 ई० के पश्चात् सतलुज पार के प्रदेशों को जीतना आरम्भ कर दिया। इससे अंग्रेजों को चिन्ता होने लगी कि कहीं महाराजा का राज्य दिल्ली तक न फैल जाए। वे स्वयं भी सतलुज और यमुना के बीच के इलाकों पर अपना अधिकार करना चाहते थे। अतः महाराजा की शक्ति पर रोक लगाने के लिए उन्होंने चार्ल्स मैटकॉफ को अपना वकील बनाकर महाराजा के पास भेजा। उसने सुझाव दिया कि सतलुज नदी को महाराजा की पूर्वी सीमा मान लिया जाए। अंग्रेजों की यह इच्छा थी कि सतलुज-यमुना के मध्य के सभी शासक महाराजा की बजाए अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर लें। महाराजा को यह सुझाव पसन्द तो नहीं था परन्तु उसे अंग्रेजों की शक्ति का पूरा पता था। उसे यह भी ज्ञान था कि इस सुझाव के लाभ क्या हैं। वास्तव में अंग्रेज़ उसे सतलुज के उत्तर-पश्चिम के प्रदेश का एकमात्र स्वतन्त्र शासक मानने को तैयार थे। अन्त में महाराजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और सेना सतलुज के इस ओर बुला ली। इन परिस्थितियों में 25 अप्रैल, 1809 को अमृतसर में एक नियमित सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना कैसे की ? –
उत्तर-
रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली। 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमान ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई। 1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पांच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेजों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया। 1809 ई० में उसने अंग्रेजों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित इलाकों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। शीघ्र ही उसने मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), बन्नू, डेराजात और पेशावर पर अधिकार कर लिया। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब का शासन बड़े अच्छे ढंग से चलाया। केन्द्रीय शासन का मुखिया वह स्वयं था। वास्तव में वह निरंकुश शासक था परन्तु उसे प्रजा की भलाई का पूर्ण ध्यान रहता था। उसने अपनी सहायता के लिए मन्त्री नियुक्त किए हुए थे। राजा ध्यान सिंह उसका प्रधानमन्त्री था और फकीर अजीजुद्दीन उसका बहुत बड़ा सलाहकार और विदेश मन्त्री था। अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने सारे राज्य को चार मुख्य प्रान्तों में बांटा हुआ था। इन प्रान्तों के नाम थे-लाहौर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर। महाराजा रणजीत सिंह की न्याय प्रणाली बड़ी साधारण थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे। अपराधी को प्रायः जुर्माना ही किया जाता था। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर ही था। आय कर उपज का 1/2 और 1/3 भाग लिया जाता था। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना का संगठन किया। इसमें घुड़सवार, पैदल और तोपखाना सम्मिलित थे। दीवान मोहकम चन्द प्रधान सेनापति था। सेनापति को यूरोपीय सैनिकों को भान्ति ट्रेनिंग दी जाती थी। वेंतुरा उसकी सेना में एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी सैनिक अधिकारी था।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 9.
अमृतसर की सन्धि कब हुई ? इसका महत्त्व भी बताओ।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के साथ 1809 ई० की सन्धि के बारे में लिखो।
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि 25 अप्रैल, 1809 ई० को अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच हुई। यह सन्धि अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस सन्धि से सिक्खों का एकमात्र शासक बनने के लिए महाराजा रणजीत सिंह का अपना सपना टूट गया। वह मालवा की रियासतों पर कभी अधिकार नहीं कर सकता था। अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति, सम्मान तथा पद को भी गहरा आघात पहुँचाया। इस सन्धि ने अंग्रेजी राज्य की सीमा को यमुना से बढ़ा कर सतलुज नदी तक पहुंचा दिया। महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमा के इतने समीप पहुंच जाने के कारण अंग्रेजी सरकार महाराजा की विदेश नीति तथा सैनिक गतिविधियों पर अब अधिक कड़ी नजर रख सकती थी। इस सन्धि से महाराजा को कुछ लाभ भी हुए। इसके फलस्वरूप पंजाब का शिशु राज्य नष्ट होने से बच गया और उसने उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

1. लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही महाराजा रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।

2. अमृतसर की विजय अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।

3. अटक विजय-1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतेह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतेह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतेह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने फतेह खां को अटक विजय में और फतेह खां ने महाराजा रणजीत सिंह को मुल्तान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया। दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतेह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतेहखां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।

4. मुल्तान विजय-मुल्तान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान पर छः आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां महाराजा रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुल्तान के किले पर घेरा डाल दिया। मुज़फ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुल्तान सिक्खों के अधिकार में आ गया।

5. कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतेह खां ने कश्मीर विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय नागरिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय शासन का वर्णन इस प्रकार है

1. महाराजा-महाराजा रणजीत सिंह केन्द्रीय शासन का मुखिया था। उसकी शक्तियां असीम थीं। फिर भी वह तानाशाह नहीं था। सरकार महाराजा रणजीत सिंह के नाम से नहीं बल्कि ‘खालसा’ के नाम से काम करती थी। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ और ‘गोबिन्द सहाय’ लिखा था। पांच प्यारे शक्ति में उससे ऊपर थे।

2. वजीर तथा केन्द्रीय विभाग-शासन कार्यों में महाराजा को सहायता तथा परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री तथा कई वजीर थे। उसका सबसे प्रसिद्ध प्रधानमन्त्री राजा ध्यान सिंह डोगरा था। वित्त तथा विदेशी मामलों को छोड़कर शेष सभी विभाग उसकी देख-रेख में चलते थे। विदेश मन्त्री-महाराजा का विदेश मन्त्री फकीर अज़ीजुद्दीन था। महाराजा का गुप्त सलाहकार भी वही था। गृह मन्त्री-गृह मन्त्री (ड्योढ़ीवाला) का कार्य शाही महल के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रबन्ध करना था। इस पद पर जमांदार खुशहाल सिंह काफ़ी समय तक रहा। वित्त मन्त्री-वित्त मन्त्री को ‘दीवान’ कहा जाता था। युद्ध मन्त्रीदीवान मोहकम चन्द, मिसर दीवान चन्द तथा हरिसिंह नलवा युद्ध में सेना का संचालन करते थे। केन्द्रीय शासन के प्रमुख विभाग थे-दफ्तर-ए-अबवाब-उल-माल, दफ्तर-ए-मुआजिब, दफ्तर-ए-तौजिहात, दफ्तर-ए-तोपखाना, दफ्तर-ए-रोजनामचा, दफ्तर-ए-अखराजात आदि।

3. न्याय प्रणाली-न्याय का सबसे बड़ा अधिकारी महाराजा था। राज्य के सभी बड़े मुकद्दमों का निर्णय वह स्वयं करता था। उचित न्याय करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। उसकी अपनी विशेष अदालत थी। महाराजा की अदालत के नीचे लाहौर नगर का उच्च न्यायालय था। इस अदालत को ‘अदालत-ए-आला’ कहते थे। इसके अतिरिक्त अमृतसर और पेशावर में दो विशेष अदालतें थीं। दैनिक न्याय का कार्य प्रान्त तथा जिले के अधिकारी करते थे।

4. भूमि-कर प्रणाली तथा आय के अन्य साधन-महाराजा रणजीत सिंह के समय राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। भूमि-कर एकत्रित करने के लिए पहले बटाई प्रणाली प्रचलित थी। इसके अनुसार भूमि-कर उपज का आधा लेकर सरकारी गोदामों में जमा कर दिया जाता था। बाद में कनकूत प्रणाली चलाई गई। इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसलों पर ही भूमि-कर नियत कर दिया जाता था। राज्य के कई भागों में बोली प्रणाली भी प्रचलित थी। इस प्रणाली के अनुसार अधिक-से-अधिक बोली देने वाले को भूमि-कर इकट्ठा करने का अधिकार मिल जाता था। उसे निश्चित राशि कोष में जमा करनी पड़ती थी।

भूमि-कर फसलों की किस्मों के अनुसार ही सरकार का भाग – से – तक निश्चित होता था। भूमि-कर के अतिरिक्त प्रजा से चुंगी-कर, बिक्री-कर तथा व्यावसायिक-कर भी वसल किया जाता था। बिक्री-कर, जर्माना, शुकराना, ज़ब्ती तथा ठेकों से प्राप्त करों से सरकार को अच्छी आय प्राप्त हो जाती थी।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना तीन भागों में बंटी हुई थी-पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना। .

(क) पैदल सेना-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पैदल सेना, सेना का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। पैदल सेना बटालियनों में बंटी हुई थी। प्रत्येक बटालियन में 800 सैनिक होते थे और इसका मुखिया एक कमाण्डर होता था। इसकी सहायता के लिए एक मेजर-जनरल हुआ करता था। प्रत्येक बटालियन 8 कम्पनियों में बंटी हुई थी और प्रत्येक कम्पनी के चार भाग होते थे। प्रत्येक भाग में 25 सैनिक होते थे। ‘कम्पनी’ हवलदार के अधीन होती थी। हवलदार की सहायता के लिए नायक होता था। पैदल सिपाहियों को ड्रम की धुन पर चलना पड़ता था। उनके कमाण्ड की भाषा फ्रांसीसी थी। नियमित परेड के अतिरिक्त दशहरे के दिन अमृतसर में एक आम परेड होती थी। इसका निरीक्षण महाराजा स्वयं करता था। इसका प्रशिक्षक जनरल वेन्तुरा था।

(ख) घुड़सवार-महाराजा रणजीत सिंह की घुड़सवार सेना तीन भागों में बंटी हुई थी। नियमित घुड़सवार सेना में चुने हुए सिपाही और चुने हुए घोड़े होते थे। इसको यूरोपियन ढंग से ट्रेनिंग दी जाती थी। इसकी कमान फ्रांसीसी जरनैल एलार्ड के हाथ में थी। घुड़सवार सेना का दूसरा अंग घुड़-चढ़े सेना थी। इसको किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था। तीसरे अंग में जागीरदारों की घुड़सवार सेना शामिल थी। ये सैनिक जागीरदारों के अधीन होते थे। आवश्यकता के समय वे महाराजा की ओर से युद्ध में भाग लेते थे। महाराजा के पास कुछ अनियमित रैजीमेंट भी थी जिनमें चुने हुए युवक थे जो सदा मरने-मारने के लिए तैयार रहते थे।

(ग) तोपखाना तथा शस्त्र-निर्माण-उसका तोपखाना चार भागों में बंटा हुआ था-

  • तोपखाना फिल्ली
  • तोपखाना शुतरी
  • तोपखाना अश्वी
  • तोपखाना गावी। महाराजा के पास कुल मिलाकर 76 तोपें थीं। तोपखाने का काम कोर्ट गार्डिनर जैसे यूरोपीय अधिकारियों को सौंपा गया था। महाराजा ने शस्त्र बनाने के लिए कई कारखाने खोले हुए थे। लाहौर, मुल्तान, जम्मू और श्रीनगर में शस्त्र बनाने का काम किया जाता था।

महाराजा रणजीत सिंह की सेना का साधारण विश्लेषण-
(i) फौज-ए-किलात-महाराजा रणजीत सिंह की सेना में 10,800 सैनिक ऐसे भी थे जो फौज-ए-किलात के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्हें मुल्तान, पेशावर, कांगड़ा तथा अटक के किलों में रखा जाता था। किलों में रहने वाले सैनिकों को 6 रु० मासिक वेतन तथा जमांदार को 12 रु० मासिक वेतन मिलता था।

(ii) फौज-ए-खास-पूरी तरह प्रशिक्षित तथा समीपवर्ती इलाकों में लड़ने वाली इस सेना का कमाण्डर जनरल वेन्तुरा था। इस ब्रिगेड में 3000 पैदल सैनिक, 1500 नियमित घुड़सवार, लगभग 1000 तोपची और 34 तोपें थीं।

(iii) फौज-ए-आइनराज्य के अधीन इस नियमित सेना में तीन अंग शामिल थे। 1830 में इस सेना की कुल संख्या लगभग 38,000 थी जिसमें 30,000 पैदल, 5,000 घुड़सवार और 3,000 तोपची थे।

(iv) फौज-ए-बेकवायद-इस सेना में अकाली जागीरंदारों के सैनिक तथा अन्य सभी प्रकार के सैनिक रखे जाते थे।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों ( 1809-1839 ई०) का वर्णन कीजिए।
अथवा
1809 से 1827 ई० तक अंग्रेज़-सिख संबंधों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
1828 के बाद अंग्रेज-सिख संबंधों में तनाव क्यों आया ? त्रिदलीय 1839 इन संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई० में अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच अमृतसर की सन्धि हुई। इस सन्धि ने भले ही सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच सशस्त्र टक्कर की सम्भावना को समाप्त कर दिया था, तो भी यह सन्धि दोनों शक्तियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सन्देह तथा भय की भावनाओं का अन्त न कर सकी। इस सन्धि के पश्चात् 1839 ई० तक अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों को निम्नलिखित चरणों में से गुज़रना पड़ा-

1. अविश्वास तथा सन्देह काल-1809 से 1811 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज सरकार दोनों ही एकदूसरे को अविश्वास तथा सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। प्रत्येक ने अपने विरोधी की सैनिक तथा कूटनीतिक चालों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर छोड़ रखे थे।

2. 1812-1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के सम्बन्ध-1812 से 1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच आपसी सहयोग तथा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बने रहे। 1815 ई० में गोरखा वकील महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने साफ़ इन्कार कर दिया। महाराज ने प्रथम अंग्रेज़-नेपाल युद्ध (1814-1815 ई०) में अंग्रेजों की सहायता करके अपनी मित्रता का प्रमाण दिया। इसी प्रकार 1821 ई० में जब आपा साहिब का प्रतिनिधि महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने उसे भी साफ इन्कार कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज सरकार ने भी सतलुज के उत्तर-पश्चिम में महाराजा रणजीत सिंह के हितों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया।

3. वन्दनी गांव का प्रश्न-1808 ई० के अपने सतलुज अभियान के समय वन्दनी प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह ने 12000 रुपये के बदले अपनी सास रानी सदा कौर को दे दिया था। परन्तु 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सदा कौर को कारावास में डालकर वन्दनी पर पुनः अधिकार कर लिया। रानी सदा कौर ने अंग्रेजों से सहायता की मांग की। लुधियाना के अंग्रेज़ प्रतिनिधि ने ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी भेजकर महाराजा की सेना को वन्दनी से निकाल दिया। महाराजा ने गवर्नर-जनरल से रोष प्रकट किया। अत: 1823 ई० में गवर्नर-जनरल ने वन्दनी पर फिर से महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।

4. पुनः मैत्री-महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया। भरतपुर के सरदार ने महाराजा को 1,50,000 रुपए प्रतिदिन देने का प्रलोभन भी दिया और प्रार्थना की कि वह 20,000 सैनिकों से उसकी सहायता करे। परन्तु महाराजा ने उसे सहायता देने से इन्कार कर दिया। 1826 ई० में महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ गया। उसकी प्रार्थना पर अंग्रेज़ सरकार ने डॉ० मूरे (Dr. Murray) को इलाज के लिए लाहौर भेजा। फलस्वरूप दोनों पक्षों में कुछ समय तक पुनः मैत्री बनी रही।

5. सम्बन्धों में पुनः बिगाड़-1828 से 1839 ई० तक लाहौर के शासक तथा ब्रिटिश सरकार में पारस्परिक सम्बन्ध दिनप्रतिदिन तनावपूर्ण होते चले गए। इस समय में निम्नलिखित घटनाओं ने दोनों में तनाव पैदा किया

(i) महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति-पिछले दस वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान, कश्मीर, डेराजात तथा पेशावर इत्यादि को विजय करके अपनी शक्ति विशेष रूप से बढ़ा ली थी। अंग्रेज़ सरकार महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति से ईर्ष्या करने लगी थी। अतः अंग्रेज सरकार ने एक ओर तो लाहौर राज्य को विभिन्न दिशाओं से ‘घेरा डालने की नीति’ को अपनाना आरम्भ कर दिया, परन्तु दूसरी ओर वे महाराजा के साथ अपनी मित्रता का दिखावा करते रहे।

(ii) सिन्ध का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के पारस्परिक सम्बन्धों में मतभेद तथा कटुता उत्पन्न करने वाली समस्याओं में सिन्ध की समस्या का विशेष स्थान है। यह प्रान्त लाहौर राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित होने के कारण काफ़ी सैनिक महत्त्व रखता था। महाराजा रणजीत सिंह के लिए आवश्यक था कि वह इसे अपने अधिकार में ले कर अपने राज्य की विदेशी आक्रमणों से रक्षा करे।

अंग्रेज़ सरकार भी सिन्ध तथा शिकारपुर के व्यापारिक महत्त्व को भली-भान्ति समझती थी। अतः वह यह नहीं चाहती थी कि यह प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह के हाथ लगे। 1831 ई० में अंग्रेज़ सरकार ने अपने एक नाविक बर्नज (Burmes) को व्यापारिक सन्धि के लिए अमीरों के पास भेजा। उन्होंने इसी मिशन के हाथ महाराजा रणजीत सिंह के लिए उपहार भी भेज दिया ताकि यह अंग्रेजों की आन्तरिक आकांक्षाओं को भांप न सके। भले ही इस मिशन का स्वभाव प्रत्यक्ष रूप से मैत्रीपूर्ण था तथापि इसने महाराजा रणजीत सिंह के मन में अंग्रेजों की सिन्ध नीति के विषय में सन्देह उत्पन्न कर दिया।

(iii) महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिंक की रोपड़ में भेंट-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह के मन में उत्पन्न हुए सन्देह को भली-भान्ति जानता था। इधर रूस द्वारा भारतीय आक्रमण के समाचार भी जोरों से फैल रहे थे। अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल यह नहीं चाहता था कि इस संकट के समय उनके महाराजा के साथ सम्बन्ध बिगड़ जाएं। अतः उसने अक्तूबर, 1831 ई० में रोपड़ के स्थान पर महाराजा से भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने पोण्टिञ्जर को सिन्ध के अमीरों के साथ एक व्यापारिक सन्धि करने के लिए सिन्ध भेज दिया।

पोण्टिञ्जर के प्रयत्नों से अंग्रेजों तथा सिन्ध के अमीरों के बीच में एक महत्त्वपूर्ण सन्धि हो गई। इसका पता चलने पर महाराजा रणजीत सिंह को बहुत दुःख हुआ।

(iv) शिकारपुर का प्रश्न-शिकारपुर के प्रश्न पर भी महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में आपसी तनाव काफ़ी बढ़ गया। महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लाने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे माजरी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। महाराजा रणजीत सिंह ने माजरी आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया।

(v) फिरोज़पुर का प्रश्न-अंग्रेजों के आपसी सम्बन्धों के इतिहास में फिरोज़पुर के प्रश्न का विशेष महत्त्व है। भले ही महाराजा रणजीत सिंह का फिरोजपुर पर अधिकार उचित तथा न्याय संगत था, तो भी अंग्रेजों ने उसे अधिकार न करने दिया। अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और तीन वर्ष बाद उसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना लिया। परन्तु महाराजा को इस बार भी गुस्सा पी कर रह जाना पड़ा।

(vi) त्रिदलीय सन्धि-1837 ई० में रूस एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। अंग्रेजों ने कैप्टन बर्नज़ (Burnes) को काबुल भेजा ताकि वह वहां के अमीर दोस्त मुहम्मद के साथ मित्रता व सन्धि की बातचीत कर सके। दोस्त मुहम्मद ने अंग्रेजों के साथ इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ बदले में महाराजा रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर उसे सौंप दें। परन्तु अंग्रेज़ों के लिए महाराजा रणजीत सिंह की मित्रता आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने दोस्त मुहम्मद की इस शर्त को न माना। उधर दोस्त मुहम्मद रूस के साथ गठजोड़ करने लगा। अंग्रेजों के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में महाराजा रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यह समझौता तीन दलों में होने के कारण त्रिदलीय सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है।

महाराजा रणजीत सिंह ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर तो कर दिए परन्तु उसने सन्धि की एक महत्त्वपूर्ण धारा पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। वह यह थी कि, “अंग्रेज़ों की सेनाएं पंजाब से होकर काबुल पर आक्रमण कर सकती हैं।” परन्तु उसे भय था कि अंग्रेज़ अवश्य ही इस धारा का उल्लंघन करेंगे। अत: उसने अपने शासन काल के अन्तिम वर्षों में अंग्रेजों के विरुद्ध कई कदम उठाने का प्रयत्न किया। अत: 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि 1809 ई० से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से अपनी मित्रता बनाए रखने की नीति को अपनाया। उसने यह निश्चय कर रखा था कि वह अंग्रेजों से युद्ध नहीं करेगा भले ही इसके लिए उसे बड़े-से-बड़ा बलिदान भी क्यों न करना पड़े।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 4 सामाजिक समूह

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न । (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किसने समूह की दो किस्मों, अन्तःसमूह और बाह्य समूह का वर्णन किया है ?
उत्तर-
डब्ल्यू०जी० समनर (W.G. Sumner) ने अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह का जिक्र किया था।

प्रश्न 2.
अन्तःसमूह के दो उदाहरण के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार तथा खेलसमूह अन्तर्समूहों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 3.
बाह्य समूह के दो उदाहरणे के नाम बताओ।
उत्तर-
पिता का दफ्तर तथा माता का स्कूल बाह्य समूह की उदाहरणें हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
‘संदर्भ समूह’ की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-
संदर्भ समूह का संकल्प प्रसिद्ध समाजशास्त्री राबर्ट के० मर्टन (Robert K. Merton) ने दिया था।

प्रश्न 5.
हम भावना क्या है ?
उत्तर-
हम भावना व्यक्ति में वह भावना है जिससे वह अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानता है कि वह उस समूह का सदस्य है।

प्रश्न 6.
सी० एच० कूले के द्वारा दिए गए प्राथमिक समूहों के उदाहरणों के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूहों को परिभाषित करो।
उत्तर-
आगबर्न तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनके साथ हमारी शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है, जिनमें हम अपनेपन को महसूस करते हैं तथा जहां हम रहना पसंद करते हैं, प्राथमिक समूह होते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह इत्यादि।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से किसी उद्देश्य के कारण लेते हैं तथा उद्देश्य की पूर्ति होने पर सदस्यता छोड़ देते हैं, द्वितीय समूह होते हैं। यह अस्थायी होते हैं। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह के बीच दो अंतर बताओ।
उत्तर-

  1. अन्तःसमूह में अपनेपन की भावना होती है परन्तु बाह्य समूह में इस भावना की कमी पाई जाती
  2. व्यक्ति अन्त:समूह में रहना पसंद करता है जबकि बाह्य समूह में रहना उसे पसंद नहीं होता।

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • द्वितीय समूहों की सदस्यता उद्देश्यों पर आधारित होती है।
  • द्वितीय समूहों की सदस्यता अस्थायी होती है तथा व्यक्ति उद्देश्य की पूर्ति होने के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ देता है।
  • द्वितीय समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों के बीच अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूहों की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • इनके सदस्यों के बीच शारीरिक नज़दीकी होती है तथा आकार सीमित होता है।
  • यह समूह अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  • इनके सदस्यों के बीच स्वार्थ वाले संबंध नहीं होते।
  • इनके सदस्यों के बीच संबंधों में निरंतरता होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
1. सामाजिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध पाए जाते हैं। सामाजिक समूह व्यक्तियों की एकत्रता को नहीं कहा जाता बल्कि समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण यह सामाजिक समूह कहलाता है। यह आपसी सम्बन्ध अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप पाया जाता है।

2. समूह में एकता की भावना भी पाई जाती है। सामाजिक समूह के सदस्यों में एकता की भावना के कारण ही व्यक्ति आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इस कारण हमदर्दी व प्यार भी इसके तत्त्व हैं।

3. समूह के सदस्यों में हम भावना पाई जाती है व उनमें अपनत्व की भावना का विकास होता है और वह एक-दूसरे की मदद करते हैं।

4. समूह का अपने सदस्यों के व्यवहारों पर नियन्त्रण होता है व यह नियन्त्रण, परम्पराओं, प्रथाओं, नियमों आदि द्वारा पाया जाता है।

5. समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण अन्तक्रिया होती है, जिस कारण वे आपस में बहुत नज़दीकी से जुड़े होते हैं।

6. समूह के सदस्यों में साझेपन की भावना होती है, जिससे उनके विचार साझे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह का महत्त्व लिखें।
उत्तर-

  • प्राथमिक समूह में व्यक्ति व समाज दोनों का विकास होता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति के अनुभवों में से पहला समूह यह ही पाया जाता है।
  • समाजीकरण की प्रक्रिया भी इस समूह से सम्बन्धित है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है क्योंकि समूह व्यक्ति में सामाजिक गुण भरता है।
  • व्यक्ति इसके अधीन अपने समाज के परिमापों, मूल्यों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों इत्यादि का भी ज्ञान प्राप्त करता है।
  • व्यक्ति सबसे पहले इसका सदस्य बनता है।
  • सामाजिक नियन्त्रण का आधार भी प्राथमिक समूह में होता है जिसमें समूह के हित को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों के बीच क्या अंतर हैं ?
उत्तर-

  1. प्राथमिक समूह आकार में छोटे होते हैं व द्वितीय समूह आकार में बड़े होते हैं।
  2. प्राथमिक समूह में सम्बन्ध प्रत्यक्ष, निजी व अनौपचारिक होते हैं पर द्वितीय समूहों में सम्बन्ध अप्रत्यक्ष व औपचारिक होते हैं।
  3. प्राथमिक समूहों के सदस्यों में सामूहिक सहयोग की भावना पाई जाती है पर द्वितीय समूहों में सदस्य एकदूसरे से सहयोग केवल अपने विशेष हितों को ध्यान में रख कर करते हैं।
  4. प्राथमिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध की अवधि बहुत लम्बी होती है पर द्वितीय समूहों में अवधि की कोई सीमा निश्चित नहीं होती यह कम भी हो सकती है व अधिक भी।
  5. प्राथमिक समूह अधिकतर गांवों में पाए जाते हैं पर द्वितीय समूह प्रायः शहरों में पाए जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तर्समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाए जाते हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है। अन्तर्समूहों को ‘हम समूह’ (We groups) भी कहा जाता है। समूह को व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर व पेज (MacIver & Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में अन्तर्समूहों का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनसे व्यक्ति अपने आप मिल लेता है। उदाहरण के तौर पर जाति, धर्म, परिवार, कबीला, लिंग इत्यादि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे में व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान होता है।

अन्तर्समूहों की प्रकृति शांत होती है व आपसी सहयोग, आपसी मिलनसार, सद्भावना आदि जैसे गुण पाए जाते हैं। अन्तर्समूहों में व्यक्ति का बाहर वालों के प्रति दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई करने के समय लोग फिर समूह से जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग जाते हैं। अन्तर्समूहों में ‘हम की भावना’ पाई जाती है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह से तुम क्या समझते हैं ? विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का आप किस प्रकार वर्णन करोगे ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 3.
समाज के सदस्य होने के नाते तुम अन्य समूहों के साथ अन्तर्किया करते हो। आप किस प्रकार इसे समाजशास्त्रीय परिपेक्षय के रूप में देखोगे ?
उत्तर-
हम लोग समाज में रहते हैं तथा समाज में रहते हुए हम कई प्रकार के समूहों से अन्तक्रिया करते ही रहते हैं। अगर हम समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से देखें तो हम इन्हें कई भागों में विभाजित कर सकते हैं। हम परिवार में रहते हैं, पड़ोस में अन्तक्रिया करते हैं, अपने दोस्तों के समूह के साथ बैठते हैं। यह समूह प्राथमिक होते हैं क्योंकि हम इन समूहों के सदस्यों के साथ प्रयत्क्ष रूप से अन्तर्किया करते हैं क्योंकि हम इनके साथ बैठना पसंद करते हैं। हम इन समूहों के स्थायी सदस्य होते हैं तथा सदस्यों के बीच अनौपचारिक संबंध होते हैं। इन समूहों का हमारे जीवन में काफी अधिक महत्त्व होता है क्योंकि इन समूहों के बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। व्यक्ति जहाँ मर्जी चला जाए, परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह जैसे प्राथमिक समूह उसे प्रत्येक स्थान पर मिल जाएंगे।

प्राथमिक समूहों के साथ-साथ व्यक्ति कुछ ऐसे समूहों का भी सदस्य होता है जिनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी इच्छा से ही इनका सदस्य बनता है। ऐसे समूहों को द्वितीय समूह कहा जाता है। इस प्रकार के समूहों का एक औपचारिक संगठन होता है जिसके सदस्यों का चुनाव समय समय पर होता रहता है। व्यक्ति इन समूहों का सदस्य किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनता है तथा वह उद्देश्य प्राप्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ सकता है। राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन इत्यादि जैसे समूह इसकी उदाहरण हैं।

अगर कोई साधारण व्यक्ति अलग-अलग समूहों के साथ अन्तक्रिया करता है तो उसके लिए इन समूहों का कोई अलग-अलग अर्थ नहीं होगा परन्तु एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से सभी प्रकार के समूहों को अलग अलग प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। यहाँ तक कि अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने भी इनके अलग-अलग प्रकार दिए हैं क्योंकि इनके साथ हमारा अन्तक्रिया करने का तरीका भी अलग-अलग होता है।

प्रश्न 4.
‘मानवीय जीवन सामाजिक जीवन होता है। उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा वह समूह में ही पैदा होता तथा मरता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है उस समय वह सबसे पहले परिवार नामक प्राथमिक समूह के सम्पर्क में आता है। मनुष्यों के बच्चे सभी जीवों के बच्चों में से सबसे अधिक समय के लिए अपने परिवार पर निर्भर करते हैं। परिवार अपने बच्चों को पालता-पोसता है तथा धीरे-धीरे उन्हें बड़ा करता है। जिस कारण उसे अपने परिवार के साथ सबसे अधिक प्यार तथा लगाव होता है। परिवार ही बच्चे का समाजीकरण करता है, उन्हें समाज में रहने के तरीके सिखाता है, उनकी शिक्षा का प्रबन्ध करता है, ताकि वह आगे चलकर समाज का अच्छा नागरिक बन सके। इस प्रकार परिवार नामक समूह व्यक्ति को सामूहिक जीवन का प्रथम पाठ पढ़ाता है।

परिवार के बाद बच्चा जिस समूह के सम्पर्क में आता है वह है पड़ोस तथा खेल समूह । छोटे से बच्चे को पड़ोस में लेकर जाया जाता है जहाँ परिवार के अतिरिक्त अन्य लोग भी बच्चे को प्यार करते हैं। बच्चे के ग़लत कार्य करने पर उसे डाँटा जाता है। इसके साथ-साथ बच्चा मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ मिलकर खेल समूह का निर्माण करता है तथा नए-नए नियम सीखता है। खेल समूह में रहकर ही बच्चे में नेता बनने के गुण पनप जाते हैं जोकि सामाजिक जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं । यह दोनों समूह भी प्राथमिक समूह होते हैं।

जब बच्चा बड़ा हो जाता है वो यह कई प्रकार के समूहों का सदस्य बनता है जिन्हें द्वितीय समूह कहा जाता है। वह किसी दफ्तर में नौकरी करता है, किसी क्लब, संस्था या सभा का सदस्य बनता है ताकि कुछ उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। वह किसी राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन अथवा अन्य सभा की सदस्यता भी ग्रहण करता है जिससे पता चलता है कि वह जीवन में प्रत्येक समय किसी न किसी समूह का सदस्य बना रहता है। वह अपनी मृत्यु तक बहुत से समूहों का सदस्य बनता रहता है तथा उनकी सदस्यता छोड़ता रहता है।

इस प्रकार ऊपर लिखित व्याख्याओं को देखकर हम कह सकते हैं कि मानवीय जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जब वह किसी न किसी समूह का सदस्य नहीं होता। इस प्रकार मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा समूहों के बिना उसके जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
इनमें से कौन सी प्राथमिक समूह की विशेषता नहीं है ?
(A) स्थिरता
(B) औपचारिक सम्बन्ध
(C) व्यक्तिगत सम्बन्ध
(D) छोटा आकार।
उत्तर-
(B) औपचारिक सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूहों का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
(A) यह समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
(B) व्यक्ति को प्राथमिक समूह में रहकर सुरक्षा प्राप्त होती है
(C) प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख आधार है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह में क्या नहीं पाया जाता है ?
(A) प्राथमिक नियन्त्रण
(B) प्रतियोगिता
(C) औपचारिक नियन्त्रण
(D) व्यक्तिवादिता।
उत्तर-
(A) प्राथमिक नियन्त्रण।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
(A) बड़े
(B) अनिश्चित
(C) छोटे
(D) असीमित।
उत्तर-
(C) छोटे।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी सामाजिक समूह की विशेषता है ?
(A) समूह की स्वयं की संरचना
(B) समूह व्यक्तियों का संगठन
(C) समाज का कार्यात्मक विभाजन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
परिवार किस प्रकार का समूह है ?
(A) बर्हिसमूह
(B) द्वितीय समूह
(C) प्राथमिक समूह
(D) चेतन समूह।
उत्तर-
(C) प्राथमिक समूह।

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प्रश्न 7.
कौन-से समूह आकार में बड़े होते हैं ?
(A) प्राथमिक समूह
(B) द्वितीय समूह
(C) चेतन समूह
(D) अचेतन समूह।
उत्तर-
(B) द्वितीय समूह।

प्रश्न 8.
इनमें से कौन-सा प्राथमिक समूह है ?
(A) मित्रों का समूह
(B) खेल समूह
(C) परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 9.
इनमें से कौन-सा द्वितीयक समूह है ?
(A) ट्रेड यूनियन
(B) राजनीतिक दल
(C) वैज्ञानिकों का समूह
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 10.
प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच क्या आवश्यक होता है ?
(A) शारीरिक नज़दीकी
(B) अनौपचारिक सम्बन्ध
(C) सामाजिक प्रबन्ध
(D) लड़ाई।
उत्तर-
(A) शारीरिक नज़दीकी।

प्रश्न 11.
कौन-सा समूह समाजीकरण में अधिक लाभदायक है ?
(A) सन्दर्भ समूह
(B) क्षैतिज समूह
(C) द्वितीय समूह
(D) लम्ब समूह।
उत्तर-
(C) द्वितीय समूह।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ………… के अन्तर्समूह तथा बहिर्समूह का वर्गीकरण किया है।
2. ………. अन्तर्समूह की सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
3. संदर्भ समूह का संकल्प ………. ने दिया था।
4. समूह के सदस्यों के बीच ………. भावना होती है।
5. जो समूह व्यक्ति के काफी नज़दीक होते हैं, उन्हें ……… समूह कहते हैं।
6. ……….. समूह की सदस्यता आवश्यकता के लिए की जाती है।
7. ………. समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
उत्तर-

  1. समनर,
  2. परिवार,
  3. राबर्ट मर्टन,
  4. हम,
  5. प्राथमिक,
  6. द्वितीय,
  7. द्वितीय।

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III. सही/गलत (True/False) :

1. व्यक्तियों के इकट्ठ को, जिनसे सामाजिक संबंध होते हैं, समूह कहते हैं।
2. समूह के लिए संबंधों की आवश्यकता नहीं होती।
3. प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का वर्गीकरण कूले ने दिया था।
4. प्राथमिक समूहों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती।
5. द्वितीय समूहों की सदस्यता हितों की पूर्ति के लिए होती है।
6. द्वितीय समूहों में औपचारिक संबंध पाए जाते हैं।
7. प्राथमिक समूहों में गहरे संबंध पाए जाते हैं।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि 10 लोग इकटे खड़े हों तो उन्हें हम क्या कहेंगे ?
उत्तर-
यदि 10 लोग इकट्ठे खड़े हों तो उन्हें हम केवल भीड़ ही कहेंगे।

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प्रश्न 2.
समूह के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
समूह के लिए व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध आवश्यक है।

प्रश्न 3.
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग…………. ने किया था।
उत्तर-
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग हाइमैन ने किया था।

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति ……………… समूह से जुड़ा होता है।
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति सन्दर्भ समूह से जुड़ा होता है।

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प्रश्न 5.
प्राथमिक समूह की आन्तरिक विशेषता क्या है ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में सम्बन्ध निजी अथवा व्यक्तिगत होते हैं।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूह की विशेषता क्या है ?
उत्तर-
द्वितीय समूह में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं, यह आकार में बड़े होते हैं तथा उद्देश्य का विशेषीकरण होता है। .

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
इसके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है, आकार छोटा होता है तथा इनमें स्थिरता होती है।

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प्रश्न 8.
द्वितीयक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
यह आकार में बड़े होते हैं, इनमें औपचारिक संगठन होता है तथा सदस्यों में औपचारिक सम्बन्ध होतेहैं।

प्रश्न 9.
समूह क्या होता है ?
उत्तर-
व्यक्तियों के एकत्र को, जिनमें सामाजिक सम्बन्ध होते हैं, समूह कहते हैं।

प्रश्न 10.
समूह का सबसे बड़ा महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
समूह व्यक्तियों तथा समाज की ज़रूरतें पूर्ण करता है।

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प्रश्न 11.
चार्ल्स कूले ने कितने प्रकार के समूह बताए हैं ?
उत्तर-
चार्ल्स कूले ने दो प्रकार के सामाजिक समूहों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा द्वितीयक समूह।

प्रश्न 12.
प्राथमिक समूह में किस प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में नज़दीक तथा व्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
प्राथमिक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस, बच्चों का खेल समूह प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

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प्रश्न 14.
कूले ने प्राथमिक समूह की कौन-सी उदाहरणे दी हैं ? ।
उत्तर-
कूले के अनुसार परिवार, खेल समूह तथा पड़ोस प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 15.
द्वितीयक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जिन की सदस्यता हम अपने हितों की पूर्ति के लिए ग्रहण करते हैं, वह द्वितीयक समूह होते

प्रश्न 16.
किसने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था ?
उत्तर-
समनर ने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था।

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प्रश्न 17.
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार प्यार भरा तथा सहयोग वाला होता है।

प्रश्न 18.
बाह्य समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
बाह्य समूह में सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार नफ़रत भरा अथवा हितों से भरपूर होता है।

प्रश्न 19.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह आकार में छोटे तथा सीमित होते हैं।

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प्रश्न 20.
द्वितीयक समूह आकार में ……………. होते हैं।
उत्तर-
द्वितीयक समूह आकार में काफ़ी बड़े होते हैं।

प्रश्न 21.
द्वितीयक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
दफ़्तर, राजनीतिक दल इत्यादि द्वितीयक समूह की उदाहरणें हैं।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों का एकत्र है जो एक जैसे हों तथा जिसके सदस्यों के बीच आपसी सामाजिक क्रिया, प्रतिक्रिया संबंध, साझे हित, चेतना, उत्तेजना, स्वार्थ भावनाएं होती हैं तो वह सभी एक-दूसरे से बंधे होते हैं।

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प्रश्न 2.
हम भावना का अर्थ।
उत्तर-
समूह के सदस्यों के बीच अहं की भावना होती है जिस कारण वे सभी एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इस कारण उनमें अपनेपन की भावना का विकास होता है तथा एक-दूसरे के समान हितों की रक्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
समूह की परिभाषा।
उत्तर-
आगर्बन तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 4.
समूह में व्यवहारों की समानता।
उत्तर–
सामाजिक समूहों के बीच इसके सदस्यों में व्यवहारों में समानता दिखाई देती है क्योंकि समूह में सदस्यों के आदर्श, कीमतें, आदतें समान होते हैं। इस कारण इसमें विशेष व्यवहारों का मिलाप पाया जाता है।

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प्रश्न 5.
कूले का प्राथमिक समूहों का वर्गीकरण।
उत्तर-
चार्ल्स हर्टन कूले के अनुसार प्राथमिक समूह तीन प्रकार के होते हैं-

  1. परिवार समूह (Family)
  2. खेल समूह (Play Group)
  3. पड़ोस (Neighbourhood)।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो हमारे सबसे नज़दीक होते हैं, जिनके साथ हमारा रोज़ का उठना, बैठना होता है तथा जिसके सदस्यों के साथ हमारी शारीरिक नज़दीकी होती है, वह प्राथमिक समूह होते हैं। यह आकार में छोटे होते हैं।

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
इन समूहों का आकार छोटा होता है जिस कारण लोग एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। इस कारण इनमें सम्पर्क पैदा होता है तथा उनमें संबंध आमने-सामने होते हैं। इस कारण सामाजिक संबंधों पर भी प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 8.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो आकार में बड़े होते हैं, जिनके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती, जो एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते तथा जिनमें औपचारिक संबंध पाए जाते हैं, वह द्वितीय समूह होते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीय समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक तथा अव्यक्तिगत संबंध होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों की तरह एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता तथा इन समूहों में अपनापन नहीं होता।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
सामाजिक समूह का अर्थ है व्यक्ति का दूसरे व्यक्तियों से सम्पर्क व सम्बन्धित होना। किसी भी स्थान पर यदि व्यक्ति एकत्र हो जाएं तो वह समूह नहीं होगा क्योंकि समूह एक चेतन अवस्था होती है। इसमें केवल शारीरिक नज़दीकी की नहीं बल्कि आपसी भावना व सम्बन्धों का होना ज़रूरी होता है व इसके सदस्यों में सांझापन, परस्पर उत्तेजना, हितों का होना आवश्यक होता है।

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प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह के बारे में दी गई कूले की परिभाषा।
अथवा
प्राथमिक समूह।
उत्तर-
कूले के अनुसार, “प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ वह समूह है जिनमें ख़ास कर आमने-सामने का गहरा सम्बन्ध व सहयोग होता है। यह प्राथमिक अनेक अर्थों में है परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में एक व्यक्ति के स्वभाव व आदर्शों का निर्माण करने में मौलिक है। इन गहरे व सहयोग सम्बन्धों के फलस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई अन्तरों के लिए व्यक्ति का स्वयं भी समूह का साझा जीवन उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे आसान तरीका इसको ‘हम’ कहने का है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है और ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनमें शारीरिक नज़दीकी पाई जाती है क्योंकि वह व्यक्ति जो एक-दूसरे के नज़दीक होते हैं उनमें विचारों का आदान-प्रदान पाया जाता है। वह एक-दूसरे की मदद भी करते हैं।
  • इन समूहों का आकार छोटा अर्थात सीमित होता है इसी कारण ही व्यक्ति एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। आकार छोटा होने से उनमें सम्पर्क पैदा होता है और उनमें सम्बन्ध गहरे व करीबी पाए जाते हैं जिससे सामाजिक सम्बन्धों पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • प्राथमिक समूहों में स्थिरता होती है। नज़दीकी सम्बन्धों के कारण इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है।
  • प्राथमिक समूहों में स्वार्थ सीमित होते हैं। इनमें उस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है जिससे सम्पूर्ण समूह का कल्याण हो।
  • प्राथमिक समूहों में अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है क्योंकि इनमें सदस्यों की गणना कम होती है व प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है।

प्रश्न 4.
द्वितीय समूह।
उत्तर-
आधुनिक समाज में व्यक्ति की ज़रूरतें इतनी बढ़ गई हैं जो कि अकेले प्राथमिक ग्रुप का सदस्य बन कर पूरी नहीं हो सकतीं जिस कारण व्यक्ति को दूसरे समूहों का सदस्य भी बनना पड़ता है। इन समूहों में उद्देश्य प्राप्ति ही व्यक्ति का मन्तव्य होता है। इनमें रस्मी सम्बन्ध पाए जाते हैं व इनका आकार भी प्राथमिक की तुलना में बड़ा होता है। इन समूहों में उद्देश्य निश्चित होते हैं।

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प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनका घेरा विशाल होता है क्योंकि सदस्यों की संख्या काफ़ी होती है।
  • इन समूहों का निर्माण विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है और इन उद्देश्यों की पूर्ति के कारण ही व्यक्ति इनका मैंबर बनता है।
  • द्वितीय समूहों में व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध पाए जाते हैं।
  • इन समूहों में औपचारिक संगठन होता है व इन समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं व प्रत्येक सदस्य को इन लिखित नियमों की पालना करनी पड़ती है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों में औपचारिक व अवैयक्तिक सम्बन्ध होता है। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता व इन समूहों से हमें अपनापन प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों का महत्त्व।
उत्तर-

  • द्वितीय समूह व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं क्योंकि आधुनिक समाज में अकेला व्यक्ति अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता, इसलिए उसको अन्य समूहों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • द्वितीय समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी करते हैं क्योंकि द्वितीय समूह व्यक्ति को घर की चार दीवारी से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं क्योंकि इन समूहों की सहायता से तकनीकी, औद्योगिक क्रान्ति
    आती है।
  • इनकी मदद से व्यक्ति का दृष्टिकोण बढ़ता है क्योंकि वह अपने प्राइमरी समूह से बाहर निकल कर बाहर देखता है जिस से उसका सम्बन्ध व दृष्टिकोण बढ़ता है।
  • द्वितीय समूह संस्कृति विकास में भी मदद करते हैं।

प्रश्न 7.
बहिर्समूह।
अथवा
बाह्य समूह।
उत्तर-
‘बहिर्समूह’ के लिए ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। ये वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता व पराया समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज में प्रत्येक समूह से तो जुड़ा नहीं होता, जिस समूह से जुड़ा होता है वह उसका अन्तः समूह कहलाता है व जिस समूह से नहीं जुड़ा होता वह उसके लिए बहिर्समूह कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बहिर्समूह व्यक्ति के लिए बेगाने होते हैं व वह उनके साथ सीधे तौर से नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन बहुत ढीला व असंगठित होता है। व्यक्ति के लिए अन्तर्समूह के विचारों, मूल्यों के सामने बहिर्समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक समूह है व प्रत्येक जगह पर पाए जाते हैं।

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प्रश्न 8.
सदस्यता समूह।।
उत्तर-
यदि हमें सन्दर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सबसे पहले सदस्यता समूह का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि सन्दर्भ समूह सदस्यता समूह के सन्दर्भ में रख कर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है। जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में हिस्सा लेता है उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक सदस्य होता है व वास्तविक सदस्य होने के नाते उस समूह का उसके साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है। वह उस समूह के विचारों, प्रमापों, मूल्यों आदि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को उस समूह का अभिन्न अंग मानता है। इस प्रकार उसका प्रत्येक कार्य क्रिया, उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। उस समूह के आदर्श, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं व दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतें सामने रखता है। इस प्रकार यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

प्रश्न 9.
सन्दर्भ समूह ।
उत्तर-
व्यक्ति जिस समूह का सदस्य होता है, वह उसका सदस्यता समूह माना जाता है। पर कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुसार नहीं होता बल्कि वह किसी ओर समूह के आदर्शों व कीमतों के अनुसार होता है। पर प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इसी कारण सन्दर्भ समूह का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार व्यवहार प्रतिमान व उसकी स्थिति से सम्बन्धित विवेचन के लिए यह जानना आवश्यक नहीं है। क्योंकि किस समूह का सदस्य व उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर से सदस्य बन जाता है।

व्यक्ति उसका वास्तविक सदस्य न होकर भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत सारा हिस्सा उस समूह के अनुसार भी होता है। समाजशास्त्री उस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। आम शब्दों में, व्यक्ति किसी भी समूह का सदस्य हो सकता है किन्तु मनोवैज्ञानिक तौर से वह अपने आप को किसी भी समूह से सम्बन्धित मान सकता है व अपनी आदतों, मनोवृत्तियों को उस समूह के अनुसार नियमित करता है। इस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्य वर्गों समूह का सदस्य अपने आप को किसी उच्च वर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपना व्यवहार, आदतें, आदर्श, कीमतें उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित करता है। अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके वह उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित व निर्धारित करता है, यही समूह उसका सन्दर्भ समूह होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

समूह की विशेषताएं (Characteristics of a Group)-
1. एकता की भावना (Feelings of Unity)—समूह के सदस्यों के बीच एकता की भावना के पाए जाने के साथ ही समूह कायम रह सकता है। समूह के सदस्य इसी भावना के पाए जाने के कारण एक-दूसरे को समझते हैं। उनमें सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। यदि इनमें एकता की भावना न हो तो वह समूह नहीं बल्कि कुछ लोगों का एकत्र कहलाए जाएंगे।

2. हम की भावना (We feelings) समूह के सभी व्यक्ति एक-दूसरे की आवश्यकता पड़ने पर मदद करते हैं। इससे अपनत्व की भावना का विकास होता है। वह एक-दूसरे की सहायता करके अपने हितों की रक्षा भी करते हैं। इससे उनमें एकता की भावना का विकास होता है।

3. सामाजिक सम्बन्ध (Social Relations)—समूह की सबसे आवश्यक शर्त यह है कि इसके सदस्यों के बीच सामाजिक सम्बन्ध होते हैं। यह सम्बन्ध स्थिर होते हैं तथा सदस्यों की आपसी अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

4. सदस्यता (Membership) समूह का निर्माण केवल एक व्यक्ति के साथ नहीं होता बल्कि समूह का निर्माण केवल दो या दो से अधिक व्यक्तियों के साथ होता है। कई समूहों में सदस्यता सीमित होती है जैसे परिवारों में पति-पत्नी व उनके बच्चों को शामिल किया जाता है। इसमें किसी अन्य व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाता। इसी कारण समूह का आकार भी सदस्यों की गणना के आधार पर होता है।

5. स्थिति व भूमिका का विभाजन (Division of Status and Role)—समूह नामक संगठन मे भूमिकाओं व स्थितियों का विभाजन किया जाता है जिससे प्रत्येक सदस्य की समूह में अपनी-अपनी स्थिति व भूमिका होती है। समूह के कार्यों के लिए लिखित व अलिखित नियम भी होते हैं व समूह उन नियमों के अनुसार ही कार्य करता है। चाहे सदस्यों के अपने-अपने व्यक्तिगत हित व लड़ाई-झगड़े इत्यादि होते हैं परन्तु उनमें सहयोग भी होता है जोकि समूह की विशेषता होती है।

6. सामूहिक नियन्त्रण (Control)-समूह के लिए अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियन्त्रित व नियमित करना ज़रूरी होता है। प्रत्येक समूह की अपनी परम्पराएं, प्रथाएं, नियम इत्यादि होते हैं जिनकी प्रत्येक व्यक्ति को पालना करनी पड़ती है। यदि कोई उनकी उल्लंघना करता है तो उसको समूह की ओर से दण्ड दिया जाता है।

7. निकटता (Closeness)-समूह के सदस्यों के बीच उनके सम्बन्ध आपस में इतने जुड़े होते हैं कि उनमें अन्तक्रिया होती है। इसका अर्थ है कि समूह के सदस्य आपस में बहुत निकटता से जुड़े होते हैं। इस निकटता के कारण उनमें आपसी अन्तक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप उनमें सम्बन्ध पैदा होते हैं। समूह के सदस्य इन सम्बन्धों के कारण एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
समूहों के वर्गीकरण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समूह की विभिन्न किस्मों के बारे में लिखो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है। कई समाजशास्त्रियों ने धार्मिक, आर्थिक, मनोरंजन इत्यादि आधार पर भी इस का वर्गीकरण किया है।

(A) चार्ल्स हर्टन कूले (Charles Hurton Cooley) ने सामाजिक समूहों का अपनी पुस्तक, “सोशल आर्गेनाइजेशन” (Social organization) में वर्गीकरण दो भागों के बीच किया है-

  1. प्राथमिक समूह (Primary Group)
  2. द्वितीय समूह (Secondry group)

प्राथमिक समूह में कूले ने व्यक्ति के गहरे व नज़दीकी सम्बन्धों को बताया है व द्वितीय समूह में कूले ने आधार रहित व बनावटी सम्बन्धों का अध्ययन किया है।

(B) सेपिर (Sapir) ने समूहों का धर्गीकरण शारीरिक निकटता व साझे उद्देश्यों के आधार पर किया है-

  1. परिवार (Family)
  2. नसली समूह (Racial group)
  3. कृषि समूह (Agricultural group)
  4. संघर्ष समूह (Conflicting group)

(C) समनर (Summer) ने अपनी पुस्तक ‘फोक वेज़’ (Folk ways) में समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया है-

  1. अन्तः समूह (In group)
  2. बाह्य समूह (Out group)

अन्तः समूह में हम की भावना, सामूहिक भलाई पाई जाती है। इसका आकार भी छोटा होता है। व्यक्ति इन समूहों का आप ही सदस्य होता है व बाह्य समूह में व्यक्तिवादी भावना पाई जाती है। व्यक्ति इस समूह का सदस्य भी नहीं होता। इसका आकार भी बहुत बड़ा होता है।

(D) सोरोकिन (Sorokin) ने समूहों का वर्गीकरण दो भागों में किया है-

  1. विशाल समूह (Horizontal group)
  2. छोटे समूह (Vertical group)

विशाल समूह में बड़े आकार के समूहों को शामिल किया जैसे, राष्ट्र, राजनीतिक दल, सांस्कृतिक संगठन, धार्मिक संगठन इत्यादि।
छोटे समूह में व्यक्ति विशाल समूह द्वारा प्राप्त की स्थिति से सम्बन्धित होता है। इसलिए यह एक विशाल समूह का ही एक हिस्सा होता है।

(E) मैकाइवर व पेज़ (Maclver and Page) ने समूह का वर्गीकरण निम्नानुसार किया-

  1. आकार के आधार पर (on the basis of size)
  2. सामाजिक सम्बन्धों की गहराई के आधार पर (on the basis of intimacy)
  3. हितों के आधार पर (on the basis of Interest)
  4. सामाजिक संगठन के आधार पर (on the basis of organization)
  5. समय (काल) के आधार पर (on the basic of duration) आकार के आधार पर मैकाइवर ने दो रूप बताएनज़दीकी गहरे सम्बन्धों से सम्बन्धित समूह व दूसरे प्रकार का समूह जिसमें व्यक्ति के अव्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

हितों के आधार पर भी दो श्रेणियां मैकाइवर ने बताई हैं-एक तो वह समूह जिसमें व्यक्ति अपनी आम ज़रूरतों को पूरा करते हैं व दूसरा वह समूह जिसमें विशेष ज़रूरतों की पूर्ति व्यक्ति द्वारा की जाती है।

सामाजिक संगठन के आधार पर भी मैकाइवर ने दो रूप बताए हैं। एक तो पूर्ण तौर पर संगठित समूह व दूसरा लचीला समूह। समय के आधार पर स्थायी समूह जिसमें व्यक्ति की सदस्यता जीवन-पर्यन्त रहती है जैसे परिवार में अस्थायी समूह में उद्देश्य प्राप्ति के लिए ही सदस्यता होती है।

(F) गिलिन एण्ड गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार समूह का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है। यह वर्णन उसने अपनी पुस्तक ‘कल्चरल सोशियोलॉजी’ (Cultural Sociology) में किया है।

  1. रक्त के सम्बन्धों के आधार पर (on the basis of blood relations)
  2. शारीरिक लक्षणों पर आधारित (on the basis of physical features)
  3. क्षेत्रीय आधार (Area Basis)
  4. काल के आधार पर (on the basis of duration)
  5. सांस्कृतिक समूह (Cultural group)

(G) जार्ज डासन (George Dawson) के द्वारा सामाजिक समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है-

  1. असामाजिक समूह (unsocial groups)
  2. फर्जी सामाजिक समूह (Pseudo-Social groups)
  3. समाज विरोधी समूह (Anti-Social groups)
  4. समाज पक्षीय समूह (Pro-Social groups)

असामाजिक समूह वह होता है जिसका सदस्य व्यक्ति केवल अपने काम के लिए ही होता है। बाकी कार्यों से वह किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रखता। इसमें वह स्वार्थ की भावना भी रखता है।
फर्जी सामाजिक समूह में वह केवल अपने स्वार्थ से सम्बन्धित होता है। समाज के कल्याण के लिए वह किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं रखता।

समाज विरोधी समूह के बीच वह समाज के उद्देश्यों व कल्याण के विरुद्ध कार्य करता है। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति हड़ताल करते हैं, धरना देते हैं और सरकारी या सामाजिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाते हैं। – समाज पक्षीय समूह में समाज के लाभ के लिए या कल्याण के लिए व्यक्ति काम करता है। इसमें उसका अपना स्वार्थ नहीं होता। बल्कि वह लोक कल्याण के कार्यों से स्वयं को सम्बन्धित कर लेता है।

(H) टोनीज़ (Tonnies) ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण दो भागों में वर्गीकृत करके किया है-

  1. सामुदायिक समूह (Communities)
  2. सभा समूह (Associations)

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प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह का अर्थ तथा उसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूह का अर्थ-देखें पाठ्य पुस्तक प्रश्न IV-(2)
प्राथमिक समूह की विशेषताएं (Characteristics of Primary Group)-

1. सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है (There is Physical Proximity among members)प्राथमिक समूहों के बीच यह आवश्यक होता है कि व्यक्ति आपस में शारीरिक तौर से भी एक-दूसरे के नजदीक हों। इकट्ठे मिल कर बैठें। यह शारीरिक नज़दीकी उनमें विचारों का आदान-प्रदान पैदा करती है और वह एकदूसरे को समझने लगते हैं। रोजाना मिलना, उठना-बैठना, बातचीत करने के साथ उनमें प्यार व सहयोग बढ़ता है। इसीलिए उनमें गहरे सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं। कई हालातों में स्थिति, पेशा, लिंग, जाति, उम्र इत्यादि में यदि बहुत अधिक अन्तर हो तो भी निजी सम्बन्धों के पैदा होने में रुकावट आती है। इसी कारण जहां इनकी समानता होगी वहां नज़दीकी सम्बन्ध स्थापित हो जाएंगे।

2. सामूहिक स्थिरता (Stability in Groups)-प्राथमिक समूहों के बीच स्थिरता की प्रवृत्ति होती है। उदाहरण के लिए बच्चा जिस परिवार में जन्म लेता है सम्पूर्ण आयु उस परिवार से सम्बन्धित हो जाता है। इसी तरह से आस-पड़ोस में भी इसी प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। इसीलिए इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है। इन समूहों का निर्माण उद्देश्य प्राप्ति के साथ नहीं होता। जब इन समूहों के सदस्यों में नए साथी शामिल हो जाते हैं तो इनमें उतना स्थायित्व नहीं रहता।।

3. इनका सीमित आकार होता है (They are limited in size)-प्राथमिक समूहों का आकार भी बहुत सीमित होता है। इसी कारण इनमें सम्बन्धों की गहराई पाई जाती है। किसी भी समूह की संख्या जितनी कम होगी उतना ही सदस्य एक-दूसरे को अधिक समझ लेते हैं। उदाहरण के लिए अध्यापक जब छोटे समूह की श्रेणी के बच्चों को पढ़ाता है तो वह प्रत्येक बच्चे के साथ ही पूरी तरह वाकिफ़ हो जाता है। इसी प्रकार जब वह अधिक संख्या की श्रेणी के विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो उसकी विद्यार्थियों के साथ नजदीकी भी कम हो जाती है। अध्यापक व विद्यार्थियों के सम्बन्धों में भी कमी आ जाती है।

4. इनमें सीमित स्वार्थ होते हैं (They have limited Self Interest)-प्राथमिक समूहों के बीच इस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है कि जिससे सारे समूह का कल्याण हो अर्थात् सामूहिक हित को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों में निजी स्वार्थ की भावना नहीं होती। यदि यह भावना उत्पन्न हो जाए तो परिवार टूट जाता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य ऐसा काम करता है जिससे सभी व्यक्तियों या सदस्यों का लाभ हो। कई बार इस प्रकार के समूह में अपने स्वार्थ को सामूहिक स्वार्थ करके त्यागना भी पड़ता है क्योंकि यह समूह किसी भी उद्देश्य को मुख्य रख कर स्थापित नहीं किया जाता। यह समूह अपने आप में ही मनोरथ भरपूर होता है। इसी कारण इनमें सीमित स्वार्थ विकसित रहते हैं।

5. इनमें आंशिक समान5505ता होती है (They have Similarity of Background)-आंशिक समानता के कारण व्यक्तियों में विचारों का आदान-प्रदान बना रहता है। सदस्य एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं। यदि इनकी संस्कृति व आदर्शों आदि में किसी प्रकार का अन्तर हों तो इस आधार पर भी सम्बन्धिता कम हो जाती है।

अन्तर जितना अधिक होगा उतनी ही परस्पर सम्बन्धिता कम होगी क्योंकि अन्तर जितना कम होगा उतना वह एकदूसरे को अधिक समझ लेंगे व प्राथमिक समूह अधिकतम मज़बूत हो जाएगा। उदाहरण के लिए जब भी आप किसी नई जगह पर जा कर रहते हो तो जिन व्यक्तियों के साथ आपकी पीछे की समानता होगी, उन व्यक्तियों के करीब आप बहुत जल्दी आ जाते हो व निजीपन महसूस होने लगता है।

6. इनमें आपसी सहयोग होता है (They have Mutual co-operation among them)-प्राथमिक समूहों के बीच अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है। इसका एक कारण कम गणना करके भी है। प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है क्योंकि वह समूह की भलाई में ही अपनी भलाई समझता है। उदाहरण के तौर पर परिवार के सदस्यों के बीच भी यही विशेषता पाई जाती है। परिवार में प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे की भलाई के लिए काम करता है। कई बार व्यक्ति स्वयं दुःख सहता हुआ भी दूसरे को सहयोग देता है अर्थात् व्यक्ति अपने फायदे व नुक्सान को न देख कर दूसरों को सहयोग देता है।

प्रश्न 4.
प्राथमिक समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूहों का हमारे समाज के लिए बहुत महत्त्व होता है। यह सर्वव्यापक होते हैं। यह प्रत्येक समाज में विकसित होते हैं।
1. प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण की प्रक्रिया में भी बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा डालते हैं। व्यक्ति का सबसे प्रथम समाज के साथ सम्पर्क भी इन्हीं समूहों द्वारा ही होता है। क्योंकि व्यक्ति अपनी प्राथमिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी इन्हीं पर निर्भर करता है।

2. व्यक्ति को प्राथमिक समूह में अपना ज्ञान भी होता है। वह समूह के बाकी सदस्यों के सहयोग के साथ ही प्राथमिक शिक्षा का आरम्भ करता है।

3. व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए भी ये समूह महत्त्वपूर्ण हैं। व्यक्ति पर समूह के सदस्यों के व्यवहार का भी अधिकतम प्रभाव पड़ता है। इन प्राथमिक समूहों के बीच दोस्ती वाला माहौल पाए जाने के साथ भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बढ़ौतरी होती है। इन प्राथमिक समूहों के बीच व्यक्ति सहयोग, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों को ग्रहण करते हैं। यही गुण उन्हें आगे जाकर समाज में रहने के काबिल बनाते हैं। व्यक्ति इन्हीं समूहों में रहकर सामाजिक परिमाप, सामाजिक-मूल्यों, आदर्श, परम्पराओं इत्यादि को ग्रहण करता है।

4. व्यक्ति को सुरक्षा की प्राप्ति भी इन्हीं समूहों में रहकर होती है। इन्हीं समूहों के बीच सदस्यों दूसरे सदस्यों को अपना ही एक हिस्सा समझते हैं। व्यक्ति को ज़रूरत पड़ने पर भी सभी सदस्य उसकी मदद के लिए तैयार रहते हैं। बच्चा जब पैदा होता है तो माता-पिता के प्यार के कारण ही वह अपने आप को सुरक्षित समझता है। बच्चा अपने व्यवहार को खुल कर दर्शाता है।

5. प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का भी मुख्य आधार हैं। स्वभाव द्वारा सभी व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। यदि हम इन्हें खुला छोड़ दें तो हमारे समाज का आकार ही बिगड़ जाए। इसी कारण समाज में व्यक्ति कुछ नियन्त्रण में रहना सीखता है। इसी कारण समाज में सभी सदस्यों पर नियन्त्रण रखा जाता है जिसका लाभ आगे जाकर समाज को होता है। व्यक्ति बड़ों का सम्मान करना, नियमों में रहना, प्रत्येक से प्यार करना, परिवार की संस्कृति को अपनाने के लिए इन्हीं समूहों के प्रभाव में रहता है। इन गुणों का विकास जब व्यक्ति में हो जाता है तो वह समाज के सभी कार्यों में सही योगदान करने लगता है।

6. व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी प्राथमिक समूहों के बीच रह कर ही होती है। व्यक्ति परिवार, खेल समूह व पड़ोस आदि जैसे प्रमुख प्राथमिक समूहों में रह कर के दूसरे लोगों के साथ रहने का तरीका सीखते हैं।

7. प्राथमिक समूह के सदस्य स्वतन्त्र रूप में एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं। इनके ऊपर किसी प्रकार का कोई बोझ नहीं होता। व्यक्ति में स्वयं का विकास भी इन्हीं समूहों के ही कारण है। व्यक्ति को भावात्मक सन्तुष्टि

भी इन्हीं समूहों से ही प्राप्त होती है। इस समूह के बीच सम्बन्धों की सम्बन्धिता द्वारा व्यक्ति को कई प्रकार के काम करके उत्साह प्राप्त होता है। प्राथमिक समूह के सदस्य अपने सदस्य को गिरने से बचा लेते हैं। व्यक्ति यह महसूस करने लग जाता है कि वह अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ दूसरे अन्य भी हैं जो उसकी हर समय मदद करेंगे। यह भावना उन्हें अधिक कोशिश करने के लिए प्रेरित करती है।

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प्रश्न 5.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ? इनकी विशेषताओं, प्रकारों व महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
द्वितीय समूह का अर्थ-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” • चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

द्वितीय समूह की विशेषताएं (Characteristics of Secondary Group)-

1. व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं (Humans have indirect relations)—द्वितीय समूह में व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध अप्रत्यक्ष होते हैं। इनमें सहयोग की प्रक्रिया भी आमने-सामने न होकर अप्रत्यक्ष रूप में विकसित रहती है। सदस्य इन समूहों के बीच आपस में एक-दूसरे को जानते नहीं होते। इनका कार्य भूमिका निभाना ही होता है। उदाहरण के लिए किसी फैक्टरी में उत्पादन के लिए कई हज़ार व्यक्ति वहां कार्य कर रहे होते हैं। कार्य करने वाले व्यक्तियों को केवल अपने कार्य के साथ व तनख्वाह से मतलब होता है व कई बार उन्हें यह भी नहीं मालूम होता कि जहां वह काम कर रहे हैं उसका मालिक कौन है। विभिन्न प्रकार का काम करते हुए वह एक-दूसरे से अदृश्य रूप में जुड़े होते हैं। किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमिका अदा करते हैं।

2. यह आकार में बड़े होते हैं (They are large in size)-द्वितीय समूहों का आकार बहुत विशाल होता है, इनमें व्यक्तियों की सदस्यता निश्चित नहीं होती। यह दूर-दूर तक फैले होते हैं। उदाहरण के लिए रैडक्रास सोसाइटी (Red-Cross Society) में सदस्यों की गणना कई हज़ारों में है व पूरे संसार में सदस्य फैले हुए हैं। ऐसी और भी कई संस्थाएं हैं जिनमें व्यक्ति भिन्न-भिन्न स्थानों पर फैले हुए हैं। कई बार व्यक्ति को जब दूर-दराज स्थानों की जानकारी प्राप्त करनी होती है तो वह इन्हीं समूहों की मदद से ही करते हैं। व्यक्ति की आवश्यकताएं भी पहले से बढ़ गई हैं जिन्हें वह अकेला प्राथमिक समूह में रह कर पूरी नहीं कर सकता। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य बन कर अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ लेता है। इसलिए वह पत्र-व्यवहार, टेलीफोन, इत्यादि का उपयोग करता है।

3. इनका औपचारिक संगठन होता है (They have formal organization)-द्वितीय समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं। व्यक्ति को इन नियमों की पालना करनी पड़ती है। इसी कारण इन समूहों के मामलों का निपटारा विशेषज्ञों के हाथ में होता है। कहने का अर्थ यह है कि समूह का सारा कार्य क्षेत्र व्यवस्थित होता है। व्यक्ति को स्थिति व भूमिका उसकी योग्यता अनुसार प्राप्त होती है। इन समूहों में यदि व्यक्ति ने सम्मिलित होना होता है तो वह अपने हितों के लिए कोई भी काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति दफ्तर में नौकरी करता है तो उसको अपने ऑफ़िसर का कहना मानना पड़ता है। सरकारी नियमों का पालन करना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि द्वितीय समूहों में औपचारिक संगठन ही पाया जाता है।

4. इनमें औपचारिक सम्बन्ध होते हैं (They have formal and Impersonal Relations among them)—इन समूहों के बीच व्यक्तियों के अपसी सम्बन्ध औपचारिक होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता। व्यक्ति अपना काम करता है, नियमों की पालना करता है, तनख्वाह लेता है फिर भी वह एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते नहीं। उदाहरण के लिए हम किसी बैंक में जाते हैं और फिर किसी क्लर्क को मिलते हैं, अपना काम पूरा करके वापिस आ जाते हैं। हम बैंक में काम कर रहे व्यक्तियों की ज़िन्दगी के किसी भी और हिस्से से सम्बन्धित नहीं होते। इन समूहों के बीच हमें अपनत्व प्राप्त नहीं होता।

5. इन समूहों की ऐच्छिक सदस्यता होती है (They have option of Membership)-द्वितीय समूहों में सदस्यता व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर करती है क्योंकि यह समूह किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही विकसित होते हैं। जिस व्यक्ति का उद्देश्य जिस समूह में पूर्ण होता है वह उसका सदस्य बन जाता है। भाव कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक द्वितीय समूह का सदस्य नहीं होता। उदाहरण के लिए हमारे समाज में कई क्लब हैं। जब कोई व्यक्ति चाहता है तो ही क्लब का सदस्य बनता है। यूं यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति क्लब का सदस्य बने। इस प्रकार यह समूह ऐच्छिक होते हैं। उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् व्यक्ति इसकी सदस्यता छोड़ भी सकता है।

6. इनमें क्रियाशील व अक्रियाशील सदस्य होते हैं (They have Active and Inactive members)द्वितीय समूहों का आकार विशाल होता है। समूह के सदस्यों में निजीपन की कमी होती है जिससे समूह के सदस्य समूह की क्रियाओं में हिस्सा नहीं लेते। उदाहरण के लिए जब भी कोई कार्यक्रम होता है तो उस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले बहुत सदस्य होते हैं। कुछ एक सदस्य काम बहुत अधिक करते हैं व कुछ एक केवल एक सदस्य बन कर ही रह जाते हैं। ऐसे सदस्य केवल अपनी सदस्यता को कायम रखने के लिए केवल चन्दा इत्यादि ही देते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
1. यह ज़रूरतों की पूर्ति करते हैं (Satisfied different needs) आधुनिक समाज में व्यक्ति केवल प्राथमिक समूहों पर निर्भर हो कर अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। दिन-प्रतिदिन व्यक्ति की ज़रूरतें बढ़ती ही जा रही हैं ये ज़रूरतें केवल एक क्षेत्र के साथ सम्बन्धित नहीं हैं इस कारण इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वितीय समूहों का विकास हुआ। प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्बन्ध हर क्षेत्र में कायम करना चाहता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका काम हो सके। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य भी बनना चाहता है।

2. यह व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोतरी करते हैं (These Develop Individuals Personality)द्वितीय समूहों के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी होती है। शुरू के आरम्भिक समाजों में व्यक्ति अपने आप को घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखता था। पैतृक काम को अपनाना ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए ज़रूरी होता था। इसके अलावा बच्चे अपने परिवार के बड़े सदस्यों के नियंत्रण में रहते थे। वे कोई भी काम अपनी मर्जी से नहीं कर सकते थे। लेकिन जैसे-जैसे समाज में द्वितीय समूहों का निर्माण हुआ व्यक्ति घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपने व्यक्तित्व में विकास करने लगा। उसको अपनी योग्यता को दिखाने की पूरी स्वतन्त्रता मिली। प्राथमिक समूह में चाहता हुआ भी व्यक्ति विकास नहीं कर सकता था इसी कारण द्वितीय समूहों ने व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास किया व पिछड़े हुए परिवारों में उन्नति ला कर उनका रहन-सहन का स्तर भी उच्च किया।

3. यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं (These groups contribute in Social Progress)समाज में प्रगति अधिक होने से आम व्यक्तियों के द्वितीय समूह में शामिल होने से ही पाई गई तकनीकी, औद्योगिक आदि क्रांति भी इन्हीं समूहों के द्वारा हो पाई। व्यक्ति घर से बाहर निकल कर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करने लगा। व्यक्ति को ऐसा वातावरण प्राप्त होने लगा कि वह खुल कर अपनी योग्यता को इस्तेमाल करने लगा। व्यक्ति को द्वितीय समूहों में ही मौके प्राप्त हुए। समूह का प्रत्येक व्यक्ति जितनी योग्यता रखता है उतनी ही तरक्की करता है। व्यक्ति में आगे से आगे बढ़ने की इच्छा ही समाज की प्रगति के लिए सहायक होती है।

4. इनसे विस्तृत दृष्टिकोण होता है (With these outlook becomes wider)-व्यक्ति प्राथमिक समूह का सदस्य होने के नाते विशेष स्थान से जुड़ा होता है। उसकी प्राथमिक समूह में सदस्यता भी स्थायी होती है, इसी कारण आकार में भी ये छोटे होते हैं। प्रत्येक अपने ही हितों पर ध्यान केन्द्रित करता है। उदाहरण के तौर पर खेल समूह, पड़ोस या परिवार के सदस्य केवल अपने ही हितों की रक्षा करते थे। इस प्रकार के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक समूह का घेरा काफ़ी तंग रहता था क्योंकि सदस्य केवल सीमित हितों के बारे में ही सोचते थे। दूसरी ओर द्वितीय समूह के सदस्य बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। उदाहरण के लिए द्वितीय समूह के सदस्य भिन्न-भिन्न जातियों, धर्म, श्रेणियों आदि से सम्बन्धित होते हैं। विभिन्न स्थानों पर फैले होने के कारण व्यक्ति प्राथमिक समूहों से अलग हो जाते हैं। द्वितीय समूह के सदस्यों पर रीति-रिवाजों, परम्पराओं, नियमों इत्यादि का भी काफ़ी प्रभाव रहता है। इससे समूह के सदस्य को अपने सम्बन्ध विभिन्न स्थानों पर बनाने की पूरी स्वतन्त्रता मिलती है। साझे हित होने के कारण भी वह आपसी भेदभावों को मिटा कर एक हो कर काम करते हैं व समूह के सदस्यों में सहनशीलता भी पाई जाती है।

5. यह सांस्कृतिक विकास में मदद करते हैं (These help in cultural development)-द्वितीय समूहों में व्यक्ति विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों से सम्बन्धित होते हैं परन्तु काम उन्हें एक ही स्थान पर मिल कर करना पड़ता है। उदाहरण के लिए किसी दफ्तर या फैक्टरी में कई व्यक्ति काम करते हैं चाहे वह भिन्न-भिन्न स्थानों से आये होते हैं परन्तु फिर भी उनमें औपचारिक सहयोग होने के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान बना रहता है। प्रत्येक संस्कृति से सम्बन्धित व्यक्ति दूसरी संस्कृति के गुणों को अपनाना आरम्भ कर देता है। इससे सांस्कृतिक विकास पाया जाता है। इसके साथ ही जब कोई अनुसंधान किसी देश में होता है तो बाकी देश भी उसको अपना लेते हैं। इससे सांस्कृतिक मिश्रण भी हो जाता है।

प्रश्न 7.
अन्तः समूह और बहिर्समूह (In Groups and Out Groups) के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समनर द्वारा दिए समूहों के वर्गीकरण की व्याख्या करें।
उत्तर-
समनर ने अपनी पुस्तक “फोकवेज़ (Folk Ways) में मानवीय समाज में पाये जाने वाले दो तरह के समूहों का वर्णन किया है

  1. अन्तः समूह (In Groups)
  2. बहिर्समूह (Out Groups)।

समनर ने समूहों का यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से किया है। जिसमें एक समूह व्यक्ति विशेष के साथ सम्बन्धित है वह अन्तः समूह है और वही समूह दूसरे व्यक्ति के लिये बाहरी समूह बन जाता है। एक व्यक्ति का अन्तः समूह दूसरे व्यक्ति का बहिर्समूह बन जाता है। अब इन समूहों का विस्तार सहित वर्णन करेंगे।

1. अन्तः समूह (In Groups)-समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाये जाते हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्तियों का व्यवहार भी प्रभावित होता है। अन्तः समूह को ‘हम समूह’ (We Groups) भी कहा गया है। यह वह समूह होते हैं जिनको व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर एवं पेज (MacIver and Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में ‘अन्तः समूह’ का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको मिला लेता है। उदाहरणार्थ जाति, धर्म, कबीले, लिंग आदि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे व्यक्ति को पूरा ज्ञान होता है।

अन्तः समूह की प्रकृति शान्ति वाली होती है और इसमें आपसी सहयोग, आपसी मेल-मिलाप, सद्भावना आदि गुण पाये जाते हैं। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का दृष्टिकोण बाहरी लोगों के प्रति दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता। कुछ न कुछ कार्य को करने के लिये इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई के समय व्यक्ति एक समूह के साथ जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग पड़ते हैं। अन्तः समूह में हम की भावना (We feeling) पाई जाती है। जाति प्रथा के बीच एक जाति के व्यक्ति अपने आपको अन्तः समूहों के साथ जोड़ते हैं और दूसरी जाति के व्यक्ति के लिए ‘बाहरी जाति’ का व्यक्ति जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। कई समाजों में समाज का वर्गीकरण भी ‘अन्तः एवं बाहरी’ समूह के आधार पर किया जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति अपने आपको जोड़ता है और अपना समझता है।

इन समूहों में वह ‘मेरे’ शब्द का प्रयोग करने लग पड़ता है जैसे मेरा स्कूल, मेरा घर, मेरी जगह, मेरा गांव इत्यादि। इस तरह हम कह सकते हैं वह समूह जिनके साथ व्यक्ति सम्बन्ध रखता है , जिनको वह अपना समझता है, और जिनके लिये वह ‘मेरे’ या ‘हम’ शब्द का प्रयोग करता है, ‘वह अन्तः समूह’ होते हैं। मैकाइवर के अनुसार, “वह समूह जिनके साथ व्यक्ति अपना समरूप कर लेता है वह उसके अन्तः समूह है।” जैसे कि उसका परिवार, कबीला, गांव इत्यादि साधारणतया अन्तः समूहों में सम्बन्ध शांतिप्रिय होते हैं और सदस्य आपसी सहयोग एवं प्यार के साथ रहते हैं। उस समूह के सदस्यों के प्रति व्यक्ति का व्यवहार हमदर्दी वाला होता है और वह समूह के सदस्यों के प्रति अपनापन महसूस करता है। उसको अपने समूह के व्यवहार, विचार, आदर्श इत्यादि अच्छे लगते हैं। वह दूसरे व्यक्ति के बारे में विचार बनाते समय अपने समूह के विचारों, मूल्यों इत्यादि को सामने रखता है। उसे अपने समूह की सारी बातें अच्छी लगती हैं क्योंकि वे सभी उसको अपने लगते हैं। अन्तः समूह का संगठन अधिक मज़बूत एवं निश्चित होता है। अन्तः समूह के बीच होने वाली अन्तक्रियाओं का सदस्यों के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। अन्तः समूह सर्वव्यापक समूह होते हैं जो सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में क्रियाशील होते हैं।

बहिर्समूह (Out-Groups) बहिर्समूह के लिये ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यह वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता है और बेगाना समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज के बीच प्रत्येक समूह के साथ तो नहीं जुड़ा होता है। जिस समूह के साथ जुड़ा होता है वह उसके अन्तः समूह कहलाते हैं और जिस समूह के साथ नहीं जुड़ा होता है वह उसके बहिर्समूह कहलाते हैं। यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से लिया गया है। समाज में दोनों तरह के समूह व्यक्तियों के लिये विकसित होते हैं। उदाहरण के लिये बाहरी जाति, बाहरी धर्म, बाहरी परिवार आदि ऐसे समूह हैं, जो एक व्यक्ति के लिये तो अपनत्व पैदा करते हैं, और जो व्यक्ति उनके समूह का सदस्य नहीं उसके लिये बाहरी भावना पैदा करते हैं। कई कबीलों में इन समूहों के आधार पर भी रिश्तेदारी का भी वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि आप कहीं भी जाते हैं, यदि आपको कोई दूसरा व्यक्ति मिलता है तो आप उसके साथ बातचीत करने लग जाते हैं। यदि वह आपकी जाति, धर्म, इत्यादि के साथ सम्बन्ध रखता हो तो आप उसे अन्तः समूह में शामिल कर लेते हैं। यदि वह अलग जाति अथवा धर्म का हो तो उसको ‘बहिर्समूह समूह’ का सदस्य बना देते हैं। समान जाति वालों के साथ आप मित्रता का व्यवहार करते हैं, और असमान जाति वालों के साथ आप दुश्मनी जैसा व्यवहार करने लग पड़ते हैं।

इसलिए हम कह सकते हैं कि ‘बर्हिसमूह’ व्यक्ति के लिए बेगाने से होते हैं और वह उनके साथ प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन काफ़ी कमज़ोर एवं असंगठित होता है। व्यक्ति के लिये आन्तरिक समूह के विचारों और मूल्यों के सामने बाहरी समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक है और प्रत्येक स्थान पर पाये जाते हैं।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए अन्तः समूह एवं बहिर्समूह का अर्थ अवस्था, स्थान, समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। कभी कोई व्यक्ति अन्तः समूह से सम्बन्धित होता है परन्तु विचारों में समानता न होने की स्थिति में वही उसके लिए बहिर्समूह बन जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का व्यवहार, सहयोग, हमदर्दी एवं प्यार वाला होता है और व्यक्ति अपने समूह के आदर्शों, विचारों एवं कीमतों का सम्मान करता है और उन्हें उत्तम समझता है। उसको अपने समूह की सम्पूर्ण बातें अच्छी लगती हैं। बहिर्समूह के व्यक्तियों का दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। जिन कार्यों की आन्तरिक समूहों में मनाही होती है, बहिसर्मुह में उन कार्यों की इजाज़त भी दी जाती है। ये दोनों समूह सभी समाजों में व्याप्त होते हैं परन्तु इनका निर्माण करने वाली परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं। साधारण व्यक्ति आन्तरिक समूह को बर्हिसमूह से उत्तम समझता है। व्यक्ति का व्यवहार भी इन समूहों से सम्बन्धित होता है। दोस्ती एवं दुश्मनी वाले सम्बन्ध भी इसी दृष्टिकोण से पाये जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
संदर्भ समूह के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
1942 में एच० एच० हाइमन (H.H. Hyman) ने सबसे पहले ‘संकल्प संदर्भ समूह’ का प्रयोग अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘स्थितियों के मनोविज्ञान’ (The Psychology status) में किया था। सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों ने मानवीय व्यवहार के सामाजिक मनोवैज्ञानिक पक्षों के अध्ययन और व्याख्या के लिए किया था और अपना ध्यान इस बात पर केन्द्रित किया, कि कैसे मनुष्य अपने संदर्भ समूह का चुनाव करता है और यह संदर्भ समूह किस प्रकार उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। बाद में समाजशास्त्रियों विशेषकर ‘मर्टन’ ने संदर्भ समूह की समाजशास्त्र के लिये महत्ता के बारे मैं समझा और कहा कि सामाजिक वातावरण के कार्यात्मक और संरचनात्मक पक्षों को समझने के लिए संदर्भ समूह बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। इसकी सहायता के साथ सामाजिक व्यवहार की भिन्नताओं में सभी छुपी हुई समानताओं को ढूंढ़ सकते हैं। इस प्रकार इसकी सहायता से मानवीय व्यवहार के सभी पक्षों के बारे में जाना जा सकता है जिसकी सहायता के साथ समाज को आसानी के साथ समझा जा सकता है।

संदर्भ समूह का अर्थ (Meaning of Reference Group)-यदि हमें संदर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सर्वप्रथम ‘सदस्य समूह’ का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि संदर्भ समूह को “सदस्यता समूह” या “सदस्य समूह के संदर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है, जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में भाग लेता है, उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक समूह होता है जिसका वह वास्तविक तौर पर सदस्य होता है और वास्तविक सदस्य होने के कारण उस समूह के साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है और उस समूह के विचारों, कीमतों इत्यादि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को इस समूह का एक अभिन्न अंग मान लेता है। इस तरह उसका प्रत्येक कार्य या क्रिया उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। इस समूह के आदर्श, विचार, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती हैं और दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतों को सामने रखता है। इस तरह यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

परन्तु कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुरूप नहीं होता बल्कि वह किसी और आदर्शों एवं कीमतों के अनुसार होता है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इस कारण ही “संदर्भ समूह” का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार, “व्यवहार प्रतिमान और उसकी स्थिति के साथ सम्बन्धित विवेचन के लिए हमारे लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह किस समूह का सदस्य है और उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर पर सदस्य बन जाता है। व्यक्ति इसका वास्तविक सदस्य होते हुए भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत-सा हिस्सा उस समूह के अनुसार होता है। समाज वैज्ञानिक इस समूह को संदर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्यमवर्गीय समूह का सदस्य अपने आपको किसी उच्चवर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपने व्यवहारों, आदतों, आदर्शों, कीमतों आदि को उसी उच्चवर्ग के अनुसार निश्चित करता है।

अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके उसी उच्चवर्ग के अनुसार ही निश्चित करता है तो वह उच्चवर्ग मध्यवर्गीय समूह का संदर्भ समूह होता है। इस तरह जब व्यक्ति उच्चवर्ग से मानसिक तौर पर सम्बन्धित होता है, तो वह उच्चवर्ग उसके लिए संदर्भ समूह’ होता है। इस तरह वह अपनी आदतों, प्रतिमानों, प्रवृत्तियों को उस ‘संदर्भ समूह’ के अनुसार चलाने की कोशिश करता है। संदर्भ समूह का अर्थ और भी स्पष्ट हो जायेगा यदि हम संदर्भ समूह की परिभाषाएं देखेंगे।

शैरिफ एवं शैरिफ (Sherrif and Sheriff) के अनुसार, “संदर्भ समूह वे समूह हैं, जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको समूह के एक अंग के रूप में सम्बन्धित करता है या मनोवैज्ञानिक रूप के साथ सम्बन्धित होने की इच्छा रखता है। दैनिक भाषा में संदर्भ समूह वे समूह हैं जिनके साथ व्यक्ति स्वयं ही पहचान करता है या फिर पहचानने की इच्छा रखता है।”

राबर्ट मर्टन (Robert Merton) के अनुसार, “संदर्भ समूह व्यवहार सिद्धांत का लक्ष्य मूल्यांकन या उप मूल्यांकन की उन प्रक्रियाओं के कारकों एवं परिमापों को क्रमबद्ध करना है जिनमें व्यक्ति और अन्य मनुष्यों एवं समूहों की कीमतों और मापदण्डों को तुलनात्मक निर्देश व्यवस्था के रूप में अपनाता है।”

मर्टन (Merton) के अनुसार “यह देखा जाता है कि जो समूह जीवन की अवस्थाओं में अधिक सफल है व्यक्ति उसको संदर्भ समूह मानने लग पड़ता है। मर्टन के अनुसार यह ज़रूरी नहीं कि कोई व्यक्ति उस समूह का सदस्य हो जिसका वह सदस्य है। वह उस समूह का सदस्य हो सकता है जिसका वह सदस्य नहीं। जिन समूहों के हम वास्तव में सदस्य नहीं होते और जिनके साथ हम कभी भी वास्तव में अन्तक्रिया नहीं करते तो भी यदि वह समूह हमारे विचारों, व्यवहारों को प्रभावित करते हैं तो हम स्वयं को उनके अनुसार ढालते हैं तो वह गैर-सदस्यता भी हमारे लिये संदर्भ समूह ही होगा।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

सामाजिक समूह PSEB 11th Class Sociology Notes

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उसकी लगभग सभी क्रियाओं का केन्द्र समूह होता है।
  • एक सामाजिक समूह उन दो अथवा अधिक व्यक्तियों का एकत्र होता है जिनमें अन्तक्रिया लगातार होती रहनी चाहिए। यह अन्तक्रिया व्यक्ति को समूह के साथ संबंधित होने के लिए प्रेरित करती है।
  • एक सामाजिक समूह की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह व्यक्तियों का एकत्र होता है, समूह में सदस्यों के बीच अन्तक्रियाएं होती रहती हैं, सदस्य अपनी सदस्यता के प्रति चेतन होते हैं, उनमें हम की भावना होती है, समूह के कुछेक नियम होते हैं इत्यादि।
  • वैसे तो समाज में बहुत से समूह होते हैं तथा कई समाजशास्त्रियों ने इनका वर्गीकरण अलग-अलग आधारों पर दिया है परन्तु जो कूले (Cooley) की तरफ से दिया गया वर्गीकरण प्रत्येक विद्धान् ने किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है। कूले के अनुसार शारीरिक नज़दीकी तथा दूरी के अनुसार दो प्रकार के समूह होते हैं-प्राथमिक समूह तथा द्वितीय समूह।
  • प्राथमिक समूह वह होते हैं जिनके साथ शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है। हम इस समूह के सदस्यों को रोज़ाना मिलते हैं, उनके साथ बातें करते हैं तथा उनके साथ रहना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह।
  • द्वितीय समूह प्राथमिक समूह से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। वह समूह जिनकी सदस्यता वह अपनी इच्छा या आवश्यकता के अनुसार लेता है द्वितीय समूह होते हैं। व्यक्ति इनकी सदस्यता कभी भी छोड़ सकता है तथा कभी भी ग्रहण कर सकता है। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल, ट्रेड युनियन इत्यादि।
  • प्राथमिक समूहों का हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्व है क्योंकि इनके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता है। यह समूह व्यक्ति का समाजीकरण करने में सहायता करते हैं। यह समूह व्यक्ति के व्यवहार के ऊपर नियन्त्रण भी रखते हैं।
  • द्वितीय समूह की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि शारीरिक नज़दीकी का न होना, यह अस्थायी होते हैं, इसमें औपचारिक संबंध होते हैं तथा इनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  • समनर (Summer) ने भी समूहों का वर्गीकरण दिया है तथा वह हैं-अन्तर्समूह (In-Group) तथा बहिर्समूह (Out-Group) । अन्तर्समूह वह होता है जिनकी सदस्यता के प्रति व्यक्ति पूर्णतया चेतन होता है। बहिर्समूह वह होता है जिनमें व्यक्ति को अपनेपन की भावना नहीं मिलती है।
  • राबर्ट मर्टन ने एक नए प्रकार के समूह के बारे में बताया है तथा वह है संदर्भ समूह (Reference Group)। व्यक्ति कई बार किसी विशेष समूह के अनुसार अपने व्यवहार को नियन्त्रित तथा केन्द्रित करता है। इस प्रकार के समूह को संदर्भ समूह कहा जाता है।
  • हम भावना (We feeling)—वह भावना जिससे व्यक्ति अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानते हैं कि वे उस समूह के सदस्य हैं।
  • प्राथमिक समूह (Primary Group)-वह समूह जिनके सदस्यों में संबंध काफ़ी नज़दीक के होते हैं तथा जिनके बिना जीवन जीना मुमकिन नहीं है।
  • द्वितीय समूह (Secondary Group)-वे समूह जिनकी सदस्यता आवश्यकता के समय ली जाती है तथा बाद में छोड़ दी जाती है।
  • अन्तः समूह (In-Group)-वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की भावना होती है।
  • बहिर्समूह (Out-Group)—वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की किसी भी प्रकार की भावना नहीं होती।
  • दर्भ समूह (Reference Group)—वह समूह जिन्हें व्यक्ति एक आदर्श के रूप में स्वीकार करता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
18वीं सदी में सिक्खों के मुगलों के साथ संघर्ष की मुख्य घटनाओं की लगभग चर्चा करें ।
उत्तर-
18वीं शताब्दी के आरम्भ में सिक्ख गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे । परन्तु 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु साहिब की नए मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मित्रता हो गई । इससे अगले ही वर्ष गुरु साहिब जी का भी देहान्त हो गया । तत्पश्चात् सिक्खों ने बन्दा बहादुर के अधीन मुग़लों का डटकर सामना किया । बन्दा के बलिदान के बाद सिक्खों के लिए अन्धकार युग आरम्भ हुआ । परन्तु वे अपनी वीरता एवं साहस के बल पर सदा आगे ही बढ़ते रहे । अन्ततः वे कुछ प्रमुख सिक्ख सरदारों के साथ अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में सफल हुए। यही सिक्ख राज्य 18वीं शताब्दी के अन्त में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का आधार बने । संक्षेप में, 18वीं सदी में सिक्खों के मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष की मुख्य घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है :

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन-

1699 ई० में गुरु जी ने खालसा की स्थापना की और सिक्खों को सिंह का रूप दिया । खालसा की स्थापना के पश्चात् पहाड़ी राजा गुरु जी से भयभीत हो गए और उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध मुग़लों की सहायता प्राप्त की। आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई में मुगलों ने पहाड़ी राजाओं की सहायता की। 1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखे-प्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। वहां भी मुग़लों तथा पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। गुरु जी ने अपने चारों पुत्र शहीद करवा दिए, फिर भी मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

2. बन्दा बहादुर के अधीन-

बन्दा बहादुर एक वैरागी था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और उनसे बड़ा प्रभावित हुआ। वह अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु जी ने अकाल चलाना करने से पूर्व बन्दा बहादुर को आदेश दिया कि वह सिक्खों की सहायता से वजीर खां से टक्कर ले। इस सम्बन्ध में उन्होंने पंजाब के सिक्खों के नाम आदेश-पत्र जारी कर दिए। पंजाब पहुँच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। शीघ्र ही वह पंजाब में सिक्ख राज्य स्थापित करने में सफल रहा।

सर्वप्रथम बन्दा ने समाना पर आक्रमण किया। वहां उसने भारी लूटमार की तथा अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद उसने कपूरी नगर को लूटा। इसके बाद साढौरा की बारी आई। सढौरा का शासक उस्मान खां था। वह हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था। बन्दा ने उसे दण्ड देने का निश्चय किया और सढौरा पर धावा बोल दिया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि इस स्थान का नाम ही कत्लगढ़ी पड़ गया। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया। इसमें 28 परगने थे। शीघ्र ही बन्दा ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इस सारे प्रदेश का वार्षिक कर 50 लाख रुपए के लगभग था।

3. लाहौर के मुग़ल गवर्नरों (सूबेदार) के विरुद्ध सिक्ख संघर्ष –

1716 ई० में बन्दा बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग आ गया। इस युग में मुग़लों ने सिक्खों का अस्तित्व मिटा देने का प्रयत्न किया। परन्तु सिक्ख अपनी वीरता और साहस के बल पर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे। 1716 से 1752 तक लाहौर के पांच मुग़ल सूबेदारों ने सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। इनमें से पहले गवर्नर अब्दुल समद को लाहौर से मुल्तान भेज दिया गया और उसके पुत्र जकरिया खां को लाहौर का सूबेदार बनाया गया। उसे हर प्रकार से सिक्खों को दबाने के आदेश दिए गए। उसने कुछ वर्षों तक तो अपने सैनिक बल द्वारा सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे भी कोई सफलता मिलती दिखाई न दी तो उसने अमृतसर के निकट सिक्खों को एक बहुत बड़ी जागीर देकर उन्हें शान्त करने का प्रयत्न किया। उसने मुग़ल सम्राट् से स्वीकृति भी ले ली थी कि सिक्ख नेता को नवाब की उपाधि दी जाए। यह उपाधि कपूर सिंह को मिली और वह नवाब कपूर सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फलस्वरूप कुछ समय तक सिक्ख शान्त रहे और उन्होंने अपने-अपने जत्थों को शक्तिशाली बनाया। इसी बीच कुछ जत्थेदारों ने फिर से मुग़लों का विरोध करना और सरकारी खजानों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे मुग़लों और सिक्खों में फिर ज़ोरदार संघर्ष छिड़ गया।

इन परिस्थितियों में जकरिया खां ने सिक्खों से जागीर छीन ली और पुनः अपने सैनिकों की सहायता से उन्हें दबाने में जुट गया। सिक्खों में आतंक फैलाने के लिए उसने भाई मनी सिंह को लाहौर में शहीद करवा दिया। भाई मनी सिंह अमृतसर में रहते थे और सिक्खों को एकता और स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करते रहते थे। 1738-39 में ईरान के शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण जकरिया खां को सिक्खों की ओर से अपना ध्यान हटाना पड़ा। फलस्वरूप सिक्खों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिल गया। उन्होंने अपनी शक्ति इतनी बढ़ा ली कि जब नादिर शाह वापस काबुल जाने लगा तो सिक्खों ने उसके सैनिकों से घोड़े और युद्ध सामग्री छीन ली। उनका साहस देख कर जकरिया खां भी सोच में पड़ गया। अत: नादिरशाह की वापसी के बाद उसने सिक्खों को दबाने के और भी अधिक प्रयत्न किए। उसने अमृतसर पर अधिकार करके अपनी सैनिक चौकी बिठा दी। यह बात सिक्खों के लिए असहनीय थी क्योंकि उनके लिए अमृतसर बड़ा पवित्र स्थान था। अन्त में दो सिक्खों ने अमृतसर के थानेदार मस्सा रंघड़ का वध करके ही चैन लिया। 1745 ई० में जकरिया खां की मृत्यु हो गई। इस समय तक सिक्खों की शक्ति बहुत अधिक बढ़ चुकी थी।

1745 से 1752 तक पंजाब की राजनीतिक दशा खराब रही। पहले तो जकरिया खां के पुत्र याहिया खां और शाहनवाज़ खां लाहौर की सूबेदारी लेने के लिए एक-दूसरे का विरोध करते रहे। अत: उनमें से कोई भी सिक्खों की ओर ध्यान न दे सका। 1747-48 को काबुल के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण कर दिया। वह नादिरशाह की मृत्यु के पश्चात् अफ़गानिस्तान का शासक बना था। वह नादिरशाह के साथ भारत भी आया था और मुग़ल सम्राट की कमजोरी को भली-भान्ति जानता था। वह भारत का धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाना चाहता था। इसी समय शाहनवाज़ खां ने उसे भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। उसके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुए उसने लाहौर पर आक्रमण कर दिया। अब शाहनवाज़ खां ने दिखावे के लिए उसे रोकने का असफल प्रयास किया। अहमदशाह अब्दाली सतलुज पार करके दिल्ली की ओर बढ़ने लगा परन्तु सरहिन्द के निकट दिल्ली के मुख्यमन्त्री कमरुद्दीन खां के पुत्र मुइनुलमुल्क ने उसे पराजित करके वापस काबुल लौटने पर विवश कर दिया। मुइनुलमुल्क की इस सफलता के कारण उसे लाहौर का सूबेदार बना दिया गया। वह भीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मीर मन्न के सूबेदार बनने के पश्चात् दो वर्ष के अन्दर ही अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर फिर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू को दिल्ली से कोई सहायता न मिली। अतः अहमदशाह अब्दाली का सामना करने की बजाय उसने उसे पंजाब के चार परगनों का लगान देना स्वीकार कर लिया। 1752 में अहमदशाह अब्दाली ने एक बार फिर पंजाब पर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू ने उसका सामना किया, परन्तु पराजित हुआ। अहमदशाह अब्दाली ने लाहौर पर अधिकार करके मीर मन्नू को ही वहां अपना सबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार पंजाब में मुग़ल राज्य का अन्त हो गया। मीर मन्नू ने इससे पहले मुग़ल सूबेदार के रूप में सिक्खों को दबाने का काफ़ी प्रयत्न किया था। अब इस दिशा में उसने अपने प्रयत्न तेज़ कर दिये। परन्तु सिक्खों की संख्या और शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। मीर मन्नू की मृत्यु (1753 ई०) से पहले उन्होंने कुछ प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लिया था।

4. सिक्ख मिसलों की स्थापना-

पंजाब के मुस्लिम गवर्नरों याहिया खां, जकरिया खां, मीर मन्नू आदि ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। परन्तु ज्यों-ज्यों शासकों के अत्याचार बढ़ते गए, त्यों-त्यों सिक्खों का संकल्प दृढ़ होता गया। उनके अत्याचारों का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए सिक्खों ने अपने जत्थों का संगठन करना आरम्भ कर दिया। आरम्भ में केवल दो ही जत्थे थे परन्तु धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ कर लगभग 65 हो गई। अतः सिक्ख नेताओं के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई कि इनका नेतृत्व किस प्रकार किया जाए। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सिक्खों के 12 जत्थे बनाए गए। प्रत्येक जत्थे के पास अपना नगारा तथा झण्डा होता था। यही जत्थे बाद में मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। 12 सिक्ख मिसलों के नाम ये थे—

  1. सिंहपुरिया
  2. आहलूवालिया
  3. भंगी
  4. रामगढ़िया
  5. शुकरचकिया
  6. कन्हैया
  7. फुल्किया
  8. डल्लेवाल
  9. नकअई
  10. शहीदी
  11. करोड़सिंधिया
  12. निशानवालिया।

बाद में इन मिसलों पर रणजीत सिंह ने अपना अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 2.
विभिन्न सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य स्थापना के सन्दर्भ में सिक्खों तथा पठानों (अफ़गानों) के बीच चर्चा करते हुए इसमें सिक्खों की विजय के कारण बताएं।
उत्तर-
बन्दा बहादुर की मृत्यु के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग प्रारम्भ हो गया। इस समय में पंजाब के मुग़ल गवर्नरों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। इसके साथ अफ़गानिस्तान के पठान शासक अहमदशाह अब्दाली ने भी पंजाब पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। अत: सिक्खों को पठानों से भी संघर्ष करना पड़ा। परन्तु मुग़ल अत्याचारों का सामना करतेकरते सिक्ख इस समय तक किसी भी प्रकार के संघर्ष के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे। उन्हें गुरिल्ला युद्ध का अनुभव हो चुका था। उनकी यह धारणा भी दृढ़ हो चुकी थी कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना इसलिए की थी कि सिक्ख स्वतन्त्र राज्य स्थापित करके स्वयं शासन करेंगे। ‘राज करेगा खालसा’ में उनका दृढ़ विश्वास था। इस विश्वास को व्यावहारिक रूप देने के लिए वे समय-समय पर छोटे-छोटे प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लेते थे। अतः जब अहमदशाह अब्दाली का ध्यान सिक्खों की ओर गया, उस समय तक सिक्ख अत्यन्त शक्तिशाली हो चुके थे। संक्षेप में, पठानों के विरुद्ध सिक्खों के संघर्ष, सिक्ख सरदारों द्वारा राज्य स्थापना तथा इस संघर्ष में सिक्खों की विजय के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध संघर्ष –

अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई० में मराठों को पंजाब छोड़ने के लिए विवश किया और उनकी शक्ति को पूरी तरह कुचलने के लिए दिल्ली की ओर बढ़ा। वह 1760 ई० में सारा वर्ष भारत में ही रहा और मराठों के विरुद्ध गठबन्धन करता रहा। 1761 ई० के आरम्भ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे इतनी बुरी तरह से पराजित हुए कि वे पंजाब पर अधिकार बनाए रखने योग्य न रहे। इस सारे समय में सिक्खों ने अपनी कार्यवाही जारी रखी और जालन्धर, बारी तथा रचना दोआब के बहुत-से प्रदेश अपने अधिकार में ले लिए। सतलुज और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेशों में से कुछ पर फूल वंश के सिद्ध बराड़ों ने अपना अधिकार कर लिया, जिनमें से आला सिंह मुख्य था।

अहमदशाह अब्दाली के लिए अब एक नई समस्या उत्पन्न हो गई। उसे यह आभास होने लगा कि पंजाब पर राज्य करने के लिए उसे मुग़लों और मराठों से नहीं अपितु सिक्खों से निपटने की आवश्यकता है। 1761 में काबुल वापस लौटने से पहले उसने पंजाब में अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर दिए। परन्तु सिक्खों ने अनेक स्थानों से उन्हें मार भगाया। लाहौर का पठान सूबेदार भी सिक्खों के सामने विवश हो गया। फलस्वरूप 1762 ई० में अहमदशाह अब्दाली ने सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए पुनः पंजाब पर आक्रमण कर दिया। उसने मलेरकोटला के निकट दल खालसा पर आक्रमण करके एक ही दिन में लगभग 15 हज़ार से भी अधिक सिक्खों को मार डाला। सिक्ख इस लड़ाई में लड़ने के साथ-साथ अपने सामान और साथियों को बचाने का प्रयत्न भी कर रह थे। इस कारण उन्हें इस भयंकर रक्तपात का मुंह देखना पड़ा। सिक्ख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से प्रसिद्ध है। इससे पहले छोटा घल्लूघारा 1746 ई० में उस समय हुआ था जब दीवान लखपत राय ने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए कई हज़ार सिक्खों का वध कर दिया था।

बड़े घल्लूघारे का सिक्खों की शक्ति पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ा। कुछ मास पश्चात् ही वे अमृतसर के निकट अहमदशाह अब्दाली से एक बार फिर लड़े। एक दिन की लड़ाई के पश्चात् अहमदशाह अब्दाली मैदान छोड़कर लाहौर भाग गया। काबुल वापस लौटने से पहले वह सरहिन्द और पंजाब में अपने गवर्नर नियुक्त कर गया। परन्तु सिक्खों के आगे उनकी एक न चली। 1763 में उन्होंने सरहिन्द के पठान शाक जैन खां को लड़ाई में मार डाला और सरहिन्द पर अपना अधिकार कर लिया। सिक्खों के भय के कारण लाहौर का सूबेदार भी कभी किले से बाहर आने का साहस नहीं करता था। 1764-65 ई० में अहमदशाह अब्दाली एक बार फिर पंजाब आया, परन्तु सिक्खों से लड़े बिना ही वापस लौट गया। उसके चले जाने के तुरन्त पश्चात् ही सिक्खों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और वहां अपना सिक्का जारी करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अहमदशाह अब्दाली इसके बाद सात-आठ वर्ष और जीवित रहा। परन्तु इस अवधि में उसने फिर कभी पंजाब को सिक्खों से जीतने का विचार न किया।

2. सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य की स्थापना –

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के पश्चात् रिक्खों ने अपनी शक्ति बढ़ानी आरम्भ की। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की। लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊंट तथा सामान छीन लिया। 1748 ई० में वे बैसाखी के अवसर पर अमृतसर में एकत्रित हुए। नवाब कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया। दल खालसा में कुल मिला कर 11 जत्थे थे, जिनमें प्रत्येक का अपनाअपना नाम, नेता तथा झण्डा था।

सिक्खों के 11 जत्थों तथा उनके नेताओं के नाम इस प्रकार थे-(1) आहलूवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता दल खालसा का प्रधान सेनापति जस्सा सिंह आहलवालिया था।
(2) फैज़लपुरिया जत्था-इसका नेता नवाब कपूर सिंह था जिसका सम्बन्ध फैजलपुरिया गांव से था।
(3)शुकरचकिया जत्था-इसका नेता पहले बोध सिंह था, परन्तु बाद में यह पद चढ़त सिंह ने सम्भाला।
(4) निशानवालिया जत्था-इसका नेता दसौंदा सिंह था जो ‘दल खालसा’ का झण्डा (निशान) उठाया करता था।
(5) भंगी जत्था-इसका नेता पहले भूमा सिंह था, परन्तु बाद में हरिसिंह इसका नेता बना।
(6) नक्कई जत्था-इस जत्थे का नेता हरिसिंह था।
(7) डल्लेवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता गुलाब सिंह था, जो डल्लेवाल गाँव से था।
(8) कन्हैया जत्था-इसका नेता सरदार जयसिंह था।
(9) करोड़सिंधिया जत्था-इस जत्थे का नेता सरदार करोड़ सिंह था।
(10) दीप सिंह जत्था-इसका नेता दीप सिंह था। उसी के नाम पर ही इस जत्थे को दीप सिंह जत्था कहा जाता था। बाद में इसे शहीद जत्था कहा जाने लगा।
(11) नन्द सिंह जत्था-इसका नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस जत्थे को बाद में रामगढ़िया जत्था कहा जाने लगा। सिक्ख सरदारों द्वारा स्थापित यही जत्थे बाद में स्वतन्त्र सिक्ख राज्यों में परिवर्तित हुए और मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। परन्तु मिसलों की कुल संख्या 12 थी।

पठानों के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कारण-पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कई कारण थे-
1. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए सिक्खों के सामने केवल एक ही उद्देश्य था और वह था पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका।

2. सिक्ख बड़े वीर थे और वे युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे।

3. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी नि:स्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़े।

4. सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति भी उनकी सफलता का कारण बनी।

5. सिक्ख-अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। अफ़गानों की लूटमार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे।

6. अब्दाली के सभी प्रतिनिधि अयोग्य सिद्ध हुए। उनमें राजनीतिक दूरदर्शिता तथा सूझ-बूझ की कमी थी। अतः वे अब्दाली के बाद पंजाब पर अपना नियन्त्रण न रख सके।

7. अहमदशाह अब्दाली का साम्राज्य बड़ा विस्तृत था। उसने जब कभी भारत पर आक्रमण किया उसके पीछे उसके राज्य के किसी-न-किसी भाग में अवश्य विद्रोह हुआ। अत: उसे अपनी भारतीय विजयों को स्थायी बनाए बिना ही वापस लौट जाना पड़ा।

8. सिक्खों को योग्य सेनापतियों का नेतृत्व प्राप्त था। जस्सा सिंह आहलूवालिया इस संघर्ष में सिक्खों की आत्मा थे। संघर्ष के अन्तिम चरण में चढ़त सिंह शुकरचकिया, हरिसिंह भंगी तथा अन्य सरदारों ने भी सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इसके विपरीत अफ़गान नेता इतने योग्य नहीं थे।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में

प्रश्न 1.
औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत का मुगल सम्राट् कौन बना ?
उत्तर-
बहादुरशाह प्रथम।।

प्रश्न 2.
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ कैसे सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 3.
जाटों के नेताओं के नाम लिखो जिन्होंने मुगलों से संघर्ष किया।
उत्तर-
मुग़लों के साथ संघर्ष करने वाले मुख्य जाट नेता गोकुल, राजाराम तथा चूड़ामणि (चूड़ामन) थे।

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प्रश्न 4.
भरतपुर में स्वतन्त्र राज्य की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
जाट नेता चूड़ामणि (अथवा चूड़ामन) ने।

प्रश्न 5.
सतनामी कहां के रहने वाले थे ?
उत्तर-
सतनामी नारनौल के रहने वाले थे।

प्रश्न 6.
(i) बन्दा बहादुर ने किस स्थान को अपनी राजधानी बनाया तथा
(ii) इसका नया नाम क्या रखा ?
उत्तर-
(i) बन्दा बहादुर ने मुखलिसपुर को अपनी राजधानी बनाया।
(ii) उसने यहां के किले की मुरम्मत करवाई और इसका नाम लौहगढ़ रखा।

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प्रश्न 7.
सिक्खों के दो दलों के नाम लिखो। उत्तर-बुड्ढा दल तथा तरुण दल। प्रश्न 8. दल खालसा की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 1748 ई० में हुई।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) शुजाऊद्दौला …………. ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा ।
(ii) अली मुहम्मद खां …………… ई० में सरहिंद का शासक बना।
(iii) जाब्ता खां …………… का उत्तराधिकारी था।
(iv) अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला (1747-48) ……….. के आमंत्रण पर किया।
(v) महासिंह शुकरचकिया मिसल के सरदार …………. का पुत्र था।
उत्तर-
(i) 1762
(ii) 1745
(iii) नजीबुद्दौला
(iv) शाहनवाज़ खां
(v) चढ़त सिंह।

3. सही/गलत कथन

(i) सदाअत खां बंगाल का सूबेदार था। — (✗)
(ii) अलीवर्दी खां ने मराठों के साथ 1751 में संधि की। — (✓)
(iii) मुइनुलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। — (✓)
(iv) लाहौर का सूबेदार जकरिया खां मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध था। — (✗)
(v) चालीस मुक्ते मुक्तसर की लड़ाई से संबंधित थे। — (✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
सफ़दरजंग सूबेदार था-
(A) बंगाल का
(B) बिहार का
(C) अवध का
(D) मालवा का ।
उत्तर-
(C) अवध का

प्रश्न (ii)
जाट नेता सूरजमल का उत्तराधिकारी था
(A) मोहर सिंह
(B) बदन सिंह
(C) साहिब सिंह
(D) जवाहर सिंह ।
उत्तर-
(D) जवाहर सिंह ।

प्रश्न (iii)
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी थी
(A) हरगोबिंदपुर
(B) भरतपुर
(C) करतारपुर
(D) कपूरथला ।
उत्तर-
(A) हरगोबिंदपुर

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प्रश्न (iv)
निम्न में से किस सिख राजा ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया?
(A) महा सिंह
(B) आला सिंह
(C) चढ़त सिंह
(D) कपूर सिंह ।
उत्तर-
(B) आला सिंह

प्रश्न (v)
जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी थी-
(A) कपूरथला
(B) जालंधर
(C) अमृतसर
(D) मुक्तसर ।
उत्तर-
(A) कपूरथला

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान के स्रोतों की चार किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान सम्बन्धी चार प्रकार के स्रोत हैं- इसरारे समदी, काजी नूर का जंगनामा, खुशवन्त राय की एहवाव-ए-सिखां तथा अहमदशाह बटालिया की तारीख-ए-हिन्द नामक पुस्तकें।

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प्रश्न 2.
18वीं सदी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है और यह किसने लिखी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति ‘गुरु पन्थ प्रकाश’ है। यह पुस्तक रतन सिंह भंगू ने लिखी।

प्रश्न 3.
18वीं सदी में गंगा के मैदान में जिन चार नई शक्तियों का उदय हुआ उनके नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में गंगा के मैदान में उदय होने वाली चार नई शक्तियां थीं-बंगाल, अवध, पंजाब के सिक्ख तथा जाट।

प्रश्न 4.
18वीं सदी में राजस्थान के कौन-से दो राज्यों के शासकों ने अपनी स्थिति मजबूत की तथा बाद में वे किन दो शक्तियों के अधीन हो गए ?
उत्तर-
18वीं सदी में राजस्थान में जोधपुर तथा जयपुर के शासकों ने अपनी स्थिति मज़बूत की। बाद में वे क्रमश: मराठों तथा अंग्रेजों के अधीन हो गए।

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प्रश्न 5.
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुगल प्रान्त कौन-सा था और उसके सूबेदार का नाम क्या था ?
उत्तर-
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुग़ल प्रान्त बंगाल था। इसका सूबेदार मुर्शिद कुली खां था।

प्रश्न 6.
मुर्शिद कुली खां के अधीन कौन-से दो मुग़ल प्रान्त थे तथा उसने ढाका के स्थान पर किसे अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर-
मुर्शिद कुली खां के अधीन उड़ीसा तथा बंगाल के मुग़ल प्रान्त थे। उसने ढाका के स्थान पर मक्सूदाबाद को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 7.
अलीवर्दी खां ने कब-से-कब तक शासन किया ?
उत्तर-
अलीवी खां ने 1740 ई० से 1756 ई० तक शासन किया।

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प्रश्न 8.
अलीवर्दी खां के अधीन कौन-से तीन मुग़ल प्रान्त थे ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां के अधीन तीन मुग़ल प्रान्त थे- बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा।

प्रश्न 9.
अलीवर्दी खां को किस वर्ष में मराठों के साथ सन्धि करनी पड़ी और उसने उनको चौथ में कितना रुपया देना स्वीकार किया ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां को 1751 ई० में मराठों से सन्धि करनी पड़ी। उसने मराठों को चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया।

प्रश्न 10.
अवध का कौन-सा सूबेदार लगभग स्वतन्त्र हो गया और वह किस वर्ष में सूबेदार बना था ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सआदत खां लगभग स्वतन्त्र हो गया। वह 1722 ई० में अवध का सूबेदार बना था।

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प्रश्न 11.
अवध का कौन-सा सूबेदार मुगल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया तथा वह कब-से-कब तक उस पद पर रहा ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सफदरजंग मुग़ल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया। वह 1748 ई० से 1753 ई० तक इस पद पर रहा।

प्रश्न 12.
शुजाऊद्दौला कब लखनऊ की गद्दी पर बैठा तथा वह किस मुग़ल बादशाह का मुख्य वजीर बना ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1754 ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा। वह मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का मुख्य वज़ीर बना।

प्रश्न 13.
शुजाऊद्दौला किस वर्ष में अंग्रेजों से पराजित हुआ तथा उसने इनकी सहायता से कौन-सा इलाका और कब जीता ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1765 ई० में अंग्रेजों से पराजित हुआ। उसने अंग्रेजों की सहायता से 1774 ई० में रुहेलखण्ड का इलाका जीता।

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प्रश्न 14.
शुजाऊद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ? ।
उत्तर-
शुजाऊद्दौला की मृत्यु 1775 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी आसफुद्दौला था।

प्रश्न 15.
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम थे–अली मुहम्मद खां तथा नजीबुद्दौला (नजीब खां)।

प्रश्न 16.
रुहेला पठानों की जन्मभूमि अफ़गानिस्तान में कहां थी तथा भारत में उनके इलाकों को क्या कहा जाने लगा ?
उत्तर-
रुहेला पठानों की अफ़गानिस्तान में जन्म-भूमि रोह थी। भारत में इनके इलाकों को रुहेलखण्ड कहा जाने लगा।

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प्रश्न 17.
अली मुहम्मद खां रुहेला को मुग़ल बादशाह से कितना मनसब और कौन-सी उपाधि कौन-से वर्ष में मिली ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां रुहेला को 1740 ई० में मुग़ल बादशाह से 500 का मनसब और नवाब की उपाधि मिली।

प्रश्न 18.
अली मुहम्मद खां कौन-से वर्ष में सरहिन्द का शासक बना तथा वह कब रुहेलखण्ड वापस चला गया ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां 1745 ई० में सरहिन्द का शासक बना। वह 1748 ई० में रुहेलखण्ड वापस चला गया।

प्रश्न 19.
किस वर्ष में रुहेलखण्ड पर अवध का अधिकार हो गया तथा अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने कौन-सी रियासत दे दी ?
उत्तर-
रुहेलखण्ड पर 1774 ई० में अवध का अधिकार हो गया। अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने रामपुर की रियासत दे दी।

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प्रश्न 20.
नजीब खां ने किस इलाके में जागीर प्राप्त की तथा उसे नजीबुद्दौला की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
नजीब खां ने सहारनपुर के इलाके में जागीर प्राप्त की। उसे नजीबुद्दौला की उपाधि 1757 ई० में मिली।

प्रश्न 21.
पानीपत के युद्ध के बाद अहमदशाह अब्दाली तथा मुगल बादशाह की ओर से नजीबुद्दौला ने कौन-से दो दायित्व सम्भाले ?
उत्तर-
पानीपत के युद्ध के बाद नजीबुद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली की ओर से प्रमुख वज़ीर तथा मुग़ल बादशाह की ओर से मीर बख्शी के दायित्व सम्भाले।

प्रश्न 22.
नजीबुद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसके उत्तराधिकारी का क्या नाम था ?
उत्तर-
नजीबुद्दौला की मृत्यु 1770 ई० में हुई। उसके उत्तराधिकारी का नाम जाब्ता खां था।

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प्रश्न 23.
किस रुहेला सरदार ने 1788 में कौन-से मुगल बादशाह को अन्धा करवा दिया ?
उत्तर-
1788 में रुहेला सरदार गुलाम कादर ने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को अन्धा करवा दिया।

प्रश्न 24.
जाट किस इलाके में मुगल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे तथा उनके आरम्भिक नेता का नाम बताएं और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
जाट मथुरा के इलाके में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे। उनके आरम्भिक नेता का नाम चूड़ामन था, जिसकी मृत्यु 1772 ई० में हुई।

प्रश्न 25.
बदन सिंह की राजधानी कौन-सी थी तथा उसको मुगल बादशाह से राजा की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
बदन सिंह की राजधानी भरतपुर थी। उसे 1752 ई० में मुगल बादशाह से राजा की उपाधि मिली।

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प्रश्न 26.
बदन सिंह की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर-
बदन सिंह की मृत्यु 1756 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी सूरजमल था।

प्रश्न 27.
सूरजमल की मृत्यु कब हुई तथा उसके राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
सूरजमल की मृत्यु 1763 ई० में हुई। उसके राज्य का वार्षिक लगान एक करोड़ सत्तर लाख रुपये था।

प्रश्न 28.
सूरजमल का उत्तराधिकारी कौन था तथा उसने कब तक शासन किया ?
उत्तर-
सूरजमल का उत्तराधिकारी जवाहर सिंह था। उसने 1768 ई० तक शासन किया।

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प्रश्न 29.
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान कितना रह गया तथा यह रियासत बाद में कौन-सी दो शक्तियों के अधीन हो गई ?
उत्तर-
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान केवल 14 लाख रुपये रह गया। यह रियासत पहले मराठों तथा फिर अंग्रेजों के अधीन हो गई।

प्रश्न 30.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी इलाकों में किन तीन लोगों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आई थीं ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी प्रदेशों में पठानों, राजपूतों तथा सिक्खों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आईं।

प्रश्न 31.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ कौन-सी दो लड़ाइयां लड़ी ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ आनन्दपुर तथा निर्मोह की लड़ाइयां लड़ीं।।

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प्रश्न 32.
कौन-सी लड़ाई में गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो बड़े साहिबजादे शहीद हुए और किसने दो छोटे साहिबजादों को शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए। उनके दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के फौजदार वज़ीर खां ने शहीद करवा दिया।

प्रश्न 33.
‘चालीस मुक्ते’ कौन-सी लड़ाई के साथ सम्बन्धित हैं तथा यह किनके बीच हुई ?
उत्तर-
‘चालीस मुक्त’ मुक्तसर की लड़ाई से सम्बन्धित हैं। यह लड़ाई सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खां तथा गुरु गोबिन्द साहिब के बीच हुई।

प्रश्न 34.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किस मुग़ल बादशाह को पत्र लिखा तथा वे किस मुगल बादशाह से मिले ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब को पत्र लिखा। वह मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मिले।

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प्रश्न 35.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति-जोत कब और कहां समाए और यह स्थान वर्तमान भारत में किस राज्य में
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 1708 ई० में नन्देड़ में ज्योति-जोत समाए। यह स्थान वर्तमान भारत के महाराष्ट्र राज्य में

प्रश्न 36.
दक्षिण में गुरु गोबिन्द सिंह जी को कौन-सा वैरागी मिला तथा वह बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
दक्षिण में गुरु साहिब को माधोदास नामक वैरागी मिला। बाद में वह बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 37.
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के कितने परगनों पर अधिकार कर लिया तथा बन्दा के अधीन राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के 28 परगनों पर अधिकार कर लिया। उसके अधीन राज्य का वार्षिक लगान 50 लाख रुपये से अधिक था।

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प्रश्न 38.
बन्दा बहादुर ने किस किले का निर्माण करवाया तथा उसके सिक्के पर कौन-सी लिपि अंकित थी ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने लोहगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया। उसके सिक्के पर फ़ारसी लिपि अंकित थी।

प्रश्न 39.
बन्दा बहादुर को किस मुगल सूबेदार ने कौन-से स्थान पर घेरा ? बन्दा बहादुर को कब और कहां शहीद कर दिया गया ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर को मुग़ल सूबेदार अब्दुल समद खां ने गुरदास नंगल के स्थान पर घेरा। उसे 1716 ई० में दिल्ली में शहीद किया गया।

प्रश्न 40.
1716 से 1752 तक लाहौर के किन्हीं चार मुग़ल सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
1716 से 1752 तक लाहौर के चार सूबेदार थे-अब्दुल समद खां, जकरिया खां, याहिया खां तथा मीर मन्नू।

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प्रश्न 41.
जकरिया खां कब-से-कब तक लाहौर का सूबेदार रहा ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० से 1745 ई० तक लाहौर का सूबेदार रहा।

प्रश्न 42.
सिक्खों को जागीर किस सूबेदार ने दी तथा नवाब की उपाधि किस सिक्ख नेता को दी गई ?
उत्तर-
सिक्खों को सूबेदार जकरिया खां ने जागीर दी। नवाब की उपाधि सिक्ख नेता कपूर सिंह को दी गई।

प्रश्न 43.
कौन-से मुगल सूबेदार ने भाई मनी सिंह को कहां शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
भाई मनी सिंह को मुग़ल सूबेदार जकरिया खां ने लाहौर में शहीद करवाया।

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प्रश्न 44.
ईरान से कौन-सा आक्रमणकारी कब भारत आया ?
उत्तर-
ईरान से नादिरशाह नामक आक्रमणकारी भारत आया। उसने 1738-39 में भारत पर आक्रमण किया।

प्रश्न 45.
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला कब और किसके आमन्त्रण पर किया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला आक्रमण 1747-48 में किया। यह आक्रमण उसने शाहनवाज़ खां के निमन्त्रण पर किया।

प्रश्न 46.
मुइनुलमुल्क लाहौर का सूबेदार कब बना तथा वह किस नाम से प्रसिद्ध हआ ?
उत्तर-
मुइनलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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प्रश्न 47.
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी तरफ से सूबेदार कब नियुक्त किया तथा उसकी मृत्यु कब
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी ओर से 1752 ई० में सूबेदार नियुक्त किया। उसकी मृत्यु 1753 ई० में हुई।

प्रश्न 48.
‘गुरमत्ता’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरमत्ता का अर्थ है-गुरु ग्रन्थ साहिब की उपस्थिति में एकत्रित सिंहों द्वारा लिया गया निर्णय। सिंह इसे गुरु का निर्णय (मत) मानते थे।

प्रश्न 49.
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुगल बादशाह से कौन-से चार प्रान्त तथा कौन-सी सरकार ले ली ?
उत्तर-
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुग़ल बादशाह से लाहौर, मुल्तान, सिन्ध तथा कश्मीर के सूबे और सरहिन्द की सरकार ले ली।

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प्रश्न 50.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा 1762 में मलेरकोटला में हुआ। यह अहमदशाह अब्दाली और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 51.
‘छोटा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
छोटा घल्लूघारा 1746 में काहनूवान के निकट हुआ। यह घल्लूघारा दीवान लखपत राय और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 52.
सिक्खों ने सरहिन्द तथा लाहौर पर किन वर्षों में अधिकार किया ?
उत्तर-
सिक्खों ने सरहिन्द पर 1763 ई० में तथा लाहौर पर 1765 ई० में अधिकार किया।

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प्रश्न 53.
18वीं सदी के चार प्रमुख सिक्ख सरदारों के नाम बताओ तथा उनकी राजधानियां बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी के चार प्रमुख सरदार थे : जस्सा सिंह आहलूवालिया, हरिसिंह भंगी, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा चढ़त सिंह शुकरचकिया। इनकी राजधानियां क्रमश: कपूरथला, अमृतसर, श्री हरगोबिन्दपुर तथा गुजरांवाला थीं।

प्रश्न 54.
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य किन दो दोआबों में था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य जालन्धर-दोआब तथा बारी-दोआब के प्रदेशों में था। उसकी राजधानी कपूरथला थी।

प्रश्न 55.
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम थे-गुज्जर सिंह भंगी तथा हरिसिंह भंगी।

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प्रश्न 56.
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके बारी-दोआब तथा जालन्धर-दोआब में थे। उसकी राजधानी श्री हरगोबिन्दपुर थी।

प्रश्न 57.
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके रचना-दोआब और चज-दोआब में थे। उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

प्रश्न 58.
आला सिंह कौन-से वंश से था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
आला सिंह फुल्किया वंश से था। उसकी राजधानी पटियाला थी।

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प्रश्न 59.
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन (राज) किन इलाकों में था ?
उत्तर-
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन जालन्धर-दोआब तथा सतलुज पार के कुछ इलाकों में था।

प्रश्न 60.
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम थे : गोबिन्दशाही रुपया तथा नानकशाही रुपया।

प्रश्न 61.
कौन-से दो सिक्ख राजाओं ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली का सिक्का क्रमश: पटियाला के राजा आला सिंह तथा जींद के राजा गजपत सिंह ने चलाया।

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प्रश्न 62.
कौन-से दो पुराने सिक्ख सरदारों में मरने-मारने का संघर्ष चलता रहा ?
उत्तर-
मरने-मारने का संघर्ष जस्सा सिंह रामगढ़िया और जयसिंह कन्हैया नामक दो पुराने सिक्ख सरदारों के बीच चलता रहा।

प्रश्न 63.
1784-85 तक कौन-सा सिक्ख सरदार सबसे शक्तिशाली होने लगा तथा यह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
1784-85 तक महासिंह शुकरचकिया सबसे शक्तिशाली होने लगा। वह चढ़त सिंह शुकरचकिया का पुत्र था।

प्रश्न 64.
महासिंह की मृत्यु कब और किसके साथ लड़ते समय हुई ?
उत्तर-
महासिंह की मृत्यु 1792 ई० में साहिब सिंह के विरुद्ध लड़ते समय हुई।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में उत्तर भारत की नई शक्तियां कौन-कौन सी थी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में अवध, बंगाल, पंजाब के सिक्ख तथा रुहेले पठान नवीन शक्ति के रूप में उभरे। अवध का राज्य सआदत खां के सम्बन्धियों के अधीन स्वतन्त्र राज्य के रूप में उभरा। सआदत खां की मृत्यु (1739 ई०) के बाद बादशाह अहमदशाह ने उसके भतीजे सफदर जंग को वजीर नियुक्त कर दिया। 1754 में शुजाऊद्दौला, अवध के स्वतन्त्र शासक के रूप में उभरा। 1717 में मुर्शिद कुली खां बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् 1727 में उसका जमाता शुजाऊद्दीन मुहम्मद खान बंगाल तथा बिहार में उसका उत्तराधिकारी बना। बाद में बिहार भी बंगाल की सूबेदारी में शामिल कर दिया गया। इस तरह स्वतन्त्र बंगाल की नींव रखी गई। नवीन शक्तियों में वास्तविक शक्ति सिक्ख सिद्ध हुए। उन्हें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में सैनिक रूप दिया। 1708 ई० में उन्होंने बन्दा बहादुर को मुग़लों से लड़ने के लिए भेजा। बन्दा बहादुर ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार किया और प्रथम सिक्ख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 2.
नजीबुद्दौला की शक्ति के उत्थान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
नजीब खान पठानों का एक नेता था। उसने दिल्ली के मुख्यमन्त्री अमादुलमुल्क की अवध के सफदर जंग के विरुद्ध सहायता की। बदले में उसे सहारनपुर के प्रदेश में एक बहुत बड़ी जागीर मिल गई। उसने 1757 में अहमदशाह अब्दाली का साथ देकर नजीबुद्दौला की उपाधि प्राप्त की और उसकी सिफारिश से मुगल दरबार का एक शक्तिशाली मन्त्री बन गया। नजीबुद्दौला की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर अमादुलमुल्क चिन्ता में पड़ गया। उसने नजीबुद्दौला की शक्ति को कम करने के लिए मराठों की सहायता की। परन्तु पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय के पश्चात् एक बार फिर नजीबुद्दौला का प्रभाव बढ़ने लगा। उसे अब भारत में अहमदशाह अब्दाली का प्रतिनिधि समझा जाने लगा । दिल्ली दरबार में वह मीर बख्शी के रूप में कार्य करने लगा। सम्राट शाह आलम द्वितीय के इलाहाबाद जाने के बाद नजीबुद्दौला दिल्ली में उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। नजीबुद्दौला की 1770 में मृत्यु हो गई ।

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प्रश्न 3.
जाटों की शक्ति का उत्थान कैसे हुआ ?
उत्तर-
मथुरा के जाटों ने पहली बार औरंगजेब के समय में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् एक जाट नेता चूड़ामन ने धीरे-धीरे अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा ली और मथुरा के आस-पास के बहुत-से प्रदेशों पर अपना शासन स्थापित कर लिया। 1722 ई० में उसकी मृत्यु के बाद उसका भतीजा बदन सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। 1752 ई० में बदन सिंह को मुग़ल सम्राट् ने राजा की उपाधि दी। इसके चार वर्ष के बाद ही बदन सिंह की मृत्यु हो गई । 1756 ई० में बदन सिंह का दत्तक पुत्र सूरज मल भरतपुर का राजा बना। सूरज मल एक सफल राजनीतिज्ञ सिद्ध हुआ। 1763 में वह नजीबुद्दौला के साथ लड़ता हुआ मारा गया। सूरजमल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी जवाहर सिंह अपने भाइयों तथा जाट नेताओं के साथ लड़ता-झगड़ता रहा। उसके पश्चात् रणजीत सिंह ने भरतपुर की राजगद्दी सम्भाली । उसके समय में जाट राज्य का पतन होने लगा।

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के मुगलों के साथ सम्बन्धों की मुख्य घटनाएं कौन-सी थीं ?
उत्तर-
मुग़लों के साथ गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। 1675 ई० में उनके पिता जी की शहीदी ने उन्हें मुगलों के विरुद्ध सैनिक नीति अपनाने के लिए बाध्य किया और उन्होंने अपने सिक्खों को सिक्ख सेना में शामिल होने का आह्वान किया । इसके बाद गुरु जी का सीधा मुकाबला मुग़ल सेनाओं से हुआ। सरहिन्द के गवर्नर ने अलफ खां के नेतृत्व में सेना भेजी । कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन में घमासान युद्ध हुआ। इसमें मुग़ल पराजित हुए। सरहिन्द के सूबेदार ने एक बार फिर सेना भेजी, परन्तु वे फिर पराजित हुए । कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजा मुग़लों से जा मिले ।

1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना सिक्खों के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखेप्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। गुरु जी के चारों साहिबजादे .हीदी को प्राप्त हुए, फिर भी उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के नए मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

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प्रश्न 5.
बन्दा बहादुर ने किस प्रकार सिक्खों का राज्य स्थापित किया ?
उत्तर-
बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 में पुच्छ जिला में हुआ था। उसका बचपन का नाम लक्ष्मण दास था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु जी ने सिक्खों की सहायता के लिए उसे पंजाब भेज दिया। पंजाब पहुंच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया।

इस तरह बन्दा बहादुर ने पहला सिक्ख राज्य स्थापित किया। उसने लोहगढ़ के किले को सिक्ख राज्य की राजधानी घोषित किया। उसने स्वतन्त्र सिक्ख राज्य के सिक्के चलाए जिन पर यह दर्शाया गया कि सिक्खों की विजय सिक्ख गुरु साहिबान की विजय है।

प्रश्न 6.
जकरिया खां ने किस प्रकार सिक्खों से निपटने की कोशिश की ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० में पंजाब का गवर्नर बना। गवर्नर बनते ही उसने सिक्खों के प्रति कत्लेआम की नीति अपनाई। हजारों की संख्या में सिक्ख पकड़े गए और लाहौर में दिल्ली गेट के निकट उनका वध कर दिया गया। यह स्थान बाद में शहीद गंज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नादिरशाह के आक्रमण के पश्चात् जकरिया खां ने सिक्खों का सर्वनाश करने की सोची। उसने किसी सिक्ख को जीवित अथवा मृत लाने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा की। देखते ही देखते सिक्खों को पकड़ा जाने लगा और लाहौर के घोड़ा बाजार में उनका वध किया जाने लगा। जकरिया खां द्वारा मेहताब सिंह, हकीकत राय, बूटा सिंह तथा भाई तारा सिंह को शहीद कराया गया । 1745 में जकरिया खां की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 7.
अफ़गानों के विरुद्ध युद्ध में सिक्खों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ?
उत्तर-
1747 ई० में अफ़गानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर अपना पहला आक्रमण किया। वह लाहौर को विजय करके दिल्ली की ओर बढ़ गया। मानूपुर के स्थान पर उसका मुग़लों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली पराजित हुआ। इस अराजकता के वातावरण ने सिक्खों को अपनी शक्ति सुदृढ़ करने का उचित अवसर जुटाया। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की । लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊँट तथा अन्य सामान छीन लिया। 1748 ई० में बैसाखी के अवसर पर वे अमृतसर में एकत्रित हुए। नबाव कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया।

प्रश्न 8.
18वीं सदी में सिक्खों ने किस प्रकार का राज्य प्रबन्ध स्थापित किया ?
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख शासक अपने-अपने क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार रखते थे। वे स्वयं दीवान, फ़ौजदार और कारदार आदि नियुक्त करते थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र या कोई निकट सम्बन्धी उनके उत्तराधिकारी बनते थे। वे अपने सामन्तों से खिराज लेते थे। परन्तु लगभग सारे क्षेत्र में वही सिक्का चलता था, जिस पर बन्दा बहादुर की मोहर पर अंकित फ़ारसी अक्षर उभरे हुए थे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक सिक्ख शासक एक स्वतन्त्र शासक था। कुछ समय तक पटियाला के राजा आला सिंह ने और जींद के राजा गजपत सिंह ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया। परन्तु यह केवल रस्मी अधीनता थी। अपने-अपने क्षेत्र में उनकी शक्ति उस प्रकार सम्पूर्ण थी, जिस तरह अन्य सिक्ख शासकों की थी जो किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहते थे। अपने-अपने क्षेत्र में सिक्ख सरदार लगभग वैसा ही शासन प्रबन्ध चलाते थे जो मुग़ल बादशाहों के समय से चला आ रहा था। यही कारण है कि सभी सिक्ख क्षेत्रों में लगभग एक प्रकार का प्रशासकीय ढांचा था।

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प्रश्न 9.
‘छोटा घल्लूधारा’ पर एक टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर-
सिक्खों के विरुद्ध कड़े नियम पास करने के पश्चात् याहिया खां ने दीवान लखपतराय के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिक्खों का पीछा करने के लिए भेजी। सिक्खों ने इस समय काहनूवान के दलदली प्रदेश में शरण ले रखी थी। वे मुग़ल सेना के तोपखाने का सामना न कर सके। इसलिए उन्हें माझा प्रदेश में वापस आना पड़ा। उन्होंने बड़ी कठिनाई से रावी नदी पार की। बटाला के निकट मुग़ल सेना ने हज़ारों सिक्खों का वध कर दिया। कुछ सिक्ख ब्यास की ओर बढ़े परन्तु वहां भी लखपतराय की सेना उनका पीछा करती हुई आ पहुंची। जालन्धर-दोआब में पहुंचने पर उन्हें अदीना बेग की सेना का सामना करना पड़ा। इस लम्बे युद्ध में लगभग आठ हज़ार सिक्खों का वध कर दिया गया और साढ़े तीन हज़ार सिक्खों को बन्दी बनाकर लाहौर ले जाया गया, जहां उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया गया। यह 1746 ई० की घटना सिक्ख इतिहास में ‘छोटा घल्लूघारा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 10.
सिक्खों का दमन करने के लिए मीर मन्नू द्वारा किए गए चार कार्य लिखो ।
उत्तर-
मीर मन्नू ने दिल्ली राज्य तथा अफ़गान आक्रमण दोनों के भय से निश्चिन्त होकर अपना ध्यान सिक्खों का दमन करने की ओर लगाया।
1. उसने अदीना बेग खां तथा सादिक खां के नेतृत्व में एक विशाल सेना जालन्धर-दोआब में सिक्खों के विरुद्ध भेजी। उन्होंने सिक्खों पर अचानक धावा बोलकर अनेक सिक्खों को मार डाला।

2. मीर मुमिन तथा हुसैन खां के नेतृत्व में लक्खी जंगल की ओर सिक्खों के विरुद्ध दो अन्य अभियान भेजे गए परन्तु उन्हें कोई विशेष सफलता प्राप्त न हो सकी क्योंकि सिक्ख बारी-दोआब के उत्तर की ओर भाग गए थे।

3. मीर मन्नू अब स्वयं सिक्खों के विरुद्ध बढ़ा। उसने बटाला के आस-पास के प्रदेशों में सिक्खों को भारी हानि पहुंचाई। उसने रामरौणी दुर्ग (जिसमें सिक्खों ने शरण ली थी) को भी घेरे में ले लिया तथा सैंकड़ों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए।

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प्रश्न 11.
सिक्खों की शक्ति को कचलने में मीर मन्न की असफलता के कोई चार कारण बताओ ।
उत्तर-
सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :-
1. दल खालसा की स्थापना-मीर मन्नू के अत्याचारों के समय तक सिक्खों ने अपनी शक्ति को दल खालसा के रूप में संगठित कर लिया । इसके सदस्यों ने देश, जाति तथा पन्थ के हितों की रक्षा के लिए प्राणों तक की बलि देने का प्रण कर रखा था।

2. दीवान कौड़ामल की सिक्खों से सहानूभूति-मीर मन्नू के दीवान कौड़ामल को सिक्खों से विशेष सहानुभूति थी। अतः जब कभी भी मीर मन्नू सिक्खों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता, कौड़ामल उसकी कठोरता को कम कर देता था।

3. अदीना बेग की दोहरी नीति-जालन्धर-दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग ने दोहरी नीति अपनाई हुई थी। उसने सिक्खों से गुप्त सन्धि कर रखी थी तथा दिखावे के लिए एक-दो अभियानों के बाद वह ढीला पड़ जाता था।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिक्खों ने अपने सीमित साधनों को दृष्टि में रखते हुए गुरिल्ला युद्ध की नीति को अपनाया। अवसर पाते ही वे शाही सेनाओं पर टूट पड़ते और लूट-मार करके फिर जंगलों की ओर भाग जाते ।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बन्दा बहादुर की सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। ..
अथवा
बंदा बहादुर की किन्हीं पांच विजयों का वर्णन कीजिए। उसकी शहीदी किस प्रकार हुई ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर (जन्म 27 अक्तूबर,1670 ई०) के बचपन का नाम लछमण दास था। बैराग लेने के पश्चात् उसका नाम माधो दास पड़ा।
वह 1708 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया। गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उन्हें सिक्ख बनाया और उन्हें पंजाब में ‘सिक्खों’ का नेतृत्व करने के लिए भेज दिया। गुरु जी का आदेश पा कर बन्दा बहादुर पंजाब पहुंचा और उसने आठ वर्षों तक सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इस अवधि में उसकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. समाना और कपूरी की लूटमार-बन्दा बहादुर ने सबसे पहले समाना पर आक्रमण कर वहां अपने शत्रुओं का वध कर दिया। तत्पश्चात् उसने कपूरी नगर को लूटा और फिर आग लगा दी।

2. सढौरा पर आक्रमण-इन नगरों के बाद बन्दा बहादुर ने सढौरा पर धावा बोल दिया। वहां के हिन्दू बन्दा बहादुर के साथ हो गए। उसने सढौरा के मुसलमानों का चुन-चुन कर वध किया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि उस स्थान का नाम ‘कत्लगढ़ी’ पड़ गया।

3. सरहिन्द की विजय-अब बन्दा बहादुर ने अपना ध्यान सरहिन्द की ओर लगाया। गुरु जी के दो छोटे पुत्रों को यहीं पर दीवार में जीवित चिनवा दिया गया था। बन्दा बहादुर ने यहां भी मुसलमानों का बड़ी निर्दयता से वध किया। सरहिन्द का शासक नवाब वजीर खां भी युद्ध में मारा गया। इस प्रकार बन्दा बहादुर ने गुरु जी के साहिबजादों की हत्या का बदला लिया।

4. सहारनपुर, जलालाबाद तथा जालन्धर-दोआब पर आक्रमण-तत्पश्चात् बन्दा बहादुर जलालाबाद की ओर बढ़ा। मार्ग में उसने सहारनपुर पर विजय प्राप्त की, परन्तु आगे चलकर भारी वर्षा तथा जालन्धर-दोआब के लोगों द्वारा सहायता की प्रार्थना किए जाने के कारण उसे जलालाबाद को विजय किए बिना ही वापस लौटना पड़ा। वह जालन्धर की ओर बढ़ा। राहों के स्थान पर एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे। इस प्रकार जालन्धर तथा होशियारपुर के क्षेत्र सिक्खों के अधिकार में आ गए।

5. अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट पर अधिकार-बन्दा बहादुर की सफलता से उत्साहित होकर लगभग आठ हज़ार सिक्खों ने अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट को अपने अधिकार में ले लिया। कुछ समय पश्चात् लाहौर भी उनके अधिकार में आ गया।

6. मुग़लों का लोहगढ़ पर आक्रमण-बन्दा बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ने मुनीम खां के नेतृत्व में 60 हज़ार सैनिक भेजे। बन्दा बहादुर लोहगढ़ में पराजित हुआ। वहां से वह नंगल पहुंचा और पहाड़ी राजाओं को पराजित किया।

गुरदास नंगल का युद्ध और बन्दा बहादुर की शहीदी-1713 ई० में फर्रुखसियर मुग़ल सम्राट् बना। उसने बन्दा बहादुर के विरुद्ध कश्मीर के गवर्नर अब्दुस्समद के नेतृत्व में एक भारी सेना भेजी। इस सेना ने गुरदास नंगल के स्थान पर सिक्खों को भाई दुनी चन्द की हवेली में घेर लिया। सिक्खों को आठ मास के लम्बे युद्ध के पश्चात् हथियार डालने पड़े क्योंकि उनकी रसद समाप्त हो गई थी। बन्दा बहादुर तथा उसके सभी साथी बन्दी बना कर लाहौर लाए गए। यहां से 1716 ई० को उन्हें दिल्ली ले जाया गया। बन्दा बहादुर तथा उसके 40 साथियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने को कहा गया। उनके इन्कार करने पर बन्दा बहादुर के सभी साथियों की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् बन्दा बहादुर को अनेक यातनाओं के बाद शहीद कर दिया गया।
सच तो यह है कि बन्दा बहादुर की विजयों ने सिक्खों को एकता की लड़ी में पिरो दिया और उन्हें स्वतन्त्रता का मार्ग दिखाया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 2.
अब्दुस्समद द्वारा किए गए सिक्ख विरोधी कार्यों, जकरियां खां द्वारा सिक्खों का कत्लेआम, याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार और मीर मन्नू द्वारा किए गए सिक्खों के विरुद्ध कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
1716 से 1747 ई० तक सिक्खों के कत्लेआम का सक्षिप्त वर्णन करो ।
उत्तर-
1. अब्दस्समद द्वारा सिक्ख विरोधी कार्य-सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए अब्दुस्समद ने अनेक कठोर पग उठाए। सिक्खों के सिरों की कीमत भी निश्चित कर दी गई और हज़ारों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए । अब्दुस्समद तथा उसके सैनिकों ने सिक्खों का इस प्रकार पीछा किया जैसे कोई शिकारी अपने शिकार का करता है। अनेक सिक्खों ने तो आत्म-रक्षा के लिए केश भी कटवा डाले, परन्तु इनमें ज्यादा उन सिक्खों की संख्या थी जो किसी भी अवस्था में अपना धर्म छोड़ने के लिए तैयार न थे। ऐसे में सभी सिक्ख अपने घरों को छोड़ पहाड़ों, जंगलों तथा रेगिस्तानी प्रदेशों में जा छिपे। एक इतिहासकार के अनुसार अब्दुस्समद खां ने पंजाब के मैदान को सिक्खों के खून से इस प्रकार भर दिया जैसे किसी कटोरी को भर दिया जाता है।

2. जकरिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-पंजाब का गवर्नर बनते ही जकरिया खां ने सिक्ख शक्ति को सदा के लिए समाप्त करने के लिए कठोर नीति को अपनाया। प्रतिदिन सुबह लाहौर से सैनिक टुकड़ियां जंगलों तथा गांवों में सिक्खों की खोज में निकलती और सिक्खों के जत्थे के जत्थे बन्दी बनाकर लाहौर नगर में लाए जाते। वहां उन्हें अनेक यातनाएं दी जाती और फिर उनका सामूहिक रूप से वध कर दिया जाता था। सिक्खों के सिरों की कीमत फिर से निश्चित कर दी गई। सिक्ख का कटा हुआ सिर लाने वाले को सरकार की ओर ईनाम दिया जाने लगा। सिक्खों में आतंक उत्पन्न करने के लिए ज़करिया खां ने सिक्खों के सिरों (कटे हुए) का एक गुम्बद-सा खड़ा कर दिया। हज़ारों सिक्खों ने फिर से जंगलों और पहाड़ों में शरण ली। वे बड़े संकट में थे कि अब क्या किया जाए । ऐसे समय में तारा सिंह नामक एक वीर तथा साहसी व्यक्ति ने उनमें नव-जीवन का संचार किया और उनके आत्म-विश्वास को जगाया।

3. याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-ज़करिया खां की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र याहिया खां पंजाब का गवर्नर बना। वह भी अपने पिता की भान्ति बड़ा निर्दयी तथा कठोर स्वभाव वाला व्यक्ति था। पद सम्भालते ही उसने सिक्खों की शक्ति को कुचलने का दृढ़ निश्चय किया और शीघ्र ही उनके विरुद्ध कठोर पग उठाने आरम्भ कर दिए। दीवान लखपत राय तथा उसके भाई जसपतराय ने भी याहिया खां को इस कार्य में पूरा सहयोग दिया। छोटा घल्लूघारा उसके समय में हुआ जिसमें हज़ारों की संख्या में सिक्ख वीरगति को प्राप्त हुए।

4. मीर मन्नू के कार्य-सिक्खों को कुचलने के लिए मीर मन्नू ने अपनी सेना में नए सैनिकों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। अदीना बेग को जालन्धर में तथा कौड़ामल को लाहौर में सिक्खों के प्रति कठोर पग उठाने के आदेश दिए गए। सिक्खों के सिरों के लिए पुरस्कार घोषित कर दिए गए। सिक्खों का पीछा करने के लिए फौजी दस्ते भी भेजे गए। जो मुसलमान सिक्खों के सिर काट कर लाते उन्हें ईनाम मिलने लगे। सभी सिक्ख आत्मरक्षा के लिए जंगलों में छिप गए। वे अवसर मिलने पर मुग़ल सेना पर टूट पड़ते और काफ़ी माल लूट कर ले जाते।
सच तो यह है कि इन सारे अत्याचारों के बावजूद सिक्ख अन्ततः बलशाली बने और वे अपनी मिसलें स्थापित करने में सफल हुए।

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प्रश्न 3.
अहमदशाह अब्दाली सिक्खों की शक्ति का दमन करने में क्यों असफल रहा ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच महत्त्वपूर्ण कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1. सिक्खों का दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास-डॉ० हरिराम गुप्ता के अनुसार, अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष में उनका केवल एक ही उद्देश्य था-पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका। बड़ा घल्लूघारा में लगभग 12,000 सिक्खों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई थी; परन्तु फिर भी सिक्खों का आत्मविश्वास कम नहीं हुआ। अन्त में 30 वर्षों के संघर्ष के बाद वे पंजाब में स्वतन्त्र सिक्ख साम्राज्य की स्थापना करने में सफल हुए।

2. सिक्खों का युद्ध कौशल- सिक्खों की सफलता का अन्य कारण उनका युद्ध कौशल था। वे बड़े वीर थे और युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे। अपने सैनिक गुणों द्वारा उन्होंने अब्दाली को इतना तंग कर दिया कि उसने आठवें आक्रमण के बाद पुनः पंजाब की ओर मुंह न किया।

3. सिक्खों की निःस्वार्थ भावना-अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी निःस्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़ते थे। स्वतन्त्रता प्राप्त करना वे अपना सबसे बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। यही उनके संघर्ष का एकमात्र उद्देश्य था। इसके विपरीत अब्दाली के सभी प्रतिनिधि महत्त्वाकांक्षी तथा स्वार्थी थे। अतः वे सिक्खों की संगठित शक्ति का दमन करने में असफल रहे।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध की नीति-सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध की नीति भी उनकी सफलता का मुख्य कारण बनी। जब कभी आक्रमणकारी सेना लेकर आता तो सिक्ख पहाड़ों या जंगलों की ओर भाग जाते। फिर अवसर पाकर वे शत्रु की सेना पर अचानक ही टूट पड़ते तथा उनकी युद्ध व खाद्य सामग्री लूट कर पुन: अपने गुप्त स्थानों में जा कर छिप जाते। उनकी इस गुरिल्ला युद्ध नीति ने जहां सिक्खों को विनाश से बचाए रखा, वहीं इस नीति ने धीरे-धीरे अफ़गान नेता की शक्ति तथा साधनों को भी क्षीण कर दिया। अफ़गान सैनिक वैसे भी गुरिल्ला युद्ध के अभ्यस्त न थे। वे पंजाब के गुप्त मार्गों से भी अपरिचित थे। इस दशा में अब्दाली की असफलता तथा सिक्खों की सफलता निश्चित ही थी।

5. पंजाब के ज़मींदारों का सिक्खों को सहयोग-सिक्ख अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। पंजाब के ज़मींदार यह भली-भान्ति जानते थे कि अब्दाली के वापस जाने पर उनका सम्बन्ध सिक्खों से ही रहना था। अफ़गानों की लूट-मार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे। इसके अतिरिक्त कुछ ज़मींदार सहधर्मी होने के नाते भी सिक्खों के प्रति सहानुभूति रखते थे। वे सिक्खों की भोजन तथा धन आदि से भी सहायता करते और संकट के समय उन्हें आश्रय देते। परिणामस्वरूप सिक्ख अब्दाली को हर बार पंजाब से मार भगाने में सफल रहे।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 2 चट्टानें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 चट्टानें

PSEB 11th Class Geography Guide चट्टानें Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क )
चट्टानों से औज़ार कौन-से युग में बनाए जाते थे ?
उत्तर-
पाषाण युग (Stone Age) में।

प्रश्न (ख)
मुसामों के आधार पर चट्टानों की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. मुसामदार चट्टानें (Porous Rocks)
  2. गैर मुसामदार चट्टानें (Impervious Rocks)

प्रश्न (ग)
पृथ्वी की सबसे ऊपरीय पेपड़ी को और क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
थलमण्डल (Lithosphere) ।

प्रश्न (घ)
पैट्रोलोजी को किसका विज्ञान कहा जाता है ?
उत्तर-
चट्टानों का विज्ञान।

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प्रश्न (ङ)
रवे किस प्रकार की चट्टानों का अंश हो सकते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों (Igneous Rocks)।

प्रश्न (च)
माफिक (Mafic) कौन-से दो तत्त्वों का सुमेल है ?
उत्तर-
मैग्नीशियम और लोहे के सुमेल से।

प्रश्न (छ)
अवशेष (पथराट) (Fossils) सर्वाधिक किस किस्म की चट्टानों में मिलते हैं ?
उत्तर-
तहदार तलछटी चट्टानों में।

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प्रश्न (ज)
रूपांतरित चट्टानों में कौन-से खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं ?
उत्तर-
नेइस और क्वार्टज़ाइट।

प्रश्न (झ)
चूना पत्थर परिवर्तित होकर कौन-सी चट्टान बनता है ?
उत्तर-
संगमरमर।

प्रश्न (ञ)
शेल, भारत में सर्वाधिक कहाँ-से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
स्पीति (हिमाचल प्रदेश) से।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
पंजाब में शिवालिक हिमालय को कौन-से हिस्सों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-

  1. निम्न शिवालिक
  2. मध्य शिवालिक
  3. उच्च शिवालिक।

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प्रश्न (ख)
चट्टानों की कौन-सी मुख्य किस्में (प्रकार) हैं ?
उत्तर-

  1. अग्नि चट्टानें
  2. तलछटी चट्टानें
  3. परिवर्तित चट्टानें।

प्रश्न (ग)
पृथ्वी के चापड़ निर्माण में कौन-से मुख्य तत्त्व हैं ?
उत्तर-
ऑक्सीजन और सिलीकॉन।

प्रश्न (घ)
खनिज पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर-
खनिज एक प्राकृतिक रूप में मिलने वाला अजैव तत्त्व अथवा यौगिक है, जिसकी निश्चित रासायनिक रचना होती है।

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प्रश्न (ङ)
पृथ्वी की सतह का सबसे अधिक हिस्सा कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
धरती की सतह का 75% हिस्सा तलछटी चट्टानों से बना हुआ है।

प्रश्न (च)
थल मण्डल का सबसे अधिक भाग कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
तलछटी चट्टानों का।

प्रश्न (छ)
परिवर्तित चट्टानों की निर्माण-क्रिया कहाँ होती है ?
उत्तर-
धरातल से 12-16 कि०मी० नीचे।

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प्रश्न (ज)
कोयला रूपांतरित होकर क्या-क्या रूप धारण करता है ?
उत्तर-
पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस और ग्रेफाइट।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अग्नि चट्टानों की कोई तीन विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. 1. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार होती हैं।
  2. ये लावे के जमने के बाद ठोस होने से बनती हैं।
  3. ये ठोस और स्थूल अवस्था में मिलती हैं।

प्रश्न (ख)
चट्टान की परिभाषा क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं, जो ग्रेनाइट के समान कठोर और चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है।

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प्रश्न (ग)
खुम्भ जैसी चट्टानें कौन-सी हैं ? एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
कई बार लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठोस हो जाता है, तब इसका आधार चौड़ा और शिखर खुम्भ जैसा बन जाता है, जिसे लैकोलिथ कहते हैं। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में ये चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न (घ)
संगमरमर और ग्रेफाइट अधिकतर राजस्थान में क्यों मिलते हैं ?
उत्तर-
संगमरमर और ग्रेफाइट ताप परिवर्तित चट्टानें हैं। चूने का पत्थर संगमरमर में बदल जाता है और कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता है। ये चट्टानें राजस्थान में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं।

प्रश्न (ङ)
कोई तीन चट्टानें बताएँ, जो परिवर्तित होकर कुछ और बनती हैं ?
उत्तर-
मूल चट्टान — परिवर्तित चट्टानें
शेल (Shale) — स्लेट (Slate)
ग्रेनाइट (Granite) — नेइस (Gneiss)
चूने का पत्थर (Limestone) — संगमरमर (Marble)

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प्रश्न (च)
ऊर्जा के साधन खनिज कौन-सी चट्टानों से मिलते हैं और क्यों ?
उत्तर-
कोयला, पैट्रोलियम ऊर्जा खनिज हैं। ये तहदार चट्टानों में मिलते हैं। चट्टानों की परतों में जीव-जन्तुओं के अवशेष, दबाव के कारण कोयला और पैट्रोलियम में बदल जाते हैं।

प्रश्न (छ)
तहदार चट्टानों की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तहदार चट्टानें अलग-अलग प्रकार के मलबे के नीचे बैठ जाने (settle down) के कारण बनती हैं। अपरदन से प्राप्त तलछट के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं।

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प्रश्न (ज)
चट्टानों का विज्ञान क्या है ? एक नोट लिखें।
उत्तर-
पैट्रोलोजी (Petrology) को चट्टानों का विज्ञान कहते हैं। चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पति के अवशेष चट्टानों की उत्पत्ति और समय के बारे में बताते हैं। (Rocks are the pages of the earth, history and fossils are the writing on it.)

4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
चट्टानों से क्या अभिप्राय है ? इनका वर्गीकरण करें और किसी एक प्रकार की व्याख्या करें।
उत्तर-
चट्टानें (Rocks)—पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं। (‘Any material out of which the crust is made is called a Rock.’) चट्टान ग्रेनाइट के समान कठोर अथवा चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है। यह स्लेट की तरह गैरमुसामदार (Imporous) और चूने की पत्थर की तरह मुसामदार (Porous) भी हो सकती है।

एक अन्य परिभाषा के अनुसार, “Any non-metallic natural substance found in the crust of the earth is called a Rock, whether it is hard as granite or soft as clay.”

पृथ्वी का थलमण्डल चट्टानों का बना हुआ है। इन चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। (Rocks are aggregate of Minerals.) इनमें क्वार्टज़ खनिज सबसे अधिक मात्रा में मिलता है। एक ही खनिज से बनी हुई चट्टानें भी मिलती हैं, जैसे चूने का पत्थर और रेत का पत्थर। इन खनिज पदार्थों की अलग-अलग मात्रा के कारण चट्टान की कोमलता या कठोरता, रंग, रूप, गुण और शक्ति अलग-अलग होती है। इस प्रकार रंग (Colour), रचना (Structure), कणों (Texture) के आधार पर अलग-अलग प्रकार की चट्टानें मिलती हैं परन्तु सबसे अच्छा वर्गीकरण चट्टानों की रचना के आधार पर ही किया जा सकता है।

चट्टानों का वर्गीकरण (Types of Rocks)-चट्टानें कई प्रकार की होती हैं। रचना के आधार पर चट्टानें निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-

  1. अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)
  2. तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
  3. परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)।

अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)—अग्नि चट्टानें वे चट्टानें हैं, जो पृथ्वी के तरल लावे के ठंडा और ठोस होने के कारण बनती हैं। (Igneous Rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये चट्टानें पृथ्वी पर सबसे पहले बनीं, इसीलिए इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। इग्नियस शब्द लातीनी शब्द इग्निस (Ignis) से बना है, जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है, जिसका औसत तापमान 595° C है। यह गर्म लावा वायुमण्डल के सम्पर्क में आकर ठंडा होकर जम जाता है। इस तरह मैग्मा और लावे के ठंडे होकर कठोर होने से अग्नि चट्टानें बनती हैं।

अग्नि चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks)—मुख्य रूप से ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 1

(i) बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks)-जब लावा पृथ्वी के धरातल से बाहर आकर ठंडा हो जाता है, तब बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks) अथवा धरातलीय चट्टानें बनती हैं।

(ii) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks)—जब लावा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है, तब भीतरी चट्टानें बनती हैं।

इस प्रकार लावे के ठोस होने की क्रिया और स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं-

(i) ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks)—ये चट्टानें ज्वालामुखी के “ज्वाला प्रवाह” (Lava Flow) के कारण बनती हैं, इसलिए इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। ये पिघला हुआ पदार्थ वायुमंडल के संपर्क से ठंडा हो जाता है। धरती की सतह पर लावा जल्दी ठंडा हो जाता है और पूर्ण रूप से रवे (Crystals) नहीं बनते। ये चट्टानें शीशे (Glass) की तरह होती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 2
उदाहरण-(i) बसालट, गैब्बरो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। (ii) भारत में पश्चिमी-दक्षिणी पठार (दक्षिपी ट्रैप) और संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलंबिया का
पठार।

(ii) मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks)—ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों और दरारों में लावा जम जाने के कारण बनती हैं। बाहरी तथा भीतरी चट्टानों के बीच में स्थित होने के कारण इन्हें मध्यवर्ती चट्टानें भी कहते हैं। धरती के समानांतर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल और धरती के ऊपर लंब (Vertical) आकार में बनने वाली चट्टानों को डायक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं।

उदाहरण-

  • भारत के मध्य प्रदेश में कोरबा (Corba) और बंगाल तथा बिहार के रानीगंज और झरिया के कोयला क्षेत्रों में सिल और डायक मिलते हैं।
  • डोलेराइट (Dolerite) चट्टान इसका उदाहरण है।

(iii) गहरी अग्नि चट्टानें (Plutonic Rocks)-ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब लावा बाहर आने में असमर्थ होता है और लावा शुरू में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठंडा और कठोर होता है और बड़े-बड़े मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम ‘प्लूटो’ (Pluto) के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है-पाताल देवता। धरती के कटाव के बाद ये चट्टानें ऊपर नज़र आती हैं। कई प्रकार के गुंबद (Domes) और बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण-

  • (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम की कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
    (ii) भारत में कांची का पठार और सिंहभूम (बिहार) में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

तेज़ाबी और खारदार चट्टानें (Acid and Basic Rocks)-संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें तेज़ाबी चट्टानें (Acid Rocks) और जिनमें सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें खारदार चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं।

अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics of Igneous Rocks)

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावे के जमकर ठोस होने पर बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जंतुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता। ये कठोर होती हैं।

अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Igneous Rocks)-

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ, मकानों के लिए पत्थर आदि बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेसाइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ख)
अंतर बताएँ-
1. भीतरी और बाहरीय चट्टानें
2. चट्टान व खनिज
3. ताप व प्रादेशिक परिवर्तन।
उत्तर-

(i) अंदरूनी चट्टानें- (ii) बाहरीय चट्टानें
1. जब मैग्मा धरती के भीतरी भाग में ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो उसे भीतरी अग्नि चट्टानें अग्नि चट्टानें कहते हैं। 1. जब लावा धरातल पर ठंडा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है, तो उसे बाहरी कहते हैं।
2. धीरे-धीरे ठंडा होने के कारण बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। 2. लावा के जल्दी ठंडे हो जाने के कारण रवे अच्छी तरह से नहीं बनते।
3. इनकी बनावट मोटी दानेदार होती है। 3. इनकी बनावट शीशे के समान होती है।
4. इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। 4. इन्हें पाताली या गहरी चट्टानें भी कहते हैं।
5. बसालट इसका प्रमुख उदाहरण है। 5. ग्रेनाइट इसका प्रमुख उदाहरण है।

 

चट्टान- खनिज-
1. चट्टानों की रासायनिक बनावट निश्चित नहीं होती है। 1. इनकी रासायनिक बनावट निश्चित होती है।
2. चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के योग से होती है। 2. खनिज एक प्राकृतिक रूप से मिलने वाला अजैव तत्त्व है।
3. चट्टानों के भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं। 3. हर एक खनिज के भौतिक गुण निश्चित होते हैं।

 

ताप परिवर्तन प्रादेशिक परिवर्तन
1. इस क्रिया में लावे के स्पर्श से चट्टानों में परिवर्तन होता है। 1. इस क्रिया में ऊपरी तहों के दबाव से चट्टानों में परिवर्तन होता है।
2. यह क्रिया स्थानीय रूप में होती है। 2. यह क्रिया बड़े पैमाने पर होती है।
3. इस क्रिया से चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। 3. इस क्रिया से ग्रेनाइट, नेइस चट्टान में परिवर्तित हो जाता है।

 

प्रश्न (ग)
चट्टान चक्र क्या है ? उदाहरणों व चित्रों से स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक प्रकार की चट्टानों का दूसरी प्रकार की चट्टानों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को चट्टानी चक्र कहते हैं। यह पृथ्वी के भीतरी ताप और बाहरी शक्तियों के अपरदन के कारण होता है। अग्नि चट्टानों के अपरदन के कारण तलछट प्राप्त होते हैं, जिनसे तहदार चट्टानें बनती हैं। ये चट्टानें ताप, दबाव और रासायनिक प्रक्रिया के कारण रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। ये पिघल कर फिर से अग्नि चट्टानें बन जाती हैं। अपरदन के कारण ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इसे चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। यह चक्र लगातार चलता रहता है।

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प्रश्न (घ)
तहदार और परिवर्तित चट्टानों के गुणों के आधार पर ब्यान कीजिए कि मनुष्य के लिए कौन-सी प्रकार अधिक लाभदायक है ?
उत्तर-
1. इन चट्टानों से कई प्रकार के प्राकृतिक साधन मिलते हैं, जैसे-कोयला, तेल, गैस आदि सभी पदार्थ वनस्पति और जीव-जंतुओं के अवशेषों से प्राप्त होते हैं। बारीक रेत, गाद, रेत पत्थर, शैल आदि भवन-निर्माण के काम आते हैं। बाढ़ के मैदान खेती के लिए लाभदायक होते हैं। झीलों से जिप्सम पत्थर मिलता है। कांगलोमरेट शिवालिक की पहाड़ियों और तलचर में मिलते हैं। चूने का पत्थर, चॉक, डोलोमाइट सीमेंट उद्योग में काम आते हैं। सटैलरानाईट, सटैलकटालीट चट्टानों से नमक प्राप्त होता है।

2. परिवर्तित चट्टानें- परिवर्तित चट्टानों से सोना, चांदी, कीमती पत्थर, जवाहरात आदि मिलते हैं। कठोर प्रकार के पत्थर ग्रेनाइट, नेइस, सिस्ट उपयोगी होते हैं। संगमरमर, स्लेट, ग्रेफाइट कीमती चट्टानें हैं। क्वार्टज़ाइट चट्टान राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश में मिलती है। नेइस को भवनों के निर्माण के लिए तथा क्वार्टज़ाइट को शीशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रेफाइट से पेंसिल का सिक्का बनता है। कई प्रसिद्ध इमारतें जैसे-ताजमहल, आगरे का किला, लाल किला आदि संगमरमर से बनी हैं।

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प्रश्न (ङ)
निक्षेप विधि से बनी तहदार चट्टानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-अपरदन द्वारा प्राप्त तलछट (Sediments) के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं। (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.)
तलछट में छोटे और बड़े आकार के कण होते हैं। इन कणों के इकट्ठा होकर बैठ जाने से (settle down) तलछटी चट्टानों का निर्माण होता है।

तलछट के साधन (Sources of Sediments)-पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थों को जल, हवा और हिम नदी जमा करते रहते हैं।
तलछट जमा होने के स्थान (Places of Deposition)–यह तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं आदि क्षेत्रों में जमा होती रहती है।
रचना (Formation)इन चट्टानों की रचना कई स्तरों पर पूरी होती है।

1. तलछट का निक्षेप (Deposition) – ये पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण और उसके बाद छोटे कण (During the deposition, the material is sorted out according to the size.)

2. परतों का निर्माण (Layers)-लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते रहते हैं।

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3. ठोस होना (Solidification)–ऊपरी परतों के भार के कारण नीचे की परतें संगठित होने लगती हैं।
सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं। तलछटी चटटानों की किस्में (Types of Sedimentary Rocks)-तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं –

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा (Machanically Formed Rocks)
2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

तलछटी चट्टानों के निर्माण के साधनों और जमाव के स्थान के अनुसार नीचे लिखी किस्में हैं-

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी चट्टानें (Mechanically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण कटाव की शक्तियों के द्वारा एक स्थान पर एकत्र होने से होता है : जैसे नदी और हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यांत्रिक रूप में प्राप्त होते हैं। ये चट्टानी टुकड़े आपस में जुड़कर कठोर चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं।

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(क) दरियाई चट्टानें (Riverine Rocks)–जब तलछट का जमाव नदी बेसिन (Basin); बाढ़ क्षेत्र और डेल्टा में होता है तब ये चट्टानें बनती हैं; जैसे शेल (Shale), चिकनी मिट्टी (Clay), रेत का पत्थर (Sand Stone)। इन चट्टानों में रेत के कणों और चिकनी मिट्टी के कणों की बहुतायत होती है। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  • रेत निर्मित चट्टानें (Arenaceous Rocks)–जिनमें रेत, बजरी और क्वार्टज़ अधिक मात्रा में हों। बजरी तथा गोल पत्थरों के आपसी जमाव से कांगलोमरेट चट्टान बनती है।
  • मिट्टी निर्मित चट्टानें (Argillaceous Rocks)-जिनमें चिकनी मिट्टी (clay) के कण अधिक मात्रा में हों। शेल (Shale) और सिल्ट (Silt) से मिट्टी के बर्तन और ईंटें बनती हैं।

(ख) झील परतदार चट्टानें (Laccustrine Rocks)-जब तलछट का जमाव झीलों में होता रहता है, तब झीलों में परतदार चट्टानें बनती हैं। झील के भर जाने या सूख जाने पर तल के ऊपर उठ जाने से ये चट्टानें उभर आती हैं; जैसे नमक और जिप्सम (Gypsum) आदि।

(ग) वायु निक्षेप चट्टानें (Aeolian Rocks)-हवा के द्वारा जमा की गई रेत और मिट्टी जम कर कठोर चट्टानों का रूप धारण कर लेती है। इन चट्टानों में कमज़ोर परतें होती हैं। जिस प्रकार मध्य एशिया के गोबी (Gobi) मरुस्थल से हवा द्वारा लाए गए बारीक कणों से चीन का लोइस (Loess) पठार बन गया है।

(घ) हिम निक्षेप चट्टानें (Glacial Rocks)-जब हिमनदी (Glaciar) पिघलती है तो अपने साथ लाए हुए मलबे को अपने किनारों और सिरों पर जमा कर देती है। मलबे के इन ढेरों को हिम-चट्टानें कहते हैं।

2. जैविक चट्टानें (Organically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण जीव-जंतुओं और वनस्पति के मलबे के इकट्ठे होने से होता है। ये चट्टानें मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं –

(i) कार्बन प्रधान चटटाने
(ii) चूना प्रधान चट्टानें

(i) कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जंतु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथरेसाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(ii) चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks)–समुद्र के जीव-जंतु समुद्र के पानी से चूना प्राप्त करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो ये पिंजर परतों के रूप में इकट्ठे होकर चट्टान बन जाते हैं। इन चट्टानों में चूने की मात्रा अधिक होने के कारण ये चट्टानें चूने का पत्थर (Lime Stone), चॉक (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite) आदि में बदल जाती हैं।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks)—पानी में कई रासायनिक तत्त्व मिले होते हैं। जब पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो रासायनिक पदार्थ परतों के रूप में जमते रहते हैं और कठोर चट्टानें बन जाती हैं, जैसे-पहाड़ी नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum), शोरा (Potash) । इन चट्टानों के निर्माण में काफी समय लग जाता है।

तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks)-

  1. इन चट्टानों में अलगअलग परतें होती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) भी कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर मिलती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जंतुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली होती हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

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प्रश्न (च)
स्थान और आकृति के आधार पर मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की आकृति और स्थान के आधार पर इन्हें अनेक उपभागों में बाँटा जा सकता है-

1. लैकोलिथ (Laccoliths) जो लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठंडा हो जाता है, जैसे—दो परतदार चट्टानों के बीच जमा लावा-इन्हें लैकोलिथ कहा जाता है। इनका आधार चौड़ा, एक डबलरोटी के एक टुकड़े (Loaf) अथवा खंभ (Mushroom) की तरह शिखर गुंबद जैसा होता है। ये चट्टानें उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी हिस्से में बहुत आम मिलती हैं।

2. बैथोलिथ (Batholiths)-बैथोलिथ बहुत ही विशाल भीतरी अग्नि चट्टानें हैं। इनकी लम्बाई 100 किलोमीटर से भी अधिक हो सकती है। इनकी मोटाई (Thickness) अधिक होने के कारण आधार को देखना संभव नहीं। जब लावा धरती की तहों के नीचे टेढ़ा और अव्यवस्थित ढंग से जमता है तो ऐसी चट्टानों की उत्पत्ति होती है। इसका आकार बेढंगा और गुंबदनुमा हो सकता है। इस प्रकार से बनी चट्टानों को बैथोलिथ कहा जाता है। इन चट्टानों को हम तभी देख सकते हैं, अगर इस प्रकार की अग्नि चट्टानों पर खुरचने की क्रिया हुई हो। इनकी चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक हो सकती है। पर्वतों के आधार इन चट्टानों के ही होते हैं। ग्रेनाइट की विशाल चट्टानें बैथोलिथ चट्टानों का ही रूप हैं। चेन्नई में छोटी-छोटी पहाड़ियाँ बैथोलिथ का ही हिस्सा हैं, जो कि खुरचन क्रिया से ही बनी हैं और अधिकतर गुंबद जैसी (Dome shaped) हैं।

3. लैपोलिथ (Lapolith)-जब लावा तश्तरीनुमा आकार में धरती की सतह के नीचे जम जाता है, तब इसे लैपोलिथ कहते हैं। वास्तव में लैपोलिथ बैथोलिथ का ही एक अलग रूप है। अमेरिका में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं। कनाडा में ड्रलथ गैब्बरो (Duluth Gabbro) जो कि 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

4. फैकोलिथ (Phacoliths)-धरती की सतह के नीचे लावा कई लहरों के रूप में जम जाता है। इस प्रकार की आकृति की चट्टान को फैकोलिथ कहा जाता है।

5. स्टॉक (Stock)-जब बैथोलिधं चट्टान छोटे आकार का गुंबदनुमा या गोल आकृति की होती है तो उसे स्टॉक कहते हैं। एक स्टॉक का क्षेत्रफल (area) 100 वर्ग किलोमीटर से कम होता है।

6. सिल (Sills)-जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो इसे सिल कहा जाता है। इनकी लम्बाई कई सौ मीटर तक हो सकती है। पर अगर मोटाई कुछ मीटर तक ही हो या कम हो, तो इसको शीट (Sheet) कहा जाता है।

7. डायक (Dyke/Dike)-डायक. लम्बाकार रूप में (Vertical) जमा हुआ लावा होता है। इनकी लम्बाई कुछ मीटरों से किलोमीटरों तक और चौड़ाई कुछ सैंटीमीटरों से कई मीटरों तक हो सकती है। भारत में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं।

8. ज्वालामुखीय ग्रीवा (Volcanic Neck)-धरती का गर्म लावा एक नली से बाहर आता है। जब ज्वालामुखी __ फटता है, तो विस्फोट के बाद जो लावा रास्ते में ही जम जाता है, उसे ज्वालामुखी Neck कहा जाता है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB चट्टानें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी की बाहरी परत को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
थलमंडल।

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प्रश्न 2.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 3.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों।

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
बसालट।

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प्रश्न 5.
गहरी अग्नि चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
ग्रेनाइट।

प्रश्न 6.
झील परतदार चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
जिप्सम।

प्रश्न 7.
कार्बन प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कोयला।

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प्रश्न 8.
चूना प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
डोलोमाइट।

प्रश्न 9.
परिवर्तन चट्टानों के दो कारण बताएँ।
उत्तर-
ताप और दबाव।

प्रश्न 10.
संगमरमर की मूल चट्टान का नाम बताएँ।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

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बहुविकल्पी प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें –

प्रश्न 1.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) परतदार।
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 2.
कार्बन प्रधान कौन-सी चट्टान है ?
(क) कोयला
(ख) चूना
(ग) संगमरमर
(घ) जिप्सम।
उत्तर-
कोयला।

प्रश्न 3.
संगमरमर किस वर्ग की चट्टान है ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) अवसादी।
उत्तर-
परिवर्तित।

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प्रश्न 4.
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थ को कहते हैं-
(क) चट्टान
(ख) खनिज
(ग) धातु
(घ) लावा।
उत्तर-
चट्टान।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सी परिवर्तित चट्टान है ?
(क) ग्रेनाइट
(ख) ग्रेफाइट
(ग) ग्रिट
(घ) गैब्बरो।
उत्तर-
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions) –

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
थलमंडल से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
थलमंडल से तात्पर्य है-चट्टानी मंडल (Rock Sphere)। थलमंडल का निर्माण चट्टानों से होता है।

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प्रश्न 2.
धरती के समूचे पुंज का निर्माण करने वाले चार तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
लोहा, ऑक्सीजन, सिलीकॉन और मैग्नेशियम।

प्रश्न 3.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
Igneous शब्द लातीनी भाषा के Ignis शब्द से बना है, जिसका अर्थ ज्वाला या आग होता है।

प्रश्न 4.
अग्नि चट्टानों के दो प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-

  1. बाहरी अग्नि चट्टानें
  2. भीतरी अग्नि चट्टानें।

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प्रश्न 5.
मैग्मा से क्या भाव है ?
उत्तर-
भू-गर्भ में गर्म, चिपचिपा और तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है।

प्रश्न 6.
भारत में ग्रेनाइट कहाँ मिलता है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार, छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न 7.
सिल और डायक में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो उसे सिल कहते हैं। जब लावा लंबाकार अथवा दीवार के रूप में जमता है, तो उसे डायक कहते हैं।

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प्रश्न 8.
दक्षिणी ट्रैप से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में विशाल क्षेत्र बसालट से बना है, इसे दक्षिणी ट्रैप कहते हैं।

प्रश्न 9.
तहदार चट्टानों का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
धरती की 75% सतह पर तहदार चट्टानें मिलती हैं, जबकि ये चट्टानें समूची धरती के स्थलमंडल पर केवल 5% भाग ही हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and Granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावा के जम कर ठोस होने से बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जन्तुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता क्योंकि ये कठोर होती हैं।

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प्रश्न 2.
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों में अलग-अलग परतें मिलती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर होती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग में फैली हुई हैं, परन्तु ये चट्टानें पृथ्वी के स्थलमंडल का केवल 5% भाग ही हैं।
    (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

प्रश्न 3.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ और मकानों के लिए पत्थर बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेराइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

तलछटी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)-परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए बहुत कीमती होती हैं-

  • कोयला और पैट्रोलियम ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं।
  • इन चट्टानों से सोना, चाँदी और तांबा आदि खनिज पदार्थ मिलते हैं।
  • चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट और रेत से काँच बनता है।
  • चूने का पत्थर इमारतें बनाने में प्रयोग होता है।
  • कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  • तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

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प्रश्न 4.
बसालट और ग्रेनाइट की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
1. बसालट (Basalt)-यह एक बाहरी अग्नि चट्टान है। सतह के ऊपर आने वाला लावा ठंडा होकर बसालट चट्टान को जन्म देता है। इस चट्टान का रंग काला अथवा गहरा भूरा होता है। लावे के जल्दी ठंडा होने के कारण रवे (Crystals) नहीं बनते। इनकी रचना शीशे (Glass) के समान होती है। इनका प्रयोग मकान बनाने के लिए होता है। भारत में काली मिट्टी के क्षेत्र का निर्माण बसालट के टूटने-फूटने के कारण हुआ है।

2. ग्रेनाइट (Granite)-यह एक अग्नि चट्टान है। यह धरती के भीतरी भाग में गहराई पर बनती है। यह एक गहरी अग्नि चट्टान (Plutonc Rock) है। इसमें लावा धीरे-धीरे ठंडा होता है, इसलिए बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। इसमें सिलिका (Silica) की मात्रा अधिक होती है। इसका रंग गहरा भूरा, लाल और स्लेटी भी होता है। यह कठोर पत्थर होता है और इसका प्रयोग मकान बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
संगमरमर की रचना कैसे होती है ?
उत्तर-
संगमरमर (Marble)-संगमरमर एक परिवर्तित चट्टान (Metamorphic Rock) है। जब गर्म लावा चूने के पत्थर को स्पर्श करता है तो इसका रूप बदल जाता है और यह एक शुद्ध सफेद रंग का बन जाता है। अशुद्धियों के कारण इसका रंग लाल, हरा और काला भी होता है। यह मुलायम होता है और मकान बनाने के काम आता है। आगरा का ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है।

प्रश्न 6.
कोयले की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
कोयला (Coal)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। इन चट्टानों को कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks) कहते हैं, जैसे-पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

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प्रश्न 7.
अग्नि चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
आरम्भ में पृथ्वी में मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघला हुआ और गर्म अवस्था में था। यह मैग्मा वायु मण्डल के सम्पर्क में आने के कारण ठंडा होकर जम कर ठोस हो गया। इस प्रकार से पहले धरती की पिघली दशा से ठोस रूप में आने पर अग्नि चट्टानों का निर्माण हुआ। सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) कहते हैं।

प्रश्न 8.
तलछटी चट्टानों में जीव-जन्तुओं के अवशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं, जबकि अग्नि चट्टानों में नहीं, क्यों ?
उत्तर-
जीव-जन्तुओं और वनस्पति के बचे-खुचे भागों से अवशेष प्राप्त होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों के रूप में मिलती हैं। इन परतों के बीच ये अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये अवशेष उन चट्टानों की उत्पत्ति के समय के बारे में जानकारी देते हैं।
अग्नि चट्टानों में परतें नहीं मिलती हैं। ये गर्म पिघलते हुए मैग्मा से बनती हैं। इनके स्पर्श से अवशेष झुलस जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)-

  1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में मिलती हैं।
  2. कण-इन चट्टानों में चपटे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं।
  3. रचना-ये चट्टानें लावा (Lava) के ठंडे और ठोस होने से बनती हैं।
  4. कठोरता-ये चट्टानें कठोर होती हैं।
  5. जीव-अवशेष- इनमें जीव-अवशेष नहीं मिलते हैं।
  6. निर्माण-काल-सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।
  7. कटाव-इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव कम होता है।
  8. जोड़ (Joints)-इनमें जोड़ मिलते हैं।
  9. मुसाम-ये चट्टानें अप्रवेशी हैं।

तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-

  1. ये चट्टानें परतों (Layers) में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में अलग-अलग आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
  3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव के कारण बनती हैं।
  4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
  5. इनमें जीव-अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
  6. अग्नि चट्टानों के नष्ट होने के बाद बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
  7. इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव जल्दी होता
  8. इनमें जोड़ नहीं मिलते हैं।
  9. ये अधिकतर प्रवेशी चट्टानें हैं।

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प्रश्न 10.
धरती के चापड़ में कौन-से प्रमुख तत्त्व हैं ?
उत्तर-
धरती के चापड़ का निर्माण करने वाली चट्टानों में नीचे लिखे तत्त्व दी हुई औसत मात्रा में शामिल होते हैं –
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 7

प्रश्न 11.
भारत में अग्नि चट्टानों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 8

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

(Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न-
परिवर्तित चट्टानों से क्या तात्पर्य है ? इनकी रचना किस प्रकार होती है ? उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)-Metamorphic Rocks शब्द का अर्थ है- ‘रूप में परिवर्तन’ (Change in form) । ये वे चट्टानें हैं, जो गर्मी और दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार और खनिज बदल लेती हैं। अग्नि तथा तलछटी चट्टानों का मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि कई चट्टानों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह परिवर्तन दो प्रकार से होता है-

1. भौतिक परिवर्तन (Physical Change)
2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical Change)
इतना परिवर्तन होते हुए भी चट्टानों में टूट-फूट नहीं होती। यह परिवर्तन दो कारणों से होता है।

परिवर्तन के कारक (Agents of Change)-

1. ताप (Heat)
2. दबाव (Pressure)

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1. ताप से स्पर्शी रूपान्तरण (Heat Contact Metamorphism)-गर्म लावे के स्पर्श से निकट के प्रदेश की चट्टानें झुलस जाती हैं और उनके रवे पूरी तरह से बदल जाते हैं। जिस प्रकार गर्म लावे के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone) संगमरमर (Marble) बन जाता है। दक्षिणी भारत में धारवाड़ (Dharwar) प्रदेश में ऐसी चट्टानें मिलती हैं।

2. दबाव (Pressure) से पृथ्वी की उथल-पुथल, भूचाल, पर्वतों के निर्माण आदि के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। इसके कुछ उदाहरण आगे लिखे हैं-

मुख्य चट्टानें — परिवर्तित चट्टानें

1. शेल (Shale) — 1. स्लेट (Slate)
2. अभ्रक (Mica) — 2. शिसट (Schist)
3. ग्रेनाइट (Granite) — 3. नेइस (Gneiss)
4. रेतीला पत्थर (Sand Stone). — 4. क्वार्टज़ाइट (Quartzite)
5. कोयला (Coal) — 5. ग्रेफाइट (Graphite)

इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism) भी कहते हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इनमें खनिजों से मिले हुए जल के स्रोत मिलते हैं, जिनसे चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  5. मकान बनाने के लिए संगमरमर, स्लेट, क्वार्टज़ाइट मिलते हैं।

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PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

PSEB 11th Class Agriculture Guide बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983।

प्रश्न 2.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर, 1985।

प्रश्न 3.
खादों की परख के लिये प्रयोगशालाएं कहां-कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना तथा फरीदकोट।

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प्रश्न 4.
कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम-1968 ।

प्रश्न 5.
भारत सरकार को कीटनाशक एक्ट लागू करने के लिए सुझाव कौन देता है ?
उत्तर-
केन्द्रीय कीटनाशक (सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड) बोर्ड।

प्रश्न 6.
कीटनाशक दवाइयों की जांच के लिए प्रयोगशालाएं कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना, बठिंडा, अमृतसर।।

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प्रश्न 7.
विदेशों से कीटनाशक दवाइयों के निर्यात की आज्ञा कौन देता है ?
उत्तर-
सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी।

प्रश्न 8.
कीटनाशक एक्ट के अन्तर्गत कीटनाशक इन्स्पेक्टर किसे घोषित किया गया है ?
उत्तर-
खेतीबाड़ी विकास अधिकारियों को इस अधिनियम के अन्तर्गत इन्सैक्टीसाइड इन्स्पैक्टर घोषित किया गया है।

प्रश्न 9.
घटिया खाद बेचने वाले के विरुद्ध किसको शिकायत की जाती है ?
उत्तर-
जिले के मुख्य खेतीबाड़ी अधिकारी को शिकायत की जा सकती है।

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प्रश्न 10.
टी० एल० किस वस्तु का लेबल है?
उत्तर-
प्रमाणित बीज का, विश्वासयोग्य क्वालटी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
कृषि में खाद का बहुत महत्त्व है। यह पौधों को बढ़ने-फूलने के लिये आवश्यक तत्त्व देने में सहायक होती है। यदि खादों की क्वालिटी घटिया होगी तो फ़सलों को इसकी बहुत हानि पहुंचेगी। पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। इसलिये खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
बीजों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
यदि बीज उच्च क्वालिटी के नहीं होंगे तो फसल घटिया किस्म की पैदा होगी, उपज कम हो जायेगी तथा पूरी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसलिये बीज बढ़िया होना चाहिए।

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प्रश्न 3.
ज़रूरी वस्तुओं से संबंधित कानून के अन्तर्गत कृषि से सम्बन्धित कौनसी वस्तुएं शामिल की गई हैं ?
उत्तर-
भारत सरकार ने आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली तीन वस्तुएं बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयों को शामिल किया है।

प्रश्न 4.
बीज, खाद और कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये कौन-कौन से कानून लागू किये गये हैं ?
उत्तर-
बीजों के लिये सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983, खादों के लिये फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985, कीटनाशक दवाइयां तथा इन्सैक्टीसाइड अधिनियम 1968 कानून लागू किये गये हैं।

प्रश्न 5.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये बीज इन्स्पेक्टर के क्या अधिकार हैं ?
उत्तर-
बीज इन्स्पेक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भर कर उनकी जांच बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई नुक्स होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्सपेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

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प्रश्न 6.
बीज कन्ट्रोल आर्डर के अन्तर्गत किसान को क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
बीज कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई नुक्स होने पर उनके द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फ़सल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्सपेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

प्रश्न 7.
खराब बीज प्राप्त होने पर शिकायत दर्ज करवाने के लिये प्रमाण स्वरूप किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है-

  • बीज की खरीद के समय दुकानदार द्वारा दिया गया पक्का बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से बचा कर रखा हुआ बीज का नमूना।

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प्रश्न 8.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का क्या नाम है ? इसको कृषि विभाग के किन अफसरों के सहयोग से लागू किया जाता है ?
उत्तर-
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का नाम फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985 है।
यह कानून पंजाब राज्य में कृषि विभाग के राज्य स्तरीय अधिकारी (डायरेक्टर कृषि पंजाब चण्डीगढ) की देख-रेख में जिले के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसरों तथा उनके सहयोगी अधिकारियों, जिनमें एग्रीकल्चर ऑफिसर (A.O.) तथा उनके अधीन काम कर रहे एग्रीकल्चर डिवैल्पमैंट ऑफिसर (A.D.O.) के सहयोग से लागू किया जाता है।

प्रश्न 9.
कीटनाशक इन्स्पेक्टर कीड़ेमार दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये क्या कार्यवाही करता है ?
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड इन्स्पेक्टर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में इन्सैक्टीसाइड बेचने वाली दुकानों, गोदामों, सेल सेंटरों तथा अन्य सम्बन्धित स्थानों पर निरीक्षण करते हैं। वह इन दुकानों से नमूने लेकर उनकी पड़ताल करने के लिये लुधियाना, भटिण्डा तथा अमृतसर की प्रयोगशालाओं में भेजता है।।

स्टॉक चैक करके पता लगाता है कि कीटनाशक दवाइयां निश्चित समय की सीमा पार तो नहीं कर गईं। इसके अतिरिक्त स्टॉक में पड़ी दवाइयों का भार तथा अन्य तथ्यों की पड़ताल की जाती है तथा देखा जाता है कि कोई कानूनी उल्लंघना न हो रही हो। अधिनियम की उल्लंघना करने वाले व्यक्तियों के लाइसेंस रद्द कर दिये जाते हैं तथा उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई भी की जाती है। दोषी व्यक्तियों को जुर्माना तथा जेल का दण्ड भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
बीज कानून की धारा-7 क्या है ?
उत्तर-
इस धारा के अन्तर्गत केवल नोटीफाइड सूचित किस्मों के बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।

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(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीज, खादों और कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी
उत्तर-
फ़सलों की बढ़िया उपज के लिये बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं। कृषि में ये तीनों वस्तुएं बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिये इनकी क्वालिटी का उचित स्तर का होना बहुत ज़रूरी है। यदि बीज उच्च स्तर के तथा सही किस्म के नहीं होंगे, तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसी प्रकार यदि खादों की क्वालिटी सही नहीं होगी, तो फ़सलों से पूरी उपज नहीं मिलेगी। फ़सलों में खरपतवारों, हानिकारक कीटों तथा बीमारियों की रोकथाम के लिये सही किस्म की दवाइयों तथा ज़हरों का प्रयोग भी बहुत ज़रूरी है।

इन तीनों वस्तुओं पर खर्चा भी हो जाएगा तथा पैदावार भी कम मिलेगी, नदीन समाप्त नहीं होंगे, कीड़े फसल को खा जाएंगे। इसलिए तीनों वस्तुओं का क्वालिटी कण्ट्रोल बहुत जरूरी है।

प्रश्न 2.
कीटनाशक एक्ट (इन्सेक्टीसाइड एक्ट) की सहायता से कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
यह अधिनियम 1968 में बनाया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया था।
यह अधिनियम कीटनाशक दवाइयों आदि में मिलावट, कमी तथा अन्य कमियां दूर करने के लिये लागू किया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत पुरानी आऊटडेटड हो चुकी तथा कम माप वाली दवाइयों की बिक्री अवैध है। पंजाब सरकार द्वारा जिला स्थित चीफ कृषि अधिकारियों को यह दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार दिया गया है। संबंधित अधिकारी कीटनाशक बेचने वाली दुकानों की चैकिंग करते हैं तथा सैंपल लेकर लुधियाना, अमृतसर, भटिंडा की प्रयोगशाला में भेजते हैं। कानून की उल्लंघना करने वाले दुकानदार के विरुद्ध कानूनी कारवाई तथा लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
बीज कन्ट्रोल आर्डर की प्रमुख धाराओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1. लाइसेंस देने का अधिकार-बीज कन्ट्रोल आर्डर, 1983 के अन्तर्गत राज्य सरकार को यह अधिकार दिये गये हैं कि वह किसी भी अधिकारी को जिसे वह ठीक समझती हो, लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है तथा इस अधिकारी का कार्यक्षेत्र भी निर्धारित कर सकती है। पंजाब राज्य में यह अधिकार डायरेक्टर कृषि संयुक्त डायरेक्टर कृषि विभाग, पंजाब को दिये गये हैं।

2. बीज इन्स्पेक्टर-इस अधिनियम के अन्तर्गत सरकार द्वारा कृषि विकास अधिकारियों को बीज इन्स्पेक्टर नियुक्त किया गया है उनका अधिकार क्षेत्र तथा उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों को भी नोटिफाई किया गया है। बीज इन्स्पैक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भरकर उनकी जांच, बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई कमी होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्स्पेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ अपने कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

3. किसानों के अधिकार-सीड कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई कमी होने पर उस द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फसल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्स्पेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है –

  • बीज खरीदते समय दुकानदार द्वारा दिया गया बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से रखा हुआ बीज का नमूना।

बीज इन्स्पेक्टर यह शिकायत प्राप्त होने पर इसकी पूरी जांच-पड़ताल करेगा तथा यदि इस नतीजे पर पहुंचता है कि फ़सल का फेल होने का कारण बीज की खराबी है तो वह बीज के डीलर/विक्रेता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई शुरू करेगा तथा बीज कानून के अन्तर्गत उसको दण्ड मिल सकता है।

बीज कन्ट्रोल आदेश, 1983 की उल्लंघना करने वाले दोषी को आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत दिये जाते दण्ड दिये जाएंगे क्योंकि बीज को भारत सरकार द्वारा एक आवश्यक वस्तु का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 4.
बीज कन्ट्रोल आर्डर अधीन किसानों को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 5.
कृषि विकास से संबंधित तीन प्रमुख वस्तुओं के नाम बताओ तथा उनके क्वालिटी कन्ट्रोल पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज कन्ट्रोल एक्ट कब बना ?
उत्तर-
1983.

प्रश्न 2.
खाद कन्ट्रोल आर्डर बन बना ?
उत्तर-
1985.

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प्रश्न 3.
पंजाब में बीज, खाद, कीटनाशक से संबंधित कानूनों को किस द्वारा लागू किया जाता है?
उत्तर-
कृषि विभाग, पंजाब।

प्रश्न 4.
बीजों के बन्द पैकटों, डिब्बों या थैलों पर कौन-सा क्वालिटी का लेबल लगा होता है ?
उत्तर-
टी० एल०।

प्रश्न 5.
कौन-से बीजों का प्रमाणीकरण किया जा सकता है ?
उत्तर-
उन किस्मों का ही प्रमाणीकरण किया जा सकेगा जो कि निर्धारित हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम, 1968 कब पारित किया गया है ?
उत्तर-
यह अधिनियम भारतीय पार्लियामेंट द्वारा 1968 में पारित किया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार ने इन्सैक्टीसाइड दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार किस को दिया है ?
उत्तर-
जिला के मुख्य कृषि अधिकारियों को यह अधिकार मिला है।

प्रश्न 3.
कीटनाशक दवाइयां खरीदते समय कौन-सी बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर-
किसानों को कीटनाशक दवाइयां बेचने वालों से खरीद की रसीद अवश्य लेनी चाहिए। डिब्बों तथा दवाई की बोतलों का सील बन्द होना बहुत ज़रूरी है। खरीद करते समय यह भी देखना बहुत ज़रूरी है कि दवाई आऊटडेटड न हुई हो। किसी किस्म का सन्देह होने पर कृषि विकास अधिकारी या चीफ कृषि अधिकारी को इसके बारे में तुरन्त सूचित करें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985 से क्या अभिप्राय है ? यह खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल में कैसे सहायक होता है ?
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर,1985 खादों की क्वालिटी मिलावट, पूरे वज़न, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने तथा अन्य प्रकार की उल्लंघना को रोकने के लिये बनाया गया है।

किसी भी स्थान पर खादें बेचने से पहले डीलरों को जिले के सम्बन्धित चीफ एग्रीकल्चरल अधिकारी से खादें बेचने का लाइसेंस लेना ज़रूरी है। लाइसेंस तभी मिल सकता है, जब किसी खाद बनाने वाली कम्पनी ने उस डीलर को खाद बेचने के लिये अधिकार पत्र दिया हो।

खादों की क्वालिटी चैक करने के लिये खाद कन्ट्रोल आर्डर के नियमों के अनुसार विभिन्न स्तर पर कारवाई की जाती है। कोई भी व्यक्ति निश्चित स्तर से घटिया खाद नहीं बेच सकता। किसानों को सप्लाई की जाने वाली/बेचने वाली खादों की क्वालिटी पर निगरानी रखने के लिये खाद कन्ट्रोल 1985 के अन्तर्गत सम्बन्धित अधिकारियों को योग्य अधिकार दिए गये हैं। उनके द्वारा अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में खादों के कारोबारी विभागों का निरीक्षण किया जाता है। आवश्यकता अनुसार खादों के नमूने भरे जाते हैं। इन नमूनों को कृषि विभाग की खाद जांच लैब्राटरी, लुधियाना तथा फरीदकोट में परख करने के लिये भेजा जाता है। यदि नमूने क्वालिटी में घटिया पाए जाते हैं, तो उनके कारोबारी विभागों के विरुद्ध नियमों के अनुसार कानूनी कार्यवाई की जाती है। न्यायालय द्वारा दोषियों को जेल की सज़ा भी की जा सकती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • फ़सलों की लाभदायक उत्पादन के लिए बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं।
  • भारत सरकार ने अनिवार्य वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली इन तीनों वस्तुओं के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं।
  • ये कानून हैं बीज कन्ट्रोल आर्डर, खाद कन्ट्रोल आर्डर, कीटनाशक एक्ट।
  • सीड कन्ट्रोल आर्डर के अनुसार पंजाब में लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। पंजाब में यह अधिकार कृषि विभाग, पंजाब को दिए गए हैं।
  • यदि बीज डीलर द्वारा किसान को घटिया बीज देने से फ़सल खराब हो गई हो तो किसान अपनी शिकायत बीज इन्सपैक्टर से कर सकता है।
  • बीज इंस्पैक्टर को यदि बीज की खराबी के कारण फसल के फेल होने का पता चलता है तो वह बीज डीलर के विरुद्ध कानूनी कारवाई शुरू करता है।
  • बीज कानून की धारा 7 के अन्तर्गत केवल निर्धारित बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।
  • खाद परीक्षण प्रयोगशाला लुधियाना तथा फरीदकोट में है।
  • खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985, बनाया गया है जो कि खादों की क्वालटी तथा वजन को ठीक रखने तथा मिलावट, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने को रोकने के लिए सहायक है।
  • इन्सैक्टीसाइड अधिनियम (कीटनाशक एक्ट) 1968 में बनाया गया।
  • सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड बोर्ड (केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड) सरकार को यह अधिनियम लागू करने की सलाह देता है।
  • सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी कृषि रसायनों की रजिस्ट्रेशन करके इन्हें बनाने तथा आयात निर्यात के लिए आज्ञा देती है।
  • दवाइयां चैक करने के लिए प्रयोगशालाएं लुधियाना, बठिंडा तथा अमृतसर में हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय किन राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर-
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इस समय तक देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में नए विचार उभर रहे थे। देश में कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके थे। इनमें शासक नवीन विचारों के पनपने का कोई विरोध नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण भी नवीन धार्मिक आन्दोलनों के उदय के अनुकूल था। वैदिक धर्म में अनेक कुरीतियां आ गई थीं। व्यर्थ के रीति-रिवाजों, महंगे यज्ञों और ब्राह्मणों के झूठे प्रचार के कारण यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो चुका था। इन सब कुरीतियों का अन्त करने के लिए देश में लगभग 63 नये धार्मिक आन्दोलन चले जिनका नेतृत्व विद्वान् हिन्दू कर रहे थे। परन्तु ये सभी धर्म लोकप्रिय न हो सके। केवल दो धर्मों को छोड़कर शेष सभी समाप्त हो गये। ये दो धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म । संक्षेप में जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का उदय निम्नलिखित राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों में हुआ:

I. राजनीतिक परिस्थितियां

1. राजतंत्रों तथा गणतंत्रों की स्थापना-छठी शताब्दी ई० पू० देश में कुछ बड़े-बड़े राजतन्त्र तथा गणराज्य स्थापित हो चुके थे। इनके शासक अपनी सत्ता के विस्तार के लिए आपसी संघर्ष में उलझे हुए थे। इसी वातावरण में नए विचारों का उद्भव हुआ। अतः किसी भी शासक ने इन विचारों का विरोध न किया। यही नवीन विचार अन्ततः जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय में सहायक हुए।

2. धनी व्यापारियों की आकांक्षा-इस काल में व्यापार का महत्त्व बहुत बढ़ गया। फलस्वरूप अनेक धनी व्यापारी सामने आए। ये लोंग समाज में उचित स्थान पाना चाहते थे। परन्तु वर्ण-व्यवस्था के कारण उन्हें वैश्यों से उच्च नहीं समझा जाता था। फलस्वरूप वे किसी नवीन सामाजिक एवं धार्मिक संगठन की आकांक्षा करने लगे।

II. सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियां

1. वैदिक धर्म में जटिलता – प्रारम्भा में वैदिक धर्म काफी सरल था | परन्तु छठी शताब्दी ई० पूo तक यह बहुत जटिल हो गया था। शास्त्रों के गहन विचार आम लोग नहीं समझ सकते थे। मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्म-मार्ग, तप-मार्ग तथा ज्ञानमार्ग का प्रचार किया जा रहा था। कुछ लोग कहते थे कि यज्ञ करने चाहिएं और वेद मन्त्र पढ़ने चाहिएं। कुछ शरीर को कष्ट देने तथा संन्यास पर जोर देते थे। कुछ का विचार था कि अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त हो सकता है। इसलिए आम लोग इस उलझन में थे कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए। यह बड़ी जटिल समस्या थी। इसी का हल ढूंढ़ने के कारण नवीन धर्मों का उदय हुआ।

2. ब्राह्मणों का नैतिक पतन-आरम्भ में केवल पढ़े-लिखे तथा विद्वान् पुरुषों को ही ब्राह्मण माना जाता था। बाद में ब्राह्मणों की सन्तान भी अपने आप को ब्राह्मण कहलवाने लगी। अनेक ब्राह्मणों की सन्तान को न तो धार्मिक ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान था और न ही वे अपने पूर्वजों की भान्ति चरित्रवान् थे। वे सीधे-सादे लोगों से धन बटोरने में लगे हुए थे और उन्हें धर्म की गलत परिभाषा बताकर उल्लू बना रहे थे। वैसे भी कुछ ब्राह्मण स्वार्थी तथा कपटी बन चुके थे। उच्च परिवारों के विद्वान् क्षत्रिय इस भ्रष्टाचार को सहन न कर सके और उन्होंने इसे दूर करने के लिए धार्मिक आन्दोलन चलाएं।

3. जाति-प्रथा तथा छूत-छात-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति-बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। इसका सबसे बुरा प्रभाव शूद्र जाति के लोगों पर पड़ा। उन्हें न तो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था और न ही लोग उनसे सामाजिक मेलजोल रखते थे। लोग शूद्रों को अपने कुओं से पानी भी नहीं भरने देते थे। इसके साथ-साथ ब्राह्मणों ने यह धारणा भी पैदा कर दी कि शूद्रों को अच्छे से अच्छे कर्म करने पर भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। इसके विपरीत नीच से नीच कार्य करने वाले ब्राह्मण अपने आप को सर्वोच्च मानते थे। शूद्रों के प्रति यह घोर अन्याय था। इस अन्याय को समाप्त करने के लिए मुख्य रूप से महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध ने समाज को नई राह दिखाई।

4. महंगा वैदिक धर्म-वैदिक धर्म में यज्ञों का बड़ा महत्त्व था। आरम्भ में यज्ञ करना इतना सरल था कि इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता था। यज्ञ करने के लिए न तो पुरोहितों की आवश्यकता होती थी और न ही धन की। परन्तु छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक यह धर्म काफ़ी महंगा हो गया। यज्ञ करना आवश्यक समझा जाने लगा और इसकी विधि काफ़ी जटिल हो गई। अब व्यक्ति स्वयं यज्ञ नहीं कर सकता था। इसके लिए अनेक पुरोहितों को बुलाना पड़ता था और सभी को भोज देना पड़ता था। यज्ञों में आहुति के लिए घी, दूध, फल तथा अन्य कई प्रकार की वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती थी। विशेष अवसरों पर पशु-बलि भी दी जाने लगी थी। कई यज्ञ तो 12 वर्ष तक चलते रहते थे जिन पर अधिक व्यय होता था। इस प्रकार यज्ञ इतने महंगे हो गए कि साधारण जनता उनके बारे में सोच विचार भी नहीं कर सकती थी। अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए भी ब्राह्मण बुलाने पड़ते थे जो दक्षिणा के रूप में धन बटोरते थे। आखिर कुछ महापुरुषों ने इन खर्चीले रीतिरिवाजों का खण्डन किया और नये धर्मों को जन्म दिया।

5. कठिन संस्कृत भाषा-वैदिक धर्म के सिद्धान्तों में जहां जटिलता आ गई थी, वहां इस धर्म के सभी ग्रंथ वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण-ग्रंथ, रामायण, महाभारत आदि, कठिन संस्कृत भाषा में लिखे हुए थे। इस भाषा को आम लोग नहीं समझ सकते थे। इसलिए लोग अपने धर्म का वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप वे कोई ऐसा धर्म चाहते थे जिसके ग्रंथ सरल भाषा में लिखे हों और उन्हें ब्राह्मणों की सहायता के बिना पढ़ा जा सके।

6. महापुरुषों का जन्म-सौभाग्य से छठी शताब्दी ई० पू० में अनेक महापुरुषों का जन्म हुआ। ये सभी अपने-अपने ढंग से दुःखी तथा दलित जनता का उद्धार करते रहे। उन्होंने लोगों को जीवन का सरल तथा सच्चा मार्ग दिखाया। इन महापुरुषों में महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध अधिक लोकप्रिय हुए। इन्हीं सिद्धान्तों ने धीरे-धीरे जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का रूप ले लिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की उत्पत्ति मुख्यतः वैदिक धर्म में आई गिरावट के कारण हुई। धर्म की जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा तथा महापुरुषों का जन्म-ये सभी ऐसी बातें थीं जिन्होंने नए धर्मों के उभरने के लिए वातावरण तैयार किया। इस विषय में डॉ० एन० एन० घोष ठीक ही कहते हैं, “महावीर तथा गौतम बुद्ध ने हिन्दू धर्म में आए भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई।” उनकी यही आवाज़ धीरे-धीरे नए धर्मों में बदल गई जिन्हें बदले हुए राजनीतिक वातावरण ने संरक्षण प्रदान किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 2.
समाज के लिए महत्त्व तथा देन के संदर्भ में जैन धर्म की शिक्षाओं तथा साम्प्रदायिक विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
जैन धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इसके संस्थापक महावीर स्वामी थे। उन्होंने लोगों को अहिंसा तथा सदाचार का पाठ पढ़ाया। भले ही यह धर्म अत्यधिक लोकप्रिय न हो सका, तो भी भारतीय समाज, साहित्य तथा कला पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह धर्म श्वेताम्बर तथा दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बंट गया। परन्तु इसमें मूल रूप में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन न आया। यह पहले की तरह की समाज में भाई-चारे, आपसी प्रेम तथा संयमित जीवन का प्रचार करता रहा। जैन धर्म की शिक्षाओं, उसके सामाजिक महत्त्व तथा इस धर्म के साम्प्रदायिक विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है

जैन धर्म की शिक्षाएं-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। निर्वाण प्राप्ति के लिए मनुष्य को ‘त्रिरत्न’ (तीन सिद्धान्तों) पर चलना चाहिए। प्रथम सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को धर्म में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।। दूसरे, उसे व्यर्थ के आडम्बरों में समय नष्ट करने की बजाय सच्चा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तीसरे, मनुष्य को सत्य, अहिंसा तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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2. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु में आत्मा (जीव) है। पशु, पक्षी, वृक्ष, वायु तथा अग्नि सभी में जीव है। अतः वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं। जीव-हत्या के डर से जैनी लोग आज भी पानी छान कर पीते हैं, नंगे पांव चलते हैं, मुंह पर पट्टी बांधते हैं और रात को भोजन नहीं करते। वे नहीं चाहते कि कोई कीड़ा-मकौड़ा उनके पांवों के नीचे आ जाए या कोई कीटाणु उसके शरीर में चला जाए। संक्षेप में, हम यही कहेंगे कि जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है।

3. घोर तपस्या-‘घोर तपस्या करना भी जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है। महावीर स्वामी अपने शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। उनका मत है कि उपवास करके प्राण त्यागने से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। स्वयं महावीर जी ने अपने शरीर को कष्ट पहुंचा कर ही निर्वाण प्राप्त किया था। अतः उन्होंने अपने अनुयायियों को संसार त्याग देने तथा घोर तपस्या करने का उपदेश दिया।

4. ईश्वर में अविश्वास-महावीर स्वामी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है।

5. आत्मा में विश्वास–जैन धर्म में आत्मा में अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार आत्मा अमर है। यह शक्तिशाली है, परन्तु हमारे बुरे कर्म इसको निर्बल कर देते हैं। आत्मा में ज्ञान अमर है और यह सुख-दुःख का अनुभव करता है। एक जैन मुनि ने ठीक ही कहा है–आत्मा शरीर में रहकर भी शरीर से भिन्न होती है।’

6. यज्ञ, बलि आदि में अविश्वास-जैन धर्म में यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के रीति-रिवाजों का कोई स्थान नहीं है। महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को पशु-बलि की मनाही कर दी। उनके अनुसार पशु-बलि पाप है। मोक्ष प्राप्ति के लिए यज्ञ आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।

7. वेदों तथा संस्कृत की पवित्रता में अविश्वास-जैन लोग वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। संस्कृत को भी वे पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वेद मन्त्रों का गायन आवश्यक नहीं है। अत: महावीर स्वामी ने स्वयं अपने सिद्धान्तों का प्रचार जन-साधारण की भाषा में किया।

8. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

9. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी कर्म सिद्धान्त में बड़ा विश्वास रखते हैं। उनका मत है कि मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। “कोई भी मनुष्य कर्मों के फल से नहीं बच सकता।”
(“There is no escape from the effect of one’s actions.”) अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

10. मोक्ष प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है। उसे पुनः किसी भी जन्म के चक्कर में नहीं फंसना पड़ता।

11. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने उपदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

जैन धर्म की क्रियाओं का समाज के लिए महत्त्व एवं देन-

(1) जैन धर्म ने भारतीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया। इसने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा और समाज प्यार तथा भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया। जैन धर्म ने हमें समाज सेवा का उपदेश दिया। लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की।

(2) जैन धर्म के प्रचार के कारण हिन्दू धर्म में काफी सुधार हुए। जैन धर्म वालों ने हिन्दू धर्म में प्रचलित कुरीतियों तथा कर्म-काण्डों की घोर निन्दा की। इधर जैन धर्म के अपने सिद्धान्त बड़े साधारण थे जो लोगों को बड़े प्रिय लगे। जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म काफ़ी सरल बन गया।

(3) जैन ऋषियों ने ही अहिंसा के महत्त्व को समझा तथा इसका प्रचार किया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए।

(4) जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। ये मंदिर अपने प्रवेश द्वारों तथा सुन्दर मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध थे। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर ताजमहल को लजाता है। कहते हैं कि मैसूर में बनी जैन धर्म की सुन्दर मूर्तियां दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। इसी प्रकार आबू पर्वत का जैन-मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खुजराहो के जैन मन्दिर कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जैन धर्म में इस महान् योगदान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन धर्म के अनुयायियों ने लोक भाषाओं के प्रचार किया। उनका अधिकांश साहित्य संस्कृत की बजाय स्थानीय भाषाओं में लिखा गया। यही कारण है कि कन्नड़ साहित्य आज भी अपने उत्कृष्ट साहित्य के लिए जैन धर्म का अभारी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य में खूब योगदान दिया।

साम्प्रदायिक विकास

जैन धर्म में साम्प्रदायिक विकास मौर्य काल में आरम्भ हुआ। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भांति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाये तथा उत्तरी भारत के भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत वस्त्र’। समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है। यह भेद केवल मठों के आचार्यों तक ही सीमित है। मौर्य काल में हुई पाटलिपुत्र की एक सभा में जैन धर्म के सिद्धान्तों को 12 अंगों में विभाजित किया गया, परन्तु इन्हें दक्षिण के भिक्षुओं ने मानने से इन्कार कर दिया। अतः दोनों ने अपनी अलगअलग भाषा तथा टीकाएं लिखीं। ये ग्रन्थ प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में लिखे गए। दोनों मतों में मूल रूप से कोई मतभेद नहीं

जैन धर्म की शिक्षाओं तथा उनके सामाजिक महत्त्व के अध्ययन से स्पष्ट है कि यह धर्म विश्व के महानतम धर्मों में से एक है। समाज में अहिंसा, प्रेम, कर्म तथा सेवा के भाव इस धर्म की मुख्य देन हैं। इस धर्म के कारण नवीन कला-कृतियां भी अस्तित्व में आईं जो आज भी भारतीय संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक बनी हुई हैं।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं एवं संघ-व्यवस्था के संदर्भ से बौद्ध धर्म के विश्वास की चर्चा करें।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध छठी शताब्दी ई० पू० के एक महान् धर्म प्रवर्तक थे। जैन धर्म की भान्ति उन्होंने भी नवीन धार्मिक आदर्श प्रस्तुत किए। उन्होंने भी अहिंसा पर बल दिया और यज्ञ, बलि, जाति-पाति आदि बातों का घोर खण्डन किया। उन्होंने लोगों को मध्य-मार्ग पर चल कर जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया। अपने धर्म को व्यवस्थित रूप देने के लिए उन्होंने मठ वासी जीवन अर्थात् संघ-व्यवस्था को बड़ा महत्त्व दिया। इन विशेषताओं के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ। कुछ ही समय में यह धर्म एक विश्वव्यापी धर्म बन गया। इस धर्म की शिक्षाओं, संघ-व्यवस्था एवं विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं अथवा भगवान् बुद्ध के उपदेश —

महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। इन शिक्षाओं को साधारण जनता आसानी से अपना सकती थी, फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में लोग उनके शिष्य बनने लगे। थोड़े ही समय में बौद्ध धर्म विश्व का एक महान् धर्म बन गया। बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. चार महान् सत्य-महात्मा बुद्ध ने चार महान् सत्यों पर बल दिया। ये थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण मनुष्य की तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही मनुष्य दुःखों से छुटकारा पा सकता है और निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • मनुष्य अपनी लालसाओं का दमन अष्ट-मार्ग पर चलकर ही कर सकता है।

2. अष्ट-मार्ग-महात्मा बुद्ध ने अष्ट-मार्ग में निम्नलिखित आठ बातें सम्मिलित हैं

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म से ही हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। इस प्रकार अष्ट-मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य-मार्ग भी कहा जाता है।

3. अहिंसा-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को मन, वचन तथा कर्म से किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। यही अहिंसा है। इसके अनुसार जीव-हत्या तथा पशु-बलि पाप है। इसके विपरीत उन्होंने इस बात का प्रचार किया कि मनुष्य को सभी जीवों के साथ दया तथा प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

4. कर्म सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में कर्म सिद्धान्त को पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार मनुष्य को इस जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। यज्ञ आदि करने से पापों से मुक्ति नहीं मिल सकती। अतः मनुष्यों को अपना भविष्य सुधारने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिएं।

5. उच्च चरित्र तथा नैतिकता पर बल-महात्मा बुद्ध ने उच्च नैतिक तथा पवित्र जीवन पर बड़ा बल दिया। उनका कहना था कि केवल सदाचारी व्यक्ति सांसारिक दुःखों से छुटकारा पा सकता है। चरित्रवान् तथा सदाचारी बनने के लिए मनुष्य को इन नियमों का पालन करना चाहिए-(i) सदा सच बोलो। (ii) चोरी न करो। (iii) मादक पदार्थों का सेवन न करो। (iv) पराई स्त्रियों से दूर रहो। (v) ऐश्वर्य के जीवन से दूर रहो। (vi) नाच रंग में रुचि न रखो। (vii) धन से दूर रहो। (viii) सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो। (ix) झूठ न बोलो। (x) किसी को कष्ट न दो।

6. निर्वाण-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। हिन्दू धर्म की भान्ति वह मृत्यु के पश्चात् नरक-स्वर्ग के झगड़े में नहीं पड़ना चाहते थे। वे चाहते थे कि मनुष्य संसार में रहकर अपने इसी जीवन में निर्वाण प्राप्त करे। निर्वाण से उनका अभिप्राय सच्चे ज्ञान से था। उनका कहना था कि जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें जीवन-मरण के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है।

7. ईश्वर के विषय में मौन-महात्मा बुद्ध परमात्मा तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। वह ईश्वर की सत्ता के विषय में सदा मौन रहे। फिर भी वे समझते थे कि कोई ऐसी शक्ति अवश्य है जो संसार को चला रही है। इस शक्ति को वे ईश्वर की बजाए धर्म मानते थे।

8. यज्ञ बलि का निषेध-महात्मा बुद्ध यज्ञ बलि को व्यर्थ के रीति-रिवाज समझते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि यज्ञ आदि करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वे तो ऊंचे स्वर में मन्त्रों का उच्चारण करना भी व्यर्थ समझते थे। वे उस धर्म को सच्चा धर्म मानते थे जिसमें आडम्बर और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल न हों।

9. वेदों तथा संस्कृत सम्बन्धी विचार-महात्मा बुद्ध के वेदों तथा संस्कृत के सम्बन्ध में विचार हिन्दू-धर्म से बिल्कुल भिन्न थे। हिन्दू धर्म के अनुसार वेद ईश्वरीय ज्ञान का भण्डार हैं। यह ज्ञान ऋषि-मुनियों को ईश्वर की ओर से प्राप्त हुआ था। हिन्दू धर्म वाले तो इस बात में भी विश्वास रखते थे कि वेदों का ज्ञान उन्हें संस्कृत भाषा पढ़ने से ही हो सकता है परन्तु महात्मा बुद्ध हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार सच्चा ज्ञान किसी भी भाषा में दिया जा सकता है। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि संस्कृत अन्य भाषाओं से अधिक पवित्र है। उन्होंने वेदों को भी अधिक महत्त्व नहीं दिया।

10. जाति-प्रथा में अविश्वास-महात्मा बुद्ध जाति-प्रथा के भेदभाव को नहीं मानते थे। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं और जाति के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है। इसलिए उन्होंने सभी जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उनका यह भी कहना था कि ज्ञान-प्राप्ति का मार्ग सभी जातियों के लिए समान रूप से खुला है। .

11. तपस्या का विरोध-महात्मा बुद्ध घोर तपस्या के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार भूखा प्यासा रहकर शरीर को कष्ट देने से कुछ प्राप्त नहीं होता। उन्होंने स्वयं भी 6 वर्ष तक तपस्या का जीवन व्यतीत किया, परन्तु उन्हें कुछ प्राप्त न हुआ। वे समझते थे कि गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।

II. संघ-व्यवस्था

बौद्ध संघ बौद्ध भिक्षुओं के संगठन का नाम था। इन भिक्षुओं ने संसार का परित्याग कर दिया और बौद्ध धर्म का प्रसार करने में अपना जीवन लगा दिया। बौद्ध धर्म में दो प्रकार के अनुयायी थे-उपासक तथा भिक्षु । उपासक गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे तथा महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए साधारण नियमों का पालन करते थे। ये संघ के सदस्य नहीं होते थे। इसके विपरीत भिक्षु पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म के सदस्य होते थे। उन्हें संघ के कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था। संघ समस्त देश के लिए साझा नहीं होता था। प्रत्येक स्थान की अपनी अलग संस्था होती थी, जिसे संघ कहते थे। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवनकाल में ही संघ प्रणाली का श्रीगणेश किया था। उन्होंने विस्तारपूर्वक संघ के नियम निश्चित कर दिए। इन नियमों की संख्या 227 से 360 तक मानी जाती है। इन नियमों का संग्रह ‘विनय पिटक’ में किया गया। सभी संघ इन नियमों का पालन करते हुए बौद्ध धर्म का प्रसार करते रहे।

सदस्यता-

  • 15 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति ही संघ का सदस्य बन सकता था।
  • सदस्य बनने के लिए जातपात का ध्यान नहीं रखा जाता था।
  • सदस्य बनने के लिए गृह त्याग करना पड़ता था। इसके लिए घर वालों की आज्ञा लेना आवश्यक था।
  • सिपाही, दास, ऋणी, अपराधी, रोगी आदि व्यक्ति संघ के सदस्य नहीं बन सकते थे।
  • स्त्री सदस्यों को भिक्षुणी कहा जाता था। उन्हें न तो मत देने का अधिकार था और न ही उन्हें कोरम में गिना जाता था।
  • भिक्षु बनने के लिए एक व्यक्ति को पूरी दीक्षा दी जाती थी-उसे बाल मुंडवा कर पीले वस्त्र धारण करने पड़ते थे। उसे दस वर्ष तक किसी भिक्षु से शिक्षा लेनी पड़ती थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करने का प्रशिक्षण दिया जाता था। यदि वह नियमों पर पूरा उतरता था तथा अपना चरित्र ऊंचा रखता था तो उसे भिक्षु संघ में सम्मिलित कर लिया जाता था।

बौद्ध संघ में प्रवेश के समय उसे शपथ लेनी पड़ती थी। उसे ये शब्द दोहराने पड़ते थे : “मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ, मैं धर्म की शरण लेता हूँ, मैं संघ की शरण लेता हूँ।”

दस आदेश-संघ के सदस्यों को अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। महात्मा बुद्ध ने उनके लिए दस आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया-

  • कभी झूठ न बोलो
  • दूसरों की सम्पत्ति पर आंख न रखो
  • जीव हत्या न करो
  • नशीली वस्तुओं का सेवन न करो
  • स्त्रियों के साथ मिलकर न रहो
  • वर्जित समय पर भोजन न करो
  • धन पास न रखो
  • फूलों, आभूषणों तथा सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो
  • नाच-गाने में भाग न लो
  • नर्म गद्दे पर विश्राम न करो। संघ के सभी सदस्यों को इन नियमों का पालन करना पड़ता था।

संघ की बैठकें-संघ की सभाएं पन्द्रह दिन के पश्चात् होती थीं। संघ के सभी सदस्य इसमें भाग ले सकते थे। बैठक की कार्यवाही शुरू करने से पहले एक सभापति चुना जाता था। प्रायः वह कोई बौद्ध भिक्षु ही होता था। उसकी आज्ञा से कार्यवाही आरम्भ होती थी। प्रस्ताव पेश किए जाते थे और उन पर निर्णय लिए जाते थे। निर्णयों के लिए मतदान होता था।

इस प्रकार बौद्ध भिक्षु प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार अपने मतभेदों को दूर करने और धर्म के प्रचार में लीन रहते थे। कुछ भी हो, बौद्ध धर्म संघ एक आदर्श संस्था थी। डॉ० आर० सी० मजूमदार के शब्दों में, “यह संघ विश्व में बने सभी

महान् संगठनों में से एक बन गया।” (“The Sangha became one of the greatest religious corporations, the world has ever seen.”) बौद्ध संघ के आदर्शों तथा बौद्ध की सरल शिक्षाओं ने इस धर्म के विकास की गति को काफ़ी तीव्र कर दिया।

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प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर-
बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ था। अपनी सरल शिक्षाओं, महान् आदर्श तथा राजकीय संरक्षण के कारण यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया। यहां तक कि अनेक विदेशी राजाओं ने भी इसे अपना लिया। परन्तु समय के साथ इसमें ऐसी अनेक त्रुटियां आ गईं जिनके कारण इसकी लोकप्रियता कम होने लगी। कनिष्क के काल में यह धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया। इन दो विरोधी धाराओं के कारण इसकी लोकप्रियता और भी कम होने लगी और अन्ततः इस धर्म का पतन हो गया। संक्षेप में बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों का वर्णन इस प्रकार है

I. साम्प्रदायिक विकास

बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक भेदभाव का आरम्भ महात्मा बुद्ध के देहान्त से लगभग 100 वर्ष बाद हुआ। सर्वप्रथम बौद्धों के आपसी मतभेद वैशाली की बौद्ध सभा में सामने आए। इस सभा में एक ओर रूढ़िवादी थे। वे चाहते थे कि संघ का प्रबन्ध पहले की भान्ति केवल वृद्ध भिक्षुओं के हाथ में ही रहे। दूसरी ओर युवा भिक्षु थे जो यह चाहते थे कि संघ के प्रबन्ध में सभी भिक्षु समान रूप से भाग लें। ये मतभेद वास्तव में साधारण थे। परन्तु इस सभा में रूढ़िवादियों का पक्ष भारी होने के कारण युवा भिक्षु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयत्न करने लगे। महाराजा अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में एक और बौद्ध सभा हुई। इसी सभा में भी यही समस्या उठाई गई। परन्तु अशोक के समर्थन के कारण इस बार भी रूढ़िवादियों की ही विजय हुई। अनेक बौद्ध भिक्षुओं को मठों से भी निकाल दिया गया। इस पर भी युवा भिक्षुओं ने अपने विचार न छोड़े और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।

कनिष्क के शासनकाल में कश्मीर में बौद्ध धर्म की एक महासभा बुलाई गई। इस सभा में ‘महाविभाष’ नामक एक ग्रन्थ का संकलन किया गया। इस ग्रन्थ में जिन सिद्धान्तों का संकलन किया गया, वे परम्परा-विरोधी थे। इन सिद्धान्तों पर आधारित सम्प्रदाय को ‘सर्वास्तिवादिन’ का नाम दिया गया। यह नया सम्प्रदाय पहली तथा दूसरी शताब्दी में कश्मीर के साथ-साथ मथुरा में भी विकसित हुआ। इस समय तक बौद्ध धर्म में कई अन्य भी ऐसे परम्परा विरोधी सम्प्रदायों का उदय हो चुका था। धीरेधीरे इन सभी परम्परा विरोधी सम्प्रदायों ने अपने आपको रूढ़िवादियों के विरुद्ध संगठित कर लिया। इसी नये संगठित सम्प्रदाय को ही ‘महायान’ का नाम दिया गया। महायान के भिक्षुओं ने रूढ़िवादियों को नीचा दिखाने के लिए उनके सम्प्रदाय को ही “हीनयान’ के नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया।

II. बौद्ध धर्म के पतन के कारण

1. हिन्दू धर्म में सुधार-लोगों ने हिन्दू धर्म के व्यर्थ के रीति-रिवाजों से तंग आकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। उनका … हिन्द धर्म के मुख्य सिद्धान्तों में कोई विरोध न था। समय अनुसार हिन्दू धर्म में अनेक सुधार किए गए। धर्म में आडम्बरों का महत्त्व समाप्त कर दिया गया। परिणामस्वरूप लोग पुनः हिन्दू धर्म को अपनाने लगे। इस प्रकार हिन्दू धर्म की लोकप्रियता बौद्ध धर्म के ह्रास का कारण बनी।

2. गुप्त राजाओं का हिन्दू धर्म में विश्वास-अशोक आदि राजाओं का सहयोग पाकर बौद्ध धर्म का विकास हुआ था। इसी प्रकार गुप्त राजाओं का संरक्षण पाकर हिन्दू धर्म पुनः बल पकड़ गया। गुप्त राजाओं का किसी धर्म के प्रति विरोध नहीं था, परन्तु वे व्यक्तिगत रूप से हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। उनके शासन काल में हिन्दू देवी-देवताओं के मन्दिरों की स्थापना हुई। कृष्ण, विष्णु, शिव की उपासना आरम्भ हुई। संस्कृत भाषा को भी काफ़ी बल मिला। इस तरह हिन्दू धर्म में नवीन जागृति आई। लोग काफ़ी संख्या में हिन्दू धर्म में लौट आए। इससे बौद्ध धर्म को बहुत आघात पहुंचा। बौद्ध धर्म के लिए यह बहुत बड़ी चोट थी।

3. बौद्ध भिक्षुओं की चरित्रहीनता-बौद्ध भिक्षुओं के उच्च चरित्र तथा सदाचारी जीवन ने लोगों को बड़ा प्रभावित किया था, परन्तु समय की करवट ने बौद्ध संघ के अनुशासन को शिथिल कर दिया। स्त्रियों को भी संघ में शामिल कर लिया गया। बौद्ध भिक्षु महात्मा बुद्ध के दस आदेशों को भूल गए। वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। ऐसे लोगों को जनता भला कबी क्षमा करने वाली थी। अतः भिक्षुओं का दूषित आचरण भारत में बौद्ध धर्म को ले डूबा।

4. राजकीय सहायता की समाप्ति-हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म राजकीय आश्रय खो बैठा। उसके बाद फिर किसी राजा ने बौद्ध धर्म की धन से सहायता नहीं की। इससे इस धर्म की प्रतिष्ठा को काफ़ी धक्का लगा। जिन लोगों ने शायद अपने राजा को प्रसन्न करने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार किया था, अब बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

5. बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा-प्रथम शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अनुयायी बुद्ध को देवता मानने लगे। वे उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करने लगे। मूर्ति पूजा के कारण ये लोग हिन्दू धर्म के अधिक निकट आ गए। आखिर महायान शाखा के बहुत से अनुयायी हिन्दू धर्म में आ गए।

6. बौद्ध धर्म में फूट-बौद्ध धर्म के अनुयायी कई शताब्दियों तक एकता के सूत्र में बन्धे रहे। वे मिलकर आपसी मतभेद दूर करते रहे और उन्होंने अपनी एकता को बनाए रखा। आखिर पहली शताब्दी तक ये भेदभाव विकट रूप से धारण कर गए। चौथी बौद्ध परिषद् के पश्चात् यह धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो शाखाओं में बंट गया। इन दोनों शाखाओं में आपसी भेदभाव बढ़ते चले गए। इन भेदभावों का बौद्ध धर्म की लोकप्रियता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

7. अहिंसा का सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में अहिंसा को परम धर्म माना जाता था। इसके प्रभाव में आकर अशोक ने युद्ध करना बन्द कर दिया था। देखने में तो यह एक महान् बात थी, परन्तु इसके कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। अतः हम विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों पिट गए। लोगों ने पराजय का मुख्य कारण बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त को माना। अत: भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का कम होना स्वाभाविक ही था।

8. हूणों के आक्रमण-हूणों के आक्रमणों के कारण भी बौद्ध धर्म को बड़ा आघात पहुंचा। वे बड़े निर्दयी तथा अत्याचारी लोग थे। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में अपना राज्य स्थापित कर लिया। मिहिरगुल उनका प्रसिद्ध राजा था जिसने बौद्ध धर्म के स्तूपों तथा मठों को नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया। कहते हैं कि उसने अनेक बौद्धों को मरवा डाला। शेष बौद्ध लोग वहां से बच निकले। इस प्रकार भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म का पूर्णतया ह्रास हो गया।

9. हिन्दू प्रचारक-आठवीं तथा नौवीं शताब्दी में हिन्दू धर्म को दो महान् विभूतियों ने भारत में हिन्दू धर्म की जड़ें फिर से मजबूत करने में महान् योगदान दिया। ये थे-शंकराचार्य तथा कुमारिल भट्ट। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रचार के साथ-साथ बौद्ध मत का खण्डन भी किया। उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी तक भ्रमण किया तथा हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों को पुनः स्थापित किया।

10. राजपूतों का विरोध-आठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक समस्त उत्तरी भारत राजूपतों के प्रभुत्व में आ गया था। राजपूत वीर योद्धा थे जो अहिंसा की बजाए रक्तपात में विश्वास रखते थे। अतः राजपूत राजाओं की छत्रछाया में बौद्ध भिक्षुओं के लिए धर्म प्रचार कठिन हो गया। अनेक बौद्ध विद्वान् भारत छोड़कर विदेशों में चले गए। उचित प्रचार कार्यों के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का लोप होने लगा।

11. मुसलमान आक्रमणकारी-11वीं तथा 12 शताब्दी में भारत पर मुसलमानों के आक्रमण आरम्भ हो गए। उन्होने भारत पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। यह बात बौद्ध धर्म के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई। मुसलमान शासकों ने बौद्ध भिक्षुओं पर बड़े अत्याचार किए तथा उनके मठ तथा मन्दिर भी नष्ट करवा दिए। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म का पतन हो गया।

12. महान् व्यक्तित्व का अभाव-महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म ने कोई महान् व्यक्ति पैदा नहीं किया। यदि 8वीं शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म का नेतृत्व किसी महान् व्यक्ति के हाथ में होता तो शायद वह धर्म सुधार करके उसे सफल बना देता। वह शायद अहिंसा की परिभाषा ही बदल देता। एक उचित पग-प्रदर्शक के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 5.
भारत तथा विदेशों में बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म का विकास इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है। महात्मा बुद्ध की आज्ञा पाकर बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिए भारत की चारों दिशाओं में फैल गए। आरम्भ में प्रचार की गति बड़ी धीमी रही। परन्तु महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म जहां भारत में तीव्र गति से फैला, वहां उसने भारत की सीमाएं पार करके विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि चीन, जापान, लंका, मयनमार (बर्मा) आदि देशों के निवासियों ने प्रसन्नतापूर्वक इस धर्म को अपनाया और इसे अपने जीवन का अंग बना लिया। राजा तथा प्रजा दोनों ही बौद्ध धर्म के रंग में रंग गए। बौद्ध धर्म की इस अत्यधिक लोकप्रियता के अनेक कारण थे जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व महान् था। उन्होंने राजघराने में जन्म लेकर भी संन्यास 1 के दुःख झेले। वे सिंहासन ग्रहण कर सकते थे, परन्तु उन्होंने आसन ग्रहण किया। उन्होंने सत्य की खोज में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। त्याग, सच्चाई तथा परोपकार की तो वे साक्षात मूर्ति थे। उनका हृदय शुद्ध तथा पवित्र था। वे केवल उन्हीं बातों का प्रचार करते थे जिनको उन्होंने स्वयं अपना लिया था। वे जो कुछ चाहते थे स्वयं भी करते थे। अनेक लोग उनके महान् व्यक्तित्व से बड़े प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। विलियम (William) ने बौद्ध धर्म के प्रसार में बुद्ध के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए ठीक कहा है, “The influence of the personal character of Buddha combined with extraordinary persuasiveness of his teachings was irreistible.”

2. अनुकूल परिस्थितियां-बौद्ध धर्म का उदय ऐसे वातावरण में हुआ जब लोगों को इस धर्म की बहुत आवश्यकता थी। लोग हिन्दू धर्म के व्यर्थ के कर्म-काण्डों, खर्चीले यज्ञों तथा अन्य रीति-रिवाजों से तंग आ चुके थे। उन्हें एक ऐसे सरल धर्म की आवश्यकता थी जो उन्हें इन व्यर्थ के आडम्बरों से छुटकारा दिला सकता। ऐसे समय में बौद्ध धर्म जैसे सरल धर्म ने लोगों को बहुत आकर्षित किया।

3. सरल शिक्षाएं-बौद्ध धर्म की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। उनमें गूढ-दर्शन की बातें न थीं जिन्हें जन-साधारण समझ न पाते। इसके अनुसार मनुष्य को नरक-स्वर्ग अथवा आत्मा-परमात्मा के वाद-विवाद में पढ़ने की आवश्यकता न थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए। अष्ट-मार्ग के सिद्धान्त, घोर तपस्या से कहीं अच्छे थे। ये सभी शिक्षाएं दुःखी मानवता के लिए मरहम थीं। अत: लोगों ने दिल खोलकर बौद्ध धर्म का स्वागत किया।

4. लोक भाषा में प्रचार-हिन्दू धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे। जन-साधारण के लिए इस कठिन भाषा को समझना आसान न था। उन्हें ब्राह्मणों द्वारा बताई हुई व्याख्या पर विश्वास करना पड़ता था। इसके विपरीत महात्मा बुद्ध तथा अन्य भिक्षुओं ने धर्म प्रचार पाली अथवा प्राकृत जैसी बोल-चाल की भाषा में किया। इस प्रकार लोग बिना कठिनाई के बौद्ध धर्म की शिक्षा को समझने लगे।

5. जाति-प्रथा में अविश्वास-बौद्ध धर्म में जाति प्रथा का कोई स्थान नहीं था। सभी जातियों के लोग बौद्ध धर्म में शामिल हो सकते थे। किसी भी जाति का व्यक्ति बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को अपना सकता है। बौद्ध धर्म के इस सिद्धान्त ने चमत्कारी प्रभाव दिखाया। निम्न वर्गों के लोगों को चाण्डाल समझा जाता था। भला ऐसे लोग बौद्ध धर्म का स्वागत क्यों नहीं करते ?

6. बौद्ध संघ-बौद्ध संघ ने बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यह संघ भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रशिक्षण देता था। पूरी तरह दीक्षा लेने के पश्चात् भिक्षु प्रचार कार्य में लग जाते। ये लोग वर्ष में 8 मास प्रचार कार्य में लगे रहते। वर्षा के 4 मास वे मठों में व्यतीत करते। उस समय भी वे भविष्य में प्रचार का कार्यक्रम बनाते। भिक्षु लोगों के इस निरन्तर प्रचार के कारण बौद्ध धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ। इस विषय में डॉ० वी० ए० स्मिथ ने सत्य ही कहा है, “भिक्षु तथा भिक्षुणियों का सुव्यवस्थित संघ इस धर्म के प्रसार में अत्यन्त प्रभावशाली बात सिद्ध हुई।”

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च नैतिक चरित्र-बौद्ध भिक्षु चरित्रवान होते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। नशीली वस्तुओं तथा सुगन्धित पदार्थों का सेवन नहीं करते थे। वे धन, स्त्री, संगीत तथा अन्य ऐश्वर्य की वस्तुओं से दूर रहते थे। वे संसार को त्याग कर पीले वस्त्र धारण करते थे। इन उचित चरित्र वाले लोगों से साधारण जनता बड़ी प्रभावित हुई। अत: बौद्ध धर्म का उत्थान स्वाभाविक ही था।

8. राजकीय सहायता-बौद्ध धर्म एक अन्य दृष्टिकोण से भी भाग्यशाली था। उसे अशोक, कनिष्क तथा हर्ष जैसे प्रतापी राजाओं का सहयोग प्राप्त हुआ। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अशोक ने इस धर्म के प्रचार के लिए स्वयं को, अपनी सन्तान को, सरकारी मशीनरी तथा खज़ाने को लगा दिया। संसार में किस धर्म को ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ ? कनिष्क तथा हर्ष ने भी धन तथा व्यक्तिगत सेवाओं से बौद्ध धर्म को उन्नत किया। कनिष्क के प्रयत्नों के फलस्वरूप ही बौद्ध धर्म चीन, जापान तथा तिब्बत जैसे देशों में फैल गया। सच तो यह है कि राजकीय सहायता पाकर बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं, अपितु उसकी सीमाओं के बाहर भी फैल गया।

9. बौद्ध धर्म में लचीलापन-आरम्भ में बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था। परन्तु पहली शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने बुद्ध को देवता के रूप में पूजना आरम्भ कर दिया। बद्ध की मूर्तियां बनाकर बौद्ध मन्दिरों में स्थापित की गईं। इस प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने समय-समय पर धर्म में परिवर्तन करके इसकी लोकप्रियता को बनाये रखा। भले ही आज बौद्ध धर्म भारत में लोकप्रिय नहीं है, परन्तु सुधारों के कारण यह आज भी विश्व के महान् धर्मों में गिना जाता है।

10. विश्वविद्यालयों का योगदान-बौद्ध धर्म को फैलाने में तक्षशिला, नालन्दा आदि विश्व-विद्यालयों का बड़ा योगदान रहा। यहां देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। उन्हें बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धान्तों तथा विचारधारा से अवगत कराया जाता था। ये विद्यार्थी जहां जाते बौद्ध धर्म का प्रचार करते। चीन, तिब्बत, जापान, लंका, स्याम आदि देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार इन्हीं विद्यार्थियों द्वारा किया गया।

11. प्रचारक धर्मों का अभाव-उन दिनों कोई धर्म ऐसा नहीं था जो अपने प्रचार में लगा हुआ हो। इस्लाम तथा ईसाई … धर्म तो बाद में आए। बौद्ध धर्म का मुकाबला केवल हिन्दू धर्म ही कर सकता था। परन्तु हिन्दू धर्म एक प्रचारक धर्म नहीं था। उसके प्रचार के लिए साधुओं या संन्यासियों का गिरोह नहीं घूमता था। अत: बौद्ध धर्म के प्रचारक निर्विरोध अपना कार्य करते गए और इन्होंने इसे विश्वव्यापी धर्म बना दिया।

12. बौद्ध धर्म के सम्मेलन-समय-समय पर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित भेदभावों को दूर करने के लिए परिषदें बुलाई गईं। ऐसी कुल चार परिषदें बुलाई गईं। इन परिषदों में बौद्ध भिक्षु आपसी भेदभाव को दूर करके बौद्ध धर्म को ठोस रूप प्रदान करते रहे।

इस प्रकार हम देखते हैं कि महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व, पाली भाषा, बौद्ध संघ, भिक्षुओं के चरित्र, विश्वविद्यालयों, जाति-प्रथा में अविश्वास आदि अनेक बातों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में काफ़ी योगदान दिया। इसके अतिरिक्त बौद्ध साहित्य, प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था तथा विदेशियों को अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता ने भी इस धर्म के उत्थान में बड़ा योगदान दिया। शीघ्र ही यह धर्म विश्व धर्म बन गया। आज भी इसकी गणना संसार के प्रमुख धर्मों में की जाती है।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक-

प्रश्न 1.
अजातशत्रु की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
अजातशत्रु की मृत्यु 461 ई० पू० में हुई।

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प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा किस भाषा का परिवर्तित रूप थी ?
उत्तर-
प्राकत भाषा संस्कृत भाषा का परिवर्तित रूप थी।

प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म।

प्रश्न 4.
जैन धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीर थे।

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प्रश्न 5.
महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली में हुआ था।

प्रश्न 6.
महावीर स्वामी का देहान्त कितने वर्ष की आयु में हुआ ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त 72 वर्ष की आयु में हुआ।

प्रश्न 7.
महावीर स्वामी का देहान्त कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त पावाग्राम में हुआ था।

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प्रश्न 8.
महावीर स्वामी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था।

प्रश्न 9.
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोधरा था।

प्रश्न 10.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे।

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प्रश्न 11.
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति गया नामक स्थान पर हुई।

प्रश्न 12.
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश कहाँ दिया था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ नामक स्थान पर दिया था।

प्रश्न 13.
महात्मा बुद्ध के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था।

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प्रश्न 14.
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।

प्रश्न 15.
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम बताओ।
उत्तर-
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम वर्धमान महावीर था।

प्रश्न 16.
बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों के नाम लिखो।
उत्तर-
हीनयान और महायान।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) …………… सबसे शक्तिशाली महाजनपद था।
(ii) छठी शताब्दी ई० पू० में व्यापारियों के संगठन को …………. कहा जाता था।
(iii) जैनियों के ………….. तीर्थंकर थे।
(iv) वर्द्धमान स्वामी का जन्म ………… ई० पू० में हुआ था।
(v) जैन धर्म के अनुसार …………… मुक्ति का मार्ग है।
उत्तर-
(i) मगध
(ii) श्रेणी
(iii) 24
(iv) 599
(v) त्रिरत्न।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। — (√)
(ii) महात्मा बुद्ध को कुशीनारा (कुशीनगर) में सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। — (×)
(iii) अष्टमार्ग बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। — (√)
(iv) बिम्बिसार का वध उसके पुत्र बृहद्रथ ने किया था। — (×)
(v) अजातशत्रु मगध के राजा बिम्बिसार का पुत्र था। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
महाजनपद संख्या में कितने थे ?
(A) 8
(B) 12
(C) 16
(D) 20
उत्तर-
(C) 16

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प्रश्न (ii)
महावीर जैन की माता का नाम था-
(A) महामाया
(B) त्रिशला
(C) वैशाली
(D) गौतमी।
उत्तर-
(B) त्रिशला

प्रश्न (iii)
जैनधर्म के पहले तीर्थंकर थे
(A) ऋषभदेव
(B) महावीर स्वामी
(C) सिद्धार्थ
(D) शंकरदेव।
उत्तर-
(A) ऋषभदेव

प्रश्न (iv)
छठी शताब्दी ई० पू० में निम्न भाषा महत्त्वपूर्ण बनी-
(A) अवधी
(B) संस्कृत
(C) ब्रज
(D) प्राकृत।
उत्तर-
(D) प्राकृत।

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प्रश्न (v)
तीर्थंकर शब्द का अर्थ है
(A) मुक्ति दिलाने वाला
(B) धन में वृद्धि करने वाला
(C) तीर्थ यात्रा का फल देने वाला
(D) वंश वृद्धि करने वाला ।
उत्तर-
(A) मुक्ति दिलाने वाला

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतन्त्र कौन-से थे ?
उत्तर-
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतंत्र ये थे-कौशल, काशी, मगध और अंग।

प्रश्न 2.
अजातशत्रु किसका पुत्र था उसकी राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर-
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था और उसकी राजधानी का नाम ‘राजगृह’ था।

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प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का क्या नाम था और यह किन लोगों की भाषा थी ?
उत्तर-
इस काल में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का नाम ‘प्राकृत’ था। ‘प्राकृत’ जन-साधारण की भाषा थी। ।

प्रश्न 4.
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का क्या नाम था और इसे किस शासन का संरक्षण प्राप्त था ?
उत्तर-
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का नाम ‘आजीविक आन्दोलन’ था। इसे राजा अशोक का संरक्षण प्राप्त था।

प्रश्न 5.
महावीर का आरम्भिक नाम क्या था और इसका सम्बन्ध कौन-से कबीले से था ?
उत्तर-
महावीर का आरम्भिक नाम वर्धमान था। उसका सम्बन्ध ‘लिच्छवी’ कबीले से था।

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प्रश्न 6.
दक्षिणी तथा पश्चिमी भारत में जैन धर्म के बारे में लिखने वाले दो जैन विद्वानों के नाम क्या हैं ?
उत्तर-
भद्रभाहु और हेम-चन्द्र।

प्रश्न 7.
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में क्या नाम दिया गया तथा उसका शाब्दिक अर्थ क्या
उत्तर-
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में ‘निर्ग्रन्थी’ का नाम दिया गया। निर्ग्रन्थी का अर्थ है, ‘बन्धनों से रहित’।

प्रश्न 8.
जैन धर्म में निर्वाण से क्या भाव है ?
उत्तर-
जैन धर्म में निर्वाण से भाव है-जन्म-मरण से मुक्त होना।

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प्रश्न 9.
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का क्या नाम था और यह वर्तमान के किस राज्य के इलाके का शासक था ?
उत्तर-
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का नाम ‘खारवेल’ था। वह उड़ीसा का शासक था।

प्रश्न 10.
गुजरात के कौन-से वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया ?
उत्तर-
गुजरात के सोलंकी वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया।

प्रश्न 11.
वर्तमान भारत के कौन-से तीन राज्यों में जैन धर्मावलम्बी बड़ी संख्या में हैं ?
उत्तर-
जैन धर्मावलम्बी गुजरात, राजस्थान तथा कर्नाटक में बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।

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प्रश्न 12.
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर कौन-से दो स्थानों पर हैं ?
उत्तर-
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर राजस्थान में आबू पर्वत पर तथा मैसूर में श्रावणवेलगोला में हैं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटिकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
त्रिपिटिकों के नाम हैं-विनय-पिटक, सुत्त-पिटक तथा अभीधम्मपिटक।

प्रश्न 14.
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के नाम दीपवंश तथा महावंश हैं।

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प्रश्न 15.
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम क्या था और वे कौन-से गणराज्य के राजकुमार थे ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य गणराज्य के राजकुमार थे।

प्रश्न 16.
बुद्ध की पत्नी तथा पुत्र का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध की पत्नी का नाम ‘यशोधरा’ था। उनके पुत्र का नाम ‘राहुल’ था।

प्रश्न 17.
‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
धर्मचक्र-प्रवर्तन से भाव बुद्ध के पहले प्रवचन से है। यह सारनाथ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 18.
‘महापरिनिर्वाण’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
महापरिनिर्वाण से हमारा भाव बुद्ध के देहान्त की घटना से है। यह घटना कुशीनगर नामक स्थान पर घटित हुई।

प्रश्न 19.
महात्मा बुद्ध के जन्म और मृत्यु से सम्बन्धित स्थानों के नाम बताएं।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वाटिका में हुआ। उनकी मृत्यु कुशीनगर के स्थान पर हुई।

प्रश्न 20.
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त कौन-सी कथाओं से मिलता है और यह कौन-सी भाषा में है ?
उत्तर-
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त ‘जातक’ कथाओं में मिलता है। ये कथाएं ‘प्राकृत’ भाषा में हैं।

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प्रश्न 21.
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति कौन-से स्थान पर हुई तथा उन्होंने अपना पहला प्रवचन कहां पर दिया ?
उत्तर-
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति ‘गया’ के स्थान पर हुई। उन्होंने अपना पहला प्रवचन सारनाथ की मृग वाटिका में दिया।

प्रश्न 22.
स्तूप किस घटना का प्रतीक था तथा इसमें क्या रखा जाता था ?
उत्तर-
स्तूप बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक था और उसमें बुद्ध के स्मृति-चिह्न रखे जाते थे।

प्रश्न 23.
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप आज के भारत के कौन-से दो राज्यों में हैं ?
उत्तर-
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में हैं।

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प्रश्न 24.
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक तथा बाद का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक नाम थेरावाद अथवा हीनयान तथा बाद का नाम महायान था।

प्रश्न 25.
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित कौन-सा ग्रन्थ संकलित किया गया ?
उत्तर-
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में ‘महाविभाष’ नामक ग्रन्थ को संकलित किया गया। इस ग्रन्थ में जिस सम्प्रदाय के सिद्धान्त थे, उसका नाम ‘सर्वास्तिवादिन’ था।

प्रश्न 26.
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं कहां बुलाई गई थीं और अशोक इनमें से किसके साथ सम्बन्धित था ?
उत्तर-
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं वैशाली तथा पाटलिपुत्र में बुलाई गई थीं। अशोक का सम्बन्ध पाटलिपुत्र की सभा के साथ था।

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प्रश्न 27.
‘यान’ का शब्दिक अर्थ क्या था और बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का क्या नाम था ?
उत्तर-
‘यान’ का शाब्दिक अर्थ था–मुक्ति प्राप्त करने का एक तरीका। बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का नाम ‘महायान’ था।

प्रश्न 28.
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय का क्या नाम था ? इसके अन्तर्गत उपासना-पद्धति को क्या कहा जाता था तथा इसका महत्त्वपूर्ण विहार कहां था ?
उत्तर-
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म सम्प्रदाय का नाम ‘वज्रयान’ था तथा इस सम्प्रदाय की उपासना पद्धति को ‘तान्त्रिक’ कहा जाता था। वज्रयान सम्प्रदाय का महत्त्वपूर्ण विहार विक्रमशिला के स्थान पर था।

प्रश्न 29.
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध कौन-से बौद्ध सम्प्रदाय से था और उसका किस यूनानी शासक के साथ बौद्ध धर्म पर संवाद हुआ था ?
उत्तर-
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध ‘महायान’ सम्प्रदाय से था। इसका संवाद यूनानी शासक मिनांडर से हुआ था।

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प्रश्न 30.
बौद्ध धर्म भारत से बाहर किन चार देशों में फैला ?
उत्तर-
भारत से बाहर जिन देशों में बौद्ध धर्म फैला, उनके नाम हैं-चीन, जापान, श्री लंका तथा म्यनमार (बर्मा)।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अजातशत्रु के समय मगध राज्य की शक्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर-
अजातशत्रु के समय मगध राज्य काफ़ी शक्तिशाली बना। इसके कई कारण थे-

  • अजातशत्रु एक साहसी तथा शक्तिशाली शासक था। उसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया।
  • कच्चा लोहा पास ही उपलब्ध होने के कारण मगध राज्य अपने विरोधियों की अपेक्षा अच्छे शस्त्र बनाने में सफल हुआ।
  • मगध की राजधानी की स्थिति ऐसी थी कि उसे जीतना बच्चों का खेल नहीं था।
  • मगध एक अत्यधिक उपजाऊ प्रदेश था और जहां अच्छी वर्षा होती थी। अतः यहां की कृषि बड़ी उन्नत थी।
  • मगध राज्य अपने पड़ोसी राज्यों के विरुद्ध हाथियों का प्रयोग कर सकता था। इस सैनिक सुविधा के कारण मगध राज्य के विकास में विशेष सहायता मिली।
  • मगध राज्य का व्यापार भी काफ़ी उन्नत था। व्यापार से होने वाली आय से राजा स्थायी सेना रख सकता था।

प्रश्न 2.
महावीर स्वामी अथवा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग दिखाया। उनके अनुसार मनुष्य को त्रिरत्न अथवा शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन का पालन करना चाहिए। उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम मार्ग स्वीकार किया। वह समझते थे कि पशु, पक्षी, वायु, अग्नि, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं में आत्मा है और उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। उनका वेदों, जाति-पाति, यज्ञ तथा बलि में कोई विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि मनुष्य अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण जन्म लेता है और आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। . उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार दुःखों का घर है। दुःखों का कारण तृष्णा है। निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकता है। निर्वाण-प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने लोगों को अष्ट मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, नेक काम तथा सदाचार पर चलने के लिए कहा। सच तो यह है कि बौद्ध धर्म ने व्यर्थ के रीति-रिवाजों यज्ञों तथा कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया।

प्रश्न 4.
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व था :

  • उन्होंने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। भेदभाव का स्थान सहकारिता ने ले लिया। ऊंच-नीच की भावना समाप्त होने लगी और समाज प्यार और भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया।
  • महावीर ने लोगों को समाज-सेवा का उपदेश दिया। अतः लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की। इससे न केवल जनता का ही भला हुआ बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी समाज सेवा के कार्य करने का प्रोत्साहन मिला।
  • जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म भी काफ़ी सरल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त महावीर ने अहिंसा पर बल दिया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपना कर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। उनका जीवन सरल तथा संयमी बना।

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प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध के मध्य मार्ग से क्या भाव है ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के उपदेशों के मूल सिद्धान्त चार महान् सत्य थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही दुःखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • तृष्णा के दमन के लिए मनुष्य को अष्ट मार्ग अथवा मध्य मार्ग पर चलना चाहिए।

महात्मा बुद्ध के अष्ट मार्ग में ये आठ बातें शामिल हैं-

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म द्वारा ही सम्भव हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। अतः अष्ट मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य मार्ग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह घोर तपस्या तथा ऐश्वर्यमय जीवन के बीच का रास्ता है।

प्रश्न 6.
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की क्या विशेषताएं थीं ?
उत्तर-
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं ये थीं-
1. प्रत्येक स्त्री-पुरुष संघ का सदस्य बन सकता था। संघ में प्रवेश करने की रस्म बड़ी साधारण थी। इसमें तीन पीले वस्त्र धारण करना, मुण्डन संस्कार एवं तीन ‘रत्नों’ का उच्चारण शामिल था। ये तीन रत्नं थे : ‘बुद्धं शरणम् गच्छामि, ‘धर्मं शरणम् गच्छामि’, ‘संघ शरणम् गच्छामि।

2. नये भिक्षुओं को दस शील विरतियों के पालन का प्रण करना पड़ता था। मुख्य शील विरतियां थीं : जीवों को कष्ट न देना, किसी वस्तु को उसकी इच्छा के बिना न लेना, आवेग में दुर्व्यवहार न करना, झूठा न बोलना, नशे का सेवन न करना आदि।

3. भिक्षु के दैनिक जीवन की भी बहुत-सी क्रियाएं थीं। वह भिक्षा मांग कर दिन में केवल एक समय भोजन करता था। वह संघीय उपासना में भाग लेने के अतिरिक्त अपना समय अध्ययन एवं अष्टमार्ग के अनुसार धार्मिक अभ्यास में लगाता था। मठ को साफ़-सुथरा रखने के लिए श्रमदान भी करना पड़ता था।

4. मठीय जीवन का संचालन या विभिन्न मठवासियों की गतिविधियों को संयोजित करने के लिए केन्द्रीय संस्था नहीं थी। मठ का संचालन मुख्य भिक्षु के नेतृत्व में सभी वयोवृद्ध भिक्षु मिलकर करते थे।

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प्रश्न 7.
कला के दृष्टिकोण से स्तूप का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
स्तूप महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक थे। यह एक विशाल अर्द्ध गोलाकार गुम्बज होता था जिसके बीचोंबीच स्थित एक छोटे कमरे में बुद्ध के स्मृति-चिन्ह एक संदूकचे में रखे जाते थे। स्तूप पर लकड़ी या पत्थर का छत्र बना होता था। कला की दृष्टि से सर्वोत्तम स्तूपों के नमूने कृष्णा नदी की घाटी के निचले भाग में अमरावती में एवं मध्य प्रदेश में भरहुत और सांची में मिलते हैं। स्तूपों पर की गई नक्काशी की कला भी कम प्रभावशाली नहीं थी। लकड़ी पर नक्काशी के नमूने तो बहुत देर तक सुरक्षित न रह सके। परन्तु अमरावरती एवं सांची के स्तूपों के तोरणों (प्रवेश द्वार) पर पत्थर पर हुई सुन्दर नक्काशी आज भी देखी जा सकती है। इन पर चित्रित दृश्य मुख्यतः बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं। इनमें अधिकांश का सम्बन्ध बुद्ध के जन्म, गृह त्याग, ज्ञान-प्राप्ति, धर्मचक्र प्रवर्तन एवं उनके महा-परिनिर्वाण से है।

प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के पतन के मुख्य कारण थे :

  • समय के अनुसार वैदिक धर्म में अनेक सुधार किये गये। अतः वे सभी लोग जो हिन्दू से बौद्ध बने थे, फिर वैदिक धर्म में शामिल हो गए।
  • बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। इसमें अनेक कुरीतियां और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल हो गए।
  • बौद्ध भिक्षु बड़ा विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। इस बात का लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। फलस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम होने लगी।
  • बौद्ध धर्म के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे जाने लगे। लोग इस कठिन भाषा से पहले ही तंग थे।
  • महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म में कोई भी उन जैसा महान् व्यक्ति पैदा न हुआ जो इस धर्म को लोकप्रिय बना सकता।

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प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई० पू० में कौन-सी नई भाषा महत्त्वपूर्ण बनी और क्यों ?
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में ‘प्राकृत’ भाषा महत्त्वपूर्ण बनी। प्राकृत भाषा का महत्त्व बढ़ने से पहले वैदिक संस्कृत भाषा को अधिक महत्त्व दिया जाता था। उस समय हिन्दुओं के सभी ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे हुए थे और ब्राह्मण तथा कुलीन वर्ग के अन्य लोग इसी भाषा का प्रयोग करते थे। परन्तु यह भाषा बहुत ही कठिन थी और साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप साधारण लोग न तो वैदिक ग्रन्थों को पढ़ सकते थे और न ही उनका अर्थ समझ पाते थे। इसी समय कुछ नये विचारकों का जन्म हुआ। वे अपने विचार प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते थे। यह तभी सम्भव था जब वे अपने प्रचार कार्य आम जनता की बोलचाल की भाषा में करते। अतः उन्होंने ‘प्राकृत’ भाषा को अपनाया जिसके कारण यह भाषा काफ़ी महत्त्वपूर्ण बन गई।

प्रश्न 10.
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खण्डन किया। फलस्वरूप देश में जाति-प्रथा के बन्धन शिथिल पड़ गए। इस मत के सरल सिद्धान्तों की लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने पशु-बलि, कर्मकाण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप वैदिक धर्म एक बार फिर सरल रूप धारण करने लगा। जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया। इस सिद्धान्त को अपना कर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए। जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में विशाल मन्दिर तथा मठ बनवाए। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर, आबू पर्वत के जैन मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खजुराहो के जैन मन्दिर कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। इस धर्म के कारण कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की।

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प्रश्न 11.
जैन मत लोकप्रिय क्यों न हो सका ?
उत्तर-
जैन मत भारत में अनेक कारणों से अधिक लोकप्रिय न हो सका :

  • इसमें घोर तपस्या पर बल दिया गया था जिसके अनुसार मनुष्य को कई दिन तक भूखा-प्यासा रहना पड़ता था। साधारण लोग इतना कठोर जीवन व्यतीत नहीं कर सकते थे।
  • जैन मत के अनुयायियों ने इस धर्म के प्रचार पर अधिक बल न दिया।
  • इस धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त को अत्यन्त कठोर रूप में अपनाया गया था।
  • इसे बौद्ध धर्म की भान्ति अधिक राजकीय सहायता न मिल सकी।
  • बौद्ध धर्म के सिद्धान्त जैन मत की अपेक्षा अधिक सरल थे। अतः अधिक से अधिक लोग बौद्ध धर्म को अपनाने लगे और जैन धर्म अपनी लोकप्रियता खो बैठा।

प्रश्न 12.
जैन धर्म के दो सम्प्रदायों अर्थात् दिगम्बर तथा श्वेताम्बर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं-दिगम्बर तथा श्वेताम्बर। दोनों सम्प्रदायों में मूल रूप से कोई अन्तर नहीं। दोनों महावीर की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उनके दर्शन को स्वीकार करते हैं। इन दोनों सम्प्रदायों में भिन्नता मौर्य काल में आरम्भ हुई। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भान्ति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाए तथा उत्तरी भारत में भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत-वस्त्र धारण करने वाले।’ समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है।

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प्रश्न 13.
बौद्ध मत लोकप्रिय क्यों हुआ ?
उत्तर-
भारत में बौद्ध मत की लोकप्रियता के मुख्य कारण थे :

  • यह एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और उन्हें अपना सकते थे।
  • महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश भी साधारण बोल-चाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।
  • महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का भी घोर खण्डन किया और भाईचारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए धर्म के अनुयायी बन गए।
  • बौद्ध धर्म की उन्नति का एक अन्य बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।
  • अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं के प्रयत्नों में यह धर्म केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

प्रश्न 14.
बौद्ध धर्म की क्या देन है ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म की देन वास्तुकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला के सुन्दर नमूनों में देखी जा सकती है। भारतीय धर्मों एवं दर्शनों पर तो बौद्ध धर्म का प्रभाव अत्यन्त गहरा है। पन्द्रह सौ वर्षों तक बौद्ध धर्म ने भारत में करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। यही नहीं, चीन, जापान, लंका, म्यनमार (बर्मा) एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में और तिब्बत में वहां की कला एवं वास्तुकला बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती है। इन देशों का अपना बौद्ध धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य भी इनकी अत्यन्त मूल्यवान सांस्कृतिक पूंजी है। एशिया के करोड़ों लोग भारत को आज तक भी बुद्ध की धरती के रूप में जानते हैं।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उदय के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का जन्म छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इन धर्मों का जन्म ऐसे समय पर हुआ जब समाज पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व छाया हुआ था। यज्ञ बड़े महंगे और आवश्यक थे। धर्म अपना सरल रूप खो चुका था। ठीक इसी समय महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध ने मानवता को धर्म की सही राह दिखाई। संक्षेप में, जैन तथा बौद्ध धर्म का जन्म निम्नलिखित कारणों से हुआ

1. हिन्दू धर्म में जटिलता-ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बड़ा सरल था और इसके सिद्धान्तों को आसानी से अपनाया जा सकता था, परन्तु धीरे-धीरे वैदिक (आर्य) धर्म जटिल होता चला गया। व्यर्थ के कर्म-काण्ड धर्म का अंग बन गए। लोगों के लिए इस धर्म के सिद्धान्तों को अपनाना मुश्किल हो गया। परिणामस्वरूप वे किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

2. जाति-प्रथा तथा छुआछूत-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। लोगों में छुआछूत की भावना इतनी बढ़ गई कि वे शूद्रों को छूना भी पाप समझने लगे। अतः शूद्र लोग किसी ऐसे धर्म की इच्छा करने लगे जिसमें उन्हें उचित स्थान मिल सके।

3. ब्राह्मणों की स्वार्थ भावना-धर्म का कार्य ब्राह्मणों को सौंपा गया था। आरम्भ में वे बिना किसी लोभ लालच के अपना कार्य करते थे, परन्तु धीरे-धीरे वे स्वार्थी बन गए। वे धर्म की व्याख्या अपने ही ढंग से करने लगे। परिणामस्वरूप साधारण जनता ब्राह्मणों से बचने का कोई उपाय सोचने लगी।

4. कठिन भाषा-उस समय वैदिक धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए थे। कठिन होने के कारण साधारण लोग इस भाषा को नहीं समझ सकते थे। इसलिए वे किसी ऐसे धर्म की खोज में रहने लगे जिस धर्म के ग्रन्थ लोगों की बोलचाल की भाषा में लिखे गए हों।

5. महंगे यज्ञ-ऋग्वैदिक काल तक आर्य बड़े ही सरल ढंग से यज्ञ किया करते थे, परन्तु धीरे-धीरे यज्ञ काफ़ी महंगे होते चले गए। यज्ञ में अनेक ब्राह्मणों को भोज देना पड़ता था। साधारण जनता के लिए ऐसे यज्ञ करना असम्भव हो गया। अत: लोग किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

6. तन्त्र-मन्त्र में विश्वास-छठी शताब्दी में लोग अन्धविश्वासी हो चुके थे। वे वेद मन्त्रों की बजाए तन्त्र-मन्त्र में . विश्वास रखने लगे। यहां तक कि रोगों का इलाज भी जादू-टोनों के द्वारा किया जाने लगा। इस अन्धविश्वास को समाप्त करने के लिए किसी नए धर्म की आवश्यकता थी।

7. महापुरुषों का जन्म-छठी शताब्दी ई० पू० में भारत में दो महापुरुषों ने जन्म लिया जिनके नाम थे-महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध । उन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार करके उसे नए रूप में प्रस्तुत किया, परन्तु उनके उपदेशों ने क्रमशः दो नए धर्मों का रूप धारण कर लिया। ये नवीन धर्म जैन मत और बौद्ध मत के नाम से प्रसिद्ध हुए।

सच तो यह है कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय वैदिक धर्म में गिरावट के कारण हुआ। धर्म में जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा-यें सभी बातें थीं जिनके कारण बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय हुआ। इस विषय में डॉ० राधाकृष्णन ठीक ही लिखते हैं, “महावीर अथवा गौतम ने किसी नए तथा स्वतन्त्र धर्म का आरम्भ नहीं किया। उन्होंने तो अपने प्राचीन वैदिक धर्म पर आधारित एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।”

प्रश्न 2.
जैन धर्म के मुख्य उपदेश (सिद्धान्त) क्या-क्या हैं ?
अथवा
‘त्रिरत्न’ तथा ‘अहिंसा’ का विशेष रूप से वर्णन करते जैन धर्म के किन्हीं पांच सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म अथवा महावीर स्वामी की शिक्षाएं (उपदेश) बड़ी सरल थीं। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए तीन साधन बताए गए हैं–शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन। जैन धर्म को मानने वाले इन तीन सिद्धान्तों को ‘त्रिरत्न’ कहते हैं।

2. घोर तपस्या में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी घोर तपस्या करने तथा अपने शरीर को अधिक-से-अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते हैं। उनके अनुसार शरीर को कष्ट देने से जल्दी मोक्ष प्राप्त होता है।

3. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है। इस धर्म के अनुयायियों का विश्वास है कि संसार की सभी वस्तुओं में जीव (आत्मा) है। इसलिए वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं।

4. ईश्वर में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले ईश्वर को नहीं मानते। वे ईश्वर के स्थान पर अपने तीर्थंकरों की पूजा करते हैं।

5. वेदों में अविश्वास-जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। वे वेदों से मुक्ति के लिए बताए गए मुक्ति के साधनों-यज्ञ, हवन, आदि को व्यर्थ समझते हैं।

6. आत्मा में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार आत्मा अमर है। यह शरीर में रह कर भी शरीर से भिन्न होती है।

7. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

8. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

9. मोक्ष-प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म-चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है।

10. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने आदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

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प्रश्न 3.
(क) बौद्ध धर्म के मुख्य उपदेशों का वर्णन करें।
(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
(क) बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं-

  • बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही सबसे अच्छा मार्ग है। निर्वाण न तो भोग-विलास से मिल सकता है और न ही कठोर तपस्या से।
  • संसार दुःखों का घर है। तृष्णा इन दुःखों का कारण है। इसी तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर में फंसा रहता है। तृष्णा और वासना का त्याग ही इन दुःखों से छुटकारा दिला सकता है।
  • महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को अष्ट मार्ग पर चल कर ही दुःखों से मुक्ति मिल सकती है। अष्ट मार्ग में ये आठ बातें सम्मिलित हैं- (i) सम्यक् दृष्टि (ii) सम्यक् संकल्प, (iii) सम्यक् वचन, (iv) सम्यक् ध्यान, (v) सम्यक् प्रयत्न, (vi) सम्यक् विचार, (vii) सम्यक् आजीविका।
  • महात्मा बुद्ध पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है। यज्ञ और घोर तपस्या आदि द्वारा यह कर्मों के फल से नहीं बच सकता।
  • बौद्ध धर्म वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता। इसके अनुसार हवन, यज्ञ, बलि आदि भी व्यर्थ हैं।
  • महात्मा बुद्ध ने ईश्वर के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। इस विषय में सदा मौन रहे।
  • बौद्ध धर्म में जाति-पाति के भेद-भाव को व्यर्थ समझा जाता है।
  • बौद्ध धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार किसी भी जीव को कष्ट देना पाप है।
  • बौद्ध धर्म में शुद्ध आचरण को बहुत महत्त्व दिया गया है। इसमें चोरी करना, झूठ बोलना आदि बातों को पाप माना गया है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण से ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से बच सकता है।

(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण लोग सदाचारी बने। उन्होंने झूठ बोलना, चोरी करना, किसी की निन्दा करना आदि सभी बुरे कर्म छोड़ दिए।
  • बौद्ध धर्म के कारण लोगों के खान-पान में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। अहिंसा का सिद्धान्त अपनाकर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में अनेक स्तूप, मठ और विहार बने। ये सभी कला के उत्तम नमूने हैं।
  • महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं तथा उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे गए। परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य का विकास हआ।
  • बौद्ध धर्म ने अनेक राजाओं की राज्य-नीति को भी प्रभावित किया। उदाहरण के लिए अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रभाव में आकर जन-कल्याण को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। इसी प्रकार कनिष्क और हर्ष ने भी प्रजा-हित के लिए अनेक कार्य किए।

प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण बताओ।
अथवा
बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। इसके लिए उत्तरदायी कोई पांच कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। यहां तक कि अनेक राजा भी इस धर्म के अनुयायी बन गए और उन्होंने इसको विश्व धर्म बना दिया। इस धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण निम्नलिखित थे-

1. सरल धर्म-बौद्ध धर्म एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और इन्हें अपना सकते थे। इसलिए यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।

2. बोलचाल की भाषा-महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश साधारण बोलचाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।

3. अनुकूल वातावरण-बौद्ध धर्म के उदय के समय भारत में कोई ऐसा धर्म नहीं था जो इस धर्म का सामना कर सकता। हिन्दू धर्म में अनेक दोष आ चुके थे। जैन धर्म भी अपने जटिल नियमों के कारण अधिक लोकप्रिय न हो सका। ऐसे वातावरण में बौद्ध धर्म की उन्नति स्वाभाविक ही थी।

4. जाति-प्रथा का विरोध-महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का घोर खण्डन किया और भाई-चारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

5. हिन्दू धर्म की कुरीतियां-बौद्ध धर्म की उन्नति का सबसे बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। हिन्दू धर्म में यज्ञों और पशु बलि पर अधिक बल दिया जाने लगा था। यज्ञ इतने महंगे थे कि साधारण लोगों के लिए यज्ञ कराना असम्भव था। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

6. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का अपना जीवन बड़ा आकर्षक तथा प्रभावशाली था। वह जिन नियमों का लोगों को उपदेश देते थे, स्वयं भी उनका पालन करते थे। उनकी वाणी भी बड़ी मधुर थी। उनके इस महान् व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र बड़ा ऊंचा था। उनके चरित्र से अनेक लोग प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

8. राजकीय सहायता-अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अनेक प्रयत्न किए। उनके प्रयत्नों से यह धर्म केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 5.
भारत में बौद्ध धर्म का तो पतन हो गया पर जैन धर्म कुछ भागों में जमा रहा। इसके कारणों की समीक्षा करें।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म जितनी तीव्रता से फैला, उसी तीव्रता से इस धर्म का पतन भी हो गया। परन्तु जैन धर्म का देश के कुछ भागों में अस्तित्व बना रहा। इसके कुछ विशेष कारण थे जिनका वर्णन इस प्रकार है :
बौद्ध धर्म के पतन के कारण-

1.धर्म में जटिलता-बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज इस धर्म का अंग बन गये। परिणामस्वरूप लोगों का इस धर्म में विश्वास उठने लगा।

2. संस्कृत भाषा-बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने बुद्ध के उपदेशों को संस्कृत में लिपिबद्ध करना आरम्भ कर दिया। यह भाषा साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम हो गयी।

3. भिक्षुओं का दूषित चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र आरम्भ से बड़ा ऊंचा था, परन्तु धीरे-धीरे उनके चरित्र में अनेक दोष आ गये। अत: लोगों को उनसे घृणा होने लगी। इस बात का बौद्ध धर्म पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

4. हिन्दू धर्म में सधार-हिन्दू धर्म में समय के अनुसार अनेक आवश्यक सुधार किये गये। परिणामस्वरूप अनेक लोग, जिन्होंने हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, फिर से हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

5. राजकीय सहायता का अभाव-राजा कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। यह बात भी बौद्ध धर्म की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी। .

6. बौद्ध धर्म का विभाजन-कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म महायान और हीनयान नामक दो शाखाओं में बंट गया। महायान और हिन्दू धर्म के नियमों में विशेष अन्तर नहीं था। परिणामस्वरूप महायान के अनेक अनुयायी हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

7. राजाओं का अत्याचार-मौर्य वंश के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अनेक बौद्धों की हत्या करवा दी। उसके अत्याचार से डरकर अनेक लोगों ने बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

8. विदेशी आक्रमण-विदेशी आक्रमणकारियों ने बौद्धो के अनेक मठ और विहार तोड़ डाले। उन्होंने इन मठों और विहारों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं का भी वध कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे भारत में बौद्ध धर्म पूरी तरह लुप्त हो गया।

जैन धर्म के जमे रहने के कारण-

9. भारत में जैन धर्म को उतना राजाश्रय नहीं मिला था जितना कि बौद्ध धर्म को। इसलिए राजाश्रय समाप्त होने पर भी इस धर्म को अधिक क्षति न पहुंची।

10.जैन धर्म का प्रसार मुख्यत: व्यवहार और वाणिज्य में लगे लोगों में हुआ था। इन लोगों पर बदलती हुई परिस्थितियों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। इसलिए भारत में जैन धर्म आज भी किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाये हुए है।

प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
भारतीय समाज के निम्नलिखित पक्षों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव की व्याख्या कीजिए :
(क) सामाजिक जीवन तथा धार्मिक जीवन
(ख) राजनीतिक जीवन तथा कला एवं साहित्य।
उत्तर-
प्रत्येक धार्मिक आन्दोलन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बौद्ध धर्म ने भी पूर्ण रूप से भारतीय जीवन को प्रभावित किया। हमारे सामाजिक जीवन, कलाओं, साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिनका वर्णन इस प्रकार है

सामाजिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त पर बड़ा बल दिया गया था। इस सिद्धान्त के कारण लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज में जाति-प्रथा की कठोरता कम हो गई। सभी जातियों के लोग अब मिल-जुल कर रहने लगे।
  • महात्मा बुद्ध ने लोगों में ऐसे सिद्धान्तों का प्रचार किया था जिससे कि लोगों का चरित्र ऊंचा हो सके। इन नियमों का पालन करके लोग सदाचारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज-सेवा की भावना को बड़ा बल मिला।
  • इस धर्म के कारण देश में तर्क की प्रधानता बढ़ी और अन्धविश्वास कम हो गए। परिणामस्वरूप भारतीय समाज एक आदर्श समाज बन गया।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में भीख मांगने की कुप्रथा आरम्भ हो गई। बौद्ध भिक्षुओं को लोग दिल खोलकर भिक्षा देते थे, परन्तु धीरे-धीरे कुछ कामचोर लोगों ने भीख मांगना अपना व्यवसाय बना लिया।

धार्मिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखकर हिन्दू धर्म के शुभचिन्तकों ने भी अपने धर्म को फिर से सरल बनाने का प्रयास किया। फलस्वरूप हिन्दू धर्म में अनेक आवश्यक सुधार किए गए।
  • इस धर्म के कारण देश में मूर्ति-पूजा आरम्भ हुई। महात्मा बुद्ध की अनेक मूर्तियां बनाई गईं। उनकी देखा-देखी हिन्दुओं ने भी अपने देवी-देवाताओं की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करनी आरम्भ कर दी।
  • बौद्ध धर्म के परिणामस्वरूप भारत में मन्दिरों की स्थापना हुई।
  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखते हुए धर्म में प्रचारकों का महत्त्व बढ़ गया।

राजनीतिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म लगभग सारे भारत में लोकप्रिय हुआ। एक ही धर्म के अनुयायी होने के कारण भारतीयों में मेल-जोल बढ़ा। परिणामस्वरूप देश में राजनीतिक एकता को बल मिला।
  • बौद्ध धर्म ने लोगों को मानव-प्रेम का सन्देश दिया। जिन राजाओं ने भी इसे अपनाया, उन्होंने मानव-कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। अशोक, कनिष्क तथा हर्ष इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण हैं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। उदाहरण के लिए अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर अशोक ने युद्ध करने बन्द कर दिए। परिणाम यह हुआ कि भारतीय सैनिक दुर्बल और विलासी बन गए।

कला एवं साहित्य पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण देश में अनेक स्तूप, मठ तथा विहार बने। ये सभी भवन-निर्माण कला की दृष्टि से बड़ा महत्त्व रखते
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में मूर्ति-कला में विशेष निखार आया। अनेक नई कला शैलियों का भी जन्म हुआ। गान्धार कला-शैली में महात्मा बुद्ध की अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारतीय साहित्य का काफ़ी विकास हुआ। महात्मा बुद्ध के अनुयायियों ने बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे।

संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि बौद्ध धर्म ने भारतीय जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव डाला। भारत पर इसके प्रभावों का वर्णन करते हुए श्री ई० वी० हैवेल ने ठीक ही कहा है, “बौद्ध धर्म ने भारत को एक राष्ट्र बनाने में उसी प्रकार सहायता की जिस प्रकार ईसाई धर्म ने ऐंग्लो-सैक्सन काल में इंग्लैण्ड में की थी।”

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की तुलना कीजिए।
अथवा
(क) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में क्या समानताएं थीं ?
(ख) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के बीच असमानताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व की देन है। दोनों धर्मों का जन्म समान परिस्थितियों में हुआ। इसलिए दोनों में कुछ समानताएं होना स्वाभाविक है। समानताओं के साथ-साथ इनमें कुछ असमानताएं भी पाई जाती हैं। आओ, इन दोनों धर्मों की तुलनात्मक समीक्षा करें।

(क) समानताएं-

  • दोनों धर्मों के संस्थापक क्षत्रिय राजकुमार थे। इन दोनों ने ही घोर तपस्या के पश्चात् सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।
  • दोनों धर्मों का जन्म हिन्दू धर्म की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।
  • दोनों धर्मों के सिद्धान्त आरम्भ में बड़े सरल थे। अहिंसा तथा मोक्ष दोनों धर्मों के मूल सिद्धान्त हैं।
  • दोनों धर्म कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में मिलता है।
  • दोनों धर्मों ने ही जाति प्रथा का घोर विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने ही ब्राह्मणों के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया।
  • दोनों धर्मों ने ही यज्ञों तथा पशु-बलि का विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने सदाचार और पवित्रता का सन्देश दिया।

(ख) असमानताएं-

  • दोनों धर्मों में अहिंसा को अपनाने का मार्ग भिन्न है। बौद्ध धर्म के अनुसार किसी भी प्राणी को मन, वचन तथा कर्म में कष्ट नहीं देना चाहिए। यही अंहिसा है। इसके विपरीत जैन धर्म वाले प्रत्येक वस्तु में आत्मा मानते हैं। उनके अनुसार किसी जीव या निर्जीव को कष्ट पहुंचाना अहिंसा के सिद्धान्त के विरुद्ध है।
  • दोनों धर्म मोक्ष-प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य मानते हैं, परन्तु दोनों धर्मों के मोक्ष प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हैं।
    बौद्ध धर्म में मोक्ष-प्राप्ति के लिए “अष्ट-मार्ग” बताया गया है, जबकि जैन धर्म के अनुयायी ‘त्रिरत्न’ का पालन करके मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं।
  • दोनों धर्मों ने ही धर्म प्रचार संघ स्थापित किए, परन्तु बौद्ध संघ के भिक्षु जहां स्थान-स्थान पर घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते थे, वहां जैन संघ के संन्यासी घोर तपस्या में लीन रहते थे।
  • जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायी बिल्कुल नंगे रहते हैं, परन्तु बौद्ध धर्म की किसी शाखा में यह बात नहीं पाई जाती।
  • दोनों धर्मों के पूजनीय व्यक्ति भिन्न हैं। जैन धर्म वाले तीर्थंकरों की पूजा करते हैं, जबकि बौद्ध धर्म वाले बौधिसत्वों की पूजा करते हैं।
  • दोनों धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ अलग-अलग हैं। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘जातक’ और ‘त्रिपिटक’ हैं। दूसरी ओर जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थ “अंग” और “उपांग” हैं।
  • बौद्ध धर्म विदेशों में भी खूब लोकप्रिय हुआ। इसके विपरीत जैन धर्म केवल भारत तक ही सीमित रहा।
  • बौद्ध धर्म का आज भारत में पूरी तरह पतन हो चुका है। इसके विपरीत जैन धर्म के आज भी भारत में अनेक अनुयायी मिलते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ बताइये।
उत्तर-
मैकाइवर के अनुसार, “समाज सामाजिक संबंधों का जाल है।”

प्रश्न 2.
समाज और समुदाय किन शब्दों से लिये गए हैं ?
उत्तर-
समाज (Society) शब्द लातीनी भाषा के शब्द ‘Socius’ से निकला है जिसका अर्थ है साथ अथवा मित्रता। समुदाय (Community) भी लातीनी भाषा के शब्द ‘Communitas’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘सबका सांझा’।

प्रश्न 3.
किसने कहा, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ?”
उत्तर-
ये शब्द अरस्तु (Aristotle) के हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 4.
सरल युग्म समाज, युग्म समाज, द्वि-युग्म समाज तथा त्रि-युग्म समाज का वर्गीकरण किसने दिया ?
उत्तर-
यह वर्गीकरण हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) ने दिया था।

प्रश्न 5.
समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करके संगठन का निर्माण करते है तो इस संगठित संगठन को समिति कहते हैं।

प्रश्न 6.
खुला समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिस समाज में अलग-अलग वर्गों में आने-जाने की पाबंदी नहीं होती उसे खुला समाज कहते हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज की तीन विशेषताएं बताइये।
उत्तर-

  1. समाज लोगों का समूह होता है जिनमें आपसी संबंध होते हैं।
  2. समाज हमेशा समानताओं तथा अंतरों पर निर्भर करता है।
  3. समाज सहयोग तथा संघर्ष पर आधारित होता है।
  4. प्रत्येक समाज में स्तरीकरण पाया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
समाज के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज इत्यादि। परन्तु अलग-अलग विद्वानों ने समाजों के अलग-अलग आधारों पर प्रकार दिए हैं जैसे कि काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता), मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।

प्रश्न 3.
समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है जिसके सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 4.
समाज किस प्रकार समुदाय से भिन्न है ? दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाज का कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  • समाज में सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं परन्तु समुदाय में केवल सहयोग ही होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 5.
समिति को परिभाषित कीजिए तथा इसकी विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
बोगार्डस के अनुसार, “सभा साधारणतया कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर कार्य करना है।” इसकी कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि इसकी विचारपूर्वक स्थापना होती है, इसका निश्चित उद्देश्य होता है, इसका जन्म तथा विनाश होता रहता है, इसकी सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है इत्यादि।

प्रश्न 6.
समुदाय तथा समिति के मध्य दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  1. समुदाय किसी निश्चित उद्देश्य के लिए नहीं बनाया जाता परन्तु सभा एक निश्चित उद्देश्य के लिए निर्मित होती है।
  2. समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती परन्तु सभा की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  3. समुदाय का निश्चित संगठन नहीं होता परन्तु सभा का एक निश्चित संगठन होता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
मानव समाज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इस पृथ्वी पर मनुष्य तथा मानवीय समाज प्रकृति द्वारा बनाई गई एक अनुपम रचना है। मानवीय समाज की कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जो इसे पृथ्वी के अन्य जीवों से अलग करती हैं। इन विशेषताओं के कारण ही मानवीय समाज ने प्रगति की है तथा इसकी अपनी संस्कृति तथा सभ्यता विकसित हो सकी है। मानवीय समाज ने अपनी संस्कृति विकसित कर ली है जो काफ़ी आधुनिक स्तर पर पहुंच चुकी है चाहे प्रत्येक समाज के लिए यह अलग-अलग होती है। मानवीय समाज की इकाइयां अर्थात् मनुष्य अलग-अलग स्थितियों, उत्तरदायित्वों, अधिकारों, संबंधों के प्रति भी जागरूक होते हैं। मानवीय समाज हमेशा परिवर्तनशील होता है तथा इसमें समय के साथ-साथ परिवर्तन आते रहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
अगस्ते कोंत द्वारा प्रस्तुत मानव समाज के तीन चरणों के नाम बताइये।
उत्तर-
अगस्ते कोंत ने मानवीय समाज के उद्विकास के तीन स्तर दिए हैं तथा वे हैं-

  1. आध्यात्मिक पड़ाव (Theological Stage)
  2. अधिभौतिक पड़ाव (Metaphysical Stage)
  3. सकारात्मक पड़ाव (Positive Stage)।

प्रश्न 3.
समुदाय के प्रमुख आधार कौन-से हैं ?
उत्तर-

  • समुदाय का जन्म स्वयं ही हो जाता है।
  • प्रत्येक समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  • समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें व्यक्ति रहता है।
  • आजकल के समुदाय का एक विशेष आधार होता है कि यह स्वयं में आत्मनिर्भर होता है।
  • प्रत्येक समुदाय में हम-भावना मिल जाती है।
  • समुदाय में हमेशा स्थिरता रहती है अर्थात् यह टूटते नहीं हैं।

प्रश्न 4.
समिति के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  1. राजनीतिक दल (Political Parties)
  2. लेबर यूनियन (Labour Union)
  3. धार्मिक संगठन (Religious Organisations)
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन (International Associations)।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 5.
टोनीज़ द्वारा प्रस्तुत समाज के प्रकार कौन से हैं ?
उत्तर-
1. जैमिन शाफ़ट (Gemein Schaft)-टोनीज़ के अनुसार, “जैमिनशाफ़ट एक समुदाय है जिसके सदस्य एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए रहते हैं तथा अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इस समुदाय के जीवन में स्थायी रूप तथा प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं।” उदाहरण के लिए ग्रामीण समुदाय।।

2. गैसिल शाफ़ट (Gesell Schaft)-टोनीज़ के अनुसार गैसिल शाफ़ट एक नया सामाजिक प्रकरण है जो औपचारिक तथा कम समय वाला होता है। यह और कुछ नहीं बल्कि समाज के लोगों का जीवन है। इसके सदस्यों के बीच द्वितीय संबंध पाए जाते हैं।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाज शब्द से आप क्या समझते हैं ? एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
व्यक्ति तथा समाज अन्तःसम्बन्धित हैं। तर्क दीजिए।
उत्तर-
ग्रीक (यूनानी) फ़िलॉस्फर अरस्तु (Aristotle) ने कहा था कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” इस का अर्थ यह है कि मनुष्य समाज में रहता है। समाज के बिना मनुष्य की कीमत कुछ भी नहीं है। वह मनुष्य जो और मनुष्यों के साथ मिलकर साझे जीवन को नहीं निभाता, वह मनुष्यता के नीचे स्तर से है। मनुष्य को लंबा जीवन जीने के लिए बहुत सारी ज़रूरतों के लिए अन्य मनुष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसे अपनी सुरक्षा, भोजन, शिक्षा, सामान, कई प्रकार की सेवाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। मनुष्य को हम सामाजिक प्राणी तीन अलग-अलग आधारों पर कह सकते हैं

1. मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है (Man is social by nature)-सबसे पहले मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य अकेला नहीं रह सकता। कोई भी समाज से अलग रह कर आम तरीके से विकास नहीं कर सकता। बहुत-से समाजशास्त्रियों ने अनुभव किए हैं कि जो बच्चे समाज से अलग रह कर के बड़े हुए हैं वह सही तरह विकास नहीं कर सके हैं। यहाँ तक कि एक बच्चा 17 साल की उम्र का होकर भी सही तरह से चल नहीं सकता है। उसको शिक्षा देने के बाद भी वह साधारण मनुष्यों की भांति नहीं रह सका।

इसके साथ का एक केस हमारे सामने आया। 1920 में दो हिन्दू बच्चे एक भेड़िए की गुफ़ा में मिले थे। उनमें से एक बच्चा तो मिलने से कुछ समय बाद ही मर गया था पर दूसरे बच्चे ने अजीब तरह से व्यवहार किया। वह मनुष्यों की भाँति चल नहीं सकता था। वह उनकी तरह खा भी नहीं सकता था और बोल भी नहीं सकता था। वह जानवरों की तरह चार हाथों पैरों के भार चलता था, उस के पास कोई भाषा नहीं थी और वह भेड़िए की तरह चीखता था। वह बच्चा मनुष्यों से डरता था। उसके बाद उस बच्चे के साथ हमदर्दी और प्यार भरा व्यवहार अपनाया गया जिसके कारण वह कुछ सामाजिक आदतें और व्यवहार सीख सका।

एक और केस अमेरिका में एक बच्चे के साथ प्रयोग किया गया। उस बच्चे के माता-पिता का पता नहीं था। उसको 6 महीने की उम्र से ही एक कमरे में एकांत में रखा गया। 5 साल बाद देखा गया कि वह बच्चा न तो चल सकता है और न ही बोल सकता है तथा वह और मनुष्यों से भी डरता था।

यह सभी उदाहरण यह साबित करते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य उस स्थिति में ही ठीक तरह से विकास कर सकते हैं जब वह समाज में रहते हों और अपने जीवन को दूसरे मनुष्यों के साथ बाँटते हों। उपरोक्त उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि उन बच्चों में मनुष्यों जैसा सामर्थ्य तो था पर सामाजिक समझौतों की कमी में वह सामाजिक तौर पर विकास करने में असमर्थ रहे। समाज में ऐसी चीज़ है जो मनुष्य की प्रकृति की आवश्यक चीज़ों को पूरा करती है। यह कोई भगवान् द्वारा थोपी गई चीज़ नहीं है बल्कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है।

2. आवश्यकता इन्सान को सामाजिक बनाती है (Necessity makes a man social)—मनुष्य समाज में इसलिए रहता है क्योंकि उसको समाज से बहुत कुछ चाहिए होता है। यदि वह समाज के दूसरे सदस्यों के साथ सहयोग नहीं करेगा तो उसकी बहुत-सी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी। हर बच्चा आदमी और औरत के आपसी सम्बन्धों का परिणाम होता है, बच्चा अपने माँ-बाप की देख-रेख में बड़ा होता है और अपने माँ-बाप के साथ रहते हुए वह बहुत कुछ सीखता है। बच्चा अपने अस्तित्व के लिए लिए पूरी तरह समाज पर निर्भर करता है। यदि एक नए जन्मे बच्चे को समाज की सुरक्षा न मिले तो शायद वह नया जन्मा बच्चा एक दिन भी जिंदा न रह सके। मनुष्य का बच्चा इतना असहाय होता है कि उसको समाज की सहायता की आवश्यकता पड़ती ही है। हम उसके खाने, कपड़े और रहने की ज़रूरतें पूरी करते हैं क्योंकि हम सब समाज में रहते हैं और सिर्फ समाज में रह कर ही ये आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। ऊपर दी गई उदाहरणों ने यह साबित किया है कि जो बच्चे जानवरों द्वारा बड़े किए जाते हैं वह आदतों से जानवर ही रहते हैं। बच्चे के शारीरिक विकास और मानसिक विकास के लिए समाज का होना आवश्यक है। कोई भी तब तक मनुष्य नहीं कहलाता जब तक वह मनुष्य के समाज में अन्य मनुष्यों के साथ न रहे। खाने की भूख हमें अन्य लोगों के साथ सम्बन्ध बनाने को बाध्य करती है इसलिए हमें कुछ काम करने पड़ते हैं तथा यह काम औरों के साथ सम्बन्ध बनाते हैं। इस तरह सिर्फ मनुष्य की प्रकृति के कारण ही नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए समाज में रहता है।

3. समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है (Society makes personality)- मनुष्य समाज में अपने शारीरिक एवं मानसिक पक्ष को विकसित करने के लिए रहता है। समाज अपनी संस्कृति और विरासत को संभाल कर रखता है ताकि इसको अपनी अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके। यह हमें स्वतन्त्रता भी देता है ताकि हम अपने गुणों को निखार सकें और अपने व्यवहार, इच्छाओं, विश्वास, रीतियों इत्यादि को परिवर्तित कर सकें। समाज के बिना व्यक्ति का मन एक बच्चे के मन की भाँति होता है। हमारी संस्कृति और हमारी विरासत हमारे व्यक्तित्व को बनाती हैं क्योंकि हमारे व्यक्तित्व पर सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी संस्कृति का होता है। समाज सिर्फ हमारी शारीरिक आवश्यकताएं ही नहीं बल्कि मानसिक आवश्यकताओं को भी पूरी करता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। यदि मनुष्य मनुष्यों की तरह रहना चाहता है तो उसको समाज की ज़रूरत है। उसको सिर्फ एक दो या कुछ आवश्यकताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने व्यक्तित्व को बनाने के लिए भी समाज की आवश्यकता पड़ती है।

व्यक्तियों के बिना समाज भी अस्तित्व में नहीं आ सकता। समाज कुछ नहीं है बल्कि सम्बन्धों का एक जाल है और सम्बन्ध सिर्फ व्यक्तियों में ही हो सकते हैं। इसीलिए यह एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों के बीच सम्बन्ध एक तरफ़ा नहीं है। यह दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं। व्यक्तियों को सिर्फ जीव नहीं कहा जा सकता और समाज सिर्फ मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने का साधन नहीं है। समाज वह है जिसके बिना व्यक्ति नहीं रह सकते तथा व्यक्ति वह है जिनके बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या समाज से ज्यादा मनुष्य ज़रूरी है या मनुष्यों से ज्यादा समाज ज़रूरी है। यह प्रश्न उस प्रश्न के समान है कि दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा। वास्तविकता यह है कि सभी मनुष्य समाज में पैदा हुए हैं और पैदा होते ही समाज में डाल दिए जाते हैं। कोई भी पूर्ण रूप में व्यक्तिगत नहीं हो सकता और न ही कोई पूर्ण रूप में सामाजिक हो सकता है।

वास्तव में ये दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों में से यदि एक भी न हो तो दूसरे का होना मुश्किल है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज ही व्यक्ति में स्वैः (Self) का विकास करता है। समाज में रहकर ही व्यक्ति सामाजिक आदतों को ग्रहण करता है और सामाजिक बनता है। इसके साथ समाज व्यक्तियों के बिना नहीं बन सकता। समाज बनाने के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती है। उनके बीच सम्बन्ध होना भी ज़रूरी है। इस तरह समाज व्यक्तियों के बीच में पैदा हुए सम्बन्धों का जाल है। इस तरह एक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। एक की अनुपस्थिति से दूसरे का अस्तित्व मुमकिन नहीं है।

प्रश्न 3.
समुदाय से आप क्या समझते हैं ? समुदाय की विशेषताओं की विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में अलग-अलग प्रकार के समूह पाए जाते हैं। इन अलग-अलग प्रकार के समूहों को अलग-अलग प्रकार के नाम दिए गए हैं और समुदाय इन नामों में से एक है। समुदाय अपने आप में एक समाज है और यह एक निश्चित क्षेत्र में होता है जैसे-कोई गाँव अथवा शहर। जब से मनुष्य ने एक जगह पर रहना शुरू किया है तब से ही वह समुदाय में रहता आया है। सबसे पहले जब मनुष्य ने कृषि करनी शुरू की उस समय से ही व्यक्ति ने समुदाय में रहना शुरू कर दिया है क्योंकि व्यक्ति एक ही स्थान पर रहना शुरू हो गया और इसके साथ लेन-देन शुरू हो गया।

समाजशास्त्र में समुदाय का अर्थ- समाजशास्त्र में इस शब्द समुदाय के व्यापक अर्थ हैं। साधारण शब्दों में जब कुछ व्यक्ति एक समूह में, एक विशेष इलाके में संगठित रूप से रहते हैं और वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही उधर बिताते हैं तब उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका जन्म भी नहीं होता इसका तो विकास होता है और अपने आप ही हो जाता है। जब लोग इलाके में रहते हैं और सामाजिक प्रक्रियाएँ करते हैं तो यह अपने आप ही विकास कर जाता है। समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ सदस्य अपनी ज़रूरतें खुद ही पूरी कर लेते हैं क्योंकि सदस्यों में आपस में लेन-देन होता है। समुदाय के सदस्य अपनी हर प्रकार की ज़रूरत को खुद ही पूरा कर लेते हैं। जब व्यक्ति ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो उनमें साझ पैदा हो जाती है जिसके कारण हम भावना उत्पन्न हो जाती है। जब लोग आपस में मिलकर रहते हैं तो उनमें कुछ नियम भी उत्पन्न हो जाते हैं।

समुदाय की विशेषताएं या तत्त्व (Characteristics or Elements of Community) –

1. हम भावना (We feeling)—समुदाय की यह विशेषता होती है कि इसमें हम भावना होती है। हम भावना के कारण ही समुदाय का हर सदस्य अपने आपको एक-दूसरे से अलग नहीं समझता बल्कि उन पर विश्वास करते हैं कि वह सब एक हैं। वह औरों जैसा और औरों में से एक है।

2. भूमिका की भावना (Role feeling) समुदाय की दूसरी विशेषता यह है कि इसके सदस्यों में भूमिका की भावना होती है। समुदाय में हर किसी को कोई-न-कोई पद और भूमिका प्राप्त होती है और उन को पता होता है कि उन्होंने कौन-से काम करने हैं और कौन-से कर्तव्यों का पालन करना है ।

3. निर्भरता (Dependence)-समुदाय की एक और विशेषता यह होती है कि समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और अकेले एक व्यक्ति के लिए समुदाय से अलग रहना सम्भव नहीं है। व्यक्ति सभी कार्य अकेले नहीं कर सकता। इसीलिए उसको अपने बहुत सारे कार्यों के लिए औरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

4. स्थिरता (Permanence)—समुदाय में स्थिरता होती है। इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए समुदाय छोड़कर चला जाता है तो कोई बात नहीं फिर भी वह अपने समुदाय से जुड़ा रहता है। यदि कोई अपना समुदाय छोड़कर विदेश चला जाता है तो समुदाय का दायरा बढ़ने लग जाता है क्योंकि बाहरी देश में जाने के बाद भी व्यक्ति अपने समुदाय को भूलता नहीं है। आज-कल कोई व्यक्ति सिर्फ एक समुदाय का सदस्य नहीं है। अलग-अलग समय में व्यक्ति अलग-अलग समुदाय का सदस्य होता है। इसलिए व्यक्ति चाहे जिस भी समुदाय का सदस्य हो उसमें भी स्थिरता रहती है।

5. आम जीवन (Common life)-समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि सारे अपना जीवन आराम से बिता सकें और मनुष्य अपना जीवन समुदाय में रहते हुए ही बिता देता है।

6. भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) हर समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें वह रहता है। बिना किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के समुदाय नहीं बन सकता।

7. अपने आप जन्म (Spontaneous Birth) समुदाय अपने आप ही पैदा हो जाता है। समुदाय का कोई विशेष इरादा नहीं होता। इसकी स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। जिस जगह पर व्यक्ति अधिक समय के लिए रहना शुरू कर देते हैं उधर समुदाय अपने आप पैदा हो जाता है। समुदाय उसको वे सभी सहूलतें देते हैं जिसके साथ मनुष्य अपनी ज़रूरतें आराम से पूरी कर सकता है।

8. विशेष नाम (Particular Name)-प्रत्येक समुदाय को एक विशेष नाम दिया जाता है जोकि समुदाय के बनने के लिए आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
समुदाय को परिभाषित कीजिए। समुदाय किस अर्थ में समाज से भिन्न है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
नोट- समुदाय की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न देखें 3.
समुदाय तथा समाज में अंतर (Difference between Community and Society)

  1. समाज व्यक्तियों का समूह है जो स्वयं ही विकसित हो जाता है परन्तु समुदाय चाहे स्वयं ही विकसित होता है परन्तु यह होता किसी विशेष क्षेत्र में है।
  2. समाज का कोई विशेष भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  3. समाज का कोई विशेष नाम नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  4. समाज सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जिस कारण यह अमूर्त होता है परन्तु समुदाय एक मूर्त संकल्प है।
  5. प्रत्येक समाज अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं होता परन्तु प्रत्येक समुदाय अपने आप में आत्मनिर्भर होता है जिस कारण यह अपने सदस्यों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण कर सकता है।
  6. समाज के सदस्यों के बीच हम भावना नहीं होती परन्तु समुदाय के सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 5.
समुदाय तथा समिति के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-
समुदाय तथा समिति में अन्तर-

  1. समुदाय अपने आप में विकसित होता है, इसको बनाया नहीं जाता जबकि समिति का निर्माण जानबूझ कर किया जाता है।
  2. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह सभी के हितों की पूर्ति करता है जबकि समितियों का एक निश्चित उद्देश्य होता है।
  3. एक व्यक्ति एक समय में सिर्फ एक समुदाय का सदस्य होता है जबकि व्यक्ति एक ही समय में कई समितियों का सदस्य हो सकता है।
  4. समुदाय की सदस्यता व्यक्ति की ज़रूरत होती है जबकि समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  5. समुदाय के लिए एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना ज़रूरी है जबकि समिति के लिए यह जरूरी नहीं है।
  6. समुदाय अपने आप में एक उद्देश्य होता है जबकि समिति किसी उद्देश्य को पूरा करने का साधन होती है।
  7. समुदाय स्थायी होता है पर समिति अस्थायी होती है।
  8. व्यक्ति समुदाय में पैदा होता है और इसमें ही मर जाता है पर व्यक्ति समिति में इसीलिए हिस्सा लेता है क्योंकि उसको किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है।
  9. समुदाय का कोई वैधानिक दर्जा नहीं होता पर समिति का वैधानिक दर्जा होता है।

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प्रश्न 6.
समाज तथा सभा के मध्य अन्तर की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. सभा व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए निर्मित की जाती है परन्तु समाज व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि स्वयं ही विकसित हो जाता है।

2. सभा की सदस्यता व्यक्ति के लिए ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ भी सकता है परन्तु समाज की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती बल्कि आवश्यक होती है तथा व्यक्ति को तमाम आयु समाज का सदस्य बन कर रहना पड़ता है। .

3. सभा एक मूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह लोगों की आवश्यकताओं पर आधारित होती है परन्तु समाज अमूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जोकि अमूर्त होते हैं।

4. सभा चेतन रूप से लोगों के प्रयासों से विकसित होती है परन्तु समाज स्वयं ही विकसित हो जाते हैं तथा इसमें चेतन प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती।

5. सभा का एक औपचारिक ढांचा होता है जिसमें प्रधान, सैक्रेटरी, कैशियर, सदस्य इत्यादि होते हैं तथा इनका चुनाव निश्चित समय के लिए होता है परन्तु समाज का कोई औपचारिक ढांचा नहीं होता तथा सभी व्यक्ति ही इसके सदस्य होते हैं। यह तमाम आयु इसकी सदस्यता नहीं छोड़ सकते।

6. सभा की उत्पत्ति केवल उन व्यक्तियों के प्रयासों का परिणाम होती है जिनके इसके साथ उद्देश्य जुड़े हुए होते हैं परन्तु समाज की उत्पत्ति सभी लोगों की सहमति से होती है तथा इसके साथ किसी व्यक्ति विशेष का स्वार्थ नहीं जुड़ा होता।

7. व्यक्ति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के पश्चात् सभा को अचानक ही खत्म कर देते हैं परन्तु कोई भी व्यक्ति को तोड़ नहीं सकता तथा इसका अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता।

8. सभा की उत्पत्ति विचार से नहीं बल्कि उद्देश्य से संबंधित होती है परन्तु समाज की उत्पत्ति सामाजिक संबंधों पर निर्भर करती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
यह शब्द किसके हैं-“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।”
(A) मैकाइवर
(B) वैबर
(C) अरस्तु
(D) प्लेटो।
उत्तर-
(D) प्लेटो।

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प्रश्न 2.
समाज के निर्माण के लिए समानता तथा अन्तरों की क्या आवश्यकता है ?
(A) सम्बन्ध बनाने के लिए
(B) सामाजिक प्रगति के लिए
(C) समाज को जनसंख्यात्मक रूप में आगे बढ़ाने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे पहला समाज कौन-सा था ?
(A) आदिम साम्यवादी
(B) सामन्तवादी
(C) दास मूलक
(D) पूंजीवादी।
उत्तर-
(A) आदिम साम्यवादी।

प्रश्न 4.
व्यक्ति और व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध क्यों बनाता है ?
(A) अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(B) स्वयं निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
(C) अपने आपको स्वार्थी व्यक्तियों के उत्पीड़न से बचने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
व्यक्ति एवं समाज एक-दूसरे के …….. माने जाते हैं।
(A) विरुद्ध
(B) पूरक
(C) समान
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) पूरक।

प्रश्न 6.
इनमें से समाज में क्या पाया जाता है ?
(A) समानता
(B) सहयोग
(C) संघर्ष
(D) संघर्ष तथा सहयोग।
उत्तर-
(D) संघर्ष तथा सहयोग।

प्रश्न 7.
व्यक्तियों का एक संगठन जो किन्हीं सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया है, उसे क्या कहते है ?
(A) एक समाज
(B) समाज
(C) समूह
(D) एक संगठन।
उत्तर-
(A) एक समाज।

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प्रश्न 8.
इनमें से कौन समुदाय के बीच नहीं आता ?
(A) केरल के लोग दिल्ली में
(B) अमेरिका में जन्मे लोग
(C) ट्रेड यूनियन आन्दोलन
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(D) कोई नहीं।

प्रश्न 9.
समाज किसका जाल है ?
(A) सामाजिक परिमापों का
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का
(C) व्यक्तिगत रिश्तों का
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का।

प्रश्न 10.
व्यक्ति तथा समाज में क्या सम्बन्ध है ?
(A) मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है तथा वह अकेला नहीं रह सकता
(B) मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के लिए समाज में रहता है
(C) समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. समाज ……………. पर आधारित होता है।
2. समुदाय लोगों की ……………. से स्वयं ही विकसित हो जाता है।
3. …………. की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच समझ कर की जाती है।
4. ………….. की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
5. समाज ……… होता है।
6. ……….. समाज में टोटम का महत्त्व होता है।
7. ………. की सदस्यता औपचारिक होती है।
उत्तर-

  1. सामाजिक संबंधों,
  2. अन्तक्रियाओं,
  3. समिति,
  4. समिति,
  5. अमूर्त,
  6. आदिवासी,
  7. समिति।

III. सही गलत (True/False) :

1. समाज की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती है।
2. समाज सामाजिक संबंधों के कारण बनता है।
3. समुदाय स्वयं विकसित होता है।
4. समिति का निर्माण जानबूझ कर दिया जाता है।
5. समिति की सदस्यता अनौपचारिक होती है।
6. मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है।
7. संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. सही,
  4. सही,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सहीं।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
व्यक्तियों के समूह को कौन समाज कहता है ?
उत्तर-
एक साधारण व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह को समाज कहता है।

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प्रश्न 2.
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो समाज खत्म हो जाएगा।

प्रश्न 3.
समाज………..पर आधारित है।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित है।

प्रश्न 4.
किसने कहा था कि, “समाज समानताओं एवं असमानताओं के बिना चल नहीं सकता।”
उत्तर-
यह शब्द वैस्टमार्क के हैं।

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प्रश्न 5.
किताब SOCIETY का लेखक………….है।
उत्तर-
किताब SOCIETY के लेखक मैकाइवर तथा पेज हैं।

प्रश्न 6.
समाज अमूर्त क्यों होता है ?
उत्तर-
क्योंकि समाज सम्बन्धों का जाल है तथा सम्बन्ध अमूर्त होते हैं और हम सम्बन्धों को देख नहीं सकते।

प्रश्न 7.
समाज की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है तथा भिन्नताओं और समानताओं पर आधारित होता है।

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प्रश्न 8.
समाज क्या होता है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में, व्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं, परन्तु समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।

प्रश्न 9.
समाज का प्रमुख आधार क्या होता है ?
उत्तर-
समाज की इकाइयों अर्थात् व्यक्तियों में पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्ध समाज के प्रमुख आधार हैं।

प्रश्न 10.
समुदाय क्या है ?
उत्तर-
समुदाय मनुष्यों का एक भौगोलिक समूह है जहाँ व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

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प्रश्न 11.
क्या मनुष्यों में सभी समूह समुदाय होते हैं ?
उत्तर-
जी नहीं, वे संस्थाएं अथवा कई अन्य प्रकार के समूह भी हो सकते हैं।

प्रश्न 12.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर-
समुदाय शब्द अंग्रेज़ी के Community शब्द का हिन्दी रूपांतर है जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर बनाना।

प्रश्न 13.
शब्द Community किन दो लातीनी शब्दों को मिलाकर बना है ?
उत्तर-
शब्द Community लातीनी भाषा के शब्दों Com तथा Munus से मिलकर बना है।

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प्रश्न 14.
समुदाय कैसे विकसित होता है ?
उत्तर-
समुदाय लोगों की अंतक्रियाओं से स्वयं ही विकसित हो जाता है।

प्रश्न 15.
समुदाय का जन्म किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
समुदाय का जन्म अपने आप ही हो जाता है।

प्रश्न 16.
क्या समुदाय में सामुदायिक भावना होती है ?
उत्तर-
जी हाँ, समुदाय में सामुदायिक भावना होती है।

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प्रश्न 17.
सभा क्या है ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 18.
सभा की स्थापना कैसे होती है ?
उत्तर-
सभा की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर की जाती है।

प्रश्न 19.
सभा की सदस्यता का आधार क्या है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता का आधार व्यक्ति की इच्छा है अर्थात् वह अपनी इच्छा से सभा का सदस्य बनता है।

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प्रश्न 20.
सभा की सदस्यता किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता औपचारिक होती है।

प्रश्न 21.
सभा तथा समुदाय में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-
समुदाय अपने आप विकसित होता है। इसे बनाया नहीं जाता परन्तु किसी संभा का निर्माण चेतन प्रयासों से किया जाता है।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज।
उत्तर-
समाज का अर्थ केवल लोगों के इकट्ठे होने से नहीं है बल्कि समाज के लोगों में पाए जाने वाले संबंधों के जाल से है जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े होते थे। तब लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो समाज का निर्माण होता है।

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प्रश्न 2.
समाज की परिभाषा।
उत्तर-
पारसन्ज़ के अनुसार, “समाज को उन संबंधों की पूर्ण जटिलता के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के करने से उत्पन्न हुए हों तथा यह कार्य व उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आंतरिक हों या सांकेतिक।”

प्रश्न 3.
समाज की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज संबंधों पर आधारित होता है, लोगों के बीच बिना संबंधों के समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  2. समाज समानताओं तथा भिन्नताओं पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
अमूर्तता।
उत्तर-
समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह संबंधों का जाल है। इन संबंधों को हम देख नहीं सकते तथा न ही स्पर्श कर सकते हैं। इन्हें तो केवल महसूस किया जा सकता है क्योंकि हम इन्हें स्पर्श नहीं कर सकते इसलिए यह अमूर्त होता है।

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प्रश्न 5.
समाज में भाषा का महत्त्व।
उत्तर-
मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि भाषा ही अपने विचार व्यक्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। बिना भाषा के संबंध स्थापित नहीं हो सकते तथा समाज स्थापित नहीं हो सकता ।

प्रश्न 6.
मानवीय समाज तथा पशुओं के समाज में एक अन्तर।
उत्तर-
मानवीय समाज में केवल मनुष्य ही है जो बोल सकते हैं तथा अपने विचारों को स्पष्ट रूप दे सकते हैं। अन्य कोई पशु या प्राणी बोल नहीं सकता। वह केवल तरह-तरह की आवाजें निकाल सकते हैं।

प्रश्न 7.
समुदाय।
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष इलाके में संगठित रूप में रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहीं व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं।

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प्रश्न 8.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ।।
उत्तर-
समुदाय अंग्रेज़ी के Community का हिंदी रूपांतर है। यह लातीनी भाषा के दो शब्दों Com जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर रहना तथा Munus जिसका अर्थ है बनाना, से मिल कर बना है तथा इकट्ठे होकर इसका अर्थ है इकट्ठे मिल कर बनाना।

प्रश्न 9.
सभा का अर्थ।
उत्तर-
सभा सहयोग के ऊपर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 10.
सभा की परिभाषा।
उत्तर-
गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर संबंधित होते हैं तथा स्वीकृत कार्य प्रणालियों तथा व्यवहारों द्वारा संगठित रहते हैं।”

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प्रश्न 11.
संस्था का अर्थ।
उत्तर-
संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रिया के द्वारा केंद्रित रूढ़ियों तथा लोकरीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 12.
संस्था का एक आवश्यक तत्त्व।
उत्तर-
विचार संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसे समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा के लिए संस्था विकसित होती है।

प्रश्न 13.
संस्था के प्रकार।
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं परन्तु यह मुख्य रूप से चार प्रकार की होती हैं तथा वह हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं
  2. धार्मिक संस्थाएं
  3. राजनीतिक संस्थाएं
  4. तथा आर्थिक संस्थाएं।

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लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ।
उत्तर-
जब समाजशास्त्री समाज शब्द का उपयोग करते हैं तो उनका अभिप्राय केवल लोगों के योग मात्र से नहीं बल्कि उनका अर्थ होता है। समाज के लोगों में पाए गए सम्बन्धों के जाल से जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। केवल कुछ लोग इकट्ठे करने से समाज नहीं बन जाता। समाज केवल तब ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थ पूर्ण सम्बन्ध बन जाते हैं। यह सम्बन्ध अमूर्त होते हैं हम इन्हें देख नहीं सकते हैं। यह जीवन के हर रूप में मौजूद होते हैं इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से भिन्न नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग करना कठिन है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों में होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। इन्हें हम देख नहीं सकते इसलिए यह अमूर्त होते हैं।

प्रश्न 2.
समाज की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित होता है।
  2. समाज भिन्नताओं व समानताओं पर आधारित होता है।
  3. समाज के व्यक्ति एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर होते हैं।
  4. समाज अमूर्त होता है, क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है।
  5. समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त उसकी जनसंख्या होती है।
  6. समाज में सहयोग व संघर्ष ज़रूरी होता है।

प्रश्न 3.
समुदाय।
उत्तर-
आम शब्दों में, जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं व वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां बिताते हैं तो उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका तो विकास अपने आप ही हो जाता है।

समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहां सदस्य आप अपनी ज़रूरतों को पूरा कर लेते हैं। जब वह आपस में अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं तो उनमें ‘हम’ की भावना पैदा हो जाती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 4.
समुदाय की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. प्रत्येक समुदाय में ‘हम’ की भावना होती है।
  2. समुदाय के सदस्यों में एकता की भावना होती है।
  3. समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
  4. समुदाय में स्थिरता होती है व इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  5. समुदाय के लोग समुदाय में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।
  6. प्रत्येक समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिस में वह रहता है।
  7. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह तो अपने आप ही पैदा हो जाता है।

प्रश्न 5.
सभा।
उत्तर-
सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं व संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष उद्देश्य के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 6.
सभा की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. सभा व्यक्तियों का समूह होती है।
  2. सभा की स्थापना किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-विचार कर की जाती है।
  3. सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं।
  4. सभा का जन्म व विनाश होता रहता है।
  5. सभा की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
  6. सभा की सदस्यता पारम्परिक होती है।
  7. प्रत्येक सभा अपने कुछ अधिकारियों का चनाव करती है।
  8. प्रत्येक सभा के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ, परिभाषाओं तथा विशेषताओं के साथ बताएं।
उत्तर-
समाज का अर्थ-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

परिभाषाएँ (Definitions)-
1. मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “समाज व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की, अधिकार एवं परस्पर सहयोग की, अनेक समूहों एवं विभागों की, मानव व्यवहार के नियन्त्रण एवं स्वाधीनता की व्यवस्था है। इस निरन्तर परिर्वतनशील व्यवस्था को हम ‘समाज’ कहते हैं। यह सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।”

2. गिडिंग्ज़ (Giddings) के अनुसार, “समाज एक संगठन है, यह पारस्परिक औपचारिक सम्बन्धों का ऐसा मेल है जिसके कारण उसके अन्तर्गत सभी व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।”

3. टालक्ट पारसन्ज (Talcot Parsons) के अनुसार, “समाज को उन सम्बन्धों की पूर्ण जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के कारण से पैदा हुए हों और कार्य एवं उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आन्तरिक हों या सांकेतिक।”

4. कूले (Cooley) के अनुसार, “समाज स्वरूपों या प्रक्रियाओं का एक जाल है जिसमें हर कोई एक-दूसरे के साथ क्रिया करके जीता और आगे बढ़ता है और सभी एक-दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़े होते हैं कि एक के प्रभावित होने के साथ बाकी सभी भी प्रभावित होते हैं।”

इस प्रकार समाज की ऊपर लिखी परिभाषाओं को देख कर हम यह कह सकते हैं कि यह परिभाषाएँ दो प्रकार की हैं। पहली प्रकार की हैं कार्यात्मक (Functional) परिभाषाएँ और दूसरी प्रकार की हैं संगठनात्मक (Structural) परिभाषाएँ। कार्यात्मक पक्ष से हम समाज को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि यह समूहों का जाल है जिसमें अनुपूरक प्रकार के रिश्ते हों जो एक-दूसरे के साथ और जिन व्यक्तियों को अपने जीवन के काम करने में मदद करें और व्यक्ति को और व्यक्तियों के साथ रहते हुए उस की इच्छाएं पूरी करने में मदद करें।

संगठनात्मक पक्ष से समाज तो हमारे रीति-रिवाजों, आदतों, संस्थाओं, इच्छाओं आदि की एक सामाजिक विरासत है। इस प्रकार समाज कार्यात्मक एवं संगठनात्मक रूप, दोनों के साथ परिभाषित किया गया है कि यह व्यक्तियों के आपसी रिश्तों के साथ बना है और साथ ही साथ यह एक व्यवस्था है, एक जाल है न कि लोगों का एकत्र। हम समाज को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि समाज मनुष्य के सम्बन्धों का वह संगठन है जिसको मनुष्यों द्वारा निर्मित, संचालित और परिवर्तित किया जाता है। सरल शब्दों में समाज एक अमूर्त धारणा है, समाज लोगों का सिर्फ समूह नहीं है। यह समाज सामाजिक सम्बन्धों का संगठन या व्यवस्था है।

समाज की विशेषताएँ (Characteristics of Society) –

1. समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है (Society is based on relationships)-मैकाइवर और पेज के अनुसार, “समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।” इसका अर्थ यह हुआ कि समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है। यहाँ ‘जाल’ शब्द का प्रयोग क्यों हुआ ? क्योंकि समाज में हजारों प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं। सिर्फ एक परिवार में 15 से ज्यादा तरह के सम्बन्ध पाए जा सकते हैं। इस से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि समाज में कितने प्रकार के सम्बन्ध मौजूद होंगे। समाज केवल मनुष्यों का समूह मात्र नहीं है।

2. समाज अन्तरों और समानताओं पर आधारित होता है (Society depends upon likeness and differences)—समाज अन्तरों एवं समानताओं, दोनों पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं रह सकता। यह चाहे एक-दूसरे के विरोध में रहती हैं परन्तु यह एक-दूसरे के बिना भी नहीं रह सकतीं। समाज में कभी समानता आती है और कभी अंतर आते है और इसलिए यह एक-दूसरे के पूरक होते हैं। सामाजिक सम्बन्ध तब ही स्थापित हो सकते हैं यदि किसी प्रकार की समानता हो क्योंकि इसके बिना एक-दूसरे के प्रति खिंचाव नहीं उत्पन्न हो सकता और समाज उत्पन्न नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अन्तरों का होना भी आवश्यक है।

3. अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence)- समाज के बने रहने के लिए अन्तर्निर्भरता एक आवश्यक तत्त्व है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध रखने पड़ते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की इतनी समर्था नहीं होती कि वह सभी कार्य अपने आप कर सके । उसको अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना ही पड़ता है। व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे दूसरों पर निर्भर होता जाता है क्योंकि उसकी आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं। इस प्रकार अन्तर्निर्भरता समाज का एक ज़रूरी तत्त्व है।

4. समाज अमूर्त होता है (Society is abstract)-समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है इन सम्बन्धों को हम देख नहीं सकते और न ही स्पर्श सकते हैं। इनको तो हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं। क्योंकि हम सम्बन्धों को स्पर्श नहीं सकते इसीलिए इनका कोई ठोस रूप नहीं होता। इसीलिए यह अमूर्त होते हैं। क्योंकि सम्बन्ध अमूर्त होते हैं इसीलिए सम्बन्धों द्वारा बना समाज भी अमूर्त होता है।

5. जनसंख्या (Population)-समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व मनुष्य है। मनुष्यों के बिना कोई समाज नहीं बन सकता। यदि मनुष्य ही नहीं होंगे तो सम्बन्ध कौन स्थापित करेगा और समाज कैसे बनेगा। व्यक्तियों के अस्तित्व के बिना समाज का अस्तित्व होना नामुमकिन है। इसीलिए ज़रूरी है कि जनसंख्या हो। जनसंख्या के होने के लिए भी कई चीजें ज़रूरी हैं जैसे-जनसंख्या को काफ़ी मात्रा में भोजन उपलब्ध हो, जनसंख्या की हर मुसीबत से सुरक्षा हो, समाज का और जनसंख्या का आगे बढ़ना ज़रूरी है क्योंकि यदि जनसंख्या न बढ़ी तो एक दिन सभी लोग खत्म हो जाएंगे। इस प्रकार जनसंख्या के बिना समाज का बनना नामुमकिन है।

6. समाज में सहयोग और संघर्ष ज़रूरी होता है (Co-operation and conflict are must for society)-जैसे समानताएं और अंतर समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं उसी प्रकार सहयोग एवं संघर्ष भी समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी है। सहयोग समाज के निर्माण का एक ज़रूरी तत्त्व है। समाज में मनुष्य रहते हैं और वह एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। यह अन्तर्निर्भरता तब ही होती है यदि उनके बीच सहयोग होगा। एक बच्चे को बड़ा करने में कई हाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सिर्फ सहयोग पर आधारित है। परिवार भी तब ही आगे बढ़ता है यदि पति-पत्नी आपस में सहयोग करें। इस तरह समाज के हर पक्ष में सहयोग की आवश्यकता है। इसी तरह संघर्ष भी ज़रूरी है। जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कई प्रकार की शक्तियों से लड़ना पड़ता है। जीने के लिए व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है।

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प्रश्न 3.
सभा की परिभाषा दें। सभा की विशेषताओं पर विस्तार से लिखें।
अथवा
सभा के अर्थ तथा लक्षणों की व्याख्या करें ।
उत्तर-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक प्राणी होने के नाते उसकी कुछ आवश्यकताएं भी होती हैं। अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति कई प्रकार की कोशिशें करता है। वह तीन प्रकार की कोशिशें करता है-

  • पहली कोशिश यह होती है कि वह अपनी आवश्यकताएं बिना किसी सहायता के पूर्ण करें, पर आज कल के आधुनिक समाज में अकेले रह पाना और अकेले ही अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाना सम्भव नहीं है।
  • दूसरा तरीका यह होता है वह अपनी आवश्यकता की चीजें दुनिया से छीनकर पूरी कर सके। पर दूसरों से छीनकर अपनी आवश्यकताएं पूरी करना मुमकिन नहीं है क्योंकि यह तरीका गैर-सामाजिक है और मनुष्य समाज में रहते हुए इस तरह के तरीके नहीं अपना सकता।
  • तीसरा आखिरी और सबसे बढ़िया तरीका यह है कि मनुष्य समाज में रहते हुए दूसरों के साथ सहयोग करते हुए अपनी ज़रूरतें पूरी करे क्योंकि यह ही जीवन का आधार है।

सभा भी इसी सहयोग पर आधारित है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं और संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष मकसद के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ भी जा सकता है।

मनुष्य का स्वभाव और ज़रूरतें उसको समाज में रहने के लिए मजबूर करती हैं। जानवरों की तरह मनुष्यों की सिर्फ शारीरिक ज़रूरतें ही नहीं होतीं बल्कि इनसे ज्यादा ज़रूरी सामाजिक आवश्यकताएं भी होती हैं जिनको पूरा करना उसके लिए आवश्यक होता है। इस तरह जब समाज के अलग-अलग व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो इसके साथ सभा या समिति का जन्म होता है। यहां एक बात ध्यान रखने वाली है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूर्ण होने के बाद इसको छोड़ भी सकता है।

परिभाषाएं (Definitions)-

  • बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “सभा आम तौर पर कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर काम करना है।”
  • जिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार, “सभा परस्पर सम्बन्धित उन सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो एक निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आम संगठन बना लेते हैं।”
  • गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर सम्बन्धित होते हैं और स्वीकृत कार्य प्रणालियों और व्यवहारों द्वारा संगठित. रहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभा के तीन मुख्य आधार हैं-

  • सब कुछ व्यक्तियों का समूह है।
  • यह संगठन सहयोग पर आधारित है।
  • इसके द्वारा कुछ उद्देश्यों की पूर्ति होती है।

इस तरह सभा हमारी सभी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती। संक्षेप में जब कोई व्यक्ति संगठित रूप में सोचविचार करके कुछ विशेष कामों की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं उस संगठन या समूह को सभा कहते

सभा की विशेषताएं (Characteristics of Association) –
1. सभा व्यक्तियों का समूह है (Group of people)-सभा की स्थापना कुछ व्यक्तियों के द्वारा की जाती है जिसके कारण इसको समूह कहा जाता है। इस तरह सभा मूर्त है क्योंकि व्यक्ति मूर्त होते हैं।

2. विचारपूर्वक स्थापना (Thoughtful establishment)—सभा समुदाय की तरह अपने आप ही पैदा नहीं हो जाती। इसका निर्माण तो किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर और विचार करने से स्थापित किया जाता है।

3. निश्चित उद्देश्य (Definite aim)- सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं। सभा हमारे सामाजिक जीवन की सारी ज़रूरतें नहीं बल्कि कुछ ज़रूरतें पूरी करती है और साथ ही साथ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करती है।

4. सभाओं का जन्म और विनाश होता रहता है (Association takes birth and comes to an end)- सभा का स्वभाव अस्थायी होता है क्योंकि इसकी स्थापना कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है और उन सारे उद्देश्यों की पूर्ति के बाद सभा की ज़रूरत भी खत्म हो जाती है।

5. सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है (Membership is based on wish)—सभा व्यक्तियों का इच्छुक संगठन होता है। व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इसका सदस्य बन सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति को जब लगता है कि सभा उसके लिए लाभदायक है तो वह उसको अपना लेता है और जब उसका फायदा पूरा हो जाता है तो उसे छोड़ देता है।

6. सभा की सदस्यता औपचारिक होती है (Formal membership)-इसकी सदस्यता औपचारिक होती है। वह जब चाहे इसको अपना सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है पर इसके लिए उसको त्याग-पत्र या प्रार्थना-पत्र देना पड़ता है और सदस्यता फीस भी देनी पड़ती है।

7. हर सभा कुछ अधिकारियों को चुनती है (Selection of officers) हर सभा अपने कामों के लिए कुछ अधिकारियों को चुनती है जैसे प्रधान, उप-प्रधान, सैक्रेटरी कैशियर इत्यादि। इन सबका चुनाव भी निश्चित समय पर होता है।

8. हर सभा के कुछ निश्चित नियम होते हैं (Definite rules)-हर सभा अपने कामों की पूर्ति के लिए नियम भी बनाती है और हर सदस्य को इन नियमों के अन्तर्गत रहकर काम करना पड़ता है।

9. सहयोग की भावना (Feeling of co-operation)—सभा का जन्म सहयोग की भावना पर आधारित होता है। किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सहयोग की भावना ही व्यक्ति को सभा का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

समाज, समुदाय तथा समिति PSEB 11th Class Sociology Notes

  • अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। व्यक्ति समाज से बाहर न तो रह सकता है तथा न ही इसके बारे में सोच सकता है। उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों से संबंध बनाने पड़ते हैं तथा सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहते हैं। जब दो अथवा दो से अधिक लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो हम कह सकते हैं कि समाज का निर्माण हो रहा है।
  • सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर-औद्योगिक समाज इत्यादि। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने समाजों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया है। उदाहरण के लिए काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता),
    मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।
  • समाज की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह अमूर्त होता है, यह समानताओं तथा अंतरों पर आधारित होता है, इसमें सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं, इसमें स्तरीकरण की व्यवस्था होती है इत्यादि।
  • व्यक्ति का समाज से काफ़ी गहरा संबंध होता है क्योंकि व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता। उसे जीवन जीने के लिए अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। दुर्थीम के अनुसार समाज हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष से संबंधित है तथा उसमें मौजूद है। समाज के लिए भी व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि व्यक्ति के बिना समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
  • जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना सम्पूर्ण जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे समुदाय कहते हैं। समुदाय में ‘हम’ भावना आवश्यक रूप में पाई जाती है।
  • समुदाय के कुछ आवश्यक तत्त्व होते हैं जैसे कि लोगों का समूह, निश्चित क्षेत्र, सामुदायिक भावना, समान संस्कृति इत्यादि। समाज तथा समुदाय में काफ़ी अंतर होता है।
  • सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित संगठन को सभा कहते हैं।
  • एकत्रता (Aggregate)-किसी स्थान पर इक्ट्ठे हुए लोगों का समूह जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता।
  • सहयोग (Co-operation)-जब कुछ लोग किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे की सहायता करते हैं तो उसे सहयोग कहते हैं।
  • संस्था (Institution) समुदाय के बीच व्यक्तियों के व्यवहार को नियमित करने वाला सामाजिक व्यवस्था का एक साधन।
  • कानून (Law)-लिखे हुए नियम जिन्हें किसी सरकारी संस्था द्वारा लागू किया जाता है।
  • पहचान (Identity)—एक व्यक्ति अथवा समूह के चरित्र की विशेषताएं जो यह बताती हैं कि वे कौन हैं तथा उनके लिए अर्थपूर्ण हैं।
  • उत्पादन के साधन (Means of Production)—वह साधन जिनसे समाज में भौतिक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, जिनमें न केवल तकनीक बल्कि उत्पादकों के आपसी संबंध भी शामिल हैं।
  • हम भावना (We-feeling)-वह शक्तिशाली भावना जिससे एक समूह के सदस्य स्वयं को पहचानते हैं तथा अन्य लोगों से अलग करते हैं। इससे उनमें शक्तिशाली एकता भी दिखती है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

PSEB 11th Class Physical Education Guide नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
समाज में आम प्रचलित कौन-कौन से नशे हैं ?
(Which Drugs are commonly used by the people in the society ?)
उत्तर-

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. नस्वार
  7. कोकीन
  8. ऐडरनवीन
  9. नार्कोटिक्स
  10. ऐनाबोलिक स्टीराइडस।

प्रश्न 2.
नशे क्या होते हैं ? (What are Drugs ?)
उत्तर-
नशा एक ऐसा पदार्थ है जिसका इस्तेमाल करने से शरीर में किसी न किसी तरह की उत्तेजना या आलस्यपन आ जाता है। मनुष्य के नाड़ी प्रबन्ध पर सभी नशीली वस्तुओं का बहुत बुरा असर पड़ता है जिसके कारण कई तरह के विचार, कल्पना तथा व्यक्ति को कोई सुध नहीं रहती और बुरी भावनाएं पैदा होती हैं। वह अपना, अपने परिवार तथा समाज के लोगों का नुकसान करता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

प्रश्न 3.
नशों की किस्में लिखें। (Write the types of Drugs.)
उत्तर-
नशे कई प्रकार के होते हैं ; जैसे-शराब, तम्बाकू, अफ़ीम, भांग, चरस, कैफीन तथा मैडीकल नशे या नशीली दवाइयां आदि।
1. शराब-शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health) शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत से लोगों को इसकी लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं। फेफड़े कमजोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है कुछ समय के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लग जाती है।
शराब पीने की हानियाँ निम्नलिखित हैं—

  • शराब का असर दिमाग पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  • शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  • शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  • श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  • शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता है।
  • लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  • आविष्कारों से पता लगता है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  • शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

2. तम्बाकू-तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इसी तरह खाने के ढंग भी अलग हैं, जैसे तम्बाक चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रखकर खाना, या गले में रखकर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन-डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।

3. अफ़ीम-अफ़ीम पैपेबर सोनिफेरस नामक पौधे से प्राप्त किया जाता है, जो एक काले रंग का कसैला मादक पदार्थ है और जिसका प्रयोग नशे के रूप में किया जाता है।

4. चरस-यह भांग से बना नशीला पदार्थ होता है जिसके प्रयोग से आलस्य, नींद, उत्तेजना, बिमारी आदि महसूस होने लगती है। यह सोच शक्ति पर बुरा असर डालती है।

5. कोकीन-कोकीन कोका नामक पत्तियों से प्राप्त होने वाला नशीला पदार्थ है। इससे चिड़चिड़ापन आ जाता है। इसका प्रयोग करने से दिल का दौरा पड़ सकता है, दिल फेल भी हो सकता है।

6. नशीली दवाइयां-स्वास्थ्य संस्थानों में प्रयोग की जाने वाली कई प्रकार की दर्द निवारक दवाएँ होती हैं, जो किसी भयानक बिमारी या ऑप्रेशन के समय दर्द से राहत के लिए दी जाती हैं।

परन्तु आज कल ये दर्द निवारक दवाइयां डॉक्टरी सलाह के बिना नौजवान और खिलाड़ी वर्ग इनका आम जिंदगी में प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह की दवाओं में कई तरह की नशीली गोलियां, पीने वाली दवाईयां, टीके, कैप्सूल आदि शामिल हैं। जैसे-डायाजेपाम, नेबूटाल, सेकोनाल, आदि।

प्रश्न 4.
तम्बाकू पर नोट लिखें। (Write a note on Tobacco.)
उत्तर-
हमारे देश में तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू निकोटीन के पौधों के पत्तों से प्राप्त नशीला पदार्थ होता है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इसी तरह खाने के ढंग भी अलग हैं, जैसे तम्बाकू चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रखकर खाना, या गले में रखकर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन-डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।
तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं—

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बन सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की हालत में बीमारी लग जाती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों की टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है। विशेष कर छाती का कैंसर और गले का कैंसर।
  8. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

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प्रश्न 5.
अफ़ीम के शरीर पर पड़ने वाले कुप्रभाव लिखें। (Write about the fatal effects of using opium on our body.)
उत्तर-
अफ़ीम के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावः

  1. हल्का-हल्का सिरदर्द महसूस होता रहता है।
  2. दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।
  3. कोई भी निर्णय लेने की योग्यता कम हो जाती है।
  4. डर, घबराहट और बीमारी हालत महसूस होती है।
  5. वातावरण या हवा में अनावश्यक नमी या ठंड महसूस होती है।
  6. छाती में दर्द महसूस होता रहता है।
  7. होंठ और हाथों के नाखुन नीले हो जाते हैं।
  8. आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ जाती है और कोई भी वस्तु साफ दिखाई नहीं देती।
  9. व्यक्ति साधारण परिस्थितियों में भी उतावलापन महसूस करता है।

प्रश्न 6.
नशे करने के क्या कारण हैं ? (What are the reasons of taking drugs ?)
उत्तर-
1. मीडिया-मीडिया द्वारा वैसे तो नौजवानों को नशे न करने के प्रति जागरुक किया जाता है। परन्तु विद्यार्थी गीतों, फिल्मों तथा नाटकों आदि में किए जाने वाले नशों के प्रयोग को फैशन या स्टेट्स समझने की भूल कर बैठते हैं।

2. अपना अस्तित्व दिखाना-कई बार माता-पिता द्वारा या समाज द्वारा विद्यार्थी या खिलाड़ी को अनदेखा किया जाता है। बच्चे या खिलाड़ी को लगता है कि उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा, इसलिए वह दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ऐसे गलत तरीकों का प्रयोग करते हैं।

3. अपने आपको बड़ा साबित करना-कई बार दोस्तों मित्रों या माता-पिता द्वारा विद्यार्थी को अनजान या . छोटा कहकर कोई विशेष काम करने से रोक दिया जाता है। तब वह गुस्से में या अपने आपको बड़ा साबित करने के लिए ऐसे ग़लत तरीके का प्रयोग करता है।

4. बेरोज़गारी-बेरोज़गारी भी नशों के बढ़ रहे रुझान का बड़ा कारण है। जब किसी अधिक पढ़े-लिखे नौजवान या खिलाड़ी को समय पर नौकरी नहीं मिलती तो वह धीरे-धीरे निराशा का शिकार हो जाता है और अपने तनाव को घटाने के लिए नशों का प्रयोग करने लग जाता है।

5. मौज मस्ती के लिए—जवान लड़के और लड़कियों द्वारा पार्टी को मज़ेदार बनाने या अपनी मौज-मस्ती के लिए इन नशों का प्रयोग किया जाता है, जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है।

6. मानसिक दबाव-कुछ नौजवान मानसिक दबाव के कारण जैसे पढ़ाई का बोझ, किसी समस्या का सामना न कर पाने की हालत में डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी हालत में से निकलने के लिए वे नशे का सहारा लेते

7. जानने की इच्छा-नौजवान उम्र के विद्यार्थी के भीतर हर एक नयी चीज़ के बारे में जानने की इच्छा होती है। अगर घर में किसी सदस्य द्वारा किसी नशे का प्रयोग किया जाता है तो बच्चे में भी उसको जानने की इच्छा पैदा होती है। वे पहले घर वालों से चोरी यह गलती करते हैं और धीरे-धीरे नशों की जकड़ में आ जाते हैं।

8. मानसिक दबाव-कुछ नौजवान मानसिक दबाव के कारण जैसे पढ़ाई का बोझ, किसी समस्या का सामना न कर पाने की हालत में डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी हालत में से निकलने के लिए वे नशे का सहारा लेते हैं।

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प्रश्न 7.
नशों का खिलाड़ी, परिवार, समाज तथा देश पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (What are the bad effects of using drugs on a player, family, society and country ?)
उत्तर-
नशीले पदार्थों का शरीर, परिवार और समाज पर बुरा प्रभाव (Effects of Intoxicants on Individual, Family and Society And Their Abuses)—मनुष्य प्राचीन काल से ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। उसका विश्वास था कि इनके प्रयोग से रोग दूर होते हैं तथा मन ताज़ा होता है। परन्तु बाद में इनके कुप्रभाव भी देखने में आए हैं। आज के वैज्ञानिक युग में अनेक नई-नई नशीली वस्तुओं का आविष्कार हुआ है जिसके कारण क्रीड़ा जगत् दुविधा में पड़ गया है। इन नशीली वस्तुओं के सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, ऐडरनविन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।

प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए किसी-न-किसी खेल में भाग लेता है। वह अपने साथियों तथा पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप तथा सद्भावना की भावना रखता है। इसके विपरीत एक नशे का गुलाम व्यक्ति दूसरों की सहायता करना तो दूर रहा, अपना बुरा-भला भी नहीं सोच सकता। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए बोझ होता है। वह दूसरों के लिए सिर दर्दी बन जाता है। परिवार में कलेश रहने के कारण बच्चों के विकास पर भी असर पड़ता है। वह पारिवारिक कार्यों तथा फैसलों में अपना कोई योगदान नहीं देता। समाज और परिवार में उसके कोई पास नहीं आता। वह न केवल अपने जीवन को दु:खद बनाता है, बल्कि अपने परिवार और सम्बन्धियों के जीवन को भी नरक बना देता है। सच तो यह है कि नशीली वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। इससे ज्ञान शक्ति, पाचन शक्ति, दिल, रक्त, फेफड़ों आदि से सम्बन्धित अनेक रोग लग जाते हैं।
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना खिलाड़ियों के लिए ठीक नहीं होता।
नशीली वस्तुओं के दोष (Harms of Intoxicants)-जो खिलाड़ी नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं उनके दोष निम्नलिखित हैं—

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. कदम लड़खड़ाते हैं।
  3. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  4. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  5. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  6. तेज़ाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  7. पेट के कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  8. पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  9. खेल के मैदान में खिलाड़ी खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  10. कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  11. खिलाड़ियों की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  12. नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  13. नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  14. शरीर में समन्वय नहीं होता।
  15. नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य शक्ति के तापमान से 1.8° सैंटीग्रेड कम होता है।

नशीली वस्तुओं के सेवन का खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो कि इस प्रकार है—
1. शारीरिक समन्वय एवं स्फूर्ति का अभाव-नशे करने वाले खिलाड़ी में शारीरिक तालमेल तथा स्फूर्ति नहीं रहती। अच्छे खेल के लिये इनका होना बहुत जरूरी है। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल आदि ऐसी खेलें हैं।

2. मन के सन्तुलन और एकाग्रचित्त का प्रभाव-किसी खिलाड़ी की मामूली-सी सुस्ती खेल का पासा पलट देती है। इतना ही नहीं नशे में धुत्त खिलाड़ी एकाग्रचित्त नहीं हो सकता। इसलिए वह खेल के दौरान ऐसी गलतियां कर देता है जिसके फलस्वरूप उसकी टीम को पराजय का मुंह देखना पड़ता है।

3. लापरवाही तथा बेफिक्री-नशे से ग्रस्त खिलाड़ी बहुत लापरवाह और बेफिक्र होता है। वह अपनी शक्ति तथा दक्षता का उचित अनुमान नहीं लगा सकता। कई बार जोश में आकर वह ऐसी चोट खा जाता है जिससे उसे आयु पर्यन्त पछताना पड़ता है।

4. खेल भावना का अन्त-नशे में रहने से खिलाड़ी की खेल भावना का अन्त हो जाता है। नशा करने वाले खिलाड़ी की स्थिति अर्द्ध-बेहोशी की होती है। उसके मन का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह खेल में अपनी ही हांकता है और साथी खिलाड़ी की बात नहीं सुनता।

5. सोचने का अभाव-वह रैफरी या अम्पायर के उचित निर्णयों के प्रति असहमति व्यक्त करता है। सहनशीलता की शक्ति की कमी हो जाती है।

6. नियमों की अवहेलना-वह खेल के नियमों की अवहेलना करता है।

7. मैदान लड़ाई का अखाड़ा बन जाना-नशे में रहने वाला खिलाड़ी खेल के मैदान को लड़ाई का अखाड़ा बना देता है।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी ने खेल के दौरान नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगा दी है। यदि खेल के दौरान कोई नशे की दशा में पकड़ा जाता है तो उसका जीता हुआ इनाम वापस ले लिया जाता है। इसलिए खिलाड़ियों को चाहिए कि वे स्वयं को हर प्रकार की नशीली वस्तुओं के सेवन से दूर रखें और सर्वोत्तम खेल का प्रदर्शन करके अपने और अपने देश के नाम को चार चांद लगायें।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति पर नोट लिखें। (Write a note on the International Olympic Committee.)
उतर-
आधुनिक युग में प्रत्येक खिलाड़ी खेल की दुनिया में अपना नाम चमकाना चाहता है। परन्तु कुछ ऐसे भी खिलाड़ी होते हैं जो बिना मेहनत किए अपना नाम चमकाने के लालच में कुछ गल्त दवाईयों का सहारा ले लेते है। ऐसी दवाईयां न सिर्फ खेल भावना को नुक्सान पहुंचाती हैं बल्कि उनकी सेहत को भी खराब करती हैं ! इसी को देखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी समिति बनाई गई है जो खिलाड़ियों को ऐसी दवाईयों का प्रयोग नहीं करने देती।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति द्वारा ऐसे मादक पदार्थों पर पाबंदी लगायी हुई है, जो खिलाड़ियों का प्रदर्शन बढ़ाने . के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इन दवाओं का प्रयोग करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाती है। उनसे जीते हुए मैडल वापिस ले लिए जाते हैं और उनके खेलने पर पाबन्दी लगा दी जाती है। समिति द्वारा लंदन 2012 ओलंपिक खेलों में 1001 डोप टेस्ट किये गये और इन टेस्टों से पता चला कि 100 खिलाड़ियों ने पाबन्दी वाली दवा का प्रयोग किया हुआ था। इनमें अल्बेनियन वेटलिफ्टर हसन पूलाकू वह खिलाड़ी था, जिसके टेस्ट में ‘ऐनाबोलिक स्टीराईड’ पायी गयी।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पैपेबर सोनिफेरस पौधे से कौन-सा नशीला पदार्थ मिलता है ?
उत्तर-
पैपेबर सोनिफेरस पौधे से अफीम मिलता है।

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प्रश्न 2.
शराब, तम्बाकू और अफीम क्या है ?
उत्तर-
शराब, तम्बाकू और अफीम नशीले पदार्थ हैं।

प्रश्न 3.
Central Nervous System को कौन प्रभावित करता है ?
उत्तर-
Central Nervous System को नशीली वस्तुएं प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 4.
निकोटीआना कुल के पौधों और पत्तों से कौन-सा नशा प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर-
निकोटीआना कुल के पौधों और पत्तों से तम्बाकू प्राप्त किया जाता है।

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प्रश्न 5.
ऐमसेटेमिन, कैफीन, कोकीन, नारकोटिक कौन-सी दवाइयां हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों को उत्तेजित करने की।

प्रश्न 6.
पाबंदीशुदा दवाई खिलाड़ियों का भार कम करने वाली कौन-सी है ?
उत्तर-
डिऊरैटिकस दवाई खिलाड़ियों का भार घटाने वाली है।

प्रश्न 7.
अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के क्या कार्य हैं ?
(a) ओलम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की जांच करनी।
(b) नशों की जांच करनी।
(c) खिलाड़ियों को उत्साहित करना।
(d) खिलाड़ियों को इनाम देने।
उत्तर-
(a) ओलम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की जांच करनी।

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प्रश्न 8.
ओलम्पिक कमेटी पाबंदी लगाती है ?
(a) नशीले पदार्थ
(b) पीने वाले पदार्थ
(c) खाने वाली ताकत वाली चीजें
(d) उपरोक्त को भी नहीं।
उत्तर-
(a) नशीले पदार्थ।

प्रश्न 9.
कोई तीन नशीले पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. शराब,
  2. अफीम,
  3. तम्बाकू।

प्रश्न 10.
ओलम्पिक कमेटी ने खिलाड़ियों के कौन-कौन सी नशीली वस्तुओं पर पाबंदी लगाई।
उत्तर-
ऐमफेटेमिन, कैफीन, कोकीन, नार्कोटिक।

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प्रश्न 11.
अंतर्राष्ट्रीय कमेटी को कोई दो नाम लिखो।
उत्तर-

  1. नशों की जानकारी
  2. विजेता खिलाड़ियों को इनाम देने।

प्रश्न 12.
नशों से व्यक्ति की सेहत पर क्या असर होता है ?
उत्तर-
नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 13.
नशीली वस्तुओं का खिलाड़ियों और खेल पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
खेल भावना का अन्त, नियम के विरुध जाना तथा मैदान लड़ाई का अखाड़ा बन जाता है।

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प्रश्न 14.
शराब से व्यक्ति की सेहत पर क्या असर पड़ता है.?
उत्तर-
नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है, दिमाग कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 15.
तम्बाकू से क्या नुक्सान होता है ?
उत्तर-
तम्बाकू खाने या पीने से नजर कमजोर हो जाती है और कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 16.
शराब पीने से किस विटामिन की कमी होती है ?
उत्तर-
शराब पीने से विटामिन ‘B’ की कमी होती है।

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प्रश्न 17.
शराब पीने से कौन-सा रोग होता है ?
उत्तर-
शराब पीने से सबसे बड़ा रोग ‘जिगर’ का हो जाता है।

प्रश्न 18.
सिगरेट, बीड़ी, नसवार और सिगार किस नशाखोरी के साथ संबंधित है ?
उत्तर-
तम्बाकू पीने से संबंधित है।

प्रश्न 19.
सिगरेट पीने से कौन-सा जहरीला पदार्थ मिलता है ?
उत्तर-
निकोटिन पदार्थ मिलता है।

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प्रश्न 20.
तम्बाकू पीने से मनुष्य का खून का दबाव कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
20 mg खून का दबाव बढ़ जाता है।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अगर खिलाड़ी ओलम्पिक में नशीली दवाइयों का सेवन करता पकड़ा जाए तो उसको क्या जुर्माना पड़ता है ?
उत्तर-
अगर खिलाड़ी ने कोई मैडल जीता हो तो वह वापिस ले लिया जाता है और उससे नकद जुर्माना भी लिया जाता है।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखो।
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के दोष निम्नलिखित हैं—

  1. चेहरा पीला हो जाता है।
  2. मानसिक संतुलन खराब हो जाता है।

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प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर पड़ने वाले दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं—

  1. फुर्ती कम हो जाती है।
  2. मानसिक संतुलन की एकाग्रता कम हो जाती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. शराब
  2. अफ़ीम
  3. तम्बाकू
  4. भंग
  5. नारकोटिक्स
  6. हशीश
  7. नसवार
  8. कैफ़ीन
  9. ऐडग्वीन
  10. ऐनाबोलिक सटीराइड।

प्रश्न 2.
शराब का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-

  1. श्वास की गति तेज हो जाती है और श्वास की दूसरी बीमारियाँ भी लग जाती है।
  2. शराब का असर पहले दिमाग पर होता है। नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है। मनुष्य की सोचने की शक्ति कम हो जाती है।
  3. शराब पीने से पाचक रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है। जिसके कारण पेट खराब होने लगता है।
  4. शराब से गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
तम्बाकू पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
हमारे देश में तम्बाकू पीना और तम्बाकू खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुकी है। तम्बाकू पीने के अलगअलग ढंग होते हैं। जैसे-बीड़ी पीना, सिगार पीना, चिलम पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग होते हैं, जैसेतम्बाकू में मिलाकर सीधा मुंह में रख कर खाना या पान में रख कर खाना। तम्बाकू में खतरनाक जहरीला निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा अमोनिया कार्बनडाइआक्साइड आदि भी होती है। निकोटीन का बुरा असर सिर पर पड़ता है। जिसके साथ सिर चकराने लगता है और फिर दिल पर असर होता है।

प्रश्न 4.
अफ़ीम से शरीर पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव बताओ।
उत्तर-

  1. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  2. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  3. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  4. कदम लड़खड़ाते हैं।

प्रश्न 5.
नशे करने के दो कारण लिखो।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी-बेरोज़गारी भी नशों के बढ़ रहे शौक का बड़ा कारण है। जब खिलाड़ी को नौकरी नहीं मिलती और फिर उसका झुकाव नशों की तरफ चला जाता है।
  2. दोस्तो की तरफ से मज़बूर करना-खिलाड़ी को उसके साथियों द्वारा नशे की एक दो दफा नशा करने के लिए मजबूर करना और नशे को मज़ेदार चीज़ बता कर उसको नशा करवाया जाता है।

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प्रश्न 6.
नशों का खिलाड़ी, परिवार, समाज और देश पर प्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशा एक ऐसी लाइलाज लत है। जिसको करने से व्यक्ति अपना धैर्य खो बैठता है। वह स्वास्थ्य तो खराब करता ही है, बल्कि अपने परिवार का जीना भी मुश्किल कर देता है। वह अपने नशे की जरूरत के लिए हर गलत तरीका अपनाता है। जिस कारण परिवार में कलेश रहता है। जिसका बुरा प्रभाव बच्चों की वृद्धि और विकास पर प्रभाव पड़ता है। समाज में व्यक्ति की इज्जत खत्म हो जाती है। हर कोई ऐसे नशेड़ी व्यक्ति से दूर रहता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं के शरीर पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के बारे में वर्णन करें।
उत्तर-
शराब, अफीम, तम्बाकू, हशीश आदि नशीली वस्तुएं हैं। इनके सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, ऐडरनविन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।
नशीली वस्तुओं के शरीर पर बुरे प्रभाव :—

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. कदम लड़खड़ाते हैं।
  3. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  4. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  5. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  6. तेज़ाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  7. पेट के कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  8. पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  9. खेल के मैदान में खिलाड़ी खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  10. कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  11. खिलाड़ियों की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  12. नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  13. नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  14. शरीर में समन्वय नहीं होता।
  15. नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य शक्ति के तापमान से 1.8° सैंटीग्रेड कम होता है।

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प्रश्न 2.
डोपिंग किसे कहते हैं ? ब्लॅड डोपिंग तथा जीन डोपिंग के बारे में लिखें।
उत्तर-
डोपिंग से भाव है कुछ ऐसी मादक दवाओं या तरीकों का प्रयोग करना जिसके साथ खेल प्रदर्शन को बढ़ाया जाता है। डोपिंग दो तरह की होती है—

  1. शारीरिक विधि द्वारा
  2. दवाओं द्वारा

शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव—

  1. कई बार जल्दवाजी में दूसरे व्यक्ति के खून को मैच नहीं किया जाता, जिसके परिणामस्वरुप संक्रमण द्वार खिलाड़ी की मृत्यु भी हो सकती है।
  2. दूसरे व्यक्ति से किसी भी भयानक बीमारी के कीटाणु खिलाड़ी के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
  3. कई बार अपनी ओर से रखे गए खून में भी संक्रमण हो सकता है। जिसके साथ व्यक्ति को भयानक बीमारियाँ लग सकती हैं या खिलाड़ी की मौत भी हो सकती है।

ब्लॅड डोपिंग-इस तरह की विधि खिलाड़ी की हिमोग्लोबिन की तीव्रता को बढ़ाया जाता है। जिसके साथ मांसपेशियों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है। इसके साथ खिलाड़ी की कारगुजारी बढ़ती है। लम्बी दूरी की दौड़ों में एथलीट्स द्वारा यह विधि ज्यादा प्रयोग की जाती है।
जीन डोपिंग-जीन डोपिंग में अपने शरीर की सामर्थ्य बढ़ाने के लिए अपने ही जीन को बदला जाता है। इस डोपिंग से मांसपेशियों की वृद्धि होती है, शरीर की सहनशक्ति, ज्यादा दर्द सहन करने की शक्ति आदि बढ़ जाती है।