PSEB 10th Class Welcome Life Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life उद्धरण संबंधी प्रश्न

स्रोत आधास्त प्रश्न

(1)

दिए गए स्रोत को पढ़ें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें —
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जैसा कि कहा जाता है कि ‘बहता पानी कभी वापिस नहीं होता। मानव का स्वभाव भी उसी की तरह है। यदि किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण विशाल नहीं है, तो वह समय के साथ खुद को कभी भी अनुकूलित नहीं कर सकता। संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रहता। ऐसा व्यक्ति चारों ओर विषाक्त हो जाता है और नकारात्मकता फैलाता है। इसके बिना वह व्यक्ति दूसरों के साथ संबंध बनाए रखने में विफल रहता है क्योंकि वह दूसरों की विचारधारा, दृष्टिकोण और, आलोचना का स्वागत करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए, एक लचीला दृष्टिकोण व्यक्तिगत रूप से विकसित करना बहुत ही आवश्यक लक्षण है।
प्रश्न-

  1. मानव स्वभाव क्या है?
  2. संकीर्ण मानसिकता का नुकसान क्या है?
  3. एक संकीर्ण दिमाग वाला व्यक्ति कैसे रिश्ता बनाए रखता है?
  4. हमें किस प्रकार की सोच रखनी चाहिए?
  5. लचीले दृष्टिकोण की क्या आवश्यकता है?

उत्तर-

  1. मानव स्वभाव परिवर्तनशील है जो समय के साथ बदलता रहता है।
  2. संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति हर जगह नकारात्मकता फैलाता है और कभी भी खुश नहीं रहता।
  3. एक संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति रिश्ते को अच्छी तरह से नहीं निभा सकता और दूसरों के विचारों को मानने के लिए तैयार नहीं होता।
  4. उसे संकीर्ण विचारधारा के साथ नहीं रहना चाहिए बल्कि सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीना
    चाहिए।
  5. लचीले दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति दूसरों के साथ स्वस्थ समायोजन करते हैं और उनके साथ कभी-कभी भी खट्टे-मीठे रिश्ते नहीं रखते।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

(2)

आधुनिक सूचना क्रांति के युग में संचार के साधनों और उनकी भूमिका में अत्यधिक वृद्धि हुई है। सूचना, ज्ञान और मनोरंजन इन माध्यमों से प्राप्त होते हैं। लेकिन इन संसाधनों को चलाने वाली अधिकांश कंपनियों, संस्थानों या संगठनों का मुख्य उद्देश्य भी पैसा कमाना है। ऐसी स्थिति में वह सभी प्रकार की सामग्री प्रदान करवा रहे हैं भले ही यह मानवता की भलाई के लिए है या नहीं। वर्तमान युग में प्रत्येक मनुष्य के पास इंटरनेट और संचार के साधनों का प्रयोग करने की क्षमता है। इसलिए हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम अपने ज्ञान को विकसित करने के लिए इन संसाधनों का उचित प्रयोग करें। बच्चों में सही/ग़लत खोजने की क्षमता कम होती है और इसलिए यह डर इंटरनेट या संचार के अन्य साधनों के दुरुप्रयोग के कारण बना रहता है। इस गतिविधि आधारित पाठ का मुख्य उद्देश्य है छात्रों में अभिरूचि का विकास करना ताकि समझ सके कि इन उपकरणों का सही प्रयोग कैसे किया जाए।
प्रश्न-

  1. किस प्रकार का युग वर्तमान युग है और क्यों?
  2. आधुनिक युग में किसका महत्त्व बढ़ गया है?
  3. संचार के साधन चलाने वालों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
  4. हमारा कर्त्तव्य क्या है?
  5. गतिविधि आधारित पाठ्यों का क्या लाभ है?

उत्तर-

  1. वर्तमान युग को सूचना क्रांति के युग के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने दुनिया में दूरी को काफी कम कर दिया है।
  2. आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी का महत्त्व बढ़ गया है।
  3. संचार के साधन चलाने वालों का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना और लाभ कमाना है।
  4. संचार के साधनों का समुचित उपयोग करना और अपने ज्ञान का विकास करना हमारा कर्तव्य है।
  5. यह छात्रों को यह समझने में मदद करता है कि औज़ारों का सही तरीके से उपयोग कैसे किया जाए और समझने के लिए उनमें एक आदत विकसित की जाए।

(3)

मैडम कमला ने लड़कियों की बताया कि उनके मन में बहुत सी गलत धारणाएं हैं जिनसे बचने की ज़रूरत है। जैसा कि कुछ लोग रात तक जागने के लिए दवा लेते हैं। कुछ अपने शरीर को और अधिक शक्तिशाली और सुडौल बनाने के लिए खतरनाक उत्पाद ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट युवा पीढ़ी को गुमराह कर रहे हैं। दरअसल यह विज्ञापन जो कंपनियों द्वारा प्रचारित किए जाते हैं और वह टी०वी० चैनल का हिस्सा नहीं होते हैं। उन पर डिस्कलेमर विज्ञापन लिखा हुआ होता है। इसीलिए हमें आँख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। इस तरह के विज्ञापन के बारे में हमें गंभीर रूप से सोचना चाहिए। इसलिए संक्षेप में हमें कड़ी मेहनत और घर के बने स्वस्थ आहार पर विश्वास करना चाहिए जो सरल और संतुलित आहार होना चाहिए। मैडम ने मिल्खा सिंह, पी.टी उषा, दीपिका करमाकर, लिएंडर पेस, मैरीकॉम और कई अन्य खिलाड़ियों की उदाहरणे दी जिन्होंने साधारण या ग़रीब परिवार से उठकर और दुनिया में अच्छी तरह से नाम कमाया।
प्रश्न-

  1. लोग किस प्रकार की गलत धारणाएं बनाते हैं?
  2. क्या हमें कंपनियों के विज्ञापनों पर भरोसा करना होगा?
  3. खेल व्यक्तियों के कुछ उदाहरण दें जिन्होंने केवल कड़ी मेहनत के साथ महान ऊंचाइयों को प्राप्त किया है।
  4. महान ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
  5. विज्ञापनों पर डिस्कलेमर क्यों लिखा जाता है?

उत्तर-

  1. लोग गलत धारणा बनाते हैं कि दवा और टॉनिक के सेवन से हम स्वस्थ और मज़बूत बन सकते हैं।
  2. हमें कंपनी के विज्ञापनों पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें इसके बारे में गंभीर रूप से सोचना चाहिए।
  3. मिल्खा सिंह, पी.टी. उषा, दीपिका करमाकर, लिंएडर पेस, मैरीकॉम और अन्य खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत के साथ महान ऊँचाईयों को हासिल किया।
  4. ऊँचाइयों को प्राप्त करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और दवा और टॉनिक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. क्योंकि टी०वी० चैनल केवल निर्माता की ओर से विज्ञापन दिखा रहे हैं। विनिर्माण या दोषपूर्ण उत्पादों से उनका कोई लेना देना नहीं है।

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(4)

हमारे संबंधों के बारे में कुछ सामाजिक सीमाएं है। वह हमें बताते हैं कि हमें अपने संबंधों को किस सीमा तक रखना चाहिए। हमें इन सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। हमारे परिवार या पड़ोसी, स्कूल, कॉलेज के शिक्षक, छात्र, दोस्त, दुनिया में लगभग हर व्यक्ति हमें जीवन के हर चरण में सामाजिक रूप से अच्छी प्रकार से परिभाषित सीमाओं और रिश्तों की सीमाओं का एहसास कराता है। इसलिए हमें तार्किक दृष्टिकोण के साथ उनका पालन करना चाहिए। हमें ऐसी सीमा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए अन्यथा हमें किसी अन्य रिश्ते की हत्या करनी पड़ सकती है। तो एक सीमा है जो एक सामाजिक अनुग्रह का प्रतीक है। जैसा कि कुछ संबंधों को घर पर रखा जाता है। दूसरी ओर कुछ हमारे कार्यालय या किसी अन्य कार्यस्थल तक सीमित हैं। इसलिए हमारे बाहरी रिश्तों (कार्यस्थल संबंधों या पेशेवर संबंधों) को हमारे घर पर लाना और इसके विपरीत करना बुद्धिमानी नहीं है। कुछ रिश्ते रक्त से संबंधित हैं जो हमारे बहुत करीब से जाने जाते हैं लेकिन यह हमेशा एक जैसा नहीं होता है। कभीकभी, एक रिश्ता जो रक्त से संबंधित नहीं है, हमारी अधिक मदद करता है और रक्त संबंधों की तुलना में हमारे करीब है।
प्रश्न-

  1. हमारे रिश्तों की सीमा कौन-तय करता है?
  2. हमें सामाजिक सीमाओं के साथ क्या करना चाहिए?
  3. हम करीबी और दूर के रिश्तों की पहचान कैसे कर सकते हैं?
  4. रिश्तों की सीमा क्या है?
  5. बाहरी रिश्तों को हमारे घर में लाना बुद्धिमानी क्यों नहीं है?

उत्तर-

  1. समाज हमारे रिश्तों की सीमा को तय करता है कि हमें किसी भी रिश्ते में कितनी दूर जाने की ज़रूरत है।
  2. हमें एक तार्किक दृष्टिकोण के साथ उनका पालन और निरीक्षण करना चाहिए। हमें सामाजिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए।
  3. करीबी और दूर के रिश्तों को हमारी सरलता, स्वाभाविकता और संवेदनशीलता से पहचाना जा सकता है।
  4. हमेशा हर रिश्ते की सीमा होती है कि हमें हर रिश्ते में कितनी दूर जाने की ज़रूरत हैं। इसलिए हमें आपकी सीमा को समझना चाहिए और बेहतर जीवन जीना चाहिए।
  5. हमें अपने घर में बाहरी या अधिकारी संबंधों को नहीं लाना चाहिए क्योंकि यह हमारे अन्य रिश्तों में समस्याएं पैदा कर सकता है। परिवार के सदस्य इसका विरोध कर सकते हैं और हमारे घरेलू रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

(5)

जीवन में हर व्यक्ति कई रिश्तों के साथ रहता है। कुछ रिश्ते लंबे होते हैं। लेकिन कुछ को काट दिया जाता है या कुछ रिश्ते समय और परिस्थितियों के प्रभाव से टूट जाते हैं। तो यह जीवन भर हमारे मन के किसी भी कोने में एक स्मृति के रूप में अच्छा या बुरा रहता है। दूर जाने के कारण, गुस्से-शिकवे बढ़ने के कारण, नए सिरे से जीवन लड़ी शुरू करने के चक्कर में या परिवार, समाज किसी की तरफ से रोक लगाने पर कई बार हमें कोई रिश्ता छोड़ना पड़ता है। कभी-कभी हमें लगता है कि हम किसी और के साथ लंबे समय तक नहीं रह सकते, इसलिए हमें अपना रिश्ता तोड़ रचनात्मक रूप से समाप्त करना चाहिए। कई रिश्ते छोड़ने के बाद हम दोबारा फिर से उनको नहीं मिलते परंतु बिछड़ने का सलीका होना चाहिए।
प्रश्न-

  1. क्या सभी रिश्ते जीवन भर चलते हैं?
  2. हमें रिश्तों को क्यों छोड़ना पड़ता है?
  3. हमें रिश्ते कैसे छोड़ने चाहिएं?
  4. रिश्ते याददाशत में क्यों रहते हैं?
  5. हम क्यों महसूस करते हैं कि कुछ रिश्ते लंबे समय तक नहीं रह सकते?

उत्तर-

  1. नहीं, सभी रिश्ते जीवन भर नहीं रहते।
  2. कुछ रिश्तों को बीच में ही छोड़ दिया जाना चाहिए। क्रोध, सामाजिक प्रतिबंधों के डर से या किसी अन्य स्थान पर एक नया जीवन शुरू करने के लिए कुछ रिश्तों को छोड़ना पड़ता है।
  3. अगर हमें कोई रिश्ता छोड़ने की आवश्यकता है, तो हमें रचनात्मक और सुंदर तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता है। ताकि यदि उसे दोबारा जोड़ना पड़े तो जोड़ सकें।
  4. हम एक विशेष संबंध को खत्म कर देते हैं लेकिन वह किसी अच्छे या बुरे क्षण के कारण स्मृति में बने रहते हैं।
  5. क्योंकि जीवन के एक पड़ाव पर, हमें यह एहसास होने लगता है कि ऐसे रिश्ते वफादार नहीं होते हैं और लंबे समय तक निभाने के बजाय उस रिश्ते को खत्म करना बेहतर होता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

(6)

यदि हम सभी के साथ उचित तरीके से व्यवहार करना चाहते हैं तो समझो कि हमारे अंदर संवेदनशीलता का गुण है। हमें सभी को इसे प्रेम और सम्मान के साथ समानता की नज़र से देखना होगा। इसलिए लड़कों और लड़कियों, पुरुषों और महिलाओं को एक-दूसरे के साथ उचित और समानता का व्यवहार करना होगा। जिस प्रकार, ‘दर्द’ शब्द का अर्थ सीमित है,-किसी का अपना दर्द। उसी प्रकार ‘संवेदना का अर्थ है-सभी के सामूहिक दर्द को समझना। अगर हम अपने घर को देखें तो भाई-बहनों को अक्सर यह शिकायत होती है कि उनके माता-पिता अपनी बहनों और भाइयों से बेहतर व्यवहार करते हैं। स्कूल में भी लड़के अक्सर इस बात की शिकायत करते हैं कि लड़कियों को क्लास का मॉनिटर क्यों बनाया जाता है? इस लिए इस तरह के मुद्दे वास्तव में हमारी लैंगिक संवेदनशीलता की कमी का संकेत हैं।
प्रश्न-

  1. संवेदनशील का गुण कौन-सा है?
  2. दर्द और संवेदना का क्या अर्थ है?
  3. घर में हमें अपने भाई-बहनों से क्या शिकायत है?
  4. हम कैसे ठीक से व्यवहार करना चाहिए?
  5. हमें दूसरों का आदर क्यों करना चाहिए?

उत्तर-

  1. समाज में रहते हुए हम सभी के साथ उचित और सम्मानजनक तरीके से पेश आते हैं। यह संवेदनशीलता का गुण है।
  2. दर्द का सीमित अर्थ है किसी का अपना दर्द और सहानुभूति का अर्थ है सभी के सामूहिक दर्द को समझना।
  3. हमें अक्सर भाई बहनों के बारे में शिकायत होती है कि माता-पिता उनसे ज्यादा प्यार करते हैं और हमसे कम प्यार करते हैं।
  4. हमें सभी को सम्मान देना चाहिए और उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

(7)

प्रिय छात्रो ज़रूरतों और इच्छाओं का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है, लेकिन उन्हें अपनी सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए। वह इतने अधिक नहीं होने चाहिए कि हमारी सभ्य सामाजिक सीमा को पार कर जाएं। जीवन जीने के लिए भोजन, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरतें है, उसी प्रकार एक अच्छी जीवन शैली का भी उतना ही महत्त्व है। आइए हम देखें कि हमारी ज़रूरतें और इच्छाएं किस प्रकार की हैं ? क्या वे सीमित हैं या बहुत अधिक हैं और सभी साधनों और स्रोतों से अधिक हैं ? क्या ये हमारे माता-पिता को तंग कर रहें हैं या नहीं?
प्रश्न-

  1. जीवन जीने के लिए क्या आवश्यक है?
  2. किस हद तक इच्छाओं को रखा जाना चाहिए?
  3. जीवन जीने के लिए कौन-सी चीजें आवश्यक हैं?
  4. इच्छाओं को रखते हुए हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?
  5. जीवन में ज़रूरतें और इच्छाएं क्यों ज़रूरी हैं?

उत्तर-

  1. ज़रूरतें और इच्छाएं जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। हम इनके बिना नहीं रह सकते।
  2. इच्छाओं को सामाजिक सीमा में रखा जाना चाहिए ताकि वह आसानी से पूरी हो सकें।
  3. जीवन जीने के लिए भोजन, वस्त्र और आश्रय की आवश्यकता होती है क्योंकि हम उनके बिना नहीं रह सकते।
  4. इच्छा रखने के दौरान हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि वह हमारे माता-पिता को तंग न करें। इस मामले में, वह हमारे माता-पिता पर बोझ बन जाएंगे।
  5. क्योंकि हर किसी को जीवन जीने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है जो एक खुशहाल जीवन जीने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

(8)

दुनिया का हर इंसान अलग है। हम उसी प्रकार कई मायनों में एक-दूसरे से अलग है। जैसे कि हर किसी का एक अलग व्यक्तित्व होता है। आपसी सम्मान के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम एक-दूसरे के साथ एक ही प्रकार से व्यवहार करें। स्वीकार करें कि उनका व्यक्तित्व रिश्ते के लिए अलग है जो एक आशीर्वाद है। हम अक्सर देखते हैं कि दो अच्छे दोस्तों के व्यक्तित्व अक्सर अलग होते हैं। एक वक्ता और दूसरा श्रोता, इस प्रकार से, हमारी विविधता एक-दूसरे की पूरक है। जब हम एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं तो हम उनसे बहुत कुछ सीखते हैं। अगर हम खुद को सही मानते हैं और दूसरों को गलत मानते हैं, तो हम अकेले रह जाएंगे। विद्यार्थी जीवन में मित्रता विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होती है। मित्र को उसके पूर्ण रूप में स्वीकार करो। इस स्थिति में हर किसी की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। जब कक्षा में एक छात्र को अध्यापक द्वारा टोका जाता है, तो उसे अपने तरीकों में बदलाव करना चाहिए। कोई और गुस्से में आ जाता है और जानबूझकर गलत व्यवहार करता है जबकि कोई पूरी तरह से चुप रहता हैं। हमारी समस्या यह है कि हम चाहते हैं कि हर कोई बदल जाए। यह ठीक नहीं है। सभी अलग तरीके से व्यवहार करते हैं।
प्रश्न-

  1. विद्यार्थी जीवन में क्या बहुत महत्त्व रखता है?
  2. दुनिया में हर कोई एक-दूसरे से अलग कैसे है?
  3. आपसी अच्छे संबंधों के लिए क्या आवश्यक है?
  4. हमारे जीवन में विभिन्नताओं का क्या महत्त्व है?
  5. दो अच्छे दोस्तों का व्यक्तित्व एक-दूसरे से अलग क्यों है?

उत्तर-

  1. विद्यार्थी जीवन में दोस्ती का बहुत महत्त्व हैं क्योंकि वह बिना किसी स्वार्थ के हमारे साथ बने रहते हैं और हम उन्हें जीवन भर याद रखते हैं।
  2. हर कोई शारीरिक दृष्टिकोण से एक-दूसरे से अलग है। उनकी आदतें, व्यक्तित्व और क्षमताएं भी अलग-अलग होती हैं। इसलिए हर कोई एक-दूसरे से अलग है।
  3. आपसी अच्छे संबंधों के लिए, यह होना चाहिए कि हम दूसरों को वैसा ही स्वीकार करें जैसे वे हैं और उनका व्यक्तित्व है। यह समानता के संबंधों को बनाए रखने में मदद करता हैं।
  4. विभिन्नताओं का बहुत महत्त्व है। हर कोई एक-दूसरे से अलग है और हम स्वीकार करते हैं। वह जैसे भी हैं, कई मतभेद होने के बाद भी, हम उनके साथ भेदभाव नहीं करते हैं।
  5. हालांकि वह अच्छे दोस्त हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण, विचार, आदतें, जीने के तरीके एक-दूसरे से अलग हैं। इसलिए उनके व्यक्तित्व भी अलग हैं।

(9)

रचनात्मक सोच का अर्थ है कि हमारे पास कुछ नया, अनूठा और मूल करने की प्रवृत्ति है। रचनात्मक मानसिकता वाले इंसान में हमेशा नए विचार आते हैं और उन विचारों को व्यक्त करने का तरीका भी अनोखा होता है। विभिन्न मनुष्यों में अलग-अलग लक्षण और गुण होते हैं। एक रचनात्मक मानसिकता वाला व्यक्ति इस गुण का उपयोग खुद को विकसित करने के लिए करता है और सामाजिक सम्मान भी प्राप्त करता है। रचनात्मक ध्यान न केवल कला या साहित्य के क्षेत्र में बल्कि किसी भी क्षेत्र से जुड़े लोगों में भी पाया जा सकता है। छात्रों में इस दृष्टिकोण को विकसित करके, उनके व्यक्तित्व को परिष्कृत किया जाना चाहिए और उनकी प्रकृति को उनकी ऊर्जा का उचित उपयोग करके रचनात्मक बनाया जाना चाहिए।
प्रश्न-

  1. रचनात्मक सोच का क्या अर्थ है?
  2. रचनात्मक सोच का क्या फायदा है?
  3. क्या यह रचनात्मक सोच किसी भी क्षेत्र में हो सकती है?
  4. छात्रों में रचनात्मक सोच विकसित करने से क्या फायदा है?
  5. सभी को रचनात्मक सोच क्यों रखनी चाहिए?

उत्तर-

  1. रचनात्मक सोच का अर्थ है कि हमारे पास कुछ नया, अनूठा और मूल करने की प्रवृत्ति है।
  2. रचनात्मक सोच के साथ एक व्यक्ति खुद का विकास करता है और सामाजिक सम्मान हासिल करता हैं। वह कुछ नया करने की कोशिश करता है।
  3. हाँ, रचनात्मक सोच कला, साहित्य, विज्ञान, इत्यादि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है।
  4. छात्रों में रचनात्मक सोच विकसित करके उनके व्यक्तित्व का विकास किया जा सकता है। उनकी ऊर्जा का उचित प्रयोग करके उनके स्वभाव को रचनात्मक बनाया जा सकता हैं।
  5. हर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अधिक रचनात्मक है। वह हमेशा कुछ अनोखा बनाना चाहता है। कुछ अनोखा बनाने के लिए रचनात्मक सोच बहुत आवश्यक है।

(10)

यदि हम कभी-कभी दुखी, डरे हुए, घबराए हुए, बेचैन, क्रोधित, ईष्यालु या परेशान महसूस करते हैं तो यह सामान्य है, लेकिन अगर ऐसा अक्सर होता है, तो इन भावनाओं पर नियंत्रण करना आवश्यक हो जाता है। यदि हमारी भावनाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तो यह हानिकारक साबित हो सकती हैं और हमारे शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक संबंधों और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए सीखना चाहिए कि अत्यधितः भावनात्मक होने और फिर बाद में पछतावा होने पर गलतियों से बचने के लिए हम अपनी भावनाओं का आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करते हैं। इनको अच्छी प्रकार से समझदार और इन पर सही तरीके से अमल करके, उज्ज्वल और सफल छात्र हो सकते हैं क्योंकि भावनाओं का संतुलन हमारे जीवन में हमारे शारीरिक कल्याण, मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक संबंधों और सामाजिक संबंधों के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। सभी भावनात्मक संतुलन से जुड़े हैं। भावनाओं को संतुलित करने का अर्थ है कि हमें कब और कितना व्यक्त करना है, इसके बारे में पूरी तरह से जागरूक होना चाहिए। हमें एक सीमा निर्धारित करनी चाहिए कि हम अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त कर सकते हैं।
प्रश्न-

  1. हमें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण क्यों रखना चाहिए?
  2. हम कैसे सफल छात्र बन सकते हैं?
  3. भावनाओं के संतुलन से क्या अभिप्राय है?
  4. भावनाओं को काबू में रखने के बारे में हमें क्यों सीखना चाहिए?
  5. जब हम उदास, घबराए हुए, गुस्सा इत्यादि महसूस करते हैं, तो यह सामान्य क्यों है?

उत्तर-

  1. हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता है जैसे कि क्रोध, ईर्ष्या, डर नहीं तो यह हमारे लिए कई समस्याएं पैदा कर सकता है।
  2. हम अपनी भावनाओं का आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करके, इनको ठीक से समझकर और इन्हें सही तरीके से समझकर सफल छात्र बन सकते हैं।
  3. भावनाओं को संतुलित करने का मतलब यह है कि हमें कब और कितना व्यक्त करना है, इसके बारे में पूरी तरह से जागरूक होना चाहिए।
  4. हमें भावनाओं को नियंत्रण में रखने के बारे में सीखना चाहिए ताकि भावनाओं के प्रभाव में हम कोई गलती कर बैठें जो बाद में एक समस्या बन सकती है।
  5. यह मानव स्वभाव के कारण है जो अलग-अलग समय पर महसूस होता है। दुखी, घबराया हुआ, क्रोधित, ईर्ष्या या हमेशा के लिए परेशान। यह हमारे मन पर भी निर्भर करता है जिसके अनुसार हमारे भीतर विभिन्न भावनाएं होती हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

PSEB 6th Class Agriculture Guide पानी का कृषि में महत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों का एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पौधों में पानी की मात्रा कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
90 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
फसलों को बनावटी तरीके से पानी देने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
सिंचाई।

प्रश्न 3.
पानी की सबसे अधिक बचत करने में समर्थ सिंचाई की कोई दो विधियां लिखो।
उत्तर-
फुव्वारा सिंचाई, टपक सिंचाई।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 4.
कौन-से पदार्थ पानी द्वारा पौधों में विलय करते हैं ?
उत्तर-
खनिज पदार्थ तथा खाद्य तत्त्व।।

प्रश्न 5.
भारत में कुल पानी में से कितना पानी कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
70 प्रतिशत।

प्रश्न 6.
कदू करना किसे कहते हैं ?
उत्तर-
खड़े पानी में खेत को जोतने को कद्दू करना कहते हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 7.
कौन-सी फसल को कद् करके लगाया जाता है ?
उत्तर-
धान को।

प्रश्न 8.
पंजाब में सिंचाई के मुख्य साधन कौन-से हैं ?
उत्तर-
टयूबवेल तथा नहरें।

प्रश्न 9.
फसल को अधिक लू व कोहरे से बचाने के लिए कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
सिंचाई का।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 10.
पानी की कमी वाले क्षेत्रों में सिंचाई की कौन-सी विधि लाभदायक है ?
उत्तर-
टपक सिंचाई।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का एक या दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
सिंचाई किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कई बार फसलों की आवश्यकता वर्षा के पानी से पूरी नहीं होती तथा फसलों को बनावटी ढंग से पानी दिया जाता है, इसको सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 2.
फसल में रौनी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
बुवाई के समय मिट्टी में उचित मात्रा में नमी होनी चाहिए, इसलिए खेत में भर के पानी लगाया जाता है जिसको रौनी कहते हैं। इस तरह रौनी का महत्त्व फसल उगने में सहायता करना होता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 3.
सिंचाई के विभिन्न साधन कौन-से हैं ?
उत्तर-
सिंचाई के भिन्न-भिन्न साधन हैं-ट्यूबवेल, कुआँ, नदी, तालाब, डैम, नहर आदि।

प्रश्न 4.
सिंचाई की संख्या फसलों पर कैसे निर्भर करती है ?
उत्तर-
कई फसलें जैसे ; गेहूँ, तेल बीज फसलों, दालों आदि को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा कई फसलों जैसे धान, मक्का आदि को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए सिंचाई की संख्या फसल पर निर्भर करती है।

प्रश्न 5.
धान में कद् क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
धान की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए धान की बुवाई के लिए खेत में पानी खड़ा करके जुताई की जाती है, इसको कद्रू करना कहते हैं। इस तरह खेत में ज़्यादा पानी खड़ा किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
मिट्टी में नमी का होना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
बीज को अंकुरित होकर पौधे में बदलने के लिए मिट्टी में ठीक मात्रा में नमी होनी चाहिए, इसलिए मिट्टी में नमी का होना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
रेतीली मिट्टी में अधिक व चिकनी मिट्टी में कम सिंचाई की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर-
रेतीली मिट्टी में पानी बहुत जल्दी समा जाता है जबकि चिकनी मिट्टी में धीमी गति से समाता है। इसलिए रेतीली मिट्टी में सिंचाई की अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 8.
पंजाब में सैंट्रीफ्यूगल पम्पों का स्थान सबमरसीबल पम्पों ने क्यों ले लिया
उत्तर-
भूमिगत जल का स्तर नीचे गिरता जा रहा है, जिस कारण सेंट्रीफ्यूगल पम्प (पंखे वाले) पानी निकालने में फेल हो गए हैं। इसलिए अब मछली मोटर अर्थात् सबमरसीबल पम्पों के प्रयोग से पानी निकाला जाता है।

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प्रश्न 9.
गर्मी के मौसम में फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता क्यों पड़ती
उत्तर-
गर्मी के दिनों में मिट्टी तथा पत्तों में से वाष्पीकरण अधिक मात्रा में होता है, इसलिए गर्मियों में अधिकतर फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 10.
पानी उठाने वाले पम्पों की ऊर्जा कहां से प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
पम्पों के लिए ऊर्जा डीज़ल, बायोगैस, बिजली तथा सौर ऊर्जा से प्राप्त की जा सकती है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के चार-पाँच पंक्तियों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पौधों के जीवन में पानी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
बीज को अंकुरित होने के लिए नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए मिट्टी में नमी का होना बहुत आवश्यक है। पानी पौधों के बढ़ने-फूलने तथा फूल, फल और बीज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पानी द्वारा मिट्टी में से खनिज, लवण तथा खाद्य पदार्थ पौधों को प्राप्त होते हैं : पानी में घुल कर तत्त्व पौधे के सारे भागों तक पहुंच जाते हैं। पानी लू तथा कोहरे से भी पौधों की रक्षा करता है।

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प्रश्न 2.
सिंचाई की संख्या किस पर निर्भर करती है और कैसे ?
उत्तर-
सिंचाइयों की संख्या फसल की किस्म, मौसम तथा मिट्टी की किस्म पर निर्भर करती है। गेहूँ, तेल बीज फसल, दालों आदि को कम सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। परन्तु धान, गन्ने, मक्की आदि को अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। सर्दियों में फसलों को कम सिंचाइयों की तथा गर्मियों में फसलों को अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि गर्मी में मिट्टी तथा पत्तों में पानी का वाष्पीकरण बहुत तेज़ी से तथा अधिक मात्रा में होता है। हल्की मिट्टी (रेतीली) में अधिक तथा भारी (चिकनी) मिट्टी में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। हल्की भूमि में पानी जल्दी समा जाता है जबकि भारी भूमि में धीरे-धीरे समाता है।

प्रश्न 3.
सिंचाई की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ? फुव्वारा सिंचाई के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
सिंचाई की विभिन्न विधियाँ हैं-धरातली सिंचाई, उप-धरातली सिंचाई, फुव्वारा सिंचाई, टपक सिंचाई आदि।
फव्वारा सिंचाई-इस विधि में फसल या भूमि पर फुव्वारे द्वारा पानी का छिड़काव किया जाता है। यह पानी भूमि की सोखने की शक्ति से सदा कम होता है तथा पौधों की आवश्यकता को ही पूरा करता है। ऊँचे-नीचे क्षेत्रों में यह तकनीक बहुत कारगर सिद्ध हुई है। फसल को लू तथा कोहरे से बचाने के लिए यह विधि उचित है।

प्रश्न 4.
टपक सिंचाई द्वारा कैसे पानी की बचत होती है ?
उत्तर-
पानी एक प्राकृतिक स्रोत है, इसकी बचत करने की भी बहुत आवश्यकता है। कृषि में भारत के कुल पानी का 70 प्रतिशत प्रयोग होता है। इसलिए पानी की बचत करने के लिए टपक सिंचाई का तरीका बहुत कारगर सिद्ध हुआ है।

इस विधि में पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद करके पानी डाला जाता है। इस तरह इस पानी का प्रयोग केवल पौधों की आवश्यकता को ही पूरा करता है तथा मिट्टी में समा जाने के लिए बचता ही नहीं है तथा इस तरह पानी बिल्कुल बर्बाद नहीं होता। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह तरीका बहुत ही लाभदायक है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 5.
धरातली सिंचाई का प्रयोग विभिन्न फसलों में किस प्रकार किया जाता
उत्तर-
बढ़िया उपज लेने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए भिन्नभिन्न तरीके से सिंचाई की जाती है इनमें से एक विधि है धरातली सिंचाई।

इस तरीके में खेत में क्यारे बना कर खालों द्वारा पानी लगाया जाता है। इस ढंग से गेहूँ, दालों आदि को पानी लगाया जाता है। फलदार पौधों के आस पास मेढ़ें बना कर पानी भर दिया जाता है। कई फसलों को मेढ़ों पर उगाया जाता है तथा खालियों द्वारा पानी दिया जाता है; जैसे-गन्ना, मक्की, आलू आदि। ।

Agriculture Guide for Class 6 PSEB पानी का कृषि में महत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कुल पानी का लगभग कितने प्रतिशत पानी घरेलू आवश्यकता के लिए प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
8 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
धान की बुवाई के लिए खेत को क्या किया जाता है ?
उत्तर-
कद्रू।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 3.
पंजाब में सिंचाई का मुख्य साधन क्या है ?
उत्तर-
ट्यूबवेल तथा नहरें।

प्रश्न 4.
हल्की मिट्टी कौन-सी है ?
उत्तर-
रेतीली मिट्टी।

प्रश्न 5.
भारी भूमि कौन-सी है ?
उत्तर-
चिकनी मिट्टी।

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प्रश्न 6.
कौन-सी ज़मीन में पानी जल्दी सोखा जाता है ?
उत्तर-
रेतीली (हल्की) ज़मीन में।

प्रश्न 7.
तालाब से पानी निकालने के लिए किस का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
पशुओं का।

प्रश्न 8.
मछली मोटर किस को कहते हैं ?
उत्तर-
सबमरसीबल पम्प।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 9.
डल झील पर सब्जियां उगाने के लिए कौन-सी सिंचाई का प्रयोग होता
उत्तर-
उप-धरातली सिंचाई।

प्रश्न 10.
टपक सिंचाई कौन-से क्षेत्रों के लिए बहुत लाभदायक है ?
उत्तर-
पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पानी की लागत के बारे बताओ।
उत्तर-
भारत में कुल पानी का 70 प्रतिशत पानी कृषि, 20-22 प्रतिशत पानी कारखानों तथा लगभग 8 प्रतिशत पानी घरेलू आवश्यकताओं के लिए प्रयोग होता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

प्रश्न 2.
कौन-सी फसलों को कम सिंचाई तथा किन को अधिक सिंचाई की आवश्यकता है ?
उत्तर-
गेहूँ, तेल बीज फसलें, दालों आदि को कम सिंचाई तथा धान, मक्की, गन्ना आदि को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
अब पानी उठाने के लिए किस विधि का प्रयोग होता है तथा किस ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
अब पानी उठाने के लिए पम्पों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-पंखा पम्प, मछली मोटर आदि तथा डीज़ल, बायोगैस, बिजली तथा सौर ऊर्जा का प्रयोग करके इन पम्पों को चलाया जाता है।

प्रश्न 4.
उप-धरातली सिंचाई के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
कई स्थानों पर पानी ज़मीन के निकट होने के कारण जमीन में से पानी ले लेते हैं, जैसे-कश्मीर में डल झील पर सब्जियां उगाई जाती हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 4 पानी का कृषि में महत्त्व

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
सिंचाई के साधनों के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
सिंचाई के कई साधन उपलब्ध हैं। यह हैं कुआँ, ट्यूबवेल, तालाब, डैम, नहर, नदी आदि। पुरातन समय में कुआँ, तालाब में से पानी निकालने के लिए पशुओं का प्रयोग किया जाता था। यह कार्य अधिक समय लेने वाला तथा बढ़िया ढंग नहीं है।

आजकल पानी उठाने के लिए पम्पों का प्रयोग होता है। यह पम्प बिजली, बायोगैस, डीज़ल तथा सौर ऊर्जा आदि से चलते हैं। पंजाब में सिंचाई के लिए मुख्य तौर पर नहरों तथा ट्यूबवेल का प्रयोग होता है। पंजाब में लगभग 13 लाख ट्यूबवेल हैं। पानी के अधिक प्रयोग के कारण धरती के नीचे पानी का स्तर नीचे गिर रहा है। इसलिए पानी निकालने के लिए सैंट्रफ्यूिगल पम्प (पंखे वाले) फेल हो गए हैं तथा अब पानी निकालने के सबमरसीबल पम्प (मछली पम्पों) का प्रयोग हो रहा है पर इनके प्रयोग से बिजली की खपत भी बढ़ गई है।

पानी का कृषि में महत्त्व PSEB 6th Class Agriculture Notes

  • पानी के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता।
  • भारत में कुल पानी का लगभग 70 प्रतिशत कृषि में, 20-22 प्रतिशत, उद्योगों में तथा लगभग 8 प्रतिशत पानी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • पौधों में लगभग 90 प्रतिशत पानी होता है।
  • पानी फसल को लू तथा कोहरे दोनों से बचाता है।
  • बनावटी ढंग से फसलों को पानी देने को सिंचाई कहते हैं।
  • हल्की (रेतीली) मिट्टी में अधिक तथा भारी (चिकनी) मिट्टी में कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
  • खेत में भर कर पानी लगाया जाता है, जिसको रौनी कहते हैं।
  • धान के अलावा सभी फसलों को रौनी करके बोया जाता है।
  • धान की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए इसको कद्दू करके बोया जाता है।
  • सिंचाई के साधन हैं-कुआं, ट्यूबवेल, तालाब, दरिया, नहरें, बाँध आदि।
  • ट्यूबवेलों की संख्या 1980 में 6 लाख से बढ़कर अब 13 लाख से भी अधिक हो गई है।
  • सिंचाई के ढंग हैं-धरातली सिंचाई, उप-धरातली सिंचाई, फुव्वारा सिंचाई, टपक सिंचाई।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 2 केन्द्रीय सरकार

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 2 केन्द्रीय सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 2 केन्द्रीय सरकार

SST Guide for Class 10 PSEB केन्द्रीय सरकार Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/ एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में दें

प्रश्न 1.
(i) लोकसभा का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर-
लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है।

प्रश्न 1.
(ii) लोकसभा के कुल कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर-
लोकसभा के अधिक-से-अधिक 550 सदस्य हो सकते हैं।

प्रश्न 1.
(iii) लोकसभा के अध्यक्ष की नियुक्ति कैसे होती है?
उत्तर-लोकसभा अपने सदस्यों में से ही अध्यक्ष का चुनाव करती है।

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प्रश्न 1.
(iv) अविश्वास प्रस्ताव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
यदि लोकसभा प्रधानमंत्री तथा उसके मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे तो इन्हें अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ता है।

प्रश्न 1.
(v) लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।

प्रश्न 1.
(vi) राष्ट्रपति लोकसभा में कब और कितने ऐंग्लो-इण्डियन मनोनीत कर सकता है?
उत्तर-
जब ऐंग्लो-इण्डियन समुदाय को लोकसभा में उचित प्रतिनिधित्व न मिले तो राष्ट्रपति लोकसभा में दो ऐंग्लो-इण्डियन सदस्य मनोनीत करता है।

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प्रश्न 2.
राज्यसभा के बारे में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें
(i) राज्यसभा के कुल कितने सदस्य हो सकते हैं?
(ii) राष्ट्रपति किन क्षेत्रों में से कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है?
(iii) राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है?
(iv) राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम कितनी आयु होनी चाहिए?
(v) राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
(vi) राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव कैसे होता है?
उत्तर-
(i) राज्यसभा के अधिक-से-अधिक 250 सदस्य हो सकते हैं।
(ii) राष्ट्रपति विज्ञान, कला, साहित्य एवं समाज सेवा के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त 12 व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है।
(iii) भारत का उप-राष्ट्रपति।
(iv) राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम 30 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
(v) राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
(vi) राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित की व्याख्या करें
(i) महाभियोग
(ii) मन्त्रिमण्डल का सामूहिक उत्तरदायित्व या व्यक्तिगत उत्तरदायित्व
(iii) राष्ट्रपति-शासन या नाममात्र अध्यक्ष
(iv) राष्ट्रपति के चुनाव के लिए चुनाव मण्डल।
उत्तर-
(i) महाभियोग-संविधान की अवहेलना करने पर राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जाता है और दोषी पाए जाने पर उसे निश्चित अवधि से पूर्व पदमुक्त किया जा सकता है।
(ii) मन्त्रिमण्डल का सामूहिक उत्तरदायित्व या व्यक्तिगत उत्तरदायित्व-सामूहिक उत्तरदायित्व से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी तो है ही, साथ में उसका उत्तरदायित्व प्रत्येक विभाग की नीति से भी होता है।
(iii) राष्ट्रपति शासन या नाममात्र अध्यक्ष-राष्ट्रपति देश का नाममात्र अध्यक्ष है क्योंकि व्यवहार में उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिपरिषद् करता है।
(iv) राष्ट्रपति के चुनाव के लिए चुनाव मण्डल-राष्ट्रपति का चुनाव एक चुनाव मण्डल द्वारा किया जाता है। जिसमें संसद् (लोकसभा तथा राज्यसभा) तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित के उत्तर दें
(i) प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है?
(ii) राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां कितने प्रकार की होती हैं?
(iii) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे होती है?
(iv) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर-
(i) प्रधानमन्त्री की नियुक्ति-राष्ट्रपति संसद् में बहुमत प्राप्त करने वाले दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।
(ii) राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां- राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां तीन प्रकार की होती हैं

  1. राष्ट्रीय संकट, विदेशी आक्रमण तथा आन्तरिक विद्रोह,
  2. राज्य का संवैधानिक संकट,
  3. वित्तीय संकट।

(iii) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति-उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है।
(iv) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल-उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्य कर सकते हैं।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित की व्याख्या 50-60 शब्दों में करो
(i) स्वतन्त्र न्यायपालिका
(ii) परामर्श सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र
उत्तर-
(i) स्वतन्त्र न्यायपालिका-नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और न्याय के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है जो लोभ, भय, दबाव या पक्षपात रहित न्याय कर सके। इसलिए संविधान ने (शक्तियों के अलगाव के सिद्धान्त द्वारा) न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग कर दिया है। इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों को पदों से हटाने की प्रक्रिया बड़ी कठिन है।
(ii) परामर्श सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र-भारत का राष्ट्रपति किसी कानून अथवा संवैधानिक मामले पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श ले सकता है। पांच जजों पर आधारित बैंच ऐसा परामर्श दे सकती है जिसे मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
संसद् में विधेयक कानून कैसे बनता है?
उत्तर-
विधेयक दो प्रकार के होते हैं-वित्त विधेयक तथा साधारण विधेयक। वित्त विधेयक किसी मन्त्री द्वारा केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। परन्तु साधारण विधेयक किसी मन्त्री या संसद् के किसी सदस्य द्वारा किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। साधारण विधेयक को कानून बनने से पहले निम्नलिखित अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है
पहला पड़ाव अथवा वाचन-इस अवस्था में विधेयक पर बहस नहीं होती। इसके केवल मुख्य उद्देश्य बताए जाते हैं।
द्वितीय पड़ाव अथवा वाचन-द्वितीय वाचन में विधेयक की प्रत्येक धारा पर विस्तार से बहस होती है तथा कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं। यदि आवश्यक हो तो विधेयक प्रवर समिति को सौंपा जा सकता है। तृतीय पड़ाव अथवा वाचन-इस पड़ाव में समग्र रूप से विधेयक पर मतदान होता है। यदि विधेयक पास हो जाए तो इसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
विधेयक दूसरे सदन में-दूसरे सदन में भी विधेयक को पहले सदन की भान्ति उन्हीं पड़ावों से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन भी इसे पारित कर दे तो विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति-राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने पर विधेयक कानून बन जाता है।

प्रश्न 2.
संसद् की शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
संसद् की चार प्रमुख शक्तियां निम्नलिखित हैं

  1. वैधानिक शक्तियां-संसद् संघीय और समवर्ती सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाती है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
  2. कार्यपालिका शक्तियां-संसद् अविश्वास प्रस्ताव पारित करके मन्त्रिपरिषद् को हटा सकती है। इसके अतिरिक्त संसद् के सदस्य प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव द्वारा, स्थगन प्रस्ताव तथा निंदा प्रस्ताव द्वारा मन्त्रिपरिषद् को नियन्त्रण में रखते हैं।
  3. वित्तीय शक्तियां-संसद् का राष्ट्रीय धन पर अधिकार होता है। यह नए कर लगाती है, पुराने करों में संशोधन करती है और बजट पारित करती है।
  4. संवैधानिक संशोधन-संसद् एक विशेष संवैधानिक विधि से संविधान में संशोधन कर सकती है।
    (विद्यार्थी कोई तीन लिखें।)

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प्रश्न 3.
लोकसभा के अध्यक्ष की भूमिका के बारे लिखें।
उत्तर-
लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) का चुनाव सदस्य अपने में से ही करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष के चार कार्य निम्नलिखित हैं

  1. कार्यवाही का संचालन-वह लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करता है। बहुमत दल का सदस्य होने के बावजूद वह यही प्रयास करता है कि सदन की कार्यवाही के संचालन में निष्पक्षता हो।
  2. अनुशासन-वह सदन में अनुशासन बनाए रखता है। वह अनुशासन भंग करने वाले सदस्यों को सदन से बाहर जाने का आदेश दे सकता है।
  3. विधेयक के स्वरूप का निर्णय-अध्यक्ष इस बात का निर्णय करता है कि कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा साधारण विधेयक।
  4. संयुक्त बैठकों की अध्यक्षता-यदि किसी विधेयक पर दोनों सदनों में असहमति हो जाए तो राष्ट्रपति लोकसभा तथा राज्यसभा का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है। इस संयुक्त अधिवेशन का सभापतित्व लोकसभा का अध्यक्ष करता है।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में कितने प्रकार के मन्त्री होते हैं?
उत्तर-
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में चार प्रकार के मन्त्री होते हैं-कैबिनेट मन्त्री, राज्य मन्त्री, उप-मन्त्री तथा संसदीय सचिव। –

  1. कैबिनेट मन्त्री-कैबिनेट मन्त्री सबसे उच्च स्तर के मन्त्री होते हैं। ये मन्त्रिपरिषद् की अन्तरिम कमेटी के सदस्य होते हैं। ये प्रशासकीय विभागों के स्वतन्त्र अध्यक्ष होते हैं।
  2. राज्य-मन्त्री-राज्य-मन्त्री निचले स्तर के मन्त्री होते हैं। वे कैबिनेट मन्त्रियों की सहायता के लिए नियुक्त किए जाते हैं। राज्य मन्त्री को कभी-कभी किसी विभाग का स्वतन्त्र कार्यभार भी सौंप दिया जाता है।
  3. उप-मन्त्री-उप-मन्त्री कैबिनेट मन्त्रियों तथा राज्य मन्त्रियों की सहायता के लिए नियुक्त किए जाते हैं।
  4. संसदीय सचिव-संसदीय सचिव वास्तव में मन्त्री नहीं होते। उनका मुख्य कार्य महत्त्वपूर्ण विभागों के मन्त्रियों की संसद् में सहायता करना होता है।

प्रश्न 5.
प्रधानमंत्री के कोई चार कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का धुरा होता है।

  1. वह मन्त्रियों की नियुक्ति करता है और वही उनमें विभागों का बंटवारा करता है।
  2. वह जब चाहे प्रशासन की कार्यकुशलता के लिए मन्त्रिमण्डल का पुनर्गठन कर सकता है। इसका अभिप्राय यह है कि वह पुराने मन्त्रियों को हटा कर नए मन्त्री नियुक्त कर सकता है। वह मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन कर सकता है। यदि प्रधानमन्त्री त्याग-पत्र दे दे तो पूरा मन्त्रिमण्डल भंग हो जाता है।
  3. यदि कोई मन्त्री त्याग-पत्र देने से इन्कार करे तो वह त्याग-पत्र देकर पूरे मन्त्रिमण्डल को भंग कर सकता है। पुनर्गठन करते समय वह उस मन्त्री को मन्त्रिमण्डल से बाहर रख सकता है।
  4. वह मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है और उनकी तिथि, समय तथा स्थान निश्चित करता है।

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प्रश्न 6.
भारत के उप-राष्ट्रपति की पदवी का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर-
भारत के उप-राष्ट्रपति के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1. भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। वह नियमों के अनुसार राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है।
  2. वह राष्ट्रपति के अस्वस्थ होने पर या उसके विदेश जाने पर अथवा किसी अन्य कारण से अनुपस्थित होने पर राष्ट्रपति का कार्यभार सम्भालता है। राष्ट्रपति के त्याग-पत्र देने अथवा मृत्यु हो जाने की स्थिति में वह नये राष्ट्रपति के चुनाव होने तक राष्ट्रपति का कार्यभार सम्भालता है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन निम्नलिखित है

  1. राष्ट्रीय संकट-जब राष्ट्रपति के अनुसार देश पर बाहरी आक्रमण, युद्ध या हथियार-बन्द विद्रोह के कारण देश की एकता एवं अखण्डता पर संकट उत्पन्न हो गया हो तो वह देश में संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  2. राज्य का संवैधानिक संकट-यदि राज्यपाल द्वारा भेजी गई रिपोर्ट या किसी अन्य साधन से राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि किसी राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राष्ट्रपति उस राज्य में संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  3. वित्तीय संकट-यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि देश की आर्थिक स्थिति ऐसी हो गई है जिससे आर्थिक स्थिरता या साख को खतरा है तो राष्ट्रपति वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है।

PSEB 10th Class Social Science Guide केन्द्रीय सरकार Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारतीय संसद् से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
भारत में केन्द्रीय विधानपालिका को संसद् अथवा पार्लियामेण्ट कहते हैं।

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प्रश्न 2.
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कौन-कौन सी योग्यता होनी चाहिए? (कोई एक)
उत्तर-
वह भारत का नागरिक हो।

प्रश्न 3.
लोकसभा के अध्यक्ष का एक कार्य लिखो।
उत्तर-
लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करता है।

प्रश्न 4.
साधारण विधेयक तथा धन विधेयक में क्या अन्तर होता है
उत्तर-
साधारण विधेयक संसद् के किसी भी सदन में पेश किए जा सकते हैं। जबकि धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं और वे भी केवल किसी मन्त्री द्वारा।

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प्रश्न 5.
राष्ट्रपति की किसी विधेयक के सम्बन्ध में क्या शक्तियां हैं?
उत्तर-
प्रायः राष्ट्रपति हस्ताक्षर करके विधेयक की स्वीकृति दे देता है अथवा वह उसे संसद् के दोनों सदनों के पास पुनर्विचार के लिए भी भेज सकता है परन्तु दूसरी बार राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

प्रश्न 6.
संसद् द्वारा कार्यपालिका पर नियन्त्रण की कोई एक विधि बताइए।
उत्तर-
संसद् अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करके सरकार को हटा सकती है।

प्रश्न 7.
संसदीय प्रणाली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संसदीय प्रणाली से अभिप्राय शासन की उस प्रणाली से है, जिसमें संसद् राज्य की सर्वोच्च संस्था होती है।

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प्रश्न 8.
धन संकट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
देश में आर्थिक अस्थिरता।

प्रश्न 9.
राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी निर्वाचक मण्डलों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी निर्वाचक मण्डल में संसद् तथा विधानसभाओं के सदस्य सम्मिलित होते हैं, जबकि उप-राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी निर्वाचक मण्डल में केवल संसद् के ही सदस्य सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 10.
उप-राष्ट्रपति का एक कार्य लिखो।
उत्तर-
वह राज्यसभा के सभापति के रूप में उसकी कार्यवाही का संचालन करता है।

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प्रश्न 11.
मन्त्रिपरिषद् में कौन-कौन से प्रकार के मन्त्री होते हैं?
उत्तर-
मन्त्रिमण्डल स्तर के मन्त्री, राज्यमन्त्री, उपमन्त्री तथा संसदीय सचिव।

प्रश्न 12.
विधेयक के वाचन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संसद् में किसी विधेयक की प्रस्तुति के पश्चात् दोनों सदनों में होने वाले विचार-विमर्श को विधेयक का वाचन कहते हैं।

प्रश्न 13.
काम रोको प्रस्ताव क्या होता है?
उत्तर-
काम रोको प्रस्ताव द्वारा संसद् के सदस्य निश्चित कार्यक्रम के स्थान पर सरकार का ध्यान किसी गम्भीर घटना की ओर दिलाने का प्रयास करते हैं।

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प्रश्न 14.
प्रश्नोत्तर काल का अर्थ बताइए।
उत्तर-
संसद् के दोनों सदनों में प्रतिदिन पहला एक घण्टा प्रश्नोत्तर काल कहलाता है।

प्रश्न 15.
संसद् कौन-सी सूचियों के विषयों पर कानून बना सकती है?
उत्तर-
संसद् संघ सूची तथा समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।

प्रश्न 16.
राज्यसभा की सदस्यता के लिए कोई एक योग्यता लिखो।
उत्तर-
राज्यसभा की सदस्यता के लिए नागरिक की आयु तीस वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए।

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प्रश्न 17.
संसद् का कोई एक महत्त्वपूर्ण कार्य लिखो।
उत्तर-
संसद् का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य देश के लिए कानून बनाना है।
अथवा
वह बजट और वित्त-विधेयकों के सम्बन्ध में अपने अधिकारों के माध्यम से सरकार के व्यय पर नियन्त्रण करती है।

प्रश्न 18.
संसद् का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर-
संसद् का मुख्य कार्य देश के लिए कानून बनाना है।

प्रश्न 19.
विधेयक किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रस्तावित कानून को विधेयक कहते हैं।

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प्रश्न 20.
कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ है या नहीं – इसका निर्णय कौन करता है?
उत्तर-
कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ है या नहीं-इसका निर्णय लोकसभा का अध्यक्ष करता है।

प्रश्न 21.
धन विधेयक कौन पेश कर सकता है?
उत्तर-
धन विधेयक केवल कोई मन्त्री ही पेश कर सकता है।

प्रश्न 22.
विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
विधेयक दो प्रकार के होते हैं-साधारण विधेयक तथा धन सम्बन्धी विधेयक।

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प्रश्न 23.
लोकसभा द्वारा पारित धन-बिल को राज्यसभा कितने समय तक रोक सकती है?
उत्तर-
लोकसभा द्वारा पारित धन बिल को राज्यसभा 14 दिन तक रोक सकती है।

प्रश्न 24.
क्या लोकसभा के लिए धन-बिल पर राज्यसभा द्वारा दिए गए सुझावों को मानना अनिवार्य होता है?
उत्तर-
लोकसभा के लिए धन बिल पर राज्यसभा द्वारा दिए गए सुझावों को मानना अनिवार्य नहीं होता है।

प्रश्न 25.
राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर-
राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष होता है।

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प्रश्न 26.
राष्ट्रपति को कितना मासिक वेतन मिलता है?
उत्तर-
राष्ट्रपति को 5,00,000 रुपए मासिक वेतन मिलता है।

प्रश्न 27.
राष्ट्रपति का एक कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार लिखो।
उत्तर-
राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री को नियुक्त करता है तथा उसकी सलाह से मन्त्रिपरिषद् की रचना करता है।
अथवा
वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा राजदूतों को भी नियुक्त करता है।

प्रश्न 28.
भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं का प्रधान कौन होता है?
उत्तर-
राष्ट्रपति।

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प्रश्न 29.
प्रधानमन्त्री किसके द्वारा नियुक्त किया जाता है?
उत्तर-
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 30.
अध्यादेश कौन जारी कर सकता है?
उत्तर-
यदि संसद् का अधिवेशन न चल रहा हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।

प्रश्न 31.
अध्यादेश अधिक-से-अधिक कब तक जारी रहता है?
उत्तर-
अध्यादेश अधिक से अधिक संपद् का अगला अधिवेशन आरम्भ होने से छ: सप्ताह बाद तक जारी रहता है।

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प्रश्न 32.
राष्ट्रपति का एक विधायी अधिकार लिखो।
उत्तर-
राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है।
अथवा
संसद् द्वारा जो विधेयक पारित किया जाता है वह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के बाद ही कानून बनता है।

प्रश्न 33.
राष्ट्रपति का एक वित्तीय अधिकार बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष बजट तैयार करवा कर उसे संसद् में प्रस्तुत करवाता है।
अथवा
राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कोई भी वित्त विधेयक प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 34.
राष्ट्रपति का एक न्यायिक अधिकार लिखो।
उत्तर-
उच्च न्यायालय तथा देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
अथवा
राष्ट्रपति किसी भी अपराधी के दण्ड को कम कर सकता है अथवा उसे क्षमादान भी दे सकता है।

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प्रश्न 35.
केन्द्र सरकार का वास्तविक अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर-
केन्द्र सरकार का वास्तविक अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है।

प्रश्न 36.
भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-
35 वर्ष या उससे अधिक।

प्रश्न 37.
प्रधानमन्त्री का कोई एक अधिकार लिखो।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री सरकार की नीति का निर्धारण करता है।
अथवा
वह मन्त्रियों में परिवर्तन कर सकता है तथा उनके विभागों को बदल भी सकता है।

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प्रश्न 38.
भारत के सबसे बड़े न्यायालय का नाम क्या है?
उत्तर-
भारत के सबसे बड़े न्यायालय का नाम सर्वोच्च अथवा उच्चतम न्यायालय है।

प्रश्न 39.
सर्वोच्च न्यायालय कहां स्थित है?
उत्तर-
यह नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 40.
उच्चतम न्यायालय में कुल कितने न्यायाधीश हैं?
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय में कुल 34 न्यायाधीश हैं।

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प्रश्न 41.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या घटाने या बढ़ाने का अधिकार किसे है?
उत्तर-
इनकी संख्या घटाने अथवा बढ़ाने का अधिकार संसद् को प्राप्त है।

प्रश्न 42.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कौन-सी एक योग्यता आवश्यक है?
उत्तर-
वह भारत का नागरिक हो तथा वह किसी उच्च न्यायालय में पांच वर्षों तक न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो।
अथवा वह किसी एक अथवा अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्ष तक वकील के रूप में कार्य कर चुका हो।

प्रश्न 43.
उच्चतम न्यायालय में कौन-कौन से अधिकार क्षेत्र हैं?
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय में तीन अधिकार क्षेत्र हैंआरम्भिक क्षेत्र अधिकार, अपीलीय क्षेत्र अधिकार तथा परामर्श देने सम्बन्धी क्षेत्र अधिकार।

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प्रश्न 44.
हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक कौन है?
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय को हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक माना जाता है।

प्रश्न 45.
सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के संबंध में कौन-सा लेख (रिट) जारी कर सकता है?
उत्तर-
यह परमादेश नामक लेख जारी कर सकता है।

प्रश्न 46.
अपील किसे कहते हैं?
उत्तर-
किसी छोटे न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ऊंची-अदालत में प्रार्थना करने की प्रक्रिया को अपील कहते हैं।

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प्रश्न 47.
कौन-कौन से तीन मामलों में अपीलें सर्वोच्च न्यायालय में लाई जा सकती हैं?
उत्तर-
संवैधानिक प्रश्नों, दीवानी मुकद्दमों तथा फ़ौजदारी मुकद्दमों सम्बन्धी अपीलें सर्वोच्च न्यायालय में लाई जा सकती हैं।

प्रश्न 48.
उच्चतम न्यायालय के एक अधिकार का वर्णन करो।
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकार सम्बन्धी मुकद्दमों का निर्णय कर सकता है।
अथवा
उच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक मामलों में दिए गए निर्णयों के विरुद्ध यह अपील सुन सकता है।

प्रश्न 49.
भारतीय संसद् के निम्न सदन का नाम बताओ।
उत्तर-
लोकसभा।

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प्रश्न 50.
भारत में मतदाता की न्यूनतम आयु कितनी है?
उत्तर-
18 वर्ष।

प्रश्न 51.
लोकसभा में अधिक-से-अधिक कितने सदस्य हो सकते हैं?
उत्तर-
550.

प्रश्न 52.
पंजाब राज्य से लोकसभा में कितने सदस्य हैं?
उत्तर-
13.

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प्रश्न 53.
लोकसभा में अधिकतम सदस्य किस राज्य से हैं?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 54.
राज्यसभा में अधिक-से-अधिक कितने सदस्य हो सकते हैं?
उत्तर-
250.

प्रश्न 55.
राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा कितने सदस्य मनोनीत किये जाते हैं?
उत्तर-
12.

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प्रश्न 56.
संसद् के सदस्य मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण किस प्रकार रखते हैं?
उत्तर-
अविश्वास प्रस्ताव द्वारा, स्थगन प्रस्ताव द्वारा तथा प्रश्न पूछ कर।

प्रश्न 57.
कानून सम्बन्धी प्रस्ताव को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
विधेयक।

प्रश्न 58.
लोकसभा में पारित विधेयक (बिल) को राज्यसभा अपनी सिफ़ारिशों के लिए अधिकतम कितने दिनों के लिए रोक सकती है?
उत्तर-
14 दिन तक।

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प्रश्न 59.
भारत में वास्तविक कार्यपालिका कौन-सी है?
उत्तर-
प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिपरिषद।

प्रश्न 60.
सजा प्राप्त अपराधी के दंड को कम अथवा क्षमादान कौन कर सकता है?
उत्तर-
राष्ट्रपति।

प्रश्न 61.
राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर-
5 वर्ष के लिए।

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प्रश्न 62.
राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति का चुनाव किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर-
एक निर्वाचक मंडल द्वारा।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. संसदीय प्रणाली में ……………… राज्य की सर्वोच्च संस्था होती है।
  2. राज्यसभा का सभापति …………… होता है।
  3. राष्ट्रपति का कार्यकाल ………….. होता है।
  4. प्रधानमंत्री की नियुक्ति …………… द्वारा की जाती है।
  5. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या घटाने-बढ़ाने का अधिकार ……. को प्राप्त है।
  6. पंजाब राज्य से लोकसभा में ………….. सदस्य हैं।
  7. लोकसभा में अधिक-से-अधिक ……… सदस्य हो सकते हैं।
  8. लोकसभा का कार्यकाल ………….. वर्ष होता है।
  9. संसद् में पेश किए गए प्रस्तावित कानून को …………….. कहते हैं।
  10. संसद् के उच्च सदन को …………. कहते हैं।

उत्तर-

  1. संसद्,
  2. उपराष्ट्रपति,
  3. पांच वर्ष,
  4. राष्ट्रपति,
  5. संसद्,
  6. 13,
  7. 550,
  8. पांच,
  9. विधेयक,
  10. राज्य सभा।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं का प्रधान होता है
(A) रक्षा मंत्री
(B) राष्ट्रपति
(C) प्रधानमंत्री
(D) गृहमंत्री।
उत्तर-
(B) राष्ट्रपति

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प्रश्न 2.
राष्ट्रपति लोकसभा में कितने ऐंग्लो-इंडियन सदस्य मनोनीत कर सकता है?
(A) दो
(B) बारह
(C) पांच
(D) छः।
उत्तर-
(A) दो

प्रश्न 3. .
राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव होता है-
(A) प्रधानमन्त्री तथा उसकी मन्त्रिपरिषद् द्वारा
(B) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा
(C) राज्यों की पंचायतों द्वारा
(D) लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा।
उत्तर-
(B) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा

प्रश्न 4.
हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक है
(A) प्रधानमन्त्री की मन्त्रिपरिषद्
(B) लोकसभा
(C) सर्वोच्च अथवा उच्चतम न्यायालय
(D) राष्ट्रपति।
उत्तर-
(C) सर्वोच्च अथवा उच्चतम न्यायालय

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प्रश्न 5.
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
(A) तीन वर्ष
(B) चार वर्ष
(C) पांच वर्ष
(D) छः वर्ष।
उत्तर-
(D) छः वर्ष।

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. लोकसभा का कार्यकाल छ: वर्ष होता है।
  2. लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
  3. राज्यसभा एक स्थायी सदन है जिसके सदस्यों का कार्यकाल छः वर्ष होता है।
  4. राष्ट्रपति संसद में बहुमत प्राप्त करने वाले दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
  5. लोकसभा की कार्यवाही का संचालन लोकसभा का कोई भी नवनिर्वाचित सदस्य कर सकता है।
  6. सर्वोच्च न्यायालय प्रत्येक राज्य की राजधानी में होता है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗),
  6. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. महाभियोग — अस्थायी कानून
  2. अध्यादेश — राष्ट्रपति को पद से हटाना।
  3. अविश्वास प्रस्ताव — सर्वोच्च (उच्चतम) न्यायालय
  4. प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र — मंत्रिमंडल का त्यागपत्र

उत्तर-

  1. महाभियोग — राष्ट्रपति को पद से हटाना,
  2. अध्यादेश — अस्थायी कानून,
  3. अविश्वास प्रस्ताव — मंत्रिमंडल का त्याग-पत्र,
  4. प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र — सर्वोच्च (उच्चतम) न्यायालय।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संसद् की सर्वोच्चता से आप क्या समझते हैं?
अथवा
चार तर्कों द्वारा सिद्ध कीजिए कि देश में संसद् की सर्वोच्चता है।
उत्तर-
संसद् की सर्वोच्चता का यह अर्थ है कि देश में कानून बनाने की अन्तिम शक्ति संसद् के हाथ में ही है। संसद् द्वारा पारित कानून पर राष्ट्रपति को अवश्य ही हस्ताक्षर करना पड़ता है। यह संघ सूची और समवर्ती सूची पर कानून बना सकती है। यह उस प्रक्रिया में भी भाग लेती है जिसके द्वारा राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का चुनाव होता है। यह सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने के लिए सरकार से प्रार्थना कर सकती है। सरकारी आयव्यय पर भी इसी का नियन्त्रण रहता है। एक विशेष प्रक्रिया द्वारा इसे संविधान में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह सरकार की शक्तियों के प्रयोग पर नियन्त्रण रखती है। अतः स्पष्ट है कि संसद वास्तव में ही देश की सर्वोच्च संस्था है।

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प्रश्न 2.
प्रधानमन्त्री का संविधान में क्या स्थान है?
उत्तर-
प्रधानमन्त्री का संविधान में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्रपति देश का केवल कार्यकारी मुखिया है। उसकी सभी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री करता है। वह मन्त्रियों तथा महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है। देश की बाहरी तथा भीतरी नीति का निर्माण भी वही करता है। वह सरकार के कई महत्त्वपूर्ण विभाग अपने हाथ में रखता है और उनका उचित संचालन करता है। इसके अतिरिक्त वह राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वास्तव में वह सारे राष्ट्र का नेता होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रधानमन्त्री को संविधान में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
भारत में संसदीय सरकार होने के कारण संविधान में प्रधानमन्त्री की स्थिति राष्ट्रपति से अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह सत्य है कि राष्ट्रपति देश का संवैधानिक मुखिया है और उसका पद बहुत ही गौरव का है। परन्तु उसकी शक्ति नाममात्र है। वह अपनी शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की ‘सहायता और परामर्श’ से ही करता है। क्योंकि प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का नेता होता है, इसलिए राष्ट्रपति की शक्तियां वास्तव में प्रधानमन्त्री की ही शक्तियां हैं। वह देश की वास्तविक कार्यपालिका है। वह मन्त्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति के बीच कड़ी (Link) का कार्य करता है। वही देश के लिए. नीति-निर्माण करता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री पूरे राष्ट्र का वास्तविक नेता है।

प्रश्न 4.
प्रधानमन्त्री के मुख्य कार्य (शक्तियाँ) का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के प्रधानमन्त्री के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं —

  1. राष्ट्रपति को सहायता तथा परामर्श देना।
  2. मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को चुनना।
  3. मन्त्रियों में विभागों का बंटवारा करना।
  4. सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों तथा विभागों की नीतियों में तालमेल बनाए रखना।
  5. संसद् में सरकार के प्रमुख प्रवक्ता का कार्य करना।
  6. भारत के योजना आयोग तथा राष्ट्रीय विकास परिषद के पदेन अध्यक्ष का कार्य करना।

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प्रश्न 5.
उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए कौन-सी योग्यताएं हैं?
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय में निम्नलिखित योग्यताओं वाले व्यक्ति को न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है —

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में पांच वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो।
    वह कम-से-कम 10 वर्ष तक एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में वकालत कर चुका हो।
    या वह राष्ट्रपति की दृष्टि में कोई विधि विशेषज्ञ हो।

प्रश्न 6.
राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कब की जाती है?
उत्तर-
भारत के किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति यह घोषणा वहां के राज्यपाल की सिफ़ारिश पर करता है। यह घोषणा उस स्थिति में की जाती है, जब राष्ट्रपति को राज्यपाल या किसी अन्य भरोसेमंद सूत्र द्वारा प्राप्त सूचना से यह पता चले कि उस राज्य का शासन संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं चलाया जा सकता। राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल राज्य का वास्तविक अध्यक्ष बन जाता है. तथा राज्य की सभी शक्तियां राष्ट्रपति के पास होती हैं। ऐसी स्थिति में राज्य के लिए कानून संसद् द्वारा बनाए जाते हैं।

राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) प्रायः छः मास के लिए होता है, परन्तु संसद् इसे छः मास तक और बढ़ा । सकती है। यदि यह समय एक वर्ष से अधिक बढ़ाना पड़े, तो इसके लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भारत में संसद् और न्यायालय के सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारत में संसद और न्यायालयों के बीच गहरा सम्बन्ध है। संसद् देश के लिए कानून बनाती है और न्यायालय उन कानूनों की रक्षा करते हैं। यदि कोई व्यक्ति इन कानूनों को भंग करे तो न्यायालय उसे दण्ड देता है। संसद् सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने के लिए राष्ट्रपति से निवेदन कर सकती है। इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों के अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का निर्धारण भी संसद् के कानूनों और संविधान द्वारा ही होता है।

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प्रश्न 8.
लोकसभा के सदस्यों के चुनाव की विधि का वर्णन करो।
उत्तर-
लोकसभा भारतीय संसद् का निम्न सदन है। इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, लोकसभा के चुनाव में मतदान कर सकता है। लोकसभा में कुछ स्थान पिछड़ी जातियों के लिए सुरक्षित किए गए हैं। यदि राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि चुनाव में ऐंग्लो-इण्डियन को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया तो वह लोकसभा में उस जाति के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। चुनाव के लिए सारे देश को बराबर जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बांट दिया जाता है। यही कारण है कि जद राज्यों से लाकराणा के लिए अधिक सदस्य चुने जाते हैं।

प्रश्न 9.
लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) पद के लिए किसे तथा कैसे निर्वाचित किया जाता है?
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य अपने में से ही किसी एक को अध्यक्ष चुनते हैं। चुनावों के पश्चात् लोकसभा की पहली बैठक में सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को सदन की अध्यक्षता करने के लिए कहा जाता है। उसकी अध्यक्षता में लोकसभा के विभिन्न दलों के सदस्य अपने-अपने उम्मीदवार का नाम प्रस्तुत करते हैं और सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को लोकसभा का स्पीकर चुन लिया जाता है। परन्तु प्रायः किसी ऐसे व्यक्ति को स्पीकर बनाने का प्रयास किया जाता है जो सभी दलों को मान्य हो। चुने जाने के पश्चात् लोकसभा अध्यक्ष राजनीतिक दल से अलग हो जाता है।

प्रश्न 10.
संसद् से क्या अभिप्राय है ? इसके दोनों सदनों के नाम बताओ और उनका कार्यकाल लिखो।
उत्तर-
संसद् से अभिप्राय केन्द्रीय विधान-मण्डल से है। इसके दो सदन हैं-लोकसभा तथा राज्यसभा। यह ऐसी संस्था है जो राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर कानून बनाती है। संसद् द्वारा बनाए गए कानून पूरे देश को प्रभावित करते हैं।

  1. लोकसभा की अवधि-लोकसभा के सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए किया जाता है। परन्तु राष्ट्रपति इसे 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है और चुनाव दोबारा करा सकता है। संकटकाल में लोकसभा की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
  2. राज्यसभा का कार्यकाल-राज्यसभा एक स्थायी सदन है, परन्तु हर दो वर्ष के पश्चात् इसके 1/3 सदस्य बदल जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुन लिए जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य अपने पद पर 6 वर्ष तक रहता है।

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प्रश्न 11.
संक्षेप में भारत के राष्ट्रपति के अधिकारों का विवेचन कीजिए।
अथवा
भारत के राष्ट्रपति के कार्यकारी, वैधानिक तथा अन्य अधिकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन इस प्रकार है

  1. कार्यकारी अधिकारी-
    1. सभी कानून राष्ट्रपति के नाम पर लागू होते हैं।
    2. वह प्रधानमन्त्री तथा उसके परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
    3. वह युद्ध तथा सन्धि की घोषणा करता है।
    4. वह विदेशों में अपने राजदूत नियुक्त करता है तथा विदेशों से आने वाले राजदूतों को मान्यता देता है।
  2. वैधानिक अधिकार-
    1. उसकी स्वीकृति के बिना कोई भी बिल कानून नहीं बन सकता।
    2. वह प्रधानमन्त्री की सलाह से लोकसभा को निश्चित समय से पहले भंग कर सकता है।
    3. वह राज्यसभा के लिए 12 तथा लोकसभा के लिए 2 सदस्य मनोनीत करता है।
  3. वित्तीय अधिकार-कोई भी धन-बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
  4. न्याय सम्बन्धी अधिकार-
    1. राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
    2. वह कैदियों की सज़ा कम या माफ कर सकता है।
  5. संकटकालीन शक्तियां-राष्ट्रपति बाह्य आक्रमण या आन्तरिक सशस्त्र विद्रोह, आर्थिक संकट और राज्य सरकार के ठीक न चलने पर संकटकाल की घोषणा कर सकता है।

प्रश्न 12.
संसद् सदस्यों के लिए छः अनिवार्य योग्यताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
संसद् सदस्यों के लिए निम्नलिखित छः अनिवार्य योग्यताएं हैं

  1. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।
  2. उसे शपथ लेनी चाहिए कि वह संविधान का पालन और आदर करेगा तथा भारत की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता को बनाए रखेगा।
  3. राज्यसभा के लिए न्यूनतम 30 वर्ष और लोकसभा के लिए 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
  4. वह पागल घोषित नहीं होना चाहिए।
  5. उसे लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
  6. उसे दिवालिया नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 13.
किस आधार पर राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत कर सकता है?
उत्तर-
भारत का राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्य मनोनीत कर सकता है। वह उन व्यक्तियों को मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान अथवा समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान तथा अनुभव हो।

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प्रश्न 14.
संसद् के तीन विधायी तथा तीन गैर-विधायी कार्य बताइए।
उत्तर-
विधायी कार्य-

  1. यह साधारण विधेयक पास करती है।
  2. वह वित्त विधेयक पास करती है।
  3. यह राष्ट्रपति द्वारा संसद् के अवकाश काल में जारी किए गए अध्यादेशों का अनुमोदन करती है।

गैर-विधायी कार्य-

  1. संसद् सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न पूछते हैं तथा मन्त्री इन प्रश्नों के उत्तर देते हैं।
  2. राष्ट्रपति द्वारा की गई आपातकालीन घोषणा पर निश्चित अवधि के भीतर संसद् का अनुमोदन प्राप्त करना पड़ता है।
  3. संसद् मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध प्रस्तुत किए गए अविश्वास के प्रस्ताव पर विचार करती है।

प्रश्न 15.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की योग्यताएं, कार्यकाल तथा वेतन बताइए।
उत्तर-
योग्यताएं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह या तो कम-से-कम पांच साल तक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो या कम-से-कम दस वर्ष तक उच्च न्यायालय का वकील रहा हो या राष्ट्रपति की राय में कानून विशेषज्ञ हो।

निश्चित कार्यकाल-सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल नियुक्ति के बाद निश्चित है। वे अपने पद पर उस समय तक बने रहते हैं जब तक वे 65 वर्ष के न हो जाएं।
निश्चित वेतन-मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रु० महीना तथा अन्य न्यायाधीशों को 2,50,000 रु० महीना वेतन मिलता है।

प्रश्न 16.
संविधान के वे चार प्रमुख उपबन्ध बताइए जो सर्वोच्च न्यायालय को स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष बनाते हैं।
अथवा
भारतीय संविधान स्वतन्त्र न्यायपालिका की रक्षा कैसे करता है?
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय को स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष बनाने के लिए संविधान में निम्नलिखित उपबन्ध दिए गए हैं

  1. राज्य-नीति का एक निर्देशक सिद्धान्त न्यायपालिका को कार्यपालिका से स्वतन्त्र करने का आदेश देता है।
  2. मुख्य तथा अन्य सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति निर्धारित न्यायिक अथवा कानूनी योग्यताओं के आधार पर की । जाती है।
  3. उन्हें सम्माननीय वेतन दिया जाता है।
  4. उनका कार्यकाल निश्चित है।

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प्रश्न 17.
निम्नलिखित की व्याख्या करें-

  1. भारतीय संसद में संगम प्रस्ताव
  2. भारतीय संसद में ध्यानार्थ प्रस्ताव
  3. भारतीय संसद् के सदनों को राष्ट्रपति का अभिभाषण और सन्देश
  4. साधारण विधेयक पारित करने के पड़ाव
  5. लोकसभा को भंग करना
  6. धन विधेयक

उत्तर-

  1. भारतीय संसद में स्थगन प्रस्ताव-सदन में बहस के दौरान किसी सार्वजनिक महत्त्व के विषय पर बहस करने के लिए रखे गए प्रस्ताव को स्थगन प्रस्ताव कहते हैं।
  2. भारतीय संसद में ध्यानार्थ प्रस्ताव-सरकार का ध्यान किसी आवश्यक घटना की और दिलाने के लिए रखे गए प्रस्ताव को ध्यानार्थ अथवा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते हैं।
  3. भारतीय संसद के सदनों को राष्ट्रपति का अभिभाषण और संन्देश-जब राष्ट्रपति संसद् का अधिवेशन बुलाता है तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को अभिभाषण से आरम्भ करता है। अपने अभिभाषण में वह संसद को सरकार की नीतियों की रूप रेखा के बारे में सन्देश देता है।
  4. साधारण विधेयक पारित करने के पड़ाव-साधारण विधेयक पारित करने के पड़ाव हैं-विधेयकं की प्रस्तुति और वाचन, विधेयक की प्रत्येक धारा पर बहस । यदि आवश्यक हो तो बिल को विचार-विमर्श के लिए विशेष समिति को सौंपा जाना, विधेयक पर समग्र रूप से मतदान, पास्ति बिल दूसरे सदन में, राष्ट्रपति की स्वीकृति।
  5. लोकसभा को भंग करना-राष्ट्रपति लोकसभा को इसकी अवधि पूरी होने से पहले भी भंग कर सकता है। परन्तु ऐसा वह केवल मन्त्रिपरिषद् की सिफारिश पर ही कर सकता है।
  6. धन विधेयक-धावह होता है जिसका सम्बन्ध सरकार के व्यय, कर लगाने, उनमें संशोधन करने, समाप्त करने आदि से होती है। धन विधेयक किसी मन्त्री द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।

केन्द्रीय सरकार PSEB 10th Class Civics Notes

  • संसद्-भारतीय संसद् के दो सदन-लोकसभा तथा राज्यसभा हैं। लोकसभा निम्न सदन है। इसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। राज्यसभा स्थाई सदन है। हर दो वर्ष के बाद इसके 1/3 सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुन लिए जाते हैं। इसके सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
  • लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा का सभापति-लोकसभा का अध्यक्ष स्पीकर कहलाता है। इसका चुनाव स्वयं सदस्य अपने में से करते हैं। वह सदन की कार्यवाही चलाता है और उनमें अनुशासन बनाए रखता है। भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।
  • विधायी प्रक्रिया-विधेयक को कानून बनने के लिए इन अवस्थाओं में से गुज़रना पड़ता है-विधेयक का सदन में पेश किया जाना-प्रथम वाचन, द्वितीय वाचन (प्रवर समिति के पास), तृतीय वाचन, राष्ट्रपति की स्वीकृति। धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति पद की योग्यताएं तथा निर्वाचन-वही व्यक्ति राष्ट्रपति बन सकता है जो लोकसभा के लिए निर्धारित योग्यताएं पूरी करता हो, वह कम-से-कम 35 वर्ष का हो तथा किसी लाभ के सरकारी पद पर आसीन न हो। राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मण्डल करता है। राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा उसकी अवधि (कार्यकाल) पूरी होने से पहले भी हटाया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति की कार्य-पालिका शक्तियां-राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा उसकी सलाह से वह अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है। वह राज्यपालों, भारत के महान्यायवादी, मुख्य निर्वाचन अधिकारी, नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, संघ लोक-सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा विदेशों में राजदूतों की नियुक्तियां भी करता है।
  • न्यायिक शक्तियां-राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उसके परामर्श से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है । वह उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। वह किसी अपराधी को क्षमादान दे सकता है।
  • संकटकालीन शक्तियां- राष्ट्रपति (i) बाहरी आक्रमण, (ii) आन्तरिक विद्रोह तथा किसी राज्य में संवैधानिक तन्त्र की असफलता और (iii) वित्तीय संकट के समय संकटकाल की घोषणा कर सकता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का संचालन उप-राष्ट्रपति करता है।
  • संविधान में प्रधानमन्त्री की स्थिति-सभी महत्त्वपूर्ण शक्तियां राष्ट्रपति में निहित हैं, परन्तु व्यवहार में इन सारी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् द्वारा होता है। इस प्रकार राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है, जबकि प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका है।
  • उप-राष्ट्रपति-उसका कार्यकाल पांच वर्ष है। वह राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्-राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है और उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • उच्चतम न्यायालय-संविधान में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था की गई है। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश होते हैं। आरम्भिक क्षेत्राधिकार के साथ-साथ इसका अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 8 नए राज्य एवं शासक

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 नए राज्य एवं शासक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 8 नए राज्य एवं शासक

SST Guide for Class 7 PSEB नए राज्य एवं शासक Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग दौरान जाति-प्रथा किस प्रकार की थी ?
उत्तर-
आरम्भिक मध्यकाल में जाति-प्रथा बहुत कठोर थी। समाज चार जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। ब्राह्मण धार्मिक रस्में पूरी करते थे। इसलिए समाज में उनका बहुत आदर था। क्षत्रिय सैनिक तथा शासक बनते थे और युद्ध में भाग लेते थे। वैश्य व्यापार करते थे। परन्तु समाज में शूद्रों की दशा अच्छी नहीं थी। राजपूतों को अपनी ऊँची जाति पर बहुत मान था। वे अपनी पुत्रियों को विवाह निम्न कही जाने वाली जातियों में नहीं करते थे। समाज में स्त्रियों का आदर किया जाता था। उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई जाती थी। वे सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में भाग लेती थीं। उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार अपना पति चुनने का अधिकार था। वे जौहर की रस्म करती थीं जो उनकी पवित्रता का प्रतीक थी।

प्रश्न 2.
त्रिपक्षीय संघर्ष किन तीन राजवंशों के बीच (मध्य) हुआ ?
उत्तर-
त्रिगुट संघर्ष से तात्पर्य उस संघर्ष से है जो राष्ट्रकूटों, प्रतिहारों तथा पालों के बीच कन्नौज पर अधिकार करने के लिए हुआ। कन्नौज उत्तरी भारत का प्रसिद्ध नगर था। उत्तरी भारत में इस नगर की स्थिति बहुत अच्छी थी। क्योंकि इस नगर पर अधिकार करने वाला शासक गंगा के मैदान पर अधिकार कर सकता था, इसलिए इस पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल नामक प्रमुख राजवंश भाग ले रहे थे। इन राजवंशों ने बारी-बारी से कन्नौज पर अधिकार किया। आधुनिक इतिहासकार इसी संघर्ष को त्रिगुट संघर्ष का नाम देते हैं।

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प्रश्न 3.
किस काल को ‘राजपूत काल’ कहा जाता है ?
उत्तर-
हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात् भारत अनेक छोटे-बड़े राज्यों में बंट गया। इनमें से अधिकतर राज्यों पर राजपूतों का शासन था। राजपूत शासक आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। अतः राजपूत राज्य समाप्त होते रहते थे और फिर से अस्तित्व में आते रहते थे। इस प्रकार 8वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक देश पर मुख्य रूप से राजपूतों का ही शासन रहा। इसलिए इस काल को राजपूत काल का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 4.
महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण क्यों किया था ?
उत्तर-
महमूद गज़नवी (999-1030) गज़नी राज्य के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। इन आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य भारत के धन को लूटना था।

प्रश्न 5.
मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण क्यों किया था ?
उत्तर-
मुहम्मद गौरी अफ़गानिस्तान के गौर (Ghor) वंश से सम्बन्ध रखता था। उसके राज्य में आधुनिक अफ़गानिस्तान के गज़नी और हरात के बीच के क्षेत्र शामिल थे। उसके भारत पर आक्रमणों का उद्देश्य केवल भारत के धन को लूटना ही नहीं था, वह भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित करना चाहता था।

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(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. मिहिरभोज ……………. वंश का शक्तिशाली शासक था।
  2. देवपाल शासक ने बौद्ध गया में …………… मंदिर का निर्माण करवाया।
  3. राष्ट्रकूट शासक ………….. के शौकीन थे।

उत्तर-

  1. गुर्जर-प्रतिहार,
  2. महाबौद्धी,
  3. कला तथा साहित्य।

(ग) निम्नलिखित के सही जोड़े बनाएं :

(क) – (ख)
1. गुर्जर-प्रतिहार शासक – 1. बंगाल, बिहार एवं झारखंड
2. पाल शासक – 2. राजस्थान तथा गुजरात
3. राष्ट्रकूट शासक – 3. दक्षिण
उत्तर-
1. गुर्जर-प्रतिहार शासक – राजस्थान तथा गुजरात
2. पाल शासक – बंगाल, बिहार एवं झारखंड
3. राष्ट्रकूट शासक-दक्षिण

PSEB 7th Class Social Science Guide नए राज्य एवं शासक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
आरम्भिक (पूर्व) मध्यकालीन युग के उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के तीन-तीन राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
उत्तरी भारत के राज्य-प्रतिहार अथवा गुर्जर-प्रतिहार राज्य, पाल तथा राजपूत राज्य। दक्षिणी भारत के राज्य-पल्लव, पाण्डेय तथा चोल।

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प्रश्न 2.
गुर्जर-प्रतिहार शासक कहां शासन करते थे ?
उत्तर-
गुर्जर-प्रतिहार शासक राजस्थान तथा गुजरात के कुछ भागों पर शासन करते थे।

प्रश्न 3.
गुर्जर-प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था ? उसने कब से कब तक शासन किया ?
उत्तर-
गुर्जर-प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक मिहिर भोज था। उसने 836 ई० से लेकर 885 ई0 तक शासन किया।

प्रश्न 4.
गुर्जर-प्रतिहार वंश का अंत किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
गुर्जर-प्रतिहार वंश के अन्तिम शासक राजपाल ने 1018-19 ई० में महमूद गज़नवी की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इससे क्रोधित होकर राजपूतों ने उसकी हत्या कर दी, उसकी मृत्यु के साथ गुर्जर-प्रतिहार वंश का अंत हो गया।

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प्रश्न 5.
गुर्जर-प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
महेन्द्रपाल मिहिर भोज का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। उसने 885-910 ई० तक शासन किया। वह कला और साहित्य प्रेमी था।

प्रश्न 6.
पाल शासकों ने कहां पर शासन किया ? इस वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर–
पाल शासकों ने आधुनिक बंगाल, बिहार तथा झारखंड के प्रदेशों पर शासन किया। इस वंश का संस्थापक गोपाल था। उसने 750 ई० में पाल वंश की स्थापना की थी।

प्रश्न 7.
पाल शासकों की दो सफ़लताएं बताओ।
उत्तर-

  1. पाल शासकों के अधीन भवन-निर्माण कला, चित्रकला, शिक्षा तथा साहित्य में बहुत उन्नति हुई।
  2. पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। परन्तु वे अन्य धर्मों के प्रति भी उदार थे।

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प्रश्न 8.
पाल शासक धर्मपाल की एक शिक्षा सम्बन्धी सफ़लता बताओ।
उत्तर-
धर्मपाल शिक्षा-प्रेमी शासक था। उसने विक्रमशिला विहार की स्थापना की जो बाद में एक महान् विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) बना।

प्रश्न 9.
राष्ट्रकूट शासक कहां शासन करते थे ?
उत्तर-
राष्ट्रकूट दक्कन पर शासन करते थे। दक्कन में कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों के उत्तरी प्रदेश शामिल हैं।

प्रश्न 10.
राष्ट्रकूट वंश के प्रसिद्ध शासकों के नाम बताओ।
उत्तर-
दन्तीदुर्ग, कृष्ण प्रथम, गोविन्द द्वितीय, ध्रुव, गोविन्द तृतीय, अमोघवर्ष तथा कृष्ण तृतीय।

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प्रश्न 11.
राष्ट्रकूट शासकों की मुख्य सफ़लताएं बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रकूट शासकों की मुख्य सफ़लताएं निम्नलिखित थीं –

  1. राष्ट्रकूट शासकों ने दक्षिण भारत में चालुक्यों तथा पल्लवों से युद्ध किए।
  2. राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने प्रतिहार शासक वत्सराज को हरा कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
  3. राष्ट्रकूट शासक कला तथा शिक्षा के संरक्षक थे। अमोघवर्ष एक अच्छा कवि था। कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मन्दिर बनवाया।
  4. राष्ट्रकूटों ने दूसरे देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए।
  5. उन्होंने हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य सभी धर्मों को भी संरक्षण दिया।

प्रश्न 12.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
1. मिहिरभोज
2. धर्मपाल
3. देवपाल
4. अमोघवर्ष
5. पृथ्वीराज चौहान।
उत्तर-
1. मिहिरभोज-मिहिरभोज प्रथम (836-885 ई०) गुर्जर-प्रतिहार वंश का एक प्रसिद्ध शासक था। अरब यात्री सुलेमान ने उसे एक वीर योद्धा तथा कुशल प्रशासक कहा है। उसने पाल वंश से अपने खोये हुए प्रदेश पुनः प्राप्त किए। वह विष्णु का उपासक था। उसने ‘आदिवराह’ की उपाधि धारण की।

2. धर्मपाल-धर्मपाल (770-810 ई०) पाल वंश का प्रसिद्ध शासक था। अरब यात्री सुलेमान लिखता है कि उसकी सैनिक शक्ति उसके विरोधियों से कहीं अधिक थी। उसने प्रतिहार तथा राष्ट्रकूट शासकों के साथ युद्ध किए। धर्मपाल शिक्षा-प्रेमी भी था। उसने विक्रमशिला के प्रसिद्ध बौद्ध मठ की स्थापना की जो उच्च शिक्षा का केन्द्र बना।

3. देवपाल-देवपाल पाल शासक धर्मपाल का पुत्र था। उसने 810 ई० से 850 ई० तक शासन किया। उसे पाल वंश का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है। उसने असम तथा उड़ीसा को विजय किया। उसने प्रतिहारों के विरुद्ध भी युद्ध किए और उन्हें पराजित करके पाल राज्य की प्रतिष्ठा में वृद्धि की।

4. अमोघवर्ष-अमोघवर्ष (814-878 ई०) राष्ट्रकूट वंश का एक शासक था। उसने 64 वर्ष तक शासन किया। वह अपनी विद्वता के लिए विख्यात है। उसने ‘कविराज मार्ग’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह कन्नड़ साहित्य की सबसे पहली काव्य रचना है।

5. पृथ्वीराज चौहान-पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश का सबसे महान् शासक था। उसने 1179 से 1192 ई० तक शासन किया। दिल्ली तथा अजमेर के प्रदेश उसके अधीन थे। उसने चन्देल राजा को हरा कर महोबा तथा कुछ अन्य किले अपने अधिकार में ले लिए। उसने गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय से भी टक्कर ली। वह 1192 ई० में मुहम्मद गौरी के हाथों पराजित हुआ।

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प्रश्न 13.
किन्हीं दो प्रसिद्ध राजपूत वंशों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
दो प्रसिद्ध राजपूत वंश निम्नलिखित थे –
1. प्रतिहार वंश-इस वंश के राजा कन्नौज तथा उसके आस-पास के प्रदेश पर शासन करते थे। इस वंश का पहला महान् शासक नागभट्ट-I था। भोज प्रथम इस वंश का एक अन्य प्रसिद्ध शासक था।

2. चौहान वंश-इस वंश का शासन राजस्थान में अजमेर के प्रदेश पर था। पृथ्वीराज चौहान इस वंश का प्रसिद्ध राजा था। उसने मुहम्मद गौरी से दो बार टक्कर ली।

प्रश्न 14.
महमूद गज़नवी और मुहम्मद गौरी के आक्रमणों में क्या अन्तर था ?
उत्तर-
महमूद गज़नवी और मुहम्मद गौरी के आक्रमणों में निम्नलिखित अन्तर था –

महमूद गज़नवी मुहम्मद गौरी
(1) महमूद गज़नवी के आक्रमणों का उद्देश्य केवल धन लूटना था। (1) मुहम्मद गौरी के आक्रमणों का उद्देश्य उत्तरी भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना करना था।
(2) महमूद गज़नवी अपने सभी आक्रमणों में विजयी रहा। (2) मुहम्मद गौरी अपने आक्रमणों में एक बार पराजित हुआ।
(3) महमूद गज़नवी के आक्रमणों से भारत को धन की बड़ी हानि हुई। (3) मुहम्मद गौरी के आक्रमणों से भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई।

 

प्रश्न 15.
कन्नौज का क्या महत्त्व था ? उन राजाओं के नाम बताओ जो कन्नौज पर अधिकार करना चाहते थे।
उत्तर-
कन्नौज हर्षवर्धन की राजधानी था। इस पर विजय प्राप्त करना प्रभुसत्ता का चिन्ह माना जाता था। कन्नौज की स्थिति ऐसी थी कि इस पर अधिकार करने वाला शासक पूरी गंगा घाटी पर अधिकार कर सकता था। अतः कन्नौज पर अधिकार करने के लिए बंगाल-बिहार के पाल, मध्य भारत तथा पूर्वी राजस्थान के प्रतिहार तथा दक्कन के राष्ट्रकूट राजाओं के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष को त्रिपक्षीय संघर्ष का नाम दिया जाता है। यह संघर्ष लगभग 200 वर्ष तक चला। इस संघर्ष ने तीनों राजवंशों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बना दिया।

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प्रश्न 16.
राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में लिखिए।
उत्तर-
राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग विचार हैं। इनमें से मुख्य विचार निम्नलिखित हैं –

  1. राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार राजपूत मध्य एशिया के कबीलों की सन्तान हैं। वे हूणों के आक्रमणों के बाद भारत में आ बसे।
  2. वेद व्यास तथा गौरी शंकर ओझा का विचार है कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों की सन्तान हैं।
  3. एक अन्य विचार चन्द बरदाई का है। वह अपनी पुस्तक पृथ्वीराज रासो में लिखता है कि राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुल से हुई।
    चौहान, परमार, गुर्जर-प्रतिहार, चालुक्य तथा चन्देल इस काल के मुख्य राजपूत वंश अथवा कुल थे।

प्रश्न 17.
चौहान कौन थे ? उनके विषय में संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
चौहानों को चाहमान भी कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसने 1179 से 1192 ई० तक शासन किया। वह एक वीर योद्धा था। उसने चन्देल राजा को पराजित करके उसके कई प्रदेश छीन लिए। 1191 ई० में उसने तराइन की पहली लड़ाई में मुहम्मद गौरी को पराजित किया। परन्तु अगले ही वर्ष 1192 ई० में तराइन की दूसरी लड़ाई में वह मुहम्मद गौरी से पराजित हुआ और उसका वध कर दिया गया। इस प्रकार दिल्ली से चौहान वंश का राज्य समाप्त हो गया।
चन्द बरदाई ने अपनी पुस्तक पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की सफलताओं का विस्तार से वर्णन किया है।

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प्रश्न 18.
महमूद गज़नवी के प्रमुख आक्रमणों के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
महमूद गज़नवी गज़नी का शासक था। वह गज़नी को एक शक्तिशाली राज्य बनाना चाहता था। इसलिए वह एक बड़ी सेना तैयार करना चाहता था जिसके लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी। धन प्राप्त करने के लिए उसने भारत पर 17 हमले (आक्रमण) किए। उसके प्रमुख आक्रमणों का वर्णन इस प्रकार है –

1. जयपाल पर आक्रमण, 1001 ई०-1001 ई० में महमूद गज़नवी ने पंजाब के हिन्दूशाही शासक जयपाल पर आक्रमण किया। इसमें जयपाल पराजित हुआ और उसे बन्दी बना लिया गया। कहा जाता है कि महमद ने जयपाल से 2,50,000 सोने के सिक्के लेकर उसे मुक्त कर दिया। परन्तु जयपाल इस अपमान को सहन न कर सका। उसने अपने आपको आग लगा कर अपनी जान दे दी।

2. आनन्दपाल से युद्ध 1008 ई०-आनन्दपाल जयपाल का पुत्र था। महमूद गज़नवी ने 1008 ई० में उसके साथ युद्ध किया। आनन्दपाल ने उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, दिल्ली तथा अजमेर के हिन्दू शासकों की सेना को इकट्ठा करके महमूद का सामना किया। एक भीषण लड़ाई के बाद महमूद विजयी रहा। उसने पंजाब में भयंकर लूटमार की।।

3. नगरकोट पर आक्रमण-महमूद गज़नवी ने 1009 ई० में नगरकोट (कांगड़ा) पर आक्रमण किया। उसने नगरकोट पर अधिकार कर लिया और यहां के मन्दिरों से अपार सोना-चांदी लूटा।

4. थानेश्वर पर आक्रमण-महमूद ने 1014 ई० में थानेश्वर पर आक्रमण किया। यहां के विशाल मन्दिरों में अपार धन-सम्पत्ति थी। महमूद गज़नवी इसे लूट कर अपने देश ले गया।

5. मथुरा तथा कन्नौज पर आक्रमण 1018-19 ई०-महमूद गजनवी ने 1018-19 ई० में मथुरा पर आक्रमण किया। उसने मार्ग में आने वाले नगरों में लूटमार की और उन्हें आग की भेंट चढ़ा दिया। 1018 ई० में वह मथुरा पहुंचा और वहां के मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया। ___ मथुरा से वह कन्नौज पहुंचा। कन्नौज के शासक राजपाल ने उसके आगे आत्म-समर्पण कर दिया। महमूद ने वहां के मन्दिरों में खूब लूटमार की और उन्हें तोड़-फोड़ डाला।

6. कालिंजर पर आक्रमण, 1021 ई०-1021 ई० में महमूद ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया। वहां के शासक विद्याधर के पास एक विशाल सेना,थी। फिर भी वह महमूद का सामना न कर सका और मैदान छोड़ कर भाग गया।
सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण, 1025 ई०-1025 ई० में महमूद गज़नवी ने काठियावाड़ (गुजरात) में स्थित सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण किया। यह

7. मन्दिर अपनी धन-सम्पदा के लिए संसार भर में प्रसिद्ध था। इसके अतिरिक्त यह हिन्दुओं का सबसे, पवित्र मन्दिर माना जाता था। महमूद ने इस मन्दिर में भयंकर लूटमार की और मन्दिर को ध्वस्त कर दिया। यहां से वह सैंकड़ों मन सोना-चांदी तथा हीरे-जवाहरात अपने देश ले गया। यह महमूद की सबसे बड़ी विजय थी। इसके लिए खलीफ़ा ने उसे सम्मानित किया। 1030 ई० में महमूद गज़नवी की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 19.
मुहम्मद गौरी के प्रमुख हमलों (आक्रमणों) की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
मुहम्मद गौरी अफ़गानिस्तान के गौर राज्य का शासक था। वह 1173 ई० में सिंहासन पर बैठा। शासक बनने के पश्चात् उसने भारत-विजय करने का निश्चय किया। 1175 ई० में उसने मुल्तान पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। उसके अन्य प्रमुख आक्रमणों का वर्णन इस प्रकार है –
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 8 नए राज्य एवं शासक 1

1. गुजरात पर आक्रमण-1178 ई० में गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया। गुजरात के शासक ने बड़ी वीरता से मुहम्मद गौरी का सामना किया | और उसे बुरी तरह पराजित किया।

2. तराइन का पहला युद्ध-मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना करना चाहता था। इसलिए उसने 1191 ई० में दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। दिल्ली पर उन दिनों पृथ्वीराज चौहान का शासन था, जो बड़ा ही वीर तथा साहसी शासक था। तराइन के स्थान पर पृथ्वीराज और गौरी की सेनाओं | में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी बुरी तरह पराजित हुआ।

3. तराइन का दूसरा युद्ध-अपनी हार का बदला लेने के लिए गौरी ने 1192 ई० में दोबारा भारत पर आक्रमण किया। इस बार कन्नौज के राजा म्मद गौरी जयचन्द ने भी उसका साथ दिया। तराइन के स्थान पर गौरी और पृथ्वीराज की सेनाओं में जमकर युद्ध हुआ। पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व में राजपूत बड़ी वीरता से लड़े, परन्तु अन्त में गौरी की विजय हुई। इस विजय से दिल्ली और अजमेर पर मुहम्मद गौरी का अधिकार हो गया।

4. जयचन्द से युद्ध-1194 ई० में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द को पराजित किया और कन्नौज का प्रदेश जीत लिया।

5. अन्य विजयें-इसी बीच मुहम्मद गौरी के एक सेनानायक मुहम्मद-बिन-बख्तियार खिलजी ने बंगाल और बिहार पर अधिकार कर लिया। उसके अन्य सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुजरात को भी जीत लिया।
इस प्रकार मुहम्मद गौरी ने कुछ ही समय में लगभग पूरे उत्तरी भारत पर अपना अधिकार जमा लिया। उसे भारत में तुर्क राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। 1206 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 20.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त लेख लिखिए –
(क) आर्थिक दशा
(ख) धर्म।
उत्तर-
(क) आर्थिक दशा-पूर्व मध्यकाल में कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय था। भारत से कीमती पत्थर, मसाले, रेशम, ऊनी तथा सूती वस्त्र, चन्दन की लकड़ी, नारियल आदि विदेशों को भेजे जाते थे। मध्य एशिया से खजूर, शराब तथा घोड़े भारत में आते थे।

(ख) धर्म-पूर्व (आरम्भिक) मध्यकाल में भारत में मुख्य रूप से जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा हिन्दू धर्म प्रचलित थे। परन्तु राजपूत हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। इसलिए उनके शासनकाल में हिन्दू धर्म ने बड़ी उन्नति की।

उत्तरी भारत में हिन्दू धर्म के दो सम्प्रदाय बहुत अधिक लोकप्रिय थे-शैव मत तथा वैष्णव मत। लोग विष्णु, शिव तथा शक्ति की पूजा करते थे। वे विष्णु के दस अवतारों की पूजा भी करते थे। इस काल में उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में भक्ति लहर बहुत अधिक लोकप्रिय हुई। श्री गुरु नानक देव जी, समानुज तथा माधव जी ने ईश्वर की भक्ति पर बल दिया। उन्होंने लोगों को बताया कि सच्चे मन से प्रभु-भक्ति करना ही मुक्ति का साधन है। वे जाति तथा वर्ण के भेदभाव के विरुद्ध थे।

(क) सही कथनों पर (✓ ) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. प्रारम्भिक मध्यकालीन युग में भारतीय लोगों का मुख्य कार्य कृषि था।
  2. महमूद गज़नवी ने भारत पर सत्रह आक्रमण किए।
  3. जयचन्द अजमेर का शासक था जिसने मुहम्मद गौरी को हराया।
  4. राजा हर्षवर्धन की राजधानी दिल्ली थी।

उत्तर-

  1. (✓ )
  2. (✓ )
  3. (✗)
  4. (✗)

(ख) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
चित्र में दिखाया गया व्यक्ति चाहमान वंश का एक शक्तिशाली शासक था। इसका क्या नाम था ?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 8 नए राज्य एवं शासक 2
(i) जयचन्द
(ii) विद्याधर
(iii) पृथ्वीराज चौहान।
उत्तर-
(iii) पृथ्वीराज चौहान।

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प्रश्न 2.
राजा हर्षवर्धन की राजधानी कौन-सी थी?
(i) कन्नौज
(ii) चंदवाड़ा
(iii) सियालकोट।
उत्तर-
(i) कन्नौज।

प्रश्न 3.
चित्र में एलोरा का कैलाश मंदिर दिखाया गया है ? बताइए कि यह किसके द्वारा बनवाया गया था?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 8 नए राज्य एवं शासक 3
(i) राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय द्वारा
(ii) राष्ट्रकूट शासक दंतीदुर्ग द्वारा
(iii) प्रतिहार शासक वत्सराज द्वारा।
उत्तर-
(i) राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय द्वारा।

नए राज्य एवं शासक PSEB 7th Class Social Science Notes

  • आरम्भिक मध्यकालीन युग के राज्य – आरम्भिक मध्यकाल में उत्तरी भारत में प्रतिहार (गुर्जर-प्रतिहार), पाल तथा राजपूत और दक्षिणी भारत में राष्ट्रकूट, पल्लव, पांडेय तथा चोल राज्य स्थापित थे।
  • गुर्जर-प्रतिहार गुर्जर-प्रतिहार – शासक राजस्थान तथा गुजरात के कुछ भागों पर शासन करते थे। इस वंश के प्रमुख शासक नागभट्ट, मिहिरभोज, महेन्द्रपाल तथा राजपाल थे।
  • पाल वंश – पाल शासक आधुनिक बंगाल, बिहार तथा झारखण्ड पर शासन करते थे। इसकी स्थापना 750 ई० में गोपाल ने की थी। इस वंश के अन्य प्रमुख शासक धर्मपाल, देवपाल आदि थे।
  • राष्ट्रकूट वंश – राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 742 ई० में दंती दुर्ग ने की थी। इस वंश के शासकों ने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए पाल तथा प्रतिहार शासकों से संघर्ष किया। उन्होंने कला तथा शिक्षा को भी संरक्षण दिया।
  • समाज, धर्म तथा आर्थिक दशा – इस काल में जाति प्रथा बहुत कठोर थी। इस काल के प्रमुख धर्मों में हिन्दू धर्म (शैव तथा वैष्णव), जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म थे।
  • चौहान (चाहमान) वंश – इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज चौहान था। उसने 1179-1192 ई० तक शासन किया।
  • राजपूत काल – हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत के राज्यों पर मुख्यत: राजपूतों का शासन था। इसलिए इस काल को राजपूत काल कहा जाता है।
  • कन्नौज के लिए संघर्ष – कन्नौज अपनी स्थिति के कारण बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। इसलिए कन्नौज पर अधिकार करने के लिए पालों, प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों के बीच कड़ा संघर्ष हुआ।
  • महमूद गज़नवी – गज़नी के शासक महमूद गज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए। वह बहुत-सा सोना-चांदी लूटकर अपने देश ले गया।
  • मुहम्मद गौरी – गौर के शासक मुहम्मद गौरी ने तराइन की दूसरी लड़ाई (1192) में पृथ्वीराज चौहान को हरा कर भारत में तुर्क साम्राज्य की नींव रखी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 11 बायोगैस

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 बायोगैस Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 11 बायोगैस

PSEB 7th Class Agriculture Guide बायोगैस Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
बायोगैस में निहित कोई दो गैसों के नाम लिखो।
उत्तर-
मीथेन, कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 2.
बायोगैस में मीथेन गैस कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
50-60%.

प्रश्न 3.
बायोगैस में कार्बन-डाइऑक्साइड गैस कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
30-40%.

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 11 बायोगैस

प्रश्न 4.
बायोगैस संयंत्र गैस क्षमता के अनुसार कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
यह तीन प्रकार के हैं।

प्रश्न 5.
बायोगैस उत्पन्न करने का सबसे बड़ा स्त्रोत क्या है ?
उत्तर-
पशुओं का. गोबर।

प्रश्न 6.
एक घन मीटर बायोगैस जलने से कितने किलोग्राम उपलों के बराबर ऊर्जा प्राप्त होती है ?
उत्तर-
12.30 किलोग्राम उपलों के बराबर।

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प्रश्न 7.
बायोगैस का प्रयोग किस काम के लिए किया जा सकता है ?
उत्तर-
खाना बनाने, प्रकाश पैदा करने तथा डीजल इंजन चलाने के लिए।

प्रश्न 8.
बायोगैस संयंत्र से निकलने वाली स्लरी किस काम के लिए उपयोग में आती है ?
उत्तर-
स्लरी खाद के लिए उपयोग होती है।

प्रश्न 9.
बायोगैस संयंत्र मकान की नींव से कम-से-कम कितनी दूरी पर बनाना चाहिए ?
उत्तर-
6 फुट की दूरी पर।

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प्रश्न 10.
बायोगैस संयंत्र का सस्ता आधुनिक डिज़ाइन किस कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया है ?
उत्तर-
पजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन कितनी प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत दो प्रकार के होते हैं।
(1) रिवायती परम्परागत
(2) गैर-रिवायती गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत।

  1. रिवायती स्रोत–पेट्रोलियम पदार्थ, कोयला आदि।
  2. गैर-रिवायती स्रोत-गोबर गैस, सौर ऊर्जा आदि।

प्रश्न 2.
बायोगैस की रचना के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
बायोगैस में 50-60% मीथेन, 30-40% कार्बन-डाइऑक्साइड तथा कुछ मात्रा में नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा जलवाष्प होते हैं।

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प्रश्न 3.
बायोगैस के कोई तीन लाभ लिखो।
उत्तर-

  1. यह धुंआ रहित गैस है। इसे जलाने से धुआँ पैदा नहीं होता।
  2. इस गैस में एल०पी०जी० गैस की तरह धमाके से कोई हादसा होने का डर नहीं रहता।
  3. यह गैस सस्ती पड़ती है।
  4. इसकी स्लरी को खाद के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
बायोगैस के पश्चात् निकलने वाली स्लरी के क्या गुण होते हैं ?
उत्तर-
गैस बनने के पश्चात् बचे पदार्थ जिसको स्लरी कहते हैं, में से बदबू नहीं आती तथा मक्खियां भी भिनभिनाती नहीं।
साथ ही स्लरी एक खाद का कार्य करती है। इसमें नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस वाले खाद्य तत्त्व होते हैं।

प्रश्न 5.
बायोगैस संयंत्र का आकार किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
गोबर की उपलब्ध मात्रा तथा गैस की आवश्यकता के अनुसार बायोगैस प्लांट (संयंत्र) का आकार होता है, जैसे-50 किलोग्राम गोबर की प्राप्ति 3-4 पशुओं से होती है तथा 2 घन मीटर आकार का प्लांट तैयार किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
दीनबंधु मॉडल बायोगैस संयंत्र पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
यह प्लांट वर्ष 1984 में अस्तित्व में आया तथा पंजाब में 1991 से लगने शुरू हुए। यह प्लांट बहुत सस्ते थे। यह प्लांट दो गोलाकार टुकड़ों (भिन्न-भिन्न व्यास वाले) को आपस में आधार से जोड़कर अण्डाकार आकार का बनाया जाता है। इसको अण्डे के आकार का डायजैस्टर (गोबर गलाने वाला कुंआ) कहते हैं। यह चैंबर (गैस होल्डर) गैस एकत्र करने के काम आता है। इसके दोनों तरफ इनलैट पाइप पर आऊटलैट चैंबर बने होते हैं। गुंबद के ऊपर पाइप लगी होने के कारण गैस को प्रयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 11 बायोगैस 1
चित्र-दीनबन्धु बायोगैस प्लांट

प्रश्न 7.
बायोगैस संयंत्र लगाने के लिए स्थान का चुनाव करते समय कौन-सी सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. संयंत्र के आस-पास वाला स्थान थोड़ा ऊंचा होना चाहिए ताकि इस जगह पानी एकत्र न हो सके।
  2. प्लांट, रसोई तथा पशु बांधने वाली जगह के पास होना चाहिए।
  3. प्लांट वाली जगह पर अधिक-से-अधिक धूप पड़नी चाहिए तथा पास वृक्ष नहीं होने चाहिएं।

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प्रश्न 8.
बायोगैस संयंत्र के काम-काज के समय ध्यान रखने योग्य सावधानियां लिखें।
उत्तर-

  1. जिस पाइप द्वारा गैस रसोई की तरफ जाती है उसकी ढलान गैस प्लांट की तरफ होनी चाहिए।
  2. यदि पाइप में से किसी स्थान पर गैस लीक हो रही हो उसके पास जलती हुई कोई वस्तु नहीं ले जानी चाहिए।
  3. गैस पाइप में मोड़ तथा जोड़ कम-से-कम होने चाहिएं।

प्रश्न 9.
रसोई में उपलों का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-
उपले जलाने से धुआँ पैदा होता है जो आंखों को नुकसान पहुंचाता है। इनसे ऊर्जा भी कम प्राप्त होती है। गोबर में मौजूद खाद्य तत्त्व सड़ जाते हैं जोकि खेतों में खाद के तौर पर प्रयोग किए जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
जनता बायोगैस संयंत्र के सम्बन्ध में संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर-
इस संयंत्र में कच्चा गड्ढा (डायजैस्टर) खोदा जाता है जो गोबर गलाने के लिए होता है तथा इसको पक्का नहीं किया जाता है मतलब इसकी चिनाई नहीं की जाती। इस गड्डे के ऊपर गैस एकत्र करने के लिए गुंबद तथा स्लरी इकट्ठी करने के लिए आऊटलैट चैंबर की ही चिनाई की जाती है। यह दूसरे प्लाटों से 25-40% सस्ता होता है।

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(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
बायोगैस संयंत्र लगाने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
1. गोबर गैस बनाने के लिए सूखे पत्ते, मूंगफली के छिलके, बचा-खुचा चारा आदि भी मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है जिससे हमारा आस-पास साफ़ रहता

2. गैस बनने के पश्चात् जो स्लरी (तरल) बाहर निकलती है, उसमें से दुर्गन्ध नहीं आती तथा इस पर मक्खियां भी नहीं भिनभिनाती। इस तरह गन्दगी फैलने की भी कोई समस्या नहीं रहती तथा वातावरण सुखद बना रहता है।

3. बचे हुए घोल, स्लरी से प्राप्त हुई खाद से पौधों को सभी खाद्य तत्त्व प्राप्त हो जाते हैं|

4. स्लरी वाली खाद में नदीनों के बीजों के बढ़ने की शक्ति समाप्त हो जाती है। इसलिए खाद के प्रयोग से गुडाई तथा नदीननाशक दवाइयों पर खर्च नहीं होता।

5. प्लांट से निकली खाद ट्यूबवैल के पानी से ही खेतों तक पहुंचाकर तथा इस खाद को उठाकर खेतों में ले जाने की मेहनत से भी बचा जा सकता है।

6. ईंधन की पूर्ति तो प्लांट से ही हो जाती है इसलिए ईंधन के लिए जन्तर तथा अरहर आदि फसलें बोने की ज़रूरत नहीं रहती तथा दूसरी फसलें बोकर अतिरिक्त लाभ लिया जा सकता।

7. बायोगैस प्लांट के लिए देसी खाद के लिए आवश्यक स्थान से कम स्थान चाहिए तथा इसमें खाद गड्डे भी बनाए जा सकते हैं।

8. प्लांट पर वर्षा का कोई प्रभाव नहीं होता। इसलिए वर्षा में भी बढ़िया ईंधन मिलता रहता है तथा गीली लकड़ियों, उपलों आदि जैसी समस्या नहीं आती।

9. बायोगैस प्लांट में से प्राप्त स्लरी में ह्यूमस काफ़ी मात्रा में होता है। यह भूमि के भौतिक गुणों को बनाए रखने में सहायक होता है तथा भूमि की पानी को अधिक देर तक सम्भालने की शक्ति को बढ़ाता है।

10. प्लांट के साथ लैटरीन भी जोड़ी जा सकती है। इस तरह अलग सैप्टिक टैंक बनाने का खर्च बच जाता है।

प्रश्न 2.
बायोगैस संयंत्र कितने प्रकार के होते हैं ? दीनबंधु बायोगैस संयंत्र का वर्णन करें।
उत्तर-
बायोगैस प्लांट दो तरह के होते हैंपी०ए०यू० कच्चा पक्का जनता माडल गैस प्लांट तथा दीनबंधु बायोगैस प्लांट।
यह प्लांट वर्ष 1984 में अस्तित्व में आया तथा पंजाब में 1991 से लगने शुरू हुए। यह प्लांट बहुत सस्ते थे। यह प्लांट दो गोलाकार टुकड़ों (भिन्न-भिन्न व्यास वाले) को आपस में आधार से जोड़कर अण्डाकार आकार का बनाया जाता है। इसको अण्डे के आकार का डायजैस्टर (गोबर गलाने वाला कुंआ) कहते हैं। यह चैंबर (गैस होल्डर) गैस एकत्र करने के काम आता है। इसके दोनों तरफ इनलैट पाइप पर आऊटलैट चैंबर बने होते हैं। गुंबद ऊपर पाइप लगी होने के कारण गैस को प्रयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता

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प्रश्न 3.
बायोगैस बनने की विधि लिखें।
उत्तर-
पशुओं के मल-त्याग, गोबर आदि को ऑक्सीजन रहित कुएँ में इकट्ठा करके उसमें उतना ही पानी मिला दिया जाता है। गोबर तथा पानी 1:1 अनुपात में मिलाना आवश्यक है। इस घोल को ऑक्सीजन रहित स्थान पर गलने के लिए डाल दिया जाता है। इस कुएं को बायोगैस प्लांट कहा जाता है। गोबर को 15-20 दिनों के लिए कुएं में गलने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस तरह इसमें कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो बायोगैस बनाते हैं। गैस इकट्ठा करने वाले होल्डर से कुएं को ढक दिया जाता है, ताकि तापमान 25°C से 30°C पर खमीर उठाकर गैस के प्रैशर को पाइपों द्वारा दूर-दूर तक प्रयोग में लाने के लिए भेजा जा सके।

प्रश्न 4.
जनता बायोगैस संयंत्र का विस्तार सहित वर्णन करें।
उत्तर-
बायोगैस प्लांटों के परम्परागत माडलों जैसे लोहे के ड्रमों वाले प्लांट काफ़ी महंगे होते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना ने एक सस्ता बायोगैस प्लांट डिजाइन किया है जो सस्ता पड़ता है। इस को पी०ए०यू० कच्चा पक्का जनता मॉडल बायोगैस प्लांट कहा जाता है। इस प्लांट में कच्चा गड्ढा (डायजैस्टर) गोबर गलाने के लिए खोदा जाता है तथा इसको पक्का अर्थात् इसकी चिनाई नहीं की जाती। इस गड्डे के ऊपर गैस इकट्ठी करने के लिए गुबंद तथा स्लरी इकट्ठी करने के लिए आऊटलैट चैंबर की ही चिनाई की जाती है। यह दूसरे संयंत्रों से 25-40% सस्ता होता है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 11 बायोगैस 2

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 11 बायोगैस

प्रश्न 5.
बायोगैस संयंत्र को पहली बार चालू करने का सही तरीका लिखो।
उत्तर-

  1. गैस प्लांट की पहली भराई के लिए अधिक मात्रा में गोबर की आवश्यकता होती है। इसलिए काफ़ी दिन पहले ही आवश्यकता अनुसार गोबर इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  2. गोबर इकट्ठा कर लेने के बाद ध्यान रखें कि यह सूख कर सख्त न हो जाए।
  3. ताजा गोबर डेयरी से भी लाया जा सकता है तथा गैस प्लांट की भराई 2-4 दिनों में कर लेनी चाहिए।
  4. गोबर तथा पानी का अनुपात 1:1 होना आवश्यक होता है। इस घोल को मिट्टी, लकड़ी के बूरे, साबुन के पानी तथा फिनाइल की मिलावट से बचाएं।
  5. पहली बार शुरू किए गोबर गैस प्लांट में पुराने चलते गोबर गैस प्लांट से निकली कुछ स्लरी की बाल्टियां इसमें डाल देनी चाहिए। इस तरह गैस जल्दी बनती है।
  6. शुरू में पैदा हुई गैस में कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अधिक होती है तथा मीथेन गैस की मात्रा कम होती है परन्तु कुछ दिनों में यह ठीक हो जाती है।
  7. इस प्लांट में प्रतिदिन आवश्यकता अनुसार गोबर डालते रहना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB बायोगैस Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग लगभग कितना गोबर ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं ?
उत्तर-
50%.

प्रश्न 2.
देश में वार्षिक कितना गोबर पैदा होता है ?
उत्तर-
9800 लाख टन।

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प्रश्न 3.
देश में पैदा वार्षिक गोबर पर कितने बायोगैस प्लांट लगाए जा सकते
उत्तर-
4,11,600.

प्रश्न 4.
1 घन मीटर बायोगैस कितनी बिजली ऊर्जा के बराबर है ?
उत्तर-
0.47 किलोवाट बिजली।

प्रश्न 5.
बायोगैस बनाने के लिए गोबर तथा पानी का अनुपात कितना लेना चाहिए ?
उत्तर-
बराबर अनुपात (1:1).

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प्रश्न 6.
दीनबंधु गैस प्लांट कब अस्तित्व में आया ?
उत्तर-
1984 में।

प्रश्न 7.
कच्चा पक्का जनता गैस प्लांट कितना सस्ता पडता है ?
उत्तर-
अन्य प्लांटों से 25%-40% सस्ता पड़ता है।

प्रश्न 8.
गैस प्लांट से जो पाइप रसोई घर में जाती है उसकी ढलान किस ओर होनी चाहिए ?
उत्तर-
गैस प्लांट की तरफ ताकि पानी रसोई की तरफ न जाए।

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प्रश्न 9.
1 घन मीटर बायोगैस के जलने से पैदा ऊर्जा कितनी लकड़ी से प्राप्त होती है ?
उत्तर-
3.5 किलोग्राम लकड़ी से।

प्रश्न 10.
2 घन मीटर बायोगैस संयंत्र से कितने व्यक्तियों का खाना बन सकता है ?
उत्तर-
4-5 व्यक्ति प्रतिदिन।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हमारे देश में वार्षिक कितना गोबर पैदा होता है तथा कितने बायोगैस प्लांट तैयार हो सकते हैं ?
उत्तर-
हमारे देश में 9800 लाख टन गोबर प्रतिवर्ष पैदा होता है तथा इसके तीसरे भाग से 100 लाख बायोगैस प्लांट तैयार हो सकते हैं।

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प्रश्न 2.
बायोगैस प्लांटों का आकार क्या होता है ?
उत्तर-
बायोगैस प्लांटों का आकार साधारणत: 2 घन मीटर होता है। इनके लिए पशुओं की संख्या 3-4 तक हो सकती है। इस प्लांट के लिए 50 किलो गोबर की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 3.
एक घन मीटर गोबर गैस के जलने से पैदा हुई ऊर्जा की तुलना विभिन्न ईंधनों से प्राप्त ऊर्जा से करो।
उत्तर-
0.52 लीटर डीज़ल, 0.62 लीटर मिट्टी का तेल, 0.4 किलो पेट्रोलियम गैस, 1.6 किलो कोयला तथा 4.7 किलोवाट बिजली, 12.30 किलो उपले आदि से प्राप्त ऊर्जा एक घन मीटर गोबर गैस के जलने से प्राप्त ऊर्जा के बराबर होती है।

प्रश्न 4.
गोबर गैस कैसे बनती है ?
उत्तर-
पशुओं के गोबर, मानवीय मल-मूत्र, पत्ते, सब्जियों के छिलके, बचे-खुचे चारे, सूअरों की लीद, मुर्गियों की बीठे आदि के ऑक्सीजन रहित वातावरण में गलने-सड़ने से गोबर गैस पैदा होती है।

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प्रश्न 5.
बायोगैस प्लांट को गैस पैदा करने की समर्था अनुसार कौन-सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-

  1. पारिवारिक बायोगैस प्लांट
  2. संस्थापक बायोगैस प्लांट
  3. सामुदायिक बायोगैस प्लांट।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
अलग-अलग आकार के बायोगैस संयंत्रों के लिए कम से कम ज़रूरी पशुओं की संख्या बताएं।
उत्तर-

संयंत्र का आकार पशुओं की संख्या
2 घन मीटर 3-4
3 घन मीटर 5-6
4 घन मीटर 7-8
6 घन मीटर 10-12

 

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बायोगैस PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • गांव में रहने वाले लोग लगभग 50% पशुओं के गोबर का प्रयोग ईंधन के रूप में करते हैं।
  • बायोगैस से ईंधन के योग्य धुंआ रहित गैस तथा खेतों में डालने के लिए (स्लरी) खाद भी मिल जाती है।
  • गोबर गैस पशुओं के गोबर, मानवीय मल-मूत्र, बचे-खुचे चारे, पत्ते, सब्जियों के छिलके, मुर्गियों का मलमूत्र, सूअरों की लीद आदि के ऑक्सीजन रहित वातावरण में गलने-सड़ने से पैदा होती है।
  • गोबर गैस में 50-60% मीथेन, 30-40% कार्बन-डाइऑक्साइड, कुछ मात्रा में नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा जल वाष्प होते हैं।
  • हमारे देश में लगभग 9800 लाख टन गोबर उपलब्ध है।
  • इस गोबर के तीसरे भाग से 100 लाख बायोगैस प्लांट लगाए जा सकते हैं।
  • यह गोबर वार्षिक 4,10,000 लाख टन से अधिक बायोगैस पैदा कर सकता है।
  • इससे 196 मैगावाट बिजली की बचत की जा सकती है तथा 2,95,000 लाख लीटर पेट्रोल की बचत हो सकती है।
  • पारिवारिक स्तर पर पंजाब में 4,11,600 बायोगैस प्लांट लगाए जा सकते हैं।
  • एक घन मीटर गोबर गैस के जलने से प्राप्त हुई ऊर्जा 0.52 लीटर डीज़ल या 1.6 किलो कोयला या 0.43 किलो पेट्रोलियम गैस से प्राप्त ऊर्जा या 0.62 मिट्टी का तेल या 3.5 किलो ग्राम लकड़ी या 0.47 किलोवाट बिजली के बराबर होती है।
  • गोबर गैस बनाने के लिए गोबर तथा पानी का अनुपात 1:1 होता है।
  • इस घोल को ऑक्सीजन रहित स्थान पर गलने के लिए रख दिया जाता है। 15 – 20 दिन में गोबर गल जाता है।
  • दो तरह के गैस प्लांटों का प्रयोग किया जाता है-
    • दीनबंधु बायोगैस संयंत्र
    • पी०ए०यू० कच्चा पक्का जनता मॉडल बायोगैस संयंत्र।
  • 2 घन मीटर आकार वाले प्लाटों के लिए पशुओं की संख्या 3-4 हो सकती है।
  • इन साइज़ों के लिए 50 किलो गोबर की आवश्यकता है।
  • इससे 4-5 व्यक्तियों का खाना बनाया जा सकता है।
  • इस प्रकार 6 घन मीटर वाले प्लांट के लिए पशुओं की संख्या 10 से 12 होती है तथा इसके लिए 150 किलोग्राम गोबर की आवश्यकता होती है।
  • गोबर गैस प्लांट के आकार से भाव है कि 24 घण्टों में कितने घन मीटर या घन फुट गैस प्राप्त की जा सकती है।
  • एक पशु से प्रतिदिन लगभग 15 किलोग्राम ताजा गोबर प्राप्त हो जाता है तथा 25 किलोग्राम गोबर से 1 घन मीटर गैस पैदा होती है।
  • बायोगैस प्लांट को गैस पैदा करने की समर्था अनुसार तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-पारिवारिक, संस्थापक, सामुदायिक बायोगैस प्लांट आदि।
  • गोबर गैस खाना पकाने, प्रकाश पैदा करने तथा डीज़ल इंजन चलाने के लिए प्रयोग होती है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान

SST Guide for Class 10 PSEB स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
1857 ई० के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की किन-किन छावनियों में विद्रोह हुआ?
उत्तर-
1857 ई० के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की लाहौर, फिरोजपुर, पेशावर, अम्बाला, मियांवाली आदि छावनियों में विद्रोह हुआ।

प्रश्न 2.
सरदार अहमद खां खरल ने आजादी की लड़ाई में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
सरदार अहमद खां खरल ने कई स्थानों पर अंग्रेजों से टक्कर ली और अंत में वह पाकपटन के निकट अंग्रेज़ों का विरोध करते हुए शहीद हो गया।

प्रश्न 3.
श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेज़ सरकार का असहयोग क्यों किया?
उत्तर-
क्योंकि श्री सतगुरु राम सिंह जी विदेशी सरकार, विदेशी संस्थाओं तथा विदेशी माल के कट्टर विरोधी थे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान

प्रश्न 4.
ग़दर लहर क्यों असफल रही?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर के एक सिपाही कृपाल सिंह के धोखा देने के कारण गदर लहर की योजना की पोल समय से पहले ही खुल गई और अंग्रेज़ सरकार तुरन्त सक्रिय हो उठी।

प्रश्न 5.
अकाली लहर के अस्तित्व में आने के दो कारण बताओ।
उत्तर-
गुरुद्वारों को चरित्रहीन महंतों से मुक्त करवाना तथा गुरुद्वारों के प्रबन्ध में सुधार लाना।

प्रश्न 6.
चाबियाँ वाला मोर्चा क्यों लगाया गया?
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार ने दरबार साहिब अमृतसर की गोलक की चाबियां अपने पास दबा रखी थीं जिन्हें प्राप्त करने के लिए सिक्खों ने चाबियों वाला मोर्चा लगाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान

प्रश्न 7.
‘गुरु का बाग’ मोर्चे का कारण बताओ।
उत्तर-
सिक्खों ने गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ (जिला अमृतसर) को महंत सुन्दर दास के अधिकार से मुक्त कराने के लिए गुरु का बाग मोर्चा लगाया।

प्रश्न 8.
साइमन कमीशन कब भारत आया और इसका बहिष्कार क्यों किया गया?
उत्तर-
साइमन कमीशन 1928 में भारत आया। इसमें एक भी भारतीय सदस्य सम्मिलित नहीं था जिसके कारण भारत में इसका बहिष्कार किया गया।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
श्री सतगुरु राम सिंह जी की कैसी गतिविधियों से अंग्रेजों को डर लगता था?
उत्तर-

  1. श्री सतगुरु राम सिंह जी जहां भी जाते, उनके साथ घुड़सवारों की टोली अवश्य जाती थी। इससे अंग्रेज़ सरकार यह सोचने लगी कि नामधारी किसी विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं। .
  2. अंग्रेज़ श्री सतगुरु राम सिंह जी के डाक प्रबन्ध को संदेह की दृष्टि से देखते थे।
  3. श्री सतगुरु राम सिंह जी ने प्रचार की सुविधा को सम्मुख रखकर पंजाब को 22 प्रांतों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रांत का एक सेवादार होता था जिसे सूबेदार कहा जाता था। नामधारियों की यह कार्यवाही भी अंग्रेजों को डरा रही थी।
  4. 1869 ई० में नामधारियों या कूकों ने कश्मीर के शासक के साथ सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने नामधारियों (कूकों) को फौजी प्रशिक्षण देना भी आरम्भ कर दिया।

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प्रश्न 2.
नामधारियों और अंग्रेजों के मध्य मलेरकोटला में हुई दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। जनवरी, 1872 को 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मालेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को ककों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 68 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को मृत्यु दण्ड दिया गया। बाबा राम सिंह को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया।

प्रश्न 3.
पंजाब में आर्य समाज द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब में आर्य समाज ने निम्नलिखित कार्य किए

  1. इसने पंजाबियों की राष्ट्रीय भावना को जागृत किया।
  2. इसने लाला लाजपत राय, सरदार अजीत सिंह, श्रद्धानंद, भाई परमानंद तथा लाला हरदयाल जैसे महान् देशभक्तों को उभारा।
  3. इसने पंजाब में शिक्षा का विस्तार किया।
  4. इसने पंजाब में स्वदेशी लहर को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 4.
ग़दर पार्टी ने पंजाब में आजादी के लिए क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर-
ग़दर पार्टी द्वारा पंजाब में आजादी के लिए किए गए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है

  1. रास बिहारी बोस ने लाहौर, फिरोजपुर, मेरठ, अम्बाला, मुलतान, पेशावर तथा कई अन्य छावनियों में अपने प्रचारक भेजे। इन प्रचारकों ने सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया।
  2. करतार सिंह सराभा ने कपूरथला के लाला रामसरन दास के साथ मिल कर ‘गदर’ नामक साप्ताहिक पत्र को छापने का प्रयास किया। परन्तु वह सफल न हो सका। फिर भी वह ‘गदर-गूंज’ प्रकाशित करता रहा।
  3. सराभा ने फरवरी, 1915 में फिरोजपुर में सशस्त्र विद्रोह करने का यत्न किया। परन्तु कृपाल सिंह नामक एक सिपाही की धोखेबाज़ी के कारण उसका भेद खुल गया।

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प्रश्न 5.
बाबा गुरदित्त सिंह ने कैनेडा जाने वाले लोगों के लिए क्या क्या कार्य किए?
उत्तर-
पंजाब के अनेक लोग रोजी-रोटी की खोज में कैनेडा जाना चाहते थे। परन्तु कैनेडा सरकार की भारत विरोधी गतिविधियों के कारण कोई भी जहाज़ उन्हें कैनेडा ले जाने को तैयार न था। 1913 में जिला अमृतसर के बाबा गुरदित्त सिंह ने ‘गुरु नानक नेवीगेशन’ नामक कम्पनी स्थापित की। 24 मार्च, 1914 को उसने ‘कामागाटामारू’ नामक एक जहाज़ किराये पर लिया और इसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ रखा। इस जहाज़ में उसने कैनेडा जाने के इच्छुक लोगों को कैनेडा ले जाने का प्रयास किया। परन्तु वहां पहुंचते ही उन्हें वापिस जाने का आदेश दे दिया गया।

प्रश्न 6.
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना के क्या कारण थे?
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना निम्नलिखित कारणों से हुई

  1. रौलेट बिल-1919 में अंग्रेज़ी सरकार ने ‘रौलेट बिल’ पास किया। इस के अनुसार पुलिस को जनता के दमन के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। अत: लोगों ने इनका विरोध किया।
  2. डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू की गिरफ्तारी-रौलेट बिल के विरोध में पंजाब तथा अन्य स्थानों पर हड़ताल हुई। कुछ नगरों में दंगे भी हुए। अतः सरकार ने पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। इससे जनता और भी भड़क उठी।
  3. अंग्रेजों की हत्या-भड़के हुए लोगों पर अमृतसर में गोली चलाई गई। जवाब में लोगों ने पांच अंग्रेजों को मार डाला। अत: नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया गया।
    इन सब घटनाओं के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में एक आम सभा हुई जहां भीषण हत्याकांड हुआ।

प्रश्न 7.
सरदार ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग़ दुर्घटना का बदला कैसे लिया?
उत्तर-
सरदार ऊधम सिंह पक्का देश भक्त था। जलियांवाला बाग़ में हुए नरसंहार से उसका युवा खून खौल उठा। उसने इस घटना का बदला लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसे यह अवसर 21 वर्ष पश्चात् मिला। उस समय वह इंग्लैण्ड में था। वहां उसने सर माइकल ओडायर (लैफ्टिनेंट गवर्नर) को गोली से उड़ा दिया। जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड के लिए यही अधिकारी उत्तरदायी था।

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प्रश्न 8.
खिलाफ़त लहर पर नोट लिखो।
उत्तर-
खिलाफ़त आन्दोलन प्रथम विश्व-युद्ध के पश्चात् मुसलमानों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध चलाया। युद्ध में तुर्की की पराजय हुई और विजयी राष्ट्रों ने तुर्की साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर डाला। इससे मुस्लिम जनता भड़क उठी क्योंकि तुर्की के साथ उसकी धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं। इसी कारण मुसलमानों ने खिलाफ़त आन्दोलन आरम्भ कर दिया। परन्तु यह आन्दोलन भारत के राष्ट्रवादी आन्दोलन का एक अंग बन गया और इसमें कांग्रेस के भी अनेक नेता सम्मिलित हुए। उन्होंने इसे पूरे देश में फैलाने में सहायता दी।

प्रश्न 9.
बब्बरों की गतिविधियों का वर्णन करो।
उत्तर-
बब्बरों का मुख्य उद्देश्य सरकारी पिठुओं तथा मुखबिरों का अंत करना था। इसे वे ‘सुधार करना’ कहते थे। इसके लिए उन्हें शस्त्रों की आवश्यकता थी और शस्त्रों के लिए उन्हें धन चाहिए था। अतः उन्होंने सरकारी पिठ्ठओं से धन तथा हथियार भी छीने। उन्होंने पंजाबी सैनिकों से अपील की कि वे शस्त्रों की सहायता से स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए कार्य करें। अपने कार्यों के विस्तार के लिए उन्होंने ‘बब्बर अकाली दुआबा’ नामक समाचार-पत्र निकाला। उन्होंने अनेक सरकारी पिळुओं को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने अपना बलिदान देकर पंजाबियों को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपनी जान पर खेल जाने का पाठ पढ़ाया।

प्रश्न 10.
नौजवान भारत सभा पर नोट लिखो।
उत्तर-
नौजवान भारत सभा की स्थापना सरदार भगत सिंह ने 1925 ई० में लाहौर में की। वह स्वयं इसका जनरल सचिव बना। इस संस्था ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लिया तथा नवयुवकों को जागृत किया। इसे गर्म दल के कांग्रेसी नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था। शीघ्र ही यह संस्था क्रांतिकारियों का केन्द्र बन गई। समय समय पर यह संस्था लाहौर में सभा करके मार्क्स और लेनिन के विचारों पर वाद-विवाद करती थी। यह सभा दूसरे देशों में घटित हुई क्रान्तियों पर भी विचार करती थी।

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प्रश्न 11.
साइमन कमीशन पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
1928 ई० में एक सात सदस्यीय कमीशन भारत में आया। इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे। इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। इसी कारण भारत में इसका स्थान-स्थान पर विरोध किया गया। यह कमीशन जहां भी गया वहीं इसका स्वागत काली झण्डियों से किया गया। स्थान-स्थान पर ‘साइमन कमीशन वापिस जाओ’ के नारे लगाये गये। जनता के इस शान्त प्रदर्शन को सरकार ने बड़ी कठोरता से दबाया। लाहौर में इस कमीशन का विरोध करने के कारण लाला लाजपतराय पर लाठियाँ बरसायी गईं जिससे वह शहीदी को प्राप्त हुए।

प्रश्न 12.
प्रजामंडल के कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब प्रजामण्डल तथा रियासती प्रजामण्डल ने सेवा सिंह ठीकरी वाला की अध्यक्षता में जन-जागृति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

  1. इसने किसानों तथा साधारण लोगों की समस्याओं पर विचार करने के लिए सभाएं कीं।
  2. इसने रियासत पटियाला में हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  3. इसने बाबा हीरा सिंह महल, तेजा सिंह स्वतन्त्र, बाबा सुंदर सिंह तथा अन्य कई मरजीवड़ों के सहयोग से रियासती शासन तथा अंग्रेजी साम्राज्य का डटकर विरोध किया।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
श्री सतगुरु राम सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर-
श्री सतगुरु राम सिंह एक महान् देश भक्त थे। उन्होंने बाबा बालक सिंह के पश्चात् पंजाब में नामधारी अथवा कूका लहर का नेतृत्व किया। बाबा राम सिंह ने 1857 ई० में कुछ लोगों को अमृत छका कर नामधारी लहर को संगठित रूप प्रदान किया। भले ही इस लहर का मुख्य उद्देश्य धार्मिक एवं सामाजिक सुधार के लिए कार्य करना था, तो भी इसने अंग्रेजी शासन का विरोध किया और उसके प्रति असहयोग की नीति अपनाई।
बाबा राम सिंह की गतिविधियां-

  1. बाबा राम सिंह जहां भी जाते, उनके साथ घुड़सवारों की टोली अवश्य जाती थी। इससे अंग्रेज़ सरकार यह सोचने लगी कि नामधारी किसी विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं।
  2. अंग्रेज़ बाबा राम सिंह के डाक प्रबन्ध को सन्देह की दृष्टि से देखते थे।
  3. बाबा राम सिंह ने प्रचार की सुविधा को सम्मुख रख कर पंजाब को 22 प्रांतों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रांत का एक सेवादार होता था जिसे सूबेदार कहा जाता था। नामधारियों की यह कार्यवाही भी अंग्रेजों को डरा रही थी।
  4. 1869 में नामधारियों या कूकों ने कश्मीर के शासक के साथ सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने नामधारियों (कूकों) को सैनिक प्रशिक्षण देना भी आरम्भ कर दिया।
  5. नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। 1871 ई० में उन्होंने रायकोट (अमृतसर) के कुछ बूचड़खानों पर आक्रमण करके कई कसाइयों को मार डाला।
  6. जनवरी, 1872 में 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मालेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को कूकों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई ! दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 68 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को मृत्यु दण्ड दिया गया। बाबा राम सिंह को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया।
    सच तो यह है कि बाबा राम सिंह के नेतृत्व में नामधारी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपने उद्देश्य पर डटे रहे।

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प्रश्न 2.
आर्य समाज ने पंजाब में स्वतन्त्रता संग्राम में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) थे। इसकी स्थापना उन्होंने 1875 ई० में की। 1877 ई० में उन्होंने आर्य समाज की एक शाखा लाहौर में खोली।
स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान-आर्य समाज ने जहां सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया वहीं इसने स्वतन्त्रता लहर में भी बहुमूल्य भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता संग्राम में इसके योगदान का वर्णन इस प्रकार है —

  1. राष्ट्रीय भावना जागृत करना-स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से पंजाबियों की राष्ट्रीय भावना को जागृत किया और उन्हें स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए तैयार किया।
  2. महान् देशभक्तों का उदय-स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीयों को अपने देश और सभ्यता पर गर्व करने को शिक्षा दी। इस बात का प्रभाव पंजाबियों पर भी पड़ा। लाला लाजपतराय, सरदार अजीत सिंह और श्रद्धानंद जैसे महान् देशभक्त आर्य समाज की ही देन थे। भाई परमानंद और लाला हरदयाल भी प्रसिद्ध आर्य समाजी थे।
  3. असहयोग आन्दोलन में भाग-इस संस्था ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। इसने स्कूल तथा कॉलेज खोलकर स्वदेशी लहर को बढ़ावा दिया।
  4. सरकारी विरोध का सामना-आर्य समाजियों की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने उन पर कड़ी नज़र रखनी आरम्भ कर दी। जो आर्य समाजी सरकारी नौकरी में थे, उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। यहाँ तक कि उन्हें वांछित तरक्कियां भी न दी गईं। फिर भी उन्होंने अपना कार्य जारी रखा।
    1892 ई० में आर्य समाज दो भागों में बंट गया-कॉलेज पार्टी और गुरुकुल पार्टी। इनमें से कॉलेज पार्टी के नेता लाला लाजपतराय तथा महात्मा हंसराज थे। वे वेदों की शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी विज्ञान की शिक्षा देने के भी पक्ष में थे। इस कारण अंग्रेजों और आर्य समाजियों के बीच तनाव लगभग समाप्त हो गया। फिर भी आर्य समाजी देश में स्वतन्त्रता सेनानियों को अपना पूरा सहयोग देते रहे। आर्य समाजियों के समाचार-पत्र भी पंजाब की स्वतन्त्रता लहर में पूरी तरह सक्रिय रहे।

प्रश्न 3.
ग़दर पार्टी ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए क्या क्या यत्न किए?
उत्तर-
ग़दर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में सान फ्रांसिस्को (अमेरिका) में हुई। इसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना थे। लाला हरदयाल इसके मुख्य सचिव तथा कांशी राम सचिव एवं खजांची थे।
इस संस्था ने सान फ्रांसिस्को से उर्दू में एक साप्ताहिक पत्र ‘ग़दर’ निकालना आरम्भ किया। इसका सम्पादन कार्य करतार सिंह सराभा को सौंपा गया। उसके परिश्रम से यह समाचार-पत्र हिंदी, पंजाबी, पश्तो, नेपाली आदि अनेक भाषाओं में प्रकाशित होने लगा। इस समाचार-पत्र के नाम पर ही इस संस्था का नाम ग़दर पार्टी रखा गया।
उद्देश्य-ग़दर पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत को सशस्त्र क्रांति द्वारा स्वतन्त्र करवाना था। इसलिए इस पार्टी ने अग्रलिखित कार्यों पर बल दिया

  1. सेना में विद्रोह का प्रचार
  2. सरकारी पिट्ठओं की हत्या
  3. जेलें तोड़ना
  4. सरकारी खज़ाने और थाने लूटना
  5. क्रान्तिकारी साहित्य छापना और बांटना
  6. अंग्रेजों के शत्रुओं की सहायता करना
  7. शस्त्र इकट्ठे करना
  8. बम बनाना
  9. डाक-तार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करना तथा रेल मार्गों की तोड़-फोड़ करना।
  10. क्रान्तिकारियों का झंडा फहराना
  11. क्रान्तिकारी नवयुवकों की सूची तैयार करना।
    स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास-कामागाटामारू की घटना के पश्चात् काफ़ी संख्या में भारतीय अपने देश वापिस आ गए। वे ग़दर द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना चाहते थे। अंग्रेजी सरकार भी बड़ी सतर्क थी। बाहर से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की छान-बीन होती थी। संदेह होने पर व्यक्ति को नज़रबंद कर दिया जाता था। परन्तु जो व्यक्ति बच निकलता था, वह क्रान्तिकारियों से मिल जाता था। – भारत में ग़दर पार्टी और विदेश से लौटे क्रान्तिकारियों का नेतृत्व रास बिहारी बोस ने किया। अमेरिका से वापिस आए करतार सिंह सराभा ने भी बनारस में श्री रास बिहारी बोस के गुप्त अड्डे का पता लगाकर उनसे सम्पर्क स्थापित किया। ग़दर पार्टी द्वारा आज़ादी के लिए किए गए कार्य-ग़दर पार्टी द्वारा पंजाब में आज़ादी के लिए किए गए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है

    1. रास बिहारी बोस ने लाहौर, फिरोज़पुर, मेरठ, अम्बाला, मुलतान, पेशावर तथा कई अन्य छावनियों में अपने प्रचारक भेजे। इन प्रचारकों ने सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया।
    2. करतार सिंह सराभा ने कपूरथला के लाला रामसरन दास के साथ मिल कर ‘ग़दर’ नामक साप्ताहिक पत्र को छापने का प्रयास किया परन्तु वह सफल न हो सका। फिर भी वह ‘ग़दर-गूंज’ प्रकाशित करता रहा।
    3. ग़दर पार्टी ने लाहौर तथा कुछ अन्य स्थानों पर बम बनाने का कार्य भी आरम्भ किया।
    4. ग़दर दल ने स्वतन्त्र भारत के लिए एक झंडा तैयार किया। करतार सिंह सराभा ने इस झंडे को स्थान-स्थान पर लोगों में बांटा।

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प्रश्न 4.
कामागाटामारू दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
पृष्ठभूमि-अंग्रेजी सरकार के आर्थिक कानूनों से पंजाबियों की आर्थिक दशा बहुत शोचनीय हो गई थी। अत: 1905 ई० में कुछ लोग रोजी-रोटी की खोज में विदेशों में जाने लगे। इनमें से कई पंजाबी लोग कैनेडा जा रहे थे। परन्तु कैनेडा सरकार ने 1910 ई० में एक कानून पास किया। इसके अनुसार केवल वही भारतीय कैनेडा में प्रवेश कर सकते थे, जो अपने देश की किसी बंदरगाह से बैठकर सीधे कैनेडा जाते थे। परंतु 24 जनवरी, 1913 ई० को कैनेडा के हाई कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया। यह समाचार पाकर पंजाब के बहुत से लोग कैनेडा जाने के लिए कलकत्ता (कोलकाता), सिंगापुर तथा हांगकांग की बंदरगाहों पर पहुँच गए। परन्तु कैनेडा सरकार द्वारा भारतीयों से किए जाने वाले दुर्व्यवहार को देखते हुए कोई भी जहाज़ कम्पनी उन्हें कैनेडा पहुँचाने के लिए तैयार न हुई।

बाबा गुरदित्त सिंह के प्रयास-अमृतसर निवासी बाबा गुरदित्त सिंह सिंगापुर तथा मलाया में ठेकेदारी करता था। उसने 1913 ई० में ‘गुरु नानक नेवीगेशन कम्पनी’ स्थापित की। 24 मार्च, 1914 ई० को इस कम्पनी ने कामागाटामारू नामक एक जहाज़ किराये पर ले लिया जिसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ रखा गया। उसे हांगकांग से 500 यात्री भी मिल गए। परन्तु हांगकांग की अंग्रेजी सरकार इस बात को सहन न कर सकी। उसने बाबा गुरदित्त सिंह को बंदी बना लिया। भले ही उसे अगले दिन रिहा कर दिया, फिर भी विघ्न पड़ जाने के कारण यात्रियों की संख्या घटकर केवल 135 रह गई।

गुरु नानक जहाज़ 23 मई, 1914 ई० को वेनकुवर (कैनेडा) की बंदरगाह पर पहुंचा, परन्तु यात्रियों को बंदरगाह पर न उतरने दिया गया। बाबा गुरदित्त सिंह प्रीवी कौंसिल में अपील करना चाहता था। परन्तु अंत में भारतीयों ने वापिस आना ही मान लिया। कामागाटामारू की दुर्घटना-23 जुलाई, 1914 ई० को जहाज़ वेनकुवर से वापिस भारत की ओर चल पड़ा। जब जहाज़ हुगली नदी में पहुंचा, तो लाहौर का डिप्टी कमिश्नर पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गया। यात्रियों की तलाशी लेने के पश्चात् जहाज़ को 27 किलोमीटर दूर बजबज घाट पर खड़ा कर दिया गया। यात्रियों को यह बताया गया कि उन्हें वहां से रेलगाड़ी द्वारा पंजाब ले जाया जाएगा। यात्री कलकत्ता (कोलकाता) में ही कोई काम धंधा करना चाहते थे। परन्तु उनकी किसी ने एक न सुनी और उन्हें जहाज़ से नीचे उतार दिया गया। शाम के समय रेलवे स्टेशन पर इन यात्रियों की पुलिस से मुठभेड़ हो गई। पुलिस ने गोली चला दी। इस गोलीकांड में 40 व्यक्ति शहीद हो गए तथा बहुत से घायल हुए।

बाबा गुरदित्त सिंह बचकर पंजाब पहुंच गया। 1920 ई० में उसने गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस पर ननकाना साहिब में स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया। उसे 5 वर्ष के कारावास का दंड दिया गया।

प्रश्न 5.
जलियांवाला बाग़ दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ अमृतसर (पंजाब) में है। यहां 13 अप्रैल, 1919 को एक निर्मम हत्याकाण्ड हुआ। इसका वर्णन इस प्रकार है —
पृष्ठभूमि-1919 ई० में केन्द्रीय विधान परिषद ने दो बिल पास किए। इन्हें रौलेट बिल (Rowlatt Bill) कहते हैं। इन बिलों द्वारा पुलिस और मैजिस्ट्रेट को षड्यन्त्र आदि को दबाने के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। इनके विरुद्ध 13 मार्च, 1919 ई० को महात्मा गाँधी ने हड़ताल कर दी। परिणामस्वरूप अहमद नगर, दिल्ली और पंजाब के कुछ नगरों में दंगे आरम्भ हो गए। स्थिति को सम्भालने के लिए.पंजाब के दो प्रसिद्ध नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में नगर में हड़ताल कर दी गई। प्रदर्शनकारियों का एक दल शान्तिपूर्वक ढंग से डिप्टी कमिश्नर की कोठी की ओर चल दिया। परन्तु उन्हें हाल दरवाज़े के बाहर ही रोक लिया गया। सैनिकों ने उन पर गोली भी चलाई। परिणामस्वरूप कुछ लोग मारे गए तथा अनेक घायल हो गए। नगरवासियों ने क्रोध में आकर पाँच अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। एक अंग्रेज़ महिला कुमारी शेरवुड भी नगरवासियों के क्रोध का शिकार हो गई। इस पर सरकार ने नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया।

जलियांवाला बाग़ में सभा तथा हत्याकाण्ड-अशांति और क्रोध के इस वातावरण में अमृतसर नगर तथा आस-पास के गाँवों के लगभग 25,000 लोग 13 अप्रैल, 1919 ई० को (वैसाखी वाले दिन) जलियांवाला बाग़ में सभा करने के लिए एकत्रित हुए। जनरल डायर ने ऐसे जुलूसों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था और अपने 150 सैनिकों सहित जलियांवाला बाग़ के दरवाजे के आगे आ डटा। बाग़ में आने-जाने के लिए एक ही तंग मार्ग था। जनरल डायर ने लोगों को तीन मिनट के अन्दर-अन्दर तितर-बितर हो जाने का आदेश दिया। इतने कम समय में लोगों के लिए वहां से निकल पाना असम्भव था। तीन मिनट के पश्चात् जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोलीकाण्ड में लगभग 1000 लोग मारे गए और 1500 से भी अधिक लोग घायल हो गए।
महत्त्व-जलियांवाला बाग़ की घटना ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। इससे पहले यह संग्राम गिने चुने लोगों तक ही सीमित था। अब यह जनता का संग्राम बन गया। इसमें श्रमिक, किसान, विद्यार्थी आदि भी शामिल होने लगे। दूसरे, इसके साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में नया जोश भर गया तथा संघर्ष की गति बहुत तीव्र हो गई।

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प्रश्न 6.
अकाली लहर ने स्वतन्त्रता संग्राम में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
अकाली लहर का जन्म अकाली लहर में से हुआ। इसका संस्थापक किशन सिंह गड़गज था। इसका उदय गुरुद्वारों में बैठे चरित्रहीन महंतों का सामना करने के लिए हुआ। सरकार के पिठुओं से टक्कर लेने के लिए ‘चक्रवर्ती’ जत्था बनाया गया। कुछ समय के पश्चात् अकालियों ने ‘बब्बर अकाली’ नामक समाचार-पत्र निकाला। तभी से इस लहर का नाम बब्बर अकाली पड़ गया। महंतों के साथ अन्य सरकारी पिटाओं से निपटना भी इसका उद्देश्य था।
स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान-बब्बर अकालियों ने मुखबिरों तथा सरकारी पिठुओं का अंत करने की योजना बनाई। बावरों की भरमा इस ‘सुधार करना कहते थे। बब्बरो को विश्वास था कि यदि सरकारी मुखाबरों का सफाया कर दिया जाये तो अंग्रेजी सरकार असफल हो जाएगी और भारत छोड़कर चली जायेगी। उनकी मुख्य गतिविधियों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. शस्त्रों की प्राप्ति– बब्बर अकाली अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शस्त्र प्राप्त करना चाहते थे। उनके अपने सदस्य भी शस्त्र बनाने का यत्न कर रहे थे। शस्त्रों के लिए धन की आवश्यकता थी। धन इकट्ठा करने के लिए बब्बरों ने सरकारी पिठ्ठओं से धन और शस्त्र छीने।
  2. सैनिकों से अपील-बब्बरों ने पंजाबी सैनिकों से अपील की कि वे अपने शस्त्र धारण करके स्वतन्त्रता प्राप्ति का प्रयास करें।
  3. समाचार-पत्र-बब्बरों ने साइक्लोस्टाइल मशीन की सहायता से अपना समाचार-पत्र ‘बब्बर अकाली दुआबा’ निकाला। इस समाचार-पत्र का चंदा यह था कि इसे पढ़ने वाला, इस समाचार-पत्र को आगे पाँच अन्य व्यक्तियों को पढ़ाता था।
  4. सरकारी पिठुओं की हत्या-बब्बरों ने अपने समाचार-पत्रों में उन 179 व्यक्तियों की सूची प्रकाशित की जिनका उन्हें ‘सुधार’ करना था। सूची में सम्मिलित जिस व्यक्ति का अंतिम समय आ जाता, उसके बारे में वे अपने समाचार-पत्र द्वारा ही उस व्यक्ति को सूचित कर देते थे। दो-तीन बब्बर उस व्यक्ति के गाँव जाते और उसे मौत के घाट उतार देते। वे खुलेआम वध करने की जिम्मेवारी भी लेते थे। उन्होंने पुलिस से भी डटकर टक्कर ली।
  5. सरकारी अत्याचार–सरकार ने भी बब्बरों को समाप्त करने का निश्चय कर लिया। उनका पीछा किया जाने लगा। उनमें से कुछ को पकड़ लिया गया और कुछ मारे गए ! सौ से भी अधिक बब्बरों पर मुकद्दमा चलाया गया। 27 फरवरी, 1926 ई० को जत्थेदार किशन सिंह, बाबू संता सिंह, धर्म सिंह हयातपुरा तथा कुछ अन्य बब्बरों को फांसी का दण्ड दिया गया।
    इस प्रकार बब्बर लहर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल रही। फिर भी इस लहर ने पंजाबियों को देश की स्वतन्त्रता के लिए अपनी जान पर खेल जाने का पाठ पढ़ाया।

प्रश्न 7.
जैतों के मोर्चे का वर्णन करो।
उत्तर-
जैतों का मोर्चा 1923 ई० में हुआ। इसके कारणों तथा घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है —
कारण-नाभा का महाराजा सरदार रिपुदमन सिंह सिक्खों का बहुत बड़ा हितैषी था। इससे न केवल सिक्खों में अपितु पूरे देश में उसका सम्मान होने लगा। यह बात अंग्रेज़ सरकार को अच्छी न लगी। अतः अंग्रेज़ सरकार किसी न किसी बहाने उसे अपमानित करना चाहती थी। अंग्रेजों को यह अवसर प्रथम विश्व युद्ध के समय मिला। क्योंकि इस युद्ध में महाराजा ने अपनी सेना भेजने से इन्कार कर दिया। उधर पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह और रिपुदमन सिंह के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ। स्थिति का लाभ उठाते हुए अंग्रेजों ने महाराजा पटियाला की सहायता से रिपुदमन सिंह पर अनेक मुकद्दमे दायर कर दिए और झूठे आरोप लगा कर उसे गद्दी से उतार दिया।

घटनाएं-सिक्ख महाराजा के साथ हुए इस दुर्व्यवहार के कारण क्रोधित हो उठे। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी के नेतृत्व में सिक्खों ने रोष दिवस मनाने का निर्णय किया। परन्तु पुलिस ने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया और जैतों के गुरुद्वारे गंगसर पर अधिकार कर लिया। उस समय गुरुद्वारे में अखंड पाठ चल रहा था। पुलिस कार्यवाही के कारण पाठ खंडित हो गया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे और उन्होंने अंग्रेज़ों से टक्कर लेने के लिए वहां अपना मोर्चा लगा लिया।

15 सितम्बर, 1923 ई० को 25 सिक्खों का एक जत्था जैतों भेजा गया। इसके पश्चात् छ: महीने तक 25-25 सिक्खों के जत्थे लगातार जैतों जाते रहे। सरकार इन जत्थों पर अत्याचार करती रही। मोर्चा लम्बा होता देखकर शिरोमणि कमेटी ने 500-500 के जत्थे भेजने का कार्यक्रम बनाया। 500 सिक्खों का पहला जत्था जत्थेदार ऊधम सिंह के नेतृत्व में अकाल तख्त से चला। हज़ारों लोग जत्थे के साथ माझे और मालवे से होते हुए नाभा रियासत की सीमा पर जा पहुंचे। __यह जत्था अभी गुरुद्वारा गंगसर से एक फलाँग की दूरी पर ही था कि अंग्रेज़ी सरकार की मशीनगनों ने सिक्खों पर गोलियां बरसानी आरम्भ कर दीं। परन्तु सिक्ख गोलियों की बौछार की परवाह न करते हुए अपने मोर्चे पर डटे रहे। इसी गोलीबारी में अनेक सिक्ख शहीद हो गए।

जैतों का मोर्चा दो वर्ष तक चलता रहा। 500-500 में जत्थे आते रहे और अपना बलिदान देते रहे। पंजाब से बाहर कलकत्ता (कोलकाता), शंघाई और हांगकांग से भी जत्थे जैतों पहुंचे। अन्त में विवश होकर पुलिस ने गुरुद्वारा से पहरा हटा लिया और 1925 ई० में सरकार को गुरुद्वारा एक्ट पास करना पड़ा। अत: अकालियों ने जैतों का मोर्चा समाप्त कर दिया।

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प्रश्न 8.
आजाद हिन्द फ़ौज पर विस्तारपूर्वक नोट लिखो।
उत्तर-
आजाद हिन्द सेना की स्थापना की पृष्ठभूमि-आजाद हिन्द सेना की स्थापना रास बिहारी बोस ने जापान में की थी। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान ब्रिटिश सेना को पराजित करके बहुत-से सैनिकों को कैदी बना कर जापान ले गया था। उनमें अधिकांश सैनिक भारतीय थे। इन सैनिकों को लेकर रास बिहारी बोस ने कैप्टन मोहन सिंह की सहायता से ‘आज़ाद हिन्द सेना’ बनाई।

रास बिहारी बोस आज़ाद हिन्द सेना का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस को सौंपना चाहते थे। उस समय सुभाष जी जर्मनी में थे। अतः रास बिहारी बोस ने उन्हें जापान आने का आमन्त्रण दिया। जापान पहुंचने पर सुभाष बाबू ने आज़ाद हिन्द सेना का नेतृत्व सम्भाला। तभी से वह नेताजी सुभाषचन्द्र के नाम से लोकप्रिय हुए।
आज़ाद हिन्द सेना का स्वतन्त्रता संघर्ष-

  1. 21 अक्तूबर, 1943 को नेता जी ने सिंगापुर में ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की। उन्होंने भारतीयों का ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ कह कर आह्वान किया। शीघ्र ही उन्होंने अमेरिका तथा इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
  2. नवम्बर, 1943 ई० में जापान ने अन्दमान निकोबार नामक भारतीय द्वीपों को जीत कर आजाद हिन्द सरकार को सौंप दिया। नेता जी ने इन द्वीपों के नाम क्रमशः ‘शहीद’ और ‘स्वराज्य’ रखे।
  3. इस सेना ने 1 मार्च, 1944 ई० को असम स्थित मावडॉक चौकी को जीत लिया। इस प्रकार उसने भारत की धरती पर पाँव रखे और वहां आज़ाद हिन्द सरकार का ध्वज फहराया।
  4. तत्पश्चात् असम की कोहिमा चौकी पर भी आज़ाद हिन्द सेना का अधिकार हो गया।
  5. अब आज़ाद हिन्द सेना ने इम्फाल की महत्त्वपूर्ण चौकी जीतने का प्रयास किया, परन्तु वहाँ की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण उसे सफलता न मिल सकी।
    आजाद हिन्द सेना की असफलता (वापसी)-आजाद हिन्द सेना को जापान से मिलने वाली सहायता बन्द हो गई । सैन्य सामग्री के अभाव के कारण आज़ाद हिन्द सेना को पीछे हटने के लिए बाध्य होना पड़ा। पीछे हटने पर भी आजाद हिन्द सेना का मनोबल कम नहीं हुआ। परन्तु 18 अगस्त, 1945 ई० को फार्मोसा में एक विमान दुर्घटना में नेता जी का निधन हो गया। अगस्त, 1945 ई० में जापान ने भी आत्म-समर्पण कर दिया। इसके साथ ही आज़ाद हिन्द सेना द्वारा प्रारम्भ किया गया स्वतन्त्रता का संघर्ष समाप्त हो गया।
    आज़ाद हिन्द सेना के अधिकारियों की गिरफ्तारी एवं मुकद्दमा-ब्रिटिश सेना ने आजाद हिन्द सेना के कुछ अधिकारियों तथा सैनिकों को इम्फाल के मोर्चे पर पकड़ लिया। पकड़े गए तीन अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किले में देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि तीनों दोषियों को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया जाए, परन्तु जनता के जोश को देख कर सरकार घबरा गई। अतः उन्हें बिना कोई दण्ड दिये रिहा कर दिया गया। यह रिहाई भारतीय राष्ट्रवाद की एक महान् विजय थी।

PSEB 10th Class Social Science Guide स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Ouestions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
(i) ग़दर विद्रोह का मुखिया कौन था?
(ii) उसने ‘कामागाटामारू’ घटना के बाद कहां मीटिंग बुलाई?
उत्तर-
(i) ग़दर विद्रोह दल का मुखिया सोहन सिंह भकना था।
(ii) उसने कामागाटामारू घटना के बाद अमेरिका में एक विशेष मीटिंग बुलाई।

प्रश्न 2.
19 फरवरी, 1915 के आन्दोलन में पंजाब में शहीद होने वाले चार ग़दरियों के नाम लिखो।
उत्तर-
करतार सिंह सराभा, जगत सिंह, बलवंत सिंह और अरूढ़ सिंह।

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प्रश्न 3.
पंजाब में अकाली आन्दोलन किस वर्ष शुरू हुआ और कब समाप्त हुआ?
उत्तर-
पंजाब में अकाली आन्दोलन 1921 ई० में शुरू हुआ और 1925 ई० में समाप्त हुआ।

प्रश्न 4.
(i) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की स्थापना कब हुई?
(ii) इसके सदस्यों की संख्या कितनी थी?
उत्तर-
(i) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की स्थापना 1920 में हुई।
(ii) इसके सदस्यों की संख्या 175 थी।

प्रश्न 5.
लोगों ने इसे (रौलेट एक्ट) को किस नाम से पुकारा?
उत्तर-
लोगों ने इसे “काले कानून” कह कर पुकारा।

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प्रश्न 6.
(i) लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन में किस महान् नेता पर लाठी के भीषण प्रहार हुए?
(ii) इसके लिए कौन-सा अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी ज़िम्मेदार था?
उत्तर-
(i) लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन में लाला लाजपत राय पर लाठी के भीषण प्रहार हुए।
(ii) इसके लिए अंग्रेज़ पुलिस अफ़सर सांडर्स ज़िम्मेदार था।

प्रश्न 7.
(i) नामधारी लहर के संस्थापक कौन थे?
(ii) उन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के कौन-से दोआब में किया?
उत्तर-
(i) नामधारी लहर के संस्थापक बाबा बालक सिंह जी थे।
(ii) इन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में किया।

प्रश्न 8.
नामधारियों ने मलेरकोटला पर हमला कब किया?
उत्तर-
1872 ई० में।

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प्रश्न 9.
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव कब और क्यों पास किया गया?
उत्तर-
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव 31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पास हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं० जवाहर लाल नेहरू थे। इस प्रस्ताव के परिणामस्वरूप 26 जनवरी, 1930 का दिन पूर्ण स्वराज्य दिवस के रूप में मनाया गया।

प्रश्न 10.
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की पहली लड़ाई कब और कहां से शुरू हुई?
उत्तर-
10 मई को मेरठ से।

प्रश्न 11.
नामधारी या कूका लहर की नींव कब पड़ी?
उत्तर-
12 अप्रैल, 1857 को।

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प्रश्न 12.
श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंतर्जातीय विवाह की कौन-सी नई नीति चलाई?
उत्तर-
आनन्द कारज।

प्रश्न 13.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती।

प्रश्न 14.
आर्य समाज की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1875 ई० में।

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प्रश्न 15.
देश भक्ति के प्रसिद्ध गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के लेखक कौन थे?
उत्तर-
बांके दयाल।

प्रश्न 16.
ग़दर पार्टी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
1913 ई० में सॉन फ्रांसिस्को में।

प्रश्न 17.
ग़दर लहर के साप्ताहिक पत्र ‘ग़दर’ का सम्पादक कौन था?
उत्तर-
करतार सिंह सराभा।

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प्रश्न 18.
‘कामागाटामारू’ नामक जहाज़ किसने किराए पर लिया था?
उत्तर-
बाबा गुरदित्त सिंह ने।

प्रश्न 19.
जलियांवाला बाग़ की घटना कब घटी?
उत्तर-
13 अप्रैल, 1919 को।

प्रश्न 20.
जलियांवाला बाग़ में गोलियां किसने चलवाईं?
उत्तर-
जनरल डायर ने।

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प्रश्न 21.
माइकल ओ’डायर की हत्या किसने की और क्यों?
उत्तर-
माइकल ओ’डायर की हत्या शहीद ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड का बदला चकाने के लिए की।

प्रश्न 22.
बब्बर अकाली जत्थे की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
अगस्त 1922 ई० में।

प्रश्न 23.
सरदार रिपुदमन सिंह कहां का महाराजा था?
उत्तर-
नाभा का।

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प्रश्न 24.
साइमन कमीशन कब भारत आया?
उत्तर-
1928 में।

प्रश्न 25.
साइमन कमीशन का प्रधान कौन था?
उत्तर-
सर जॉन साइमन।

प्रश्न 26.
लाला लाजपत राय कब शहीद हुए?
उत्तर-
17 नवम्बर, 1928 को।

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प्रश्न 27.
‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कब और कहां हुई?
उत्तर-
1925-26 में लाहौर में।

प्रश्न 28.
भगत सिंह और उसके साथियों को फांसी कब दी गई?
उत्तर-
23 मार्च, 1931 को।

प्रश्न 29.
पूर्ण स्वराज प्रस्ताव के अनुसार भारत में पहली बार स्वतन्त्रता दिवस कब मनाया गया?
उत्तर-
26 जनवरी, 1930 को।

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प्रश्न 30.
आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
1943 में सुभाष चन्द्र बोस ने।

प्रश्न 31.
‘आप मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा किसने दिया?
उत्तर-
सुभाष चन्द्र बोस ने।

प्रश्न 32.
आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारियों पर मुकद्दमा कहां चलाया गया?
उत्तर-
दिल्ली के लाल किले में।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. सरदार अहमद खां खरल अंग्रेजों के हाथों ……….. के निकट शहीद हुआ।
  2. गदर लहर अमृतसर के एक सिपाही ………… के धोखा देने के कारण असफल हो गई।
  3. साइमन कमीशन …………. ई० में भारत आया।
  4. गदर विद्रोह दल का मुखिया …………….. था।
  5. लोगों ने रौलेट एक्ट को ………………. के नाम से पुकारा।
  6. पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव ……………. ई० को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पास हुआ।

उत्तर-

  1. पाकपटन,
  2. कृपाल सिंह,
  3. 1928,
  4. सोहन सिंह भकना,
  5. काले कानून,
  6. 31 दिसंबर, 1929।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
19 फरवरी, 1915 के आंदोलन में पंजाब में शहीद होने वाला गदरिया था
(A) करतार सिंह सराभा
(B) जगत सिंह
(C) बलवंत सिंह
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना हुई
(A) 1920 ई० में
(B) 1921 ई० में
(C) 1915 ई० में
(D) 1928 ई० में।
उत्तर-
(A) 1920 ई० में

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प्रश्न 3.
लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन के परिणामस्वरूप किस भारतीय नेता को अपनी जान गंवानी पड़ी?
(A) बांके दयाल
(B) लाला लाजपत राय
(C) भगत सिंह
(D) राज गुरु।
उत्तर-
(B) लाला लाजपत राय

प्रश्न 4.
पूर्ण स्वराज्य प्रस्ताव के अनुसार पहली बार कब पूर्ण स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया?
(A) 31 दिसंबर, 1929
(B) 15 अगस्त, 1947
(C) 26 जनवरी, 1930
(D) 15 अगस्त, 1857
उत्तर-
(C) 26 जनवरी, 1930

प्रश्न 5.
देश भक्ति के प्रसिद्ध गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के लेखक थे
(A) बांके दयाल
(B) भगत सिंह
(C) राज गुरु
(D) अजीत सिंह।
उत्तर-
(A) बांके दयाल

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प्रश्न 6.
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया
(A) शहीद भगत सिंह ने
(B) शहीद उधम सिंह ने
(C) शहीद राजगुरु ने
(D) सुभाष चंद्र बोस ने।
उत्तर-
(D) सुभाष चंद्र बोस ने।

IV. सत्य-असत्य कथन ।

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. गदर लहर सशस्त्र विद्रोह के पक्ष में नहीं थी।
  2. 1857 का विद्रोह 10 मई को मेरठ से आरम्भ हुआ।
  3. 1913 में स्थापित गुरु नानक नेवीगेशन कम्पनी के संस्थापक सरदार वरियाम सिंह थे।
  4. 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता पं० जवाहर लाल नेहरू ने की।
  5. पंजाब सरकार के 1925 के कानून द्वारा सभी गुरुद्वारों का प्रबन्ध सिखों के हाथ में आ गया।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. ग़दर विद्रोह दल का मुखिया — श्री सतगुरु राम सिंह जी
  2. नामधारी लहर के संस्थापक — बांके दयाल
  3. आनंद कारज — बाबा बालक सिंह जी
  4. पगड़ी संभाल जट्टा — सोहन सिंह भकना।

उत्तर-

  1. ग़दर विद्रोह दल का मुखिया — सोहन सिंह भकना,
  2. नामधारी लहर के संस्थापक — बाबा बालक सिंह जी,
  3. आनंद कारज — श्री सतगुरु राम सिंह जी,
  4. पगड़ी संभाल जट्टा — बांके दयाल।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘कामागाटामारू’ की घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
कामागाटामारू एक जहाज़ का नाम था। इस जहाज़ को एक पंजाबी वीर नायक बाबा गुरदित्त सिंह ने किराए पर ले लिया। बाबा गुरदित्त सिंह के साथ कुछ और भारतीय भी इस जहाज़ में बैठ कर कैनेडा पहुंचे, परन्तु उन्हें न तो वहां उतरने दिया गया और न ही वापसी पर किसी नगर हांगकांग, शंघाई, सिंगापुर आदि में उतरने दिया। कलकत्ता (कोलकाता) पहुंचने पर यात्रियों ने जुलूस निकाला। जुलूस के लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 40 व्यक्ति शहीद हुए और बहुत से घायल हुए। इस घटना से विद्रोहियों को विश्वास हो गया कि राजनीतिक क्रान्ति ला कर ही देश का उद्धार हो सकता है। इसीलिए उन्होंने ग़दर नाम की पार्टी बनाई और क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 2.
रास बिहारी बोस के ग़दर आन्दोलन में योगदान का वर्णन करो।
उत्तर-
ग़दर आन्दोलन से सम्बन्धित नेताओं को पंजाब पहंचने के लिए कहा गया। देश के अन्य क्रान्तिकारी भी पंजाब में पहुंचे। इनमें बंगाल के रास बिहारी बोस भी थे। उन्होंने स्वयं पंजाब में ग़दर आन्दोलन की बागडोर सम्भाली। उनके द्वारा घोषित क्रान्ति दिवस का सरकार को पता चल गया। अनेक विद्रोही नेता पुलिस के हाथों में आ गए। कुछ को प्राण दण्ड दिया गया। रास बिहारी बोस बच कर जापान पहुंच गए।

प्रश्न 3.
ग़दर आन्दोलन के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर-
यद्यपि ग़दर आन्दोलन को सरकार ने कठोरता के साथ दबा दिया परन्तु इसका प्रभाव हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर अधिक पड़ा। ग़दर आन्दोलन के कारण कांग्रेस के दोनों दलों में एकता आई। कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौता हुआ। इसके अतिरिक्त इस आन्दोलन ने सरकार को अन्ततः भारतीय समस्या के विषय में सहानुभूतिपूर्वक सोचने के लिए विवश कर दिया। 1917 ई० में बर्तानवी शासन के भारत-मन्त्री लॉर्ड मान्टेग्यू ने इंग्लैंड की भारत सम्बन्धी नीति की घोषणा की, जिसमें उन्होंने प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी पर बल दिया।

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प्रश्न 4.
गुरुद्वारों से सम्बन्धित सिक्खों तथा अंग्रेज़ों में बढ़ते रोष पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महंतों को प्रोत्साहन देते थे। यह बात सिक्खों को प्रिय नहीं थी। महंत सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेज़ी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महंतों को अंग्रेज़ों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 5.
‘जलियांवाला बाग़ की घटना’ कब, क्यों और कैसे हुई? एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना अमृतसर में 1919 ई० में बैसाखी वाले दिन हुई। इस दिन अमृतसर की जनता जलियांवाला बाग़ में एक सभा कर रही थी। यह सभा अमृतसर में लागू मार्शल ला के विरुद्ध की जा रही थी। जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के इस शान्तिपूर्ण सभा पर गोली चलाने की आज्ञा दे दी। इससे सैकड़ों निर्दोष व्यक्तियों की जानें गईं और अनेक लोग घायल हुए। परिणामस्वरूप सारे देश में रोष की लहर दौड़ गई और स्वतन्त्रता संग्राम ने एक नया मोड़ ले लिया। अब यह सारे राष्ट्र की जनता का संग्राम बन गया।

प्रश्न 6.
जलियांवाला बाग़ की घटना ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम को कैसे नया मोड़ दिया?
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की घटना (13 अप्रैल, 1919 ई०) के कारण कई लोग शहीद हुए। इस घटना में हुए रक्तपात ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। यह संग्राम इससे पहले गिने-चुने लोगों तक ही सीमित था। अब यह जनता का संग्राम बन गया। इसमें श्रमिक, किसान, विद्यार्थी आदि भी शामिल होने लगे। दूसरे, इसके साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत जोश भर गया तथा संघर्ष की गति बहुत तीव्र हो गई।

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प्रश्न 7.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी तथा शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर-
पंजाब में पहले गुरुद्वारों के ग्रन्थी भाई मनी सिंह जैसे चरित्रवान् तथा महान् बलिदानी व्यक्ति हुआ करते थे। परन्तु 1920 ई० तक ये गुरुद्वारे चरित्रहीन महन्तों के अधिकार में आ गए। ये महंत अंग्रेज़ी सरकार के पिठू थे। महन्तों की अनैतिक कार्यवाहियों से तंग आकर लोग गुरुद्वारों के प्रबन्ध में सुधार लाना चाहते थे। इस कार्य में उन्होंने अंग्रेजी सरकार की सहायता लेनी चाही, परन्तु असफल रहे। नवम्बर, 1920 ई० को सिक्खों ने यह निर्णय लिया कि गुरुद्वारों की देखभाल के लिए सिक्खों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाई जाये। फलस्वरूप 16 नवम्बर, 1920 ई० को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अस्तित्व में आई और 14 दिसम्बर, 1920 ई० को शिरोमणि अकाली दल की स्थापना हुई।

प्रश्न 8.
अखिल भारतीय किसान सभा पर नोट लिखो।
उत्तर-
अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना 11 अप्रैल, 1936 को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुई। 1937 में इस संगठन की शाखाएं देश के अन्य प्रान्तों में फैल गईं। इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद थे। इसके दो मुख्य उद्देश्य थे

  1. किसानों को आर्थिक शोषण से बचाना।
  2. ज़मींदारी तथा ताल्लुकेदारी प्रथा का अंत करना।

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसने ये मांगें की-

  1. किसानों को आर्थिक संरक्षण दिया जाए।
  2. भू-राजस्व में कटौती की जाए।
  3. किसानों के ऋण स्थगित किए जाएं।
  4. सिंचाई की उत्तम व्यवस्था की जाए तथा
  5. खेतिहर श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाए।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
पंजाब में गुरुद्वारा सुधार के लिए अकालियों द्वारा किए गए संघर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
अकाली आन्दोलन किन कारणों से आरम्भ हुआ? इसके बड़े-बड़े मोर्चों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
ग़दर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण अग्रलिखित थे —

  1. गुरुद्वारों का प्रबन्ध महंतों के हाथ में था। वे अंग्रेजों के पिट्ठ थे। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। सिक्खों को यह बात स्वीकार नहीं थी।
  2. अंग्रेज़ों ने ग़दर सदस्यों पर बड़े अत्याचार किए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्खों में अंग्रेजों के प्रति रोष था।
  3. 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत था।

इन बातों के कारण सिक्खों ने एक आन्दोलन आरम्भ कर दिया जिसे अकाली आन्दोलन कहा जाता है। प्रमुख घटनाएं अथवा प्रमुख मोर्चे

  1. ननकाना साहिब की घटना-ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।
  2. हरमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या-हरमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिक्खों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफ़त कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।
  3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ भी बुरा व्यवहार किया गया। इनके सदस्यों को लाठियों से पीटा गया। परंतु अंत में सिक्खों ने गुरु का बाग मोर्चा शांतिपूर्ण ढंग से जीत लिया।
  4. पंजा साहिब की घटना-‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। इस गाड़ी को हसन अब्दाल स्टेशन से गुज़रना था। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को हसन अब्दाल में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आंगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।
  5. जैतों का मोर्चा-जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।
    सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।
    इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारों जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।

स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान PSEB 10th Class History Notes

  • पंजाब में 1857 के विद्रोह के केन्द्र-1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की . लाहौर, फिरोजपुर, पेशावर, अम्बाला, मियांवाली आदि छावनियों में विद्रोह हुआ। सरदार अहमद खां खरल का इस विद्रोह में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
  • नामधारी या कूका लहर-नामधारी या कूका लहर एक ऐसी लहर थी जिसने बाबा बालक सिंह के बाद बाबा राम सिंह के नेतृत्व में महान् कार्य किया। उन्होंने बूचड़खानों पर आक्रमण करके कई गौ हत्यारों (कसाइयों) को मार डाला।
  • आर्य समाज-आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती थे। इसकी स्थापना उन्होंने 1875 ई० में की। आर्य समाज ने जहां सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया, वहीं इसने स्वतन्त्रता लहर में भी बहुमूल्य भूमिका निभाई।
  • ग़दर आन्दोलन-ग़दर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में सान फ्रांसिस्को (अमेरिका) में हुई। इसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया। इस संस्था ने रास बिहारी बोस तथा करतार सिंह सराभा के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का प्रयास किया।
  • नौजवान सभा-नौजवान सभा की स्थापना 1925-26 ई० में सरदार भगत सिंह ने की। नौजवान सभा का मुख्य उद्देश्य था-बलिदान, देश-भक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना। .
  • अकाली लहर अथवा गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन-अंग्रेजों के समय पंजाब के गुरुद्वारों का प्रबंध भ्रष्ट महंतों के हाथ में था। सिक्ख इन महंतों से अपने धार्मिक स्थानों को मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन का आरम्भ किया।
  • बब्बर अकाली लहर-कई सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे। उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित कर के होशियारपुर तथा जालंधर में अंग्रेजी पिटुओं के दमन के विरुद्ध प्रचार किया।
  • खिलाफ़त लहर-प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार न किया। विरोध में भारतीय मुसलमानों ने अपने प्रिय नेता के लिए खिलाफ़त आन्दोलन चलाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी उनका साथ दिया।
  • रौलेट बिल-भारतीयों में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता की भावना को रोकने के लिए अंग्रेजों ने 1919 ई० में रौलेट बिल पास किया। इसके अन्तर्गत सरकार केवल संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी।
  • जलियांवाला बाग का हत्याकांड-जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 ई० को हुआ। इस दिन लगभग 25,000 व्यक्ति शांतिपूर्ण ढंग से एक सभा के रूप में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए। जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। परिणामस्वरूप लगभग 1000 लोग मारे गये और 3000 से भी अधिक लोग घायल हुए।
  • पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव-दिसम्बर, 1929 ई० के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्ति की शपथ ली। इस अधिवेशन की अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने की।
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन-यह आन्दोलन 1930 ई० में गांधी जी ने डाँडी मार्च के साथ आरम्भ किया। यह
    आन्दोलन 1934 में समाप्त हुआ। सरकार ने भारतीय जनता पर बड़े अत्याचार किए।
  • भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन तथा द्वितीय विश्व-युद्ध-सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी युद्ध में धकेल दिया। विरोध में कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिये।
  • क्रिप्स मिशन का आगमन-दूसरे महायुद्ध (1939-45) में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती जा रही थी। जापान बर्मा (आधुनिक म्यनमार) तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए 1942 ई० में सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने का प्रस्ताव रखा। परन्तु कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने यह प्रस्ताव स्वीकार न किया।
  • भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। अतः महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे। 9 अगस्त, 1942 ई० को उन्होंने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ कर दिया। आन्दोलन बड़े वेग से चला। गांधी जी तथा दूसरे नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
  • आजाद हिन्द सेना-आज़ाद हिन्द सेना का पुनर्गठन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में हुआ। इस सेना ने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। परन्तु द्वितीय महायुद्ध में जापान की पराजय से आजाद हिन्द सेना की शक्ति कम हो गयी। कुछ समय पश्चात् एक वायुयान दुर्घटना में नेताजी का देहान्त हो गया।
  • एटली की घोषणा, 1945 ई०-1945 ई० में इंग्लैण्ड में सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ आ गयी। नए प्रधानमन्त्री एटली ने सितम्बर, 1945 में भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार कर लिया। भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ‘कैबिनेट मिशन’ को भारत में भेजा गया। इस मिशन ने सिफ़ारिश की कि भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की जाए, संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा बनाई जाए तथा संविधान बनने तक देश में अन्तरिम सरकार की स्थापना की जाए।
  • साम्प्रदायिक झगड़े-1946 ई० में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। कांग्रेस को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। ईर्ष्या के कारण मुस्लिम लीग ने अन्तरिम सरकार में शामिल होने से इन्कार कर दिया। उसने फिर पाकिस्तान की मांग की और ‘सीधी कार्यवाही करने का निश्चय किया। फलस्वरूप स्थान-स्थान पर साम्प्रदायिक झगड़े आरम्भ हो गए।
  • फरवरी की घोषणा-20 फरवरी, 1947 ई० को प्रधानमन्त्री एटली ने एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की। इस घोषणा में यह कहा गया कि “अंग्रेजी सरकार जून, 1948 तक भारत छोड़ जाएगी।” इस उद्देश्य से वायसराय के पद पर लॉर्ड माऊण्टबेटन की नियुक्ति की गयी।
  • देश का विभाजन-लॉर्ड माऊण्टबेटन के प्रयत्नों से जुलाई, 1947 ई० में भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया गया। इसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 ई० को देश को भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र राज्यों में बाँट दिया गया। इस प्रकार भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions फुटबाल (Football) Game Rules.

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. फुटबाल मैदान की लम्बाई = 100 गज़ से 130 गज़ (90 मी. से 120 मी.)
  2. फुटबाल मैदान की चौड़ाई = 50 गज़ से 100 गज़, 45-90 मीटर
  3. मैदान का आकार = आयताकार
  4. खिलाड़ियों की गिनती = 18 (11 खिलाडी + 7 वैकल्पिक खिलाड़ी)
  5. फुटबाल की परिधि = 27″ से 28″, 68 सैं०मी० 70 सैं०मी०
  6. फुटबाल का भार = 14 से 16 औंस, 410 ग्राम से 450 ग्राम
  7. खेल का समय = 45—45 मिनट के दो हाफ
  8. आराम का समय = 15 मिनट
  9. मैच में बदले जा सकने वाले खिलाड़ी = 3
  10. मैच के अधिकारी = एक टेबल आफिशल, एक रैफ़री और दो लाइन मैन
  11. अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिए मैदान का आकार = अधिक-से-अधिक 110 × 75 मीटर 100 × 64 मीटर कम-से-कम
  12. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप = अधिकतम 110 मी० × 75 मीटर (120 गज़ × 80 गज़) कम-से-कम 100 मी० × 64 मी० (100 गज़ × 70 गज़)
  13. गोल पोस्ट की ऊँचाई = 2.44 मीटर
  14. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई = कम-से-कम 5 फीट

फुटबाल खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Football Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम में 16 खिलाड़ी होते . हैं जिनमें से 11 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता
  2. एक टीम मैच में तीन से अधिक खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
  3. एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
  4. खेल का समय 45-5-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
  5. मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
  6. खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  7. मैच खिलाने के लिए एक टेबल अधिकारी, एक रैफरी और दो लाइनमैन होते हैं।
  8. गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
  9. खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
  10. मैदान के बाहरी भाग से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
  11. जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
  12. रैफ़री स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide फुटबाल (Football) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फुटबाल के मैदान का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
आयताकार।

प्रश्न 2.
फुटबाल के मैच में मैदान की लम्बाई कितनी होती है ?
उत्तर-
100 गज़ से 130 गज़ (90 मी. से 120 मी.)।

प्रश्न 3.
फुटबाल मैच का समय कितना होता है ?
उत्तर-
45-45 मिनट में दो हाफ।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
फुटवाल के मैच में कुल खिलाड़ियों की संख्या कितनी होती है ?
उत्तर-
18 (11 खिलाड़ी +7 वैकल्पिक खिलाड़ी)।

प्रश्न 5.
फुटबाल के मैच में कुल वैकल्पिक खिलाड़ी कितने होते हैं ?
उत्तर-
सात खिलाड़ी।

प्रश्न 6.
फुटबाल का भार कितना होता है ?
उत्तर-
14 से 16 औंस।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB फुटबाल (Football) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर क्षेत्र, रेखाएं और गेंद के बारे में बताइए।
उत्तर-
खेल का मैदान
(Playing Field)
आकार-फुटबॉल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 m से कम और 120 m से अधिक न होगी। इसकी चौड़ाई 55 m से कम और 90 m से अधिक न होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 90 से 120 m तक चौड़ाई 50 से 90 m होगी।
रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 1.50 m ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज़ पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 9.15 m गज़ होगा।
FOOTBALL GROUND
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
कार्नर क्षेत्र-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट से खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई वृत्त खींचा – जाएगा।
गोल क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगी। ये मैदान में 5.5 m की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।

पैनल्टी क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 16.50 m की दूरी पर गोल रेखा के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएंगी। ये मैदान में 16.50 m की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा खींच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।

गोल-गोल रेखा के मध्य में से 7.32 m की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 2.44 m ऊंचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी। देखें खेल के मैदान का चित्र।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
गेंद-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए। इसकी परिधि 27″ से 28″ तक होगी। इसका भार 14 औंस से 16 औंस तक होगा। रैफ़री की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदली नहीं जा सकती।

खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी प्रायः जर्सी या कमीज़, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाक़ी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
निम्नलिखित से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों की संख्या, अधिकारियों की गिनती, खेल की अवधि, स्कोर अथवा गोल। खिलाड़ियों की संख्या-फुटबॉल का खेल दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह तथा अतिरिक्त (Extra) 5 खिलाड़ी होते हैं। एक मैच में किसी टीम को तीन से अधिक खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती। बदले हुए खिलाड़ी को पुनः इस मैच में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। मैच में गोलकीपर बदल सकते हैं।

अधिकारी-एक रैफ़री, दो लाइनमैन, एक टाइम कीपर रैफ़री खेल के नियमों का पालन करवाता है और किसी भी झगड़े वाले प्रश्न का निर्णय करता है। खेल में क्या हुआ और परिणाम क्या निकला इस पर उसका निर्णय अन्तिम होता है। . खेल की अवधि-खेल 45-45 मिनट की दो समान अवधियों में खेला जाएगा। पहले 45 मिनट के खेल के बाद 10 मिनट का मध्यान्तर (Interval) या इससे अधिक होगा।

गोल्डन गोल (Golden Goal) फुटबॉल खेल में यदि समय समाप्ति पर दोनों टीमें बराबर रहती हैं तो बराबर की स्थिति में फालतू समय 15-15 मिनट का खेल होगा। इस समय के खेल में जहां भी गोल हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है। गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है। उसके बाद यदि फिर भी गोल न हो तो दोनों टीमों को 5-5 पैनल्टी किक उस समय तक दिए जाते रहेंगे जब तक फैसला नहीं हो जाता परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

खेल का आरम्भ-खेल के प्रारम्भ में टॉस द्वारा किक मारने और साइड (पक्ष) चुनने का निर्णय किया जाता है। टॉस जीतने वाली टीम को किक लगाने या साइड चुनने की छूट होती है।
गेंद खेल से बाहर-गेंद खेल से बाहर मानी जाएगी—

  1. जब गेंद भूमि या हवा में गोल रेखा या स्पर्श रेखा पूरी तरह पार कर जाए।
  2. जब रैफरी खेल को रोक दे।

स्कोर (फलांकन) या गोल-जब गेंद नियमानुसार गोल पोस्टों के बीच क्रास बार के नीचे और गोल रेखा के पार चली जाए तो गोल माना जाता है। जो भी टीम अधिक गोल बना लेगी उसे विजयी माना जाएगा। यदि कोई गोल नहीं होता या बराबर संख्या में गोल होते हैं तो खेल बराबर माना जाएगा। परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

प्रश्न 3.
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऑफ साइड-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता। ऑफ साइड उस समय होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।

  1. उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
  2. वह मैदान में अपने अर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
  3. गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेली न गई हो।
  4. उसे गोल-किक, कार्नर किक, थ्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिली हो या रैफ़री ने न फेंका हो।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां पर नियम का उल्लंघन हुआ हो।
फ्री किक-फ्री किक दो प्रकार की होती है-प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को छू न जाए।

जब कोई खिलाड़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाता है तो अन्य खिलाड़ी गेंद से कम से कम दस गज़ की दूरी पर होंगे। वे अपने परिधि पथ और पैनल्टी क्षेत्र को पार करते ही गेंद फौरन खेलेंगे। यदि गेंद पैनल्टी क्षेत्र से परे सीधे खेल में किक नहीं लगाई गई तो किक पुनः लगाई जाएगी।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर रक्षक टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाने को मिलेगी। फ्री किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को दूसरी बार उस समय तक नहीं छू सकता जब तक इसे किसी अन्य खिलाड़ी ने न छू लिया हो।

पैनल्टी किक-पैनल्टी किक पैनल्टी निशान से लगाई जाएगी। पैनल्टी किक लगाने के समय किक मारने वाला (प्रहारक) तथा गोल रक्षक ही पैनल्टी क्षेत्र में होंगे। बाकी खिलाड़ी पैनल्टी क्षेत्र से बाहर और पैनल्टी के निशान से कम से कम 10 गज़ दूर होंगे। गेंद को किक लगने तक गोल रक्षक गोल रेखा पर स्थिर खड़ा रहेगा। किक मारने वाला गेंद को दूसरी बार छू नहीं सकता जब तक कि उसे गोल कीपर छू नहीं लेता।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर—

  1. यदि रक्षक टीम द्वारा उल्लंघन होता है और यदि गोल न हुआ हो तो किक दूसरी बार ली जाएगी।
  2. यदि आक्रामक टीम द्वारा उल्लंघन होता है तो गोल हो जाने पर भी दोबारा किक दी जाएगी।
  3. यदि पैनल्टी किक लेने वाले खिलाड़ी से अथवा उसके साथी से गोल उल्लंघन होता है तो विरोधी खिलाड़ी उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष गोल किक लगाएगा।

थ्रो-इन-जब गेंद भूमि पर या हवा में पार्श्व रेखाओं (Side Lines) से बाहर चली जाती है तो विरोधी टीम का एक खिलाड़ी उस स्थान से जहां से गेंद पार हुई होती है, खड़ा होकर गेंद मैदान के अन्दर फैंकता है।

गेंद अन्दर फेंकने वाला खिलाड़ी मैदान की ओर मुंह करके दोनों पांवों का कोई भाग स्पर्श रेखा या स्पर्श रेखा से बाहर ज़मीन पर रख कर खड़ा हो जाता है। वह हाथों से गेंद पकड़ कर सिर के ऊपर से घुमा कर अन्दर मैदान में फेंकेगा। वह उस समय तक गेंद को नहीं छू सकता जब तक किसी दूसरे खिलाड़ी ने इसे न छू लिया हो।
दण्ड—

  1. यदि थ्रो-इन उचित ढंग से न हो तो विरोधी टीम का खिलाड़ी थ्रो-इन करेगा।
  2. यदि थ्रो-इन करने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले ही स्वयं छू लेता है तो विरोधी टीम को एक अप्रत्यक्ष किक लगाने को दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
गोल किक-किसी आक्रामक टीम के खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर जब गेंद भूमि के साथ हवा में गोल रेखा को पार कर जाए तो रक्षक टीम का खिलाड़ी इसे गोल क्षेत्र से बाहर किक करता है। यदि वह गोल क्षेत्र से बाहर नहीं निकलती और सीधे खेल के मैदान में नहीं पहुंच पाती तो किक दोबारा लगाई जाएगी। किक करने वाला खिलाड़ी गेंद को उस समय तक पुनः नहीं छू सकता जब तक इसे किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छू न लिया जाए।

दण्ड-यदि किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा छूने से पहले पुनः छू ले तो विरोधी को उसी स्थान से एक अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जहां कि उल्लंघन हुआ है।

कार्नर किक-जब रक्षक टीम के किसी खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर गेंद भूमि पर या हवा में गोल रेखा पार कर जाए तो आक्रामक टीम का खिलाड़ी निकटतम कार्नर फ्लैग पोस्ट के चौथाई वृत्त के भीतर से गेंद को किक लगाएगा। ऐसी किक से प्रत्यक्ष गोल भी किया जा सकता है। जब तक कार्नर किक न ले ली जाए, विरोधी टीम के खिलाड़ी 10 गज़ दूर रहेंगे। किक करने वाला खिलाड़ी भी उस समय तक गेंद को दुबारा नहीं छू सकता जब तक किसी अन्य खिलाड़ी ने उसे छू न लिया हो।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर विरोधी टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
फुटबाल खेल में कौन-कौन से फाऊल हो सकते हैं ?
उत्तर-
फाऊल तथा त्रुटियां
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
(क) यदि कोई भी खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

  1. विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की कोशिश करे।
  2. विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
  3. विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
  5. विरोधी खिलाड़ी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
  6. विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
  7. विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने या टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे।
  8. विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से धक्का दे।
  9. गेंद को हाथ से पकड़ता है।

यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझकर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।

(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी—

  1. जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
  2. जब गेंद कुछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
  3. गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
  4.  गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह—
    • विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो।
    • गेंद पकड़ रहा हो।
    • गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
  5.  गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
    • गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाकी में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।

(ग) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी—

  1. खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
  2. दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
  3. शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।

(घ) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि—

  1. वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
  2. चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
  3. वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीकों के बारे में लिखें।
उत्तर-
किकिंग-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बॉल को इच्छित दिशा में पांवों की सहायता से इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बॉल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए, आगे बढ़ाया जाता है। किकिंग की कला में सही निशाना, गति, दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दहने में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद नवसिखयों को सिखलाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने की जरूरत है। युवकों और नवसिखयों को दोनों पांवों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतबे पर पहुंच पाना असम्भव है।

  1. पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना—
  2. पावों का बाहरी भाग—

जब बॉल को नज़दीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम लगाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
हॉफ़ वाली तथा वॉली किक—
जब बॉल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या हवा में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी। इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात ज़रूरी है वह है शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6

ओवर हैड किक—
इस किक का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7

  1. सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बॉल की और दिशा में मोड़ना,
  2. बॉल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और
  3. बॉल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित वॉली किक है और इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बॉल को मारने हेतु किया जाता है।।

पास देना—
फुटबॉल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय । बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बॉल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं।
पास देने की क्रिया को आमतौर पर दो भागों में बांटा गया है—लम्बे पास तथा छोटे पास।

  1. लम्बे पास-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांवों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मज़बूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
  2. छोटे पास-छोटे पास 15 गज़ या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।

पुश पास—
पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बॉल डालने के लिए और बॉल को बाएं-दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है।
लॉब पास—
यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इसमें बॉल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बॉल लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसके सिर के ऊपर से बॉल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।

पांव का बाहरी भाग…….फलिक या जॉब पास—
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फलिक पास से पाँव को भीतर की ओर घुमाते हुए बॉल को फलिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बॉल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग—
ट्रैपिंग बॉल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बॉल को ट्रैप करने का अर्थ बॉल को खिलाड़ी के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बॉल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बॉल को मज़बूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बॉल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इससे उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई

  1. रेंगते बॉल तथा
  2. उछलते बॉल के लिए दी जानी चाहिए।

पांव के निचले भाग से ट्रैप—
यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आस-पास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 8

पांव के भीतरी भाग से ट्रैप—
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 9
यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बॉल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं ओर से या तिरछे आ रहे बॉल के लिए अच्छा है। यदि बॉल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बॉल ने जाना होता है।

पांव के बाहरी भाग से ट्रैप—
यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि हरकत में खिलाड़ी को बदन का भार बाहर की तथा केन्द्र से बाहर सन्तुलन करने के लिए ज़रूरी होता है।
पेट तथा सीना ट्रैप—
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 10
यदि बॉल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो सकता हो तो बॉल को पेट तथा सीने पर सीधा या धरती से उछलता हुआ लिया जाता है।
हैड ट्रैप—
यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है और उसके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 11
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 12
(क) सामने की ओर हैडिंग
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 13
(ख) बाईं तथा दाईं ओर हैडिंग
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 14
(ग) नीचे की ओर हैडिंग

तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules.

तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
तालमयी क्रियाओं के नाम लिखो।
उत्तर-
तालमयी क्रियाओं में निम्नलिखित क्रियाएं सम्मिलित हैं!
तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1

  1. लोक नृत्य (Folk Dance)
  2. रस्सी कूदना (Skipping)
  3. डम्बल्ज़ (Dumbles)
  4. पी० टी० कसरतें (Calesthenics)
  5. लेज़ियम (Lezium)
  6. टिपरी (Tipri)

तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लोक नृत्य के नाम लिखें।
उत्तर-
लोक नृत्य
(Folk Dances)
लोक नृत्यों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—
1. प्रादेशिक लोक नृत्य (Regional Folk Dances)-जैसे—

  1. गुजराती टिपरी नृत्य गुजरात
  2. महाराष्ट्र का मछुआ नृत्य
  3. राजस्थानी नृत्य पकी फसल की कटाई पर किया जाता है।
  4. कुम्भी
  5. तमिल का कोलाहम नृत्य
  6. बंगाल देश का प्रशंसा नृत्य
  7. पंजाब का भंगड़ा और गिद्दा ।

2. पश्चिमी लोक नृत्य (Western Folk Dances)

  1. कुछ कदम (Few steps) जैसे—
    • Do sido
    • Heal Toe-steps
    • हाप (Hop)
    • पोलका (Polka)
    • स्लाइड इत्यादि (Slide)
  2. कुछ नृत्य (Few Dances) जैसे—
    • जेसीया पोलका (Jessia Polka)
    • नयोम (Nayim)
    • मिकोल ओराडिया (Mechol Oradya)
    • शू-मेकर (Shoemaker)
    • वे-डेविड नृत्य (Ve-David Dance)।

तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
लेज़ियम क्या है ?
उत्तर-
लेज़ियम (Lezium)—इसमें 15″ से 18″ लकड़ी का एक लम्बा हैंडल होता है जिसके हाथ लोहे की चेन लगी होती है जो लकड़ी के दोनों सिरों से जुड़ी होती है। बीच में 15″ की छड़ होती है जिसको पकड़ कर लेज़ियम से तालयुक्त झंकार व ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है। इसका भार लगभग एक किलोग्राम होता है।
लेजियम का भारतवर्ष के ग्रामीण क्षेत्र में प्रयोग तालयुक्त क्रिया के लिए किया जाता है। इसके साथ ढोल पर ताल दी जाती है। स्कूलों के बच्चे इसमें बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। इसलिए लेज़ियम से बच्चों का मनोरंजन बहुत अधिक होता है। शारीरिक व्यायाम के रूप में भी लेज़ियम का बहुत महत्त्व है क्योंकि इसमें भाग लेने वालों को काफ़ी व्यायाम करना पड़ता है।

प्रश्न
लेज़ियम की मूलभूत अवस्थाएं लिखो।
उत्तर-
मूलभूत अवस्थाएं
(Fundamental Positions)

  1. लेज़ियम स्कन्ध
  2. पवित्र
  3. आराम
  4. होशियार
  5. चार आवाज़
    तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
    लेजियम
  6. एक जगह
  7. आधी लगाओ
  8. आरम्भिक अवस्था पवित्र
  9. दो रुख
  10. आगे फलाग
  11. पीछे फलाग
  12. (12) आगे को झुकना।

तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
निम्नलिखित पर नोट लिखो—
(क) डम्बल
(ख) टिपरी
(ग) रस्सी कूदना।
उत्तर-डम्बल (Dumble)—यह दो तरह के होते हैं-लोहे के तथा लकड़ी के। इसमें एक हैंडल होता है। इसके दोनों सिरे गोल और मोटे होते हैं। हैंडल से पकड़ कर दोनों सिरों को टकराया जाता है जिससे काफ़ी ऊंची आवाज़ पैदा होती है। इसमें पहली अवस्था, दूसरी अवस्था, तीसरी अवस्था और चौथी अवस्था की जाती है।
तालमयी क्रियाएँ (Rhythmic Activities) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
डम्बल
टिपरी (Tipri) यह 15 से 18 इंच लम्बाई का लकड़ी का डंडा होता है। इसकी मोटाई 20 से 25 सैं० मी० होती है। इसका भार 100 ग्राम होता है। इसको दोनों हाथों में पकड़कर संगीत की धुनों पर टकराया और नाचा जाता है।
रस्सी कूदना (Skipping)—सूत की तीन मीटर लम्बी रस्सी होती है। उसकी मोटाई 20 मि० मी० तक हो सकती है। इसको दोनों हाथों में पकड़कर या अलग-अलग सिरे से पकड़कर घुमाया जाता है और ज़मीन से टकराया जाता है। उसी समय इस को कूदा जाता है।

  1. एक आदमी एक रस्सी को पकड़कर आगे पीछे कूदना,
  2. साथी के साथ रस्सी कूदना,
  3. स्टंट करना,
  4. रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर कूदना,
  5. अन्दर जाना, बाहर आना,
  6. एक पैर पर रस्सी कूदना।
  7. स्कैट पुजीशन में रस्सी कूदना।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह की परिभाषा लिखो। दबाव समूहों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।। (Define Pressure Groups and explain its main characteristics.)
अथवा
“प्रभावक’ गुटों को परिभाषित कीजिए और उनकी विशेषताओं की चर्चा करें।। (Define Prssure Groups and discuss their characteristics.)

उत्तर-
वर्तमान राजनीतिक युग की महत्त्वपूर्ण देन दबाव समूहों (Pressure Groups) का विकास है जो आजकल सभी लोकतन्त्रीय देशों में पाए जाते हैं। कार्ल जे० फ्रेडरिक ने दबाव समूहों को “दल के पीछे सकिय जन” (“The living Public behind the Parties”) कहा है। पहले इन समूहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें एक बुरी शक्ति माना जाता था जो लोकतन्त्र की जड़ों पर प्रहार करती है, किन्तु अब स्थिति बदल गई है। अब उन्हें आवश्यक बुराई के रूप में राजनीतिक क्रियाशीलता के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है। राजनीतिक क्षेत्र में नीति निर्धारण और प्रशासन में दिन-प्रतिदिन इनके बढ़ते हुए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव के कारण विश्व के सभी देशों में इनका अध्ययन किया जा रहा है।

दबाव समूह का अभिप्राय (Meaning of Pressure Groups)—साधारण भाषा में दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। ये राजनीतिक दल अथवा संगठन नहीं होते हैं बल्कि ये राजनीतिक दलों से भिन्न होते हैं।

1. ओडीगार्ड (Odegard) ने दबाव समूह का अर्थ बताते हुए कहा है, “एक दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिनके एक अथवा अनेक सामान्य उद्देश्य और स्वार्थ हैं और जो घटनाओं के क्रम में विशेष रूप में सार्वजनिक नीति के निर्माण और शासन को इस प्रकार प्रभावित करने का प्रयत्न करे कि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके।

2. सी० एच० ढिल्लों (C. H. Dhillon) के अनुसार, “हित समूह ऐसे व्यक्तिों का समूह है जिनके उद्देश्य समान होते हैं। जब हित समूह अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की सहायता चाहने लगते हैं, तब इन्हें दबाव समूह कहा जाता है।” (“An Interest Group is an association of people having a mutual concern. They become in turn a pressure group as they seek government aid in accomplishing what is advantageous of them.”)

3. मैनर वीनर (Myron Weiner) के अनुसार, “दबाव अथवा हित समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे किसी ऐच्छिक रूप से संगठित समूह से होता है जो सरकार के संगठन से बाहर रह कर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकार की नीति, इसका प्रशासन तथा इसके निर्णय को प्रभावित करने का यत्न करता है।”

4. एन० सी० हण्ट (N. C. Hunt) के अनुसार, “दबाव समूह ऐसा संगठन है जो सार्वजनिक पद की ज़िम्मेदारी स्वीकार किए बिना सरकार की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है।” : “A pressure group is an organisation which seeks to influence governmental policies without at the same time being willing to accept the responsibility of public office.”)

5. वी० ओ० की (V.O. Key) के अनुसार, “हित समूह ऐसे असार्वजनिक संगठन (Private Associations) है जिनका निर्माण सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। यह उम्मीदवारों के उत्तरदायित्व की अपेक्षा सरकार को प्रभावित करने का प्रयत्न करके अपने हित साधन में लगे रहते हैं।”

इन परिभाषाओं में संगठन शब्द पर बल दिया गया है, जिससे ये परिभाषाएं सीमित हो गई हैं क्योंकि इन परिभाषाओं के आधार पर उन्हीं समूहों को हित समूह स्वीकार किया जा सकता है जिनका औपचारिक संगठन हो। अतः जिन समूहों का औपचारिक संगठन नहीं है उन्हें हित समूहों में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। आर्थर बेण्टले (Arthur Bentley) का विचार है कि हित समूह की परिभाषा संगठन के आधार पर न करके, क्रिया के आधार पर की जानी चाहिए। उसके अनुसार, “समूह समाज के लोगों का कोई एक भाग है, जिसे किसी ऐसे भौतिक पुंज के रूप में नहीं जोकि व्यक्तियों के अन्य पुंजों से पृथक् हो (Not as a physical mass cut off from other masses of men) बल्कि सामूहिक क्रिया के रूप में (As a mass activity) माना गया है जो कि अपने में भाग लेने वाले व्यक्तियों पर इसी प्रकार की अन्य सामूहिक क्रियाओं में भाग लेने पर कोई रुकावट उत्पन्न नहीं करता।”

दबाव समूह की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि दबाव समूह राजनीतिक दलों की भान्ति किसी कार्यक्रम के आधार पर निर्वाचकों को प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि वे किन्हीं विशेष हितों से सम्बन्धित होते हैं। वे राजनीतिक संगठन नहीं होते हैं और न ही चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। वे तो अपने समूह विशेष के लिए सरकारी नीति और सरकारी ढांचे को प्रभावित करते हैं, राजनीतिक दल न होते हुए भी दलों के समान संगठित होते हैं, जिनकी सदस्यता, उद्देश्य, संगठन, एकता, प्रतिष्ठा और साधन होते हैं। इन समूहों का निर्माण विशेष हितों के लिए होता है। वे अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। वे सरकार पर ऐसी किसी नीति को न अपनाने के लिए जो उनके हितों के प्रतिकूल हो समाचार-पत्र, पुस्तकों, रेडियो तथा सार्वजनिक सम्बन्ध आदि माध्यमों द्वारा प्रभाव डालते हैं।

दबाव समूहों के लक्षण विशेषताएँ अथवा प्रकृति (CHARACTERISTICS OR NATURE OF PRESSURE GROUPS)-

दबाव समूहों की विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट पता चलता है कि ये न तो हित समूहों की भान्ति पूर्ण रूप से अराजनीतिक होते हैं और न ही राजनीतिक दलों की भान्ति पूर्णतः राजनीतिक होते हैं। दबाव समूह के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

1. औपचारिक संगठन (Formal Organisation)-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि वह औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं। व्यक्तियों के इस समूह को बिना संगठन के दबाव समूह नहीं कहा जा सकता। दबाव समूह के लिए औपचारिक संगठन का होना अनिवार्य है। दबाव समूह का अपना संविधान, अपने उद्देश्य और अपने पदाधिकारी होते हैं। हो सकता है कि कोई समूह बिना औपचारिक संगठन के बहुत प्रभावशाली हो, परन्तु ऐसे समूह को दबाव समूह के स्थान पर शक्ति गुट (Power Group) कहना अधिक उचित होता है।

2. विशेष स्व-हित (Special Self-interest)-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि दबाव समूहों के सामान्य उद्देश्य नहीं होते हैं। अनेक दबाव समूह विशेष कर पेशेवर समूह सामान्य हित का ही लक्ष्य रखते हैं, परन्तु फिर भी इस बात में सच्चाई है कि विशेष स्वहित विभिन्न व्यक्तियों को एक समूह में बांध कर रखता है। दबाव समूह की एकता का आधार ही इसके सदस्यों में एक जैसे हित का होना है। जिन व्यक्तियों के हितों की समानता होती है वे ही दबाव समूह का रूप ले लेते हैं ताकि सरकार को प्रभावित करके अपने हितों की रक्षा कर सकें।

3. ऐच्छिक सदस्यता (Voluntary Membership)-दबाव समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है। दबाव समूह का सदस्य बनना या न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति को किसी विशेष दबाव समूह का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति किसी दबाव समूह का सदस्य बनने के बाद यह महसूस करे कि उसके हित इस समूह विशेष के द्वारा पूरे नहीं होते हैं तो वह इस समूह की सदस्यता छोड़ सकता है।

4. सर्वव्यापक प्रकृति (Universal in Nature)-दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं में पाए जाते हैं। यह ठीक है कि लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में दबाव समूह अधिक पाए जाते हैं और उनकी भूमिका भी सर्वाधिकार व स्वेच्छाचारी शासन व्यवस्था की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। परन्तु सर्वाधिकारवादी व्यवस्था में भी दबाव समूह पाए जाते हैं। चीन में दबाव समूह पाए जाते हैं। अफ्रीका व लेटिन अमेरिका के अनेक स्वेच्छाधारी राज्यों में दबाव समूह पाए जाते हैं।

5. राजनीतिक क्रिया अभिमुखी (Political action Oriented)-दबाव समूह स्वयं राजनीतिक संगठन नहीं होते परन्तु ये राजनीतिक क्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ये चुनावों में प्रत्यक्ष तौर पर भाग नहीं लेते और शासन व्यवस्था से अलग रहते हैं परन्तु ये राजनीतिक दलों और राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं।

6. उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility)-दबाव समूहों की एक अन्य विशेषता यह है कि समूह सत्ता का लाभ तो उठाते हैं परन्तु उत्तरदायित्व का वहन नहीं करते। दबाव समूह सत्तारूढ़ दल पर दबाव डालते हैं ताकि नीतियों का निर्माण उनके पक्ष में हो। परन्तु दबाव समूह किसी भी कार्य के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होते।

7. अमान्य संवैधानिक संगठन (Extra Constitutional Bodies) ‘दबाव समूहों को संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं होती क्योंकि इनका वर्णन संविधान में नहीं किया गया होता। परन्तु दबाव समूह देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शासन को प्रभावित करते हैं।

8. राजनीतिक सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य नहीं (Aim is not to acquire Political Power)-दबाव समूहों का उद्देश्य राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं होता अर्थात् इनका उद्देश्य सरकार बनाना नहीं होता। इनका उद्देश्य अपने हितों की रक्षा करना होता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 2.
दबाव समूहों से आपका क्या अभिप्राय है? लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों की व्याख्या कीजिए।
(What do you understand by Pressure Groups. Discuss the various functions of Pressure Groups which they perform in a Democratic Political System.)
उत्तर-
दबाव समूह की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न संख्या नं० 1 देखो।
दबाव समूह के कार्य-दबाव समूहों के कार्यों की स्थाई सूची तैयार करना कठिन कार्य है, क्योंकि विभिन्न दबाव समूहों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूह भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं और अलग-अलग भूमिका निम्न हैं। इसके अतिरिक्त दबाव समूहों के कार्य देश की शासन प्रणाली और परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। दबाव समूह मुख्य निम्नलिखित कार्य करते हैं-

1. सदस्यों के हितों की रक्षा करना (Protection of the Interests of Members)-दबाव समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना तथा विकास करना है। दबाव समूहों की स्थापना वास्तव में किसी विशेष हित की पूर्ति के लिए की जाती है और अपने हितों की रक्षा के लिए व्यक्ति दबाव समूहों के सदस्य बनते हैं। अतः सदस्यों के हितों की रक्षा करना दबाव समूहों का प्रथम कर्तव्य है। उदाहरणस्वरूप विद्यार्थी संघ का प्रथम कार्य विद्यार्थियों के हितों की रक्षा करना है। सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूहों द्वारा भिन्न-भिन्न साधन अपनाए जाते हैं।

2. सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को प्रभावित करना (To Influence the making of Public Policies and Laws) सरकार की नीतियां और कानून सभी को प्रभावित करते हैं। दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों और कानूनों के हितों को प्रभावित करते हैं ताकि ऐसी नीतियों और कानूनों का निर्माण हो, जो उनके हितों के अनुकूल हों और उनके हितों को बढ़ावा दे। यद्यपि दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों के निर्माण एवं कानून के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेते तथापि वे प्रार्थना-पत्र में सरकारी शिष्टमण्डल भेजकर, सार्वजनिक सभाओं द्वारा, वार्ता द्वारा, प्रदर्शनों इत्यादि द्वारा कानून निर्माण और नीति-निर्माण को प्रभावित करते हैं।

3. अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना (To establish Contact with Bureaucracy)-दबाव समूहों के महत्त्वपूर्ण कार्य सरकारी अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना होता है। निकट के सम्पर्कों से ही दबाव समूहों को सरकारी नीतियों का पता चलता है और वे उन नीतियों को अपने अनुकूल बनाने के लिए प्रयास करते हैं। दबाव समूह अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए अधिकारियों, मन्त्रियों और विधायकों के रिश्तेदारों को अपने व्यवसाय में नौकरियां प्रदान करते हैं और सरकारी द्वारा अपने काम करवाते हैं।

4. चुनाव के समय उम्मीदवारों की सहायता करना (To help the Candidates at the time of Election)प्रभावित दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिनसे उनको उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर या सरकार में जाकर उनके हितों की सुरक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं ताकि बाद में वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।

5. प्रचार तथा प्रसार के साधन (Propaganda and Means of Communication)-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जनता में अपने पक्ष के लिए सद्भावना पैदा करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए, दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार व प्रसार के साधन अपनाते हैं। प्रचार व प्रसार के लिए रेडियो, प्रेस, टेलीविज़न व सार्वजनिक सम्बन्धों के विशेषज्ञों की सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। जनमत को अपने पक्ष में उभार कर दबाव समूह कई बार आन्दोलन पैदा कर देते हैं, प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं तथा इस प्रकार के उद्दण्ड व्यवहार प्रशासन व्यवस्था में भारी दबाव डालते हैं। यदि भिन्न-भिन्न दबाव समूह भिन्न-भिन्न और विपरीत दिशाओं में प्रचार अभियान चलाते रहें तो प्रशासन कार्य बहुत कठिन व जटिल हो जाए।

6. आंकड़ों का प्रकाशन-अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं। इस उपाय से वे लोकमत को अपने पक्ष में जागृत करते हुए अधिकारियों पर दबाव डालने में समर्थ होते हैं।

7. गोष्ठियां आयोजित करना-साधनयुक्त अनेक दबाव समूह विचार-विमर्श व वाद-विवाद के लिए समयसमय पर गोष्ठियों, भाषण, वार्तालाप, वार्ताओं व सेमीनारों (Seminar) आदि का आयोजन करते रहते हैं। इन आयोजनों में प्रशासकों व विधायकों इत्यादि को आमन्त्रित किया जाता है। इन गोष्ठियों के द्वारा वस्तुतः दबाव समूह जनता व सरकार के समक्ष अपना प्रभाव प्रस्तुत करते हैं।

8. विधान सभाओं की लॉबियों में सक्रिय भाग लेना-लॉबिंग (Lobbying) का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान का निर्माण करें, जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवातें हैं ताकि ये वकील विधायकों को तार्किक ढंग से अनुभव करवाएं कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में हैं अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर अथवा बदनामी का भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

9. जनमत को प्रभावित करना (Influencing the Public Opinion)—दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने में जनमत को प्रभावित करना आवश्यक समझते हैं। अतः ये समूह जनता को अपने पक्ष में करने के लिए जनमत से सम्पर्क बनाए रखते हैं। ये समूह अपने समाचार-पत्रों, सार्वजनिक सम्मेलनों तथा प्रचार के अन्य साधनों द्वारा जनमत को अपने विचारों के अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ये समूह जानते हैं कि लोकतन्त्र में जनमत ही सब कुछ है।

10. राजनीतिक दलों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना (To establish relations with Political Parties)दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं। दबाव समूह राजनीतिक दलों से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए राजनीतिक दलों को धन देते हैं, चुनाव के समय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं और उनके पक्ष में मतदान करवाते हैं। बड़े-बड़े दबाव समूह राजनीतिक दलों के माध्यम से अपने उम्मीदवार चुनाव में खड़े करते हैं। दबाव समूह राजनीतिक दलों से यह उम्मीद रखते हैं कि वे उनके हितों की रक्षा में उनकी सहायता करें।

11. सलाहकारी कार्य (Advisory Functions)-कई देशों में दबाव समूह अपने व्यवसायों से सम्बन्धित नीतिनिर्माण के कार्य में सरकार को सलाह देते हैं। सरकार का सम्बन्धित विभाग जब नीति-निर्माण करता है तो विभाग से सम्बन्धित दबाव समूहों से सूचना प्राप्त करता है तथा उनसे विचार-विमर्श करता है। इंग्लैण्ड में दबाव समूहों के प्रतिनिधियों को जांचकारी समितियों और सरकारी आयोगों के सामने बुलाया जाता है ताकि विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों को जाना जा सके।

12. संसदीय समितियों के सम्मुख उपस्थित होना (To appear befoer Parliamentary Committees)लोकतन्त्रीय राज्यों में कानून निर्माण के कार्य में बिल या विधेयक संसदीय समिति के पास अवश्य भेजा जाता है। जब संसदीय समिति बिल पर विचार करती है तो सम्बन्धित पक्षों के विचारों को सुनती है। दबाव समूहों के प्रतिनिधि कई बार संसदीय समिति के सामने पेश होते हैं और बिल को प्रभावित करने वाले विचार प्रकट करते हैं। इस प्रकार दबाव समूह कानून प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

13. न्यायपालिका की शरण (Shelter of Judiciary)-कई बार दबाव समूह विधान-मण्डल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून रद्द करवाने के लिए या कार्यपालिका द्वारा निर्मित किसी ऐसी नीति को अवैध घोषित करवाने के लिए जिनसे उसके किसी हित को आघात पहुंचता है न्यायपालिका की शरण भी लेते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवीपर्स कानूनों के विरुद्ध इन समूहों ने न्यायपालिका के पास अपील की है।
निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि दबाव समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के भरसक प्रयत्न करते हैं। विशेष कर व्यापारिक संगठनों का सरकार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल को चुनाव में धन की आवश्यकता होती है जो मुख्यतः इन दबाव समूहों द्वारा ही दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 3.
दबाव समूहों की कार्यविधि के तरीकों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the methods of the Working of Pressure Groups.)
अथवा
दबाव समूहों की कार्य प्रणाली के ढंगों का वर्णन कीजिए। (Describe the methods of the working of Pressure Groups.)
उत्तर-
दबाव समूहों की कार्यविधि के ढंग-प्रत्येक दबाव समूह का लक्ष्य होता है और अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए दबाव समूह अनेक साधनों को अपनाते हैं। दबाव समूह मुख्यत: जिन साधनों या तकनीकों को राजनीतिक व्यवहार में अपनाते हैं वे इस प्रकार हैं

1. चुनाव (Election)–दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं। प्रभावशाली दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिन से उनको यह उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर या सरकार में जाकर उनके हितों की सुरक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं ताकि बाद में वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।

2. प्रार्थना-पत्र भेजना (To Send Petitions)-दबाव समूह को इस बात का पता होता है कि किस अधिकारी या मन्त्री या संस्था पर दबाव डाल कर अपने हितों की रक्षा की जा सकती है। इसलिए दबाव समूह समय-समय पर उन अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं। प्रार्थना-पत्र में दबाव.समूहों की मांगों का उल्लेख होता है। कई बार दबाव समूह मांगों के समर्थन में अपने सभी सदस्यों से तारें, पत्र इत्यादि भिजवाते हैं। इस प्रकार हज़ारों तारें, पत्र इत्यादि सम्बन्धित अधिकारी के पास पहुंच जाते हैं और अधिकारी निर्णय लेते समय इन तारों आदि से अवश्य प्रभावित होते हैं।

3. प्रचार तथा प्रसार के साधन (Propaganda and Means of Communication)-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जनता को अपने पक्ष में करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार व प्रसार के साधन अपनाते हैं। प्रचार व प्रसार के लिए रेडियो, प्रेस, टेलीविज़न व सार्वजनिक सम्बन्धों के विशेषज्ञों की सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। जनमत को अपने पक्ष में उभार कर दबाव समूह कई बार आन्दोलन पैदा कर देते हैं, प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं तथा इस प्रकार के उद्दण्ड व्यवहार प्रशासन व्यवस्था में भारी दबाव डालते हैं। यदि भिन्न-भिन्न दबाव समूह भिन्न-भिन्न और विपरीत दिशाओं में प्रचार अभियान चलाते रहें तो प्रशासन कार्य बहुत कठिन व जटिल हो जाए।

4. आंकड़ा प्रकाशन-अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं। इस उपाय से वे लोकमत को अपने पक्ष में जागृत करते हुए अधिकारियों पर दबाव डालने में समर्थ होते हैं।

5. गोष्ठियां आयोजित करना-साधन युक्त अनेक दबाव समूह विचार-विमर्श व वाद-विवाद के लिए समयसमय पर गोष्ठियों, भाषण, वार्तालाप, वार्ताओं व सेमीनारों (Seminars) आदि का आयोजन करते रहते हैं। इन आयोजनों में प्रशंसकों व विधायकों इत्यादि को आमन्त्रित किया जाता है। इन गोष्ठियों के द्वारा वस्तुतः दबाव समूह जनता व सरकार के समक्ष अपना प्रभाव प्रस्तुत करते हैं।

6. विधान-सभाओं की लॉबियों में सक्रिय भाग लेना-लॉबिइंग (Lobbing) का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान का निर्माण करे, जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवाते हैं ताकि ये वकील विधायकों को तार्किक ढंग से अनुभव करवायें कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में है अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर या उन्हें बदनामी का भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

7. रिश्वत, बेईमानी, बदनामी तथा अन्य उपाय-अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूह रिश्वत, घूस व अन्य अनुचित ढंग को अपनाने से भी हिचकिचाते नहीं हैं। बेईमानी व बदनामी के उपकरणों द्वारा वे स्वार्थ सिद्ध करते हैं। प्रत्येक राष्ट्र में ये दबाव समूह सक्रिय रूप से गतिशील रहते हैं, परन्तु व्यावसायिक दबाव समूह धन खर्च करके आधुनिक उपायों के प्रयोग में अन्य दबाव समूहों की तुलना में आगे बढ़ कर रहते हैं।

8. जनमत को अपने पक्ष में करना (To win Public Opinion on their side)-दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने के लिए जनमत को अपने पक्ष में करना आवश्यक समझते हैं। अतः ये समूह जनता को अपने पक्ष में करने के लिए जनता से सम्पर्क बनाए रखते हैं। ये समूह अपने समाचार-पत्रों, सार्वजनिक सम्मेलनों तथा प्रचार के अन्य साधनों द्वारा जनमत को अपने विचारों के अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ये समूह जानते हैं कि लोकतन्त्र में जनमत ही सब कुछ है। ,

9. हड़ताल, बन्द और प्रदर्शन (Strike, Bandh and Demonstration)-दबाव समूह कई बार अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हड़ताल, बन्द, घेराव और प्रदर्शन का भी सहारा लेते हैं। हड़ताल और प्रदर्शन का प्रयोग तो राष्ट्रीय आन्दोलन के हितों में किया जाता था, परन्तु घेराव और बन्द का प्रयोग स्वतन्त्रता के पश्चात् किया जाने लगा है। इन साधनों द्वारा दबाव समूह एक तो असन्तोष उत्पन्न करना चाहते हैं और दूसरा जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। इन साधनों का कई बार सरकार पर बड़ा प्रभाव पड़ता है और इन समूहों की बात मान ली जाती है।

10. उच्च पद देकर (By giving high jobs)-बड़े-बड़े व्यापारी और उद्योगपति जैसे टाटा, बिरला, डालमिया, मोदी आदि ने शिक्षा संस्थाएं, अस्पताल और अन्य सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाएं स्थापित कर रखी हैं। मन्त्रियों, विधायकों तथा उच्च सरकारी अधिकारियों के बच्चे तथा रिश्तेदार इन समूहों में काम करते हैं। कई बार सरकारी कर्मचारियों को यह लालच भी दिया जाता है कि उन्हें रिटायर होने के पश्चात् नियुक्त कर लिया जाएगा। इस लालच का काफ़ी प्रभाव पड़ता है।

11. भूख हड़ताल या मरण व्रत (Hunger Strikes or Fast upto Death)-दबाव समूह अपनी मांगें मनवाने के लिए कई बार भूख हड़ताल या मरण व्रत का भी सहारा लेते हैं। भारत में दबाव समूहों के लिए भूख हड़ताल करना या मरण व्रत रखना महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली साधन है।

12. संसदीय समितियों के सामने पेश होना (To appear before Parliamentary Commitees)संसदीय समितियां कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। दबाव समूहों के प्रतिनिधि संसदीय समितियों के सामने प्रस्तुत होते हैं और उन्हें प्रभावित करके अपने हितों की रक्षा करते हैं।

13. न्यायपालिका की शरण (Shelter of Judiciary) कई बार दबाव समूह विधानमण्डल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून को रद्द करवाने के लिए या कार्यपालिका द्वारा निर्मित किसी ऐसी नीति को अवैध घोषित करवाने के लिए जिनसे उनके किसी हित पर आघात पहुंचता है, न्यायपालिका की शरण भी लेते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवीपों के कानूनों के विरुद्ध इन समूहों ने न्यायपालिका के पास अपील की थी।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि दबाव समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने में भरसक प्रयत्न करते हैं और विशेषकर व्यापारिक संगठनों का सरकार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल को चुनाव में धन की आवश्यकता होती है जो मुख्यतः इन दबाव समूहों द्वारा ही दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साधारण भाषा में दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों तथा शासन को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। दबाव समूह लोगों का औपचारिक संगठन है। दबाव समूह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। वे सरकार पर किसी ऐसी नीति को न अपनाने के लिए जो उनके हितों के प्रतिकूल हो, प्रचार के साधनों, सार्वजनिक सम्बन्धों, टेलीविज़न तथा प्रेस द्वारा प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 2.
दबाव समूहों की कोई दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • सी० एच० ढिल्लों के अनुसार, “हित समूह ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनके उद्देश्य समान होते हैं। जब हित समूह अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की सहायता चाहने लगते हैं, तब उन्हें दबाव समूह कहा जाता है।”
  • मैनर वीनर के अनुसार, “दबाव समूह अथवा हित समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे किसी ऐच्छिक रूप से संगठित समूह से होता है जो सरकार के संगठन से बाहर रहकर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकार की नीति, इसका प्रशासन तथा इसके निर्णय को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है।”

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प्रश्न 3.
दबाव समूह की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
दबाव समूह के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • औपचारिक संगठन-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि ये औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं । व्यक्तियों के समूह को बिना संगठन के दबाव समूह नहीं कहा जा सकता। दबाव समूह के लिए औपचारिक संगठन का होना अनिवार्य है। दबाव समूह का अपना संविधान, अपने उद्देश्य और अपने पदाधिकारी होते हैं।
  • विशेष स्व-हित-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होती है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि दबाव समूहों के सामान्य उद्देश्य नहीं होते हैं। अनेक दबाव समूह विशेषकर पेशेवर दबाव समूह सामान्य हित का ही लक्ष्य रखते हैं, फिर भी इस बात में सच्चाई है कि विशेष स्व-हित विभिन्न व्यक्तियों को एक समूह में बांध कर रखता है। दबाव समूह की एकता का आधार ही इसके सदस्यों में एक से हित का होना है।
  • ऐच्छिक सदस्यता-दबाव समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है। दबाव समूह का सदस्य बनना या न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति को किसी विशेष दबाव समूह का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में पाए जाते हैं।

प्रश्न 4.
दबाव समूहों की कार्यविधि के कोई चार ढंग लिखो।
अथवा
दबाव समूहों की कार्यविधि के कोई चार तरीके लिखो।
अथवा
दबाव समूहों की कार्य प्रणाली के चार ढंगों (तरीकों) का वर्णन करें।
उत्तर-
दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुख्यतः निम्नलिखित साधनों को अपनाते हैं

  • चुनाव-दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं। प्रभावशाली दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिनसे उनको यह उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर उनके हितों की रक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते है ताकि बाद वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।
  • प्रार्थना-पत्र भेजना-इसलिए दबाव समूह समय-समय पर उन अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं। प्रार्थना-पत्रों में दबाव समूहों की मांगों का उल्लेख होता है। कई बार दबाव में समूह मांगों के समर्थन में अपने सभी सदस्यों से तारें, पत्र इत्यादि भिजवाते हैं।
  • प्रचार तथा प्रसार के साधन-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जनता में अपने पक्ष के लिए सद्भावना की भावना पैदा करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार तथा प्रसार के साधन अपनाते हैं।
  • अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं।

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प्रश्न 5.
हित समूहों और दबाव समूहों में अन्तर लिखो।
अथवा
दबाव समूह और हित समूह में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
हित समूह और दबाव समूह समान प्रकृति और प्रवृत्ति के होते हुए भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • दोनों में पहला अन्तर कार्य-विधि का है। हित समूह अपने हितों की वृद्धि या रक्षा के लिए मुख्यतः अनुनयनी साधनों का प्रयोग करते हैं जबकि दबाव समूह दबाव डालने की तकनीकों का सहारा लेते हैं।
  • हित समूह अपने हितों की रक्षा के लिए शासन क्रिया को प्रभावित करने का लक्ष्य नहीं रखते परन्तु दबाव समूह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते हैं। हित समूह अन्य हित समूहों या सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते हैं।
  • हित समूह तथा दबाव समूह में तीसरा अन्तर प्रकृति का है। हित समूह का प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सम्बन्ध नहीं होता जबकि दबाव समूह का राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 6.
दबाव समूह की कोई चार किस्में लिखिए।
उत्तर-
वर्तमान समय में कई तरह के दबाव समूह पाए जाते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं

  • विशेष हित समूह-जिन लोगों के हितों में समानता नहीं होती है वे अपने विशेष हितों की रक्षा के लिए आपस में मल कर दबाव समूहों का गठन कर लेते हैं। ऐसे दबाव समूह विशेष हित समूह कहलाते हैं। इनमें श्रमिक संघ, किसान संगठन आदि शामिल हैं। ‘
  • साम्प्रदायिक हित समूह-ऐसे हित समूह किसी विशेष समुदाय या धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए बनाए जाते हैं जैसे कि रिपब्लिकन दल, हिन्दू महासभा और अकाली दल।
  • सरकारी कर्मचारियों के समह-सरकारी कर्मचारियों ने अपने हितों की रक्षा के लिए अनेक संघों की स्थापना की हुई है। इनमें रेलवे कर्मचारी संघ, डाक-तार कर्मचारी संघ आदि शामिल हैं।
  • साहचर्य हित समूह-ये हित समूह विशेष व्यक्तियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए औपचारिक रूप से संगठित होते हैं, जैसे श्रमिक संगठन एवं व्यापारिक संगठन।

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प्रश्न 7.
दबाव समूहों के चार गुणों अथवा लाभों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • दबाव समूह का पहला लाभ यह है कि वे अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जनता में अपना साहित्य वितरित करके जनमत को शिक्षित करते हैं।
  • इन दबाव समूहों के पास अपने नेता होते हैं जो विभिन्न तथ्यों को एकत्र करने के बाद जनता के सामने पेश करते
  • दबाव समूहों के अपने संगठन होते हैं जो कई तरह की लाभकारी सूचनाओं व आंकड़ों को एकत्र करते हैं। (4) कुछ दबाव समूह सामाजिक बुराइयों को दूर करने में प्रयासरत रहते हैं।

प्रश्न 8.
दबाव समूह के कोई चार अवगुण लिखो।
उत्तर-

  • इन दबाव समूहों के आपसी विरोध के कारण सामान्य हितों को हानि पहुंचने की सम्भावना होती है।
  • इन दबाव समूहों में कुछ शक्तिशाली तथा अच्छी प्रकार से संगठित होते हैं तथा उनकी सदस्य संख्या भी अधिक होती है जबकि कुछ दबाव समूह छोटे होते हैं तथा इनके पास अधिक पास अधिक धन भी नहीं होता है। इस कारण बड़े शक्तिशाली दबाव समूह सरकार से अपनी बात मनवाने में सफल हो जाते हैं।
  • कई बार व्यक्ति किसी दबाव समूह में शामिल नहीं होते हैं जिस कारण उनके हितों की उपेक्षा होती रहती है। (4) दबाव समूह राष्ट्रीय विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं। .

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प्रश्न 9.
दबाव समूह और राजनीतिक दलों के बीच कोई चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक दल और दबाव समूह में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • संगठन के स्वरूप में अन्तर-राजनीतिक दल एक राजनीतिक संगठन होता है जो समाज के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है, परन्तु दबाव समूह कोई राजनीतिक संगठन नहीं है। वह किसी विशेष अथवा कुछ समान उद्देश्यों को लेकर चलता है।
  • कार्यक्रम में अन्तर-राजनीतिक दलों का एक राजनीतिक कार्यक्रम होता है। जिसके आधार पर राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु दबाव समूहों का कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं होता है। इस कारण कार्य क्षेत्र विशिष्ट और संकीर्ण होता है।
  • व्यापक एवं संकुचित संगठन-राजनीतिक दल विस्तृत एवं व्यापक संगठन होता है जिसका उद्देश्य देश के सभी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना होता है। इसके विपरीत दबाव समूह एक छोटा संगठन होता है जिसे जनता के एक विशेष वर्ग का समर्थन प्राप्त होता है।
  • राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेते हैं, जबकि दबाव समूह चुनावों में भाग नहीं लेते।

प्रश्न 10.
दबाव समूहों के कोई चार कार्य लिखो।
उत्तर-
दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कई तरह के कार्य करते हैं। दबाव समूह मुख्यत: निम्नलिखित कार्य करते हैं-

  • सदस्यों के हितों की रक्षा करना-दबाव समूहों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना तथा विकास करना है। अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूहों द्वारा भिन्न-भिन्न साधन अपनाए जाते हैं।
  • सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों को प्रभावित करना-दबाव समूह सरकार की नीतियों तथा कानूनों को प्रभावित करते हैं । वे नीतियों और कानूनों के निर्माण को प्रभावित करते हैं ताकि ऐसी नीतियों और कानूनों का निर्माण हो, जो उनके हितों के अनुकूल हों और उन्हें बढ़ावा दें।
  • अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना-दबाव समूहों का एक महत्त्वपूर्ण कार्य अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना है। निकट सम्पर्क से ही दबाव समूह को सरकार की नीतियों का पता चलता है और वे उन नीतियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं।
  • दबाव समूह चुनावों के समय उम्मीदवारों की सहायता करते हैं, ताकि सफल होकर वे दबाव समूहों के हितों की पूर्ति कर सकें।

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प्रश्न 11.
हित समूह से क्या भाव है ?
अथवा
हित समूह से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समाज में अनेक वर्ग पाए जाते हैं और उन वर्गों के अलग-अलग हित हैं। उदाहरण के लिए समाज में श्रमिक, किसान, विद्यार्थी, अध्यापक, भूमिपति, मिल मालिक, उद्योगपति आदि के विभिन्न प्रकार के हित पाए जाते हैं। जब कोई छोटा अथवा बड़ा हित संगठित रूप धारण कर लेता है, तो उसे हित समूह कहा जाता है। हित समूह के उद्देश्य अपने समाज के सदस्यों के सामाजिक आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा होता है। जब कोई हित समूह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी दबाव माध्यम से राज्य की किसी निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करता है तो वह दबाव समूह में बदल जाता है। सभी दबाव समूह हित समूह होते हैं।

प्रश्न 12.
लॉबिंग से आपका क्या भाव है ?
अथवा
लॉबिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
लॉबिंग एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग दबाव समूहों द्वारा विकसित देशों में किया जाता है। लॉबिंग का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान (कानून) का निर्माण करें जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। दबाव समूहों के सदस्य सरकार को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में सहयोग और सहायता का विश्वास देकर सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवाते हैं ताकि ये वकील तार्किक ढंग से अनुभव करवाएं कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में है अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर या उन्हें बदनामी के भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

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प्रश्न 13.
दबाव समूह कानून निर्माण में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान समय में दबाव समूह सरकार की कानून निर्माण में काफ़ी सहायता करते हैं। जब संसद् की विभिन्न समितियों किसी बिल पर विचार-विमर्श कर रही होती हैं, तब से अलग-अलग दबाव समूहों को अपना पक्ष रखने के लिए कहती हैं। दबाव समूह उस बिल के कारण उन पर पड़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की बात कहते हैं। इस प्रकार अपने दृढ़ पक्ष से दाबव समूह कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसद् की विभिन्न समितियां भी इनके विचारों, तर्कों एवं आंकड़ों से महत्त्व देती हैं।

प्रश्न 14.
दबाव समूहों का सलाहकारी कार्य क्या है ?
उत्तर-
कई देशों में दबाव समूह अपने व्यवसायों से सम्बन्धित नीति-निर्माण के कार्य में सरकार को सलाह देते हैं। सरकार का सम्बन्धित विभाग जब.नीति-निर्माण करता है तो विभाग से सम्बन्धित दबाव समूहों से सूचना प्राप्त करता है तथा उनसे विचार-विमर्श करता है। इंग्लैण्ड में दबाव समूहों के प्रतिनिधियों को जांचकारी समितियों और सरकारी आयोगों के सामने बुलाया जाता है ताकि विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों को जाना जा सके।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 15.
जाति दबाव समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
भारत में अनेक जातियां पाई जाती हैं। जब कोई जाति अपने हितों की.रक्षा के लिए दबाव समूह बनाती है तब उस दबाव समूह को जाति दबाव समूह कहा जाता है। भारत में जाति दबाव समूह बड़े सक्रिय हैं और उन्होंने न केवल सरकार को ही प्रभावित किया है बल्कि वे भारतीय राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जाति दबाव समूह में प्रमुख हैं मारवाड़ी एसोसिएशन, वैश्य महासभा, जाट सभा, राजपूत तथा, ब्राह्मण सभा, रोड सभा, नादर जाति संघ (Nadar Caste Association), गुज्जर सम्मेलन इत्यादि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों तथा शासन को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। दबाव समूह लोगों का औपचारिक संगठन है। दबाव समूह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं।

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प्रश्न 2.
दबाव समूह की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. औपचारिक संगठन-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि ये औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं।
  2. विशेष स्व-हित-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होती है।

प्रश्न 3.
दबाव समूह की कार्य-विधि के कोई दो ढंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. चुनाव-दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं।
  2. प्रार्थना-पत्र भेजना-दबाव समूह को इस बात का पता होता है किस अधिकारी या मन्त्री या संस्था पर दबाव डाल कर अपने हितों की रक्षा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
दबाव समूहों की कोई दो किस्में लिखें।
उत्तर-

  • विशेष हित समूह-जिन लोगों के हितों में समानता होती है वे अपने विशेष हितों की रक्षा के लिए आपस में मिल कर दबाव समूहों का गठन कर लेते हैं। ऐसे दबाव समूह विशेष हित समूह कहलाते हैं। इनमें श्रमिक संघ, किसान संगठन आदि शामिल हैं।
  • साम्प्रदायिक हित समूह-ऐसे हित समूह किसी विशेष समुदाय या धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए बनाए जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लॉबिइंग से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लॉबिइंग एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग दबाव समूहों द्वारा विकसित देशों में किया जाता है। लॉबिइंग का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान (कानून) का निर्माण करें जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके।

प्रश्न 6.
दबाव समूहों के कोई दो कार्य बताएं।
उत्तर-

  • दबाव समूह अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करते हैं।
  • दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को प्रभावित करते हैं।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
किन्हीं दो प्रमुख व्यावसायिक दबाव समूहों के नाम बताएं।
उत्तर-
व्यावसायिक हित समूह जैसे अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ, अखिल भारतीय मेडिकल परिषद् आदि।

प्रश्न 2.
दबाव समूह का कोई एक लाभ बताएं।
उत्तर-
दबाव समूह विभिन्न वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में कितने मजदूर संघ हैं ? किन्हीं दो के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत में छ: मज़दूर संघ हैं-इनमें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस और भारतीय मजदूर संघ प्रमुख हैं।

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प्रश्न 4.
हित समूह तथा दबाव समूह में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-
हित समूह का प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सम्बन्ध नहीं होता जबकि दबाव समूह का राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो हित समूहों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अखिल भारतीय महिला सम्मेलन।
  2. भारतीय किसान यूनियन।

प्रश्न 6.
किसी एक अखिल भारतीय छात्र संगठन का नाम बताएं।
उत्तर-
(1) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सम्बन्ध किस दल से है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सम्बन्ध भारतीय जनता पार्टी से है।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता के बाद अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित किसी एक कृषक संगठन का नाम लिखिए।
उत्तर-
अखिल भारतीय किसान यूनियन।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………………. ने दबाव समूहों को दल के पीछे सक्रिय जन कहा है।
2. दबाव समूह ………….. हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों का समूह होते हैं।
3. दबाव समूह के लिए ……….. संगठन का होना अनिवार्य है।
4. दबाव समूहों में …………. का अभाव होता है।
5. दबाव समूहों का उद्देश्य …………… प्राप्त करना नहीं होता।
उत्तर-

  1. कार्ल जे० फ्रेडरिक
  2. विशेष
  3. औपचारिक
  4. उत्तरदायित्व
  5. राजनीतिक सत्ता।

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं।
2. राजनीतिक दल दबाव समूहों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं।
3. दबाव समूह समय-समय पर अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं।
4. दबाव समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए लॉबिंग का सहारा लेते हैं।
5. दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने के लिए जनमत को अपने पक्ष में करना आवश्यक नहीं समझते।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दबाव समूह अपनाते हैं-
(क) शांतिपूर्ण साधन’
(ख) केवल हिंसात्मक साधन
(ग) शांतिपूर्ण और हिंसात्मक साधन
(घ) कोई साधन नहीं अपनाते।
उत्तर-
(ग) शांतिपूर्ण और हिंसात्मक साधन

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प्रश्न 2.
दबाव समूहों के संबंध में निम्न गलत है
(क) राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा
(ख) सीमित उद्देश्य
(ग) सामान्य उद्देश्य
(घ) लॉबिंग।
उत्तर-
(क) राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी दबाव-समूह की विशेषता है-
(क) ऐच्छिक सदस्यता
(ख) सीमित उद्देश्य
(ग) औपचारिक संगठन का न होना
(घ) सत्ता प्राप्त करने का लक्ष्य ।
उत्तर-
(क) ऐच्छिक सदस्यता

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प्रश्न 4.
दबाव समूह का आधार होता है-
(क) संयुक्त संस्कृति
(ख) संयुक्त भाषा
(ग) एक धर्म
(घ) सामूहिक हित।
उत्तर-
(घ) सामूहिक हित।

प्रश्न 5.
नीचे लिखे में से कौन-सा कार्य दबाव समूह का नहीं है ?
(क) विशेष हितों की रक्षा
(ख) चुनाव लड़ना
(ग) सरकार पर दबाव डालना
(घ) सरकार को ज़रूरी जानकारी प्रदान करना।
उत्तर-
(ख) चुनाव लड़ना

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानों के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe Maharaja Ranjit Singh’s relations with the Afghans.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों के मुख्य चरणों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Give a brief account of the main stages of relations of Maharaja Ranjit Singh with Afghanistan.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानों के साथ संबंधों को चार चरणों में बाँटा जा सकता है—
(क) सिख-अफ़गान संबंधों का प्रथम चरण 1797-1812 ई०
(ख) सिख-अफ़गान संबंधों का द्वितीय चरण 1813-1834 ई०
(ग) सिख-अफ़गान संबंधों का तृतीय चरण 1834-1837 ई० (घ) सिख-अफ़गान संबंधों का चतुर्थ चरण 1838-1839 ई० ।

(क) सिख-अफ़गान संबंधों का प्रथम चरण 1797-1812 ई० (First Stage of Sikh-Afghan Relations 1797-1812 A.D)
1. रणजीत सिंह तथा शाह ज़मान (Ranjit Singh and Shah Zaman)-जब 1797 ई० में रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह ज़मान था। वह पंजाब पर अपना पैतृक स्वामित्व समझता था। इसका कारण यह था कि इस पर उसके दादा अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में अधिकार किया था। अतः शाह ज़मान ने 27 नवंबर, 1798 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। भंगी सरदार शाह ज़मान का सामना किए बिना शहर छोड़कर भाग गए। उसी समय अफ़गानिस्तान में हुए विद्रोह के कारण शाह ज़मान को काबुल जाना पड़ा। इस पर भंगी सरदारों ने जनवरी, 1799 ई० को लाहौर पर पुनः अधिकार कर लिया। रणजीत सिंह ने भंगी सरदारों को पराजित करके 7 जुलाई , 1799 ई० को लाहौर पर अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् रणजीत सिंह ने शाह ज़मान की 12 अथवा 15 तोपें जो जेहलम नदी में गिर पड़ी थीं, निकलवाकर काबुल भेजी । इस पर प्रसन्न होकर शाह ज़मान ने रणजीत सिंह द्वारा लाहौर पर किए गए अधिकार को मान्यता प्रदान कर दी।

2. अफ़गानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता (Political instability in Afghanistan)-1800 ई० में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए एक गृह युद्ध आरंभ हो गया। शाह ज़मान को सिंहासन से उतार दिया गया तथा शाह महमूद अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बना। 1803 ई० में शाह शुजा ने शाह महमूद से सिंहासन छीन लिया। वह बहुत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। इस कारण अफ़गानिस्तान में अशांति फैल गई। यह स्वर्ण अवसर देखकर अटक, कश्मीर, मुलतान व डेराजात इत्यादि के अफ़गान सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी काबुल सरदार की दुर्बलता का पूरा लाभ उठाया तथा कसूर, झंग, खुशाब तथा साहीवाल नामक अफ़गान प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

(ख) सिख-अफ़गान संबंधों का द्वितीय चरण 1813-1834 ई० (Second Stage of Sikh-Afghan Relations 1813–1834 A.D.)
1. रणजीत सिंह व फ़तह खाँ में समझौता 1813 ई० (Alliance between Ranjit Singh and Fateh Khan 1813 A.D.)-1813 ई० में अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ ने कश्मीर विजय की योजना बनाई। उसी समय पंजाब का महाराजा रणजीत सिंह भी कश्मीर को विजित करने की योजनाएँ बना रहा था। इसलिए 18 अप्रैल, 1813 ई० को रोहतासगढ़ में महाराजा रणजीत सिंह तथा फ़तह खाँ के बीच एक समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह तथा फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने 1813 ई० में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। शेरगढ़ में हुई लड़ाई में कश्मीर के शासक अत्ता मुहम्मद खाँ की पराजय हुई। इस विजय के पश्चात् फ़तह खाँ अपने वायदे से मुकर गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह को न तो कश्मीर का कोई प्रदेश दिया तथा न ही लूट के माल में से कोई भाग।

2. अटक पर अधिकार 1813 ई० (Occupation of Attock 1813 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ द्वारा किए गए कपट के कारण उसे पाठ पढ़ाने का निर्णय किया । उसकी कूटनीति के फलस्वरूप अटक के शासक जहाँदद खाँ ने एक लाख रुपये की जागीर के स्थान पर अटक का क्षेत्र महाराजा के सुपुर्द कर दिया। जब फ़तह खाँ को इसके संबंध में ज्ञात हुआ तो वह अटक में से सिखों को निकालने के लिए चल दिया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ को एक कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों एवं सिखों के मध्य लड़ी गई प्रथम लड़ाई थी। इसमें सिखों की विजय के कारण सिखों के मान-सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

3. कश्मीर की विजय 1819 ई० (Conquest of Kashmir 1819 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर को विजित करने की योजना बनाई। मुलतान के विजयी मिसर दीवान चंद के अधीन एक विशाल सेना कश्मीर की ओर भेजी गई। यह सेना कश्मीर के शासक ज़बर खाँ को पराजित करने तथा कश्मीर पर अधिकार करने में सफल रही। इस महत्त्वपूर्ण विजय के कारण अफ़गान शक्ति को एक और कड़ी चोट लगी।

4. नौशहरा की लड़ाई 1823 ई० (Battle of Naushera 1823 A.D.) शीघ्र ही फ़तह खाँ के भाई अज़ीम खाँ ने अयूब खाँ को अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बनाया तथा स्वयं उसका वज़ीर बन गया। अफ़गानिस्तान में फैली अराजकता का लाभ उठाकर महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 ई० में पेशावर पर आक्रमण कर दिया। पेशावर के शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। अज़ीम खाँ यह कभी सहन नहीं कर सकता था। परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी के स्थान पर दोनों सेनाओं में एक निर्णायक युद्ध हुआ। यह युद्ध बहुत भयंकर था। इस युद्ध में सिखों ने अफ़गानों को लोहे के चने चबवा दिए। डॉक्टर बी० जे० हसरत के अनुसार, “नौशहरा में सिखों की विजय ने सिंध नदी की दूसरी ओर अफ़गानों की सर्वोच्चता सदा के लिए समाप्त कर दी।”1

5. सैय्यद अहमद का विद्रोह 1827-31 ई० (Revolt of Sayyed Ahmad 1827-31 A.D.)-1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद नामक एक व्यक्ति ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किए रखा था। उसका कहना था अल्लाह ने उसे अफ़गान प्रदेशों से सिखों को निकालकर उन्हें समाप्त करने के लिए भेजा है। उसकी बातों में आकर अनेक अफ़गान सरदार उसके अनुयायी बन गए। उसे सिख सेनाओं ने पहले सैदू के स्थान पर तथा फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु वह बच निकलने में सफल रहा। आखिर 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ मारा गया। इस प्रकार सिखों की एक बड़ी सिरदर्दी दूर हुई।

6. शाह शुजा से संधि 1833 ई० (Treaty with Shah Shuja 1833 A.D.)-12 मार्च, 1833 ई० को महाराजा रणजीत सिंह तथा शाह शुज़ा के मध्य एक संधि हुई। इसके अनुसार शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा सिंधु नदी के उत्तर पश्चिम में विजित सभी प्रदेशों पर महाराजा के अधिकार को स्वीकार कर लिया। इसके बदले महाराजा रणजीत सिंह ने दोस्त मुहम्मद खाँ के विरुद्ध लड़ने के लिए शाह शुजा को सहायता दी।

7. पेशावर का लाहौर राज्य में विलय 1834 ई० (Annexation of Peshawar to Lahore Kingdom 1834 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 ई० में पेशावर को लाहौर राज्य में शामिल करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से शहज़ादा नौनिहाल सिंह, हरी सिंह नलवा तथा जनरल वेंतूरा के नेतृत्व में एक विशाल सेना पेशावर भेजी गई। 6 मई, 1834 ई० को पेशावर को सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। हरी सिंह नलवा को वहाँ का पहला गवर्नर नियुक्त किया गया।

1. “The Sikh victory at Naushera sounded the deathknell of Afghan supremacy beyond the river Indus.” Dr. B.J. Hasrat, Life and Times of Ranjit Singh (Hoshiarpur : 1977) p. 121.

(ग) सिख-अफ़गान संबंधों का तीसरा चरण 1834-37 ई० (Third Stage of Sikh-Afghan Relations 1834-37 A.D.)
1. दोस्त महम्मद खाँ द्वारा पेशावर वापिस लेने के यत्न 1835 ई०(Efforts to Recapture Peshawar by Dost Muhammad Khan 1835 A.D.)-1834 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया तो दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा। बहुसंख्या में अफ़गान कबीले उसके झंडे तले एकत्रित हो गए। उसने अपने भाई सुल्तान मुहम्मद को भी अपने साथ मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने फकीर अजीजुद्दीन तथा हरलान को बातचीत करने के लिए काबुल भेजा। इस मिशन का एक अन्य उद्देश्य दोस्त मुहम्मद खाँ तथा सुल्तान मुहम्मद खाँ में फूट डालना था। यह मिशन अपने उद्देश्यों में सफल रहा। जब दोनों सेनाएँ आमने-सामने पहुंची तो सुल्तान मुहम्मद अपने सैनिकों सहित सिख सेनाओं के साथ जा मिला। यह देखकर दोस्त मुहम्मद खाँ बिना युद्ध किए ही 11 मई, 1835 ई० को अपने सैनिकों सहित वापिस काबुल भाग गया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने बिना युद्ध किए ही एक शानदार विजय प्राप्त की।

2. जमरौद की लड़ाई 1837 ई० (Battle of Jamraud 1837 A.D-हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण आरंभ करवाया। हरी सिंह नलवा की कार्यवाई को रोकने के लिए दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में यद्यपि हरि सिंह नलवा शहीद हो गया किंतु सिखों ने अफ़गान सेनाओं को ऐसी कड़ी पराजय दी कि उन्होंने स्वप्न में भी कभी पेशावर का नाम न लिया।

(घ) सिख-अफ़गान संबंधों का चतुर्थ चरण 1838-39 ई० (Fourth Stage of Sikh-Afghan Relations 1838-39 A.D.)

त्रिपक्षीय संधि 1838 ई० (Tripartite Treaty 1838 A.D.)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। रूस के किसी संभावित आक्रमण को रोकने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ के साथ मैत्री के लिए बातचीत की। यह बातचीत असफल रही। अब अंग्रेजों ने शाह शुज़ा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई। अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को इस समझौते में शामिल होने के लिए विवश किया। इस प्रकार 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह में एक त्रिपक्षीय संधि हुई।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं—

  1. शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  2. शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  3. सिंध के संबंध में अंग्रेजों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  4. शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  5. एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  6. शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता करेगा तथा शाह शुज़ा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था।
त्रिपक्षीय संधि के अनुसार जनवरी, 1839 ई० में सिखों एवं अंग्रेज़ों की संयुक्त सेनाओं ने अफ़गानिस्तान पर आक्रमण कर दिया। दोस्त मुहम्मद खाँ के विरुद्ध अभी कार्यवाई जारी ही थी कि 27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा। उसने अजेय कहे जाने वाले अफ़गानों को कई निर्णायक लड़ाइयों में पराजित किया। इन शानदार विजयों के कारण महाराजा के मान-सम्मान में भी भारी वृद्धि हुई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)

प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का वर्णन कीजिए।
(Discuss the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति की मुख्य विशेषताओं का निरीक्षण करें। इसका क्या महत्त्व था ?
[Examine the main features of the North-West (N.W.) Frontier Policy of Ranjit Singh. What was its significance ?]
अथवा
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा से संबंधित नीति की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए। उसकी यह नीति किस सीमा तक सफल रही ?
(Critically examine the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh. To what extent was his policy successful ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की व्याख्या करो। (Explain the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्दी का कारण बनी रही है। इसका कारण यह.था कि इस ओर से विदेशी आक्रमणकारी पंजाब तथा भारत में आकर विनाशलीला करते रहे। इसके अतिरिक्त इस प्रदेश के खूखार कबीले स्वभाव से ही अनुशासन के विरोधी थे। महाराजा रणजीत सिंह ऐसा प्रथम शासक था जिसने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ द्वारा इन कबीलों पर विजय प्राप्त की।
उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the North-West Frontier Policy)
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—

1. उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की विजयें (Conquests of North-Western Territories)-महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की विजयों के दो चरण थे। उसने अटक, मुलतान तथा कश्मीर की विजयों के पश्चात् दरिया सिंध के आसपास के प्रदेशों की ओर ध्यान दिया । उसने 1818 ई० में पेशावर, 1820 ई० में बहावलपुर तथा 1821 ई० में डेरा इस्माइल खाँ तथा मनकेरा नामक प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। महाराजा रणजीत सिंह ने सूझ-बूझ से काम लेते हुए इन प्रदेशों को वार्षिक कर के बदले में मुसलमानों के अधीन ही रहने दिया। 1827 ई० से 1831 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। इसलिए उसने इन प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित करने का निर्णय किया। अतः महाराजा ने 1831 ई० में डेरा गाजी खाँ, 1832 ई० में टंक, 1833 ई० में बन्नू, 1834 ई० में पेशावर और 1836 ई० में डेरा इस्माइल खाँ को अपने राज्य में शामिल कर लिया।

2. अफ़गानिस्तान पर अधिकार न करने का निर्णय (Decision of not conquering Afghanistan)महाराजा रणजीत सिंह बड़ा सूझवान था। इसलिए उसने अफ़गानिस्तान पर अधिकार करने का कभी कोई निर्णय न किया। उत्तर-पश्चिमी सीमा के क्षेत्रों में ही उसे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति में वह अफ़गानिस्तान पर अधिकार करके अपने लिए कोई नई सिरदर्दी मोल नहीं लेना चाहता था। संभवतः एक बार ही उसने गंभीरता से अफ़गानिस्तान पर आक्रमण करने के संबंध में सोचा था। यह विचार अपने महान् योद्धा हरी सिंह नलवा की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए किया था, परंतु शीघ्र ही उसने अफ़गानिस्तान पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। यह सही है कि महाराजा जून, 1838 ई० की त्रिपक्षीय संधि में शामिल हुआ था। परंतु वह इस संधि में इसलिए शामिल हुआ था ताकि अंग्रेजों की ओर से उसके हितों को कोई क्षति न पहुँचे।

3. कबीलों को कुचलने के प्रयत्न (Efforts to Crush the Tribes)-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में अनेक अफ़गान कबीले रहते थे। उनका मुख्य धंधा लूटपाट करना था। वे कभी भी किसी के अधीन नहीं रह सकते थे। 1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद ने इन प्रदेशों में रहने वाले कबीलों को सिखों के विरुद्ध भड़काया। महाराजा रणजीत सिंह ने इन कबाइलियों के दमन के लिए कई सैनिक अभियान भेजे। सैय्यद अहमद 1831 ई० में बालाकोट के स्थान पर शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ अपने 500 साथियों सहित मारा गया था। 1834 ई० में जब पेशावर को सिख राज्य में शामिल कर लिया गया तो हरी सिंह नलवा को वहाँ का गवर्नर नियुक्त किया गया। हरी सिंह नलवा ने इन कबीलों के दमन के लिए बहुत कड़ी नीति धारण की।

4. उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए पग (Measures for the defence of the North-West Frontiers)-महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण पग उठाए। उसने कई नए दुर्गों जैसे अटक, खैराबाद, जहाँगीरा, जमरौद तथा फतेहगढ़ इत्यादि का निर्माण करवाया। इनके अतिरिक्त पुराने दुर्गों को मज़बूत किया गया। इन दुर्गों में विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई। गश्ती दस्ते स्थापित किए गए जो विद्रोही कबीलों के विरुद्ध कार्यवाई करते थे। इन दस्तों ने अफ़गान कबीलों में इतना भय उत्पन्न कर दिया था कि वे धीरे-धीरे बग़ावत करना भूल गए।

5. उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश का शासन प्रबंध (Administration of North-West Frontier Territories)-इन प्रदेशों में बसे कबीलों को नियंत्रण में रखने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने वहाँ सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की। उसने इस प्रदेश के शासन प्रबंध में कोई परिवर्तन न किया। उसने प्रचलित कानूनों तथा रस्म-रिवाजों को बनाए रखा। प्रत्येक खाँ अपने कबीले के लोगों से कर एकत्र करता था। उसे लाहौर सरकार की सर्वोच्चता को स्वीकार करना तथा कर संबंधी माँगों को पूरा करना होता था। कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में नहरें बनवाई गईं तथा कुएँ खुदवाए गए। भू-राजस्व की दरों को काफ़ी कम किया गया। यातायात के साधनों का विकास किया गया। इन सभी प्रयत्नों से महाराजा ने यहाँ के लोगों का विश्वास प्राप्त करने का यत्न किया। गड़बड़ी करने वाले कबीलों के विरुद्ध कड़े पग उठाए गए।

उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का महत्त्व (Importance of N.W.F. Policy)
महाराजा रणजीत सिंह अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमा की नीति में काफ़ी सीमा तक सफल रहा था। यह सचमुच ही महाराजा रणजीत सिंह की महान् उपलब्धियों में से एक थी। महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। उसने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष पग उठाए गए। परिणामस्वरूप न केवल वहाँ के लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हुए, अपितु महाराजा रणजीत सिंह के व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। डॉक्टर जी० एस० नय्यर का यह कथन बिल्कुल ठीक है,
“अनंगपाल के पश्चात् प्रथम बार उत्तर-पश्चिमी सीमा से होने वाले आक्रमणों को रोका तथा कबाइलों पर शासन किया जा सका।”2

2. “It was the first time after Anangpal that the series of invasions from the North-West were checked and the tribesmen were ruled.” Dr. G.S. Nayyar, Life and Achievements of Sardar Hari Singh Nalwa (Amritsar : 1997) p. 42.

संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ की लड़ाई के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the battle of Hazro or Haidro or Chachh.)
उत्तर-
मार्च, 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जहाँदाद खाँ से एक लाख रुपये के बदले अटक का किला प्राप्त कर लिया था। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह भड़क उठा। वह एक विशाल सेना लेकर कश्मीर से अटक की ओर चल पड़ा। महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ की सेनाओं में 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ के स्थान पर भारी युद्ध हुआ। इस युद्ध में रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी।

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प्रश्न 2.
शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
शाह शुजा पर एक नोट लिखें।
(Write a note om Shah Shuja.)
उत्तर-
शाह शुज़ा 1803 ई० से 1809 ई० तक अफ़गानिस्तान का बादशाह रहा। 1809 ई० में शाह महमूद ने उससे गद्दी छीन ली। शाह शुजा को कश्मीर के अफ़गान सूबेदार अत्ता मुहम्मद खाँ ने 1812 ई० में गिरफ्तार कर लिया। 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने शाह शुजा को रिहा करवा दिया। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुज़ा और महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाने का निश्चय किया गया किंतु यह प्रयास विफल रहा।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के दोस्त मुहम्मद के साथ संबंधों का संक्षेप वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1826 ई० में अफ़गानिस्तान का शासक बना था। वह महाराजा रणजीत सिंह के उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में बढ़ते हुए प्रभाव से परेशान था। महाराजा रणजीत सिंह ने 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पर विजय प्राप्त कर ली थी। दोस्त मुहम्मद खाँ ने 1837 ई० में अपने पुत्र अकबर के अधीन एक विशाल सेना भेजी। जमरौद के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा वीरगति को प्राप्त हुआ था तथापि सिख सेना विजयी हुई। इसके पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर की ओर फिर कभी मुख नहीं किया।

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प्रश्न 4.
सैय्यद अहमद पर एक संक्षेप नोट लिखो। (Write a brief note on Sayyed Ahmad.)
अथवा
सैय्यद अहमद के धर्म युद्ध पर एक नोट लिखो।
[Write a note on the ‘Jihad’ (Religious War) of Sayyed Ahmad.]
उत्तर-
सैय्यद अहमद ने 1827 ई० से 1831 ई० के समय अटक तथा पेशावर के प्रदेशों के विरुद्ध जिहाद कर रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था, “अल्ला ने मुझे पंजाब और हिंदुस्तान को विजय करने और अफ़गान प्रदेशों में से सिखों को निकालकर खत्म करने के लिए भेजा है।” उसकी बातों में आकर कई अफ़गान उसके शिष्य बन गए। उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ते हुए मारा गया।

प्रश्न 5.
अकाली फूला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a brief note on Akali Phula Singh.)
अथवा
अकाली फूला सिंह की सैनिक सफलताओं पर एक नोट लिखो। (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
उत्तर-
अकाली फूला सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के काल में सिख राज्य की नींव को मजबूत करने तथा उसका विस्तार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। 1807 ई० में महाराजा ने आपके सहयोग से कसूर पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। 1818 ई० में मुलतान की विजय के समय भी आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1819 ई० में कश्मीर की विजय के समय भी वह महाराजा रणजीत सिंह के साथ थे। वह 14 मार्च, 1823 ई० को अफ़गानों के साथ हुई नौशहरा की भयंकर लड़ाई में वारगति को प्राप्त हुए।

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प्रश्न 6.
जमरौद की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the battle of Jamraud.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा ने जमरौद में एक शक्तिशाली किले का निर्माण करवाया था। अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ के लिए यह एक चुनौती थी। उसने अपने पुत्र अकबर खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना जमरौद की ओर भेजी। उसकी सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के किले को घेरा डाल दिया। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों पर तीव्र आक्रमण किया, परंतु अचानक दो गोलियाँ लगने से उसकी मृत्यु हो गई। इसके बावजूद सिखों ने अफ़गानों को 30 अप्रैल, 1837 ई० में एक करारी हार दी। इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पेशावर को पुनः जीतने का कभी साहस न किया।

प्रश्न 7.
हरी सिंह नलवा पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
अथवा
हरी सिंह नलवा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Hari Singh Nalwa ?)
अथवा
सरदार हरी सिंह नलवा पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a note on Sardar Hari Singh Nalwa.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के एक महान् योद्धा तथा सेनापति थे। हरी सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह के अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया। वह 1820-21 में कश्मीर तथा 1834 ई० से 1837 ई० तक पेशावर के नाज़िम रहे। इस पद पर कार्य करते हुए हरी सिंह नलवा से न केवल इन प्रांतों में शांति की स्थापना की अपितु अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार लागू किए। वह 30 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के स्थान पर अफ़गानों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

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प्रश्न 8.
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति की मुख्य विशेषताओं के बारे में लिखिए।
(Write down main features of the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.) .
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ।
(Describe any three features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की तीन मुख्य विशेषताओं के बारे में लिखें।
(Write down the three main features of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए कई नये किलों का निर्माण किया तथा पुराने किलों को मजबूत करवाया।
  2. विद्रोहियों को कुचलने के लिए चलते-फिरते दस्ते कायम किए गए।
  3. महाराजा ने इस प्रदेश में प्रचलित रस्म-रिवाजों को कायम रखा।
  4. कबाइली लोगों के मामलों में अनुचित दखल न दिया गया।
  5. शासन प्रबंध की देख-रेख के लिए सैनिक गवर्नर नियुक्त किए गए।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति से महाराजा की कूटनीति तथा राजनीतिक योग्यता का प्रमाण मिलता है। महाराजा ने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। उसने इन प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। वहाँ यातायात के साधनों को विकसित किया गया। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष प्रयास किए गए। इनके अतिरिक्त महाराजा अपने साम्राज्य को अफ़गानों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने में भी सफल रहा।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence) .

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के समय अफ़गानिस्तान के किसी एक सम्राट् का नाम बताएँ।
उत्तर-
शाह शुजा।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो बरकज़ाई भाइयों के नाम बताएँ।
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ तथा यार मुहम्मद खाँ।

प्रश्न 3.
शाह ज़मान कौन था ?
अथवा
शाह शुजा कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का सम्राट्।

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प्रश्न 4.
शाह ज़मान ने लाहौर पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर-
27 नवंबर, 1798 ई०।।

प्रश्न 5.
शाह ज़मान के लाहौर पर 1798.ई० में अधिकार करने के समय किसका शासन था ?
उत्तर-
तीन भंगी सरदारों का।

प्रश्न 6.
फ़तह खाँ कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान के सम्राट् शाह महमूद का वज़ीर।

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के मध्य समझौता कब हुआ था ?
उत्तर-
1813 ई० में।

प्रश्न 8.
कश्मीर पर अधिकार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कहाँ पर हुआ था ?
उत्तर-
रोहतास।

प्रश्न 9.
हज़रो अथवा हैदरो की लड़ाई कब हुई थी ?
उत्तर-
13 जुलाई, 1813 ई०।

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प्रश्न 10.
हज़रो की लड़ाई का कोई एक महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
अफ़गानों की शक्ति को गहरा आघात पहुँचा।

प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को कब अपने अधिकार में किया ?
उत्तर-
1819 ई०।

प्रश्न 12.
नौशहरा की लड़ाई कब लड़ी गई थी ?
उत्तर-
14 मार्च, 1823 ई०।

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प्रश्न 13.
नौशहरा की लड़ाई में किसकी पराजय हुई ?
उत्तर-
आज़िम खाँ।

प्रश्न 14.
अकाली फूला सिंह कौन था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का एक प्रसिद्ध सेनापति।

प्रश्न 15.
अकाली नेता फूला सिंह किस लड़ाई में शहीद हुआ ?
अथवा
उस लड़ाई का नाम लिखें जिसमें अकाली फूला सिंह मारा गया।
उत्तर-
नौशहरा की लड़ाई में।

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प्रश्न 16.
सैय्यद अहमद कौन था?
उत्तर-
सैय्यद अहमद स्वयं को मुसलमानों का खलीफा कहलाता था।

प्रश्न 17.
सैय्यद अहमद ने कब सिखों के विरुद्ध विद्रोह किया था ?
उत्तर-
1827 ई० में से 1831 ई० के समय के दौरान।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को कब अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया ?
उत्तर-
1834 ई०

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प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह ने किसे पेशावर का प्रथम गवर्नर नियुक्त किया ?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा।

प्रश्न 20.
जमरौद की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1837 ई०।

प्रश्न 21.
हरी सिंह नलवा कौन था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनापति।

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प्रश्न 22.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई थी ?
उत्तर-
26 जून, 1838 ई०।

प्रश्न 23.
त्रिपक्षीय संधि की कोई एक मुख्य शर्त क्या थी ?
उत्तर-
शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाए।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा के संबंध में किसी एक समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी क्षेत्रों के कबीलों से निपटने की समस्या।

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प्रश्न 25.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई एक मुख्य विशेषता बताएँ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गानिस्तान पर अधिकार करने का कभी प्रयास न किया।

प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के समय उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों में स्थित किसी एक बर्बर कबीले का नाम बताएँ।
उत्तर-
यूसुफजई।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का कोई एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
इस कारण उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में शांति की स्थापना हुई।

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(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठने समय अफ़गानिस्तान का शासक……………..था।
उत्तर-
(शाह जमान)

प्रश्न 2.
1800 ई० में……….अफ़गानिस्तान का नया शासक बना।
उत्तर-
(शाह महमूद)

प्रश्न 3.
1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के मध्य……………..में समझौता हुआ।
उत्तर-
(रोहतास)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 ई० में जहाँदाद खाँ से…………………का प्रदेश प्राप्त किया।
उत्तर-
(अटक)

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गानों के मध्य नौशहरा की लड़ाई……………..में हुई।
उत्तर-
(1823 ई०)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह पेशावर को………………में सिख साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।
उत्तर-
(1834 ई०)

प्रश्न 7.
1838 ई० में महाराजा रणजीत सिंह, अंग्रेजों और………………के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई थी।
उत्तर-
(शाह शुजा)

प्रश्न 8.
हरी सिंह नलवा की मृत्यु……..में हुई।
उत्तर-
(1837 ई०

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठते समय अफ़गानिस्तान का शासक शाह ज़मान था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
शाह महमूद 1805 ई० में अफ़गानिस्तान का नया शासक बना।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच 1813 ई० में रोहतास में समझौता हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
हज़रो की लड़ाई 13 जुलाई, 1813 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
1820 ई० में हरी सिंह नलवा को. कश्मीर का नया गवर्नर नियुक्त किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
सरदार हरी सिंह नलवा को जफरजंग का खिताब दिया गया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
नौशहरा की लड़ाई 14 मार्च, 1828 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को 1834 ई० में अपने साम्राज्य में शामिल किया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
जमरौद की लड़ाई 1838 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्याओं को हल करने में काफी हद तक सफल रहा था।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
शाह ज़मान ने लाहौर पर कब अधिकार कर लिया था ?
(i) 1796 ई० में
(ii) 1797 ई० में
(iii) 1798 ई० में
(iv) 1799 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
फ़तह खाँ कौन था ?
(i) अफ़गानिस्तान का वज़ीर
(ii) रणजीत सिंह का वज़ीर
(ii) ईरान का वज़ीर
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
कश्मीर पर अधिकार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कब हुआ ?
(i) 1803 ई० में
(ii) 1805 ई० में
(ii) 1809 ई० में
(iv) 1813 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कहाँ हुआ था ?
(i) रोहतास में
(ii) रोहतांग में
(iii) सुपीन में
(iv) हज़रो में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
अकाली फूला सिंह अफ़गानों के साथ लड़ते हुए कब शहीद हो गया ?
(i) 1813 ई० में
(ii) 1815. ई० में
(iii) 1819 ई० में
(iv) 1823 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
सैय्यद अहमद ने कौन-से प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किया था ?
(i) अटक और पेशावर
(ii) पेशावर और कश्मीर
(iii) कश्मीर और मुलतान
(iv) मुलतान और अटक।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

प्रश्न 7.
सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध कब विद्रोह किया था ?
(i) 1823 ई० में
(ii) 1825 ई० में
(iii) 1827 ई० में
(iv) 1831 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को कब अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया था ?
(i) 1823 ई० में
(ii) 1831 ई० में
(iii) 1834 ई० में
(iv) 1837 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 9.
हरी सिंह नलवा किस प्रसिद्ध लड़ाई में मारा गया था ?
(i) जमरौद की लड़ाई
(ii) नौशहरा की लड़ाई
(iii) हज़रो की लडाई
(iv) सुपीन की लड़ाई।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 10.
त्रिपक्षीय संधि के अनुसार किसको अफ़गानिस्तान का नया बादशाह बनाने की योजना बनाई ?
(i) शाह ज़मान
(ii) शाह शुजा
(iii) शाह महमूद
(iv) दोस्त मुहम्मद खाँ।
उत्तर-
(ii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक पर कैसे विजय प्राप्त की ? इस विजय का महत्त्व भी बताएँ। (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Attock ? What was its significance ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अटक विजय तथा हजरो की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें।
(Give a brief account of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Attock and the battle of Hazro.)
उत्तर-
अटक का किला भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह के समय यहाँ अफ़गान गवर्नर जहाँदाद खाँ का शासन था। कहने को तो वह काबुल सरकार के अधीन था, परंतु वास्तव में वह स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा था। 1813 ई० में जब काबुल के वज़ीर फ़तह खाँ ने कश्मीर पर आक्रमण करके उसके भाई अता मुहम्मद खाँ को पराजित कर दिया तो वह घबरा गया। उसे यह विश्वास था कि फ़तह खाँ का अगला आक्रमण अटक पर होगा। इसलिए उसने एक लाख रुपए की वार्षिक जागीर के बदले अटक का किला महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह आग-बबूला हो गया। उसने अटक के किले पर अधिकार करने के लिए अपनी सेना के साथ अटक की ओर कूच किया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हजरो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों तथा सिखों में लड़ी गई पहली लड़ाई थी। इस विजय के कारण जहाँ अटक पर रणजीत सिंह का स्थायी अधिकार हो गया, वहाँ उसकी ख्याति भी दूर-दूर तक फैल गई।

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प्रश्न 2.
हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ की लड़ाई के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the battle of Hazro or Haidro or Chuch.)
उत्तर-
मार्च, 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जहाँदाद खाँ से एक लाख रुपये के बदले अटक का किला प्राप्त कर लिया था। यह किला भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह भड़क उठा। वह एक विशाल सेना लेकर कश्मीर से अटक की ओर चल पड़ा। उसने सिखों के विरुद्ध धर्म युद्ध का नारा लगाया। फ़तह खाँ की सहायता के लिए अफ़गानिस्तान से कुछ सेना भेजी गई। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी अटक के किले की रक्षा के लिए एक विशाल सेना अपने विख्यात सेनापतियों-हरी सिंह नलवा, जोध सिंह रामगढ़िया और दीवान मोहकम चंद के नेतृत्व में भेजी। 13 जुलाई, 1813 ई० को हजरो अथवा हैदरो अथवा छछ के स्थान पर दोनों सेनाओं में भारी युद्ध हुआ। इस युद्ध में रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी। इस कारण जहाँ अटक पर रणजीत सिंह का अधिकार पक्का हो गया, वहाँ उसकी ख्याति दूरदूर तक फैल गई।

प्रश्न 3.
शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
शाह शुजा अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने 1803 ई० से 1809 ई० तक शासन किया। वह बड़ा अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। 1809 ई० में वह सिंहासन छोड़कर भाग गया। उसे कश्मीर के अफ़गान सूबेदार अता मुहम्मद खाँ ने गिरफ्तार कर लिया। 1813 ई० में कश्मीर के पहले अभियान के दौरान महाराजा रणजीत सिंह की सेना शाह शुजा को रिहा करवा कर लाहौर ले आई थी। इसके बदले में महाराजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा की पत्नी वफ़ा बेगम से विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा प्राप्त किया था। 1833 ई० में शाह शुजा ने सिंहासन फिर प्राप्त करने के उद्देश्य से महाराजा के साथ एक संधि की, परंतु शाह शुजा को अपने इन यत्नों में सफलता नहीं मिली। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा और महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाने का निश्चय किया गया। अंग्रेजों के यत्नों से 1839 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का सम्राट् तो बन गया, परंतु जल्दी ही उसके विरुद्ध विद्रोह हो गया जिसमें शाह शुजा मारा गया।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह के दोस्त मुहम्मद के साथ संबंधों का संक्षेप वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1826 ई० में अफगानिस्तान का शासक बना था। वह महाराजा रणजीत सिंह के उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन करने के लिए तैयार न था। पेशावर के मामले पर दोनों के परस्पर मतभेदों में अधिक दरार आ गई थी। 1833 ई० में अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा दोस्त मुहम्मद के मध्य राजगद्दी को प्राप्त करने के लिए युद्ध आरंभ हो गया था। इस स्थिति का लाभ उठाकर महाराजा रणजीत सिंह ने 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पर सहजता से विजय प्राप्त कर ली थी। शाह शुजा को पराजित करने के पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर पर पुनः अधिकार करने का प्रयास किया पर उसे सफलता प्राप्त न हुई। 1837 ई० में दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र अकबर के अधीन एक विशाल सेना पेशावर की ओर भेजी। जमरौद के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा वीरगति को प्राप्त हुआ तथापि सिख सेना इस लड़ाई में विजयी हुई। इसके पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर की ओर फिर कभी मुँह नहीं किया।

प्रश्न 5.
सैय्यद अहमद पर एक संक्षेप नोट लिखो। (Write a brief note on Sayyad Ahmed.)
अथवा
सैय्यद अहमद के धर्म युद्ध पर एक नोट लिखो। [Write a note on the ‘Zihad’ (Religious War) of Sayyad Ahmed.]
उत्तर-
1827 ई० से 1831 ई० के समय में सैय्यद अहमद ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध जिहाद कर रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था, “अल्ला ने मुझे पंजाब और हिंदुस्तान को विजय करने और अफ़गान प्रदेशों में से सिखों को निकाल कर खत्म करने के लिए भेजा है।” उसकी बातों में आकर कई अफ़गान सरदार उसके शिष्य बन गए। कुछ ही समय में उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। यह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। उसको सिख सेनाओं ने पहले सैद्र में और फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु भाग्यवश वह दोनों बार बच निकलने में सफल हुआ। इन पराजयों के बावजूद भी सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। अंत में 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ते हुए मारा गया। इस तरह सिखों की एक बहुत बड़ी सिरदर्दी दूर हुई।

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प्रश्न 6.
अकाली फूला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
अथवा
अकाली फूला सिंह की सैनिक सफलताओं पर एक नोट लिखो। (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
उत्तर-
अकाली फूला सिंह सिख राज्य के एक फौलादी स्तंभ थे। उन्होंने सिख राज्य की नींव को मज़बूत करने तथा उसकी सीमा का विस्तार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। आपकी शूरवीरता, निर्भीकता, पंथ से प्यार तथा उज्वल चरित्र के कारण महाराजा रणजीत सिंह आपका बहुत सम्मान करता था। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह के सहयोग से कसूर पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इसी वर्ष अकाली फला सिंह ने झंग को अपने अधीन कर लिया। आपके सहयोग के कारण 1816 ई० में मुलतान तथा बहावलपुर में मुसलमानों द्वारा सिख राज्य के विरुद्ध की गई बगावतों का दमन किया जा सका। 1818 ई० में मुलतान की विजय के समय भी अकाली फूला सिंह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी वर्ष पेशावर पर आक्रमण के समय भी महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह की सेवाएँ प्राप्त की। 1819 ई० में कश्मीर की विजय के समय भी वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना के साथ थे। वह 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा में अफ़गानों के साथ हुई एक भयंकर लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए। निस्संदेह अकाली फूला सिंह सिख राज्य के एक महान् रक्षक थे।

प्रश्न 7.
जमरौद की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1835 ई० में सिखों के हाथों हुए अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहता था। दूसरी ओर सिख भी पेशावर में अपनी स्थिति को दृढ़ करने में व्यस्त थे। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक शक्तिशाली दुर्ग का निर्माण करवाया। दोस्त मुहम्मद खाँ सिखों की पेशावर में बढ़ती हुई शक्ति को सहन नहीं कर सकता था। इसलिए उसने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के अधीन 20,000 सैनिकों को जमरौद पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद पर आक्रमण कर दिया। सरदार महा सिंह ने दो दिन तक अपने केवल 600 सैनिकों सहित अफ़गान सेनाओं का डट कर सामना किया। उस समय हरी सिंह नलवा पेशावर में बहुत बीमार पड़ा हुआ था। जब उसे अफ़गान आक्रमण का समाचार मिला तो वह शेर की भाँति गर्जना करता हुआ अपने 10,000 सैनिकों को साथ लेकर जमरौद पहुँच गया। उसने अफ़गान सेनाओं के छक्के छुड़ा दिए। अचानक दो गोले लग जाने से 30 अप्रैल, 1837 ई० को हरी सिंह नलवा शहीद हो गए। इस बलिदान का प्रतिशोध लेने के लिए सिख सेनाओं ने अफ़गान सेनाओं पर इतना शक्तिशाली आक्रमण किया कि वे गीदड़ों की भाँति काबुल की ओर भाग गये। इस प्रकार सिख जमरौद की इस निर्णयपूर्ण लड़ाई में विजयी रहे। जब महाराजा रणजीत सिंह को अपने महान् जरनैल हरी सिंह नलवा की मृत्यु के विषय में ज्ञात हुआ तो उनकी आँखों से कई दिन तक आँसू बहते रहे। जमरौद की लड़ाई के पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने कभी भी पेशावर पर पुनः आक्रमण करने का यत्न न किया। उसे विश्वास हो गया कि सिखों से पेशावर लेना असंभव है।

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प्रश्न 8.
हरी सिंह नलवा पर एक संक्षिप्त नोदे लिखो। (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
अथवा
हरी सिंह नलवा के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखें। (What do you know about Hari Singh Nalwa ? Give a brief account.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह का सबसे महान् तथा निर्भीक सेनापति था। घुड़सवारी, तलवार चलाने तथा निशाना लगाने में वे बहुत दक्ष थे। महान् योद्धा होने के साथ-साथ वह एक कुशल शासन प्रबंधक भी थे। उनकी वीरता से प्रभावित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। बहुत शीघ्र वह उन्नति करते हुए सेनापति के उच्च पद पर पहुँच गए। एक बार हरी सिंह ने एक शेर को जिसने उन पर आक्रमण कर दिया था अपने हाथों से मार डाला जिस कारण महाराजा ने उन्हें ‘नलवा’ की उपाधि से सम्मानित किया। वह इतने वीर थे कि दुश्मन उनके नाम से ही थर-थर काँपते थे। हरी सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह के अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया तथा प्रत्येक अभियान में सफलता प्राप्त की। वह 1820-21 ई० में कश्मीर तथा 1834 से 1837 ई० तक पेशावर के नाज़िम (गवर्नर) रहे। इस पद पर कार्य करते हुए हरी सिंह नलवा ने न केवल इन प्रांतों में शांति की स्थापना की अपितु अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार भी लागू किए। वह 30 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के स्थान पर अफ़गानों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उसकी मृत्यु से महाराजा रणजीत सिंह को इतना गहरा धक्का लगा कि वह उसकी याद में कई दिनों तक आँसू बहाते रहे। निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह के राज्य को शक्तिशाली बनाने तथा उसका विस्तार करने में हरी सिंह नलवा ने बहुमूल्य योगदान दिया।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र की नीतियों की विशेषताएँ बताएँ।
(Explain the features of the North-west Frontier policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ।
(Describe any five features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा संबंधी नीति की पाँच विशेषताएँ लिखें।
(Describe the five features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुलतान, कश्मीर, डेरा गाज़ी खाँ, डेरा इस्माइल खाँ, पेशावर आदि उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों पर विजय प्राप्त की और इन्हें अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने दूर-दृष्टि से काम लेते हुए कभी अफ़गानिस्तान पर अपना अधिकार करने की कोशिश न की। उन्हें पहले ही उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए वह अफ़गानिस्तान पर कब्जा करके कोई नई सिरदर्दी मोल लेना नहीं चाहता था। महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। उसने कई नये किलों का निर्माण करवाया तथा कई पुराने किलों को मजबूत करवाया। इन किलों में बड़ी प्रशिक्षित सेना रखी गई। विद्रोहियों को कुचलने के लिए चलते-फिरते दस्ते कायम किये गये। महाराजा ने इस प्रदेश का शासन प्रबंध बड़ी सूझ-बूझ से किया। उसने इस प्रदेश में प्रचलित रस्म-रिवाजों को कायम रखा। कबाइली लोगों के मामलों में अनुचित दखल न दिया गया। शासन प्रबंध की देख-रेख के लिए सैनिक गवर्नर नियुक्त किए गए।

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प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का पंजाब के इतिहास में विशेष महत्त्व है। इससे महाराजा की दूर-दृष्टि, कूटनीति तथा राजनीतिक योग्यता का प्रमाण मिलता है। उसने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। यह रणजीत सिंह की एक महान् सफलता थी कि उसने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। महाराजा रणजीत सिंह ने कबीलों के प्रचलित कानूनों तथा रस्म-रिवाजों को बनाए रखा। वह अकारण उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था। महाराजा रणजीत सिंह ने वहाँ यातायात के साधनों को विकसित किया। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष पग उठाए गए। परिणामस्वरूप न केवल वहाँ के लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हुए अपितु महाराजा रणजीत सिंह के व्यापार को एक नया उत्साह मिला। इनके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह अपने साम्राज्य को अफ़गानों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने में सफल रहा। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति काफी सफल रही।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
1800 ई० में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए गृह युद्ध आरंभ हो गया। शाह ज़मान को सिंहासन से उतार दिया गया तथा शाह महमूद अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बना। उसने केवल तीन वर्ष (1800-03) तक शासन किया। 1803 ई० में शाह शुज़ा ने शाह महमूद से सिंहासन छीन लिया। उसने 1809 ई० तक शासन किया। वह बहुत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। इस कारण अफ़गानिस्तान में अशांति फैल गई। यह स्वर्ण अवसर देखकर अटक, कश्मीर, मुलतान व डेराजात इत्यादि के अफ़गान सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी काबुल सरदार की दुर्बलता का पूरा लाभ उठाया तथा कसूर, झंग, खुशाब तथा साहीवाल नामक अफ़गान प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1809 ई० में शाह शुज़ा को सिंहासन से उतार दिया गया तथा उसके स्थान पर शाह महमूद अफ़गानिस्तान का दुबारा सम्राट बना। क्योंकि राज्य-सिंहासन प्राप्त करने में शाह महमूद को फ़तह खाँ ने प्रत्येक संभव सहायता दी थी, इसलिए उसे शाह महमूद ने अपना वज़ीर (प्रधानमंत्री) नियुक्त कर लिया।

  1. …………… में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए गृह युद्ध आरंभ हो गया था।
  2. शाह महमूद अफ़गानिस्तान का पहली बार बादशाह कब बना ?
  3. शाह शुजा कैसा शासक था ?
  4. फ़तह खाँ कौन था ?
  5. शाह शुजा को कब गद्दी से उतारा गया था ?

उत्तर-

  1. 1800 ई०।
  2. शाह महमूद पहली बार 1800 ई० में अफगानिस्तान का बादशाह बना था।
  3. शाह शुजा एक अयोग्य शासक था।
  4. फ़तह खाँ शाह महमूद का वज़ीर था।
  5. शाह शुज़ा को 1809 ई० में गद्दी से उतार दिया गया था।

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2
महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ द्वारा किए गए कपट के कारण उसे माठ पढ़ाने का निर्णय किया। उसने शीघ्र ही फ़कीर अजीजुद्दीन को अटक पर अधिकार करने के लिए भेजा। अटक के शासक जहाँदाद खाँ ने एक लाख रुपये की जागीर के स्थान पर अटक का क्षेत्र महाराजा के सुपुर्द कर दिया। जब फ़तह खाँ को इसके संबंध में ज्ञात हुआ तो वह आग बबूला हो उठा। उसने कश्मीर की शासन व्यवस्था अपने भाई आज़िम खाँ को सौंप दी तथा स्वयं एक विशाल सेना लेकर अटक में से सिखों को निकालने के लिए चल दिया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई एक घमासान की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को एक कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों एवं सिखों के मध्य लड़ी गई प्रथम लड़ाई थी। इस लड़ाई में सिखों की विजय के कारण अफ़गानों की शक्ति को एक ज़बरदस्त धक्का लगा तथा सिखों के मान-सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

  1. फ़तह खाँ कौन था ?
  2. महाराजा रणजीत सिंह के समय अटक का शासक कौन था ?
  3. सिखों तथा अफ़गानों के मध्य लड़ी गई पहली लड़ाई कौन-सी थी ?
  4. हज़रो की लड़ाई कब हुई थी ?
    • 1811 ई०
    • 1812 ई०
    • 1813 ई०
    • 1814 ई०
  5. हज़रो की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. फ़तह खाँ अफ़गानिस्तान के शासक शाह महमूद का वज़ीर था।
  2. महाराजा रणजीत सिंह के समय अटक का शासक जहाँदाद खाँ था।
  3. सिखों तथा अफ़गानों के मध्य लड़ी गई पहली लड़ाई हज़रों की थी।
  4. 1813 ई०।
  5. हज़रो की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

3
1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद नामक एक व्यक्ति ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किए रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था अल्लाह ने मुझे पंजाब तथा हिंदुस्तान को विजित करने तथा अफ़गान प्रदेशों से सिखों को निकाल कर उन्हें समाप्त करने के लिए भेजा है। उसकी बातों में आकर अनेक अफ़गान सरदार उसके अनुयायी बन गए। कुछ ही अवधि में उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। यह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। उसे सिख सेनाओं ने पहले सैदू के स्थान पर तथा फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु वह दोनों बार बच निकलने में सफल रहा। इन पराजयों के बावजूद सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। आखिर 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ मारा गया। इस प्रकार सिखों की एक बड़ी शिरोवेदना समाप्त हो गई।

  1. सैय्यद अहमद कौन था ?
  2. सैय्यद अहमद कहाँ का रहने वाला था ?
  3. सिख फौजों ने सैय्यद अहमद को किन दो स्थानों से पराजित किया था ?
  4. सैय्यद अहमद कहाँ तथा किस प्रकार लड़ते हुए मारा गया था ?
  5. सैय्यद अहमद कब मारा गया था ?
    • 1813 ई०
    • 1821 ई०
    • 1827 ई०
    • 1831 ई०।

उत्तर-

  1. सैय्यद अहमद मुसलमानों का एक धार्मिक नेता था।
  2. सैय्यद अहमद बरेली का रहने वाला था।
  3. सिख फ़ौजों ने सैय्यद अहमद को सैदू तथा पेशावर से पराजित किया।
  4. सैय्यद अहमद बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह के साथ लड़ते हुए मारा गया था।
  5. 1831 ई०।

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4
दोस्त मुहम्मद खाँ सिखों के हाथों हुए अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहता था। दूसरी ओर सिख भी पेशावर में अपनी स्थिति को दृढ़ करना चाहते थे। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण आरंभ करवाया। हरी सिंह नलवा की कार्यवाई को रोकने के लिए दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की एक विशाल सेना भेजी। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। हरी सिंह नलवा उस समय पेशावर में बहुत बीमार पड़ा था। जब उसे अफ़गानों के इस आक्रमण का समाचार मिला तो उन्हें पाठ पढ़ाने के लिए अपने 10,000 सैनिकों को साथ लेकर जमरौद में अफ़गानों पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा शहीद हो गया किंतु सिखों ने अफ़गान सेनाओं का ऐसा विनाश किया कि उन्होंने पुनः कभी पेशावर की ओर अपना मुख न किया।

  1. दोस्त मुहम्मद खाँ कौन था ?
  2. जमरौद किले का निर्माण किसने करवाना था ?
  3. जमरौद दुर्ग पर आक्रमण ……………… को किया गया।
  4. जमरौद की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह का कौन-सा जरनैल शहीद हुआ ?
  5. जमरौद की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. दोस्त मुहम्मद खाँ पेशावर का शासक था।
  2. जमरौद किले का निर्माण सरदार हरी सिंह नलवा ने करवाया था।
  3. 28 अप्रैल, 1837 ई०।
  4. जमरौद की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह का जरनैल हरी सिंह नलवा शहीद हुआ था।
  5. जमरौद की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति PSEB 12th Class History Notes

  • महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Maharaja Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)-महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है—
    • प्रथम चरण (First Stage) यह चरण 1797 से 1812 ई० तक चला-जब रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह जमान था-रणजीत सिंह ने उसकी जेहलम नदी में गिरी तोपें वापिस भेज दी–प्रसन्न होकर उसने रणजीत सिंह के लाहौर अधिकार को मान्यता दे दी-1803 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का शासक बना-उसकी अयोग्यता का लाभ उठाते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर, झंग तथा साहीवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
    • दूसरा चरण (Second Stage)—यह चरण 1813-1834 ई० तक चला-1813 ई० में रोहतासगढ़ में हुए समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने कश्मीर पर आक्रमण किया-फ़तह खाँ ने महाराजा के साथ छल किया-13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो के स्थान पर अफ़गानों तथा सिखों के मध्य प्रथम लड़ाई हुई-इसमें फ़तह खाँ पराजित हुआमहाराजा के पेशावर अधिकार के परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा की भयंकर लड़ाई हुई-इसमें भी अफ़गान पराजित हुए-6 मई, 1834 ई० को पेशावर पूर्ण रूप से सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।
    • तीसरा चरण (Third Stage)—यह चरण 1834 से 1837 ई० तक चला-महाराजा के पेशावर अधिकार से अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा-परिणामस्वरूप उसने जेहाद की घोषणा कर दी-परंतु रणजीत सिंह की कूटनीति के कारण उसे बिना युद्ध किए वापिस जाना पड़ा-1837 ई० को सिखों तथा अफ़गानों के मध्य जमरौद की लड़ाई हुई-इस लड़ाई में सिख विजयी हुए परंतु हरि सिंह नलवा शहीद हो गया इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पुनः कभी पेशावर की ओर मुख न किया।
    • चौथा चरण (Fourth Stage) यह चरण 1838 से 1839 ई० तक चला-रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया-इस प्रकार सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा।
  • महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh) उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्द बनी रही-यहीं से विदेशी आक्रमणकारी भारत आते रहे-यहाँ के खंखार कबीले सदा ही अनुशासन के विरोधी रहे -महाराजा ने 1831 ई० से 1836 ई० के दौरान डेरा गाजी खाँ, टोंक, बन्नू और पेशावर आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया-महाराजा ने अफ़गानिस्तान पर कभी भी अधिकार करने का प्रयास नहीं किया-खूखार अफ़गान कबीलों के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे गए-उत्तर-पश्चिमी सीमा पर कई नए दुर्ग बनाए गए-वहाँ पर विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई-सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की गई-कबीलों की भलाई के लिए विशेष प्रबंध किए गए-महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा. नीति काफ़ी सीमा तक सफल रही।