PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पंजाब का कितना क्षेत्रफल कृषि के अधीन है ?
उत्तर-
41.58 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
दरम्यानी जमीन में प्रति एकड़ कितने क्यारे होने चाहिए ?
उत्तर-
तीन से चार इंच वाले ट्यूबवैल के लिए 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़।

प्रश्न 3.
धान लगाने के लिए कितने दिन पानी खेत में खड़ा रखना चाहिए ?
उत्तर-
15 दिन।

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प्रश्न 4.
गेहूँ की काश्त के लिए पहले पानी कम लगाने के लिए कौन-सी ड्रिल का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल की।

प्रश्न 5.
लेज़र लेवलर द्वारा फसलों के उत्पादन में कितनी वृद्धि होती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 6.
खेतों में पानी की कार्यक्षमता कितनी नापी गई है ?
उत्तर-
35-40%.

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प्रश्न 7.
पंजाब की मुख्य फसलें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

प्रश्न 8.
धान में उचित सिंचाई के लिए कौन-से यंत्र का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
टैंशियोमीटर।

प्रश्न 9.
कम पानी लेने वाली किन्हीं दो फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
तेल बीज फसलें, कपास।

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प्रश्न 10.
फसलों पर पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
वाष्पीकरण कम होता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
टैंशियोमीटर का प्रयोग कैसे करना चाहिए ?
उत्तर-
यह एक यन्त्र है जोकि कांच की पाइप से बना है, इसको फसल वाली भूमि में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में पहुंच जाता है तो ही खेत में पानी दिया जाता है।

प्रश्न 2.
जीरो टिल डिल का क्या लाभ है ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है जिससे पानी की बचत हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेज़र लेवलर (कंप्यूटर कराहा) का क्या लाभ है ?
उत्तर-
इससे समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत होती है तथा उपज भी 15-20% बढ़ती है।

प्रश्न 4.
हमें कौन-सी फसलों की काश्त मेड़ों पर करनी चाहिए ?
उत्तर-
जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों की खेती समतल खेत के स्थान पर मेड़ों पर करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
फव्वारा और बूंद-बंद सिंचाई के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
फव्वारा तथा बूंद-बूंद सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 6.
मल्चिग क्या होती है ?
उत्तर-
कई फसलें : जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम हो जाता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इस को मल्चिग कहा जाता है।
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चित्र-मल्चिग

प्रश्न 7.
सिंचाई के लिए प्रयोग में आने वाले भिन्न-भिन्न तरीकों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. खेतों में खुला पानी देना
  2. बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई
  3. फव्वारा सिंचाई
  4. बैड्ड बनाकर सिंचाई
  5. मेड़ या नाली बना कर सिंचाई।

प्रश्न 8.
सिंचाई वाले क्यारों का आकार किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
क्यारों का आकार, मिट्टी की किस्म, ज़मीन की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 9.
वर्षा के पानी को कैसे संरक्षित किया जा सकता है ?
उत्तर-
गांव में छप्पड़ (जौहड़) खोदने चाहिएं तथा जौहड़ का पानी सिंचाई आपूर्ति कृषि में पानी का कुशल प्रयोग के लिए प्रयोग करना चाहिए। सूखे पड़े नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की आपूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि-विभिन्नता द्वारा पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पंजाब में सावनी की मुख्य फसल धान तथा आषाढ़ी की मुख्य फसल गेहूँ की खेती की जाती है तथा इन्हें पानी की बहुत मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। यदि ऐसी फसलें जिनको कम पानी की आवश्यकता है, जैसे-मक्का, तेल बीज फसलें, दालें, बासमती, कपास, जौ आदि की कृषि की जाए तो भूमिगत जल लम्बे समय तक बचा रह सकता है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
धान की काश्त में पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
धान में पहले 15 दिन पानी खड़ा रखने के बाद 2-2 दिन के अन्तर । पर सिंचाई करने से लगभग 25% पानी बच सकता है। धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करने से भी पानी की बचत हो जाती है।
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चित्र-टॅशियोमीटर
यह एक कांच की पाइप से बना यंत्र है। इसको ज़मीन में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में चला जाता है तभी पानी दिया जाता है।

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प्रश्न 2.
खेती में पानी के उचित प्रयोग के पाँच ढंग बताएं।
उत्तर-
खेती में पानी की बचत के ढंग—

  1. धान में टैंशियोमीटर यंत्र का प्रयोग करके पानी की बचत की जा सकती है।
  2. गेहूँ में जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है तथा पानी की बचत हो जाती है।
  3. लेज़र लेवलर से समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत हो जाती है तथा पैदावार 15-20% बढ़ती है।
  4. जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है ; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों को समतल खेत की जगह मेड़ों पर बोना चाहिए।
  5. फव्वारा तथा ड्रिप सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  6. कई फसलें जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम होता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अलग-अलग ज़मीन के लिए प्रति एकड़ कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तथा रेतली ज़मीन हो तो क्यारों की संख्या 17-18, दरम्यानी ज़मीन के लिए 10-11 तथा भारी जमीन के लिए 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होने चाहिएं।

प्रश्न 4.
वर्षा के पानी के संरक्षण के लिए क्या उपाय कर सकते हैं ?
उत्तर-
मध्य पंजाब के 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे हो गया है तथा एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक यह स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा। इसलिए वर्षा के पानी को बचाने की बहुत आवश्यकता है। इस काम के लिए आम लोग तथा सरकार को मिलकर काम करने की आवश्यकता भी है तथा अपने स्तर पर भी यह काम करना चाहिए। हमें गांव में जौहड़ खोदने चाहिएं। जौहड़ों के पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करना चाहिए। हमें सूख चुके नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की पूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।
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चित्र-पुराने सूखे कुओं द्वारा बारिश के पानी की पूर्ति

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प्रश्न 5.
कृषि-विभिन्नता से पानी की बचत पर संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
यह समय की मांग है कि हम जिस तरह भी हो पानी को बचाएं क्योंकि भूमिगत पानी का स्तर 70 फुट नीचे तक पहुंच गया है जोकि एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक 160 फुट से भी नीचे पहुँच जाएगा। इसलिए पानी बचाने के उपाय करने चाहिएं। इन उपायों में एक है कृषि विभिन्नता।

पंजाब में मुख्य फसलें गेहूँ तथा धान ही रही हैं तथा इनको पानी की बहुत आवश्यकता रहती है। इसलिए अब ऐसी फसलें लगाने की आवश्यकता है जिन्हें कम पानी की आवश्यकता हो, जैसे-दालें, तेल बीज, जौ, मक्का, बासमती, कपास आदि। इस प्रकार कृषि विभिन्नता लाकर हम पानी की बचत कर सकते हैं तथा पानी को लम्बे समय तक बचा सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल में से पंजाब में कितने प्रतिशत क्षेत्रफल सिंचित है ?
उत्तर-
98%.

प्रश्न 2.
पंजाब में फसल घनत्व को मुख्य रखते हुए वार्षिक औसतन पानी की आवश्यकता बताएं।
उत्तर-
4.4 मिलियन हैक्टेयर मीटर।

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प्रश्न 3.
पंजाब में आज कितने पानी की कमी है ?
उत्तर-
1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर।।

प्रश्न 4.
पंजाब में ट्यूबवैल से कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
तीन चौथाई के लगभग।

प्रश्न 5.
पंजाब में नहरों के द्वारा लगभग कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
लगभग एक चौथाई।

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प्रश्न 6.
मध्य पंजाब के 30% क्षेत्र में भूमिगत पानी का स्तर कहां पर है ?
उत्तर-
70 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 7.
वर्ष 2023 तक भूमिगत जल का स्तर कितना हो जाने की उम्मीद है ?
उत्तर-
160 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 8.
पानी का कुशलता से प्रयोग क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि पानी के स्रोत सीमित हैं।

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प्रश्न 9.
दरम्यानी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिएं।

प्रश्न 10.
भारी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 6-7 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिए।

प्रश्न 11.
कौन-सी फसलों को क्यारा विधि द्वारा पानी दिया जाता है ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

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प्रश्न 12.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली कौन-से क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध होती जा रही है ?
उत्तर-
पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 13.
कौन-से बागों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
अनार, अंगूर, अमरूद, किन्न, बेर, आम आदि।

प्रश्न 14.
कौन-सी सब्ज़ियों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, तरबूज, खीरा आदि।

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प्रश्न 15.
फव्वारा सिंचाई प्रणाली कौन-सी भूमियों में प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
रेतली तथा टिब्बों वाली भूमि में।

प्रश्न 16.
क्यारा विधि का क्या नुकसान है ?
उत्तर-
पानी की खपत अधिक होती है।

प्रश्न 17.
बैड्ड प्लांटर से गेहूँ बोने पर कितने प्रतिशत पानी बच जाता है ?
उत्तर-
18-25%.

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प्रश्न 18.
कोई दो फसलों के उदाहरण दें जिनसे पानी की बचत होती है ?
उत्तर-
तेल बीज फसलें, जौ, मक्का, नरमा (कपास)।

प्रश्न 19.
लेज़र लेवलर के प्रयोग से कितनी पैदावार बढ़ती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 20.
टैंशियोमीटर क्या है ?
उत्तर-
काँच की पाइप से बना यन्त्र।

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प्रश्न 21.
मल्चिंग कौन-सी फसलों में की जाती है ?
उत्तर-
शिमला मिर्च तथा साधारण मिर्च आदि।

प्रश्न 22.
नहरों तथा खालों को पक्का करके कितना पानी बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
10-20%.

प्रश्न 23.
केवल वर्षा पर आधारित कषि को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
बारानी या मारू खेती।

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प्रश्न 24.
सिंचाई के मुख्य साधन बताएं।
उत्तर-
नहरी तथा ट्यूबवैल सिंचाई।

प्रश्न 25.
सिंचाई किसको कहते हैं ?
उत्तर–
बनावटी तरीकों से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 26.
ऐसा सिंचाई का कौन-सा साधन है, जिससे सिंचाई करने के लिए किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती ?
उत्तर-
नहर का पानी।

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प्रश्न 27.
पानी की कमी का पौधों पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
पानी की कमी से पत्ते मुरझा जाते हैं तथा सूख जाते हैं।

प्रश्न 28.
आप रौणी से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खुले सूखे खेत को बुवाई के लिए तैयार करने के लिए सिंचाई करने को रौणी कहते हैं।

प्रश्न 29.
बीज कैसे अंकुरित होते हैं ?
उत्तर-
बीज भूमि में से पानी सोख कर फूल जाता है तथा अंकुरित हो जाता है।

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प्रश्न 30.
भूमि के अन्दर पानी कम हो जाए तो क्या होता है ?
उत्तर-
भूमि के अन्दर पानी आवश्यकता से कम हो जाए तो पौधे भूमि से अपने पोषक तत्त्व प्राप्त नहीं कर पाते।

प्रश्न 31.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं जिनमें से नहरें निकाल कर सिंचाई की जाती है ?
उत्तर-
सतलुज, ब्यास तथा रावी।

प्रश्न 32.
कछार क्या होता है ?
उत्तर-
नहरों के पानी में तैर रही बारीक मिट्टी को कछार कहते हैं।

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प्रश्न 33.
चरसा क्या है ?
उत्तर-
चरसा चमड़े का बड़ा बोका या थैला होता है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
बनावटी तरीके से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 2.
सिंचाई की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
पौधे पानी के बिना फल-फूल नहीं सकते। खेतों में बोई फसल को वर्षा के पानी या फिर अन्य साधनों द्वारा प्राप्त किए पानी से सींचा जा सकता है। सिंचाई से पौधों को रूप तथा आकार मिल जाता है। पानी धरती में से ठोस तत्त्वों को घोल कर भोजन योग्य बना देता है। पानी पौधे के भोजन को तरल का रूप देकर हर भाग में जाने के योग्य बना देता है। पानी धरती तथा पौधे का तापमान एक समान रखता है। सिंचाई की आवश्यकता को देखते हुए सरकार बड़े-बड़े डैम बना रही है जिनमें से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं।

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प्रश्न 3.
बारानी कृषि से क्या भाव है ?
उत्तर-
जब फसलों की सिंचाई का कोई भी साधन न हो तथा फसलें केवल वर्षा के पानी के आधार पर ही उगाई जाती हों तो इस तरह की खेती को बारानी या मारू खेती कहते है ।
बारानी कृषि केवल वर्षा पर निर्भर है इस प्रकार की कृषि वहीं संभव है जहां पर आवश्यकता अनुसार तथा समय पर वर्षा पड़ती हो।

प्रश्न 4.
नहरी सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
खेती के लिए नहरों का पानी अच्छा समझा जाता है क्योंकि इसमें कछार होती है जो खेत को उपजाऊ बनाती है।
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन ऐसी नदियां हैं जिनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया गया है। नहरी सिंचाई का प्रबंध सरकार के सिंचाई विभाग द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5.
ट्यूबवैल के खराब पानी को सिंचाई योग्य कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिणी से पश्चिमी भागों में ट्यूबवैल का पानी खराब या दरम्याना है। इस खराब पानी को विशेषज्ञों की सलाह से नहरों के पानी से मिला कर या इसमें जिपस्म डाल कर ठीक किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं ? इनका पानी सिंचाई के लिए कैसे प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन मुख्य नदियां हैं। इनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 7.
तालाबों द्वारा सिंचाई कहां होती है ? पंजाब में इसकी आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती ?
उत्तर-
दक्षिण भारत में वर्षा का पानी तालाबों में एकत्र किया जाता है तथा इसको बाद में सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
पंजाब में नहरी पानी तथा कुएं काफ़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए यहां तालाबों से सिंचाई नहीं की जाती।

प्रश्न 8.
कुएं में से पानी को सिंचाई के लिए निकालने के लिए प्रयोग होने वाले साधनों की सूची बनाओ।
उत्तर-
कुओं का पानी कई साधनों द्वारा निकाल कर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी सूची आगे दी गई है

  1. हल्ट
  2. चरसा
  3. पम्प
  4. ट्यूबवैल।

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प्रश्न 9.
हल्ट क्या होता है ? इसके भागों के नाम लिखें।
उत्तर-
कुएं में से पानी निकालने के लिए हल्ट का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसके निम्नलिखित भाग हैं—

  1. चकला
  2. चकली
  3. वैड़
  4. माहल
  5. पाड़छा
  6. नसार
  7. लट्ठ
  8. टिंडा
  9. कुत्ता।

प्रश्न 10.
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के नीचे लिखे नुकसान हो सकते हैं—

  1. अधिक पानी धरती के नीचे चला जाता है तथा इसका पौधों को कोई लाभ नहीं होता तथा यह अपने साथ पोषक तत्त्वों को भी घोल कर धरती के नीचे गहराई में ले जाता
  2. धरती के रोम बंद हो जाते हैं तथा हवा का आवागमन रुक जाता है।
  3. सेम की समस्या आ सकती है।
  4. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 11.
पौधों में कितना पानी हो सकता है ?
उत्तर-
पौधों में साधारणतयः 50 से 80% तक पानी हो सकता है, परन्तु बहुत छोटे पौधे तथा केले में 90% पानी होता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की विधियों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
पंजाब में सिंचाई के लिए मुख्य तौर पर दो विधियों का प्रयोग किया जाता है—
(1) नहरी सिंचाई
(2) ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई।

  1. नहरी सिंचाई-वर्षा के पानी को डैम में एकत्र करके नहरों, सूओं तथा खालों द्वारा आवश्यकता के अनुसार उसको खेतों तक पहुँचाया जाता है। इसको नहरी सिंचाई कहा जाता है।
  2. ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई-वर्षा का पानी जब धरती में समा जाता है तथा धरती की सतह के नीचे एकत्र हो जाता है। आवश्यकता के समय पानी को ट्यूबवैल द्वारा निकाल कर प्रयोग किया जाता है। पंजाब में तीन चौथाई भूमि की सिंचाई ट्यूबवैलों से की जाती है। ट्यूबवैल का पानी धरती में नमक की मात्रा के हिसाब से अच्छा या बुरा हो सकता है।

प्रश्न 2.
पौधे के लिए पानी के महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
पौधों के लिए पानी का महत्त्व-सिंचाई की क्रिया जो पौधों के लिए पानी प्रदान करती है, पौधे के फलने-फूलने के लिए कई प्रकार से सहायक होते हैं—

  1. पानी एक अच्छा घोलक है तथा भूमि में घुल कर ही पौधे को प्राप्त होते हैं।
  2. जड़ों द्वारा सोखे जाने के बाद खुराक पानी द्वारा पौधे के दूसरे भागों में पहुंचती है। इस प्रकार पानी पौधे के एक भाग से दूसरे भाग तक खुराक ले जाने का काम करता है।
  3. पानी दो तत्त्वों ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन से मिल कर बना है। यह दोनों तत्त्व पौधे के भोजन के अंश हैं। इसलिए पानी खुद एक खुराक है।
  4. पानी पौधों तथा भूमि के तापमान को स्थिर रखता है। गर्मियों में पानी पौधों को ठण्डा रखता है तथा सर्दी में पौधों को सर्दी से बचाता है।
  5. पानी के बिना पौधे सूर्य की रोशनी में प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं कर सकते। मतलब अपनी खुराक नहीं बना सकते।
  6. पानी भूमि को नर्म रखता है। यदि भूमि नर्म होगी तो जड़ें खुराक ढूंढ़ने के लिए इसके ऊपर आसानी से फैल सकेंगी।
  7. पानी से भूमि के अन्दर लाभदायक बैक्टीरिया अपना काम तेज़ी से कर सकते हैं।
  8. पानी भूमि में मौजूद कूड़ा-कर्कट, घास-फूस तथा अन्य जैविक पदार्थों को गलासड़ा कर भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है।
  9. कई बार पानी में बारीक मिट्टी मिली होती है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है।

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प्रश्न 3.
सिंचाई के भिन्न-भिन्न तरीकों के बारे में विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
सिंचाई के भिन्न तरीके हैं—
(1) खेतों में खुला पानी देना (क्यारा विधि)
(2) बूंद-बूंद विधि (ड्रिप विधि)
(3) फव्वारा सिंचाई
(4) मेड़ या नाली बना कर सिंचाई
(5) बैड्ड बना कर सिंचाई।

1. खेतों में खुला पानी देना-पंजाब में इस ढंग का प्रयोग अधिक होता है। इस विधि से खेत को पानी एक मेड़ तोड़कर लगाया जाता है, इस प्रणाली में पानी की खपत अधिक होती है। क्यारे का आकार कई बातों पर निर्भर करता है; जैसे-मिट्टी की किस्म, खेत की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि। यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तो रेतली भूमि में पानी लगाने के लिए क्यारों की संख्या 17-14, दरम्यानी भूमि में 1011 तथा भारी भूमि में 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होनी चाहिए। गेहूँ तथा धान को पानी लगाने के लिए यही ढंग अपनाया जाता है।

2. बूंद-बूंद सिंचाई-इस प्रणाली को ड्रिप सिंचाई प्रणाली भी कहा जाता है। यह नए ज़माने की विकसित सिंचाई प्रणाली है। इससे पानी की बहुत बचत हो जाती है। इसको पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में प्रयोग करना लाभकारी है।
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चित्र-बूंद-बूंद सिंचाई
इस प्रणाली में प्लास्टिक की पाइपों के द्वारा पानी पौधों के नज़दीक दिया जाता है, परन्तु बूंद-बूंद (टपक-टपक) करके, इसीलिए इसका नाम टपक सिंचाई प्रणाली भी है। यह ढंग प्रायः बागों में जहाँ-नींब, अनार, अमरूद, पपीता, अंगूर, आम, किन्न आदि तथा सब्जियों में जैसे-टमाटर, गोभी, तरबूज, खीरा, बैंगन आदि में प्रयोग होता है।

3. फव्वारा विधि- यह एक अच्छी सिंचाई प्रणाली है। इसका प्रयोग रेतली तथा टिब्बों वाली ज़मीन में किया जाता है क्योंकि इस ज़मीन को समतल करने का खर्चा बहुत होता है। इस ढंग में पानी की बहुत बचत हो जाती है। यह तरीका अपनाने से फसल की पैदावार तो बढ़ती है तथा साथ में गुणवत्ता भी बढ़ती है। इस प्रणाली की प्राथमिक लागत अधिक होने के कारण इसको नकदी फसलों तथा बागों तक ही सीमित रखा जाता है।
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चित्र-फब्वारा विधि

4. मेड़ें या नाली बना कर सिंचाई- इस तरीके में मेड़ें बना कर या नाली बना कर सिंचाई की जाती है।
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चित्र–नाली बनाकर सिंचाई

5. बैड्ड बनाकर सिंचाई-इस ढंग में बैड्ड बनाकर सिंचाई की जाती है।
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चित्र-बैड्ड बनाकर सिंचाई

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कृषि में पानी का कुशल प्रयोग PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पंजाब में कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल 41.58 लाख हैक्टेयर है।
  • कुल कृषि क्षेत्रफल का 98% सिंचित है।
  • पंजाब में फसल घनत्व को प्रमुख रखते हुए वार्षिक औसतन 4.4 मिलियन – हैक्टेयर मीटर पानी की आवश्यकता है।
  • पंजाब में आज लगभग 1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी की कमी है।
  • मध्य पंजाब में 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे जा चुका है।
  • एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक पानी का स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा।
  • सिंचाई के तरीके हैं-खेतों में खुला पानी देना, बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, मेड़ या नाली बनाकर सिंचाई, बैड्ड बनाकर सिंचाई।
  • पंजाब में अधिक प्रचलित क्यारा सिंचाई प्रणाली है।
  • बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली एक आधुनिक विकसित सिंचाई प्रणाली है जिसको ड्रिप (टपक) सिंचाई प्रणाली कहा जाता है।
  • फव्वारा प्रणाली भी एक बढ़िया सिंचाई प्रणाली है।
  • कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें ; जैसे-दालें, मक्का, तेल बीज, बासमती, कपास आदि की खेती से पानी की बचत हो जाती है।
  • लेज़र लेवलर से 25-30% पानी की बचत हो रही है।
  • धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करके भी पानी की बचत हो जाती है।
  • मक्का, गन्ना की फसलों में पराली की तह बिछाने से पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहते हैं।
  • नहरों तथा नालों को पक्का करने से 10-20% पानी की बचत हो जाती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

SST Guide for Class 7 PSEB प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर दो :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग (800-1200) में उत्तरी भारत में कौन-सी भाषाओं का विकास हुआ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत में कई भाषाओं जैसे गुजराती, बंगाली, मराठी आदि का बहुत विकास हुआ। इस विकास की गति उस समय और भी तेज़ हो गई, जब भक्ति लहर के महान् सन्तों ने भक्ति लहर का प्रचार क्षेत्रीय भाषाओं में किया।

प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल दौरान प्रादेशिक भाषाओं का विकास क्यों हुआ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भक्ति लहर के कारण हिन्दी, गुजराती, मराठी, तेलगु, तमिल, पंजाबी, कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ। बहुत-सी पवित्र धार्मिक पुस्तकों का संस्कृत भाषा से विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

प्रश्न 3.
मुग़ल काल की साहित्यिक प्राप्तियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुग़ल शासक स्वयं भी महान् विद्वान् थे। इसलिए मुग़ल काल में साहित्य के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ।
1. बाबर ने बाबर-नामा या तुजक-ए-बाबरी नामक प्रसिद्ध आत्मकथा लिखी। यह पुस्तक तुर्की भाषा में लिखी गई थी।

2. अकबर ने साहित्य को काफ़ी प्रोत्साहित किया। उसके दरबार में शेख़ मुबारक, अबुल फ़जल और फैज़ी जैसे महान् विद्वान थे। अबुल फज़ल ने आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा नाम की पुस्तकें लिखीं। अकबर ने रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, पंच- तन्त्र आदि संस्कृत ग्रन्थों का फ़ारसी में अनुवाद कराया।

3. जहांगीर भी तुर्की, हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं का महान् विद्वान् था। उसने फ़ारसी भाषा में तुजक-एजहांगीरी नाम की आत्मकथा लिखी। उसने विद्वानों को संरक्षण भी प्रदान किया। जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक राय मनोहर दास, भीष्म दास और केशव दास थे।

4. शाहजहां भी एक साहित्य प्रेमी सम्राट् था। उसके राज्य काल में अब्दुल हमीद लाहौरी ने ‘पादशाहनामा’ और मुहम्मद सदीक ने ‘शाहजहांनामा’ नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। शाहजहां ने हिन्दी साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया।

5. सम्राट औरंगजेब ने इस्लामी कानून पर आधारित ‘फ़तवा-ए-आलमगीरी’ नामक पुस्तक लिखवाई। उसके समय में खाफ़ी खां ने ‘मुतखिब-उल-लुबाब’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।

प्रश्न 4.
चित्रकला के क्षेत्र में राजपूतों की प्राप्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
राजपूत शासकों के राज्य काल में कागजों पर चित्र बनाये जाने लगे थे। इस युग में चित्रकला की पाल और अपभ्रंश शैली का प्रयोग किया जाता था। पाल शैली के चित्र बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में मिलते हैं। इन चित्रों में सफ़ेद, काले, लाल और नीले रंगों का प्रयोग किया गया है। अपभ्रंश शैली के चित्रों में लाल और पीले रंगों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया है। इस शैली के चित्र जैन और पुराण ग्रन्थों में मिलते हैं।

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प्रश्न 5.
पंजाबी साहित्य का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
पंजाबी साहित्य के मूल अथवा संस्थापक बाबा फरीद शकरगंज थे। वह पंजाब के एक महान् सूफी संत थे।

प्रश्न 6.
भाई गुरदास ने कितनी वारों की रचना की?
उत्तर-
भाई गुरदास जी एक महान् कवि थे। उन्होंने पंजाबी भाषा में 39 वारों की रचना की। श्री गुरु अर्जन देव जी ने इन वारों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की कुंजी कह कर सम्मानित किया।

प्रश्न 7.
चार प्रसिद्ध कवियों के नाम बताओ जिन्होंने पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले चार प्रसिद्ध कवि शाह हुसैन, बुल्लेशाह, दामोदर तथा वारिस शाह थे।

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प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन श्री गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में किया। इस ग्रन्थ में श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अमर दास जी, श्री गुरु रामदास जी और श्री गुरु अर्जन देव जी की वाणी को सम्मिलित किया गया। बाद में श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को भी इस में शामिल किया गया। सिख गुरु साहिबान के अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब में हिन्दू भक्तों और मुसलमान सन्तों और कुछ भाटों की वाणी को भी शामिल किया गया है। इस सारी वाणी में परमात्मा की प्रशंसा की गई है। आदि ग्रन्थ साहिब को पंजाबी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करो :

  1. ‘गीत गोबिन्द’ ………. द्वारा लिखी गयी थी।
  2. 1604 ई० में ………… द्वारा आदि ग्रन्थ साहिब की रचना की गई थी।
  3. पृथ्वी राज रासो ………… द्वारा लिखी गयी थी।
  4. कृष्ण राय संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं का प्रसिद्ध ……….. था।
  5. अमीर खुसरो एक ……….. संगीतकार तथा कवि था।

उत्तर-

  1. जयदेव,
  2. श्री गुरु अर्जन देव जी
  3. चन्दबरदाई
  4. कवि
  5. महान्।

(ग) प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिन्ह लगाएं।

  1. दिल्ली सल्तनत काल में रामानुज तथा जयदेव संस्कृत भाषा के दो प्रसिद्ध लेखक थे।
  2. अबुल फ़ज़ल ने आइन-ए-अकबरी नहीं लिखी थी।
  3. तानसेन अकबर के दरबार का प्रसिद्ध गायक था।
  4. मुहम्मद तुग़लक का चित्र मध्यकाल की चित्रकला का प्रसिद्ध उदाहरण है।
  5. राजपूत काल दौरान संगीत का विकास नहीं हुआ था।

संकेत-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✗)

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(घ) मिलान करो

कॉलम ‘अ’ – कॉलम ‘ब’

  1. जयदेव – 1. विक्रमांक-देव-चरित
  2. कल्हण – 2. आइने-अकबरी
  3. बिल्हण – 3. राजतरंगिणी
  4. अबुल फजल – 4. गीत गोबिन्द
  5. औरंगजेब – 5. फ़तवा-ए-आलमगीरी। ।

उत्तर-

  1. जयदेव – गीत गोबिन्द
  2. कल्हण – राजतरंगिणी
  3. बिल्हण – विक्रमांक-देव-चरित
  4. अबुल फ़जलआइने – अकबरी
  5. औरंगजेब – फ़तवा-ए-आलमगीरी।

PSEB 7th Class Social Science Guide प्रादेशिक संस्कृति का विकास Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उर्दू भाषा किस प्रकार अस्तित्व में आई?
उत्तर-
भारत में तुर्कों द्वारा फ़ारसी भाषा आरंभ की गई थी। समय बीतने के साथ हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं के मेल से एक नई भाषा ‘उर्दू’ अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
मुगल काल (1526-1707 ई०) में होने वाले भाषाई विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मुगल काल में फ़ारसी भाषा का सबसे अधिक विकास हुआ। इसलिए मुग़ल काल को फ़ारसी भाषा का स्वर्ण युग कहा जाता है। फ़ारसी मुग़ल साम्राज्य की सरकारी भाषा थी। परिणामस्वरूप पंजाब में फ़ारसी भाषा को बहुत प्रोत्साहन मिला। अकबर ने रामायण और महाभारत का संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद कराया। मुग़ल काल में पंजाबी भाषा की भी बहुत उन्नति हुई। इसके अतिरिक्त एक महत्त्वपूर्ण भाषा होने के कारण हिन्दी ने बहुत उन्नति की। मुग़ल काल में उर्दू भाषा का भी विकास आरंभ हो गया था।

प्रश्न 3.
उत्तर भारत में राजपूत काल में साहित्य के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उत्तर भारत में राजपूत शासकों के राज्यकाल में साहित्य का बहुत विकास हुआ। चन्दबरदाई ने पृथ्वी राज रासो नामक ग्रन्थ की रचना की। बंगाल के राज्य-कवि जयदेव ने गीत गोबिन्द नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। जिसमें कृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन किया गया है। कल्हण ने एक ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ की रचना की। इस ग्रन्थ में काश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। बिल्हण ने ‘विक्रमांक-देव-चरित’ नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। इसमें चालुक्य राजा विक्रमादित्य छठे के जीवन का वर्णन है। राजपूत काल में रचित कथा-सरित्सागर संस्कृत भाषा की एक शानदार रचना है। यह कथाओं का संग्रह है।

प्रश्न 4.
पंजाब के भाषा एवं साहित्य में निम्नलिखित के योगदान की चर्चा कीजिए –
1. बाबा फरीद शंकरगंज
2. श्री गुरु नानक देव जी
3. दामोदर
4. वारिस शाह
5. शाह मुहम्मद।
उत्तर-
1. बाबा फरीद शंकरगंज (1173-1265 ई०)-बाबा फरीद शंकरगंज पंजाब के प्रसिद्ध सूफी सन्त थे। उन्हें पंजाबी साहित्य का संस्थापक कहा जाता है। उन्होंने अपनी वाणी की रचना लहंदी या मुल्तानी भाषा में की जो आम लोगों की बोली थी। उनके 112 श्लोक और 4 शब्दों को श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब में स्थान दिया।

2. श्री गुरु नानक देव जी (1469-1539 ई०)-श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाबी साहित्य के एक नये युग का आरम्भ किया। उनके द्वारा रचा गया पंजाबी साहित्य सभी पक्षों से महान् है। उनके द्वारा रची गई वाणियों में जपुजी साहिब, आसा दी वार, बाबर-वाणी आदि महत्त्वपूर्ण हैं । वास्तव में श्री गुरु जी की वाणी पंजाबी साहित्य को एक अमर देन है।

3. दामोदर-दामोदर मुग़ल सम्राट अकबर का समकालीन था। उसने लहंदी या मुल्तानी पंजाबी बोली में हीर रांझा किस्से की रचना की। इसमें उसने अपने समय की ग्रामीण संस्कृति का चित्रण किया है।

4. वारिस शाह (1710-1798 ई०)-वारिस शाह को पंजाबी किस्सा काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने ‘हीर’ नामतः पंजाबी किस्से की रचना की जो कि पंजाबी साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण देन है।

5. शाह महम्मद ( 1782-1862 ई०)-आपने ‘जंग नामा’ की रचना लिखी। शाह मुहम्मद ने अपनी रचना में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के उत्कर्ष, जिसे उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, की बहुत प्रशंसा की है। यह रचना पंजाबी साहित्य की अमूल्य निधि है।

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प्रश्न 5.
मध्यकाल में पंजाब में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
सिख गुरु साहिबान से सम्बन्धित मध्यकाल के अनेक चित्र पुराने ग्रन्थों, गुरुद्वारों की दीवारों तथा राज महलों में बने हुए मिले हैं। उदाहरण के लिए गोइन्दवाल में गुरु अमर दास जी के उन 22 सिखों के चित्र मिले हैं जिन्हें गुरु साहिन जी ने मंजी प्रथा के अधीन सिख धर्म के प्रचार के लिए नियुक्त किया था। ये चित्र उस समय की चित्रकला के विकास पर प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 6.
पंजाबी भाषा एवं साहित्य के विकास में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी पंजाबी भाषा के एक महान् कवि एवं साहित्यकार थे। उनकी रचनाएं, जैसे कि जाप साहिब, बचित्तर नाटक, ज़फरनामा, चण्डी दी वार और अकाल उस्तत आदि बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। ये रचनाएँ दशम ग्रन्थ में दर्ज हैं। इनमें से ‘चण्डी दी वार’ पंजाबी साहित्य की एक अमर रचना मानी जाती है।

प्रश्न 7.
मुग़ल काल में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
मुग़ल शासक चित्रकला के महान् संरक्षक थे। अतः मुग़लों के राज्य-काल में इस कला का बहुत विकास हुआ।
1. बाबर और हुमायूं चित्रकला में बहुत रुचि रखते थे। बाबर ने अपनी आत्म-कथा को चित्रित करवाया था। हुमायूं दो प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुल सैयद और सैयद अली को ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया था।

2. अकबर ने चित्रकला के विकास के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की थी। इस विभाग ने पुस्तकों को चित्रित करने के साथ-साथ मुग़ल शासकों के चित्र भी बनाये। दसवन्त और बासवान अकबर के दरबार के दो प्रसिद्ध चित्रकार थे।

3. जहांगीर भी एक अच्छा चित्रकार था। उसके शासन काल में सूक्ष्म चित्रकारी का विकास होने लगा। उस्ताद मन्सूर, अबुल हसन, फ़ारुख बेग, माधव आदि जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे।

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प्रश्न 8.
मुग़ल काल में संगीत के क्षेत्र में होने वाले विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को छोड़ कर सभी मुग़ल शासक संगीत प्रेमी थे। इसलिए उनके शासन-काल में संगीत का बहुत विकास हुआ –
1. बाबर और हुमायूं संगीत के महान् प्रेमी थे। हुमायूं सप्ताह में दो दिन संगीत सुना करता था।

2. अकबर संगीत कला में बहुत रुचि रखता था। वह स्वयं भी एक गायक था। उसे संगीत के सुर और ताल का पूरा ज्ञान था। उस के दरबार में तानसेन जैसे उच्च कोटि के संगीतकार थे। तानसेन ने बहुत से रागों की रचना की। तानसेन के अतिरिक्त रामदास अकबर के दरबार का उच्च कोटि का गायक था।

3. जहांगीर और शाहजहां भी संगीत कला के प्रेमी थे। जहांगीर स्वयं एक अच्छा गायक था। उसने कई हिन्दी के गीत लिखे। शाहजहां ध्रुपद राग का बहुत शौकीन था।

4. मुग़ल काल में श्री गुरु अर्जन देव जी ने राग-रागनियों के अनुसार ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ की रचना की थी।

सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सा काल फारसी भाषा का ‘सुनहरा युग’ कहलाता है ?
(i) सल्तनत काल
(ii) चोल काल
(iii) मुग़ल काल।
उत्तर-
(ii) मुग़ल काल।

प्रश्न 2.
‘अकबरनामा’ मुग़ल काल की एक पुस्तक है। इसका लेखक कौन था ?
(i) अबुल फ़ज़ल
(ii) खाफ़ी खां
(iii) बीरबल।
उत्तर-
(i) अबुल फ़ज़ल।

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प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन किसने किया ?
(i) वारिस शाह
(ii) श्री गुरु अर्जन देव जी
(iii) श्री गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i) श्री गुरु अर्जन देव जी।

प्रादेशिक संस्कृति का विकास PSEB 7th Class Social Science Notes

  • भाषा तथा साहित्य (सल्तनत काल) – सल्तनत काल में भाषा तथा साहित्य में बहुत उन्नति हुई। हिन्दी तथा फ़ारसी के मेल से एक नई भाषा उर्दू का जन्म हुआ। कई मुसलमान विद्वानों ने हिन्दुओं के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन किया। उन्होंने संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद फ़ारसी भाषा में भी किया। इस काल में हिन्दी भाषा में कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गईं। चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’, मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ की रचना की। इस काल की संस्कृत की मुख्य पुस्तकें ‘गीत गोविन्द’ तथा ‘राजतरंगिणी’ हैं। इनकी रचना क्रमशः जयदेव तथा कल्हण ने की।
  • मुग़ल काल का साहित्य – मुग़ल काल की मुख्य साहित्यिक रचनाएँ तुज़के-बाबरी, हुमायूनामा अकबरनामा, आइन-ए-अकबरी, पादशाहनामा है।
  • पंजाबी साहित्य – मध्यकाल में गुरु साहिबान तथा अन्य कई पंजाबी कवियों ने पंजाबी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस काल की पंजाब साहित्य की प्रमुख रचनाएँ श्री गुरु ग्रंथ साहिब, दशम ग्रन्थ, भाई गुरदास की वारें आदि हैं।
  • चित्रकला – मुग़ल काल में चित्रकला में भी असाधारण उन्नति हुई। अब्दुसम्मद, मीर सैय्यद अली, सांवलदास, जगन्नाथ, ताराचन्द आदि अनेक चित्रकारों ने अपनी कला-कृतियों से इस कला का रूप निखारा। ये सभी चित्रकार अकबर के समय के प्रसिद्ध कलाकार थे। जहांगीर ने अनेक चित्रकारों को अपने दरबार में सम्मान दिया। उसके समय के चित्रकारों में मुहम्मद मुराद, उस्ताद मंसूर, आगा रज़ा तथा मुहम्मद नादिर के नाम लिए जा सकते हैं।
  • संगीत कला – मुग़लकाल संगीत कला के क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहा। बाबर एक बहुत अच्छा कवि था। उसने अनेक कविताओं तथा गीतों की रचना की थी। अकबर के समय में संगीत सम्राट तानसेन तथा बैजू बावरा ने संगीत कला का रूप निखारा। औरंगज़ेब को संगीत से बड़ी घृणा थी। उसके शासन-काल में इस कला का पतन हो गया।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

PSEB 7th Class Physical Education Guide नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
सिगरेट तथा बीड़ी ये दोनों नशे किस पदार्थ से बनते हैं ?
उत्तर-
सिगरेट और बीड़ी में तम्बाकू डाला जाता है। सिगरेट कागज़ में तम्बाकू डाल कर बनाई जाती है और बीड़ी किसी विशेष वृक्ष के पत्तों से बनती है। इस तरह तम्बाकू पीने के और भी ढंग हैं। जैसे-बीड़ी, सिगरेट पीना, हुक्का पीना और चिलम पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग-अलग हैं जैसे-तम्बाकू चूने में मिला कर सीधा मुँह में रख कर खाना। तम्बाकू में खतरनाक जहर निकोटीन होता है। इसके अतिरिक्त अमीनिया कार्बनडाइआक्साइड आदि भी होती है जिसका बुरा प्रभाव सिर पर पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है।

प्रश्न 2.
किस नशे के सेवन से जीभ, गले तथा मुंह का कैंसर होने का खतरा रहता है?
उत्तर-
तम्बाकू के प्रयोग से जीभ, गले और मुँह का कैंसर होने का खतरा रहता है। तम्बाकू में निकोटीन नाम का जहरीला पदार्थ होता है जिस कारण कैंसर की बीमारी लगने का डर बढ़ जाता है। खासतौर पर छाती और गले के कैंसर का डर रहता है।
तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं—

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बना सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की बीमारी लग सकती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों के टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 3.
शराब मनुष्य के लिए किस प्रकार हानिकारक है ?
उत्तर-
शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health)-शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत-से लोगों को इस की लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं । फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है। कुछ समय पीने के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लग जाती है।
शराब पीने के नुकसान निम्नलिखित हैं—

  1. शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग़ कमजोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  2. शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  3. शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  4. श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  5. शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता।
  6. लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  7. आविष्कारों से पता लगा है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  8. शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

प्रश्न. 4.
विद्यार्थियों को नशों से किस प्रकार बचाया जा सकता है?
उत्तर-
1. विद्यार्थियों को इन नशीली वस्तुओं से जान पहचान करवानी चाहिए जिससे वह नशीली वस्तुओं से दूर रह सकते हैं।

2. विद्यार्थी किसी भी आयु के हों उनको इन नशीली वस्तुओं की तरफ झुकाव नहीं रखना चाहिए। उनका इरादा कमजोर नहीं होना चाहिए । वह दृढ़ इरादे वाला होना चाहिए।

3. माता पिता और अध्यापक द्वारा बच्चों को नशों से बचाने के लिए अच्छी पुस्तकें पढ़ने के लिए देनी चाहिए और उनको खेलों में भाग लेने, मनोरंजन क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Physical Education Guide for Class 7 PSEB नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो नशीली वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. शराब
  2. हशीश

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुएं किन दो क्रियाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं ?
उत्तर-

  1. पाचन क्रिया पर
  2. खेलने की शक्ति पर।

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 4.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-

  1. लापरवाई तथा बेफिक्री।
  2. खेल भावना का अन्त।

प्रश्न 5.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 7.
तम्बाकू खाने से या पीने से नजर कमजोर हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 8.
तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ता है अथवा कम होता है ?
उत्तर-
डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
तम्बाकू के प्रयोग से खांसी नहीं लगती और टी० बी० भी नहीं हो सकती। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 10.
नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है। सही अथवा ग़लत
उत्तर-
सही।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं की सूची बनाएं और यह भी बताएं कि नशीली वस्तुएं पाचन क्रिया और सोचने की शक्ति पर कैसे प्रभाव डालती हैं?
उत्तर-
मादक पदार्थ ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिनके सेवन से किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना या शिथिलता आ जाती है। मनुष्य के स्नायु संस्थान पर सभी किस्म के मादक पदार्थों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे कई प्रकार के विचार, कल्पनाएं तथा भावनाएं पैदा होती हैं। इससे व्यक्ति में घबराहट, गुस्सा और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने से व्यक्ति का अपने व्यवहार और शरीर पर नियन्त्रण नहीं रहता। नशीली वस्तुएं निम्नलिखित हैं—

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. चरस
  7. कोकीन
  8. एलडरविन।

पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effects on Digestion)-नशीली वस्तुओं का पाचन क्रिया पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इनमें अम्लीय अंश बहुत अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय की कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और कई प्रकार के पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effects on Thinking)-नशीली वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति अच्छी तरह बोल नहीं सकता और वह बोलने के स्थान पर तुतलाने लगता है। वह अपने पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। वह खेल में आई अच्छी स्थितियों के विषय में सोच नहीं सकता और न ही ऐसी स्थितियों से लाभ उठा सकता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 2.
खेल में हार नशीली वस्तुएं के प्रयोग के कारण हो सकती है, कैसे ?
उत्तर-

  1. नशे में खेलते समय खिलाड़ी बहुत-से ऐसे काम कर जाता है जिससे टीम हार जाती है।
  2. नशे में खिलाड़ी विरोधी टीम की चालें नहीं समझ सकता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बनता है।
  3. यदि किसी खिलाड़ी को नशे में खेलते हुए पकड़ लिया जाए तो उसे खेल में से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि उसे इनाम मिलना है तो नहीं दिया जाता। इस प्रकार उसकी विजय पराजय में बदल जाती है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

PSEB 7th Class Physical Education Guide स्काऊटिंग और गाइडिंग Textbook Questions and Answers

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 1

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग और गाइडिंग के क्या लाभ हैं ? विस्तार से लिखो।
उत्तर-
स्काऊटिंग और गाइडिंग के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. स्काऊटिंग और गाइडिंग बच्चों को प्रसन्न, शक्तिशाली, निष्ठावान, देश-भक्त और जन-सहायक बनाती हैं।
  2. स्काऊटिंग और गाइडिंग बच्चों के मन से घृणा, ऊंच-नीच, जाति-पाति और ईर्ष्या की भावना दूर करती है।
  3. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को ‘न कोई वैरी, न ही बेगाना’ की शिक्षा मिलती है।
  4. स्काऊटिंग और गाइडिंग रैलियों से बच्चों को दूसरे प्रान्त और दूसरे देश के लोगों से प्यार करने की प्रेरणा मिलती है।
  5. भूकम्प, बाढ़, तूफान, बीमारी अथवा किसी अन्य कठिनाई के समय स्काऊट दुःखियों की सहायता करके उनका दुःख कम करते हैं।
  6. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को नियमों के अनुसार रहना, बड़ों-छोटों का सम्मान करना और सेवा-भाव की शिक्षा मिलती है।
  7. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को बहुत अच्छे नागरिक बनाया जाता है।
  8. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चे हर कठिनाई का साहस से सामना करना और हर स्थिति में प्रसन्न रहना सीखते हैं।

प्रश्न 2.
स्काऊटिंग और गाइडिंग के प्रण हमें क्या शिक्षा देते हैं ? संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
किसी भी धर्म या संस्था में प्रवेश करने के पश्चात् एक विशेष प्रकार का प्रण करना पड़ता है। यह प्रण पुलिस और सेना के जवानों को भी करना पड़ता है। स्काऊटिंग
और गाइडिंग में निम्नलिखित प्रण लिया जाता है—
मैं परमात्मा को प्रत्यक्ष मान कर प्रण करता हूं कि मैं

  1. परमात्मा और देश सम्बन्धी अपने कर्त्तव्य को निभाने
  2. दूसरों की सहायता करने और स्काऊटिंग नियमों का पालन करने में अधिक-से-अधिक ज़ोर लगाऊंगा।

उपर्युक्त प्रण हमें परमात्मा में विश्वास करना सिखलाता है। इस प्रकार का प्रण करने वाला मनुष्य नास्तिक नहीं होगा। यह प्रण मनुष्य में देश-भक्ति की भावना पैदा करता है। इसके साथ ही यह प्रण मनुष्य को कर्तव्य पालन की शिक्षा भी देता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 2
इस प्रण से मनुष्य में सेवा-भाव पैदा होता है। मनुष्य प्रत्येक ज़रूरतमन्द मनुष्य की सहायता करने में प्रसन्नता का अनुभव करता है।
इस प्रण से बचपन से ही मनुष्य नियमानसुार | जीवन जीना सीख जाता है। मनुष्य को यह भी समझ आ जाता है कि प्रत्येक संस्था के कुछ नियम हैं। नियमों का पालन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। अनियमित जीवन नीरस होता है। जो नियम के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं वे जीवन में सुखी रहते हैं।

यह प्रण मनुष्य को आदर्शवादी बनने और उन्नति करने की प्रेरणा देता है। ये प्रण स्काऊट को ऊंचा और सच्चे बनने में सहायक होते हैं। ऐसे प्रणों पर चलने वाले नागरिक अच्छे नागरिक बनते हैं। ऐसे मनुष्यों से विश्व-शान्ति की आशा रखी जा सकती है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

प्रश्न 3.
स्काऊट नियमों की विस्तारपूर्वक व्याख्या करो।
उत्तर-
नियमों के बिना कोई संस्था या संगठन नहीं चल सकता। यह विश्व भी नियमों पर ही निर्भर है। स्काऊटिंग के भी अपने ही नियम हैं। ये निम्नलिखित प्रकार हैं—

1. स्काऊटिंग की आन विश्वसनीय होती है-स्काऊट सदैव सत्य बोलता है। वह अच्छे काम करके विश्वास पैदा करता है और सम्मान भी प्राप्त करता है।

2. स्काऊट निष्ठावान् होता है-स्काऊट अपने मित्रों, नेतागणों और देश से कभी विश्वासघात नहीं करता।

3. स्काऊट आस्तिक, देश-भक्त और जन सेवक होता है-स्काऊट परमात्मा को किसी-न-किसी रूप में मानता है। इससे उसका मन शुद्ध रहता है। वह अपने देश के प्रति निष्ठावान् होता है। वह संविधान का पूरा पालन करता है और देश की शान के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुनता। वह ज़रूरतमन्दों की दिल से सहायता करता है। वह दिन में एक अच्छा काम अवश्य करता है। इसे पूरा करने के लिए वह अपने गले में डाले हुए रूमाल को सवेरे एक गांठ दे देता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 3

4. स्काऊट सबका मित्र, भाई और ऊंचनीच से ऊंचा होता है-स्काऊट में जाति-पाति, ऊंच-नीच, धर्म और नस्ल सम्बन्धी कोई भेदभाव नहीं होता है। हर धर्म, देश, जाति-पाति और नस्ल के स्काऊट आपस में मिलकर बैठते व काम करते हैं, मिलकर भोजन पकाते और खाते हैं। स्काऊट दूसरे स्काऊटों को भाई समझता है।

5. स्काऊट मीठा बोलने वाला होता हैस्काऊट हर मनुष्य से बड़े प्यार से बोलता है। वह मीठा बोल कर दूसरों का दिल जीत लेता है।

6. स्काऊट जीव-जन्तुओं का मित्र होता | है-स्काऊट किसी भी पक्षी या पशु को कभी हानि नहीं पहुंचाता। वह पशु-पक्षियों से प्यार करता है।

7. स्काऊट अनुशासित और आज्ञाकारी होता है-स्काऊट सदा ही नियमों का पालन करता है। वह मनमानी नहीं कर सकता। वह बड़ों का आदेश प्रसन्नता से स्वीकार करता है।

8. स्काऊट बहादुर और कठिनाई का सामना करने वाला होता है-स्काऊट दुःख के समय में कभी घबराता नहीं। वह हर कठिनाई का सामना साहस से करता है।

9. स्काऊट संयमी होता है-स्काऊट सदा ही संयमी होता है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संयम का प्रयोग करता है।

10. स्काऊट मन, वचन और कर्म से शुद्ध होता है-स्काऊट का मन पवित्र, वचन का पक्का और कर्म का शुद्ध होता है। वह किसी को भला-बुरा नहीं कहता। किसी की निन्दा नहीं करता। वह दु:ख के समय पूर्ण शक्ति लगा कर मानवता की सहायता करता है।

प्रश्न 4.
स्काऊटिंग में स्काऊट की क्या महत्ता है ? वर्णन करो।
उत्तर-
स्काऊटिंग लोगों की लहर होने के कारण बच्चों को देश-भक्त, आज्ञाकारी तथा स्वस्थ बनाती है। उनमें से ऊँच-नीच, जाति-पाति तथा ईर्ष्या को निकाल कर उनको अच्छे नागरिक बनाती है। उनको ‘न कोई वैरी न ही बिगाना’ का उद्देश्य देती है।

स्काऊटिंग से बच्चे एक-दूसरे के मित्र बनते हैं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अच्छे बनते हैं। संसार में शान्ति बनी रहती है। इस लहर से बच्चे सेवक, परोपकारी तथा दानी बन जाते हैं। बच्चे (स्काऊट) मेलों में सेवा करते हैं। कष्ट के समय बाढ़ों, भूकम्पों तथा बीमारियों से तबाह हुए गरीबों तथा अनाथों की हर प्रकार से मदद करते हैं। लड़ाई में घायलों की सेवा करने के लिए तैयार रहते हैं। स्काऊटिंग से देश के प्रति सम्मान बढ़ जाता है तथा अपने हाथों से कार्य करने के गुण पैदा होते हैं। स्कूलों में पढ़ते समय स्काऊट हाथों से कार्य करके पैसे भी कमा लेते हैं, जिसे वह अपनी फीसों, पुस्तकों तथा ज़रूरतमंद वस्तुओं पर खर्च करते हैं।

स्काऊटिंग बच्चों का सर्वपक्षीय विकास करती है तथा एक मार्ग-दर्शक का कार्य करती है तथा बचपन से ही उनको अच्छे रास्तों पर चलना सिखाती है। इस शिक्षा से अनुशासन स्वयं ही आता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

प्रश्न 5.
“स्काऊटिंग शिक्षा से बच्चे का चौमुखी विकास होता है।” अपने विचार दीजिए।
उत्तर-
स्काऊटिंग बच्चों को प्रसन्न, शक्तिशाली, देश-भक्त और आज्ञाकारी तथा जनसहायक बनाती है। उनमें से घृणा, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि की भावना दूर करती है। इससे बच्चों को ‘न कोई वैरी न ही बेगाना’ की शिक्षा मिलती है।

स्काऊट रैलियों से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अच्छे और दृढ़ होते हैं। विश्व में अशान्ति नहीं रहती। इस आन्दोलन से बच्चे परोपकारी, सेवक, सहायक और दानी बन जाते हैं। बच्चे मेलों और कठिनाइयों के समय लोगों की सेवा करते हैं।

स्काऊटिंग से बच्चे अपने स्काऊट मास्टर, अफसरों और माता-पिता का आदेश हँसते हुए मानते हैं। उनमें से अपने बड़ों के लिए ही नहीं अपितु छोटों के लिए भी निष्ठा भर जाती है।

स्काऊटिंग से देश के प्रति प्यार और सम्मान बढ़ जाता है। हाथ से काम करने का गुण पैदा होता है। बच्चे हाथ से परिश्रम करके पुस्तकें, कापियां और अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदते हैं।

स्काऊटिंग शिक्षा से बच्चों को कठिनाइयों में से सफल होकर निकलने का ढंग समझ आ जाता है। बच्चों में से हीन भावना निकल जाती है।

स्काऊटिंग बच्चों को अच्छे मार्ग पर डालती है। इस शिक्षा से अनुशासन अपने आप आ जाता है। उनमें आत्म-निर्भरता की भावना और अच्छे नागरिक के गुण पैदा होते हैं। इन बातों से पता चलता है कि स्काऊटिंग बच्चों का चहुंमुखी विकास करती है जिससे बच्चे का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास होता है।

प्रश्न 6.
स्काउट का आदर्श है ‘तैयार’। स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्काऊट्स (बच्चे) परोपकारी, सेवक और सहायक होते हैं। कठिनाई, भूकम्प, तूफान, बाढ़, आंधी और बीमारी के समय स्काऊट्स दुःखियों की सेवा करते हैं। वे हर ज़रूरतमन्द की सेवा करने के लिए तैयार रहते हैं। वे बड़ों की आज्ञा मानने के लिए तत्पर रहते हैं। वे हाथ से काम करने से जी नहीं चुराते, अपितु अपना काम अपने हाथ से करने के लिए तैयार रहते हैं। वे मार्ग भूले, माता-पिता से बिछुड़े बच्चों और ज़रूरतमन्दों की सेवा कराने के लिए हर समय तैयार रहते हैं। वे हर कार्य तत्परता से करते हैं।

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प्रश्न 7.
“स्काऊट एक अच्छा नागरिक होता है।” व्याख्या करो।
उत्तर-
जो गुण एक अच्छे नागरिक में होने आवश्यक हैं वे एक स्काऊट को बचपन से ही सिखलाए जाते हैं। अच्छे नागरिक ही किसी देश का नाम रोशन करते हैं। स्काऊट्स को परमात्मा में विश्वास करने का प्रण लेना पड़ता है। इस प्रकार उसका धार्मिक विकास होता है। वह देश सेवा करने के लिए भी प्रण लेता है। उसे बड़ों का सम्मान करना और उनके आदेशों का प्रसन्नता से पालन करना भी सिखाया जाता है। उसे साथियों से प्यार करने की शिक्षा मिलती है। स्काऊट कैम्पों में विभिन्न प्रान्तों के बच्चों को आपस में मिलजुलकर बैठने का अवसर मिलता है। इस प्रकार उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना आ जाती है। स्काऊट सम्मेलनों से बच्चों में विश्व-बन्धुत्व की भावना पैदा होती है।

स्काऊट्स को हर कठिनाई का सामना साहस से करने की शिक्षा दी जाती है। उन्हें हाथ से काम करना सिखलाया जाता है। वे अपना कार्य स्वयं करने के योग्य हो जाते हैं।

कठिनाई, बाढ़, तूफान या बीमारी के समय उन्हें मानवता की सेवा करनी सिखलायी जाती है। भूले भटकों को रास्ता दिखाना, बूढ़ों और बच्चों की यथा-योग्य सेवा करना उनका पहला कर्तव्य है।

उपर्युक्त गुणों वाले अच्छे नागरिक ही होते हैं। अत: यह कहना ठीक है कि स्काऊट एक अच्छा नागरिक होता है। स्काऊट में सहानुभूति, देश-प्रेम, साहस, अनुशासन, नम्रता, आत्म-निर्भरता आदि सभी गुण होते हैं। वह एक अच्छा ही नहीं अपितु आदर्श नागरिक होता है।

प्रश्न 8.
स्काऊट लहर को आरम्भ करने के लिए लॉर्ड बेडन की क्या देन है ?
उत्तर-
स्काऊट लहर के जन्मदाता लॉर्ड बेडन थे। उन्होंने फौज के उच्च पद को त्याग कर अपना सारा ध्यान इस ओर लगा दिया।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 4
उन्होंने पहला अमली प्रयोग बर्तानिया के एक टापू ब्राऊन-सी में 1907 ई० में लड़कों की एक छोटी टोली पर किया। लड़कों ने इस स्काऊटिंग शिक्षा कैम्प में पूरी दिलचस्पी दिखाई। 1908 ई० में बेडन पावल ने स्काऊटिंग फॉर बुआएज़ (Scouting for Boys) नामक पुस्तक प्रकाशित की और उसके साथ ही ‘दी स्काऊट’ (The Scout) नाम का एक साप्ताहिक समाचार-पत्र छापना भी शुरू किया। इस तरह पुस्तक और समाचार-पत्र द्वारा स्काऊटिंग का काफ़ी प्रचार हो गया। 1909 ई० में ‘क्रिस्टिल पैलेस’ (Crystal Palace) लन्दन में स्काऊटों की एक बड़ी रैली हुई। इस रैली । में हज़ारों की संख्या में दूर-दूर से आए स्काऊटों ने भाग लिया जिसमें स्काऊटों के हुनर , और कर्तव्यों की दर्शकों ने बहुत प्रशंसा की और उन्होंने अपने बच्चों को स्काऊट लहर में भाग लेने के लिए भेजना शुरू कर दिया। इस तरह यह लहर बहुत लोकप्रिय हो गई और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गई। बड़ी उम्र के बच्चों को स्काऊटिंग करते देख कर छोटे बच्चों में भी इस लहर में शामिल होने की इच्छा जागने लगी। इसके बाद बेडन पावल ने 7 से 12 साल की आयु वाले बच्चों के लिए कबिंग प्रारम्भ की और इस पर एक पुस्तक जिसका नाम ‘दी वुल्फ कब हैंड बुक’ (The Wolf Cub Hand Book) है, छापी और इस तरह बाद में बड़ी आयु वालों अर्थात् रोवर्ज़ के लिए रोवरिंग (Rovering) की संस्था शुरू की और उनके नेतृत्व के लिए एक पुस्तक ‘रोवरिंग टू सक्सैस’ (Rovering to Success) भी लिखी। बेडन पावल ने 1918 ई० में लड़कियों के लिए गाइडिंग शुरू की और इस लहर में चीफ गाइड उन्होंने अपनी पत्नी लेडी बेडन पावल को बनाया। उनकी मेहनत और अच्छे मार्ग दर्शन से ही यह लहर संसार में अत्यधिक सफल हुई।

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Physical Education Guide for Class 7 PSEB स्काऊटिंग और गाइडिंग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग आन्दोलन का जन्म-दाता कौन था ?
उत्तर-
लॉर्ड बेडन पावल।

प्रश्न 2.
स्काऊटिंग आन्दोलन सबसे पहले कहां शुरू हुआ ?
उत्तर-
बर्तानिया में।

प्रश्न 3.
सर्वप्रथम स्काऊटिंग शिक्षा कैम्प कहां लगा ?
उत्तर-
ब्राऊन सी टापू (बर्तानिया) में।

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प्रश्न 4.
सबसे पहले लड़कियों की स्काऊटिंग का इन्चार्ज़ कौन था ?
उत्तर-
लेडी बेडन पावल।

प्रश्न 5.
भारत के स्काऊटों की रैली दिल्ली में कब हई ?
उत्तर-
1937 में।

प्रश्न 6.
स्काऊटों को विशेषतया क्या सिखाया जाता है ?
उत्तर-
अच्छे गुण।

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प्रश्न 7.
एक स्काऊट दूसरे स्काऊट को मिलते समय क्या करता है ?
उत्तर-
तीन अंगुलियों से सैल्यूट देता है।

प्रश्न 8.
एक स्काऊट के लिए कौन-सी बातों का पालन करना आवश्यक है ?
उत्तर-
स्काऊट नियमों का।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग आन्दोलन का प्रवर्तक कौन था ? सर्वप्रथम स्काऊटिंग आन्दोलन कहां आरम्भ हुआ ?
उत्तर-
स्काऊटिंग आन्दोलन के प्रवर्तक लॉर्ड बेडन पावल थे। उन्होंने बर्तानिया में स्काऊटिंग आन्दोलन आरम्भ किया। उन्होंने सर्वप्रथम स्काऊटिंग कैम्प 1907 में बर्तानिया के टापू ब्राऊन-सी में लगाया।

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प्रश्न 2.
बेडन पावल ने कौन-सी पुस्तकें लिखीं ?
उत्तर-
बेडन पावल ने ‘स्काऊटिंग फार बुआएज़’, ‘दी वुल्फ कब हैंड बुक’ और ‘रोवरिंग टू सक्सैस’ नामक तीन पुस्तकें लिखीं।

प्रश्न 3.
स्काऊटिंग रैलियों के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
स्काऊटिंग रैलियों से एक प्रान्त के बच्चों को दूसरे प्रान्त के बच्चों से मिलने और प्यार करने का अवसर मिलता है। एक देश के बच्चों को दूसरे देश के बच्चों से मिलने का अवसर मिलता है। इस प्रकार बच्चों में से ईर्ष्या भाव, रंग और नस्ल के भेदभाव दूर होते हैं। स्काऊटिंग रैलियां विश्व शान्ति की ओर एक प्रशंसनीय पग हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 15 धार्मिक विकास

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 15 धार्मिक विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 15 धार्मिक विकास

SST Guide for Class 7 PSEB धार्मिक विकास Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
मुग़ल काल में धार्मिक व्यवस्थाएं तथा सम्प्रदायों के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
मुग़ल काल में मुसलमान इस्लाम धर्म को मानते थे। उनका राज्य प्रबन्ध इस्लामी सिद्धान्तों पर आधारित था। परन्तु सम्राट अकबर ने धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई। उसने गैर-मुसलमानों के धार्मिक स्थानों के निर्माण पर लगे प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया। कहा जाता है कि अकबर ने अमृतसर की यात्रा भी की थी। अकबर के अनुसार हर धर्म अच्छा होता है। वह सूफी सन्तों के उदारवादी विचारों से बहुत प्रभावित था। उसने 1575 ई० में फतेहपुर सीकरी में एक इबादत खाना (पूजा घर) बनवाया। वहां हर वीरवार शाम को एक सभा बुलाई जाती और धार्मिक मामलों पर विचार-विमर्श किया जाता था। उसका विचार था कि सत्य को कहीं भी प्राप्त किया जा सकता है। उसने पारसी, जैन, हिन्दू और ईसाई आदि सभी धर्मों के लोगों के लिए इबादत खाने के द्वार खोल दिए। 1579 ई० में उसने एक शाही फ़रमान जारी किया, जिसमें उसने अपने आपको धार्मिक मामलों का श्रेष्ठ निर्णायक होने की घोषणा की।

अकबर ने सभी धर्मों के मूल सिद्धान्तों को एकत्रित करके एक नये धर्म ‘दीने-इलाही’ की स्थापना की। उसकी मृत्यु के बाद जहांगीर और शाहजहां ने भी उसकी धार्मिक नीति को अपनाया, परन्तु औरंगजेब ने मुग़ल साम्राज्य की बहु-धार्मिक प्रणाली को बदल दिया। इसका मुग़ल साम्राज्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 2.
सूफ़ी लहर बारे तुम क्या जानते हो ? उसके मूल सिद्धांत कौन-से थे ?
उत्तर-
सूफी इस्लाम धर्म का रहस्यवादी रूप था। सूफ़ी सन्तों को शेख या पीर कहा जाता था। मध्य काल में उत्तरी भारत में सूफ़ी मत के बहुत से सिलसिले स्थापित हो गए थे। इनमें से चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिले बहुत ही लोकप्रिय थे।

चिश्ती सिलसिले की नींव अजमेर में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने तथा सुहरावर्दी सिलसिले की नींव मुलतान में 3 मख़दूम बहाउद्दीन जकरिया ने रखी। इन सिलसिलों के धार्मिक विश्वास भिन्न-भिन्न थे।
सूफी मत के मूल सिद्धान्त-

  1. सूफ़ी सन्त एक अल्लाह को मानते थे और किसी अन्य परमात्मा की पूजा नहीं करते थे।
  2. उनके अनुसार अल्लाह सर्वशक्तिमान और सर्वत्र है।
  3. अल्लाह को पाने के लिए वे प्रेम भावना पर बल देते थे।
  4. अल्लाह की प्राप्ति के लिए वे पीर या गुरु का होना भी अनिवार्य मानते थे।
  5. वे संगीत में विश्वास रखते थे और संगीत द्वारा अल्लाह को प्रसन्न करने का प्रयास करते थे।
  6. वे अन्य धर्मों का भी सत्कार करते थे।

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प्रश्न 3.
हिन्दू धर्म के बारे आप क्या जानते हो?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में हिन्दू धर्म में अन्य बहुत से मत उत्पन्न हो गये थे। इनमें शैव मत, वैष्णव मत, जोगी आदि शामिल थे।

  1. शैव मत-9वीं सदी में भारत में शंकराचार्य ने शैव मत की स्थापना की। उनके अनुयायियों को शैव कहा जाता
  2. वैष्णव मत-वैष्णव मत के अनुयायी भगवान विष्णु के अवतारों श्री राम और श्री कृष्ण की पूजा करते थे। श्री राम की पूजा करने वालों में रामानन्द जी और श्री कृष्ण की पूजा करने वालों में चैतन्य महाप्रभु विख्यात थे।

प्रश्न 4.
भक्ति लहर सम्बन्धी आप क्या जानते हो? उसके मूल सिद्धान्तों सम्बन्धी लिखिए।
उत्तर-
मध्यकालीन भारत में भक्ति लहर नामक एक प्रसिद्ध धार्मिक लहर चली। इस लहर के सभी प्रचारक मुक्ति पाने के लिए प्रभु-भक्ति पर जोर देते थे। अतः इस लहर को भक्ति लहर कहा जाने लगा।
भक्ति लहर के मूल सिद्धान्त

  1. एक ही परमात्मा में विश्वास रखना।
  2. गुरु में श्रद्धा रखना।
  3. आत्म-समर्पण करना।
  4. जाति-पाति में विश्वास न रखना।
  5. खोखले रीति-रिवाजों से बचना।
  6. शुद्ध जीवन व्यतीत करना।

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प्रश्न 5.
श्री गुरु नानक देव जी के भक्ति लहर में योगदान संबंधी लिखें।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी भक्ति लहर के महान् सन्त थे। आप सिख धर्म के संस्थापक थे। आप का जन्म 1469 ई० में राय भोई की तलवण्डी में हुआ था। आजकल यह स्थान पाकिस्तान में स्थित है और इसे ननकाना साहिब कहा जाता है।

श्री गुरु नानक देव जी एक ही परमात्मा की भक्ति करने में विश्वास रखते थे। उनका विश्वास था कि परमात्मा सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी है। वह निराकार है और सबसे महान् है। गुरु नानक देव जी परमात्मा को ही सच्चा गुरु मानते थे।

गुरु नानक देव जी ने समाज में फैले अन्ध-विश्वास, मूर्ति-पूजा, जाति-पाति के भेदभाव, तीर्थ-यात्रा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का विरोध किया। उनकी शिक्षाएं श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में अंकित हैं।

प्रश्न 6.
भारत के प्रमुख भक्ति लहर के संतों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. रामानुज
  2. रामानन्द
  3. संत कबीर
  4. श्री गुरु नानक देव जी
  5. नामदेव जी
  6. गुरु रविदास जी
  7. चैतन्य महाप्रभु
  8. मीराबाई।

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प्रश्न 7.
सिख पंथ के मुख्य नियमों के बारे में लिखो।
उत्तर-
सिख पंथ के मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. परमात्मा एक है।
  2. परमात्मा सृष्टि की रचना करने वाला है।
  3. सभी मनुष्य समान हैं।
  4. परमात्मा सर्वशक्तिमान तथा सर्व-व्यापक है।
  5. ‘हउमै’ (अहंकार) का त्याग करें।
  6. गुरु महान् है।
  7. (सत) नाम का सिमरन करना चाहिए।
  8. खोखले रीति-रिवाज़ों में विश्वास नहीं रखना चाहिए।
  9. जाति-पाति का भेदभाव व्यर्थ है।
  10. मनुष्य को शुद्ध जीवन व्यतीत करना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

  1. …………… की शिक्षाएँ आदि ग्रन्थ साहिब में शामिल हैं।
  2. ………….. द्वारा एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की स्थापना की गई।
  3. सन्त कबीर …………….. के अनुयायी थे।
  4. भक्ति लहर के सन्तों ने लोगों की …………….. में प्रचार किया।
  5. श्री गुरु नानक देव जी सिख धर्म के …………… थे।
  6. हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन का जन्म …………… में हुआ।
  7. …………….. खालसा पंथ की स्थापना 1699 ई० में की।

उत्तर-

  1. श्री गुरु नानक देव जी
  2. अकबर
  3. सन्त रामानन्द
  4. भाषा
  5. संस्थापक
  6. मध्य एशिया
  7. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक(✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाएं

  1. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की नींव रखी थी।
  2. चिश्ती तथा सुहरावर्दी प्रमुख सूफी सिलसिले नहीं थे।
  3. निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह अजमेर में स्थित है।
  4. चैतन्य महाप्रभु तथा मीराबाई ने राम भक्ति को लोकप्रिय किया।
  5. आलवारों ने शैव मत के भक्ति गीतों को लोकप्रिय किया।
  6. श्री गुरु नानक देव जी ने लंगर प्रथा प्रचलित की।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✗)
  6. (✓)

(घ) निम्नलिखित का मिलान कीजिए

कालम ‘क’ – कालम ‘ख’

  1. रविदास जी का जन्म – 1. 570 ई० में मक्का में हुआ।
  2. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म – 2. इलाहाबाद में हुआ।
  3. रामानन्द जी का जन्म – 3. तमिल ब्राह्मण थे।
  4. रामानुज एक – 4. 1486 ई० में बंगाल के नदियां गांव में हुआ।
  5. चैतन्य महाप्रभु का जन्म – 5. बनारस में हुआ।
  6. पैगम्बर मुहम्मद का जन्म – 6. 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोई की तलवंडी में हुआ था।

उत्तर-

  1. रविदास जी का जन्म – बनारस में हुआ।
  2. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म – 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोई की तलवंडी में हुआ था।
  3. रामानन्द जी का जन्म – इलाहाबाद में हुआ।
  4. रामानुज एक – तमिल ब्राह्मण थे।
  5. चैतन्य महाप्रभु का जन्म – 1486 ई० में बंगाल के नदियां गांव में हुआ।
  6. पैगम्बर मुहम्मद का जन्म – 570 ई० में मक्का में हुआ।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 15 धार्मिक विकास

PSEB 7th Class Social Science Guide धार्मिक विकास Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मध्यकाल में उत्तरी भारत में हुए धार्मिक तथा साम्प्रदायिक विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मध्य युग में विशेष कर राजपूत लोग हिन्दू धर्म को मानते थे। इस धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। राजपूत काल में इस धर्म ने बहुत उन्नति की।

उत्तरी भारत में शैवमत और वैष्णव मत दोनों ही बहुत लोकप्रिय थे। शैव मत को मानने वाले लोग भगवान् शिव और माता दुर्गा आदि की तथा वैष्णव मत को मानने वाले भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते थे। शक्ति मत के अनुयायी भी अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। वे देवी पार्वती, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, चण्डी और अम्बिका आदि की पूजा करते थे।
इस काल में भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रभाव बहुत कम हो गया था।

प्रश्न 2.
दक्षिणी भारत में धार्मिक व्यवस्था तथा सम्प्रदाय का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुख्य धर्म-मध्य काल में दक्षिण भारत में अधिकतर लोग हिन्दू धर्म को मानते थे। वे हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते थे। दक्षिण भारत के बहुत से राजा बौद्ध धर्म और जैन धर्म के संरक्षक थे। इस समय में भारत में ईसाई और इस्लाम धर्म भी प्रचलित थे।

धार्मिक सम्प्रदाय-इस काल में भारत में कई धार्मिक लहरों का जन्म हुआ। आलवार और नाइनार सन्तों ने अपनेअपने मत का प्रचार किया। नाइनार मत के अनुयायी शिवजी की प्रशंसा में भजन गाकर अपने मत का प्रचार करते थे, जबकि आलवार सन्त भगवान विष्णु के अनुयायी थे। वे विष्णु की प्रशंसा में भक्ति-गीत गाकर अपने मत का प्रचार करते थे।
सभी धार्मिक सम्प्रदायों में से लिंगायत सम्प्रदाय बहुत लोकप्रिय था। इस सम्प्रदाय के अनुयायी शिवलिंग की पूजा करते थे।

महान सन्त-मध्यकाल में भारत में कुछ महान् सन्त हुए। उन्होंने लोगों को मुक्ति की प्राप्ति के लिए ज्ञान मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। उस समय के प्रसिद्ध सन्त शंकराचार्य ने अद्वैत दर्शन का सन्देश दिया, जिसका अर्थ है कि परमात्मा और उसकी रचना एक है। दक्षिण भारत में रामानुज भक्ति लहर के एक अन्य महान् सन्त थे। वे तमिल ब्राह्मण थे। उन्होंने अपने शिष्यों को भक्ति मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रभु की भक्ति करने के लिए प्रेम और श्रद्धा का होना बहुत आवश्यक है।

माधव दक्षिण भारत के कृष्ण-भक्ति के उपासक थे। उन्होंने 13वीं सदी में वैष्णव मत का प्रचार किया। उनका मानना था कि ज्ञान, कर्म एवं भक्ति मुक्ति प्राप्त करने के तीन महत्त्वपूर्ण साधन हैं। उन्होंने लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपेदश दिया।

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प्रश्न 3.
भक्ति लहर के प्रमुख सन्तों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
मध्यकाल में भारत के विभिन्न भागों में कई सन्तों का जन्म हुआ। इनमें से सन्त रामानुज, रामानन्द, कबीर, रविदास, श्री गुरु नानक देव जी और चैतन्य महाप्रभु आदि मुख्य हैं।
1. रामानुज-सन्त रामानुज दक्षिण भारत में वैष्णव मत के महान् प्रचारक थे। वे तमिल ब्राह्मण थे। वे अपने शिष्यों को विष्णु की पूजा करने का उपदेश देते थे। उन्होंने जाति-पाति का विरोध किया।

2. रामानन्द-रामानन्द जी का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। वह 14वीं सदी में रामभक्ति के प्रमुख प्रचारक थे। आप राघवानन्द के अनुयायी थे। आप ने राम और सीता की पूजा करने का उपदेश दिया। रामानन्द जी ने समाज में प्रचलित अन्ध-विश्वासों की निन्दा की। आप प्रथम भक्ति सुधारक थे, जिन्होंने महिलाओं को भी अपने मत में शामिल किया।

3. सन्त कबीर-सन्त कबीर भक्ति लहर के महान् प्रचारक थे। एक निर्धन जुलाहा परिवार में जन्म लेने के कारण कबीर जी उच्च शिक्षा प्राप्त न कर सके। अत: कबीर जी ने जुलाहे का व्यवसाय अपना लिया। आप महान् सन्त रामानन्द जी के अनुयायी थे। आप ने लोगों को एक ही परमात्मा की भक्ति और परस्पर भातृभाव पैदा करने का सन्देश दिया। आपने समाज में प्रचलित मूर्ति-पूजा, जाति-पाति, बाल-विवाह और सती-प्रथा की निन्दा की। कबीर जी के शब्द (दोहे) श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में भी विद्यमान हैं।

4. श्री गुरु नानक देव जी-श्री गुरु नानक देव जी पंजाब के प्रमुख भक्ति सन्त थे। आप जी ने एक परमात्मा की भक्ति करने तथा नाम सिमरन पर बल दिया। आपने बताया कि परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी है।

5. नामदेव-नामदेव जी महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध सन्त थे। उन्होंने लोगों को सन्देश दिया कि परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् और सर्व-व्यापक है। उन्होंने लोगों को शुद्ध जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जाति-पाति, तीर्थयात्रा, मूर्ति-पूजा, यज्ञ, बलि और व्रत रखने का कड़ा विरोध किया। उनके भजनों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में स्थान दिया गया है।

6. गुरु रविदास जी-गुरु रविदास जी का जन्म बनारस में हुआ था। आप एक परमात्मा की भक्ति में विश्वास रखते थे। आपने लोगों को बताया कि परमात्मा सर्व-व्यापक है। वह सबके हृदय में निवास करता है। आप ने नाम का जाप करने र मन की शुद्धि पर बल दिया। आप ने तीर्थ यात्रा, मूर्ति पूजा, व्रत रखने और जाति-पाति का खण्डन किया। आप की ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति और उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक लोग गुरु रविदास जी के अनुयायी बन गए।

7. चैतन्य महाप्रभु-चैतन्य महाप्रभु एक महान् भक्ति सन्त थे। उनका जन्म 1486 ई० में बंगाल के नदिया नामक गांव में हुआ। वे एक परमात्मा की भक्ति करने में विश्वास रखते थे। जिसे वे कृष्ण जी कहते थे। उन्होंने जाति-पाति का खण्डन किया और लोगों को परस्पर भातृ-भाव और प्रेम का सन्देश दिया। उन्होंने कीर्तन प्रथा आरम्भ की। उन्होंने बंगाल, असम और उड़ीसा में वैष्णव मत का प्रचार किया।

8. मीराबाई-मीराबाई श्री कृष्ण जी की भक्त थी। वे भक्ति के गीत रचती थीं और गाती थीं। उन्होंने भगवान कृष्ण की प्रशंसा में बहुत-सी रचनाएं लिखी हैं। उन्होंने भजनों द्वारा कृष्ण-भक्ति का प्रचार किया।

प्रश्न 4.
सिख धर्म के उदय एवं विकास के बारे में बताइए।
उत्तर-
सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी थे। सिख दस सिख गुरुओं-श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अमरदास जी, श्री गुरु रामदास जी, श्री गुरु अर्जन देव जी, श्री गुरु हरगोबिन्द जी, श्री गुरु हरिराय जी, श्री गुरु हरिकृष्ण जी, श्री गुरु तेग़ बहादुर जी तथा श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के अनुयायी हैं।

सिख गुरुद्वारों में पूजा करते हैं। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी उनका प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ है। श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिखों को पांच ककार-केस, कंघा, कड़ा, कछहरा और किरपान-धारण करने का आदेश दिया। ज्योति-ज्योत समाने से पहले उन्होंने सिखों को आदेश दिया कि वे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी को ही अपना गुरु मानें।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखो –
(अ) श्री गुरु नानक देव जी की उदासियां या यात्राएं
(ब) इस्लाम धर्म के मूल सिद्धान्त।
उत्तर-
(अ) श्री गुरु नानक देव जी की उदासियां तथा यात्राएं-

  1. गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के बाद भटकी हुई मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए अपनी यात्राएं (उदासियां) आरम्भ की। अपनी पहली उदासी में वह सय्यदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, हरिद्वार, बनारस, गया, कामरूप, ढाका और जगन्नाथ पुरी आदि स्थानों पर गए।
  2. दूसरी उदासी में उन्होंने दक्षिण भारत और श्रीलंका की यात्रा की।
  3. तीसरी उदासी में गुरु साहिब कैलाश पर्वत, लद्दाख, हसन अब्दाल आदि की यात्रा करके लौट आए।
  4. चौथी उदासी में आप ने मक्का, मदीना, बगदाद तथा सय्यदपुर की यात्रा की।
    इसके बाद गुरु जी करतारपुर में आकर रहने लगे। अब वह बाहर जाने की बजाय पंजाब में ही धर्म-प्रचार करते रहे। कई इतिहासकारों ने इसे गुरु साहिब की पांचवीं उदासी कहा है।

(ब) इस्लाम धर्म के मूल सिद्धान्त-इस्लाम धर्म के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  1. अल्लाह के सिवा अन्य कोई परमात्मा नहीं है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है।
  2. प्रत्येक मुसलमान को हर रोज़ पांच बार नमाज़ पढ़नी चाहिए।
  3. प्रत्येक मुसलमान को रमजान के महीने में रोज़े रखने चाहिएं।
  4. प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन काल में कम-से-कम एक बार मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
  5. प्रत्येक मुसलमान को अपनी नेक कमाई में से ज़कात (दान) देना चाहिए।

प्रश्न 6.
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन, शिक्षाओं तथा अन्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राई-भोई की तलवण्डी में हुआ था। इसे आजकल ननकाना साहिब कहा जाता है। उनके पिता मेहता काल, राय भोई की तलवंडी के पटवारी थे। उनकी माता जी का नाम तृप्ता जी था, जो धार्मिक विचारों वाली महिला थी। उनकी एक बहन थी, जिनका नाम नानकी था।

श्री गुरु नानक देव जी का आरम्भ से ही पढ़ाई और सांसारिक कार्यों में मन नहीं लगता था। इसलिए आप के पिता जी ने आप का विचार बदलने के लिए बटाला निवासी श्री मूल चन्द की पुत्री बीबी सुलक्खणी के साथ आप का विवाह कर दिया। उस समय आप की आयु 14 वर्ष की थी। आप के यहां दो पुत्रों ने जन्म लिया जिनके नाम श्री चन्द तथा लक्ष्मी दास थे।

विवाह के बाद गुरु नानक देव जी अपनी बहन नानकी जी के पास सुल्तानपुर चले गए। वहां उन्हें दौलत खान के मोदीखाने में नौकरी मिल गई। सुल्तानपुर में गुरु जी प्रतिदिन सुबह ‘वेई’ नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। एक दिन जब वे वेईं में स्नान करने के लिए गये, तो तीन दिन तक नदी से बाहर ही नहीं निकले। इन तीन दिनों में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान-प्राप्ति के बाद गुरु जी ने ये शब्द कहे –

“न को हिन्दू न को मुसलमान”

उदासियां-गुरु नानक देव जी ने लोगों को धर्म का सही मार्ग दिखाने के लिए भारत के विभिन्न भागों की यात्राएं की। इन यात्राओं को उनकी उदासियां कहा जाता है। गुरु जी के सादा जीवन तथा सरल उपदेश से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।
शिक्षाएं-गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएं इस प्रकार हैं –

  1. परमात्मा एक है। वह परमात्मा निर्गुण एवं सगुण है। वह परमात्मा सर्वशक्तिमान् एवं सर्व-व्यापक है।
  2. परमात्मा निराकार तथा दयालु है।
  3. मनुष्य को हउमैं (अहंकार) का त्याग कर देना चाहिए।
  4. नाम के जाप का जीवन में बहुत महत्त्व है।
  5. गुरु का स्थान बहुत ऊंचा है।
  6. भ्रातृ-भाव में विश्वास।
  7. मनुष्य को सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  8. गुरु साहिब ने जाति-पाति तथा खोखले रीति-रिवाजों का खंडन किया।

श्री गुरु नानक देव जी करतारपुर में-गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल करतारपुर में व्यतीत किए। उन्होंने 1539 ई० में ज्योति जोत समा जाने से पूर्व भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
वाणी-गुरु साहिब ने ‘जपुजी साहिब’, ‘वार मांझ’, ‘आसा दी वार’, ‘सिद्ध गोष्ट’, ‘वार मल्हार’, ‘बारह माह’ आदि प्रसिद्ध वाणियों की रचना की।

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सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे?
(i) अकबर
(ii) हज़रत मुहम्मद
(iii) कबीर जी।
उत्तर-
(ii) हज़रत मुहम्मद।

प्रश्न 2.
सूफी संतों में सबसे प्रसिद्ध एक चिश्ती शेख थे। निम्नलिखित में से उनका नाम क्या था?
(i) ख्वाजा मुइनुद्दीन
(ii) बाबा फ़रीद
(iii) निजामुद्दीन औलिया।
उत्तर-
(i) ख्वाजा मुइनुद्दीन।

प्रश्न 3.
दो सिक्ख गुरु शहीदी को प्राप्त हुए थे। इनमें से एक थे –
(i) श्री गुरु रामदास जी
(ii) श्री गुरु गोबिंद सिंह जी
(iii) श्री गुरु तेग बहादुर जी।
उत्तर-
(iii) श्री गुरु तेग बहादुर जी।

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धार्मिक विकास PSEB 7th Class Social Science Notes

  • विश्व के प्रमुख धर्म – हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पारसी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म, सिख धर्म आदि संसार के प्रमुख धर्म हैं।
  • इस्लाम धर्म – इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद थे। मुहम्मद साहिब के उत्तराधिकारियों को खलीफ़ा कहा जाता था।
  • सिख धर्म – सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी थे। उनके पश्चात् 9 अन्य गुरु साहिबान ने सिख पंथ का विकास किया। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब इस धर्म का पवित्र ग्रन्थ है।
  • सूफी मत – सूफ़ी मत इस्लाम धर्म का उदार रूप था। इसके धार्मिक नेता पीर कहलाते थे। वे काले रंग के कम्बल का प्रयोग करते थे जिसे सूफ़ी कहा जाता है। इसलिए ये पीर सूफ़ी कहलाये। सूफ़ियों के कई सिलसिले थे।
  • भक्ति आन्दोलन – मध्य युग में भारत में धर्म सुधार की एक लहर चली जिसे भक्ति आन्दोलन का नाम दिया जाता है। इस आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसका प्रचार सारे भारत में किसी एक महापुरुष ने नहीं किया, बल्कि विभिन्न प्रदेशों में इसका प्रचार अलग-अलग सन्तों ने किया। परन्तु फिर भी भारत में भक्ति लहर के सिद्धान्त एक समान थे।
  • हिन्दू धर्म – हिन्दू धर्म के मुख्य धार्मिक मत शैवमत तथा वैष्णव मत थे। शैवमत की स्थापना 9वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने की थी। वैष्णव मत के प्रमुख प्रचारक रामानन्द जी तथा चैतन्य महाप्रभु थे।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

SST Guide for Class 7 PSEB कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कौन-सा था ?
उत्तर-
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कृषि करना होता था। परन्तु कुछ कबीलों के लोग शिकार करना, संग्राहक या पशु-पालन का कार्य करना भी पसन्द करते थे।

प्रश्न 2.
खानाबदोश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुछ कबीलों के लोग अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते थे। इन्हें खानाबदोश कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कबीले समाज के लोग कहां रहते थे ?
उत्तर-
कबीले समाज के लोग मुख्य रूप से जंगलों, पहाड़ों तथा रेतीले प्रदेशों में रहते थे।

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प्रश्न 4.
मध्यकालीन युग में पंजाब में कौन-कौन से कबीले रहते थे ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में पंजाब में खोखर, गखड़, लंगाह, अरघुन तथा बलूच आदि कबीले रहते थे।

प्रश्न 5.
सुफ़ाका कौन था ?
उत्तर-
सुफाका अहोम वंश का पहला शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। उसने कई स्थानीय शासकों को पराजित करके ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। गड़गाऊ उसकी राजधानी थी।

प्रश्न 6.
किस क्षेत्र को गौंडवाना कहा जाता है ?
उत्तर-
पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों को सामूहिक रूप से गौंडवाना कहा जाता है। इस क्षेत्र को गौंड लोगों की अधिक संख्या के कारण यह नाम दिया जाता है।

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(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. ……………. तथा ……………… दो कबीले थे।
  2. अहोम कबीले ने अपना शासन वर्तमानकालीन …………… के क्षेत्रों में स्थापित किया था।
  3. 15वीं सदी से 18वीं सदी तक ………………. में खुशहाल (राज्य) शासन था।
  4. अहोम कबीले के लोग चीन के …………… वर्ग से सम्बन्ध रखते थे।
  5. रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध ………….. शासक थी।

उत्तर-

  1. अहोम, नागा,
  2. आसाम,
  3. गौंडवाना,
  4. ताई-मंगोलिड,
  5. गौंड।

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प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत का समाज किस प्रकार का था?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तर भारत का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक चार प्रमुख वर्गों में बंटा हुआ था। इनकी आगे भी कई जातियां और उपजातियां थीं।

समाज में कुलीन वर्ग के अतिरिक्त ब्राह्मणों, कारीगरों और व्यापारियों का भी बहुत संत्कार था। महिलाओं को उच्च शिक्षा दी जाती थी। उन्हें अपने पति का चुनाव करने का अधिकार था।

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प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल की सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय समाज हिन्दू और मुस्लिम दो प्रमुख वर्गों में विभक्त था –
I. मुस्लिम वर्ग-

1. शासक वर्ग-मुस्लिम वर्ग मुख्य रूप से शासक वर्ग था। अब शासक वर्ग में तुर्क और अफगानों के साथ राजपूत भी शामिल हो गए थे। समय बीतने पर अरब, ईरानी और मंगोल जातियों के लोग भी कुलीन वर्ग में शामिल हो गए। ये लोग बहुत विलासी जीवन व्यतीत करते थे।

2. दास-उस समय समाज में दासों की संख्या बहुत अधिक थी। उदाहरण के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन सुल्तान बनने से पहले दास ही थे।

3. महिलाओं की दशा-मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा अच्छी नहीं थी। अधिकतर महिलाएं अशिक्षित थीं। वे पर्दा करती थीं।

4. वेश-भूषा, भोजन तथा मनोरंजन-मुसलमान लोग सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े पहनते थे। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। मुस्लिम लोग मुख्य रूप से चावल, गेहूं, सब्जियां, घी, अण्डे आदि खाते थे। वे शिकार, चौगान और कुश्ती आदि से अपना मनोरंजन करते थे।

II. हिन्दू समाज-देश में हिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक थी, परन्तु उनका सत्कार नहीं किया जाता था। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था।

1. जाति प्रथा बहुत कठोर थी। हिन्दू समाज भी बहुत-सी जातियों और उप-जातियों में बंटा हुआ था। समाज में ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। वैश्य आय विभाग में बहुत से पदों पर नियुक्त थे। समाज में क्षत्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी क्योंकि वे मुसलमानों से हार गये थे। उच्च जाति के लोग शूद्रों से घृणा करते थे।

2. हिन्दू समाज में नारियों की दशा बहुत ही खराब थी। वे अधिकतर अशिक्षित थीं। स्त्रियां पति की मृत्यु पर पति की चिता पर जलकर मर जाती थीं। वे जौहर भी निभाती थीं। मुस्लिम स्त्रियों की तरह वे भी पर्दा करती थीं।

3. हिन्दू लोग सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। उनका मुख्य भोजन गेहूं, चावल, सब्जियां, घी और दूध आदि था। उन्हें नाच-गाने का बड़ा चाव था।

प्रश्न 3.
अहोम लोगों के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
अहोम कबीले के लोगों ने 13वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक वर्तमान असम पर राज्य किया। उनका सम्बन्ध चीन के ताई-मंगोल कबीले से था। वे 13वीं सदी में चीन से असम आये थे। सुफाका असम का पहला अहोम शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। अहोमों ने अपने क्षेत्र के अनेक स्थानीय शासकों को पराजित किया। इनमें कचारी, मीरन और नाग आदि स्थानीय राजवंश शामिल थे। इस प्रकार अहोमों ने ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। अहोमों की राजधानी गड़गाऊ थी।

अहोमों ने मुग़लों और बंगाल आदि के विरुद्ध भी संघर्ष किया। मुग़लों ने असम पर अधिकार करने का प्रयास किया परन्तु असफल रहे। अन्त में औरंगजेब ने अहोमों की राजधानी गड़गाऊ पर विजय प्राप्त कर ली, परन्तु वह इसे मुग़ल शासन के अधीन न रख सका। 18वीं सदी में अहोम शासन का पतन होने लगा। लगभग 1818 ई० में बर्मा (म्यांमार) के लोगों ने असम पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने अहोम राजा को असम छोड़ने के लिए विवश कर दिया। 1826 ई० में अंग्रेज़ असम में पहुंचे। उन्होंने बर्मा के लोगों को हरा कर उनके साथ यंदाबू की सन्धि की। इस प्रकार असम पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

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प्रश्न 4.
गौण्ड लोगों के इतिहास के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गौण्ड कबीले का सम्बन्ध मध्य भारत से है। ये पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों में रहते हैं। इन प्रान्तों में गौण्ड लोगों की पर्याप्त संख्या होने के कारण इस क्षेत्र को गोंडवाना कहते हैं।

15वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक गोंडवाना क्षेत्र में कई राज्य स्थापित हुए। रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध गौण्ड शासिका थी। उसका राज्य यहां के स्वतन्त्र राज्यों में से एक था। जबलपुर उसकी राजधानी थी। मुग़ल शासक अकबर ने उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा परन्तु रानी दुर्गावती ने अकबर के सामने झुकने से इन्कार कर दिया। अतः मुग़लों और रानी दुर्गावती के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में रानी दुर्गावती मुग़लों के हाथों मारी गई।

गौण्ड लोगों की मूल आवश्यकताएं बहुत कम होती हैं। उनके घर भी साधारण बनावट (रचना) के हैं। एक निरीक्षण के अनुसार गौण्ड लोग गोण्डवाना क्षेत्र के अन्य लोगों की अपेक्षा कम पढ़े-लिखे हैं।

प्रश्न 5.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत की जाति-प्रथा की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मध्यकाल में दक्षिण भारत में जाति-प्रथा बहुत कठोर हो गई थी। इस समय समाज चार वर्गों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभक्त था। समाज में ब्राह्मणों का स्थान बहुत ऊंचा था, क्योंकि वे धार्मिक रीतियों को पूरा करने का काम करते थे। वैश्य व्यापार करते थे। समाज में शूद्रों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था।

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प्रश्न 6.
आरम्भिक मध्यकाल (800-1200 ई०) में दक्षिण भारत में महिलाओं की दशा कैसी थी?
उत्तर-
आरम्भिक मध्यकाल में दक्षिण भारत के समाज में महिलाओं का सत्कार किया जाता था। उन्हें शिक्षा भी दी जाती थी। वे सामाजिक तथा धार्मिक रीतियों को पूरा करने में समान रूप से भाग लेती थीं। उन्हें अपने वर को स्वयं चुनने का अधिकार था। उनका आचरण बहुत उच्च था। वे जौहर की प्रथा निभाती थीं जो उनके शौर्य और शान का प्रतीक था।

प्रश्न 7.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत के लोगों के सामाजिक जीवन की कोई तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. इस काल में लोग, विशेषतया राजपूत बड़े वीर और साहसी थे।
  2. साधारणतया लोग संगीत, नृत्य और शतरंज खेलकर अपना मनोरंजन करते थे।
  3. वे सादा भोजन खाते थे और सादे कपड़े पहनते थे।

प्रश्न 8.
भारत के आदिवासी कबीलों, खानाबदोशों तथा घुमक्कड़ समूहों के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
मणिपुर, मेघालय, मध्य-प्रदेश, नागालैण्ड, दादरा और नगर हवेली आदि राज्यों में आदि कबीले, खानाबदोश और घुमक्कड़ वर्ग के लोग बहुत संख्या में रहते हैं। इन वर्गों में भील, गोंड, अहोम, कूई, कोलीम, कुक्की आदि लोग शामिल हैं। ये साधारणतया जंगलों में रहते हैं। खानाबदोश लोग अपने पशुओं के झुण्डों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते हैं।
सरकार ने इन लोगों की सहायता के लिए इन्हें बहुत-सी सुविधाएं प्रदान की हैं। उदाहरण के लिए –

  1. कबाइली क्षेत्रों में व्यवसाय प्रशिक्षण संस्थाएं आरम्भ की गई हैं।
  2. इन्हें अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए कम ब्याज-दर पर बैंकों से ऋण दिये जाते हैं।
  3. इन लोगों के लिए लगभग 7-% नौकरियां सुरक्षित रखी जाती हैं।
  4. शिक्षण संस्थानों में भी इनके लिए कुछ सीटें सुरक्षित हैं। यहां तक कि लोक सभा और विधान सभाओं के विशेष चुनाव-क्षेत्र अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

प्रश्न 9.
मुग़ल काल में मुस्लिम समाज की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में विभक्त था-उच्च श्रेणी, मध्य श्रेणी तथा निम्न श्रेणी।
  2. समाज में नारी की दशा अच्छी नहीं थी। वे अशिक्षित होती थीं। वे पर्दा करती थीं।
  3. मुस्लिम लोग मांस, हलवा, पूरी, मक्खन, फल और सब्जियां खाते थे। वे शराब भी पीते थे।
  4. पुरुष कुर्ता और पाजामा पहनते थे और सिर पर पगड़ी बांधते थे। महिलाएं लम्बा बुर्का पहनती थीं। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे।

प्रश्न 10.
मुग़ल काल के हिन्दू समाज की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में हिन्दू समाज अनेक जातियों और उप-जातियों में विभक्त था। ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। जाति प्रथा बहुत कठोर थी।
  2. समाज में महिलाओं की दशा बहुत ही शोचनीय थी। लोग अपनी कन्याओं को शिक्षित नहीं करते थे। महिलाएं पर्दा करती थीं।
  3. उस समय लोग साधारणतया सादा भोजन करते थे। वे सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. कबायली समाज श्रेणियों या वर्गों में बंटा हुआ नहीं था।
  2. कबीलों के लोगों का मुख्य कार्य व्यापार करना था।
  3. सुफ़ाका अहोम वंश का अन्तिम शासक था।
  4. बंजारा लोग प्रसिद्ध व्यापारी खानाबदोश थे।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)

(ख) सही जोड़े बनाइए :

  1. गड़गाऊ – कौली
  2. जबलपुर – अहोम
  3. पंजाब – गौंड
  4. गुजरात – खोखर

उत्तर-

  1. गड़गाऊ – अहोम
  2. जबलपुर – गौंड
  3. पंजाब – खोखर
  4. गुजरात – कौली

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
खानाबदोश (मध्यकालीन) कबीले कुलों में बंटे हुए थे? ये कुल क्या थे?
(i) एक ही पूर्वज की संतान
(ii) कई परिवारों का समूह
(iii) ये दोनों।
उत्तर-
(iii) ये दोनों।

प्रश्न 2.
मुण्डा तथा संथाल कबीलों का सम्बन्ध वर्तमान के किस स्थान से है?
(i) बिहार तथा झारखण्ड
(ii) जम्मू-कश्मीर
(iii) हिमाचल प्रदेश।
उत्तर-
(i) बिहार तथा झारखण्ड।

प्रश्न 3.
अहोम लोग 13वीं शताब्दी में बाहर से आसाम में आये थे। उनका सम्बन्ध किस देश से था?
(i) जापान
(ii) चीन
(iii) मलाया।
उत्तर-
(ii) चीन।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे PSEB 7th Class Social Science Notes

  • मध्यकालीन युग में जाति प्रथा – मध्यकाल तक भारत में जाति प्रथा काफ़ी कठोर हो गई थी। हिन्दू समाज मुख्य रूप से चार जातियों में बंटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।
  • ब्राह्मणों को कई विशेष अधिकार प्राप्त थे। समाज तथा राज्य पर उनका पूरा प्रभाव था।
  • समाज में कई नई जातियां तथा उपजातियां उत्पन्न हो गईं। इन्होंने पशुपालन, खेती, शिल्प, व्यापार आदि कई नए कार्यों को अपनाया।
  • क्षत्रिय जाति के लोग शासन सम्बन्धी कार्य करते थे। वे अपने स्वाभिमान के लिए जाने जाते थे।
  • राजपूतों को भी क्षत्रिय जाति का अंग माना जाता था। वे वीर योद्धा थे।
  • वैश्य जाति के लोग खेती, पशुपालन तथा व्यापार सम्बन्धी कार्य करते थे।
  • शूद्रों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।
  • मध्यकालीन समाज में स्त्रियों की दशा – दक्षिण भारत के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। परन्तु उत्तर भारत के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। साधारण परिवार की स्त्रियां शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थीं। हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों वर्गों की स्त्रियां पर्दा करती थीं। राजपूत स्त्रियां जौहर की प्रथा निभाती थीं।
  • भोजन तथा वस्त्र – मुस्लिम समाज शासक वर्ग होने के कारण इस वर्ग के लोग ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे और कई तरह के पकवान खाते थे। परन्तु हिन्दू लोगों का खान-पान बहुत सादा था। दोनों वर्गों के लोग ऊनी, सूती तथा रेशमी वस्त्र पहनते थे।
  • अहोम – अहोमों ने असम पर शासन किया। वे चीन से भारत आये थे। उनका पहला शासक सुफ़ाका था। उन्होंने कई स्थानीय कबीलों को हराया।
  • गौंड – गौंड मध्य भारत का एक कबीला है। वे पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों में बसे हुए हैं। 15वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक उन्होंने अनेक राज्य स्थापित किए। रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध गौंड शासिका थी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
फसल के लिए आवश्यक कोई दो प्रमुख पोषक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस, नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन आदि।

प्रश्न 2.
फसलों के लिए आवश्यक कोई दो लघु तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
जिंक, मैंगनीज़।

प्रश्न 3.
नाइट्रोजन की कमी वाले पौधों के पत्तों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पीला।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 4.
पौधे को बीमारियों से लड़ने में सहायक किसी एक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व, पोटाशियम तत्त्व।

प्रश्न 5.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाले पौधों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पौधे के पत्ते पहले पीले तथा कुछ समय बाद भूरे हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
पौधों के अंदर सैल बनाने में सहायक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व पौधे के अंदर नई कोशिकाएं बनाने में सहायक है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 7.
नाइट्रोजन की कमी की पूर्ति के लिए प्रयोग में आने वाली कोई दो रासायनिक खादों के नाम लिखो।
उत्तर-
यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड।

प्रश्न 8.
फॉस्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति के लिए पौधों को कैसी खाद डाली जा सकती है ?
उत्तर-
डाईअमोनीयम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट

प्रश्न 9.
रेतली भूमि में मैंगनीज़ की कमी से कौन-सी फसल अधिक प्रभावित होती है?
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 10.
गंधक की कमी आने पर कौन-सी खाद का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जिप्सम, सुपर फास्फेट में फास्फोरस के साथ गंधक तत्त्व भी मिल जाता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों के लिए आवश्यक मुख्य तत्त्व और लघु तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
मुख्य तत्त्व-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, गंधक, ऑक्सीजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनीशियम।
लघु तत्त्व-लोहा, जिंक, मैंगनीज़, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, तांबा।

प्रश्न 2.
पौधे में जिंक कौन-से प्रमुख कार्य करता है ?
उत्तर-
जिंक एन्जाइमों का अभिन्न अंग है यह पौधे की वृद्धि में सहायक है, अधिक हार्मोनज़ तथा स्टार्च बनने में सहायता करते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 3.
पौधे में मैंगनीज़ के क्या कार्य होते हैं ?
उत्तर-
यह अधिक क्लोरोफिल बनाने में सहायता करता है। यह कई एन्जाइमों का अभिन्न अंग भी है।

प्रश्न 4.
फास्फारेस तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
कमी के कारण पत्ते पहले गहरे हरे रंग के तथा कुछ समय बाद पुराने पत्तों का रंग बैंगनी हो जाता है।

प्रश्न 5.
धान की फसल में जिंक की कमी आने पर किस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पुराने पत्तों में पीलापन आ जाता है तथा कहीं-कहीं पीले से भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे मिल कर बड़े हो जाते हैं। इनका रंग गहरा भूरा, जैसे लोहे को जंग लगा हो, हो जाता है। पत्ते छोटे रह जाते हैं तथा सूख कर झड़ जाते हैं। फसल देर से पकती है तथा उत्पादन कम हो जाता है।

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प्रश्न 6.
लोहे की कमी आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
यदि भूमि का पी०एच०मान 6 से 6.5 के बीच न हो तो पौधे लोहा तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकते। क्षारीय भूमियों में पी०एच० 6.5 से अधिक होने पर यह समस्या होती है। सेम वाली भूमियों में लोहे की कमी हो जाती है। यदि अन्य तत्त्व वाली खादों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाए तो भी लोहा तत्त्व पौधों को प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 7.
गेहूँ में मैंगनीज़ तत्त्व की पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
सप्ताह-सप्ताह के अन्तर से दो-तीन बार मैंगनीज़ सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ में एक स्प्रे पहली सिंचाई से दो-तीन दिन पहले करें तथा दो-तीन छिड़काव उसके बाद सप्ताह-सप्ताह के अंतर पर करें।

प्रश्न 8.
गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी आने से कैसे लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पत्ते के नीचे वाले भाग की नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन दिखाई देता है जो ऊपरी सिरे की तरफ बढ़ता है। यह कमी पहले तो पत्ते के निचले 2/3 भाग तक सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक स्लेटी भूरे रंग के दानेदार धब्बे पड़ जाते हैं जो अधिक कमी होने पर बढ़ जाते हैं तथा नाड़ियों के बीच लाल मटमैली धारियां बन जाती हैं। नाड़ियां हरी रहती हैं। बल्लियाँ बहुत कम निकलती हैं तथा दाती जैसे मुड़ी दिखाई देती हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 9.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाली प्रमुख फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
गेहूँ, धान, आलू, टमाटर, सेब, गोभी आदि।

प्रश्न 10.
लोहे की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
एक किलो फेरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से पत्तों के ऊपर छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए। पौधे द्वारा भूमि से लोहा प्राप्ति प्रभावकारी नहीं है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य बताएं।
उत्तर-
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं—

  1. नाइट्रोजन पौधों में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का अभिन्न अंग है।
  2. नाइट्रोजन की ठीक मात्रा होने पर पौधों की वृद्धि तेज़ी से होती है।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) का प्रयोग उचित प्रकार से करने में सहायक है।
  4. फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग में सहायक है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 2.
फसलों में नाइट्रोजन तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन तत्त्व की कमी सब से पहले पुराने नीचे वाले पत्तों में दिखाई देती है। पुराने पत्ते नोक से नीचे की ओर पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं। कमी बनी रही तो पीलापन ऊपरी पत्तों की ओर बढ़ जाता है। शाखाएं कम निकलती हैं तथा पौधे का फैलाव कम होता है। पोरियाँ (गाँठ) छोटी रह जाती हैं । बल्लियाँ छोटी रह जाती हैं। इस कारण उत्पादन कम हो जाता है।

प्रश्न 3.
फास्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व की कमी पूरी करने के लिए डाईमोनियम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट खाद की आवश्यकता अनुसार सिफ़ारिश की गई मात्रा को बीज बोते समय ही ड्रिल कर दिया जाता है। यह तत्त्व भूमि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलने के समर्थ नहीं है। इस तत्त्व की पूर्ति के लिए मिश्रित खादों जैसे सुपरफास्फेट, एन०पी०के०, डी०ए०पी० आदि का भी प्रयोग किया जाता है। रबी की फसलों पर इस तत्त्व वाली खाद का अधिक प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
फसलों में जिंक की कमी आने के मुख्य कारण और इसकी पूर्ति के संबंध में लिखें।
उत्तर-
कमी के कारण-जिन भूमियों में फास्फोरस तत्त्व तथा कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है, उन भूमियों में जिंक की कमी प्रायः देखी जाती है।
जिंक की पूर्ति-भूमि में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। यदि जिंक की कमी अधिक हो तो जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव किया जा सकता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 5.
फसलों में लोहे की कमी के लक्षण और इसकी पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
लोहे की कमी के लक्षण-

  1. लोहे की कमी के लक्षण पहले नए पत्तों पर दिखाई देते हैं।
  2. पहले नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन नज़र आता है तथा बाद में नाडियां भी पीली हो जाती हैं।
  3. यदि अधिक कमी हो तो पत्तों का रंग उड़ जाता है तथा यह सफेद हो जाते हैं।

कमी की पूर्ति-लोहे की कमी की पूर्ति निम्नलिखित अनुसार करें—
जब पीलेपन की निशानियां नज़र आएं तो फसल को जल्दी-जल्दी खुला पानी दें। एक सप्ताह के अंतर पर एक प्रतिशत एक किलोग्राम फैरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि लोहे की पूर्ति भूमि द्वारा प्रभावकारक नहीं है।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या 17 है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 2.
पौधों का रंग किस तत्त्व के कारण गहरा होता है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन क्लोरोफिल का आवश्यक अंग है, इससे पौधों का रंग गहरा हो जाता है।

प्रश्न 3.
कुछ तत्त्वों के नाम बताओ जो आवश्यक तो नहीं हैं पर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी करने के लिए इनका होना अनिवार्य है ?
उत्तर-
ऐसे तत्त्व हैं-सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व जब पौधे के पांच अथवा छ: पत्ते हों, तो पत्तों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी कमी से पत्तों की नाड़ियों का रंग लाल अथवा जामुनी हो जाता है तथा कमी के चिन्ह पत्ते के मध्य से तने की तरफ के भाग पर होते हैं। अधिक कमी होने पर पौधे बोने रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों में पोटाशियम की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
पोटाशियम की कमी से पत्तों का झुलसना तथा धब्बे पड़ना नीचे वाले पत्तों से शुरू होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर मूल की तरफ बढ़ता है। अधिक कमी होने पर सारा पत्ता सूख जाता है। पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक तथा फसल का उत्पादन कम होता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 5.
पौधों में नाइट्रोजन की कमी के क्या चिन्ह हैं ?
उत्तर-
नाइट्रोजन की कमी से पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलापन निम्न पत्तों से आरंभ होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर पीलापन पत्ते के अंतिम भाग की ओर बढ़ता है। अधिक कमी होने की सूरत में सारा पत्ता सूख जाता है। पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक होते हैं तथा फसल की पैदावार कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
फास्फोरस के पौधों को क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
पौधों के लिए फास्फोरस के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. नए सैल (डी०एन०ए०, आर०एन०ए०) अधिक बनते हैं।
  2. फूल, फल तथा बीज बनने में सहायता करती है।
  3. जड़ों में वृद्धि बहुत तेजी से होती है।
  4. तने को मजबूत करता है तथा इस तरह फसल को गिरने से बचाती है।
  5. फलीदार फसलों की हवा से नाइट्रोजन इकट्ठा करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
  6. बीमारियां लगने की संभावना को घटाती है।

प्रश्न 7.
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को नुकसान—

  1. फसल पकने में देरी लगती है।
  2. तना कमज़ोर हो जाता है तथा पौधे गिर जाते हैं।
  3. कीड़े तथा बीमारियां अधिक लगती हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 8.
गेहूं पर जिंक की कमी. का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
गेहं पर जिंक की कमी का प्रभाव-जिंक की कमी से पौधों की वद्धि धीरे होती है। पौधे छोटे तथा झाड़ी की तरह दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पहले पानी देते समय तथा फिर जब पौधा पैदा होता है तो कुछ समय पहले दिखाई देते हैं। कमी के पहचान चिन्ह ऊपर से तीसरे अथवा चौथे पत्ते से आरम्भ होते हैं। पत्ते के मध्य में पीले अथवा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके पश्चात् पत्तों की नाड़ियों के बीच पीली-सफ़ेद धारियां पड़ जाती हैं तथा पत्ते बीच में से मुड़ जाते हैं।

प्रश्न 9.
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी के पहचान-चिन्ह पौधे के बीच के पत्तों से आरंभ होते हैं। किनारे पर डंडी वाली दिशा को छोड़कर पत्ते के बाकी हिस्से पर पीले रंग तथा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में यह धब्बे सारे पत्ते पर फैल जाते हैं। यदि मैंगनीज़ की कमी अधिक हो तो पत्ते सूख जाते हैं।

प्रश्न 10.
खाद्य तत्त्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों के फलने-फूलने के लिए इन्हें भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में शामिल सभी तत्त्वों को खाद्य तत्त्व कहते हैं। यह खाद्य तत्त्व दो तरह के होते हैं। मुख्य तथा सूक्ष्म तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, फास्फोरस, नाइट्रोजन, जिंक, तांबा, बोरोन, कोबाल्ट आदि। पौधे ये तत्त्व हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 11.
खाद्य तत्त्वों का पौधों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्वों का महत्त्व—

  1. आवश्यक खाद्य तत्त्वों के बिना पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकते।
  2. आवश्यक खाद्य तत्त्वों की कमी के चिन्ह उसी खाद्य तत्त्व को डालने से ठीक किए जा सकते हैं, किसी अन्य तत्त्व के डालने से नहीं।
  3. आवश्यक खाद्य तत्त्व पौधे के आंतरिक रासायनिक परिवर्तनों में सीधा योगदान देते हैं।

प्रश्न 12.
पौधों के लिए कौन-कौन से खाद्य तत्त्वों की ज़रूरत है ? इन खाद्य तत्त्वों की कसौटी क्या है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, मैंगनीज़, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीन तथा कोबाल्ट आदि तत्त्वों की ज़रूरत है। इन खाद्य तत्त्वों को पौधे हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

कई खाद्य तत्त्व पौधों को अधिक मात्रा तथा कई कम मात्रा में अनिवार्य होते हैं। पौधों में पाए जाते लगभग 90 तत्त्वों में से 17 खाद्य तत्त्व पौधों के लिए अधिक अनिवार्य हैं।

कुछ अन्य तत्त्व जो ज़रूरी तो नहीं, पर उनका अस्तित्व खासकर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी कर सकता है, यह तत्त्व सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम हैं।

प्रश्न 13.
धान को जिंक की कमी कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
धान में जिंक की कमी-धान के पौधों में जिंक की कमी के चिन्ह पौधे लगाने से 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पुराने पत्तों से आरंभ होते हैं।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व नाड़ियों के बीच से पत्तों का रंग पीला अथवा सफ़ेद हो जाता है। पत्ते जंग लगे से नज़र आते हैं। पौधे छोटे तथा बल्लियां देरी से निकलती हैं। फसल की पैदावार कम होती है।

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प्रश्न 14.
पौधों के लिए गंधक के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-

  1. यह क्लोरोफिल बनने में सहायक है।
  2. गंधक प्रोटीन तथा एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
  3. यह बीज बनने में सहायक होती है।
  4. फलीदार फसलों की जड़ों में हवा की नाइट्रोजन पकड़ने वाली गांठें अधिक बनती

प्रश्न 15.
पौधों में कैल्शियम की कमी की निशानियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
नए पत्ते, कोंपलें तथा डोडियों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। पत्तों की नोकें तथा किनारे सूख जाते हैं। कई बार पत्ते मुड़े ही रहते हैं, पूरी तरह खुलते नहीं। जड़ें छोटी तथा गुच्छेदार बन जाती हैं। इसकी कमी के कारण आलू में होलो हार्ट रोग हो जाते हैं तथा आलू अंदर से नर्म रह जाते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों के लिए अनिवार्य खाद्य तत्त्वों तथा उनके स्त्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-

       अधिक मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व                                            कम मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व
अधिक हवा तथा पानी से भूमि गैसों से भूमि ठोसों से
कार्बन नाइट्रोजन लोहा
हाइड्रोजन फास्फोरस मैंगनीज़
ऑक्सीजन पोटाशियम जिंक
मैग्नीशियम तांबा
गंधक बोरोन
कैल्शियम माल्बडीनम
कोबाल्ट

 

प्रश्न 2.
नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाशियम के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
I. नाइट्रोजन के लाभ—

  1. पौधे के पत्तों का हरा रंग इस तत्त्व के कारण ही होता है।
  2. पत्तों का रंग गहरा हो जाता है तथा पत्ते चौड़े, लंबे तथा रसदार बन जाते हैं।
  3. पौधों का फैलाव अधिक तथा तेज़ होता है।
  4. पौधे अधिक चमकीले तथा कोमल हो जाते हैं।
  5. ‘पौधों की टहनियां पतली तथा नर्म हो जाती हैं।
  6. प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।

II. फास्फोरस के लाभ-

  1. फसल जल्दी पकती है।
  2. दाने मोटे तथा भारी होते हैं।
  3. अनाज की मात्रा तूड़ी से अधिक हो जाती है।
  4. पौधों की जड़ें काफ़ी फल-फूल सकती हैं।
  5. पौधों के तने मज़बूत तथा पक्के बन जाते हैं तथा फसल गिरती नहीं।
  6. रोग का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ती है।
  7. फलों का स्वाद मीठा होता है तथा फल बड़े हो जाते हैं।
  8. फसलों की पैदावार बहुत बढ़ जाती है।

III. पोटाशियम के लाभ—

  1. पोटाशियम से अच्छी प्रकार का फल तैयार होता है।
  2. यह तत्त्व तने को मजबूत करता है।
  3. पौधों में निशास्ता तथा चीनी की मात्रा बढ़ जाती है।
  4. फसलों में रोगों तथा कीड़ों का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  5. नाइट्रोजन के प्रभाव को धीमा करती है।
  6. पौधे काफ़ी लंबे समय के लिए हरे-भरे रहते हैं।
  7. इसकी मौजूदगी में पौधे दूसरे तत्त्वों को अच्छी तरह ग्रहण कर सकते हैं।
  8. पोटाशियम कार्बन-चूषण क्रिया के लिए आवश्यक है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 3.
फास्फोरस की कमी की निशानियां बताओ।
उत्तर-

  1. फास्फोरस की कमी से फसल की वृद्धि धीमी, कद छोटा तथा फसल देरी से पकती है।
  2. फास्फोरस की कमी के चिन्ह निचले पत्तों से आरंभ होते हैं। पत्तों का रंग गहरा हरा, बैंगनी हो जाता है, खासकर नाड़ियों के बीच के हिस्से का। कई बार पत्तियों की डंडियों तथा टहनियों का रंग भी बैंगनी हो जाता है।
  3. फसल छोटी रह जाती है। गेहूं में निचले पत्तों का रंग पीला भूरा हो जाता है।

प्रश्न 4.
पौधों में लोहे के लाभ तथा कमी के चिन्हों पर रोशनी डालें।
उत्तर-
लोहे के लाभ—

  1. लोहा अधिक क्लोरोफिल बनने में सहायता करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो पौधे में ऑक्सीजन तथा लघुकरण क्रियाएं लाते हैं।
  3. लोहा प्रोटीन बनने के लिए आवश्यक है।

लोहे की कमी के चिन्ह-लोहे की कमी के चिन्ह नए पत्ते तथा टहनियों से आरंभ होते हैं। पत्तों की नाड़ियों के बीच के हिस्से का रंग पीला हो जाता है तथा पुराने पत्ते हरे रहते हैं। पौधे का कद छोटा तथा तना पतला हो जाता है। अधिक कमी की सूरत में तो सारा पत्ता नाड़ियों समेत पीला हो जाता है, नए पत्ते बहुत पीले अथवा सफ़ेद हो जाते हैं। कई बार पत्तों पर लाल भूरे रंग की लकीरें पड़ जाती हैं तथा पत्ते सूख भी जाते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 5.
गेहूं में मैंगनीज़ के लाभ तथा इसकी कमी के चिन्ह के बारे में बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज़ के लाभ—

  1. यह क्लोरोफिल बनने में मदद करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो ऑक्सीजन तथा लघुकरण की क्रियाओं में तेजी लाते हैं। यह पौधे के सांस लेने तथा अधिक प्रोटीन बनने में मदद करते हैं।

गेहूं में मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह-इस फसल पर मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह बीच के पत्तों पर लगभग पहला पानी लगाने के समय दिखाई देते हैं। कमी पहले पत्ते से नीचे दो-तिहाई हिस्से पर सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक सलेटी भूरे रंग के दानेदार दाग पड़ जाते हैं। अधिक कमी हो तो यह दानेदार दाग लाल भूरी धारियां बन जाती हैं। पत्ते सूख भी जाते हैं। पौधों के कद तथा जड़े छोटी रह जाती हैं।

फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पौधे के फलने-फूलने के लिए 17 पोषक तत्त्व आवश्यक हैं।
  • पौधे में रासायनिक परिवर्तन में पोषक तत्त्वों की सीधी भूमिका है।
  • मुख्य पोषक तत्त्व हैं-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, पोटाशियम, फास्फोरस, ऑक्सीजन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक (सल्फर)।
  • लघु तत्त्व हैं-लोहा, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़।
  • पौधे हवा में से ऑक्सीजन तथा कार्बन प्राप्त करते हैं तथा हाइड्रोजन तत्त्व को पानी से।
  • कई फलीदार फसलें हवा में से नाइट्रोजन को अपनी वृद्धि के लिए प्रयोग कर सकती हैं।
  • नाइट्रोजन पौधे में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का आवश्यक अंग है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व की आवश्यकता फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग के लिए होती है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व वाली खादें हैं-यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड आदि।
  • फास्फोरस तत्त्व पौधे में नई कोशिकाओं को बनाने, फूल, फल तथा बीज बनाने में सहायक है।
  • फास्फोरस तत्त्व वाली खादें हैं-डाया, सुपर फास्फेट, डी०ए०पी०, एन०पी०के०
  • आषाढ़ी की फसलों पर फास्फोरस तत्त्व का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • पोटाशियम रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
  • पोटाशियम की पूर्ति के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश खाद का प्रयोग होता है।
  • गंधक, प्रोटीन तथा एन्जाइमों का अभिन्न अंग है।
  • गंधक, पत्तों में क्लोरोफिल बनाने में सहायक है।
  • गंधक की कमी होने से जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
  • यदि गंधक की कमी हो तो सुपरफास्फेट का प्रयोग करना चाहिए इसमें फास्फोरस के साथ-साथ गंधक भी होती है।
  • बहुत-से एन्जाइमों में जिंक होता है।
  • अधिक मात्रा में फास्फोरस तथा कार्बोनेट वाली भूमियों में जिंक की कमी देखी जाती है।
  • जिंक की कमी होने से धान की फसल देर से पकती है तथा उत्पादन बहुत कम हो जाता है।
  • गेहूँ में जिंक की कमी के कारण बल्लियाँ देर से निकलती हैं तथा देर से पकती
  • जिंक की कमी दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए।
  • लोहा क्लोरोफिल तथा प्रोटीन बनाने के लिए आवश्यक है।
  • लोहे की कमी होने पर फैरस सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।
  • रेतीली भूमि में बोई गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी हो जाती है।
  • मैंगनीज़ की कमी को दूर करने के लिए मैंगनीज़ सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

SST Guide for Class 7 PSEB नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
किन्हीं चार तीर्थ स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर-
ननकाना साहिब (आधुनिक पाकिस्तान में), अमृतसर, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथ पुरी आदि मुख्य तीर्थ स्थान हैं।

प्रश्न 2.
मुग़ल साम्राज्य के कोई दो राजधानी नगरों के नाम लिखें।
उत्तर-
मुग़ल काल के दो प्रमुख राजधानी नगर दिल्ली तथा आगरा थे।

प्रश्न 3.
अमृतसर नगर की नींव किस गुरु साहिबान ने तथा कब रखी थी ?
उत्तर-
अमृतसर सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। इसकी नींव चौथे सिख गुरु श्री गुरु रामदास जी ने 1577 ई० में रखी थी। आरम्भ में अमृतसर का नाम चक्क गुरु रामदासपुरा था। श्री गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा में अमृतसर और सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई का काम आरम्भ किया था। परन्तु उनके ज्योति-जोत समा जाने के बाद पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी ने इस कार्य को सम्पूर्ण करवाया।

महत्त्व-1604 ई० में अमृतसर के श्री हरमन्दर साहिब में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश किया गया। 1609 ई० में यहां छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने श्री हरमन्दर साहिब के पास श्री अकाल तख्त का निर्माण करवाया। गुरु जी यहां बैठकर गुर-सिखों से घोड़ों और हथियारों की भेंट स्वीकार करते थे। यहां बैठकर राजनीतिक मामलों पर भी विचार-विमर्श किया जाता था। आज भी सिख धर्म से संबंधित धार्मिक निर्णयों की घोषणा यहां पर ही की जाती है। 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने श्री हरमन्दर साहिब के गुम्बदों पर सोने का पत्र लगवाया। तब से इसका नाम स्वर्ण मन्दर पड़ गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 4.
सूरत कहां पर स्थित है ?
उत्तर-
सूरत एक प्रसिद्ध बन्दरगाह और व्यापारिक नगर है। यह गुजरात राज्य में स्थित है। यह बड़े उद्योगों तथा व्यापार का केन्द्र है। शिवाजी मराठा ने इसे दो बार लूटा था और उसके हाथ बहुत-सी धन-दौलत लगी थी। 1512 ई० में इस पर पुर्तगालियों का अधिकार हो गया। 1573 ई० में सूरत अकबर के अधिकार में आ गया। अकबर के अधीन सूरत भारत का प्रमुख व्यापारिक नगर बन गया। 1612 ई० में अंग्रेज़ों ने सम्राट जहांगीर से यहां व्यापार करने की रियायतें प्राप्त कर लीं। यहां पुर्तगालियों, डचों और फ्रांसीसियों ने अपने-अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये। 1759 ई० में अंग्रेजों ने सूरत के किले पर अधिकार कर लिया परन्तु पूरी तरह सूरत पर उनका अधिकार 1842 ई० में हुआ। यहां स्थित ख्वाजा साहिब की मस्जिद तथा नौ सैय्यदों की मस्जिद प्रसिद्ध है। यहां का स्वामी नारायण का मन्दिर और जैनियों के पुराने मन्दिर बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. अमृतसर की नींव …………….. द्वारा रखी गई।
  2. लाहौर …………….. तक तुर्क साम्राज्य की राजधानी थी।
  3. सूरत एक ……………. है।
  4. ननकाना साहिब …………… में स्थित है।
  5. भारत में बहुत सारे बन्दरगाह ……………. हैं।

उत्तर-

  1. श्री गुरु रामदास जी
  2. इल्तुतमिश
  3. प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा व्यापारिक नगर
  4. पाकिस्तान
  5. नगर।

III. निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिहन लगाएं

  1. मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों का राजधानी नगर था।
  2. 1629 ई० में शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
  3. सूरत एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान था।
  4. फतेहपुर सीकरी मुग़लों का एक राजधानी नगर था।
  5. लाहौर मध्यकालीन युग में एक व्यापारिक नगर था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

PSEB 7th Class Social Science Guide नगर, व्यापारी तथा कारीगर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उन स्रोतों का वर्णन करो जो मुग़ल काल के नगरों की जानकारी देते हैं।
उत्तर-
1. भारत की यात्रा करने वाले एक पुर्तगाली यात्री दुर्त बारबोसा तथा एक अंग्रेज़ यात्री गल्फ़ फिज्ज के वृत्तान्तों से हमें उस काल के नगरों की जानकारी मिलती है।

2. होनडिऊ (Hondiu) द्वारा तैयार किये गए ‘मुग़ल साम्राज्य 1629 ई० में’ के नक्शे में थट्टा, लाहौर, सूरत और मुलतान आदि स्थान दिखाये गए हैं।

3. मुग़लों के भूमि-लगान के सरकारी दस्तावेज़ों और भूमि ग्रांटों से भी हमें नये तथा पुराने नगरों के बारे पता चलता है।

प्रश्न 2.
मध्यकाल से सम्बन्धित निम्नलिखित की सूची बनाइये ( प्रत्येक के चार-चार)
(क) राजधानी नगर
(ख) बन्दरगाह नगर
(ग) व्यापारिक नगर।
उत्तर-
(क) राजधानी नगर-लाहौर, फतेहपुर सीकरी, दिल्ली तथा आगरा।
(ख) बन्दरगाह नगर-कोचीन, सूरत, भड़ौच तथा सोपारा।
(ग) व्यापारिक नगर-दिल्ली, आगरा, सूरत तथा अहमदनगर।

प्रश्न 3.
मुगलकाल के शासन-प्रबन्ध की जानकारी के दो स्रोत बताओ।
उत्तर-

  1. विदेशी यात्री बर्नियर का वृत्तान्त
  2. विलियम हाकिन्ज़ तथा सर टॉमस रो द्वारा तैयार किए गए नक्शे।

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प्रश्न 4.
नगरों का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
कृषि की खोज के बाद आदि मानव अपने खेतों के समीप ही रहने लगा। समय बीतने पर जब काफ़ी संख्या में लोग गांवों में रहने लगे, तो इनमें से बहुत से गांव उन्नति करके नगर बन गये। इनमें से कुछ नगर धार्मिक व्यक्तियों, व्यापारियों, कारीगरों और शासक वर्ग की गतिविधियों के कारण विकसित हुए थे। कुछ का दरबारी (राजधानी) नगरों, तीर्थ स्थानों, बन्दरगाह नगरों और कुछ का व्यापारिक नगरों के रूप में विकास हुआ।

प्रश्न 5.
प्राचीन काल से लेकर मुग़ल काल तक राजधानी अथवा दरबारी नगरों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
प्राचीन काल-

  1. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों के राजधानी नगर थे।
  2. वैदिक काल में अयोध्या और इन्द्रप्रस्थ राजधानी नगर थे।
  3. 600 ई० पूर्व में 16 महाजनपदों के अपने-अपने राजधानी नगर थे। इनमें से कौशाम्बी, पाटलिपुत्र और वैशाली प्रमुख थे।

राजपूत काल-
(1) राजपूत शासकों के अधीन (800-1200 ई०) तक अजमेर, कन्नौज, त्रिपुरी, दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) दक्षिण भारत में कांची, बदामी, कल्याणी, वैंगी, देवगिरि, मानखेत, तंजौर और मदुरै आदि राजधानी नगर थे।

दिल्ली सल्तनत तथा मुग़ल काल-
(1) दिल्ली सल्तनत के समय लाहौर और दिल्ली का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) मुग़ल काल में दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि राजधानी नगर थे।

प्रश्न 6.
भारत में बहुत से बन्दरगाह नगरों का विकास हुआ; क्यों?
उत्तर-
भारत के तीन ओर समुद्र लगते हैं। इसी कारण भारत में बहुत से व्यापारिक नगरों का विकास हुआ।

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प्रश्न 7.
मध्यकालीन युग में भारत की पूर्वी तट की दो प्रमुख बन्दरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
विशाखापट्टनम (आधुनिक आन्ध्र प्रदेश में) तथा ताम्रलिप्ती।

प्रश्न 8.
भारत के आर्थिक विकास में व्यापारियों तथा कारीगरों के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
भारत में आर्थिक विकास में भारतीय व्यापारियों और कारीगरों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय कारीगर कई प्रकार का बढ़िया माल तैयार करने में निपुण थे। वे कपड़ा-उद्योग में भी बहुत कुशल थे। उनके द्वारा तैयार किया गया ऊनी, सूती और रेशमी कपड़ा संसार भर में विख्यात था। उनके द्वारा बनाया गया चमड़े का सामान भी बहुत लोकप्रिय था।

मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों का योगदान-मध्यकालीन युग में धातुएं बनाने की कला का बहुत अधिक विकास हुआ। लोहार और सुनियार उत्तम कोटि का माल तैयार करते थे। इस माल को भारत के व्यापारियों ने दूसरे देशों में भेजा। इस प्रकार भारतीय कारीगरों और व्यापारियों ने भारत को धनी एवं समृद्ध बनाने में सहायता की।

भारत के व्यापारियों और कारीगरों ने अपने-अपने गिल्ड (संघ) स्थापित कर लिये। इन संघों ने अलग-अलग प्रकार का उच्च कोटि का माल तैयार करने में कारीगरों और व्यापारियों की सहायता की। विदेशी माल इस माल का मुकाबला नहीं कर पाते थे।

प्रश्न 9.
लाहौर नगर के ऐतिहासिक महत्त्व बारे लिखो।
उत्तर-
लाहौर पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध शहर है। मध्यकाल में यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण नगर था। भारत पर तुर्कों के आक्रमण के समय लाहौर हिन्दूशाही वंश के शासकों की राजधानी थी। इसके बाद लाहौर कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश की राजधानी रहा। इल्तुतमिश ने बाद में दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया।

भारत पर बाबर के आक्रमण के समय दौलत खां लोधी पंजाब का राज्यपाल था। मुग़लों के राज्यकाल में लाहौर पंजाब प्रान्त की राजधानी था। 1761 ई० में लाहौर पर सिखों ने नियन्त्रण कर लिया। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। 1849 ई० में लाहौर पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। 1849 ई० से 1947 ई० तक लाहौर पंजाब राज्य की राजधानी रहा। भारत-विभाजन के बाद लाहौर पाकिस्तान का भाग बन गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

(क) सही जोड़े बनाइट :

  1. सूरत, कोचीन – राजधानी नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – तीर्थ स्थान
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – व्यापारिक नगर
  4. अहमदाबाद अहमदनगर – बंदरगाह नगर।

उत्तर-

  1. सूरत, कोचीन – बंदरगाह नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – राजधानी नगर
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – तीर्थ स्थान
  4. अहमदाबाद , अहमद नगर – व्यापारिक नगर।

(ख) सही उत्तर चुनिए ।

प्रश्न 1.
मध्यकाल में कौन-सा नगर बंदरगाह नगर नहीं था ?
(i) कोचीन
(ii) लाहौर
(iii) सूरत।
उत्तर-
(ii) लाहौर।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 2.
मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों के संघ बने हुए थे। बताइए ये क्या कहलाते थे ?
(i) गिल्ड
(ii) गाइड
(iii) गोपुरम् ।
उत्तर-
(i) गिल्ड।

प्रश्न 3.
चित्र में दिखाया गया भवन सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान है। क्या आप बता सकते हैं कि यह कहां स्थित है ?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर 1
(i) कुरुक्षेत्र
(ii) अमृतसर
(iii) जगन्नाथपुरी।
उत्तर-
(ii) अमृतसर।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

नगर, व्यापारी तथा कारीगर PSEB 7th Class Social Science Notes

  • नगरों का विकास – कृषि की खोज के बाद गांव अस्तित्व में आए। गांवों का विस्तार होने पर नगरों का विकास हुआ।
  • विभिन्न प्रकार के नगर – नगर विभिन्न प्रकार के थे; जैसे-राजधानी नगर, तीर्थ स्थान, बन्दरगाह नगर, व्यापारिक नगर आदि।
  • व्यापारी तथा कारीगर – मध्यकाल में भारतीय कारीगर उच्चकोटि का माल बनाते थे। भारतीय व्यापारियों ने इस माल को विदेशों में भेजा और प्राप्त धन से देश को धनी तथा समृद्ध बनाया।
  • सूरत – सूरत मध्यकाल में एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक तथा व्यापारिक नगर था।
  • लाहौर – लाहौर आधुनिक पाकिस्तान में स्थित है। यह लम्बे समय तक पंजाब की राजधानी रहा।
  • अमृतसर – यह सिखों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। मध्यकाल में यह एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नगर था। यहां स्थित हरमन्दर साहिब विश्व भर में प्रसिद्ध है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी-परीक्षण करवाने का नमूना कितनी गहराई तक लेना चाहिए ?
उत्तर-
6 इंच की गहराई तक।

प्रश्न 2.
मिट्टी-परीक्षण करवाने हेतु लिए जाने वाले नमूने की मात्रा बताएं।
उत्तर-
आधा किलोग्राम।

प्रश्न 3.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्ढा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
3 फुट गहरा।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 4.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण हेतु नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्डा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
6 फुट गहरा।

प्रश्न 5.
सिंचाई के लिए जल-परीक्षण करवाने हेतु नमूना लेने के लिए कितना समय ट्यूबवैल चलाना चाहिए ?
उत्तर-
आधा घंटा।

प्रश्न 6.
मिट्टी और जल-परीक्षण कितने समय बाद करवा लेना चाहिए ?
उत्तर-
प्रत्येक तीन वर्ष बाद।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 7.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो लघु तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
जिंक, लोहा, मैंगनीज़।

प्रश्न 8.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो मुख्य तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन, फास्फोरस

प्रश्न 9.
क्या पानी का नमूना लेने के लिए प्रयोग में ली जाने वाली बोतल को साबुन से धोना चाहिए ?
उत्तर-
नहीं धोना चाहिए।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 10.
जल-परीक्षण से मिलने वाले किसी एक परिणाम का नाम लिखो।
उत्तर-
पानी का खारापन, चालकता का पानी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
मिट्टी का नमूना लेने का सही समय क्या होता है ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने लेने का सही समय फसल काटने के बाद का है।

प्रश्न 2.
खड़ी फसल में से नमूना लेने का सही तरीका बताएं।
उत्तर-
खड़ी फसल में से नमूना लेना हो तो फसल की कतारों में से नमूना लेना चाहिए।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 3.
मिट्टी और जल-परीक्षण के लिए सही तरीके से नमूना लेना क्यों आवश्यक
उत्तर-
गलत तरीके से मिट्टी तथा पानी का नमूना लेकर तथा परीक्षण करवाने से सही जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए नमूना सही ढंग से लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों के बहुत सारे ज़मीनी क्षेत्रों में भूमिगत पानी की क्या समस्या है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत सारे क्षेत्र में भूमिगत जल नमकीन अथवा खारा है।

प्रश्न 5.
मिट्टी के नमूने की थैली पर क्या जानकारी लिखनी चाहिए ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने की थैली पर निम्नलिखित जानकारी लिखनी चाहिए

  1. खेत का नंबर
  2. किसान का नाम तथा पता
  3. नमूना लेने का तरीका।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 6.
बाग लगाने के लिए मिट्टी का नमूना लेते समय कंकड़ों की परत मिलने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि कंकड़ों की परत मिल जाए तो इसका नमूना अलग से भरना चाहिए तथा इसकी गहराई तथा मोटाई की जानकारी भी नोट करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
मिट्टी का परीक्षण किन तीन उद्देश्यों के लिए करवाया जाता है ?
उत्तर-

  1. फसलों के लिए उर्वरकों की आवश्यकता तथा उनकी मात्रा पता करने के लिए
  2. कल्लराठी भूमि के सुधार के लिए
  3. बाग लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

प्रश्न 8.
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से ज़मीन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर–
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से भूमि कल्लराठी हो जाती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 9.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण करवाते समय एक जगह से कितने नमूने लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाते समय एक स्थान से लगभग 6-7 नमूने लिए जाते हैं।

प्रश्न 10.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना कितनी-कितनी गहराई से लिया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्डा खोदा जाता है। जिसमें 0-6, 6-12, 12-24 तथा 24-36 इंच गहराई से नमूने लिए जाते हैं।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
मिट्टी-परीक्षण की महत्ता के बारे में लिखो।
उत्तर-
अधिक उपज तथा गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त करने के लिए खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण करने से मिट्टी में कौन-से आवश्यक तत्त्वों की कमी है तथा कितनी है, इसकी जानकारी मिलती है। इस तरह खादों का उचित प्रयोग हो सकता है। खाद का आवश्यकता से अधिक प्रयोग भूमि के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

मिट्टी की जांच करवाने से हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, जैविक मादा, खारी अंग, आवश्यक तत्त्वों की मात्रा का पता लगता है। इस प्रकार मिट्टी की परख का बहुत ही महत्त्व है ताकि इससे सफल फसल प्राप्त की जा सके।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 2.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण कराने हेतु नमूना लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
भूमि की ऊपरी सतह से छः फुट की गहराई तक नमूना लिया जाता है। यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होना चाहिए। यह चित्र में दिखाए अनुसार लेना चाहिए।

पहला नमूना 6 इंच तक फिर 6 इंच से 1 फुट तक, 1 फुट से 2 फुट तक, 2 फुट से 3 फुट तक, 3 से 4 फुट तक, 4 से 5 फुट तक, 5 से 6 फुट तक अर्थात् प्रत्येक फुट के निशान तक नमूना लिया जाता है। (1 फुट = 12 इंच)
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 1
नमूना गड्ढे के सीधी तरफ से खुरपे की सहायता से लिया जाता है। एक इंच मोटी सतह एक जैसे निकाली जाती है।
नमूना लेने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—

  1. यदि भूमि की सतह सख़्त अथवा कंकड़ों वाली हो तो इसका नमूना अलग भरना चाहिए और इसकी गहराई और मोटाई नोट कर लेनी चाहिए।
  2. प्रत्येक तह के लिए विभिन्न नमूने लेने चाहिएं। प्रत्येक नमूना आधा किलो का होना चाहिए।
  3. हर थैली के अंदर और बाहर लेबल लगा देने चाहिएं उस पर नमूने का विवरण हो।

प्रश्न 3.
ट्यूबवैल के पानी का सही नमूना लेने का तरीका लिखो।
उत्तर-
ट्यूबवैल का बोर करते समय पानी की प्रत्येक सतह से प्राप्त नमूने का परीक्षण करवाना चाहिए। पानी का नमूना लेने के लिए कुएँ या ट्यूबवैल को आधा घंटा तक चलाना चाहिए। पानी का नमूना साफ़ बोतल में लेना चाहिए। बोतल पर अग्रलिखित सूचना का पर्चा चिपका देना चाहिए—

  1. नाम,
  2. गाँव और डाकखाना,
  3. ब्लाक,
  4. तहसील,
  5. ज़िला,
  6. पानी की सतह,
  7. मिट्टी की किस्म जिसे पानी लगता है।

बोतल को साफ़ कार्क लगाकर, अच्छी तरह बंद कर दें और प्रयोगशाला में भेज दें। बोतल को साबुन अथवा कपड़े धोने वाले सोडे से साफ नहीं करना चाहिए।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 4.
मिट्टी और जल-परीक्षण कहाँ से करवाया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी और जल-परीक्षण किसी नज़दीक की मिट्टी जांच प्रयोगशाला से करवाया जा सकता है। मिट्टी तथा पानी की जांच पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में भी करवाई जा सकती है। पी० ए० यू० के क्षेत्रीय खोज केंद्र गुरदासपुर तथा बठिंडा से भी यह परख करवाई जा सकती है। कृषि विभाग पंजाब तथा कुछ अन्य संस्थाओं द्वारा भी मिट्टी तथा पानी परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इनसे भी किसान मिट्टी तथा पानी की जांच करवा सकता है।

प्रश्न 5.
मिट्टी और जल-परीक्षण में मिलने वाले परिणामों से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
मिट्टी का परीक्षण करवाने से निम्नलिखित जानकारी मिलती है—
मिट्टी की किस्म, इसके क्षारीय अंग, नमकीन पदार्थ (चालकता), जैविक कार्बन, पोटाश, नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे मुख्य तत्त्वों तथा लघु तत्त्वों; जैसे-लोहा, जिंक, मैंगनीज़ आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
इसी प्रकार पानी की जांच से पानी का खारापन, चालकता, क्लोरीन तथा पानी में सोडे की किस्म तथा मात्रा की जानकारी प्राप्त होती है।
मिट्टी तथा पानी की जांच प्रत्येक तीन वर्ष बाद करवाते रहना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण से हमें भूमि के बारे में मिलने वाली जानकारी का एक पक्ष बताओ।
उत्तर-
भूमि की उपजाऊ शक्ति का पता चलता है।

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प्रश्न 2.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए किस आकार का गड्ढा खोदा जाता है ?
उत्तर-
अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ आकार का।

प्रश्न 3.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी की जांच करवाने के लिए नमूना कितने स्थानों से लेना चाहिए ?
उत्तर-
7-8 स्थानों से।

प्रश्न 4.
मिट्टी के नमूने अलग-अलग कब भरने चाहिएं ?
उत्तर-
जब मिट्टी की किस्म तथा उपजाऊ शक्ति भिन्न-भिन्न हो।

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प्रश्न 5.
कल्लर वाली भूमि से मिट्टी की जांच करवाने के लिए गड्ढा किस आकार का होता है ?
उत्तर-
यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होता है।

प्रश्न 6.
खारे पानी से लगातार सिंचाई करते रहने से भूमि की उपजाऊ शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। प्रश्न 7. पी० ए० यू० के कौन-से क्षेत्रीय खोज केंद्र में मिट्टी, पानी का परीक्षण करवाया जा सकता है ? उत्तर-गुरदासपुर तथा बठिंडा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण करवाने का क्या मंतव्य है ?
उत्तर-
फसलों के लिए खादों की आवश्यकता का पता लगाना, कल्लराठी भूमि का सुधार करना तथा बाग़ लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

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प्रश्न 2.
कल्लरी भूमि और साधारण भूमि में से मिट्टी का नमूना लेने में क्या अंतर है ?
उत्तर-
कल्लरी भूमि में एक गड्डा 3 फीट तक खोदा जाता है जबकि साधारण भूमि में विभिन्न गड्डे 6 इंच तक खोदे जाते हैं।
कल्लरी भूमि में एक गड्ढे में से 6 इंच, 1 फुट, 2 फुट, 3 फुट इत्यादि गहराइयों से नमूने लेने के लिए विभिन्न थैलियां बनाई जाती हैं जबकि साधारण भूमि में विभिन्न स्थानों की मिट्टी मिलाकर एक ही थैली में डाली जाती है।

प्रश्न 3.
किस मिट्टी में खाली स्थान अधिक होता है ?
उत्तर-
जिस मिट्टी की बनावट कणों वाली हो और जिसमें जैविक पदार्थ हों। उसमें खाली स्थान अधिक होता है।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि कितनी किस्म की होती है ?
उत्तर-
यह तीन किस्म की है-लवणी, क्षारीय और लवणी-क्षारीय।

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प्रश्न 5.
लवणी भूमि का क्षारीय अंश और लवणों की मात्रा कितनी होती है ?
उत्तर-
लवणों की मात्रा 0.8 मिली प्रति सेमी० से अधिक और क्षारीय अंश 8.7 से कम होता है।

प्रश्न 6.
क्षारीय भूमि लवणी भूमि से कैसे अलग है ?
उत्तर-
क्षारीय भूमि में सोडियम के लवणों की मात्रा अधिक होती है। लवण युक्त भूमि में इसकी मात्रा बहुत कम या नाममात्र होती है।

प्रश्न 7.
लवणी-क्षारीय भूमियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
इन भूमियों में खारापन और नमक दोनों ही अधिक मात्रा में होते हैं।

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प्रश्न 8.
तेजाबी भूमि के सुधार के लिए क्या किया जाता है ?
उत्तर-
इसके लिए चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त गन्ना मिल की गंदगी और लकड़ी की राख प्रयोग में लाई जा सकती है।

प्रश्न 9.
जिप्सम की प्राप्ति कहां से की जा सकती है ?
उत्तर-
यह 50 किलो के बंद बोरों में मार्केटिंग फैडरेशन अथवा भूमि-विकास और बीज कॉर्पोरेशन से तहसील और ब्लॉक स्तर पर मिल जाता है।

प्रश्न 10.
बाग के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
उपजाऊ, मल्हड़ और अच्छे निकास वाली।

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प्रश्न 11.
बाग कैसी भूमि पर नहीं लगाना चाहिए ?
उत्तर-
सेम युक्त, क्षारीय या कल्लर वाली भूमि।

प्रश्न 12.
कैसा पानी सिंचाई के लिए कभी नहीं प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जिस पानी में नमक की मात्रा अधिक हो उसे कभी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

प्रश्न 13.
मिट्टी का परीक्षण करवाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
मिट्टी के भौतिक तथा रासायनिक गुणों के बारे में जानकारी लेने तथा मिट्टी में मौजूद खुराकी (आहारीय) तत्त्वों की उपलब्धता के बारे में जानकारी लेने के लिए मिट्टी का परीक्षण करवाया जाता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी खेत में से मिट्टी का नमूना लेने की विधि बताएं।
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए किसान के पास कुदाल, खुरपा और तसला होना चाहिए। यदि रासायनिक खादों के प्रयोग की सिफ़ारिश के लिए नमूना लेना हो तो निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करें—

सबसे पहले खेत का कोरे कागज़ पर नक्शा तैयार करें। इस नक्शे का खसरे के साथ कोई संबंध नहीं है। इस नक्शे पर अपने हिसाब से कोई भी नंबर लगाओ। नक्शे से हर वक्त पता चलता रहेगा कि नमूना किस खेत में से लिया है। चित्र देखें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 2
खेत में से नमूना भरने के लिए 10-15 स्थानों से मिट्टी लें। खेत के किसी निशान पर खड़े हो जाएं। यहां कुदाल से गहरा गड्ढा बनाओ। यह अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ के आकार का बनेगा।

इसे खुरपे से सीधा करें। इस सीधी की गई दिशा की ओर 6″ गहराई पर निशान लगाएं और धरती से एक अंगुली की मोटाई पर एक पपड़ी 6″ के निशान तक काटकर तसले में डाल दें। इस तरह सारे खेत में से 10 से 15 यहां-वहां ठिकानों से मिट्टी इकट्ठा करें। तसले में सारी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाएं और छाया में सुखाकर एक कपड़े की थैली में भर लें।

प्रश्न 2.
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के साथ कौन-सी सूचना भेजी जाती है?
उत्तर-
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के नमूने के साथ निम्नलिखित सूचना भेजनी चाहिए—

  1. खेत का नंबर और नाम
  2. नमूना कब लिया।
  3. किसान का नाम पता।
  4. नमूने की गहराई।
  5. फसल चक्कर।
  6. सिंचाई के साधन।
  7. खेत में प्रयोग की गई खादों का विवरण।

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प्रश्न 3.
मिट्टी का नमूना लेने सम्बन्धी कौन-सी हिदायतें हैं ?
उत्तर-

  1. भूमि की ऊपरी सतह से घास-फूस हटा दें, पर मिट्टी न खुरचें।
  2. अगर मिट्टी में कोई ढेला हो तो उसे तोड़कर मिला दें।
  3. जहां पुरानी बाड़ या खाद के ढेर या खाद बिखरी हो उस स्थान से मिट्टी का नमूना नहीं लेना चाहिए।
  4. मिट्टी का नमूना साल में कभी भी लिया जा सकता है, पर गेहूँ की कटाई के बाद श्रावण की फसल की बिजाई से पहले नमूना लेना लाभदायक है।
  5. अगर पत्थर या कंकड़ हों, तो इन्हें ऐसे ही रहने दें, इन्हें तोड़ने की आवश्यकता नहीं।
  6. गीली मिट्टी को छाया में सुखा लेना चाहिए। मिट्टी को धूप या आग पर नहीं सुखाना चाहिए।
  7. यदि एक खेत में मिट्टी का कुछ हिस्सा अलग प्रकार का हो तो उसका नमूना अलग तौर से लें। अन्य खेत की मिट्टी में इस स्थान का नमूना नहीं मिलाना चाहिए।
  8. 3-4 वर्ष के बाद खेत की मिट्टी का परीक्षण ज़रूर करवाएं। कोशिश करें कि एक पूरे फसली चक्कर के बाद मिट्टी का परीक्षण हो।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि में से नमूने लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
कल्लरी भूमि में क्षार और लवणों की मात्रा पानी के उतार-चढ़ाव से बढ़तीघटती रहती है। इस मिट्टी के नमूने गहराई से लेने चाहिएं।
कल्लरी मिट्टी के नमूने लेने के लिए कल्लर वाले खेत में चित्र अनुसार 3 फुट गहरा गड्ढा खोदें। गड्डे का नमूना चित्र में दिया गया है। नमूना लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें—
1. गड्डे के ऊपरी तरफ भूमि के स्तर से नीचे की ओर 6 इंच, एक फुट, दो फुट और तीन फुट के फासले पर निशान लगाएं।

2. 6 इंच के निशान पर तसला रखकर भूमि की सतह से नीचे 6 इंच के निशान तक एक-जैसा टुकड़ा निकालें, यह आधा किलो के लगभग होना चाहिए।

3. इस तरह मिट्टी के एक-जैसे टुकड़े (लगभग आधा किलो मिट्टी) भूमि की निचली सतहों में से जैसे कि 6 इंच से एक फुट, एक फुट से दो फुट, दो फुट से तीन फुट आदि के निशान के बीच में से नमूने लें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 3

4. यदि भूमि की सतह सख्त अथवा रोड़ी वाली हो तो इसकी गहराई और मोटाई को माप कर इसका नमूना अलग लें।

5. इनके नमूनों को अलग तौर पर साफ़ कपड़े की थैलियों में डालें। सही नमूने पर ध्यान से लेबल लगाएं। एक थैली के अंदर और दूसरा थैली के बाहर। यह सूचना भी साफ़ लिखें जिससे मिट्टी की गहराई का पता चल सके।

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कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • खाद के उचित प्रयोग के लिए मिट्टी परीक्षण आवश्यक है।
  • हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, उसके क्षारीय अंग, जैविक कार्बन तथा आवश्यक तत्त्वों की मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण से मिलती है।
  • फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करना हो तो ‘V’ आकार का छः इंच गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • कल्लर वाली भूमियों से मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए खेत में 6 फुट गहरा गड्ढा बनाया जाता है।
  • दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत-से क्षेत्रफल का भूमिगत जल नमकीन है।
  • ट्यूबवैल से पानी का नमूना लेने के लिए ट्यूबवैल को कम-से-कम आधा घंटा चलता रहने देना चाहिए।
  • मिट्टी तथा पानी का परीक्षण पी० ए० यू०. लुधियाना में किया जाता है तथा कुछ अन्य संस्थाएं भी यह निरीक्षण करती हैं।
  • किसानों को प्रत्येक तीसरे वर्ष मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 6 खेलों का महत्त्व

PSEB 7th Class Physical Education Guide खेलों का महत्त्व Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
कोई दस बड़ी और छोटी खेलों के नाम लिखो।
उत्तर-
बड़ी खेलें-

  1. फुटबाल
  2. हॉकी
  3. क्रिकेट
  4. टेबिल टेनिस
  5. खो-खो
  6. वालीबाल
  7. बास्कटबाल
  8. बैडमिन्टन
  9. कुश्ती
  10. कबड्डी।

छोटी खेलें-

  1. रूमाल उठाना
  2. कोटला छपाकी
  3. गुल्ली डण्डा
  4. लीडर ढूंढना
  5. बिल्ली -चूहा
  6. तीन-तीन या चार-चार
  7. जंग पलंगा
  8. राजे रानियां
  9. मथौला घोड़ी
  10. चक्कर वाली खो-खो।

प्रश्न 2.
मनुष्य की मूल कुशलताएं कौन-सी हैं ? इन मूल कुशलताओं से आजकल की खेलें कैसे प्रकाश में आईं ?
उत्तर-
चलना, भागना, कूदना, वृक्षों पर चढ़ना आदि मनुष्य की मूल कुशलताएं हैं। जैसे-जैसे मनुष्य के काम-धन्धों में उन्नति हुई, उसके साथ-साथ ही इन कुशलताओं के समन्वय में भी उन्नति हुई। मनुष्य ने इन क्रियाओं को जोड़कर खेलों में बदल दिया। धीरे-धीरे खेलों के वे रूप सम्पूर्ण विश्व में फैल गए।

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प्रश्न 3.
एक व्यक्ति के लिए खेलों से क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
एक व्यक्ति के लिए खेलों से निम्नलिखित लाभ हैं—
1. शरीर की वृद्धि और विकास (Development and growth of Body खेलें व्यक्ति के शरीर को सुदृढ़ बनाती हैं। वे उसके शरीर में चुस्ती एवं फुर्ती लाती हैं। खेलों से मनुष्य का शारीरिक विकास होता है।

2. खाली समय का उचित प्रयोग (Proper use of leisure time) खेलों के द्वारा व्यक्ति अपने खाली समय का उचित प्रयोग कर सकता है। खेलों के कारण व्यक्ति बहुत-से बुरे कामों से बच जाता है। खेलें मन को शैतान का घर नहीं बनने देती।

3. भावनाओं पर नियन्त्रण (Full control over Emotion)-खेलों से व्यक्ति भय, क्रोध, चिन्ता, उदासी आदि भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखता है।

4. आज्ञा का पालन (Obedience) खेलों से व्यक्ति में आज्ञा पालन का गुण विकसित होता है।
5. सहयोग की भावना (Spirit of co-operation)-खेलों से खिलाड़ियों में आपसी सहयोग की भावना आती है।
6. समय का पालन (Punctuality)-खेलें व्यक्ति को समय का पालन करना सिखाती हैं।
7. सहनशीलता (Tolerance) खेलें सहनशीलता के गुण का विकास करती हैं।
8. आत्म-विश्वास (Self Confidence)-खेलों से व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा होता है।
9. दृढ़ निश्चय (Firm Determination) खेलें व्यक्ति में दृढ़ निश्चय का विकास करती हैं।
9. प्रतियोगिता की भावना (Spirit of Competition) खेलों से खिलाड़ियों में प्रतियोगिता की भावना विकसित होती है।
10. ज़िम्मेदारी की भावना (Spirit of Responsibility) खेलों द्वारा व्यक्ति में ज़िम्मेदारी की भावना विकसित होती है।

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प्रश्न 4.
खेलों के खेलने से एक व्यक्ति में कौन-कौन से गुण विकसित होते हैं ?
उत्तर-
खेलों के गुण (Quality of Sports)-खेलें मनुष्य में निम्नलिखित गुण विकसित करती हैं—
1. अच्छा स्वास्थ्य (Gopd Health) खेलें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। खिलाड़ियों के भागने, कूदने और उछलने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से काम करना आरम्भ कर देते हैं। दिल, फेफड़े और पाचन आदि सभी अंग ठीक प्रकार से काम करना आरम्भ कर देते हैं। मांसपेशियों में शक्ति और लचक बढ़ जाती है। जोड़ लचकदार हो जाते हैं और शरीर में चुस्ती आ जाती है। इस प्रकार खेलों से स्वास्थ्य में सुधार होता है।

2. सुडौल शरीर (Conditioned Body) खेलों में खिलाड़ी को भागना पड़ता है, जिससे उसका शरीर सुडौल हो जाता है। इससे उसके व्यक्तित्व में निखार आ जाता है।

3. संवेगों का सन्तुलन (Full Control over Emotion) संवेगों का सन्तुलन सफल जीवन के लिए आवश्यक है। यदि इस पर नियन्त्रण न रखा जाए तो क्रोध, उदासी, अहंकार मनुष्य को चक्कर में डाल कर उसके व्यक्तित्व को नष्ट करते हैं। खेलें मनुष्य का मन जीवन की उलझनों से दूर हटाती हैं, उसका मन प्रसन्न करती हैं और उसे संवेगों पर नियन्त्रण करने में सफल बनाती हैं।

4. तीव्र बुद्धि का विकास (Development of Intelligence) खेलते समय खिलाडी को हर क्षण किसी-न-किसी समस्या का सामना करना पड़ता है। अड़चन या समस्या को उसी समय अपनी शक्ति के अनुसार हल करना पड़ता है। समाधान ढूंढने में तनिक भी विलम्ब हो जाने से सारे खेल का पासा पलट सकता है। इस प्रकार के वातावरण में प्रत्येक खिलाड़ी हर समय किसी-न-किसी समस्या के हल में लगा रहता है। उसे अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने का अवसर मिलता है। अतः खेलों द्वारा मनुष्य में तीव्र बुद्धि का विकास होता है।

5. चरित्र का विकास (Development of Character) खेल के समय विजयपराजय के लिए खिलाड़ियों को कई प्रकार के प्रलोभन दिए जाते हैं। अच्छे खिलाड़ी भूल कर भी इस जाल में नहीं फंसते और अपने विरोधी पक्ष के हाथों नहीं बिकते। अच्छा खिलाड़ी किसी भी छल-कपट का आश्रय नहीं लेता। इस प्रकार खेलें मनुष्य में कई चारित्रिक गुणों का विकास करती हैं।

6. इच्छा शक्ति प्रबल करती हैं (Development of Will Power) खेलों में खिलाड़ी एकाग्रचित होकर खेलता है। वह उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देता है और साधारणतः सफल भी हो जाता है। यही आदत उसके जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बन जाती है। इस प्रकार खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं।

7. भ्रातृ-भाव की भावना का विकास (Spirit of Brotherhood) खेलों के द्वारा भ्रातृ-भाव की भावना का विकास होता है। इसका कारण यह है कि खिलाड़ी सदा ग्रुपों में खेलता है और ग्रुप के नियमानुसार व्यवहार करता है। इससे वे एक-दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण और भाइयों जैसा व्यवहार करने लगते हैं। इस प्रकार उनका जीवन भ्रातृ प्रेम के आदर्श के अनुसार ढल जाता है।

8. नेतृत्व (Leadership)-खेलों से मनुष्य में नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। खेलों के मैदान से ही हमें अनुशासन, आत्म संयम, आत्म त्याग और मिल-जुल कर देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले सैनिक अधिकारी प्राप्त होते हैं। इसलिए तो ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पराजित करने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध हैरो के खेलों के मैदान में जीता गया।”

9. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना (International Co-operation) खेलें जातीय भेद-भाव को समाप्त करती हैं। प्रत्येक टीम में विभिन्न जातियों के खिलाड़ी होते हैं। उनके इकट्ठे मिलने-जुलने और टीम के लिए एक जुट होकर संघर्ष करने की भावना के कारण जाति-पाति की दीवारें ढह जाती हैं और सादा जीवन में विशाल दृष्टिकोण हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देश के खिलाड़ियों से खेलते हैं और उनसे मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार उनमें मित्रता की भावना बढ़ जाती है। अत: खेलें अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का विकास करती हैं।

10. प्रतियोगिता और सहयोग (Competition and Co-operation)-प्रतियोगिता ही उन्नति का आधार है और सहयोग महान् प्राप्तियों का साधन। विजय प्राप्त करने के लिए टीमें एड़ी-चोटी का जोर लगा देती हैं, परन्तु मैच जीतने के लिए सभी खिलाड़ियों के सहयोग की आवश्यकता होती है। किसी भी एक खिलाड़ी के प्रयत्नों से मैच नहीं जीता जा सकता। अतः प्रतियोगिता और सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए खेलें बहुत उपयोगी हैं।

इनके अतिरिक्त खेलों से मनुष्य में आत्म-विश्वास एवं उत्तरदायित्व निभाने के गुणों का भी विकास होता है।

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प्रश्न 5.
एक राष्ट्र को खेलों से क्या लाभ होते हैं ?
उत्तर-
एक राष्ट्र को खेलों से निम्नलिखित लाभ होते हैं—
1. राष्ट्रीय एकता (National Unity) खेलों द्वारा राष्ट्रीय एकता का विकास होता है। एक राज्य के खिलाड़ी दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों से खेलने के लिए आते-जाते रहते हैं। उनके परस्पर समन्वय से राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है।

2. सीमाओं की रक्षा (Full Protection of the Border of the Country)खेलों में भाग लेने से प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इस प्रकार स्वस्थ जाति का निर्माण होता है। एक स्वस्थ जाति ही अपनी सीमाओं की अच्छी तरह रक्षा कर सकती है।

3. अच्छे और अनुभवी नेता (Good and Experienced Leader) खेलों के द्वारा अच्छे नेता पैदा होते हैं क्योंकि खेल के मैदान में बालकों को नेतृत्व के बहुत-से अवसर मिलते हैं। खेलों के ये नेता बाद में अच्छी तरह से अपने देश की बागडोर सम्भालते हैं।

4. अच्छे नागरिक (Good Citizen)-खेलें बालकों में आज्ञा पालन, नियम पालन, ज़िम्मेदारी निभाना, आत्म-विश्वास, सहयोग आदि के गुणों का विकास करती हैं। इन गुणों से युक्त व्यक्ति श्रेष्ठ नागरिक बन जाता है। श्रेष्ठ और अच्छे नागरिक ही देश की बहुमूल्य सम्पत्ति होते हैं।

5. अन्तर्राष्ट्रीय भावना (International Brotherhood)-एक देश की टीमें दूसरे देशों में मैच खेलने जाती हैं। इससे दोनों देशों के खिलाड़ियों में मित्रता और सूझबूझ बढ़ती है जिससे परस्पर भेद-भाव मिट जाते हैं। इस प्रकार उनमें अन्तर्राष्ट्रीय भावना विकसित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास से शान्ति स्थापित होती है।

Physical Education Guide for Class 7 PSEB खेलों का महत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पहले-पहल मनुष्य किस प्रकार का जीवन व्यतीत करता था ?
उत्तर-
जंगली जीवन।

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प्रश्न 2.
खेलों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
दो।

प्रश्न 3.
भारतीय (या देशीय) खेलें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
कुश्ती, कबड्डी तथा खो-खो।

प्रश्न 4.
बच्चे की प्राकृतिक और मन-पसंद क्रिया क्या है ?
उत्तर-
खेल।

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प्रश्न 5.
हम में जिम्मेवारी की भावना, सहनशीलता, दृढ़ निश्चय, आत्म-विश्वास और प्रतियोगिता की भावना कैसे पैदा हो सकती है ?
उत्तर-
खेलों के द्वारा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शारीरिक क्रियाओं का मनुष्य के जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
प्रत्येक मनुष्य बचपन से ही कोई-न-कोई शारीरिक क्रिया शुरू कर लेता है। शारीरिक क्रिया मनुष्य की एक प्राथमिक आवश्यकता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे उस की शारीरिक क्रियाओं की संख्या भी बढ़ती जाती है। शारीरिक क्रियाओं को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है-प्राकृतिक क्रियाएं और औपचारिक क्रियाएं।
खेलें औपचारिक क्रियाओं में आती हैं। खेलों से मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक पक्ष से स्वस्थ रहता है।

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प्रश्न 2.
खेलों की अन्तर्राष्ट्रीय विशेषता क्या है ?
उत्तर-
एक राष्ट्र की टीम दूसरे राष्ट्र में खेलने के लिए जाती है। इस प्रकार देशों में मित्रता बढ़ती है और अन्तर्राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है। इस अन्तर्राष्ट्रीय भावना के द्वारा देशों के परस्पर वैर-विरोध मिट कर विश्व में शान्ति स्थापित होती जा रही है। इस प्रकार खेलें एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से, एक प्रान्त को दूसरे प्रान्त से और एक देश को दूसरे देश से मिलाती हैं।

प्रश्न 3.
खेलों की राष्ट्रीय विशेषता का वर्णन करो।
उत्तर-
खेलों में भाग लेने से बच्चों में समय का पालन करने, नियमपूर्वक काम करने, अपनी ज़िम्मेदारी निभाने, दूसरों की सहायता करने और स्वयं की रक्षा करने आदि अच्छे कामों की सिखलाई मिलती है। इससे बच्चे स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट और प्रसन्न चित्त रहेंगे। इससे. समूचे राष्ट्र को बल मिलेगा। कोई भी राष्ट्र निजी व्यक्तियों के समूह से ही बनता है। बच्चे राष्ट्र के भावी नागरिक होते हैं। खेलें किसी देश को स्वस्थ एवं अच्छे नागरिक प्रदान करती हैं। अत: यदि किसी राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अच्छा हो, तो, राष्ट्र अपने आप ही अच्छा बन जाएगा। इस प्रकार खेलों का किसी राष्ट्र के लिए विशेष महत्त्व है। खेलों से राष्ट्रीय एकता की भावना मज़बूत होती है।