PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
पुराणों की हिंदू धर्म में विशेषता और इसके प्रमुख लक्षणों की जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Puranas in Hinduism and their basic salient features.)
अथवा
पुराण साहित्य के प्रमुख लक्षणों और इनका हिंदू धर्म में महत्त्व के बारे में संक्षेप में और भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief but meaningful the salient features of Purana literature and its importance in Hinduism.)
अथवा
पुराणों से क्या भाव है ? विभिन्न पुराणों का संक्षेप में वर्णन दो। (What is meant by Puranas ? Give a brief account of the various Puranas.)
अथवा
प्रसिद्ध पुराणों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दें।
(Give a brief account of important Puranas.)
अथवा
पुराणों की विषय-वस्तु एवं महत्ता के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief but meaningful the subject-matter of Puranas.)
अथवा
पुराणों की रचना किस प्रकार हुई ? जानकारी दें। (Explain how Puranas were written ?)
अथवा
पुराण साहित्य के मुख्य विषयों के बारे में जानकारी दें। (Describe the main contents of Purana literature.)
अथवा
पौराणिक साहित्य की महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए। (Discuss the importance of Pauranic Literature.)
अथवा
पुराणों बारे संक्षिप्त जानकारी दें।
(Write in brief about the Puranas.)
पथवा प्रसिद्ध पाँच पुराणों के बारे में जानकारी दें। (Give information about famous five Puranas.)
उत्तर-
पुराण हिंदू धर्म के पुरातन ग्रंथ हैं। पुराण से भाव है प्राचीन। ये संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। ये कब लिखे गये इस का कोई पक्का उत्तर अभी तक नहीं मिला है। ये किसी एक शताब्दी की रचना नहीं हैं। इनका वर्णन अथर्ववेद, उपनिषदों और महाकाव्यों आदि में आता है। समय-समय पर इनमें तबदीलियाँ की जाती रहीं और नये अध्यायों को जोड़ा जाता रहा। गुप्त काल में पुराणों को अंतिम रूप दिया गया। इस तरह पुराणों की रचना अनेक लेखकों द्वारा की गई है। पुराणों को “पाँचवां वेद” कहा जाता था और शूद्रों को इनको पढ़ने की आज्ञा दी गई थी।
पुराणों की कुल संख्या 18 है। यह पुराण तीन भागों में बाँटे गये हैं। प्रत्येक भाग में 6 पुराण आते हैं और यह शिव, वैष्णव और ब्रह्म पुराण कहलाते हैं।
इनके भाग इस तरह हैं :—

1. शिव पुराण—

  • वायु,
  • लिंग,
  • स्कंद,
  • अग्नि,
  • मत्स्य और
  • कूर्म।

2. वैष्णव पुराण—

  • विष्णु,
  • भगवद्,
  • नारद,
  • गरुड़,
  • पद्म और
  • वराह

3. ब्रह्म पुराण—

  • ब्रह्मा,
  • ब्रह्मांड,
  • ब्रह्मावैव्रत,
  • मारकंडेय,
  • भविष्य और
  • वामन।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

पुराणों में लोगों में प्रचलित वैदिक और अवैदिक धार्मिक विश्वास, मिथिहास और कहानियाँ संकलित हैं। मिथिहास वह कथा कहानियाँ होती हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं होता परंतु वे लोगों में बहुत प्रचलित होती हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा होता था। ये भाग हैं-

(1) सर्ग-इसमें संसार की उत्पत्ति बारे वर्णन किया गया था।
(2) प्रतिसर्ग-इसमें संसार के विकास, नष्ट होने और फिर से उत्पत्ति के बारे वर्णन किया गया था।
(3) वंश-इसमें प्रसिद्ध राजाओं और ऋषियों के वंशों का वर्णन किया गया था।
(4) मनवंतर-इसमें संसार के महायुद्धों और प्रत्येक युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटना का वर्णन किया गया था।
(5) वंशानचित-इसमें प्रसिद्ध वंशों के राजाओं और ऋषियों के कारनामों का वर्णन किया गया था। यह बात यहाँ याद रखने योग्य है कि हमें मूल पुराण उपलब्ध नहीं हैं। ये पुराण हमें आजकल जिस स्वरूप में उपलब्ध हैं उनमें यह जरूरी नहीं कि उनमें दिया गया वर्णन इस बाँट अनुसार हो। पुराणों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है :—

  1. ब्रह्म पुराण (The Brahman Purana)-इसको आदि पुराण भी कहा जाता है। इस में 14,000 श्लोक हैं। इस के अधिकाँश भाग में भारत के पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है। इस के अतिरिक्त इस में कृष्ण, राम, सूर्य, पूजा, प्रसिद्ध राजवंशों, पृथ्वी, नरक, विभिन्न जातियों, वर्ण, आश्रम व्यवस्था और श्राद्धों आदि का वर्णन दिया गया है।
  2. पद्म पुराण (The Padma Purana)-यह सबसे विशाल पुराण है। इस में लगभग 55,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में सृष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड और पाताल खंड का वर्णन दिया गया है। इसमें विष्णु कथा और राम कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इन के अतिरिक्त इस पुराण में अनेक तीर्थ स्थानों और व्रतों का भी वर्णन मिलता है। इस में अनेकों मिथिहासिक कथायें भी दर्ज हैं।
  3. विष्णु पुराण (The Vishnu Purana)-इस पुराण में 23,000 श्लोक दिये गये हैं। इसमें यह बताया गया है कि विष्णु ही सर्वोच्च देवता है। उसने ही संसार की रचना की और इसका पालनहार है। इसमें दी गई कथाओं में प्रह्लाद और ध्रुव की कथायें प्रसिद्ध हैं। इस में इस संसार और स्वर्ग के लोगों की अनेकों विचित्र बातों का भी वर्णन है। इस में कई प्रसिद्ध वंशों का भी वर्णन मिलता है। पाँचवें और अंतिम खंड में कृष्ण की अनेक अलौकिक लीलाओं की चर्चा की गई है।
  4. वायु पुराण (The Vayu Purana)-इस पुराण में 11,000 श्लोक हैं । इस में शिव की महिमा के साथ संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इस लिए इस को शिव पुराण भी कहते हैं। इस में अनेक वंशों का वर्णन किया गया है। प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण इन की बहुत ऐतिहासिक महत्ता है। इसमें दिया गया भूगौलिक वर्णन भी बड़ा लाभदायक है।
  5. भगवद् पुराण (The Bhagavata Purana)-विष्णु देवता के साथ संबंधित पुराणों में भगवद् पुराण सब से अधिक लोकप्रिय है। इस में कृष्ण के जीवन से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इसमें महात्मा बुद्ध और साक्ष्य दर्शन के संस्थापक कपिल को विष्णु का अवतार बताया गया है। ऐतिहासिक पक्ष से इस पुराण का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।
  6. नारद पुराण (The Narada Purana)-इस पुराण में 25,000 श्लोक दिये गये हैं। यह विष्ण भक्ति से संबंधित पुराण है। इस में प्राचीन कालीन भारत में प्रचलित विद्या के बारे काफी विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। इस में वंशों का विवरण नहीं मिलता।
  7. मारकंडेय पुराण (The Markandeya Purana)-इस पुराण में 900 श्लोक दिये गये हैं। इस में वैदिक देवताओं इंद्र, सूर्य और अग्नि आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन दिया गया है। इस में कई प्रसिद्ध वंशों का भी वर्णन मिलता है।
  8. अग्नि पुराण (The Agni Purana)-इस पुराण में 15,400 श्लोक दिये गये हैं। एक परंपरा के अनुसार इस पुराण को अग्नि देवता ने आप ऋषि विशिष्ट को सुनाया था। यह शिव धर्म से संबंधित पुराण है। इस में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों जैसे युद्धनीति, यज्ञ विधि, ज्योतिष, भूगोल, राजनीति, कानून, छंद शास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा, व्रत, दान, श्राद्ध और विवाह आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। निस्संदेह यह पुराण एक विश्वकोष की तरह
  9. भविष्य पुराण (The Bhavishya Purana)—इस पुराण में 14,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में ब्रह्म, विष्ण, शिव और सूर्य देवताओं से संबंधित अनेक कथायें दी गई हैं। इस में अनेक प्राचीन राजवंशों और ऋषियों का भी वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इस में अनेक कर्मकांडों की भी चर्चा की गई है।
  10. ब्रह्मावैव्रत पुराण (The Brahmavaivarta Purana)—इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण में ब्रह्म को इस संसार का रचयिता कहा गया है। इस में कृष्ण के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस में राधा का वर्णन भी आता है। इस में गणेश को कृष्ण का अवतार कहा गया है।
  11. लिंग पुराण (The Linga Purana)-इस पुराण में 11,000 श्लोक दिये गये हैं। यह शिव धर्म से संबंधित पुराण है। इस में शिव अवतारों, व्रतों तथा तीर्थों का वर्णन किया गया है। इस में लिंग की शिव के रूप में उपासना का उपदेश दिया गया है।
  12. वराह पुराण (The Varaha Purana)-इस में 10,700 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु की तरह वराह अवतार के रूप में पूजा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस में शिव, दुर्गा और गणेश से संबंधित वर्णन . भी दिया गया है।
  13. स्कंद पुराण (The Skanda Purana)—यह एक विशाल पुराण था। इस में 51,000 श्लोकों का वर्णन किया गया था। यह पुराण आजकल उपलब्ध नहीं है। इस के बारे में जानकारी अन्य ग्रंथों में दी गई उदाहरणों से प्राप्त होती है। इस पुराण में मुख्य तौर पर शिव की पूजा के बारे बताया गया है। इस के अतिरिक्त इस में भारत के अनेक तीर्थ स्थानों और मंदिरों के बारे बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
  14. वामन पुराण (The Vamana Purana)इस पुराण में 10,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण के अधिकतर भाग में शिव, विष्णु और गणेश आदि देवताओं की पूजा के बारे वर्णन किया गया है। इस में अनेक मिथिहासिक कथाओं का भी वर्णन मिलता है।
  15. कूर्म पुराण (The Kurma Purana)-इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु के कुर्म अवतार की पूजा का वर्णन है। इस में अनेक मिथिहासिक कथाओं का वर्णन भी मिलता है।
  16. मत्स्य पुराण (The Matsya Purana)-इस पुराण में 14,000 श्लोक दिये गये हैं। यह पुराण मत्स्य (मछली) तथा मनु के मध्य एक वार्तालाप है। जब इस संसार का विनाश हुआ तब इस मछली ने मनु की सुरक्षा की थी। इस में अनेक प्रसिद्ध राजवंशों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इस में अनेक मेलों और तीर्थ स्थानों का भी वर्णन है।
  17. गरुढ़ पुराण (The Garuda Purana)-इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु की पूजा से संबंधित अनेक विधियों का वर्णन है। इस में यज्ञ विद्या, छंद शास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, खगोल विज्ञान, शारीरिक विज्ञान और भूत-प्रेतों के बारे जानकारी दी गई है। इस में अंतिम संस्कार संबंधी, सती संबंधी और पितर श्राद्धों के संबंध में विस्तावपूर्वक जानकारी दी गई है।
  18. ब्रह्माण्ड पुराण (The Brahmanda Purana)—इस पुराण में 12,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण को ब्रह्मा ने पढ़ के सुनाया था। इस में अनेक राजवंशों और तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है।

पुराणों का महत्त्व (Importance of the Puranas)-
पुराण भारतीय संस्कृति का व्यापक चित्र पेश करते हैं। आज के हिंदू धर्म में जो रीति-रिवाज प्रचलित हैं वह इन पुराणों की ही देन हैं । इन पुराणों में हिंदुओं के धार्मिक विश्वासों, देवी-देवताओं की पूजा विधियों, व्रतों, श्राद्धों, जन्म, विवाह और मृत्यु के समय किये जाने वाले संस्कारों के बारे भरपूर प्रकाश डाला गया है। मूर्ति पूजा तथा अवतारवाद की कल्पना इन पुराणों की ही देन है। इन पुराणों ने भारत में पितर पूजा के रिवाज को अधिक प्रचलित किया। लोगों को दान देने के लिए प्रेरित किया गया। पुराणों में दिये गये प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन ऐतिहासिक पक्ष से काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है। इन में तीर्थ स्थानों और मंदिरों के विवरण से हमें उस समय की कला के बारे महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन के अतिरिक्त ये पुराण प्राचीन कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवस्था के बारे काफी विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हैं। निस्संदेह यदि पुराणों को भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कह दिया जाये तो इस में कोई अतिकथनी नहीं होगी। डॉक्टर आर० सी० हाज़रा का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“पुराणों ने हिंदुओं के जीवन में दो हज़ार से अधिक वर्षों तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आम लोगों तक उच्च दर्जे के ऋषियों के विचारों को बिना किसी मतभेद के पहुँचाया। इन ग्रंथों के लेखकों ने प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए ऐसे नुस्खे बताये जो उनके सामाजिक और धार्मिक जीवन के लिए लाभदायक सिद्ध हों।”1

1. “The Puranas have played a very important part in the life of the Hindus for more than two thousand years. They have brought home to the common man the wisdom of the saints of the highest order without creating any discord. The authors of these works took every individual into consideration and made such prescriptions as would benefit him in his social and religious life.” Dr. R. C. Hazra, The Cultural Heritage of India (Colcutta : 1975) Vol. 2, p. 269.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 2.
उपनिषदों की विषयवस्तु और महत्त्व के विषय में संक्षिप्त भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief but meaningful the subject matter and importance of Upanishads.)
अथवा
‘उपनिषद्’ शब्द के अर्थ तथा महत्त्व के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
(Give a brief account of importance and meaning of Upanishad.)
अथवा
उपनिषदों की विषय-वस्तु एवं महत्ता के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss the contents of Upanishads and their importance.)
अथवा
उपनिषदों का विषय-वस्तु क्या है ? उल्लेख करें।
(Explain the subject matter of Upanishads.)
अथवा
उपनिषद् साहित बारे भावपूर्ण संक्षिप्त जानकारी दें।
(Describe briefly meaningful about the Upanishad literature.)
उपनिषदों की प्रमुख शिक्षाओं पर एक नोट लिखो।
(Write a short note on the main teachings of the Upanishads.)
अथवा
उपनिषदों की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन करो।
(Discuss the main teachings of the Upanishads.)
अथवा
उपनिषदों की प्रमुख शिक्षाओं के बारे आप क्या जानते हो ?
(What do you know about the main teachings of the Upanishads ?)
अथवा
उपनिषदों के प्रमुख सिद्धांतों के बारे आप क्या जानते हो ?
(What do you know about the main doctrines of the Upanishads ?)
अथवा
उपनिषद् से क्या भाव है ? इनकी मुख्य विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन करो।
(What is meant by Upanishads ? Give a brief account of their main features.)
अथवा
उपनिषदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दें।
(Give brief introduction about the Upanishads.)
अथवा
उपनिषदों की प्रमुख शिक्षाओं के बारे में जानकारी दें। दो प्रथम उपनिषदों के नाम बताएँ।
(Write about the main teachings of the Upanishads. Name two earliest Upanishads.)
अथवा
उपनिषदों की प्रमुख शिक्षाओं पर नोट लिखो ।
(Write a note on the main teachings of the Upanishads.)
अथवा
उपनिषदों से क्या अभिप्राय है ? किन्हीं दो उपनिषदों के बारे में भावपूर्ण जानकारी दें।
(What is meant by Upanishads ? Describe any two of them in brief.)
अथवा
उपनिषद से क्या भाव है ? कोई एक प्रसिद्ध उपनिषद के बारे में जानकारी दीजिए।
(What is meant by Upanishads ? Describe any one popular Upanishads.)
उत्तर-
भारतीय दर्शन प्रणाली का वास्तविक आरंभ उपनिषदों से माना जाता है। उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें दुनिया के सबसे ऊँचे आध्यात्मिक ज्ञान के मोती पिरोये हुए हैं। इन मोतियों की चमक से मनुष्य का आंतरिक अंधेरा दूर हो जाता है और ऐसा प्रकाश होता है जिस के आगे सूर्य का प्रकाश भी कम हो जाता है। यदि उपनिषदों को भारतीय दर्शन का मूल स्रोत कह दिया जाये तो इस में कोई अतिकथनी नहीं होगी। उपनिषद् तीन शब्दों के मेल से बना है। ‘उप’ से भाव है नज़दीक, ‘नि’ से भाव है श्रद्धा और ‘षद्’ से भाव है बैठना। इस तरह उपनिषद् से भाव है श्रद्धा भाव से नज़दीक बैठना। वास्तव में उपनिषद् एक ऐसा ज्ञान है जो एक गुरु अपने पास (समीप) बैठे हुए शिष्य को गुप्त रूप से प्रदान करता है। उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है क्योंकि इनको वेदों का अंतिम भाग समझा जाता है। वेदांत से भाव अंतिम ज्ञान है। इसका भाव यह है कि उपनिषदों में ऐसा ज्ञान दिया गया है जिस के बाद और अन्य कोई ज्ञान नहीं है। उपनिषदों की रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 550 ई० पू० से 100 ई०पू० के मध्य की गई। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। इनमें से ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मुंडुक्य, तैतरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, ब्रहदआरण्यक, श्वेताश्वतर नामों के उपनिषदों को सब से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। छांदोगय एवं ब्रहदआरण्यक नामक उपनिषदों की रचना सबसे पहले हुई थी। इनकी रचना 550 ई० पू० से 450 ई० पू० के मध्य हुई। उपनिषदों की मुख्य शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं—

1. आत्मा का स्वरूप (Nature of Self)-उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है क्योंकि इसको संपूर्ण ज्ञान का भंडार समझा जाता है। आत्मा सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। यह तत्त्व ही सारे तत्त्वों का मूल आधार है। यही जीव रूप धारण करके सब के हृदयों में निवास करता है। यही ब्रह्म या परमात्मा है। इसी कारण आत्मा को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। उपनिषदों के अनुसार केवल आत्मा ही एक ऐसी वस्तु है जिस पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। आत्मा एक निश्चित सत्ता है। आत्मा नित भी है। यह परिवर्तनशील नहीं है। यह स्वयं परिवर्तनशील वस्तुओं का आधार है। इसलिए उसका अपना परिवर्तन नहीं हो सकता।

2. ब्रह्म का स्वरूप (Nature of the Absolute)-‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा की एक धातु ‘बृह’ से निकला है जिस का अर्थ है उगना और बढ़ना। इससे यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सब गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उस के ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निस्संदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है।

3. आत्मा और ब्रह्म की अभेदता (Identity of Self and the Absolute)-उपनिषदों में, ऋषियों ने आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं किया। वे इनको एक ही मूल तत्त्व समझते थे। इस कारण वे उपनिषदों में बहुत बार आत्मा की जगह ब्रह्म और ब्रह्म शब्द की जगह आत्मा का प्रयोग करते हैं। भेद केवल शब्दों का है परंतु अर्थ अथवा तत्त्व का भेद नहीं है। जगत् का मूल तत्त्व एक ही है। उसी को कभी आत्मा और कभी ब्रह्म कहा जाता है। जैसे कोई नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है ठीक उसी तरह आत्मा परमात्मा में मिलकर एक हो जाती है। क्योंकि आत्मा और ब्रह्म एक ही है इस लिए उनमें भेद नहीं किया जा सकता। संक्षेप में एक बूंद में सागर और सागर में बूंद को देखना ही उपनिषदक दर्शन है।

4. सृष्टि की रचना (Creation of the World)-उपनिषदों में सृष्टि की रचना संबंधी अनेक वर्णन मिलते हैं। इन में बताया गया है कि ब्रह्म ने सृष्टि की रचना की। सृष्टि की रचना से पहले ब्रह्म अपने आप में मौजूद था। फिर ब्रह्म ने सोचा कि वह अनेक रूपों में प्रगट हो जाये। परिणामस्वरूप उसने तेज़ पैदा किया। उत्पन्न होने वाले तेज़ ने भी संकल्प किया कि मैं अनेक रूपों वाला हो जाऊँ। फलस्वरूप उसने जल की सृजना की। जल ने अनेक जीव जंतु और अन्न को पैदा किया। इस तरह सृष्टि की रचना आरंभ हुई।

5. कर्म सिद्धांत में विश्वास (Belief in Karma Theory)–उपनिषद् कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उस द्वारा किये गये कर्मों का फल ज़रूर भुगतना पड़ता है। जैसे कर्म हमने पिछले जन्म में किये हैं वैसा फल हमें इस जीवन में प्राप्त होगा। इस जन्म में किये गये कर्मों का फल हमें अगले जीवन में प्राप्त होगा। इसलिए हमारे जीवन के सुख अथवा दुःख हमारे किये गये कर्मों पर ही निर्भर करते हैं। इसलिए हमें सदा शुभ कर्मों की ओर ध्यान देना चाहिए और पाप कर्मों से दूर रहना चाहिए। मनुष्य अपने बुरे कर्मों के कारण परमात्मा से बिछड़ा रहता है और वह बार-बार जन्म-मरण के चक्र में आता रहता है।

6. नैतिक गुण (Moral Virtues)-उपनिषदों में मनुष्यों के नैतिक गुणों पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इन गुणों को अपना कर मनुष्य इस भवसागर से पार हो सकता है। ये गुण हैं—

  • सदा सच बोलो
  • सभी जीवों से प्यार करो।
  • दूसरों के दुःखों को अपना दुःख समझें।
  • अहंकार, लालच और बुरी इच्छाओं से कोसों दूर रहो।
  • चोरी और ठगी आदि न करो।
  • धर्म का पालन करो।
  • वेदों के अध्ययन, शिक्षा, देवताओं और पितरों की ओर लापरवाही न दिखाओ।
  • लोक कल्याण की ओर लापरवाही का प्रयोग न करो।
  • अध्यापक का पूरा आदर करो।

7. माया (Maya) उपनिषदों में पहली बार माया के सिद्धाँत पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस जगत् और उसके पदार्थों को माया कहा गया है। अज्ञानी पुरुष जगत् के आकर्षक पदार्थों के पीछे दौड़ते हैं। इनको प्राप्त करने के उद्देश्य से वे बुरे से बुरा ढंग अपनाने से भी नहीं डरते। इस माया के कारण उस की बुद्धि पर पर्दा पड़ा रहता है और वह हमेशा जन्म-मरण के चक्रों में फिरता रहता है। ज्ञानी पुरुष माया के रहस्य को समझते हैं नतीजे के तौर पर वह ज़हर रूपी माया से प्यार नहीं करते। ऐसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

8. मोक्ष (Moksha)-मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य है। कर्म करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। शरीर में कैद आत्मा दुःख और सुख की भागी है। जब तक आत्मा शरीर की कैद में है इस को दुःख सुख से छुटकारा नहीं मिल सकता। अविद्या अथवा अज्ञानता ही मनुष्य के बंधन का प्रमुख कारण है। जब यह अज्ञान नष्ट हो जाता है तो मनुष्य को बंधनों से छुटकारा मिल जाता है और वह मोक्ष प्राप्त करता है। मोक्ष मनुष्य के ज्ञान की अंतिम सीढ़ी है जिस पर पहुँच कर मनुष्य सब कुछ जान लेता है और सब कुछ पा लेता है। मोक्ष के आनंद के आगे संसार के सभी आनंद घटिया हैं। उपनिषदों के अनुसार मोक्ष केवल ज्ञान के मार्ग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एस० एन० सेन का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषदों में बड़े गहरे दार्शनिक विचार दिये गये हैं और जो बाद में दर्शन के विकास का मूल आधार बने।”2

2. “The Upanishads are rich in deep philosophical content and are the bed-rock on which all the latter philosophical development rests.” Dr. S.N. Sen, Ancient Indian History and Civilization (New Delhi : 1988) p.4.

प्रश्न 3.
उपनिषदों के अनुसार आत्मा और ब्रह्म से भाव और स्वरूप का वर्णन करो। (Explain the meaning and nature of Self and the Absolute.)
अथवा
आत्मा और ब्रह्म के मध्य क्या संबंध है ? व्याख्या करो। (What is the relationship between Self and the Absolute ? Explain.)
उत्तर-
उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म के संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। आत्मा क्या है ? ब्रह्म से क्या भाव है ? इन दोनों का स्वरूप क्या है और उन दोनों के मध्य क्या संबंध हैं इस संबंध में संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

(क) आत्मा का स्वरूप (Nature of Self)-
उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत ज्यादा प्रयोग किया गया है क्योंकि इसे संपूर्ण ज्ञान का भंडार समझा जाता है। आत्मा सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। यह तत्त्व ही सब तत्त्वों का मूल आधार है। यही जीव रूप धारण करके सब के हृदयों में निवास करता है। यही ब्रह्म या परमात्मा है। इसी कारण आत्मा को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। आत्मा के स्वरूप को उपनिषदों में अग्रलिखित ढंगों से प्रकट किया गया है—

  1. आत्मा निश्चित सत्ता है (Self is certain Being) उपनिषदों के अनुसार केवल आत्मा ही एक ऐसी वस्तु है जिस पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। आत्मा एक निश्चित सत्ता है। इस लिए इस को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि यह स्वयं सिद्ध है। इस को सभी भौतिक और अभौतिक तत्त्वों का आधार माना गया है। कोई भी अनुभव आत्मा के बिना नहीं हो सकता परंतु वह अनुभव कर्ता नहीं है। वह स्वयं अनुभव अतीत है भाव ज्ञाता ज्ञात नहीं। वह तो समूचे अनुभव का साक्षी है।
  2. आत्मा नित्य है (Self is Permanent)-आत्मा नित्य है। यह परिवर्तनशील नहीं है। यह स्वयं परिवर्तनशील वस्तुओं का आधार है। इसलिए उसका अपना परिवर्तन नहीं हो सकता। यह सारी मानसिक क्रियाओं से दूर है इसलिए उस पर सांसारिक परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वास्तव में यह परिवर्तन की सृजना करती है परंतु उससे अतीत रहती है। इस तरह आत्मा की नित्यता से इंकार नहीं किया जा सकता।
  3. पाँच कोषों का सिद्धांत (The Doctrine of Five Layers)-आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए तैतरीय उपनिषद् में पाँच कोषों का सिद्धांत पेश किया गया है। ये पाँच कोष हैं—
    • अन्नमयी कोष—यह अचेतन और निर्जीव पदार्थ है। यह भौतिक स्तर पर आता है।
    • प्राणमयी कोष-यह जीवन स्तर पर आता है। इस में सारी वनस्पति और पशु शामिल है।
    • मनोमयी कोष-यह चेतना का स्तर है। यह जीवन का उद्देश्य है । जीवन चेतना तक पहुँच कर खुश होता है।
    • विज्ञानमयी कोष-यह आत्म चेतन का स्तर है। इस में चेतना अपने अंदर तार्किक बुद्धि का विकास करती है।
    • आनंदमयी कोष-यह आत्मा का वास्तविक स्तर है।
      इस में अनेकता और भेद की भावना नष्ट हो जाती है। पहले चारों कोष इस आनंद में लीन हो जाते हैं जो उनके विकास की अंतिम मंज़िल है। इस तरह पाँच कोष सिद्धांत यह सिद्ध करता है कि आत्मा शुद्ध चेतन आनंद स्वरूप है।
  4. चार अवस्थायें (The Four Stages)–मांडूक्य उपनिषद् आत्मा के असली स्वरूप को समझाने के लिए चेतना के आधार पर आत्मा की चार अवस्थाओं का विश्लेषण करता है। चार अवस्थायें ये हैं—
    • जागृत अवस्था-इस में मन इंद्रियों के सहारे जगत् की वस्तुओं का आनंद अनुभव करता है।
    • स्वप्न अवस्था-इस में चेतना अपने अंदर से ही अनेक तरह के चित्रों (प्रतिबिंबों) के रूप में प्रकट होती है।
    • सुंसप्ति अवस्था-यह गहरी नींद की अवस्था है। इस में अनुभव किये आनंद को वास्तविक नहीं माना जा सकता।
    • तुरीय अवस्था-यह धर्म अवस्था है। इसमें अज्ञान नष्ट हो जाता है। आत्मा जिस आनंदमयी अवस्था में पहुँचती है उसका वर्णन करना असंभव है।

(ख) ब्रह्म का स्वरूप (Nature of the Absolute)
‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा के एक धातु “बृह” से निकला है जिस का अर्थ है उगना, बढ़ना और फूट निकलना। इस से यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उस की शक्तियाँ असीम हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उस को सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सभी गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उसके ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निस्संदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है। ब्रह्म के स्वरूप का विश्लेषण निम्नलिखित ढंग के अनुसार किया जा सकता है—

  1. ब्रह्म सर्व रूप है (Absolute is Qualified Essence)-उपनिषदों में ऋषियों ने अनेक स्थानों पर ब्रह्म को सर्वरूप बताया है। मुंडक उपनिषद् में ब्रह्म के स्वरूप के बारे में कहा गया है कि ब्रह्म ही हमारे सामने, पीछे, दक्षिण-उत्तर, पश्चिम-पूर्व, ऊपर तथा नीचे है। ब्रह्म ही विश्व है। वृहद्-आरण्यक उपनिषद् में कहा गया है कि पहले ब्रह्म ही था और जब उस ने अपने स्वरूप को रूपमान किया तो वह सर्वरूप हो गया। छांदोग्य उपनिषद् में आता है कि ब्रह्म सभी कारवाइयों, सभी इच्छाओं, सभी गंधों और सभी स्वादों को चखता हुआ सब तक पहुँचता है। भाव यह कि ब्रह्म सब कुछ है।

2. ब्रह्म निर्गुण स्वरूप है (Absolute is Attributeless Essence)-उपनिषदों में ब्रह्म को निर्गुण स्वरूप भी बताया गया है। उसका कोई भी रूप, रंग, आकार आदि नहीं है। इसी कारण उसको न देखा जा सकता है और न ही समझा जा सकता है। मुंडक उपनिषद् में ब्रह्म को न देखने योग्य, न ग्रहण करने योग्य और बिना गोत्र, आँखों, कान, हाथ, पैर आदि वाला बताया गया है। शंकर का कहना है कि ब्रह्म जगत् का कारण तो है परंतु यह जगत् में परिवर्तित नहीं होता। वह इस परिवर्तन का आधार है। क्योंकि ब्रह्म वर्णनातीत है इस लिए उस के लिए “नेति, नेति” (अंत नहीं, अंत नहीं) शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

3. ब्रह्म जगत् का कारण है (Absolute is the Cause of World) उपनिषदों में ब्रह्म को जगत् का मूल कारण बताया गया है। तैतरीय उपनिषद् के अनुसार ब्रह्म वह है जिस से सभी वस्तुओं की उत्पत्ति होती है और जिस के आधार पर वे सभी अस्तित्व में रहती हैं और अंत में जिस के अंदर फिर समा जाती हैं। छांदोग्य उपनिषद में ब्रह्म को ‘तजलॉन’ कहा गया है जिस का अर्थ है जगत् का जन्म ब्रह्म से होता है, उस के सहारे रहता है और अंत में उस में लीन हो जाता है। इस का भाव यह है कि ब्रह्म में से जगत् की अभिव्यक्ति हुई है और इस अभिव्यक्ति का निमित्त और उपादान कारण ब्रह्म ही है।

4. ब्रह्म प्रकाश का स्रोत है (Absolute is the Source of Lights)-उपनिषदों में ब्रह्म को सारे प्रकाश का स्रोत माना गया है। सूर्य, चाँद, वारे आदि ब्रह्म के प्रकाश के अंश के साथ ही प्रकाश देते हैं। ब्रह्म प्रकाश को भौतिक प्रकाश का रूप नहीं समझना चाहिए क्योंकि भौतिक प्रकाश को आँखें देख सकती हैं परंतु ब्रह्म प्रकाश को केवल योग शक्ति के द्वारा देखा जा सकता है। ब्रह्म का यह अध्यातम प्रकाश संसार की प्रत्येक वस्तु में मौजूद है।

5. ब्रह्म सत्य है (Absolute is Existence)-उपनिषदों में ब्रह्म को पूर्ण सत्य का रूप माना गया है। दर्शन में सत्य से भाव अस्तित्व से है। ब्रह्म सर्व अस्तित्व का आधार है। इस कारण जहाँ भी अस्तित्व मौजूद है वह ब्रह्म के कारण ही होता है। ब्रह्म अपनी सत्ता के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं बल्कि वह संसार के सभी जीवों और तत्त्वों की सत्ता का आधार माना जाता है। परिणामस्वरूप ब्रह्म को सत्य स्वरूप माना जाता है।

6. ब्रह्म आनंद है (Absolute is Bliss)-उपनिषदों में ब्रह्म को आनंदमयी भी माना गया है। यहाँ यह याद रखने योग्य है कि ब्रह्म का यह आनंद संसार की खुशियों जैसा नहीं होता यह आनंद सागर की भाँति अनंत और अथाह होता है। ब्रह्म के आनंद पर ही संसार के सभी जीवों की उत्पत्ति होती है। इसी कारण ही सारे जीव जीते हैं। प्रत्येक जीवन अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस आनंद को महसूस करता है। अंत में सारे जीव इस आनंद में लीन हो जाते हैं। ब्रह्म के इस आनंद का कोई अंत नहीं है क्योंकि वह पूर्ण आनंद स्वरूप है।

आत्मा और ब्रह्म की अभेदता (Identity of Self and the Absolute)
उपनिषदों में ऋषियों ने आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं किया। वे इनको एक ही मूल तत्त्व समझते थे। इस कारण वे उपनिषदों में बहुत बार आत्मा शब्द के स्थान पर ब्रह्म और ब्रह्म शब्द के स्थान पर आत्मा का प्रयोग करते हैं। भेद केवल शब्दों का है परंतु अर्थ अथवा तत्त्व का भेद नहीं है। जगत् का मूल तत्त्व एक ही है। उसको कभी आत्मा और कभी ब्रह्म कहा जाता है। जैसे कोई नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है। ठीक उसी तरह आत्मा परमात्मा में मिलकर एक हो जाती है। क्योंकि आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप एक ही है इस लिए उनमें भेद नहीं किया जा सकता। संक्षेप में एक बूंद में सागर और सागर में बूंद को देखना ही उपनिषदक दर्शन है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 4.
भगवद्गीता की मुख्य शिक्षाओं का संक्षेप में वर्णन करो। (Give a brief account of the main teachings of Bhagvadgita.)
अथवा
भगवद्गीता का मुख्य संदेश क्या है ? स्पष्ट करें।
(Explain the basic teachings of Bhagvadgita.)
अथवा
कर्मयोग के बारे में विस्तृत चर्चा करो।
(Discuss in detail the Karama Yoga.)
उत्तर-
भगवद्गीता महाभारत का एक हिस्सा है। इस को गीता के नाम से अधिक जाना जाता है। इस में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत की लड़ाई शुरू होने से पहले दिया था। उपनिषदों में दी गई विचारधारा आम लोगों की समझ से बाहर थी। गीता में दिये गये विचार जनसाधारण पर जादुई प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि गीता आज भी हिंदुओं में हरमन प्यारी है। गीता की मुख्य शिक्षाओं का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. परमात्मा (God)-गीता. में परमात्मा को सृष्टि का निर्माता बताया गया है। वह एक है। वह सर्वव्यापक है और हर जीव तथा वस्तु में मौजूद है। परंतु यही सब जीवों का सृजनहार, रक्षक और विनाशक है। परमात्मा ही ज्ञान, सत्य, सुख-दुःख, हिंसा, अहिंसा, निडर, खुशी, गमी, प्रसिद्धि और अनादर आदि का मूल है। गीता के दसवें अध्याय में कहा गया है “मैं सब का आरंभ हूँ। सब की उत्पत्ति मेरे से ही है। यह जानते हुए पूर्ण विश्वास रखने वाले बुद्धिमान व्यक्ति मेरी पूजा करते हैं ।” परमात्मा अमर है। वह जन्म और मृत्यु से रहित है। वह सब से महान् है।

2. आत्मा (Atma)—गीता के अनुसार शरीर आत्मा नहीं है। जन्म-मृत्यु का संबंध शरीरों के साथ है, आत्मा के साथ नहीं। आत्मा सदैव रहने वाला अविनाशी तत्त्व है। परंतु जल, वायु, अस्त्र-शस्त्र आदि का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह न कभी अस्तित्व में आता है और न ही उसका अंत होता है। शरीर के मरने पर भी यह नहीं मरता। जिस तरह मनुष्य अपने पुराने और फटे हुए कपड़े उतार देता है और नये कपड़े पहन लेता है ठीक उसी तरह ही यह आत्मा पुराने शरीरों को छोड़ देती है और नया शरीर धारण कर लेती है।

3. कर्मयोग (Karamayoga)-कर्मयोग गीता का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। कोई भी जीव एक पल के लिए भी बिना कर्म से नहीं रह सकता। जो व्यक्ति इंद्रियों पर काबू पा कर निष्काम कर्म करते हैं, वो कर्मयोगी हैं और जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन हो कर दिखावे के लिए कर्म करते हैं, वे पाखंडी हैं। योग कर्म (यह वो कर्म है जिस में फल की इच्छा नहीं होती) को छोड़कर शेष सभी कर्म बंधन वाले कहे गये हैं। इसलिए गीता में मनुष्य को कर्मयोग करने की प्रेरणा दी गई है। गीता के अनुसार प्रत्येक कर्म का फल ज़रूर निकलता है, जिसको उसे भोगना पड़ता है और यह नहीं हो सकता कि व्यक्ति कोई कर्म करे और उस के फल से बच जाये। यह एक अटल नियम है। कर्मों के फल जीव को जन्म-जन्मांतर के चक्र में डालते हैं। वह प्रत्येक जन्म में कुछ पिछले फलों को भोग कर दूर करता है और कुछ नये कर्मों के द्वारा फलों को संचित करता है, जो उस को अगले जन्म में ले जाते हैं। कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य को अनेक पदवियों की प्राप्ति होती है। इनमें से सब से ऊँची पदवी परमपद है जो मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। केवल कर्मयोग ही मनुष्य को परमपद तक पहुँचा सकते हैं।

4. भक्तियोग (Bhaktiyoga)-भक्तियोग की गणना गीता के तीन प्रमुख मार्गों में की जाती है। भक्ति कई तरह की होती है।

  • प्राप्ति भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त अपनी शुद्ध भावना के साथ ईश्वर की शरण में आ जाता है और वह सांसारिक पदार्थों से मोह तोड़ लेता है।
  • स्वार्थ भक्ति-ज्यादातर संसार में भक्ति स्वार्थ की भावना से की जाती है। इस का कारण यह है कि संसार के दुःखों से तंग आकर कुछ लोग भक्ति का सहारा लेते हैं ताकि उन्हें दुःखों से छुटकारा मिल सके।
  • ज्ञान भक्ति-ऐसे भक्त अपने ज्ञान की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और अंत ईश्वर की कृपा से सच्चा ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
  • निर्गुण भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त ईश्वर के अस्तित्व को सभी जीवों में व्यापक समझ कर उन जीवों की सेवा करता है।
  • सगुण भक्ति-इस में भक्त शुद्ध मन से अपने ईष्ट देवता की मूर्ति के सामने भक्ति करता है।
  • कीर्तन भक्ति-इस भक्ति में भक्त ईश्वर के नाम का लगातार कीर्तन करता रहता है।
  • श्रवण भक्ति-यह भक्ति उन व्यक्तियों के लिए हैं जो कम पढ़े लिखे होते हैं। इस कारण वे शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते। परिणामस्वरूप दूसरों से शास्त्र सुनकर भक्ति के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इन सभी भक्ति रूपों को मुक्ति का साधन समझा जाता है।

5. ज्ञानयोग (Jnanayoga)-भगवद्गीता के अनुसार ज्ञान की अग्नि सारे कर्मों के बंधन को भस्म कर देती है। इसी कारण ज्ञान जैसी पवित्र और कोई वस्तु इस जगत् में नहीं है। यह ज्ञान साधारण पदार्थों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। इस का वास्तविक संबंध शुद्ध आत्म ज्ञान से है। इसी को ज्ञान योग कहते हैं। कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग में से ज्ञानयोग को प्रमुखता प्राप्त है क्योंकि आत्म ज्ञान के बिना व्यक्ति न ही सच्चा कर्मयोगी हो सकता है और न ही सच्चा भक्त हो सकता है। मानव जीवन की प्राप्ति के बाद जो जीव अपने आत्म-स्वरूप का ज्ञान प्राप्त नहीं करता वह कर्मों के चक्र से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान मुक्ति का एक उत्तम साधन है क्योंकि ज्ञान की अग्नि में कर्म का बीज जल जाता है और जला हुई बीज पुनर्जन्म के पौधे को पैदा नहीं कर सकता।

प्रश्न 5.
मानव जाति के कल्याण के कारण भगवद्गीता में दर्शाये गये तीनों मार्गों के बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the three paths shown in the Bhagvadgita for the benefit of mankind ?)
अथवा
भगवद्गीता के दर्शाए गए तीन योग कौन से हैं ? चर्चा करें।
(Which are the three Yogas mentioned in the Bhagvad Gita ? Discuss.)
अथवा
भगवद्गीता में कितने योग दर्शाए गए हैं ? विस्तार सहित वर्णन करें। (How many Yogas are referred to in the Bhagvadgita ? Discuss in detail.)
उत्तर-
भगवद्गीता अथवा गीता हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। इस में मानव के जीवन की प्रत्येक समस्या का हल सरल और स्पष्ट शब्दों में किया गया है। गीता मुक्ति के लिए कोई एक जीवन मार्ग नहीं बताता। इस का कथन है कि अगर मनुष्य के स्वभाव अलग-अलग हैं, तो उसको अलग-अलग मार्गों के द्वारा ही अपने उच्चतम उद्देश्य पर पहुँचाना होगा। ये तीन मार्ग हैं-कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग। मनुष्य अपने स्वभाव और रुचि के अनुसार ही अपने जीवन का मार्ग चुनते हैं।

1. कर्मयोग (Karamayoga)-कर्मयोग गीता का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। कोई भी जीव एक पल के लिए भी बिना कर्म से नहीं रह सकता। जो व्यक्ति इंद्रियों पर काबू पा कर निष्काम कर्म करते हैं, वो कर्मयोगी हैं और जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन हो कर दिखावे के लिए कर्म करते हैं, वे पाखंडी हैं। योग कर्म (यह वो कर्म है जिस में फल की इच्छा नहीं होती) को छोड़कर शेष सभी कर्म बंधन वाले कहे गये हैं। इसलिए गीता में मनुष्य को कर्मयोग करने की प्रेरणा दी गई है। गीता के अनुसार प्रत्येक कर्म का फल ज़रूर निकलता है, जिसको उसे भोगना पड़ता है और यह नहीं हो सकता कि व्यक्ति कोई कर्म करे और उस के फल से बच जाये। यह एक अटल नियम है। कर्मों के फल जीव को जन्म-जन्मांतर के चक्र में डालते हैं। वह प्रत्येक जन्म में कुछ पिछले फलों को भोग कर दूर करता है और कुछ नये कर्मों के द्वारा फलों को संचित करता है, जो उस को अगले जन्म में ले जाते हैं। कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य को अनेक पदवियों की प्राप्ति होती है। इनमें से सब से ऊँची पदवी परमपद है जो मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। केवल कर्मयोग ही मनुष्य को परमपद तक पहुँचा सकते हैं।

2. भक्तियोग (Bhaktiyoga)-भक्तियोग की गणना गीता के तीन प्रमुख मार्गों में की जाती है। भक्ति कई तरह की होती है।

  • प्राप्ति भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त अपनी शुद्ध भावना के साथ ईश्वर की शरण में आ जाता है और वह सांसारिक पदार्थों से मोह तोड़ लेता है।
  • स्वार्थ भक्ति-ज्यादातर संसार में भक्ति स्वार्थ की भावना से की जाती है। इस का कारण यह है कि संसार के दुःखों से तंग आकर कुछ लोग भक्ति का सहारा लेते हैं ताकि उन्हें दुःखों से छुटकारा मिल सके।
  • ज्ञान भक्ति-ऐसे भक्त अपने ज्ञान की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और अंत ईश्वर की कृपा से सच्चा ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
  • निर्गुण भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त ईश्वर के अस्तित्व को सभी जीवों में व्यापक समझ कर उन जीवों की सेवा करता है।
  • सगुण भक्ति-इस में भक्त शुद्ध मन से अपने ईष्ट देवता की मूर्ति के सामने भक्ति करता है।
  • कीर्तन भक्ति-इस भक्ति में भक्त ईश्वर के नाम का लगातार कीर्तन करता रहता है।
  • श्रवण भक्ति-यह भक्ति उन व्यक्तियों के लिए हैं जो कम पढ़े लिखे होते हैं। इस कारण वे शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते। परिणामस्वरूप दूसरों से शास्त्र सुनकर भक्ति के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इन सभी भक्ति रूपों को मुक्ति का साधन समझा जाता है।

3. ज्ञानयोग (Jnanayoga)-भगवद्गीता के अनुसार ज्ञान की अग्नि सारे कर्मों के बंधन को भस्म कर देती है। इसी कारण ज्ञान जैसी पवित्र और कोई वस्तु इस जगत् में नहीं है। यह ज्ञान साधारण पदार्थों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। इस का वास्तविक संबंध शुद्ध आत्म ज्ञान से है। इसी को ज्ञान योग कहते हैं। कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग में से ज्ञानयोग को प्रमुखता प्राप्त है क्योंकि आत्म ज्ञान के बिना व्यक्ति न ही सच्चा कर्मयोगी हो सकता है और न ही सच्चा भक्त हो सकता है। मानव जीवन की प्राप्ति के बाद जो जीव अपने आत्म-स्वरूप का ज्ञान प्राप्त नहीं करता वह कर्मों के चक्र से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान मुक्ति का एक उत्तम साधन है क्योंकि ज्ञान की अग्नि में कर्म का बीज जल जाता है और जला हुई बीज पुनर्जन्म के पौधे को पैदा नहीं कर सकता।

प्रश्न 6.
भगवद्गीता के निष्काम कर्म बारे आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Nishkama Karma of Bhagvadgita ?)
उत्तर-
कर्मयोग (Karamayoga)-कर्मयोग गीता का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। कोई भी जीव एक पल के लिए भी बिना कर्म से नहीं रह सकता। जो व्यक्ति इंद्रियों पर काबू पा कर निष्काम कर्म करते हैं, वो कर्मयोगी हैं और जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन हो कर दिखावे के लिए कर्म करते हैं, वे पाखंडी हैं। योग कर्म (यह वो कर्म है जिस में फल की इच्छा नहीं होती) को छोड़कर शेष सभी कर्म बंधन वाले कहे गये हैं। इसलिए गीता में मनुष्य को कर्मयोग करने की प्रेरणा दी गई है। गीता के अनुसार प्रत्येक कर्म का फल ज़रूर निकलता है, जिसको उसे भोगना पड़ता है और यह नहीं हो सकता कि व्यक्ति कोई कर्म करे और उस के फल से बच जाये। यह एक अटल नियम है। कर्मों के फल जीव को जन्म-जन्मांतर के चक्र में डालते हैं। वह प्रत्येक जन्म में कुछ पिछले फलों को भोग कर दूर करता है और कुछ नये कर्मों के द्वारा फलों को संचित करता है, जो उस को अगले जन्म में ले जाते हैं। कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य को अनेक पदवियों की प्राप्ति होती है। इनमें से सब से ऊँची पदवी परमपद है जो मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। केवल कर्मयोग ही मनुष्य को परमपद तक पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न 7.
भगवद्गीता में अंकित उपदेश किसने किसे दिया था ? गीता के तीन योगों में से भक्ति योग के बारे में चर्चा करें।
(Who gave the lesson as contained in the Bhagvadgita and to whom ? Of the three Yogas in the Gita, write about the Bhakti Yoga.)
अथवा
भगवद्गीता में दर्शाए तीन योग कौन-से हैं ? भक्ति योग के बारे में चर्चा करें।
(Which are three Yogas mentioned in the Bhagvadgita ? Discuss Bhakti Yoga.)
उत्तर-
भगवद्गीता में अंकित उपदेश भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था।
भक्तियोग (Bhaktiyoga)-भक्तियोग की गणना गीता के तीन प्रमुख मार्गों में की जाती है। भक्ति कई तरह की होती है।

  1. प्राप्ति भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त अपनी शुद्ध भावना के साथ ईश्वर की शरण में आ जाता है और वह सांसारिक पदार्थों से मोह तोड़ लेता है।
  2. स्वार्थ भक्ति-ज्यादातर संसार में भक्ति स्वार्थ की भावना से की जाती है। इस का कारण यह है कि संसार के दुःखों से तंग आकर कुछ लोग भक्ति का सहारा लेते हैं ताकि उन्हें दुःखों से छुटकारा मिल सके।
  3. ज्ञान भक्ति-ऐसे भक्त अपने ज्ञान की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और अंत ईश्वर की कृपा से सच्चा ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
  4. निर्गुण भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त ईश्वर के अस्तित्व को सभी जीवों में व्यापक समझ कर उन जीवों की सेवा करता है।
  5. सगुण भक्ति-इस में भक्त शुद्ध मन से अपने ईष्ट देवता की मूर्ति के सामने भक्ति करता है।
  6. कीर्तन भक्ति-इस भक्ति में भक्त ईश्वर के नाम का लगातार कीर्तन करता रहता है।
  7. श्रवण भक्ति-यह भक्ति उन व्यक्तियों के लिए हैं जो कम पढ़े लिखे होते हैं। इस कारण वे शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते। परिणामस्वरूप दूसरों से शास्त्र सुनकर भक्ति के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इन सभी भक्ति रूपों को मुक्ति का साधन समझा जाता है।

प्रश्न 8.
धर्म शास्त्रों से आप क्या समझते हैं ? मुख्य धर्म शास्त्रों पर एक नोट लिखें।
(What do you mean by Dharma Shastras ? Write a note on the main Dharma Shastras.)
अथवा
धर्म शास्त्रों में किन विषयों को छुआ गया है ? वर्णन करो।
(Which subjects have been touched in Dharma Shastras ? Explain.)
अथवा
धर्म शास्त्र से क्या भाव है ? किसी एक धर्म शास्त्र का वर्णन करें। (What is Dharma Shastra ? Explain any one of the Dharma Shastra.)
अथवा
धर्म शास्त्रों के महत्त्व का वर्णन करो।
(Explain the importance of Dharma Shastras.)
अथवा
शास्त्र से क्या भाव है ? किसी एक हिंदू शास्त्र की जानकारी दें।
[What is Shastra ? Give brief description of any Hindu scripture (Shastras).]
अथवा
किसी एक धर्म शास्त्र को आधार बनाकर शास्त्र साहित्य के बारे में जानकारी दें।
(Describe the Shastra, literature on the basis of any one Shastra.)
अथवा
हिंदू शास्त्रों बारे जानकारी दें। [Write a brief note on Hindu Scriptures (Shastras).]
अथवा
शास्त्रों के मुख्य लक्षणों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the main features of Shastras.)
अथवा
शास्त्रों के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालें।
(Elucidate the spiritual importance of Shastras.)
अथवा
धर्म शास्त्रों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Dharma Shastras.)
उत्तर-
धर्म शास्त्र हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ हैं । इनको स्मृति भी कहा जाता है। इन धर्म शास्त्रों में मनु का मानव धर्म शास्त्र अथवा मनु स्मृति सब से अधिक प्रसिद्ध है। इस के अतिरिक्त याज्ञवलक्य, विष्णु और नारद के द्वारा लिखी गई स्मृतियों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन धर्म शास्त्रों के रचनाकाल के बारे इतिहासकारों में मतभेद हैं। आम सुझाव यह है कि इनकी रचना पहली सदी ई० पू० से पाँचवीं सदी ई० पू० के मध्य हई। ये धर्म शास्त्र संस्कृत में लिखे गये हैं। इनमें केवल विष्णु स्मृति गद्य रूप में लिखी गई है जबकि बाकी के तीनों धर्म शास्त्र कविता के रूप में लिखे गये हैं। इन धर्म शास्त्रों में प्राचीन कालीन भारत के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नियमों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। परिणामस्वरूप ये धर्म शास्त्र हमारे लिए उस समय के लोगों की दशा जानने के लिए एक बहुमूल्य स्रोत है। प्रमुख धर्मशास्त्रों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:—

1. मनु स्मृति (Manu Smriti)—मनु स्मृति को मानव धर्म शास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। इस की रचना मनु ने की थी। मनु को संसार का पहला कानूनदाता माना जाता है। उसने अपनी रचना में धर्म की उत्पत्ति और उसके स्रोतों के बारे बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है। इस में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के कर्त्तव्य अंकित किये गये हैं। ब्राह्मणों को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था और शूद्रों को सब से नीच समझा जाता है। इस में मानव जीवन के चार आश्रमों अर्थात् ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ और संन्यास आश्रम के कर्तव्यों और महत्त्व के बारे बहुत लाभदायक जानकारी प्रदान की गई है। इस में मनु ने राजाओं को कौन से नियमों की पालना करनी चाहिए के बारे भी जानकारी दी है। उस अनुसार राजा को प्रशासन प्रबंध चलाने के लिए एक मंत्री परिषद् का गठन करना चाहिए। राजा को स्थानिक प्रबंध में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए।

मनु का कहना था कि हमें अपने माता-पिता, अध्यापकों और बुजुर्गों के सत्कार का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। उनके नाराज़ होने पर भी हमें गुस्से में नहीं आना चाहिए। क्योंकि हम उन के ऋण को चुका नहीं सकते। जो व्यक्ति इन का निरादर करता है उस को 100 पन जुर्माना किया जाये। मनु के अनुसार स्त्रियों को वेदों के अध्ययन और सम्पत्ति का अधिकार नहीं देना चाहिए। उनके विचारों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। उनको स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। वह बाल विवाह के पक्ष में था। उसने विधवा विवाह और नियोग प्रथाओं का विरोध किया। मनु के अनुसार लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। उस अनुसार दुराचारी और पापी व्यक्तियों को नर्क में अनेक कष्टों को सहन करना पड़ेगा। वह जुए के घोर विरोधी थे। उनके अनुसार सरकार के द्वारा वस्तुओं की कीमतें निर्धारित की जानी चाहिए। इन विषयों के अतिरिक्त मनु ने अपनी रचना में दान, योग, तप, पुनर्जन्म, मोक्ष के बारे में भी जानकारी प्रदान की है।

2. याज्ञवल्कय स्मृति (Yajnavalkya Smriti)-याज्ञवल्कय स्मृति चाहे मनु स्मृति के मुकाबले संक्षेप है परंतु वह अनेक पक्षों से महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। इस में दिया गया वर्णन नियमबद्ध है और भाषा प्रवाहमयी है। इस का रचनाकाल 100 ई० पू० से 300 ई० के मध्य माना जाता है। याज्ञवल्कय की स्मृति तीन अध्यायों में बाँटी गई है। पहले अध्याय में गर्भ धारण करने से लेकर विवाह तक के संस्कार, पत्नी के कर्त्तव्य, चार वर्णों के अधिकार और कर्त्तव्य, यज्ञ, दान के नियमों, श्राद्ध के नियमों और उन्हें करवाने से प्राप्त फल, राजा और उसके मंत्रियों के लिए निर्धारित योग्यतायें, न्याय व्यवस्था और अपराधियों के लिए सज़ायें और कर व्यवस्था आदि का वर्णन है। दूसरे अध्याय में धर्म शास्त्र और अर्थ शास्त्र में अंतर, संपत्ति के स्वामित्व संबंधी, दास, जुए, चोरी, बलात्कार, सीमावाद संबंधी आदि के नियमों की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। तीसरे अध्याय में मनुष्य के अंतिम संस्कार, शोक काल, शुद्धि के साधन, आत्मा, मोक्ष मार्ग, पापियों, योगियों, आत्म ज्ञान के साधनों, नरक, प्रायश्चित के उद्देश्य, मदिरापान और जीव हत्या आदि विषयों के बारे प्रकाश डाला गया है।

याज्ञवल्कय की स्मृति और मन की स्मृति के मध्य कुछ बातों पर मतभेद था। मनु ने जहाँ ब्राह्मण को शूद्र की लड़की के साथ विवाह करने की आज्ञा दी है वहाँ याज्ञवल्कय इस के विरोधी थे। मनु ने नियोग की निंदा की है परंतु याज्ञवल्कय इस के पक्ष में थे। मनु का कहना था कि विधवाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं होना चाहिए जबकि याज्ञवल्कय इसके पूरी तरह पक्ष में था। मनु जुए के सख्त विरुद्ध थे जबकि याज्ञवल्कय इस को बुरा नहीं समझता था। वह इसको सरकार के नियंत्रण में ला कर माल प्राप्त करने के पक्ष में था। याज्ञवल्कय ने अपनी स्मृति में शारीरिक विज्ञान और चिकित्सा संबंधी बहुत लाभदायक जानकारी प्रदान की है।

3. विष्णु स्मृति (Vishnu Smriti)-इस स्मृति कीचना 100 ई० से 300 ई० के मध्य की गई थी। यह गद्य रूप में लिखी गई थी। इस में कुछ श्लोक मनु और याज्ञवल्कय स्मृतियों में से लिये गये हैं। विष्णु स्मृति में आर्यव्रत का क्षेत्र मनु स्मृति के मुकाबले अधिक विस्तारपूर्वक माना है। इस में लगभग सारा भारत शामिल है। इस से सिद्ध होता है कि विष्णु स्मृति की रचना के समय आर्य सारे भारत में बिखर गये थे। राजा प्रशासन की धुरी होता था। अपने राज्य का विस्तार करना और प्रजा की रक्षा करना उसके प्रमुख कार्य समझे जाते थे। राजा प्रशासन प्रबंध को अच्छे ढंग से चलाने के उद्देश्य से एक मंत्रिपरिषद का गठन करता था। मंत्रियों की नियुक्ति का मुख्य आधार उनकी योग्यता और राज्य के प्रति वफादारी थी। राज्य को कई प्रशासनिक इकाइयों में बाँटा जाता था। प्रशासन की सब से छोटी इकाई को ग्राम (गाँव) कहते थे। प्रजा को निष्पक्ष न्याय देना राजा का एक प्रमुख कर्त्तव्य समझा जाता था। विष्णु स्मृति में अपराधों की किस्मों और उनको मिलने वाली सज़ाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
मनु स्मृति में कहा गया है कि ब्राह्मणों पर उनकी समाज में सर्वोच्च स्थिति के कारण कर नहीं लगाया जाना चाहिए परंतु विष्णु स्मृति इस के पक्ष में थी। विष्णु स्मृति जुए के विरुद्ध थी और इसको समाज पर एक घोर कलंक समझती थी। यह समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था और आश्रम प्रथा में विश्वास रखती थी। शूद्र भी संन्यासी होते थे जबकि मनु स्मृति के अनुसार वे संन्यास धारण नहीं कर सकते थे। इस काल में स्त्रियों की दशा पहले से बदत्तर (बुरी) हो गई थी। इस का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उस समय समाज में सती प्रथा का प्रचलन आरंभ हो गया था। विष्णु स्मृति में लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उनको मलेच्छों से न बोलने के लिए भी कहा गया है। विष्णु स्मृति में यव, माषा, स्वर्ण, निषक, किश्णाल आदि सिक्कों का वर्णन भी मिलता है। इस से पता चलता है कि उस समय व्यापार न केवल वस्तु-विनिमय बल्कि सिक्कों से भी किया किया जाता था।

4. नारद स्मृति (Narda Smriti)-इस स्मृति की रचना 100 ई० से 400 ई० के मध्य की गई थी। इस स्मृति में भी कुछ श्लोक मनु स्मृति से लिये गये हैं परंतु इस की अनेक विशेषतायें अपनी हैं। राज्य में होने वाली घटनाओं से संबंधित सूचना देने के लिए राजा की ओर से गुप्तचर नियुक्त किये जाते थे। कुल, श्रेणी और गण जनहित संस्थायें थीं। ये संस्थायें अपने नियम बनाती थीं। राजा उन के आंतरिक मामलों में बहुत कम हस्तक्षेप करता था। नारद स्मृति में राज्य के न्याय प्रबंध का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। राजा को राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश माना जाता था। उसके निर्णय अंतिम होते थे। यदि किसी चोर को न पकड़ा जा सकता तो चोरी हुए सामान का मूल्य राजा को अपने खज़ाने से देना पड़ता है। चोर को शरण देना या चोरी का सामान खरीदने वाले को भी सज़ा का बराबर हकदार माना जाता था। अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सज़ायें निर्धारित की गई हैं। निर्दोष सिद्ध करने के लिए सात प्रकार की परीक्षाओं का वर्णन किया गया है।

नारद जुआखोरी को सरकार के नियंत्रण के नीचे लाने के पक्ष में थे ताकि राज्य को उससे कुछ आय प्राप्त हो सके। वह विधवा को अपने पति की संपत्ति दिये जाने के पक्ष में नहीं था। उसने विधवा विवाह और नियोग प्रथाओं का समर्थन किया। उसने समाज में प्रचलित 15 किस्मों के दासों का वर्णन किया है। इनका मुख्य कार्य उपरोक्त तीन जातियों की सेवा करना था। उनको संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। व्यापार में साझेदारी की प्रथा थी और लाभ तथा हानि सांझेदारों द्वारा लगाई गई पूंजी के हिसाब से बाँटा जाता था। नारद ने दीनार, पन और स्वर्ण नामी सिक्कों का वर्णन किया है। उसने विद्यार्थियों या शिल्पियों की सिखलाई के लिए भी कुछ नियम निर्धारित किये थे। उनको अपने स्वामी की कार्यशाला में जाकर काम सीखना पड़ता था। वे अपने निर्धारित शिक्षाकाल से पहले अपने स्वामी को छोड़ नहीं सकते थे। ऐसा करने वाले शिल्पी को भारी दंड दिया जाता था।

ऊपरलिखित विवरण से स्पष्ट है कि धर्म शास्त्रों में हिंदुओं के विभिन्न कानूनों और रीति-रिवाजों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ऐतिहासिक पक्ष से इनकी बहुत महत्ता है। डॉक्टर आर० सी० मजूमदार का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“धर्म शास्त्रों ने जिनको स्मृतियाँ भी कहा जाता है, हिंदुओं के जीवन में पिछले दो हज़ार वर्षों से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि वेदों को धर्म का अंतिम स्त्रोत समझा जाता है परंतु व्यवहार में सारे भारत के हिंदू अपने धार्मिक कर्तव्यों और रस्मों के लिए स्मृति ग्रंथों की ओर देखते हैं। उनको हिंदू कानून और सामाजिक रीति-रिवाजों का सब से भरोसेयोग्य स्त्रोत भी समझा जाता है।”3

3. “The Dharma Sastras, also called Smritis, have played a very important part in Hindu life during the last two thousand years. Although the Vedas are regarded as the ultimate sources of Dharma, in practice it is the Smriti works to which the Hindus all over India turn for the real exposition of religious duties and usages. They are also regarded as the only authentic sources of Hindu law and social customs.” Dr. R. C. Majumdar, The History and Culture of the Indian People (Bombay : 1953) Vol. 2, pp. 254-55.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 9.
मनु स्मृति से क्या भाव है ? इस में किन विषयों का वर्णन किया गया है ?
(What is ineant by Manu Smriti ? What subjects have been discussed in it ?)
अथवा
मनु स्मृति के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो।
(What do you know about Manu Smriti ? Explain.)
उत्तर-
धर्म शास्त्रों में मनु स्मृति की गणना प्रथम स्थान पर की जाती है। इस को मानव धर्म शास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। इस का रचना काल 200 ई० पू० से 200 ई० के मध्य माना जाता है। इस में 27,000 श्लोक हैं और इस के 12 अध्याय हैं। यह संस्कृत में कविता रूप में लिखी गई है। मनु को संसार का पहला कानूनदाता समझा जाता है। अपनी कृति में मनु ने अपने युग में भारत के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नियमों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है। प्रमुख नियमों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:—

1. धर्म के चार स्रोत (Four Sources of Dharma)-मनु की भारतीय संस्कृति को सब से बड़ी देन धर्म के चार स्त्रोतों के बारे जानकारी देना है। उस के अनुसार वेद धर्म का पहला स्रोत है। ये विश्व के सारे धर्मों को मूल तत्त्व प्रदान करते हैं। दूसरा स्रोत स्मृति है। स्मृति से भाव है वे बातें जिन को याद शक्ति के सहारे लिखा गया है। स्मृति श्रुति से भिन्न होती है। श्रुति में वे बातें सम्मिलित हैं जिन को सीधा परमात्मा से सुना गया है। स्मृति में धर्म शास्त्र और श्रुति में वेद आते हैं। वह व्यक्ति जो श्रुति और स्मृति में दिये गये कानूनों का पालन करता है, वह इस जीवन में प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है और अगले जीवन में भी अथाह खुशी का भागी बनता है। तीसरा स्रोत मान्यता प्राप्त रीति-रिवाज हैं परंतु ये शिष्टाचार पर आधारित होने चाहिए। चौथा स्रोत वह है जिस को आत्मा माने परंतु वह भी शिष्टाचार पर आधारित होना चाहिए।

2. प्रशासनिक नियम (Administrative Laws)-मनु स्मृति में राजा का विशेष महत्त्व दर्शाया गया है। वह राज्य का मुखिया होता था। उस को देवता स्वरूप समझा जाता था। उसका मुख्य कर्त्तव्य धर्म और प्रजा की रक्षा करना था। प्रजा के लिए उसकी आज्ञा का पालन करना ज़रूरी था। राजा निरंकुश नहीं होता था। वह प्रशासन को अच्छे ढंग (तरीके) से चलाने के उद्देश्य से 7 अथवा

3. मंत्रियों की एक मंत्रि-परिषद् का गठन करता था। इसका अध्यक्ष मुख्यमात्य होता था जो आम तौर पर ब्राह्मण होता था। इन मंत्रियों की योग्यतायें और कर्तव्यों के बारे, युद्ध के नियमों के बारे, राजा के द्वारा लगाये जाने वाले प्रजा पर करों के बारे विशेष तौर पर प्रकाश डाला गया है। मनु ब्राह्मणों पर कर लगाये जाने के पक्ष में नहीं था। अपंग व्यक्तियों से भी कर नहीं लिये जाते थे। प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को कई प्रशासनिक इकाइयों में बाँटा जाता था। प्रशासन की सब से छोटी इकाई ग्राम (गाँव) थी जिस का अध्यक्ष ग्रामिणी होता था। स्थानिक प्रशासन में राजा बहुत कम हस्तक्षेप करता था।

4. न्याय व्यवस्था (Judicial Administration)-मन ने कानून के क्षेत्र में प्रशंसनीय योगदान दिया। वह पहला व्यक्ति था जिसने दीवानी और फौजदारी कानूनों में अंतर स्पष्ट किया। प्रजा को निष्पक्ष न्याय देना वह राजा का पहला कर्त्तव्य समझता था। राजा अपने राज्य में अनेक अदालतें स्थापित करता था। कुल, श्रेणी तथा गणों को भी अपनी अदालतें स्थापित करने का अधिकार प्राप्त था। न्याय से संतुष्ट न होने पर कोई भी फरियादी राजा से फरियाद कर सकता था। मनु ने 18 किस्मों के अपराधों का वर्णन किया है। जैसे ऋण वापस न देना, वचन भंग, विश्वासघात, चोरी, डाका, मानहानि, उत्तराधिकारी संबंधी, पर-स्त्री गमन, वेतन न देना, सीमा संबंधी विवाद आदि। भिन्न-भिन्न अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न सज़ायें निर्धारित की गई हैं। मनु ब्राह्मणों को मृत्युदंड देने के पक्ष में नहीं था। अपराधियों से अपराध कबूल करवाने के उद्देश्य से उनको कई बार अग्नि परीक्षा अथवा जल परीक्षा देनी पडती थी। संक्षेप में आधुनिक कानून की कोई ऐसी शाखा नहीं थी जो मनु की दृष्टि से ओझल रह गई हो।

वर्ण व्यवस्था (Varna System)—मनु समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था के पक्ष में था। उसके अनुसार ब्राह्मण परमात्मा के मुँह से, क्षत्रिय बाजुओं से, वैश्य पेट से और शूद्र पैरों से पैदा हुए। ब्राह्मण को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। उसके प्रमुख काम वेद पढ़ना और पढ़ाना, दूसरों के लाभ के लिए यज्ञ करना, दान देना और qलेना, न्यायाधीश और राजा के प्रमुख सलाहकार का काम करना आदि थे। उनसे यह आशा की जाती थी कि वे सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करें। क्षत्रिय का काम लोगों की रक्षा करना था। इस के अतिरिक्त उनको वेदों का अध्ययन करना, यज्ञ करना और उपहार देने के लिए कहा गया है। वैश्य का मुख्य काम वाणिज्य-व्यापार, खेतीबाड़ी और पशु पालन था। वह भी वेदों का अध्ययन करते थे। शूद्रों का काम ऊपर वाली तीन जातियों की बड़ी नम्रता के साथ सेवा करना था। उनको वेदों का अध्ययन करने की आज्ञा नहीं थी।

5. चार आश्रम (The Four Ashramas)—मनु ने मनुष्य के जीवन को 100 वर्षों का मान कर उसको 25-25 वर्षों के चार आश्रमों में बाँटा। इनके नाम थे-ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संयास आश्रम। ये सारे आश्रम ऊपर लिखित तीन जातियों के लिए निर्धारित किये गये थे। पहला आश्रम ब्रह्मचर्य था। इस में बच्चा 5 वर्ष से लेकर 25 वर्षों तक विद्या प्राप्त करता था। गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्षों तक होता था। इस में मनुष्य विवाह करके संतान उत्पन्न करता था। वह अपने परिवार के पालन-पोषण का पूरा ख्याल रखता था। परिवार में पुत्र का होना ज़रूरी समझा जाता था। वाणप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्षों तक होता था। इस में मनुष्य अपना घर बाहर छोड़ कर जंगलों में चला जाता था और तपस्वी जीवन व्यतीत करने का यत्न करता था। चौथा और अंतिम आश्रम संयास का था। यह 75 से 100 वर्षों तक चलता था। इस में मनुष्य एक संयासी की भाँति जीवन व्यतीत करता था और मुक्ति प्राप्त करने का यत्न करता था।

6. स्त्रियों संबंधी विचार (Views about Women)-मनु स्त्रियों को स्वतंत्रता दिये जाने के पक्ष में नहीं था। उसका विचार था कि अविवाहित लड़की का उसके पिता द्वारा, विवाहित लड़की का उसके पति द्वारा और पति की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों द्वारा ख्याल रखा जाना चाहिए। उस का कहना था कि स्त्रियाँ पुरुष को गलत रास्ते पर लगाती हैं। वह स्त्रियों की बातों पर विश्वास किये जाने के पक्ष में नहीं थे। मनु ने बाल विवाह का समर्थन किया। उसका कहना था कि लड़कियों की 8 से 12 वर्ष की आयु तक शादी कर देनी चाहिए। मनु ने विधवा विवाह और नियोग प्रथा का विरोध किया। नियोग प्रथा के अनुसार कोई विधवा पुत्र पैदा करने के लिए अपने किसी देवर से विवाह करवा सकती थी। मनु स्त्रियों को संपत्ति का अधिकार दिये जाने के पक्ष में नहीं था। वह केवल ‘स्त्री धन’ जो दहेज के रूप में अपने साथ लाई थी प्राप्त कर सकती थी। स्त्रियों पर लगाये गये इन प्रतिबंधों के बावजूद मनु ने गृहणी के रूप में स्त्रियों का बड़ा सम्मान किया है। उसका कहना था, “जहाँ स्त्रियों का सत्कार किया जाता है वहाँ परमात्मा निवास करता है जहाँ स्त्रियों का सत्कार नहीं किया जाता वहाँ सारे धार्मिक कार्य बेकार हो जाते हैं।”

7. कुछ अन्य विचार (Some other Views)—मनु ने लोगों को शुद्ध और पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए कहा। उसका कहना था कि दुराचारी मनुष्य हमेशा दुःखी रहता है। वह झूठ बोलने वालों को महाचोर समझता था। ऐसे पापी सीधा नरक में जाते हैं। उसका कहना था कि हमें अपने माता-पिता, अध्यापक और बुजुर्गों का हमेशा सत्कार करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता उसको दंड दिया जाना चाहिए। मनु ने वाणिज्य व्यापार के नियमों संबंधी भी प्रकाश डाला है। ए० ए० मैकडोनल के शब्दों में,
“किसी और ग्रंथ ने सारे भारत में सदियों तक इतनी प्रसिद्धि और प्रमाण प्राप्त नहीं किये, जितने मानव धर्म शास्त्र ने जिसको मनु स्मृति भी कहा जाता था।”4

4. “No work has enjoyed so great a reputation and authority throughout India for centuries as the Manava Dharmasastra, also called the Manu Smriti.” A. A. Macdonell, Political, Legal and Military History of India, ed. by H.S. Bhatia (New Delhi : 1984) Vol. 1, p. 153.

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(क) पुराण
(ख) उपनिषद्
(ग) शास्त्र।
[Write short notes on any two of the following
(a) Puranas
(b) Upanishads
(c) Shastras.]
उत्तर-
पुराणों में लोगों में प्रचलित वैदिक और अवैदिक धार्मिक विश्वास, मिथिहास और कहानियाँ संकलित हैं। मिथिहास वह कथा कहानियाँ होती हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं होता परंतु वे लोगों में बहुत प्रचलित होती हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा होता था। ये भाग हैं-
(1) सर्ग-इसमें संसार की उत्पत्ति बारे वर्णन किया गया था।
(2) प्रतिसर्ग-इसमें संसार के विकास, नष्ट होने और फिर से उत्पत्ति के बारे वर्णन किया गया था।
(3) वंश-इसमें प्रसिद्ध राजाओं और ऋषियों के वंशों का वर्णन किया गया था।
(4) मनवंतर-इसमें संसार के महायुद्धों और प्रत्येक युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटना का वर्णन किया गया था।
(5) वंशानचित-इसमें प्रसिद्ध वंशों के राजाओं और ऋषियों के कारनामों का वर्णन किया गया था। यह बात यहाँ याद रखने योग्य है कि हमें मूल पुराण उपलब्ध नहीं हैं। ये पुराण हमें आजकल जिस स्वरूप में उपलब्ध हैं उनमें यह जरूरी नहीं कि उनमें दिया गया वर्णन इस बाँट अनुसार हो। पुराणों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है :—

  1. ब्रह्म पुराण (The Brahman Purana)-इसको आदि पुराण भी कहा जाता है। इस में 14,000 श्लोक हैं। इस के अधिकाँश भाग में भारत के पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है। इस के अतिरिक्त इस में कृष्ण, राम, सूर्य, पूजा, प्रसिद्ध राजवंशों, पृथ्वी, नरक, विभिन्न जातियों, वर्ण, आश्रम व्यवस्था और श्राद्धों आदि का वर्णन दिया गया है।
  2. पद्म पुराण (The Padma Purana)-यह सबसे विशाल पुराण है। इस में लगभग 55,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में सृष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड और पाताल खंड का वर्णन दिया गया है। इसमें विष्णु कथा और राम कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इन के अतिरिक्त इस पुराण में अनेक तीर्थ स्थानों और व्रतों का भी वर्णन मिलता है। इस में अनेकों मिथिहासिक कथायें भी दर्ज हैं।
  3. विष्णु पुराण (The Vishnu Purana)-इस पुराण में 23,000 श्लोक दिये गये हैं। इसमें यह बताया गया है कि विष्णु ही सर्वोच्च देवता है। उसने ही संसार की रचना की और इसका पालनहार है। इसमें दी गई कथाओं में प्रह्लाद और ध्रुव की कथायें प्रसिद्ध हैं। इस में इस संसार और स्वर्ग के लोगों की अनेकों विचित्र बातों का भी वर्णन है। इस में कई प्रसिद्ध वंशों का भी वर्णन मिलता है। पाँचवें और अंतिम खंड में कृष्ण की अनेक अलौकिक लीलाओं की चर्चा की गई है।
  4. वायु पुराण (The Vayu Purana)-इस पुराण में 11,000 श्लोक हैं । इस में शिव की महिमा के साथ संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इस लिए इस को शिव पुराण भी कहते हैं। इस में अनेक वंशों का वर्णन किया गया है। प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण इन की बहुत ऐतिहासिक महत्ता है। इसमें दिया गया भूगौलिक वर्णन भी बड़ा लाभदायक है।
  5. भगवद् पुराण (The Bhagavata Purana)-विष्णु देवता के साथ संबंधित पुराणों में भगवद् पुराण सब से अधिक लोकप्रिय है। इस में कृष्ण के जीवन से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इसमें महात्मा बुद्ध और साक्ष्य दर्शन के संस्थापक कपिल को विष्णु का अवतार बताया गया है। ऐतिहासिक पक्ष से इस पुराण का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।
  6.  नारद पुराण (The Narada Purana)-इस पुराण में 25,000 श्लोक दिये गये हैं। यह विष्ण भक्ति से संबंधित पुराण है। इस में प्राचीन कालीन भारत में प्रचलित विद्या के बारे काफी विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। इस में वंशों का विवरण नहीं मिलता।
  7. मारकंडेय पुराण (The Markandeya Purana)-इस पुराण में 900 श्लोक दिये गये हैं। इस में वैदिक देवताओं इंद्र, सूर्य और अग्नि आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन दिया गया है। इस में कई प्रसिद्ध वंशों का भी वर्णन मिलता है।
  8. अग्नि पुराण (The Agni Purana)-इस पुराण में 15,400 श्लोक दिये गये हैं। एक परंपरा के अनुसार इस पुराण को अग्नि देवता ने आप ऋषि विशिष्ट को सुनाया था। यह शिव धर्म से संबंधित पुराण है। इस में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों जैसे युद्धनीति, यज्ञ विधि, ज्योतिष, भूगोल, राजनीति, कानून, छंद शास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा, व्रत, दान, श्राद्ध और विवाह आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। निस्संदेह यह पुराण एक विश्वकोष की तरह
  9. भविष्य पुराण (The Bhavishya Purana)—इस पुराण में 14,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में ब्रह्म, विष्ण, शिव और सूर्य देवताओं से संबंधित अनेक कथायें दी गई हैं। इस में अनेक प्राचीन राजवंशों और ऋषियों का भी वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इस में अनेक कर्मकांडों की भी चर्चा की गई है।
  10. ब्रह्मावैव्रत पुराण (The Brahmavaivarta Purana)—इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण में ब्रह्म को इस संसार का रचयिता कहा गया है। इस में कृष्ण के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस में राधा का वर्णन भी आता है। इस में गणेश को कृष्ण का अवतार कहा गया है।
  11. लिंग पुराण (The Linga Purana)-इस पुराण में 11,000 श्लोक दिये गये हैं। यह शिव धर्म से संबंधित पुराण है। इस में शिव अवतारों, व्रतों तथा तीर्थों का वर्णन किया गया है। इस में लिंग की शिव के रूप में उपासना का उपदेश दिया गया है।
  12. वराह पुराण (The Varaha Purana)-इस में 10,700 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु की तरह वराह अवतार के रूप में पूजा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस में शिव, दुर्गा और गणेश से संबंधित वर्णन . भी दिया गया है।
  13. स्कंद पुराण (The Skanda Purana)—यह एक विशाल पुराण था। इस में 51,000 श्लोकों का वर्णन किया गया था। यह पुराण आजकल उपलब्ध नहीं है। इस के बारे में जानकारी अन्य ग्रंथों में दी गई उदाहरणों से प्राप्त होती है। इस पुराण में मुख्य तौर पर शिव की पूजा के बारे बताया गया है। इस के अतिरिक्त इस में भारत के अनेक तीर्थ स्थानों और मंदिरों के बारे बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
  14. वामन पुराण (The Vamana Purana)इस पुराण में 10,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण के अधिकतर भाग में शिव, विष्णु और गणेश आदि देवताओं की पूजा के बारे वर्णन किया गया है। इस में अनेक मिथिहासिक कथाओं का भी वर्णन मिलता है।
  15. कूर्म पुराण (The Kurma Purana)-इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु के कुर्म अवतार की पूजा का वर्णन है। इस में अनेक मिथिहासिक कथाओं का वर्णन भी मिलता है।
  16. मत्स्य पुराण (The Matsya Purana)-इस पुराण में 14,000 श्लोक दिये गये हैं। यह पुराण मत्स्य (मछली) तथा मनु के मध्य एक वार्तालाप है। जब इस संसार का विनाश हुआ तब इस मछली ने मनु की सुरक्षा की थी। इस में अनेक प्रसिद्ध राजवंशों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इस में अनेक मेलों और तीर्थ स्थानों का भी वर्णन है।
  17. गरुढ़ पुराण (The Garuda Purana)-इस पुराण में 18,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में विष्णु की पूजा से संबंधित अनेक विधियों का वर्णन है। इस में यज्ञ विद्या, छंद शास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, खगोल विज्ञान, शारीरिक विज्ञान और भूत-प्रेतों के बारे जानकारी दी गई है। इस में अंतिम संस्कार संबंधी, सती संबंधी और पितर श्राद्धों के संबंध में विस्तावपूर्वक जानकारी दी गई है।
  18. ब्रह्माण्ड पुराण (The Brahmanda Purana)—इस पुराण में 12,000 श्लोक दिये गये हैं। इस पुराण को ब्रह्मा ने पढ़ के सुनाया था। इस में अनेक राजवंशों और तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है।

भारतीय दर्शन प्रणाली का वास्तविक आरंभ उपनिषदों से माना जाता है। उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें दुनिया के सबसे ऊँचे आध्यात्मिक ज्ञान के मोती पिरोये हुए हैं। इन मोतियों की चमक से मनुष्य का आंतरिक अंधेरा दूर हो जाता है और ऐसा प्रकाश होता है जिस के आगे सूर्य का प्रकाश भी कम हो जाता है। यदि उपनिषदों को भारतीय दर्शन का मूल स्रोत कह दिया जाये तो इस में कोई अतिकथनी नहीं होगी। उपनिषद् तीन शब्दों के मेल से बना है। ‘उप’ से भाव है नज़दीक, ‘नि’ से भाव है श्रद्धा और ‘षद्’ से भाव है बैठना। इस तरह उपनिषद् से भाव है श्रद्धा भाव से नज़दीक बैठना। वास्तव में उपनिषद् एक ऐसा ज्ञान है जो एक गुरु अपने पास (समीप) बैठे हुए शिष्य को गुप्त रूप से प्रदान करता है। उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है क्योंकि इनको वेदों का अंतिम भाग समझा जाता है। वेदांत से भाव अंतिम ज्ञान है। इसका भाव यह है कि उपनिषदों में ऐसा ज्ञान दिया गया है जिस के बाद और अन्य कोई ज्ञान नहीं है। उपनिषदों की रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 550 ई० पू० से 100 ई०पू० के मध्य की गई। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। इनमें से ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मुंडुक्य, तैतरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, ब्रहदआरण्यक, श्वेताश्वतर नामों के उपनिषदों को सब से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। छांदोगय एवं ब्रहदआरण्यक नामक उपनिषदों की रचना सबसे पहले हुई थी। इनकी रचना 550 ई० पू० से 450 ई० पू० के मध्य हुई। उपनिषदों की मुख्य शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं—

  1. आत्मा का स्वरूप (Nature of Self)-उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है क्योंकि इसको संपूर्ण ज्ञान का भंडार समझा जाता है। आत्मा सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। यह तत्त्व ही सारे तत्त्वों का मूल आधार है। यही जीव रूप धारण करके सब के हृदयों में निवास करता है। यही ब्रह्म या परमात्मा है। इसी कारण आत्मा को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। उपनिषदों के अनुसार केवल आत्मा ही एक ऐसी वस्तु है जिस पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। आत्मा एक निश्चित सत्ता है। आत्मा नित भी है। यह परिवर्तनशील नहीं है। यह स्वयं परिवर्तनशील वस्तुओं का आधार है। इसलिए उसका अपना परिवर्तन नहीं हो सकता।

2. ब्रह्म का स्वरूप (Nature of the Absolute)-‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा की एक धातु ‘बृह’ से निकला है जिस का अर्थ है उगना और बढ़ना। इससे यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सब गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उस के ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निस्संदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है।

3. आत्मा और ब्रह्म की अभेदता (Identity of Self and the Absolute)-उपनिषदों में, ऋषियों ने आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं किया। वे इनको एक ही मूल तत्त्व समझते थे। इस कारण वे उपनिषदों में बहुत बार आत्मा की जगह ब्रह्म और ब्रह्म शब्द की जगह आत्मा का प्रयोग करते हैं। भेद केवल शब्दों का है परंतु अर्थ अथवा तत्त्व का भेद नहीं है। जगत् का मूल तत्त्व एक ही है। उसी को कभी आत्मा और कभी ब्रह्म कहा जाता है। जैसे कोई नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है ठीक उसी तरह आत्मा परमात्मा में मिलकर एक हो जाती है। क्योंकि आत्मा और ब्रह्म एक ही है इस लिए उनमें भेद नहीं किया जा सकता। संक्षेप में एक बूंद में सागर और सागर में बूंद को देखना ही उपनिषदक दर्शन है।

4. सृष्टि की रचना (Creation of the World)-उपनिषदों में सृष्टि की रचना संबंधी अनेक वर्णन मिलते हैं। इन में बताया गया है कि ब्रह्म ने सृष्टि की रचना की। सृष्टि की रचना से पहले ब्रह्म अपने आप में मौजूद था। फिर ब्रह्म ने सोचा कि वह अनेक रूपों में प्रगट हो जाये। परिणामस्वरूप उसने तेज़ पैदा किया। उत्पन्न होने वाले तेज़ ने भी संकल्प किया कि मैं अनेक रूपों वाला हो जाऊँ। फलस्वरूप उसने जल की सृजना की। जल ने अनेक जीव जंतु और अन्न को पैदा किया। इस तरह सृष्टि की रचना आरंभ हुई।

5. कर्म सिद्धांत में विश्वास (Belief in Karma Theory)–उपनिषद् कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उस द्वारा किये गये कर्मों का फल ज़रूर भुगतना पड़ता है। जैसे कर्म हमने पिछले जन्म में किये हैं वैसा फल हमें इस जीवन में प्राप्त होगा। इस जन्म में किये गये कर्मों का फल हमें अगले जीवन में प्राप्त होगा। इसलिए हमारे जीवन के सुख अथवा दुःख हमारे किये गये कर्मों पर ही निर्भर करते हैं। इसलिए हमें सदा शुभ कर्मों की ओर ध्यान देना चाहिए और पाप कर्मों से दूर रहना चाहिए। मनुष्य अपने बुरे कर्मों के कारण परमात्मा से बिछड़ा रहता है और वह बार-बार जन्म-मरण के चक्र में आता रहता है।

6. नैतिक गुण (Moral Virtues)-उपनिषदों में मनुष्यों के नैतिक गुणों पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इन गुणों को अपना कर मनुष्य इस भवसागर से पार हो सकता है। ये गुण हैं—

  • सदा सच बोलो
  • सभी जीवों से प्यार करो।
  • दूसरों के दुःखों को अपना दुःख समझें।
  • अहंकार, लालच और बुरी इच्छाओं से कोसों दूर रहो।
  • चोरी और ठगी आदि न करो।
  • धर्म का पालन करो।
  • वेदों के अध्ययन, शिक्षा, देवताओं और पितरों की ओर लापरवाही न दिखाओ।
  • लोक कल्याण की ओर लापरवाही का प्रयोग न करो।
  • अध्यापक का पूरा आदर करो।

7. माया (Maya) उपनिषदों में पहली बार माया के सिद्धाँत पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस जगत् और उसके पदार्थों को माया कहा गया है। अज्ञानी पुरुष जगत् के आकर्षक पदार्थों के पीछे दौड़ते हैं। इनको प्राप्त करने के उद्देश्य से वे बुरे से बुरा ढंग अपनाने से भी नहीं डरते। इस माया के कारण उस की बुद्धि पर पर्दा पड़ा रहता है और वह हमेशा जन्म-मरण के चक्रों में फिरता रहता है। ज्ञानी पुरुष माया के रहस्य को समझते हैं नतीजे के तौर पर वह ज़हर रूपी माया से प्यार नहीं करते। ऐसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

8. मोक्ष (Moksha)-मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य है। कर्म करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। शरीर में कैद आत्मा दुःख और सुख की भागी है। जब तक आत्मा शरीर की कैद में है इस को दुःख सुख से छुटकारा नहीं मिल सकता। अविद्या अथवा अज्ञानता ही मनुष्य के बंधन का प्रमुख कारण है। जब यह अज्ञान नष्ट हो जाता है तो मनुष्य को बंधनों से छुटकारा मिल जाता है और वह मोक्ष प्राप्त करता है। मोक्ष मनुष्य के ज्ञान की अंतिम सीढ़ी है जिस पर पहुँच कर मनुष्य सब कुछ जान लेता है और सब कुछ पा लेता है। मोक्ष के आनंद के आगे संसार के सभी आनंद घटिया हैं। उपनिषदों के अनुसार मोक्ष केवल ज्ञान के मार्ग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एस० एन० सेन का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषदों में बड़े गहरे दार्शनिक विचार दिये गये हैं और जो बाद में दर्शन के विकास का मूल आधार बने।”2

2. “The Upanishads are rich in deep philosophical content and are the bed-rock on which all the latter philosophical development rests.” Dr. S.N. Sen, Ancient Indian History and Civilization (New Delhi : 1988) p.4.

धर्म शास्त्र हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ हैं । इनको स्मृति भी कहा जाता है। इन धर्म शास्त्रों में मनु का मानव धर्म शास्त्र अथवा मनु स्मृति सब से अधिक प्रसिद्ध है। इस के अतिरिक्त याज्ञवलक्य, विष्णु और नारद के द्वारा लिखी गई स्मृतियों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन धर्म शास्त्रों के रचनाकाल के बारे इतिहासकारों में मतभेद हैं। आम सुझाव यह है कि इनकी रचना पहली सदी ई० पू० से पाँचवीं सदी ई० पू० के मध्य हई। ये धर्म शास्त्र संस्कृत में लिखे गये हैं। इनमें केवल विष्णु स्मृति गद्य रूप में लिखी गई है जबकि बाकी के तीनों धर्म शास्त्र कविता के रूप में लिखे गये हैं। इन धर्म शास्त्रों में प्राचीन कालीन भारत के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नियमों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। परिणामस्वरूप ये धर्म शास्त्र हमारे लिए उस समय के लोगों की दशा जानने के लिए एक बहुमूल्य स्रोत है। प्रमुख धर्मशास्त्रों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:—

1. मनु स्मृति (Manu Smriti)—मनु स्मृति को मानव धर्म शास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। इस की रचना मनु ने की थी। मनु को संसार का पहला कानूनदाता माना जाता है। उसने अपनी रचना में धर्म की उत्पत्ति और उसके स्रोतों के बारे बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है। इस में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के कर्त्तव्य अंकित किये गये हैं। ब्राह्मणों को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था और शूद्रों को सब से नीच समझा जाता है। इस में मानव जीवन के चार आश्रमों अर्थात् ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ और संन्यास आश्रम के कर्तव्यों और महत्त्व के बारे बहुत लाभदायक जानकारी प्रदान की गई है। इस में मनु ने राजाओं को कौन से नियमों की पालना करनी चाहिए के बारे भी जानकारी दी है। उस अनुसार राजा को प्रशासन प्रबंध चलाने के लिए एक मंत्री परिषद् का गठन करना चाहिए। राजा को स्थानिक प्रबंध में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए।

मनु का कहना था कि हमें अपने माता-पिता, अध्यापकों और बुजुर्गों के सत्कार का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। उनके नाराज़ होने पर भी हमें गुस्से में नहीं आना चाहिए। क्योंकि हम उन के ऋण को चुका नहीं सकते। जो व्यक्ति इन का निरादर करता है उस को 100 पन जुर्माना किया जाये। मनु के अनुसार स्त्रियों को वेदों के अध्ययन और सम्पत्ति का अधिकार नहीं देना चाहिए। उनके विचारों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। उनको स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। वह बाल विवाह के पक्ष में था। उसने विधवा विवाह और नियोग प्रथाओं का विरोध किया। मनु के अनुसार लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। उस अनुसार दुराचारी और पापी व्यक्तियों को नर्क में अनेक कष्टों को सहन करना पड़ेगा। वह जुए के घोर विरोधी थे। उनके अनुसार सरकार के द्वारा वस्तुओं की कीमतें निर्धारित की जानी चाहिए। इन विषयों के अतिरिक्त मनु ने अपनी रचना में दान, योग, तप, पुनर्जन्म, मोक्ष के बारे में भी जानकारी प्रदान की है।

2. याज्ञवल्कय स्मृति (Yajnavalkya Smriti)-याज्ञवल्कय स्मृति चाहे मनु स्मृति के मुकाबले संक्षेप है परंतु वह अनेक पक्षों से महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। इस में दिया गया वर्णन नियमबद्ध है और भाषा प्रवाहमयी है। इस का रचनाकाल 100 ई० पू० से 300 ई० के मध्य माना जाता है। याज्ञवल्कय की स्मृति तीन अध्यायों में बाँटी गई है। पहले अध्याय में गर्भ धारण करने से लेकर विवाह तक के संस्कार, पत्नी के कर्त्तव्य, चार वर्णों के अधिकार और कर्त्तव्य, यज्ञ, दान के नियमों, श्राद्ध के नियमों और उन्हें करवाने से प्राप्त फल, राजा और उसके मंत्रियों के लिए निर्धारित योग्यतायें, न्याय व्यवस्था और अपराधियों के लिए सज़ायें और कर व्यवस्था आदि का वर्णन है। दूसरे अध्याय में धर्म शास्त्र और अर्थ शास्त्र में अंतर, संपत्ति के स्वामित्व संबंधी, दास, जुए, चोरी, बलात्कार, सीमावाद संबंधी आदि के नियमों की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। तीसरे अध्याय में मनुष्य के अंतिम संस्कार, शोक काल, शुद्धि के साधन, आत्मा, मोक्ष मार्ग, पापियों, योगियों, आत्म ज्ञान के साधनों, नरक, प्रायश्चित के उद्देश्य, मदिरापान और जीव हत्या आदि विषयों के बारे प्रकाश डाला गया है।

याज्ञवल्कय की स्मृति और मन की स्मृति के मध्य कुछ बातों पर मतभेद था। मनु ने जहाँ ब्राह्मण को शूद्र की लड़की के साथ विवाह करने की आज्ञा दी है वहाँ याज्ञवल्कय इस के विरोधी थे। मनु ने नियोग की निंदा की है परंतु याज्ञवल्कय इस के पक्ष में थे। मनु का कहना था कि विधवाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं होना चाहिए जबकि याज्ञवल्कय इसके पूरी तरह पक्ष में था। मनु जुए के सख्त विरुद्ध थे जबकि याज्ञवल्कय इस को बुरा नहीं समझता था। वह इसको सरकार के नियंत्रण में ला कर माल प्राप्त करने के पक्ष में था। याज्ञवल्कय ने अपनी स्मृति में शारीरिक विज्ञान और चिकित्सा संबंधी बहुत लाभदायक जानकारी प्रदान की है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

3. विष्णु स्मृति (Vishnu Smriti)-इस स्मृति कीचना 100 ई० से 300 ई० के मध्य की गई थी। यह गद्य रूप में लिखी गई थी। इस में कुछ श्लोक मनु और याज्ञवल्कय स्मृतियों में से लिये गये हैं। विष्णु स्मृति में आर्यव्रत का क्षेत्र मनु स्मृति के मुकाबले अधिक विस्तारपूर्वक माना है। इस में लगभग सारा भारत शामिल है। इस से सिद्ध होता है कि विष्णु स्मृति की रचना के समय आर्य सारे भारत में बिखर गये थे। राजा प्रशासन की धुरी होता था। अपने राज्य का विस्तार करना और प्रजा की रक्षा करना उसके प्रमुख कार्य समझे जाते थे। राजा प्रशासन प्रबंध को अच्छे ढंग से चलाने के उद्देश्य से एक मंत्रिपरिषद का गठन करता था। मंत्रियों की नियुक्ति का मुख्य आधार उनकी योग्यता और राज्य के प्रति वफादारी थी। राज्य को कई प्रशासनिक इकाइयों में बाँटा जाता था।

प्रशासन की सब से छोटी इकाई को ग्राम (गाँव) कहते थे। प्रजा को निष्पक्ष न्याय देना राजा का एक प्रमुख कर्त्तव्य समझा जाता था। विष्णु स्मृति में अपराधों की किस्मों और उनको मिलने वाली सज़ाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
मनु स्मृति में कहा गया है कि ब्राह्मणों पर उनकी समाज में सर्वोच्च स्थिति के कारण कर नहीं लगाया जाना चाहिए परंतु विष्णु स्मृति इस के पक्ष में थी। विष्णु स्मृति जुए के विरुद्ध थी और इसको समाज पर एक घोर कलंक समझती थी। यह समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था और आश्रम प्रथा में विश्वास रखती थी। शूद्र भी संन्यासी होते थे जबकि मनु स्मृति के अनुसार वे संन्यास धारण नहीं कर सकते थे। इस काल में स्त्रियों की दशा पहले से बदत्तर (बुरी) हो गई थी। इस का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उस समय समाज में सती प्रथा का प्रचलन आरंभ हो गया था। विष्णु स्मृति में लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उनको मलेच्छों से न बोलने के लिए भी कहा गया है। विष्णु स्मृति में यव, माषा, स्वर्ण, निषक, किश्णाल आदि सिक्कों का वर्णन भी मिलता है। इस से पता चलता है कि उस समय व्यापार न केवल वस्तु-विनिमय बल्कि सिक्कों से भी किया किया जाता था।

4. नारद स्मृति (Narda Smriti)-इस स्मृति की रचना 100 ई० से 400 ई० के मध्य की गई थी। इस स्मृति में भी कुछ श्लोक मनु स्मृति से लिये गये हैं परंतु इस की अनेक विशेषतायें अपनी हैं। राज्य में होने वाली घटनाओं से संबंधित सूचना देने के लिए राजा की ओर से गुप्तचर नियुक्त किये जाते थे। कुल, श्रेणी और गण जनहित संस्थायें थीं। ये संस्थायें अपने नियम बनाती थीं। राजा उन के आंतरिक मामलों में बहुत कम हस्तक्षेप करता था। नारद स्मृति में राज्य के न्याय प्रबंध का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। राजा को राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश माना जाता था। उसके निर्णय अंतिम होते थे। यदि किसी चोर को न पकड़ा जा सकता तो चोरी हुए सामान का मूल्य राजा को अपने खज़ाने से देना पड़ता है। चोर को शरण देना या चोरी का सामान खरीदने वाले को भी सज़ा का बराबर हकदार माना जाता था। अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सज़ायें निर्धारित की गई हैं। निर्दोष सिद्ध करने के लिए सात प्रकार की परीक्षाओं का वर्णन किया गया है।

नारद जुआखोरी को सरकार के नियंत्रण के नीचे लाने के पक्ष में थे ताकि राज्य को उससे कुछ आय प्राप्त हो सके। वह विधवा को अपने पति की संपत्ति दिये जाने के पक्ष में नहीं था। उसने विधवा विवाह और नियोग प्रथाओं का समर्थन किया। उसने समाज में प्रचलित 15 किस्मों के दासों का वर्णन किया है। इनका मुख्य कार्य उपरोक्त तीन जातियों की सेवा करना था। उनको संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। व्यापार में साझेदारी की प्रथा थी और लाभ तथा हानि सांझेदारों द्वारा लगाई गई पूंजी के हिसाब से बाँटा जाता था। नारद ने दीनार, पन और स्वर्ण नामी सिक्कों का वर्णन किया है। उसने विद्यार्थियों या शिल्पियों की सिखलाई के लिए भी कुछ नियम निर्धारित किये थे। उनको अपने स्वामी की कार्यशाला में जाकर काम सीखना पड़ता था। वे अपने निर्धारित शिक्षाकाल से पहले अपने स्वामी को छोड़ नहीं सकते थे। ऐसा करने वाले शिल्पी को भारी दंड दिया जाता था।

ऊपरलिखित विवरण से स्पष्ट है कि धर्म शास्त्रों में हिंदुओं के विभिन्न कानूनों और रीति-रिवाजों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ऐतिहासिक पक्ष से इनकी बहुत महत्ता है। डॉक्टर आर० सी० मजूमदार का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“धर्म शास्त्रों ने जिनको स्मृतियाँ भी कहा जाता है, हिंदुओं के जीवन में पिछले दो हज़ार वर्षों से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि वेदों को धर्म का अंतिम स्त्रोत समझा जाता है परंतु व्यवहार में सारे भारत के हिंदू अपने धार्मिक कर्तव्यों और रस्मों के लिए स्मृति ग्रंथों की ओर देखते हैं। उनको हिंदू कानून और सामाजिक रीति-रिवाजों का सब से भरोसेयोग्य स्त्रोत भी समझा जाता है।”3

3. “The Dharma Sastras, also called Smritis, have played a very important part in Hindu life during the last two thousand years. Although the Vedas are regarded as the ultimate sources of Dharma, in practice it is the Smriti works to which the Hindus all over India turn for the real exposition of religious duties and usages. They are also regarded as the only authentic sources of Hindu law and social customs.” Dr. R. C. Majumdar, The History and Culture of the Indian People (Bombay : 1953) Vol. 2, pp. 254-55.

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुराण साहित्य के प्रमुख लक्षण संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe the salient features of Purana Literature in brief but meaningful.)
अथवा
पुराणों से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Puranas ?)
उत्तर-पुराण हिंदू धर्म के पुरातन ग्रंथ हैं। पुराण से भाव है प्राचीन। ये संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। समयसमय पर इनमें तबदीलियाँ की जाती रहीं और नये अध्यायों को जोड़ा जाता रहा। इस तरह पुराणों की रचना अनेक लेखकों द्वारा की गई है। पुराणों को “पाँचवां वेद” कहा जाता था और शूद्रों को इनको पढ़ने की आज्ञा दी गई थी। पुराणों की कुल संख्या 18 है। यह पुराण तीन भागों में बाँटे गये हैं। प्रत्येक भाग में 6 पुराण आते हैं और यह शिव, वैष्णव और ब्रह्म पुराण कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
पुराणों में क्या वर्णन किया गया है ? (What is discussed in the Puranas ?)
उत्तर-
पुराणों में लोगों में प्रचलित वैदिक और अवैदिक धार्मिक विश्वास, मिथिहास और कहानियाँ संकलित हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटे गए हैं। ये भाग हैं—

  1. सर्ग-इसमें संसार की उत्पत्ति बारे वर्णन किया गया था।
  2. प्रतिसर्ग-इसमें संसार के विकास, नष्ट होने और फिर से उत्पत्ति के बारे वर्णन किया गया था।
  3. वंश- इसमें प्रसिद्ध राजाओं और ऋषियों के वंशों का वर्णन किया गया था।
  4. मनवंतर-इसमें संसार के महायुद्धों और प्रत्येक युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटना का वर्णन किया गया था।
  5. वंशानुचित-इसमें प्रसिद्ध वंशों के राजाओं और ऋषियों के कारनामों का वर्णन किया गया था।

प्रश्न 3.
दो प्रसिद्ध पुराणों के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण जानकारी दें। (Describe in brief but meaningfully the two popular Puranas.)
उत्तर-

  1. ब्रह्म पुराण-इसको आदि पुराण भी कहा जाता है। इस में 14,000 श्लोक हैं। इस के अधिकाँश भाग में भारत के पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है। इस के अतिरिक्त इस में कृष्ण, राम, सूर्य, पूजा, प्रसिद्ध राजवंशों, पृथ्वी, नरक, विभिन्न जातियों, वर्ण आश्रम व्यवस्था और श्राद्धों आदि का वर्णन दिया गया है।
  2. पद्म पुराण-यह सबसे विशाल पुराण है। इसमें लगभग 55,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में सृष्टि खंड, स्वर्ग खंड और पाताल खंड का वर्णन दिया गया है। इसमें विष्णु कथा और राम कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इनके अतिरिक्त इस पुराण में अनेक तीर्थ स्थानों और व्रतों का भी वर्णन मिलता है।

प्रश्न 4.
पुराण साहित्य के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Purana Literature.)
उत्तर-
पुराण भारतीय संस्कृति का व्यापक चित्र पेश करते हैं। आज के हिंदू धर्म में जो रीति-रिवाज प्रचलित हैं वह इन पुराणों की ही देन हैं। इन पुराणों में हिंदुओं के धार्मिक विश्वासों, देवी-देवताओं की पूजा विधियों, व्रतों, श्राद्धों, जन्म, विवाह और मृत्यु के समय किये जाने वाले संस्कारों के बारे भरपूर प्रकाश डाला गया है। मूर्ति पूजा तथा अवतारवाद इन पुराणों की ही देन है। इन पुराणों ने भारत में पितर पूजा के रिवाज को अधिक प्रचलित किया। पुराणों में दिये गये प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन ऐतिहासिक पक्ष से काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 5.
उपनिषदों से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Upanishads ?)
उत्तर-
उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 550 ई० पू० से 100 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है।

प्रश्न 6.
उपनिषदों के अनुसार आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप क्या है ? . (What is the nature of Self and Absolute according to the Upanishads ?)
उत्तर-

  1. आत्मा का स्वरूप-उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है क्योंकि इसको संपूर्ण ज्ञान का भंडार समझा जाता है। आत्मा सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। यह तत्त्व ही सारे तत्त्वों का मूल आधार है। यही जीव रूप धारण करके सब के हृदयों में निवास करता है।
  2. ब्रह्म का स्वरूप-‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा की एक धातु ‘बृह’ से निकला है, जिस का अर्थ है उगना और बढ़ना। इससे यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है।

प्रश्न 7.
उपनिषदों के अनुसार ‘ब्रह्म’ निराकार है। प्रकाश डालिए। (According to Upanishads ‘Brahma’ is formless. Elucidate.)
अथवा
उपनिषद् के अनुसार ब्रह्म जगत का कारक है। चर्चा कीजिए। (According to Upanishads Brahma is the Creator of Universe. Discuss.)
hods ?
उत्तर-
ब्रह्मा को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सब गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उसके ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निस्संदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है।

प्रश्न 8.
उपनिषदों के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to the Upanishads ?)
उत्तर-
उपनिषदों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य है। कर्म करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। शरीर में कैद आत्मा दुःख और सुख की भागी है। जब तक आत्मा शरीर की कैद में है इस को दुःख-सुख से छुटकारा नहीं मिल सकता। अविद्या अथवा अज्ञानता ही मनुष्य के बंधन का प्रमुख कारण है। जब यह अज्ञान नष्ट हो जाता है तो मनुष्य को बंधनों से छुटकारा मिल जाता है और वह मोक्ष प्राप्त करता है।

प्रश्न 9.
भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Bhagvadgita.)
उत्तर-
भगवद्गीता हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। यह महाभारत का एक हिस्सा है। इस को गीता के नाम से अधिक जाना जाता है। इस में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत की लड़ाई शुरू होने से पहले दिया था। गीता में दिये गये विचार जनसाधारण पर जादुई प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि गीता आज भी हिंदुओं में हरमन प्यारी है। इस में मानव के जीवन की प्रत्येक समस्या का हल सरल और स्पष्ट शब्दों में किया गया है।

प्रश्न 10.
कर्मयोग पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the Karamayoga.)
उत्तर-
कर्मयोग गीता का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। कोई भी जीव एक पल के लिए भी बिना कर्म से नहीं रह सकता। जो व्यक्ति इंद्रियों पर काबू पा कर निष्काम कर्म करते हैं, वो कर्मयोगी हैं और जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन हो कर दिखावे के लिए कर्म करते हैं, वे पाखंडी हैं। योग कर्म (यह वो कर्म है जिस में फल की इच्छा नहीं होती) को छोड़कर शेष सभी कर्म बंधन वाले कहे गये हैं। इसलिए गीता में मनुष्य को कर्मयोग करने की प्रेरणा दी गई

प्रश्न 11.
ज्ञानयोग से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Jnanayoga ?)
उत्तर-
भगवद्गीता के अनुसार ज्ञान की अग्नि सारे कर्मों के बंधन को भस्म कर देती है। इसी कारण ज्ञान जैसी पवित्र और कोई वस्तु इस जगत् में नहीं है। यह ज्ञान साधारण पदार्थों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। इस का वास्तविक संबंध शुद्ध आत्म ज्ञान से है। इसी को ज्ञान योग कहते हैं। ज्ञान मुक्ति का एक उत्तम साधन है क्योंकि ज्ञान की अग्नि में कर्म का बीज जल जाता है और जला हुआ बीज पुनर्जन्म के पौधे को पैदा नहीं कर सकता।

प्रश्न 12.
धर्म शास्त्र क्या है ? (What are the Dharma Shastras ?)
उत्तर-
धर्म शास्त्र हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ हैं। इन धर्म शास्त्रों में मनु का मानव धर्म शास्त्र अथवा मनु स्मृति सब से अधिक प्रसिद्ध है। इस के अतिरिक्त याज्ञवलक्य, विष्णु और नारद के द्वारा लिखी गई स्मृतियों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ये धर्म शास्त्र संस्कृत में लिखे गए हैं। परिणामस्वरूप ये धर्म शास्त्र हमारे लिए उस समय के लोगों की दशा जानने के लिए एक बहुमूल्य स्रोत हैं।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 13.
पुराण साहित्य के प्रमुख लक्षण संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe the salient features of Purana Literature in brief but meaningful.)
अथवा
पुराणों से क्या अभिप्राय है ?
(What is meant by Puranas ?)
उत्तर-
पुराण हिंदू धर्म के पुरातन ग्रंथ हैं। पुराण से भाव है प्राचीन। ये संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। ये कब लिखे गये इस का कोई पक्का उत्तर अभी तक नहीं मिला है। ये किसी एक शताब्दी की रचना नहीं है। इनका वर्णन अथर्ववेद, उपनिषदों और महाकाव्यों आदि में आता है। समय-समय पर इनमें तबदीलियाँ की जाती रहीं और नये अध्यायों को जोड़ा जाता रहा। गुप्त काल में पुराणों को अंतिम रूप दिया गया। इस तरह पुराणों की रचना अनेक लेखकों द्वारा की गई है। पुराणों को “पाँचवां वेद” कहा जाता था और शूद्रों को इनको पढ़ने की आज्ञा दी गई थी। पुराणों की कुल संख्या 18 है। यह पुराण तीन भागों में बाँटे गये हैं। प्रत्येक भाग में 6 पुराण आते हैं और यह शिव, वैष्णव और ब्रह्म पुराण कहलाते हैं। इनके भाग इस तरह हैं

1. शिव पुराण—

  • वायु ,
  • लिंग,
  • स्कंद,
  • अग्नि,
  • मत्सय और
  • कूर्म।

2. वैष्णव पुराण—

  • विष्णु ,
  • भगवद् ,
  • नारद,
  • गरुड़,
  • पद्म और
  • वराह।

3. ब्रह्म पुराण—

  • ब्रह्म,
  • ब्रह्मांड,
  • ब्रह्मवैव्रत,
  • मारकंडेय,
  • भविष्य और
  • वामन।

प्रश्न 14.
पुराणों में क्या वर्णन किया गया है ? (What is discussed in the Puranas ?)
उत्तर-
पुराणों में लोगों में प्रचलित वैदिक और अवैदिक धार्मिक विश्वास, मिथिहास और कहानियाँ संकलित हैं। मिथिहास वह कथा कहानियाँ होती हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं होता परंतु वे लोगों में बहुत प्रचलित होती हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा होता था। ये भाग हैं—

  1. सर्ग-इसमें संसार की उत्पत्ति बारे वर्णन किया गया था।
  2. प्रतिसर्ग-इसमें संसार के विकास, नष्ट होने और फिर से उत्पत्ति के बारे वर्णन किया गया था।
  3. वंश-इसमें प्रसिद्ध राजाओं और ऋषियों के वंशों का वर्णन किया गया था।
  4. मनवंतर-इसमें संसार के महायुद्धों और प्रत्येक युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटना का वर्णन किया गया था।
  5. वंशानुचित-इसमें प्रसिद्ध वंशों के राजाओं और ऋषियों के कारनामों का वर्णन किया गया था। यह बात यहाँ याद रखने योग्य है कि हमें मूल पुराण उपलब्ध नहीं हैं । ये पुराण हमें आजकल जिस स्वरूप में उपलब्ध हैं । यह आवश्यक नहीं है कि उनका विभाजन इसी प्रकार हो।

प्रश्न 15.
किसी पाँच पुराणों का संक्षिप्त वर्णन करो।
(Give a brief account any five Puranas.)
अथवा
चार प्रसिद्ध पुराणों के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण जानकारी दें। (Describe in brief but meaningfully the four popular Puranas.)
उत्तर-

  1. ब्रह्म पुराण-इसको आदि पुराण भी कहा जाता है। इस में 14,000 श्लोक हैं । इस के अधिकाँश भाग में भारत के पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्णन किया गया है। इस के अतिरिक्त इस में कृष्ण, राम, सूर्य, पूजा, प्रसिद्ध राजवंशों, पृथ्वी, नरक, विभिन्न जातियों, वर्ण आश्रम व्यवस्था और श्राद्धों आदि का वर्णन दिया गया है।
  2. पद्म पुराण-यह सबसे विशाल पुराण है। इसमें लगभग 55,000 श्लोक दिये गये हैं। इस में सृष्टि खंड, स्वर्ग खंड और पाताल खंड का वर्णन दिया गया है। इसमें विष्णु कथा और राम कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इनके अतिरिक्त इस पुराण में अनेक तीर्थ स्थानों और व्रतों का भी वर्णन मिलता है।
  3. विष्णु पुराण-इस पुराण में 23,000 श्लोक दिये गये हैं। इसमें यह बताया गया है कि विष्णु ही सर्वोच्च देवता है। उसने ही संसार की रचना की और पालनहार है। इसमें दी गई कथाओं में प्रह्लाद और ध्रुव की कथायें प्रसिद्ध हैं। इस में इस संसार और स्वर्ग के लोगों की अनेकों विचित्र बातों का भी वर्णन है। इस में कई प्रसिद्ध वंशों का भी वर्णन मिलता है।
  4. वायु पुराण-इस पुराण में 11,000 श्लोक हैं। इस में शिव की महिमा के साथ संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इस लिए इस को शिव पुराण भी कहते हैं। इस में अनेक वंशों का वर्णन किया गया है। प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण इन की बहुत ऐतिहासिक महत्ता है।
  5. भगवद् पुराण-विष्णु देवता के साथ संबंधित पुराणों में भगवद् पुराण सब से अधिक लोकप्रिय है। इस में कृष्ण के जीवन से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन किया गया है। इसमें महात्मा बुद्ध और साक्ष्य दर्शन के संस्थापक कपिल को विष्णु का अवतार बताया गया है। ऐतिहासिक पक्ष से इस पुराण का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।

प्रश्न 16.
पुराण साहित्य के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Purana Literature.) .
अथवा
पुराण साहित्य की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(What are the salient features of Purana Literature ?).
अथवा
हिंदू धर्म में पुराणों का बहुत महत्त्व है ? चर्चा कीजिए।
(Puranas are very important in Hinduism. Discuss.)
अथवा
हिंदू धर्म में पुराणों का आध्यात्मिक महत्त्व संक्षिप्त रूप में दर्शाएं। (Show in brief the spiritual importance of Puranas in Hinduism.)
अथवा
पुराण साहित्य की महानता के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the importance of Purana Literature.)
उत्तर-
पुराण भारतीय संस्कृति का व्यापक चित्र पेश करते हैं। आज के हिंदू धर्म में जो रीति-रिवाज प्रचलित हैं वह इन पुराणों की ही देन हैं। इन पुराणों में हिंदुओं के धार्मिक विश्वासों, देवी-देवताओं की पूजा विधियों, व्रतों, श्राद्धों, जन्म, विवाह और मृत्यु के समय किये जाने वाले संस्कारों के बारे भरपूर प्रकाश डाला गया है। मूर्ति पूजा तथा अवतारवाद की कल्पना इन पुराणों की ही देन है। इन पुराणों ने भारत में पितर पूजा के रिवाज को अधिक प्रचलित किया। लोगों को दान देने के लिए प्रेरित किया गया। पुराणों में दिये गये प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन ऐतिहासिक पक्ष से काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है। इन में तीर्थ स्थानों और मंदिरों के विवरण से हमें उस समय की कला के बारे महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन के अतिरिक्त ये पुराण प्राचीन कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवस्था के बारे काफी विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हैं। निस्संदेह यदि पुराणों को भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कह दिया जाये तो इस में कोई अतिकथनी नहीं होगी।

प्रश्न 17.
उपनिषदों से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Upanishads ?)
अथवा
पाँच उपनिषदों के नाम और उनकी महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the name of five Upanishads and their importance.)
अथवा
उपनिषद् साहित्य के बारे में जानकारी दीजिए।
(Give information about Upanishads literature.)
उत्तर-
उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। क्योंकि ये वेदों का अंतिम भाग है इसलिए इनको वेदाँत भी कहा जाता है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 1000-500 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है। जीवन तथा मृत्यु से संबंधित बहुत से भेदों को सुलझाने का यत्न किया गया है। कर्म, मोक्ष, माया और आवागमन के विषयों पर बहुत अधिक प्रकाश डाला गया है। डॉक्टर एस० आर० गोयल का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषद् दर्शन को ठीक ही भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जा सकता है।”

प्रश्न 18.
उपनिषदों के अनुसार आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप क्या है ? (What is the nature of Self and Absolute according to the Upanishads ?)
उत्तर-
1. आत्मा का स्वरूप-उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है क्योंकि इसको संपूर्ण ज्ञान का भंडार समझा जाता है। आत्मा सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। यह तत्व ही सारे तत्त्वों का मूल आधार है। यही जीव रूप धारण करके सब के हृदयों में निवास करता है। यही ब्रह्म या परमात्मा है। इसी कारण आत्मा को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। उपनिषदों के अनुसार केवल आत्मा ही एक ऐसी वस्तु है जिस पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। आत्मा एक निश्चित सत्ता है। आत्मा नित भी है। यह परिवर्तनशील नहीं है। यह स्वयं परिवर्तनशील वस्तुओं का आधार है। इसलिए उसका अपना परिवर्तन नहीं हो सकता।

2. ब्रह्म का स्वरूप-‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा की एक धातु ‘बृह’ से निकला है, जिस का अर्थ है उगना और बढ़ना। इससे यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सब गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उस के ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निसंदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है।

प्रश्न 19.
उपनिषदों के अनुसार ‘ब्रह्म’ निराकार है। प्रकाश डालिए। (According to Upanishads ‘Brahma’ is formless. Elucidate.)
अथवा
उपनिषद् के अनुसार ब्रह्म जगत का कारक है। चर्चा कीजिए।
(According to Upanishads Brahma is the Creator of Universe. Discuss.)
उत्तर –
‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत भाषा की एक धातु ‘बृह’ से निकला है जिस का अर्थ उगना और बढ़ना। इससे यह दार्शनिक भाव निकाला जा सकता है कि ब्रह्म वह तत्त्व है जिस से दृष्टिमान जगत् की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा को व्यक्ति और प्रकृति की शक्ति का रूप माना जा सकता है। उसकी शक्तियाँ असीमित (असीम) हैं क्योंकि वह स्वयं असीम है। उसको सर्व रूप और ज्योतियों की ज्योति कहा गया है। वह सब गुणों का आधार होते हुए भी निर्गुण माना गया है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। उसके ज्ञान का शब्दों में वर्णन करना असंभव है। निस्संदेह वह सारे संसार का मूल कारण और आधार है।

प्रश्न 20.
पाँच कोषों के सिद्धांत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Doctrine of five Layers ?)
उत्तर-
आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए तैतरीय उपनिषद् में पाँच कोषों का सिद्धांत पेश किया गया है। ये पाँच कोष हैं—

  1. अन्नमयी कोष-यह अचेतन और निर्जीव पदार्थ है। यह भौतिक स्तर पर आता है।
  2. प्राणमयी कोष-यह जीवन स्तर पर आता है। इस में सारी वनस्पति और पशु शामिल है।
  3. मनोमयी कोष-यह चेतना का स्तर है। यह जीवन का उद्देश्य है। जीवन चेतना तक पहुँच कर खुश होता है।
  4. विज्ञानमयी कोष-यह आत्म चेतन का स्तर है। इस में चेतना अपने अंदर तार्किक बुद्धि का विकास करती है।
  5. आनंदमयी कोष-यह आत्मा का वास्तविक स्तर है। इस में अनेकता और भेद की भावना नष्ट हो जाती है। पहले चारों कोष इस आनंद में लीन हो जाते हैं जो उनके विकास की अंतिम मंज़िल है। इस तरह पाँच कोष सिद्धांत यह सिद्ध करता है कि आत्मा शुद्ध चेतन आनंद स्वरूप है।

प्रश्न 21.
उपनिषदों के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to the Upanishads ?)
उत्तर-
उपनिषदों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य है। कर्म करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। शरीर में कैद आत्मा दुःख और सुख की भागी है। जब तक आत्मा शरीर की कैद में है इस को दुःख सुख से छुटकारा नहीं मिल सकता। अविद्या अथवा अज्ञानता ही मनुष्य के बंधन का प्रमुख कारण है। जब यह अज्ञान नष्ट हो जाता है तो मनुष्य को बंधनों से छुटकारा मिल जाता है और वह मोक्ष प्राप्त करता है। मोक्ष मनुष्य के ज्ञान की अंतिम सीढ़ी है जिस पर पहुँच कर मनुष्य सब कुछ जान लेता है और सब कुछ पा लेता है। मोक्ष के आनंद के आगे संसार के सभी आनंद घटिया हैं। उपनिषदों के अनुसार मोक्ष केवल ज्ञान के मार्ग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 22.
कर्मयोग पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write a short note on the Karamayoga.)
उत्तर-
कर्मयोग गीता का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। कोई भी जीव एक पल के लिए भी बिना कर्म से नहीं रह सकता। जो व्यक्ति इंद्रियों पर काबू पा कर निष्काम कर्म करते हैं, वो कर्मयोगी हैं और जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन हो कर दिखावे के लिए कर्म करते हैं, वे पाखंडी हैं। योग कर्म (यह वो कर्म है जिस में फल की इच्छा नहीं होती) को छोड़कर शेष सभी कर्म बंधन वाले कहे गये हैं। इसलिए गीता में मनुष्य को कर्मयोग करने की प्रेरणा दी गई है। गीता के अनुसार प्रत्येक कर्म का फल ज़रूर निकलता है, जिसको उसे भोगना पड़ता है और यह नहीं हो सकता कि व्यक्ति कोई कर्म करे और उसके फल से बच जाये। यह एक अटल नियम है। कर्मों के फल जीव को जन्म जमांतर के चक्र में डालते हैं। वह प्रत्येक जन्म में कुछ पिछले फलों को भोग कर दूर करता है और कुछ नये कर्मों के द्वारा फलों को संचित करता है, जो उसको अगले जन्म में ले जाते हैं। कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य को अनेक पदवियों की प्राप्ति होती है। इनमें से सबसे ऊँची पदवी परमपद है जो मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। केवल कर्मयोग ही मनुष्य को परमपद तक पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न 23.
भक्तियोग का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the Bhaktiyoga.)
उत्तर-
भक्तियोग की गणना गीता के तीन प्रमुख मार्गों में की जाती है। भक्ति कई तरह की होती है—

  1. प्राप्ति भक्ति-यह वह भक्ति है जिस में भक्त अपनी शुद्ध भावना के साथ ईश्वर की शरण में आ जाता है और वह सांसारिक पदार्थों से मोह तोड़ लेता है।
  2. स्वार्थ भक्ति- ज्यादातर संसार में भक्ति स्वार्थ की भावना से की जाती है। इस का कारण यह है कि संसार के दुःखों से तंग आकर कुछ लोग भक्ति का सहारा लेते हैं ताकि उन्हें दुःखों से छुटकारा मिल सके।
  3. ज्ञान भक्ति-ऐसे भक्त अपने ज्ञान की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और अंत ईश्वर की कृपा से सच्चा ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
  4. निर्गुण भक्ति- यह वह भक्ति है जिस में भक्त ईश्वर के अस्तित्व को सभी जीवों में व्यापक समझ कर उन जीवों की सेवा करता है।
  5. सगुण भक्ति-इस में भक्त शुद्ध मन से अपने ईष्ट देवता की मूर्ति के सामने भक्ति करता है।
  6. कीर्तन भक्ति-इस भक्ति में भक्त ईश्वर के नाम का लगातार कीर्तन करता रहता है ।
  7. श्रवण भक्ति-यह भक्ति उन व्यक्तियों के लिए है जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। इस कारण वे शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते। परिणामस्वरूप दूसरों से शास्त्र सुनकर भक्ति के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इन सभी भक्ति रूपों को मुक्ति का साधन समझा जाता है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 24.
ज्ञानयोग से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Jnanayoga ?)
उत्तर-
भगवद्गीता के अनुसार ज्ञान की अग्नि सारे कर्मों के बंधन को भस्म कर देती है। इसी कारण ज्ञान जैसी पवित्र और कोई वस्तु इस जगत् में नहीं है। यह ज्ञान साधारण पदार्थों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। इस का वास्तविक संबंध शुद्ध आत्म ज्ञान से है। इसी को ज्ञान योग कहते हैं। कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग में से ज्ञानयोग को प्रमुखता प्राप्त है क्योंकि आत्म ज्ञान के बिना व्यक्ति न ही सच्चा कर्मयोगी हो सकता है और न ही सच्चा भक्त हो सकता है। मानव जीवन की प्राप्ति के बाद जो जीव अपने आत्म-स्वरूप का ज्ञान प्राप्त नहीं करता वह कर्मों के चक्र से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान मुक्ति का एक उत्तम साधन है क्योंकि ज्ञान की अग्नि में कर्म का बीज जल जाता है और जला हुआ बीज पुनर्जन्म के पौधे को पैदा नहीं कर सकता।

प्रश्न 25.
भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Bhagvadgita.)
उत्तर-
भगवद्गीता हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। यह महाभारत का एक हिस्सा है। इस को गीता के नाम से अधिक जाना जाता है। इस में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत की लड़ाई शुरू होने से पहले दिया था। उपनिषदों में दी गई विचारधारा आम लोगों की समझ से बाहर थी। गीता में दिये गये विचार जनसाधारण पर जादुई प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि गीता आज भी हिंदुओं में हरमन प्यारी है। इस में मानव के जीवन की प्रत्येक समस्या का हल सरल और स्पष्ट शब्दों में किया गया है। गीता मुक्ति के लिए कोई एक जीवन मार्ग नहीं बताता। इस का कथन है कि अगर मनुष्य के स्वभाव अलग-अलग हैं, तो उसको अलग-अलग मार्गों के द्वारा ही अपने उच्चतम उद्देश्य पर पहुँचना होगा। ये तीन मार्ग हैं-कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग। मनुष्य अपने स्वभाव और रुचि के अनुसार ही अपने जीवन का मार्ग चुनते हैं।

प्रश्न 26.
धर्म शास्त्र के प्रमुख लक्षण संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe in brief but meaningful the salient features of Dharma Shastras.)
अथवा
धर्म शास्त्र क्या है?
(What are the Dharma Shastras ?)
अथवा
धर्म शास्त्रों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Dharma Shastras.)
अथवा
शास्त्र साहित्य के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Shastra Literature.)
अथवा
धर्म शास्त्रों के साहित्यिक महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the literary importance of Dharma Shastras.)
उत्तर-
धर्म शास्त्र हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ हैं। इनको स्मृति भी कहा जाता है। इन धर्म शास्त्रों में मनु का मानव धर्म शास्त्र अथवा मनु स्मृति सब से अधिक प्रसिद्ध है। इस के अतिरिक्त याज्ञवलक्य, विष्णु और नारद के द्वारा लिखी गई स्मृतियों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन धर्म शास्त्रों के रचना काल के बारे इतिहासकारों में मतभेद हैं। आम सुझाव यह है कि इनकी रचना पहली सदी ई० पू० से पाँचवीं सदी ई० पू० के मध्य हुई। ये धर्म शास्त्र संस्कृत में लिखे गये हैं। इनमें केवल विष्णु स्मृति गद्य रूप में लिखी गई है जबकि बाकी के तीनों धर्म शास्त्र कविता के रूप में लिखे गये हैं। इन धर्म शास्त्रों में प्राचीन कालीन भारत के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नियमों के बारे बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। परिणामस्वरूप ये धर्म शास्त्र हमारे लिए उस समय के लोगों की दशा जानने के लिए एक बहुमूल्य स्रोत है।

प्रश्न 27.
मनु स्मृति पर संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the Manu Smriti.)
अथवा
मनु स्मृति के बारे में जानकारी दें। (Give information about Manu Smriti.)
उत्तर-
मनु स्मृति को मानव धर्म शास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। इस की रचना मनु ने की थी। मनु को संसार का पहला कानूनदाता माना जाता है। उसने अपनी रचना में धर्म की उत्पत्ति और उसके स्रोतों के बारे बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। इस में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के कर्त्तव्य अंकित किये गये हैं। ब्राह्मणों को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था और शूद्रों को सब से नीच समझा जाता है। इस में मानव जीवन के चार आश्रमों अर्थात् ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ और संन्यास आश्रम के कर्तव्यों और महत्त्व के बारे बहुत लाभदायक जानकारी प्रदान की गई है। इस में मनु ने राजाओं को कौन से नियमों की पालना करनी चाहिए के बारे में जानकारी दी है। उस अनुसार राजा को प्रशासन प्रबंध चलाने के लिए एक मंत्री परिषद् का गठन करना चाहिए। राजा को स्थानिक प्रबंध में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए। मनु का कहना था कि हमें अपने माता-पिता, अध्यापकों और बुजुर्गों के सत्कार का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। उनके नाराज़ होने पर भी हमें गुस्से में नहीं आना चाहिए। क्योंकि हम उन के ऋण को चुका नहीं सकते। जो व्यक्ति इन का निरादर करता है उस को 100 पन जुर्माना किया जाये। मनु के अनुसार स्त्रियों को वेदों के अध्ययन और संपत्ति का अधिकार नहीं देना चाहिए।

प्रश्न 28.
चार आश्रम से क्या अभिप्राय है ?
(What do you mean by the Four Ashramas ?) .
उत्तर-
मनु ने मनुष्य के जीवन को 100 वर्षों का मान कर उसको 25-25 वर्षों के चार आश्रमों में बाँटा। इनके नाम थे-ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। ये सारे आश्रम ऊपर लिखित तीन जातियों के लिए निर्धारित किये गये थे। पहला आश्रम ब्रह्मचर्य था। इस में बच्चा 5 वर्ष से लेकर 25 वर्षों तक विद्या प्राप्त करता था। गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्षों तक होता था। इस में मनुष्य विवाह करके संतान उत्पन्न करता था। वह अपने परिवार के पालन-पोषण का पूरा ख्याल रखता था। परिवार में पुत्र का होना जरूरी समझा जाता था। वाणप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्षों तक होता था। इस में मनुष्य अपना घर बाहर छोड़ कर जंगलों में चला जाता था और तपस्वी जीवन व्यतीत करने का यत्न करता था। चौथा और अंतिम आश्रम संन्यास का था। यह 75 से 100 वर्षों तक चलता था। इस में मनुष्य एक संन्यासी की भाँति जीवन व्यतीत करता था और मुक्ति प्राप्त करने का यत्न करता था।

प्रश्न 29.
मनु स्मृति में स्त्रियों संबंधी क्या विचार दिए गए हैं ? (What views are given about women in Manu Smriti ?)
उत्तर-
मनु स्त्रियों को स्वतंत्रता दिये जाने के पक्ष में नहीं था। उसका विचार था कि अविवाहित लड़की का उसके पिता द्वारा, विवाहित लड़की का उसके पति द्वारा और पति की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों द्वारा ख्याल रखा जाना चाहिए। उस का कहना था कि स्त्रियाँ पुरुष को गलत रास्ते पर लगाती हैं। वह स्त्रियों की बातों पर विश्वास किये जाने के पक्ष में नहीं थे। मनु ने बाल विवाह का समर्थन किया। उसका कहना था कि लड़कियों की 8 से 12 वर्ष की आयु तक शादी कर देनी चाहिए। मनु ने विधवा विवाह और नियोग प्रथा का विरोध किया। नियोग प्रथा के अनुसार कोई विधवा पुत्र पैदा करने के लिए अपने किसी देवर से विवाह करवा सकती थी। मनु स्त्रियों को संपत्ति का अधिकार दिये जाने के पक्ष में नहीं था। वह केवल ‘स्त्री धन’ जो दहेज के रूप में अपने साथ लाई थी प्राप्त कर सकती थी। स्त्रियों पर लगाये गये इन प्रतिबंधों के बावजूद मनु ने गृहणी के रूप में स्त्रियों का बड़ा सम्मान किया है। उसका कहना था, “जहाँ स्त्रियों का सत्कार किया जाता है वहाँ परमात्मा निवास करता है जहाँ स्त्रियों का सत्कार नहीं किया जाता वहाँ सारे धार्मिक कार्य बेकार हो जाते हैं।”

प्रश्न 30.
याज्ञवल्कय स्मृति से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you know about Yajnavalkya Smriti ?)
उत्तर-
याज्ञवल्कय स्मृति चाहे मनु स्मृति के मुकाबले संक्षेप है परंतु वह अनेक पक्षों से महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। इस में दिया गया वर्णन नियमबद्ध है और भाषा प्रवाहमयी है। इस का रचनाकाल 100 ई० पू० से 300 ई० के मध्य माना जाता है। याज्ञवल्कय की स्मृति तीन अध्यायों में बाँटी गई है। पहले अध्याय में गर्भ धारण करने से लेकर विवाह तक के संस्कार, पत्नी के कर्त्तव्य, चार वर्णों के अधिकार और कर्त्तव्य, यज्ञ, दान के नियमों ,श्राद्ध के नियमों और उन्हें करवाने से प्राप्त फल, राजा और उसके मंत्रियों के लिए निर्धारित योग्यतायें, न्याय व्यवस्था और अपराधियों के लिए सज़ायें और कर व्यवस्था आदि का वर्णन है। दूसरे अध्याय में धर्म शास्त्र और अर्थ शास्त्र में अंतर, संपत्ति के स्वामित्व संबंधी, दास, जुए, चोरी, बलात्कार, सीमावाद संबंधी आदि के नियमों की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। तीसरे अध्याय में मनुष्य के अंतिम संस्कार, शोक काल, शुद्धि के साधन, आत्मा, मोक्ष मार्ग, पापियों, योगियों, आत्म ज्ञान के साधनों, नरक, प्रायश्चित के उद्देश्य, मदिरापान और जीव हत्या आदि विषयों के बारे प्रकाश डाला गया है।

प्रश्न 31.
विष्णु स्मृति पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Vishnu Smriti.)
उत्तर-
इस स्मृति की रचना 100 ई० से 300 ई० के मध्य की गई थी। यह गद्य रूप में लिखी गई थी। इस में कछ श्लोक मनु और याज्ञवल्कय स्मृतियों में से लिये गये हैं। विष्णु स्मृति में आर्यव्रत का क्षेत्र मनु स्मृति के मुकाबले अधिक विस्तारपूर्वक माना है। इस में लगभग सारा भारत शामिल है। इस से सिद्ध होता है कि विष्णु स्मृति की रचना के समय आर्य सारे भारत में बिखर गये थे। राजा प्रशासन की धुरी होता था। अपने राज्य का विस्तार करना और प्रजा की रक्षा करना उसके प्रमुख कार्य समझे जाते थे। राजा प्रशासन प्रबंध को अच्छे ढंग से चलाने के उद्देश्य से एक मंत्रि परिषद का गठन करता था। मंत्रियों की नियुक्ति का मुख्य आधार उनकी योग्यता और राज्य के प्रति वफादारी थी। विष्णु स्मृति जुए के विरुद्ध थी और इसको समाज पर एक घोर कलंक समझती थी। यह समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था और आश्रम प्रथा में विश्वास रखती थी। इस काल में स्त्रियों की दशा पहले से बदत्तर (बुरी) हो गई। इस का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उस समय समाज में सती प्रथा का प्रचलन आरंभ हो गया था। विष्णु स्मृति में लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है।

प्रश्न 32.
नारद स्मृति के बारे में आप क्या जानते हो? (What do you know about Narda Smriti ?)
उत्तर-
इस स्मृति की रचना 100 ई० से 400 ई० के मध्य की गई थी। इस स्मृति में भी कुछ श्लोक मनु स्मृति से लिये गये हैं परंतु इस की अनेक विशेषतायें अपनी हैं। राज्य में होने वाली घटनाओं से संबंधित सूचना देने के लिए राजा की ओर से गुप्तचर नियुक्त किये जाते थे। कुल, श्रेणी और गण जनहित संस्थायें थीं। ये संस्थायें अपने नियम बनाती थीं। राजा उन के आंतरिक मामलों में बहुत कम हस्तक्षेप करता था। नारद स्मृति में राज्य के न्याय प्रबंध का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। राजा को राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश माना जाता था। उसके निर्णय अंतिम होते थे। यदि किसी चोर को न पकड़ा जा सकता तो चोरी हुए सामान का मूल्य राजा को अपने खज़ाने से देना पड़ता है। चोर को शरण देना या चोरी का सामान खरीदने वाले को भी सज़ा का बराबर हकदार माना जाता था। अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सज़ायें निर्धारित की गई हैं। निर्दोष सिद्ध करने के लिए सात प्रकार की परीक्षाओं का वर्णन किया गया है। नारद जुआखोरी को सरकार के नियंत्रण के नीचे लाने के पक्ष में थे ताकि राज्य को उससे कुछ आय प्राप्त हो सके। वह विधवा को अपने पति की संपत्ति दिये जाने के पक्ष में नहीं था। उसने विधवा विवाह और नियोग प्रथाओं का समर्थन किया। उसने समाज में प्रचलित 15 किस्मों के दासों का वर्णन किया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. पुराण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-पुराण से अभिप्राय है प्राचीन।

प्रश्न 2. पुराण किस भाषा में लिखे गए हैं ?
उत्तर-संस्कृत।

प्रश्न 3. पाँचवां वेद किसे कहा जाता है ?
उत्तर-पुराणों को।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 4. कुल कितने पुराण हैं ?
अथवा
पुराणों की कुल संख्या बताएँ।
उत्तर-18.

प्रश्न 5. पुराणों को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-पुराणों को तीन भागों में बाँटा गया है।

प्रश्न 6. पुराणों को कौन-से तीन भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-

  1. शिव पुराण
  2. वैष्णव पुराण
  3. ब्रह्म पुराण।

प्रश्न 7. पुराण कितने माने जाते हैं ? पांच के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. पुराण 18 माने जाते हैं।
  2. पांच पुराणों के नाम शिव पुराण, विष्णु पुराण, लिंग पुराण, ब्रह्मण्ड पुराण और पदम पुराण थे।

प्रश्न 8. दो प्रसिद्ध पुराणों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. शिव पुराण
  2. वैष्णव पुराण।

प्रश्न 9. शिव पुराण में शामिल किसी एक पुराण का नाम लिखो।
उत्तर- लिंग पुराण।

प्रश्न 10. वैष्णव पुराण में शामिल किसी एक पुराण का नाम बताओ।
उत्तर-विष्णु पुराण।।

प्रश्न 11. ब्रह्म पुराण में शामिल एक पुराण का नाम बताओ।
उत्तर- ब्रह्मांड पुराण।

प्रश्न 12. प्रत्येक पुराण को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर- पाँच भागों में।

प्रश्न 13. पुराणों के किस भाग में संसार की उत्पत्ति के बारे में वर्णन किया गया है ?
उत्तर-सर्ग भाग में।

प्रश्न 14. पुराणों के किस भाग को ऐतिहासिक पक्ष से महत्त्वपूर्ण समझा जाता है ?
उत्तर–पाँचवें भाग को।

प्रश्न 15. पुराणों में से कौन-सा पुराण सर्वाधिक प्राचीन है ?
उत्तर-ब्रह्म पुराण।

प्रश्न 16. ब्रह्म पुराण को किस अन्य नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-आदि पुराण।।

प्रश्न 17. ब्रह्म पुराण में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर-14,000 श्लोक।

प्रश्न 18. अग्नि पुराण और भविष्य पुराण में श्लोकों की गिनती बताओ।
उत्तर-अग्नि पुराण में श्लोकों की संख्या 15,400 तथा भविष्य पुराण में श्लोकों की संख्या 14,000 है।.

प्रश्न 19. कौन-सा पुराण सर्वाधिक विशाल है ?
उत्तर-पदम पुराण।

प्रश्न 20. पदम पुराण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-55,000 श्लोक।

प्रश्न 21. सबसे बड़ा पुराण कौन-सा है और उसमें कितने श्लोक हैं ?
उत्तर- सबसे बड़ा पुराण पदम पुराण तथा उसमें 55,000 श्लोक हैं।

प्रश्न 22. विष्णु पुराण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-23,000 श्लोक।

प्रश्न 23. वायु पुराण को किस अन्य नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-शिव पुराण।

प्रश्न 24. भगवद् पुराण का संबंध कौन-से देवता के साथ संबंधित है ?
अथवा
भगवद् पुराण किस देवते से संबंधित है ?
उत्तर- भगवद् पुराण विष्णु देवता के साथ संबंधित है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 25. नारद पुराण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-25,000 श्लोक।

प्रश्न 26. नारद पुराण किस देवता के साथ संबंधित है ?
उत्तर-विष्णु देवता के साथ।

प्रश्न 27. किस पुराण में सबसे कम श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-मारकंडेय पुराण।

प्रश्न 28. मारकंडेय पुराण में कुल कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-900 श्लोक।

प्रश्न 29. मारकंडेय पुराण में वर्णन किए गए किन्हीं दो देवताओं के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. इंद्र
  2. अग्नि।

प्रश्न 30. भविष्य पुराण कौन-से देवताओं के साथ संबंधित है ?
उत्तर-

  1. ब्रह्म
  2. विष्णु
  3. शिव
  4. सूर्य।

प्रश्न 31. स्कंद पुराण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-51,000 श्लोक।

प्रश्न 32. स्कंद पुराण किस देवता के साथ संबंधित है ?
उत्तर-शिव देवता के साथ।

प्रश्न 33. मत्स्य पुराण में किनके मध्य वार्तालाप का वर्णन मिलता है ?
उत्तर-मत्स्य (मछली) तथा मनु के मध्य ।

प्रश्न 34. गरुढ़ पुराण किस देवता के साथ संबंधित है ?
उत्तर-विष्णु देवता के साथ।

प्रश्न 35. पुराणों का एक मुख्य विषय बताओ।
उत्तर-संसार की उत्पत्ति।

प्रश्न 36. उपनिषद् से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
उपनिषद् की परिभाषा करें।
उत्तर-उपनिषद् से अभिप्राय है श्रद्धा भाव से नज़दीक बैठना।

प्रश्न 37. उपनिषदों को वेदांत क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-क्योंकि इनको वेदों का अंतिम भाग माना जाता है।

प्रश्न 38. उपनिषदों की रचना किस भाषा में की गई है ?
उत्तर-संस्कृत।

प्रश्न 39. उपनिषदों का रचना काल क्या है ?
उत्तर-550 ई० पू० से 100 ई० पू०

प्रश्न 40. उपनिषदों की कुल संख्या क्या है ?
उत्तर-108.

प्रश्न 41. मुख्य उपनिषद कितने हैं ?
उत्तर-मुख्य उपनिषद् 11 हैं।

प्रश्न 42. प्रसिद्ध पाँच उपनिषदों के नाम बताएँ।
अथवा
किन्हीं दो उपनिषदों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. ईश
  2. केन
  3. कठ
  4. प्रश्न
  5. तैतरीय।

प्रश्न 43. दो प्रथम उपनिषदों के नाम बताएँ।
उत्तर-छांदोग्य तथा वृहद आरण्यक।

प्रश्न 44. आरंभ में कितने उपनिषद थे ? इनमें से पाँच के नाम बताओ।
अथवा
आरंभ में उपनिषदों की संख्या कितनी थी ? चार के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. आरंभ में उपनिषदों की संख्या 11 थी।
  2. इनमें से पाँच के नाम ईश, केन, कठ, तैतरीय और प्रश्न हैं।

प्रश्न 45. छांदोग्य एवं वृहद आरण्यक नाम के उपनिषदों की रचना कब हुई ?
उत्तर-550 ई० पू० से 450 ई० पू०।

प्रश्न 46. उपनिषदों के कोई दो मुख्य विषय बताएँ।
उत्तर-

  1. आत्मा का स्वरूप
  2. कर्म का सिद्धांत।

प्रश्न 47. उपनिषदों के अनुसार क्या आत्मा परिवर्तनशील है ?
उत्तर-नहीं।

प्रश्न 48. उपनिषदों में वर्णन किये गए दो नैतिक गण बताएँ।
उत्तर-

  1. सदा सच बोलो
  2. सभी जीवों से प्यार करो।

प्रश्न 49. उपनिषदों के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-मोक्ष प्राप्त करना।

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प्रश्न 50. भगवद् गीता किस महाकाव्य का हिस्सा है ?
उत्तर-भगवद् गीता महाभारत का हिस्सा है।

प्रश्न 51. भगवद् गीता की रचना किस भाषा में की गई है ?
उत्तर-संस्कृत भाषा में।

प्रश्न 52. भगवद् गीता में कितने श्लोकों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-700 श्लोकों का।

प्रश्न 53. भगवद् गीता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-परमात्मा का गीत।

प्रश्न 54. भगवद् गीता में अंकित उपदेश किसने किसे दिया था ?
उत्तर-भगवद् गीता में अंकित उपदेश भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था।

प्रश्न 55. भगवद् गीता में कितने योगों का वर्णन है ?
उत्तर- भगवद् गीता में तीन योगों का वर्णन है।

प्रश्न 56. गीता के तीन योग कौन-से हैं ?
उत्तर-गीता के तीन योग हैं-कर्मयोग, भक्तियोग तथा ज्ञानयोग।

प्रश्न 57. गीता का कोई एक उपदेश बताएँ।
उत्तर–प्रत्येक व्यक्ति को कर्मों का फल ज़रूर भोगना पड़ता है।

प्रश्न 58. गीता के अनुसार भक्ति कितनी तरह की होती है ?
उत्तर-गीता के अनुसार भक्ति तीन तरह की होती है।

प्रश्न 59. गीता में दिए भक्तियोग की कोई एक किस्म बताएँ।
उत्तर-ज्ञान भक्ति।

प्रश्न 60. भगवद् गीता का सबसे पहले अंग्रेज़ी में अनुवाद किसने किया ?
उत्तर-एडविन अरनोल्ड ने।

प्रश्न 61. किस विद्वान् ने भगवद गीता पर टीका लिखा ?
उत्तर-रामानुज ने भगवद् गीता पर टीका लिखा।

प्रश्न 62. धर्म शास्त्रों से क्या भाव है ?
अथवा धर्म शास्त्र क्या हैं ?
उत्तर-धर्म शास्त्र हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ हैं।

प्रश्न 63. धर्म शास्त्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण व प्रसिद्ध कौन-सा है ?
उत्तर-मनुस्मृति।

प्रश्न 64. धर्म शास्त्र किस भाषा में लिखे गए हैं ?
उत्तर-संस्कृत भाषा में।

प्रश्न 65. कौन-सा धर्म शास्त्र सर्वाधिक प्राचीन है ?
उत्तर-मनु शास्त्र

प्रश्न 66. मानवता का पितामह किसको माना जाता है ?
उत्तर-मानवता का पितामह मनु को माना जाता है।

प्रश्न 67. मनुस्मृति का लेखक कौन था ?
उत्तर-मनु।

प्रश्न 68. मनु स्मृति को किस अन्य नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-मानवधर्म शास्त्र।

प्रश्न 69. किस धर्म शास्त्र में चार वर्णों के कर्तव्यों का वर्णन किया जाता है ?
उत्तर-मनु स्मृति में।

प्रश्न 70. मानवता के जीवन को कितने आश्रमों में बाँटा गया है ?
उत्तर-चार आश्रमों में।

प्रश्न 71. शास्त्रों में दर्शाए गए चार आश्रमों के नाम लिखें।
अथवा
मनु स्मृति में कौन-से चार आश्रम बताए गए ?
उत्तर-शास्त्रों में दर्शाए चार आश्रमों के नाम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ और सन्यास हैं।

प्रश्न 72. किसी एक आश्रम का नाम लिखो।
उत्तर-गृहस्थ आश्रम।

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प्रश्न 73. क्या मनु स्मृति के अनुसार शूद्रों को वेदों के पढ़े जाने की आज्ञा दी जानी चाहिए ?
उत्तर-नहीं।

प्रश्न 74. मनु स्मृति में धर्म के कितने स्रोत बताए गए हैं ?
उत्तर-चार।

प्रश्न 75. मनु स्मृति के अनुसार धर्म का कोई एक स्रोत बताएँ।
उत्तर-वेद।

प्रश्न 76. कौन-सा धर्म शास्त्र समाज में जुए के विरुद्ध था ?
उत्तर-विष्णु स्मृति।

प्रश्न 77. कौन-सा धर्म शास्त्र विधवा विवाह के पक्ष में था ?
उत्तर-नारद स्मृति।

प्रश्न 78. धर्म शास्त्रों में किन विषयों को छुआ गया है ?
उत्तर-धर्म शास्त्रों में कानूनों तथा समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों को छुआ गया है।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1. पुराण से भाव ……….. है।
उत्तर-प्राचीन

प्रश्न 2. पुराण ………….. भाषा में लिखे गए थे।
उत्तर-संस्कृत

प्रश्न 3. पुराणों की कुल संख्या ………. है।
उत्तर-18

प्रश्न 4. प्रत्येक पुराण ……….. भागों में विभाजित है।
उत्तर- पाँच

प्रश्न 5. ………… में संसार की उत्पत्ति के बारे में वर्णन किया गया है।
उत्तर-सर्ग

प्रश्न 6. ………… में प्रसिद्ध वंशों के राजाओं और ऋषियों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-वंशानचरित

प्रश्न 7. ब्रह्म पुराण को ……….. भी कहा जाता है।
उत्तर-आदि पुराण

प्रश्न 8. सबसे विशाल पुराण का नाम ………. पुराण है।
उत्तर-पद्म

प्रश्न 9. वायु पुराण को ……….. पुराण भी कहते थे।
उत्तर-शिव

प्रश्न 10. गरुड़ पुराण में ………….. श्लोक दिए गए हैं।
उत्तर-18,000

प्रश्न 11. नारद पुराण में ………….. श्लोक दिए गए हैं।
उत्तर-25,000

प्रश्न 12. ……………. पुराण सभी पुराणों में से छोटा है।
उत्तर-मारकंडेय पुराण

प्रश्न 13. उपनिषदों को ……… भी कहा जाता है।
उत्तर-वेदांत

प्रश्न 14. उपनिषदों ने ………. कोषों का सिद्धांत प्रचलित किया।
उत्तर-पाँच

प्रश्न 15. भगवद्गीता …………’का एक भाग है।
उत्तर-महाभारत

प्रश्न 16. भगवद्गीता में ………… श्लोक हैं।
उत्तर-700

प्रश्न 17. गीता का उपदेश ……….. ने दिया।
उत्तर-श्री कृष्ण जी

प्रश्न 18. भगवद्गीता में ……… योगों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-तीन

प्रश्न 19. धर्मशास्त्र ……….. भाषा में लिखे गए हैं।
उत्तर-संस्कृत

प्रश्न 20. ……… को मानवता का पितामह कहा जाता है।
उत्तर-मनु

प्रश्न 21. मनुस्मृति को ………… धर्मशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-मानव

प्रश्न 22. मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों को वेदों के अध्ययन और संपत्ति के अधिकार ……… होना चाहिए।
उत्तर-नहीं

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1. पुराणों की रचना संस्कृत भाषा में की गई थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 2. पुराणों को पाँचवां वेद भी कहा जाता था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 3. पुराणों की कुल संख्या 10 है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 4. ब्रह्म पुराण सबसे विशाल पुराण है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 5. पद्म पुराण में 55,000 श्लोक दिए गए हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 6. वायु पुराण को शिव पुराण भी कहते हैं।
उत्तर-ठीक

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 7. भगवद् पुराण में शिव की महिमा गाई गई है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 8. नारद् पुराण विष्णु भक्ति के साथ संबंधित है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 9. पुराणों में अग्नि पुराण सबसे छोटा पुराण है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 10. भविष्य पुराण में 14,000 श्लोक दिए गए हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 11. संकद पुराण में 51,000 श्लोक दिए गए हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 12. मत्स्य पुराण में एक मछली और मनु के मध्य वार्तालाप का वर्णन किया गया है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 13. उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 14. उपनिषदों की रचना पालि भाषा में की गई है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 15. उपनिषद पाँच कोषों के सिद्धांत में विश्वास रखते थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 16. भगवद्गीता रामायण का ही एक भाग है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 17. भगवद्गीता को 18 अध्यायों में बांटा गया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 18. गीता का उपदेश श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 19. भगवद्गीता चार योगों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 20. हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथों को धर्मशास्त्रों के नाम से जाना जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 21. मनुस्मृति की रचना याज्ञवल्कय ने की थी।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 22. मानवता का पितामाह मनु को माना जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 23. नारद स्मृति विधवा विवाह के पक्ष में था।
उत्तर-ठीक

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—

प्रश्न 1.
पुराणों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 6
(ii) 10
(iii) 15
(iv) 18
उत्तर-
(iv) 18

प्रश्न 2.
पुराण किस भाषा में लिखे गए हैं ?
(i) संस्कृत
(ii) हिंदी
(iii) खड़ी बोली
(iv) बृजभाषा।
उत्तर-
(i) संस्कृत

प्रश्न 3.
पुराणों को कितने भागों में विभाजित किया गया है ?
(i) 3
(ii) 4
(iii) 5
(iv) 6
उत्तर-
(i) 3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा पुराण शिव पुराण नहीं है ?
(i) वायु
(ii) विष्णु
(iii) स्कंद
(iv) लिंग।
उत्तर-
(ii) विष्णु

प्रश्न 5.
पुराणों के किस भाग में प्रसिद्ध राजाओं और ऋषियों का वर्णन किया गया है ?
(i) वंश
(ii) वंशानुचरित
(iii) सर्ग
(iv) मनवंत्र।
उत्तर-
(i) वंश

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा पुराण सबसे प्राचीन है ?
(i) ब्रह्म पुराण
(ii) पद्म पुराण
(iii) विष्णु पुराण
(iv) अग्नि पुराण।
उत्तर-
(i) ब्रह्म पुराण

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा पुराण सबसे विशाल है ?
(i) विष्णु पुराण
(ii) स्कंद पुराण
(iii) वामन पुराण
(iv) पद्म पुराण।
उत्तर-
(iv) पद्म पुराण।

प्रश्न 8.
पद्म पुराण में दिए गए श्लोकों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 15,000
(ii) 23,000
(iii) 51,000
(iv) 55,000.
उत्तर-
(iv) 55,000.

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन-सा पुराण सबसे छोटा है ?
(i) वराह पुराण
(ii) वामन पुराण
(iii) पद्म पुराण
(iv) मार्कंडेय पुराण।
उत्तर-
(iv) मार्कंडेय पुराण।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किस पुराण में अंतिम संस्कार संबंधी जानकारी दी गई है, ?
(i) नारद पुराण
(ii) वायु पुराण
(iii) गरुड़ पुराण
(iv) भविष्य पुराण।
उत्तर-
(iii) गरुड़ पुराण

प्रश्न 11.
उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 6
(ii) 11
(iii) 18
(iv) 108.
उत्तर-
(iv) 108.

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा उपनिषद् नहीं है ?
(i) ईश
(ii) केन
(iii) छंद
(iv) स्कंद।
उत्तर-
(iv) स्कंद।

प्रश्न 13.
भगवद्गीता का उपदेश किसने दिया था ?
(i) श्री कृष्ण जी
(ii) अर्जुन
(iii) श्री रामचंद्र जी
(iv) शिव जी।
उत्तर-
(i) श्री कृष्ण जी

प्रश्न 14.
भगवद्गीता निम्नलिखित में से किस ग्रंथ का भाग है ?
(i) रामायण
(ii) महाभारत
(iii) बौद्धचरित
(iv) कथावथु।
उत्तर-
(ii) महाभारत

प्रश्न 15.
भगवद्गीता में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
(i) 500
(ii) 700
(iii) 800
(iv) 900.
उत्तर-
(i) 500

प्रश्न 16.
हिंदुओं के प्राचीन कानूनी ग्रंथों को क्या कहा जाता है ?
(i) वेद
(ii) महाभारत
(iii) रामायण
(iv) धर्मशास्त्र।
उत्तर-
(iv) धर्मशास्त्र।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से किस शास्त्र को मानव धर्म शास्त्र के नाम से जाना जाता है ?
(i) याज्ञवल्कय स्मृति
(ii) मनु स्मृति
(iii) विष्णु स्मृति
(iv) नारद स्मृति।
उत्तर-
(ii) मनु स्मृति

प्रश्न 18.
मानवता का पितामह किसे माना जाता है ?
(i) नारद
(ii) विष्णु
(iii) मनु
(iv) याज्ञवल्कय।
उत्तर-
(iii) मनु

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 5 पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों की सामान्य जानकारी

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से कौन-सा पुराण स्त्रियों की स्वतंत्रता के विरुद्ध था ?
(i) मनु स्मृति
(ii) नारद स्मृति
(ii) विष्णु स्मृति
(iv) याज्ञवल्कय स्मृति।
उत्तर-
(i) मनु स्मृति

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षण एवं महत्ता का वर्णन कीजिए।
(Describe the salient features and importance of Vedic literature.)
अथवा
चार वेदों के प्रमुख लक्षणों के बारे में भावपूर्ण संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
(Describe the Pre-eminent features of four Vedas in brief but meaningful.)
अथवा
वैदिक साहित्य से क्या भाव है ? आरम्भिक और उत्तर वैदिक काल के साहित्य का संक्षेप में वर्णन करो।
(What is meant by Vedic literature ? Explain briefly the early and later Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य की संक्षेप जानकारी दो । चार वेदों पर संक्षेप में नोट लिखें।
(Give a brief introduction of Vedic literature. Write short notes on four Vedas as well.)
अथवा
वैदिक साहित्य की मुख्य विशेषताओं और महत्ता का वर्णन करो। (Explain the main features and importance of the Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के बारे बताएँ।
(Give a brief introduction about the Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the salient features of Vedic literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य से भाव उस साहित्य से है जिसकी रचना आर्यों ने की थी। इस साहित्य को अनमोल ज्ञान का भंडार माना जाता है। इस में जीवन की आध्यात्मिक और अन्य समस्याओं के समाधान का वर्णन किया गया है। निस्संदेह वैदिक साहित्य को लिखने का मुख्य उद्देश्य धार्मिक था परन्तु इस से वैदिक और उत्तर वैदिक काल के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन की भी स्पष्ट झलक प्राप्त होती है। इसी कारण इस साहित्य को प्राचीन काल भारतीय इतिहास लिखने के लिए एक बहुत ही विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। यह सारा साहित्य संस्कृत भाषा में लिखा गया है। रचना काल के आधार पर वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है। आरंभिक वैदिक काल का साहित्य और उत्तर वैदिक काल का साहित्य। इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

(क) आरंभिक वैदिक काल का साहित्य (Early Vedic Literature)-
आरंभिक वैदिक काल के साहित्य में चार वेद, ब्राह्मण, आरण्य और उपनिषद् आदि शामिल हैं। इस साहित्य को स्मति भी कहा जाता है क्योंकि इसकी रचना मनुष्यों के द्वारा नहीं बल्कि परमात्मा के बताये जाने पर ऋषियों द्वारा की गई। इसलिए इस साहित्य को परमात्मा के ज्ञान का भंडार माना जाता है।

1. चार वेद (The Four Vedas)-वेदों को भारत का सब से प्राचीन साहित्य माना जाता है। इन को सारे भारतीय दर्शन का मूल माना जाता है। वेद शब्द “विद” धातु से निकला है जिसका अर्थ है “जानना” या “ज्ञान”। दूसरे शब्दों में वेदों को आर्यों के ज्ञान का भंडार कहा जा सकता है। वेद चार हैं :-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।

ऋग्वेद (The Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है। इस की रचना 1500-1000 ई० पू० में हुई। इस में 1028 सूक्त हैं जिनको 10 अध्यायों में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की उपासना की गई है। सबसे अधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। इनकी संख्या 250 है। ऋग्वेद में वर्णित देवी-देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। इन की पूजा लड़ाई में विजय के लिए, धन और संतान तथा सुखी जीवन की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद को आर्य लोगों के जीवन को जानने के लिए बहुमूल्य स्रोत माना जाता है।

सामवेद (The Samaveda)-सामवेद में कुल 1875 मंत्र दिये गये हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी सारे मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञों के समय पुरोहित निश्चित स्वरों में गाते थे। इसी कारण सामवेद को “गायन ग्रंथ” भी कहा जाता है। यदि इस वेद को भारतीय संगीत कला का स्रोत कह दिया जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

यजुर्वेद (The Yajurveda)-यजुर्वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में यज्ञों को किये जाने के ढंग भी बताये गये हैं। वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी बताये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के धार्मिक और सामाजिक जीवन के बारे में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

अथर्ववेद (The Atharvaveda)—इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है। इस वेद को सबसे बाद में वेदों की गिनती में शामिल किया गया है। इस वेद में 731 सूक्त दिये गये हैं। यह वेद जादू-टोनों और भूतों तथा चुडैलों को वश में करने के मंत्रों का संग्रह है। इस में अनेक बीमारियों से बचने के लिए औषधियों का भी वर्णन किया गया है।

2. ब्राह्मण ग्रंथ (The Brahmanas) ब्राह्मण ग्रंथों की रचना वेदों की रचना के बाद हुई। इनमें वेदों की सरल व्याख्या की गई है ताकि साधारण लोग उनके अर्थ समझ सकें। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण हैं। एतरेय ब्राह्मण, तैत्तरीय ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण तथा शतपथ ब्राह्मण आदि नाम के ब्राह्मण सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। यह गद्य में लिखे गये हैं। इनसे यज्ञों और बलियों की विधियों का ज्ञान प्राप्त होता है। इनमें कई प्रसिद्ध राजाओं के बहादुरी से भरपूर कारनामों का भी वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक तौर पर ब्राह्मण ग्रंथों की बड़ी महत्ता है।

3. आरण्यक (The Aranyakas)—ये ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों का ही हिस्सा हैं। ये ग्रंथ जंगलों में रहने वाले साधुओं के लिये लिखे गये हैं। इनमें आध्यात्मिक विषयों और नैतिक कर्तव्यों पर अधिक जोर दिया गया है। इनमें यज्ञों और बलियों की रस्मों के बारे में भी समझाया गया है। ऐतरेय आरण्यक, कोषतकी आरण्यक, तैत्तरीय आरण्यक और बृहद आरण्यक नामों के ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं।

4. उपनिषद् (The Upanishads)-उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। क्योंकि ये वेदों का अंतिम भाग है इसलिए इनको वेदांत भी कहा जाता है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 1000-500 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है। जीवन तथा मृत्यु से संबंधित बहत से भेदों को सुलझाने का यत्न किया गया है। कर्म, मोक्ष, माया और आवागमन के विषयों पर बहुत अधिक प्रकाश डाला गया है। डॉक्टर एस० आर० गोयल का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषद् दर्शन को ठीक ही भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जा सकता है।”1

1. “The Upanishadic philosophy is rightly regarded as the source of all Indian Philosophy.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 119.

(ख) उत्तर वैदिक काल का साहित्य
(Later Vedic Literature)
उत्तर वैदिक काल के साहित्य में वेदांग, सूत्र, उपवेद, पुराण, धर्म-शास्त्र और महाकाव्य आदि शामिल हैं। इस काल में रचे साहित्य को स्मृति भी कहा जाता है क्योंकि इस की रचना ऋषियों ने अपने ज्ञान के द्वारा की।

  1. वेदांग (The Vedangas)—वेदांग से अभिप्राय है वेदों के अंग। इनकी गिनती 6 है और ये अलग-अलग विषयों से संबंधित हैं। इनके नाम शिक्षा, छंद, कल्प, व्याकरण, निरुक्त और ज्योतिष हैं। इनमें से कल्प वेदांग सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसमें आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किया गया है। वेदों को समझने के लिए और उनका ठीक उच्चारण करने के लिए वेदांगों को विशेष महत्त्व प्राप्त है।
  2. सूत्र (The Sutras)-उत्तर वैदिक काल में साहित्य लिखने की एक नई शैली की शुरुआत हुई। इनको सूत्र कहा जाता है। इनमें कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बातें कहने का यत्न किया गया है। इस का उद्देश्य यह था कि लोग वैदिक साहित्य को आसानी से याद कर सकें। इनको तीन श्रेणियों में बाँटा गया है।
    • स्त्रोत सूत्र-इसमें सोम यज्ञ, बलियाँ और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किया गया है।
    • ग्रह सूत्र-यह सूत्र सब सूत्रों से महत्त्वपूर्ण है। इस में जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
    • धर्म सूत्र-इसमें उस समय के प्रचलित कानूनों और रिवाजों का वर्णन किया गया है।
  3. उपवेद (The Upavedas)-उपवेद सहायक वेद हैं। इनकी संख्या चार है—
    • आयुर्वेद-इसमें औषधियों का वर्णन किया गया है।
    • धनुर्वेद-इसमें युद्ध-कला का वर्णन किया गया है।
    • गन्धर्ववेद-इसमें संगीत संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
    • शिल्प वेद-इसमें कला और भवन निर्माण कला से संबंधित जानकारी दी गई है।
  4. धर्मशास्त्र (The Dharma Shastras)-धर्म शास्त्र हिंदुओं के कानूनी ग्रंथ थे। इन को स्मृति ग्रंथ भी कहा जाता है। इनमें से मनु स्मृति सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र है। इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्य स्मृति, विष्णु स्मृति और नारद स्मृति भी बहुत प्रसिद्ध शास्त्र माने जाते हैं। इनमें चार जातियों, आश्रमों, नित्य की रस्मोंरीतियों, शासकों के कर्त्तव्य और न्यायिक व्यवस्था आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। इसलिए ऐतिहासिक तौर पर धर्मशास्त्रों की बहुत महत्ता है।
  5. पुराण (The Puranas)—पुराण से अभिप्राय है प्राचीन यह हिंदुओं के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हमारा एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। पुराणों की कुल संख्या 18 है। इनमें से विष्णु, भागवत, मत्स्य और वायु पुराण बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा हुआ है। पहले भाग में विश्व की उत्पत्ति, दूसरे में विश्व की पुनः उत्पत्ति, तीसरे भाग में देवताओं के वंशों, चतुर्थ में महायुगों और पाँचवें भाग में प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक तौर पर पुराणों का पाँचवां भाग बहुत लाभदायक है।
  6. दर्शन के षट-शास्त्र (Six Shastras of Philosophy)-उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—
    • कपिल का सांख्य शास्त्र,
    • पतंजलि का योग शास्त्र,
    • गौतम का न्याय शास्त्र
    • कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
    • जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
    • व्यास का उत्तर मीमांसा।
      इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवन-मृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

महाकाव्य (The Epics)-रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है। महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में 1,00,000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पांडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। प्रोफेसर एच० वी० श्रीनिवास मूर्ति का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“दोनों महाकाव्य रामायण और महाभारत भारतीय संस्कृति के अलग-अलग पक्षों पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने पर्याप्त सीमा तक हमारे लोगों के चरित्र और जीवन को परिवर्तित किया है। इस तरह वे पुराने और नये भारत के मध्य एक मजबूत कड़ी हैं।”2

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

वैदिक साहित्य का महत्त्व (Importance of the Vedic Literature)-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है ? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है ? ज्ञान क्या है ? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है। इस तरह वैदिक साहित्य हिंदू धर्म को जानने के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह साहित्य आर्यों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन को जानने के लिए भी हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है। संक्षेप में वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति को समझने के लिए एक दर्पण का कार्य करता है। आधुनिक काल में यह न केवल भारतीय बल्कि विदेशी लेखकों और विद्वानों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। निस्संदेह यह हमारे लिए एक बहुत ही गर्व की बात है। प्रसिद्ध लेखकों वी० पी० शाह तथा के० एस० बहेरा का यह कहना उचित है कि,
“वैदिक साहित्य आर्यों द्वारा भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को दी गई सबसे अमूल्य देन है। निःसंदेह, वेद मख्य तौर पर धार्मिक साहित्य है, परंतु इनसे सीधे रूप से उस समय की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दशा के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।”3

2. “The two great epics, the Ramayana and the Mahabharata, throw a flood of light on various aspects of Indian culture. They have to a large extent, moulded the character and life of our people. Thus they form the strongest link between India, old and new.” Prof. H. V. Sreenivasa Murthy, History and Culture of India to 1000 A.D. (New Delhi : 1980) p. 68.
3. “The Vedic literature is a magnificient contribution of the Aryan’s to the Indian culture and civilisation. No doubt the Vedas are predominantly religious literature but the Vedas directly indicate about religious, social, economic and political conditions of the time.” B.P. Saha and K.S. Bahera, Ancient History of India (New Delhi : 1988) p.72.

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बारे पहचान कराएँ—
(1) पुराण,
(2) उपनिषद्
(3) ऋग्वेद,
(4) शास्त्र।
[Explain the following :
(1) Puranas
(2) Upanishads
(3) Rigveda
(4) Shastras.]
उत्तर-
1. पुराण (Purana)—पुराण से अभिप्राय है प्राचीन यह हिंदुओं के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हमारा एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। पुराणों की कुल संख्या 18 है। इनमें से विष्णु, भागवत, मत्स्य और वायु पुराण बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा हुआ है। पहले भाग में विश्व की उत्पत्ति, दूसरे में विश्व की पुनः उत्पत्ति, तीसरे भाग में देवताओं के वंशों, चतुर्थ में महायुगों और पाँचवें भाग में प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक तौर पर पुराणों का पाँचवां भाग बहुत लाभदायक है।

2. उपनिषद् (Upanishads)—उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। क्योंकि ये वेदों का अंतिम भाग है इसलिए इनको वेदांत भी कहा जाता है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 1000-500 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है। जीवन तथा मृत्यु से संबंधित बहत से भेदों को सुलझाने का यत्न किया गया है। कर्म, मोक्ष, माया और आवागमन के विषयों पर बहुत अधिक प्रकाश डाला गया है। डॉक्टर एस० आर० गोयल का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषद् दर्शन को ठीक ही भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जा सकता है।”1

3. ऋग्वेद (Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है। इस की रचना 1500-1000 ई० पू० में हुई। इस में 1028 सूक्त हैं जिनको 10 अध्यायों में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की उपासना की गई है। सबसे अधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। इनकी संख्या 250 है। ऋग्वेद में वर्णित देवी-देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। इन की पूजा लड़ाई में विजय के लिए, धन और संतान तथा सुखी जीवन की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद को आर्य लोगों के जीवन को जानने के लिए बहुमूल्य स्रोत माना जाता है।

4. शास्त्र (Shashtras)—धर्म शास्त्र हिंदुओं के कानूनी ग्रंथ थे। इन को स्मृति ग्रंथ भी कहा जाता है। इनमें से मनु स्मृति सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र है। इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्य स्मृति, विष्णु स्मृति और नारद स्मृति भी बहुत प्रसिद्ध शास्त्र माने जाते हैं। इनमें चार जातियों, आश्रमों, नित्य की रस्मोंरीतियों, शासकों के कर्त्तव्य और न्यायिक व्यवस्था आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। इसलिए ऐतिहासिक तौर पर धर्मशास्त्रों की बहुत महत्ता है।

1. “The Upanishadic philosophy is rightly regarded as the source of all Indian Philosophy.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 119.

प्रश्न 3.
धार्मिक क्षेत्र में चार वेदों तथा उनके महत्त्व के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief the four Vedas and their importance in the field of Religion.)
अथवा
वेद कितने माने जाते हैं तथा इनके नाम क्या हैं ? संक्षेप परंतु प्रभावशाली जानकारी दें।
(How many Vedas are there ? Explain with their names in brief but meaningful.)
अथवा
वेदों के मुख्य लक्षणों का वर्णन करें।
(Describe the main features of the Vedas.)
अथवा
चार वेदों के प्रमुख लक्षणों की जानकारी दीजिए।
(Describe the salient features of the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के नाम लिखें। किन्हीं दो के बारे में संक्षिप्त जानकारी दें।
(Write the names of the four Vedas. Explain in brief any two Vedas.)
अथवा
वेदों की रचना किस प्रकार हुई ? दो वेदों की संक्षिप्त जानकारी दें।
(How Vedas were written ? Discuss any two in brief.)
अथवा
चारों वेदों की महत्ता की संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए। (Describe in brief, but meaningful the importance of the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के बारे में संक्षेप से बताएँ। (Write in brief about the four Vedas.)
अथवा
वेदों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Vedas ?)
अथवा
चार वेदों के नाम बताएँ। ऋग्वेद के बारे में विस्तार से बताएँ।
(Name the four Vedas. Explain Rigveda in detail.)
अथवा
ऋग्वेद के विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दें। चार वेदों के नाम बताएँ।
(Discuss the subject-matter of the Rigveda. Name the four Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद की विषय-वस्तु पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the subject-matter of the Rigveda.)
अथवा
कुल वेद कितने हैं ? किन्हीं दो वेदों के बारे में व्याख्या करें।
(What are the total number of Vedas ? Explain any two Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद एवं सामवेद के प्रमुख विषयों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the main contents of Rigveda and Samaveda.)
अथवा
चार वेदों के बारे में संक्षेप में भावपूरित जानकारी दीजिए।
(Describe in brief meaningfully the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालें।
(Elucidate the spiritual importance of the four Vedas.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य में वेदों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वेद चार हैं। इनके नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद हैं। अथर्ववेदं को वेदों की संख्या में सब से बाद में शामिल किया गया। इस कारण पहले तीन वेदों को “तरई” के नाम से भी जाना जाता है। ये वेद संस्कृत में लिखे गये हैं। ये हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं। वेद शब्द “विद्” धातु से निकला है जिस का अर्थ है ज्ञान या जानना। दूसरे शब्दों में वेदों को आर्यों के ज्ञान का भंडार कहा जा सकता है। यह ज्ञान ऋषियों ने ईश्वर से प्राप्त किया था। इसी कारण वेदों को “श्रुति” भी कहा जाता है। वेदों का रचना काल 1500 ई० पू० से 600 ई० पू० माना जाता है। निस्संदेह वेद आर्यों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास को जानने के लिए हमारा एक अनमोल स्रोत हैं। वेदों की विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. ऋग्वेद (The Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। ऋग “ऋक” शब्द से निकला है जिसका अर्थ है स्तुति में रचे गये मंत्र। इसी कारण ऋग्वेद को देवताओं की स्तुति में रचे गये मंत्रों का समूह कहा जाता है। ऋग्वेद की रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। यह वो समय था जब आर्य पंजाब में रहते थे। ऋग्वेद एक विशाल ग्रंथ है। इस में 1028 सूक्त हैं। एक सूक्त में अनेक मंत्र होते हैं। ऋग्वेद में मंत्रों की कुल संख्या 10,580 है। इन को दस अध्यायों में बाँटा गया है। इनमें कुछ अध्याय बड़े हैं और कुछ छोटे। पहला और दसवाँ अध्याय (मंडल) सब से बड़े हैं। इन दोनों मंडलों में 191-191 सूक्त दिये गये हैं। दूसरे मंडल से लेकर सातवें मंडल में दिये गये सूक्तों को ऋग्वेद का दिल माना जाता है। ये शेष मंडलों से पुराने समझे जाते हैं। ऋग्वेद के नवम अध्याय में केवल सोम देवता से संबंधित मंत्र दिये गये हैं।
ऋग्वेद में सबसे अधिक मंत्र (250) इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। अग्नि की प्रशंसा में 200 मंत्र हैं। बाकी के मंत्र वरुण, सूर्य, रुद्र, सोम, ऊषा, रात्रि और सरस्वती आदि देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इन सभी देवीदेवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। ये देवता बहुत शक्तिशाली और महान् थे। वे मनुष्य का रूप धारण करते थे और अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनाओं से खुश हो कर उन पर कई प्रकार की कृपा करते थे। उनकी पूजा युद्ध में विजय के लिए, धन की प्राप्ति के लिए, सुखी और लंबे जीवन तथा संतान की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद में अनेक ऋषियों ने मंत्र लिखे हैं। इनमें विश्वामित्र, भारद्वाज, वशिष्ट, वामदेव, अत्री, कण्व तथा ग्रितस्मद बहुत प्रसिद्ध थे। ऋग्वेद में अपाला, घोषा, विश्ववरा, मुदगालिनी तथा लोपामुद्रा आदि स्त्रियों के भी मंत्र दिये गये हैं। ऋग्वेद में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र भी दिया गया है जिसे हिंदू आज भी प्रतिदिन पढ़ते हैं। ऋग्वेद की रचना यद्यपि धार्मिक तौर पर की गई थी परंतु इस की ऐतिहासिक महत्ता भी बहुत है।

2. सामवेद (The Samaveda) साम शब्द से भाव सरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। ये मंत्र दो भागों में बाँटे गये हैं जिन को पूर्वरचिका तथा उत्तररचिका कहते हैं। पूर्वरचिका में 650 मंत्र हैं जबकि उत्तररचिका में 1225 मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। इन मंत्रों को सात स्वरों में गाया जाता था। इन मंत्रों को गाते समय तीन प्रकार के वाद्यों वेणु, दुंदुभि और वीणा का प्रयोग किया जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।

3. यजुर्वेद (The Yajurveda)—यर्जु से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इस लिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।

4. अथर्ववेद (The Atharvaveda)-अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। इस वेद का नाम अथर्वन ऋषि के नाम से पड़ा। यह ऋषि जादुई शक्तियों का स्वामी था और भूतों-प्रेतों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध था। अथर्ववेद वास्तव में जादू टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता चलता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था। वे अग्नि की सहायता से मनुष्यों को भूतों-प्रेतों से बचा कर उनकी सहायता करते थे। अथर्ववेद में कुल 731 सूक्त और लगभग 6000 मंत्र हैं। इन मंत्रों में से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। यह वेद 20 अध्यायों में बाँटा गया है। इस का 20वाँ अध्याय सब से बड़ा है जिसमें 928 मंत्रों का वर्णन है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

प्रश्न 4.
चार वेदों में से यजुर्वेद के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Yajurveda among the four vedas.)
उत्तर-
यर्जु से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इस लिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 5.
वैदिक साहित्य से आप क्या समझते हैं ? वैदिक साहित्य के प्रमुख विषय कौन-कौन से हैं ?
(What is meant by the Vedic literature ? What are the main subjects of the Vedic literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य के मुख्य विषयों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the main contents of the Vedic literature.)
अथवा
वेदों के महत्त्वपूर्ण पक्षों के बारे में बहस करें।
(Examine the important aspects of the Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद में कौन से मुख्य विषय छुए गए हैं ? ऋग्वेद के बीच कुल मंत्रों की संख्या बताओ।
(Which main subjects are touched in the Rigveda ? Mention the total number of hymns given in Rigveda.)
अथवा
ऋग्वेद की विषय-वस्तु के बारे जानकारी दो। पुरुष सूक्त के बारे संक्षेप नोट लिखो ।
(Write about the subject-matter of the Rigveda. Write a brief note on the PurushSukta hymn.)
अथवा
हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों के बारे में जानकारी दें। (Write about the main features of Hinduism.)
अथवा
वेदों के धार्मिक विचारों के बारे में बताएँ। (Give an account of the religious thoughts of the Vedas.)
अथवा
आध्यात्मिक क्षेत्र में वेदों का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट करें।
(Explain the spirityal importance of the Vedas.)..
उत्तर-
वैदिक साहित्य में मुख्य तौर पर हिंदू धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसमें बहुदेववाद, एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद का वर्णन किया गया है। इस में परमात्मा को खुश करने के लिए यज्ञों और बलियों का भी वर्णन मिलता है। इसमें यह भी बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? आत्मा क्या हैं और ब्रह्म क्या है ? आत्मा और ब्रह्म में क्या संबंध है कर्म और आवागमन सिद्धांत क्या है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? स्वर्ग-नरक क्या हैं ? इन विषयों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. बहुदेववाद (Polytheism)—ऋग्वेद के वर्णन से पता चलता है कि आरंभ में आर्य प्रकृति की शक्तियों को देवता समझ कर उनकी पूजा करते थे। आर्यों ने प्रकृति की हर चमकने वाली, भयानक अथवा सुंदर नज़र आने वाली हर शक्ति को कोई न कोई देवी अथवा देवता समझ लिया। ऋग्वेद के अनुसार आर्य 33 देवताओं की पूजा करते थे। इनको 3 भागों में बाँटा गया था। ये भाग इस प्रकार थे- आकाश के देवता, पृथ्वी के देवता और पृथ्वी तथा आकाश के मध्य निवास करने वाले देवता। इन सभी देवताओं को शक्तिशाली और महान् समझा गया था। कभी एक देवता की स्तुति की जाती और कभी दूसरे की। इस तरह बहुदेववाद का सिद्धांत प्रचलित हुआ।

2. एकेश्वरवाद (Monotheism) वैदिक काल के बहुदेववाद के पीछे सदैव ही एकेश्वरवाद या एक ईश्वर का विचार रहा है। ऋग्वेद में ऐसी कई उदाहरणें मिलती हैं जैसे इंद्र ब्रह्म है, देवताओं का प्राणदाता एक है, ‘सभी देवता एक ही हैं केवल ऋषियों ने उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।’ ईश उपनिषद् में कहा गया है, “वह अग्नि है, वही सूर्य है, वो ही वायु है, वो ही चंद्रमा है, वो ही शुक्र है, वो ही ब्रह्म है, वो ही जल है और वो ही प्रजापति है।” “ज्योतियों की ज्योति एक है।” इन उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्य एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास रखते थे।

3. सर्वेश्वरवाद (Henotheism)—यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था। ऋग्वेद के एक सूक्त में कहा गया है, “हे देवताओ आप में से कोई छोटा नहीं है, आप में से कोई छोटा बच्चा नहीं है। आप सभी महान् हैं।” इस तरह आर्यों के लिए उनके सभी देवता बराबर थे।

4. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)—वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहुत विधिपूर्वक किया जाता था ताकि किसी छोटी-सी गलती के कारण देवता नाराज़ न हो जायें। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी। इस अग्नि में घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों जैसे बकरी, भेड़ और घोड़ों आदि की बलि भी दी जाती थी। छोटे यज्ञ पारिवारिक स्तर के होते थे जबकि बड़े यज्ञ अमीर लोगों के द्वारा करवाये जाते थे। उत्तर वैदिक काल में यह यज्ञ अधिक जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी। डॉक्टर एस० आर० गोयल के अनुसार,
“वैदिक धर्म को निश्चित तौर पर यज्ञ तथा बलियों का एक धर्म समझा जाता था। पूजा करने वाला प्रार्थनाओं के उच्चारण से कुछ भेंटें देता था और देवता से इसके बदले में किसी वरदान की आशा करता था।”4

5. संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? (How was World Created ?)-संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? इस से संबंधित हमें ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से जानकारी प्राप्त होती है। इसमें यह बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति से पहले अकेला ईश्वर ही था। उसके बिना चारों तरफ अंधकार था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने संसार की रचना कर दी । उसने न केवल मनुष्य, पशु, पक्षी आदि बनाये बल्कि सूर्य, चाँद, तारों, पहाड़ों, समुद्रों, नदियों तथा फूलों आदि की भी रचना की । उपनिषदों में भी यह वर्णन बार-बार आता है कि ब्रह्म ने सारे ब्रह्माण्ड की रचना की।

6. आत्मा क्या है (What is Self)-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है। यह एक शरीर से दूसरे शरीर में तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक यह कर्मों के बंधन से मुक्त न हो जाये। ऐसा होने पर यह ब्रह्म में लीन हो जाती है । इस तरह आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं रह जाता।

7. ब्रह्म क्या है ? (What is Absolute ?)-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह सत्य मन और आनंद रूप है। वह संपूर्ण
ज्ञान का भंडार है। शब्दों में उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है। इसी कारण ब्रह्म और आत्मा में कोई मूल भेद नहीं रह जाता।

8. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-ऋग्वेद में पितरों की पूजा का वर्णन मिलता है। पितर स्वर्गों में निवास करते थे। यह आर्यों के आरंभिक बुजुर्ग थे। उनकी पूजा भी देवताओं के समान की जाती थी। ऋग्वेद में बहुत सारे मंत्र उनकी स्तुति में दिये गये हैं। पितरों की पूजा इस आशा से की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनके दुःख, मुसीबतों को दूर करेंगे, उनको धन, शक्ति, लंबी आयु तथा संतान देंगे। समय के साथसाथ आर्यों की पितर पूजा के प्रति आस्था में वृद्धि होती गई।

9. ऋत और धर्मन (Rita and Dharman)—ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में ऋत और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। ऋत से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करके प्रकाश देती है। इस तरह ऋत एक सच्चाई है। इस का उल्ट अनऋत (झूठ) है। उपनिषदों के समय धर्म शब्द ने ऋत का स्थान ल लिया। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

10. कर्म और आवागमन (Karma and Transmigration)-वैदिक साहित्य में इस बात का बार-बार वर्णन आया है कि मनुष्य अपनी किस्मत का स्वयं ही निर्माता है। जैसे वह कर्म करेगा वैसा ही उसको फल प्राप्त होगा। यदि उसके कर्म अच्छे होंगे तो वह आवागमन के चक्करों से छुटकारा प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त कर लेगा। यदि उसके कर्म बुरे हैं वह सदा ही दुःखी रहेगा और किसी भी स्थिति में आवागमन से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। कर्म मनुष्य का साथ उस तरह नहीं छोड़ते जैसे कि उसकी परछाईं।

11. मोक्ष (Moksha)-मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। वह एंद्रीय सुख भोग कर और धन प्राप्त करके यह समझता है कि उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया है। वह यह भूल जाता है कि सभी सुख क्षण-भंगुर हैं। इन कारणों के लिए वह कभी भवसागर से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी-शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती है।

12. स्वर्ग और नरक में विश्वास (Faith in Heaven and Hell)—वैदिक साहित्य में इस बात का वर्णन मिलता है कि आर्य स्वर्ग और नरक में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार जो व्यक्ति अपना जीवन नैतिक नियमों के अनुसार व्यतीत करता है, दान देता है और कभी किसी को कोई दुःख तकलीफ नहीं देता, वह मौत के बाद स्वर्ग में निवास करता है। यह वो स्थान है जहाँ देवताओं का वास है। यहाँ सदा ही खुशी रहती है। दूसरी ओर पापी और अधर्मी व्यक्ति मौत के बाद नरक में जाते हैं। पुराणों आदि में नरक में मिलने वाले घोर दुःखों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

13. पुरुष सूक्त (Purusha-Sukta)-पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जाँघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। इस से कई इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि ऋग्वैदिकं काल में जाति प्रथा प्रचलित हो गई थी। परंतु इस के संबंध में ऋग्वेद में कहीं और कोई वर्णन नहीं मिलता। यह कहा जाता है कि पुरुष सूक्त की रचना भी ऋग्वेद से कई सौ वर्ष बाद की गई थी। इसकी भाषा ऋग्वेद से भिन्न है। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।

4. “Vedic religion was essentially a religion of yaznas or sacrifices. The worshipper offered some oblations to god with the chanting of prayers and expected that god would grant him desired boon in return.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 72.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऋग्वेद के प्रमुख लक्षणों का संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe in brief but meaningful the salient features of Rigveda.)
अथवा
ऋग्वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के महत्त्व के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss the importance of Rigveda in the Rigvedic literature.)
उत्तर-
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। इसकी रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। इसमें 1028 सूक्त हैं जिनको 10 मंडलों (अध्यायों) में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र हैं। ऋग्वेद में कुल 10,552 मंत्र हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की स्तुति की गई है। ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं। इनकी संख्या 250 हैं। भारतीय दर्शन को जानने के लिए ऋग्वेद का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 2.
सामवेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Samaveda ?)
उत्तर-
साम शब्द से भात्र सुरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।

प्रश्न 3.
यजुर्वेद के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account of the Yajurveda.)
उत्तर-
यजुर से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इसलिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Atharvaveda.)
अथवा
अथर्ववेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? उल्लेख करें। (What do you know about Atharvaveda ? Explain.)
उत्तर-
अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। अथर्ववेद वास्तव में जादू-टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता लगता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहुत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था।

प्रश्न 5.
दर्शन के षट शास्त्र क्या हैं एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What is the importance of the Six Shastras of Philosophy ?)
अथवा
खट दर्शन के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Khat Darshan.)
उत्तर-
उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—

  1. कपिल का सांख्य शास्त्र,
  2. पतंजलि का योग शास्त्र,
  3. गौतम का न्याय शास्त्र
  4. कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
  5. जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
  6. व्यास का उत्तर मीमांसा।

इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवन-मृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रश्न 6.
महाकाव्य से क्या अभिप्राय है एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What do you mean by Epics and their importance ?)
उत्तर-
रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय श्री रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है। महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में 1.00.000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पाँडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 7.
वैदिक साहित्य की महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य का क्या महत्त्व है ? (What is importance of the Vedic Literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ बताओ। (Describe the prominent features of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में बताओ। (Describe the salient features of Vedic Literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है? ज्ञान क्या है? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है।

प्रश्न 8.
वैदिक साहित्य के किन्हीं दो विषयों के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the two subjects of Vedic Literature.)
उत्तर-

  1. सर्वेश्वरवाद-यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था।
  2. यज्ञ और बलियाँ-वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहत विधिपूर्वक किया जाता था। उत्तर वैदिक काल में यज्ञ जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी।

प्रश्न 9.
वैदिक साहित्य के अनुसार आत्मा एवं ब्रह्म से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Self and Absolute according to Vedic Literature ?)
उत्तर-

  1. आत्मा क्या है ?-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है।
  2. ब्रह्म क्या है?- ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है।

प्रश्न 10.
ऋत और धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में ऋत और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। ऋत से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करेके प्रकाश देती है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे।

प्रश्न 11.
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती

प्रश्न 12.
पुरुष सूक्त के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Purusha-Sukta ?)
उत्तर-
पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जांघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।

प्रश्न 13.
ऋग्वेद के प्रमुख लक्षणों का संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe in brief but meaningful the salient features of Rigveda.)
अथवा
ऋग्वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के महत्त्व के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the importance of Rigveda in the Rigvedic literature.)
उत्तर-
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। इसकी रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। यह वह समय था जब आर्य पंजाब में रहते थे। ऋग्वेद एक विशाल ग्रंथ है। इसमें 1028 सूक्त हैं। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र हैं। ऋग्वेद में कुल 10,552 मंत्र हैं। इन्हें दस मंडलों (अध्यायों) में विभाजित किया गया है। इनमें कुछ मंडल छोटे हैं तथा कुछ बड़े। ऋग्वेद में सर्वाधिक 250 मंत्र इंद्र देवता की तथा 200 मंत्र अग्नि देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं। शेष मंत्र वरुण, सूर्य, ऊषा, सरस्वती तथा अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। ये सभी देवी-देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक हैं। इनकी उपासना युद्ध में विजय के लिए, धन की प्राप्ति के लिए, सुखमय तथा लंबे जीवन के लिए तथा संतान प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद में विख्यात गायत्री मंत्र भी दिया गया है जिसे हिंदू आज भी प्रतिदिन पढ़ते हैं। ऋग्वेद की रचना का मुख्य उद्देश्य यद्यपि धार्मिक था किंतु ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्त्व है। यह वैदिक काल के लोगों के जीवन को जानने का हमारा एकमात्र तथा बहुमूल्य स्रोत है। भारतीय दर्शन को जानने के लिए ऋग्वेद का अध्ययन आवश्यक है।

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प्रश्न 14.
सामवेद के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the Samaveda ?)
उत्तर-
साम शब्द से भाव सुरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। ये मंत्र दो भागों में बाँटे गये हैं जिन को पूर्वरचिका तथा उत्तररचिका कहते हैं। पूर्वरचिका में 650 मंत्र हैं जबकि उत्तररचिका में 1225 मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। इन मंत्रों को सात स्वरों में गाया जाता था। इन मंत्रों को गाते समय तीन प्रकार के वाद्यों वेणु, दुंदुभि और वीणा का प्रयोग किया जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।

प्रश्न 15.
यजुर्वेद के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account of the Yajurveda.)
उत्तर-
यजुर से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इसलिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कुहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथसाथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 16.
अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Atharvaveda.)
अथवा
अथर्ववेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? उल्लेख करें। (What do you know about Atharvaveda ? Explain.)
उत्तर-
अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। इस वेद का नाम अर्थवन ऋषि के नाम से पड़ा। यह ऋषि जादुई शक्तियों का स्वामी था और भूतों-प्रेतों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध था। अथर्ववेद वास्तव में जादू-टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता लगता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहुत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था। वे अग्नि की सहायता में मनुष्यों को भूतों-प्रेतों से बचा कर उनकी सहायता करते थे। अथर्ववेद में कुल 731 सूक्त और लगभग 6000 मंत्र हैं। इन मंत्रों में से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। यह वेद 20 अध्यायों में बाँटा गया है। इस का 20वाँ अध्याय सब से बड़ा है जिसमें 928 मंत्रों का वर्णन है।

प्रश्न 17.
दर्शन के षट शास्त्र क्या हैं एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What is the importance of the Six Shastras of Philosophy ?)
अथवा
खट दर्शन के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Khat Darshan.)
उत्तर-
उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—

  1. कपिल का सांख्य शास्त्र,
  2. पतंजलि का योग शास्त्र,
  3. गौतम का न्याय शास्त्र
  4. कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
  5. जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
  6. व्यास का उत्तर मीमांसा।

इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवनमृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रश्न 18.
महाकाव्य से क्या अभिप्राय है एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What do you mean by Epics and their importance ?)”
उत्तर-
रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं । रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय श्री रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है । महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में.1,00,000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पाँडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। इनमें कुछ काल्पनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसके बावजूद ऐतिहासिक पक्ष से इन दोनों महाकाव्यों का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 19.
वैदिक साहित्य के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य की महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य का क्या महत्त्व है ?
(What is importance of the Vedic Literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
(Describe the prominent features of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में बताओ।
(Describe the salient features of Vedic Literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है ? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है ? ज्ञान क्या है ? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है। इस तरह वैदिक साहित्य हिंदू धर्म को जानने के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह साहित्य आर्यों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन को जानने के लिए भी हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है। संक्षेप में वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति को समझने के लिए एक दर्पण का कार्य करता है। आधुनिक काल में यह न केवल भारतीय बल्कि विदेशी लेखकों और विद्वानों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। निस्संदेह यह हमारे लिए एक बहुत ही गर्व की बात है।

प्रश्न 20.
वेदों की संख्या और इनके रचयिता के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the number of Vedas and their author.)
अथवा
वैदिक साहित्य के किसी पाँच प्रमुख विषयों के बारे में वर्णन करो।
(Give a brief account of the main five subjects of the Vedic Literature.)
अथवा
वेदों में क्या दर्शाया गया है ? स्पष्ट करें।
(What has been described in Vedas ? Explain.)
अथवा
वैदिक साहित्य के किसी एक विषय के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the one subject of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the subject matter of Vedic Literature.)
उत्तर-

  1. वेदों की संख्या-वेदों की संख्या चार है। इनके नाम हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
  2. विषय-वस्तु-वेदों के मुख्य विषय निम्नलिखित हैं—
    • सर्वेश्वरवाद-यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था।
    • यज्ञ और बलियाँ-वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहुत विधिपूर्वक किया जाता था। छोटे यज्ञ पारिवारिक स्तर के होते थे जबकि बड़े यज्ञ अमीर लोगों के द्वारा करवाये जाते थे। उत्तर वैदिक काल में यह यज्ञ जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी।
    • संसार की उत्पत्ति कैसे हुई-संसार की उत्पत्ति कैसे हुई? इस से संबंधित हमें ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से जानकारी प्राप्त होती है। इसमें यह बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति से पहले अकेला ईश्वर ही था। उसके बिना चारों तरफ अंधकार था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने संसार की रचना कर दी।
    • आत्मा क्या है-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है।
    • ब्रह्म क्या है?-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह अमर है।

प्रश्न 21.
वैदिक साहित्य के अनुसार आत्मा एवं ब्रह्म से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Self and Absolute according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
1. आत्मा क्या है ?-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है। यह एक शरीर से दूसरे शरीर में तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक यह कर्मों के बंधन से मुक्त न हो जाये। ऐसा होने पर यह ब्रह्म में लीन हो जाती है। इस तरह आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं रह जाता।

2. ब्रह्म क्या है ?-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है । वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह सत्य मन और आनंद रूप है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। शब्दों में उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है। इसी कारण ब्रह्म और आत्मा में कोई मूल भेद नहीं रह जाता।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी

प्रश्न 22.
रित और धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। रित से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करके प्रकाश देती है। इस तरह रित एक सच्चाई है। इस का उल्ट अनऋत (झूठ) है। उपनिषदों के समय धर्म शब्द ने रित का स्थान ले लिया। धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

प्रश्न 23.
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। वह एंद्रीय सुख भोग कर और धन प्राप्त करके यह समझता है कि उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया है। वह यह भूल जाता है कि सभी सुख क्षण-भंगुर हैं। इन कारणों के लिए वह कभी भवसागर से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती है।

प्रश्न 24.
पुरुष सूक्त के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Purusha-Sukta ?)
उत्तर-
पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जांघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। इस से कई इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि ऋग्वैदिक काल में जाति प्रथा प्रचलित हो गई थी। परंतु इस के संबंध में ऋग्वेद में कहीं और कोई वर्णन नहीं मिलता। यह कहा जाता है कि पुरुष सूक्त की रचना भी ऋग्वेद से कई सौ वर्ष बाद की गई थी। इसकी भाषा ऋग्वेद से भिन्न है। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. वैदिक साहित्य से क्या भाव है ?
उत्तर- वैदिक साहित्य से भाव उस साहित्य से है जिसकी रचना आर्यों द्वारा की गई थी।

प्रश्न 2. वैदिक साहित्य की रचना किस भाषा में की गई है?
उत्तर-संस्कृत भाषा में।

प्रश्न 3. वैदिक साहित्य को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर-दो भागों में।

प्रश्न 4. वेदों का रचना काल बताएँ।
उत्तर-1500-600 ई० पू०

प्रश्न 5. वेदों की रचना किसने की ?
अथवा
वेदों का रचियता किसे माना जाता है ?
अथवा
हिंदू धर्म के अनुसार वेदों का रचयिता कौन है ?
उत्तर-वेदों की रचना ईश्वर के कहने पर ऋषियों ने की।

प्रश्न 6. श्रुति से क्या भाव है ?
उत्तर-श्रुति से भाव उस वैदिक साहित्य से है, जिसकी रचना ईश्वर के बताने पर ऋषियों द्वारा की गई।

प्रश्न 7. स्मृति से क्या भाव है ?
उत्तर-स्मृति से भाव उस वैदिक साहित्य से है, जिसकी रचना ईश्वर के बताने ऋषियों ने अपने ज्ञान द्वारा की।

प्रश्न 8. वेद से क्या भाव है ?
उत्तर-वेद से भाव है ज्ञान का भंडार।

प्रश्न 9. वेद शब्द किस भाषा से तथा कैसे बना ?
उत्तर-वेद शब्द संस्कृत भाषा के शब्द विद् से बना है, जिसका भाव है जानना।

प्रश्न 10. कुल कितने वेद हैं ?
उत्तर-कुल चार वेद हैं।

प्रश्न 11. चार वेदों की बाँट किसने की थी ?
उत्तर-चार वेदों की बाँट ऋषि वेद व्यास ने की थी।

प्रश्न 12. चार वेदों के नाम बताएँ।
अथवा
किन्हीं दो वेदों के नाम बताएँ।
उत्तर-चार वेदों के नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद है।

प्रश्न 13. वेदों के नाम व संख्या बताएँ।
उत्तर-वेदों के नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद थे और इनकी संख्या चार है।

प्रश्न 14. भारत का सबसे प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण वेद कौन-सा है ?
अथवा
सबसे पुराना वेद कौन-सा माना जाता है ?
उत्तर-ऋग्वेद।

प्रश्न 15. ऋग्वेद का रचना काल क्या है ?
उत्तर-1500-1000 ई० पूर्व।

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प्रश्न 16. ऋग्वेद में कुल कितने सूक्त दिए गए हैं ?
उत्तर-1028 सूकत।

प्रश्न 17. ऋग्वेद को कुल कितने मंडलों में बाँटा गया है ?
उत्तर-10 मंडलों में।

प्रश्न 18. ऋग्वेद में कुल कितने भजन हैं ?
अथवा
ऋग्वेद में कुल मंत्रों की संख्या बताएँ।
उत्तर-ऋग्वेद में कुल मंत्रों की संख्या 10,552 हैं।

प्रश्न 19. ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र किस देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं ?
उत्तर-इंद्र देवता की।

प्रश्न 20. ऋग्वेद में इंद्र देवता की प्रशंसा में कुल कितने मंत्र दिये गए हैं ?
उत्तर–250 मंत्र।

प्रश्न 21. ऋग्वेद में जिन ऋषियों के मंत्र दिए गए हैं, उनमें से किन्हीं चार के नाम लिखें।
अथवा
ऋग्वेद में मंत्र लिखने वाले किन्हीं चार ऋषियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. वामदेव
  2. विश्वामित्र
  3. भारद्वाज
  4. अत्री।

प्रश्न 22. ऋग्वेद में जिन स्त्रियों ने मंत्र लिखें हैं उनमें से किन्हीं दो के नाम बताएँ।
अथवा
ऋग्वेद में मंत्र लिखने वाली किन्हीं दो स्त्रियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. अपाला
  2. घोषा।

प्रश्न 23. हिंदुओं के प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का वर्णन किस वेद में किया गया है ?
उत्तर-ऋग्वेद में।

प्रश्न 24. किस वेद को भारतीय संगीत कला का स्रोत कहा जाता है ?
उत्तर-सामवेद को।

प्रश्न 25. सामवेद में कुल कितने मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-875 मंत्र।

प्रश्न 26. वेदों में दिए गए मंत्रों को गाने वाले पुरोहितों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-उद्गात्री।

प्रश्न 27. किस वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-यजुर्वेद में।

प्रश्न 28. यज्ञों के समय बलि देने वाले पुरोहितों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-होतरी।

प्रश्न 29. यजुर्वेद को कौन-से दो भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-

  1. शुक्ल यजुर्वेद
  2. कृष्ण यजुर्वेद ।

प्रश्न 30. किस वेद की रचना सबसे बाद में हुई ?
उत्तर- अथर्ववेद।

प्रश्न 31. अथर्ववेद में कुल कितने सूक्त दिए गए हैं ?
उत्तर-731 सूक्त।

प्रश्न 32. किस वेद में जादू टोनों के मंत्रों का संग्रह है ?
उत्तर-अथर्ववेद।

प्रश्न 33. किन्हीं दो वेदों के नाम बताओ जो त्रिविधिया में शामिल थे ?
उत्तर-

  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद।

प्रश्न 34. ब्राह्मण ग्रंथों की रचना क्यों की, गई थी ?
उत्तर-वेदों की सरल व्याख्या के लिए।

प्रश्न 35. किन्हीं दो ब्राह्मण ग्रंथों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. ऐतरीय ब्राह्मण
  2. तैत्तरीय ब्राह्मण।

प्रश्न 36. जंगलों में रहने वाले साधुओं के निर्देशों के लिए कौन-से ग्रंथों की रचना की गई थी ?
उत्तर- अरणायक ग्रंथों की।

प्रश्न 37. वेदांग से क्या भाव है ?
उत्तर-वेदों का अंग।

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प्रश्न 38. किन्हीं दो वेदांगों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. शिक्षा
  2. कल्प।

प्रश्न 39. आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किस वेदांग में दिया गया है ?
उत्तर-कल्प वेदांग में।

प्रश्न 40. किन्हीं दो तरह के सूत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. स्रोत सूत्र
  2. ग्रह सूत्र।

प्रश्न 41. उपवेद कितने हैं ?
उत्तर-चार।

प्रश्न 42. किन्हीं दो उपवेदों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. आयुर्वेद
  2. धनुर्वेद।

प्रश्न 43. किस वेद में औषधियों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-आयुर्वेद।

प्रश्न 44. उस वेद का नाम बताओ जिस में युद्ध-कला का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-धनुर्वेद।

प्रश्न 45. गंधर्ववेद में किन विषयों पर प्रकाश डाला गया है ?
उत्तर-संगीत कला के।

प्रश्न 46. योग शास्त्र की रचना किसने की थी ?
उत्तर-पतंजलि।

प्रश्न 47. किन्हीं दो शास्त्रों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. योग शास्त्र
  2. न्याय शास्त्र।

प्रश्न 48. भारत के दो प्रसिद्ध महाकाव्य कौन-से है ?
उत्तर-

  1. रामायण
  2. महाभारत।

प्रश्न 49. भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य कौन-सा है ?
उत्तर-महाभारत।

प्रश्न 50. महाभारत की रचना किसने की थी ?
उत्तर-महर्षि वेद व्यास जी ने।

प्रश्न 51. महाभारत में कितने श्लोक दिए हैं ?
उत्तर-महाभारत में एक लाख से ज्यादा श्लोक दिए गए हैं।

प्रश्न 52. रामायण की रचना किसने की थी ?
उत्तर-महर्षि वाल्मीकि जी ने।

प्रश्न 53. रामायण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-24,000 श्लोक।

प्रश्न 54. वैदिक साहित्य के कोई दो मुख्य विषय बताओ।
उत्तर-

  1. आत्मा क्या है
  2. ऋत और धर्मन।

प्रश्न 55. ऋग्वेद के अनुसार आर्यों के देवताओं की कुल गिनती कितनी है ?
उत्तर-33.

प्रश्न 56. ऋग्वेद के किस सूक्त से संसार की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर-ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से संसार की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 57. वैदिक साहित के अनुसार मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-मोक्ष प्राप्त करना।

प्रश्न 58. ऋग्वेद के किस सूक्त में चार जातियों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-पुरुष सूक्त में।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1. वेदों की कुल संख्या ………. है।
उत्तर-चार

प्रश्न 2. ……….. आर्यों का सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है।
उत्तर-ऋग्वेद

प्रश्न 3. ऋग्वेद में ………… सूक्त हैं।
उत्तर-1028

प्रश्न 4. सामवेद को ………… ग्रंथ भी कहा जाता है।
उत्तर-गायन

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प्रश्न 5. …………. में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-यजुर्वेद

प्रश्न 6. …….. में अनेक बीमारियों से बचने के लिए औषधियों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-अथर्ववेद

प्रश्न 7. उपनिषदों की कुल संख्या ……….. है।
उत्तर-108

प्रश्न 8. वेदांग से भाव है ……….. के अंग।
उत्तर-वेदों

प्रश्न 9. वेदांगों की कुल संख्या ………… है।
उत्तर-6

प्रश्न 10. ……….. में युद्ध कला का वर्णन किया गया है।
उत्तर-धनुर्वेद

प्रश्न 11. …………. में संगीत संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
उत्तर-गधर्व वेद

प्रश्न 12. योग शास्त्र का लेखक ……… था।
उत्तर-पतंजलि

प्रश्न 13. न्याय शास्त्र के लेखक का नाम ……….. था।
उत्तर-गौतम

प्रश्न 14. रामायण की रचना ……….. ने की थी।
उत्तर-महर्षि वाल्मीकि जी

प्रश्न 15. महाभारत की रचना ………… ने की थी।
उत्तर- महर्षि वेद व्यास जी

प्रश्न 16. यज्ञों के समय आहूति देने वाले पुजारियों को …….. कहा जाता है।
उत्तर-होत्री

प्रश्न 17. वैदिक साहित्य ………. भाषा में लिखा गया है।
उत्तर-संस्कृत

प्रश्न 18. पुरुष-सूक्त का वर्णन ……… में किया गया है।
उत्तर–ऋग्वेद

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1. ऋग्वैदिक साहित्य को स्मृति भी कहा जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 2. वेदों की कुल संख्या आठ है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 3. ऋग्वेद आर्यों का सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 4. वेदों को पालि भाषा में लिखा गया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 5. महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों का विभाजन किया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 6. ऋग्वेद को 10 मंडलों में बांटा गया है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 7. ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र अग्नि देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 8. उदगात्री वह पुरोहित थे जो सुर-ताल में मंत्रों का उच्चारण करते थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 9. यर्जुवेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 10. अर्थववेद को ब्रह्मदेव के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 11. ब्राह्मण ग्रंथ उपनिषदों का अंग है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 12. उपनिषदों की कुल गिनती 108 है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 13. वेदांगों में कलप वेदांग को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 14. धर्म सूत्र में मौर्य काल में प्रचलित कानूनों और रिवाज़ों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 15. उपवेदों की कुल गिनती चार है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 16. आर्युवेद में युद्ध कला का वर्णन किया गया है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 17. कपिल ने सांख्य शास्त्र की रचना की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 18. रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकी जी ने की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 19. महाभारत में दिए गए श्लोकों की संख्या 24,000 है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 20. वैदिक साहित्य के अनुसार मानवीय जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है।
उत्तर-ठीक

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—

प्रश्न 1.
वैदिक साहित्य को किस भाषा में लिखा गया है ?
(i) पालि में
(ii) प्राकृति में
(iii) हिंदी में
(iv) संस्कृत में।
उत्तर-
(iv) संस्कृत में।

प्रश्न 2.
वेदों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 4
(ii) 5
(iii) 6
(iv) 18
उत्तर-
(i) 4

प्रश्न 3.
वेदों का विभाजन किस ऋषि ने किया था ?
(i) वेद व्यास
(ii) विशिष्ठ
(iii) विश्वामित्र
(iv) गौतम।
उत्तर-
(i) वेद व्यास

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण है ?
(i) ऋग्वेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(i) ऋग्वेद

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद नहीं है ?
(i) गंधर्ववेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(i) गंधर्ववेद

प्रश्न 6.
ऋग्वेद में कितने सूक्त दिए गए हैं ?
(i) 1028
(ii) 1873
(iii) 731
(iv) 10,552
उत्तर-
(i) 1028

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद त्रिविधा में शामिल नहीं है ?
(i) अथर्ववेद
(ii) यर्जुवेद
(iii) ऋग्वेद
(iv) सामवेद।
उत्तर-
(i) अथर्ववेद

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किस वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं ?
(i) ऋग्वेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(iii) यर्जुवेद

प्रश्न 9.
आरण्यक ग्रंथ किन ग्रंथों का भाग है ?
(i) उपनिषद
(ii) ब्राह्मण
(iii) धर्मशास्त्र
(iv) महाभारत।
उत्तर-
(ii) ब्राह्मण

प्रश्न 10.
उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 18
(ii) 108
(iii) 48
(iv) 128
उत्तर-
(ii) 108

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से किस उपवेद में दवाइयों का वर्णन किया गया है
(i) आयुर्वेद
(ii) धर्नुवेद
(iii) गंधर्ववेद
(iv) शिल्पवेद।
उत्तर-
(i) आयुर्वेद

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसने योग शास्त्र की रचना की थी ?
(i) कपिल
(ii) पंतजलि
(iii) गौतम
(iv) व्यास।
उत्तर-
(ii) पंतजलि

प्रश्न 13.
रामायण की रचना, किसने की थी ?
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने
(iii) महर्षि विश्वामित्र जी ने
(iv) महर्षि गौतम जी ने।
उत्तर-
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने

प्रश्न 14.
रामायण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
(i) 14,000
(ii) 20,000
(iii) 24,000
(iv) 26,000।
उत्तर-
(iii) 24,000

प्रश्न 15.
महाभारत की रचना किसने की थी ?
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने
(iii) महर्षि गौतम जी ने
(iv) महर्षि विशिष्ठ जी ने।
उत्तर-
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई० Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the life of the founder of the Sikh faith Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
सिख धर्म कैसे आरंभ हुआ ?
(How Sikhism came into being ?)
अथवा
सिख धर्म के प्रारंभ के विषय में जानकारी दीजिए।
(Explain the origin of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास के बारे में भावपूर्वक संक्षिप्त जानकारी दें। (Describe in brief but meaning the origin of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म का आरंभ कैसे और किसने किया ? चर्चा कीजिए। (How did Sikhism was originated and by whom ? Discuss.) .
अथवा
सिख धर्म का आरंभ क्यों और कैसे हुआ ? चर्चा कीजिए।
(Why and how the Sikhism was originated ? Elucidate.)
अथवा
सिख धर्म के संस्थापक के जीवन पर प्रकाश डालें। (Throw light on the life of the founder of the Sikh faith.)
अथवा
सिख धर्म के संस्थापक के जीवन पर एक नोट लिखें। (Write a note on the life of the founder of the Sikh faith.)
अथवा
गुरु नानक देव जी के जीवन के बारे में चर्चा करें।
(Discuss the life of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
“सिख धर्म को गुरु नानक देव जी ने आरंभ किया। प्रकाश डालिए।” (“Sikhism was orginated by Guru Nanak Dev Ji.” Elucidate.)
उत्तर-
सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी की गणना विश्व के महापुरुषों में की जाती है। गुरु नानक साहिब ने अज्ञानता के अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने लोगों को सत्यनाम और भ्रातृत्व का संदेश दिया। गुरु नानक साहिब जी के महान् जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अगदार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 16 ई० को पूर्णिमा के दिन राय भोय की तलवंडी में हुआ। यह स्थान अब पाकिस्तान के शेखूपुरा जिला में इस पवित्र स्थान को आजकल ननकाणा साहिब कहा जाता है। गुरु नानक साहिब के पिता जी का नाम महा कालू जी और माता जी का नाम तृप्ता देवी जी था। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु साहिब के जन्म के समय अनेक चमत्कार हुए। भाई गुरदास जी लिखते हैं—
सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होया॥ जिओ कर सरज निकलिया तारे छपे अंधेर पलोया॥

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

2. बचपन और शिक्षा (Childhood and Education)-गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे। उनका झुकाव खेलों की ओर कम और प्रभु-भक्ति की ओर अधिक था। गुरु साहिब जब सात वर्ष के हुए तो उन्हें पंडित गोपाल की पाठशाला में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा गया। इसके पश्चात् गुरु साहिब ने पंडित बृजनाथ से संस्कृत तथा मुल्ला कुतुबुद्दीन से फ़ारसी और अरबी का ज्ञान प्राप्त किया। जब गुरु नानक देव जी 9 वर्ष के हुए तो पुरोहित हरिदयाल को उन्हें जनेऊ पहनाने के लिए बुलाया गया। परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि वे केवल दया, संतोष, जत और सत से निर्मित जनेऊ पहनेंगे जो न टूटे, न जले और न ही मलिन हो पाये।

3. भिन्न-भिन्न व्यवसायों में (In Various Occupations)-गुरु नानक देव जी को अपने विचारों में मगन देखकर उनके पिता जी ने उन्हें किसी कार्य में लगाने का यत्न किया। सर्वप्रथम गुरु नानक देव जी को भैंसें चराने का कार्य सौंपा गया परंतु गुरु नानक देव जी ने कोई रुचि न दिखाई। फलस्वरूप अब गुरु साहिब को व्यापार में लगाने का निर्णय किया गया। गुरु जी को 20 रुपये दिए गए और मंडी भेजा गया। मार्ग में गुरु साहिब को भूखे साधुओं की टोली मिली। गुरु नानक देव जी ने अपने सारे रुपये इन साधुओं को भोजन खिलाने में व्यय कर दिए और खाली हाथ लौट आए। यह घटना इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से जानी जाती है।

4. विवाह (Marriage)-गुरु नानक देव जी की सांसारिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करने के लिए मेहता कालू जी ने आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी देवी जी से कर दिया। उस समय आपकी आयु 14 वर्ष थी। समय के साथ आपके घर दो पुत्रों श्री चंद और लखमी दास ने जन्म लिया।

5. सुल्तानपुर में नौकरी (Service at Sultanpur)-जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तो मेहता कालू जी ने आपको सुल्तानपुर में अपने जंवाई जयराम के पास भेज दिया। उनकी सिफ़ारिश पर नानक जी को मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी मिल गई। गुरु साहिब ने यह कार्य बड़ी योग्यता से किया।

6. ज्ञान प्राप्ति (Enlightenment)-गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर में रहते हुए प्रतिदिन सुबह बेईं नदी में स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन वे स्नान करने गए और तीन दिनों तक लुप्त रहे। इस समय उन्हें सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । उस समय गुरु नानक साहिब की आयु 30 वर्ष थी। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु साहिब ने सर्वप्रथम “न को हिंदू, न को मुसलमान” शब्द कहे।

7. उदासियाँ (Travels)-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता एवं अंधविश्वास को दूर करना था तथा परस्पर भ्रातृभाव व एक ईश्वर का प्रचार करना था। भारत में गुरु नानक साहिब जी ने दर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक तथा पश्चिम में पाकपटन से लेकर पूर्व में आसाम तक की यात्रा की। गुरु साहिब भारत से बाहर मक्का, मदीना, बगदाद तथा लंका भी गए। गुरु साहिब की यात्राओं के बारे में हमें उनकी बाणी से महत्त्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। गुरु नानक साहिब जी ने अपने जीवन के लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में बिताए। इन यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी लोगों में फैले अंध-विश्वास को काफी सीमा तक दूर करने में सफल हुए तथा उन्होंने नाम के चक को चारों दिशाओं में फैलाया।

8. करतारपुर में निवास (Settled at Kartarpur)-गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर 1521 ई० में करतारपुर नामक नगर की स्थापना की। यहाँ गुरु साहिब जी ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ। गुरु नानक साहिब की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दी वार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)–गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु नानक साहिब ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार भाई लहणा जी गुरु अंगद देव जी बने। इस प्रकार गुरु नानक साहिब ने एक ऐसा पौधा लगाया जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय एक घने वृक्ष का रूप धारण कर गया। डॉक्टर हरी राम गुप्ता के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति एक बहुत ही दूरदर्शिता वाला कार्य था।”1

10. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)—गुरु नानक देव जी 22 सितंबर, 1539 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

1. The apperiance of Angod was a step of far-reaching significance.” Dr. H.R. Gupta, History of Sikh Guru New Delhi : 1973 p.81.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (1)
GURU NANAK DEV JI

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें इनका क्या उद्देश्य था ? (Write a note on the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was the aim of these Udasis ?)
अथवा
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (What is meant by Udasis ? Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
संक्षेप में गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। उनका क्या उद्देश्य था ? (Briefly discuss the travels (Udasis) of Guru Nanak Dev Ji. What was their aim ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। इन उदासियों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? (Describe briefly the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was their impact on society ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की चार उदासियों के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the four Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
1439 ई० में ज्ञान – प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव ही देश और विदेशों की लंबी यात्रा के लिए निकल पूरे गुर मानष्य 21 वर्ष इन यात्राओं में व्यतीत किए। गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है क्योंकि गुरु साहिब जी इस समय के दौरान घर-द्वार त्याग कर एक उदासी की भाँति भ्रमण करते रहे। गुरु नानक साहिब जी ने कुल कितनी उदासियाँ कीं, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। आधुनिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरु नानक देव जी की उदासियों की संख्या तीन थी।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (2)
GURDWARA NANKANA SAHIB: PAKISTAN

उदासियों का उद्देश्य (Objects of the Udasis)
गुरु नानक देव जी की उदासियों का प्रमुख उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता और अंध-विश्वासों को दूर करना था। उस समय हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्म के मार्ग से भटक चुके थे। हिंदू ब्राह्मण और योगी जिनका प्रमुख कार्य भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाना था, वे स्वयं ही भ्रष्ट और आचरणहीन हो चुके थे। लोगों ने असंख्य देवी-देवताओं, कब्रों, वृक्षों, सर्पो और पत्थरों इत्यादि की आराधना आरंभ कर दी थी। मुसलमानों के धार्मिक नेता भी चरित्रहीन हो चुके थे। उस समय अधिकाँश मुसलमान भोग-विलास का जीवन व्यतीत करते थे। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी। गुरु नानक साहिब जी ने अज्ञानता में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग बताने के लिए यात्राएँ कीं।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० एस० एस० कोहली के अनुसार,
“इस महापुरुष ने अपने मिशन को इस देश तक सीमित नहीं रखा। उसने सारी मानवता की जागति के लिए दूर-दूर के देशों की यात्राएँ कीं।”2

प्रथम उदासी (First Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में अपनी पहली यात्रा आरंभ की। इन यात्राओं के समय भाई मरदाना जी उनके साथ रहे। इस यात्रा को गुरु नानक देव जी ने 12 वर्ष में संपूर्ण किया और वह पूर्व से दक्षिण की ओर गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. सैदपुर (Saidpur)-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर पहुँचे। यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक साहिब से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. तालुंबा (Talumba)-तालुंबा में गुरु नानक देव जी की भेंट सज्जन ठग से हुई। उसने यात्रियों के लिए अपनी हवेली में एक मंदिर और मस्जिद बनाई हुई थी। वह दिन के समय तो यात्रियों की खूब सेवा करता किंतु रात के समय उन्हें लूटकर कुएँ में फैंक देता था। वह गुरु नानक देव जी और मरदाना के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की योजनाएँ बना रहा था। रात्रि के समय जब गुरु नानक साहिब ने वाणी पढ़ी तो सज्जन ठग गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव जी ने उसे क्षमा कर दिया। इस घटना के पश्चात् सज्जन ने अपना शेष जीवन सिख धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया। के० एस० दुग्गल के अनुसार,
“सज्जन की सराय जो कि एक वधस्थल था, एक धर्मशाला में परिवर्तित हो गया।”3

3. कुरुक्षेत्र (Kurukshetra)—गुरु नानक देव जी सूर्य ग्रहण के अवसर.पर कुरुक्षेत्र पहुँचे। इस अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण और साधु एकत्रित हुए थे। कहा जाता है कि एक श्रद्धालु ने उन्हें हिरण का माँस भेट किया। गुरु जी ने उस श्रद्धालु को वहाँ ही वह माँस पकाने की आज्ञा दे दी। ब्राह्मण यह सहन करने को तैयार नहीं थे। उन्होंने गुरु जी को भला-बुरा कहना आरंभ कर दिया। गुरु साहिब शाँत बने रहे। उन्होंने ब्राह्मणों को समझाया कि हमें व्यर्थ की बातों पर झगड़ने की अपेक्षा अपनी आत्मा को पवित्र रखने की ओर ध्यान देना चाहिए। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए। अधिकाँश इतिहासकार इस घटना से सहमत नहीं हैं।

4. दिल्ली (Delhi)-दिल्ली में गुरु नानक देव जी मजनूं का टिल्ला में रुके। कहा जाता है कि गुरु नानक साहिब ने दिल्ली में इब्राहीम लोधी के एक मुर्दा हाथी को जीवित कर दिया था। सिख परंपरा के अनुसार इस घटना को ठीक नहीं माना जाता।

5. हरिद्वार (Haridwar)—गुरु नानक देव जी जब हरिद्वार पहुँचे तो वहाँ बड़ी संख्या में हिंदू स्नान करते हुए पूर्व की ओर मुँह करके सूर्य और पितरों को पानी दे रहे थे। ऐसा देखकर गुरु साहिब ने पश्चिम की ओर मुँह करके पानी देना आरंभ कर दिया। यह देखकर लोग गुरु जी से पूछने लगे कि वे क्या कर रहे हैं। गुरु जी ने कहा कि वे करतारपुर में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। यह उत्तर सुनकर लोग हंस पड़े और कहने लगे कि यह पानी यहाँ से 300 मील दूर उनके खेतों में कैसे पहुँच सकता है ? गुरु जी ने उत्तर दिया कि यदि तुम्हारा पानी लाखों मील दूर स्थित सूर्य तक पहुँच सकता है तो मेरा पानी इतने निकट स्थित खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता ? गुरु जी के इस उत्तर से लोग बहुत प्रभावित हुए तथा उनके अनुयायी बन गए।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

6. गोरखमता (Gorakhmata)-हरिद्वार के पश्चात् गुरु नानक देव जी गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक साहिब ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, गैंख बजाने से अथवा सिर मुँडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु साहिब के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

7. बनारस (Banaras)-बनारस भी हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ गुरु नानक देव जी का पंडित चतर दास से मूर्ति-पूजा के संबंध में एक दीर्घ वार्तालाप हुआ। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर चतर दास गुरु जी का सिख बन गया।

8. कामरूप (Kamrup)-धुबरी से गुरु नानक देव जी कामरूप (असम) पहुँचे। यहाँ की प्रसिद्ध जादूगरनी नूरशाही ने अपनी सुंदरता के बल पर गुरु जी को भटकाने का असफल प्रयास किया। गुरु जी ने उसे जीवन का सही मनोरथ बताया।

9. जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri)-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे! पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

10. लंका (Ceylon)-गुरु नानक जी दक्षिण भारत के प्रदेशों से होते हुए लंका पहुँचे। गुरु साहिब के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होकर लंका का राजा शिवनाथ गुरु जी का अनुयायी बन गया।

11. पाकपटन (Pakpattan)—लंका से पंजाब वापसी के समय गुरु नानक देव जी पाकपटन में ठहरे। यहाँ वे शेख फरीद जी की गद्दी पर बैठे शेख़ ब्रह्म को मिले। यह मुलाकात दोनों के लिए एक प्रसन्नता का स्रोत सिद्ध हुई।

2. “The Great Master did not confine his mission to this country; he travelled far and wide to far off lands and countries in order to enlighten humanity as a whole.” S.S. Kohli, Travels of Guru Nanak (Chandigarh : 1978) p. IX.
3. “Sajjan’s den of an assassin was transformed into a dharmsala.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1980) p. 16.

द्वितीय उदासी
(Second Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी द्वितीय उदासी उत्तर की ओर आरंभ की। इस उदासी में उन्हें चार वर्ष लगे। इस उदासी के दौरान गुरु नानक साहिब निम्नलिखित प्रमुख स्थानों पर गए—

  1. पहाड़ी रियासतें (Hilly States)—गुरु नानक देव जी ने मंडी, रवालसर, ज्वालामुखी, काँगड़ा, बैजनाथ और कुल्लू इत्यादि पहाड़ी रियासतों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर इन पहाड़ी रियासतों के बहुत-से लोग उनके अनुयायी बन गए।
  2. कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) गुरु नानक देव जी तिब्बत से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। गुरु साहिब के यहाँ पहुँचने पर सिद्ध बहुत हैरान हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें बताया कि संसार में से सत्य लुप्त हो गया है और चारों ओर भ्रष्टाचार और झूठ का बोलबाला है। इसलिए गुरु साहिब ने उन्हें मानवता का पथ-प्रदर्शन करने का संदेश दिया।
  3. लद्दाख (Ladakh)-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु नानक देव जी लद्दाख पहुँचे। यहाँ के बहुत-से लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए।
  4. कश्मीर (Kashmir)-कश्मीर में स्थित मटन में गुरु नानक देव जी का पंडित ब्रह्मदास से काफ़ी लंबा धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ। गुरु नानक साहिब ने उसे समझाया कि मुक्ति केवल वेदों और रामायण इत्यादि को पढ़ने से नहीं अपितु उनमें दी गई बातों पर अमल करके प्राप्त की जा सकती है।
  5. हसन अब्दाल (Hasan Abdal)-गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक साहिब को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।
  6. स्यालकोट (Sialkot) स्यालकोट में गुरु नानक देव जी की मुलाकात एक मुसलमान संत हमजा गौस से हुई। उसने किसी बात पर नाराज़ होकर अपनी शक्ति द्वारा सारे शहर को नष्ट करने का निर्णय कर लिया था। परंतु जब वह गुरु साहिब से मिला तो वह उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना निर्णय बदल दिया। इस घटना का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

तृतीय उदासी
(Third Udasi) गुरु नानक देव जी ने 1517 ई० में अपनी तृतीय उदासी आरंभ की। इस उदासी के दौरान गुरु साहिब पश्चिमी एशिया के देशों की ओर गए। इस उदासी के दौरान गुरु नानक साहिब ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

  1. मुलतान (Multan)-मुलतान में बहुत-से सूफ़ी संत निवास करते थे। मुलतान में गुरु साहिब की भेंट प्रसिद्ध सूफी संत शेख बहाउद्दीन से हुई। शेख बहाउद्दीन उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।
  2. मक्का (Mecca)मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है । सिख परम्परा के अनुसार गुरु नानक . देव जी जब मक्का पहुँचे तो काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित
    हो गया। कहा जाता है कि जब काजी ने गुरु साहिब के पाँव पकड़कर दूसरी ओर घुमाने आरंभ किए तो मेहराब भी उसी ओर घूमने लग पड़ा। यह देखकर मुसलमान बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।
  3. मदीना (Madina)-मक्का के पश्चात् गुरु नानक देव जी मदीना पहुँचे। गुरु साहिब ने अपने उपदेशों का प्रचार किया। यहाँ गुरु साहिब का इमाम आज़िम के साथ शास्त्रार्थ भी हुआ।
  4. बगदाद (Baghdad)-बगदाद में गुरु नानक देव जी की भेंट शेख बहलोल से हुई। वह गुरु साहिब की वाणी से प्रभावित होकर उनका श्रद्धालु बन गया।
  5. कंधार और काबुल (Qandhar and Kabul)-बगदाद की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी पहले कंधार और फिर काबुल पहुँचे। गुरु नानक देव जी ने यहाँ अपने उपदेशों का प्रचार किया। काबुल के बहुत-से लोग गुरु साहिब के श्रद्धालु बन गए। वे आज भी गुरु नानक साहिब का बहुत सम्मान करते हैं।
  6. पेशावर (Peshawar)-पेशावर में गुरु नानक साहिब का योगियों से काफी दोघं वार्तालाप हआ। गुरु साहिब ने उन्हें धर्म का वास्तविक मार्ग बताया।

सैदपुर (Saidpur)-गुरु नानक देव जी जब 1520-21 ई० में सैदपुर पहुँचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय मुग़ल सेनाओं ने बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। सैदपुर में भारी लूटपाट की गई और घरों में आग लगा दी गई। स्त्रियों को अपमानित किया गया। हज़ारों की संख्या में पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक साहिब जी भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत हैं तो वह गुरु जी के दर्शनों के लिए स्वयं आया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने न केवल गुरु नानक साहिब को बल्कि बहुत से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया। बाबर के अत्याचारों के संबंध में गुरु नानक साहिब बाबर वाणी में लिखते हैं,

“जैसी मैं आवे खसम की वाणी तैसड़ा करी ज्ञान वे लालो।
पाप की जंज लै काबलह धाया जोरि मंमे दान वे लालो।
शर्म धर्म दोए छप खलोए कूड़ फिरे प्रधान वे लालो।
काजियां ब्राह्मणां की गल थक्की अगद पढ़े शैतान वे लालो”

इसके पश्चात् गुरु नानक देव जी तलवंडी आ गए। इस प्रकार गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं की श्रृंखला 1521 ई० में समाप्त हुई।

उदासियों का प्रभाव (Impact of the Udasis)-
गुरु नानक देव जी की यात्राओं के बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। वे लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूर करने और उनमें एक नई जागृति लाने में काफी सीमा तक सफल हुए। उन्होंने अपनी मधुर वाणी द्वारा बड़े-बड़े विद्वानों, योगियों, सिद्धों, ब्राह्मणों, चोरों, ठगों और अपराधियों का दिल जीत लिया। गुरु साहिब से मिलने के पश्चात् इन व्यक्तियों की जीवन-धारा ही परिवर्तित हो गई। गुरु साहिब के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों की संख्या में लोग उनके श्रद्धालु बन गए। अंत में हम डॉक्टर एस० एस० कोहली के इन शब्दों से सहमत हैं,
“वे (गुरु नानक साहिब) एक पवित्र उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते थे और इसमें उन्हें चमत्कारी सफलता प्राप्त हुई”4

4. “He had a.holy mission to perform and his performance was no less than a miracle.” Dr.S.S. Kohli, Travels of Guru Nanak (Chandigarh : 1978) p. XV.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दें। (Describe in brief the basic teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं के बारे में चर्चा करें।
(Discuss the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ लिखें।
(Write down the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म की प्रमुख सदाचारक शिक्षाओं पर नोट लिखें।
(Write a note on the major ethical teachings of Sikhism.)
अथवा
गुरु नानक देव जी ने मानव समाज के विकास के लिए क्या उपदेश दिए ? चर्चा करें।
(Discuss the teachings of Guru Nanak Dev Ji for the development of Human society.)
अथवा
रु नानक देव जी की प्रमुख शिक्षाओं के बारे में संक्षिप्त, परंतु भावपूर्ण जानकारी दीजिए।
(Describe in brief, but meaningful the basic teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मूल नैतिक शिक्षाओं पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the basic ethical teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म की मुख्य शिक्षाओं पर नोट लिखें।
(Write a short note on the main teachings of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म की शिक्षाओं के बारे में बताएँ।
(Explain the teachings of Sikhism.)
अथवा
गुरु ग्रंथ साहिब की प्रमुख शिक्षाओं के बारे में चर्चा करें। (Discuss the main teachings of the Guru Granth Sahib.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। गुरु जी की शिक्षाओं ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्राँत के लिए नहीं थीं। इनका. संबंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. ईश्वर एक है (The Unity of God)-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। सिख परंपरा के अनुसार मूलमंत्र के आरंभ में जो अक्षर ‘१’ है, वह ईश्वर की एकता का प्रतीक है। गुरु नानक साहिब के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। ऐसी शक्तियाँ ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य देवी-देवताओं में नहीं हैं। इस कारण प्रभु के सम्मुख इन देवी-देवताओं का कोई महत्त्व नहीं है। ईश्वर के सम्मुख वे उसी प्रकार हैं जैसे तेज़मय सूर्य के सम्मुख एक लघु तारा। मुहम्मद सैंकड़ों और हज़ारों हैं, परंतु ईश्वर एक है। उस परमपिता ईश्वर को कई नामों से जाना जाता है। जैसे-हरि, गोपाल, वाहेगुरु, साहिब, अल्लाह, खुदा और राम इत्यादि। गुरु नानक साहिब जी फरमाते हैं,

“दूजा काहे सिमरिए जन्मे ते मर जाए।
ऐको सिमरो नानका, जो जल थल रिहा समाए।’

2. निर्गुण और सगुण (Nirguna and Sarguna)—ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। सर्वप्रथम ईश्वर ने भूमि और आकाश की रचना की थी और वह अपने आप में ही रहता था। यह ईश्वर का निर्गुण स्वरूप था। फिर ईश्वर ने इस संसार की रचना की। इस रचना द्वारा ईश्वर ने अपना रूपमान किया। यह ईश्वर का सगुण स्वरूप था।

3. रचयिता, पालनकर्ता और नाशवानकर्ता (Creator, Sustainer and Destroyer)-ईश्वर ही इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और इसका विनाश करने वाला है। संसार की रचना करने से पूर्व कोई पृथ्वी, आकाश नहीं थे और चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था। केवल ईश्वर का आदेश ही चलता था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने इस संसार की रचना की। उसके आदेश के साथ ही चारों ओर मनुष्य, पशु, पक्षी, नदियाँ, पर्वत और वन इत्यादि अस्तित्व में आ गए। ईश्वर ही इस संसार का पालनकर्ता है। वही सभी को रोज़ी-रोटी देता है। ईश्वर की जब इच्छा हो, वह इस संसार का विनाश कर सकता है तथा इसकी पुनः रचना कर सकता है।

4. सर्वशक्तिमान् (Sovereign)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता। यदि ईश्वर चाहे तो वह भिखारी को भी सिंहासन पर बैठा सकता है और राजा को भिखारी बना सकता है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं—

कुदरत कवण कहा वीचारु॥
वारिआ न जावा एक वार॥ जो
तुधु भावै साई भली कार॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥

5. सदैव रहने वाला (Immortal)-ईश्वर द्वारा रचित संसार नाशवान् है। यह अस्थिर है। ईश्वर सदैव रहने वाला है। वह आवागमन और मृत्यु के चक्र से मुक्त है। ईश्वर के दरबार में हज़ारों, लाखों मुहम्मद, ब्रह्मा, विष्णु और राम हाथ जोड़कर खड़े हैं। ये सभी नाशवान हैं, किंतु ईश्वर नहीं।

6. निराकार और सर्वव्यापक (Formless and Omnipresent)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर कार है। उसका कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। उसे न तो मूर्तिमान किया जा सकता है और न ही इन आँखों से देखा जा सकता है किंतु ईश्वर सर्वव्यापक भी है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की लीला निराली है। वह जल, थल और आकाश प्रत्येक जगह विद्यमान है। इसलिए ईश्वर को अपने से दूर न समझो। वह तुम्हारे निकट ही है। गुरु नानक साहिब जी का कथन है,
“सभी में एक प्रकाश है और यह उसी का प्रकाश है जो सभी में विद्यमान है”

7. ईश्वर की महानता (Greatness of God)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् है। उसकी महानता का वर्णन करना असंभव है। हज़ारों और लाखों भक्तों और संतों ने ईश्वर की महानता का गुणगान किया है फिर भी यह उसकी महिमा भंडार का छोटा-सा भाग ही है। उसकी महिमा मनुष्य की कल्पना से दूर है। उसकी महानता अवर्णनीय है। उसकी महिमा, उसकी दया, उसके ज्ञान, उसकी देन, वह क्या देखता और क्या सुनता है, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अपनी महिमा का ज्ञाता स्वयं ही है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं,

पताला पाताल लख आगासा आगास॥
ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहन इक वात ॥
सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इक धात॥ लेखा होई त लिखीए लेखै होई विणासु॥
नानक वडा आखिए आपे जाणै आपु॥

8. माया (Maya)-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि क चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। मनमुख व्यक्ति रचयिता और उसकी रचना के अंतर को नहीं समझ पाता। माया, जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके साथ नहीं जाती। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

9. हऊमै (Haumai)—मनमुख व्यक्ति में हऊमै (अहं) की भावना बड़ी प्रबल होती है। अहं के कारण वह मुक्ति के मार्ग को नहीं पहचान पाता। वह ईश्वर के आदेश की अपेक्षा अपनी मनमानी करता है। अहं के कारण वह संसार की बुराइयों में फंसा रहता है और ईश्वर से दूर रहता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने की अपेक्षा आवागमन के चक्र में और फंस जाता है। डॉक्टर तारन सिंह के अनुसार,
“हऊमै मन की वह अवस्था है जो मनुष्य को वास्तविकता से तथा उसके जीवन के उद्देश्य से दूर रखती है तथा इस प्रकार उसका मुक्ति तथा परमात्मा से मिलन नहीं होने देती।”5

10. इंद्रियजन्य भूख (Evil Impulses)-मनमुख व्यक्ति सदैव इंद्रियजन्य भूख से घिरा रहता है। काम. क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार मनुष्य के पाँच शत्रु हैं। इनके कारण मनुष्य पाप करता है तथा लोगों को धोखा देता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने के स्थान पर आवागमन की जंजीरों में और भी दृढ़ता से जकड़ा जाता है और उसे यमदूतों की मार पड़ती है।

11. पुरोहित वर्ग का खंडन (Condemnation of the Priestly Class)-गुरु नानक देव जी ने पंडित और मुल्ला इत्यादि पुरोहित वर्ग का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वे वेद शास्त्र और कुरान तो पढ़ते थे किंतु उनका अंतःकरण शुद्ध नहीं था। वे लोगों को धोखा देते थे और उन्हें व्यर्थ के रीति-रिवाजों में फंसाकर उन्हें लूटते थे।
इस कारण गुरु नानक साहिब ने लोगों को उनके पीछे न चलने का परामर्श दिया। गुरु नानक साहिब का कथन था कि पुरोहित वर्ग जो कि लोगों का सही नेतृत्व करने की अपेक्षा स्वयं कुमार्ग पर चल रहा है, को उस ईश्वर के दरबार में कठोर दंड मिलेगा और वे आवागमन के चक्र में फंसे रहेंगे।

12. जाति प्रथा का खंडन (Condemnation of the Caste System)-उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र-बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग अपनी जाति पर बहुत गर्व करते थे। वे निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा और छुआछूत की भावना का जोरदार शब्दों में खंडन किया तथा परस्पर भ्रातृत्व का प्रचार किया।

13. मूर्ति पूजा का खंडन (Condemnation of Idol Worship)-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब का कहना था कि पत्थर की मूर्तियाँ निर्जीव हैं। यदि उन्हें पानी में फैंक दिया जाए तो वे डूब जाएँगी। जो मूर्तियाँ स्वयं की रक्षा नहीं कर पातीं, वे मनुष्य को कैसे इस भवसागर से पार उतार सकती हैं ? इसलिए मूर्तियों की पूजा करना व्यर्थ है। हमें केवल एक ईश्वर की ही पूजा करनी चाहिए।

14. स्त्रियों का उद्धार (Uplift of Women)-गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्थान पुरुषों की जूती के समान था। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। उस समय स्त्रियों को भोग विलास की वस्तु समझा जाता था तथा उनका पशुओं की भाँति क्रय-विक्रय किया जा सकता था। गुरु नानक साहिब ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने स्त्रियों का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए और उनके समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। गुरु नानक साहिब जी फरमाते हैं,
“सो क्यों मंदा आखिए जित जन्मे राजान।”

15. नाम और शब्द (Nam and Shabad)-गुरु नानक देव जी नाम जपने और शब्द की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। इन पर चलकर मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। ईश्वर के नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है। नाम के बिना मनुष्य सभी प्रकार के पापों और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर उसे नरक से नहीं बचा सकता। ईश्वर के दरबार में वह उसी प्रकार ध्वस्त हो जाता है जैसे भयंकर तूफान आने पर एक रेत का महल। ईश्वर के नाम का जाप पावन मन और सच्ची श्रद्धा से करना चाहिए।

16. गुरु का महत्त्व (Importance of Guru)-गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु के बिना मनुष्य को सभी ओर अंधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात यहाँ विशेषोल्लेखनीय है कि गुरु नानक साहिब जब गुरु की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय किसी मानव-गुरु से नहीं है। सच्चा गुरु तो ईश्वर स्वयं है जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

17. आत्म-समर्पण (Self Surrender)-गुरु नानक देव जी के अनुसार कोई भी मनुष्य तब तक उस परम पिता परमात्मा को नहीं पा सकता जब तक कि वह स्वयं को पूरी तरह उसको समर्पण न कर दे। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अपने अस्तित्व को मिटाना आवश्यक है। नदी तथा उस पर उठा बुलबुला एक ही है। यदि बुलबुला अपने अस्तित्व को नदी के जल से भिन्न समझने लगे तो यह उसकी भूल है। वह नदी से उत्पन्न हुआ है और उसे नदी में ही मिल जाना है।

18. हुक्म (Hukam)-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म (आदेश) अथवा इच्छा को विशेष महत्त्व प्राप्त है। मनुष्य को परमात्मा का हुक्म मानना चाहिए। जो मनुष्य ऐसा करता है, परमात्मा उस पर अपनी कृपा करता है और उसे मुक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरें खाता है। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं,

हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोई॥
नानक हुकमै जे बुझे त हउमै कहे न कोई॥

19. उचित आचार (Right Conduct)-गुरु नानक देव जी के अनुसार उचित आचार के बिना मुक्ति प्राप्ति असंभव है। दूसरों की सेवा करना ठीक आचार की आधारशिला है। दूसरों की सेवा के योग्य होने के लिए श्रम करना आवश्यक है,। दूसरों की कमाई पर जीने को गुरु जी निम्न आचरण का चिन्ह मानते थे। मुक्ति के लिए गुरु नानक साहिब गृहस्थ जीवन का त्याग करने के पक्ष में नहीं थे।

20. सच्च-खंड (Sach Khand)-गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य सच्चखंड को प्राप्त करना है। सच्च-खंड तक पहुँचने के लिए मनुष्य को धर्म-खंड, ज्ञान-खंड, शर्म-खंड तथा कर्मखंड में से गुजरना होता है। सच्च-खंड आखिरी अवस्था है। सच्च-खंड में आत्मा पूर्णतया परमात्मा में लीन हो जाती है तथा मानव के कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं। वह परमानंद अवस्था में पहुँच जाता है।

5. “Haumai is that condition of mind which keeps man ignorant of the true reality, the true purpose of life, and thus keeps him away from salvation and union with God.” Dr. Taran Singh, Teachings of Guru Nanak Dev (Patiala : 1990) p. 36.

शिक्षाओं का महत्त्व (Importance of Teachings)
गुरु नानक देव जी के उपदेशों ने न केवल धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों अपितु राजनीतिक क्षेत्र को भी. प्रभावित किया। गुरु साहिब के उपदेशों ने समाज में छाए अंधविश्वासों के काले बादलों पर सूर्य की किरणें फैलाने का कार्य किया। परिणामस्वरूप लोगों में एक नई जागृति का संचार होने लगा। वे व्यर्थ के रस्म-रिवाज छोड़कर एक परमात्मा की पूजा करने लगे। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का खंडन करके, परस्पर भ्रातृ-भाव का प्रचार करके, स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा देकर, संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की स्थापना करके एक नए समाज की आधारशिला रखी। गुरु जी ने अपने उपदेशों द्वारा उस समय के शासकों को भी झकझोर डाला। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एच० आर० गुप्ता के अनुसार,
“इस प्रकार गुरु नानक साहिब ने समूची मानवता के लिए एक ऐसी देन दी जो अभी तक प्रभावशाली है तथा भविष्य में भी यह संपूर्ण विश्व के सिखों को प्रेरित तथा उनका मार्ग दर्शन करती रहेगी।”6

6. “Thus Nanak left for all mankind a legacy which is still going strong and will continue to surprise and serve the Sikhs all over the world and for all times to come.” Dr. H.R. Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi :1973) p.56.

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के जीवन तथा उनकी कुछ मूल शिक्षाएँ बताएँ। (Explain Guru Nanak’s life and his basic teachings.)
अथवा
गुरु नानक देव जी के जीवन तथा शिक्षाओं के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करें।
(Discuss in detail the life and teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी के जीवन तथा उपदेशों के बारे में लिखें। (Write the life and teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। गुरु जी की शिक्षाओं ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्राँत के लिए नहीं थीं। इनका. संबंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. ईश्वर एक है (The Unity of God)-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। सिख परंपरा के अनुसार मूलमंत्र के आरंभ में जो अक्षर ‘१’ है, वह ईश्वर की एकता का प्रतीक है। गुरु नानक साहिब के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। ऐसी शक्तियाँ ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य देवी-देवताओं में नहीं हैं। इस कारण प्रभु के सम्मुख इन देवी-देवताओं का कोई महत्त्व नहीं है। ईश्वर के सम्मुख वे उसी प्रकार हैं जैसे तेज़मय सूर्य के सम्मुख एक लघु तारा। मुहम्मद सैंकड़ों और हज़ारों हैं, परंतु ईश्वर एक है। उस परमपिता ईश्वर को कई नामों से जाना जाता है। जैसे-हरि, गोपाल, वाहेगुरु, साहिब, अल्लाह, खुदा और राम इत्यादि। गुरु नानक साहिब जी फरमाते हैं,

“दूजा काहे सिमरिए जन्मे ते मर जाए।
ऐको सिमरो नानका, जो जल थल रिहा समाए।’

2. निर्गुण और सगुण (Nirguna and Sarguna)—ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। सर्वप्रथम ईश्वर ने भूमि और आकाश की रचना की थी और वह अपने आप में ही रहता था। यह ईश्वर का निर्गुण स्वरूप था। फिर ईश्वर ने इस संसार की रचना की। इस रचना द्वारा ईश्वर ने अपना रूपमान किया। यह ईश्वर का सगुण स्वरूप था।

3. रचयिता, पालनकर्ता और नाशवानकर्ता (Creator, Sustainer and Destroyer)-ईश्वर ही इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और इसका विनाश करने वाला है। संसार की रचना करने से पूर्व कोई पृथ्वी, आकाश नहीं थे और चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था। केवल ईश्वर का आदेश ही चलता था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने इस संसार की रचना की। उसके आदेश के साथ ही चारों ओर मनुष्य, पशु, पक्षी, नदियाँ, पर्वत और वन इत्यादि अस्तित्व में आ गए। ईश्वर ही इस संसार का पालनकर्ता है। वही सभी को रोज़ी-रोटी देता है। ईश्वर की जब इच्छा हो, वह इस संसार का विनाश कर सकता है तथा इसकी पुनः रचना कर सकता है।

4. सर्वशक्तिमान् (Sovereign)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता। यदि ईश्वर चाहे तो वह भिखारी को भी सिंहासन पर बैठा सकता है और राजा को भिखारी बना सकता है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं—

कुदरत कवण कहा वीचारु॥
वारिआ न जावा एक वार॥ जो
तुधु भावै साई भली कार॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥

5. सदैव रहने वाला (Immortal)-ईश्वर द्वारा रचित संसार नाशवान् है। यह अस्थिर है। ईश्वर सदैव रहने वाला है। वह आवागमन और मृत्यु के चक्र से मुक्त है। ईश्वर के दरबार में हज़ारों, लाखों मुहम्मद, ब्रह्मा, विष्णु और राम हाथ जोड़कर खड़े हैं। ये सभी नाशवान हैं, किंतु ईश्वर नहीं।

6. निराकार और सर्वव्यापक (Formless and Omnipresent)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर कार है। उसका कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। उसे न तो मूर्तिमान किया जा सकता है और न ही इन आँखों से देखा जा सकता है किंतु ईश्वर सर्वव्यापक भी है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की लीला निराली है। वह जल, थल और आकाश प्रत्येक जगह विद्यमान है। इसलिए ईश्वर को अपने से दूर न समझो। वह तुम्हारे निकट ही है। गुरु नानक साहिब जी का कथन है,
“सभी में एक प्रकाश है और यह उसी का प्रकाश है जो सभी में विद्यमान है”

7. ईश्वर की महानता (Greatness of God)-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् है। उसकी महानता का वर्णन करना असंभव है। हज़ारों और लाखों भक्तों और संतों ने ईश्वर की महानता का गुणगान किया है फिर भी यह उसकी महिमा भंडार का छोटा-सा भाग ही है। उसकी महिमा मनुष्य की कल्पना से दूर है। उसकी महानता अवर्णनीय है। उसकी महिमा, उसकी दया, उसके ज्ञान, उसकी देन, वह क्या देखता और क्या सुनता है, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अपनी महिमा का ज्ञाता स्वयं ही है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं,

पताला पाताल लख आगासा आगास॥
ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहन इक वात ॥
सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इक धात॥ लेखा होई त लिखीए लेखै होई विणासु॥
नानक वडा आखिए आपे जाणै आपु॥

8. माया (Maya)-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि क चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। मनमुख व्यक्ति रचयिता और उसकी रचना के अंतर को नहीं समझ पाता। माया, जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके साथ नहीं जाती। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

9. हऊमै (Haumai)—मनमुख व्यक्ति में हऊमै (अहं) की भावना बड़ी प्रबल होती है। अहं के कारण वह मुक्ति के मार्ग को नहीं पहचान पाता। वह ईश्वर के आदेश की अपेक्षा अपनी मनमानी करता है। अहं के कारण वह संसार की बुराइयों में फंसा रहता है और ईश्वर से दूर रहता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने की अपेक्षा आवागमन के चक्र में और फंस जाता है। डॉक्टर तारन सिंह के अनुसार,
“हऊमै मन की वह अवस्था है जो मनुष्य को वास्तविकता से तथा उसके जीवन के उद्देश्य से दूर रखती है तथा इस प्रकार उसका मुक्ति तथा परमात्मा से मिलन नहीं होने देती।”5

10. इंद्रियजन्य भूख (Evil Impulses)-मनमुख व्यक्ति सदैव इंद्रियजन्य भूख से घिरा रहता है। काम. क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार मनुष्य के पाँच शत्रु हैं। इनके कारण मनुष्य पाप करता है तथा लोगों को धोखा देता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने के स्थान पर आवागमन की जंजीरों में और भी दृढ़ता से जकड़ा जाता है और उसे यमदूतों की मार पड़ती है।

11. पुरोहित वर्ग का खंडन (Condemnation of the Priestly Class)-गुरु नानक देव जी ने पंडित और मुल्ला इत्यादि पुरोहित वर्ग का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वे वेद शास्त्र और कुरान तो पढ़ते थे किंतु उनका अंतःकरण शुद्ध नहीं था। वे लोगों को धोखा देते थे और उन्हें व्यर्थ के रीति-रिवाजों में फंसाकर उन्हें लूटते थे।
इस कारण गुरु नानक साहिब ने लोगों को उनके पीछे न चलने का परामर्श दिया। गुरु नानक साहिब का कथन था कि पुरोहित वर्ग जो कि लोगों का सही नेतृत्व करने की अपेक्षा स्वयं कुमार्ग पर चल रहा है, को उस ईश्वर के दरबार में कठोर दंड मिलेगा और वे आवागमन के चक्र में फंसे रहेंगे।

12. जाति प्रथा का खंडन (Condemnation of the Caste System)-उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र-बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग अपनी जाति पर बहुत गर्व करते थे। वे निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा और छुआछूत की भावना का जोरदार शब्दों में खंडन किया तथा परस्पर भ्रातृत्व का प्रचार किया।

13. मूर्ति पूजा का खंडन (Condemnation of Idol Worship)-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब का कहना था कि पत्थर की मूर्तियाँ निर्जीव हैं। यदि उन्हें पानी में फैंक दिया जाए तो वे डूब जाएँगी। जो मूर्तियाँ स्वयं की रक्षा नहीं कर पातीं, वे मनुष्य को कैसे इस भवसागर से पार उतार सकती हैं ? इसलिए मूर्तियों की पूजा करना व्यर्थ है। हमें केवल एक ईश्वर की ही पूजा करनी चाहिए।

14. स्त्रियों का उद्धार (Uplift of Women)-गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्थान पुरुषों की जूती के समान था। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। उस समय स्त्रियों को भोग विलास की वस्तु समझा जाता था तथा उनका पशुओं की भाँति क्रय-विक्रय किया जा सकता था। गुरु नानक साहिब ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने स्त्रियों का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए और उनके समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। गुरु नानक साहिब जी फरमाते हैं,
“सो क्यों मंदा आखिए जित जन्मे राजान।”

15. नाम और शब्द (Nam and Shabad)-गुरु नानक देव जी नाम जपने और शब्द की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। इन पर चलकर मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। ईश्वर के नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है। नाम के बिना मनुष्य सभी प्रकार के पापों और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर उसे नरक से नहीं बचा सकता। ईश्वर के दरबार में वह उसी प्रकार ध्वस्त हो जाता है जैसे भयंकर तूफान आने पर एक रेत का महल। ईश्वर के नाम का जाप पावन मन और सच्ची श्रद्धा से करना चाहिए।

16. गुरु का महत्त्व (Importance of Guru)-गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु के बिना मनुष्य को सभी ओर अंधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात यहाँ विशेषोल्लेखनीय है कि गुरु नानक साहिब जब गुरु की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय किसी मानव-गुरु से नहीं है। सच्चा गुरु तो ईश्वर स्वयं है जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

17. आत्म-समर्पण (Self Surrender)-गुरु नानक देव जी के अनुसार कोई भी मनुष्य तब तक उस परम पिता परमात्मा को नहीं पा सकता जब तक कि वह स्वयं को पूरी तरह उसको समर्पण न कर दे। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अपने अस्तित्व को मिटाना आवश्यक है। नदी तथा उस पर उठा बुलबुला एक ही है। यदि बुलबुला अपने अस्तित्व को नदी के जल से भिन्न समझने लगे तो यह उसकी भूल है। वह नदी से उत्पन्न हुआ है और उसे नदी में ही मिल जाना है।

18. हुक्म (Hukam)-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म (आदेश) अथवा इच्छा को विशेष महत्त्व प्राप्त है। मनुष्य को परमात्मा का हुक्म मानना चाहिए। जो मनुष्य ऐसा करता है, परमात्मा उस पर अपनी कृपा करता है और उसे मुक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरें खाता है। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं,

हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोई॥
नानक हुकमै जे बुझे त हउमै कहे न कोई॥

19. उचित आचार (Right Conduct)-गुरु नानक देव जी के अनुसार उचित आचार के बिना मुक्ति प्राप्ति असंभव है। दूसरों की सेवा करना ठीक आचार की आधारशिला है। दूसरों की सेवा के योग्य होने के लिए श्रम करना आवश्यक है,। दूसरों की कमाई पर जीने को गुरु जी निम्न आचरण का चिन्ह मानते थे। मुक्ति के लिए गुरु नानक साहिब गृहस्थ जीवन का त्याग करने के पक्ष में नहीं थे।

20. सच्च-खंड (Sach Khand)-गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य सच्चखंड को प्राप्त करना है। सच्च-खंड तक पहुँचने के लिए मनुष्य को धर्म-खंड, ज्ञान-खंड, शर्म-खंड तथा कर्मखंड में से गुजरना होता है। सच्च-खंड आखिरी अवस्था है। सच्च-खंड में आत्मा पूर्णतया परमात्मा में लीन हो जाती है तथा मानव के कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं। वह परमानंद अवस्था में पहुँच जाता है।

5. “Haumai is that condition of mind which keeps man ignorant of the true reality, the true purpose of life, and thus keeps him away from salvation and union with God.” Dr. Taran Singh, Teachings of Guru Nanak Dev (Patiala : 1990) p. 36.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करें। (What do you know about the early career of Guru Angad Dev Ji ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी अथवा भाई लहणा जी सिखों के दूसरे गुरु थे। उनका गुरु काल 1539 ई० से 1552 ई० तक रहा। गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1.जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा जी था। उनका जन्म 31 मार्च, 1504 ई०को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम फेरूमल था तथा वह क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। भाई लहणा जी की माता जी का नाम सभराई देवी जी था। वह बहुत धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। भाई लहणा जी पर उनके धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-भाई लहणा जी का बचपन हरीके एवं खडूर साहिब में व्यतीत हुआ। आरंभ में भाई लहणा जी दुर्गा माता के भक्त थे। 15 वर्ष के होने पर उनका विवाह मत्ते की सराए के निवासी श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी के साथ कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों दातू और दासू तथा दो पुत्रियों बीबी अमरो और बीबी अनोखी ने जन्म लिया।

3. लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बने (Lehna Ji becomes the disciple of Guru Nanak Dev Ji)-भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी से भेंट करने से पूर्व दुर्गा माता के भक्त थे। वह प्रतिवर्ष ज्वालामुखी (ज़िला काँगड़ा) देवी के दर्शन के लिए जाते थे। एक दिन खडूर साहिब में भाई जोधा जी के मुख से ‘आसा दी वार’ का पाठ सुना। यह पाठ सुनकर भाई लहणा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। आगामी वर्ष जब भाई लहणा जी ज्वालामुखी की यात्रा के लिए निकले तो वह मार्ग में करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शनों के लिए रुके। वह गुरु साहिब के महान् व्यक्तित्व और मधुर वाणी को सुनकर अत्यधिक प्रभावित हुए, इसलिए भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बन गए और गुरु-चरणों में ही अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-भाई लहणा जी ने पूर्ण श्रद्धा के साथ गुरु नानक साहिब की अथक सेवा की। भाई लहणा जी की सच्ची भक्ति और अपार प्रेम को देखकर गुरु नानक देव जी ने गुरुगद्दी उनके सुपुर्द करने का निर्णय किया। गुरु नानक साहिब ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। भाई लहणा को अंगद का नाम दिया गया। यह घटना 7 सितंबर, 1539 ई० की है। गुरु नानक साहिब द्वारा गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना सिखइतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यदि गुरु नानक साहिब अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व ऐसा न करते तो निस्संदेह सिख धर्म का अस्तित्व लुप्त हो जाना था। इसका कारण यह था कि सिख धर्म अभी अच्छी प्रकार से संगठित नहीं था। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से जो लोग प्रभावित हुए थे उनकी संख्या दूसरे लोगों की अपेक्षा नगण्य थी। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति से सिख धर्म को एक निश्चित दिशा प्राप्त हुई तथा इसका आधार मज़बूत हुआ। जी० सी० नारंग का यह कहना पूर्णतः सही है,
“यदि गुरु नानक जी उत्तराधिकारी की नियुक्ति के बिना ही ज्योति जोत समा जाते तो आज सिख धर्म नहीं होना था।”7

7. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (3)
GURU ANGAD DEV JI

प्रश्न 6.
सिख-धर्म के आरंभिक विकास में गुरु अंगद देव जी का क्या योगदान है ? वर्णन कीजिए ।
(What is the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी के सिख पंथ के विकास में योगदान का संक्षेप वर्णन करें।
(Give a brief account of the contribution made by Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला बड़ा संकट हिंदू धर्म से था। सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi) गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”8

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद साहिब जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई। इस जन्म साखी को भाई पैड़ा मौखा जी ने लिखा था। इस साखी को भाई बाला की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। उन्होंने कुल 62 शब्दों की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद साहिब ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी माता खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णत: सही है,
“सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना । संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक साहिब जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक साहिब के उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद साहिब जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. सिख मत में अनुशासन (Discipline in Sikhism)-गुरु अंगद साहिब जी बहुत अनुशासन प्रिय थे। उनके दरबार में कीर्तन करने वाले दो रागियों सत्ता और बलवंड ने, अपनी मधुर आवाज़ के कारण अहंकार में आकर गुरु जी की आज्ञा का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। गुरु जी यह बात सहन नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप, उन्होंने इन दोनों रागियों को अपने दरबार से निकाल दिया। शीघ्र ही रागियों को अपनी ग़लती अनुभव हुई। तत्पश्चात् क्षमा माँगने पर और भाई लद्धा जी के कहने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस प्रकार गुरु जी ने गुरु घर में कठोर अनुशासन की मर्यादा को बनाए रखा।

7. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)—गुरु अंगद साहिब यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

8. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)—गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

9. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद साहिब जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोलीं और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

10. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

11. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)—इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गुरु घर में अनुशासन स्थापित करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,
“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”10
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”11

8. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaeodic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
9. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of The Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
10. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1980) p. 69.
11. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी के जीवन तथा सिख पंथ के विकास में उनके योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the life and contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी के जीवन एवं सफलता का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe in brief, the life and achievements of Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला बड़ा संकट हिंदू धर्म से था। सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi) गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”8

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद साहिब जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई। इस जन्म साखी को भाई पैड़ा मौखा जी ने लिखा था। इस साखी को भाई बाला की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। उन्होंने कुल 62 शब्दों की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद साहिब ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी माता खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णत: सही है,
“सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना । संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक साहिब जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक साहिब के उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद साहिब जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. सिख मत में अनुशासन (Discipline in Sikhism)-गुरु अंगद साहिब जी बहुत अनुशासन प्रिय थे। उनके दरबार में कीर्तन करने वाले दो रागियों सत्ता और बलवंड ने, अपनी मधुर आवाज़ के कारण अहंकार में आकर गुरु जी की आज्ञा का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। गुरु जी यह बात सहन नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप, उन्होंने इन दोनों रागियों को अपने दरबार से निकाल दिया। शीघ्र ही रागियों को अपनी ग़लती अनुभव हुई। तत्पश्चात् क्षमा माँगने पर और भाई लद्धा जी के कहने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस प्रकार गुरु जी ने गुरु घर में कठोर अनुशासन की मर्यादा को बनाए रखा।

7. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)—गुरु अंगद साहिब यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

8. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)—गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

9. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद साहिब जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोलीं और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

10. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

11. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)—इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गुरु घर में अनुशासन स्थापित करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,
“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”10
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”11

8. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaeodic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
9. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of The Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
10. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1980) p. 69.
11. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 8.
गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गरु अमरदास जी के जीवन का वर्णन करें।
(Describe the life of Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (4)
GURU AMAR DAS JI

I. गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन
(Early Life of Guru Amardas Ji)

  1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को ज़िला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी का नाम बख्त कौर था।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी जी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियोंबीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद साहिब जी का सिख बनना (To become the Disciple of Guru Angad SahibJi)एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्ठे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है ? अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया। एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद साहिब जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

II. गुरु अमरदास जी की प्रारंभिक कठिनाइयाँ (Guru Amar Das Ji’s Early Difficulties)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी, गुरु अंगद साहिब जी के आदेश पर खडूर साहिब से गोइंदवाल साहिब आ गए। यहाँ गुरु जी को आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—

  1. दासू और दातू का विरोध (Opposition of Dasu and Dattu)—गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका कहना था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है। एक दिन दातू ने क्रोधित होकर गोइंदवाल साहिब जाकर भरे दरबार में गुरु जी को ठोकर मारी जिसके कारण वह गद्दी से नीचे गिर पड़े। इस पर भी गुरु साहिब ने बहुत ही नम्रता से दातू से क्षमा माँगी। इसके पश्चात् गुरु जी गोइंदवाल साहिब को छोड़कर अपने गाँव बासरके
  2. चले गए। सिख संगतों ने दातू को अपना गुरु मानने से इंकार कर दिया। अंतत: निराश होकर वह खडूर साहिब लौट गया। बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिख संगतों के कहने पर गुरु अमरदास जी पुनः गोइंदवाल साहिब आ गए।

2. बाबा श्रीचंद का विरोध (Opposition of Baba Sri Chand)-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने गुरु अंगद देव जी का विरोध इसलिए न किया क्योंकि उन्हें गुरुगद्दी गुरु नानक साहिब ने स्वयं सौंपी थी। परंतु गुरु अंगद देव जी के पश्चात् उन्होंने अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिखों को उदासी संप्रदाय से सदैव के लिए पृथक् कर दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib)-गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को परेशान करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शाँत रहने का उपदेश दिया। एक बार गाँव में कुछ सशस्त्र व्यक्ति आ गए। इन मुसलमानों का उनसे किसी बात पर झगड़ा हो गया। उन्होंने बहुत से मुसलमानों को यमलोक पहुँचा दिया। लोग सोचने लगे कि मुसलमानों को परमात्मा की ओर से यह दंड मिला है। इस प्रकार उनका सिख धर्म में विश्वास और दृढ़ हो गया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध (Opposition by the Hindus)-गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। लंगर में सब एक साथ भोजन करते थे। इसके अतिरिक्त बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। इस आरोप की जाँच के लिए अकबर ने गुरु साहिब को अपने दरबार में बुलाया। गुरु अमरदास जी ने अपने श्रद्धालु भाई जेठा जी को भेजा। भाई जेठा जी से मिलने के पश्चात् अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया। इससे सिख लहर को और उत्साह मिला।

प्रश्न 9.
सिख धर्म के विकास के लिए गुरु अमरदास जी की भूमिका पर प्रकाश डालें।
(Elucidate the role of Guru Amardas Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
श्री गुरु अमरदास जी द्वारा बसाये गए नये नगर गोइंदवाल साहिब में किए गए कार्य बताओ।
(Describe the tasks done by Guru Amardas Ji at new place Goindwal Sahib.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का वर्णन करें।
(Describe the contribution of Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अमरदास जी की सिख धर्म के विकास में की गई सेवाओं का वर्णन करो।
(Describe the services rendered by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के सिख पंथ के संगठन तथा प्रसार के लिए किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe in brief the organisational development and spread of Sikhism by Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन र विकास के लिए गुरु अमरदास जी ने क्या-क्या कार्य किए ?
(What were the measures taken by Guru Amar Das Ji for the consolidation and expansion of Sikhism ?)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णत: संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में,
“गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”12

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)-गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव – जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिना उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत” का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”13

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि-ग्रंथ साहिब के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (5)
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की । इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”14

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था.। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए।
गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। इस पर अकबर ने यह जागीर बीबी भानी जी को दे दी। इस जागीर पर बाद में गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर की स्थापना की। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 को ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,
“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”15
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”16

12. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
13. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala: 1982) p 25.
14. “The establishment of Manji system gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
15. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29.
16. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.”Dr.D.S. Dhillon Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 10.
गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन करें। (Examine the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” बताएँ। (“Guru Amar Das Ji was a great social reformer.” Discuss.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का नाम सिख इतिहास में एक महान् समाज सुधारक के रूप में भी प्रसिद्ध है। वह सिखों की सामाजिक संरचना को एक नया रूप देना चाहते थे। वह सिखों को तात्कालीन समाज के जटिल नियमों से मुक्त करना चाहते थे ताकि उनमें आपसी भ्रातृत्व स्थापित हो। गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधार का संक्षिप्त वर्णन निम्न अनुसार है—

जातीय भेद-भाव तथा छुआ-छूत का खंडन (Denunciation of Caste Distinctions and Untouchability)-गुरु अमरदास जी ने जातीय एवं छुआ-छूत की प्रथाओं का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जाति पर अभिमान करने वाले मूर्ख तथा गंवार हैं। उन्होंने संगतों को यह हुक्म दिया कि जो कोई उनके दर्शन करना चाहता है उसे पहले पंगत में लंगर छकना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कुछ सामान्य कुएँ खुदवाए। इन कुओं से प्रत्येक जाति के लोगों को पानी लेने का अधिकार था। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने आपसी भ्रातृत्व का प्रचार किया।

2. लड़कियों की हत्या का खंडन (Denunciation of Female Infanticide)-उस समय लड़कियों के जन्म को अशुभ माना जाता था। समाज में लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने इस कुप्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह घोर पाप का सहभागी बनता है । उन्होंने सिखों को इस अपराध से दूर रहने का उपदेश दिया।

3. बाल विवाह का खंडन (Denunciation of Child Marriage)-उस समय समाज में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इस कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। गुरु अमरदास जी ने बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया।

4. सती प्रथा का खंडन (Denunciation of Sati System)-उस समय समाज में प्रचलित कुप्रथाओं में से सबसे घृणा योग्य कुप्रथा सती प्रथा की थी। इस अमानवीय प्रथा के अनुसार यदि किसी दुर्भाग्यशाली स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जबरन पति की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने शताब्दियों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया। गुरु साहिब का कथन था
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोटि मरनि॥
भाव उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती तो वह है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा में प्राण त्याग दे।

5. पर्दा प्रथा का खंडन (Denunciation of Purdah System)-उस समय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ गया था। यह प्रथा स्त्रियों के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक बड़ी बाधा थी। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा की जोरदार शब्दों में आलोचना की। उन्होंने यह आदेश दिया कि संगत अथवा लंगर में सेवा करते समय कोई भी स्त्री पर्दा न करे।

6. नशीली वस्तुओं का विरोध (Prohibition of Intoxicants)-उस समय समाज में शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों का प्रयोग बहुत बढ़ गया था। इस कारण समाज का दिन-प्रतिदिन नैतिक पतन होता जा रहा था। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इन नशों के विरुद्ध जोरदार प्रचार किया। उनका कथन था कि जो मनुष्य शराब पीता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। वह अपने-पराए का भेद भूल जाता है। मनुष्य को ऐसी झूठी शराब नहीं पीनी चाहिए, जिस कारण वह परमात्मा को भूल जाए।

7. विधवा विवाह के पक्ष में (Favoured Widow Marriage)-जो स्त्रियाँ सती होने से बच जाती थीं, उन्हें सदैव विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। समाज की ओर से विधवा विवाह पर प्रतिबंध लगा हुआ था। विधवा का जीवन नरक के समान था। गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा को खेदजनक बताया। उनका कथन था कि हमें विधवा का पूरा सम्मान करना चाहिए। गुरु जी ने बाल विधवा के पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया।

8. जन्म, विवाह तथा मृत्यु के.समय के नवीन नियम (New Ceremonies related to Birth, Marriage and Death)-उस समय समाज में जन्म, विवाह तथा मृत्यु से संबंधित जो रीति-रिवाज प्रचलित थे, वे बहुत जटिल थे। गुरु साहिब ने सिखों के लिए इन अवसरों पर विशेष नियम बनाए। ये नियम पूर्णतः सरल थे। गुरु साहिब ने जन्म, विवाह तथा अन्य अवसरों पर गाने के लिए अनंदु साहिब की रचना की। इसमें 40 पौड़ियाँ हैं। इसके अतिरिक्त विवाह के समय लावाँ की नई प्रथा आरंभ की गई।

9. त्योहार मनाने का नवीन ढंग (New Mode of Celebrating Festivals)-गुरु अमरदास जी ने सिखों को वैसाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहारों को नवीन ढंग से मनाने के लिए कहा। इन तीनों त्योहारों के अवसरों पर बड़ी संख्या में सिख गोइंदवाल साहिब पहुँचते थे। गुरु साहिब का यह पग सिख पंथ के प्रचार में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० एस० निझर के अनुसार,
“गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए इन सामाजिक सुधारों को सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ लाने वाले समझे जाने चाहिएँ।”17

17. “These social reforms introduced by Guru Amar Das must be regarded as a turning point in the history of Sikhism.” Dr. B.S. Nijjar, op. cit., p. 83.

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी के जीवन एवं सफलताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the life and achievements of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी पर बिराजमान होते समय किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा ? सिख मत के संगठन और विस्तार के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिए ।
(What were the difficulties faced by Guru Amar Das Ji at the time of his accession ? Discuss the steps taken by him to consolidate and expand Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन (Early Life of Guru Amardas Ji)-

  1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को ज़िला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी का नाम बख्त कौर था।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी जी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियोंबीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद साहिब जी का सिख बनना (To become the Disciple of Guru Angad SahibJi)-एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्ठे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है ? अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया। एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद साहिब जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णत: संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)-गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में,
“गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”12

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)-गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव – जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिना उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत” का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”13

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि-ग्रंथ साहिब के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (6)
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की । इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”14

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था.। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए।

गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। इस पर अकबर ने यह जागीर बीबी भानी जी को दे दी। इस जागीर पर बाद में गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर की स्थापना की। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 को ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,
“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”15
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”16

12. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
13. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala: 1982) p 25.
14. “The establishment of Manji system gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
15. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29.
16. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.”Dr.D.S. Dhillon Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 12.
गुरु रामदास जी के जीवन और सफलताओं का वर्णन करें।
(Describe the life and the achievements of Guru Ram Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु रामदास जी के योगदान के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the contribution of Guru Ram Das Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। वह 1574 ई० से लेकर 1581 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उनके गुरुकाल में सिख पंथ के संगठन और विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई। गुरु रामदास जी के आरंभिक जीवन और उनके अधीन सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
I. गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das.Ji)

  1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी लाहौर में हुआ था। आपको पहले भाई जेठा जी के नाम से जाना जाता था। आपके पिता जी का नाम हरिदास जी तथा माता जी का नाम दया कौर जी था। वे सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। जेठा जी के माता-पिता बहुत निर्धन थे।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-भाई जेठा जी बचपन से ही धार्मिक विचारों वाले थे। एक बार आपके माता जी ने आपको उबले हुए चने बेच कर कुछ कमाने को कहा। बाहर जाते समय उन्हें कुछ भूखे साधु मिल गए। आपने सारे चने इन भूखे साधुओं को खिला दिए-और स्वयं खाली हाथ लौट आए। आप लोगों की सेवा करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। एक बार आपको एक सिख जत्थे के साथ गोइंदवाल साहिब जाने का अवसर मिला। आप वहाँ पर गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बन गए। गुरु अमरदास जी भाई जेठा जी की भक्ति और गुणों को देखकर बहुत प्रभावित हुए। इसलिए गुरु साहिब ने 1553 ई० में अपनी छोटी लड़की बीबी भानी जी का विवाह उनके साथ कर दिया। भाई जेठा जी के घर तीन लड़कों का जन्म हुआ। उनके नाम पृथी चंद (पृथिया), महादेव और अर्जन देव थे।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship) विवाह के पश्चात् भी भाई जेठा जी गोइंदवाल साहिब में ही रहे तथा पहले की तरह गुरु जी की सेवा करते रहे। भाई जेठा जी की निष्काम सेवा, नम्रता और मधुर स्वभाव ने गुरु अमरदास जी का मन मोह लिया था। इसलिए 1 सितंबर, 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय से भाई जेठा जी को रामदास जी कहा जाने लगा। इस प्रकार गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु बने।

II. गुरु रामदास जी के समय सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)
गुरु रामदास जी का गुरुकाल 1574 ई० से 1581 ई० तक था। उनका गुरुकाल का समय बहुत ही कम था। फिर भी उन्होंने सिख पंथ के विकास तथा संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (7)
GURU RAM DAS JI

  1. रामदासपुरा की स्थापना (Foundation of Ramdaspura)-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। अमृतसर सरोवर के निर्माण का कार्य बाबा बुड्डा जी की देखरेख में हुआ। शीघ्र ही अमृत सरोवर के नाम पर ही रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ (Introduction of Masand System)-गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ। एस० एस० गाँधी के अनुसार,
“मसंद प्रथा ने सिख पंथ को संगठित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।”18

3. उदासियों से समझौता (Reconciliation With the Udasis)-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। गुरु रामदास जी को देखकर उन्होंने यह प्रश्न किया, “सुनाइए दाढ़ा इतना लंबा क्यों बढ़ाया है ?” गुरु साहिब ने उत्तर दिया, “आप जैसे महापुरुषों के चरण साफ़ करने के लिए।” यह कहकर गुरु साहिब अपनी दाढ़ी से श्रीचंद के चरण साफ करने लगे। श्रीचंद ने अपने पाँव फौरन पीछे खींच लिए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य (Some other important Works)-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) तथा लावाँ द्वारा विवाह करने की प्रथा का आरंभ था। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसेजाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर उसने गुरु साहिब को 500 बीघा भूमि दान में दी। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1581 ई० में गुरु रामदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसका कारण यह था कि गुरु साहिब के सबसे बड़े पुत्र पृथिया ने अपने षड्यंत्रों के कारण उन्हें नाराज़ कर लिया था। दूसरे पुत्र महादेव को सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। गुरु अर्जन देव जी प्रत्येक पक्ष से गुरुगद्दी के योग्य थे। गुरु रामदास जी 1 सितंबर, 1581 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

7. गुरु रामदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of the Achievements of Guru Ram Das Ji)—गुरु रामदास जी अपने गुरुगद्दी काल में सिख पंथ को एक नया स्वरूप देने में सफल हुए। गुरु जी ने रामदासपुरा एवं मसंद प्रथा की स्थापना से, उदासियों के साथ समझौता करके, अपनी वाणी की रचना करके, समाज में प्रचलित कुरीतियों का खंडन करके, संगत, “गत एवं मंजी संस्थाओं को जारी रख कर तथा अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करके सिख धर्म की नींव को और सुदृढ़ किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु रामदास जी ने अपने लगभग 7 वर्षों के गुरुकाल में सिख पंथ को दृढ़ ढाँचा एवं दिशा प्रदान की।”19

18. “Masand System played a big role in consolidating Sikhism.” S. S. Gandhi, History of the Sikh Gurus (Delhi : 1978) p. 209.
19. “During the short period of his Guruship of about seven years, Guru Ram Das provided a well-knit community with a form and content.” Dr. D. S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 100.

प्रश्न 13.
सिख धर्म के विकास में गुरु रामदास जी के योगदान के बारे में जानकारी दो। (Describe the cntribution of Guru Ram Das Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु रामदास जी के समय सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)
गुरु रामदास जी का गुरुकाल 1574 ई० से 1581 ई० तक था। उनका गुरुकाल का समय बहुत ही कम था। फिर भी उन्होंने सिख पंथ के विकास तथा संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।

1. रामदासपुरा की स्थापना (Foundation of Ramdaspura)-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। अमृतसर सरोवर के निर्माण का कार्य बाबा बुड्डा जी की देखरेख में हुआ। शीघ्र ही अमृत सरोवर के नाम पर ही रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ (Introduction of Masand System)-गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ। एस० एस० गाँधी के अनुसार,
“मसंद प्रथा ने सिख पंथ को संगठित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।”18

3. उदासियों से समझौता (Reconciliation With the Udasis)-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। गुरु रामदास जी को देखकर उन्होंने यह प्रश्न किया, “सुनाइए दाढ़ा इतना लंबा क्यों बढ़ाया है ?” गुरु साहिब ने उत्तर दिया, “आप जैसे महापुरुषों के चरण साफ़ करने के लिए।” यह कहकर गुरु साहिब अपनी दाढ़ी से श्रीचंद के चरण साफ करने लगे। श्रीचंद ने अपने पाँव फौरन पीछे खींच लिए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य (Some other important Works)-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) तथा लावाँ द्वारा विवाह करने की प्रथा का आरंभ था। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसेजाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर उसने गुरु साहिब को 500 बीघा भूमि दान में दी। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1581 ई० में गुरु रामदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसका कारण यह था कि गुरु साहिब के सबसे बड़े पुत्र पृथिया ने अपने षड्यंत्रों के कारण उन्हें नाराज़ कर लिया था। दूसरे पुत्र महादेव को सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। गुरु अर्जन देव जी प्रत्येक पक्ष से गुरुगद्दी के योग्य थे। गुरु रामदास जी 1 सितंबर, 1581 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

7. गुरु रामदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of the Achievements of Guru Ram Das Ji)—गुरु रामदास जी अपने गुरुगद्दी काल में सिख पंथ को एक नया स्वरूप देने में सफल हुए। गुरु जी ने रामदासपुरा एवं मसंद प्रथा की स्थापना से, उदासियों के साथ समझौता करके, अपनी वाणी की रचना करके, समाज में प्रचलित कुरीतियों का खंडन करके, संगत, “गत एवं मंजी संस्थाओं को जारी रख कर तथा अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करके सिख धर्म की नींव को और सुदृढ़ किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु रामदास जी ने अपने लगभग 7 वर्षों के गुरुकाल में सिख पंथ को दृढ़ ढाँचा एवं दिशा प्रदान की।”19

19. “During the short period of his Guruship of about seven years, Guru Ram Das provided a well-knit community with a form and content.” Dr. D. S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 100.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। गुरुगद्दी पर बैठते समय उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(Describe briefly the early life of Guru Arjan Dev Ji. What difficulties he had to face at the time of his accession to Guruship ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

गुरु अर्जन देव जी का आरंभिक जीवन (Early Career of Guru Arjan Dev Ji)

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था। बीबी भानी जी बहुत ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। इसलिए अर्जन देव जी के मन पर इसका गहन प्रभाव पड़ा।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही संबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगा। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (8)
GURU ARJAN DEV JI

II. गुरु अर्जन देव जी की कठिनाइयाँ
(Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन साहिब को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. पृथी चंद का विरोध (Opposition of Prithi Chand)-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु अमरदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने गुरु रामदास जी के ज्योति-जोत समाने के समय यह अफवाह फैला दी कि गुरु अर्जन देव जी ने उन्हें विष देकर मरवा दिया है। गुरु अर्जन देव जी की दस्तारबंदी के समय पृथी चंद ने गुरु साहिब से दस्तार (पगड़ी) छीन कर अपने सिर पर रख ली। उसने गुरु अर्जन साहिब से संपत्ति भी ले ली। उसने लंगर के लिए आई माया भी हड़पनी आरंभ कर दी। जब 1595 ई० में गुरु साहिब के घर हरगोबिंद साहिब जी का जन्म हुआ तो उसने इस बालक की हत्या के कई प्रयत्न किए। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया। इस प्रकार पृथिया ने गुरु अर्जन साहिब को परेशान करने में कोई यत्न खाली न छोड़ा।

2. कट्टर मुसलमानों का विरोध (Opposition of Orthodox Muslims)-गुरु अर्जन साहिब को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस लहर का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।

3. ब्राह्मणों का विरोध (Opposition of Brahmans)-गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के प्रमुख वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। सिखों ने ब्राह्मणों के बिना अपने रीति-रिवाज मनाने शुरू कर दिए थे। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि-ग्रंथ साहिब का संकलन किया तो ब्राह्मणों ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।

4. चंदू शाह का विरोध (Opposition of Chandhu Shah)-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था __ अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह.को गुरु अर्जन साहिब के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। क्योंकि उस समय तक सिखों को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल गया था इसलिए उन्होंने गुरु जी को यह रिश्ता स्वीकार न करने के लिए प्रार्थना की। परिणामस्वरूप गुरु साहिब ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अब चंदू शाह एक लाख रुपया लेकर गुरु जी के पास पहुँचा और गुरु जी को दहेज का लालच देने लगा। गुरु जी ने चंदू शाह से कहा, “मेरे शब्द पत्थर पर लकीर हैं। यदि तू समस्त संसार को भी दहेज में दे दे तो भी मेरा पुत्र तेरी पुत्री से विवाह नहीं करेगा।” इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया।

प्रश्न 15.
सिख धर्म के विकास के लिए गुरु अर्जन देव जी द्वारा अपनाई गई विधि के बारे में चर्चा करें।
(Discuss the measures adopted by Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म के हुए विकास के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief, but meaningful the development of Sikhism during Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की विशेष देन की चर्चा करें।
(Discuss the special contribution of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the contribution of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म एवं परंपरा के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the role of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikh faith and tradition.)
अथवा
सिख पंथ के संगठन एवं विकास में गुरु अर्जन साहिब के योगदान बारे जानकारी दें।
(Discuss Guru Arjan Sahib’s contribution to the organisation and development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की विभिन्न सफलताओं का वर्णन करें। (Give an account of the various achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)–गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण-कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब
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SRI HARMANDIR SAHIB : AMRITSAR
सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”20

2. तरन तारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरिगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था ‘ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)—गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”21

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar) गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रख्नने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा __ को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गरु अर्जन देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Arjan Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख्ख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”22
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गुरु अर्जन जी के गुरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”23

20. “This temple and the pool became Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Buddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
21. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97
22. “Under Cuu Arjan, the Fifth Garu, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi: 1004), p. 37.
23. During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhisra (New Delhi : 1982) p. 144.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 16.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का वर्णन करें। उनकी सिख धर्म को क्या देन है ? (Briefly describe the early life of Guru Arjan Dev Ji. What is his contribution to Sikhism ?)
उत्तर-गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I गुरु अर्जन देव जी का आरंभिक जीवन
(Early Career of Guru Arjan Dev Ji)

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था। बीबी भानी जी बहुत ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। इसलिए अर्जन देव जी के मन पर इसका गहन प्रभाव पड़ा।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही संबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगा। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।

गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)–गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण-कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार, “इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”20

2. तरन तारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरिगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था ‘ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)—गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”21

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar) गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रख्नने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गरु अर्जन देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Arjan Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख्ख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”22
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गुरु अर्जन जी के गुरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”23

20. “This temple and the pool became Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Buddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
21. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97
22. “Under Cuu Arjan, the Fifth Garu, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi: 1004), p. 37.
23. During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhisra (New Delhi : 1982) p. 144.

प्रश्न 17.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेवार हालातों का वर्णन करें। (Explain the circumstances responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के विषय में विस्तार सहित वर्णन करें। इसकी क्या महत्ता थी ? (Write in detail about the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji and its significance.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेदार कारणों का वर्णन करें। शहीदी का वास्तविक कारण क्या था ?
(Explain the causes which led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the real cause of his martyrdom ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों की व्याख्या कीजिए। उनकी शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(Examine the circumstances leading to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी थीं। उनके बलिदान का क्या महत्त्व था ?
(Describe the circumstances that led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण एवं महत्त्व बताएँ।
(Discuss the causes and importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इस घटना से सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारणों और महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है—
I. बलिदान के कारण (Causes of Martyrdom)

1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता (Fanaticism of the Jahangir)-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था। इस संबंध में उसने अपनी आत्मकथा तुज़कए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है।

2. सिख पंथ का विकास (Development of Sikh Panth)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढ़ती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। गुरु ग्रंथ साहिब की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।।

3. पृथी चंद की शत्रुता (Enmity of Prithi Chand)-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने इस बात की घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसने मसंदों द्वारा गुरुघर के लंगर के लिए लाया धन हड़प करना आरंभ कर दिया। उसने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुगलों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।

4. चंदू शाह की शत्रुता (Enmity of Chandu Shah)-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में बहुत-से अपमानजनक शब्द कहे। परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था, इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। जहाँगीर पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।

5. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqshbandis)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का भी बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों का संप्रदाय था। यह संप्रदाय इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि नक्शबंदियों का नेता था का मुग़ल दरबार में काफी प्रभाव था। उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इसलिए जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब के विरुद्ध कार्यवाई करने का निर्णय किया।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन भी गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बना। गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर को कहा कि इस ग्रंथ में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं। गुरु जी का कहना था कि इस ग्रंथ में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी गई जो किसी भी धर्म के विरुद्ध हो। जहाँगीर ने ग्रंथ साहिब जी में हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में भी लिखने के लिए कहा। गुरु साहिब का कहना था कि वे ईश्वर के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकते। निस्संदेह, जहाँगीर के लिए यह बात असहनीय थी।

7. खुसरो की सहायता (Help to Khusrau)-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो अपने पिता के विरुद्ध असफल विद्रोह के बाद भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँचकर खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खान को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।

II. बलिदान कैसे हुआ ? (How was Guru Martyred ?)
जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाकर लाहौर लाया गया। जहाँगीर ने गुरु जी को मृत्यु के बदले 2 लाख रुपए जुर्माना देने के लिए कहा। गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप मुग़ल अत्याचारियों ने गुरु साहिब को लोहे के तपते तवे पर बिठाया और शरीर पर गर्म रेत डाली गई। गुरु साहिब ने इन अत्याचारों को ईश्वर की इच्छा समझकर, यह कहते हुए अपना बलिदान दे दिया

तेरा किया मीठा लागे।
हरि नाम पदार्थ नानक माँगे।।

इस प्रकार 30 मई, 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी लाहौर में शहीद हो गए।
III. गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व (Importance of the Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—

1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल के अनुसार,
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने समस्या को प्रबल बनाया। इसने पंजाब तथा सिख राजनीति को नई दिशा दी।”24

2. सिखों में एकता (Unity among the Sikhs)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन (Change in the relationship between Mughals and the Sikhs)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना प्रसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

4. सिखों पर अत्याचार (Persecution of the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ ही मुग़लों के सिखों पर अत्याचार आरंभ हो गए। जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। शाहजहाँ के समय गुरु जी को मुग़लों के साथ लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। 1675 ई० में औरंगजेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को दिल्ली में शहीद कर दिया था। उसके शासनकाल में सिखों पर घोर अत्याचार किए गए। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह जी, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डटकर सामना किया तथा हँसते-हँसते शहीदियाँ दीं।

5. सिख धर्म की लोकप्रियता (Popularity of Sikhism)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख धर्म के विकास में एक नया मोड़ था।”25

24. “Guru Arjan’s martyrdom precipitated the issues. It gave a new complexion to the shape of things in the Punjab and the Sikh polity.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 123.
25. “The martyrdom of Guru Arjan marks a turning point in the development of Sikh religion.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 146.

प्रश्न 18.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन के बारे में विस्तृत नोट लिखो। (Write a detailed note on the life of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गरु हरगोबिंद जी के जीवन का वर्णन करें।
(Describe the life of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु थे। वे 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस काल का सिख पंथ के इतिहास में विशेष महत्त्व है। गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपना कर न केवल सिख लहर के स्वरूप को ही बदला अपितु सिखों में स्वाभिमान की भावना भी उत्पन्न की। परिणामस्वरूप उनके समय में सिख पंथ का न केवल रूपांतरण ही हुआ अपितु इसका अद्वितीय विकास भी हुआ। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

  1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था। वह गुरु अर्जन देव जी के एक मात्र पुत्र थे। आप की माता जी का नाम गंगा देवी जी था।
  2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु हरगोबिंद जी बाल्यकाल से ही बहुत होनहार थे। आप ने पंजाबी, संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं के साहित्य का गहन अध्ययन किया था। बाबा बुड्डा जी ने आपको न केवल धार्मिक शिक्षाएँ ही दीं अपितु घुड़सवारी तथा शस्त्र-विद्या में भी प्रवीण कर दिया। विवाह के कुछ समय के पश्चात् आप के घर पाँच पुत्रों-गुरदित्ता जी, अणि राय जी, सूरज मल जी, अटल राय जी तथा तेग बहादुर जी और एक पुत्री बीबी वीरो जी ने जन्म लिया।
  3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर जाने से पूर्व, जहाँ उन्होंने अपना बलिदान दिया था, हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय हरगोबिंद जी की आयु केवल 17 वर्ष थी। इस प्रकार हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु बने। वह 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
  4. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 19 का उत्तर देखें।
  5. गुरु हरगोबिंद जी के मुगलों के साथ संबंध (Relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 20 का उत्तर देखें।

प्रश्न 19.
सिख धर्म में गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई ‘मीरी-पीरी’ की युक्ति के बारे में आलोचनात्मक : घर्चा कीजिए।
(Examine critically the new method ‘Miri-Piri’ adopted by Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोविंद जी की नई नीति से क्या भाव है ? इस नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करते हुए इसका महत्व भी बताएँ।
(What is meant by the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Describe its main features and importance.)
अथवा
सिख धर्म के विकास के लिए श्री गुरु हरगोबिंद जी की ओर से चलाए गए ‘मीरी और पीरी’ के ढंग की चर्चा कीजिए।
(Discuss the new method ‘Miri and Piri’ adopted by Sri Guru Hargobind Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी का सिख लहर को क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Hargobind Ji to Sikh Movement ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी से सिख लहर में पीरी के साथ मीरी का अंश भी आ गया। स्पष्ट करें।
[Guru Hargobind introduced militant (Miri) element alongwith spirituality (Piri) in the Sikh Movement. Explain.]
अथवा
मीरी तथा पीरी क्या है ? व्याख्या करें।
(What is Miri and Piri ? Explain.)
अथवा
सिख धर्म में ‘मीरी-पीरी के सिद्धांत की व्याख्या करो।
(Discuss the method ‘Miri-Piri’ in Sikhism.)
अथवा
मीरी एवं पीरी के सिद्धांत के बारे में जानकारी दीजिए। (Discuss the concept of Miri and Piri.)
अथवा
मीरी एवं पीरी के संकल्प के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the concept of Miri and Piri.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही के रूप में कैसे बदला ? (How Guru Hargobind Ji changed the Sikhs into Sant Sipahis ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठने के साथ ही सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। ऐसी स्थिति में गुरु हरगोबिंद जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए सिखों को शस्त्र उठाने होंगे। अतः गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बनाने की नवीन नीति धारण की। इस नीति को अपनाने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे—
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (10)
GURU HARGOBIND JI

1. मुग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन (Change in the Religious Policy of the Mughals)जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने राज-गद्दी की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश (Last Message of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।

4. जाटों का स्वभाव (Character of the Jats)-सिख पंथ में सम्मिलित होने वाले लोगों में जाटों की संख्या सबसे अधिक थी। ये जाट साहसी, वीर तथा स्वाभिमानी थे। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से उनका खून खौल उठा। उन्होंने गुरु हरगोबिंद जी को शस्त्रधारी होने के लिए प्रेरित किया तथा स्वयं भी इस कार्य में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने में जाटों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

नई नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the New Policy)

1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना (Wearing of Miri and Piri Swords)—गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण कीं। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।

2. सेना का संगठन (Organisation of Army)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। इन सैनिकों को सौ-सौ के पाँच जत्थों में विभाजित किया गया। प्रत्येक जत्था पाँच जत्थेदारों के अधीन रखा गया। इनके अतिरिक्त गुरु साहिब ने 52 अंगरक्षक भी भर्ती किए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग रैजमैंट बनाई गई। इसका सेनापति पँदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना (Collection of Arms and Horses)-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण (Construction of Akal Takhat Sahib)—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“अकाल तख्त सिखों की सबसे पवित्र संस्था है। इसने सिख समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।”26

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना (Adoptation of Royal Symbols)-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कल्गी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अब बहुमूल्य वस्त्र धारण करते और अपने अंगरक्षकों के साथ चलते थे।

6. अमृतसर की किलाबंदी (Fortification of Amritsar)-अमृतसर न केवल सिखों का सर्वाधिक पावन धार्मिक स्थान ही था, अपितु यह उनका विख्यात सैनिक प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसलिए गुरु जी ने इस
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AKAL TAKHT SAHIB : AMRITSAR
महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया।

7. गुरु जी के प्रतिदिन के जीवन में परिवर्तन (Changes in the daily life of the Guru)-अपनी नवीन नीति के कारण गुरु हरगोबिंद जी के प्रतिदिन के जीवन में भी कई परिवर्तन आ गए थे। उन्होंने अब शिकार खेलना आरंभ कर दिया था। उन्होंने अपने दरबार में अब्दुला तथा नत्था मल को वीर-रस से परिपूर्ण वारें गाने के लिए भर्ती किया। एक विशेष संगीत मंडली की स्थापना की गई जो रात्रि को ऊँची आवाज़ में जोशीले शब्द गाती हुई हरिमंदिर साहिब की परिक्रमा करती थी। गुरु साहिब ने अपने जीवन में ये परिवर्तन केवल सिखों में वीरता की भावना उत्पन्न करने के लिए किए थे।

26. “Sri Akal Takhat is one of the most sacred institutions of Sikhism. It has played historic role in the sociopolitical transformation of the Sikh community.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 140.

नई नीति का आलोचनात्मक मूल्याँकन (Critical Estimate of the New Policy)
जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति ने कई संदेह उत्पन्न कर दिए। डॉक्टर ट्रंप का कहना है कि गुरु जी ने अपने पूर्व गुरुओं के आदर्शों को त्याग दिया था। वास्तव में गुरु हरगोबिंद साहिब की नई नीति का गलत आँकलन किया गया है। गुरु साहिब ने पुरानी सिख परंपरा का त्याग नहीं किया था। वे प्रतिदिन सुबह हरिमंदिर साहिब ‘आसा दी वार’ का पाठ सुनते थे तथा उन्होंने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न स्थानों में अपने प्रचारक भेजे। यदि गुरु साहिब ने अपने प्रतिदिन के जीवन में कुछ परिवर्तन किए तो उसका उद्देश्य केवल सिखों में एक नया जोश उत्पन्न करना था। समय के साथ-साथ गुरु साहिब की सिखों की नई नीति के संबंध में उत्पन्न हुई शंकाएँ दूर होनी आरंभ हो गई थीं। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक देव जी के उपदेशों को ही वास्तविक रूप दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बक्शी के शब्दों
“यद्यपि बाहरी रूप में ऐसा लगता था कि गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक जी के उद्देश्यों को परिपूर्ण करने में भिन्न मार्ग अपनाया, किंतु यह मुख्य तौर पर गुरु नानक जी के आदर्शों पर ही आधारित था।”27

नई नीति का महत्त्व (Importance of the New Policy)
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। सिख अब संत सिपाही बन गए। वे ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ शस्त्रों का भी प्रयोग करने लग पड़े। इस नीति के अभाव में सिखों का पावन भ्रातृत्व समाप्त हो गया होता अथवा फिर वे फकीरों और संतों की एक श्रेणी बनकर रह जाते । गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के परिणामस्वरूप पंजाब के जाट अधिक संख्या में सिख पंथ में सम्मिलित हुए। इस नई नीति के कारण सिखों एवं मुग़लों के संबंधों में आपसी तनाव और बढ़ गया। शाहजहाँ के समय गुरु साहिब को मुग़लों के साथ चार युद्ध लड़ने पड़े। इन युद्धों में सिखों की विजय से मुग़ल साम्राज्य के गौरव को धक्का लगा। अंत में हम के० एस० दुग्गल के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु हरगोबिंद जी का सबसे महान् योगदान सिखों के जीवन मार्ग को एक नई दिशा देना था। उसने संतों को सिपाही बना दिया किंतु फिर भी परमात्मा के भक्त रहे”28

27. “Though outwardly, it may appear that Guru Hargobind persued a slightly different course for fulfilling the mission of Guru Nanak, yet, basically, it was Curu Nanak’s ideals that he preached.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, op. cit., Vol. 1, p. 24.
28. “Guru Hargobind’s greatest contribution is that he gave a new turn to the Sikh way of life. He turned saints into soldiers and yet remained a man of God.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 164.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 20.
गुरु हरगोबिंद जी के जहाँगीर तथा शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Describe briefly the relationship of Guru Hargobind Ji with Jahangir and Shah Jahan.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी एवं मुग़लों के संबंधों पर एक विस्तृत लेख लिखो। (Write a detailed note on relations between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंधों की चर्चा करें। (Explain the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। उनके गुरुगद्दी के काल के दौरान उनके मुग़लों के साथ संबंधों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—
प्रथम काल 1606-27 ई० (First Period 1606-27 A.D.)

1. गरु हरगोबिंद जी ग्वालियर में बंदी (Imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior)गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुन: इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भडक़ाया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु जी के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं।

2. कारावास की अवधि (Period of Imprisonment) इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं कि गुरु हरगोबिंद साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। दाबिस्तान-ए-मज़ाहिब के लेखक के अनुसार गुरु साहिब 12 वर्ष कारागृह में रहे। डॉक्टर इंदू भूषण बैनर्जी यह समय पाँच वर्ष, तेजा सिंह एवं गंडा सिंह दो वर्ष और सिख साखीकार यह समय चालीस दिन बताते हैं। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु हरगोबिंद साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

3. गुरु साहिब की रिहाई (Release of the Guru Sahib)—गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई के संबंध में भी इतिहासकारों ने कई मत प्रकट किए हैं। सिख साखीकारों का कहना है कि गुरु जी को बंदी बनाने के बाद जहाँगीर बहुत बेचैन रहने लग पड़ा था। भाई जेठा जी ने जहाँगीर को पूर्णत: ठीक कर दिया। उनके ही निवेदन पर जहाँगीर ने गुरु साहिब को रिहा कर दिया। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि जहाँगीर ने यह निर्णय सूफी संत मीयाँ मीर जी के निवेदन पर लिया था। कुछ अन्य इतिहासकारों के विचारानुसार जहाँगीर गुरु साहिब के बंदी काल के दौरान सिखों की गुरु जी के प्रति श्रद्धा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। फलस्वरूप जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु जी की जिद्द पर ग्वालियर के दुर्ग में ही बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा। इसके कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी छोड़ बाबा’ भी कहा जाने लगा।

4. जहाँगीर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Jahangir) शीघ्र ही जहाँगीर को यह विश्वास हो गया था कि गुरु साहिब निर्दोष थे और गुरु साहिब के कष्टों के पीछे चंदू शाह का बड़ा हाथ था। इसलिए जहाँगीर ने चंदू शाह को दंड देने के लिए सिखों के सुपुर्द कर दिया। यहाँ तक कि जहाँगीर ने अकाल तख्त साहिब के निर्माण कार्य के लिए सारा खर्चा देने की पेशकश की, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। इस प्रकार गुरु जी की ग्वालियर की रिहाई के पश्चात् तथा जहाँगीर की मृत्यु तक जहाँगीर एवं गुरु जी के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे।

द्वितीय काल 1628-35 ई० । (Second Period 1628-35 A.D.)
1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासनकाल में एक बार फिर सिखों और मुग़लों में निम्नलिखित कारणों से संबंध बिगड़ गए—

  1. शाहजहाँ की धार्मिक कट्टरता (Shah Jahan’s Fanaticism)—शाहजहाँ बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं के कई मंदिरों को नष्ट करवा दिया। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली के स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। फलस्वरूप सिखों में उसके प्रति अत्यधिक रोष उत्पन्न हो गया था।
  2. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Nagashbandis) नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। शाहजहाँ के सिंहासन पर बैठने के पश्चात् एक बार फिर नक्शबंदियों ने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ गुरु साहिब के विरुद्ध हो गया।
  3. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति भी सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंधों को बिगाड़ने का एक प्रमुख कारण बनी। इस नीति के कारण गुरु साहिब ने सैन्य शक्ति का संगठन कर लिया था। सिख श्रद्धालुओं ने उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कहकर संबोधित करना आरंभ कर दिया था। शाहजहाँ इस नीति को मुग़ल साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा समझता था। इसलिए उसने गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।
  4. कौलाँ का मामला (Kaulan’s Affair)-कौलाँ के मामले के कारण गुरु साहिब और शाहजहाँ के बीच तनाव में और वृद्धि हुई। कौलाँ लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की पुत्री थी। वह ‘गुरु अर्जन देव जी की वाणी को बहुत चाव से पढ़ती थी। काजी भला यह कैसे सहन कर सकता था। फलस्वरूप उसने अपनी बेटी पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। कौलाँ तंग आकर गुरु साहिब की शरण में चली गई। जब काज़ी को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब के विरुद्ध शाहजहाँ के खूब कान भरे।।

सिखों और मुग़लों की लड़ाइयाँ (Battles between the Sikhs and Mughals)
मुग़लों और सिखों के बीच 1634-35 ई० में हुई चार लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. अमृतसर की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Amritsar 1634 A.D.)-1634 ई० में अमृतसर में मुग़लों और सिखों के बीच प्रथम लड़ाई हुई। शाहजहाँ अपने सैनिकों सहित अमृतसर के निकट शिकार खेल रहा था। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने इस बाज़ को पकड़ लिया। मुग़ल सैनिकों ने बाज़ वापस करने की माँग की। सिखों के इंकार करने पर दोनों पक्षों में लड़ाई हो गई। इसमें कुछ मुग़ल सैनिक मारे गए। क्रोधित होकर शाहजहाँ ने लाहौर से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7,000 सैनिकों की एक टुकड़ी अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में गुरु साहिब के अतिरिक्त पैंदा खाँ ने अपनी वीरता प्रदर्शित की। मुखलिस खाँ गुरु साहिब से लड़ता हुआ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में विजय के कारण सिख सेनाओं का साहस बहुत बढ़ गया। इस लड़ाई के संबंध में लिखते हुए प्रो० हरबंस सिंह का कहना है,
“अमृतसर की लड़ाई यद्यपि एक छोटी घटना थी किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।”29

2. लहरा की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Lahira 1634 A.D.)-शीघ्र ही मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई के कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेंट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए। गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद भेष बदलकर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया। शाहजहाँ ने क्रोधित होकर तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों के दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। अंत में सिख विजयी रहे।

3. करतारपुर की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Kartarpur 1635 A.D.)-मुग़लों तथा सिखों के मध्य तीसरी लड़ाई 1635 ई० में करतारपुर में हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया। जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। पैंदा खाँ के उकसाने पर शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिखों के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में तेग़ बहादुर जी ने अपने शौर्य का खूब प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। इस प्रकार गुरु जी को एक शानदार विजय प्राप्त हुई।

4. फगवाड़ा की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Phagwara 1635 A.D.)—करतारपुर की लड़ाई के __पश्चात् गुरु हरगोबिंद जी कुछ समय के लिए फगवाड़ा आ गए। यहाँ अहमद खाँ के नेतृत्व में कुछ मुग़ल सैनिकों ने गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। चूंकि मुग़ल सैनिकों की संख्या बहुत कम थी इसलिए फगवाड़ा में दोनों सेनाओं में मामूली झड़प हुई। फगवाड़ा की लड़ाई गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।

लड़ाइयों का महत्त्व
(Importance of the Battles)
गुरु हरगोबिंद जी के काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इन लडाइयों में सिख विजयी रहे थे। इन लड़ाइयों में विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया था। सिखों ने अपने सीमित साधनों के बलबूते पर इन लड़ाइयों में विजय प्राप्त की थी। अत: गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए। परिणामस्वरूप सिख पंथ का बड़ी तीव्रता से विकास होने लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के अनुसार__ “इन लड़ाइयों का ऐतिहासिक महत्त्व इस बात में नहीं था कि ये कितनी बड़ी थीं अपितु इस बात में था कि इन्होंने आक्रमणकारियों के वेग को रोका तथा उनकी शक्ति को चुनौती दी। इसने मुगलों के विरुद्ध चेतना का संचार किया तथा दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत की।”30

29. “This Amritsar action was a small incident, but its implications were far-reaching.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Dehi : 1994) p. 49.
30. “The historical importance of these battles did not lie in their scale, but in the fact that the aggressor’s writ was rejected and his power scorned. A mood of defiance was generated against the Mughals and an example set for others.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 42.

गुरु हरराय जी (GURU HAR RAI JI)

प्रश्न 21.
गुरु हरराय जी के जीवन और उपलब्धियों के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Guru Har Rai Ji’s early career and achievements ?)
उत्तर-
गुरु हरराय जी सिखों के सातवें गुरु थे। उनके गुरुकाल (1645 से 1661 ई०) को सिख पंथ का शाँतिकाल कहा जा सकता है। गुरु हरराय जी के आरंभिक जीवन तथा उनके अधीन सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हरराय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब नामक स्थान पर हुआ। उनके माता जी का नाम बीबी निहाल कौर जी था। आप गुरु हरगोबिंद जी के पौत्र तथा बाबा गुरदित्ता जी के पुत्र थे।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)—आप बाल्यकाल से ही शाँत प्रकृति, मृदुभाषी तथा दयालु स्वभाव के थे। कहते हैं कि एक बार हरराय जी बाग में सैर कर रहे थे। उनके चोले से लग जाने से कुछ फूल झड़ गए। यह देखकर आपकी आँखों में आँसू आ गए। आप किसी का भी दुःख सहन नहीं कर सकते थे। आपका विवाह अनूप शहर (यू० पी०) के दया राम जी की सुपुत्री सुलक्खनी जी से हुआ। आपके घर दो पुत्रों रामराय तथा हरकृष्ण ने जन्म लिया।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु हरगोबिंद जी के पाँच पुत्र थे। बाबा गुरदित्ता, अणि राय तथा अटल राय अपने पिता के जीवन काल में स्वर्गवास को चुके थे। शेष दो में से सूरजमल का सांसारिक मामलों की ओर आवश्यकता से अधिक झुकाव था तथा तेग़ बहादुर जी का बिल्कुल नहीं। इसलिए गुरु हरगोबिंद जी ने बाबा गुरदित्ता के छोटे पुत्र हरराय जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया। आप 8 मार्च, 1645 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए। इस प्रकार आप सिखों के सातवें गुरु बने।

4. गुरु हरराय जी के समय में सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism under Guru Har Rai Ji)- गुरु हरराय जी 1645 ई० से 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। आपने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन मुख्य केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था। पहली बख्शीश एक संन्यासी गिरि की थी जिसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गुरु साहिब ने उसका नाम भक्त भगवान रख दिया। उसने पूर्वी भारत में सिख धर्म के बहुत-से केंद्र स्थापित किए। इनमें पटना, बरेली तथा राजगिरी के केंद्र प्रसिद्ध हैं। दूसरी बख्शीश सुथरा शाह की थी। उसे सिख धर्म के प्रचार के लिए दिल्ली भेजा गया। तीसरी बख्शीश भाई फेरु की थी। उनको राजस्थान भेजा गया था। इसी प्रकार भाई नत्था जी को ढाका, भाई जोधा जी को मुलतान भेजा गया तथा आप स्वयं पंजाब के कई स्थानों जैसे जालंधर, करतारपुर, हकीमपुर, गुरदासपुर, अमृतसर, पटियाला, अंबाला तथा हिसार आदि गए।

5. फूल को आशीर्वाद (Phool Blessed)—एक दिन काला नामक श्रद्धालु अपने भतीजों संदली तथा फूल को गुरु हरराय जी के दर्शन हेतु ले आया। उनकी शोचनीय हालत को देखते हुए गुरु साहिब ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि एक दिन वे बहुत धनी बनेंगे। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल की संतान ने फूलकिया मिसल की स्थापना की।

6. दारा की सहायता (Help to Prince Dara)-गुरु हरराय जी के समय दारा शिकोह पंजाब का गवर्नर था। वह औरंगज़ेब का बड़ा भाई था। सत्ता प्राप्त करने के प्रयास में औरंगजेब ने उसे विष दे दिया। इस कारण वह बहुत बीमार हो गया। उसने गुरु साहिब से आशीर्वाद माँगा। गुरु साहिब ने अमूल्य जड़ी-बूटियाँ देकर दारा की चिकित्सा की। इस कारण वह गुरु साहिब का आभारी हो गया। वह प्रायः उनके दर्शन के लिए आया करता।
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (16)
GURU HAR RAI JI

7. गुरु हरराय साहिब को दिल्ली बुलाया गया (Guru Har Rai was summoned to Delhi)औरंगज़ेब को संदेह था कि गुरु ग्रंथ साहिब में कुछ श्लोक इस्लाम धर्म के विरुद्ध हैं। इस बात की पुष्टि के लिए उसने आपको अपने दरबार में उपस्थित होने के लिए कहा। गुरु साहिब ने अपने पुत्र रामराय को औरंगज़ेब के पास भेजा। औरंगज़ेब ने ‘आसा दी वार’ में से एक पंक्ति की ओर संकेत करते हुए उससे पूछा कि इसमें मुसलमानों का विरोध क्यों किया गया है। यह पंक्ति थी,
मिटी मुसलमान की पेडै पई कुम्हिआर॥
घड़ भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार॥
इसका अर्थ था मुसलमान की मिट्टी कुम्हार के घमट्टे में चली जाएगी जो इससे बर्तन तथा ईंटें बनाएगा। जैसेजैसे वह जलेगी तैसे-तैसे मिट्टी चिल्लाएगी। औरंगजेब के क्रोध से बचने के लिए रामराय ने कहा कि इस पंक्ति में भूल से बेईमान शब्द की अपेक्षा मुसलमान शब्द लिखा गया है। गुरु ग्रंथ साहिब जी के इस अपमान के कारण आपने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु हरराय जी ने ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरुगद्दी अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण को सौंप दी। गुरु हरराय जी 6 अक्तूबर, 1661 ई० को ज्योति जोत समा गए।

9. गुरु हरराय जी के कार्यों का मूल्याँकन (Estimate of the works of Guru Har Rai Ji)-गुरु हरराय जी ने सिख पंथ के विकास में अमूल्य योगदान दिया। आप जी ने माझा, दोआबा और मालवा में सिख धर्म का प्रचार किया। आपने संगत और पंगत की मर्यादा को पूरी तेजी के साथ जारी रखा। आपके दवाखाने से बिना किसी भेद-भाव के नि:शुल्क चिकित्सा और सेवा प्रदान की जाती थी। इस प्रकार आपने सिख धर्म के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 22.
गुरु हरकृष्ण जी के समय सिख पंथ के हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of development of Sikhism during the pontificate of Guru Harkrishan Ji.)
उत्तर –
गुरु हरकृष्ण जी सिख इतिहास में बाल गुरु के नाम से जाने जाते हैं। वे 1661 ई० से लेकर 1664 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। उनके अधीन सिख पंथ में हुए विकास का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parents)-गुरु हरकृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० में कीरतपुर साहिब में हुआ। आप गुरु हरराय साहिब जी के छोटे पुत्र थे। आप जी की माता का नाम सुलक्खनी
जी था। रामराय आपके बड़े भाई थे।

2. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)—गुरु हरराय साहिब जी ने अपने बड़े पुत्र रामराय को उसकी अयोग्यता के कारण गुरुगद्दी से वंचित कर दिया था । 6 अक्तूबर, 1661 ई० को गुरु हरराय साहिब जी ने हरकृष्ण जी को गुरुगद्दी सौंप दी। उस समय हरकृष्ण साहिब जी की आयु मात्र 5 वर्ष थी। इस कारण इतिहास में आपको बाल गुरु के नाम से याद किया जाता है। यद्यपि आप उम्र में बहुत छोटे थे पर फिर भी आप बहुत उच्च प्रतिभा के स्वामी थे। आप में अद्वितीय सेवा भावना, बड़ों के प्रति मान-सम्मान, मीठा बोलना, दूसरों के प्रति सहानुभूति तथा अटूट भक्ति-भावना इत्यादि के गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। इन गुणों के कारण ही गुरु हरराय जी ने आपको गुरुगद्दी सौंपी। इस प्रकार आप सिखों के आठवें गुरु बने। आप 1664 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

3. रामराय का विरोध (Opposition of Ram Rai)-रामराय गुरु हरराय जी का बड़ा पुत्र होने के कारण गुरु साहिब के पश्चात् गुरुगद्दी का अधिकारी स्वयं को समझता था, परंतु गुरु हरराय जी उसे पहले ही गुरुगद्दी से वंचित कर चुके थे। जब उसे ज्ञात हुआ कि गुरुगद्दी हरकृष्ण साहिब को सौंपी गई है तो वह यह बात सहन न कर
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GURU HAR KRISHAN JI
सका। उसने गद्दी हथियाने के लिए षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसने बहुत-से बेईमान और स्वार्थी मसंदों को अपने साथ मिला लिया। इन मसंदों द्वारा उसने यह घोषणा करवाई कि वास्तविक गुरु रामराय हैं और सभी सिख उसी को अपना गुरु मानें परंतु वह उसमें सफल न हो पाया। फिर उसने औरंगजेब से सहायता लेने का प्रयास किया। औरंगज़ेब ने गुरु साहिब को दिल्ली बुलाया ताकि दोनों गुटों की बात सुनकर वह अपना निर्णय दे सके।

4. गुरु साहिब का दिल्ली जाना (Guru Sahib’s Visit to Delhi)-गुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली लाने का कार्य औरंगज़ेब ने राजा जय सिंह को सौंपा। राजा जय सिंह ने अपने दीवान परस राम को गुरु जी के पास भेजा। गुरु हरकृष्ण जी ने औरंगज़ेब से मिलने और दिल्ली जाने से इंकार कर दिया, परंतु परस राम के यह कहने पर कि दिल्ली की संगतें गुरु हरकृष्ण साहिब जी के दर्शनों के लिए बेताब हैं, गुरु हरकृष्ण जी ने दिल्ली जाना तो स्वीकार कर लिया, परंतु औरंगज़ेब से भेंट करने से इंकार कर दिया। आप 1664 ई० में दिल्ली चले गए और राजा जय सिंह के घर निवास करने के लिए मान गए। गुरु हरकृष्ण जी की औरंगज़ेब से भेंट हुई अथवा नहीं, इस संबंध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद पाए जाते हैं।

5. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-उन दिनों दिल्ली में चेचक और हैजा फैला हुआ था। गुरु हरकृष्ण जी ने यहाँ बीमारों, निर्धनों और लावारिसों की तन, मन और धन से अथक सेवा की। चेचक और हैजे के सैंकड़ों रोगियों को ठीक किया, परंतु इस भयंकर बीमारी का आप स्वयं भी शिकार हो गए। यह बीमारी उनके लिए घातक सिद्ध हुई। उन्हें बहुत गंभीर अवस्था में देखते हुए श्रद्धालुओं ने प्रश्न किया कि आपके पश्चात् उनका नेतृत्व कौन करेगा तो आप ने एक नारियल मंगवाया। नारियल और पाँच पैसे रखकर माथा टेका और “बाबा बकाला” का उच्चारण करते हुए 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति-जोत समा गए। आपकी याद में यहाँ गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण किया गया है।

गुरु हरकृष्ण जी ने कोई अढ़ाई वर्ष के लगभग गुरुगद्दी संभाली और गुरु के रूप में आपने सभी कर्त्तव्य बड़ी सूझ-बूझ से निभाए। आप इतनी कम आयु में भी तीक्ष्ण बुद्धि, उच्च विचार और अलौकिक ज्ञान के स्वामी थे।

प्रश्न 23.
गुरु तेग़ बहादुर जी के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Give a brief description of the early life of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नवम् गुरु थे। उनका गुरुकाल 1664 ई० से 1675 ई० तक रहा। गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए अनेक प्रदेशों की यात्राएँ कीं। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देकर उन्होंने भारतीय इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। गुरु जी के प्रारंभिक जीवन और यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आप गुरु हरगोबिंद जी के पाँचवें तथा सबसे छोटे पुत्र थे। आपके माता जी का नाम नानकी जी था। आपके पिता जी ने आपके जन्म पर भविष्यवाणी की कि यह बालक सत्य तथा धर्म के मार्ग पर चलेगा तथा अत्याचार का डट कर मुकाबला करेगा। गुरु जी का यह कथन सत्य सिद्ध हुआ।

2. बाल्यकाल तथा शिक्षा (Childhood and Education)-बचपन में आपका नाम त्यागमल था। जब आप पाँच वर्ष के हुए तो आपने बाबा बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त करनी आरंभ की। आपने पंजाबी, ब्रज, संस्कृत, इतिहास, दर्शन, गणित, संगीत आदि की शिक्षा प्राप्त की। आपको घुड़सवारी तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी गई। करतारपुर की लड़ाई में आपकी वीरता देखकर आपके पिता गुरु हरगोबिंद जी ने आपका नाम त्यागमल से बदल कर तेग बहादुर रख दिया।
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GURU TEGH BAHADUR JI

3. विवाह (Marriage)-तेग़ बहादुर जी का विवाह करतारपुर वासी लाल चंद जी की सुपुत्री गुजरी जी से हुआ। आपके घर 1666 ई० में एक पुत्र ने जन्म लिया। इस बालक का नाम गोबिंद राय अथवा गोबिंद दास रखा गया।

4. बकाला में निवास (Settlement at Bakala)-गुरु हरगोबिंद जी ने ज्योति-जोत समाने से पूर्व अपने पौत्र हरराय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने तेग बहादुर जी को अपनी पत्नी गुजरी जी तथा माता नानकी जी को लेकर बकाला चले जाने का आदेश दिया। यहाँ तेग बहादुर जी 20 वर्ष तक रहे।

5. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु हरकृष्ण जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व यह संकेत दिया था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है। जब यह समाचार बकाला पहुँचा तो 22 सोढियों ने अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा नामक एक सिख ने इसका समाधान ढूँढा । वह एक व्यापारी था। एक बार जब उसका समुद्री जहाज डूब रहा था तो उसने शुद्ध मन से गुरु साहिब के आगे अरदास की कि यदि उसका जहाज़ डूबने से बच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेंट करेगा। उसका जहाज़ किनारे लग गया। वह गुरु साहिब को 500 मोहरें भेंट करने के लिए बकाला पहुँचा। यहाँ वह 22 गुरु देखकर चकित रह गया। वास्तविक गुरु को ढूँढने के लिए उसने बारी-बारी प्रत्येक गुरु को दो-दो मोहरें भेंट की। नकली गुरु दो-दो मोहरें लेकर प्रसन्न हो गए। जब मक्खन शाह ने अंत में श्री तेग़ बहादुर जी को दो मोहरें भेंट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेंट करने का वचन दिया था परंतु अब केवल दो मोहरें ही भेंट कर रहा है।” यह सुनकर मक्खन शाह एक मकान की छत पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” अर्थात् गुरु मिल गया है। इस प्रकार सिख संगतों ने गुरु तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। गुरु तेग़ बहादुर जी 1664 ई० से 1675 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

6. धीरमल का विरोध (Opposition of Dhir Mal)-धीरमल गुरु हरराय जी का बड़ा भाई था। बकाला में स्थापित 22 मंजियों से एक धीरमल की भी थी। जब धीरमल को यह समाचार मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसने कुछ गुंडों के साथ गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से सिख रोष से भर उठे। वे धीरमल को पकड़कर गुरु जी के पास लाए। धीरमल द्वारा क्षमा याचना पर गुरु साहिब ने उसे क्षमा कर दिया।

प्रश्न 24.
गुरु तेग बहादुर जी की धर्म यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the religious tours of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान होने के शीघ्र पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब तथा पंजाब से बाहर की यात्राएँ आरंभ कर दीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को सत्य तथा प्रेम का संदेश देना था। गुरु साहिब की यात्राओं के उद्देश्य के संबंध में लिखते हुए विख्यात इतिहासकार एस० एस० जौहर का कहना है,
“गुरु तेग़ बहादुर ने लोगों को नया जीवन देने तथा उनके भीतर नई भावना उत्पन्न करना आवश्यक समझा।”31

31. “Guru Tegh Bahadur thought it necessary to infuse a new life and rekindle a new spirit among the people.” S.S. Johar, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1975) p. 104.

पंजाब की यात्राएँ (Travels of Punjab)

  1. अमृतसर (Amritsar)-गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ 1664 ई० में अमृतसर से किया। उस समय हरिमंदिर साहिब में पृथी चंद का पौत्र हरजी मीणा कुछ भ्रष्टाचारी मसंदों के साथ मिलकर स्वयं गुरु बना बैठा था। गुरु साहिब के आने की सूचना मिलते ही उसने हरिमंदिर साहिब के सभी द्वार बंद करवा दिए। जब गुरु साहिब वहाँ पहुँचे तो द्वार बंद देखकर उन्हें दुःख हुआ। अतः वह अकाल तख्त के निकट एक वृक्ष के नीचे जा बैठे। यहाँ पर अब एक छोटा-सा गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे ‘थम्म साहिब’ कहते हैं।
  2. वल्ला तथा घुक्केवाली (Walla and Ghukewali)-अमृतसर से गुरु तेग़ बहादुर जी वल्ला नामक गाँव गए। यहाँ लंगर में महिलाओं की अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया तथा कहा “माईयाँ रब्ब रजाईयाँ”। वल्ला के पश्चात् गुरु जी घुक्केवाली गाँव गए। इस गाँव में अनगिनत वृक्षों के कारण गुरु जी ने इसका नाम ‘गुरु का बाग’ रख दिया।
  3. खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरन तारन, खेमकरन आदि (Khadur Sahib, Goindwal Sahib, Tarn Taran, Khem Karan etc.)-गुरु तेग बहादुर साहिब की यात्रा के अगले पड़ाव खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब तथा तरन तारन थे। यहाँ पर गुरु जी ने लोगों को प्रेम तथा भाईचारे का संदेश दिया। तत्पश्चात् गुरु साहिब खेमकरन गए। यहाँ के एक श्रद्धालु चौधरी रघुपति राय ने गुरु साहिब को एक घोड़ी भेंट की।
  4. कीरतपुर साहिब और बिलासपुर (Kiratpur Sahib and Bilaspur)-माझा प्रदेश की यात्रा पूर्ण करने के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी कीरतपुर साहिब पहुँचे। वे रानी चंपा के निमंत्रण पर बिलासपुर पहुँचे। गुरु साहिब यहाँ तीन दिन ठहरे। गुरु साहिब ने रानी को 500 रुपए देकर माखोवाल में कुछ भूमि खरीदी तथा एक नए नगर की स्थापना की जिसका नाम उनकी माता जी के नाम पर “चक्क नानकी” रखा गया। बाद में यह स्थान श्री आनंदपुर साहिब के नाम से विख्यात हुआ।

पूर्वी भारत की यात्राएँ (Travels of Eastern India)
पंजाब की यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी ने पूर्वी भारत की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन निनलिखित अनुसार है—

1. सैफाबाद और धमधान (Saifabad and Dhamdhan)-अपनी पूर्वी भारत की यात्रा के दौरान सर्वप्रथम गुरु तेग़ बहादुर साहिब ने सैफाबाद तथा धमधान की यात्रा की। यहाँ गुरु साहिब के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आए। सिख धर्म के इस बढ़ते हुए प्रचार को देखकर औरंगज़ेब ने गुरु साहिब को बंदी बना लिया।

2. मथुरा और वृंदावन (Mathura and Brindaban)-अंबर के राजा राम सिंह के कहने पर औरंगज़ेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को छोड़ दिया। छूटने के बाद गुरु साहिब दिल्ली से मथुरा तथा वृंदावन पहुँचे। इन दोनों स्थानों पर गुरु साहिब ने धर्म प्रचार किया और संगतों को उपदेश दिए।

3. आगरा और प्रयाग (Agra and Paryag)—गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी की यात्रा का अगला पड़ाव आगरा था। यहाँ पर वह एक बुजुर्ग श्रद्धालु माई जस्सी के घर ठहरे। तत्पश्चात् गुरु साहिब प्रयाग पहुँचे। यहाँ गुरु साहिब ने संन्यासियों, साधुओं और योगियों को उपदेश देते हुए फरमाया “साधो मन का मान त्यागो।”
8. बनारस (Banaras)-प्रयाग की यात्रा के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी बनारस पहुँचे। यहाँ सिख संगतें प्रतिदिन बड़ी संख्या में गुरु साहिब के दर्शन और उनके उपदेश सुनने के लिए उपस्थित होतीं। यहाँ के लोगों का विश्वास था कि कर्मनाशा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति के सभी अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं। गुरु साहिब ने स्वयं इस नदी में स्नान किया और कहा कि नदी में स्नान करने से कुछ नहीं होता मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।

4. ससराम और गया (Sasram and Gaya) बनारस के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी सासराम पहुँचे। यहाँ पर एक श्रद्धालु सिख ‘मसंद फग्गू शाह’ ने गुरु साहिब की बहुत सेवा की। तत्पश्चात् गुरु साहिब गया पहँचे। यह बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ गुरु साहिब ने लोगों को सत्य तथा परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

5. पटना (Patna)-गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी 1666 ई० में पटना पहुँचे। यहाँ पर सिख संगतों (श्रद्धालुओं) ने गुरु साहिब का भव्य स्वागत किया। गुरु साहिब ने सिख सिद्धांतों पर प्रकाश डाला तथा पटना को ‘गुरु का घर’ कहकर सम्मानित किया। गुरु साहिब ने अपनी पत्नी और माता जी को यहाँ छोड़कर स्वयं मुंगेर के लिए प्रस्थान किया।

6.ढाका (Dhaka) ढाका पूर्वी भारत में सिख धर्म का एक प्रमुख प्रचार केंद्र था। गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी के आगमन के कारण बड़ी संख्या में लोग सिख-धर्म में शामिल हुए। गुरु साहिब ने यहाँ संगतों को जातिपाति के बंधनों से ऊपर उठने और नाम स्मरण से जुड़ने का संदेश दिया।

7. असम (Assam)–ढाका की यात्रा के बाद गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी अंबर के राजा राम सिंह के निवेदन पर असम गए। असमी लोग जादू-टोनों में बहुत कुशल थे। गुरु जी की उपस्थिति में जादू-टोने वाले प्रभावहीन होने लगे और उन्हें गुरु जी का लोहा मानना पड़ा। वे गुरु जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके दर्शनों के लिए आने लगे और उन्होंने अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की। तत्पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी अपने परिवार सहित पंजाब लौट आए और चक्क नानकी में रहने लगे।

मालवा और बांगर प्रदेश की यात्राएँ (Tours of Malwa and Bangar Region)
1673 ई० के मध्य में गुरु तेग़ बहादुर जी ने पंजाब के मालवा और बांगर प्रदेश की दूसरी बार यात्रा आरंभ की। इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब सैफ़ाबाद, मलोवाल, ढिल्लवां, भोपाली, खीवा, ख्यालां, तलवंडी, भठिंडा और धमधान आदि प्रदेशों में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब ने स्थान-स्थान पर धर्म प्रचार के केंद्र खोले और गुरु नानक जी का संदेश घर-घर पहुँचाया। गुरु साहिब के सर्वपक्षीय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए। अंत में, हम प्रसिद्ध इतिहासकार हरबंस सिंह के इन शब्दों से सहमत हैं, “गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं ने देश में एक तूफान-सा ला दिया। यह न तो पहले जैसा देश रहा और न ही वे लोग। उनमें नई जागृति आ चुकी थी।”32

32. “Guru Tegh Bahadur’s tours left the country in ferment. It was not the same country again, nor the same people. A new awakening had spread.” Harbans Singh, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1982) p. 92.

प्रश्न 25.
श्री गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी की शहीदी के बारे में चर्चा करें।
(Discuss the martyrdom of Sri Guru Tegh Bahadur Sahib Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारणों और परिणामों का वर्णन करें। (Discuss the causes and results of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारणों तथा महत्त्व का वर्णन करें। (Describe the causes and significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त विवरण दें। उनके बलिदान का देश एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Give a brief account of the circumstances leading to the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji. Also explain the effects of his execution on the country and the society.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किन कारणों से हुई ? इन्हें कब, कहाँ और कैसे शहीद किया गया ?
(What were the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ? When, where and how was he executed ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण और महत्त्व का वर्णन करें। (Describe the causes and significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना है। धर्म तथा मानवता के लिए अपना बलिदान देकर गुरु साहिब ने अपना नाम चिरकाल के लिए अमर कर लिया। गुरु जी के बलिदान से जुड़े तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. बलिदान के कारण (Causes of Martyrdom)
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—0

1. मुग़लों और सिखों में शत्रुता (Enmity between the Mughals and the Sikhs)-1605 ई० तक सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध चले आ रहे थे, परंतु जब 1606 ई० में मुग़ल सम्राट जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया तो ये संबंध शत्रुता में बदल गए। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण उन्हें जहाँगीर द्वारा दो वर्ष के लिए ग्वालियर के दुर्ग में नज़रबंद कर दिया गया। शाहजहाँ के काल में गुरु हरगोबिंद जी को चार लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। औरंगजेब के शासनकाल में सिखों और मुग़लों के बीच शत्रुता में और वृद्धि हो गई। यही शत्रुता गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बनी।

2. औरंगजेब की कट्टरता (Fanaticism of Aurangzeb)-औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता भी गुरु साहिब के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। औरंगज़ेब 1658 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह भारत में चारों ओर इस्लाम धर्म का बोलबाला देखना चाहता था। इसलिए उसने हिंदुओं के कई प्रसिद्ध मंदिरों को गिरवा कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं तथा उनके त्योहारों और रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिए। 1679 ई० में हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगा दिया गया। तलवार के बल पर लोगों को बलपूर्वक इस्लाम धर्म में सम्मिलित किया जाने लगा। औरंगज़ेब ने यह भी आदेश दिया कि सिखों के सभी गुरुद्वारों को गिरा दिया जाए और मसंदों को देश निकाला दे दिया जाए। डॉक्टर आई० बी० बैनर्जी के अनुसार,
“निस्संदेह औरंगजेब के सिंहासन पर बैठने के साथ ही साम्राज्य की सारी नीति को उलट दिया गया और एक नए युग का सूत्रपात हुआ।”33

3. नक्शबंदियों का औरंगज़ेब पर प्रभाव (Impact of Naqashbandis on Aurangzeb)-कट्टर सुन्नी मुसलमानों के नक्शबंदी संप्रदाय का औरंगज़ेब पर बहुत प्रभाव था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति असहनीय थी। नक्शबंदियों को यह खतरा हो गया कि कहीं सिख धर्म का विकास इस्लाम के लिए कोई गंभीर चुनौती न बन जाए। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध औरंगजेब को भड़काना आरंभ कर दिया।

4. सिख धर्म का प्रचार (Spread of Sikhism)-गुरु तेग़ बहादुर साहिब की सिख धर्म के प्रचार के लिए की गई यात्राओं से प्रभावित होकर हज़ारों लोग सिख मत में सम्मिलित हो गए थे। गुरु साहिब जी ने सिख मत के प्रचार में तीव्रता और योग्यता लाने के लिए सिख प्रचारक नियुक्त किए तथा उन्हें संगठित किया। सिख धर्म का हो रहा विकास तथा उसका संगठन औरंगज़ेब की सहन शक्ति से बाहर था।

5. रामराय की शत्रुता (Enmity of Ram Rai)-रामराय गुरु हरकृष्ण जी का बड़ा भाई था। गुरु हरकृष्ण जी के पश्चात् जब गुरुगद्दी तेग़ बहादुर जी को मिल गई तो वह यह सहन न कर पाया। उसने गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए कई हथकंडे अपनाने आरंभ किए। जब उसके सभी प्रयास असफल रहे तो उसने गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी के विरुद्ध औरंगज़ेब के कान भरने आरंभ कर दिए।

6. कश्मीरी पंडितों की पुकार (Call of Kashmiri Pandits)-कश्मीरी ब्राह्मण अपने धर्म और प्राचीन संस्कृति के संबंधों में बहुत दृढ़ थे तथा समस्त भारत में उनका आदर होता था। औरंगज़ेब ने सोचा कि यदि ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। उसने शेर अफ़गान को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया। शेर अफ़गान ने इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार किए। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका 16 सदस्यों का एक दल 25 मई, 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी करुण याचना लेकर पहुँचा। गुरु साहिब के मुख पर गंभीरता देख बालक गोबिंद राय ने पिता जी से इसका कारण पूछा। गुरु साहिब ने बताया कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने झट से कहा, “पिता जी आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ?” बालक के मुख से यह उत्तर सुनकर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कश्मीरी पंडितों से कहा कि वे जाकर मुग़ल अधिकारियों को यह बता दें कि यदि वे गुरु तेग़ बहादुर जी को मुसलमान बना लें तो वे बिना किसी विरोध के इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे।

33. “Necessarily, on the accession of Aurangzeb the entire policy of the Empire was reversed and a new era commenced.” Dr. I.B. Banerjee, Evolution of the Khalsa (Calcutta : 1972) Vol 2, p. 68.

II. बलिदान किस प्रकार हुआ ? (How was Guru Martyred ?)
औरंगज़ेब ने गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी को दिल्ली बुलाने का निश्चय किया। गुरु तेग़ बहादुर जी अपने तीन साथियों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी तथा भाई दयाला जी को लेकर 11 जुलाई, 1675 ई० को श्री आनंदपुर साहिब से दिल्ली के लिए रवाना हुए। मुग़ल अधिकारियों ने उन्हें रोपड़ के निकट गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 4 महीने तक सरहिंद के कारावास में रखा गया तथा औरंगजेब के आदेश पर 6 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली दरबार में पेश किया गया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम धर्म अथवा मृत्यु में से एक स्वीकार करने को कहा। गुरु साहिब तथा उनके तीनों साथियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। मुग़लों ने गुरु जी को हतोत्साहित करने के लिए उनके तीनों साथियों भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी तथा भाई दयाला जी को उनके सम्मुख शहीद कर दिया। इसके पश्चात् गुरु जी को कोई चमत्कार दिखाने के लिए कहा गया, परंतु गुरु साहिब ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप 11 नवंबर,1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरु जी का शीश धड़ से अलग कर दिया गया। हरबंस सिंह तथा एल० एम० जोशी का यह कथन पूर्णतः ठीक है,
“यह भारतीय इतिहास की सर्वाधिक दिल दहला देने वाली एवं कंपाने वाली घटना थी।”34

जिस स्थान पर गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद किया गया उस स्थान पर गुरुद्वारा शीश गंज का निर्माण किया गया। भाई लक्खी शाह गुरु जी के धड़ को अपनी बैलगाड़ी में छुपा कर अपने घर ले आया। यहाँ उसने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने घर को आग लगा दी। इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा रकाब गंज बना हुआ है।

34. “This was a most moving and earthshaking event in the history of India.” Harbans Singh and L.M. Joshi, An Introduction to Indian Religions (Patiala : 1973) p. 248.

III. बलिदान का महत्त्व (Significance of the Martyrdom)
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान की घटना न केवल सिख इतिहास अपितु समूचे विश्व इतिहास की एक अतुलनीय घटना है। इस बलिदान से न केवल पंजाब, अपितु भारत के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े। गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के साथ ही महान् मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। डॉक्टर त्रिलोचन सिंह के शब्दों में,
“गुरु तेग़ बहादुर जी के महान् बलिदान के सिखों पर प्रभावशाली एवं दूरगामी प्रभाव पड़े।”35

1. इतिहास की एक अद्वितीय घटना (A Unique Event of History)-संसार का इतिहास बलिदानों से भरा पड़ा है। ये बलिदान अधिकतर अपने धर्म की रक्षा अथवा देश के लिए दिए गए। परंतु गुरु तेग़ बहादुर जी ने मानवता तथा सत्य के लिए अपना शीश दिया। निस्संदेह संसार के इतिहास में यह एक अतुलनीय उदाहरण थी। इसी कारण गुरु तेग़ बहादुर जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।

2. सिखों में प्रतिशोध की भावना (Feeling of revenge among the Sikhs)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के फलस्वरूप समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। अतः सिखों ने मुग़लों के अत्याचारी शासन का अंत करने का निर्णय किया।

3. हिंदू धर्म की रक्षा (Protection of Hinduism)-औरंगज़ेब के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे अत्याचारों से तंग आकर बहुत-से हिंदुओं ने इस्लाम धर्म को स्वीकार करना आरंभ कर दिया था। हिंदू धर्म के अस्तित्व के लिए भारी खतरा उत्पन्न हो चुका था। ऐसे समय में गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपना बलिदान देकर हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया। इस बलिदान ने हिंदू कौम में एक नई जागृति उत्पन्न की। अतः वे औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिए तैयार हो गए। ,

4. खालसा का सृजन (Creation of the Khalsa)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब धर्म की रक्षा के लिए उनका संगठित होना अत्यावश्यक है। इस उद्देश्य से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई० में बैसाखी के दिन खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा पंथ के सृजन ने ऐसी बहादुर जाति को जन्म दिया जिसने मुग़लों और अफ़गानों का पंजाब से नामो-निशान मिटा दिया।

5. बलिदानों की परंपरा का आरंभ होना (Beginning of the tradition of Sacrifice)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक परंपरा आरंभ कर दी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस मार्ग का अनुसरण करते हुए अनेक कष्ट सहन किए। आपके छोटे साहिबजादों को जीवित नींवों
में चिनवा दिया गया। बड़े साहिबजादे युद्धों में शहीद हो गए। गुरु साहिब के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर तथा उनके साथ सैंकड़ों सिखों ने बलिदान दिए। सिखों ने मुग़ल अत्याचारों के आगे हँस-हँस कर बलिदान दिए। इस प्रकार गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान आने वाली नस्लों के लिए एक प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ।

6. सिखों और मुग़लों में लड़ाइयाँ (Battles between the Sikhs and the Mughals)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों एवं मुग़लों के बीच लड़ाइयों का एक लंबा दौर आरंभ हुआ। इन लड़ाइयों के दौरान सिख चट्टान की तरह अडिग रहे। अपने सीमित साधनों के बावजूद सिखों ने अपनी वीरता के कारण महान् मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया। अंत में, हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के इन शब्दों
से सहमत हैं,
“गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान भारतीय इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इसके बहुत गहरे परिणाम निकले।”36

35. “The impact of the great sacrifice of Guru Tegh Bahadur was extremely powerful and far-reaching in its consequences on the Sikh people.” Dr. Trilochan Singh, Guru Tegh Bahadur : Prophet and Martyr (New Delhi : 1978) p. 179.
36. “The Martyrdom of Guru Tegh Bahadur was an event of great significance in the history of India. It had farreaching consequences.” S.S. Johar, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1975) p. 231.

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 26.
गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the life of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी लिखें।
(Write about the life of Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-गुरु गोबिंद सिंह जी न केवल पंजाब बल्कि संसार के महान् व्यक्तियों में से एक थे। सिख पंथ का जिस योग्यता एवं बुद्धिमता से गुरु गोबिंद सिंह जी ने नेतृत्व किया, उसकी इतिहास में कोई अन्य उदाहरण मिलनी बहुत ही मुश्किल है। खालसा पंथ की स्थापना के साथ ही उन्होंने सिख पंथ में नए युग का सूत्रपात किया। गुरु गोबिंद सिंह जी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1.जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage) मात्र 9 वर्ष की आयु में अपने पिता जी को धर्म की रक्षा हेतु बलिदान देने की प्रेरणा देने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर, 1666 ई० को पटना साहिब में हुआ था। आप गुरु तेग़ बहादुर जी के इकलौते पुत्र थे। आपकी माता जी का नाम गुजरी जी था। आपका आरंभिक नाम गोबिंद दास अथवा गोबिंद राय रखा गया। 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना के पश्चात् आपका नाम गोबिंद सिंह पड़ गया था। गोबिंद दास के जन्म के समय एक मुस्लिम फकीर भीखण शाह ने यह भविष्यवाणी की थी, कि यह बालक बड़ा होकर महापुरुष बनेगा और यह भविष्यवाणी सत्य निकली।

2. बचपन (Childhood)-गोबिंद दास ने अपने बचपन के पहले 6 वर्ष पटना साहिब में ही व्यतीत किए। बचपन से ही गोबिंद दास में एक महान् योद्धा के सभी गुण विद्यमान् थे। वह तीरकमान तथा अन्य शस्त्रों से खेलते, अपने साथियों को दो गुटों में विभाजित करके उनमें कृत्रिम युद्ध करवाते। वह कई बार अपना दरबार लगाते तथा साथी बच्चों के झगड़ों के फैसले भी करते। उनके बचपन की अनेक घटनाओं से उनकी वीरता तथा बुद्धिमता की उदाहरण मिलती है। गुरु गोबिंद सिंह जी के नाबालिग काल में उनकी सरपरस्ती उनके मामा श्री कृपाल चंद जी ने की।

3. शिक्षा (Education)-1672 ई० में आप परिवार सहित आनंदपुर साहिब आ गए। यहाँ पर आप की शिक्षा के लिए विशेष प्रबंध किया गया। आपने भाई साहिब चंद से गुरमुखी, पंडित हरिजस से संस्कृत और काज़ी पीर मुहम्मद से फ़ारसी और अरबी का ज्ञान प्राप्त किया। आपने घुड़सवारी और शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण बजर सिंह नामी एक राजपूत से प्राप्त किया।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-औरंगज़ेब के अत्याचारों से तंग आकर कश्मीरी पंडितों का एक जत्था अपनी दःखभरी याचना लेकर गुरु तेग़ बहादुर जी के पास मई, 1675 ई० में आनंदपुर साहिब पहुँचा। कश्मीरी पंडितों की गुहार तथा पुत्र की प्रेरणा पर धर्म की रक्षा हेतु गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय किया। गुरु साहिब ने दिल्ली में अपनी शहीदी देने से पूर्व गोबिंद दास को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किए जाने की घोषणा की। इस प्रकार गोबिंद दास को सिख परंपरा के अनुसार 11 नवंबर, 1675 ई० को गुरुगद्दी पर बैठाया गया। इस तरह आप 9 वर्ष की आयु में सिखों के दशम गुरु बने। आप 1708 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे।

5. विवाह (Marriage)–कहा जाता है कि गोबिंद दास जी ने बीबी जीतो जी, बीबी सुंदरी जी और बीबी साहिब देवाँ जी नामक तीन स्त्रियों से विवाह किया था। गुरु साहिब को चार पुत्र-रत्नों की प्राप्ति हुई। इनके नाम साहिबज़ादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतह सिंह जी थे।

6. सेना का संगठन (Army Organisation)-गुरुगद्दी पर विराजमान होने के शीघ्र पश्चात् गुरु गोबिंद सिंह जी ने यह घोषणा की कि जिस सिख के चार पुत्र हों, वह दो पुत्र गुरु साहिब की सेना में भर्ती करवाए। इसके
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (14)
GURU GOBIND SINGH JI
साथ ही गुरु साहिब ने यह आदेश भी दिया कि सिख धन के स्थान पर घोड़े और शस्त्र भेंट करें। शीघ्र ही गुरु साहिब की सेना में बहुत-से सिख भर्ती हो गए और उनके पास बहुत-से शस्त्र और घोड़े भी एकत्रित हो गए। इन सब के पीछे गुरु साहिब का उद्देश्य मुग़ल साम्राज्य को टक्कर देना था।

7. शाही प्रतीक धारण करना (Adoptation of Royal Symbols)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने दादा गुरु हरगोबिंद साहिब जी की भाँति शाही प्रतीकों को धारण करना आरंभ कर दिया। वह अपनी दस्तार में कलगी सजाने लग पड़े। उन्होंने सिंहासन और छत्र का प्रयोग करना आरंभ कर दिया। इनके अतिरिक्त गुरु साहिब ने एक विशेष नगाड़ा भी बनवाया, जिसका नाम रणजीत नगाड़ा रखा गया।

8. नाहन से निमंत्रण (Invitation from Nahan) गुरु गोबिंद सिंह जी की सैनिक गतिविधियों के कारण कहलूर का शासक, भीम चंद गुरु साहिब से ईर्ष्या करने लग पड़ा था। गुरु साहिब अभी किसी भी प्रकार के सैनिक द्वंद्व में पड़ना नहीं चाहते थे। इसी समय नाहन के राजा, मेदनी प्रकाश ने उन्हें नाहन आने का निमंत्रण दिया। गुरु साहिब ने यह निमंत्रण तुरंत स्वीकार कर लिया और वह माखोवाल से अपने परिवार सहित नाहन चले गए। यहाँ पर गुरु साहिब ने एक दुर्ग का निर्माण करवाया, जिसका नाम पाऊँटा साहिब रखा गया।

9. पाऊँटा साहिब में गतिविधियाँ (Activities at Paonta Sahib)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने पाऊँटा साहिब में सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देना आरंभ कर किया। उन्हें घुड़सवारी, तीर कमान और शस्त्रों का प्रयोग करने में निपुण बनाया गया। गुरु साहिब ने साढौरा के पीर बुद्ध शाह की सिफ़ारिश पर 500 पठानों को भी अपनी सेना में भर्ती कर लिया। पाऊँटा साहिब में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने बड़े उच्च कोटि के साहित्य की भी रचना की। गुरु साहिब ने अपने दरबार में 52 प्रसिद्ध कवियों को संरक्षण दिया हुआ था। इनमें सैनापत, नंद लाल, हंस राम एवं अनी राय प्रमुख थे। आपकी साहित्यिक रचना का उद्देश्य परमात्मा की प्रसँसा करना और सिखों में एक नया जोश उत्पन्न करना था। गुरु साहिब की साहित्यिक क्षेत्र में देन अद्वितीय थी।

प्रश्न 27.
गुरु गोबिंद सिंह जी की पूर्व खालसा काल तथा उत्तर खालसा काल में लड़ी गई लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन दो।
(Give a brief account of Pre-Khalsa and Post-Khalsa battles of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के पूर्व खालसा काल तथा उत्तर खालसा काल की लड़ाइयों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the Pre-Khalsa and Post-Khalsa battles of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रसिद्ध लड़ाइयों का वर्णन करें। (Describe the important battles of Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
गुरुगद्दी पर विराजमान होते ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी सैनिक गतिविधियाँ आरंभ कर दीं। गुरु जी की सैनिक गतिविधियों ने पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों को उनके विरुद्ध कर दिया। परिणामस्वरूप नौबत युद्ध तक आ गई। गुरु गोबिंद सिंह जी की पूर्व-खालसा तथा उत्तर-खालसा काल की लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. भंगाणी की लड़ाई 1688 ई० (Battle of Bhangani 1688 A.D.)—गुरु गोबिंद सिंह जी और पहाड़ी राजाओं के बीच प्रथम लड़ाई भंगाणी में हुई। इस लड़ाई के कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पाऊँटा साहिब में सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देने से पहाड़ी राजाओं में घबराहट उत्पन्न हो गई। दूसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी मूर्ति-पूजा और जाति-प्रथा के विरुद्ध प्रचार करते थे। इसे पहाड़ी राजा अपने धर्म में हस्तक्षेप समझते थे। तीसरा, पहाड़ी राजाओं ने सिख संगतों द्वारा लाए जा रहे उपहारों को मार्ग में ही लूटना आरंभ कर दिया था। गुरु साहिब यह बात पसंद नहीं करते थे। चौथा, गुरु जी द्वारा भीम चंद को सफेद हाथी देने से इंकार करना था। पाँचवां, मुग़ल सरकार ने इन पहाड़ी राजाओं को गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए भड़काया। फलस्वरूप कहलूर के शासक भीम चंद और श्रीनगर के शासक फतह शाह के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं के गठबंधन ने गुरु साहिब पर भंगाणी नामक स्थान पर 22 सितंबर, 1688 ई० को आक्रमण कर दिया।

इस लडाई के आरंभ होने से पूर्व ही गुरु साहिब की सेना के पठान सैनिक गरु साहिब को धोखा दे गए। ऐसे समय साढौरा का पीर बुद्ध शाह गुरु साहिब की सहायता के लिए अपने चार पुत्रों और 700 सैनिकों सहित रणभूमि में पहुँच गया । इस लड़ाई में गुरु हरगोबिंद साहिब की सुपुत्री बीबी वीरो के पाँच पुत्रों ने बहुत वीरता दिखाई। इस लड़ाई में पहाड़ी राजाओं के बहुत-से सैनिक और प्रसिद्ध नेता मारे गए। भीम चंद और फतह शाह युद्ध-भूमि से भाग गए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह ने इस लड़ाई में शानदार विजय प्राप्त की। इस विजय से गुरु साहिब की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई।

2. नादौन की लड़ाई 1690 ई० (Battle of Nadaun 1690 A.D.)-भंगाणी की लड़ाई के पश्चात् गुरु गोबिंद सिंह जी पुनः श्री आनंदपुर साहिब आ गए। इसी समय पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों को दिया जाने वाला वार्षिक खिराज (कर) देना बंद कर दिया। जब औरंगजेब को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसके आदेश पर जम्मू के सूबेदार मीयाँ खाँ ने तुरंत अपने एक जरनैल, आलिफ खाँ के अंतर्गत मुगलों की एक भारी सेना इन पहाड़ी राजाओं ने विरुद्ध भेजी। ऐसे समय में भीम चंद ने गुरु साहिब को सहायता के लिए निवेदन किया। गुरु साहिब ने यह निवेदन स्वीकार कर लिया। 20 मार्च, 1690 ई० को काँगड़ा के पास नादौन में भीम चंद और आलिफ खाँ की सेनाओं में लड़ाई आरंभ हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब और सिखों की वीरता के कारण आलिफ खाँ को पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार गुरु साहिब के सहयोग से भीम चंद और उसके साथी पहाड़ी राजाओं को विजय प्राप्त हुई।

3. खानजादा का अभियान 1694 ई० (Expedition of Khanzada 1694 A.D.)-गुरु गोबिंद सिंह जी की बढ़ती हुई लोकप्रियता औरंगजेब के लिए चिंता का विषय बन गई। उसके आदेश पर लाहौर के सूबेदार, दिलावर खाँ ने अपने पुत्र खानजादा रुस्तम खाँ के अंतर्गत गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। उसने रात्रि के अंधकार में आक्रमण करने की योजना बनाई। रुस्तम खाँ के आगमन का रात्रि को पहरा दे रहे सिख को पता चल गया। उसने फ़ौरन इसकी सूचना सिखों को दी। सिखों ने जैकारे की आवाज़ गुंजाई और गोलियाँ चलानी आरंभ की। परिणामस्वरूप, मुग़ल सैनिक बिना मुकाबला किए ही युद्ध के मैदान से भाग निकले।

4. कुछ सैनिक अभियान 1695-96 ई० (Some Military Expeditions 1695-96 A.D.)-1695-96 ई० .. में मुगलों ने गुरु जी की शक्ति को कुचलने के लिए हुसैन खाँ, जुझार सिंह तथा शहजादा मुअज्जम के अधीन कुछ सैनिक अभियान भेजे । ये सभी अभियान किसी न किसी कारण असफल रहे तथा गुरु जी की शक्ति कायम
रही।

5. श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई 1701 ई० (First Battle of Sri Anandpur Sahib 1701 A.D.)-खालसा पंथ की स्थापना के बाद गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति के कारण पहाड़ी राजाओं में घबराहट पैदा हो गई। कहलूर के राजा भीम चंद, जिसकी रियासत में श्री आनंदपुर साहिब स्थित था, ने गुरु जी को श्री आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए कहा। गुरु जी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। इस पर भीम चंद ने कुछ पहाड़ी राजाओं से मिलकर 1701 ई० में श्री आनंदपुर साहिब के किले पर आक्रमण कर दिया। किले में सिखों की संख्या बहुत कम थी, फिर भी उन्होंने पहाड़ी राजाओं की सेनाओं का खूब डटकर सामना किया। जब पहाड़ी राजाओं ने देखा कि सफलता मिलने की कोई आशा नहीं है तो उन्होंने गुरु जी से संधि कर ली।

6. श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई 1704 ई० (Second Battle of Sri Anandpur Sahib 1704 A.D.)-पहाड़ी राजाओं ने गुरु गोबिंद सिंह जी से प्रतिशोध लेने की खातिर मुग़ल सेनाओं से मिलकर मई, 1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब को दूसरी बार घेर लिया! घेरे की अवधि बहुत लंबी हो गई, जिस कारण दुर्ग __ के भीतर खाद्य-सामग्री कम होनी आरंभ हो गई। इसलिए मुगलों का मुकाबला करना कठिन हो गया। गुरु साहिब ने सिखों को कुछ और दिन संघर्ष जारी रखने को कहा। परंतु 40 सिख गुरु जी को बेदावा देकर दुर्ग छोड़ कर चले गए। दूसरी ओर शाही सेना भी बहुत परेशान थी। उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने कुरान और गायों की कसम खाकर गुरु साहिब को विश्वास दिलाया, कि यदि वे श्री आनंदपुर साहिब छोड़ दें तो उन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचाई जायेगी। गुरु साहिब को इन कस्मों पर कोई विश्वास नहीं था, परंतु माता गुजरी और कुछ सिखों के निवेदन पर गुरु साहिब ने श्री आनंदपुर साहिब के दुर्ग को छोड़ दिया।

7. सिरसा की लड़ाई 1704 ई० (Battle of the Sirsa 1704 A.D.)– श्री आनंदपुर साहिब छोड़ते ही मुग़ल सैनिकों ने गुरु गोबिंद सिंह जी पर फिर आक्रमण कर दिया। शाही सेना तथा सिखों में सिरसा में लड़ाई हुई। इस समय सिरसा नदी में बाढ़ कारण सिखों में भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ में गुरु साहिब के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी और माता गुजरी जी उनसे बिछुड़ गए। गंगू जो गुरु साहिब का पुराना सेवक था, ने लालच में आकर उन्हें सरहिंद के नवाब वज़ीर खाँ को सौंप दिया। नवाब वज़ीर खाँ ने इन दोनों छोटे साहिबजादों को 27 दिसंबर, 1704 ई० को दीवार में जीवित चिनवा दिया।

8. चमकौर साहिब की लड़ाई 1704 ई० (Battle of Chamkaur 1704 A.D.)-इसके उपरांत गुरु गोबिंद सिंह जी अपने 40 सिखों के साथ चमकौर साहिब पहुँचे। गुरु जी तथा उनके साथियों ने एक गढ़ी में शरण ली। मुग़ल सेना ने गढ़ी पर 22 दिसंबर, 1704 ई० को आक्रमण कर दिया। यह बड़ी जबरदस्त लड़ाई थी। इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े साहिबजादों अजीत सिंह जी तथा जुझार सिंह जी ने अत्यंत वीरता का प्रदर्शन किया और अंततः लड़ते-लड़ते शहीद हो गये। जब पाँच सिख शेष रह गए तो उन्होंने खालसा पंथ के लिए गुरु साहिब से गढ़ी छोड़ देने की प्रार्थना की। गुरु जी ने इस प्रार्थना को सिख पंथ का आदेश समझकर अपने साथ तीन सिखों को लेकर गढ़ी छोड़ दी।

9. गुरु जी माछीवाड़ा में (Guru Ji in Machhiwara)-गुरु गोबिंद सिंह जी चमकौर की लड़ाई के पश्चात् माछीवाड़ा के वनों में पहुंचे। यहाँ दो मुसलमान भाइयों नबी खाँ तथा गनी खाँ ने गुरु जी को एक पालकी में बिठा कर मुग़ल सैनिकों से उनकी रक्षा की। दीना कांगड़ नामक स्थान पर पहुँचने पर गुरु जी ने ज़फ़रनामा नामक फ़ारसी में एक चिट्ठी औरंगजेब को लिखी। इस चिट्ठी में गुरु जी ने बहुत निर्भीकता से औरंगजेब के अत्याचारों की आलोचना की।

10. खिदराना की लड़ाई 1705 ई० (Battle of Khidrana 1705 A.D.)-गुरु गोबिंद सिंह जी तथा मुग़ल सेना में लड़ी जाने वाली अंतिम निर्णायक लड़ाई खिदराना में हुई। 29 दिसंबर, 1705 ई० को सरहिंद के नवाब वजीर खाँ ने गुरु जी की सेना पर खिदराना के स्थान पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में सिखों ने बड़ी वीरता दिखाई और बड़ी शानदार विजय प्राप्त हुई। इसी लड़ाई में वे 40 सिख भी शहीद हो गए, जो श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई में गुरु जी का साथ छोड़ गए थे। उनके अद्वितीय बलिदान से प्रभावित होकर गुरुं साहिब ने उन्हें मुक्ति का वरदान दिया। इसी कारण खिरदाना का नाम श्री मुक्तसर साहिब पड़ गया। प्रसिद्ध लेखक करतार सिंह के अनुसार,
“यह सच है कि वह (गुरु गोबिंद सिंह जी) मुग़ल साम्राज्य अथवा शक्ति को नष्ट न कर सके परंतु इसे जड़ से हिलाकर रख दिया था।”37

37. “It is true that he did not actually uproot the Mughal empire or power, but he shook it violently to its very foundations.” Kartar Singh, Life of Guru Gobind Singh (Ludhiana : 1976) p. 222.

प्रश्न 28.
खालसा पंथ के सृजन का वर्णन करें। (Describe about the creation of Khalsa Panth.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा का सृजन क्यों किया ? इसके मुख्य सिद्धांतों एवं महत्त्व का भी वर्णन करें।
(Why was Khalsa created by Guru Gobind Singh Ji ? Explain its main principles and importance.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के द्वारा ‘खालसा सृजना’ के क्या कारण थे ? चर्चा कीजिए।
(What were the reasons of ‘Khalsa Sirjana’ by Guru Gobind Singh Ji ? Discuss.)
अथवा
खालसा पंथ के सृजन के बारे में आप क्या जानते हैं ? पाँच प्यारों के नाम बताएँ।
[What do you know about the creation of Khalsa Panth ? Name the Panj Piaras (Five Beloved ones).]
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा कैसे प्रकट किया ?
(How did Gobind Singh create Khalsa ?)
अथवा
खालसा पंथ का सृजन किस प्रकार हुआ ? संक्षेप उत्तर लिखें। (How Khalsa Panth was created ? Answer briefly.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की रचना करके सिख लहर को संपन्न किया। स्पष्ट करें।
(Guru Gobind Singh completed the Sikh Movement with the creation of the Khalsa. Explain.)
अथवा
खालसा निर्माण प्रभाव के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the effects of creation of Khalsa.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी का सबसे महान् कार्य 1699 ई० में वैसाखी वाले दिन खालसा पंथ का सृजन करना था। खालसा पंथ के सृजन को सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात माना जाता है। खालसा पंथ की स्थापना के कारण, उसकी स्थापना तथा उसके महत्त्व का विवरण निम्नलिखित अनुसार है। प्रसिद्ध लेखक हरबंस सिंह के अनुसार,
“यह इतिहास का एक महान्, रचनात्मक कार्य था जिसने लोगों के दिलों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए।”38
I. खालसा पंथ का सृजन क्यों किया गया ? (Why was Khalsa Panth Created ?)

1. मुगलों का अत्याचारी शासन (Tyrannical Rule of the Mughals)-जहाँगीर के काल से ही मुग़ल सिख संबंधों में तनाव उत्पन्न हो गया था। यह तनाव औरंगज़ेब के काल में सभी सीमाएँ पार कर चुका था। औरंगज़ेब ने हिंदुओं के कई प्रसिद्ध मंदिरों को गिरवा दिया था। उसने हिंदुओं की धार्मिक रस्मों पर प्रतिबंध लगा दिए तथा जजिया कर को पुनः लागू कर दिया। उसने सिखों के गुरुद्वारों को गिराए जाने के भी आदेश दिए। उसने
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 3 सिख धर्म का उत्थान तथा विकास 1469-1708 ई० (15)
CREATION OF THE KHALSA
बड़ी संख्या में इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले गैर-मुसलमानों की हत्या करवा दी। सबसे बढ़कर उसने गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करवा दिया। अत: मुग़लों के इन बढ़ रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करने का निर्णय किया।

2. पहाड़ी राजाओं का विश्वासघात (Treachery of the Hill Chiefs)—गुरु गोबिंद सिंह जी मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष के लिए पहाड़ी राजाओं को साथ लेना चाहते थे। परंतु गुरु जी इस बात से परिचित थे कि पहाड़ी राजाओं पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने ऐसे सैनिकों को तैयार करने का निर्णय किया जो मुग़लों की शक्ति का सामना कर पाएँ। फलस्वरूप खालसा पंथ की स्थापना की गई।

3. जातीय बंधन (Shackles of the Caste System) भारतीय समाज में जाति-प्रथा शताब्दियों से चली आ रही थी। फलस्वरूप समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों के साथ बुरा व्यवहार करते थे। इस जाति-प्रथा ने भारतीय समाज को एक घुण की भाँति भीतर ही भीतर से खोखला बना दिया था। पूर्व हुए सभी गुरु साहिबान ने संगत और पंगत की संस्थाओं द्वारा जाति प्रथा को कड़ा आघात पहुँचाया था, किंतु यह अभी भी समाप्त नहीं हुई थी। अतः गुरु गोबिंद सिंह जी एक ऐसे आदर्श समाज की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें जाति-पाति का कोई स्थान न हो।

4. दोषपूर्ण मसंद प्रथा (Defective Masand System)-दोषपूर्ण मसंद प्रथा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का महत्त्वपूर्ण कारण बनी। समय के साथ-साथ मसंद अपने प्रारंभिक आदर्शों को भूल गए और बड़े भ्रष्टाचारी और अहंकारी बन गए। उन्होंने सिखों को लूटना आरंभ कर दिया। उनका कहना था कि वे गुरुओं को बनाने वाले हैं। बहुत से प्रभावशाली मसंदों ने अपनी अलग गुरुगद्दी स्थापित कर ली थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन मसंदों से छुटकारा पाने के लिए एक नए संगठन की स्थापना करने का निर्णय किया।

5. गुरुगद्दी का पैतृक होना (Hereditary Nature of Guruship)-गुरु अमरदास जी द्वारा गुरुगद्दी को पैतृक बना दिए जाने से भी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई थीं। जिसको भी गुरुगद्दी न मिली, उसने गुरु घर का विरोध करना आरंभ कर दिया। पृथी चंद, धीर मल्ल और रामराय ने तो गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए मुग़लों के साथ मिलकर कई षड्यंत्र भी रचे । इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसमें धीर मल्लों और राम रायों जैसों के लिए कोई स्थान न हो।

6. जाटों का स्वभाव (Nature of Jats)—गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय से ही बड़ी संख्या में जाट सिख धर्म में सम्मिलित हो गए थे। जाट स्वभाव से ही निडर, स्वाभिमानी और वीर थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ऐसे याद्धाओं का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे ताकि अत्याचारियों का अंत किया जा सके। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया।

7. गुरु गोबिंद सिंह जी का उद्देश्य (Mission of Guru Gobind Singh Ji)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘बचित्र नाटक’ में लिखा है, कि उनके जीवन का उद्देश्य संसार में धर्म-प्रचार का कार्य करना और अत्याचारियों का विनाश करना है। अत्याचारियों के विनाश के लिए तलवार उठाना अत्यावश्यक है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया। गुरु गोबिंद सिंह जी का कथन था,

हम यह काज जगत में आए। धर्म हेतु गुरुदेव पठाए।।
जहाँ तहाँ तुम धर्म बिथारो।। दुष्ट देखियन पकड़ पछारो।।

38. “It was a grand creative deed of history which wrought revolutionary change in men’s minds.” Harbans Singh, Guru Gobind Singh (New Delhi : 1979)p.50. :

II. खालसा पंथ का सृजन कैसे किया गया ?
(How Khalsa was Created ?)
खालसा पंथ की स्थापना के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने * 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन विद्यार्थी यह बात विशेष तौर पर नोट करें कि खालसा की स्थापना के समय बैसाखी का दिवस 30 मार्च था। 1752 ई० में अंग्रेजों ने भारत में ग्रेगोरियन कैलेंडर को प्रचलित किया। अत: भारत में पूर्व प्रचलित विक्रमी कैलेंडर में 12 दिनों की बढ़ौतरी की गई। इस कारण आजकल बैसाखी सामान्य तौर पर 13 अप्रैल को मनाई जाती है।

श्री आनंदपुर साहिब में केसगढ़ नामक स्थान पर एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया। इस दीवान में 80,000 सिखों ने भाग लिया। जब लोगों ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया तो गुरु जी मंच पर आए। उन्होंने म्यान से तलवार निकाल कर एकत्रित सिखों से कहा कि, “क्या आप में से कोई ऐसा सिख है जो धर्म के लिए अपना शीश भेंट करे ?” जब गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया तो भाई दया राम जी अपना बलिदान देने के लिए आगे आए। गुरु जी उसे पास हो एक तंबू में ले गए। कुछ समय के पश्चात् गुरु जी खून से भरी तलवार लेकर पुनः मंच पर आ गए। उन्होंने एक और सिख से बलिदान की माँग की। अब भाई धर्मदास जी आगे आए। इस क्रम को तीन बार और दोहराया गया। गुरु जी की आज्ञा का पालन करते हुए भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी अपने बलिदानों के लिए उपस्थित हुए। गुरु जी उन्हें बारी-बारी से तंबू में ले जाते थे तथा खून से भरी तलवार लेकर लौटते थे। कुछ समय के पश्चात् गुरु जी ने इन पाँचों को केसरी रंग के कपड़े पहना कर स्टेज पर लाए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ का चुनाव किया। गुरु साहिब ने इन पाँच प्यारों को पहले खंडे का पाहुल छकाया और बाद में स्वयं इन प्यारों से अमृत छका। इसी कारण गुरु गोबिंद सिंह जी को ‘आपे गुरु चेला’ कहा जाता है। इस प्रकार खालसा पंथ का सृजन हुआ। ” गोबिंद सिंह जी का कथन था,

खालसा मेरो रूप है खास॥
खालसा में हौं करु निवास।।

III. खालसा पंथ के सिद्धांत
(Principles of the Khalsa Panth) गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की पालना के लिए कुछ विशेष नियम भी बनाए कुछ प्रमुख नियमों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

  1. खालसा पंथ में सम्मिलित होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ‘खंडे का पाहुल’ छकना होगा।
  2. खालसा ‘पाँच कक्कार’ अर्थात् केश, कंघा, कड़ा, कच्छहरा और कृपाण धारण करेगा।
  3. खालसा एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य देवी-देवता की उपासना नहीं करेगा।
  4. खालसा पुरुष अपने नाम के साथ ‘सिंह’ और खालसा स्त्री ‘कौर’ शब्द का प्रयोग करेगी।
  5. खालसा जाति-प्रथा और ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखेगा।
  6. खालसा शस्त्र धारण करेगा और धर्म-‘युद्ध के लिए सदैव तैयार रहेगा।
  7. खालसा श्रम द्वारा अपनी आजीविका प्राप्त करेगा और अपनी आय का दशांश धर्म के लिए दान करेगा।
  8. खालसा प्रातः काल जागकर स्नान करने के पश्चात् गुरवाणी का पाठ करेगा।
  9. खालसा परस्पर भेंट के समय ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जो की फ़तह’ कहेंगे।
  10. खालसा नशीले पदार्थों का सेवन, पर स्त्री गमन इत्यादि बुराइयों से कोसों दूर रहेगा।
  11. खालसा देश, धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए सदैव तैयार रहेगा।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

IV. खालसा की सृजना का महत्त्व (Importance of the Creation of Khalsa)
1699 ई० में खालसा पंथ का सृजन न केवल पंजाब के इतिहास, बल्कि भारत के इतिहास में एक युग परिवर्तक घटना मानी जाती है। निस्संदेह, खालसा पंथ की स्थापना के बड़े दूरगामी परिणाम निकले।

  1. सिखों की संख्या में वृद्धि (Increase in the number of Sikhs)-खालसा पंथ की स्थापना के पश्चात् भारी संख्या में लोग इसमें शामिल होने लग पड़े। गुरु साहिब ने स्वयं हज़ारों सिखों को पाहुल छकाकर खालसा बनाया। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने खालसा पंथ के किसी भी पाँच सिखों को अमृत छकाने का अधिकार देकर खालसा पंथ में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि की।
  2. आदर्श समाज का निर्माण (Creation of an Ideal Society)-खालसा पंथ की स्थापना से एक आदर्श समाज का जन्म हुआ। खालसा पंथ में ऊँच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं था। इसमें निम्न और पिछड़ी श्रेणियों को समानता का दर्जा दिया गया। खालसा समाज में अंध-विश्वासों तथा नशीले पदार्थों के सेवन करने के लिए कोई स्थान नहीं था। इस प्रकार गुरु जी ने खालसा पंथ को रच कर स्वस्थ समाज की रचना की। डॉक्टर इंद्रपाल सिंह के अनुसार,
    “खालसा की महानता इस बात में है कि यह जाति एवं नस्ल की अपेक्षा मानव भाईचारे की बात करता है।”39
  3. मसंद प्रथा एवं पंथ विरोधी संप्रदायों का अंत (End of Masand System and Sects which were against Panth)—मसंद प्रथा में आई कुरीतियाँ खालसा पंथ के निर्माण का एक प्रमुख कारण बनी थीं। इसलिए जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, तो उसमें मसंदों को कोई स्थान नहीं दिया गया। गुरु जी ने सिखों को आदेश दिया, कि वे इनसे किसी प्रकार का कोई संबंध न रखें।
  4. सिखों में नया जोश (New spirit among the Sikhs)-खालसा पंथ की स्थापना का सबसे महत्त्वपूर्ण __ परिणाम सिखों में एक नया जोश तथा शक्ति पैदा हुई। वे अपने आप को शेर के समान बहादुर समझने लग पड़े। उन्होंने अत्याचारियों के सम्मुख झुकने की अपेक्षा अब शस्त्र उठा लिए। उन्होंने मुग़लों और अफ़गानों से होने वाली लड़ाइयों में अद्वितीय वीरता और बलिदान के प्रमाण दिए।
  5. निम्न जातियों के लोगों का उद्धार (Upliftment of the Downtrodden People)—खालसा पंथ की स्थापना निम्न जातियों के उद्धार का संदेश थी। इससे पूर्व शूद्रों और अन्य निम्न जातियों के लोगों से बहुत दुर्व्यवहार किया जाता था। गुरु जी ने निम्न जाति के लोगों को खालसा पंथ में शामिल करके उन्हें उच्च जातियों के बराबर
    स्थान दिया। गुरु जी ने यह महान् पग उठाकर निम्न जाति के लोगों में एक नया जोश भरा। गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में वे महान् योद्धा सिद्ध हुए।
  6. खालसा पंथ में लोकतंत्र (Democracy in Khalsa Panth)-1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना के समय गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं पाँच प्यारों को उन्हें अमृतपान करवाने का निवेदन किया। ऐसा करना एक महान् क्रांतिकारी कदम था। गुरु साहिब ने यह घोषणा की थी कि कहीं भी पाँच खालसा एकत्रित होकर अन्य सिखों को अमृत छका सकते हैं। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों में लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहित किया।
  7. सिखों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान (Rise of Political Power of the Sikhs)-खालसा पंथ ‘ की स्थापना के साथ ही सिखों की राजनीतिक शक्ति का भी उदय हुआ। असंख्य बलिदान के बाद वे पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलें स्थापित करने में सफल हुए। तत्पश्चात् 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वतंत्र सिख-साम्राज्य की स्थापना की। इस प्रकार अंत में खालसों का स्वप्न साकार हुआ। अंत में हम डॉक्टर जी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
    “खालसा पंथ के सृजन को मानव इतिहास का एक आश्चर्यजनक कारनामा माना जा सकता है।’40

39. “The grandeur of Khalsa is that it is above all notion of caste and creed and speaks only of universal brotherhood.” Dr. Inderpal Singh, The Grandeur of Khalsa (Amritsar : 1999) p. 3.
40. “Creation of the Khalsa was a unique phenomenon in the annals of mankind.” Dr. G. S. Dhillon, Guru Gobind Singh and Creation of Khalsa (Amritsar : 1999) p.22.

प्रश्न 29.
सिख धर्म में खालसा के सृजन के महत्त्व के बारे में चर्चा करें। (Discuss the importance of creation of Khalsa in Sikhism.)
उत्तर-
खालसा की सृजना का महत्त्व (Importance of the Creation of Khalsa)
1699 ई० में खालसा पंथ का सृजन न केवल पंजाब के इतिहास, बल्कि भारत के इतिहास में एक युग परिवर्तक घटना मानी जाती है। निस्संदेह, खालसा पंथ की स्थापना के बड़े दूरगामी परिणाम निकले।

1. सिखों की संख्या में वृद्धि (Increase in the number of Sikhs)-खालसा पंथ की स्थापना के पश्चात् भारी संख्या में लोग इसमें शामिल होने लग पड़े। गुरु साहिब ने स्वयं हज़ारों सिखों को पाहुल छकाकर खालसा बनाया। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने खालसा पंथ के किसी भी पाँच सिखों को अमृत छकाने का अधिकार देकर खालसा पंथ में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि की।

2. आदर्श समाज का निर्माण (Creation of an Ideal Society)-खालसा पंथ की स्थापना से एक आदर्श समाज का जन्म हुआ। खालसा पंथ में ऊँच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं था। इसमें निम्न और पिछड़ी श्रेणियों को समानता का दर्जा दिया गया। खालसा समाज में अंध-विश्वासों तथा नशीले पदार्थों के सेवन करने के लिए कोई स्थान नहीं था। इस प्रकार गुरु जी ने खालसा पंथ को रच कर स्वस्थ समाज की रचना की। डॉक्टर इंद्रपाल सिंह के अनुसार,
“खालसा की महानता इस बात में है कि यह जाति एवं नस्ल की अपेक्षा मानव भाईचारे की बात करता है।”39

3. मसंद प्रथा एवं पंथ विरोधी संप्रदायों का अंत (End of Masand System and Sects which were against Panth)—मसंद प्रथा में आई कुरीतियाँ खालसा पंथ के निर्माण का एक प्रमुख कारण बनी थीं। इसलिए जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, तो उसमें मसंदों को कोई स्थान नहीं दिया गया। गुरु जी ने सिखों को आदेश दिया, कि वे इनसे किसी प्रकार का कोई संबंध न रखें।

4. सिखों में नया जोश (New spirit among the Sikhs)-खालसा पंथ की स्थापना का सबसे महत्त्वपूर्ण __ परिणाम सिखों में एक नया जोश तथा शक्ति पैदा हुई। वे अपने आप को शेर के समान बहादुर समझने लग पड़े। उन्होंने अत्याचारियों के सम्मुख झुकने की अपेक्षा अब शस्त्र उठा लिए। उन्होंने मुग़लों और अफ़गानों से होने वाली लड़ाइयों में अद्वितीय वीरता और बलिदान के प्रमाण दिए।

5. निम्न जातियों के लोगों का उद्धार (Upliftment of the Downtrodden People)—खालसा पंथ की स्थापना निम्न जातियों के उद्धार का संदेश थी। इससे पूर्व शूद्रों और अन्य निम्न जातियों के लोगों से बहुत दुर्व्यवहार किया जाता था। गुरु जी ने निम्न जाति के लोगों को खालसा पंथ में शामिल करके उन्हें उच्च जातियों के बराबर
स्थान दिया। गुरु जी ने यह महान् पग उठाकर निम्न जाति के लोगों में एक नया जोश भरा। गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में वे महान् योद्धा सिद्ध हुए।

6. खालसा पंथ में लोकतंत्र (Democracy in Khalsa Panth)-1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना के समय गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं पाँच प्यारों को उन्हें अमृतपान करवाने का निवेदन किया। ऐसा करना एक महान् क्रांतिकारी कदम था। गुरु साहिब ने यह घोषणा की थी कि कहीं भी पाँच खालसा एकत्रित होकर अन्य सिखों को अमृत छका सकते हैं। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों में लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहित किया।

7. सिखों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान (Rise of Political Power of the Sikhs)-खालसा पंथ ‘ की स्थापना के साथ ही सिखों की राजनीतिक शक्ति का भी उदय हुआ। असंख्य बलिदान के बाद वे पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलें स्थापित करने में सफल हुए। तत्पश्चात् 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वतंत्र सिख-साम्राज्य की स्थापना की। इस प्रकार अंत में खालसों का स्वप्न साकार हुआ। अंत में हम डॉक्टर जी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
“खालसा पंथ के सृजन को मानव इतिहास का एक आश्चर्यजनक कारनामा माना जा सकता है।’40

39. “The grandeur of Khalsa is that it is above all notion of caste and creed and speaks only of universal brotherhood.” Dr. Inderpal Singh, The Grandeur of Khalsa (Amritsar : 1999) p. 3.
40. “Creation of the Khalsa was a unique phenomenon in the annals of mankind.” Dr. G. S. Dhillon, Guru Gobind Singh and Creation of Khalsa (Amritsar : 1999) p.22.

प्रश्न 30.
गुरु गोबिंद सिंह जी के चरित्र एवं उपलब्धियों का वर्णन करें।
(Discuss the character and achievements of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करें। (Make an evaluation of the personality of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के बहुपक्षीय व्यक्तित्व की ऐतिहासिक उदाहरणों सहित व्याख्या करें। (Illustrate historically the multi-dimensional personality of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के एक मनुष्य, एक सैनिक और एक धार्मिक नेता के बारे में विस्तार से लिखो।
(Write in detail about Guru Gobind Singh Ji as a Man, as a Soldier and as a Religious Leader.)
अथवा
आप गुरु गोबिंद सिंह जी के एक मनुष्य, एक सैनिक, एक विद्वान् तथा एक धार्मिक नेता बारे क्या जानते हैं ?
(What do you know about Guru Gobind Singh Ji as a Man, as a Soldier, as a Scholar and as a Saint ?)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन तथा उपलब्धियों का विवरण दें। . (Give an account of the career and achievements of Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी विश्व के महान् व्यक्तियों में से एक थे। उनके व्यक्तित्व में अनेक गुण- थे। वह संपूर्ण मनुष्य, महान् योद्धा, अत्याचारियों के शत्रु, उच्चकोटि के कवि, समाज सुधारक, उत्तम संगठनकर्ता तथा महान् पैगंबर थे।
मनुष्य के रूप में (As a Man)

  1. शक्ल सूरत (Physical Appearance)-गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। उनका कद लंबा, रंग गोरा तथा शरीर गठित था। उनका मुख मंडल भव्य था। वह बहुत मृदुभाषी थे। उनका पहरावा बहुत सुंदर होता था तथा वह सदैव शस्त्रों से सुसज्जित रहते थे। उनके संपर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनके जादुई व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होता था।
  2. गृहस्थ जीवन (House Holder) गुरु गोबिंद सिंह जी बड़े आज्ञाकारी पुत्र, विचारवान् पिता और आदर्श पति थे। उन्होंने अपनी माता जी की आज्ञा मानते हुए श्री आनंदपुर साहिब का किला खाली कर दिया था। इसके पश्चात् चाहे उन्हें भारी कष्टों का सामना करना पड़ा परंतु उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की। गुरु जी ने अपने पुत्रों को भी अत्याचारों का वीरता से सामना करने का सबक सिखाया।
  3. उच्च चरित्र (High Character)–गुरु गोबिंद सिंह जी महान् चरित्र के स्वामी थे। झूठ, छल, कपट तो उन्हें छू भी न पाया था। युद्ध हो अथवा शाँति, उन्होंने कभी भी धैर्य नहीं छोड़ा था। वह स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे। वह प्रत्येक प्रकार के नशे के विरुद्ध थे। उन्होंने अपने सिखों को भी उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया।
  4. कुर्बानी की प्रतिमा (Embodiment of Sacrifices)-गुरु गोबिंद सिंह जी कुर्बानी के पुंज थे। 9 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता गुरु तेग़ बहादुर जी को बलिदान के लिए प्रेरित किया। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन के सभी सुख त्याग दिए। अन्याय के विरुद्ध लड़ते हुए गुरु जी के चारों साहिबजादों, माता तथा अनेक सिखों ने बलिदान दिए। ऐसा उदाहरण विश्व इतिहास में कहीं भी नहीं मिलता।

एक विद्वान् के रूप में (As a Scholar)
गुरु गोबिंद सिंह जी एक उच्चकोटि के कवि तथा साहित्यकार थे। उन्हें अनेक भाषाओं जैसे अरबी, फ़ारसी, पंजाबी, हिंदी तथा संस्कृत आदि का ज्ञान था। ‘जापु साहिब’, ‘बचित्तर नाटक’, ‘ज़फ़रनामा’, ‘चंडी दी वार’ तथा ‘अकाल उस्तति’ आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं। ये रचनाएँ संपूर्ण मानवता को स्वतंत्रता, भाईचारे, सामाजिक असमानता को दूर करने तथा अत्याचारों का मुकाबला करने की प्रेरणा देती हैं। इसके अतिरिक्त ये रचनाएँ आत्मा को शाँति भी प्रदान करती हैं। निस्संदेह ये रचनाएँ भक्ति एवं शक्ति के सुमेल का सुंदर उदाहरण हैं । आपने अपने दरबार में उच्चकोटि के 52 कवियों को आश्रय दिया हुआ था। इनमें से सैनापत, नंद लाल, गोपाल तथा उदै राय के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। विख्यात इतिहासकार दविंद्र कुमार का यह कथन बिल्कुल ठीक है। “वह (गुरु गोबिंद सिंह जी) एक महान् कवि थे।41

41. “He was a poet par excellence.” Devindra Kumar, Guru Gobind Singh’s Contribution to the Indian · Literature, cited in, Guru Gobind Singh and Creation of Khalsa (Amritsar : 2000) p. 127.

योद्धा तथा सेनापति के रूप में (As a Warrior and General)-
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने समय के महान् योद्धा तथा सेनापति थे। वह घुड़सवारी, तीर चलाने तथा शस्त्र चलाने में बहुत प्रवीण थे। वह प्रत्येक युद्ध में अपने सैनिकों का नेतृत्व करते थे। गुरु जी ने लड़ाई में भी नैतिक सिद्धांतों का सदैव पालन किया। उन्होंने कभी भी रणभूमि से भाग रहे सिपाहियों तथा निहत्थों पर आक्रमण न किया। उनके तथा शत्रुओं के साधनों में आकाश-पाताल का अंतर था, फिर भी गुरु जी ने उनके विरुद्ध बड़ी शानदार सफलता प्राप्त की। उदाहरणस्वरूप गुरु जी ने भंगाणी की लड़ाई में, आनंदपुर साहिब की प्रथम लड़ाई में, चमकौर साहिब की लड़ाई में तथा खिदराना की लड़ाई में कम सैनिकों तथा सीमित साधनों के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे। गुरु जी के सैनिक सदैव अपना बलिदान देने के लिए तैयार रहते थे।

धार्मिक नेता के रूप में (As a Religious Leader)-
निस्संदेह गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् धार्मिक नेता थे। गुरु जी ने अपने जीवन का अधिकाँश समय लड़ाइयों में व्यतीत किया परंतु इन लड़ाइयों का उद्देश्य धर्म की रक्षा करना ही था। गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना धार्मिक उद्देश्यों के लिए ही की थी। उन्होंने प्रत्येक सिख को यह आदेश दिया था कि वह सुबह उठकर स्नान के पश्चात् गुरुवाणी का पाठ करे। वह एक ईश्वर की ही पूजा करे तथा पवित्र जीवन व्यतीत करे। उनकी धार्मिक महानता का प्रमाण इस बात से मिलता है कि जब उन्हें साहिबजादों के बलिदान की सूचना दी गई तो झट खड़े होकर उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद किया कि उनके पुत्रों के प्राण धर्म के लिए गए। डॉ० आई० बी० बैनर्जी के अनुसार, “गुरु गोबिंद सिंह जी और चाहे जो कुछ भी थे परंतु सब से पहले वह एक धार्मिक नेता थे।”42

समाज सुधारक के रूप में (As a Social Reformer)-
गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् समाज सुधारक भी थे। उन्होंने खालसा पंथ में निम्न जातियों के लोगों को भी उच्च जातियों के समान स्थान दिया। ऐसा करके गुरु जी ने शताब्दियों पुराने जाति-पाति के बंधनों को तोड़कर रख दिया। गुरु जी का कहना था, “मानस की जात सभै एकै पहिचानबो।” गुरु जी ने अपने सिखों को मादक पदार्थों से दूर रहने को कहा। उन्होंने सती तथा पर्दा प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। इस प्रकार गुरु साहिब ने एक आदर्श समाज को जन्म दिया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

संगठनकर्ता के रूप में (As an Organiser)-
गुरु गोबिंद सिंह जी उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे। उस समय औरंगज़ेब का शासन था। वह गैर-मुसलमानों के अस्तित्व को कभी सहन करने के लिए तैयार नहीं था। उसने गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद कर दिया था। सिखों में मसंद प्रथा बहुत भ्रष्ट हो गई थी। हिंदुओं में बहादुरी एवं आत्म-विश्वास की भावनाएँ खत्म हो चुकी थीं एवं वे मुग़लों के अत्याचार सहने के अभ्यस्त हो चुके थे। पहाड़ी राजा अपने स्वार्थों के कारण मुग़ल सरकार से मिले हुए थे। ऐसे विरोधी तत्त्वों के रहते गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके अपनी संगठन शक्ति का प्रमाण दिया। सचमुच यह एक महान् कार्य था। इसने लोगों में एक ऐसा जोश भरा जिसके आगे मुग़ल साम्राज्य को भी घुटने टेकने के लिए विवश होना पड़ा। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर मदनजीत कौर के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु गोबिंद सिंह जी के योगदान ने भारतीय इतिहास एवं विश्व संभ्यता के चित्रपट पर दूरगामी प्रभाव छोड़े।”43

42. “Whatever else he might have been, Guru Gobind Singh was first and foremost a great religious leader.”Dr. I. B. Banerjee, Evolution of the Khalsa (Calcutta : 1972) Vol. 2, p. 157.
43. “Guru Gobind Singh’s contributions had left imprints of deep impact on the canvas of Indian history and world civilisation.” Prof. Madanjit Kaur, Guru Gobind Singh and Creation of Khalsa (Amritsar : 2000) p.1.

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय लोग अज्ञानता के अँधकार में भटक रहे थे। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। गुरु जी ने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव डाली। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

प्रश्न 2.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ?
(What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य तथा महत्त्व था ?
(What were the aims and importance of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा विभिन्न दिशाओं में की गई यात्राओं को उनकी उदासियाँ कहा जाता है। इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंधविश्वास को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा भाईचारे का संदेश जन-साधारण तक पहुंचाना चाहते थे। गुरु नानक साहब ? लोगों को अपने विचारों से अवगत करवाया। उन्होंने समाज में प्रचलित झूठे रीति-रिवाजों, कर्मकांडों तथा कुप्रथाओं का खंडन किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of any two important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी सैदपुर से शुरू की। मलिक भागों द्वारा पूछने पर गुरु जी ने बताया कि हमें मेहनत की कमाई से गुजारा करना चाहिए न कि बेईमानी के पैसों से।
  2. हरिद्वार में गुरु नानक साहिब ने लोगों को यह बात समझाई कि गंगा स्नान करने से या पितरों को पानी देने से कुछ प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार लिखिए। (Write an essence of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है। वह निराकार तथा सर्वव्यापक है।
  2. गुरु जी माया को मुक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानते थे।
  3. गुरु जी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को मनुष्य के पाँच शत्रु बताते हैं। इनके कारण मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।
  4. गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा का खंडन किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nank Dev Ji’s concept of God ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about God ?)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने ईश्वर की एकता पर बल दिया।
  2. केवल ईश्वर ही संसार को रचने वाला, पालने वाला तथा नाश करने वाला है।
  3. ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी।
  4. ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता।

प्रश्न 6.
गुरु नानक साहिब ने ब्राह्मणों तथा मुल्लाओं का खंडन क्यों किया ? (Why did Guru Nanak Sahib condemn the Brahmans and Mullas ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ब्राह्मणों में श्रद्धा भक्ति का अभाव था। वे सारा दिन वेद-शास्त्र पढ़ते थे, परंतु उन पर अमल नहीं करते थे। वे लोगों को धोखा देते थे तथा उन्हें व्यर्थ के रीति-रिवाजों में फंसाकर लूटते थे। कुछ ऐसी ही स्थिति मुसलमानों में मुल्लाओं की थी। वे भी व्यर्थ के रीति-रिवाजों पर बल देते थे। वे अन्य धर्मों के लोगों को बड़ी घृणा की दृष्टि से देखते थे। इन कारणों से गुरु नानक देव जी ने ब्राह्मणों तथा मुल्लाओं का खंडन किया।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खंडन किया ?
(Which prevalent religious beliefs and conventions were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी ने कौन-से प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों का खंडन किया ? (What type of religious beliefs and rituals were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित समस्त अंधविश्वासों तथा व्यवहारों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, तथा जीवन के विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों से संबंधित संस्कारों का विरोध किया। ब्राह्मण इन रस्मों के मुख्य समर्थक थे। उन्होंने जोगियों की पद्धति को भी दो कारणों से स्वीकार न किया। प्रथम, जोगियों में ईश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव था। दूसरा, वे अपने सामाजिक दायित्व से दूर भागते थे। गुरु नानक देव जी अवतारवाद में भी विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? संक्षेप में उत्तर दें। (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ? Explain in brief)
अथवा
गुरु नानक देव जी के माया के संकल्प का वर्णन करें। (Describe Guru Nank Dev Ji’s concept of Maya.)”
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मानते थे कि माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसका मौत के बाद साथ नहीं देती। माया के कारण वह आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में गुरु का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of “Guru’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के गुरु संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of. ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को एक वास्तविक सीढ़ी मानते थे। वह ही मनुष्य को मोह और अहं से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान असंभव है। गुरु के बिना मनुष्य को चारों और अँधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अँधकार से प्रकाश की ओर लाता है। सच्चा गुरु ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में ‘नाम’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Nam’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी नाम की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। नाम आराधना के कारण मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। नाम की आराधना करने वाले मनुष्य के सभी भ्रम दूर हो जाते हैं तथा उसके सभी दुःखों का नाश हो जाता है। उसकी आत्मा सदैव एक कमल के फूल की तरह खिली रहती है। ईश्वर के नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है। नाम के बिना मनुष्य सभी प्रकार के पापों और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में हुक्म का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Hukam’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म अथवा इच्छा को विशेष महत्त्व प्राप्त है। सारा संसार उस परमात्मा के हुक्म के अनुसार चलता है। उसके हुक्म के अनुसार ही जीव इस संसार में जन्म लेता है या उसकी मृत्यु होती है। उसे प्रशंसा प्राप्त होती है अथवा वह नीच बन जाता है। हुक्म के कारण ही उसे सुखदुःख प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य परमात्मा के हुक्म को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरे खाता है।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्तर पुरुषों की जूती के समान था। उन्हें जानवरों की भाँति खरीदा अथवा बेचा जाता था। गुरु नानक देव जी बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा सती प्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning of Guru Nanak Dev Ji’s message ?) Solis
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
(How far were the teachings of Guru Nanak Dev Ji different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को धारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। क्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक देव जी ने गत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी एक क्रांतिकारी थे। अपने उत्तर की पुष्टि में कोई चार तर्क दीजिए।
(Guru Nanak Dev Ji was a revolutionary. Give any four arguments in support of your answer.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद का जोरदार शब्दों में खंडन किया।
  2. गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा के विरोध में भी ज़ोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा के विरुद्ध प्रचार किया।
  4. गुरु नानक देव जी ने हिंदू रीति-रिवाजों का खंडन किया।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी एक सुधारक थे। इस पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए। (Guru Nanak Dev Ji was a reformer. Give any four arguments in its favour.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने कभी भी किसी देवी-देवता को बुरा नहीं कहा था।
  2. गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का खंडन नहीं किया अपितु जाति प्रथा से उत्पन्न होने वाली ईर्ष्या का विरोध किया था।
  3. गुरु नानक देव जी ने उस समय हिंदुओं में प्रचलित रस्मों जैसे उपवास, तीर्थ यात्रा, सूर्य को पानी देने तथा गंगा स्नान इत्यादि का पूर्ण रूप से खंडन नहीं किया था।
  4. गुरु नानक देव जी ने हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में दिए गए ज्ञान को कभी भी बुरा नहीं कहा।

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर ( अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु जी ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु जी ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की ‘संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। ‘पंगत’ से अभिप्राय था–पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की।

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प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में योगदान बताएँ। (Explain the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी ने क्या-क्या कार्य किए ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
उत्तर-

  1. गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बनाया।
  2. उन्होंने गुरमुखी लिपि को एक नया रूप प्रदान किया।
  3. गुरु अंगद देव जी ने संगत और पंगत संस्थाओं को अधिक विकसित किया।
  4. उन्होंने अपने अनुयायियों में कठोर अनुशासन लागू किया।

प्रश्न 19.
गुरु अंगद साहिब ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने के लिए क्या योगदान दिया ? (What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurmukhi script ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा गुरमुखी को लोकप्रिय बनाने का क्या प्रभाव पड़ा ?
(What impact did the popularisation of Gurmukhi by Guru Angad Dev Ji leave on the growth of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को संशोधित कर नया रूप प्रदान किया। परिणामस्वरूप, इस लिपि को समझना लोगों के लिए सरल हो गया। इस लिपि में सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना हई। इस लिपि के कारण ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा मानते थे। इस लिपि के लोकप्रिय होने के कारण सिख मत के प्रचार में बड़ी सहायता मिली। यह लिपि विद्या के प्रसार में भी सहायक सिद्ध हुई।

प्रश्न 20.
गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का खंडन किस प्रकार किया ? (How did Guru Angad Dev Ji denounce the Udasi sect ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का सिख मत के विकास की ओर एक अन्य प्रशंसनीय कार्य उदासी मत का खंडन करना था। इस मत की स्थापना गुरु नानक साहिब जी के बड़े सपत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संयास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था, जबकि गुरु नानक साहिब गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सिद्धांत गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से मिलते थे। इस कारण बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता।

प्रश्न 21.
“गुरु अंगद साहिब बहुत अनुशासन प्रिय थे।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? (“Guru Angad Dev Ji was a great disciplinarian.’ Do you agree to it ?)
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब जी बहुत अनुशासन प्रिय थे। गुरु जी के दरबार में कीर्तन करने वाले दो रागियों सत्ता और बलवंड, अपनी मधुर आवाज़ के कारण बहुत गर्व करने लग पड़े थे। अपने अहंकार में आकर उन्होंने मुरु जी की आज्ञा का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। फलस्वरूप उन्होंने इन दोनों रागियों को अपने दरबार से निकाल दिया। कुछ समय के पश्चात् उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तत्पश्चात् क्षमा माँगने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।

प्रश्न 22.
गुरु अंगद साहिब तथा हुमायूँ में हुई भेंट की संक्षेप जानकारी दें। (Give a brief account of the meeting between Guru Angad Sahib and Humayun.)
उत्तर-
1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों कन्नौज के स्थान पर कड़ी पराजय हुई थी। पराजय के पश्चात् हुमायूँ खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में इतने लीन थे कि उन्होंने आँखें खोलकर न देखा। हुमायूँ ने क्रोधित होकर अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। उसी समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँग ली।

प्रश्न 23.
संगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? : (What do you know about Sangat ?).
उत्तर-
संगत संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों तथा सतनाम का जाप करने के लिए एकत्रित होती थी। गुरु अंगद साहिब ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के बिना कोई भी आ सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था।

प्रश्न 24.
पंगत अथवा लंगर से आपका क्या भाव है ? (What do you mean by Pangat or Langar ?)
अथवा
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Langar system ?)
अथवा
पंगत अथवा लंगर व्यवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a note on Pangat or Langar.)
उत्तर-
पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत विभिन्न धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 25.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on importance of Sangat and Pangat.)
उत्तर-
संगत संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों तथा सतनाम का जाप करने के लिए एकत्रित होती थी। गुरु अंगद साहिब ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के बिना कोई भी आ सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था।

पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत विभिन्न धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 26.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems did Guru Amar Das Ji face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-

  1. गुरुगद्दी पर विराजमान होने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को सबसे पहले गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू तथा दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार जताया।
  2. गुरु नानक साहिब के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद भी गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने भी गुरु अमरदास जी का विरोध करना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 27.
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान के बारे में बताओ। (Give the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (From an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.) .
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किया। शीघ्र ही यह सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  2. उन्होंने लंगर संस्था का अधिक विस्तार किया।
  3. उन्होंने सिख पंथ के प्रचार के लिए मंजी प्रथा की स्थापना की।
  4. गुरु साहिब ने सिख धर्म को उदासी मत से अलग रखकर इसे लुप्त होने से बचा लिया।

प्रश्न 28.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is importance of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
अथवा
गोइंदवाल साहिब को सिख धर्म का केंद्र क्यों कहा जाता है ? (Why is Goindwal Sahib called the centre of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला कदम गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करवाना था। इस पवित्र बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को हिंदुओं से अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे। दूसरा, वह वहाँ के लोगों की पानी की कठिनाई को दूर करना चाहते थे। बाऊली के निर्माण से सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया।

प्रश्न 29.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
समाज सुधारक के रूप में गुरु अमरदास जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Amar Das Ji as a social reformer.)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का डटकर विरोध किया।
  2. गुरु साहिब ने बाल विवाह और पर्दा प्रथा का भी विरोध किया।
  3. उन्होंने समाज में प्रचलित जाति प्रथा की बड़े ज़ोरदार शब्दों में निंदा की।
  4. गुरु अमरदास जी नशीले पदार्थों के सेवन के विरुद्ध थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 30.
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Manji system ?)
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें। (Write a note on Manji system.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का एक और महान कार्य था मंजी प्रथा की स्थापना करना। उनके समय में सिखों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि गुरु जी के लिए प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचना असंभव था। अतः गुरु साहिब ने अपने उपदेशों को दूर के प्रदेशों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। इसके अतिरिक्त वे सिखों से धन एकत्रित करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे।

प्रश्न 31.
गुरु अमरदास जी के मुगलों के साथ कैसे संबंध थे ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
अथवा
मुगल बादशाह अकबर तथा गुरु अमरदास जी के मध्य संबंधों का उल्लेख कीजिए। (Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
अथवा
मुगल सम्राट अकबर तथा गुरु अमरदास जी के बीच संबंधों का उल्लेख करें। (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ संबंध मैत्रीपूर्ण थे। 1568 ई० में अकबर गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु साहिब के दर्शन करने से पूर्व मर्यादानुसार लंगर खाया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व और लंगर प्रबंध से बहुत प्रभावित हुआ। उसने लंगर प्रबंध को चलाने के लिए कुछ गाँवों की जागीर गुरु जी की सुपुत्री बीबी भानी जी के नाम लगा दी। अकबर की इस यात्रा के कारण गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैल गई। इससे सिख धर्म का प्रसार और प्रचार बढ़ा।

प्रश्न 32.
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो। (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु रामदास जी का गुरु काल 1574 ई० से 1581 ई० तक रहा। गुरु साहिब ने सर्वप्रथम रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना की। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने यहाँ पर दो सरोवरों अमृतसर और संतोखसर की खुदाई का कार्य भी आरंभ किया। गुरु साहिब ने सिख धर्म के प्रचार तथा उसके विकास के लिए धन एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा की स्थापना की। गुरु रामदास जी ने सिखों और उदासियों के मध्य लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को समाप्त किया। गुरु साहिब ने संगत और पंगत संस्थाओं को जारी रखा।

प्रश्न 33.
रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? [What is the importance of foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?]
उत्तर-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया।

प्रश्न 34.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Udasi sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi system ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
उत्तर-
उदासी मत की स्थापना गुरु नानक साहिब के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत त्याग और वैराग्य पर बल देता था। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद जी के जीवन से प्रभावित होकर उदासी मत में सम्मिलित होने लग पड़े थे। इसलिए गुरु अंगद साहिब और गुरु अमरदास जी ने जोरदार शब्दों में उदासी मत का खंडन किया। उनका कहना था कि कोई भी सच्चा सिख उदासी नहीं हो सकता था। गुरु अमरदास जी के काल में उदासियों एवं सिखों के बीच समझौता हो गया।

प्रश्न 35.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi.)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi. Explain briefly.)
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु अर्जन साहिब को सर्वप्रथम अपने बड़े भाई पृथी चंद के विरोध का सामना करना पड़ा। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने मुग़ल बादशाह जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काने का हर संभव प्रयत्न किया। पंजाब के कट्टर मुसलमान पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव से घबरा रहे थे। उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध जहाँगीर के कान भरे। कट्टर मुसलमान होने के कारण जहाँगीर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा। चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन साहिब के सुपुत्र हरगोबिंद जी के साथ करना चाहता था। गुरु जी के इंकार करने के कारण वह उनका घोर शत्रु बन गया।

प्रश्न 36.
गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में क्या योगदान दिया ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अर्जन साहिब जी के संगठनात्मक कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the organisational works of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करके सिखों को एक पावन तीर्थ स्थान प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब ने कई पवित्र नगरों जैसे तरनतारन, हरिगोबिंदपुर और करतारपुर की स्थापना की।
  3. उन्होंने लाहौर में एक बाऊली का निर्माण करवाया।
  4. मसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों में से एक था। इस प्रथा से सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर तक हुआ।

प्रश्न 37.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the’importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब का सिख इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना सिखों के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी ने की थी। गुरु अर्जन साहिब ने इसकी नींव 1588 ई० में विख्यात सूफी संत मियाँ मीर जी द्वारा रखवाई थी। हरिमंदिर से अभिप्राय था-ईश्वर का मंदिर। गुरु साहिब ने हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से निम्न रखाया क्योंकि गुरु साहिब का मानना था कि जो निम्न होगा, वही उच्च कहलाने के योग्य होगा। शीघ्र ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ-स्थान बन गया।

प्रश्न 38.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand system and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करें। (What do you know about Masand system ? Explain.)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ। (Who started Masand system ? What were its aims ?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand system.)
उत्तर-
मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से बना है जिसका अर्थ है ‘उच्च स्थान’। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन साहिब जी के समय में हुआ। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दसवाँ भाग गुरु साहिब को भेंट करें। मसंदों का मुख्य कार्य इसी धन को इकट्ठा करना था। ये मसंद धन एकत्रित करने के साथ-साथ सिख धर्म का प्रचार भी करते थे। मसंद प्रथा सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

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प्रश्न 39.
तरन तारन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
उत्तर-
गुरु अर्जन साहिब ने 1590 ई० में तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर की खुदवाई भी आरंभ करवाई। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भवसागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत-से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन जाटों ने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

प्रश्न 40.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद गुरु अर्जन साहिब का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बहुत स्वार्थी स्वभाव का था। यही कारण है कि गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी गुरु अर्जन साहिब को सौंपी। इससे पृथी चंद क्रोधित हो उठा। पृथी चंद ने गुरुगद्दी के लिए गुरु अर्जन देव का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। वह यह आशा लगाए बैठा था कि गुरु अर्जन साहिब के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी परंतु जब हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन साहिब के प्राणों का शत्रु बन गया।

प्रश्न 41.
चंद्र शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह गुरु अर्जन देव जी का विरोधी क्यों बन गया था ? (Why Chandu Shah opposed Guru Arjan Dev Ji ?)’
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंद्र शाह लाहौर प्रांत का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। उसके परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन साहिब जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इस पर चंदू शाह ने कहा कि वह कभी भी नाली की गंदी ईंट को उपने चौबारे की शान नहीं बनने देगा। बाद में वह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने गुरु अर्जन साहिब को शगुन भेजा। गुरु अर्जन साहिब ने इस शगुन को लेने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंदू शाह ने मुग़ल बादशाह अकबर तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध बहुत भड़काया।

प्रश्न 42.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly explain the causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  2. लाहौर का दीवान चंदू शाह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन साहिब के लडके हरगोबिंद से करना चाहता था। गुरु साहिब द्वारा इंकार करने पर वह गुरु साहिब का घोर शत्रु बन गया।
  3. पृथी चंद इस बात को सहन करने को कभी तैयार नहीं था कि गुरुगद्दी उसे न मिलकर किसी ओर को मिले।
  4. गुरु अर्जन देव जी द्वारा जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो को दी गई सहायता भी उनके बलिदान का तत्कालिक कारण बनी।

प्रश्न 43.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqshbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर विचारों का था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को.तैयार नहीं था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन साहिब जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

प्रश्न 44.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdrom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहजादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बनी। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वह तरन तारन पहुँचा। सिख गुरुओं के साथ मुगलों के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया।

प्रश्न 45.
क्या गुरु अर्जन देव जी को राजनीतिक कारणों से शहीद किया गया अथवा धार्मिक कारणों से ? संक्षिप्त जानकारी दें।।
(Was Guru Arjan Dev Ji martyred for political or religious causes ? Write briefly.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० में लाहौर में शहीद किया गया था। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए धार्मिक कारण उत्तरदायी थे। जहाँगीर की आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि जहाँगीर धार्मिक कारणों से गुरु साहिब को शहीद करना चाहता था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करना चाहता था। वह भारत में केवल इस्लाम धर्म को प्रफुल्लित देखना चाहता था।

प्रश्न 46.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh History ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। इस बलिदान के कारण शाँति से रह रहे सिख भड़क उठे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि अब शस्त्र उठाने बहुत आवश्यक हैं। इसीलिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। इस प्रकार सिख एक संत सिपाही बन गए। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों एवं मुग़लों में मित्रतापूर्वक संबंधों का अंत हो गया। इसके पश्चात् सिखों और मुग़लों के मध्य एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। दूसरी ओर इस शहीदी ने सिखों को संगठित करने में सराहनीय योगदान दिया।

प्रश्न 47.
सिख पंथ के रूपांतरण में गरु हरगोबिंद साहिब ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उन्होंने मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण कीं। गुरु जी ने मुग़ल अत्याचारियों का सामना करने के लिए एक सेना का गठन किया। उन्होंने अमृतसर की रक्षा के लिए लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ करवाया। गुरु हरगोबिंद साहिब ने शाहजहाँ के समय में मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ लड़ीं जिनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 48.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद द्वारा नई नीति क्यों अपनाई गई ? (Why did Guru Hargobind Sahib adopt the ‘New Policy’ ?)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को नहीं देख सकता था। इस बदली हुई स्थिति में गुरु साहिब को नई नीति अपनानी पड़ी।
  2. 1606 ई० में जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब को लाहौर में शहीद कर दिया। गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के उद्देश्य से सिखों को हथियार-बंद करने का फैसला किया।

प्रश्न 49.
गुरु हरगोबिंद साहिब की नई नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ? (What were the main features of Guru Hargobind Sahib’s New Policy ?)
अथवा
गरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘नई नीति’ क्या थी ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (What were the ‘New Policy’ of Guru Hargobind Ji ? What were its main features ?)
उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद साहिब बहुत शान-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की।
  2. सिख पंथ की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने एक सेना का गठन किया।
  3. गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि सिख उन्हें धन के स्थान पर शस्त्र और घोड़ें भेंट करें।
  4. सिखों के राजनीतिक एवं अन्य सांसारिक मामलों के समाधान के लिए गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के निकट अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया।

प्रश्न 50.
मीरी और पीरी के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ। (What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? (What is meant by Miri and Piri ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें। (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होने के समय मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। इसके कारण प्रथम, सिखों में जोशीली भावना का संचार हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 51.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी क्यों बनाया ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Sahib ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नीति के कारण बंदी बनाया। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

प्रश्न 52.
गुरु हरगोबिंद साहिब तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Sahib and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन साहिब को शहीद करवा दिया था। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

प्रश्न 53.
गुरु हरगोबिंद साहिब तथा मुग़लों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Sahib and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद साहिब और मुग़लों के बीच लड़ाइयों के कोई चार कारण लिखो। (Write any four causes of battles between Guru Hargobind Sahib and the Mughals.)
उत्तर-

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन साहिब द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था।
  4. सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहने लगे थे।

प्रश्न 54.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों के मध्य अमृतसर में प्रथम लड़ाई 1634 ई० में हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने उसको पकड़ लिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के लिए मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिखों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुग़लों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे।

प्रश्न 55.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। गुरु हरगोबिंद जी ने उसके अहंकारी होने के कारण उसे अपनी फ़ौज में से निकाल दिया था। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने के लिए शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने एक सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़ल सेना को अंत में पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 56.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind Ji’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयाँ हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। इसी वर्ष मुग़लों एवं सिखों में लहरा नामक लड़ाई हुई। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई करतारपुर में हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे।

प्रश्न 57.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बनाकर उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। उस समय इस दुर्ग में 52 अन्य राजा भी बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने कष्ट भूल गए। जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने का निर्देश दिया तो गुरु जी ने कहा कि वे तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक 52 राजाओं को नहीं छोड़ा जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं को भी रिहा कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड बाबा’ कहा जाने लगा।

प्रश्न 58.
अकाल तख्त साहिब पर एक नोट लिखें। (Write a note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of building of Sri Akal Takht Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब का महान् कार्य था। सिखों के राजनीतिक तथा सांसारिक पथ-प्रदर्शन के लिए उन्होंने अकाल तख्त साहिब की नींव रखी। अकाल तख्त साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सैनिक मामलों का नेतृत्व करते. थे। यहाँ वह सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते थे।

प्रश्न 59.
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। दूसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सैना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कह कर संबोधन करना शाहजहाँ को एक आँख नहीं भाता था। 1634-35 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुसलमानों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 60.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। इस कारण गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। कुछ समय के लिए जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी से मित्रता स्थापित कर ली। 1634-35 ई० के समय में शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद साहिब विजयी रहे।

प्रश्न 61.
सिख पंथ के विकास में गुरु हर राय जी का गुरुकाल क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
(Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हर राय जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
अथवा
सिख धर्म में गुरु हर राय जी का क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Har Rai Ji for the development of Sikh religion ?)
उत्तर-
सिखों के सातवें गुरु, गुरु हर राय जी 1645 ई० से लेकर 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। उनका गुरुकाल सिख धर्म के शांतिपूर्वक विकास का काल था। गुरु हर राय साहिब ने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के कई स्थानों का भ्रमण किया। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब से बाहर अपने प्रचारक भेजे। परिणामस्वरूप सिख धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ। गुरवाणी का गलत अर्थ बताने के कारण गुरु हर राय साहिब ने अपने बड़े पुत्र राम राय को गुरुगद्दी से बेदखल कर दिया। गुरु जी ने अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

प्रश्न 62.
धीरमल संबंधी एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note about Dhirmal.) .
उत्तर-
धीरमल गुरु हर राय जी का बड़ा भाई था। वह चिरकाल से गुरुगद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहा था। जब धीर मल को यह समाचार मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसके क्रोध की कोई सीमा न रही। उसने शींह नामक एक मसंद के साथ मिल कर गुरु जी की हत्या का षड्यंत्र रचा। शीह के साथियों ने गुरु साहिब के घर का बहुत-सा सामान लूट लिया। बाद में धीरमल तथा शींह द्वारा क्षमा याचना करने पर गुरु साहिब ने उन्हें क्षमा कर दिया।

प्रश्न 63.
गुरु हरकृष्ण जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। उनको बाल गुरु क्यों कहा जाता है ? (Write a brief note on Guru Harkrishsn Ji. Why is he called Bal Guru ?)
अथवा
सिख धर्म में गुरु हरकृष्ण जी का क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Harkrishan Ji in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरकृष्ण जी पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on Guru Harkrishan Ji.)
उत्तर-
सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण जी गुरु हर राय जी के छोटे पुत्र थे। वह 1661 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए। उस समय उनकी आयु केवल पाँच वर्ष थी। इस कारण उनको ‘बाल गुरु’ के नाम से याद किया जाता है। गुरु हरकृष्ण जी के बड़े भाई रामराय के उकसाने पर औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली आने का आदेश दिया। गुरु साहिब 1664 ई० में दिल्ली गए। उन दिनों दिल्ली में भयानक चेचक एवं हैजा फैला हुआ था। गुरु जी ने वहाँ पर बीमारों की अथक सेवा की। वह 30 मार्च, 1664 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

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प्रश्न 64.
गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की यात्राओं के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the travels of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
उत्तर-
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग़ बहादुर साहिब ने अपनी गुरुगद्दी के दौरान (1664-1675 ई०) पंजाब और बाहर के प्रदेशों की अनेक यात्राएँ कीं। गुरु साहिब की यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और सिख सिद्धांतों का प्रचार करना था। गुरु साहिब ने अपनी यात्राएँ 1664 ई० में अमृतसर से आरंभ की। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने पंजाब तथा पंजाब के बाहर अनेक स्थानों की यात्राएं कीं। गुरु साहिब की इन यात्राओं ने सिख पंथ के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इससे गुरु साहिब की ख्याति चारों ओर फैल गई।

प्रश्न 65.
किस श्रद्धालु सिख ने नवम् गुरु की तलाश की और क्यों ? (Name the sincere Sikh, who searched for the Ninth Guru and why ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की तलाश किसने की ओर क्यों ? (Who found Guru Tegh Bahadur Ji and why ?)
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व सिख संगतों को यह संकेत दिया कि उनका अगला गुरु बाबा बकाला में है। इसलिए 22 सोढियों ने वहाँ अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा ने इसका हल ढूँढ़ा। एक बार जब उसका जहाज़ समुद्री तूफान में डूबने लगा था तो उसने अरदास की कि यदि उसका जहाज़ किनारे पर पहुँच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेंट करेगा। गुरु कृपा से उसका जहाज़ बच गया। वह बकाला पहुँचा। जब मक्खन शाह ने तेग़ बहादुर जी के पास जाकर दो मोहरें भेंट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेंट करने का वचन दिया था।” यह सुनकर मक्खन शाह एक मकान की छत पर चढ़ कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे” अर्थात् गुरु मिल गया है।

प्रश्न 66.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के उत्तरदायी कारणों का वर्णन करें। (Highlight the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का अध्ययन करें। (Study the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में सबसे प्रमुख योगदान औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता का था।
  2. औरंगजेब सिख धर्म के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  3. राम राय ने गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए औरंगज़ेब को गुरु तेग़ बहादुर जी के विरुद्ध भड़काया।
  4. कश्मीरी पंडितों की पुकार गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।

प्रश्न 67.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका की समीक्षा कीजिए।
(Discuss the role played by Naqshbandis in the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र सरहिंद था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति और सिख मत का बढ़ रहा प्रचार असहनीय था। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए औरंगजेब के कान भरने आरंभ कर दिए। उनकी कार्यवाई ने जलती पर तेल डालने का काम किया। अत: औरंगज़ेब ने गुरु जी के विरुद्ध कदम उठाने का निर्णय किया।

प्रश्न 68.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी ने कश्मीरी ब्राह्मणों की सहायता क्यों की ? (Why did Guru Tegh Bahadur Ji help the Kashmiri Brahmans ?)
उत्तर-
औरंगजेब चाहता था कि कश्मीर के ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसी उद्देश्य से उसने ब्राह्मणों को तलवार की नोक पर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया। पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुँचा। जब गुरु जी ने उनकी रौंगटे खड़े कर देने वाली अत्याचारों की कहानी सुनी तो उन्होंने अपना बलिदान देने का निर्णय कर लिया।,

प्रश्न 69.
गुरु तेग़ बहादुर साहिब को कब और कहाँ शहीद किया गया था ? उनका बलिदान राजनीतिक कारणों से हुआ अथवा धार्मिक कारणों से ? व्याख्या करें।
(When and where was Guru Tegh Bahadur Ji martyred ? Did his martyrdom take place due to political or religious causes ? Discuss.)
अथवा
क्या गुरु तेग बहादुर जी एक राजनीतिक अपराधी थे ? अपने पक्ष में तर्क दें।
(Was Guru Tegh Bahadur Ji a political offender ? Give arguments in support of your answer.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी पंजाब के इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। गुरु साहिब को 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद किया गया था। गुरु साहिब को धार्मिक कारणों से शहीद किया गया था। उस समय भारत में मुग़ल बादशाह औरंगजेब का शासन था। वह भारत में इस्लाम के अतिरिक्त अन्य किसी धर्म को सहन नहीं कर सकता था। उसने हिंदुओं के कई विख्यात मंदिरों को गिरवा दिया था। हिंदुओं को पुनः जजिया कर देने के लिए विवश किया गया। औरंगज़ेब सिखों के बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करना चाहता था।

प्रश्न 70.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए। (Evaluate the historical importance of martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी की ऐतिहासिक महत्ता का वर्णन करो। (Explain the historical importance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी की महत्ता बताओ। (Explain the importance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण समूचा पंजाब क्रोध और रोष की भावना से भड़क उठा। गुरु साहिब ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक भारत में मुग़ल साम्राज्य रहेगा, तब तक अत्याचार भी बने रहेंगे। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की। तत्पश्चात् सिखों और मुग़लों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। इस संघर्ष ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।

प्रश्न 71.
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु गोबिंद सिंह जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What difficulties were faced by Guru Gobind Singh Ji when he attained the Gurgaddi ?)
उत्तर-

  1. गुरु गोबिंद सिंह जी स्वयं बाल्यावस्था में थे। उनकी आयु केवल 9 वर्ष थी।
  2. मुग़ल सम्राट औरंगजेब बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को सहन करने को तैयार नहीं था।
  3. औरंगजेब के बढ़ते हुए अत्याचारों पर अंकुश लगाना आवश्यक था।
  4. धीरमल तथा रामराय गुरुगद्दी न मिलने के कारण गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे थे।

प्रश्न 72.
भंगाणी की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Bhangani.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के भंगाणी युद्ध का वर्णन करें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Describe Guru Gobind Singh’s battle of Bhangani and also explain its importance.)
उत्तर-
भंगाणी के युद्ध के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। गुरु गोबिंद सिंह जी की सैनिक तैयारियों से पहाड़ी राजाओं को अपनी स्वतंत्रता खतरे में अनुभव होने लगी। पहाड़ी राजा सिख संगतों को बहुत परेशान करते थे। मुग़ल सरकार भी इन पहाड़ी राजाओं को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़का रही थी। फलस्वरूप कहलूर के शासक भीम चंद तथा श्रीनगर के शासक फ़तह शाह के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं ने 22 सितंबर, 1688 ई० को भंगाणी के स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में सिखों की शानदार विजय हुई।

प्रश्न 73.
नादौण की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle on Nadaun.)
उत्तर-
भंगाणी की लड़ाई में पराजय के बाद पहाड़ी राजाओं ने गुरु गोबिंद सिंह जी से मित्रता स्थापित कर ली थी। उन्होंने मुग़लों को वार्षिक खिराज (कर) भेजना बंद कर दिया। परिणामस्वरूप आलिफ खाँ के अधीन एक सेना पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजी गई। उसने 20 मार्च, 1690 ई० को पहाड़ी राजाओं के नेता भीम चंद की सेना पर नादौण में आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने भीम चंद का साथ दिया। इस संयुक्त सेना ने मुग़ल सेना को परास्त कर दिया।

प्रश्न 74.
खालसा की स्थापना के कारणों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Give in brief the causes of the creation of Khalsa.)
अथवा
गरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सजन क्यों किया? (Why did Guru Gobind Singh Ji create the Khalsa ?)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के लिए उत्तरदायी मुख्य कारणों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए। (Give a brief description of the circumstances responsible for the creation of Khalsa.)
अथवा
1699 ई० में खालसा की स्थापना के लिए उत्तरदायी कोई चार कारण लिखें। (Write any four causes that led to the creation of Khalsa in 1699 A.D.)
अथवा
खालसा पंथ की स्थापना के क्या कारण थे ? (What were the causes of the foundation of the Khalsa Panth ?)
उत्तर-

  1. मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। उन्होंने गैर-मुसलमानों को बलपूर्वक इस्लाम धर्म में सम्मिलित करना आरंभ कर दिया था।
  2. गुरु गोबिंद सिंह जी ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें ऊँच-नीच के लिए कोई स्थान न हो।
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी खालसा की स्थापना करके मसंद प्रथा का अंत करना चाहते थे।
  4. गुरु गोबिंद सिंह जी जाटों का सहयोग प्राप्त करने के लिए खालसा की स्थापना करना चाहते थे।

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प्रश्न 75.
खालसा पंथ की स्थापना कब, कहाँ और कैसे हुई ? (When, where and how was the Khalsa founded ?)
अथवा
खालसा की स्थापना पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the creation of Khalsa.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की स्थापना किस प्रकार की ? (How Khalsa was created by Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
खालसा पंथ की सजना कैसे की गई ? (How was Khalsa sect created ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन श्री आनंदपुर साहिब में केशगढ़ नामक स्थान पर एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया। गुरु जी ने म्यान से तलवार निकाली और एकत्रित सिखों को संबोधित किया, “क्या आप में से कोई ऐसा सिख है, जो धर्म के लिए अपना शीश भेंट करे ?” इस पर भाई दया राम जी अपना बलिदान देने के लिए आगे आया। गुरु जी के आदेश पर भाई धर्म दास जी, भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी अपने बलिदानों के लिए उपस्थित हुए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ का चुनाव किया और खालसा पंथ की स्थापना की।

प्रश्न 76.
खालसा पंथ के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करो। (Explain the main principles of the Khalsa.)
उत्तर-

  1. खालसा पंथ में सम्मिलित होने के लिए प्रत्येक को ‘खंडे का पाहुल’ छकना पड़ेगा।
  2. प्रत्येक खालसा पुरुष अपने नाम के साथ ‘सिंह’ और खालसा स्त्री ‘कौर’ शब्द का प्रयोग करेगी।
  3. प्रत्येक खालसा एक ईश्वर की पूजा करेगा।
  4. प्रत्येक खालसा पाँच कक्कार-केश, कंघा, कड़ा, कच्छहरा और कृपाण अवश्य धारण करेगा।

प्रश्न 77.
खालसा पंथ की स्थापना के महत्त्व पर एक नोट लिखो। (Write a note on the importance of the Khalsa.)
अथवा
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था? (What was the importance of the foundation of Khalsa ?)
अथवा
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था? (Study the importance of the creation of Khalsa.)
उत्तर-

  1. खालसा की स्थापना के पश्चात् लोग बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे।
  2. खालसा की स्थापना से एक आदर्श समाज का जन्म हुआ।
  3. खालसा की स्थापना करके गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में नव प्राण फूंके।
  4. खालसा की स्थापना के कारण मसंद प्रथा का अंत हुआ।

प्रश्न 78.
श्री आनंदपुर साहिब की प्रथम लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on the first battle of Sri Anandpur Sahib.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी की बढ़ रही शक्ति के कारण पहाड़ी राजाओं के मन की शांति भंग हो गई। कहलूर के राजा भीम चंद ने गुरु जी को श्री आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए कहा। गुरु जी ने यह माँग मानने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि, गुरु तेग़ बहादुर जी ने यह भूमि उचित मूल्य देकर खरीदी थी। इस पर भीम चंद ने पहाड़ी राजाओं से मिल कर 1701 ई० में श्री आनंदपुर साहिब के किले पर आक्रमण कर दिया। किले का घेरा कई दिनों तक जारी रहा। जब पहाड़ी राजाओं को कोई सफलता न मिली तो उन्होंने गुरु जी से संधि कर ली।

प्रश्न 79.
श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the second battle of Sri Anandpur Sahib.)
उत्तर–
पहाड़ी राजाओं और मुग़ल सेना ने 1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब के दुर्ग पर दूसरी बार आक्रमण कर दिया। घेरे के लंबे हो जाने के कारण 40 सिख गुरु जी को बेदावा देकर दुर्ग छोड़कर चले गए। दूसरी ओर शाही सेना ने कुरान और गायों की कसम खाकर गुरु साहिब को विश्वास दिलाया कि यदि वे श्री आनंदपुर साहिब छोड़ दें तो उन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचाई जायेगी। गुरु साहिब को इन झूठी कसमों पर कोई विश्वास नहीं था, परंतु माता गुजरी और कुछ अन्य सिखों के निवेदन पर गुरु साहिब ने 20 दिसंबर, 1704 ई० को श्री आनंदपुर साहिब के दुर्ग को छोड़ दिया।

प्रश्न 80.
चमकौर साहिब की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the battle of Chámkaur Sahib.) .
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ने के पश्चात् मुग़ल सेना ने उनका पीछा जारी रखा। गुरु साहिब ने चमकौर साहिब की एक कच्ची गढ़ी में 40 सिखों सहित शरण ली। शीघ्र ही मुग़ल सैनिकों ने इस गढ़ी को घेर लिया। 22 दिसंबर, 1704 ई० में हुई चमकौर साहिब की यह लड़ाई बहुत घमासान लड़ाई थी। इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े साहिबजादों-साहिबज़ादा अजीत सिंह जी तथा साहिबजादा जुझार सिंह जी ने वीरता प्रदर्शित की और अंततः लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

प्रश्न 81.
खिदराना (श्री मुक्तसर साहिब) की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। [Write a brief note on the battle of Khidrana (Sri Mukatsar Sahib.)]
उत्तर-
सरहिंद के नवाब वजीर खाँ ने 29 दिसंबर, 1705 ई० को एक विशाल सेना के साथ गुरु जी की सेना पर खिदराना के स्थान पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में गुरु जी को शानदार विजय प्राप्त हुई। इस लड़ाई में वे 40 सिख भी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए, जो श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई में गुरु जी का साथ छोड़ गए थे। उन 40 सिखों को गुरु जी ने मुक्ति का वरदान दिया। उस समय से खिदराना श्री मुक्तसर साहिब के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 82.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख पंथ में सांप्रदायिक बँटवारे तथा बाह्य खतरों की समस्या को किस प्रकार हल किया ?
(How did Guru Gobind Singh Ji settle the sectarian divisions and external dangers to Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख पंथ में सांप्रदायिक बँटवारे तथा बाह्य खतरों से निपटने के लिए 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु जी ने इस बात की घोषणा की कि सारे सिख उनके ‘खालसा’ है और प्रत्यक्ष रूप से उनसे जुड़े हुए हैं । इस प्रकार मसंदों की मध्यस्थता समाप्त हो गई। मीणों, धीरमलियों, रामरइयों तथा हिंदालियों को सिख पंथ से निकाल दिया गया । बाझ खतरों से निपटने के लिए गुरु जी ने सारे सिखों को शस्त्रधारी रहने का आदेश दिया।

प्रश्न 83.
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक सरगर्मियों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the literary activities of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक सरगर्मियों के बारे में बताइए। (Describe the literary activities of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक गतिविधियों पर रोशनी डालिए।
(Evaluate the literary activities of Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने साहित्य के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वह उच्चकोटि के कवि तथा साहित्यकार थे। गुरु साहिब ने अपनी रचनाओं में पंजाबी, हिंदी, फारसी, अरबी, संस्कृत आदि भाषाओं का प्रयोग किया। जापु साहिब, बचित्तर नाटक, ज़फ़रनामा, चंडी दी वार आपकी महान् रचनाएँ हैं। ये रचनाएँ आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार हैं आपकी रचनाओं से हमें अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने दरबार में 52 उच्चकोटि के कवियों को संरक्षण दिया था।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 84.
ज़फ़रनामा क्या है ? (What is Zafarnama ?)
अथवा
ज़फ़रनामा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें । (Write a short note on Zafarnama.)
उत्तर-
जफ़रनामा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को फ़ारसी में लिखे गए एक पत्र का नाम है। इसे गुरु जी ने दीना कांगड़ नामक स्थान से लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने औरंगज़ेब तथा पहाड़ी राजाओं की ओर से कुरान की झूठी शपथ लेकर धोखा करने का वर्णन निर्भीकता से किया है। गुरु जी के इस पत्र को भाई दया सिंह जी ने औरंगज़ेब तक पहुँचाया था। इस पत्र का औरंगजेब पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 85.
गुरु गोबिंद सिंह जी के सामाजिक सुधारों का इतिहास में क्या महत्व है ? (What is the importance of social reforms of Guru Gobind Singh Ji in History ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके समाज में एक क्रांति ला दी। इसमें सम्मिलित होने वाले निम्न जातियों के लोगों को भी उच्च जातियों के बराबर स्थान दिया गया। गुरु जी ने अपने अनुयायियों को शराब, भांग तथा अन्य मादक पदार्थों से दूर रहने के लिए कहा। गुरु जी ने सिखों को महिलाओं का पूर्ण सम्मान करने के लिए कहा। मसंद प्रथा का अंत कर गुरु जी ने सिखों को उनके शोषण से बचाया।

प्रश्न 86.
“गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् संगठनकर्ता थे ।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं ?
(“Guru Gobind Singh Ji was a builder par-excellence”. Do you agree to this statement ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके अपनी संगठन शक्ति का प्रमाण दिया। सचमुच यह एक महान् कार्य था । इसने लोगों में नया जोश उत्पन्न किया। वे महान योद्धा बन गए और धर्म के नाम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो गए । उन्होंने तब तक सुख की साँस न ली जब तक पंजाब में से मुग़लों तथा अफ़गानों के शासन का अंत न कर लिया गया तथा पंजाब में एक स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना न कर ली गई।

प्रश्न 87.
गुरु गोबिंद सिंह जी के व्यक्तित्व की कोई चार विशेषताएँ बताएँ । (Mention any four characteristics of Guru Gobind Singh Ji’s personality.)
उत्तर-

  1. गुरु गोबिंद सिंह जी बड़े उच्च चरित्र के स्वामी थे।
  2. गुरु गोबिंद सिंह जी एक उच्च कोटि के कवि तथा साहित्यकार थे।
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् समाज सुधारक थे।
  4. गुरु गोबिंद सिंह जी में एक महान् योद्धा तथा सेनापति के गुण विद्यमान थे।

प्रश्न 88.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक दशा बहुत शोचनीय थी। मुसलमान शासक वर्ग से संबंधित थे। वे हिंदुओं से बहुत घृणा करते थे और उन पर भारी अत्याचार करते थे। धर्म केवल एक दिखावा बन कर रह गया था। लोग अज्ञानता के अंधकार में भटक रहे थे। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में प्रचलित अंध-विश्वासों को दूर करने के लिए तथा उनमें नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं के दौरान गुरु जी ने लोगों से एक ईश्वर की पूजा करने, आपसी भ्रातृत्व, महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने, शुद्ध व पवित्र जीवन व्यतीत करने तथा अंध-विश्वासों को त्यागने का प्रचार किया। गुरु जी जहाँ भी गए उन्होंने अपने उपदेशों द्वारा लोगों पर गहरा प्रभाव डाला। गुरु जी ने शासक वर्ग तथा उसके कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव डाली। गुरु जी के जीवन काल में ही एक नया भाईचारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

प्रश्न 89.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ? (What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य तथा महत्त्व था ? (What were the aims and importance of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से था। गुरु नानक साहिब की उदासियों का मुख्य उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंध-विश्वासों को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश जन-साधारण तक पहुँचाना चाहते थे। उस समय हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही धर्म के वास्तविक सिद्धांतों को भूल कर अपने मार्ग से भटक चुके थे। हिंदू ब्राह्मण तथा जोगी, जिनका मुख्य कार्य भटके हुए लोगों का उचित दिशा निर्देशन करना था, वह स्वयं ही भ्रष्ट तथा चरित्रहीन हो चुके थे। जब धर्म के ठेकेदार स्वयं ही अंधकार में भटक रहे हों तो जन-साधारण की दशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। लोगों ने अनगिनत देवीदेवताओं, कब्रों, वृक्षों, साँपों तथा पत्थरों आदि की पूजा आरंभ कर दी थी। इस प्रकार धर्म की सच्ची भावना समाप्त हो चुकी थी। समाज जातियों तथा उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में महिलाओं की दशा दयनीय थी। उन्हें पुरुषों की जूती के समान समझा जाता था। गुरु नानक देव जी ने अज्ञानता के अंधेरे में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग दिखाने के लिए यात्राएँ कीं।

प्रश्न 90.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं पाँच महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of any five important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों का आरंभ सैदपुर से किया। यहाँ उन्हें मलिक भागो नाम के ज़मींदार ने ब्रह्म भोज पर आमंत्रित किया परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। मलिक भागो द्वारा पूछने पर गुरु जी ने बताया कि हमें कभी भी हराम की कमाई नहीं खानी चाहिए तथा ईमानदारी का जीवन व्यतीत करना चाहिए। तालुंबा के स्थान पर गुरु साहिब की भेंट सज्जन ठग से हुई। वह यात्रियों को अपनी सराय में ठहराता और रात्रि में उन्हें लूट कर उनकी हत्या कर देता था। वह गुरु नानक देव जी की वाणी से प्रभावित होकर उनका अनुयायी बन गया। उसने अपना शेष जीवन सिख धर्म के प्रचार में लगाया। गोरखमत्ता में गुरु नानक देव जी ने सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल डालने, शरीर पर भस्म मलने, शंख बजाने आदि से मुक्ति नहीं मिलती अपितु मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। जगन्नाथ पुरी में गुरु नानक देव जी ने लोगों को समझाया कि वह औपचारिक आरती को कोई महत्त्व न दें। उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है। मक्का में गुरु नानक देव जी ने काज़ी रुकनुद्दीन को यह समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

प्रश्न 91.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में बताइए।
(Describe the prime teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की कोई पाँच शिक्षाओं का वर्णन कीजिए। (Describe any five teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है। वह निराकार तथा सर्वव्यापक है। वह अजर-अमर है। वह सर्व-शक्तिमान तथा दयालु है। वह निर्गुण भी है तथा सगुण भी। वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता तथा नाशवानकर्ता है। अतः हमें उस ईश्वर को छोड़ कर किसी अन्य की पूजा नहीं करनी चाहिए। गुरु जी माया को मुक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानते थे। मनमुख व्यक्ति सदैव माया के चक्र में फंसा रहता है । माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है। गुरु जी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को मनुष्य के पाँच शत्रु बताते हैं । इन के कारण मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों तथा धर्म के बाह्य आडंबरों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु जी उस व्यक्ति के धर्म को सत्य मानते थे जिसका हृदय सच्चा हो। गुरु जी के अनुसार गुरु के बिना मुक्ति प्राप्त करना संभव नहीं है। वह परमात्मा को सच्चा गुरु मानते हैं जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है। गुरु नानक देव जी के अनुसार उचित आचार के बिना मुक्ति प्राप्त करना असंभव है। वह अंजन में निरंजन रहने के समर्थक थे।

प्रश्न 92.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak’s concept of God ?)
अथवा
मूल-मंत्र के आधार पर गुरु नानक देव जी द्वारा परमात्मा के बताए स्वरूप की व्याख्या करें। (Describe the nature of God according to Mul Mantra of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक साहिब जी के अनुसार परमात्मा एक है। चर्चा कीजिए। (As per Guru Nanak Sahib Ji God is One. Discuss.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। अन्य देवी-देवता ईश्वर के सम्मुख उसी प्रकार हैं जैसे तेजमय सूर्य के सम्मुख एक लघु तारा। मुहम्मद सैंकड़ों-हज़ारों हैं परंतु ईश्वर एक है। केवल ईश्वर ही संसार का रचयिता, पालनकर्ता एवं नाशवानकर्ता है। ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। पहले ईश्वर अपने आप में रहता था। यह ईश्वर का निर्गुण स्वरूप था। बाद में उसने संसार की रचना की तथा इस रचना द्वारा अपना रूपमान किया। यह ईश्वर का सगुण स्वरूप था। ईश्वर सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहता है वही होता है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता। वह अमर है। वह आवागमन और मृत्यु के चक्र से मुक्त है। वह निराकार भी है और सर्वव्यापक भी। उसका कोई आकार नहीं है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। वह जल, थल और आकाश प्रत्येक जगह विद्यमान है। वह सबसे महान् है। उसकी महानता अवर्णनीय है। वास्तव में वह अपनी महानता का ज्ञाता स्वयं है।

प्रश्न 93.
गुरु नानक देव जी ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खंडन किया ?
(Which prevalent religious beliefs and conventions were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी ने कौन-से प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों का खंडन किया ? (What type of religious beliefs and rituals were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित समस्त अंध-विश्वासों का खंडन किया। उन्होंने वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा तथा जीवन के विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों से संबंधित संस्कारों का विरोध किया। इन रस्मों के मुख्य समर्थक ब्राह्मण थे। उन्होंने जोगियों की पद्धति को भी स्वीकार न किया। इसके दो कारण थे—

  1. जोगियों में ईश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव था।
  2. वे अपने सामाजिक दायित्व से दूर भागते थे।

गुरु नानक देव जी अवतारवाद में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने वैष्णव भक्ति को भी रद्द कर दिया। उन्होंने इस्लाम धर्म के नेताओं, जिन्हें मल्ला कहा जाता था, के धार्मिक विश्वासों का खंडन किया। भगवे वस्त्र धारण करना, कानों में कुंडल डालना, शरीर पर लगाना, माथे पर तिलक लगाना, शंख बजाना, कब्रों तथा मस्जिदों आदि की पूजा को गुरु जी धर्म नहीं मानते थे। गुरु नानक देव जी ने उस व्यक्ति के धर्म को सत्य माना जिसका हृदय सत्य है।

प्रश्न 94.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। मनमुख रचयिता और उसकी रचना के अंतर को नहीं समझ सकता। गुरु नानक देव जी ने माया को सर्पगी माया ममता मोहणी, माया मोह, त्रिकुटी तथा सूहा रंग इत्यादि के नामों से पुकारा है। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके साथ नहीं जाती। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। गुरु जी कहते हैं कि मनुष्य सोना-चाँदी आदि एकत्रित करके सोचता है कि वह संसार का बहुत बड़ा व्यक्ति बन गया है परंतु वास्तव में वह व्यक्ति अपने जीवन के लिए विष एकत्रित कर रहा होता है। इसी प्रकार वह दुविधा में फंस कर अपने जीवन का नाश कर लेता है। संक्षेप में माया मनुष्य की खुशियों का स्रोत नहीं अपितु उसके दु:खों का भंडार है। जो व्यक्ति माया का शिकार होता है उसे ईश्वर के दरबार में कोई स्थान नहीं मिलता।

प्रश्न 95.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में गुरु का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev’s teachings ?)
अथवा
गरु नानक देव जी के गुरु संबंधी विचार क्या थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु का बहुत महत्त्व मानते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली एक वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को मोह और अहं के रोग से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना द्वारा भक्ति के मार्ग का अनुसरण करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान संभव नहीं होता। गुरु के बिना मनुष्य को चारों ओर अंधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश की ओर ले जाता है। वह प्रत्येक असंभव कार्य को संभव बना सकता है। अत: उसके साथ मिलने से ही मनुष्य की जीवनधारा बदल जाती है। वह सदा निरवैर रहता है। दोस्त तथा दुश्मन उसके लिए एक हैं। यदि कोई दुश्मन भी उसकी शरण में आ जाए तो वह उसे माफ कर देता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। परमात्मा की दया के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात यहाँ विशेष उल्लेखनीय है कि गुरु नानक साहिब जब गुरु की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय किसी मानवीय गुरु से नहीं है। सच्चा गुरु तो ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

प्रश्न 96.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्तर पुरुषों की जूती के समान था तथा उन्हें केवल भोग-विलास की एक वस्तु समझा जाता था तथा उन्हें जानवरों की भाँति खरीदा अथवा बेचा जा सकता था। उनमें अनेक कुरीतियाँ जैसे बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा तथा तलाक
प्रथा इत्यादि प्रचलित थीं। इन्हीं कारणों से लड़की के जन्म को अशुभ माना जाता था। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समाज में स्त्रियों का सम्मान बढ़ाने हेतु एक जोरदार अभियान चलाया। वह बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा तथा सती प्रथा इत्यादि कुरीतियों के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी। गुरु जी का विचार था कि हमें स्त्रियों से जो कि महान् सम्राटों को जन्म देती हैं, के साथ कभी भी बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए। वह स्त्रियों को शिक्षा दिए जाने के पक्ष में थे।

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प्रश्न 97.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning and significance of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ? (What was the impact of teachings of Guru Nanak Dev Ji on Punjab ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था । मुक्ति का मार्ग सबके लिए खुला था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। गुरु नानक देव जी ने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय की नीति और व्याप्त भ्रष्टाचार की जोरदार शब्दों में निंदा की। शासक वर्ग के साथ-साथ गुरु जी ने अत्याचारी सरकारी कर्मचारियों की भी आलोचना की। इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने पंजाब के समाज को एक नया स्वरूप देने का उपाय किया।

प्रश्न 98.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ? (How far were the teachings of Guru Nanak different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से कई पक्षों से भिन्न थीं। गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को धारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म का प्रसार करने के लिए गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके गुरुगद्दी को जारी रखा। दूसरी ओर बहुत कम भक्ति प्रचारकों ने गुरुगद्दी की परंपरा को जारी रखा। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उनका अस्तित्व खत्म हो गया। गुरु नानक साहिब गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। भक्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक साहिब ने संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। इनमें प्रत्येक स्त्री, पुरुष अथवा बच्चे बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित हो सकते थे। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की। गुरु नानक देव जी संस्कृत को पवित्र भाषा नहीं मानते थे। उन्होंने अपनी शिक्षाओं का प्रचार लोगों की आम भाषा पंजाबी में किया। अधिकतर भक्ति प्रचारक संस्कृत को पवित्र भाषा समझते थे।

प्रश्न 99.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर 1521 ई० में करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। इस संगत में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शामिल होने का अधिकार था। इसमें केवल एक परमात्मा के नाम का जाप होता था। ‘पंगत’ से अभिप्राय था-एक पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। लंगर में जाति अथवा धर्म इत्यादि का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। ये दोनों संस्थाएँ गुरु साहिब के उपदेशों का प्रसार करने में सहायक सिद्ध हुईं। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। गुरु साहिब की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दी वार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

प्रश्न 100.
गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में योगदान बताएँ। (Explain the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव ने क्या-क्या कार्य किए ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी की किन्हीं पाँच ऐसी सफलताओं का वर्णन करें जिनके कारण सिख धर्म का विकास हुआ ? (Write any five achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी के कार्यों का मूल्याँकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Angad Dev Ji for the spread of Sikhism)
अथवा
गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया ? जानकारी दीजिए।
(What contribution has been given by Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism ? Describe.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० से लेकर 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस समय के दौरान गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए कई महत्त्वपूर्ण पग उठाए। उन्होंने खडूर साहिब को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बनाया। गुरमुखी लिपि को एक नया रूप प्रदान किया ताकि लोग उसे सरलतापूर्वक समझ सकें। गुरु अंगद साहिब ने गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित किया। गुरु जी ने स्वयं ‘नानक’ के नाम के अंतर्गत वाणी की रचना की। यह गुरु अर्जन देव जी द्वारा संकलित ग्रंथ साहिब की तैयारी का प्रथम चरण सिद्ध हुआ। संगत और पंगत संस्थाओं को अधिक विकसित किया गया। इन संस्थाओं ने जाति प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। गुरु अंगद देव जी ने अपने अनुयायियों में कठोर अनुशासन लागू किया। उन्होंने सिख पंथ को उदासी मत से पृथक् करके बहुत प्रशंसनीय कार्य किया। सिख पंथ के विकास के लिए गोइंदवाल साहिब नामक एक नए ‘नगर की स्थापना की गई। यहाँ पर एक बाऊली का निर्माण आरंभ किया गया। सिख पंथ के विकास कार्यों को जारी रखने के लिए गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

प्रश्न 101.
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने के लिए क्या योगदान दिया ? (What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurmukhi script ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा गुरमुखी को लोकप्रिय बनाने का क्या प्रभाव पड़ा ?
(What impact did the popularisation of Gurmukhi by Guru Angad Dev Ji leave on the growth of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरमुखी लिपि यद्यपि गुरु अंगद देव जी से पूर्व अस्तित्व में आ चुकी थी। इसे उस समय लंडे-महाजनी लिपि कहा जाता था। इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति भ्रम में पड़ सकता था इसलिए गुरु अंगद देव जी ने इस लिपि में वांछित सुधार करके इसे एक नया रूप प्रदान किया। फलस्वरूप इस लिपि को समझना सामान्य जन के लिए सरल हो गया। यह लिपि सिखों को उनके गुरुओं के प्रति कर्त्तव्य का स्मरण करवाती थी। इस लिपि में सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई। इस लिपि के प्रचलित होने के कारण ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा मानते थे। यह लिपि सिखों को उनके गुरुओं के प्रति कर्त्तव्य का स्मरण करवाती थी। इस लिपि के लोकप्रिय होने के कारण सिख मत के प्रचार में बड़ी सहायता मिली। यह लिपि सिखों में विद्या के प्रसार के लिए भी बहुत सहायक सिद्ध हुई। इनके अतिरिक्त इस लिपि के कारण सिखों का हिंदुओं से अलग अस्तित्व स्थापित किया जा सका। निस्संदेह गुरमुखी लिपि का प्रचार सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 102.
“गुरु अंगद देव जी बहुत अनुशासन प्रिय थे।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? (Guru Angad Dev Ji was a great disciplinarian.’ Do you agree to it ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी बहुत अनुशासन प्रिय थे। एक बार गुरु जी के दरबार में कीर्तन करने वाले दो रागियों जिनके नाम सत्ता और बलवंड थे, अपनी मधुर आवाज़ के कारण बहुत गर्व करने लग पड़े थे। उनका ख्याल था कि उनके मधुर कीर्तन के कारण ही गुरु जी की संगत में वृद्धि होनी आरंभ हुई है। अपने अहंकार में आकर उन्होंने गुरु जी की आज्ञा का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। गुरु जी की विनतियों के बावजूद वे अपनी जिद्द पर कायम रहे। गुरु जी यह बात सहन नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप उन्होंने इन दोनों रागियों को अपने दरबार से निकाल दिया। शीघ्र ही उन्हें अपनी गलती अनुभव हुई। तत्पश्चात् क्षमा माँगने पर और भाई लद्धा जी के कहने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस प्रकार गुरु जी ने गुरु घर में कठोर अनुशासन बनाए रखने की मर्यादा को बनाए रखा।

प्रश्न 103.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the importance of Sangat and Pangat.)
अथवा
संगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Sangat ?)
अथवा
पंगत अथवा लंगर से आपका क्या भाव है ? (What do you mean by Pangat or Langar ?)
अथवा
पंगत अथवा लंगर व्यवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a note on Pangat or Langar.)
उत्तर-

1. संगत-संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में कोई भी स्त्री अथवा पुरुष बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के सम्मिलित हो सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था। संगत में जाने वाले व्यक्ति का काया कल्प हो जाता था। उसके सभी पाप धुल जाते थे तथा उसमें ज्ञान का नया प्रकाश हो जाता था। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती थीं। वह भवसागर से पार हो जाता था। इस संस्था ने समाज से सामाजिक असमानता को दूर करने में और सिखों को संगठित करने में बहुत सहायता प्रदान की। निस्संदेह यह संस्था सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई।

पंगत-पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। गुरु अमरदास जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर खाए बिना उनके दर्शन नहीं कर सकता। पहले पंगत और पीछे संगत का नारा दिया गया। मुग़ल सम्राट अकबर और हरिपुर के राजा ने भी गुरु अमरदास जी के दर्शन करने से पूर्व लंगर खाया था। यह देर रात्रि तक चलता रहता था। शेष लंगर पक्षियों और जानवरों को खिला दिया जाता था। लंगर प्रत्येक धर्म और जाति के लोगों के लिए खुला था। सिख धर्म के प्रसार में लंगर संस्था का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। इस संस्था ने समाज में जाति प्रथा और छुआछूत की भावनाओं को समाप्त करने में भी बड़ी सहायता की। इस संस्था के कारण सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ।

प्रश्न 104.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems did Guru Amar Das face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठने के शीघ्र पश्चात् गुरु अमरदास जी को सर्वप्रथम गुरु अंगद देव जी के दोनों पुत्रों दासू तथा दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उनका कहना था कि गुरु पुत्र होने के कारण वे गुरुगद्दी के वास्तविक अधिकारी हैं। उन्होंने गुरु अमरदास जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया। उनका कथन था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है? बाबा श्रीचंद जी जो कि गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र थे, गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। इसलिए गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए उन्होंने गुरु अमरदास जी का विरोध करना आरंभ कर दिया। गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देख कर गोइंदवाल साहिब के मुसलमान सिखों से ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने सिखों के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दीं। पर गुरु अमरदास जी ने सिखों को शाँत बने रहने के लिए कहा। उनका कथन था कि संतों के लिए प्रतिशोध लेना ठीक नहीं। व्यक्ति जो बीजेगा उसे वही काटना पड़ेगा। गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों के कारण उच्च जाति के हिंदू भी गुरु साहिब का विरोध करने लग पड़े क्योंकि वे इन सुधारों को अपने धर्म में एक हस्तक्षेप मानते थे।

प्रश्न 105.
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान के बारे में बताओ। (Give the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी द्वारा की गई पाँच मुख्य सेवाओं का वर्णन करो।
(Write down the five services done by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के कार्यों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the works of Guru Amar Das Ji for the spread of Sikhism 🙂
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का अध्ययन करें। (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास के लिए गुरु अमरदास जी की भूमिका के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the role of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस समय के दौरान गुरु अमरदास जी ने सिख पंथ के विकास के लिए बहुत प्रशंसनीय कार्य किए। उन्होंने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब में आरंभ की गई बाऊली के निर्माण को पूर्ण किया। शीघ्र ही यह सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। लंगर संस्था का अधिक विस्तार किया गया। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री उनसे भेंट करने से पर्व लंगर अवश्य खाए। मंजी प्रथा की स्थापना सिख धर्म के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुई। गरु साहिब ने सिख मत को उदासी मल से अलग रखकर सिख धर्म को हिंदू धर्म में लुप्त होने से बचा लिया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जसे… सती प्रथा, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह की मनाही, जाति प्रथा और नशीले पदार्थों के सेवन इत्यादि का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह और मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में तेयार की। उन्होंने नानक नाम के अंतर्गत वाणी की रचना की। गुरु अमरदास जी ने भाई जेठा जी । गुरु रामदास जी) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 106.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is the importance of the construction of the Baoli oi Goindwal Sanih in sviles History ?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोडं बाल साहिब में एक बाऊला का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण-कार्य 1552 ई० में आरंभ किया गया था और यह 1559 ई० में संपण हुआ था। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को क म तीर्थ न देना चाहते थे ताकि उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जा सके। दूसरा, वह वहाँ के लंगों की पानी के संबंध में कठिनाई को दूर करना चाहते थे। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली का निमा काम पूर्ण होने पर गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली का निर्माण सिख पंथ के विकास के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाणित हुआ। इससे सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब सिरमों को हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता नहीं थी। इस कारण सिख धर्म अधिक लोकप्रिय होने लगा। गोहंदगन साहिब सिख गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

प्रश्न 107.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कोई पाँच सामाजिक सुधारों का वर्णन करें। (Describe any five social reforms of Guru Amar Das Ji.) i
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
समाज सुधारक के रूप में गुरु अमरदास जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Amar Das Ji as a social reformer.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में शताब्दियों से चली आ रही सती प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। इस प्रथा के अनुसार यदि किसी दुर्भाग्यशाली स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी लो उस स्त्री को बलपूर्वक उसके पति की चिता के साथ ही जीवित जला दिया जाना था। गुरु साहिब ने बाल विवाह और पर्दा प्रथा का भी विरोध किया। इन कुरीतियों के कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई। गुरु साहिब विधवा विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने समाज में प्रचलित जाति प्रथा और छुआछूत की बड़े जोरदार शब्दों में निंदा की। इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए गुरु साहिब ने उनके दर्शन के लिए आने वाले सभी यात्रियों के लिए लंगर छकना (भोजन करना) आवश्यक कर दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने परस्पर भ्रातृभाव का प्रचार किया। गुरु अमरदास जी नशीले पदार्थों के सेवन के विरुद्ध थे। उन्होंने सिखों के जन्म, विवाह और मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में बनाईं। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने एक नए समाज का सूत्रपात किया।

प्रश्न 108.
मंजी प्रथा क्या थी ? सिख धर्म के विकास में इसने क्या योगदान दिया?
(What was the Manji System ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Manji System ?)
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Manji System.)
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी का एक महान् कार्य था। उनके समय सिखों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। इसलिए उनका व्यक्तिगत रूप में प्रत्येक सिख के पास पहुँचना संभव नहीं था। इस कारण गुरु साहिब ने अपने उपदेशों को दूर के क्षेत्रों में निवास करने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार का पद केवल बहुत ही श्रद्धालु सिखों को दिया जाता था। उनका पद पैतृक नहीं होता था। मंजीदार का प्रचार क्षेत्र किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं था। वे प्रचार के संबंध में अपनी इच्छानुसार किसी भी क्षेत्र में जा सकते थे। मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। वे गुरु साहिब के हुकमों को सिख संगत तक पहुँचाते थे। वे लोगों को धार्मिक शिक्षा देते थे । वे सिखों से धन एकत्रित करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी पर बैठकर धार्मिक उपदेश देते थे इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा ने सिख धर्म के विकास एवं संगठन में बहुमूल्य योगदान दिया।

प्रश्न 109.
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?) .
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो। (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु रामदास जी ने मुख्य भूमिका निभाई। चर्चा कीजिए।
(Guru Ram Das Ji played a vital role for the development of Sikhism. Discuss.)
उत्तर-
गुरु रामदास जी 1574 ई० से 1581 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। गुरु साहिब ने सर्वप्रथम रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना की। यहाँ पर गुरु साहिब ने अलग-अलग व्यवसायों से संबंधित 52 व्यापारियों को बसाया। यह बाज़ार ‘गुरु का बाज़ार’ के नाम से विख्यात हुआ। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने यहाँ पर दो सरोवरों अमृतसर और संतोखसर की खुदाई का कार्य आरंभ किया। गुरु साहिब ने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए और सिखों से विकास कार्यों के लिए वांछित धन एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा की स्थापना की। मसंद प्रथा ने सिख पंथ को संगठित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुरु रामदास जी ने सिखों और उदासियों के मध्य चले आ रहे दीर्घकालीन मतभेदों को समाप्त करके एक नए युग का सूत्रपात किया। गुरु साहिब ने संगत और पंगत संस्थाओं को जारी रखा और वाणी की रचना की । उन्होंने समाज में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। 1581 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु रामदास जी ने अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु रामदास जी ने सिख पंथ को बहुमूल्य देन प्रदान की।

प्रश्न 110.
रामदासपुरा ( अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? [What is the importance of the foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?]
उत्तर-
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।शीघ्र ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र बन गया। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। पहले अमृतसर सरोवर की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया जो शीघ्र ही उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया। इसे सिखों का मक्का कहा जाने लगा। इस के अतिरिक्त यह सिखों की एकता एवं स्वतंत्रता का प्रतीक भी बन गया।

प्रश्न 111.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Udasi Sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi System ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
उत्तर-
उदासी मत की स्थापना गुरु नानक साहिब के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद की त्याग वृत्ति से प्रभावित होकर उदासी मत में सम्मिलित होने लग पड़े थे। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था जबकि गुरु नानक साहिब गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सभी सिद्धांत गुरु नानक साहिब के सिद्धांतों से मिलते थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया कि कहीं सिख गुरु नानक साहिब के उपदेशों को भुलाकर उदासी मत को ही न अपना लें। इसलिए गुरु अंगद साहिब और गुरु अमरदास जी ने ज़ोरदार शब्दों में उदासी मत का खंडन किया। उनका कहना था कि कोई भी सच्चा सिख उदासी नहीं हो सकता। गुरु रामदास जी के समय में उदासियों एवं सिखों के बीच समझौता हो गया। इससे एक नए युग का सूत्रपात हुआ। अब उदासियों ने सिख मत का प्रचार करने में कोई कसर बाकी न रखी। फलस्वरूप सिख मत बहुत तीव्र गति से विकसित होने लगा।

प्रश्न 112.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? . (What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi.)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Write a brief note on the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi.)
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को सर्वप्रथम अपने बड़े भाई पृथी चंद के विरोध का सामना करना पड़ा। बड़ा भाई होने के नाते वह गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने यह घोषणा की कि जब तक वह गुरुगद्दी प्राप्त नहीं कर लेता वह कभी भी गुरु अर्जन देव जी को सुख की साँस नहीं लेने देगा। उसने मुग़ल बादशाह को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का हर संभव प्रयत्न किया। पंजाब के कट्टर मुसलमान पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन नहीं कर सकते थे। उन्होंने पहले अकबर तथा फिर जहाँगीर के कान भरे। अकबर पर तो इन बातों का कोई प्रभाव न पड़ा पर कट्टर मुसलमान होने के कारण जहाँगीर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा। चंदू शाह लाहौर का दीवान था। उसके दूतों ने उसे अपनी लड़की का रिश्ता गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद जी से करने का सुझाव दिया। यह सुनकर चंदू शाह तिलमिला उठा। उसने गुरु जी के संबंध में कई अपमानजनक शब्द कहे। तत्पश्चात् चंदू शाह की पत्नी के विवश करने पर वह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। परंतु गुरु जी ने अब यह रिश्ता मानने से इंकार कर दिया। इस कारण चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया तथा वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा।

प्रश्न 113.
गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में क्या योगदान दिया ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के द्वारा दिए गए योगदान के बारे में बताओ।
(Describe the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की तीन महत्त्वपूर्ण सफलताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालें। (Throw a brief light on three important achievements of Guru Arjan Devji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के संगठनात्मक कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the organisational works of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
सिख पंथ के विकास में गुरु अर्जन देव जी का योगदान बड़ा महत्त्वपूर्ण था। उन्होंने अपनी गुरुगद्दी के समय (1581-1606 ई०) सिख पंथ के विकास के लिए बहुत प्रशंसनीय कार्य किए। अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करके गुरु अर्जन देव जी ने सिखों को उनका सबसे पावन तीर्थं स्थान प्रदान किया। गुरु साहिब ने बारी दोआब और जालंधर दोआब में तरन तारन, हरगोबिंदपुर और करतारपुर नामक नए नगरों की स्थापना की। लाहौर में एक बाऊली का निर्माण करवाया। मसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ सिखों से दशांस भी एकत्रित करते थे। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के लिए सबसे महान् कार्य माना जाता है। सिख इसे अपना सर्वाधिक पावन धार्मिक ग्रंथ मानते हैं। गुरु अर्जन देव जी ने सिखों को आर्थिक पक्ष से समृद्ध बनाने के लिए अरब देशों के साथ घोड़ों के व्यापार को प्रोत्साहित किया। 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देकर सिख पंथ में नव प्राण फूंके।

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प्रश्न 114.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब जी की स्थापना गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक थी। इसका निर्माण अमृत सरोवर के मध्य आरंभ किया गया। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव 1588 ई० में विख्यात सूफी संत मीयाँ मीर द्वारा रखवाई थी। हरिमंदिर साहिब से अभिप्राय था-ईश्वर का मंदिर। गुरु साहिब ने हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से निम्न रखवाया क्योंकि गुरु साहिब का कथन था कि जो निम्न होगा, वही उच्च कहलाने के योग्य होगा। हरिमंदिर साहिब के चारों ओर द्वार बनवाए गए जिससे अभिप्राय था कि इस मंदिर में विश्व की चारों दिशाओं के लोग बिना किसी भेद-भाव के आ सकते हैं। हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में संपूर्ण हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने यह घोषणा की कि हरिमंदिर साहिब की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। यदि कोई यात्री सच्ची श्रद्धा से अमृत सरोवर में स्नान करेगा तो उसे इस भव सागर से मुक्ति प्राप्त होगी। इसका लोगों के दिलों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे बड़ी संख्या में यहाँ पहुँचने लगे। शीघ्र ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे विख्यात तीर्थ-स्थान बन गया।

प्रश्न 115.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand System and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करें। (What do you know about Masand System ? Explain.)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य क्या थे ?
(Who started Masand System ? What were its aims ?)
अथवा
मसंद प्रथा को किसने शुरू किया था ?
(Who started Masand System ?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा संबंधी संक्षिप्त ब्योरा दें। (Give a brief description of Masand System.)
उत्तर-
मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से बना है जिससे अभिप्राय है ‘उच्च स्थान’ । इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। परंतु इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन देव जी के समय में हुआ। उस समय तक सिखों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। इसलिए गुरु अर्जन देव जी को लंगर और सिख पंथ के अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांस (दशम भाग) गुरु साहिब को भेंट करे । इस धन को एकत्रित करने के लिए उन्होंने मसंदों को नियुक्त किया। ये मसंद धन एकत्रित करने के साथ-साथ सिख धर्म का प्रचार भी करते थे। मसंद सिखों से एकत्रित किए धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आ कर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा आरंभ में बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुई। इससे एक तो सिख धर्म का प्रचार दूर-दूर के क्षेत्रों में किया जा सका और दूसरे, गुरु घर की आय भी निश्चित हो गई। बाद में मसंद भ्रष्टाचारी हो गए और उन्होंने गुरु साहिब के लिए कई मुश्किलें उत्पन्न करनी आरंभ कर दीं। फलस्वरूप गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।

प्रश्न 116.
तरन तारन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने माझा के क्षेत्र में सिख धर्म का प्रचार करने के लिए 1590 ई० में अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर की खुदवाई भी आरंभ करवाई। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव सागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म का अपना लिया। इन जाटों ने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की। इन जाटों ने अपने स्वभाव तथा आदतों के कारण सिख धर्म को एक सैनिक धर्म में परिवर्तित किया। इन सैनिकों ने बाद में पंजाब में से मुग़लों तथा अफ़गानों का अंत किया तथा स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 117.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ। [Write a note on the compilation and importance of Adi Granth (Guru Granth Sahib Ji.)]
अथवा
गुरु अर्जन देव जी ने कौन-से पवित्र ग्रंथ का संपादन किया ?
(Which sacred Granth was edited by Guru Arjan Dev Ji ? Describe.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप में नोट लिखें। (Write a note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। इसका उद्देश्य गुरुओं की वाणी को एक स्थान पर एकत्रित करना था और सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का कार्य रामसर में आरंभ किया। इसमें गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी और गुरु अर्जन देव जी की वाणी सम्मिलित की गई। गुरु अर्जन साहिब जी के सर्वाधिक 2,216 शब्द सम्मिलित किए गए। इनके अतिरिक्त गुरु अर्जन देव ने कुछ अन्य संतों और भक्तों की वाणी को सम्मिलित किया। आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य भाई गुरदास जी ने किया। यह महान कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। बाद में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी इसमें सम्मिलित की गई। आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। इससे सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी में भिन्न-भिन्न धर्म और जाति के लोगों की रचनाएँ सम्मिलित करके एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। 15वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के लोगों की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति जानने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी हमारा मुख्य स्रोत है। इनके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य तथा भाषाओं का एक अमूल्य खजाना है।

प्रश्न 118.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद अथवा पृथिया गुरु रामदास जी का सबसे बड़ा पुत्र और गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बहुत स्वार्थी एवं लोभी स्वभाव का था। इसके कारण गुरु रामदास जी ने उसे गुरुगद्दी सौंपने की अपेक्षा गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। पृथी चंद यह जानकर क्रोधित हो उठा। वह तो गुरुगद्दी पर बैठने के लिए काफी समय से स्वप्न देख रहा था। परिणामस्वरूप गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए उसने गुरु अर्जन देव का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। उसने घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसका यह विचार था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी, परंतु जब गुरु साहिब के घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसके ये षड्यंत्र गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक कारण बने।

प्रश्न 119.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंद्र शाह के परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इससे चंदू तिलमिला उठा। उसने गुरु अर्जन देव जी की शान में बहुत अपमानजनक शब्द कहे। बाद में चंदू शाह की पत्नी द्वारा विवश करने पर वह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए गुरु अर्जन साहिब को शगुन भेजा, क्योंकि अब तक गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा उनके संबंध में कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था। इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब चंदू शाह को यह ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब से अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का निर्णय किया। उसने पहले मुग़ल बादशाह अकबर तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। इसका जहाँगीर पर वांछित प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का निर्णय किया। अत: चंदू शाह का विरोध गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 120.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कोई पाँच मुख्य कारण बताएँ। (Mention five main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कोई तीन मुख्य कारण बताएं। (Examine three major causes of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहादत के कारणों के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss about the causes of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर की धर्मांधता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बनी। वह बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इसलिए वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित नहीं देखना चाहता था। पंजाब में सिखों का दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा प्रभाव उसे अच्छा नहीं लग रहा था। इसे समाप्त करने के लिए वह किसी अवसर की प्रतीक्षा में था। इस संबंध में हमें उसकी आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी से स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है । गुरु अर्जन देव जी द्वारा आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन भी उनके बलिदान का एक कारण बना। गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर के यह कहकर कान भरने आरंभ कर दिए कि इस ग्रंथ में बहुत-सी बातें इस्लाम धर्म के विरुद्ध लिखी गई हैं। जहाँगीर ने गुरु साहिब को आदेश दिया कि वे गुरु ग्रंथ साहिब जी से कुछ शब्दों को निकाल दें परंतु गुरु साहिब ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। लाहौर का दीवान चंदू शाह अपनी लड़की के लिए किसी अच्छे वर की खोज में था। उसके परामर्शदाताओं ने उसे यह परामर्श दिया कि वह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन साहिब के लड़के हरगोबिंद से कर दे। इस पर चंदू शाह ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कुछ अपमानजनक शब्द कहे। इस कारण गुरु साहिब ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंदू शाह गुरु साहिब का घोर शत्रु बन गया। गुरु अर्जुन देव जी द्वारा जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो को दी गई सहायता भी उनके बलिदान का कारण बनी। यह कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो को अपने पिता जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह करने में सहायता दी थी।

प्रश्न 121.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। इस आंदोलन का मुख्य केंद्र सरहिंद में था। यह आंदोलन पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को देखकर बौखला उठा था। इसका कारण यह था कि यह आंदोलन इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था।शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर विचारों का था। उसका मुग़ल दरबार में काफी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन साहिब जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। उसका कथन था कि यदि समय रहते सिखों का दमन न किया गया तो इसका इस्लाम पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

प्रश्न 122.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बना। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। जब शाही सेनाओं ने खुसरो को पकड़ने का यत्न किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँच कर खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। अकबर का पौत्र होने के कारण, जिसके सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। साथ ही गुरुघर में आकर कोई भी व्यक्ति गुरु साहिब को आशीर्वाद देने की याचना कर सकता था। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता भी प्रदान की। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया। उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए। उन्हें घोर यातनाएँ देकर मौत के घाट उतार दिया जाए तथा उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाए।

प्रश्न 123.
गुरु अर्जन देव जी को कब और कहाँ शहीद किया गया था ? उनके बलिदान का मुख्य कारण धार्मिक था। अपने पक्ष में तर्क दें।
(When and where was Guru Arjan Dev Ji martyred ? The main reason of his martyrdom was religious. Give arguments in its favour.)
अथवा
क्या गुरु अर्जन देव जी एक राजनीतिक अपराधी थे ? संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Was Guru Arjan Dev Ji a political offender ? Briefly explain.)
अथवा
क्या गुरु अर्जन देव जी को राजनीतिक कारणों से शहीद किया गया अथवा धार्मिक कारणों से ? संक्षिप्त जानकारी दें।
(Was Guru Arjan Dev Ji martyred for political or religious causes ? Write briefly.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० में लाहौर में शहीद किया गया था। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए धार्मिक कारण उत्तरदायी थे। गुरु साहिब ने खुसरो की कोई सहायता नहीं की थी। गुरु साहिब द्वारा खुसरो के माथे पर तिलक लगाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता क्योंकि ऐसा करना सिख परंपरा के विपरीत था। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी में इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं किया कि गुरु अर्जन साहिब ने शहज़ादा खुसरो की कोई सहायता की थी। गुरु साहिब शहज़ादा खुसरो को उन्हें दंड दिए जाने से लगभग एक माह पूर्व मिले थे। यदि गुरु साहिब ने कोई अपराध किया होता तो उन्हें शीघ्र दंड दिया जाना था। तुज़क-एजहाँगीरी को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि जहाँगीर धार्मिक कारणों से गुरु साहिब को शहीद करना चाहता था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करना चाहता था। वह भारत में केवल इस्लाम धर्म को प्रफुल्लित देखना चाहता था। वह गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए किसी अवसर की प्रतीक्षा में था। उसने गुरु अर्जन देव जी पर शहज़ादा खुसरो की सहायता का आरोप लगाकर उन्हें शहीद कर दिया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 124.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ। इस बलिदान के कारण सिख धर्म का स्वरूप ही बदल गया। इससे शांतिपूर्वक रह रहे सिख भड़क उठे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि अब धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने बहुत आवश्यक हैं। इसीलिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। इस प्रकार गुरु जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों एवं मुग़लों में मित्रतापूर्ण संबंधों का अंत हो गया। इसके पश्चात् सिखों और मुग़लों के मध्य एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। यह संघर्ष मग़लों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। दूसरी ओर इसने सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन के अतिरिक्त गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया। निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिख इतिहास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

प्रश्न 125.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद साहिब ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास के लिए गुरु हरगोबिंद साहिब के योगदान के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the contribution of Guru Hargobind Sahib for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद साहिब का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। वह बहुत शानो-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने सच्चा पातशाह की उपाधि तथा मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की : मोरी तलवार सांसारिक सत्ता की और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु जी ने मुग़ल अत्याचारियों का सामना करने के लिए एक सेना का गठन करने का निर्णय किया। उन्होंने सिखों को घोड़े और शस्त्र भेट करने के लिए कहा। अमृतसर की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। गुरु साहिब के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर जहाँगीर ने उन्हें कुछ समय के लिए ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना लिया था। शाहजहाँ के समय में गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ लड़ीं जिनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई। गुरु जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुरु हरगोबिंद साहिब ने सिख धर्म का खूब प्रचार किया।

प्रश्न 126.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने आगे दिये कारणों से नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी की नीति धारण की—

  1. जहाँगीर से पूर्व मुग़लों तथा सिखों के मध्य संबंध मैत्रीपूर्ण चले आ रहे थे। 1605 ई० में जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही एक नए युग का आरंभ हुआ। वह बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के बिना किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता नहीं देख सकता था। इस बदली हुई स्थिति ने गुरु साहिब को नई नीति अपनाने के लिए बाध्य कर दिया।
  2. 1606 ई० में जहाँगीर ने सिखों की बढ़ती हुई शक्ति का अंत करने के उद्देश्य से गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया। इस शहीदी का गुरु हरगोबिंद साहिब पर गहरा प्रभाव पड़ा। अतः उन्होंने मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के उद्देश्य से सिखों को हथियारों से लैस करने का निर्णय किया।
  3. गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद को यह संदेश भेजा कि वह हथियारों से सुसज्जित होकर गुरुगद्दी पर बैठे तथा अपनी योग्यता के अनुसार सेना भी रखे। अपने पिता के इस अंतिम संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति को अपनाया।
  4. पंजाब के जाट बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित थे। वे अत्याचारी के समक्ष झुकना नहीं जानते थे। उन्होंने गुरु हरगोबिंद साहिब को नई नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 127.
गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई नई नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ? (What were the main features of Guru Hargobind’s New Policy ?)
अथवा
मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी-पीरी के सिद्धांत के बारे में जानकारी दीजिए।
(Discuss the concept of Miri-Piri.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने कौन-सी नई नीति अपनाई ? प्रकाश डालें। (Which New Policy was adopted by Guru Hargobind Sahib Ji’? Elucidate ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। ( Mention any five features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए नई नीति अपनाने का निर्णय किया। वे बहुत शान-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने सम्राट् की भाँति चमकीले वस्त्र पहनने आरंभ किए और सच्चा पातशाह की उपाधि धारण की। उन्होंने मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। सिख पंथ की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने एक सेना का गठन करने का निर्णय किया। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि सिख उन्हें धन के स्थान पर शस्त्र और घोड़े भेट करें। अमृतसर शहर को पूर्णतः सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से गुरु साहिब ने लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों के राजनीतिक एवं अन्य सांसारिक मामलों के समाधान के लिए गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के निकट अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने सिखों को संत सिपाही बना दिया। इस नई नीति के फलस्वरूप सिखों एवं मुगलों के परस्पर संबंध बिगड़ने आरंभ हो गए। यदि गुरु हरगोबिंद साहिब ने नई नीति न अपनाई होती तो सिखों का पावन भ्रातृत्व या तो समाप्त हो गया होता अथवा फिर वे फ़कीरों और संतों की एक श्रेणी बन कर रह जाता।

प्रश्न 128.
मीरी और पीरी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ। (What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें। (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर बैठने के समय बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु साहिब द्वारा ये दोनों तलवारें धारण करने से अभिप्राय यह था कि आगे से वे अपने अनुयायियों का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी नेतृत्व करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का आदेश दिया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई इस मीरी और पीरी की नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कारण सर्वप्रथम सिखों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया। चौथा, इस नीति के कारण सिखों और मुग़लों और अफ़गानों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ जिसमें अंतत: सिख विजयी रहे।

प्रश्न 129.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है कि गुरु हरगोबिंद साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

प्रश्न 130.
गुरु हरगोबिंद साहिब तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Sahib and Mughal Emperor Jahangir.)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर यह सहन करने के लिए तैयार न था। चंद्र शाह ने भी गुरु हरगोबिंद साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए जहाँगीर को भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सूफी संत मीयाँ मीर जी के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। गुरु जी के कहने पर जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बनाए 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करने का आदेश दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा। इसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

प्रश्न 131.
गुरु हरगोबिंद साहिब तथा मुग़लों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of battles between Guru Hargobind Sahib and the Mughals ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब तथा मुग़लों (शाहजहाँ) के मध्य लड़ाइयों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे—

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन साहिब द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। सिख इस अपमान को किसी हालत में सहन करने को तैयार नहीं थे।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु जी ने अपनी सेना में बहुत से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कई राजसी चिह्नों को धारण कर लिया था। सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहने लगे थे। निस्संदेह शाहजहाँ भला यह कैसे सहन करता।
  4. कौलां लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की बेटी थी। वह गुरु अर्जन साहिब की वाणी से प्रभावित होकर गुरु जी की शरण में चली गई थी। इस काजी द्वारा भड़काने पर शाहजहाँ ने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।

प्रश्न 132.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय में मुग़लों और सिखों के मध्य अमृतसर में 1634 ई० में प्रथम लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। कहा जाता है कि उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने कुछ सैनिकों सहित अमृतसर के निकट एक वन में शिकार खेल रहा था। दूसरी ओर गुरु हरगोबिंद साहिब और उनके कुछ सिख भी उसी वन में शिकार खेल रहे थे। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ जो उसे ईरान के सम्राट ने भेट किया था, उड़ गया। सिखों ने इस को पकड़ लिया। उन्होंने यह बाँज़ मुग़लों को लौटाने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के उद्देश्य से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिख सैनिकों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। इस कारण मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुग़लों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस विजय के कारण सिखों के हौसले बुलंद हो गए।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 133.
गुरु हरगोबिंद जी के समय हुई लहिरा की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lahira fought in the times of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहिरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहिरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों की भारी प्राण हानि हुई और उनके दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग भी मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे।

प्रश्न 134.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में तीसरी लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह गुरु हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। अमृतसर की लड़ाई में उसने वीरता का प्रमाण दिया, परंतु अब वह बहुत अहंकारी हो गया था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया कि उसे बाज़ के संबंध में कुछ पता है। तत्पश्चात् जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने का निर्णय किया। वह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। उसने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु जी के दो पुत्रों भाई गुरदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। मुग़ल सेना को भारी जन हानि हुई। इस प्रकार गुरु जी को एक और शानदार विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 135.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना कर भेज दिया था। उस समय इस दुर्ग में 52 राजा राजनीतिक कारणों से बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने सभी कष्ट भूल गए थे। पर जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने का निर्देश दिया तो दुर्ग में बंदी दूसरे राजाओं को बहुत निराशा हुई। क्योंकि गुरु साहिब को इन राजाओं से काफी हमदर्दी हो गई थी इसलिए गुरु साहिब ने जहाँगीर को यह संदेश भेजा कि वह तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक उनके साथ बंदी 52 राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं की रिहाई का निर्देश जारी कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।

प्रश्न 136.
अकाल तख्त साहिब पर एक नोट लिखें। (Write a note on Akal Takht.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of building Sri Akal Takht in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ।वास्तव में यह गुरु साहिब का एक महान् कार्य था।अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। वास्तव में अकाल तख्त सिखों की राजनीतिक गतिविधियों का एक प्रमुख स्थल बन गया।

प्रश्न 137.
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंध कैसे थे ? संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
जहाँगीर की मृत्यु के पश्चात् 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासनकाल में कई कारणों से मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। प्रथम, शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बावली को गंदगी से भरवा दिया था तथा लंगर के लिए बनाए गए भवन को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था। दूसरा, नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध शाहजहाँ को भड़काने में कोई प्रयास न छोड़ा। तीसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। चौथा, लाहौर के एक काजी की लड़की जिसका नाम कौलां था, गुरु जी की शिष्या बन गई थी। इस कारण उस काजी ने शाहजहाँ को सिखों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए उत्तेजित किया। 1634-35 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुगलों के मध्य अमृतसर, लहिरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

प्रश्न 138.
सिख पंथ के विकास में गुरु हर राय जी का समय क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
(Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हर राय जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
अथवा
गुरु हर राय जी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Guru Har Rai Ji ?)
उत्तर-
गुरु हर राय जी 1645 ई० से लेकर 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उनकी गुरुगद्दी का समय सिख इतिहास में शांति का काल कहा जा सकता है। गुरु हर राय साहिब जी सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के कई स्थानों पर जैसे जालंधर, अमृतसर, करतारपुर, गुरदासपुर, फिरोज़पुर, पटियाला, अंबाला, करनाल और हिसार इत्यादि स्थानों पर गए। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब से बाहर अपने प्रचारक भेजे । अपने प्रचार दौरे के दौरान गुरु साहिब ने अपने एक श्रद्धालु फूल को यह आशीर्वाद दिया कि उसकी संतान शासन करेगी। गुरु साहिब की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। शाहजहाँ का बड़ा पुत्र दारा गुरु घर का बहुत प्रेमी था। 1658 ई० में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए उत्तराधिकार युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में दारा की पराजय हुई और वह गुरु हर राय के पास आशीर्वाद लेने के लिए आया। गुरु साहिब ने उसके साहस को बढ़ावा दिया। बादशाह बनने के पश्चात् औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली बुलाया। गुरु साहिब ने अपने बड़े पुत्र राम राय को दिल्ली भेजा। गुरुवाणी का गलत अर्थ बताने के कारण गुरु हर राय साहिब ने उसे गुरुगद्दी से बेदखल कर दिया और अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण साहिब को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

प्रश्न 139.
गुरु हरकृष्ण जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। उनको बाल गुरु क्यों कहा जाता है ? (Write a brief note on Guru Harkrishan Ji. Why is he called Bal Guru ?)
अथवा
गुरु हरकृष्ण जी पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on Guru Harkrishan Ji.)
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी गुरु हर राय जी के छोटे पुत्र थे। वह 1661 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे। वह सिखों के आठवें गुरु थे। जिस समय वह गुरुगद्दी पर बैठे तो उस समय उनकी आयु केवल पाँच वर्ष थी। इस कारण उनको ‘बाल गुरु’ के नाम से स्मरण किया जाता है। गुरु हरकृष्ण जी के बड़े भाई राम राय ने आप जी को गुरुगद्दी दिए जाने का कट्टर विरोध किया, क्योंकि वह अपने आपको गुरुगद्दी का वास्तविक अधिकारी मानता था। जब वह अपनी कुटिल चालों में सफल न हो सका तो उसने औरंगजेब से सहायता माँगी। इस संबंध में औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली आने का आदेश दिया। गुरु साहिब 1664 ई० में दिल्ली गए। वहाँ वह राजा जय सिंह के यहाँ ठहरे। उन दिनों दिल्ली में भयानक चेचक एवं हैजा फैला हुआ था। गुरु जी ने इन बीमारों, गरीबों एवं अनाथों की भरसक सेवा की। वह स्वयं भी चेचक के कारण बीमार पड़ गए। वह 30 मार्च, 1664 ई० को ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व आपके मुख . से ‘बाबा बकाला’ नामक शब्द निकले, जिससे भाव था कि सिखों का अगला उत्तराधिकारी बाबा बकाला में है।

प्रश्न 140.
गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the travels of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी गुरुगद्दी के समय (1664-75 ई०) के दौरान पंजाब और पंजाब से बाहर के प्रदेशों की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और सिख धर्म का प्रचार करना था। गुरु साहिब ने अपनी यात्राएँ 1664 ई० में अमृतसर से आरंभ की। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने वल्ला, घुक्केवाली, खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरन तारन, खेमकरन, कीरतपुर साहिब और बिलासपुर इत्यादि पंजाब के प्रदेशों की यात्राएँ कीं। पंजाब की यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी पूर्वी भारत की यात्राओं पर निकल पड़े। अपनी इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब सैफाबाद, धमधान, दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा, कानपुर, प्रयाग, बनारस, गया, पटना, ढाका और असम इत्यादि स्थानों पर गए। इन यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी अपने परिवार सहित पंजाब आ गए। यहाँ पर आकर गुरु साहिब ने एक बार फिर पंजाब के विख्यात स्थानों की यात्राएँ कीं। गुरु साहिब की ये यात्राएँ सिखपंथ के विकास के लिए बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुईं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग सिख मत में सम्मिलित हुए।

प्रश्न 141.
किस श्रद्धालु सिख ने नवम् गुरु की तलाश की और क्यों ? (Name the sincere Sikh, who searched for the Ninth Guru and why ?)
उत्तर-
1664 ई० में दिल्ली में ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हरकृष्ण जी ने सिख संगतों को यह संकेत दिया कि उनका अगला गुरु बाबा बकाला में है। जब यह समाचार बाबा बकाला पहुँचा कि गुरु साहिब आगामी गुरु का नाम बताए बिना ज्योति-जोत समा गए हैं तो 22 सोढियों ने वहाँ अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा नामक एक सिख ने इसका समाधान ढूँढा। वह एक व्यापारी था। एक बार जब उसका जहाज़ समुद्री तूफान में घिर कर डूबने लगा तो उसने अरदास की कि यदि उसका जहाज़ किनारे पर पहुँच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेट करेगा। गुरु साहिब की कृपा से उसका जहाज़ बच गया। वह गुरु साहिब को 500 मोहरें भेट करने के लिए सपरिवार बाबा बकाला पहुँचा। यहाँ वह 22 गुरु देख कर चकित रह गया। उसने वास्तविक गुरु को ढूंढने की एक योजना बनाई। वह बारी-बारी प्रत्येक गुरु के पास गया तथा उन्हें दो-दो मोहरें भेट करता गया। झूठे गुरु दो-दो मोहरें लेकर प्रसन्न हो गए। जब मक्खन शाह ने अंत में तेग़ बहादुर जी के पास जाकर दो मोहरें भेट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेट करने का वचन दिया था, परंतु अब केवल दो मोहरें ही भेट कर रहा है।” यह सुनकर मक्खन शाह बहुत प्रसन्न हुआ और वह एक मकान की छत पर चढ़ कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” अर्थात् गुरु मिल गया है। इस प्रकार सिख संगतों ने गुरु तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 142.
गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी के बलिदान के कारणों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the reasons for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का अध्ययन करें। (Study the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कोई पाँच कारण लिखें। (Write any five causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
औरंगज़ेब की कट्टरता गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बना। औरंगज़ेब 1658 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह भारत में इस्लाम धर्म को छोड़कर अन्य किसी धर्म के अस्तित्व को सहन नहीं कर सकता था। उसने हिंदुओं के कई प्रसिद्ध मंदिरों को गिरवाकर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं। हिंदुओं के त्योहारों और रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिए गए। उसने सिखों के कई विख्यात गुरुद्वारों को गिरवा देने का आदेश जारी किया। ऐसे समय में नक्शबंदियों ने जो कि कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था, ने भी सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगज़ेब को भड़काना आरंभ कर दिया था। नक्शबंदी पंजाब और पंजाब से बाहर सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन नहीं कर सकते थे। राम राय ने गुरुगद्दी को प्राप्त करने के लिए गुरु तेग़ बहादुर जी के विरुद्ध षड्यंत्र करने आरंभ कर दिए थे। इन षड्यंत्रों का औरंगजेब पर वांछित प्रभाव पड़ा। कश्मीरी पंडितों की पुकार गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का तत्कालीन कारण बनी। उस समय औरंगज़ेब कश्मीर के सभी पंडितों को मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था। इंकार करने वालों की हत्या कर दी जाती। कोई मार्ग दिखाई न देता देखकर उन्होंने गुरु तेग़ बहादुर जी से सहायता के लिए निवेदन किया जो गुरु साहिब ने स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 143.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका की समीक्षा कीजिए।
(Evaluate the role played by Naqshbandis in the martyrdom of Guru Tegh . Bahadur Ji.)
उत्तर-
नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। इस संप्रदाय का औरंगज़ेब पर बहुत प्रभाव था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति, सिख मत का बढ़ रहा प्रचार और मुसलमानों की गुरु घर के प्रति बढ़ रही प्रवृत्ति असहनीय थी। नक्शबंदियों को यह खतरा हो गया कि कहीं लोगों में आ रही जागृति और सिख धर्म का विकास इस्लाम के लिए कोई गंभीर चुनौती ही न बन जाए। ऐसा होने की दशा में भारत में मुस्लिम समाज की जड़ें हिल सकती थीं। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगज़ेब को भड़काना आरंभ किया। उनकी इस कार्यवाही ने जलती पर तेल डालने का कार्य किया। उस समय शेख़ मासूम नक्शबंदियों का नेता था। वह अपने पिता शेख़ अहमद सरहिंदी से भी अधिक कट्टर था। उसका विचार था कि यदि पंजाब में सिखों का शीघ्र दमन नहीं किया गया तो भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव डगमगा सकती है। परिणामस्वरूप औरंगज़ेब ने गुरु जी के विरुद्ध कदम उठाने का निर्णय किया। निस्संदेह हम कह सकते हैं कि गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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प्रश्न 144.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी ने कश्मीरी ब्राह्मणों की सहायता क्यों की ? (Why did Guru Tegh Bahadur Ji help the Kashmiri Brahmins ?)
उत्तर-
कश्मीर में रहने वाले ब्राह्मणों का सारे भारत के हिंदू बहुत आदर करते थे। औरंगज़ेब ने सोचा कि यदि ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसी उद्देश्य से उसने शेर अफ़गान को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया। शेर अफ़गान ने ब्राह्मणों को तलवार की नोक पर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल मई, 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग बहादुर जी के पास अपनी करण याचना लेकर पहुँचा। जब गुरु जी ने उनकी रौंगटे खड़े कर देने वाली अत्याचारों की कहानी सुनी तो वह सोच में पड़ गए। गुरु साहिब के मुख पर गंभीरता देख बालक गोबिंद राय, जो उस समय 9 वर्ष के थे, ने पिता जी से इसका कारण पूछा। गुरु साहिब ने बताया कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने झट से कहा, “पिता जी आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ?” बालक के मुख से यह उत्तर सुन कर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना बलिदान देने का निर्णय कर लिया। गुरु जी ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि वे जाकर मुग़ल अधिकारियों को बता दें कि यदि वे मुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बना लें तो वे इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। जब औरंगज़ेब को इस बात का पता चला तो उसने गुरु जी को दिल्ली बुलाकर मुसलमान बनाने का निश्चय किया।

प्रश्न 145.
गुरु तेग़ बहादुर जी को कब और कहाँ शहीद किया गया था ? उनका बलिदान राजनीतिक कारणों से हुआ अथवा धार्मिक कारणों से ?
(When and where was Guru Tegh Bahadur Ji martyred ? Did his martyrdom took place due to political or religious causes ? Discuss.)
अथवा
क्या गुरु तेग़ बहादुर जी एक राजनीतिक अपराधी थे ? अपने पक्ष में तर्क दें।
(Was Guru Tegh Bahadur Ji a political offender ? Give arguments in support of your answer.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी को 11 नवंबर, 1675 ई० में दिल्ली में शहीद किया गया था। गुरु साहिब को धार्मिक कारणों से शहीद किया गया। उस समय भारत में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब का शासन था। वह बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह भारत में इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म का अस्तित्व सहन नहीं कर सकता था। उसने हिंदुओं के कई विख्यात मंदिरों को गिरवा दिया था और उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करवाया। हिंदुओं को राज्य की नौकरी से निकाल दिया गया। उन्हें पुनः जजिया कर देने के लिए विवश किया गया। उनके धार्मिक रीतिरिवाजों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। औरंगज़ेब सिखों के बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करना चाहता था। नक्शबंदी जो कि कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था, को पंजाब में तीव्रता के साथ सिखों के बढ़ रहे प्रभाव के कारण इस्लाम धर्म के लिए खतरा अनुभव हुआ। इसलिए उसने औरंगजेब को भड़काया। उस समय कश्मीर में औरंगजेब के सूबेदार शेर अफ़गान ने कश्मीरी पंडितों को इस्लाम धर्म में सम्मिलित करने के लिए अत्याचारों का एक दौर आरंभ किया हुआ था। प्रतिदिन बड़ी संख्या में इस्लाम धर्म को स्वीकार न करने वाले पंडितों को मौत के घाट उतारा जाने लगा। इन पंडितों की पुकार पर गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपना बलिदान देने का निर्णय किया।

प्रश्न 146.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए। (Evaluate the historical importance of martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के कारणों के बारे में जानकारी दें। (Describe the reasons for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के बहुत महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले । संसार के इतिहास में गुरु साहिब जी का बलिदान एकमात्र ऐसा बलिदान था जो किसी अन्य धर्म की रक्षा के लिए दिया गया था। इस बलिदान के कारण समूचा पंजाब क्रोध और प्रतिशोध की भावना से भड़क उठा। गुरु साहिब के इस बलिदान ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित रहेगा, तब तक उनके अत्याचार भी बने रहेंगे। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों के अत्याचारों को समाप्त करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उन्होंने 1699 ई० में खालसा पंथ का सृजन किया। तत्पश्चात् सिखों और मुगलों के बीच एक लंबे संघर्ष की शुरुआत हुई। इस संघर्ष ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया था। गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों में धर्म के लिए बलिदान देने की एक परंपरा आरंभ हो गई। अंत में महाराजा रणजीत सिंह के अंतर्गत सिख पंजाब में एक स्वतंत्र सिख राज्य स्थापित करने में सफल हुए। इसके अतिरिक्त हिंदू धर्म के अस्तित्व को पूर्ण रूप से खत्म होने से बचा लिया गया।

प्रश्न 147.
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु गोबिंद सिंह जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? (What difficulties were faced by Guru Gobind Singh Ji when he attained the Gurugaddi ?)
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु गोबिंद सिंह जी को आंतरिक तथा बाह्य अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी की आयु केवल 9 वर्ष थी परंतु उनके सामने पहाड़ जैसी चुनौतियाँ थीं। प्रथम, उस समय मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब का शासन था। वह बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को सहन करने को तैयार नहीं था। इसी कारण उसनें गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद कर दिया। औरंगज़ेब के बढ़ते हुए अत्याचारों को नुकेल डालना आवश्यक था। द्वितीय, पहाड़ी राजा अपने निहित स्वार्थों के कारण गुरु गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध थे। तीसरा, धीरमलिए तथा रामसइए गुरुगद्दी न मिलने के कारण गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे थे। चौथा, उस समय मसंद प्रणाली में अनेकों दोष आ गए थे। मसंद अब बहुत भ्रष्ट हो गए थे। वे सिखों को लूटने में प्रसन्नता अनुभव करते थे। पाँचवां, उस समय हिंदू भी सदियों की गुलामी के कारण उत्साहहीन थे। परिणामस्वरूप सिखों को फिर से संगठित करने की आवश्यकता थी।

प्रश्न 148.
भंगाणी की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Bhangani.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के भंगाणी युद्ध का वर्णन करें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Describe Guru Gobind Singh’s battle of Bhangani and also explain its importance.)
उत्तर-
भंगाणी की लड़ाई गुरु गोबिंद सिंह जी तथा पहाड़ी राजाओं के बीच हुई प्रथम लड़ाई थी। यह लड़ाई 22 सितंबर, 1688 ई० में हुई थी। इस लड़ाई के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, गुरु गोबिंद सिंह जी की चल रही सैनिक तैयारियों को देखकर पहाड़ी राजाओं में घबराहट फैल गई थी। उन्हें अपनी स्वतंत्रता ख़तरे में अनुभव होने लगी। दूसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी के समाज-सुधार के कार्यों को पहाडी राजा अपने धर्म में हस्तक्षेप समझते थे। तीसरा, ये पहाड़ी राजा सिख संगतों को बहुत तंग करते थे। चौथा, मुग़ल सरकार भी इन पहाड़ी राजाओं को गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए भड़का रही थी। पाँचवां, कहलूर का राजा भीम चंद गुरु साहिब से बहुत ईर्ष्या करता था। फलस्वरूप कहलूर के शासक भीम चंद तथा श्रीनगर के शासक फ़तह शाह के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं के एक गठबंधन ने 22 सितंबर, 1688 ई० में भंगाणी के स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में सढौरा के पीर बुद्ध शाह ने गुरु साहिब को सहायता दी। सिखों ने पहाड़ी राजाओं का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में अंततः सिखों की विजय हुई। इस विजय के कारण सिखों का उत्साह बहुत बढ़ गया तथा गुरु साहिब की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। पहाड़ी राजाओं ने गुरु साहिब का विरोध छोड़कर उनसे मित्रता करने में ही अपनी भलाई समझी।

प्रश्न 149.
नादौन की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Nadaun.)
उत्तर-
भंगाणी की लड़ाई के पश्चात् गुरु गोबिंद सिंह जी पाऊँटा साहिब छोड़कर पुनः आनंदपुर साहिब आ गए। इस समय औरंगज़ेब दक्षिण के युद्धों में उलझा हुआ था। यह स्वर्ण अवसर देखकर पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों को दिया जाने वाला वार्षिक खिराज (कर) देना बंद कर दिया। जब औरंगज़ेब को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने जम्मू के सूबेदार मीयाँ खाँ को इन पहाड़ी राजाओं को पाठ पढ़ाने का आदेश दिया। मीयाँ खाँ ने तुरंत आलिफ खाँ के अंतर्गत मुग़लों की एक भारी सेना इन पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए भेजी। ऐसे गंभीर समय में भीम चंद ने गुरु साहिब को सहायता के लिए निवेदन किया। गुरु साहिब ने यह निवेदन स्वीकार कर लिया और वे स्वयं अपने सिखों को साथ लेकर सहायता के लिए पहुँचे। 20 मई, 1690 ई० को काँगड़ा से लगभग 30 किलोमीटर दूर नादौन में भीम चंद और आलिफ खाँ की सेनाओं में लड़ाई आरंभ हुई। इस लड़ाई में काँगड़ा के राजा कृपाल चंद ने आलिफ खाँ का साथ दिया। इस लड़ाई में गुरु साहिब और उनके सिखों ने अपनी वीरता के ऐसे जौहर दिखाए कि आलिफ खाँ और उसके सैनिकों को रणभूमि से भागने के लिए विवश होना पड़ा। इस प्रकार गुरु साहिब के सहयोग से भीम चंद और उसके साथी पहाडी राजाओं को विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 150.
खालसा की स्थापना के कारणों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Give in brief the causes of the creation of Khalsa.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन क्यों किया ? । (Why did Guru Gobind Singh create the Khalsa ?) .
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के लिए उत्तरदायी मुख्य कारणों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
(Give a brief description of the circumstances responsible for the creation of Khalsa.)
अथवा
1699 ई० में खालसा की स्थापना के लिए उत्तरदायी कोई पाँच कारण लिखें। (Write any five causes that led to the creation of Khalsa in 1699 A.D.)
उत्तर-
जहाँगीर के समय से मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। औरंगज़ेब तो सारी सीमाएँ ही लांघ गया। उसने हिंदुओं के कई विख्यात मंदिरों को गिरवा दिया और उनके रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने गैर-मुसलमानों को तलवार के बल पर इस्लाम धर्म में सम्मिलित करना आरंभ कर दिया। 1675 ई० में उसने गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया। पहाड़ी राजा बहुत स्वार्थी और विश्वासघाती थे। गुरु गोबिंद सिंह जी को ऐसे सैनिकों की आवश्यकता पड़ी जो मुग़लों का डटकर सामना कर सकें। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जिसमें ऊँच-नीच के लिए कोई स्थान न हो। वे मसंद प्रथा को समाप्त करने के लिए सिखों को एक नए रूप में संगठित करना चाहते थे। अब तक सिख-धर्म में सम्मिलित होने वाले लोगों में बहुसंख्या जाटों की थी। वे स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ऐसे योद्धाओं का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे। बचित्तर नाटक में गुरु गोबिंद सिंह जी लिखते हैं कि उनके जीवन का उद्देश्य संसार में धर्म-प्रचार का कार्य करना एवं अत्याचारियों का नाश करना है। अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया।

प्रश्न 151.
खालसा पंथ की स्थापना कब, कहाँ और कैसे हुई ?
(When, where and how was the Khalsa founded ?)
अथवा
खालसा की स्थापना पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the creation of Khalsa.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने ख़ालसा की स्थापना किस प्रकार की? (How Khalsa was created by Guru Gobind Singh Ji ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में केसगढ़ नामक स्थान पर एक भारी दीवान सजाया। इस दीवान में 80,000 सिखों ने भाग लिया। जब सभी लोग बैठ गए तो गुरु जी मंच पर आए। उन्होंने म्यान से तलवार निकाली और एकत्रित सिखों को संबोधित किया, “क्या आप में से कोई ऐसा सिख है जो धर्म के लिए अपना शीश भेट करे ?” ये शब्द सुनकर दीवान में सन्नाटा छा गया। जब गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया तो भाई दया राम जी अपना बलिदान देने के लिए उपस्थित हुआ। गुरु जी उसे पास ही एक तंबू में ले गए जहाँ उन्होंने दया राम को बिठाया और खून से भरी तलवार लेकर पुनः मंच पर आ गए। गुरु जी ने एक और सिख से बलिदान की माँग की। अब भाई धर्मदास जी उपस्थित हुआ। इस क्रम को तीन बार और दोहराया गया। गुरु जी की आज्ञा का पालन करते हुए भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी अपने बलिदानों के लिए उपस्थित हुए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ का चुनाव किया। गुरु साहिब ने इन पाँच प्यारों को पहले खंडे का पाहुल पिलाया और बाद में स्वयं इन प्यारों से पाहुल पिया। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 152.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन कब किया और इसके मुख्य सिद्धांत क्या हैं ?
(When was the Khalsa created by Guru Gobind Singh Ji and what are its main principles ?)
अथवा
खालसा पंथ के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करो। (Explain the main principles of the Khalsa.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित किए गए ‘खालसा पंथ’ के मुख्य सिद्धाँत लिखो। (Write the main principles of the ‘Khalsa Panth’ founded by Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन 30 मार्च, 1699 ई० में बैसाखी के दिन किया। खालसा पंथ के मुख्य सिद्धांत ये थे—

  1. खालसा पंथ में सम्मिलित होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए ‘खंडे का पाहुल’ छकना आवश्यक है।
  2. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ और खालसा स्त्री ‘कौर’ शब्द का प्रयोग करेगी।
  3. प्रत्येक खालसा एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य देवी-देवता की पूजा नहीं करेगा।
  4. प्रत्येक खालसा पाँच कक्कार–केश, कंघा, कड़ा, कच्छहरा और कृपाण अवश्य धारण करेगा।
  5. प्रत्येक खालसा भोर होते ही जागकर स्नान करने के पश्चात् गुरवाणी का पाठ करेगा।
  6. प्रत्येक खालसा श्रम द्वारा अपनी आजीविका कमाएगा और अपनी आय का दशांस धर्म के लिए दान देगा।
  7. प्रत्येक खालसा शस्त्र धारण करेगा और धर्म युद्ध के लिए सदैव तैयार रहेगा।
  8. प्रत्येक खालसा सिगरेट, नशीले पदार्थों के सेवन, पर-स्त्री गमन इत्यादि बुराइयों से कोसों दूर रहेगा।
  9. प्रत्येक खालसा परस्पर मिलते समय ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह’ कहेगा।

प्रश्न 153.
खालसा पंथ की स्थापना के महत्त्व पर एक नोट लिखो। (Write a note on the importance of the Khalsa.)
अथवा
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था ? (What was the importance of the foundation of Khalsa ?)
अथवा
खालसा की स्थापना के महत्त्व का अध्ययन कीजिए। (Study the importance of the creation of Khalsa.)
उत्तर-
खालसा पंथ की स्थापना सिख इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसके दूरगामी परिणाम निकले। खालसा की स्थापना के पश्चात् लोग बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। खालसा की स्थापना से एक आदर्श समाज का जन्म हुआ। इसमें ऊँच-नीच का कोई स्थान नहीं था। समस्त जातियों को समान समझा जाने लगा। इस प्रकार निम्न और पिछड़े वर्गों को एक नया सम्मान प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त इस समाज में अंध-विश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था। खालसा की स्थापना करके गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में नव प्राण फूंके। अत्याचारियों के सम्मुख झुकने की अपेक्षा अब उन्होंने शस्त्र उठा लिए। दुर्बल से दुर्बल सिख भी अब स्वयं को शेर की भाँति वीर समझने लगा। उन्होंने वीरता की नई उदाहरणें स्थापित की। अंत में वे पंजाब से मुग़लों तथा अफ़गानों के अत्याचारी शासन का उन्मूलन करके और महाराजा रणजीत सिंह के अंतर्गत एक स्वतंत्र सिख राज्य स्थापित करने में सफल हुए।

प्रश्न 154.
श्री आनंदपुर साहिब की प्रथम लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on the first battle of Sri Anandpur Sahib.)
उत्तर-
1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना के पश्चात् भारी संख्या में लोग खालसा पंथ में सम्मिलित होने लगे थे। गुरु जी की दिन-प्रतिदिन बढ़ रही इस शक्ति के कारण पहाड़ी राजाओं के मन की शांति भंग हो गई थी। कहलूर के राजा भीम चंद, जिसकी रियासत में श्री आनंदपुर साहिब स्थित था, ने गुरु जी को श्री आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए कहा। गुरु जी ने यह माँग मानने से स्पष्ट इंकार कर दिया। उनका कहना था कि गुरु तेग़ बहादुर जी ने यह भूमि उचित मूल्य देकर क्रय की थी। इस पर भीम चंद ने कुछ अन्य पहाड़ी राजाओं से मिल कर 1701 ई० में श्री आनंदपुर साहिब के किले पर आक्रमण कर दिया। किले का घेरा कई दिनों तक जारी रहा। किले के भीतर यद्यपि सिखों की संख्या बहुत कम थी, फिर भी उन्होंने पहाड़ी राजाओं की सेनाओं का खूब डट कर सामना किया। जब पहाड़ी राजाओं को सफलता मिलने की कोई आशा न रही तो उन्होंने गुरु जी से संधि कर ली। यह संधि पहाड़ी राजाओं की एक चाल थी तथा वह अवसर देखकर गुरु गोबिंद सिंह जी पर एक ज़ोरदार आक्रमण करना चाहते थे।

प्रश्न 155.
श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the second battle of Sri Anandpur Sahib.)
उत्तर-
पहाड़ी राजा गुरु गोबिंद सिंह जी से अपनी हुई निरंतर पराजयों के अपमान का प्रतिशोध लेना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने मुग़ल सेनाओं से मिलकर मई, 1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब के दुर्ग पर दूसरी बार आक्रमण कर दिया। इस संयुक्त सेना ने दुर्ग के भीतर जाने के अनेक प्रयास किए, परंतु सिख योद्धाओं ने इन सभी प्रयासों को असफल बना दिया। घेरे के लंबे हो जाने के कारण दुर्ग के भीतर खाद्य-सामग्री कम होनी आरंभ हो गई। इसलिए सिखों के लिए अधिक समय तक लड़ाई को जारी रखना संभव नहीं था। अतः कुछ सिखों ने गुरु साहिब को श्री आनंदपुर साहिब का दुर्ग छोड़ने का निवेदन किया। गुरु साहिब ने सिखों को कुछ दिन और संघर्ष जारी रखने का परामर्श दिया। इस परामर्श को न मानते हुए 40 सिख गुरु जी को बेदावा देकर दुर्ग छोड़कर चले गए। दूसरी ओर इतने लंबे समय से घेरे के कारण शाही सेना भी बहुत परेशान थी। इसलिए उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने कुरान और गायों की कसम खाकर गुरु साहिब को विश्वास दिलाया कि यदि वे श्री आनंदपुर साहिब छोड़ दें तो उन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचाई जायेगी। गुरु साहिब को इन झूठी कसमों पर कोई विश्वास नहीं था, परंतु माता गुजरी और कुछ अन्य सिखों के निवेदन पर गुरु साहिब ने 20 दिसंबर, 1704 ई० को श्री आनंदपुर साहिब के दुर्ग को छोड़ दिया।

प्रश्न 156.
चमकौर साहिब की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the battle of Chamkaur Sahib.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा श्री आनंदपुर साहिब का दुर्ग छोड़ने के पश्चात् मुग़ल सेनाएँ बहुत तीव्रता से उनका पीछा कर रही थीं। गुरु साहिब ने चमकौर साहिब की एक कच्ची गढ़ी में 40 सिखों सहित शरण ली। 22 दिसंबर, 1704 ई० को हजारों की संख्या में मुग़ल सैनिकों ने इस गढ़ी को घेरे में ले लिया। चमकौर साहिब की यह लड़ाई बहुत घमासान लड़ाई थी। इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह के दो बड़े साहिबजादों अजीत सिंह तथा जुझार सिंह ने र ह वीरता प्रदर्शित की कि मुग़लों को दिन में तारे दिखाई देने लगे। उन्होंने असंख्य मुसलमानों को मृत्यु की गोद में सुलाया और अंततः लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। चमकौर साहिब की उस लड़ाई में जो वीरता सिखों ने दिखाई उसकी कोई अन्य उदाहरण मिलना बहुत कठिन है । पाँच सिखों के अनुरोध पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने चमकौर साहिब की गढ़ी को छोड़ दिया। गढ़ी छोड़ते समय गुरु जी ने मुगल सेना को ललकारा, परंतु वह गुरु साहिब का कुछ न बिगाड़ सकी।

प्रश्न 157.
खिदराना (मुक्तसर ) की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। [Write a brief note on the battle of Khidrana (Mukatsar).]
उत्तर-
खिदराना की लड़ाई गुरु जी तथा मुग़ल सेना में लड़ी जाने वाली अंतिम निर्णायक लड़ाई थी। गुरु गोबिंद सिंह जी माछीवाड़ा के जंगलों में अनेक कठिनाइयाँ झेलते हुए खिदराना पहुँचे थे। जब मुग़लों को इस बात का पता चला तो सरहिंद के नवाब वज़ीर खाँ ने खिदराना में गुरु साहिब पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उसने 29 दिसंबर, 1705 ई० को एक विशाल सेना के साथ गुरु जी की सेना पर खिदराना के स्थान पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में सिखों ने बड़ी वीरता दिखाई। उन्होंने मुग़ल सेना के ऐसे छक्के छुड़ाए कि वे युद्ध स्थल छोड़ कर भाग गए। इस प्रकार गुरु जी को अपनी इस अंतिम लड़ाई में बड़ी शानदार विजय प्राप्त हुई। इस लड़ाई में वह 40 सिख भी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे जो आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई में गुरु जी का साथ छोड़ गए थे। उनकी कुर्बानी से प्रभावित होकर और उनके नेता महा सिंह, जो जीवन की अंतिम साँसें ले रहा था, की विनती को स्वीकार करके गुरु साहिब ने उनके द्वारा लिखे गए बेदावे को फाड़ दिया और उन्हें मुक्ति का वर दिया। इस कारण खिदराना का नाम श्री मुक्तसर साहिब पड़ गया।

प्रश्न 158.
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक सरगर्मियों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the literary activities of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक सरगर्मियों के बारे में बताइए। (Describe the literary activities of Guru Gobind Singh Ji.)
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक उपलब्धियों का मूल्यांकन करें। (Evaluate the literary achievements of Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
साहित्य के क्षेत्र में गुरु गोबिंद सिंह जी का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह स्वयं उच्चकोटि के कवि तथा साहित्यकार थे। उनके द्वारा रचित अधिकाँश साहित्य सिरसा नदी में बह गया था। फिर भी जो साहित्य हम तक पहुँचा है, उससे आपके महान् विद्वान् होने का पर्याप्त प्रमाण मिलता है। गुरु साहिब ने अपनी रचनाओं में पंजाबी, हिंदी, फ़ारसी, अरबी, संस्कृत आदि भाषाओं का प्रयोग किया। जापु साहिब, बचित्तर नाटक, ज़फ़रनामा, चंडी दी वार आप की महान् रचनाएँ हैं। इनमें आपने विभिन्न विषयों पर भरपूर प्रकाश डाला है। ये रचनाएँ आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार हैं। इनसे हमें ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी भी प्राप्त होती है। आपकी ये रचनाएँ इतनी जोश से भरी हैं कि इन्हें पढ़ कर मुर्दा दिलों में भी जान आ जाती है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने दरबार में 52 उच्चकोटि के कवियों को संरक्षण दिया था। इन में से नंद लाल, सैनापत, गोपाल तथा उदै राय के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 159.
ज़फ़रनामा क्या है ? (What is Zafarnama ?)
अथवा
ज़फ़रनामा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Zafarnama.)
उत्तर-
ज़फ़रनामा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखे गए एक पत्र का नाम है। यह पत्र फ़ारसी में लिखा गया था। इसे गुरु जी ने दीना काँगड़ (फरीदकोट) नामक स्थान से लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब का तथा पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनापतियों की ओर से कुरान की झूठी शपथ लेकर भी गुरु जी से धोखा करने का उल्लेख बड़े साहस से किया है। गुरु गोबिंद सिंह जी लिखते हैं—
“ऐ औरंगजेब तू झूठा दीनदार बना घूमता है, तुझ में तनिक भी सत्य नहीं, तुझे खुदा तथा मुहम्मद में कोई विश्वास नहीं। यह भी कोई वीरता नहीं कि हमारे 40 भूखे सिंहों पर तेरी लाखों की सेना आक्रमण करे। तू तथा तेरे सैन्य अधिकारी सभी मक्कार तथा कायर हैं। तुम झूठे तथा धोखेबाज़ हो। निस्संदेह तुम राजाओं के राजा तथा विख्यात सेनापति हो, परंतु तुम सच्चे धर्म से कोसों दूर हो। तुम्हारे मुँह में कुछ और है तो दिल में कुछ और।”
गुरु जी के इस पत्र का औरंगजेब के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसने गुरु जी से भेंट का संदेश भेजा, परंतु गुरु जी अभी मार्ग में ही थे कि औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 160.
“गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् संगठनकर्ता थे।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? (“Guru Gobind Singh Ji was a builder par-excellence.” Do you agree to this statement ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे। उस समय औरंगज़ेब के अधीन मुग़ल सरकार किसी भी लहर, विशेष रूप से सिख लहर को सहन करने के लिए तैयार नहीं थी। उसने गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया था। सिखों में मसंद प्रथा बहुत भ्रष्ट हो गई थी। हिंदू बहुत समय से निरुत्साहित थे। पहाड़ी राजा अपने स्वार्थी हितों के कारण मुग़ल सरकार से मिले हुए थे। ऐसे विरोधी तत्त्वों के बावजूद गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके अपनी संगठन शक्ति का प्रमाण दिया। संचमुच यह एक महान् कार्य था। इसने लोगों में नया जोश उत्पन्न किया। वे महान योद्धा बन गए और धर्म के नाम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो गए। उन्होंने तब तक सुख की साँस न ली जब तक पंजाब में से मुग़लों तथा अफ़गानों के शासन का अंत न कर लिया गया तथा पंजाब में एक स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना न कर ली गई।

प्रश्न 161.
गुरु गोबिंद सिंह जी के व्यक्तित्व की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Mention any five characteristics of Guru Gobind Singh Ji’s personality.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने समय के महान् योद्धा तथा सेनानी थे। वह घुड़सवारी, तीरअंदाज़ी तथा शस्त्र चलाने में बहुत कुशल थे। वह प्रत्येक लड़ाई में अपने सैनिकों का नेतृत्व करते थे। वह लड़ाई के मैदान में भारी कठिनाइयों के बावजूद चट्टान की भाँति अडिग रहते थे। अपने सीमित साधनों के बावजूद गुरु साहिब ने पहाडी राजाओं तथा मुग़लों के विरुद्ध शानदार सफलता प्राप्त की। गुरु गोबिंद सिंह जी सिंह की भाँति वीर तथा निडर थे। यद्यपि गुरु जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, परंतु उन्होंने कभी भी अत्याचारियों से समझौता न किया। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखा गया ज़फ़रनामा (पत्र) उनकी निडरता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् नेता थे। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने मुग़लों के साथ युद्ध किए तथा अपना सर्वस्व न्योछावर किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को एक ईश्वर की पूजा और गुरु वाणी का पाठ करने के लिए प्रेरित किया। गुरु गोबिंद सिंह जी एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे। जाप साहिब, बचित्तर नाटक तथा ज़फ़रनामा आपकी महान् रचनाएँ हैं। इन रचनाओं में गुरु साहिब ने पंजाबी, हिंदी, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी आदि भाषाओं का प्रयोग किया है। निस्संदेह गुरु गोबिंद सिंह जी की साहित्यिक धरोहर अमूल्य है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सिख धर्म में कितने गुरु हुए हैं ?
उत्तर-
सिख धर्म में दस गुरु हुए हैं।

प्रश्न 2.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे।

प्रश्न 3.
सिख धर्म का आरंभ किसने और कब किया?
उत्तर-
सिख धर्म का आरंभ गुरु नानक देव जी ने 1469 ई० में किया।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में तलवंडी (पाकिस्तान) में हुआ था।

प्रश्न 5.
‘सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंध जगि चानणु होआ’ किसकी रचना है ?
उत्तर-
यह रचना भाई गुरदास जी की है।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
ननकाणा साहिब ।।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
मेहता कालू।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के पिता जी किस जाति से संबंधित थे ?
उत्तर-
वे बेदी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंधित थे।

प्रश्न 9.
मेहता कालू जी कौन थे ?
उत्तर-
मेहता कालू जी गुरु नानक देव जी के पिता थे।

प्रश्न 10.
तृप्ता देवी जी कौन थी ?
उत्तर-
तृप्ता देवी जी गुरु नानक देव जी की माता जी थीं।

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी का नाम नानक क्यों रखा गया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का नाम नानक इसलिए रखा गया क्योंकि उनका जन्म अपने ननिहाल में हुआ था।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी की बहन का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की बहन का नाम नानकी जी था।

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के किन्हीं दो अध्यापकों के नाम बताओ जिनसे उन्होंने बचपन में शिक्षा प्राप्त की थी।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बचपन में पंडित गोपाल तथा मौलवी कुतुबुद्दीन से शिक्षा प्राप्त की थी।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर-
बीबी सुलक्खनी जी

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के दोनों सुपुत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर-
श्रीचंद तथा लखमी दास।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी क्यों भेजा गया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को नौकरी करने के लिए भेजा गया।

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी किसके पास भेजा गया था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी अपनी बहन बीबी नानकी के पास भेजा गया था।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कब और कहाँ हुई ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में बेईं नदी (सुल्तानपुर) में हुई।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम कौन-से शब्द कहे ?
उत्तर-
“न को हिंदू न को मुसलमान”

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से है।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और नाम का प्रचार करना।

प्रश्न 22.
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी कब और कहाँ से आरंभ की ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी 1499 ई० में सैदपुर (ऐमनाबाद) से आरंभ की।

प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी ने लगभग कितने वर्ष उदासियों में व्यतीत किए ?
उत्तर-
21 वर्ष।

प्रश्न 24.
कौन-सा व्यक्ति गुरु नानक साहिब के साथ सदैव रहता था?
उत्तर-
भाई मरदाना जी।

प्रश्न 25.
कौन-सा व्यक्ति गुरु नानक देव जी का प्रथम शिष्य बना ?
उत्तर-
भाई लालो जी।।

प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी सैदपुर (ऐमनाबाद) में मलिक भागो का भोजन खाने से क्यों इंकार कर दिया था ?
उत्तर-
उसकी कमाई ईमानदारी की नहीं थी।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी सज्जन ठग को कहाँ मिले ?
उत्तर-
तालुंबा में।

प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में लोगों को क्या शिक्षा दी ?
उत्तर-
उन्हें बाह्य वस्तुओं की अपेक्षा अपनी आत्मा को पवित्र रखने की ओर ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 29.
हरिद्वार में गुरु नानक देव जी ने किस प्रकार से लोगों के अंधविश्वासों का खंडन किया ?
उत्तर-
उनके द्वारा दिया जाने वाला पानी दूसरे लोक में नहीं पहुँच सकता।

प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर सूर्य को पूर्व की जगह पश्चिम दिशा की ओर पानी दिया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार में सूर्य को पूर्व की जगह पश्चिम दिशा की ओर पानी दिया।

प्रश्न 31.
गुरु नानक देव जी ने गोरखमता में जोगियों को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर-
मुक्ति बाह्याडंबरों से नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है।

प्रश्न 32.
नूरशाही कौन थी ?
उत्तर-
कामरूप की प्रसिद्ध जादूगरनी।

प्रश्न 33.
बनारस में गुरु नानक देव जी का किस पंडित से वाद-विवाद हुआ ?
उत्तर-
पंडित चतरदास।।

प्रश्न 34.
उड़ीसा के किस मंदिर में गुरु साहिब ने लोगों को आरती का सही अर्थ बताया ?
उत्तर-
जगन्नाथ पुरी के मंदिर में।

प्रश्न 35.
गुरु नानक साहिब ने कैलाश पर्वत के सिद्धों को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर-
वह मानवता की सेवा करें।

प्रश्न 36.
गुरु नानक देव जी लंका में कौन-से शासक को मिले थे ?
उत्तर-
शिवनाथ को।

प्रश्न 37.
मक्का में गुरु नानक साहिब के साथ क्या घटना हुई ?
उत्तर-
यहाँ काज़ी रुकुनुद्दीन ने गुरु जी के पाँव पकड़ कर दूसरी ओर किए तो काबा भी उसी ओर घूम गया।

प्रश्न 38.
हसन अब्दाल अब.किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
पंजा साहिब के नाम से।

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प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी को किस मुग़ल बादशाह ने कब और कहाँ कुछ समय के लिए बंदी बना लिया था ?
उत्तर-
बाबर ने 1520 ई० में सैदपुर (ऐमनाबाद) में।

प्रश्न 40.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के संबंध में क्या विचार थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है।

प्रश्न 41.
गुरु नानक देव जी की कोई एक मुख्य शिक्षा बताएँ।
उत्तर-
ईश्वर एक है और वह सर्वशक्तिमान् है।

प्रश्न 42.
गुरु नानक साहिब के श्रम के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हमें परिश्रम करके अपनी आजीविका प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 43.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य के कितने शत्रु हैं?
उत्तर–
पाँच।

प्रश्न 44.
गुरु नानक देव जी की शिक्षा में गुरु का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।

प्रश्न 45.
गुरु नानक देव जी के अनुसार नाम जपने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है।

प्रश्न 46.
मनमुख व्यक्ति की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
मनमुख व्यक्ति इंद्रिय-जन्य भूख से घिरा रहता है।

प्रश्न 47.
आत्म-समर्पण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आत्म-समर्पण से अभिप्राय अहं का त्याग है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए ऐसा करना आवश्यक है।

प्रश्न 48.
नदरि से क्या भाव है ?
उत्तर-
नदरि से अभिप्राय ईश्वर की दया से है।

प्रश्न 49.
आदेश से क्या भाव है ?
उत्तर-
आदेश से अभिप्राय ईश्वर की इच्छा से है।

प्रश्न 50.
‘किरत’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किरत से अभिप्राय मेहनत तथा ईमानदारी के श्रम से है।

प्रश्न 51.
‘अंजन माहि निरंजन’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
‘अंजन माहि निरंजन’ से अभिप्राय संसार की बुराइयों में रहते हुए सत्य जीवन व्यतीत करने से है।

प्रश्न 52.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के सारांश का तीन शब्दों में उल्लेख करें।
उत्तर-
श्रम करो, नाम जपो तथा बाँट कर खाओ।

प्रश्न 53.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु ने आरंभ की ?
उत्तर-
कीर्तन की प्रथा गुरु नानक देव जी ने आरंभ की।

प्रश्न 54.
गुरु नानक देव जी एक समाज सुधारक थे। अपने पक्ष में कोई एक तर्क दीजिए।
उत्तर-
उन्होंने स्त्रियों में प्रचलित कुप्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया।

प्रश्न 55.
गुरु नानक देव जी ने कब और किस नगर की स्थापना की ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1521 ई० में करतारपुर की स्थापना की।

प्रश्न 56.
रावी किनारे किस गुरु ने कौन-सा नगर बसाया ?
उत्तर-
रावी किनारे गुरु नानक देव जी ने करतारपुर नामक नगर बसाया।

प्रश्न 57.
करतारपुर से क्या भाव है ?
उत्तर-
परमात्मा का शहर।

प्रश्न 58.
करतारपुर में गुरु नानक साहिब ने कौन-सी दो संस्थाएँ स्थापित की ?
उत्तर-
‘संगत और पंगत’।

प्रश्न 59.
संगत एवं पंगत की स्थापना कौन-से गुरु ने कहाँ की ?
अथवा
संगत की स्थापना किसने की थी ?
अथवा
पंगत की स्थापना किसने की थी?
उत्तर-
संगत एवं पंगत की स्थापना गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में की थी।

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प्रश्न 60.
संगत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
संगत से अभिप्राय उस समूह से है जो एकत्रित होकर गुरु जी के उपदेश सुनते हैं।

प्रश्न 61.
पंगत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पंगत से अभिप्राय पंक्तियों में बैठकर लंगर खाने से है।

प्रश्न 62.
लंगर प्रथा का आरंभ किस गुरु ने किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने।

प्रश्न 63.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का अंतिम समय कहाँ व्यतीत किया ?
उत्तर-
करतारपुर (पाकिस्तान) में।

प्रश्न 64.
गुरु नानक देव जी की किसी दो मुख्य वाणियों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. जपुजी साहिब
  2. बारह माह।

प्रश्न 65.
बाबर वाणी की रचना किस गुरु साहिब ने की ?
उत्तर-
बाबर वाणी की रचना गुरु नानक साहिब ने की थी।

प्रश्न 66.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
1539 ई० में।

प्रश्न 67.
गुरु नानक देव जी ने किसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी को।

प्रश्न 68.
भाई लहणा जी को अंगद का नाम किसने दिया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने।

प्रश्न 69.
गुरु नानक देव जी द्वारा उत्तराधिकारी नियुक्त करने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इससे सिख धर्म में गुरुगद्दी की परंपरा चल पड़ी।

प्रश्न 70.
सिख धर्म के दूसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद साहिब जी थे।

प्रश्न 71.
गुरु अंगद देव जी ने कब-से-कब तक गुरुगद्दी का संचालन किया ?
उत्तर-
1539 ई० से लेकर 1552 ई०

प्रश्न 72.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कब और कहाँ हआ ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का जन्म 1504 ई० में मत्ते दी सराय (मुक्तसर) नामक गाँव में हुआ।

प्रश्न 73.
गुरु अंगद देव जी के माता का नाम बताएँ।
उत्तर-
सभराई देवी जी।

प्रश्न 74.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
फेरुमल जी।

प्रश्न 75.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहणा जी।

प्रश्न 76.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का प्रसिद्ध केंद्र कौन-सा था ?
उत्तर-
खडूर साहिब।

प्रश्न 77.
गुरु अंगद देव जी ने किस लिपि का सुधार किया ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि का खडूर साहिब में सुधार किया

प्रश्न 78.
गुरु अंगद देव जी ने किस लिपि का और कहाँ सुधार किया ?
अथवा
गुरु अंगद देव जी ने किस लिपि का संशोधन किया ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि का खडूर साहिब में सुधार किया।

प्रश्न 79.
दूसरे गुरु ने कौन-सा नगर बसाया ?
उत्तर-
दूसरे गुरु ने गोइंदवाल पहिब का नगर बसाया।

प्रश्न 80.
गोइंदवाल साहिब की नींव किसने तथा कब रखी ?
अथवा
गोइंदवाल साहिब की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब जी ने गोइंदवाल साहिब की नींव 1546 ई० में रखी थी।

प्रश्न 81.
गुरु अंगद साहिब जी ने किन दो संस्थाओं का विकास किया ?
उत्तर-
संगत और पंगत।

प्रश्न 82.
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण योगदान बताएँ।
उत्तर-
उन्होंने गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया।

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प्रश्न 83.
गुरु अंगद साहिब जी के समय में खडूर साहिब में लंगर का प्रबंध कौन करता था ?
उत्तर–
बीबी खीवी जी।

प्रश्न 84.
लंगर संस्था की मुखी किस गुरु की पत्नी व कौन थी ?
उत्तर-
लंगर संस्था की मुखी गुरु अंगद देव जी की सुपत्नी बीबी खीवी जी थी।

प्रश्न 85.
लंगर संस्था का सिखों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
लंगर संस्था के कारण हिंदुओं की जाति प्रथा को गहरा आघात पहुँचा।

प्रश्न 86.
उदासी मत का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी।

प्रश्न 87.
उदासी मत से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उदासी मत में संन्यासी जीवन पर बल दिया जाता था।

प्रश्न 88.
गुरु अंगद साहिब के काल के कौन-से मुख्य रागी थे जिन्होंने संगत का अनुशासन भंग किया ?
अथवा
सिख धर्म में अनुशासन लाने के लिए गुरु अंगद देव जी ने कौन-से दो गायकों को सज़ा दी ?
उत्तर-
सत्ता तथा बलवंड।

प्रश्न 89.
कौन-सा मुग़ल बादशाह गुरु अंगद देव जी से मिलने आया था ?
उत्तर-
हुमायूँ।

प्रश्न 90.
गुरु अंगद साहिब जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को।

प्रश्न 91.
सिखों के तीसरे गरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 92.
गुरु अमरदास जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1552 ई० से 1574 ई० तक।

प्रश्न 93.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1479 ई० में।

प्रश्न 94.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
तेज भान भल्ला।

प्रश्न 95.
गुरु अमरदास जी जिस समय गुरुगद्दी पर बैठे तो उस समय उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
73 वर्ष।

प्रश्न 96.
गुरु अमरदास जी के पुत्रों के नाम बताएँ।
अथवा
मोहन और मोहरी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के पुत्रों का नाम बाबा मोहन तथा बाबा मोहरी थे।

प्रश्न 97.
गुरु अमरदास जी की पुत्रियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी की पुत्रियों के नाम बीबी भानी तथा बीबी दानी थे।

प्रश्न 98.
बीबी भानी कौन थी ?
उत्तर–
बीबी भानी गुरु अमरदास जी की सपत्री थी।।

प्रश्न 99.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 100.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
सिखों को एक नया तीर्थ स्थल देना।

प्रश्न 101.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली में कितनी सीढ़ियाँ बनाई गई थीं ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं।

प्रश्न 102.
सिख धर्म के प्रसार के लिए गुरु अमरदास जी द्वारा किया गया कोई एक कार्य बताएँ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किया।

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प्रश्न 103.
मंजी प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने तथा क्यों आरंभ की थी ?
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए की थी।

प्रश्न 104.
मंजी संस्था किस गुरु ने प्रारंभ की तथा कुल मंजियाँ कितनी थीं ?
उत्तर-
मंजी संस्था गुरु अमरदास जी ने प्रारंभ की तथा कुल 22 मंजियाँ थीं।

प्रश्न 105.
मंजी प्रथा ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
मंजी प्रथा ने सिख धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए सराहनीय योगदान दिया।

प्रश्न 106.
गुरु अमरदास जी की सर्वाधिक प्रसिद्ध वाणी कौन-सी है ?
उत्तर-
अनंदु साहिब।

प्रश्न 107.
अमंदु साहिब वाणी की रचना किस गुरु साहिब ने की ?
अथवा
अनंदु साहिब किस की रचना है ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 108.
गुरु अमरदास जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार बताएँ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने के पक्ष में प्रचार किया।

प्रश्न 109.
स्त्री जाति के सुधार के लिए गुरु अमरदास जी ने कौन-सा एक कार्य किया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।

प्रश्न 110.
गुरु अमरदास जी से भेंट करने कौन-सा मुग़ल बादशाह गोइंदवाल साहिब आया था ?
उत्तर-
अकबर।

प्रश्न 111.
किस मुग़ल बादशाह ने गोइंदवाल साहिब पंगत में बैठकर लंगर छका ?
उत्तर-
मुग़ल बादशाह अकबर ने गोइंदवाल साहिब में पंगत में बैठकर लंगर छका।

प्रश्न 112.
गुरुगद्दी को वंशानुगत किस गुरु ने बनाया था ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 113.
गुरु अमरदास जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को।

प्रश्न 114.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
1574 ई० में।

प्रश्न 115.
सिखों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 116.
गुरु रामदास जी का गुरुकाल कौन-सा था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी का गुरुकाल 1574 ई० से 1581 ई० तक था।

प्रश्न 117.
गुरु रामदास जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1534 ई० में ।

प्रश्न 118.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।

प्रश्न 119.
गुरु रामदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
हरीदास सोढी।

प्रश्न 120.
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम लिखें।
उत्तर-
बीबी भानी जी।

प्रश्न 121.
पृथी चंद कौन था ?
उत्तर-
पृथी चंद गुरु रामदास जी का ज्येष्ठ पुत्र तथा गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था।

प्रश्न 122.
गुरु रामदास जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
उत्तर-
1574 ई० में।

प्रश्न 123.
गुरु रामदास जी की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता का उल्लेख करें।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा शहर की स्थापना की।

प्रश्न 124.
चौथे गुरु रामदास जी ने कौन-सा नगर बसाया ?
उत्तर-
रामदासपुरा।

प्रश्न 125.
रामदासपुरा की स्थापना का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
रामदासपुरा की स्थापना से सिखों को उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान प्राप्त हुआ।

प्रश्न 126.
अमृतसर नगर की नींव कब और किस गुरु ने रखी थी?
अथवा
अमृतसर की स्थापना किसने की ?
उत्तर-
अमृतसर नगर की नींव 1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रखी थी।

प्रश्न 127.
सिखों और उदासियों के बीच समझौता किस गुरु के समय में हुआ ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी के समय।

प्रश्न 128.
गुरु रामदास जी तथा उदासियों के मध्य समझौता सिख पंथ के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुआ?
उत्तर-
इस समझौते के कारण सिखों तथा उदासियों के मध्य चली आ रही शत्रुता समाप्त हो गई।

प्रश्न 129.
मसंद प्रथा का आरंभ किस गुरु ने किया था ?
अथवा
सिख धर्म में मसंद प्रथा किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

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प्रश्न 130.
मसंद प्रथा का एक उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सिख धर्म का प्रचार करना।

प्रश्न 131.
कौन-सा मुगल बादशाह गुरु रामदास जी के पास आया था ?
उत्तर-
अकबर।

प्रश्न 132.
विवाह के समय लावाँ प्रथा का आरंभ किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 133.
गुरु रामदास जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे बनाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को।

प्रश्न 134.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 135.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
15 अप्रैल, 1563 ई में।

प्रश्न 136.
गुरु अर्जन देव जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम बीबी भानी तथा पिता जी का नाम गुरु रामदास जी था।

प्रश्न 137.
गुरु अर्जन देव जी कब से लेकर कब तक गुरुगद्दी पर बने रहे ?
उत्तर-
1581 ई० से लेकर 1606 ई० तक।

प्रश्न 138.
पृथिया कौन था ?
उत्तर-
पृथिया गुरु रामदास जी का ज्येष्ठ पुत्र तथा गुरु अर्जन देव जी का ज्येष्ठ भाई था।

प्रश्न 139.
पृथी चंद ने किस संप्रदाय की नींव रखी ?
उत्तर-
मीणा संप्रदाय की।

प्रश्न 140.
पृथिया ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि पृथिया स्वंय को गुरुगदी का वास्तविक अधिकारी मानता था ।

प्रश्न 141.
मेहरबान किसका पुत्र था ?
उत्तर-
मेहरबान पृथी चंद का पुत्र था।

प्रश्न 142.
गुरु अर्जन देव जी की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता बताएँ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब की स्थापना की।

प्रश्न 143.
हरिमंदिर साहिब से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब से अभिप्राय है हरि (परमात्मा) का मंदिर (घर)।

प्रश्न 144.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण किस गुरु ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 145.
हरिमंदिर साहिब की आधारशिला किसने और कब रखी ?
उत्तर-
सूफ़ी संत मीयाँ मीर ने 1588 ई० में।

प्रश्न 146.
श्री दरबार साहिब, अमृतसर के प्रथम ग्रंथी कौन थे ?
उत्तर-
बाबा बुड्डा जी।

प्रश्न 147.
हरिमंदिर साहिब की चारों दिशाओं में चार द्वार क्यों बनाए गए हैं ?
अथवा
हरिमंदिर साहिब के चार दरवाजे किस उपदेश का संकेत करते हैं ?
उत्तर-
यह मंदिर चार जातियों और चार दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला है।

प्रश्न 148.
करतारपुर शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
करतारपुर शब्द से अभिप्राय है ईश्वर का नगर।

प्रश्न 149.
‘तरन तारन’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर-
तरन तारन का अर्थ यह है कि इस सरोवर में स्नान करने वाला व्यक्ति इस भवसागर से पार हो जाएगा।

प्रश्न 150.
तरन तारन नगर का निर्माण किसने किया ?
उत्तर-
तरन तारन नगर का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने किया ।

प्रश्न 151.
मसंद प्रथा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
गुरु जी द्वारा नियुक्त किए गए प्रतिनिधियों को मसंद कहते थे।

प्रश्न 152.
मसंद प्रथा के आरंभ किए जाने का एक मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
सिख धर्म का प्रसार करने के लिए।

प्रश्न 153.
मसंद प्रथा का महत्त्व क्या था ?
उत्तर-
इससे सिख धर्म लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 154.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-
सिखों के नेतृत्व के लिए एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी।

प्रश्न 155.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब और कहाँ किया गया था ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में रामसर में किया गया था।

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प्रश्न 156.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब और किसने किया था, ?
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब तथा किस गुरु ने किया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन साहिब जी ने किया था।

प्रश्न 157.
आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने के लिए गुरु अर्जन देव जी ने किसकी सहायता ली ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी की।

प्रश्न 158.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कहाँ किया गया था ?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब में।

प्रश्न 159.
हरिमंदिर साहिब जी में आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब किया गया था ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का हरिमंदिर साहिब में प्रथम प्रकाश 16 अगस्त, 1604 ई० को किया गया था।

प्रश्न 160.
हरिमंदिर साहिब के पहले मुख्य ग्रंथी कौन थे ?
उत्तर-
बाबा बुड्डा जी।

प्रश्न 161.
आदि ग्रंथ साहिब जी में सर्वाधिक शब्द किसके हैं ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के।

प्रश्न 162.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कितने भक्तों की वाणी शामिल की गई है ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 भक्तों की वाणी शामिल की गई है।

प्रश्न 163.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कितने भट्टों की बाणी संकलित है ?
उत्तर-
11 भट्टों की।

प्रश्न 164.
उन दो भक्तों के नाम लिखो जिनकी वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया गया।
उत्तर-

  1. कबीर जी,
  2. फरीद जी।

प्रश्न 165.
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक का नाम बताएँ।
उत्तर-
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक का नाम आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी है।

प्रश्न 166.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
उत्तर-
वह दरबार साहिब अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी थे।

प्रश्न 167.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
उत्तर-
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम श्री हरिमंदिर साहिब (अमृतसर) है।

प्रश्न 168.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर का दीवान था।

प्रश्न 169.
शेख अहमद सरहिंदी कौन था ?
उत्तर-
शेख अहमद सरहिंदी नक्शबंदी संप्रदाय का नेता था। वह बहुत कट्टर विचारों का था।

प्रश्न 170.
खुसरो कौन था ?
उत्तर-
खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था।

प्रश्न 171.
शहीदी प्राप्त करने वाले सिखों के प्रथम गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 172.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत किस मुगल बादशाह के समय में हुई ?
उत्तर-
जहाँगीर के समय।

प्रश्न 173.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर-
जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता।

प्रश्न 174.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
उत्तर-
30 मई, 1606 ई० को।

प्रश्न 175.
गुरु अर्जन देव जी को कब तथा कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० को लाहौर में शहीद किया गया था।

प्रश्न 176.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव बताओ।
उत्तर-
इस शहीदी के कारण सिखों की भावनाएँ भड़क उठीं।

प्रश्न 177.
सिखों के छठे गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी।

प्रश्न 178.
छठे गुरु जी ने कौन-सी नई रीति रचाई ?
उत्तर-
उन्होंने मीरी तथा पीरी नाम की नई नीति अपनाई।

प्रश्न 179.
गुरु हरगोबिंद जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
उनका गुरुकाल 1606 ई० से 1645 ई० तक था।

प्रश्न 180.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 1595 ई० में अमृतसर जिले में वडाली गाँव में हुआ।

प्रश्न 181.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 182.
बीबी वीरो कौन थी ?
उत्तर-
वह गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री थी।

प्रश्न 183.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।

प्रश्न 184.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की कोई एक विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
मीरी और पीरी की तलवारें धारण करना।

प्रश्न 185.
‘मीरी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी। प

प्रश्न 186.
‘पीरी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी।

प्रश्न 187.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने तथा कहाँ किया था ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अमृतसर में दरबार साहिब के सामने।

प्रश्न 188.
अकाल तख्त साहिब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब से अभिप्राय है-ईश्वर की गद्दी।

प्रश्न 189.
अकाल तख्त साहिब पर बैठ कर गुरु हरगोबिंद साहिब कौन-सा मुख्य कार्य करते थे?
उत्तर-
वह राजनीतिक तथा सांसारिक मामलों पर विचार करते थे।

प्रश्न 190.
छठे गुरु हरगोबिंद साहिब को किस बादशाह ने कहाँ कैद किया ?
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में।

प्रश्न 191.
मुग़ल सम्राट् जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में क्यों नज़रबंद किया था? कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
जहाँगीर एक कट्टर सुन्नी बादशाह था।

प्रश्न 192.
गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता था?
अथवा
बंदी छोड़ बाबा किसको और क्यों कहा जाता है ?
अथवा
सिखों के किस गुरु को ‘बंदी छोड़’ कहा जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि अपनी रिहाई के समय उन्होंने वहाँ 52 अन्य बंदी राजाओं को रिहा करवाया था।

प्रश्न 193.
कौलां कौन थी?
उत्तर-
कौलां लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की लड़की तथा गुरु हरगोबिंद साहिब की अनुयायी थी।

प्रश्न 194.
शाहजहाँ तथा सिखों में संबंध बिगड़ने का कोई एक कारण बताएँ।
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य लड़ाइयों का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
शाहजहाँ का धार्मिक कट्टरपन।

प्रश्न 195.
गुरु हरगोबिंद साहिब एवं मुग़लों के मध्य प्रथम लड़ाई कब तथा कहाँ हुई ?
उत्तर-
1634 ई० में अमृतसर में।

प्रश्न 196.
अमृतसर की लड़ाई में विजय किसकी हुई ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की।

प्रश्न 197.
गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने किस नए नगर की स्थापना की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने कीरतपुर साहिब नामक नए नगर की स्थापना की।

प्रश्न 198.
‘कीरतपुर’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
‘कीरतपुर’ शब्द का अर्थ है-जहाँ ईश्वर की कीर्ति होती हो।

प्रश्न 199.
गुरु हरगोबिंद साहिब कब तथा कहाँ ज्योति-जोत समाए थे?
उत्तर-
1645 ई० में कीरतपुर साहिब में।

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प्रश्न 200.
गुरु हरगोबिंद जी का उत्तराधिकारी कौन था?
अथवा
गुरु हरगोबिंद साहिब ने किसको अपना उत्तराधिकारी बनाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के उत्तराधिकारी का नाम गुरु हर राय जी था।

प्रश्न 201.
गुरु हर राय जी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ।

प्रश्न 202.
सिखों के सातवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
सिखों के सातवें गुरु, गुरु हर राय जी थे।

प्रश्न 203.
सातवें गुरु हर राय जी का गुरुकाल लिखें।
उत्तर-
वह गुरुगद्दी पर 1645 ई० से लेकर 1661 ई० तक आसीन रहे।

प्रश्न 204.
गुरु हर राय जी कब ज्योति-जोत समाये ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी 1661 ई० में ज्योति-जोत समाये।

प्रश्न 205.
गुरु हर राय जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
हरकृष्ण जी को।

प्रश्न 206.
सिखों के आठवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी थे।

प्रश्न 207.
गुरु हरकृष्ण जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
उनका जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर साहिब में।

प्रश्न 208.
सिखों के बाल गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण साहिब जी थे।

प्रश्न 209.
गुरु हरकृष्ण जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1661 ई० से 1664 ई० तक।

प्रश्न 210.
गुरु हरकष्ण जी कब और कहाँ ज्योति-जोत समा गए थे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी 1664 ई० में दिल्ली में ज्योति-जोत समाए थे।

प्रश्न 211.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर साहिब का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ था।

प्रश्न 212.
गुरु तेग बहादुर साहिब के माता-पिता का नाम बताएँ।
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी की माता जी का नाम नानकी तथा पिता जी का नाम गुरु हरगोबिंद साहिब था।

प्रश्न 213.
गुरु तेग बहादुर जी का बचपन का क्या नाम था ?
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी का प्रथम नाम क्या था ?
उत्तर-
त्याग मल।

प्रश्न 214.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम क्या था ?
उत्तर-
गोबिंद राय अथवा गोबिंद दास।

प्रश्न 215.
“गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे” नामक शब्द किसने तथा किसके बारे में कहे थे ?
उत्तर-
ये शब्द मक्खन शाह लुबाणा ने गुरु तेग़ बहादुर जी के संबंध में कहे थे।

प्रश्न 216.
गुरु तेग़ बहादुर जी का गुरुगद्दी पर बने रहने का समय बताएँ।
उत्तर-
1664 ई० से 1675 ई० तक।

प्रश्न 217.
धीर मल कौन था?
उत्तर-
धीर मल बाबा गुरदित्ता जी का बड़ा पुत्र था।

प्रश्न 218.
रामराय कौन था ?
उत्तर-
रामराय गुरु हर राय जी का बड़ा पुत्र था।

प्रश्न 219.
गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं का उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं का उद्देश्य सिख धर्म का प्रचार करना और लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूर करना था।

प्रश्न 220.
पंजाब से बाहर किन्हीं दो स्थानों के नाम बताएँ जहाँ गुरु तेग़ बहादुर जी ने यात्राएँ कीं।
उत्तर-
दिल्ली तथा आसाम।

प्रश्न 221.
पंजाब के किन्हीं दो प्रसिद्ध स्थानों के नाम बताएँ जिनकी यात्रा गुरु तेग़ बहादुर जी ने की थी।
उत्तर-
अमृतसर तथा गोइंदवाल साहिब।

प्रश्न 222.
श्री आनंदपुर साहिब का पहला (प्रारंभिक) नाम क्या था?
उत्तर-
श्री आनंदपुर साहिब का पहला नाम माखोवाल अथवा चक नानकी था।

प्रश्न 223.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का कोई एक मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर-
औरंगज़ेब सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 224.
गुरु तेग़ बहादुर साहिब की शहीदी का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर-
कश्मीरी पंडितों की पुकार।

प्रश्न 225.
गुरु तेग़ बहादुर जी के समय में कश्मीर का गवर्नर कौन था?
उत्तर-
शेर अफ़गान।

प्रश्न 226.
नवम् गुरु. तेग़ बहादुर जी की शहादत के समय किस बादशाह की हुकूमत थी ?
उत्तर-
नवम् गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत के समय मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की हुकूमत थी।

प्रश्न 227.
गुरु तेग बहादुर जी को कौन-से मुग़ल बादशाह ने कब शहीद करवाया था ?
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी कब, कहाँ तथा किस मुग़ल बादशाह के समय में हुई ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी को मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद करवाया था।

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प्रश्न 228.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी कब और कहाँ हुई ?
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर जी को 11 नवंबर, 1675 ई० में दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद किया गया था।

प्रश्न 229.
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान का कोई एक महत्त्वपूर्ण परिणाम बताएँ।
उत्तर-
गुरु साहिब के बलिदान के पश्चात् सिखों और मुग़लों में संघर्ष का एक लंबा अध्याय आरंभ हुआ।

प्रश्न 230.
‘हिंद की चादर’ नामक शब्द किस गुरु के लिए प्रयोग किए जाते हैं ?
उत्तर-
‘हिंद की चादर’ नामक शब्द गुरु तेग़ बहादुर जी के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 231.
सिखों के दशम तथा अंतिम गुरु कौन थे?
उत्तर-
सिखों के दशम और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी थे।

प्रश्न 232.
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश 26 दिसंबर, 1666 ई० को पटना में हुआ था।

प्रश्न 233.
गुरु गोबिंद सिंह जी के माता-पिता का नाम बताएँ।
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी की माता जी का नाम माता गुजरी जी था और पिता जी का नाम गुरु तेग़ बहादुर जी था।

प्रश्न 234.
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रारंभिक नाम क्या था?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रारंभिक नाम गोबिंद दास अथवा गोबिंद राय था।

प्रश्न 235.
गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन कहाँ व्यतीत हुआ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन पटना साहिब में व्यतीत हुआ।

प्रश्न 236.
गुरु गोबिंद सिंह जी कब से लेकर कब तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी 1675 ई० से लेकर 1708 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे।

प्रश्न 237.
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों (सुपुत्रों) के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. साहिबज़ादा अजीत सिंह,
  2. साहिबजादा जुझार सिंह,
  3. साहिबज़ादा जोरावर सिंह तथा
  4. साहिबजादा फ़तह सिंह थे।

प्रश्न 238.
गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में कहलूर (बिलासपुर) का शासक कौन था?
उत्तर-
भीम चंद।

प्रश्न 239.
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाए गए नगारे का क्या नाम था ?
उत्तर-
रणजीत नगारा।

प्रश्न 240.
गुरु गोबिंद सिंह जी और पहाड़ी राजाओं में कब और कहाँ प्रथम लड़ाई लड़ी गई थी?
अथवा
भंगाणी की लड़ाई कब तथा किनके मध्य लड़ी गई?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी और पहाड़ी राजाओं में प्रथम लड़ाई 1688 ई० में भंगाणी में हुई थी।

प्रश्न 241.
नादौन की लड़ाई कब और किसके मध्य हुई थी?
उत्तर-
नादौन की लड़ाई 1690 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी तथा मुग़लों के मध्य हुई थी।

प्रश्न 242.
श्री आनंदपुर साहिब का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
माखोवाल।

प्रश्न 243.
श्री आनंदपुर साहिब का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की थी।

प्रश्न 244.
किस गुरु साहिब ने तथा कब मसंद प्रथा का अंत कर दिया था?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने मसंद प्रथा का अंत 1699 ई० में खालसा पंथ के सृजन के समय किया था।

प्रश्न 245.
खालसा सजना किस गुरु साहिब ने कहाँ और कब की ?
उत्तर-
खालसा सृजना गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में 1699 ई० में की।

प्रश्न 246.
खालसा पंथ का सृजन कब और किस गुरु ने किया था ?
उत्तर-
खालसा पंथ का सृजन 30 मार्च, 1699 ई० को गुरु गोबिंद सिंह जी ने किया था।

प्रश्न 247.
खालसा पंथ का सृजन कब और कहाँ हुआ?
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन कब और कहाँ किया था ?
उत्तर-
खालसा पंथ का सृजन 30 मार्च, 1699 ई० को आनंदपुर साहिब में किया गया था।

प्रश्न 248.
खालसा की स्थापना का कोई एक मुख्य कारण लिखें।
उत्तर-
मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के लिए।

प्रश्न 249.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की सजना के समय कितने प्यारे सजाए थे ?
उत्तर–
पाँच।

प्रश्न 250.
पाँच प्यारों की साजना कौन-से गुरु ने कब और कहाँ की ?
उत्तर-
पाँच प्यारों की साजना गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में की।

प्रश्न 251.
खालसा का कोई एक सिद्धांत बताएँ।
उत्तर-
प्रत्येक खालसा एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य देवी-देवता की पूजा नहीं करेगा।

प्रश्न 252.
खालसा सदस्य एक-दूसरे से मिलते समय कैसे संबोधित करते थे.?
उत्तर-
‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह।

प्रश्न 253.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने प्रत्येक खालसा को कितने कक्कार धारण करने के लिए कहा ?
उत्तर–
पाँच।

प्रश्न 254.
प्रत्येक सिख के लिए कौन से पाँच कक्कार धारण करने अनिवार्य हैं ?
उत्तर-
केश, कड़ा, कंघा, कच्छहरा एवं कृपाण।

प्रश्न 255.
खालसा की स्थापना का महत्त्व क्या था ?
उत्तर-
इसकी स्थापना से सिखों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ।

प्रश्न 256.
श्री आनंदपुर साहिब की प्रथम लड़ाई कब हुई थी ?
उत्तर-
1701 ई० में।

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प्रश्न 257.
सरहिंद के उस फ़ौजदार का नाम बताएँ जिसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को जीवित ही दीवार में चिनवाने का आदेश दिया।
उत्तर-
वज़ीर खाँ।

प्रश्न 258.
गुरु गोबिंद सिंह जी के समय सरहिंद का फ़ौजदार कौन था ?
उत्तर-
वज़ीर खाँ।

प्रश्न 259.
चमकौर साहिब की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
चमकौर साहिब की लड़ाई 22 दिसंबर, 1704 ई० को हुई।

प्रश्न 260.
गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े साहिबजादे किस लड़ाई में शहीद हुए थे ?
उत्तर-
चमकौर साहिब की लड़ाई में।

प्रश्न 261.
दशम गुरु जी के चारों साहिबजादे कहाँ-कहाँ शहीद हुए ?
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादे कहां-कहां शहीद हुए ?
उत्तर-
दशम गुरु जी के दो बड़े साहिबज़ादे चमकौर साहिब में और दो छोटे साहिबज़ादे सरहिंद में शहीद हुए।

प्रश्न 262.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब को कौन-सी चिट्ठी लिखी थी ?
उत्तर-
ज़फ़रनामा (विजय पत्र)।

प्रश्न 263.
ज़फ़रनामा की रचना किसने और किस स्थान पर की ?
उत्तर-
ज़फ़रनामा की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने दीना काँगड़ के स्थान पर की।

प्रश्न 264.
भाई दया सिंह कौन थे ?
उत्तर-
भाई दया सिंह जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखी ज़फ़रनामा नामक चिट्ठी औरंगजेब को पहुँचाई थी।

प्रश्न 265.
गुरु गोबिंद सिंह जी और मुगलों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई कौन-सी थी ?
उत्तर-
खिदराना की।

प्रश्न 266.
‘चाली मुक्ते’ कौन-सी लड़ाई से संबंध रखते हैं ?
उत्तर-
खिदराना की।

प्रश्न 267.
भाई महां सिंह ने कहाँ तथा कब शहीदी प्राप्त की ?
उत्तर-
भाई महां सिंह ने खिदराना के स्थान पर दिसंबर, 1705 ई० में शहीदी प्राप्त की।

प्रश्न 268.
खिदराना की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1705 ई० में।

प्रश्न 269.
तलवंडी साबो को ‘गुरु की काशी’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बहुत से साहित्य की रचना की।

प्रश्न 270.
बचित्तर नाटक तथा जफ़रनामा की रचना किसने की ?
उत्तर-
बचित्तर नाटक तथा ज़फ़रनामा की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने की।

प्रश्न 271.
गुरु गोबिंद सिंह जी की अधूरी स्वैजीवनी उनकी किस रचना में मिलती है ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी की स्वैजीवनी उनकी रचना बचित्तर नाटक में मिलती है।

प्रश्न 272.
आदि ग्रंथ साहिब जी को कब, कहाँ तथा किस गुरु ने गुरु ग्रंथ साहिब का दर्जा दिया ?
अथवा
गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुतागही किसको और कब दी ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी को 6 अक्तूबर, 1708 ई० में नदेड़ के स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब का दर्जा दिया।

प्रश्न 273.
गुरु गोबिंद सिंह जी कब तथा कहाँ ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ के स्थान पर 7 अक्तूबर, 1708 ई० को ज्योति-जोत समाए।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1. ……………. में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ।
उत्तर-1469 ई०

प्रश्न 2. गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम ……………. था। ‘
उत्तर-मेहता कालू

प्रश्न 3. गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम ………………. था।
उत्तर-तृप्ता देवी

प्रश्न 4. गुरु नानक देव जी की बहन का नाम ……………….. था।
उत्तर-नानकी

प्रश्न 5. गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा ……………. रुपयों से किया।
उत्तर-20

प्रश्न 6. गुरु नानक देव जी ने ……………… के मोदीखाने में नौकरी की।
उत्तर-सुल्तानपुर लोधी

प्रश्न 7. गुरु नानक देव जी के ज्ञान-प्राप्ति के समय उनकी आयु ………… थी।
उत्तर-30 वर्ष

प्रश्न 8. गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम …………….. शब्द कहे।
उत्तर-न को हिंदू, न को मुसलमान

प्रश्न 9. गुरु नानक देव जी की उदासियों से भाव है
उत्तर-यात्राएँ

प्रश्न 10. गुरु नानक देव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य ……………. था।
उत्तर-लोगों की अज्ञानता को दूर करना

प्रश्न 11. गुरु नानक देव जी की यात्राओं के समय ……….. सदैव उनके साथ रहता था।
उत्तर- भाई मरदाना

प्रश्न 12. गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग के साथ मुलाकात …………….. में हुई।
उत्तर-तालुंबा

प्रश्न 13. गुरु नानक देव जी ने ……… और …….. नामक दो संस्थाओं की स्थापना की।
उत्तर-संगत, पंगत

प्रश्न 14. गुरु नानक देव जी ……………….. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-1539 ई०

प्रश्न 15. गुरु नानक देव जी ने ……………. को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर- भाई लहणा जी

प्रश्न 16. सिखों के दूसरे गुरु …………….. थे।
उत्तर-गुरु अंगद देव जी

प्रश्न 17.गुरु अगद देव जी का आराभक नाम ……………… था।
उत्तर-भाई लहणा जी

प्रश्न 18. गुरु अंगद देव जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
उत्तर-1539 ई०

प्रश्न 19. गुरु अंगद देव जी ने ……………. लिपि को लोकप्रिय बनाया।
उत्तर-गुरमुखी

प्रश्न 20. ………. उदासी मत के संस्थापक थे।
उत्तर-बाबा श्रीचंद जी

प्रश्न 21. सिखों के तीसरे गुरु ………………. थे।
उत्तर-गुरु अमरदास जी

प्रश्न 22. गुरु अमरदास जी ……………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1552 ई०

प्रश्न 23. गुरु अमरदास जी ने ……………. में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-गोइंदवाल साहिब

प्रश्न 24. मंजी प्रथा की स्थापना ………………… ने की थी।
उत्तर-गुरु अमरदास जी

प्रश्न 25. ……………… सिखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-गुरु रामदास जी

प्रश्न 26. गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम ……………. था।
उत्तर-भाई जेठा जी

प्रश्न 27. गुरु रामदास जी …………………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1574 ई०

प्रश्न 28. गुरु रामदास जी ने ………………. में रामदासपुरा की स्थापना की।
उत्तर-1577 ई०

प्रश्न 29. ……………… ने मसंद प्रथा की स्थापना की।
उत्तर-गुरु रामदास जी

प्रश्न 30. गुरु अर्जन देव जी सिखों के …………….. गुरु थे।
उत्तर-पाँचवें

प्रश्न 31. गुरु अर्जन देव जी ………………. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1581 ई०

प्रश्न 32. पृथी चंद ने ……………… संप्रदाय की स्थापना की।
उत्तर-मीणा

प्रश्न 33. चंदू शाह …………….. का दीवान था।
उत्तर-लाहौर

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प्रश्न 34. हरिमंदिर साहिब का निर्माण …………… ने करवाया।
उत्तर-गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 35. हरिमंदिर साहिब की नींव पत्थर ……………….. ने रखा।
उत्तर-मीयाँ मीर

प्रश्न 36. ……………. ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया।
उत्तर-गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 37. आदि ग्रंथ साहिब जी के लेखन का महान् कार्य ………….. में संपूर्ण हुआ।
उत्तर-1604 ई०

प्रश्न 38. हरिमंदिर साहिब में पहला मुख्य ग्रंथी ……………… को नियुक्त किया गया।
उत्तर–बाबा बुड्डा जी

प्रश्न 39. गुरु अर्जन देव जी को …………….. में शहीद किया गया।
उत्तर-1606 ई०

प्रश्न 40. गुरु हरगोबिंद साहिब का. जन्म ……………. में हुआ।
उत्तर-1595 ई०

प्रश्न 41. गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पिता जी का नाम ………….. था।
उत्तर-गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 42. गुरु हरगोबिंद साहिब जी ……………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1606 ई०

प्रश्न 43. ………….. ने मीरी और पीरी नीति को अपनाया।
उत्तर-गुरु हरगोबिंद जी

प्रश्न 44. अकाल तख्त साहिब का निर्माण …………… ने करवाया था।
उत्तर-गुरु हरगोबिंद जी

प्रश्न 45. ……….. में अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ किया गया था।
उत्तर-1606 ई०

प्रश्न 46. ……………..को बंदी छोड़ बाबा कहा जाता है।
उत्तर-गुरु हरगोबिंद जी

प्रश्न 47. अमृतसर की लड़ाई …………… में हुई।
उत्तर-1634 ई०

प्रश्न 48. लहरा की लड़ाई का मुख्य कारण ………..और ……… नामक दो घोड़े थे।
उत्तर-दिलबाग, गुलबाग

प्रश्न 49. गुरु हरगोबिंद साहिब ने ……………. नामक नगर की स्थापना की।
उत्तर-कीरतपुर साहिब

प्रश्न 50. गुरु हरगोबिंद साहिब ने …………… को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-गुरु हर सय जी

प्रश्न 51. ………………. सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-गुरु हर राय जी

प्रश्न 52. गुरु हर राय जी का जन्म …………… में हुआ।
उत्तर-1630 ई०

प्रश्न 53. गुरु हर राय जी ……………. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1645 ई०

प्रश्न 54. ………………….. सिखों के आठवें गुरु थे।
उत्तर-गुरु हरकृष्ण जी

प्रश्न 55. गुरु हरकृष्ण जी ……………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-1661 ई०

प्रश्न 56. …………… को बाल गुरु के नाम से याद किया जाता है।
उत्तर-गुरु हरकृष्ण जी

प्रश्न 57. …………………. सिखों के नवम् गुरु थे।
उत्तर-गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 58. गुरु तेग बहादुर जी का जन्म ……………. में हुआ था।
उत्तर-अमृतसर

प्रश्न 59. गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का नाम ……………. था।
उत्तर-गुरु हरगोबिंद जी

प्रश्न 60. गुरु तेग़ बहादुर जी की माता जी का नाम ……………..था।
उत्तर-नानकी

प्रश्न 61. गुरु तेग बहादुर जी का आरंभिक नाम ……………. था।
उत्तर-त्याग मल

प्रश्न 62. गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम …………. था।
उत्तर-गोबिंद राय

प्रश्न 63. गुरु तेग बहादुर जी की.खोज ……………. ने की थी।
उत्तर-मक्खन शाह लुबाणा

प्रश्न 64. गुरु तेग़ बहादुर जी ………….. में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
उत्तर-1664 ई०

प्रश्न 65. गुरु तेग़ बहादुर जी को…….. के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-औरंगजेब

प्रश्न 66. गुरु तेग़ बहादुर जी को ……..में शहीद किया गया।
उत्तर-11 नवंबर, 1675 ई०

प्रश्न 67. गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के……..गुरु थे।
उत्तर-दशम

प्रश्न 68. गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म……..को हुआ।
उत्तर-26 दिसंबर, 1666 ई०

प्रश्न 69. गुरु गोबिंद सिंह का जन्म……..में हुआ।
उत्तर-पटना साहिब

प्रश्न 70. गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता जी का नाम……..था।
उत्तर-गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 71. गुरु गोबिंद सिंह जी की माता जी का नाम…….. था।
उत्तर-गुजरी

प्रश्न 72. गुरु गोबिंद सिंह जी……….में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-1675 ई०

प्रश्न 73. गुरु गोबिंद सिंह जी और पहाड़ी राजाओं के मध्य पहली लड़ाई……में हुई।
उत्तर-भंगाणी

प्रश्न 74. भंगाणी की लड़ाई………में हुई।
उत्तर-1688 ई०

प्रश्न 75. नादौन की लड़ाई……में हुई।
उत्तर-1690 ई०

प्रश्न 76. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा का सृजन……….को किया।
उत्तर-30 मार्च, 1699 ई०

प्रश्न 77. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा का सृजन……..में किया।
उत्तर-श्री आनंदपुर साहिब

प्रश्न 78. गुरु गोबिंद सिंह जी के पहले प्यारे ……..थे।
उत्तर-भाई दया राम जी

प्रश्न 79. ………में श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई हुई।
उत्तर-1701 ई०

प्रश्न 80. …….. में श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई हुई।
उत्तर-1704 ई०

प्रश्न 81. गुरु गोबिंद सिंह जी और मुग़लों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई …….की लड़ाई थी।
उत्तर-खिदराना

प्रश्न 82. गुरु गोबिंद सिंह जी………में ज्योति ज्योत समा गए।
उत्तर-1708 ई०

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1. गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में हुआ।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 2. गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 3. गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम मेहता कालू था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 4. गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम सभराई देवी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 5. गुरु नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 6. गुरु नानक देव जी बेदी जाति के साथ संबंधित थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 7. गुरु नानक देव जी ने 40 रुपयों से सच्चा सौदा किया।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 8. गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी सैदपुर से आरंभ की।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 9. गुरु नानक देव जी ने संगत और पंगत नामक दो संस्थाओं की स्थापना की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 10. गुरु नानक देव जी एक परमात्मा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 11. गुरु नानक देव जी जाति प्रथा और मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 12. गुरु नानक देव जी स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार देने के पक्ष में थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 13. गुरु नानक देव जी 1539 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 14. गुरु अंगद देव जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 15. गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम भाई लहणा जी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 16. गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 17. उदासी मत की स्थापना बाबा श्रीचंद जी ने की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 18. गुरु अंगद देव जी की मुग़ल बादशाह अकबर के साथ भेंट हुई थी।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 19. गुरु अमरदास जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 20. गुरु अमरदास जी 1552 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 21. गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल गहिब में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 22. गुरु रामदास जी ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 23. गुरु रामदास जी सिंखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 24. गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम भाई जेठा जी था। .
उत्तर-ठीक

प्रश्न 25. गुरु रामदास जी ने 1578 ई० को रामदासपुरा की स्थापना की।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 26. गुरु अमरदास जी ने मसंद प्रथा को आरंभ किया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 27. गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 28. मीणा संप्रदाय की स्थापना पृथी चंद ने की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 29. चंदू शाह मुलतान का दीवान था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 30. हरिमंदिर साहिब का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 31. हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य 1688 ई० में आरंभ किया गया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 32. हरिमंदिर साहिब की नींव सूफी संत मीयाँ मीर ने रखी थी।
उत्तर-ठीक

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 33. मसंद प्रथा के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 34. बाबा बुड्डा जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को लिखने का कार्य किया।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 35. गुरु अर्जन देव जी को 1606 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 36. गुरु अर्जन देव जी को औरंगजेब के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 37. गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 38. गुरु हरगोबिंद साहिब का जन्म 1595 ई० में हुआ था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 39. गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 40. गुरु हरगोबिंद साहिब जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 41. गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने मीरी और पीरी नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 42. गुरु अर्जन देव जी ने अकाल तख्त साहिब के निर्माण का कार्य किया।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 43. गुरु हरगोबिंद साहिब जी को बंदी छोड़ बाबा कहा जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 44. सिखों और मुग़लों के मध्य पहली लड़ाई अमृतसर में हुई।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 45. गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नगर की स्थापना की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 46. गुरु हरगोबिंद साहिब जी 1635 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 47. गुरु हर राय जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 48. गुरु हर राय जी का जन्म 1630 ई० में हुआ था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 49. गुरु हर राय जी के पिता जी का नाम बाबा बुड्डा जी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 50. गुरु हर राय जी की माता जी का नाम बीबी निहाल कौर था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 51. गुरु हर राय जी 1661 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 52. गुरु हरकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 53. गुरु हरकृष्ण जी को बाल गुरु के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 54. गुरु हरकृष्ण जी 1664 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 55. गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 56. गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म अमृतसर में हुआ।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 57. गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1621 ई० में हुआ।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 58. गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का नाम गुरु हरकृष्ण जी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 59. गुरु तेग बहादुर जी की माता जी का नाम गुजरी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 60. गुरु तेग़ बहादुर जी का आरंभिक नाम त्याग मल था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 61. गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम गोबिंद राय था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 62. मक्खन शाह लुबाणा ने गुरु तेग़ बहादुर जी की खोज की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 63. गुरु तेग बहादुर जी 1664 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 64. गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ 1666 ई० में किया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 65. गुरु तेग़ बहादुर जी अपनी यात्राओं के दौरान सर्वप्रथम अमृतसर पहुँचे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 66. औरंगजेब ने 1664 ई० में हिंदुओं पर पुनः जज़िया कर लगाया।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 67. गुरु तेग़ बहादुर जी के समय शेर अफ़गान कश्मीर का गवर्नर था। .
उत्तर-ठीक

प्रश्न 68. औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली में शहीद किया गया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 69. गुरु तेग़ बहादुर जी को 11 नवंबर, 1675 ई० को शहीद किया गया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 70. गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 71. गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर, 1666 ई० को हुआ।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 72. गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता जी का नाम गुरु तेग़ बहादुर जी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 73. गुरु गोबिंद सिंह जी की माता जी का नाम गुजरी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 74. गुरु गोबिंद सिंह जी का आरंभिक नाम गोबिंद राय था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 75. भंगाणी की लड़ाई 1688 ई० में लड़ी गई थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 76. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की सृजना 1699 ई० में की थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 77. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की सजना के समय पाँच प्यारों का चुनाव किया।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 78. श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई 1701 ई० में हुई थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 79. श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई 1706 ई० में हुई थी।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 80. चमकौर साहिब की लड़ाई 1704 ई० में हुई थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 81. गुरु गोबिंद सिंह जी ने ज़फ़रनामा को फ़ारसी भाषा में लिखा था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 82. खिदराना की लड़ाई 1705 ई० में लड़ी गई।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 83. गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्म-कथा का नाम बचित्तर नाटक है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 84. गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ में ज्योति-ज्योत समाए थे।
उत्तर-ठीक

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1459 ई० में
(ii) 1469 ई० में
(iii) 1479 ई० में
(iv) 1489 ई० में।
उत्तर-(ii)

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) मेहता कालू
(ii) जैराम
(iii) श्री चंद
(iv) फेरुमलं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन गुरु नानक देव जी की बहन थी ?
(i) नानकी जी
(ii) भानी जी
(iii) दानी जी
(iv) खीवी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों के साथ किया था ?
(i) 10
(ii) 20
(iii) 30
(iv) 50
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य क्या था ?
(i) लोगों में फैले अंधविश्वास को दूर करना
(ii) नाम का प्रचार करना
(iii) आपसी भाईचारे का प्रचार करना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी कहाँ से आरंभ की ?
(i) गोरखमता
(ii) हरिद्वार
(iii) सैदपुर
(iv) कुरुक्षेत्र।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी की मुलाकात सजन ठग से कहाँ हुई थी ?
(i) तालुंबा में
(ii) सैदपुर में।
(iii) दिल्ली में
(iv) धुबरी में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 9.
मक्का में कौन-से काजी ने गुरु नानक साहिब को काबे की तरफ पाँव करके सोने से रोका था ?
(i) बहाउदीन
(ii) कुतुबुदीन
(iii) रुकनुदीन
(iv) शमसुदीन।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में कब निवास किया ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1520 ई० में
(iii) 1521 ई० में
(iv) 1522 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा का क्या स्वरूप है ? ।
(i) वह सर्वशक्तिमान है
(ii) वह सदैव रहने वाला है
(iii) वह निर्गुण और सगुण है
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 12.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु ने आरंभ की ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
(i) भाई जेठा जी को
(ii) भाई दुर्गा जी को
(iii) भाई लहणा जी को
(iv) श्री चंद जी को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1529 ई० में
(iii) 1539 ई० में,
(iv) 1549 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
सिखों के दूसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु अंगद देव जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 16.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई जेठा जी
(ii) भाई लंहणा जी
(iii) भाई गुरदित्ता जी
(iv) भाई दासू जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 17.
गुरु अंगद देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1529 ई० में
(ii) 1538 ई० में
(iii) 1539 ई० में
(iii) 1552 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) गोइंदवाल साहिब
(ii) अमृतसर
(iii) खडूर साहिब
(iv) सुल्तानपुर लोधी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 19.
किस गुरु साहिब ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 20.
उदासी मत का संस्थापक कौन था
(i) बाबा श्री चंद जी
(ii) बाबा लख्मी दास जी
(iii) बाबा मोहन जी
(iv) बाबा मोहरी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 21.
सिखों के तीसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 22.
गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1539 ई० में
(ii) 1550 ई० में
(iii) 1551 ई० में
(iv) 1552 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 23.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किसने करवाया ?
(i) गुरु अंगद देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने ।
(iii) गुरु रामदास जी ने
(iv) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 24.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली में कितनी पौड़ियाँ बनाई गई थीं ?
(i) 62
(ii) 72
(iii) 73
(iv) 84
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 25.
किस गुरु साहिबान ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी ?
(i) गुरु अंगद देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु रामदास जी ने ।
(iv) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 26.
गुरु अमरदास जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) अमृतसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) लाहौर।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 27.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1552 ई० में
(ii) 1564 ई० में
(iii) 1568 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 28.
सिखों के चौथे गुरु,कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 29.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई बाला जी
(ii) भाई जेठा जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) भाई मेरदाना जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 30.
गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1534 ई० में
(ii) 1552 ई० में
(iii) 1554 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 31.
रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना किस गुरु साहिबान ने की थी ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु रामदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु हरगोबिंद जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 32.
मसंद प्रथा का आरंभ किस गुरु ने किया था ?
(i) गुरु रामदास जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु अमरदास जी ने
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 33.
किस गुरु साहिबान के समय उदासियों और सिखों के बीच समझौता हुआ था ?
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु रामदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 34.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 35.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1539 ई० में
(ii) 1560 ई० में
(iii) 1563 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 36.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) अमृतसर
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 37.
पृथिया ने किस संप्रदाय की स्थापना की थी ?
(i) मीणा
(ii) उदासी
(iii) हरजस
(iv) निरंजनिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 38.
गुरु अर्जन देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1580 ई० में
(ii) 1581 ई० में
(iii) 1585 ई० में
(iv) 1586 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 39.
चंदू शाह कौन था ?
(i) लाहौर का दीवान
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) मुलतान का दीवान।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 40.
गुरु अर्जन देव जी ने हरिमंदिर साहिब की नींव कब रखी थी ?
(i) 1581 ई० में
(ii) 1585 ई० में
(iii) 1587 ई० में
(iv) 1588 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 41.
हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
(i) गुरु अर्जन साहिब जी ने
(ii) बाबा फ़रीद जी ने
(iii) संत मीयाँ मीर जी ने
(iv) बाबा बुड्डा जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 42.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य किसको दिया ?
(i) बाबा बुड्डा जी को
(ii) भाई गुरदास जी को
(iii) भाई मोहकम चंद जी को
(iv) भाई मनी सिंह जी को।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 43.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब पूर्ण हुआ ?
(i) 1600 ई० में
(ii) 1601 ई० में ।
(iii) 1602 ई० में
(iv) 1604 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 44.
हरिमंदिर साहिब जी के पहले मुख्य ग्रंथी कौन थे ?
(i) भाई गुरदास जी
(ii) भाई मनी सिंह जी
(iii) बाबा बुड्डा जी
(iv) बाबा दीप सिंह जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 45.
जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
(i) तुजक-ए-बाबरी
(ii) तुज़क-ए-जहाँगीरी
(iii) जहाँगीरनामा
(iv) आलमगीरनामा।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 46.
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 47.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली
(ii) अमृतसर
(iii) लाहौर
(iv) मुलतान।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 48.
गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1604 ई० में
(ii) 1605 ई० में
(iii) 1606 ई० में
(iv) 1609 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 49.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 50.
गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1506 ई० में
(ii) 1556 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।

प्रश्न 51.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iii) गुरु तेग बहादुर जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 52.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने
(iv) गुरु तेग बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 53.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसको कहा जाता है ?
(i) बंदा सिंह बहादुर को
(ii) भाई मनी सिंह जी को
(iii) गुरु हरगोबिंद साहिब जी को
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 54.
गुरु हरगोबिंद साहिब और मुग़लों में लड़ी गई अमृतसर की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1606 ई० में
(ii) 1624 ई० में
(iii) 1630 ई० में
(iv) 1634 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 55.
गुरु हरगोबिंद साहिब जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1628 ई० में
(ii) 1635 ई० में
(iii) 1638 ई० में
(iv) 1645 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 56.
सिखों के सातवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु हरगोबिंद साहिब जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हरकृष्ण जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 57.
गुरु हर राय जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1635 ई० में
(ii) 1637 ई० में
(iii) 1645 ई० में
(iv) 1655 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 58.
सिखों के आठवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु हरकृष्ण जी
(ii) गुरु तेग़ बहादुर जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 59.
सिख इतिहास में ‘बाल गुरु’ के नाम से किसको जाना जाता है ?
(i) गुरु रामदास जी को
(ii) गुरु हर राय जी को
(ii) गुरु हरकृष्ण जी को
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी को।
उत्तर-
(ii)

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 60.
गुरु हरकृष्ण जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
(i) 1645 ई० में
(ii) 1656 ई० में
(iii) 1661 ई० में
(iv) 1664 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 61.
गुरु हरकृष्ण जी कब ज्योति-जोत समाए ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1662 ई० में
(iii) 1663 ई० में
(iv) 1664 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 62.
सिखों के नवम् गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हरकृष्ण जी
(iv) गुरु तेग बहादुर जी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 63.
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1601 ई० में
(ii) 1621 ई० में
(iii) 1631 ई० में
(iv) 1656 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 64.
गुरु तेग़ बहादुर जी के बचपन का क्या नाम था ?
(i) हरी मल
(ii) त्याग मल
(iii) भाई लहणा जी
(iv) भाई जेठा जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 65.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हरकृष्ण जी
(iv) बाबा गुरदित्ता जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 66.
उस व्यक्ति का नाम .बताएँ जिसने यह प्रमाणित किया कि गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के वास्तविक गुरु हैं ?
(i) मक्खन शाह मसतूआना
(ii) मक्खन शाह लुबाणा
(iii) बाबा बुड्डा जी ,
(iv) भाई गुरदास जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 67.
गुरु तेग बहादुर जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हए ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1664 ई० में
(iii) 1665 ई० में
(iv) 1666 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 68.
किस मुग़ल बादशाह के आदेशानुसार गुरु तेग बहादुर जी को शहीद किया गया ?
(i) जहाँगीर
(ii) शाहजहाँ
(iii) औरंगजेब
(iv) बहादुरशाह प्रथम।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 69.
गुरु तेग़ बहादुर जी को कहाँ शहीद किया गया ?
(i) लाहौर में
(ii) दिल्ली में
(iii) अमृतसर में
(iv) पटना में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 70.
गुरु तेग बहादुर जी को कब शहीद किया गया ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1664 ई० में
(iii) 1665 ई० में
(iv) 1675 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 71.
सिखों के दशम् तथा अंतिम गुरु कौन थे ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी
(ii) गुरु गोबिंद सिंह जी
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 72.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1646 ई० में
(ii) 1656 ई० में
(iii) 1666 ई० में
(iv) 1676 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 73.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) पटना साहिब
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) श्री आनंदपुर साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 74.
गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हरकृष्ण जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 75.
गुरु गोबिंद सिंह जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) गुजरी जी
(ii) नानकी जी
(iii) सुलक्खनी जी
(iv) खीवी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 76.
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रारंभिक नाम क्या था ?
(i) गोबिंद नाथ
(ii) गोबिंद दास
(iii) भाई जेठा जी
(iv) भाई लहणा जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 77.
गुरु गोबिंद सिंह जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
(i) 1666 ई० में
(ii) 1670 ई० में
(iii) 1672 ई० में
(iv) 1675 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 78.
भंगाणी की लड़ाई कब लड़ी गई ?
(i) 1686 ई० में
(ii) 1687 ई० में
(iii) 1688 ई० में
(iv) 1690 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 79.
नादौन की लड़ाई कब हुई ?
(i) 1688 ई० में
(ii) 1690 ई० में
(iii) 1694 ई० में
(iv) 1695 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 80.
खालसा पंथ की स्थापना किस गुरु ने की थी ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 81.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कब की थी ?
(i) 1688 ई० में
(ii) 1690 ई० में
(iii) 1695 ई० में
(iv) 1699 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 82.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कहाँ की थी ?
(i) अमृतसर
(ii) श्री आनंदपुर साहिब
(iii) कीरतपुर साहिब
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class Religion Solutions सिख धर्म का उत्थान तथा विकास : 1469-1708 ई०

प्रश्न 83.
खालसा की सृजना के समय गुरु गोबिंद सिंह जी ने प्रत्येक खालसा को कितने कक्कार धारण करना ज़रूरी बताया ?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 84.
श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई कब हुई ?
(i) 1699 ई० में
(ii) 1701 ई० में
(iii) 1703 ई० में
(iv) 1704 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 85.
श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई कब हुई
(i) 1707 ई० में
(ii) 1702 ई० में
(iii) 1704 ई० में
(iv) 1705 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 86.
चमकौर साहिब की लड़ाई कब हुई ?
(i) 1702 ई० में
(ii) 1703 ई० में
(iii) 1704 ई० में
(iv) 1706 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 87.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने ज़फ़रनामा को किस भाषा में लिखा था ?
(i) हिंदी में
(ii) संस्कृत में
(iii) पंजाबी में
(iv) फ़ारसी में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 88.
चाली मुक्ते कौन-सी लड़ाई के साथ संबंधित हैं ?
(i) चमकौर साहिब की लड़ाई के साथ
(ii) खिदराना की लड़ाई के साथ
(iii) आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई के साथ
(iv) आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई के साथ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 89.
बचित्तर नाटक की रचना किसने की ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 90.
गुरु गोबिंद सिंह जी कब ज्योति-जोत समाए ?
(i) 1705 ई० में
(ii) 1706 ई० में
(iii) 1707 ई० में
(iv) 1708 ई० में।
उत्तर-
(iv)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जन-सहभागिता का अर्थ बताएं। भारत में कम तथा नीचे दर्जे की जन-सहभागिता के चार कारणों का वर्णन करें।
(What is the meaning of people’s participation ? Explain four reasons of low and poor people’s participation in India.)
अथवा
जन सहभागिता का क्या अर्थ है ? भारत में कम जन सहभागिता के कारणों का वर्णन करो।
(What is meant by People’s Participation ? What are the reasons of Peoples low participation in India ?)
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ-जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जनसहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन-सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं। हरबर्ट मैक्कलॉस्की के अनुसार, “सहभागिता वह मुख्य साधन है जिसके द्वारा लोकतन्त्र में सहमति प्रदान की जाती है और वापस ली जाती है तथा शासकों को शासितों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है।”

भारत में जनसहभागिता की धारणा-भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। किसी लोकतान्त्रिक देश की जनसंख्या इतनी नहीं है जितनी कि भारत में मतदाताओं की संख्या है। 1991 में दसवीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर मतदाताओं की संख्या 52 करोड़ से अधिक है जबकि 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर मतदाताओं की संख्या 58 करोड़ से अधिक थी। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ 40 लाख थी। आम चुनावों के समय जितने लोग राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं, उतने अन्य किसी राष्ट्रीय उत्सव या पर्व में नहीं लेते हैं। चुनाव एक माध्यम है जिसके द्वारा मतदाता अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग करते हैं।

चुनाव के द्वारा ही मतदाताओं और राजनीतिक नेताओं में सीधा सम्पर्क स्थापित होता है। यद्यपि भारत के अधिकांश मतदाता अनपढ़ हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनमें राजनीतिक जागरूकता बढ़ती जा रही है। 1952 के मतदाता और अब के मतदाता में बहुत अन्तर है। पहले मतदाता न तो राजनीतिक प्रश्नों पर विचार करते थे और न ही राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों पर। वे पं० जवाहरलाल नेहरू और कुछ अन्य नेताओं के नाम पर मतदान करते थे या फिर जाति, धर्म एवं बिरादरी के उम्मीदवार को वोट डालते थे। इसलिए प्रायः सभी राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन करते समय जाति एवं धर्म का ध्यान रखते रहे हैं और जिस चुनाव क्षेत्र में जिस जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक होती है, उस क्षेत्र में प्रायः उस जाति का उम्मीदवार खड़ा किया जाता रहा है। परन्तु पिछले कुछ सालों के चुनावों में मतदाताओं ने जाति से ऊपर उठकर मतदान किया।

इन चुनावों के परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय मतदाता राष्ट्रीय समस्याओं पर सोचने-विचारने लगे हैं और उनमें राजनीतिक सूझ-बूझ है, चाहे वे अधिकतर पढ़े-लिखे नहीं हैं। मतदाता दल की पिछली सफलताओं में रुचि न लेकर समकालीन घटनाओं तथा समस्याओं में अधिक रुचि रखते हैं। 1977 में मतदाताओं ने कांग्रेस के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि मतदाता कांग्रेस सरकार के आपात्काल के अत्याचारों से बहुत भयभीत हो गए थे। यहां तक कि श्रीमती इन्दिरा गांधी स्वयं भी चुनाव हार गईं। 1980 में मतदाताओं ने जनता पार्टी के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि जनता पार्टी के नेता सत्ता में आने के बाद परस्पर लड़ते रहे और अधिक समय तक सत्ता में न रह सके। मतदाताओं ने श्रीमती गांधी को पुनः सत्ता सौंप दी क्योंकि श्रीमती इन्दिरा गांधी ने शासन में स्थायित्व और कीमतों को कम करने का आश्वासन दिया था।

भारतीय महिलाएं चुनाव में पुरुषों के समान ही हिस्सा लेती हैं। लोकसभा के लिए हुए विभिन्न चुनावों में कई क्षेत्रों में महिला मतदाताओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। महिलाओं की राजनीति में रुचि बढ़ती जा रही है जो कि प्रजातन्त्र के लिए अच्छी बात है, परन्तु महिलाओं का प्रतिनिधित्व संसद् में कम होता जा रहा है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में केवल 61 महिलाएं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं।

सहभागिता का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि अधिकतर भारतीय मतदाता राजनीति में रुचि नहीं रखते या राजनीति के प्रति उदासीन हैं, विशेषकर शिक्षित मतदाता बहुत कम वोट डालने जाते हैं। आम चुनावों से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 60 प्रतिशत मतदाता ही मतदान करने जाते हैं। यह उदासीनता लोकतन्त्र के लिए अच्छी नहीं है। फरवरी, 1992 में पंजाब विधानसभा का चुनाव हुआ. जिसका अकाली दल (मान), अकाली दल (बादल) तथा अन्य अकाली दलों ने बहिष्कार किया, मतदान केवल 28 प्रतिशत रहा।

भारतीय नागरिकों की न केवल चुनाव में सहभागिता कम है बल्कि अन्य राजनीतिक गतिविधियों में भी कम लोग भाग लेते हैं। अधिकांश नागरिक राजनीतिक दलों के सदस्य बनना पसन्द नहीं करते और राजनीतिक दल भी निरन्तर सक्रिय नहीं रहते। केवल चुनाव के समय ही राजनीतिक दल सक्रिय होते हैं और चुनावों के समाप्त होने के साथ ही सो जाते हैं। आम जनता सार्वजनिक मामलों और राजनीतिक गतिविधियों में रुचि नहीं लेती। बहुत कम नागरिक चुनाव के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों से मिलते रहते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराते हैं। इस प्रकार भारत में जन-सहभागिता का स्तर निम्न है।

भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के कारण (CAUSES OF LOW LEVEL OF PEOPLE’S PARTICIPATION IN INDIA)

भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के निम्नलिखित कारण हैं-
1. अनपढ़ता (mliteracy)—स्वतन्त्रता के इतने वर्ष बाद भी भारत में बहुत अनपढ़ता पाई जाती है। अशिक्षित व्यक्तियों में आत्म-विश्वास की कमी होती है और वे देश की समस्याओं को समझने की स्थिति में भी नहीं होते। अशिक्षित व्यक्ति को न तो अपने अधिकारों का ज्ञान होता है और न ही अपने कर्तव्यों का। अशिक्षित व्यक्ति का मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है। चुनाव के समय लाखों मत-पत्र का अवैध घोषित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि लोगों को मत का प्रयोग करना नहीं आता।

2. ग़रीबी (Poverty)-भारत की अधिकांश जनता ग़रीब है। ग़रीब नागरिक को पेट भर कर भोजन न मिल सकने के कारण उनका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो सकता। वह सदा अपना पेट भरने की चिन्ता में लगा रहता है और उसके पास समाज और देश की समस्याओं पर विचार करने का न तो समय होता है और न ही इच्छा। ग़रीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह चुनाव की बात भी नहीं सोच सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।

3. बेकारी (Unemployment)-भारत में जन-सहभागिता के निम्न स्तर के होने का एक कारण बेकारी है। भारत में करोड़ों लोग बेकार हैं। भारत में बेकारी अशिक्षित तथा शिक्षित दोनों प्रकार के लोगों में पाई जाती है। बेकार व्यक्ति में हीन भावना आ जाती है और वह अपने आपको समाज पर बोझ समझने लगता है। बेकार व्यक्ति अपनी समस्याओं में ही उलझा रहता है और उसे समाज एवं देश की समस्याओं का कोई ज्ञान नहीं होता। बेकारी के कारण नागरिकों का प्रशासनिक स्वरूप तथा राजनीतिक दलों की क्षमता में विश्वास कम होता जा रहा है। बेकार व्यक्ति मताधिकार को कोई महत्त्व नहीं देता और अपना वोट बेचने के लिए तैयार रहता है।

4. शिक्षित लोगों में राजनीतिक उदासीनता (Political apathy among educated people)-भारत में शिक्षित लोगों में राजनीतिक उदासीनता पाई जाती है। पढ़े-लिखे लोग राजनीति में रुचि नहीं रखते और राजनीतिक दलों का सदस्य बनना पसन्द नहीं करते। चुनाव में अधिकांश शिक्षित लोग वोट डालने नहीं जाते क्योंकि वे यह समझते हैं कि उनके मतों से चुनाव के परिणाम पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है क्योंकि अधिकांश जनता अनपढ़ है और उनके मतदान से ही परिणाम निर्धारित होते हैं।

5. भ्रष्टाचार (Corruption)-भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भ्रष्टाचार राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर दोनों पर पाया जाता है। राजनीति में सत्य, नैतिकता और ईमानदारी का कोई स्थान नहीं है। चुनाव के लिए सभी तरह के भ्रष्ट तरीके अपनाए जाते हैं। अतः ईमानदार और नैतिक व्यक्ति राजनीतिक से दूर रहना पसन्द करता है क्योंकि भारत में यह आम धारणा है कि राजनीति भ्रष्ट लोगों का खेल है। इसलिए ईमानदार व्यक्ति न तो चुनाव में खड़े होते हैं और न ही राजनीतिक कार्यों में दिलचस्पी लेते हैं।

6. राजनीतिक दलों में विश्वास की कमी (Lack of faith in Political Parties)-भारत की अधिकांश जनता को राजनीतिक दलों पर विश्वास नहीं है। आम धारणा यह है कि राजनीतिक दलों का उद्देश्य जनता की सेवा करना नहीं है बल्कि ये दल अपने हितों की रक्षा के लिए सत्ता करना चाहते हैं। दल-बदल ने जनता का राजनीतिक दलों से विश्वास बिल्कुल उठा दिया है। लोगों का विचार है कि राजनीतिक नेता अपनी कुर्सी के चक्कर में रहते हैं और उन्हें जनता के हितों की कोई परवाह नहीं होती। इसलिए आम जनता की चुनावों और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता कम होती जा रही है।

7. अज्ञानता (Ignorance)-भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता का एक कारण लोगों की अज्ञानता है। भारत में प्राय: शिक्षित लोग भी कई प्रकार की राजनीतिक समस्याओं से अनभिज्ञ रहते हैं। वे राजनीति में होने वाली महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को समझ नहीं पाते तथा राजनीति में कम रुचि लेते हैं।

8. राजनीति व्यवसाय के रूप में (Politics As a Profession)-भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता का एक प्रमुख कारण यह है, कि राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय बन चुकी है। यदि एक व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ता है, तो वह यह कोशिश करता है कि आगे समय में उसके परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट मिले। इस कारण राजनीति केवल कुछ लोगों के मध्य सीमित होकर रह गई हैं। जिससे आम नागरिक राजनीति में रुचि नहीं लेता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 2.
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तथ्यों का वर्णन करें।
(What is meant by Voting Behaviour ? Write main determinants of Voting Behaviour in India.)
अथवा
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ? भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तथ्यों का वर्णन करो।
(What is meant by Voting Behaviour ? Write the factors which determine the Voting Behaviour in India.)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को जो एक निश्चित तिथि को 18 वर्ष की आयु को प्राप्त कर चुका हो मताधिकार दिया गया है। नागरिक मताधिकार का प्रयोग करते समय अनेक कारकों से प्रेरित होता है। जिन कारणों अथवा स्थितियों से प्रभावित होकर मतदाता किसी उम्मीदवार को वोट डालने का निर्णय करता है, उन तथ्यों तथा स्थितियों के अध्ययन को ही मतदान व्यवहार का अध्ययन कहा जाता है। जे० सी० प्लेनो और रिगस (J. C. Plano and Riggs) के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

(“Voting behaviour is a field study of concerned with the ways in which people tend to vote in public elections and the reasons why they vote or they do.”) साधारण शब्दों में मतदान व्यवहार का अर्थ है कि मतदाता अपने मत का प्रयोग क्यों करते हैं और किस प्रकार करते हैं। निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि मतदाता अपने इस अधिकार का प्रयोग ईमानदारी और समझदारी से करें। विख्यात विचारक काका कालेलकर का कहना है कि मतदाताओं को यह चाहिए कि “प्रतिनिधि को उसी दृष्टि से चुने जिस दृष्टि से हम मरीज़ के लिए डॉक्टर को चुनते हैं। देश का मामला बिगड़ गया है। उनको सुलझा सकें, उसी दल को अपना वोट दो और उस दल का बहुमत बनाने के लिए उसके छांटे हुए उम्मीदवारों को वोट दो। वोट देने वाले को दो बातें देखनी चाहिएं-एक यह कि किन नेताओं के द्वारा देश-हित हो सकता है, दूसरा यह कि ऐसे नेताओं के पृष्ठ-पोषण करने वाले प्रतिनिधि सार्वजनिक चरित्र के बारे में शुद्ध हैं या नहीं। जो नेता स्वयं उच्च चरित्र के हों, वे अपने पक्ष में हीन चरित्र के लोगों को लेकर बहुमत लाना चाहें, उन्हें पसन्द न करना जनता का कर्तव्य हो जाता है।”

परन्तु अफसोस यह है कि भारतीय मतदाता ईमानदारी और समझदारी से वोट न डालकर धार्मिक, जात-पात, क्षेत्रीय तथा अन्य सामाजिक भावनाओं के ओत-प्रोत होकर मतदान करता है। भारतीय मतदान व्यवहार को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं

1. जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव (Influence of Caste on the Voting behaviour) जाति सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसका आरम्भ से ही मतदान व्यवहार पर बड़ा प्रभाव रहा है। स्वतन्त्रता से पूर्व भी जब अभी वयस्क मताधिकार प्रचलित नहीं हुआ था, जाति का मतदान पर बहुत प्रभाव था। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह प्रभाव कम होता दिखाई नहीं देता, इसके बावजूद भी कि शिक्षकों और सामाजिक नेताओं ने जाति की बुराइयों के विरुद्ध स्वतन्त्रता के पश्चात् काफ़ी प्रचार किया है। प्रो० श्रीनिवास (Shrinivas) ने ठीक ही कहा है कि, “शिक्षित भारतीयों में यह साधारण विश्वास है कि जाति अब अपनी आखिरी मंजिल पर है और शहर के शिक्षित तथा पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित उच्च वर्ग के लोग अब इस बुराई के चंगुल से बाहर निकल चुके हैं।

परन्तु उनका ऐसा सोचना ग़लत है। ये लोग चाहे जाति के बन्धनों को कम मानते हैं और जाति के बाहर भी शादी कर लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि जाति का प्रभाव बिल्कुल समाप्त हो गया है।” प्रो० रूडाल्फ (Prof. Rudolph) के विचारानुसार, “इसके अतिरिक्त भी कि भारतीय समाज लोकतान्त्रिक नीति के मूल्यों और विधियों को अपना रहा है, जाति भारतीय समाज की धुरी है। वास्तव में जाति एक मुख्य साधन है जिसके द्वारा भारतीय जनता लोकतन्त्रात्मक राजनीति से बंधी हुई है।” प्रो० मौरिस जॉन्स के मतानुसार, “राजनीति जाति से अधिक महत्त्वपूर्ण है और जाति पहले से राजनीति से अधिक महत्त्वपूर्ण है।”

इन सब विद्वानों ने ठीक ही विचार दिए हैं कि भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। कुछ राज्यों में तो यह तत्त्व वह बहत निर्णायक है क्योंकि मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देना अपना कर्त्तव्य मानते हैं। उदाहरण के लिए, हरियाणा में अनुसूचित जातियों में हरिजनों की संख्या सबसे अधिक है और राजनीति तथा मतदान के क्षेत्र में उनकी दूसरी जातियों की अपेक्षा अधिक चलती है। गुड़गांव, महेन्द्रगढ़ में अहीर जाति के जाट केवल अहीर उम्मीदवार को ही वोट देते हैं। चुनाव के दिनों में यह नारा बहुत लोकप्रिय होता है, “जाट की बेटी जाट को, जाट का वोट जाट को।” मियू (Meo) जाति के मुसलमान भी जाति के आधार पर वोट डालते हैं। बिहार, गुजरात, पंजाब तथा केरल आदि राज्यों में भी मतदाता जाति के आधार पर ही अधिकतर वोट डालते हैं। अनेक दल तो जातियों के आधार पर ही बने हुए हैं और उन्हें विशेष जातियों का समर्थन प्राप्त है-जैसे लोकदल जाट जाति पर नाज करता है, अकाली दल कट्टर सिक्खों के सहारे जिन्दा है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों के लोकसभा के चुनावों में जाति ने पहले की अपेक्षा बहुत कम प्रभावित किया है।

2. धर्म का प्रभाव (Influence of Religion)-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं। टिकट बांटते समय निर्वाचित क्षेत्र की रचना को ध्यान में रखा जाता है और प्रायः उसी धर्म के व्यक्ति को टिकट दी जाती है जिस धर्म के लोगों की वोटें उस निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम होती हैं। अधिकतर भारतीय अनपढ़ हैं और वे धर्म के नाम पर सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं। मई-जून, 1991 के लोकसभा के चुनाव में राम जन्मभूमिबाबरी मस्जिद विवाद ने मतदाताओं को काफी प्रभावित किया। भारतीय जनता पार्टी को श्री राम मन्दिर बनाने के लिए राम भक्तों ने मत डाले।

3. क्षेत्रीयवाद अथवा स्थानीयवाद (Regionalism or Localism) भारत में मतदाता स्थानीयवाद तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर भी मतदान करते हैं। साधारणत: मतदाता उसी उम्मीदवार को वोट डालते हैं जो उनके क्षेत्र का रहने वाला है। यदि कोई उम्मीदवार किसी दूसरे राज्य से आ कर चुनाव लड़ता है तो उसका चुनाव जीतना यदि असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य होता है।

4. धन (Money)-भारतीय जनता अधिकतर गरीब तथा अनपढ़ है, लाखों क्या करोड़ों मतदाता ऐसे हैं, जिन्हें दिन-रात रोटी की चिन्ता लगी रहती है। ऐसे मतदाता पैसे लेकर अपने वोट बेचने को सदैव तैयार रहते हैं। इसलिए ग्रायः वही उम्मीदवार चुनाव जीतता है जो अधिक धन खर्च करता है।

5. दलों की विचारधारा (Ideology of the Parties)-राजनीतिक दलों की विचारधारा भी विशेषकर शिक्षित मतदाताओं को काफ़ी प्रभावित करती है। हमें ऐसे मतदाता भी मिलते हैं जो धर्म, जाति, क्षेत्रीयवाद आदि बन्धनों से मुक्त होकर राजनीतिक दलों के प्रोग्राम को वोट डालते हैं।

6. उम्मीदवार का व्यक्तित्व (Personality of the Candidate)-उम्मीदवारों के अपने विचार तथा व्यक्तित्व भी मतदाता को काफ़ी प्रभावित करते हैं। वे राष्ट्रीय दलों की अपेक्षा उम्मीदवार को महत्ता देते हैं। मतदाता राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में मतदान करते समय दल के बाद उम्मीदवार को महत्ता देता है जबकि क्षेत्रीय चुनाव दलों की अपेक्षा उम्मीदवार को महत्ता दी जाती है। भारत के मतदाता उम्मीदवार में प्रायः दो बातें देखता है, एक तो ईमानदारी और दूसरा जनता के कल्याण से उसका सम्बन्ध। ऐसे मतदाताओं की कमी है जो उम्मीदवार को देखकर मतदान करते हैं।

7. वैचारिक प्रतिबद्धता (Ideological Committment)—वैचारिक प्रतिबद्धता भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है। कई मतदाता किसी-न-किसी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। ऐसे मतदाता उस विचारधारा के समर्थक उम्मीदवार को न केवल अपना वोट डालते हैं बल्कि अन्य मतदाताओं को भी उसी उम्मीदवार को वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं। भारत के पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा आदि राज्यों में काफ़ी मतदाता साम्यवादी विचारधारा में विश्वास रखते हैं और ये मतदाता मार्क्सवादी साम्यवादी दल को वोट डालते हैं। इसलिए 35 वर्षों तक पश्चिम बंगाल में मार्क्ससाम्यवादी दल की सरकार थी।

8. वर्ग-चेतना (Class Consciousness) वर्ग चेतना भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है। यह प्रायः देखने में आया है कि भूमिहीन किसान और श्रमिक वामपंथी दलों को वोट डालते हैं जबकि पूंजीपति, उद्योगपति, ज़मींदार तथा व्यापारी प्रायः दक्षिण पंथी दलों को मत देते हैं। गरीब, मजदूर और भूमिहीन किसान साम्यवादी दलों के मुख्य समर्थक हैं।

9. आयु (Age) आयु का भी मतदान व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। नवयुवकों में अधिक जोश और उत्साह होता है और वे नेताओं के जोशीले भाषणों से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। प्रौढ़ आयु के व्यक्ति नेताओं के जोशीले भाषणों से प्रभावित नहीं होते बल्कि सोच-विचार कर वोट डालते हैं।

10. लिंग (Sex)-प्रायः भारतीय स्त्रियां अपनी इच्छा से मतदान न करके पति की इच्छानुसार मतदान करती हैं। अविवाहित स्त्रियां अपनी पिता या भाई की इच्छानुसार मतदान करती हैं।

11. विशेषाधिकार (Privileges)-भारत में कुछ जातियां जैसे कि अनुसूचित जातियां तथा पिछड़े वर्ग के लोग हैं जिन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इन जातियों के लोग अधिकतर कांग्रेस को ही वोट डालते हैं क्योंकि उनको यह विशेषाधिकार कांग्रेस ने ही दिए हैं और उन्हें यह डर भी है कि यदि कोई अन्य पार्टी सत्ता में आ गई तो उनके विशेषाधिकार समाप्त कर दिए जाएंगे। लेकिन 1977 में जनता पार्टी सरकार ने भी इनको विशेषाधिकार से वंचित नहीं किया।

12. राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा-राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा भी मतदाता के व्यवहार को प्रभावित करती है। 1967 के आम चुनाव के पश्चात् राजनीतिक अस्थिरता बहुत बढ़ गई थी क्योंकि इस चुनाव के पश्चात् कांग्रेस को आठ राज्यों में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। अतः जब 1971 में चुनाव हुए तो लोगों ने राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा से प्रभावित होकर कांग्रेस को मत डाले जिस कारण कांग्रेस को लोकसभा में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में राजनीतिक स्थिरता की लालसा ने ही लोगों को कांग्रेस (इ) को मत डालने के लिए विवश किया। राजनीति स्थिरता की अभिलाषा के कारण ही भारतीय मतदाताओं ने 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्रदान किया था।

13. देश की आर्थिक स्थिति-मतदान व्यवहार को देश की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित करती है। 1977 के चुनावों में मतदाताओं ने कांग्रेस के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि देश की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गई थी। परन्तु जब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाया तो 1980 में जनता ने कांग्रेस को भारी बहुमत में मत डाले।

14. नेतृत्व-मतदान व्यवहार को नेतृत्व के तत्त्व भी प्रभावित करते हैं। श्री जवाहरलाल नेहरू का महान् व्यक्तित्व एवं नेतृत्व मतदान व्यवहार को बहुत प्रभावित करता था। 1977 के चुनाव में श्री जय प्रकाश नारायण ने मतदाताओं को बहुत प्रभावित किया जिससे जनता पार्टी सत्ता में आई। 1980 के चुनाव में कांग्रेस (इ) को श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व के कारण ही महान् सफलता मिली। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस (इ) की महान् सफलता का कारण यह था कि मतदाता युवा प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के व्यक्तित्व तथा नेतृत्व से बहुत प्रभावित हुए थे। –

15. चुनाव प्रचार-चुनाव प्रचार भी मतदाता व्यवहार को प्रभावित करता है परन्तु यह उन मतदाताओं को अधिक प्रभावित कर पाता है जो किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित नहीं होते हैं।

16. सामन्तशाही व्यवस्था-सामन्तशाही व्यवस्था ने भी मतदाता व्यवहार को प्रभावित किया है। यह प्रभाव नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों प्रकार का रहा है। सन् 1971 के पांचवें लोकसभा के चुनाव से पूर्व सामन्तशाही व्यवस्था ने मतदान व्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया, परन्तु 1971 के चुनाव में नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।

17. भाषायी विवाद (Language Controversies)-भारत में समय-समय पर भाषायी विवाद और भाषायी आन्दोलन होते रहते हैं और इनका भी मतदान व्यवहार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। तमिलनाडु में डी० एम० के० पार्टी ने 1967 और 1971 के चुनावों में हिन्दी विरोधी प्रचार द्वारा मतदाताओं के मत प्राप्त किए। अब भी तमिलनाडु में अन्ना डी० एम० के० और डी० एम० के० हिन्दी विरोधी प्रचार द्वारा मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते रहते

18. तत्कालीन मामले (Immediate Issues)-चुनाव के अवसर पर जो महत्त्वपूर्ण मामले होते हैं, उनका मतदान पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए 1977 के चुनाव के समय आपात्कालीन घोषणा एक महत्त्वपूर्ण मामला था और इसका मतदान पर बड़ा प्रभाव पड़ा। दिसम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनावों के समय श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या का मतदान पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और मतदाताओं ने राजीव गांधी को वोट दिए। 1989 के लोकसभा के चुनावों में बोफोर्स के मामले ने मतदाताओं को प्रभावित किया और कांग्रेस (इ) की पराजय हुई। अप्रैलमई, 1996 के आम चुनावों को हवाला मामले और इस काल में हुए अन्य घोटालों ने प्रभावित किया है। इसी प्रकार अप्रैल-मई 2014 में हुए चुनावों में कालेधन, स्थिरता एवं भ्रष्टाचार के मुद्दों ने मतदान को प्रभावित किया।

19. लोकवादी नारे (Populist Slogans) राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा दिए गए लोकवादी नारे भी मतदान को प्रभावित करते हैं। 1971 में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाकर लोगों का भारी समर्थन प्राप्त किया। 1977 में जनता पार्टी ने लोकसभा के चुनाव के अवसर पर ‘लोकतन्त्र बनाम तानाशाही’ का नारा लगाया जिसका जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई। 1980 के चुनाव में कांग्रेस (इ) ने ‘सरकार जो काम करती है’ का नारा दिया और कांग्रेस (इ) सत्ता में आई।

1967 के आम चुनाव में धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्रीयवाद आदि तत्त्वों ने मतदान को काफ़ी प्रभावित किया, परन्तु 1980 में जब लोकसभा के लिए चुनाव हुए तब इन तत्त्वों का प्रभाव काफ़ी कम था क्योंकि मतदाताओं में केन्द्र में स्थायी सरकार बनाने की लालसा थी। अतः मतदाताओं ने स्थायी सरकार को स्थापित करने की लालसा को पूरा करने के लिए इन्दिरा कांग्रेस को वोट डाले। इसी प्रकार पंजाब और हरियाणा में जब मध्यवर्ती चुनाव हुए तब लोगों ने धर्म और जाति के बन्धनों से मुक्त होकर कांग्रेस को वोट दिए। परन्तु इसका अर्थ यह न लिया जाए कि ये तत्त्व अब बिल्कुल प्रभावहीन हो गए हैं। अब भी इन तत्त्वों का मतदान व्यवहार पर बहुत प्रभाव है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 3.
चुनाव आयोग का संगठन बताते हुए, राष्ट्रीय चुनाव आयोग के चार कार्यों का वर्णन करें।
(Explain the composition of the Election Commission and explain four functions of National Election Commission in India.)
अथवा
भारत में चुनाव आयोग के गठन और कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss the compositions and functions of Election Commission in India.)
अथवा
भारतीय चुनाव आयोग के कोई छः कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss any six functions of Election Commission of India.)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार भारत को एक प्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतन्त्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्रीय राज्य है। प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष है, बिना किसी भेदभाव के मताधिकार दिया गया है। नागरिक मताधिकार का प्रयोग चुनाव के माध्यम से करते हैं। भारत में लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संसद् के दोनों सदनों, राज्य विधानसभाओं व अन्य संस्थाओं का स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव हो।

भारतीय संविधान के निर्माता स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव के महत्त्व को अच्छी तरह समझते थे अतः स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाने का उत्तरदायित्व भारत में एक स्वतन्त्र चुनाव आयोग को सौंपा गया है जो अपने कार्य में स्वतन्त्र है और जो एक मुख्य चुनाव आयुक्त के अधीन कार्य करता है।

संविधान के अनुच्छेद 324 के अन्तर्गत एक चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है कि जो संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर नियन्त्रण और निर्देशन के अधिकार रखता है। यह आयोग विभिन्न चुनावों का प्रबन्ध करता है और यह देखना इसका कर्तव्य है कि सभी व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक अपने मतों का प्रयोग करें तथा चुनावों में किसी प्रकार की गड़बड़ न हो।

चुनाव आयोग की रचना (Composition of Election Commission)-चुनाव आयोग की रचना का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 324 में किया गया है। अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) तथा कुछ चुनाव आयुक्त (Election Commissioners) होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। चुनाव आयोग को सहायता देने के लिए लोकसभा व राज्य विधानमण्डलों के चुनाव से पूर्व राष्ट्रपति को क्षेत्रीय चुनाव आयुक्त (Regional Election Commissioners) नियुक्त करने का अधिकार है। चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों के कार्यकाल तथा सेवाकाल सम्बन्धी शर्तों और कार्यविधि संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की जाती है।

1989 से पूर्व चुनाव आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) ही होता था। अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की गई थी। यदि अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती तो मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए परन्तु राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। 1 अक्तूबर, 1993 को केन्द्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करके कृषि सचिव एम० एस० गिल और . विधि आयोग के सदस्य जी० वी० जी० कृष्णामूर्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया। चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बनाने सम्बन्धी विधेयक को संसद् ने 20 दिसम्बर, 1993 को पास कर दिया। 14 जुलाई, 1995 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीनों चुनाव आयुक्तों को एक समान दर्जा देने की व्यवस्था की। वर्तमान समय में चुनाव आयोग तीन सदस्यीय है।

नियुक्ति (Appointment)-अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्त तथा क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति संसद् द्वारा निर्मित कानून की धाराओं के अनुसार करेगा। यदि संसद् ने इस सम्बन्ध में कोई कानून न बनाया हो तब नियुक्ति की विधि, सेवा की शर्ते आदि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएंगी। व्यवहार में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह से करता है।

योग्यताएं (Qualifications)-संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की योग्यताओं का वर्णन नहीं किया गया है और न ही संसद् ने इस सम्बन्ध में कोई कानून बनाया है। इसीलिए आज तक जितने भी मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए हैं वे सभी भारत सरकार के उच्च अधिकारी रहे हैं।

कार्यकाल (Tenure)-संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार आयुक्तों का कार्यकाल संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित किया जाएगा। 1972 से पूर्व मुख्य चुनाव आयोग के कार्यकाल और सेवा सम्बन्धी शर्तों के बारे में कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए पहले दो मुख्य चुनाव आयुक्त आठ वर्ष तक इस पद पर रहे। 20 दिसम्बर, 1993 को पास किए गए एक कानून के अन्तर्गत मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष तथा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक (जो भी इनमें से पहले पूरा हो जाए) निश्चित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्त 6 वर्ष की अवधि से पूर्व त्याग-पत्र भी दे सकता है और राष्ट्रपति भी 6 से पूर्व वर्ष निश्चित विधि के अनुसार उन्हें हटा सकता है।

पद से हटाने की विधि (Method of Removal)-संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रकार हटाया जा सकता है जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को। मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति तभी हटा सकता है जब उसके विरुद्ध दुराचार (Misbehaviour) तथा अक्षमता (Incapacity) का आरोप सिद्ध हो जाए और संसद् के दोनों सदनों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग अपने सदन के सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास किया हो। अभी तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को समय से पहले नहीं हटाया गया है।

सेवा शर्ते (Conditions of Service)-संविधान के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्तों तथा क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों का वेतन तथा अन्य सेवा सम्बन्धी शर्ते राष्ट्रपति द्वारा संसद् द्वारा इस सम्बन्ध में बनाए गए कानून के अनुसार निश्चित की जाती हैं। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्तों तथा क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों के वेतन तथा सेवा शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जा सकता जिससे उनको कोई हानि होती है।

चुनाव आयोग के कर्मचारी (Staff of Election Commission)-संविधान में चुनाव आयोग के कर्मचारियों
की भी व्यवस्था की गई है ताकि चुनाव आयोग अपने कार्यों को अच्छी तरह कर सके। संविधान के अनुच्छेद 324 (6) के अनुसार चुनाव आयुक्त अपने कार्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति तथा राज्य के राज्यपालों से आवश्यक कर्मचारियों की मांग कर सकता है और उन कर्मचारियों की व्यवस्था करना राष्ट्रपति तथा राज्यपालों का काम है। चुनावों इत्यादि का प्रबन्ध करने के लिए आवश्यक कर्मचारियों की व्यवस्था सामान्यतः राज्य सरकारों द्वारा की जाती है, परन्तु ये कर्मचारी चुनाव आयोग के निर्देशों पर कार्य करते हैं।

चुनाव आयोग के कार्य (FUNCTIONS OF ELECTION COMMISSION)-

चुनाव आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. चुनावों का निरीक्षण, निर्देशन तथा नियन्त्रण (Superintendence, Direction and Control)-चुनाव आयोग को चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर निरीक्षण, निर्देशन तथा नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त है। चुनाव आयोग चुनाव सम्बन्धी सभी समस्याओं को हल करता है। स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना चुनाव आयोग का कर्तव्य है।

2. मतदाता सूचियों को तैयार करना (Preparation of Electoral Roll)-चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करवाना है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् और आम चुनाव से पहले मतदाताओं की सूची में संशोधन किए जाते हैं। इन सूचियों में नए मतदाताओं के नाम लिखे जाते हैं और जो नागरिक मर चुके होते हैं उनके नाम मतदाता सूची से निकाले जाते हैं। यदि किसी नागरिक का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जाता तो वह व्यक्ति एक निश्चित तिथि तक आवेदन-पत्र देकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है। मतदाता सूची के तैयार होने पर चुनाव आयोग द्वारा निश्चित तिथि तक आपत्तियां मांगी जाती हैं और कोई भी आपत्ति कर सकता है। नागरिकों द्वारा एवं राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को चुनाव आयोग के कर्मचारियों द्वारा दूर किया जाता है।

3. चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना (To decide Date of Election)-चुनाव आयोग विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग नामांकन पत्रों के दाखले (Submission of Nomination Papers) की अन्तिम तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की तिथि घोषित करता है। यदि किसी उम्मीदवार के नामांकन-पत्र में कोई त्रुटि पाई जाती है तो उस नामांकन-पत्र को अस्वीकार कर दिया जाता

4. राज्य विधानमण्डलों के लिए चुनाव कराना (Conduct of Elections of State Legislatures)-चुनाव
आयोग सभी राज्यों के विधानमण्डलों के चुनाव की व्यवस्था करता है। भारत में आजकल 29 राज्य और 7 संघीय क्षेत्र हैं। चुनाव आयोग विधानसभाओं एवं विधानपरिषदों के चुनाव तथा उप-चुनावों की व्यवस्था करता है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के साथ ही चुनाव आयोग ने आन्ध्र-प्रदेश, सिक्किम और उड़ीसा की विधानसभा के भी चुनाव करवाए थे।

5. संसद् के चुनाव कराना (To Conduct Elections of Parliament)-चुनाव आयोग संसद् के दोनों सदनों-लोकसभा तथा राज्यसभा के चुनावों की व्यवस्था करता है। लोकसभा का सामान्य स्थिति में कार्यकाल 5 वर्ष है। अतएव लोकसभा के साधारणतः पांच 5 वर्ष के बाद चुनाव कराए जाते हैं। यदि लोकसभा को पांच वर्ष से पहले भंग कर दिया जाए जैसा कि सन् 1979, 1991, 1998 तथा 1999 में किया गया था तब चुनाव आयोग लोकसभा के मध्यावधि चुनाव कराता है। सन् 1996 में चुनाव आयोग ने लोकसभा के चुनाव कराए। राज्यसभा के सदस्यों की अवधि 6 वर्ष है और एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष के पश्चात् रिटायर होते हैं। इसलिए राज्य सभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव आयोग द्वारा प्रत्येक दो वर्ष के पश्चात् करवाया जाता है। संसद् के दोनों सदनों के रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए चुनाव आयोग उप-चुनाव करवाता है। अब तक चुनाव आयोग ने लोकसभा के 16 बार चुनाव करवाए हैं।

6. राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के लिए चुनाव कराना (To conduct Elections of President and VicePresident)-चुनाव आयोग राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनाव कराता है। राष्ट्रपति के चुनाव में संसद् तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं जबकि उप-राष्ट्रपति के चुनाव में संसद् के दोनों सदनों के सदस्य भाग लेते हैं। चुनाव आयोग राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति का चुनाव कराने के लिए मतदाता सूची तैयार करवाता है, चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करता है, नामांकन-पत्र भरने, नामांकन-पत्रों की जांच करने तथा नाम वापस लेने की तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग चुनाव कराने के लिए एक निर्वाचन अधिकारी दिल्ली के लिए और सहायक निर्वाचन अधिकारी विभिन्न राज्यों की राजधानी के लिए नियुक्त करता है। मतदान के पश्चात् निर्वाचन अधिकारी सफल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करता है। अब तक चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के लिए 15 बार चुनाव करवाए हैं।

7. राजनीतिक दलों को मान्यता देना है (To give recognition to Political Parties)-भारत में अनेक राजनीतिक दल पाए जाते हैं-कुछ राष्ट्रीय स्तर के और कुछ प्रादेशिक दल। पर कौन-सा दल राष्ट्रीय स्तर का है और कौन-सा दल प्रादेशिक दल है, इसका निर्णय चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है। चुनाव आयोग ही राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल अथवा प्रादेशिक दल के रूप में मान्यता देता है। उस राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर के दल के रूप में मान्यता दी जाती है, जिसने लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम से कम 6 प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ-साथ लोकसभा की कम से कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम से कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम से कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो। इसी तरह इस राजनीतिक दल को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता दी जाती है, जिसने लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का कम से कम 6 प्रतिशत प्राप्त किया हो और विधानसभा चुनाव में कम से कम दो सीटें जीती हों, अथवा राज्य विधानसभा में कुल सीटों की कम से कम 3 प्रतिशत सीटें या कम से कम तीन सीटें (इनमें से जो भी अधिक हो) प्राप्त की हों। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर एवं 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।

8. चुनाव चिह्न देना (To Allot Election Symbols) विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न चुनाव आयोग द्वारा दिए जाते हैं। जो उम्मीदवार स्वतन्त्र रूप से चुनाव में खड़े होते हैं उनको भी चुनाव आयोग चिह्न प्रदान करता है। राष्ट्रीय स्तर और प्रादेशिक स्तर के मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न सुरक्षित और स्थायी होते हैं। सभी चुनावों में राष्ट्रीय स्तर और प्रादेशिक स्तर के दल अपने-अपने चुनाव चिह्नों का प्रयोग करते हैं। जब किसी दल का विभाजन हो जाता है। तब चुनाव आयोग यह निश्चित करता है कि उस राजनीतिक दल का चुनाव चिह्न किस विभाजित गुट को मिलना चाहिए। चुनाव चिह्नों से सम्बन्धित सभी तरह के विवादों का हल चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है।

9. चुनाव कर्मचारियों पर नियन्त्रण (Control over Election Staffs)-संविधान के अनुसार चुनाव आयोग चुनाव करवाने के लिए राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों से कर्मचारी मांग सकता है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा चुनाव कार्य के लिए दिए गए कर्मचारियों पर चुनाव आयोग का नियन्त्रण होता है। ये कर्मचारी चुनाव आयोग के आदेशों के अनुसार कार्य करते हैं।

10. चुनाव सम्बन्धी व्यवहार संहिता निर्धारित करना (Determination of Code of Conduct for Election)—चुनाव आयोग स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव व्यवहार संहिता निर्धारित करता है। चुनाव व्यवहार संहिता का राजनीतिक दलों, स्वतन्त्र उम्मीदवारों और सरकार द्वारा पालन किए जाने के लिए चुनाव आयोग आवश्यक निर्देश जारी करता है। यदि कोई राजनीतिक दल, स्वतन्त्र उम्मीदवार या सरकार चुनाव कानून या चुनाव व्यवहार संहिता का उल्लंघन करता है तो उल्लंघन के आरोपों की जांच चुनाव आयोग करता है। उदाहरण के लिए नवम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनाव की घोषणा होने के बाद जब मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों पर कुछ वर्गों को रियायतें देने का आरोप लगाया गया तब चुनाव आयोग ने इसकी जांच के लिए शीघ्र कदम उठाया था। फरवरी, 1995 में छः विधानसभाओं के चुनाव करवाए जाने की घोषणा के बाद जब बिहार की सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के तबादले किए तब मुख्य चुनाव आयुक्त ने बिहार सरकार को तबादले से दूर रहने का निर्देश दिया।

11. मतदान केन्द्र स्थापित करना (To Establish Polling Station)-चुनाव के समय कितने मतदान केन्द्रों की स्थापना की आवश्यकता है, इसका निर्णय चुनाव आयोग ही करता है। चुनाव आयोग द्वारा मतदान केन्द्रों की स्थापना करते समय इस बात को अवश्य ध्यान में रखा जाता है कि नागरिकों को बहुत दूर मतदान करने के लिए नहीं जाना पड़े।

12. सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी विवादों के सम्बन्ध में सलाह देना (To give advice on the disqualifications of members)-भारतीय संविधान में संसद् तथा राज्य विधानमण्डल के सदस्यों सम्बन्धी कुछ अयोग्यताएं निश्चित की गई हैं। जब संसद् के लिए निर्वाचित किसी सदस्य की योग्यता के सम्बन्ध में कोई विवाद उत्पन्न हो जाए तो उस विवाद का निर्णय राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह से करता है। इसी तरह यदि राज्य विधानमण्डल के लिए चुने गए किसी सदस्य की योग्यता के सम्बन्ध में विवाद उत्पन्न हो जाए तो उसका फैसला राज्यपाल चुनाव आयोग की सलाह से करता है। अतः चुनाव आयोग संसद् और राज्य विधानमण्डलों के सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी विवादों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति और राज्यपाल को परामर्श देता है।

13. चुनाव क्षेत्र में पुनः मतदान (Order of Re-Polling)—यदि किसी चुनाव क्षेत्र में या किसी विशेष मतदान केन्द्र पर भ्रष्ट तरीकों द्वारा कोई गड़बड़ी होती है, तब चुनाव आयोग उस चुनाव क्षेत्र या विशेष मतदान केन्द्र पर पुनः मतदान के आदेश दे सकता है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में चुनाव आयोग ने कई मतदान केन्द्रों पर पुनः मतदान के आदेश दिए थे।

14. पर्यवेक्षकों की नियुक्ति-चुनाव आयोग निष्पक्ष और स्वतन्त्र मतदान करवाने के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है। फरवरी, 1995 में छः विधानसभाओं के चुनाव के अवसर पर चुनाव आयोग ने 100 से अधिक पर्यवेक्षक नियुक्त किए। अप्रैल-मई, 1996 के लोकसभा के चुनाव और विधानसभाओं के चुनाव के अवसर पर चुनाव आयोग ने 600 पर्यवेक्षक नियुक्त किए।

15. चुनाव सुधारों के सुझाव (Recommendations of Election Reforms)—चुनाव आयोग समय-समय पर चुनाव सुधारों की सिफ़ारिशें करता रहता है। मार्च, 1988 में चुनाव आयोग ने सरकार से कहा कि वह इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीन, मतदाता आयु 18 वर्ष करने और चुनाव क्षेत्रों का पुनर्गठन करने, मतदाताओं को पहचान पत्र, चुनावी खर्चे में वृद्धि, जैसे चुनाव सुधारों को जितनी जल्दी सम्भव हो लागू करे। चुनाव आयोग ने बहु-उद्देशीय पहचान-पत्र और चुनाव याचिकाओं को शीघ्र निपटाने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की भी सिफ़ारिश की है। चुनाव आयोग का विचार है कि बहु-उद्देशीय परिचय-पत्र लागू करने से न केवल फर्जी मतदान रुक जाएगा बल्कि आर्थिक और सामाजिक योजना की दिशा में भी यह महत्त्वपूर्ण कदम होगा।

चुनाव आयोग का महत्त्व-भारत का चुनाव भारत की जनता के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संस्था है। यह संसद् और विधानमण्डलों के चुनावों का प्रबन्ध करती है। भारत जैसे बड़े देश में चुनावों का प्रबन्ध करना कोई मामूली बात नहीं है। चुनाव आयोग ने अब तक 16 आम चुनाव करवाए हैं और इनके लिए वही प्रशंसा का पात्र है। भारत में लोकतन्त्र की सफलता स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों पर बहुत कुछ आधारित है और इसके लिए चुनाव आयोग ही बधाई का पात्र कहा जा सकता है। चुनाव आयोग की देखभाल में अब तक निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव होते आए हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 4.
भारत में चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख चरणों की व्याख्या कीजिए। (Explain the main stages of Electoral Process in India.)
अथवा
चुनावी प्रक्रिया क्या होती है ? भारतीय चुनाव प्रक्रिया के सारे महत्त्वपूर्ण पड़ावों के नाम लिखो। (What is Election Process ? Name all the important stages of Indian Election Process.)
उत्तर-
भारत में प्रजातन्त्र की व्यवस्था की गई है। प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा चलाया जाता है, परन्तु भारत जैसे बड़े देश में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र को अपनाना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव भी है। अतः संविधान निर्माताओं ने अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की व्यवस्था की है। शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है जो निश्चित अवधि के लिए चुने जाते हैं। अतः निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए जाते हैं। इस सारी चुनाव प्रणाली को चुनाव प्रक्रिया कहा जाता है। संसद् ने चुनाव से सम्बन्धित दो महत्त्वपूर्ण एक्ट पास किए हैं- जन प्रतिनिधित्व एक्ट, 1950 तथा जन प्रतिनिधित्व एक्ट, 1951 । पहले एक्ट में मतदाताओं की योग्यताओं और मतदाताओं की सूची बनाने के सम्बन्ध में और दूसरे एक्ट चुनाव प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन दोनों एक्टों के आधार पर केन्द्रीय सरकार ने चुनाव सम्बन्धी अनेक कानून पास किए हैं। भारत में चुनाव प्रक्रिया की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं-

1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना (To fix Constituencies)—चुनाव प्रबन्ध में सर्वप्रथम कार्य चुनाव-क्षेत्र को निश्चित करना है। लोकसभा में जितने सदस्य चुने जाते हों, लगभग समान जनसंख्या वाले उतने ही क्षेत्रों में सारे भारत को बांट दिया जाता है। इसी प्रकार विधान सभाओं के चुनाव में राज्य को समान जनसंख्या वाले चनाव क्षेत्र में बांट दिया जाता है और प्रत्येक चुनाव-क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् चुनाव क्षेत्रों की सीमाएं पुनः निर्धारित की जाती हैं। सीमा निर्धारक का यह कार्य एक आयोग करता है जिसे परिसीमन आयोग (Delimilation Commission) कहा जाता है।

2. मतदाताओं की सूची (List of Voters)-मतदाता सूचियां तैयार करना चुनाव प्रक्रिया की दूसरी अवस्था है। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए एक साधारण मतदाता सूची तैयार की जाएंगी। धर्म, जाति, वंश, भाषा, लिंग आदि के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। सबसे पहले मतदाताओं की अस्थायी (Temporary) सूची तैयार की जाती है। इन सूचियों को कुछेक विशेष स्थानों पर जनता के देखने के लिए रख दिया जाता है। यदि उस सूची में किसी का नाम लिखने से रह गया हो अथवा किसी का नाम भूल से ग़लत लिख दिया हो तो उसको एक निश्चित तिथि तक संशोधन करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र देना होता है। फिर संशोधित सूचियां तैयार की जाती हैं।

3. चुनाव तिथि की घोषणा (Announcement of Election Date)-चुनाव आयोग चुनाव की तिथि की घोषणा करता है। पर चुनाव की तिथि निश्चित करने से पहले चुनाव आयोग केन्द्रीय सरकार और सम्बन्धित राज्य सरकारों से विचार-विमर्श करता है। चुनाव आयोग नामांकन-पत्र भरने की तिथि, नाम वापस लेने की तिथि, नामांकनपत्रों की जांच-पड़ताल की तिथि तथा मतदान की तिथि निश्चित करता है।

4. चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति (Appointment of Electoral Staff)—चुनाव करवाने के लिए प्रत्येक राज्य में मुख्य चुनाव अधिकारी (Chief Electoral Officer) और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए चुनाव अधिकारी (Returning Officer) व अन्य कई कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं।

5. मतदान केन्द्र स्थापित करना (To establish Polling Stations)—चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की सुविधा के लिए अनेक मतदान केन्द्र स्थापित किए जाते हैं। मतदान केन्द्र इस ढंग से स्थापित किए जाते हैं कि नागरिकों को वोट डालने के लिए बहुत दूर न जाना पड़े। प्रत्येक मतदान केन्द्र में निश्चित संख्या तक मतदाता रखे जाते हैं और उस मतदान केन्द्र में आने वाले नागरिक उसी मतदान केन्द्र पर मत डालते हैं।

6. नामांकन दाखिल करना (Filling of the Nomination Papers)-इसके बाद मैम्बर बनने के इच्छुक व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव एक निश्चित तिथि के अन्दर छपे फ़ार्म पर, जिसका नाम नामांकन पत्र (Nomination Paper) है, किसी एक मतदाता द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। दूसरा मतदाता उसका अनुमोदन करता है। इच्छुक व्यक्ति (उम्मीदवार) भी उस पर अपनी स्वीकृति देता है। प्रार्थना-पत्र के साथ जमानत की निश्चित राशि जमा करवानी पड़ती है।

7. नाम की वापसी (Withdrawal of Nomination)-यदि उम्मीदवार किसी कारण से अपना नाम वापस लेना चाहे तो एक निश्चित तिथि तक उनको ऐसा करने का अधिकार होता है। वह अपना नाम वापस ले सकता है। जमानत की राशि भी उसे वापस मिल जाती है।

8. जांच और आक्षेप (Scrutiny and Objections)-एक निश्चित तिथि को प्रार्थना-पत्रों की जांच की जाती है। यदि किसी में कोई अशुद्धि रह गई हो तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। यदि कोई दूसरा व्यक्ति उसके प्रार्थनापत्र के सम्बन्ध में आक्षेप करना चाहे तो उसे ऐसा करने का अधिकार दिया जाता है। यदि आपेक्ष उचित सिद्ध हो जाए तो वह प्रार्थना-पत्र अस्वीकार कर दिया जाता है।

9. चुनाव अभियान (Election Compaign)-वैसे तो चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं पर चुनाव प्रचार सही ढंग से तब शुरू होता है जब नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल के बाद उम्मीदवारों की अन्तिम सूची.घोषित की जाती है। 19 जनवरी, 1992 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी कर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में नामांकन वापस लेने की अन्तिम तारीख के बाद मतदान कराने की न्यूनतम समय सीमा को 20 दिन से घटा कर 14 दिन कर दिया है। राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए अपनेअपने चुनाव घोषणा-पत्र (Election Manifesto) घोषित करते हैं, जिसमें दल की नीतियां एवं कार्यक्रम घोषित किया जाता है। राजनीतिक दल पोस्टरों द्वारा, जलसों द्वारा रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा अपने कार्यक्रम का प्रचार करते हैं। उम्मीदवारों के समर्थक घर-घर जाकर अपने उम्मीदवारों का प्रचार करते हैं और उम्मीदवार भी जहां तक हो सके सभी घरों में वोट मांगने जाते हैं। गलियों और सड़कों के चौराहों पर छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएं की जाती हैं।

10. मतदान (Voting) सदस्यता के प्रत्येक स्थान के लिए जितने भी उम्मीदवारों के प्रार्थना-पत्र स्वीकार होते हैं, उनके लिए निश्चित तिथि को निश्चित स्थान पर मतदाताओं की वोट ली जाती है। प्रत्येक मतदाता को एक पर्ची (Ballot Paper) दे दी जाती है जिस पर वह अपनी मर्जी से जिसे वोट देना चाहता है, मोहर लगाकर बॉक्स में डाल देता है।

11. मतगणना (Counting of Votes)—प्रत्येक निर्वाचन-बॉक्स उस क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों के सामने खोलकर प्रत्येक उम्मीदवार के पक्ष में डाली गई पर्चियों को गिन लिया जाता है। जिसके पक्ष में अधिक मत पड़े हैं उसका नाम सरकारी गज़ट में सफल प्रतिनिधियों की सूची में प्रकाशित कर दिया जाता है। यदि कोई उम्मीदवार कुल मतों का 1/6 भाग लेने में असमर्थ होता है, तो उस उम्मीदवार की जमानत की राशि जब्त हो जाती है।

12. चुनाव खर्च का ब्योरा (Election Expenses)—प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव समाप्त होने के 90 दिन के अन्दर-अन्दर चुनाव में खर्च किए जाने वाले धन का ब्योरा चुनाव आयोग को भेजना पड़ता है। चुनाव में खर्च किए जाने के लिए धन-राशि निश्चित है ताकि धनी व्यक्ति पैसे को पानी की तरह बहाकर ग़रीब व्यक्तियों के लिए चुनाव लड़ना कठिन न बना दे।

13. निर्वाचन के विरुद्ध प्रार्थना (Election Petition) यदि कोई उम्मीदवार निर्वाचन की निष्पक्षता या किसी और कारण से सन्तुष्ट न हो तो वह निर्वाचन के विरुद्ध उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अन्तिम होता है।

14. उप-चुनाव (By-election)-यदि किसी प्रतिनिधि का चुनाव रद्द घोषित कर दिया जाए या वह स्वयं त्यागपत्र दे दे, या किसी प्रतिनिधि की मृत्यु के कारण स्थान खाली हो जाए तो अगले चुनाव तक उस स्थान को खाली नहीं रखा जाता बल्कि शीघ्र ही उस चुनाव क्षेत्र में चुनाव की व्यवस्था की जाती है, इसे उप-चुनाव कहते हैं। उप-चुनाव में चुना गरिलिधि पांच वर्ष के लिए नहीं चुना जाता बरि, अगले चुनाव तक ही अपने पद पर रहता है।

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प्रश्न 5.
सरकार द्वारा किए गए चुनाव सुधारों की व्याख्या करो। (Explain briefly reforms made by the Government.)
उत्तर-
पिछले कुछ वर्षों से चुनाव व्यवस्था में सुधार करने की मांग ज़ोर पकड़ती रही है। विपक्षी दलों ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए कई बार संसद् से भी मांग की। चुनाव आयोग ने भी चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए अनेक सुझाव दिए। राजीव गांधी की सरकार ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए 13 दिसम्बर, 1988 को लोकसभा में दो बिल पेश किए। इन बिलों में एक बिल 62वां संविधान संशोधन बिल था जो संसद् द्वारा पास होने और आधे राज्यों की विधानसभाओं की स्वीकृति मिलने के बाद 61वां संशोधन एक्ट बना है। दूसरे बिल द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन किया गया है। इन दोनों द्वारा चुनाव व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं

1. मताधिकार की आयु 18 वर्ष-बहुत समय से राजनीतिक दलों और युवा वर्ग की यह मांग थी कि मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष की जाए। 61वें संविधान संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष कर दी गई है। यह संशोधन संसद् ने सर्वसम्मति से पास किया था। श्री राजीव गांधी ने कहा कि मतदान की आयु 21 वर्ष से 18 वर्ष करने से पांच करोड़ नए मतदाता चुनाव प्रक्रिया से जुड़ेंगे।

2. चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन करना-अब प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके सारी चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया गया है। चुनाव के दौरान चुनाव का काम करने वाले राज्य सरकारों के अधिकारियों की सेवाओं को चुनाव आयोग के अधीन किया गया है ताकि अधिकारी चुनाव की ज़िम्मेवारी निष्पक्ष और अनुशासनबद्ध तरीके से निभा सकें।

3. इलेक्ट्रॉनिक मशीन-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों के इस्तेमाल की भी व्यवस्था की गई है।

4. मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर कड़ी सज़ा-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर पहले से ज्यादा कड़ी सज़ा देने की व्यवस्था की गई हैं। मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने वाले को कम-से-कम 6 महीने और अधिक-से-अधिक दो वर्ष की कैद की सजा व जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान है। यदि मतदान केन्द्र पर कब्जा करने में सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सहायता देते पकड़े जाते हैं तो उन्हें अधिक सज़ा देने का प्रावधान किया गया है। ऐसे मामलों में न्यूनतम एक वर्ष और अधिकतम तीन वर्ष की सजा व जुर्माना करने का प्रावधान किया गया है।

5. चुनाव बैठकों में बाधा डालने की सज़ा-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव बैठकों में बाधा डालने वाले को एक हज़ार रुपए के जुर्माने और तीन महीने की सजा देने की व्यवस्था की गई है जबकि पहले ऐसा करने पर सिर्फ 250 रुपए जुर्माने की सजा का प्रावधान था। यह संशोधन चुनाव में गुण्डागर्दी रोकने के लिए किया गया है।

6. अपराधियों को चुनाव में खड़ा होने से रोकने का आधार विस्तृत किया-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके अपराधी व्यक्तियों के चुनाव में भाग लेने पर रोक के आधार को विस्तृत किया गया है। उन लोगों को चुनाव लड़ने के लिए 6 वर्ष तक अयोग्य घोषित करने की व्यवस्था की गई है जो मुनाफाखोरी व जमाखोरी करने, खाद्य वस्तुओं व दवाओं में मिलावट करने, दहेज विरोधी कानून, सती कानून, आतंकवाद या नशीली दवाओं के कानून का उल्लंघन करते पकड़े गए हों और उन्होंने इन अपराधों के लिए कम-से-कम 6 महीने की सज़ा भुगती हो।

7. उम्मीदवारों को कम करने के लिए व्यवस्था-31 जुलाई, 1996 को चुनाव में उम्मीदवारों की भीड़ कम करने के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी नामजदगी की दस फीसदी मतदाताओं या दस प्रस्तावकों जो भी कम हो, से पुष्टि करवाने की व्यवस्था की गई है।

8. राजनीतिक दलों का पंजीकरण-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके दलों के पंजीकरण और पंजीकरण के नियमों की भी व्यवस्था की गई है। राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए अनिवार्य शर्तों में धर्म-निरपेक्षता और समाजवाद के प्रति आस्था व्यक्त करने की व्यवस्था की गई है। चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन का अधिकार दिया गया है।

9. स्वतन्त्र उम्मीदवारों की मृत्यु होने पर चुनाव रद्द नहीं-मार्च, 1992 में संसद् ने लोक प्रतिनिधि (संशोधन) विधेयक पास किया। विधेयक में किसी निर्दलीय उम्मीदवार के निधन की स्थिति में चुनाव रद्द न करने का प्रावधान है।

10. चुनाव प्रचार अभियान के समय में कमी-राष्ट्रपति ने जनवरी, 1992 में एक अध्यादेश जारी कर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में नामांकन वापस लेने की अन्तिम तारीख के बाद मतदान कराने की न्यूनतम समय सीमा को 20 दिन से घटा कर 14 दिन कर दिया है।

11. पहचान पत्र अनिवार्य-15 दिसम्बर, 1993 को चुनाव आयोग ने आदेश जारी किया कि 30 नवम्बर, 1994 तक जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के सभी संसदीय चुनाव क्षेत्रों में चुनाव पहचान पत्र जारी कर दिए जाएंगे। 18 अप्रैल, 2000 को चुनाव आयोग ने सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि आगामी सभी चुनावों तथा उपचुनावों में उन सभी मतदाताओं के लिए फोटो पहचान पत्र दिखाये जाने पर जोर देगा, जिनके फोटो परिचय पत्र बन चुके हैं।

12. मन्त्रियों के कार काफ़िले पर रोक-चुनाव आयोग ने 12 फरवरी, 1994 को आदेश जारी करके चुनाव प्रचार के दिनों में राज्यों या केन्द्र के मन्त्री के साथ तीन से अधिक कारों के काफिले पर रोक लगा दी है। आदेश में चेतावनी दी गई है कि यदि इस आदेश का सख्ती से पालन न किया गया तो मतदान या चुनाव भी रद्द किया जा सकता है।

13. चुनावी खर्चे में वृद्धि-चुनाव में काले धन के महत्त्व को कम करने के लिए 2014 में सरकार ने लोकसभा की सीट के लिए अधिकतम चुनावी खर्चा बढ़ाकर 70 लाख कर दिया और विधानसभा सीट के लिए अधिकतम चुनावी खर्चा बढ़ाकर 28 लाख कर दिया। इससे अधिक कोई भी उम्मीदवार खर्च नहीं कर सकता है।

14. साम्प्रदायिकता को नियन्त्रित करना-चुनाव आयोग ने दिसम्बर, 1994 में एक अधिसूचना जारी करके चुनावों के दौरान धर्म व जाति का प्रयोग न करने के आदेश जारी किए। इन आदेशों की पालना के लिए चुनाव आयोग ने धर्म-निरपेक्ष पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है।

15. चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बनाना-अक्तूबर, 1993 में राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया, जिसके अन्तर्गत चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। दिसम्बर, 1993 में इस अध्यादेश पर संसद् की स्वीकृति मिल गई।

16. जमानत राशि में वृद्धि-1998 में सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव लड़ने के लिए जमानत की राशि को बढ़ा दिया जिसके अन्तर्गत सामान्य वर्ग के उम्मीदवार के लिए दस हज़ार तथा अनुसूचित जाति एवं जन-जाति के उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि पांच हजार रुपये कर दी गई। 2010 में जमानत राशि में पुनः वृद्धि की गई। लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए 25 हजार रुपये तथा विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए 10 हज़ार रुपये जमानत राशि के रूप में निर्धारित किये गए। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवारों के लिए में यह राशि आधी होगी।

यद्यपि सरकार द्वारा किए गए चुनाव सुधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं। फिर भी चुनाव-सुधार एक तरफा तथा अधूरे हैं। चुनाव सुधार में चुनाव में धन की बढ़ती भूमिका पर अंकुश की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, न सरकारी प्रचार तन्त्र और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर ही रोक लगाने की व्यवस्था की गई है। सरकार ने चुनाव आयोग द्वारा दी गई चुनाव सुधार की 90 प्रतिशत सिफ़ारिशों को मान लिया है। 29 अप्रैल, 2000 को चुनाव प्रणाली की समीक्षा तथा चुनाव सुधार के लिए एक सर्वदलीय बैठक हुई, परन्तु इस बैठक में आम सहमति न होने के कारण कोई निर्णय नहीं हो सका। सभी दल चुनाव प्रणाली में सुधार करने के पक्ष में हैं ताकि धन और भुज-बल के प्रयोग को रोका जा सके। आवश्यकता इस बात की है कि चुनाव व्यवस्था में व्यापक सुधार किए जाएं ताकि चुनाव निष्पक्ष और स्वतन्त्रता के वातावरण में हो।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल लिखें।
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार आयुक्तों का कार्यकाल संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित किया जाएगा। 1972 से पूर्व मुख्य चुनाव आयोग के कार्यकाल और सेवा सम्बन्धी शर्तों के बारे में कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए पहले दो मुख्य चुनाव आयुक्त आठ वर्ष तक इस पद पर रहे। 20 दिसम्बर, 1993 को पास किए गए कानून के अन्तर्गत मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष तथा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक (जो भी इनमें से पहले पूरा हो जाए) निश्चित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्त 6 वर्ष की अवधि से पूर्व त्याग-पत्र भी दे सकता है और राष्ट्रपति भी 6 वर्ष से पूर्व निश्चित विधि के अनुसार उन्हें हटा सकता है।

प्रश्न 2.
मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से अलग करने की विधि लिखो।
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रकार हटाया जा सकता है जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को। मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति तभी हटा सकता है जब उसके विरुद्ध दुराचार (Misbehaviour) तथा अक्षमता (Incapacity) का आरोप सिद्ध हो जाए और संसद् के दोनों सदनों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग अपने सदन के सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास किया हो। अभी तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को समय से पहले नहीं हटाया गया है।

प्रश्न 3.
भारत में जन-सहभागिता की क्या स्थिति है ? .
उत्तर-
भारत में जन-सहभागिता की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अधिकतर भारतीय मतदाता राजनीति में रुचि नहीं रखते या राजनीति के प्रति उदासीन हैं। आम चुनावों से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 60 प्रतिशत मतदाता ही मतदान करने जाते हैं। भारतीय नागरिकों की न केवल चुनाव में सहभागिता कम है बल्कि अन्य राजनीतिक गतिविधियों में भी कम लोग भाग लेते हैं। आम जनता सार्वजनिक मामलों और राजनीतिक गतिविधियों में रुचि नहीं लेती। बहुत कम नागरिक चुनाव के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों से मिलते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराते हैं। इसी कारण भारत में जन-सहभागिता का स्तर कम है।

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प्रश्न 4.
भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के लिए कोई चार कारण लिखो।
अथवा
भारत में जन-सहभागिता का स्तर इतना नीचे क्यों है ?
अथवा
भारत के चुनावों में लोगों की कम सहभागिता के लिए उत्तरदायी कोई चार तथ्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • अनपढ़ता–भारत की अधिकांश जनता अनपढ़ है। अशिक्षित व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है। चुनाव के समय लाखों मत पत्रों को अवैध घोषित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि लोगों को मत का प्रयोग करना नहीं आता।
  • ग़रीबी-ग़रीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह ऐसा सोच भी नहीं सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।
  • बेकारी-भारत में जन-सहभागिता के निम्न स्तर के होने का एक कारण बेकारी है। भारत में करोड़ों लोग बेकार हैं। बेकारी के कारण नागरिकों का प्रशासनिक स्वरूप तथा राजनीतिक दलों की क्षमता में विश्वास कम होता चला जा रहा है। बेकार व्यक्ति मताधिकार को कोई महत्त्व नहीं देता और अपना वोट बेचने के लिए तैयार रहता है।
  • राजनीतिक उदासीनता- भारत में अधिकांश लोग राजनीति के प्रति उदासीन रहते हैं और वे वोट डालने नहीं जाते।

प्रश्न 5.
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ?
उत्तर-
भारत में प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो मताधिकार प्राप्त है, परन्तु भारतीय मतदाता ईमानदारी से वोट न डालकर, धर्म, जाति तथा अन्य सामाजिक भावनाओं से प्रेरित होकर मतदान करता है। प्रो० जे० सी० प्लेनो और रिग्स के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

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प्रश्न 6.
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखिए।
अथवा
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कोई चार तत्व लिखो।
उत्तर-
भारतीय मतदान व्यवहार को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं

  • जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव-भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है।
  • धर्म का प्रभाव-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं। टिकट बांटते समय निर्वाचित क्षेत्र की रचना को ध्यान में रखा जाता है और प्रायः उसी धर्म के व्यक्ति को टिकट दी जाती है जिस धर्म के लोगों की वोटें उस निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम होती हैं।
  • क्षेत्रीयवाद और स्थानीयवाद- भारत में मतदाता स्थानीयवाद तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर मतदान करते हैं।
  • वैचारिक प्रतिबद्धता-वैचारिक प्रतिबद्धता भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है।

प्रश्न 7.
चुनाव आयोग के चार कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
चुनाव आयोग के कोई चार कार्य लिखो।
उत्तर-
चुनाव आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • चुनाव आयोग का मुख्य कार्य संसद् तथा विधानमण्डलों के चुनावों के लिए मतदाता सूची तैयार करवाना है।
  • चुनाव आयोग को चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर निरीक्षण, निर्देश तथा नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त है।
  • यह आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है।
  • राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के पदों पर चुनाव करवाने का काम भी चुनाव आयोग को सौंपा गया है।

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प्रश्न 8.
भारतीय चुनाव प्रणाली में किए जाने वाले सुधारों से सम्बन्धित कोई चार सुझाव दें।
उत्तर-
चुनाव प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित ढंगों से दूर किया जा सकता है

  • निष्पक्षता-चुनाव निष्पक्ष ढंग से होने चाहिए। सत्तारूढ़ दल को चुनाव में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और न ही अपने दल के हित में सरकारी मशीनरी का प्रयोग करना चाहिए।
  • धन के प्रभाव को कम करना-इसके लिए पब्लिक फण्ड बनाना चाहिए और उम्मीदवारों की धन से सहायता करनी चाहिए। चुनाव का खर्च शासन को ही करना चाहिए।
  • आनुपातिक चुनाव प्रणाली-प्रायः सभी विपक्षी दल वर्तमान में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र की प्रणाली से सन्तुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस को अल्पसंख्या में मत मिलते हैं पर संसद् में सीटें बहुत अधिक मिलती हैं। आम तौर पर सभी विरोधी दल आनुपातिक चुनाव प्रणाली के पक्ष में हैं।
  • भारत में फर्जी मतदान को रोकना चाहिए।

प्रश्न 9.
भारतीय चुनाव प्रणाली की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
भारतीय चुनाव प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वयस्क मताधिकार-भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रथम विशेषता वयस्क मताधिकार है। वयस्क मताधिकार की व्यवस्था देते हुए संविधान में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जो कानून के अन्तर्गत किसी निश्चित तिथि पर 18 वर्ष का है तथा संविधान अथवा कानून के अन्तर्गत चुनाव के लिए किसी भी दृष्टि से अयोग्य नहीं है तो उसे चुनावों में मतदाता के रूप में भाग लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
  • संयुक्त चुनाव पद्धति-भारतीय चुनाव प्रणाली की दूसरी मुख्य विशेषता संयुक्त चुनाव पद्धति है।
  • अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए सुरक्षित स्थान-संयुक्त चुनाव प्रणाली के बावजूद भी हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित तथा पिछड़े लोगों के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए हैं।
  • भारतीय चुनाव प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि मतदान गुप्त होता है।

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प्रश्न 10.
भारत में चुनाव प्रक्रिया के किन्हीं चार पड़ावों के बारे में लिखो।
अथवा
भारत में चुनाव विधि के कोई चार पड़ावों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में चुनाव प्रक्रिया की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं
1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना-चुनाव प्रबन्ध में सर्वप्रथम कार्य चुनाव क्षेत्र को निश्चित करना है। लोकसभा में जितने सदस्य चुने जाते हैं, लगभग समान जनसंख्या वाले उतने ही क्षेत्रों में सारे भारत को बांट दिया जाता है। इसी प्रकार विधानसभाओं के चुनाव में राज्य को समान जनसंख्या वाले चुनाव क्षेत्र में बांट दिया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है।

2. मतदाताओं की सूची-मतदाता सूचियां तैयार करना चुनाव प्रक्रिया की दूसरी अवस्था है। सबसे पहले मतदाताओं की अस्थायी सूची तैयार की जाती है। इन सूचियों को कुछ एक विशेष स्थानों पर जनता को देखने के लिए रख दिया जाता है। यदि उस सूची में किसी का नाम लिखने से रह गया हो या किसी का नाम ग़लत लिख दिया गया हो तो उसको एक निश्चित तिथि तक संशोधन करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र देना होता है। फिर संशोधित सूचियां तैयार की जाती हैं।

3. चुनाव तिथि की घोषणा-चुनाव आयोग चुनाव की तिथि की घोषणा करता है। चुनाव आयोग नामांकन-पत्र भरने की तिथि, नाम वापस लेने की तिथि, नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल की तिथि निश्चित करता है।

4. उम्मीदवारों का नामांकन-चुनाव कमिशन द्वारा की गई चुनाव घोषणा के पश्चात् विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र दाखिल करते हैं। राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के अतिरिक्त स्वतन्त्र उम्मीदवार भी अपने नामांकन-पत्र प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग की रचना लिखो।
अथवा
भारत में चुनाव आयोग की रचना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। संविधान के लागू होने से लेकर 1988 तक चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त ही था और अन्य सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई थी। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए, परन्तु राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। 1 अक्तूबर, 1993 को केन्द्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। दिसम्बर, 1993 में संसद् ने विधेयक पास करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। अतः आजकल चुनाव आयोम में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य सदस्य हैं। चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों को समानाधिकार प्राप्त हैं।

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प्रश्न 12.
भारतीय चुनाव प्रणाली के चार दोष लिखें।
उत्तर-
भारत में चुनाव प्रणाली तथा चुनावों में कई दोष हैं जो मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं

  • एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र-भारत में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र है और एक स्थान के लिए बहुत-से उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं। कई बार थोड़े से मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार भी चुना जाता है।
  • जाति और धर्म के नाम पर वोट-भारत में साम्प्रदायिकता का बड़ा प्रभाव है और इसने हमारी प्रगति में सदैव बाधा उत्पन्न की है। जाति और धर्म के आधार पर खुले रूप से मत मांगे और डाले जाते हैं। राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार खड़े करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं और उसी जाति का उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं जिस जाति का उस क्षेत्र में बहुमत हो।
  • धन का अधिक खर्च- भारत में चुनाव में धन का अधिक खर्च होता है, जिसे देखकर साधारण व्यक्ति तो चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकता।
  • भारत में फर्जी मतदान एक बहुत बड़ी समस्या है।

प्रश्न 13.
भारत सरकार द्वारा चुनाव व्यवस्था में किए गए कोई चार सुधार लिखें।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा चुनाव व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं-

  • मताधिकार की आयु 18 वर्ष-बहुत समय से राजनीतिक दलों और युवा वर्गों की मांग यह थी कि मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की जाए। 61वें संविधान संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
  • चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन करना-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके सारी चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया गया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक मशीन-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों के इस्तेमाल की भी व्यवस्था की गई है।
  • मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर कड़ी सजा की व्यवस्था की गई है।

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प्रश्न 14.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जन-सहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन-सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं। हरबर्ट मैक्कलॉस्की के अनुसार, “सहभागिता वह मुख्य साधन है, जिसके द्वारा लोकतन्त्र में सहमति प्रदान की जाती है और वापस ली जाती है तथा शासकों को शासितों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है।

प्रश्न 15.
भारत में सूचियों को कौन बनाता है ?
अथवा
भारत में मतदाता सूचियां कौन तैयार करता है ?
उत्तर-
भारत में मतदाता सूचियां तैयार करने का काम चुनाव आयोग करता है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् और आम चुनाव से पहले मतदाताओं की सूची में संशोधन किए जाते हैं। इन सूचियों में नए मतदाताओं के नाम लिखे जाते हैं जो नागरिक मर चुके होते हैं उनके नाम मतदाता सूची में से निकाले जाते हैं। यदि किसी नागरिक का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जाता तो वह व्यक्ति एक निश्चित तिथि तक आवेदन-पत्र देकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है। मतदाता सूची के तैयार होने पर चुनाव आयोग द्वारा निश्चित तिथि तक आपत्तियां मांगी जाती हैं और कोई भी आपत्ति कर सकता है। नागरिकों द्वारा एवं राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को चुनाव आयोग के कर्मचारियों द्वारा दूर किया जाता है।

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प्रश्न 16.
चुनाव मुहिम से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं पर चुनाव प्रचार सही ढंग से तब शुरू होता है जब नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल के बाद उम्मीदवारों की अन्तिम सूची घोषित की जाती है। राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए अपने-अपने चुनाव घोषणा-पत्र (Election Manifesto) घोषित करते हैं, जिसमें दल की नीतियां एवं कार्यक्रम घोषित किया जाता है। राजनीतिक दल, पोस्टरों द्वारा, जलसों द्वारा, रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा अपने कार्यक्रम का प्रचार करते हैं। उम्मीदवारों के समर्थक घर-घर जाकर अपने उम्मीदवारों का प्रचार करते हैं और उम्मीदवार भी जहां तक हो सके सभी घरों में वोट मांगने जाते हैं। गलियों और सड़कों के चौराहों पर छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएं की जाती हैं।

प्रश्न 17.
भारत में जातिवाद मतदान व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
जाति सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसका आरम्भ से ही मतदान व्यवहार पर बड़ा प्रभाव रहा है। स्वतन्त्रता से पूर्व भी जब अभी वयस्क मताधिकार प्रचलित नहीं हुआ था, जाति का मतदान पर बहुत प्रभाव था। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह प्रभाव कम होता दिखाई नहीं देता। भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। कुछ राज्यों में तो यह तत्त्व बहुत निर्णायक है क्योंकि मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देना अपना कर्त्तव्य मानते हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा में अनुसूचित जातियों में हरिजनों की संख्या सबसे अधिक है और राजनीति तथा मतदान के क्षेत्र में उनकी दूसरी जातियों की अपेक्षा अधिक चलती है। अनेक दल तो जातियों के आधार पर ही बने हुए हैं और उन्हें विशेष जातियों का समर्थन प्राप्त है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में जन-सहभागिता का स्तर इतना कम क्यों हैं ?
उत्तर-

  • अनपढ़ता- भारत की अधिकांश जनता अनपढ़ है। अशिक्षित व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है।
  • ग़रीबी-गरीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह ऐसा सोच भी नहीं सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।

प्रश्न 2.
मतदान व्यवहार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो मताधिकार प्राप्त है, परन्तु भारतीय मतदाता ईमानदारी से वोट न डालकर, धर्म, जाति तथा अन्य सामाजिक भावनाओं से प्रेरित होकर मतदान करता है। प्रो० जे० सी० प्लेनो और रिग्स के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

प्रश्न 3.
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व लिखो।
उत्तर-

  • जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव-भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। .
  • धर्म का प्रभाव-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं।

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प्रश्न 4.
चुनाव आयोग के कोई दो कार्य लिखो।
उत्तर-

  • मतदाता सूचियों को तैयार करना-चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करना होता है।
  • चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना-चुनाव आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है।

प्रश्न 5.
चुनाव आयोग की रचना लिखो।
उत्तर-
अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। दिसम्बर, 1993 में संसद् ने विधेयक पास करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। अत: आजकल चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य सदस्य हैं। चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों को समानाधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 6.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जन-सहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में मतदाता कौन हो सकता है ?
उत्तर-
भारत में 18 वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की चुनाव प्रणाली अपनाई गई है ?
उत्तर-
भारत में वयस्क मताधिकार पर आधारित संयुक्त चुनाव प्रणाली अपनाई गई है।

प्रश्न 3.
चुनाव आयोग के कितने सदस्य हैं ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के तीन सदस्य हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय चुनाव आयोग की रचना का वर्णन करें।
उत्तर-
चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। आजकल चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त व दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं।

प्रश्न 5.
चुनाव आयोग की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग की नियुक्ति संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 6.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

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प्रश्न 7.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल बताइए।
उत्तर-
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल राष्ट्रपति नियम बना कर निश्चित करता है। प्रायः यह अवधि 6 वर्ष होती है।

प्रश्न 8.
भारतीय चुनाव आयोग का एक कार्य लिखो।
उत्तर-
चुनाव आयोग का मुख्य कार्य संसद् तथा राज्य विधान सभाओं के चुनाव करवाना तथा उनकी मतदाता सूची तैयार करवाना है।

प्रश्न 9.
भारत में मताधिकार सम्बन्धी कौन-सा सिद्धान्त अपनाया गया है ?
उत्तर-
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

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प्रश्न 10.
संयुक्त निर्वाचन प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की गई है, जिसके अन्तर्गत एक निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाता, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय से सम्बन्धित हो, उनके नाम एक ही मतदाता सूची में शामिल किये जाते हैं तथा वे मिलकर अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में चुनाव प्रक्रिया की दो अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना
  2. मतदाता सूची बनाना।।

प्रश्न 12.
चुनाव आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग का अध्यक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त होता है।

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प्रश्न 13.
भारत में कौन-कौन से दो चुनाव अप्रत्यक्ष ढंग से करवाए जाते हैं ? ।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपति का चुनाव
  2. उप-राष्ट्रपति का चुनाव।

प्रश्न 14.
भारत में मतदान व्यवहार का आधार क्या है ? वोट कौन डाल सकता है ?
उत्तर-
भारत में सार्वभौमिक मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया है। भारत का प्रत्येक 18 वर्ष का नागरिक बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकता है।

प्रश्न 15.
भारत में कौन-से दो चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव ढंग द्वारा करवाए जाते हैं ?
उत्तर-

  • लोकसभा का चुनाव
  • विधान सभा का चुनाव।

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प्रश्न 16.
जन सहभागिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।

प्रश्न 17.
जन सहभागिता की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
जन सहभागिता शासन को वैधता प्रदान करती है, उसे उत्तरदायी बनाती है तथा स्थिरता प्रदान करती है।

प्रश्न 18.
चुनाव आयोग के सदस्यों को किस प्रकार पद से हटाया जा सकता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के सदस्यों को संसद् द्वारा महाभियोग प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।

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प्रश्न 19.
मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कोई दो तत्त्व लिखिए।
अथवा
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाला कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-

  • जाति
  • धर्म।

प्रश्न 20.
चुनाव अभियान से आपका क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
चुनावों के समय राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों तथा उनके समर्थकों द्वारा किया गया चुनाव प्रचार, चुनाव अभियान कहलाता है।

प्रश्न 21.
निर्वाचन मंडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल जनसंख्या का वह भाग जो प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेता है, सामूहिक रूप से निर्वाचन मंडल कहलाता है।

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प्रश्न 22.
निर्वाचन क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
निर्वाचन क्षेत्र उस निश्चित क्षेत्र या इलाके को कहा जाता है, जहां से मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. भारत में प्रत्येक ……………… के नागरिक को मताधिकार प्राप्त है।
2. भारत में अब तक ……………. लोक सभा के चुनाव करवाए जा चुके हैं।
3. भारत में ………….. मताधिकार को अपनाया गया है।
4. भारत में पहला आम चुनाव …………. में हुआ।
5. लोकसभा के चुनाव के लिए एक प्रत्याशी का अधिकतम चुनाव खर्च ………… रु० निर्धारित किया गया है।
उत्तर-

  1. 18
  2. 16
  3. सार्वभौमिक वयस्क
  4. 1952
  5. 70 लाख।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. भारत विश्व का सबसे बड़ा तानाशाही राज्य है। यहां पर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है।
2. 61वें संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
3. भारत में प्रथम आम चुनाव 1950 में हुए, जबकि 16वीं लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई, 2004 में हुए।
4. भारत में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त है।
5. भारतीय चुनाव प्रणाली के महत्त्वपूर्ण दोष वयस्क मताधिकार, संयुक्त निर्वाचन तथा गुप्त मतदान है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के किस अध्याय में चुनाव प्रणाली का वर्णन किया गया है ?
(क) अध्याय-3
(ख) अध्याय-4
(ग) अध्याय-15
(घ) अध्याय-18.
उत्तर-
(ग) अध्याय-15

प्रश्न 2.
भारत में मताधिकार प्राप्त है
(क) जिस नागरिक की आयु 21 वर्ष से अधिक हो
(ख) जिस नागरिक की आयु 25 वर्ष से अधिक हो
(ग) जिस नागरिक की आयु 20 वर्ष से अधिक हो
(घ) जिस नागरिक की आयु 18 वर्ष हो।
उत्तर-
(घ) जिस नागरिक की आयु 18 वर्ष हो।

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प्रश्न 3.
चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य-
(क) तीन सदस्य होते हैं
(ख) दो सदस्य होते हैं
(ग) पांच सदस्य होते हैं
(घ) चार सदस्य होते हैं।
उत्तर-
(ख) दो सदस्य होते हैं

प्रश्न 4.
मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य सदस्यों की अवधि है-
(क) पांच वर्ष
(ख) चार वर्ष
(ग) आठ वर्ष
(घ) छ: वर्ष।
उत्तर-
(घ) छ: वर्ष।

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प्रश्न 5.
भारत में पहला आम चुनाव किस वर्ष में हुआ?
(क) सन् 1950 में
(ख) सन् 1952 में
(ग) सन् 1960 में
(घ) सन् 1962 में।
उत्तर-
(ख) सन् 1952 में

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय दल प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो। (Explain the main features of the Indian Party System.)
अथवा
भारतीय दल-प्रणाली की छः विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करें।। (Explain in detail six features of Indian Party System.)
अथवा
भारतीय दल प्रणाली की कोई छः विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe any six features of Indian Party System.)
उत्तर-
वर्तमान युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र के लिए दल अनिवार्य हैं। दोनों एक-दूसरे का अभिन्न अंग हैं। राजनीतिक दलों के बिना लोकतन्त्रात्मक सरकार नहीं चल सकती और लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक दलों का विकास नहीं हो सकता। प्रो० मुनरो के मतानुसार, “स्वतन्त्र राजनीतिक दल ही लोकतन्त्रीय सरकार का दूसरा नाम है।” भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतन्त्रात्मक देश है।

अत: भारत में राजनीतिक दलों का होना स्वाभाविक है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।
अन्य देशों के राजनीतिक दलों की तरह भारतीय दलीय व्यवस्था की अपनी विशेषताएं हैं जिसमें मुख्य निम्नलिखित हैं

1. राजनीतिक दलों का पंजीकरण (Registration of Political Parties)-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 (People’s Representative Act) और उसके संशोधित कानून 1988 के अनुसार सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग के पास पंजीकृत करवाना अनिवार्य है। जो दल पंजीकृत नहीं होगा उसे राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी। पंजीकरण करवाते समय प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने संविधान में प्रावधान शामिल करना होगा- “दल भारत के संविधान में तथा समाजवाद, धर्म-निरपेक्षतावाद, लोकतन्त्र के सिद्धान्तों में पूर्ण आस्था व भक्ति रखेगा और भारत की प्रभुसत्ता एकता व अखण्डता का समर्थन करेगा।”

2. चुनाव आयोग द्वारा दलों को मान्यता (Recognition of Political Parties By Election Commission)-चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता तथा चुनाव चिह्न प्रदान करता है। चुनाव आयोग के नियमों के तहत किसी दल को राज्य स्तरीय दल का दर्जा तब प्रदान किया जाता है जब उसे लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कुल वैध मतों के कम-से-कम छः प्रतिशत मत मिले हों और विधानसभा में कम-से-कम दो सीटें मिली हों अथवा राज्य विधानसभा में कुल सीटों की कम-से-कम तीन प्रतिशत सीटें अथवा कम-से-कम तीन सीटें (इनमें से जो भी अधिक हो) मिली हों अथवा उस दल ने लोकसभा के किसी आम चुनाव में लोकसभा की प्रत्येक 25 सीटों पर एक जीत या इसके किसी अन्य आबंटित हिस्से में इसी अनुपात में जीत हासिल की हो। इसके विकल्प के तौर पर सम्बन्धित राज्य में पार्टी द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को सभी संसदीय क्षेत्रों में मतदान का कम-से-कम 6% मत प्राप्त होना चाहिए। इसके अलावा इसी आम चुनाव में पार्टी को राज्य में कम-से-कम एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल होनी चाहिए। राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त करने के लिए पार्टी को लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम छ: प्रतिशत वैध मत प्राप्त करने के साथ ही लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीतना आवश्यक है। अथवा कम-से-कम 3 राज्यों में लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त करना आवश्यक है। अथवा उस दल को कम-से-कम चार राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो। चुनाव आयोग ने 7 दलों को राष्ट्रीय दलों के रूप में एवं 58 दलों को राज्य स्तरीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।

3. बहु-दलीय पद्धति (Multiple Party System)-भारत में स्विट्ज़रलैण्ड की तरह बहु-दलीय प्रणाली है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्ह के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय मार्क्सवादी दल, तृणमूल कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी।।

4. एक दल की प्रधानता का अन्त (End of Dominance of Single Party)-इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारत में अनेक दल चुनाव में भाग लेते हैं, परन्तु 1967 से पूर्व केन्द्र तथा राज्य में कांग्रेस की प्रधानता ही रही है। 1967 के चुनाव में कांग्रेस को राज्यों में इतनी अधिक सफलता न मिली जिसके फलस्वरूप कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों का निर्माण हुआ। परन्तु गैर-कांग्रेसी नेता इतने मूर्ख निकले कि उन्होंने इस सुनहरी अवसर का पूरा लाभ उठाने की बजाय अपनी हानि ही की। उन्होंने जनता की भलाई न करके अपने स्वार्थ की ही पूर्ति की। अतः गैर-कांग्रेसी सरकार अधिक समय तक न चल सकी। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1971 में मध्यावधि चुनाव करवाए जिसमें इन्दिरा कांग्रेस को इतनी सफलता मिली कि कांग्रेस पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गई है।

जनता पार्टी की स्थापना से कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो गया। मार्च, 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 153 सीटें मिली जबकि जनता पार्टी को 272 तथा कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी को 28 सीटें मिलीं। इस प्रकार पहली बार केन्द्र में गैर-कांग्रेस पार्टी (जनता पार्टी) की सरकार बनी। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा क्योंकि इसे केवल 44 सीटें ही मिलीं, जबकि भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत (282 सीटें) प्राप्त हुआ। अब कांग्रेस की पहले जैसी प्रधानता नहीं रही।

5. प्रभावशाली विरोधी दल का उदय (Rise of Effective Opposition)-भारतीय दल प्रणाली की एक यह भी विशेषता रही है कि यहां पर इंग्लैण्ड की भान्ति संगठित विरोधी दल का अभाव रहा है। 1977 से पहले लोकसभा में कोई मान्यता प्राप्त विरोधी दल नहीं था।

मार्च, 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और कांग्रेस को केवल 153 सीटें मिलीं और इस प्रकार कांग्रेस की हार से संगठित विरोधी दल का उदय हुआ। जनता सरकार ने विरोधी दल के नेता को कैबिनेट स्तर के मन्त्री की मान्यता दी। चुनाव के पश्चात् लोकसभा में विरोधी दल के नेता श्री यशवन्त राव चह्वान थे।

पिछले कुछ वर्षों से भारत में प्रभावशाली विरोधी दल पाया जाने लगा है। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को विरोधी दल के रूप में मान्यता दी गई, और इस दल के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी को विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता दी गई। दिसम्बर, 2009 में भारतीय जनता पार्टी ने श्री लाल कृष्ण आडवाणी के स्थान पर श्री मती सुषमा स्वराज को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् किसी भी दल को मान्यता प्राप्त विरोधी दल का दर्जा नहीं दिया गया।

6. साम्प्रदायिक दलों का होना (Existence of Communal Parties) भारतीय दलीय प्रणाली की एक विशेषता साम्प्रदायिक दलों का होना है। यद्यपि धर्म-निरपेक्ष राज्य में साम्प्रदायिक दलों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है। तथापि साम्प्रदायिक दलों के प्रचार तथा गतिविधियों से देश का राजनीतिक वातावरण दूषित हो जाता है।

7. प्रादेशिक दलों का होना (Existence of Regional Parties)-साम्प्रदायिक दलों के साथ-साथ भारतीय दलीय प्रणाली की महत्त्वपूर्ण विशेषता प्रादेशिक दलों का होना है। चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त प्रादेशिक दलों की संख्या 58 है जिसमें मुख्य हैं शिरोमणि अकाली दल, नैशनल कांफ्रैस, बंगला कांग्रेस, इण्डियन नैशनल लोकदल, झारखण्ड पार्टी, अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (A.D.M.K.), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (D.M.K.), तेलुगू देशम् (Telgu Desam) तथा राष्ट्रीय जनता दल आदि। चुनाव आयोग ने 58 दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्हों के साथ मान्यता दी हुई है। 1996 में संयुक्त मोर्चे में कई क्षेत्रीय दल शामिल थे। सन् 1984 में लोकसभा के चुनाव में क्षेत्रीय दल तेलगू देशम् को सभी विपक्षी दलों से अधिक सीटें मिलीं। प्रादेशिक दल राष्ट्रीय हित के लिए बहुत हानिकारक हैं क्योंकि यह दल राष्ट्र हित में न सोचकर अपने दल और क्षेत्रीय हित को अधिक महत्त्व देते हैं। डी० एम० के० (D.M.K.) के नेताओं ने अपने निजी स्वार्थों के लिए देश के दक्षिणी व उत्तरी भाग में मतभेद उत्पन्न करने की कोशिश की है जोकि देश के हित में नहीं हैं। केन्द्र और राज्यों में तनाव के लिए काफ़ी हद तक क्षेत्रीय दल ज़िम्मेवार हैं क्योंकि क्षेत्रीय दल राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की मांग करते हैं, जोकि केन्द्र ,को स्वीकार नहीं है।

8. स्वतन्त्र सदस्य (Independent Members)-भारत में अनेक दलों के होते हुए भी संसद् तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतन्त्र सदस्यों की संख्या बहुत पाई जाती है। 1952 के आम चुनाव में 20 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने स्वतन्त्र सदस्यों को वोट डाले। __ परन्तु मार्च, 1977 के लोकसभा चुनाव में और जून, 1977 में राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता नहीं मिलनी चाहिए। 1989 से लेकर 2014 तक के लोकसभा के चुनावों में स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

9. जनता के साथ कम सम्पर्क (Less Contact with the Masses)-भारतीय दल प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि दल जनता के साथ सदा सम्पर्क बनाकर नहीं रखते। भारत में कई दल तो बरसाती मेंढकों की तरह चुनाव के समय ही अस्तित्व में आते हैं और चुनाव के साथ प्राय: लुप्त हो जाते हैं। जो दल स्थायी हैं वे भी चुनाव के समय ही अपने दल को संगठित करते हैं तथा जनता के साथ सम्पर्क बनाने का प्रयत्न करते हैं। यहां तक कांग्रेस दल भी चुनाव के पश्चात् जनता के साथ सम्पर्क बनाना अपनी मानहानि समझता है।

10. विक्षुब्ध गुट (Dissidents) भारतीय राजनीतिक दलीय प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता विक्षुब्ध गुटों का पाया जाना है। प्रायः प्रत्येक राज्य में कांग्रेस या जनता पार्टी के अन्दर दो गुट पाए जाते हैं-सत्तारूढ़ (Ministerliasts) तथा विक्षुब्ध (Dissidents) गुट। सत्ता हथियाने के लिए नेताओं में परस्पर इतनी होड़ रहती है कि गुटबन्दी अत्यधिक ज़ोरों पर काम करती है। 1977 तथा 1979 में जनता पार्टी में केन्द्र में भी विक्षुब्ध गुट पाया जाता था जिसका नेतृत्व चौधरी चरण सिंह और राज नारायण कर रहे थे। प्रत्येक राज्य में जनता पार्टी में विक्षुब्ध गुट पाया जाता था। असन्तुष्ट गुटों के कारण ही प्रधानमन्त्री राजीव गांधी को महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि कांग्रेस सत्तारूढ़ राज्यों में कई बार मुख्यमन्त्री बदलने पड़े ताकि असन्तुष्टों को सन्तुष्ट किया जा सके। 1990 में जनता दल में सत्तारूढ़ और विक्षुब्ध गुट में मतभेद कारण नवम्बर, 1990 में जनता दल का विभाजन हुआ और प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह को त्याग-पत्र देना पड़ा। विक्षुब्ध गुट के कारण ही 19 मई, 1995 को कांग्रेस पार्टी में फूट पड़ गई और कांग्रेस (इ) दो गुटों में बंट गई।

11. दल-बदल (Defection)-भारतीय दलीय प्रणाली की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता तथा दोष दल-बदल’ है। दल-बदल के अनेक उदाहरण हैं। ‘दल-बदल’ ने राज्यों की राजनीति तथा शासन में अस्थिरता ला दी है जिससे भारत में संसदीय लोकतन्त्र को खतरा पैदा हो गया है। जुलाई, 1979 में प्रधानमन्त्री श्री मोरार जी देसाई को भी त्यागपत्र देना पड़ा क्योंकि बहुत-से सदस्यों ने जनता पार्टी को छोड़ दिया था। केन्द्रीय सरकार के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी प्रधानमन्त्री को अपनी पार्टी के सदस्यों के कारण त्याग-पत्र देना पड़ा। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव से पूर्व और बाद में दल-बदल भारी संख्या में हुआ और यह दल-बदल कांग्रेस (इ) के पक्ष में हुआ। जनवरी, 1985 में संविधान में 52वां तथा दिसम्बर, 2003 में 91वां संशोधन किया गया ताकि दल-बदल की बुराई को समाप्त किया जा सके। इस संशोधन के अन्तर्गत दल-बदल गैर-कानूनी है और इससे संसद् या राज्य विधानमण्डल की सदस्यता समाप्त हो जाती है। इस संशोधन के बावजूद भी दल-बदल की बुराई समाप्त नहीं हुई है।

12. कार्यक्रमों की अपेक्षा नेतृत्व की प्रमुखता (More Emphasis on Leadership than on Programme)-भारत में अनेक राजनीतिक दलों में कार्यक्रम की अपेक्षा नेतृत्व को प्रमुखता दी जाती है और अब भी दी जा रही है। पहले आम चुनावों में कांग्रेस ने पं. जवाहर लाल नेहरू के नाम पर भारी सफलता प्राप्त की। कांग्रेस ने अपने कार्यक्रम का कभी भी प्रचार नहीं किया। 1980 में कांग्रेस (इ) की विजय वास्तव में श्रीमती गांधी की विजय थी। जनता ने इन्दिरा गांधी के नाम पर वोट डाले न कि कांग्रेस (इ) के कार्यक्रम को देखकर। इसी प्रकार दिसम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनाव में जनता ने श्री राजीव गांधी के नाम पर वोट डाले न कि कांग्रेस (इ) की कार्यक्रम को देखकर। कांग्रेस (इ) को राजीव गांधी के नेतृत्व में इतनी महान् सफलता मिली जो पहले कभी भी कांग्रेस पार्टी को नहीं मिली। 1989, 1991 और 1996 के लोकसभा के चुनाव में दलों ने कार्यक्रमों की अपेक्षा नेताओं को महत्त्व दिया, फरवरी-मार्च, 1998 एवं सितम्बर-अक्तूबर, 1999 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव कांग्रेस ने श्रीमती सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी एवं भारतीय जनता पार्टी ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़े। परन्तु उचित दल प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि दल के कार्यक्रम पर जोर दिया जाए न कि नेता को प्रमुखता दी जाए।

13. अनुशासन का अभाव (Lack of Discipline)-अधिकांश दलों में अनुशासन का अभाव है और अनुशासन को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। दलों के सदस्य अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दल के अनुशासन की परवाह नहीं करते। यदि किसी सदस्य को चुनाव लड़ने के लिए दल का टिकट नहीं मिलता तो वह सदस्य पार्टी छोड़ देता है और इसके पश्चात् वह या तो अपनी अलग पार्टी बना लेता है या किसी और दल के टिकट पर चुनाव लड़ता है या स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ता है। मई, 1982 में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव में अनेक कांग्रेस (इ) के सदस्यों ने पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। कांग्रेस (इ) हाई कमाण्ड ने विद्रोही कांग्रेसियों को 6 वर्ष के लिए पार्टी से निकाल दिया परन्तु जो विद्रोही कांग्रेस (इ) स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत गए उन्हें बड़े सम्मान के साथ दोबारा पार्टी में सम्मिलित कर लिया गया और कुछ को मन्त्री भी बनाया गया। ऐसी परिस्थिति में सदस्यों से अनुशासन की उम्मीद करना बेकार है। अनुशासन ही कमी के कारण ही दल-बदल की बुराई पाई जाती है।

14. राजनीतिक दलों में लोकतन्त्र का अभाव (Lack of Democracy in Political Parties)-जिन राजनीतिक दलों पर लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा बनाए रखने का भार है वे स्वयं अपने दलों में लोकतन्त्र की स्थापना नहीं कर सके हैं। राजनीतिक दलों के अपने संगठनात्मक चुनाव 10-10 वर्षों तक नहीं होते हैं। जनता पार्टी की 1977 की स्थापना के बाद कभी भी संगठनात्मक चुनाव नहीं हुए। कांग्रेस (इ) की 1978 की स्थापना के बाद 1991 के अन्त में संगठनात्मक चुनाव हुए हैं। दलों का काम-काज पूर्णतः नामजद व अस्थायी नेतृत्व के द्वारा चलाया जा रहा है। इस स्थिति ने सभी राजनीतिक दलों में दलीय तानाशाही की प्रवृत्ति को उजागर किया है।

15. राजनीतिक दलों के सिद्धान्तहीन समझौते (Non-Principle Aliance of Political Parties)—भारतीय दलीय व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता और दोष यह है कि राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए सिद्धान्तहीन समझौते करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में सभी दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए। उदाहरण के लिए अन्ना द्रमुक केन्द्रीय स्तर पर लोकदल सरकार में शामिल था और लोकदल के चौधरी चरण सिंह के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध था, लेकिन दूसरी ओर इस दल ने तमिलनाडु में जनता पार्टी के साथ चुनाव गठबन्धन किया। विचित्र बात यह थी कि यह गठबन्धन उसकी केन्द्रीय सरकार को गिराने के लिए किया गया जिसमें वह शामिल थी। अकाली दल के अध्यक्ष तलवंडी ने लोकदल के साथ गठबन्धन किया जबकि अधिकांश विधायक और मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल जनता पार्टी के साथ गठबन्धन की बातें करते रहे। कांग्रेस (इ) जो अन्य दलों के समझौतों को सिद्धान्तहीन कहती रही, स्वयं तमिलनाडु में द्रमुक (D.M.K.) के साथ चुनाव गठबन्धन कर बैठी। आपात्काल में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने द्रमुक की करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। मार्च, 1987 में कांग्रेस (इ) जम्मू-कश्मीर में नैशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर और केरल में कांग्रेस (आई) ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा के चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए।

निष्कर्ष (Conclusion)-भारतीय दलीय प्रणाली की विशेषताओं से स्पष्ट है कि इसमें महत्त्वपूर्ण गुणों की कमी है जो दलीय सरकार की सफलता के लिए अनिवार्य है। बहु-दलीय, सुसंगठित विरोधी दल का न होना, एक दल की प्रधानता, साम्प्रदायिक तथा क्षेत्रीय दलों का होना और दल-बदल भारतीय प्रणाली की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो संसदीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सामान्य विचारधारा वाले दल मिलकर एक सुसंगठित तथा शक्तिशाली विरोधी दल की स्थापना करें। महान् गठबन्धनों (Grand Alliances) की आवश्यकता नहीं है क्योंकि देश की समस्याओं को हल करने के स्थान पर देश के राजनीतिक वातावरण को दूषित कर देते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 2.
कांग्रेस (आई०) पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। [Explain the policies and programmes of Congress (I) Party.]
अथवा
कांग्रेस दल की नीतियों और कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। (Describe the Policies and Programmes of Congress Party.)
उत्तर-
यदि जनवरी, 1977 को जनता पार्टी की स्थापना के लिए भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सदैव याद रखा जाएगा तो जनवरी, 1978 को कांग्रेस के विभाजन के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा। वर्ष का पहला दिन, पहली जनवरी कांग्रेस के एक और विभाजन से प्रारम्भ हुआ जिसका कांग्रेस के प्रायः सभी वरिष्ठ नेताओं को दुःख हुआ। मार्च, 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को करारी पराजय का सामना करना पड़ा और श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा उनके पुत्र संजय गांधी भी चुनाव हार गए। मई, 1977 में जब कांग्रेस महासमिति की बैठक हुई तो श्रीमती इन्दिरा गांधी की रज़ामन्दी से ब्रह्मानन्द रेड्डी अध्यक्ष चुने गए। परन्तु शीघ्र ही इन्दिरा गांधी का यह भ्रम दूर हो गया कि ब्रह्मानन्द रेड्डी उसी गुलाम की भान्ति आचरण करेंगे, जिसका परिचय उन्होंने आपात्काल में दिया था। शीघ्र ही रेड्डी, चह्वान के समर्थकों और इन्दिरा गांधी के समर्थकों में मतभेद पैदा हो गए।

कर्नाटक की समस्या ने स्थिति को इतना तनावपूर्ण बना दिया कि श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1977 को कांग्रेस कार्य समिति से इस्तीफा दे दिया।

इन्दिरा गांधी के समर्थकों ने पहली और 2 जनवरी, 1978 को कांग्रेस-जनों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन करने का निश्चय किया। रेड्डी और चह्वान ने इस सम्मेलन को पार्टी विरोधी बताते हुए कांग्रेस-जनों को निर्देश दिया कि वे इन्दिरा गांधी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग न लें।

राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन श्री मीर कासिम ने किया और पहले दिन अध्यक्षता श्रीमती गांधी ने की। दो जनवरी को साढ़े ग्यारह बजे कमलापति त्रिपाठी ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला यह सम्मेलन जिसमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिकांश सदस्य उपस्थित हैं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का असली प्रतिनिधि सम्मेलन है। यह सम्मेलन कांग्रेस और राष्ट्र को चुनौतियों का सामना करने के लिए तथा प्रभावशाली नेतृत्व देने के लिए सर्वसम्मति से श्रीमती इन्दिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित करता है। इस प्रस्ताव का अनुमोदन भूतपूर्व केन्द्रीय राज्यमन्त्री अनन्त प्रसाद शर्मा ने किया। इसके पश्चात् विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने इसका समर्थन किया। इस प्रकार श्रीमती गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का विभाजन विट्ठल भाई पटेल भवन के प्रांगण में उसी स्थान पर हुआ जहां 1969 में पार्टी के दो टुकड़े हुए थे।

कांग्रेस कार्यसमिति ने 3 जनवरी को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करके श्रीमती गांधी और उनके समर्थकों को दल से निष्कासित कर दिया और इस प्रकार रिक्त स्थानों को भरने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष ब्रह्मानन्द रेड्डी और जिला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों को सौंप दिया।

2 फरवरी, 1978 को चुनाव आयोग ने कांग्रेस (इ) को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दे दी और इस दल को चुनाव लड़ने के लिए ‘हाथ’ चुनाव चिन्ह दिया। 23 जून, 1980 को श्रीमती इन्दिरा गांधी के सुपुत्र संजय गांधी का एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया। जिससे कांग्रेस (इ) को भारी क्षति पहुंची। मई, 1981 में श्रीमती इन्दिरा गांधी के बड़े सुपुत्र राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया था।

23 जुलाई, 1981 को मुख्य चुनाव आयुक्त ने कांग्रेस (इ) को असली कांग्रेस के रूप में मान्यता दे दी। कांग्रेस (इ) का चुनाव निशान ‘हाथ’ (Hand) है। श्रीमती इन्दिरा गांधी जीवन के अंत तक कांग्रेस (इ) की अध्यक्षा रहीं और उनकी मृत्यु के पश्चात् श्री राजीव गांधी अध्यक्ष बने। वर्तमान अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यक्रम (PROGRAMME OF INDIAN NATIONAL CONGRESS)-

अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के अवसर पर भारतीय, राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने पार्टी का चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया था। इसमें देश भर के सभी वरिष्ठ नेताओं के सुझावों को ध्यान में रखा है। कांग्रेस ने स्थिरता, विकास, राष्ट्रीय एकता, धर्म-निरपेक्षता, भ्रष्टाचार उन्मूलन, स्वच्छ तथा जवाबदेह शासन का वायदा किया है। पार्टी ने गैर-कांग्रेसी राज्यों में ठप्प हो गए विकास कार्यक्रमों को नई गति देकर शुरू करने और देश में धर्म-निरपेक्ष लोकतन्त्र की रक्षा के लिए सजग रहने की प्रतिबद्धता दोहराई है। 2014 के लोकसभा के चुनाव के अवसर पर घोषित चुनाव घोषणा-पत्र के आधार पर कांग्रेस का मुख्य कार्यक्रम एवं नीतियां इस प्रकार हैं

1. राजनीतिक कार्यक्रम (POLITICAL PROGRAMMES)

  • कांग्रेस का लोकतन्त्र में अटूट विश्वास है।
  • कांग्रेस लोकतन्त्र के अनिवार्य और अपरिहार्य अंग के रूप में प्रेस की आज़ादी के प्रति वचनबद्ध है।
  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए वचनबद्ध है।
  • कांग्रेस ने देश में स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने और सार्वजनिक क्षेत्रों से भ्रष्टाचार को दूर करने का वचन दिया है। भ्रष्टाचार को जन्म देने वाले सभी नियन्त्रण समाप्त कर दिए जाएंगे और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सी० बी० आई० जैसी एजेन्सियों को पूर्ण स्वायत्तता दी जाएगी।
  • संविधान में कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 लागू रहेगी।
  • देश की सुरक्षा के सभी पहलुओं पर गौर करने की दृष्टि से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया है। सेनाओं का आधुनिकीकरण किया जाएगा।

2. आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम
(ECONOMIC AND SOCIAL PROGRAMME)

1. आत्मनिर्भरता-कांग्रेस का लक्ष्य है भारत को आत्मनिर्भर बनाना। भारत जैसे ग़रीब देश को सम्पन्नता की ओर ले जाना है।
2. ग़रीबी दूर करना-कांग्रेस ग़रीबी को दूर करने के लिए वचनबद्ध है।

3. रोज़गार-कांग्रेस रोजगार के अवसर बढ़ाने पर विशेश ध्यान देगी। कांग्रेस कृषि विकास की दर में वृद्धि करके, निर्यात को प्रोत्साहन देकर तथा आवास और निर्माण के क्षेत्र में विशाल परियोजना चला कर रोज़गार के नए अवसर पैदा करेगी। कांग्रेस शिक्षित बेरोजगारों पर विशेष रूप से ध्यान देगी। बेरोज़गारी को दूर करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक करोड़ नए रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे।

4. आर्थिक सुधार–आर्थिक सुधारों की गति बनाए रखी जाएगी ताकि सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक दर 8 से 9 प्रतिशत प्राप्त की जा सके। पार्टी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय सुधारों के अनुरूप बुनियादी परिवर्तन लाने का वायदा किया है ताकि परिवहन, संचार और जीवन की अन्य मूलभूत आवश्यकताओं के मामले में शहर और गांवों का अन्तर कम किया जा सके।

5. कृषि सुधार-घोषणा-पत्र में कृषि पैदावार और किसानों की आर्थिक हालत में सुधार के लिए राज्य सहायता, प्रोत्साहन मूल्य तथा अन्य सम्बन्ध नीतियां जारी रखने और इनमें मज़बूती लाने का वायदा किया गया है। कृषि ऋण प्रणाली मज़बूत बनाई जाएगी तथा समूह ऋण योजना को बढ़ावा दिया जाएगा। सभी सार्वजनिक नलकूपों की हालत सुधारने और उन्हें चालू करने का समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। कांग्रेस काश्तकारों के लिए पट्टेदारी की व्यवस्था, ज़मीन की चकबन्दी और फालतू जमीन के वितरण की व्यवस्था और भूमि रिकार्ड रखने की बेहतर और सही व्यवस्था पर जोर देती रहेगी। कृषि को पूरी तरह से उद्योग का दर्जा दिया जाएगा। किसानों को उचित मज़दूरी दिलाई जाएगी।

6. उद्योग-औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर तीव्र की जाएगी। कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया जाएगा। लघु उद्योगों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा। कांग्रेस ने उद्योग और व्यापार के उदारीकरण की जो प्रक्रिया 1991 में की उसे वह जारी रखेगी। कांग्रेस सामरिक और सुरक्षा से सम्बद्ध क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों में गैर-लाइसैंसीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करेगी। कांग्रेस निर्यात को प्रोत्साहन देने को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी।

7. आवास-कांग्रेस आवास और निर्माण कार्यों में तेजी लाने के मार्ग में आ रही सभी कानूनी बाधाओं और अप्रभावी कानूनों को दूर करेगी। झुग्गियों और कच्ची बस्तियों को रहने लायक स्थानों परिवर्तित किया जाएगा। सभी बेघरों को घर दिए जाएंगे।

8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली-सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार किया जाएगा कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ सिर्फ ग़रीब और जरूरतमंद लोगों को मिले।
9. दोपहर का भोजन-प्राइमरी स्कूलों के सभी बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाएगा।
10. सभी बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
11. देश में आपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना लागू की जाएगी।
12. धर्म-निरपेक्षता-कांग्रेस का धर्म-निरपेक्षता में अटल विश्वास है।

13. अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां-अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन-जातियों के कल्याणकारी कार्यक्रम को और तेज़ किया जाएगा। कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की वर्तमान नीति को पूरी तरह लागू किया जाए। आरक्षण को वैधानिक रूप देकर उन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा। अनुसूचित जाति तथा जनजाति के विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का और अधिक विस्तार किया जाएगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की समुदायों की लड़कियों को प्रत्येक स्तर पर निःशुल्क शिक्षा दी जाएगी। देश के सभी आदिवासी क्षेत्रों में विशेष न्यायालयों को स्थापित किया जाएगा।

14. महिलाएं-कांग्रेस पार्टी महिलाओं के कल्याण और पुरुषों के समान अधिकार देने के लिए वचनबद्ध है। पार्टी महिलाओं के पूर्ण कानूनी, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष जारी रखेगी। शिक्षा और रोज़गार में लिंग भेद समाप्त कर दिया जाएगा। महिला मृत्यु दर कम करने की दृष्टि से विशेष योजनाएं शुरू की जाएंगी। सती प्रथा, दहेज प्रथा, महिला भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध समाज सुधार आन्दोलन में कांग्रेस सदैव आगे रहेगी। समूह बचतों और ग्रामीण महिलाओं की गतिविधियों में महिला समृद्धि योजना का विस्तार करके उनके पक्ष में ही खाते खोलने तथा ब्याज के भुगतान की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।

15. अल्पसंख्यक-कांग्रेस अल्पसंख्यकों के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वचनबद्ध है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए अपने 15 सूत्री कार्यक्रम की समय-समय पर समीक्षा करेगी और उसमें सुधार करेगी। पार्टी ने अल्पसंख्यकों के व्यक्तिगत कानून के मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप न करने का वायदा किया है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के लिए एक नया मन्त्रालय गठित करेगी, ताकि इन दोनों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया जा सके। कांग्रेस उर्दू को उसका उचित स्थान दिलाएगी।

16. विकलांगों का कल्याण-अपंगता से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने तथा उन्हें राष्ट्रीय जीवनधारा में बराबरी का अवसर देने के लिए अलग से पूरा कानून शीघ्र ही बनाने का वायदा किया है।

17. युवा वर्ग-कांग्रेस सभी स्कूलों में एन० सी० सी० को अनिवार्य करेगी। साक्षरता, वनीकरण योजना, परिवार नियोजन कार्यक्रम, समाज सुधार आन्दोलन, कानूनी अधिकारों की जानकारी जैसे आन्दोलन चलाने के लिए शिक्षित युवा जन को संगठित किया जाएगा और इन कार्यों में काम करने के लिए उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया जाएगा।

18. बाल मज़दूर-बाल मजदूरी को कम करने के लिए हर सम्भव उपाय किए जाएंगे तथा खतरनाक उद्योगों में बाल मजदूरी को पूरी तरह समाप्त किया जाएगा।

19. बिजली-बिजली का उत्पादन अधिक किया जाएगा।
20. दूर-संचार तथा डाक-कांग्रेस दूर-संचार में एक क्रान्ति लाएगी। सभी गांवों और ग्राम पंचायतों को राष्ट्रीय दूर-संचार जाल तन्त्र से जोड़ दिया जाएगा। डाक प्रणाली को और अधिक कुशल बनाया जाएगा।

21. रेल लाइनें-देशभर में बड़ी रेल लाइनों का जाल बिछाया जाएगा।
22. सभी गांवों को रेल और सड़क मार्गों से जोड़ा जाएगा।
23. कांग्रेस ने असंगठित क्षेत्रों में कर्मचारियों के लिए नई सामाजिक बीमा योजना शुरू करने का वायदा किया है।

24. शिक्षा-कांग्रेस 14 वर्ष तक की अवस्था के बच्चों के लिए नि:शुल्क बुनियादी शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन करेगी। कांग्रेस प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के पक्ष में है। किसी भी विश्व विद्यालय में भर्ती होने वाले अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को ट्यूशन फ़ीस और गुजारा भत्ता देने की छ: वर्ष की गारंटी दी जाएगी।

25. विदेश नीति-कांग्रेस की गुट-निरपेक्षता की नीति पर पूरा विश्वास है और पार्टी सभी देशों के साथ विशेषकर पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के पक्ष में है। कांग्रेस नेपाल और बंगलादेश के साथ हिमालय क्षेत्र की नदियों के लिए एक नया एकीकृत विकास कार्यक्रम आरम्भ करेगी। कांग्रेस देश में पाकिस्तान के समर्थन से चलाए जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करेगी। साथ ही वह पाकिस्तान के साथ आर्थिक, व्यापार, संस्कृति, शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में नज़दीकी सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करेगी। भारत रूस के साथ व्यापार और रक्षा के क्षेत्रों में और निकट सम्बन्ध बनाने के प्रयास जारी रखेगा। कांग्रेस अमेरिका के साथ आपसी हित और चिन्ता के सभी मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत जारी रखेगी। कांग्रेस पूर्ण निशस्त्रीकरण के पक्ष में है और कांग्रेस सरकार परमाणु हथियारों के निशस्त्रीकरण के लिए अपनी कोशिश जारी रखेगी। हमारी परमाणु नीति हमेशा शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के प्रति समर्पित होगी। यदि पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों को बनाना जारी रखा तो भारत को भी मजबूर होकर अपनी नीति बदलनी होगी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपनी रणनीति में बदलाव की आवश्यकता-निःसन्देह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय प्रजातन्त्र पर अमिट छाप छोड़ी है। लम्बे अर्से तक भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर छाई रहने वाली कांग्रेस पार्टी ने अन्य राजनीतिक दलों को कभी भी पनपने का अवसर नहीं दिया। दीर्घ काल तक भारतीय प्रजातन्त्र और समूचे राष्ट्र की बागडोर कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित होती रही। लेकिन पिछले एक दशक से कांग्रेस का प्रभुत्व, गरिमा, रणनीति और विश्वास विलुप्त होता जा रहा है। यही कारण है कि 1989 से लेकर 2014 तक के सभी आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त बहुमत नहीं मिल सका है जिससे कि वह अपनी सरकार बना सके। पिछले एक दशक से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जनाधार अन्य क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दलों की ओर चला गया है। विशेषतः दलितों और मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस पार्टी से मोह भंग हुआ है। दूसरे कांग्रेस पार्टी की कार्यशीलता भी उसकी असफलता के लिए उत्तरदायी रही है। अतः ऐसी परिस्थिति में केन्द्र में सत्ता प्राप्त करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। कांग्रेस को अन्य प्रतिद्वन्द्वी दलों के मुकाबले अपने दाव-पेचों में कुशलता लानी होगी। निःसन्देह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बदलते हुए राजनीतिक वातावरण की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी रणनीति में बदलाव करेगी।

चुनाव सफलता (Election Successes)-1980 के लोकसभा में जिन 525 स्थानों के लिए मतदान हुआ उनमें 351 स्थान कांग्रेस (आई) को मिले। इस प्रकार कांग्रेस (आई) को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हुआ।

मई, 1980 में हुए 9 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में कांग्रेस (इ) को तमिलनाडु को छोड़कर शेष अन्य आठ राज्यों-बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत प्राप्त हुआ और इसकी सरकारें बनीं। 1984 के लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस (इ) को स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के नेतृत्व में ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई थी, जो पहले कभी भी कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुई थी। कांग्रेस (इ) को 508 सीटों (जिनके लिए चुनाव हुआ) में से 401 सीटें मिलीं। मार्च, 1985 में 11 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में कांग्रेस (इ) को 8 राज्यों (बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) में भारी सफलता मिली और कांग्रेस (इ) की सरकारें बनीं। नवम्बर, 1989 की लोकसभा में कांग्रेस (इ) को केवल 193 सीटें मिलीं। कांग्रेस (इ) पार्टी के नेता राजीव गांधी को लोकसभा के विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता मिली थी। फरवरी, 1990 में 8 राज्य विधान सभाओं के चुनाव में कांग्रेस (इ) को महाराष्ट्र तथा अरुणाचल प्रदेश के अतिरिक्त अन्य राज्यों में कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 1991 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 225 सीटें प्राप्त हुईं और फिर भी इसकी सरकार बनी।

नवम्बर, 1993 में पांच राज्यों-हिमाचल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा मिज़ोरम में सरकार बनाई। दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस को केवल 14 सीटें मिलीं। दिसम्बर, 1993 में जनता दल (अ) के कांग्रेस (इ) में विलय के परिणामस्वरूप कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ। अप्रैल-मई, 1996 में लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 144 सीटें मिलीं। इन चुनावों के साथ पांच राज्य विधान सभाओं के भी चुनाव हुए थे। इनमें भी कांग्रेस को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। सितम्बर-अक्तूबर, 1996 को जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भी पार्टी को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। फरवरी, 1997 में पंजाब राज्य विधानसभा के चुनावों में पार्टी की भारी पराजय हुई। 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को केवल 142 सीटें प्राप्त हुईं और कांग्रेस को विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। जबकि 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को केवल 114 सीटें ही प्राप्त हुईं। यह कांग्रेस पार्टी की अब तक की सबसे बुरी पराजय है।

मई, 2001 में चार राज्यों और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव के बाद कांग्रेस ने असम और केरल में सरकार का निर्माण किया। फरवरी, 2002 में चार राज्यों-पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड की विधानसभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को पंजाब में 62, उत्तर प्रदेश में 25, मणिपुर में 12 और उत्तराखंड में 36 सीटें प्राप्त की। कांग्रेस ने इन चुनावों के बाद पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड में सरकार बनाई। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस गठबन्धन को 217 सीटें मिलीं। इनमें से कांग्रेस को 145 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार बनाई। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस गठबन्धन को 261 सीटें मिलीं। इनमें से कांग्रेस को 206 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। अतः कांग्रेस ने पुनः डॉ० मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार बनाई। परंतु 2014 में हुए 16वीं लोक सभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को केवल 44 सीटें ही मिल पाई थी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 3.
भारतीय जनता पार्टी की नीतियों तथा कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। (Explain the policies and programmes of Bhartiya Janata Party.)
उत्तर-
यद्यपि जुलाई, 1979 में जनता पार्टी का विभाजन दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद भी दोहरी सदस्यता का विवाद समाप्त नहीं हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से यह फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और संसद् सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकता। बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण अडवाणी और श्री नाना जी देशमुख ने बोर्ड के इस निर्णय का विरोध किया और इस सम्बन्ध में तैयार किए गए प्रस्ताव में अपना भी मत दर्ज कराया। 4 अप्रैल को जनता पार्टी का एक और विभाजन प्रायः निश्चित हो गया, जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने संसदीय बोर्ड के प्रस्ताव का अनुमोदन कर पार्टी के विधायकों और पदाधिकारियों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यों में भाग लेने पर रोक लगा दी। अनुमोदन प्रस्ताव के पक्ष में 17 सदस्यों ने और विरोध में 14 सदस्यों ने मत दिए। श्री अडवाणी के शब्दों में, “जनता पार्टी की कार्य समिति में पहली बार मतदान हुआ और यह भी किसी एक गुट को पार्टी से निकालने के लिए।”

5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। सम्मेलन की अध्यक्षता श्रीमती विजयराजे सिंधिया ने की। 6 अप्रैल को भूतपूर्व विदेश मन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में लगभग चार हजार प्रतिनिधि शामिल हुए और दो दिन का यह समारोह एक राजनीतिक दल के वार्षिक अधिवेशन की तरह ही संचालित किया गया। ”
भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा (Ideology of Bhartiya Janata Party)–भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्गीय लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रान्ति के सपनों को साकार करने और राजनीति को सत्ता का खेल न बनाने का संकल्प किया है। 6 अप्रैल शाम को रामलीला मैदान में नई पार्टी के मठन की घोषणा सार्वजनिक रूप से करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा कि हमारी पार्टी राष्ट्रीयता, लोकतन्त्र, गांधीवाद, समाजवाद और धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करती है और इन सिद्धान्तों पर चल कर रचनात्मक और आन्दोलनात्मक कार्यक्रम अपनाएगी और देश में जन-जागृति का अभियान करेगी।

भारतीय जनता पार्टी की नीतियां एवं कार्यक्रम (Policies and Programme of BhartiyaJanata Party)अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के एक प्रमुख घटक के रूप में लड़े। भारतीय जनता पार्टी की महत्त्वपूर्ण नीतियों एवं कार्यक्रमों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है

(क) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programmes)-

1. राज्य की सत्ता की पुनःस्थापना-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि पार्टी का सबसे प्रमुख कार्य राज्य और शासन की ‘इज्जत’ और ‘इकबाल’ को पुनः स्थापित करना है।
2. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता-चुनाव घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारत को एक देश मानती है तथा सब भारतीयों को, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों, जाति या धर्म में विश्वास रखते हों, एक जन समझती है।

संवैधानिक सुधार-

  • पार्टी संविधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।
  • भाजपा विदर्भ की अलग राज्यों के रूप में स्थापना करेगी। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
  • विधानमण्डलों सहित सभी निर्वाचित निकायों की निर्धारित अवधि 5 वर्ष सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाएंगे।

3. सकारात्मक धर्म-निरपेक्षता-भारतीय जनता पार्टी सकारात्मक धर्म-निरपेक्षता में विश्वास रखती है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्महीन राज्य नहीं है। पार्टी सभी धर्मों को समान मानने में विश्वास रखती है। पार्टी देश की संस्कृति में विश्वास रखती है। धर्म-निरपेक्षता को कभी एक सम्प्रदाय को खुश रखने का बहाना अथवा सामूहिक रूप से वोट इकट्ठे करने की घृणित राजनीतिक चाल नहीं बनने देनी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य में सम्बन्ध-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि पार्टी देश की एकता और अखण्डता को मज़बूत करने तथा सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए एक मज़बूत केन्द्र के साथ ही सशक्त स्वायत्तशासी राज्यों का भी पक्षधर है। घोषणा-पत्र में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी केन्द्र और राज्यों के बीच उस सन्तुलन को पुनः स्थापित करेगी जिसकी हमारे संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी और इस उद्देश्य से निम्नलिखित कार्य किए जाएंगे-

  • भारतीय जनता पार्टी सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफ़ारिशों को लागू करेगी।
  • पार्टी राज्य सरकारों को बर्खास्त करने और राज्य विधानमण्डलों को भंग करने के लिए अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को समाप्त करेगी।
  • राज्य सरकारों का समर्थन किया जाएगा और उन्हें शक्तिशाली बनाया जाएगा, उनमें अस्थिरता नहीं लायी जाएगी और न ही उनका तख्ता पलटा जाएगा।
  • राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राज्य सरकारों की सलाह से की जाएगी।

5. निष्पक्ष चुनाव-चुनाव उद्घोषणा-पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि भारतीय जनता पार्टी चुनावों की श्रेष्ठता को मानती है। इसका विश्वास है कि चुनाव नियमित रूप से तथा बहुत ही निष्पक्षता से कराए जाने चाहिएं और इसलिए चुनाव सम्बन्धी सुधार को उच्च प्राथमिकता देगी।

6. भ्रष्टाचार-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ राजनीतिक तथा चुनाव सम्बन्धी भ्रष्टाचार में निहित है जबकि चुनावों को साफ़-सुथरा बनाने के आयोग का पहले वर्णन किया है तो भी राजनीतिक भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में सामान्य रूप से निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे-

  • विदेशों से किए गए समझौतों में भ्रष्टाचार के मामलों पर रक्षा सौदों में कमीशन लेने वालों की जांच की जाएगी और दोषियों को दण्डित किया जाएगा।
  • यह ओम्बुड्समैन-लोकपाल तथा लोकायुक्त तथा नियुक्त करने के लिए कानून बनाएगी और प्रधानमन्त्री तथा मुख्य मन्त्रियों को इनके अन्तर्गत लाया जाएगा।
  • सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में क्रय एवं ठेके आदि देने सम्बन्धी प्रक्रिया तथा नियमों को सुचारु बना दिया जाएगा और राजनीतिक अधिकारियों के स्व-विवेक की शक्तियों को विनियमित कर दिया जाएगा।
  • क्रय तथा ठेके आदि देने का काम करने वाले सरकारी विभागों तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के निगमों के दैनिक कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा दखल-अन्दाजी को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • बचत के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन तथा ईमानदार कर दाता को परेशानी से बचाने के लिए और काले धन को बढ़ने से रोकने के लिए व्यवस्था करके ढांचे को वैज्ञानिक और सुचारु रूप दिया जाएगा।
  • सब मन्त्रियों को प्रति वर्ष अपनी सम्पत्ति के बारे में घोषणा करनी होगी।
  • सरकारी विभागों के खर्चे में कमी की जाएगी।

7. उत्तर-पूर्व क्षेत्र (North-East Region)-उत्तर-पूर्व क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए पार्टी विशेष ध्यान देगी। भारत-बंगला देश की सीमा पर कांटेदार तार लगाई जाएगी। बाहर से आए लोगों का पता लगाकर उनका नाम मतदाता सूची से काटा जाएगा। सीमावर्ती राज्यों में सभी नागरिकों को पहचान-पत्र दिए जाएंगे। सीमा पार से प्रशिक्षण शिविरों से आतंकवादियों तथा विदेशी हथियारों को अन्दर आने से रोका जाएगा। सुरक्षा तन्त्र तथा खुफिया नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाएगा।

8. जम्मू-कश्मीर-जम्मू-कश्मीर से सभी विदेशियों को निकाला जाएगा। आतंकवाद के खतरे और पाकिस्तान से आ रहे आतंकवादियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को पूरी स्वतन्त्रता दी जाएगी। डोडा को अशान्त क्षेत्र घोषित किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर के सभी आतंकग्रस्त क्षेत्रों के विस्थापितों का पुनर्वास किया जाएगा। राज्य में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जाएंगे।

9. हिमालय क्षेत्र- भारतीय जनता पार्टी हिमालय क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा नीति तैयार करेगी ताकि भारत के राष्ट्रीय हितों की पूरी रक्षा की जा सके।

10. न्यायिक सुधार-भारतीय जनता पार्टी शीघ्र, निष्पक्ष और कम खर्चीले न्याय की व्यवस्था के लिए उचित कदम उठाएगी। न्यायाधीशों के खाली पदों पर तुरन्त नियुक्ति की जाएगी और ऐसा कानून बनाएगी कि मुकद्दमों का निपटारा एक वर्ष में किया जा सके।

11. पुलिस और जनता-पुलिस राज्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पिछले कई वर्षों से पुलिस और जनता के बीच की खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है। जनता पुलिस के जुल्म की शिकायत करती है और पुलिस राजनीतिक हस्तक्षेप तथा रहन-सहन और काम की खराब हालत की शिकायत करती है। पुलिस आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा।

12. प्रशासनिक सुधार-प्रशासन को जनता का हितैषी, निष्पक्ष और जवाबदेह बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी प्रशासन में महत्त्वपूर्ण सुधार करेगी। हिंसा फैलने के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया जाएगा। नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों का सेवाकाल बढ़ाने का समर्थन नहीं किया जाएगा। केन्द्र और राज्यों में प्रशासनिक सुधार विभाग को सुदृढ़ किया जाएगा।

13. मानव अधिकार आयोग- भारतीय जनता पार्टी वर्तमान प्रभावहीन अल्पसंख्यक आयोग के क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर इसे एक मानव अधिकार आयोग के रूप में परिवर्तित कर देगी जिससे वह सभी व्यक्तियों, वर्गों तथा सम्प्रदायों के उचित अधिकारों की देखभाल कर सके।

14. शक्तियों का विकेन्द्रीकरण और पंचायती राज-भारतीय जनता पार्टी शक्तियों के विकेन्द्रीकरण और पंचायती राज संस्थाओं में विश्वास रखती है। पंचायती राज को सुदृढ़ बनाने के लिए 73वें और 74वें संशोधन में उचित परिवर्तन करेगी। पंचायतें को आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर बनाया जाएगा।

(ख) राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था (National Economy)-भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में यह वायदा किया गया है कि देश में मानव हितकारी अर्थव्यवस्था की स्थापना की जाएगी। पार्टी पूर्ण रोजगार प्राप्त करने, अधिकतम उत्पादन करने, मूल्यों को स्थिर रखने और अधिकाधिक लोगों को ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए सब आवश्यक कदम उठाएगी, जब तक कि देश से ग़रीबी न समाप्त हो जाए। भारतीय जनता पार्टी स्वदेशी पर जोर देगी। भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक कार्यक्रम एवं नीतियां इस प्रकार हैं

1. कृषि और ग्रामीण विकास-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भूमि सम्बन्धी कानूनों को लागू किया जाएगा, चालू बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को जल्दी से पूरा किया जाएगा, हज़ारों छोटे-छोटे सिंचाई के कामों को शुरू किया जाएगा, खेती के काम आने वाली चीज़ों को सस्ते दामों में उपलब्ध कराया जाएगा, किसानों को फसल के लाभप्रद मूल्य दिए जाएंगे, कृषिजन्य पदार्थों तथा औद्योगिक वस्तुओं के मूल्यों में समानता स्थापित की जाएगी। पार्टी किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के कर्जे माफ़ करेगी। पार्टी कृषि-श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाएगी। योजना राशि का 60 प्रतिशत कृषि और ग्रामीण विकास के लिए निर्धारित किया जाएगा। प्रत्येक गांव में सड़कों, सिंचाई, पीने के पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। गांव में बेघर लोगों को घर दिए जाएंगे।

2. गौ-रक्षा-पार्टी गायों और गौवंशों के वध पर प्रतिबन्ध लगाएगी, जिसमें बैल और बछड़े भी शामिल होंगे और गौ-मांस के निर्यात सहित इनके व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाएगी।

3. उद्योग-चुनाव घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी उद्योग का चहुंमुखी विकास करेगी और उन्हें प्रोत्साहन देगी। लघु तथा कुटीर उद्योगों के क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया जाएगा। बहु-राष्ट्रीय निगमों, अन्य विदेशी कम्पनियों बड़े उद्योगों, लघु उद्योगों तथा कुटीर उद्योगों का क्षेत्र निर्धारित किया जाएगा। औद्योगिक कारखानों का आधुनिकीकरण किया जाएगा।

4. कर नीति- पार्टी ने कर ढांचे को युक्तिसंगत बनाने तथा चुंगी एवं बिक्री कर को समाप्त करने का पूरा आश्वासन दिया है। पार्टी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के दायित्व को स्वेच्छा से पालन करने के लिए एक पद्धति तैयार करेगी। घोषणापत्र में कहा गया है कि कर वंचकों तथा तस्करों से सख्ती के साथ निपटने के लिए नियमों से समुचित प्रावधान करेगी।

5. कीमतों में स्थिरता-घोषणा-पत्र के अनुसार भ्रष्टाचार को समाप्त करके एवं वितरण को सुचारु बनाकर मूल्यों में स्थिरता बनाए रखी जाएगी। यदि मूल्यों में वृद्धि हुई तो महंगाई भत्तों में तुरन्त वृद्धि करके उसके प्रभाव को समाप्त कर दिया जाएगा।

6. उपभोक्ता संरक्षण–पार्टी उपभोक्ता संरक्षण कानून में सुधार करेगी और उसको अच्छे ढंग से लागू करेगी। उपभोक्ता आन्दोलन को बढ़ावा दिया जाएगा।

7. काला धन-पार्टी काले धन के निर्माण को रोकने के कड़े उपाय करेगी।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programmes)-

1. अनुसूचित जाति एवं जनजाति-पार्टी अस्पृश्यता विरोधक कानूनों को सख्ती से लागू करेगी तथा खेतिहर मजदूरों को भूमि बांटने तथा बेघर लोगों को मकान बनाने के लिए भूमिखण्ड देने के सम्बन्ध में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी, आदिवासियों के लिए नई वन-नीति बनाएगी। पार्टी आरक्षण सहित सभी विशेष सुविधाओं और वरीयता प्राप्त अवसरों सम्बन्धी प्रावधानों को इस ढंग से लागू करेगी जिससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े अधिकसे-अधिक वर्गों और अधिक लोगों को हर तरह से और हर स्तर पर लाभ पहुंचे।

2. पिछड़े वर्ग-भाजपा पिछड़े वर्गों के सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीति जारी रहेगी।

3. अल्पसंख्यक-भाजपा अल्पसंख्यक समुदायों को उनकी खुशहाली के लिए समान अवसर प्रदान करेगी तथा उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

4. महिलाएं-भारतीय जनता पार्टी लिंग के आधार पर असमानता को समाप्त करेगी और शादी की रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करेगी। पार्टी महिलाओं के लिए छात्रावास बनाएगी, बाल-विवाह को रोकेगी, पत्नी को पति की सम्पत्ति तथा आय में बराबर का भागीदार बनाएगी और दहेज के कारण हुई मृत्यु को हत्या माना जाएगा। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए तीस प्रतिशत आरक्षण करेगी। राज्य विधानसभाओं या संसद् में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाएंगी। तलाक सम्बन्धी कानूनों में भेदभाव पूर्ण धाराओं को हटाया जाएगा और बहु-विवाह को समाप्त किया जाएगा। समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धान्त को लागू किया जाएगा। लड़कियों को शिक्षा देने के लिए विशेष सुविधाएं दी जाएंगी।

5. बच्चे-पार्टी बच्चों के विकास के लिए अच्छे विद्यालय खोलेगी, खेल के मैदानों की व्यवस्था करेगी तथा पीने के लिए अच्छे दूध का प्रबन्ध करेगी। प्रत्येक बच्चे की वार्षिक शारीरिक जांच करवाई जाएगी।

6. युवाजन-भारतीय जनता पार्टी युवाजनों को ग़रीबी दूर करने तथा सामाजिक बुराइयों को दूर करने में लगाएगी।

7. घर और शहर विकास-पार्टी प्रत्येक परिवार को घर के लिए सस्ते भाव पर ज़मीन देगी और शहर के विकास के लिए उचित कदम उठाएगी।

8. शिक्षा- भारतीय जनता पार्टी 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देगी और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम लागू करेगी। पार्टी नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करेगी और अध्यापकों के वेतन तथा स्तर में वृद्धि करेगी।

9. भाषा-पार्टी तीन-सूत्रीय भाषा फार्मूला लागू करेगी और सरकारी भाषा पर संसदीय समिति की सिफ़ारिशों को लागू करेगी। पार्टी हिन्दी और संस्कृत का विकास करेगी।

(घ) राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security)—पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा को जिम्मेवारी से निभाने के लिए बड़ी जिम्मेवारी से काम लेगी। पार्टी सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों जैसे-जम्मू और कश्मीर, पंजाब, पूर्वोत्तर प्रदेश तथा असम की सामाजिक तथा राजनीतिक गड़बड़ियों को दूर करने की कोशिश करेगी।

(ङ) विदेश नीति (Foreign Policy)—पार्टी ने स्पष्ट किया है कि वह स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाएगी तथा विश्व शान्ति, नि:शस्त्रीकरण तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था पर जोर देगी। भाजपा परमाणु अस्त्र नीति का पुनर्मूल्यांकन करेगी और परमाणु अस्त्र बनाने का विकल्प इस्तेमाल करेगी। पार्टी ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को मजबूत करने, महाशक्तियों के प्रभुत्त्व को कम करने तथा पड़ोसी देशों के साथ शान्ति और मित्रता की नीति अपनाने का भी वचन दिया है। पार्टी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्य का स्थान दिलाने के लिए प्रयास करेगी। विदेशों में गए भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता के प्रश्न पर नए सिरे से विचार किया जाएगा। भाजपा सभी देशों के बीच शान्ति स्थापित करने, विश्व के सभी लोगों की समृद्धि और इस महान् तथा प्राचीन सभ्यता वाले देश के गौरव के अनुरूप विश्व के मामलों में भारत की भूमिका के विस्तार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है।

केन्द्र में सत्ता प्राप्ति के सन्दर्भ में भाजपा की क्षमता-भारत में दीर्घ काल तक एक ही राजनीतिक दल का प्रभुत्व बना रहा। अन्य दलों को उभरने का अधिक अवसर नहीं मिला, इसी कारण उनकी केन्द्र में सत्ता प्राप्ति की दावेदारी अल्पकालिक ही रही। इसी दौड़ में भारतीय जनता पार्टी का भी नाम आता है। भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया जाता है कि यह हिन्दुवादी और संकीर्ण विचारों वाली पार्टी है। इसे यदि केन्द्र में सत्ता में लाया गया तो भारतीय विविधतापूर्ण समाज को भारी क्षति होगी। आलोचकों का मत है भाजपा की उग्र विचारधारा भारतीय समुदाय के एक बड़े वर्ग को निराश कर देगी जिससे राष्ट्रीय एकता की नींव हिल जाएगी। परन्तु आलोचकों का ऐसा मानना उचित नहीं कहा जा सकता। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा पुरातन भारतीय संस्कृति का स्पष्टीकरण है। इसकी नीतियां बड़ी सुदृढ़ और कार्यक्रम बहुत व्यापक है।

इसका संगठनात्मक आधार अत्यन्त सुदृढ़ है। इसके नेताओं के पास प्रशासनिक कार्यों का दीर्घकालीन अनुभव है। विशेषतया भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व क्षमता पर किसी को सन्देह नहीं था। इतना ही नहीं इस पार्टी के अनेक नेताओं ने अपनी राजनीतिक क्षमता के कारण ही विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इस पार्टी ने समाज के हर वर्ग अथवा समुदाय को साथ लेकर चलने तथा आम सहमति से शासन संचालन पर बल दिया। आर्थिक रूप से भी भाजपा की नीतियां राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानती हैं। भाजपा द्वारा अपनी नीतियों और कार्यक्रमों मे किए जाने वाले समयानुकूल बदलाव तथा इसकी प्रशासनिक क्षमता को ध्यान में रख कर ही भारतीय मतदाताओं ने 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी को 282 सीटें जिता दी थी, परिणामस्वरूप इस पार्टी ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

चुनाव सफलताएं (Election Successes) भारतीय जनता पार्टी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी और इसको चुनाव लड़ने के लिए ‘कमल का फूल’ चुनाव चिह्न दिया। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल दो सीटें मिलीं और पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गए। मार्च, 1985 में राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में भी इसको विशेष सफलता नहीं मिली। परन्तु नवम्बर, 1989 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 88 सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन के कारण ही राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बन सकी। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में बहुत अधिक सफलता मिली। मध्य प्रदेश और गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई। 1991 में दसवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को 119 सीटें मिली और इसे विरोधी दल के रूप में मान्यता दी गई।

जून, 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। नवम्बर, 1993 में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में सबसे अधिक सफलता मिली और इसकी दिल्ली तथा राजस्थान में सरकार बनी। उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में इसे उम्मीद से कम सीटें मिली जबकि हिमाचल प्रदेश में इसकी बुरी तरह पराजय हुई। नवम्बर-दिसम्बर, 1994 व फरवरी-मार्च 1995 में दस राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में इस दल को अच्छी सफलता प्राप्त हुई। इस दल ने गुजरात में अकेले व महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ मिलकर अपनी सरकारें बनाईं। भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिणी राज्यों में भी अपने पांव पसारे हैं। 1996 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 161 सीटें प्राप्त हुईं।

भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। राष्ट्रपति ने पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। लोकसभा में बहुमत सिद्ध न होने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी को 28 मई, 1996 को प्रधानमन्त्री पद से त्याग-पत्र देना पड़ा। जून, 1996 में भारतीय जनता पार्टी को मान्यता प्राप्त विरोधी दल का दर्जा दिया गया और अटल बिहारी वाजपेयी मान्यता प्राप्त विरोधी नेता बने। फरवरी-मार्च, 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें प्राप्त हुईं। भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। भारतीय जनता पार्टी ने सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में 13वीं लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में लड़ा। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें प्राप्त हुईं और इसने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल 12 सीटें प्राप्त हुईं।

फरवरी, 2002 में हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और पंजाब विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा को क्रमश: 107, 19, 4 तथा 3 सीटें प्राप्त हुईं। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले ‘राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन’ को केवल 186 सीटें ही मिल पाईं। इसमें से भारतीय जनता पार्टी को केवल 138 सीटें ही मिलीं, जिस कारण इस पार्टी को सत्ता से हटना पड़ा। अप्रैल-मई, 2009 में हए 15वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को केवल 159 सीटें ही मिल पाईं। इसमें से भारतीय जनता पार्टी को केवल 116 सीटें ही मिलीं। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनावों में भाजपा को 282 सीटें (राजग को 334 सीटें) मिलीं। अतः इसने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल के संगठन तथा कार्यक्रमों का वर्णन करो। (Discuss the organisation and programmes of the Communist Party of India.)
अथवा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on the Communist Party of India.)
उत्तर-
भारतीय साम्यवादी दल राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 1924 में की गई। इसकी स्थापना में मानवेन्द्र नाथ राय (M.N. Roy) का बड़ा हाथ था।
स्वतन्त्रता के पश्चात् इस दल ने बड़ी तेजी से प्रगति की। 1957 में केरल राज्य में इसे सरकार बनाने का अवसर मिला। यह भारत के किसी राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। 1959 में इस दल में फूट पड़ गई और उसके दो गुट बन गए। 1962 में जब भारत का चीन के साथ विवाद उठा तो एक गुट ने भारत सरकार को ठीक बताया तथा उसका समर्थन किया परन्तु दूसरे ने चीन को ठीक बताया तथा सरकार पर जोर दिया कि वह चीन के साथ शान्ति वार्ता आरम्भ करे। अप्रैल, 1964 में दल की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में 96 से 32 सदस्य बाहर चले गए। 8 सितम्बर, 1964 को लोकसभा के 32 में से 11 साम्यवादी सदस्यों ने गोपालन के नेतृत्व में अपना एक अलग दल मार्क्सिस्ट (C.P.M.) नाम से संगठित कर लिया और 15 सितम्बर, 1964 को उसे चुनाव आयोग ने भी मान्यता दे दी। आजकल श्री एस. सुधाकर रेड्डी इसके महासचिव हैं।

भारतीय साम्यवादी दल का कार्यक्रम (Programme of the C.P.L.)-अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर चुनावी घोषणा-पत्र जारी करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की आलोचना की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में राजनीतिक अस्थिरता, निर्धनता, बेरोज़गारी, महंगाई व बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को दोषी ठहराया। पार्टी ने कहा कि कांग्रेस ही केन्द्र में एकमात्र विकल्प नहीं है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि आज की विषम परिस्थितियों में राजनीतिक स्थिरता, एकता, सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास को केवल वामपंथी दल ही सुनिश्चित कर सकते हैं। घोषणा-पत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने मतदाताओं से अपील की कि वे कांग्रेस तथा साम्प्रदायिक शक्तियों को हराएं तथा वामपंथी दलों को सरकार बनाने का अवसर दें।

(क) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programme of the C.P.I.)-पार्टी का राजनीतिक कार्यक्रम एवं नीतियां निम्नलिखित हैं

  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  • पार्टी साम्प्रदायिक सद्भावना और धर्म-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के पक्ष में हैं। पार्टी धार्मिक स्थानों का साम्प्रदायिक तथा देश विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने के विरुद्ध है। घोषणा-पत्र में कहा गया है कि धर्म-निरपेक्ष ताकतों की मजबूती के लिए ज़रूरी है कि विध्वंसकारी तत्त्वों पर काबू पाया जाए।
  • पार्टी केन्द्र राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन कर के राज्यों को आर्थिक शक्तियां देने के पक्ष में है।
  • पार्टी अन्तर्राज्य परिषद् को पुनर्गठित करके उसे क्रियाशील बनाएगी।
  • जम्मू कश्मीर के सम्बन्ध में संविधान की धारा 370 की रक्षा की जाएगी।
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए फौरन लोकपाल विधेयक व्यवस्था बनाई जाएगी जिसके अधिकार क्षेत्र में प्रधानमन्त्री को भी लाया जाएगा। भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए कारगर कदम उठाए जाएं।

(ख) आर्थिक कार्यक्रम (Economic Programme)-नौकरशाही नियन्त्रण को समाप्त करने और लाल फीताशाही खत्म करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए भारतीय साम्यवादी दल ने अपना निम्न कार्यक्रम प्रस्तुत किया-

  • सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूरसंचार, बिजली आदि नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त-दुरुस्त किया जाए।
  • मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। अंधाधुंध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जोकि देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही है।
  • बजट का 50 प्रतिशत कृषि, बागवानी, मत्स्यपालन, पशु-पालन आदि के विकास के लिए आबंटित किया जाएगा और सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था की जाएगी।
  • किसानों को निर्धारित कीमतों पर कृषि सामानों की आपूर्ति की जाएगी। खासकर छोटे और सीमांत किसानों को सहायता प्राप्त कृषि सामान, कर्ज़, आदि दिया जाएगा।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programme)-

  • बाल-मज़दूरी और बन्धुआ मज़दूरी जैसी बुराइयों का उन्मूलन किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय बाल मज़दूर एवं बन्धुआ मज़दूर आयोग का गठन हो।
  • सभी लोगों को अवश्य ही संतुलित आहार, स्वच्छ पेयजल के लिए संतुलित सुनिश्चित आर्थिक सुविधा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • बाल शोषण, खासकर लड़कियों के शारीरिक शोषण के लिए अवश्य ही कठोर सज़ा दी जानी चाहिए।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अवश्य ही मज़बूत किया जाना चाहिए।
  • काम के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में शामिल करना और बेकारी भत्ता देना चाहिए।
  • सभी गांवों तथा शहरी इलाकों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना।
  • शिक्षा तथा जन साक्षरता का प्रसार किया जाए। शिक्षा के निजीकरण को रोका जाए।
  • महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लैंगिक समानता सम्बन्धी विश्व महिला सम्मेलन द्वारा स्वीकृत बीजिंग घोषणा 1995 को लागू किया जाए। संविधान के अन्तर्गत दी गई संवैधानिक तथा कानूनी गारंटियों को लागू किया जाए। सभी समुदायों की महिलाओं के लिए समान कानूनी अधिकार प्रदान किए जाएं।
  • श्रमजीवी महिलाओं के लिए होस्टल एवं शिशु-शालाओं की स्थापना की जानी चाहिए।
  • आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को रोका जाए।

(घ) विदेश नीति (Foreign Policy)—विश्व के बदलते हुए परिवेश में अमेरिका द्वारा विश्व पर अपनी नई विश्व व्यवस्था थोपने और थानेदारी जमाने का दृढ़तापूर्वक प्रतिरोध किया जाएगा। पार्टी विकासशील देशों के आपसी सहयोग पर बल देगी। भारत की परमाणु अप्रसार सन्धि की नीति के प्रति पार्टी को दृढ़ विश्वास है। वर्तमान विश्वसन्दर्भ में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को और अधिक सशक्त बनाया जाएगा।

चुनाव सफलताएं (Election Successes)-जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को केवल 11 सीटें मिलीं। मई, 1980 में हुए 9 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में इसको 54 सीटें मिलीं। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में इसे केवल 8 सीटें मिलीं। 1989 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को केवल 12 सीटें मिलीं। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। मई, 1991 में भारतीय साम्यवादी दल ने जनता दल तथा अन्य वामपंथी दलों से मिल-कर चुनाव लड़ा। परन्तु इसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली। इसको केवल 13 सीटें प्राप्त हुईं। नवम्बर, 1993 में हुए पांच राज्यों तथा दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को विशेष सफलता नहीं मिली।

नवम्बर-दिसम्बर 1994 में हुए और फरवरी-मार्च 1995 में हुए दस राज्य विधानसभा के चुनावों में इसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली। आन्ध्र में इसने तेलुगू देशम् के सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ा। 1996 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को केवल 12 सीटें मिलीं। अन्य दलों के साथ मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी पहली बार केन्द्र में मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित हुई। पार्टी संयुक्त मोर्चा सरकार में घटक रही है। फरवरी, मार्च 1998 में 12वीं लोकसभा चुनावों में पार्टी को 9 सीटें जबकि 1999 में 13वीं लोकसभा में केवल 4 सीटें प्राप्त हुईं। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिमी बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय साम्यवादी पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय साम्यवादी पार्टी ने 10 सीटें जीती। इस पार्टी ने कांग्रेस के नेतृत्व में बनी “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार को बाहर से समर्थन दिया। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय साम्यवादी पार्टी ने केवल 4 सीटें जीतीं। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस दल को केवल एक सीट ही मिल पाई थी।

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प्रश्न 5.
मार्क्सवादी साम्यवादी दल की नीतियां तथा उसके कार्यक्रमों का वर्णन करो। .
[Describe the policies and programme of C.P.I. (M]
उत्तर-
1959 में चीन के साथ सम्बन्धों के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 के चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया। एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को पूरी सहायता देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा। परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एकतिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी साम्यवादी दल (C.P.M.) की स्थापना की। आजकल श्री सीता राम यचुरी पार्टी के महासचिव हैं।

मार्क्सवादी पार्टी का कार्यक्रम (PROGRAMME OF MARXIST PARTY)-

अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनावों के अवसर पर मार्क्सवादी पार्टी ने चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया। मार्क्सवादी पार्टी का कार्यक्रम एवं नीतियां निम्नलिखित हैं

(I) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programmes)-

  • राज्यों को और अधिक शक्तियां देकर केन्द्र राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन किया जाए।
  • राज्यों के पक्ष में और वित्तीय साधनों का वितरण और केन्द्र के हाथों में इन साधनों का अति-केन्द्रीयकरण समाप्त हो।
  • धर्म को राजनीति से अलग रखने सम्बन्धी कानून का निर्माण।
  • अल्पसंख्यकों के जायज अधिकारों की रक्षा की जाए।
  • सभी धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त, 1947 को जो स्थिति थी उसे ज्यों का त्यों बनाए रखने की व्यवस्था का कड़ाई से पालन किया जाए। अयोध्या विवाद का जल्दी निपटारा करने के लिए उसे सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने का वायदा किया।
  • कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सभी राजनीतिक उपायों की घोषणा की जाए। इसके साथ ही धारा-370 की रक्षा की जाए।

(II) आर्थिक कार्यक्रम (Economic Programmes)

  • देश की आर्थिक सम्प्रभुता की रक्षा की जाए और उसकी आत्मनिर्भरता को मजबूत बनाया जाए। अंधाधुंध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जोकि देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूरसंचार, बिजली आदि नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त दुरस्त किया जाए।
  • मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। नई नीति ऐसी हो जोकि घरेलु उद्योगों को मज़बूती प्रदान करे। विदेशी पूंजी के प्रवेश में इजाज़त देने का फैसला, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और औद्योगिक सम्बन्धी ज़रूरतों के आधार पर हो।
  • 1970 के भारतीय पेटेंट कानून में ऐसा कोई भी संशोधन न हो जो भारत की सम्प्रभुत्ता को कमजोर करता हो।
  • मज़दूरों को भयानक शोषण से बचाया जाए व पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
  • गुप्त मतदान के जरिए ट्रेड यूनियनों को मान्यता दी जाए।
  • सैनिकों के लिए एक रैंक एक पेन्शन की व्यवस्था लागू की जाए।
  • काम के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जाए।

(III) कृषि क्षेत्र (Agriculture Area)

  • भूमि सुधारों को ज़ोरों से लागू किया जाए। जोतने वालों में भूमि का वितरण किया जाए।
  • ग़रीब किसानों का कर्ज माफ किया जाए। किसानों को पैदावार के लाभकारी दाम दिए जाएं और उन्हें सस्ते ऋण तथा अनुदान देकर खेती में लगने वाली चीजें उपलब्ध कराई जाएं।
  • सिंचाई के प्रसार के लिए कहीं ज्यादा योजना आबंटन हो, फ़सल बीमा की समुचित योजनाएं हों।
  • समुचित जल संसाधन नीति बनाई जाए ताकि साल दर साल आने वाले सूखे और बाढ़ की आपदा से छुटकारा मिल सके।

(IV) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programmes)

  • अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार रोके जाएं। जातिवादी भेदभाव का खात्मा हो, समानता की गारंटी करने वाले कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाए।
  • आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को रोका जाए।
  • अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किए जाएं। अनुसूचित जातियों में दलित ईसाइयों को भी आरक्षण प्रदान किया जाए।
  • आवास को प्राथमिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया जाए।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य तथा सफाई की व्यवस्था के प्रबन्ध किए जाएं। स्वास्थ्य रक्षा सुविधाओं की निजीकरण से रक्षा होनी चाहिए।

विदेश नीति-गुट-निरपेक्षता की नीति को मज़बूत किया जाए और विश्व शान्ति का जोरदार समर्थन तथा नाभिकीय युद्ध के खतरे के विरुद्ध संघर्ष किया जाए। विश्व शान्ति व सुरक्षा को प्रोत्साहन दिया जाए। बदलते हुए परिवेश में अमेरिका द्वारा विश्व पर नई विश्व व्यवस्था थोपने का दृढ़तापूर्वक प्रतिरोध किया जाए। विकासशील देशों के आपसी सहयोग पर बल दिया जाए।

चुनाव सफलताएं-दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को केवल 20 सीटें मिलीं। मार्च, 1985 में हुए 11 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में इसको कोई विशेष सफलता नहीं मिली। मार्च, 1987 में पश्चिमी बंगाल और केरल की विधानसभा के चुनावों में मार्क्सवादी दल को महान् सफलता मिली। नवम्बर, 1989 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को 32 सीटें मिलीं। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 1991 के लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 35 सीटें प्राप्त हुईं। पश्चिमी बंगाल में मार्क्सवादी पार्टी 25 वर्ष से सत्ता में है। नवम्बर, 1993 में हुए पांच राज्यों तथा दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में और नवम्बर-दिसम्बर, 1994 में और फरवरी-मार्च, 1995 में हुए दस राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में मार्क्सवादी पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

1996 के लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 32 सीटें प्राप्त हुईं। मार्क्सवादी पार्टी ने अन्य दलों के साथ मिलकर संयुक्त मोर्चा की स्थापना की, परन्तु मार्क्सवादी संयुक्त मोर्चा की सरकार में सम्मिलित नहीं हुआ। मार्क्सवादी पार्टी ने संयुक्त मोर्चा की सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 32 सीटें प्राप्त हुईं। 1999 में लोकसभा के चुनावों में मार्क्सवादी पार्टी को 33 सीटें प्राप्त हुईं। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को पश्चिम बंगाल की विधानसभा में लगातार छठी बार सफलता प्राप्त हुई और मार्क्सवादी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में वामपंथी मोर्चा की सरकार बनी।

अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी साम्यवादी दल ने 43 सीटें जीतीं। इस दल ने कांग्रेस के नेतृत्व में “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी को केवल 16 सीटें ही मिलीं। अप्रैल-मई, 2011 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मार्क्सवादी दल के नेतृत्व में वाममोर्चा को कुल 294 सीटों में से केवल 62 सीटें ही मिलीं। इस प्रकार पिछले 34 सालों से सत्ता में रहे वाममोर्चा को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस दल को केवल 9 सीटें ही मिल पाई थीं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 6.
भारत में राजनीतिक दलों की मुख्य समस्याओं की व्याख्या कीजिए। (Discuss the main problems of the Political Parties in India.)
अथवा भारत की दल प्रणाली की समस्याओं का वर्णन करें।
(Discuss the problems facing the Party System of India.)
उत्तर-
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली की व्यवस्था की गई है। संसदीय शासन-प्रणाली राजनीतिक दलों के बिना नहीं चल सकती। निःसन्देह भारत में संसदीय शासन प्रणाली के सफलतापूर्वक संचालन का श्रेय यहां के राजनीतिक दलों को दिया जाता है। परन्तु भारत में प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था इतनी अधिक सफल नहीं हो पाई है जितनी कि इंग्लैण्ड, अमेरिका, स्विट्ज़रलैण्ड आदि में। इसका प्रमुख कारण राजनीतिक दलों के समक्ष आने वाली समस्याएं हैं। भारत में राजनीतिक दलों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है-

1. संगठनात्मक समस्याएं (Organisational Problems)-प्रायः सभी राजनीतिक दलों में संगठनात्मक समस्याएं पाई जाती हैं। 1969 के विभाजन से पूर्व कांग्रेस एक संगठित तथा व्यापक आधारित संगठन था, परन्तु 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ जिससे दल की संगठनात्मक समस्याएं उभर कर आईं। सत्तारूढ़ कांग्रेस अपने संगठन के बल पर ही 1971 से 1977 तक सत्ता में रही जबकि कांग्रेस (संगठन), संगठन के अभाव में बिखर गई। 1977 में कांग्रेस की पराजय के बाद कांग्रेस में गुटबन्दी ने दल को दोबारा विभाजित कर दिया तथा इस प्रकार दल कमज़ोर हो गया। यद्यपि कांग्रेस (इ) 1980 से नवम्बर, 1989 तक सत्ता में रही और जून, 1991 से मई, 1996 तक सत्ता रही तथापि इस पार्टी का संगठन बहुत संगठित नहीं है। दोनों साम्यवादी दल संगठन पर आधारित दल हैं परन्तु इन दलों का संगठन राष्ट्रव्यापी नहीं है क्योंकि इन दलों का प्रभाव पश्चिमी बंगाल और केरल में ही है। भूतपूर्व जनसंघ और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के पास संगठन है। इसके पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव उत्तर भारत में अधिक एवं दक्षिण भारत में कम है।

2. गुटबन्दी (Groupism)-प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में एक मुख्य बाधा है। गुटबन्दी के कारण ही कांग्रेस का 1969, 1978 तथा 1979 में विभाजन हुआ। भारतीय साम्यवादी दल में गुटबन्दी होने के कारण ही तीन दल बने-भारतीय साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल तथा मार्क्सवादी लेनिनवादी दल। डी० एम० के० का गुटबन्दी के कारण विभाजन हुआ और अन्ना डी० एम० के० का जन्म हुआ। जनता पार्टी जनता (एस) तथा लोकदल। जनता दल में भी गुटबन्दी पाई जाती रही है और इसी गुटबन्दी के कारण ही जनता दल का 1990, फरवरी 1992, जुलाई 1993 और जून 1994, जुलाई 1997, दिसम्बर 1997 और सातवीं बार जुलाई 1999 में विभाजन हुआ। आपसी गुटबन्दी के कारण ही 115 वर्षों से भी अधिक पुरानी कांग्रेस पार्टी में 19 मई, 1995 को तीसरी बार विभाजन हुआ और यह दो गुटों में बंट गई। राजनीतिक दलों में गुटबन्दी सैद्धान्तिक आधारों पर न होकर व्यक्तिगत मतभेदों के कारण है।

3. दल-बदल (Defections)—प्रायः सभी राजनीतिक दलों को दल-बदल की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अन्तर केवल इतना है कि कभी किसी दल को दल-बदल से लाभ होता है तो कभी किसी को और जिस दल-बदल से लाभ हो रहा होता है वह उस समय दल-बदल को रोकने की मांग नहीं करता जबकि अन्य दल ऐसी मांग करते हैं। संविधान में 52वां तथा 91वां संशोधन करके दल-बदल की बुराई को समाप्त करने का प्रयास किया गया है परन्तु दल-बदल की बुराई आज भी पाई जाती है।

4. नेतृत्व का संकट (A Crisis of Leadership)-प्रायः सभी दलों के नेताओं को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि देश में नीतिवान और युवा नेताओं की बहुत कमी है। राजनीतिक दलों का नेतृत्व प्रायः उन लोगों के हाथों में है जिनकी आयु 60 से 70 वर्ष से ऊपर है ऐसा प्रतीत होता है कि देश के प्रतिभाशाली नौजवान राजनीति में आना पसन्द नहीं करते। श्री राजीव गांधी ने राजनीति में आकर अच्छी शुरुआत की थी।

5. धन सम्बन्धी समस्या (Financial Problems)–संसद् और विधान सभाओं के चुनाव के लिए करोड़ों रुपये की आवश्यकता होती है। राजनीतिक दल अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने का प्रयास करते हैं ताकि चुनाव में पैसा पानी की तरह बहा सकें। राजनीतिक दलों की आय का मुख्य स्रोत सदस्यता शुल्क, दान तथा कोष-संचालन है। प्रायः सभी दल पूंजीपतियों तथा उद्योगपतियों से धन लेते हैं। जो लोग धन देते हैं, वे बदले में अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं इसलिए कहा जाता है कि कोई भी दल सत्ता में क्यों न आए पूंजीपतियों के हित की अवहेलना नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल सदस्यता शुल्क तथा कोष-संचालन के साधनों से प्राप्त धन का ब्योरा भी नहीं प्रकाशित करते। काले धन का भारतीय राजनीति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।

6. जाति एवं धर्म का महत्त्व (Importance of Caste and Religion)-यद्यपि भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है और सभी मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं, लेकिन व्यवहार में योग्य उम्मीदवारों के बजाय इन लोगों को चुनाव में टिकटें दी जाती हैं जिनकी जाति वालों का उस चुनाव क्षेत्र में बाहुल्य हो। चुनाव प्रसार में प्राय: सभी राजनीतिक दल जातीय और साम्प्रदायिक भावनाओं का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। कई राजनीतिक दल धर्म पर आधारित हैं। जाति की राजनीति भारत के भविष्य के लिए बहुत खतरनाक है।

7. राजनीतिक दलों के सिद्धान्तहीन समझौते (Non-principled Alliance of Political Parties) भारतीय दलीय व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए सिद्धान्तहीन समझौते करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जनवरी, 1980 के लोकसभा चुनावों में सभी दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए। उदाहरण के लिए अन्ना डी० एम० के० केन्द्रीय स्तर पर लोकदल सरकार में शामिल था और जनता पार्टी के विरुद्ध चौधरी चरण सिंह के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध था, लेकिन दूसरी ओर इस दल ने तमिलनाडु में जनता पार्टी के साथ चुनाव गठबन्धन किया। कांग्रेस (इ) जो अन्य दलों के समझौतों को सिद्धान्तहीन कहती रही, स्वयं तमिलनाडु में डी० एम० के० के साथ चुनाव गठबन्धन कर बैठी। आपात्काल में श्रीमती गांधी ने डी० एम० के० के करुणानिधि की सरकार को भ्रष्टाचार के आरोप के कारण बर्खास्त कर दिया था। मार्च, 1987 में कांग्रेस (आई) ने जम्मू-कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और केरल में कांग्रेस (आई) ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। 1999, 2004, 2009 तथा 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव के अवसर पर सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए।

8. जन-आधार सम्बन्धी समस्या (Problems relating to Masses)-जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए राजनीतिक नेताओं तथा प्रतिनिधियों का आम जनता के साथ सम्पर्क होना अत्यावश्यक है अर्थात् राजनीतिक दलों का जनआधार होना चाहिए। कांग्रेस ही एक ऐसा दल रहा है और आज भी कांग्रेस (इ) है जिसका जन-आधार है और जिसको समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त है। अन्य राजनीतिक दलों का आधार संकुचित है। भारतीय जनता पार्टी का जन-आधार मुख्यतः शहरों में है और वह भी उत्तरी भारत में है। दक्षिण भारत और गांवों में भारतीय जनता पार्टी को बहुत कम समर्थन प्राप्त है। साम्यवादी दल खेतिहर किसानों, कृषक-मजदूरों और शहरी मज़दूरों का नेतृत्व करते हैं।

9. स्पष्ट विचारधारा का अभाव (Absence of well defined Ideology)-भारत में पाए जाने वाले राजनीतिक दलों में विचारधारा एवं सिद्धान्तों का अभाव पाया जाता है। वामपंथी दलों के अतिरिक्त अन्य सभी दलों के प्रायः सभी कार्यक्रम एवं नीतियां एक जैसी हैं। भारत के राजनीतिक दलों में वचनबद्धता का भी अभाव पाया जाता है। राजनीतिक दलों में अस्पष्ट विचारधारा के कारण वे स्वार्थी तथा सिद्धान्तहीन व अवसरवादी प्रतीत होते हैं।

10. राजनीतिक दलों का ग़लत आधार (Wrong Basis of Political Parties)-भारत में राजनीतिक दलों से सम्बन्धित एक अन्य समस्या यह है कि इनका निर्माण ग़लत आधारों पर होता है। किसी भी राजनीतिक दल को भारतीय चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त करने के लिए संविधान के प्रति वफ़ादार बने रहने की तथा धर्म-निरपेक्षता, प्रभुसत्ता तथा देश की एकता एवं अखण्डता में प्रति वचनबद्धता प्रकट करनी पड़ती है। परन्तु भारत में जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र इत्यादि के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण होता है।

11. दल की अपेक्षा व्यक्तियों को महत्त्व (Importance to Individual rather than Party)—भारत में राजनीतिक दलों की एक समस्या है कि यहां पर राजनीतिक दलों की अपेक्षा व्यक्तियों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। कांग्रेस में सोनिया गांधी, भारतीय जनता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल में प्रकाश सिंह बादल, बहुजन समाज पार्टी में मायावती तथा डी० एम० के० में करुणानिधि को पार्टी की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है।

12. राजनीतिक दलों में अविश्वास (Lack of Faith in National Parties)-भारतीय राजनीति में राजनीतिक दलों की एक अन्य महत्त्वपूर्ण समस्या यह है, कि भारत में राष्ट्रीय दलों को भी देश के सभी क्षेत्रों में लोगों का विश्वास प्राप्त नहीं है। मार्क्सवादी पार्टी, भारतीय साम्यवादी दल, बहुजन समाज पार्टी तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का प्रभाव पूरे देश में न होकर कहीं-कहीं पर ही है।

13. अनुशासन का अभाव (Lack of discipline)-अनुशासन का अभाव भी राजनीतिक दलों की एक प्रमुख समस्या है। एक ही दल के नेता व्यक्तिगत हितों के लिए एक-दूसरे से विरोधी भावनाएं रखते हैं तथा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं। यदि उन्हें दल का टिकट न मिले तो वे दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं, या स्वतन्त्र चुनाव लड़ते हैं या अलग दल का निर्माण कर लेते हैं। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के समय सभी दलों के अधिकांश सदस्यों ने, जिनको दल का टिकट नहीं मिला, अपने ही दल के उम्मीदवार के विरुद्ध चुनाव लड़ा जो कि अनुशासनहीनता का उदाहरण है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तीन अखिल भारतीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए। किसी राजनीतिक दल को अखिल भारतीय स्तर का घोषित करने का आधार क्या है ? वर्णन करें।
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान की हुई है। इनमें मुख्य अखिल भारतीय दल इस प्रकार हैं__(1) इण्डियन नैशनल कांग्रेस (2) भारतीय जनता पार्टी, (3) बहुजन समाज पार्टी। किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने पिछले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम छः प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ ही लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम-से-कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कमसे-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो अथवा कम से कम चार राज्यों में उस दल को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त
हो।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की दल प्रणाली है ?
उत्तर-
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिह्न के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय मार्क्सवादी दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी। क्षेत्रीय दलों की संख्या 58 है।

प्रश्न 3.
भारत के सात राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखें।
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों की मान्यता दी है। ये दल हैं-(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (2) भारतीय जनता पार्टी (3) भारतीय साम्यवादी दल (4) भारतीय मार्क्सवादी दल (5) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (6) बहुजन समाज पार्टी (7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी।

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प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल की चार महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का राजनीतिक कार्यक्रम इस प्रकार है-

  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  • पार्टी साम्प्रदायिक सद्भावना और धर्म-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने की पक्षधर है।
  • पार्टी केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन करके राज्यों को अधिक शक्तियां देने के पक्ष में है।
  • पार्टी धारा 370 को बनाए रखने के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की आर्थिक नीति के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  • भूमि सुधारों को ज़ोरों से लागू किया जाए, जोतने वालों में ज़मीन बांटी जाए, भूमि का केन्द्रीयकरण समाप्त किया जाए और किसानों को सस्ते ऋण तथा अनुदान देकर खेती में लगने वाली चीजें उपलब्ध कराई जाएं।
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रभाव से पूरी तरह स्वतन्त्र रखकर मुक्त विकास को ध्यान में रखते हुए नियोजन की प्राथमिकताओं और नीतियों को बदला जाए।
  • पार्टी ने आवास तथा काम करने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बनाने का वायदा किया है। (4) घरेलू उद्योगों को मज़बूती प्रदान की जायेगी।

प्रश्न 6.
भारतीय जनता पार्टी की हिन्दुत्व धारणा की व्याख्या करो।
अथवा
भारतीय जनता पार्टी द्वारा हिन्दुत्व की, की गई चर्चा की व्याख्या करो।
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी 1951 में डॉ० श्यामा मुखर्जी द्वारा गठित भारतीय जनसंघ का रूपान्तरण है। नौवीं लोकसभा के चुनावों में हिन्दू जनाधार को अपने पक्ष में करने के लिए इसने राम जन्म भूमि पर राम मन्दिर के निर्माण का कार्यक्रम प्रस्तुत किया और इससे हिन्दू जनाधार का समर्थन भी मिला। उसे लोकसभा की 88 सीटें प्राप्त हुईं और इसी के सहयोग से राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी। राम मन्दिर निर्माण के मुद्दे को लेकर अक्तूबर, 1990 को भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहयोग से इसने राम जन्मभूमि पर मन्दिर बनाने के लिए अक्तूबर-नवम्बर, 1990 में दो असफल प्रयास किए। 1991 के चुनावों के समय जारी घोषणा-पत्र में ‘राम राज्य की ओर’ का नारा दिया गया। 6 दिसम्बर, 1992 को हिन्दू कार्यकर्ताओं व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। जिस कारण भारतीय जनता पार्टी की तीखी आलोचना हुई।

यद्यपि आज यह राष्ट्रीय दल है परन्तु यह दल अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति का विरोधी है जिस कारण संकुचित दृष्टि से सोचने वालों का समर्थन इसे प्राप्त नहीं है। वे इसे हिन्दू पार्टी के नाम से पुकारते हैं क्योंकि इसके 90 प्रतिशत सदस्य हिन्दू ही हैं।

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प्रश्न 7.
राजनीतिक दलों में व्यक्तित्व पूजा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
राजनीतिक दलों में व्यक्तित्व पूजा से अभिप्राय है, कि राजनीतिक दल अपने कार्यक्रमों एवं नीतियों की अपेक्षा अपने नेता को अधिक महत्त्व देते हैं। भारत के लगभग सभी राजनीतिक दल किसी-न-किसी नेता के ईर्द-गिर्द ही घूमते हैं। उदाहरण के लिए कांग्रेस पार्टी पहले पं० नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी तथा श्री राजीव के इर्द-गिर्द घूमती थी, जबकि आजकल श्रीमती सोनिया गांधी एवं श्री राहुल गांधी के आस-पास घूमती है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी भी वर्तमान समय में श्री नरेन्द्र मोदी के आस-पास घूमती है।

प्रश्न 8.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म सन् 1885 में हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में एक अंग्रेज़ अधिकारी ए० ओ० ह्यम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का प्रारम्भिक उद्देश्य भारतीयों तथा ब्रिटिश सरकार में अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना था। परन्तु धीरे-धीरे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य बदलकर ‘पूर्ण स्वराज्य की मांग’ हो गया।

प्रश्न 9.
कांग्रेस की विदेश नीति के बारे में लिखिए।
अथवा
कांग्रेस पार्टी की विदेश नीति लिखो।
उत्तर-

  • कांग्रेस ने शान्ति, नि:शस्त्रीकरण और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए विकास करने के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रति अपनी वचनबद्धता को पुनः दोहराया है।
  • कांग्रेस विदेश नीति को देश की आर्थिक प्राथमिकताओं और चिन्ताओं से जोड़ेगी।
  • कांग्रेस दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (सफ्टा) बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • कांग्रेस पार्टी गुट निरपेक्षता की नीति में विश्वास रखती है।

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प्रश्न 10.
कांग्रेस (आई) की आर्थिक नीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आर्थिक नीतियां एवं कार्यक्रम इस प्रकार हैं

  • ग़रीबी दूर करना-ग़रीबी दूर करना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य है और ग़रीबी को जड़ से मिटाने के प्रति कांग्रेस वचनबद्ध है।
  • कृषि किसान तथा खेत मज़दूर-कांग्रेस ने कृषि को उद्योग का दर्जा देने तथा कृषि ऋण प्रणाली को मजबूत बनाने का वायदा किया है। कांग्रेस ने कृषि उत्पादन बढ़ाने और किसान तथा खेत मजदूरों के हितों की रक्षा करने का वायदा किया है।
  • श्रमिक-कांग्रेस बीमार कम्पनियों की हालत सुधारने के लिए कर्मचारियों के संगठनों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन और समर्थन देगी। असंगठित क्षेत्रों में श्रमिकों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा और बीमा योजनाओं को सुदृढ़ किया जाएगा एवं उसका विस्तार किया जाएगा। कांग्रेस प्रबन्ध में श्रमिकों के लिए साझेदारी बढ़ाने को वचनबद्ध है।
  • पार्टी औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर को तेज़ करेगी।

प्रश्न 11.
भारतीय दलीय प्रणाली की चार विशेषताएं लिखें।
अथवा
भारतीय राजनीतिक दल प्रणाली की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-
भारतीय दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राष्ट्रीय स्तर के दलों को मान्यता दी हुई है। ये दल इस प्रकार हैं-कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त अनेक राज्य स्तर के और क्षेत्रीय दल पाए जाते हैं।

2. साम्प्रदायिकता-भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख विशेषता साम्प्रदायिक दलों का होना है। 3. भारत में क्षेत्रीय दल भी पाए जाते हैं। 4. भारत में कार्यक्रम की अपेक्षा नेतृत्व को प्रमुखता दी जाती है।

प्रश्न 12.
भारत में विरोधी दल द्वारा किए जाने वाले मुख्य चार कार्य लिखें।
उत्तर-
भारत में विरोधी दल निम्नलिखित कार्य करते हैं-

  • आलोचना-भारत में विरोधी दल का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों की आलोचना करना है। विरोधी दल संसद् के अन्दर और संसद् के बाहर सरकार की आलोचना करते हैं।
  • वैकल्पिक सरकार-भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण विरोधी दल वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए तैयार रहता है।
  • अस्थिर मतदाता को अपील करना-विरोधी दल सत्तारूढ़ दल को आम चुनाव में हराने का प्रयत्न करता है। इसके लिए विरोधी दल सत्तारूढ़ दल की आलोचना करके मतदाताओं के सामने यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है कि यदि उसे अवसर दिया जाए तो वह देश का शासन सत्तारूढ़ दल की अपेक्षा अच्छा चला सकता है।
  • विरोधी दल लोकतन्त्र की सुरक्षा करता है।

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प्रश्न 13.
भारत में साम्यवादी दल की आर्थिक नीति लिखिए।
अथवा
भारतीय साम्यवादी दल की कोई चार नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय साम्यवादी दल का आर्थिक कार्यक्रम इस प्रकार है-

  • पार्टी का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्गठन किया जाए और इसे अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास किया जाए।
  • आवास तथा काम के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय में अंकित किया जाए।
  • मज़दूरों के सम्बन्ध में कोई भी कानून बनाते समय उनकी सलाह ली जाए।
  • देशभर में फसल तथा पशु बीमा का विस्तार किया जायेगा।

प्रश्न 14.
भारतीय दल प्रणाली की कोई चार कमियों (कमजोरियों) को लिखें।
अथवा
भारतीय राजनीतिक दलों की कोई चार कमियां लिखिए।
उत्तर-

  • राजनीतिक दलों का ग़लत आधार-भारत में अनेक राजनीतिक दल धर्म, जाति, क्षेत्र आदि पर आधारित हैं। ऐसे राजनीतिक दल जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकतावाद आदि को बढ़ावा देते हैं।
  • गुटबन्दी–प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में बाधा
  • दल-बदल-भारतीय दलीय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण दोष दल-बदल है।
  • सिद्धान्तहीन समझौते-भारतीय राजनीतिक दल प्रायः सिद्धान्तहीन समझौते करते रहते हैं।

प्रश्न 15.
बहुजन समाज पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
भारत में किसने, कब और क्यों बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया था?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी को प्रायः बसपा के नाम से जाना जाता है। यह पार्टी दलित लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। बसपा की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 को कांशी राम ने की थी। इस पार्टी का पहला नाम डी० एस० 4 (D.S. 4) था। जिसका आधार है-दलित, शोषित समाज संघर्ष समिति (Dalit, Shoshit Samaj Sangharsh Samiti) । कांशीराम के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित, जन-जातियों, शैक्षणिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, कारीगर और वे सभी दलित जिनका पूंजीपतियों ने शोषण किया है बहुजन समाज है। इस पार्टी की स्थापना इसलिए की गई थी ताकि दलित वर्ग के लोगों को राजनीति व प्रशासन में समुचित भागीदारी मिल सके। इस पार्टी का उद्देश्य बहुजन समाज का कल्याण करना है।

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प्रश्न 16.
भारतीय जनता पार्टी की चार महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • उपभोक्ता संरक्षण-पार्टी उपभोक्ता कानून में सुधार करेगी और उसको अच्छे ढंग से लागू करेगी। उपभोक्ता आन्दोलन को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • काला धन-पार्टी काले धन के निर्माण को रोकने के कड़े उपाय करेगी।
  • श्रम-घोषणा-पत्र के अनुसार भारतीय जनता पार्टी औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिक भागीदारी शुरू करेगी।
  • पूर्ण रोज़गार-पार्टी बेरोज़गारी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दलों का पंजीकरण क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
दिसम्बर, 1988 में संसद् ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए जन प्रतिनिधि कानून 1950 और 1951 में संशोधन किया। इस संशोधन के अनुसार कोई भी गुट, समूह, संघ अथवा संस्था तब तक राजनीतिक दल नहीं बन सकता जब तक कि वह चुनाव आयोग के पास पंजीकृत नहीं होगा। इसके लिए उसे चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होगा। राजनीतिक दलों के लिए पंजीकरण (Registration) को इसलिए अनिवार्य माना गया है ताकि चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के सदस्य जन प्रतिनिधि बनने के बाद संविधान के प्रति आस्था रखें। वे प्रजातान्त्रिक मूल्यों को बढ़ावा दें। देश की सुरक्षा, हितों व शान्ति के विरुद्ध कार्य न करें। राजनीतिक दलों का पंजीकरण इसलिए भी ज़रूरी है ताकि कोई संस्था, गुट अथवा समूह असंगठित व अनियन्त्रित लोगों का समूह मात्र बनकर सामाजिक उन्माद न फैला सके। राजनीतिक दल के पंजीकरण द्वारा सरकार को उस दल के पदाधिकारियों, संगठन व आय के स्रोतों का पता चल जाता है। इस प्रकार राजनीतिक दलों को कानून के दायरे में रखने के लिए उनका पंजीकरण अनिवार्य किया जाता है।

प्रश्न 18.
भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की क्या नीति है ?
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में कहा है कि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जायेंगे

  • विदेशों से किए गए समझौतों में भ्रष्टाचार के मामलों पर रक्षा सौदों में कमीशन लेने वालों की जांच की जाएगी और दोषियों को दण्डित किया जाएगा।
  • यह ओम्बुड्समैन-लोकपाल तथा लोकायुक्त नियुक्त करने के लिए कानून बनाएगी और प्रधानमन्त्री तथा मुख्य मन्त्रियों को इनके अन्तर्गत लाया जाएगा।
  • क्रय तथा ठेके आदि देने का काम करने वाले सरकारी विभागों तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के निगमों के दैनिक कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा दखल-अन्दाजी को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • सरकारी विभागों के खर्चों में कमी की जायेगी।

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प्रश्न 19.
भारत में राजनीतिक दलों के लिए लीडरशिप (नेतृत्व) का क्या संकट है ?
अथवा
भारत में राजनीतिक दलों की नेतत्व की क्या समस्याएं हैं? ।
उत्तर-
भारत में प्राय: सभी राजनीतिक दलों में ऐसे नेताओं की कमी है, जो दल एवं देश का कुशलतापूर्वक मार्गदर्शन कर सकें। प्रायः सभी दलों के नेताओं को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि देश में नीतिवान और युवा नेताओं की बहुत कमी है। राजनीतिक दलों का नेतृत्व प्रायः उन लोगों के हाथों में है जिनकी आयु 60 से 70 वर्ष से ऊपर है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश के प्रतिभाशाली नौजवान राजनीति में आना पसन्द नहीं करते। श्री राजीव गांधी ने राजनीति में आकर अच्छी शुरुआत की।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का दल तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में 6 प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ-साथ लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम-से-कम तीन राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो अथवा कमसे-कम चार राज्यों में उस दल को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो। इसी आधार पर चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और उनके अध्यक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर –
दलों के नाम — अध्यक्षों के नाम
(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस — श्री राहुल गांधी
(2) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी — श्री एस० सुधाकर रेड्डी
(3) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी — श्री सीता राम यचुरी
(4) भारतीय जनता पार्टी — श्री अमित शाह
(5) बहुजन समाज पार्टी — सुश्री मायावती
(6) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी — श्री शरद पवार
(7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी — सुश्री ममता बनर्जी

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 22.
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के चुनाव निशान लिखें।
अथवा
भारत में पाए जाने वाले चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम व चुनाव चिन्ह बताएं।
उत्तर-
दलों का नाम — चुनाव निशान
(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस — हाथ
(2) भारतीय जनता पार्टी — कमल का फूल
(3) भारतीय साम्यवादी पार्टी — दराती और गेहूं की बाली
(4) भारतीय मार्क्सवादी पार्टी — दराती, हथौड़ा और तारा
(5) बहुजन समाज पार्टी — हाथी
(6) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी — घड़ी
(7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी — पुष्प एवं घास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का दल तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने पिछले लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम 6% वैध मत हासिल करने के साथ लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों, अथवा कम-से-कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का 2% (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो। अथवा कम से कम चार राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की राजनीतिक दल प्रणाली है?
उत्तर-
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्ह के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी।

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प्रश्न 3.
भारतीय दलीय प्रणाली की दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है।
  • साम्प्रदायिकता-भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख विशेषता साम्प्रदायिकता दलों का होना है।

प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल का आर्थिक कार्यक्रम लिखें।
उत्तर-

  • पार्टी का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्गठन किया जाए और इसे अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास किया जाए।
  • आवास तथा काम के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय में अंकित किया जाए।

प्रश्न 5.
भारतीय राजनैतिक दलों की कोई दो कमियां लिखिए।
उत्तर-

  1. राजनीतिक दलों का ग़लत आधार-भारत में अनेक राजनीतिक दल धर्म, जाति, क्षेत्र आदि पर आधारित हैं।
  2. गुटबन्दी–प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में बाधा है।

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प्रश्न 6.
बहुजन समाज पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी को प्रायः बसपा के नाम से जाना जाता है। यह पार्टी दलित लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। बसपा की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 को कांशी राम ने की थी। इस पार्टी का पहला नाम डी० एस० 4 (D.S. 4) तथा जिसका अर्थ है-दलित, शोषित, समाज संघर्ष समिति (Dalit, Shoshit, Samaj Sangharsh Samiti)। इस पार्टी की स्थापना इसलिए की गई थी ताकि दलित वर्ग के लोगों को राजनीति व प्रशासन में समुचित भागीदारी मिल सके। इस पार्टी का उद्देश्य बहुजन समाज का कल्याण करना है।

प्रश्न 7.
भारत में कुल कितने क्षेत्रीय दल हैं ?
उत्तर-
भारत में अनेक क्षेत्रीय दल पाए जाते हैं। चुनाव आयोग ने 58 राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है। इनमें से तीन क्षेत्रीय दलों के नाम हैं-

  1. शिरोमणि अकाली दल
  2. नैशनल कान्फ्रैंस
  3. डी० एम० के०।

प्रश्न 8.
भारत के दो राष्ट्रीय और दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रीय दल- 1. भारतीय जनता पार्टी, 2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।
क्षेत्रीय दल-1. शिरोमणि अकाली दल, 2. इण्डियन नेशनल लोकदल।

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प्रश्न 9.
भारत में जाति के आधार पर बने दो राजनीतिक दलों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. डी० एम० के० (D.M.K.)
  2. ए० आई० ए० डी० एम० के० (AIADMK)।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषता क्या है ?
उत्तर-
भारतीय दलीय प्रणाली बहु-दलीय है।

प्रश्न 2.
वर्तमान समय में भारत में कितने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं ?
उत्तर-
भारत में 7 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

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प्रश्न 3.
चुनाव आयोग ने कितने राज्य स्तरीय दलों को मान्यता प्रदान की हुई है?
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर के रूप में मान्यता दी हुई है।

प्रश्न 4.
भारत में दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखो।
अथवा
भारत में पाए जाने वाले दो मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 5.
भारत में कोई दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. इण्डियन नेशनल लोकदल
  2. शिरोमणि अकाली दल।

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प्रश्न 6.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सन् 1924 में की गई।

प्रश्न 7.
कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथ’ है।

प्रश्न 8.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यक्रम की एक महत्त्वपूर्ण बात लिखें।
उत्तर-
छुआछूत को समाप्त करना और छुआछूत का पालन करने वालों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही करना।

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प्रश्न 9.
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथी’ है।

प्रश्न 10.
कांग्रेस पार्टी की वर्तमान अध्यक्ष कौन है ?
उत्तर-
कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं ?
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष श्री अमित शाह हैं।

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प्रश्न 12.
भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
‘कमल का फूल’ भाजपा का चुनाव चिह्न है।

प्रश्न 13.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हथौड़ा, दरांती एवं तारा’ है।

प्रश्न 14.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
सन् 1984 में।

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प्रश्न 15.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
सन् 1964 में।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें

1. भारत में …………. प्रणाली पाई जाती है।
2. भारत में ………….. राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।
3. कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् ……………….. में हुई।
4. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्री. ………………. हैं।
5. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ………………. हैं।
उत्तर-

  1. बहुदलीय
  2. 7
  3. 1885
  4. राहुल गांधी
  5. श्री अमित शाह।

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें

1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।
2. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं।
3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पूंजीवादी विचारधारा का समर्थन करती है ?
4. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्री सीता राम येचुरी हैं।
5. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती हैं।
6. भारत में एक दलीय प्रणाली है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. सही
  6. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सी दल प्रणाली है ?
(क) एक दलीय
(ख) द्वि-दलीय
(ग) बहु दलीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बहु दलीय

प्रश्न 2.
कौन-सा राजनीतिक दल अनुच्छेद 370 को संविधान में से निलम्बित करना चाहता है ?
(क) भारतीय साम्यवादी दल
(ख) जनता दल
(ग) कांग्रेस
(घ) भारतीय जनता पार्टी।
उत्तर-
(घ) भारतीय जनता पार्टी।

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प्रश्न 3.
भारतीय साम्यवादी दल का दो भागों में विभाजन हुआ।
(क) 1957 में
(ख) 1960 में
(ग) 1952 में
(घ) 1964 में।
उत्तर-
(घ) 1964 में।

प्रश्न 4.
भारत में कितने मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं ?
(क) 38
(ख) 40
(ग) 58
(घ) 55.
उत्तर-
(ग) 58

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

बिंदा सिंह बहादुर का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Banda Singh Bahadur)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करें। (What do you know about the early career of Banda Singh Bahadur ? Explain briefly.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अपनी योग्यता के बल पर पंजाब में एक के बाद एक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन (Childhood)-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अतः जब लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बँटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीरकमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता।

3. बैरागी के रूप में (As a Bairagi)-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़पकर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया और बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। घूमते-घूमते माधोदास की मुलाकात तंत्रविद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर 1
BANDA SINGH BAHADUR

4 गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट (Meeting with Guru Gobind Singh Ji)-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न- उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब जी का अनुयायी बन गया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

5. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान (Banda Singh Bahadur Proceeds towards Punjab)-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से पंजाब में सिखों पर मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु साहिब जी से पंजाब जाने के लिए आज्ञा माँगी। गुरु साहिब जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। गुरु साहिब जी ने बंदा सिंह बहादुर को पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए 25 अन्य सिखों को भी साथ भेजा। गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में उसका पूरा साथ दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को भी कुछ आदेश दिए। पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं . करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे (Military Exploits of Banda Singh Bahadur)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों की चर्चा करें और पंजाब के इतिहास में उसके महत्त्व का मूल्यांकन करें।
(Discuss the military exploits of Banda Singh Bahadur and estimate their significance in the History of the Punjab.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों का विवरण दें।
(Give briefly the account of the battle fought by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों के साथ लड़ाइयों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। (Write in detail the battles fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों अथवा सफलताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
(Explain briefly the military exploits or achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी तथा अन्य सिखों पर हुए अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए बंदा सिंह बहादुर गुरु जी की आज्ञा से पंजाब की ओर चल पड़ा। यहाँ पहुँचते ही उसने गुरु जी के हुक्मनामे जारी किये। परिणामस्वरूप हज़ारों की संख्या में सिख उसके ध्वज तले एकत्र हो गए। तद्उपरांत बंदा सिंह बहादुर ने अपनी सैनिक गतिविधियाँ आरंभ कर दीं
इसमें बंदा सिंह बहादुर काफ़ी सीमा तक सफल रहा। उसके महत्त्वपूर्ण सैनिक कारनामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण (Attack on Sonepat)—बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ सोनीपत से किया। उसने 1709 ई० में सोनीपत पर आक्रमण कर दिया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना मुकाबला किए ही दिल्ली की ओर भाग गया। इस प्रकार सिखों का सरलता से सोनीपत पर अधिकार हो गया।

2. समाना की विजय (Conquest of Samana)-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करने वाला और गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा देने वाले जल्लाद रहते थे। इसलिए बंदा सिंह बहादुर ने नवंबर, 1709 ई० में समाना पर बड़ा जोरदार आक्रमण किया। समाना सिखों ने खंडहर के ढेर में परिवर्तित कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. घुड़ाम तथा मुस्तफाबाद पर अधिकार (Conquest of Ghuram and Mustafabad)-समाना की विजय के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने घुड़ाम एवं मुस्तफाबाद पर आक्रमण किया तथा सुगमता से अधिकार कर लिया।

4. कपूरी की विजय (Conquest of Kapuri)-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार कपूरी पर विजय प्राप्त की गई।

5. सढौरा की विजय (Conquest of Sadhaura) सढौरा का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए कुख्यात था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए हत्या करवा दी थी, क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अतः बंदा सिंह बहादुर ने इसका बदला लेने के लिए सढौरा पर आक्रमण कर दिया। यहाँ पर मुसलमानों को इतनी भारी संख्या में मारा गया, कि सढौरा का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

6. सरहिंद की विजय (Conquest of Sirhind)-सरहिंद पर विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। उसकी सेनाओं के हाथों ही गुरु जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे चमकौर साहिब की लड़ाई में शहीद हो गए थे। वज़ीर खाँ के ही भेजे गए दो पठानों में से एक पठान ने गुरु साहिब को नंदेड़ के स्थान पर छुरा मार दिया। इस कारण वह ज्योति-जोत समा गए। अतः सिखों में सरहिंद प्रति अत्यधिक घृणा थी। 12 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं के बीच सरहिंद से लगभग 16 किलोमीटर दूर चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। फ़तह सिंह के हाथों वज़ीर खाँ के मरते ही मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई। सिखों ने वज़ीर खाँ के शव को एक वृक्ष पर लटका दिया तथा समूचे सरहिंद में भारी लूटपाट की। यह बंदा सिंह बहादुर की अति महत्त्वपूर्ण विजय थी।

7. यमुना-गंगा दोआब की विजय (Conquest of Jamuna-Ganga Doab)-सरहिंद की विजय के बाद बंदा सिंह बहादुर ने यमुना-गंगा दोआब के प्रदेशों पर आक्रमण किया। शीघ्र ही बंदा सिंह बहादुर ने सहारनपुर, बेहात, ननौता और अंबेटा को अपने अधिकार में ले लिया।

8. जालंधर दोआब की विजय (Conquest of Jalandhar Doab)-जालंधर दोआब का फ़ौजदार शमस खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसके अत्याचारों से तंग आकर सिखों ने बंदा सिंह बहादुर से सहायता माँगी। अतः 12 अक्तूबर, 1710 ई० में राहों के स्थान पर बंदा सिंह बहादुर ने शमस खाँ को करारी पराजय दी। फलस्वरूप समूचे जालंधर दोआब पर उसका अधिकार हो गया। इसके उपरांत बंदा सिंह बहादुर ने अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के प्रदेशों पर भी बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

9. मुग़लों का लोहगढ़ पर आक्रमण (Attack of Mughals on Lohgarh)—बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने उसकी शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। उसने जरनैल मुनीम खाँ के नेतृत्व में 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर की राजधानी लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। सिख दुर्ग के भीतर से ही मुग़लों का डटकर सामना करते रहे। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों का पक्ष कमज़ोर पड़ने लगा। अतः बंदा सिंह बहादुर वेश बदल कर नाहन की पहाड़ियों की ओर चला गया।

10. गुरदास-नंगल की लड़ाई (Battle of Gurdas-Nangal)-बंदा सिंह बहादुर ने शीघ्र ही अपनी स्थिति को फिर से दृढ़ बना लिया। उसने बड़ी सरलता से बहरामपुर, रायपुर, कलानौर और बटाला के प्रदेशों पर फिर से अधिकार कर लिया। अतः नए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर लाहौर के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर को गुरदास-नंगल के स्थान पर अचानक घेरे में ले लिया। बंदा सिंह बहादुर ने दुनी चंद की हवेली से मुग़ल सेना का सामना जारी रखा। यह घेरा 8 मास तक चला। धीरे-धीरे खाद्य-सामग्री की कमी के कारण सिखों की स्थिति गंभीर हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह अपने साथियों सहित गढ़ी छोड़ कर चला गया। इस कारण बंदा सिंह बहादुर की स्थिति और बिगड़ गई। अंततः 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर तथा 740 सिखों को बंदी बना लिया गया।

11. बंदा सिंह बहादुर का बलिदान (Martyrdom of the Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को फरवरी 1716 ई० में दिल्ली भेजा गया। दिल्ली पहुँचने पर उनका जलूस निकाला गया। बंदा सिंह बहादुर को एक पिंजरे में बंद किया गया था। मार्ग में उसका एवं अन्य सिखों का भारी अपमान किया गया। सिख इस दौरान प्रसन्नचित्त गुरवाणी का जाप करते रहे। फिर उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। परंतु सिखों ने भी इस्लाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इसके उपरांत प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर को शहीद करने से पहले जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या की। तत्पश्चात् बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काट कर उन्हें शहीद कर दिया गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बंदा सिंह बहादुर को 19 जून, 1716 ई० को शहीद किया गया था। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के इन शब्दों से सहमत हैं,

“इस प्रकार उस व्यक्ति के जीवन का अंत हुआ जिसने 7 वर्ष के अल्पकाल में ही अपनी विजयों द्वारा महान् मुग़ल साम्राज्य को ऐसी चुनौती प्रस्तुत की कि वह दुबारा उस प्रदेश (पंजाब) पर पुनः आत्मविश्वास से शासन न कर सका।”1

1. “So ended the life of a man who in seven short years had so mocked the might of the Mughals with his victories that they could never again reassert their authority over the land they had once ruled with such a plomb.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 81 .

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के जीवन तथा सफलताओं का वर्णन करें। (Describe the career and achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अपनी योग्यता के बल पर पंजाब में एक के बाद एक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन (Childhood)-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अतः जब लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बँटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीरकमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता।

3. बैरागी के रूप में (As a Bairagi)-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़पकर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया और बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। घूमते-घूमते माधोदास की मुलाकात तंत्रविद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर 1
BANDA SINGH BAHADUR

4. गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट (Meeting with Guru Gobind Singh Ji)-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न- उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब जी का अनुयायी बन गया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

5. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान (Banda Singh Bahadur Proceeds towards Punjab)-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से पंजाब में सिखों पर मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु साहिब जी से पंजाब जाने के लिए आज्ञा माँगी। गुरु साहिब जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। गुरु साहिब जी ने बंदा सिंह बहादुर को पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए 25 अन्य सिखों को भी साथ भेजा। गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में उसका पूरा साथ दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को भी कुछ आदेश दिए। पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं . करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

बंदा सिंह बहादुर की सफलता एवं असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success and Failure)

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं और अंतिम असफलताओं के क्या कारण थे ?
(What were the causes of initial success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादर की आरंभिक सफलता तथा अंत में असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of early success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभ में सफलताओं और बाद में असफलताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(Give a brief account of initial success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
I. बंदा सिंह बहादुर की सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success)
बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब के सिखों का जिस योग्यता, लगन और वीरता से नेतृत्व किया उसका इतिहास में कोई और उदाहरण मिलना मुश्किल है। उसने बड़ी तीव्रता से पंजाब के विस्तृत भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। बंदा सिंह बहादुर की इस आरंभिक सफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगलों के घोर अत्याचार (Great Atrocities of the Mughals)-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबजादे (अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप, वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए और बंदा सिंह बहादुर के लिए विजय अभियान आसान हो गया।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे (Hukamnamas of Guru Gobind Singh Ji)—गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे’ भेजे थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुग़लों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमजोर उत्तराधिकारी (Weak Successors of Aurangzeb)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद बनने वाला मुग़ल बादशाह जहाँदार शाह बहुत ही अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व (Able leadership of Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे (Banda Singh Bahadur’s early exploits were against petty local Mughal Officials)-बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण सरहिंद को छोड़कर छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे। ये अधिकारी अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम थे। फलस्वरूप, जब बंदा सिंह बहादुर ने इन प्रदेशों पर आक्रमण किये तो स्थानीय लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को अपना समर्थन दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर एक के बाद दूसरी सफलता प्राप्त करता गया।

6. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध (Good Administration of Banda Singh Bahadur)बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला और इसी कारण उसे आरंभिक काल में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुईं।

II. बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate Failure)
पंजाब आने के बाद बंदा सिंह बहादर ने अपने प्रारंभिक वर्षों में अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। परंतु शीघ्र ही उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा। बंदा सिंह बहादुर की इस अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगल साम्राज्य की शक्ति (Strength of the Mughal Empire)-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहुत कम थी। बंदा सिंह बहादुर की आय का मुख्य साधन लूटमार ही था। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव (Lack of Organisation among the Sikhs)-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन (Violation of Instructions by Banda Singh Bahadur)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को कुछ आवश्यक आदेश दिए थे। कालांतर में उसने इनका उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। उसने गुरु साहिब के आदेशों के विरुद्ध चंबा की राजकुमारी से विवाह करवा लिया था और शाही ठाठ से रहने लग पड़ा था। उसने ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह’ के स्थान पर ‘फ़तह धर्म और फ़तह दर्शन’ के शब्दों को प्रचलित करके सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। फलस्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ (Measures of Farukhsiyar against the Sikhs)1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास-नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण (Surprise attack on the Sikhs at Gurdas Nangal)-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद (Differences between Banda Singh Bahadur and Binod Singh)-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप, बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अतः बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the initial success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success)
बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब के सिखों का जिस योग्यता, लगन और वीरता से नेतृत्व किया उसका इतिहास में कोई और उदाहरण मिलना मुश्किल है। उसने बड़ी तीव्रता से पंजाब के विस्तृत भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। बंदा सिंह बहादुर की इस आरंभिक सफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगलों के घोर अत्याचार (Great Atrocities of the Mughals)-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबजादे (अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप, वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए और बंदा सिंह बहादुर के लिए विजय अभियान आसान हो गया।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे (Hukamnamas of Guru Gobind Singh Ji)—गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे’ भेजे थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुग़लों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमजोर उत्तराधिकारी (Weak Successors of Aurangzeb)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद बनने वाला मुग़ल बादशाह जहाँदार शाह बहुत ही अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व (Able leadership of Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे (Banda Singh Bahadur’s early exploits were against petty local Mughal Officials)-बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण सरहिंद को छोड़कर छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे। ये अधिकारी अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम थे। फलस्वरूप, जब बंदा सिंह बहादुर ने इन प्रदेशों पर आक्रमण किये तो स्थानीय लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को अपना समर्थन दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर एक के बाद दूसरी सफलता प्राप्त करता गया।

6. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध (Good Administration of Banda Singh Bahadur)बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला और इसी कारण उसे आरंभिक काल में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुईं।

प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate Failure)
पंजाब आने के बाद बंदा सिंह बहादर ने अपने प्रारंभिक वर्षों में अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। परंतु शीघ्र ही उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा। बंदा सिंह बहादुर की इस अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगल साम्राज्य की शक्ति (Strength of the Mughal Empire)-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहुत कम थी। बंदा सिंह बहादुर की आय का मुख्य साधन लूटमार ही था। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव (Lack of Organisation among the Sikhs)-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन (Violation of Instructions by Banda Singh Bahadur)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को कुछ आवश्यक आदेश दिए थे। कालांतर में उसने इनका उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। उसने गुरु साहिब के आदेशों के विरुद्ध चंबा की राजकुमारी से विवाह करवा लिया था और शाही ठाठ से रहने लग पड़ा था। उसने ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह’ के स्थान पर ‘फ़तह धर्म और फ़तह दर्शन’ के शब्दों को प्रचलित करके सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। फलस्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ (Measures of Farukhsiyar against the Sikhs)1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास-नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण (Surprise attack on the Sikhs at Gurdas Nangal)-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद (Differences between Banda Singh Bahadur and Binod Singh)-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप, बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अतः बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

बंदा सिंह बहादुर के चरित्र तथा सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Banda Singh Bahadur’s Character and Achievements)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालें। (P.S.E.B. July 2006) (Describe in detail about the achievements of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के चरित्र एवं उपलब्धियों का विवेचन करें। क्या वह रक्त-पिपासु मनुष्य था ?
(Assess the character and achievements. of Banda Singh Bahadur Was he a ruthless blood-sucker ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के चरित्र तथा सफलताओं का मूल्यांकन करें।
(Form an estimate of the character and achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी था। वह एक वीर योद्धा, कुशल सेनापति, योग्य शासन प्रबंधक, सिख धर्म का सच्चा अनुयायी तथा पावन जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य था। बंदा सिंह बहादुर के चरित्र और सफलताओं का मूल्याँकन निम्नलिखित अनुसार है—
मनुष्य के रूप में (As a Man)
1. शक्ल-सूरत (Physical Appearance)—बंदा सिंह बहादुर की शक्ल-सूरत गुरु गोबिंद सिंह जी से काफी हद तक मिलती-जुलती थी। उसका शरीर पतला, कद मध्यम और रंग गेहुँआ था। वस्तुतः उसका व्यक्तित्व इतना प्रभावपूर्ण था कि उसके शत्रु भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे।

2. वीर और साहसी (Brave and Bold)—बंदा सिंह बहादुर को इतिहास में उसकी वीरता और साहस के कारण ही प्रसिद्धि प्राप्त है। बड़े-से-बड़े संकट में भी वह घबराता नहीं था। लोहगढ़ के दुर्ग में जब वह घिर गया था तथा गुरदास-नंगल की लड़ाई में उसने अपने अद्वितीय साहस का प्रमाण दिया। उसका संपूर्ण जीवन ही उसकी बहादुरी के कारनामों से भरा पड़ा है।

3. सिख धर्म का सच्चा अनुयायी (A true follower of Sikhism)-बंदा सिंह बहादुर का सिख धर्म में बहुत दृढ़ विश्वास था। वह सिख धर्म का सच्चा अनुयायी था। शासन संभालने पर उसने गुरु नानक साहिब एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर सिक्के जारी किये। इस प्रकार उसने सिख धर्म का प्रचार किया।

4. सहिष्णु (Tolerant)-चारित्रिक रूप में बंदा सिंह बहादुर की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुपन था। उसने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई अत्याचार नहीं किया। उसकी मुग़लों के साथ लड़ाई भी अत्याचार के विरुद्ध थी। उसकी अपनी सेना में अनेक मुसलमान भर्ती थे और उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर धार्मिक रूप से पूर्ण सहिष्णु था।

5. उच्च आचरण (High Character)-बंदा सिंह बहादुर का आचरण बहुत उज्ज्वल था। वह बड़ा सरल तथा पवित्र जीवन व्यतीत करता था। वह शराब, माँस और अन्य मादक द्रव्यों का प्रयोग नहीं करता था। वह महिलाओं का बहुत सम्मान करता था। उसने सिखों को यह आदेश दिया था, कि वे लड़ाई के समय भी महिलाओं से किसी प्रकार की अभद्रता न करें।

योद्धा तथा सेनापति के रूप में (As a Warrior and General)
बंदा सिंह बहादुर अपने समय का एक महान् योद्धा तथा उच्च कोटि का सेनापति था। उसने अपने सीमित साधनों के बावजूद महान् मुग़ल साम्राज्य के साथ करारी टक्कर ली । उसने मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों में शानदार सफलताएँ प्राप्त की। वह युद्ध-चालों में बहुत प्रवीण था तथा आवश्यकता पड़ने पर पीछे हटने में अपना अपमान नहीं समझता था। वह शत्रु के कमज़ोर पक्ष पर अचानक आक्रमण करके अपनी विजय सुनिश्चित कर लेता था। वह युद्ध के मैदान को अपनी सुविधा के अनुसार चुनता और इस प्रकार अपनी स्थिति को दृढ़ कर लेता था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने अपनी प्रत्येक लड़ाई में विजय प्राप्त की। प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० गाँधी का कहना बिल्कुल ठीक है, “वह (बंदा सिंह बहादुर) उच्च कोटि का योद्धा तथा सेनापति था।”2

प्रशासक के रूप में (As an Administrator)
बंदा सिंह बहादुर एक उच्चकोटि का प्रशासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में उचित प्रशासनिक व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम पर शासन किया। उसने अपने राज्य में मुसलमान कर्मचारियों को हटा दिया क्योंकि वे भ्रष्ट हो चुके थे और उनकी जगह योग्य हिंदुओं तथा सिखों को नियुक्त किया। निम्न वर्गों के लोगों को भी उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। बंदा सिंह बहादुर ने अपने राज्य में ज़मींदारी प्रथा का भी अंत कर दिया। इससे किसान भूमि के स्वामी बन गए। बंदा सिंह बहादुर अपने निष्पक्ष न्याय के कारण भी बहुत विख्यात था। न्याय करते समय वह किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता था। प्रसिद्ध लेखक हरबंस सिंह का कहना बिल्कुल सही
“बंदा सिंह बहादुर का शासन यद्यपि अल्पकालिक रहा, परंतु इसका पंजाब के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा।”3

2. “He was a warrior and a general of the highest order.” S. S. Gandhi, Struggle of the Sikhs for Sovereignty (Delhi : 1980) p. 33.
3. Banda Singh’s rule, though short-lived, had a far reaching impact on the history of the Punjab.” Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (New Delhi : 1983) p. 118.

संगठनकर्ता के रूप में
(As an Organiser)
जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब आया था तो उसके साथ केवल 25 सिख थे। शीघ्र ही उसने अपने ध्वज के नीचे हज़ारों सिखों को एकत्र कर लिया। उसने नई भावना उत्पन्न करके उन्हें शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य से टक्कर लेने के लिए तैयार किया। बंदा सिंह बहादुर ने अल्पकाल में ही मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिला कर रख दिया। शीघ्र ही बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब में एक स्वतंत्र सिख राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि बंदा सिंह बहादुर में महान् संगठनकर्ता के सभी गुण विद्यमान् थे।

बंदा सिंह बहादुर का इतिहास में स्थान (Banda Singh Bahadur’s Place in History)
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अल्पकाल में ही मुग़लों के शक्तिशाली साम्राज्य की नींव को हिला कर रख दिया। उसने मुग़लों के अजय होने के भ्रम को भंग कर दिया। उसने सिखों में स्वतंत्रता की नई भावना उत्पन्न की। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निम्न जातियों को शासन प्रबंध के उच्च पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। इस प्रकार अपनी महान् उपलब्धियों के कारण बंदा सिंह बहादुर का इतिहास में एक प्रमुख स्थान है।
डॉक्टर राजपाल सिंह के शब्दों में,
“निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर 18वीं शताब्दी के महान् नेताओं में से एक था। वास्तव में उसका नाम स्वतंत्रता, निष्ठा एवं शहीदी का प्रतीक बन गया।”4
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० दियोल के अनुसार,
“18वीं शताब्दी के पंजाब के इतिहास में बंदा बहादुर को विशेष स्थान प्राप्त है।”5

4. ‘No doubt, Banda Bahadur emerges as one of the most outstanding leaders that produced in the eighteenth century……… In fact, his name has come to symbolize freedom, dedication and sacrifice.” Dr. Raj Pal Singh, Banda Bahadur and His Times (New Delhi : 1998) p. XIII.
5. “Banda Bahadur occupies a significant place in the history of the Punjab of the 18th century.” Dr. G. S. Deol, Banda Bahadur (Jalandhar : 1972) p. 7.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम क्या था ? वह बैरागी क्यों बना ? (What was Banda Singh Bahadur’s childhood name ? Why did he become a Bairagi ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly the early life of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसे बचपन से ही शिकार खेलने का शौक था। एक दिन वह जंगल में शिकार खेलने के लिए गया। उसने वहाँ पर एक ऐसी हिरणी को तीर मारा जो गर्भवती थी। जब लक्ष्मण देव ने उस हिरणी का पेट चीरा तो उसके पेट से दो बच्चे निकले। वे भी उसकी आँखों के सामने तड़पतड़प कर मर गए। इस दर्दनाक दृश्य का लक्ष्मण देव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह जानकी प्रसाद नाम के एक साधु से प्रभावित होकर बैरागी बन गया।

प्रश्न 2.
बंदा बैरागी कौन था ? वह सिख कैसे बना ?
(Who was Banda Bairagi ? How did he become a Sikh ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। एक दिन गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। उसने 1708 ई० में नंदेड़ में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ और वह सिख बन गया।

प्रश्न 3.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजते समय क्या कार्यवाही की तथा उसे क्या आदेश दिए ?
(What action and orders were given to Banda Singh Bahadur by Guru Gobind Singh Ji before sending him to Punjab ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजने से पूर्व अपने पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए पाँच प्यारे तथा 20 अन्य बहादुर सिखों को साथ भेजा। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हक्मनामे भी दिए। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना, सदा सत्य बोलना, नया धर्म नहीं चलाना, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं करना, स्वयं को खालसा का सेवक समझना और उनकी इच्छाओं के अनुसार आचरण करने का आदेश दिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों का राज्य किस तरह स्थापित किया ?
(How did Banda Singh Bahadur set up the Sikh empire ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सिख राज्य की स्थापना कैसे की ?
(How did Banda Singh Bahadur establish the Sikh State ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब में मुग़लों के विरुद्ध सिखों का नेतृत्व करने का आदेश दिया। जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब पहुँचा तो सिखों ने उसे बढ़-चढ़ कर सहयोग दिया। रास्ते में बंदा सिंह बहादुर ने कैथल, समाना, कपूरी और सढौरा को लूटा और बहुत-से मुसलमानों की हत्या कर दी। 12 मई, 1710 ई० में चप्पड़चिड़ी की भयंकर लड़ाई में सरहिंद का फ़ौजदार वज़ीर खाँ मारा गया। सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की एक बहुत बड़ी सफलता थी। उसने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। उसने नए सिक्के चलाकर स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । (Give a brief account of the military exploits of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की किन्हीं तीन सैनिक विजयों की चर्चा करें। (Describe any three military conquests of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की तीन मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो । (Describe the three major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ 1709 ई० में सोनीपत से किया। बंदा सिंह बहादुर ने इसे सुगमता से जीत लिया था।
  2. बंदा सिंह बहादुर ने नवंबर, 1709 ई० में समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया ।
  3. बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके वहाँ के अत्याचारी शासक कदमऊद्दीन को मौत के घाट उतार दिया।
  4. सढौरा का शासक उसमान खाँ भी अपने अत्याचारों के कारण बहुत बदनाम था। बंदा सिंह बहादुर ने उसे एक अच्छा सबक सिखाया
  5. बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर वज़ीर खाँ को पराजित कर सरहिंद पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की सढौरा विजय पर एक संक्षिप्त नोट लिखें । (Write a short note on the conquest of Sadhaura by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
सढौरा का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए कुख्यात था। उस क्षेत्र में कोई भी हिंदू स्त्री ऐसी नहीं जिसे उसने अपमानित न किया हो। वह हिंदुओं को धार्मिक उत्सव मनाने नहीं देता था। उसने पीर बुद्ध शाह की हत्या करवा दी। बंदा सिंह बहादुर ने इन अपमानों का प्रतिशोध लेने के लिए सढौरा पर आक्रमण कर दिया। यहाँ पर मुसलमानों को इतनी बड़ी संख्या में मौत के घाट उतारा गया कि सढौरा का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

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प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.).
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें।
(Give a brief accoúnt of battle of Chapparchiri.)
उत्तर-
सिखों में सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ के विरुद्ध भारी रोष था। उस ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों-साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबज़ादा फ़तह सिंह जी को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर वज़ीर खाँ पर आक्रमण कर दिया। यह लड़ाई बड़ी भयानक थी। वज़ीर खाँ के मरते ही उसकी सेना में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस महत्त्वपूर्ण विजय के कारण सिखों के उत्साह में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर की लोहगढ़ लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the battle of Lohgarh by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति मुग़लों के लिए एक चुनौती थी। इसलिए मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उसने अपने एक सेनापति मुनीम खाँ के अधीन 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। लोहगढ़ बंदा सिंह बहादुर की राजधानी थी। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों के लिए इस लड़ाई को अधिक समय तक जारी रखना असंभव था। बंदा सिंह बहादुर वेश बदलकर दुर्ग से बच निकलने में सफल हो गया।

प्रश्न 9.
गुरदास नंगल की लड़ाई पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on the battle of Gurdas Nangal.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर एवं मुग़लों के मध्य हुई गुरदास नंगल की लड़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
(Give a brief account of the battle of Gurdas Nangal fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ ने अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति दयनीय हो गई । ऐसे समय में बाबा विनोद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को दूनी चंद की हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया। परंतु बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप, विनोद सिंह अपने साथियों को लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। विवश होकर बंदा सिंह बहादुर को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी।

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प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर को कब, कहाँ तथा कैसे शहीद किया गया ?
(When, where and how was Banda Singh Bahadur martyred ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर और कुछ अन्य सिखों को बंदी बनाने के बाद अब्दुस समद खाँ ने इन सिखों को फरवरी, 1716 ई० में दिल्ली भेजा। दिल्ली में इनका जुलूस निकाला गया। मार्ग में उनका भारी अपमान किया गया। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया, परंतु सिखों ने इंकार कर दिया। अतः प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर की बारी आई। उसे शहीद करने से पूर्व जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या कर दी। अंत में बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काटकर उन्हें शहीद किया गया।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारणों का उल्लेख करो। (Mention the causes of early success of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के क्या कारण थे ? (What were the main causes of early success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-

  1. पंजाब के मुग़ल शासकों द्वारा सिखों पर किए गए घोर अत्याचारों के कारण पंजाब के लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को हर प्रकार का सहयोग दिया।
  2. गुरु गोबिंद सिंह जी की अपील पर सिखों ने बंदा सिंह बहादुर को पूर्ण सहयोग दिया।
  3. औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी बहुत अयोग्य थे । परिणामस्वरुप वे बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति की ओर ध्यान न दे सके।
  4. बंदा सिंह बहादुर ने एक उच्च कोटिं के शासन प्रबंध की स्थापना की थी।
  5. पंजाब के पहाड़ भी बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं में सहायक सिद्ध हुए।

प्रश्न 12.
अंत में बंदा सिंह बहादुर की असफलता के क्या कारण थे ? (What were the causes of final failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता के कारणों का वर्णन करें।
(Mention the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Describe in brief the failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता के कोई तीन कारण बताएँ। (Give any three causes of the failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of final failure of Banda Singh Bahdur.)
उत्तर-

  1. मुग़ल साम्राज्य का अत्यंत शक्तिशाली होना बंदा सिंह बहादुर की असफलता का एक मुख्य कारण बना।
  2. बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन आरंभ कर दिया था।
  3. पंजाब के हिंदू राजाओं तथा ज़मींदारों ने बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध सरकार को अपना सहयोग दिया।
  4. पंजाब के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति कुचलने में कोई प्रयास नहीं छोड़ा।

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प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर के व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताएँ । (Describe traits of Banda Singh Bahadur’s personality.)
उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर बड़ा ही निडर और साहसी था । बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी घबराता नहीं था ।
  2. वह सिख धर्म का सच्चा सेवक था । उसने अपनी सफलताओं को गुरु साहिब का वरदान माना।
  3. बंदा सिंह बहादुर एक महान् सेनापति था। अपने सीमित साधनों के बावजूद उसने मुग़ल शासकों को नानी याद करवा दी थी।
  4. बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी ।

प्रश्न 14.
एक योद्धा और सेनापति के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो। (Describe briefly the achievements of Banda Singh Bahadur as a warrior and general.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का एक वीर योद्धा तथा सेनापति के रूप में मूल्यांकन करें।
(Explain the main contribution of Banda Singh Bahadur as a brave warrior and great military general.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था। बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों के मुकाबले नाममात्र थे, परंतु उसने अपनी योग्यता के बल पर 7-8 वर्ष मुग़ल सेना के नाक में दम कर रखा था। उसने जितनी भी लड़ाइयाँ लड़ीं, लगभग सभी में उसने बड़ी शानदार सफलताएँ प्राप्त की। युद्ध के मैदान में वह बड़ी तीव्रता से स्थिति का अनुमान लगा लेता था और अवसर अनुसार अपना निर्णय तुरंत कर लेता था। वह युद्ध की चालों में बड़ा निपुण था। वह युद्ध तभी शुरू करता था जब उसे विजय की पूर्ण आशा होती थी।

प्रश्न 15.
एक प्रशासक के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं की संक्षिप्त जानकारी दें।
(Write briefly about Banda Singh Bahadur’s achievements as an administrator.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने अपने विजित प्रदेशों में अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम से शासन किया और अपने राज्य में गुरु साहिब द्वारा दर्शाए गए नियमों को लागू करने का यत्न किया। उसने अपने राज्य में भ्रष्ट कर्मचारियों को हटाकर बड़े योग्य और ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया। निर्धनों और निम्न जाति के लोगों को उच्च पदों पर लगाकर उनको एक नया सम्मान दिया। बंदा सिंह बहादुर ने ज़मींदारी प्रथा का अंत करके एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया।

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प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में आप क्या स्थान देते हैं ?
(What place would you assign to Banda Singh Bahadur in the History the Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास में बंदा सिंह बहादुर को क्या स्थान प्राप्त है ? (What is the place of Banda Singh Bahadur in the History of the Punjab ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सिखों को मुख्य देन क्या है ?
(What is the main contribution of Banda Singh Bahadur to Sikhs ?) .
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। वह एक महान् योद्धा, वीर सेनापति, योग्य प्रशासक तथा उच्च कोटि का नेता था। वह पहला व्यक्ति था जिसने सिखों को अत्याचारियों का मुकाबला करने तथा स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का पाठ पढ़ाया। उसने मुग़लों के अजेय होने के जादू को तोड़ा। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निर्धनों और निम्न वर्ग के लोगों को शासन प्रबंध में ऊँचे पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न A (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर-
27 अक्तूबर, 1676 ई०।।

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
राजौरी।

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प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम क्या था ?
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का बचपन का क्या नाम था ?
उत्तर-
लक्ष्मण देव।

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
रामदेव।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर का वैराग्य धारण करने के पश्चात् क्या नाम पड़ा ?
अथवा
बैरागी बनने के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने अपना नाम क्या रखा ?
उत्तर-
माधो दास।

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प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर बैरागी क्यों बना ?
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन की कौन-सी घटना थी जिसने उसे वैरागी बना दिया ?
अथवा
किस घटना ने बंदा सिंह बहादुर के जीवन को परिवर्तित किया ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने एक ऐसी हिरणी को मार दिया था जो गर्भवती थी।

प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी को बंदा सिंह बहादुर कहाँ मिला था ?
उत्तर-
नांदेड़ में।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर को यह नाम गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिया गया था।

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प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कब किया ?
उत्तर-
1709 ई०।

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कहाँ से किया था ?
उत्तर-
सोनीपत।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की पहली महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
समाना।

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प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि यहाँ का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए बहुत कुख्यात था।

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने क्या नारा दिया ?
उत्तर-
फ़तेह धर्म, फ़तेह दर्शन।

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
सरहिंद।

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प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद कब विजय किया ?
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
12 मई, 1710 ई०

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर आक्रमण क्यों किया?’
उत्तर-
क्योंकि यहाँ का फ़ौजदार वज़ीर खाँ सिखों का घोर शत्रु था।

प्रश्न 17.
वज़ीर खाँ कौन था ?
उत्तर-
सरहिंद का फ़ौजदार।

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प्रश्न 18.
सरहिंद की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर ने किसे पराजित किया था ?
उत्तर-
वज़ीर खाँ को।

प्रश्न 19.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी राजधानी का क्या नाम रखा ?
उत्तर-
लोहगढ़।

प्रश्न 20.
बंदा सिंह बहादुर ने किस राज्य की राजकुमारी के साथ विवाह किया ?
उत्तर-
चंबा।

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प्रश्न 21.
बंदा सिंह बहादुर के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर-
अजय सिंह।

प्रश्न 22.
बंदा सिंह बहादुर और मुग़लों के बीच हुई अंतिम लड़ाई कौन-सी थी ?
उत्तर-
गुरदास नंगल।

प्रश्न 23.
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों से अंतिम लड़ाई में मुग़ल सेना का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ।

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प्रश्न 24.
गुरदास नंगल का युद्ध कब हुआ ?
उत्तर-
1715 ई०।

प्रश्न 25.
बंदा सिंह बहादुर को किसने शहीद करवाया था?
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ।

प्रश्न 26.
बंदा सिंह बहादुर को कब शहीद किया गया था ?
उत्तर-
9 जून, 1716 ई०।

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प्रश्न 27.
बंदा सिंह बहादुर को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 28.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के समय किस मुगल बादशाह का शासन था ?
उत्तर-
फर्रुखसियर

प्रश्न 29.
बंदा सिंह बहादुर ने किस प्रथा को समाप्त किया ?
उत्तर-
ज़मींदारी प्रथा।

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प्रश्न 30.
बंदा सिंह बहादुर की प्रारंभिक सफलता का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
मुग़लों के घोर अत्याचारों के कारण पंजाब के लोग बंदा सिंह बहादुर के झंडे तले इकट्ठे हुए।

प्रश्न 31.
बंदा सिंह बहादुर की असफलता का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों की तुलना में बहुत सीमित थे

प्रश्न 32.
बंदा सिंह बहादुर ने किस नाम के सिक्के जारी किए ?
उत्तर-
नानकशाही तथा गोबिंदशाही।

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प्रश्न 33.
बंदा सिंह बहादुर की सिखों को मुख्य देन क्या थी ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों को राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रथम सबक सिखाया।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म …… में हुआ।
उत्तर-
(1670 ई०)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म ……… गाँव में हुआ था।
उत्तर-
(राजौरी)

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प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का नाम …….. था।
उत्तर-
(रामदेव)

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम …… था।
उत्तर-
(लक्ष्मण देव)

प्रश्न 5.
…….. के शिकार ने बंदा सिंह बहादुर के जीवन को एक नई दिशा प्रदान की।
उत्तर-
(एक हिरनी)

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प्रश्न 6.
जानकी प्रसाद नामक एक वैरागी ने लक्ष्मण देव का नाम बदल कर …… रख दिया।
उत्तर-
(माधो दास)

प्रश्न 7.
1708 ई० में बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ ……. में मुलाकात हुई।
उत्तर-
(नंदेड़)

प्रश्न 8.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को …… का नाम दिया।
उत्तर-
(बंदा सिंह बहादुर)

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प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ ………. से किया।
उत्तर-
(सोनीपत)

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने ………. में सोनीपत को विजय किया।
उत्तर-
(1709 ई०)

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के शासक …….. को एक कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
(उस्मान खाँ)

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प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर के समय सरहिंद का फ़ौजदार …… था।
उत्तर-
(वजीर खाँ)

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने ……… को सरहिंद का शासक नियुक्त किया।
उत्तर-
(बाज़ सिंह)

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का नाम …….. था।
उत्तर-
(लोहगढ़)

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प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर ने …….. को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
(लोहगढ़)

प्रश्न 15.
गुरदास नंगल की लड़ाई …….. में हुई।
उत्तर-
(1715 ई०)

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को …….. में शहीद किया गया।
उत्तर-
(दिल्ली)

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प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर को……..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1716 ई०)

प्रश्न 18.
………ने सिख कौम के पहले सिक्के जारी किए।
उत्तर-
(बंदा सिंह बहादुर)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म राजौरी में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के पिता जी का नाम लक्ष्मण देव था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम रामदेव था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
जानकी प्रसाद नामक एक बैरागी ने लक्ष्मण देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु गोबिंद सिंह जी बंदा सिंह बहादुर को दिल्ली में मिले थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ 1709 ई० में सोनीपत से किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर ने कंपूरी में कदमुद्दीन को हराया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के शासक उस्मान खाँ को करारी हार दी थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय रोपड़ की थी।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने 1710 ई० में सरहिंद पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर के समय सरहिंद का फ़ौजदार वजीर खाँ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने लोहगढ़ को अपने राज्य की राजधानी बनाया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 14.
गुरदास नंगल की लड़ाई 1715 ई० में लड़ी गई थी। ”
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर को 1716 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को लाहौर में शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर पंजाब का पहला ऐसा शासक था जिसने सिख सिक्के जारी किए।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कब हुआ ?
(i) 1625 ई० में
(ii) 1660 ई० में
(iii) 1670 ई० में
(iv) 1675 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) राजगढ़ में
(ii) राजौरी में
(iii) सढौरा में
(iv) नांदेड़ में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) लक्ष्मण देव
(ii) राम देव
(iii) माधो दास
(iv) ग़रीब दास।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का क्या नाम था ?
(i) नाम देव
(ii) राम देव
(iii) सहदेव
(iv) लक्ष्मण देव।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर बैरागी क्यों बना ?
(i) एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण
(ii) एक गर्भवती शेरनी को मारने के कारण
(iii) एक गर्भवती हथनी को मारने के कारण
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
बैरागी बनने के बाद बंदा सिंह बहादुर ने अपना क्या नाम रखा ?
(i) लक्ष्मण देव
(ii) माधो दास
(ii) जानकी प्रसाद
(iv) औघड़ नाथ।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट कहाँ हुई थी ?
(i) श्री आनंदपुर साहिब
(ii) अमृतसर
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) नांदेड़।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 8.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब क्यों भेजा ?
(i) सिख राज की स्थापना के लिए
(ii) मुग़लों के अत्याचारों का बदला लेने के लिए
(iii) अफ़गानों के अत्याचारों का बदला लेने के लिए
(iv) उपरोक्त सी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कब किया ?
(i) 1708 ई० में
(ii) 1709 ई० में
(iii) 1710 ई० में
(iv) °1715 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कहाँ किया ?
(i) पानीपत से
(ii) सोनीपत से
(iii) समाना से
(iv) कपूरी से।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के किस शासक को पराजित किया था ?
(i) रहमत खाँ
(ii) जकरिया खाँ
(iii) उस्मान खाँ
(iv) वज़ीर खाँ।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
(i) सढौरा की
(ii) लोहगढ़ की
(iii) रोपड़ की
(iv) सरहिंद की।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 13.
वज़ीर खाँ कहाँ का मुग़ल सूबेदार था ?
(i) समाना
(ii) सोनीपत
(iii) सरहिंद
(iv) गुरदास नंगल।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर कब विजय प्राप्त की थी ?
(i) 1708 ई० में
(ii) 1709 ई० में
(iii) 1710 ई० में
(iv) 1712 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का क्या नाम था ?
(i) लोहगढ़
(ii) गुरदास नंगल
(iii) अमृतसर
(iv) कलानौर।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर ने किस राज्य की राजकुमारी के साथ विवाह किया ?
(i) बिलासपुर
(ii) चंबा
(iii) मंडी
(iv) कुल्लू।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर के पुत्र का क्या नाम था ?
(i) अजय सिंह
(ii) अभय सिंह
(iii) दया सिंह
(iv) बिनोद सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
गुरदास नंगल की लड़ाई कब हुई ?
(i) 1709 ई० में
(ii) 1710 ई० में
(iii) 1712 ई० में
(iv) 1715 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 19.
बंदा सिंह बहादुर को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली में
(ii) लाहौर में
(iii) मुलतान में
(iv) अमृतसर में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 20.
बंदा सिंह बहादुर को कब शहीद किया गया ?
(i) 1714 ई० में
(ii) 1715 ई० में
(iii) 1716 ई० में
(iv) 1718 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 21.
बंदा सिंह बहादुर को किस मुग़ल बादशाह के आदेश पर शहीद किया गया था ?
(i) औरंगजेब
(ii) बहादुर शाह प्रथम
(iii) जहाँदार शाह
(iv) फर्रुखसियर।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 22.
बंदा सिंह बहादुर की प्रारंभिक सफलता का क्या कारण था ?
(i) बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध
(ii) औरंगजेब के कमज़ोर उत्तराधिकारी ।
(iii) गुरु गोबिंद सिंह जी के हक्मनामे
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 23.
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता का मुख्य कारण क्या था ?
(i) मुग़ल साम्राज्य का शक्तिशाली होना
(ii) गुरदास नंगल पर अचानक आक्रमण
(iii) बंदा सिंह बहादुर और विनोद सिंह में मतभेद
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम क्या था ? वह बैरागी क्यों बना ? (What was Banda Singh Bahadur’s childhood name ? Why did he become a Bairagi ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe briefly the early life of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं, को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म और माता-पिता-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उनके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अत: लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बंटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीर-कमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता था।

3. जीवन में नया मोड़-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़प कर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया।

4. बैरागी के रूप में-लक्ष्मण देव शीघ्र ही जानकी प्रसाद नामक बैरागी के संपर्क में आया। जानकी प्रसाद ने उसका नाम बदल कर माधो दास रख दिया। शीघ्र ही माधोदास की मुलाकात तंत्र विद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड़ आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।

5. गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु जी का अनुयायी बन गया। गुरु जी ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

6. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी से पंजाब में सिखों पर मुग़लों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु जी से पंजाब जाने की आज्ञा माँगी। गुरु जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

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प्रश्न 2.
बंदा बैरागी कौन था ? वह सिख कैसे बना ? (Who was Banda Bairagi ? How did he become a Sikh ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। उसके पिता एक साधारण कृषक थे। एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। लक्ष्मण. देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया गया। उसने पंचवटी के एक साधु औघड़नाथ से तंत्र विद्या की जानकारी प्राप्त की। कुछ समय वहाँ रहने के बाद माधो दास नांदेड़ नामक स्थान पर आ गया। नांदेड़ में ही 1708 ई० में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। इस भेंट के दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी और माधो दास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का बंदा (दास) बन गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उसे अमृत छका कर सिख बना दिया और उसको बंदा सिंह बहादुर का नाम दिया। इस तरह बंदा बैरागी सिख बना।

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई मुलाकात का वर्णन करें। (Discuss Banda Singh Bahadur’s meeting with Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ आए तो वे माधो दास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। जब गुरु जी उसके आश्रम में पहुँचे तो उसने उन्हें चारपाई पर बिठाया और अपनी तंत्र विद्या से उनकी चारपाई उलटानी चाही। परंतु गुरु साहिब चारपाई पर शाँत बैठे रहे। उन पर माधो दास की तंत्र विद्या का तनिक भी प्रभाव न हुआ। यह देखकर माधो दास आश्चर्यचकित रह गया और उसने गुरु साहिब से कुछ प्रश्न पूछने आरंभ कर दिए जिनका उत्तर गुरु जी ने इस प्रकार दिया—
माधो दास-तुम कौन हो ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-मैं वही हूँ जिसे तुम जानते हो।
माधो दास-मैं कैसे जानता हूँ।
गुरु गोबिंद सिंह जी-अपने मन में सोचो।
माधो दास-तो क्या आप गुरु गोबिंद सिंह जी हैं ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-हाँ !
माधो दास-तो आप यहाँ किस लिए आये हैं ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-तुम्हें अपना शिष्य बनाने के लिए।
माधो दास-मुझे स्वीकार है, साहिब ! मैं आप ही का बंदा (दास) हूँ।
माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का अनुयायी बन गिया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तन करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

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प्रश्न 4.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजते समय क्या कार्यवाही की तथा उसे क्या आदेश दिए ? ‘
(What action and orders were given to Banda Singh Bahadur by Guru Gobind Singh Ji before sending him to Punjab ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजने से पूर्व अपने पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए पाँच प्यारे बिनोद सिंह, काहन सिंह, बाज सिंह, दया सिंह, रण सिंह तथा 20 अन्य बहादुर सिखों को साथ भेजा। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि वे बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता स्वीकार करें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में अपना पूरा समर्थन दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को आगे दिए आदेशों का पालन करने के लिए कहा-पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सदा सत्य बोलना और सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना और उनकी इच्छाओं के अनुसार आचरण करना। बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से आदर सहित तीर लिए और उनकी आज्ञा का पालन करने का प्रण किया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने अक्तूबर, 1708 ई० में गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके पंजाब के लिए प्रस्थान किया।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों का राज्य किस तरह स्थापित किया ? (How did Banda Singh Bahadur set up the Sikh empire ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब में मुग़लों के विरुद्ध सिखों का नेतृत्व करने का आदेश दिया। जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब पहुँचा तो सिखों ने उसे बढ़-चढ़ कर सहयोग दिया। उसका पहला काम सरहिंद के फौजदार वज़ीर खाँ से गुरु जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी.) की शहीदी का बदला लेना था। इस उद्देश्य से वह बहुत से सिखों को साथ लेकर सरहिंद की ओर चल पड़ा। रास्ते में बंदा सिंह बहादुर ने कैथल, समाना, कपूरी और सढौरा को लूटा और बहुत से मुसलमानों की हत्या कर दी। 12 मई, 1710 ई० में चप्पड़चिड़ी की भयंकर लड़ाई में वज़ीर खाँ मारा गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया। सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की एक बहुत बड़ी सफलता थी। उसने गंगा दोआब, जालंधर दोआब और गुरदासपुर के बहुत सारे क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। उसने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। उसने नए सिक्के चलाकर स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की।

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प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की कोई छः मुख्य सैनिक सफलताओं के बारे में लिखें। (Describe six major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की छः महत्त्वपूर्ण विजयों की संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the six important conquests of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। (Describe major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों का विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण-बंदा सिंह बहादुर ने सर्वप्रथम नवंबर 1709 ई० में 500 सिखों सहित सोनीपत पर आक्रमण किया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना सामना किए दिल्ली की ओर भाग गया। इस सरल विजय से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

2. समाना की विजय-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लाद रहते थे। बंदा सिंह बहादुर ने समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों का वध कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की प्रथम महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. कपूरी की विजय-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर सुगमता से विजय प्राप्त की।

4. सढौरा की विजय-सढौरा का शासक उसमान खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए निर्मम हत्या करवा दी थी क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अत: बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण कर दिया तथा बहुसंख्या में मुसलमानों की हत्या कर दी। इस कारण इस स्थान
का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

5. सरहिंद की विजय-सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का भयंकर रक्त-पात किया। वजीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर लटका दिया गया। इस विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

6. अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट की विजयें-बंदा सिंह बहादुर की विजयों से प्रोत्साहित होकर अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के सिखों ने भी वहाँ के अत्याचारी मुग़ल शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बंदा सिंह बहादुर के सहयोग से सिखों ने इन प्रदेशों पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
सरहिंद की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write briefly about the Battle of Sirhind.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला कैसे लिया ?
(How did Banda Singh Bahadur take revenge on Wazir Khan, the Faujdar of Sirhind for the martyrdom of younger sons of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद विजय का वर्णन करें। यह लड़ाई सिखों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण थी ?
(Describe Banda Singh Bahadur’s conquest of Sirhind. Why was this battle significant for the Sikhs ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। (Describe major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों का विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण-बंदा सिंह बहादुर ने सर्वप्रथम नवंबर 1709 ई० में 500 सिखों सहित सोनीपत पर आक्रमण किया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना सामना किए दिल्ली की ओर भाग गया। इस सरल विजय से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

2. समाना की विजय-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लाद रहते थे। बंदा सिंह बहादुर ने समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों का वध कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की प्रथम महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. कपूरी की विजय-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर सुगमता से विजय प्राप्त की।।

4. सढौरा की विजय-सढौरा का शासक उसमान खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए निर्मम हत्या करवा दी थी क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अत: बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण कर दिया तथा बहुसंख्या में मुसलमानों की हत्या कर दी। इस कारण इस स्थान का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

5. सरहिंद की विजय-सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने. चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का भयंकर रक्त-पात किया। वज़ीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर लटका दिया गया। इस विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

6. अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट की विजयें-बंदा सिंह बहादुर की विजयों से प्रोत्साहित होकर अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के सिखों ने भी वहाँ के अत्याचारी-मुग़ल शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बंदा सिंह बहादुर के सहयोग से सिखों ने इन प्रदेशों पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
सरहिंद की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write briefly about the Battle of Sirhind.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला कैसे लिया ?
(How did Banda Singh Bahadur take revenge on Wazir Khan, the Faujdar of Sirhind for the martyrdom of younger sons of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद विजय का वर्णन करें। यह लड़ाई सिखों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण थी ?
(Describe Banda Singh Bahadur’s conquest of Sirhind. Why was this battle significant for the Sikhs ?).
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the battle of Chapparchiri.)
उत्तर-
सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। सरहिंद का फ़ौज़दार वज़ीर खाँ सिखों का घोर शत्रु था। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी एवं साहिबज़ादा फ़तह सिंह जी) को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। उसकी सेनाओं के हाथों ही गुरु जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे (साहिबज़ादा अजीत सिंह जी एवं साहिबज़ादा जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में शहीद हो गए थे। वज़ीर खाँ द्वारा भेजे गए पठान ने गुरु साहिब को नांदेड़ के स्थान पर छुरा मार दिया था जिसके कारण वे ज्योति-जोत समा गए थे। इन कारणों से बंदा सिंह बहादुर वज़ीर खाँ को एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता था जोकि मुसलमानों को दीर्घकाल तक याद रहे। 12 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं के बीच सरहिंद से लगभग 16 किलोमीटर दूर चप्पड़चिड़ी में बहुत भयंकर लड़ाई आरंभ हुई। आरंभ में वज़ीर खाँ के तोपखाने के कारण सिखों को बहुत क्षति पहुँची किंतु उन्होंने धैर्य का त्याग नहीं किया। बंदा सिंह बहादुर ने सत् श्री अकाल की जय-जयकार गुंजाते हुए मुसलमानों पर बड़ा जोरदार आक्रमण किया। मुसलमानों के लिए इस आक्रमण को रोकना बड़ा मुश्किल हो गया। फ़तह सिंह ने वज़ीर खाँ को यमलोक पहुँचा दिया। उसकी मृत्यु के साथ ही मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई। सिखों ने इन भागे जा रहे सैनिकों का पीछा करके उनकी बड़ी संख्या में हत्या कर दी। वज़ीर खाँ के शव को एक वृक्ष पर उल्टा लटका दिया। 14 मई को सिख सेनाएँ सरहिंद पहुँची। उन्होंने मुसलमानों के ऐसे छक्के छुड़ाए कि उनकी आत्मा भी काँप उठी। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद की ईंट से ईंट बजा दी।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर की लोहगढ़ लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lohgarh by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति मुगलों के लिए एक चुनौती थी। इसलिए मुग़ल बादशाह बहादुर । शाह ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उसने अपने एक जरनैल मुनीम खाँ के अंतर्गत 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। लोहगढ़ बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का नाम था। इसे उसने मुखलिसपुर के स्थान पर बनाया था। सिख दुर्ग के भीतर से मुग़लों का डटकर सामना करते थे। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों के लिए इस लड़ाई को अधिक समय तक जारी रखना संभव नहीं था। बंदा सिंह बहादुर इतनी. सरलता से मुग़लों के हाथ आने वाला नहीं था। वह वेश बदलकर दर्ग से बच निकलने में सफल हो गया और नाहन की पहाड़ियों की ओर चला गया। अगले दिन जब मुगलों ने दुर्ग पर अधिकार किया तो उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि हाथ आया बाज़ उड़ गया है।

प्रश्न 9.
गुरदास नंगल की लड़ाई पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Gurdas Nangal.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर एवं मुग़लों के मध्य हुई गुरदास नंगल की लड़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Give a brief account of the battle of Gurdas-Nangal fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के अधीन पंजाब में बढ़ रही सिखों की शक्ति को रोकने के लिए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। उसको सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए। उसने अप्रैल, 1715 ई० में एक विशाल सेना के साथ बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिखों ने दुनी चंद की हवेली से इस मुग़ल सेना से मुकाबला जारी रखा। यह घेरा आठ महीने तक चलता रहा। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया पर बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों को साथ लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। इससे बंदा सिंह बहादुर की स्थिति और बिगड़ गई। अंत में विवश होकर बंदा सिंह बहादुर को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी। इस प्रकार 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर और उसके दो सौ साथियों को बंदी बना लिया गया।

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प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर को कब, कहाँ तथा कैसे शहीद किया गया ? (When, where and how was Banda Singh Bahadur martyred ?)
उत्तर-
गुरदास नंगल से अब्दुस समद खाँ ने 200 सिखों को बंदी बनाया था, परंतु बाद में लाहौर की ओर आते मार्ग में उसने 540 अन्य सिखों को बंदी बना लिया। बंदा सिंह बहादुर और इन 740 सिखों को फरवरी, 1716 ई० में दिल्ली भेजा गया। दिल्ली पहुँचने पर उनका जुलूस निकाला गया। बंदा सिंह बहादुर को एक पिंजरे में बंद किया गया था। मार्ग में उनका भारी अपमान किया गया। बाद में उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा। ऐसा करने पर उन्हें प्राण दान दिए जा सकते थे, परंतु इन स्वाभिमानी सिखों में से किसी ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अत: प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर की बारी आई। उसे शहीद करने से पूर्व जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या की और उसके तड़पते हुए दिल को निकाल कर बंदा सिंह बहादुर के मुँह में लूंस दिया। तत्पश्चात् बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काटकर उसे शहीद किया गया। बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे एवं शहीदी आने वाली नस्लों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गई।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारणों का उल्लेख करो। (Mention the causes of early success of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारण बतायें।
(What were the causes of early success of Banda Singh Bahadur ?) .
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सफलता के छः प्रमुख कारण कौन से थे ? (P.S.E.B. Model Test Paper) (What were the six causes of success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
1. मुगलों के घोर अत्याचार-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे (साहिबजादा अजीत सिंह जी और साहिबजादा जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे भेजे. थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुगलों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमज़ोर उत्तराधिकारी-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद मुग़ल बादशाह बनने वाला जहाँदार शाह एक वेश्या लाल कंवर के चक्करों में फंसा रहा। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध-बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला।

6. पंजाब के पहाड़ तथा जंगल-पंजाब के पहाड़ तथा जंगल बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं में सहायक सिद्ध हुए। बंदा सिंह बहादुर ने संकट के समय इन पहाड़ों तथा जंगलों में जाकर आश्रय लिया। यहाँ वे पुनः संगठित होकर मुग़ल प्रदेशों पर आक्रमण कर देता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर जी असफलता के छः मुख्य कारणों का वर्णन करें।
(What were the six causes of failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ? (What were the causes of final failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों के विरुद्ध अंतिम असफलता के कारण लिखें। (Write down the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur aganist Mughals.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर पंजाब,में एक स्थाई सिख शासन की स्थापना में क्यों विफल रहा? (Why did Banda Singh Bahadur fail in setting up a permanent Sikh rule in Punjab ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुग़ल साम्राज्य की शक्ति-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहत कम थी। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए आदेशों का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया था। फलस्वरूप गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ-1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अत: बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर के व्यक्तित्व की मख्य विशेषताएँ बताएँ। (Describe the main traits of Banda Singh Bahadur’s personality.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर बड़ा ही निडर और साहसी था। बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी वह घबराता नहीं था। मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों में उसने अपनी अद्वितीय वीरता का परिचय दिया। वह इतना निडर था कि जब मुग़ल बादशाह ने उसको पूछा कि वह किस प्रकार की मृत्यु पसंद करेगा तो उसने बिना झिझक उत्तर दिया कि जैसी मृत्यु बादशाह अपने लिए पसंद करेगा। वह सिख धर्म का सच्चा सेवक था। उसने अपनी सफलताओं को गुरु साहिब का वरदान माना। उसने गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर अपने सिक्के जारी किए। उसने सिख धर्म का प्रचार अत्यंत उत्साह के साथ किया। बंदा सिंह बहादुर एक महान् सेनापति था। अपने सीमित साधनों के बावजूद उसने मुग़ल शासकों की रातों की नींद हराम कर दी थी। वह युद्ध की चालों में बड़ा दक्ष था और युद्ध के मैदान में वह स्थिति के अनुसार अपनी कार्यवाही बड़ी तीव्रता के साथ करता था। बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने पहली बार निर्धनों को ऊंचे पदों पर नियुक्त किया था। वह अपनी प्रजा को निष्पक्ष न्याय देता था। उसने अपने राज्य में से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके किसानों को उनके अत्याचारों से बचाया।

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प्रश्न 14.
एक योद्धा और सेनापति के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
(Describe briefly the achievements of Banda Singh Bahadur as a Warrior and General.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का एक वीर योद्धा तथा सेनापति के रूप में मूल्यांकन करें।
(Explain the main contributions of Banda Singh Bahadur as a brave warrior and great military organiser.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था। बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों के मुकाबले नाममात्र थे, परंतु उसने अपनी योग्यता के बल पर 7-8 वर्ष मुग़ल सेना के नाक में दम कर रखा था। उसने जितनी भी लड़ाइयां लड़ीं, लगभग सभी में उसने बड़ी शानदार सफलताएँ प्राप्त की। युद्ध के मैदान में वह बड़ी तीव्रता से स्थिति का अनुमान लगा लेता था और अवसर अनुसार अपना निर्णय तुरंत कर लेता था। वह युद्ध की चालों में बड़ा निपुण था। यदि किसी स्थान पर वह यह समझता था कि शत्रुओं की सेनाएँ उसके मुकाबले में बहुत अधिक हैं तो वह पीछे हटने में अपना अपमान नहीं समझता था। वह युद्ध तभी शुरू करता था जब उसे विजय की पूर्ण आशा होती थी। वह आवश्यकतानुसार खुले मैदानों, पहाड़ों या किलों में से लड़ता था। वास्तव में इन जंगी चालों ने उसको एक उच्चकोटि का सेनापति बना दिया था।

प्रश्न 15.
एक प्रशासक के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं की संक्षिप्त जानकारी दें। (Write briefly about Banda Singh Bahadur’s achievements as an administrator.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासन प्रबंधक था। उसने अपने विजित प्रदेशों में अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम से शासन किया और अपने राज्य में गुरु साहिब द्वारा दर्शाए गए नियमों को लागू करने का यत्न किया। उसने अपने राज्य में भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को हटाकर बड़े योग्य और ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया। निर्धनों और निम्न जाति के लोगों को उच्च पदों पर लगाकर उनको एक नया सम्मान दिया। बंदा बहादुर ने ज़मींदारी प्रथा का अंत करके एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया। इससे एक तो वे ज़मींदारों द्वारा किए गए अत्याचारों से बच गए और दूसरे वे भूमि के मालिक बन गए। बंदा सिंह बहादुर अपने निष्पक्ष न्याय के कारण भी बहुत प्रसिद्ध था। न्याय करते समय वह ऊँच-नीच में कोई भेद नहीं करता था। निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर का शासन प्रबंध खालसा शासन के अनुसार था।

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में आप क्या स्थान देते हैं ? (What place would you assign to Banda Singh Bahadur in the History of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास में बंदा सिंह बहादुर को क्या स्थान प्राप्त है ? (What is the place of Banda Singh Bahadur in the History of the Punjab ?)
उत्तर-
निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वह पहला व्यक्ति था जिसने सिखों की स्वतंत्रता की नींव डाली। उसने पंजाबियों को अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मर मिटने का पाठ पढ़ाया। उसने 7-8 वर्षों के थोड़े से समय में मुग़लों के शक्तिशाली साम्राज्य की नींव हिला कर एक आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाया। उसने मुग़लों के अजेय होने के जादू को तोड़ा तथा उन्हें अनेक लड़ाइयों में पराजित किया। उसने सिखों में स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए नव प्राण फूंके। उसके द्वारा सुलगाई गई स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए यह चिंगारी अंदर ही अंदर सुलगती रही जो बाद में भयंकर आग का रूप धारण कर गई तथा जिसमें मुग़ल साम्राज्य जलकर भस्म हो गया। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निर्धनों और सदियों से शोषित निम्न वर्ग के लोगों को शासन प्रबंध में ऊँचे पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। परिणामस्वरूप ये लोग बंदा सिंह बहादुर के एक इशारे पर अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। वास्तव में बंदा सिंह बहादुर के प्रशंसनीय योगदान के कारण उसके नाम को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। उसके पिता एक साधारण कृषक थे। एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। लक्ष्मण देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया गया। उसने पंचवटी के एक साधु औघड़नाथ से तंत्र विद्या की जानकारी प्राप्त की। कुछ समय वहाँ रहने के बाद माधो दास नांदेड़ नामक स्थान पर आ गया। नांदेड़ में ही 1708 ई० में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। इस भेंट के दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी और माधो दास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का बंदा (दास) बन गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उसे अमृत छका कर सिख बना दिया और उसको बंदा बहादुर का नाम दिया। इस तरह बंदा बैरागी सिख बना।

  1. बंदा सिंह बहादुर के बचपन का क्या नाम था ?
  2. बंदा सिंह बहादुर के दिल में किस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा ?
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
  4. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य भेंट कब हुई थी ?
    • 1705 ई०
    • 1706 ई०
    • 1707 ई०
    • 1708 ई०
  5. बंदा सिंह बैरागी सिख कैसे बना था ?

उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था।
  2. बंदा सिंह बहादुर द्वारा एक गर्भवती हिरणी का शिकार करने के कारण उसके दिल पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य मुलाकात नांदेड़ में हुई।
  4. 1708 ई०।
  5. गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को अमृत छकाया। इस प्रकार बंदा बैरागी सिख बन गया।

2
सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह तथा फ़तह सिंह को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इसलिए बंदा सिंह बहादुर उसे एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता था जो मुसलमानों को दीर्घकाल तक स्मरण रहे। 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का ऐसा रक्त-पात किया कि उनकी आत्मा भी काँप उठी। वज़ीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर उल्टा लटका दिया गया। 14 मई, 1710 ई० को सारे सरहिंद में भारी रक्तपात और लूटपात की गई। इस भव्य विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

  1. वज़ीर.खाँ कौन था ?
  2. बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर आक्रमण क्यों किया ?
  3. वज़ीर खाँ किस स्थान पर सिखों के साथ मुकाबला करते हुए मारा गया था ?
  4. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई कब हुई थी ?
    • 1706 ई०
    • 1708 ई०
    • 1709 ई०
    • 1710 ई०
  5. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. वज़ीर खाँ सरहिंद का नवाब था।
  2. बंदा सिंह बहादुर वज़ीर खाँ द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा दिए जाने का बदला लेना चाहता थे।
  3. वजीर खाँ चप्पड़चिड़ी में सिखों के साथ मुकाबला करते हुए मारा गया था।
  4. 1710 ई०।
  5. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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3
बंदा सिंह बहादुर के अधीन पंजाब में बढ़ रही सिखों की शक्ति को रोकने के लिए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने अब्दुस समद ख़ाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। उसको सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए। उसने अप्रैल, 1715 ई० में एक विशाल सेना के साथ बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिखों ने दुनी चंद की हवेली में इस मुग़ल सेना से मुकाबला जारी रखा। यह घेरा आठ महीने तक चलता रहा। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह ने बंदा बहादुर को हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया पर बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों को साथ लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। अंत में विवश होकर 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर को अपनी पराजय को स्वीकार करना पड़ा।

  1. अब्दुस समद खाँ कौन था ?
  2. गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर ने किस हवेली से मुग़ल सेना का मुकाबला किया ?
  3. गुरदास नंगल की लड़ाई कितनी देर तक चली ?
  4. गुरदास नंगल की लड़ाई में उसका कौन-सा साथी उसका साथ छोड़ गया था ?
  5. बंदा बहादर को कब गिरफ्तार किया गया था ?
    • 1705 ई०
    • 1710 ई०
    • 1711 ई०
    • 1715 ई०।

उत्तर-

  1. अब्दुस समद खाँ लाहौर का सूबेदार था। ।
  2. गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर ने दुनी चंद की हवेली से मुग़ल सेना का मुकाबला किया।
  3. गुरदास नंगल की लड़ाई 8 महीनों तक चली।
  4. गुरदास नंगल की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर का साथी बाबा बिनोद सिंह उसका साथ छोड़ गया था।
  5. 1715 ई०।

बंदा सिंह बहादुर PSEB 12th Class History Notes

  • प्रारंभिक जीवन (Early Career)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ था-बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था-वह बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था-शिकार के दौरान गर्भवती हिरणी की हत्या से प्रभावित होकर उसने संसार त्यागने का निश्चय कर लिया-वह बैरागी बन गया और उसने अपना नाम माधो दास रख लिया-उसने तांत्रिक औघड़ नाथ से तंत्र विद्या की शिक्षा ली और नंदेड में बस गया-नंदेड में ही 1708 ई० में माधोदास की गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट हुई-गुरु जी ने उसे अमृत छकाकर सिख बना दिया और उसका नाम बंदा सिंह बहादुर रख दिया।
  • बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे (Military Exploits of Banda Singh Bahadur)सिख बनने के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर गुरु जी पर हुए मुग़ल अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए पंजाब की ओर चल दिया-गुरु जी के हुक्मनामों के फलस्वरूप हजारों की संख्या में सिख उसके ध्वज तले एकत्रित हो गए-बंदा सिंह बहादुर ने 1709 ई० में सर्वप्रथम सोनीपत पर विजय प्राप्त कीबंदा सिंह बहादुर की दूसरी विजय समाना पर थी-समाना के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने घुड़ाम, मुस्तफाबाद, कपूरी, सढौरा तथा रोपड़ पर विजय प्राप्त की-बंदा सिंह बहादुर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजय सरहिंद की थी-बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ को पराजित किया था-बंदा सिंह बहादुर ने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया-मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर लाहौर के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल में अचानक घेरे में ले लिया-घेरा लंबा होने के कारण बंदा सिंह बहादुर को हथियार डालने पड़े-9 जून, 1716 ई० को उसे बड़ी निर्दयता से दिल्ली में शहीद कर दिया गया।
  • बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Early Success)—मुग़लों के घोर अत्याचारों के कारण सिखों में मुग़लों के प्रति जबरदस्त रोष था गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामों के फलस्वरूप सिखों ने बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग दियाऔरंगजेब के उत्तराधिकारी अयोग्य थे-बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे-बंदा सिंह बहादुर एक निडर और योग्य सेनापति था-सिख बहुत धार्मिक जोश से लड़ते थे।
  • बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate failure)-मुग़ल साम्राज्य बहुत शक्तिशाली तथा असीमित साधनों से युक्त था–सिखों में संगठन और अनुशासन का अभाव था-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया था-बंदा सिंह बहादुर ने सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया था-हिंदू शासकों तथा ज़मींदारों ने बंदा सिंह बहादुर का विरोध किया था-गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर पर अचानक आक्रमण हुआ था-बाबा बिनोद के साथ हुए मतभेद के कारण बंदा सिंह बहादुर को हथियार डालने पड़े थे।
  • बंदा सिंह बहादुर के चरित्र का मूल्याँकन (Estimate of Banda Singh Bahadur’s Character)-बंदा सिंह बहादुर बहुत ही वीर और साहसी था- उसका आचरण बहुत उज्ज्वल था-बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था-उसने अपने विजित क्षेत्रों की अच्छी प्रशासन व्यवस्था की-बंदा सिंह बहादुर एक महान् संगठनकर्ता था-बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह की परिभाषा लिखो। दबाव समूहों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।। (Define Pressure Groups and explain its main characteristics.)
अथवा
“प्रभावक’ गुटों को परिभाषित कीजिए और उनकी विशेषताओं की चर्चा करें।। (Define Prssure Groups and discuss their characteristics.)

उत्तर-
वर्तमान राजनीतिक युग की महत्त्वपूर्ण देन दबाव समूहों (Pressure Groups) का विकास है जो आजकल सभी लोकतन्त्रीय देशों में पाए जाते हैं। कार्ल जे० फ्रेडरिक ने दबाव समूहों को “दल के पीछे सकिय जन” (“The living Public behind the Parties”) कहा है। पहले इन समूहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें एक बुरी शक्ति माना जाता था जो लोकतन्त्र की जड़ों पर प्रहार करती है, किन्तु अब स्थिति बदल गई है। अब उन्हें आवश्यक बुराई के रूप में राजनीतिक क्रियाशीलता के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है। राजनीतिक क्षेत्र में नीति निर्धारण और प्रशासन में दिन-प्रतिदिन इनके बढ़ते हुए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव के कारण विश्व के सभी देशों में इनका अध्ययन किया जा रहा है।

दबाव समूह का अभिप्राय (Meaning of Pressure Groups)—साधारण भाषा में दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। ये राजनीतिक दल अथवा संगठन नहीं होते हैं बल्कि ये राजनीतिक दलों से भिन्न होते हैं।

1. ओडीगार्ड (Odegard) ने दबाव समूह का अर्थ बताते हुए कहा है, “एक दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिनके एक अथवा अनेक सामान्य उद्देश्य और स्वार्थ हैं और जो घटनाओं के क्रम में विशेष रूप में सार्वजनिक नीति के निर्माण और शासन को इस प्रकार प्रभावित करने का प्रयत्न करे कि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके।

2. सी० एच० ढिल्लों (C. H. Dhillon) के अनुसार, “हित समूह ऐसे व्यक्तिों का समूह है जिनके उद्देश्य समान होते हैं। जब हित समूह अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की सहायता चाहने लगते हैं, तब इन्हें दबाव समूह कहा जाता है।” (“An Interest Group is an association of people having a mutual concern. They become in turn a pressure group as they seek government aid in accomplishing what is advantageous of them.”)

3. मैनर वीनर (Myron Weiner) के अनुसार, “दबाव अथवा हित समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे किसी ऐच्छिक रूप से संगठित समूह से होता है जो सरकार के संगठन से बाहर रह कर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकार की नीति, इसका प्रशासन तथा इसके निर्णय को प्रभावित करने का यत्न करता है।”

4. एन० सी० हण्ट (N. C. Hunt) के अनुसार, “दबाव समूह ऐसा संगठन है जो सार्वजनिक पद की ज़िम्मेदारी स्वीकार किए बिना सरकार की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है।” : “A pressure group is an organisation which seeks to influence governmental policies without at the same time being willing to accept the responsibility of public office.”)

5. वी० ओ० की (V.O. Key) के अनुसार, “हित समूह ऐसे असार्वजनिक संगठन (Private Associations) है जिनका निर्माण सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। यह उम्मीदवारों के उत्तरदायित्व की अपेक्षा सरकार को प्रभावित करने का प्रयत्न करके अपने हित साधन में लगे रहते हैं।”

इन परिभाषाओं में संगठन शब्द पर बल दिया गया है, जिससे ये परिभाषाएं सीमित हो गई हैं क्योंकि इन परिभाषाओं के आधार पर उन्हीं समूहों को हित समूह स्वीकार किया जा सकता है जिनका औपचारिक संगठन हो। अतः जिन समूहों का औपचारिक संगठन नहीं है उन्हें हित समूहों में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। आर्थर बेण्टले (Arthur Bentley) का विचार है कि हित समूह की परिभाषा संगठन के आधार पर न करके, क्रिया के आधार पर की जानी चाहिए। उसके अनुसार, “समूह समाज के लोगों का कोई एक भाग है, जिसे किसी ऐसे भौतिक पुंज के रूप में नहीं जोकि व्यक्तियों के अन्य पुंजों से पृथक् हो (Not as a physical mass cut off from other masses of men) बल्कि सामूहिक क्रिया के रूप में (As a mass activity) माना गया है जो कि अपने में भाग लेने वाले व्यक्तियों पर इसी प्रकार की अन्य सामूहिक क्रियाओं में भाग लेने पर कोई रुकावट उत्पन्न नहीं करता।”

दबाव समूह की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि दबाव समूह राजनीतिक दलों की भान्ति किसी कार्यक्रम के आधार पर निर्वाचकों को प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि वे किन्हीं विशेष हितों से सम्बन्धित होते हैं। वे राजनीतिक संगठन नहीं होते हैं और न ही चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। वे तो अपने समूह विशेष के लिए सरकारी नीति और सरकारी ढांचे को प्रभावित करते हैं, राजनीतिक दल न होते हुए भी दलों के समान संगठित होते हैं, जिनकी सदस्यता, उद्देश्य, संगठन, एकता, प्रतिष्ठा और साधन होते हैं। इन समूहों का निर्माण विशेष हितों के लिए होता है। वे अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। वे सरकार पर ऐसी किसी नीति को न अपनाने के लिए जो उनके हितों के प्रतिकूल हो समाचार-पत्र, पुस्तकों, रेडियो तथा सार्वजनिक सम्बन्ध आदि माध्यमों द्वारा प्रभाव डालते हैं।

दबाव समूहों के लक्षण विशेषताएँ अथवा प्रकृति (CHARACTERISTICS OR NATURE OF PRESSURE GROUPS)-

दबाव समूहों की विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट पता चलता है कि ये न तो हित समूहों की भान्ति पूर्ण रूप से अराजनीतिक होते हैं और न ही राजनीतिक दलों की भान्ति पूर्णतः राजनीतिक होते हैं। दबाव समूह के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

1. औपचारिक संगठन (Formal Organisation)-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि वह औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं। व्यक्तियों के इस समूह को बिना संगठन के दबाव समूह नहीं कहा जा सकता। दबाव समूह के लिए औपचारिक संगठन का होना अनिवार्य है। दबाव समूह का अपना संविधान, अपने उद्देश्य और अपने पदाधिकारी होते हैं। हो सकता है कि कोई समूह बिना औपचारिक संगठन के बहुत प्रभावशाली हो, परन्तु ऐसे समूह को दबाव समूह के स्थान पर शक्ति गुट (Power Group) कहना अधिक उचित होता है।

2. विशेष स्व-हित (Special Self-interest)-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि दबाव समूहों के सामान्य उद्देश्य नहीं होते हैं। अनेक दबाव समूह विशेष कर पेशेवर समूह सामान्य हित का ही लक्ष्य रखते हैं, परन्तु फिर भी इस बात में सच्चाई है कि विशेष स्वहित विभिन्न व्यक्तियों को एक समूह में बांध कर रखता है। दबाव समूह की एकता का आधार ही इसके सदस्यों में एक जैसे हित का होना है। जिन व्यक्तियों के हितों की समानता होती है वे ही दबाव समूह का रूप ले लेते हैं ताकि सरकार को प्रभावित करके अपने हितों की रक्षा कर सकें।

3. ऐच्छिक सदस्यता (Voluntary Membership)-दबाव समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है। दबाव समूह का सदस्य बनना या न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति को किसी विशेष दबाव समूह का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति किसी दबाव समूह का सदस्य बनने के बाद यह महसूस करे कि उसके हित इस समूह विशेष के द्वारा पूरे नहीं होते हैं तो वह इस समूह की सदस्यता छोड़ सकता है।

4. सर्वव्यापक प्रकृति (Universal in Nature)-दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं में पाए जाते हैं। यह ठीक है कि लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में दबाव समूह अधिक पाए जाते हैं और उनकी भूमिका भी सर्वाधिकार व स्वेच्छाचारी शासन व्यवस्था की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। परन्तु सर्वाधिकारवादी व्यवस्था में भी दबाव समूह पाए जाते हैं। चीन में दबाव समूह पाए जाते हैं। अफ्रीका व लेटिन अमेरिका के अनेक स्वेच्छाधारी राज्यों में दबाव समूह पाए जाते हैं।

5. राजनीतिक क्रिया अभिमुखी (Political action Oriented)-दबाव समूह स्वयं राजनीतिक संगठन नहीं होते परन्तु ये राजनीतिक क्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ये चुनावों में प्रत्यक्ष तौर पर भाग नहीं लेते और शासन व्यवस्था से अलग रहते हैं परन्तु ये राजनीतिक दलों और राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं।

6. उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility)-दबाव समूहों की एक अन्य विशेषता यह है कि समूह सत्ता का लाभ तो उठाते हैं परन्तु उत्तरदायित्व का वहन नहीं करते। दबाव समूह सत्तारूढ़ दल पर दबाव डालते हैं ताकि नीतियों का निर्माण उनके पक्ष में हो। परन्तु दबाव समूह किसी भी कार्य के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होते।

7. अमान्य संवैधानिक संगठन (Extra Constitutional Bodies) ‘दबाव समूहों को संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं होती क्योंकि इनका वर्णन संविधान में नहीं किया गया होता। परन्तु दबाव समूह देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शासन को प्रभावित करते हैं।

8. राजनीतिक सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य नहीं (Aim is not to acquire Political Power)-दबाव समूहों का उद्देश्य राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं होता अर्थात् इनका उद्देश्य सरकार बनाना नहीं होता। इनका उद्देश्य अपने हितों की रक्षा करना होता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 2.
दबाव समूहों से आपका क्या अभिप्राय है? लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों की व्याख्या कीजिए।
(What do you understand by Pressure Groups. Discuss the various functions of Pressure Groups which they perform in a Democratic Political System.)
उत्तर-
दबाव समूह की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न संख्या नं० 1 देखो।
दबाव समूह के कार्य-दबाव समूहों के कार्यों की स्थाई सूची तैयार करना कठिन कार्य है, क्योंकि विभिन्न दबाव समूहों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूह भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं और अलग-अलग भूमिका निम्न हैं। इसके अतिरिक्त दबाव समूहों के कार्य देश की शासन प्रणाली और परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। दबाव समूह मुख्य निम्नलिखित कार्य करते हैं-

1. सदस्यों के हितों की रक्षा करना (Protection of the Interests of Members)-दबाव समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना तथा विकास करना है। दबाव समूहों की स्थापना वास्तव में किसी विशेष हित की पूर्ति के लिए की जाती है और अपने हितों की रक्षा के लिए व्यक्ति दबाव समूहों के सदस्य बनते हैं। अतः सदस्यों के हितों की रक्षा करना दबाव समूहों का प्रथम कर्तव्य है। उदाहरणस्वरूप विद्यार्थी संघ का प्रथम कार्य विद्यार्थियों के हितों की रक्षा करना है। सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूहों द्वारा भिन्न-भिन्न साधन अपनाए जाते हैं।

2. सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को प्रभावित करना (To Influence the making of Public Policies and Laws) सरकार की नीतियां और कानून सभी को प्रभावित करते हैं। दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों और कानूनों के हितों को प्रभावित करते हैं ताकि ऐसी नीतियों और कानूनों का निर्माण हो, जो उनके हितों के अनुकूल हों और उनके हितों को बढ़ावा दे। यद्यपि दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों के निर्माण एवं कानून के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेते तथापि वे प्रार्थना-पत्र में सरकारी शिष्टमण्डल भेजकर, सार्वजनिक सभाओं द्वारा, वार्ता द्वारा, प्रदर्शनों इत्यादि द्वारा कानून निर्माण और नीति-निर्माण को प्रभावित करते हैं।

3. अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना (To establish Contact with Bureaucracy)-दबाव समूहों के महत्त्वपूर्ण कार्य सरकारी अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना होता है। निकट के सम्पर्कों से ही दबाव समूहों को सरकारी नीतियों का पता चलता है और वे उन नीतियों को अपने अनुकूल बनाने के लिए प्रयास करते हैं। दबाव समूह अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए अधिकारियों, मन्त्रियों और विधायकों के रिश्तेदारों को अपने व्यवसाय में नौकरियां प्रदान करते हैं और सरकारी द्वारा अपने काम करवाते हैं।

4. चुनाव के समय उम्मीदवारों की सहायता करना (To help the Candidates at the time of Election)प्रभावित दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिनसे उनको उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर या सरकार में जाकर उनके हितों की सुरक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं ताकि बाद में वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।

5. प्रचार तथा प्रसार के साधन (Propaganda and Means of Communication)-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जनता में अपने पक्ष के लिए सद्भावना पैदा करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए, दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार व प्रसार के साधन अपनाते हैं। प्रचार व प्रसार के लिए रेडियो, प्रेस, टेलीविज़न व सार्वजनिक सम्बन्धों के विशेषज्ञों की सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। जनमत को अपने पक्ष में उभार कर दबाव समूह कई बार आन्दोलन पैदा कर देते हैं, प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं तथा इस प्रकार के उद्दण्ड व्यवहार प्रशासन व्यवस्था में भारी दबाव डालते हैं। यदि भिन्न-भिन्न दबाव समूह भिन्न-भिन्न और विपरीत दिशाओं में प्रचार अभियान चलाते रहें तो प्रशासन कार्य बहुत कठिन व जटिल हो जाए।

6. आंकड़ों का प्रकाशन-अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं। इस उपाय से वे लोकमत को अपने पक्ष में जागृत करते हुए अधिकारियों पर दबाव डालने में समर्थ होते हैं।

7. गोष्ठियां आयोजित करना-साधनयुक्त अनेक दबाव समूह विचार-विमर्श व वाद-विवाद के लिए समयसमय पर गोष्ठियों, भाषण, वार्तालाप, वार्ताओं व सेमीनारों (Seminar) आदि का आयोजन करते रहते हैं। इन आयोजनों में प्रशासकों व विधायकों इत्यादि को आमन्त्रित किया जाता है। इन गोष्ठियों के द्वारा वस्तुतः दबाव समूह जनता व सरकार के समक्ष अपना प्रभाव प्रस्तुत करते हैं।

8. विधान सभाओं की लॉबियों में सक्रिय भाग लेना-लॉबिंग (Lobbying) का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान का निर्माण करें, जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवातें हैं ताकि ये वकील विधायकों को तार्किक ढंग से अनुभव करवाएं कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में हैं अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर अथवा बदनामी का भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

9. जनमत को प्रभावित करना (Influencing the Public Opinion)—दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने में जनमत को प्रभावित करना आवश्यक समझते हैं। अतः ये समूह जनता को अपने पक्ष में करने के लिए जनमत से सम्पर्क बनाए रखते हैं। ये समूह अपने समाचार-पत्रों, सार्वजनिक सम्मेलनों तथा प्रचार के अन्य साधनों द्वारा जनमत को अपने विचारों के अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ये समूह जानते हैं कि लोकतन्त्र में जनमत ही सब कुछ है।

10. राजनीतिक दलों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना (To establish relations with Political Parties)दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं। दबाव समूह राजनीतिक दलों से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए राजनीतिक दलों को धन देते हैं, चुनाव के समय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं और उनके पक्ष में मतदान करवाते हैं। बड़े-बड़े दबाव समूह राजनीतिक दलों के माध्यम से अपने उम्मीदवार चुनाव में खड़े करते हैं। दबाव समूह राजनीतिक दलों से यह उम्मीद रखते हैं कि वे उनके हितों की रक्षा में उनकी सहायता करें।

11. सलाहकारी कार्य (Advisory Functions)-कई देशों में दबाव समूह अपने व्यवसायों से सम्बन्धित नीतिनिर्माण के कार्य में सरकार को सलाह देते हैं। सरकार का सम्बन्धित विभाग जब नीति-निर्माण करता है तो विभाग से सम्बन्धित दबाव समूहों से सूचना प्राप्त करता है तथा उनसे विचार-विमर्श करता है। इंग्लैण्ड में दबाव समूहों के प्रतिनिधियों को जांचकारी समितियों और सरकारी आयोगों के सामने बुलाया जाता है ताकि विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों को जाना जा सके।

12. संसदीय समितियों के सम्मुख उपस्थित होना (To appear befoer Parliamentary Committees)लोकतन्त्रीय राज्यों में कानून निर्माण के कार्य में बिल या विधेयक संसदीय समिति के पास अवश्य भेजा जाता है। जब संसदीय समिति बिल पर विचार करती है तो सम्बन्धित पक्षों के विचारों को सुनती है। दबाव समूहों के प्रतिनिधि कई बार संसदीय समिति के सामने पेश होते हैं और बिल को प्रभावित करने वाले विचार प्रकट करते हैं। इस प्रकार दबाव समूह कानून प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

13. न्यायपालिका की शरण (Shelter of Judiciary)-कई बार दबाव समूह विधान-मण्डल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून रद्द करवाने के लिए या कार्यपालिका द्वारा निर्मित किसी ऐसी नीति को अवैध घोषित करवाने के लिए जिनसे उसके किसी हित को आघात पहुंचता है न्यायपालिका की शरण भी लेते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवीपर्स कानूनों के विरुद्ध इन समूहों ने न्यायपालिका के पास अपील की है।
निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि दबाव समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के भरसक प्रयत्न करते हैं। विशेष कर व्यापारिक संगठनों का सरकार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल को चुनाव में धन की आवश्यकता होती है जो मुख्यतः इन दबाव समूहों द्वारा ही दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 3.
दबाव समूहों की कार्यविधि के तरीकों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the methods of the Working of Pressure Groups.)
अथवा
दबाव समूहों की कार्य प्रणाली के ढंगों का वर्णन कीजिए। (Describe the methods of the working of Pressure Groups.)
उत्तर-
दबाव समूहों की कार्यविधि के ढंग-प्रत्येक दबाव समूह का लक्ष्य होता है और अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए दबाव समूह अनेक साधनों को अपनाते हैं। दबाव समूह मुख्यत: जिन साधनों या तकनीकों को राजनीतिक व्यवहार में अपनाते हैं वे इस प्रकार हैं

1. चुनाव (Election)–दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं। प्रभावशाली दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिन से उनको यह उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर या सरकार में जाकर उनके हितों की सुरक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं ताकि बाद में वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।

2. प्रार्थना-पत्र भेजना (To Send Petitions)-दबाव समूह को इस बात का पता होता है कि किस अधिकारी या मन्त्री या संस्था पर दबाव डाल कर अपने हितों की रक्षा की जा सकती है। इसलिए दबाव समूह समय-समय पर उन अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं। प्रार्थना-पत्र में दबाव.समूहों की मांगों का उल्लेख होता है। कई बार दबाव समूह मांगों के समर्थन में अपने सभी सदस्यों से तारें, पत्र इत्यादि भिजवाते हैं। इस प्रकार हज़ारों तारें, पत्र इत्यादि सम्बन्धित अधिकारी के पास पहुंच जाते हैं और अधिकारी निर्णय लेते समय इन तारों आदि से अवश्य प्रभावित होते हैं।

3. प्रचार तथा प्रसार के साधन (Propaganda and Means of Communication)-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जनता को अपने पक्ष में करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार व प्रसार के साधन अपनाते हैं। प्रचार व प्रसार के लिए रेडियो, प्रेस, टेलीविज़न व सार्वजनिक सम्बन्धों के विशेषज्ञों की सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। जनमत को अपने पक्ष में उभार कर दबाव समूह कई बार आन्दोलन पैदा कर देते हैं, प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं तथा इस प्रकार के उद्दण्ड व्यवहार प्रशासन व्यवस्था में भारी दबाव डालते हैं। यदि भिन्न-भिन्न दबाव समूह भिन्न-भिन्न और विपरीत दिशाओं में प्रचार अभियान चलाते रहें तो प्रशासन कार्य बहुत कठिन व जटिल हो जाए।

4. आंकड़ा प्रकाशन-अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं। इस उपाय से वे लोकमत को अपने पक्ष में जागृत करते हुए अधिकारियों पर दबाव डालने में समर्थ होते हैं।

5. गोष्ठियां आयोजित करना-साधन युक्त अनेक दबाव समूह विचार-विमर्श व वाद-विवाद के लिए समयसमय पर गोष्ठियों, भाषण, वार्तालाप, वार्ताओं व सेमीनारों (Seminars) आदि का आयोजन करते रहते हैं। इन आयोजनों में प्रशंसकों व विधायकों इत्यादि को आमन्त्रित किया जाता है। इन गोष्ठियों के द्वारा वस्तुतः दबाव समूह जनता व सरकार के समक्ष अपना प्रभाव प्रस्तुत करते हैं।

6. विधान-सभाओं की लॉबियों में सक्रिय भाग लेना-लॉबिइंग (Lobbing) का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान का निर्माण करे, जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवाते हैं ताकि ये वकील विधायकों को तार्किक ढंग से अनुभव करवायें कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में है अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर या उन्हें बदनामी का भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

7. रिश्वत, बेईमानी, बदनामी तथा अन्य उपाय-अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूह रिश्वत, घूस व अन्य अनुचित ढंग को अपनाने से भी हिचकिचाते नहीं हैं। बेईमानी व बदनामी के उपकरणों द्वारा वे स्वार्थ सिद्ध करते हैं। प्रत्येक राष्ट्र में ये दबाव समूह सक्रिय रूप से गतिशील रहते हैं, परन्तु व्यावसायिक दबाव समूह धन खर्च करके आधुनिक उपायों के प्रयोग में अन्य दबाव समूहों की तुलना में आगे बढ़ कर रहते हैं।

8. जनमत को अपने पक्ष में करना (To win Public Opinion on their side)-दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने के लिए जनमत को अपने पक्ष में करना आवश्यक समझते हैं। अतः ये समूह जनता को अपने पक्ष में करने के लिए जनता से सम्पर्क बनाए रखते हैं। ये समूह अपने समाचार-पत्रों, सार्वजनिक सम्मेलनों तथा प्रचार के अन्य साधनों द्वारा जनमत को अपने विचारों के अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ये समूह जानते हैं कि लोकतन्त्र में जनमत ही सब कुछ है। ,

9. हड़ताल, बन्द और प्रदर्शन (Strike, Bandh and Demonstration)-दबाव समूह कई बार अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हड़ताल, बन्द, घेराव और प्रदर्शन का भी सहारा लेते हैं। हड़ताल और प्रदर्शन का प्रयोग तो राष्ट्रीय आन्दोलन के हितों में किया जाता था, परन्तु घेराव और बन्द का प्रयोग स्वतन्त्रता के पश्चात् किया जाने लगा है। इन साधनों द्वारा दबाव समूह एक तो असन्तोष उत्पन्न करना चाहते हैं और दूसरा जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। इन साधनों का कई बार सरकार पर बड़ा प्रभाव पड़ता है और इन समूहों की बात मान ली जाती है।

10. उच्च पद देकर (By giving high jobs)-बड़े-बड़े व्यापारी और उद्योगपति जैसे टाटा, बिरला, डालमिया, मोदी आदि ने शिक्षा संस्थाएं, अस्पताल और अन्य सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाएं स्थापित कर रखी हैं। मन्त्रियों, विधायकों तथा उच्च सरकारी अधिकारियों के बच्चे तथा रिश्तेदार इन समूहों में काम करते हैं। कई बार सरकारी कर्मचारियों को यह लालच भी दिया जाता है कि उन्हें रिटायर होने के पश्चात् नियुक्त कर लिया जाएगा। इस लालच का काफ़ी प्रभाव पड़ता है।

11. भूख हड़ताल या मरण व्रत (Hunger Strikes or Fast upto Death)-दबाव समूह अपनी मांगें मनवाने के लिए कई बार भूख हड़ताल या मरण व्रत का भी सहारा लेते हैं। भारत में दबाव समूहों के लिए भूख हड़ताल करना या मरण व्रत रखना महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली साधन है।

12. संसदीय समितियों के सामने पेश होना (To appear before Parliamentary Commitees)संसदीय समितियां कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। दबाव समूहों के प्रतिनिधि संसदीय समितियों के सामने प्रस्तुत होते हैं और उन्हें प्रभावित करके अपने हितों की रक्षा करते हैं।

13. न्यायपालिका की शरण (Shelter of Judiciary) कई बार दबाव समूह विधानमण्डल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून को रद्द करवाने के लिए या कार्यपालिका द्वारा निर्मित किसी ऐसी नीति को अवैध घोषित करवाने के लिए जिनसे उनके किसी हित पर आघात पहुंचता है, न्यायपालिका की शरण भी लेते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवीपों के कानूनों के विरुद्ध इन समूहों ने न्यायपालिका के पास अपील की थी।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि दबाव समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने में भरसक प्रयत्न करते हैं और विशेषकर व्यापारिक संगठनों का सरकार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल को चुनाव में धन की आवश्यकता होती है जो मुख्यतः इन दबाव समूहों द्वारा ही दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साधारण भाषा में दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों तथा शासन को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। दबाव समूह लोगों का औपचारिक संगठन है। दबाव समूह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। वे सरकार पर किसी ऐसी नीति को न अपनाने के लिए जो उनके हितों के प्रतिकूल हो, प्रचार के साधनों, सार्वजनिक सम्बन्धों, टेलीविज़न तथा प्रेस द्वारा प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 2.
दबाव समूहों की कोई दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • सी० एच० ढिल्लों के अनुसार, “हित समूह ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनके उद्देश्य समान होते हैं। जब हित समूह अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की सहायता चाहने लगते हैं, तब उन्हें दबाव समूह कहा जाता है।”
  • मैनर वीनर के अनुसार, “दबाव समूह अथवा हित समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे किसी ऐच्छिक रूप से संगठित समूह से होता है जो सरकार के संगठन से बाहर रहकर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकार की नीति, इसका प्रशासन तथा इसके निर्णय को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है।”

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प्रश्न 3.
दबाव समूह की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
दबाव समूह के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • औपचारिक संगठन-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि ये औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं । व्यक्तियों के समूह को बिना संगठन के दबाव समूह नहीं कहा जा सकता। दबाव समूह के लिए औपचारिक संगठन का होना अनिवार्य है। दबाव समूह का अपना संविधान, अपने उद्देश्य और अपने पदाधिकारी होते हैं।
  • विशेष स्व-हित-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होती है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि दबाव समूहों के सामान्य उद्देश्य नहीं होते हैं। अनेक दबाव समूह विशेषकर पेशेवर दबाव समूह सामान्य हित का ही लक्ष्य रखते हैं, फिर भी इस बात में सच्चाई है कि विशेष स्व-हित विभिन्न व्यक्तियों को एक समूह में बांध कर रखता है। दबाव समूह की एकता का आधार ही इसके सदस्यों में एक से हित का होना है।
  • ऐच्छिक सदस्यता-दबाव समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है। दबाव समूह का सदस्य बनना या न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति को किसी विशेष दबाव समूह का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में पाए जाते हैं।

प्रश्न 4.
दबाव समूहों की कार्यविधि के कोई चार ढंग लिखो।
अथवा
दबाव समूहों की कार्यविधि के कोई चार तरीके लिखो।
अथवा
दबाव समूहों की कार्य प्रणाली के चार ढंगों (तरीकों) का वर्णन करें।
उत्तर-
दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुख्यतः निम्नलिखित साधनों को अपनाते हैं

  • चुनाव-दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं। प्रभावशाली दबाव समूह चुनाव के दिनों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करके उनको सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं जिनसे उनको यह उम्मीद होती है कि वे विधानमण्डल में जाकर उनके हितों की रक्षा करेंगे। दबाव समूह राजनीतिक दलों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते है ताकि बाद वे अपने कार्य उनसे करवा सकें।
  • प्रार्थना-पत्र भेजना-इसलिए दबाव समूह समय-समय पर उन अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं। प्रार्थना-पत्रों में दबाव समूहों की मांगों का उल्लेख होता है। कई बार दबाव में समूह मांगों के समर्थन में अपने सभी सदस्यों से तारें, पत्र इत्यादि भिजवाते हैं।
  • प्रचार तथा प्रसार के साधन-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जनता में अपने पक्ष के लिए सद्भावना की भावना पैदा करने के लिए तथा प्रशासन को अपने अनुकूल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूह, भिन्न-भिन्न प्रचार तथा प्रसार के साधन अपनाते हैं।
  • अपनी बातों की महत्ता प्रकट करने के लिए दबाव समूह आंकड़े प्रकाशित करने का साधन भी अपनाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 12 हित तथा दबाव समूह

प्रश्न 5.
हित समूहों और दबाव समूहों में अन्तर लिखो।
अथवा
दबाव समूह और हित समूह में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
हित समूह और दबाव समूह समान प्रकृति और प्रवृत्ति के होते हुए भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • दोनों में पहला अन्तर कार्य-विधि का है। हित समूह अपने हितों की वृद्धि या रक्षा के लिए मुख्यतः अनुनयनी साधनों का प्रयोग करते हैं जबकि दबाव समूह दबाव डालने की तकनीकों का सहारा लेते हैं।
  • हित समूह अपने हितों की रक्षा के लिए शासन क्रिया को प्रभावित करने का लक्ष्य नहीं रखते परन्तु दबाव समूह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते हैं। हित समूह अन्य हित समूहों या सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते हैं।
  • हित समूह तथा दबाव समूह में तीसरा अन्तर प्रकृति का है। हित समूह का प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सम्बन्ध नहीं होता जबकि दबाव समूह का राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 6.
दबाव समूह की कोई चार किस्में लिखिए।
उत्तर-
वर्तमान समय में कई तरह के दबाव समूह पाए जाते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं

  • विशेष हित समूह-जिन लोगों के हितों में समानता नहीं होती है वे अपने विशेष हितों की रक्षा के लिए आपस में मल कर दबाव समूहों का गठन कर लेते हैं। ऐसे दबाव समूह विशेष हित समूह कहलाते हैं। इनमें श्रमिक संघ, किसान संगठन आदि शामिल हैं। ‘
  • साम्प्रदायिक हित समूह-ऐसे हित समूह किसी विशेष समुदाय या धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए बनाए जाते हैं जैसे कि रिपब्लिकन दल, हिन्दू महासभा और अकाली दल।
  • सरकारी कर्मचारियों के समह-सरकारी कर्मचारियों ने अपने हितों की रक्षा के लिए अनेक संघों की स्थापना की हुई है। इनमें रेलवे कर्मचारी संघ, डाक-तार कर्मचारी संघ आदि शामिल हैं।
  • साहचर्य हित समूह-ये हित समूह विशेष व्यक्तियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए औपचारिक रूप से संगठित होते हैं, जैसे श्रमिक संगठन एवं व्यापारिक संगठन।

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प्रश्न 7.
दबाव समूहों के चार गुणों अथवा लाभों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • दबाव समूह का पहला लाभ यह है कि वे अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जनता में अपना साहित्य वितरित करके जनमत को शिक्षित करते हैं।
  • इन दबाव समूहों के पास अपने नेता होते हैं जो विभिन्न तथ्यों को एकत्र करने के बाद जनता के सामने पेश करते
  • दबाव समूहों के अपने संगठन होते हैं जो कई तरह की लाभकारी सूचनाओं व आंकड़ों को एकत्र करते हैं। (4) कुछ दबाव समूह सामाजिक बुराइयों को दूर करने में प्रयासरत रहते हैं।

प्रश्न 8.
दबाव समूह के कोई चार अवगुण लिखो।
उत्तर-

  • इन दबाव समूहों के आपसी विरोध के कारण सामान्य हितों को हानि पहुंचने की सम्भावना होती है।
  • इन दबाव समूहों में कुछ शक्तिशाली तथा अच्छी प्रकार से संगठित होते हैं तथा उनकी सदस्य संख्या भी अधिक होती है जबकि कुछ दबाव समूह छोटे होते हैं तथा इनके पास अधिक पास अधिक धन भी नहीं होता है। इस कारण बड़े शक्तिशाली दबाव समूह सरकार से अपनी बात मनवाने में सफल हो जाते हैं।
  • कई बार व्यक्ति किसी दबाव समूह में शामिल नहीं होते हैं जिस कारण उनके हितों की उपेक्षा होती रहती है। (4) दबाव समूह राष्ट्रीय विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं। .

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प्रश्न 9.
दबाव समूह और राजनीतिक दलों के बीच कोई चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक दल और दबाव समूह में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • संगठन के स्वरूप में अन्तर-राजनीतिक दल एक राजनीतिक संगठन होता है जो समाज के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है, परन्तु दबाव समूह कोई राजनीतिक संगठन नहीं है। वह किसी विशेष अथवा कुछ समान उद्देश्यों को लेकर चलता है।
  • कार्यक्रम में अन्तर-राजनीतिक दलों का एक राजनीतिक कार्यक्रम होता है। जिसके आधार पर राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु दबाव समूहों का कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं होता है। इस कारण कार्य क्षेत्र विशिष्ट और संकीर्ण होता है।
  • व्यापक एवं संकुचित संगठन-राजनीतिक दल विस्तृत एवं व्यापक संगठन होता है जिसका उद्देश्य देश के सभी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना होता है। इसके विपरीत दबाव समूह एक छोटा संगठन होता है जिसे जनता के एक विशेष वर्ग का समर्थन प्राप्त होता है।
  • राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेते हैं, जबकि दबाव समूह चुनावों में भाग नहीं लेते।

प्रश्न 10.
दबाव समूहों के कोई चार कार्य लिखो।
उत्तर-
दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कई तरह के कार्य करते हैं। दबाव समूह मुख्यत: निम्नलिखित कार्य करते हैं-

  • सदस्यों के हितों की रक्षा करना-दबाव समूहों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना तथा विकास करना है। अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न दबाव समूहों द्वारा भिन्न-भिन्न साधन अपनाए जाते हैं।
  • सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों को प्रभावित करना-दबाव समूह सरकार की नीतियों तथा कानूनों को प्रभावित करते हैं । वे नीतियों और कानूनों के निर्माण को प्रभावित करते हैं ताकि ऐसी नीतियों और कानूनों का निर्माण हो, जो उनके हितों के अनुकूल हों और उन्हें बढ़ावा दें।
  • अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना-दबाव समूहों का एक महत्त्वपूर्ण कार्य अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना है। निकट सम्पर्क से ही दबाव समूह को सरकार की नीतियों का पता चलता है और वे उन नीतियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं।
  • दबाव समूह चुनावों के समय उम्मीदवारों की सहायता करते हैं, ताकि सफल होकर वे दबाव समूहों के हितों की पूर्ति कर सकें।

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प्रश्न 11.
हित समूह से क्या भाव है ?
अथवा
हित समूह से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समाज में अनेक वर्ग पाए जाते हैं और उन वर्गों के अलग-अलग हित हैं। उदाहरण के लिए समाज में श्रमिक, किसान, विद्यार्थी, अध्यापक, भूमिपति, मिल मालिक, उद्योगपति आदि के विभिन्न प्रकार के हित पाए जाते हैं। जब कोई छोटा अथवा बड़ा हित संगठित रूप धारण कर लेता है, तो उसे हित समूह कहा जाता है। हित समूह के उद्देश्य अपने समाज के सदस्यों के सामाजिक आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा होता है। जब कोई हित समूह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी दबाव माध्यम से राज्य की किसी निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करता है तो वह दबाव समूह में बदल जाता है। सभी दबाव समूह हित समूह होते हैं।

प्रश्न 12.
लॉबिंग से आपका क्या भाव है ?
अथवा
लॉबिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
लॉबिंग एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग दबाव समूहों द्वारा विकसित देशों में किया जाता है। लॉबिंग का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान (कानून) का निर्माण करें जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके। दबाव समूहों के सदस्य सरकार को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में सहयोग और सहायता का विश्वास देकर सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। अनेक आर्थिक रूप से संगठित दबाव समूह योग्य व चतुर वकीलों को भी संसद् में नियुक्त करवाते हैं ताकि ये वकील तार्किक ढंग से अनुभव करवाएं कि अमुक विधेयक सार्वजनिक हित में है अथवा अहित में है। दबाव समूहों के सदस्य विधायकों पर पैनी नज़र रखते हुए कई बार उन्हें रिश्वत देकर या उन्हें बदनामी के भय आदि देकर अनेक अनुचित ढंगों से भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

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प्रश्न 13.
दबाव समूह कानून निर्माण में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान समय में दबाव समूह सरकार की कानून निर्माण में काफ़ी सहायता करते हैं। जब संसद् की विभिन्न समितियों किसी बिल पर विचार-विमर्श कर रही होती हैं, तब से अलग-अलग दबाव समूहों को अपना पक्ष रखने के लिए कहती हैं। दबाव समूह उस बिल के कारण उन पर पड़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की बात कहते हैं। इस प्रकार अपने दृढ़ पक्ष से दाबव समूह कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसद् की विभिन्न समितियां भी इनके विचारों, तर्कों एवं आंकड़ों से महत्त्व देती हैं।

प्रश्न 14.
दबाव समूहों का सलाहकारी कार्य क्या है ?
उत्तर-
कई देशों में दबाव समूह अपने व्यवसायों से सम्बन्धित नीति-निर्माण के कार्य में सरकार को सलाह देते हैं। सरकार का सम्बन्धित विभाग जब.नीति-निर्माण करता है तो विभाग से सम्बन्धित दबाव समूहों से सूचना प्राप्त करता है तथा उनसे विचार-विमर्श करता है। इंग्लैण्ड में दबाव समूहों के प्रतिनिधियों को जांचकारी समितियों और सरकारी आयोगों के सामने बुलाया जाता है ताकि विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों को जाना जा सके।

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प्रश्न 15.
जाति दबाव समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
भारत में अनेक जातियां पाई जाती हैं। जब कोई जाति अपने हितों की.रक्षा के लिए दबाव समूह बनाती है तब उस दबाव समूह को जाति दबाव समूह कहा जाता है। भारत में जाति दबाव समूह बड़े सक्रिय हैं और उन्होंने न केवल सरकार को ही प्रभावित किया है बल्कि वे भारतीय राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जाति दबाव समूह में प्रमुख हैं मारवाड़ी एसोसिएशन, वैश्य महासभा, जाट सभा, राजपूत तथा, ब्राह्मण सभा, रोड सभा, नादर जाति संघ (Nadar Caste Association), गुज्जर सम्मेलन इत्यादि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
दबाव समूह विशेष हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं जो विधायकों तथा शासन को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। दबाव समूह लोगों का औपचारिक संगठन है। दबाव समूह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं।

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प्रश्न 2.
दबाव समूह की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. औपचारिक संगठन-दबाव समूह का प्रथम लक्षण यह है कि ये औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह होते हैं।
  2. विशेष स्व-हित-दबाव समूहों की स्थापना का आधार किसी विशेष स्व-हित की सिद्धि होती है।

प्रश्न 3.
दबाव समूह की कार्य-विधि के कोई दो ढंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. चुनाव-दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं।
  2. प्रार्थना-पत्र भेजना-दबाव समूह को इस बात का पता होता है किस अधिकारी या मन्त्री या संस्था पर दबाव डाल कर अपने हितों की रक्षा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
दबाव समूहों की कोई दो किस्में लिखें।
उत्तर-

  • विशेष हित समूह-जिन लोगों के हितों में समानता होती है वे अपने विशेष हितों की रक्षा के लिए आपस में मिल कर दबाव समूहों का गठन कर लेते हैं। ऐसे दबाव समूह विशेष हित समूह कहलाते हैं। इनमें श्रमिक संघ, किसान संगठन आदि शामिल हैं।
  • साम्प्रदायिक हित समूह-ऐसे हित समूह किसी विशेष समुदाय या धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए बनाए जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लॉबिइंग से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लॉबिइंग एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग दबाव समूहों द्वारा विकसित देशों में किया जाता है। लॉबिइंग का अर्थ है कि दबाव एवं हित समूहों के सदस्य संसद् में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और उन पर दबाव व प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं कि विधायक ऐसे विधान (कानून) का निर्माण करें जिससे उनके हितों की रक्षा हो सके।

प्रश्न 6.
दबाव समूहों के कोई दो कार्य बताएं।
उत्तर-

  • दबाव समूह अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करते हैं।
  • दबाव समूह सार्वजनिक नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को प्रभावित करते हैं।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
किन्हीं दो प्रमुख व्यावसायिक दबाव समूहों के नाम बताएं।
उत्तर-
व्यावसायिक हित समूह जैसे अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ, अखिल भारतीय मेडिकल परिषद् आदि।

प्रश्न 2.
दबाव समूह का कोई एक लाभ बताएं।
उत्तर-
दबाव समूह विभिन्न वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में कितने मजदूर संघ हैं ? किन्हीं दो के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत में छ: मज़दूर संघ हैं-इनमें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस और भारतीय मजदूर संघ प्रमुख हैं।

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प्रश्न 4.
हित समूह तथा दबाव समूह में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-
हित समूह का प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सम्बन्ध नहीं होता जबकि दबाव समूह का राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो हित समूहों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अखिल भारतीय महिला सम्मेलन।
  2. भारतीय किसान यूनियन।

प्रश्न 6.
किसी एक अखिल भारतीय छात्र संगठन का नाम बताएं।
उत्तर-
(1) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सम्बन्ध किस दल से है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सम्बन्ध भारतीय जनता पार्टी से है।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता के बाद अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित किसी एक कृषक संगठन का नाम लिखिए।
उत्तर-
अखिल भारतीय किसान यूनियन।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………………. ने दबाव समूहों को दल के पीछे सक्रिय जन कहा है।
2. दबाव समूह ………….. हितों से सम्बन्धित व्यक्तियों का समूह होते हैं।
3. दबाव समूह के लिए ……….. संगठन का होना अनिवार्य है।
4. दबाव समूहों में …………. का अभाव होता है।
5. दबाव समूहों का उद्देश्य …………… प्राप्त करना नहीं होता।
उत्तर-

  1. कार्ल जे० फ्रेडरिक
  2. विशेष
  3. औपचारिक
  4. उत्तरदायित्व
  5. राजनीतिक सत्ता।

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. दबाव समूह चुनावों द्वारा अपने हितों के संरक्षण का प्रयास करते हैं।
2. राजनीतिक दल दबाव समूहों की धन से सहायता करके उनको सफल बनाने की कोशिश करते हैं।
3. दबाव समूह समय-समय पर अधिकारियों या मन्त्रियों के पास प्रार्थना-पत्र भेजते रहते हैं।
4. दबाव समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए लॉबिंग का सहारा लेते हैं।
5. दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने के लिए जनमत को अपने पक्ष में करना आवश्यक नहीं समझते।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दबाव समूह अपनाते हैं-
(क) शांतिपूर्ण साधन’
(ख) केवल हिंसात्मक साधन
(ग) शांतिपूर्ण और हिंसात्मक साधन
(घ) कोई साधन नहीं अपनाते।
उत्तर-
(ग) शांतिपूर्ण और हिंसात्मक साधन

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प्रश्न 2.
दबाव समूहों के संबंध में निम्न गलत है
(क) राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा
(ख) सीमित उद्देश्य
(ग) सामान्य उद्देश्य
(घ) लॉबिंग।
उत्तर-
(क) राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी दबाव-समूह की विशेषता है-
(क) ऐच्छिक सदस्यता
(ख) सीमित उद्देश्य
(ग) औपचारिक संगठन का न होना
(घ) सत्ता प्राप्त करने का लक्ष्य ।
उत्तर-
(क) ऐच्छिक सदस्यता

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प्रश्न 4.
दबाव समूह का आधार होता है-
(क) संयुक्त संस्कृति
(ख) संयुक्त भाषा
(ग) एक धर्म
(घ) सामूहिक हित।
उत्तर-
(घ) सामूहिक हित।

प्रश्न 5.
नीचे लिखे में से कौन-सा कार्य दबाव समूह का नहीं है ?
(क) विशेष हितों की रक्षा
(ख) चुनाव लड़ना
(ग) सरकार पर दबाव डालना
(घ) सरकार को ज़रूरी जानकारी प्रदान करना।
उत्तर-
(ख) चुनाव लड़ना

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानों के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe Maharaja Ranjit Singh’s relations with the Afghans.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों के मुख्य चरणों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Give a brief account of the main stages of relations of Maharaja Ranjit Singh with Afghanistan.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानों के साथ संबंधों को चार चरणों में बाँटा जा सकता है—
(क) सिख-अफ़गान संबंधों का प्रथम चरण 1797-1812 ई०
(ख) सिख-अफ़गान संबंधों का द्वितीय चरण 1813-1834 ई०
(ग) सिख-अफ़गान संबंधों का तृतीय चरण 1834-1837 ई० (घ) सिख-अफ़गान संबंधों का चतुर्थ चरण 1838-1839 ई० ।

(क) सिख-अफ़गान संबंधों का प्रथम चरण 1797-1812 ई० (First Stage of Sikh-Afghan Relations 1797-1812 A.D)
1. रणजीत सिंह तथा शाह ज़मान (Ranjit Singh and Shah Zaman)-जब 1797 ई० में रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह ज़मान था। वह पंजाब पर अपना पैतृक स्वामित्व समझता था। इसका कारण यह था कि इस पर उसके दादा अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में अधिकार किया था। अतः शाह ज़मान ने 27 नवंबर, 1798 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। भंगी सरदार शाह ज़मान का सामना किए बिना शहर छोड़कर भाग गए। उसी समय अफ़गानिस्तान में हुए विद्रोह के कारण शाह ज़मान को काबुल जाना पड़ा। इस पर भंगी सरदारों ने जनवरी, 1799 ई० को लाहौर पर पुनः अधिकार कर लिया। रणजीत सिंह ने भंगी सरदारों को पराजित करके 7 जुलाई , 1799 ई० को लाहौर पर अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् रणजीत सिंह ने शाह ज़मान की 12 अथवा 15 तोपें जो जेहलम नदी में गिर पड़ी थीं, निकलवाकर काबुल भेजी । इस पर प्रसन्न होकर शाह ज़मान ने रणजीत सिंह द्वारा लाहौर पर किए गए अधिकार को मान्यता प्रदान कर दी।

2. अफ़गानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता (Political instability in Afghanistan)-1800 ई० में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए एक गृह युद्ध आरंभ हो गया। शाह ज़मान को सिंहासन से उतार दिया गया तथा शाह महमूद अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बना। 1803 ई० में शाह शुजा ने शाह महमूद से सिंहासन छीन लिया। वह बहुत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। इस कारण अफ़गानिस्तान में अशांति फैल गई। यह स्वर्ण अवसर देखकर अटक, कश्मीर, मुलतान व डेराजात इत्यादि के अफ़गान सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी काबुल सरदार की दुर्बलता का पूरा लाभ उठाया तथा कसूर, झंग, खुशाब तथा साहीवाल नामक अफ़गान प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

(ख) सिख-अफ़गान संबंधों का द्वितीय चरण 1813-1834 ई० (Second Stage of Sikh-Afghan Relations 1813–1834 A.D.)
1. रणजीत सिंह व फ़तह खाँ में समझौता 1813 ई० (Alliance between Ranjit Singh and Fateh Khan 1813 A.D.)-1813 ई० में अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ ने कश्मीर विजय की योजना बनाई। उसी समय पंजाब का महाराजा रणजीत सिंह भी कश्मीर को विजित करने की योजनाएँ बना रहा था। इसलिए 18 अप्रैल, 1813 ई० को रोहतासगढ़ में महाराजा रणजीत सिंह तथा फ़तह खाँ के बीच एक समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह तथा फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने 1813 ई० में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। शेरगढ़ में हुई लड़ाई में कश्मीर के शासक अत्ता मुहम्मद खाँ की पराजय हुई। इस विजय के पश्चात् फ़तह खाँ अपने वायदे से मुकर गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह को न तो कश्मीर का कोई प्रदेश दिया तथा न ही लूट के माल में से कोई भाग।

2. अटक पर अधिकार 1813 ई० (Occupation of Attock 1813 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ द्वारा किए गए कपट के कारण उसे पाठ पढ़ाने का निर्णय किया । उसकी कूटनीति के फलस्वरूप अटक के शासक जहाँदद खाँ ने एक लाख रुपये की जागीर के स्थान पर अटक का क्षेत्र महाराजा के सुपुर्द कर दिया। जब फ़तह खाँ को इसके संबंध में ज्ञात हुआ तो वह अटक में से सिखों को निकालने के लिए चल दिया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ को एक कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों एवं सिखों के मध्य लड़ी गई प्रथम लड़ाई थी। इसमें सिखों की विजय के कारण सिखों के मान-सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

3. कश्मीर की विजय 1819 ई० (Conquest of Kashmir 1819 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर को विजित करने की योजना बनाई। मुलतान के विजयी मिसर दीवान चंद के अधीन एक विशाल सेना कश्मीर की ओर भेजी गई। यह सेना कश्मीर के शासक ज़बर खाँ को पराजित करने तथा कश्मीर पर अधिकार करने में सफल रही। इस महत्त्वपूर्ण विजय के कारण अफ़गान शक्ति को एक और कड़ी चोट लगी।

4. नौशहरा की लड़ाई 1823 ई० (Battle of Naushera 1823 A.D.) शीघ्र ही फ़तह खाँ के भाई अज़ीम खाँ ने अयूब खाँ को अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बनाया तथा स्वयं उसका वज़ीर बन गया। अफ़गानिस्तान में फैली अराजकता का लाभ उठाकर महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 ई० में पेशावर पर आक्रमण कर दिया। पेशावर के शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। अज़ीम खाँ यह कभी सहन नहीं कर सकता था। परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी के स्थान पर दोनों सेनाओं में एक निर्णायक युद्ध हुआ। यह युद्ध बहुत भयंकर था। इस युद्ध में सिखों ने अफ़गानों को लोहे के चने चबवा दिए। डॉक्टर बी० जे० हसरत के अनुसार, “नौशहरा में सिखों की विजय ने सिंध नदी की दूसरी ओर अफ़गानों की सर्वोच्चता सदा के लिए समाप्त कर दी।”1

5. सैय्यद अहमद का विद्रोह 1827-31 ई० (Revolt of Sayyed Ahmad 1827-31 A.D.)-1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद नामक एक व्यक्ति ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किए रखा था। उसका कहना था अल्लाह ने उसे अफ़गान प्रदेशों से सिखों को निकालकर उन्हें समाप्त करने के लिए भेजा है। उसकी बातों में आकर अनेक अफ़गान सरदार उसके अनुयायी बन गए। उसे सिख सेनाओं ने पहले सैदू के स्थान पर तथा फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु वह बच निकलने में सफल रहा। आखिर 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ मारा गया। इस प्रकार सिखों की एक बड़ी सिरदर्दी दूर हुई।

6. शाह शुजा से संधि 1833 ई० (Treaty with Shah Shuja 1833 A.D.)-12 मार्च, 1833 ई० को महाराजा रणजीत सिंह तथा शाह शुज़ा के मध्य एक संधि हुई। इसके अनुसार शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा सिंधु नदी के उत्तर पश्चिम में विजित सभी प्रदेशों पर महाराजा के अधिकार को स्वीकार कर लिया। इसके बदले महाराजा रणजीत सिंह ने दोस्त मुहम्मद खाँ के विरुद्ध लड़ने के लिए शाह शुजा को सहायता दी।

7. पेशावर का लाहौर राज्य में विलय 1834 ई० (Annexation of Peshawar to Lahore Kingdom 1834 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 ई० में पेशावर को लाहौर राज्य में शामिल करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से शहज़ादा नौनिहाल सिंह, हरी सिंह नलवा तथा जनरल वेंतूरा के नेतृत्व में एक विशाल सेना पेशावर भेजी गई। 6 मई, 1834 ई० को पेशावर को सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। हरी सिंह नलवा को वहाँ का पहला गवर्नर नियुक्त किया गया।

1. “The Sikh victory at Naushera sounded the deathknell of Afghan supremacy beyond the river Indus.” Dr. B.J. Hasrat, Life and Times of Ranjit Singh (Hoshiarpur : 1977) p. 121.

(ग) सिख-अफ़गान संबंधों का तीसरा चरण 1834-37 ई० (Third Stage of Sikh-Afghan Relations 1834-37 A.D.)
1. दोस्त महम्मद खाँ द्वारा पेशावर वापिस लेने के यत्न 1835 ई०(Efforts to Recapture Peshawar by Dost Muhammad Khan 1835 A.D.)-1834 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया तो दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा। बहुसंख्या में अफ़गान कबीले उसके झंडे तले एकत्रित हो गए। उसने अपने भाई सुल्तान मुहम्मद को भी अपने साथ मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने फकीर अजीजुद्दीन तथा हरलान को बातचीत करने के लिए काबुल भेजा। इस मिशन का एक अन्य उद्देश्य दोस्त मुहम्मद खाँ तथा सुल्तान मुहम्मद खाँ में फूट डालना था। यह मिशन अपने उद्देश्यों में सफल रहा। जब दोनों सेनाएँ आमने-सामने पहुंची तो सुल्तान मुहम्मद अपने सैनिकों सहित सिख सेनाओं के साथ जा मिला। यह देखकर दोस्त मुहम्मद खाँ बिना युद्ध किए ही 11 मई, 1835 ई० को अपने सैनिकों सहित वापिस काबुल भाग गया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने बिना युद्ध किए ही एक शानदार विजय प्राप्त की।

2. जमरौद की लड़ाई 1837 ई० (Battle of Jamraud 1837 A.D-हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण आरंभ करवाया। हरी सिंह नलवा की कार्यवाई को रोकने के लिए दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में यद्यपि हरि सिंह नलवा शहीद हो गया किंतु सिखों ने अफ़गान सेनाओं को ऐसी कड़ी पराजय दी कि उन्होंने स्वप्न में भी कभी पेशावर का नाम न लिया।

(घ) सिख-अफ़गान संबंधों का चतुर्थ चरण 1838-39 ई० (Fourth Stage of Sikh-Afghan Relations 1838-39 A.D.)

त्रिपक्षीय संधि 1838 ई० (Tripartite Treaty 1838 A.D.)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। रूस के किसी संभावित आक्रमण को रोकने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ के साथ मैत्री के लिए बातचीत की। यह बातचीत असफल रही। अब अंग्रेजों ने शाह शुज़ा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई। अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को इस समझौते में शामिल होने के लिए विवश किया। इस प्रकार 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह में एक त्रिपक्षीय संधि हुई।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं—

  1. शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  2. शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  3. सिंध के संबंध में अंग्रेजों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  4. शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  5. एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  6. शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता करेगा तथा शाह शुज़ा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था।
त्रिपक्षीय संधि के अनुसार जनवरी, 1839 ई० में सिखों एवं अंग्रेज़ों की संयुक्त सेनाओं ने अफ़गानिस्तान पर आक्रमण कर दिया। दोस्त मुहम्मद खाँ के विरुद्ध अभी कार्यवाई जारी ही थी कि 27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा। उसने अजेय कहे जाने वाले अफ़गानों को कई निर्णायक लड़ाइयों में पराजित किया। इन शानदार विजयों के कारण महाराजा के मान-सम्मान में भी भारी वृद्धि हुई।

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महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)

प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का वर्णन कीजिए।
(Discuss the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति की मुख्य विशेषताओं का निरीक्षण करें। इसका क्या महत्त्व था ?
[Examine the main features of the North-West (N.W.) Frontier Policy of Ranjit Singh. What was its significance ?]
अथवा
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा से संबंधित नीति की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए। उसकी यह नीति किस सीमा तक सफल रही ?
(Critically examine the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh. To what extent was his policy successful ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की व्याख्या करो। (Explain the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्दी का कारण बनी रही है। इसका कारण यह.था कि इस ओर से विदेशी आक्रमणकारी पंजाब तथा भारत में आकर विनाशलीला करते रहे। इसके अतिरिक्त इस प्रदेश के खूखार कबीले स्वभाव से ही अनुशासन के विरोधी थे। महाराजा रणजीत सिंह ऐसा प्रथम शासक था जिसने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ द्वारा इन कबीलों पर विजय प्राप्त की।
उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the North-West Frontier Policy)
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—

1. उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की विजयें (Conquests of North-Western Territories)-महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की विजयों के दो चरण थे। उसने अटक, मुलतान तथा कश्मीर की विजयों के पश्चात् दरिया सिंध के आसपास के प्रदेशों की ओर ध्यान दिया । उसने 1818 ई० में पेशावर, 1820 ई० में बहावलपुर तथा 1821 ई० में डेरा इस्माइल खाँ तथा मनकेरा नामक प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। महाराजा रणजीत सिंह ने सूझ-बूझ से काम लेते हुए इन प्रदेशों को वार्षिक कर के बदले में मुसलमानों के अधीन ही रहने दिया। 1827 ई० से 1831 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। इसलिए उसने इन प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित करने का निर्णय किया। अतः महाराजा ने 1831 ई० में डेरा गाजी खाँ, 1832 ई० में टंक, 1833 ई० में बन्नू, 1834 ई० में पेशावर और 1836 ई० में डेरा इस्माइल खाँ को अपने राज्य में शामिल कर लिया।

2. अफ़गानिस्तान पर अधिकार न करने का निर्णय (Decision of not conquering Afghanistan)महाराजा रणजीत सिंह बड़ा सूझवान था। इसलिए उसने अफ़गानिस्तान पर अधिकार करने का कभी कोई निर्णय न किया। उत्तर-पश्चिमी सीमा के क्षेत्रों में ही उसे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति में वह अफ़गानिस्तान पर अधिकार करके अपने लिए कोई नई सिरदर्दी मोल नहीं लेना चाहता था। संभवतः एक बार ही उसने गंभीरता से अफ़गानिस्तान पर आक्रमण करने के संबंध में सोचा था। यह विचार अपने महान् योद्धा हरी सिंह नलवा की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए किया था, परंतु शीघ्र ही उसने अफ़गानिस्तान पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। यह सही है कि महाराजा जून, 1838 ई० की त्रिपक्षीय संधि में शामिल हुआ था। परंतु वह इस संधि में इसलिए शामिल हुआ था ताकि अंग्रेजों की ओर से उसके हितों को कोई क्षति न पहुँचे।

3. कबीलों को कुचलने के प्रयत्न (Efforts to Crush the Tribes)-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में अनेक अफ़गान कबीले रहते थे। उनका मुख्य धंधा लूटपाट करना था। वे कभी भी किसी के अधीन नहीं रह सकते थे। 1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद ने इन प्रदेशों में रहने वाले कबीलों को सिखों के विरुद्ध भड़काया। महाराजा रणजीत सिंह ने इन कबाइलियों के दमन के लिए कई सैनिक अभियान भेजे। सैय्यद अहमद 1831 ई० में बालाकोट के स्थान पर शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ अपने 500 साथियों सहित मारा गया था। 1834 ई० में जब पेशावर को सिख राज्य में शामिल कर लिया गया तो हरी सिंह नलवा को वहाँ का गवर्नर नियुक्त किया गया। हरी सिंह नलवा ने इन कबीलों के दमन के लिए बहुत कड़ी नीति धारण की।

4. उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए पग (Measures for the defence of the North-West Frontiers)-महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण पग उठाए। उसने कई नए दुर्गों जैसे अटक, खैराबाद, जहाँगीरा, जमरौद तथा फतेहगढ़ इत्यादि का निर्माण करवाया। इनके अतिरिक्त पुराने दुर्गों को मज़बूत किया गया। इन दुर्गों में विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई। गश्ती दस्ते स्थापित किए गए जो विद्रोही कबीलों के विरुद्ध कार्यवाई करते थे। इन दस्तों ने अफ़गान कबीलों में इतना भय उत्पन्न कर दिया था कि वे धीरे-धीरे बग़ावत करना भूल गए।

5. उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश का शासन प्रबंध (Administration of North-West Frontier Territories)-इन प्रदेशों में बसे कबीलों को नियंत्रण में रखने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने वहाँ सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की। उसने इस प्रदेश के शासन प्रबंध में कोई परिवर्तन न किया। उसने प्रचलित कानूनों तथा रस्म-रिवाजों को बनाए रखा। प्रत्येक खाँ अपने कबीले के लोगों से कर एकत्र करता था। उसे लाहौर सरकार की सर्वोच्चता को स्वीकार करना तथा कर संबंधी माँगों को पूरा करना होता था। कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में नहरें बनवाई गईं तथा कुएँ खुदवाए गए। भू-राजस्व की दरों को काफ़ी कम किया गया। यातायात के साधनों का विकास किया गया। इन सभी प्रयत्नों से महाराजा ने यहाँ के लोगों का विश्वास प्राप्त करने का यत्न किया। गड़बड़ी करने वाले कबीलों के विरुद्ध कड़े पग उठाए गए।

उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का महत्त्व (Importance of N.W.F. Policy)
महाराजा रणजीत सिंह अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमा की नीति में काफ़ी सीमा तक सफल रहा था। यह सचमुच ही महाराजा रणजीत सिंह की महान् उपलब्धियों में से एक थी। महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। उसने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष पग उठाए गए। परिणामस्वरूप न केवल वहाँ के लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हुए, अपितु महाराजा रणजीत सिंह के व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। डॉक्टर जी० एस० नय्यर का यह कथन बिल्कुल ठीक है,
“अनंगपाल के पश्चात् प्रथम बार उत्तर-पश्चिमी सीमा से होने वाले आक्रमणों को रोका तथा कबाइलों पर शासन किया जा सका।”2

2. “It was the first time after Anangpal that the series of invasions from the North-West were checked and the tribesmen were ruled.” Dr. G.S. Nayyar, Life and Achievements of Sardar Hari Singh Nalwa (Amritsar : 1997) p. 42.

संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ की लड़ाई के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the battle of Hazro or Haidro or Chachh.)
उत्तर-
मार्च, 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जहाँदाद खाँ से एक लाख रुपये के बदले अटक का किला प्राप्त कर लिया था। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह भड़क उठा। वह एक विशाल सेना लेकर कश्मीर से अटक की ओर चल पड़ा। महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ की सेनाओं में 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ के स्थान पर भारी युद्ध हुआ। इस युद्ध में रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी।

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प्रश्न 2.
शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
शाह शुजा पर एक नोट लिखें।
(Write a note om Shah Shuja.)
उत्तर-
शाह शुज़ा 1803 ई० से 1809 ई० तक अफ़गानिस्तान का बादशाह रहा। 1809 ई० में शाह महमूद ने उससे गद्दी छीन ली। शाह शुजा को कश्मीर के अफ़गान सूबेदार अत्ता मुहम्मद खाँ ने 1812 ई० में गिरफ्तार कर लिया। 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने शाह शुजा को रिहा करवा दिया। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुज़ा और महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाने का निश्चय किया गया किंतु यह प्रयास विफल रहा।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के दोस्त मुहम्मद के साथ संबंधों का संक्षेप वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1826 ई० में अफ़गानिस्तान का शासक बना था। वह महाराजा रणजीत सिंह के उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में बढ़ते हुए प्रभाव से परेशान था। महाराजा रणजीत सिंह ने 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पर विजय प्राप्त कर ली थी। दोस्त मुहम्मद खाँ ने 1837 ई० में अपने पुत्र अकबर के अधीन एक विशाल सेना भेजी। जमरौद के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा वीरगति को प्राप्त हुआ था तथापि सिख सेना विजयी हुई। इसके पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर की ओर फिर कभी मुख नहीं किया।

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प्रश्न 4.
सैय्यद अहमद पर एक संक्षेप नोट लिखो। (Write a brief note on Sayyed Ahmad.)
अथवा
सैय्यद अहमद के धर्म युद्ध पर एक नोट लिखो।
[Write a note on the ‘Jihad’ (Religious War) of Sayyed Ahmad.]
उत्तर-
सैय्यद अहमद ने 1827 ई० से 1831 ई० के समय अटक तथा पेशावर के प्रदेशों के विरुद्ध जिहाद कर रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था, “अल्ला ने मुझे पंजाब और हिंदुस्तान को विजय करने और अफ़गान प्रदेशों में से सिखों को निकालकर खत्म करने के लिए भेजा है।” उसकी बातों में आकर कई अफ़गान उसके शिष्य बन गए। उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ते हुए मारा गया।

प्रश्न 5.
अकाली फूला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a brief note on Akali Phula Singh.)
अथवा
अकाली फूला सिंह की सैनिक सफलताओं पर एक नोट लिखो। (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
उत्तर-
अकाली फूला सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के काल में सिख राज्य की नींव को मजबूत करने तथा उसका विस्तार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। 1807 ई० में महाराजा ने आपके सहयोग से कसूर पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। 1818 ई० में मुलतान की विजय के समय भी आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1819 ई० में कश्मीर की विजय के समय भी वह महाराजा रणजीत सिंह के साथ थे। वह 14 मार्च, 1823 ई० को अफ़गानों के साथ हुई नौशहरा की भयंकर लड़ाई में वारगति को प्राप्त हुए।

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प्रश्न 6.
जमरौद की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the battle of Jamraud.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा ने जमरौद में एक शक्तिशाली किले का निर्माण करवाया था। अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ के लिए यह एक चुनौती थी। उसने अपने पुत्र अकबर खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना जमरौद की ओर भेजी। उसकी सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के किले को घेरा डाल दिया। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों पर तीव्र आक्रमण किया, परंतु अचानक दो गोलियाँ लगने से उसकी मृत्यु हो गई। इसके बावजूद सिखों ने अफ़गानों को 30 अप्रैल, 1837 ई० में एक करारी हार दी। इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पेशावर को पुनः जीतने का कभी साहस न किया।

प्रश्न 7.
हरी सिंह नलवा पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
अथवा
हरी सिंह नलवा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Hari Singh Nalwa ?)
अथवा
सरदार हरी सिंह नलवा पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a note on Sardar Hari Singh Nalwa.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के एक महान् योद्धा तथा सेनापति थे। हरी सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह के अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया। वह 1820-21 में कश्मीर तथा 1834 ई० से 1837 ई० तक पेशावर के नाज़िम रहे। इस पद पर कार्य करते हुए हरी सिंह नलवा से न केवल इन प्रांतों में शांति की स्थापना की अपितु अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार लागू किए। वह 30 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के स्थान पर अफ़गानों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

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प्रश्न 8.
रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति की मुख्य विशेषताओं के बारे में लिखिए।
(Write down main features of the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.) .
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ।
(Describe any three features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की तीन मुख्य विशेषताओं के बारे में लिखें।
(Write down the three main features of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए कई नये किलों का निर्माण किया तथा पुराने किलों को मजबूत करवाया।
  2. विद्रोहियों को कुचलने के लिए चलते-फिरते दस्ते कायम किए गए।
  3. महाराजा ने इस प्रदेश में प्रचलित रस्म-रिवाजों को कायम रखा।
  4. कबाइली लोगों के मामलों में अनुचित दखल न दिया गया।
  5. शासन प्रबंध की देख-रेख के लिए सैनिक गवर्नर नियुक्त किए गए।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति से महाराजा की कूटनीति तथा राजनीतिक योग्यता का प्रमाण मिलता है। महाराजा ने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। उसने इन प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। वहाँ यातायात के साधनों को विकसित किया गया। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष प्रयास किए गए। इनके अतिरिक्त महाराजा अपने साम्राज्य को अफ़गानों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने में भी सफल रहा।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence) .

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के समय अफ़गानिस्तान के किसी एक सम्राट् का नाम बताएँ।
उत्तर-
शाह शुजा।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो बरकज़ाई भाइयों के नाम बताएँ।
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ तथा यार मुहम्मद खाँ।

प्रश्न 3.
शाह ज़मान कौन था ?
अथवा
शाह शुजा कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का सम्राट्।

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प्रश्न 4.
शाह ज़मान ने लाहौर पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर-
27 नवंबर, 1798 ई०।।

प्रश्न 5.
शाह ज़मान के लाहौर पर 1798.ई० में अधिकार करने के समय किसका शासन था ?
उत्तर-
तीन भंगी सरदारों का।

प्रश्न 6.
फ़तह खाँ कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान के सम्राट् शाह महमूद का वज़ीर।

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के मध्य समझौता कब हुआ था ?
उत्तर-
1813 ई० में।

प्रश्न 8.
कश्मीर पर अधिकार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कहाँ पर हुआ था ?
उत्तर-
रोहतास।

प्रश्न 9.
हज़रो अथवा हैदरो की लड़ाई कब हुई थी ?
उत्तर-
13 जुलाई, 1813 ई०।

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प्रश्न 10.
हज़रो की लड़ाई का कोई एक महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
अफ़गानों की शक्ति को गहरा आघात पहुँचा।

प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को कब अपने अधिकार में किया ?
उत्तर-
1819 ई०।

प्रश्न 12.
नौशहरा की लड़ाई कब लड़ी गई थी ?
उत्तर-
14 मार्च, 1823 ई०।

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प्रश्न 13.
नौशहरा की लड़ाई में किसकी पराजय हुई ?
उत्तर-
आज़िम खाँ।

प्रश्न 14.
अकाली फूला सिंह कौन था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का एक प्रसिद्ध सेनापति।

प्रश्न 15.
अकाली नेता फूला सिंह किस लड़ाई में शहीद हुआ ?
अथवा
उस लड़ाई का नाम लिखें जिसमें अकाली फूला सिंह मारा गया।
उत्तर-
नौशहरा की लड़ाई में।

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प्रश्न 16.
सैय्यद अहमद कौन था?
उत्तर-
सैय्यद अहमद स्वयं को मुसलमानों का खलीफा कहलाता था।

प्रश्न 17.
सैय्यद अहमद ने कब सिखों के विरुद्ध विद्रोह किया था ?
उत्तर-
1827 ई० में से 1831 ई० के समय के दौरान।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को कब अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया ?
उत्तर-
1834 ई०

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प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह ने किसे पेशावर का प्रथम गवर्नर नियुक्त किया ?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा।

प्रश्न 20.
जमरौद की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1837 ई०।

प्रश्न 21.
हरी सिंह नलवा कौन था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनापति।

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प्रश्न 22.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई थी ?
उत्तर-
26 जून, 1838 ई०।

प्रश्न 23.
त्रिपक्षीय संधि की कोई एक मुख्य शर्त क्या थी ?
उत्तर-
शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाए।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा के संबंध में किसी एक समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी क्षेत्रों के कबीलों से निपटने की समस्या।

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प्रश्न 25.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई एक मुख्य विशेषता बताएँ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गानिस्तान पर अधिकार करने का कभी प्रयास न किया।

प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के समय उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों में स्थित किसी एक बर्बर कबीले का नाम बताएँ।
उत्तर-
यूसुफजई।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का कोई एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
इस कारण उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में शांति की स्थापना हुई।

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(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठने समय अफ़गानिस्तान का शासक……………..था।
उत्तर-
(शाह जमान)

प्रश्न 2.
1800 ई० में……….अफ़गानिस्तान का नया शासक बना।
उत्तर-
(शाह महमूद)

प्रश्न 3.
1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के मध्य……………..में समझौता हुआ।
उत्तर-
(रोहतास)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 ई० में जहाँदाद खाँ से…………………का प्रदेश प्राप्त किया।
उत्तर-
(अटक)

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गानों के मध्य नौशहरा की लड़ाई……………..में हुई।
उत्तर-
(1823 ई०)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह पेशावर को………………में सिख साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।
उत्तर-
(1834 ई०)

प्रश्न 7.
1838 ई० में महाराजा रणजीत सिंह, अंग्रेजों और………………के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई थी।
उत्तर-
(शाह शुजा)

प्रश्न 8.
हरी सिंह नलवा की मृत्यु……..में हुई।
उत्तर-
(1837 ई०

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठते समय अफ़गानिस्तान का शासक शाह ज़मान था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
शाह महमूद 1805 ई० में अफ़गानिस्तान का नया शासक बना।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच 1813 ई० में रोहतास में समझौता हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
हज़रो की लड़ाई 13 जुलाई, 1813 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
1820 ई० में हरी सिंह नलवा को. कश्मीर का नया गवर्नर नियुक्त किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
सरदार हरी सिंह नलवा को जफरजंग का खिताब दिया गया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
नौशहरा की लड़ाई 14 मार्च, 1828 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को 1834 ई० में अपने साम्राज्य में शामिल किया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
जमरौद की लड़ाई 1838 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्याओं को हल करने में काफी हद तक सफल रहा था।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
शाह ज़मान ने लाहौर पर कब अधिकार कर लिया था ?
(i) 1796 ई० में
(ii) 1797 ई० में
(iii) 1798 ई० में
(iv) 1799 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
फ़तह खाँ कौन था ?
(i) अफ़गानिस्तान का वज़ीर
(ii) रणजीत सिंह का वज़ीर
(ii) ईरान का वज़ीर
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
कश्मीर पर अधिकार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कब हुआ ?
(i) 1803 ई० में
(ii) 1805 ई० में
(ii) 1809 ई० में
(iv) 1813 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के बीच समझौता कहाँ हुआ था ?
(i) रोहतास में
(ii) रोहतांग में
(iii) सुपीन में
(iv) हज़रो में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
अकाली फूला सिंह अफ़गानों के साथ लड़ते हुए कब शहीद हो गया ?
(i) 1813 ई० में
(ii) 1815. ई० में
(iii) 1819 ई० में
(iv) 1823 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
सैय्यद अहमद ने कौन-से प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किया था ?
(i) अटक और पेशावर
(ii) पेशावर और कश्मीर
(iii) कश्मीर और मुलतान
(iv) मुलतान और अटक।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 7.
सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध कब विद्रोह किया था ?
(i) 1823 ई० में
(ii) 1825 ई० में
(iii) 1827 ई० में
(iv) 1831 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को कब अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया था ?
(i) 1823 ई० में
(ii) 1831 ई० में
(iii) 1834 ई० में
(iv) 1837 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 9.
हरी सिंह नलवा किस प्रसिद्ध लड़ाई में मारा गया था ?
(i) जमरौद की लड़ाई
(ii) नौशहरा की लड़ाई
(iii) हज़रो की लडाई
(iv) सुपीन की लड़ाई।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 10.
त्रिपक्षीय संधि के अनुसार किसको अफ़गानिस्तान का नया बादशाह बनाने की योजना बनाई ?
(i) शाह ज़मान
(ii) शाह शुजा
(iii) शाह महमूद
(iv) दोस्त मुहम्मद खाँ।
उत्तर-
(ii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक पर कैसे विजय प्राप्त की ? इस विजय का महत्त्व भी बताएँ। (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Attock ? What was its significance ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अटक विजय तथा हजरो की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें।
(Give a brief account of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Attock and the battle of Hazro.)
उत्तर-
अटक का किला भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह के समय यहाँ अफ़गान गवर्नर जहाँदाद खाँ का शासन था। कहने को तो वह काबुल सरकार के अधीन था, परंतु वास्तव में वह स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा था। 1813 ई० में जब काबुल के वज़ीर फ़तह खाँ ने कश्मीर पर आक्रमण करके उसके भाई अता मुहम्मद खाँ को पराजित कर दिया तो वह घबरा गया। उसे यह विश्वास था कि फ़तह खाँ का अगला आक्रमण अटक पर होगा। इसलिए उसने एक लाख रुपए की वार्षिक जागीर के बदले अटक का किला महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह आग-बबूला हो गया। उसने अटक के किले पर अधिकार करने के लिए अपनी सेना के साथ अटक की ओर कूच किया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हजरो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों तथा सिखों में लड़ी गई पहली लड़ाई थी। इस विजय के कारण जहाँ अटक पर रणजीत सिंह का स्थायी अधिकार हो गया, वहाँ उसकी ख्याति भी दूर-दूर तक फैल गई।

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प्रश्न 2.
हज़रो अथवा हैदरो अथवा छछ की लड़ाई के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the battle of Hazro or Haidro or Chuch.)
उत्तर-
मार्च, 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जहाँदाद खाँ से एक लाख रुपये के बदले अटक का किला प्राप्त कर लिया था। यह किला भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। जब फ़तह खाँ को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो वह भड़क उठा। वह एक विशाल सेना लेकर कश्मीर से अटक की ओर चल पड़ा। उसने सिखों के विरुद्ध धर्म युद्ध का नारा लगाया। फ़तह खाँ की सहायता के लिए अफ़गानिस्तान से कुछ सेना भेजी गई। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी अटक के किले की रक्षा के लिए एक विशाल सेना अपने विख्यात सेनापतियों-हरी सिंह नलवा, जोध सिंह रामगढ़िया और दीवान मोहकम चंद के नेतृत्व में भेजी। 13 जुलाई, 1813 ई० को हजरो अथवा हैदरो अथवा छछ के स्थान पर दोनों सेनाओं में भारी युद्ध हुआ। इस युद्ध में रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को कड़ी पराजय दी। इस कारण जहाँ अटक पर रणजीत सिंह का अधिकार पक्का हो गया, वहाँ उसकी ख्याति दूरदूर तक फैल गई।

प्रश्न 3.
शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
शाह शुजा अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने 1803 ई० से 1809 ई० तक शासन किया। वह बड़ा अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। 1809 ई० में वह सिंहासन छोड़कर भाग गया। उसे कश्मीर के अफ़गान सूबेदार अता मुहम्मद खाँ ने गिरफ्तार कर लिया। 1813 ई० में कश्मीर के पहले अभियान के दौरान महाराजा रणजीत सिंह की सेना शाह शुजा को रिहा करवा कर लाहौर ले आई थी। इसके बदले में महाराजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा की पत्नी वफ़ा बेगम से विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा प्राप्त किया था। 1833 ई० में शाह शुजा ने सिंहासन फिर प्राप्त करने के उद्देश्य से महाराजा के साथ एक संधि की, परंतु शाह शुजा को अपने इन यत्नों में सफलता नहीं मिली। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा और महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाने का निश्चय किया गया। अंग्रेजों के यत्नों से 1839 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का सम्राट् तो बन गया, परंतु जल्दी ही उसके विरुद्ध विद्रोह हो गया जिसमें शाह शुजा मारा गया।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह के दोस्त मुहम्मद के साथ संबंधों का संक्षेप वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1826 ई० में अफगानिस्तान का शासक बना था। वह महाराजा रणजीत सिंह के उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन करने के लिए तैयार न था। पेशावर के मामले पर दोनों के परस्पर मतभेदों में अधिक दरार आ गई थी। 1833 ई० में अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा दोस्त मुहम्मद के मध्य राजगद्दी को प्राप्त करने के लिए युद्ध आरंभ हो गया था। इस स्थिति का लाभ उठाकर महाराजा रणजीत सिंह ने 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पर सहजता से विजय प्राप्त कर ली थी। शाह शुजा को पराजित करने के पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर पर पुनः अधिकार करने का प्रयास किया पर उसे सफलता प्राप्त न हुई। 1837 ई० में दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र अकबर के अधीन एक विशाल सेना पेशावर की ओर भेजी। जमरौद के स्थान पर हुई एक भयंकर लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा वीरगति को प्राप्त हुआ तथापि सिख सेना इस लड़ाई में विजयी हुई। इसके पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर की ओर फिर कभी मुँह नहीं किया।

प्रश्न 5.
सैय्यद अहमद पर एक संक्षेप नोट लिखो। (Write a brief note on Sayyad Ahmed.)
अथवा
सैय्यद अहमद के धर्म युद्ध पर एक नोट लिखो। [Write a note on the ‘Zihad’ (Religious War) of Sayyad Ahmed.]
उत्तर-
1827 ई० से 1831 ई० के समय में सैय्यद अहमद ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध जिहाद कर रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था, “अल्ला ने मुझे पंजाब और हिंदुस्तान को विजय करने और अफ़गान प्रदेशों में से सिखों को निकाल कर खत्म करने के लिए भेजा है।” उसकी बातों में आकर कई अफ़गान सरदार उसके शिष्य बन गए। कुछ ही समय में उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। यह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। उसको सिख सेनाओं ने पहले सैद्र में और फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु भाग्यवश वह दोनों बार बच निकलने में सफल हुआ। इन पराजयों के बावजूद भी सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। अंत में 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ते हुए मारा गया। इस तरह सिखों की एक बहुत बड़ी सिरदर्दी दूर हुई।

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प्रश्न 6.
अकाली फूला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
अथवा
अकाली फूला सिंह की सैनिक सफलताओं पर एक नोट लिखो। (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
उत्तर-
अकाली फूला सिंह सिख राज्य के एक फौलादी स्तंभ थे। उन्होंने सिख राज्य की नींव को मज़बूत करने तथा उसकी सीमा का विस्तार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। आपकी शूरवीरता, निर्भीकता, पंथ से प्यार तथा उज्वल चरित्र के कारण महाराजा रणजीत सिंह आपका बहुत सम्मान करता था। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह के सहयोग से कसूर पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इसी वर्ष अकाली फला सिंह ने झंग को अपने अधीन कर लिया। आपके सहयोग के कारण 1816 ई० में मुलतान तथा बहावलपुर में मुसलमानों द्वारा सिख राज्य के विरुद्ध की गई बगावतों का दमन किया जा सका। 1818 ई० में मुलतान की विजय के समय भी अकाली फूला सिंह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी वर्ष पेशावर पर आक्रमण के समय भी महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह की सेवाएँ प्राप्त की। 1819 ई० में कश्मीर की विजय के समय भी वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना के साथ थे। वह 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा में अफ़गानों के साथ हुई एक भयंकर लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए। निस्संदेह अकाली फूला सिंह सिख राज्य के एक महान् रक्षक थे।

प्रश्न 7.
जमरौद की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
उत्तर-
दोस्त मुहम्मद खाँ 1835 ई० में सिखों के हाथों हुए अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहता था। दूसरी ओर सिख भी पेशावर में अपनी स्थिति को दृढ़ करने में व्यस्त थे। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक शक्तिशाली दुर्ग का निर्माण करवाया। दोस्त मुहम्मद खाँ सिखों की पेशावर में बढ़ती हुई शक्ति को सहन नहीं कर सकता था। इसलिए उसने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के अधीन 20,000 सैनिकों को जमरौद पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद पर आक्रमण कर दिया। सरदार महा सिंह ने दो दिन तक अपने केवल 600 सैनिकों सहित अफ़गान सेनाओं का डट कर सामना किया। उस समय हरी सिंह नलवा पेशावर में बहुत बीमार पड़ा हुआ था। जब उसे अफ़गान आक्रमण का समाचार मिला तो वह शेर की भाँति गर्जना करता हुआ अपने 10,000 सैनिकों को साथ लेकर जमरौद पहुँच गया। उसने अफ़गान सेनाओं के छक्के छुड़ा दिए। अचानक दो गोले लग जाने से 30 अप्रैल, 1837 ई० को हरी सिंह नलवा शहीद हो गए। इस बलिदान का प्रतिशोध लेने के लिए सिख सेनाओं ने अफ़गान सेनाओं पर इतना शक्तिशाली आक्रमण किया कि वे गीदड़ों की भाँति काबुल की ओर भाग गये। इस प्रकार सिख जमरौद की इस निर्णयपूर्ण लड़ाई में विजयी रहे। जब महाराजा रणजीत सिंह को अपने महान् जरनैल हरी सिंह नलवा की मृत्यु के विषय में ज्ञात हुआ तो उनकी आँखों से कई दिन तक आँसू बहते रहे। जमरौद की लड़ाई के पश्चात् दोस्त मुहम्मद खाँ ने कभी भी पेशावर पर पुनः आक्रमण करने का यत्न न किया। उसे विश्वास हो गया कि सिखों से पेशावर लेना असंभव है।

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प्रश्न 8.
हरी सिंह नलवा पर एक संक्षिप्त नोदे लिखो। (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
अथवा
हरी सिंह नलवा के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखें। (What do you know about Hari Singh Nalwa ? Give a brief account.)
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह का सबसे महान् तथा निर्भीक सेनापति था। घुड़सवारी, तलवार चलाने तथा निशाना लगाने में वे बहुत दक्ष थे। महान् योद्धा होने के साथ-साथ वह एक कुशल शासन प्रबंधक भी थे। उनकी वीरता से प्रभावित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। बहुत शीघ्र वह उन्नति करते हुए सेनापति के उच्च पद पर पहुँच गए। एक बार हरी सिंह ने एक शेर को जिसने उन पर आक्रमण कर दिया था अपने हाथों से मार डाला जिस कारण महाराजा ने उन्हें ‘नलवा’ की उपाधि से सम्मानित किया। वह इतने वीर थे कि दुश्मन उनके नाम से ही थर-थर काँपते थे। हरी सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह के अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया तथा प्रत्येक अभियान में सफलता प्राप्त की। वह 1820-21 ई० में कश्मीर तथा 1834 से 1837 ई० तक पेशावर के नाज़िम (गवर्नर) रहे। इस पद पर कार्य करते हुए हरी सिंह नलवा ने न केवल इन प्रांतों में शांति की स्थापना की अपितु अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार भी लागू किए। वह 30 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद के स्थान पर अफ़गानों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उसकी मृत्यु से महाराजा रणजीत सिंह को इतना गहरा धक्का लगा कि वह उसकी याद में कई दिनों तक आँसू बहाते रहे। निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह के राज्य को शक्तिशाली बनाने तथा उसका विस्तार करने में हरी सिंह नलवा ने बहुमूल्य योगदान दिया।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र की नीतियों की विशेषताएँ बताएँ।
(Explain the features of the North-west Frontier policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ।
(Describe any five features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा संबंधी नीति की पाँच विशेषताएँ लिखें।
(Describe the five features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुलतान, कश्मीर, डेरा गाज़ी खाँ, डेरा इस्माइल खाँ, पेशावर आदि उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों पर विजय प्राप्त की और इन्हें अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने दूर-दृष्टि से काम लेते हुए कभी अफ़गानिस्तान पर अपना अधिकार करने की कोशिश न की। उन्हें पहले ही उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए वह अफ़गानिस्तान पर कब्जा करके कोई नई सिरदर्दी मोल लेना नहीं चाहता था। महाराजा रणजीत सिंह ने उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। उसने कई नये किलों का निर्माण करवाया तथा कई पुराने किलों को मजबूत करवाया। इन किलों में बड़ी प्रशिक्षित सेना रखी गई। विद्रोहियों को कुचलने के लिए चलते-फिरते दस्ते कायम किये गये। महाराजा ने इस प्रदेश का शासन प्रबंध बड़ी सूझ-बूझ से किया। उसने इस प्रदेश में प्रचलित रस्म-रिवाजों को कायम रखा। कबाइली लोगों के मामलों में अनुचित दखल न दिया गया। शासन प्रबंध की देख-रेख के लिए सैनिक गवर्नर नियुक्त किए गए।

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प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति का पंजाब के इतिहास में विशेष महत्त्व है। इससे महाराजा की दूर-दृष्टि, कूटनीति तथा राजनीतिक योग्यता का प्रमाण मिलता है। उसने मुलतान, कश्मीर, पेशावर इत्यादि के प्रदेशों पर कब्जा करके वहाँ अफ़गानिस्तान के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। यह रणजीत सिंह की एक महान् सफलता थी कि उसने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेशों में होने वाले विद्रोहों को कुचल कर वहाँ शाँति की स्थापना की। महाराजा रणजीत सिंह ने कबीलों के प्रचलित कानूनों तथा रस्म-रिवाजों को बनाए रखा। वह अकारण उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था। महाराजा रणजीत सिंह ने वहाँ यातायात के साधनों को विकसित किया। कृषि को उन्नत करने के लिए विशेष पग उठाए गए। परिणामस्वरूप न केवल वहाँ के लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हुए अपितु महाराजा रणजीत सिंह के व्यापार को एक नया उत्साह मिला। इनके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह अपने साम्राज्य को अफ़गानों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने में सफल रहा। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति काफी सफल रही।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
1800 ई० में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए गृह युद्ध आरंभ हो गया। शाह ज़मान को सिंहासन से उतार दिया गया तथा शाह महमूद अफ़गानिस्तान का नया सम्राट् बना। उसने केवल तीन वर्ष (1800-03) तक शासन किया। 1803 ई० में शाह शुज़ा ने शाह महमूद से सिंहासन छीन लिया। उसने 1809 ई० तक शासन किया। वह बहुत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। इस कारण अफ़गानिस्तान में अशांति फैल गई। यह स्वर्ण अवसर देखकर अटक, कश्मीर, मुलतान व डेराजात इत्यादि के अफ़गान सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी काबुल सरदार की दुर्बलता का पूरा लाभ उठाया तथा कसूर, झंग, खुशाब तथा साहीवाल नामक अफ़गान प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1809 ई० में शाह शुज़ा को सिंहासन से उतार दिया गया तथा उसके स्थान पर शाह महमूद अफ़गानिस्तान का दुबारा सम्राट बना। क्योंकि राज्य-सिंहासन प्राप्त करने में शाह महमूद को फ़तह खाँ ने प्रत्येक संभव सहायता दी थी, इसलिए उसे शाह महमूद ने अपना वज़ीर (प्रधानमंत्री) नियुक्त कर लिया।

  1. …………… में काबुल में राज्य सिंहासन की प्राप्ति के लिए गृह युद्ध आरंभ हो गया था।
  2. शाह महमूद अफ़गानिस्तान का पहली बार बादशाह कब बना ?
  3. शाह शुजा कैसा शासक था ?
  4. फ़तह खाँ कौन था ?
  5. शाह शुजा को कब गद्दी से उतारा गया था ?

उत्तर-

  1. 1800 ई०।
  2. शाह महमूद पहली बार 1800 ई० में अफगानिस्तान का बादशाह बना था।
  3. शाह शुजा एक अयोग्य शासक था।
  4. फ़तह खाँ शाह महमूद का वज़ीर था।
  5. शाह शुज़ा को 1809 ई० में गद्दी से उतार दिया गया था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

2
महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ द्वारा किए गए कपट के कारण उसे माठ पढ़ाने का निर्णय किया। उसने शीघ्र ही फ़कीर अजीजुद्दीन को अटक पर अधिकार करने के लिए भेजा। अटक के शासक जहाँदाद खाँ ने एक लाख रुपये की जागीर के स्थान पर अटक का क्षेत्र महाराजा के सुपुर्द कर दिया। जब फ़तह खाँ को इसके संबंध में ज्ञात हुआ तो वह आग बबूला हो उठा। उसने कश्मीर की शासन व्यवस्था अपने भाई आज़िम खाँ को सौंप दी तथा स्वयं एक विशाल सेना लेकर अटक में से सिखों को निकालने के लिए चल दिया। 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई एक घमासान की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं ने फ़तह खाँ को एक कड़ी पराजय दी। यह अफ़गानों एवं सिखों के मध्य लड़ी गई प्रथम लड़ाई थी। इस लड़ाई में सिखों की विजय के कारण अफ़गानों की शक्ति को एक ज़बरदस्त धक्का लगा तथा सिखों के मान-सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

  1. फ़तह खाँ कौन था ?
  2. महाराजा रणजीत सिंह के समय अटक का शासक कौन था ?
  3. सिखों तथा अफ़गानों के मध्य लड़ी गई पहली लड़ाई कौन-सी थी ?
  4. हज़रो की लड़ाई कब हुई थी ?
    • 1811 ई०
    • 1812 ई०
    • 1813 ई०
    • 1814 ई०
  5. हज़रो की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. फ़तह खाँ अफ़गानिस्तान के शासक शाह महमूद का वज़ीर था।
  2. महाराजा रणजीत सिंह के समय अटक का शासक जहाँदाद खाँ था।
  3. सिखों तथा अफ़गानों के मध्य लड़ी गई पहली लड़ाई हज़रों की थी।
  4. 1813 ई०।
  5. हज़रो की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

3
1827 ई० से 1831 ई० के मध्य सैय्यद अहमद नामक एक व्यक्ति ने अटक तथा पेशावर के प्रदेशों में सिखों के विरुद्ध विद्रोह किए रखा था। वह बरेली का रहने वाला था। उसका कहना था अल्लाह ने मुझे पंजाब तथा हिंदुस्तान को विजित करने तथा अफ़गान प्रदेशों से सिखों को निकाल कर उन्हें समाप्त करने के लिए भेजा है। उसकी बातों में आकर अनेक अफ़गान सरदार उसके अनुयायी बन गए। कुछ ही अवधि में उसने एक बहुत बड़ी सेना संगठित कर ली। यह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। उसे सिख सेनाओं ने पहले सैदू के स्थान पर तथा फिर पेशावर में पराजित किया था, परंतु वह दोनों बार बच निकलने में सफल रहा। इन पराजयों के बावजूद सैय्यद अहमद ने सिखों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। आखिर 1831 ई० में वह बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह से लड़ता हुआ मारा गया। इस प्रकार सिखों की एक बड़ी शिरोवेदना समाप्त हो गई।

  1. सैय्यद अहमद कौन था ?
  2. सैय्यद अहमद कहाँ का रहने वाला था ?
  3. सिख फौजों ने सैय्यद अहमद को किन दो स्थानों से पराजित किया था ?
  4. सैय्यद अहमद कहाँ तथा किस प्रकार लड़ते हुए मारा गया था ?
  5. सैय्यद अहमद कब मारा गया था ?
    • 1813 ई०
    • 1821 ई०
    • 1827 ई०
    • 1831 ई०।

उत्तर-

  1. सैय्यद अहमद मुसलमानों का एक धार्मिक नेता था।
  2. सैय्यद अहमद बरेली का रहने वाला था।
  3. सिख फ़ौजों ने सैय्यद अहमद को सैदू तथा पेशावर से पराजित किया।
  4. सैय्यद अहमद बालाकोट में शहज़ादा शेर सिंह के साथ लड़ते हुए मारा गया था।
  5. 1831 ई०।

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4
दोस्त मुहम्मद खाँ सिखों के हाथों हुए अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहता था। दूसरी ओर सिख भी पेशावर में अपनी स्थिति को दृढ़ करना चाहते थे। हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण आरंभ करवाया। हरी सिंह नलवा की कार्यवाई को रोकने के लिए दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर तथा शमसुद्दीन के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की एक विशाल सेना भेजी। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। हरी सिंह नलवा उस समय पेशावर में बहुत बीमार पड़ा था। जब उसे अफ़गानों के इस आक्रमण का समाचार मिला तो उन्हें पाठ पढ़ाने के लिए अपने 10,000 सैनिकों को साथ लेकर जमरौद में अफ़गानों पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में यद्यपि हरी सिंह नलवा शहीद हो गया किंतु सिखों ने अफ़गान सेनाओं का ऐसा विनाश किया कि उन्होंने पुनः कभी पेशावर की ओर अपना मुख न किया।

  1. दोस्त मुहम्मद खाँ कौन था ?
  2. जमरौद किले का निर्माण किसने करवाना था ?
  3. जमरौद दुर्ग पर आक्रमण ……………… को किया गया।
  4. जमरौद की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह का कौन-सा जरनैल शहीद हुआ ?
  5. जमरौद की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. दोस्त मुहम्मद खाँ पेशावर का शासक था।
  2. जमरौद किले का निर्माण सरदार हरी सिंह नलवा ने करवाया था।
  3. 28 अप्रैल, 1837 ई०।
  4. जमरौद की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह का जरनैल हरी सिंह नलवा शहीद हुआ था।
  5. जमरौद की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति PSEB 12th Class History Notes

  • महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Maharaja Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)-महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है—
    • प्रथम चरण (First Stage) यह चरण 1797 से 1812 ई० तक चला-जब रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह जमान था-रणजीत सिंह ने उसकी जेहलम नदी में गिरी तोपें वापिस भेज दी–प्रसन्न होकर उसने रणजीत सिंह के लाहौर अधिकार को मान्यता दे दी-1803 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का शासक बना-उसकी अयोग्यता का लाभ उठाते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर, झंग तथा साहीवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
    • दूसरा चरण (Second Stage)—यह चरण 1813-1834 ई० तक चला-1813 ई० में रोहतासगढ़ में हुए समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने कश्मीर पर आक्रमण किया-फ़तह खाँ ने महाराजा के साथ छल किया-13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो के स्थान पर अफ़गानों तथा सिखों के मध्य प्रथम लड़ाई हुई-इसमें फ़तह खाँ पराजित हुआमहाराजा के पेशावर अधिकार के परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा की भयंकर लड़ाई हुई-इसमें भी अफ़गान पराजित हुए-6 मई, 1834 ई० को पेशावर पूर्ण रूप से सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।
    • तीसरा चरण (Third Stage)—यह चरण 1834 से 1837 ई० तक चला-महाराजा के पेशावर अधिकार से अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा-परिणामस्वरूप उसने जेहाद की घोषणा कर दी-परंतु रणजीत सिंह की कूटनीति के कारण उसे बिना युद्ध किए वापिस जाना पड़ा-1837 ई० को सिखों तथा अफ़गानों के मध्य जमरौद की लड़ाई हुई-इस लड़ाई में सिख विजयी हुए परंतु हरि सिंह नलवा शहीद हो गया इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पुनः कभी पेशावर की ओर मुख न किया।
    • चौथा चरण (Fourth Stage) यह चरण 1838 से 1839 ई० तक चला-रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया-इस प्रकार सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा।
  • महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh) उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्द बनी रही-यहीं से विदेशी आक्रमणकारी भारत आते रहे-यहाँ के खंखार कबीले सदा ही अनुशासन के विरोधी रहे -महाराजा ने 1831 ई० से 1836 ई० के दौरान डेरा गाजी खाँ, टोंक, बन्नू और पेशावर आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया-महाराजा ने अफ़गानिस्तान पर कभी भी अधिकार करने का प्रयास नहीं किया-खूखार अफ़गान कबीलों के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे गए-उत्तर-पश्चिमी सीमा पर कई नए दुर्ग बनाए गए-वहाँ पर विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई-सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की गई-कबीलों की भलाई के लिए विशेष प्रबंध किए गए-महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा. नीति काफ़ी सीमा तक सफल रही।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु हर राय जी (Guru Har Rai Ji)

प्रश्न 1.
गुरु हर राय जी के जीवन और उपलब्धियों के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Guru Har Rai Ji’s early career and achievements ?)
उत्तर-
गुरु हर राय जी सिखों के सातवें गुरु थे। उनके गुरुकाल (1645 से 1661 ई०) को सिख पंथ का शांतिकाल कहा जा सकता है। गुरु हर राय जी के आरंभिक जीवन तथा उनके अधीन सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब नामक स्थान पर हुआ। उनके माता जी का नाम बीबी निहाल कौर था। आप गुरु हरगोबिंद जी के पौत्र तथा बाबा गुरदित्ता जी के पुत्र थे।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-आप बाल्यकाल से ही शाँत प्रकृति, मृदुभाषी तथा दयालु स्वभाव के थे। कहते हैं कि एक बार हर राय जी बाग में सैर कर रहे थे। उनके चोले से लग जाने से कुछ फूल झड़ गए। यह देखकर आपकी आँखों में आँसू आ गए। आप किसी का भी दुःख सहन नहीं कर सकते थे।
आपका विवाह अनूप शहर (यू० पी०) के दया राम जी की सुपुत्री सुलक्खनी जी से हुआ। आपके घर दो पुत्रों राम राय तथा हर कृष्ण ने जन्म लिया।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु हरगोबिंद जी के पाँच पुत्र थे। बाबा गुरदित्ता, अणि राय तथा अटल राय अपने पिता के जीवन काल में स्वर्गवास को चुके थे। शेष दो में से सूरजमल का सांसारिक मामलों की ओर आवश्यकता से अधिक झुकाव था तथा तेग़ बहादुर जी का बिल्कुल नहीं। इसलिए गुरु हरगोबिंद जी ने बाबा गुरदित्ता के छोटे पुत्र हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया। आप 8 मार्च, 1645 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए। इस प्रकार आप सिखों के सातवें गुरु बने।

4. गुरु हर राय जी के समय में सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism under Guru Har Rai Ji)—आप 1645 ई० से 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। आपने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन मुख्य केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था। पहली बख्शीश एक संन्यासी गिरि की थी जिसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गुरु साहिब ने उसका नाम भक्त भगवान रख दिया। उसने पूर्वी भारत में सिख धर्म के बहुत-से केंद्र स्थापित किए। इनमें पटना, बरेली तथा राजगिरी के केंद्र प्रसिद्ध हैं। दूसरी बख्शीश सुथरा शाह की थी। उसे सिख धर्म के प्रचार के लिए दिल्ली भेजा गया। तीसरी बख्शीश भाई फेरु की थी। उनको राजस्थान भेजा गया था। इसी प्रकार भाई नत्था जी को ढाका, भाई जोधा जी को मुलतान भेजा गया तथा आप स्वयं पंजाब के कई स्थानों जैसे जालंधर, करतारपुर, हकीमपुर, गुरदासपुर, अमृतसर, पटियाला, अंबाला तथा हिसार आदि गए।

5. फूल को आशीर्वाद (Blessing to Phool)-एक दिन काला नामक श्रद्धालु अपने भतीजों संदली तथा फूल को गुरु जी के दर्शन हेतु ले आया। उनकी शोचनीय हालत को देखते हुए गुरु साहिब ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि एक दिन वे बहुत धनी बनेंगे। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल की संतान ने फूलकिया मिसल की स्थापना की।

6. राजकुमार दारा की सहायता (Help to Prince Dara)-गुरु हर राय जी के समय दारा शिकोह पंजाब का गवर्नर था। वह औरंगज़ेब का बड़ा भाई था। सत्ता प्राप्त करने के प्रयास में औरंगज़ेब ने उसे विष दे दिया। इस कारण वह बहुत बीमार हो गया। उसने गुरु साहिब से आशीर्वाद माँगा। गुरु साहिब ने अमूल्य जड़ी-बूटियाँ देकर दारा की चिकित्सा की। इस कारण वह गुरु साहिब का आभारी हो गया। वह प्रायः उनके दर्शन के लिए आया करता।

7. गुरु हर राय जी को दिल्ली बुलाया गया (Guru Har Rai Ji was summoned to Delhi)औरंगज़ेब को संदेह था कि गुरु ग्रंथ साहिब में कुछ श्लोक इस्लाम धर्म के विरुद्ध हैं। इस बात की पुष्टि के लिए उसने आपको अपने दरबार में उपस्थित होने के लिए कहा। गुरु साहिब ने अपने पुत्र रामराय को औरंगजेब के पास भेजा। औरंगजेब ने ‘आसा दी वार’ में से एक पंक्ति की ओर संकेत करते हुए उससे पूछा कि इसमें मुसलमानों का विरोध क्यों किया गया है। यह पंक्ति थी,
मिटी मुसलमान की पेडै पई कुम्हिआर॥
घड़ भाँडे इटा कीआ जलदी करे पुकार॥
इसका अर्थ था मुसलमान की मिट्टी कुम्हार के घमट्टे में चली जाएगी जो इससे बर्तन तथा ईंटें बनाएगा। जैसेजैसे वह जलेगी तैसे-तैसे मिट्टी चिल्लाएगी। औरंगज़ेब के क्रोध से बचने के लिए रामराय ने कहा कि इस पंक्ति में भूल से बेईमान शब्द की अपेक्षा मुसलमान शब्द लिखा गया है। गुरु ग्रंथ साहिब के इस अपमान के कारण आपने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)—गुरु हर राय जी ने ज्योति-जोत समाने से पूर्व आपने गुरुगद्दी अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण को सौंप दी। 6 अक्तूबर, 1661 ई० को गुरु हर राय जी ज्योति जोत समा गए।

9. गुरु हर राय जी के कार्यों का मूल्याँकन (Estimate of the works of Guru Har Rai Ji)-गुरु हर राय जी हालाँकि अल्प आयु में ही ज्योति-जोत समा गए परंतु उन्होंने सिख पंथ के विकास में अमूल्य योगदान दिया। आप जी ने माझा, दोआबा और मालवा में सिख धर्म का प्रचार किया। आपने संगत और पंगत की मर्यादा को पूरी तेजी के साथ जारी रखा। आपके दवाखाने से बिना किसी भेद-भाव के निःशुल्क चिकित्सा और सेवा प्रदान की जाती थी। इस प्रकार आपने सिख धर्म के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

गुरु हर कृष्ण जी (Guru Har Krishan Ji)

प्रश्न 2.
गुरु हर कृष्ण जी के समय सिख पंथ के हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of Development of Sikhism during the pontificate of Guru Har Kishan Ji.)
उत्तर-
गुरु हर कृष्ण जी सिख इतिहास में बाल गुरु के नाम से जाने जाते हैं। वे 1661 ई० से लेकर 1664 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। उनके अधीन सिख पंथ में हुए विकास का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parents)-गुरु हर कृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० में कीरतपुर साहिब में हुआ। आप गुरु हर राय साहिब के छोटे पुत्र थे। आप जी की माता का नाम सुलक्खनी जी था। रामराय आपके बड़े भाई थे।

2. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु हर राय जी ने अपने बड़े पुत्र राम राय को उसकी अयोग्यता के कारण गुरुगद्दी से वंचित कर दिया था । 1661 ई० को गुरु हर राय जी ने हर कृष्ण जी को गुरुगद्दी सौंप दी। उस समय हर कृष्ण जी की आयु मात्र 5 वर्ष थी। इस कारण इतिहास में आपको बाल गुरु के नाम से याद किया जाता है। यद्यपि आप उम्र में बहुत छोटे थे पर फिर भी आप बहुत उच्च प्रतिभा के स्वामी थे। आप में अद्वितीय सेवा भावना, बड़ों के प्रति मान-सम्मान, मीठा बोलना, दूसरों के प्रति सहानुभूति तथा अटूट भक्तिभावना इत्यादि के गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। इन गुणों के कारण ही गुरु हर राय जी ने आपको गुरुगद्दी सौंपी। इस प्रकार आप सिखों के आठवें गुरु बने। आप 1664 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

3. राम राय का विरोध (Opposition of Ram Rai)-राम राय गुरु हर राय जी का बड़ा पुत्र होने के कारण गुरु साहिब के पश्चात् गुरुगद्दी का अधिकारी स्वयं को समझता था, परंतु गुरु हर राय जी उसे पहले ही गुरुगद्दी से वंचित कर चुके थे। जब उसे ज्ञात हुआ कि गुरुगद्दी हर कृष्ण जी को सौंपी गई है तो वह यह बात सहन न कर सका। उसने गद्दी हथियाने के लिए षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसने बहुत-से बेईमान और स्वार्थी मसंदों को अपने साथ मिला लिया। इन मसंदों द्वारा उसने यह घोषणा करवाई कि वास्तविक गुरु राम राय हैं और सभी सिख उसी – अपना गुरु मानें परंतु वह उसमें सफल न हो पाया। फिर उसने औरंगजेब से सहायता लेने का प्रयास किया। औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली बुलाया ताकि दोनों गुटों की बात सुनकर वह अपना निर्णय दे सके।

4. गुरु साहिब का दिल्ली जाना (Guru Sahib’s Visit to Delhi)—गुरु साहिब को दिल्ली लाने का कार्य औरंगज़ेब ने राजा जय सिंह को सौंपा। राजा जय सिंह ने अपने दीवान परस राम को गुरु जी के पास भेजा। गुरु जी ने औरंगजेब से मिलने और दिल्ली जाने से इंकार कर दिया, परंतु परस राम के यह कहने पर कि दिल्ली की संगतें गुरु साहिब के दर्शनों के लिए बेताब हैं, गुरु साहिब ने दिल्ली जाना तो स्वीकार कर लिया, परंतु औरंगजेब से भेंट करने से इंकार कर दिया। आप 1664 ई० में दिल्ली चले गए और राजा जय सिंह के घर निवास करने के लिए मान गए। गुरु साहिब की औरंगजेब से भेंट हुई अथवा नहीं, इस संबंध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद पाए जाते हैं।

5. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)—उन दिनों दिल्ली में चेचक और हैजा फैला हुआ था। गुरु हर कृष्ण जी ने यहाँ बीमारों, निर्धनों और लावारिसों की तन, मन और धन से अथक सेवा की। चेचक और हैज़े के सैंकड़ों रोगियों को ठीक किया, परंतु इस भयंकर बीमारी का आप स्वयं भी शिकार हो गए। यह बीमारी उनके लिए घातक सिद्ध हुई। उन्हें बहुत गंभीर अवस्था में देखते हुए श्रद्धालुओं ने प्रश्न किया कि आपके पश्चात् उनका नेतृत्व कौन करेगा तो आप ने एक नारियल मंगवाया। नारियल और पाँच पैसे रखकर माथा टेका और “बाबा बकाला” का उच्चारण करते हुए 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति-जोत समा गए। आपकी याद में यहाँ गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण किया गया है।

गुरु हर कृष्ण जी ने कोई अढ़ाई वर्ष के लगभग गुरुगद्दी संभाली और गुरु के रूप में आपने सभी कर्त्तव्य बड़ी सूझ-बूझ से निभाए। आप इतनी कम आयु में भी तीक्ष्ण बुद्धि, उच्च विचार और अलौकिक ज्ञान के स्वामी थे।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिख पंथ के विकास में गुरु हर राय जी का गुरुकाल क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
(Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?).
अथवा
गुरु हर राय जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
अथवा
सिख धर्म में गुरु हर राय जी का क्या योगदान है ?
(What is the contribution of Guru Har Rai Ji for the development of Sikh religion ?)
अथवा
गुरु हर राय जी के जीवन एवं कार्यों के बारे में संक्षेप में लिखें। (Write in short about the life and works of Guru Har Rai Ji.)
उत्तर-
सिखों के सातवें गुरु, गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ था। आप बचपन से ही साधू स्वभाव के थे। 1645 ई० से लेकर 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। उनका गुरुकाल सिख धर्म के शांतिपूर्वक विकास का काल था। गुरु हर राय साहिब ने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के कई स्थानों का भ्रमण किया। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब से बाहर अपने प्रचारक भेजे। परिणामस्वरूप सिख धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ। गुरु जी ने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 2.
धीरमल संबंधी एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note about Dhirmal.)
उत्तर-
धीरमल गुरु हर राय जी का बड़ा भाई था। वह चिरकाल से गुरुगद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहा था। जब धीर मल को यह समाचार. मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसके क्रोध की कोई सीमा न रही। उसने शींह नामक एक मसंद के साथ मिल कर गुरु जी की हत्या का षड्यंत्र रचा। शीह के साथियों ने गुरु साहिब के घर का बहुत-सा सामान लूट लिया। बाद में धीरमल तथा शींह द्वारा क्षमा याचना करने पर गुरु साहिब ने उन्हें क्षमा कर दिया।

प्रश्न 3.
गुरु हर कृष्ण जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। उनको बाल गुरु क्यों कहा जाता है?
(Write a brief note on Guru Har Krishsn Ji. Why is He called Bal Guru ?)
अथवा
सिख धर्म में गुरु हर कृष्ण जी का क्या योगदान था ?
(What was the contribution of Guru Har Krishan Ji in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हर कृष्ण जी पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on Guru Har Krishan Ji.)
उत्तर-
सिखों के आठवें गुरु, गुरु हर कृष्ण जी गुरु हर राय जी के छोटे पुत्र थे। वह 1661 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए। उस समय उनकी आयु केवल पाँच वर्ष थी। इस कारण उनको ‘बाल गुरु’ के नाम से याद किया जाता है। गुरु हर कृष्ण जी के बड़े भाई राम राय के उकसाने पर औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली आने का आदेश दिया। गुरु साहिब 1664 ई० में दिल्ली गए। उन दिनों दिल्ली में भयानक चेचक एवं हैजा फैला हुआ था। गुरु जी ने वहाँ पर बीमारों की अथक सेवा की। वह 30 मार्च, 1664 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी के उत्तराधिकारी कौन थे ?
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने किसको अपना उत्तराधिकारी बनाया ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 2.
गुरु हर राय जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

प्रश्न 3.
गुरु हर राय जी के.पिता जी का नाम बताएँ।
उत्तर-
बाबा गुरदित्ता जी।

प्रश्न 4.
सिखों के सातवें गुरु कौन थे ?
अथवा
सातवें सिख गुरु का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुर हर राय जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 5.
गुरु हर राय जी कब गुरुगद्दी पर आसीन हुए ?
उत्तर-
1645 ई०

प्रश्न 6.
दारा शिकोह कौन था ?
उत्तर-
शाहजहाँ का सबसे बड़ा पुत्र।

प्रश्न 7.
गुरु हर राय जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए काबुल किसे भेजा था ?
उत्तर-
भाई गोंदा जी को।

प्रश्न 8.
गुरु हर राय जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए ढाका किसे भेजा था ?
उत्तर-
भाई नत्था जी को।

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प्रश्न 9.
गुरु हर राय जी कब ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
1661 ई०।

प्रश्न 10.
सिखों के आठवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हर कृष्ण जी।

प्रश्न 11.
गुरु हर कृष्ण जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

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प्रश्न 12.
गुरु हर कृष्ण जी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
7 जुलाई, 1656 ई०।

प्रश्न 13.
गुरु हर कृष्ण जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
उत्तर-
1661 ई०।

प्रश्न 14.
सिखों के बाल गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हर कृष्ण जी।

प्रश्न 15.
गुरु हर कृष्ण जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1661 ई० से 1664 ई०

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 16.
गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु हर कृष्ण जी को किसके विरोध का सामना करना पड़ा ?
उत्तर-
राम राय के

प्रश्न 17.
गुरु हर कृष्ण जी कब ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
1664 ई०

प्रश्न 18.
गुरु हर कृष्ण जी कहाँ ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
दिल्ली।

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(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
…………… सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-
(गुरु हर राय जी)

प्रश्न 2.
गुरु हर राय जी का जन्म …………… में हुआ।
उत्तर-
(1630 ई०)

प्रश्न 3.
गुरु हर राय जी का जन्म …………. नाम के स्थान पर हुआ।
उत्तर-
(कीरतपुर साहिब)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 4.
गुरु हर राय जी के पिता का नाम …………. था।
उत्तर-
(बाबा गुरदित्ता जी)

प्रश्न 5.
गुरु हर राय जी ……………. में गुरुगद्दी पर बैठे। .
उत्तर-
(1645 ई०)

प्रश्न 6.
……………. सिखों के आठवें गुरु थे।
उत्तर-
(गुरु हर कृष्ण जी)

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प्रश्न 7.
गुरु हर कृष्ण जी ……………. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1661 ई०)

प्रश्न 8.
गुरु हर कृष्ण जी दिल्ली में ………… के बंगले में ठहरे।
उत्तर-
(राजा जय सिंह)

प्रश्न 9.
………… को बाल गुरु के नाम से याद किया जाता है।
उत्तर-
(गुरु हर कृष्ण जी)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें।

प्रश्न 1.
गुरु हर राय जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
गुरु हर राय जी का जन्म 1630 ई० में हुआ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु हर राय जी के पिता जी का नाम बाबा बुड्डा जी था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 4.
गुरु हर राय जी की माता जी का नाम बीबी निहाल कौर था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
गुरु हर राय जी 1661 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
गुरु हर कृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
गुरु हर कृष्ण जी को बाल गुरु के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
गुरु हर कृष्ण जी 1664 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिखों के सातवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हर कृष्ण जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 2.
गुरु हर राय जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1627 ई० में
(ii) 1628 ई० में
(iii) 1629 ई० में
(iv) 1630 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
गुरु हर राय जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरदित्ता जी
(ii) अटल राय जी
(ii) अणि राय जी
(iv) सूरजमल जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
गुरु हर राय जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1635 ई० में
(ii) 1637 ई० में
(ii) 1645 ई० में ,
(iv) 1655 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
दारा शिकोह कौन था ?
(i) शाहजहाँ का बड़ा बेटा
(ii) शाहजहाँ का छोटा बेटा
(iii) जहाँगीर का बड़ा बेटा
(iv) औरंगज़ेब का बड़ा बेटा।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
गुरु हर राय जी ने अपना उत्तराधिकारी किसको नियुक्त किया ?
(i) हर कृष्ण जी को
(ii) तेग़ बहादुर जी को
(iii) राम राय को
(iv) गुरदित्ता जी को।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
गुरु हर राय जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1645 ई० में
(ii). 1660 ई० में
(iii) 1661 ई० में
(iv) 1664 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 8.
सिखों के आठवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु हर कृष्ण जी
(ii) गुरु तेग बहादुर जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 9.
गुरु हर कृष्ण जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1630 ई० में
(ii) 1635 ई० में
(iii) 1636 ई० में
(iv) 1656 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 10.
गुरु हर कृष्ण जी के पिता जी कौन थे ?
(i) गुरु हरगोबिंद साहिब जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) बाबा गुरदित्ता जी
(iv) बाबा बुड्डा जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 11.
सिख इतिहास में ‘बाल गुरु’ के नाम से किसको जाना जाता है ?
(i) गुरु रामदास जी को
(ii) गुरु हर राय जी को
(iii) गुरु हर कृष्ण जी को
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 12.
गुरु हर कृष्ण जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
(i) 1645 ई० में
(ii) 1656 ई० में
(iii) 1661 ई० में
(iv) 1664 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
गुरु हर कृष्ण जी कब ज्योति-जोत समाए ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1662 ई० में
(iii) 1663 ई० में
(iv) 1664 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 14.
गुरु हर कृष्ण जी कहाँ ज्योति-जोत समाए ?
(i) लाहौर
(ii) दिल्ली
(iii) मुलतान
(iv) जालंधर
उत्तर-
(ii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
सिख पंथ के विकास में गुरु हर राय जी का समय क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
(Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?).
अथवा
गुरु हर राय जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
अथवा
गुरु हर राय जी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Guru Har Rai Ji ?)
उत्तर-
गुरु हर राय जी 1645 ई० से 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस समय के दौरान उन्होंने सिख धर्म के विकास के लिए निम्नलिखित कार्य किए—
1. गुरु हर राय जी के समय में सिख धर्म का विकास-गुरु हर राय जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन मुख्य केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था। भगत,गिरि को पूर्वी भारत, सुथरा शाह को दिल्ली, भाई फेरू को राजस्थान, भाई नत्था जी को ढाका, भाई जोधा जी को मुलतान भेजा गया तथा आपने स्वयं पंजाब के कई स्थानों का भ्रमण किया। इस कारण सिख पंथ का बहुत प्रसार हुआ।

2. फूल को आशीर्वाद-एक दिन काला नामक श्रद्धालु अपने भतीजों संदली तथा फूल को गुरु हर राय जी के दर्शन हेतु ले आया। उनकी शोचनीय हालत को देखते हुए गुरु साहिब ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि एक दिन वे बहुत धनी बनेंगे। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल ने फूलकिया मिसल की स्थापना की।

3. राजकुमार दारा की सहायता-गुरु हर राय जी के समय दारा शिकोह पंजाब का गवर्नर था। वह औरंगजेब का बड़ा भाई था। सत्ता प्राप्त करने के प्रयास में औरंगज़ेब ने उसे विष दे दिया। इस कारण वह बहुत बीमार हो गया। उसने गुरु साहिब से आशीर्वाद माँगा। गुरु साहिब ने अमूल्य जड़ी-बूटियाँ देकर दारा की चिकित्सा की। इस कारण वह गुरु साहिब का आभारी हो गया। वह प्रायः उनके दर्शन के लिए आने लगा।

4. गुरु हर राय साहिब को दिल्ली बुलाया गया-औरंगज़ेब को संदेह था कि गुरु ग्रंथ साहिब में कुछ श्लोक इस्लाम धर्म के विरुद्ध हैं। इस बात की पुष्टि के लिए उसने गुरु हर राय जी को अपने दरबार में उपस्थित होने के लिए कहा। गुरु साहिब ने अपने पुत्र रामराय को औरंगजेब के पास भेजा। गुरुवाणी की ग़लत व्याख्या के कारण आपने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया।

5. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु हर राय जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरुगद्दी अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण को सौंप दी। गुरु हर राय जी 6 अक्तूबर, 1661 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति-जोत समा गए।

प्रश्न 2.
धीरमल संबंधी एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note about Dhirmal.)
उत्तर-
धीरमल गुरु हर राय जी का बड़ा भाई था। वह चिरकाल से गुरुगद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहा था। बकाला में जो विभिन्न 22 मंजियाँ स्थापित हुईं उनमें से एक धीरमल की भी थी। जब धीरमल को यह समाचार मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसके क्रोध की कोई सीमा न रही। उसने शीह नामक एक मसंद के साथ मिल कर गुरु जी की हत्या का षड्यंत्र रचा। एक दिन शींह तथा उसके सशस्त्र गुंडों ने गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के समय गुरु जी के कंधे में गोली लगी जिससे वह घायल हो गए, परंतु वह शाँत बने रहे। शीह के साथियों ने गुरु साहिब के घर का बहुत-सा सामान लूट लिया। इस घटना से सिख रोष से भर उठे तथा उन्होंने मक्खन शाह के नेतृत्व में धीरमल के घर पर आक्रमण कर दिया। वह न केवल धीरमल तथा शींह को पकड़ कर गुरु जी के पास लाए अपितु गुरु जी का लूटा हुआ सामान भी वापस ले आए। धीरमल तथा शींह द्वारा क्षमा याचना करने पर गुरु साहिब ने उन्हें क्षमा कर दिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

प्रश्न 3.
गुरु हरकृष्ण जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। उनको बाल गुरु क्यों कहा जाता है ? (Write a brief note on Guru Har Krishan Ji. Why is he called Bal Guru ?)
अथवा
गुरु हरकृष्ण जी पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on Guru Har Krishan Ji.)
अथवा
गुरु हरकृष्ण जी के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
(Explain in detail about Guru Har Krishan Ji.)
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु थे। आपके गुरुगद्दी के समय (1661-1664 ई०) सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. गुरुगद्दी की प्राप्ति-गुरु हर राय जी ने अपने बड़े पुत्र रामराय को उसकी अयोग्यता के कारण गुरुगद्दी से वंचित कर दिया था। 1661 ई० को गुरु हर राय जी ने हरकृष्ण जी को गुरुगद्दी सौंप दी। उस समय हरकृष्ण साहिब की आयु मात्र 5 वर्ष थी। इस कारण इतिहास में आपको बाल गुरु के नाम से याद किया जाता है। आप सिखों के आठवें गुरु बने। आप 1664 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

2. रामराय का विरोध-रामराय गुरु हर राय जी का बड़ा पुत्र होने के कारण गुरु साहिब के पश्चात् गुरुगद्दी का अधिकारी स्वयं को समझता था, परंतु गुरु हर राय जी उसे पहले ही गुरुगद्दी से वंचित कर चुके थे। जब उसे ज्ञात हुआ कि गुरुगद्दी हरकृष्ण साहिब को सौंपी गई है तो वह यह बात सहन न कर सका। उसने गद्दी हथियाने के लिए षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए।

3. गुरु हरकृष्ण जी का दिल्ली जाना-गुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली लाने का कार्य औरंगज़ेब ने राजा जय सिंह को सौंपा। राजा जय सिंह ने अपने दीवान परस राम को गुरु जी के पास भेजा। गुरु जी ने औरंगज़ेब से मिलने और दिल्ली जाने से इंकार कर दिया, परंतु परस राम के यह कहने पर कि दिल्ली की संगतें गुरु साहिब के दर्शनों के लिए बेताब हैं, गुरु साहिब ने दिल्ली जाना तो स्वीकार कर लिया, परंतु औरंगज़ेब से भेंट करने से इंकार कर दिया। आप 1664 ई० में दिल्ली चले गए और राजा जय सिंह के घर निवास करने के लिए मान गए। गुरु साहिब की औरंगज़ेब से भेंट हुई अथवा नहीं, इस संबंध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद पाए जाते हैं।

4. ज्योति-जोत समाना-उन दिनों दिल्ली में चेचक और हैजा फैला हुआ था। गुरु हरकृष्ण जी ने यहाँ बीमारों, निर्धनों और अनाथों की तन, मन और धन से अथक सेवा की। परंतु इस भयंकर बीमारी का आप स्वयं भी शिकार हो गए। आप 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति-जोत समा गए। आपकी याद में यहाँ गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण किया गया है।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
गुरु हर राय जी 1645 ई० से लेकर 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उनकी गुरुगद्दी का समय सिख इतिहास में शाँति का काल कहा जा सकता है। गुरु हर राय साहिब जी सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के कई स्थानों पर जैसे जालंधर, अमृतसर, करतारपुर, गुरदासपुर, फिरोज़पुर, पटियाला, अंबाला, करनाल और हिसार इत्यादि स्थानों पर गए। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब से बाहर अपने प्रचारक भेजे। अपने प्रचार दौरे के दौरान गुरु साहिब ने अपने एक श्रद्धालु फूल को यह आशीर्वाद दिया कि उसकी संतान शासन करेगी। गुरु साहिब की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। गुरु हर राय जी ने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

  1. गुरु हर राय जी गुरुगद्दी पर कब बैठे थे ?
  2. गुरु हर राय जी सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के कौन-से स्थानों पर गए ? किन्हीं दो के नाम बताएँ।
  3. गुरु हर राय जी ने अपने किस श्रद्धालु को यह वरदान दिया कि उसकी संतान राज करेगी?
  4. गुरु हर राय जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
  5. शाहजहाँ के बड़े पुत्र का क्या नाम था ?
    • दारा
    • शुज़ा
    • औरंगजेब
    • मुराद।

उत्तर-

  1. गुरु हर राय जी 1645 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
  2. गुरु हर राय जी सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब में जालंधर तथा अमृतसर में गए।
  3. गुरु हर राय जी ने अपने एक श्रद्धालु फूल को यह आर्शीवाद दिया कि उसकी सन्तान राज करेगी।
  4. गुरु हर राय जी ने हर कृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  5. दारा।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

2
गुरु हर कृष्ण जी गुरु हर राय जी के छोटे पुत्र थे। वह 1661 ई० में गुरगद्दी पर बैठे। वह सिखों के आठवें गुरु थे। जिस समय वह गुरुगद्दी पर बैठे तो उस समय उनकी आयु केवल पाँच वर्ष थी। इस कारण उनको ‘बाल गुरु’ के नाम से स्मरण किया जाता है। गुरु हरकृष्ण जी के बड़े भाई राम राय ने आप जी को गुरुगद्दी दिए जाने का कट्टर विरोध किया, क्योंकि वह अपने आपको गुरुगद्दी का वास्तविक अधिकारी मानता था। जब वह अपनी कुटिल चालों में सफल न हो सका तो उसने औरंगजेब से सहायता माँगी। इस संबंध में औरंगज़ेब ने गुरु साहिब को दिल्ली आने का आदेश दिया। गुरु साहिब 1664 ई० में दिल्ली गए। वहाँ वह राजा जय सिंह के यहाँ ठहरे। उन दिनों दिल्ली में भयानक चेचक एवं हैजा फैला हुआ था। गुरु जी ने इन बीमारों, ग़रीबों एवं अनाथों की भरसक सेवा की।

  1. सिखों के आठवें गुरु कौन थे ?
  2. गुरु हर कृष्ण जी …………. में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
  3. गुरु हर कृष्ण जी को बाल गुरु क्यों कहा जाता है ?
  4. राम राय कौन था ?
  5. गुरु हर कृष्ण जी ने दिल्ली में कौन-सी सेवा निभाई ?

उत्तर-

  1. सिखों के आठवें गुरु हर कृष्ण जी थे।
  2. 1661 ई०।
  3. क्योंकि गुरुगद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल 5 वर्ष की थी।
  4. राम राय गुरु हर कृष्ण जी का बड़ा भाई था।
  5. गुरु हर कृष्ण जी जिस समय दिल्ली में थे उस समय वहाँ चेचक तथा हैज़ा नामक बीमारियाँ फैली हुई थीं। गुरु जी ने इन बीमारों, ग़रीबों तथा अनाथों की बहुत सेवा की।

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गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी PSEB 12th Class History Notes

  • गुरु हर राय जी (Guru Har Rai Ji)-गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ—आप गुरु हरगोबिंद जी के पौत्र थे—आपका विवाह अनूप शहर के दया राम जी की सुपुत्री सुलक्खनी जी से हुआ—आप 8 मार्च, 1645 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए—आपने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था—मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का पुत्र दारा प्रायः उनके दर्शनों के लिए आता था गुरु जी ने दारा की औरंगजेब के विरुद्ध सहायता की औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाए जाने पर आपने अपने पुत्र रामराय को दिल्ली भेजा— रामराय द्वारा दिल्ली दरबार में गुरुवाणी का गलत अर्थ बताने पर, उसे गुरुगद्दी से वंचित कर दिया गया-आपने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी चुना—आप 6 अक्तूबर, 1661 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।
  • गुरु हर कृष्ण जी (Guru Har Krishan Ji)-गुरु हर कृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ—आपके पिता जी का नाम गुरु हर राय साहिब तथा माता जी का नाम सुलक्खनी था—आप मात्र 5 वर्ष की आयु में 1661 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए—आपको बाल गुरु के नाम से स्मरण किया जाता है—आपको औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाया गया—आप 1664 ई० में दिल्ली गए यहाँ आपने चेचक और हैज़ा से पीड़ित बीमारों की अथक सेवा की आप स्वयं इस भयंकर बीमारी का शिकार हो गए—आप 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति जोत समा गए— ज्योति जोत समाने से पूर्व आपने “बाबा बकाला” शब्द का उच्चारण किया– जिससे अभिप्राय था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

PSEB 12th Class Geography Guide परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

प्रश्न 1.
यातायात प्रबंध को मुख्य रूप में कौन-सी किस्मों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
यातायात प्रबंध को मुख्य रूप में इन किस्मों में विभाजित किया जाता है-

  • स्थल मार्ग यातायात।
  • जल मार्ग यातायात।
  • वायु मार्ग यातायात।

प्रश्न 2.
स्थल मार्ग यातायात की कौन-सी तीन किस्में होती हैं ?
उत्तर-
स्थल मार्ग यातायात की सड़कें, रेलवे तथा पाइप लाइन तीन मुख्य किस्में होती हैं।

प्रश्न 3.
कौन-से राज्य भारत के दोनों गलियारा (सड़कों) योजनाओं में संभेद हैं ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश दोनों गलियारा योजनाओं में संभेद राज्य हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

प्रश्न 4.
रेल गेज कौन-सी किस्मों की होती हैं ?
उत्तर-
भारतीय रेल गेजों की निम्नलिखित तीन किस्में होती हैं-

  • चौड़ी गेज (Broad Gauge)
  • मीटर गेज (Metre Gauge)
  • perluf 1757 (Narrow Gauge).

प्रश्न 5.
विश्व की प्रथम रेलवे लाइन कब बिछाई गई ?
उत्तर-
विश्व की प्रथम रेलवे लाइन सन 1863 से 1869 में अमेरिका में बिछाई गई।

प्रश्न 6.
ट्रांस साइबेरियाई रेलवे लाइन कहा तक हैं ?
उत्तर-
ट्रांस साइबेरियाई रेलवे लाइन मास्को से रूस के पर्व में ब्लादिवोस्तोक तक हैं।

प्रश्न 7.
भारत में कितने रेलवे गलियारे हैं ?
उत्तर-
भारत में 2014 के बजट के अनुसार 9 रेलवे गलियारे हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

प्रश्न 8.
IRCTC का पूरा नाम क्या है ?
उनर-
IRCTC का पूरा नाम इण्डियन कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड है।

प्रश्न 9.
भारत में कितने जल मार्गों को राष्ट्रीय स्तर के माना जाता है ?
उत्तर-
भारत में 10 जल मार्गों को राष्ट्रीय स्तर के माना जाता है।

प्रश्न 10.
उत्तरी अमेरिका की कोई दो बड़ी झीलों के नाम लिखो।
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका की बड़ी झीलें हैं-सुपीरियर, मिशिगन, हायरन, एरी, ओटारियो तथा सेंट लॉरेस।

प्रश्न 11.
भारत की पहली वायु सेवा कब शुरू हुई तथा कहां तक थी ?
उत्तर-
भारत की पहली वायु सेवा 1911 में शुरू हुई तथा इसका इलाहाबाद से नैनी तक, 10 कि०मी० की दूरी के लिए वायु डाक का प्रयोग किया गया।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

प्रश्न 12.
पंजाब के कौन-से दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं ?
उत्तर-
पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे अमृतसर तथा मोहाली में हैं।

प्रश्न 13.
TAPI पाइप लाइन का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
तुर्कमेनिस्तान-अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान-भारत पाइप लाइन।

प्रश्न 14.
संचार की कौन सी प्रमुख किस्में हैं ?
उत्तर-
संचार की मुख्य किस्में हैं-

  • व्यक्तिगत संचार
  • जन संचार।

प्रश्न 15.
GATT का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
जनरल ऐग्रीमैंट ओन टैरिफज एंड ट्रेड। (शुल्क तथा व्यापार पर समझौते)।

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प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें: .

प्रश्न 1.
भारत की ग्रामीण सड़क योजना से पहचान करवाओ।
उत्तर-
इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का विकास करना है तथा ऐसा करके कम से कम 1500 व्यक्तियों की तथा इससे अधिक जनसंख्या वाले गांवों को आपस में सड़क मार्ग के साथ जोड़ा जाता है। यह सड़कें इस प्रकार बनाई जाती हैं कि हर प्रकार की मौसमी मुसीबतों को सहन कर सकें।

प्रश्न 2.
सूबाई सड़क मार्ग क्या होते हैं ?
उत्तर-
जब किसी राज्य में व्यापारिक तथा भारी यात्री यातायात के लिए सड़कें बनाई जाए, वह राज्य सड़क मार्ग होते हैं। यह सड़कें जो कि आर्थिक कारवाई की नब्ज़ मानी जाती हैं, जिला मुख्य केंद्रों को राज्यों की राजधानियों के राष्ट्रीय शाहमार्ग के साथ मिलाती हैं।

प्रश्न 3.
‘सुनहरी चतुर्भुज’ कौन से शहरों को आपस में जोड़ती हैं ?
उत्तर-
‘सुनहरी चतुर्भुज’ भारत के अहमदाबाद, भुवनेश्वर, जयपुर, कानपुर, पुणे, सूरत, नैलूर विजयवाड़ा, गंटूर तथा बंगलुरु इत्यादि शहरों को आपस में जोड़ती हैं।

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प्रश्न 4.
19वीं सदी के अंत तक भारत में कौन-से तीन रेलवे-मार्ग बने हैं ?
उत्तर-
19वीं सदी के अंत तक भारत में कोलकाता, मुंबई तथा चेन्नई तीन प्रमुख नये रेलवे-मार्ग बने हैं।

प्रश्न 5.
कोलकाता कौन-कौन से रेलवे जोनों का मुख्यालय है ?
उत्तर-
कोलकाता पूर्वी रेलवे तथा मैट्रो रेलवे जोनों का मुख्यालय है।

प्रश्न 6.
कैनेडियन पैसेफ़िक रेलवे क्या है ?
उत्तर-
कैनेडियन पैसेफिक रेलवे, पार महाद्वीप रेल मार्ग की एक उदाहरण है जो कि उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में कैनेडा के नागरिकों की सेवा कर रहा है इसका कुछ हिस्सा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी निकलता है। इस मार्ग का निर्माण 1881 में शुरू हुआ था तथा अभी तक विस्तार चल रहा है।

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प्रश्न 7.
डाइमंड चतुर्भुज कौन-से राज्यों को छू पाएगी?
उत्तर-
डाइमंड चतुर्भुज उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों को छू पाएगी।

प्रश्न 8.
दिल्ली आगरा रेल गलियारा से पहचान करवाओ।
उत्तर-
दिल्ली आगरा रेल गलियारा का उद्घाटन 5 अप्रैल, 2016 में हुआ है। दिल्ली से आगरा तक 160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार के साथ आगरा गतिमान ऐक्सप्रैस चलाई गई।

प्रश्न 9.
भारत में आंतरिक जल यातायात कौन-से दरियाओं में होती है ?
उत्तर-
भारत में आंतरिक जल यातायात के अनुकूल दरिया हैं-गंगा, भगीरथी, हुगली, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा, जुयारी, काली, शरावति, नेर्तावति इत्यादि।

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प्रश्न 10.
व्यक्तिगत संचार के साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
व्यक्तिगत संचार के प्रमुख साधन हैं-

  • डाक सेवाएं
  • ई-मेल सेवा
  • फैक्स संदेश
  • टैलीफोन
  • कोरियर सेवा
  • कम्प्यूटर या सैलफोन सेवाएं।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
भारत के उत्तर दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा प्रोजैक्टों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत के उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा प्रोजैक्टों का मुख्य उद्देश्य देश के हर कोने तक बढ़िया सड़क-मार्गों का जाल बिछाने का है। इस योजना की देख-रेख की पूरी ज़िम्मेदारी नैशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अंतर्गत की गई जो कि केंद्रीय सड़क यातायात तथा शाहमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत काम कर रही है। इस प्रकल्प का मुख्य उद्देश्य चार से छः मार्गी, कुल 7300 कि०मी० लंबी सड़क का निर्माण करने से है जो उत्तर से दक्षिण की तरफ श्रीनगर से कन्या कुमारी, पूर्व से पश्चिम की तरफ पोरबंदर से सिलचर तक बनाना था। उत्तर-दक्षिण गलियारा जो कि श्रीनगर से कन्या-कुमारी तक है, इसकी लंबाई 4000 कि०मी० है तथा यह कोची के साथ जुड़ता है। पूर्व-पश्चिम गलियारा जो कि पोरबंदर से सिलचर तक है इसकी लंबाई 3300 किलोमीटर है। यह दोनों सड़क मार्ग गलियारे 17 राज्यों को छूते हैं। जो हैं-जम्मू तथा कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, राजस्थान, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा असम। यहां यह भी है कि उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारे बनाने के लिए सिर्फ राष्ट्रीय शाहमार्ग ही प्रयोग किये जाते हैं। उत्तर प्रदेश का झाँसी प्रदेश वह रेलवे जंक्शन है जहाँ सड़क गलियारे आपस में काटते हैं।

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प्रश्न 2.
सुनहरी चतुर्भुज सड़क मार्ग योजना पर नोट लिखो।
उत्तर-
सुनहरी चतुर्भुज, राष्ट्रीय शाहमार्ग विकास प्रकल्प के अधीन भारत में सम्पूर्ण होने वाली सबसे बड़ी सड़क निर्माण योजना है। इसका प्रबंध भी राष्ट्रीय शाहमार्ग अथॉरिटी के अंतर्गत ही था। यह दुनिया की पांचवीं बड़ी सड़क निर्माण योजना है। यह योजना साल 2001 में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रारंभ की गई जो 2012 में सम्पूर्ण होनी थी। इस प्रकल्प में भारत के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता को आपस में मिसाली सड़क-मार्ग के साथ जोड़े जाने की एक योजना है जो कि रेखा-गणितिक आकृति होने के कारण तथा चतुर्भुज का आकार होने के कारण सुनहरी चतुर्भुज कहलाती है। इस योजना से जुड़े सड़क-मार्ग के साथ कुछ बड़े शहर लगते हैं जैसे बंगलूरु, अहमदाबाद, जयपुर, भुवनेश्वर, कानपुर, पुणे, सूरत, नैलूर, विजयवाड़ा तथा गंटूर। इस सुनहरी चतुर्भुज की लंबाई 5846 कि०मी० है तथा इसके अंतर्गत चार तथा छः मार्गी ऐक्सप्रेस हाईवे बनाए गए हैं। इस चतुर्भुज का शाहमार्ग देश के 13 राज्यों में से निकलता है तथा सबसे अधिक हिस्सा आंध्र प्रदेश में है तथा सबसे कम हिस्सा दिल्ली में पड़ता है।

प्रश्न 3.
भारतीय रेलवे नीति के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ? लिखो ?
उत्तर-
भारतीय रेलवे नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. रेलवे मार्गों की लंबाई बढ़ाना।
  2. गेज का परिवर्तन भाव सौड़ी मीटर गेज को चौड़ी लाइन में बदलता।
  3. रेल मार्ग का बिजलीकरण करना।
  4. रेल प्रबंध की कार्य कुशलता में सुधार करना।
  5. पुराने भाप के इंजनों तथा डीज़ल इंजनों को बदल कर बिजली इंजन प्रयोग में लाने।
  6. सिगनल संचार तकनीक को सुधारना।
  7. मुसाफ़िरों के लिए अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
  8. यात्री किराया में स्थिरता लाना।
  9. ऊंची रफ़्तार की गाड़ियों को चलाना।
  10. रेलवे कार्य के लिए कंप्यूटर प्रयोग में लाना।

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प्रश्न 4.
भारतीय रेलवे जोनों पर नोट लिखो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय रेल प्रबंध को भारतीय रेलवे बोर्ड ने 6 जोनों में विभाजित किया था जो थेउत्तरी खंड, पश्चिमी खंड, पूर्वी खंड, मध्यम खंड, दक्षिणी खंड तथा उत्तर-पूर्वी खंड परंतु बाद में सन् 1958 से 1960 तक तीन अन्य खंड बना दिए गए जिस के साथ रेलवे के कुल 9 जोन बन गए तथा लगभग तीन दहाकों के पश्चात् रेलवे में अब 18 जोन हैं, जो ये हैंक्रम संख्या

रेलवे जोन — मुख्यालय

  1. उत्तरी रेलवे — नई दिल्ली
  2. उत्तर-पूर्वी रेलवे — गोरखपुर
  3. उत्तर-पूर्वी फ्रंटीयर — मालीगाऊ (गुवाहाटी)
  4. पूर्वी रेलवे — कोलकाता
  5. दक्षिणी-पूर्वी रेलवे — बिलासपुर
  6. दक्षिणी-मध्यम रेलवे — सिकंद्राबाद
  7. दक्षिणी रेलवे — चेन्नई
  8. मध्य रेलवे — मुंबई
  9. पश्चिमी रेलवे — मुंबई
  10. दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे — हुँबली
  11. उत्तर-पश्चिमी रेलवे — जयपुर
  12. पश्चिमी-मध्यम रेलवे — जबलपुर
  13. उत्तरी-मध्यम रेलवे  – इलाहाबाद
  14. दक्षिणी-पूर्वी मध्यम रेलवे — बिलासपुर
  15. पूर्वी तटवर्ती — भुवनेश्वर
  16. पूर्वी रेलवे मध्यम रेलवे — हाजीपुर  मध्यम रेलवे
  17. कोंकण रेलवे — नई दिल्ली
  18. मैट्रो रेलवे — कोलकाताइलाहाबाद

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार क्या हो सकते हैं ? भारत की दरामद तथा बरामद पर नोट लिखो।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार-

  • प्राकृतिक साधनों के अस्तित्व में फर्क।
  • मांग तथा पूर्ति में अंतर।
  • तकनीकी विकास में अंतर।
  • जलवायु तथा आर्थिक विकास में अंतर।
  • व्यापारिक देशों की जंग तथा अमन के हालात।
  • व्यापारिक नीतियां तथा देशों के बीच आपसी राजनीतिक संबंध

भारत की दरामद तथा बरामद-भारत में उत्पादन किया गया फालतू सामान बेच दिया जाता है तथा जिसकी आवश्यकता होती है वह सामान खरीद लिया जाता है जो सामान बेचा जाता है उसको बरामद तथा जो सामान खरीदा जाता है उसे दरामद कहते हैं। भारत खनिज ईंधन, खनिज तेल, मोम, जैविक रसायन, फार्मेसी उत्पादन, गेहूं से बनी वस्तुएं, अनाज, बिजली की मशीनरी, कपास से सूती कपड़ा, प्लास्टिक/कहवा, मसाले इत्यादि का बरामद करता है तथा पैट्रोल, खनिज, मशीनरी, खाद्य, लोहा तथा इस्पात, मोती तथा कीमती पत्थर, सोना तथा चांदी, रसायन, दवाइयां फाईबर इत्यादि दरामद की जाती हैं।

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प्रश्न 6.
भारत के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों तथा प्रमुख बंदरगाहों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारत के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे-भारत के प्रमुख हवाई अड्डे निम्नलिखित हैं-
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भारतीय बंदरगाहें-कांडला, पोरबंदर, सूरत, पणजी, मर्मागाओ, मंगलौर, कोची, तूतीकोरन, नागापट्नम, चेन्नई, ईनौर, मछलीपटनम, काकीनाड़ा, विशाखापटनम, पाराद्वीप, हलदिया प्रमुख बंदरगाहें हैं।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार की आपसी तुलना करो।
उत्तर-
व्यक्तिगत संचार –

  1. जब दो व्यक्ति या दो से अधिक व्यक्ति आमने सामने होकर किसी साधन की सहायता के साथ अपनी भावनाओं, विचारों तथा संदेशों को बांटना व्यक्तिगत संचार कहलाता है।
  2. ऐसे संचार में दोनों पक्ष एक दूसरे से परिचित होते हैं।
  3. इसमें कुछ साधनों का प्रयोग किया जाता है जैसे- डाक सेवाएं, ई-मेल, फैक्स, टैलीफोन, कोरियर, कंप्यूटर इत्यादि।

जन संचार-

  1. जब कोई संदेश एक बड़ी गिनती में लोगों के साथ बाँटा जाता है उसको जन संचार कहते हैं।
  2. संचार पक्ष में शामिल लोग एक-दूसरे से परिचित नहीं होते।
  3. जन संचार में कुछ साधन प्रयोग किए जाते हैं जैसे-जनतक ऐलान, रेडियो, टी०वी०, सिनेमा,अख़बार, सैटेलाईट, इंटरनैट संचार इत्यादि।

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प्रश्न 8.
कांडला-बठिंडा पाइप लाइन पर नोट लिखो।
उत्तर-
कांडला-बठिंडा पाइप लाइन ऑयल कार्पोरेशन (IOC) की ओर बठिंडा के तेल शोधक कारखाने को कच्चा तेल पहुँचाने के लिए 1443 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन 2392 करोड़ रुपए खर्च कर बिछाने की योजना बनाई गई थी। इस योजना का पहला चरण जो कांडला से सागानौर तक था। 1996 में पूरा हो गया तथा मई 1996 में सागानोर से पानीपत तथा जून 1996 में पानीपत से बठिंडा तक का चरण पूरा कर दिया गया था। इस प्रकल्प का अगला चरण शुरू कर दिया गया जो कि चल रहा है। यह बठिंडा-जम्मू-श्रीनगर गैस पाइप लाइन बिछाने का है। इस प्रकल्प के पूरा होने से जम्मू तथा कश्मीर को हर समय रसोई गैस की सप्लाई मिल सकेगी। इसलिए यह प्रकल्प जम्मू कश्मीर सूबे के लिए विशेष महत्त्व रखता है।

प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय जल मार्गों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय जल मार्ग-भारत में 10 मार्गों को राष्ट्रीय जल-मार्ग का दर्जा हासिल है। यह हैं-

  1. गंगा, हल्दिया तथा इलाहाबाद के बीच।
  2. ब्रह्मपुत्र, सेतिया तथा युबड़ी के बीच।
  3. पश्चिमी उटी नहर, कोल्लम से कोटापुर्म के बीच।
  4. केरल में चंपाकारा नहर के साथ का क्षेत्र।
  5. केरल में उद्योगमंडल नहर के साथ का क्षेत्र।
  6. ब्रह्मनी नदी तलचर से धर्मरा तक।
  7. काकीनाड़ा से पांडिचेरी तक।
  8. गोदावरी नदी में भदराचलम से राजामुंदरी तक।
  9. कृष्णा नदी में वज़ीरावाद से विजयवाड़ा तक।
  10. लखीमपुर से भंग तक।

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प्रश्न 10.
भारतीय वायु यातायात से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत जैसे बड़े तथा घनी जनसंख्या वाले देश के लिए वायु यातायात का बहुत महत्त्व है। भारत में वायु यातायात का आरंभ 1911 के साल में हुआ जब इलाहाबाद से लेकर नैनी तक, 10 कि०मी० की दूरी के साथ वायु डाक सेवा का प्रयोग किया गया था। इसके बाद कई वायु अड्डे भी बनाये गए तथा फलाईंग क्लब भी बनाए गए जिसके साथ वायु यातायात को प्रोत्साहन मिला। देश की आज़ादी के बाद तथा विभाजन समय (1947) भारत में चार वायु सेवाएं हैं-टाटा सन्ज लिमिटेड, इण्डियन नैशनल एयरवेज़, एयर सर्विसज़ आफ इंडिया तथा डैकन एयरवेज तथा 1951 में चार कंपनियां भारत में वायु सेवाएं लाने के काम में जुट गई। बाद में इन कंपनियों की मलकियत सरकार ने अपने हाथों में ले ली तथा दो कार्पोरेशनें बना दीं। एयर इंडिया जो अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए थी तथा दूसरी इण्डियन एयर लाइन्ज़ घरेलु उड़ानों के लिए थी।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत की अलग-अलग सड़क योजनाओं से पहचान करवाओ।
उत्तर-
किसी भी देश में सड़कों के लिए विशेष स्थान होता है। लोगों तथा समान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए सड़कों का ही प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा सड़क यातायात अन्य यातायात के साधनों से सबसे सस्ता है। सड़क मार्गों का जाल फैलाने के लिए कई सड़क योजनाओं को बनाया गया है। जैसे-

1. नागपुर योजना (Nagpur Plan)-यह योजना भारत में सड़कों के प्रसार के लिए 1943 में बनाई गई थी।
इस योजना के अधीन देश की मुख्य सड़कों तथा आम सड़कों तथा अन्य सड़कों की लंबाई भी बढ़ती गई।

2. बीस वर्षीय योजना (Twenty Year Plan)-इस योजना की शुरुआत 1961 में हुई। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में सड़कों की कुल लंबाई 6 लाख 56 हजार किलोमीटर से बढ़ाकर 10 लाख 60 हज़ार किलोमीटर तक करना था तथा सड़क घनत्व भी प्रति 100 कि०मी० रकबे में 32 कि०मी० करना था। इस योजना को पूरा करने के लिए 20 सालों का समय तय किया गया।

3. ग्रामीण सड़क योजना (The Rural Road Development Plan)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के बीच सड़कों का विकास करके कम-से-कम 1500 व्यक्तियों की तथा इससे अधिक आबादी वाले गाँवों को आपस में सड़क मार्गों के साथ जोड़ना था। यह सड़कें इस तरह बनाई जाती हैं कि मौसमी कठिनाइयों को सहन कर सके।

4. बी०ओ०टी० (निर्माण, उपयोग तथा हवाले करो) (Built, Operate and Transfer Scheme)-इस योजना में प्राइवेट बिल्डरों तथा ठेकेदारों को सड़कों तथा पुलों का निर्माण करने के लिए ठेके दिए गए थे तथा यह सहमति भी दी गई कि यह अपना निर्माण सड़क से जाने वाले वाहनों के चालकों से सीमित किए समय के लिए टोल टैक्स इकट्ठा करना तथा फिर सड़कों को सरकार के हवाले कर देना। यह योजना एक सफल योजना रही तथा देश के कई हिस्सों में इस योजना को सफलता हासिल हुई।

5. केंद्रीय सड़क फंड (Central Road Fund)-इस फंड के साथ संबंधित एक्ट दिसंबर 2000 में लागू किया गया था। इस एक्ट के अनुसार सड़कों का विकास पैट्रोल तथा डीज़ल पर लगे टैक्स तथा कस्टम कर को इकट्ठा करके किया जाएगा।

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प्रश्न 2.
नए राष्ट्रीय शाहमार्ग अंकण योजना पर विस्तार सहित नोट लिखो।
उत्तर-
राष्ट्रीय शाह मार्ग अंकण योजना एक नई अंकण योजना थी। भारत में यह मार्ग प्रबंध भारत सरकार की एजेन्सियों की तरफ से चलाया तथा संभाला गया है। राष्ट्रीय शाह मार्ग की लंबाई जून 2016 तक एक लाख 87 किलोमीटर थी। इनमें लगभग 26,200 किलोमीटर शाहमार्ग 4 मार्ग तथा बाकी 2 मार्ग हैं। केंद्रीय सरकार के तय किए उद्देश्य के मुताबिक सन् 2017 से हर रोज 30 कि०मी० शाह मार्ग विकसित किए जाए तथा नए विकास के लिए लुक तथा कोयले की बजाए सीमेंट का प्रयोग किया जाए। हाल ही में कई सड़क मार्गों को राष्ट्रीय मार्ग घोषित किया गया है। अब बड़े क्षेत्रों तथा शहरों के इधर-उधर बाईपास बनाये जा रहे हैं, ताकि शाह मार्गों पर यातायात का बहाव बिना रोक-टोक के निरंतर चलता रहे। इन शाहमार्ग का विकास तेजी से हो रहा है। 2004 से 2014 के समय में शाह मार्ग में सिर्फ 18,000 कि०मी० की वृद्धि हुई है।

भारतीय सड़क यातायात तथा हाईवेज़ मंत्रालय ने 28 अप्रैल, 2010 को एक नोटीफिकेशन निकाला तथा इसमें राष्ट्रीय शाहमार्ग को नए अंकों का प्रबंध दिया। यह नया नम्बर राष्ट्रीय शाहमार्ग के भौगोलिक क्षेत्र का ज्ञान हमें करवाता है। अब पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ जा रहे सारे शाहमार्ग का क्रम पहचान अंक टांक अंक हैं जिन की शुरुआत उत्तर में हो रही है तथा जैसे-जैसे हम दक्षिण दिशा की ओर जाते हैं क्रम अंक में वृद्धि होनी शुरू हो जाती है तथा जैसे ही विस्तार अंक में वृद्धि होगी, शाहमार्ग पहचान अंक कम होता चला जाएगा, विस्तार अंक के कम होने के साथ पहचान अंक में वृद्धि होगी।

उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय शाहमार्ग नंबर 1 जम्मू कश्मीर में है तथा नंबर 87 तमिलनाडु में है। अब इससे पता चलता है कि उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर जाते शाहमार्ग का क्रम पहचान अंक जिस्त है तथा इसकी शुरुआत पूर्व में होकर पश्चिम की ओर जाते समय बढ़ती है। जैसे ही लंबकार अंक कम होगा तब शाहमार्ग पहचान अंक के वृद्धि होगी तथा लंबकार अंक बढ़ेगा तो शाहमार्ग पहचान अंक कम हो जाएगा। जैसे कि राष्ट्रीय शाहमार्ग नंबर-2 उत्तर-पूर्वी राज्यों में पड़ता है तथा नंबर 68 राजस्थान से गुजरात की ओर जा रहा है।

राष्ट्रीय शाहमार्ग की एक और विशेषता यह है कि प्रमुख राष्ट्रीय शाहमार्गों का पहचान अंक एकहरा, दोहरा होता है परंतु उनमें निकल रहे अगले शाहमार्ग के पहचान अंक तीहरे होते हैं, भाव सैंकड़ों में होते हैं। जहाँ यह भी वर्णन योग्य है कि नई अंकण योजना में सिर्फ पुराने शाहमार्गों के अंक ही नहीं बदले गए, बल्कि मार्गों का सारा प्रबंध दुबारा से किया गया है, जैसे कि राष्ट्रीय शाहमार्ग नंबर 27 जो पोरबंदर से सिलचर तक है तथा पूर्व से पश्चिमी गलियारा है। कितने ही पुराने राष्ट्रीय शाहमार्ग को हर मार्ग आपस में जोड़ रहा है। आज के नये प्रबंध के अनुसार अब देश में 218 राष्ट्रीय शाहमार्ग हैं तथा 78 प्रमुख शाहमार्ग तथा 140 राष्ट्रीय मार्ग है जो शाह राज्यों में ही निकल रहे हैं। इन को ऑफ सूट हाईवेज कहा जाता है। इन ऑफ सूट हाईवेज की पहचान अंक सैंकड़ों में हुआ है तथा अधिक पहचान अंक का ईकाई अंक दिशा निर्धारण करता है, जैसे कि यह इकाई अंक टांक हैं, तो शाहमार्ग में निकला मार्ग भी पूर्व-पश्चिम दिशा में है तथा यह अंक इकाई है, जिस्त हैं तब शाहमार्ग में निकला मार्ग भी उत्तर-दक्षिण दिशा में है।

प्रश्न 3.
पार-महाद्वीपीय रेलवे जालों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
पार-महाद्वीपीय रेलवे मार्ग लंबी दूरी तय करने वाले रेल मार्ग हैं। इन रेल-मार्गों का जाल ऐसा है जो कि महाद्वीप की सारी भूमि को पार करके दूसरे महासागर के साथ लगते महाद्वीप के सिरे तक पहुंच जाता है। पार-महाद्वीप रेल-मार्गों का इतिहास आज से तकरीबन 150 साल पुराना है। संसार की सबसे पहली रेल लाईन 1863 से 1869 के बीच अमेरिका में पसारी गई जो कि यू०एस०ए० में से गुजरती हुई अंध-महासागर के तट पर होती हुई प्रशांत महासागर तक 1776 मील का रास्ता तय करती थी। संसार में और भी कई पार-महाद्वीप रेल मार्गों का निर्माण हुआ है जो कि बहुत बड़ी संख्या में मुसाफिरों तथा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए जाने गए। ट्रांस साइबेरियाई रेल मार्ग मास्को से रूस के पूर्व के तरफ वलादिवोस्तोक तक 9,289 किलोमीटर लंबा है तथा इसका निर्माण 1891 से 1916 तक के समय हुआ था। इस की कई शाखाएं हैं जो मास्को से इस मार्ग की सहायता के साथ चीन, मंगोलिया तथा उत्तरी कोरिया से जोड़ती हैं। इस मार्ग का विस्तार अभी भी चल रहा है।

कैनेडियन पैसेफिक रेल-मार्ग-रेलवे मार्ग की यह एक बहुत अच्छी उदाहरण हैं। यह रेल मार्ग कनाडा में पूर्वी भाग में हैलीफैक्स से चलकर पश्चिमी में बैन्कूवर तक पहुंचता है। यह रेल मार्ग दुर्ग पर्वत क्षेत्रों में से गुजरता है। इस रेल मार्ग से लकड़ी, खनिज पदार्थ, गेहूँ व लोहे का परिवहन होता है। इस मार्ग का निर्माण 1881 में शुरू किया गया तथा अभी तक इसका विस्तार हो रहा है।

पार ऑस्ट्रेलिया रेलवे मार्ग-यह रेलवे मार्ग पोर्ट ओगस्ता से लेकर कालगुरली तक फैला है। इसका काम 1917 में पूरा हो गया था यह रेल-मार्ग ऑस्ट्रेलिया के पूर्व से पश्चिमी सिरो को आपस में मिलाता है। ब्रिसबेन से बारस्ता सिडनी-मैलबोरन-ऐडिलेड इस मार्ग पथ तक पहुँचता है। इसके निर्माण के समय से ही इसमें तीन गेजों का उपयोग किया गया था जिस कारण इसकी शुरुआत तक का सफर सच हो गया। बाद में 1970 के साल में इसको एक रेलवे गेज में बदला गया। आज के समय सिडनी पथ के बीच वाले रेलवे मार्ग को इण्डिन पैसेफिक रूट कहते हैं।

पनामा कैनाल रेलवे-यह रेलवे मार्ग पनामा नहर के समांतर चलता है तथा मध्य अमेरिका में अंध महासागर के तट से प्रशांत महासागर के तट तक चली जाती है जो कि 77 कि०मी० तक लंबी है। अंध महासागर के शहर कोलेन से प्रशांत महासागर के शहर बल्लबरा तक का रेलवे मार्ग ज्यादा लंबा तो नहीं परंतु यह मार्ग विश्व के बड़े महासागरों को मिलाता है जिस कारण इसका महत्त्व काफी बढ़ गया है। यह रेल मार्ग मुसाफिरों तथा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाता है।

दक्षिणी अमेरिका में पार इण्डियन तथा पार ऐमेजीयन रेलवे प्रकल्प हैं। अफ्रीकन यूनियन ऑफ रेलवेज़ भी अफ्रीका में पार-महाद्वीपी रेल प्रकल्प बनाने की योजना बना रहे हैं।

भारत का रेलवे नैटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा नैटवर्क है, जो कि हर रोज 1 करोड़ 80 लाख यात्रियों को तथा 20 लाख टन माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है। ऐसा विस्तृत रेल प्रबंध ही भारतीय रेलवे कहलाता हैं।

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प्रश्न 4.
देश की तेज रफ़्तार शाही गाड़ियों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
रेल के द्वारा सफर बाकी यातायात के साधनों से सस्ता तथा अधिक आरामदायक होता है। भारत में रेल मार्गों का महत्त्व बढ़ रहा है क्योंकि देश में सफर को आसान बनाने के लिए तेज़ रफ़्तार गाड़ियों को चलाया जा रहा है। ताकि समय की बचत की जा सके। सरकार इस तरफ काफी मेहनत कर रही है देश में पहले ही कुछ तेज़ रफ़्तार गाड़ियां हैं। जिनमें से मुख्य हैं

  1. नयी दिल्ली-आगरा गतिमान ऐक्सप्रैस, रफ़्तार 160 कि०मी०/घंटा।
  2. नयी दिल्ली-भोपाल शताब्दी एक्सप्रैस, इसकी रफ़्तार 91 कि०मी०/घंटा है।
  3. मुंबई-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस, इसकी रफ़्तार 90.46 कि०मी०/घंटा है।
  4. सियालदा-नई दिल्ली दुरंतो एक्सप्रैस, इसकी रफ्तार 91.0 कि०मी० प्रति घंटा है।
  5. नयी दिल्ली-कानपुर शताब्दी एक्सप्रैस, इसकी रफ़्तार 89.63 कि०मी०/घंटा है ।
  6. नयी दिल्ली-हावड़ा, दुरांतो एक्सप्रैस, इसकी रफ़्तार 88.21 कि०मी०/घंटा है।
  7. नयी दिल्ली-हावड़ा, दुरांतो ऐक्सप्रैस, इसकी रफ्तार 87.06 कि०मी०/घंटा है।
  8. नयी दिल्ली-इलाहाबाद, दुरांतो ऐक्सप्रैस, इसकी रफ़्तार 86.85 कि०मी०/घंटा है।
  9. सियालदा-नयी दिल्ली राजधानी ऐकस्प्रेस, इसकी रफ़्तार 87.06 कि०मी०/घंटा है।
  10. निजामुद्दीन-बांद्रा गरीब रथ, इसकी रफ्तार 82.80 कि०मी० प्रति घंटा।

तेज़ रेल गाड़ियों के अलग देश में रेल गाड़ी की एक और सहूलियत भी है जिसमें सफर शाही सुविधाओं से लैस होता है। इनको लग्ज़री गाड़ियां कहते हैं। इनका प्रबंध इण्डियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटड (IRCTC) द्वारा किया गया। कुछ शाही गाड़ियों की सूची निम्नलिखित है-

I. महाराजा ऐक्सप्रैस-यह ऐक्सप्रैस देश के सैलानी महत्त्व रखने वाले स्थानों की शाही सैर करवाती है।
II. पैलेस ऑन वहील्ज़-यह ऐक्सप्रैस राजस्थान के सबसे बढ़िया सैलानी स्थानों की शाही सैर करवाती है।
III. द डैकन उड़ीसी-यह ऐक्सप्रैस शाही ढंग से दक्षिणी भारत की सैर करवाती है।
IV. रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स-यह हमें भारत की संस्कृति की शाही यात्रा करवाती है।
V. रॉयल ओरिएंट ट्रेन-यह रेलवे हमें मध्य भारत की शाही सैर करवाती है।
VI. गोल्डन चैरीयट- यह रेल हमें महाराष्ट्र तथा गुजरात की शाही सैर करवाती है।
VII. फैरी कुईन ऐक्सप्रैस-यह हमें राजस्थान तथा अलवर तथा सरिसका की यात्रा करवाती है।

प्रश्न 5.
संसार के प्रमुख समुद्री मार्गों पर नोट लिखो।
उत्तर-
संसार में व्यापार का एक बड़ा हिस्सा समुद्री मार्गों के द्वारा किया जाता है। समुद्री जहाजों की सहायता से भारी तथा आवश्यक चीज़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। यह स्थान बदली का एक सस्ता ढंग है। संसार में व्यापार अलग-अलग समुद्री मार्गों द्वारा किया जाता है तथा व्यापार के लिए छोटे मार्ग को चुना जाता है। संसार के प्रसिद्ध समुद्री मार्ग निम्नलिखित हैं-

1. उत्तरी अंध-महासागरीय मार्ग (North Atlantic Route)- यह समुद्री मार्ग विश्व में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है तथा इसके द्वारा ही संसार का आधे से ज्यादा समुद्री व्यापार हो रहा है। इस क्षेत्र की मुख्य व्यापारिक बंदरगाहें हैं-रॉटरडैम, एंटवर्प, लंडन, बोस्टन, न्यूयॉर्क, फिलाडेल्फिया हैं।

2. केप ऑफ़ गुड होप (Cape of Good Hope)-यह समुद्री मार्ग अमेरिका महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से से लेकर आशा अंतरीप हिस्से के आस-पास घूमता है।

3. भू-मध्य सागरीय स्वेज़ ऐशियाई मार्ग (The Mediterranean-SuejAsiatic Route)—यह मार्ग ऐशियाई तथा यूरोपीय देश को स्वेज़ नहर की सहायता से आपस में जोड़ता है।

4. पनामा नहर मार्ग (Panama Canal Route)-यह मार्ग अंध-महासागर तथा प्रशांत महासागर को आपस में मिलाता है तथा प्रशांत महासागर द्वार कहलाता है।

5. दक्षिणी अंध महासागरीय मार्ग (South Atlantic Route)-यूरोप के पश्चिमी देशों को अंध महासागर के रास्ते की सहायता के साथ दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी उटी क्षेत्रों से मिलाकर व्यापार का मौका दिया जाता है।

6. पार प्रशांत-मार्ग (The Transpacific Route)-इस मार्ग का मुख्य केंद्र हवाई टापू में स्थित है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

Geography Guide for Class 12 PSEB परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारत में सबसे लंबा राष्ट्रीय महामार्ग कौन-सा है ?
(A) NH
(B) NHS
(C) NH
(D) NHA
उत्तर-
(C) NH

प्रश्न 2.
संसार में सबसे लंबा रेलमार्ग कौन-सा है ?
(A) यूनियन पैसिफ़िक
(B) कैनेडियन नैशनल
(C) ट्रांस साइबेरियन
(D) ट्रांस इण्डियन।
उत्तर-
(C) ट्रांस साइबेरियन

प्रश्न 3.
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग के पूर्वी छोर पर स्थित स्टेशन है ?
(A) हनोई
(B) शंघाई
(C) टोकियो
(D) ब्लाडी वास्टेक।
उत्तर-
(D) ब्लाडी वास्टेक।

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प्रश्न 4.
भारतीय रेलवे सिस्टम को कितने रेलवे जोन में विभाजित किया है ?
(A) 9
(B) 16
(C) 14
(D) 12.
उत्तर-
(B) 16

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सी स्थल मार्ग यातायात की किस्म नहीं है :
(A) सड़कें
(B) रेलें
(C) पाइप लाइनें
(D) हवाई अड्डा।
उत्तर-
(C) पाइप लाइनें

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय मार्गों का निर्माण तथा देखभाल कौन करता है ?
(A) केंद्र सरकार
(B) ज़िला सरकार
(C) बी०ओ०टी०
(D) NHAY.
उत्तर-
(A) केंद्र सरकार

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प्रश्न 7.
यमुना एक्सप्रेस हाईवे किस के हवाले है ?
(A) नोएडा तथा आगरा
(B) आगरा तथा दिल्ली
(C) दिल्ली तथा हिमाचल
(D) दिल्ली तथा पंजाब।
उत्तर-
(A) नोएडा तथा आगरा

प्रश्न 8.
सुनहरी चतुर्भुज सड़क मार्ग प्रकल्प में निम्नलिखित महानगरी में किसको शामिल नहीं किया जाता ?
(A) दिल्ली
(B) मुंबई
(C) अहमदाबाद
(D) चेन्नई।
उत्तर-
(C) अहमदाबाद

प्रश्न 9.
भारत सरकार के सड़क यातायात मंत्रालय के 28 अप्रैल, 2010 के नोटिफिकेशन में राष्ट्रीय शाहमार्ग को क्या प्रदान किया गया ?
(A) नई सड़कें
(B) नए अंक
(C) नए मार्ग
(D) सड़कों की मुरम्मत।
उत्तर-
(B) नए अंक

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प्रश्न 10.
देश में पहली रेल यात्रा मुंबई से थाने तक की गई :
(A) 1853
(B) 1854
(C) 1865
(D) 1868.
उत्तर-
(A) 1853

प्रश्न 11.
दूसरी रेलवे लाइन जो कोलकाता से रानीगंज तक थी यह कब बिछाई गई ?
(A) 1853
(B) 1854
(C) 1870
(D) 1865.
उत्तर-
(B) 1854

प्रश्न 12.
1950-51 के अंत तक रेलवे लाइनों की लंबाई कितनी थी ?
(A) 53,596 कि०मी०
(B) 53,000 कि०मी०
(C) 58,000 कि०मी०
(D) 60,000 कि०मी० ।
उत्तर-
(A) 53,596 कि०मी०

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प्रश्न 13.
उत्तर पूर्वी रेलवे जोन का मुख्यालय कहां पर है ?
(A) गोरखपुर
(B) दिल्ली
(C) आगरा
(D) कोलकाता।
उत्तर-
(A) गोरखपुर

प्रश्न 14.
संसार की पहली रेलवे अमेरिका में कब बिछाई गई ?
(A) 1863 से 1869
(B) 1865-66
(C) 1870-75
(D) 1870-71.
उत्तर-
(A) 1863 से 1869

प्रश्न 15.
मध्य अमेरिका में कौन-सी नहर अंध-महासागर के तट तक जाती है ?
(A) पिली का
(B) पनामा
(C) राईन
(D) वूलर।
उत्तर-
(B) पनामा

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प्रश्न 16.
साल 2014 के बजट अनुसार देश में कितने अर्ध तेज रेल गलियारे स्थापित किये जाते थे ?
(A) 9
(B) 10
(C) 6
(D) 5.
उत्तर-
(A) 9

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन-सी लग्ज़री गाड़ी की उदाहरण नहीं है ?
(A) महाराजा ऐक्सप्रैस
(B) हावड़ा दुरांतो ऐक्सप्रेस
(C) पैलेस ऑन वहीक्लज़
(D) गोल्डन चैरीअट।
उत्तर-
(B) हावड़ा दुरांतो ऐक्सप्रेस

प्रश्न 18.
भारत में हवाई यातायात का प्रारंभ किस साल में हुआ ?
(A) 1910
(B) 1911
(C) 1921
(D) 1922.
उत्तर-
(B) 1911

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प्रश्न 19.
संचार की प्रमुख कितनी किस्में हैं ?
(A) 2
(B) 1
(C) 3
(D) 4.
उत्तर-
(A) 2

प्रश्न 20.
भारत निम्नलिखित में कौन-सी चीज़ों की दरामद नहीं करता ?
(A) पैट्रोल
(B) खनिज
(C) लोहा तथा इस्पात
(D) गेहूँ।
उत्तर-
(D) गेहूँ।

B. खाली स्थान भरें :

1. यातायात सुविधाओं को मुख्य रूप में …………. भागों में बांटा जाता है।
2. नागपुर योजना ………………… के साल में बनाई गई।
3. देश में यातायात का बहाव संभव बनाने के लिए . ……………. नाम से शाह मार्ग का निर्माण किया गया।
4. सन् 1871 तक तीन प्रमुख शहरों कोलकाता, ………………….. तथा …………………. रेल तंत्र द्वारा आपस में जोड़े गए।
5. भारतीय रेल तीन गेज चौड़ी, सौड़ी तथा ……………… गेज में बांटी जाती हैं।
6. एशिया तथा यूरोप के देशों को .. ……………. नहर की सहायता के साथ आपस में मिलाया गया।
उत्तर-

  1. तीन,
  2. 1943,
  3. एक्सप्रेस हाईवेज,
  4. मुंबई, चेन्नई,
  5. मीटर,
  6. स्वेज।

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C. निम्नलिखित कथन सही (√) हैं या गलत (x):

1. बीस वर्षीय योजना 1961 में आरंभ की गई।
2. पूर्व पश्चिमी गलियारा राजस्थान से पोरबंदर तक है।
3. सुनहरी चतुर्भुज दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी सड़क योजना है।
4. देश में रेल-तंत्र विकसित करने का एक उद्देश्य था सिगनल संचार तकनीक में सुधार करना।
5. गोल्डन चैरीअट महाराष्ट्र और गुजरात की शाही सैर करवाती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. सही।

II. एक शब्द /एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
ट्रशरी व्यवसाय क्या है ?
उत्तर-
जो सेवाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
परिवहन साधनों के तीन प्रकार बताएं।
उत्तर-
जल-मार्ग, थल मार्ग, हवाई-मार्ग।

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प्रश्न 3.
भारतीय सड़क मार्ग की लंबाई बताओ।
उत्तर-
18 लाख कि०मी०।

प्रश्न 4.
स्वर्ण चतुर्भुज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय मार्गों का जाल जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता को जोड़ता है।

प्रश्न 5.
ट्रांस साईबेरियन रेलमार्ग कौन-से स्थानों को जोड़ता है ?
उत्तर-
वलादिवोस्तक और सेंट पीटरसबर्ग।

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प्रश्न 6.
संसार में सबसे लंबा रेलमार्ग कौन-सा है ?
उत्तर-
ट्रांस साईबेरियन रेलमार्ग 8800 कि०मी० लंबा है।

प्रश्न 7.
भारत में रेलमार्गों की कुल लंबाई बताओ।
उत्तर-
63000 कि०मी०।

प्रश्न 8.
संसार के दो अंदरूनी जलमार्गों के नाम बताओ।
उत्तर-
राइन नदी और महान झीलें।

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प्रश्न 9.
अंध-महासागर पर दो बंदरगाहें बताओ।
उत्तर-
लंदन और न्यूयार्क।

प्रश्न 10.
स्वेज नहर किन सागरों को जोड़ती है ?
उत्तर-
लाल सागर और रूम सागर।

प्रश्न 11.
पनामा नहर किन सागरों को जोड़ती है ?
उत्तर-
अंध महासागर और प्रशांत महासागर।

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प्रश्न 12.
भारत के पश्चिमी तट पर दो बंदरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
कांडला और मुंबई।

प्रश्न 13.
थल-मार्ग के यातायात प्रबंध की तीन किस्में बताओ।
उत्तर-
सड़कें, पाइप लाइन और रेल।

प्रश्न 14.
पहली रेल यात्रा कब और कहाँ तक की गई ?
उत्तर-
1853 में मुंबई से थाने तक।

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प्रश्न 15.
लग्ज़री गाड़ियों का प्रबंध किसके अधीन है ?
उत्तर-
भारतीय रेलवे कैटरिंग और टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय यातायात नीति कमेटी के अनुसार कितने जल मार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग ऐलान किया गया ?
उत्तर-
10 जल मार्गों को।

प्रश्न 17.
ऐयरपोर्ट्स अथारिटी ऑफ इण्डिया की ओर से दी जाने वाली जानकारी/सूचना के अनुसार कितने अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू हवाई अड्डे हैं ?
उत्तर-
30 अंतर्राष्ट्रीय और 400 घरेलू हवाई अड्डे हैं।

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प्रश्न 18.
संसार में सबसे लंबी कच्चे तेल की पाइप लाइन कहाँ बिछाई गई ?
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका में।

प्रश्न 19.
TAPI पाइप लाइन किस ओर से विकसित की गई ?
उत्तर-
एशियाई विकास बैंक।

प्रश्न 20.
संचार की मुख्य किस्में बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत और जन-संचार।

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प्रश्न 21.
व्यापार से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
वस्तुओं और सेवाओं की खरीदो-फरोख्त की क्रिया को व्यापार कहा जाता है।

प्रश्न 22.
भारत की ओर से बरामद की जाने वाली वस्तुओं के नाम बताओ।
उत्तर-
खनिज तेल, मोम, ईंधन, जैविक रसायन, फार्मेसी, उत्पादन, कनक/गेहूँ से बनी वस्तुएँ।

प्रश्न 23.
भारत की मुख्य चार बंदरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
मैंगलोर, कोची, सूरत, पणजी।

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प्रश्न 24.
आलमी व्यापार संगठन क्या है ?
उत्तर-
यह एक अंतर-सरकारी संस्था है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को क्रमबद्ध करती है और अलग-अलग देशों के मध्य व्यापारिक नियमावली निश्चित करती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
यातायात सविधाओं को कौन-से वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
यातायात सुविधाओं को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. स्थल मार्ग यातायात
  2. जल मार्ग यातायात
  3. वायु मार्ग यातायात।

प्रश्न 2.
यातायात के साधन कौन-से ज़रूरी तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
यातायात के साधन के विकास में कई तत्त्वों का योगदान रहता है। यातायात मार्ग का निर्धारण आवश्यक है। वाहन तथा ऊर्जा के साधन परिवहन मार्गों पर प्रभाव डालते हैं। स्थल आकृति, मौसम परिवहन साधनों को प्रभावित करते हैं। आर्थिक विकास में कच्चे माल की प्राप्ति परिवहन के लिए आवश्यक तत्त्व है।

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प्रश्न 3.
अंतर-महाद्वीपी रेल-मार्ग किसे कहते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर-
अंतर महाद्वीपीय रेल-मार्ग उन रेल मार्गों को कहते हैं जो महाद्वीप के एक किनारे को दूसरे किनारे से जोड़ते हैं। यह रेल-मार्ग महाद्वीप के उल्ट तटों पर स्थित स्थानों को जोड़ते हैं। ट्रांस साइबेरियाई रेल-मार्ग तथा ट्रांस कैनेडियन रेल मार्ग इसकी दो उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
रेलमार्ग किन हिस्सों में बनाये जाते हैं ?
उत्तर-

  • रेलमार्ग हमेशा मैदानी समतल हिस्सों में बनाये जाते हैं।
  • रेल मार्ग हमेशा घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों तथा आर्थिक रूप में विकसित प्रदेशों में बनाये जाते हैं।
  • बंदरगाहों को देश के आंतरिक हिस्सों से जोड़ने के लिए रेलमार्गों का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न 5.
भारत के सीमावर्ती सड़क मार्ग बताओ।
उत्तर-
भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में सड़कों का निर्माण करने के लिए सीमा सड़क बोर्ड की सन् 1960 में स्थापना की गई। भारत में सीमा निकट प्रदेशों में 27,000 कि०मी० लंबी पक्की सड़कें बनाई गई हैं। जिन में मनाली से लेह तक मुख्य सड़क है। इस सड़क की औसत ऊंचाई 4270 मीटर है।

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प्रश्न 6.
संसार के मुख्य समुद्री मार्गों का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
यातायात के साधनों में समुद्री यातायात सबसे सस्ता तथा महत्त्वपूर्ण साधन है। संसार का अधिकतर व्यापार समुद्री मार्ग के द्वारा होता है। जब बहुत सारे जहाज एक निश्चित मार्गों पर चलते हैं, तब उसे समुद्री मार्ग कहते हैं।

प्रश्न 7.
भारतीय रेल-मार्गों की अलग-अलग आकार की पटरियां बताओ।
उत्तर-
भारत में रेल मार्ग तीन तरह के हैं:

  1. चौड़ी पटरी (Broad Gauge)-1.68 मीटर चौड़ी।
  2. छोटी पटरी (Metre Gauge)-1 मीटर चौड़ाई।
  3. तंग पटरी (Narrow Gauge)-0.68 मीटर चौड़ाई।

प्रश्न 8.
पनामा नहर की महत्ता बताओ।
उत्तर-
इस नहर के निर्माण के साथ अंध-महासागर के मध्य दूरी कम हो गई है। इससे पहले जहाज़ दक्षिणी अमेरिका के केप हारन का चक्कर ला कर जाते हैं। इस नहर से सबसे अधिक लाभ संयुक्त राज्य अमेरिका को हुआ है। इसके पश्चिमी तथा पूर्वी तटों के मध्य दूरी कम हो गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वीतट से आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अमेरिका, जापान की बंदरगाहों की दूरी कम हो गई है। इस नहर द्वारा यूरोप को कोई विशेष लाभ नहीं है।

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प्रश्न 9.
HBJ गैस पाइप लाइन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में गैस परिवहन के लिए हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइप लाइन बनाई गई है। यह पाइप लाइन 1700 किलोमीटर लंबी है। यह पाइप लाइन गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश राज्यों से गुजरती है। इस गैस के साथ विजयपुर, सवाई माधोपुर, जगदीशपुर, शाहजहांपुर, अंबाला तथा बबराला में खाद बनाने की योजना है।

प्रश्न 10.
व्यक्तिगत संचार से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब दो या दो से ज्यादा व्यक्ति आमने-सामने होकर या किसी साधन का उपयोग करके कोई जानकारी, विचार संदेश आपस में आदान-प्रदान करें उसे व्यक्तिगत संचार कहते हैं। ऐसे संचार के साधनों में व्यक्ति आपस में एक-दूसरे से पहचान करवाते हैं। मुख्य साधन हैं-डाक सेवाएं, टैलीफोन, ई-मेल इत्यादि।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय व्यापार के कोई चार आधार लिखो।
उत्तर-
राष्ट्रीय व्यापार के आधार निम्नलिखित हैं-

  • मांग तथा पूर्ति में अंतर।
  • प्राकृतिक साधनों के अस्तित्व में अंतर।
  • माल के मूल्यों में अंतर।
  • व्यापारिक नीतियां।

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प्रश्न 12.
आलमी व्यापार संगठन (World Trade Organization) क्या हैं ?
उत्तर-
आलमी व्यापार संगठन पहली बार जनवरी, 1995 को मराकेश समझौते द्वारा अस्तित्व में आया। जिस में संसार के 123 देशों ने हस्ताक्षर किए तथा शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता (General Agreement on Tarrifism and Trade) का अंत कर दिया। इस संगठन का मुख्य दफ्तर जनेवा में है। खासकर व्यापारिक मसलों का समाधान तथा नियमों को लागू इस द्वारा ही किया जाता है। यह संगठन आलमी व्यापार स्तर को सुधार से राष्ट्रीय व्यापार को ज्यादा महत्त्वपूर्ण बना रहा है।

प्रश्न 13.
NNB पाइप लाइन का वर्णन करो।
उत्तर-
NNB नाहरकटिया नानूमती बरोनी पाइप लाइन देश की पहली पाइप लाइन है जो कि नाहरकटिया के तेल के कुओं से नानूमती तक कच्चा तेल पहुँचाने के लिए बिछाई गई थी तथा बाद में यह पाइप लाइन बरोनी तक बढ़ा दी गई। इसकी लंबाई 1167 कि०मी० है तथा अब इसको उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर तक बढ़ा दिया गया है। इस NNB पाइप लाइन का काम 1962 तक शुरू हो गया था जब तक कि बरोनी तक का भाग 1964 में शुरू किया गया।

प्रश्न 14.
उत्तरी अंध महासागरी मार्ग पर नोट लिखो।
उत्तर-
यह संसार के प्रमुख समुद्री मार्गों में एक है। यह जल-मार्ग संसार का सबसे अधिक उपयोग में आने वाला जल मार्ग है। इस जल मार्ग के द्वारा आधे से अधिक समुद्री व्यापार किया जा रहा है। उत्तरी अंध महासागर मार्ग की प्रमुख बंदरगाहें हैं-रॉटरडैम, फिलाडेल्फिया, ऐंटवर्प, लंदन, न्यूयॉर्क, बोस्टन इत्यादि हैं।

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प्रश्न 15.
जल-मार्गी यातायात को कौन-से दो भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
जल मार्गी यातायात को मुख्य रूप में दो भागों में विभाजित किया जाता है :

  1. आंतरिक जल मार्ग
  2. समुद्री जल मार्ग।

प्रश्न 16.
सड़क मार्गों का जाल बिछाने के लिए कौन-सी योजनाएं देश में चल रही हैं ?
उत्तर-
सड़क मार्गों का जाल बिछाने के लिए मुख्य योजनाएं हैं :

  • नागपुर योजना
  • बीस वर्षीय योजना
  • ग्रामीण सड़क योजना
  • बी०ओ०टी०
  • केंद्रीय सड़क फंड।

प्रश्न 17.
सड़क यातायात आसान क्यों है ?
उत्तर-
स्थल यातायात का मुख्य साधन सड़कें हैं। यह एक सस्ता तथा तेज़ यातायात का साधन है। सड़कें खेतों को फैक्ट्रियों के साथ तथा वस्तुओं को विक्रेताओं तथा खरीददारों तक पहुँचाने का एक साधन है। सड़कें असमतल तथा ऊँचे-नीचे स्थानों पर भी बनाई जा सकती हैं। घनी यूरोपीय सड़कें उन देशों के विकास का एक मुख्य साधन हैं।

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प्रश्न 18.
पनामा नहर की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
पनामा नहर-

  1. यह पनामा के स्थान पर स्थित है तथा U.S.A. का इस पर अधिकार है।
  2. इस नहर से निकलने वाले जहाजों पर टैक्स कम लगाया जाता है।
  3. इसके कारण अंध महासागर तथा प्रशांत महासागर के बीच दूरी कम हो गई।
  4. यह नहर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि इस कारण अब जहाजों को केप होरन तक नहीं जाना पड़ता।

प्रश्न 19.
सड़क मार्गों के क्या दोष हैं ?
उत्तर-

  1. सड़क मार्ग महंगे हैं।
  2. इनसे वायु प्रदूषण होता है।
  3. अधिक दूरी तक भारी वस्तुओं का परिवहन नहीं होता।
  4. दुर्घटनाएं प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
परिवहन के विभिन्न साधनों के प्रकार बताओ।
उत्तर-
परिवहन के विभिन्न साधनों के प्रकार हैं-

  1. स्थल परिवहन
  2. जल परिवहन
  3. वायु परिवहन।

स्थल परिवहन में सड़कें, रेलें तथा पाइप लाइनें शामिल हैं। जल परिवहन के मुख्य रूप हैं-

  1. आंतरिक मार्ग
  2. समुद्री मार्ग।

वायु परिवहन में वायुयान सेवाएं गिनी जाती हैं।

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प्रश्न 2.
ग्रामीण सड़कें तथा ज़िला सड़कों में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर-
ग्रामीण सड़कें-

  1. यह सड़कें गाँव को जिले से जोड़ती हैं।
  2. ग्रामीण सड़कें अकसर समतल तथा स्थाई नहीं होती।
  3. इन सड़कों में काफी मोड़ आते हैं जिन पर भारी वाहन नहीं चल सकते।

जिला सड़कें-

  1. यह सड़कें कस्बे, बड़े गांवों तथा जिला केंद्रों को आपस में जोड़ती हैं।
  2. यह सड़कें अकसर स्थाई होती हैं।
  3. यहां पर मोड़ ज्यादा नहीं होते तथा अक्सर भारी वाहन चलते हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय सड़कों की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारतीय सड़कों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • भारत में पक्की सड़कों की लंबाई 8 लाख 88 हजार कि०मी० है।
  • भारत में कच्ची सड़कों की लंबाई 9 लाख 55 हजार कि०मी० है।
  • भारत में हर 100 वर्ग किलोमीटर के पीछे 48 किलोमीटर सड़कें हैं जहां पर हर एक लाख लोगों के पीछे 293 किलोमीटर सड़कें हैं।
  • देश में राष्ट्रीय राज मार्गों की लंबाई 313558 किलोमीटर है।
  • इन सड़कों पर लगभग 37 लाख मोटर गाड़ियां चलती हैं।
  • भारतीय सड़कों को हर साल ₹ 1580 करोड़ की आमदन होती है।
  • भारत का 30% सामान सड़कों के द्वारा परिवहन किया जाता है।

प्रश्न 4.
रेल मार्गों के विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
स्थलीय परिवहन में रेल-मार्ग एक महत्त्वपूर्ण साधन है। आधुनिक युग में देश में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से रेलों का बड़ा महत्त्व है।
महत्त्व-

  1. रेल-मार्ग किसी क्षेत्र के खनिज पदार्थों के विकास में सहायता करते हैं।
  2. रेल मार्ग औद्योगिक क्षेत्र में कच्चे माल तथा तैयार माल के वितरण में सहायता करते हैं।
  3. रेल मार्ग व्यापार को उन्नत करते हैं।
  4. रेल मार्ग राजनीतिक एकता व स्थिरता लाने में योगदान देते हैं।
  5. रेल मार्ग संकट काल में सहायता कार्यों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  6. कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में रेलमार्ग-जनसंख्या वृद्धि का आधार बनते हैं।
  7. लंबी-लंबी दूरियों को जोड़ने में रेलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में रेल मार्गों के विकास में मानव ने दूरी और समय पर विजय प्राप्त कर ली है।

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प्रश्न 5.
आंतरिक जल मार्गों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
जल मार्ग दो प्रकार के हैं-आंतरिक तथा महासागरी मार्ग। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए समुद्री मार्गों का प्रयोग किया जाता है। किसी देश के प्रादेशिक व्यापार के लिए नदियां, नहरें, झीलों का आंतरिक जलमार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है। __मनुष्य प्राचीन काल से ही नदियों तथा नहरों का यातायात के लिए प्रयोग करता आया है। आजकल विकसित देशों में आंतरिक जल मार्गों को बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। कृषि तथा उद्योगों के विकास में आंतरिक जल मार्ग महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 6.
गोल्डन कुआर्डीलेटरल या सुनहरी चतुर्भुज से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
गोल्डन कुआर्डीलेटर भारत में बनाई गई पहली सड़क निर्माण योजना है जो कि राष्ट्रीय शाहमार्ग विकास प्रकल्प के तहत शुरू की गई। इसको संसार की पाँचवीं बड़ी सड़क निर्माण योजना का दर्जा हासिल है। इस प्रकल्प में भारत के चार प्रसिद्ध महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता को आपस में मिलाये जाने की योजना है जोकि एक चतुर्भुज की आकृति लेती है जिस के कारण इसको सुनहरी चतुर्भुज भी कहते हैं। इस सड़क योजना से जुड़े बड़े शहर हैं-अहमदाबाद, बैंगलोर, भुवनेश्वर, जयपुर, कानपुर, पुणे, सूरत, नैलूर, विजयवाड़ा तथा गंटूर। इस चतुर्भुज की कुल लंबाई 5846 किलोमीटर है तथा इसके अधीन चार तथा छः मार्गी ऐक्सप्रेस हाईवे निर्मित किए गए हैं। इस योजना का शाहमार्ग देश 13 राज्यों में से गुजरता है तथा इन 13 राज्यों में आन्ध्र प्रदेश में सबसे अधिक तथा दिल्ली में सबसे कम भाग पड़ता है। इस प्रकल्प के कारण औद्योगिक व्यापार को प्रोत्साहन मिला है।

प्रश्न 7.
डाइमंड कुआर्डिलेटरल का वर्णन करो।
उत्तर-
डाइमंड कुआर्डिलेटरल भारत के प्रसिद्ध महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई) को आपस में तेज रफ़्तार से चलने वाली रेल गाड़ियों के साथ जोड़ने की योजना को कहते हैं। यह सड़क योजना सुनहरी चतुर्भुज जैसी ही है। देश के रेल तंत्र को आरामदायक बनाने तथा इसमें सुधार लाने के लिए तेज रफ्तार रेल गाड़ियों तथा बुलेट ट्रेन जैसी गाड़ियों को चलाया गया जिस प्रकल्प में यह रेल गाड़ियां चलाई गई, उसको डायमंड कुआर्डीलेटरल प्रकल्प कहते हैं। इस रेल मार्ग द्वारा कई बड़े शहर आपस में जुड़ गए जैसे-उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड तथा पश्चिमी बंगाल इत्यादि राज्यों में से गुजरते हैं। यहाँ बिजली की सुविधा भी है क्योंकि यह मार्ग चौड़ी गेज वाले हैं। इन रेलों की रफ्तार 250 किलोमीटर प्रति घंटा की होगी जब कि रेल गाड़ियों 320 कि०मी० प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ेगी।

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प्रश्न 8.
समुद्री मार्गों की महत्ता बताओ।
उत्तर-
यातायात के साधनों में समुद्री यातायात सबसे सस्ता तथा महत्त्वपूर्ण साधन है। विश्व का ज्यादातर व्यापार समुद्री मार्गों द्वारा होता है। जब बहुत सारे जहाज़ एक निश्चित मार्ग से चलते हैं तब उसे समुद्री मार्ग कहते हैं।

समुद्री मार्गों की महत्ता (Importance of Ocean Routes)-

  • यह सबसे सस्ता यातायात का साधन है।
  • यह प्राकृतिक मार्ग है। समुद्र में मार्ग बनाने में कुछ खर्च नहीं होता।
  • जहाजों को चलाने के लिए कोयला या पैट्रोल कम खर्च होता है।
  • समुद्री मार्ग असल में अंतर्राष्ट्रीय मार्ग हैं, क्योंकि सारे महासागर एक-दूसरे से मिले हैं।
  • ‘इन मार्गों पर जहाजों की कम दुर्घटना होती है।
  • इन मार्गों द्वारा दूर-दूर के देशों के आपसी सम्पर्क बढ़े हैं।
  • इन मार्गों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती हैं।

प्रश्न 9.
जन संचार के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
जब हम बडी गिनती में लोगों तक कोई संदेश या विचार पहुँचाना चाहते हैं या जनता के साथ बांटना चाहते हैं तो उसे जन संचार कहते हैं। ऐसा संचार कई प्रकार के साधनों द्वारा किया जाता है। जिसमें व्यक्तिगत संचार की तरह पक्ष एक-दूसरे से परिचित नहीं होता। जनसंचार के प्रमुख साधन हैं-

  1. जनतक घोषणा, रैली इत्यादि।
  2. रेडियो, टेलीविज़न।
  3. अख़बारें, रसाले, मैगज़ीन ।
  4. सिनेमा।
  5. कंप्यूटर की सहायता से ही जनतक सूचना।
  6. इंटरनैट संचार।
  7. औजू सैट।

प्रश्न 10.
व्यापार से आपका क्या अर्थ है ? इसकी किस्में बताओ।
उत्तर-
वस्तुओं को बेचने तथा खरीदने को व्यापार कहते हैं या किसी वस्तु के लेन-देन को व्यापार कहते हैं। यह खरीददार तथा विक्रेता के बीच की अदायगी की क्रिया है। व्यापार मुख्य रूप में दो प्रकार का होता है-

  1. निजी व्यापार।
  2. राष्ट्रीय व्यापार।

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प्रश्न 11.
राष्ट्रीय व्यापार तथा इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर-
जब व्यापार/बेच-खरीद/लेन-देन राष्ट्रीय स्तर पर होता है, तब उसे राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। अगर कोई देश अपने देश की सीमाओं से बाहर कोई व्यापार लेन-देन करता है उसको अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। राष्ट्रीय व्यापार के कारण निम्नलिखित हैं-

  • किसी देश में प्राकृतिक साधनों की कमी।
  • देश में वस्तुओं की मांग तथा पूर्ति में अंतर।
  • तकनीकी साधनों की कमी के कारण कई बार वस्तुओं को दूसरे देश से मंगवाना पड़ता है।
  • भौगोलिक भिन्नता।
  • आर्थिक विकास में कमी।
  • व्यापारिक देशों में जंग तथा अमन शांति के हालात।
  • व्यापारिक नीतियां।
  • देश के आपसी संबंध।

प्रश्न 12.
भारतीय आयात तथा निर्यात पर नोट लिखो।
उत्तर-
उत्पादित फालतू सामान को जब किसी और देश में बेचा जाता है तब उसे निर्यात कहते हैं तथा स्रोतों की कमी के कारण जब किसी देश से स्रोतों को खरीदा जाता है तो उसे आयात कहते हैं।

भारतीय निर्यात-भारत खनिज तेल, खनिज मोम, जैविक रसायन, फार्मेसी उत्पादन, गेहूँ से बनी वस्तुओं, अनाज, बिजली की मशीनरी, कपास के सूती कपड़े, काहवा, चाय, मसाले इत्यादि बाकी देशों को निर्यात करता है।
भारतीय आयात-भारत पैट्रोल, खनिज मशीनरी, खाद्य, लोहा तथा इस्पात, मोती, कीमती पत्थर, सोना, चांदी, खुराकी तेल, रसायन, दवाइयां, कागज़ फाईबर इत्यादि दूसरे देशों से आयात करता है।

प्रश्न 13.
आलमी व्यापार संगठन (WTO) पर नोट लिखो।
उत्तर-
सन् 1995 में गैट का रूप बदलकर विश्व व्यापार संगठन बनाया गया। यह जनेवा में एक स्थायी संगठन के रूप में कार्यरत है तथा यह व्यापारिक झगड़ों का निपटारा भी करता है। यह संगठन सेवाओं के व्यापार को भी नियंत्रित करता है। किंतु इसे अभी भी महत्त्वपूर्ण कर रहित नियंत्रणों जैसे निर्यात निषेध, निरीक्षण की आवश्यकता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा स्तरों तथा आयात लाइसेंस व्यवस्था जिनसे आयात प्रभावित होना है, को सम्मिलित करना शेष है। आलमी व्यापार संगठन में 123 देशों ने हस्ताक्षर करके जनरल एग्रीमैंट का खात्मा कर दिया है। इस प्रकार आलमी व्यापार संगठन राष्ट्रीय व्यापार को अच्छा तथा महत्त्वपूर्ण बना देता है

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
यातायात से आपका क्या भाव है ? देश में प्रशासकीय प्रबंध के आधार पर सड़कों का वर्गीकरण करो तथा सड़क-मार्गों का जाल बिछाने के लिए बनाई योजनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करो।
या
भारतीय सड़कों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
यातायात-मनुष्य, जानवरों तथा वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने को या वस्तुओं के परिवहन को यातायात कहते हैं। यातायात के मुख्य वर्ग हैं

  1. स्थल-मार्ग यातायात।
  2. जल-मार्ग यातायात।
  3. वायु-मार्ग यातायात।

सड़कों का प्रशासकीय प्रबंध के आधार पर वर्गीकरण-प्रशासकीय प्रबंध के आधार पर सड़कों का वर्गीकरण निम्नलिखित किया गया है –
1. ग्रामीण सड़कें (Rural Roads)—जो सड़कें गाँव को जिले की सड़कों से मिलाती हैं, ग्रामीण सड़कें कहलाती हैं। इन सड़कों में मोड़ काफी होते हैं यहाँ बहुत भारी वाहनों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

2. जिला सड़कें (District Roads)—यह सड़कें जिले की सड़कों, कस्बे तथा बड़े गाँवों को आपस में जोड़ती हैं। इन सड़कों की देखभाल जिला परिषद् तथा आम जनता की ज़िम्मेदारी होती है।

3. राज्य मार्ग (State Highways) राज्य के व्यापार तथा भारी यात्री यातायात की किस्म राज्य मार्गों के अधीन आती है। यह सड़कें आर्थिकता की मुख्य इकाई होती हैं, सड़कों के मुख्य केंद्रों को राज्य की राजधानियों तथा राष्ट्रीय शाहमार्गों के साथ मिलाती हैं।

4. राष्ट्रीय शाह मार्ग (National Highways)-राष्ट्रीय शाहमार्गों की देख-भाल की ज़िम्मेदारी केंद्रीय सरकार की होती है। भारत में राष्ट्रीय शाहमार्ग एथॉरिटी इन मार्गों की देख-रेख करती है। यह सड़कें देश के सारे कोनों तक फैली हुई हैं।

5. सीमान्त इलाकों की सड़के (Border Roads)-इन सड़कों की देख-भाल की ज़िम्मेदारी सीमान्त सड़क संगठन के अंतर्गत आती है।

सड़क योजनाएं-सड़कें किसी देश के विकास की रीढ़ की हड्डी हैं। यह वस्तुओं, मनुष्य, जानवरों, स्रोतों इत्यादि के परिवहन में अहम् तथा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इसके अलावा इन सड़कों द्वारा सफर करना आसान तथा आरामदायक भी होता है। सड़कों का अच्छा तथा सड़क-मार्गों का जाल बिछाने के लिए कई योजनाएं देश अंदर चल रही हैं।

1. नागपुर योजना (Nagpur Plan)-नागपुर योजना सन् 1943 में भारत में सड़कें बिछाने के लिए बनाई गई। इस योजना में देश की प्रमुख सड़कों के अलावा और आम सड़कों की लंबाई भी बढ़ाई गई।

2. बीस वर्षीय योजना (Twenty Year Plan)-इस योजना की शुरुआत 1961 में हुई। इस योजना का उद्देश्य देश में सड़कों की लंबाई 6 लाख 56 कि०मी० से बढ़ाकर 10 लाख 60 हज़ार कि०मी० तक करना था तथा इसके लिए समय 20 साल तय किया गया।

3. ग्रामीण सड़क विकास योजना (The Rural Road Development Scheme)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में सड़कों का विकास करना था।

4. बी०ओ०टी० योजना (Build, Operate and Transfer Scheme)-इस योजना में प्राईवेट बिल्डरों तथा
ठेकेदारों को सड़कें तथा पुलों का निर्माण करने के लिए ठेके दिए गए तथा इज़ाजत दी गई कि वह निर्माण की गई सड़क पर गुजरने वाले वाहनों के चालकों से टोल टैक्स ले सकेंगे तथा बाद में सड़क भारत सरकार के हवाले कर देंगे।

5. केन्द्रीय सड़क फंड (Cential Road Fund)-इस फंड को दिसम्बर 2000 में शुरू किया गया। इसके अनुसार पैट्रोल तथा डीज़ल पर टैक्स तथा कस्टम ड्यूटी लगाकर इकट्ठा किया पैसा सड़कों के विकास पर लगाया जाएगा। भारत में प्राचीन काल से ही सड़कों की महत्ता रही हैं। शेरशाह सूरी ने जी०टी०रोड के राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण किया। आजादी के बाद 10 वर्षीय नागपुर योजना के अधीन सड़कों के विकास की योजना बनाई गई। भारत की मुख्य सड़कें निम्न हैं।

राष्ट्रीय मार्ग (National Highways)

  • ग्रैंड ट्रंक रोड (Grand Trunk Road)-कोलकाता से अमृतसर तक है। इसको शेरशाह सूरी मार्ग भी कहा जाता है।
  • दिल्ली-मुंबई रोड।
  • कोलकाता-मुंबई रोड।
  • मुंबई-चेन्नई रोड।
  • ग्रेट दक्षिण रोड।
  • कोलकाता-चेन्नई रोड।
  • पठानकोट- श्रीनगर रोड।
  • भारत की सीमावर्ती प्रदेशों में सड़कों का निर्माण करने के लिए सीमा सड़क बोर्ड को सन् 1960 में स्थापित किया गया। भारत में सीमान्त प्रदेशों में 7000 कि०मी० लम्बी पक्की सड़कें बनायी गई हैं। जिनमें मनाली से लेकर लेह तक मुख्य सड़कें हैं। इस सड़क की औसत ऊंचाई 4270 मीटर है।

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PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 7 परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार

प्रश्न 2.
संसार के प्रमुख रेल मार्गों की स्थिति तथा महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
स्थल यातायात में रेलवे सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण साधन है। सन् 1819 में भाप के इंजन की खोज के साथ रेल के यातायात का प्रारंभ ग्रेट ब्रिटेन में हुआ। आधुनिक युग में किसी देश में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से रेलवे का बड़ा महत्त्व है।

महत्त्व-

  • रेलमार्ग किसी क्षेत्र के खनिज पदार्थों के विकास में सहायता करते हैं।
  • रेलमार्ग औद्योगिक क्षेत्र में कच्चे माल तथा तैयार माल के वितरण में सहायता करते हैं।
  • रेलमार्ग व्यापार को उन्नत करते हैं।
  • रेलमार्ग राजनीतिक एकता व स्थिरता लाने में योगदान देते हैं।
  • रेलमार्ग संकट काल में सहायता कार्यों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में रेल-मार्ग जनसंख्या वृद्धि का आधार बनते हैं।
  • लम्बी-लम्बी दूरियों को जोड़ने में रेलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। वास्तव में रेल-मार्गों के विकास से मानव ने दूरी और समय पर विजय प्राप्त कर ली है।

रेलमार्गों की स्तिति के तत्त्व (Factors of Location),

  1. अधिक जनसंख्या हो।
  2. समतल मैदानी धरातल हो।
  3. औद्योगिक तथा व्यापारिक विकास अधिक हो।
  4. खनिज पदार्थ के अधिक भंडार हो।
  5. तकनीकी ज्ञान प्राप्त हो।

संसार के मुख्य रेलमार्ग (Major Railways) रेलमार्गों की सबसे अधिक लंबाई संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं। कई देशों में मोटर, सड़कें तथा जल मार्गों के अधिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।
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ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग-यह रेलमार्ग 9289 कि०मी० लम्बा है तथा संसार में सबसे लम्बा रेलमार्ग है। यह रेल मार्ग साइबेरिया तथा यूराल प्रदेश के आर्थिक तथा औद्योगिक विकास का आधार है। यह एक अन्तः महाद्वीपीय मार्ग है। यह रेल-मार्ग पश्चिम में बाल्टिक सागर पर स्थित सेंट पीटर्जसवर्ग बन्दरगाह के पूर्व में प्रशान्त महासागर पर स्थित ब्लाडीवोस्टक बन्दरगाह को जोड़ता है। इस रेल-मार्ग के मुख्य स्टेशन मास्को, रंयाजन, कुइबाशेव चेलिया बिन्सक, ओमस्क, नीवी सिबीरस्क, चीता इकूटस्क तथा खाबारीवस्क हैं । इस रेलमार्ग द्वारा कोयला, तेल, लकड़ी, खनिज, कृषि उत्पाद, मशीनरी तथा औद्योगिक उत्पादों का आदान-प्रदान पूर्व से पश्चिम को होता है।

2. कैनेडियन पैसेफिक रेलमार्ग-कनाडा का पूर्व-पश्चिम में अधिक विस्तार है। यह रेलमार्ग कनाडा में पूर्वी भाग में हैली फैक्स से चलकर पश्चिम में बेन्कूवर तक पहुंचता है। यह रेलमार्ग दुर्गम पर्वत क्षेत्रों में से गुजरता है। इस रेलमार्ग से लकड़ी, खनिज पदार्थ, गेहूं व लोहे का परिवहन होता है। कैनेडियन पैसेफिक रेल-मार्ग की लम्बाई 7050 किलोमीटर हैं। इस मार्ग पर सेंटजॉन मांट्रिगल, ओटावा, विनीपेग इत्यादि नगर स्थित है। यह रेल-मार्ग क्यूबेक मांट्रियल के औद्योगिक क्षेत्र को कोणधारी वनों तथा प्रेयरीज के गेहूं से जोड़ता हैं। इस प्रकार यह रेल मार्ग राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से एकता स्थापित करता है।

3. संयुक्त राज्य अमेरिका के रेलमार्ग संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग में रेलवे का अधिक विकास हुआ है। पश्चिम में जनसंख्या कम है। यहां शुष्क जलवायु तथा पर्वतीय भागों के कारण रेलमार्ग कम हैं। यह रेलमार्ग देश के पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्रों को आपस में मिलाता है। देश के मध्यवर्ती क्षेत्र की कृषि तथा खनिज क्षेत्रों के लिए यह बहुत योग्य सिद्ध हुए हैं। इस देश में मुख्य महाद्वीप रेलमार्ग निम्नलिखित हैं।

  • उत्तरी पैसेफिक रेलमार्ग-यह मार्ग शिकागो से होकर सेंटपाल पोर्टलैंड तक जाता है।
  • दक्षिणी पैसेफिक रेलमार्ग-यह रेलमार्ग पश्चिम में लॉस एंजिलस तक जाता है।
  • महान् उत्तरी रेलमार्ग-यह रेलमार्ग सुपीरियर झील के तट से डिओलब में होकर सीटल तक जाता है।
  • यूनियन पैसेफिक रेलमार्ग-यह रेलमार्ग एटलांटिक तट से लेकर न्यूयॉर्क और फिर यहां से शिकागो, उमाहा, सान फ्रांसिस्को तथा प्रशांत महासागर तट तक जाता है। शिकागो संसार का सबसे बड़ा रेलकेंद्र है।

4. केप काहिरा रेलमार्ग-यह रेलमार्ग अफ्रीका के दक्षिणी किनारे को उत्तरी किनारे से जोड़ता है। यह मार्ग केपटाऊन से प्रारम्भ होकर काहिरा तक है। इस मार्ग के मध्य में कई कठिनाइयां हैं जैसे सहारा मरुस्थल, ऊंचे पर्वत, जल प्रपात इत्यादि। इन प्रतिबन्धों के कारण रेलमार्ग पूरा नहीं हो सका। यह रेल मार्ग केपटाऊन से शुरू होकर किंबरले से जाइरे देश में बोकामा तक है। इसके पीछे विक्टोरिया झील तक सड़क या रेलमार्ग की सुविधा है। इसके आगे नील नदी के किनारे खरतूम तक सड़क मार्ग है। इसके आगे काहिरा तक रेलमार्ग है। इस रेलमार्ग के विकास के साथ अफ्रीका महाद्वीप के कई क्षेत्रों में खनिज पदार्थ तथा कृषि पदार्थों के निर्यात में भी वृद्धि हुई है।

5. ट्रांस एण्डियन रेलमार्ग (Trans Andean Railway)-यह रेलमार्ग दक्षिणी अमेरिका से चिली के वालप्रेसो नगर तथा अजेन्टाइना के ब्यूनस आयर्स नगर को मिलाता है। यह रेलमार्ग एण्डीज पर्वतों को 3485 मीटर की ऊंचाई से पार करके उस्पलाटा दर्रे तथा सुरंगों से गुजरता है। यह पम्पास के कृषि तथा पशुपालन क्षेत्रों को चिली के खनिज तथा फल उत्पादन क्षेत्र से जोड़ता है।

6. दिल्ली-लंदन-मार्ग (Delhi London Railway)—इस मार्ग के साथ यूरोप तथा एशिया के महाद्वीपों को मिलाने की योजना है। यह प्रकल्प आर्थिक तथा सामाजिक कमिशन के अधीन है। इस मार्ग पर कई देशों में इस योजना को पूरा करने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि लंदन को इण्डोनेशिया से मिलाया जा सके। यह भारत से पश्चिम की तरफ पाकिस्तान मध्य पूर्व (इरान, इराक, तुर्की) से यूरोप तक जाएगा। कई राजनीतिक बंदिशों के कारण कई स्थानों पर जैसे बर्मा-बंगला देश में यह काम सफल नहीं हो सका है। इस मार्ग पर तुर्की के पास बासकोर्स में इंग्लैंड चैनल के रास्ते समुद्र पार करना पड़ेगा तथा नावों का प्रयोग करना पड़ेगा। इण्डोनेशिया से लंदन तक यह यात्रा 15 दिनों में पूरी की जाएगी।

7. भारतीय रेलमार्ग (Indian Railway) परिवहन के साधनों में रेलों का महत्त्व सबसे अधिक है। 1853 ई० में भारत में प्रथम रेल लाइन 32 कि०मी० लम्बी मुम्बई से थाना स्टेशन तक बनाई गई। भारतीय रेलवे की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

    1. भारतीय रेल-मार्ग एशिया का सबसे लम्बा रेलमार्ग है।
    2. भारतीय रेल-मार्ग 62211 कि०मी० लम्बा है।
    3. विश्व में भारत का चौथा स्थान है।
    4. भारतीय रेलों मे 18 लाख कर्मचारी काम करते हैं।
    5. प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियां लगभग 13 लाख कि०मी० दूरी पर चलती हैं तथा 7100 रेलवे स्टेशन हैं।
    6. प्रतिदिन लगभग 350 करोड़ यात्री यात्रा करते हैं तथा 22 करोड़ टन भार ढोया जाता है।
    7. भारतीय रेलों में 8000 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है तथा प्रतिवर्ष 21,000 करोड़ रुपए की आय होती है।
    8. भारतीय रेलों में 11,000 रेल इंजन, 38,000 सवारी डिब्बों तथा 4 लाख सामान ढोने वाले डिब्बे हैं।
    9. भारत में 80% सामान तथा 70% यात्री रेलों द्वारा ही ले जाए जाते हैं।

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    1. भारतीय रेलों का अधिक विस्तार उत्तरी भारत के समतल मैदान में है।
    2. भारत में जम्मू कश्मीर, पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर पठार तथा थार के मरुस्थल में रेलमार्ग कम
    3. दक्षिणी भारत में पथरीली, ऊंची-नीची भूमि के कारण, छोटी-छोटी नदियों पर जगह जगह पुल बनाने की असुविधा है।
    4. अब भारतीय रेलों पर 3454 डीजल इंजन तथा 1533 बिजली के इंजन 4950 भाप इंजन हैं।

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    1. लगभग 9100 किलोमीटर लम्बे रेलमार्ग पर बिजली से चलने वाली गाड़ियां दौड़ती हैं। भारत में रेलमार्ग तीन प्रकार के हैं –

(i) चौड़ी पटरी (Broad Gauge)-1.68 मीटर चौड़ाई।
(ii) छोटी पटरी (Metre Gauge)-1 मीटर चौड़ाई।
(iii) तंग पटरी (Narrow Gauge)-0.68 मीटर चौड़ाई है।

रेल क्षेत्र (Railway Zones)—अच्छे प्रबंध के लिए भारतीय रेलों में अलग-अलग तरह से विभाजित किया गया है। भारत में 1958 से 1966 तक भारतीय रेलवे के कुल 9 क्षेत्र थे। लगभग तीन दहाकों के बाद यही रेल प्रबंध जारी रहा पर अब भारतीय रेलवे के कुल 18 क्षेत्र हैं, जो इस प्रकार हैं –

रेल क्षेत्र — प्रमुख कार्यालय

1. उत्तरी रेलवे — नई दिल्ली
2. उत्तरी-पूर्वी रेलवे — गोरखपुर
3. उत्तर पूर्वी सीमान्त रेलवे — मालीगाऊ (गुवाहाटी)
4. पूर्वी रेलवे — कोलकाता
5. दक्षिणी-पूर्वी रेलवे — बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
6. दक्षिण-मध्य रेलवे — सिकंदराबाद
7. दक्षिणी रेलवे — चेन्नई
8. मध्य रेलवे — मुंबई
9. पश्चिमी रेलवे — मुंबई
10. दक्षिण-पश्चिमी रेलवे — हुबली (बंगलौर)
11. उत्तर पश्चिमी रेलवे — जयपुर
12. पश्चिमी मध्य रेलवे — जबलपुर
13. उत्तर मध्य रेलवे — इलाहाबाद
14. दक्षिण-पूर्वी मध्य रेलवे — बिलासपुर
15. पूर्व तटवर्ती रेलवे — भुवनेश्वर
16. पूर्व मध्य रेलवे — हाजीपुर
17. कोंकण रेलवे — न्यू दिल्ली
18. मैट्रो रेलवे — कोलकाता।

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प्रश्न 3.
जल यातायात तथा जल मार्ग यातायात की किस्में बताओ। विश्व के मुख्य समुद्री मार्गों का विस्तार सहित वर्णन करो।
उत्तर-
यातायात के साधनों में समुद्री यातायात सबसे सस्ता तथा महत्त्वपूर्ण साधन है। विश्व का अधिकतर व्यापार समुद्री मार्ग के द्वारा होता है। जब बहुत सारे जहाज़ एक निश्चित मार्ग पर चलते हैं तब उसे समुद्री मार्ग कहते हैं।
समुद्री मार्गों का महत्त्व (Importance of Ocean Routes)-

  • यह सबसे सस्ता यातायात का साधन है।
  • यह प्राकृतिक मार्ग है। समुद्र में मार्ग बनाने में कुछ खर्च नहीं होता।
  • जहाजों को चलाने के लिए कोयला तथा पैट्रोल कम खर्च होता है।
  • समुद्री मार्ग असलियत में अंतर्राष्ट्रीय मार्ग है क्योंकि सारे महामार्ग एक दूसरे से मिले हैं।
  • इन मार्गों पर जहाजों की दुर्घटनाएं कम होती हैं।
  • इन मार्गों द्वारा दूर दूर देशों के आपसी सम्पर्क बढ़ जाते हैं।
  • इन मार्गों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी वृद्धि होती है।

समुद्री मार्गों को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors influencing the Ocean Routes) अधिकतर समुद्री मार्ग महान् चक्कर के अनुसार कम दूरी के कारण बनाये जाते हैं। जल मार्ग हिंद तोदियों से बचा कर बनाये जाते हैं। समुद्री मार्ग तूफानी क्षेत्रों तथा कोहरे से दूर होते हैं। समुद्री मार्गों में ईंधन के लिए कोयला, तेल तथा परिवहन के लिए माल ज्यादा प्राप्त हो।

जल मार्गों की किस्में-जल मार्ग मुख्य रूप में दो तरह के होते हैं-

1. आंतरिक जलमार्ग
2. समुद्री जलमार्ग

1. आंतरिक जलमार्ग-किसी देश या पृथ्वी पर स्थित जल साधनों, झीलों, नहरों इत्यादि के द्वारा यातायात को आंतरिक जलमार्गी यातायात कहते हैं। किसी देश के प्रादेशिक व्यापार के लिए नदियां, नहरें तथा झीलों का आन्तरिक जल मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है। मनुष्य प्राचीन काल से ही नदियों तथा नहरों का यातायात के लिए प्रयोग करता आया है। आजकल विकसित देशों में आंतरिक जल-मार्गों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। कृषि तथा उद्योगों के विकास में आंतरिक जल-मार्ग महत्त्वपूर्ण है। आन्तरिक जल मार्गों पर कई तत्वों का प्रभाव पड़ता है। नदियों तथा नहरों में जल अधिक मात्रा में हों, जल का प्रवाह सारा साल लगातार तथा सीधा होना चाहिए। अधिक ढाल जल प्राप्त अधिक घुमाव तथा रेत के जमाव से यातायात में बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं। शीतकाल में नदियां हिम से जमनी नहीं चाहिए।

प्रमुख आंतरिक जलमार्ग-

  1. फ्रांस में सीन तथा रीन नदियां यातायात के लिए प्रयोग की जाती हैं।
  2. पश्चिमी जर्मनी में राईन (Rhine) नदी सबसे महत्त्वपूर्ण जल मार्ग है। यह नदी पश्चिमी जर्मनी के व्यापार की जीवनरेखा है। इस नदी द्वारा रूहर घाटी से खनिज पदार्थों का परिवहन किया जाता है।
  3. यूरोप में कई अन्य नदियां, डैन्यूब, वेसर, ऐल्ब, ओडर, विसबूला भी महत्त्वपूर्ण जल मार्ग हैं।
  4. रूस में वोल्गा, नीपर नदियां यातायात के साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं।
  5. उत्तरी अमेरिका में महान झीलें तथा मिसीसिपी नदी तथा सेंट लारेंस जल-मार्ग महत्त्वपूर्ण है।
  6. भारत में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी, चीन में यंगसी नदी तथा बर्मा में इरावती नदी महत्त्वपूर्ण भीतरी जल-मार्ग हैं।
  7. दक्षिणी अमेरिका में अमेज़न नदी से तट से 1600 कि०मी० अन्दर तक जहाज़ चलाए जा सकते हैं। परन्तु कम जनसंख्या तथा पिछड़ेपन के कारण इस घाटी में इस जल-मार्ग का महत्त्व कम है।
  8. अफ्रीका में नील, नाईजर, कांगो तथा जैम्बजी नदियां जल प्रपातों के कारण अधिक उपयोगी नहीं हैं।
  9. संसार में कई देशों में नहरें भी यातायात के साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। पश्चिमी जर्मनी में कील नहर और राईन नहर, रूस में वोल्गा-वाल्टिक नहर, उत्तरी अमेरिका में हडसन-मोहाक नहर, इंग्लैण्ड में मानचेस्टर, लिवरपूल नहर, भारत में बकिंघम नहर यातायात के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

II. समद्री जलमार्ग- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मुख्यतः समुद्री मार्ग द्वारा ही होता है। स्थल मार्ग की अधिकता के कारण मुख्य समुद्री मार्ग मध्य अक्षांशों में स्थित हैं। संसार के मुख्य समुद्री मार्ग निम्नलिखित हैं-

1. उत्तरी अन्ध महासागरीय मार्ग (North Atlantic Route) यह संसार का सब से अधिक उपयोग किया जाने वाला समुद्री मार्ग है। यह मार्ग 40° – 50° उत्तर अक्षांशों में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के बीच स्थित हैं। यह संसार का सबसे व्यस्ततम व्यापारिक मार्ग है। संसार के 75% जलयान इस मार्ग पर चलते हैं। संसार के आधे से अधिक बन्दरगाह इस मार्ग पर स्थित हैं। इस मार्ग के किनारों पर यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के उन्नत औद्योगिक प्रदेश हैं। इसलिए संसार का 25% व्यापार इसी मार्ग से होता है। यह मार्ग महान् वृत्त है। इस पर कोयला व तेल की सुविधाएं हैं। संसार के गहरे, सुरक्षित बन्दरगाह हैं। यहां बड़े-बड़े शिपयार्ड स्थित हैं। परन्तु न्यूयार्क के निकट रेतीले, तट, न्यूफाउण्डलैंड के निकट कोहरा व हिमखण्ड की कठिनाइयां हैं। यूरोप की ओर लन्दन/लिवरपूल, ग्लासगो, ओसलो, हैम्बर्ग, रोटरडम, लिस्बन प्रमुख बन्दरगाह हैं।

2. स्वेज नहर मार्ग (Suez Canal Route)—यह सागर रूम सागर तथा लाल सागर को जोड़ने वाली स्वेज नहर के कारण महत्त्वपूर्ण मार्ग है। यह संसार का दूसरा बड़ा मार्ग है। इसे सबसे अधिक लम्बा मार्ग होने के कारण ग्रांड ट्रंक मार्ग भी कहते हैं। इस मार्ग पर संसार की घनी जनसंख्या वाले प्रदेश स्थित हैं। इस मार्ग पर कोयला व तेल की सुविधाएं प्राप्त हैं। इस मार्ग के कारण यूरोप तथा एशिया के लगभग 81000 किलोमीटर की दूरी कम हो गई है। इस नहर द्वारा इंग्लैंड के साम्राज्य व व्यापार को बहुत सुरक्षा प्राप्त थी। इसे ब्रिटिश साम्राज्य की जीवन रेखा भी कहा जाता है। रूम सागर व लाल सागर को पार करने के पश्चात् इसकी तीन शाखाएं हो
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जाती हैं। अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा एशिया की ओर लन्दन, लिवरपूल, मोर्सेल्ज, लिस्बन, नेपल्स, सिकन्दरिया प्रमुख बन्दरगाह हैं। लंदन, कराची, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कोलम्बो, रंगून, सिंगापुर, हांगकांग, शंघाई योकोहामा, मेलबोर्न, विलिंगटन प्रमुख बंदरगाह हैं।

3. पनामा नहर मार्ग (Panama Canal Route)-अन्ध महासागर तथा प्रशांत महासागर को मिलाने वाली
पनामा नहर के 1914 में निर्माण होने से इस मार्ग का महत्त्व बढ़ गया है। इस मार्ग का विशेष महत्त्व संयुक्त ‘राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड को है। इस मार्ग के खुल जाने के कारण दक्षिणी अमेरिका के Cape Horn का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं रही। इस प्रकार अमेरिका के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों के बीच 10,000 किलोमीटर की दूरी कम हो गई। आकलैंड, वालपरेसी, लॉस ऐंजल्स, सानफ्रांसिस्को, बैनकूवर तथा प्रिंस रूपर्ट प्रमुख बन्दरगाह हैं। किंगस्टन हवाना, रियो-डी-जैनेरो, पनामा, न्यू ओरलियनज प्रमुख बन्दरगाह हैं।

4. आशा अन्तरीप मार्ग (Cope of Good Hope Route)—यह एक प्राचीन समुद्री मार्ग है। 1498 में वास्को डी-गामा ने इस मार्ग की खोज की। स्वेज नहर के बन्द हो जाने के कारण इस मार्ग का महत्त्व बढ़ गया है। यह मार्ग दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस मार्ग पर कोयला व तेल की सुविधाएं प्राप्त हैं। यह मार्ग स्वेज़ मार्ग की अपेक्षा सस्ता व ठण्डा है तथा बड़े-बड़े जहाज इस मार्ग पर गुज़र सकते हैं। लंदन, लिवरपूल, लिस्बन, लागोस, मानचेस्टर इत्यादि यूरोप की बन्दरगाहें हैं।

5. प्रशान्त महासागरीय मार्ग (Trans-Pacific Route)—यह मार्ग एशिया तथा अमेरिका महाद्वीपों को मिलाता है। यह मार्ग कम महत्त्वपूर्ण है। इस मार्ग की लम्बाई बहुत अधिक है तथा इसके किनारों पर कम उन्नत प्रदेश हैं। इस मार्ग पर हिमशिलाओं का अभाव है। इस मार्ग की कई शाखाएं होनोलूलू नामक स्थान पर मिलती हैं। योकोहामा, हांगकांग, शंघाई, मनीला, बेंकूवर, प्रिंस, रूपर्ट, सानफ्रांसिस्को, लास ऐंजल्स प्रमुख बन्दरगाह हैं।

6. दक्षिणी अन्ध महासागरीय मार्ग (South Atlantic Route)-यह मार्ग दक्षिणी अमेरिका तथा यूरोप के देशों को मिलाता है। ब्राज़ील के केप सन रोके से आगे इस मार्ग के दो भाग हो जाते हैं। यह यूरोप की तथा दूसरा अमेरिका की ओर यहां दक्षिणी अफ्रीका से आने वाले मार्ग भी मिलते हैं। उत्तर की ओर यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा दक्षिण की ओर व्यूनस आयर्स, मोण्टी वीडियो, रियो-डी-जेनेरो, बहियां, सैन्टाज़ हैं।

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प्रश्न 4.
भारत की प्रमुख बन्दरगाहों का वर्णन करो। उनकी स्थिति, विशेषताएं तथा व्यापारिक महत्त्व बताएं।
उत्तर-
समुद्र पत्तन समुद्र के किनारे जहाजों के ठहरने के स्थान होते हैं। इनके द्वारा किसी देश का विदेशी व्यापार होता है। एक आदर्श बन्दरगाह के लिए कटी फटी तट रेखा, अधिक गहरा जल, सम्पन्न पृष्ठ-भूमि, उत्तम जलवायु तथा समुद्र मार्गों पर स्थित होना आवश्यक है। भारत की तट रेखा 61,00 किलोमीटर लम्बी है। इस तट रेखा पर अच्छी बन्दरगाहों की कमी है। केवल 10 प्रमुख बन्दरगाहें, 22 मध्यम बन्दरगाहें तथा 145 छोटी बन्दरगाहें हैं।

भारत की प्रमुख बन्दरगाहें-भारत के पश्चिमी तट पर कांडला, मुम्बई, मारमगाओ तथा कोचीन प्रमुख बन्दरगाहें हैं। पूर्वी तट पर कोलकाता पाराद्वीप, विशाखापट्टनम तथा चेन्नई प्रमुख बन्दरगाहें हैं। मंगलौर तथा तूतीकोरन का बड़े बन्दरगाहों के रूप में विस्तार किया जा रहा है। भारत की प्रमुख बन्दरगाहों का उल्लेख इस प्रकार है।

(क) पश्चिमी तट की बन्दरगाहें

1. कांडला (Kandla)-

(i) स्थिति (Location)—यह बन्दरगाह खाड़ी कच्छ (Gulf of Kutch) के शीर्ष (Head) पर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics)
(a) यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(b) इसकी पृष्ठ-भूमि बहुत विशाल तथा सम्पन्न है, उसमें समस्त उत्तर-पश्चिमी भारत के उपजाऊ प्रदेश हैं।
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(c) समुद्र की गहराई 10 मीटर से अधिक है।
(d) यहां बड़े-बड़े जहाजों के ठहरने की सुविधाएं हैं।
(e) यह स्थान स्वेज़ (Suez) समुद्री मार्ग पर स्थित है।
(f) यह बन्दरगाह कराची की बन्दरगाह का स्थान लेगी।

(iii) व्यापार (Trade)
(a) आयात (Imports)—सूती कपड़ा, सीमेंट, मशीनें तथा दवाइयां।
(b) निर्यात (Exports)-सूती कपड़ा, सीमेंट, अभ्रक, तिलहन, नमक।

2. मुम्बई (Mumbai)

(i) स्थिति (Location)-यह बन्दरगाह पश्चिमी तट के मध्य भाग पर एक छोटे-से टापू पर स्थित है। यह टापू एक पुल द्वारा स्थल से मिला हुआ है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics)
(a) यह भारत की सबसे बड़ी प्राकृतिक व सुरक्षित बन्दरगाह है।
(b) स्वेज़ मार्ग पर स्थित होने के कारण यूरोप (Europe) के निकट स्थित है।
(c) इसी पृष्ठ-भूमि में काली मिट्टी का कपास क्षेत्र तथा उन्नत औद्योगिक प्रदेश है।
(d) अधिक गहरा जल होने के कारण बड़े-बड़े जहाज़ ठहर सकते हैं, परन्तु यहां कोयले की कमी है।
(e) यहां पांच डॉको (Docks) में उत्तम गोदामों की व्यवस्था है।
(f) यह भारत की सबसे बड़ी बन्दरगाह है।
(g) इसे भारत का सिंहद्वार (Gateway of India) भी कहते हैं। यह महाराष्ट्र की राजधानी है। यहां ट्राम्बे में भाभा अणु शक्ति केन्द्र, मैरीन ड्राइव, इण्डिया गेट तथा ऐलीफेंटा गुफाएं दर्शनीय स्थान हैं। यह भारतीय जल-सेना का प्रमुख केन्द्र हैं।

(iii) व्यापार (Trade)-

(a) आयात (Import) मशीनरी, पैट्रोल, कोयला, कागज़ कच्ची फिल्में।
(b) निर्यात (Exports)-सूती कपड़ा, तिलहन, मैंगनीज, चमड़ा, तम्बाकू।
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3. मारमगाओ (Marmago)
(i) स्थिति (Location)—यह बन्दरगाह पश्चिम तट गोआ (Goa) में स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics)
(a) यह एक प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(b) इसकी पृष्ठ-भूमि में महाराष्ट्र तथा कर्नाटक प्रदेश के पश्चिमी भाग हैं।
(c) इसमें 50 के लगभग जहाज़ खड़े हो सकते हैं।
(iii) 214P (Trade)—
(a) आयात (Imports)-खाद्यान्न, रासायनिक खाद, मशीनें, खनिज तेल।
(b) निर्यात (Exports)–नारियल, मूंगफली, मैंगनीज़, खनिज, लोहा।

4. कोचीन (Cochin)
(i) स्थिति (Location) यह बन्दरगाह मालबार तट पर केरल प्रदेश में पाल घाट दर्रे के सामने स्थित हैं।
(ii) विशेषताएँ (Characteristics)-
(a) यह बन्दरगाह एक लैगून झील (Lagoon) के किनारे स्थित होने के कारण सुरक्षित और प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(b) इसकी पृष्ठ-भूमि में नीलगिरि का बागानी कृषि क्षेत्र तथा कोयम्बटूर का औद्योगिक प्रदेश स्थित है।
(c) यह जल-मार्ग द्वारा पृष्ठ-भूमि से मिला हुआ है।
(d) यह पूर्वी एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया के जलमार्गों पर स्थित है।
(e) भारत का दूसरा पोत निर्माण केन्द्र (Shipyard) यहां पर है।
(iii) व्यापार (Trade)-
(a) आयात (Imports)-चावल, कोयला, पैट्रोल, रसायन, मशीनरी।
(b) निर्यात (Exports)-कहवा, चाय, काजू, गर्म मसाले, नारियल, इलायची, रबड़ सूती कपड़ा।

(ख) पूर्वी तट की बन्दरगाहें
1. कोलकाता (Kolkata)(i) स्थिति (Location)—यह एक नदी पत्तन (Riverport) है। यह खाड़ी बंगाल में गंगा के डेल्टा प्रदेश पर हुगली नदी के बाएं किनारे पर तट से 120 किलोमीटर भीतर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics)-
(a) इनकी पृष्ठ-भूमि बहुत विशाल तथा सम्पन्न है जिसमें गंगा घाटी का कृषि क्षेत्र, छोटा नागपुर का खनिज व उद्योग क्षेत्र तथा बंगाल, असम का चाय और पटसन क्षेत्र शामिल हैं।
(b) यह दूर पूर्व में जापान तथा अमेरिका के जल-मार्ग पर स्थित है।
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(c) परन्तु यह एक कृत्रिम बन्दरगाह है तथा गहरी नदी है।
(d) प्रति वर्ष नदियों की रेत और मिट्टी हटाने के लिए काफ़ी खर्च करना पड़ता है।
(e) जहाज़ केवल ज्वार-भाटा के समय ही आ जा सकते हैं। बड़े जहाजों को 70 किलोमीटर दूर
डायमण्ड हारबर (Diamond Harbour) में ही रुक जाना पड़ता है। () इस बन्दरगाह के विस्तार के लिए हल्दिया (Haldia) नामक स्थान पर एक विशाल पत्तन का निर्माण
किया जा रहा है। यह भारत की दूसरी बड़ी बन्दरगाह है।

(iii) व्यापार (Trade)-
(a) आयात (Imports)—मोटरें, पेट्रोल, रबड़, चावल, मशीनरी।
(b) निर्यात (Exports)—पटसन, चाय, खनिज लोहा, कोयला, चीनी, अभ्रक।

2. विशाखापट्टनम (Vishakhapatnam)-
(i) स्थिति (Location)—यह बन्दरगाह पूर्वी तट पर कोलकाता और चेन्नई के मध्य स्थित है।
(ii) fagtuang (Characteristics)

(a) डाल्फिन नोज (Dalphin-Nose) नाम की कठोर चट्टानों से घिरे होने के कारण यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(b) इसकी पृष्ठ-भूमि में लोहा, कोयला तथा मैंगनीज़ का महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र है।
(c) यहां तेल, कोयला, ईंधन आदि सुलभ हैं।
(d) भारत का जहाज़ बनाने का सबसे बड़ा कारखाना यहां पर स्थित है।
(e) यह भारत की तीसरी प्रमुख बन्दरगाह है।

(ii) व्यापार (Trade)-
(a) आयात (Imports)-मशीनरी, चावल, पैट्रोल, खाद्यान्न।
(b) निर्यात (Exports)-मैंगनीज़, लोहा, तिलहन, चमड़ा, लाख, तम्बाकू।
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3. पारादीप (Paradip)
(i) स्थिति (Location)—यह बन्दरगाह खाड़ी बंगाल में कटक से 160 किलोमीटर दूर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics)-

(a) यह एक नवीनतम बन्दरगाह है।
(b) यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(c) पानी की अधिक गहराई के कारण यहां बड़े-बड़े जहाज़ ठहर सकते हैं।
(d) इसकी पृष्ठभूमि में उड़ीसा का विशाल खनिज क्षेत्र है।
(e) उड़ीसा के खनिज पदार्थों के निर्यात के लिए इस बन्दरगाह का विशेष महत्त्व है।

(iii) व्यापार (Trade)-

(a) निर्यात (Exports)-जापान का लोहा, मैंगनीज़, अभ्रक आदि खनिज पदार्थ ।
(b) आयात (Imports)-मशीनरी, तेल, चावल।

4. चेन्नई (Chennai)
(i) स्थिति (Location)—यह बन्दरगाह तमिलनाडु राज्य में कोरोमण्डल तट पर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics)-
(a) यह एक कृत्रिम बन्दरगाह है।
(b) कंकरीट की दो मोटी जल-तोड़ दीवारें (Break waters) बनाकर यह सुरक्षित बन्दरगाह बनाई गई है।
(c) इसकी पृष्ठभूमि में एक उपजाऊ कृषि क्षेत्र तथा औद्योगिक प्रदेश है।
(d) यहां कोयले की कमी है।

(iii) व्यापार (Trade)-
(a) आयात (Imports)-चावल, कोयला, मशीनरी, पैट्रोल, लोहा, इस्पात।
(b) निर्यात (Exports)-चाय, कहवा, गर्म मसाले, तिलहन, चमड़ा, रबड़।

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प्रश्न 5.
स्वेज़ नहर के भौगोलिक, आर्थिक तथा सैनिक महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
स्वेज नहर (Suez Canal)
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1. स्थिति (Location)-स्वेज़ नहर संसार की सबसे बड़ी जहाज़ी नहर (Navigation Canal) है। यह नहर अरब गणराज्य (U.A.R.) में स्थित है। यह नहर स्वेज़ के स्थलडमरू मध्य (Suez Isthmus) को काट कर बनाई गई है।

2. इतिहास (History)—इस नहर का निर्माण एक फ्रांसीसी इन्जीनियर फटनेण्ड डी लैसैप्स (Ferdinand De Lesseps) की देख-रेख में सन् 1859 ई० में शुरू हुआ। इस निर्माण में लगभग 10 वर्ष लगे। इस नहर को 17 नवम्बर, 1869 को चालू किया गया। इसके निर्माण काल में 1 लाख 20 हज़ार मजदूरों की जानें गईं। इस नहर के निर्माण पर 180 लाख पौंड खर्च हुए। इस नहर का निर्माण स्वेज नहर कम्पनी (Suez Canal Company) द्वारा किया गया। इस कम्पनी के अधिकतर हिस्से (Shares) फ्रांस तथा इंग्लैंड के थे। इस प्रकार इस नहर पर इंग्लैंड तथा फ्रांस का अधिकार था। यह नहर 99 वर्षों के पट्टे पर दी गई थी। परन्तु मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर ने 26 जुलाई, 1956 को इस नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। 1967 में मिस्र व इज़राइल में युद्ध हुआ तथा नहर स्वेज़ जहाजों के लिए बन्द हो गई। 1975 में स्वेज़ नहर पुनः खुल गई है।

3. सागर तथा बन्दरगाह (Sea And Ports)—यह नहर रक्त सागर (Red Sea) तथा रूम सागर (Mediterranean Sea) को मिलाती है। रूम सागर की ओर पोर्ट सईद (Port Said) तथा रक्त सागर की ओर पोट स्वेज़ (Port Suez) की बन्दरगाह है। इस नहर की कुल लम्बाई 162 किलोमीटर, चौड़ाई 60 से 65 मीटर तक तथा कमसे-कम गहराई 10 मीटर है। यह नहर पूरी लम्बाई में समुद्र तल पर बनी है।

इस नहर के मार्ग में नमकीन पानी की तीन झीलें हैं-

  1. लिटिल बिटर झील (Little Bitter Lake)
  2. ग्रेट बिटर झील (Great Bitter Lake)
  3. टिमशाह झील (Timshah Lake) ।

इस नहर को पार करने में 12 घण्टे लग जाते हैं। जहाज़ औसत रूप से 14 किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से चलते हैं। कम चौड़ाई के कारण एक साथ दो जहाज़ गुज़र सकते हैं। इसलिए एक जहाज़ को झील में ठहरा लिया जाता है।

4. महत्त्व (Importance)-

  • यह मार्ग संसार की घनी जनसंख्या वाले मध्य क्षेत्र में से गुज़रता है।
  • इस मार्ग पर बहुत अधिक देश स्थित हैं जिनके द्वारा विभिन्न वस्तुओं का व्यापार होता है।
  • इस मार्ग पर ईंधन के लिए कोयला व तेल मिल जाते हैं।
  • इस मार्ग पर छोटे-छोटे कई मार्ग मिल जाते हैं।
  • इस मार्ग पर कई उत्तम बन्दरगाह स्थित हैं।
  • यह नहर तीन महाद्वीपों के केन्द्र पर स्थित है। (It is located at the crossroads of three continents) यहां यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया महाद्वीप के मार्ग निकलते हैं।
  • इस नहर द्वारा इंग्लैंड के साम्राज्य तथा व्यापार की रक्षा होती है। इसलिए इसे ब्रिटिश साम्राज्य की जीवन रेखा (Life Line of British Empire) भी कहते हैं।
  • इस नहर के खुल जाने से दक्षिणी अफ्रीका का चक्कर काटकर आने-जाने की आवश्यकता नहीं रही।

5. व्यापारिक महत्त्व (Commercial Importance)-इस नहर के बन जाने से यूरोप तथा एशिया सुदूर पूर्व के बीच दूरी काफ़ी कम हो गई। कई देशों की दूरी की बचत निम्नलिखित है –

स्थान से स्थान तक दूरी की बचत
1. लन्दन खाड़ी फारस 8800 किलोमीटर
2. लन्दन मुम्बई 8000 किलोमीटर
3. लन्दन सिंगापुर 6000 किलोमीटर
4. लन्दन मम्बासा 4800 किलोमीटर
5. लन्दन जकार्ता 1500 किलोमीटर
6. लन्दन सिडनी 6000 किलोमीटर
7. न्यूयार्क मुम्बई 4000 किलोमीटर
8. न्यूयार्क हांगकांग 8800 किलोमीटर

 

6. व्यापार (Trade)-इस नहर के कारण एशिया तथा यूरोप के बीच व्यापार अधिक हो गया है। नहर को चौड़ा व गहरा करने के कारण अब औसत रूप से 87 जहाज़ प्रतिदिन गुज़र सकते हैं। 1976 में इस नहर में लगभग 20,000 जहाजों ने प्रवेश किया। इस मार्ग पर संसार का 25% व्यापार होता है। इसमें से अधिकतर जहाज़ ब्रिटेन को जाते हैं। 70% जहाज़ तेल वाहक जहाज़ (Oil Tankers) होते हैं। इस मार्ग से यूरोप को कच्चे माल (Raw Materials) जाते हैं तथा यूरोप से तैयार माल व मशीनरी एशिया को भेजी जाती है। एशिया की ओर से कपास, पटसन, चाय, चीनी, काहवा, गेहूं, तेल, ऊन, मांस, डेयरी पदार्थ, रेशम, रबड़, चावल, तांबा, तम्बाकू, चमड़ा आदि पदार्थ यूरोप को भेजे जाते हैं। इस नहर द्वारा भारत का 60% निर्यात तथा 70% आयात व्यापार होता था। परन्तु अब यह व्यापार आशा अन्तरीप मार्ग से होता है।

7. त्रुटियां (Drawbacks)-इस नहर में निम्नलिखित त्रुटियां भी हैं-

  • यह नहर कम चौड़ी व कम गहरी है। इसलिए बड़े-बड़े आधुनिक जहाज़ तथा बड़े-बड़े तेल वाहक जहाज़ (Oil Tankers) नहीं गुज़र सकते हैं।
  • एक पक्षीय यातायात होने के कारण नहर पार करने में समय अधिक लगता है।
  • यह मार्ग बहुत महंगा है। जहाज़ों से बहुत अधिक चुंगी कर (Taxes) वसूल किया जाता है।
  • दोनों ओर से मरुस्थल की रेत उड़-उड़ कर नहर में गिरती है। इसे साफ करने पर बहुत व्यय करना पड़ता है।

8. भविष्य (Future)-स्वेज़ नहर पर आधुनिक सुविधाएं प्रदान करने की योजना है। कई बार म्रिस-इज़राइल
झगड़े के कारण यह नहर बन्द रही है। परन्तु अब संसार का अधिकतर व्यापार आशा अन्तरीप मार्ग पर तेज़ जहाज़ों से होने लग पड़ा है। भविष्य में स्वेज नहर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होगी। (It will not be the same old romantic Suez Canal.)

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प्रश्न 6.
पनामा नहर के भौगोलिक, आर्थिक व राजनीतिक महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
पनामा नहर (Panama Canal)-
1. स्थिति (Location)-यह नहर मध्य अमेरिका (Central America) के पनामा गणराज्य में स्थित है। यह नहर पनामा स्थल डमरू मध्य (Panama Isthmus) को काटकर बनाई गई है।

2. इतिहास (History)-स्वेज़ नहर की सफलता को देखकर पनामा नहर के निर्माण की योजना बनाई गई।
1882 ई० में फर्डिनेण्ड-डी-लैसैप्स ने इस नहर का निर्माण कार्य आरम्भ किया परन्तु पीले ज्वर तथा मलेरिया के कारण हजारों श्रमिक मर गए। अतः यह प्रयत्न असफल रहा। उसके पश्चात् सन् 1904 में संयुक्त राज्य (U.S.A.) सरकार ने इस नहर का निर्माण आरम्भ किया। यह नहर दस वर्ष में 15 अगस्त 1914 को बन कर तैयार हुई। इसके निर्माण पर 712 करोड़ पौंड खर्च हुए। यह नहर संयुक्त राज्य के अधीन है। इस नहर के निर्माण में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इसलिए नहर का सफलतापूर्वक निर्माण आधुनिक विज्ञान की बहुत बड़ी सफलता है। (“The construction of Panama Canal was a great feat of Engineering.”) इस नहर का निर्माण दो खाड़ियों (Bays), एक कृत्रिम झील (Artifical Lake), एक प्राकृतिक झील (Natural Lake) तथा तीन द्वार प्रणालियों (Lock Systems) द्वारा किया गया है। इस नहर का तल समुद्र तल के समान नहीं है। इसका निर्माण कुलबेरा (Culbera) नामक पहाड़ी को काट कर किया गया है। गातुन (Gatun) नामक कृत्रिम झील बनाई गई हैं। इस नहर में तीन स्थानों पर फाटक बनाए गए हैं।

1. गातुन (Gatun) द्वार।
2. पैड्रो मिग्वल (Padromiguel) द्वार।
3. मिरा फ्लोर्स (Miraflore) द्वार।

इन द्वारों को खोलकर जल-स्तर समान किया जाता है। फिर जलयान ऊपर चढ़ाए या नीचे गाटुन बाँध उतारे जाते हैं।
यह दोहरी द्वार प्रणाली (Double Lock System) है जिससे एक ही समय में दोनों ओर यातायात सम्भव है। इस प्रकार जहाज़ों को इस नहर में 45 मीटर तक ऊपर चढ़ना या नीचे उतरना पड़ता है। इस नहर को चार्जेस (Charges) नदी द्वारा जल-विद्युत प्रदान की जाती है जिसके प्रकाश व जलयानों को खींचने की शक्ति मिलती है।
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3. सागर तथा बन्दरगाह (Seas and Ports)—यह नहर प्रशान्त महासागर (Pacific Ocean) तथा अन्ध महासागर (Atlantic Ocean) को मिलाती है। इसे प्रशान्त महासागर का द्वार (Gateway of the Pacific) भी कहते हैं। प्रशान्त तट पर पनामा (Panama) तथा अन्धमहासागर तट पर कालोन (Colon) के बन्दरगाह हैं। यह नहर 8.16 किलोमीटर लम्बी, 12 मीटर गहरी तथा 90 से 300 मीटर चौड़ी है। इस नहर को पार करने में 8 घण्टे लगते हैं। इस नहर में से बड़े-बड़े जहाज़ नहीं गुज़र सकते।

4. महत्त्व (Importance)-(1) इस नहर के निर्माण से अन्ध महासागर तथा प्रशान्त महासागर के बीच दूरी कम हो गई है। (Panama Canal has changed the element of distance in geography of transport.”) इससे पहले दक्षिणी अमेरिका के (सिरे) केप हार्न (Cape Horn) का चक्कर लगा कर जाते थे। इस नहर से सबसे अधिक लाभ संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) को हुआ है। इसके पश्चिमी व पूर्वी तट से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अमेरिका, जापान की बन्दरगाहों की दूरी कम हो गई है। इस नहर के द्वारा यूरोप को कोई विशेष लाभ नहीं है। कई देशों की दूरी की बचत इस प्रकार है –

स्थान से स्थान तक दूरी की बचत
1. न्यूयार्क सान फ्रांसिस्को 1300 किलोमीटर
2. न्यूयार्क सिडनी 6000 किलोमीटर
3. न्यूयार्क हांगकांग 7000 किलोमीटर
4. न्यूयार्क वालपरेसो 6800 किलोमीटर
5. न्यूयार्क टोकियो 6000 किलोमीटर
6. न्यूयार्क सिडनी 700 किलोमीटर
7. न्यूयार्क सान फ्रांसिस्को 9000 किलोमीटर

(2) इस नहर के कारण पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies) का महत्त्व बढ़ गया है।
(3) इस नहर के कारण संयुक्त राज्य संकट के समय एक ही नौ-सेना (Navy) से पश्चिमी व पूर्वी तट की रक्षा कर सकता है।

5. व्यापार (Trade)-इस नहर द्वारा व्यापार में बहुत वृद्धि हुई है। औसत रूप से प्रतिदिन 50 जहाज़ गुजरते हैं।
प्रति वर्ष लगभग 15,000 जहाज़ प्रवेश करते हैं। अन्ध महासागर से प्रशान्त महासागर की ओर अधिक व्यापार होता है। पूर्व की ओर से संयुक्त राज्य व यूरोप से शिल्पी वस्तुएं, खनिज पदार्थ, तेल, मशीनें, दवाइयां, सूती व ऊनी कपड़ा भेजा जाता है। पश्चिमी की ओर से डेयरी पदार्थ, मांस, रेशम, रबड़, चाय, तम्बाकू, नारियल, शोरा, तांबा भेजा जाता है।

6. त्रुटियां (Drawbacks)-इस मार्ग में निम्नलिखित दोष –

  1. इस नहर में बड़े-बड़े जहाज़ नहीं गुज़र सकते।
  2. द्वार प्रणाली के कारण काफ़ी असुविधा रहती है।
  3. इस मार्ग पर बन्दरगाह बहुत कम हैं।
  4. इस नहर के साथ के देश उन्नत नहीं हैं।

7. भविष्य (Future)-दक्षिणी अमेरिका के देश बड़ी तेज़ी से उन्नति कर रहे हैं। इनके विकास के कारण इस मार्ग पर व्यापार बढ़ेगा।

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प्रश्न 7.
भारतीय में तेल तथा गैस पाइप लाइनों की विस्तार से व्याख्या करो।
उत्तर-
पाइप लाइन भी परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इस साधन के द्वारा खास कर तरल पदार्थों का परिवहन किया जाता है। इन पाइप लाइनों की सहायता से तरल पदार्थ जैसे तेल तथा गैस को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाता है। इन पाइप लाइनों की सहायता से कोयले को भी तरल पदार्थ के रूप में एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जाता है। पाइप लाइन द्वारा लेकर जाए जाने वाले स्रोत हैं-पैट्रोलियम तथा पैट्रोलियम से बने पदार्थ, प्राकृतिक गैस, जैविक ईंधन इस तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाये जाते हैं। पंप स्टेशनों को तेल पाइपों के द्वारा ही चलाया जाता है। इसी प्रकार बहुत सारे प्राकृतिक पदार्थों को तरल रूप में तबदील करके इनको पाइप लाइनों के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाता है।

कुछ प्रमुख राष्ट्रीय पाइप लाइनें हैं-
1. तुर्कमेनिस्तान अफगानिस्तान-पाकिस्तान भारत (TAPI पाइप लाइन)-इस पाइप लाइन का विकास एशियाई विकास बैंक द्वारा किया गया तथा यह प्राकृतिक गैस पाइप लाइन है। यह पाइप लाइन, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में से गुजरती है। इस प्रकल्प का प्रारम्भ 13 दिसंबर, 2015 में किया गया तथा 2019 तक पूरी करने की योजना बनाई गई है। इस पाइप लाइन की दिशा उत्तर से दक्षिण तक है। इसकी कुल लंबाई 1814 कि०मी० बनती है।

2. हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर ( HBJ) पाइप लाइन-यह पाइप लाइन मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित विजयपुर या विजैपुर दोनों नामों से पहचानी जाती है। इसलिए इसको HBJ या HVJ कहते हैं। यह पाइप लाइन गैस अथॉरिटी ऑफ इण्डिया की तरफ से बिछाई गयी। इस प्रकल्प का प्रारम्भ 1986 में किया गया तथा 1997 में पूरा हो गया। भारत में गैस परिवर्तन के लिए हजीरा-विजयपुर, जगदीशपुर पाइप लाइन बनाई गई। यह पाइप लाइन 1700 किलोमीटर लम्बी है। यह पाइप लाइन गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश राज्यों में से गुजरती है। इस गैस से विजयपुर, सवाई माधोपुर, जगदीशपुर, शाहजहांपुर, अंबाला, बथराला खाद बनाने की योजना है।

3. नाहरकटिया-नानूमती-बरौनी पाइप लाइन-NNB देश की ऐसी पहली पाइप लाइन है जो कि नाहरकटिया के तेल के कुओं से नानूमती (असम) तक कच्चा तेल पहुंचाने के लिए बिछाई गई थी तथा इसके बाद बरौनी (बिहार) तक इसको बढ़ा दिया गया है। इस पाइप लाइन की लम्बाई 1167 किलोमीटर है तथा अब तक इसको उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर तक बढ़ा दिया गया है। इस पाइप लाइन ने 1962 तक अपना काम आरम्भ कर लिया था तथा इसका बरौनी का भाग 1964 तक क्रियाशील हुआ।

4. जामनगर लोनी LPG पाइप लाइन-यह पाइप लाइन गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) की तरफ 1250 करोड़ की लागत से तैयार की गई है। यह पाइप लाइन 1269 किलोमीटर लम्बी है। यह भारत के गुजरात, राजस्थान, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में से गुजरती है। यह पाइप लाइन दुनिया की सबसे लम्बी पाइप लाइन है तथा यह पाइप लाइन 3 लाख एल० पी०जी० सिलिंडरों जितनी गैस हर रोज़ 1269 कि०मी० की दूरी तक लेकर जाती है। पाइप लाइन द्वारा इस काम के लिए 500 करोड़ रुपये की बचत होती हैं।

5. कांडला-बठिंडा पाइप लाइन-कांडला-बठिंडा पाइप लाइन इण्डियन आयल कार्पोरेशन (IOC) की तरफ
से बठिंडा के तेल शोधक कारखाने को कच्चा तेल पहुंचाने के लिए 2392 करोड़ रुपये के खर्च से तैयार किये गए थे। इस पाइप लाइन की लम्बाई 1443 किलोमीटर है। इस योजना का पहला चरण कांडला से लेकर सांगानौर तक था। यह चरण 1996 में पूरा हो गया था। इस पाइप लाइन का अगला चरण जारी है। यह चरण बठिंडा-जम्मू-श्रीनगर तक गैस पाइप लाइन बिछाने का है।

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प्रश्न 8.
भारतीय वायुमार्ग यातायात का वर्णन करो तथा राष्ट्रीय हवाई अड्डों की जानकारी दो।
उत्तर-
आधुनिक समय में वायुमार्ग यातायात सबसे अधिक तीव्रगामी यातायात है। यह यातायात लम्बे सफर के लिए बहुत लाभदायक है। आज के समय में संसार भर में वायु यातायात उपलब्ध है। भारतीय घनी आबादी वाले देशों में वायुमार्ग मौजूद है। भारत में वायु यातायात का प्रारम्भ 1911 में हुआ। इसके बाद भारत में कई हवाई अड्डों का निर्माण हो गया। संसार में वायु मार्गों का विकास प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् हुआ। इसमें मार्गों के निर्माण पर खर्च नहीं होता केवल हवाई अड्डों का निर्माण करना पड़ता है। 1947 में देश की आजादी के समय चार मुख्य कंपनियों के द्वारा ही हवाई यातायात शुरू किया। ये कंपनियां थीं टाटा-सन्ज लिमिटेड, इण्डियन नैशनल एयरवेज़, एयर सर्विस आफ इंडिया तथा डैकन ऐयरवेज़। 1951 तक 4 और कंपनियों ने भारत में हवाई यातायात के लिए काम शुरू कर दिया। इसके बाद कंपनियों का स्वामित्व भारत सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया तथा दो कॉर्पोरेशनें बना दीं। एयर इंडिया तथा इण्डियन एयरलाइन्ज/परंतु आज ये कॉर्पोरेशनें एक ही हो चुकी हैं।

Airports Authority of India की तरफ से दी गई जानकारी से पता चलता है कि 30 राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं तथा 400 के करीब घरेलू हवाई अड्डे हैं, जबकि विदेशी कंपनियों के जहाजों को सिर्फ राष्ट्रीय हवाई अड्डों से ही उड़ानें भरने की अनुमति है।

पंजाब में इस समय दो राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं जो अमृतसर तथा मोहाली में हैं तथा पंजाब में राष्ट्रीय हवाई अड्डों के अलावा बठिंडा, साहनेवाल, पटियाला तथा पठानकोट में घरेलू हवाई अड्डे हैं।

यू०एस०ए०, यूरोप तथा आसियान की विदेशी कंपनियों को भारत में उड़ानों को भरने की मन्जूरी दिए जाने के बाद कई प्राइवेट कंपनियों ने जिनमें एयरवेज, स्पाइस जैट, गो इंडिगो, किंग फिशर, विस्तारा इत्यादि के जहाज़ भी अब भारत के देशी तथा विदेशी उड़ानें चला रहे हैं।

संसार में हवाई मार्गों का विकास विश्वयुद्ध के बाद हुआ। आजकल इसका बहुत बड़ा महत्त्व है। यह एक तेज़ गति वाला साधन है। इस में मार्गों के निर्माण में कोई खर्च नहीं होता। इससे पर्वतों, विशाल महासागरों व मरुस्थलों के पार पहुँचा जा सकता है। जहां दूसरे साधन नहीं पहुँच सकते। विभिन्न संस्कृतियों के बड़े-बड़े नगरों के वायुमार्गों द्वारा जुड़े होने से अंतर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है।
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वायु मार्गों के गुण तथा दोष-
संसार के वायु मार्गों का विकास पहले विश्व युद्ध के पश्चात् हुआ। आजकल इसका बहुत बड़ा महत्त्व है। यह एक तीव्रगामी साधन है। इसमें मार्गों के निर्माण पर कोई खर्च नहीं होता। केवल हवाई अड्डों का निर्माण करना पड़ता है। इससे पर्वतों, विशाल महासागरों व मरुस्थलों के पार पहुंचा जा सकता है। जहाँ दूसरे साधन नहीं पहुँच सकते। विभिन्न संस्कृतियों के बड़े-बड़े नगरों के वायु मार्गों द्वारा जुड़े होने में अंतर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है।
परंतु इस साधन पर व्यय बहुत होता है। इसका व्यापारिक महत्त्व भी अधिक नहीं है। वायुयानों द्वारा यात्रियों, डाक व शीघ्र खराब होने वाले पदार्थों का परिवहन होता है।

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प्रश्न 9.
व्यापार से आपका क्या भाव है ? इसकी किस्मों का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
वस्तुओं की क्रय-विक्रय/लेन-देन/खरीद-वेच को व्यापार कहते हैं। यह व्यापार की क्रिया खरीददार तथा विक्रेता के बीच का लेन-देन होता है। व्यापार मुख्य रूप में दो प्रकार का होता है।

1. निजी व्यापार-जो व्यापार निजी तौर पर या दो या अधिक लोगों के मध्य होता है वह छोटे स्तर का व्यापार होता है।
2. राष्ट्रीय स्तर का व्यापार-इस प्रकार के व्यापार में वस्तुओं को खरीदना बेचना राष्ट्रीय स्तर पर होता है। ज्यादातर राष्ट्रीय सीमाओं या इलाकों के पार किया व्यापार राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। राष्ट्रीय व्यापार करने के कई कारण हैं-

  1. किसी देश में प्राकृतिक साधनों की कमी।
  2. देश में वस्तुओं की मांग तथा पूर्ति में अंतर।
  3. तकनीकी साधनों की कमी कारण कई बार वस्तुएं किसी अन्य देश से मंगवानी पड़ती हैं।
  4. भौगोलिक भिन्नता के कारण स्रोतों में अंतर आ जाता है।
  5. व्यापारिक नीति तथा आर्थिक विकास में अंतर।
  6. देशों के आपसी संबंध।

विश्व व्यापार संगठन (WTO)- सन् 1995 में गैट का रूप बदलकर विश्व व्यापार संगठन बनाया गया। यह जेनेवा में एक स्थायी संगठन के रूप में कार्यरत है तथा यह व्यापारिक झगड़ों का निपटारा भी करता है। यह संगठन सेवाओं के व्यापार को भी नियंत्रित करता है, किंतु इसे अभी भी महत्त्वपूर्ण कर रहित नियंत्रणों जैसे निर्यात निषेध, निरीक्षण की आवश्यकता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा स्तरों तथा आयात लाइसैंस व्यवस्था, जिनसे आयात प्रभावित होता है, को सम्मिलित करना शेष है।

भारत सरकार की तरफ से Indian Institute of Foreign Trade की स्थापना की गयी है। इन संस्था की स्थापना 1963 में की गयी। यह भारत के पहले 10 चोटी के व्यापारिक तथा कारोबारी आदारों में एक संस्था है। इस संस्था के आदारे नई दिल्ली तथा कोलकाता में मौजूद है।
मौजूदा समय में 120 से अधिक क्षेत्र व्यापार संगठन संसार का 52% व्यापार कंट्रोल कर रहे हैं।

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परिवहन/यातायात, संचार तथा व्यापार PSEB 12th Class Geography Notes

  • वस्तुओं तथा यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने को यातायात कहते हैं। किसी भी देश के ।
    विकास के लिए यातायात से संबंधित गतिविधियां एक अहम भूमिका निभाती हैं। यातायात सुविधाओं को | मुख्य रूप में तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

    • स्थल मार्ग यातायात
    • जल मार्ग यातायात
    • वायु मार्ग यातायात
  • स्थल मार्ग यातायात में सड़कें तथा रेलवे प्रारंभिक यातायात के साधन हैं।
  • भारतीय यातायात का तंत्र एक विशाल प्रसार है। 1950-51 में कुल स्थल मार्ग 4 लाख किलोमीटर था जो कि 2007-08 में 33.1 लाख कि०मी० तक पहुँच गया।
  • सड़कों का जाल पसारने के लिए कई योजनाएं, जैसे कि नागपुर पलान बीस वर्षीय, ग्रामीण सड़क विकास योजना, बी०ओ०टी० केंद्रीय सड़क फंड इत्यादि देश में चल रही हैं।
  • सड़कों में ग्रामीण सड़कें, जिला, राज्य, राष्ट्रीय शाह मार्ग इत्यादि वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा प्रोजैक्ट देश के हर कोने तक बढ़िया सड़क-मार्गों का जाल | पसारने के लिए बनाया गया। इस योजना की देख-रेख की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय हाईवे एथारिटी ऑफ इंडिया के सुपुर्द की गई।
  • भारत में राष्ट्रीय शाहमार्ग प्रबंध, भारत सरकार की एजैन्सी की ओर से चलाया तथा संभाला जाता है।
  • भारतीय रेलवे तीन गेज पर गाड़ियां चलाती हैं-चौड़ी गेज पटरी, मीटर गेज पटरी तथा संकीर्ण गेज पटरी।
  • भारतीय रेलवे के कुल 18 ज़ोन हैं।
  •  संसार की पहली रेलवे लाइन 1863 से 1869 के बीच अमेरिका में बिछाई गई।
  • ट्रांस साइबेरियाई रेल मार्ग मास्को से रूस के पूर्व में व्लादिवोस्तोक तक 9,289 किलोमीटर लंबा है। यह विश्व का सबसे लंबा रेल मार्ग है।
  • स्वेज नहर लाल सागर तथा रोम सागरों को आपस में जोड़ती है।
  • पनामा नहर अंधमहानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई को तेज़ी से चलने वाली रेल गाड़ी के तंत्र जोड़ने की योजना को डायमंड चतुर्भुज कहते हैं।
  • भारत में अर्ध तेज़ रफ़्तार रेलवे गलियारे हैं।
  • पाइप लाइन द्वारा तरल गैसीय पदार्थों की स्थान बदली की जाती है।
  • जब हम अपने विचारों, संदेश, भावनाओं को लिखकर या बोलकर दूसरों तक पहुँचाते हैं, उसे संचार कहते हैं। इसके दो मुख्य प्रकार हैं-
    • व्यक्तिगत संचार,
    •  जन-संचार।
  • यातायात-वस्तुओं तथा मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने को यातायात कहते हैं।
  • यातायात के साधनों की किस्में-यातायात के साधनों को मुख्य रूप में तीन किस्मों में विभाजित किया जाता ‘ है-स्थल, जल तथा वायु मार्ग।
  • राष्ट्रीय शाह मार्ग-राष्ट्रीय मार्गों का निर्माण तथा देखभाल भारत की केंद्र सरकार करती है। इस तरह की सड़कें राज्यों की राजधानियों, बंदरगाहों और नामवर तथा महत्त्वपूर्ण शहरों को आपस में मिलाती हैं।
  • सुनहरी चतुर्भुज सड़क मार्ग-इस प्रोजैक्ट में भारत के चार महानगर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता को सड़क-मार्ग से जोड़ा गया है तथा इसका चतुर्भुज आकार होने के कारण इसको चतुर्भुज मार्ग कहते हैं।
  • बंदरगाह-भारत में 12 मुख्य बंदरगाहें हैं।
  • जलमार्गों की किस्में-
    • आंतरिक जल मार्ग
    • समुद्री जल मार्ग।
  • संचार-जब हम अपने संदेश, भाव, विचारों को लिखकर या बोलकर पहुँचाते हैं इस क्रिया को संचार कहते हैं।
  • संचार की किस्में-
    • व्यक्तिगत संचार
    • जन संचार।
  • व्यापार-वस्तु को बेचने तथा खरीदने की क्रिया को व्यापार कहते हैं।
  • भारत में ईंधन, खनिज तेल, खनिज मोम, जैविक रसायन फार्मेसी उत्पादन तथा चीजें निर्यात (बरामद) की जाती हैं। पैट्रोल, खनिज, मशीनरी, खादें, लोहा इस्पात, मोती के कीमती पत्थर, सोना-चांदी, खुराकी तेल, कागज़, दवाइयां, फर्नीचर इत्यादि का आयात (दरामद) किया जाता है।