PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

SST Guide for Class 9 PSEB एक गांव की कहानी Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

  1. मानव की आवश्यकताएं
  2. …………. जोखिम उठाता है।
  3. ………… उत्पादन का प्राकृतिक साधन है।
  4. एक वर्ष में एक भूखण्ड पर एक से अधिक फसलें पैदा करने को ………. कहते हैं।
  5. जो श्रमिक एक राज्य से दूसरे राज्य में श्रम करने के लिए जाते हैं उन्हें ………….. श्रमिक कहते हैं।
  6.  पंजाब को देश के ……………. के रूप में जाना जाता है।

उत्तर-

  1. असीमित
  2. उद्यमी
  3. भूमि
  4. बहुविविध फसल प्रणाली
  5. प्रवासी श्रमिक
  6. अन्न के कटोरे।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
उत्पादन का कौन-सा कारक अचल है ?
(क) भूमि
(ख) श्रम
(ग) पूंजी
(घ) उद्यमी।
उत्तर-
(क) भूमि

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प्रश्न 2.
वह आर्थिक क्रिया जो वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य अथवा उपयोगिता की वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है, कहलाती है
(क) उत्पादन
(ख) उपभोक्ता
(ग) वितरण
(घ) उपयोगिता।
उत्तर-
(क) उत्पादन

प्रश्न 3.
कृषि में विशेषकर गेहूँ व धान के उत्पादन में असाधारण वृद्धि को क्या कहते हैं ?
(क) हरित क्रांति
(ख) गेहूं क्रांति
(ग) धान क्रांति
(घ) श्वेत क्रांति।
उत्तर-
(क) हरित क्रांति

प्रश्न 4.
इग्लैंड की मुद्रा कौन-सी है ?
(क) रुपए
(ख) डॉलर
(ग) यान
(घ) पौंड।
उत्तर-
(घ) पौंड।

सही/गलत :

  1. भूमि की पूर्ति सीमित है।
  2. मनुष्य की सीमित आवश्यकताएं असीमित साधनों के साथ पूरी होती हैं।
  3. श्रम की पूर्ति को बढ़ाया एवं घटाया नहीं जा सकता।
  4. उद्यमी जोखिम उठाता है।
  5. मशीन व पशुओं द्वारा करवाया कार्य श्रम है।
  6. बाज़ार में वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाने से उनकी मांग बढ़ जाती है।

उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत
  6. ग़लत।

(क) अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन है जो यह बताता है कि किस प्रकार एक मनुष्य अपनी असीमित आवश्यकताओं को सीमित साधनों से पूरा कर सकता है।

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प्रश्न 2.
भारत के गांवों की मुख्य उत्पादन क्रिया कौन-सी है ?
उत्तर-
खेती, भारत के गांवों की मुख्य उत्पादन है।

प्रश्न 3.
गांवों में सिंचाई के दो प्रमुख साधन कौन-से हैं।
उत्तर-

  1. टयूबवैल
  2. नहरें।

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में श्रम से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
अर्थशास्त्र में श्रम का कार्य उन सभी मानवीय प्रयासों से हैं, जो धन कमाने के उद्देश्य से किए जाते हैं। ये प्रयास शारीरिक या बौद्धिक दोनों हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
माँ द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाने की क्रिया श्रम है अथवा नहीं ?
उत्तर-
इस कार्य को श्रम नहीं माना जाएगा क्योंकि यह कार्य धन प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं किया गया है।

प्रश्न 6.
श्रमिकों को परिश्रमिक किस रूप में मिलता हैं ?
उत्तर-
श्रमिक अपनी मजदूरी नकद या किस्म के रूप में प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 7.
गांव के लोगों द्वारा की जाने वाली कोई दो गैर कृषि क्रियाएं बताएं।
उत्तर-
गैर कृषि क्रियाएं निम्न हैं1. डेयरी 2. मुर्गीपालन।

प्रश्न 8.
बड़े व लघु किसान कृषि के लिए वांछित पूंजी कहां से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर-
बड़े किसान कृषि क्रियाओं के लिए पूंजी अपनी कृषि क्रियाओं से होने वाली बचतों से प्राप्त करते हैं जबकि छोटे किसान बड़े किसानों से ऊंची ब्याज दर पर रकम लेते हैं।

प्रश्न 9.
भूमि की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है।

प्रश्न 10.
मज़दूर एक राज्य से दूसरे राज्यों में प्रवास क्यों करते हैं ?
उत्तर-
श्रमिक अपनी आजीविका कमाने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य को प्रवास करते हैं।

प्रश्न 11.
किसान पराली को क्यों जलाते हैं ?
उत्तर-
धान के अवशिष्ट भाव पराली का कोई निवेष प्रबंध न होने के कारण किसान उस पराली को आग लगाते हैं।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अर्थशास्त्र का अध्यायन क्यों करते हैं ?
उत्तर-
हम अर्थशास्त्र का अध्ययन इसलिए करते हैं क्योंकि यह एक विज्ञान है जो हमें यह बताता है कि किस प्रकार हम अपने सीमित साधनों का प्रयोग करके अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन करके ही हम अपनी आय को इस प्रकार व्यय कर सकते हैं जिससे हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो।

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रिया क्या है ? एक उदाहरण दें।
उत्तर-
आर्थिक क्रिया वह क्रिया है जो एक व्यक्ति द्वारा अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित साधनों को कम करके की जाती है। इस क्रियाओं को किए जाने का मुख्य उद्देश्य धन प्रकट करना होता है।
उदाहरण-एक शिक्षक द्वारा विद्यालय में पढ़ाना।

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प्रश्न 3.
सिंचाई के लिए टयूबवैल का निरन्तर प्रयोग भूमि के नीचे के जलस्तर को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
सिंचाई के लिए टयूबवैल द्वारा पानी के निरंतर प्रयोग किए जाने से भूमिगत जल का स्तर कम होता जा रहा है। पंजाब में भूमिगत जल स्तर का कम होना एक गंभीर समस्या है। पंजाब में हर वर्ष अधिक से अधिक जल का प्रयोग करने हेतु भूमि के नीचे से नीचे स्तर से भी जल निकाला जा रहा है। इस तरह 20 वर्ष के बाद भूमिगत के पूरी तरह कम हो जाने का माप उत्पन्न होने लगा है।

प्रश्न 4.
भूमि के एक ही भाग पर उत्पादन वृद्धि के कोई दो भिन्न ढंग बताएं।
उत्तर-
एक ही भूमि के टुकड़ें पर एक वर्ष में एक से अधिक फसलें एक साथ उगाने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसे बहुविविध फसल प्रणाली कहते हैं। भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने की यह एक सामान्य प्रक्रिया है। यह विद्युत टयूवबैल तथा किसानों को विद्युत की लगातार पूर्ति से संभव हो सका है।
दूसरी ओर, एक ही भूमि के टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने का अन्य तरीका आधुनिक विधियों का प्रयोग करना है जैसे उच्च पैदावार वाले बीज, रासायनिक खाद की पर्याप्त मात्रा कीटनाशक आदि।

प्रश्न 5.
बहुफसली विधि से क्या अभिप्राय है ? वर्णन करें।
उत्तर-
एक वर्ष में भूमि के एक टुकड़े पर एक साथ एक से अधिक फसलें उगाने की क्रिया को बहुविविध फसल प्रणाली कहते हैं। यह भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने का साधारण तरीका है। यह विद्युत टयूवबैल तथा किसानों को निरंतर विद्युत की पूर्ति से संभव हो सका है। छोटी-छोटी नहरों से भी किसानों को कृषि के लिए जल उपलब्ध होता रहता है। जिसने वर्ष भर किसानों को कृषि करने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 6.
हरित क्रांति से क्या अभिप्राय है ? यह कैसे संभव हुई है ?
उत्तर-
भारत में योजनाओं की अवधि में अपनाए गए कृषि सुधारों के फलस्वरूप 1967-68 में अनाज के उत्पादन में 1966-67 की तुलना में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। किसी एक वर्ष में अनाज के उत्पादन में इतनी अधिक वृद्धि किसी क्रांति से कम नहीं थी। इसलिए इसे हरित क्रांति का नाम दिया गया। हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली भारी वृद्धि से है जो कृषि की नई नीति को अपनाने के कारण हुई।

प्रश्न 7.
भूमि पर आधुनिक कृषि पद्धति व ट्यूबवैल सिंचाई के कौन-से हानिकारक प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर-
भूमि एक प्राकृतिक संसाधन हैं, आधुनिक कृषि विधियां इसकी उपजाऊ शक्ति को कम कर रही हैं। आधुनिक कृषि विधियों के प्रयोग द्वारा प्रारंभिक स्तर में तो कृषि उत्पादन बढ़ता रहता है परंतु बाद में यह धीरे-धीरे घटता जाता है।
भूमिगत जल का स्तर भी टयूवबैल का अधिक प्रयोग करने से घटता जा रहा है। प्रत्येक वर्ष पंजाब के किसान भूमि को और अधिक नीचे तक खोदते रहते हैं। इन स्थितियों के द्वारा 20 वर्ष के बाद भूमिगत जल के पूरी तरह कम हो जाने का संकट उत्पन्न हो गया है।

प्रश्न 8.
गांव के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित हुई है ?
उत्तर-
इस गांव में दुर्भाग्यवश सभी लोग कृषि योग्य भूमि की पर्याप्त मात्रा न होने के कारण कृषि कार्यों में संलग्न नहीं हैं। लगभग 20 परिवार ऐसे हैं जो अपनी भूमि के स्वामी हैं और 100 परिवार ऐसे हैं जिनके पास कृषि योग्य थोड़ी सी भूमि उपलब्ध है। जबकि 50 परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी कृषि योग्य भूमि नहीं है। यह लोग अन्य लोगों की भूमि पर काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं।

प्रश्न 9.
गांव में कृषि के लिए श्रम के कोई दो स्त्रोत बताएं।
उत्तर-
किसानों कृषि कार्यों के लिए श्रम का स्वयं प्रबंध करते हैं। इसके अलावा, कुछ निर्धन परिवार अपनी आजीविका कमाने के लिए बड़े कृषकों की भूमि पर श्रम का कार्य करते हैं। ज़मींदारों की भूमि पर नाम करने के लिए कुछ प्रवासी श्रमिक अन्य राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश से भी गांव में आए हैं। इन्हें प्रवासी श्रमिक कहते हैं।

प्रश्न 10.
बड़े व मध्यम वर्गीय किसान कृषि के लिए आवश्यक पूंजी का प्रबंध कैसे करते हैं ?
उत्तर-
मझौले और बड़े किसानों के पास अधिक भूमि होती है अर्थात् उनकी जोतों का आकार काफ़ी बड़ा होता है जिससे वे उत्पादन अधिक करते हैं।
उत्पादन अधिक होने से वे इसे बाज़ार में बेच कर काफी पूंजी प्राप्त कर लेते हैं जिसका प्रयोग वे उत्पादन को आधुनिक विधियों को अपनाने में करते हैं।

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प्रश्न 11.
आर्थिक तथा अनार्थिक क्रिया में अंतर लिखें।
उत्तर-

आर्थिक  क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं  व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था प्रगति 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति का निर्धारक नहीं है। में है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय व आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय व्यक्तिगत आय में वृद्धि नहीं होती है।

प्रश्न 12.
श्रम की मुख विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
श्रम की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं-

  1. श्रम उत्पादन का एकमात्र सक्रिय साधन है।
  2. श्रम को पूर्ति घटाई व बढ़ाई जा सकती है।
  3. भारत में श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  4. धन कमाने के उद्देश्य से किए गए सभी मानवीय प्रयास श्रम है।
  5. श्रम को खरीदा व बेचा जा सकता है।
  6. श्रम गतिशील है।

प्रश्न 13.
लघु किसान कृषि के लिए वांछित पूंजी का प्रबंध कैसे करते हैं ?
उत्तर-
छोटे किसानों की पूंजी की आवश्यकता बड़े किसानों से भिन्न होती है क्योंकि छोटे किसानों के पास भूमि कम होने के कारण उत्पादन उनके भरण-पोषण के लिए भी कम बैठता है। उन्हें अधिकतम प्राप्त न होने के कारण बचतें नहीं होती। इसलिए खेती के लिए उन्हें पूंजी बड़े किसानों या साहूकारों से उधार लेकर पूरी करनी पड़ती है, जिस पर उन्हें काफी ब्याज चुकाना पड़ता है।

प्रश्न 14.
बड़े किसान अतिरिक्त कृषि उत्पादों को क्या करते हैं ?
उत्तर-
बड़े किसान अपने कृषि उत्पाद को नज़दीक के बाजार में बेचते हैं और बहुत अधिक धन कमा लेते हैं। इस कमाई हुई अतिरिक्त पूंजी का प्रयोग वे छोटे किसानों को ऊंची ब्याज दर पर ऋण देने के लिए करते हैं। इसके अलावा वो इस आधिक्य का प्रयोग अगले कृषि मौसम में उपज उगाने के लिए भी करते हैं और अपनी जमाओं को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 15.
भारत के गांवों में कौन-सी गैर-कृषि क्रियाएं की जाती हैं ?
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्र में जो गैर-कृषि कार्य हो रहे हैं वे निम्नलिखित हैं-

  1. पशुपालन द्वारा दुग्ध क्रियाएं।
  2. छोटे-छोटे उद्योग हैं जिसमें आटा चक्कियां, बुनकर उद्योग टोकरियां बनाना, फर्नीचर बनाना, लोहे के औज़ार बनाना आदि शामिल हैं।
  3. दुकानदारी।
  4. यातायात के साधनों का संचालन आदि।

प्रश्न 16.
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-कौन सी गैर-कृषि क्रियाएं (गतिविधियां) चलाई जा रही है ?
उत्तर-
गैर-कृषि क्रियाओं को कम मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है । वर्तमान में, गांवों में गैर-कृषि क्षेत्र अधिक विस्तृत नहीं हैं। गांवों में प्रत्येक 100 श्रमिकों में से केवल 24 श्रमिक ही गैर-कृषि क्रियाओं में संलग्न हैं। लोग गैर-कृषि क्रियाएं या तो अपनी बचतों से या ऋण लेकर शुरू कर सकते हैं। गांवों को आधुनिक सुविधाएं प्रदान करवा कर जैसे सड़क, बिजली, संचार, यातायात आदि से शहर के साथ जोड़ा जा सकता है तथा गैर-कृषि क्रियाओं को शुरू किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
फसलों के अवशिष्ट को खेतों में जलाने से भूमि की गुणवत्ता में पतन क्यों आता है ?
उत्तर-
फसलों के अवशिष्ट को खेतों में जलाने से ज़मीन की उपरी सतह का तापमान बढ़ जाता है, जिस कारण ज़मीन में मिलने वाले सूक्ष्म जीव, बैक्टीरिया, मित्रकीट, फफूंद, पक्षी मौत का शिकार हो जाते हैं। इसके साथ-साथ ज़मीन के लाभदायक तत्त्व और यौगिक भी तापमान में बढ़ौतरी के कारण नष्ट हो जाते हैं, परिणामस्वरूप भूमि की गुणवत्ता में पतन हो जाता है।

अन्य अभ्यास के प्रश्न

गतिविधि-1

अपने निकटतम खेत में जाकर कुछ किसानों से चर्चा कीजिए तथा मालूम करने की कोशिश कीजिए।
प्रश्न 1.
किसान कृषि में परम्परावादी अथवा आधुनिक में किस विधि का प्रयोग कर रहे हैं : व क्यों।
उत्तर-
मेरे पड़ोस के खेतों में जिन किसानों की छोटी जोतें थीं वे खेती की पुरानी विधि का प्रयोग कर रहे हैं तथा जिन किसानों की जोतें बड़ी थीं वे नयी विधि का प्रयोग कर रहे थे। इन विधियों को प्रयोग करने का मुख्य कारण यही था कि जिन किसानों की जोतें छोटे आकार की हैं वे आधुनिक विधियों को प्रयोग करने में कम आय होने के कारण असमर्थ हैं। दूसरी ओर बड़े किसानों की आय अधिक होने के कारण वे आधुनिक विधि का प्रयोग करने में समर्थ हैं।

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प्रश्न 2.
उसके द्वारा सिंचाई के कौन-से स्त्रोत का प्रयोग हो रहा हैं ?
उत्तर-
मेरे गांव में अधिकतर किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर हैं परंतु कुछ बड़े किसान ट्यूवबैल, पंपसैट से भी सिंचाई करते हैं।

प्रश्न 3.
किसानों द्वारा बोई जाने वाली फसलों के प्रकार तथा इन फसलों को बीजने तथा काटने का समय क्या है ?
उत्तर-
मेरे गांव के किसान खरीफ़ तथा रवी दोनों प्रकार की फसलें उगाते हैं। खरीफ मौसम में मक्की, सूरजमुखी तथा चावल उगाते हैं तथा सर्दी से पहले इनकी कटाई हो जाती है। सर्दी में रवी फसल जैसे गेहूं, जौ, चना, सरसों उगाते हैं तथा अप्रैल मास में इनकी कटाई करते हैं।

प्रश्न 4.
किसानों द्वारा प्रयुक्त खादों व कीटनाशक दवाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर-
खादों के नाम-

  1. यूरिया (Urea)
  2. वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost)
  3. जिप्सम (Gypsum)

कीटनाशक-

  1. Emanection Benzoate
  2. RDX BIO Pesticide
  3. Bitentrin 2.5% Ec
  4. Star one.

गतिविधि-2

प्रश्न 1.
अपने गांव या निकटवर्ती गांव के खेतों में जाकर पता करें कि किसान खेतों में पराली जला रहे हैं या नहीं ? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें ऐसा करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समझाइए।
उत्तर-
गांव के खेतों में जाने से मालूम हुआ कि किसान अगली फसल की बुआई करने की जल्दी के कारण विशेष रूप से धान की कटाई के बाद व गेहूं की बुआई से पहले अवशेषों को ठिकाने लगाने की व्यवस्था के अभाव में जल्दी हल के लिए वे खेतों में ही खूटी (Stubble) को जला रहे थे। मैंने उन्हें ऐसा करने से होने वाले बुरे परिणामों से अवगत करवाया उन्हें बताया कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है जो कि वातावरण असंतुलन फैलाता है। इससे भूमि की ऊपरी सतह का तापमान बढ़ जाता है जिसने विभिन्न प्रकार के जीवाणु, कवक, मित्र कीट आदि मर जाते हैं तथा भूमि के आवश्यक तत्वों का नाश होता है।

आइए चर्चा करें:

प्रश्न 1.
लघु स्तर के किसानों को बड़े स्तर के किसानों के खेतों में श्रमिकों की तरह कार्य क्यों करना पड़ता है ?
उत्तर-
उन्हें अपनी आजीविका कमाने के लिए श्रमिक के रूप में काम करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने बड़े किसानों से निर्धनता के कारण ऋण लिए होते हैं जिसकी अदायगी के लिए उन्हें अपने खेतों को भी देना पड़ जाता है।

प्रश्न 2.
क्या कृषि श्रमिकों को पूरे वर्ष के लिए रोजगार उपलब्ध हो जाता है ?
उत्तर-
नहीं, खेतिहर मजदूरों को पूरे वर्ष भर रोज़गार नहीं मिलता। उन्हें दैनिक मज़दूरी आधार पर अथवा किसी विशेष खेती पर होने वाले क्रियाकलाप के दौरान जैसे कटाई या बुआई के समय ही काम मिलता है। वे मौसमी रोज़गार प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
कृषि श्रमिक को अपना पारिश्रमिक किस रूप में मिलता है।
उत्तर-
वे नकदी अथवा प्रकार में भी जैसे अनाज (चावल या गेहूँ) के रूप में भी मज़दूरी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 4.
प्रवासी श्रमिक किन्हें कहा जाता हैं ?
उत्तर-
जब बड़े किसानों के खेतों में अन्य राज्यों से लोग आकर मजदूरी पर काम करते हैं तो उन्हें प्रवासी मजदूर कहते हैं।

प्रश्न 5.
श्रमिक प्रवास क्यों करते हैं ? अपने अध्यापक महोदय के साथ चर्चा करें।
उत्तर-
श्रमिक इसलिए प्रवास करते हैं क्योंकि उनके स्थान पर आजीविका कमाने के लिए काम उपलब्ध नहीं होता है। हमने अपने गांव में देखा है कि अन्य राज्यों से लोग अपने वहां काम के अभाव से यहां गांव में आते हैं। इन्हें प्रवासी मज़दूर के नाम से जाना जाता है।

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PSEB 9th Class Social Science Guide एक गांव की कहानी Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें:

  1. वे सभी वस्तुएं जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं, ……. कहलाती हैं।
  2. किसी वस्तु की प्रति इकाई को ………… लागत कहते हैं।
  3. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमांत आय ……… होती है।
  4. उत्पादन के मुख्य …………. साधन हैं।
  5. ……….. में समरूप वस्तु के बहुत सारे क्रेता और विक्रेता होते हैं।
  6. आर्थिक लगान केवल …………. की सेवाओं के लिए प्राप्त होता है।
  7. दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु अथवा सेवा की पूर्ति का उसकी मांग से ……. होता है।
  8. …………. वह इकाई है जो लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से बिक्री के लिए उत्पादन करती है।
  9. …………. वह स्थिति है जिसमें एक बाज़ार में केवल एक ही उत्पादक होता है।
  10. किसी वस्तु की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की शक्ति है।

उत्तर-

  1. पदार्थ
  2. औसत
  3. समान
  4. चार
  5. पूर्ण प्रतियोगिता
  6. भूमि
  7. कम
  8. फर्म :
  9. एकाधिकार
  10. उपयोगिता।।

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
इनमें से कौन मुद्रा का एक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का मापदंड
(ग) धन का संग्रह
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन पदार्थ का प्रकार नहीं हैं ?
(क) भौतिक
(ख) संतुलित
(ग) नाशवान
(घ) टिकाऊ।
उत्तर-
(ख) संतुलित

प्रश्न 3.
इनमें से कौन उद्यमी का पारितोषिक है ?
(क) लाभ
(ख) लगान
(ग) मजदूरी
(घ) ब्याज।
उत्तर-
(क) लाभ

प्रश्न 4.
ब्याज किसकी सेवाओं के बदले में दिया जाता है?
(क) भूमि
(ख) श्रम
(ग) पूंजी
(घ) उद्यमी।
उत्तर-
(ग) पूंजी

प्रश्न 5.
किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो राशि प्राप्त होती है उसे कहते हैं ?
(क) आगम
(ख) उपयोगिता
(ग) मांग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) आगम

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प्रश्न 6.
दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु की पूर्ति का उसकी मांग से होना है-
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) समान
(घ) इनमें कोई नहीं।
(ख) उत्पादन की मात्रा
उत्तर-
(क) कम

प्रश्न 7.
औसत आय निकालने का सूत्र क्या है ?
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (1)
(ग) कुल आय × उत्पादन की मात्रा
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
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प्रश्न 8.
इनमें से कौन पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषता है ?
(क) समरूप वस्तु
(ख) समान कीमत
(ग) पूर्ण ज्ञान
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
एक विक्रेता व अधिक क्रेता किस बाज़ार का लक्ष्य है ?
(क) एकाधिकार
(ख) पूर्ण प्रतियोगिता
(ग) अल्पाधिकार
(घ) एकाधिकार प्रतियोगिता।
उत्तर-
(क) एकाधिकार

प्रश्न 10.
इनमें से कौन बाज़ार का एक प्रकार है ?
(क) अल्पाधिकार
(ख) पूर्ण प्रतियोगिता
(ग) एकाधिकार
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

सही/गलत :

  1. U.S.A. की करंसी डॉलर है।
  2. अध्यापक द्वारा घर में अपने बच्चे को पढ़ाना एक आर्थिक क्रिया है।
  3. भूमि की पूर्ति असीमित है।
  4. एक एकड़ 8 कनाल के बराबर होता है।
  5. हमारे देश में कुल खेती योग्य क्षेत्र का केवल 40 प्रतिक्षत क्षेत्र ही सिंचाई योग्य है।
  6. पंजाब पांच नदियों की भमि है।
  7. भूमिगत जल का स्तर पंजाब में बढ़ रहा है।
  8. भारत में लगभग 70% स्त्रोतों का आकार 2 हैक्टेयर से भी कम है।
  9. श्रम को हम बेच अथवा खरीद नहीं सकते हैं।
  10. पूंजी में घिसावट होती है।

उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. ग़लत
  8. सही
  9. ग़लत
  10. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न।।

प्रश्न 1.
उपयोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
उपयोगिता किसी वस्तु की वह शक्ति अथवा गुण है जिसके द्वारा हमारी आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है।

प्रश्न 2.
सीमांत उपयोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपयोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है, उस सीमांत उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 3.
पदार्थ की परिभाषा दें।
उत्तर-
मार्शल के शब्दों में, “वे सभी वस्तुएं जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं, अर्थशास्त्र में पदार्थ कहलाती हैं।”

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती और अंतिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जाता है, जिनकी पुनः बिक्री की जाती है। अंतिम वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोग या निवेश के उद्देश्य से बाज़ार में बिक्री के लिए उपलब्ध

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प्रश्न 5.
पूंजीगत वस्तुओं की परिभाषा दें।
उत्तर-
वे पदार्थ जिनके द्वारा किसी दूसरी वस्तु का उत्पादन होता है, जैसे कच्चा माल, मशीन इत्यादि, पूंजीगत वस्तुएं कहलाती हैं।

प्रश्न 6.
वस्तुओं और सेवाओं में क्या अंतर है ?
उत्तर-
वस्तुओं को देखा, छुआ तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। सेवाओं को देखा, छुआ और हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
धन की परिभाषा दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में वे सभी वस्तुएं जो विनिमय साध्य हैं, जिनमें उपयोगिता है तथा जो सीमित मात्रा में हैं. धन कहलाती हैं।

प्रश्न 8.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु अथवा सेवा की पूर्ति का उसकी मांग से कम होता है।

प्रश्न 9.
क्या बी०ए० की डिग्री और व्यवसाय की साख धन है ?
उत्तर-

  1. बी०ए० की डिग्री धन नहीं है क्योंकि यह उपयोगी और दुर्लभ तो है पर हस्तांतरणीय नहीं होती।
  2. व्यवसाय की साख धन है क्योंकि इसमें धन के तीन गुण-उपयोगिता, दुर्लभता तथा विनिमय साध्यता हैं।

प्रश्न 10.
मुद्रा की परिभाषा दें।
उत्तर-
मुद्रा कोई भी वस्तुं हो सकती है जिसको सामान्य रूप से, वस्तुओं के हस्तांतरण में विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।

प्रश्न 11.
मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मांग किसी वस्तु की वह मात्रा है जिसे एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में, एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए इच्छुक तथा योग्य है।

प्रश्न 12.
पूर्ति की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जिसको एक विक्रेता एक निश्चित कीमत पर निश्चित समय-अवधि में बेचने के लिए तैयार होता है।

प्रश्न 13.
मौद्रिक लागत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु का उत्पादन और बिक्री करने के लिए मुद्रा के रूप में जो धन खर्च किया जाता है, उसे उस वस्तु की मौद्रिक लागत कहते हैं।

प्रश्न 14.
सीमांत लागत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने पर कुल लागत में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत लागत कहते हैं।

प्रश्न 15.
औसत लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की प्रति इकाई को औसत लागत कहते हैं। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा में भाग देने पर औसत लागत निकल आती है।

प्रश्न 16.
आय की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो राशि प्राप्त होती है, उसे फर्म की आय या आगम कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
सीमांत आय की परिभाषा दें।
उत्तर-
एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 18.
कीमत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु अथवा सेवा की एक निश्चित गुणवत्ता की एक इकाई प्राप्त करने के लिए दी जाने वाली मुद्रा की राशि को कीमत कहते हैं।

प्रश्न 19.
पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत आय और औसत आय में क्या संबंध होता है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में चूंकि कीमत (औसत आय) एक समान रहती है, इसलिए औसत आय तथा सीमांत आय दोनों बराबर होती हैं।

प्रश्न 20.
एकाधिकार की स्थिति में सीमांत आगम और औसत आगम में क्या संबंध होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार की स्थिति में अधिक उत्पादन बेचने के लिए कीमत (औसत आगम) कम करनी पड़ती है। इसलिए अगर औसत आगम और सीमांत आगम दोनों नीचे की ओर गिर रही होती हैं।

प्रश्न 21.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता वह स्थिति है जिसमें किसी समरूप वस्तु के बहुत सारे क्रेता और विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत उद्योग द्वारा निर्धारित होती है।

प्रश्न 22.
एकाधिकार की परिभाषा दें।
उत्तर-
एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु या सेवा का केवल एक ही उत्पादक होता है, पर वस्तु का कोई निकटतम प्रतिस्थानापन्न नहीं होता।

प्रश्न 23.
बाज़ार की परिभाषा दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं है बल्कि ऐसे क्षेत्र से है जहां क्रेता और विक्रेता में एक-दूसरे से इस प्रकार स्वतंत्र संपर्क हो कि एक ही प्रकार की वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति आसानी से एक होने की पाई जाए।

प्रश्न 24.
उत्पादन के साधनों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन की प्रक्रिया में शामिल होने वाली सेवाओं के स्रोतों को उत्पादन साधन कहा जाता है।

प्रश्न 25.
भूमि की परिभाषा दें।
उत्तर-
भूमि से अभिप्राय केवल ज़मीन की ऊपरी सतह से नहीं है, बल्कि उन सभी पदार्थों और शक्तियों से है जिन्हें प्रकृति, भूमि, पानी, हवा, प्रकाश और गर्मी के रूप में मनुष्य, की सहायता के लिए मुफ़्त प्रदान करती है।

प्रश्न 26.
पूंजी की परिभाषा दें।
उत्तर-
मार्शल के शब्दों में, “प्रकृति के मुफ़्त उपहारों को छोड़कर सब प्रकार की संपत्ति जिससे आय प्राप्त होती है, पूंजी कहलाती है।”

प्रश्न 27.
श्रम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मनुष्य के वे सभी शारीरिक तथा मानसिक कार्य जो धन प्राप्ति के लिए किए जाते हैं, श्रम कहलाते हैं।

प्रश्न 28.
उद्यमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उद्यमी उत्पादन का वह साधन है जो भूमि, श्रम, पूंजी तथा संगठन को इकट्ठा करता है, आर्थिक निर्णय करता है और जोखिम उठाता है।

प्रश्न 29.
लगान की परंपरागत परिभाषा दें।
उत्तर-
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “आर्थिक लगान वह लगान है जो सिर्फ़ भूमि की सेवाओं के लिए प्राप्त होता है।”

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प्रश्न 30.
लगान की आधुनिक परिभाषा दें।
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “उत्पादन के प्रत्येक साधन से आर्थिक लगान उत्पन्न होता है जबकि उसकी पूर्ति सीमित हो। किसी साधन की वास्तविक आय और हस्तांतरण आय के अंतर को लगान कहा जाता है।”

प्रश्न 31.
मज़दूरी की परिभाषा दें।
उत्तर-
मजदूरी से अभिप्राय उस भुगतान से है जो सभी प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक परिश्रम के लिए दिया जाता है।

प्रश्न 32.
वास्तविक मजदूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक मज़दूरी से अभिप्राय वस्तुओं तथा सेवाओं की उस मात्रा से है जो एक श्रमिक अपनी मजदूरी के बदले में प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 33.
नकद मज़दूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद मजदूरी मुद्रा की वह मात्रा है जो प्रति घंटा, प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रति मास के हिसाब से प्राप्त होती

प्रश्न 34.
ब्याज की परिभाषा दें।
उत्तर-
ब्याज वह कीमत है जो मुद्रा को एक निश्चित समय के लिए प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है।

प्रश्न 35.
कुल ब्याज तथा शुद्ध ब्याज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
कुल ब्याज से अभिप्राय उस सारे धन से है जो ऋणी ऋणदाता को देता है जबकि शुद्ध ब्याज कुल ब्याज का वह अंग है जो केवल पूंजी के उपयोग के लिए दिया जाता है।

प्रश्न 36.
लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक उद्यमी अपने व्यवसाय की कुल आय में से कुल लागत को घटाकर जो धनात्मक (-) शेष प्राप्त करता है, उसे लाभ कहते हैं।

प्रश्न 37.
कुल लाभ तथा शुद्ध लाभ में क्या अंतर है ?
उत्तर-
शुद्ध लाभ का अभिप्राय है कुल लाभ तथा आंतरिक लागतों का अंतर जबकि कुल लाभ का अभिप्राय है कुल आय तथा कुल बाहरी लागतों का अंतर।

प्रश्न 38.
कुल लाभ की परिभाषा दें।
उत्तर-
कुल लाभ वह अधिशेष है जो उत्पादन कार्य में उत्पादन के सभी साधनों को उनके परिश्रम का पुरस्कार चुकाने के बाद उद्यमी को प्राप्त होता है।

प्रश्न 39.
शुद्ध लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शुद्ध लाभ का अनुमान लगाने के लिए कुल लाभ में से आंतरिक.लागतों, घिसावट और बीमा आदि का खर्च . घटा दिया जाता है।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता की परिभाषा दें। उसकी विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
उपयोगिता की परिभाषा-उपयोगिता किसी वस्तु की वह शक्ति है जिसके द्वारा मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है। उपयोगिता की विशेषताएं

  1. उपयोगिता एक भावगत तथ्य है-उपयोगिता को हम केवल अनुभव कर सकते हैं, उसे स्पर्श अथवा देखा नहीं जा सकता।
  2. उपयोगिता सापेक्षिक है-यह समय, स्थान तथा व्यक्ति के साथ बदल जाती है।
  3. उपयोगिता का लाभदायक होना आवश्यक नहीं है-यह ज़रूरी नहीं कि जिस वस्तु की उपयोगिता है, वह लाभदायक भी हो।
  4. उपयोगिता का नैतिकता के साथ संबंध नहीं है-यह ज़रूरी नहीं कि जो वस्तु उपयोगी है, वह नैतिक दृष्टि से भी ठीक हो।

प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता, सीमांत उपयोगिता और औसत उपयोगिता की धारणाओं को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर-

  1. कुल उपयोगिता-किसी वस्तु की विभिन्न मात्राओं के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता की इकाइयों के जोड़ को कुल उपयोगिता कहा जाता है।
  2. सीमांत उपयोगिता-किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो परिवर्तन आता है, उसे सीमांत उपयोगिता कहते हैं। माना पहला रसगुल्ला खाने से एक व्यक्ति को 15 इंकाई उपयोगिता प्राप्त होती है। दूसरा रसगुल्ला खाने के फलस्वरूप दोनों रसगुल्लों से मिलने वाली कुल उपयोगिता 25 इकाई हो जाती है। अत: 25 – 15 = 10 इकाई सीमांत उपयोगिता है। इस प्रकार प्रारंभिक उपयोगिता 15 इकाई होगी।
  3. औसत उपयोगिता-किसी वस्तु की कुल इकाइयों की कुल उपयोगिता को इकाइयों की मात्रा से विभाजित करने से हमारे पास औसत उपयोगिता आ जाती है। 3 वस्तुओं से 15 उपयोगिता मिलती है तो एक वस्तु की औसत उपयोगिता \(\frac{15}{3}\) = 5 है।

प्रश्न 3.
पदार्थ की परिभाषा दें और उसका वर्गीकरण करें।
उत्तर-
पदार्थ की परिभाषा-मार्शल के शब्दों में, “वे सब पदार्थ जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं, अर्थशास्त्र में पदार्थ कहलाते हैं।”
पदार्थ का वर्गीकरण-

  1. भौतिक पदार्थ-जिन्हें देखा जा सकता है।
  2. अभौतिक पदार्थ या सेवाएं-जिन्हें देखा नहीं जा सकता।
  3. आर्थिक पदार्थ-ये वे पदार्थ हैं जो मूल्य द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।
  4. निःशुल्क पदार्थ-वे पदार्थ हैं जो बिना किसी मूल्य के मिल जाते हैं।
  5. उपभोक्ता पदार्थ उपभोक्ता की आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करते हैं।
  6. उत्पादक पदार्थ-अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होते हैं।
  7. नाशवान् पदार्थ-जिनका केवल एक बार ही प्रयोग किया जा सकता है।
  8. टिकाऊ पदार्थ-वे पदार्थ जो काफ़ी समय तक काम में लाए जा सकते हैं।
  9. मध्यवर्ती पदार्थ-मध्यवर्ती पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।
  10. अंतिम पदार्थ-अंतिम पदार्थ वे पदार्थ हैं जो उपभोग या निवेश के उद्देश्य से बाज़ार में बिक्री के लिए उपलब्ध
  11. सार्वजनिक पदार्थ-जिन पदार्थों पर सरकार का स्वामित्व होता है।
  12. निजी पदार्थ-वे पदार्थ जिन पर किसी व्यक्ति का निजी अधिकार होता है।
  13. प्राकृतिक पदार्थ-जो प्रकृति ने लोगों को उपहार के रूप में प्रदान किए हैं।
  14. मानव द्वारा निर्मित पदार्थ-जिनका उत्पादन मानव द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की परिभाषा दें। मुद्रा के मुख्य कार्य कौन-से हैं ?
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको सामान्य रूप से, वस्तुओं के हस्तांतरण में विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
मुद्रा के कार्य-

  1. विनिमय का माध्यम-सभी वस्तुएं मुद्रा के द्वारा खरीदी और बेची जाती हैं।
  2. मूल्य का मापदंड-सभी वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में ही व्यक्त किया जाता है।
  3. भावी भुगतान का मान-सभी प्रकार के ऋण मुद्रा के रूप में ही लिए और दिए जाते हैं।
  4. धन का संग्रह- मुद्रा के रूप में धन का संग्रह करना सरल हो जाता है।
  5. विनिमय शक्ति का हस्तांतरण-मुद्रा के रूप में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से भेजा जा सकता है।

प्रश्न 5.
मांग से क्या अभिप्राय है ? एक तालिका और रेखाचित्र की सहायता से मांग की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
मांग का अर्थ-“मांग किसी वस्तु की वह मात्रा है जिसको एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में, एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए इच्छुक और योग्य है।”
मांग तालिका–मांग की धारणा को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

कीमत (₹) मांग की मात्रा (कि० ग्रा०)
1 40
2 30
3 20
4 10

तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत बढ़ती जाती है, उसकी मांग कम होती जाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (3)
मांग वक्र-मांग वक्र वह वक्र है जो मांग और कीमत का संबंध प्रकट करता है। मांग वक्र की सहायता से भी मांग को स्पष्ट किया जा सकता है। जब कीमत ₹ 1 है तो मांग 40 इकाइयां है, जब कीमत ₹4 है तो मांग 10 इकाइयां है। इस प्रकार मांग वक्र का ढलान ऊपर से बाईं ओर तथा नीचे दाईं
ओर होता है जो यह दर्शाता है कि कीमत अधिक होने पर मांग कम होती है और कीमत कम होने पर मांग अधिक होती है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 6.
पूर्ति की परिभाषा दें। एक तालिका और रेखाचित्र द्वारा पूर्ति की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पूर्ति की परिभाषा-किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जिसको एक विक्रेता एक निश्चित समय में किसी कीमत पर बेचने के लिए तैयार होता है।
पूर्ति तालिका-पूर्ति तालिका एक ऐसी तालिका है जिसके द्वारा वस्तु की पूर्ति की मात्रा का उसकी कीमत से संबंध दिखाया जा सकता है।
पूर्ति तालिका-पूर्ति की धारणा को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

कीमत (₹) मांग की मात्रा (कि० ग्रा०)
1 0
2 10
3 20
4 30

तालिका से स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत बढ़ रही है, उसकी पूर्ति की मात्रा भी बढ़ रही है। इस प्रकार पूर्ति तालिका कीमत और बेची जाने वाली मात्रा के संबंध को दिखाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (4)
पूर्ति वक्र-पूर्ति वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की कीमत तथा पूर्ति का संबंध प्रकट करता है। रेखाचित्र में पूर्ति वक्र है जो बाएं से दाएं ऊपर को जा रहा है। SS पूर्ति वक्र के धनात्मक ढलान से ज्ञात होता है कि कीमत के बढ़ने पर पूर्ति बढ़ती है और कीमत के कम होने पर पूर्ति कम होती है।

प्रश्न 7.
लागत की परिभाषा दें। कुल लागत, सीमांत लागत और औसत लागत की धारणाओं की व्याख्या करें।
उत्तर-
लागत की परिभाषा-किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के साधनों को जो कुल मौद्रिक भुगतान करना पड़ता है, उसे मौद्रिक उत्पादन लागत कहते हैं।
कुल लागत-किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन पाने के लिए जो धन खर्च करना पड़ता है, उसे कुल लागत कहते हैं।
औसत लागत-किसी वस्तु की प्रति इकाई लागत को औसत लागत कहते हैं। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत का पता लगता है।
कुल लागत
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (5)
सीमांत लागत-सीमांत लागत कुल लागत में वह परिवर्तन है जो एक वस्तु की एक और इकाई पैदा करने पर खर्च आती है।

प्रश्न 8.
आय की परिभाषा दें। कुल आय, सीमांत आय और औसत आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय की परिभाषा-किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो कुल राशि प्राप्त होती है, उसे फ़र्म की आगम (आय) कहा जाता है।
कुल आय-एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा बेच कर जो धन प्राप्त होता है, उसे कुल आय कहते हैं।
सीमांत आय–एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक इकाई अधिक बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसको सीमांत आय कहा जाता है।
औसत आय-किसी वस्तु की बिक्री से प्राप्त होने वाली प्रति इकाई आगम औसत आय कहलाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (6)

प्रश्न 9.
फ़र्म की परिभाषा दें। एक उत्पादक के रूप में फ़र्म के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
फ़र्म की परिभाषा-फ़र्म उत्पादन की वह इकाई है जो लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से बिक्री के लिए उत्पादन करती है।
एक उत्पादक के रूप में फ़र्म के कार्य-उत्पादक के रूप में फ़र्म वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है और उनकी बिक्री करती है। एक फ़र्म अपना उत्पादन न्यूनतम लागत पर करने का प्रयत्न करती है और वह उसको बेचकर अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहती है। एक उत्पादक के रूप में फ़र्म वास्तव में उद्यमी का ही एक रूप होती है।

प्रश्न 10.
बाजार की परिभाषा दें। बाजार की मख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
बाज़ार की परिभाषा-कूरनो के शब्दों में, “अर्थशास्त्री बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं लेते जहां वस्तुएं खरीदी या बेची जाती हैं बल्कि उस सारे क्षेत्र से लेते हैं जहां क्रेता और विक्रेता में एक-दूसरे से इस प्रकार स्वतंत्र संपर्क हो कि एक ही प्रकार की वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति आसानी और शीघ्रता से एक होने की पाई जाए।”
बाज़ार की मुख्य विशेषताएं-

  1. क्षेत्र-अर्थशास्त्र में ‘बाज़ार’ शब्द से आशय किसी स्थान विशेष से नहीं है बल्कि बाज़ार का बोध उस संपूर्ण क्षेत्र से होता है, जिसमें बेचने वाले और खरीदने वाले फैले होते हैं।
  2. एक वस्तु-अर्थशास्त्र में ‘बाजार’ एक ही वस्तु का माना जाता है; जैसे घी का बाज़ार, फल का बाज़ार इत्यादि।
  3. क्रेता-विक्रेता-क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही बाजार के महत्त्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग हैं।
  4. स्वतंत्र प्रतियोगिता-बाज़ार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं में स्वतंत्र रूप से प्रतियोगिता होनी चाहिए।
  5. एक कीमत-जब बाज़ार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं में स्वतंत्र प्रतियोगिता होगी तो इसका परिणाम यह होगा कि वस्तु की कीमत एक समय में एक ही होगी।

प्रश्न 11.
संतुलन की धारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
संतुलन का अर्थ-“संतुलन वह अवस्था है, जिसमें विरोधी दिशा में परिवर्तन लाने वाली शक्तियां पूर्ण रूप से एक-दूसरे के बराबर होती हैं अर्थात् परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती।”
उदाहरण के लिए, जब एक फ़र्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं, उसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। फ़र्म की इस स्थिति को संतुलन की स्थिति कहा जाएगा।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा दें। इसकी विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा-पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें बहुत सारी फ़र्मे होती हैं और वे सभी एक समरूप वस्तु की बिक्री करती हैं। इस अवस्था में फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है न कि निर्धारित करने वाली।
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं-पूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या
  2. समरूप वस्तुएं
  3. पूर्ण ज्ञान
  4. फ़र्मों का स्वतंत्र प्रवेश व निकास
  5. समान कीमत
  6. साधनों में पूर्ण गतिशीलता।

प्रश्न 13.
एकाधिकार की परिभाषा दें। इसकी विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
एकाधिकार की परिभाषा-एकाधिकार वह स्थिति है जिसमें बाजार में एक वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है।
एकाधिकार की विशेषताएं-एकाधिकार बाजार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  1. एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। वस्तु के क्रेता बहुत अधिक संख्या में होते हैं।
  2. नई फ़र्मे बाज़ार में नहीं आ सकतीं-एकाधिकारी बाज़ार में कोई नई फ़र्म प्रवेश नहीं कर सकती।
  3. निकटतम स्थानापन्न नहीं होता-एकाधिकार बाज़ार में उत्पादित वस्तुओं का कोई निकटतम स्थानापन्न नहीं होता।
  4. कीमत पर नियंत्रण-एकाधिकारी का वस्तु की कीमत पर नियंत्रण होता है।

प्रश्न 14.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ? उनके मुख्य प्रकार कौन-से हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाओं का अर्थ-आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जिनका संबंध धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा वितरण से होता है। इन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य धन की प्राप्ति होता है।
आर्थिक क्रियाओं के प्रकार-

  1. उपभोग-उपभोग वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता के उपभोग से होता है।
  2. उत्पादन-उत्पादन वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता या कीमत में वृद्धि करने से है।
  3. विनिमय-विनिमय वह क्रिया है जिसका संबंध किसी वस्तु के क्रय-विक्रय से है।
  4. वितरण-वितरण का संबंध उत्पादन के साधनों की कीमत अर्थात् भूमि की कीमत (लगान), श्रम की कीमत (मज़दूरी), पूंजी की कीमत (ब्याज) और उद्यमी को प्राप्त होने वाली कीमत (लाभ) के निर्धारण से है।

प्रश्न 15.
आर्थिक और अनार्थिक क्रियाओं में अंतर बताओ।
उत्तर-
यदि कोई क्रिया धन प्राप्त करने के लिए की जाती है तो इस क्रिया को आर्थिक क्रिया कहा जाता है। इसके विपरीत यदि वह ही क्रिया मनोरंजन, धर्म, प्यार, दया, देश-प्रेम, समाज-सेवा, कर्त्तव्य आदि उद्देश्यों के लिए की जाती है तो उसको अनार्थिक क्रिया कहा जायेगा। इस अंतर को एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। माना अर्थशास्त्र के अध्यापक 500 रुपए प्रति माह फीस लेकर आपको एक घंटा घर पर ही अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं तो उनकी यह क्रिया आर्थिक क्रिया कहलाती है। इसके विपरीत यदि वह आपको एक निर्धन विद्यार्थी होने के नाते बिना कोई फीस लिए मुफ्त में अर्थशास्त्र पढाते हैं, तो उनकी यह क्रिया अनार्थिक क्रिया कहलाती है।

प्रश्न 16.
भूमि की परिभाषा दें। इसकी मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
भूमि की परिभाषा-अर्थशास्त्र में भूमि के अंतर्गत भूमि की ऊपरी सतह ही नहीं बल्कि पृथ्वी के तल पर, उसके नीचे और उसके ऊपर, प्रकृति द्वारा निःशुल्क प्रदान की जाने वाली सब वस्तुएं सम्मिलित हो जाती हैं, जो धनोत्पादन में मनुष्य की सहायता करती हैं।
भूमि की मुख्य विशेषताएं-

  1. भूमि परिमाण में सीमित है।
  2. भूमि उत्पादन का प्राथमिक साधन है।
  3. भूमि स्थिर है।
  4. भूमि उपजाऊपन की दृष्टि से भिन्नता रखती है।
  5. भूमि अक्षय है।
  6. भूमि का मूल्य स्थिति पर निर्भर करता है।
  7. भूमि प्रकृति की नि:शुल्क देन है।
  8. भूमि उत्पादन का निष्क्रिय साधन है।

प्रश्न 17.
श्रम से क्या अभिप्राय है ? इसकी मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
श्रम का अर्थ-साधारण भाषा में श्रम का आशय उस प्रयत्न या चेष्टा से है जो किसी कार्य के संपादन हेतु किया जाता है लेकिन श्रम का यह व्यापक अर्थ अर्थशास्त्र में नहीं लिया जाता। अर्थशास्त्र में किसी प्रतिफल के लिए किया गया मानवीय प्रयत्न, मानसिक या शारीरिक श्रम कहलाता है।
श्रम की मुख्य विशेषताएं-

  1. श्रम एक मानवीय साधन है।
  2. श्रम एक सक्रिय साधन है।
  3. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है।
  4. श्रम नाशवान होता है।
  5. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है अपने आपको नहीं बेचता है।
  6. श्रमिक उत्पादन का साधन और साध्य दोनों है।
  7. श्रमिक की कार्यकुशलता में विभिन्नता पाई जाती है।
  8. श्रम में गतिशीलता होती है।

प्रश्न 18.
पूंजी की परिभाषा दें। इसकी मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
पूंजी की परिभाषा–मार्शल के शब्दों में, “प्रकृति प्रदत्त उपहारों के अतिरिक्त पूंजी में सभी प्रकार की संपत्ति शामिल होती है जिससे आय प्राप्त होती है।”
पूंजी की विशेषताएं-

  1. पूंजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन है।
  2. पूंजी में उत्पादकता होती है।
  3. पूंजी अत्यधिक गतिशील होती है।
  4. पूंजी श्रम द्वारा उत्पादित होती है।
  5. पूंजी में ह्रास होता है।
  6. पूंजी बचत किए गए धन का एक रूप है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 19.
उद्यमी से क्या अभिप्राय है ? उद्यमी के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रत्येक व्यवसाय में चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा, कुछ-न-कुछ जोखिम अथवा लाभ-हानि की अनिश्चितता अवश्य बनी रहती है। इस जोखिम को सहन करने वाले व्यक्ति को ‘साहसी’ या ‘उद्यमी’ कहा जाता है।
उद्यमी के कार्य-

  1. व्यवसाय का चुनाव करता है।
  2. उत्पादन का पैमाना निर्धारित करता है।
  3. साधनों का अनुकूलतम संयोग प्राप्त करता है।
  4. उत्पादन के स्थान का निर्धारण करता है।
  5. वस्तु का चयन करता है।
  6. वितरण संबंधी कार्य करता है।
  7. जोखिम उठाने का दायित्व उद्यमी पर होता है।

प्रश्न 20.
लगान की धारणा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साधारण बोलचाल की भाषा में लगान या किराया शब्द का प्रयोग उस भुगतान के लिए किया जाता है जो किसी वस्तु जैसे मकान, दुकान, फर्नीचर, क्राकरी आदि की सेवाओं का उपयोग करने के लिए अथवा उत्पादन के साधनों के रूप में प्रयोग करने के लिए नियमित रूप से एक निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है। परंतु अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। प्रो० कारवर के अनुसार, “भूमि के प्रयोग के लिए दी गई कीमत लगान है।” परंतु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग उत्पादन के उन साधनों को दिए जाने वाले भुगतान के लिए ही किया जाता है जिनकी पूर्ति बेलोचदार होती है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी साधन की वास्तविक आय तथा हस्तान्तरण आय के अंतर को लगान कहते हैं।

प्रश्न 21.
मज़दूरी की परिभाषा दें। नकद और वास्तविक मजदूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मजदूरी की परिभाषा-मजदूरी से अभिप्राय उस भुगतान से है जो सभी प्रकार की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं के लिए दिया जाता है।
नकद मजदूरी-जो मजदूरी रुपयों के रूप में दी जाती है, उसे नकद मज़दूरी कहते हैं। यह दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक हो सकती है।
वास्तविक मजदूरी-श्रमिक को मुद्रा के अतिरिक्त जो वस्तुएं या सुविधायें प्राप्त होती हैं, उसे असल या वास्तविक मज़दूरी कहते हैं; जैसे—मुफ़्त मकान, पानी, बिजली, चिकित्सा सुविधा, शिक्षा आदि।

प्रश्न 22.
ब्याज की परिभाषा दें। शुद्ध और कुल ब्याज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की परिभाषा-ब्याज वह कीमत है जो मुद्रा को एक निश्चित समय के लिए प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है।
कुल ब्याज-एक ऋणी द्वारा वास्तव में ऋणदाता को ब्याज के रूप में जो कुल भुगतान किया जाता है, उसको कुल ब्याज कहते हैं।
शुद्ध ब्याज-शुद्ध ब्याज वह धनराशि है जो केवल मुद्रा के प्रयोग के बदले में चुकाई जाती है। चैपमैन के शब्दों में, “शुद्ध ब्याज पूंजी के ऋण के लिए भुगतान है, जबकि कोई जोखिम न हो, कोई असुविधा न हो, (बचत की असुविधा को छोड़कर) और उधार देने वाले के लिए कोई कार्य न हो।”

प्रश्न 23.
लाभ की धारणा से क्या अभिप्राय है ? कुल और शुद्ध लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लाभ का अर्थ-साहसी को जोखिम के बदले में जो कुछ मिलता है, वह लाभ कहलाता है अर्थात् राष्ट्रीय आय का वह भाग जो किसी साहसी को अपने साहस के कारण प्राप्त होता है, उसे लाभ कहते हैं। कुल आय में से यदि कुल खर्च निकाल दिया जाए तो जो शेष बचे, उसे लाभ कहते हैं।
कुल लाभ-कुल आगम में से यदि हम उत्पादन की स्पष्ट लागतें घटा दें तो जो अतिरेक बचता है, उसे कुल लाभ कहा जाता है।
कुल लाभ = कुल आगम – स्पष्ट लागत
शुद्ध लाभ-यदि कुल आगम में से स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों लागतें घटा दें तो जो अतिरेक बचता है, उसे शुद्ध लाभ कहा जाता है।
शुद्ध लाभ = कुल आगम – (स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागत)

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार किसे कहते हैं ? बाज़ार के वर्गीकरण के मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बाज़ार का अर्थ-बाज़ार वह सम्पूर्ण क्षेत्र होता है जहां क्रेता और विक्रेता सम्पर्क में आते हैं।
बाज़ार के वर्गीकरण का आधार-बाज़ार का विस्तृत रूप से निम्नलिखित भागों में वर्गीकरण किया जाता है। जैसे-

  1. पूर्ण प्रतियोगी
  2. एकाधिकार
  3. एकाधिकारी प्रतियोगिता।

इस वर्गीकरण के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं-

  1. क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या-यदि बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत है तो वह पूर्ण प्रतियोगी अथवा एकाधिकारी प्रतियोगिता का बाज़ार होता है। यदि बाज़ार में वस्तु का केवल एक विक्रेता हो और क्रेताओं की संख्या अधिक हो तो वह एकाधिकारी बाज़ार होगा। यदि बाज़ार में वस्तु के थोड़े विक्रेता हों तो वह अल्पाधिकारी बाज़ार होगा।
  2. वस्तु की प्रकृति-यदि बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु एकसमान है तो वह पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार की स्थिति होगी और इसके विपरीत वस्तु की विभिन्नता एकाधिकारी प्रतियोगिता का आधार माना जाता है।
  3. कीमत नियन्त्रण की डिग्री-बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु की कीमत पर यदि फ़र्म का पूर्ण नियन्त्रण हो तो वह एकाधिकारी होगा। आंशिक नियन्त्रण हो तो एकाधिकारी प्रतियोगिता होगी। शून्य नियन्त्रण पर पूर्ण प्रतियोगिता होती है।
  4. बाज़ार का ज्ञान-यदि क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाज़ार की स्थितियों का पूर्ण ज्ञान हो तो पूर्ण प्रतियोगिता होगी। इसके विपरीत अपूर्ण ज्ञान एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषता है।
  5. साधनों की गतिशीलता- पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में उत्पादन साधनों की गतिशीलता पूर्ण होती है परन्तु बाज़ार के अन्य प्रकारों में साधनों की गतिशीलता सामान्य नहीं होती।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ?
उत्तर-
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं

  1. विनिमय का माध्यम-मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम है। इसका अभिप्राय यह है कि मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है तथा दूसरी वस्तुओं को खरीदता है। मुद्रा क्रय तथा विक्रय दोनों में ही एक मध्यस्थ का कार्य करती है। मुद्रा को विनिमय के माध्यम के रूप में लोग सामान्य रूप से स्वीकार करते हैं। इसलिए मुद्रा के द्वारा लोग अपनी इच्छा से विभिन्न वस्तुएं खरीद सकते हैं।
  2. मूल्य की इकाई-मुद्रा का दूसरा कार्य वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को मापना है। मुद्रा लेखे की इकाई के रूप में मूल्य का माप करती है। लेखे की इकाई से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु तथा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जाता है।
  3. स्थगित भुगतानों का मान-जिन लेन-देनों का भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है, उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है। मुद्रा के फलस्वरूप स्थगित भुगतान सरल हो जाता है।
  4. मूल्य का संचय-मुद्रा मूल्य के संचय के रूप में कार्य करती है। मुद्रा के मूल्य संचय का अर्थ है धन का संचय। इससे अभिप्राय यह है कि मुद्रा को वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए खर्च करने का तुरन्त कोई विचार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचाता है। इसे ही मूल्य का संचय कहा जाता है।
  5. मूल्य का हस्तान्तरण-मुद्रा के कारण मूल्य का हस्तांतरण सुविधाजनक बन गया है। आज इस युग में लोगों की आवश्यकताएं बढ़ गई हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूर-दूर से वस्तुएं खरीदी जाती हैं। मुद्रा में तरलता तथा सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण इसका एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तान्तरण आसान हो जाता है।
  6. साख निर्माण का आधार-आज लगभग सभी देशों में चेक, ड्राफ्ट, विनिमय-पत्र इत्यादि साख-पत्रों का प्रयोग किया जाता है। इन साख-पत्रों का आधार मुद्रा ही है। लोग अपनी आय में से कुछ राशि बैंकों में जमा करवाते हैं। इस जमा राशि के आधार पर ही बैंक साख का निर्माण करते हैं।

एक गांव की कहानी PSEB 9th Class Economics Notes

  • अर्थशास्त्र – अर्थशास्त्र मनुष्य के उन कार्यों का अध्ययन है जो हमें यह बताता है कि किस प्रकार दुर्लभ साधनों का प्रयोग करके अधिकतम संतुष्टि प्राप्त की जा सकती है।।
  • वस्तुएं – वस्तुएं वे दृश्य मदें हैं जो मनुष्य की आवश्यकताएं पूरी करती हैं जैसे किताब, कुर्सी, मोबाइल आदि।
  • सेवाएं – सेवाएं अदृश्य मदें हैं परंतु मनुष्य की आवश्यकताएं संतुष्ट करती हैं जैसे अध्यापन।
  • उपयोगिता – आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की शक्ति उपयोगिता है।
  • कीमत – वस्तुओं और सेवाओं का वह मूल्य जो मुद्रा में व्यक्त किया जाता है।
  • धन – वे सभी वस्तुएं तथा सेवाएं जो हम उपभोग करने के लिए कीमत देकर खरीदते हैं।
  • मुद्रा – मुद्रा वह पदार्थ है जो सरकार द्वारा जारी किया जाता है तथा जिसे विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  • मांग – अन्य बातें समान रहने पर, मांग किसी वस्तु की वह मात्रा है जिसे एक उपभोक्ता निश्चित कीमत तथा निश्चित समय पर खरीदने के लिए तैयार होता है।
  • पूर्ति – पूर्ति किसी पदार्थ की वह मात्रा है जिसे एक उत्पादक निश्चित कीमत तथा निश्चित समय पर बेचने के लिए तैयार होता है।
  • बाज़ार – बाज़ार एक स्थान है जहां क्रेता व विक्रेता एक साथ पाए जाते हैं।
  • लागत – लागत मुद्रा के रूप में व्यय की गई वह मात्रा है जो वस्तु को बनाने से लेकर विक्री तक के बीच लगाई जाती है।
  • आगम – आगम मुद्रा की वह मात्रा है जो किसी वस्तु की विक्री से प्राप्त होता है।
  • आर्थिक क्रियाएं – आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।
  • गैर आर्थिक क्रियाएं – वे क्रियाएं जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं।।
  • उत्पादन – उपयोगिता का सृजन उत्पादन है।
  • उत्पादन के साधन – भूमि, पूंजी, श्रम, उद्यमी उत्पादन के साधन हैं।
  • भूमि – भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है जिसकी पूर्ति स्थिर है।
  • श्रम – धन कमाने के उद्देश्य से किए गए सभी मानवीय प्रयास श्रम है।
  • बहुविविध कृषि – भूमि के एक टुकड़े पर एक वर्ष में एक साथ एक से अधिक फसलें एक साथ उगाना बहु विविध कृषि कहलाती हैं।
  • पूंजी – पूंजी का अर्थ उन सभी मानव निर्मित पदार्थों से है जो आगे उत्पादन करने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं।
  • उद्यमी – वह मानवीय तत्व जो उत्पादन संबंधी निर्णय तथा जोखिम उठाता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

PSEB 9th Class Physical Education Guide नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो नशीली वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. शराब
  2. हशीश।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुएं किन दो क्रियाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं ?
उत्तर-

  1. पाचन क्रिया पर
  2. खेलने की शक्ति पर।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-

  1. लापरवाई तथा बेफिक्री।
  2. खेल भावना का अन्त।

प्रश्न 5.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 6.
शराब का असर पहले दिमाग पर होता है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 7.
तम्बाकू खाने से या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 8.
तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ता है अथवा कम होता है ?
उत्तर-
डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
तम्बाकू के प्रयोग से खांसी नहीं लगती और टी० बी० भी नहीं हो सकती। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है। सही अथवा ग़लत ।
उत्तर-
सही।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं की सूची बनाएं और यह भी बताएं कि नशीली वस्तुएं पाचन क्रिया और सोचने की शक्ति पर कैसे प्रभाव डालती हैं?
(Prepare a list of intoxicants and describe how these intoxicants affect on digestion and memory or thinking of a person ?)
उत्तर-
मादक पदार्थ ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिनके सेवन से किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना या शिथिलता आ जाती है। मनुष्य के स्नायु संस्थान पर सभी किस्म के मादक पदार्थों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे कई प्रकार के विचार, कल्पनाएं तथा भावनाएं पैदा होती हैं। इससे व्यक्ति में घबराहट, गुस्सा और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने से व्यक्ति का अपने व्यवहार और शरीर पर नियन्त्रण नहीं रहता। नशीली वस्तुएं निम्नलिखित हैं –

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. चरस
  7. कोकीन
  8. एलडरविन।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effects on Digestion)- नशीली वस्तुओं का पाचन क्रिया पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इनमें अम्लीय अंश बहुत अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय की कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और कई प्रकार के पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effects on Thinking) नशीली वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति अच्छी तरह बोल नहीं सकता और वह बोलने के स्थान पर तुतलाने लगता है। वह अपने पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। वह खेल में आई अच्छी स्थितियों के विषय में सोच नहीं सकता और न ही ऐसी स्थितियों से लाभ उठा सकता है।

प्रश्न 2.
खेल में हार नशीली वस्तुएं के प्रयोग के कारण हो सकती है, कैसे ?
(Intoxicants cause defeat in sports. How ?)
उत्तर-

  1. नशे में खेलते समय खिलाड़ी बहुत-से ऐसे काम कर जाता है जिससे टीम हार जाती है।
  2. नशे में खिलाड़ी विरोधी टीम की चालें नहीं समझ सकता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बनता है।
  3. यदि किसी खिलाड़ी को नशे में खेलते हुए पकड़ लिया जाए तो उसे खेल में से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि उसे इनाम मिलना है तो नहीं दिया जाता। इस प्रकार उसकी विजय पराजय में बदल जाती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुएं क्या हैं ? इनके दोषों का वर्णन करो। (What are intoxicants ? Discuss their harms.)
उत्तर-
मनुष्य प्राचीन काल से ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। उसका विश्वास था कि इनके प्रयोग से रोग दूर होते हैं तथा मन ताजा होता है। परन्तु बाद में इनके कुप्रभाव भी देखने में आये हैं। आज के वैज्ञानिक युग में अनेक नई-नई नशीली वस्तुओं का आविष्कार हुआ है जिसके कारण क्रीड़ा जगत् दुविधा में पड़ गया है। इन नशीली वस्तुओं के सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार हो कर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, एडरनलिन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।

प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए किसी-न-किसी खेल में भाग लेता है। वह अपने साथियों तथा पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप तथा सद्भावना की भावना रखता है। इसके विपरीत एक नशे का गुलाम व्यक्ति दूसरों की सहायता करना तो दूर रहा, अपना बुरा-भला भी नहीं सोच सकता। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए बोझ होता है। वह दूसरों के लिए सिरदर्दी बन जाता है। वह न केवल अपने जीवन को दुःखद बनाता है, बल्कि अपने परिवार और सम्बन्धियों के जीवन को भी नरक बना देता है। सच तो यह कि नशीली वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। इससे ज्ञान शक्ति, पाचन शक्ति, दिल, रक्त, फेफड़े आदि से सम्बन्धित अनेक रोग लग जाते हैं।
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना खिलाड़ियों के लिए ठीक नहीं होता।

नशीली वस्तुओं के दोष-जो खिलाड़ी नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं उनके दोष निम्नलिखित हैं –

  • चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • कदम लड़खड़ाते हैं।
  • मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  • खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बना जाता है।
  • पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  • तेजाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  • पेट में कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  • पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  • खेल के मैदान में खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  • कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  • खिलाड़ियों की स्मरण-शक्ति कम हो जाती है।
  • नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  • नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  • उसके शरीर में समन्वय नहीं होता।
  • नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य व्यक्ति के तापमान से 1.8°C सैंटीग्रेड कम होता है।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरे प्रभावों के बारे में जानकारी दो।
(Mention the adverse effects of intoxicants on the players and their performance.)
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के सेवन का खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो इस प्रकार है –

1. शारीरिक समन्वय एवं स्फूर्ति का अभाव (Loss of Co-ordination and Alertness)-नशे करने वाले खिलाड़ी में शारीरिक तालमेल तथा स्फूर्ति नहीं रहती। अच्छे खेल के लिये इनका होना बहुत ज़रूरी है। हॉकी, फुटबाल, वालीबाल आदि ऐसी खेलें हैं।

2. मन के सन्तुलन और एकाग्रचित्त का अभाव (Loss of Balance and Concentration) किसी खिलाड़ी की मामूली सी सुस्ती खेल का पासा पलट देती है। इतना ही नहीं, नशे में धुत खिलाड़ी एकाग्रचित्त नहीं हो सकता। इसलिए वह खेल के दौरान ऐसी गलतियां कर देता है जिसके फलस्वरूप उसकी टीम को पराजय का मुंह देखना पड़ता है।

3. लापरवाही तथा बेफिक्री (Carelessness) नशे में ग्रस्त खिलाड़ी बहुत लापरवाह और बेफिक्र होता है। वह अपनी शक्ति तथा दक्षता का उचित अनुमान नहीं लगा सकता। कई बार जोश में आकर वह ऐसी चोट खा जाता है जिससे उसे आयु पर्यन्त पछताना पड़ता है।

4. खेल भावना का अन्त (Lack of Sportsmanship) नशे में रहने से खिलाड़ी की खेल भावना का अन्त हो जाता है। नशा करने वाले खिलाड़ी की स्थिति अर्द्ध बेहोशी की होती है। उसके मन का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह खेल में अपनी ही हांकता है और साथी खिलाड़ी की कोई बात नहीं सुनता।

5. सोचने का अभाव (Lack of Thinking)-वह रैफरी या अम्पायर के उचित निर्णयों के प्रति असन्तोष व्यक्त करता है। सहनशीलता की शक्ति की कमी हो जाती है। अतः वह इस तरह करता है।

6. नियमों की अवहेलना (Breaking of Rules)—वह खेल के नियमों की अवहेलना करता है।

7.मैदान का लड़ाई का अखाड़ा बन जाना (Playfield Becomes Battlefield)नशे में रहने वाला खिलाड़ी खेल के मैदान को लड़ाई का अखाड़ा बना देता है।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी ने खेल के दौरान नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगा दी है। यदि खेल के दौरान कोई खिलाड़ी नशे की दशा में पकड़ा जाता है तो उसका जीता हुआ इनाम वापस ले लिया जाता है। इसलिए खिलाड़ियों को चाहिए कि वे स्वयं को हर प्रकार की नशीली वस्तुओं के सेवन से दूर रखें और सर्वोत्तम खेल का प्रदर्शन करके अपने और अपने देश के नाम को चार चांद लगायें।

प्रश्न 3.
शराब का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? शराब की हानियां लिखें।
(What are the effects of Alcohol on our body? Discuss harms of alcohol.)
उत्तर-
शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health) शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत-से लोगों को इस की लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं। फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है। कुछ समय पीने के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लगा जाती है।

शराब पीने के नुकसान निम्नलिखित हैं –

  1. शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग कमज़ोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  2. शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  3. शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  4. श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  5. शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता।
  6. लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  7. आविष्कारों से पता लगा है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  8. शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

प्रश्न 4.
सिगरेट या तम्बाकू का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? तम्बाकू की हानियां लिखें।
(What is the effect of cigarettes and tobacco on our body ? What are the harms of smoking ?)
उत्तर-
तम्बाकू से स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect of Smoking on Health)हमारे देश में तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग हैं जैसे तम्बाकू चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रख कर खाना, या गले में रख कर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव सिर पर पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।

तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं –

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बना सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की बीमारी लग सकती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों को टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है। विशेषकर छाती का कैंसरऔर गले का कैंसर।
  8. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • अध्याय की संक्षेप रूपरेखा (Brief Outline of the Chapter)
  • नशीली वस्तुएं-शराब, तम्बाकू, अफीम, भंग, चरस, हशीश, कोकीन, आदि नशीली वस्तुएं होती हैं।
  • नशीली वस्तुओं से हानियां-मानसिक सन्तुलन और पाचन क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कार्यक्षमता कम हो जाती है और बहुत तरह के रोग लग जाते हैं।
  • खिलाड़ियों के खेल पर नशीली वस्तुओं का प्रभाव-शारीरिक तालमेल और फुर्ती कम हो जाती है। मन में बेचैनी और मन की एकाग्रता कम हो जाती है। बेफिक्री और खेल भावना का अन्त नशीली वस्तुओं के कारण हो जाता है।
  • नशीली वस्तुओं द्वारा खेल में हार-नशे से खिलाड़ी खेल में बहुत गलतियां करता है और विरोधी खिलाड़ी की चालों को नहीं समझ पाता जिससे उसकी हार हो जाती है।
  • शराब के शरीर पर प्रभाव-शराब द्वारा नाड़ी प्रणाली और गुर्दो को रोग लग जाता है। इससे सांस के और दूसरे रोग लग जाते हैं।
  • तम्बाकू के शरीर पर प्रभाव-तम्बाकू खाने से हृदय, सांस और कैंसर के रोग हो जाते हैं। पेट खराब हो जाता है और दमा आदि रोग हो जाते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
समाज की परिभाषा दीजिए। इसके आवश्यक तत्त्व कौन-से हैं ? इसके उद्देश्यों की भी व्याख्या करें।
(Define Society. What are its essential elements ? Discuss its aims also.)
उत्तर-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह ही नहीं सकता। मनुष्य दूसरे मनुष्यों से मिले बिना नहीं रह सकता। मनुष्य स्वभाव से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में रहता है।
समाज का अर्थ (Meaning of the Society)—साधारण शब्दों में समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इकट्ठे हुए हैं और परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं ताकि अपने साझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें। विभिन्न लेखकों ने समाज शब्द की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य इस प्रकार हैं :-

  • डॉ० जैक्स Jenks) के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।” (“The term society means harmonious or at least peaceful relationship.”‘) .
  • मैकाइवर (MacIver) के अनुसार, “मनुष्यों का एक-दूसरे के साथ ऐच्छिक सम्बन्ध ही समाज है।” (“Society includes every willed relationship of man to man.”)
  • प्लेटो (Plato) ने समाज की परिभाषा इस प्रकार दी है, “समाज मनुष्य का बृहद् रूप है।” (“Society is a writ large of man.”)
  • गिडिंग्ज़ (Giddings) ने समाज की परिभाषा करते हुए लिखा है, “समाज व्यक्तियों का एक समूह है जो एकदूसरे के साथ कुछ सामान्य आदर्शों की पूर्ति के लिए सहयोग करते हैं।”
  • जी० डी० एच० कोल (G.D.H. Cole) का कहना है कि, “समाज बिरादरी में संगठित समुदायों व संस्थाओं का संयुक्त संगठन है।” (“Society is the complex of associations and institutions within the community.”)
  • डॉ० लीकॉक (Leacock) का कहना है कि, “समाज केवल राजनीतिक सम्बन्धों को ही नहीं बतलाता जिनसे कि मनुष्य आपस में बन्धे हुए हैं बल्कि यह मनुष्य के सभी प्रकार के सम्बन्धों और अनेक सामूहिक गतिविधियों की जानकारी कराता है।”
  • मैकाइवर (MacIver) ने कहा है कि “समाज सभी सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना है।” (“Society is the web of social relationship.”)
  • समर और केलर (Summer and Keller) के शब्दों में, “समाज ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो आजीविका उपार्जित करने के लिए और मनुष्य जाति की स्थिरता के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं।”
    सरल भाषा में मनुष्यों के सभी प्रकार के सम्बन्धों, समुदायों और संस्थाओं को जिनके द्वारा वे अपनी सामान्य आवश्यकताओं और उद्देश्यों की पूर्ति, जीवन रक्षा और उसके विकास का प्रयत्न करते हैं, समाज कहा जाता है।

समाज के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Society)-

अथवा

समाज की विशेषताएं (Characteristics of Society)-

समाज की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समाज के आवश्यक तत्त्व इस प्रकार हैं :

1. जनसमूह (Collection of People)—समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व लोगों का समूह है। जिस प्रकार पति और पत्नी के बिना परिवार नहीं बन सकता तथा विद्यार्थियों के बिना स्कूल नहीं बन सकता है, उसी प्रकार लोगों के समूह के बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

2. संगठन (Organisation) समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों में किसी किस्म का संगठन होना अनिवार्य है। मेले में इकट्ठे हुए लोगों को समाज नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन लोगों में संगठन नहीं होता।

3. सामान्य उद्देश्य (Common Aims)-समाज के सदस्यों के उद्देश्य सामान्य होते हैं। समाज का निर्माण किसी एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं होता बल्कि मानव-जीवन की सब समस्याओं की पूर्ति के लिए ही समाज प्रयत्न करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

4. शान्ति और सहयोग (Peace and Co-operation)-जन-समूह में शान्ति तथा सहयोग का होना आवश्यक है। समाज अपने उद्देश्यों की पूर्ति शान्तिमय वातावरण में ही कर सकता है। मनुष्यों में परस्पर सहयोग का होना भी आवश्यक है। बिना सहयोग के समाज अपना कार्य नहीं चला सकता।

5. ऐच्छिक सदस्यता (Voluntary Membership)—समाज की सदस्यता अनिवार्य नहीं बल्कि इसके सदस्य अपनी इच्छा द्वारा ही इसके सदस्य बनते हैं।

6. समान अधिकार (Equal Rights)-समाज के सभी सदस्य समान हैं और समाज से जो भी लाभ हो सकते हैं, सभी उनमें समानता के आधार पर भागीदार बन सकते हैं।

7. वफादारी (Loyalty) समाज के सदस्यों में समाज के प्रति वफादारी की भावना होना बहुत आवश्यक है। व्यक्ति को समाज के नियमों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।

समाज के उद्देश्य (Aims of Society)-
समाज के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सामाजिक भावना की पूर्ति (Fulfilment of Social Instinct)—मनुष्य के अन्दर सामाजिक भावना है अर्थात् यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह दूसरों के साथ मिल-जुल कर रहना चाहता है। अकेला व्यक्ति उदास रहता है और ऐसे में वह न तो खुद ही आनन्द ले सकता है न ही दुःखों को सहन कर सकता है। मनुष्य की यह सामाजिक भावना समाज द्वारा ही पूरी की जा सकती है।
  • भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfilment of Physical Wants)—समाज अपने सदस्यों की सभी आवश्यकताएं पूरी करने का प्रयत्न करता है ! अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता। समाज का सहारा लेकर उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं रहता। रोटी, पानी, कपड़े आदि के अतिरिक्त जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा की व्यवस्था करना समाज का उद्देश्य है।
  • व्यक्ति का पूर्ण विकास (Full Development of Individual)-समाज अपने सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ उनके जीवन का पूर्ण विकास करने का भी प्रयत्न करता है। समाज का यह कर्त्तव्य है कि वह ऐसा वातावरण उत्पन्न करे जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का हर पहलू से पूर्ण विकास कर सके।
  • समस्त मानव जाति का कल्याण (Welfare of Mankind)-समाज की कोई संख्या निश्चित नहीं है। एक समाज बढ़ कर समस्त संसार में फैल सकता है, इसीलिए प्रत्येक समाज का यह भी उद्देश्य है कि वह अपने सदस्यों में विश्व-बन्धुत्व तथा विश्व शान्ति की भावना उत्पन्न करे और ऐसे कार्य करे जिनसे समस्त मानव-जीवन का कल्याण हो। व्यक्ति जिएं और जीने दें।

प्रश्न 2.
राज्य और समाज में अन्तर करो। (Distinguish between State and Society.)। (Textual Question) (P.B. Sept., 1988)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाता था। प्लेटो तथा अरस्तु ने राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया। आदर्शवादी लेखक हीगल, कांट, बोसांके इत्यादि ने भी राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना। फासिस्टों ने भी राज्य और समाज को एक माना था, परन्तु वास्तव में इन दोनों में अन्तर है।

समाज और राज्य में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

1. समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई। समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य नहीं रह सकता। परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब समाज में राजनीतिक संगठन की स्थापना हुई। राजनीतिक संगठन की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्यों में राजनीतिक चेतना की उत्पत्ति हुई।

2. समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मनुष्य के जीवन के सभी पहलुओं की उन्नति करना है। इसमें मनुष्य का आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक जीवन आ जाता है। परन्तु राज्य का उद्देश्य मनुष्य के राजनीतिक जीवन को उन्नत करना होता है। राज्य मनुष्य के दूसरे पहलुओं की उन्नति के लिए विशेष ध्यान नहीं देता। समाज व्यक्ति के हर प्रकार के सम्बन्धों में हस्तक्षेप कर सकता है, परन्तु राज्य व्यक्ति के सभी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य व्यक्ति के उन्हीं कार्यों में हस्तक्षेप करता है जिनका दूसरे लोगों के साथ सम्बन्ध हो और जिन्हें राजनीतिक तौर पर नियमित किया गया हो।

3. राज्य के पास निश्चित भू-भाग होता है, समाज के पास नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समाज के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समाज का क्षेत्र निश्चित नहीं होता। समाज का क्षेत्र दो-चार कुटुम्बों तक भी हो सकता है, एक राज्य तक भी हो सकता है, दो चार राज्यों तक भी हो सकता है।

4. राज्य संगठित होता है, समाज के लिए संगठन आवश्यक नहीं है-राज्य के निर्माण के लिए संगठन का होना आवश्यक है। इस संगठन को सरकार के नाम से जाना जाता है। सरकार राज्य का आवश्यक तत्त्व है। परन्तु समाज के निर्माण के लिए संगठन आवश्यक नहीं है। समाज संगठित भी हो सकता है और असंगठित भी अर्थात् समाज में संगठित और असंगठित दोनों तरह के समुदाय शामिल होते हैं।

5. राज्य समाज से छोटा है-समाज का क्षेत्र राज्य की अपेक्षा अधिक व्यापक होता है, समाज में सामाजिक भावना में बन्धे सभी सदस्य होते हैं, परन्तु राज्य में केवल वे ही व्यक्ति होते हैं जो राजनीतिक रूप से संगठित होते हैं।

6. राज्य के पास प्रभुसत्ता है, समाज के पास नहीं राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति अर्थात् प्रभुसत्ता होती है। प्रभुसत्ता राज्य की आत्मा है। बिना प्रभुसत्ता के राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। राज्य के नियमों को तोड़ने वाले को सज़ा दी जाती है। अतः राज्य अपने नियमों को शक्ति के ज़ोर पर लागू करता है, परन्तु दूसरी ओर समाज के पास प्रभुसत्ता नहीं होती। समाज के नियम तोड़ने वाले को कोई सजा नहीं मिलती। समाज के नियमों का पालन नैतिक शक्ति के आधार पर करवाया जाता है।

7. राज्य व्यक्ति के केवल बाहरी कार्यों को नियमित करता है जबकि समाज आन्तरिक कार्यों को भी राज्य केवल व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियमित करता है। व्यक्ति क्या करता है, राज्य का इससे सम्बन्ध है। व्यक्ति क्या सोचता है, इससे राज्य का कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु समाज का सम्बन्ध व्यक्ति के बाहरी और आन्तरिक दोनों प्रकार के कार्यों से है।

8. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समाज की नहीं- प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी राज्य का नागरिक अवश्य होता है और नागरिक होने के कारण उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के अधिकार और सुविधाएं प्राप्त होती हैं। राज्य की सदस्यता के बिना कोई भी व्यक्ति नहीं रह सकता। इसके विपरीत यद्यपि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथापि वह समाज के बिना नहीं रह सकता, फिर भी उसके लिए समाज में रहना आवश्यक नहीं। वह समाज को छोड़ कर एकान्त में रह सकता है।

9. समाज मनुष्य की प्राकृतिक रुचियों का परिणाम है जबकि राज्य इसकी आवश्यकताओं का-समाज मनुष्य के लिए स्वाभाविक और प्राकृतिक है। मनुष्य की रुचियां उसको समाज में रहने की प्रेरणा देती हैं। परन्तु राज्य एक मानवीय संस्था है जो मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण अस्तित्व में आई। ____ 10. राज्य कानूनों द्वारा तथा समाज रीति-रिवाज़ों द्वारा कार्य करता है-राज्य अपने सभी कार्य कानून की सहायता से करता है जबकि समाज अपने कार्यों को रीति-रिवाज़ों द्वारा करता है। राज्य के नियम और कानून स्पष्ट और सुनिश्चित होते हैं और इनको विधानमण्डल द्वारा बनाया जाता है। समाज के नियम, समाज के रीति-रिवाज, आदतें, प्रथाएं आदि हैं जोकि स्पष्ट और सुनिश्चित होते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

निष्कर्ष (Conclusion)-राज्य और समाज में आपसी भिन्नता के बावजूद आपसी घनिष्ठता भी है। यह दोनों व्यक्ति के जीवन-निर्वाह और जीवन विकास के लिए अपने-अपने ढंग से परिस्थितियों व साधनों को जुटाते हैं। राज्य का क्षेत्र भले ही समाज के क्षेत्र से सीमित है, परन्तु समाज को बनाए रखने में राज्य का महत्त्वपूर्ण कार्य है। राज्य के बिना, समाज का अस्तित्व कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।

प्रश्न 3. राज्य और राष्ट्र के अन्तर पर लेख लिखें। (Write a note on the distinction between State and Nation.) (Textual Question)
उत्तर-साधारणत: राज्य और राष्ट्र में कोई अन्तर नहीं माना जाता। राष्ट्र राज्य के बहुत ही समीप है, इसमें भी कोई शक नहीं। राज्यों के संघों को प्रायः राष्ट्रों का संघ ही कहा जाता है जैसे कि राष्ट्र संघ (League of Nations), संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organisation) । आधुनिक युग में राष्ट्र राज्य (Nation States) ही प्रायः मिलते हैं जो एक राष्ट्र एक राज्य अलग-अलग हैं और इनमें निश्चित रूप से भेद हैं। वैसे यदि ध्यान से सोचा जाए तो One Nation, One State का सिद्धान्त भी इन दोनों में आपसी अन्तर की ओर संकेत करता है।

राष्ट्र और राज्य में निम्नलिखित भेद पाए जाते हैं-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। इनके मिलने से ही राज्य का निर्माण होता है। इनमें से यदि एक भी तत्त्व का अभाव हो तो राज्य नहीं बन सकता, परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र तो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं द्वारा संगठित समुदाय है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना से ही होता है। एकता की यह चेतना कई तत्त्वों के आधार पर पैदा होती है जैसे कि समान भाषा, समान धर्म, समान इतिहास, समान रीतिरिवाज़ और परम्पराएं आदि। किसी राष्ट्र में एक तत्त्व प्रबल है तो किसी राष्ट्र में दूसरा।

2. राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जनसमुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता या ऐक्य की भावना हो। परन्तु राज्य के लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।

3. राज्य के लिए एक निश्चित भू-भाग आवश्यक है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य एक प्रादेशिक संस्था है, जिसका प्रभाव एक निश्चित भू-भाग तक ही रहता है, परन्तु राष्ट्र के लिए निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक नहीं। राष्ट्र का सम्बन्ध लोगों में उत्पन्न एकता की भावना से है, किसी निश्चित प्रदेश से नहीं।

एक राज्य में कई राष्ट्र और एक राष्ट्र में कई राज्य हो सकते हैं-यह आवश्यक नहीं कि एक राज्य में एक राष्ट्र हो या एक राष्ट्र में एक राज्य की प्रभुसत्ता लागू होती हो। एक राज्य की प्रभुसत्ता दो या इससे भी अधिक राष्ट्रों पर लागू हो सकती है, जैसे कि ऑस्ट्रिया और हंगरी से मिला कर एक बार एक राज्य स्थापित कर लिया गया था, फिर भी उसके दो अलग-अलग राष्ट्र रहे। ऐसे ही दिसम्बर 1971 से पूर्व पाकिस्तान में दो राष्ट्र विद्यमान थे, एक पश्चिमी पाकिस्तान और दूसरा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्ला देश)। इसके विपरीत एक राष्ट्र दो राज्यों में फैला हो सकता है जैसे कि जर्मन राष्ट्र तो एक है, परन्तु वह अक्तूबर, 1990 से पूर्व दो अलग-अलग राज्यों पूर्वी जर्मनी तथा पश्चिमी जर्मनी में फैला हुआ था। कोरिया राष्ट्र तो एक है परन्तु वह दो अलग-अलग राज्यों उत्तरी कोरिया व दक्षिणी कोरिया में फैला हुआ है।

5. राज्य के लिए प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है और इसका होना उसके अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इसके बिना राज्य का निर्माण हो ही नहीं सकता, परन्तु राष्ट्र के पास कोई प्रभुसत्ता नहीं होती। राष्ट्र स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर प्रभुसत्ता की भी प्राप्ति हो जाती है, परन्तु इसके साथ ही राज्य बन सकता है जो इस प्रभुसत्ता का प्रयोग करता है।

6. राज्य न तो राष्ट्र को उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है-राज्य के पास प्रभुसत्ता होने के कारण अपने भू-भाग में स्थित सब व्यक्तियों तथा व्यक्तियों की संस्थाओं पर उसका पूरा नियन्त्रण रहता है, परन्तु राष्ट्र को बनाने वाली एकता की भावना को न तो वह उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है। इसका उदाहरण अपने ही देश से दिया जा सकता है। अंग्रेज़ी शासकों के भारतीयों पर और पाकिस्तानी शासकों के बंगला देशियों पर हर प्रकार के सम्भव अत्याचारों के बावजूद भी वे शासक इसके राष्ट्र निर्माण में बाधक न बन सके। लोगों में राष्ट्रीय भावना अपने आप उत्पन्न होती है जिसके कई आधार हो सकते हैं।

अन्ततः इन दोनों में इतनी भिन्नता होते हुए यह कहना अत्युक्ति नहीं होगा कि ज्यों-ज्यों ‘एक राष्ट्र, एक राज्य’ के सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप में स्वीकृति मिलती जाएगी और राष्ट्र राज्य स्थापित होते जाएंगे, राष्ट्र और राज्य में भिन्नता की अपेक्षा समीपता अधिक आती जाएगी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ एवं परिभाषा का वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण शब्दों में समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इकट्ठे हुए हैं और परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं ताकि अपने सांझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें। विभिन्न लेखकों ने समाज की परिभाषाएं विभिन्न प्रकार दी हैं जो इस प्रकार हैं-

  • डॉ० जैक्स के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।”
  • मैकाइवर के अनुसार, “मनुष्यों का एक-दूसरे के साथ ऐच्छिक सम्बन्ध ही समाज है।”
  • कोल का कहना है कि, “समाज बिरादरी में संगठित समुदायों व संस्थाओं का संयुक्त संगठन है।”

प्रश्न 2.
समाज के चार आवश्यक तत्त्व बताइये।
उत्तर-
समाज के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • जनसमूह-समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व जनसमूह है। जिस प्रकार पति, पत्नी के बिना परिवार नहीं बन सकता तथा विद्यार्थियों के बिना स्कूल नहीं बन सकता, उसी प्रकार लोगों के समूह के बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  • संगठन–समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों में किसी भी प्रकार के संगठन का होना आवश्यक है। मेले में इकट्ठे हुए लोगों के समूह को समाज नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनमें संगठन नहीं होता।
  • सामान्य उद्देश्य-समाज के सदस्यों के उद्देश्य सामान्य होते हैं। समाज का निर्माण किसी एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं होता बल्कि समाज के द्वारा तो मानव जीवन की सब समस्याओं की पूर्ति के लिए प्रयत्न किया जाता है।
  • शान्ति और सहयोग-जन-समूह में शान्ति और सहयोग का होना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
राष्ट्र क्या है ?
उत्तर-
राष्ट्र’ की विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं। बर्गेस के अनुसार, “राष्ट्र वह जनसंख्या है जो जातीय एकता के सूत्र में बंधी हो और भौगोलिक एकता वाले प्रदेशों में बसी हो।” __होज़र के अनुसार, “राष्ट्र का निर्माण जाति या भाषा के आधार पर नहीं बल्कि लोगों के इकट्ठे रहने की भावना के आधार पर होता है।”
गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राष्ट्र = राज्य + राष्ट्रीयता” है।

परन्तु ये सभी परिभाषाएं ठीक नहीं हैं और राष्ट्र शब्द की परिभाषा किसी एक दृष्टिकोण के आधार पर नहीं की जा सकती। वास्तव में राष्ट्र ऐसे लोगों के समूह को कहते हैं जो जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति, ऐतिहासिक या किसी और बात या बातों की समानता के आधार पर अपने आपको आत्मिक या मानसिक तौर पर एक समझें और इकट्ठे रहने में ही अपने जीवन और अपनी संस्कृति आदि को सुरक्षित महसूस करें।

प्रश्न 4.
राज्य और समाज में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
समाज और राज्य में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं-

  • समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह नहीं सकता परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्य में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और उसे राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई।
  • समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मानव जीवन के सभी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक पहलुओं को उन्नत करना है जबकि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के केवल राजनीतिक पहलू को विकसित करना है। इस प्रकार समाज का उद्देश्य, राज्य के उद्देश्य से व्यापक है।
  • राज्य के पास निश्चित भू-भाग होता है समाज के पास नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समाज के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समाज का क्षेत्र निश्चित नहीं होता।
  • राज्य समाज से छोटा है-समाज का क्षेत्र राज्य की अपेक्षा अधिक व्यापक होता है।

प्रश्न 5.
राज्य और राष्ट्र में चार अन्तर बताओ।
उत्तर-
राज्य और राष्ट्र में निम्नलिखित भेद पाए जाते हैं-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। राज्य के निर्माण के लिए ये चारों तत्त्व अनिवार्य हैं परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र तो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं द्वारा संगठित समूह है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना की भावना से होता है।
  • राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जन-समुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता की भावना हो। परन्तु राज्य में लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं है। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।
  • राज्य के लिए एक निश्चित भू-भाग आवश्यक है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य एक प्रादेशिक संस्था है, जिसका प्रभाव एक निश्चित भू-भाग तक रहता है। परन्तु राष्ट्र के लिए निश्चित भू-भाग का होना अनिवार्य नहीं है।
  • राज्य के लिए प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है और इसका होना राज्य के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। परन्तु राष्ट्र के पास कोई प्रभुसत्ता नहीं होती।

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प्रश्न 6.
राष्ट्र के निर्माण में सहायक तत्त्वों की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी भी राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में भावनात्मक एकता होना ज़रूरी है और इस भावनात्मक एकता के विकास के तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. जातीय एकता-जिन लोगों के बीच अपनी जाति के प्रति लगाव होता है, उस जाति के लोग स्वाभाविक रूप से ही अपने आप को एक महसूस करते हैं।
  2. भाषा-समान भाषा के द्वारा विभिन्न जातियों व धर्मों में विश्वास रखने वाले लोग आपस में जुड़ते हैं। समान भाषा विभिन्न क्षेत्र में रहने वाले लोगों में भावनात्मक एकता पैदा करती है।
  3. एक धर्म-एक धर्म में विश्वास रखने वाले लोग ही भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं।
  4. समान उद्देश्य-राष्ट्रीय एकता और समान उद्देश्यों में गहरा सम्बन्ध है। जिन लोगों के उद्देश्य समान होते हैं वह आपस में इकट्ठे हो जाते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और समाज में दो अन्तर लिखें।
उत्तर-

  • समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह नहीं सकता परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्य में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और उसे राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई।
  • समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मानव जीवन के सभी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक पहलुओं को उन्नत करना है जबकि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के केवल राजनीतिक पहलू को विकसित करना है। इस प्रकार समाज का उद्देश्य, राज्य के उद्देश्य से व्यापक है।

प्रश्न 2.
राज्य और राष्ट्र में दो अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैंजनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। राज्य के निर्माण के लिए ये चारों तत्त्व अनिवार्य हैं परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना की भावना से होता है।
  • राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जन-समुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता की भावना हो। परन्तु राज्य में लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं है। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एकत्र हुए हैं और परस्पर मिलजुल कर रहते हैं, ताकि अपने साझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें।”

प्रश्न 2. समाज की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-डॉ० जैक्स के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।”

प्रश्न 3. समाज का कोई एक आवश्यक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व लोगों का समूह है।

प्रश्न 4. समाज का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर-समाज मनुष्यों की सामाजिक भावना की पूर्ति करता है।

प्रश्न 5. राज्य और समाज में कोई एक अन्तर बताएं।
उत्तर-समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई।

प्रश्न 6. राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर-बर्गेस के अनुसार, “राष्ट्र वह जनसंख्या है जो जातीय एकता के सूत्र में बन्धी हो और भौगोलिक एकता वाले प्रदेश में बसी हो।”

प्रश्न 7. राज्य और राष्ट्र में एक अन्तर बताइए।
उत्तर-राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं।

प्रश्न 8. राष्ट्रवाद की भावना को प्रोत्साहित करने वाले किन्हीं चार कारकों के नाम लिखें।
उत्तर-(1) सामान्य मातृभूमि (2) वंश की समानता (3) सामान्य भाषा (4) सामान्य धर्म।

प्रश्न 9. समाज राज्य से पहले है। व्याख्या करें।
उत्तर-राजनीतिक संगठन की स्थापना उस समय हुई, जब मनुष्यों में राजनीतिक चेतना की उत्पत्ति हुई। इसलिए समाज राज्य से पहले है।

प्रश्न 10. राज्य के सप्तांग सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताए हैं। राज्य के सात अंगों के कारण ही राज्य की प्रकृति के सम्बन्ध में कौटिल्य ने इस सिद्धान्त को राज्य का सप्तांग सिद्धान्त कहा है।

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प्रश्न 11. कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग लिखो।
उत्तर-(1) स्वामी, (2) आमात्य, (3) जनपद, (4) दुर्ग, (5) कोष, (6) दण्ड, (7) मित्र ।

प्रश्न 12. “समाज सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन मैकाइवर का है।

प्रश्न 13. “किसी समूह के अन्दर संगठित समुदायों और संस्थाओं का योग ही समाज है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन जी० डी० एच० कोल का है।

प्रश्न 14. “समाज मनुष्य का वृहत्त रूप है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन प्लेटो का है।

प्रश्न 15. “समाज व्यक्तियों का एक समूह है जो एक-दूसरे के साथ कुछ सामान्य आदर्शों की पूर्ति के लिए सहयोग करते हैं। किसका कथन है?”
उत्तर-यह कथन गिडिंग्ज का है।

प्रश्न 16. समाज का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर-समाज सामाजिक भावना की पूर्ति करता है।

प्रश्न 17. राष्ट्र को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं?
उत्तर-राष्ट्र को अंग्रेजी में नेशन (Nation) कहते हैं।

प्रश्न 18. ‘नेशन’ शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-‘नेशन’ शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है।

प्रश्न 19. ‘नेशन’ शब्द किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर-नेशन शब्द नेशिया और नेट्स से मिलकर बना है।

प्रश्न 20. ‘नेशियो’ (Natio) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-नेशियो शब्द का अर्थ जन्म या नस्ल है।

प्रश्न 21. ‘नेट्स’ (Natus) शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर-नेट्स शब्द का अर्थ पैदा हुआ है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………….. के पास निश्चित भू-भाग होता है, समाज के पास नहीं।
2. राज्य संगठित होता है, ……………… के लिए संगठन अवश्यक नहीं है।
3. राष्ट्र शब्द को अंग्रेज़ी में ……….. कहा जाता है।
4. ………….. के अनुसार “राष्ट्र से अभिप्राय एक जाति अथवा वंश वाला संगठन है।”
5. हैयज़ के अनुसार एक राष्ट्रीयता एकता और प्रभु-सम्पन्न स्वतन्त्रता प्राप्त करने से ………….. बन जाता है।
उत्तर-

  1. राज्य
  2. समाज
  3. नेशन (Nation)
  4. लीकॉक
  5. राष्ट्र ।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं।
2. राष्ट्र के लिए एक निश्चित भू-भाग होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं।
3. राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं।
4. राष्ट्र के लिए प्रभुसत्ता का होना आवश्यक है, जबकि राज्य के लिए नहीं।
5. राज्य न तो राष्ट्र को उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नेशन’ शब्द किस भाषा से लिया गया है ?
(क) लैटिन
(ख) यूनानी
(ग) हिब्रू
(घ) फ़ारसी।
उत्तर-
(क) लैटिन

प्रश्न 2.
‘नेशन’ शब्द किन दो शब्दों से मिलकर बना है ?
(क) डिमोस और क्रेटिया
(ख) नेशियो और नेट्स
(ग) स्टेट और स्टेट्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) नेशियो और नेट्स

प्रश्न 3.
‘नेशयो’ (Natio) शब्द का अर्थ है-
(क) जन्म या नस्ल
(ख) भाषा
(ग) क्षेत्र
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) जन्म या नस्ल।

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प्रश्न 4.
नेट्स (Natus) शब्द का अर्थ है-
(क) जन्म या नस्ल
(ख) क्षेत्र
(ग) पैदा हुआ
(घ) भाषा।
उत्तर-
(ग) पैदा हुआ।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप Textbook Exercise Questions and Answers.

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PSEB 9th Class Physical Education Guide खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेलों के कोई दो लाभ लिखो।
उत्तर-

  1. स्वास्थ्य प्रदान करती हैं
  2. सुडौल शरीर।

प्रश्न 2.
एक स्पोर्ट्समैन कैसा व्यवहार करता है ? दो पंक्तियां लिखो।
उत्तर-

  1. पराजय को बड़ी शान से स्वीकार करे।
  2. प्रत्येक टीम को बराबर समझता हो।

प्रश्न 3.
खिलाड़ी के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर-

  1. सहयोग की भावना
  2. सहनशीलता।

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प्रश्न 4.
विजय-पराजय को समान समझने की भावना को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
खिलाड़ी का गुण।

प्रश्न 5.
आज्ञा देने और मानने की योग्यता किस प्रकार आती है ?
उत्तर-
खेलों में भाग लेने से।

प्रश्न 6.
आत्मविश्वास की भावना और उत्तरदायित्व की भावना खिलाड़ी को क्या बनाती है ?
उत्तर-
अच्छा सामाजिक प्राणी।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
एक स्पोर्ट्समैन के लिए कौन-सी व्यवहार प्रणाली स्वीकृत है ? (What system of behaviour is accepted by a sportsman ?)
उत्तर-
स्पोर्ट्समैन के लिए व्यवहार प्रणाली (System of behaviour for a sportsman) विश्व के सारे खिलाड़ी (स्पोर्ट्समैन) निम्नलिखित प्रणाली को मानते हैं और इसी के अनुसार व्यवहार करना अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इसके अनुसार व्यवहार प्रणाली की मुख्य बातें इस प्रकार हैं –

  1. अधिकारियों के निर्णय ठीक और अन्तिम होते हैं।
  2. खेलों के नियम वास्तव में अच्छे पुरुषों की सन्धि होते हैं।
  3. टीमों के लिए जान तोड़ कर साफ़-सुथरा खेलना ही सब से बड़ा आश्वासन है।
  4. पराजय को बड़ी शान से लो।
  5. जीत को बड़े सहज ढंग से स्वीकार करो।
  6. दूसरों के अच्छे गुणों का सम्मान करने से मान मिलता है।
  7. पराजय या बुरे खेल के लिए बहाने ढूंढ़ना ठीक नहीं।
  8. किसी राष्ट्र या टीम को उसके व्यवहार के अनुसार सम्मान दिया जाता है।
  9. बाहर से आई हुई टीमों का सम्मान होना चाहिए।
  10. प्रत्येक टीम को बराबर समझा जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
दर्शक किस प्रकार अच्छे स्पोर्ट्समैन बन सकते हैं ? (How can the spectators become good sportsmen ?)
उत्तर-
दर्शकों में अच्छे स्पोर्ट्समैन बनने के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है –

  1. वे अच्छे खेल की प्रशंसा और उसको उत्साहित करने में बाधा न बनें।
  2. यदि निर्णायक उनकी इच्छा के विरुद्ध निर्णय दे दे तो उसके विरुद्ध बुरे शब्दों का प्रयोग न करें।
  3. वे जिस टीम का पक्ष ले रहे हों यदि वह कमजोर है या अयोग्य है तो उसकी जीत देखना न चाहें क्योंकि खेल में अच्छी टीम ही विजय की पात्र है।
  4. वे अपने साथी दर्शकों से केवल इसलिए न झगड़ें क्योंकि वे विरोधी टीम का समर्थन करते हैं।
  5. वे जिस टीम का पक्ष ले रहे हैं यदि वह हार रही है तो अभद्र व्यवहार का प्रदर्शन न करें जैसे खेल के मैदान में कूड़ा-कर्कट, पत्थर आदि फेंक कर खेल रुकवाना ताकि खेल में हार-जीत का फैसला ही न हो।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेलों के लाभों या गुणों का वर्णन करें। (Describe the Values of Sports.)
उत्तर-
खेलों के गुण (Values of Sports)-खेलों में व्यक्ति का आकर्षण उनके गुणों के कारण है। आजकल खेलों पर अधिक बल दिए जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

1. स्वास्थ्य प्रदान करती हैं (Sound Health)-स्वास्थ्य एक अमूल्य देन है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है । स्वस्थ व्यक्ति से दारिद्रय, आलस्य तथा थकावट कोसों दूर रहती है। खेलें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। खिलाड़ी के भागने दौड़ने तथा उछलने-कूदने से शरीर के सभी अंग हरकत करते हैं। दिल, फेफड़े, पाचक अंग आदि सारे अंग सुचारु रूप से कार्य करने लगते हैं। मांसपेशियों में ताकत और लचक बढ़ जाती है। जोड़ भी लचकदार हो जाते हैं और शरीर स्फूर्तिवान हो जाता है। इस प्रकार खेलों से स्वास्थ्य में सुधार होता है।

2. सुडौल शरीर (Sound Body)-खेलों में भाग लेते हुए खिलाड़ी को भागना पड़ता है, उछलना पड़ता है, कूदना पड़ता है, जिससे उसका शरीर सुडौल हो जाता है। कद ऊंचा हो जाता है। शरीर पर कपड़े खूब सजते हैं, जिससे उसके व्यक्तित्व को चार चांद लग जाते हैं। मांसपेशियों और सूक्ष्म नाड़ियों का तालमेल भी खेलों द्वारा ही पैदा होता है। इससे खिलाड़ी की चाल-ढाल आकर्षक हो जाती है । इस प्रकार खेलें व्यक्ति का रूप निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करती हैं।

3. संवेगों का सन्तुलन (Full Control on Emotions)—संवेगों का सन्तुलन सफल जीवन के लिए अत्यावश्यक है। यदि इन पर नियन्त्रण न रखा जाए तो क्रोध, उदासी तथा घमण्ड मनुष्य को चक्कर में डाल कर उसके व्यक्तित्व को नष्ट कर देते हैं। खेलें मनुष्य का मन जीवन की उलझनों से परे हटाती हैं, उसका मन प्रसन्न करती हैं तथा उसे संवेगों पर काबू पाने में सफल बनाती हैं। इस दिशा में खेलों द्वारा उत्पन्न स्पोर्ट्समैनशिप की भावना काफ़ी सहायक सिद्ध होती है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

4. सतर्क बुद्धि का विकास (Development of Sound Reason)—मनुष्य को जीवन में कदम-कदम पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए सतर्क बुद्धि का विकास खेलों के द्वारा ही हो सकता है। खेल के समय खिलाड़ी को प्रत्येक पल किसी-न-किसी समस्या का सामना करना पड़ता है । अड़चन या समस्या को उसी समय शीघ्रातिशीघ्र हल करना पड़ता है। हल ढूंढने में तनिक देरी हो जाने पर सारे खेल का पासा उल्ट सकता है। इस प्रकार के वातावरण में प्रत्येक खिलाड़ी हर समय किसी-न-किसी समस्या के समाधान में लगा रहता है। उसे अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने का अवसर मिलता रहता है। इस तरह उस में सतर्क बुद्धि का विकास होता है।

5. चरित्र का विकास (Development of Character)-चरित्रवान् व्यक्ति का सब जगह सम्मान होता है। वह लोभ-लालच में नहीं फंसता। खेल के समय विजयपराजय के लिए खिलाड़ियों को कई बार प्रलोभन दिए जाते हैं। अच्छा खिलाड़ी भूलकर भी इस जाल में नहीं फंसता तथा अपने विरोधी पक्ष के हाथों नहीं बिकता। यदि कोई खिलाड़ी भूल कर लालच में आकर अपने पक्ष से विश्वासघात करता है तो खिलाड़ियों तथा दर्शकों की नज़र में गिर जाता है। ऐसा खिलाड़ी बाद में पछताता है। एक अच्छा खिलाड़ी कभी भी छल-कपट का सहारा नहीं लेता। खेल के दर्शकों के सम्मुख होने तथा रैफरी के निरीक्षण में होने के कारण प्रत्येक खिलाड़ी कम-से-कम फाऊल खेलने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार खेलें मनुष्य में कई चारित्रिक गुणों का विकास करती हैं।

6. इच्छा शक्ति प्रबल करती हैं (Development of Strong Wil-power) – खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं। परिणामस्वरूप खिलाड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दत्तचित्त होकर प्रयत्न करते हैं और भावी जीवन में सफलता उनके कदम चूमती है। खेलों में खिलाड़ी एक-चित्त होकर खेलता है। उसके सम्मुख उसका उद्देश्य जीत प्राप्त करना होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपनी सारी शक्ति लगा देता है और प्रायः सफल भी हो जाता है। जीवन के श्रेयों की प्राप्ति ही उसके लिए यही आदत बन जाती है। इस प्रकार खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं।

7. भ्रातृत्व की भावना का विकास (Development of Brotherhood) खेलों द्वारा भ्रातृत्व की भावना का विकास होता है। इसका कारण यह है कि खिलाड़ी सदैव ग्रुपों में खेलता है तथा ग्रुप के नियम के अनुसार व्यवहार करता है। यदि उसकी कोई आदत ग्रुप आदत के अनुकूल नहीं होती तो उसे उसका त्याग करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ग्रुप में खेलने वालों का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। उनका एक-दूसरे से प्रेम-पूर्ण तथा भाइयों जैसा व्यवहार हो जाता है। इस प्रकार उनका जीवन भ्रातृत्व के आदर्शों के अनुसार ढल जाता है तथा समाज में वे सम्मान प्राप्त करते हैं।

8. आत्म-अभिव्यक्ति (Self-expression)-खेलें व्यक्तियों को आत्म-अभिव्यक्ति अर्थात् स्वयं को खुल कर प्रकट करने के अवसर प्रदान करती हैं। खेल के मैदान में खिलाड़ी खुल कर अपने गुणों तथा कौशल को दर्शकों के समक्ष प्रकट करता है। इस गुण का विकास केवल क्रीड़ा-क्षेत्र में ही सम्भव है, अन्यत्र नहीं।

9. नेतृत्व (Leadership) खेलों का अच्छा नेतृत्व करने वाले में नेतृत्व के गुणों का विकास हो जाता है। एक अच्छा नेता अपने देश के नाम को चार चांद लगा देता है। इसके विपरीत एक बुरा अथवा अयोग्य नेता देश की नाव को मंझदार में फंसा देता है। खेल के मैदान से ही हमें अनुशासनबद्ध, आत्म-संयमी, आत्म-त्यागी तथा मिलजुलकर देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले सैनिक व अफसर प्राप्त होते हैं। इसीलिए तो ड्यूक ऑफ़ विलिंगटन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) की लड़ाई में परास्त करने के बाद कहा, “वाटरलू की लड़ाई ऐटन तथा हैरो के क्रीड़ा-क्षेत्र में जीती गई।” (“The Battle of Waterloo was won at the playing-fields of Eton and Harrow.”)

10. फालतू समय का प्रयोग (Proper Use of Leisure Time) दिन भर काम करने के पश्चात् भी काफ़ी समय बच जाता है। इसलिए आज की मुख्य समस्या है कि इस फालतू समय का किस प्रकार प्रयोग किया जाए ? यदि हम इस फालतू समय का सदुपयोग न करेंगे तो इस समय में शरारतें ही सूझेंगी क्योंकि एक बेकार आदमी का दिमाग़ शैतान का घर होता है। इस फालतू समय को ठीक ढंग से गुज़ारने के लिए खेलें हमारी सहायता करती हैं। खेलों में भाग लेकर न केवल फालतू समय का ही उचित प्रयोग होता है वरन् इसके साथ शारीरिक विकास भी होता है।

11. जातीय भेदभाव मिटता है और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ता है (Free from Casteism and Development of International Understanding) खेलें जातीय भेदभाव को मिटाती हैं जो कि देश की प्रगति में बहुत बड़ी बाधा होता है। प्रत्येक टीम में विभिन्न जातियों के खिलाड़ी होते हैं। उनके एक साथ मिलने-जुलने तथा टीम के लिए एक जान होकर संघर्ष करने की भावना के कारण जात-पात की दीवारें गिर जाती हैं और उनका जीवन विशाल दृष्टिकोण वाला हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों से खेलते हैं तथा उनसे मिलते-जुलते हैं। इससे उनमें मैत्री की भावना बढ़ जाती है। अतः खेलें अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भी सहायक होती हैं।

12. प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावना (Spririt of Competition and Cooperation)-प्रतियोगिता ही प्रगति का आधार है और सहयोग महान् उपलब्धियों का साधन है। प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावनाएं प्रत्येक मनुष्य में होती हैं। इनके विकास द्वारा ही समुदाय, समाज तथा देश प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। इन भावनाओं का विकास खेलों द्वारा ही होता है। हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट आदि खेलों की टीमों में खूब मुकाबला होता है। मैच जीतने के लिए टीमें ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देती हैं, परन्तु मैच जीतने के लिए सभी खिलाड़ियों के सहयोग की भी आवश्यकता होती है क्योंकि किसी भी एक खिलाड़ी के प्रयत्नों से मैच नहीं जीता जा सकता। अत: प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए खेलें बहुत उपयोगी हैं।

13. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline)-खेल का मैदान एक ऐसा स्थान है जहां खिलाड़ी अनुशासन में रहते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। हम कह सकते हैं कि खेलों द्वारा व्यक्ति या खिलाड़ी खेल के नियमों के अनुशासन में रह कर अनुशासन में रहने का आदी हो जाता है। इस प्रकार हमें अनुशासन खेलों द्वारा प्राप्त होता है।

14. सहनशीलता (Tolerance) खेलों द्वारा खिलाड़ियों के मन में सहनशीलता पैदा होती है, क्योंकि खेलों द्वारा हम एक-दूसरे के विचार सुनते हैं और अपने विचार उन्हें बताते हैं। हम में मेल-मिलाप बढ़ता है और सहनशीलता की भावना पैदा होती है।

15. अच्छी नागरिकता (Good Citizenship) खेलों द्वारा खिलाड़ियों में एक अच्छे नागरिक के गुण पैदा होते हैं क्योंकि खिलाड़ी आपस में मिल कर खेलते हैं। नियमों, कर्त्तव्यों, अनुशासन में रहना आदि गुणों के कारण खिलाड़ी अच्छे नागरिक बन जाते हैं।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि खेलें व्यक्ति में सहयोग, भ्रातृत्व, नेतृत्व, समन्वय आदि सद्गुणों का विकास करती हैं और उसे अच्छे नागरिक बनने में सहायता प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
स्पोर्ट्समैनशिप से क्या अभिप्राय है ? एक स्पोर्ट्समैन में कौन-कौन से गुण होने चाहिएं ?
(What do you understand by Sportsmanship ? What should be the qualities of a good Sportsman ?)
उत्तर-
स्पोर्ट्समैनशिप का अर्थ (Meaning of Sportsmanship)—जहां भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के अनेक शब्द अच्छी तरह से अपना लिए गए हैं, वहीं स्पोर्ट्समैनशिप और स्पोर्ट्समैन भी खेलों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शब्द हैं। स्पोर्ट्समैनशिप (Sportsmanship) एक अच्छे खिलाड़ी की वह भावना या वह विशेषता है, या ऐसे कहें कि वह स्पिरिट है जिसके आधार पर कोई भी खिलाड़ी खेल के मैदान में आरम्भ से लेकर अन्त तक बड़ी योग्यता से भाग लेता है। स्पोर्ट्समैनिशप अच्छे गुणों का वह समूह है, जिनका होना एक खिलाड़ी के लिए जरूरी समझा जाता है। जैसे कि एक खिलाड़ी के लिए जरूरी है कि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से भरपूर, अनुशासनबद्ध, अच्छा सहयोगी, चुस्त और अपनी टीम के कैप्टन की आज्ञा का पालन करने वाला हो। वास्तव में इस तरह के गुणों का समूह ही स्पोर्ट्समैनशिप कहलाता है।

स्पोट्र्समैनशिपया खिलाड़ी के गुण (Qualities of Sportsman) -एक स्पोर्ट्समैन या खिलाड़ी में निम्नलिखित गुणों का होना ज़रूरी है-

1. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline)-स्पोर्ट्समैन का सबसे बड़ा और मुख्य गुण है नियम से अनुशासन में बन्धकर कार्य करना। वास्तविक स्पोर्ट्समैन वही कहा जा सकता है जो खेल आदि के सारे नियमों का पालन बड़े अच्छे ढंग से करे और अनुशासनबद्ध हो ।

2. सहनशीलता (Tolerance)-सहनशीलता स्पोर्ट्समैनशिप के गुणों में एक बहत ही महत्त्वपूर्ण गुण है। खेल में कई प्रकार के अवसर आते हैं। अपनी विजय प्राप्त होने से बहुत प्रसन्नता होती है और पराजित हो जाने से उदासी के बादल घेर लेते हैं। परन्तु स्पोर्ट्समैन वही है, जो विजयी होने पर भी पराजित टीम या खिलाड़ी को प्रसन्नता से उत्साहित करे और स्वयं पराजित हो जाने पर भी विजयी को पूर्ण सम्मान के साथ बधाई दे।

3. सहयोग की भावना (Spirit of Co-operation)-स्पोर्ट्समैन में तीसरा गुण सहयोग की भावना का होना है। खेल के मैदान में यह सहयोग की भावना ही है जो टीम के विभिन्न खिलाड़ियों को इकट्ठे रखती है और वे एक होकर अपनी विजय के लिए संघर्ष करते हैं। दूसरे शब्दों में, स्पोर्ट्समैन अपने कोच, कैप्टन, खिलाड़ियों और विरोधी टीम के साथ सहयोग की भावना रखता है। ___4. विजय-पराजय को समान समझने की भावना (No Difference between Defeat or Victory) खेल में हर एक अच्छा खिलाड़ी विजय प्राप्त करने की अनथक चेष्टा करता है और उसके लिए प्रत्येक सम्भव ढंग प्रयुक्त करता है। परन्तु उसे स्पोर्ट्समैन तभी कहा जा सकता है जब वह केवल विजय के उद्देश्य के साथ न खेले बल्कि उसका उद्देश्य अच्छे खेल का प्रदर्शन करना हो। यदि इसी मध्य सफलता उसके पग चूमती है तो उसे पागल होकर विरोधी टीम या खिलाड़ी का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए और यदि उसे पराजय का सामना करना पड़ता है तो उसे उत्साहहीन नहीं होना चाहिए। वह खेल में विजयी होने पर भी पराजित खिलाड़ियों को हीन समझने की बजाये अपने समान समझता है।

खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप PSEB 9th Class Physical Education Notes 1
चित्र-स्पोर्ट्समैन विजयी होते हुए पराजित खिलाड़ियों को समान समझते हुए

5. आज्ञा देने और मानने की योग्यता (Ability of Obedience and Order)स्पोर्ट्समैन के लिए इस ज़रूरी है कि आज्ञा देने और आज्ञा मानने की योग्यता रखता हो। कई बार यह देखा गया है कि खिलाड़ी कुछ कारणों से आपे से बाहर होकर स्वयं को ठीक समझ कर खेल में अपने कैप्टन की आज्ञा का पालन नहीं करते और मनमानी करने लगते हैं। वे सच्चे अर्थों में स्पोर्ट्समैन नहीं होते हैं।

6. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice)-स्पोर्ट्समैन में त्याग की भावना बहुत ज़रूरी है। एक टीम में खिलाड़ी केवल अपने लिए नहीं खेलता बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य समस्त टीम को विजय दिलाने का होता है। इससे प्रकट होता है कि खिलाड़ी निजी हित को त्याग देता है। बस यही स्पोर्ट्समैन का एक साथ महत्त्वपूर्ण गुण है। एक दूसरे पक्ष से भी एक स्पोर्ट्समैन अपने लिए तो खेलता ही है, साथ-साथ अपने स्कूल, प्रान्त, क्षेत्र और समस्त राष्ट्र के लिए भी वह अपनी विजय का श्रेय अपने राष्ट्र और अपने देश को देता है।

7. भ्रातृत्व की भावना (Spirit of Brotherhood) स्पोर्ट्समैन का यह गुण भी कोई कम महत्त्व नहीं रखता। एक स्पोर्ट्समैन खेल में जाति-पाति, धर्म, रंग, सभ्यता और संस्कृति आदि को एक ओर रखकर प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा ही व्यवहार करता

8. प्रतियोगिता की भावना (Spirit of Competition) एक अच्छे स्पोर्ट्समैन में प्रतियोगिता की भावना का होना भी आवश्यक है । इसी भावना से प्रेरित होकर वह खेल के मैदान में अन्य खिलाड़ियों से बाज़ी ले जाने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगा देता है। वास्तव में सारी प्रगति का रहस्य प्रतियोगिता की भावना में ही छुपा हुआ है, परन्तु यह हर प्रकार के द्वेष से मुक्त होनी चाहिए।

9. समय पर कार्य करने की भावना (Spirit of Punctuality) स्पोर्ट्समैन किसी भी खेल में समय का पूर्ण सम्मान करते हुए प्रत्येक अवसर का पूर्ण लाभ उठाता है।
खेल में एक-एक सैकिण्ड महत्त्वपूर्ण होता है। ज़रा-सी असावधानी विजय को पराजय में और सावधानी पराजय को विजय में परिवर्तित कर देती है।

10. चुस्त और फुर्तीले रहने की भावना (Spirit of Active and Alertness)स्पोर्ट्समैन प्रत्येक खेल में हर समय चुस्ती और फुर्तीलेपन से ही कार्य करता है। वह किसी भी अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देता।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

11. आत्म-विश्वास की भावना (Spirit of Self-Confidence)-वास्तव में आत्म-विश्वास स्पोर्ट्समैन का महत्त्वपूर्ण गुण है। बिना आत्म-विश्वास के खेलना सम्भव नहीं है। खेल में प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी योग्यता पर विश्वास होता है और वह प्रत्येक कार्य बहुत धैर्य और विश्वास से करता है। 1974 में तेहरान में हुई सातवीं एशियाई खेलों में जापान का सबसे अधिक स्वर्ण, रजत तथा कांस्य पदक प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त करने का एकमात्र कारण जापानी खिलाड़ियों का आत्म-विश्वास था। 1978 में बैंकाक में एशियाई खेलों में जापानियों ने पहला स्थान ही प्राप्त किया। इसी प्रकार ही जापान ने 1982 की नौवीं एशियाई खेलों में, जो दिल्ली में हुई थीं, प्रथम स्थान प्राप्त

किया और अपने आत्म-विश्वास को स्थिर रखा है। स्पोर्ट्समैन सदैव प्रसन्न, सन्तुष्ट, शान्त और स्वस्थ दिखाई देता है जिससे उसका आत्म-विश्वास प्रकट होता है।

12. उत्तरदायित्व की भावना (Spirit of Responsibility)-स्पोर्ट्समैन के लिए यह ज़रूरी है कि उसमें उत्तरदायित्व की भावना हो। खिलाड़ी को कभी गैर-उत्तरदायित्व से या लापरवाही से काम नहीं करना चाहिए। उसकी ज़रा-सी एक गलती से टीम हार सकती है। इसलिए खिलाड़ी को उत्तरदायित्व को सम्मुख रखकर खेलना चाहिए।

13. नये नियमों की जानकारी (Knowledge of New Rules)-स्पोर्ट्समैन को नये-नये नियमों की जानकारी होनी चाहिए। हर वर्ष खेलों के लिए नए कानून और नियम बनाए जाते हैं। स्पोर्ट्समैन को इनकी जानकारी होनी आवश्यक है।
संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि स्पोर्ट्समैन एक इकाई नहीं, अपितु कई अच्छे तत्त्वों से मिलकर बना एक गुलदस्ता है तथा एक स्पोर्ट्समैन में अनुशासन, सहनशीलता, आत्म-विश्वास, त्याग, सहयोग आदि के गुणों का होना अत्यावश्यक है।

खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • खेलों के गुण-शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास, सहयोग की भावना और सहनशीलता खेलों द्वारा हमें मिलती है।
  • स्पोर्ट्समैनशिप–यह उन सभी अच्छे गुणों का सुमेल है जिसका खिलाड़ी में होना आवश्यक माना जाता है।
  • खिलाड़ी में अनुशासन की भावना, स्वस्थ और मानसिक रूप में प्रफुल्लित, अच्छा सहयोगी और चुस्ती आदि गुण उसमें विराजमान होने चाहिए।
  • स्पोर्ट्समैन एक दूत-स्पोर्ट्समैन अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है और विदेश में ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे अपने देश का नुकसान हो।
  • स्पोर्ट्समैन का व्यवहार–प्रत्येक टीम को एक जैसा समझता है और अपनी पराजय को शान से स्वीकार करता है।
  • खेलों से लाभ-शरीर स्वस्थ रहता है और रोगों से छुटकारा मिलता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

PSEB 9th Class Home Science Guide भोजन के कार्य और पोषण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भोजन से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
शरीर को नीरोग तथा स्वस्थ रखने वाला कोई भी ठोस, तरल अथवा अर्द्ध-ठोस पदार्थ जिसको शरीर द्वारा निगला, पचाया तथा शोषित किया जाता है, को भोजन कहते हैं।

प्रश्न 2.
पौष्टिक तत्त्वों से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
शरीर की वृद्धि के लिए, ऊर्जा प्रदान करने के लिए तथा शरीर में चलती रासायनिक क्रियाओं को नियन्त्रण में रखने के लिए तथा शरीर के हर सैल की बनावट, रचना के लिए जिन तत्त्वों की ज़रूरत होती है, को पौष्टिक तत्त्व कहते हैं।

प्रश्न 3.
भोजन में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व होते हैं ?
उत्तर-
भोजन में पानी, प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज आदि पौष्टिक तत्त्व होते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 4.
हड्डियों में कौन-से खनिज पदार्थ अधिक होते हैं ?
उत्तर-
हड्डियों में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस खनिज पदार्थ होते हैं। दूध, राजमांह, मेथी, मछली आदि में इनकी काफ़ी मात्रा होती है।

प्रश्न 5.
विटामिन को रक्षक तत्त्व क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
एन्जाइम शारीरिक तापमान पर ही जोड़-तोड़ क्रियाएं करवाते हैं। इन एन्जाइमों के संश्लेषण तथा क्रियाशीलता के लिए विटामिन तथा खनिज पदार्थ आवश्यक होते हैं। यह बीमारियों से भी शरीर को बचाते हैं। इसलिए विटामिन को रक्षक तत्त्व कहा जाता है।

प्रश्न 6.
शरीर में कितने प्रतिशत खनिज पदार्थ होते हैं ?
उत्तर-
शरीर में 4% खनिज पदार्थ होते हैं। यह हैं-कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाशियम, सोडियम, क्लोरीन, आयोडीन, सल्फर, तांबा, जिंक, कोबाल्ट, मैंग्नीज़, लोहा तथा मोलिब्डेनम आदि।

प्रश्न 7.
भोजन की ऊर्जा कैसे मापी जाती है ?
उत्तर-
शरीर को कई काम करने पड़ते हैं जैसे-खाने का पाचन, दिल का धड़कना, सांस लेना, दिमाग का हर समय काम करना, भागना-दौड़ना आदि। इन सभी कामों के लिए शरीर को ऊर्जा की ज़रूरत होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।
ऊर्जा को किलो कैलोरी में मापा जाता है परन्तु पोषण विज्ञान में इसे कैलोरी ही कहा जाता है।

प्रश्न 8.
1 ग्राम प्रोटीन तथा 1 ग्राम वसा में कितनी कैलोरी होती है ?
उत्तर-
एक किलोग्राम पानी के तापमान में एक डिग्री सैल्सियस की वृद्धि करने के लिए जितने ताप की ज़रूरत होती है, उसे कैलोरी कहा जाता है।
एक ग्राम चर्बी में 9 कैलोरी तथा एक ग्राम प्रोटीन में 4 कैलोरी ऊर्जा होती है।

प्रश्न 9.
भोजन का शरीर में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन-सा है ?
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि। __ शरीर को ऊर्जा प्रदान करना भोजन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। वास्तव में अन्य सभी कार्य ऊर्जा के कारण ही होते हैं।

प्रश्न 10.
भोजन का मनोवैज्ञानिक कार्य कौन-सा है ?
उत्तर-
अच्छे भोजन से मानसिक सन्तुष्टि मिलती है। जब मन खुश हो तो भोजन अच्छा लगता है तथा खाने को भी मन करता है तथा जब कोई चिन्ता हो तो वही भोजन बुरा लगता है। कई बार बच्चे को अच्छा काम करने जैसे अच्छे नम्बर आदि प्राप्त किये हों तो इनाम के रूप में आइसक्रीम अथवा पेस्ट्री आदि दी जाती है। इससे बच्चे को मानसिक सन्तुष्टि तथा खुशी प्राप्त होती है तथा इसी तरह दण्ड के रूप में इन चीजों की मनाही की जाती है। इस तरह भोजन मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखने का कार्य भी करता है।

प्रश्न 11.
भोजन का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
भोजन का सामाजिक महत्त्व-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के मौकों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नव-विवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुलाकर इकट्ठे बैठते हैं। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाइचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 12.
शारीरिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति की क्या पहचान है ?
उत्तर-
शारीरिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति वह होता है जिसका –

  1. सुडौल शरीर होता है।
  2. भार आयु तथा कद के अनुसार होता है।
  3. वृद्धि पूर्ण होती है।
  4. चमड़ी साफ़ तथा आंखें चमकदार होती हैं।
  5. सांस में से बदबू नहीं आती।
  6. बाल चमकदार तथा बढ़िया बनावट वाले होते हैं।
  7. शरीर के सभी अंग ठीक काम करते हैं।
  8. भूख तथा नींद भी ठीक होती है।

प्रश्न 13.
रेशे (फोक) का हमारे शरीर में क्या कार्य है ?
उत्तर-
रेशे के कार्य –
रेशे शरीर से मल को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

प्रश्न 14.
भोजन के कार्य के अनुसार भोजन का वर्गीकरण कैसे करोगे ?
उत्तर-
कार्य के अनुसार भोजन का वर्गीकरण-शरीर में कार्य के अनुसार भोजन को तीन मुख्य समूहों में बांटा गया है –

  1. ऊर्जा देने वाला भोजन-इसमें कार्बोहाइड्रेट्स तथा चर्बी पौष्टिक तत्त्व होते हैं।
  2. शरीर की बनावट के लिए भोजन-इसमें प्रोटीन होते हैं।
  3. रक्षक भोजन-इसमें खनिज पदार्थ तथा विटामिन होते हैं।

प्रश्न 15.
ऐसे दो भोजन पदार्थों के नाम बताओ जिनमें प्रोटीन अधिक होती है ?
उत्तर-
सोयाबीन, मांह साबुत, बकरे का मांस, पनीर, बादाम, मूंग, मसर, खोया, मछली आदि में अधिक मात्रा में प्रोटीन होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 16.
भोजन, पौष्टिक तत्त्व और पोषण विज्ञान के बारे बताओ।
उत्तर-
भोजन-भोजन मनुष्य की प्राथमिक ज़रूरतों में सबसे महत्त्वपूर्ण ज़रूरत है। वह पदार्थ जिन्हें खाने से शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति मिलती है, उन्हें भोजन कहा जाता है। यह पदार्थ ठोस, अर्द्ध-ठोस तथा तरल रूप में भी हो सकते हैं। भोजन जीवित प्राणियों के शरीर के लिए ईंधन (Fuel) का कार्य करता है। भोजन ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ शरीर की वृद्धि में भी सहायक होता है। इससे ही खून का निर्माण होता है। इसलिए मनुष्य का भोजन ऐसा होना चाहिए जिसमें शरीर की तंदरुस्ती के लिए सभी अनिवार्य तत्त्व मौजूद हों।

पौष्टिक तत्त्व-पौष्टिक तत्त्व भोजन का एक अंग हैं। यह विभिन्न रासायनिक तत्त्वों का मिश्रण होते हैं। इनकी शरीर को काफ़ी मात्रा में ज़रूरत होती है। यह रासायनिक तत्त्व हमारे शरीर में पाचन क्रिया में पाचन रसों द्वारा साधारण रूप में तबदील हो जाते हैं। यह तत्त्व पचने के पश्चात् आवश्यकतानुसार सभी अंगों में पहुंचकर उन्हें पोषण देते हैं।
निम्नलिखित विभिन्न पौष्टिक तत्त्व हैं –

  1. प्रोटीन (Protein)
  2. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
  3. चर्बी (Fats)
  4. विटामिन (Vitamins)
  5. खनिज लवण (Minerals)
  6. पानी (Water)
  7. रुक्षांश (Roughage)।

पोषण विज्ञान-पोषण विज्ञान से हमें पता चलता है कि पौष्टिक तत्त्व कौन-से भोजन पदार्थों से मिल सकते हैं तथा सामान्य मिलने वाले तथा सस्ते भोजन पदार्थों से इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है ताकि पौष्टिक तत्त्वों की कमी से होने वाली बीमारियों से बच जा सके।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 17.
पोषण सम्बन्धी विज्ञान से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर-
पोषण विज्ञान हमें बताता है कि ठीक स्वास्थ्य के लिए कौन-से पौष्टिक तत्त्वों की शरीर को कितनी मात्रा में ज़रूरत है तथा कहां से प्राप्त होते हैं।

  1. कौन-से खाद्य पदार्थों से पौष्टिक तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
  2. इनकी कमी से शरीर पर क्या बुरा प्रभाव होगा।
  3. इन तत्त्वों की लगभग तथा कितने अनुपात में शरीर को ज़रूरत है।
  4. इस ज्ञान के आधार पर भोजन सम्बन्धी अच्छी आदतें कैसे बनानी हैं।

प्रश्न 18.
शरीर की वृद्धि और विकास के लिए भोजन के किन पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के संयोजन में पुराने तथा घिसे हुए तन्तु टूटते रहते हैं। टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत भोजन करता है। भोजन शरीर में नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी बनाता है। इस कार्य के लिए प्रोटीन, खनिज तथा पानी आवश्यक तत्त्व हैं। यह तत्त्व हमें दूध तथा दूध से बनी चीजें, मूंगफली, दालें, हरी सब्जियां, मांस, मछली आदि से प्राप्त होते हैं। मानवीय शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं का ही बना हुआ है। जैसे जैसे आयु बढ़ती है शरीर में नए तन्तु लगातार बनते रहते हैं जो शरीर की वृद्धि तथा विकास करते हैं। नए तन्तुओं के निर्माण के लिए भोजन पदार्थों की विशेष ज़रूरत होती है। इसलिए प्रोटीन युक्त भोजन पदार्थ आवश्यक होते हैं।

प्रश्न 19.
ऊर्जा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करना-जैसे मशीन को कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत है जो बिजली, कोयले अथवा पेट्रोल से प्राप्त की जाती है वैसे ही मानवीय शरीर को जीवित रहने तथा कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत पड़ती है जो भोजन से प्राप्त की जाती है। शरीर की विभिन्न प्रतिक्रियाओं के लिए शक्ति आवश्यक है जो भोजन ही प्रदान करता है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन की तरह जल कर ऊर्जा पैदा करता है। पर यह शरीर की गर्मी को स्थिर रखता है ताकि शरीर का तापमान अधिक बड़े तथा घटे नहीं।

शरीर के लिए आवश्यक शक्ति का अधिकतर भाग कार्बोज़ तथा चर्बी वाले भोजन पदार्थों से प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट हमें स्टार्च, शर्करा तथा सैलूलोज़ से प्राप्त होते हैं। वनस्पति, मक्खन, घी, तेल, मेवे तथा चर्बी युक्त खाने वाले पदार्थ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। प्रोटीन से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। पर यह बहुत महंगा स्रोत होता है। ऊर्जा को कैलोरी में मापा जाता है। विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों से प्राप्त कैलोरी की मात्रा इस तरह है –

(i) 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट – 4 कैलोरी
(ii) 1 ग्राम चर्बी – 9 कैलोरी
(iii) 1 ग्राम प्रोटीन – 4 कैलोरी

विभिन्न कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत अलग-अलग होती है। जैसे कि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की ऊर्जा की ज़रूरत एक शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति की ऊर्जा से कम होती है। इसी तरह विभिन्न शारीरिक दशाओं में भी ऊर्जा की ज़रूरत बदल जाती है। जैसे कि बच्चा पैदा करने वाली औरत अथवा दूध पिलाने वाली मां को अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 20.
भोजन के शारीरिक कार्य कौन-से हैं ? किसी दो के बारे लिखें।
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि।

(i) शरीर को नीरोग रखना-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है तथा यह शक्ति मनुष्य को रोगों से संघर्ष करने के योग्य बनाती है। भोजन में कई पदार्थ कच्चे ही खाए जाते हैं। इनमें ऐसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो शरीर की रक्षा करते हैं। इन्हें सुरक्षात्मक भोजन तत्त्व कहा जाता है। यह तत्त्व विशेषकर खनिज, लवण तथा विटामिनों से प्राप्त होते हैं। यदि भोजन में इनमें से एक अथवा एक से अधिक तत्त्वों की कमी हो जाये तो स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा शरीर बीमारी का शिकार हो जाता है। यह तत्त्व फल, सब्जियां, दूध, मांस, कलेजी तथा मछली से प्राप्त होता है।

(ii) शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करना-बढ़िया भोजन अच्छी सेहत के लिए बहुत आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक क्रियाएं जैसे रक्त प्रवाह, श्वास क्रिया, पाचन शक्ति, शरीर के तापमान को स्थिर रखना आदि को नियमित रखने के लिए भोजन की ज़रूरत होती है। यदि यह आन्तरिक क्रियाएं नियमित न रहें तो हमारा शरीर अनेकों रोगों से पीड़ित हो सकता है। कार्बोज़ के अतिरिक्त अनेकों पौष्टिक तत्त्व मिलकर शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करते हैं।
चर्बी युक्त पदार्थों में आवश्यक चर्बी अम्ल (Fatty acid), प्रोटीन, विटामिन, खनिज तथा पानी आदि यह कार्य करते हैं।

प्रश्न 21.
भोजन शारीरिक कार्य के अतिरिक्त हमारे शरीर में अन्य कौन-कौन से कार्य करता है ?
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक कार्य-शारीरिक कार्यों के अतिरिक्त भोजन मनोवैज्ञानिक कार्य भी करता है। इसके द्वारा कई भावनात्मक ज़रूरतों की पूर्ति होती है। भोजन के पौष्टिक होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वह पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करे। इसके अतिरिक्त घर में जब गृहिणी परिवार अथवा मेहमानों को बढ़िया भोजन परोसती है तो परिणामस्वरूप वह उसकी प्रशंसा करते हैं तथा गृहिणी को प्रशंसा से आनन्द प्राप्त होता है जो उसके मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के अवसरों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नवविवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाईचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुला कर इकट्ठे बैठते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 22.
हमारे शरीर के लिए कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं ? जल और रेशे हमारे शरीर में क्या कार्य करते हैं ? ।
उत्तर-
निम्नलिखित विभिन्न पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं –

  1. प्रोटीन (Protein)
  2. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
  3. चर्बी (Fats)
  4. विटामिन (Vitamins)
  5. खनिज लवण (Minerals)
  6. पानी (Water)
  7. रुक्षांश (Roughage)|

पानी-पानी में कोई कैलोरी नहीं होती पर शरीर की लगभग सभी प्रक्रियाओं में पानी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पानी के बिना हम थोड़े दिन भी जीवित नहीं रह सकते। यह शरीर के सभी तरल पदार्थों में होता है। रक्त में 90% पानी होता है। पाचक रसों में भी काफ़ी मात्रा पानी की ही होती है। इस तरह पानी विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक से दूसरे स्थान पर ले जाने में सहायक है जैसे कि हार्मोन्ज़ भोजन के पाचन के पश्चात् पदार्थ तथा बाहर निकलने वाले पदार्थों को एक से दूसरे स्थान पर ले जाना आदि। पानी शरीर की बनावट तथा शरीर का तापमान नियमित रखने में भी आवश्यक है।

पानी को हम पानी के रूप अथवा पेय पदार्थ अथवा अन्य भोजन पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं।

रुक्षांश-रुक्षांश भोजन का ऐसा हिस्सा है जो हमारी पाचन प्रणाली में पचाया नहीं जा सकता। यह पौधों से मिलने वाले भोजन पदार्थ जैसे फल, सब्जियां तथा अनाजों में होता है। यह शरीर में से मल को बाहर निकालने में सहायता करता है।

प्रश्न 23.
भोजन हमारे शरीर में क्या-क्या कार्य करता है ?
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि।

1. शरीर को नीरोग रखना-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है तथा यह शक्ति मनुष्य को रोगों से संघर्ष करने के योग्य बनाती है। भोजन में कई पदार्थ कच्चे ही खाए जाते हैं। इनमें ऐसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो शरीर की रक्षा करते हैं। इन्हें सुरक्षात्मक भोजन तत्त्व कहा जाता है। यह तत्त्व विशेषकर खनिज, लवण तथा विटामिनों से प्राप्त होते हैं। यदि भोजन में इनमें से एक अथवा एक से अधिक तत्त्वों की कमी हो जाये तो स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा शरीर बीमारी का शिकार हो जाता है। यह तत्त्व फल, सब्जियां, दूध, मांस, कलेजी तथा मछली से प्राप्त होता है।

2. शारीरिक क्रियाओं को नियमित करना-बढ़िया भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक क्रियाएं जैसे रक्त प्रवाह, श्वास क्रिया, पाचन शक्ति, शरीर के तापमान को स्थिर रखना आदि को नियमित रखने के लिए भोजन की ज़रूरत होती है। यदि यह आन्तरिक क्रियाएं नियमित न रहें तो हमारा शरीर अनेकों रोगों से पीड़ित हो सकता है। कार्बोज़ के अतिरिक्त अनेकों पौष्टिक तत्त्व मिलकर शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करते हैं।
चर्बी युक्त पदार्थों में आवश्यक चर्बी अम्ल (Fatty acid), प्रोटीन, विटामिन, खनिज तथा पानी आदि यह कार्य करते हैं।

3. शारीरिक कोशिकाओं का निर्माण करना तथा तन्तुओं की मरम्मत-करना विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के संयोजन में पुराने तथा घिसे हुए तन्तु टूटते रहते हैं। टूटीफूटी कोशिकाओं की मरम्मत भोजन करता है। भोजन शरीर में नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी बनाता है। इस कार्य के लिए प्रोटीन, खनिज तथा पानी आवश्यक तत्त्व हैं। यह तत्त्व हमें दूध से बनी चीज़ों, मूंगफली, दालें, हरी सब्जियों, मांस, मछली आदि से प्राप्त होते हैं। मानवीय शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं का ही बना हुआ है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है शरीर में नए तन्तु लगातार बनते रहते हैं जो शरीर की वृद्धि तथा विकास करते हैं। नए तन्तुओं के निर्माण के लिए भोजन पदार्थों की विशेष ज़रूरत होती है। इसलिए प्रोटीन युक्त भोजन पदार्थ आवश्यक होते हैं।

4. शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करना-जैसे मशीन को कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत है जो बिजली, कोयले अथवा पेटोल से प्राप्त की जाती है वैसे ही मानवीय शरीर को जीवित रहने तथा कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत पड़ती है जो भोजन से प्राप्त की जाती है। शरीर की विभिन्न प्रतिक्रियाओं के लिए शक्ति आवश्यक है जो भोजन ही प्रदान करता है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन की तरह जल कर ऊर्जा पैदा करता है। पर यह शरीर की गर्मी को स्थिर रखता है ताकि शरीर का तापमान अधिक बढ़े तथा घटे नहीं।

शरीर के लिए आवश्यक शक्ति का अधिकतर भाग कार्बोज़ तथा चर्बी वाले भोजन पदार्थों से प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट हमें स्टार्च, शर्करा, तथा सैलूलोज़ से प्राप्त होते हैं। वनस्पति, मक्खन, घी, तेल, मेवे तथा चर्बी युक्त खाने वाले पदार्थ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। प्रोटीन से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। पर यह बहुत महंगा स्रोत होता है। ऊर्जा के ताप को कैलोरी में मापा जाता है। विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों से प्राप्त कैलोरी की मात्रा इस तरह है –

(i) 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट – 4 कैलोरी
(ii) 1 ग्राम चर्बी – 9 कैलोरी
(iii) 1 ग्राम प्रोटीन – 4 कैलोरी।

विभिन्न कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत अलग-अलग होती है। जैसे कि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की ऊर्जा की ज़रूरत एक शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति की ऊर्जा से कम होती है। इसी तरह विभिन्न शारीरिक दशाओं में भी ऊर्जा की ज़रूरत बदल जाती है। जैसे कि बच्चा पैदा करने वाली औरत अथवा दूध पिलाने वाली मां को अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

5. शरीर का तापमान संतुलित करना-प्रत्येक मौसम में हमारे शरीर का तापमान नियमित रहता है। गर्मियों में हमें पसीना आता है। पसीना सूखने पर वाष्पीकरण से ठण्ड पैदा होती है जिससे शरीर का तापमान नियमित रहता है। विभिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न ढंगों से क्रिया करने का संकेत दिमाग से आता है जिसके लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा यह ऊर्जा हमें भोजन से ही प्राप्त होती है। पानी शरीर का तापमान नियमित रखने के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

6. मनोवैज्ञानिक कार्य-शारीरिक कार्यों के अतिरिक्त भोजन मनोवैज्ञानिक कार्य भी करता है। इसके द्वारा कई भावनात्मक ज़रूरतों की पूर्ति होती है। भोजन के पौष्टिक होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वह पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करे। इसके अतिरिक्त घर में जब गृहिणी परिवार अथवा मेहमानों को बढ़िया भोजन परोसती है तो परिणामस्वरूप वह उसकी प्रशंसा करते हैं तथा गृहिणी को प्रशंसा से आनन्द प्राप्त होता है जो उसके आन्तरिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

7. सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के अवसरों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नव-विवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाईचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुलाकर इकट्ठे बैठते हैं।

प्रश्न 24.
भोजन के शारीरिक कार्य क्या हैं ? और इनके लिए किन-किन पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता है ?
उत्तर-
भोजन के शारीरिक कार्य-

भोजन समूह पौष्टिक तत्त्व कार्य
1. ऊर्जा देने वाले भोजन

(i) अनाज तथा जड़ वाली सब्जियां।

(ii) शक्कर तथा गुड़, तेल, घी तथा मक्खन।

कार्बोहाइड्रेट तथा चर्बी ऊर्जा प्रदान करना
2. शरीर की बनावट तथा वृद्धि के लिए भोजन

(i) दूध तथा दूध से बने पदार्थ

(ii) मांस, मछली तथा अण्डे

(iii) दालें तथा

(iv) सूखे मेवे।

प्रोटीन शरीर की वृद्धि तथा टूटे फूटे तन्तुओं की मरम्मत करने के लिए
3. रक्षक भोजन

(i) पीले तथा संतरी रंग के फल

(ii) हरी सब्जियां

(iii) अन्य फल तथा सब्ज़ियां।

विटामिन तथा खनिज पदार्थ बीमारियों से शरीर की रक्षा करना तथा शारीरिक क्रियाओं को कण्ट्रोल करना।

Home Science Guide for Class 9 PSEB भोजन के कार्य और पोषण Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें

  1. शरीर में ………………… प्रतिशत खनिज पदार्थ होते हैं।
  2. पानी शरीर के ……………. को नियमित करता है।
  3. ऊर्जा को ……………….. में मापा जाता है।
  4. रक्त में …………………. पानी होता है।
  5. राइबोफ्लेबिन ……………… में घुलनशील है।

उत्तर-

  1. 4%
  2. तापमान
  3. किलो कैलोरी
  4. 90%
  5. पानी।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक 65 किलोग्राम भार वाले पुरुष के शरीर में कितना प्रोटीन होता है ?
उत्तर-
11 किलोग्राम।

प्रश्न 2.
हमारे शरीर में कितने प्रतिशत जल है ?
उत्तर-
70%

प्रश्न 3.
कार्बोज़ तथा वसा का क्या कार्य है ?
उत्तर-
ऊर्जा प्रदान करना।

प्रश्न 4.
वसा में घुलनशील एक विटामिन बताएं।
उत्तर-
विटामिन ए।

प्रश्न 5.
विटामिन तथा खनिज पदार्थों को कैसे तत्त्व कहा जाता है ?
उत्तर-
रक्षक तत्त्व।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. हमारे शरीर में 70% पानी होता है।
  2. विटामिन बी (B) पानी में अघुलनशील है।
  3. दूध में प्रोटीन, विटामिन तथा कैल्शियम होता है।
  4. पानी से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है।
  5. प्रोटीन शरीर की मुरम्मत करने के काम आता है।
  6. खनिज पदार्थ तथा विटामिन रक्षक भोजन है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ग़लत,
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वस्थ व्यक्ति के लिए ठीक तथ्य नहीं हैं –
(A) शरीर सुडौल होता है
(B) भूख तथा नींद कम होती है
(C) भार, आयु तथा लम्बाई अनुसार होता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(B) भूख तथा नींद कम होती है

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प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं –
(A) शरीर में 4% खनिज पदार्थ होते हैं
(B) एक ग्राम चर्बी में 9 कैलोरी ऊर्जा होती है
(C) सोयाबीन में अधिक प्रोटीन होता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
शरीर में ………………….. तथा रक्त में ………………….. पानी होता है –
(A) 70%, 90%
(B) 90%, 70%
(C) 100%, 100%
(D) 70%, 20%.
उत्तर-
(D) 70%, 20%

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एस्कीमो आदि की मुख्य खुराक क्या है ?
उत्तर-
इनकी मुख्य खुराक मांस, मछली तथा अण्डा है।

प्रश्न 2.
यदि ठीक भोजन न खाया जाये तो इसका हमारे शरीर पर क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर-
भोजन तथा स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध है। यदि ठीक भोजन न खाया जाये तो हमारे शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की शक्ति में कमी आ जाती है जिस कारण हमें कोई भी बीमारी आसानी से हो सकती है। शरीर की कार्य करने की क्षमता भी कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
दूध के पौष्टिक गुणों के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
दूध में प्रोटीन, विटामिन तथा कैल्शियम होता है जिस कारण इसमें पौष्टिक गुण होते हैं।

प्रश्न 4.
भोजन किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जिस खाद्य पदार्थ को खाने से शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति मिलती है, उसे भोज कहा जाता है।

प्रश्न 5.
पौष्टिक तत्त्व क्या हैं ?
उत्तर-
भोजन के रासायनिक तत्त्वों के मिश्रण को पौष्टिक तत्त्व कहा जाता है।

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प्रश्न 6.
कौन-से भोजन पदार्थों से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है ?
उत्तर-
घी, तेल, मेवे, दालों तथा चर्बी युक्त पदार्थों से शरीर को ऊर्जा मिलती है।

प्रश्न 7.
शरीर के निर्माण के लिए कौन-से भोजन पदार्थ आवश्यक हैं ?
उत्तर-
दूध तथा दूध से बने पदार्थ, साबुत दालें, मांस, अण्डे आदि।

प्रश्न 8.
कौन-से भोजन पदार्थ शरीर को सुरक्षित रखते हैं ?
उत्तर-
फल, सब्जियां तथा पानी शरीर को सुरक्षित रखते हैं।

प्रश्न 9.
शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, चर्बी, विटामिन, खनिज पदार्थ, रुक्षांश तथा पानी आवश्य पौष्टिक तत्त्व हैं।

प्रश्न 10.
पोषण क्या होता है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी परिस्थिति है जो शरीर को विकसित करती है तथा बनाये रखती है।

प्रश्न 11.
भोजन शरीर के लिए क्या कार्य करता है ?
उत्तर-

  1. शारीरिक क्रियाओं को चालू तथा नीरोग रखता है।
  2. मनोवैज्ञानिक कार्य।
  3. सामाजिक कार्य।

प्रश्न 12.
शरीर में ऊर्जा कैसे पैदा होती है ?
उत्तर-
शरीर में ऊर्जा कार्बन यौगिकों के ऑक्सीकरण से पैदा होती है।

प्रश्न 13.
कौन-से पौष्टिक तत्त्वों से ऊर्जा पैदा होती है ?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी तथा प्रोटीन से ऊर्जा पैदा होती है।

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प्रश्न 14.
शरीर में कौन-से तत्त्व कम मात्रा में आवश्यक हैं ?
उत्तर-
कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, विटामिन आदि शरीर को कम मात्रा में आवश्यक हैं।

प्रश्न 15.
एक 65 किलो के पुरुष के शरीर में पानी, प्रोटीन, कैल्शियम, तांबा तथ थाइयोमिन की कितनी मात्रा होती है ?
उत्तर-
पानी – 40 किलोग्राम
प्रोटीन – 11 किलोग्राम
कैल्शियम – 1200 ग्राम
तांबा – 100-150 मिलिग्राम
थाइयोमिन – 25 मिलिग्राम।

प्रश्न 16.
65 किलो के पुरुष के शरीर में चर्बी, लोहा, आयोडीन तथा विटामिन सी कितनी मात्रा में होते हैं ?
उत्तर-
चर्बी – 9 किलोग्राम
लोहा — 3-4 ग्राम
आयोडीन – 25-50 मिलिग्राम
विटामिन सी – 5 ग्राम।

प्रश्न 17.
हमारे शरीर में पानी की मात्रा कितनी होती है ?
उत्तर-
हमारे शरीर में पानी 70% होता है।

प्रश्न 18.
रक्त बनाने के लिए कौन-से तत्त्वों की ज़रूरत होती है ?
उत्तर-
रक्त बनाने के लिए लोहा तथा प्रोटीन की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 19.
गर्मियों में शरीर का तापमान कैसे नियमित रहता है ?
उत्तर-
गर्मियों में पसीना आता है तथा पसीने के वाष्पीकरण से ठण्डक पैदा होती है। इससे शरीर का तापमान नियमित रहता है।

प्रश्न 20.
सर्दियों में शरीर का तापमान कैसे नियमित रहता है ?
उत्तर-
सर्दियों में शरीर द्वारा काफ़ी ऊर्जा पैदा की जाती है जिससे शरीर का तापमान नियमित रहता है।

प्रश्न 21.
मानसिक पक्ष से कौन-सा व्यक्ति ठीक होता है ?
उत्तर-
मानसिक पक्ष से वह व्यक्ति ठीक होता है जिसे –

  1. अपने गुणों तथा अवगुणों के बारे में पता हो।
  2. जो चिंता अथवा किसी प्रकार के तनाव से मुक्त हो।
  3. जो चौकस तथा फुर्तीला हो।
  4. जो समझदार तथा सीखने वाला हो।

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प्रश्न 22.
सामाजिक रूप में सन्तुष्ट व्यक्ति कौन होता है ?
उत्तर–
सामाजिक रूप में सन्तुष्ट व्यक्ति वह होता है –

  1. जो अपने इर्द-गिर्द के लोगों को साथ लेकर चलता है।
  2. जो अच्छे तौर तरीके तथा शिष्टाचार अपनाता है।
  3. जो दूसरों की मदद करने में खुशी महसूस करता है।
  4. जो समाज तथा परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेवारी समझता है।

प्रश्न 23.
विटामिन कितनी प्रकार के होते हैं, विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
विटामिन दो तरह के होते हैं –
(i) पानी में घलनशील विटामिन ‘सी’ तथा ‘बी’ ग्रप के विटामिन जैसे कि थायामिन. राइबोफ्लेबिन, निकोटिनिक अम्ल, पिरडॉक्सिन, फौलिक अम्ल तथा विटामिन बी,, पानी में घुलनशील हैं।
(ii) चर्बी में घुलनशील विटामिन-विटामिन ‘ए’, ‘डी’ तथा ‘के’ चर्बी में घुलनशील हैं।

प्रश्न 24.
सबसे अधिक प्रोटीन, चर्बी, खनिज पदार्थ, कार्बोज़, कैल्शियम तथा लोहा, ऊर्जा कौन-से भोजन पदार्थों में होते हैं ?
उत्तर-
प्रोटीन – सोयाबीन (43.2 ग्राम)
चर्बी – मक्खन (81 ग्राम)
खनिज पदार्थ – सोयाबीन (4.6 ग्राम)
कार्बोज़ – गुड़ (95 ग्राम)
कैल्शियम – खोया (956 मिलिग्राम)
लोहा – सरसों (16.3 मिलिग्राम)
ऊर्जा – मक्खन (किलो कैलोरी)
यह मात्रा 100 ग्राम भोजन पदार्थ के लिए है।

प्रश्न 25.
पानी का शरीर में कार्य बतायें।
उत्तर–
पानी के कार्य –
(i) पानी विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है।
(ii) पानी शरीर के तापमान को नियमित करता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

भोजन के कार्य और पोषण PSEB 9th Class Home Science Notes

  • सभी जीवित प्राणियों को भोजन की ज़रूरत होती है।
  • पोषण विज्ञान से हमें यह पता चलता है कि कौन-से भोजन पदार्थों में कौन-से पौष्टिक तत्त्व होते हैं।
  • शरीर में ऊर्जा कार्बन यौगिकों से पैदा होती है।
  • डण्डी को नीरोग तथा स्वस्थ रखने वाला कोई भी ठोस, तरल अथवा अर्द्ध-ठोस खाद्य पदार्थ जिसको शरीर द्वारा निगला, पचाया तथा शोषित किया जाता है, को भोजन कहते हैं।
  • भोजन के शारीरिक काम हैं-शरीर को ऊर्जा देना, शरीर की वृद्धि, टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, शरीर का तापमान नियमित करना आदि।
  • भोजन मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा धार्मिक कार्य भी करता है।
  • पौष्टिक तत्त्व वह रासायनिक पदार्थ हैं जो हमें भोजन से मिलते हैं तथा शरीर की विभिन्न जोड़-तोड़ क्रियाओं के लिए ऊर्जा का साधन हैं तथा शरीर के सैलों की रचना तथा बनावट के लिए ज़रूरी हैं।
  • पौष्टिक तत्त्व हैं-प्रोटीन, चर्बी, खनिज पदार्थ, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा पानी।
  • पोषण विज्ञान में ऊर्जा को कैलोरी में मापा जाता है।
  • 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चर्बी में बारी-बारी 4,4 तथा 9 कैलोरी ऊर्जा होती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
(What is democracy ? Explain.)
उत्तर-
लोकतन्त्र का अर्थ (Meaning of Democracy)-आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है। अधिकांश साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके लोकतन्त्र की स्थापना की गई है। प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो। अरस्तु ने इसे बहुतन्त्र या शुद्ध जनतन्त्र (Polity) कहा है और इसे ही सर्वोत्तम शासन बताया है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोज (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोज का अर्थ है ‘लोक’ और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या ‘सत्ता’। इसलिए डैमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, प्रजातन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।
लोकतन्त्र की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • प्रो० डायसी (Prof. Dicey) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।” (“Democracy is a form of government in which the governing body is comparatively a large fraction of the entire nation.”)
  • प्रो० सीले (Prof. Seeley) के विचारानुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।” (“Democracy is a government in which everyone has a share.”)
  • ग्रीक लेखक हैरोडोटस (Herodotus) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें सर्वोच्च सत्ता समस्त जाति को प्राप्त हो।” (“Democracy is that form of government in which the supreme power of the State is in the hands of the community as a whole.”)
  • प्रजातन्त्र की बहुत ही सरल, सुन्दर तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।” (“Democracy is a government of the people, by the people and for the people.”)

उपर्युक्त परिभाषाओं के फलस्वरूप हम यह कह सकते हैं कि प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है और जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के कार्यों में भाग लेती हो, परन्तु श्री गुरमुख निहाल सिंह के शब्दों के अनुसार न तो जनता तथा न ही उसमें से अधिक संख्या शासन का संचालन कर सकती है और न ही उनमें शासन करने की योग्यता और निपुणता होती है। जिस बात की जनता से प्रजातन्त्र में मांग की जाती है वह है योग्य प्रतिनिधियों का चुनाव करना, शासन तथा प्रबन्ध की नीतियों सम्बन्धी उचित और अनुचित का निर्णय करना-शासन तथा उसके चलाने के लिए अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के कार्यों के सम्बन्ध में सावधान रहना आदि।

प्रजातन्त्र की विशेषताएं (Characteristics of Democracy)-प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  • जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  • समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  • शासन में भाग लेने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • स्वतन्त्रता-सभी नागरिकों को स्वतन्त्रता के अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने का अधिकार, अपने विचार प्रकट करने का अधिकार इत्यादि प्राप्त होते हैं।
  • कानून के समक्ष समानता-प्रजातन्त्र में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं होता। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  • सरकार की आलोचना करने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • मौलिक अधिकार-प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जिनकी रक्षा न्यायाधीशों द्वारा की जाती है।
  • स्वतन्त्र न्यायपालिका-प्रजातन्त्र में स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और सरकार को तानाशाही बनने से रोका जा सके।
  • राजनीतिक दल-बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता। लोकतन्त्र का आधार जनमत होता है और राजनीतिक दल जनमत को संगठित करते हैं। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह दल शासन चलाता है और अन्य दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हैं।
  • धर्म-निरपेक्षता-प्रजातन्त्रीय राज्य का धर्म-निरपेक्ष होना आवश्यक है जिसमें किसी विशेष धर्म को विशेष स्थिति प्राप्त नहीं होनी चाहिए तथा सभी धर्मों के लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए।
  • वयस्क मताधिकार-प्रजातन्त्रीय सरकार में वयस्क मताधिकार लागू किया जाता है। प्रजातन्त्र में मताधिकार प्राप्त करते समय जन्म, जाति, रंग, नसल, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र के गुणों और दोषों की व्याख्या करें। (Discuss the merits and demerits of democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के गुण (Merits of Democracy)-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं
1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है (It Safeguards the Interest of the Common Man)प्रजातन्त्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातन्त्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है। इसीलिए अब्राहम लिंकन ने कहा था, प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।

2. यह जनमत पर आधारित है (It is based on Public Opinion)—प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।

3. यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है (It is based on the Principal of Equality)—प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता था।

4. यह स्वतन्त्रता तथा बन्धुता पर आधारित है (It is based on Liberty and Fraternity)—प्रजातन्त्र सरकार में नागरिकों को जितनी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है उतनी अन्य किसी सरकार से प्राप्त नहीं होती। नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए जाते हैं ताकि नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें। चूंकि प्रजातन्त्र में स्वतन्त्रता तथा समानता का वातावरण होता है, इसलिए नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है। एक नागरिक दूसरे को भाई समझता है और वे परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं।

5. स्थायी तथा उत्तरदायी शासन (Stable and Responsible Government)—प्रजातन्त्र में शासन जनमत पर आधारित होता है। इसलिए शासन में शीघ्रता से परिवर्तन नहीं आ पाता है। स्थायी शासन के साथ-साथ सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार सदा जनमत के अनुसार कार्य करती है। सरकार जनता की नौकर होती है और जिस तरह नौकर का कर्त्तव्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना होता है, उसी तरह प्रजातन्त्र में शासकों का कर्तव्य जनता की इच्छाओं की पूर्ति करना होता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

6. दृढ़ तथा कुशल शासन-व्यवस्था (Strong and Efficient Government)—प्रजातन्त्र में शासन दृढ़ तथा कुशल होता है। प्रजातन्त्र में शासकों को जनता का समर्थन प्राप्त होता है, जिस कारण वे अपने निर्णयों को दृढ़ता से लागू करते हैं। शासकों पर जनता का नियन्त्रण होता है और वे अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इससे शासक अधिक कुशलता से कार्य करते हैं।

7. जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है (People get Political Education)-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है। प्रजातन्त्र में चुनावों में प्रत्येक राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते हैं और अपनी नीतियों की घोषणा करते हैं। देश की समस्याओं को जनता के सामने रखा जाता है और प्रत्येक राजनीतिक दल इन समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने सुझाव जनता के सामने पेश करते हैं। जनता को इस तरह राजनीतिक शिक्षा मिलती है और साधारण नागरिक भी शासन में रुचि लेने लगता है।

8. क्रान्ति का डर नहीं (No fear of Revolution)—प्रजातन्त्र में क्रान्ति की सम्भावना बहुत कम होती है। प्रजातन्त्र में सरकार जनता की इच्छानुसार कार्य करती है। वास्तव में जनता ही शासन नीतियों को निर्धारित करती है। यदि सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार शासन न चलाए तो जनता सरकार को बदल सकती है। इससे क्रान्ति की सम्भावना नहीं रहती है।

9. यह देशभक्ति या राष्ट्रीय एकता की भावना में वृद्धि करता है (It promotes the spirit of patriotism and national unity)-प्रजातन्त्र जनता में देश भक्ति तथा राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करती है। प्रजातन्त्र में जनता यह समझती है कि यह सरकार उनकी अपनी है, इसलिए उन्हें इसको पूरा सहयोग देना चाहिए। जनता राष्ट्र को अपना राष्ट्र समझती है और देश की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तैयार रहती है।
प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त होती हैं। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का पूरा अवसर दिया जाता है इससे नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है जिससे राष्ट्रीय एकता का विकास होता है।

10. यह राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है (It builds National Character)-जे० एस० मिल के मतानुसार प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषता जनता के चरित्र को सुन्दर तथा स्वच्छ बनाना है। प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन होता है जिससे मनुष्यों में आत्मनिर्भरता, निर्भीकता तथा स्वावलम्बन के गुणों को बढ़ावा मिलता है। स्वतन्त्रता तथा स्वशासन से न केवल मनुष्य का चरित्र-निर्माण होता है बल्कि इससे राष्ट्रीय चरित्र का भी निर्माण होता है।

11. व्यक्ति के जीवन का पूर्ण विकास (Fullest Development of the Individual)-राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन का विकास करना है और इस उद्देश्य की पूर्ति प्रजातन्त्र में ही हो सकती है। इसका कारण यह है कि शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक-से-अधिक अधिकार और स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिनका प्रयोग करके वह अपनी इच्छानुसार अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास कर सकता है। यह बात अन्य किसी शासन-प्रणाली में सम्भव नहीं

12. उदारवादी सरकार (Liberal Government)—प्रजातन्त्र में सरकार उदारवादी होती है जिस कारण देश की बदलती परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक सुधार सम्भव हो सकते हैं।

13. कला, विज्ञान तथा संस्कृति में अधिक वृद्धि (Better progress in Art, Science and Literature)प्रजातन्त्र में कला, विज्ञान तथा संस्कृति का अच्छा विकास होता है क्योंकि नागरिकों को किसी प्रकार के प्रतिबन्धों के अधीन काम नहीं करना पड़ता।

14. संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार सर्वोत्तम होती है (In time of Emergency, Democratic Government is the Best)-दो महायुद्धों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार तानाशाही से अधिक अच्छी है। तानाशाही में शासन की शक्ति एक व्यक्ति के पास होती है और जनता को शासन के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं होती जिसका परिणाम यह होता है कि यदि संकटकाल में शासक की मृत्यु हो जाए तो जनता हतोत्साहित हो जाती है। द्वितीय महायुद्ध में हिटलर और मुसोलिनी के हट जाने से जर्मनी और इटली की ऐसी ही दशा हुई। परन्तु प्रजातन्त्र में यदि एक नेता किसी कारण हट जाता है तो अन्य नेता शासन की बागडोर सम्भाल लेता है। सरकार जनता के सहयोग एवं समर्थन से बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है।

15. सभी शासन प्रणालियों में उत्तम (Best among all fiilms of Governments)-प्रजातन्त्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों की ३-छाओं की ओर ध्यान दिया जाता है। इस सम्बन्ध में लावेल (Lowell) ने लिखा है, “एक पूर्ण लोकतन्त्र में कोई भी यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिला।”

प्रजातन्त्र के दोष (Demerits of Democracy) –

प्रजातन्त्र में जहां अनेक गुण पाए जाते हैं वहां दूसरी ओर इसमें अनेक दोष भी पाए जाते हैं। प्रजातन्त्र में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूों का शासन है (It is the Government of Ignorant, Incapable and Fools)-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा (Cult of Incompetence) बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकतर व्यक्ति अज्ञानी, अयोग्य तथा मूर्ख होते हैं। सर हेनरी मेन (Sir Henry Maine) का कहना है, “प्रजातन्त्र अज्ञानी और बुद्धिहीन व्यक्तियों का शासन है।”

2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है (It gives Importance of Quantity rather than to Quality)-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है। यदि किसी विषय को 50 मूर्ख ठीक कहें और 49 बुद्धिमान ग़लत कहें तो मूों की बात मानी जाएगी। समाज में मूल् तथा अज्ञानियों की संख्या अधिक होने के कारण उनके प्रतिनिधियों को ही बहुमत प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रजातन्त्र में बहुमत के शासन को मूल् का शासन भी कहा जा सकता है।

3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है (It is not a Responsible Government)—प्रजातन्त्र सैद्धान्तिक तौर पर उत्तरदायी शासन है, परन्तु व्यवहार से यह अनुत्तरदायी है। वास्तव में प्रजातन्त्र में नागरिक चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं। चुनाव से पहले बड़े-बड़े नेता साधारण नागरिक के पास वोट मांगने आते हैं, परन्तु चुनाव के पश्चात् वे जनता की इच्छाओं की परवाह नहीं करते। जनता अपने प्रतिनिधियों का अगले चुनाव से पहले कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जिससे प्रतिनिधि जनता की इच्छाओं के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।

4. राजनीतिक दलों के अवगुण (Defects of Political Parties)—प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों के सभी अवगुण आ जाते हैं। राजनीतिक दलों का नागरिकों के चरित्र तथा राष्ट्रीय चरित्र का बुरा प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक दल अपने सदस्यों से वफादारी की मांग करते हैं जिससे उनकी स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है। राजनीतिक दल एकता को भी नष्ट करते हैं क्योंकि सारा देश उतने भागों में बंट जाता है जितने राजनीतिक दल होते हैं।

5. यह बहुत खर्चीला है (It is Highly Expensive)—प्रजातन्त्र शासन प्रणाली बहुत खर्चीली है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् संसद् के सदस्यों का चुनाव होता है। प्रजातन्त्र में आम चुनावों के प्रबन्ध पर बहुत धन खर्च हो जाता है। मन्त्रियों के वेतन और भत्तों पर जनता का बहुत-सा धन खर्च होता रहता है। मन्त्री देश के धन को बिना सोचे-समझे खर्च करते रहते हैं।

6. यह अमीरों का शासन है (It is a Government of the Rich)—प्रजातन्त्र कहने में तो प्रजा का शासन है परन्तु कस्तव में अमीरों का शासन है। चुनाव लड़ने के लिए धन की आवश्यकता होती है। चुनावों में लाखों रुपये खर्च होते हैं। इसलिए या तो अमीर व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकते हैं या उनकी सहायता से ही चुनाव लड़ा जा सकता है। राजनीतिक दल भी चुनाव लड़ने के लिए पूंजीपतियों से पैसा लेते हैं।

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7. बहुमत की तानाशाही (Dictatorship of Majority)-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है। मन्त्रिमण्डल उसी दल का बनता है जिस दल को विधानमण्डल में बहुमत प्राप्त होता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह अगले चुनाव तक मनमानी करता है।

8. यह वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है (In Reality it is not a Rule of Majority)-आलोचकों का कहना है कि प्रजातन्त्र वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है। यह देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने मत का प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त जो दल सरकार बनाता है उसके समर्थन में डाले गए वोट कुल डाले गए वोटों का बहुमत नहीं होता।

9. यह राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक उन्नति को रोकता है (It Checks the Cultural and Scientific Development of the Nation)—प्रजातन्त्र में राजनीति पर बहुत ज़ोर दिया जाता है पर साहित्य, कला, विज्ञान आदि की उन्नति की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। ____10. अस्थायी तथा कमज़ोर शासन (Unstable and Weak Government)-जिन देशों में बहु-दलीय प्रणाली होती है वहां पर सरकारें जल्दी-जल्दी बदलती हैं। बहु-दलीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनायी जाती है जो किसी भी समय टूट सकती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी होने के कारण कमज़ोर भी होती है।

11. नैतिकता का स्तर गिर जाता है (The Standard of Morality is Lowered Down)-राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए झूठ, बेईमानी तथा रिश्वतखोरी का सहारा लेते हैं। चुनाव जीतने के पश्चात् मन्त्री सभी साधनों से अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने का प्रयत्न करते हैं। इस तरह प्रजातन्त्र में नैतिकता का महत्त्व बहुत कम हो जाता

12. संकटकाल का मुकाबला करने में कमज़ोर (It is weak in time of Emergency)—किसी भी संकट का सामना करने के लिए एकता और शक्ति की ज़रूरत होती है। संकटकाल के समय निर्णय शीघ्र लेने होते हैं और उन्हें दृढ़तापूर्वक लागू करना आवश्यक होता है। परन्तु प्रजातन्त्र में निर्णय शीघ्र नहीं लिए जाते और न ही दृढ़ता से लागू किए जाते हैं। तानाशाही सरकारें संकटकाल का मुकाबला प्रजातन्त्र की अपेक्षा अधिक अच्छी प्रकार कर सकती हैं।

13. प्रजातन्त्र एक कल्पना है (Democracy is a Myth)—प्रजातन्त्र को कई लेखक व्यावहारिक नहीं मानते और उसे केवल कल्पना कहते हैं। उनका कहना है कि जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार वास्तविक नहीं होता। केवल वयस्कों को ही वोट देने का अधिकार मिलता है और चुनाव के बाद बहुमत दल अपनी मनमानी करता है, मतदाताओं को कोई नहीं पूछता।

14. समातना का सिद्धान्त अप्राकृतिक है (Principle of Equality is Unnatural)—प्रजातन्त्र का मुख्य आधार समानता का सिद्धान्त है। परन्तु आलोचना के अनुसार समानता अप्राकृतिक है। प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान पैदा नहीं किया। जब प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान नहीं बनाया तो, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समानता कैसे स्थिर रह सकती है।

15. राजनीति एक व्यवसाय बन जाता है (Politics becomes a Profession)-प्रजातन्त्र में राजनीतिज्ञों का बोलबाला रहता है और उनका एक अलग वर्ग बन जाता है। ये लोग जनता को जोशीले भाषणों और झूठे वायदों से अपने पीछे लगा लेते हैं। आम व्यक्ति चालाक और स्वार्थी राजनीतिज्ञों की बातों में आ जाते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-प्रजातन्त्र के लाभ भी हैं और दोष भी। परन्तु दोषों के होते हुए भी इस प्रणाली को आजकल सर्वोत्तम माना जाता है। यही एक शासन प्रणाली है जिस में लोगों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, राजनीतिक अधिकार, समानता, शासन की आलोचना करने और उसे प्रभावित करने का अवसर तथा अपने जीवन का विकास करने का अवसर सबसे अधिक मिलता है। मेजिनी का कथन है कि प्रजातन्त्र में, “सबसे अधिक बुद्धिमान और श्रेष्ठ व्यक्तियों के नेतृत्व में सर्वसाधारण की प्रगति सर्वसाधारण के द्वारा होती है।”

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र से क्या अभिप्राय है ? प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की विशेष संस्थाओं की विवेचना करें।
(What do you understand by direct democracy ? Discuss the special institutions of direct democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के दो रूप हैं-

  1. प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र तथा
  2. अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र।

1. प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र (Direct or Pure Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का शुद्ध या वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है
और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक होती है और भू-भाग भी लम्बा-चौड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। आज प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था। इसलिए तो उसने कहा कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।

2. अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि प्रजातन्त्र (Indirect or Representative Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रभुत्व शक्ति जनता के पास होती है, परन्तु जनता उसका प्रयोग स्वयं न करके अपने प्रतिनिधियों द्वारा करती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुन लेती है और वे प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार कानून बनाते तथा शासन करते हैं। इन प्रतिनिधियों का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए होता है। भारत में ये प्रतिनिधि पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। ब्लंटशली (Bluntschli) के शब्दों में, “प्रतिनिधि प्रजातन्त्र का यह नियम है, कि जनता अपने अधिकारियों द्वारा शासन करती है और प्रतिनिधियों द्वारा कानून का निर्माण करती है तथा प्रशासन पर नियन्त्रण रखती है।”

प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं (Institutions of Direct Democracy)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र पूर्ण रूप से लागू करना तो आज के युग में सम्भव नहीं, परन्तु अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के दोषों को कम करने के लिए कुछ देशों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की कुछ संस्थाएं अपनाई गई हैं। इसके लिए स्विट्ज़रलैंड बड़ा प्रसिद्ध है। स्विट्ज़रलैंड को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का घर (Home of Direct Democracy) कहा जाता है। इन संस्थाओं द्वारा नागरिकों को कानून बनवाने और संसद् के कानूनों को लागू होने से रोकने का अधिकार दिया जाता है। स्विट्ज़रलैण्ड के कुछ कैंटनों (Cantons) में समस्त मतदाता एक स्थान पर एकत्र होकर कानून आदि बनाते हैं तथा सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं। परन्तु समस्त देशों में ऐसा सम्भव नहीं। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की आधुनिक संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार (Initiative), जनमत संग्रह (Referendum), प्रत्यावर्तन या वापसी (Recall) तथा लोकमत संग्रह (Plebiscite), इनका सविस्तार वर्णन दिया जाता है-

1. प्रस्तावाधिकार (Initiative)-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में एक लाख मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

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2. जनमत संग्रह (Referendum)—जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्ज़रलैण्ड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। वहां पर जनमतसंग्रह दो प्रकार के होते हैं-(i) अनिवार्य जनमत संग्रह (Compulsory Referendum) तथा (ii) ऐच्छिक जनमत संग्रह (Optional Referendum) । महत्त्वपूर्ण कानून लागू होने से पहले जनमत संग्रह के लिए भेजा जाता है। यदि बहुमत कैन्टनों में तथा कुल मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो तो, उसे लागू कर दिया जाता है अन्यथा वह कानून रद्द हो जाता है। ऐच्छिक जनमत संग्रह में संसद् की इच्छा होती है कि वह साधारण कानून को लागू होने से पहले जनता की राय के लिए भेजे या न भेजे । ऐसा साधारण कानून पर होता है। परन्तु यदि 50,000 मतदाता इस बात की मांग करें कि कानून पर जनमत-संग्रह कराया जाए तो वह कानून भी जनता की राय के लिए अवश्य भेजा जाता है। ऐसे कानून पर जब बहुमत का समर्थन मिल जाए तभी वह लागू होता है। रूस में ऐच्छिक जनमत-संग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है। 23 अप्रैल, 1993 को रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसीन ने अपनी आर्थिक सुधार नीतियों के पक्ष में जनमत-संग्रह करवाया और लोगों ने भारी बहुमत से उनके पक्ष में मतदान किया।

3. वापसी (Recall)-इस नियम द्वारा जनता को अपने प्रतिनिधि अवधि समाप्त होने से पहले भी वापस बुलाने और दूसरा प्रतिनिधि चुन कर भेजने का अधिकार दिया जाता है। इस अधिकार द्वारा मतदाताओं की एक निश्चित संख्या अपने प्रतिनिधि को वापस बुलाने का प्रस्ताव रख सकती है। इससे प्रतिनिधियों पर मतदाताओं का स्थायी प्रभाव बना रहता है और वे कभी भी उनकी इच्छा की अवहेलना नहीं कर सकते। अमेरिका के कुछ राज्यों तथा स्विट्जरलैंड में यह नियम लागू है।

4. लोकमत संग्रह (Plebiscite)-लोकमत संग्रह राजनीतिक प्रश्न पर होता है। कानूनों पर जनता की राय जनमतसंग्रह कहलाती है। पाकिस्तान यह मांग करता है कि कश्मीर में लोकमत-संग्रह कराया जाए कि वहां के लोग भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में ? 1935 में लोकमत-संग्रह के आधार पर ही सार (Saar) को जर्मनी में मिलाया गया। उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्तों (N.W.F.P.) को भी पाकिस्तान में लोकमत संग्रह के आधार पर ही मिलाया गया था। लोकमत-संग्रह का एक अन्य रूप भी है जिसे मतसंख्या (Opinion Poll) कहते हैं। सन् 1967 में गोवा, दमन और दियू में यह जानने के लिए कि वहां के लोग संघीय क्षेत्र ही चाहते हैं या महाराष्ट्र अथवा गुजरात में मिलना चाहते हैं। लोकमत संग्रह करवाया गया और लोगों ने संघीय क्षेत्र में बने रहने की ही इच्छा व्यक्त की।

निष्कर्ष (Conclusion)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं देखने में बहुत अच्छी प्रतीत होती हैं। ये संस्थाएं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के कुछ दोषों को दूर करती हैं। परन्तु सभी देशों में इन संस्थाओं का संचालन ठीक नहीं हो सकता। इनका सफलतापूर्वक प्रयोग तो ऐसे राज्यों में हो सकता है जो छोटे हों और जहां लोग पढ़े-लिखे हों।

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र के बीच अन्तर बताइए।
(Distinguish between Direct and Indirect Democracy.)
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र एक सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानी जाती है। प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है। प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार है।
प्रजातन्त्र के दो रूप हो सकते हैंप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Direct Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता प्रत्यक्ष रूप में शासन में भाग लेती है।
अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Indirect Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझते जाते हैं।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीति शिक्षण प्राप्त होता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र जनता की प्रभुसत्ता पर आधारित है। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में ही जनता अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट कर सकती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों द्वारा अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट नहीं कर सकती और न ही अपनी सत्ता का ठीक ढंग से प्रयोग कर सकती है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में मतदाताओं का अपने प्रतिनिधियों के साथ समीप का सम्बन्ध बना रहता है, परन्तु अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में चुनाव के पश्चात् प्रायः यह समाप्त हो जाता है।
  • प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व इतना अधिक नहीं होता जितना कि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व होता है।
  • यद्यपि प्रत्यक्ष लोकतन्त्र अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा अधिक लोकतन्त्रीय होता है, परन्तु प्रत्यक्ष लोकतन्त्र जनसंख्या और आकार की दृष्टि से बड़े-बड़े राज्यों में व्यावहारिक नहीं है जबकि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र एक व्यावहारिक व्यवस्था है।

प्रश्न 5.
उन शर्तों का उल्लेख कीजिए जो प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं। (Describe the conditions which are necessary for the success of Democracy.)
अथवा
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन-किन स्थितियों का होना आवश्यक है ? आपके विचार में भारत में वे कहां तक मौजूद हैं ?
(What conditions are necessary for the successful working of Democracy ? In your opinion, how far do they exist in India ?)
उत्तर-
प्रजातन्त्र शासन व्यवस्था सबसे उत्तम मानी जाती है, परन्तु वास्तव में यह ऐसा शासन है जो प्रत्येक देश में सफल नहीं हो सकता। यदि उपयुक्त वातावरण में लागू किया जाए तो इसके लाभ हैं, नहीं तो इसका बुरा परिणाम निकल सकता है। इसकी सफलता के लिए एक विशेष वातावरण चाहिए। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् बहुत-से देशों ने लोकतन्त्र शासन को अपनाया, परन्तु इसमें से कई देशों में यह प्रणाली अधिक देर तक न चल पाई। इसका प्रमुख कारण यह था कि इन देशों में वह वातावरण और परिस्थितियां उपस्थित नहीं थीं जो कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-

1. जागरूक नागरिकता (Englihtened Citizenship)-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। (Eternal vigilance is the price of liberty.) नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।

2. प्रजातन्त्र से प्रेम (Love for Democracy)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र के प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।

3. शिक्षित नागरिक (Educated Citizens)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।

4. स्थानीय स्व-शासन (Local Self-Government) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है। ब्राइस (Bryce) का कहना है कि लोगों में स्वतन्त्रता की भावना स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के बिना नहीं आ सकती। स्थानीय शासन को प्रशासनिक शिक्षा की आरम्भिक पाठशाला कहा जाता है। लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन को सर्वोत्तम स्कूल और गारंटी बताता है।

5. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)-प्रजातन्त्र में लोगों को कई तरह के मौलिक अधिकार दिए जाते हैं जिनके द्वारा वे शासन में भाग ले सकते हैं और अपने जीवन का विकास कर सकते हैं। इन अधिकारों की सुरक्षा संविधान द्वारा की जानी चाहिए ताकि कोई व्यक्ति या शासन उनको कम या समाप्त करके प्रजातन्त्र को हानि न पहुंचा सके।

6. आर्थिक समानता (Economic Equality)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आर्थिक समातना का होना अति आवश्यक है। लॉस्की (Laski) के कथनानुसार, “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है।” राजनीतिक प्रजातन्त्र केवल एक हास्य का विषय बन जाता है यदि इससे पहले आर्थिक, प्रजातन्त्र को स्थापित न किया जाए। लोगों को वोट डालने के अधिकार से पहले पेट भर भोजन मिलना चाहिए।

7. सामाजिक समानता (Social Equality)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है। समाज में धर्म, जाति, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

8. प्रेस की स्वतन्त्रता (Freedom of Press)—प्रेस को प्रजातन्त्र का पहरेदार (Watchdog of Democracy) कहा गया है। समाचार-पत्र सरकार की आलोचना करने के साथ-साथ लोगों को राजनीति की भी जानकारी देते हैं और उनको देश में होने वाली सभी घटनाओं से सूचित भी करते हैं। इन समाचार-पत्रों पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए, नहीं तो लोगों को ठीक जानकारी नहीं मिल सकेगी और सरकार की आलोचना भी न हो सकेगी।

9. आपसी सहयोग की भावना (Spirit of Mutual Co-operation)—वैसे तो सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में लोगों के आपसी सहयोग की आवश्यकता होती है, परन्तु लोकतन्त्र में इस भावना का विशेष महत्त्व है। यदि लोगों में फूट और एक-दूसरे के प्रति असहयोग की भावना होगी, तो प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता असम्भव है।

10. सहनशीलता (Toleration)-लोगों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना भी प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक समझा जाता है। यदि लोगों में सहनशीलता की भावना न होगी तो वे शान्ति से एक-दूसरे की बात न सुनकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहेंगे।

11. सुसंगठित राजनीतिक दल (Well-Organised Political Parties)-दलों का संगठन जाति, धर्म, प्रान्त के आधार पर न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर होना चाहिए। जो दल आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर संगठित होते हैं उनका उद्देश्य देश का हित होता है। यदि देश में दो दल हों तो बहुत अच्छा है। इंग्लैंड तथा अमेरिका में प्रजातन्त्र की सफलता का मुख्य कारण इन देशों की दो दलीय प्रणाली है।

12. विवेकी और ईमानदार नेता (Wise and Honest Leaders)-नेताओं को जनता का नेतृत्व करने में विवेक और ईमानदारी से काम लेना चाहिए। यदि नेता स्वार्थी और विवेकहीन होंगे तो नाव मंझधार में फंस जाएगी और प्रजातन्त्र असफल हो जाएगा। “प्रजातन्त्र में नेता ऐसे होने चाहिएं जो दृढ़ निर्णय ले सकें और जो वास्तविक योग्यता, असाधारण कार्य सम्पदा वाले और महान् चरित्रवान् हों।”

13. शान्ति और सुरक्षा (Peace and Order)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए देश में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण होना आवश्यक है। जिस देश में अशान्ति की व्यवस्था रहती है वहां पर नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयत्न नहीं करते। युद्धकाल में न तो चुनाव हो सकते हैं और न ही नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। इसलिए प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शान्ति की व्यवस्था का होना आवश्यक है।

14. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Independence of Judiciary)—प्रजातन्त्र को सफल बनाने में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता भी आवश्यक है। स्वतन्त्र न्यायपालिका लोगों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखती है और लोग अपने अधिकारों का स्वतन्त्रता से प्रयोग कर सकते हैं।

15. लिखित संविधान (Written Constitution)-कुछ विद्वानों का विचार है कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लिखित संविधान का होना भी आवश्यक है। लिखित संविधान में सरकार की शक्तियों का स्पष्ट वर्णन होता है जिसके कारण सरकार जनता पर अत्याचार नहीं कर सकती। जनता को भी सरकार की सीमाओं का पता होता है।

16. स्वतन्त्र चुनाव (Independent Election)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में चुनाव निष्पक्ष रूप से करवाये जाएं।

17. लोगों का उच्च नैतिक चरित्र (High Moral Character of the People)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लोगों का चरित्र बड़ा उच्च होना भी आवश्यक है। लोग ईमानदार, निःस्वार्थी, देश-भक्त तथा नागरिकता के गुणों से ओत-प्रोत होने चाहिएं।

18. सेना का अधीनस्थ स्तर (Subordinate Status of Army)-देश की सेना को सरकार के असैनिक अन्य (Civil Power) के अधीन रखा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो सेना प्रजातन्त्रात्मक संस्थाओं की सबसे बड़ी विरोधी सिद्ध होगी।

19. स्वस्थ जनमत (Sound Public Opinion)-प्रजातन्त्रात्मक सरकार जनमत पर आधारित होती है, जिस कारण प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्वस्थ जनमत होना अति आवश्यक है।

20. अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व (Representation of Minorities) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व दिया जाए। यदि अल्पसंख्यकों को संसद् में प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा सकता तो सदैव असन्तुष्ट रहेंगे। मिल (Mill) का कहना है कि “प्रजातन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।”

क्या ये शर्ते भारत में विद्यमान हैं ? (Are these Conditions Present in India ?) –

यह प्रश्न बहुत-से लोगों के मन में उत्पन्न होता है कि क्या भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण है ? भारतवर्ष में प्रजातन्त्र की स्थापना के इतने वर्षों बाद भी बहुत-से लोगों का विचार है कि भारत प्रजातन्त्र के लिए उपर्युक्त नहीं है। जिन लोगों को इसमें सन्देह है कि भारत में प्रजातन्त्र सफल नहीं हो सकता है, उनका कहना है कि भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण नहीं है। भारतवर्ष में निम्नलिखित परिस्थितियों का अभाव है-

  1. सचेत नागरिकता का अभाव- भारत के नागरिक शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं।
  2. अशिक्षित नागरिक-भारत के अधिकतर नागरिक अनपढ़ तथा गंवार हैं। अशिक्षित नागरिक चालाक नेताओं की बातों में आकर अपने मत का प्रयोग करके गलत प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं।
  3. उच्च नैतिक स्तर का अभाव-भारत के नागरिकों का नैतिक स्तर ऊंचा नहीं है। आज कोई भी कार्य रिश्वत और सिफारिश के बिना नहीं होता है।
  4. आर्थिक असमानता-देश का धन कुछ ही लोगों के हाथ में एकत्रित है। लाखों बेरोजगार हैं जिन्हें दो समय भर पेट भोजन भी नहीं मिलता। गरीब व्यक्ति अपनी वोट को बेच देते हैं।
  5. सामाजिक असमानता–छुआछूत अभी व्यवहार में पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई। जात-पात का बहुत बोलबाला है।
  6. बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहुत-से दल विद्यमान हैं। रोज किसी नए दल की स्थापना हो जाती है। कई दल धार्मिक आधार पर संगठित हैं। कई दल हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं। बहु-दलीय प्रणाली के कारण केन्द्र में सरकारें बड़ी तेजी से बदलती रहती हैं। भारत में मई, 1996 से अप्रैल, 1999 तक बहु-दलीय प्रणाली के कारण चार प्रधानमन्त्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा।
  7. चुनावों में हिंसा-चुनावों में हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जो लोकतन्त्र के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल नहीं है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि भारत में प्रजातन्त्र को समाप्त करके तानाशाही की स्थापना करनी चाहिए।

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इसमें कोई शक नहीं कि भारत में वे सब बातें नहीं है जो प्रजातन्त्र को सफल बनाने में सहायक हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रजातन्त्र को समाप्त कर दिया जाए। भारत सरकार ने आरम्भ से ही ऐसे कार्य करने शुरू कर दिए हैं जिससे उचित वातावरण उत्पन्न हो जाए। शिक्षा के प्रचार की ओर विशेष ध्यान दिया गया। आर्थिक समानता को लाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं अपनाई गई हैं। स्वशासन की स्थापना की गई है। पिछले सोलह आम चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय जनता अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों को समझती है। भारतीय जनता में अब जाग्रति आ चुकी है। हमारे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के हमले के समय देश का बहुत अच्छा नेतृत्व किया।

भारत में अब तक 16 आम चुनाव हो चुके हैं। भारत में प्रत्येक आम चुनाव ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय जनता लोकतन्त्र में पूरी-पूरी श्रद्धा रखती है। भारत में प्रजातन्त्र के विकास और प्रगति के बारे में कोई शंका निराधार नहीं होगी। पाकिस्तान के साथ हुए 1965 और 1971 के युद्धों ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय प्रजातन्त्र बहुत सबल है। भारतीय जनता में राजनीतिक परिपक्वता (Political Maturity) को देखते हुए कई विदेशी विद्वानों ने भी भारतीय प्रजातन्त्र के अच्छे स्वास्थ्य की गवाही दी है।

नि:संदेह भारतीय जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करना जानती है और प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं। अन्त में, हम नि:संकोच यह कह सकते हैं कि भारत में लोकतन्त्रीय परम्पराओं की नींव दृढ़ होती जा रही है।

प्रश्न 6.
आप किस प्रकार की सरकार को समग्रवादी या अधिनायकवादी सरकार कहेंगे ? उदाहरण दें।
(Which government would you call a totalitarian government ? Give examples.)
अथवा अधिनायकवाद या तानाशाही क्या है ? संक्षेप में व्याख्या करें।
(What is dictatorship ? Explain briefly.)
उत्तर-
यद्यपि आधुनिक युग को प्रजातन्त्र का युग कहा जाता है, परन्तु वास्तविकता यह है कि यह युग अधिनायकतन्त्र का युग बनता जा रहा है। यह सत्य है कि सुन्दर व उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रजातन्त्र का होना अनिवार्य है, परन्तु आज संसार के कई देशों में तानाशाही पाई जाती है। लेटिन अमेरिका, अफ्रीका व एशिया के कई देशों में अधिनायकतन्त्र व्यवस्थाओं का बोलबाला है।

अधिनायकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Dictatorship)-तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथ में रहती है।

फोर्ड (Ford) ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष के द्वारा गैर कानूनी शक्तियां प्राप्त करना है।” (“Dictatorship is the assumption of extra legal authority by the Head of state.”Ford).

न्यूमैन (Newman) ने तानाशाही की परिभाषा करते हुए लिखा है कि, “तानाशाही एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का वह शासन है जिन्होंने राज्य में सत्ता पर नियन्त्रण कर लिया है। वह उस सत्ता का उपभोग बिना किसी रोक से करते हैं।”

अल्फ्रेड (Alfred) ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और व्यापक परिभाषा यों दी है : “अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् यह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं बल्कि स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”

अल्फ्रेड की तानाशाही की परिभाषा के विश्लेषण से निम्नलिखित बातें मालूम होती हैं-

  1. यह एक व्यक्ति का शासन है।
  2. यह शक्ति या स्वीकृति या दोनों के मिश्रण पर आधारित होती है।
  3. किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
  4. तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
  5. तानाशाह शासन को कानून की बजाय आदेश के अनुसार चलाता है।
  6. तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।

प्रथम महायुद्ध के पश्चात् प्रजातन्त्र शासन के विरुद्ध ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि अनेक देशों में तानाशाही की स्थापना हुई। रूस में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित हो गई। जर्मनी में हिटलर ने अपनी तानाशाही स्थापित कर ली और इटली में मुसोलिनी ने फासिस्ट पार्टी के आधार पर अपनी तानाशाही को स्थापित कर लिया।

आधुनिक तानाशाही के लक्षण (Features of Modern Dictatorship)-

आधुनिक तानाशाही के निम्नलिखित लक्षण हैं-

1. राज्य की निरंकुशता (Absoluteness of the State)-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित होती हैं। जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। हिटलर और मुसोलिनी का कहना था, “सब कुछ राज्य के अन्दर है, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं तथा राज्य के ऊपर कुछ भी नहीं है।”

राज्य सर्वशक्ति-सम्पन्न होता है। तानाशाही सरकार जो चाहे कर सकती है। जनता को सरकार का विरोध करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

2. राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है (State is an End and individual is a Means) तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अतः नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।

3. राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाना (No distinction is made between State and Society)-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार
है।

4. राजनीतिक दल का अभाव या एकदलीय (Either Partyless or One Party System)-अधिनायकतन्त्र में या तो कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता जैसा कि पाकिस्तान में अयूब खां और याहिया खां के समय में था या फिर एक दल होता है। तानाशाही में एक दल का शासन होता है। जर्मनी में नाजी पार्टी तथा इटली में फासिस्ट पार्टी का शासन था। चीन में साम्यवादी दल का शासन है। अतः तानाशाही राज्यों में विरोधी दल का निर्माण नहीं किया जा सकता।

5. एक नेता का गुण-गान (Glorification of one Leader)-तानाशाही में एक पार्टी का शासन होता है, . पार्टी के नेता को ही देश का नेता माना जाता है। नेता को दूसरे व्यक्तियों से श्रेष्ठ माना जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है। उसकी सत्ता का कोई विरोध नहीं कर सकता। इस प्रकार तानाशाही में एक पार्टी, एक नेता तथा एक प्रोग्राम होता है।

6. अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना (Absence of Rights and Liberties) तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है। यदि नागरिकों को अधिकार दिए भी जाते हैं तो वे नाममात्र के होते हैं। तानाशाही में नागरिकों को जो अधिकार प्राप्त हैं वे वास्तव में अधिकार नहीं होते क्योंकि उनके अधिकार तानाशाह की दया पर निर्भर करते हैं।

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7. कार्यकाल निश्चित नहीं होता (Term not Fixed)-अधिनायक का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। जब तक वह अपनी सैनिक शक्ति को बनाए रखेगा वह अपने पद पर आसीन रह सकता है।

8. हिंसा तथा शक्ति में विश्वास (Faith in Violence and Force)-आधुनिक तानाशाही शक्ति पर आधारित है। तानाशाही शासन शान्ति तथा अहिंसा के स्थान पर युद्ध तथा हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं।

9. साम्राज्यवादी नीति (Imperialistic Policy) तानाशाही साम्राज्यवादी नीति में विश्वास करते हैं। तानाशाह शक्ति के बल पर अपने राज का विस्तार करने के पक्ष में है।

10. प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण (Control over Press and Radio) तानाशाही में प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण होता है। प्रेस तथा रेडियो का प्रयोग सरकार की नीतियों का प्रसार करने के लिए किया जाता है।

11. अन्तर्राष्ट्रीयवाद का विरोध (Opposed to Internationalism) आधुनिक तानाशाह अन्तर्राष्ट्रीयवाद में विश्वास नहीं करते। तानाशाह प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति के आधार पर करना चाहते हैं। 1965 ई० में पाकिस्तान ने कश्मीर को शक्ति द्वारा हड़पना चाहा। 1962 में साम्यवादी चीन ने भारत पर आक्रमण करके भारत के एक विस्तृत भाग पर कब्जा कर लिया।

12. धर्म के विरुद्ध (Hostile to Religion)—सर्वशक्तिमान राज्य धर्म के विरुद्ध होता है। साम्यवादी देशों में धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ माना जाता है।

13. जातीयता (Racialism)-तानाशाही अपनी जाति को अन्य जातियों के मुकाबले में श्रेष्ठ मानते हैं और इसका प्रचार भी करते हैं। जर्मनी के लोग अपने आप को संसार के सब लोगों से श्रेष्ठ मानते थे। मुसोलिनी ने अपनी जाति की श्रेष्ठता का प्रचार किया था।

प्रश्न 7.
अधिनायकवादी सरकार के गुण एवं दोषों की व्याख्या करें। (Describe the merits and demerits of Dictatorship.)
उत्तर-
अधिनायकवाद अथवा तानाशाह के गुण-तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-
1. दृढ़ तथा स्थिर शासन (Strong and Stable Government) तानाशाही का प्रमुख गुण यह है कि इस शासन व्यवस्था में शासन दृढ़ तथा स्थिर होता है। शासन की सब शक्तियां एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं और शक्ति के आधार पर ही तानाशाही सरकार स्थापित की जाती है। तानाशाह अपनी पदवी के लिए किसी पर निर्भर नहीं करता। उसे चुनाव लड़ने नहीं पड़ते और न ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी होता है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है। शासन में स्थिरता आती है जिससे शासन की नीति में निरन्तरता बनी रहती है।

2. शासन में कुशलता (Efficiency in Administration)-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में से घूसखोरी, लाल फीताशाही (Red Tapism) तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय ले सकता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीति को जल्दी लागू करता है और शासन में कुशलता आती है।

3. संकटकाल के लिए उचित सरकार (Suitable Government in time of Emergency) तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र हो सकते हैं और उन निर्णयों को दृढ़ता से लागू किया जा सकता है।

4. नीति में एकरूपता (Consistent Policy) तानाशाही में नीति में एकरूपता रहती है। जब तक एक तानाशाही सत्ता में रहता है तब तक नीति में एकरूपता बनी रहती है। तानाशाह प्रायः अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं करते क्योंकि ऐसा करना उन के हित में नहीं होता।

5. राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण (Building of National Character)-अधिनायकतन्त्र में शिक्षा प्रणाली में सुधार करके नवयुवकों में देशभक्ति, आत्मत्याग तथा बलिदान की भावनाएं भरी जाती हैं। अधिनायकतन्त्र में राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है।

6. उचित नियमों पर आधारित (It is based on sound Principles)-तानाशाही इस उचित नियम पर आधारित है कि प्रत्येक शासन चलाने के योग्य नहीं है। योग्य व्यक्ति ही देश का शासन चला सकते हैं। तानाशाही में योग्य व्यक्तियों को ही उचित पदों पर नियुक्त किया जाता है। तानाशाही में तानाशाह सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति होता है, जो जनता का नेतृत्व करता है।

7. प्रशासन खर्चीला नहीं है (Administration is not Costly)-प्रजातन्त्र में चुनावों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं और राज्यों में दर्जनों मन्त्री, गवर्नर, सैंकड़ों संसद् सदस्य होते हैं जबकि तानाशाही में एक व्यक्ति का शासन होता है। तानाशाही में चुनाव नहीं होते जिसमें करोड़ों रुपयों की बचत होती है।

8. राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है (National Prestige is Enhanced)-तानाशाही व्यवस्था में शक्तिशाली सरकार
की स्थापना की जाती है जिससे राष्ट्र की शक्ति बढ़ती है और शक्ति की वृद्धि से राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है। हिटलर ने जर्मनी की प्रतिष्ठा को बढ़ाया और मुसोलिनी ने इटली की खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से कायम किया। साम्यवादी क्रान्ति के बाद सोवियत संघ ने अपने राज्य का अत्यधिक विकास किया था क्योंकि वहां साम्यवादी दल की तानाशाही पाई जाती थी।

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9. सामाजिक तथा उत्सर्धक विकास (Social aod Economic Progress).- तानाशाही में देश की सामाजिक तथा आर्थिक उन्नत बहुत होती है । तानाशाही जनता क आर्थिक विकास की ओर विशेष ध्यान देता है और देश को आत्मनिर्भर बनाने का यह करता है। कृषि वियोग, साहिरक कला आदि क्षेत्रों में बहुत उन्नति होती है।

10. राष्ट्रीय एकता (National Solidarity)-तानाशाही में शासक का लोगों पर और लोगों के हर पक्ष पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। लोगों को चुनाव, भाषण आदि सम्वनी अधिकार नहीं मिलते। ये अधिकार लोगों में किसी हद तक फूट आदि के कारण बन जाते हैं। दूसरे तानाशाह युद्ध का वातावरण बनाए रखते हैं। इन सब बातों से देश के लोगों में आपसी एकता और देशभवित की भावना प्रकण्ड हो अन्दा है।

तानाशाही शासन के दोष (Demerits Of Dictattirship)-

तानाशाही में अनेक गुण के होते हुए भी इस शास:: :: गली का अच्छा नहीं समझा जाता। तानाशाह व्यवस्था में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है (It is based on Force and Violence) तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। वास्तव में राज्य का आधार शक्ति न हो कर जनता की इच्छा होनी चाहिए। जो शासनवता की इच्छा पर निर्भर करता है वही स्थिर हो सकता
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता (No Importance is given to the Individual) तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
  • नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती (No rights and Liberties to the Citizens)तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता ! इस शासन-व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया जाता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है (It opposes Internationalism)-आज का युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। एक देश दूसरे देश के सहयोग पर निर्भर करता है, परन्तु तानाशाही व्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करती। मुसोलिनी तथा हिटलर ने लीग ऑफ नेशन्ज़ (League of Nations) को असफल बनाने के भरसक प्रयत्न किए। इस प्रकार तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिए खतरा है।
  • विस्तार की नीति (Policy of Expansion) तानाशाही साम्राज्यवाद में विश्वास करती है। तानाशाह सदैव राज्य के विस्तार की नीति को अपनाता है। मुसोलिनी कहा करता था—“इटली का विस्तार करो या मिट जाओ।” विस्तार की नीति से युद्धों का उदय होता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि तानाशाह सदैव युद्ध में लगे रहते हैं।
  • निर्बल उत्तराधिकारी (Weak Successors)—यह आवश्यक नहीं कि तानाशाह का उत्तराधिकारी योग्य और बुद्धिमान् हो। इतिहास से पता चलता है कि बुद्धिमान् तानाशाह के उत्तराधिकारी अयोग्य और निर्बल ही हुए हैं। मुसोलिनी और हिटलर के पश्चात् इटली तथा जर्मनी को कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिल सका।
  • क्रान्ति का डर (Fear of Revolution)-तानाशाह शक्ति के ज़ोर पर शासन चलाता है और अपने प्रतिद्वन्द्वियों को कुचल डालता है। तानाशाह के विरोधियों को शासन बदलने के लिए क्रान्ति का सहारा लेना पड़ता है।
  • चरित्र के विकास में बाधा (It hinders the development of Character) तानाशाही में लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव होता है। उनका धैर्य कम हो जाता है और उनकी सार्वजनिक मामलों में रुचि कम हो जाती है। इससे उनके चरित्र के निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता।
  • यह नागरिकों में उदासीनता उत्पन्न करता है (It creates a feelins of apathy among the Citizens)- तानाशाही में शासन की सत्ता एक काका के पास केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन से दूर रखा जाता है, जिससे जनता में शासन के प्रति उदासीनत उत्पन्न हो जाती है अतः वे राज्य के कार्यों में रुचि लेना बन्द कर देते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-तानाशाही के गुणों तथा अवगुणों के अध्ययन के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अच्छी सरकार है। परन्तु स्थायी रूप में यह शासन प्रणाली अच्छी नहीं है। तानाशाही प्रजातन्त्र का विकल्प नहीं हो सकता। प्रजातन्त्रीय सरकार के मुकाबले में तानाशाही सरकार दोषपूर्ण है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को नष्ट किया जाता है। आज का युग तानाशाही का युग नहीं है। इसलिए संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है।

प्रश्न 8.
लोकतान्त्रिक और अधिनायकतन्त्रीय सरकारों में क्या अन्तर है ? उदाहरण सहित समझाइए।
(What is the distinction between a D mocratic and an authoritarian Governacht? Give example.)
अथवा
यदि तुम से प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक को चनन को कहा जाmissing तो किस चुनोगे ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(If you were to choose between Democracy and Dictatorship which one would you prefer? Give arguments to support your answer.)
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध के पश्चात् इटली तथा जर्मनी से प्रनारान्त्रिक सरकारों को समाप्त करके मुसोलिनी तथा हिटलर ने तानाशाही को स्थापित किया। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् चीन, युगोस्लाविया, बुल्गारिया, रूमानिया, हंगरी, पोलैंड इत्यादि साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित की गई। परन्तु अब रूमानिया, पोलैंड, युगोस्लाविया, हंगरी, रूस आदि देशो में बहु-दलीय पद्धति को अपनाया गया है। चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया आदि देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही ही पाई जाती है।

परन्तु संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्रीय सरकारें पाई जाती हैं । इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, स्विट्ज़रलैण्ड, जापान तथा भारत इत्यादि महान् देशों में प्रजातन्त्र को ही अपनाया गया है। 1989 में अनेक साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके बहु-दलीय लोकतन्त्र को अपनाया गया है। यहां तक कि साम्यवाद के आधार स्तम्भ सोवियत संघ का विघटन होने के बाद वहां भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। प्रजातन्त्र तथा तानाशाही शासन एक-दूसरे के विरोधी हैं। दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रजातन्त्र और तानाशाही शासन में तुलनः ऋना बड़ा ही मनोरंजक है। यदि मुझे प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक चुनने को कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को करूंगा। इन दोनों में अन्तर करने पर हम देखते हैं कि अग्र कारणों से लोकतन्त्र को तानाशाही की अपेक्षा अधिक किया जाता है

प्रजातन्त्र (Democracy) –

  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
  • जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
  • सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् चुनाव करवाए जाते हैं, जिससे नागरिकों को सरकार बदलने का अवसर प्राप्त हो जाता है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में व्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है। राज्य का उद्देश्य करना न होकर राज्य का विकास करना होता है। राज्य साध्य तथा व्यक्ति साधन होता है।
  • व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल-प्रजातन्त्र में नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी नागरिकों को समान माना जाता है।
  • शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास-प्रजातन्त्र शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास रखता है। प्रजातन्त्र हिंसात्मक साधनों को अनुचित मानता है।
  • साम्राज्यवाद के विरुद्ध-प्रजातन्त्र साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। प्रजातन्त्र का विश्वास है कि प्रत्येक राष्ट्र को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक राष्ट्र का राज्य होना चाहिए।
  • प्रत्येक निर्णय तर्क तथा वाद-विवाद से लिया जाता है-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय पर पहुंचने से पहले वाद-विवाद होता है और फिर निर्णय किया जाता है।
  • सरकार की आलोचना का अधिकार-प्रजातन्त्र में जनता को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • दलों का होना अनिवार्य-प्रजातन्त्र में कम-से- कम दो दल अवश्य होते हैं। बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता।
  • राज्य और सरकार में भेद-प्रजातन्त्र में राज्य और सरकार में भेद किया जाता है। सरकार राज्य का एक अंग होती है। सरकार की शक्तियां सीमित होती हैं। सरकार अपनी शक्तियां जनता से प्राप्त करती है।
  • सरकार का उत्तरदायित्त्व-प्रजातन्त्र में सरकार अपने सब कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और विशेष कर संसदीय शासन प्रणाली में विधानमण्डल के प्रति भी उत्तरदायी होती है।

तानाशाही (Dictatorship) –

  •  एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • शक्ति पर आधारित तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
  • सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार को शान्तिपूर्ण ढंग से नहीं बदला जा सकता, क्योंकि इस शासन-व्यवस्था में चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं होती।
  • राज्य का विकास-तानाशाही में राज्य को महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।
  • अधिकार व स्वतन्त्रताएं नाममात्र की तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं नाममात्र की ही प्राप्त होती हैं। तानाशाही में नागरिकों के कर्त्तव्य पर बहुत बल दिया जाता है।
  • समानता के सिद्धान्त को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में कुछ व्यक्तियों को श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • युद्ध तथा हिंसा में विश्वास-तानाशाही युद्ध तथा हिंसा में विश्वास रखता है। तानाशाह का विश्वास है कि प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति द्वारा किया जा सकता है।
  • साम्राज्यवाद में विश्वास-तानाशाह विस्तार की नीति में विश्वास रखता है। तानाशाही में यह नारा लगाया जाता है कि “विस्तार करो या मिट जाओ।” तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है।
  • वाद-विवाद का कोई महत्त्व नहीं- तानाशाही में वाद-विवाद से काम नहीं किया जाता। तानाशाह बिना किसी की सलाह लिए भी निर्णय कर लेता है।
  • सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता-तानाशाही में किसी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • कोई दल नहीं अथवा एक दल-तानाशाही में या तो दल होता ही नहीं और यदि होता है तो केवल एक दल। तानाशाह उसी दल का नेता होता है।
  • राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं-तानाशाह को ही राज्य तथा सरकार माना जाता है। राज्य की समस्त शक्तियां तानाशाह के पास होती हैं और उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता।
  • अनुत्तरदायित्व सरकार-तानाशाही में शासक जनता अथवा विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। शासक अपनी मनमानी कर सकता है और शासक पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता है।

कौन-सी प्रणाली सबसे अधिक अच्छी है (Which of them is better ?)-दोनों प्रणालियों के गुणों और दोषों को सम्मुख रखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रजातन्त्र अधिक अच्छी प्रणाली है। इस प्रणाली में व्यक्ति को व्यक्ति ही समझा जाता है, पशु नहीं। व्यक्ति के विकास और उत्थान के लिए आवश्यक वातावरण केवल प्रजातन्त्र में ही मिल सकता है। अनेक साम्यवादी देशों में बहु-दलीय लोकतन्त्र की स्थापना हो जाना लोकतन्त्र की श्रेष्ठता को ही साबित करता है।

इसमें शक नहीं कि प्रजातन्त्र के कई दोष भी हैं परन्तु ये दोष प्रजातन्त्र शासन प्रणाली के अपने नहीं हैं बल्कि लोगों में कुछ आवश्यक गुणों के अभाव से उत्पन्न होते हैं। अनुभव इस बात को स्पष्टतया सिद्ध करता है कि जिन देशों में ये आवश्यक गुण और परिस्थितियां जितनी अधिक विद्यमान होती हैं, प्रजातन्त्र उतना ही सफलतापूर्वक काम करता है। इंग्लैण्ड में राजतन्त्रीय ढांचे के होते हुए भी लोकतन्त्रीय प्रणाली बड़े अच्छे ढंग से कार्य कर रही है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।

  • प्रो० डायसी का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
  • प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
  • लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 2.
लोकतन्त्र की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  • जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  • समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र के चार गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

  • यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातन्त्र की यह सब से बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
  • यह जनमत पर आधारित है-प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की
    इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
  • यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है-प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
  • जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 4.
लोकतन्त्र के चार दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतन्त्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते हैं-

  • यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
  • यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान् ग़लत कहें तो मूों की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतन्त्र में मूल् का शासन होता है।
  • यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातन्त्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं । परन्तु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः वे अपनी मनमानी करते हैं।
  • बहुमत की तानाशाही-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है, जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उसमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन-सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक है और भू-भाग भी बड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। अतः प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था इसीलिए उसने कहा है कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाओं के नाम लिखें और किन्हीं दो का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार, जनमत संग्रह, प्रत्यावर्तन या वापसी, लोकमत संग्रह आदि।

1. प्रस्तावाधिकार-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में 1,00,000 मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

2. जनमत संग्रह-जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो जनता उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्जरलैंड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। रूस में ऐच्छिक जनमतसंग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है।

प्रश्न 7.
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र क्यों नहीं सम्भव है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि आधुनिक राज्य आकार और जनसंख्या दोनों ही दृष्टियों में विशाल है। भारत, चीन, अमेरिका, रूस आदि देशों की जनसंख्या करोड़ों में है। इन देशों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र को अपनाना सम्भव नहीं है। भारत में जनमत-संग्रह करवाना आसान कार्य नहीं है और न ही प्रस्तावाधिकार या उपक्रमण (Initiative) द्वारा जनता की इच्छानुसार कानून बनाए जा सकते हैं। भारत में आम चुनाव करवाने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं और चुनाव व्यवस्था पर बहुत अधिक समय लगता है। अतः प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की संस्थाओं को लागू करना सम्भव नहीं है। आधुनिक युग में लोकतन्त्र का अर्थ लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष शासन ही है।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता के स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीतिक शिक्षण मिलता है।

प्रश्न 9.
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन्हीं चार आवश्यक शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-

  • जागरूक नागरिक-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं।
  • प्रजातन्त्र से प्रेम-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र से प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।
  • शिक्षित नागरिक-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला हैं। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान होता है।
  • स्थानीय स्वशासन-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है।

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प्रश्न 10.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।
फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”
अल्फ्रेड ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और विस्तृत परिभाषा इस प्रकार दी है, “अधिनायकतन्त्र उस व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति के पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण से प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् वह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”

प्रश्न 11.
आधुनिक तानाशाही की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
आधुनिक तानाशाही की निम्नलिखित चार विशेषताएं हैं-

  • राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित हैं जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  • राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।
  • राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाता-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।

प्रश्न 12.
तानाशाही के चार गुण लिखो।।
उत्तर-
तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं –

  • दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है, इससे शासन में स्थिरता और नीतियों में निरन्तरता आती है।
  • शासन में कुशलता-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में घूसखोरी, लाल फीताशाही तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय लेता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।
  • संकटकाल के लिए उचित सरकार-तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र ही ले लिए जाते हैं और उन निर्णयों को कठोरता एवं दृढ़ता से लागू किया जाता है।
  • नीति में एकरूपता-तानाशाही में नीति में एकरूपता बनी रहती है।

प्रश्न 13.
तानाशाही के कोई चार दोष लिखो।
उत्तर-
तानाशाही में अनेक गुणों के होते हुए भी इस शासन प्रणाली को अच्छा नहीं समझा जाता। इसमें निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
  • नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती-तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। इस शासन व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया गया है।
  • विस्तार की नीति-तानाशाही विस्तार की नीति अर्थात् साम्राज्यवाद में विश्वास करती है।

प्रश्न 14.
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में कोई चार अन्तर बताएं।
उत्तर-
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं
प्रजातन्त्र

  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
  • जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
  • सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।

तानाशाही

  • एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का
    अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • शक्ति पर आधारित-तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
  • सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है।
  • राज्य का विकास-तानाशाही राज्य में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास करना न होकर राज्य का विकास करना होता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

प्रश्न 15.
यदि आपको प्रजातन्त्र व राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो आप किस सरकार को पसन्द करेंगे ? अपने मत के समर्थन में चार तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर-
यदि मुझे प्रजातन्त्र और राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को पसन्द करूंगा। प्रजातन्त्र को पसन्द करने के कई कारण हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं-

  • प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन है। शासन जनता के हित में चलाया जाता है जबकि राजतन्त्र में एक व्यक्ति का शासन होता है।
  • प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु राजतन्त्र में ऐसा अनिवार्य नहीं।
  • प्रजातन्त्र में चुनाव होते हैं जिससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है, परन्तु राजतन्त्र में जनता को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती।
  • प्रजातन्त्र में लोगों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है, जबकि राजतन्त्र में ऐसा नहीं होता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र (लोकतंत्र) की कोई दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
  2. लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र की दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. जनता की प्रभुसत्ता– प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  2. जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।

प्रश्न 4.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।

प्रश्न 5.
आधुनिक तानाशाही की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  • राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं।
  • राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।

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प्रश्न 6.
तानाशाही के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  • दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। शासन की समस्त शक्तियां एक ही व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित होती हैं।
  • शासन में कुशलता-तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।

प्रश्न 7.
तानाशाही के कोई दो दोष लिखो।
उत्तर-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. प्रजातन्त्र का क्या अर्थ है ?
उत्तर-प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो।

प्रश्न 2. प्रजातन्त्र (Democracy) किन दो शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर-

  1. डिमोस (Demos)
  2. एवं क्रेटिया (Cratia)।

प्रश्न 3. डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) का क्या अर्थ है ?
उत्तर-डिमोस का अर्थ है, लोक और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या सत्ता। इसलिए डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है, जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो।

प्रश्न 4. प्रजातन्त्र की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-अब्राहिम लिंकन के अनुसार, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 5. प्रजातन्त्र की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।

प्रश्न 6. किस देश में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता है?
उत्तर-चीन में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता ।

प्रश्न 7. एक पार्टी का शासन किसकी विशेषता है?
उत्तर-एक पार्टी का शासन तानाशाही की विशेषता है।

प्रश्न 8. तानाशाही शासन का एक लक्षण लिखें।
उत्तर-तानाशाही शासन में राज्य निरंकुश होता है।

प्रश्न 9. तानाशाही का कोई एक रूप लिखें।
उत्तर-सैनिक राज तानाशाही का एक रूप है।

प्रश्न 10. किसी एक तानाशाही शासन का नाम लिखें।
उत्तर-हिटलर एक तानाशाही शासक था।

प्रश्न 11. मुसोलिनी ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की ?
उत्तर-मुसोलिनी ने इटली में अपनी तानाशाही स्थापित की।

प्रश्न 12. हिटलर ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की?
उत्तर-हिटलर ने जर्मनी में अपनी तानाशाही स्थापित की।

प्रश्न 13. अंग्रेजी भाषा का ‘डैमोक्रेसी’ (Democracy) शब्द किस से लिया गया है?
उत्तर-यूनानी भाषा के शब्द डीमास (Demos) और क्रेटीआ (Cratia) से लिया गया है।

प्रश्न 14. आजकल कौन-सा लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है?
उत्तर-आजकल प्रतिनिधि लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है।

प्रश्न 15. प्रत्यक्ष लोकतन्त्र (Direct Democracy) शासन किसे कहते हैं?
उत्तर-लोग देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं, उसे प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 16. प्रजातन्त्र में किस प्रकार का शासन होता है?
उत्तर-प्रजातन्त्र में जनता का शासन होता है।

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प्रश्न 17. भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु कितनी है?
उत्तर-भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 18. प्रजातन्त्र का एक गुण लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में सर्वसाधारण के हितों की रक्षा की जाती है।

प्रश्न 19. प्रजातन्त्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 20. स्विट्ज़रलैण्ड में कितने मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं?
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में एक लाख मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

प्रश्न 21. स्विट्जरलैण्ड में कितने मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में 50000 मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।

प्रश्न 22. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है।

प्रश्न 23. भारत में प्रजातन्त्र की असफलता का क्या कारण है?
उत्तर-सचेत नागरिकता का अभाव।

प्रश्न 24. अधिनायकतन्त्र का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-अधिनायकतन्त्र में नीति में एकरूपता बनी रहती है।

प्रश्न 25. अधिनायक तन्त्र का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अधिनायक तन्त्र हिंसा पर आधारित होता है।

प्रश्न 26. प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायक तन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………. शासन जनमत पर आधारित है।
2. प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को …………… माना जाता है।
3. प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता एवं …………… पर आधारित है।
4. आलोचकों द्वारा प्रजातन्त्र को ………….. की पूजा बताया गया है।
5. ………….. को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का घर कहा जाता है।
उत्तर-

  1. प्रजातन्त्र
  2. समान
  3. बन्धुता
  4. अयोग्यता
  5. स्विट्ज़रलैण्ड।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
2. प्रजातन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों की जागरूकता आवश्यक नहीं है।
3. तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है।
4. तानाशाह की शक्तियां सीमित होती हैं।
5. तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है, जिसने अपने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति, सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो।” किसका कथन है ?
(क) अरस्तु
(ख) प्लेटो
(ग) अल्फ्रेड
(घ) ग्रीन।
उत्तर-
(ग) अल्फ्रेड

प्रश्न 2.
अधिनायकतन्त्र के गुण हैं
(क) स्थिर शासन
(ख) नीति में एकरूपता
(ग) संकटकाल के लिए उचित
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
अधिनायकतन्त्र के दोष हैं
(क) हिंसा पर आधारित
(ख) क्रान्ति का डर
(ग) अधिकारों का अभाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में अन्तर है
(क) प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायकतन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।
(ख) प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित होता है, जबकि अधिनायकतन्त्र जनमत पर आधारित नहीं होता।
(ग) प्रजातन्त्र में लोगों को अधिकार प्राप्त होते हैं, जबकि अधिनायकतन्त्र में नहीं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था

PSEB 9th Class Home Science Guide पारिवारिक साधनों की व्यवस्था Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधनों से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
पारिवारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवार में उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों को दो भागों में बांटा गया है –
(i) मानवीय साधन (ii) भौतिक साधन।
दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक साधनों का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
साधनों का वर्गीकरण दो भागों में किया जा सकता है –(i) मानवीय साधन (ii) गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन।
(i) मानवीय साधन हैं-कुशलता, ज्ञान, शक्ति, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि।
(ii) भौतिक साधन हैं-समय, धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि।

प्रश्न 3.
मानवीय साधन कौन-से हैं ?
उत्तर-
यह वे साधन हैं जो मानव के अन्दर होते हैं। ये हैं-योग्यताएं, कुशलता, रुचियां, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति आदि।

प्रश्न 4.
भौतिक साधन कौन-से हैं ?
उत्तर-
गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं-धन, समय, जायदाद, सुविधाएं आदि।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था

लघु उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 5.
समय और शक्ति की व्यवस्था से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
समय ऐसा साधन है जो कि सभी के लिए समान होता है। जब किसी कार्य को करने की शक्ति तथा समय का प्रयोग किया जाता है तो थकावट महसूस होती है। इसलिए समय तथा शक्ति दोनों साधनों को सही ढंग से प्रयोग करना चाहिए ताकि कार्य भी हो जाये तथा थकावट भी ज़रूरत से ज्यादा न हो तथा दोनों की बचत भी हो जाये।

प्रश्न 6.
पारिवारिक साधनों की क्या विशेषताएं होती हैं ?
उत्तर-

  1. यह साधन सीमित होते हैं।
  2. साधन उपयोगी होते हैं तथा इनका प्रयोग कई रूपों में किया जा सकता है।
  3. साधनों का प्रभावशाली प्रयोग किसी भी व्यक्ति के जीवन स्तर को प्रभावित करता
  4. सभी साधनों का उचित प्रयोग परस्पर सम्बन्धित होता है तथा इस तरह उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
  5. इन साधनों के उचित प्रयोग से हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

प्रश्न 7.
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर–
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं –
परिवार का आकार तथा रचना, जीवन-स्तर, घर की स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यता, ऋतु, आर्थिक स्थिति आदि।

प्रश्न 8.
योजना बनाकर समय और शक्ति के व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर-
योजना बनाकर कार्य किया जाये तो समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है। योजना बनाने से पहले सारे कार्यों की सूची बनाई जाती है। इस तरह यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा कार्य किस समय तथा कौन-से सदस्य द्वारा किया जाना है। योजना में अपने व्यक्तिगत कार्यों तथा मनोरंजन के लिए भी समय रखा जाता है। योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने से रोज़ एक जैसी शक्ति का प्रयोग होता है। इस तरह अधिक थकावट भी नहीं होती। योजनाएं दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों के लिए भी तैयार की जाती हैं। इस तरह समय तथा शक्ति के खर्च को घटाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
निर्णय लेने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
निर्णय अथवा फैसला लेने की प्रक्रिया को गृह-प्रबन्ध का अभिन्न अंग माना गया है। निर्णय लेने की क्रिया से अभिप्राय है किसी समस्या के हलें के लिए विभिन्न विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव करना। किसी भी तरह का निर्णय लेने के लिए निम्नलिखित चरणों में से गुजरना पड़ता है –

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था 1

प्रश्न 10.
निर्णय लेने से पूर्व सोच-विचार करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
जब परिवार में कोई समस्या आ जाये तो उसके हल के लिए सोच-विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। प्रत्येक समस्या के हल के लिए कई विकल्प होते हैं। विभिन्न विकल्पों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए तथा प्रत्येक विकल्प कई तत्त्वों का समूह होता है। इनमें से कई तत्त्व समस्या के हल के लिए सहायक होते हैं तथा कई नहीं, कई कम सहायक होते हैं तथा कई अधिक सहायक होते हैं। इसलिए इन तत्त्वों की जानकारी प्राप्त करनी तथा कई स्थितियों में आपको किसी अन्य अनुभवी व्यक्ति की सलाह भी लेनी पड़ती है ताकि ठीक विकल्प का चुनाव हो सके। जैसे मनोरंजन की समस्या के लिए कई विकल्प हैं जैसे सिनेमा जाना, कोई खेल खरीदना अथवा टेलीविज़न खरीदना। इन सभी विकल्पों के बारे में जानकारी लेना तथा फिर एक उपयुक्त विकल्प जैसे कि टेलीविज़न का चुनाव किया जाता है। क्योंकि यह एक लम्बे समय तक चलने वाला मनोरंजन का साधन है। इसके साथ परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए मनोरंजन के कार्यक्रम मिल सकते हैं। इसलिए इन सभी तत्त्वों को ध्यान में रखकर सभी विकल्पों के बारे में सोच-समझकर ही निर्णय लेना चाहिए।

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प्रश्न 11.
सही निर्णय गृह व्यवस्था में कैसे उपयोगी होता है ?
उत्तर-
सही निर्णय लिए जाएं तो समय, शक्ति, धन आदि की बचत हो सकती है। यदि घर की व्यवस्था सोच-समझकर तथा सही निर्णय न लेकर की जाए तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। घर के सदस्यों में मेल-मिलाप नहीं रहता। कोई भी कार्य समय पर नहीं होता तथा मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस तरह सही निर्णय घर की व्यवस्था में बड़ा लाभदायक होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
पारिवारिक साधन मानवीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में कैसे सहायक होते हैं ? इन्हें प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर-
परिवार के लिए उपलब्ध साधन, पारिवारिक लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों की पूर्ति करने में सहायक होते हैं। दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है। साधनों के सफल प्रयोग को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं –

  1. परिवार का आकार तथा रचना-जिन परिवारों में छोटे बच्चे अथवा बुजुर्ग होते हैं वहां गृहिणी को अधिक कार्य करना पड़ता है। परन्तु बच्चे बड़े होकर गृहिणी की मदद करने लग जाते हैं, तथा कई बुजुर्ग भी घर के काम-काज में मदद कर देते हैं।
  2. जीवन-स्तर-सादा जीवन व्यतीत करने वालों के लक्ष्य आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।
  3. घर की स्थिति-यदि घर, स्कूल अथवा कॉलेज, मार्कीट आदि के निकट हो तो आने-जाने का काफ़ी समय तथा शक्ति बच जाती है। यदि घर बड़ी सड़क के नज़दीक हो तो धूल-मिट्टी काफ़ी आती है तथा सफ़ाई पर काफ़ी समय नष्ट हो जाता है।
  4. आर्थिक स्थिति-यदि अधिक आय हो तो घर में नौकर रखे जा सकते हैं तथा कई कार्य बाहर से भी करवाये जा सकते हैं। यदि आय कम हो तो गृहिणी को सभी कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं।
  5. परिवार के सदस्यों की शिक्षा-पढ़े-लिखे लोग आधुनिक साधनों का प्रयोग करके अपनी शक्ति तथा समय की काफ़ी बचत कर लेते हैं। जैसे एक पढ़ी-लिखी गृहिणी वाशिंग मशीन तथा मिक्सी आदि का अधिक प्रयोग करेगी जबकि अनपढ़ लोग पुराने परम्परागत साधनों तथा रिवाजों पर ही निर्भर रहते हैं।
  6. ऋतु बदलना-गांवों में बिजाई-कटाई के समय कार्य अधिक करना पड़ता है और समय कम। शहरों में ऋतु बदलने पर गर्म-ठण्डे कपड़ों आदि को निकालना तथा रखना आदि कार्य बढ़ जाते हैं।
  7. गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यताएं-एक कुशल गृहिणी अपनी योग्यता से समय तथा शक्ति की बचत कर सकती है।

प्रश्न 13.
समय और शक्ति पारिवारिक साधन कैसे हैं ? योजना बनाकर इनके व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर-
समय सभी के लिए ही बराबर होता है। एक दिन में 24 घण्टे होते हैं। परन्तु शक्ति सभी के पास एक जैसी नहीं होती तथा आयु के साथ-साथ इसमें अन्तर पड़ता रहता है। जब कोई कार्य किया जाता है तो समय तथा शक्ति दोनों खर्च होते हैं। योजना बनाकर कार्य किया जाये तो इन दोनों की बचत की जा सकती है। एक समझदार गृहिणी को समय तथा शक्ति के खर्च को घटाने के लिए योजना बनाने में कोई मुश्किल नहीं आती। योजना को लिखकर बनाना चाहिए तथा योजना में लचीलापन होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसको बदला जा सके। सभी कार्यों की सूची बनाने के पश्चात् योजना बनानी चाहिए। यह भी तय कर लेना चाहिए कि इनमें से कौन-से कार्य किस सदस्य ने तथा कब करने हैं। दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बना लेनी चाहिए। अधिक भारी कार्य के पश्चात् हल्के कार्य को स्थान देना चाहिए ताकि अधिक थकावट न हो। योजना में अपने व्यक्तिगत तथा मनोरंजन के कार्यों के लिए भी समय रखना चाहिए। योजना इस तरह बनाएं कि प्रतिदिन ज़रूरी कार्यों तथा मनोरंजन के कार्यों में लगभग एक जैसी शक्त्रि व्यय हो। इस तरह योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके शक्ति तथा समय दोनों की बचत हो जाती है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB पारिवारिक साधनों की व्यवस्था क्षेत्र Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें

  1. पारिवारिक साधनों को …………………….. भागों में बांटा जाता है।
  2. मानवीय साधन, मानव के …………………….. होते हैं।
  3. पारिवारिक साधन …………………………. होते हैं।
  4. ………………………… में ही मनुष्य को मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।
  5. साधन हमारी …………………………… की पूर्ति करते हैं।

उत्तर-

  1. दो,
  2. अन्दर,
  3. सीमित,
  4. घर,
  5. इच्छाओं।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
गृह निर्माता का कर्त्तव्य आमतौर पर कौन निभाता है ?
उत्तर-
गृहिणी।

प्रश्न 2.
सीमित साधनों के द्वारा कार्य बढ़िया कैसे हो सकता है ?
उत्तर-
अच्छी व्यवस्था द्वारा।

प्रश्न 3.
समय को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
तीन।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. साधन दो प्रकार के होते हैं-मानवीय, भौतिक।
  2. साधन असीमित होते हैं।
  3. साधनों का उचित प्रयोग करके हम अपनी इच्छायों की पूर्ति करते हैं।
  4. समय ऐसा साधन है जो कि सभी के पास बराबर होता है।
  5. परिवार का आकार तथा रचना पारिवारिक साधनों को प्रभावित नहीं करती।
  6. सही निर्णय घर की व्यवस्था के लिए लाभदायक है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ग़लत
  6. ठीक।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले कारक हैं –
(A) परिवार का आकार
(B) घर की स्थिति
(C) ऋतु
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक

प्रश्न 2.
निम्न में ठीक हैं –
(A) जब किसी कार्य को करने के लिए समय तथा शक्ति का प्रयोग होता है तो थकावट महसूस होती है
(B) साधन सीमित हैं
(C) सही निर्णय लेने से समय, शक्ति, धन आदि की बचत हो सकती है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक

प्रश्न 3.
ठीक तथ्य है
(A) साधन असीमित होते हैं
(B) साधनों की उपयोगिता नहीं होती
(C) धन भौतिक साधन है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(C) धन भौतिक साधन है

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 3 पारिवारिक साधनों की व्यवस्था

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
योजना बनाने के अतिरिक्त गृहिणी को कौन-सी अन्य बातों का ज्ञान होना चाहिए जिससे समय तथा शक्ति बच सकती हो ?
उत्तर-

  1. सभी चीज़ों को अपने स्थान पर रखो ताकि ज़रूरत पड़ने पर वस्तु को ढूंढने में समय नष्ट न हो।
  2. काम करने के लिए सामान अच्छा तथा ठीक हालत में होना चाहिए।
  3. काम करने वाली जगह पर रोशनी का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए।
  4. काम करने के सुधरे तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. घर के सभी सदस्यों की मदद लेनी चाहिए। यदि फिर भी कार्य तथा आय के साधन ठीक हों तो कार्य बाहर से भी करवाया जा सकता है।
  6. काम करने वाली जगह की ऊंचाई अथवा वस्तुओं के हैण्डल ऐसे हों कि कन्धों पर अधिक भार न पडे।

प्रश्न 2.
मूल्यांकन करने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुछ देर किसी योजना के अनुसार कार्य करते रहने के पश्चात् देखा जाता है कि नियत लक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं, अथवा नहीं। यदि लक्ष्य प्राप्त न हो रहे हों तो योजना में फेरबदल किया जाता है तथा इस तरह अपनी योजना का मूल्यांकन किया जाता है ताकि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो सके।

प्रश्न 3.
मानवीय साधन कौन-से हैं ?
उत्तर-
यह वे साधन हैं जो मानव के अन्दर होते हैं। ये हैं-योग्यताएं, कुशलता, रुचियां, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति आदि।
इन साधनों का उचित प्रयोग करके गृह प्रबन्ध बढ़िया ढंग से किया जा सकता है। किसी कार्य को करने की योग्यता तथा कुशलता हो तो कार्य में रुचि तथा दिलचस्पी स्वयं पैदा हो जाती है। नए उपकरणों तथा मशीन आदि के बारे में ज्ञान हो तो समय तता शक्ति की बचत हो जाती है। घर के सदस्यों की शक्ति भी एक मानवीय साधन है।

प्रश्न 4.
भौतिक साधन कौन-से हैं और गृह व्यवस्था के लिए कैसे लाभदायक है ?
उत्तर-
गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं-धन, समय, जायदाद, सुविधाएं आदि। इन सभी के उचित प्रयोग से गृह-व्यवस्था ठीक ढंग से की जा सकती है तथा परिवार के उद्देश्यों तथा ज़रूरतों की पूर्ति की जा सकती है।

पारिवारिक साधनों की व्यवस्था PSEB 9th Class Home Science Notes

  • परिवार के उद्देश्यों तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध साधनों की सहायता ली जाती है।
  • पारिवारिक साधनों को दो भागों में बांटा गया है –
    (i) मानवीय साधन (ii) भौतिक साधन।
  • कार्य करने की कुशलता, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि मानवीय साधन हैं।
  • धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि ग़ैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं।
  • समय ऐसा साधन है जो सभी के लिए बराबर होता है।
  • समय को तीन भागों में बांटा जा सकता है-कार्य, विश्राम, नींद आदि।
  • विभिन्न व्यक्तियों में शक्ति भी अलग-अलग होती है तथा एक ही व्यक्ति में सारी उम्र एक जैसी शक्ति नहीं रहती।
  • जब किसी कार्य को करने के लिए समय तथा शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो थकावट अनुभव होती है।
  • परिवार का आकार तथा रचना, जीवन स्तर, घर की स्थिति, आर्थिक स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तौँ योग्यताएं, ऋतु बदलने से कार्य आदि पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं।
  • योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है।
  • रोज़ाना कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बनानी चाहिए।
  • यदि घर की आय के साधन ठीक हों तो घर के कार्य बाहर से करवाकर भी समय तथा शक्ति का बचाव किया जा सकता है।
  • जब किसी योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाता है तो कुछ देर पश्चात् पता लग जाता है कि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।
  • यदि उद्देश्यों की पूर्ति न हो रही हो तो अपनी योजना में परिवर्तन कर लेना चाहिए ताकि आगे के लिए उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
  • ठीक निर्णय लिए जाएं तो कार्य अच्छी तरह तथा आसानी से हो जाते हैं।
  • घर का प्रबन्धक अथवा गृहिणी सोच-समझकर निर्णय न करे तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

SST Guide for Class 8 PSEB सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. भारत एक ……… राज्य है।
2. भारत में मानव अधिकार कमीशन ……….. की रक्षा करता है।
3. बुढ़ापा, दुर्घटना तथा बेकारी के समय मिलने वाली सुविधा को ………… कहा जाता है।
4. गांवों को लिंक सड़कों के साथ …………. योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है।
5. स्कूलों में दोपहर का खाना ………. योजना के अन्तर्गत दिया जा रहा है।
उत्तर-

  1. कल्याणकारी
  2. मानव अधिकारों
  3. सामाजिक सुरक्षा
  4. प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क
  5. मिड डे मील।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ :

1. जन उपयोगी सेवाओं से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है। – (✓)
2. अच्छी शिक्षा तथा सेहत की सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है। – (✗)
3. आज भारत में सामाजिक व आर्थिक असमानताएं समाप्त हो चुकी हैं। – (✗)
4. भारत में ‘कार्य का अधिकार’ मौलिक अधिकार है। – (✗)
5. पंजाब के सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य नहीं है। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
मिड-डे-मील स्कीम के अंतर्गत किस श्रेणी तक मुफ्त खाना दिया जाता है ?
(क) पांचवीं
(ख) आठवीं
(ग) दसवीं
(घ) पहली से आठवीं तक।
उत्तर-
पहली से आठवीं तक।

प्रश्न 2.
आज तक भारत में कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं ?
(क) 5
(ख) 12
(ग) 13
(घ) 14
उत्तर-
12

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
जन-उपयोगी सेवाएं किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर आदि की सुविधाएं दी गई हैं। इन्हें जन-उपयोगी सेवाएं कहते हैं। इनका उद्देश्य लोगों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सामाजिक समानता का अर्थ है-सामाजिक स्तर पर लोगों का बराबर होना। दूसरे शब्दों में समाज में किसी प्रकार की ऊंच-नीच न हो। रंग, जाति, नसल, जन्म, धनी, निर्धन आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ है, बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में नागरिकों की सहायता करना। शारीरिक रूप से अपाहिज बच्चों को आवश्यक सहायता देना भी सामाजिक सुरक्षा में शामिल है। सामाजिक सुरक्षा सामाजिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 4.
कोई दो मानवीय अधिकार लिखो।
उत्तर-
(1) जीवन का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार, (3) समानता का अधिकार, (4) मानवीय गौरव का अधिकार।
नोट-विद्यार्थी कोई दो लिखें।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सरकार की सामाजिक क्रियाओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
सरकार की सामाजिक क्रियाओं से लोगों का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास अवश्य हुआ है। सरकार ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। फिर भी देश में सच्चे अर्थों में सामाजिक समानता नहीं आ सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है।

प्रश्न 2.
सरकार के सामाजिक और नैतिक सुधारों पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरकार द्वारा सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गये। उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे मुसीबत के समय अपने बच्चों का पालन-पोषण स्वयं कर सकें। इससे उन्हें अपने अन्य पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने तथा अपने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने में भी सहायता मिली।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए। सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे । बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष ज़रूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

PSEB 8th Class Social Science Guide सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  2. उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ? .
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए।
सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे। बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष जरूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  • उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ?
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत क्यों महसूस की गई ? इस उद्देश्य से क्या कदम उठाए गए ?
उत्तर-
भारत शताब्दियों तक परतन्त्र रहा था। इसके कारण भारत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुका था। इसलिए देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की ज़रूरत महसूस की गई। इस उद्देश्य से निम्नलिखित पग उठाए गए.

  • मौलिक अधिकारों में समानता के अधिकार को शामिल किया गया।
  • देश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की गईं।
  • विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त अपनाया गया।
  • भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।

प्रश्न 2.
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर इत्यादि की सुविधाएं प्रदान की गईं। इन जन उपयोगी सेवाओं का उद्देश्य लोगों के दैनिक जीवन के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना था। भारत को विकसित देशों की तुलना में लाना भी सरकार का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए सरकार ने योजनाओं का निर्माण किया। तकनीकी कृषि, चिकित्सा, शिक्षा तथा कला सम्बन्धी शैक्षिक संस्थाओं की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त गांवों तथा कस्बों में पीने के पानी तथा बिजली का प्रबन्ध किया गया। गांवों तथा सड़कों का निर्माण भी किया गया ताकि उन्हें शहरों से जोड़ा जा सके।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों का लोगों पर क्या प्रभाव है ? .
उत्तर-
सरकार ने समाज में स्वतन्त्रता तथा समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष पग उठाए हैं। इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। इन्हें लागू करने के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। इन अधिकारों से लोगों का सर्वपक्षीय विकास अवश्य हुआ है, परन्तु समाज में सच्चे अर्थों में समानता नहीं लाई जा सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है। उनके लिए आज भी सार्वजनिक कुओं तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करना निषेध है। उन्हें मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इस प्रकार आज भी स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों का लाभ जरूरतमन्द लोगों को नहीं मिल पाता। इसके लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत एक कल्याणकारी राज्य – भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, ताकि देश को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया जा सके।
  • सामाजिक असमानता को दूर करना – इस उद्देश्य से संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकार शामिल किए गए हैं। छुआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  • जन-उपयोगी सेवाएं – लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यातायात तथा संचार सेवाओं का विस्तार किया गया है। इसके साथ-साथ कृषि, चिकित्सा, कला आदि से सम्बन्धित शिक्षा संस्थाओं का विस्तार किया गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा – लोगों को बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • मानव अधिकार – मुख्य मानव अधिकार हैं-जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, समानता का अधिकार तथा मानवीय गौरव का अधिकार। इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती) Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

PSEB 8th Class Agriculture Guide खुम्बों की काश्त (खेती) Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
खुम्बों की दो उन्नत किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-
बटन खुम्ब, पराली खुम्ब, शिटाकी खुम्ब।

प्रश्न 2.
खुम्बें किन रोगों से पीड़ित लोगों के लिए लाभदायक हैं?
उत्तर-
शूगर तथा ब्लड प्रैशर

प्रश्न 3.
सर्द ऋतु की खम्बों की वर्ष में कितनी फसलें प्राप्त की जा सकती हैं?
उत्तर-
बटन खुम्ब की दो, ढींगरी की तीन तथा शिटाकी की एक फसल ली जा सकती है।

प्रश्न 4.
खुम्बों के पालन के लिए बनाई जाने वाली खाद की ढेरियों की ऊंचाई अधिक-से-अधिक कितने फुट रखनी चाहिएं?
उत्तर–
पाँच फुट।

प्रश्न 5.
तैयार खाद को पेटियों में खुम्बें भरते समर गली-सड़ी रूड़ी व रेतीली मिट्टी में क्या अनुपात होता है?
उत्तर-
गले-सडे गोबर की खाद तथा रेतली मिट्टी में 4 : 1 का अनुपात होना चाहिए।

प्रश्न 6.
खुम्बों को मक्खियों से बचाने के लिए किस औषधि का प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर-
नूवान (डाइक्लोरोवेस)।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

प्रश्न 7.
मक्खियों से बचाने के लिये दवाई छिड़कने के कितने घण्टे उपरांत तक खुम्बें नहीं तोड़नी चाहिए?
उत्तर-
48 घण्टे।

प्रश्न 8.
खुम्बें उगाने के लिए प्रति क्यारी कितने बीज की आवश्यकता पड़ती है ?
उत्तर-
300 ग्राम।

प्रश्न 9.
पंजाब में वर्तमान समय में कितनी खुम्बें पैदा हो रही हैं ?
उत्तर-
वार्षिक लगभग 45000-48000 टन

प्रश्न 10.
खाद तैयार करते समय कितनी पल्टियां दी जाती हैं?
उत्तर-
सात।

प्रश्न 11.
बढ़िया खाद तैयार करने की pH कितनी होती है ?
उत्तर-
7.0 से 8.0

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
खुम्बों से कौन-कौन से भोजन तत्त्व प्राप्त होते हैं ?
उत्तर-
कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, पोटाश, खनिज पदार्थ तथा विटामिन सी आदि काफ़ी मात्रा में प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 2.
खुम्बें पालने के लिए किन वस्तुओं की आवश्यकता होती है?
उत्तर-
भूसा, गेहूँ की छान (चोकर), किसान खाद, युरिया, सुपरफास्फेट, मिऊरेट आफ पोटाश, जिप्सम, गामा बी० सी०-20 ई, फ्यूराडान, सीरा आदि तथा खुम्बों का बीज (स्पान)।

प्रश्न 3.
खुम्बें पालने के लिए खाद की ढेरी को बार-बार मिलाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
ऐसा करने से ढेर का बाहर का हिस्सा अंदर और बीच का हिस्सा बाहर आ जाता है। कम्पोस्ट बनाने वाले जीवाणुओं को ताज़ी हवा मिल जाती है तथा अच्छी खाद बन जाती है।

प्रश्न 4.
खुम्बों के लिए तैयार खाद में संशोधन कैसे किया जा सकता है?
उत्तर-
खुम्बों का बीज बोने से पहले तैयार की खाद में बाविस्टन 50% घुलनशील 20 मिलीग्राम प्रतिलीटर के हिसाब से मिला देनी चाहिए। इसके लिए एक क्विंटल खाद में 20 ग्राम बाविस्टन काफ़ी है जो चार पेटियों के लिए पर्याप्त है।

प्रश्न 5.
केसिंग करने का क्या लाभ है ? केसिंग मिट्टी कैसे तैयार की जाती है?
उत्तर-
केसिंग खुम्बों को वातावरण प्रदान करती है। खेत की गली-सड़ी रूड़ी तथा रेतीली मिट्टी को 4:1 के अनुपात में मिलाने से या चावलों की सड़ी हुई भूसी तथा गोबर की सलरी को 1:1 के अनुपात में मिलाने से केसिंग मिश्रण बनाया जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब में कौन-कौन सी खुम्बों की सिफ़ारिश की है? उनके तकनीकी नाम भी लिखें।
उत्तर-
पंजाब के वातावरण में खुम्बों की पाँच किस्मों की कृषि की जाती है।
यह किस्में हैं-बटन खुम्ब (Button Mushroom), ढींगरी खुम्ब (Oyster Mushroom), शिटाकी (Shitake), पराली खुम्ब (Chinese Mushroom) तथा मिल्की खुम्ब (Milky Mashroom)

प्रश्न 7.
खाद तैयार करने के लिए पल्टियों का विवरण देते हुए बतलाएं कि इसके लिए क्या कुछ चाहिए?
उत्तर-
खाद तैयार करने के लिए निम्नलिखित अनुसार पल्टियां दी जाती हैं—

पलटना ढेर लगाने से तत्त्व मिलाना कितने दिन बाद तत्व मिलाना
पहली बार 4 सीरा
दूसरी बार 8
तीसरी बार 12 जिप्सम
चौथी बार 15
पांचवीं बार 18 फूराडान
छठी बार 21
सातवीं बार 24 गामा बी० एच० सी०

इस प्रकार सात बार पलटियां दी जाती हैं। पहले 4-4 दिन के बाद तीन बार तथा फिर 3-3 दिनों के बाद। इसके लिए सीरा, जिप्सम, फुराडान, गामा वी० एच०. सी० की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 8.
केसिंग मिश्रण को विषाणु रहित करने का ढंग लिखें।
उत्तर-
रेत तथा गली-सड़ी रूड़ी की खाद को गीला करके इसके ऊपर 4-5% फार्मलीन का छिड़काव किया जाता है। प्रति क्विंटल मिट्टी के हिसाब से इसमें 20 ग्राम फुराडान डाल दिया जाता है तथा 48 घण्टों के लिए इसको तिरपाल या बोरी से ढक दिया जाता है। प्रयोग से पहले हिला कर फार्मालीन को उड़ा दिया जाता है। इस तरह केसिंग मिश्रण जर्म रहित हो जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

प्रश्न 9.
खुम्बों की कृषि के लिए बढ़िया खाद की पहचान कैसे की जाती है?
उत्तर-
खाद की पहचान उसके रंग, गंध तथा नमी से की जाती है। इसका रंग काला भूरा हो जाता है तथा अमोनिया की गंध आनी बंद हो जाती है तथा इसमें 65-72% नमी होती है तथा इसकी पी० एच० का मूल्य 7.0 से 8.0 होता है। इस तरह खाद तैयार होती है।

प्रश्न 10.
एक वर्ग मीटर में खुम्बों की कितनी उपज प्राप्त की जाती है?
उत्तर-
एक वर्ग मीटर में से 8-12 किलो खुम्ब का उत्पादन मिल जाता है।

(इ) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
खुम्बों का हमारे भोजन में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
खुम्बें सारी दुनिया में भोजन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। इसमें भोज्य तत्त्व ज्यादा मात्रा में होने के कारण यह शरीर को हृष्ट-पुष्ट रखने में सहायक होती है। खुम्बों में प्रोटीन बहुत ज़्यादा मात्रा में होती है, जो आसानी से हज्म हो जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें पोटाश, कैल्शियम, लोहा, फॉस्फोरस, खनिज पदार्थ तथा विटामिन सी० भी भरपूर मात्रा में होते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट तथा चिकनाहट की मात्रा कम होती है। इसलिए शूगर तथा ब्लडप्रैशर के मरीजों के लिए खुम्बें काफ़ी लाभदायक हैं।

प्रश्न 2.
सर्द ऋतु की खुम्बों को उगाने के लिए खाद की ढेरी बनाने की विधि बताएं।
उत्तर-
भूसे को पक्के फर्श पर बिछाकर इस पर पानी छिड़क दें तथा 48 घण्टे तक भूसे को खुले ढेर की तरह पड़ी रहने दें। साफ़ की गई खादों का बुरादा मिलाकर थोड़ा गीला कर दें। 24 घण्टे बाद इसे गीली भूसे पर मिश्रित छान बिखेर दें। इस मिश्रण को इकट्ठा करके लकड़ी के तख्तों की सहायता से 5 × 5 × 5 फुट, ऊंचे, लंबे व चौड़े ढेर बनाएं। इन ढेरों की ऊंचाई और चौड़ाई 5 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
खुम्बों (मशरूम) के मंडीकरण (विपणन) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
खुम्बों को काटकर या खींचकर न तोड़ें। परन्तु खुम्ब को अंगुलियों के बीच लेकर धीरे से मरोड़ें तथा दिन में एक बार खुलने से पहले ज़रूर तोड़ लें। ऐसा करते समय छोटी-छोटी बटन खुम्बों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। खुम्ब को तोड़ने के दौरान उसकी डंडी के मिट्टी वाले हिस्से को काटकर साफ़ कर दें।
इन तोड़ी खुम्बों को बारीक छिद्र वाले प्लास्टिक के लिफाफों में पैक करें। हर लिफाफे में 250 ग्राम ताज़ी खुम्ब भरें। इन खुम्बों को मंडी में बेचने के लिए भेजा जाता है। खुम्बों को धूप तथा छाया में प्राकृतिक ढंग से सुखाकर बे-मौसमी बिक्री के लिए स्टोर करके रख लें।

प्रश्न 4.
खुम्बों का बीज (Spawn) क्या होता है और बोआई पेटियों में कैसे की जाती है?
उत्तर-
पेटियों को ढंग से लगाना-पेटियों को एक-दूसरी पर टिकाकर खेती का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। पंक्तियों में रखी पेटियों का अन्तर 2-2 फुट तथा पेटियों में ऊपर-नीचे रखी ट्रेओं में फासला 1 फुट होना चाहिए। ऐसा करते समय छोटी-छोटी बटन खुम्बों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। निकालने के बाद खुम्बों की डंडी का मिट्टी वाला भाग काट देना चाहिए तथा साफ़ कर लेना चाहिए।
PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती) 1
चित्र-वटन मशरूम

प्रश्न 5.
‘बटन मशरूम’ की कृषि के लिए कौन-कौन से पड़ाव हैं उनके विषय में लिखें।
उत्तर-
बटन खुम्ब की खेती के पड़ाव—

1. खाद की तैयारी के लिए वस्तुएं-भूसा 300 किलो, गेहूँ का चोकर 15 किलोग्राम, किसान खाद 9 किलोग्राम, यूरिया, सुपरफास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश तीनों खाद 3-3 किलोग्राम प्रत्येक, जिपस्म 30 किलोग्राम, गामा वी० सी० 20 ई 60 मिलीलीटर, सीरा 5 किलोग्राम, फूराडान 3 जी 150 ग्राम।।

2. ढेरी बनाना-भूसे को पक्के फर्श पर बिछाकर इस पर पानी छिड़क दें तथा 48 घण्टे तक भूसे को खुले ढेर की तरह पड़ी रहने दें। साफ़ की गई खादों का बुरादा मिलाकर थोड़ा गीला कर दें। 24 घण्टे बाद इसे गीली भूसे पर मिश्रित छान बिखेर दें। इस मिश्रण को इकट्ठा करके लकड़ी के तख्तों की सहायता से 5 × 5 × 5 फुट, ऊंचे, लंबे व चौड़े ढेर बनाएं। इन ढेरों की ऊंचाई और चौड़ाई 5 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए।

3. खाद के ढेरों को हिलाना-ढेर को मिलाने के लिए हर बार ऊपरी सिरे से चारों तरफ कुछ पानी छिड़का कर अच्छी तरह मिलाएं तथा कुछ और पानी डाल दें। इससे ढेर का बाहर का हिस्सा अंदर तथा बीच का हिस्सा बाहर आ जाएगा। कम्पोस्ट बनाने वाले जीवाणुओं को भी ताजा हवा मिल जाती है। हर बार ढेर को दोबारा बनाने के लिए इस ढंग का प्रयोग करें। ढेर को तीन बार हर चौथे दिन हिलाकर इसमें सीरा, जिप्सम, फ्यूराडान तथा गामा वी० एच० सी० को क्रमवार पहली, तीसरी, पाँचवीं तथा सातवीं बार हिलाने पर मिला दें। 24 दिन बाद 300 किलोग्राम भूसे से पूरी तरह तैयार की गई यह खाद 100 × 150 × 18 सें० मी० आकार की 20-25 पेटियां भरने के लिए काफ़ी है। जब खाद का रंग काला-भूरा हो जाए तथा अमोनिया की बदबू आनी बंद हो जाए तब इसमें 65-72% नमी होती है और खाद तैयार हो जाती है। पी० एच० 7.0 से 8.0 होती है।

4. खाद की सुधाई-खुम्बों का बीज बोने से पहले तैयार की गई खाद में बाविस्टन 50% घुलनशील 20 मिग्रा० प्रति लिटर के हिसाब से मिला देनी चाहिए। इसलिए एक क्विटल खाद में 20 ग्राम बाविस्टन का बुरादा काफ़ी है जो चार पेटियों के लिए काफ़ी है।

5. पेटियां भरना तथा खम्बें बोना-खाद के ढेर को बिखेर कर कुछ देर के लिए ठंडा होने दें, खुम्बों के बीज (स्पान) को बोतलों से निकालें तथा दो परतों में खुम्बें बोने वाले ढंग का प्रयोग करते हुए खाद पर बीज बिखेर कर पेटियों में बीज दें। फिर इस पर खाद की मोटी परत डालें तथा बाकी हिस्सा इस पर बिखेर कर खाद में मिला देना चाहिए। पेटियों पर गीला अखबार और कागज़ रख देना चाहिए। 2-3 सप्ताह के अन्दर खुम्बों के बीज से कपास की पेटियों जैसे सफेद रेशों से 80-100% पेटियां भर जाती हैं।

6. पेटियां मिट्टी से ढकना-बाद में 80-100% (माइसीलियम) से भरी ट्रे को 4 : 1 के अनुपात वाले खाद तथा रेतली मिट्टी या 1 : 1 अनुपात वाले चावलों की सड़ी हुई भुसी
और गोबर गैस की सलरी के मिश्रण से एकसार ढक देना चाहिए। इस मिश्रण को केसिंग मिश्रण कहते हैं । ढकने से पहले इसे 4-5% फार्मलीन के घोल से रोग रहित करें।

7. केसिंग मिश्रण को कीटाणु रहित करना-रेत मिली गली-सड़ी गोबर की खाद को गीला कर दें। इस पर 4-5% फार्मलीन का छिड़काव करें। प्रति क्विंटल केसिंग मिट्टी के हिसाब में 20 ग्राम फ्यूराडान डालें। बाद में इसे तिरपाल या बोरियों में 48 घण्टों के लिए ढक दें ताकि फार्मलीन अच्छी तरह उड़ जाए।

8. ट्रे को ढांपने का ढंग-खुम्बों के बीज बोने के 2-3 सप्ताह के बाद पेटियों से अख़बार के कागज़ उतार देने चाहिएं तथा माइसीलियम से भरी खाद को एक से डेढ़ इंच मोटी रोग रहित की गई मिट्टी की तह से ढक देना चाहिए।

9. पेटियों को ढंग से लगाना-पेटियों को एक-दूसरी पर टिकाकर खेती का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। पंक्तियों में रखी पेटियों का अन्तर 2-2 फुट तथा पेटियों में ऊपर-नीचे रखी ट्रेओं में फासला 1 फुट होना चाहिए। ऐसा करते समय छोटी-छोटी बटन खुम्बों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। निकालने के बाद खुम्बों की डंडी का मिट्टी वाला भाग काट देना चाहिए तथा साफ़ कर लेना चाहिए।
PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती) 1
चित्र-वटन मशरूम

  1. खुम्ब का उगना-पेटियों को मिट्टी से ढकने से 2-3 सप्ताह बाद खुम्ब निकलने लगती हैं तथा 2-3 दिन में तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है।
  2. उत्पादन-एक वर्गमीटर स्थान से एक मौसम में लगभग 8-12 किलोग्राम ताज़ी खुम्बें प्राप्त हो जाती हैं।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB खुम्बों की काश्त (खेती) Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दो-तीन सप्ताह में खुम्बों के बीज तैयार माइसीलियम से कितने फीसदी ढेर भर जाते हैं?
उत्तर-
80-100 प्रतिशत

प्रश्न 2.
लिफाफों में कितनी खुम्बें डालकर बेचने के लिए भरी जा सकती हैं ?
उत्तर-
250 ग्राम।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

प्रश्न 3.
खुम्बों के बीजों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
खुम्बों के बीजों को स्पान कहते हैं।

प्रश्न 4.
खुम्बों में कौन-से खुराकी तत्त्व कम मात्रा में होते हैं?
उत्तर-
खुम्बों में कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाहट कम मात्रा में होती है।

प्रश्न 5.
गर्मी के मौसम में बोयी जाने वाली खुम्बों की कौन-सी किस्म तथा उनकी कितनी फसलें ली जा सकती हैं?
उत्तर-
गर्मी के मौसम में बोयी जाने वाली किस्म पराली वाली खुम्ब है। इससे चार फसलें ली जाती हैं।

प्रश्न 6.
तीन सौ किलो भूसे से तैयार खाद कितनी पेटियों के लिए काफ़ी है?
उत्तर-
100 × 150 × 18 सेमी० आकार की 20-25 पेटियों के लिए यह खाद काफ़ी है।

प्रश्न 7.
तैयार हो चुकी खाद की पहचान क्या है?
उत्तर-
जब खाद का रंग काला-भूरा हो जाए तथा अमोनियम की बदबू खत्म हो जाए तब खाद तैयार होती है।

प्रश्न 8.
किसी एक रोग का नाम बताएं जिसके लिए खुम्बें लाभदायक हैं।
उत्तर-
ब्लॅड प्रैशर।

प्रश्न 9.
सर्दियों में खुम्बों की कितनी फसलें ले सकते हैं ?
उत्तर-
सर्दियों में सफ़ेद बटन खुम्बों की दो फसलें ले सकते हैं।

प्रश्न 10.
सर्दियों में खुम्बों की फसलें कब बोयी जाती हैं ?
उत्तर-
सर्दियों में खुम्बें अक्तूबर से अप्रैल तक बोयी जाती हैं।

प्रश्न 11.
खुम्बों के लिए खाद मिलाकर तैयार करने के लिए कौन-से पदार्थ चाहिए?
उत्तर-
सीरा, जिप्सम, फ्यूराडान, गामा तथा बी० एच० सी० आदि पदार्थों की ज़रूरत है |

प्रश्न 12.
एक वर्गमीटर के लिए कितने बीजों की आवश्यकता है?
उत्तर-
एक वर्गमीटर के लिए 300 ग्राम बीजों की आवश्यकता है।

प्रश्न 13.
एक वर्गमीटर में खुम्बों का कितना उत्पादन हो सकता है ?
उत्तर-
एक वर्गमीटर स्थान में एक मौसम में 8-12 किलोग्राम ताजी खुम्बों का उत्पादन प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 14.
गर्मी में मिल्की खुम्बों की कितनी फसलें हो सकती हैं?
उत्तर-
गर्मियों में मिल्की खुम्बों की तीन फसलें हो सकती हैं।

प्रश्न 15.
पंजाब में खुम्बों की खेती कितने स्थानों पर की जाती है?
उत्तर-
400 स्थानों पर।

प्रश्न 16.
बटन खुम्ब की फसलें लेने का समय बताओ।
उत्तर-
सितम्बर से मार्च तक दो फसलें।

प्रश्न 17.
ढींगरी की फसल लेने का समय बताओ।
उत्तर-
अक्तूबर से मार्च तक तीन फसलें।

प्रश्न 18.
शिटाकी खुम्ब लेने का समय बताओ।
उत्तर-
शिटाकी की एक फसल सितम्बर से मार्च तक।

प्रश्न 19.
पंजाब में कौन-सी खुम्ब की खेती सब से अधिक की जाती है?
उत्तर-
बटन खुम्ब की।

प्रश्न 20.
तीन क्विटल रूड़ी खाद के लिए खुम्ब का कितना बीज चाहिए?
उत्तर-
3 किलो स्पान।

प्रश्न 21.
खुम्ब के बीज कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं ?
उत्तर-
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी के माइक्रो बायलोजी विभाग से।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खुम्बों की खेती के समय बीज को पेटियों में कैसे भरा जाता है?
उत्तर-
खाद के ढेर को हिलाकर कुछ समय के लिए ठंडा होने दें। खुम्बों (स्पान) को बोतलों से निकालें तथा तहों में खुम्बें बोने वाले ढंग का प्रयोग करने पर बीज बिखेर कर पेटियों में बो दें। फिर इस पर खाद की मोटी परत डालें तथा शेष भाग इसमें बिखेर कर खाद में मिला देना चाहिए। पेटियों पर गीला अख़बार, कागज़ रख देना चाहिए।

प्रश्न 2.
ढींगरी की खेती के लिए लिफाफे भरने की क्या विधि है?
उत्तर-
लिफाफों को 3 इंच तक भूसे से भर लें तथा इस पर चुटकी जितना खुम्ब बीज बिखेर दें। फिर इस पर 2-2 इंच भुसा और डाल दें तथा खुम्बों का बीज बिखेर दें तथा लिफाफे पूरी तरह से भर लें। लिफाफे के मुँह को किसी पतली रस्सी से बांध देना चाहिए तथा निचले कोनों में कट लगा दें ताकि वायु और पानी बाहर निकल जाए। इन लिफाफों को अच्छी रोशनी वाले कमरे में रखें। 3-4 सप्ताह बाद जब छोटी खुम्बों में अंकुरण दिखाई दे तो प्लास्टिक के लिफाफे काट दें तथा पानी डाल दें ताकि भुसा गीला रहे।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

प्रश्न 3.
खुम्बें तोड़ते हुए किस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
खुम्बों को काटकर या खींचकर न तोड़ें। परन्तु खुम्ब को अंगुलियों के बीच लेकर धीरे-धीरे मरोड़ें तथा दिन में एक बार खुलने से पहले ज़रूर तोड़ लें।

प्रश्न 4.
खुम्बों को कौन-सा कीट हानि पहुंचाता है ? इससे बचाव की विधि बताएं।
उत्तर-
खुम्बों की मवखी इसे नुकसान पहुंचाती है। जब खुम्बों की मक्खियां खुम्ब घर की खिड़कियों के शीशे, दीवार या छतों पर नज़र आने लग जाएं तो 30 मिलीलिटर नूवान (डाइक्लोरोवेस) 100 ई०सी० (डब्ल्यू० पी०) 100 घन मीटर स्थान पर छिड़काव करें। इसके बाद दरवाजे व खिड़कियां दो घण्टों के लिए बंद कर दें तथा छिड़काव के 48 घण्टे बाद तक खुम्बें नहीं तोड़नी चाहिएं। क्यारियों में सीधा छिड़काव न करें।

प्रश्न 5.
फसल के क्षेत्र में वृद्धि करने के लिए क्या किया जाता है ?
उत्तर-
पेटियों को एक-दूसरे के ऊपर टिकाकर खेती का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। पंक्तियों में रखी पेटियों का अन्तर 2-2 फुट होना चाहिए तथा पेटियों में ऊपर-नीचे रखी ट्रे का अन्तर एक फुट होना चाहिए।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
पराली वाली खुम्बें कैसे उगाई जाती हैं ?
उत्तर-

  1. ज़रूरी वस्तुएं-ताज़ी पराली (एक साल से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए), बांस की छड़ियां तथा खुम्बों का बीज स्पान।
  2. ढंग-सूखी पराली की 1-1.5 किलोग्राम भार की पूलियां बना लेनी चाहिएं। इनके दोनों सिरों को बांध दें तथा बढ़े हुए भाग को काटकर बराबर कर दें। पराली की पूलियों को 16 से 20 घण्टों तक साफ़ पानी में भिगो कर रखें। पूलियों को ढलान वाले स्थान पर रखें ताकि हवा, पानी निकल जाए। खुम्ब घर में एक फुट दूरी पर रखी बांस की छड़ियों पर पांच पूलियों की पहली तह पर खुम्बों का बीज चुटकियों से बिखेर दें। इस तरह 22 पूलियों से एक वर्ग मीटर की एक क्यारी बन जाती है। फसलों के लिए स्थान बढ़ाने के लिए एक दूसरी पर भी क्यारियों बनाई जा सकती हैं। एक क्यारी के लिए 300 ग्राम बीज काफ़ी है।
  3. बीज बिखेरना-एक क्यारी के लिए 300 ग्राम बीज की ज़रूरत होती है। हर तह में एक सार बीज डालने चाहिएं।
  4. सिंचाई-बिजाई से 2-3 दिन बाद पानी डालना शुरू कर देना चाहिए। कमरों में हवा का आना ज़रूरी नहीं है, परन्तु बाद में खुली हवा की ज़रूरत होती है।
  5. खुम्बों का उगाना-बीज डालने के 7-9 दिन बाद खुम्बों के छोटे-छोटे दाने दिखाई देने लग जाते हैं। दसवें दिन यह तोड़ने योग्य हो जाते हैं। यह चार चक्करों में 15-20 दिन तक अंकुरित होती रहती हैं। इस मौसम की खुम्बों की एक महीने में एक बार फसल ली जा सकती है। इस तरह आखिरी अप्रैल से अगस्त तक चार फसलें प्राप्त हो जाती हैं।
  6. लिफाफों में डालना-मंडी भेजने से पहले छोटे-छोटे छिद्र वाले हर लिफाफे में 200 ग्राम खुम्बें डालकर लिफाफे बंद कर लें। इस मौसम की खुम्बों को धूप या छाया में रखकर प्रकृति रूप से भी सुखाया जा सकता है।
  7. उत्पादन-22 किलोग्राम सूखी पराली की एक क्यारी में बताए गए समय दौरान 2.5-3 किलोग्राम ताज़ी खुम्बें मिल जाती हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. खम्बें उगाने के लिए प्रति क्यारी 300 ग्राम बीज की आवश्यकता है।
  2. अच्छी खाद तैयार करने के लिए pH का मान 7.0 से 8.0 होना चाहिए ।
  3. सर्दी ऋतु की बटन खुम्बों की सिंतबर से मार्च तक दो फसलें प्राप्त हो जाती

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
खुम्बों की किस्म है
(क) बटन खुम्ब
(ख) पराली खुम्ब
(ग) शिटाकी खुम्ब
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

प्रश्न 2.
खाद तैयार करने के लिए कौन-से तत्त्व मिलाये जाते हैं ?
(क) सीरा
(ख) जिप्सम
(ग) फूराडान
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 5 खुम्बों की काश्त (खेती)

प्रश्न 3.
प्लास्टिक के लिफाफों में कितनी खुम्बें भरी जाती हैं. ?
(क) 50 ग्राम
(ख) 250 ग्राम
(ग) 500 ग्राम
(घ) 100 ग्राम।
उत्तर-
(ख) 250 ग्राम

रिक्त स्थान भरें

  1. खुम्बों को मक्खियों से बचाव के लिए …………… का छिड़काव किया जाता
  2. खुम्बों के बीज को ………… कहते हैं।

उत्तर-

  1. नूवान,
  2. स्पान

खुम्बों की काश्त (खेती) PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • पंजाब में खुम्बों की खेती लगभग 400 स्थानों पर की जाती है।
  • पंजाब में वार्षिक कुल 45000-48000 टन ताज़ी खुम्बें पैदा की जाती हैं।
  • खुम्बों में कई खुराकी तत्त्व होते हैं; जैसे-प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, पोटाश, खनिज पदार्थ तथा विटामिन-सी।
  • इसमें कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई की मात्रा कम होती है। इसलिए ब्लड प्रैशर तथा शूगर के मरीजों के लिए खुम्बें लाभदायक हैं।
  • पंजाब के वातावरण अनुसार खुम्बों की पांच किस्में हैं-बटन खुम्ब, ढींगरी खुम्ब, शिटाकी खुम्ब, पराली खुम्ब मिल्की खुम्ब।
  • शीत ऋतु की बटन खुम्बों से सितम्बर से मार्च तक दो फसलें प्राप्त की जा सकती हैं।
  • ढींगरी की तीन फसलें अक्तूबर से मार्च तक तथा शिटाकी की एक फसल सितम्बर से मार्च तक ली जा सकती है।
  • खाद के ढेर को हर चौथे दिन हिलाएं तथा इसमें सीरा, जिप्सम, लिंडेन व फूराडान की धूल क्रमवार पहली, तीसरी, पांचवीं, छठी तथा सातवीं बार हिलाने पर मिलाएं।
  • एक वर्गमोटर स्थान के लिए 300 ग्राम बीज का प्रयोग करना चाहिए।
  • गर्म ऋतु की पराली खुम्ब की अप्रैल से अगस्त तक चार फसलें तथा मिल्की खुाब की अप्रैल से अक्तूबर तक तीन फसलें ली जा सकती हैं।
  • खेत की गली-सड़ी रूड़ी तथा रेतीली मिट्टी को 4:1 के अनुपात में मिलाने से या चावलों की सड़ी हुई भूसी तथा गोबर की सलरी को 1:? के अनुगत में मिलाने से केसिंग मिश्रण बनाया जाता है।
  • केसिंग मिश्रण को कीटाणु रहित करने के लिए 4-5% फार्मली छिडकाव करें।
  • खुम्बों का मक्खियों से बचाव के लिए नूवान (डाइक्लोरोले) का छिड़काव करें तथा छिड़काव के 48 घंटे बाद तक खुम्बें न तोड़ें।
  • खुम्बों के बीज को स्पान कहते हैं।
  • दो-तीन सप्ताह में खुम्बों के बीज से तैयार कपास के कोपलों जैसे सफ़ेद रेशे (माइसीलियम) से 80-100 प्रतिशत तक पेरी भर जाती है।
  • एक वर्ग मीटर से 8-12 किलो खुम्भ मिल जाती है।
  • बारीक छेद वाले प्लास्टिक के लिफाफों में 250 ग्राम ताज़ी खुम्बें भरनी चाहिएं।
  • प्रति किलोग्राम के लिए बटन खुम्ब उगाने का खर्चा 38.44 रुपए तथी ढींगरी खुम्ब उगाने के लिए 31.84 रुपए खर्चा आता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 29 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 29 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 29 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव

SST Guide for Class 8 PSEB सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव Textbook Questions and Answers

I. खाली स्थान भरें :

1. सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक न्याय देने का वायदा ………. में किया गया है।
2. प्रस्तावना भारतीय नागरिकों को …………. न्याय देने का वायदा करती है।
3. भारतीय संविधान के अनुच्छेद ……… से ……… धार्मिक स्वतन्त्रता दी गई है।
4. भारत में लगभग ………….. से ज्यादा जातियां हैं।
5. भारतीय संविधान में ………… भाषाओं को मान्यता दी गई है।
6. मण्डल कमीशन की स्थापना ………… में की गई थी।
7. मण्डल कमीशन ने भारत में ………… अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की पहचान की है
उत्तर-

  1. प्रस्तावना
  2. सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक
  3. 25, 28
  4. 3,000
  5. 22
  6. 1978
  7. 3743.

II. निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ :

1. सामाजिक असमानताएँ लोकतन्त्रीय सरकार को प्रभावित नहीं करती हैं। – (✗)
2. भारत में आज 54% लोग अनपढ़ है। – (✗)
3. हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। – (✓)
4. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण आज भी लागू है। – (✓)
5. 73वीं और 74वीं शोध गांवों और शहरी स्वै-शासन का प्रबन्ध करती है। – (✓)
6. आज भारतीय समाज में सामाजिक असमानताएं खत्म हो रही हैं। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
“भारत में जाति सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल है।” ये शब्द किसने कहे ?
(क) महात्मा गांधी
(ख) पं० जवाहर लाल नेहरू
(ग) श्री जय प्रकाश नारायण
(घ) डॉ० बी० आर० अंबेडकर।
उत्तर-
श्री जय प्रकाश नारायण

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 28 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव

प्रश्न 2.
भारतीयों को सामाजिक न्याय देने के लिए संविधान में कौन-सा मौलिक अधिकार दर्ज किया गया ?
(क) स्वतन्त्रता का अधिकार
(ख) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(ग) समानता का अधिकार
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
समानता का अधिकार

प्रश्न 3.
‘पढ़ो सारे बढ़ो सारे’ यह किस का सिद्धान्त (Motto) है ?
(क) राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
(ख) सर्वशिक्षा अभियान
(ग) राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
(घ) पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड।
उत्तर-
सर्वशिक्षा अभियान

प्रश्न 4.
सरकारी नौकरियों में आरक्षण किनके लिए लागू है ?
(क) अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए
(ख) केवल पिछड़ी श्रेणियों के लिए
(ग) केवल गरीब लोगों के लिए
(घ) अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़ी श्रेणियों के लिए।
उत्तर-
अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
सामाजिक असमानताओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
हमारे समाज में जाति, सम्प्रदाय, भाषा आदि के नाम पर अनेक असमानताएं पाई जाती हैं। इन्हें सामाजिक असमानता का नाम दिया जाता है। स्वतन्त्रता से पूर्व समाज में अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था। अतः स्वतन्त्रता के पश्चात् सरकार ने सामाजिक समानता लाने के लिए विशेष पग उठाए। इसी उद्देश्य से संविधान में समानता के अधिकार का समावेश किया गया। इसके अनुसार किसी से ऊँच-नीच, धनी, निर्धन, रंग, नस्ल, जाति, जन्म, धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता। छुआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है। इसका अनुसरण करने वालों को कानून द्वारा दण्ड दिया जा सकता है।

प्रश्न 2.
जातिवाद और छुआछूत से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जातिवाद-भारतीय समाज जाति के नाम पर भिन्न-भिन्न वर्गों में बंटा है। इन वर्गों में ऊंच-नीच पाई जाती है। इसे जातिवाद कहते हैं।
छुआछूत-भारत में कुछ पिछड़ी जातियों के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। कुछ लोग उन्हें छूना भी पाप समझते हैं। इस प्रथा को छुआछूत कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अनपढ़ता (निरक्षरता) किसको कहते हैं ?
उत्तर-
अनपढ़ता का अर्थ है-लोगों का पढ़ा-लिखा न होना। ऐसे लोगों को स्वार्थी राजनेता आसानी से पथभ्रष्ट कर देते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग एक तिहाई लोग अनपढ़ हैं।

प्रश्न 4.
भाषावाद से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
भाषावाद का अर्थ है-भाषा के नाम पर समाज का बंटवारा। भारत में सैंकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं। भाषा के आधार पर लोग बंटे हुए हैं। कई लोग अन्य भाषाएं बोलने वाले लोगों को अच्छा नहीं समझते। भाषा के आधार पर ही राज्यों (प्रांतों) का गठन किया गया है। अब भी भाषाओं के आधार पर कई भागों में नये प्रान्तों के . गठन की मांग की जा रही है। भाषा के आधार पर लोगों में वर्ग बने हुए हैं। लोग राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा प्रान्तीय भाषा तथा संस्कृति को प्राथमिकता देते हैं।

प्रश्न 5.
आरक्षण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
भारत में कुछ जातियां बहुत ही पिछड़ी हुई हैं क्योंकि इनका अन्य जातियों द्वारा शोषण होता रहा है। इन्हें अनुसूचित जातियों की संज्ञा दी गई है। इनके उत्थान के लिए लोकसभा, विधानसभा तथा नौकरियों में स्थान आरक्षित हैं। इसे आरक्षण कहा जाता है। 1978 में गठित किये गये मण्डल आयोग द्वारा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के अतिरिक्त अन्य पिछड़े वर्गों के लिये जनसंख्या के अनुसार सीटें आरक्षित किये जाने का सुझाव दिया गया था, परन्तु इस रिपोर्ट को आज तक भी लागू नहीं किया जा सका। समय-समय पर लोकसभा तथा विधान सभाओं में स्त्रियों के लिए भी एक तिहाई सीटें आरक्षित किये जाने की मांग होती रही है। वास्तव में भारत में आज भारतीय राजनीतिक प्रणाली को जाति की राजनीति प्रभावित कर रही है। श्री जय प्रकाश नारायण ने ठीक ही कहा था कि भारत में जाति सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल है।

प्रश्न 6.
क्या मैला ढोने की प्रक्रिया बंद हो गई है ?
उत्तर-
मैला ढोने की प्रथा एक घृणापूर्ण प्रथा थी। यह समाज में शताब्दियों से चली आ रही थी। इसके अनुसार एक जाति के लोगों को दूसरों का मल-मूत्र सिर पर उठा कर बाहर फेंकना पड़ता था। मैला ढोने वाली जाति के लोगों को अछूत माना जाता था। प्रत्येक व्यक्ति उनसे घृणा करता था। समय के परिवर्तन के साथ इस बुराई को समाप्त करना आवश्यक था। समय-समय पर सरकारें इसको बन्द करने पर विचार करती रहीं। अब कानून के अनुसार सिर पर मैला ढोने की यह प्रथा बन्द कर दी गई है। इसके विरुद्ध दण्ड देने के कानून का प्रावधान कर दिया गया है।

प्रश्न 7.
अनपढ़ता का लोकतन्त्र पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
अनपढ़ता एक बहुत बड़ा अभिशाप है। इसके लोकतन्त्र पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं :

  • अनपढ़ता बहुत सी बुराइयों की जड़ है। इसी बुराई के कारण ही बेकारी, धार्मिक संकीर्णता, रूढ़िवाद, अन्धविश्वास, हीनता, क्षेत्रीयता, जातिवाद आदि भावनाएं उत्पन्न होती हैं।
  • अनपढ़ व्यक्ति एक अच्छा नागरिक भी नहीं बन सकता। स्वार्थी राजनीतिज्ञ अनपढ़ व्यक्तियों को आसानी से पथभ्रष्ट कर देते हैं। इस प्रकार अनपढ़ता लोकतन्त्र के मार्ग में बाधा डालती है।

PSEB 8th Class Social Science Guide सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए :

1. छुआछूत कानूनी अपराध घोषित – 1979
2. मंडल आयोग का गठन – 1955
3. समानता का अधिकार – संविधान के अनुच्छेद 25 से 28
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – संविधान के अनुच्छेद 14 से 18.
उत्तर-

  1. 1955
  2. 1979
  3. संविधान के अनुच्छेद 14 से 18
  4. संविधान के अनुच्छेद 25 से 28.

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में सम्मिलित तीन सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त कौन-से हैं जो सामाजिक समानता को सुनिश्चित करते हैं ?
उत्तर-
समानता, स्वतन्त्रता तथा धर्म-निरपेक्षता।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 28 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को कौन-कौन से तीन प्रकार के न्याय प्रदान करने की बात कही गई है?
उत्तर–
सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक।

प्रश्न 3.
सामाजिक असमानताओं के कोई चार प्रकार लिखिए।
उत्तर-

  1. साम्प्रदायिकता
  2. जातिवाद तथा छुआछूत
  3. भाषावाद
  4. अनपढ़ता।

प्रश्न 4.
भारतीय लोकतंत्र की कोई दो समस्याएं लिखो।
उत्तर-

  1. भारत में अधिकतर लोग निरक्षर हैं।
  2. साम्प्रदायिकता तथा भाषावाद भारतीय लोकतंत्र की सफलता में बाधा डालते हैं।

प्रश्न 5.
छुआछूत को कानूनी अपराध क्यों घोषित किया गया है ?
उत्तर-
छुआछूत एक अमानवीय प्रथा है। यह सफल लोकतन्त्र के मार्ग की बहुत बड़ी बाधा है। इसी कारण छुआछूत को कानूनी अपराध घोषित किया गया है।

प्रश्न 6.
सरकार द्वारा अनपढ़ता को समाप्त करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं ?
उत्तर-
हमारी सरकार द्वारा अनपढ़ता को समाप्त करने के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। देश भर में सर्व शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है। आठवीं कक्षा तक निःशुल्क शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है। शैक्षणिक संस्थाओं की संख्या में वृद्धि की गई है। शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है।

प्रश्न 7.
संविधान में कितनी भाषाओं को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है ? किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है?
उत्तर-
संविधान में 22 भाषाओं को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है। हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में साम्प्रदायिक असमानता पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
साम्प्रदायिकता सामाजिक असमानता का पहला रूप है। भारत में अनेक धर्म हैं। भिन्न-भिन्न धर्मों के कुछ लोगों में धार्मिक कट्टरता पाई जाती है जो साम्प्रदायिकता को जन्म देती है। परिणामस्वरूप साम्प्रदायिकता सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का एक अंग बन चुकी है। इसी धार्मिक कड़वाहट के कारण ही 1947 में भारत को दो भागों में बांट दिया गया था। यह भी धार्मिक कट्टरता का ही परिणाम है कि देश में साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। यही कड़वाहट भारतीय राजनीति में भी है। धर्म के नाम पर वोट मांगे जाते हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाता है। परिणामस्वरूप देश में समय-समय पर धार्मिक तनाव का वातावरण पैदा हो जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। इसके अनुसार सभी धर्मों को समान माना गया है। लोगों को किसी भी धर्म को अपनाने, मानने तथा प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
मैला ढोने की प्रथा क्या थी ? इसे क्यों समाप्त कर दिया गया है ?
उत्तर-
मैला ढोने की प्रथा एक घृणापूर्ण प्रथा थी। यह समाज में शताब्दियों से चली आ रही थी। इसके अनुसार एक जाति के लोगों को दूसरों का मल-मूत्र सिर पर उठा कर बाहर फेंकना पड़ता था।

मैला ढोने वाली जाति के लोगों को अछूत माना जाता था। प्रत्येक व्यक्ति उनसे घृणा करता था। समय के परिवर्तन के साथ इस बुराई को समाप्त करना आवश्यक था। समय-समय पर सरकारें इसको बन्द करने पर विचार करती रहीं। अब कानून के अनुसार सिर पर मैला ढोने की यह प्रथा बन्द कर दी गई है। इसके विरुद्ध दण्ड देने के कानून का प्रावधान कर दिया गया है।

प्रश्न 3.
भारत के सीमान्त ग्रुपों (समूहों) की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
सीमान्त ग्रुप हमारे समाज के वे समूह हैं जो सामाजिक तथा आर्थिक कारणों से एक लम्बे समय तक पिछड़े रहे हैं। इन समूहों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. अनुसूचित जातियां-अनुसूचित जातियों की कोई स्पष्ट संवैधानिक परिभाषा नहीं है। हम इतना कह सकते हैं कि इन जातियों का सम्बन्ध उन लोगों से है जिनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता रहा है।
  2. अनुसूचित कबीले-अनुसूचित कबीलों की भी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। ये भी समाज के शोषित कबीले हैं। पिछड़ा होने के कारण ये समाज से अलग-थलग होकर रह गए।
  3. पिछड़ी श्रेणियां- इन्हें भी संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है। वास्तव में ये समाज का कमजोर वर्ग है। मण्डल आयोग के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का 5.2% भाग पिछड़ी श्रेणियां हैं।
  4. अल्पसंख्यक-अल्पसंख्यक धार्मिक या भाषा की दृष्टि से वे लोग हैं जिनकी अपने धर्म या सम्प्रदाय में संख्या कम है।

प्रश्न 4.
साम्प्रदायिक असमानता के प्रभाव वर्णित करें।
उत्तर-
साम्प्रदायिक असमानता के मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. राजनीतिक दल धर्म के आधार पर संगठित होते हैं।
  2. धर्म पर आधारित कई दबाव समूह भारतीय लोकतन्त्र को प्रभावित करते हैं।
  3. साम्प्रदायिकता भारतीय जनजीवन में हिंसा को बढावा दे रही है।
  4. मन्त्रिपरिषद् के निर्माण में धर्म विशेष को महत्त्व दिया जाता है।
  5. साम्प्रदायिकता लोगों को निष्पक्ष मतदान करने से रोकती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 28 सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव

प्रश्न 5.
जातिवादी असमानता का अर्थ बताते हुए इसके प्रभाव लिखो।
उत्तर-
जातिवादी असमानता- भारत में तीन हज़ार से भी अधिक जातियों के लोग रहते हैं। इनमें जाति के नाम पर ऊंच-नीच पाई जाती है। इसे जातिवादी असमानता कहते हैं। इस असमानता के कारण कुछ जातियों के लोगों को सार्वजनिक कुओं का प्रयोग नहीं करने दिया जाता। उन्हें मन्दिरों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी जाने से रोका जाता है। जाति के नाम पर राजनीति होती है तथा विभिन्न राजनीतिक दल जाति के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काते रहते हैं।

प्रभाव-

  1. राजनीतिक दलों का निर्माण जाति के आधार पर हो रहा है।
  2. चुनाव के समय जाति के नाम पर वोट मांगे जाते हैं।
  3. अनुसूचित जातियों को विशेष सुविधायें प्रदान करने की व्यवस्था ने समाज का जातिकरण कर दिया है।
  4. जाति के कारण छुआछूत जैसी अमानवीय प्रथा को बढ़ावा मिलता है।
  5. कई बार जाति संघर्ष तथा हिंसा का कारण बनती है।
  6. जाति पर आधारित दबाव समूहों का निर्माण होता है जो लोकतन्त्र पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 6.
क्या छुआछूत एक अमानवीय प्रथा है ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि छुआछूत एक अमानवीय प्रथा है। इस प्रथा के कारण भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग का शताब्दियों से शोषण होता रहा है। उनसे घृणा की जाती रही है। यहां तक कि उन्हें छूना भी पाप समझा जाता रहा है। छुआछूत के प्रभावों से यह स्पष्ट हो जायेगा कि यह वास्तव में ही एक अमानवीय प्रथा है।

प्रभाव :

  1. छुआछूत की प्रथा सामाजिक असमानता को जन्म देती है।
  2. छुआछूत से लोगों में हीन भावना पैदा होती है।
  3. यह प्रथा हिंसा को जन्म देती है।
  4. बहुत-से लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती।
  5. छुआछूत के कारण लोगों को राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इन सब बातों को देखते हुए भारतीय संविधान द्वारा छुआछूत को कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया है।

प्रश्न 7.
भाषावाद के क्या प्रभाव होते हैं ?
उत्तर-

  1. भाषा के आधार पर नये राज्यों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
  2. भाषा के आधार पर ही राजनीतिक दलों का गठन हो रहा है।
  3. भाषा के आधार पर ही आन्दोलन चल रहे हैं।
  4. भाषा क्षेत्रवाद तथा साम्प्रदायिकता को उत्साहित करती है।
  5. भाषा के आधार पर लोगों में भेदभाव तथा हिंसा उत्पन्न होती है।
  6. भाषावाद मतदान को प्रभावित करता है।

सामाजिक असमानताएं-सामाजिक न्याय तथा प्रभाव PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारतीय संविधान तथा समानता – में कई सिद्धान्त सम्मिलित किये गए हैं। इन सिद्धान्तों में समानता, स्वतन्त्रता तथा धर्म-निरपेक्षता मुख्य हैं। ये सिद्धान्त सामाजिक समानता को सुनिश्चित बनाते हैं।
  • संविधान की प्रस्तावना – भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान के आरम्भ में दी गई है। इसमें स्पष्ट रूप से अंकित है-‘हम भारत के लोग भारत में एक सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्र स्थापित करने के लिए, सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय प्रदान करने के लिए वचनबद्ध हैं।’
  • सामाजिक असमानता – भारत का समाज कई आधारों पर विभिन्न वर्गों में बंटा हुआ है। इसे सामाजिक असमानता कहते हैं।
  • सामाजिक असमानता के प्रकार – भारत में कई प्रकार की सामाजिक असमानता पाई जाती है। इनमें से मुख्य हैं: जातिवाद, छुआछूत, साम्प्रदायिकता, भाषावाद तथा अनपढ़ता।
  • आरक्षण – भारत में अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा स्त्रियों के लिए विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं में सीटें आरक्षित हैं। सरकारी नौकरियों में भी उनके लिए स्थान निश्चित हैं।