Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 योग Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 3 योग
PSEB 10th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers
बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधि कौन-सी है ?
(Which is the oldest method of Indian Exercises ?)
उत्तर-
योगासन।
प्रश्न 2.
शीर्षासन प्रतिदिन कम-से-कम कितने समय के लिए करना चाहिए ?
(How much time Shirsh Asana may be performed daily ?)
उत्तर-
2 मिनट के लिए।
प्रश्न 3.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantage of Shirsh Asana.)
उत्तर-
- शीर्षासन से स्मरण शक्ति तेज़ होती है।
- मोटापा दूर होता है।
प्रश्न 4.
वज्रासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Vajur Asana.)
उत्तर-
- वज्रासन से स्वप्न दोष दूर होता है।
- इससे शूगर का रोग दूर हो जाता है। ..
प्रश्न 5.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताओ।
उत्तर-
- कमर दर्द दूर हो जाता है।
- बार-बार मूत्र आना बन्द हो जाता है।
प्रश्न 6.
भुजंगासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Describe any two advantages of Bhujang Asana.)
उत्तर-
- कब्ज दूर हो जाती है।
- धातु रोग दूर हो जाता है।
प्रश्न 7.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Dhanur Asana.)
उत्तर-
- गठिया की बीमारी दूर हो जाती है।
- औरतों के योनि विकार और मासिक धर्म सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं।
प्रश्न 8.
हर्निया तथा नल रोगों को ठीक करने में कौन-सा आसन सहायक हो सकता है ?
(Name the Asana which prevent Hernia and urinary disease.)
उत्तर-
चक्र आसन।
प्रश्न 9.
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का महत्त्वपूर्ण ढंग कौन-सा है ?
(Which is the means of uniting soul with God ?)
उत्तर-
योग।
प्रश्न 10.
मानसिक एकाग्रता के लिए कौन-सा योगासन सर्वोत्तम है ?
(Which is the best Asana for mental concentration ?
उत्तर-
पद्मासन।
प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की है ?
(Mention the types of Fatigue.)
उत्तर-
दो तरह की
- मनोरूक,
- शारीरिक
छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
योग किसे कहते हैं ? इसके क्या लाभ हैं ?
(What is Yoga ? Discuss its uses.)
उत्तर-
भारत की प्राचीन कसरत या व्यायाम की विधि योग है। अतीत में साधु-सन्त, महात्मा लोग इसका अभ्यास करते थे तथा अपना शरीर स्वस्थ रखते थे। इसे हम सामान्यतः तपस्या करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। योग प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है।
लाभ-योग के हमें निम्नलिखित लाभ हैं—
- योगासनों से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
- इससे बहुत-सी बीमारियां दूर हो
- मानसिक कमजोरी दूर हो जाती है।
- शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
- मनुष्य पर शीघ्र घबराहट का प्रभाव नहीं पड़ता।
- चिन्ता तथा परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- मनुष्य का शरीर आकर्षक तथा सुगठित बन जाता है।
प्रश्न 2.
“योग आत्मा और परमात्मा में मिलाप करने का महत्त्वपूर्ण साधन है।” कैसे ?
(“Yoga is the means of uniting soul with God.” How ?)
उत्तर-
प्राचीन काल के साधु-महात्माओं की बातें तथा विचार हम आज तक सुनते आ रहे हैं। उनके विचारों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने आत्मा का परमात्मा से मिलाप कराना है तो उसका साधन हमारा शरीर है। वही मनुष्य आत्मा को परमात्मा से मिला सकता है या दर्शन करा सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। अभिप्राय यह कि उसका मन पूर्णतः स्वच्छ और स्वस्थ हो।
हम योग साधनों के द्वारा शरीर को ठीक रख सकते हैं। इनसे बहुत-सी बीमारियां अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि योग आत्मा तथा परमात्मा का मिलाप कराने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए हमें योगासनों का अभ्यास करना चाहिए।
प्रश्न 3.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से 8 अंग बताए हैं ? उनके बारे में लिखो।
(अभ्यास का प्रश्न 2)
(What are the eight components of Ashtang Yoga according to Patanjali Rishi ? Write briefly about)
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं निरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—
- नियम (Observance)-नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं जैसे शरीर की सफ़ाई, नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है।
- यम (Restraint) ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है।
- आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रख कर टांगों को किसी विशेष दिशा में रख कर बैठना पद्मासन है।
- प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)—किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है।
- धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
- प्रत्याहार (Abstraction)—प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगाना।
- ध्यान (Meditation) -इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने-आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
- समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा-परमात्मा में लीन हो जाती है।
प्रश्न 4.
“योग स्वास्थ्य का साधन है।” इस बारे अपने विचार प्रकट करो।
(“Yoga is means of Good Health.” Write.)
उत्तर-
योग का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रूप से दृढ़ व सचेत तथा व्यवहार में पूर्णतया अनुशासित बनाना। इसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं—
- योग से मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक बुनियादी शक्तियां विकसित होती हैं। प्राणायाम द्वारा फेफड़ों में बहुत-सी वायु चली जाती है जिससे फेफड़ों की कसरत होती है। इससे फेफड़ों के बहुत-से रोग दूर होते हैं।
- योगाभ्यास करने से शरीर पूर्णतया स्वस्थ रहता है। धोती क्रिया तथा बस्ती क्रिया क्रमशः आमाशय तथा आंतों को साफ़ करती है। शरीर सदैव नीरोग रहता है।
- योग करने से शरीर मज़बूत बनता है।
- योगाभ्यास करने से शारीरिक अंग लचकदार बनते हैं। जैसे हल आसन तथा धनुर आसन करने से रीढ़ की हड्डी की लचक बढ़ती है।
- योगासन करने से शरीर की सभी प्रणालियां ठीक प्रकार से काम करने लगती हैं।
- योगाभ्यास मनुष्य के शरीर को अच्छी स्थिति (Posture) में रखता है जिससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। उदाहरणार्थ वृक्ष आसन करने से घुटने नहीं भिड़ते और पद्म आसन करने से न ही पेट आगे को निकलता है और न ही कन्धों में कुबड़ापन आता है।
- योगासन करने से मानसिक अनुशासन आता है। यम तथा नियम द्वारा मानवीय संवेग विकारों तथा अनुचित इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने की शक्ति देता है।
- उचित आसन करने से कई प्रकार के रोग दूर भागते हैं तथा कई रोगों की रोकथाम हो जाती है। वज्र आसन तथा मत्स्येन्द्रासन मधुमेह (Diabetes) के रोगों को ठीक करता है। इसी प्रकार प्राणायाम फेफड़ों का रोग नहीं लगने देता।
- योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट को दूर भगाने में सहायता प्रदान करते हैं। शव आसन मनुष्य की थकावट को कोसों दूर भगाता है।
- करने से बुद्धि तेज़ होती है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है| हस बात के लिए शीर्षासन बहुत ही उपयोगी है।
- योगाभ्यास करने से मनुष्य के शरीर में ताल (Rhythm) आ जाता है। इससे शरीर की शक्ति संयम से व्यय होती है।
- योग मानसिक सन्तुलन तथा प्रसन्नता प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।
बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
कोई 6 आसनों की विधि और लाभ लिखो।
(Discuss the methods of any six Asans and give their uses.)
उत्तर-
1.शव आसन की स्थिति-पीठ के बल लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ देना चाहिए।
विधि-
- पीठ के बल लेट कर शरीर को ढीला छोडो।
- धीरे-धीरे लम्बे सांस लो।
- लेट कर शरीर के समस्त अंगों को पूरा आराम करने दें।
- दोनों पैरों को डेढ़ फुट की दूरी पर रखो।।
- दोनों हाथों की हथेलियों को ऊपर की ओर करके शरीर से लगभग 6 इंच की दूरी पर रखो।
- आंखें बन्द करके अन्तर्ध्यान हो जाओ।
- शरीर को पूर्ण विश्राम की स्थिति में रखो।
महत्त्-
- शरीर की थकावट को दूर करता है।
- मानसिक तनाव दूर हो जाता है।
- उच्च रक्त चाप दूर हो जाता है।
- मस्तिष्क तथा हृदय में ताज़गी आ जाती है।
- शरीर को शक्ति मिल जाती है।
2. पश्चिमोत्तान आसन–इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ना होता है।
विधि-
- पश्चिमोत्तान आसन करने के लिए टांगों को आगे फैला कर ज़मीन पर बैठो।
- दोनों हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़ो।
- इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए नाक से घुटनों को छूने का प्रयास करो।
- धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर ऊपर उठाओ और पहली वाली स्थिति में आ जाओ।
- यह आसन प्रतिदिन 10-15 बार करना चाहिए।
पश्चिमोत्तान आसन
लाभ-
- यह आसन पेट गैस की बीमारी को दूर करता है।
- यह आसन नाड़ियों को साफ़ करता है।
- इससे पैर शक्तिशाली हो जाते हैं।
- इससे शरीर में बढ़ी चर्बी घट जाती है।
- यह आसन पेट की बीमारियों को ठीक करता है।
- शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
- टांगें टेढ़ी नहीं होती।
3. धनुरासन-स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति कमान की भान्ति होती है।
विधि-
- इस आसन को करने के लिए पेट के भार आराम से लेट जाओ।
- पैरों को पीठ की ओर करो।
- हाथों से टखनों को पकड़ो।
- लम्बा सांस लेकर सिर तथा छाती को जहां तक सम्भव हो उठाकर शरीर का आकार धनुष की भान्ति बनाओ।
- जितनी देर हो सके इसी स्थिति में रहो। धीरे-धीरे सांस छोड़ते हए शरीर को ढीला छोड़ दो और पहले वाली स्थिति में आ जाओ।
लाभ—
- यह आसन आंतों को पुष्ट करता है।
- पाचन शक्ति बढ़ाता है।
धनुरासन स्थिति - मोटापा दूर हो जाता है।
- गठिया आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
4. पद्मासन की स्थिति–इस आसन में शरीर की स्थिति कमल के समान होती है।
विधि-
- पद्मासन करने के लिए पहले चौकड़ी मार के बैठो।
- दायां पांव बायें पांव पर इस प्रकार रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ की हड्डी को छुए। इसके बाद बायें पांव को उठा कर दाईं जांघ के ऊपर उसी प्रकार रखो।
पद्मासन - रीढ़ की हड्डी सीधी रखो।
लाभ—
- इस आसन से मन स्थिर रहता है।
- इस आसन से कमर का दर्द दूर हो जाता है।
- इस आसन से दिल तथा पेट की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- पाचन–शक्ति बढ़ जाती है।
- बार-बार पेशाब आने का रोग नहीं हो सकता।
- बहुत-सी आन्तरिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- बाजू तथा पांव मजबूत होते हैं।
- रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
- शरीर स्वस्थ रहता है।
5. हल आसन की स्थिति
विधि—अपने पांव फैला कर पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को नितम्बों की बगल में जमा दो। कमर के निचले भाग को (दोनों पांवों को) ज़मीन से धीरे से ऊपर उठाओ और इतना ऊपर ले जाओ कि दोनों पांव के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन से लग जाएं। जब तक सम्भव हो, इसी स्थिति में रहो।
पांवों को धीरे से उसी स्थान पर वापस ले जाओ जहां से आरम्भ किया था।
हल आसन
नोट-
- यह आसन हर आयु की स्त्री, पुरुष के लिए लाभदायक है।
- यह आसन हृदय रोगियों या उच्च या निम्न रक्त चाप वालों के लिए मना है।
- इस आसन को झटके से नहीं करना चाहिए।
लाभ—
- यह आसन सारे शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है। फलस्वरूप चर्म रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
- मोटापा दूर करने के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। कमर और नितम्ब को पतला करता है।
- पेट की स्थूलता को आसानी से कम करता है।
- रीढ़ की हड्डी लचकीली होती है। शरीर सुन्दर और नीरोग हो जाता है।
- यह आसन शरीर की दुर्गन्ध को दूर करता है। शरीर को सुन्दर बनाता है।
- चेहरा प्रसन्न हो जाता है।
- आंखों में तेज़ आ जाता है।
6. सर्वांगासन स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति अर्द्ध-हल की भान्ति हो जाती
सर्वांगासन
विधि—
- इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के भार सीधा लेट जाओ।
- हाथों को पेट के बराबर सीधा रखो।।
- दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाकर हथेलियों से पीठ को सहारा देते हुए कुहनियों को ज़मीन पर टिकाओ।
- सारे शरीर को सीधा रखो।
- सारे शरीर का भार कन्धों तथा गर्दन पर रहे।
- ठोडी को छाती के साथ स्पर्श करो।
- कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद फिर पहली वाली स्थिति में आ जाओ।
लाभ-
- शरीर में स्फूर्ति आती है।
- शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
- मोटापा दूर हो जाता है।
- बाजू और पैर मज़बूत हो जाते हैं।
- टांगें टेढ़ी नहीं होती।
प्रश्न 2.
भुजंगासन (Bhujangasana), अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatsyandrasana), मत्स्यासन (Matsyasana) और मयूरासन (Mayurasana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. भुजंगासन (Bhujangasana)—
स्थिति-पेट के बल लेटना।
विधि—
- पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएं। दोनों हाथों के साथ कन्धों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ।
- टांगों और हथेलियों को अकड़ाते हुए धीरे-धीरे सिर और छाती को इतना उठाइए कि बाजू सीधे हो जाएं।
- पंजों को अन्दर की ओर देखो और सिर को पीछे की ओर फेंको।
- धीरे-धीरे पहले की स्थिति में जाओ।
- इस आसन को तीन से चार बार करो।
लाभ-
- यह आसन पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
भुजंगासन - जिगर के रोगों को दूर करता है।
- कब्ज दूर हो जाती है।
- यह स्वप्न-दोष दूर करता है।
- हड्डियां मज़बूत होती हैं।
- तिलों को आराम देता है।
2. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana)-इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पार्यों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बायं पांव की एडी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ जिससे एड़ी का भाग गुदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्ष स्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएं।
लाभ-
- इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
- यह आसन वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hemia) में लाभदायक है।
- यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
- इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
- छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।
3. मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर (Supine) लेटे हुए और पीछे की ओर (arch) बनाते हैं।
विधि- पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
मत्स्यासन
लाभ-
- यह आसन चेहरे तथा त्वचा को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
- यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
- इस आसन द्वारा शरीर में लचक आती है कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
- यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र रोग दोषों को दूर करता है। यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।
4. मयूरासन (Mayurasana)
विधि-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कुहनियों को आपस में मिला कर नाभि पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर देकर घुटनों और पैरों को ज़मीन से उठाए रखो।
मयूरासन
लाभ-
- यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
- पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों को बलवान बनाता है।
- इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है। इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
- यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।
प्रश्न 3.
वज्रासन (Vajurasana), शीर्षासन (Shirshasana), चक्रासन (Chakarasana) और गरुड़ आसन (Garur Asana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि-
- घुटने मोड कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलओं के भार बैठो।
- नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों।
- दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
- दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।।
- सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हो।
- यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।
वज्रासन
लाभ-
- शरीर में स्फूर्ति आती है।
- शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
- शरीर स्वस्थ रहता है।
- मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
- इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
- पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
- मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
- मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है।
- इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
- पाचन-क्रिया ठीक रहती है।
2. शीर्षासन (Shirsh Asana)– इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि-
- एक दरी या कम्बल बिछ। कर घुटनों के भार बैठो।
- दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
- सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
- टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
- पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
- शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
शीर्षासन - शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
- दीवार या साथी का सहारा लो।
लाभ –
- यह आसन भूख बढ़ाता है।
- इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- मोटापा दूर हो जाता है।
- जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
- पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
सावधानियां –
- जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
- सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
- कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
- नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दो।
- यदि शरीर भार सहन न कर सकें तो आसन बन्द कर दें।
- पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
- यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
- शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
- आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
- यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो।
इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।
3. चक्रासन की स्थिति- इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
चक्रासन
विधि-
- पीठ के भार लेट कर घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को ज़मीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
- हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
- अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को कमान या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
- सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
- आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।
लाभ-
- शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
- शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
- हर्नियां तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
- पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
- पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- रीढ़ की हड्डी मज़बूत हो जाती है।
- जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
- गुर्दो की बीमारियां घट जाती हैं।
- कमर दर्द दूर हो जाता है।
- शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
4. गरुड़ आसन (Garur Asana)-गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खडा होना होता है।
विधि-
- सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
- बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
- शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
- बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
- इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा-सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
- अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।
लाभ-
- शरीर के सभी अंगों को शक्तिशाली बनाता है।
गरुड़ आसन - शरीर स्वस्थ हो जाता है।
- यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
- यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
- टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
- शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
- रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
- गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।
प्रश्न 4.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में लिखो।
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं नीरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है, जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—
- नियम (Observance)—नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे शरीर की सफ़ाई नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है। नियमों के पांच अंग हैं-
- शौच
- सन्तोष
- तप
- स्वाध्याय और
- ईश्वर परिधान।
- यम (Restraint)-ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है। इसके पांच अंग हैं-
- अहिंसा
- असत्य
- अस्तेय
- अपरिग्रह
- ब्रह्मचर्य।
- आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखकर टांगों को किसी विशेष दिशा में रखकर बैठना पद्मासन है।
- प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)-किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है। यह उपासना का अंग है। इसके तीन भाग हैं-
- पूरक
- रेचक
- कुम्भक।
- धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है, जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
- प्रत्याहार (Abstration)-प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगानः
- ध्यान (Meditation)-इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
- समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।
प्रश्न 5.
योग के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? (What are the main Principles of Yoga ?)
उत्तर-
योग के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Yoga)-योग करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन अवश्य करना चाहिए। इन सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार हैं—
- स्नान करके योगासन किए जाएं तो और भी अच्छा रहेगा। स्नान करने से शरीर हल्का होता है, लचक आती है और आसन अच्छे ढंग से होते हैं। वैसे सायंकाल भी जब पेट खाली हो तो आसन किए जा सकते हैं।
- आसन करने का स्थान शांत व स्वच्छ होना चाहिए। किसी उद्यानवाटिका में आसन किए जाएं तो बहुत अच्छा है।
- दरी या कम्बल बिछाकर आसन करने चाहिएं, ताकि भूमि की चुम्बकीय शक्ति आपके ध्यान को तोड़े नहीं और नीचे से कोई चीज़ आपको गड़े नहीं।
- जितना आप एकाग्र होकर आसन करेंगे, उतना ही अधिक शारीरिक व मानसिक लाभ मिलेगा। आसन शुरू करने से पहले श्वासन करके अपने श्वास, शरीर और मन को शांत कर लें।
- इसको करते समय झटके नहीं लगने चाहिएं। हर आसन को शरीर तान कर और खींच कर धीरे-धीरे करें। उसके बाद कुछ क्षण अपने शरीर को शिथिल करें। जब आपका श्वास स्वाभाविक स्थिति में आ जाये तब दूसरा आसन करें।
- आसन की पूर्ण स्थिति तक जाने का प्रतिदिन अभ्यास करें। धीरे-धीरे आपके बंद खुलेंगे और शरीर में लचक पैदा होगी।
- ऋतु के अनुसार आसनों का कम-से-कम कपड़े पहन कर अभ्यास करें।
- योगासनों का अभ्यास सभी वर्गों के बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष कर सकते हैं । दस वर्ष से लेकर 80/85 वर्ष तक के व्यक्ति योगाभ्यः । कर सकते हैं। आसनों का अभ्यास विधिपूर्वक करना चाहिए।
- योगासन करने वाले व्यक्ति को अपना भोजन हल्का रखना चाहिए। भोजन सुपाच्य, सात्विक व प्राकृतिक होना चाहिए। जितना हल्का भोजन होगा, उतनी उसकी कार्य शक्ति बढ़ जाएगी।
- कठिन रोगों तथा ज्वर से पीड़ित व्यक्ति को आसन, प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- शुरू में एक ही दिन बहुत-से आसन न करें। प्रत्येक आसन को मनोयोग से आंख मूंद कर धीरे-धीरे करें : सर्वांगासन व शोसन धीरे-धीरे बढ़ाकर दस मिन्ट तक कर
सकते हैं। आसन की पहली स्थिति से अन्तिम स्थिति में और अन्तिम स्थिति से वापस जल्दी न आएं। - आसनों का अभ्यास-क्रम इस प्रकार रखना चाहिए कि आसन के बाद उसका उपासन (काउन्टरपोज) कर सकें। जैसे पश्चिमोत्तानासन और उसका उपासन कोणासन, सर्वांगासन का बाद मत्स्यासन आदि।
- योगासनों की समाप्ति के बाद कुछ समय के लिए श्वासन अवश्य करें। आसनों का लाभ तभी मिल पाएगा जब आप श्वासन करके अपने शरीर को थोड़ा विश्राम दें। श्वासन अपने-आप में पूर्ण आसन है और इससे शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है।
- योगासन प्राणायम का कार्यक्रम समाप्त करने के बाद कम-से-कम आधे घण्टे तक कुछ न खाएं।
- वायु को बाहर निकालने के पश्चात् श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास करना चाहिए।
- योगाभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
प्रश्न 6.
अन्य व्यायाम जैसे सैर, दंड-बैठक, मुग्दर, मल्ल-युद्ध पश्चिमी देशों के खेलों आदि में क्या दोष हैं और योगासनों में ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जो उन्हें ही जीवन का अंग बनाया जाए ?
(What are the disadvantages of western exercises like, Astrolt, Dand-Bethak, Wrestling, Mugdhar etc ? Why Yoga is important for our life ?)
उत्तर-
- अन्य जितने भी व्यायाम हैं, वे मुख्यत: मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं, जिससे बाहरी शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता है, अंदर काम करने वाले यन्त्रों पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह पाता। जबकि योगासनों से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है और शरीर के सैल बनते अधिक व टूटते कम हैं।
- अन्य व्यायाम व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है। खेल तो साथियों के बिना खेले ही नहीं जा सकते, जबकि योगासन अकेले ही दरी व चादर पर किए जा सकते हैं।
- दूसरे व्यायामों का प्रभाव मन और इन्द्रियों पर बहुत कम पड़ता है, जबकि योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है।
- दूसरे व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जबकि योगासनों में बहुत कम भोजन की आवश्यकता पड़ती है।
- योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को अन्दर रुकने नहीं देता, तुरन्त बाहर निकालने का प्रयत्न करता है, जिसके आप रोगमुक्त होते हैं।
- योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है, जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है, शरीर के हर अंग में रक्त का संचार ठीक होता है, अधिक आयु में भी व्यक्ति युवा लगता है और काम करने की शक्ति बनी रहती है। अन्य व्यायामों से मांसपेशियों में कड़ापन आ जाता है, शरीर कठोर हो जाता है और बुढ़ापा जल्दी आता है।
- जिस प्रकार नाली की गंदगी को झाड़ लगाकर, पानी फेंक कर साफ़ करते हैं, उसी प्रकार अलग-अलग आसनों से रक्त की नलिकाओं व कोशिकाओं को साफ़ करते हैं, ताकि उनमें रवानगी रहे और शरीर रोगमुक्त हो। यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है, अन्य व्यायामों से नहीं। अन्य व्यायामों से तो हृदय की गति तेज़ हो जाती है और रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
- फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने फेफड़ों के फेलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं जिससे अधिक-से-अधिक ओषजनक वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त की शुद्धि कर सके। दूसरे व्यायामों में फेफड़े जल्दी-जल्दी श्वास लेते हैं, जिससे प्राण वायु फेफड़ों के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाती, जिसका परिणाम होता है विकार और विकार रोग का कारण है।
- वर्तमान समय में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यन्त्रों का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। उन्हें क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं, जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड जाती है।
- मेरुदण्ड पर हमारा यौवन निर्भर करता है। सारा रक्त संचार व नाड़ी संचालन, इसी से होकर शरीर में फैलता है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना ही शरीर स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक संतुलन बना रहेगा। यह केवल योगासनों से ही सम्भव है।
- दूसरे व्यायामों से आपको थकावट आएगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पडेगी, जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त की जाती है. क्योंकि योगासन धीरे-धीरे और आराम से किए जाते हैं। इन्हें अहिंसक और शान्तिप्रिय क्रियाएं कहा जाता है।
- अन्य व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। योगासन स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाते हैं। यौगिक क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता है, मन स्थिर रहता है। मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है, सत्वगुण की प्रधानता होती है और सत्वगुण से मानसिक शक्ति का विकास होता है। ये सब लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से ही प्राप्त हो सकते हैं।
- हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं, जो हमें स्वस्थ व निरोग रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इन ग्रन्थियों का रस रक्त में मिल जाता है, जिससे मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है। गले की थाइराइड व पैराथाइराइड ग्रन्थियों से निकलने वाले रस पर्याप्त मात्रा में न होने से बालकों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर में प्रसन्नता नहीं रहती। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियों को सजग करके पर्याप्त मात्रा में रस देने के योग्य बनाने के लिए योगासन पद्धति बड़ी कारगर है। अन्य व्यायामों का प्रभाव इस दिशा में नगण्य है।
- शरीर के रोगों को दूर करने में, प्राणायाम और षट्कर्म राम-बाण का काम करते हैं। जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हें बाहर निकाल पाने में समर्थ नहीं होते, तो रोग का आरम्भ होता है। इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है और अपने आपको स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योग पद्धति २.तम पद्धति है। इसका मुकाबला और कोई पद्धति नहीं कर सकती।
प्रश्न 7.
योग का महत्त्व विस्तार से लिखें।
उत्तर-
योग का महत्त्व (Importance of Yoga)—मानव जीवन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। योग मानव में सम्पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग द्वारा मनुष्य में निम्नलिखित गुणों का विकास होता है—
- शारीरिक, मानसिक एवं गुप्त शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Hidden qualities)—प्राणायाम और अष्टांग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों का विकास होता है। अष्टांग योग के नियम और आसन अंगों द्वारा व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के अंग क्रियाशील एवं विकसित होते हैं। इसका हमारी विभिन्न प्रणालियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
- शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Purification and Development of Body)योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। आसनों से शरीर स्वस्थ होता है, योगाभ्यास द्वारा मन पर नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान का आपसी तालमेल बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर स्वस्थ तथा फुर्तीला बना रहता है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा प्राप्त होता है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार आसन और प्राणायाम शरीर की आन्तरिक सफ़ाई में सहायक सिद्ध होते हैं।
- संवेगों पर नियन्त्रण (Control over Eniutions)–आधुनिक युग में मनुष्य मानसिक और आत्मिक शान्ति का इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि साधारण सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दु:खी कर देती है कि हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हम मदमस्त हो जाते हैं। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता की झलक दिखाई देती है। योग हमें अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों में समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने मन के उद्देश्यों पर नियन्त्रण करना चाहिए और सफलता या असफलता को एक समान महत्त्व देना चाहिए।
- रोगों से प्राकतिक बचाव (Natural prevention of Diseases) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। रोगों के कीटाणु एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके रोग फैलाते हैं। योग ज्ञान हमें इन रोगों का मुकाबला करने, इसे छुटकारा पाने और स्वयं को स्वस्थ रखने के ढंग बताता है। जैसे-आसान, धोती, नेचि और जौली आदि द्वारा हमारे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं और हमें रोगों से मुक्ति मिलती है।
- त्याग एवं अनुशासन की भावना (Feeling of Sacrifice and Discipline)योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन से कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
अन्ततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि योग मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में विशेष महत्त्व रखता है।