Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 11.ii अहसास Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 11.ii अहसास
Hindi Guide for Class 10 PSEB अहसास Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
स्कूल बस पर छात्र-छात्राएँ कहाँ जा रहे थे?
उत्तर:
स्कूल बस पर छात्र-छात्राएँ शैक्षिक भ्रमण के लिए रोज़ गार्डन जा रहे थे।
प्रश्न 2.
छात्राएँ बस में क्या कर रही थीं?
उत्तर:
छात्राएँ बस में अंताक्षरी खेल रही थीं।
प्रश्न 3.
दिवाकर बस में बैठा क्या देख रहा था?
उत्तर:
दिवाकर बस में बैठकर खिड़की के बाहर वृक्षों को तथा दूर तक फैले आसमान को देख रहा था।
प्रश्न 4.
दिवाकर को अपने मन में अधूरेपन का अहसास क्यों होता था ?
उत्तर:
दिवाकर अपाहिज था और दूसरे बच्चों की भाँति उछल-कूद नहीं पाता था। इसलिए उसे अपने मन में अधूरेपन का अहसास होता था।
प्रश्न 5.
कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राएँ क्या देखकर डर गए?
उत्तर:
कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राएँ साँप को देखकर डर गए।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
दिवाकर की नए स्कूल में किसने मदद की?
उत्तर:
दिवाकर पिता की ट्रांसफर होने के कारण गाँव के स्कूल से शहर आया था। यहाँ शहर के स्कूल में वह स्वयं को अधूरा समझ रहा था। उसकी शारीरिक अपंगता उसे दूसरों से अलग करती थी। वह न ही उनके साथ खेल-कूद कर पाता था और न ही भाग-दौड़ पाता था। ऐसे समय में उसकी अध्यापिका नीरू ने अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से उसका हौसला बढ़ाया तथा समय-समय पर उसकी मदद भी की।
प्रश्न 2.
दिवाकर बैंच पर बैठकर क्या सोच रहा था?
उत्तर:
जिस समय सभी बच्चे रोज़ गार्डन में खेल-कूद रहे थे। झूला-झूल रहे थे। उस समय वहीं पास में एक बैंच पर बैठा दिवाकर अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था। वह दो साल पहले की घटना को याद कर, उसी में खोया था। उसे याद आता है कि दो साल पहले जब वह अपनी बड़ी मौसी के घर दिल्ली गया था तब उसने वहाँ फन सिटी में कितना मज़ा किया। उस समय फ़न सिटी में कितना खेला-कूदा था। वहाँ उसने खूब मस्ती की थी। यही सब विचार/ यादें उसके दिमाग में घूम रही थीं।
प्रश्न 3.
साँप को देखकर दिवाकर क्यों नहीं डरा?
उत्तर:
शहर में आने से पहले दिवाकर गाँव के स्कूल में पढ़ता था। वहाँ उसने खेतों में कई बार साँप और अन्य जानवरों को देखा था। उसके लिए साँप को देखना कोई नई और डर की बात नहीं थी। इसके साथ-साथ वह एक साहसी, निडर और कर्मशील बालक था। उसने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए अपने विवेक और वैसाखी का सहारा लेकर सॉप को दूर फेंक दिया था।
प्रश्न 4.
दिवाकर ने अचानक साँप को सामने देखकर क्या किया?
उत्तर:
दिवाकर.अचानक साँप को देखकर तनिक भी घबराया नहीं जबकि अन्य छात्र-छात्राएँ डर के मारे काँप रहे थे। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था। ऐसे में दिवाकर ने बड़े ही धीरज से काम लिया। उसने बिना डरे और घबराए अपनी वैसाखी से साँप को उठाकर दूर फेंक दिया।
प्रश्न 5.
दिवाकर को क्यों पुरस्कृत किया गया?
उत्तर:
दिवाकर को जब उसकी साँप को वैसाखी से दूर फेंकने संबंधी वीरता, साहस एवं सूझ-बूझ के लिए प्रात:कालीन सभा में प्राचार्य महोदय द्वारा सम्मानित किया गया तो उस समय वह स्वयं को अधूरा अथवा अपाहिज न समझकर स्वयं को पूर्ण समझ रहा था। अब उसे दूसरों को देखकर स्वयं में कोई कमी का अहसास नहीं हो रहा था।
प्रश्न 6.
लघुकथा ‘अहसास’ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘अहसास’ एक सामाजिक लघुकथा है। इसमें लेखिका ने एक बालक को शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाया है। लेखिका प्रायः यथार्थ की पृष्ठभूमि पर अपनी कहानियों की रचना करती हैं। मानवतावाद का समर्थन करना ही उनका प्रमुख उद्देश्य रहा है। उनकी लघु कथा ‘अहसास’ शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों में आत्म-विश्वास जगाने वाली एक प्रेरणादायक लघुकथा है। लेखिका का विचार है कि समाज में शारीरिक अक्षमता को किसी की कमी न समझकर उसका हौसला बढ़ाना चाहिए। अपनी लघुकथा में लेखिका उद्देश्य को स्पष्ट करने में पूर्णतया सफल रही है।
प्रश्न 7.
‘अहसास’ नामकरण की सार्थकता स्पष्ट करो।
उत्तर:
कहानी का शीर्षक प्राय: कहानी के मूलभाव तथा उसकी प्रभावोत्पादक शक्ति का परिचायक होता है। शीर्षक सम्पूर्ण कहानी का निचोड़ होता है। यह कहानी की मूलभावना का प्रतीक होता है। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘अहसास’ है। यह शीर्षक अत्यंत आकर्षक, भावपूर्ण तथा जिज्ञासामय है। कहानी में दिवाकर जब प्रात:कालीन सभा में प्राचार्य द्वारा सम्मानित होता है तो उसे स्वयं में पूर्णता का अहसास होता है। उसके नीरस जीवन में सरसता का संचार हो जाता है। उसके मन का बदला यह भाव और अहसास ही कथा का शीर्षक बना है। इस प्रकार लघुकथा का शीर्षक उपयुक्त तथा अनुकूल है। सारी लघुकथा शीर्षक ‘अहसास’ से ही जुड़ी है तथा केंद्रित भी है।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएँ
खामोश = ……………
व्यवहार = ………….
सम्मान = …………..
बहादुरी = …………..
रंग = ……………….
हिम्मत = ………………….
उत्तर:
खामोश = खामोशी
व्यवहार = व्यावहारिक
सम्मान = सम्मानित
बहादुरी = बहादुर
रंग = रंगीन
हिम्मत = हिम्मती
II. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
मुहावरा = अर्थ = वाक्य
i. चेहरे का रंग उड़ जाना = डर जाना = …………..
ii. पीठ थपथपाना = शाबास देना = ……………
iii. जान में जान आ जाना = राहत महसूस करना = ………………
उत्तर:
i. अपने कमरे में साँप को देखते ही रुचि के चेहरे का रंग उड़ गया था।
ii. पापा ने अनुज के परीक्षा में अंकों को देख पीठ थपथपाई थी।
iii. उस अंधेरी रात में घर पहुँच कर हम सबकी जान में जान आ गई थी।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
‘प्रश्न 1.
आपने अपने सहपाठी की किसी प्रकार की मदद की हो तो अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
यह घटना पिछले वर्ष की है। हमारे विद्यालय में पारितोषिक वितरणोत्सव मनाया गया था। हमारी कक्षा में कई विद्यार्थी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए चयनित हुए थे। उत्सव के दो दिन पहले मैं और मोहन हम दोनों विद्यालय से घर वापस जा रहे थे। तभी अचानक सड़क पार करते समय मोहन एक कार की चपेट में आ गया। उसके हाथ और पैर से खून निकल रहा था। मैंने तुरंत उसे उठाया और एक आटो रिक्शा में बैठा कर अस्पताल लेकर गया। वहाँ उसका इलाज करवाया। इसके बाद उसके माता-पिता को सारी घटना बताई। डॉक्टर ने कहा कि मैं सही समय पर मोहन को अस्पताल ले आया। यदि कुछ देर हो जाती तो उसकी जान पर खतरा बन सकता था। लेकिन मेरी सर्तकता और सूझ-बूझ के कारण उसकी जान बच गई।
प्रश्न 2.
अपने स्कूल के किसी शैक्षणिक भ्रमण का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा विद्यार्थियों के लिए बड़ी लाभप्रद है। ऐतिहासिक स्थलों पर पहुँच कर हम स्वयं, मानो इतिहास का अंग बन जाते हैं। इतिहास जीवित होकर मानों हमारे सामने साकार हो उठता है। ऐसी यात्राओं के द्वारा हम अपने इतिहास को सही दृष्टि से देखते हैं। ऐतिहासिक स्थलों तथा इतिहास के प्रति हमारे ज्ञान में वृद्धि के लिए हमारे विद्यालय से शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन हुआ। हमारी यह यात्रा भारत की राजधानी की थी। हमारी उस ऐतिहासिक यात्रा का वर्णन निम्न प्रकार से है-
लाल किला-फरवरी मास में हमें अपने विद्यालय की ओर से दिल्ली की यात्रा के लिए ले जाया गया। हम पचास छात्र थे, हमारे साथ थे हमारे इतिहास के अध्यापक। हमने अपना सामान ‘क्लॉक रूम’ में रखा और नाश्ता करके हम लाल किला देखने चल पड़े। लाल पत्थर का यह किला शाहजहां ने बनवाया था ऐसा माना जाता है। दिल्ली से पहले मुग़लों की राजधानी आगरा थी। यह लाल किला मुग़ल वंश के इतिहास के साथ तो जुड़ा ही है, स्वतंत्र भारत के लिए भी इसका महत्त्व कम नहीं है।
नेता जी सुभाष की याद-लाल किले को देखकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की याद ताज़ा हो उठी। उन्होंने इसी किले पर अपने राष्ट्र’ का ध्वज फहराने का संकल्प किया था और अब हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस को प्रधानमंत्री तिरंगा झंडा फहरा कर यहीं से राष्ट्र के नाम अपने संदेश प्रसारित करते हैं। आज़ाद हिंद सेना के वीरों पर मुकद्दमा भी इसी किले में चलाया गया था। अब यहाँ राष्ट्रीय अजायब घर है, जिसमें ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं।
चाँदनी चौक और कुतुबमीनार-लाल किले के सामने चाँदनी चौक है। यह भी मुग़लों के समय का महत्त्वपूर्ण बाज़ार है। इसका महत्त्व अब भी कम नहीं हुआ है। यहाँ से हम बस में बैठ कर कुतुबमीनार पहुँचे। बहुत से इतिहासकारों का मत है कि कुतुबमीनार कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित करवायी गई थी, किन्तु कुछ अन्य इतिहासकार इसे एक भारतीय सम्राट् द्वारा निर्मित ध्रुवस्तंभ मानते हैं। उनके मतानुसार इसका निर्माण ज्योतिष शास्त्र के नियमों के अनुसार नक्षत्रों और ग्रहों का अध्ययन करने के लिए करवाया गया था। वे इसका संबंध कुछ दूरी पर बनी ‘जंतर मंतर’ नामक खुली वेधशाला से जोड़ते हैं जहाँ नक्षत्रों आदि की गति जानने के लिए काफ़ी विशद् प्रबंध किये गए हैं। ‘जंतर-मंतर’ को देखकर हम अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक दृष्टि पर आश्चर्यचकित रह गए।
बिरला मंदिर-अब हम लोग बिरला मंदिर गए। इसी मंदिर में प्रार्थना सभा में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या की गई थी। इस मंदिर को सभी संप्रदायों के देवताओं और महापुरुषों से संबंधित करके राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाने की कोशिश की गई है। यहीं हमने भोजन भी किया।
राष्ट्रपति भवन-अब हम लोग संसद् भवन, सचिवालय तथा राष्ट्रपति भवन देखने गए। सौभाग्य से राष्ट्रपति भवन के मुग़ल-बाग दर्शकों के लिए खुले थे। इन्हें केवल फरवरी मास में ही खोला जाता है। असंख्य फूलों से भरे इस उपवन ने हमारे मन मोह लिए। सुंदर मोर और हिरण यहाँ-वहाँ घूम रहे थे। लगभग एक घंटा वहाँ रुकने के बाद हम होटल लौट आए।
राजघाट तथा शांति वन-कुछ देर आराम करने के पश्चात् हम राजघाट तथा शांति वन गए। यहाँ क्रमश: महात्मा गाँधी तथा जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित की। स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री की समाधि देखने विजयघाट भी गए। लौटते समय हम जामा मस्जिद भी गए। यहाँ से सभी लोग स्कूटरों पर बैठ कर कनाट प्लेस चले। दिल्ली का सारा सौन्दर्य शाम को वहाँ उमड़ आता है। यहाँ हमने टी हाउस में चाय पी थी। भीड़ को देखकर तो हम एकदम ही दंग रह गए। हम वहाँ अधिक देर नहीं ठहर सके, क्योंकि रात की गाड़ी से हमें लौटना भी तो था।
दिल्ली भारत का ही नहीं विश्व का एक प्रमुख शहर है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। मैं समझता हूँ दिल्ली के भ्रमण के लिए कम-से-कम एक सप्ताह का कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
(I) 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर बहादुर बच्चों का वृत्तांत इंटरनेट पर देखें-उनकी बहादुरी के किस्सों को पढ़ें और अपने मित्रों को सुनाएं।
(II) शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले उन महान चरित्रों की सूची बनाएँ-जिन्होंने अपने आत्म-विश्वास के बल पर चुनौतियों का सामना करते हुए अपने जीवन के मकसद को हासिल किया-उनमें हैलन-कैलर का नाम गर्व से लिया जाता है जो देखने, बोलने और सुनने में असमर्थ होने के बावजूद भी शिक्षा के उच्चतम शिखर पर पहुँची। इसी तरह ‘सुधा चंद्रन’ प्रसिद्ध नर्तकी-जिसकी एक दुर्घटना में टांग चली गई थी, ने अपनी मेहनत और विश्वास के बलबूते पर नृत्य के क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल किया इसी तरह के अन्य चरित्रों के बारे में इंटरनेट से जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
‘अहसास’ लघुकथा जीवन में निरंतर संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देती है। हमारे जीवन में अनेक कठिनाइयां आती रहती हैं, यदि हम उनसे घबरा कर हाथ पर हाथ रखे बैठ जाएंगे तो कभी भी उन्नति नहीं कर सकते। इसलिए मुसीबतों तथा कठिनाइयों का डट कर सामना करना चाहिए। अष्टावक्र आठ स्थानों से टेढ़े होते हुए भी अपनी विद्वता से सब को अपना लोहा मना सके। सूरदास, मिल्टन आदि अंधे होकर भी महान कवि बने। लुई ब्रेल ने अंधों के लिए ब्रेललिपि का आविष्कार कर उन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर दिया। ऐसे ही अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जो आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, सही सोच तथा संघर्षरत रहकर हमें अपना लक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए ‘ईश्वर भी उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं’ कथन के अनुसार पहल स्वयं ही करनी होगी। जब हम कर्म करने के लिए तत्पर हो जाते हैं तो हमारे साथ केवल हमारे दो हाथ ही नहीं परमात्मा के हज़ारों हाथ भी साथ होते हैं।
PSEB 10th Class Hindi Guide अहसास Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘अहसास’ शीर्षक कहानी किस तरह की कहानी है?
उत्तर:
‘अहसास’ शीर्षक कहानी शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों में आत्म विश्वास जगाने वाली एक प्रेरणादायक लघुकथा है।
प्रश्न 2.
परीक्षा के तुरंत बाद किस कार्यक्रम का आयोजन हुआ?
उत्तर:
परीक्षा के तुरंत बाद शैक्षिक भ्रमण के आयोजन का कार्यक्रम निश्चित किया गया।
प्रश्न 3.
दिवाकर की टाँग कैसे टूट गई थी?
उत्तर:
पिछले वर्ष हुई एक दुर्घटना में दिवाकर की टाँग टूट गई थी।
प्रश्न 4.
दो वर्ष पहले दिवाकर कहाँ गया था? वहाँ उसने क्या किया था?
उत्तर:
दो वर्ष पहले दिवाकर अपनी बड़ी मौसी के घर दिल्ली गया था। वहां उसने फन सिटी में खूब मस्ती की थी।
प्रश्न 5.
सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लड़के और लड़कियाँ कहाँ बैठे थे?
उत्तर:
सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लड़के और लड़कियाँ वृक्षों के नीचे घर पर समूह बनाकर बैठे थे।
प्रश्न 6.
दिवाकर को अपनी पूर्णता का अहसास कैसे हुआ?
उत्तर:
प्रात:कालीन सभा में सम्मानित होने के बाद तालियों की गड़गड़ाहट में दिवाकर को अपनी पूर्णता का अहसास हुआ।
प्रश्न 7.
दिवाकर के लिए स्कूल नई जगह क्यों था?
उत्तर:
दिवाकर पहले गाँव के स्कूल में पढ़ता था। वह शहर के स्कूल में अभी कुछ दिन पहले ही आया था। इसलिए स्कूल उसके लिए नई जगह थी।
प्रश्न 8.
‘अहसास’ किस प्रकार की रचना है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
‘अहसास’ एक लघुकथा है। इसका कथानक अत्यंत छोटा है। छोटा कथानक होने के बावजूद इसका संदेश अत्यंत व्यापक एवं सटीक है। यह लघुकथा शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों में आत्म-विश्वास जगाने वाली प्रेरणादायक लघुकथा है।
प्रश्न 9.
लघुकथा ‘अहसास’ के आधार पर बताइए देश के सच्चे निर्माता कौन हैं?
उत्तर:
देश के सच्चे निर्माता देश के वे सभी लोग हैं जो अपने-अपने गांव-नगर में जन-सामान्य के प्रति मानवतापूर्ण व्यवहार करते हैं। वे प्रचार और प्रदर्शन की अपेक्षा चुपचाप दीन-हीन असहाय लोगों की सहायता करते हैं तथा उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठाने में उनकी भरसक सहायता करते हैं। लघुकथा ‘अहसास’ में नीरू मैडम भी दिवाकर को समय समय पर हौसला तथा प्रेरणा देकर उसके जीवन को आगे बढ़ाने में उसकी सहायता करती हैं।
प्रश्न 10.
‘अहसास’ लघुकथा की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए
उत्तर:
प्रस्तुत लघुकथा की भाषा सरल तथा पात्रानुकूल है। आवश्यकतानुसार लेखिका ने अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों-ट्रांसफर, स्कूल, रोज़-गार्डन, रिफ्रेशमैंट, सिटी आदि का प्रयोग किया है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से इनका तत्सम शब्दों के प्रति विशेष लगाव है। इन्होंने यत्र-तत्र, विदेशी, तद्भव, देशज शब्दों का भी सहज रूप से प्रयोग किया है। इनकी भाषा में मुहावरों के प्रयोग से शक्ति वक्रता उत्पन्न हुई है।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बेटे ने बसंती को पत्र में क्या लिखा था?
उत्तर:
उसकी तरक्की हो गई है और उसे कम्पनी की ओर से बहुत बड़ी कोठी मिली है, इसलिए वह उसके पास रहने के लिए आ जाए।।
प्रश्न 2.
बेटा माँ को नौकर के हवाले क्यों कर गया?
उत्तर:
बेटे की पत्नी काम पर तथा बच्चे स्कूल जा चुके थे।
प्रश्न 3.
स्कूल बस कहाँ के लिए रवाना हो चुकी थी?
उत्तर:
स्कूल बस एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण के लिए रवाना हो चुकी थी।
प्रश्न 4.
दिवाकर को किसने हिम्मत दी?
उत्तर:
दिवाकर को कक्षा अध्यापिका नीरू मैडम के स्नेहपूर्ण व्यवहार ने हिम्मत दी।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
तालियों की गड़गड़ाहट में दिवाकर को अपनी किस बात का अहसास हो रहा था?
(क) अपूर्णता
(ख) पूर्णता
(ग) विजय
(घ) पराजय।
उत्तर:
(ख) पूर्णता
प्रश्न 2.
शहर में नौकरों वाला कमरा किसे दिया गया था?
(क) रोशमा को
(ख) बसंती को
(ग) बचनी को
(घ) भागो को।
उत्तर:
(ग) बचनी को
प्रश्न 3.
दिवाकर ने बैसाखी से किसे उठाकर दूर फेंक दिया?
(क) साँप को
(ख) कुत्ते को
(ग) चूहे को
(घ) बिल्ली को।
उत्तर:
(क) साँप को
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
बसंती को जिस कमरे में ठहराया गया, वह उसे कैसा लगा? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
स्वर्ग
प्रश्न 2.
वह डरती-डरती बैड पर बैठ गई। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 3.
दिवाकर वैशाखियों के सहारे चलता था। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 4.
छात्राएँ लुकन-छिपाई खेल रही थीं। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 5.
बेटे की ज़िद के आगे बसंती की एक न चली। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
सही
प्रश्न 6.
बहुत ……….. गदे थे।
उत्तर:
नर्म
प्रश्न 7.
नई ………… नए लोग।
उत्तर:
जगह
प्रश्न 8.
तुमने तो ………… कर दिया।
उत्तर:
कमाल।
अहसास कठिन शब्दों के अर्थ
अहसास = महसूस करना। भ्रमण = घूमना। फौरन = तुरंत। आसमा = आसमान। दिक्कत = परेशानी। अचानक = सहसा। पीठ थपथपाना = शाबाशी देना। निगाहें = नज़रें, दृष्टि। कमाल = एक दम अलग, अनोखा। प्रातः कालीन = सुबह का समय। प्राचार्य = प्रिंसीपल। चेहरे का रंग उड़ना = डर जाना। सम्मानित करना = आदर-सम्मान देना। पुरस्कृत करना = पुरस्कार देना। रिफ्रैंशमेंट = खाने के लिए कुछ देना। विकट = कठिन। सौहार्दपूर्ण व्यवहार = अच्छा एवं मधुर व्यवहार। रवाना होना = चले जाना। अन्ताक्षरी = एक प्रकार का संगीत से जुड़ा हुआ मनोरंजक खेल। शैक्षिक भ्रमण = शिक्षा संबंधी भ्रमण के लिए विद्यार्थियों का जाना।
अहसास Summary
अहसास लेखिका परिचय
जीवन परिचय-ऊषा० आर० शर्मा का जन्म 24 मार्च, सन् 1953 में मुंबई में हुआ था। इन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों में अपने विद्यालय स्तर की शिक्षा प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र और लोक प्रशासन से एम० ए. की परीक्षा पास की। शिक्षा के प्रति इनका अत्यधिक लगाव था। इन्होंने शिक्षा विषय में स्नातक स्तर पर विशेष रूप से शिक्षा ग्रहण की। कई वर्षों तक इन्होंने भारतीय-प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) की सदस्या के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे शिक्षा और लेखन के क्षेत्र में निरंतर मार्गदर्शन का कार्य कर रही हैं। इनकी साहित्य और कला में गहरी रुचि थी। संगीत, नाटक तथा रंगमंच के कार्यक्रमों में भाग लेना इनकी इसी कला और प्रतिभा का साक्षात् उदाहरण है। पंजाब भाषा विभाग की ओर से इन्हें ज्ञानी संत सिंह पुरस्कार और सुदर्शन पुरस्कार दिए गए। इन्हें पंजाब साहित्य अकादमी के द्वारा ‘वीरेंद्र सारस्वत सम्मान’ प्रदान किया गया।
रचनाएँ-ऊषा आर० शर्मा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। इन्होंने विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलायी है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
एक वर्ग आकाश, पिघलती साँकलें, भोज पत्रों के बीच, दोस्ती हवाओं से, परिंदे धूप के, बूंद-बूंद अहसास, सूरज मेरा तुम्हारा और बीहड़ के फूल (सभी काव्य संग्रह) हाशिए पर बिंदु, क्यों न कहूँ आदि।
इनके कहानी-संग्रह, काव्य-संग्रह तथा कथा-संग्रह पर शोध कार्य का काम भी हो चुका है।
साहित्यिक विशेषताएँ-ऊषा आर० शर्मा जी ने गद्य एवं पद्य दोनों प्रकार की रचनाएँ लिखीं। ये लेखिका और कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित हुईं हैं। इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव तथा विदेशी सभी प्रकार के शब्द मिल जाते हैं। उनकी शैली कवित्वपूर्ण, प्रेरणादायी एवं रोचक है। वे कम-से-कम शब्दों में छोटे-छोटे वाक्यों के माध्यम से अपनी बात कहने में सिद्धहस्त हैं।
अहसास कहानी का सार
‘अहसास’ ऊषा० आर० शर्मा द्वारा रचित एक लघुकथा है। इस कहानी में लेखिका ने शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले एक अपाहिज बच्चे की कहानी द्वारा लोगों में एक अहसास जगाने का प्रयास किया है। विद्यालय में परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी थीं। इसके तुरन्त बाद एक शैक्षिक भ्रमण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। भ्रमण को लेकर बच्चों में गहरी रुचि थी। स्कूल बस में सभी के मन और तन हर्षित लग रहे थे। कोई अंताक्षरी खेल रहा था तो कोई मस्ती में झूम रहा था। लेकिन इन सबके बीच दिवाकर चुप-चाप, गुम-सुम सा बैठा हुआ था। वह बस की खिड़की से अंदर-बाहर देख रहा था। उसके पिता का ट्रांसफर हाल ही में हुआ था। पहले वह गाँव के स्कूल में पढ़ता था।
वह शारीरिक रूप से अपाहिज था। उसे वैशाखियों का सहारा लेकर चलना पड़ता था। उसकी अध्यापिका नीरू का व्यवहार तथा प्यार उसकी हिम्मत को बढ़ाता था। जल्दी ही रोज़ गार्डन आ गया। सभी छात्र-छात्राएँ खुशी से झूमते हुए पार्क में पहुँचे। पार्क में तरह-तरह के झूले थे। रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। अध्यापिका नीरू बच्चों को रिफ्रेशमेंट बाँट रही थी। वहीं पास में दिवाकर एक बैंच पर बैठा हुआ था। वह अन्य छात्र-छात्राओं को झूला-झूलते हुए देख रहा था। उन्हें झूलते हुए देखकर उसे दो वर्ष पूर्व की घटना याद आ गई जब वह अपनी मौसी के घर दिल्ली गया था। उसने वहाँ फन सिटी में खूब मस्ती की थी। किंतु पिछले साल एक दुर्घटना में उसे अपनी टाँग खोनी पड़ी थी। अब वह स्वयं को अधूरा समझने लगा था।
तभी मैडम नीरू सभी बच्चों को साथ लेकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करने लगी। दिवाकर वहीं पास के बैंच पर बैठा वह सब देख रहा था। सहसा एक साँप झाड़ियों में से निकल कर बच्चों के सामने आ गया। अपने सामने साँप को देखकर सभी छात्र-छात्राएँ और अध्यापिका डर गईं। किंतु ऐसी कठिन परिस्थिति में दिवाकर ने बड़ी ही सूझ-बूझ से काम लेते हुए अपनी वैशाखी से उस साँप को उठाकर दूर फेंक दिया। सभी की जान में जान आ गई। मैडम नीरू ने दिवाकर को शाबाशी देते हुए कहा-“दिवाकर। तुमने आज हम सबकी जान बचाई है। तुमने तो कमाल कर दिया। तुम वाकई बहादुर हो-असली हीरो।”
अगली सुबह विद्यालय की प्रार्थना सभा में प्राचार्य महोदय के द्वारा दिवाकर को उसकी सूझ-बूझ और वीरता के लिए सम्मानित किया गया। उस दिन दिवाकर को स्वयं में पूर्णता का अहसास हो रहा था।