PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

SST Guide for Class 7 PSEB प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर दो :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग (800-1200) में उत्तरी भारत में कौन-सी भाषाओं का विकास हुआ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत में कई भाषाओं जैसे गुजराती, बंगाली, मराठी आदि का बहुत विकास हुआ। इस विकास की गति उस समय और भी तेज़ हो गई, जब भक्ति लहर के महान् सन्तों ने भक्ति लहर का प्रचार क्षेत्रीय भाषाओं में किया।

प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल दौरान प्रादेशिक भाषाओं का विकास क्यों हुआ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भक्ति लहर के कारण हिन्दी, गुजराती, मराठी, तेलगु, तमिल, पंजाबी, कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ। बहुत-सी पवित्र धार्मिक पुस्तकों का संस्कृत भाषा से विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

प्रश्न 3.
मुग़ल काल की साहित्यिक प्राप्तियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुग़ल शासक स्वयं भी महान् विद्वान् थे। इसलिए मुग़ल काल में साहित्य के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ।
1. बाबर ने बाबर-नामा या तुजक-ए-बाबरी नामक प्रसिद्ध आत्मकथा लिखी। यह पुस्तक तुर्की भाषा में लिखी गई थी।

2. अकबर ने साहित्य को काफ़ी प्रोत्साहित किया। उसके दरबार में शेख़ मुबारक, अबुल फ़जल और फैज़ी जैसे महान् विद्वान थे। अबुल फज़ल ने आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा नाम की पुस्तकें लिखीं। अकबर ने रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, पंच- तन्त्र आदि संस्कृत ग्रन्थों का फ़ारसी में अनुवाद कराया।

3. जहांगीर भी तुर्की, हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं का महान् विद्वान् था। उसने फ़ारसी भाषा में तुजक-एजहांगीरी नाम की आत्मकथा लिखी। उसने विद्वानों को संरक्षण भी प्रदान किया। जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक राय मनोहर दास, भीष्म दास और केशव दास थे।

4. शाहजहां भी एक साहित्य प्रेमी सम्राट् था। उसके राज्य काल में अब्दुल हमीद लाहौरी ने ‘पादशाहनामा’ और मुहम्मद सदीक ने ‘शाहजहांनामा’ नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। शाहजहां ने हिन्दी साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया।

5. सम्राट औरंगजेब ने इस्लामी कानून पर आधारित ‘फ़तवा-ए-आलमगीरी’ नामक पुस्तक लिखवाई। उसके समय में खाफ़ी खां ने ‘मुतखिब-उल-लुबाब’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।

प्रश्न 4.
चित्रकला के क्षेत्र में राजपूतों की प्राप्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
राजपूत शासकों के राज्य काल में कागजों पर चित्र बनाये जाने लगे थे। इस युग में चित्रकला की पाल और अपभ्रंश शैली का प्रयोग किया जाता था। पाल शैली के चित्र बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में मिलते हैं। इन चित्रों में सफ़ेद, काले, लाल और नीले रंगों का प्रयोग किया गया है। अपभ्रंश शैली के चित्रों में लाल और पीले रंगों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया है। इस शैली के चित्र जैन और पुराण ग्रन्थों में मिलते हैं।

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प्रश्न 5.
पंजाबी साहित्य का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
पंजाबी साहित्य के मूल अथवा संस्थापक बाबा फरीद शकरगंज थे। वह पंजाब के एक महान् सूफी संत थे।

प्रश्न 6.
भाई गुरदास ने कितनी वारों की रचना की?
उत्तर-
भाई गुरदास जी एक महान् कवि थे। उन्होंने पंजाबी भाषा में 39 वारों की रचना की। श्री गुरु अर्जन देव जी ने इन वारों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की कुंजी कह कर सम्मानित किया।

प्रश्न 7.
चार प्रसिद्ध कवियों के नाम बताओ जिन्होंने पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले चार प्रसिद्ध कवि शाह हुसैन, बुल्लेशाह, दामोदर तथा वारिस शाह थे।

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प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन श्री गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में किया। इस ग्रन्थ में श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अमर दास जी, श्री गुरु रामदास जी और श्री गुरु अर्जन देव जी की वाणी को सम्मिलित किया गया। बाद में श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को भी इस में शामिल किया गया। सिख गुरु साहिबान के अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब में हिन्दू भक्तों और मुसलमान सन्तों और कुछ भाटों की वाणी को भी शामिल किया गया है। इस सारी वाणी में परमात्मा की प्रशंसा की गई है। आदि ग्रन्थ साहिब को पंजाबी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करो :

  1. ‘गीत गोबिन्द’ ………. द्वारा लिखी गयी थी।
  2. 1604 ई० में ………… द्वारा आदि ग्रन्थ साहिब की रचना की गई थी।
  3. पृथ्वी राज रासो ………… द्वारा लिखी गयी थी।
  4. कृष्ण राय संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं का प्रसिद्ध ……….. था।
  5. अमीर खुसरो एक ……….. संगीतकार तथा कवि था।

उत्तर-

  1. जयदेव,
  2. श्री गुरु अर्जन देव जी
  3. चन्दबरदाई
  4. कवि
  5. महान्।

(ग) प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिन्ह लगाएं।

  1. दिल्ली सल्तनत काल में रामानुज तथा जयदेव संस्कृत भाषा के दो प्रसिद्ध लेखक थे।
  2. अबुल फ़ज़ल ने आइन-ए-अकबरी नहीं लिखी थी।
  3. तानसेन अकबर के दरबार का प्रसिद्ध गायक था।
  4. मुहम्मद तुग़लक का चित्र मध्यकाल की चित्रकला का प्रसिद्ध उदाहरण है।
  5. राजपूत काल दौरान संगीत का विकास नहीं हुआ था।

संकेत-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✗)

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(घ) मिलान करो

कॉलम ‘अ’ – कॉलम ‘ब’

  1. जयदेव – 1. विक्रमांक-देव-चरित
  2. कल्हण – 2. आइने-अकबरी
  3. बिल्हण – 3. राजतरंगिणी
  4. अबुल फजल – 4. गीत गोबिन्द
  5. औरंगजेब – 5. फ़तवा-ए-आलमगीरी। ।

उत्तर-

  1. जयदेव – गीत गोबिन्द
  2. कल्हण – राजतरंगिणी
  3. बिल्हण – विक्रमांक-देव-चरित
  4. अबुल फ़जलआइने – अकबरी
  5. औरंगजेब – फ़तवा-ए-आलमगीरी।

PSEB 7th Class Social Science Guide प्रादेशिक संस्कृति का विकास Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उर्दू भाषा किस प्रकार अस्तित्व में आई?
उत्तर-
भारत में तुर्कों द्वारा फ़ारसी भाषा आरंभ की गई थी। समय बीतने के साथ हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं के मेल से एक नई भाषा ‘उर्दू’ अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
मुगल काल (1526-1707 ई०) में होने वाले भाषाई विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मुगल काल में फ़ारसी भाषा का सबसे अधिक विकास हुआ। इसलिए मुग़ल काल को फ़ारसी भाषा का स्वर्ण युग कहा जाता है। फ़ारसी मुग़ल साम्राज्य की सरकारी भाषा थी। परिणामस्वरूप पंजाब में फ़ारसी भाषा को बहुत प्रोत्साहन मिला। अकबर ने रामायण और महाभारत का संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद कराया। मुग़ल काल में पंजाबी भाषा की भी बहुत उन्नति हुई। इसके अतिरिक्त एक महत्त्वपूर्ण भाषा होने के कारण हिन्दी ने बहुत उन्नति की। मुग़ल काल में उर्दू भाषा का भी विकास आरंभ हो गया था।

प्रश्न 3.
उत्तर भारत में राजपूत काल में साहित्य के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उत्तर भारत में राजपूत शासकों के राज्यकाल में साहित्य का बहुत विकास हुआ। चन्दबरदाई ने पृथ्वी राज रासो नामक ग्रन्थ की रचना की। बंगाल के राज्य-कवि जयदेव ने गीत गोबिन्द नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। जिसमें कृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन किया गया है। कल्हण ने एक ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ की रचना की। इस ग्रन्थ में काश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। बिल्हण ने ‘विक्रमांक-देव-चरित’ नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। इसमें चालुक्य राजा विक्रमादित्य छठे के जीवन का वर्णन है। राजपूत काल में रचित कथा-सरित्सागर संस्कृत भाषा की एक शानदार रचना है। यह कथाओं का संग्रह है।

प्रश्न 4.
पंजाब के भाषा एवं साहित्य में निम्नलिखित के योगदान की चर्चा कीजिए –
1. बाबा फरीद शंकरगंज
2. श्री गुरु नानक देव जी
3. दामोदर
4. वारिस शाह
5. शाह मुहम्मद।
उत्तर-
1. बाबा फरीद शंकरगंज (1173-1265 ई०)-बाबा फरीद शंकरगंज पंजाब के प्रसिद्ध सूफी सन्त थे। उन्हें पंजाबी साहित्य का संस्थापक कहा जाता है। उन्होंने अपनी वाणी की रचना लहंदी या मुल्तानी भाषा में की जो आम लोगों की बोली थी। उनके 112 श्लोक और 4 शब्दों को श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब में स्थान दिया।

2. श्री गुरु नानक देव जी (1469-1539 ई०)-श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाबी साहित्य के एक नये युग का आरम्भ किया। उनके द्वारा रचा गया पंजाबी साहित्य सभी पक्षों से महान् है। उनके द्वारा रची गई वाणियों में जपुजी साहिब, आसा दी वार, बाबर-वाणी आदि महत्त्वपूर्ण हैं । वास्तव में श्री गुरु जी की वाणी पंजाबी साहित्य को एक अमर देन है।

3. दामोदर-दामोदर मुग़ल सम्राट अकबर का समकालीन था। उसने लहंदी या मुल्तानी पंजाबी बोली में हीर रांझा किस्से की रचना की। इसमें उसने अपने समय की ग्रामीण संस्कृति का चित्रण किया है।

4. वारिस शाह (1710-1798 ई०)-वारिस शाह को पंजाबी किस्सा काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने ‘हीर’ नामतः पंजाबी किस्से की रचना की जो कि पंजाबी साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण देन है।

5. शाह महम्मद ( 1782-1862 ई०)-आपने ‘जंग नामा’ की रचना लिखी। शाह मुहम्मद ने अपनी रचना में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के उत्कर्ष, जिसे उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, की बहुत प्रशंसा की है। यह रचना पंजाबी साहित्य की अमूल्य निधि है।

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प्रश्न 5.
मध्यकाल में पंजाब में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
सिख गुरु साहिबान से सम्बन्धित मध्यकाल के अनेक चित्र पुराने ग्रन्थों, गुरुद्वारों की दीवारों तथा राज महलों में बने हुए मिले हैं। उदाहरण के लिए गोइन्दवाल में गुरु अमर दास जी के उन 22 सिखों के चित्र मिले हैं जिन्हें गुरु साहिन जी ने मंजी प्रथा के अधीन सिख धर्म के प्रचार के लिए नियुक्त किया था। ये चित्र उस समय की चित्रकला के विकास पर प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 6.
पंजाबी भाषा एवं साहित्य के विकास में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी पंजाबी भाषा के एक महान् कवि एवं साहित्यकार थे। उनकी रचनाएं, जैसे कि जाप साहिब, बचित्तर नाटक, ज़फरनामा, चण्डी दी वार और अकाल उस्तत आदि बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। ये रचनाएँ दशम ग्रन्थ में दर्ज हैं। इनमें से ‘चण्डी दी वार’ पंजाबी साहित्य की एक अमर रचना मानी जाती है।

प्रश्न 7.
मुग़ल काल में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
मुग़ल शासक चित्रकला के महान् संरक्षक थे। अतः मुग़लों के राज्य-काल में इस कला का बहुत विकास हुआ।
1. बाबर और हुमायूं चित्रकला में बहुत रुचि रखते थे। बाबर ने अपनी आत्म-कथा को चित्रित करवाया था। हुमायूं दो प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुल सैयद और सैयद अली को ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया था।

2. अकबर ने चित्रकला के विकास के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की थी। इस विभाग ने पुस्तकों को चित्रित करने के साथ-साथ मुग़ल शासकों के चित्र भी बनाये। दसवन्त और बासवान अकबर के दरबार के दो प्रसिद्ध चित्रकार थे।

3. जहांगीर भी एक अच्छा चित्रकार था। उसके शासन काल में सूक्ष्म चित्रकारी का विकास होने लगा। उस्ताद मन्सूर, अबुल हसन, फ़ारुख बेग, माधव आदि जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे।

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प्रश्न 8.
मुग़ल काल में संगीत के क्षेत्र में होने वाले विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को छोड़ कर सभी मुग़ल शासक संगीत प्रेमी थे। इसलिए उनके शासन-काल में संगीत का बहुत विकास हुआ –
1. बाबर और हुमायूं संगीत के महान् प्रेमी थे। हुमायूं सप्ताह में दो दिन संगीत सुना करता था।

2. अकबर संगीत कला में बहुत रुचि रखता था। वह स्वयं भी एक गायक था। उसे संगीत के सुर और ताल का पूरा ज्ञान था। उस के दरबार में तानसेन जैसे उच्च कोटि के संगीतकार थे। तानसेन ने बहुत से रागों की रचना की। तानसेन के अतिरिक्त रामदास अकबर के दरबार का उच्च कोटि का गायक था।

3. जहांगीर और शाहजहां भी संगीत कला के प्रेमी थे। जहांगीर स्वयं एक अच्छा गायक था। उसने कई हिन्दी के गीत लिखे। शाहजहां ध्रुपद राग का बहुत शौकीन था।

4. मुग़ल काल में श्री गुरु अर्जन देव जी ने राग-रागनियों के अनुसार ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ की रचना की थी।

सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सा काल फारसी भाषा का ‘सुनहरा युग’ कहलाता है ?
(i) सल्तनत काल
(ii) चोल काल
(iii) मुग़ल काल।
उत्तर-
(ii) मुग़ल काल।

प्रश्न 2.
‘अकबरनामा’ मुग़ल काल की एक पुस्तक है। इसका लेखक कौन था ?
(i) अबुल फ़ज़ल
(ii) खाफ़ी खां
(iii) बीरबल।
उत्तर-
(i) अबुल फ़ज़ल।

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प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन किसने किया ?
(i) वारिस शाह
(ii) श्री गुरु अर्जन देव जी
(iii) श्री गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i) श्री गुरु अर्जन देव जी।

प्रादेशिक संस्कृति का विकास PSEB 7th Class Social Science Notes

  • भाषा तथा साहित्य (सल्तनत काल) – सल्तनत काल में भाषा तथा साहित्य में बहुत उन्नति हुई। हिन्दी तथा फ़ारसी के मेल से एक नई भाषा उर्दू का जन्म हुआ। कई मुसलमान विद्वानों ने हिन्दुओं के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन किया। उन्होंने संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद फ़ारसी भाषा में भी किया। इस काल में हिन्दी भाषा में कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गईं। चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’, मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ की रचना की। इस काल की संस्कृत की मुख्य पुस्तकें ‘गीत गोविन्द’ तथा ‘राजतरंगिणी’ हैं। इनकी रचना क्रमशः जयदेव तथा कल्हण ने की।
  • मुग़ल काल का साहित्य – मुग़ल काल की मुख्य साहित्यिक रचनाएँ तुज़के-बाबरी, हुमायूनामा अकबरनामा, आइन-ए-अकबरी, पादशाहनामा है।
  • पंजाबी साहित्य – मध्यकाल में गुरु साहिबान तथा अन्य कई पंजाबी कवियों ने पंजाबी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस काल की पंजाब साहित्य की प्रमुख रचनाएँ श्री गुरु ग्रंथ साहिब, दशम ग्रन्थ, भाई गुरदास की वारें आदि हैं।
  • चित्रकला – मुग़ल काल में चित्रकला में भी असाधारण उन्नति हुई। अब्दुसम्मद, मीर सैय्यद अली, सांवलदास, जगन्नाथ, ताराचन्द आदि अनेक चित्रकारों ने अपनी कला-कृतियों से इस कला का रूप निखारा। ये सभी चित्रकार अकबर के समय के प्रसिद्ध कलाकार थे। जहांगीर ने अनेक चित्रकारों को अपने दरबार में सम्मान दिया। उसके समय के चित्रकारों में मुहम्मद मुराद, उस्ताद मंसूर, आगा रज़ा तथा मुहम्मद नादिर के नाम लिए जा सकते हैं।
  • संगीत कला – मुग़लकाल संगीत कला के क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहा। बाबर एक बहुत अच्छा कवि था। उसने अनेक कविताओं तथा गीतों की रचना की थी। अकबर के समय में संगीत सम्राट तानसेन तथा बैजू बावरा ने संगीत कला का रूप निखारा। औरंगज़ेब को संगीत से बड़ी घृणा थी। उसके शासन-काल में इस कला का पतन हो गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Abdali’s Invasions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah ‘Abdali.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा (Ambition of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अपनी इस साम्राज्यवादी महत्त्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण करने का निर्णय किया।

2. भारत की अपार धन-दौलत (Enormous Wealth of India)-अहमद शाह अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था। 1739 ई० में जब वह नादिरशाह के साथ भारत आया था तो वह भारत की अपार धन-दौलत को देख कर चकित रह गया था। नादिरशाह भारत से लौटते समय अपने साथ असीम हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी इत्यादि ले गया था। अब्दाली पुनः भारत पर आक्रमण कर यहाँ की अपार धन-दौलत को लूटना चाहता था।

3. अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना (To consolidate his position in Afghanistan)अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था। इन युद्धों द्वारा वह अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकता था तथा अफ़गानों को अपने प्रति वफ़ादार बना सकता था।

4. भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा (Favourable Political Condition of India)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। 1719 ई० में मुहम्मद शाह के सिंहासन पर बैठने से स्थिति अधिक शोचनीय हो गयी। वह अपना अधिकतर समय सुरा-सुंदरी के संग व्यतीत करने लगा। अत: वह रंगीला के नाम से विख्यात हुआ। उसके शासन काल (1719-48 ई०) में शासन की वास्तविक बागडोर उसके मंत्रियों के हाथ में थी जो एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। पंजाब में सिखों ने मुग़ल सूबेदारों की नाक में दम कर रखा था। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

5. अब्दाली का भारत में पूर्व अनुभव (Past experience of Abdali in India)—अहमद शाह अब्दाली 1739 ई० में नादिरशाह के आक्रमण के समय उसके सेनापति के रूप में भारत आया था। उसने पंजाब तथा दिल्ली की राजनीतिक स्थिति तथा यहाँ की सेना की लड़ने की क्षमता आदि का गहन अध्ययन किया था। उसने यह जान लिया था कि मुग़ल साम्राज्य एक रेत के महल की तरह है जो एक तेज़ आँधी के सामने नहीं ठहर सकता। अतः स्वतंत्र शासक बनने के पश्चात् अब्दाली ने इस स्थिति का लाभ उठाने का निर्णय किया।

6. शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण (Invitation of Shahnawaz Khan)-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। उसने 1746 ई० के अंत में याहिया खाँ के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। दोनों भाइयों में यह युद्ध चार मास तक चलता रहा। इसमें शाहनवाज़ खाँ की जीत हुई। उसने याहिया खाँ को बंदी बना लिया और स्वयं लाहौर का सूबेदार बन बैठा। दिल्ली का वज़ीर कमरुद्दीन जोकि याहिया खाँ का ससुर था, यह सहन न कर सका। उसके उकसाने से मुहम्मद शाह रंगीला ने शाहनवाज़ खाँ को लाहौर का सूबेदार मानने से इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

अब्दाली के आक्रमण (Abdali’s Invasions)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Ahmad Shah Abdali’ invasions over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ आक्रमण किये। इन आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० (First Invasion of Abdali 1747-48 A.D.)—पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के आमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली दिसंबर, 1747 ई० में भारत की ओर चल पड़ा। उसके लाहौर पहुँचने से पूर्व ही शाहनवाज खाँ ने दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के साथ समझौता कर लिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नुपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुईन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। दूसरी ओर पंजाब में सिखों ने अहमद शाह अब्दाली की वापसी के समय उसका काफ़ी सामान लूट लिया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन 1
BABA DEEP SINGH JI

2. अब्दाली का दूसरा आक्रमण 1748-49 ई० (Second Invasion of Abdali 1748-49 A.D.)अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का 14 लाख रुपए वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

3. अब्दाली का तीसरा आक्रमण 1751-52 ई० (Third Invasion of Abdali 1751-52 A.D.)—मीर मन्नू द्वारा वार्षिक लगान देने में किए गए विलंब के कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ा। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच बड़ी भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में दीवान कौड़ा मल मारा गया और मीर मन्नू बंदी बना लिया गया। मीर मन्नू की वीरता देखकर अब्दाली ने न केवल मीर मन्नू को क्षमा कर दिया बल्कि अपनी तरफ से उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

4. अब्दाली का चौथा आक्रमण 1756-57 ई० (Fourth Invasion of Abdali 1756-57 A.D.)1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेगम पंजाब की सूबेदारनी बनी। वह चरित्रहीन स्त्री थी। मुग़ल बादशाह आलमगीर द्वितीय के आदेश पर मुगलानी बेगम को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं कर सका। इसी कारण अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथा आक्रमण किया। इस मध्य पंजाब में सिखों की शक्ति काफ़ी बढ़ चुकी थी। अब्दाली ने दिल्ली से वापसी समय सिखों से निपटने का फैसला किया।

अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा और भारी लूटमार की। उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। पंजाब पहुंचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा। गुरबख्श सिंह के शब्दों में,
“बाबा दीप सिंह एवं उसके साथियों की शहीदी ने समस्त सिख कौम को झकझोर दिया। उन्होंने इसका बदला लेने का प्रण लिया।”1

5. अब्दाली का पाँचवां आक्रमण 1759-61 ई० (Fifth Invasion of Abdali 1759-61 A.D.)1758 ई० में सिखों ने मराठों से मिलकर पंजाब से तैमूर शाह को भगा दिया। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1759 ई० में पंजाब पर पाँचवां आक्रमण कर दिया। उसने अंबाला के निकट तरावड़ी में मराठों के एक प्रसिद्ध नेता दत्ता जी को हराया। शीघ्र ही अब्दाली ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। जब मराठों की पराजय का समाचार मराठों के पेशवा बाला जी बाजीराव तक पहुँचा तो उसने सदा शिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला करने हेतु भेजी। 14 जनवरी, 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली ने मराठों की सेना में बड़ी तबाही मचाई। परंतु अहमद शाह अब्दाली सिखों का कुछ न बिगाड़ सका। सिख रात्रि के समय जब अब्दाली के सैनिक आराम कर रहे होते थे तो अचानक आक्रमण करके उनके खजाने को लूट लेते थे। जस्सा सिंह आहलूवालिया ने तो अचानक आक्रमण करके अब्दाली की कैद में से बहुत-सी औरतों को छुड़वा लिया। इस प्रकार जस्सा सिंह ने अपनी वीरता का प्रमाण दिया।

6. अब्दाली का छठा आक्रमण 1762 ई० (Sixth Invasion of Abdali 1762 A.D.)-सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए अब्दाली ने 1762 ई० में आक्रमण किया। उसके सैनिकों ने मालेरकोटला के समीप गाँव कुप में अकस्मात् आक्रमण करके 25 से 30 हज़ार सिखों को शहीद तथा 10 हज़ार सिखों को घायल कर दिया। इनमें स्त्रियाँ तथा बच्चे भी थे। यह घटना सिख इतिहास में ‘बड़ा घल्लूघारा’ के नाम से प्रख्यात है। यह घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को हुआ। बड़ा घल्लूघारा में सिखों की यद्यपि बहुत क्षति हुई परंतु उन्होंने अपना साहस नहीं छोड़ा। सिखों ने सरहिंद पर 14 जनवरी, 1764 ई० को विजय प्राप्त की। इसके फ़ौजदार जैन खाँ की हत्या कर दी गई। सिखों ने लाहौर के सूबेदार काबली मल से व्यापक मुआवज़ा वसूल किया। इससे सिखों की बढ़ती हुई शक्ति की स्पष्ट झलक मिलती है।

7. अब्दाली के अन्य आक्रमण 1764-67 ई० (Other Invasions of Abdali 1764-67 A.D.)अब्दाली ने पंजाब पर 1764-65 ई० तथा 1766-67 ई० में आक्रमण किए। उसके ये आक्रमण अधिक प्रख्यात नहीं हैं। वह सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। सिखों ने इस समय के दौरान 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार कर लिया। सिखों ने नये सिक्के चलाकर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

1. “The martyrdom of Baba Deep Singh and his associates shocked the whole Sikh nation. They determined to retaliate with vengeance.” Gurbakhsh Singh, The Sikh Faith : A Universal Message (Amritsar : 1997) p. 95.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई० (The Third Battle of Panipat 1761 A.D.):

प्रश्न 3.
पानीपात की तीसरी लड़ाई के कारणों, घटनाओं और परिणामों का वर्णन करें।
(Discuss the causes, events and results of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या कारण थे ? इस लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(What were the causes of the Third Battle of Panipat ? Briefly describe the consequences of this battle.)
अथवा
पानीपत के तीसरे युद्ध के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें। (Describe the causes and consequences of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारण एवं घटनाओं की चर्चा करें। (Discuss the causes and events of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में सिखों की शक्ति का तीव्र गति से उत्थान होने लगा। इस लड़ाई के कारणों और परिणामों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(क) कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

(ख) घटनाएँ (Events)-1759 ई० के अंत में अहमद शाह अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का मराठा सूबेदार शम्भा जी लाहौर छोड़ कर भाग गया। इसके पश्चात् वह दिल्ली की ओर बढ़ा। रास्ते में उसे मराठों ने रोकने का प्रयत्न किया परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। जब बालाजी बाजीराव को इन घटनाओं संबंधी सूचना मिली तो उसने अब्दाली का सामना करने के लिए एक विशाल सेना उत्तरी भारत की तरफ भेजी। इस सेना की वास्तविक कमान सदाशिव राव भाऊ के हाथों में थी। उसकी सहायता के लिए पेशवा ने अपने पुत्र विश्वास राव को भी भेजा। मराठों द्वारा अपनाई गई अनुचित नीतियों के फलस्वरूप राजपूत तथा पंजाब के सिख पहले से उनसे नाराज़ थे। इसलिए इस संकट के समय में उन्होंने मराठों को अपना सहयोग प्रदान नहीं किया। जाट नेता सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को अब्दाली के विरुद्ध छापामार ढंग की लड़ाई अपनाने का परामर्श दिया परंतु अहंकार के कारण उसने इस योग्य परामर्श को न माना। इस कारण उसने अपने दस हज़ार सैनिकों सहित मराठों का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार मराठों के पास अब शेष 45,000 सैनिक रह गये। दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली के अधीन 60,000 सैनिक थे। इनमें लगभग आधे सैनिक अवध के नवाब शुजाऊद्दौला तथा रुहेला सरदार नज़ीबउद्दौला द्वारा अब्दाली की सहायतार्थ भेजे गये थे। ये दोनों सेनाएँ पानीपत के क्षेत्र में नवंबर, 1760 ई० में पहँच गईं। लगभग अढाई महीनों तक उनमें से किसी ने भी एक-दूसरे पर आक्रमण करने का साहस न किया।

14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। इस तरह पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली को शानदार विजय प्राप्त हुई।
(ग) परिणाम (Consequences)—पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. मराठों का घोर विनाश (Great Tragedy for the Marathas)-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का (Severe blow to Maratha Power and Prestige)—इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना (End of Maratha Unity)-पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान (Rise of the Sikh Power in Punjab)—पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ-अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान (Rise of British Power in India)-भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की ज़बरदस्त पराजय ने अंग्रेज़ों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकारों पी० एन० चोपड़ा, टी० के० रविंद्रन तथा एन० सुब्रहमनीयन का कथन है कि,
“पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध हुई।”2

2. “The third battle of Panipat proved disastrous to the Marathas.” P.N. Chopra, T.K. Ravindran and N. Subrahmanian, History of South India (Delhi : 1979) Vol. 2, p. 170.

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मराठों की असफलता के कारण (Causes of the Maratha’s Defeat)

प्रश्न 4.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of the Marathas in the Third Battle of Panipat ?)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

प्रश्न 5.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारणों, इसके परिणामों तथा इसमें मराठों की हार के कारणों का वर्णन कीजिए।
(Describe the causes, results and causes of failure of Marathas in the Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

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अहमद शाह अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Ahmad Shah Abdali)

प्रश्न 6.
सिखों के विरुद्ध संघर्ष में अहमद शाह अब्दाली की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali in his struggle against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
उन कारणों की ध्यानपूर्वक चर्चा कीजिए जिस कारण अहमद शाह अब्दाली अंतिम रूप में सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।
(Examine carefully the causes of Ahmad Shah Abdali’s ultimate failure to suppress the Sikh power.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता के महत्त्वपूर्ण कारणों की व्याख्या करें।
(Explain the important causes of the success of the Sikhs against Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली एक महान् योद्धा और वीर सेनापति था। उसने बहुत से क्षेत्रों पर अधिकार करके उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। उसने भारत की दो महान् शक्तियों मुग़लों तथा मराठों को कड़ी पराजय दी थी। इसके बावजूद अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। उसकी असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—

1. सिखों का दृढ़ निश्चय (Tenacity of the Sikhs) अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौंसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति (Guerilla tactics of War)-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लुटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते । इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी। प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह के अनुसार,
“सिखों के साथ लड़ना इस तरह व्यर्थ था जिस तरह हवा को बाँधने का यत्न करना।”3

3. अब्दाली द्वारा कम सैनिकों की तैनाती (Abdali left insufficient Soldiers)-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण यह था कि वह सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अधिक सैनिकों की तैनाती न कर सका। परिणामस्वरूप वह सिखों की शक्ति न कुचल सका।

4. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि (Incapable representatives of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली की हार का महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि पंजाब में उस द्वारा नियुक्त किए गए प्रतिनिधि अयोग्य थे। उसका पुत्र तैमूरशाह एक बहुत ही निकम्मा शासक सिद्ध हुआ। इसी प्रकार लाहौर का सूबेदार ख्वाजा उबैद खाँ भी अपने पद के लिए अयोग्य था। अतः पंजाब में सिख शक्तिशाली होने लगे।

5. पंजाब के लोगों का असहयोग (Non-Cooperation of the People of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लूटा, अपितु हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

6. ज़मींदारों का सहयोग (Zamindars’ Cooperation)-सिख-अफ़गान संघर्ष में पंजाब के ज़मींदारों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया। वे जानते थे कि अब्दाली ने पुनः अफ़गानिस्तान चले जाना है और सिखों के साथ उनका संबंध सदैव रहना है। वे सिखों के विरुद्ध कोई कार्यवाई करके उन्हें अपना शत्रु नहीं बनाना चाहते थे। ज़मींदारों का सहयोग सिख शक्ति के विकास के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ।

7. सिखों का चरित्र (Character of the Sikhs)-सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे। इसलिए अब्दाली के विरुद्ध उनका सफल होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।

8. सिखों के योग्य नेता (Capable Leaders of the Sikhs)-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे।

9. अमृतसर का योगदान (Contribution of Amritsar) सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे। 18वीं सदी में सिख अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने से पूर्व हरिमंदिर साहिब में एकत्रित होते और पवित्र सरोवर में स्नान करते। वे अकाल तख्त साहिब में अपने गुरमत्ते पास करते जिसका पालन करना प्रत्येक सिख अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझता था। अमृतसर सिखों की एकता और स्वतंत्रता का प्रतीकं बन गया था। अहमद शाह अब्दाली ने हरिमंदिर साहिब पर आक्रमण करके सिखों की शक्ति का अंत करने का प्रयास किया, परंतु उसे सफलता प्राप्त न हुई।

10. अफ़गानिस्तान में विद्रोह (Revolts in Afghanistan)-अहमद शाह अब्दाली का साम्राज्य काफ़ी विशाल था। जब कभी भी अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया तो अफ़गानिस्तान में किसी-न-किसी ने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। इन विद्रोहों के कारण अब्दाली पंजाब की ओर पूरा ध्यान न दे सका। सिखों ने इस स्थिति का पूर्ण लाभ उठाया और वे अब्दाली द्वारा जीते हुए प्रदेशों पर पुनः अपना अधिकार जमा लेते। परिणामस्वरूप अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

3. “Fighting the Sikhs was like trying to catch the wind in a net.” Khushwant Singh, History of the Sikhs (New Delhi : 1981) p. 276.

अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के प्रभाव लिखिए।
(Narrate the effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों का वर्णन करें।
(Study the political, social and economic effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विभिन्न परिणामों का सर्वेक्षण करें। (Examine the various effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
अथवा
पंजाब के इतिहास पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ?
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab History ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के हमलों के पंजाब के ऊपर क्या प्रभाव पड़े ? विस्तार के साथ बताएँ।
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali on Punjab ? Discuss in detail.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—

(क) राजनीतिक प्रभाव
(Political Effects)
1. पंजाब में मुग़ल काल का अंत (End of the Mughal Rule in the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न किया पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया। अतः पंजाब में मुग़लों के शासन का अंत हो गया।

2. पंजाब में मराठा शक्ति का अंत (End of Maratha Power in the Punjab)-अदीना बेग के निमंत्रण पर 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह को हराकर पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने अदीना बेग को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया, परंतु उसकी शीघ्र ही मृत्यु हो गई। उसके बाद मराठों ने सांभा जी को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय दी। इस पराजय के फलस्वरूप पंजाब से मराठों की शक्ति का सदा के लिए अंत हो गया।

3. सिख शक्ति का उदय (Rise of the Sikh Power)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। सिखों ने अपने छापामार युद्धों के द्वारा अब्दाली की रातों की नींद हराम कर दी। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

4. पंजाब में अराजकता (Anarchy in the Punjab)-1747 ई० से 1767 ई० के दौरान अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप पंजाब में अशांति तथा अराजकता फैल गई। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। ऐसी स्थिति में पंजाब के लोगों के कष्टों में बहत बढ़ौतरी हुई।

(ख) सामाजिक प्रभाव
(Social Effects)
1. सामाजिक बुराइयों में बढ़ौतरी (Increase in the Social Evils)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में सामाजिक बुराइयों में बहुत बढ़ौतरी हुई। लोग बहुत स्वार्थी और चरित्रहीन हो गए थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों के कारण लोगों का नैतिक स्तर बहुत गिर गया था।

2. पंजाब के लोगों का बहादुर होना (People of Punjab became Brave)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। 7. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव (Punjabis became Spendthrift)-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के कारण पंजाब के लोगों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। वे खानेपीने तथा मौज उड़ाने में विश्वास करने लगे। उस समय यह कहावत प्रसिद्ध हो गई थी “खादा पीता लाहे दा रहंदा अहमद शाहे दा।”

3. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि (Enmity between the Sikhs and Muslims Increased)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर साहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

(ग) आर्थिक तथा साँस्कृतिक प्रभाव .
(Economic and Cultural Effects)
1. पंजाब की आर्थिक हानि (Economic Loss of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण में पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई। इस कारण पंजाब की समृद्धि पंख लगा कर उड़ गई।

2. कला और साहित्य को भारी धक्का (Great Blow to Art and Literature)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के दौरान बहुत-से सुंदर भवनों, गुरुद्वारों और मंदिरों इत्यादि को ध्वस्त कर दिया गया। कई वर्षों तक पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा। अशांति और अराजकता का यह वातावरण नई कला कृतियों और साहित्य रचनाओं के लिए भी अनुकूल नहीं था। अत: अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब में कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगाया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर बहुमुखी प्रभाव डाले।”4

4. “The invasions of Ahmad Shah Abdali exercised manyfold effects, covering almost all aspects of life.” S.S. Gandhi, op. cit., p. 257.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ?
(Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
पंजाब पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण लिखिए। (Write the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के कोई तीन कारण बताएँ। (Write any three causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab.).
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसके पंजाब पर आक्रमणों के कई कारण थे। पहला, अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। दूसरे, वह पंजाब से धन प्राप्त करके अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहता था। तीसरा, वह पंजाब पर अधिकार कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि करना चाहता था। चौथा, उस समय मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की नीतियों के कारण भारत में अस्थिरता फैली हुई थी। अहमद शाह अब्दाली इस अवसर का लाभ उठाना चाहता था।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

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प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली को अपने पहले आक्रमण के दौरान पराजय का सामना करना पड़ा। वह इसका बदला लेना चाहता था। दूसरा, वह जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति डावाँडोल थी। परिणामस्वरूप अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्न ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भयंकर लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भीषण लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया । इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का सूबेदार अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने का निश्चय किया।

प्रश्न 6.
तैमूर शाह कौन था ?
(Who was Timur Shah ?)
उत्तर-
तैमूर शाह अफ़गानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था। अहमद शाह अब्दाली ने उसे 1757 ई० में पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अपने पिता की तरह तैमूर शाह सिखों का कट्टर दुश्मन था। उसने सिखों के प्रसिद्ध दुर्ग रामरौणी को नष्ट कर दिया था। इसके अतिरिक्त उसने हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के पवित्र सरोवर को भी गंदगी से भरवा दिया था। परिणामस्वरूप 1758 ई० में सिखों ने मराठों एवं अदीना बेग के साथ मिलकर तैमूर शाह को पंजाब से भागने पर बाध्य कर दिया।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के तीन कारण बताएँ। (Write the main three causes of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन कारण बताएँ।
(Write any three causes of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-

  1. मराठों द्वारा रुहेलखंड में की गई लूटमार के कारण रुहेल मराठों के विरुद्ध हो गए।
  2. मराठे भारत में हिंदू शासन को स्थापित करना चाहते थे। इसलिए मुस्लमान उनके विरुद्ध हो गए।
  3. मराठों ने दिल्ली और पंजाब पर अधिकार कर लिया था। इसे अब्दाली सहन नहीं कर सकता था।
  4. भारत में मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जाट और राजपूत उनसे ईर्ष्या करने लग गए थे।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई का पंजाब तथा भारत के इतिहास में विशेष स्थान है। यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों और अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुई। पानीपत के मैदान में अब्दाली तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा। उनके बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए। परिणामस्वरूप मराठों की शक्ति को एक गहरा धक्का पहुँचा। पानीपत की तीसरी लड़ाई का वास्तविक लाभ सिखों को मिला तथा उनकी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो गई।

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प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the Third Battle of Panipat ?)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन नतीजे लिखिए।
(Write down any three results of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लडाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान और माल की क्षति हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस अपमानजनक पराजय का शोक सहन न कर सका एवं वह शीघ्र ही इस दुनिया को अलविदा कह गया। इस लड़ाई में उनकी पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे आपसी झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपस में एकता समाप्त हो गई।

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकांड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
[Write a short note on Wadda Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
दूसरे बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Second Big Ghallughara.)
अथवा
बड़ा घल्लूघारा (अहमद शाह अब्दाली का छठा हमला) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
[Write a brief note on Wadda Ghallughara (Sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)]
अथवा
दूसरे अथवा बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखो। .
(Write a short note on Second or Wadda Ghallughara.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कुचलना चाहता था। उसने 5 फरवरी, 1762 ई० को सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस घेराव में 25 से 30 हज़ार सिखों की हत्या कर दी गई। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। इस घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली को विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगेगा जो गलत प्रमाणित हुआ।

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प्रश्न 11.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?).
उत्तर-

  1. अफग़ानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया।
  2. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। गुरमता का सभी सिख पालन करते थे।
  3. अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था।
  4. पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया।

प्रश्न 12.
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ?
What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के सिखों के विरुद्ध असफलता के कारण लिखें। (Write causes of the failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs.)
उत्तर-

  1. सिखों की जीत का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ निश्चय और आत्म-विश्वास था। उन्होंने अब्दाली के घोर अत्याचारों के बावजूद भी उत्साह न छोड़ा।
  2. सिखों ने छापामार युद्ध नीति अपनाई। परिणामस्वरूप वे अब्दाली को मात देने में सफल रहे।
  3. अफ़गानिस्तान में बार-बार विद्रोह हो जाने के कारण अब्दाली के सैनिक परेशान हो चुके थे।
  4. सिखों के नेता भी बड़े योग्य थे। वे शत्रुओं के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ?
(What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया।
  2. अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का अंत कर दिया।
  3. अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई।
  4. पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो।
(Describe important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
उत्तर-

  1. पंजाब को 1752 ई० में अफ़गानिस्तान में सम्मिलित कर लिया गया। परिणामस्वरूप पंजाब से सदैव के लिए मुग़ल शक्ति का अंत हो गया।
  2. अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ा।
  3. अब्दाली ने आक्रमणों के दौरान अनेक ऐतिहासिक इमारतों और साहित्य को नष्ट कर दिया था।
  4. अब्दाली के इन आक्रमणों के कारण पंजाबियों ने धन को जोड़ने की अपेक्षा उसे खुला खर्च करना आरंभ कर दिया।
  5. इन हमलों के कारण पंजाबी निडर और बहादुर बन गए।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. पंजाबियों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे।
  2. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनाचार को बढ़ावा मिला।
  3. लोग बहुत स्वार्थी हो गए थे। वे कोई पाप करने से नहीं डरते थे।
  4. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए।
  5. अब्दाली के आक्रमणों के दौरान लूटमार के कारण सिखों एवं मुसलमानों में आपसी शत्रुता बढ़ गई।

प्रश्न 16.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ?
(What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया।
  2. अफ़गान सेनाएँ कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफी नुकसान हो जाता था।
  3. पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा।
  4. अराजकता के वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का शासक।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली कहाँ का शासक था?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान।

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
8.

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का एक कारण बताएँ। .
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के भारत पर बार-बार आक्रमण करने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने किस समय के दौरान पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
1747 ई० से 1767 ई० के

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1747-48 ई०।

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर दूसरा आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1748-1749 ई०।

प्रश्न 8.
मीर मन्नू लाहौर का सूबेदार कब बना ?
उत्तर-
1748 ई०।

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प्रश्न 9.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
अथवा
पंजाब में मुग़ल राज का अंत कब हुआ ?
उत्तर-
1752 ई०।

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब का पहला सूबेदार किसे नियुक्त किया था ?
उत्तर-
मीर मन्नू को।

प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली ने मीर मन्नू को किस उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
फरजंद खाँ बहादुर रुस्तम-ए-हिंद।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने चौथे आक्रमण के दौरान किसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
तैमूर शाह।

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प्रश्न 13.
तैमूर शाह कौन था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली का पुत्र।

प्रश्न 14.
बाबा दीप सिंह जी कौन थे ?
उत्तर-
शहीद मिसल के प्रसिद्ध नेता।

प्रश्न 15.
बाबा दीप सिंह ने कब तथा कहाँ लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी ?
उत्तर-
11 नवंबर, 1757 ई० को अमृतसर में।

प्रश्न 16.
मराठों ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
1758 ई०।

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प्रश्न 17.
मराठों ने किसे पंजाब का प्रथम सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
अदीना बेग़ को।

प्रश्न 18.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई०

प्रश्न 19.
पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई?
उत्तर-
मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 20.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब हुआ ?
अथवा
दूसरा बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
उत्तर-
5 फरवरी, 1762 ई०। ।

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प्रश्न 21.
दूसरा घल्लूघारा अथवा बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
उत्तर-
कुप में।

प्रश्न 22.
बड़ा घल्लूघारा कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
1762 ई० कुप में।

प्रश्न 23.
बड़े घल्लूघारे के लिए कौन जिम्मेवार था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 24.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1764 ई०।

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प्रश्न 25.
जैन खाँ कौन था?
उत्तर-
1764 ई० में सरहिंद का सूबेदार।

प्रश्न 26.
सिखों ने लाहौर पर कब कब्जा किया ?
उत्तर-
1765 ई०।

प्रश्न 27.
अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता का कोई एक मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर-
सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला-युद्ध नीति।

प्रश्न 28.
अहमद शाह अब्दाली के हमलों का कोई एक प्रभाव लिखें।
उत्तर-
अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया था।

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प्रश्न 29.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का कोई एक मुख्य आर्थिक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
पंजाब को भारी आर्थिक विनाश का सामना करना पड़ा।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली…………….का शासक था।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747 ई० में………..का शासक बना।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 3.
नादर शाह की हत्या के बाद अफ़गानिस्तान का बादशाह ………… बना।
उत्तर-
(अहमद शाह अब्दाली)

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प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर कुल ……………. हमले किये।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर प्रथम बार…………में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1747-48 ई०)

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने…………में पंजाब पर कब्जा कर लिया।
उत्तर-
(1752 ई०)

प्रश्न 7.
1752 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(मीर मन्नू)

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प्रश्न 8.
अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में…………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(तैमूर शाह)

प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने………………को शहीदी प्राप्त की।
उत्तर-
(11 नवंबर, 1757 ई०)

प्रश्न 10.
पानीपत की तीसरी लड़ाई……………………में हुई।
उत्तर-
(14 जनवरी, 1761 ई०)

प्रश्न 11.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का पेशवा………………था।
उत्तर-
(बालाजी बाजीराव)

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प्रश्न 12.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठा सेना का नेतृत्व…………………ने किया था।
उत्तर-
(सदाशिव राव भाऊ)

प्रश्न 13.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में…………………की हार हुई।।
उत्तर-
(मराठों)

प्रश्न 14.
बड़ा घल्लूघारा या दूसरा घल्लूघारा………………..में हुआ।
उत्तर-
(1762 ई०)

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा………………….में हुआ।
उत्तर-
(कुप)

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प्रश्न 16.
1764 ई० में बाबा आला सिंह ने सरहिंद के सूबेदार…………….को कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
(जैन खाँ)

प्रश्न 17.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कुल………………..आक्रमण किए।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 18.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब में……………… राज का अंत हुआ।
उत्तर-
(मुग़ल)

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के हाथों हुई पराजय का एक मुख्य कारण सिखों की………………युद्ध नीति थी।
उत्तर-
(गुरिल्ला)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747. ई० में अफ़गानिस्तान का शासक बना।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम बार 1749 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के भारत आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य यहाँ से धन प्राप्त करना था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कुल छः आक्रमण किए।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
मीर मन्नू ने 1748 ई० में मन्नूपुर की लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली को एक कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने 1751 ई० में पंजाब पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
तैमूर शाह बाबर का पुत्र था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने 10 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली और मराठों के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
बालाजी बाजीराव के पुत्र का नाम विश्वास राव था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
सिखों ने 1761 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
1761 ई० में लाहौर पर अधिकार करने के कारण जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के छठे आक्रमण के समय बड़ा घल्लूघारा हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
बड़ा घल्लूघारा काहनूवान के स्थान पर हुआ था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
सिखों ने सरहिंद पर 1764 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु के बाद नादिर शाह अफ़ग़ानिस्तान का शासक बना था।
उत्तर-
गलत

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
(i) अफ़गानिस्तान का शासक
(ii) ईरान का शासक
(iii) चीन का शासक
(iv) भारत का शासक।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितने आक्रमण किये ?
(i) सात
(ii) पाँच
(iii) सत्रह
(iv) आठ।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1745 ई० में
(ii) 1746 ई० में
(iii) 1747 ई० में
(iv) 1752 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने कौन-से आक्रमण के बाद पंजाब पर कब्जा कर लिया था ?
(i) पहले
(ii) दूसरे
(iii) तीसरे
(iv) चौथे।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब्जा कब किया ?
अथवा
पंजाब पर मुगल साम्राज्य का अंत कब हुआ ?
(i) 1748 ई० में
(ii) 1751 ई० में
(iii) 1752 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
तैमूर शाह पंजाब का सूबेदार कब बना ?
(i) 1751 ई० में
(ii) 1752 ई० में
(iii) 1757 ई० में
(iv) 1759 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 7.
बाबा दीप सिंह जी ने कब शहीदी प्राप्त की ?
(i) 1752 ई० में
(ii) 1755 ई० में
(iii) 1756 ई० में
(iv) 1757 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
(i) 1758 ई० में
(ii) 1759 ई० में
(iii) 1760 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को किसने पराजित किया था ?
(i) जस्सा सिंह आहलूवालिया ने
(ii) जस्सा सिंह रामगढ़िया ने
(iii) अहमद शाह अब्दाली ने
(iv) मीर मन्नू ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
(i) 1746 ई० में
(ii) 1748 ई० में
(iii) 1761 ई० में
(iv) 1762 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 11.
बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
(i) काहनूवान में
(ii) कुप में
(iii) करतारपुर में
(iv) जालंधर में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 12.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार कर लिया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1763 ई० में
(iv) 1764 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
सिखों ने लाहौर पर कब अधिकार किया ?
अथवा
सिखों ने अपना पहला सिक्का कब जारी किया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1764 ई० में
(iv) 1765 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (What were the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the causes of Ahmad Shah Abdali’s invasions.)
उत्तर-
1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?-अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया।

2. अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण-अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

i) अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के अपने छोटे-से साम्राज्य से संतुष्ट नहीं था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

ii) भारत की अपार धन-दौलत-अहमद शाह, अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था।

iii) अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना-अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था।

iv) भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी अयोग्य निकले। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी संग व्यतीत करते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

v) शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब और कितने आक्रमण किए ? उसके मुख्य आक्रमणों की संक्षिप्त जानकारी दें।
(When and how many times did Ahmad Shah Abdali invade Punjab ? Give a brief account of his main invasions.) .
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य 8 बार आक्रमण किए। लाहौर के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली ने दिसंबर, 1747 ई० में भारत पर पहली बार आक्रमण किया। जब वह पंजाब पहुँचा तो शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को सहयोग देने से इंकार कर दिया। अब्दाली ने शाहनवाज़ खाँ को हरा दिया और वह दिल्ली की ओर भाग गया। मन्नूपुर में हुई लड़ाई में मुईन-उल-मुल्क (मीर मन्नू) ने अब्दाली को कड़ी पराजय दी। इससे प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह ने मीर मन्नू को लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण में दिल्ली से पूरी सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू की पराजय हुई और उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू अब्दाली को समय पर लगान नहीं भेज़ सका था। इसलिए अब्दाली ने 1751-52 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान अब्दाली ने पंजाब पर अधिकार कर लिया। अब्दाली ने 1759-61 ई० के मध्य पंजाब पर अपना पाँचवां आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अब्दाली ने मराठों को कड़ी पराजय दी। 1761-62 ई० में अब्दाली द्वारा पंजाब पर किया गया छठा आक्रमण सबसे प्रसिद्ध है। इस आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को अब्दाली ने मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में 25,000 से 30,000 सिखों का कत्ल कर दिया था। यह घटना इतिहास में बड़ा घल्लूघारा के नाम से भी जानी जाती है।

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प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर 1747 ई० में भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। वह बिना किसी विरोध के जनवरी, 1748 ई० को लाहौर के निकट शाहदरा पहुँच गया। इसी मध्य कमरुद्दीन ने शाहनवाज़ खाँ के साथ समझौता कर लिया। परिणामस्वरूप शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली का साथ देने से इन्कार कर दिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। शाहनवाज़ खाँ दिल्ली की तरफ भाग गया। लाहौर पर अधिकार करने के बाद अब्दाली ने वहाँ भारी लूटपाट की। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। वज़ीर कमरुद्दीन उसका मुकाबला करने के लिए अपनी सेना समेत आगे बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। दूसरे, वह इस बात को जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ बड़ी ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति बड़ी डावाँडोल थी। इन्हीं कारणों से अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। मीर मन्नू भी अब्दाली का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू को अपनी पराजय निश्चित दिखाई दे रही थी। इसलिए उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया। इनका वार्षिक लगान 14 लाख रुपए बनता था। जब मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली के साथ उलझा हुआ था तब सिखों ने जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में लाहौर में लूटमार की।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें। (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
पंजाब में सिखों की लूटमार और मीर मन्नू के विरुद्ध नासिर खाँ के विद्रोह के कारण अराजकता फैल गई थी। परिणामस्वरूप मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली को दिए जाने वाले 14 लाख रुपए न भेज सका। इस कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ रहा था। जब इस आक्रमण का समाचार लाहौर के लोगों को मिला तो उनमें से बहुत अब्दाली की भयंकर लूटमार की आशंका से घबरा कर लाहौर छोड़ कर भाग गए। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। मीर मन्नू इस मध्य दिल्ली से कोई सहायता मिलने की प्रतीक्षा करता रहा। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेग़म पंजाब की सूबेदार बनी। वह एक चरित्रहीन स्त्री थी। इस कारण सारे पंजाब में अराजकता फैल गई। नए मुग़ल बादशाह आलमगीर दूसरे के आदेश पर मुगलानी बेग़म को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग़ को पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। जेल से मुगलानी बेग़म ने पत्रों द्वारा बहुत-से महत्त्वपूर्ण रहस्य अहमद शाह अब्दाली को बताए। इसके अतिरिक्त अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं करता था। इन्हीं कारणों से अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने के उद्देश्य से लाहौर में भयंकर लूटमार की।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर एक नोट लिखें।
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली के मध्य हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण यह था कि दोनों शक्तियाँ उत्तरी भारत में अपनी-अपनी शक्ति की स्थापना करना चाहती थीं। 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह जो कि अहमदशाह अब्दाली का पुत्र तथा पंजाब का सूबेदार था, को पराजित करके पंजाब पर अधिकार कर लिया था। यह अहमदशाह अब्दाली की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। अतः उसने 1759 ई० में पंजाब पर आक्रमण करके उस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने दिल्ली की ओर कदम बढ़ाए। पानीपत के मैदान में अब्दाली,तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा।

पानीपत की तीसरी लड़ाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान-माल की हानि हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस विनाशकारी पराजय को सहन न कर सका तथा शीघ्र ही चल बसा। इस लड़ाई से पूर्व मराठों की गणना भारत की प्रमुख शक्तियों में की जाती थी। इस लड़ाई में पराजय के कारण उनकी शक्ति तथा गौरव को गहरी चोट पहुँची। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने का मराठों का स्वप्न मिट्टी में मिल गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे परस्पर झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपसी एकता समाप्त हो गई। इस लड़ाई के पश्चात् पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति संगठित करने का अवसर मिला। इस लड़ाई के पश्चात् भारत में अंग्रेजों को अपनी शक्ति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the third battle of Panipat ?)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. मराठों का घोर विनाश-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का —इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना–पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान-पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ —अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की जबरदस्त पराजय ने अंग्रेजों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

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प्रश्न 9.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकाँड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए। [Write a short note on Wada Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के छठे हमले का वर्णन कीजिए।
(Explain the sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा सिख इतिहास की एक बहुत दुःखदायी घटना थी। सिखों ने 1761 ई० में पंजाब के अनेक क्षेत्रों को अपनी अधीन कर लिया और उन्होंने बहुत सारे अन्य क्षेत्रों में भारी लूटपाट मचाई। सिखों ने अहमद शाह अब्दाली द्वारा नियुक्त पंजाब के सूबेदार ख्वाजा उबेद खाँ को भी पराजित कर दिया। अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन नहीं कर सकता था। इसलिए अब्दाली ने सन् 1761 ई० के अंत में पंजाब पर छठी बार आक्रमण किया। उसने लाहौर पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् अहमद शाह अब्दाली ने 5 फरवरी, 1762 ई० को अचानक सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस अचानक आक्रमण के कारण 25 से 30 हजार तक सिख मारे गए। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली अति प्रसन्न हुआ। उसका विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगा होगा पर उसका यह अनुमान गलत निकला। सिखों ने इस घटना से नया उत्साह प्राप्त किया। उन्होंने पूर्ण उत्साह से अब्दाली की सेना पर आक्रमण प्रारंभ कर दिए। सिखों ने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 10.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?)
उत्तर-
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया। गुरु ग्रंथ साहिब और सिख पंथ पर विश्वास के कारण उनमें एकता हुई। गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। इस गुरमता का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के द्वारा सारे जत्थों का एक कमांडर नियत किया जाता था और सभी सिख उसके अधीन एकत्रित होकर शत्रु का मुकाबला करते थे। ‘राज करेगा खालसा’ अब प्रत्येक सिख का विश्वास बन चुका था। अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था। उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गवर्नर भी सिखों पर नियंत्रण न पा सके। पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया। सिखों के नेताओं ने भी अफ़गानों के विरुद्ध सिखों को संगठित करने एवं उनमें एक नई स्फूर्ति उत्पन्न करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इस प्रकार सिखों ने अफ़गानों के विरुद्ध अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध असफल क्यों रहा ? कोई छः कारण बताएँ।
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ? Write any six reasons.)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ? (What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के छः क्या कारण थे ?
(What were the six causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली की असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—
1. सिखों का दृढ़ निश्चय-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लूटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते। इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी।

3. पंजाब के लोगों का असहयोग-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लटा, अपित हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

4. सिखों का चरित्र ‘सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे।

5. सिखों के योग्य नेता-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे। ‘

6. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का प्रमुख कारण पंजाब में उसके अयोग्य प्रतिनिधि थे। उनमें प्रशासनिक योग्यता की कमी थी। इस कारण पंजाब के लोग उनके विरुद्ध होते चले गए।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े किन्हीं छः महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो। (Describe any six important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ? (What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—
1. पंजाब में मुग़ल शासन का अंत-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न कियां पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया।

2. सिख शक्ति का उदय-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों-अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़ा घल्लूघारा में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

3. पंजाब के लोगों का बहादुर होना-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहां के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की।

4. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर सहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

5. पंजाब की आर्थिक हानि-अहमदशाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्तं भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण से पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई।

6. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप उनके चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। क्योंकि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूटकर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ? (What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर बड़े गहरे राजनीतिक प्रभाव पड़े। सबसे पहले पंजाब से मुग़ल शासन का अंत हो गया। अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया। दूसरे, अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को बड़ी करारी पराजय दी जिसके परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का सदैव के लिए अंत हो गया। तीसरे, अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई। लोगों की जान माल सुरक्षित न रहे। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया था। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही। चौथे, पंजाब में मुग़लों और मराठों की शक्ति का अंत होने के कारण सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की सेना को कई स्थानों पर हराया। 1765 ई० में सिखों ने लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप लोगों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। इसका कारण यह है कि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनेक बुराइयों को उत्साह मिला। लोग बहुत स्वार्थी और आचरणहीन हो गए थे। वे कोई पाप या अपराध करने से नहीं डरते थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों ने पंजाब के समाज को दीमक की तरह खाकर खोखला कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों और उसके द्वारा की जा रही लूटमार से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ चलने वाले लंबे संघर्ष में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। इस संघर्ष के अंत में सिख विजेता रहे।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ? (What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विनाशकारी आर्थिक परिणाम निकले। वह अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया। दूसरा, अफ़गान सेनाएं कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफ़ी नुक्सान हो जाता था। तीसरा, पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा। चौथा, पंजाब में सिख भी सरकार की नींद हराम करने के उद्देश्य से अक्सर लूटमार करते थे। इन कारणों से पंजाब में अव्यवस्था फैली। ऐसे वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा। परिणामस्वरूप पंजाब को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। ऐसा लगता था जैसे पंजाब की समृद्धि ने सदैव के लिए अपना मुख मोड़ लिया हो। निस्संदेह यह अत्यंत दुःखद संकेत था।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य पंजाब पर आठ आक्रमण किए। उसने 1752 ई० में मुग़ल सूबेदार मीर मन्न को हराकर पंजाब को अफ़गानिस्तान साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। अहमद शाह अब्दाली और उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गए सूबेदारों ने सिखों पर अनगिनत अत्याचार किए। सन् 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में अब्दाली ने बड़ी संख्या में सिखों को शहीद कर दिया था। इतना सब कुछ होने पर भी सिख चट्टान की भाँति अडिग रहे। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की नींद हराम कर रखी थी। सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। अब्दाली अपने सारे प्रयासों के बावजूद सिखों की शक्ति को न कुचल सका। वास्तव में उसकी असफलता के कई एक कारण थे। अहमद शाह अब्दाली के इन आक्रमणों से पंजाब के इतिहास पर बड़े गहरे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव पड़े।

  1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
  2. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक कब बना था ?
    • 1747 ई०
    • 1748 ई
    • 1752 ई०
    • 1767 ई०
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितनी बार आक्रमण किए ?
  4. बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
  5. अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध क्यों असफल रहा ? कोई एक कारण लिखें।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
  2. 1747 ई०।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 8 बार आक्रमण किए।
  4. बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
  5. सिखों के इरादे बहुत मज़बूत थे।

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2
अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा। दिल्ली पहुंचने पर अब्दाली का किसी ने भी विरोध न किया। दिल्ली में अब्दाली ने भारी लूटमार की। इसके पश्चात् उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। इसके पश्चात् वह आगरा की ओर बढ़ा पर सेना में हैज़े की बीमारी फैलने के कारण उसने वापस काबुल जाने का निर्णय ले लिया। पंजाब पहुँचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने तैमूर शाह को यह आदेश भी दिया कि सिखों को उनकी कार्यवाइयों के लिए अच्छा सबक सिखाए। तैमूर शाह ने सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जहान खाँ के नेतृत्व में कुछ सेना अमृतसर की ओर भेजी। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिखों के नेता बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। उन्होंने हरिमंदिर साहिब पहुँच कर अपने प्राणों की आहुति दी। इस प्रकार बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा।

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के कौन-से शहरों में लूटमार की ?
  2. अहमद शाह अब्दाली आगरे से वापस क्यों मुड़ गया था ?
  3. तैमूर शाह कौन था ?
  4. बाबा दीप सिंह जी कब तथा कहाँ शहीद हुए ?
  5. बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया …………….. भरा।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के दिल्ली, मथुरा, वृंदावन तथा पंजाब के शहरों में लूटमार की।
  2. अहमद शाह अब्दाला आगरे से वापिस इसलिए पीछे मुड़ गया था क्योंकि उस समय वहाँ हैजा फैला हुआ था।
  3. तैमूर शाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था।
  4. बाबा दीप सिंह जी की शहीदी 1757 ई० में अमृतसर में हुई थी।
  5. जोश।

3
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। अब्दाली के सैनिकों ने यह स्वर्ण अवसर देख कर उनका पीछा किया और भारी तबाही मचाई। इस युद्ध में लगभग समस्त प्रसिद्ध मराठा नेता और 28,000 मराठा सैनिक मृत्यु को प्राप्त हुए। कई हज़ार मराठा सैनिक युद्ध में जख्मी हो गये और अन्य कई हज़ार को गिरफ्तार कर लिया गया।

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
  2. पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई ?
    • सिखों तथा मराठों
    • मराठों तथा अब्दाली
    • सिखों तथा अब्दाली |
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  3. विश्वास राव कौन था ?
  4. सदाशिव राव भाऊ कौन था ?
  5. पानीपत की तीसरी लड़ाई का कोई एक परिणाम लिखें।

उत्तर-

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
  2. मराठों तथा अब्दाली।
  3. विश्वास राव पेशवा बालाजी बाजी राव का पुत्र था।
  4. सदाशिव राव भाऊ पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का सेनापति था।
  5. इस लड़ाई में मराठों का भारी जान-माल का नुकसान हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

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अहमद शाह अब्दाली ने बिना किसी रुकावट के लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् वह जंडियाला की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचकर उसे समाचार मिला कि सिख वहाँ से जा चुके हैं और इस समय वे मलेरकोटला के निकट स्थित गाँव कूप में एकत्रित हैं। इसलिए वह बड़ी तेजी से मलेरकोटला की तरफ बढ़ा। उसने सरहिंद के सूबेदार जैन खाँ को अपनी फ़ौजों सहित वहाँ पहुँचने का आदेश दिया। इस संयुक्त फ़ौज ने 5 फरवरी, 1762 ई० को गाँव कूप में अचानक सिखों पर आक्रमण कर दिया। सिख उस समय अपने परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थे। उस समय उनके शस्त्र तथा भोजन सामग्री गरमा गाँव जो वहाँ से 6 किलोमीटर दूर था, वहाँ पड़ी हुई थी। सिखों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को चारों ओर से सुरक्षा घेरे में लेकर अब्दाली के सैनिकों से मुकाबला करना शुरू किया, परंतु सिखों के पास शस्त्रों की कमी होने के कारण वे अधिक समय तक उसका मुकाबला न कर सके । इस युद्ध में सिखों की भारी जन हानि हुई। इस युद्ध में 25,000 से 30,000 सिख शहीद हो गए जिसमें स्त्रियाँ, बच्चे और वृद्ध शामिल थे।

  1. बड़ा घल्लूघारा कब तथा कहाँ घटित हुआ ?
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए कौन जिम्मेवार था ?
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार कौन था ?
  4. बड़े घल्लूघारा में सिखों के अत्यधिक नुकसान का क्या कारण था ?
  5. बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी ……….. हानि हुई।

उत्तर-

  1. बड़ा घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को कूप गाँव में घटित हुआ।
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए अहमद शाह अब्दाली जिम्मेवार था।
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार जैन खाँ था।
  4. सिखों के पास शस्त्रों की बहुत कमी थी।
  5. जन।

अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन PSEB 12th Class History Notes

  • अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Ahmad Shah Abdali’s Invasions)-अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था-वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था-वह भारत की अपार धनदौलत को लूटना चाहता था- भारत की डावाँडोल राजनीतिक स्थिति भी उसे निमंत्रण दे रही थी—पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को भारत आक्रमण का निमंत्रण भेजा था।
  • अब्दाली के आक्रमण (Invasions of Abdali) अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० में हुआ-इसमें मुईन-उल-मुल्क अथवा मीर मन्नू के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा-174849 ई० में अपने दूसरे आक्रमणों के दौरान अब्दाली ने मुईन-उल-मुल्क को पराजित किया-1752 ई० में अपने तीसरे आक्रमण के दौरान उसने समस्त पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लियाअब्दाली ने 1756 ई० में चौथे आक्रमण के दौरान पंजाब में सिखों के विरुद्ध कड़ी कारवाई की-1757 ई० में अफ़गानों से लड़ते हुए बाबा दीप सिंह जी शहीद हो गए-अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान अब्दाली ने मराठों को पानीपत की तीसरी लड़ाई में कड़ी पराजय दी-यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई-अब्दाली के छठे आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को बड़ा घल्लूघारा की घटना घटीइसमें 25,000 से 30,000 सिख मारे गए-सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अब्दाली ने दो और आक्रमण किए परंतु असफल रहा।
  • अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Abdali)-सिखों का निश्चय बड़ा दृढ़ था—सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-अब्दाली द्वारा पंजाब में नियुक्त किए प्रतिनिधि अयोग्य थे-पंजाब में लोगों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया-सिखों का नेतृत्व करने वाले नेता बड़े योग्य थे–अब्दाली को पंजाब में अधिक रुचि न थी-अफ़गानिस्तान में बार-बार होने वाले विद्रोह भी उसकी असफलता का कारण बने।
  • अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)—पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया…पानीपत की लड़ाई में हुई पराजय से पंजाब में मराठा शक्ति का अंत हो गया—सिख शक्ति का उदय होना आरंभ हो गया—पंजाब में चारों ओर अराजकता और अशांति फैल गई—पंजाब के लोगों के चरित्र में परिवर्तन आ गया तथा वे अधिक निडर और खर्चीले स्वभाव के हो गए—पंजाब के व्यापार को भारी हानि हुई पंजाबी कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगा।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules.

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. डबल्ज़ खिलाड़ियों के लिए कोर्ट का = 40′ × 20′, 13.40 × 6.10 मीटर आकार
  2. सिंगल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार = 40′ × 17′, 13.40 × 5.18 मीटर
  3. जाल की चौड़ाई = 2′ × 6″
  4. जाल की केन्द्र से पृथ्वी से ऊंचाई = 5′, 1.52 मीटर
  5. पोलो से जाल की ऊंचाई = 5′, 1″, 1.55 मीटर
  6. शटल के परों की गिनती = 16
  7. शटल के परों की लम्बाई = 21/2″ से 33/4″, 62 से 70 मि० मी०
  8. डबल्ज़ खेल में अंक = 21
  9. स्त्रियों के सिंगल खेल के अंक = 21
  10. किनारों की गैलरी का आकार = 1.6″ 45 सी० मी०
  11. पिछली गैलरी का आकार = 2′ 6″, 75 सै० मी०
  12. रैकट का भार और लम्बाई = 85 से 140 ग्राम, लम्बाई 27″, 686 मि०मी०
  13. अधिकारी = रैफ़री एक, अम्पायर एक, सर्विस अम्पायर एक, लाइनमैन 10
  14. सैटों की संख्या = तीन
  15. रैकेट की लम्बाई = 27″ अथवा 80 मि०मी०
  16. फ्रेम की लम्बाई = 11″ या 270 मि०मी०
  17. फ्रेम की चौड़ाई = 9″

बैडमिन्टन खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Badminton Game)

  1. बैडमिन्टन खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल में एक खेलने वाला तथा एक अतिरिक्त खिलाड़ी होता है। डबल्ज़ में चार खिलाड़ी, दो खेलने वाले तथा दो स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. सिंगल्ज़ खेल के लिए बैडमिन्टन कोर्ट का आकार 13.40 मीटर × 5.18 मीटर (44′. × 17) होता है तथा डबल्ज़ के लिए 13.40 मीटर × 6.10 मीटर (44.20)
  3. टॉस जीतने वाला इस बात का फैसला करता है कि उसने पहले सर्विस करनी है या साइड लेनी है।
  4. पुरुषों का डबल्ज़ खेल भी 21 अंकों का होगा।
  5. लड़कियों के लिए सिंगल मैच के 11 प्वाईंट का होता है।
  6. सर्विस तब तक नहीं की जा सकती जब तक विरोधी खिलाड़ी पूरी तरह तैयार न हो।
  7. सिंगल्ज़ खेल में 5 प्वाईंट हो जाने पर दोनों खिलाड़ी आधी कोर्ट बदल लेंगे।
  8. बैडमिन्टन खेल का समय नहीं होता बल्कि इसमें बैस्ट आफ थ्री गेम्ज़ होती हैं। जो टीम तीन में से दो गेमें जीत जाती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।
  9. खेल में व्हिसल का प्रयोग नहीं किया जाता।
  10. इस खेल को प्राय: Indoor Stadium में ही खेला जाता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन कोर्ट, जाल, बल्लियां और शटल काक के विषय में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेलें होती हैं-सिंगल्ज़ और डबल्ज। इन दोनों खेलों के लिए बैडमिन्टन कोर्ट के नाप को चित्र में दिखाई \(1 \frac{1}{2}\) (4 सम) मोटी सफ़ेद या लाल रेखाओं से स्पष्ट किया जाएगा।
डबल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार 44 फुट × 20 फुट तथा सिंगल्ज़ के लिए 44 फुट × 17 फुट होगा। नैट के दोनों ओर \(6 \frac{1}{2}\) फुट शर्ट सर्विस रेखा खींची जाएगी। कोर्ट को दो समान भागों में बांटने के लिए साइड लाइन के समानान्तर एक रेखा खींची जाएगी। कोर्ट का बायां आधा भाग बाईं सर्विस कोर्ट तथा दायां आधा भाग दाई सर्विस कोर्ट कहलाएगा। पीछे की गैलरी \(2 \frac{1}{2}\) फुट तथा साइड गैलरी \(1 \frac{1}{2}\) फुट होगी।

बल्लियां (Poles)-नैट (जाल) को तान कर रखने के लिए दो बल्लियां लगाई जाएंगी। ये बल्लियां, फर्श से 5 फुट 1 इंच (1.55 मी०) ऊंची होंगी।
जाल (Net)—जाल बढ़िया रंगीन डोरी का बना होगा। इसकी जाली \(\frac{3}{4}\)” से 1″ होगी। इसकी चौड़ाई 2 फुट 6 इंच (0.76 मीटर) होनी चाहिए। इसका ऊपरी भाग केन्द्र में भूमि से 5 फुट तथा बल्लियों से 5 फुट 1 इंच ऊंचा होना चाहिए। जाल के दोनों सिरों पर 3′ दोहरी टेप होनी चाहिए जिनके बीच डोरियां हों जो जाल को बल्लियों पर कस कर ताने रखने के काम लाई जा सकें।।

चिड़ियां (शटल कॉक) (Shuttle Cock)-चिड़िया का वज़न 73 ग्रेन (4.73 ग्राम) से 85 ग्रेन (5.50 ग्राम) हो। इसमें 1″ से \(1 \frac{1}{2}\)व्यास वाली कार्क में 14 से 16 तक कस कर पर लगे हुए हों। परों की लम्बाई \(2 \frac{1}{2}\) से \(2 \frac{3}{4}\) हो तथा ये \(2 \frac{1}{8}\) से \(2 \frac{1}{2}\) फैले हुए हों। कार्क का व्यास \(1 \frac{1}{2}\) तक होता है।
BADMINTON COURT
बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में खिलाड़ी, स्कोर और दिशाएं बदलना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ी (Players) डबल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में दो खिलाड़ी तथा सिंगल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में एक खिलाड़ी होगा। खेल के शुरू में जो टीम पहले सर्विस करेगी, उस टीम की साइड को इन साइड (Inside) और विरोधी टीम की साइड को आऊट साइड (Outside) कहेंगे।
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टॉस (Toss) खेल प्रारम्भ होने से पहले दोनों पक्षों द्वारा टॉस किया जाएगा। टॉस जीतने वाला पक्ष निम्नलिखित का चुनाव करेगा—

  1. पहले सर्विस करना या
  2. पहले सर्विस न करना या
  3. दिशा का चुनाव करना।

शेष बातों का चुनाव टॉस हारने वाला पक्ष करेगा।
स्कोर (Score)-(1) पुरुषों के डबल्ज़ और सिंगल्ज़ के लिए 15 अंकों की खेल होती है। (2) महिलाओं के खेल में 11 अंक होते है। पुरुषों के खेल में स्कोर 14-14 बराबर होने पर पहले 14 अंक बनाने वाला पक्ष 3 अंक पर खेल स्थिर (सैट) कर लेता है। 14 अंकों पर स्थिर होने पर 17 अंक पहले लेने वाला विजयी होता है। महिलाओं के खेल में 10 अंक बराबर होने पर 12 अंक की खेल होती है। जिसने पहले 10 अंक बनाए हों वह 12 अंकों की ऑपशन ले सकता है। जहां पर लड़के और लडकियां बैडमिंटन फैडरेशन के (I.B.E.) अनुसार लागू किए गए हैं।

दिशाएं बदलना (Changing Sides)-पूर्व निर्णय के अनुसार विपक्षी दल तीन खेल खेलेंगे। तीनों में से दो खेल जीतने वाला विजेता कहलाएगा। खिलाड़ी दूसरा खेल आरम्भ होने पर दिशाएं बदलेंगे। यदि खेल के निर्णय के लिए तीसरा खेल आवश्यक हो तो उसमें भी दिशाएं बदली जाएंगी।

प्रश्न-बैडमिन्टन खेल में डबल्ज़ और सिंगल्ज़ खेल क्या होते हैं ?
उत्तर-डबल्ज़ खेल (Doubles)-(1) पहले सर्विस करने वाले पक्ष का निर्णय होने पर उस पक्ष के दायें अर्द्ध-क्षेत्र का खिलाड़ी शुरू करेगा। वह दायें अर्द्ध-क्षेत्र के विपक्षी को सर्विस देगा। यदि विपक्षी खिलाड़ी चिड़िया (शटल कॉक) के भूमि से स्पर्श करने से पहले उसे वापिस कर दे तो खेल आरम्भ करने वाला खिलाड़ी फिर उसे वापिस करेगा। इस प्रकार खेल तब तक जारी रहेगा जब तक कि फाऊल न हो जाए या चिड़िया खेल में न रहे। सर्विस वापिस न होने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने वाले पक्ष के खिलाड़ी अपना अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे। अब सर्विस करने वाला बायें अर्द्धक में रहेगा तथा सामने की ओर बायें अर्द्धक का खिलाड़ी सर्विस प्राप्त करेगा।
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(2) प्रत्येक पारी के आरम्भ में प्रत्येक टीम पहली सर्विस दायें अर्द्ध-क्षेत्र से करेगी।
सर्विस सम्बन्धी अन्य नियम (Some other rules regarding Service)—

  1. सर्विस वही खिलाड़ी प्राप्त करेगा जिसे सर्विस दी जाती है। यदि चिड़िया दूसरे खिलाड़ी को स्पर्श कर जाए या वह उसे मार दे तो सर्विस करने वाले को अंक मिल जाता है। एक खिलाड़ी खेल में दो बार सर्विस प्राप्त नहीं कर सकता।
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  2. पहली पारी में खेल आरम्भ करने वाला केवल एक ही खिलाड़ी सर्विस करेगा। आगे की पारियों में प्रत्येक खिलाड़ी सर्विस कर सकता है। खेल जीतने वाला पक्ष ही पहले सर्विस करेगा। जीते हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी सर्विस कर सकता है और हारे हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी इसे प्राप्त कर सकता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना या ग़लत अर्द्ध-क्षेत्र से सर्विस कर दे और अंक जीत जाए तो वह सर्विस ‘लैट’ (LET) कहलाएगी, परन्तु इस ‘लैट’ की मांग दूसरी सर्विस शुरू होने से पहले की जानी चाहिए।

सिंगल्ज खेल के लिए (For Singles) ऊपर के सभी नियम सिंगल्ज़ खेल में लागू होंगे परन्तु—

  1. खिलाड़ी उसी दिशा में दायें अर्द्ध-क्षेत्र में सर्विस करेगा या प्राप्त करेगा जब स्कोर शून्य (0) है या खेल में सम (Even) अंक प्राप्त किए गए हों। अंक विषय (Odd) होने की दशा में सर्विस सदैव बायें अर्द्ध-क्षेत्र की ओर से प्राप्त की जाएगी।
  2. अंक बन जाने पर दोनों खिलाड़ी बारी-बारी से अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे।

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प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
त्रुटियां (Faults) खेल रहे पक्ष के खिलाड़ी द्वारा त्रुटि होने पर उस पक्ष का सर्विस करने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा। यदि विपक्षी त्रुटि करता है तो खेल रहे पक्ष को एक अंक प्राप्त होगा।
त्रुटि मानी जाएगी—

  1. यदि सर्विस करते समय चिड़िया खिलाड़ी की कमर से ऊंची हो या रैकट का अगला सिरा चिड़िया को मारते समय सर्विस करने वाले रैकट वाले हाथ से ऊंचा उठा हो।
  2. यदि सर्विस करते समय खिलाड़ी के पांव ठीक अर्द्ध-क्षेत्र में न हों।
  3. यदि खिलाड़ी सर्विस करने से पहले या सर्विस करते समय जानबूझ कर विपक्ष के रास्ते में रुकावट डाले।
  4. यदि सर्विस करते समय, खेल के समय चिड़िया सीमाओं से बाहर निकल जाए, जाल के बीच या नीचे से निकल जाए या जाल न पार कर सके या किसी खिलाड़ी के किसी कपड़े या छाती को छू जाए।
  5. यदि खेल के समय जाल पर जाने पर पहले ही मारने वाली की ओर चिड़िया टकरा जाए।
  6. जब चिड़िया खेल में हो और खिलाड़ी रैकट शरीर या कपड़ों से जाल या बल्लियों को छू दे।
  7.  चिड़िया रैकट पर रुक जाए, कोई खिलाड़ी चिड़िया को लगातार दो बार मार दे या पहले वह और बाद में उसका साथी बारी-बारी लगातार मार दे।
  8. विपक्षी तैयार माना जाएगा यदि खेल के समय वह चिड़िया को वापिस करता है या मारने की चेष्टा करता है भले ही वह क्षेत्र की सीमा के बाहर खड़ा हो या भीतर।
  9. यदि कोई खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की खेल में रुकावट डालता है।

साधारण नियम
(General Rules)

  1. सर्विस करने वाला या सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी अपने-अपने अर्द्ध-क्षेत्रों की सीमाओं में खड़े होंगे तथा इनके दोनों पांवों के कुछ अंग सर्विस प्राप्त होने तक भूमि से टिके रहेंगे।
  2. सर्विस उस समय तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि विपक्षी तैयार नहीं होता, परन्तु यदि विपक्षी सर्विस प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो उसे तैयार माना जाएगा।

खेल में आराम-यदि दोनों टीमें सहमत हों तो दूसरी तथा तीसरी खेल के मध्य में पांच मिनट का आराम ले सकती हैं।
फाऊल
(Foul)
अधिकारी फाऊल खेलने पर अथवा खेल में किसी प्रकार की अनुचित कारवाई के लिए खिलाडियों को दो प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो इस प्रकार हैं—
पीला कार्ड (Yellow Card)- यह कार्ड खिलाड़ी को उसके अनुचित व्यवहार के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card)- यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Practical बैडमिन्टन (Badminton)

प्रश्न 1.
बैडमिन्टन में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेल होती है जैसे-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल्ज़ में 2 खिलाड़ी होते हैं जिनमें एक खिलाड़ी खेलता है और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है। डबल्ज में तीन खिलाड़ी होते हैं जिनमें दो खेलते हैं और एक अतिरिक्त (Substitute) होता है।

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प्रश्न 2.
बैडमिन्टन कोर्ट की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो तरह के कोर्ट होते हैं—

  1. सिंगल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 17 फुट होती है।
  2. डबल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 20 फुट होती है।

प्रश्न 3.
खेल किस प्रकार शुरू होता है ?
उत्तर-
टॉस जीतने वाला यह फैसला करता है कि सर्विस करनी है या साइड लेनी है।

प्रश्न 4.
खेल कितने अंकों की होती है ?
उत्तर-
बैडमिन्टन खेल लड़कों की 15 और लड़कियों की 11 अंकों की होती

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प्रश्न 5.
बैडमिन्टन कोर्ट को हम कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
इसको हम दो भागों में बांट सकते हैं-दाईं कोर्ट और बाई कोर्ट।

प्रश्न 6.
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की गैलरी की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की लम्बाई 2/2 फुट और चौड़ाई 19 फुट होती है।

प्रश्न 7.
जाल की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
जाल की लम्बाई इतनी हो कि सीमा रेखाओं के दोनों ओर फैल जाए। उसकी चौड़ाई 2 फुट-6 इन्च हो और स्तम्भों की तरफ से इसकी ऊंचाई 5 फुट 1 इन्च हो और मध्य में इसकी ऊंचाई 5 फुट हो।

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प्रश्न 8.
शटल का भार बताओ।
उत्तर-
शटल का भार 73 ग्रेन से 85 ग्रेन तक होता है।

प्रश्न 9.
डबल्ज़ खेल के मुख्य नियम बताओ।
उत्तर-

  1. इसमें कुल चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। दो-दो की टीम होती है। टॉस के पश्चात् टीमें अपनी-अपनी कोर्ट सम्भाल कर सर्विस शुरू करती हैं।
  2. इसमें लड़कों के लिए 15 प्वाईंट और लड़कियों के 11 प्वाईंट होते हैं।
  3. यदि 15 प्वाईंट की खेल हो तो 14-14 बराबर होने पर यह गेम 3 प्वाईंट और आगे चल सकती है।

प्रश्न 10.
सिंगल खेल के क्या नियम हैं ?
उत्तर-
इस खेल के लिए डबल के सारे नियम लागू होते हैं। केवल निम्नलिखित बातें ध्यान योग्य हैं—

  1. जब सर्विस करने वाले का प्वाईंट Even हो तो सर्विस हमेशा दाईं कोर्ट में की जाती है या प्राप्त की जाती है। यदि Odd हो तो बाईं कोर्ट में से सर्विस करनी और प्राप्त करनी चाहिए।
  2. एक प्वाईंट हो जाने पर खिलाड़ी कोर्ट बदल लेते हैं।

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प्रश्न 11.
बैडमिन्टन खेल की मुख्य त्रुटियों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. यदि सर्विस ओवर हैड हो अर्थात् सर्विस करते समय शटल खिलाड़ी की कमर से ऊपर हो या उसका हाथ रैकट वाले हाथ से ऊपर हो।
  2. यदि सर्विस करते समय शटल गलत क्षेत्र में जाकर गिरे भाव वह सर्विस करने वाले के सामने वाले आधे भाग में जाकर गिरे या लम्बी सर्विस रेखा से एक तरफ जा गिरे।
  3. सर्विस करते समय खिलाड़ी के पैर ठीक आधे क्षेत्र में न हो या जब तक सर्विस न हो चुके, सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी के पैर अपने अर्द्धक्षेत्र में न हों।
  4. यदि खेल के समय दोनों खिलाड़ी एक समय ही शटल पर चोट करें।
  5. यदि खेल के मध्य खिलाड़ी का रैकट, कपड़ा आदि नैट को छू जाएं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
जीते हुए प्रदेशों की व्यवस्था के सन्दर्भ में महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान और विजयों की चर्चा करें।
उत्तर-
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के पिता महा सिंह की मृत्यु हो गई। महाराजा रणजीत सिंह उस समय अवयस्क था। इसीलिए शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1796 ई० तक उसकी माता राज कौर तथा दीवान लखपत राय के हाथों में रही। 1796 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने भी इस मिसल के शासन प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण भाग लिया। परन्तु 1797 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शासन का सारा कार्यभार स्वयं सम्भाल लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने जिस समय शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तब उसके अधीन गुजरांवाला, वज़ीराबाद, पिंड दादन खां और कुछ अन्य गांव थे। परन्तु कुछ ही समय में उसने लगभग सारे पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसकी विजयों का वर्णन इस प्रकार है

शक्ति का उत्थान एवं विजयें-

1. लाहोर तथा सिक्ख-मुस्लिम संघ पर विजय-महाराजा रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सातारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा और उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह की इस विजय को देखकर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासक भयभीत हो उठे। अतः उन्होंने संगठित होकर महाराजा रणजीत सिंह से लड़ने का निश्चय किया और उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ बना लिया। महाराजा रणजीत सिंह अपने इन शत्रुओं का सामना करने के लिए लाहौर से आगे बढ़ा। 1803 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध होना था परन्तु शत्रु सेनाओं के सेनापति गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु हो जाने से युद्ध न हुआ और बिना किसी खून खराबे के महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा।

2. सिक्ख मिसलें, कसूर, कांगड़ा और मुल्तान पर विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथों में थी। अवसर पाकर महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खां उसका अधिक समय तक सामना न कर सकी। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को भी अपने राज्य में मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों की ओर अपना ध्यान दिया। उसने मिसलों के नेताओं को युद्ध में पराजित करके उनकी मिसलों पर अधिकार कर लिया। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर के शासक कुतुबुद्दीन को हराकर इस प्रदेश पर भी अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने कांगड़ा के राजा की गोरखों के विरुद्ध सहायता करके उससे काँगड़ा का प्रदेश प्राप्त कर लिया। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति मिसर दीवान चन्द तथा अपने बड़े पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए भेजे ! वहां घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुल्तान का नवाब मारा गया और मुल्तान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।

3. कश्मीर, डेरा गाज़ी खां, डेरा इस्माइल खां, मानकेरा तथा पेशावर पर विजय-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक सेना कश्मीर विजय के लिए भेजी। कश्मीर का गवर्नर जाबर खाँ सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। परन्तु सुपान नामक स्थान पर उसकी करारी हार हुई। 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खां पर विजय प्राप्त करने के लिए जमांदार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। उसने वहाँ के शासक जमान खां को पराजित करके डेरा गाजी खां पर अपना अधिकार कर लिया। 1821 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा इस्माइल खां तथा मानकेरा के नवाब अहमद खां के विरुद्ध चढ़ाई की! अहमद खां को महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। 1834 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर आक्रमण किया परन्तु उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आखिर पेशावर जीत लिया गया और सिक्ख राज्य में मिला लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने हरि सिंह नलवा को पेशावर का गवर्नर नियुक्त किया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक विजयें प्राप्त करके अपनी छोटी-सी मिस्ल को एक विशाल राज्य का रूप दे दिया। उसका राज्य उत्तर में लद्दाख तथा उत्तर-पश्चिम में सुलेमान को पहाड़ियों तक विस्तृत था। दक्षिण-पूर्व में उसके राज्य की सीमाएं सतलुज नदी को छूती थीं। दक्षिण-पश्चिम में शिकारपुर उसके राज्य की सीमा थी।

विजित प्रदेशों की व्यवस्था-

1. विजित प्रदेशों के प्रति अच्छी नीति-महाराजा रणजीत सिंह ने विजित प्रदेशों के प्रति लगभग एक-जैसी नीति अपनाई। कुछ प्रदेशों के सिक्ख, मुसलमान तथा हिन्दू शासकों को केवल महाराजा की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा गया और उन्हें अपने-अपने प्रदेश का शासक बना रहने दिया गया। ये महाराजा को वार्षिक कर और आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। जिन शासकों के राज्य छीन लिए गए उनमें से अनेक को यह छूट दी गई कि वे महाराज की नौकरी करके जागीरें प्राप्त कर लें। बहुत-से शासकों ने महाराजा की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिन शासकों ने यह शर्त स्वकर न की उन्हें भी उनकी स्थिति के अनुसार छोटी-छोटी जागीरें दे दी गईं। यह ढंग महाराजा रणजीत सिंह ने सभी शासकों के प्रति अपनाया चाहे कोई सिक्ख था, हिन्दू था या मुसलमान। इस प्रकार महाराजा को विजित प्रदेशों में शान्ति बनाए रखने में काफ़ी सहायता मिली। इन प्रदेशों से महाराजा को अनेक योग्य व्यक्तियों की सेवाएं प्राप्त हुईं।

2. शक्ति का प्रयोग-कुछ विजित प्रदेशों में महाराजा रणजीत सिंह ने शक्ति का प्रयोग किया। पहले तो यह प्रयास किया गया कि स्थानीय जमींदार महाराजा की अधीनता स्वीकार करके अपने-अपने प्रदेशों का शासन प्रबन्ध चलाते रहें। कुछ ज़मींदारों ने तो इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या उनके नेताओं ने विरोध न छोड़ा वहां कठोरता से काम लिया गया। ऐसे प्रदेशों में किले बना कर सैनिक रख दिये गए। सरकारी कामों के लिए स्थानीय कर्मचारी नियुक्त किए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों में लगभग पहले वाला शासन प्रबन्ध ही चलता रहा। लगान निर्धारित करने और इसे वसूल करने का ढंग भी पहले जैसा ही रहा।

3. सुदृढ़ सेना का संगठन-महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता र क सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मनबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाई गई। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
(ii) उसके पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ।
(ii) उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।

प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी ?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।

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प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया ?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे।

प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे ?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।

प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया ?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) महाराजा रणजीत सिंह ने ………… ई० में अपनी सास …………. की सहायता से लाहौर को जीता।
(ii) महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 ई० में ………… के साथ अमृतसर की संधि की।
(iii) सरदार खुशहाल सिंह महाराजा रणजीत सिंह के अधीन …………के पद पर आसीन था।
(iv) महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु ………….. ई० में हुई।
(v) ………….. ई० में पंजाब/लाहौर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।
उत्तर-
(i) 1799, सदा कौर
(ii) अंग्रेजों
(iii) ड्योढ़ीदार
(iv) 1839
(v) 1849.

3. सही गलत कथन

(i) अमृतसर की संधि (1809) के समय अंग्रेज़ों का वक़ील चार्ल्स मेटकॉफ था। –(✓)
(ii) 1831 में महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेज़ गवर्नर लार्ड डल्हौज़ी से भेंट हुई। –(✗)
(iii) 1830 ई० में अंग्रेजों ने सिंध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के विस्तार में सहायता दी। –(✗)
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के लोगों को संरक्षण दिया। –(✓)
(v) महाराजा रणजीत सिंह के अधीन कानूनगो तथा मुकद्दम कारदार की सहायता करते थे। –(✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के बीच भेंट (1831 ई०) हुई ?
(A) रोपड़ में
(B) अमृतसर में
(C) लाहौर में
(D) सरहिंद में।
उत्तर-
(A) रोपड़ में

प्रश्न (ii)
महाराजा रणजीत सिंह के कहां के शासक के साथ राजनीतिक संबंध नहीं थे ?
(A) नेपाल
(B) बीजापुर
(C) राजस्थान
(D) कश्मीर।
उत्तर-
(B) बीजापुर

प्रश्न (iii)
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन निम्न मुग़ल प्रांत का बहुत-सा भाग शामिल था
(A) कश्मीर
(B) लाहौर
(C) मुलतान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iv)
महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री था
(A) दीवान मिसर चंद
(B) हरि सिंह नलवा
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन
(D) शेर सिंह
उत्तर-
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन

प्रश्न (v)
लाहौर राज्य का अंतिम सिख शासक था
(A) खड़क सिंह
(B) दलीप सिंह
(C) शेर सिंह
(D) जोरावर सिंह।
उत्तर-
(B) दलीप सिंह

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में चार स्रोत हैं : सोहन लाल सूरी का उमदा-उत्-तवारीख, गणेशदास वढेरा की चार बागे पंजाब, यूरोपीय यात्रियों के वृत्तान्त तथा खालसा दरबार के रिकार्ड।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार तथा उसकी कृति का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार का नाम सोहन लाल सूरी था। उसकी कृति का नाम उमदा-उत्तवारीख था।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा वह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 ई० को हुआ। वह सरदार महा सिंह का पुत्र था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह किस वर्ष गद्दी पर बैठा और उस समय उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1792 ई० में गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में कौन-से अफ़गान शासक ने किन वर्षों के बीच में पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में जमानशाह ने पंजाब पर 1796 से 1798 के बीच में आक्रमण किए।

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय कब और किसकी सहायता से प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय 7 जुलाई, 1799 ई० को रानी सदा कौर की सहायता से प्राप्त की।

प्रश्न 7.
भसीन में किन दो शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया तथा महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर किनसे जीता ?
उत्तर-
भसीन में भंगी शासकों तथा कसूर के पठानों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया। महाराजा रणजीत सिंह ने भंगियों से अमृतसर जीता।

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प्रश्न 8.
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने किन चार सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात के साहिब सिंह भंगी, चिनियोट के जस्सा सिंह दूल्लू, अकालगढ़ के दल सिंह तथा स्यालकोट के जीवन सिंह के इलाके जीते।

प्रश्न 9.
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महासजा रणजीत सिंह ने किन तीन सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महाराजा रणजीत सिंह ने बुद्ध सिंह से जालन्धर का इलाका, बघेल सिंह से हरियाणा एवं होशियारपुर का इलाका तथा तारा सिंह डल्लेवालिया से राहों का इलाका जीता।

प्रश्न 10.
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन सिक्ख शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन शासक जोध सिंह रामगढ़िया, फतेह सिंह आहलूवालिया तथा रानी सदा कौर थे।

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प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों तथा सदा कौर के इलाके किन वर्षों में जीते ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों का इलाका 1815 में तथा सदा कौर का इलाका 1821 ई० में जीता।

प्रश्न 12.
फतेह सिंह आहलूवालिया किस वर्ष में कपूरथला छोड़ कर सतलुज के पार चला गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता कब स्वीकार कर ली ?
उत्तर-
1826 ई० में फतेह सिंह आहलूवालिया कपूरथला छोड़कर सतलुज के पार चला गया। उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता 1827 ई० में स्वीकार कर ली।

प्रश्न 13.
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार कौन-से चार इलाकों पर अधिकार कर लिया ?
उत्तर-
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार धर्मकोट, बधणी, जगरावां और नारायणगढ़ नामक चार इलाकों पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 14.
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जिन सिक्ख राज्यों से खिराज लिया उनमें से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पटियाला, नाभा, जींद तथा कलसिया नामक राज्यों से खिराज लिया।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कब और कहां की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ 1809 ई० में अमृतसर में सन्धि की।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुल्तान, कश्मीर तथा पेशावर की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक 1813, मुल्तान 1818, कश्मीर 1819 और पेशावर 1823 ई० में विजय किया।

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प्रश्न 17.
सिन्ध नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त कौन-से चार इलाकों पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्ज़ा हो गया ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्धु नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त झंग, साहीवाल, खुशाब तथा पिंडी भट्टियां के चार इलाकों पर अधिकार किया।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग कितनी पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया तथा उनमें से किन्हीं चार के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 20 से भी अधिक पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया। इनमें से चार इलाकों के नाम कांगड़ा, कुल्लू, जम्मू तथा राजौरी थे।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कौन-से चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लाहौर, कश्मीर, मुल्तान तथा काबुल नामक चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था।

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प्रश्न 20.
यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त । बनाया ?
उत्तर-
उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन, रेजीमैंट तथा बैटरी सेना के कौन-से अंगों से स’ म्बन्धित थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन पैदल, रेजीमैंट घुड़सवारों तथा बैटरी तोपखाना नाम .क अंगों से सम्बन्धित थी।

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पदों के नाम बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पद थे-कमांडेंट, एडजूटैंट (कुमेदान), मेजर और सूबेदार।

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प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को किन दो रूपों में वेतन देता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन देता था।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर कौन-सो दो व्यक्ति रहे थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर सरदार खुशहाल सिंह तथा सरदार ध्यान सिंह आसीन रहे।

प्रश्न 25.
मिसर बेलीराम तथा फकीर अजीजद्दीन कौन-से कार्य सम्भालते थे ?
उत्तर-
मिसर बेलीराम खजाने को तथा फकीर अजीजुद्दीन विदेशी मामलों को सम्भालते थे।

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प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबे थे-जालन्धर-दोआब, माझा, कांगड़ा, वजीराबाद, पिण्ड दादन खां, हज़ारा, पेशावर तथा मुल्तान।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम अथवा सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम दीवान सावनमल, सरदार लहणा सिंह मजीठिया, मिसर रूप लाल तथा कर्नल मीहा सिंह थे।

प्रश्न 28.
सूबे की छोटी प्रशासकीय इकाई के दो नाम क्या थे तथा इसके अधिकारी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सूबे की छोटी प्रशासनिक इकाई के दो नाम परगना तथा तालुका थे। इनके अधिकारी को कारदार कहते थे।

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प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कुछ स्थानों पर तालुका थे। परन्तु गांवों के बीच अन्य दो इकाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में गांवों के बीच तप्प तथा तोप नामक दो इकाइयां थीं।

प्रश्न 30.
कारदार की सहायता करने वाले दो स्थानीय अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
कारदार की सहायता कानूनगो तथा मुकद्दम करते थे।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम थे-काज़ी तथा अदालती।

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प्रश्न 32.
गांवों में समस्याओं को कौन-सी संस्था किस आधार पर हल करती थी ?
उत्तर-
गांवों में समस्याओं को पंचायत स्थानीय रिवाजों के आधार पर हल करती थी।

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में जिन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे वे सिक्ख, क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा राजपूत थे।

प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसरों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसर अलारड तथा वेन्तूरा थे।

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प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल तथा राजा गुलाब सिंह थे।

प्रश्न 36.
शासक वर्ग के सदस्यों को वेतन किस रूप में दिया जाता था तथा वे किन-किन कार्यों में महाराजा की सहायता करते थे ?
उत्तर-
शासक वर्ग के सदस्यों को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन मिलता था। वे शान्ति स्थापित करने, लगान वसूल करने तथा सेना तैयार रखने में महाराजा की सहायता करते थे।

प्रश्न 37.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कौन चुनते थे तथा कृषकों को कर्ज किन वस्तुओं के लिए दिया जाता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। उन्हें बीज और औजार खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था।

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प्रश्न 38.
महाराजा रणजीत सिंह से संरक्षण किन धर्मों के लोगों को तथा किस रूप में मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को संरक्षण दिया। वह इन धर्मों के धार्मिक स्थानों को लगान मुक्त भूमि दान में देता था।

प्रश्न 39.
महाराजा रणजीत सिंह के किन चार समकालीन शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों तथा अफ़गानिस्तान, नेपाल और राजस्थान के शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 40.
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेजों का वकील कौन था ? इस सन्धि द्वारा किस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेज़ों का वकील चार्ल्स मेटकॉफ था। इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों का सतलुज पार के क्षेत्र पर अधिकार हो गया।

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प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह कौन-से अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल से कब और कहाँ मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से 1831 में रोपड़ नामक स्थान पर मिला। .

प्रश्न 42.
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने किन दो इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका ?
उत्तर-
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने सिन्ध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका।

प्रश्न 43.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारियों के तथा उनमें से किसी एक की मां का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारी महाराजा खड़क सिंह, महाराजा शेर सिंह तथा महाराजा दलीप सिंह थे। महाराजा दलीप सिंह की मां का नाम महारानी जिन्दा था।

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प्रश्न 44.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई तथा लाहौर राज्य का अन्त कब हुआ ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 ई० में हुई और लाहौर राज्य का अन्त 1849 ई० में हुआ।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने जीते हुए इलाकों की व्यवस्था कैसे की ?
उत्तर-
जीते हुए सभी इलाकों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह की नीति लगभग समान थी। पराजित शासक चाहे वह हिन्द, सिक्ख या मुसलमान हो, को सामन्त के रूप में उसके इलाके में रहने दिया गया। उन्हें महाराजा को खिराज देना पड़ता था। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सेना भी देनी पड़ती थी। कुछ शासकों को यह स्वतन्त्रता दी गई कि वे महाराजा के अधीन नौकरी कर लें और जागीर ले लें। जिन्होंने यह शर्त स्वीकार नहीं की, उनको भी उनके स्तर के अनुसार निर्वाह के लिए छोटी-छोटी. जागीरें दे दी गईं। इसके परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को जीते हुए इलाकों में शान्ति स्थापित रखने में सहयोग भी .. मिला और उसे श्रेष्ठ व्यक्तियों की सेवा प्राप्त हुई।

सच तो यह है कि जीते हुए इलाकों में महाराजा ने शक्ति और मेल-मिलाप दोनों का प्रयोग किया। स्थानीय ज़मींदारों को प्रबन्ध में प्राथमिकता दी गई। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या नेताओं ने उनका विरोध किया, वहां सख्ती से भी काम लिया गया। जीते हुए इलाकों में किले बनवा कर किलेदार नियुक्त किए गए। सरकारी कार्यों के लिए स्थानीय कर्मचारी वहीं रहने दिए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों का लगभग पहले वाला प्रबन्ध जारी रहा। लगान को निश्चित करने और उगाहने के ढंग भी पहले वाले ही रहने दिए गए।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने सेना के संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेजी कम्पनी की सेना को छोड़कर आए सिपाहियों को अपनी सेना में रखा। सेना को यूरोपीय ढंग से संगठित किया गया। इसके लिए यूरोपीय अफसरों को नियुक्त किया गया। उनकी सहायता से पैदल, घुड़सवार सेना और तोपखाने को सशक्त बनाया गया। सेना के विभिन्न अंगों के संगठन के लिए पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी स्थापित करने की प्रथा चलाई गई। इनके अधिकारियों में भी कमान्डेन्ट (कुमेदान) ऐड्जूटैन्ट, मेजर और सूबेदार नियुक्त किए गए। समय बीतने पर कई सैनिक टुकड़ियों को मिला करे एक ‘जनरल’ के अधीन रखा जाने लगा। प्रत्येक टुकड़ी के साथ बेलदार, मिस्त्री, घड़याली और टहलिया आदि भी होते थे। सेना का निरीक्षण स्वयं महाराजा करता था। चेहरा नवीसी और घोड़े दागने की प्रथा भी आरम्भ की गई ताकि सैनिक अधिकारी और जागीरदार निश्चित संख्या से कम घोड़े और सिपाही न रख सकें। महाराजा ने तोपें, बन्दूकें और अन्य शस्त्र बनाने के लिए कारखाने स्थापित किए। इनमें पंजाबी और कई अनुभवी यूरोपीय लोग बारूद तैयार करते थे।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किस पृष्ठ भूमि के लोग थे तथा उनके महाराजा के साथ किस तरह के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक अधीनस्थ राजाओं को अपना भागीदार बनाकर शासक वर्ग का अंग बना लिया। इन राजाओं के जागीरदारों को भी प्रशासनिक प्रबन्ध में सम्मिलित किया गया। इनके अतिरिक्त महाराजा ने कई नए व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार छोटे-बड़े पदों पर नियुक्त किया। ऐसे जागीरदारों की सामाजिक पृष्ठ भूमि भिन्नभिन्न थी। उनमें कई जाट सिक्ख थे तथा कई खत्री थे। इनमें ब्राह्मण, राजपूत, पठानों और सैय्यदों के अतिरिक्त कई पूर्वी हिन्दोस्तानी और यूरोपीय लोगों को भी इस श्रेणी में जगह दी गई। उदाहरण के लिए जमांदार खुशहाल सिंह और अलारड तथा वेन्तूरा के नाम लिए जा सकते हैं। महाराजा के प्रमुख जागीरदारों में उल्लेखनीय सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल, राजा गुलाब सिंह, राजा ध्यान सिंह, फकीर अजीजुद्दीन और शेख गुलाम मुइउद्दीन थे। यह सारा शासक वर्ग शासन कार्यों में महाराजा का भागीदार था।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह का प्रजा के प्रति कैसा व्यवहार था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक प्रजापालक शासक था। उसने अपने नाज़िमों और कारदारों को यह आदेश दे रखा था कि वे प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनकी भलाई का ध्यान रखें। कृषकों के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था। कई स्थानों पर लगान की दर भी घटा दी गई। लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। लाहौर दरबार उन्हें बीज और औज़ार आदि खरीदने के लिए ऋण भी देता था। प्रजा राजा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर सकती थी। जब भी महाराजा राज्य के किसी प्रदेश का भ्रमण करता तो वह कृषकों से उनके सुख-दुःख के बारे में पूछा करता था। अत्याचारी नाज़ियों या कारदारों की बदली कर दी जाती थी। कई बार उन पर जुर्माने भी किए जाते थे।

महाराजा महाराजा रणजीत सिंह का संरक्षण केवल सिक्खों तक सीमित नहीं था बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इससे प्रभावित थे। लगान की कुल आय का जितना भाग धर्मार्थ के लिए महाराजा ने दिया, उतना शायद मुग़लों के समय में भी नहीं दिया गया था। महाराजा की ओर से करवाई गई हरमंदर साहिब की सेवा की गवाही आज भी हरमंदर साहिब के द्वार पर सोने के पत्र पर उभरी हुई मिलती है। निःसन्देह महाराजा उदार स्वभाव का व्यक्ति था।

प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 1806 ई० के पश्चात् सतलुज पार के प्रदेशों को जीतना आरम्भ कर दिया। इससे अंग्रेजों को चिन्ता होने लगी कि कहीं महाराजा का राज्य दिल्ली तक न फैल जाए। वे स्वयं भी सतलुज और यमुना के बीच के इलाकों पर अपना अधिकार करना चाहते थे। अतः महाराजा की शक्ति पर रोक लगाने के लिए उन्होंने चार्ल्स मैटकॉफ को अपना वकील बनाकर महाराजा के पास भेजा। उसने सुझाव दिया कि सतलुज नदी को महाराजा की पूर्वी सीमा मान लिया जाए। अंग्रेजों की यह इच्छा थी कि सतलुज-यमुना के मध्य के सभी शासक महाराजा की बजाए अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर लें। महाराजा को यह सुझाव पसन्द तो नहीं था परन्तु उसे अंग्रेजों की शक्ति का पूरा पता था। उसे यह भी ज्ञान था कि इस सुझाव के लाभ क्या हैं। वास्तव में अंग्रेज़ उसे सतलुज के उत्तर-पश्चिम के प्रदेश का एकमात्र स्वतन्त्र शासक मानने को तैयार थे। अन्त में महाराजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और सेना सतलुज के इस ओर बुला ली। इन परिस्थितियों में 25 अप्रैल, 1809 को अमृतसर में एक नियमित सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना कैसे की ? –
उत्तर-
रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली। 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमान ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई। 1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पांच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेजों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया। 1809 ई० में उसने अंग्रेजों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित इलाकों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। शीघ्र ही उसने मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), बन्नू, डेराजात और पेशावर पर अधिकार कर लिया। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब का शासन बड़े अच्छे ढंग से चलाया। केन्द्रीय शासन का मुखिया वह स्वयं था। वास्तव में वह निरंकुश शासक था परन्तु उसे प्रजा की भलाई का पूर्ण ध्यान रहता था। उसने अपनी सहायता के लिए मन्त्री नियुक्त किए हुए थे। राजा ध्यान सिंह उसका प्रधानमन्त्री था और फकीर अजीजुद्दीन उसका बहुत बड़ा सलाहकार और विदेश मन्त्री था। अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने सारे राज्य को चार मुख्य प्रान्तों में बांटा हुआ था। इन प्रान्तों के नाम थे-लाहौर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर। महाराजा रणजीत सिंह की न्याय प्रणाली बड़ी साधारण थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे। अपराधी को प्रायः जुर्माना ही किया जाता था। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर ही था। आय कर उपज का 1/2 और 1/3 भाग लिया जाता था। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना का संगठन किया। इसमें घुड़सवार, पैदल और तोपखाना सम्मिलित थे। दीवान मोहकम चन्द प्रधान सेनापति था। सेनापति को यूरोपीय सैनिकों को भान्ति ट्रेनिंग दी जाती थी। वेंतुरा उसकी सेना में एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी सैनिक अधिकारी था।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 9.
अमृतसर की सन्धि कब हुई ? इसका महत्त्व भी बताओ।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के साथ 1809 ई० की सन्धि के बारे में लिखो।
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि 25 अप्रैल, 1809 ई० को अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच हुई। यह सन्धि अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस सन्धि से सिक्खों का एकमात्र शासक बनने के लिए महाराजा रणजीत सिंह का अपना सपना टूट गया। वह मालवा की रियासतों पर कभी अधिकार नहीं कर सकता था। अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति, सम्मान तथा पद को भी गहरा आघात पहुँचाया। इस सन्धि ने अंग्रेजी राज्य की सीमा को यमुना से बढ़ा कर सतलुज नदी तक पहुंचा दिया। महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमा के इतने समीप पहुंच जाने के कारण अंग्रेजी सरकार महाराजा की विदेश नीति तथा सैनिक गतिविधियों पर अब अधिक कड़ी नजर रख सकती थी। इस सन्धि से महाराजा को कुछ लाभ भी हुए। इसके फलस्वरूप पंजाब का शिशु राज्य नष्ट होने से बच गया और उसने उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

1. लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही महाराजा रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।

2. अमृतसर की विजय अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।

3. अटक विजय-1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतेह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतेह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतेह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने फतेह खां को अटक विजय में और फतेह खां ने महाराजा रणजीत सिंह को मुल्तान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया। दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतेह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतेहखां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।

4. मुल्तान विजय-मुल्तान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान पर छः आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां महाराजा रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुल्तान के किले पर घेरा डाल दिया। मुज़फ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुल्तान सिक्खों के अधिकार में आ गया।

5. कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतेह खां ने कश्मीर विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय नागरिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय शासन का वर्णन इस प्रकार है

1. महाराजा-महाराजा रणजीत सिंह केन्द्रीय शासन का मुखिया था। उसकी शक्तियां असीम थीं। फिर भी वह तानाशाह नहीं था। सरकार महाराजा रणजीत सिंह के नाम से नहीं बल्कि ‘खालसा’ के नाम से काम करती थी। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ और ‘गोबिन्द सहाय’ लिखा था। पांच प्यारे शक्ति में उससे ऊपर थे।

2. वजीर तथा केन्द्रीय विभाग-शासन कार्यों में महाराजा को सहायता तथा परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री तथा कई वजीर थे। उसका सबसे प्रसिद्ध प्रधानमन्त्री राजा ध्यान सिंह डोगरा था। वित्त तथा विदेशी मामलों को छोड़कर शेष सभी विभाग उसकी देख-रेख में चलते थे। विदेश मन्त्री-महाराजा का विदेश मन्त्री फकीर अज़ीजुद्दीन था। महाराजा का गुप्त सलाहकार भी वही था। गृह मन्त्री-गृह मन्त्री (ड्योढ़ीवाला) का कार्य शाही महल के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रबन्ध करना था। इस पद पर जमांदार खुशहाल सिंह काफ़ी समय तक रहा। वित्त मन्त्री-वित्त मन्त्री को ‘दीवान’ कहा जाता था। युद्ध मन्त्रीदीवान मोहकम चन्द, मिसर दीवान चन्द तथा हरिसिंह नलवा युद्ध में सेना का संचालन करते थे। केन्द्रीय शासन के प्रमुख विभाग थे-दफ्तर-ए-अबवाब-उल-माल, दफ्तर-ए-मुआजिब, दफ्तर-ए-तौजिहात, दफ्तर-ए-तोपखाना, दफ्तर-ए-रोजनामचा, दफ्तर-ए-अखराजात आदि।

3. न्याय प्रणाली-न्याय का सबसे बड़ा अधिकारी महाराजा था। राज्य के सभी बड़े मुकद्दमों का निर्णय वह स्वयं करता था। उचित न्याय करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। उसकी अपनी विशेष अदालत थी। महाराजा की अदालत के नीचे लाहौर नगर का उच्च न्यायालय था। इस अदालत को ‘अदालत-ए-आला’ कहते थे। इसके अतिरिक्त अमृतसर और पेशावर में दो विशेष अदालतें थीं। दैनिक न्याय का कार्य प्रान्त तथा जिले के अधिकारी करते थे।

4. भूमि-कर प्रणाली तथा आय के अन्य साधन-महाराजा रणजीत सिंह के समय राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। भूमि-कर एकत्रित करने के लिए पहले बटाई प्रणाली प्रचलित थी। इसके अनुसार भूमि-कर उपज का आधा लेकर सरकारी गोदामों में जमा कर दिया जाता था। बाद में कनकूत प्रणाली चलाई गई। इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसलों पर ही भूमि-कर नियत कर दिया जाता था। राज्य के कई भागों में बोली प्रणाली भी प्रचलित थी। इस प्रणाली के अनुसार अधिक-से-अधिक बोली देने वाले को भूमि-कर इकट्ठा करने का अधिकार मिल जाता था। उसे निश्चित राशि कोष में जमा करनी पड़ती थी।

भूमि-कर फसलों की किस्मों के अनुसार ही सरकार का भाग – से – तक निश्चित होता था। भूमि-कर के अतिरिक्त प्रजा से चुंगी-कर, बिक्री-कर तथा व्यावसायिक-कर भी वसल किया जाता था। बिक्री-कर, जर्माना, शुकराना, ज़ब्ती तथा ठेकों से प्राप्त करों से सरकार को अच्छी आय प्राप्त हो जाती थी।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना तीन भागों में बंटी हुई थी-पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना। .

(क) पैदल सेना-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पैदल सेना, सेना का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। पैदल सेना बटालियनों में बंटी हुई थी। प्रत्येक बटालियन में 800 सैनिक होते थे और इसका मुखिया एक कमाण्डर होता था। इसकी सहायता के लिए एक मेजर-जनरल हुआ करता था। प्रत्येक बटालियन 8 कम्पनियों में बंटी हुई थी और प्रत्येक कम्पनी के चार भाग होते थे। प्रत्येक भाग में 25 सैनिक होते थे। ‘कम्पनी’ हवलदार के अधीन होती थी। हवलदार की सहायता के लिए नायक होता था। पैदल सिपाहियों को ड्रम की धुन पर चलना पड़ता था। उनके कमाण्ड की भाषा फ्रांसीसी थी। नियमित परेड के अतिरिक्त दशहरे के दिन अमृतसर में एक आम परेड होती थी। इसका निरीक्षण महाराजा स्वयं करता था। इसका प्रशिक्षक जनरल वेन्तुरा था।

(ख) घुड़सवार-महाराजा रणजीत सिंह की घुड़सवार सेना तीन भागों में बंटी हुई थी। नियमित घुड़सवार सेना में चुने हुए सिपाही और चुने हुए घोड़े होते थे। इसको यूरोपियन ढंग से ट्रेनिंग दी जाती थी। इसकी कमान फ्रांसीसी जरनैल एलार्ड के हाथ में थी। घुड़सवार सेना का दूसरा अंग घुड़-चढ़े सेना थी। इसको किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था। तीसरे अंग में जागीरदारों की घुड़सवार सेना शामिल थी। ये सैनिक जागीरदारों के अधीन होते थे। आवश्यकता के समय वे महाराजा की ओर से युद्ध में भाग लेते थे। महाराजा के पास कुछ अनियमित रैजीमेंट भी थी जिनमें चुने हुए युवक थे जो सदा मरने-मारने के लिए तैयार रहते थे।

(ग) तोपखाना तथा शस्त्र-निर्माण-उसका तोपखाना चार भागों में बंटा हुआ था-

  • तोपखाना फिल्ली
  • तोपखाना शुतरी
  • तोपखाना अश्वी
  • तोपखाना गावी। महाराजा के पास कुल मिलाकर 76 तोपें थीं। तोपखाने का काम कोर्ट गार्डिनर जैसे यूरोपीय अधिकारियों को सौंपा गया था। महाराजा ने शस्त्र बनाने के लिए कई कारखाने खोले हुए थे। लाहौर, मुल्तान, जम्मू और श्रीनगर में शस्त्र बनाने का काम किया जाता था।

महाराजा रणजीत सिंह की सेना का साधारण विश्लेषण-
(i) फौज-ए-किलात-महाराजा रणजीत सिंह की सेना में 10,800 सैनिक ऐसे भी थे जो फौज-ए-किलात के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्हें मुल्तान, पेशावर, कांगड़ा तथा अटक के किलों में रखा जाता था। किलों में रहने वाले सैनिकों को 6 रु० मासिक वेतन तथा जमांदार को 12 रु० मासिक वेतन मिलता था।

(ii) फौज-ए-खास-पूरी तरह प्रशिक्षित तथा समीपवर्ती इलाकों में लड़ने वाली इस सेना का कमाण्डर जनरल वेन्तुरा था। इस ब्रिगेड में 3000 पैदल सैनिक, 1500 नियमित घुड़सवार, लगभग 1000 तोपची और 34 तोपें थीं।

(iii) फौज-ए-आइनराज्य के अधीन इस नियमित सेना में तीन अंग शामिल थे। 1830 में इस सेना की कुल संख्या लगभग 38,000 थी जिसमें 30,000 पैदल, 5,000 घुड़सवार और 3,000 तोपची थे।

(iv) फौज-ए-बेकवायद-इस सेना में अकाली जागीरंदारों के सैनिक तथा अन्य सभी प्रकार के सैनिक रखे जाते थे।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों ( 1809-1839 ई०) का वर्णन कीजिए।
अथवा
1809 से 1827 ई० तक अंग्रेज़-सिख संबंधों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
1828 के बाद अंग्रेज-सिख संबंधों में तनाव क्यों आया ? त्रिदलीय 1839 इन संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई० में अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच अमृतसर की सन्धि हुई। इस सन्धि ने भले ही सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच सशस्त्र टक्कर की सम्भावना को समाप्त कर दिया था, तो भी यह सन्धि दोनों शक्तियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सन्देह तथा भय की भावनाओं का अन्त न कर सकी। इस सन्धि के पश्चात् 1839 ई० तक अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों को निम्नलिखित चरणों में से गुज़रना पड़ा-

1. अविश्वास तथा सन्देह काल-1809 से 1811 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज सरकार दोनों ही एकदूसरे को अविश्वास तथा सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। प्रत्येक ने अपने विरोधी की सैनिक तथा कूटनीतिक चालों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर छोड़ रखे थे।

2. 1812-1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के सम्बन्ध-1812 से 1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच आपसी सहयोग तथा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बने रहे। 1815 ई० में गोरखा वकील महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने साफ़ इन्कार कर दिया। महाराज ने प्रथम अंग्रेज़-नेपाल युद्ध (1814-1815 ई०) में अंग्रेजों की सहायता करके अपनी मित्रता का प्रमाण दिया। इसी प्रकार 1821 ई० में जब आपा साहिब का प्रतिनिधि महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने उसे भी साफ इन्कार कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज सरकार ने भी सतलुज के उत्तर-पश्चिम में महाराजा रणजीत सिंह के हितों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया।

3. वन्दनी गांव का प्रश्न-1808 ई० के अपने सतलुज अभियान के समय वन्दनी प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह ने 12000 रुपये के बदले अपनी सास रानी सदा कौर को दे दिया था। परन्तु 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सदा कौर को कारावास में डालकर वन्दनी पर पुनः अधिकार कर लिया। रानी सदा कौर ने अंग्रेजों से सहायता की मांग की। लुधियाना के अंग्रेज़ प्रतिनिधि ने ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी भेजकर महाराजा की सेना को वन्दनी से निकाल दिया। महाराजा ने गवर्नर-जनरल से रोष प्रकट किया। अत: 1823 ई० में गवर्नर-जनरल ने वन्दनी पर फिर से महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।

4. पुनः मैत्री-महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया। भरतपुर के सरदार ने महाराजा को 1,50,000 रुपए प्रतिदिन देने का प्रलोभन भी दिया और प्रार्थना की कि वह 20,000 सैनिकों से उसकी सहायता करे। परन्तु महाराजा ने उसे सहायता देने से इन्कार कर दिया। 1826 ई० में महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ गया। उसकी प्रार्थना पर अंग्रेज़ सरकार ने डॉ० मूरे (Dr. Murray) को इलाज के लिए लाहौर भेजा। फलस्वरूप दोनों पक्षों में कुछ समय तक पुनः मैत्री बनी रही।

5. सम्बन्धों में पुनः बिगाड़-1828 से 1839 ई० तक लाहौर के शासक तथा ब्रिटिश सरकार में पारस्परिक सम्बन्ध दिनप्रतिदिन तनावपूर्ण होते चले गए। इस समय में निम्नलिखित घटनाओं ने दोनों में तनाव पैदा किया

(i) महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति-पिछले दस वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान, कश्मीर, डेराजात तथा पेशावर इत्यादि को विजय करके अपनी शक्ति विशेष रूप से बढ़ा ली थी। अंग्रेज़ सरकार महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति से ईर्ष्या करने लगी थी। अतः अंग्रेज सरकार ने एक ओर तो लाहौर राज्य को विभिन्न दिशाओं से ‘घेरा डालने की नीति’ को अपनाना आरम्भ कर दिया, परन्तु दूसरी ओर वे महाराजा के साथ अपनी मित्रता का दिखावा करते रहे।

(ii) सिन्ध का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के पारस्परिक सम्बन्धों में मतभेद तथा कटुता उत्पन्न करने वाली समस्याओं में सिन्ध की समस्या का विशेष स्थान है। यह प्रान्त लाहौर राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित होने के कारण काफ़ी सैनिक महत्त्व रखता था। महाराजा रणजीत सिंह के लिए आवश्यक था कि वह इसे अपने अधिकार में ले कर अपने राज्य की विदेशी आक्रमणों से रक्षा करे।

अंग्रेज़ सरकार भी सिन्ध तथा शिकारपुर के व्यापारिक महत्त्व को भली-भान्ति समझती थी। अतः वह यह नहीं चाहती थी कि यह प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह के हाथ लगे। 1831 ई० में अंग्रेज़ सरकार ने अपने एक नाविक बर्नज (Burmes) को व्यापारिक सन्धि के लिए अमीरों के पास भेजा। उन्होंने इसी मिशन के हाथ महाराजा रणजीत सिंह के लिए उपहार भी भेज दिया ताकि यह अंग्रेजों की आन्तरिक आकांक्षाओं को भांप न सके। भले ही इस मिशन का स्वभाव प्रत्यक्ष रूप से मैत्रीपूर्ण था तथापि इसने महाराजा रणजीत सिंह के मन में अंग्रेजों की सिन्ध नीति के विषय में सन्देह उत्पन्न कर दिया।

(iii) महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिंक की रोपड़ में भेंट-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह के मन में उत्पन्न हुए सन्देह को भली-भान्ति जानता था। इधर रूस द्वारा भारतीय आक्रमण के समाचार भी जोरों से फैल रहे थे। अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल यह नहीं चाहता था कि इस संकट के समय उनके महाराजा के साथ सम्बन्ध बिगड़ जाएं। अतः उसने अक्तूबर, 1831 ई० में रोपड़ के स्थान पर महाराजा से भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने पोण्टिञ्जर को सिन्ध के अमीरों के साथ एक व्यापारिक सन्धि करने के लिए सिन्ध भेज दिया।

पोण्टिञ्जर के प्रयत्नों से अंग्रेजों तथा सिन्ध के अमीरों के बीच में एक महत्त्वपूर्ण सन्धि हो गई। इसका पता चलने पर महाराजा रणजीत सिंह को बहुत दुःख हुआ।

(iv) शिकारपुर का प्रश्न-शिकारपुर के प्रश्न पर भी महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में आपसी तनाव काफ़ी बढ़ गया। महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लाने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे माजरी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। महाराजा रणजीत सिंह ने माजरी आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया।

(v) फिरोज़पुर का प्रश्न-अंग्रेजों के आपसी सम्बन्धों के इतिहास में फिरोज़पुर के प्रश्न का विशेष महत्त्व है। भले ही महाराजा रणजीत सिंह का फिरोजपुर पर अधिकार उचित तथा न्याय संगत था, तो भी अंग्रेजों ने उसे अधिकार न करने दिया। अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और तीन वर्ष बाद उसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना लिया। परन्तु महाराजा को इस बार भी गुस्सा पी कर रह जाना पड़ा।

(vi) त्रिदलीय सन्धि-1837 ई० में रूस एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। अंग्रेजों ने कैप्टन बर्नज़ (Burnes) को काबुल भेजा ताकि वह वहां के अमीर दोस्त मुहम्मद के साथ मित्रता व सन्धि की बातचीत कर सके। दोस्त मुहम्मद ने अंग्रेजों के साथ इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ बदले में महाराजा रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर उसे सौंप दें। परन्तु अंग्रेज़ों के लिए महाराजा रणजीत सिंह की मित्रता आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने दोस्त मुहम्मद की इस शर्त को न माना। उधर दोस्त मुहम्मद रूस के साथ गठजोड़ करने लगा। अंग्रेजों के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में महाराजा रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यह समझौता तीन दलों में होने के कारण त्रिदलीय सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है।

महाराजा रणजीत सिंह ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर तो कर दिए परन्तु उसने सन्धि की एक महत्त्वपूर्ण धारा पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। वह यह थी कि, “अंग्रेज़ों की सेनाएं पंजाब से होकर काबुल पर आक्रमण कर सकती हैं।” परन्तु उसे भय था कि अंग्रेज़ अवश्य ही इस धारा का उल्लंघन करेंगे। अत: उसने अपने शासन काल के अन्तिम वर्षों में अंग्रेजों के विरुद्ध कई कदम उठाने का प्रयत्न किया। अत: 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि 1809 ई० से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से अपनी मित्रता बनाए रखने की नीति को अपनाया। उसने यह निश्चय कर रखा था कि वह अंग्रेजों से युद्ध नहीं करेगा भले ही इसके लिए उसे बड़े-से-बड़ा बलिदान भी क्यों न करना पड़े।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए

प्रश्न 1.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराना।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ? उनके पुत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (ज़िला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं। उनके पुत्रों के नाम श्री चन्द तथा लक्षमी दास थे।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान पाप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।

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प्रश्न 4.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खाँ लोधी के अधीन मोदी खाने में भण्डारी का काम किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां कौन-सी हैं?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण जैसे अंधविश्वासों में पड़ने की बजाय प्रभु भक्ति और शुभ कर्म करने चाहिएं।

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प्रश्न 7.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडम्बरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् , सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।

प्रश्न 9.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए?
उत्तर-
अपनी दूसरी उदासी के समय गुरु साहिब सर्वप्रथम आधुनिक हिमाचल प्रदेश में गए। यहां उन्होंने बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों का भ्रमण किया और कई लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया। इस उदासी में गुरु साहिब तिब्बत, कैलाश पर्वत, लद्दाख तथा कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भी गए। तत्पश्चात् उन्होंने हसन अब्दाल तथा सियालकोट का भ्रमण किया। वहां से वह अपने निवास स्थान करतारपुर चले गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे सम्बन्धी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारम्भिक मन्त्र पढ़ने के पश्चात् पण्डित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परन्तु उन्होंने इसे पहनने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुम्बा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अन्ध-विश्वासों का खण्डन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी तथा दक्षिण भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया।
    अंततः पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए वह सुल्तानपुर लोधी पहुंच गए।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुरु साहिब ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ पाकपट्टन से किया। अन्ततः वह सैय्यदपुर से आ गए। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित स्थानों की यात्रा की

  1. मुल्तान
  2. मक्का
  3. मदीना
  4. बग़दाद
  5. तेहरान
  6. कंधार
  7. पेशावर
  8. हसन अब्दाल तथा
  9. गुजरात।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये।
कार्य-

  1. इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि वाणियों की रचना की ।
  2. करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
  3. कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अन्त निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-काण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. ईश्वर की महिमा–गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है
    1. एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
    2. ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
    3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
      (iv) ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
  2. सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर से मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
  3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
  4. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
  5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
  7. जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
  8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
  9. मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की
  10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-काण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
  11. सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द की (सचखण्ड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
  12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धान्त प्रस्तुत किए-
    1. सदा सत्य बोलना।
    2. चोरी न करना।
    3. ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना।
    4. दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना।
      सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
      नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई छ: शिक्षाएं लिखें।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (यात्रा) के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा लगभग 1500 ई० में आरम्भ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया

  1. सैय्यदपुर-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहाँ उन्होंने लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तुलम्बा अथवा तालुम्बा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी मुल्तान जिला में स्थित तुलम्बा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परन्तु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धन्धा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मन्दिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
  3. कुरुक्षेत्र-तुलम्बा से गुरु साहिब हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिन्दू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
  4. पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुँचे। यहाँ से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुँचे। यहाँ गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरम्भ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है ? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
  5. गोरखमता-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहाँ उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
  6. बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुँचे। यहाँ उनकी भेंट पण्डित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
  7. गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया।
    यहाँ से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  8. आसाम-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुँचे। वहाँ उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुन्दरता सच्चरित्र में है।
  9. ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मन्दिर में उन्होंने बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहाँ पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है। ईश्वर सर्वव्यापक है।
  10. दक्षिणी भारत-पुरी से गुरु नानक देव जी दक्षिण की ओर गए। वह गंटूर, कांचीपुरम, त्रिचन्नापल्ली, नागापट्टम, रामेश्वरम, त्रिवेन्द्रम होते हुए लंका पहुँचे। वहाँ का राजा शिवनाभ गुरु जी के व्यक्तित्व तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुआ और वह गुरु जी का शिष्य बन गया। लंका में गुरु साहिब ने झंडा बेदी नामक एक श्रद्धालु को ईश्वर का प्रचार करने के लिए भी नियुक्त किया। · ।
    वापसी यात्रा-लंका से वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुँचे। वहाँ पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ।
    पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए गुरु साहिब वापिस सुल्तानपुर लोधी आ गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू राम जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था।
बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पण्डित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पण्डित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ गुरु जी ने ‘ओ३म’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पण्डित जी को चकित .कर दिया। सिक्ख परम्परा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता पिता ने सनातनी रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परन्तु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।

विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहाँ भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू राम जी निराश हो गए। उन्होंने इनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी।

उनके यहां श्री चन्द और लक्षमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू राम जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहाँ उन्हें नवाब दौलत खाँ के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।

ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली बेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिन्तन भी करते थे। एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरन्तर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिन्तन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भान्ति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सुल्तानपुर लोधी के समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू राम जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहाँ वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खाँ के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भण्डार) में भण्डारी की नौकरी मिल गई। वहाँ वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधुसन्तों में लुटा रहे हैं। परन्तु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।

गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहाँ सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह शहर के साथ बहती हुए बेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमन्दों को सहायता के लिए देते थे।

ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह बेई नदी पर स्नान करने गए। परन्तु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुँचे। इस पर सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी के बेईं नदी में डूब जाने की अफवाह फैल गई। नानक जी के सगे सम्बन्धी तथा अन्य सज्जन चिन्ता में पड़ गए। लोग तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे। परन्तु गुरु नानक जी ने वे तीन दिन गम्भीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अन्तिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया।

ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी वापस पहुँचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं । उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने सन्देश का प्रचार आरम्भ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर लम्बी यात्राएँ आरम्भ कर दी।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-
इसके लिए 100-120 शब्दों वाला प्रश्न नं0 3 पढ़ें।

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प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं

  1. ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का सन्देश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मन्त्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचन्द नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
  2. ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
    “दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
    एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
  4. ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों को अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनन्दित करता रहता है।
  5. ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आप जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परन्तु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
  6. ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसकी प्रत्येक आज्ञा को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। आजकल इसे ननकाना साहिब कहते हैं।

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प्रश्न 2.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने क्या किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के मोदीखाने में दस वर्ष तक कार्य किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ कहां किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ करतारपुर में किया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ किन दो संस्थाओं द्वारा किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

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प्रश्न 8.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।

प्रश्न 9.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई?
उत्तर-
सज्जन ठग से गुरु नानक देव जी की भेंट तुलम्बा में हुई।

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
गुरु जी के सम्पर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।

प्रश्न 12.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया था और उन्होंने गुरु जी की महानता को स्वीकार कर लिया था। इसी घटना के बाद गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के अन्तिम वर्ष कहां व्यतीत हुए?
उत्तर-
गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया?
उत्तर-
पण्डित गोपाल के पास।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से फ़कीरों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
सच्चा सौदा।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचन्द और लक्ष्मीदास।

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, (वैशाख मास) 1469 ई० को हुआ।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई?
उत्तर-
1499 ई० में।

प्रश्न 22.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे?
उत्तर-
भाई मरदाना।

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता।

प्रश्न 24.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहाँ गए?
उत्तर-
भारत के उत्तर में।

प्रश्न 25.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई?
उत्तर-
सन्त शंकर देव से।

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प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरम्भ की?
उत्तर-
1517 ई० में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया?
उत्तर-
कामरूप।

प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।

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प्रश्न 29.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
सियालकोट में।

प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ किस स्थान से किया?
उत्तर-
पाकपट्टन से।

प्रश्न 31.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया?
उत्तर-
सैय्यदपुर।

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प्रश्न 32.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निन्दा की है?
उत्तर-
बाबर-वाणी में।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल कहाँ व्यतीत किए?
उत्तर-
करतारपुर में।

प्रश्न 34.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस वाणी में मिलता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।

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प्रश्न 35.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।

प्रश्न 36.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 37.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
22 सितम्बर, 1539।

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प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिन्दू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को ………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
  2. …………… गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
  3. गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………… तथा …………
  4. गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……….. नामक चार वाणियां हैं।
  5. गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप …………… नामक गांव में हुआ।
  6. गुरुद्वारा पंजा साहिब …………… में स्थित है।

उत्तर-

  1. सच्चा सौदा,
  2. बीबी सुलखनी,
  3. श्रीचंद तथा लक्षमी दास,
  4. जपुजी साहिब, बारह माहा,
  5. तलवंडी,
  6. सियालकोट।

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी रहने वाली थीं
(A) बटाला की
(B) अमृतसर की
(C) भठिण्डा की
(D) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(A) बटाला की

प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(A) गुरु अंगद देव जी ने
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने

प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट हुई
(A) पटना में
(B) सियालकोट में
(C) तुलम्बा में
(D) करतारपुर में।
उत्तर-
(C) तुलम्बा में

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प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(A) सुलखनी जी
(B) तृप्ता जी
(C) नानकी जी
(D) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(B) तृप्ता जी

प्रश्न 5.
बाबर ने गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया
(A) सियालकोट में
(B) कीरतपुर साहिब में
(C) सैय्यदपुर में
(D) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(C) सैय्यदपुर में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. करतारपुर की स्थापना 1526 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की थी।
  2. श्री गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में हुई।
  3. गुरुद्वारा पंजा साहिब अमृतसर में स्थित है।
  4. श्री गुरु नानक देव जी 22 सितम्बर 1539 ई० को ज्योति जोत समाए।
  5. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी 1499 ई० में आरम्भ की।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. गुरु नानक देव जी — भाई मरदाना
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि — करतारपुर की स्थापना
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी — संत शंकर देव
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई — दीवान करोड़ी मल खत्री।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी-करतारपुर की स्थापना,
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि-दीवान करोड़ी मल खत्री,
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी-भाई मरदाना,
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई-संत शंकर देव।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं की। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे सम्भवतः भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

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प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खण्डन किया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकाण्डों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकाण्डों का खण्डन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार विधियां और रीति-रिवाज। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी स्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खण्डन किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दी –

  1. ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
  2. जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-ग़रीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी समान हैं।
  3. शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
  4. ईश्वर भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए।
  5. गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
  6. मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
  7. नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। वह बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म देती है। इसलिए सभी को स्त्री का सम्मान करना चाहिए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो ।
उत्तर-
(क) महान् शिक्षक के रूप में

  1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा वाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ़ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धान्तों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
  2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष सम्प्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।

(ख) सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का मिश्रण मात्र था, परन्तु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धान्त ऐसे भी थे जो न तो हिन्दू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) 1514 ई० में आरम्भ की। इस बार वह उत्तर दिशा में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए —

  1. हिमाचल प्रदेश-गुरु जी ने पंजाब के प्रदेशों में से गुजरते हुए आधुनिक हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ पर सबसे पहले उनकी भेंट पीर बुड्डन शाह से हुई। वह पीर गुरु जी का अनुयायी बन गया। हिमाचल में गुरु जी बिलासपुर, मंडी, सुकेत, रिवालसर, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों पर गए और वहाँ के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाया।
  2. तिब्बत-स्पीति घाटी पार करके गुरु नानक साहिब ने तिब्बत में प्रवेश किया। जब वह मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो यहां पर उन्होंने अनेक सिद्ध योगियों से भेंट की। गुरु जी ने उन्हें उपदेश दिया कि पहाड़ों पर बैठने से कोई लाभ नहीं। उन्हें मैदानों में जाकरं अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहे लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाना चाहिए।
  3. लद्दाख-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु जी लद्दाख गए। वहाँ पर अनेक श्रद्धालुओं ने उनकी याद में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया।
  4. कश्मीर-सकारदू तथा कारगिल होते हुए गुरु जी कश्मीर में अमरनाथ की गुफ़ा में गए। इसके बाद वह पहलगांव तथा मटन नामक स्थानों पर पहुंचे। मटन में उनकी भेंट पण्डित ब्रह्मदास से हुई जो वेद-शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता था। गुरु जी ने उसे उपदेश दिया कि केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। यहाँ से गुरु जी बारामूला, अनंतनाग तथा श्रीनगर भी गए।
  5. हसन अब्दाल-कश्मीर से वापस आते हुए गुरु जी रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हसन अब्दाल नामक स्थान पर ठहरे। वहाँ उन्हें एक अहंकारी मुसलमान फ़कीर वली कंधारी ने पहाड़ी से पत्थर फेंक कर मारने का प्रयास किया। परन्तु गुरु जी ने उस पत्थर को अपने पंजे से रोक लिया। आजकल वहां एक सुन्दर गुरुद्वारा पंजा साहिब बना हुआ है।
  6. सियालकोट-जेहलम तथा चिनाब नदियों को पार करने के पश्चात् गुरु नानक साहिब सियालकोट पहुँचे। वहाँ पर भी उन्होंने अपने प्रवचनों से अपने श्रद्धालुओं को प्रभावित किया। अंत में गुरु जी अपने निवास स्थान करतारपुर में चले गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने तीसरी उदासी (यात्रा) 1517 ई० में आरम्भ की। इस बार उन्होंने एक मुस्लिम हाजी वाला नीला पहरावा धारण किया। इस बार वह पश्चिमी एशिया की ओर गए। मरदाना भी उनके साथ था। इस यात्रा में वह निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. पाकपट्टन तथा मुल्तान-सर्वप्रथम गुरु साहिब पाकपट्टन पहुंचे। यहाँ शेख ब्रह्म से मिलने के उपरान्त वह मुल्तान पहुँचे। यहाँ पर उनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त शेख बहाउद्दीन से हुई जो गुरु जी के विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुआ।
  2. मक्का-गुरु नानक देव जी उच्च शुकर, मियानी तथा हिंगलाज नामक स्थानों पर प्रचार करते हुए हजरत मुहम्मद के जन्म स्थान मक्का पहुँचे। वहाँ गुरु जी काबे की ओर पाँव करके सो गए। वहाँ के काज़ी रुकनुद्दीन ने गुरु जी के ऐसा करने पर आपत्ति प्रकट की। परन्तु गुरु जी शांत रहे। उन्होंने काजी से प्रेमपूर्वक ये शब्द कहे- “आप मेरे पाँव उठा कर उस ओर कर दें, जिधर अल्लाह नहीं है।” काजी तुरन्त समझ गया कि अल्लाह का निवास हर जगह है।
  3. मदीना-मक्का के बाद गुरु जी मदीना पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने हज़रत मुहम्मद की कब्र देखी। गुरु जी ने यहाँ इमाम आज़िम खान से धार्मिक विषय पर बातचीत भी की और अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  4. बग़दाद-मदीना से गुरु जी ने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। वहां वह शेख बहलोल लोधी से मिले। वह उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। गुरु जी की इस यात्रा की पुष्टि नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेख बहलोल के मकबरे पर अरबी भाषा में अंकित शब्दों से होती है।
  5. काबुल-बग़दाद से गुरु जी तेहरान तथा कन्धार होते हुए काबुल पहुँचे। काबुल में उस समय बाबर (मुग़ल बादशाह) का राज्य था। यहाँ पर गुरुजी ने अपने उपदेशों का प्रचार किया और अनेक लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया।
  6. सैय्यदपुर-काबुल से दर्रा खैबर पार करके गुरु नानक देव जी पेशावर, हसन अब्दाल तथा गुजरात होते हुए सैय्यदपुर पहुंचे। उस समय सैय्यदपुर पर बाबर ने आक्रमण किया हुआ था। इस आक्रमण के समय बाबर ने सैय्यदपुर के लोगों पर बड़े अत्याचार किए। उसने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया। गुरु नानक साहिब भी इन में से एक थे। जब बाबर को इस बात का पता चला तो वह स्वयं गुरु जी को मिलने के लिए आया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी सहित अनेक बंदियों को मुक्त कर दिया। गुरु नानक देव जी ने ‘बाबरवाणी’ में बाबर के इस आक्रमण की घोर निन्दा की है। उन्होंने इसकी तुलना पाप की बारात से की है।
    गुरु नानक देव जी ने अपनी अन्तिम उदासी (यात्रा) 1521 ई० में पूर्ण की। इसके बाद वह पंजाब के आस-पास ही यात्राएं करते रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष करतारपुर में अपने परिवार के साथ एक आदर्श गृहस्थी के रूप में ही व्यतीत किए।

गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं PSEB 10th Class History Notes

  • जन्म-गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। भाई मेहरबान तथा भाई मनी सिंह की पुरातन साखी के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ। आजकल इस स्थान को ननकाना साहिब कहते हैं।
  • माता-पिता-गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राम जी था। मेहता कालू राम जी एक पटवारी थे।
  • जनेऊ की रस्म-गुरु नानक देव जी व्यर्थ के आडम्बरों के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने सूत के धागे से बना जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया।
  • सच्चा सौदा-गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिए थे। गुरु नानक देव जी ने इन रुपयों से भूखे साधु-सन्तों को भोजन कराकर ‘सच्चा सौदा’ किया।
  • ज्ञान-प्राप्ति-गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति बेईं नदी में स्नान करते समय हुई। उन्होंने नदी में गोता लगाया और तीन दिन बाद प्रकट हुए।
  • उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में कीं। इन उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।
  • करतारपुर में निवास-1522 ई० में गुरु नानक साहिब परिवार सहित करतारपुर में बस गए। यहां रह कर उन्होंने ‘वार मल्हार’, ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘बारह माहा’
    आदि वाणियों की रचना की। उन्होंने संगत तथा पंगत (लंगर) की प्रथाओं का विकास भी किया।
  • गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए। 22 सितम्बर, 1539 ई० को वह ज्योति-जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  • ईश्वर सम्बन्धी विचार-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयंभू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान् , दयालु तथा महान् है। उसे आत्म-त्याग तथा सच्चे गुरु की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • संगत तथा पंगत-‘संगत’ से अभिप्राय गुरु के शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठ कर गुरु जी के उपदेशों पर विचार करते थे। ‘पंगत’ के अनुसार शिष्य इकडे मिल कर एक पंगत में बैठकर भोजन खाते थे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 4 सामाजिक समूह

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न । (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किसने समूह की दो किस्मों, अन्तःसमूह और बाह्य समूह का वर्णन किया है ?
उत्तर-
डब्ल्यू०जी० समनर (W.G. Sumner) ने अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह का जिक्र किया था।

प्रश्न 2.
अन्तःसमूह के दो उदाहरण के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार तथा खेलसमूह अन्तर्समूहों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 3.
बाह्य समूह के दो उदाहरणे के नाम बताओ।
उत्तर-
पिता का दफ्तर तथा माता का स्कूल बाह्य समूह की उदाहरणें हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
‘संदर्भ समूह’ की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-
संदर्भ समूह का संकल्प प्रसिद्ध समाजशास्त्री राबर्ट के० मर्टन (Robert K. Merton) ने दिया था।

प्रश्न 5.
हम भावना क्या है ?
उत्तर-
हम भावना व्यक्ति में वह भावना है जिससे वह अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानता है कि वह उस समूह का सदस्य है।

प्रश्न 6.
सी० एच० कूले के द्वारा दिए गए प्राथमिक समूहों के उदाहरणों के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूहों को परिभाषित करो।
उत्तर-
आगबर्न तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनके साथ हमारी शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है, जिनमें हम अपनेपन को महसूस करते हैं तथा जहां हम रहना पसंद करते हैं, प्राथमिक समूह होते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह इत्यादि।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से किसी उद्देश्य के कारण लेते हैं तथा उद्देश्य की पूर्ति होने पर सदस्यता छोड़ देते हैं, द्वितीय समूह होते हैं। यह अस्थायी होते हैं। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह के बीच दो अंतर बताओ।
उत्तर-

  1. अन्तःसमूह में अपनेपन की भावना होती है परन्तु बाह्य समूह में इस भावना की कमी पाई जाती
  2. व्यक्ति अन्त:समूह में रहना पसंद करता है जबकि बाह्य समूह में रहना उसे पसंद नहीं होता।

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • द्वितीय समूहों की सदस्यता उद्देश्यों पर आधारित होती है।
  • द्वितीय समूहों की सदस्यता अस्थायी होती है तथा व्यक्ति उद्देश्य की पूर्ति होने के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ देता है।
  • द्वितीय समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों के बीच अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूहों की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • इनके सदस्यों के बीच शारीरिक नज़दीकी होती है तथा आकार सीमित होता है।
  • यह समूह अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  • इनके सदस्यों के बीच स्वार्थ वाले संबंध नहीं होते।
  • इनके सदस्यों के बीच संबंधों में निरंतरता होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
1. सामाजिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध पाए जाते हैं। सामाजिक समूह व्यक्तियों की एकत्रता को नहीं कहा जाता बल्कि समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण यह सामाजिक समूह कहलाता है। यह आपसी सम्बन्ध अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप पाया जाता है।

2. समूह में एकता की भावना भी पाई जाती है। सामाजिक समूह के सदस्यों में एकता की भावना के कारण ही व्यक्ति आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इस कारण हमदर्दी व प्यार भी इसके तत्त्व हैं।

3. समूह के सदस्यों में हम भावना पाई जाती है व उनमें अपनत्व की भावना का विकास होता है और वह एक-दूसरे की मदद करते हैं।

4. समूह का अपने सदस्यों के व्यवहारों पर नियन्त्रण होता है व यह नियन्त्रण, परम्पराओं, प्रथाओं, नियमों आदि द्वारा पाया जाता है।

5. समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण अन्तक्रिया होती है, जिस कारण वे आपस में बहुत नज़दीकी से जुड़े होते हैं।

6. समूह के सदस्यों में साझेपन की भावना होती है, जिससे उनके विचार साझे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह का महत्त्व लिखें।
उत्तर-

  • प्राथमिक समूह में व्यक्ति व समाज दोनों का विकास होता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति के अनुभवों में से पहला समूह यह ही पाया जाता है।
  • समाजीकरण की प्रक्रिया भी इस समूह से सम्बन्धित है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है क्योंकि समूह व्यक्ति में सामाजिक गुण भरता है।
  • व्यक्ति इसके अधीन अपने समाज के परिमापों, मूल्यों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों इत्यादि का भी ज्ञान प्राप्त करता है।
  • व्यक्ति सबसे पहले इसका सदस्य बनता है।
  • सामाजिक नियन्त्रण का आधार भी प्राथमिक समूह में होता है जिसमें समूह के हित को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों के बीच क्या अंतर हैं ?
उत्तर-

  1. प्राथमिक समूह आकार में छोटे होते हैं व द्वितीय समूह आकार में बड़े होते हैं।
  2. प्राथमिक समूह में सम्बन्ध प्रत्यक्ष, निजी व अनौपचारिक होते हैं पर द्वितीय समूहों में सम्बन्ध अप्रत्यक्ष व औपचारिक होते हैं।
  3. प्राथमिक समूहों के सदस्यों में सामूहिक सहयोग की भावना पाई जाती है पर द्वितीय समूहों में सदस्य एकदूसरे से सहयोग केवल अपने विशेष हितों को ध्यान में रख कर करते हैं।
  4. प्राथमिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध की अवधि बहुत लम्बी होती है पर द्वितीय समूहों में अवधि की कोई सीमा निश्चित नहीं होती यह कम भी हो सकती है व अधिक भी।
  5. प्राथमिक समूह अधिकतर गांवों में पाए जाते हैं पर द्वितीय समूह प्रायः शहरों में पाए जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तर्समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाए जाते हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है। अन्तर्समूहों को ‘हम समूह’ (We groups) भी कहा जाता है। समूह को व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर व पेज (MacIver & Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में अन्तर्समूहों का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनसे व्यक्ति अपने आप मिल लेता है। उदाहरण के तौर पर जाति, धर्म, परिवार, कबीला, लिंग इत्यादि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे में व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान होता है।

अन्तर्समूहों की प्रकृति शांत होती है व आपसी सहयोग, आपसी मिलनसार, सद्भावना आदि जैसे गुण पाए जाते हैं। अन्तर्समूहों में व्यक्ति का बाहर वालों के प्रति दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई करने के समय लोग फिर समूह से जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग जाते हैं। अन्तर्समूहों में ‘हम की भावना’ पाई जाती है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह से तुम क्या समझते हैं ? विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का आप किस प्रकार वर्णन करोगे ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 3.
समाज के सदस्य होने के नाते तुम अन्य समूहों के साथ अन्तर्किया करते हो। आप किस प्रकार इसे समाजशास्त्रीय परिपेक्षय के रूप में देखोगे ?
उत्तर-
हम लोग समाज में रहते हैं तथा समाज में रहते हुए हम कई प्रकार के समूहों से अन्तक्रिया करते ही रहते हैं। अगर हम समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से देखें तो हम इन्हें कई भागों में विभाजित कर सकते हैं। हम परिवार में रहते हैं, पड़ोस में अन्तक्रिया करते हैं, अपने दोस्तों के समूह के साथ बैठते हैं। यह समूह प्राथमिक होते हैं क्योंकि हम इन समूहों के सदस्यों के साथ प्रयत्क्ष रूप से अन्तर्किया करते हैं क्योंकि हम इनके साथ बैठना पसंद करते हैं। हम इन समूहों के स्थायी सदस्य होते हैं तथा सदस्यों के बीच अनौपचारिक संबंध होते हैं। इन समूहों का हमारे जीवन में काफी अधिक महत्त्व होता है क्योंकि इन समूहों के बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। व्यक्ति जहाँ मर्जी चला जाए, परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह जैसे प्राथमिक समूह उसे प्रत्येक स्थान पर मिल जाएंगे।

प्राथमिक समूहों के साथ-साथ व्यक्ति कुछ ऐसे समूहों का भी सदस्य होता है जिनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी इच्छा से ही इनका सदस्य बनता है। ऐसे समूहों को द्वितीय समूह कहा जाता है। इस प्रकार के समूहों का एक औपचारिक संगठन होता है जिसके सदस्यों का चुनाव समय समय पर होता रहता है। व्यक्ति इन समूहों का सदस्य किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनता है तथा वह उद्देश्य प्राप्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ सकता है। राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन इत्यादि जैसे समूह इसकी उदाहरण हैं।

अगर कोई साधारण व्यक्ति अलग-अलग समूहों के साथ अन्तक्रिया करता है तो उसके लिए इन समूहों का कोई अलग-अलग अर्थ नहीं होगा परन्तु एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से सभी प्रकार के समूहों को अलग अलग प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। यहाँ तक कि अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने भी इनके अलग-अलग प्रकार दिए हैं क्योंकि इनके साथ हमारा अन्तक्रिया करने का तरीका भी अलग-अलग होता है।

प्रश्न 4.
‘मानवीय जीवन सामाजिक जीवन होता है। उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा वह समूह में ही पैदा होता तथा मरता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है उस समय वह सबसे पहले परिवार नामक प्राथमिक समूह के सम्पर्क में आता है। मनुष्यों के बच्चे सभी जीवों के बच्चों में से सबसे अधिक समय के लिए अपने परिवार पर निर्भर करते हैं। परिवार अपने बच्चों को पालता-पोसता है तथा धीरे-धीरे उन्हें बड़ा करता है। जिस कारण उसे अपने परिवार के साथ सबसे अधिक प्यार तथा लगाव होता है। परिवार ही बच्चे का समाजीकरण करता है, उन्हें समाज में रहने के तरीके सिखाता है, उनकी शिक्षा का प्रबन्ध करता है, ताकि वह आगे चलकर समाज का अच्छा नागरिक बन सके। इस प्रकार परिवार नामक समूह व्यक्ति को सामूहिक जीवन का प्रथम पाठ पढ़ाता है।

परिवार के बाद बच्चा जिस समूह के सम्पर्क में आता है वह है पड़ोस तथा खेल समूह । छोटे से बच्चे को पड़ोस में लेकर जाया जाता है जहाँ परिवार के अतिरिक्त अन्य लोग भी बच्चे को प्यार करते हैं। बच्चे के ग़लत कार्य करने पर उसे डाँटा जाता है। इसके साथ-साथ बच्चा मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ मिलकर खेल समूह का निर्माण करता है तथा नए-नए नियम सीखता है। खेल समूह में रहकर ही बच्चे में नेता बनने के गुण पनप जाते हैं जोकि सामाजिक जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं । यह दोनों समूह भी प्राथमिक समूह होते हैं।

जब बच्चा बड़ा हो जाता है वो यह कई प्रकार के समूहों का सदस्य बनता है जिन्हें द्वितीय समूह कहा जाता है। वह किसी दफ्तर में नौकरी करता है, किसी क्लब, संस्था या सभा का सदस्य बनता है ताकि कुछ उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। वह किसी राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन अथवा अन्य सभा की सदस्यता भी ग्रहण करता है जिससे पता चलता है कि वह जीवन में प्रत्येक समय किसी न किसी समूह का सदस्य बना रहता है। वह अपनी मृत्यु तक बहुत से समूहों का सदस्य बनता रहता है तथा उनकी सदस्यता छोड़ता रहता है।

इस प्रकार ऊपर लिखित व्याख्याओं को देखकर हम कह सकते हैं कि मानवीय जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जब वह किसी न किसी समूह का सदस्य नहीं होता। इस प्रकार मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा समूहों के बिना उसके जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
इनमें से कौन सी प्राथमिक समूह की विशेषता नहीं है ?
(A) स्थिरता
(B) औपचारिक सम्बन्ध
(C) व्यक्तिगत सम्बन्ध
(D) छोटा आकार।
उत्तर-
(B) औपचारिक सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूहों का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
(A) यह समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
(B) व्यक्ति को प्राथमिक समूह में रहकर सुरक्षा प्राप्त होती है
(C) प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख आधार है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह में क्या नहीं पाया जाता है ?
(A) प्राथमिक नियन्त्रण
(B) प्रतियोगिता
(C) औपचारिक नियन्त्रण
(D) व्यक्तिवादिता।
उत्तर-
(A) प्राथमिक नियन्त्रण।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
(A) बड़े
(B) अनिश्चित
(C) छोटे
(D) असीमित।
उत्तर-
(C) छोटे।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी सामाजिक समूह की विशेषता है ?
(A) समूह की स्वयं की संरचना
(B) समूह व्यक्तियों का संगठन
(C) समाज का कार्यात्मक विभाजन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
परिवार किस प्रकार का समूह है ?
(A) बर्हिसमूह
(B) द्वितीय समूह
(C) प्राथमिक समूह
(D) चेतन समूह।
उत्तर-
(C) प्राथमिक समूह।

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प्रश्न 7.
कौन-से समूह आकार में बड़े होते हैं ?
(A) प्राथमिक समूह
(B) द्वितीय समूह
(C) चेतन समूह
(D) अचेतन समूह।
उत्तर-
(B) द्वितीय समूह।

प्रश्न 8.
इनमें से कौन-सा प्राथमिक समूह है ?
(A) मित्रों का समूह
(B) खेल समूह
(C) परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 9.
इनमें से कौन-सा द्वितीयक समूह है ?
(A) ट्रेड यूनियन
(B) राजनीतिक दल
(C) वैज्ञानिकों का समूह
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 10.
प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच क्या आवश्यक होता है ?
(A) शारीरिक नज़दीकी
(B) अनौपचारिक सम्बन्ध
(C) सामाजिक प्रबन्ध
(D) लड़ाई।
उत्तर-
(A) शारीरिक नज़दीकी।

प्रश्न 11.
कौन-सा समूह समाजीकरण में अधिक लाभदायक है ?
(A) सन्दर्भ समूह
(B) क्षैतिज समूह
(C) द्वितीय समूह
(D) लम्ब समूह।
उत्तर-
(C) द्वितीय समूह।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ………… के अन्तर्समूह तथा बहिर्समूह का वर्गीकरण किया है।
2. ………. अन्तर्समूह की सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
3. संदर्भ समूह का संकल्प ………. ने दिया था।
4. समूह के सदस्यों के बीच ………. भावना होती है।
5. जो समूह व्यक्ति के काफी नज़दीक होते हैं, उन्हें ……… समूह कहते हैं।
6. ……….. समूह की सदस्यता आवश्यकता के लिए की जाती है।
7. ………. समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
उत्तर-

  1. समनर,
  2. परिवार,
  3. राबर्ट मर्टन,
  4. हम,
  5. प्राथमिक,
  6. द्वितीय,
  7. द्वितीय।

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III. सही/गलत (True/False) :

1. व्यक्तियों के इकट्ठ को, जिनसे सामाजिक संबंध होते हैं, समूह कहते हैं।
2. समूह के लिए संबंधों की आवश्यकता नहीं होती।
3. प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का वर्गीकरण कूले ने दिया था।
4. प्राथमिक समूहों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती।
5. द्वितीय समूहों की सदस्यता हितों की पूर्ति के लिए होती है।
6. द्वितीय समूहों में औपचारिक संबंध पाए जाते हैं।
7. प्राथमिक समूहों में गहरे संबंध पाए जाते हैं।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि 10 लोग इकटे खड़े हों तो उन्हें हम क्या कहेंगे ?
उत्तर-
यदि 10 लोग इकट्ठे खड़े हों तो उन्हें हम केवल भीड़ ही कहेंगे।

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प्रश्न 2.
समूह के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
समूह के लिए व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध आवश्यक है।

प्रश्न 3.
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग…………. ने किया था।
उत्तर-
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग हाइमैन ने किया था।

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति ……………… समूह से जुड़ा होता है।
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति सन्दर्भ समूह से जुड़ा होता है।

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प्रश्न 5.
प्राथमिक समूह की आन्तरिक विशेषता क्या है ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में सम्बन्ध निजी अथवा व्यक्तिगत होते हैं।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूह की विशेषता क्या है ?
उत्तर-
द्वितीय समूह में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं, यह आकार में बड़े होते हैं तथा उद्देश्य का विशेषीकरण होता है। .

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
इसके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है, आकार छोटा होता है तथा इनमें स्थिरता होती है।

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प्रश्न 8.
द्वितीयक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
यह आकार में बड़े होते हैं, इनमें औपचारिक संगठन होता है तथा सदस्यों में औपचारिक सम्बन्ध होतेहैं।

प्रश्न 9.
समूह क्या होता है ?
उत्तर-
व्यक्तियों के एकत्र को, जिनमें सामाजिक सम्बन्ध होते हैं, समूह कहते हैं।

प्रश्न 10.
समूह का सबसे बड़ा महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
समूह व्यक्तियों तथा समाज की ज़रूरतें पूर्ण करता है।

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प्रश्न 11.
चार्ल्स कूले ने कितने प्रकार के समूह बताए हैं ?
उत्तर-
चार्ल्स कूले ने दो प्रकार के सामाजिक समूहों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा द्वितीयक समूह।

प्रश्न 12.
प्राथमिक समूह में किस प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में नज़दीक तथा व्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
प्राथमिक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस, बच्चों का खेल समूह प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

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प्रश्न 14.
कूले ने प्राथमिक समूह की कौन-सी उदाहरणे दी हैं ? ।
उत्तर-
कूले के अनुसार परिवार, खेल समूह तथा पड़ोस प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 15.
द्वितीयक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जिन की सदस्यता हम अपने हितों की पूर्ति के लिए ग्रहण करते हैं, वह द्वितीयक समूह होते

प्रश्न 16.
किसने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था ?
उत्तर-
समनर ने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था।

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प्रश्न 17.
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार प्यार भरा तथा सहयोग वाला होता है।

प्रश्न 18.
बाह्य समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
बाह्य समूह में सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार नफ़रत भरा अथवा हितों से भरपूर होता है।

प्रश्न 19.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह आकार में छोटे तथा सीमित होते हैं।

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प्रश्न 20.
द्वितीयक समूह आकार में ……………. होते हैं।
उत्तर-
द्वितीयक समूह आकार में काफ़ी बड़े होते हैं।

प्रश्न 21.
द्वितीयक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
दफ़्तर, राजनीतिक दल इत्यादि द्वितीयक समूह की उदाहरणें हैं।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों का एकत्र है जो एक जैसे हों तथा जिसके सदस्यों के बीच आपसी सामाजिक क्रिया, प्रतिक्रिया संबंध, साझे हित, चेतना, उत्तेजना, स्वार्थ भावनाएं होती हैं तो वह सभी एक-दूसरे से बंधे होते हैं।

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प्रश्न 2.
हम भावना का अर्थ।
उत्तर-
समूह के सदस्यों के बीच अहं की भावना होती है जिस कारण वे सभी एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इस कारण उनमें अपनेपन की भावना का विकास होता है तथा एक-दूसरे के समान हितों की रक्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
समूह की परिभाषा।
उत्तर-
आगर्बन तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 4.
समूह में व्यवहारों की समानता।
उत्तर–
सामाजिक समूहों के बीच इसके सदस्यों में व्यवहारों में समानता दिखाई देती है क्योंकि समूह में सदस्यों के आदर्श, कीमतें, आदतें समान होते हैं। इस कारण इसमें विशेष व्यवहारों का मिलाप पाया जाता है।

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प्रश्न 5.
कूले का प्राथमिक समूहों का वर्गीकरण।
उत्तर-
चार्ल्स हर्टन कूले के अनुसार प्राथमिक समूह तीन प्रकार के होते हैं-

  1. परिवार समूह (Family)
  2. खेल समूह (Play Group)
  3. पड़ोस (Neighbourhood)।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो हमारे सबसे नज़दीक होते हैं, जिनके साथ हमारा रोज़ का उठना, बैठना होता है तथा जिसके सदस्यों के साथ हमारी शारीरिक नज़दीकी होती है, वह प्राथमिक समूह होते हैं। यह आकार में छोटे होते हैं।

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
इन समूहों का आकार छोटा होता है जिस कारण लोग एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। इस कारण इनमें सम्पर्क पैदा होता है तथा उनमें संबंध आमने-सामने होते हैं। इस कारण सामाजिक संबंधों पर भी प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 8.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो आकार में बड़े होते हैं, जिनके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती, जो एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते तथा जिनमें औपचारिक संबंध पाए जाते हैं, वह द्वितीय समूह होते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीय समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक तथा अव्यक्तिगत संबंध होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों की तरह एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता तथा इन समूहों में अपनापन नहीं होता।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
सामाजिक समूह का अर्थ है व्यक्ति का दूसरे व्यक्तियों से सम्पर्क व सम्बन्धित होना। किसी भी स्थान पर यदि व्यक्ति एकत्र हो जाएं तो वह समूह नहीं होगा क्योंकि समूह एक चेतन अवस्था होती है। इसमें केवल शारीरिक नज़दीकी की नहीं बल्कि आपसी भावना व सम्बन्धों का होना ज़रूरी होता है व इसके सदस्यों में सांझापन, परस्पर उत्तेजना, हितों का होना आवश्यक होता है।

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प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह के बारे में दी गई कूले की परिभाषा।
अथवा
प्राथमिक समूह।
उत्तर-
कूले के अनुसार, “प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ वह समूह है जिनमें ख़ास कर आमने-सामने का गहरा सम्बन्ध व सहयोग होता है। यह प्राथमिक अनेक अर्थों में है परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में एक व्यक्ति के स्वभाव व आदर्शों का निर्माण करने में मौलिक है। इन गहरे व सहयोग सम्बन्धों के फलस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई अन्तरों के लिए व्यक्ति का स्वयं भी समूह का साझा जीवन उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे आसान तरीका इसको ‘हम’ कहने का है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है और ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनमें शारीरिक नज़दीकी पाई जाती है क्योंकि वह व्यक्ति जो एक-दूसरे के नज़दीक होते हैं उनमें विचारों का आदान-प्रदान पाया जाता है। वह एक-दूसरे की मदद भी करते हैं।
  • इन समूहों का आकार छोटा अर्थात सीमित होता है इसी कारण ही व्यक्ति एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। आकार छोटा होने से उनमें सम्पर्क पैदा होता है और उनमें सम्बन्ध गहरे व करीबी पाए जाते हैं जिससे सामाजिक सम्बन्धों पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • प्राथमिक समूहों में स्थिरता होती है। नज़दीकी सम्बन्धों के कारण इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है।
  • प्राथमिक समूहों में स्वार्थ सीमित होते हैं। इनमें उस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है जिससे सम्पूर्ण समूह का कल्याण हो।
  • प्राथमिक समूहों में अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है क्योंकि इनमें सदस्यों की गणना कम होती है व प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है।

प्रश्न 4.
द्वितीय समूह।
उत्तर-
आधुनिक समाज में व्यक्ति की ज़रूरतें इतनी बढ़ गई हैं जो कि अकेले प्राथमिक ग्रुप का सदस्य बन कर पूरी नहीं हो सकतीं जिस कारण व्यक्ति को दूसरे समूहों का सदस्य भी बनना पड़ता है। इन समूहों में उद्देश्य प्राप्ति ही व्यक्ति का मन्तव्य होता है। इनमें रस्मी सम्बन्ध पाए जाते हैं व इनका आकार भी प्राथमिक की तुलना में बड़ा होता है। इन समूहों में उद्देश्य निश्चित होते हैं।

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प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनका घेरा विशाल होता है क्योंकि सदस्यों की संख्या काफ़ी होती है।
  • इन समूहों का निर्माण विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है और इन उद्देश्यों की पूर्ति के कारण ही व्यक्ति इनका मैंबर बनता है।
  • द्वितीय समूहों में व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध पाए जाते हैं।
  • इन समूहों में औपचारिक संगठन होता है व इन समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं व प्रत्येक सदस्य को इन लिखित नियमों की पालना करनी पड़ती है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों में औपचारिक व अवैयक्तिक सम्बन्ध होता है। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता व इन समूहों से हमें अपनापन प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों का महत्त्व।
उत्तर-

  • द्वितीय समूह व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं क्योंकि आधुनिक समाज में अकेला व्यक्ति अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता, इसलिए उसको अन्य समूहों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • द्वितीय समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी करते हैं क्योंकि द्वितीय समूह व्यक्ति को घर की चार दीवारी से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं क्योंकि इन समूहों की सहायता से तकनीकी, औद्योगिक क्रान्ति
    आती है।
  • इनकी मदद से व्यक्ति का दृष्टिकोण बढ़ता है क्योंकि वह अपने प्राइमरी समूह से बाहर निकल कर बाहर देखता है जिस से उसका सम्बन्ध व दृष्टिकोण बढ़ता है।
  • द्वितीय समूह संस्कृति विकास में भी मदद करते हैं।

प्रश्न 7.
बहिर्समूह।
अथवा
बाह्य समूह।
उत्तर-
‘बहिर्समूह’ के लिए ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। ये वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता व पराया समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज में प्रत्येक समूह से तो जुड़ा नहीं होता, जिस समूह से जुड़ा होता है वह उसका अन्तः समूह कहलाता है व जिस समूह से नहीं जुड़ा होता वह उसके लिए बहिर्समूह कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बहिर्समूह व्यक्ति के लिए बेगाने होते हैं व वह उनके साथ सीधे तौर से नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन बहुत ढीला व असंगठित होता है। व्यक्ति के लिए अन्तर्समूह के विचारों, मूल्यों के सामने बहिर्समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक समूह है व प्रत्येक जगह पर पाए जाते हैं।

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प्रश्न 8.
सदस्यता समूह।।
उत्तर-
यदि हमें सन्दर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सबसे पहले सदस्यता समूह का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि सन्दर्भ समूह सदस्यता समूह के सन्दर्भ में रख कर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है। जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में हिस्सा लेता है उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक सदस्य होता है व वास्तविक सदस्य होने के नाते उस समूह का उसके साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है। वह उस समूह के विचारों, प्रमापों, मूल्यों आदि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को उस समूह का अभिन्न अंग मानता है। इस प्रकार उसका प्रत्येक कार्य क्रिया, उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। उस समूह के आदर्श, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं व दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतें सामने रखता है। इस प्रकार यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

प्रश्न 9.
सन्दर्भ समूह ।
उत्तर-
व्यक्ति जिस समूह का सदस्य होता है, वह उसका सदस्यता समूह माना जाता है। पर कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुसार नहीं होता बल्कि वह किसी ओर समूह के आदर्शों व कीमतों के अनुसार होता है। पर प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इसी कारण सन्दर्भ समूह का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार व्यवहार प्रतिमान व उसकी स्थिति से सम्बन्धित विवेचन के लिए यह जानना आवश्यक नहीं है। क्योंकि किस समूह का सदस्य व उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर से सदस्य बन जाता है।

व्यक्ति उसका वास्तविक सदस्य न होकर भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत सारा हिस्सा उस समूह के अनुसार भी होता है। समाजशास्त्री उस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। आम शब्दों में, व्यक्ति किसी भी समूह का सदस्य हो सकता है किन्तु मनोवैज्ञानिक तौर से वह अपने आप को किसी भी समूह से सम्बन्धित मान सकता है व अपनी आदतों, मनोवृत्तियों को उस समूह के अनुसार नियमित करता है। इस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्य वर्गों समूह का सदस्य अपने आप को किसी उच्च वर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपना व्यवहार, आदतें, आदर्श, कीमतें उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित करता है। अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके वह उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित व निर्धारित करता है, यही समूह उसका सन्दर्भ समूह होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

समूह की विशेषताएं (Characteristics of a Group)-
1. एकता की भावना (Feelings of Unity)—समूह के सदस्यों के बीच एकता की भावना के पाए जाने के साथ ही समूह कायम रह सकता है। समूह के सदस्य इसी भावना के पाए जाने के कारण एक-दूसरे को समझते हैं। उनमें सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। यदि इनमें एकता की भावना न हो तो वह समूह नहीं बल्कि कुछ लोगों का एकत्र कहलाए जाएंगे।

2. हम की भावना (We feelings) समूह के सभी व्यक्ति एक-दूसरे की आवश्यकता पड़ने पर मदद करते हैं। इससे अपनत्व की भावना का विकास होता है। वह एक-दूसरे की सहायता करके अपने हितों की रक्षा भी करते हैं। इससे उनमें एकता की भावना का विकास होता है।

3. सामाजिक सम्बन्ध (Social Relations)—समूह की सबसे आवश्यक शर्त यह है कि इसके सदस्यों के बीच सामाजिक सम्बन्ध होते हैं। यह सम्बन्ध स्थिर होते हैं तथा सदस्यों की आपसी अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

4. सदस्यता (Membership) समूह का निर्माण केवल एक व्यक्ति के साथ नहीं होता बल्कि समूह का निर्माण केवल दो या दो से अधिक व्यक्तियों के साथ होता है। कई समूहों में सदस्यता सीमित होती है जैसे परिवारों में पति-पत्नी व उनके बच्चों को शामिल किया जाता है। इसमें किसी अन्य व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाता। इसी कारण समूह का आकार भी सदस्यों की गणना के आधार पर होता है।

5. स्थिति व भूमिका का विभाजन (Division of Status and Role)—समूह नामक संगठन मे भूमिकाओं व स्थितियों का विभाजन किया जाता है जिससे प्रत्येक सदस्य की समूह में अपनी-अपनी स्थिति व भूमिका होती है। समूह के कार्यों के लिए लिखित व अलिखित नियम भी होते हैं व समूह उन नियमों के अनुसार ही कार्य करता है। चाहे सदस्यों के अपने-अपने व्यक्तिगत हित व लड़ाई-झगड़े इत्यादि होते हैं परन्तु उनमें सहयोग भी होता है जोकि समूह की विशेषता होती है।

6. सामूहिक नियन्त्रण (Control)-समूह के लिए अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियन्त्रित व नियमित करना ज़रूरी होता है। प्रत्येक समूह की अपनी परम्पराएं, प्रथाएं, नियम इत्यादि होते हैं जिनकी प्रत्येक व्यक्ति को पालना करनी पड़ती है। यदि कोई उनकी उल्लंघना करता है तो उसको समूह की ओर से दण्ड दिया जाता है।

7. निकटता (Closeness)-समूह के सदस्यों के बीच उनके सम्बन्ध आपस में इतने जुड़े होते हैं कि उनमें अन्तक्रिया होती है। इसका अर्थ है कि समूह के सदस्य आपस में बहुत निकटता से जुड़े होते हैं। इस निकटता के कारण उनमें आपसी अन्तक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप उनमें सम्बन्ध पैदा होते हैं। समूह के सदस्य इन सम्बन्धों के कारण एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

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प्रश्न 2.
समूहों के वर्गीकरण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समूह की विभिन्न किस्मों के बारे में लिखो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है। कई समाजशास्त्रियों ने धार्मिक, आर्थिक, मनोरंजन इत्यादि आधार पर भी इस का वर्गीकरण किया है।

(A) चार्ल्स हर्टन कूले (Charles Hurton Cooley) ने सामाजिक समूहों का अपनी पुस्तक, “सोशल आर्गेनाइजेशन” (Social organization) में वर्गीकरण दो भागों के बीच किया है-

  1. प्राथमिक समूह (Primary Group)
  2. द्वितीय समूह (Secondry group)

प्राथमिक समूह में कूले ने व्यक्ति के गहरे व नज़दीकी सम्बन्धों को बताया है व द्वितीय समूह में कूले ने आधार रहित व बनावटी सम्बन्धों का अध्ययन किया है।

(B) सेपिर (Sapir) ने समूहों का धर्गीकरण शारीरिक निकटता व साझे उद्देश्यों के आधार पर किया है-

  1. परिवार (Family)
  2. नसली समूह (Racial group)
  3. कृषि समूह (Agricultural group)
  4. संघर्ष समूह (Conflicting group)

(C) समनर (Summer) ने अपनी पुस्तक ‘फोक वेज़’ (Folk ways) में समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया है-

  1. अन्तः समूह (In group)
  2. बाह्य समूह (Out group)

अन्तः समूह में हम की भावना, सामूहिक भलाई पाई जाती है। इसका आकार भी छोटा होता है। व्यक्ति इन समूहों का आप ही सदस्य होता है व बाह्य समूह में व्यक्तिवादी भावना पाई जाती है। व्यक्ति इस समूह का सदस्य भी नहीं होता। इसका आकार भी बहुत बड़ा होता है।

(D) सोरोकिन (Sorokin) ने समूहों का वर्गीकरण दो भागों में किया है-

  1. विशाल समूह (Horizontal group)
  2. छोटे समूह (Vertical group)

विशाल समूह में बड़े आकार के समूहों को शामिल किया जैसे, राष्ट्र, राजनीतिक दल, सांस्कृतिक संगठन, धार्मिक संगठन इत्यादि।
छोटे समूह में व्यक्ति विशाल समूह द्वारा प्राप्त की स्थिति से सम्बन्धित होता है। इसलिए यह एक विशाल समूह का ही एक हिस्सा होता है।

(E) मैकाइवर व पेज़ (Maclver and Page) ने समूह का वर्गीकरण निम्नानुसार किया-

  1. आकार के आधार पर (on the basis of size)
  2. सामाजिक सम्बन्धों की गहराई के आधार पर (on the basis of intimacy)
  3. हितों के आधार पर (on the basis of Interest)
  4. सामाजिक संगठन के आधार पर (on the basis of organization)
  5. समय (काल) के आधार पर (on the basic of duration) आकार के आधार पर मैकाइवर ने दो रूप बताएनज़दीकी गहरे सम्बन्धों से सम्बन्धित समूह व दूसरे प्रकार का समूह जिसमें व्यक्ति के अव्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

हितों के आधार पर भी दो श्रेणियां मैकाइवर ने बताई हैं-एक तो वह समूह जिसमें व्यक्ति अपनी आम ज़रूरतों को पूरा करते हैं व दूसरा वह समूह जिसमें विशेष ज़रूरतों की पूर्ति व्यक्ति द्वारा की जाती है।

सामाजिक संगठन के आधार पर भी मैकाइवर ने दो रूप बताए हैं। एक तो पूर्ण तौर पर संगठित समूह व दूसरा लचीला समूह। समय के आधार पर स्थायी समूह जिसमें व्यक्ति की सदस्यता जीवन-पर्यन्त रहती है जैसे परिवार में अस्थायी समूह में उद्देश्य प्राप्ति के लिए ही सदस्यता होती है।

(F) गिलिन एण्ड गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार समूह का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है। यह वर्णन उसने अपनी पुस्तक ‘कल्चरल सोशियोलॉजी’ (Cultural Sociology) में किया है।

  1. रक्त के सम्बन्धों के आधार पर (on the basis of blood relations)
  2. शारीरिक लक्षणों पर आधारित (on the basis of physical features)
  3. क्षेत्रीय आधार (Area Basis)
  4. काल के आधार पर (on the basis of duration)
  5. सांस्कृतिक समूह (Cultural group)

(G) जार्ज डासन (George Dawson) के द्वारा सामाजिक समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है-

  1. असामाजिक समूह (unsocial groups)
  2. फर्जी सामाजिक समूह (Pseudo-Social groups)
  3. समाज विरोधी समूह (Anti-Social groups)
  4. समाज पक्षीय समूह (Pro-Social groups)

असामाजिक समूह वह होता है जिसका सदस्य व्यक्ति केवल अपने काम के लिए ही होता है। बाकी कार्यों से वह किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रखता। इसमें वह स्वार्थ की भावना भी रखता है।
फर्जी सामाजिक समूह में वह केवल अपने स्वार्थ से सम्बन्धित होता है। समाज के कल्याण के लिए वह किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं रखता।

समाज विरोधी समूह के बीच वह समाज के उद्देश्यों व कल्याण के विरुद्ध कार्य करता है। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति हड़ताल करते हैं, धरना देते हैं और सरकारी या सामाजिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाते हैं। – समाज पक्षीय समूह में समाज के लाभ के लिए या कल्याण के लिए व्यक्ति काम करता है। इसमें उसका अपना स्वार्थ नहीं होता। बल्कि वह लोक कल्याण के कार्यों से स्वयं को सम्बन्धित कर लेता है।

(H) टोनीज़ (Tonnies) ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण दो भागों में वर्गीकृत करके किया है-

  1. सामुदायिक समूह (Communities)
  2. सभा समूह (Associations)

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प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह का अर्थ तथा उसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूह का अर्थ-देखें पाठ्य पुस्तक प्रश्न IV-(2)
प्राथमिक समूह की विशेषताएं (Characteristics of Primary Group)-

1. सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है (There is Physical Proximity among members)प्राथमिक समूहों के बीच यह आवश्यक होता है कि व्यक्ति आपस में शारीरिक तौर से भी एक-दूसरे के नजदीक हों। इकट्ठे मिल कर बैठें। यह शारीरिक नज़दीकी उनमें विचारों का आदान-प्रदान पैदा करती है और वह एकदूसरे को समझने लगते हैं। रोजाना मिलना, उठना-बैठना, बातचीत करने के साथ उनमें प्यार व सहयोग बढ़ता है। इसीलिए उनमें गहरे सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं। कई हालातों में स्थिति, पेशा, लिंग, जाति, उम्र इत्यादि में यदि बहुत अधिक अन्तर हो तो भी निजी सम्बन्धों के पैदा होने में रुकावट आती है। इसी कारण जहां इनकी समानता होगी वहां नज़दीकी सम्बन्ध स्थापित हो जाएंगे।

2. सामूहिक स्थिरता (Stability in Groups)-प्राथमिक समूहों के बीच स्थिरता की प्रवृत्ति होती है। उदाहरण के लिए बच्चा जिस परिवार में जन्म लेता है सम्पूर्ण आयु उस परिवार से सम्बन्धित हो जाता है। इसी तरह से आस-पड़ोस में भी इसी प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। इसीलिए इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है। इन समूहों का निर्माण उद्देश्य प्राप्ति के साथ नहीं होता। जब इन समूहों के सदस्यों में नए साथी शामिल हो जाते हैं तो इनमें उतना स्थायित्व नहीं रहता।।

3. इनका सीमित आकार होता है (They are limited in size)-प्राथमिक समूहों का आकार भी बहुत सीमित होता है। इसी कारण इनमें सम्बन्धों की गहराई पाई जाती है। किसी भी समूह की संख्या जितनी कम होगी उतना ही सदस्य एक-दूसरे को अधिक समझ लेते हैं। उदाहरण के लिए अध्यापक जब छोटे समूह की श्रेणी के बच्चों को पढ़ाता है तो वह प्रत्येक बच्चे के साथ ही पूरी तरह वाकिफ़ हो जाता है। इसी प्रकार जब वह अधिक संख्या की श्रेणी के विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो उसकी विद्यार्थियों के साथ नजदीकी भी कम हो जाती है। अध्यापक व विद्यार्थियों के सम्बन्धों में भी कमी आ जाती है।

4. इनमें सीमित स्वार्थ होते हैं (They have limited Self Interest)-प्राथमिक समूहों के बीच इस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है कि जिससे सारे समूह का कल्याण हो अर्थात् सामूहिक हित को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों में निजी स्वार्थ की भावना नहीं होती। यदि यह भावना उत्पन्न हो जाए तो परिवार टूट जाता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य ऐसा काम करता है जिससे सभी व्यक्तियों या सदस्यों का लाभ हो। कई बार इस प्रकार के समूह में अपने स्वार्थ को सामूहिक स्वार्थ करके त्यागना भी पड़ता है क्योंकि यह समूह किसी भी उद्देश्य को मुख्य रख कर स्थापित नहीं किया जाता। यह समूह अपने आप में ही मनोरथ भरपूर होता है। इसी कारण इनमें सीमित स्वार्थ विकसित रहते हैं।

5. इनमें आंशिक समान5505ता होती है (They have Similarity of Background)-आंशिक समानता के कारण व्यक्तियों में विचारों का आदान-प्रदान बना रहता है। सदस्य एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं। यदि इनकी संस्कृति व आदर्शों आदि में किसी प्रकार का अन्तर हों तो इस आधार पर भी सम्बन्धिता कम हो जाती है।

अन्तर जितना अधिक होगा उतनी ही परस्पर सम्बन्धिता कम होगी क्योंकि अन्तर जितना कम होगा उतना वह एकदूसरे को अधिक समझ लेंगे व प्राथमिक समूह अधिकतम मज़बूत हो जाएगा। उदाहरण के लिए जब भी आप किसी नई जगह पर जा कर रहते हो तो जिन व्यक्तियों के साथ आपकी पीछे की समानता होगी, उन व्यक्तियों के करीब आप बहुत जल्दी आ जाते हो व निजीपन महसूस होने लगता है।

6. इनमें आपसी सहयोग होता है (They have Mutual co-operation among them)-प्राथमिक समूहों के बीच अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है। इसका एक कारण कम गणना करके भी है। प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है क्योंकि वह समूह की भलाई में ही अपनी भलाई समझता है। उदाहरण के तौर पर परिवार के सदस्यों के बीच भी यही विशेषता पाई जाती है। परिवार में प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे की भलाई के लिए काम करता है। कई बार व्यक्ति स्वयं दुःख सहता हुआ भी दूसरे को सहयोग देता है अर्थात् व्यक्ति अपने फायदे व नुक्सान को न देख कर दूसरों को सहयोग देता है।

प्रश्न 4.
प्राथमिक समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूहों का हमारे समाज के लिए बहुत महत्त्व होता है। यह सर्वव्यापक होते हैं। यह प्रत्येक समाज में विकसित होते हैं।
1. प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण की प्रक्रिया में भी बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा डालते हैं। व्यक्ति का सबसे प्रथम समाज के साथ सम्पर्क भी इन्हीं समूहों द्वारा ही होता है। क्योंकि व्यक्ति अपनी प्राथमिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी इन्हीं पर निर्भर करता है।

2. व्यक्ति को प्राथमिक समूह में अपना ज्ञान भी होता है। वह समूह के बाकी सदस्यों के सहयोग के साथ ही प्राथमिक शिक्षा का आरम्भ करता है।

3. व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए भी ये समूह महत्त्वपूर्ण हैं। व्यक्ति पर समूह के सदस्यों के व्यवहार का भी अधिकतम प्रभाव पड़ता है। इन प्राथमिक समूहों के बीच दोस्ती वाला माहौल पाए जाने के साथ भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बढ़ौतरी होती है। इन प्राथमिक समूहों के बीच व्यक्ति सहयोग, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों को ग्रहण करते हैं। यही गुण उन्हें आगे जाकर समाज में रहने के काबिल बनाते हैं। व्यक्ति इन्हीं समूहों में रहकर सामाजिक परिमाप, सामाजिक-मूल्यों, आदर्श, परम्पराओं इत्यादि को ग्रहण करता है।

4. व्यक्ति को सुरक्षा की प्राप्ति भी इन्हीं समूहों में रहकर होती है। इन्हीं समूहों के बीच सदस्यों दूसरे सदस्यों को अपना ही एक हिस्सा समझते हैं। व्यक्ति को ज़रूरत पड़ने पर भी सभी सदस्य उसकी मदद के लिए तैयार रहते हैं। बच्चा जब पैदा होता है तो माता-पिता के प्यार के कारण ही वह अपने आप को सुरक्षित समझता है। बच्चा अपने व्यवहार को खुल कर दर्शाता है।

5. प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का भी मुख्य आधार हैं। स्वभाव द्वारा सभी व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। यदि हम इन्हें खुला छोड़ दें तो हमारे समाज का आकार ही बिगड़ जाए। इसी कारण समाज में व्यक्ति कुछ नियन्त्रण में रहना सीखता है। इसी कारण समाज में सभी सदस्यों पर नियन्त्रण रखा जाता है जिसका लाभ आगे जाकर समाज को होता है। व्यक्ति बड़ों का सम्मान करना, नियमों में रहना, प्रत्येक से प्यार करना, परिवार की संस्कृति को अपनाने के लिए इन्हीं समूहों के प्रभाव में रहता है। इन गुणों का विकास जब व्यक्ति में हो जाता है तो वह समाज के सभी कार्यों में सही योगदान करने लगता है।

6. व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी प्राथमिक समूहों के बीच रह कर ही होती है। व्यक्ति परिवार, खेल समूह व पड़ोस आदि जैसे प्रमुख प्राथमिक समूहों में रह कर के दूसरे लोगों के साथ रहने का तरीका सीखते हैं।

7. प्राथमिक समूह के सदस्य स्वतन्त्र रूप में एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं। इनके ऊपर किसी प्रकार का कोई बोझ नहीं होता। व्यक्ति में स्वयं का विकास भी इन्हीं समूहों के ही कारण है। व्यक्ति को भावात्मक सन्तुष्टि

भी इन्हीं समूहों से ही प्राप्त होती है। इस समूह के बीच सम्बन्धों की सम्बन्धिता द्वारा व्यक्ति को कई प्रकार के काम करके उत्साह प्राप्त होता है। प्राथमिक समूह के सदस्य अपने सदस्य को गिरने से बचा लेते हैं। व्यक्ति यह महसूस करने लग जाता है कि वह अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ दूसरे अन्य भी हैं जो उसकी हर समय मदद करेंगे। यह भावना उन्हें अधिक कोशिश करने के लिए प्रेरित करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ? इनकी विशेषताओं, प्रकारों व महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
द्वितीय समूह का अर्थ-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” • चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

द्वितीय समूह की विशेषताएं (Characteristics of Secondary Group)-

1. व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं (Humans have indirect relations)—द्वितीय समूह में व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध अप्रत्यक्ष होते हैं। इनमें सहयोग की प्रक्रिया भी आमने-सामने न होकर अप्रत्यक्ष रूप में विकसित रहती है। सदस्य इन समूहों के बीच आपस में एक-दूसरे को जानते नहीं होते। इनका कार्य भूमिका निभाना ही होता है। उदाहरण के लिए किसी फैक्टरी में उत्पादन के लिए कई हज़ार व्यक्ति वहां कार्य कर रहे होते हैं। कार्य करने वाले व्यक्तियों को केवल अपने कार्य के साथ व तनख्वाह से मतलब होता है व कई बार उन्हें यह भी नहीं मालूम होता कि जहां वह काम कर रहे हैं उसका मालिक कौन है। विभिन्न प्रकार का काम करते हुए वह एक-दूसरे से अदृश्य रूप में जुड़े होते हैं। किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमिका अदा करते हैं।

2. यह आकार में बड़े होते हैं (They are large in size)-द्वितीय समूहों का आकार बहुत विशाल होता है, इनमें व्यक्तियों की सदस्यता निश्चित नहीं होती। यह दूर-दूर तक फैले होते हैं। उदाहरण के लिए रैडक्रास सोसाइटी (Red-Cross Society) में सदस्यों की गणना कई हज़ारों में है व पूरे संसार में सदस्य फैले हुए हैं। ऐसी और भी कई संस्थाएं हैं जिनमें व्यक्ति भिन्न-भिन्न स्थानों पर फैले हुए हैं। कई बार व्यक्ति को जब दूर-दराज स्थानों की जानकारी प्राप्त करनी होती है तो वह इन्हीं समूहों की मदद से ही करते हैं। व्यक्ति की आवश्यकताएं भी पहले से बढ़ गई हैं जिन्हें वह अकेला प्राथमिक समूह में रह कर पूरी नहीं कर सकता। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य बन कर अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ लेता है। इसलिए वह पत्र-व्यवहार, टेलीफोन, इत्यादि का उपयोग करता है।

3. इनका औपचारिक संगठन होता है (They have formal organization)-द्वितीय समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं। व्यक्ति को इन नियमों की पालना करनी पड़ती है। इसी कारण इन समूहों के मामलों का निपटारा विशेषज्ञों के हाथ में होता है। कहने का अर्थ यह है कि समूह का सारा कार्य क्षेत्र व्यवस्थित होता है। व्यक्ति को स्थिति व भूमिका उसकी योग्यता अनुसार प्राप्त होती है। इन समूहों में यदि व्यक्ति ने सम्मिलित होना होता है तो वह अपने हितों के लिए कोई भी काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति दफ्तर में नौकरी करता है तो उसको अपने ऑफ़िसर का कहना मानना पड़ता है। सरकारी नियमों का पालन करना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि द्वितीय समूहों में औपचारिक संगठन ही पाया जाता है।

4. इनमें औपचारिक सम्बन्ध होते हैं (They have formal and Impersonal Relations among them)—इन समूहों के बीच व्यक्तियों के अपसी सम्बन्ध औपचारिक होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता। व्यक्ति अपना काम करता है, नियमों की पालना करता है, तनख्वाह लेता है फिर भी वह एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते नहीं। उदाहरण के लिए हम किसी बैंक में जाते हैं और फिर किसी क्लर्क को मिलते हैं, अपना काम पूरा करके वापिस आ जाते हैं। हम बैंक में काम कर रहे व्यक्तियों की ज़िन्दगी के किसी भी और हिस्से से सम्बन्धित नहीं होते। इन समूहों के बीच हमें अपनत्व प्राप्त नहीं होता।

5. इन समूहों की ऐच्छिक सदस्यता होती है (They have option of Membership)-द्वितीय समूहों में सदस्यता व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर करती है क्योंकि यह समूह किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही विकसित होते हैं। जिस व्यक्ति का उद्देश्य जिस समूह में पूर्ण होता है वह उसका सदस्य बन जाता है। भाव कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक द्वितीय समूह का सदस्य नहीं होता। उदाहरण के लिए हमारे समाज में कई क्लब हैं। जब कोई व्यक्ति चाहता है तो ही क्लब का सदस्य बनता है। यूं यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति क्लब का सदस्य बने। इस प्रकार यह समूह ऐच्छिक होते हैं। उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् व्यक्ति इसकी सदस्यता छोड़ भी सकता है।

6. इनमें क्रियाशील व अक्रियाशील सदस्य होते हैं (They have Active and Inactive members)द्वितीय समूहों का आकार विशाल होता है। समूह के सदस्यों में निजीपन की कमी होती है जिससे समूह के सदस्य समूह की क्रियाओं में हिस्सा नहीं लेते। उदाहरण के लिए जब भी कोई कार्यक्रम होता है तो उस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले बहुत सदस्य होते हैं। कुछ एक सदस्य काम बहुत अधिक करते हैं व कुछ एक केवल एक सदस्य बन कर ही रह जाते हैं। ऐसे सदस्य केवल अपनी सदस्यता को कायम रखने के लिए केवल चन्दा इत्यादि ही देते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
1. यह ज़रूरतों की पूर्ति करते हैं (Satisfied different needs) आधुनिक समाज में व्यक्ति केवल प्राथमिक समूहों पर निर्भर हो कर अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। दिन-प्रतिदिन व्यक्ति की ज़रूरतें बढ़ती ही जा रही हैं ये ज़रूरतें केवल एक क्षेत्र के साथ सम्बन्धित नहीं हैं इस कारण इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वितीय समूहों का विकास हुआ। प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्बन्ध हर क्षेत्र में कायम करना चाहता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका काम हो सके। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य भी बनना चाहता है।

2. यह व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोतरी करते हैं (These Develop Individuals Personality)द्वितीय समूहों के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी होती है। शुरू के आरम्भिक समाजों में व्यक्ति अपने आप को घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखता था। पैतृक काम को अपनाना ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए ज़रूरी होता था। इसके अलावा बच्चे अपने परिवार के बड़े सदस्यों के नियंत्रण में रहते थे। वे कोई भी काम अपनी मर्जी से नहीं कर सकते थे। लेकिन जैसे-जैसे समाज में द्वितीय समूहों का निर्माण हुआ व्यक्ति घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपने व्यक्तित्व में विकास करने लगा। उसको अपनी योग्यता को दिखाने की पूरी स्वतन्त्रता मिली। प्राथमिक समूह में चाहता हुआ भी व्यक्ति विकास नहीं कर सकता था इसी कारण द्वितीय समूहों ने व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास किया व पिछड़े हुए परिवारों में उन्नति ला कर उनका रहन-सहन का स्तर भी उच्च किया।

3. यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं (These groups contribute in Social Progress)समाज में प्रगति अधिक होने से आम व्यक्तियों के द्वितीय समूह में शामिल होने से ही पाई गई तकनीकी, औद्योगिक आदि क्रांति भी इन्हीं समूहों के द्वारा हो पाई। व्यक्ति घर से बाहर निकल कर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करने लगा। व्यक्ति को ऐसा वातावरण प्राप्त होने लगा कि वह खुल कर अपनी योग्यता को इस्तेमाल करने लगा। व्यक्ति को द्वितीय समूहों में ही मौके प्राप्त हुए। समूह का प्रत्येक व्यक्ति जितनी योग्यता रखता है उतनी ही तरक्की करता है। व्यक्ति में आगे से आगे बढ़ने की इच्छा ही समाज की प्रगति के लिए सहायक होती है।

4. इनसे विस्तृत दृष्टिकोण होता है (With these outlook becomes wider)-व्यक्ति प्राथमिक समूह का सदस्य होने के नाते विशेष स्थान से जुड़ा होता है। उसकी प्राथमिक समूह में सदस्यता भी स्थायी होती है, इसी कारण आकार में भी ये छोटे होते हैं। प्रत्येक अपने ही हितों पर ध्यान केन्द्रित करता है। उदाहरण के तौर पर खेल समूह, पड़ोस या परिवार के सदस्य केवल अपने ही हितों की रक्षा करते थे। इस प्रकार के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक समूह का घेरा काफ़ी तंग रहता था क्योंकि सदस्य केवल सीमित हितों के बारे में ही सोचते थे। दूसरी ओर द्वितीय समूह के सदस्य बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। उदाहरण के लिए द्वितीय समूह के सदस्य भिन्न-भिन्न जातियों, धर्म, श्रेणियों आदि से सम्बन्धित होते हैं। विभिन्न स्थानों पर फैले होने के कारण व्यक्ति प्राथमिक समूहों से अलग हो जाते हैं। द्वितीय समूह के सदस्यों पर रीति-रिवाजों, परम्पराओं, नियमों इत्यादि का भी काफ़ी प्रभाव रहता है। इससे समूह के सदस्य को अपने सम्बन्ध विभिन्न स्थानों पर बनाने की पूरी स्वतन्त्रता मिलती है। साझे हित होने के कारण भी वह आपसी भेदभावों को मिटा कर एक हो कर काम करते हैं व समूह के सदस्यों में सहनशीलता भी पाई जाती है।

5. यह सांस्कृतिक विकास में मदद करते हैं (These help in cultural development)-द्वितीय समूहों में व्यक्ति विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों से सम्बन्धित होते हैं परन्तु काम उन्हें एक ही स्थान पर मिल कर करना पड़ता है। उदाहरण के लिए किसी दफ्तर या फैक्टरी में कई व्यक्ति काम करते हैं चाहे वह भिन्न-भिन्न स्थानों से आये होते हैं परन्तु फिर भी उनमें औपचारिक सहयोग होने के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान बना रहता है। प्रत्येक संस्कृति से सम्बन्धित व्यक्ति दूसरी संस्कृति के गुणों को अपनाना आरम्भ कर देता है। इससे सांस्कृतिक विकास पाया जाता है। इसके साथ ही जब कोई अनुसंधान किसी देश में होता है तो बाकी देश भी उसको अपना लेते हैं। इससे सांस्कृतिक मिश्रण भी हो जाता है।

प्रश्न 7.
अन्तः समूह और बहिर्समूह (In Groups and Out Groups) के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समनर द्वारा दिए समूहों के वर्गीकरण की व्याख्या करें।
उत्तर-
समनर ने अपनी पुस्तक “फोकवेज़ (Folk Ways) में मानवीय समाज में पाये जाने वाले दो तरह के समूहों का वर्णन किया है

  1. अन्तः समूह (In Groups)
  2. बहिर्समूह (Out Groups)।

समनर ने समूहों का यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से किया है। जिसमें एक समूह व्यक्ति विशेष के साथ सम्बन्धित है वह अन्तः समूह है और वही समूह दूसरे व्यक्ति के लिये बाहरी समूह बन जाता है। एक व्यक्ति का अन्तः समूह दूसरे व्यक्ति का बहिर्समूह बन जाता है। अब इन समूहों का विस्तार सहित वर्णन करेंगे।

1. अन्तः समूह (In Groups)-समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाये जाते हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्तियों का व्यवहार भी प्रभावित होता है। अन्तः समूह को ‘हम समूह’ (We Groups) भी कहा गया है। यह वह समूह होते हैं जिनको व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर एवं पेज (MacIver and Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में ‘अन्तः समूह’ का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको मिला लेता है। उदाहरणार्थ जाति, धर्म, कबीले, लिंग आदि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे व्यक्ति को पूरा ज्ञान होता है।

अन्तः समूह की प्रकृति शान्ति वाली होती है और इसमें आपसी सहयोग, आपसी मेल-मिलाप, सद्भावना आदि गुण पाये जाते हैं। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का दृष्टिकोण बाहरी लोगों के प्रति दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता। कुछ न कुछ कार्य को करने के लिये इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई के समय व्यक्ति एक समूह के साथ जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग पड़ते हैं। अन्तः समूह में हम की भावना (We feeling) पाई जाती है। जाति प्रथा के बीच एक जाति के व्यक्ति अपने आपको अन्तः समूहों के साथ जोड़ते हैं और दूसरी जाति के व्यक्ति के लिए ‘बाहरी जाति’ का व्यक्ति जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। कई समाजों में समाज का वर्गीकरण भी ‘अन्तः एवं बाहरी’ समूह के आधार पर किया जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति अपने आपको जोड़ता है और अपना समझता है।

इन समूहों में वह ‘मेरे’ शब्द का प्रयोग करने लग पड़ता है जैसे मेरा स्कूल, मेरा घर, मेरी जगह, मेरा गांव इत्यादि। इस तरह हम कह सकते हैं वह समूह जिनके साथ व्यक्ति सम्बन्ध रखता है , जिनको वह अपना समझता है, और जिनके लिये वह ‘मेरे’ या ‘हम’ शब्द का प्रयोग करता है, ‘वह अन्तः समूह’ होते हैं। मैकाइवर के अनुसार, “वह समूह जिनके साथ व्यक्ति अपना समरूप कर लेता है वह उसके अन्तः समूह है।” जैसे कि उसका परिवार, कबीला, गांव इत्यादि साधारणतया अन्तः समूहों में सम्बन्ध शांतिप्रिय होते हैं और सदस्य आपसी सहयोग एवं प्यार के साथ रहते हैं। उस समूह के सदस्यों के प्रति व्यक्ति का व्यवहार हमदर्दी वाला होता है और वह समूह के सदस्यों के प्रति अपनापन महसूस करता है। उसको अपने समूह के व्यवहार, विचार, आदर्श इत्यादि अच्छे लगते हैं। वह दूसरे व्यक्ति के बारे में विचार बनाते समय अपने समूह के विचारों, मूल्यों इत्यादि को सामने रखता है। उसे अपने समूह की सारी बातें अच्छी लगती हैं क्योंकि वे सभी उसको अपने लगते हैं। अन्तः समूह का संगठन अधिक मज़बूत एवं निश्चित होता है। अन्तः समूह के बीच होने वाली अन्तक्रियाओं का सदस्यों के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। अन्तः समूह सर्वव्यापक समूह होते हैं जो सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में क्रियाशील होते हैं।

बहिर्समूह (Out-Groups) बहिर्समूह के लिये ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यह वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता है और बेगाना समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज के बीच प्रत्येक समूह के साथ तो नहीं जुड़ा होता है। जिस समूह के साथ जुड़ा होता है वह उसके अन्तः समूह कहलाते हैं और जिस समूह के साथ नहीं जुड़ा होता है वह उसके बहिर्समूह कहलाते हैं। यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से लिया गया है। समाज में दोनों तरह के समूह व्यक्तियों के लिये विकसित होते हैं। उदाहरण के लिये बाहरी जाति, बाहरी धर्म, बाहरी परिवार आदि ऐसे समूह हैं, जो एक व्यक्ति के लिये तो अपनत्व पैदा करते हैं, और जो व्यक्ति उनके समूह का सदस्य नहीं उसके लिये बाहरी भावना पैदा करते हैं। कई कबीलों में इन समूहों के आधार पर भी रिश्तेदारी का भी वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि आप कहीं भी जाते हैं, यदि आपको कोई दूसरा व्यक्ति मिलता है तो आप उसके साथ बातचीत करने लग जाते हैं। यदि वह आपकी जाति, धर्म, इत्यादि के साथ सम्बन्ध रखता हो तो आप उसे अन्तः समूह में शामिल कर लेते हैं। यदि वह अलग जाति अथवा धर्म का हो तो उसको ‘बहिर्समूह समूह’ का सदस्य बना देते हैं। समान जाति वालों के साथ आप मित्रता का व्यवहार करते हैं, और असमान जाति वालों के साथ आप दुश्मनी जैसा व्यवहार करने लग पड़ते हैं।

इसलिए हम कह सकते हैं कि ‘बर्हिसमूह’ व्यक्ति के लिए बेगाने से होते हैं और वह उनके साथ प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन काफ़ी कमज़ोर एवं असंगठित होता है। व्यक्ति के लिये आन्तरिक समूह के विचारों और मूल्यों के सामने बाहरी समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक है और प्रत्येक स्थान पर पाये जाते हैं।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए अन्तः समूह एवं बहिर्समूह का अर्थ अवस्था, स्थान, समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। कभी कोई व्यक्ति अन्तः समूह से सम्बन्धित होता है परन्तु विचारों में समानता न होने की स्थिति में वही उसके लिए बहिर्समूह बन जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का व्यवहार, सहयोग, हमदर्दी एवं प्यार वाला होता है और व्यक्ति अपने समूह के आदर्शों, विचारों एवं कीमतों का सम्मान करता है और उन्हें उत्तम समझता है। उसको अपने समूह की सम्पूर्ण बातें अच्छी लगती हैं। बहिर्समूह के व्यक्तियों का दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। जिन कार्यों की आन्तरिक समूहों में मनाही होती है, बहिसर्मुह में उन कार्यों की इजाज़त भी दी जाती है। ये दोनों समूह सभी समाजों में व्याप्त होते हैं परन्तु इनका निर्माण करने वाली परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं। साधारण व्यक्ति आन्तरिक समूह को बर्हिसमूह से उत्तम समझता है। व्यक्ति का व्यवहार भी इन समूहों से सम्बन्धित होता है। दोस्ती एवं दुश्मनी वाले सम्बन्ध भी इसी दृष्टिकोण से पाये जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
संदर्भ समूह के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
1942 में एच० एच० हाइमन (H.H. Hyman) ने सबसे पहले ‘संकल्प संदर्भ समूह’ का प्रयोग अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘स्थितियों के मनोविज्ञान’ (The Psychology status) में किया था। सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों ने मानवीय व्यवहार के सामाजिक मनोवैज्ञानिक पक्षों के अध्ययन और व्याख्या के लिए किया था और अपना ध्यान इस बात पर केन्द्रित किया, कि कैसे मनुष्य अपने संदर्भ समूह का चुनाव करता है और यह संदर्भ समूह किस प्रकार उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। बाद में समाजशास्त्रियों विशेषकर ‘मर्टन’ ने संदर्भ समूह की समाजशास्त्र के लिये महत्ता के बारे मैं समझा और कहा कि सामाजिक वातावरण के कार्यात्मक और संरचनात्मक पक्षों को समझने के लिए संदर्भ समूह बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। इसकी सहायता के साथ सामाजिक व्यवहार की भिन्नताओं में सभी छुपी हुई समानताओं को ढूंढ़ सकते हैं। इस प्रकार इसकी सहायता से मानवीय व्यवहार के सभी पक्षों के बारे में जाना जा सकता है जिसकी सहायता के साथ समाज को आसानी के साथ समझा जा सकता है।

संदर्भ समूह का अर्थ (Meaning of Reference Group)-यदि हमें संदर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सर्वप्रथम ‘सदस्य समूह’ का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि संदर्भ समूह को “सदस्यता समूह” या “सदस्य समूह के संदर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है, जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में भाग लेता है, उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक समूह होता है जिसका वह वास्तविक तौर पर सदस्य होता है और वास्तविक सदस्य होने के कारण उस समूह के साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है और उस समूह के विचारों, कीमतों इत्यादि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को इस समूह का एक अभिन्न अंग मान लेता है। इस तरह उसका प्रत्येक कार्य या क्रिया उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। इस समूह के आदर्श, विचार, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती हैं और दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतों को सामने रखता है। इस तरह यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

परन्तु कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुरूप नहीं होता बल्कि वह किसी और आदर्शों एवं कीमतों के अनुसार होता है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इस कारण ही “संदर्भ समूह” का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार, “व्यवहार प्रतिमान और उसकी स्थिति के साथ सम्बन्धित विवेचन के लिए हमारे लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह किस समूह का सदस्य है और उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर पर सदस्य बन जाता है। व्यक्ति इसका वास्तविक सदस्य होते हुए भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत-सा हिस्सा उस समूह के अनुसार होता है। समाज वैज्ञानिक इस समूह को संदर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्यमवर्गीय समूह का सदस्य अपने आपको किसी उच्चवर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपने व्यवहारों, आदतों, आदर्शों, कीमतों आदि को उसी उच्चवर्ग के अनुसार निश्चित करता है।

अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके उसी उच्चवर्ग के अनुसार ही निश्चित करता है तो वह उच्चवर्ग मध्यवर्गीय समूह का संदर्भ समूह होता है। इस तरह जब व्यक्ति उच्चवर्ग से मानसिक तौर पर सम्बन्धित होता है, तो वह उच्चवर्ग उसके लिए संदर्भ समूह’ होता है। इस तरह वह अपनी आदतों, प्रतिमानों, प्रवृत्तियों को उस ‘संदर्भ समूह’ के अनुसार चलाने की कोशिश करता है। संदर्भ समूह का अर्थ और भी स्पष्ट हो जायेगा यदि हम संदर्भ समूह की परिभाषाएं देखेंगे।

शैरिफ एवं शैरिफ (Sherrif and Sheriff) के अनुसार, “संदर्भ समूह वे समूह हैं, जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको समूह के एक अंग के रूप में सम्बन्धित करता है या मनोवैज्ञानिक रूप के साथ सम्बन्धित होने की इच्छा रखता है। दैनिक भाषा में संदर्भ समूह वे समूह हैं जिनके साथ व्यक्ति स्वयं ही पहचान करता है या फिर पहचानने की इच्छा रखता है।”

राबर्ट मर्टन (Robert Merton) के अनुसार, “संदर्भ समूह व्यवहार सिद्धांत का लक्ष्य मूल्यांकन या उप मूल्यांकन की उन प्रक्रियाओं के कारकों एवं परिमापों को क्रमबद्ध करना है जिनमें व्यक्ति और अन्य मनुष्यों एवं समूहों की कीमतों और मापदण्डों को तुलनात्मक निर्देश व्यवस्था के रूप में अपनाता है।”

मर्टन (Merton) के अनुसार “यह देखा जाता है कि जो समूह जीवन की अवस्थाओं में अधिक सफल है व्यक्ति उसको संदर्भ समूह मानने लग पड़ता है। मर्टन के अनुसार यह ज़रूरी नहीं कि कोई व्यक्ति उस समूह का सदस्य हो जिसका वह सदस्य है। वह उस समूह का सदस्य हो सकता है जिसका वह सदस्य नहीं। जिन समूहों के हम वास्तव में सदस्य नहीं होते और जिनके साथ हम कभी भी वास्तव में अन्तक्रिया नहीं करते तो भी यदि वह समूह हमारे विचारों, व्यवहारों को प्रभावित करते हैं तो हम स्वयं को उनके अनुसार ढालते हैं तो वह गैर-सदस्यता भी हमारे लिये संदर्भ समूह ही होगा।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

सामाजिक समूह PSEB 11th Class Sociology Notes

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उसकी लगभग सभी क्रियाओं का केन्द्र समूह होता है।
  • एक सामाजिक समूह उन दो अथवा अधिक व्यक्तियों का एकत्र होता है जिनमें अन्तक्रिया लगातार होती रहनी चाहिए। यह अन्तक्रिया व्यक्ति को समूह के साथ संबंधित होने के लिए प्रेरित करती है।
  • एक सामाजिक समूह की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह व्यक्तियों का एकत्र होता है, समूह में सदस्यों के बीच अन्तक्रियाएं होती रहती हैं, सदस्य अपनी सदस्यता के प्रति चेतन होते हैं, उनमें हम की भावना होती है, समूह के कुछेक नियम होते हैं इत्यादि।
  • वैसे तो समाज में बहुत से समूह होते हैं तथा कई समाजशास्त्रियों ने इनका वर्गीकरण अलग-अलग आधारों पर दिया है परन्तु जो कूले (Cooley) की तरफ से दिया गया वर्गीकरण प्रत्येक विद्धान् ने किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है। कूले के अनुसार शारीरिक नज़दीकी तथा दूरी के अनुसार दो प्रकार के समूह होते हैं-प्राथमिक समूह तथा द्वितीय समूह।
  • प्राथमिक समूह वह होते हैं जिनके साथ शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है। हम इस समूह के सदस्यों को रोज़ाना मिलते हैं, उनके साथ बातें करते हैं तथा उनके साथ रहना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह।
  • द्वितीय समूह प्राथमिक समूह से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। वह समूह जिनकी सदस्यता वह अपनी इच्छा या आवश्यकता के अनुसार लेता है द्वितीय समूह होते हैं। व्यक्ति इनकी सदस्यता कभी भी छोड़ सकता है तथा कभी भी ग्रहण कर सकता है। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल, ट्रेड युनियन इत्यादि।
  • प्राथमिक समूहों का हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्व है क्योंकि इनके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता है। यह समूह व्यक्ति का समाजीकरण करने में सहायता करते हैं। यह समूह व्यक्ति के व्यवहार के ऊपर नियन्त्रण भी रखते हैं।
  • द्वितीय समूह की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि शारीरिक नज़दीकी का न होना, यह अस्थायी होते हैं, इसमें औपचारिक संबंध होते हैं तथा इनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  • समनर (Summer) ने भी समूहों का वर्गीकरण दिया है तथा वह हैं-अन्तर्समूह (In-Group) तथा बहिर्समूह (Out-Group) । अन्तर्समूह वह होता है जिनकी सदस्यता के प्रति व्यक्ति पूर्णतया चेतन होता है। बहिर्समूह वह होता है जिनमें व्यक्ति को अपनेपन की भावना नहीं मिलती है।
  • राबर्ट मर्टन ने एक नए प्रकार के समूह के बारे में बताया है तथा वह है संदर्भ समूह (Reference Group)। व्यक्ति कई बार किसी विशेष समूह के अनुसार अपने व्यवहार को नियन्त्रित तथा केन्द्रित करता है। इस प्रकार के समूह को संदर्भ समूह कहा जाता है।
  • हम भावना (We feeling)—वह भावना जिससे व्यक्ति अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानते हैं कि वे उस समूह के सदस्य हैं।
  • प्राथमिक समूह (Primary Group)-वह समूह जिनके सदस्यों में संबंध काफ़ी नज़दीक के होते हैं तथा जिनके बिना जीवन जीना मुमकिन नहीं है।
  • द्वितीय समूह (Secondary Group)-वे समूह जिनकी सदस्यता आवश्यकता के समय ली जाती है तथा बाद में छोड़ दी जाती है।
  • अन्तः समूह (In-Group)-वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की भावना होती है।
  • बहिर्समूह (Out-Group)—वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की किसी भी प्रकार की भावना नहीं होती।
  • दर्भ समूह (Reference Group)—वह समूह जिन्हें व्यक्ति एक आदर्श के रूप में स्वीकार करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए

प्रश्न 1.
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलों के नाम बताइए।
उत्तर-
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलें हैं-चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, पटसन तथा कपास।

प्रश्न 2.
रबी के मौसम में कौन-कौन सी फसल बोई जाती हैं?
उत्तर-
रबी के मौसम में गेहूं, जौ, चना, सरसों और तोरिया आदि फ़सलें बोई जाती हैं।

प्रश्न 3.
उर्वरक क्या है ?
उत्तर-
उर्वरक भूमि को पोषक तत्त्व देने वाले रासायनिक पदार्थ होते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
दुधारू पशु किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे पशु जिनसे हमें दूध मिलता है, दुधारू पशु कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर-
परती भूमि वह भूमि है जिसमें दो या तीन वर्षों में केवल एक ही फसल उगाई जाती है।

प्रश्न 6.
देश के कितने प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं?
उत्तर-
देश के 22.7 प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 7.
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के कितने प्रतिशत भाग पर वन होना जरूरी है?
उत्तर-
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन होना ज़रूरी है।

प्रश्न 8.
पंजाब में वन क्षेत्रफल कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पंजाब में 5.7 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं।

प्रश्न 9.
भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
उत्तर-
भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 10.
देश में गेहूँ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक राज्य है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ देश के किस राज्य से प्राप्त होता है?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ पंजाब से प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
चरागाह की भूमि घटने का कौन-सा प्रमुख कारण है?
उत्तर-
देश में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चरागाहों को कृषि भूमि में बदला जा रहा है।

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प्रश्न 13.
चावल उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक राज्य का नाम क्या है?
उत्तर-
चावल उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।

प्रश्न 14.
पंजाब प्रति हेक्टेयर गेहं की पैदावार के हिसाब से देश में कौन-से स्थान पर है?
उत्तर-
पहले स्थान पर।

प्रश्न 15.
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है।

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प्रश्न 16.
पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्र 95 हजार हेक्टेयर रह गया।

प्रश्न 17.
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या को कितने खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी ?
उत्तर-
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या (अनुमानित 160 से 170 करोड़ के बीच) को 40 करोड़ टन खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी।

प्रश्न 18.
भारतीय कृषि वर्तमान समय में तीन प्रमुख समस्याएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
भारतीय कृषि की तीन मुख्य समस्याएं हैं-
(i) भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव
(ii) कृषि भूमि का असमान वितरण
(iii) कृषकों का अनपढ़ होना।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 19.
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 20.
तिलहन फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तिलहन फसलें हैं-मूंगफली, सरसों, तोरिया, सूरजमुखी के बीज, बिनौला, नारियल आदि।

प्रश्न 21.
मूंगफली का उत्पादन किन दो राज्यों में अधिक होता है?
उत्तर-
मूंगफली का उत्पादन गुजरात तथा महाराष्ट्र में सबसे अधिक होता है।

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प्रश्न 22.
तिलहन उत्पादन क्षेत्रफल में किस दशक में देश में सबसे तेजी से वृद्धि हुई?
उत्तर-
तिलहन उत्पादन के क्षेत्रफल में 1980 से 1990 के दशक में सबसे अधिक वृद्धि हुई।

प्रश्न 23.
देश के मुख्यता कपास उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, सीमांध्र, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु।

प्रश्न 24.
कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार कितनी है?
उत्तर-
भारत में कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार 249 किलोग्राम है।

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प्रश्न 25.
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पंजाब।

प्रश्न 26.
पंजाब में प्रमख आल उत्पादक जिलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब में प्रमुख आलू उत्पादक जिले हैं-जालन्धर, होशियारपुर, पटियाला तथा लुधियाना।

प्रश्न 27.
पशुधन में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
पशुधन में पंजाब का देश में तेरहवां स्थान है।

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प्रश्न 28.
पशुधन किस राज्य में सबसे अधिक पाया जाता है?
उत्तर-
देश में सबसे अधिक पशुधन उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।

प्रश्न 29.
फलों तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 30.
सेब उत्पादन में दो प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश मुख्य राज्य हैं।

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II. निम्न प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।

  1. कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
  2. कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
  3. अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है।
  2. जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है।
  3. उर्वरकों तथा अच्छी किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि हरित क्रान्ति से कृषि तथा कृषि-उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 3.
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत किन-किन चीज़ों को शामिल किया जाता है?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत फ़सलें उगाने के अतिरिक्त निम्नलिखित चीजें शामिल हैं —

  1. पशु पालन
  2. मत्स्य उद्योग
  3. वानिकी
  4. रेशम के कीड़े पालना
  5. मधुमक्खी पालना
  6. मुर्गी पालन।

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प्रश्न 4.
दुधारू एवं भारवाहक पशुओं के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुधारू पशुओं से अभिप्राय उन पशुओं से है जिनसे हमें दूध मिलता है। उदाहरण के लिए गाय और भैंस दुधारू पशु हैं। इसके विपरीत भारवाही पशु जुताई, बुवाई, गहाई और कृषि उत्पादों के परिवहन में कृषकों की सहायता करते हैं। बैल, भैंसा, ऊँट आदि पशु भारवाही पशुओं के मुख्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.
चालू परती एवं पुरानी परती भूमि के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कुछ भूमि ऐसी होती है जिसे केवल एक ही वर्ष के लिए खाली छोड़ा जाता है। एक वर्ष के बाद उस पर फिर से कृषि की जाती है। ऐसी भूमि को चालू परती भूमि (Current Fallow Land) कहा जाता है। शेष परती भूमि को पुरानी परती भूमि (Old Fallow Land) कहते हैं। इस पर काफ़ी समय से कृषि नहीं की गई।

प्रश्न 6.
गेहूं की फसल उगाने हेतु उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जाती है। इसके लिए 50 सें०मी० से 75 सें.मी० की वर्षा पर्याप्त रहती है। वर्षा थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।

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प्रश्न 7.
चावल उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भारत के प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र अनलिखित हैं —
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदान एवं डेल्टाई प्रदेश, उत्तर-पूर्वी भारत के मैदान तथा निचली पहाड़ियां, हिमालय की गिरिपाद पहाड़ियां, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरी आन्ध्र प्रदेश तथा सम्पूर्ण उड़ीसा।
कम वर्षा वाले क्षेत्र-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदान, हरियाणा, पंजाब तथा पंजाब-हरियाणा के साथ लगने वाले राजस्थान के कुछ जिले।

प्रश्न 8.
गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गन्ने की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां उपयुक्त रहती हैं —

  1. इसे गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए लगभग 21° से ग्रे० से 27° से ग्रे० तक तापमान अच्छा रहता है। गन्ने के पौधे के लिए पाला बहुत हानिकारक है।
  2. गन्ने को अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा 75 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होनी चाहिए।
  3. इसके लिए वायु में नमी अधिक होनी चाहिए।
  4. गन्ने की कृषि के लिए भूमि उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। यदि मिट्टी में फॉस्फोरस तथा चूने के अंश अधिक हों तो गन्ने की फसल बहुत अच्छी होती है।
  5. भूमि समतल होनी चाहिए ताकि सिंचाई अच्छी तरह हो सके।

प्रश्न 9.
वनों के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर-
वन एक बहुमूल्य सम्पदा है। इनके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. वन पारिस्थितिक सन्तुलन तथा प्राकृतिक पारितन्त्र को बनाये रखने में बहुत अधिक योगदान देते हैं।
  2. इनसे हमें इमारती तथा ईंधन योग्य लकड़ी मिलती है। इमारती लकड़ी से फ़र्नीचर, पैकिंग के बक्से, नावें आदि बनाई जाती हैं। इसका उपयोग भवन निर्माण कार्यों में भी होता है।
  3. मुलायम लकड़ी से लुग्दी बनाई जाती है जिसकी कागज़ उद्योग में भारी मांग है।
  4. वनों से हमें लाख, बेंत, राल, जड़ी-बूटियां, गोंद आदि उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  5. वनों से पशुओं के लिए चारा (घास) भी प्राप्त होता है।

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प्रश्न 10.
भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
भारत में अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। छोटे-छोटे खेतों पर श्रम तथा पूंजी तो अधिक लगती है, परन्तु आर्थिक लाभ बहुत ही कम होता है। छोटे किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवैल का पानी तथा कृषि यन्त्र बड़े किसानों से किराए पर लेने पड़ते हैं। उन्हें महंगे उर्वरक भी बाजार से खरीदने पड़ते हैं। इससे उनकी शुद्ध बचत बहुत ही कम हो जाती है। इन्हीं कारणों से भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि कहते हैं।

प्रश्न 11.
देश में पशधन विकास के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत में पशुधन के विकास के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं-उनकी नस्ल सुधारने, उन्हें विविध प्रकार की बीमारियों से बचाने, पशु रोगों पर नियन्त्रण करने तथा बाज़ार की अधिक अच्छी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किये गये हैं। देश के प्रत्येक विकास खण्ड में कम-से-कम एक पशु चिकित्सालय खोला गया है। ग्रामीण स्तर पर भी पशुधन स्वास्थ्य केन्द्र खोले गये हैं।

प्रश्न 12.
‘हरित क्रान्ति’ को कुछ लोग ‘गेहूं-क्रान्ति’ का नाम क्यों देते हैं?
उत्तर-
गेहूं के उत्पादन में हरित-क्रान्ति के बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। भारत में हरित क्रान्ति का आरम्भ 1966-67 के वर्ष से माना जाता है। गेहूं का उत्पादन जो वर्ष 1960-61 में 1 करोड़ 10 लाख टन था, वर्ष 2004-05 में यह उत्पादन 20 करोड़ टन तक पहुंच गया। गेहूं के अतिरिक्त किसी अन्य खाद्यान्न में हरित क्रान्ति के दौरान इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई। गेहूं उत्पादन में इस अभूतपूर्व उत्पादन वृद्धि के कारण ही कई लोग ‘हरित क्रान्ति’ को ‘गेहूं-क्रान्ति’ की संज्ञा देते हैं।

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प्रश्न 13.
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के क्या कारण हैं?
उत्तर-
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के दो मुख्य कारण हैं-जनसंख्या में वृद्धि तथा आर्थिक विकास। आबादी के बढ़ने से शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों का विस्तार हो रहा है। इसी प्रकार विकास कार्यों में तेजी आने से काफ़ी बड़ा क्षेत्रफल सड़कों, नहरों, औद्योगिक एवं सिंचाई परियोजनाओं तथा अन्य विकास सुविधाओं के विस्तार के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।

प्रश्न 14.
वनों का महत्त्व संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर-
वनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी —

  1. वनों द्वारा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण. करके वायुमण्डल के तापमान को बढ़ने से रोकते हैं।
  2. वन, वन्य प्राणियों के घर हैं। वे उन्हें संरक्षण देते हैं।
  3. वनों से वर्षण की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बार-बार सूखा नहीं पड़ता।
  4. वन जल का भी संरक्षण करते हैं और मिट्टी का भी। वे नदियों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ों को रोकने में समर्थ हैं।

प्रश्न 15.
आजादी के बाद खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि की उन्नति के लिए भरसक प्रयास किए गए। परिणामस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1950-51 तथा 1994-95 के मध्य चावल के उत्पादन में चार गुणा और गेहूं के उत्पादन में दस गुणा वृद्धि हुई। इस तरह कृषि के क्षेत्र में उन्नति के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि पर भी प्रभाव पड़ा। 1950 के वर्ष में यह 395 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी। 2005 में यह बढ़कर 500 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई।

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प्रश्न 16.
देश में कृषि जोतों के छोटा होने के क्या कारण हैं तथा इसका भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
देश में 58% जोतों का आकार 1 हेक्टेयर से कम है। जोतों का आकार छोय होने का कारण उत्तराधिकार का नियम है। पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी भूमि उसकी सन्तान में बराबर बांट दी जाती है। अत: भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते बोझ के कारण जोतों का आकार छोटा है।
जोतें छोटी होने के कारण न तो किसान आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग ही कर सकता है और न ही आधुनिक सिंचाई के साधनों की व्यवस्था कर सकता है। उसे पानी भी किराए पर लेना पड़ता है और कृषि यन्त्र भी। परिणामस्वरूप उसकी शुद्ध बचत कम होती है और वह दिन प्रतिदिन निर्धन होता जा रहा है।

प्रश्न 17.
चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में चावल का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। वर्ष 2003-04 में यहां कुल 140 लाख टन चावल का उत्पादन किया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पंजाब एवं उड़ीसा का नम्बर आता है। इनमें से हर एक राज्य में प्रति वर्ष 60 लाख टन से अधिक चावल पैदा होता है। इनके अतिरिक्त झारखण्ड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में भी बड़ी मात्रा में चावल का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 18.
पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
पंजाब गेहूं उत्पादन की दृष्टि से भारत में दूसरे स्थान पर आता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर गेहूं की उपज एवं केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में इस राज्य का प्रथम स्थान है। पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब में गेहूं की खेती बहुत ही विस्तृत आधार पर की जाती है। यहां के किसान इसे व्यावसायिक फसल के रूप में पैदा करते हैं।
  2. पंजाब के किसानों को अच्छी सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
  3. यहां उगाई जाने वाली गेहूं का झाड़ अधिक होता है।
  4. तेजी से हो रहे मशीनीकरण के कारण भी पंजाब से गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि हुई है।

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प्रश्न 19.
दालों के उत्पादक क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —

  1. दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
  2. कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया
  3. बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।

प्रश्न 20.
डेयरी उद्योग के लाभ बताओ।
उत्तर-
डेयरी उद्योग से अभिप्राय दूध प्राप्त करने के लिए पशु पालने से है। वास्तव में डेरी उद्योग कृषि का ही भाग है। इस उद्योग के लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. डेयरी उद्योग से सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों को रोजगार मिलता है और किसान कृषि की फसल नष्ट होने के बावजूद अच्छा गुजारा कर सकते हैं।
  2. डेयरी उद्योग से कृषि को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है जिससे उनकी कृषि आय में वृद्धि होती है।
  3. दूध के उत्पादन में वृद्धि होने के कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन अभी कम क्यों है?
उत्तर-
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से कम है। आओ इस कमी का पता लगाएं —

  1. दालों के उत्पादन में कमी-देश में दालों के उत्पादन में कमी का मुख्य कारण दाल उत्पादन क्षेत्रों में कमी आना है। हरित क्रान्ति के पश्चात् इन क्षेत्रों पर गेहूं तथा चावल की फसलें बोई जाने लगी हैं। इस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
  2. तिलहन के उत्पादन में कमी-देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति दालों के विपरीत है। तिलहन उत्पादक क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है और तिलहन उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद देश में तिलहन की मांग पूरी नहीं हो पा रही। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में तिलहनों की मांग 5 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है और इसके साथ जनसंख्या की वृद्धि दर इस समस्या को गम्भीर बना रही है।”

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प्रश्न 22.
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं क्या हैं ?
उत्तर-
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं अनलिखित हैं —

  1. वन तथा चरागाह कम होने के कारण मिट्टी का कटाव अधिक होता है।
  2. पंजाब के कई जिलों की मिट्टियों में अधिक लवणता पाई जाती है। अकेले फिरोजपुर जिले में एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि इससे प्रभावित है।
  3. अधिकतर किसान अनपढ़ होने के कारण वैज्ञानिक ढंग से फसल-चक्र नहीं अपना पाते।
  4. अकृषि कार्यों के लिए भूमि-उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र कम होता जा रहा है।
  5. अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। ऐसी जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं। महंगे कृषि औज़ारों को किराए पर लेने, महंगी रासायनिक खादें आदि खरीदने के कारण किसानों की शुद्ध बचत बहुत कम हो जाती है। पंजाब की कृषि की अन्य समस्याएं हैं-भूमिगत जल स्तर में कमी तथा मिट्टियों की उर्वरता का ह्रास।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में आये फसल चक्र में तेजी से आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में फसल चक्र में तेजी से परिवर्तन हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश) में कृषि उत्पादकता बढ़ गई है। परन्तु परम्परागत रूप से चावल उत्पन्न करने वाले पूर्वी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता कम हो गई है। इससे देश के कृषि विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में कृषि विकास में एक ठहराव-सा आ गया है। इन समस्याओं से निपटने के लिए भारत के विभिन्न भागों में किसान नये-नये फसल चक्र अपनाने लगे हैं। उन्होंने ऐसे फसल चक्र अपनाये हैं जो आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी हैं।

प्रश्न 24.
वे कौन-से संकेत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारतीय कृषि निर्वाह की ओर से व्यापारिक कृषि की ओर बढ़ रही है?
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान फसल बो कर अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं ही पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। निम्नलिखित तथ्य भारतीय कृषि को उसकी निर्वाह अवस्था से निकालकर व्यापारिक अवस्था में पहुंचाने में सहायक हुए —

  1. ज़मींदारी प्रथा का कानून द्वारा उन्मूलन हो चुका है। इस तरह सरकार और भू-स्वामियों के मध्य आने वाले बिचौलिये समाप्त हो गए हैं।
  2. चकबन्दी द्वारा किसानों के दूर-दूर बिखरे खेत बड़ी जोतों में बदल दिए गए हैं।
  3. सहकारिता आन्दोलन के अन्तर्गत किसान मिल-जुल कर स्वयं ही अपनी ऋण और उपज की बिक्री सम्बन्धी समस्याएं सुलझा रहे हैं।
  4. राष्ट्रीय बैंक किसानों को आसान शतों पर ऋण देने लगे हैं।
  5. खेतों में उपज बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम, केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, कृषि विश्वविद्यालय, डेयरी विकास बोर्ड तथा दूसरी संस्थाएं किसानों को सहायता पहुंचा रही हैं।
  6. कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है जिससे किसानों को किसी मज़बूरी में अपनी उपज कम कीमत पर नहीं बेचनी पड़ती।

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प्रश्न 25.
कृषि विकास के लिए भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए गए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि की शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन-खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के अधीन नदियों के पानी को रोककर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय कृषि की अनेक समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय कृषि की सम्भवतः सबसे बड़ी समस्या भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। देश की अर्जक जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर तो करता है परन्तु वह देश की कुल आय का 29 प्रतिशत भाग ही जुटा पाता है।
  2. देश में अधिकांश जोतें छोटी हैं और उनका वितरण बहुत ही असामान्य है। छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से बड़ी अलाभकारी हैं।
  3. वनों और चरागाहों के कम होने के कारण मिट्टी के कटाव के साथ-साथ उनकी उर्वरता बनाये रखने वाले स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।
  4. देश के अधिकांश कृषक अनपढ़ हैं। वे वैज्ञानिक ढंग से फसल चक्र तैयार नहीं कर पाते। इससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता कम होती है। इसी तरह गहन कृषि का भी प्राकृतिक उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  5. देश में सिंचाई भी एक समस्या बन गई है। एक ओर जहां राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़ेबड़े राज्यों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता है, वहां पंजाब में सिंचाई साधनों की अधिकता के कारण जलसंतृप्तता (Water logging) तथा लवणता (Salinity) की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  6. घटता पूंजी निवेश कृषि की एक अन्य समस्या है। 1980-81 में जहां यह निवेश 1769 करोड़ था, वहां 1990-91 में यह घटकर 1002 करोड़ रुपए रह गया। परन्तु इसके बाद से इस निवेश में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  7. उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने में भी नाममात्र प्रगति हुई है।
  8. फसलों की किस्मों की विभिन्नता का अभाव तथा धीमी वृद्धि दर भी भारतीय कृषि की एक गम्भीर समस्या है।
    सच तो यह है कि सरकार का कृषि क्षेत्र पर कड़ा नियन्त्रण है और वह कृषि उत्पादनों के मूल्यों पर भी नियन्त्रण रखती है। कृषक वर्ग को इतनी अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती जितनी कि उद्योगों तथा विभिन्न सेवाओं में लगे लोगों को प्रदान की जाती है।

प्रश्न 2.
देश में ‘हरित क्रान्ति’ पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति से अभिप्राय उस कृषि क्रांति से है जिसका आरम्भ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए किया गया। हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषता यह है कि इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है। जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है। उर्वरकों तथा अच्छी नस्ल के बीजों का प्रयोग भी होता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। भारतीय कृषि के विकास के लिए जहां अन्य विधियां अपनायी गयीं वहां अच्छे बीजों और यन्त्रों का भी प्रयोग किया गया। 1961 में इस काम के लिए देश के सात जिलों को चुना गया। पंजाब का लुधियाना ज़िला इन सात जिलों में से एक था। लुधियाना के साथ-साथ सारे पंजाब पर हरित क्रान्ति का प्रभाव पड़ा और पंजाब एक बार फिर भारत की ‘अनाज की टोकरी’ बन गया। प्रभाव-भारतीय समाज पर हरित क्रान्ति के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं —
1. आर्थिक प्रभाव —

  1. हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।
  2. कृषि निर्वाह अवस्था से निकलकर व्यापारिक अवस्था में बदल गई है।
  3. कृषि का मशीनीकरण हो गया है।
  4. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप सिंचाई का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है।
  5. किसानों ने आर्थिक दृष्टि से अधिक-से-अधिक लाभकारी फसल-चक्र अपना लिया है।

2. सामाजिक प्रभाव—

  1. प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के परिणामस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में प्रगति हुई है। किसान अब पहले से अच्छे और पक्के मकानों में रहते हैं। उनके पास निजी वाहन हैं।
  2. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप किसानों में साक्षरता बढ़ रही है, गांव-गांव में जहां स्कूल खुल रहे हैं वहां अस्पतालों की भी व्यवस्था की जा रही है।

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प्रश्न 3.
देश में चावल की खेती का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
देश में चावल की खेती का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चावल भारत का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। भारत के दो-तिहाई लोगों का मुख्य आहार चावल ही है। इसकी उपज के लिए भौगोलिक परिस्थितियां, इसके उत्पादक राज्यों तथा इसके व्यापार का वर्णन इस प्रकार है —
भौगोलिक परिस्थितियां-चावल की खेती के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनकल रहती हैं —

  1. चावल उष्ण आर्द्र कटिबन्ध की उपज है। इसके लिए ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए तापमान 25° सेंटीग्रेड से अधिक होना चाहिए। इसे काटते समय विशेष रूप से तापमान काफ़ी ऊंचा होना चाहिए।
  2. चावल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें पानी में डूबी रहनी चाहिएं। इसके लिए 100 सें० मी० तक की वर्षा अच्छी मानी जाती है। इसकी सफलता मानसून पर निर्भर करती है। जिन भागों में वर्षा कम होती है वहां कृत्रिम सिंचाई का सहारा लिया जाता है।
  3. चावल की खेती के लिए भी सभी कार्य हाथों से करने पड़ते हैं। अत: इसकी कृषि के लिए श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस कारण इसकी कृषि प्रायः उन भागों में होती है जहां जनसंख्या अधिक हो और सस्ते श्रमिक सरलता से मिल जाएं।
    चावल उत्पादक राज्य-भारत का चावल उत्पन्न करने में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में सबसे अधिक चावल पश्चिमी बंगाल में उत्पन्न होता है। दूसरा स्थान तमिलनाडु और तीसरा बिहार का है। कर्नाटक, झारखण्ड, केरल, असम, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश आदि अन्य मुख्य चावल उत्पादक राज्य हैं। पंजाब और हरियाणा में भी काफ़ी मात्रा में चावल बोया जाता है। 2001-02 में भारत में लगभग 4.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर चावल की बिजाई की गई थी। इस वर्ष चावल का कुल उत्पादन 8.20 करोड़ टन के लगभग था।

प्रश्न 4.
गेहूं की कृषि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गेहूं एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भौगोलिक परिस्थितियां-गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जा सकती है। इसके लिए 50 सें० मी० से 75 सें० मी० तक की वर्षा पर्याप्त रहती है। परन्तु वर्षा थोड़े-थोड़े समय पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।
    उत्पादक राज्य-भारत में सबसे अधिक गेहूं उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। इसके उत्पादन में दूसरा स्थान पंजाब का है। हरियाणा भी गेहूं का उत्पादन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा महाराष्ट्र में भी काफ़ी मात्रा में गेहूं पैदा होता है।
    उत्पादन-हरित क्रान्ति तथा उसके बाद के वर्षों में गेहूं के उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। 1960-61 में इसका उत्पादन केवल 1 करोड़ 60 लाख टन था। 2000-01 में यह बढ़कर 6 करोड़ 87 लाख टन हो गया।

प्रश्न 5.
देश में दालों की कृषि पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
देश दालों के उत्पादन में अधिक उन्नतिशील नहीं रहा क्योंकि हमने इनके उत्पादन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। पिछले कई दशकों में दालों का उत्पादन घटता-बढ़ता रहा है।
मुख्य दालों में चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर और मटर सम्मिलित हैं। दालें भारी वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में उगाई जाती हैं। एक बात और-मूंग, उड़द और मसूर रबी तथा खरीफ़ दोनों मौसमों में उगाई जाती है।
देश में दालों के क्षेत्रफल में भी वृद्धि नहीं हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद गेहूं तथा चावल जैसी फसलों में लगा दिया गया है। वर्ष 1960-61 में दालों का उत्पादन 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर किया गया, जो 2000-01 में घटकर 2.3 करोड़ हेक्टेयर रह गया। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
देश में दालों का कुल उत्पादन 1960-61 में 1.3 करोड़ टन था जो बढ़कर 2000-01 में केवल 1.7 करोड़ टन तक ही पहुंच सका।
सच तो यह है कि दालों के न तो उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि हुई है और न ही उत्पादन में। यह एक चिन्ता का विषय है। सरकार को चाहिए कि वह अच्छे बीजों की खोज के लिए अथक एवं निरन्तर प्रयास करे।

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प्रश्न 6.
तिलहन उत्पादक क्षेत्रफल में हरित क्रान्ति के बाद हुई गिरावट के कारणों पर प्रकाश डालिए तथा सरकार द्वारा तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
क्षेत्रफल में गिरावट के कारण-तिलहन ऐसी फसलें हैं जो अन्य फसलों के साथ उगाई जाती हैं और जो भूमि की उर्वरता में वृद्धि भी करती हैं। फसलों के वैज्ञानिक चक्र में तिलहन धुरी का काम करती है। इसके बावजूद ऐसे क्षेत्र में कमी आई है जिसमें तिलहन बोया जाता रहा है। हरित क्रान्ति के कारण पंजाब में तिलहन उत्पादन क्षेत्रों में कमी आई है। यहां तिलहन उत्पादक क्षेत्र जो 197576 में 3.2 लाख हेक्टेयर था, 1990-91 तक 1.00 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया। इसके बाद इसमें कुछ वृद्धि अवश्य हुई, परन्तु क्षेत्रफल अस्थिर रहा। 2000-01 में कुल उत्पादक क्षेत्रफल 2 करोड़ 13 लाख हेक्टेयर था। तिलहन उत्पादन में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
सरकारी प्रयास-तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार उन्नत किस्म के बीजों की व्यवस्था कर रही है। इसके अतिरिक्त वह कृषकों को तिलहन के अच्छे मूल्यों की गारण्टी दे रही है, ताकि किसानों की तिलहन की कृषि में रुचि बढ़े।

प्रश्न 7.
कपास उत्पादन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत कपास के पौधे का मूल स्थान है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के अध्ययन से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस समय भी कपास की पैदावार होती थी। उस काल में यहां की कपास को बेबीलोन के लोग ‘सिन्धु’ तथा यूनानी इसे ‘सिन्दों’ के नाम से पुकारते थे। कपास लंबे, मध्यम तथा छोटे रेशे वाली होती है। भारत में मुख्यतः मध्यम तथा छोटे रेशे वाली कपास उगाई जाती है। लंबे रेशे वाली कपास केवल पंजाब तथा हरियाणा में ही पैदा होती है। देश में कपास उत्पादन का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कपास दक्कन के काली मिट्टी वाले शुष्क भागों में खूब उगती है। गुजरात और महाराष्ट्र दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन सबसे अधिक होता है। दूसरे स्थान पर गुजरात व तीसरे स्थान पर पंजाब का नाम आता है।
  2. राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु अन्य कपास उत्पादक राज्य हैं।
  3. पिछले वर्षों में पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र निरन्तर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप कपास के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस समय पंजाब में 17 लाख से भी अधिक कपास की गांठों का उत्पादन होता है।
  4. वर्ष 2000-01 में देश में 86 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की गई। इस वर्ष कुल 97 लाख कपास की गांठों का उत्पादन हुआ। इनमें से प्रत्येक गांठ का वजन 170 कि० ग्रा० था।
  5. कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव काफी अधिक होता है। इसका कारण फ़सलों में होने वाली बीमारियां हैं। कपास के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों से भी कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव आता रहता है।

प्रश्न 8.
भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बागवानी खेती से अभिप्राय सब्जियों, फूलों तथा फलों की गहन खेती से है। भारत का फल तथा सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में फलों का उत्पादन 3.9 करोड़ टन तथा सब्जियों का उत्पादन 6.5 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हमारे देश में विभिन्न प्रकार की कृषि-जलवायु दशाएं पाई जाती हैं। इसलिए यहां पर विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, फूल, मसाले तथा अन्य बागानी फसलें उगाना सम्भव है। उच्च पहाड़ी भागों पर चाय तथा कहवा उगाया जाता है तो समुद्र तटीय भागों में नारियल के पेड़ उगाये जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि देश में विभिन्न प्रकार की बागवानी खेती की सम्भावनाएं हैं।
  2. केला, आम, नारियल और काजू उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इसके अतिरिक्त मौसमी, सेब, सन्तरा, किन्न, अनानास आदि के उत्पादन में भारत विश्व के दस बड़े उत्पादक देशों में से एक है। इसी प्रकार भारत गोभी के उत्पादन में प्रथम तथा आलू, टमाटर, प्याज एवं हरे मटर के उत्पादन में विश्व के दस बड़े उत्पादकों में से एक है।
  3. देश से होने वाले कुल कृषि निर्यातों में बागवानी उत्पादों का हिस्सा लगभग 25.0 प्रतिशत है।
  4. हाल के वर्षों में देश में फूलों के उत्पादन को भारी बढ़ावा मिला है। इसका मुख्य कारण फूलों के लिए बाहर के देशों की बढ़ती हुई मांग है। फूलों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 200 निर्यातमुखी इकाइयों को चुना गया है।
  5. भारत में सेब के उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्य के नाम सबसे ऊपर हैं। सन्तरों और केलों के उत्पादन में महाराष्ट्र, आम उत्पादन में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र तथा काजू उत्पादन में कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल प्रमुख हैं।
    इस प्रकार भारत बागवानी कृषि में निरन्तर प्रगति कर रहा है।

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IV. निम्नलिखित को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए :

  1. प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र।
  2. प्रमुख ज्वार-बाजरा उत्पादक क्षेत्र।
  3. प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र।
  4. प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र।
  5. आलू उत्पादक राज्य।
  6. तिलहन उत्पादक प्रमुख क्षेत्र।
  7. गन्ना उत्पादक क्षेत्र।
  8. दालों के प्रमुख उत्पादक राज्य।
  9. मक्का उत्पादक क्षेत्र।

उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
वन बाढ़ों पर किस प्रकार नियन्त्रण करते हैं?
उत्तर-
वन वर्षा के जल को मृदा के अन्दर रिसने में सहायता करते हैं और धरातल पर जल के प्रवाह को मंद कर देते हैं।

प्रश्न 2.
वनों की वृद्धि से सूखे की समस्या पर कैसे नियन्त्रण पाया जा सकता है?
उत्तर-
वन वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

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प्रश्न 3.
बंजर भूमि का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बंजर भूमि वह भूमि है जिसका इस समय उपयोग नहीं हो रहा।

प्रश्न 4.
मनुष्य किन दो तरीकों से बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है?
उत्तर-
(i) अति चराई द्वारा।
(ii) वनों के विनाश द्वारा।

प्रश्न 5.
भारत में भूमि की मांग क्यों बढ़ती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत में भूमि की मांग बढ़ रही है।

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प्रश्न 6.
भारत में मृदा की प्राकृतिक उर्वरता क्यों कम होती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
वनों तथा चरागाहों की कमी का मृदा की प्राकृतिक उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न 7.
भारत में जोतों को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बनाने का कोई एक उपाय बताओ।
उत्तर-
जोतों की चकबन्दी की जाए और जुताई सहकारिता के आधार पर की जाए।

प्रश्न 8.
शष्क कृषि में मेड़बन्दी और समोच्च रेखीय जुताई का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इससे मृदा में नमी बनी रहती है और मृदा का अपरदन भी नहीं होता।

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प्रश्न 9.
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर-
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हरी तथा गोबर जैसी खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि मूल्य आयोग का क्या कार्य है?
उत्तर-
कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है।

प्रश्न 11.
भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुओं के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में मुख्य रूप से दो कृषीय ऋतुएँ हैं-खरीफ तथा रबी।

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प्रश्न 12.
डेल्टा प्रदेश चावल की कृषि के लिए उत्तम क्यों हैं?
उत्तर-
डेल्टा प्रदेशों की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है जो चावल की कृषि के अनुकूल है।

प्रश्न 13.
भारत में गेहूं उत्पादक तीन मुख्य राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

प्रश्न 14.
कोई दो दूधारू पशुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
गाय तथा बकरी।

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प्रश्न 15.
भारत में दालों की कृषि का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखो।
उत्तर-
दालें भारत की शाकाहारी जनता के लिए प्रोटीन का मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 16.
तिलहन क्या हैं?
उत्तर-
वे बीज जिन से हमें तेल प्राप्त होते हैं, तिलहन कहलाते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में चाय के दो सर्वप्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
असम और पश्चिमी बंगाल चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

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प्रश्न 18.
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य कौन-से हैं?
उत्तर-
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र हैं।

प्रश्न 19.
भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में समृद्ध मत्स्य क्षेत्र क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर-
भारत में महाद्वीपीय निमग्न तट में समुद्री धाराएं चलती हैं और यहां बड़ी-बड़ी नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं।

प्रश्न 20.
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र में मैन्ग्रोव जाति के सुन्दरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी लकड़ी से नावें और बक्से बनाए जाते हैं।

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प्रश्न 21.
भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर-
भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि. मी. है।

प्रश्न 22.
जिस परती भूमि को केवल एक ही साल के लिए खाली छोड़ा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
चालू परती।

प्रश्न 23.
भारत में कुल भूमि के कितने प्रतिशत भाग पर खेती की जाती है?
उत्तर-
56 प्रतिशत।

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प्रश्न 24.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 25.
देश की कुल राष्ट्रीय आय का कितने प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है?
उत्तर-
29 प्रतिशत।

प्रश्न 26.
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
उत्तर-
जनसंख्या का भारी दबाव।

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प्रश्न 27.
पंजाब में मिट्टी की जल संतृप्त तथा लवणता जैसी समस्याओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर-
अधिक सिंचाई।

प्रश्न 28.
‘जायद’ की किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तरबूज़ तथा ककड़ी।

प्रश्न 29.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल कौन-सी है?
उत्तर-
चावल।

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प्रश्न 30.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 31.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फसल कौन-सी है?
उत्तर-
गेहूं।

प्रश्न 32.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन तथा केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

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प्रश्न 33.
मक्का मूल रूप से किस देश की फ़सल है?
उत्तर-
अमेरिका की।

प्रश्न 34.
संसार में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 35.
देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को किस क्रान्ति का नाम दिया जाता है?
उत्तर-
हरित क्रांति।

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प्रश्न 36.
भारत की तीन रेशेदार फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कपास, जूट तथा ऊन।

प्रश्न 37.
गन्ने का मूल स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 38.
गन्ने के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

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प्रश्न 39.
कृषि पारितंत्र कैसे बनता है?
उत्तर-
कृषि पारितंत्र खेत, कृषक तथा उसके पशुओं के मेल से बनता है।

प्रश्न 40.
सेब उत्पादन में भारत के कौन-से दो राज्य सबसे आगे हैं?
उत्तर-
जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 41.
भारत में सबसे अधिक पशुधन किस राज्य में है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश में।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. मनुष्य वनों के विनाश तथा अति चराई द्वारा ……………. भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है।
  2. खरीफ़ तथा ………….. भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुएं है।
  3. भारत में …………… और असम चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  4. ……….. भारत का प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है।
  5. चालू परती भूमि को केवल ……………… साल के लिए खाली छोड़ा जाता है।
  6. देश की कुल राष्ट्रीय आय का ……………. प्रतिशत भाग कृषि से प्राप्त होता है।
  7. देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को ……………… कहा जाता है।
  8. ………………. गन्ने का मूल स्थान है।
  9. फलों में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में ……………. का उत्पादन सबसे अधिक है।
  10. ………………… राज्य में सबसे अधिक पशुधन है।

उत्तर-

  1. बंजर,
  2. रबी,
  3. पश्चिमी बंगाल,
  4. महाराष्ट्र,
  5. एक,
  6. 29,
  7. हरित क्रांति,
  8. भारत,
  9. सेब,
  10. उत्तर प्रदेश।

II. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं —
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र
(B) पंजाब तथा राजस्थान
(C) बिहार तथा गुजरात
(D) पश्चिमी बंगाल तथा महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र

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प्रश्न 2.
भारत का कुल क्षेत्रफल है —
(A) 62.8 लाख वर्ग कि० मी०
(B) 42.8 लाख वर्ग कि० मी०
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०
(D) 23.8 लाख वर्ग कि० मी०।
उत्तर-
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०

प्रश्न 3.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र है —
(A) 92.2 प्रतिशत
(B) 60.2 प्रतिशत
(C) 72.2 प्रतिशत
(D) 82.2 प्रतिशत।
उत्तर-
(D) 82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल है —
(A) गेहूं
(B) मक्का
(C) चावल
(D) बाजरा।
उत्तर-
(C) चावल

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प्रश्न 5.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है —
(A) पश्चिमी बंगाल
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) पश्चिमी बंगाल

प्रश्न 6.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फ़सल है —
(A) चावल
(B) गेहूं
(C) मक्का
(D) बाजरा।
उत्तर-
(B) गेहूं

प्रश्न 7.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन में पंजाब का देश में स्थान है —
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) पहला
(D) चौथा।
उत्तर-
(C) पहला

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. भारत में वनों का क्षेत्रफल वैज्ञानिक आदर्श से बहुत कम है।
  2. भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या घनत्व का कोई प्रभाव नहीं है।
  3. हरित क्रांति के बाद अपनाया गया फ़सल-चक्र आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।
  4. गेहूं देश की पहली महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
  5. भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✗),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — रबी
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — तिलहन
  3. गेहूं, जौं, चना, सरसों — खरीफ़
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — परती।

उत्तर-

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — परती,
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — खरीफ़,
  3. गेहूँ, जौं, चना, सरसों — रबी,
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — तिलहन।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता औसत जन-घनत्व की अपेक्षा अधिक सार्थक कैसे है?
उत्तर-
कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता से अभिप्राय यह है कि हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में औसत रूप से कितनी कृषि योग्य भूमि आती है। इसे देश की कुल कृषि योग्य भूमि को देश की कुल जनसंख्या से भाग देकर जाना जा सकता है। इस गणना के अनुसार हमारे देश में कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता 0.17 हेक्टेयर के लगभग है। यह एक अच्छा लक्षण है, क्योंकि हमारे देश में औसत जनघनत्व बहुत अधिक (382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) है। अतः हम कह सकते हैं कि यहां कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता यहां के औसत जनघनत्व से अधिक सार्थक है।

प्रश्न 2.
किसी देश के भूमि उपयोग के प्रारूप को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
किसी देश के भूमि प्रारूप को जानना निम्नलिखित बातों के कारण आवश्यक है —

  1. इससे भूमि के उपयोग में सन्तुलन पैदा किया जा सकता है।
  2. विभिन्न भूमि क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
  3. आवश्यकता के अनुसार भूमि-उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।
  4. बंजर भूमि तथा परती भूमि के उचित उपयोग की योजना बनाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की सबसे सन्तोषजनक विशेषता क्या है? इसकी असन्तोषजनक विशेषताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
सन्तोषजनक विशेषता-भारत में भूमि के उपयोग की सन्तोषजनक विशेषता यह है कि देश में शुद्ध बोए गए क्षेत्र का विस्तार हो रहा है। पिछले तीन दशकों में इसमें 2.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप आजकल यह क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेयर हो गया है। यह कुल कृषि का 47.7 प्रतिशत है।
असन्तोषजनक विशेषताएं-भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की निम्नलिखित दो असन्तोषजनक विशेषताएं हैं —

  1. भारत में वन-क्षेत्र बहुत कम है। यहां केवल 22.7 प्रतिशत भूमि पर ही वन हैं, परन्तु आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रों में वनों का होना अनिवार्य है।
  2. भारत में चरागाह क्षेत्र भी बहुत कम है।

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प्रश्न 4.
परती भूमि तथा बंजर भूमि में अन्तर बताओ। परती भूमि से किसानों को होने वाले दो लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
परती भूमि-परती भूमि वह सीमान्त भूमि है जिसमें हर वर्ष फ़सलें पैदा नहीं की जाती। ऐसी भूमि से दो या तीन वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है। एक फसल लेने के बाद इसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इसका बहुत कुछ उपयोग अच्छी तथा समय पर होने वाली वर्षा पर निर्भर करता है। बंजर भूमि-बंजर भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जिसका उपयोग नहीं हो रहा है। इसमें मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा मरुभूमियां शामिल हैं।
परती भूमि के लाभ-

  1. परती भूमि अपनी खोई हुई उर्वरता फिर से प्राप्त कर लेती है।
  2. भूमि की उत्पादकता बढ़ जाने के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।

प्रश्न 5.
किस कारण से हमें अपने वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है?
अथवा
आप कैसे कह सकते हैं कि पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए बड़ा वन क्षेत्र होना अनिवार्य है?
उत्तर-
भारत में वन क्षेत्र वैज्ञानिक आदर्श से कम हैं, परन्तु आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिक सन्तुलन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक बड़े वन-क्षेत्र का होना आवश्यक है। एक बात ध्यान देने योग्य यह कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता ग्रीन हाऊस के प्रभाव को बढ़ा देती है। इससे तापमान इतना अधिक बढ़ सकता है कि बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में समुद्र तट के निकटवर्ती क्षेत्र पानी में डूब जाएंगे। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने वन क्षेत्र को बढ़ाएं।

प्रश्न 6.
भारतीय कषि की पिछड़ी दशा के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर-
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय किसान प्राचीन ढंग से खेती करते हैं। वे आधुनिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम करते हैं।
  2. उनके कृषि के उपकरण पुराने ढंग के हैं।
  3. किसान उत्तम बीजों का प्रयोग नहीं करते हैं। इससे उत्पादन कम होता है।
  4. भारत का किसान निर्धन तथा निरक्षर है। यह बात कृषि की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी हुई है।

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प्रश्न 7.
कृषि की उन्नति के लिए सरकार द्वारा कौन-से पाँच कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि की उन्नति के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने जो पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं, उनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. किसानों को नवीन कृषि विधियों से परिचित करवाया जा रहा है।
  2. किसानों को सस्ती दरों पर ऋण की सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि वे नए कृषि-यन्त्र खरीद सकें।
  3. बांध बना कर नहरी सिंचाई का विस्तार किया जा रहा है।
  4. खेतों में चकबन्दी कर दी गई है ताकि खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े न होने पाएं।
  5. अधिक-से-अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई जा रही है ताकि फसलों की नलकूपों द्वारा सिंचाई की जा सके।

प्रश्न 8.
भारत की वर्तमान कृषि की दशा सुधारने के लिए कोई पांच उपाय सुझाइए।
उत्तर-

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।
  4. सिंचाई की सुविधाओं का विकास करना चाहिए।
  5. राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा किसानों को आसान शर्तों पर ऋण देने चाहिएं।

प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि और व्यापारिक कृषि में अन्तर करने के साथ प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान अपनी फ़सल से केवल अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। व्यापारिक कृषि में प्रायः एक ही फ़सल की खेती पर बल दिया जाता है और यह कृषि बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। उदाहरण: निर्वाह कृषि-भारत में गेहूँ की कृषि। व्यापारिक कृषि-भारत में चाय की कृषि।

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प्रश्न 10.
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलों के नाम बताइए। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए दो उपाय लिखिए।
उत्तर-
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलें चाय तथा पटसन हैं। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं —

  1. कृषि का विशिष्टीकरण करना चाहिए। अर्थात् एक क्षेत्र में केवल एक ही व्यापारिक फ़सल बोनी चाहिए।
  2. परिवहन एवं संचार के साधनों का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहिए।

प्रश्न 11.
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो रोपण फ़सलों के नाम बताइए। गन्ने की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश में होती है। दो कारण लिखिए।
उत्तर-
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो अन्य रोपण फ़सलें गन्ना और कपास हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की अधिक खेती होने के दो कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने के लिए गर्म-आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश की जलवायु इसके अनुकूल है।
  2. गन्ने की कृषि से सम्बन्धित अधिकतर काम हाथों से करने पड़ते हैं। अत: सस्ते श्रमिकों का मिलना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में अधिक जनसंख्या के कारण मजदूरी सस्ती है।

प्रश्न 12.
जूट (पटसन) मुख्यतः पश्चिमी बंगाल में क्यों उगाया जाता है? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
पटसन से रस्सियां, बोरियां, टाट आदि वस्तुएं बनाई जाती हैं। यह अधिकतर पश्चिमी बंगाल में पैदा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि पटसन के लिए बहुत ही उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है और पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी हर साल नई मिट्टी लाकर बिछा देती है। नदी द्वारा लाई गई मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है। दूसरे, बंगाल की जलवायु भी पटसन के लिए आदर्श है।

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प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि का विकास बड़ी तेजी से हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन पहले से तीन गुना हो गया है। विभाजन के कारण जूट तथा कपास के उत्पादन में कमी आ गई थी, परन्तु अब इस कमी को पूरा कर लिया गया है। यहां प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ी है। अधिक भूमि हल के नीचे लाई गई है और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार अधिक क्षेत्र में किया गया है। कृषि के नवीन ढंग भी अपनाए गए हैं।

प्रश्न 14.
तेजी से बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में क्या-क्या सुधार किए जाने चाहिएं?
उत्तर-
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में निम्नलिखित सुधार किए जाने चाहिएं —

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।

प्रश्न 15.
चावल की उपज पंजाब में क्यों बढ़ रही है ? कोई चार कारण लिखो।
उत्तर-
पंजाब में चावल की उपज बढ़ने के निम्नलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब का कृषक गहन कृषि करता है और वह अपने खेतों में अच्छे बीजों और अच्छी खादों का प्रयोग करता है।
  2. यहां सिंचाई के साधन बड़े उन्नत हैं।
  3. पंजाब की भूमि उपजाऊ है और यहां के किसान बड़े परिश्रमी हैं।
  4. यहां का कृषि विश्वविद्यालय किसानों को उपज बढ़ाने के नए-नए ढंगों से परिचित कराता रहता है।

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प्रश्न 16.
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण क्या हैं?
उत्तर-
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने की खेती केवल वर्षा पर ही निर्भर है, परन्तु भारत की वर्षा अनिश्चित तथा अनियमित है।
  2. भारत में गन्ने की उन्नत किस्म का अभाव है। इसलिए गन्ने का उत्पादन कम होता है।
  3. आर्द्रता कम होने के कारण गन्ने का रस सूख जाता है।
  4. भारत में कृषि के पुराने ढंग प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
फल उत्पादन में भारत की क्या स्थिति है?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु होने के कारण भारत कई प्रकार के फल पैदा करता है। हम हर वर्ष दो करोड़ टन फल पैदा करते हैं, परन्तु हमारे देश में फलों की प्रति व्यक्ति खपत बहुत ही कम है। आम, केला, संतरा और सेब हमारे देश के मुख्य फल हैं। आम हमारे देश का सबसे बढ़िया फल माना गया है। भारत में आमों की लगभग 100 किस्में उगाई जाती हैं। विदेशों में आम की मांग प्रति वर्ष बढ़ रही है। केला दक्षिणी भारत से आता है। संतरों के लिए: नागपुर और पूना प्रसिद्ध हैं। अंगूरों की खेती का विस्तार किया जा रहा है। सेब के लिए हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर राज्य प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 18.
श्वेत क्रान्ति का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
श्वेत क्रान्ति को ऑपरेशन फ्लड भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य दूध के उत्पादन को बढ़ाना है। ग्रामीण जीवन के सामूहिक विकास के लिए श्वेत क्रान्ति की सफलता अनिवार्य है। इससे छोटे और सीमान्त किसानों को अतिरिक्त आय हो सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खाद तथा बायो गैस प्राप्त की जा सकती है। दूध व्यवसाय के विकास से अनेक परिवार निर्धनता की रेखा से ऊपर उठ सकते हैं।

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प्रश्न 19.
भारत के मत्स्य उद्योग के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
हमें मछलियां तटीय भागों के साथ-साथ फैले बीस लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्राप्त हो सकती हैं। भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं। इससे सभी क्षेत्र मत्स्य क्षेत्र बन गए हैं। 1950-51 में मछली का उत्पादन 5 लाख टन था, जो 2000-01 में बढ़कर 5656 हज़ार टन (अनुमानित) हो गया। भारत में बने बांधों के पीछे झीलों में भी मछली पालने का व्यवसाय उन्नत किया जा रहा है।

प्रश्न 20.
भारत के पशुधन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारतीय किसान के लिए पशुओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत पशुओं की दृष्टि से संसार में सबसे आगे है। यहां भैंस, गाय, बैल, भेड़, बकरी, ऊंट तथा घोड़ा आदि पशु पाये जाते हैं।
महत्त्व-

  1. भारवाही पशु भारतीय किसान को कृषि कार्यों में सहायता देते हैं।
  2. दुधारू पशुओं के दूध से किसान को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
  3. पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र खाद का काम देते हैं।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में भूमि के विभिन्न उपयोगों के प्रारूप की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.7 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों में होता है —

  1. कृषि,
  2. चरागाह,
  3. वन,
  4. उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।

1. कृषि-भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 56 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। देश में 16.3 करोड़ हेक्टेयर … भूमि शुद्ध बोये गए क्षेत्र के अधीन है। 1.3 प्रतिशत भाग फलों की कृषि के अन्तर्गत आता है। पाँच प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है।
2. चरागाह-हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है। फिर भी यहां संसार में सबसे अधिक पशु पाले जाते हैं। इन्हें प्रायः पुआल, भूसा तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराये जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अन्तर्गत रखा गया है।
3. वन-हमारे देश में केवल 22.7 प्रतिशत से भी कम भूमि पर वन हैं। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रफल में वनों का होना आवश्यक है। अतः हमारे देश में वन-क्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम है। भूमि उपयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां वनों का विस्तार 6.7 करोड़ हेक्टेयर भूमि में है। परन्तु उपग्रहों द्वारा लिए गए छाया चित्रों के अनुसार यह क्षेत्र केवल 4.6 करोड़ हेक्टेयर ही है।
4. उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास-देश की शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास के लिए किया जा रहा है। परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन-स्तर के कारण मानव आवास के लिए भूमि की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप अन्य सुविधाओं के विकास के लिए भूमि का निरन्तर अभाव होता जा रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का उपयोग सन्तुलित नहीं है। अतः हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों में सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? कृषि की दशा को सुधारने के लिए कुछ सुझाव दो।
उत्तर-
कृषि के पिछड़ेपन के कारण-भारत की कृषि के पिछड़ेपन के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. कृषि की वर्षा पर निर्भरता — भारत का किसान सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर है, परन्तु वर्षा अविश्वसनीय तथा अनिश्चित होने के कारण हमारी कृषि पिछड़ी हुई है।
  2. भूमि में नाइट्रोजन का अभाव — भारत की भूमि में नाइट्रोजन की कमी है। इसका कारण यह है कि हज़ारों साल से हमारी भूमि पर कृषि हो रही है। इसके कारण हमारी भूमि की उपजाऊ शक्ति काफी कम हो गई है।
  3. उचित श्रम का अभाव — हमारे कृषक दुर्बल हैं। परिणामस्वरूप वे इतना परिश्रम नहीं कर पाते जितना कि कृषि के लिए आवश्यक है।
  4. खेतों का अपघटन — हमारे देश में पिता की मृत्यु के बाद भूमि उसके बेटों में बंट जाती है। इस प्रकार खेतों के आकार छोटे होते जाते हैं जिससे उत्पादन कम हो जाता है।
  5. कृषि के पुराने ढंग — भारतीय किसान अभी तक पुराने ढंग से कृषि कर रहा है। इस कारण हमारी कृषि पिछड़ी
  6. अच्छे बीजों का प्रयोग न करना — निर्धन होने के कारण भारतीय कृषक अच्छे बीजों का प्रयोग नहीं कर पाते। अतः हमारे खेतों में उपज कम होती है।
  7. धन का अभाव — कृषि के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है, परन्तु भारतीय कृषक निर्धन हैं।
  8. दुर्बल पश — भारतीय किसान बैलों की सहायता से अपने खेतों में हल चलाता है। परन्तु हमारे यहां के अधिकतर बैल अच्छी नस्ल के नहीं हैं। ये बैल दुर्बल होते हैं। इनसे कृषि का पूरा कार्य नहीं लिया जा सकता।
  9. निरक्षरता — भारतीय किसान निर्धन होने के अतिरिक्त निरक्षर भी हैं। अत: वह कृषि के नए ढंग अपनाने में कठिनाई अनुभव करता है।

कृषि की दशा सुधारने के उपाय-कृषि की दशा में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए जा सकते हैं —

  1. सहकारी कृषि-सहकारी कृषि की प्रणाली जारी करनी चाहिए। इससे खेत बड़े हो जाएंगे और सभी सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी।
  2. सिंचाई की अधिक सुविधाएं-कृषि की स्थिति में सुधार लाने के लिए सिंचाई की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिएं।
  3. गहन खेती-हमारे देश में किसान को गहन कृषि के ढंगों को अपनाना चाहिए। इससे भूमि की शक्ति बढ़ जाती है और थोड़ी-सी भूमि से भी अधिक ऊपज प्राप्त होती है।
  4. अच्छे बीज और खाद-सरकार को चाहिए कि वह किसानों को सस्ते दामों पर अच्छे बीज दे। अच्छी खाद खरीदने के लिए उन्हें सरकार द्वारा सहायता मिलनी चाहिए।
  5. नवीन कृषि यत्रों का प्रयोग यदि कृषि के नवीन यन्त्रों का प्रयोग किया जाए तो कृषि में काफी सुधार हो सकता है। सरकार को इन औजारों को खरीदने के लिए कृषक की धन से सहायता करनी चाहिए। .

प्रश्न 3.
केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए कौन-कौन से प्रमुख कदम उठाए हैं?
उत्तर-
केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि में बार-बार एक ही फसल बोने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि की इस शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद भी देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन- खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। अब लकड़ी की जगह लोहे का हल प्रयोग किया जाता है। बड़े-बड़े खेतों में ट्रैक्टरों से जुताई की जाती है। फसल काटने तथा बोने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं में भाखडा – नंगल योजना, तुंगभद्रा योजना तथा दामोदर घाटी योजना प्रमुख हैं।

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प्रश्न 4.
भारत की प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्यों के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्य —

क्र० सं० फ़सल का नाम उत्पादक राज्य
1. चावल पश्चिमी बंगाल, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब।
2. गेहूं उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, गुजरात तथा महाराष्ट्र।
3. ज्वार, बाजरा ज्वार-कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान।
बाजरा-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात व राजस्थान।
4. मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान।
5. दालें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा।
6. कपास गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु।
7. तिलहन सरसों, तोरिया—उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान।
मूंगफली—पश्चिमी और दक्षिणी भारत, गुजरात, महाराष्ट्र। मध्य प्रदेश तिलहन उत्पादन का मुख्य राज्य है। दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है।
8. गन्ना तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, गुजरात।

 

भूमि उपयोग एवं कृषि विकास PSEB 10th Class Geography Notes

  • भूमि उपयोग-भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि० मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.2 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यतः चार रूपों में होता है-(1) कृषि, (2) चरागाह, (3) वन, (4) उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।
  • कृषि–भारत के लगभग 51 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। इसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि दोनों सम्मिलित हैं।
  • शद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि-शुद्ध बोया गया क्षेत्र वह कृषि क्षेत्र है जिस पर एक समय में फसलें उग रही होती हैं। परती भूमि वह भूमि है जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जातीं। इससे एक फसल लेने के बाद इसे एक-दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह फिर से उर्वरा शक्ति प्राप्त कर ले।
  • बंजर भूमि-जिस भूमि का उपयोग नहीं हो रहा है, उसे बंजर भूमि कहा जाता है। इसमें चट्टानी प्रदेश, ऊंचे पर्वत, रेतीले मरुस्थल आदि शामिल हैं। इसे मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण आदि को रोक कर उपयोगी बनाया जा सकता है।
  • वन क्षेत्र-आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक तिहाई क्षेत्रफल पर वन का होना अनिवार्य है परन्तु खेद की बात है कि भारत में केवल 22.7 प्रतिशत क्षेत्र पर वन हैं। इसलिए वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है।
  • कृषि का महत्त्व-कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार रहा है। हमारी जनसंख्या के 2/3 भाग की जीविका का आधार कृषि ही है। पशुपालन, मत्स्य ग्रहण तथा वानिकी भी कृषि के ही अन्तर्गत आते हैं।
  • कृषि विकास-स्वतन्त्रता के बाद भारतीय कृषि का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन तिगुना हो गया है। संसार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10-11 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है, परन्तु सौभाग्य से भारत का 51 प्रतिशत क्षेत्रफल कृषि अधीन है।
  • कृषि से सम्बन्धित समस्याएं-भारतीय कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। अधिकतर जोतें छोटी हैं। वनों और चरागाहों के कम होते जाने के कारण मृदा की प्राकृतिक उर्वरता बनाए रखने के स्रोत भी सूखते जा रहे हैं।
  • कृषि एक प्रगतिशील उद्योग-कृषि को इसकी निर्वाह अवस्था से हटाकर एक आत्म-निर्भर प्रगतिशील उद्योग बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं। ज़मींदारी प्रथा कानून बना कर समाप्त कर दी गई है। चकबन्दी के द्वारा दूर-दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदल दिया गया है। सहकारिता आन्दोलन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक जिले में मार्गदर्शक बैंक खोले गए हैं। राष्ट्रीय बीज निगम, भूमि उपयोग एवं कृषि विकास केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि प्रदर्शन फार्मों, डेरी विकास बोर्ड तथा ऐसी अन्य संस्थाओं का गठन भी किया गया है।
  • प्रमुख फसलें-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां गेहूं, चावल, कपास, पटसन, गन्ना, चाय, कहवा, ज्वारबाजरा आदि कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
  • बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अनाज-भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करके अनाजों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
  • खाद्यान्न फसलें-भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं, चावल और मक्का हैं। गेहूं मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है। चावल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा आदि हैं। मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होता है।
  • रेशेदार फसलें-भारत की प्रमुख रेशेदार फसलें कपास और पटसन हैं। कपास से सूती वस्त्र बनते हैं। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में होती है। पटसन का मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।
  • चाय तथा कहवा-चाय तथा कहवा मुख्य पेय पदार्थ हैं। चाय की कृषि असम, मेघालय, पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। कहवा कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में उगाया जाता है।
  • पशुधन-पशुओं की संख्या में भारत संसार में सबसे आगे है। परन्तु यहां अच्छी नस्ल के पशुओं का अभाव है। अतः केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पशु धन के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
18वीं सदी में सिक्खों के मुगलों के साथ संघर्ष की मुख्य घटनाओं की लगभग चर्चा करें ।
उत्तर-
18वीं शताब्दी के आरम्भ में सिक्ख गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे । परन्तु 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु साहिब की नए मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मित्रता हो गई । इससे अगले ही वर्ष गुरु साहिब जी का भी देहान्त हो गया । तत्पश्चात् सिक्खों ने बन्दा बहादुर के अधीन मुग़लों का डटकर सामना किया । बन्दा के बलिदान के बाद सिक्खों के लिए अन्धकार युग आरम्भ हुआ । परन्तु वे अपनी वीरता एवं साहस के बल पर सदा आगे ही बढ़ते रहे । अन्ततः वे कुछ प्रमुख सिक्ख सरदारों के साथ अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में सफल हुए। यही सिक्ख राज्य 18वीं शताब्दी के अन्त में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का आधार बने । संक्षेप में, 18वीं सदी में सिक्खों के मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष की मुख्य घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है :

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन-

1699 ई० में गुरु जी ने खालसा की स्थापना की और सिक्खों को सिंह का रूप दिया । खालसा की स्थापना के पश्चात् पहाड़ी राजा गुरु जी से भयभीत हो गए और उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध मुग़लों की सहायता प्राप्त की। आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई में मुगलों ने पहाड़ी राजाओं की सहायता की। 1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखे-प्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। वहां भी मुग़लों तथा पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। गुरु जी ने अपने चारों पुत्र शहीद करवा दिए, फिर भी मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

2. बन्दा बहादुर के अधीन-

बन्दा बहादुर एक वैरागी था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और उनसे बड़ा प्रभावित हुआ। वह अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु जी ने अकाल चलाना करने से पूर्व बन्दा बहादुर को आदेश दिया कि वह सिक्खों की सहायता से वजीर खां से टक्कर ले। इस सम्बन्ध में उन्होंने पंजाब के सिक्खों के नाम आदेश-पत्र जारी कर दिए। पंजाब पहुँच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। शीघ्र ही वह पंजाब में सिक्ख राज्य स्थापित करने में सफल रहा।

सर्वप्रथम बन्दा ने समाना पर आक्रमण किया। वहां उसने भारी लूटमार की तथा अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद उसने कपूरी नगर को लूटा। इसके बाद साढौरा की बारी आई। सढौरा का शासक उस्मान खां था। वह हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था। बन्दा ने उसे दण्ड देने का निश्चय किया और सढौरा पर धावा बोल दिया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि इस स्थान का नाम ही कत्लगढ़ी पड़ गया। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया। इसमें 28 परगने थे। शीघ्र ही बन्दा ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इस सारे प्रदेश का वार्षिक कर 50 लाख रुपए के लगभग था।

3. लाहौर के मुग़ल गवर्नरों (सूबेदार) के विरुद्ध सिक्ख संघर्ष –

1716 ई० में बन्दा बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग आ गया। इस युग में मुग़लों ने सिक्खों का अस्तित्व मिटा देने का प्रयत्न किया। परन्तु सिक्ख अपनी वीरता और साहस के बल पर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे। 1716 से 1752 तक लाहौर के पांच मुग़ल सूबेदारों ने सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। इनमें से पहले गवर्नर अब्दुल समद को लाहौर से मुल्तान भेज दिया गया और उसके पुत्र जकरिया खां को लाहौर का सूबेदार बनाया गया। उसे हर प्रकार से सिक्खों को दबाने के आदेश दिए गए। उसने कुछ वर्षों तक तो अपने सैनिक बल द्वारा सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे भी कोई सफलता मिलती दिखाई न दी तो उसने अमृतसर के निकट सिक्खों को एक बहुत बड़ी जागीर देकर उन्हें शान्त करने का प्रयत्न किया। उसने मुग़ल सम्राट् से स्वीकृति भी ले ली थी कि सिक्ख नेता को नवाब की उपाधि दी जाए। यह उपाधि कपूर सिंह को मिली और वह नवाब कपूर सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फलस्वरूप कुछ समय तक सिक्ख शान्त रहे और उन्होंने अपने-अपने जत्थों को शक्तिशाली बनाया। इसी बीच कुछ जत्थेदारों ने फिर से मुग़लों का विरोध करना और सरकारी खजानों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे मुग़लों और सिक्खों में फिर ज़ोरदार संघर्ष छिड़ गया।

इन परिस्थितियों में जकरिया खां ने सिक्खों से जागीर छीन ली और पुनः अपने सैनिकों की सहायता से उन्हें दबाने में जुट गया। सिक्खों में आतंक फैलाने के लिए उसने भाई मनी सिंह को लाहौर में शहीद करवा दिया। भाई मनी सिंह अमृतसर में रहते थे और सिक्खों को एकता और स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करते रहते थे। 1738-39 में ईरान के शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण जकरिया खां को सिक्खों की ओर से अपना ध्यान हटाना पड़ा। फलस्वरूप सिक्खों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिल गया। उन्होंने अपनी शक्ति इतनी बढ़ा ली कि जब नादिर शाह वापस काबुल जाने लगा तो सिक्खों ने उसके सैनिकों से घोड़े और युद्ध सामग्री छीन ली। उनका साहस देख कर जकरिया खां भी सोच में पड़ गया। अत: नादिरशाह की वापसी के बाद उसने सिक्खों को दबाने के और भी अधिक प्रयत्न किए। उसने अमृतसर पर अधिकार करके अपनी सैनिक चौकी बिठा दी। यह बात सिक्खों के लिए असहनीय थी क्योंकि उनके लिए अमृतसर बड़ा पवित्र स्थान था। अन्त में दो सिक्खों ने अमृतसर के थानेदार मस्सा रंघड़ का वध करके ही चैन लिया। 1745 ई० में जकरिया खां की मृत्यु हो गई। इस समय तक सिक्खों की शक्ति बहुत अधिक बढ़ चुकी थी।

1745 से 1752 तक पंजाब की राजनीतिक दशा खराब रही। पहले तो जकरिया खां के पुत्र याहिया खां और शाहनवाज़ खां लाहौर की सूबेदारी लेने के लिए एक-दूसरे का विरोध करते रहे। अत: उनमें से कोई भी सिक्खों की ओर ध्यान न दे सका। 1747-48 को काबुल के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण कर दिया। वह नादिरशाह की मृत्यु के पश्चात् अफ़गानिस्तान का शासक बना था। वह नादिरशाह के साथ भारत भी आया था और मुग़ल सम्राट की कमजोरी को भली-भान्ति जानता था। वह भारत का धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाना चाहता था। इसी समय शाहनवाज़ खां ने उसे भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। उसके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुए उसने लाहौर पर आक्रमण कर दिया। अब शाहनवाज़ खां ने दिखावे के लिए उसे रोकने का असफल प्रयास किया। अहमदशाह अब्दाली सतलुज पार करके दिल्ली की ओर बढ़ने लगा परन्तु सरहिन्द के निकट दिल्ली के मुख्यमन्त्री कमरुद्दीन खां के पुत्र मुइनुलमुल्क ने उसे पराजित करके वापस काबुल लौटने पर विवश कर दिया। मुइनुलमुल्क की इस सफलता के कारण उसे लाहौर का सूबेदार बना दिया गया। वह भीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मीर मन्न के सूबेदार बनने के पश्चात् दो वर्ष के अन्दर ही अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर फिर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू को दिल्ली से कोई सहायता न मिली। अतः अहमदशाह अब्दाली का सामना करने की बजाय उसने उसे पंजाब के चार परगनों का लगान देना स्वीकार कर लिया। 1752 में अहमदशाह अब्दाली ने एक बार फिर पंजाब पर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू ने उसका सामना किया, परन्तु पराजित हुआ। अहमदशाह अब्दाली ने लाहौर पर अधिकार करके मीर मन्नू को ही वहां अपना सबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार पंजाब में मुग़ल राज्य का अन्त हो गया। मीर मन्नू ने इससे पहले मुग़ल सूबेदार के रूप में सिक्खों को दबाने का काफ़ी प्रयत्न किया था। अब इस दिशा में उसने अपने प्रयत्न तेज़ कर दिये। परन्तु सिक्खों की संख्या और शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। मीर मन्नू की मृत्यु (1753 ई०) से पहले उन्होंने कुछ प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लिया था।

4. सिक्ख मिसलों की स्थापना-

पंजाब के मुस्लिम गवर्नरों याहिया खां, जकरिया खां, मीर मन्नू आदि ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। परन्तु ज्यों-ज्यों शासकों के अत्याचार बढ़ते गए, त्यों-त्यों सिक्खों का संकल्प दृढ़ होता गया। उनके अत्याचारों का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए सिक्खों ने अपने जत्थों का संगठन करना आरम्भ कर दिया। आरम्भ में केवल दो ही जत्थे थे परन्तु धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ कर लगभग 65 हो गई। अतः सिक्ख नेताओं के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई कि इनका नेतृत्व किस प्रकार किया जाए। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सिक्खों के 12 जत्थे बनाए गए। प्रत्येक जत्थे के पास अपना नगारा तथा झण्डा होता था। यही जत्थे बाद में मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। 12 सिक्ख मिसलों के नाम ये थे—

  1. सिंहपुरिया
  2. आहलूवालिया
  3. भंगी
  4. रामगढ़िया
  5. शुकरचकिया
  6. कन्हैया
  7. फुल्किया
  8. डल्लेवाल
  9. नकअई
  10. शहीदी
  11. करोड़सिंधिया
  12. निशानवालिया।

बाद में इन मिसलों पर रणजीत सिंह ने अपना अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 2.
विभिन्न सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य स्थापना के सन्दर्भ में सिक्खों तथा पठानों (अफ़गानों) के बीच चर्चा करते हुए इसमें सिक्खों की विजय के कारण बताएं।
उत्तर-
बन्दा बहादुर की मृत्यु के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग प्रारम्भ हो गया। इस समय में पंजाब के मुग़ल गवर्नरों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। इसके साथ अफ़गानिस्तान के पठान शासक अहमदशाह अब्दाली ने भी पंजाब पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। अत: सिक्खों को पठानों से भी संघर्ष करना पड़ा। परन्तु मुग़ल अत्याचारों का सामना करतेकरते सिक्ख इस समय तक किसी भी प्रकार के संघर्ष के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे। उन्हें गुरिल्ला युद्ध का अनुभव हो चुका था। उनकी यह धारणा भी दृढ़ हो चुकी थी कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना इसलिए की थी कि सिक्ख स्वतन्त्र राज्य स्थापित करके स्वयं शासन करेंगे। ‘राज करेगा खालसा’ में उनका दृढ़ विश्वास था। इस विश्वास को व्यावहारिक रूप देने के लिए वे समय-समय पर छोटे-छोटे प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लेते थे। अतः जब अहमदशाह अब्दाली का ध्यान सिक्खों की ओर गया, उस समय तक सिक्ख अत्यन्त शक्तिशाली हो चुके थे। संक्षेप में, पठानों के विरुद्ध सिक्खों के संघर्ष, सिक्ख सरदारों द्वारा राज्य स्थापना तथा इस संघर्ष में सिक्खों की विजय के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध संघर्ष –

अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई० में मराठों को पंजाब छोड़ने के लिए विवश किया और उनकी शक्ति को पूरी तरह कुचलने के लिए दिल्ली की ओर बढ़ा। वह 1760 ई० में सारा वर्ष भारत में ही रहा और मराठों के विरुद्ध गठबन्धन करता रहा। 1761 ई० के आरम्भ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे इतनी बुरी तरह से पराजित हुए कि वे पंजाब पर अधिकार बनाए रखने योग्य न रहे। इस सारे समय में सिक्खों ने अपनी कार्यवाही जारी रखी और जालन्धर, बारी तथा रचना दोआब के बहुत-से प्रदेश अपने अधिकार में ले लिए। सतलुज और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेशों में से कुछ पर फूल वंश के सिद्ध बराड़ों ने अपना अधिकार कर लिया, जिनमें से आला सिंह मुख्य था।

अहमदशाह अब्दाली के लिए अब एक नई समस्या उत्पन्न हो गई। उसे यह आभास होने लगा कि पंजाब पर राज्य करने के लिए उसे मुग़लों और मराठों से नहीं अपितु सिक्खों से निपटने की आवश्यकता है। 1761 में काबुल वापस लौटने से पहले उसने पंजाब में अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर दिए। परन्तु सिक्खों ने अनेक स्थानों से उन्हें मार भगाया। लाहौर का पठान सूबेदार भी सिक्खों के सामने विवश हो गया। फलस्वरूप 1762 ई० में अहमदशाह अब्दाली ने सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए पुनः पंजाब पर आक्रमण कर दिया। उसने मलेरकोटला के निकट दल खालसा पर आक्रमण करके एक ही दिन में लगभग 15 हज़ार से भी अधिक सिक्खों को मार डाला। सिक्ख इस लड़ाई में लड़ने के साथ-साथ अपने सामान और साथियों को बचाने का प्रयत्न भी कर रह थे। इस कारण उन्हें इस भयंकर रक्तपात का मुंह देखना पड़ा। सिक्ख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से प्रसिद्ध है। इससे पहले छोटा घल्लूघारा 1746 ई० में उस समय हुआ था जब दीवान लखपत राय ने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए कई हज़ार सिक्खों का वध कर दिया था।

बड़े घल्लूघारे का सिक्खों की शक्ति पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ा। कुछ मास पश्चात् ही वे अमृतसर के निकट अहमदशाह अब्दाली से एक बार फिर लड़े। एक दिन की लड़ाई के पश्चात् अहमदशाह अब्दाली मैदान छोड़कर लाहौर भाग गया। काबुल वापस लौटने से पहले वह सरहिन्द और पंजाब में अपने गवर्नर नियुक्त कर गया। परन्तु सिक्खों के आगे उनकी एक न चली। 1763 में उन्होंने सरहिन्द के पठान शाक जैन खां को लड़ाई में मार डाला और सरहिन्द पर अपना अधिकार कर लिया। सिक्खों के भय के कारण लाहौर का सूबेदार भी कभी किले से बाहर आने का साहस नहीं करता था। 1764-65 ई० में अहमदशाह अब्दाली एक बार फिर पंजाब आया, परन्तु सिक्खों से लड़े बिना ही वापस लौट गया। उसके चले जाने के तुरन्त पश्चात् ही सिक्खों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और वहां अपना सिक्का जारी करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अहमदशाह अब्दाली इसके बाद सात-आठ वर्ष और जीवित रहा। परन्तु इस अवधि में उसने फिर कभी पंजाब को सिक्खों से जीतने का विचार न किया।

2. सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य की स्थापना –

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के पश्चात् रिक्खों ने अपनी शक्ति बढ़ानी आरम्भ की। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की। लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊंट तथा सामान छीन लिया। 1748 ई० में वे बैसाखी के अवसर पर अमृतसर में एकत्रित हुए। नवाब कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया। दल खालसा में कुल मिला कर 11 जत्थे थे, जिनमें प्रत्येक का अपनाअपना नाम, नेता तथा झण्डा था।

सिक्खों के 11 जत्थों तथा उनके नेताओं के नाम इस प्रकार थे-(1) आहलूवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता दल खालसा का प्रधान सेनापति जस्सा सिंह आहलवालिया था।
(2) फैज़लपुरिया जत्था-इसका नेता नवाब कपूर सिंह था जिसका सम्बन्ध फैजलपुरिया गांव से था।
(3)शुकरचकिया जत्था-इसका नेता पहले बोध सिंह था, परन्तु बाद में यह पद चढ़त सिंह ने सम्भाला।
(4) निशानवालिया जत्था-इसका नेता दसौंदा सिंह था जो ‘दल खालसा’ का झण्डा (निशान) उठाया करता था।
(5) भंगी जत्था-इसका नेता पहले भूमा सिंह था, परन्तु बाद में हरिसिंह इसका नेता बना।
(6) नक्कई जत्था-इस जत्थे का नेता हरिसिंह था।
(7) डल्लेवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता गुलाब सिंह था, जो डल्लेवाल गाँव से था।
(8) कन्हैया जत्था-इसका नेता सरदार जयसिंह था।
(9) करोड़सिंधिया जत्था-इस जत्थे का नेता सरदार करोड़ सिंह था।
(10) दीप सिंह जत्था-इसका नेता दीप सिंह था। उसी के नाम पर ही इस जत्थे को दीप सिंह जत्था कहा जाता था। बाद में इसे शहीद जत्था कहा जाने लगा।
(11) नन्द सिंह जत्था-इसका नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस जत्थे को बाद में रामगढ़िया जत्था कहा जाने लगा। सिक्ख सरदारों द्वारा स्थापित यही जत्थे बाद में स्वतन्त्र सिक्ख राज्यों में परिवर्तित हुए और मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। परन्तु मिसलों की कुल संख्या 12 थी।

पठानों के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कारण-पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कई कारण थे-
1. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए सिक्खों के सामने केवल एक ही उद्देश्य था और वह था पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका।

2. सिक्ख बड़े वीर थे और वे युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे।

3. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी नि:स्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़े।

4. सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति भी उनकी सफलता का कारण बनी।

5. सिक्ख-अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। अफ़गानों की लूटमार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे।

6. अब्दाली के सभी प्रतिनिधि अयोग्य सिद्ध हुए। उनमें राजनीतिक दूरदर्शिता तथा सूझ-बूझ की कमी थी। अतः वे अब्दाली के बाद पंजाब पर अपना नियन्त्रण न रख सके।

7. अहमदशाह अब्दाली का साम्राज्य बड़ा विस्तृत था। उसने जब कभी भारत पर आक्रमण किया उसके पीछे उसके राज्य के किसी-न-किसी भाग में अवश्य विद्रोह हुआ। अत: उसे अपनी भारतीय विजयों को स्थायी बनाए बिना ही वापस लौट जाना पड़ा।

8. सिक्खों को योग्य सेनापतियों का नेतृत्व प्राप्त था। जस्सा सिंह आहलूवालिया इस संघर्ष में सिक्खों की आत्मा थे। संघर्ष के अन्तिम चरण में चढ़त सिंह शुकरचकिया, हरिसिंह भंगी तथा अन्य सरदारों ने भी सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इसके विपरीत अफ़गान नेता इतने योग्य नहीं थे।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में

प्रश्न 1.
औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत का मुगल सम्राट् कौन बना ?
उत्तर-
बहादुरशाह प्रथम।।

प्रश्न 2.
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ कैसे सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 3.
जाटों के नेताओं के नाम लिखो जिन्होंने मुगलों से संघर्ष किया।
उत्तर-
मुग़लों के साथ संघर्ष करने वाले मुख्य जाट नेता गोकुल, राजाराम तथा चूड़ामणि (चूड़ामन) थे।

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प्रश्न 4.
भरतपुर में स्वतन्त्र राज्य की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
जाट नेता चूड़ामणि (अथवा चूड़ामन) ने।

प्रश्न 5.
सतनामी कहां के रहने वाले थे ?
उत्तर-
सतनामी नारनौल के रहने वाले थे।

प्रश्न 6.
(i) बन्दा बहादुर ने किस स्थान को अपनी राजधानी बनाया तथा
(ii) इसका नया नाम क्या रखा ?
उत्तर-
(i) बन्दा बहादुर ने मुखलिसपुर को अपनी राजधानी बनाया।
(ii) उसने यहां के किले की मुरम्मत करवाई और इसका नाम लौहगढ़ रखा।

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प्रश्न 7.
सिक्खों के दो दलों के नाम लिखो। उत्तर-बुड्ढा दल तथा तरुण दल। प्रश्न 8. दल खालसा की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 1748 ई० में हुई।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) शुजाऊद्दौला …………. ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा ।
(ii) अली मुहम्मद खां …………… ई० में सरहिंद का शासक बना।
(iii) जाब्ता खां …………… का उत्तराधिकारी था।
(iv) अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला (1747-48) ……….. के आमंत्रण पर किया।
(v) महासिंह शुकरचकिया मिसल के सरदार …………. का पुत्र था।
उत्तर-
(i) 1762
(ii) 1745
(iii) नजीबुद्दौला
(iv) शाहनवाज़ खां
(v) चढ़त सिंह।

3. सही/गलत कथन

(i) सदाअत खां बंगाल का सूबेदार था। — (✗)
(ii) अलीवर्दी खां ने मराठों के साथ 1751 में संधि की। — (✓)
(iii) मुइनुलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। — (✓)
(iv) लाहौर का सूबेदार जकरिया खां मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध था। — (✗)
(v) चालीस मुक्ते मुक्तसर की लड़ाई से संबंधित थे। — (✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
सफ़दरजंग सूबेदार था-
(A) बंगाल का
(B) बिहार का
(C) अवध का
(D) मालवा का ।
उत्तर-
(C) अवध का

प्रश्न (ii)
जाट नेता सूरजमल का उत्तराधिकारी था
(A) मोहर सिंह
(B) बदन सिंह
(C) साहिब सिंह
(D) जवाहर सिंह ।
उत्तर-
(D) जवाहर सिंह ।

प्रश्न (iii)
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी थी
(A) हरगोबिंदपुर
(B) भरतपुर
(C) करतारपुर
(D) कपूरथला ।
उत्तर-
(A) हरगोबिंदपुर

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प्रश्न (iv)
निम्न में से किस सिख राजा ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया?
(A) महा सिंह
(B) आला सिंह
(C) चढ़त सिंह
(D) कपूर सिंह ।
उत्तर-
(B) आला सिंह

प्रश्न (v)
जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी थी-
(A) कपूरथला
(B) जालंधर
(C) अमृतसर
(D) मुक्तसर ।
उत्तर-
(A) कपूरथला

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान के स्रोतों की चार किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान सम्बन्धी चार प्रकार के स्रोत हैं- इसरारे समदी, काजी नूर का जंगनामा, खुशवन्त राय की एहवाव-ए-सिखां तथा अहमदशाह बटालिया की तारीख-ए-हिन्द नामक पुस्तकें।

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प्रश्न 2.
18वीं सदी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है और यह किसने लिखी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति ‘गुरु पन्थ प्रकाश’ है। यह पुस्तक रतन सिंह भंगू ने लिखी।

प्रश्न 3.
18वीं सदी में गंगा के मैदान में जिन चार नई शक्तियों का उदय हुआ उनके नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में गंगा के मैदान में उदय होने वाली चार नई शक्तियां थीं-बंगाल, अवध, पंजाब के सिक्ख तथा जाट।

प्रश्न 4.
18वीं सदी में राजस्थान के कौन-से दो राज्यों के शासकों ने अपनी स्थिति मजबूत की तथा बाद में वे किन दो शक्तियों के अधीन हो गए ?
उत्तर-
18वीं सदी में राजस्थान में जोधपुर तथा जयपुर के शासकों ने अपनी स्थिति मज़बूत की। बाद में वे क्रमश: मराठों तथा अंग्रेजों के अधीन हो गए।

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प्रश्न 5.
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुगल प्रान्त कौन-सा था और उसके सूबेदार का नाम क्या था ?
उत्तर-
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुग़ल प्रान्त बंगाल था। इसका सूबेदार मुर्शिद कुली खां था।

प्रश्न 6.
मुर्शिद कुली खां के अधीन कौन-से दो मुग़ल प्रान्त थे तथा उसने ढाका के स्थान पर किसे अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर-
मुर्शिद कुली खां के अधीन उड़ीसा तथा बंगाल के मुग़ल प्रान्त थे। उसने ढाका के स्थान पर मक्सूदाबाद को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 7.
अलीवर्दी खां ने कब-से-कब तक शासन किया ?
उत्तर-
अलीवी खां ने 1740 ई० से 1756 ई० तक शासन किया।

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प्रश्न 8.
अलीवर्दी खां के अधीन कौन-से तीन मुग़ल प्रान्त थे ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां के अधीन तीन मुग़ल प्रान्त थे- बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा।

प्रश्न 9.
अलीवर्दी खां को किस वर्ष में मराठों के साथ सन्धि करनी पड़ी और उसने उनको चौथ में कितना रुपया देना स्वीकार किया ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां को 1751 ई० में मराठों से सन्धि करनी पड़ी। उसने मराठों को चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया।

प्रश्न 10.
अवध का कौन-सा सूबेदार लगभग स्वतन्त्र हो गया और वह किस वर्ष में सूबेदार बना था ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सआदत खां लगभग स्वतन्त्र हो गया। वह 1722 ई० में अवध का सूबेदार बना था।

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प्रश्न 11.
अवध का कौन-सा सूबेदार मुगल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया तथा वह कब-से-कब तक उस पद पर रहा ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सफदरजंग मुग़ल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया। वह 1748 ई० से 1753 ई० तक इस पद पर रहा।

प्रश्न 12.
शुजाऊद्दौला कब लखनऊ की गद्दी पर बैठा तथा वह किस मुग़ल बादशाह का मुख्य वजीर बना ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1754 ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा। वह मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का मुख्य वज़ीर बना।

प्रश्न 13.
शुजाऊद्दौला किस वर्ष में अंग्रेजों से पराजित हुआ तथा उसने इनकी सहायता से कौन-सा इलाका और कब जीता ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1765 ई० में अंग्रेजों से पराजित हुआ। उसने अंग्रेजों की सहायता से 1774 ई० में रुहेलखण्ड का इलाका जीता।

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प्रश्न 14.
शुजाऊद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ? ।
उत्तर-
शुजाऊद्दौला की मृत्यु 1775 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी आसफुद्दौला था।

प्रश्न 15.
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम थे–अली मुहम्मद खां तथा नजीबुद्दौला (नजीब खां)।

प्रश्न 16.
रुहेला पठानों की जन्मभूमि अफ़गानिस्तान में कहां थी तथा भारत में उनके इलाकों को क्या कहा जाने लगा ?
उत्तर-
रुहेला पठानों की अफ़गानिस्तान में जन्म-भूमि रोह थी। भारत में इनके इलाकों को रुहेलखण्ड कहा जाने लगा।

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प्रश्न 17.
अली मुहम्मद खां रुहेला को मुग़ल बादशाह से कितना मनसब और कौन-सी उपाधि कौन-से वर्ष में मिली ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां रुहेला को 1740 ई० में मुग़ल बादशाह से 500 का मनसब और नवाब की उपाधि मिली।

प्रश्न 18.
अली मुहम्मद खां कौन-से वर्ष में सरहिन्द का शासक बना तथा वह कब रुहेलखण्ड वापस चला गया ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां 1745 ई० में सरहिन्द का शासक बना। वह 1748 ई० में रुहेलखण्ड वापस चला गया।

प्रश्न 19.
किस वर्ष में रुहेलखण्ड पर अवध का अधिकार हो गया तथा अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने कौन-सी रियासत दे दी ?
उत्तर-
रुहेलखण्ड पर 1774 ई० में अवध का अधिकार हो गया। अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने रामपुर की रियासत दे दी।

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प्रश्न 20.
नजीब खां ने किस इलाके में जागीर प्राप्त की तथा उसे नजीबुद्दौला की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
नजीब खां ने सहारनपुर के इलाके में जागीर प्राप्त की। उसे नजीबुद्दौला की उपाधि 1757 ई० में मिली।

प्रश्न 21.
पानीपत के युद्ध के बाद अहमदशाह अब्दाली तथा मुगल बादशाह की ओर से नजीबुद्दौला ने कौन-से दो दायित्व सम्भाले ?
उत्तर-
पानीपत के युद्ध के बाद नजीबुद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली की ओर से प्रमुख वज़ीर तथा मुग़ल बादशाह की ओर से मीर बख्शी के दायित्व सम्भाले।

प्रश्न 22.
नजीबुद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसके उत्तराधिकारी का क्या नाम था ?
उत्तर-
नजीबुद्दौला की मृत्यु 1770 ई० में हुई। उसके उत्तराधिकारी का नाम जाब्ता खां था।

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प्रश्न 23.
किस रुहेला सरदार ने 1788 में कौन-से मुगल बादशाह को अन्धा करवा दिया ?
उत्तर-
1788 में रुहेला सरदार गुलाम कादर ने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को अन्धा करवा दिया।

प्रश्न 24.
जाट किस इलाके में मुगल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे तथा उनके आरम्भिक नेता का नाम बताएं और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
जाट मथुरा के इलाके में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे। उनके आरम्भिक नेता का नाम चूड़ामन था, जिसकी मृत्यु 1772 ई० में हुई।

प्रश्न 25.
बदन सिंह की राजधानी कौन-सी थी तथा उसको मुगल बादशाह से राजा की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
बदन सिंह की राजधानी भरतपुर थी। उसे 1752 ई० में मुगल बादशाह से राजा की उपाधि मिली।

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प्रश्न 26.
बदन सिंह की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर-
बदन सिंह की मृत्यु 1756 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी सूरजमल था।

प्रश्न 27.
सूरजमल की मृत्यु कब हुई तथा उसके राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
सूरजमल की मृत्यु 1763 ई० में हुई। उसके राज्य का वार्षिक लगान एक करोड़ सत्तर लाख रुपये था।

प्रश्न 28.
सूरजमल का उत्तराधिकारी कौन था तथा उसने कब तक शासन किया ?
उत्तर-
सूरजमल का उत्तराधिकारी जवाहर सिंह था। उसने 1768 ई० तक शासन किया।

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प्रश्न 29.
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान कितना रह गया तथा यह रियासत बाद में कौन-सी दो शक्तियों के अधीन हो गई ?
उत्तर-
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान केवल 14 लाख रुपये रह गया। यह रियासत पहले मराठों तथा फिर अंग्रेजों के अधीन हो गई।

प्रश्न 30.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी इलाकों में किन तीन लोगों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आई थीं ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी प्रदेशों में पठानों, राजपूतों तथा सिक्खों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आईं।

प्रश्न 31.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ कौन-सी दो लड़ाइयां लड़ी ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ आनन्दपुर तथा निर्मोह की लड़ाइयां लड़ीं।।

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प्रश्न 32.
कौन-सी लड़ाई में गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो बड़े साहिबजादे शहीद हुए और किसने दो छोटे साहिबजादों को शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए। उनके दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के फौजदार वज़ीर खां ने शहीद करवा दिया।

प्रश्न 33.
‘चालीस मुक्ते’ कौन-सी लड़ाई के साथ सम्बन्धित हैं तथा यह किनके बीच हुई ?
उत्तर-
‘चालीस मुक्त’ मुक्तसर की लड़ाई से सम्बन्धित हैं। यह लड़ाई सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खां तथा गुरु गोबिन्द साहिब के बीच हुई।

प्रश्न 34.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किस मुग़ल बादशाह को पत्र लिखा तथा वे किस मुगल बादशाह से मिले ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब को पत्र लिखा। वह मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मिले।

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प्रश्न 35.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति-जोत कब और कहां समाए और यह स्थान वर्तमान भारत में किस राज्य में
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 1708 ई० में नन्देड़ में ज्योति-जोत समाए। यह स्थान वर्तमान भारत के महाराष्ट्र राज्य में

प्रश्न 36.
दक्षिण में गुरु गोबिन्द सिंह जी को कौन-सा वैरागी मिला तथा वह बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
दक्षिण में गुरु साहिब को माधोदास नामक वैरागी मिला। बाद में वह बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 37.
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के कितने परगनों पर अधिकार कर लिया तथा बन्दा के अधीन राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के 28 परगनों पर अधिकार कर लिया। उसके अधीन राज्य का वार्षिक लगान 50 लाख रुपये से अधिक था।

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प्रश्न 38.
बन्दा बहादुर ने किस किले का निर्माण करवाया तथा उसके सिक्के पर कौन-सी लिपि अंकित थी ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने लोहगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया। उसके सिक्के पर फ़ारसी लिपि अंकित थी।

प्रश्न 39.
बन्दा बहादुर को किस मुगल सूबेदार ने कौन-से स्थान पर घेरा ? बन्दा बहादुर को कब और कहां शहीद कर दिया गया ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर को मुग़ल सूबेदार अब्दुल समद खां ने गुरदास नंगल के स्थान पर घेरा। उसे 1716 ई० में दिल्ली में शहीद किया गया।

प्रश्न 40.
1716 से 1752 तक लाहौर के किन्हीं चार मुग़ल सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
1716 से 1752 तक लाहौर के चार सूबेदार थे-अब्दुल समद खां, जकरिया खां, याहिया खां तथा मीर मन्नू।

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प्रश्न 41.
जकरिया खां कब-से-कब तक लाहौर का सूबेदार रहा ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० से 1745 ई० तक लाहौर का सूबेदार रहा।

प्रश्न 42.
सिक्खों को जागीर किस सूबेदार ने दी तथा नवाब की उपाधि किस सिक्ख नेता को दी गई ?
उत्तर-
सिक्खों को सूबेदार जकरिया खां ने जागीर दी। नवाब की उपाधि सिक्ख नेता कपूर सिंह को दी गई।

प्रश्न 43.
कौन-से मुगल सूबेदार ने भाई मनी सिंह को कहां शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
भाई मनी सिंह को मुग़ल सूबेदार जकरिया खां ने लाहौर में शहीद करवाया।

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प्रश्न 44.
ईरान से कौन-सा आक्रमणकारी कब भारत आया ?
उत्तर-
ईरान से नादिरशाह नामक आक्रमणकारी भारत आया। उसने 1738-39 में भारत पर आक्रमण किया।

प्रश्न 45.
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला कब और किसके आमन्त्रण पर किया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला आक्रमण 1747-48 में किया। यह आक्रमण उसने शाहनवाज़ खां के निमन्त्रण पर किया।

प्रश्न 46.
मुइनुलमुल्क लाहौर का सूबेदार कब बना तथा वह किस नाम से प्रसिद्ध हआ ?
उत्तर-
मुइनलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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प्रश्न 47.
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी तरफ से सूबेदार कब नियुक्त किया तथा उसकी मृत्यु कब
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी ओर से 1752 ई० में सूबेदार नियुक्त किया। उसकी मृत्यु 1753 ई० में हुई।

प्रश्न 48.
‘गुरमत्ता’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरमत्ता का अर्थ है-गुरु ग्रन्थ साहिब की उपस्थिति में एकत्रित सिंहों द्वारा लिया गया निर्णय। सिंह इसे गुरु का निर्णय (मत) मानते थे।

प्रश्न 49.
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुगल बादशाह से कौन-से चार प्रान्त तथा कौन-सी सरकार ले ली ?
उत्तर-
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुग़ल बादशाह से लाहौर, मुल्तान, सिन्ध तथा कश्मीर के सूबे और सरहिन्द की सरकार ले ली।

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प्रश्न 50.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा 1762 में मलेरकोटला में हुआ। यह अहमदशाह अब्दाली और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 51.
‘छोटा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
छोटा घल्लूघारा 1746 में काहनूवान के निकट हुआ। यह घल्लूघारा दीवान लखपत राय और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 52.
सिक्खों ने सरहिन्द तथा लाहौर पर किन वर्षों में अधिकार किया ?
उत्तर-
सिक्खों ने सरहिन्द पर 1763 ई० में तथा लाहौर पर 1765 ई० में अधिकार किया।

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प्रश्न 53.
18वीं सदी के चार प्रमुख सिक्ख सरदारों के नाम बताओ तथा उनकी राजधानियां बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी के चार प्रमुख सरदार थे : जस्सा सिंह आहलूवालिया, हरिसिंह भंगी, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा चढ़त सिंह शुकरचकिया। इनकी राजधानियां क्रमश: कपूरथला, अमृतसर, श्री हरगोबिन्दपुर तथा गुजरांवाला थीं।

प्रश्न 54.
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य किन दो दोआबों में था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य जालन्धर-दोआब तथा बारी-दोआब के प्रदेशों में था। उसकी राजधानी कपूरथला थी।

प्रश्न 55.
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम थे-गुज्जर सिंह भंगी तथा हरिसिंह भंगी।

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प्रश्न 56.
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके बारी-दोआब तथा जालन्धर-दोआब में थे। उसकी राजधानी श्री हरगोबिन्दपुर थी।

प्रश्न 57.
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके रचना-दोआब और चज-दोआब में थे। उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

प्रश्न 58.
आला सिंह कौन-से वंश से था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
आला सिंह फुल्किया वंश से था। उसकी राजधानी पटियाला थी।

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प्रश्न 59.
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन (राज) किन इलाकों में था ?
उत्तर-
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन जालन्धर-दोआब तथा सतलुज पार के कुछ इलाकों में था।

प्रश्न 60.
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम थे : गोबिन्दशाही रुपया तथा नानकशाही रुपया।

प्रश्न 61.
कौन-से दो सिक्ख राजाओं ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली का सिक्का क्रमश: पटियाला के राजा आला सिंह तथा जींद के राजा गजपत सिंह ने चलाया।

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प्रश्न 62.
कौन-से दो पुराने सिक्ख सरदारों में मरने-मारने का संघर्ष चलता रहा ?
उत्तर-
मरने-मारने का संघर्ष जस्सा सिंह रामगढ़िया और जयसिंह कन्हैया नामक दो पुराने सिक्ख सरदारों के बीच चलता रहा।

प्रश्न 63.
1784-85 तक कौन-सा सिक्ख सरदार सबसे शक्तिशाली होने लगा तथा यह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
1784-85 तक महासिंह शुकरचकिया सबसे शक्तिशाली होने लगा। वह चढ़त सिंह शुकरचकिया का पुत्र था।

प्रश्न 64.
महासिंह की मृत्यु कब और किसके साथ लड़ते समय हुई ?
उत्तर-
महासिंह की मृत्यु 1792 ई० में साहिब सिंह के विरुद्ध लड़ते समय हुई।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में उत्तर भारत की नई शक्तियां कौन-कौन सी थी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में अवध, बंगाल, पंजाब के सिक्ख तथा रुहेले पठान नवीन शक्ति के रूप में उभरे। अवध का राज्य सआदत खां के सम्बन्धियों के अधीन स्वतन्त्र राज्य के रूप में उभरा। सआदत खां की मृत्यु (1739 ई०) के बाद बादशाह अहमदशाह ने उसके भतीजे सफदर जंग को वजीर नियुक्त कर दिया। 1754 में शुजाऊद्दौला, अवध के स्वतन्त्र शासक के रूप में उभरा। 1717 में मुर्शिद कुली खां बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् 1727 में उसका जमाता शुजाऊद्दीन मुहम्मद खान बंगाल तथा बिहार में उसका उत्तराधिकारी बना। बाद में बिहार भी बंगाल की सूबेदारी में शामिल कर दिया गया। इस तरह स्वतन्त्र बंगाल की नींव रखी गई। नवीन शक्तियों में वास्तविक शक्ति सिक्ख सिद्ध हुए। उन्हें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में सैनिक रूप दिया। 1708 ई० में उन्होंने बन्दा बहादुर को मुग़लों से लड़ने के लिए भेजा। बन्दा बहादुर ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार किया और प्रथम सिक्ख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 2.
नजीबुद्दौला की शक्ति के उत्थान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
नजीब खान पठानों का एक नेता था। उसने दिल्ली के मुख्यमन्त्री अमादुलमुल्क की अवध के सफदर जंग के विरुद्ध सहायता की। बदले में उसे सहारनपुर के प्रदेश में एक बहुत बड़ी जागीर मिल गई। उसने 1757 में अहमदशाह अब्दाली का साथ देकर नजीबुद्दौला की उपाधि प्राप्त की और उसकी सिफारिश से मुगल दरबार का एक शक्तिशाली मन्त्री बन गया। नजीबुद्दौला की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर अमादुलमुल्क चिन्ता में पड़ गया। उसने नजीबुद्दौला की शक्ति को कम करने के लिए मराठों की सहायता की। परन्तु पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय के पश्चात् एक बार फिर नजीबुद्दौला का प्रभाव बढ़ने लगा। उसे अब भारत में अहमदशाह अब्दाली का प्रतिनिधि समझा जाने लगा । दिल्ली दरबार में वह मीर बख्शी के रूप में कार्य करने लगा। सम्राट शाह आलम द्वितीय के इलाहाबाद जाने के बाद नजीबुद्दौला दिल्ली में उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। नजीबुद्दौला की 1770 में मृत्यु हो गई ।

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प्रश्न 3.
जाटों की शक्ति का उत्थान कैसे हुआ ?
उत्तर-
मथुरा के जाटों ने पहली बार औरंगजेब के समय में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् एक जाट नेता चूड़ामन ने धीरे-धीरे अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा ली और मथुरा के आस-पास के बहुत-से प्रदेशों पर अपना शासन स्थापित कर लिया। 1722 ई० में उसकी मृत्यु के बाद उसका भतीजा बदन सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। 1752 ई० में बदन सिंह को मुग़ल सम्राट् ने राजा की उपाधि दी। इसके चार वर्ष के बाद ही बदन सिंह की मृत्यु हो गई । 1756 ई० में बदन सिंह का दत्तक पुत्र सूरज मल भरतपुर का राजा बना। सूरज मल एक सफल राजनीतिज्ञ सिद्ध हुआ। 1763 में वह नजीबुद्दौला के साथ लड़ता हुआ मारा गया। सूरजमल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी जवाहर सिंह अपने भाइयों तथा जाट नेताओं के साथ लड़ता-झगड़ता रहा। उसके पश्चात् रणजीत सिंह ने भरतपुर की राजगद्दी सम्भाली । उसके समय में जाट राज्य का पतन होने लगा।

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के मुगलों के साथ सम्बन्धों की मुख्य घटनाएं कौन-सी थीं ?
उत्तर-
मुग़लों के साथ गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। 1675 ई० में उनके पिता जी की शहीदी ने उन्हें मुगलों के विरुद्ध सैनिक नीति अपनाने के लिए बाध्य किया और उन्होंने अपने सिक्खों को सिक्ख सेना में शामिल होने का आह्वान किया । इसके बाद गुरु जी का सीधा मुकाबला मुग़ल सेनाओं से हुआ। सरहिन्द के गवर्नर ने अलफ खां के नेतृत्व में सेना भेजी । कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन में घमासान युद्ध हुआ। इसमें मुग़ल पराजित हुए। सरहिन्द के सूबेदार ने एक बार फिर सेना भेजी, परन्तु वे फिर पराजित हुए । कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजा मुग़लों से जा मिले ।

1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना सिक्खों के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखेप्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। गुरु जी के चारों साहिबजादे .हीदी को प्राप्त हुए, फिर भी उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के नए मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

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प्रश्न 5.
बन्दा बहादुर ने किस प्रकार सिक्खों का राज्य स्थापित किया ?
उत्तर-
बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 में पुच्छ जिला में हुआ था। उसका बचपन का नाम लक्ष्मण दास था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु जी ने सिक्खों की सहायता के लिए उसे पंजाब भेज दिया। पंजाब पहुंच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया।

इस तरह बन्दा बहादुर ने पहला सिक्ख राज्य स्थापित किया। उसने लोहगढ़ के किले को सिक्ख राज्य की राजधानी घोषित किया। उसने स्वतन्त्र सिक्ख राज्य के सिक्के चलाए जिन पर यह दर्शाया गया कि सिक्खों की विजय सिक्ख गुरु साहिबान की विजय है।

प्रश्न 6.
जकरिया खां ने किस प्रकार सिक्खों से निपटने की कोशिश की ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० में पंजाब का गवर्नर बना। गवर्नर बनते ही उसने सिक्खों के प्रति कत्लेआम की नीति अपनाई। हजारों की संख्या में सिक्ख पकड़े गए और लाहौर में दिल्ली गेट के निकट उनका वध कर दिया गया। यह स्थान बाद में शहीद गंज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नादिरशाह के आक्रमण के पश्चात् जकरिया खां ने सिक्खों का सर्वनाश करने की सोची। उसने किसी सिक्ख को जीवित अथवा मृत लाने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा की। देखते ही देखते सिक्खों को पकड़ा जाने लगा और लाहौर के घोड़ा बाजार में उनका वध किया जाने लगा। जकरिया खां द्वारा मेहताब सिंह, हकीकत राय, बूटा सिंह तथा भाई तारा सिंह को शहीद कराया गया । 1745 में जकरिया खां की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 7.
अफ़गानों के विरुद्ध युद्ध में सिक्खों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ?
उत्तर-
1747 ई० में अफ़गानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर अपना पहला आक्रमण किया। वह लाहौर को विजय करके दिल्ली की ओर बढ़ गया। मानूपुर के स्थान पर उसका मुग़लों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली पराजित हुआ। इस अराजकता के वातावरण ने सिक्खों को अपनी शक्ति सुदृढ़ करने का उचित अवसर जुटाया। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की । लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊँट तथा अन्य सामान छीन लिया। 1748 ई० में बैसाखी के अवसर पर वे अमृतसर में एकत्रित हुए। नबाव कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया।

प्रश्न 8.
18वीं सदी में सिक्खों ने किस प्रकार का राज्य प्रबन्ध स्थापित किया ?
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख शासक अपने-अपने क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार रखते थे। वे स्वयं दीवान, फ़ौजदार और कारदार आदि नियुक्त करते थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र या कोई निकट सम्बन्धी उनके उत्तराधिकारी बनते थे। वे अपने सामन्तों से खिराज लेते थे। परन्तु लगभग सारे क्षेत्र में वही सिक्का चलता था, जिस पर बन्दा बहादुर की मोहर पर अंकित फ़ारसी अक्षर उभरे हुए थे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक सिक्ख शासक एक स्वतन्त्र शासक था। कुछ समय तक पटियाला के राजा आला सिंह ने और जींद के राजा गजपत सिंह ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया। परन्तु यह केवल रस्मी अधीनता थी। अपने-अपने क्षेत्र में उनकी शक्ति उस प्रकार सम्पूर्ण थी, जिस तरह अन्य सिक्ख शासकों की थी जो किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहते थे। अपने-अपने क्षेत्र में सिक्ख सरदार लगभग वैसा ही शासन प्रबन्ध चलाते थे जो मुग़ल बादशाहों के समय से चला आ रहा था। यही कारण है कि सभी सिक्ख क्षेत्रों में लगभग एक प्रकार का प्रशासकीय ढांचा था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 9.
‘छोटा घल्लूधारा’ पर एक टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर-
सिक्खों के विरुद्ध कड़े नियम पास करने के पश्चात् याहिया खां ने दीवान लखपतराय के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिक्खों का पीछा करने के लिए भेजी। सिक्खों ने इस समय काहनूवान के दलदली प्रदेश में शरण ले रखी थी। वे मुग़ल सेना के तोपखाने का सामना न कर सके। इसलिए उन्हें माझा प्रदेश में वापस आना पड़ा। उन्होंने बड़ी कठिनाई से रावी नदी पार की। बटाला के निकट मुग़ल सेना ने हज़ारों सिक्खों का वध कर दिया। कुछ सिक्ख ब्यास की ओर बढ़े परन्तु वहां भी लखपतराय की सेना उनका पीछा करती हुई आ पहुंची। जालन्धर-दोआब में पहुंचने पर उन्हें अदीना बेग की सेना का सामना करना पड़ा। इस लम्बे युद्ध में लगभग आठ हज़ार सिक्खों का वध कर दिया गया और साढ़े तीन हज़ार सिक्खों को बन्दी बनाकर लाहौर ले जाया गया, जहां उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया गया। यह 1746 ई० की घटना सिक्ख इतिहास में ‘छोटा घल्लूघारा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 10.
सिक्खों का दमन करने के लिए मीर मन्नू द्वारा किए गए चार कार्य लिखो ।
उत्तर-
मीर मन्नू ने दिल्ली राज्य तथा अफ़गान आक्रमण दोनों के भय से निश्चिन्त होकर अपना ध्यान सिक्खों का दमन करने की ओर लगाया।
1. उसने अदीना बेग खां तथा सादिक खां के नेतृत्व में एक विशाल सेना जालन्धर-दोआब में सिक्खों के विरुद्ध भेजी। उन्होंने सिक्खों पर अचानक धावा बोलकर अनेक सिक्खों को मार डाला।

2. मीर मुमिन तथा हुसैन खां के नेतृत्व में लक्खी जंगल की ओर सिक्खों के विरुद्ध दो अन्य अभियान भेजे गए परन्तु उन्हें कोई विशेष सफलता प्राप्त न हो सकी क्योंकि सिक्ख बारी-दोआब के उत्तर की ओर भाग गए थे।

3. मीर मन्नू अब स्वयं सिक्खों के विरुद्ध बढ़ा। उसने बटाला के आस-पास के प्रदेशों में सिक्खों को भारी हानि पहुंचाई। उसने रामरौणी दुर्ग (जिसमें सिक्खों ने शरण ली थी) को भी घेरे में ले लिया तथा सैंकड़ों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए।

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प्रश्न 11.
सिक्खों की शक्ति को कचलने में मीर मन्न की असफलता के कोई चार कारण बताओ ।
उत्तर-
सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :-
1. दल खालसा की स्थापना-मीर मन्नू के अत्याचारों के समय तक सिक्खों ने अपनी शक्ति को दल खालसा के रूप में संगठित कर लिया । इसके सदस्यों ने देश, जाति तथा पन्थ के हितों की रक्षा के लिए प्राणों तक की बलि देने का प्रण कर रखा था।

2. दीवान कौड़ामल की सिक्खों से सहानूभूति-मीर मन्नू के दीवान कौड़ामल को सिक्खों से विशेष सहानुभूति थी। अतः जब कभी भी मीर मन्नू सिक्खों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता, कौड़ामल उसकी कठोरता को कम कर देता था।

3. अदीना बेग की दोहरी नीति-जालन्धर-दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग ने दोहरी नीति अपनाई हुई थी। उसने सिक्खों से गुप्त सन्धि कर रखी थी तथा दिखावे के लिए एक-दो अभियानों के बाद वह ढीला पड़ जाता था।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिक्खों ने अपने सीमित साधनों को दृष्टि में रखते हुए गुरिल्ला युद्ध की नीति को अपनाया। अवसर पाते ही वे शाही सेनाओं पर टूट पड़ते और लूट-मार करके फिर जंगलों की ओर भाग जाते ।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बन्दा बहादुर की सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। ..
अथवा
बंदा बहादुर की किन्हीं पांच विजयों का वर्णन कीजिए। उसकी शहीदी किस प्रकार हुई ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर (जन्म 27 अक्तूबर,1670 ई०) के बचपन का नाम लछमण दास था। बैराग लेने के पश्चात् उसका नाम माधो दास पड़ा।
वह 1708 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया। गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उन्हें सिक्ख बनाया और उन्हें पंजाब में ‘सिक्खों’ का नेतृत्व करने के लिए भेज दिया। गुरु जी का आदेश पा कर बन्दा बहादुर पंजाब पहुंचा और उसने आठ वर्षों तक सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इस अवधि में उसकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. समाना और कपूरी की लूटमार-बन्दा बहादुर ने सबसे पहले समाना पर आक्रमण कर वहां अपने शत्रुओं का वध कर दिया। तत्पश्चात् उसने कपूरी नगर को लूटा और फिर आग लगा दी।

2. सढौरा पर आक्रमण-इन नगरों के बाद बन्दा बहादुर ने सढौरा पर धावा बोल दिया। वहां के हिन्दू बन्दा बहादुर के साथ हो गए। उसने सढौरा के मुसलमानों का चुन-चुन कर वध किया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि उस स्थान का नाम ‘कत्लगढ़ी’ पड़ गया।

3. सरहिन्द की विजय-अब बन्दा बहादुर ने अपना ध्यान सरहिन्द की ओर लगाया। गुरु जी के दो छोटे पुत्रों को यहीं पर दीवार में जीवित चिनवा दिया गया था। बन्दा बहादुर ने यहां भी मुसलमानों का बड़ी निर्दयता से वध किया। सरहिन्द का शासक नवाब वजीर खां भी युद्ध में मारा गया। इस प्रकार बन्दा बहादुर ने गुरु जी के साहिबजादों की हत्या का बदला लिया।

4. सहारनपुर, जलालाबाद तथा जालन्धर-दोआब पर आक्रमण-तत्पश्चात् बन्दा बहादुर जलालाबाद की ओर बढ़ा। मार्ग में उसने सहारनपुर पर विजय प्राप्त की, परन्तु आगे चलकर भारी वर्षा तथा जालन्धर-दोआब के लोगों द्वारा सहायता की प्रार्थना किए जाने के कारण उसे जलालाबाद को विजय किए बिना ही वापस लौटना पड़ा। वह जालन्धर की ओर बढ़ा। राहों के स्थान पर एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे। इस प्रकार जालन्धर तथा होशियारपुर के क्षेत्र सिक्खों के अधिकार में आ गए।

5. अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट पर अधिकार-बन्दा बहादुर की सफलता से उत्साहित होकर लगभग आठ हज़ार सिक्खों ने अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट को अपने अधिकार में ले लिया। कुछ समय पश्चात् लाहौर भी उनके अधिकार में आ गया।

6. मुग़लों का लोहगढ़ पर आक्रमण-बन्दा बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ने मुनीम खां के नेतृत्व में 60 हज़ार सैनिक भेजे। बन्दा बहादुर लोहगढ़ में पराजित हुआ। वहां से वह नंगल पहुंचा और पहाड़ी राजाओं को पराजित किया।

गुरदास नंगल का युद्ध और बन्दा बहादुर की शहीदी-1713 ई० में फर्रुखसियर मुग़ल सम्राट् बना। उसने बन्दा बहादुर के विरुद्ध कश्मीर के गवर्नर अब्दुस्समद के नेतृत्व में एक भारी सेना भेजी। इस सेना ने गुरदास नंगल के स्थान पर सिक्खों को भाई दुनी चन्द की हवेली में घेर लिया। सिक्खों को आठ मास के लम्बे युद्ध के पश्चात् हथियार डालने पड़े क्योंकि उनकी रसद समाप्त हो गई थी। बन्दा बहादुर तथा उसके सभी साथी बन्दी बना कर लाहौर लाए गए। यहां से 1716 ई० को उन्हें दिल्ली ले जाया गया। बन्दा बहादुर तथा उसके 40 साथियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने को कहा गया। उनके इन्कार करने पर बन्दा बहादुर के सभी साथियों की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् बन्दा बहादुर को अनेक यातनाओं के बाद शहीद कर दिया गया।
सच तो यह है कि बन्दा बहादुर की विजयों ने सिक्खों को एकता की लड़ी में पिरो दिया और उन्हें स्वतन्त्रता का मार्ग दिखाया।

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प्रश्न 2.
अब्दुस्समद द्वारा किए गए सिक्ख विरोधी कार्यों, जकरियां खां द्वारा सिक्खों का कत्लेआम, याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार और मीर मन्नू द्वारा किए गए सिक्खों के विरुद्ध कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
1716 से 1747 ई० तक सिक्खों के कत्लेआम का सक्षिप्त वर्णन करो ।
उत्तर-
1. अब्दस्समद द्वारा सिक्ख विरोधी कार्य-सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए अब्दुस्समद ने अनेक कठोर पग उठाए। सिक्खों के सिरों की कीमत भी निश्चित कर दी गई और हज़ारों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए । अब्दुस्समद तथा उसके सैनिकों ने सिक्खों का इस प्रकार पीछा किया जैसे कोई शिकारी अपने शिकार का करता है। अनेक सिक्खों ने तो आत्म-रक्षा के लिए केश भी कटवा डाले, परन्तु इनमें ज्यादा उन सिक्खों की संख्या थी जो किसी भी अवस्था में अपना धर्म छोड़ने के लिए तैयार न थे। ऐसे में सभी सिक्ख अपने घरों को छोड़ पहाड़ों, जंगलों तथा रेगिस्तानी प्रदेशों में जा छिपे। एक इतिहासकार के अनुसार अब्दुस्समद खां ने पंजाब के मैदान को सिक्खों के खून से इस प्रकार भर दिया जैसे किसी कटोरी को भर दिया जाता है।

2. जकरिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-पंजाब का गवर्नर बनते ही जकरिया खां ने सिक्ख शक्ति को सदा के लिए समाप्त करने के लिए कठोर नीति को अपनाया। प्रतिदिन सुबह लाहौर से सैनिक टुकड़ियां जंगलों तथा गांवों में सिक्खों की खोज में निकलती और सिक्खों के जत्थे के जत्थे बन्दी बनाकर लाहौर नगर में लाए जाते। वहां उन्हें अनेक यातनाएं दी जाती और फिर उनका सामूहिक रूप से वध कर दिया जाता था। सिक्खों के सिरों की कीमत फिर से निश्चित कर दी गई। सिक्ख का कटा हुआ सिर लाने वाले को सरकार की ओर ईनाम दिया जाने लगा। सिक्खों में आतंक उत्पन्न करने के लिए ज़करिया खां ने सिक्खों के सिरों (कटे हुए) का एक गुम्बद-सा खड़ा कर दिया। हज़ारों सिक्खों ने फिर से जंगलों और पहाड़ों में शरण ली। वे बड़े संकट में थे कि अब क्या किया जाए । ऐसे समय में तारा सिंह नामक एक वीर तथा साहसी व्यक्ति ने उनमें नव-जीवन का संचार किया और उनके आत्म-विश्वास को जगाया।

3. याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-ज़करिया खां की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र याहिया खां पंजाब का गवर्नर बना। वह भी अपने पिता की भान्ति बड़ा निर्दयी तथा कठोर स्वभाव वाला व्यक्ति था। पद सम्भालते ही उसने सिक्खों की शक्ति को कुचलने का दृढ़ निश्चय किया और शीघ्र ही उनके विरुद्ध कठोर पग उठाने आरम्भ कर दिए। दीवान लखपत राय तथा उसके भाई जसपतराय ने भी याहिया खां को इस कार्य में पूरा सहयोग दिया। छोटा घल्लूघारा उसके समय में हुआ जिसमें हज़ारों की संख्या में सिक्ख वीरगति को प्राप्त हुए।

4. मीर मन्नू के कार्य-सिक्खों को कुचलने के लिए मीर मन्नू ने अपनी सेना में नए सैनिकों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। अदीना बेग को जालन्धर में तथा कौड़ामल को लाहौर में सिक्खों के प्रति कठोर पग उठाने के आदेश दिए गए। सिक्खों के सिरों के लिए पुरस्कार घोषित कर दिए गए। सिक्खों का पीछा करने के लिए फौजी दस्ते भी भेजे गए। जो मुसलमान सिक्खों के सिर काट कर लाते उन्हें ईनाम मिलने लगे। सभी सिक्ख आत्मरक्षा के लिए जंगलों में छिप गए। वे अवसर मिलने पर मुग़ल सेना पर टूट पड़ते और काफ़ी माल लूट कर ले जाते।
सच तो यह है कि इन सारे अत्याचारों के बावजूद सिक्ख अन्ततः बलशाली बने और वे अपनी मिसलें स्थापित करने में सफल हुए।

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प्रश्न 3.
अहमदशाह अब्दाली सिक्खों की शक्ति का दमन करने में क्यों असफल रहा ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच महत्त्वपूर्ण कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1. सिक्खों का दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास-डॉ० हरिराम गुप्ता के अनुसार, अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष में उनका केवल एक ही उद्देश्य था-पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका। बड़ा घल्लूघारा में लगभग 12,000 सिक्खों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई थी; परन्तु फिर भी सिक्खों का आत्मविश्वास कम नहीं हुआ। अन्त में 30 वर्षों के संघर्ष के बाद वे पंजाब में स्वतन्त्र सिक्ख साम्राज्य की स्थापना करने में सफल हुए।

2. सिक्खों का युद्ध कौशल- सिक्खों की सफलता का अन्य कारण उनका युद्ध कौशल था। वे बड़े वीर थे और युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे। अपने सैनिक गुणों द्वारा उन्होंने अब्दाली को इतना तंग कर दिया कि उसने आठवें आक्रमण के बाद पुनः पंजाब की ओर मुंह न किया।

3. सिक्खों की निःस्वार्थ भावना-अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी निःस्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़ते थे। स्वतन्त्रता प्राप्त करना वे अपना सबसे बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। यही उनके संघर्ष का एकमात्र उद्देश्य था। इसके विपरीत अब्दाली के सभी प्रतिनिधि महत्त्वाकांक्षी तथा स्वार्थी थे। अतः वे सिक्खों की संगठित शक्ति का दमन करने में असफल रहे।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध की नीति-सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध की नीति भी उनकी सफलता का मुख्य कारण बनी। जब कभी आक्रमणकारी सेना लेकर आता तो सिक्ख पहाड़ों या जंगलों की ओर भाग जाते। फिर अवसर पाकर वे शत्रु की सेना पर अचानक ही टूट पड़ते तथा उनकी युद्ध व खाद्य सामग्री लूट कर पुन: अपने गुप्त स्थानों में जा कर छिप जाते। उनकी इस गुरिल्ला युद्ध नीति ने जहां सिक्खों को विनाश से बचाए रखा, वहीं इस नीति ने धीरे-धीरे अफ़गान नेता की शक्ति तथा साधनों को भी क्षीण कर दिया। अफ़गान सैनिक वैसे भी गुरिल्ला युद्ध के अभ्यस्त न थे। वे पंजाब के गुप्त मार्गों से भी अपरिचित थे। इस दशा में अब्दाली की असफलता तथा सिक्खों की सफलता निश्चित ही थी।

5. पंजाब के ज़मींदारों का सिक्खों को सहयोग-सिक्ख अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। पंजाब के ज़मींदार यह भली-भान्ति जानते थे कि अब्दाली के वापस जाने पर उनका सम्बन्ध सिक्खों से ही रहना था। अफ़गानों की लूट-मार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे। इसके अतिरिक्त कुछ ज़मींदार सहधर्मी होने के नाते भी सिक्खों के प्रति सहानुभूति रखते थे। वे सिक्खों की भोजन तथा धन आदि से भी सहायता करते और संकट के समय उन्हें आश्रय देते। परिणामस्वरूप सिक्ख अब्दाली को हर बार पंजाब से मार भगाने में सफल रहे।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत और अमेरिका के परस्पर सम्बन्धों की चर्चा करो।
(Discuss the features of Parliamentary Government in India.)
अथवा
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के सम्बन्धों का विश्लेषण कीजिए। (Analyse India’s relations with U.S.A.)
अथवा
भारत व अमेरिका (U.S.A.) के सम्बन्धों का वर्णन करें। (Discuss the relation between India and America.)
उत्तर-
भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध शुरू से मित्रता वाले नहीं थे। अमेरिका आरम्भ से ही भारत पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता था। इसलिए अमेरिका ने ‘दबाव तथा सहायता’ की नीति का अनुसरण किया।

यद्यपि भारत और अमेरिका के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं थे तथापि दोनों देशों में सहयोग का क्षेत्र भी बढ़ा है। अमेरिका ने भारत को अपने पक्ष में करने के लिए दबाव नीति के साथ-साश्च आर्थिक सहायता तथा अनाज की कूटनीति का सहारा लिया। अमेरिका ने भारत को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी और मुख्यत: अमेरिकन प्रेरणा से ही विश्व विकास ऋण कोष, तकनीकी सहयोग आदि की संस्थाओं ने भी ऋण तथा उपहार के रूप में भारत को काफ़ी आर्थिक तथा तकनीकी सहायता दी।

1957 में नेहरू ने अमेरिका की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। दिसम्बर, 1959 में अमेरिकन राष्ट्रपति आइजनहॉवर भारत आए जिससे दोनों देशों में और अच्छे सम्बन्ध स्थापित हुए। अमेरिका के राजनीतिक क्षेत्रों में कहा जाने लगा कि भारत का आर्थिक विकास अमेरिकन विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य है। राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने भारत को विशेष सम्मान देते हुए 4 मई, 1960 को वाशिंगटन में भारत के खाद्य मन्त्री एस० के० पाटिल के साथ स्वयं एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार अमेरिका ने भारत को आगामी 4 वर्षों में चावल तथा गेहूं से भरे हुए 15000 जलयान भेजने का निश्चय किया। मई, 1960 का यह समझौता पी० एल० 480 के नाम से प्रसिद्ध है। 4 वर्ष की अवधि के समाप्त होने पर इस अवधि को पुनः बढ़ा दिया गया।

अक्तूबर, 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत के अनुरोध पर राष्ट्रपति कैनेडी ने शीघ्र ही भारत को सैनिक सहायता दी। अमेरिका ने सैनिक सहायता देने के लिए कोई शर्त नहीं रखी। विदेश मन्त्री डीन रस्क ने भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति की प्रशंसा की। 7 दिसम्बर, 1963 को भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार अमेरिका ने भारत को आठ करोड़ डॉलर तारापुर में आण्विक शक्ति संयन्त्र करने के लिए देने का वचन किया।

शास्त्री काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1964-1965)-1965 में भारत-पाक युद्ध हुआ और इस युद्ध में भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध पूरी तरह खराब हो गए, क्योंकि अमेरिका की सैनिक सामग्री का पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध प्रयोग किया और अमेरिका ने पाकिस्तान को इसके लिए रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया।

इंदिरा काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1966 से मार्च, 1977 तक)-28 मार्च, 1966 को श्रीमती गांधी ने अमेरिका की यात्रा की परन्तु इस यात्रा का कोई विशेष परिणाम नहीं निकला।
1969-70 का वर्ष भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में एक प्रकार से शीत-युद्ध का वर्ष था।

1971 का वर्ष भारत और अमेरिका के सम्बन्धों के लिए बंगला देश के मामले पर बहुत ही खराब रहा। 9 अगस्त, 1971 को भारत और रूस में मैत्री सन्धि हुई जिससे अमेरिका की विदेश नीति को बड़ा धक्का लंगा। दिसम्बर, 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान सुरक्षा परिषद् में अमेरिका ने भारत विरोधी प्रस्ताव पेश किया, जिस पर सोवियत संघ ने . वीटो पावर का प्रयोग किया। अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में सातवें बेड़े को भेजा ताकि भारत पर दबाव डाला जा सके, परन्तु रूस के नौ-सैनिक बेड़े ने अमेरिका को सचेत कर दिया कि यदि अमेरिका ने भारत के विरुद्ध नौ-सैनिक कार्यवाही की तो रूस चुपचाप नहीं बैठा रहेगा। बंगला देश के युद्ध में भारत की विजय हुई और पाकिस्तान का विभाजन हो गया। इस विजय के बाद भारत दक्षिणी एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में माना जाने लगा तो अमेरिका ने भारत की आर्थिक सहायता रोक दी।

जनता सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत के आम चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी को सफलता मिली और श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई को बधाई संदेश भेजा और भारत को महान् लोकतान्त्रिक देश बताया। 1 जनवरी, 1978 में अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत आए और भारतीय नेताओं से उन्होंने बातचीत की। जिमी कार्टर की यात्रा को भारत सरकार ने बहुत महत्त्व दिया।

जून, 1978 में प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई तथा विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए और राष्ट्रपति कार्टर से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति कार्टर से यह विश्वास प्राप्त करने में सफल हो गए कि भारत को अमेरिकन Uranium दिया जाएगा।

श्रीमती गांधी की सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध (GOVERNMENT OF SMT. GANDHI AND INDO-AMERICA RELATIONS):

जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः प्रधानमन्त्री बनने पर अमेरिकन प्रशासन ने इच्छा व्यक्त की कि भारत और अमेरिका में अच्छे सम्बन्ध स्थापित होंगे। अफ़गानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप से गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी के इस कथन का कि किसी भी देश को दूसरे देश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, अमेरिका ने स्वागत किया। जून, 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की खुली उपेक्षा करते हुए पाकिस्तान को व्यापक स्तर पर अमेरिकी हथियार दिए। जुलाई, 1982 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर गईं। भारत और अमेरिका प्रशासन के बीच हुई सहमति के अन्तर्गत तारापुर के समझौते की व्यवस्थाओं के अनुसार स्वयं तो ईंधन की सप्लाई नहीं करेगा, लेकिन उसे भारत द्वारा फ्रांस से आवश्यक ईंधन खरीदने पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका की यात्रा पर गए और उनका राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने ह्वाइट हाऊस में भव्य स्वागत किया। भारत और अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य से अमेरिका ने भारत में आतंकवादी हिंसा के प्रयासों और उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप मिलने के विरुद्ध भारत सरकार को पूरा सहयोग देने का संकल्प व्यक्त किया।

चंद्रशेखर की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-जनवरी, 1991 में चंद्रशेखर की सरकार ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने के चक्कर में तटस्थता की नीति से दूर होते हुए अमेरिकी युद्ध विमानों को मुम्बई के सहारा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से ईंधन भरने की सुविधा प्रदान की। चंद्रशेखर की सरकार की नीति की सभी दलों तथा विपक्ष के नेता राजीव गांधी ने कड़ी आलोचना की।

नरसिम्हा राव की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव अमेरिका के राष्ट्रपति बुश को 31 जनवरी, 1992 को न्यूयार्क में मिले। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के बढ़ते दायरे पर संतोष व्यक्त किया, परन्तु परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने रहे। जनवरी, 1993 में डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिटन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। जी०-7 देशों के टोकियो सम्मेलन में अमेरिका ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचने के लिए भारत पर दबाव डाला। मई, 1994 में भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव अमेरिका की यात्रा पर गए। संयुक्त विज्ञप्ति में यह कहा जाना कि दोनों देश परमाणु आयुधों को संसार से खत्म करने या मिटाने के लिए काम करेंगे, वास्तव में भारतीय दृष्टिकोण है।
भारत के परमाणु परीक्षण तथा भारत-अमेरिका सम्बन्ध-भारत ने 11 मई, 1998 को तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। 13 मई, 1998 को अमेरिका ने

भारत के परमाणु परीक्षणों की निंदा की और भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्धों की घोषणा की। अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने भारत की वाजपेयी सरकार को व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (सी० टी० बी० टी०) पर तुरन्त और बिना शर्त हस्ताक्षर करने को कहा। उन्होंने कहा कि भारत के परमाणु परीक्षण अनुचित हैं और इससे एशिया में हथियारों की खतरनाक होड़ शुरू होने का खतरा है। 13 जून, 1998 को प्रधानमन्त्री वाजपेयी के विशेष दूत जसवंत सिंह ने वाशिंगटन में अमेरिकी विदेश उपमन्त्री स्ट्रोब टालबोट के साथ वार्ता करने के बाद कहा कि परीक्षणों को लेकर अमेरिकी समझ बेहतर हुई है।

भारत-अमेरिका की आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्यकारी समूह (Joint Working Group on Counterterrorism)-19 जनवरी, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह और अमेरिकी विदेश उप-सचिव स्ट्रोब टालबोट की लंदन में मुलाकात हुई। दोनों पदाधिकारियों ने आतंकवादी हिंसा को रोकने के लिए इस बात पर सहमति जताई कि दोनों देशों को आतंकवाद विरोधी कार्यकारी समूह स्थापित करना चाहिए। इन मुलाकातों से निश्चित रूप से भारत और अमेरिकी सम्बन्धों में सहयोग की आशा की जा सकती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन की भारत यात्रा-21 मार्च, 2000 को अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन पांच दिन के लिए भारत की सरकारी यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान अमेरिका एवं भारत ने आर्थिक क्षेत्र पर अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके अतिरिक्त भारत अमेरिकी सम्बन्धों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए विज़न-2000 नामक दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किये गए। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा से भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नए युग का सूत्रपात हुआ है।

भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की अमेरिका यात्रा-8 सितम्बर, 2000 को भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए। अपने लम्बे व्यस्त कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन सहित अनेक प्रमुख नेताओं और व्यापारिक संस्थाओं से बातचीत की। इस दौरान आपसी हित के विभिन्न विषयों पर व्यापक बातचीत हुई।

भारत के प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका की यात्रा की। वाजपेयी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ शिखर वार्ता के दौरान आतंकवाद के खिलाफ लडने, नई रणनीतिक योजना बनाने, परमाणु क्षेत्र में शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने, सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने एवं अफ़गानिस्तान के अच्छे भविष्य के लिए मिलकर काम करने की बात की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2004 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह अमेरिकी यात्रा पर गए। यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश से भेंट करके द्विपक्षीय मुद्दों के अतिरिक्त आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, व्यापक जनसंहार के हथियारों के प्रसार पर अंकुश व भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर विचार-विमर्श किया।

प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा-भारत के प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 17 जुलाई, 2005 को अमेरिका की यात्रा पर गए, जो भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में मील का पत्थर सिद्ध हुई। भारत और अमेरिका के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता परमाणु शक्ति से सम्बन्धित है। अमेरिका ने यह स्वीकार कर लिया है, कि “भारत अत्याधुनिक परमाणु शक्ति सम्पन्न ज़िम्मेदार देश है।” अमेरिका परमाणु शक्ति के असैनिक उपयोग के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करेगा तथा उस पर लगे प्रतिबन्धों को हटा लेगा।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-मार्च, 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश भारत की ऐतिहासिक यात्रा पर आए। इस यात्रा के अवसर पर दोनों देशों के बीच असैनिक परमाणु समझौते के अतिरिक्त कृषि, विज्ञान एवं आर्थिक क्षेत्रों में भी समझौता हुआ। अमेरिकन राष्ट्रपति ने भारत के साथ और अधिक अच्छे सम्बन्धों की वकालत की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश से भी मुलाकात की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार, विश्व आतंकवाद तथा असैन्य परमाणु समझौते पर विचार-विमर्श किया।
भारतीय विदेश मन्त्री की अमेरिका यात्रा-अक्तूबर, 2008 में भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने असैन्य परमाणु समझौते (Civil Nuclear Deal) पर बातचीत करने के लिए अमेरिका की यात्रा की।

भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता-नई दिल्ली में 11 अक्तूबर, 2008 को प्रणव मुखर्जी एवं अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2009 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की तथा अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा से द्विपक्षीय बातचीत की। दोनों देशों ने सांझा बयान जारी करते हुए अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में से आतंकी ठिकानों को समाप्त करने की घोषणा की ।

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने 6-8 अक्तूबर, 2010 तक भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया। इसी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय और अमेरिकी कम्पनियों के बीच 10 अरब डालर के व्यापारिक करार की घोषणा भी की।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ द्विपक्षीय बैठक में भाग लिया, जिसमें दोनों नेताओं ने एच-I वी वीज़ा, नागरिक परमाणु समझौते एवं सामरिक सहयोग पर बाचचीत की।

भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा-सितम्बर 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित करने के साथ ही अमेरिकन राष्ट्रपति ओबामा से भी महत्त्वपूर्ण मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान दोनों ने कहा कि आतंकवाद के महफूज ठिकानों को नष्ट करने के साथ ही दाऊद को भारत लाने की कोशिश की जायेगी।

सितम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने सामारिक सांझेदारी को और बेहतर बनाने का निर्णय किया और सुरक्षा, आतंकवाद एवं कट्टरवाद से निपटने, रक्षा, आर्थिक सांझेदारी तथा जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को और गति देने पर सहमति व्यक्त की।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत की तीन दिन की यात्रा पर आए। ओबामा ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जो 26 जनवरी की गणतंत्र परेड में मुख्य अतिथि बने। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने नागरिक परमाणु समझौते पर पूर्ण रूप से हस्ताक्षर किये। इसके अतिरिक्त रक्षा, स्वच्छ तथा अक्षय उर्जा एवं चार अर्न्तराष्ट्रीय निर्यात नियन्त्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्यता दिलाने सम्बन्धी समझौता हुआ। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भी समर्थन किया।

जून 2016 तथा 2017 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार, आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

निष्कर्ष-भारत एवं अमेरिका पिछले कुछ वर्षों में बहुत अधिक निकट आए हैं। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं, आर्थिक क्षेत्र एवं रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा है। भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में काफ़ी नज़दीकी आई है। भारत के प्रति अमेरिकी सोच में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 2.
भारत-रूस सम्बन्धों का विस्तार सहित वर्णन करो। (Describe in detail Indo-Russia Relations.)
अथवा
भारत-रूस सम्बन्ध के स्वरूप की विवेचना कीजिए। (Discuss the nature of relationship between India and Russia.)
उत्तर-
सन् 1991 में भूतपूर्व सोवियत संघ का विघटन हो गया और उसके 15 गणराज्यों ने स्वयं को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया। रूस भी इन्हीं में से एक है। फरवरी, 1992 में भारतीय प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को विश्वास दिलाया कि भारत के साथ रूस के सम्बन्ध में कोई गिरावट नहीं आएगी और वे पहले की ही तरह मित्रवत् और सहयोग पूर्ण बने रहेंगे। आज भारत और रूस में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तीन दिन की ऐतिहासिक यात्रा पर 27 जनवरी, 1993 को दिल्ली पहुंचे। राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव वार्ता में मुख्यत: आर्थिक एवं व्यापारिक विवादों के समाधान और द्विपक्षीय सहयोग के लिए एजंडे पर विशेष जोर दिया गया। दोनों देशों के बीच 10 समझौते हुए जिनमें रुपया-रूबल विनिमय दर तथा कर्जे की मात्रा व भुगतान सम्बन्धी जटिल समस्याओं पर हुआ समझौता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों देशों में 20 वर्ष के लिए मैत्री एवं सहयोग की सन्धि हुई। यह सन्धि 1971 की सन्धि से उस रूप से भिन्न है कि इसमें सामरिक सुरक्षा सम्बन्धी उपबन्ध शामिल नहीं हैं। लेकिन 14 उपबन्धों वाली इस नई सन्धि में यह प्रावधान अवश्य रखा गया है कि दोनों देश ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे एक-दूसरे के हितों पर आंच आती है। वाणिज्य तथा आर्थिक सम्बन्धों के संवर्धन के लिए चार समझौते सम्पन्न हुए। इन समझौतों से व्यापार में भारी वृद्धि की आशा की गई है। भारत रूस समझौतों से रूस को निर्यात करने वाले भारतीय व्यापारियों की परेशानी भी दूर हो गई है। भारतीय सेनाओं के लिए रक्षा कलपुर्जी की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत त्रिसूत्रीय फार्मला दोनों देशों ने स्वीकार कर लिया। इस सहमति से भारत को रूस की रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी और संयुक्त उद्यमों में भी उसकी भागीदारी होगी। राजनीतिक स्तर पर राष्ट्रपति येल्तसिन तथा प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की सहमति भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता है। रूसी राष्ट्रपति ने कश्मीर के मामले पर भारत की नीति का पूर्ण समर्थन किया और यह वचन दिया कि रूस पाकिस्तान को किसी भी तरह की तकनीकी तथा सामरिक सहायता नहीं देगा। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत को समर्थन प्रदान करेगा। सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्य के लिए भी रूस भारत के दावे का समर्थन करेगा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हा राव रूस की यात्रा पर गए। भारत और रूस के मध्य वहां आपसी सहयोग व सैनिक सहयोग के क्षेत्र में 11 समझौते हुए। प्रधानमन्त्री राव की इस यात्रा से भारत और रूस के मध्य नवीनतम तकनीक के आदान-प्रदान के क्षेत्र पर बल दिया गया।

रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1994 में रूस के प्रधानमन्त्री विक्टर चेरनोमिर्दिन भारत की यात्रा पर आए। भारत और रूस के बीच आठ समझौते हुए, इन समझौतों में सैनिक और तकनीकी सहयोग भी शामिल हैं। इन समझौतों का भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।

प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा की रूस यात्रा-मार्च, 1997 में भारत के प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा रूस गए। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री चेरनोमिर्दिन से बातचीत कर परम्परागत मित्रता बढ़ाने के लिए कई उपायों पर द्विपक्षीय सहमति हासिल की। रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टर देने के पुराने निर्णय को पुष्ट किया।

परमाणु परीक्षण-11 मई, 1998 को भारत ने तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। अमेरिका ने भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जिसकी रूस ने कटु आलोचना की। 21 जून, 1998 को रूस के परमाणु ऊर्जा मन्त्री देवगेनी अदामोव और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ० आर० चिदम्बरम ने नई दिल्ली में तमिलनाडु के कुरनकुलम में अढ़ाई अरब डालर की लागत में बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयन्त्र के सम्बन्ध में समझौता किया।
रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1998 में रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव भारत की यात्रा पर आए। 21 दिसम्बर, 1998 को दोनों देशों ने आपसी सहयोग के सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों के रक्षा सहयोग की अवधि सन् 2000 से 2010 तक बढ़ाने का निर्णय किया।

रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अक्तूबर, 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की यात्रा पर आए। दोनों देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, विघटनवाद, संगठित मज़हबी अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ़ सहयोग करने पर भी सहमति जताई। दोनों देशों ने आपसी हित के 17 विभिन्न विषयों पर समझौते किए। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझौता सामरिक भागीदारी का घोषणा-पत्र रहा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी रूस यात्रा पर गए। वाजपेयी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शिखर वार्ता करके ‘मास्को घोषणा पत्र’ जारी किया जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कही गई। रूस ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भरपूर समर्थन किया। इसके अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रों में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए।

रूस के उप-प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2002 के रूस के उप-प्रधानमन्त्री भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को नई गति देने के लिए एक प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किये। इसके साथ ही भारत ने रूस से स्मर्क मल्टी-बैरन रॉकेट लांचर खरीदने और रूस निर्मित 877 ई के० एम० पारस्परिक पनडुबियों को उन्नत बनाने के समझौते किए।

20 जनवरी, 2004 को नई दिल्ली में रूस एवं भारत के रक्षा मन्त्रियों ने बहु-प्रतीक्षित विमान वाहक पोत गोर्खकोव समझौते पर हस्ताक्षर किए।
रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2004 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। व्लादिमीर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में वीटो सहित भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।

भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा- भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह दिसम्बर, 2005 में रूस की यात्रा पर गए। दोनों देशों के बीच तीन महत्त्वपूर्ण समझौते हुए

  1. रक्षा के क्षेत्र में हुए बौद्धिक सम्पदा अधिकार समझौते के तहत संयुक्त रक्षा कार्यों की निगरानी करना।
  2. दूसरा समझौता सौर भौतिकी के क्षेत्र में हुआ है।
  3. तीसरा समझौता ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम के सन्दर्भ में तकनीकी सुरक्षा से सम्बन्धित हुआ। ये समझौता अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के विकल्प के तौर पर काम करेगा।

नवम्बर, 2007 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तीन दिन की रूस यात्रा पर गए। प्रधानमन्त्री ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग को और अधिक बढ़ाने के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 10 बिलियन डालर तक ले जाने की सहमति प्रकट की।

रूसी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2008 में रूसी प्रधानमन्त्री विक्टर ए० जुबकोव (Victor A. Zubkov) दो दिवसीय भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2008 में रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत यात्रा पर आए। मेदवेदेव ने 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निन्दा की। इस यात्रा के दौरन दोनों देशों ने महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2009 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह रूस यात्रा पर गए तथा रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहोयग बढ़ाने पर जोर दिया ।

रूसी प्रधामन्त्री की भारत-यात्रा-मार्च, 2010 में रूसी प्रधानमन्त्री श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा एवं सहयोग के पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में रूसी राष्ट्रपति श्री दिमित्री मेदवेदेव भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 30 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2011 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2012 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सहयोग एवं रक्षा के 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनो देशों ने रॉकेट, मिसाइल, नौसेना, प्रौद्योगिकी और हथियार प्रणाली के क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर 2014 में रूसी राष्ट्रपति श्री बलादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सुरक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समझौते हुए।
भारतीय प्रधानमंत्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा एवं सहयोग के 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। अक्तूबर 2016 में रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन ‘ब्रिक्स’ (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों ने 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

जून 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी रूस यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने 5 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2018 में रूसी राष्ट्रपति श्री व्लादिमीर पुतिन वार्षिक शिखर वार्ता के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आठ महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
नि:संदेह भारत और रूस में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। कुंडकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना इस के सहयोग का ही परिणाम है। असैनिक परमाणु परियोजनाओं में रूस की भागीदारी के वायदे और बहुउद्देशीय परिवहन विमान और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के निर्माण में उसकी मदद की घोषणा को जोड़ ले तो भारत और रूस मित्रता की धारणा की ही पुष्टि होती है। रूस पुरानी मित्रता को निरन्तर निभा रहा है और यह निर्विवाद है कि भारत और रूस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने से दोनों देशों की ताकत बढ़ेगी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए जिम्मेवार चार कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए ज़िम्मेदार तीन कारण अग्रलिखित हैं-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित है, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।
  3. जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि रही है। उनके प्रयासों से ही भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हो सका।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आए परिवर्तनों के कारण भी भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में सकारात्मक परिवर्तन आया है।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि क्या है ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता क्या है ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 2005 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। इस सन्धि के अन्तर्गत 2020 तक कम-से-कम 20000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। भारत ने इस सन्धि के अन्तर्गत अपने 14 परमाणु रिएक्टर अन्तर्राष्ट्रीय निगरानी के लिए खोल दिए हैं। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारत के विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे लागू कर दिया। जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के समय इस समझौते को पूर्ण रूप से व्यावहारिक रूप दे दिया गया।

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प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ की सन्धि की मुख्य व्यवस्थाएं क्या थी ?
उत्तर-
1971 की भारत सोवियत संघ की मुख्य व्यवस्थाएं इस प्रकार थीं-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।
  3. उपनिवेशवाद तथा प्रजातीय भेदभाव की समाप्ति के लिए प्रयास करना।
  4. एक दोनों के विरुद्ध सैनिक सन्धि में शामिल न होना।
  5. यदि दोनों देशों में किसी एक देश के विरुद्ध अन्य देश युद्ध की घोषणा करता है तो दूसरा देश आक्रमणकारी देश की कोई मदद नहीं करेगा। यदि दोनों देशों में से किसी एक पर आक्रमण हो जाता है तो उस आक्रमण को टालने के लिए दोनों देश आपस में विचार-विमर्श करेंगे।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-
रूस-भारत मित्रता के लिए निम्नलिखित कारण ज़िम्मेदार हैं

  • रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  • रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।
  • रूस एवं भारत आतंकवाद के मुद्दे पर एक हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तन भी रूस-भारत की मित्रता के लिए जिम्मेदार है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में सुधार के लिए जिम्मेवार दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित हैं, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि मार्च, 2006 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर किये। अन्ततः जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते में आने वाली बाधाओं को दूर किया गया।

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प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ समझौते की दो मुख्य व्यवस्थाएं क्या थीं?
उत्तर-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  2. रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर-
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति श्री मिखाइल गोर्बाच्योव थे।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्ध वर्तमान समय में मित्रतापूर्ण हैं।

प्रश्न 3.
1, 2, 3 परमाणु संधि कौन-से दो देशों की बीच हुई ?
उत्तर-
1, 2, 3 परमाणु संधि भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हुई।

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प्रश्न 4.
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था तथा भारत पर हर प्रकार का दबाव डाला था।

प्रश्न 5.
अमेरिका का गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
अमेरिका ने गुट निरपेक्षता की नीति को कभी भी पसन्द नहीं किया। अमेरिका चाहता था कि भारत सदैव उसकी नीतियों का समर्थन करे, जोकि भारत को पसन्द नहीं था।

प्रश्न 6.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से किसी का समर्थन नहीं किया, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वह पाकिस्तान के साथ था, क्योंकि पाकिस्तान ने अमेरिका से प्राप्त हथियारों से ही युद्ध लड़ा था।

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प्रश्न 7.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि कब हुई ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता कब लागू किया गया ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 11 अक्तूबर, 2008 को हुई।

प्रश्न 8.
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते के कारण दोनों देश परमाणु क्षेत्र में परस्पर सहयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण भारत और अमेरिका के मजबूत होते सम्बन्ध हैं।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. सोवियत संघ के विघटन के समय ………… राष्ट्रपति थे।
2. भारत को हथियारों की सबसे अधिक आपूर्ति ……….. करता है।
3. भारत एवं ……….. के बीच 28 जून, 2005 को दस वर्षीय समझौता हुआ।
4. 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री ………. भारत यात्रा पर आए।
5. रूस के वर्तमान राष्ट्रपति श्री …………….. हैं।
उत्तर-

  1. मिखाइल गोर्बाचेव
  2. रूस
  3. अमेरिका
  4. बराक हुसैन ओबामा
  5. व्लादिमीर पुतिन।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. भारत के रूस से सदैव ही अच्छे सम्बन्ध रहे हैं।
2. भारत के अमेरिका से हमेशा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रहे हैं।
3. वर्तमान समय में भारत-अमेरिका सम्बन्ध सुधर रहे हैं।
4. मार्च, 2006 में भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हुआ।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के किस प्रधानमन्त्री ने सर्वप्रथम अमेरिका की यात्रा की ?
(क) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ख) श्रीमती इंदिरा गांधी
(ग) श्री लाल बहादुर शास्त्री
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।
उत्तर-
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।

प्रश्न 2.
निम्न में किस अमेरिकन राष्ट्रपति ने सर्वप्रथम भारत की यात्रा की
(क) बिल क्लिंटन
(ख) कैनेडी.
(ग) आइजनहावर
(घ) जिमी कार्टर।
उत्तर-
(ग) आइजनहावर

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प्रश्न 3.
अक्तूबर 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब निम्न में से किस देश ने भारत को सहायता दी
(क) अमेरिका
(ख) पाकिस्तान
(ग) श्रीलंका
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 4.
अमेरिकन राष्ट्रपति जिमी कार्टर कब भारत यात्रा पर आए?
(क) 1 जनवरी, 1980
(ख) 15 अगस्त, 1978
(ग) 1 जनवरी, 1978
(घ) 26 जनवरी, 19801
उत्तर-
(ग) 1 जनवरी, 1978

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प्रश्न 5.
भारत-पाक के बीच ताशकंद समझौता करवाने में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
(क) अमेरिकन राष्ट्रपति कैनेडी
(ख) सोवियत नेता
(ग) फ्रांस के राष्ट्रपति
(घ) ब्रिटिश नेता।
उत्तर-
(ख) सोवियत नेता

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

PSEB 6th Class Home Science Guide पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रंग कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
रंग दो प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 2.
नीला और जामुनी रंग किस श्रेणी के रंग हैं ?
उत्तर-
ठण्डे रंग।

प्रश्न 3.
गर्मियों के लिए कैसे रंगों का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
ठण्डे रंगों का जैसे सफेद, बादामी रंग।

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प्रश्न 4.
सर्दियों के लिए कैसे वस्त्रों का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं तथा गर्म रंगों वाले वस्त्र।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
भिन्न-भिन्न प्रकार की रेखाओं का पोशाक पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
विभिन्न प्रकार की रेखाओं का पोशाक पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है –
(क) सीधी रेखाएँ-इससे पहनने वाले का आकार लम्बा तथा पतला लगता है। (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ-इससे आदमी मोटा लगता है।
(ग) तिरछी रेखाएँ-यदि ये ज़्यादा लम्बाई की ओर हों तो आदमी लम्बा तथा यदि चौड़ाई की ओर हों तो छोटा तथा मोटा लगता है।
(घ) गोलाई की रेखाएँ-इससे कंधे चौड़े लगते हैं।
(ङ) टूटी हुई रेखाएँ-ये लम्बाई को छोटा दिखाती हैं।
(च)वी’ शक्ल की रेखाएँ-इस तरह की रेखाएँ शरीर को चौड़ा या लम्बा दिखा सकती हैं। जितनी गहरी ‘वी’ होगी, उतना ही आदमी पतला लगेगा।

प्रश्न 2.
मोटे और छोटे व्यक्ति को कैसी लाइनों का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
मोटे और छोटे व्यक्ति को तिरछी लाइनों का प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
गर्म और ठण्डे रंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
गर्म रंग-लाल, संतरी तथा पीला।
ठण्डे रंग-हरा, नीला तथा जामुनी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों का चुनाव करते समय रेखाओं तथा रंगों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कपड़ों का चुनाव करते समय रेखाओं का निम्नलिखित महत्त्व है –
(क) सीधी रेखाएँ-इन्हें देखने के लिए आँख को ऊपर से नीचे की ओर देखना पड़ता है। इससे पहनने वाले का आकार लम्बा तथा पतला लगता है।

(ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ-इन रेखाओं को देखने के लिए एक सिरे से दूसरे सिरे तक देखना पड़ता है। इसलिए ये पहनने वाले को चौड़ा तथा छोटा दिखाती हैं। इससे आदमी मोटा लगता है।

(ग) तिरछी रेखाएँ-ये अधिक लम्बाई की ओर हों तो आदमी लम्बा तथा यदि चौडाई की ओर हों तो आदमी छोटा तथा मोटा लगता है।

(घ) गोलाई की रेखाएँ-इस तरह की रेखाएँ फ्रॉक की चोली, कालर तथा गले पर बनाई जाती हैं। इससे कंधे चौड़े लगते हैं।
(ङ) टूटी हुई रेखाएँ-ये लम्बाई को छोटा दिखाती हैं।

(च) ‘वी’शक्ल की रेखाएँ-इस प्रकार की रेखाएँ शरीर को चौड़ा या लम्बा दिखा सकती हैं। जितनी गहरी ‘वी’ होगी, उतना ही आदमी पतला लगेगा।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव 1
कपड़ों का चुनाव करते समय रंगों का महत्त्व-लाल, संतरी तथा पीला रंग गर्म रंग माने गए हैं। इनको पहनने से गर्मी अनुभव होती है। परन्तु भड़कीले होने के कारण इन रंगों का अधिक प्रयोग ज्यादा समय तक नहीं किया जा सकता है। हरे, नीले तथा जामुनी रंगों को ठंडे रंग कहा जाता है। ये काफ़ी सुखदायक होते हैं। परन्तु इनके ज़्यादा इस्तेमाल से व्यक्ति उदास लगता है। रंगों का चुनाव करते समय पहनने वाले का रूप, आकार, मौसम, दिन-रात तथा अवसर का ध्यान रखना ज़रूरी है। पक्के रंग वाली स्त्रियों को ज़्यादा गाढ़े तथा गर्म रंग नहीं पहनने चाहिएं। एक लम्बी स्त्री को हल्के रंग तथा छोटे छापे का कपड़ा नहीं पहनना चाहिए। एक छोटी स्त्री को गाढ़े रंग का तथा बड़े छापे वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं। एक मध्यम शरीर वाली स्त्री जो न बहुत लम्बी तथा न बहुत छोटी हो, किसी भी रंग या डिज़ाइन का कपड़ा पहन सकती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 2.
अपने लिए वस्त्र खरीदते समय आप कौन-कौन सी बातों का ख्याल रखेंगे?
उत्तर-
वस्त्र खरीदते समय ध्यान रखने वाली बातें –

  1. रेखाओं के प्रयोग
    (क) सीधी रेखाएँ
    (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ
    (ग) तिरछी रेखाएँ
    (घ) गोलाई की रेखाएँ
    (ङ) टूटी हुई रेखाएँ
    (च) ‘वी’ शक्ल की रेखाएँ।
  2. गले की रेखा का आकार
  3. लेस, झालर या बटन लगाना
  4. पोशाक की लम्बाई तथा चौड़ाई
  5. वस्त्र चुनाव के समय रंगों का चुनाव
  6. अवसर के अनुसार वस्त्रों का चुनाव
  7. ऋतु के अनुसार वस्त्रों का चुनाव।

प्रश्न 3.
अवसर तथा ऋतु के अनुसार आप कपड़ों का कैसे चुनाव करोगे ?
उत्तर-
अवसर के अनुसार कपड़ों का चुनाव-रोज़ घर में पहनने वाले वस्त्र अधिक समय तक चलने वाले, सुगमता से धोए जा सकने वाले तथा अधिक महँगे नहीं होने चाहिएं। स्कूल के बच्चों की एक जैसी वर्दी होनी चाहिए ताकि किसी को धनी या निर्धन होने का आभास न हो। बच्चों के रोज़ पहनने वाले वस्त्र ऐसे होने चाहिएं जो जल्दी गन्दे न हों। घर के बाहर काम करने वाली स्त्रियों के वस्त्र अधिक कीमती या भड़कीले नहीं होने चाहिएं। कभी-कभी ब्याह-शादी या अन्य किसी अवसर के लिए सिल्क या अन्य कीमती वस्त्र, जिनके रंग भड़कीले या गाढ़े भी हो सकते हैं, खरीदे जा सकते हैं।

ऋतु के अनुसार कपड़ों का चुनाव-हम ऋतु के अनुसार कपड़े खरीदते हैं। सर्दियों के लिए गाढ़े रंग के तथा गर्म रंगों के कपड़े तथा गर्मियों के लिए हल्के तथा ठंडे रंगों के वस्त्र खरीदने चाहिएं। ब्राउन तथा काला रंग सर्दियों में प्रयोग करना चाहिए और सफेद या बादामी रंग गर्मियों में प्रयोग करना चाहिए। सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं। गर्मियों के लिए सूती कपड़ों या टेरीकॉट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 4.
आप अपने कपड़ों की कैसे देख-भाल करोगे ?
उत्तर-
कपड़ों की देख-भाल –

  1. कपड़ों को सदा साफ़-सुथरा तथा अच्छी दशा में रखना चाहिए।
  2. कालर या कफ़ से कमीज़ फट जाए तो तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए।
  3. कपड़ा कहीं से फट जाए या छिद्र हो जाए तो उसे रफू या पैबन्द लगाकर ठीक कर लेना चाहिए।
  4. बटन व हुक आदि टूट जाए तो शीघ्र ही उसे बदल देना चाहिए।
  5. कपड़ों को कभी भी किसी कील में नहीं टाँगना चाहिए।
  6. कपड़ों को अच्छी तरह तह करके अलमारी में रखकर हैंगर में लटकाना चाहिए।

Home Science Guide for Class 6 PSEB पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्म रंग कौन-से माने गए हैं ?
उत्तर-
लाल, संतरी तथा पीला रंग गर्म रंग माने गए हैं।

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प्रश्न 2.
ठंडे रंग कौन-से माने गए हैं ?
उत्तर-
हरा, नीला तथा जामुनी रंग ठंडे रंग माने गए हैं।

प्रश्न 3.
स्कूल के बच्चों की यूनीफार्म कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर-
स्कूल के सभी बच्चों की यूनीफार्म एक जैसी होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
गर्मियों में कैसे कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है ?
उत्तर-
गर्मियों में सूती या टेरीकॉट कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों का चुनाव करते समय गले की रेखाओं का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कपड़ों का चुनाव करते समय गले की रेखाएँ कन्धे को चौड़ा या लम्बा या छोटा दिखा सकती हैं, जैसे कि ‘वी’ या ‘यू’ आकार के गले से गर्दन तथा चेहरे का आकार लम्बा तथा गोल और चौरस गले से चेहरा तथा कन्धे चौड़े तथा गर्दन छोटी लगती है। लम्बी गर्दन वाले को दोहरी पट्टी वाली या कालर वाली कमीज़ पहननी चाहिए।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव 2

प्रश्न 2.
ऋतु के अनुसार कपड़ों के चुनाव के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
हम ऋतु के अनुसार कपड़े खरीदते हैं। सर्दियों के लिए गाढ़े रंग के तथा गर्म रंगों के कपड़े तथा गर्मियों के लिए हल्के तथा ठंडे रंगों के वस्त्र खरीदने चाहिएं। ब्राउन तथा काला रंग सर्दियों में प्रयोग करना चाहिए और सफेद या बादामी रंग गर्मियों में प्रयोग करना चाहिए। सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं। गर्मियों के लिए सूती कपड़ों या टेरीकॉट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
कपड़ों की देखभाल के लिए कोई दो बातें बताएं।
उत्तर-

  1. कपड़ों को कील पर न टांगें।
  2. कपड़ों को सदा साफ तथा अच्छी अवस्था में रखें।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
किसी गर्म रंग का नाम बताएँ।
उत्तर-
लाल।

प्रश्न 2.
लम्बी तथा पतली स्त्रियों को किस प्रकार की रेखाओं वाले वस्त्र पहनने चाहिए ?
उत्तर-
लेटी हुई रेखाओं के।

प्रश्न 3.
ठण्डे रंग का नाम बताएँ।
उत्तर-
जामनी।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 4.
संतरी रंग गर्म है या ठण्डा ।
उत्तर-
गर्म।

प्रश्न 5.
टूटी रेखाएं क्या दर्शाती हैं ?
उत्तर-
लम्बाई को छोटा करती हैं।

प्रश्न 6.
मोटे तथा छोटे व्यक्ति को कैसी लाइनों वाले कपड़े पहनने चाहिए ?
उत्तर-
टेढ़ी लाइनों वाले।

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पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव PSEB 6th Class Home Science Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति को अपने रंग-रूप, लम्बाई-मोटाई, व्यक्तित्व, ऋतु तथा अपने काम के अनुसार ही वस्त्र खरीदने चाहिए।
  • रंगों तथा लाइनों के प्रयोग से तथा डिज़ाइन बदलने से शारीरिक दोषों को कुछ सीमा तक छुपाया जा सकता है।
  • लाइनदार कपड़ा खरीदते समय ध्यान रखने योग्य बातें –
    (क) सीधी रेखाएँ, (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ, (ग) तिरछी रेखाएँ, (घ) गोलाई की रेखाएँ, (ङ) टूटी हुई रेखाएँ, (च) ‘वी’ शक्ल की रेखाएँ।
  • लम्बी गर्दन वाले को दोहरी पट्टी वाली या कालर वाली कमीज़ पहननी चाहिए।
  • छोटी गर्दन वालों को बंद गले या ऊँचे गले वाले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • लम्बी तथा पतली स्त्रियों को लेटवीं रेखाओं में तथा मोटी और छोटे कद वाली स्त्रियों को खडी रेखाओं के वस्त्र आदि लेने चाहिएं।
  • छोटे आकार वाली स्त्री को गाढ़े रंग तथा बड़े छापे वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं।
  • वस्त्र व्यक्ति को शोभा तभी बढ़ाते हैं जब उनकी ठीक देख-भाल की जाए।
  • कपड़ों को धोकर प्रेस कर लिया जाए तो वे और भी सुन्दर लगते हैं।