PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए-

प्रश्न 1.
बहलोल खाँ लोधी कौन था?
उत्तर-
बहलोल खाँ लोधी दिल्ली का सुल्तान (1450-1489) था।

प्रश्न 2.
इब्राहिम लोधी के व्यक्तित्व का कोई एक गुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी एक वीर सिपाही तथा काफ़ी सीमा तक सफल जरनैल था।

प्रश्न 3.
इब्राहिम लोधी के किन्हीं दो अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. इब्राहिम लोधी पठानों के स्वभाव तथा आचरण को नहीं समझ सका।
  2. उसने पठानों में अनुशासन स्थापित करने का असफल प्रयास किया।

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प्रश्न 4.
बाबर को पंजाब पर जीत कब प्राप्त हुई तथा इस लड़ाई में उसने किसे हराया?
उत्तर-
बाबर को पंजाब पर 21 अप्रैल, 1526 को जीत प्राप्त हुई। इस लड़ाई में उसने इब्राहिम लोधी को हराया।

प्रश्न 5.
मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अन्त में मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  1. अमीर तथा सरदार,
  2. उलेमा तथा सैय्यद,
  3. मध्य श्रेणी तथा
  4. गुलाम अथवा दास।

प्रश्न 6.
उलेमा बारे आप क्या जानते हो?
उत्तर-
उलेमा मुस्लिम धार्मिक वर्ग के नेता थे जो अरबी भाषा तथा धार्मिक साहित्य के विद्वान् थे।

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प्रश्न 7.
मुस्लिम तथा हिन्दू समाज के भोजन में क्या फ़र्क था?
उत्तर-
मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काजी लोगों का भोजन बहुत तैलीय (घी वाला) होता था, जबकि हिन्दुओं का भोजन सादा तथा वैष्णो (शाकाहारी) होता था।

प्रश्न 8.
सैय्यद कौन थे?
उत्तर-
सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की सन्तान मानते थे।

प्रश्न 9.
मुस्लिम-मध्य श्रेणी का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम मध्य श्रेणी में सरकारी कर्मचारी, सिपाही, व्यापारी तथा किसान आते थे।

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प्रश्न 10.
मुसलमान स्त्रियों के पहरावे का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान स्त्रियां जम्पर, घाघरा तथा पायजामा पहनती थीं और बुर्के का प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 11.
मुसलमानों के मनोरंजन के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम सरदारों तथा अमीरों के मनोरंजन के मुख्य साधन चौगान, घुड़सवारी, घुड़दौड़ आदि थे, जबकि ‘चौपड़’ का खेल अमीर तथा ग़रीब दोनों में प्रचलित था।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 30-50 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
सिकन्दर लोधी की धार्मिक नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार सिकन्दर लोधी एक न्यायप्रिय, बुद्धिमान् तथा प्रजा हितैषी शासक था। परन्तु डॉ० इन्दू भूषण बैनर्जी इस मत के विरुद्ध हैं। उनका कथन है कि सिकन्दर लोधी की न्यायप्रियता अपने वर्ग (मुसलमान वर्ग) तक ही सीमित थी। उसने अपनी हिन्दू प्रजा के प्रति अत्याचार और असहनशीलता की नीति का परिचय दिया। उसने हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया और उनके मन्दिरों को गिरवाया। हजारों की संख्या में हिन्दू सिकन्दर लोधी के अत्याचारों का शिकार हुए।

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प्रश्न 2.
सिकन्दर लोधी के राज्य-प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
सिकन्दर लोधी एक शक्तिशाली शासक था। उसने अपने राज्य प्रबन्ध को केन्द्रित किया तथा अपने सरदारों एवं जागीरदारों पर पूरा नियन्त्रण रखा। उसने दौलत खाँ लोधी को पंजाब राज्य का निज़ाम नियुक्त किया। उस समय पंजाब प्रान्त की सीमाएं भेरा (सरगोधा) से लेकर सरहिंद तक थीं। दीपालपुर भी पंजाब का एक शक्तिशाली उप-प्रान्त था। परन्तु यह प्रान्त नाममात्र ही लोधी साम्राज्य के अधीन था।
सिकन्दर लोधी एक प्रजा हितकारी शासक था और वह उनकी शिकायतों को दूर करना अपना कर्त्तव्य समझता था। परन्तु उसकी यह नीति मुसलमानों तक ही सीमित थी। हिन्दुओं से वह बहुत अधिक घृणा करता था।

प्रश्न 3.
इब्राहिम लोधी के समय हुए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
1. पठानों का विद्रोह-इब्राहिम लोधी ने स्वतन्त्र स्वभाव के पठानों को अनुशासित करने का प्रयास किया। पठान इसे सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने विद्रोह कर दिया। इब्राहिम लोधी इस बगावत को दबाने में असफल रहा।
2. पंजाब में दौलत खां लोधी का विद्रोह-दौलत खाँ लोधी पंजाब का सूबेदार था। वह इब्राहिम लोधी के कठोर, घमण्डी तथा शक्की स्वभाव से दुखी था। इसलिए उसने स्वयं को स्वतन्त्र करने का निर्णय कर लिया और वह दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा। उसने अफ़गान शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भी आमन्त्रित किया।

प्रश्न 4.
दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया?
उत्तर-
दिलावर खाँ लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खाँ को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दण्ड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खाँ समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।

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प्रश्न 5.
बाबर के सैय्यद के आक्रमण का वर्णन करो।
उत्तर-
सियालकोट को जीतने के बाद बाबर सैय्यदपुर (ऐमनाबाद) की ओर बढ़ा। वहां की रक्षक सेना ने बाबर की घुड़सेना का डटकर सामना किया। फिर भी अन्त में बाबर की जीत हुई। शेष बची हुई रक्षक सेना को कत्ल कर दिया गया। सैय्यदपुर की जनता के साथ भी निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया गया। कई लोगों को दास बना लिया गया। गुरु नानक देव जी ने इन अत्याचारों का वर्णन ‘बाबर वाणी’ में किया है।

प्रश्न 6.
बाबर के 1524 ई० के हमले का हाल लिखो।
उत्तर-
1524 ई० में बाबर ने भारत पर चौथी बार आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खाँ ने बाबर से प्रार्थना की थी कि वह उसे दिल्ली का सिंहासन पाने में सहायता प्रदान करे। पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ ने भी बाबर से सहायता के लिए प्रार्थना की थी। अतः बाबर भेरा होते हुए लाहौर के निकट पहुंच गया। यहां उसे पता चला कि दिल्ली की सेना ने दौलत खाँ को मार भगाया है। बाबर ने दिल्ली की सेना से दौलत खाँ लोधी की पराजय का बदला तो ले लिया, परन्तु दीपालपुर में दौलत खाँ तथा बाबर के बीच मतभेद पैदा हो गया। दौलत खाँ को आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा, परन्तु बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। दौलत खाँ ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह पहाड़ियों में भाग गया ताकि तैयारी करके बाबर से बदला ले सके। स्थिति को देखते हुए बाबर ने दीपालपुर का प्रदेश आलम खां को सौंप दिया और स्वयं और अधिक तैयारी के लिए काबुल लौट गया।

प्रश्न 7.
आलम खाँ ने पंजाब को हथियाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए?
उत्तर-
आलम खाँ इब्राहिम लोधी का चाचा था। अपने चौथे अभियान में बाबर ने उसे दीपालपुर का प्रदेश सौंपा था। अब वह पूरे पंजाब को हथियाना चाहता था। परन्तु दौलत खाँ लोधी ने उसे पराजित करके उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अब वह पुन: बाबर की शरण में जा पहुंचा। उसने बाबर के साथ एक सन्धि की। इसके अनुसार उसने बाबर को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने में सहायता देने का वचन दिया। उसने यह भी विश्वास दिलाया कि पंजाब का प्रदेश प्राप्त होने पर वह वहां पर बाबर के कानूनी अधिकार को स्वीकार करेगा। परन्तु उसका यह प्रयास भी असफल’ रहा। अन्त में उसने इब्राहिम लोधी (दिल्ली का सुल्तान) के विरुद्ध दौलत खाँ लोधी की सहायता की। परन्तु यहां भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा और उसकी पंजाब को हथियाने की योजनाएं मिट्टी में मिल गईं।

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प्रश्न 8.
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी तथा बाबर की फ़ौज की योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी की सेना संख्या में एक लाख थी। इसे चार भागों में बांटा गया था

  1. आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी,
  2. केन्द्रीय सेना,
  3. दाईं ओर की सेना तथा
  4. बाईं ओर की सेना। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे।

बाबर ने अपनी सेना के आगे 700 बैलगाड़ियां खड़ी की हुई थीं। इन बैलगाड़ियों को चमड़े की रस्सियों से बांध दिया गया था। बैलगाड़ियों के पीछे तोपखाना था। तोपों के पीछे अगुआ सैनिक टुकड़ी तथा केन्द्रीय सेना थी। दाएं तथा बाएं तुलुगमा पार्टियां थीं। सबसे पीछे बहुत-सी घुड़सवार सेना तैनात थी जो छिपी हुई थी।

प्रश्न 9.
अमीरों तथा सरदारों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
अमीर तथा सरदार ऊंची श्रेणी के लोग थे। इनको ऊंची पदवी और खिताब प्राप्त थे। सरदारों को ‘इक्ता’ अर्थात् इलाका दिया जाता था जहां से वे भूमिकर वसूल करते थे। इस धन को वह अपनी इच्छा से व्यय करते थे।
सरदार सदा लड़ाइयों में ही व्यस्त रहते थे। वे सदा स्वयं को दिल्ली सरकार से स्वतन्त्र करने की सोच में रहते थे। स्थानीय प्रबन्ध की ओर वे कोई ध्यान नहीं देते थे। धनी होने के कारण ये लोग ऐश्वर्य प्रिय तथा दुराचारी थे। ये बड़ीबड़ी हवेलियों में रहते थे और कई-कई विवाह करवाते थे। उनके पास कई पुरुष तथा स्त्रियां दासों के रूप में रहती थीं।

प्रश्न 10.
मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
मुसलमानों के धार्मिक नेता दो उप-श्रेणियों में बंटे हुए थे। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —

  1. उलेमा-उलेमा धार्मिक वर्ग के नेता थे। इनको अरबी तथा धार्मिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त था।
  2. सैय्यद-उलेमाओं के अतिरिक्त एक श्रेणी सैय्यदों की थी। वे अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की सन्तान मानते थे। समाज में इन का बहुत आदर मान था।
    इन दोनों को मुस्लिम समाज में प्रचलित कानूनों का भी पूरा ज्ञान था।

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प्रश्न 11.
गुलाम श्रेणी का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. गुलामों का मुस्लिम समाज में सबसे नीचा स्थान था। इनमें हाथ से काम करने वाले लोग (बुनकर, कुम्हार, मज़दूर) तथा हिजड़े सम्मिलित थे। युद्ध बंदियों को भी गुलाम बनाया जाता था। कुछ गुलाम अन्य देशों से भी लाये जाते थे।
  2. गुलाम हिजड़ों को बेग़मों की सेवा के लिए रनिवासों (हरम) में रखा जाता था।
  3. गुलाम स्त्रियां अमीरों तथा सरदारों के मन-बहलाव का साधन होती थीं। इनको भर-पेट खाना मिल जाता था। उनकी सामाजिक अवस्था उनके मालिकों के स्वभाव पर निर्भर करती थी।
  4. गुलाम अपनी चतुराई से तथा बहादुरी दिखाकर ऊंचे पद प्राप्त कर सकते थे अथवा गुलामी से छुटकारा पा सकते थे।

प्रश्न 12.
मुसलमान लोग क्या खाते-पीते थे?
उत्तर-
उच्च वर्ग के लोगों का भोजन-मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काज़ियों का भोजन बहुत घी वाला होता था। उन के भोजन में मिर्च मसालों की अधिक मात्रा होती थी। ‘पुलाव तथा कोरमा’ उनका मन-पसन्द भोजन था। मीठे में हलवा तथा शरबत का प्रचलन था। उच्च वर्ग के मुसलमानों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना साधारण बात थी। – साधारण लोगों का भोजन-साधारण मुसलमान मांसाहारी थे। गेहूँ की रोटी तथा भुना हुआ मांस उनका रोज़ का भोजन था। यह भोजन बाजारों में पका पकाया भी मिल जाता था। हाथ से काम करने वाले मुसलमान खाने के साथ लस्सी (छाछ) पीना पसन्द करते थे।

प्रश्न 13.
मुसलमानों के पहरावे के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. उच्च वर्गीय मुसलमानों का पहनावा भड़कीला तथा बहुमूल्य होता था। उनके वस्त्र रेशमी तथा बढ़िया सूत के बने होते थे। अमीर लोग तुर्रेदार पगड़ी पहनते थे। पगड़ी को ‘चीरा’ भी कहा जाता था।
  2. शाही गुलाम (दास) कमरबन्द पहनते थे। वे अपनी जेब में रूमाल रखते थे और पैरों में लाल जूता पहनते थे। उनके सिर पर साधारण सी पगड़ी होती थी।
  3. धार्मिक श्रेणी के लोग मुलायम सूती वस्त्र पहनते थे। उनकी पगड़ी सात गज़ लम्बी होती थी। पगड़ी का पल्ला उनकी पीठ पर लटकता रहता था। सूफ़ी लोग खुला चोगा पहनते थे।
  4. साधारण लोगों का मुख्य पहनावा कमीज़ तथा पायजामा था। वे जूते और जुराबें भी पहनते थे। (5) मुसलमान औरतें जम्पर, घाघरा तथा उनके नीचे तंग पायजामा पहनती थीं।

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प्रश्न 14.
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है —

  1. महिलाओं को समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था।
  2. अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
  3. समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परन्तु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
  4. साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘ज़नान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।

प्रश्न 15.
गुरु नानक साहिब के काल से पहले की जाति-पाति अवस्था के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के काल से पहले का हिन्दू समाज विभिन्न श्रेणियों अथवा जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। इन जातियों के अतिरिक्त अन्य भी कई उपजातियां उत्पन्न हो चुकी थीं।

  1. ब्राह्मण-ब्राह्मण समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य भूल कर स्वार्थी बन गए थे। वे उस समय के शासकों की चापलूसी करके अपनी श्रेणी को बचाने के प्रयास में रहते थे। साधारण लोगों पर ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत अधिक था। वे ब्राह्मणों के कारण अनेक अन्धविश्वासों में फंसे हुए थे।
  2. वैश्य तथा क्षत्रिय-वैश्यों तथा क्षत्रियों की दशा ठीक थी।
  3. शूद्र-शूद्रों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उन्हें अछूत समझ कर उनसे घृणा की जाती थी। हिन्दुओं की जातियों तथा उप-जातियों में आपसी सम्बन्ध कम ही थे। उनके रीति-रिवाज भी भिन्न-भिन्न थे।

प्रश्न 16.
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के सेना-प्रबन्ध के बारे में लिखिए।
उत्तर-
इसके लिए प्रश्न 8 पढ़ें।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले (16वीं शताब्दी के आरम्भ में ) पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। यह प्रदेश उन दिनों लाहौर प्रान्त के नाम से प्रसिद्ध था और दिल्ली सल्तनत का अंग था। परन्तु दिल्ली सल्तनत की शान अब जाती रही थी। इस लिये केन्द्रीय सत्ता की कमी के कारण पंजाब के शासन में शिथिलता आ गई थी। संक्षेप में, 16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब के राजनीतिक जीवन की झांकी इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है —

  1. निरंकुश शासन-उस समय पंजाब में निरंकुश शासन था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकन्दर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। राज्य की सभी शक्तियां उन्हीं के हाथों में केन्द्रित थीं। उनकी इच्छा ही कानन का ऐसे निरंकुश शासक के अधीन प्रजा के अधिकारों की कल्पना करना भी व्यर्थ था।
  2. राजनीतिक अराजकता-लोधी शासकों के अधीन सारा देश षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था। सिकन्दर लोधी के शासन काल के अन्तिम वर्षों में सारे देश में विद्रोह होने लगे। इब्राहिम लोधी के काल में तो इन विद्रोहों ने और भी भयंकर रूप धारण कर लिया। उसके सरदार तथा दरबारी उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे थे। प्रान्तीय शासक या तो अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित करने के प्रयास में थे या फिर सल्तनत के अन्य दावेदारों का पक्ष ले रहे थे। परंतु वे जानते थे कि पंजाब पर अधिकार किए बिना कोई भी व्यक्ति दिल्ली का सिंहासन नहीं पा सकता था। अतः सभी सूबेदारों की दृष्टि पंजाब पर ही टिकी हुई थी। फलस्वरूप सारा पंजाब अराजकता की लपेट में आ गया।
  3. अन्याय का नंगा नाच-16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग-विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे तथा अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “न्याय दुनिया से उड़ गया है।” वह आगे कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो रिश्वत लेता या देता न हो। शासक भी तभी न्याय देता है जब उसकी मुट्ठी गर्म कर दी जाए।”
  4. युद्ध-इस काल में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना हुआ था। सभी पंजाब पर अपना अधिकार जमा कर दिल्ली की सत्ता हथियाने के प्रयास में थे। सरदारों, सूबेदारों तथा दरबारियों के षड्यन्त्रों तथा महत्त्वाकांक्षाओं ने अनेक युद्धों को जन्म दिया। इस समय इब्राहिम लोधी और दौलत खां में संघर्ष चला। यहां बाबर ने आक्रमण आरम्भ किए।

प्रश्न 2.
बाबर की पंजाब पर विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
बाबर की पंजाब विजय पानीपत की पहली लड़ाई का परिणाम थी। यह लड़ाई 1526 ई० में बाबर तथा दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी के बीच हुई। इसमें बाबर विजयी रहा और पंजाब पर उसका अधिकार हो गया।
बाबर का आक्रमण-नवम्बर, 1525 ई० में बाबर 12000 सैनिकों सहित काबुल से पंजाब की ओर बढ़ा। मार्ग में दौलत खाँ लोधी को पराजित करता हुआ वह दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोधी एक लाख सेना लेकर उसके विरुद्ध उत्तर पश्चिम की ओर निकल पड़ा। उसकी सेना चार भागों में बंटी हुई थी-आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी, केन्द्रीय सेना, दाईं ओर की सैनिक टुकड़ी तथा बाईं ओर की सैनिक टुकड़ी। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे। दोनों पक्षों की सेनाओं का पानीपत के मैदान में सामना हुआ।
युद्ध का आरम्भ-पहले आठ दिन तक किसी ओर से भी कोई आक्रमण नहीं हुआ। परन्तु 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः इब्राहिम लोधी की सेना ने बाबर पर आक्रमण कर दिया। बाबर के तोपचियों ने भी लोधी सेना पर गोले बरसाने आरम्भ कर दिए। बाबर की तुलुगमा सेना ने आगे बढ़कर शत्रु को घेर लिया । बाबर की सेना के दाएं तथा बाएं पक्ष आगे बढ़े और उन्होंने ज़बरदस्त आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी की सेनाएं चारों ओर से घिर गईं। वे न तो आगे बढ़ सकती थीं और न पीछे हट सकती थीं। इब्राहिम लोधी के हाथी घायल होकर पीछे की ओर दौड़े और उन्होंने अपने ही सैनिकों को कुचल डाला। देखते ही देखते पानीपत के मैदान में लाशों के ढेर लग गए। दोपहर तक युद्ध समाप्त हो गया। इब्राहिम लोधी हज़ारों लाशों के मध्य मृतक पाया गया। बाबर को पंजाब पर पूर्ण विजय प्राप्त हुई।

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PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब की राजनीतिक दशा कैसी थी?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित करके षड्यन्त्र रच रहा था।

प्रश्न 2.
इब्राहिम लोधी ने दौलत खाँ लोधी को दिल्ली क्यों बुलवाया?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दण्ड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।

प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
1469 ई० में तलवण्डी नामक स्थान पर।

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प्रश्न 4.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया?
उत्तर-
बहलोल लोधी ने।

प्रश्न 5.
लोधी-वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह किसे माना जाता है?
उत्तर-
सिकन्दर लोधी को।

प्रश्न 6.
तातार खाँ के बाद पंजाब का सूबेदार कौन बना?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी।

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प्रश्न 7.
दौलत खाँ लोधी के छोटे पुत्र का नाम बताओ।
उत्तर-
दिलावर खां लोधी।

प्रश्न 8.
बाबर ने 1519 के अपने पंजाब आक्रमण में किन स्थानों पर अपना अधिकार किया?
उत्तर-
बजौर तथा भेरा पर।

प्रश्न 9.
बाबर का लाहौर पर कब्जा कब हुआ?
उत्तर-
1524 ई०।

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प्रश्न 10.
पानीपत की पहली लड़ाई (21 अप्रैल, 1526) किसके बीच हुई?
उत्तर-
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के बीच।

प्रश्न 11.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फातिमा की सन्तान कौन मानता था?
उत्तर-
सैय्यद।

प्रश्न 12.
न्याय सम्बन्धी कार्य कौन करते थे?
उत्तर-
काजी।

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प्रश्न 13.
मुस्लिम समाज में सबसे निचले दर्जे पर कौन था?
उत्तर-
गुलाम।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी से पहले हिन्दुओं को क्या समझा जाता था?
उत्तर-
जिम्मी।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी से पहले हिन्दुओं पर कौन-सा धार्मिक कर था?
उत्तर-
जज़िया।

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प्रश्न 16.
‘सती’ की कुप्रथा किस जाति में प्रचलित थी?
उत्तर-
हिन्दुओं में।

प्रश्न 17.
मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुरेदार पगड़ी को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
चीरा।

प्रश्न 18.
दौलत खाँ लोधी ने दिल्ली के सुल्तान के पास अपने पुत्र दिलावर खाँ को क्यों भेजा?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी भांप गया कि सुल्तान उसे दण्ड देना चाहता है।

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प्रश्न 19.
दौलत खाँ लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए क्यों बुलाया?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी की शक्ति का अन्त करके स्वयं पंजाब का स्वतन्त्र शासक बनना चाहता था।

प्रश्न 20.
दौलत खाँ लोधी बाबर के विरुद्ध क्यों हआ?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी को विश्वास था कि विजय के पश्चात् बाबर उसे सारे पंजाब का गवर्नर बना देगा। परंतु जब बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर का ही शासन सौंपा तो वह बाबर के विरुद्ध हो गया।

प्रश्न 21.
दौलत खाँ लोधी ने बाबर का सामना कब किया?
उत्तर-
बाबर द्वारा भारत पर पांचवें आक्रमण के समय दौलत खाँ लोधी ने उसका सामना किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

प्रश्न 22.
बाबर के भारत पर पाँचवें आक्रमण का क्या परिणाम निकला?
उत्तर-
इस लड़ाई में दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ और सारे पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।

प्रश्न 23.
16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब की राजनीतिक दशा के विषय में गुरु नानक देव जी के विचारों पर दो वाक्य लिखो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी लिखते हैं”राजा शेर है तथा मुकद्दम कुत्ते हैं जो दिन-रात प्रजा का शोषण करने में लगे रहते हैं” अर्थात् शासक वर्ग अत्याचारी है।
“इन कुत्तों (लोधी शासकों) ने हीरे जैसे देश को धूलि में मिला दिया है।”

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. बाबर ने पंजाब को …………… ई० में जीता।
  2. सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री …………. की संतान मानते थे।
  3. इब्राहिम लोधी ने ………… लोधी को दण्ड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।
  4. तातार खां लोधी के बाद …………. को पंजाब का सूबेदार बनाया गया।
  5. मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रेदार पगड़ी को ……….. कहा जाता था।
  6. …………. दौलत खां लोधी का पुत्र था।

उत्तर-

  1. 1520,
  2. बीबी फ़ातिमा,
  3. दौलत खां,
  4. दौलत खां लोधी,
  5. चीरा,
  6. दिलावर खां लोधी।

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III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर ने 1526 की लड़ाई में हराया
(A) दौलत खां लोधी को
(B) बहलोल लोधी को
(C) इब्राहिम लोधी को
(D) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(C) इब्राहिम लोधी को

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ
(A) 1269 ई० में
(B) 1469 ई० में
(C) 1526 ई० में
(D) 1360 ई० में।
उत्तर-
(B) 1469 ई० में

प्रश्न 3.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया?
(A) बहलोल लोधी ने
(B) इब्राहिम लोधी ने
(C) दौलत खां लोधी ने
(D) सिकंदर लोधी ने
उत्तर-
(A) बहलोल लोधी ने

प्रश्न 4.
लोधी वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह माना जाता है
(A) बहलोल लोधी को।
(B) इब्राहिम लोधी को
(C) दौलत खां लोधी को
(D) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(D) सिकंदर लोधी को।

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प्रश्न 5.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फ़ातिमा की सन्तान मानते थे
(A) शेख
(B) उलेमा
(C) सैय्यद
(D) काजी।
उत्तर-
(C) सैय्यद

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. बाबर को पंजाब पर 1530 ई० में जीत प्राप्त हुई।
  2. सैय्यद अपने आपको ख़लीफा अबु बकर के उत्तराधिकारी मानते थे।
  3. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ।
  4. पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच हुई।
  5. सती की कुप्रथा मुस्लिम समाज में प्रचलित थी।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. हज़रत मुहम्मद की पुत्री फातिमा से संबंधित — दौलत खां लोधी
  2. तातार खां को पंजाब का निज़ाम बनाया — बाबर तथा इब्राहिम लोधी
  3. तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार — बहलोल लोधी
  4. पानीपत की पहली लड़ाई — सैय्यद

उत्तर-

  1. हज़रत मुहम्मद की पुत्री फातिमा से संबंधित — सैय्यद,
  2. तातार खां को पंजाब का निज़ाम बनाया — बहलोल लोधी,
  3. तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार — दौलत खां लोधी,
  4. पानीपत की पहली लड़ाई — बाबर तथा इब्राहिम लोधी।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब की राजनीतिक दशा की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब का राजनीतिक वातावरण बड़ा शोचनीय चित्र प्रस्तुत करता है। उन दिनों यह प्रदेश लाहौर प्रान्त के नाम से जाना जाता था और यह दिल्ली सल्तनत का अंग था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकन्दर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। उनके अधीन पंजाब में राजनीतिक अराजकता फैली हुई थी। सारा प्रदेश षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था। पूरे पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोगविलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे और वे अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था कि न्याय दुनिया से उड़ गया है। भाई गुरुदः । श्री इस समय में पंजाब में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वर्णन किया है।

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प्रश्न 2.
16वीं शताब्दी के आरम्भ में इब्राहिम लोधी तथा दौलत खाँ लोधी के बीच होने वाले संघर्ष का क्या कारण था? इब्राहिम लोधी से निपटने के लिए दौलत खाँ ने क्या किया?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर था। कहने को तो वह दिल्ली के सुल्तान के अधीन था, परन्तु वास्तव में वह एक स्वतन्त्र शासक के रूप में कार्य कर रहा था। उसने इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खाँ लोधी को दिल्ली की राजगद्दी दिलाने में सहायता देने का वचन देकर उसे अपनी ओर गांठ लिया। इब्राहिम लोधी को जन गौलत खाँ के षड्यन्त्रों की सूचना मिली तो उसने दौलत खाँ को दिल्ली बुलाया। परन्तु दौलत खाँ ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र दिलावर खाँ को भेज दिया। दिल्ली पहुंचने पर सुल्तान ने दिलावर खाँ को बन्दी बना लिया। कुछ ही समय के पश्चात् दिलावर खाँ जेल से भाग निकला और अपने पिता के पास लाहौर जा पहुंचा। दौलत खाँ ने इब्राहिम लोधी के इस व्यवहार का बदला लेने के लिए बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।

प्रश्न 3.
बाबर तथा दौलत खाँ में होने वाले संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खाँ लोधी ने ही आमन्त्रित किया था। उसे आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा। परन्तु बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। अतः उसने बाबर के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा फहरा दिया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया जिसमें दौलत खाँ और उसका पुत्र गाजी खाँ पराजित हुए। इसके बाद बाबर वापस काबुल लौट गया। उसके वापस लौटते ही दौलत खाँ ने बाबर के प्रतिनिधि आलम खाँ को मार भगाया और स्वयं पुनः सारे पंजाब का शासक बन बैठा। आलम खाँ की प्रार्थना पर बाबर ने 1525 ई० में पंजाब पर पुनः आक्रमण किया। दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ और पहाड़ों में जा छिपा।

प्रश्न 4.
बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच संघर्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन कीजिए। पंजाब के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
बाबर दौलत खाँ को हरा कर दिल्ली की ओर बढ़ा। दूसरी ओर इब्राहिम लोधी भी एक विशाल सेना के साथ शत्रु का सामना करने के लिए दिल्ली से चल पड़ा। 21 अप्रैल, 1526 ई० के दिन पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हो गई। इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और रणक्षेत्र में ही मारा गया। बाबर अपनी विजयी सेना सहित दिल्ली पहुंच गया और उसने वहां अपनी विजय पताका फहराई। यह भारत में दिल्ली सल्तनत का अन्त और मुग़ल सत्ता का श्रीगणेश था। इस प्रकार पानीपत की लड़ाई ने न केवल पंजाब का बल्कि सारे भारत के भाग्य का निर्णय कर दिया।

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प्रश्न 5.
सोलहवीं शताब्दी के पंजाब में हिन्दुओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के हिन्दू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी ! प्रत्येक हिन्दू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिन्दुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आ कर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकन्दर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था। यह भी कहा जाता है कि सिकन्दर लोधी एक बार कुरुक्षेत्र के एक मेले में एकत्रित होने वाले सभी हिन्दुओं को मरवा देना चाहता था। परन्तु वह हिन्दुओं के विद्रोह के डर से ऐसा कर नहीं पाया।

प्रश्न 6.
16वीं शताब्दी में पंजाब में मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों का वर्णन करें।
उत्तर-
16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था —

  1. उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काज़ी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मन्त्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
  2. मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काज़ी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
  3. निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
16वीं शताब्दी में पंजाब में मुसलमानों की सामाजिक दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब में मुसलमानों की काफ़ी संख्या थी। उनकी स्थिति हिन्दुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था।
मुसलमानों की श्रेणियां-मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित था —

  1. उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरदारों का जीवन प्रायः भोग-विलास का जीवन था। वे महलों अथवा भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुन्दरी और संगीत में खोये रहते थे। उलेमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था। उन्हें अरबी भाषा तथा कुरान की पूर्ण जानकारी होती थी। अनेक उलेमा राज्य के न्याय कार्यों में लगे हुए थे। वे काज़ियों के पदों पर आसीन थे और धार्मिक तथा न्यायिक पदों पर काम कर रहे थे।
  2. मध्य श्रेणी-मध्य श्रेणी में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी, फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिन्दुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिन्दुओं की अपेक्षा काफ़ी ऊंचा था।
  3. निम्न श्रेणी-निम्न श्रेणी में शिल्पकारों, निजी सेवकों, दास-दासियों आदि की गणना की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर अधिक ऊंचा नहीं था। उन्हें आजीविका कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था। बुनकर, सुनार, लुहार, बढ़ई, चर्मकार आदि शिल्पकार सारे दिन के परिश्रम के पश्चात् ही अपना पेट भर पाते थे। निजी सेवकों तथा दास-दासियों को बड़े-बड़े सरदारों की नौकरी करनी पड़ती थी।

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प्रश्न 2.
16वीं शताब्दी के पंजाब में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
उत्तर-
16वीं शताब्दी के पंजाब में स्त्री का जीवन इस प्रकार का था —

  1. स्त्रियों की दशा-16वीं शताब्दी के आरम्भ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे अबला, हीन और पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे। मुस्लिम समाज में भी स्त्रियों की दशा शोचनीय थी। वह मन बहलाव का साधन मात्र ही समझी जाती थीं। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक स्त्री को बड़ा ही दयनीय जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
  2. कुप्रथाएं-समाज में अनेक कुप्रथाएं भी प्रचलित थीं जो स्त्री जाति के विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थीं। इनमें से मुख्य प्रथाएं सती-प्रथा, कन्या-वध, बाल-विवाह, जौहर प्रथा, पर्दा-प्रथा, बहु-पत्नी प्रथा आदि थीं। सती-प्रथा के अनुसार जब किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे भी अपने मृतक पति के साथ जीवित जल जाना पड़ता था। यदि कोई स्त्री इस क्रूर प्रथा का पालन नहीं करती थी तो उसके साथ बड़ा कठोर व्यवहार किया जाता था और उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। वास्तव में, उससे जीवन की सभी सुविधाएं छीन ली जाती थीं। जौहर की प्रथा राजपूत स्त्रियों में प्रचलित थी। इसके अनुसार वे अपने सतीत्व तथा सम्मान की रक्षा के लिए जीवित जल जाती थीं।
  3. पर्दा प्रथा-पर्दा प्रथा हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही प्रचलित थी। हिन्दू स्त्रियों को बूंघट निकालना पड़ता था और मुसलमान स्त्रियां बुर्के में रहती थीं। मुसलमानों में बहु-पत्नी प्रथा जोरों से प्रचलित थी। सुल्तान तथा बड़े सरदार अपने मनोरंजन के लिए सैंकड़ों स्त्रियां रखते थे। स्त्री शिक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता था। केवल कुछ उच्च घराने की स्त्रियां ही अपने घर पर शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं। शेष स्त्रियां प्रायः अनपढ़ ही होती थीं। स्त्रियों पर कुछ और प्रतिबन्ध भी लगे हुए थे। उदाहरण के लिए वे घर की चारदीवारी में ही बन्द रहती थीं। उनका घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं समझा जाता था। पंजाब में प्रायः स्त्री के विषय में यह कहावत प्रसिद्ध थी-“घर बैठी लक्ख दी बाहर गई कख दी।”

प्रश्न 3.
पंजाब में दौलत खाँ लोधी के षड्यन्त्रों तथा महत्त्वपूर्ण कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी तातार खाँ (Tatar Khan) का बेटा पंजाब का गवर्नर था। वह सिकन्दर लोधी के जीवन काल में तो दिल्ली सल्तनत के प्रति वफ़ादार रहा, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् वह स्वतन्त्र शासक बनने के लिए षड्यन्त्र रचने लगा। नया सुल्तान इब्राहिम लोधी एक घमण्डी तथा मूर्ख शासक था। वह अपने सम्बन्धियों का घोर विरोधी था। इसका लाभ उठाकर दौलत खाँ लोधी ने अपनी स्थिति को दृढ़ बनाना शुरू कर दिया। इसके लिए उसने षड्यन्त्रों का सहारा लिया।

  1. इब्राहिम लोधी के विरुद्ध षड्यन्त्र-इब्राहिम लोधी को दौलत खाँ के षड्यन्त्रों का पता चल गया। उसने उसे सफ़ाई देने के लिए दिल्ली बुलवा भेजा। दौलत खाँ ने स्वयं जाने की बजाय अपने पुत्र दिलावर खाँ को दिल्ली भेज दिया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खाँ को खूब डराया धमकाया। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य भी दिखाए जो विद्रोहियों को दी जाती थीं। उसने दिलावर खाँ को बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। इस घटना से दौलत खाँ समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा। अतः उसने तुरन्त ही अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया और अपने हाथ मज़बूत करने के लिए वह काबुल के शासक बाबर के साथ सांठ-गांठ करने लगा। बाबर भारत का सम्राट बनने की इच्छा रखता था। वह पहले भी भारत पर कई आक्रमण कर चुका था। अत: दौलत खाँ का निमन्त्रण पाकर वह पूरी शक्ति के साथ भारत की ओर बढ़ा और बड़ी आसानी से उसने लाहौर पर विजय प्राप्त कर ली। परन्तु जब वह आगे बढ़ा तो कुछ अफ़गान सरदारों ने उसका घोर विरोध किया। इस पर उसने अपनी सेना को लाहौर में लूटमार करने की आज्ञा दे दी। बाद में उसने दीपालपुर और जालन्धर को भी लूटा। पंजाब विजय के पश्चात् बाबर ने दौलत खाँ को जालन्धर का सूबेदार नियुक्त किया और शेष सारा प्रदेश उसने आलम खाँ को सौंप दिया।
  2. बाबर के विरुद्ध विद्रोह-दौलत खाँ को पूरा विश्वास था कि बाबर उसे पूरे पंजाब का स्वतन्त्र शासक बनाएगा। परन्तु जब बाबर ने उसे केवल जालन्धर दोआब का ही सूबेदार नियुक्त किया तो वह क्रोध से भड़क उठा। उसने अपने पुत्र गाजी खाँ को साथ लेकर बाबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बाबर ने बड़ी आसानी से विद्रोह को कुचल डाला। परंतु बाबर के वापिस जाने के बाद उसने आलम खाँ और इब्राहिम लोधी की सेनाओं को पराजित कर पंजाब के अधिकांश भाग पर अपना अधिकार कर लिया।
  3. दौलत खाँ की पराजय और मृत्यु-बाबर दौलत खाँ की गतिविधियों से बेखबर नहीं था। उसे जब पता चला
    लाहौर पहुंचने पर उसे सूचना मिली कि दौलत खाँ होशियारपुर में स्थित मलोट नामक स्थान पर डेरा डाले हुए है। अत: बाबर ने तुरन्त ही मलोट पर आक्रमण कर दिया। दौलत खाँ बाबर की शक्ति के सामने अधिक देर तक न टिक सका और पराजित हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था PSEB 10th Class History Notes

  • राजनीतिक अवस्था-गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में हुआ। उनके जीवनकाल से पहले पंजाब की राजनीतिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं थी। यहां के शासक कमज़ोर तथा परस्पर फूट के शिकार थे। पंजाब पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे।
  • सामाजिक अवस्था-इस काल में पंजाब की सामाजिक अवस्था प्रशंसा योग्य नहीं थी। हिन्दू समाज कई जातियों व उप-जातियों में बंटा हुआ था। महिलाओं की दशा बहुत दयनीय थी। लोग सदाचार को भूल चुके थे तथा व्यर्थ के भ्रमों में फंसे हुए थे।
  • लोधी शासक-पंजाब लोधी वंश के अधीन था। इस राजवंश के महत्त्वपूर्ण शासक बहलोल लोधी, सिकन्दर लोधी तथा इब्राहिम लोधी थे।
  • इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब-इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था। यहां का गवर्नर दौलत खाँ लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित कर रहा था।
  • दौलत खाँ लोधी तथा बाबर-बाबर द्वारा भारत पर पांचवें आक्रमण के समय पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोधी ने उसका सामना किया। इस लड़ाई में दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ।
  • बाबर की पंजाब विजय-1526 ई० में पानीपत की पहली लड़ाई हुई। इस लड़ाई में इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।
  • मुस्लिम समाज-मुस्लिम समाज तीन वर्गों-उच्च वर्ग, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा तथा सैय्यद; मध्य वर्ग में व्यापारी, कृषक, सैनिक तथा छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। निम्न वर्ग में शिल्पकार, निजी सेवक तथा दासदासियां शामिल थीं।
  • हिन्दू समाज-16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब का हिन्दू समाज चार मुख्य जातियों में बंटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। सुनार, बुनकर, लुहार, कुम्हार, दर्जी, बढ़ई आदि उस समय की कुछ अन्य जातियां तथा उप-जातियां थीं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

SST Guide for Class 10 PSEB प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिये गये प्रत्येक प्रश्न का एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए

(अ) प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 1.
देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों के नाम व मात्रा बताइए।
उत्तर-

  1. देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण खण्डीय (PaleoTropical) के नाम से पुकारते हैं।
  2. भारत की वनस्पति में विदेशी वनस्पति की मात्रा 40% है।

प्रश्न 2.
‘बंगाल का डर’ किस वनस्पति को कहा जाता है?
उत्तर-
जल हायसिंथ (Water-Hyacinth) नामक पौधे को ‘बंगाल का डर’ (Terror of Bengal) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
देश में वन भूमि का प्रतिशत कितना है।
उत्तर-
हमारे देश के कुल वन क्षेत्र का 57% भाग प्रायद्वीपीय पठार और इसके साथ लगी पर्वत श्रृंखलाओं में फैला

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

प्रश्न 4.
देश के सबसे कम और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्यों का नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में सबसे कम वन क्षेत्रफल पंजाब में और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल त्रिपुरा में है।

प्रश्न 5.
राज्य वन (State Forests) किसको कहते हैं?
उत्तर-
राज्य वन (State Forests) वे वन हैं जिन पर किसी राज्य सरकार का एकाधिकार होता है।

प्रश्न 6.
उष्ण सदाबहार वनस्पति के वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनस्पति क्षेत्र में पाये जाने वाले वृक्षों में महोगनी, बांस, रबड़, आम, मैचीलश और कदम्ब आदि मुख्य हैं।

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प्रश्न 7.
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति का विनाश कौन-कौन से तत्त्व करते हैं?
उत्तर-
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति के विनाश का मुख्य कारण कृषि क्षेत्र का विस्तार है।

प्रश्न 8.
शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति में मुख्यत: कीकर, बबूल, जण्ड, तमारिक्श, रामबांस, बेर, नीम, कैक्टस और मंजु घास आदि शामिल है।

प्रश्न 9.
ज्वारीय वनस्पति को दूसरे किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
ज्वारीय वनस्पति को मैंग्रोव, दलदली (Swamps), समुद्री किनारे वाली अथवा सुन्दर-वन (Sundervan) जैसे नामों से भी पुकारा जाता है।

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प्रश्न 10.
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों में मुख्यतः सिलवर फर, पाईन, स्पूस, देवदार, नीला पाईन आदि शामिल हैं।

प्रश्न 11.
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति किन स्थानों पर पैदा होती है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति बस्तर, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर, नीलगिरि, पलनी शिवराय और अन्नामलाई के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।

प्रश्न 12.
किन-किन वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं?
उत्तर-
खैर, सिनकोना, नीम, सृपगम्पा झाड़ी, बहेड़ा, आंवला आदि वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं।

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प्रश्न 13.
चमड़ा रंगने के लिए किन-किन वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है?
उत्तर-
चमड़ा रंगने के लिए मैंग्रोव कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर के वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है।

(आ) जीव-जन्तु

प्रश्न 1.
जीव-जन्तु कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
जीव-जन्तु हज़ारों प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 2.
हाथी किस तरह के क्षेत्र में रहना पसन्द करता है?
उत्तर-
हाथी अधिक वर्षा और घने जंगल वाले क्षेत्र में रहना पसन्द करता है।

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प्रश्न 3.
भारत में हिरणों की कौन-कौन सी किस्में पाई जाती हैं?
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली हिरणों की जातियों में चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं।

प्रश्न 4.
देश में शेर किन स्थानों पर मिलते हैं?
उत्तर-
भारतीय शेर का प्राकृतिक निवास स्थान गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन हैं।

प्रश्न 5.
हिमालय में मिलने वाले जीवों के नाम बताओ।
उत्तर-
हिमालय में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन (एक लम्बे सींग वाली जंगली बकरी) तथा टैपीर आदि जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जबकि उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पांडा तथा हिमतेंदुआ नामक जन्तु मिलते हैं।

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प्रश्न 6.
हमारे देश के राष्ट्रीय पशु व पक्षी का नाम बताओ।
उत्तर-
हमारे देश का राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय पक्षी मोर है।

प्रश्न 7.
देश में किन जीवों के समाप्त हो जाने का डर है?
उत्तर-
भारत में बाघ, गैंडा, सोहन चिड़िया, सिंह आदि जीवों के विलुप्त होने का डर है।

(इ) मिट्टी

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा बताइए।
उत्तर-
पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले हल्के, ढीले तथा असंगठित चट्टानी चूरे (शैल चूर्ण) तथा बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मिट्टी अथवा मृदा कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
मिट्टी कैसे बनती है?
उत्तर-
मिट्टी मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों की तोड़-फोड़ से बनती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के मूल तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
मिट्टी के मूल तत्त्व हैं-

  1. प्रारम्भिक चट्टान,
  2. जलवायु,
  3. क्षेत्रीय ढलान,
  4. प्राकृतिक वनस्पति और
  5. अवधि।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी में कौन-कौन से रासायनिक तत्त्व पाये जाते हैं?
उत्तर-
काली मिट्टी में मुख्य रूप से लोहा, पोटाश, एल्यूमीनियम, चूना तथा मैग्नीशियम आदि तत्त्व पाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लैटराइट मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
लैटराइट मिट्टी विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बेसाल्टिक पर्वत चोटियां, दक्षिणी महाराष्ट्र, कर्नाटक की पश्चिमी घाट की पहाड़ियां, केरल में मालाबार तथा शिलांग के पठार के उत्तर एवं पूर्वी भाग में पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
‘भूड़’ मिट्टी कहां पाई जाती है?
उत्तर-
पंजाब तथा हरियाणा के सीमावर्ती जिलों में।

प्रश्न 7.
खारी या नमकीन मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
खारी मिट्टी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है।

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प्रश्न 8.
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी असम, हिमाचल प्रदेश (लाहौल-स्पीति, किन्नौर), पश्चिमी बंगाल, उत्तराखण्ड तथा दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है।

प्रश्न 9.
मिट्टी के कटाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
भौतिक तत्वों द्वारा धरातल की ऊपरी परत का हटा दिया जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।

प्रश्न 10.
मरुस्थल को बढ़ने से रोकने के लिए क्या-क्या उपाय किये जाते हैं?
उत्तर-
वृक्षों की कतारें लगाना तथा घास उगाना।

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II. प्रत्येक प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर दीजिए

(अ) प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 1.
दूसरे देशों से आयी वनस्पति से हमारे देश में किस प्रकार की समस्याएं बन गयी हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का 40 प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है, जिन्हें बोरिअल तथा पेलियो-उष्ण खण्डीय जातियां कहा जाता है। इनमें से अधिकतर पौधे सजावट के लिए (डैकोरेटिव प्लांट) हैं। हमारे देश में आयी इस विदेशी वनस्पति से निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं —

  1. यहां के गर्म-शुष्क मौसम के कारण देश की नदियों, तालाबों, नहरों आदि में इन पौधों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि इनको फलने-फूलने से रोक पाना असम्भव सा हो गया है।
  2. ये विदेशी पौधे स्थानीय लाभकारी वनस्पति के विकास में रुकावट बन गए हैं। ये उपयोगी भूमि को कम करने तथा खतरनाक रोगों को फैलाने में भी अपना प्रभाव दिखा रहे हैं।
  3. जल हयास्थि (Water-Hyacinth) पौधे के जल-स्रोतों में फैल जाने के कारण इसको ‘बंगाल का डर’ कहा जाता है। इसी प्रकार लेनटाना’ नामक पौधे ने देश के हरे-भरे चरागाहों तथा वनों में तेजी से फैलकर अपना प्रभाव जमा लिया है।
  4. पारथेनियम घास अथवा कांग्रेसी घास ने भी तेजी से देश के अन्दर फैलकर लोगों में सांस तथा त्वचा के रोगों में भारी मात्रा में वृद्धि की है।
  5. खाद्यान्नों की कमी के दौरान आयात किये गये गेहूँ के दानों के साथ आए अवांछनीय बीज भी तेजी से फैले हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए विदेशी दवाइयों पर काफ़ी धन व्यय होता है।

प्रश्न 2.
विदेशी पौधों से हमें क्या नुक्सान हो सकते हैं?
उत्तर-
विदेशी पौधों से हमें निम्नलिखित हानियां हो सकती हैं —

  1. हमारी स्थानीय लाभकारी वनस्पति नष्ट हो सकती है।
  2. विदेशी वनस्पति को नष्ट करने में हमारा बहुत-सा धन व्यय होगा।
  3. विदेशी वनस्पति से सांस तथा त्वचा सम्बन्धी खतरनाक रोग फैल सकते हैं।
  4. हमारे जल-भण्डार विदेशी वनस्पति से प्रदूषित हो सकते हैं।
  5. हमारी उपयोगी भूमि कम हो सकती है, चरागाहों में कमी आ सकती हैं तथा वन्य क्षेत्र नष्ट हो सकते हैं।

प्रश्न 3.
हमारी प्राकृतिक वनस्पति का असल में प्राकृतिक न रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
हमारी प्राकृतिक वनस्पति वास्तव में प्राकृतिक नहीं रही। यह केवल देश के कुछ ही भागों में दिखाई पड़ती है। अन्य भागों में इसका बहुत बड़ा भाग या तो नष्ट हो गया है या फिर नष्ट हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं —

  1. तेजी से बढ़ती हुई हमारी जनसंख्या
  2. परम्परागत कृषि विकास की प्रथा
  3. चरागाहों का विनाश या अति चराई
  4. ईंधन व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अन्धाधुन्ध कटाव
  5. विदेशी पौधों में बढ़ती हुई संख्या।

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प्रश्न 4.
पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उपभागों में बाँटा जा सकता है।

  1. आर्द्र पतझड़ वन-इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें. मी. तक होती है।
    इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परन्तु इनकी ऊँचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चन्दन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं।
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति-इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें. मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
    इसकी लम्बी पट्टी पंजाब से आरम्भ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। कीकर, बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

प्रश्न 5.
पूर्वी हिमालय में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
उत्तर-
पूर्वी हिमालय में 4000 किस्म के फूल और 250 किस्म की फर्न मिलती है। यहां की वनस्पति पर ऊँचाई के बढ़ने से तापमान और वर्षा में आए अन्तर का गहरा प्रभाव पड़ता है।

  1. यहां 1200 मीटर की ऊँचाई तक पतझड़ी वनस्पति के मिश्रित वृक्ष अधिक मिलते हैं।
  2. यहां 1200 से लेकर 2000 मीटर की ऊँचाई तक घने सदाबहार वन मिलते हैं। साल और मैंगनोलिया इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इनमें दालचीनी, अमूरा, चिनोली तथा दिलेनीआ के वृक्ष भी मिलते हैं।
  3. यहां पर 2000 से 2500 मीटर की ऊँचाई तक तापमान कम हो जाने के कारण शीतोष्ण प्रकार (Temperate type) की वनस्पति पाई जाती है। इसमें ओक, चेस्टनट, लॉरेल, बर्च, मैपल तथा ओलढर जैसे चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलते हैं।
  4. इस क्षेत्र में 2500 से लेकर 3500 मीटर तक तीखे पत्ते वाले कोणधारी तथा शंकुधारी वृक्ष दिखाई देते हैं। इनमें सिलवर फर, पाईन, स्यूस, देवदार, रोडोढेन्ढरोन, नीला पाईन जैसे कम ऊँचाई वाले वृक्ष पाए जाते हैं।
  5. यहां इससे अधिक ऊँचाई पर छोटी-छोटी प्राकृतिक घास तथा फूल आदि के पौधे ही उगते हैं।

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प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किस प्रकार उद्योगों के लिए जीवन दान का कार्य करती है?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति अनेक प्रकार से उद्योगों का आधार है। वनों पर आधारित कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग निम्नलिखित हैं —

  1. दियासलाई उद्योग-वनों से प्राप्त नर्म प्रकार की लकड़ी दियासलाई बनाने के काम आती है।
  2. लाख उद्योग-लाख एक प्रकार के कीड़े से प्राप्त होती है। इसे रिकार्ड, बूट पॉलिश, बिजली का सामान आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है।
  3. कागज़ उद्योग-कागज़ उद्योग में बांस, सफेदा तथा कई प्रकार की घास प्रयोग की जाती है। बांस तराई प्रदेश में बहुत अधिक मिलता है।
  4. वार्निश तथा रंग-वार्निश तथा रंग गन्दे बिरोजे से तैयार होते हैं जो वनों से प्राप्त होता है।
  5. औषधि-निर्माण-वनों से प्राप्त कुछ वृक्षों से उपयोगी औषधियां भी बनाई जाती हैं। उदाहरण के लिए सिनकोना से कुनीन बनती है।
  6. अन्य उद्योग-वनों पर पैंसिल, डिब्बे बनाना, रबड़, तारपीन, चन्दन का तेल, फ़र्नीचर तथा खेलों का सामान बनाने के उद्योग भी आधारित हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक वनस्पति के अन्धाधुन्ध कटाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक वनस्पति की अन्धाधुन्ध कटाई की गई है। इस कटाई से हमें निम्नलिखित हानियां हुई हैं —

  1. प्राकृतिक वनस्पति की कटाई से वातावरण का सन्तुलन बिगड़ गया है।
  2. पहाड़ी ढलानों और मैदानी क्षेत्रों के वनस्पति विहीन होने के कारण बाढ़ व मृदा अपरदन की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  3. पंजाब के उत्तरी भागों में शिवालिक पर्वतमालाओं के निचले भाग में बहने वाले बरसाती नालों के क्षेत्रों में वनकटाव से भूमि कटाव की समस्या के कारण बंजर जमीन में वृद्धि हुई है।
  4. मैदानी क्षेत्रों का जल-स्तर भी प्रभावित हुआ है जिससे कृषि को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

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(आ) जीव-जन्तु

प्रश्न 1.
देश में जीव-जन्तुओं की देख-रेख के लिए कौन-कौन से कार्य किये जा रहे हैं?
उत्तर-

  1. 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (देश का 2.7 प्रतिशत तथा कुल वन क्षेत्र का 12 प्रतिशत भाग) को राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य प्राणी अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया।
  2. संकटापन्न (Near Extinction) वन्य जीवों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।
  3. पशु-पक्षियों की गणना का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आरम्भ किया गया है।
  4. देश के विभिन्न भागों में इस समय बाघों के 16 आरक्षित क्षेत्र हैं।
  5. असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है।
    सच तो यह है कि देश में अब तक 18 जीव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) स्थापित किये जा चुके हैं। योजना के अधीन सबसे पहला जीव आरक्षण क्षेत्र नीलगिरि में बनाया गया था। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जन्तु का – संरक्षण अनिवार्य है। यह प्राकृतिक धरोहर (Natural heritage) भावी पीढ़ियों के लिए है।

(इ) मिट्टियां

प्रश्न 1.
मिट्टियों के जन्म में प्राथमिक चट्टानों का क्या योगदान है?
उत्तर-
देश में प्राथमिक चट्टानों में उत्तरी मैदानों की तहदार चट्टाने अथवा पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें आती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खनिज होते हैं। इसलिए इनसे अच्छी किस्म की मिट्टी बनती है। प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करता है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में, जलवायु में रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव तथा ह्यूमस के कारण मृदा अति विकसित होती है। परन्तु राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसी तरह अधिक वर्षा तथा तेज़ पवनों वाले क्षेत्र में मिट्टी का कटाव अधिक होता है। परिणामस्वरूप उपजाऊपन कम हो जाता है।

प्रश्न 2.
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं?
उत्तर-
मिट्टी बहुमूल्य संसाधन है। इसके संरक्षण तथा उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए आज हमारी सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है।

  1. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों की गति को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जानी चाहिएं। साथ ही रेतीले टीलों पर घास उगाई जानी चाहिये।
  2. पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेड़ें (Contour Bending) बनानी तथा छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाने चाहिये।
  3. मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगानी चाहिये।
  4. इसके अतिरिक्त, फसल-चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतना तथा गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिये। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में वृद्धि की जा सकती है।

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प्रश्न 3.
पीट तथा दलदली मिट्टी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
पीट तथा दलदली मिट्टी केवल 1500 वर्ग कि० मी० के क्षेत्र में मिलती है। इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण इसका रंग काला तथा स्वभाव तेजाबी होता है। इस रंग के कारण इसे केरल में ‘काली मिट्टी’ (Black Soil) के नाम से भी जाना जाता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण यह नीले रंग वाली मिट्टी भी बन जाती है।

प्रश्न 4.
मिट्टी का कटाव कितने प्रकार का होता है?
उत्तर-
धरातल के ऊपर मिलने वाली मिट्टी की सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा टूटना अथवा हटना मिट्टी का कटाव कहलाता है। यह कटाव तीन प्रकार का हो सकता है —

  1. सतहदार कटाव-इस तरह के कटाव में पवनों के तथा नदी जल के लम्बे समय तक बहने के बाद धरातल की ऊपरी सतह बह जाती है या उड़ाकर ले जाती है।
  2. नालीदार कटाव-मूसलाधार वर्षा के समय अधिक जल कम चौड़ाई वाली नालियों में बहने लगता है। इससे धरातल पर लम्बी-लम्बी खाइयां व खड्डे बन जाते हैं। इन्हें नालीदार कटाव कहते हैं।
  3. खड्डेदार कटाव-पवनें तथा जल धरातल के विशिष्ट स्थानों पर मिट्टी के उड़ने या धुलने के पश्चात् गहरे खड्डे बना देते हैं। धीरे-धीरे ये खड्डे बहुत बड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
मिट्टी कटाव के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मिट्टी का कटाव मुख्य रूप से दो कारणों से होता है-भौतिक क्रियाओं द्वारा तथा मानव क्रियाओं द्वारा। आज के समय में मानव क्रियाओं से मिट्टियों के कटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।
भौतिक तत्त्वों में उच्च तापमान, बर्फीले तूफान, तेज़ हवाएं, मूसलाधार वर्षा तथा तीव्र ढलानों की गणना होती है। ये मिट्टियों के कटाव के प्रमुख कारक हैं। मानवीय क्रियाओं में जंगलों की कटाई, पशुओं की बेरोकटोक चराई, स्थानांतरी कृषि की दोषपूर्ण पद्धति, खानों की खुदाई आदि तत्त्व आते हैं।

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III. निम्नलिखित का उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय वनस्पति के वर्गीकरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का कई आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है। इनमें मुख्य आधार निम्नलिखित हैं —

  1. पहुंच के आधार पर इस दृष्टि से वन दो प्रकार के हैं-दुर्गम वन तथा अगम्य वम। देश में 18% वन क्षेत्र ऐसे हैं जोकि हिमालय की ऊंची ढलानों पर स्थित हैं। इस कारण यह मानव पहुंच से बाहर हैं अर्थात् अगम्य है। हम केवल 82% वन क्षेत्र का ही प्रयोग कर पाते हैं।
  2. पत्तियों के आधार पर-देश में कुल उपलब्ध वनों के 5% क्षेत्र केवल नुकीली पत्तियों वाले हैं। ये बहुमूल्य शंकुधारी वन हिमालय की ऊबड़-खाबड़ ढलानों पर स्थित होने के कारण लगभग अछूते ही रह जाते हैं। इसके विपरीत हम चौड़े पत्ती वाले साल व टीक जैसे 95% वनों का प्रयोग कर सकते हैं।
  3. प्रशासनिक अथवा प्रबन्ध के आधार पर वनों के प्रबन्धन को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है। इसके अनुसार 95% (717 लाख हेक्टेयर) वन क्षेत्र राज्य के अधीन हैं। इन पर राज्य सरकार का एकाधिकार होता है। दूसरे प्रकार के वन स्थानीय नगरपालिका अथवा जिला परिषद् की देख-रेख के अधीन होते हैं। ये सामूहिक वन भी कहलाते हैं। शेष वन क्षेत्र लोगों के निजी अधिकार (Private Forest) में आता है।
  4. वन कानून के आधार पर-वनों के कानूनी नियंत्रण तथा सुरक्षा की दृष्टि से वनों को तीन वर्गों में बांटा जाता है-सुरक्षित वन, संरक्षित वन तथा अवर्गीकृत वन। सुरक्षित वनों में 52% वन क्षेत्र आता है। इन्हें देश में भूमि कटाव को रोकने, वातावरण की सम्भाल तथा लकड़ी की पूर्ति के लिए सुरक्षित रखा गया है। इन वनों में पशुओं को चराना तथा लकड़ी काटना मना है। दूसरे 32% (233 लाख हेक्टेयर) वन संरक्षित वन क्षेत्र हैं। सरकारी कानून के अनुसार
    इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता। परन्तु यहां पर पशु चराना, लकड़ी काटना आदि सुविधाएं मिल जाती हैं। अवर्गीकृत वन 16% हैं। इनमें भी लोगों को सुविधाएं प्राप्त हैं।
  5. भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर-भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर देश की प्राकृतिक वनस्पति को निम्नलिखित खण्डों में विभाजित किया जा सकता है —
    1. उष्ण सदाबहार वनस्पति
    2. पतझड़ या मानसूनी वनस्पति
    3. शुष्क वनस्पति
    4. ज्वारीय या मैंग्रोव वनस्पति
    5. पर्वतीय वनस्पति।

प्रश्न 2.
देश में भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर प्राकृतिक वनस्पति का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर भारत की वनस्पति को निम्नलिखित पाँच भागों में बांटा जा सकता है —

  1. उष्ण सदाबहार वन-इस प्रकार के वन मुख्य रूप से अधिक वर्षा (200 सें० मी० से अधिक) वाले भागों में मिलते हैं। इसलिए इन्हें बरसाती वन भी कहते हैं। ये वन अधिकतर पूर्वी हिमालय के तराई प्रदेश, पश्चिमी घाट, पश्चिमी अण्डमान, असम, बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष महोगनी, ताड़, बांस, बैंत, रबड़, चपलांस, मैचीलश तथा कदम्ब हैं। .
  2. पतझड़ी अथवा मानसूनी वन-पतझड़ी या मानसूनी वन भारत के उन प्रदेशों में मिलते हैं जहां 100 से 200 सें. मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। भारत में ये मुख्य रूप से हिमालय के निचले भाग, छोटा नागपुर, गंगा की घाटी, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानों तथा तमिलनाडु क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष सागवान, साल, शीशम, आम, चन्दन, महुआ, ऐबोनी, शहतूत तथा सेमल हैं। गर्मियों में ये वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहते हैं।
  3. मरुस्थलीय वन-इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वार्षिक वर्षा का मध्यमान 20 से 60 सें. मी० तक होता है। भारत में ये वन राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब और गुजरात में पाए जाते हैं। इन वनों में रामबांस, खैर, पीपल और खजूर के वृक्ष प्रमुख हैं।
  4. ज्वारीय वन-ज्वारीय वन नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ होती है और पानी भी अधिक मात्रा में मिल जाता है। भारत में इस प्रकार के वन महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि के डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। यहां की वनस्पति को मैंग्रोव अथवा सुन्दर वन भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में ताड़, कैंस, नारियल आदि के वृक्ष भी मिलते हैं।
  5. पर्वतीय वन-इस प्रकार की वनस्पति हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों पर पायी जाती है। इस वनस्पति में वर्षा की मात्रा तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ अन्तर आता है। कम ऊंचाई पर सदाबहार वन पाये जाते हैं, तो अधिक ऊंचाई पर केवल घास तथा कुछ फूलदार पौधे ही मिलते हैं।

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प्रश्न 3.
प्राकृतिक बनस्पति के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें कई प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभ होते हैं। प्रत्यक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. वनों से हमें कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है। जिसका प्रयोग इमारतें, फ़र्नीचर, लकड़ी-कोयला आदि बनाने में होता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भी होता है।
  2. खैर, सिनकोना, कुनीन, बहेड़ा व आंवले से कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।
  3. मैंग्रोव, कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर आदि के पत्ते, छिलके व फलों को सुखाकर चमड़ा रंगने का पदार्थ तैयार किया जाता है।
  4. पलाश व पीपल से लाख, शहतूत से रेशम, चंदन से तुंग व तेल और साल से धूपबत्ती व बिरोजा तैयार किया जाता है।

परोक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से हमें निम्नलिखित परोक्ष लाभ होते हैं

  1. वन जलवायु पर नियन्त्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अन्दर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शान्ति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केन्द्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार हैं। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोज़ा आदि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 4.
मिट्टी की बनावट किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है?
उत्तर-
मिट्टी की बनावट निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है —

  1. प्रारम्भिक चट्टान-देश के उत्तरी मैदानों की मोड़दार चट्टानें भिन्न-भिन्न खनिजों की बनी होने के कारण अच्छी किस्म की मिट्टी प्रदान करती है। दूसरी ओर देश के पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें ज़ोनल मिट्टियों को जन्म देती हैं। इनमें कई प्रकार के खनिज पदार्थ मिलते हैं जिसके कारण ये सभी मिट्टियां उपजाऊ होती हैं।
  2. जलवायु-प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करती है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में जलवायु, रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव व ह्यमस के कारण मृदा बहुत ही विकसित होती है। इसके विपरीत राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है। इसी प्रकार अधिक वर्षा व तेज़ पवनों वाले क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव अधिक होने से मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  3. ढलान-जलवायु के अलावा क्षेत्रीय ढलान भी मृदा के विकास को प्रभावित करती है। देश के तीव्र ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पानी के तेज बहाव तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण मिट्टी खिसकती रहती है। यही कारण है कि पर्वतीय क्षेत्रों की ढलानों की बजाय गंगा, सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की घाटियों में मिट्टी ज्यादा उपजाऊ होती है।
  4. प्राकृतिक वनस्पति-प्राकृतिक वनस्पति जैविक चूरे की पूर्ति करके मिट्टी का विकास करने वाला मुख्य तत्त्व है। परन्तु हमारे देश की अधिकतर भूमि कृषि के अधीन होने के कारण प्राकृतिक वनस्पति की कमी है। देश के लावे वाली मिट्टियों में व सुरक्षित वन क्षेत्र की मिट्टियों में 5-10% तक जैविक अंश मिलता है।
  5. अवधि-इन सभी तत्त्वों के अतिरिक्त मिट्टी के विकास में अवधि अर्थात् समय का भी अपना महत्त्व होता है। मिट्टियों में प्रत्येक वर्ष ह्यमस व जीवांश प्राप्त हो जाती है तथा लाखों वर्ष निर्विघ्न क्रिया द्वारा ही बढ़िया मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 5.
भारतीय मिट्टियों की किस्मों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। इनके गुणों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है —

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)-भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान, राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिण के तटीय मैदानों में सामान्य रूप से मिलती है। इसमें रेत, गाद तथा मृत्तिका मिली होती है। जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैखादर तथा बांगर। जलोढ़ मिट्टियां सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों में पोटाश, फॉस्फोरस अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। परन्तु इनमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।
  2. काली अथवा रेगड़ मिट्टी (Black Soil)-इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत लाभदायक है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है। यह मिट्टी दक्कन ट्रैप प्रदेश की प्रमुख मिट्टी है। यह पश्चिम में मुंबई से लेकर पूर्व में अमरकंटक पठार, उत्तर में गुना (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बेलगाम तक त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई है। काली मिट्टी नमी को अधिक समय तक धारण कर सकती है। इस मृदा में लौह, पोटाश, चूना, एल्यूमीनियम तथा मैगनीशियम की मात्रा अधिक होती है। परन्तु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की मात्रा कम होती है।
  3. लाल मिट्टी (Red Soil)-इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के रवेदार तथा परिवर्तित चट्टानों में बदल जाने के कारण होता है। इसका विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, दक्षिणी बिहार, झारखंड, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों में हैं। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन तथा चूने की कमी, परन्तु मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम तथा लोहे की मात्रा अधिक होती है।
  4. लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस मिट्टी में नाइट्रोजन, चूना तथा पोटाश की कमी होती है। इसमें लोहे तथा एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका स्वभाव तेज़ाबी हो जाता है। इसका विस्तार विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बैसाल्टिक पर्वतीय चोटियों, दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार के उत्तरी तथा पूर्वी भाग में है।
  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)-इस मिट्टी का विस्तार पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में अरावली पर्वतों तक है। यह राजस्थान, दक्षिणी पंजाब व दक्षिणी हरियाणा में फैली हुई है। इसमें घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है। परन्तु इसमें नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की बहुत कमी होती है। इसमें 92% रेत व 8% चिकनी मिट्टी का अंश होता है। इसमें सिंचाई की सहायता से बाजरा, ज्वार, कपास, गेहूँ, सब्जियां आदि उगाई जा रही हैं।
  6. खारी व तेजाबी मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)-यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है। खारी मिट्टियों से सोडियम भरपूर मात्रा में मिलता है। तेज़ाबी मिट्टी में कैल्शियम व नाइट्रोजन की कमी होती है। इसी लवणीय मिट्टी को उत्तर प्रदेश में औसढ़’ या ‘रेह’, पंजाब में ‘कल्लर’ या ‘थुड़’ तथा अन्य भागों में ‘रक्कड़’ कार्ल और. ‘छोपां’ मिट्टी भी कहा जाता है।
  7. पीट एवं दलदली मिट्टी (Peat & Marshy Soil)-इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। इसका रंग जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण काला तथा तेजाबी स्वभाव वाला होता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण कहीं-कहीं इसका रंग नीला भी है।
  8. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)-इस मिट्टी में रेत, पत्थर तथा बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसमें चूना कम लेकिन लोहे की मात्रा अधिक होती है। यह चाय की खेती के लिए अनुकूल होती है। इसका विस्तार असम, लद्दाख, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, दार्जिलिंग, देहरादून, अल्मोड़ा, गढ़वाल व दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में है।

प्रश्न 6.
मिट्टी का कटाव क्या होता है? इसके क्षेत्रीय प्रारूप का वर्णन कीजिए तथा मिट्टी संरक्षण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
धरातल पर मिलने वाली 15 से 30 सें० मी० मोटी सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा अपने मूल स्थान से टूट जाना या हट जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।
क्षेत्रीय प्रारूप-मिट्टी के कटाव का देश के अग्रलिखित भागों पर प्रभाव पड़ा है —

  1. बाह्य हिमालय (शिवालिक) क्षेत्रों में प्राकृतिक वनस्पति का अत्यधिक कटाव हुआ है। इसने उपजाऊ भूमि को गारे (कीचड़) से लादकर कृषि विहीन कर दिया है।
  2. पंजाब के होशियारपुर, रोपड़ जिले, यमुना, चम्बल, माही व साबरमती नदियों के अपवाह क्षेत्र में नालियों व ‘चोअ’ ने वनस्पति की कमी के कारण भूमि को बंजर बना दिया है।
  3. दक्षिणी पंजाब, हरियाणा व पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तर-पूर्वी गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में पवनों के द्वारा कटाव हुआ है।
  4. देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पश्चिमी बंगाल, समेत भारी वर्षा, बाढ़ व नदी-किनारों की कटाई से सैंकड़ों टन मिट्टी बंगाल की खाड़ी में चली जाती है।
  5. दक्षिण व दक्षिणी पूर्वी भारत में मिट्टी का कटाव तीव्र ढलानों, भारी वर्षा व कृषि की दोषपूर्ण पद्धति अपनाने से हुआ है। मिट्टी का संरक्षण-

मिट्टी के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा रहे हैं —

  1. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों के वेग को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जा रही हैं।
  2. रेतीले टीलों पर घास उगाई जा रही है।
  3. पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेडें बनाकर छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाते हैं।
  4. मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगाकर, फसल चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतकर तथा गोबर की खाद प्रयोग करके मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
  5. झारखण्ड सरकार ने छोटा नागपुर के पठारी भाग में स्थानान्तरी कृषि के लिए कठोर नियम बनाये हैं।

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IV. भारत के मानचित्र में निम्न को दर्शाएं:

  1. शुष्क वनस्पति क्षेत्र।
  2. मैंग्रोव वनस्पति क्षेत्र।
  3. काली एवं जलोढ़ मिट्टी क्षेत्र।

उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत में कई प्रकार की वनस्पति पाए जाने का क्या कारण है?
उत्तर-
भारत की प्राकृतिक दशा, इसकी जलवायु और इसकी मिट्टी में भिन्नता के कारण यहां कई प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।

प्रश्न 2.
उष्ण सदाबहार वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वन भारत के पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, असम, नागालैंड, त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं।

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प्रश्न 3.
मानसूनी वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
मानसूनी वन महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में पाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
मानसूनी वनों में पाए जाने वाले चार मुख्यं वृक्षों के नाम बताएं।
उत्तर-
साल, सागवान, शीशम तथा ऐबोनी।

प्रश्न 5.
डैल्टाई वनों में पाए जाने वाले एक प्रमुख वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर-
सुन्दरी।

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प्रश्न 6.
फर्नीचर, समुद्री जहाज तथा रेलों के डिब्बों के लिए कौन-सी लकड़ी सबसे अच्छी रहती है?
उत्तर-
इनके लिए सागवान की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।

प्रश्न 7.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन सदा हरित रहते हैं।

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों के व्यापारिक उपयोग में क्यों कठिनाई आती है?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में एक साथ मिले हुए अनेक जातियों के वृक्ष पाए जाते हैं।

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प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन किस जलवायु प्रदेश के विशिष्ट वन हैं?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मानसून प्रदेश के विशिष्ट वन हैं।

प्रश्न 10.
मानसूनी (उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती) वनों के कौन-कौन से दो उप वर्ग हैं?
उत्तर-
मानसूनी वनों के दो उप वर्ग हैं-

  1. आई पर्णपाती वन
  2. शुष्क पर्णपाती वन।

प्रश्न 11.
(i) मेनग्रोव के वृक्ष कहां पाये जाते हैं?
(ii) इनकी मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर-
(i) मेनग्रोव के वृक्ष समुद्र तट के साथ-साथ तथा नदियों के ज्वारीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
(ii) इन वृक्षों की विशेषता यह है कि ये खारे पानी तथा ताजे पानी दोनों में ही पनप सकते हैं।

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प्रश्न 12.
मरुस्थलों में वृक्षों की जड़ें लम्बी क्यों होती हैं?
उत्तर-
प्रकृति ने उन्हें लम्बी जड़ें इसलिए प्रदान की हैं ताकि ये गहराई से नमी प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 13.
क्या कारण है कि.वनों से बाढ़ की भयंकरता कम हो जाती है?
उत्तर-
वनों की रोक के कारण बाढ़ का बहाव धीमा हो जाता है।

प्रश्न 14.
मरुस्थलीय मृदा के उपजाऊ होने पर भी इसमें कृषि कम होती है, क्यों?
उत्तर-
वर्षा की कमी के कारण इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश का अभाव रहता है।

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प्रश्न 15.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा से हमारा अभिप्राय ऐसी मृदा से है जिसका निर्माण नदियों द्वारा होता है।

प्रश्न 16.
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार हैं-बांगर मृदा, खादर मृदा, डेल्टाई मृदा और तटवर्ती जलोढ़ मृदा।

प्रश्न 17.
काली मृदा का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-
काली मृदा में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है।

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प्रश्न 18.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
उत्तर-
कपास।

प्रश्न 19.
लैटराइट मृदा में किन तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है?
उत्तर-
लैटराइट मृदा में लोहा और एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है।

प्रश्न 20.
भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का कितने प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है?
उत्तर-
40%

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प्रश्न 21.
किस विदेशी वनस्पति ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है?
उत्तर-
पारथेनियम अथवा कांग्रेसी घास।

प्रश्न 22.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा कब की गई थी?
उत्तर-
1951 में।

प्रश्न 23.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र कितना है?
उत्तर-
0.14 हेक्टेयर।

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प्रश्न 24.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
उत्तर-
अण्दमान व निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 25.
केन्द्रीय शासित प्रदेशों में सबसे कम वन क्षेत्र किस प्रदेश का है?
उत्तर-
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।

प्रश्न 26.
हम अपने कितने प्रतिशत वन क्षेत्र का प्रयोग कर पाते हैं?
उत्तर-
82 प्रतिशत का।

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प्रश्न 27.
कीकर और बबूल किस प्रकार की वनस्पति के वृक्ष हैं?
उत्तर-
मरुस्थलीय अथवा शुष्क वनस्पति।

प्रश्न 28.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु किसे माना जाता है?
उत्तर-
हाथी।

प्रश्न 29.
थार मरुस्थल का सामान्य पशु कौन-सा है?
उत्तर-
ऊंट।

प्रश्न 30.
भारत में जंगली गधे कहां पाये जाते हैं?
उत्तर-
कच्छ के रण में।

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प्रश्न 31.
भारत में एक सींग वाला गेंडा कहां मिलता है?
उत्तर-
असम तथा पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों में।

प्रश्न 32.
जंगली जीवों में सबसे शक्तिशाली पश कौन-सा है?
उत्तर-
शेर।

प्रश्न 33.
प्रसिद्ध बंगाली शेर अथवा बंगाल टाईगर का प्राकृतिक आवास कौन-सा है?
उत्तर-
गंगा डेल्टा के सुन्दर वन।

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प्रश्न 34.
गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन किस विशिष्ट पशु का प्राकृतिक आवास है?
उत्तर-
भारतीय सिंह का।

प्रश्न 35.
हिमालय के उच्च क्षेत्रों में पाये जाने वाले दो जानवरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लामचिता तथा हिम-तेन्दुआ।

प्रश्न 36.
भारत का सबसे पहला वन आरक्षित क्षेत्र कब और कहां बनाया गया था?
उत्तर-
भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र 1986 में नीलगिरी में बनाया गया था।

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प्रश्न 37.
दरियाई जलोढ़ मिट्टी को कौन-कौन से दो उपभागों में बांटा जाता है?
उत्तर-
खादर तथा बांगर।

प्रश्न 38.
आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी क्या कहलाती है?
उत्तर-
काली मिट्टी।

प्रश्न 39.
केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1953 में।

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प्रश्न 40.
किस प्रकार के वनों को बरसाती वन कहा जाता है?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनों को।

प्रश्न 41.
भारत में संकटापन्न वन्य जीवों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में दो संकटापन्न वन्य जीव बाघ तथा गैंडा हैं।

प्रश्न 42.
(i) राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं ?
(ii) इसके दो उदाहरण भारत से दीजिए।
उत्तर-
(i) राष्ट्रीय उद्यान से अभिप्राय उन सुरक्षित स्थलों से है जहां पर जानवरों को उनकी नस्लें सुरक्षित रखने के लिए रखा जाता है।
(ii) कार्बेट नेशनल पार्क तथा काजीरंगा नेशनल पार्क।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. फर्नीचर, समुद्री जहाज़ तथा रेल के डिब्बे बनाने के लिए ……………. की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।
  2. …………………………..वर्षा वन सदा हरे-भरे रहते हैं।
  3. भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का ………….प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है।
  4. विदेशी वनस्पति की ……….. घास ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है।
  5. थार मरुस्थल का सामान्य पशु ……………….. है।
  6. भारत में जंगली गधे ………………… में पाए जाते हैं।
  7. जंगली जीवों में ……………………. सबसे शक्तिशाली पशु है।
  8. भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र ……………… में बनाया गया।
  9. आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी …………….. मिट्टी कहलाती है।
  10. केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना ………………….. ई० में की गई।

उत्तर-

  1. सागवान,
  2. उष्ण कटिबंधीय,
  3. 40,
  4. कांग्रेसी,
  5. ऊंट,
  6. रण के कच्छ,
  7. शेर,
  8. नीलगिरी,
  9. काली,
  10. 1953

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डेल्टाई वनों में पाया जाने वाला मुख्य वृक्ष है —
(A) साल
(B) शीशम
(C) सुन्दरी
(D) सागवान।
उत्तर-
(C) सुन्दरी

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प्रश्न 2.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
(A) कपास
(B) गेहूं
(C) चावल
(D) गन्ना।
उत्तर-
(A) कपास

प्रश्न 3.
किस मृदा में लोहे तथा एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है?
(A) काली मृदा
(B) लैटराइट मृदा
(C) मरूस्थलीय मृदा
(D) जलोढ़ मृदा।
उत्तर-
(B) लैटराइट मृदा

प्रश्न 4.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा की गई.
(A) 1947 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1937 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर-
(D) 1951 ई० में

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प्रश्न 5.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र है —
(A) 0.14 हेक्टेयर
(B) 1.4 हेक्टेयर
(C) 14.0 हेक्टेयर
(D) 4.1 हेक्टेयर।
उत्तर-
(A) 0.14 हेक्टेयर

प्रश्न 6.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
(A) चण्डीगढ़ में
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में
(C) दादरा तथा नगर हवेली में
(D) पाण्डिचेरी (पुड्डूचेरी) में।
उत्तर-
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में

प्रश्न 7.
निम्न केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे कम वन क्षेत्र है —
(A) चण्डीगढ़
(B) लक्षद्वीप
(C) दिल्ली
(D) दमन-द्वीप।
उत्तर-
(C) दिल्ली

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प्रश्न 8.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु माना जाता है —
(A) बन्दर
(B) हाथी
(C) लंगूर
(D) भैंस।
उत्तर-
(B) हाथी

प्रश्न 9.
भारत में एक सींग वाला गेंडा मिलता है —
(A) तमिलनाडु में
(B) असम तथा उत्तर प्रदेश में ।
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में
(D) उत्तराखण्ड तथा उत्तर प्रदेश में।
उत्तर-
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में

प्रश्न 10.
भारत में पहला वन आरक्षित क्षेत्र बनाया गया
(A) 1986 ई० में
(B) 1976 ई० में
(C) 1971 ई० में
(D) 1981 ई० में।
उत्तर-
(A) 1986 ई० में

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं.

  1. सुंदरवन का जीव आरक्षित क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित है।
  2. राष्ट्रीय वन नीति 1951 के अनुसार देश के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई (33.3 प्रतिशत) भाग पर वन होने चाहिए।
  3. बबूल, कीकर आदि वृक्ष आर्द्र पतझड़ी वनों के वृक्ष हैं।
  4. सघन वन गर्मियों में तापमान बढ़ने से रोकते हैं।
  5. पर्वतीय मिट्टी चाय उत्पादन के अनुकूल होती है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — सुन्दर वन
  2. भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — पंजाब तथा हरियाणा
  3. ज्वारीय वनस्पति — बंगाल का डर
  4. भूड़ मिट्टी — त्रिपुरा।

उत्तर-

  1.  जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — बंगाल का डर,
  2. भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — त्रिपुरा,
  3. ज्वारीय वनस्पति — सुन्दर वन,
  4. भूड़ मिट्टी — पंजाब तथा हरियाणा।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शुष्क पतझड़ी वनस्पति पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
क्षेत्र-इसकी एक लम्बी पट्टी पंजाब से लेकर हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, काठियावाड़, दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई है।
प्रमुख वृक्ष-इस वनस्पति में शीशम या टाहली, कीकर, बबूल, बरगद, हलदू जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें चन्दन, महुआ, सीरस तथा सागवान जैसे कीमती वृक्ष भी मिलते हैं। ये वृक्ष प्रायः गर्मियां शुरू होते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं। घास-इन क्षेत्रों में दूर-दूर तक काँटेदार झाड़ियाँ व कई प्रकार की घास नजर आती हैं जोकि घास के मैदान की तरह नज़र आती है। इस घास को मंजु, कांस व सवाई कहा जाता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखिए
(i) वन्य जीवों का संरक्षण।
(ii) मिट्टी का संरक्षण।
उत्तर-
(i) वन्य जीवों का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं। उनकी उचित देखभाल न होने से जीवों की कई एक जातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने वाली हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपाय किये जा रहे हैं। नीलगिरि में भारत का पहला जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया। यह कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के सीमावती क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। नीलगिरि के पश्चात् 1988 ई० में उत्तराखंड (वर्तमान) में नन्दा देवी का जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया। उसी वर्ष मेघालय में तीसरा ऐसा ही क्षेत्र स्थापित किया गया। एक और जीव आरक्षित क्षेत्र अण्दमान तथा निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात तथा असम में भी जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं।
(ii) मिट्टी का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां मिलती हैं। इन मिट्टियों में कई प्रकार की फ़सलें पैदा की जा सकती हैं। देश में पाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टियों के कारण ही भारत कृषि उत्पादों में आत्म-निर्भर हो सका है। परन्तु मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं। हमें मिट्टियों का उचित संरक्षण करना चाहिए तथा उन्हें अपरदन से बचाना चाहिए। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों की सहायता भी लेनी चाहिए। अतः स्पष्ट है कि भूमि की उत्पादकता को निरन्तर बनाए रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 3.
रेगड़ मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रेगड मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में निम्नलिखित अन्तर है

रेगड़ मिट्टी (काली मिट्टी) लैटराइट मिट्टी
(1) इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। (1) इस मिट्टी का निर्माण भारी वर्षा से होने वाली निक्षालन क्रिया से हुआ है।
(2) इसमें मिट्टी के पोषक तत्त्व काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी उपजाऊ होती है। (2) इस मिट्टी के अधिकतर पोषक तत्त्व वर्षा में बह जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
(3) यह मिट्टी कपास की उपज के लिए आदर्श होती है। (3) इस मिट्टी में केवल घास और झाड़ियां ही उग पाती हैं।
(4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी. धारण करने की क्षमता होती है। (4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता नहीं होती है।

 

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प्रश्न 4.
हमारी मदा की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। इसे दूर करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-
भारत की मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

  1. रासायनिक खादों का प्रयोग-हमारे देश के किसान अधिकतर गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं जिससे उपज कम होती है। रासायनिक खाद का प्रयोग करने से आवश्यक तत्त्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसलिए किसानों को गोबर की खाद के साथ-साथ रासायनिक खादों का भी प्रयोग करना चाहिए।
  2. भूमि को खाली छोड़ना-यदि भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाए तो वह उर्वरा शक्ति में आई कमी को पूरा कर लेती है। इसलिए भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ देना चाहिए।
  3. फसलों की फेर-बदल-पौधे अपना भोजन भूमि से प्राप्त करते हैं। प्रत्येक पौधा भूमि से अलग-अलग प्रकार के तत्त्व प्राप्त करता है। यदि एक फसल को बार-बार बोया जाए तो भूमि में एक विशेष तत्त्व की कमी हो जाती है। इसलिए फसलों को अदल-बदल कर बोना चाहिए।

प्रश्न 5.
भारत में पाई जाने वाली काली तथा लाल मृदा की तुलना करो।
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली काली मृदा तथा लाल मृदा की तुलना अग्र प्रकार है

काली मृदा लाल मृदा
(1) यह मृदा लावा से बनी हुई चट्टानों के टूटने से बनती है। (1) यह मृदा उन चट्टानों के टूटने से बनती है जिनमें लोहे की मात्रा अधिक होती है।
(2) इस मृदा में पोटाशियम, मैग्नीशियम, लोहा और जीवांश मिले हुए होते हैं। (2) इस मृदा में मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, चूना और नाइट्रोजन नहीं होता। इसमें लोहे का ऑक्साइड अधिक मात्रा में होता है।
(3) काली मृदा पानी को बहुत देर तक सोख सकती है। अतः इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। (3) लाल मृदा बहुत देर तक पानी नहीं सोख सकती। र इसमें वर्षा के समय ही कृषि हो सकती है।
(4) यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है। (4) यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती।

 

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प्रश्न 6.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है? यह भारत के किन-किन भागों में पाई जाती है? इस मृदा के गुण तथा लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर-
नदियां अपने साथ लाई हुई मृदा और मृत्तिका के बारीक कणों को मैदान में बिछा देती हैं। इस प्रकार से जो मृदा बनती है, उसे जलोढ़ मृदा कहते हैं। जलोढ़ मृदा बड़ी उपजाऊ होती है।
जलोढ़ मृदा के क्षेत्र-भारत में जलोढ़ मृदा गंगा-सतलुज के मैदान, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाओं, ब्रह्मपुत्र की घाटी और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में पाई जाती है।
गुण तथा लक्षण-

  1. यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है।
  2. यह मृदा कठोर नहीं होती। इसलिए इसमें आसानी से हल चलाया जा सकता है।
  3. वर्षा कम होने पर इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश की मात्रा कम हो जाती है और पोटाश तथा फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और तब यह कृषि योग्य नहीं रहती।

प्रश्न 7.
जलोढ़ मृदा कितने प्रकार की होती है? वर्णन करो।
उत्तर-
जलोढ़ मृदा में वर्षा की भिन्नता के कारण क्षार, बालू और चीका की मात्रा अलग-अलग होती है। इसी आधार पर इसको चार भागों में बांटा जा सकता है

  1. बांगर मृदा-यह प्राचीन जलोढ़ मृदा है। जहां ऐसी मृदा पाई जाती है वहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। इसमें बालू और चीका की मात्रा लगभग बराबर होती है। इसमें कहीं-कहीं कंकड़ और चूने की डलियां भी मिलती हैं।
  2. खादर मृदा-इसे नवीन जलोढ़ भी कहते हैं। इस प्रकार की मृदा के क्षेत्र नदियों के समीप पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रति वर्ष पहुंच जाता है जिससे नई जलोढ़ का जमाव होता रहता है।
  3. डैल्टाई मृदा-इसे नवीनतम कछारी मृदा भी कहते हैं। यह नदियों के डेल्टाओं के आस-पास पाई जाती है। इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है।
  4. तटवर्ती जलोढ़ मिट्टी-इस प्रकार की मृदा का निर्माण तटों के साथ समुद्री लहरों के निक्षेप से प्राप्त चूरे से होता है।

प्रश्न 8.
वन्य प्राणियों की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य क्यों है?
उत्तर-
हमारे वनों में बहुत-से महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी पाए जाते हैं। परन्तु खेद की बात यह है कि पक्षियों और जानवरों की अनेक जातियां हमारे देश से लुप्त हो चुकी हैं। अतः वन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काटकर तथा जानवरों का शिकार करके दुःखदायी स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बन्दर, शेर और सारंग नामक पशु-पक्षी बहुत ही कम संख्या में मिलते हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वन्य प्राणियों की रक्षा करे।

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प्रश्न 9.
किसान के लिए पशुधन/पशुपालन का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
हमारे देश में विशाल पशु धन पाया जाता है, जिन्हें किसान अपने खेतों पर पालते हैं। पशुओं से किसान को गोबर प्राप्त होता है, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में उसकी सहायता करता है। पहले किसान गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, परन्तु अब प्रगतिशील किसान गोबर को ईंधन और खाद दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। खेत में गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करने से पहले वे उससे गैस बनाते हैं जिस पर वे खाना बनाते हैं और रोशनी प्राप्त करते हैं। पशुओं की खालें बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं। पशुओं से उन्हें ऊन प्राप्त होती है। सच तो यह है कि पशुधन भारतीय किसान के लिए अतिरिक्त आय का साधन है।

प्रश्न 10.
मृदा के प्रमुख पांच उपयोग बताओ।
उत्तर-
मृदा एक अत्यन्त उपयोगी प्राकृतिक उपहार है। इससे हमें भिन्न-भिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं। इसके मुख्य पांच उपयोग निम्नलिखित हैं

  1. इससे गेहूं, चावल, बाजरा, ज्वार आदि अनाज प्राप्त होता है।
  2. इसमें पशुओं के लिए घास और चारा उगता है।
  3. इससे कपास, पटसन, सीसल आदि रेशेदार पदार्थ मिलते हैं।
  4. इससे हमें दालें मिलती हैं।
  5. इससे उपयोगी लकड़ी प्राप्त होती है।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
भारत में पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का वर्णन करो।
उत्तर-
वनस्पति की भान्ति ही हमारे देश के जीव-जन्तुओं में भी बड़ी विविधता है। भारत में इनकी 81,000 जातियां पाई जाती हैं। देश के ताजे और खारे पानी में 2500 जातियों की मछलियां मिलती हैं। इसी प्रकार यहां पर पक्षियों की भी 2000 जातियां पाई जाती हैं। मुख्य रूप से भारत के वन्य प्राणियों का वर्णन इस प्रकार है

  1. हाथी-हाथी राजसी ठाठ-बाठ वाला पशु है। यह ऊष्ण आर्द्र वनों का पशु है। यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। इन स्थानों पर भारी वर्षा के कारण बहुत घने वन मिलते हैं।
  2. ऊँट-ऊँट गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाया जाता है।
  3. जंगली गधा-जंगली गधे कच्छ के रण में मिलते हैं।
  4. एक सींग वाला गैंडा-एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों के दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  5. बन्दर-भारत में बन्दरों की अनेक जातियां मिलती हैं। इनमें से लंगूर सामान्य रूप से पाया जाता है। पूंछ वाला बन्दर (मकाक) बड़ा ही विचित्र जीव है। इसके मुंह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक प्रभामण्डल के समान दिखाई देते हैं।
  6. हिरण-भारत में हिरणों की अनेक जातियां पाई जाती हैं। इनमें चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं। यहां हिरणों की कुछ अन्य जातियां भी मिलती हैं। इनमें कश्मीरी बारहसिंघा, दलदली मृग, चित्तीदार मृग, कस्तूरी मृग तथा मूषक मृग उल्लेखनीय हैं।
  7. शिकारी जन्तु–शिकारी जन्तुओं में भारतीय सिंह का विशिष्ट स्थान है। अफ्रीका के अतिरिक्त यह केवल भारत में ही मिलता है। इसका प्राकृतिक आवास गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वनों में है। अन्य शिकारी पशुओं में शेर, तेंदुआ, लामचिता (क्लाउडेड लियोपार्ड) तथा हिम तेन्दुआ प्रमुख हैं।
  8. अन्य जीव-जन्तु-हिमालय की श्रृंखलाओं में भी अनेक प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं। इनमें जंगली भेडें तथा पहाड़ी बकरियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारतीय जन्तुओं में भारतीय मोर, भारतीय भैंसा तथा नील गाय प्रमुख हैं। भारत सरकार कुछ जातियों के जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।

प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां PSEB 10th Class Geography Notes

  • प्राकृतिक वनस्पति–बिना. मानव हस्तक्षेप से उगने वाली वनस्पति प्राकृतिक वनस्पति कहलाती है। इसके विकास में किसी प्रदेश की जलवायु तथा मिट्टी की मुख्य भूमिका होती है।
  • वनस्पति की विविधता-भारत की प्राकृतिक वनस्पति में वन, घास-भूमियां तथा झाड़ियां सम्मिलित हैं। इस देश में पेड़-पौधों की 45,000 जातियां पाई जाती हैं।
  • वनस्पति प्रदेश-हिमालय प्रदेश को छोड़कर भारत के चार प्रमुख वनस्पति क्षेत्र हैं-उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन, उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, कंटीले वन और झाड़ियां तथा ज्वारीय वन।
  • पर्वतीय प्रदेशों में वनस्पति की पेटियां-पर्वतीय प्रदेशों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक सभी प्रकार की वनस्पति बारी-बारी से मिलती है। ये सभी पेटियां केवल छः किलोमीटर की ऊंचाई में ही समाई हुई हैं।
  • जीव-जन्तु-हमारे देश में जीव-जन्तुओं की लगभग 81,000 जातियां मिलती हैं। देश के ताज़े और खारे पानी में 2,500 प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं। यहां पक्षियों की भी 2,000 जातियां हैं।
  • जैव विविधता की सुरक्षा और संरक्षण-जैव सुरक्षा के उद्देश्य से देश में 89 राष्ट्रीय उद्यान, 497 वन्य प्राणी अभ्यारण्य तथा 177 प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) बनाए गए हैं।
  • मृदा (मिट्टी)-मूल शैलों के विखण्डित पदार्थों से मिट्टी बनती है। तापमान, प्रवाहित जल, पवन आदि तत्त्व इसके विकास में सहायता करते हैं।
  • मिट्टियों के सामान्य वर्ग- भारत की मिट्टियों के मुख्य वर्ग हैं-जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी इत्यादि। – इन मिट्टियों की विशेषताएं हैं:
    1. जलोढ़ मिट्टी-गाद तथा मृत्तिका का मिश्रण-पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना-सबसे उपजाऊ मिट्टी।
    2. काली अथवा रेगड़ मिट्टी-रंग काला, निर्माण लावा-प्रवाह से-मुख्य तत्त्व कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश तथा चूना। कपास के लिए आदर्श।
    3. लाल मिट्टी-फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक पदार्थों तथा नाइट्रोजन पदार्थों का अभाव।
    4. लैटराइट मिट्टी-कम उपजाऊ मिट्टी।
  • मिट्टी का संरक्षण-मिट्टी का संरक्षण बड़ा आवश्यक है। इसी से मिट्टी की उत्पादकता बनी रह सकती है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

PSEB 10th Class Home Science Guide रेशों का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रेशों की लम्बाई के आधार पर उन्हें कौन-सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
अथवा
छोटे रेशे तथा लम्बे रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
रेशों को लम्बाई के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है

  1. छोटे रेशे या स्टेप्ल रेशे (Staple Fibre)-इन रेशों की लम्बाई छोटी होती है। इसकी लम्बाई इंचों या सेंटीमीटरों में मापी जाती है। साधारणतः 1/4″ से लेकर 18 इंच तक लम्बे होते हैं। सिल्क के अतिरिक्त सभी प्राकृतिक रेशे स्टेप्ल रेशे हैं।
  2. लम्बे रेशे/फिलामैंट (Filament)-इन रेशों की लम्बाई ज्यादा होती है। इसको मीटरों में मापा जाता है। सिल्क तथा कृत्रिम रेशे फिलामैंट रेशे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे सिर्फ सिल्क ही हैं।

प्रश्न 3.
सैलूलोज रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
सैलूलोज रेशे कपड़े के रेशों या लकड़ी के गुद्दे को कृत्रिम रेशों से मिलाकर तैयार होते हैं। इनकी भिन्न-भिन्न किस्में हैं-जैसे कि विस्कोल क्यूपरामोनियम तथा नीटरो सैलूलोज।

प्रश्न 4.
(i) प्राकृतिक रेशे कहाँ-कहाँ से प्राप्त किये जाते हैं?
(ii) प्राकृतिक रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
(i) प्राकृतिक रेशे पौधों के तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन तथा कपास से प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के बालों से ऊन के रूप में तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है। कच्ची धातु या खनिज पदार्थ के रूप में ऐसबेसटास के रूप में मिलते हैं।
(ii) जूट, पटसन, कपास, रेशम आदि।

प्रश्न 5.
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को कौन-कौन सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को मुख्य चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  1. सैलूलोज के पुनः निर्माण से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे-यह रेशे लकड़ी के गुद्दे या कपास के छोटे रेशों को रसायन पदार्थों से मिलाकर बनाए जाते हैं।
  2. थर्मोप्लास्टिक रेशे (Thermoplastic Fibres)-गर्म होने से यह रेशे सड़ने के स्थान पर पिघल जाते हैं। इसलिये इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है। जैसे कि नाइलॉन, पौलिएस्टर तथा ऐसिटेट आदि।
  3. धातु से बने रेशे-गोटे तथा जरी के लिये प्रयोग किये जाने वाले रेशे सोना. चांदी, एल्यूमीनियम धातुओं से बनते हैं।
  4. गलास फाइबर/शीशे से बने रेशे-ये रेशे शीशे को पिघला कर बनते हैं।

प्रश्न 6.
थर्मोप्लास्टिक रेशों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कृत्रिम रेशे हैं अभिप्राय यह कि मनुष्य द्वारा बनाये हुए। यह रेशे गर्मी से सड़ने की अपेक्षा पिघल जाते हैं। इस कारण इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है।

प्रश्न 7.
थर्मोप्लास्टिक रेशों के चार उदाहरण दें।
उत्तर-
नाइलोन, टैरीलीन, पौलिएस्टर, ऐकरिलिक तथा ऐसिटेट थर्मोप्लास्टिक रेशों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 8.
रेयॉन कितनो प्रकार की होती है तथा कौन-कौन सी?
उत्तर-
रेयॉन भी मनुष्य द्वारा तैयार किया रेशा है। परन्तु ये रेशे प्राकृतिक रेशों में जैसे कपास या पटसन या जूट के गुद्दे में रासायनिक पदार्थ मिलाकर तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 9.
धातु से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
गोटे तथा जरी के रेशे सोना, चांदी तथा एल्यूमीनियम धातुओं से प्राप्त किये जाते हैं। इन धातओं को पिघला कर बारीक रेशे तैयार किये जाते हैं। पर आजकल सोना, चाँदी, महँगी धातुएँ होने के कराण एल्यूमीनियम रेशे बनाकर उस पर सोने तथा चांदी की परत चढ़ाई जाती है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाले रेशों के दो उदाहरण दो।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे प्रोटीन युक्त रेशे होते हैं जैसे कि जानवरों भेड़ों, ऊँट तथा खरगोशों के बालों से बनी ऊन प्रोटीन युक्त रेशों की उदाहरणें हैं। इसी प्रकार सिल्क के कीड़ों से तैयार हुए सिल्क के रेशे भी प्रोटीन वाले होते हैं।

प्रश्न 11.
मिश्रित रेशे कौन-से होते हैं? कोई चार उदाहरण दें।
उत्तर-
मिश्रित रेशे दो भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशे मिलाकर तैयार होते हैं, जैसे कपास तथा पटसन आदि से पौलिस्टर या टैरीलीन मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार होते हैं। इस प्रकार ऊन तथा एक्रिलिक रेशे मिलाकर कैशमिलोन तैयार की जाती है।

प्रश्न 12.
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे निम्नलिखित हैंलिनन-यह फलैक्स पौधे के तने से प्राप्त होती है। पटसन-यह जूट के पौधे के तने से प्राप्त होता है। रेमी-यह भी पौधे के तने से प्राप्त होता है। जूट-यह रेशा भी पौधे के तने से प्राप्त किया जाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
(13) मूल गुणों के अलावा रेशों में कौन-कौन से और गुण हो सकते
उत्तर-
रेशों में उनके मूल गुणों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुण भी होने आवश्यक हैं

  1. चमक (Lusture)
  2. पानी सोखने की क्षमता (Absorption of Water)
  3. चिपकना (Felting)
  4. आग पकड़ने की क्षमता (Flammability)
  5. संघनता (Density)
  6. ताप प्रतिरोधिकता (Resistence to heat)
  7. अम्ल तथा खारापन सहन करने की शक्ति (Resistence to acid and alkalies)
  8. बल न पड़ें (Resiliience)
  9. बलदार होना (Crimp) आदि।

प्रश्न 2.
(14) सूती रेशों को रेशों का सरताज क्यों कहा जाता है?
अथवा
सूती रेशों को सबसे अच्छा क्यों कहा जाता है?
उत्तर- सूती रेशे को रेशों का सरताज कहा जाता है क्योंकि इस रेशे में बहुत गुण होते हैं जैसे प्राकृतिक चमक का होना, मज़बूत रेशा तथा ताप का संचालक होने के साथसाथ इसमें पानी सोखने की क्षमता भी होती है। इस कारण ही ये कपड़े गर्मियों तथा सर्दियों में ठीक रहते हैं। इस रेशे के कपड़े चमड़ी के लिये आरामदायक होते हैं। इसको उबाला भी जा सकता है। इस कारण ही अस्पताल में पट्टी बनाने के लिये इसको प्रयोग किया जाता है। सूती रेशा इन गुणों के कारण ही रेशों का सरताज माना जाता है।

प्रश्न 3.
(15) कौन-से गुणों के कारण सूती कपड़ों को गर्मियों में पहना जाता है?
उत्तर-
सूती कपड़े ताप के संचालक तथा पानी सोखने की क्षमता रखते हैं जिससे ये शरीर का पसीना सोख लेते हैं। इस कारण ही इनको गर्मियों में पहना जाता है। इसके अतिरिक्त ताप के संचालक होने के कारण ताप इनमें से गुज़र जाता है, जो पसीना सूखने में मदद करते हैं। इन दोनों गुणों के कारण ये रेशे ठण्डे होते हैं तथा गर्मियों में सबसे आरामदायक रहते हैं। इसके अतिरिक्त हल्के क्षार तथा अम्लों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता जिस कारण पसीने से खराब नहीं होते।

प्रश्न 4.
(16) सूती रेशों से बनाये कपड़ों की देखभाल कैसे की जाती है तथा यह कपड़ा कहाँ इस्तेमाल किया जाता है?
उत्तर-

  1. सूती रेशों के कपड़ों को उबाल कर भी धोया जा सकता है। पर रंगदार सूती कपड़ों को उबालना नहीं चाहिए तथा न ही तेज़ धूप में सुखाना चाहिए जबकि सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से ज्यादा सफ़ेदी आती है।
  2. सूती रेशों पर क्षार का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, अतः किसी भी साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. सूती कपड़ों पर रंगकाट का भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। अतः लिशेषतया क्लोरीन रंगकाट प्रयोग करने चाहिएं। तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।
  4. सूती कपड़ों को पूरा सुखाकर ही अल्मारी में सम्भालना चाहिए अन्यथा फंगस लग सकती है।
  5. इनको नम तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। जिससे कपड़े के पूरे बल निकल कर चमक आ जाती है।
    सूती रेशे पहनने वाले कपड़ों, चादरों, खेस, मेज़पोश, तौलिये तथा पर्दे आदि के लिये प्रयोग किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
(17) सूती रेशे के गुण बताएं।
उत्तर-
सूती रेशा कपास के पौधे से तैयार होता है। इस रेशे में 87 से 90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। सूती रेशे के गुण निम्नलिखित हैं

  1. सूती रेशे की लम्बाई आधे इंच से दो इंच तक होती है तथा साधारणतया इस का रंग सफ़ेद होता है।
  2. इस रेशे में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  3. यह एक मज़बूत तथा टिकाऊ रेशा है।
  4. इस रेशे में पानी सोखने की क्षमता काफ़ी होती है। जिस कारण यह शरीर का पसीना सोख लेता है। इस गुण के कारण ही तौलिये सूती रेशे के बनाये जाते हैं।
  5. यह रेशा ताप का बढ़िया संचालक है। गर्मी इसमें से गुज़र सकती है। सूती रेशे की पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता के कारण ही सूती कपड़े गर्मियों में पहनने के लिये सबसे आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 6.
(18) लिनन तथा सूती कपड़े में क्या समानता है?
उत्तर-
लिनन तथा सूती कपड़े में निम्नलिखित समानताएँ हैं

  1. ये दोनों रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। सूती रेशा कपास से बनता है तथा लिनन फलैक्स पौधे के तने से तैयार होता है।
  2. लिनन तथा सूती रेशे दोनों में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है।
  3. दोनों रेशे ताप के बढ़िया संचालक हैं।
  4. लिनन तथा सूती दोनों रेशे मज़बूत होते हैं। इनकी गीले होने पर मजबूती और भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
(19) लिनन के कपड़ों की विशेषताएँ बताओ।
अथवा
लिनन का प्रयोग तथा इसकी देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
सती कपडे की तरह लिनन को जलाते समय कागज़ के सड़ने जैसी गंध होती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बन जाती है। लिनन को मध्यम से तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। इसके रेशे मज़बूत तथा टिकाऊ होते हैं। इसलिये बिस्तरों की चादरें आदि बनाई जाती हैं। लिनन पर क्षार का प्रभाव कम होता है। इस रेशे में प्राकृतिक चमक होती है।

प्रश्न 8.
(20) लिनन के कपड़े कौन-सी ऋतु में पहने जाते हैं तथा क्यों? इनकी देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
लिनन के कपड़े गर्मियों में ही पहने जाते हैं। क्योंकि इसके रेशों में पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता अधिक होती है। जिससे ये गर्मियों में ठंडक पहुँचाते हैं। लिनन के कपड़ों की देखभाल अग्रलिखित ढंग से की जा सकती है

  1. ये रेशे मज़बूत होने के कारण रगड़ कर धोये जा सकते हैं। परन्तु इनको उबालना नहीं चाहिए क्योंकि गर्मी से खराब हो जाते हैं।
  2. लिनन के रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी साबुन से धोए जा सकते हैं।
  3. इनको नमी पर ही प्रेस करना चाहिए।
  4. लिनन के रंग पक्के नहीं होते, इसलिए इन कपड़ों को छाँओं में सुखाना चाहिए।
  5. लिनन के कपड़े को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इस कारण धोकर अच्छी तरह सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भालना चाहिए।

प्रश्न 9.
(21) सूती तथा लिनन के अलावा और कौन-से प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सैलूलोज़ रेशे हैं?
उत्तर-
सूती तथा लिनन के अतिरिक्त पटसन, नारियल के रेशे, कपोक, रेमी, जूट, पिन्ना तथा साइसल रेशे हैं जो प्राकृतिक रूप में प्राप्त होते हैं।

  1. पटसन- यह रेशा जूट के पौधे के तने से मिलता है। यह रेशा ज्यादा मज़बूत नहीं होता तथा इसमें प्राकृतिक चमक होती है। ये रेशे थोड़े खुरदरे होते हैं। यह आमतौर पर सजावटी सामान, थैले, बोरियाँ, मैट तथा गलीचे आदि के लिये प्रयोग किया जाता है। परन्तु आजकल इसमें थोड़ा सूती या लिनन के रेशे मिलाकर इसको पोशाकों के लिये प्रयोग किया जाता है।
  2. नारियल के रेशे – ये रेशे नारियल के बीज के छिलके से प्राप्त किये जाते हैं। गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य यह रेशे होते हैं। ये भूरे रंग के होते हैं तथा इनकी आमतौर पर रंगाई नहीं की जा सकती। यह आम तौर पर टाट, सोफों तथा गद्दों में भरने तथा जूतों के तले बनाने के काम आता है।
  3. कपोक-यह कपोक पौधे के बीजों के बालों से प्राप्त होता है। यह हल्का, नर्म तथा हवा में उड़ने वाला होता है। इस रेशे को अधिकतर तकियों, सोफों तथा गद्दों में भरने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह गीला होने पर जल्दी सूख जाता है।
  4. रेमी-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसको लिनन के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार तथा सफ़ेद रंग के होते हैं पर इनमें तनाव ज्यादा होता है।
  5. जूट-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है, परन्तु यह लिनन तथा पटसन से मज़बूत होता है। यह लम्बा, मज़बूत तथा भूरे रंग का रेशा है। साधारणतया रस्सियां, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनाने के लिये भी प्रयोग किया जाता है।
  6. पिन्ना-यह रेशा अनानास के पत्तों से मिलता है। यह सफ़ेद से क्रीम रंग का बारीक, चमकदार तथा मज़बूत रेशा है। इसको बैग या अन्य ऐसा सामान बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है।
  7. साइसल-ये रेशे असेण नामक पौधे के पत्तों से मिलता है। इस रेशे को तेज़ रंगों में रंगाकर गलीचें, मैट, रस्सियां तथा ब्रश आदि बनाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
(22) जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे ऊन तथा ऊन की विभिन्न किस्में जैसे-मैरीनो, लामा, मुहीर, पशमीना तथा कश्मीर ऊन। सिल्क जो रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होता है। फर जो मिंक तथा अंगोरा खरगोशों के बालों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 11.
(23) जानवरों के रेशे जानवरों के किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर-
जानवरों के रेशे जानवरों के विभिन्न भागों से प्राप्त किये जाते हैं जैसे निम्नलिखित बताया गया है —

रेशे जानवरों के शरीर का भाग जहाँ से रेशे प्राप्त किये जाते हैं
(1) ऊन तथा इसकी किस्में जैसे मैरीनो, मुहेर, लामा, पशमीना तथा कश्मीयर ऊन। भेड़ के बालों से तथा विशेष किस्म की ऊन विशेष किस्म की भेड़ों, अंगोरा तथा कश्मीरी बकरी, ऊंट, लामा तथा खरगोश के बालों से मिलती है।
(2) सिल्क रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होती है।
(3) फर मिंक तथा अंगोरा जानवरों की चमड़ी के बालों से।

प्रश्न 12.
(24) रेशम किस जानवर से तथा कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर-
रेशम जानवर वर्ग का रेशा है। यह रेशम के कीड़े की लार से बनता है। यह प्रोटीन युक्त रेशा है।
रेशम का कीड़ा जो कि शहतूत के पत्तों पर पलता है तथा अपने मुँह में से एक लारसी निकालता है जो हवा के सम्पर्क में आकर जम जाती है तथा रेशे का रूप धारण कर लेती है। यह रेशा लारवे के आस-पास लिपट कर एक खोल सा बना लेता है। इसको कोका कहा जाता है। लारवा आठ सप्ताह का होकर लार निकालने लगता है तथा अपने खोल में ही बंद हो जाता है। इस कोकून में लगभग 1800-3600 मीटर लम्बा धागा होता है। धागे का रंग कभी-कभी सफ़ेद पीला तथा कभी-कभी हरा होता है। लारवे के बढ़कर बाहर निकलने से पहले ही इन कोकूनों को इकट्ठे करके पानी में उबाल लिया जाता है, इससे रेशे पर लगी गंद उतर जाती है तथा लारवा अन्दर मर जाता है। फिर रेशे को उतारा जाता है। यह रेशा बहत नर्म होता है। इसलिये 3 से 6 रेशे इकट्ठे करके लपेट कर लच्छियां बनाई जाती हैं। रेशों की संख्या धागे की मोटाई के अनुसार ली जाती है। फिर इस धागे से कपडा तैयार किया जाता है। कीड़े पालने तथा सिल्क तैयार करने को मैरी कल्चर कहा जाता है।

प्रश्न 13.
(25) रेशों की प्राप्ति के साधन के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
अथवा
तन्तुओं का विस्तृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
साधनों के आधार पर रेशों की प्राप्ति का वर्गीकरण निम्नलिखित दिया है —
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 1

प्रश्न 14.
(26) रेशम को किन गुणों के कारण कपड़ों की रानी माना जाता है?
उत्तर-
रेशम प्राकृतिक रेशों में सबसे लम्बा रेशा है। यह रेशा मज़बूत तथा लचकदार होता है। परन्तु गीला हो कर कमजोर हो जाता है। इस रेशे में चमक सबसे अधिक होती है जिससे देखने को सुन्दर लगता है। इसीलिये इसको कपड़ों की रानी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
(27) रेशम (सिल्क) की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
सिल्क की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे इसके रेशे चमकदार तथा दोहरे धागे के बने दिखाई देते हैं जिस पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
  2. लम्बाई-यह प्राकृतिक रेशों में से सबसे लम्बा रेशा है। इस रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक होती है।
  3. चमक-इस रेशे की सबसे अधिक चमक होती है।
  4. मज़बूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से यह मज़बूत होता है पर गीला होकर कमजोर हो जाता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 2
  5. रंग-इसका रंग सफ़ेद, पीला या स्लेटी होता है।
  6. लचकीलापन-यह रेशा चमकदार होता है इसलिये इसमें बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता- यह रेशा आसानी से पानी सोख लेता है तथा जल्दी ही सूख जाता है।
  8. ताप संचालकता-इस में से ताप निकल नहीं सकता इसलिये यह ताप का संचालक नहीं है। इस कारण गर्मियों में नहीं पहना जाता।
  9. अम्ल का प्रभाव-हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता।
  10. क्षार का प्रभाव-हल्की क्षार भी इस रेशे को खराब कर देती है इसलिये क्लोरीन युक्त रंगकाट नहीं प्रयोग करनी चाहिए।
  11. रंगाई-इस रेशे पर रंग जल्दी तथा पक्का चढ़ता है। इसलिये हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  12. ताप से-सिल्क के जलने पर बाल या पंख सड़ने की गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है तथा सड़ने के पश्चात् इक्का-दुक्का काला मनका सा बन जाता है। इसलिये गर्म पानी से धोने, धूप में सुखाने तथा गर्म प्रेस से प्रेस करने से खराब हो जाता है।

प्रश्न 16.
(28) रेशम तथा ऊन दोनों ही ताप के कुचालक हैं परन्तु ऊन अधिक गर्म क्यों होती है?
उत्तर-
ऊन तथा सिल्क दोनों ही प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त रेशे हैं इसके अतिरिक्त दोनों ही ताप के कुचालक हैं तथा दोनों का प्रयोग गर्मियों में किया जाता है पर फिर भी सिल्क से ऊन ज्यादा गर्म है क्योंकि सिल्क का कपड़ा बारीक तथा ऊपरी परत मुलायम होने के कारण बाहर वाली ठण्ड से ठण्डा हो जाता है पर ऊन का कपड़ा मोटा तथा खुरदरा होने के कारण ठण्डा नहीं होता तथा शरीर की गर्मी बाहर नहीं आने देता। इस कारण ऊन सिल्क से ज्यादा गर्म होती है।

प्रश्न 17.
(29) ऊन में ऐसा कौन-सा तत्त्व होता है जो दूसरे रेशों में नहीं होता तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
ऊन में एक विशेष विशेषता है जो बाकी रेशों में नहीं होती। ऊन के रेशे में लहरिया होता है जिसको क्रिंप (Crimp) कहा जाता है। लहरिये की संख्या रेशे की मज़बूती तथा आकार पर निर्भर करती है। रेशा जितना बारीक हो उतना ही मज़बूत होता है। इस विशेषता के कारण रेशे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं जिसको फैलटिंग (Felting) कहा जाता है। इस विशेषता के कारण इससे नमदा, कंबल, गलीचे आदि बनते हैं। ऊन की विशेषताएँ निम्नलिखित दी हैं

  1. खुर्दबीन के नीचे इस रेशे की परतें एक दूसरे पर चढ़ी दिखाई देती हैं। जितनी ये परतें सघन होंगी उतनी ही ऊन गर्म होगी। ।
  2. इस रेशे की लम्बाई भी कम है लगभग 1 से 8 इंच तक।
  3. इन रेशों में कोई चमक नहीं होती।
  4. यह रेशा काफ़ी लचकदार होता है इसलिये ऊनी कपड़ों में बल नहीं पड़ते।
  5. ऊन के रेशे में पानी सोखने की क्षमता बहुत होती है। परन्तु गीले होकर ये रेशे कमजोर हो जाते हैं।
  6. ये रेशे ताप के कुचालक हैं इसलिये ही सर्दियों में प्रयोग किये जाते हैं। ये शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते।
  7. इस रेशे पर हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता। परन्तु क्षार से रेशा खराब हो जाता है। इसलिये ऊनी कपड़े धोने के लिये सोडा नहीं प्रयोग करना चाहिए।
  8. ऊनी रेशे को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है।
  9. ताप से ही ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये कभी भी सीधा प्रैस नहीं करना चाहिए बल्कि मलमल का गीला कपड़ा बिछाकर हल्की प्रैस करनी चाहिए।
  10. तेज़ाब वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिए पर रंगकाटों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 18.
(30) रेशम तथा ऊन के गुणों में समानता क्यों है?
उत्तर-
सिल्क तथा ऊन दोनों रेशे प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त होते हैं। दोनों रेशे प्रोटीन युक्त तथा इनमें क्राबोहाइड्रेट, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन होते हैं। इसलिये इनमें कई समानताएं हैं जैसे कि इन का प्रयोग सर्दियों में ही किया जाता है। दोनों ही ताप के कुचालक हैं। इन रेशों को कीड़ा जल्दी लग जाता है। दोनों की बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। इस के अतिरिक्त इन पर ताप का बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 19.
(31) सूती तथा लिनन के रेशों में समानता क्यों है?
अथवा
सूती तथा लिनन के रेशों के गुणों में क्या समानता है?
उत्तर-
ये दोनों रेशे प्राकृतिक तथा पौधों से मिलते हैं। सूती रेशा कपास की रूई से बनता है तथा लिनन का रेशा फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होते हैं। इन दोनों रेशों में सैलूलोज अधिक होता है। इस कारण इनमें काफ़ी समानता है। जैसे दोनों रेशों की लम्बाई छोटी होती है, ये रेशे मज़बूत होते हैं तथा पानी सोखने की क्षमता भी अधिक होती है। ये दोनों रेशे ही ताप के संचालक हैं जिस कारण गर्मियों में पहनने के लिये आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 20.
(32) ऊनी कपड़ों की देखभाल कैसे होती है?
अथवा
ऊल की देखभाल के बारे में विस्तार से बताएं।
उत्तर-
ऊनी रेशे कमजोर होते हैं तथा गीले होकर और भी कमजोर हो जाते हैं। इसलिये बहुत ध्यान से धोना चाहिए। गीला होने से कपड़ा भारा हो जाता है तथा इनको लटका कर नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि भारी होने के कारण इनका आकार बिगड़ जाता है। ऊन के कपड़ों को ज्यादा देर तक भिगो कर नहीं रखना चाहिए तथा न ही रगड़ कर धोना चाहिए। इसलिये पानी के तापमान का भी ध्यान रखना आवश्यक है। पानी न ज्यादा गर्म तथा न ही ठण्डा होना चाहिए। ऊनी कपड़े को सुखाने के लिये अखबार या कागज़ पर धोने से पहले कपड़े के आकार का नक्शा बनाकर समतल स्थान पर रख कर सुखाना चाहिए। यदि हो सके तो ड्राइक्लीन करवा लेना चाहिए।

ऊनी कपड़े को प्रैस भी बहुत ध्यान से करना चाहिए। कपड़े पर सीधी प्रैस नहीं करनी चाहिए। नमी वाला सूती कपड़ा बिछाकर हल्की गर्म प्रैस करनी चाहिए। इन कपड़ों को अच्छी प्रकार से सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भाल कर रखना चाहिए क्योंकि ऊनी रेशे को कीड़ा जल्दी लग जाता है।

प्रश्न 21.
(33) ऐसबेसटास कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला रेशा है। यह कच्ची धातु या खनिज पदार्थ से प्राप्त होता है। यह आग में रखने पर सड़ता नहीं। इस पर न ही तेज़ाबी तथा क्षार का कोई प्रभाव पड़ता है। आग बुझाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले कपड़े भी इस रेशे से बनाये जाते हैं। साधारण पहनने वाले कपड़े इससे नहीं बनाए जाते।

प्रश्न 22.
(34) ऐसी रेयॉन का नाम बताएँ जो थर्मोप्लास्टिक भी है?
उत्तर-
ऐसिटेट रेयन के रेशे थर्मोप्लास्टिक रेशों से मेल खाते हैं। ये रेशे देखने को नर्म तथा चमकदार होते हैं तथा आम तौर पर घरेलू पोशाकों तथा वस्त्र बनाने के काम आते हैं।

प्रश्न 23.
(35) कृत्रिम ढंग से रेशा कैसे बनाया जाता है?
उत्तर-
कृत्रिम ढंग से रेशा तैयार करने के लिये रासायनिक पदार्थों को नियत स्थितियों में क्रिया करके रेशे बनाए जाते हैं, फिर बारीक छेदों वाली छाननी में से निकाला जाता है। यह भाग हवा के सम्पर्क में आकर रेशों का रूप धारण कर लेते हैं।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 3

प्रश्न 24.
(36) थर्मोप्लास्टिक रेशों के मुख्य गुण बताएँ।
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्वों से मिलकर बनता है। इस रेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. ये फिलामैंट रेशे होते हैं। इनकी लम्बाई इच्छा अनुसार रखी जा सकती है।
  2. ये रेशे मज़बूत तथा चमकदार होते हैं तथा इसके कपड़े टिकाऊ होते हैं।
  3. इन रेशों की पानी सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। इसलिये ये जल्दी सख जाते हैं। इस कारण यह कपड़े पसीना भी नहीं सोखते।
  4. ये रेशे ताप के कुचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में नहीं प्रयोग किये जाते।
  5. थर्मोप्लास्टिक रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं होता जबकि तेज़ाब में यह रेशे घुल जाते हैं।
  6. थर्मोप्लास्टिक रेशे ताप से पिघल जाते हैं तथा जलने पर प्लास्टिक के सड़ने जैसी गन्ध आती है। यह ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकते इसलिये कम गर्म प्रेस से प्रेस करने चाहिएं।
  7. इन रेशों को कोई फंगस या टिडी आदि नहीं लगती।

प्रश्न 25.
(37) थर्मोप्लास्टिक रेशों का प्रयोग दिन प्रतिदिन क्यों.बढ़ रहा है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे मज़बूत, लचकदार, टिकाऊ, धोने तथा सम्भालने में आसान होते हैं । इसलिये इसको जुराबें, खेलों में पहनने वाले कपड़े तथा आम पहनने वाले कपड़ों के लिये प्रयोग किया जाता है। मज़बूती के कारण इसकी रस्सियां, डोरियां आदि भी बनाई जाती हैं। इसको दूसरे रेशों से मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है। इस रेशे की मजबूती कारण ही इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 26.
(38) मिश्रित रेशे बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
मिश्रित रेशे बनाने से उनकी मज़बूती तथा टिकाऊपन बढ़ जाता है। इससे इनकी सम्भाल भी आसान हो जाती है। मिश्रित रेशे सस्ते भी होते हैं तथा दाग भी कम लगते हैं। इनके रंग भी पक्के होते हैं तथा देखने में भी सुन्दर लगते हैं।

प्रश्न 27.
(39) कृत्रिम कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
कृत्रिम कपड़ों की देखभाल तथा सम्भाल आसान होती है क्योंकि यह धोने आसान होते हैं। गर्म पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इनके रंग पक्के होने के कारण धोने से या धूप से खराब नहीं होते। प्रैस की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती। टिड्डियों, कीड़ों या फंगसों द्वारा कोई हानि नहीं होती क्योंकि यह रसायनों से बने होते हैं। इसलिये सम्भालने भी आसान हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
(40) रेशे से कपड़ा बनाने के लिये कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं?
अथवा
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए मूल गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे मिलते हैं, परन्तु रेशों से कपड़ा बनाने के लिये इनमें कुछ मूल गुण होने आवश्यक हैं तभी इन रेशों से कपड़ा बनाया जा सकता है। ये मूल गुण निम्नलिखित हैं

  1. रेशे के रूप में होना (Staple)
  2. मज़बूती (Strength/Tenacity)
  3. लचकीलापन (Elasticity/Flexibility)
  4. समरूपता (Uniformity)
  5. जुड़ने की शक्ति (Spinning Quality/Cohesiveness)।

1. रेशे के रूप में होना (स्टेपल) – रेशे स्टेपल या फिलामैंट दो प्रकार के हो सकते हैं। स्टेपल से अभिप्राय है कि रेशे से कपड़ा बनाने के लिये उन की विशेष लम्बाई तथा व्यास का होना आवश्यक है तभी उनका संतोषजनक प्रयोग हो सकता है। व्यास की तुलना में रेशों की लम्बाई बहुत ज्यादा होती है जो कम-से-कम 1 : 100 के अनुपात में होनी चाहिए। यदि रेशों की लम्बाई आधा इंच से कम हो तो वह धागा बनाने के लिये इस्तेमाल नहीं किये जा सकते। मनुष्य द्वारा तैयार किये तथा सिल्क के रेशों की लम्बाई तो बहुत होती है, परन्तु ऊन तथा कपास के रेशों की लम्बाई कम होती है परन्तु इनके रेशों में आपस में जुड़कर काते जाने का गुण बहुत ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिये लाभकारी है। कपास के छोटे रेशे जिनसे धागा नहीं बनाया जा सकता उन पर रासायनिक पदार्थों की प्रक्रिया से रेशे का पुनः निर्माण करके रेयोन का रेशा बनाया जाता है। इसलिये ही रेयॉन के गुण सूती कपड़े से काफ़ी मिलते हैं।

2. मज़बूती-रेशे से कपड़ा बनाना एक लम्बी प्रक्रिया है। रेशे इतने मज़बूत होने चाहिएं कि कताई, सफ़ाई तथा बुनाई समय पड़ रही खींच का मुकाबला कर सकें तथा टिकाऊ कपड़े के रूप में बदले जा सकें। रेशों की मज़बूती तथा वातावरण की नमी का प्रभाव पड़ता है। साधारणतया प्राकृतिक रूप में पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे जब गीले हों तो ज्यादा मज़बूत होते हैं, जबकि दूसरे रेशे जैसे रेयोन तथा ऊन, सिल्क आदि गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं।

3. लचकीलापन रेशों में टूटे बिना मुड़ सकने का गुण होना चाहिए ताकि इनको एक-दूसरे पर लपेट कर बल देकर धागा बनाया जा सके, जिससे कि कपड़ा बनाया जाता है। यह गुण कपड़े को टिकाऊ बनाने तथा पुन: पुरानी सूरत तथा आकार कायम रखने में मदद करता है। जिन रेशों में लचक अधिक होती है। उनमें बल कम पड़ते हैं।

4. समरूपता-रेशों की लम्बाई तथा व्यास में समरूपता होने से उनसे साफ़ तथा समरूप धागा बनाया जा सकता है जिससे कपड़ा भी मुलायम तथा साफ़ बनता है।

5. जुड़ने की शक्ति – अच्छी कताई के लिये रेशों में आपस में जुड़ सकने की शक्ति का होना आवश्यक है ताकि उनकी कताई हो सके। रेशों की जुड़ने की शक्ति चार बातों पर निर्भर करती है

  1. रेशे की लम्बाई
  2. रेशे की बारीकी
  3. रेशे की सतह की किस्म
  4. लचकीलापन।

रेशे में जितनी जुड़ने की शक्ति ज्यादा होगी उतनी ही कताई उपरान्त धागे की बारीकी तथा मज़बूती होगी तथा यही गुण कपड़े में भी आयेंगे।

प्रश्न 2.
(41) गर्मियों में पहनने के लिये किस किस्म के रेशों से बने वस्त्र ठीक रहते हैं ? कृत्रिम ढंग से बनाए रेशों से बने हुए वस्त्र गर्मियों में क्यों नहीं पहने जाते?
उत्तर-
गर्मियों में पहनने के लिये सूती तथा लिनन रेशे के कपड़े ठीक रहते हैं क्योंकि इनमें पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है जिससे यह पसीना सोख लेते हैं – तथा ताप के संचालक होने के कारण पसीने को सूखने में मदद करते हैं तथा ठण्डे रहते हैं। इसलिये यह कपड़े गर्मियों में अधिक आरामदायक होते हैं। ये रेशे मज़बूत होते हैं पर गीले होने पर और भी मज़बूत हो जाते हैं।

सूती तथा लिनन के कपड़ों के विपरीत कृत्रिम रेशे गर्मियों में नहीं पहने जाते क्योंकि ये पानी नहीं सोखते तथा पसीना आने पर गीले हो जाते हैं, परन्तु पसीना सूखता नहीं।
ताप के कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल सकती। इसलिये इनमें अधिक गर्मी लगती है। इसलिये ये कपड़े गर्मियों में नहीं पहने जाते।

प्रश्न 3.
( 42 ) (i) प्रकृति से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएँ, रचना और देखभाल के बारे में बताओ।
(ii) सूती रेशे की विशेषताएँ तथा देखभाल के बारे में विस्तार में बतायें।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप में पौधों, जानवरों तथा खनिज पदार्थों या कच्ची धातु से प्राप्त होने वाले रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। इनको प्राप्ति के साधन के आधार पर तीन वर्गों में बांटा जाता है
(क) पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे-ये पौधों के बीजों के बालों के रूप में कपास तथा तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन आदि हैं।
(ख) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे-जानवरों के बालों के रूप में ऊन तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है।
(ग) धातु से प्राप्त होने वाले रेशे-कच्ची धातु का खनिज पदार्थों के रूप में ऐसबैस्टास प्राकृतिक रूप में धरती की सतह से प्राप्त होने वाला रेशा है।
प्राकृतिक रेशे-ये रेशे विभिन्न पौधों से प्राप्त किये जाते हैं। पौधों से मिलने वाले ये रेशे जैसे कपास (सूती), लिनन, जूट तथा नारियल के रेशे मनुष्य के लिये बहुत लाभकारी हैं। ये पौधों के भिन्न-भिन्न भागों जैसे-बीज, तने, पत्ते या फल से प्राप्त होते हैं।
सूती रेशे-यह रेशा पुराने समय से भारत में उगाया जाता है। सूती रेशा कपास के पौधे के बीजों के बाल हैं। कपास का पौधा 90-120 सेंटीमीटर ऊंचा होता है जो गर्म, नम तथा काली मिट्टी वाली ज़मीन में उगाया जाता है। इसकी डोडी जो फूल में बदल जाती है जहाँ बाद में टींडा बन जाता है। टींडा पक कर फूट जाता है। जिससे रूई (कपास) बाहर निकल आती है। रूई ही वास्तव में कपास के पौधे के फल हैं जिससे बीज तथा कपास (बीजों के बाल) अलग-अलग कर लिये जाते हैं। कपास की कंघी करके छोटे तथा लम्बे रेशे अलग-अलग कर लिये जाते हैं। लम्बे रेशों से मशीनों से धागा बनाकर कपड़ा बना लिया जाता है। पहले घरों में ही चरखे से धागा बनाया जाता था जिससे खद्दर या खेस आदि भी घर ही बनाये जाते हैं।
रचना-सूती रेशे में 87-90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-कपास का रेशा खुर्दबीन से देखने पर नाली की तरह दिखाई देता है। जिसमें रस होता है जब कपास पकती है तो यह रस सूख जाता है तथा रेशा चपटा, मुड़े हुए रिबन की तरह लगता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 4
  2. लम्बाई-यह छोटा रेशा है इसकी लम्बाई इंच से दो इंच तक हो सकती है।
  3. रंग-साधारणतया रंग सफ़ेद होता है पर कपास की किस्म अनुसार इसका रंग क्रीम या हल्का भूरा भी हो सकता है।
  4. चमक-इसमें प्राकृतिक चमक नहीं होती पर रासायनिक प्रक्रिया जिसको मीराइजेशन कहते हैं, से इसकी चमक सुधारी जा सकती है।
  5. मजबूती-यह एक मज़बूत रेशा है इसलिये काफ़ी रगड़ सह सकता है। गीले होने से मज़बूती और बढ़ जाती है मर्सीराइजेशन से पक्के तौर पर मज़बूत हो जाता है।
  6. लचकीलापन-इनमें लचक नहीं होती इसलिये सूती कपड़े पर बल जल्दी पड़ जाते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-इनकी नमी या पानी सोखने की शक्ति अच्छी होती है जिस कारण पसीना सोख सकते हैं इसलिये इनको गर्मियों में पहना जाता है। इस गुण कारण ही सूती रेशे के तौलिये बनाए जाते हैं।
  8. ताप चालकता-ये ताप के अच्छे संचालक होते हैं। गर्मी इनमें से गुज़र सकती है इसलिये ही ये पसीने को सूखने में मदद करते हैं। सूती रेशों की अच्छी पानी सोखने की क्षमता तथा अच्छी ताप सुचालकता के कारण भी ये ठण्डे रेशे हैं तथा गर्मियों में पहनने के लिये सब से अधिक उचित तथा उपयुक्त हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-क्षार का इन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है परन्तु हल्के या गाढ़े तेज़ाब से खराब हो जाते हैं।
  10.  रंगाई-इनको रंगना आसान है परन्तु धूप तथा धोने से इनके रंग खराब हो जाते हैं।
  11. फंगस का प्रभाव-नमी वाले कपड़ों को फंगस बहुत लग जाती है तथा खराब कर देती है परन्तु कीड़ा नहीं लगता।
  12. अन्य विशेषताएँ-इन पर गर्मी का प्रभाव कम होता है जिससे ये कपड़े उबाले भी जा सकते हैं तथा धूप में सुखाये भी जा सकते हैं। परन्तु रंगदार कपड़ों का रंग खराब हो जाता है जिस कारण उनको न तो उबाला जाता है तथा न ही धूप में सुखाना चाहिए।
  13. ताप का प्रभाव-सूती रेशा आग जल्दी पकड़ता है तथा पीली लाट से जलता है। जलते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से दूर करने पर भी अपने आप जलता रहता है। जलने के उपरान्त स्लेटी रंग की राख बनती है।

देखभाल-

  1. सफ़ेद सूती कपड़ों को गर्म पानी में या उबाल कर तथा रगड़ कर धोया जा सकता है। रंगदार कपड़ों को ठण्डे पानी में धोना चाहिए तथा छाया में ही सुखाना चाहिए, परन्तु सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से उनमें और सफ़ेदी आती है।
  2. क्षार का बुरा प्रभाव नहीं होता इसलिये किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. इनको नमी में प्रैस करना चाहिए। मध्यम तथा तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है।
  4. रंगकाट का इन पर बुरा प्रभाव नहीं होता विशेषतया क्लोरीन वाले रंगकाट का तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।

इनको कभी भी नमी में नहीं सम्भालना चाहिए क्योंकि इनको फंगस जल्दी लग जाती है।
लिनन-यह फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होने वाला रेशा है। यह पौधा कम गर्म, परन्तु ज्यादा नमीदार मौसम में होता है। इन पौधों की लम्बाई 10 इंच से 40 इंच तक हो सकती है। यह रेशा गूंद से तने के साथ जुड़ा होता है। इन रेशों को पौधों से सही रूप में उतारने के लिये पौधों के तनों को औस, रसायन या पानी में रखकर जैसे नदी या तालाब या रसायनों से प्रक्रिया करके अपनाया जाता है जिसको गलाना (Retting) कहा जाता है। गलाने से गूंद सा गलकर अलग हो जाता है तथा रेशे ढीले पड़ जाते हैं तथा अलग हो जाते हैं।
रचना- इसमें 70-85 प्रतिशत सैलूलोज होता है तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-लिनन का रेशा खुर्दबीन के नीचे लम्बा, सीधा एक समान, चमकदार तथा चिकना दिखाई देता है जिसमें बांस जैसी थोड़ीथोड़ी दूरी पर गांठें होती हैं।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 5
  2. लम्बाई-यह भी छोटा रेशा ही है तथा रेशे की लम्बाई 6-40 इंच तक हो सकती है। 12 इंच से छोटे रेशे को कपड़े की बुनाई के लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता।
  3. रंग-इसका रंग फीके पीले से फीका भूरा हो सकता है।
  4. चमक-इसमें सूती रेशे से ज्यादा चमक होती है, परन्तु सिल्क से थोड़ी कम।
  5. लचकीलापन-यह सूती रेशे से भी कम लचकीले होते हैं इसलिये बल और ज्यादा पड़ते हैं।
  6. मज़बूती-यह रेशा सूती रेशे से भी अधिक मज़बूत होता है। गीला होकर इसकी मज़बूती और भी बढ़ जाती है।
  7. पानी सोखने की क्षमता-पानी सोखने की शक्ति सूती रेशे से भी ज्यादा होती है।
  8. ताप चालकता-सूती रेशों से भी अधिक ताप के संचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में सूती रेशे से अधिक ठण्डक पहुँचाते हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-ये तेज़ तेज़ाब से खराब हो जाते हैं जबकि सूती कपड़े की तरह क्षार का प्रभाव कम होता है।
  10. रंगाई-सूती कपड़े की तरह सीधे रंगों से रंगे जाते हैं तथा रंगाई सूती कपड़े से मुश्किल होती है परन्तु धोने पर धूप में सुखाते समय रंग जल्दी फीके हो जाते हैं। रंग पक्के नहीं होते।
  11. फंगस तथा कीड़े का प्रभाव-इसको कीड़ा बहुत जल्दी लग जाता है।
  12. अन्य विशेषताएँ-सूती कपड़े की तरह ही इसको जलाते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बनती है। मध्यम तथा तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। लिनन की कई विशेषताएँ सूती कपड़े से मेल खाती हैं पर ज्यादा गर्मी से ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये

इनको उबालना नहीं चाहिए। ये रेशे मज़बूत होने के कारण इनको भी रगड़ कर धोया जा सकता है।
देखभाल-इन रेशों पर क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं। इनको सूती कपड़ों की तरह नमी में प्रेस करना चाहिए। ये मज़बूत होते हैं इसलिये रगड़ कर धोया जा सकता है। गर्मी से खराब होते हैं इसलिये उबालना नहीं चाहिए। इनमें रंग पक्के नहीं होते इसलिये छाया में ही सुखाना चाहिए। इनको कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इसलिये अच्छी तरह धोकर सुखाकर साफ़ जगह पर रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
(43) लिनन की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
(44) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं? इनकी रचना और आम विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशों में प्रोटीन का अंश अधिक होता है जिस कारण इनको प्रोटीन रेशे कहते हैं। इनके कई गुण एक समान होते हैं तथा अधिकतर जानवरों के बालों से प्राप्त किये जाते हैं।
सिल्क (रेशम)- यह जानवरों से मिलने वाला प्रोटीन युक्त रेशा है जो सिल्क के कीड़े के लारवे की लार से बनता है।
रचना-ये रेशे प्रोटीन से बने होते हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्व होते हैं।
(क) विशेषताएँ

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे रेशम के रेशे चमकदार, दोहरे धागे के बने हुए दिखाई देते हैं जिन पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
    (टसर सिल्क)
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 6
  2. लम्बाई-प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक ही फिलामैंट रेशा है। रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
  3. रंग-इसका रंग क्रीम से भूरा या स्लेटी-सा हो सकता है।
  4. चमक-इन रेशों में सबसे अधिक चमक होती है। इसलिये सिल्क को कपड़ों . की रानी कहा जाता है।
  5. मजबूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से मजबूत होता है, परन्तु गीला होने पर इनकी मज़बूती घटती है।
  6. लचकीलापन-लचक अच्छी होती है। इसलिये ही बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-आसानी से पानी सोख लेती है तथा अनुभव भी नहीं होता कि कपड़ा गीला है। सुखाने पर कपड़ा बराबर सूखता है।
  8. ताप चालकता-ऊन की तरह ताप के अच्छे चालक नहीं जिस कारण इनको सर्दियों में पहना जाता है। इनकी सतह मुलायम होने के कारण ऊन जितने गर्म नहीं होते।
  9. रसायनों का प्रभाव-ऊन की तरह हल्के तेज़ाब द्वारा खराब नहीं होते, परन्तु हल्की क्षार भी इन पर बुरा प्रभाव डालती है। क्लोरीन युक्त रंगकाटों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  10. रंगाई-इनको रंग जल्दी तथा पक्के चढ़ते हैं जो धूप तथा धोने से भी खराब नहीं होते। इनको हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  11. ताप का प्रभाव-सिल्क के जलते समय चर-चर की आवाज़ आती है तथा पंखों या बालों के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है। जलने के उपरान्त इक्का-दुक्का काला मनका बनता है। धूप में सुखाने से या गर्म पानी से धोने से तथा गर्म प्रेस करने से कपड़ा कमजोर हो जाता है। चमक तथा रंग भी खराब हो जाते हैं।
  12. अन्य विशेषताएँ-गीले होकर कपड़ा कमज़ोर होता है इसलिये रगड़ने से फट सकता है।
    ऊन-रचना-ऊन का मुख्य तत्त्व किरेटिन (Keratin) नामक प्रोटीन है जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के अतिरिक्त सल्फर भी होती है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB रेशों का वर्गीकरण Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे रेशों (स्टेपल) की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
1/4 से 18 इंच।

प्रश्न 2.
लम्बे (फिलामेंट) रेशों की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
मीटरों में होती है।

प्रश्न 3.
छोटे रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
लगभग सारे प्राकृतिक रेशे।

प्रश्न 4.
रेशम कैसा रेशा है?
उत्तर-
लम्बा रेशा।

प्रश्न 5.
बनावटी फिलामेंट रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
नाईलोन, पॉलिएस्टर।

प्रश्न 6.
दो प्राकृतिक रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
सन्, पटसन, कपास।

प्रश्न 7.
धातु से बने रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
गोटा, ज़री।

प्रश्न 8.
थर्मोप्लासटिक रेशों की उदाहरणें।
उत्तर-
नायलान, पोलिस्टर, ऐसीटेट।

प्रश्न 9.
कैशमीलोन कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह मिश्रित रेशा है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाला रेशा कौन-सा है?
उत्तर-
ऊन, सिल्क।

प्रश्न 11.
सूती रेशे के कितने प्रतिशत सैलूलोज़ होता है?
उत्तर-
87-90%.

प्रश्न 12.
लिनन कहां से प्राप्त होता है?
उत्तर-
फलैक्स पौधों के तने से।

प्रश्न 13.
किन्हीं दो वनस्पतिक तंतुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
सूती, लिनन, नारियल के रेशे।

प्रश्न 14.
लम्बाई और चौड़ाई में चलने वाले धागे का नाम लिखिए।
अथवा
ताना तथा बाना क्या होता है?
उत्तर-
जब कपड़ा बनाया जाता है तो लम्बाई वाले धागे को ताना तथा चौड़ाई वाले धागे को बाना कहते हैं।

प्रश्न 15.
टैरीलीन तंतु का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर-
पोलीएस्टर।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नारियल के रेशे किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं तथा किस काम आते हैं?
उत्तर-
नारियल के रेशे नारियल के बीज के छिलके से तैयार होते हैं। यह गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य होते हैं। इनको समुद्र के पानी में भिगो कर नर्म किया जाता है फिर कूट-कूट कर साफ़ करके बाहर निकाल लिया जाता है। इन रेशों को आमतौर पर रंगा नहीं जाता। इनका अपना रंग गहरा भूरा होता है। नारियल के रेशे तनाव वाले तथा मज़बूत होते हैं। इनको बल नहीं पड़ते। ज्यादातर ये रेशे सोफों तथा गद्दों को भरने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। परन्तु इनसे टाट तथा जूतों के तले भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
चीन की लिनात किस रेशे से तैयार की जाती है तथा इसके कौन-से गुण हैं?
उत्तर-
चीन की लिनन पौधे के तने से तैयार की जाती है तथा इसको रेमी भी कहा जाता है। यह पौधे जापान, फ्राँस, मिस्र, इटली तथा रूस में उगाये जाते हैं। इसके पौधे 4 से 8 फुट ऊँचे हो सकते हैं। इसके तनों को काटकर पानी में गलाया जाता है तथा फिर रसायनों के प्रयोग से फालतू गूंद निकाल दी जाती है। उसके उपरान्त कंघी करके इसके रेशों को साफ़ किया जाता है। यह रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार, बारीक तथा सफ़ेद रंग के होते हैं। इन रेशों में तनाव अधिक तथा लचक कम होती है।

प्रश्न 3.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
पिछले प्रश्न देखें।

प्रश्न 4.
पटसन क्या है?
उत्तर-
यह पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत तथा भूरे रंग के हैं। इससे रस्सियाँ, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनता है।

प्रश्न 5.
ऊन क्या है? इसकी विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
ऊन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
बनावटी कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
बनावटी कपड़ों को कीड़े तथा फफूंदी नहीं लगती। इसलिए इन्हें सम्भालना आसान है।

प्रश्न 7.
सूती रेशे और लिनन के प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
सूती रेशे का प्रयोग

  1. सूती रेशे से बने वस्त्र गर्मियों के लिए उत्तम तथा त्वचा के लिए आरामदायक होते हैं।
  2. सूती रेशों को दूसरे रेशों के साथ मिलाकर मिश्रित धागे बनाए जाते हैं।
  3. सूती कपड़े को उबाला जा सकता है। इसलिए अस्पतालों में इससे पट्टियां बनाई ५ जाती हैं।

लिनन के प्रयोग

  1. गर्मियों की पोशाकें बनती हैं, ठण्डक देने वाली होती हैं।
  2. मज़बूत तथा लम्बे समय तक चलने वाला होता है। इसलिए चादरें आदि बनाते हैं।
  3. मेज़पोश आदि भी बनते हैं।
  4. गर्मियों में अन्दर पहनने वाले वस्त्र भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 8.
बनावटी रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
ऐसे रेशे. जो मनुष्य द्वारा बनाए जाते हैं उन्हें बनावटी रेशे कहते हैं, जैसेरेयोन, नाइलोन, टैरालीन, आरलोन आदि बनावटी रेशे हैं। इन रेशों से बने कपड़ों को सिंथेटक कपड़े भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
ऊन की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
सिल्क पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 11.
लिनन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।।

प्रश्न 12.
सिल्क की देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिल्क से बने कपड़े बहुत नाजुक होते हैं। यह गीले होने पर ओर भी कमज़ोर हो जाते हैं। इसलिए इन्हें धीरे-धीरे दबाकर धोना चाहिए। रगड़ने से यह फट सकते हैं। क्षार तथा गर्म पानी का इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन्हें ड्राईक्लीन करवा लेना चाहिए। जब यह नम ही हो तो प्रैस कर लेना चाहिए। पसीने से भी यह कमज़ोर हो जाते हैं। इनके अन्दर सूती कपड़े का अन्दरग लगा लेना चाहिए।

प्रश्न 13.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए उसमें लचकीलापन होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 14.
मिश्रित रेशे कौन-से हैं तथा इनकी देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
देखभाल-मिश्रित रेशों की देखभाल सरल है इन्हें धोना भी सरल है। ऊली नहीं लगती, धूप में रंग खराब नहीं होता। कीड़े भी हानी नहीं पहुंचाते।

प्रश्न 15.
रेशे से कपड़े बनाने के लिए रेशे का रूप में होना तथा जुड़न शक्ति का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 17.
सूती रेशे की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 18.
ताप तथा रंगाई का ऊन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 19.
लम्बे रेशे/फिलामेंट रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 20.
पटसन तथा नारियल के रेशे के बारे में बताएं
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 21.
रेशों का लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 22.
धातुओं से प्राप्त रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 23.
कपास और सिल्क की विशेषताओं की तुलना कीजिये।
उत्तर-

कपास सिल्क
1. यह स्टेपल रेशा है। इसकी लम्बाई 1/2 इंच से 2 इंच तक होती है। यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक मात्र फिलामेंट रेशा है। इसकी लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
2. इसका रंग प्रायः सफेद होता है। इसका रंग क्रीम से भूरा होता है या स्लेटी होता है।
3. प्राकृतिक चमक नहीं होती। प्राकृतिक चमक होती है।
4. लचक नहीं होती तथा सिलवटें पड़ जाती हैं। लचक अधिक होती है तथा सिलवटें नहीं पड़तीं।
5. रंगाई करना सरल है परन्तु धुलने तथा धूप से रंग खराब हो जाता है। रंगाई करना सरल है, रंग पक्के चढ़ते हैं जो धूप अथवा धुलने से छूटते नहीं।
6. रेशे गीले होने पर मज़बूत होते हैं। गीले होने पर कमज़ोर होते हैं।

प्रश्न 24.
रेशे एवं फिलामेंट की परिभाषा दें और रेशे के वर्गीकरण के बारे में लिखें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 25.
कृत्रिम रेशे को खरीदना लोग क्यों अधिक पसन्द करते हैं?
उत्तर-
कृत्रिम रेशे मज़बूत होते हैं। इन पर कीड़ों, फंगस आदि का प्रभाव भी कम होता है। इनको धो कर सुखाना तथा सम्भालना भी सरल है। यह देखने में भी सुंदर लगते हैं। इसलिए कृत्रिम रेशों की पसन्द बढ़ गई है।

प्रश्न 26.
मिश्रित कपड़े क्या होते हैं ? ग्रीष्म व शीत प्रत्येक ऋतु में पहने जाने वाले मिश्रित वस्त्र का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कृत्रिम रेशे तथा प्राकृतिक रेशे को मिला कर जो रेशे तैयार किए जाते हैं, मिश्रित रेशे कहा जाता है। जैसे
पोलीएस्टर + सूती = पोलीवस्त्र
टैरालीन + सूती = टैरीकाट
पोलीएस्टर + ऊन = टैरीवूल।
टैरीकाट ऐसा मिश्रित कपड़ा है जिसे गर्मी सर्दी में पहना जा सकता है।

प्रश्न 27.
सूती रेशों के गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश

प्रश्न 1.
रेयॉन का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
रेयॉन का प्रयोग-रेयॉन में रेशम जैसी चमक होने के कारण इसे नकली रेशम भी कहा जाता है। इससे कम तथा अधिक चमक वाले कपड़े, जैसे-जार्जट, क्रेप, बम्बर आदि बनाए जाते हैं। इसका प्रयोग आम पहनने वाली पोशाक के लिए भी होता है।
विशेषताएं-रेयॉन पुनर्निर्मित सैलुलोज़ के रेशे होते हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन जैसे तत्त्व होते हैं —

  1. सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-रेशा एक समान तथा गोल होता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 7
  2. लम्बाई-यह लम्बे रेशे (फिलामैंट) होते हैं।
  3. रंग-इन रेशों का रंग नहीं होता। ये पारदर्शी हैं।
  4. लचकीलापन-इनमें लचक कम होती है। धोने पर सिकुड़ जाते हैं तथा प्रैस करने पर फिर पहले जैसे हो जाते हैं।
  5. ताप चालकता-यह ताप के चालक हैं।
  6. मज़बूती-पानी में डालने से कमजोर होते हैं, वैसे इनकी मज़बूती कम या ज्यादा हो सकती है।
  7. जल शोषकता-रेयॉन की जल शोषकता प्राकृतिक सैलुलोज़ रेशों से अधिक होती है।
  8. रसायनों का प्रभाव-अम्ल का प्रभाव होता है परन्तु क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता।
  9. रंगाई-इसे रंगना सरल है। कोई भी रंग किया जा सकता है तथा रंग पक्का चढ़ता है। धूप में रंग खराब नहीं होता परन्तु रंगकाट से रंग कमज़ोर पड़ जाते हैं।
  10. ताप का प्रभाव-आग में एकदम जलते हैं तथा कागज़ जैसे गन्ध से जलते देखभाल- यह रेशे गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं। रगड़ से भी जल्दी खराब हो जाते हैं। इन कपड़ों को निचोड़ना तथा इन पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। अधिक गर्म प्रैस भी नहीं करनी चाहिए। इन्हें सुखा कर ही सम्भालना चाहिए। सिल्वर फिश तथा फफूंदी इनको हानि पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न 2.
पॉलिएस्टर (टैरीलीन ) का प्रयोग, विशेषताएँ और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
पॉलिएस्टर की विशेषताएं तथा प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रयोग-

  1. इन रेशों को दूसरे रेशों से मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार किए जाते हैं, जैसे
    टैरीकॉट – टैरीलीन + सूती
    टैरीवूल – टैरीलीन + ऊनी
    टैरी रूबिया – टैरीलीन + सूती
    टैरी सिल्क – टैरीलीन + सिल्क
  2. कपड़े शरीर के लिए ठीक होते हैं तथा मज़बूत होते हैं।
  3. इन्हें दाग़ कम लगते हैं तथा धोना भी आसान है।
  4. इनसे आम पहनने वाले तथा दूसरी प्रकार के कपड़े भी बनाए जाते हैं। विशेषताएंरचना-यह एक बहुलक है।

सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-इसके रेशे गोल, सीधे, चीकने तथा एक जैसे होते हैं। रंग-इसके रेशे सफ़ेद रंग के होते हैं।
मज़बूती-यह मज़बूत होते हैं। मजबूती को और भी बढ़ाया जा सकता है।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 8
लम्बाई-यह फिलामैंट तथा स्टेपल दोनों चित्र-पोलिएस्टर का रेशा तरह के होते हैं।
लचक-इनमें सूती तथा लिनन से अधिक लचक होती है, परन्तु नायलॉन से कम होती है।
दिखावट-चमक आवश्यकता अनुसार कम या अधिक की जा सकती है। ताप चालकता-ताप के अच्छे चालक नहीं हैं। रसायनों का प्रभाव- अम्ल तथा क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रंगाई-कुछ विशेष रंगों से ही रंगा जा सकता है। ताप का प्रभाव-जलने पर तेज़ गन्ध आती है। गर्मी से पिघल जाते हैं।
देखभाल-धोना आसान है, फफूंदी तथा कीड़े भी नहीं लगते। धूप से रंग खराब नहीं होता। अधिक प्रेस की भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए इन्हें सम्भालना सरल है।

प्रश्न 3.
सिल्क की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
विशेषताओं के लिए देखें उपरोक्त प्रश्न।
प्रयोग-सिल्क के रेशों से बने वस्त्रों का प्रयोग उत्सवों, शादियों के अवसरों या विशेष अवसरों पर पहनने के लिए होता है। सिल्क से घर की सजावट का सामान जैसेगलीचे, कुश्न, पर्दे आदि तथा अन्य सजावटी सामान भी बनाया जाता है। सिल्क महंगा है इसलिए इसका प्रयोग अमीर लोग अधिक करते हैं।
देखभाल-रेश्म का रेशा अधिक कमज़ोर होता है तथा गीला होने पर और भी कमज़ोर हो जाता है। इन्हें धोने के लिए रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पोला-पोला दबा कर धोना चाहिए।

प्रश्न 4.
कैश्मीलोन और फाइबर ग्लास के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. कैश्मीलोन-यह आरलोन की ही एक किस्म है तथा इससे स्वैटर, शालें, कोट आदि बनाए जाते हैं।
    विशेषताएं-कश्मीलोन में नाइलोन जैसे गुण होते हैं, परन्तु इसकी दिखावट ऊन के रेशों जैसी होती है। यह ऊन से सस्ते होते हैं तथा इनका रंग पक्का तथा यह मज़बूत होते हैं। कुछ समय तक प्रयोग के बाद इन वस्त्रों पर बुर आ जाती है।
  2. फाइबर ग्लास-इन रेशों का प्रयोग वस्त्र बनाने के लिए कम ही होता है, परन्तु इन का प्रयोग पारदर्शी पर्दे बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
(रेशम) सिल्क की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
सूती तथा रेशनी तन्तुओं की मौलिक विशेषताओं का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 7.
मानव निर्मित तन्तु कौन-से हैं? किसी एक तन्तु की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 8.
सूती रेशे की विशेषताएँ बताएं।
अथवा
सूती रेशे के गुणों के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 9.
लिनन के रेशों की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 10.
थर्मोप्लास्टिक रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक थर्मोप्लास्टिक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में विस्तार से लिखिए ।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 11.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं? विस्तार सहित लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 12.
लिनन रेशों की विशेषताएं और देखभाल के बारे में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 13.
रेयान का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 14.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 15.
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? इनकी विशेषताओं के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 16.
पॉलिएस्टर का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 17.
सिलक के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह के दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 18.
लिनन और सूती कपड़ों में क्या समानता है?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 19.
शीतल एक फुटबाल का खिलाड़ी है। उसे खेलों के मुकाबले में भाग लेना है। उसे कौन से रेशे का बना हुआ ट्रैकसूट खरीदना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 20.
कपास का रेशा खुर्दबीन के नीचे किस तरह का दिखता है? चित्र बनाओ। इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 21.
सिल्क को कपड़ों की रानी क्यों कहा जाता है ? आप सिल्क के कपड़ों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 22.
रीमा को बारिश के मौसम में पिकनिक के लिए जाना है। उसे अपने पहनने वाले कपड़ों के लिए कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 23.
ऊन के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 24.
सूती रेशे को रेशों का सिरताज क्यों कहा जाता है ? आप इन रेशों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 25.
सुनीता की बहन की शादी 15 दिसम्बर को होनी है। उसे शादी के लिए प्राकृतिक रेशे का सूट सिलवाना है। उसे कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए? इस रेशे की क्या-क्या विशेषता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

विस्तानष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. छोटे रेशे ………………. इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. लिनन ……………… पौधे के तने से प्राप्त होता है।
  3. प्राकृतिक फिलामैंट रेशा केवल ……………. है।
  4. ऊन तथा एकरेलिक रेशे मिला कर ………………. रेशा बनता है।
  5. सूती रेशे में …………….. प्रतिशत सैलूलोज़ होता है।
  6. ……… तथा …….. ऐंठन के दो प्रकार हैं।
  7. अधिकतर मानव निर्मित तन्तुओं में ………….. लचीलापन होता है।
  8. प्रोटीन तन्तु को ……………….. तन्तु भी कहते हैं।
  9. रेशमी रेशा ………. किस्म का रेशा है।
  10. …….. तथा ……….. दो प्राकृतिक प्रोटीन तन्तु हैं।
  11. ………… एक मानव निर्मित तन्तु है।

उत्तर-

  1. 18,
  2. फलैक्स,
  3. सिल्क,
  4. कैशमिलान,
  5. 87-90%,
  6. S, Z,
  7. बहुत,
  8. प्राकृतिक,
  9. प्राकृतिक फिलामैंट,
  10. रेशम, ऊन,
  11. रेयान।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. छोटे रेशे 18 इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. सन् प्राकृतिक रेशा है।
  3. रेयान मनुष्य द्वारा निर्मित रेशा है।
  4. सूती रेशों में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  5. साईसल एक कीट है।
  6. रेशम ताप का संचालक नहीं है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ग़लत,
  6. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊन के लिए ठीक है
(क) प्राकृतिक रेशा
(ख) प्रोटीन रेशा
(ग) जानवर से प्राप्त
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
रेशों में जुड़न शक्ति निर्भर है
(क) रेशों की लम्बाई
(ख) रेशे की बारीकी
(ग) लचकीलापन
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
पौधे से प्राप्त होने वाला रेशा नहीं है
(क) सन
(ख) ऊन
(ग) पटसन
(घ) कपास।
उत्तर-
(ख) ऊन

प्रश्न 4.
थर्मोप्लास्टिक रेशा नहीं है
(क) नायलोन
(ख) पोलीस्टर
(ग) कपास
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(ग) कपास

रेशों का वर्गीकरण PSEB 10th Class Home Science Notes

कपड़ा मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये हम भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं तथा घर में और कई कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं, जैसे-पर्दे, चादरें, तौलिये तथा मेज़पोश आदि। यह भिन्न-भिन्न कपड़े धागों से बनते हैं। यदि कपड़े को किनारे से देखें तो धागे निकल आते हैं। परन्तु यह धागे बालों जैसे बारीक रेशों से बनते हैं। ये रेशे कपड़े की एक मूल इकाई है। विभिन्न किस्म के कपड़े, जैसे-ऊनी, सूती, | रेशमी भिन्न-भिन्न रेशों से बनते हैं तथा यह विभिन्न रेशे प्राप्त भी भिन्न-भिन्न साधनों से होते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 3 जलवायु

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3 जलवायु Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 3 जलवायु

SST Guide for Class 10 PSEB जलवायु Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्त्वों के नाम बताएँ।
उत्तर-
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्व हैं —

  1. भूमध्य रेखा से दूरी,
  2. धरातल का स्वरूप,
  3. वायुदाब प्रणाली,
  4. मौसमी पवनें और
  5. हिन्द महासागर से समीपता।

प्रश्न 2.
सर्दियों के मौसम में सबसे कम और सबसे अधिक तापक्रम वाले दो-दो स्थानों के नाम बताइए।
उत्तर-
क्रमश:-मुम्बई तथा चेन्नई और अमृतसर तथा लेह।

प्रश्न 3.
गर्मियों में सबसे ठण्डे व गर्म स्थानों का वर्णन करो।
उत्तर-
सबसे ठण्डे स्थान लेह तथा शिलांग सबसे गर्म स्थान-उत्तर-पश्चिमी मैदान।

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प्रश्न 4.
सबसे अधिक शुष्क व अधिक वर्षा वाले स्थानों के नाम बताओ।
उत्तर-
देश के सबसे अधिक शुष्क स्थान हैं-लेह, जोधपुर तथा दिल्ली। शिलांग, मुम्बई, कलकत्ता (कोलकाता) तथा तिरुवन्तपुरम् सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान हैं।

प्रश्न 5.
सम-जलवायु तथा कठोर जलवायु वाले दो-दो स्थानों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. सम जलवायु वाले दो स्थान मुम्बई तथा चेन्नई हैं।
  2. अमृतसर तथा जोधपुर में कठोर जलवायु पाई जाती है।

प्रश्न 6.
‘जेट स्ट्रीम’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
धरातल से तीन किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली ऊपरी हवा अथवा संचार चक्र (Upper Air Circulation) को जेट स्ट्रीम (Stream) कहते हैं।

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प्रश्न 7.
‘मौनसून’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द मौसम (Mausam) से हुई है। जिससे तात्पर्य मौसम में बदलाव आने पर स्थानीय पवनों के तत्त्वों अर्थात् तापमान, आर्द्रता, दबाव तथा दिशा में परिवर्तन आने से है।

प्रश्न 8.
‘मौनसून का फटना’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
मानसून पवनें लगभग 1 जून को पश्चिमी तट पर पहुंचती हैं और बहुत तेजी से वर्षा करती हैं जिसे मानसनी धमाका या ‘मानसून का फटना’ (Monsoon Burst) कहते हैं।

प्रश्न 9.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु में कम दबाव का क्षेत्र पैदा होने के कारण चलने वाली धूल भरी आंधियां लू कहलाती है।

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प्रश्न 10.
‘मौनसून तोड़’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वर्षा ऋतु में शुष्क अन्तराल को मानसूनी तोड़ कहते हैं।

प्रश्न 11.
‘अल नीनो’ समुद्री धारा कहां बहती है?
उत्तर-
‘अल नीनो’ (El-Nino-Current) समुद्री धारा चिली के तट के समीप प्रशान्त महासागर में बहती है।

प्रश्न 12.
काल बैसाखी’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
बैसाख मास में पश्चिमी बंगाल में चलने वाले तूफ़ानी चक्रवातों को ‘काल बैसाखी’ कहते हैं।

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प्रश्न 13.
‘आम्रवृष्टि’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली पूर्व मानसूनी वर्षा जो आमों अथवा फूलों की फसल के लिए लाभदायक होती है।

प्रश्न 14.
अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली पवनें किन स्थानों पर एक-दूसरे से मिल जाती हैं।
उत्तर-
अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली मानसून पवनें पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में आपस में मिलती हैं।

II. नीचे लिखे प्रश्नों के संक्षेप में कारण बताइए —

प्रश्न 1.
मुम्बई नागपुर की अपेक्षा ठण्डा है।
उत्तर-
मुम्बई सागर तट पर बसा है। समुद्र के प्रभाव के कारण मुम्बई की जलवायु सम रहती है और यहां सर्दी कम पड़ती है।
इसके विपरीत नागपुर समुद्र से दूर स्थित है। समुद्र के प्रभाव से मुक्त होने के कारण वहां विषम जलवायु पाई जाती है। अत: नागपुर मुम्बई की अपेक्षा ठण्डा है।

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प्रश्न 2.
भारत की अधिकांश वर्षा चार महीनों में होती है।
उत्तर-
भारत में अधिकांश वर्षा मध्य जून से मध्य सितम्बर तक होती है। इन चार महीनों में समुद्र से आने वाली मानसूनी पवनें चलती हैं। नमी से युक्त होने के कारण ये पवनें भारत के अधिकांश भाग में खूब वर्षा करती हैं।

प्रश्न 3.
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून द्वारा कलकत्ता (कोलकाता) में 145 सेंटीमीटर वर्षा जबकि जैसलमेर में केवल 12 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
उत्तर-
कलकत्ता (कोलकाता) बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसून पवनों के पूर्व की ओर बढ़ते समय पहले पड़ता है। जलकणों से लदी ये पवनें यहां 145 सेंटीमीटर वर्षा करती हैं।
जैसलमेर अरावली पर्वत के प्रभाव में आता है। अरावली पर्वत अरब सागर से आने वाली पवनों के समानान्तर स्थित है और यह पवनों को रोकने में असमर्थ है। अतः पवनें बिना वर्षा किए आगे निकल जाती हैं। यही कारण है कि जैसलमेर में केवल 12 सेंटीमीटर वर्षा होती है।

प्रश्न 4.
चेन्नई शहर (मद्रास) में अधिकांश वर्षा सर्दियों में होती है।
उत्तर-
चेन्नई भारत के पूर्वी तट पर स्थित है। यह उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों के प्रभाव में आता है। ये पवनें शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। बंगाल की खाड़ी से लांघते हुए ये जलवाष्य ग्रहण कर लेती हैं। तत्पश्चात् पूर्वी घाट से टकरा कर ये चेन्नई में वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 5.
उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों में अधिक वर्षा होती है।
उत्तर-
50-60 शब्दों में उत्तर वाला प्रश्न नं० १ पढ़ें।

III. नीचे लिखे प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं निम्नलिखित हैं

  1. सर्दियों में हिमालय पर्वत के कारगिल क्षेत्रों में तापमान-45° सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है परन्तु उसी समय तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) महानगर में यह 20° सेन्टीग्रेड से भी अधिक होता है। इसी प्रकार गर्मियों की ऋतु में ‘ अरावली पर्वत की पश्चिमी दिशा में स्थित जैसलमेर का तापमान 50° सेन्टीग्रेड को भी पार कर जाता है, जबकि श्रीनगर में 20° सेन्टीग्रेड से कम तापमान होता है।
  2. खासी पर्वत श्रेणियों में स्थित माउसिनराम (Mawsynaram) में 1141 सेंटीमीटर औसतन वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। परन्तु दूसरी ओर पश्चिमी थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा का औसत 10 सेंटीमीटर से भी कम है।
  3. बाड़मेर और जैसलमेर में लोग बादलों के लिए तरस जाते हैं परन्तु मेघालय में सारा साल आकाश बादलों से ढका रहता है।
  4. मुम्बई तथा अन्य तटवर्ती नगरों में समुद्र का प्रभाव होने के कारण तापमान वर्ष भर लगभग एक जैसा ही रहता है। इसके विपरीत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में सर्दी एवं गर्मी के तापमान में भारी अन्तर पाया जाता है।

प्रश्न 2.
देश में जलवायु विभिन्नताओं के कारण बताओ।
उत्तर-
भारत के सभी भागों की जलवायु एक समान नहीं है। इसी प्रकार सारा साल भी जलवायु एक जैसी नहीं रहती। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —

  1. देश के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र ऊंचाई के कारण वर्ष भर ठण्डे रहते हैं। परन्तु समुद्र तटीय प्रदेशों का तापमान वर्ष भर लगभग एक समान रहता है। दूसरी ओर, देश के भीतरी भागों में कर्क रेखा की समीपता के कारण तापमान ऊंचा रहता है।
  2. पवनमुखी ढालों पर स्थित स्थानों पर भारी वर्षा होती है, जबकि वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित प्रदेश सूखे रह जाते हैं।
  3. गर्मियों में मानसून पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं। जलवाष्प से भरपूर होने के कारण ये खूब वर्षा करती है। परन्तु आगे बढ़ते हुए इनके जलवाष्प कम होते जाते हैं। परिणामस्वरूप वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
  4. सर्दियों में मानसून पवनें विपरीत दिशा अपना लेती हैं। इनके जलवाष्प रहित होने के कारण देश में अधिकांश भाग शुष्क रह जाते हैं। इस ऋतु में अधिकांश वर्षा केवल देश के दक्षिण-पूर्वी तट पर ही होती है।

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प्रश्न 3.
मौनसून पूर्व की वर्षा (Pre-Monsoonal Rainfall) किन कारणों से होती है?
उत्तर-
गर्मियों में भूमध्य रेखा की कम दबाव की पेटी कर्क रेखा की ओर खिसक (सरक) जाती है। इस दबाव को भरने के लिए दक्षिणी हिन्द महासागर से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलने लगती हैं। धरती की दैनिक गति के कारण ये पवनें घड़ी की सुई की दिशा में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की और मुड़ जाती है। ये 1 जून को देश के पश्चिमी तट पर पहुंचकर बहुत तेजी से वर्षा करती हैं। परन्तु 1 जून से पहले भी केरल तट के आस-पास जब समुद्री पवनें पश्चिमी तट को पार करती हैं, तब भी मध्यम स्तर की वर्षा होती है। इसी वर्षा को पूर्व मानसून (Pre-Monsoon) की वर्षा कहा जाता है। इस वर्षा का मुख्य कारण पश्चिमी घाट की पवनमुखी ढालें हैं जो इनके मार्ग में बाधा डालती हैं।

प्रश्न 4.
वर्षा ऋतु का वर्णन करो।
उत्तर-
वर्षा ऋतु को दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु भी कहते हैं। यह ऋतु जून से लेकर मध्य सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु की मुख्य विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है —

  1. भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में निम्न दाब का क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है।
  2. समुद्र से पवनें भारत में प्रवेश करती हैं और गरज के साथ घनघोर वर्षा करती हैं।
  3. आर्द्रता से भरी ये पवनें 30 किलोमीटर प्रति घण्टा की दर से चलती हैं और एक मास के अन्दर-अन्दर पूरे देश में फैल जाती हैं।
  4. भारतीय प्रायद्वीप मानसून को दो शाखाओं में विभाजित कर देता है-अरब सागर की मानसून पवनें तथा खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें।
  5. खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें भारत के पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर 250 में०मी० से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत इस घाट की पवनाविमुख ढालों पर केवल 50 सें०मी० वर्षा होती है। मुख्य कारण वहां की उच्च पहाड़ी श्रृंखलाएं तथा पूर्वी हिमालय हैं। दूसरी ओर उत्तरी मैदानों में पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए वर्षा की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 5.
देश में अधिक वर्षा वाले स्थान कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
अधिक वर्षा वाले स्थानों में देश के वे स्थान सम्मिलित हैं जहां पर वर्षा 150 से 200 सेंटीमीटर तक होती है। इन स्थानों को तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है —

  1. एक बहुत ही संकरी एवं तंग पट्टी 20 किलोमीटर की चौड़ाई में पश्चिमी घाट के साथ-साथ उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हुई है। यह ताप्ती नदी के मुहाने से लेकर केरल के मैदानों तक विस्तृत है।
  2. दूसरी पट्टी हिमालय की दक्षिणी ढलानों के साथ-साथ विस्तृत है। यह हिमाचल प्रदेश से होकर कुमाऊं हिमालय से गुज़रती हुई असम की निचली घाटी तक जा पहुंचती है।
  3. तीसरी पट्टी उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हुई है। इसमें त्रिपुरा, मणिपुर तथा मीकिर की पहाड़ियां शामिल हैं। इस पट्टी में लगभग 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 3 जलवायु

प्रश्न 6.
मौनसून वर्षा की कोई तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
मानसूनी वर्षा की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. अस्थिरता- भारत में मानसून भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एक-समान होती रहे। वर्षा की इसी अस्थिरता के कारण ही भुखमरी और अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
  2. असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
  3. अनिश्चितता-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंचकर भारी वर्षा करती हैं। परन्तु कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप देश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 7.
राजस्थान अरब सागर के नज़दीक होते हुए भी शुष्क क्यों रहता है?
उत्तर-
राजस्थान अरब सागर के निकट स्थित है। परन्तु फिर भी यह शुष्क रह जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं —

  1. राजस्थान तक पहुंचते-पहुंचते मानसून पवनों में नमी की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है, जिसके कारण ये वर्षा नहीं कर पातीं।
  2. इस मरुस्थलीय क्षेत्र में तापमान की दशाएं मानसून पवनों को तेजी से प्रवेश नहीं करने देतीं।
  3. यहां के अरावली पर्वत पवनों की दिशा के समानान्तर स्थित हैं। इनकी ऊंचाई भी कम है। इसलिए ये पवनों को रोक पाने में असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप राजस्थान शुष्क रह जाता है।

प्रश्न 8.
दक्षिणी पश्चिमी व्यापारिक पवनें मौनसून बर्षा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर-
गर्मियों में हिन्द महासागर से आने वाली दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा से पार खिंच आती हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इनकी दिशा बदल जाती है और ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने लगती हैं। 1 जून को ये केरल के तट पर पहुंच कर एकाएक भारी वर्षा करने लगती हैं। इसे ‘मानसून का फटना’ कहा जाता है। पवनों की गति तेज़ होने के कारण ये एक ही मास में पूरे देश में फैल जाती हैं। इस प्रकार लगभग सारा भारत वर्षा के प्रभाव में आ जाता है।

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IV. नीचे दिए गये हर प्रश्न का विस्तृत उत्तर दो

प्रश्न 1.
भारत की जलवायु को कौन-कौन से तत्व प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
भारत की जलवायु विविधताओं से परिपूर्ण है। इन विविधताओं को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. भूमध्य रेखा से दूरी-भारत उत्तरी गोलार्द्ध में भूमध्य रेखा के समीप स्थित है। परिणामस्वरूप पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर देश के अधिकांश क्षेत्रों में लगभग पूरे वर्ष तापमान ऊंचा रहता है। इसीलिए भारत को गर्म जलवायु वाला देश भी कहा जाता है।
  2. धरातल-एक ओर हिमालय पर्वत श्रेणियां देश को एशिया के मध्यवर्ती भागों से आने वाली बर्फीली व शीत पवनों से बचाती हैं तो दूसरी ओर ऊंची होने के कारण ये बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून पवनों के रास्ते में बाधा बनती हैं और उत्तरी मैदान में वर्षा का कारण बनती हैं।
  3. वायु-दबाव प्रणाली-गर्मियों की ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा की ओर सीधी पड़ने लगती हैं। परिणामस्वरूप देश के उत्तरी भागों में तापमान बढ़ने लगता है और उत्तरी विशाल मैदानों में कम हवा के दबाव (994 मिलीबार) वाले केन्द्र बनने प्रारम्भ हो जाते हैं। सर्दियों में हिन्द महासागर पर कम दबाव पैदा हो जाता है।
  4. मौसमी पवनें-(i) देश के भीतर गर्मी तथा सर्दी के मौसम में हवा के दबाव में परिवर्तन होने के कारण गर्मियों के छ: महीने समुद्र से स्थल की ओर तथा सर्दियों के छ: महीने स्थल से समुद्र की ओर पवनें चलने लगती हैं।
    (ii) धरातल पर चलने वाली इन मौसमी अथवा मानसूनी पवनों को दिशा संचार चक्र अथवा जेट स्ट्रीम भी प्रभावित करता है। इस प्रभाव के कारण ही गर्मियों के चक्रवात और भूमध्य सागरीय क्षेत्रों का मौसमी प्रभाव देश के उत्तरी भागों तक आ पहुंचता है तथा भरपूर वर्षा प्रदान करता है।
  5. हिन्द महासागर से समीपता-(i) सम्पूर्ण देश की जलवायु पर हिन्द महासागर का प्रभाव है। हिन्द महासागर की सतह समतल है। परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा के दक्षिणी भागों से दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनें पूरे वेग से देश की ओर बढ़ती हैं। ये पवनें समुद्री भागों से लाई नमी को सारे देश में वितरित करती हैं।
    (ii) प्रायद्वीपीय भाग के तीन ओर से समुद्र से घिरे होने के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में सम जलवायु मिलती है। उससे गर्मियों में कम गर्मी तथा सर्दियों में कम सर्दी पड़ती है।
    सच तो यह है कि भारत में गर्म-उष्ण मानसूनी खण्ड (Tropical Monsoon Region) वाली जलवायु मिलती है। इसलिए मानसूनी पवनें भिन्न-भिन्न समय में देश के प्रत्येक भाग में गहरा प्रभाव डालती हैं।

प्रश्न 2.
मौनसून वर्षा की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में वार्षिक वर्षा की मात्रा 118 सेंटीमीटर के लगभग है। यह सारी वर्षा मानसून पवनों द्वारा ही प्राप्त होती है। इस मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं —

  1. वर्षा का समय व मात्रा-देश की अधिकांश वर्षा (87%) मानसून पवनों द्वारा गर्मी के मौसम में प्राप्त होती है। 3% वर्षा सर्दियों में और 10% मानसून आने से पहले मार्च से मई तक हो जाती है। वर्षा ऋतु जून से मध्य सितम्बर के बीच होती है।
  2. अस्थिरता- भारत में मानसून पवनों से प्राप्त वर्षा भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एकसमान होती रहे। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
  3. असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी जम्मू-कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
  4. अनिश्चितता–भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंच कर भारी वर्षा करती हैं। कई स्थानों पर तो बाढ़ तक आ जाती है। कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही खत्म हो जाती है कि सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है।
  5. शुष्क अन्तराल-कई बार गर्मियों में मानसूनी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिन या सप्ताह के अन्तराल से होती है। इसके फलस्वरूप वर्षा-चक्र टूट जाता है और वर्षा ऋतु में एक लम्बा व शुष्क काल (Long & Dry Spell) आ जाता है।
  6. पर्वतीय वर्षा-मानसूनी वर्षा पर्वतों के दक्षिणी ढलान और पवनोन्मुखी ढलान (Windward sides) पर अधिक होती है। पर्वतों की उत्तरी और पवनविमुखी ढलाने (Leaward sides) वर्षा-छाया क्षेत्र (Rain-Shadow Zone) में स्थित होने के कारण शुष्क रह जाती हैं।
  7. मूसलाधार वर्षा-मानसूनी वर्षा अत्यधिक मात्रा में और कई-कई दिनों तक लगातार होती है। इसीलिए ही यह कहावत प्रसिद्ध है कि ‘भारत में वर्षा पड़ती नहीं है बल्कि गिरती है।
    सच तो यह है कि मानसूनी वर्षा अनिश्चित तथा असमान स्वभाव लिए हुए है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 3 जलवायु

प्रश्न 3.
भारत में मिलने वाली विभिन्न ऋतुओं की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मानसून पवनों द्वारा समय-समय पर अपनी दिशा बदलने के कारण एक ऋतु चक्र का निर्माण होता है। भारतीय मौसम विभाग ने देश की जलवायु को इन पवनों के दिशा बदलने के आधार पर चार ऋतुओं में विभाजित किया है —

  1. सर्दी का मौसम (मध्य दिसम्बर से फरवरी तक)
  2. गर्मी का मौसम (मार्च से मध्य जून तक)
  3. वर्षा का मौसम (मध्य जून से मध्य सितम्बर तक)
  4. वापिस जाती हुई मानसून पवनों का मौसम (मध्य सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक)। भारत की इन मौसमी ऋतुओं की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है

1. सर्दी की ऋतु

  1. तापमान-इस मौसम में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सीधा चमकता है। इसीलिए भारत के दक्षिणी भागों से उत्तर की ओर तापमान लगातार घटता जाता है।
  2. वायु का दबाव-सम्पूर्ण उत्तरी भारत में तापमान में गिरावट के कारण उच्च वायु दाब का क्षेत्र पाया जाता है।
    कभी-कभी देश के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भागों में निम्नदाब के केन्द्र बन जाते हैं। उन्हें पश्चिमी गड़बड़ी विक्षोभ अथवा चक्रवात कहा जाता है।
  3. पवनें-इस समय मध्य तथा पश्चिमी एशिया के क्षेत्रों में उच्चदाब का केन्द्र होता है। वहां की शुष्क तथा शीत पवनें उत्तर-पश्चिमी भागों में से देश के अन्दर प्रवेश करती हैं। इससे पूरे विशाल मैदानों का तापमान काफ़ी नीचे गिर जाता है। 3 से 5 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से बहने वाली इन पवनों के द्वारा शीत लहर का जन्म होता है।
  4. वर्षा-सर्दियों में देश के दो भागों में वर्षा होती है। देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू-कश्मीर व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत 20 से 25 सेंटीमीटर तक चक्रवातीय वर्षा होती है। हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, कुमाऊं की पहाड़ियों में हिमपात होता है। दूसरी ओर तमिलनाडु तथा केरल के तटीय भागों में उत्तर-पूर्व मानसून से पर्याप्त वर्षा होती है।
  5. मौसम-सर्दियों में मौसम सुहावना होता है। दिन मुख्य रूप से गर्म (सम) तथा रातें ठण्डी होती हैं। कभीकभी रात के तापमान में गिरावट आने के कारण सघन कोहरा भी पड़ता है। मैदानी भागों में शीत लहर के प्रभाव के कारण तुषार (Frost) पड़ता है।

2. गर्मी की ऋतु

  1. तापमान-भारत में गर्मी की ऋतु सबसे लम्बी होती है। 21 मार्च के बाद से ही देश के आन्तरिक भागों का तापमान बढ़ने लगता है। दिन का अधिकतम तापमान मार्च में नागपुर में 38° सें, अप्रैल में मध्यप्रदेश में 40° सें तथा मई-जून में उत्तर-पश्चिम भागों में 45° में से भी अधिक रहता है। रात के समय न्यूनतम तापमान 21 से 27° सें। तक बना रहता है। दक्षिणी भागों का औसत तापमान समुद्र की समीपता के कारण अपेक्षाकृत कम (25° सें०) रहता है।
  2. वायु का दबाव-तापमान में वृद्धि के कारण हवा के कम दबाव का क्षेत्र देश के उत्तरी भागों की ओर खिसक जाता है। मई-जून में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में कम दबाव का चक्र सबल हो जाता है तथा दक्षिणी ‘जेट’ धारा हिमालय के उत्तर की ओर सरक जाती है। धरातल के ऊपर हवा में भी कम दबाव का चक्र उत्पन्न हो जाता है। कम दबाव के ये दोनों चक्र मानसून पवनों को तेजी से अपनी ओर खींचते हैं।
  3. पवनें-देश के अन्दर कम दबाव के विशाल क्षेत्र स्थापित हो जाने के कारण गर्म एवं शुष्क स्थानिक (पश्चिमी) पवनें चलने लगती हैं। इसके कारण कभी-कभी तेज़ गरजदार व झखड़दार तूफ़ान आते हैं। बाद दोपहर धूल भरी आंधियां चलती हैं। ये पश्चिमी पवनें शुष्क तथा मरुस्थलीय भागों से होकर आने के कारण बहुत गर्म होती हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में ‘लू’ कहा जाता है। . उत्तर-पश्चिमी भागों से चल रही गर्म व शुष्क लू जब छोटा नागपुर के पठार के पास बंगाल की खाड़ी से आ रही गर्म तथा आर्द्र पवनों के सम्पर्क में आती है तो यह तूफ़ानी चक्रवातों की उत्पत्ति करती है। इन चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में ‘काल-बैसाखी’ कहा जाता है।
  4. वर्षा-गर्मी की ऋतु में भले ही उत्पन्न हुए चक्रवातों के घेरों से थोड़ी बहुत वर्षा होती है, जिससे लोगों को तेज़ गर्मी से राहत मिलती है। पश्चिमी बंगाल में तेज़ बौछारों से हुई वर्षा बसन्त ऋतु की वर्षा कहलाती है। केरल तथा दक्षिण कर्नाटक में होने वाली पूर्व-मानसूनी वर्षा को स्थानीय भाषा में ‘आम्रवृष्टि’ या ‘फूलों की वर्षा’ कहते हैं।

3. वर्षा ऋतु-वर्षा ऋतु को दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु भी कहते हैं। यह ऋतु जून से लेकर मध्य सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में निम्न दाब का क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है।
  2. समुद्र से पवनें भारत में प्रवेश करती हैं और गरज के साथ-साथ घनघोर वर्षा करती हैं।
  3. आर्द्रता से भरी ये पवनें 30 किलोमीटर प्रति घण्टा की दर से चलती हैं और एक मास के अन्दर-अन्दर पूरे देश में फैल जाती हैं।
  4. भारतीय प्रायद्वीप मानसून को दो शाखाओं में विभाजित कर देता है-अरब सागर की मानसून पवनें तथा खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें।
  5. खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में तथा अरब सागर की पवनें पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख (पश्चिमी ढालों) पर अत्यधिक वर्षा करती हैं।

4. पीछे हटते हुए मानसून पवनों का मौसम-भारत में पीछे हटते मानसून की ऋतु अक्तूबर तथा नवम्बर के महीने में रहती है। इस ऋतु की तीन विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता
  2. भारतीय भू-भागों पर मानसून का प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ने लगता है।
  3. पृष्ठीय पवनों की दिशा पलटनी शुरू हो जाती है। आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता नोट-विद्यार्थी एक ऋतु के लिए सर्दी या गर्मी की ऋतु का वर्णन करें।

प्रश्न 4.
गर्मी व सर्दी की ऋतु की तुलना करो।
उत्तर-
गर्मी तथा सर्दी की ऋतुएं भारतीय ऋतु चक्र के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी तुलना इस प्रकार की जा सकती है।

  1. अवधि-भारत में गर्मी की ऋतु मार्च से मध्य जून तक रहती है। इसके विपरीत सर्दी की ऋतु मध्य दिसम्बर से फरवरी तक रहती है।
  2. तापमान
  3. वायु का दबाव
  4. पवनें
  5. वर्षा।

नोट-इन शीर्षकों का अध्ययन पिछले प्रश्न में करें।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 3 जलवायु

प्रश्न 5.
भारतीय जीवन पर मौनसून पवनों के प्रभाव का उदाहरण सहित वर्णन करो।
उत्तर-
किसी भी देश या क्षेत्र के आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक विकास में वहां की जलवायु का गहरा प्रभाव होता है। इस सम्बन्ध में भारत कोई अपवाद नहीं है। मानसून पवनें भारत की जलवायु का सर्वप्रमुख प्रभावी कारक हैं। इसलिए इनका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। भारतीय जीवन पर इन पवनों के प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है —

  1. आर्थिक प्रभाव-भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। इसके विकास के लिए मानसूनी वर्षा ने एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। जब मानसूनी वर्षा समय पर तथा उचित मात्रा में होती है, तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है तथा चारों ओर हरियाली एवं खुशहाली छा जाती है। परन्तु इसकी असफलता से फसलें सूख जाती हैं, देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज के भण्डारों में कमी आ जाती है। इसी प्रकार यदि मानसून देरी से आए तो फसलों की बुआई समय पर नहीं हो पाती जिससे उत्पादन कम हो जाता है। इस तरह कृषि के विकास और मानसूनी वर्षा के बीच गहरा सम्बन्ध बना हुआ है। इसी बात को देखते हुए ही भारत के बजट को मानसूनी पवनों का जुआ (Gamble of Monsoon) भी कहा जाता है।
  2. सामाजिक प्रभाव-भारत के लोगों की वेशभूषा, खानपान तथा सामाजिक रीति-रिवाजों पर मानसून पवनों का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। मानसूनी वर्षा आरम्भ होते ही तापमान कुछ कम होने लगता है और इसके साथ ही लोगों का पहरावा बदलने लगता है। इसी प्रकार मानसून द्वारा देश में एक ऋतु-चक्र चलता रहता है, जो खान-पान तथा पहरावे में बदलाव लाता रहता है। कभी लोगों को गर्म वस्त्र पहनने पड़ते हैं, तो कभी हल्के सूती वस्त्र।
  3. धार्मिक प्रभाव-भारतीयों के अनेक त्योहार मानसून से जुड़े हुए हैं। कुछ का सम्बन्ध फसलों की बुआई से है तो कुछ का सम्बन्ध फसलों के पकने तथा उसकी कटाई से। पंजाब का त्योहार बैसाखी इसका उदाहरण है। इस त्योहार पर पंजाब के किसान फसल पकने की खुशी में झूम उठते हैं।

सच तो यह है कि समस्त भारतीय जन-जीवन मानसून के गिर्द ही घूमता है।

प्रश्न 6.
भारत में विशाल मौनसून एकता होते हुए भी क्षेत्रीय विभिन्नताएं क्यों मिलती हैं?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि हिमालय देश को मानसूनी एकता प्रदान करता है परन्तु इस एकता के बावजूद भारत के सभी क्षेत्रों में समान मात्रा में वर्षा नहीं होती। कुछ क्षेत्रों में तो बहुत कम वर्षा होती है। इस विभिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं —

  1. स्थिति-भारत के जो क्षेत्र पवनोन्मुख भागों में स्थित हैं, वहां समुद्र से आने वाली मानसून पवनें पहले पहंचती हैं और खूब वर्षा करती हैं। इसके विपरीत पवन विमुख ढालों वाले क्षेत्रों में वर्षा कम होती है। उदाहरण के लिए उत्तरपूर्वी मैदानी भागों, हिमाचल तथा पश्चिमी तटीय मैदान में अत्यधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के बहुत-से भागों तथा कश्मीर में कम वर्षा होती है।
  2. पर्वतों की दिशा-जो पर्वत पवनों के सम्मुख स्थित होते हैं, वे पवनों को रोकते हैं और वर्षा लाते हैं। इसके विपरीत पवनों के समानान्तर स्थित पर्वत पवनों को रोक नहीं पाते और उनके समीप स्थित क्षेत्र शुष्क रह जाते हैं। इसी कारण से राजस्थान का एक बहुत बड़ा भाग अरावली पर्वत के कारण शुष्क मरुस्थल बन कर रह गया है।
  3. पवनों की दिशा-मानसूनी पवनों के मार्ग में जो क्षेत्र पहले आते हैं, उनमें वर्षा अधिक होती है और जो क्षेत्र बाद में आते हैं, उनमें वर्षा क्रमशः कम होती जाती है। कोलकाता में बनारस से अधिक वर्षा होती है।
  4. समुद्र से दूरी-समुद्र के निकट स्थित स्थानों में अधिक वर्षा होती है। परन्तु जो स्थान समुद्र से दूर स्थित होते हैं, वहां वर्षा की मात्रा कम होती है।

सच तो यह है कि विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति तथा पवनों एवं पर्वतों की दिशा के कारण वर्षा के वितरण में क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।

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V. भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाओ:

  1. गर्मियों में कम दबाव के क्षेत्र व पवनों की दिशा।
  2. सर्दियों की वर्षा क्षेत्र व उत्तर पूर्वी मानसून पवनों की दिशा।
  3. मासिनराम, जैसलमेर, इलाहाबाद, मद्रास (चेन्नई)।
  4. कम वर्षा वाले क्षेत्र।
  5. 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र। उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide जलवायु Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
भारत के लिए कौन-सा भू-भाग प्रभावकारी जलवायु विभाजक का कार्य करता है?
उत्तर-
भारत के लिए विशाल हिमालय प्रभावकारी जलवायु विभाजक का कार्य करता है।

प्रश्न 2.
भारत कौन-सी पवनों के प्रभाव में आता है?
उत्तर-
भारत उपोष्ण उच्च वायुदाब से चलने वाली स्थलीय पवनों के प्रभाव में आता है।

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प्रश्न 3.
वायुधाराओं तथा पवनों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
वायु धाराएं भू-पृष्ठ से बहुत ऊंचाई पर चलती हैं। जबकि पवनें भू-पृष्ठ पर ही चलती हैं।

प्रश्न 4.
उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए कौन-सा तत्त्व उत्तरदायी है?
उत्तर-
इसके लिए 15° उत्तरी अक्षांश के ऊपर विकसित पूर्वी जेट वायुधारा उत्तरदायी है।

प्रश्न 5.
भारत में अधिकतर वर्षा कब से कब तक होती है ?
उत्तर-
भारत में अधिकतर (75 से 90 प्रतिशत तक) वर्षा जून से सितम्बर तक होती है।

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प्रश्न 6.
(i) भारत के किस भाग में पश्चिमी चक्रवातों के कारण वर्षा होती है?
(ii) यह वर्षा किस फसल के लिए लाभप्रद होती है?
उत्तर-
(i) पश्चिमी चक्रवातों के कारण भारत के उत्तरी भाग में वर्षा होती है।
(ii) यह वर्षा रबी की फसल विशेष रूप से गेहूं के लिए लाभप्रद होती है।

प्रश्न 7.
पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर-
इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का मर्त्त कमज़ोर पड़ जाता है तथा उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है।
अथवा इस ऋतु में पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्तूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है।

प्रश्न 8.
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की कौन-कौन सी शाखाएं हैं?
उत्तर-
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की दो मुख्य शाखाएं हैं-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा।

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प्रश्न 9.
ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ (मार्च मास) में देश के किस भू-भाग पर तापमान सबसे अधिक होता है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ में दक्कन के पठार पर तापमान सबसे अधिक होता है।

प्रश्न 10.
संसार की सबसे अधिक वर्षा कहां होती है?
उत्तर-
संसार की सबसे अधिक वर्षा मासिनराम (Mawsynram) नामक स्थान पर होती है।

प्रश्न 11.
भारत के किस तट पर सर्दियों में वर्षा होती है?
उत्तर-
कोरोमण्डल।

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प्रश्न 12.
भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर-
सम।

प्रश्न 13.
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हई है?
उत्तर-
मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसम शब्द से हुई है।

प्रश्न 14.
भारत की वार्षिक औसत वर्षा कितनी है?
उत्तर-
118 सें० मी०।

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प्रश्न 15.
किस भाग में तापमान लगभग सारा साल ऊंचे रहते हैं?
उत्तर-
दक्षिणी भाग में।

प्रश्न 16.
तूफानी चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में क्या कहा जाता है?
उत्तर-
काल बैसाखी।

प्रश्न 17.
दक्षिणी भारत के केरल व दक्षिणी कर्नाटक में समुद्री पवनों के आ जाने के कारण मोटी-मोटी बूंदों वाली पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है। इसे स्थानीय भाषा में कहा जाता है?
उत्तर-
फूलों की वर्षा।

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प्रश्न 18.
देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली धूल भरी स्थानीय पवन का क्या नाम है?
उत्तर-
लू।

प्रश्न 19.
देश की सबसे अधिक वर्षा कौन-सी पहाड़ियों में होती है?
उत्तर-
मेघालय की पहाड़ियों में।

प्रश्न 20.
माउसिनराम की वार्षिक वर्षा की मात्रा कितनी है?
उत्तर-
1141 से० मी०।

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प्रश्न 21.
तिरुवन्नतपुरम् की जलवायु सम क्यों है?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि तिरुवन्नतपुरम् सागरीय जलवायु के प्रभाव में रहता है।

प्रश्न 22.
भारत की शीत ऋतु की एक विशेषता बताइए।
उत्तर-
भारत में शीत ऋतु दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी के महीने में होती है। यह ऋतु बड़ी सुहावनी तथा आनन्दप्रद होती है। दिन के समय शीतल मन्द समीर चलती है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित के नाम लिखिए —

  1. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की अरब सागर वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
  2. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
  3. दोनों से प्रभावित दो स्थान।

उत्तर-

  1. पश्चिमी घाट की पवनाविमुख ढाल, पश्चिमी तटीय मैदान।
  2. माउसिनराम (मेघालय), चेरापूंजी।
  3. धर्मशाला, मंडी (हिमाचल प्रदेश)।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. भारत में अधिकतर (75 से 90 प्रतिशत तक) वर्षा जून से …………. तक होती है।
  2. भारत में पश्चिमी चक्रवातों से होने वाली वर्षा ………….. की फ़सल के लिए लाभप्रद होती है।
  3. आम्रवृष्टि ……………… की फ़सल के लिए लाभदायक होती है।
  4. भारत के ………….. तट पर सर्दियों में वर्षा होती है।
  5. भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में ……………… जलवायु मिलती है।

उत्तर-

  1. सितम्बर,
  2. रबी,
  3. फूलों,
  4. कोरोमण्डल,
  5. सम।

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
भारत के दक्षिणी भागों में कौन-सी ऋतु नहीं होती?
(A) गर्मी
(B) वर्षा
(C) सर्दी
(D) बसन्त।
उत्तर-
(C) सर्दी

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प्रश्न 2.
तूफानी चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में कहा जाता है —
(A) काल बैसाखी
(B) मानसून
(C) लू
(D) सुनामी।
उत्तर-
(A) काल बैसाखी

प्रश्न 3.
देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली धूल भरी स्थानीय पवन को कहा जाता है —
(A) सुनामी
(B) मानसून
(C) काल वैसाखी
(D) लू।
उत्तर-
(D) लू।

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प्रश्न 4.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित है —
(A) चेन्नई
(B) अमृतसर
(C) माउसिनराम
(D) शिमला।
उत्तर-
(C) माउसिनराम

प्रश्न 5.
लौटती हुई तथा पूर्वी मानसून से प्रभावित स्थान है —
(A) चेन्नई
(B) अमृतसर
(C) दिल्ली
(D) शिमला।
उत्तर-
(A) चेन्नई

प्रश्न 6.
सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीने हैं —
(A) जून तथा जुलाई ।
(B) जुलाई तथा अगस्त
(C) अगस्त तथा सितम्बर
(D) जून और अगस्त।
उत्तर-
(B) जुलाई तथा अगस्त

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं —

  1. भारत गर्म जलवायु वाला देश है।
  2. भारत की जलवायु पर मानसून पवनों का गहरा प्रभाव है।
  3. भारत के सभी भागों में वर्षा का वितरण एक समान है।
  4. मानसूनी वर्षा की यह विशेषता है कि इसमें कोई शुष्ककाल नहीं आता।
  5. भारत में गर्मी का मौसम सबसे लम्बा होता है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✗),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. पश्चिमी बंगाल के तूफानी चक्रवात — वर्षा ऋतु
  2. दिसम्बर से फरवरी तक की ऋतु — लू
  3. जून से मध्य सितम्बर तक की ऋतु — काल बैसाखी
  4. देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन — शीत ऋतु

उत्तर-

  1. पश्चिमी बंगाल के तूफानी चक्रवात — काल बैसाखी,
  2. दिसम्बर से फरवरी तक की ऋतु — शीत ऋतु
  3. जून से मध्य सितम्बर तक की ऋतु — वर्षा ऋतु,
  4. देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन — लू।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत भारत के लिए किस प्रकार जलवायु विभाजक’ का कार्य करता है?
उत्तर-
हिमालय पर्वत की उच्च श्रृंखला उत्तरी पवनों के सामने एक दीवार की भान्ति खड़ी है। उत्तरी ध्रुव वृत्त के निकट उत्पन्न होने वाली ये ठण्डी और बर्फीली पवनें हिमालय को पार कर के भारत में प्रवेश नहीं कर सकतीं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण उत्तर भारत में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है। अतः स्पष्ट है कि हिमालय पर्वत की श्रृंखला भारत के लिए जलवायु विभाजक का कार्य करती है।

प्रश्न 2.
भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए देश की जलवायु पर इसके प्रभाव को समझाइए। (कोई तीन बिन्दु)।
उत्तर-

  1. भारत 8° उत्तर से 37° अक्षांशों के बीच स्थित है। इसके मध्य से कर्क वृत्त गुज़रता है। इसके कारण देश का दक्षिणी आधा भाग उष्ण कटिबन्ध में आता है, जबकि उत्तरी आधा भाग उपोष्ण कटिबन्ध में आता है।
  2. भारत के उत्तर में हिमालय की ऊंची-ऊंची अटूट पर्वत मालाएं हैं। देश के दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है। इस सुगठित भौतिक विन्यास ने देश की जलवायु को मोटे तौर पर समान बना दिया है।
  3. देश के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर की स्थिति का भारतीय उप-महाद्वीप की जलवायु पर समताकारी प्रभाव पड़ता है। ये देश में वर्षा के लिए अनिवार्य आर्द्रता भी जुटाते हैं।

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प्रश्न 3.
मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण क्या है?
उत्तर-
मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण है-स्थल तथा जल पर विपरीत वायुदाब क्षेत्रों का विकसित होना। ऐसा वायु के तापमान के कारण होता है। हम जानते हैं कि स्थल और जल असमान रूप से गर्म होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग अधिक गर्म हो जाता है। परिणामस्वरूप स्थल भाग के आन्तरिक क्षेत्रों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है जबकि समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है। शीत ऋतु में स्थिति इसके विपरीत होती है। मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण यही है।

प्रश्न 4.
पश्चिमी जेट वायुधारा तथा पूर्वी जेट वायुधारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी जेट वायुधारा–यह वायुधारा शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर समताप मण्डल में स्थित होती है। जून मास में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है। तब इसकी स्थिति मध्य एशिया में स्थिति तियेनशान पर्वत श्रेणी के उत्तर में हो जाती है।
पूर्वी जेट वायुधारा-यह वायुधारा पश्चिमी जेट वायुधारा से 15° उत्तर अक्षांश के ऊपर विकसित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए यही वायुधारा उत्तरदायी है।

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प्रश्न 5.
उत्तरी भारत में मानसून के ‘फटने’ का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
उत्तरी भारत में मानसून के फटने का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है —

  1. इसके शीतकारी प्रभाव से देश के इस भाग में पहले से ही उमड़ते-घुमड़ते बादल वर्षण के लिए बाध्य हो जाते
  2. आकाश में प्राय: 9 किलोमीटर से 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक कपासी मेघ छा जाते हैं।
  3. आठ-दस दिन के अन्दर सारे भारत में आंधी-तूफान चलने लगते हैं और बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। इससे मानसून के प्रसार का आभास हो जाता है।

प्रश्न 6.
देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में मई मास में आने वाले प्रचण्ड तूफ़ानों का क्या कारण है?
उत्तर-
मई मास में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में लम्बा संकरा निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। कभीकभी निकटवर्ती क्षेत्रों से आर्द्रता से लदी पवनें इस वायुदाब में खिंच आती हैं। इस प्रकार शुष्क तथा आर्द्र वायु राशियों का सम्पर्क होता है जिसके परिणामस्वरूप प्रचण्ड तूफ़ान आते हैं। इन तूफानों के समय तेज़ पवनें चलती हैं तथा मूसलाधार वर्षा होती है। कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व होने वाली वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में ग्रीष्म ऋतु के अन्त में मानसून से पूर्व ही वर्षा होती है। परन्तु इस वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका कारण यह है कि इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब की पेटी का विस्तार रहता है।

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प्रश्न 8.
क्या कारण है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा भारत के भू-भाग पर पहुँचते ही बदल जाती है?
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा भारत के भू-भाग पर पहुंचते ही बदल जाती है। ऐसा उच्चावच तथा उत्तर-पश्चिमी भागों में स्थित निम्न वायुदाब क्षेत्र के प्रभाव के कारण होता है। वास्तव में, भारतीय प्रायद्वीप के कारण इस मानसून की दो शाखाएं हो जाती हैं। इनमें से एक अरब सागर की शाखा और दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा कहलाती है। पहली शाखा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम की ओर आगे बढ़ती है, जबकि दूसरी शाखा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पूर्व में पहुंचती है।

प्रश्न 9.
भारत की जलवायु किस प्रकार की होती, यदि अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिमालय पर्वत न होते? तापमान तथा वर्षण (वृष्टि) के सन्दर्भ में समझाइए।
उत्तर-

  1. यदि अरब सागर न होता तो पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग पर अधिक वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त पश्चिमी तटीय भागों के तापमान में विषमता आ जाती।
  2. यदि बंगाल की खाड़ी न होती तो देश के पूर्वी तट (तमिलनाडु आदि) पर सर्दियों की वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त यहां के तापमान में भी विषमता आ जाती।
  3. यदि हिमालय पर्वत न होता तो भारत मानसूनी वर्षा से वंचित रह जाता। यहां ठण्ड भी अत्यधिक होती।

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प्रश्न 10.
क्या कारण है कि मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती है?
उत्तर-
मानसूनी वर्षा के लगातार न होने का मुख्य कारण है-बंगाल की खाड़ी के शीर्ष क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले चक्रवात तथा भारत की मुख्य भूमि पर उनका प्रवेश। ये चक्रवात प्रायः गंगा के मैदान में स्थित निम्न वायुदाब के गर्त के अक्ष की ओर चलते हैं। परन्तु वायुदाब का यह गर्त उत्तर-दक्षिण की ओर खिसकता रहता है। इसके साथ-साथ वर्षा का क्षेत्र भी बदलता रहता है।

प्रश्न 11.
मानसून की स्वेच्छाचारिता तथा अनिश्चितता को चार उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मानसून की स्वेच्छाचारिता तथा अनिश्चितता से अभिप्राय यह है कि भारत में न तो मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित है और न ही इसके आगमन का समय। उदाहरण के लिए

  1. यहां बिना वर्षा वाले तथा वर्षा वाले दिनों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है।
  2. किसी वर्ष भारी वर्षा होती है तो कभी हल्की। परिणामस्वरूप कभी बाढ़ आती है तो किसी वर्ष सूखा पड़ जाता है।
  3. मानसून का आगमन और वापसी भी अनियमित तथा अनिश्चित है।
  4. इसी प्रकार कुछ क्षेत्र भारी वर्षा प्राप्त करते हैं, तो कुछ क्षेत्र बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 3 जलवायु

प्रश्न 12.
“भारत एक शुष्क भूमि या रेगिस्तान होता यदि मानसून न होता।” इस कथन को चार बिन्दुओं में समझाइए।
उत्तर-

  1. भारत की अधिकांश वर्षा उत्तर पश्चिमी मानसून से प्राप्त होती है। इसके अभाव में पूरा उत्तरी मैदान शुष्क भूमि होता।
  2. पश्चिमी तटीय मैदान वर्षा विहीन होकर शुष्क प्रदेश बन जाते।
  3. उत्तर-पूर्वी मानसून के अभाव में तमिलनाडु शुष्क प्रदेश में बदल जाता।
  4. मध्य तथा पूर्वी भारत भी शुष्क प्रदेश बनकर रह जाते।

प्रश्न 13.
“मानसून का निम्न वायुदाब गर्त” से क्या अभिप्राय है? भारत में इसका विस्तार कहा तक होता है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु में देश के आधे उत्तरी भाग में तापमान बढ़ जाने के कारण वायुदाब कम हो जाता है। परिणामस्वरूप मई के अन्त तक लम्बा संकरा निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। इसी वायुदाब क्षेत्र को ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। इस निम्न वायुदाब गर्त के चारों ओर वायु परिसंचरण होता रहता है।
हमारे देश में इस गर्त का विस्तार उत्तर-पश्चिम में थार मरुस्थल से लेकर दक्षिण-पूर्व में पटना तथा छोटा नागपुर के पठार तक होता है।

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प्रश्न 14.
‘आम्रवृष्टि’ और ‘काल बैसाखी’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आम्रवृष्टि-ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा का यह स्थानीय नाम इसलिए पड़ा है क्योंकि यह आम के फलों को शीघ्र पकाने में सहायता करती है।
काल बैसाखी-ग्रीष्म ऋतु में बंगाल तथा असम में भी उत्तरी-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज़ बौछारें पड़ती हैं। यह वर्षा प्रायः सायंकाल में होती है। इसी वर्षा को ‘काल बैसाखी’ कहते हैं। इसका अर्थ है-बैसाख मास का काल।

प्रश्न 15.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा पर उच्चावच का गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 250 सें. मी० से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत इस घाट की पवनविमुख ढालों पर केवल 50 सें मी० वर्षा होती है। इसी प्रकार देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिमालय की उच्च पर्वत श्रृंखलाओं तथा इसके पूर्वी विस्तार के कारण भारी वर्षा होती है। परन्तु उत्तरी मैदानों में पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हए वर्षा की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 16.
उत्तरी भारत में शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा उत्पन्न मौसमी दशाएं उत्तर-पूर्वी पवनों से किस प्रकार भिन्न हैं? कारणों सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभों के द्वारा शीत बढ़ जाती है तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है। उत्तरी-पूर्वी मानसून पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इनमें जलकण नहीं होते। अत: यह वर्षा नहीं करतीं। केवल खाड़ी बंगाल को लांघने वाली उत्तरी-पूर्वी पवनें जल कण सोख लेती हैं और दक्षिण-पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 17.
कारण सहित बताइए कि राजस्थान और दक्कन पठार के भीतरी भागों में वर्षा कम क्यों होती है?
उत्तर-
राजस्थान में अरावली पर्वत के समानान्तर दिशा में स्थित होने के कारण अरब सागर से आने वाली मानसून पवनें बिना रोक-टोक गुज़र जाती हैं जिससे राजस्थान शुष्क रह जाता है। दक्कन पठार का भीतरी भाग वृष्टिछाया में स्थित है। यहां पहुंचते-पहुंचते पवनें जल कणों से रिक्त हो जाती हैं। इसलिए ये पवनें वर्षा करने में असमर्थ होती हैं।

प्रश्न 18.
भारत में पीछे हटते हुए मानसून ऋतु की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में पीछे हटते मानसून की ऋतु अक्तूबर तथा नवम्बर के महीने में रहती है। इस ऋतु की तीन विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है।
  2. भारतीय भू-भागों पर मानसून का प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ने लगता है।
  3. पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है।

प्रश्न 19.
भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
कम वर्षा वाले क्षेत्रों से अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है, जहां 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।

  1. पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्र।
  2. सह्याद्रि के पूर्व में फैले दक्कन के पठार के आन्तरिक भाग।
  3. कश्मीर में लेह के आस-पास का प्रदेश।

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प्रश्न 20.
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) में अरब सागर की मानसून शाखा तथा शिलांग में खाड़ी बंगाल की मानसून शाखा द्वारा वर्षा होती है। ये शाखाएं इन स्थानों पर जून मास में सक्रिय हो जाती हैं तथा जुलाई के आते-आते आगे बढ़ जाती हैं। इसी कारण इन दोनों स्थानों पर जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 21.
जुलाई में त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम् ) की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) तथा मुम्बई (बम्बई) में अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा वर्षा होती है। ये पवनें जून में सक्रिय होती हैं और धीरे-धीरे आगे बढ़ती जाती हैं क्योंकि त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) इनके मार्ग में मुम्बई से पहले आता है। इसलिए ये पवनें जून मास में त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) में तथा जुलाई मास में मुम्बई में अधिक वर्षा करती हैं।

प्रश्न 22.
शीतकाल में तमिलनाडु में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
तमिलनाडु में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में बहुत कम वर्षा होती है। वहां अधिकतर वर्षा शीतकाल की उत्तरी-पूर्वी मानसून द्वारा होती है। ये पवनें यूं तो शुष्क होती हैं, परन्तु खाड़ी बंगाल के ऊपर से गुजरते समय ये पर्याप्त आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और पूर्वी घाट से टकराकर पूर्वी तट पर स्थित तमिलनाडु में काफ़ी वर्षा करती हैं। इस प्रकार तमिलनाडु में शीतकाल में अधिक वर्षा होती है।

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प्रश्न 23.
दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम् ) और शिलांग में वर्ष के नौ महीनों तक वर्षा होती है। क्यों?
उत्तर-
दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा केवल आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में होती है। इन नगरों में इस ऋतु की अवधि केवल तीन मास की होती है। इसके विपरीत त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) एक तटीय प्रदेश है तथा शिलांग एक पर्वतीय प्रदेश। इन प्रदेशों में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु के साथ-साथ पीछे हटते मानसून की ऋतु तथा ग्रीष्म ऋतु के अन्त में भी पर्याप्त वर्षा होती है। इस प्रकार इन स्थानों पर वर्षा की अवधि लगभग 9 मास होती है।

प्रश्न 24.
भारत में वर्षण के वार्षिक वितरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वर्षण से अभिप्राय वर्षा, हिमपात तथा आर्द्रता के अन्य रूपों से है। भारत में वर्षण का वितरण बहुत ही असमान है। भारत के पश्चिमी तट तथा उत्तर पूर्वी भागों में 300 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सें० मी० से भी कम है। इसी प्रकार दक्कन के पठार के आन्तरिक भागों तथा लेह (कश्मीर) के आसपास के प्रदेशों में भी बहुत कम वर्षा होती है। देश के शेष भागों में साधारण वर्षा होती है। हिमपात हिमालय के उच्च क्षेत्रों तक सीमित रहता है।

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जलवायु PSEB 10th Class Geography Notes

  1. भारत में जलवायु की दशाएं- भारत में जलवायु की विविध दशाएं पाई जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी मरुस्थल में इतनी गर्मी पड़ती है कि तापमान 550 से० तक पहुंच जाता है। इसके विपरीत शीत ऋतु में लेह के आसपास इतनी अधिक ठण्ड पड़ती है कि तापमान हिमांक से भी 45° सें० नीचे चला जाता है। ऐसा ही अन्तर वर्षण में भी देखने को मिलता है।
  2. जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक-हमारी जलवायु को मुख्य रूप से चार कारक प्रभावित करते हैं-स्थिति, उच्चावच, पृष्ठीय पवनें तथा उपरितन वायु धाराएं। देश के उत्तर में ऊंचीऊंची अटूट पर्वत मालाएं हैं तथा दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है। इस संगठित भौतिक विन्यास ने देश की जलवायु को मोटे तौर पर समान बना दिया है।
  3. पृष्ठीय पवनें तथा जेट वायु धाराएं-पृष्ठीय पवनें भू-पृष्ठ पर चलती हैं। परन्तु जेट वायु धाराएं ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तेज़ गति से चलने वाली पवनें होती हैं। ये बहुत ही संकरी पट्टी में चलती हैं। भारत की जलवायु पर इन जलधाराओं का गहरा प्रभाव पड़ता है।
  4. मानसून का अर्थ-‘मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है-ऋतु। इस प्रकार मानसून से अभिप्राय एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह उलट जाती है।
  5. मानसून प्रणाली-मानसून की रचना उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग पर वायुदाब की विपरीत स्थिति के कारण होती है। वायुदाब की यह स्थिति बदलती भी रहती है। इसके कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति बदल जाती है। इस प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं। इसके अतिरिक्त जेट वायुधाराएं भी मानसून के रचनातन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  6. भारत की ऋतुएं-भारत के वार्षिक ऋतु चक्र में चार प्रमुख ऋतुएं होती हैं-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, आगे बढ़ते मानसून की ऋतु तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु।
  7. शीत ऋतु-लगभग सारे देश में दिसम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में देश के ऊपर उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर तापमान घटता जाता है। कुछ ऊंचे स्थानों पर पाला पड़ता है। शीत ऋतु में चलने वाली उत्तरी पूर्वी पवनों द्वारा केवल तमिलनाडु राज्य को लाभ पहुंचता है। ये पवनें खाड़ी बंगाल से गुजरने के बाद वहां पर्याप्त वर्षा करती हैं।
  8. ग्रीष्म ऋतु-यह ऋतु मार्च से मई तक रहती है। मार्च मास में सबसे अधिक तापमान (लगभग 38° सें०) दक्कन के पठार पर होता है। धीरे-धीरे ऊष्मा की यह पेटी उत्तर की ओर खिसकने लगती है और उत्तरी भाग में तापमान बढ़ता जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा संकरा निम्न वायु दाब क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिसे ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में चलने वाली गर्म-शुष्क पवनें (लू), केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली ‘आम्रवृष्टि’ और बंगाल तथा असम की ‘काल बैसाखी’ ग्रीष्म ऋतु की अन्य मुख्य विशेषताएं हैं।
  9. आगे बढ़ते मानसून की ऋतु-यह ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है। देश में दक्षिण-पश्चिमी मानसून चलती है जो दो शाखाओं में भारत में प्रवेश करती है-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा। ये पवनें देश में पर्याप्त वर्षा करती हैं। उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा होती है, जबकि देश के कुछ उत्तरी-पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं। जुलाई तथा अगस्त के महीनों में देश की 75 से 90 प्रतिशत तक वार्षिक वर्षा हो जाती है। गारो तथा खासी की पहाड़ियों की दक्षिणी श्रेणी के शीर्ष पर स्थित मसीनरम में संसार भर में सबसे अधिक वर्षा होती है। दूसरा स्थान यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित चेरापूंजी को प्राप्त है। दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा भारी वर्षा होती है।
  10. पीछे हटते मानसून की ऋतु-अक्तूबर तथा नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे हटने लगता है। क्षीण हो जाने के कारण इसका प्रभाव कम हो जाता है। पृष्ठीय पवनों की दिशा भी उलटने लगती है। आकाश साफ़ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है। उच्च तापमान तथा भूमि की आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इसे क्वार की उमस’ कहते हैं। इस ऋतु में दक्षिणी प्रायद्वीप के तटों पर उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भारी वर्षा करते – हैं। इस प्रकार ये बहुत ही विनाशकारी सिद्ध होते हैं।
  11. वर्षण का वितरण-भारत में सबसे अधिक वर्षा पश्चिमी तटों तथा उत्तरी पूर्वी भागों में होती (300 सें. मी० से भी अधिक) है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। देश के उच्च भागों (हिमालय क्षेत्र) में हिमपात होता है। वर्षण की यह मात्रा प्रति वर्ष घटती बढ़ती रहती है। मानसून की स्वेच्छाचारिता के कारण कहीं तो भयंकर बाढ़ें आ जाती हैं और कहीं सूखा पड़ जाता है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

SST Guide for Class 10 PSEB पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Textbook Questions and Answers

(क) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/ एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
पंजाब किस भाषा के शब्द-जोड़ से बना है? इसके अर्थ भी लिखें।
उत्तर-
‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। जिसका अर्थ है-पांच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं (नदियों) की धरती।

प्रश्न 2.
भारत के बंटवारे का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
भारत के बंटवारे से पंजाब भी दो भागों में बंट गया।

प्रश्न 3.
पंजाब को ‘सप्तसिन्धु’ किस काल में कहा जाता था तथा क्यों?
उत्तर-
पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिन्धु’ कहा जाता था क्योंकि उस समय यह सात नदियों का प्रदेश था।

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प्रश्न 4.
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दर्रे हैं-खैबर, कुर्रम, टोची तथा बोलान।

प्रश्न 5.
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह कैसा इलाका होता?
उत्तर-
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह इलाका शुष्क तथा ठण्डा बन कर रह जाता।

प्रश्न 6.
‘दोआबा’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच के भाग को दोआबा कहते हैं।

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प्रश्न 7.
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को क्या कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को ‘मालवा’ कहा जाता है। यहां के निवासियों को मलवई कहते हैं।

प्रश्न 8.
दोआबा बिस्त का यह नाम क्यों पड़ा ? इसके किन्हीं दो प्रसिद्ध शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
दोआबा बिस्त ब्यास तथा सतलुज नदियों के बीच का प्रदेश है जिनके नाम के पहले अक्षरों के जोड़ से ही इस दोआबा का नाम बिस्त पड़ा है। जालन्धर तथा होशियारपुर इस दोआबे के दो प्रसिद्ध शहर हैं।

प्रश्न 9.
दोआबा बारी को ‘माझा’ क्यों कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दोआबा बारी पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण माझा कहलाता है। इसके निवासियों को ‘मझैल’ कहते हैं।

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(ख) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय की पहाड़ियों के कोई तीन लाभ लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पहाड़ियों के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. हिमालय से निकलने वाली नदियां सारा साल बहती हैं। ये नदियां पंजाब की भूमि को उपजाऊ बनाती हैं।
  2. हिमालय की पहाड़ियों पर घने वन पाये जाते हैं। इन वनों से जड़ी-बूटियां तथा लकड़ी प्राप्त होती है।
  3. इस पर्वत की ऊंची बर्फीली चोटियां शत्रु को भारत पर आक्रमण करने से रोकती हैं। (कोई तीन लिखें)
  4. हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोक कर वर्षा लाने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
किन्हीं तीन दोआबों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-

  1. दोआबा सिन्ध सागर-इस दोआबे में दरिया सिन्ध तथा दरिया जेहलम के मध्य का प्रदेश आता है। यह भाग अधिक उपजाऊ नहीं है।
  2. दोआबा चज-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआबा के नाम से पुकारते हैं। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. दोआबा रचना-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के दरियाओं ने इसके इतिहास पर क्या प्रभाव डाला है?
उत्तर-
पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने सदा शत्रु के बढ़ते कदमों को रोका। बाढ़ के दिनों में तो यहां के दरिया (नदियां) समुद्र का रूप धारण कर लेते हैं और उन्हें पार करना असम्भव हो जाता है। यहां के दरिया (नदियां) जहां आक्रमणकारियों के मार्ग में बाधा बने, वहां ये उनके लिए मार्ग-दर्शक भी बने। लगभग सभी आक्रमणकारी अपने विस्तार क्षेत्र का अनुमान इन्हीं नदियों की दूरी के आधार पर ही लगाते थे। पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं दरियाओं (नदियों) से ही लिया। यहाँ के दरियाओं (नदियों) ने पंजाब के मैदानों को उपजाऊ बनाया और लोगों को समृद्धि प्रदान की।

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प्रश्न 4.
विभिन्न कालों में पंजाब की सीमाओं की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
पंजाब की सीमाएं समय-समय पर बदलती रही हैं —

  1. ऋग्वेद में बताए गए पंजाब में सिन्ध, जेहलम, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज तथा सरस्वती नदियों का प्रदेश सम्मिलित था।
  2. मौर्य तथा कुषाण काल में पंजाब की पश्चिमी सीमा हिन्दुकुश के पर्वतों तक चली गई थी तथा तक्षशिला इसका एक भाग बन गया था।
  3. सल्तनत काल में पंजाब की सीमाएं लाहौर तथा पेशावर तक थीं जबकि मुग़ल काल में पंजाब दो प्रान्तों में बंट गया था-लाहौर तथा मुल्तान।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब (लाहौर) राज्य का विस्तार सतलुज नदी से पेशावर तक था।
  5. लाहौर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के पश्चात् इसका नाम पंजाब रखा गया।
  6. भारत विभाजन के समय पंजाब के मध्यवर्ती प्रदेश पाकिस्तान में चले गए।
  7. पंजाब भाषा के आधार पर तीन राज्यों में बंट गया-पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 5.
पंजाब के इतिहास को हिमालय पर्वत ने किस तरह से प्रभावित किया?
उत्तर-
हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर निम्नलिखित प्रभाव डाले हैं —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों से भारत का द्वार पथ रहा। इन पर्वतीय श्रेणियों में स्थित दरों को पार करके अनेक आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते रहे।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या-पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। जो शासक इस भाग में स्थित दरों की उचित रक्षा नहीं कर सके, उन्हें पतन का मुंह देखना पड़ा।
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा-हिमालय पर्वत ऊंचा है तथा हमेशा बर्फ से ढका रहता है। इस लिये इसे पार करना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप पंजाब उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सदा सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि-हिमालय के कारण पंजाब एक समृद्ध प्रदेश बना। हिमालय की नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी ला-लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा।

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(ग) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पहाडियों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब का धरातल अनेक विशेषताओं से सम्पन्न है। इस प्रदेश का आकार त्रिकोण है। यह उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सिन्ध तथा राजस्थान तक फैला हुआ है। पश्चिम में इसकी सीमा सुलेमान तथा पूर्व में यमुना नदी को छूती हैं। अपनी सीमाओं के भीतर पंजाब अंगड़ाइयां लेता हुआ दिखाई देता है।
‘हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के इस भौतिक भाग का वर्णन इस प्रकार है.
1. हिमालय-हिमालय की पहाड़ियां पंजाब में श्रृंखलाबद्ध हैं। इन पहाड़ियों को ऊंचाई के अनुसार तीन भागों में बांटा जाता है-महान् हिमालय, मध्य हिमालय तथा बाहरी हिमालय।

  1. महान् हिमालय-महान् हिमालय की पहाड़ियां पूर्व में नेपाल तथा तिब्बत की ओर चली जाती हैं। पश्चिम में भी इन्हें महान् हिमालय कहा जाता है। यह श्रृंखला पंजाब के लाहौल-स्पीति तथा कांगड़ा ज़िला को कश्मीर से अलग करती है। इन पहाड़ी इलाकों में कुल्लू की रमणीक घाटी तथा रोहतांग दर्रा है। इस श्रृंखला की ऊंचाई लगभग 5851 मीटर से लेकर 6718 मीटर के बीच है। ये पहाड़ियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं।
  2. मध्य हिमालय-मध्य हिमालय को प्रायः पांगी पहाड़ियों की श्रृंखला कहा जाता है। ये पहाड़ियां रोहतांग दर्रे से आरम्भ होती हैं। ये चम्बा में से निकलती हुई चिनाब तथा रावी दरियाओं की घाटियों को अलग करती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 2155 मीटर है।
  3. बाहरी हिमालय-बाहरी हिमालय की पहाड़ियां चम्बा तथा धर्मशाला के बीच से गुज़रती हैं। ये कश्मीर से रावलपिंडी, जेहलम तथा गुजरात जिलों के प्रदेश तक जा पहुंचती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 923 मीटर है। इन पहाड़ियों को ‘धौलाधार की पहाड़ियां’ भी कहा जाता है।

2. उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के उत्तर-पश्चिम में हिमालय की पश्चिमी शाखाएं स्थित हैं। इन शाखाओं में किरथार तथा सुलेमान की पर्वत-श्रेणियां सम्मिलित हैं। इन पर्वतों की ऊंचाई अधिक नहीं है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें अनेक रॆ हैं इन दरों में खैबर का दर्रा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अधिकतर आक्रमणकारियों के लिए यही दर्रा प्रवेश-द्वार बना रहा।

प्रश्न 2.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब का मैदानी भाग जितना विस्तृत है उतना समृद्ध भी है। यह पंजाब का रंगमंच था जिस पर इतिहास रूपी नाटक खेला गया। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। इस मैदान की गणना संसार के सबसे अधिक उपजाऊ मैदानों में की जाती है।

  1. मैदानी क्षेत्र के दो मुख्य भाग-पंजाब के मैदानी क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है-पूर्वी मैदान तथा पश्चिमी मैदान। यमुना तथा रावी के मध्य स्थित भाग को ‘पूर्वी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ है। यहां की जनसंख्या भी घनी है। रावी तथा सिंध के मध्य वाले भाग को ‘पश्चिमी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश पूर्वी मैदान की तुलना में कम समृद्ध है।
  2. पाँच दोआब-दो नदियों के बीच की भूमि को दोआब कहते हैं। पंजाब का मैदानी भाग निम्नलिखित पाँच दोआबों से घिरा हुआ है।
    1. सिन्ध सागर दोआब-जेहलम तथा सिन्ध नदियों के बीच के प्रदेश को सिन्ध सागर दोआब कहा जाता है। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ नहीं है। जेहलम तथा रावलपिंडी यहां के प्रसिद्ध नगर हैं।
    2. रचना दोआब-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखूपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    3. बिस्त-जालन्धर दोआब-इस दोआब में सतलुज तथा ब्यास नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है। यह प्रदेश बड़ा उपजाऊ है। जालन्धर और होशियारपुर इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    4. बारी दोआब-ब्यास तथा रावी नदियों के बीच के प्रदेश को बारी दोआब कहा जाता है। यह अत्यन्त उपजाऊ क्षेत्र है। पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण इसे ‘माझा’ भी कहा जाता है। पंजाब के दो सुविख्यात नगर लाहौर तथा अमृतसर इसी दोआब में स्थित हैं। घज दोआब-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआब के नाम से पुकारा जाता है। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. मालवा तथा बांगर-पांच दोआबों के अतिरिक्त पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज तथा यमुना के मध्य का विस्तृत मैदानी क्षेत्र भी सम्मिलित है। इसको दो भागों में बांटा जा सकता है-मालवा तथा बांगर।
    1. मालवा-सतलुज तथा घग्घर नदियों के मध्य में फैले प्रदेश को ‘मालवा’ कहते हैं। लुधियाना, पटियाला, नाभा, संगरूर, फरीदकोट, भटिंडा आदि प्रसिद्ध नगर इस भाग में स्थित हैं।
    2. बांगर अथवा हरियाणा-यह प्रदेश घग्घर तथा यमुना नदियों के मध्य में स्थित है। इसके मुख्य नगर अम्बाला, कुरुक्षेत्र, पानीपत, जीन्द, रोहतक, करनाल, गुड़गांव तथा हिसार हैं। यह भाग एक ऐतिहासिक मैदान भी है जहां अनेक निर्णायक युद्ध लड़े गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

PSEB 10th Class Social Science Guide पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
किस मुगल शासक ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा?
उत्तर-
मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को किस नाम से पुकारा जाने लगा था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ‘लाहौर राज्य’ के नाम से पुकारा जाने लगा था।

प्रश्न 3.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई० में मिलाया गया।

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प्रश्न 4.
पंजाब को भाषा के आधार पर कब बांटा गया?
उत्तर-
पंजाब को भाषा के आधार पर 1966 ई० में बांटा गया।

प्रश्न 5.
हिमालय के पश्चिमी दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली किन्हीं चार जातियों के नाम बताओ।
उत्तर-
इन दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली चार जातियां थीं-आर्य, शक, यूनानी तथा कुषाण।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को कौन-कौन से दो भागों में विभक्त किया जाता है?
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को पूर्वी मैदान.तथा पश्चिमी मैदान में विभक्त किया जाता है।

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प्रश्न 7.
भारतीय पंजाब में अब कौन-से दो दरिया रह गये हैं?
उत्तर-
सतलुज तथा ब्यास।

प्रश्न 8.
रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
सेकिया।

प्रश्न 9.
दिल्ली को भारत की राजधानी किस गवर्नर-जनरल ने बनाया?
उत्तर-
लार्ड हार्डिंग ने।

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प्रश्न 10.
हिमालय की पश्चिमी श्रृंखलाओं में स्थित किन्हीं दो दरों के नाम बताओ।
उत्तर-
खैबर तथा टोची।

प्रश्न 11.
दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी?
उत्तर-
1911 में।

प्रश्न 12.
सिकंदर ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर-
326 ई० पू० में।

प्रश्न 13.
शाह जमान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण कब किया?
उत्तर-
1798 ई० में।

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प्रश्न 14.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच कौन-सा दरिया सीमा का काम करता था?
उत्तर-
सतलुज।

प्रश्न 15.
आज किस दरिया का कुछ भाग हिन्द-पाक सीमा का काम करता है?
उत्तर-
रावी।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
लाहौर।

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प्रश्न 17.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को वास्तविक पंजाब’ क्यों कहा गया है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
यह क्षेत्र अत्यन्त उपजाऊ है और समस्त पंजाब की समृद्धि का आधार है।

प्रश्न 18.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के किन्हीं चार दोआबों के नाम लिखो।
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के चार दोआब हैं-बिस्त-जालन्धर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब तथा चज दोआब।

प्रश्न 19.
मालवा प्रदेश किन नदियों के बीच स्थित है?
उत्तर-
मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है।

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प्रश्न 20.
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम किसके नाम पर पड़ा?
उत्तर-
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम यहां बसने वाले मालव कबीले के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 21.
पंजाब के किन्हीं चार नगरों के नाम बताओ जहां निर्णायक ऐतिहासिक युद्ध हुए।
उत्तर-
तराइन, पानीपत, पेशावर तथा थानेसर में निर्णायक युद्ध हुए।

प्रश्न 22.
पाकिस्तानी पंजाब को किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
पश्चिमी पंजाब।

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प्रश्न 23.
हिंदी-बाखत्री तथा हिन्दी-पारथी राजाओं के अधीन पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
साकला (सियालकोट)।

प्रश्न 24.
‘सप्तसिंधु’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
‘सप्तसिंधु’ शब्द से भाव सात नदियों के प्रदेश अर्थात् वैदिक काल के पंजाब से है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पंजाब को …………… काल में सप्तसिंधु कहा जाता था।
  2. दो दरियाओं के बीच के भाग को …………. कहते हैं।
  3. मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को ………… प्रांतों में बांटा।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ………….. राज्य के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को ………. कहा जाता था।
  6. सिकंदर ने भारत पर ………………. ई० पू० में आक्रमण किया।

उत्तर-

  1. वैदिक,
  2. दोआबा,
  3. दो,
  4. लाहौर,
  5. सेकिया,
  6. 326.

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया
उत्तर-
(A) 1947 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1849 ई० में
(D) 1889 ई० में।
उत्तर-
(C) 1849 ई० में

प्रश्न 2.
पंजाब को भाषा के आधार पर दो भागों में बांटा गया
(A) 1947 ई० में
(B) 1966 ई० में
(C) 1950 ई० में
(D) 1971 ई० में।
उत्तर-
(B) 1966 ई० में

प्रश्न 3.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच सीमा का काम करता था-
(A) सतलुज दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) रावी दरिया
(D) ब्यास दरिया।
उत्तर-
(A) सतलुज दरिया

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प्रश्न 4.
आज हिन्द-पाक सीमा का काम कौन-सा दरिया करता है?
(A) रावी दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) ब्यास दरिया
(D) सतलुज दरिया।
उत्तर-
(A) रावी दरिया

प्रश्न 5.
शाह ज़मान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण किया
(A) 1811 ई० में
(B) 1798 ई० में
(C) 1757 ई० में
(D) 1794 ई० में।
उत्तर-
(B) 1798 ई० में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिंधु’ कहा जाता था।
  2. लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया।
  3. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी अमृतसर थी।
  4. मालवा प्रदेश सतलुज और घग्गर नदियों के बीच में स्थित है।
  5. पंजाब को भाषा के आधार पर 1947 में बांटा गया।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – बिस्त दोआब
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – सेकिया
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – दोआबा
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – लाहौर राज्य।

उत्तर-

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – दोआबा,
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – लाहौर राज्य,
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – बिस्त दोआब,
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – सेकिया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब ने भारतीय इतिहास. में क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर-
पंजाब ने अपनी अद्वितीय भौगोलिक स्थिति के कारण भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रदेश भारत में सभ्यता का पालना बना। भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता (सिन्धु घाटी की सभ्यता) इसी क्षेत्र में फलीफूली। आर्यों ने भी अपनी सत्ता का केन्द्र इसी प्रदेश को बनाया। उन्होंने वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना की। पंजाब ने भारत के प्रवेश द्वार के रूप में भी कार्य किया। मध्यकाल तक भारत में आने वाले सभी आक्रमणकारी पंजाब के मार्ग से ही भारत आये। अतः पंजाब वासियों ने बार-बार आक्रमणकारियों के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए बार-बार उनसे युद्ध किए। इसके अतिरिक्त पंजाब हिन्दू तथा सिक्ख धर्म की जन्म-भूमि भी रहा है। गुरु नानक देव जी ने अपना पावन सन्देश इसी धरती पर दिया। यहीं रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पन्थ की स्थापना की और मुग़लों के धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया। बन्दा बहादुर तथा महाराजा रणजीत सिंह के कार्य भी भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। निःसन्देह पंजाब ने भारत के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 2.
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब के भौतिक भागों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब को मुख्य रूप से तीन भौतिक भागों में बांटा जा सकता है-

  1. हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय श्रेणियां
  2. तराई प्रदेश तथा
  3. मैदानी क्षेत्र। पंजाब के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत फैला है। इसकी ऊंची-ऊंची चोटियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। हिमालय की तीन श्रेणियां हैं जो एक-दूसरे के समानान्तर फैली हैं। हिमालय की उत्तर-पश्चिमी शाखाओं में अनेक महत्त्वपूर्ण दर्रे हैं जो प्राचीन काल में आक्रमणकारियों, व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों को मार्ग जुटाते रहे। पंजाब का दूसरा भौतिक भाग तराई (तलहटी) प्रदेश है। यह पंजाब के पर्वतीय तथा उपजाऊ मैदानी भाग के मध्य में विस्तृत है। इस भाग में जनसंख्या बहुत कम है। पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण भौतिक भाग इसका उपजाऊ मैदानी प्रदेश है। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। यह हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी से बना है और आरम्भ से ही पंजाब की समृद्धि का आधार रहा है।

प्रश्न 3.
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को अपने-अपने ढंग से प्रभावित किया है।

  1. हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों ने अनेक आक्रमणकारियों को मार्ग दिया। अतः पंजाब के शासकों के लिए उत्तरी-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा सदा एक समस्या बनी रही। इसके साथ-साथ हिमालय की बर्फ से ढकी ऊंचीऊंची चोटियां पंजाब की आक्रमणकारियों (उत्तर की ओर से) से रक्षा भी करती रहीं।
  2. हिमालय के कारण पंजाब में अपनी एक विशेष संस्कृति का भी विकास हुआ।
  3. पंजाब का उपजाऊ एवं धनी प्रदेश आक्रमणकारियों के लिए सदा आकर्षण का कारण बना रहा। फलस्वरूप इस धरती पर बार-बार युद्ध हुए।
  4. तराई प्रदेश ने संकट के समय सिक्खों को शरण दी। यहां रहकर सिक्खों ने अत्याचारी शासकों का विरोध किया और अपने अस्तित्व को बनाए रखा। अतः स्पष्ट है कि पंजाब का इतिहास वास्तव में इस प्रदेश के भौतिक तत्त्वों की ही देन है।

प्रश्न 4.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब और किसने मिलाया ? स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब को 1849 में लॉर्ड डल्हौज़ी ने अंग्रेजी राज्य में मिलाया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब का योगदान अद्वितीय था। पंजाब में ही भाई राम सिंह ने कूका आन्दोलन की नींव रखी। 20वीं शताब्दी में सिंह सभा लहर, गदर पार्टी, गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन, बब्बर अकाली आन्दोलन, नौजवान सभा तथा अकाली दल के माध्यम से यहां के वीरों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को सक्रिय बनाया। भगत सिंह ने मातृभूमि की जंजीरें तोड़ने के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया। करतार सिंह सराभा तथा सरदार ऊधम सिंह जैसे पंजाबी वीरों ने भी हँसते-हँसते भारत माता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। अन्ततः 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के साथ पंजाब भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।

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प्रश्न 5.
पंजाब की पर्वतीय तलहटी अथवा तराई प्रदेश की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
तराई प्रदेश हिमाचल प्रदेश के उच्च प्रदेशों और पंजाब के मैदानी प्रदेशों के मध्य स्थित है। इसकी ऊंचाई 308 से 923 मीटर तक है। यह भाग अनेक घाटियों के कारण हिमालय पर्वत श्रेणियों से अलग-सा दिखाई देता है। इस भाग में सियालकोट, कांगड़ा, होशियारपुर, गुरदासपुर तथा अम्बाला का कुछ क्षेत्र सम्मिलित है। सामान्य रूप से यह एक पर्वतीय प्रदेश है। अतः यहां उपज बहुत कम होती है। वर्षा के कारण यहां अनेक रोग फैलते हैं। यहां आने-जाने के साधनों का भी पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है। इसलिए यहां की जनसंख्या कम है। यहां के लोगों को अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इस परिश्रम ने उन्हें बलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट बना दिया है।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास को कहां तक प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब के इतिहास पर पंजाब के मैदानी प्रदेश की स्पष्ट छाप दिखाई देती है।

  1. इस प्रदेश की भूमि अत्यन्त उपजाऊ है जिसके कारण यह प्रदेश सदा समृद्ध रहा। पंजाब के मैदानों की यह सम्पन्नता बाह्य शत्रुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई।
  2. पंजाब निर्णायक युद्धों का केन्द्र बना रहा। पेशावर, कुरुक्षेत्र, करी, थानेश्वर, तराइन, पानीपत आदि नगरों में घमासान युद्ध हुए। केवल पानीपत के मैदान में तीन बार निर्णायक युद्ध हुए।
  3. अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण जहां पंजाबियों ने अनेक युद्धों का सामना किया, वहां निर्मम अत्याचारों का सामना भी किया। उदाहरण के लिए तैमूर ने पंजाब के लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए थे।
  4. निरन्तर युद्धों में उलझे रहने के कारण पंजाब के लोगों में वीरता एवं निर्भीकता के विशेष गुण उत्पन्न हुए।
  5. पंजाब के मैदानी प्रदेश में आर्यों ने हिन्दू धर्म का विकास किया। इसी प्रदेश ने मध्यकाल में गुरु नानक साहिब जैसे महान् सन्त को जन्म दिया जिनकी सरल शिक्षाएं सिक्ख धर्म के रूप में प्रचलित हुई। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास में अनेक अध्यायों का समावेश किया।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
“हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में एक विशाल दीवार की भान्ति स्थित है। इस पर्वत ने पंजाब के इतिहास को पूरी तरह प्रभावित किया है —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ — हिमालय की-पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों में भारत का द्वार पथ रहा। आर्यों से लेकर ईरानियों तक सभी आक्रमणकारी इन्हीं मार्गों द्वारा भारत पर आक्रमण करते रहे। परन्तु सर्वप्रथम उन्हें पंजाब के लोगों से संघर्ष करना पड़ा। इस प्रकार पंजाब भारत के लिए द्वार की भूमिका निभाता रहा है।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या — पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। भारतीय शासकों को इनकी रक्षा के लिए काफ़ी धन व्यय करना पड़ा। डॉ० बुध प्रकाश ने ठीक ही कहा है, “जब कभी शासकों का इस प्रदेश (उत्तर-पश्चिमी सीमा) पर नियन्त्रण ढीला पड़ गया, तभी उनका साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर अदृश्य हो गया।”
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा — हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है और सदा बर्फ से ढका रहता है। परिणामस्वरूप यह प्रदेश उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि — हिमालय के कारण पंजाब एक समद्ध प्रदेश बना। इसकी नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा। उपजाऊ भूमि के कारण यहां अच्छी फसल होती रही और यहां के लोग समद्ध होते चले गए।
  5. विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध — उत्तर-पश्चिमी पर्वत श्रेणियों में स्थित दरों के कारण पंजाब के विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए। एशिया के देशों के व्यापारी इन्हीं दरों के मार्ग से यहां आया करते थे और पंजाब के व्यापारी उन देशों में जाया करते थे।
  6. पंजाब की विशेष संस्कृति — हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों द्वारा यहां ईरानी, अरब, तुर्क, मुग़ल, अफ़गान आदि जातियां आईं और यहां अनेक भाषाओं जैसे संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की आदि का संगम हुआ। इस मेल-मिलाप से पंजाब में एक विशिष्ट संस्कृति का जन्म हुआ जिसमें देशी तथा विदेशी तत्त्वों का संगम था।

पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव PSEB 10th Class History Notes

  • पंजाब (अर्थ)-पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। पंज का अर्थ है-पांच तथा आब का अर्थ है–पानी, जो नदी का प्रतीक है। अतः पंजाब से अभिप्राय है-पांच नदियों का प्रदेश।
  • पंजाब के बदलते नाम-पंजाब को भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। ये नाम हैं-सप्तसिन्धु, पंचनद, लाहौर सूबा, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त आदि।
  • भौतिक भाग-भौगोलिक दृष्टि से पंजाब को तीन भागों में बांटा जा सकता है
    1. हिमालय तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां
    2. उप-पहाड़ी क्षेत्र (पहाड़ की तलहटी के क्षेत्र)
    3. मैदानी क्षेत्र।
  • मालवा प्रदेश-मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है। प्राचीन काल में इस प्रदेश में ‘मालव’ नाम का एक कबीला निवास करता था। इसी कबीले के नाम से इस प्रदेश का नाम ‘मालवा’ रखा गया।
  • हिमालय का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं में स्थित दरों के कारण पंजाब भारत का द्वार बना। मध्यकाल तक भारत पर आक्रमण करने वाले लगभग सभी आक्रमणकारी इन्हीं दरों द्वारा भारत आये।
  • पंजाब के मैदानी भाग-पंजाब का मैदानी भाग बहुत समृद्ध था। इस समृद्धि ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।
  • पंजाब की नदियों का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-पंजाब की नदियों ने आक्रमणकारियों के लिए बाधा का काम किया। इन्होंने पंजाब की प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं नदियों से ही लिया।
  • तराई प्रदेश-पंजाब का तराई प्रदेश घने जंगलों से घिरा हुआ है। संकट के समय में इन्हीं वनों ने सिक्खों को आश्रय दिया। यहाँ रहकर उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाई और अत्याचारियों से टक्कर ली।
  • पंजाब में रहने वाली विभिन्न जातियाँ-पंजाब में विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। इनमें से जाट, सिक्ख, राजपूत, पठान, खत्री, अरोड़े, गुज्जर, अराइन आदि प्रमुख हैं।

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बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रोटीन कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखें।
(Name the type of Protein.)
उत्तर-
प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन।

प्रश्न 2.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या है ?
(What is Carbohydrates ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन और हाइड्रोजन का मिश्रण है।

प्रश्न 3.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ?
(Mention the types of Vitamins ?)
उत्तर-
विटामिन छ: प्रकार के होते हैं-A, B, C, D, E और K.

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 4.
कौन-से विटामिन पानी में घलनशील नहीं हैं ?
(Which Vitamins are not soluble in water ?)
उत्तर-
विटामिन C, D, E और K.

प्रश्न 5.
छोटे बच्चे के लिए कौन-सा दूध अच्छा होता है ?
(Which Milk is better for a child ?)
उत्तर-
मां का दूध।।

प्रश्न 6.
हमारे दैनिक भोजन में प्रोटीन की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much Proteins we should take in our daily by meals ?)
उत्तर-
70 से 100 ग्राम।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 7.
कार्बोहाइड्रेट किन दो रूपों में मिलते हैं ?
(Mention the forms of Carbohydrates.)
उत्तर-
स्टार्च तथा शक्कर के रूप में।

प्रश्न 8.
प्रोटीन किन तत्त्वों का मिश्रण है ?
(Which elements Protein in mixture ?)
उत्तर-
कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा गन्धक।

प्रश्न 9.
जीवन तत्त्व किन्हें कहते हैं ?
(Which thing is known as life saving ?)
उत्तर-
विटामिनों को।

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प्रश्न 10.
हमारे भोजन में चर्बी (वसा) की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much fat one should take daily ?)
उत्तर-
50 से 70 ग्राम।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भोजन क्या होता है ? हम भोजन क्यों करते हैं ?
(What is Food ? Why we take food ?)
उत्तर-
भोजन क्या होता है ? (What is Food ?)-भोजन एक ऐसी वस्तु का नाम है जो हमारे शरीर में जा कर शरीर का भाग बन जाती है, नई वस्तुओं का निर्माण करती है, भीतरी टूट-फूट की मुरम्मत करती है और शरीर में गर्मी तथा शक्ति उत्पन्न करती है।

  1. क्षतिपूर्ति या नए तन्तुओं का बनाना (Formation of new Tissues)-मानव शरीर के हर समय क्रियाओं के करने से शरीर के तन्तु (Tissues) टूटते-फूटते रहते हैं। उचित भोजन के द्वारा शरीर के पुराने तन्तुओं की मुरम्मत होती है और नए तन्तुओं का निर्माण होता है।
  2. भोजन शरीर को शक्ति देता है (Food supplies energy to Body)-दैनिक जीवन के कार्यों को करने के लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है। भोजन के जलने (Combustion) से ताप पैदा होता है जिससे शरीर में काम करने के लिए शक्ति पैदा होती है।
  3. भोजन शरीर को ताप प्रदान करता है (Food supplies heat to Body)भोजन द्वारा शरीर को ताप मिलता है। यदि शरीर में ताप की मात्रा कम हो जाती है तो जीवन असम्भव हो जाता है।
  4. भोजन शरीर की वृद्धि में सहायक होता है (Food helps in the growth of Body)-भोजन द्वारा शरीर के अंगों में विकास होता है। यदि किसी बच्चे को भोजन न

मिले या उचित मात्रा में न मिले तो उसके शरीर के अंगों का उचित विकास नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भोजन के कौन-कौन से मुख्य कार्य हैं ?
(What are the main functions of Food ?)
उत्तर-
हम जो भोजन खाते हैं, वह पचने के बाद शरीर में कई कार्य करता है। उन कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

  1. शारीरिक वृद्धि में सहायक-भोजन शरीर की वृद्धि में सहायता करता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण और वृद्धि होती है।
  2. शरीर को शक्ति प्रदान करता है-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है। हमारा शरीर कई प्रकार की क्रियाएं करता है। इन क्रियाओं के लिए आवश्यक शक्ति भोजन से ही प्राप्त होती है।
  3. शरीर में गर्मी पैदा करना-भोजन शरीर में गर्मी पैदा करता है। जब खाया हुआ भोजन पचकर सांस द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन में मिलकर खून में उबलता है तो गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी शरीर के लिए बहुत ही ज़रूरी है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते।
  4. नए तन्तुओं का निर्माण और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना-भोजन टूटेफूटे तन्तुओं की मुरम्मत करता है। भोजन से नए तन्तु भी बनते हैं। शरीर में चल रही क्रियाओं के कारण कुछ तन्तु नष्ट हो जाते हैं और कुछ टूट जाते हैं। भोजन का सबसे बड़ा काम टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना होता है। नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी भोजन ही तैयार करता है।
  5. बीमारियों से रक्षा-भोजन शरीर की बीमारियों से रक्षा करता है। भोजन खाने से शक्ति उत्पन्न होती है। यह शक्ति हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाती है। इस प्रकार हम कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते हैं।
    ऊपर बताए गए सभी कार्य भोजन के मुख्य कार्य होते हैं।

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प्रश्न 3.
विटामिन क्या होते हैं ? ये हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(What are Vitamins ? Why these are needed for our body ?)
उत्तर-
विटामिन-विटामिन ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं जो हमारे शरीर के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। अब तक कई प्रकार के विटामिनों की खोज की जा चुकी है। परन्तु प्रमुख विटामिन छ: ही हैं। ये हैं-विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’। इनमें विटामिन ‘बी’ और ‘सी’ पानी में घुलनशील हैं और रोप विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ चर्बी में घुलनशील होते हैं। विटामिन एक प्रकार के विशेष पदार्थों में पाए जाते हैं। भोजन में विटामिनों का उचित मात्रा में होना बहुत ज़रूरी है। विटामिन का जीवन के लिए बहुत अधिक महत्त्व अनुभव करते हुए इन्हें ‘जीवनदाता’ भी कहा जाता है। विटामिन डी धूप से मिलता है।
विटामिनों की शरीर को आवश्यकता — विटामिनों की हमारे शरीर के लिए आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों से बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है

  1. विटामिन हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखते हैं।
  2. ये हमारी शारीरिक वृद्धि में सहायता करते हैं।
  3. ये हमारी पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  4. ये हमारा खून साफ़ करते हैं और खून की मात्रा को बढ़ाते हैं।
  5. ये हड्डियों और दांतों को मज़बूत बनाते हैं।
  6. ये हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाते हैं।
  7. विटामिनों के प्रयोग से चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  8. विटामिन शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4.
कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई (वसा) हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(Why Carbohydrates and Fats are necessary for us ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स-ये हमें शक्कर तथा स्टॉर्च के रूप में मिलने वाले पदार्थों से प्राप्त होते हैं; जैसे कि-आम, गन्ने का रस, गुड़, शक्कर , अंगूर, खजूर, गाजर, सूखे मेवे, गेहूं, मक्की, जौ, ज्वार, शकरकन्दी, अखरोट, केले आदि से प्राप्त होता है।
आवश्यकता-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर को गर्मी तथा शक्ति देते हैं।
  2. ये शरीर में चर्बी पैदा करते हैं।
  3. ये चर्बी से सस्ते होते हैं।
  4. ग़रीब तथा कम आय वाले लोग भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। चिकनाई

यह हमें वनस्पति तथा पशुओं की चर्बी से प्राप्त होती है। यह सब्जियों, सूखे मेवों, फलों, अखरोट, बादाम, मूंगफली, बीजों से प्राप्त तेल, घी, दूध, मक्खन, मछली का तेल, अण्डे आदि में मिलती है।
आवश्यकता-

  1. चिकनाई शरीर में शक्ति पैदा करती है
  2. इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है।
  3. यह शरीर में ईंधन का काम करती है।
  4. चर्बी से शरीर मोटा हो जाता है।

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बड़े उत्तरों ले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ? इनके मुख्य कार्य बताओ। यह किन-किन खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं ?
(Give the types of Vitamins. Describe their main functions and sources.)
उत्तर-
अब तक बहुत-से विटामिनों की खोज हो चुकी है, परन्तु प्रसिद्ध विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ ही माने जाते हैं। इनमें से प्रत्येक विटामिन के मुख्य कार्य और प्राप्ति स्रोत निम्नलिखित हैं
1. विटामिन ‘ए’-विटामिन ‘ए’ के कार्य निम्नलिखित हैं—

  1. इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है।
  2. भूख बढ़ती है।
  3. पाचन-शक्ति ठीक रहती है।
  4. यह विटामिन शरीर के विकास और शक्ति की वृद्धि में योगदान देते हैं।

कमी से हानियां—
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  1. इसकी कमी से अन्धराता हो जाता है।
  2. त्वचा शुष्क हो जाती है।
  3. गर्दन, नाक और आंखों की त्वचा को प्रत्येक छूत की बीमारी शीघ्र लगती है।
  4. शरीर दुर्बल हो जाता है और वृद्धि रुक जाती है।
  5. फेफड़े कमजोर हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत—ये अधिकतर दूध, दही, मक्खन, पनीर, अण्डों, मछली, पत्तों वाली सब्जियों जैसे पालक और ताज़ी सब्जियों; जैसे-गाजर, बन्दगोभी, टमाटर तथा केले, संगतरे, आम, पपीता और अनानास आदि फलों में मिलते हैं।

2. विटामिन ‘बी’—विटामिन ‘बी’ के कार्य इस प्रकार हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 2

  1. इस विटामिन से नर्वस सिस्टम (नाड़ी (बी) प्रणाली) ठीक रहता है।
  2. यह नाड़ियों, पेशियों, दिल और दिमाग़ को शक्ति प्रदान करता है।
  3. भूख को बढ़ाता है।
  4. चमड़ी रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. भूख कम लगती है।
  2. बच्चों का विकास रुक जाता है।
  3. बेरी-बेरी रोग तथा त्वचा के कई रोग लग जाते हैं।
  4. जिह्वा पर छाले पड़ जाते हैं।
  5. बाल झड़ने लग पड़ते हैं।

प्राप्ति स्त्रोत — -यह दूध, दही, मक्खन, पनीर, दालों, अनाज, सोयाबीन, मटर, अण्डे, हरी और पत्तों वाली सब्जियों जैसे-पालक, बन्दगोभी, शलगम, टमाटर, प्याज़ और सलाद आदि में पाया जाता है।

3. विटामिन ‘सी’—विटामिन ‘सी’ के निम्नलिखित कार्य हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 3

  1. यह विटामिन लहू (खून, रक्त) को साफ़ रखता है।
  2. दांतों को मजबूत करता है।
  3. ज़ख्मों और टूटी हुई हड्डियों को भी शीघ्र ठीक करता है।
  4. शरीर की छूत की बीमारियों से रक्षा करता है।
  5. गले को ठीक रखता है।
  6. जुकाम से बचाता है।

कमी से हानियां—

  1. दांतों को पायोरिया रोग लग जाता है।
  2. हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  3. घाव शीघ्र ठीक नहीं होते।
  4. अनीमिया हो जाता है।
  5. रक्त बहना शीघ्र बन्द नहीं होता।

प्राप्ति स्त्रोत — यह प्रायः रसदार और खट्टे पदार्थों में से होता है; जैसे-संगतरा, माल्टा, मुसम्मी, अंगूर, अनार, नींबू, अमरूद और आंवला आदि। इसके अतिरिक्त हरी सब्जियों, जैसे टमाटर, बन्दगोभी, गाजर, पालक, शलगम आदि में भी मिलता है।

4. विटामिन ‘डी’—विटामिन ‘डी’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 4

  1. यह विटामिन हड्डियों और दांतों का निर्माण करता है।
  2. उन्हें मज़बूत भी बनाता है।
  3. बच्चों के शारीरिक विकास के लिए इसकी बहुत आवश्यकता होती है।

कमी से हानियां—

  1. हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
  2. दांत ठीक समय पर नहीं निकलते।
  3. मिरगी, हिस्टीरिया और सोकड़ा हो जाता है।
  4. मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।

प्राप्ति स्त्रोत—यह दूध, अण्डे की ज़र्दी, मक्खन, घी, मछली के तेल आदि में बहुत होता है। यह विटामिन सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्वयं ही बनता रहता है।

5. विटामिन ‘ई’—विटामिन ‘ई’ के कार्य इस प्रकार हैं
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 5

  1. यह विटामिन स्त्रियों और पुरुषों में सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति को बढ़ाता है।
  2. यह नपुंसकता और बांझपन को रोकता

कमी से हानियां—

  1. फोड़े फिनसियां निकलती हैं।
  2. बांझपन का रोग हो जाता है।

प्राप्ति स्रोत–यह बन्दगोभी, गाजर, सलाद, मटर, प्याज, टमाटर, फूलगोभी में होता है। इसके अतिरिक्त शहद, गेहूं, चावल, बीजों के तेल, अण्डे की जर्दी, बादाम, पिस्ता, चने की दाल और दलिया में अधिक मात्रा में होता है।

6. विटामिन ‘के’-विटामिन ‘के’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 6

  1. यह विटामिन जख्मों से रिस रहे रक्त को रोकता है।
  2. उसके जमाव में सहायता करता है।
  3. यह चमड़ी के रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. रक्त जमने की क्रिया में रुकावट पड़ती है।
  2. त्वचा के रोग हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत-यह अधिकतर बन्दगोभी, पालक, मछली, सोयाबीन, टमाटर की ज़र्दी आदि में होता है।

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प्रश्न 2.
मुख्य भोज्य पदार्थों और उनके गुणों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the main constituents of food and give their advantages.)
उत्तर-
अनाज, दालें, सब्जियां, फल, सूखे फल (मेवे), दूध, मांस, मछली आदि खाद्य पदार्थ मुख्य हैं। इसके गुण इस प्रकार हैं

  1. अनाज-गेहूं, चावल, चने, जौ, मक्की और बाजरा आदि अनाज प्रायः खाए जाते गुण-अनाज के गुण निम्नलिखित अनुसार हैं
    • इनसे हमारे शरीर का निर्माण होता है।
    • ये शरीर को शक्ति भी प्रदान करते हैं।
    • इनमें कार्बोहाइड्रेट्स अधिक मात्रा में होते हैं।
    • इनके छिलकों में लोहा, चूना, विटामिन और प्रोटीन होते हैं।
  2. दालें-सोयाबीन, मांह, मूंगी, मसूर, अरहर, सूखे मटर, राजमांह आदि की गणना मुख्य दालों में होती है। गुण-दालों के निम्नलिखित गुण हैं
    • इनका प्रयोग करने से शरीर को शक्ति मिलती है।
    • भूख बढ़ती है।
    • पाचन शक्ति तेज़ होती है। इनमें विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अधिक मात्रा में होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें प्रोटीन, खनिज लवण, लोहा, फॉस्फोरस भी होते हैं।
  3. सब्जियां-बन्दगोभी, पालक, सरसों का साग, मेथी, गाजर, मूली, सलाद, चुकन्दर, टमाटर, आलू, मटर, करेला, बैंगन, भिंडी, फूलगोभी और शलगम आदि मुख्य सब्जियां हैं।
    गुण-सब्जियों के गुण इस प्रकार हैं

    • ये शरीर की रक्षा करती हैं।
    • ये शरीर को स्वस्थ रखती हैं।
    • ये खून को साफ़ करती हैं।
    • ये कब्ज नहीं होने देती।
  4. फल-अंगूर, अमरूद, आंवला, नारंगी, संगतरा, माल्टा, अनार, मुसम्मी, नींबू, आम, केला, सेब, नाशपाती और आलू बुखारा आदि फलों का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
    गुण-फलों में गुण निम्नलिखित प्रकार हैं

    • ये शरीर की सफ़ाई में सहायता करते हैं।
    • इनमें लोहा, लवण और सारे विटामिन होते हैं।
    • ये शरीर की रोगों से सुरक्षा करते हैं।
  5. सूखे मेवे (फल)-बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू, खजूर और मूंगफली आदि सूखे मेवे होते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और चर्बी बहुत होती है।
    गुण-

    • ये शारीरिक विकास में सहायता करते हैं।
    • ये दिमागी ताकत को बढ़ाते हैं।
  6. दूध और उससे बनने वाले पदार्थ-मक्खन, घी, दही, पनीर और लस्सी आदि दूध से तैयार होते हैं। इनमें भोजन के सारे तत्त्व होते हैं। ये शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा करते हैं। ये शरीर का विकास करते हैं और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत भी करते हैं। ये साफ खून भी तैयार करते हैं।
  7. मांस, मछली, अण्डे आदि-मांस, मछली और अण्डों का प्रयोग बहुत किया जाता है। इनमें प्रोटीन, चर्बी, कैल्शियम, लोहा और विटामिन ए, बी और डी अधिक मात्रा में होते हैं। ये शरीर के विकास में सहायता करते हैं और इसे कई रोगों से बचाते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक खनिज लवणों का वर्णन करो।
(Why the different salts are useful for our body ?)
उत्तर-
हमारे शरीर में कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयोडीन, क्लोरीन और गन्धक जैसे तत्त्वों की बहुत आवश्यकता है। हमारे भोजन में इन खनिज लवणों का होना नितान्त आवश्यक है। ये खनिज लवण हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत आवश्यक हैं। इन खनिज लवणों की हमारे शरीर के लिए उपयोगिता का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

  1. कैल्शियम और फॉस्फोरस-ये खनिज लवण दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियां तथा ताज़ा फलों, दलिया, दालों और बादामों में अधिक होते हैं। इनसे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड्डियों का निर्माण होता है। ये दिल और दिमाग के लिए लाभदायक होते हैं।
  2. लोहा-लोहा हरी सब्जियों, फलों, अनाजों, अण्डों और मांस में अधिक होता है। यह नया खून उत्पन्न करता और भूख को बढ़ाता है। यह रक्त को साफ करता है।
  3. सोडियम-यह प्रायः भिण्डी, अंजीर, नारियल, आलू बुखारा, मूली, गाजर और शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और गुर्दो की कई बीमारियों को रोकता है।
  4. पोटाशियम-यह नाशपाती, आलू बुखारा, नारियल, नींबू, अंजीर, बन्दगोभी, करेला, मूली, शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और दिल को शक्ति प्रदान करता है तथा कब्ज को दूर करता है।
  5. आयोडीन – यह समुद्री मछली, समुद्री लवण, प्याज, लहसुन, टमाटर, पालक, गाजर और दूध आदि से प्राप्त होती है। इससे शरीर का भार और शक्ति बढ़ती है। इस की कमी से गिलट का रोग हो जाता है।
  6. मैग्नीशियम- यह नारंगी, संगतरे, अंजीर, आलू-बुखारे, टमाटर और पालक आदि में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह चर्म रोगों की रोकथाम करता है और पट्ठों को मजबूत बनाता है।
  7. गन्धक-यह प्याज, मूली, बन्दगोभी, फूलगोभी में बहुत होती है। यह नाखूनों और बालों को बढ़ाती है तथा चमड़ी को साफ रखती है।
  8. क्लोरीन-यह प्याज़, पालक, मूली, गाजर, बन्दगोभी और टमाटर में बहुत होती है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों को बाहर निकालती है। यह शरीर की सफ़ाई करती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) सन्तुलित भोजन
(ख) प्रोटीन
(ग) कैल्शियम
(घ) फॉस्फोरस
(ङ) विटामिनों की कमी।
[Write down a brief note on the following:
(a) Balanced diet
(b) Proteins
(c) Calcium
(d) Phosphorus
(e) Lack of Vitamins.)
उत्तर-
(क) सन्तुलित भोजन-जिस भोजन में सारे आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में विद्यमान हों और जो शरीर की सारी की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के योग्य हो, उसे सन्तुलित भोजन कहते हैं। सन्तुलित भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, खनिज लवण, विटामिन और पानी उचित मात्रा में होने चाहिएं। शरीर के पूर्ण विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें सन्तुलित भोजन ही करना चाहिए। कोई भी अकेला भोज्य पदार्थ सन्तुलित भोजन नहीं। केवल दूध ही एक ऐसा पदार्थ है जिसमें सभी पौष्टिक तत्त्व मिलते हैं।

(ख) प्रोटीन-प्रोटीन, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और गन्धक के रासायनिक मिश्रण से बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन। पशु प्रोटीन मांस, मछली, अण्डे और दूध आदि से प्राप्त होते हैं। वनस्पति प्रोटीन दालों, मटर, फूल गोभी, सोयाबीन, चने, पालक, हरी मिर्च, प्याज और सूखे मेवों में मिलते हैं। प्रोटीन शरीर में शक्ति पैदा करते हैं। हड्डियों का निर्माण और भोजन के पचाने में सहायता करते हैं। इनके कम प्रयोग से शरीर कमज़ोर हो जाता है।

(ग) कैल्शियम-कैल्शियम दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों, ताजे फलों, लवणों, दलिए, दालों और बादाम में अधिक मात्रा में होता है। इससे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड़ियों के लिए यह बहुत लाभदायक हैं। यह दिल और दिमाग के लिए लाभदायक है। इसकी कमी से हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं और दांत गिर जाते हैं।

(घ) फॉस्फोरस-फॉस्फोरस दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों और ताजे फलों में होती है। इससे भी हड्डियां और दांत मज़बूत होते हैं। इसकी कमी से हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।

(ङ) विटामिनों की कमी-मुख्य विटामिन ए, बी, सी, डी, ई और के हैं। इनकी कमी से शरीर में जो विकार उत्पन्न होते हैं उनका विवरण क्रमानुसार इस प्रकार है

  1. विटामिन ‘ए’
    • इसकी कमी से अन्धराता रोग हो जाता है।
    • गले तथा नाक के रोग लग जाते हैं।
    • फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं।
    • चमड़ी के रोग लग जाते हैं।
    • छूत के रोग लग जाते हैं।
  2. विटामिन ‘बी’-
    • भूख नहीं लगती।
    • चमड़ी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
    • बाल झड़ने लगते हैं।
    • जिह्वा में छाले पड़ जाते हैं।
    • खून की कमी हो जाती है।
  3. विटामिन ‘सी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • घाव शीघ्र नहीं भरते।
    • आंखों में मोतिया (मोती बिन्द) उत्पन्न हो जाता है।
    • पायोरिया रोग लग जाता है।
    • इसकी कमी से स्कर्वी रोग उत्पन्न हो जाता है।
  4. विटामिन ‘डी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • मिर्गी तथा सोकड़े के रोग हो जाते हैं।
    • हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।
    • मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  5. विटामिन ‘ई’
    • इसकी कमी से नपुंसकता तथा बांझपन के रोग लग जाते हैं।
    • फोड़े-फुन्सियां निकल आते हैं।
    • शरीर कमज़ोर हो जाता है।
  6. विटामिन ‘के’-
    • चमड़ी के रोग हो जाते हैं।
    • घावों से बहता रक्त शीघ्र बन्द नहीं होता।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 5.
सन्तुलित भोजन के भिन्न-भिन्न तत्त्व कौन-से हैं ?
(What are the various constituents of Balanced Diet ?)
उत्तर-
सन्तुलित भोजन (Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन वह भोजन है जिसमें शरीर के लिए ज़रूरी सभी आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में होते हैं जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण, विटामिन, जल तथा फोट तत्त्वों की मात्रा व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य तथा कार्य पर निर्भर करती है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 7
सन्तुलित भोजन के तत्त्व (Constituents of Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन के विभिन्न तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं

  1. प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना एक मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन।
  2. प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)
    • वनस्पति प्रोटीन-यह सोयाबीन, मूंगफली, काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाया जाता है।
    • पशु प्रोटीन-यह मांस, मछली, कलेजी, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाया जाता है।

प्रोटीन के लाभ (Advantages)-

  1. इससे शारीरिक वृद्धि और विकास होता है।
  2. ये शरीर के टूटे-फूटे सैलों की मुरम्मत करते हैं।
  3. ये शरीर का तापमान ठीक रखते हैं।
  4. शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स या वसा की मात्रा कम हो जाती है तो शक्ति पैदा करने का कार्य भी प्रोटीन ही करते हैं।

प्रोटीन की कमी से हानियां -प्रोटीन की कमी से निम्नलिखित रोग लग जाते हैं—

  1. क्वाशियोरकर (Kwashiorkar)—प्रोटीन की कमी से एक वर्ष से लेकर तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को यह रोग हो जाता है। पहले बच्चे की टांगें सूख जाती हैं
    और फिर उसके मुंह और सारे शरीर में सूजन हो जाती है। त्वचा खुरदरी और लाल हो जाती है। बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है।
  2. सोका-प्रोटीन की कमी से बच्चों को सोका नामक रोग लग जाता है। बच्चा पतला और कमजोर हो जाता है। उसके मांस के नीचे हड्डियां दिखाई देती हैं।
  3. भूख के कारण सूजन (Hunger edema)-भूखे रहने तथा प्रोटीन की कमी के कारण मनुष्य के शरीर में कम खुराक पहुंचती है तथा सैलों में पानी अधिक एकत्र हो जाता है तथा सारा शरीर सूजा हुआ नज़र आता है।
  4. प्लैगरा (Pellagra) -इस रोग के कारण त्वचा खुरदरी और शुष्क हो जाती है।
  5. जिगर की खराबी-प्रोटीन की कमी से जिगर खराब हो जाता है।

प्रोटीन की अधिकता से हानियां–प्रोटीन की अधिक मात्रा लेने से गुर्दो की कई. बीमारियां लग जाती हैं। रक्त नाड़ियों की लचक में भी अन्तर आता है और जोड़ों के दर्द भी हो जाते हैं।
प्रोटीन की उचित मात्रा (Proper Quantity)-एक वर्ष से लेकर छ: वर्ष तक की आयु के बच्चों को प्रोटीन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) (P.S.E.B. 2002 C, 2003 E, 2011B)कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को शक्ति और गर्मी प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन का 70-80% भाग इसी तत्त्व से पूरा किया जाता है।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)-कार्बोहाइड्रेट्स गेहूं, चावल, ज्वार, जौ, मक्की, चीनी, शकरकन्दी, आल आदि वस्तुओं में पाये जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स के लाभ (Advantages)—

  1. कार्बोहाइड्रेट्स से शरीर को शक्ति और गर्मी प्राप्त होती है।
  2. वे वसा को बचाने में सहायता करते हैं।
  3. इनसे अमाशय तथा आंतों की सफ़ाई होती है।
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कमी से हानियां-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा न मिलने से रक्त में एलक्लीन कम हो जाती है तथा तेज़ाब (Acidity) बढ़ जाता है। इस दशा में व्यक्ति बेहोश हो सकता है। ऐसी दशा अधिक भूखा रहने से मधुमेह (Diabetes) के रोगी की हो सकती है।
  2. आंतों की पूरी तरह सफ़ाई नहीं होती।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से शरीर की वसा ठीक प्रकार से हज़म नहीं की जा सकती।
  4. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से अमाशय में तेज़ाबी तत्त्वों की वृद्धि हो जाती है जिससे शरीर को हानि पहुंचती है।
  5. इनकी अधिक कमी से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है तथा व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

अधिकता की हानियां-कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से शरीर में मोटापा आ जाता है और उच्च रक्त चाप, मधुमेह तथा जोड़ों के दर्द आदि रोग हो जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा (Proper Quantity)-हमारे भोजन में 50-80% कार्बोहाइड्रेट्स तत्त्व होते हैं। सन्तुलित भोजन का 50-60% भाग कार्बोहाइड्रेट्स का ही होता है। एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन 400 से 700 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

3. वसा या चिकनाई (Fats) —वसा या चिकनाई दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)—
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  1. वनस्पति वसा-यह सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, अखरोट, बादाम, मूंगफली, सोयाबीन आदि में पाई जाती है।
  2. पशु वसा-यह घी, मक्खन, दूध, मांस, मछली, अण्डों आदि में पाई जाती है। वसा के लाभ (Advantages)
    • इससे शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है।
    • यह शरीर के तापमान को स्थिर रखती |
    • शरीर के सभी अंगों की बाहरी चोट मछली का तेल से रक्षा करती है।
    • यह विटामिन ए, डी, ई तथा के को शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सम्भाल कर रखती है।

कमी से हानियां–वसा की कमी से कई हानियां होती हैं—

  1. त्वचा (Skin) शुष्क हो जाती है। ।
  2. विटामिन ए, डी, ई तथा के की कमी | हो जाती है।
  3. वसा-तेज़ाबों की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती है।

अधिकता से हानियां—भोजन में वसा की अधिक मात्रा भी हानिकारक होती है।

  1. शरीर में मोटापा आ जाता है।
  2. हृदय के रोग लग जाते हैं।
  3. हाजमा खराब हो जाता है।
  4. मधुमेह (Diabetes) रोग हो जाता है।
  5. पेट में पत्थरी (Stone) बन जाती है।

वसा की उचित मात्रा (Proper Quantity) —एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम वसा की मात्रा होनी चाहिए।

4. खनिज लवण (Mineral Salts)-हमारे शरीर में खनिज लवण 4% होते हैं। फ़ॉस्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, पोटाशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, आयोडीन तथा जिंक आदि मुख्य खनिज लवण हैं।
प्राप्ति के स्रोत (Sources)—ये खनिज हरे पत्तों वाले साग तथा फलों, मांस, मछली, दूध आदि में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में लोहे की मात्रा कम परन्तु अन्य सभी खनिज लवण प्राप्त हो जाते हैं।
अधिकता से लाभ (Advantages)—

  1. ये दांतों तथा हड्डियों को मजबूत बनाते
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) का विकास करते हैं।
  3. ये रक्त के रंग को लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम खून के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. खनिज लवण शरीर के सभी कार्यों को ठीक तरह से चलाते हैं।

कमी से हानियां (Disadvantages)—

  1. कैल्शियम की कमी से हड्डियां और दांत कमजोर हो जाते हैं।
  2. शरीर प्रत्येक रोग का जल्दी शिकार हो जाता है।
  3. लोहे की कमी से त्वचा का रंग पीला हो जाता है।
  4. आयोडीन की कमी से गिल्लड़ नामक रोग हो जाता है।

5. पानी (Water)-हमारे शरीर का 2/3 भाग पानी का होता है। यह ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के मेल से बनता है। इसका हमारे शरीर के लिए उतना ही महत्त्व है जितना कि वायु का।
स्रोत (Sources)—पानी हमें कई प्रकार के भोजन के तत्त्वों दूध, फल तथा सब्जियों में शुद्ध रूप में मिलता है। पानी के लाभ (Advantages of Water)

  1. पानी सैलों के निर्माण में सहायता देता है।
  2. यह सैलों तक खुराक पहुंचाता है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों का निकास करता
  3. यह भोजन को पचाने में सहायता करता है।
  4. यह हमारे शरीर की गर्मी को नियमबद्ध करता है।
  5. पानी के द्वारा भोजन के तत्त्व रक्त में मिलते हैं।
  6. यह शरीर के जोड़ों तथा अंगों को नर्म रखता है।
  7. पानी के सहारे ही शरीर में रक्त चक्कर लगाता है।

पानी की कमी से हानियां (Harm of taking less water)—पानी की कमी से बहुत-सी हानियां होती हैं।

  1. पानी कम पीने से खाया हुआ भोजन भली भान्ति नहीं पचता।
  2. अमाशय भारी रहता है।
  3. कब्ज हो जाती है।
  4. सिर सदा थका सा महसूस होता है।
  5. शरीर कमजोर हो जाता है।
  6. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  7. शरीर से गन्दे पदार्थों का कम निकास होता है।
  8. जोड़ों का दर्द हो जाता है।
  9. गुर्दो में पत्थरी बन जाती है।

पानी की अधिकता से हानियां (Harm of taking excess water)-पानी सदा उचित मात्रा में ही पीना चाहिए। अधिक पानी पीने से अमाशय भरा रहता है और भूख कम लगती है। भोजन करते समय साथ-साथ पानी पीने से भोजन शीघ्र ही हज़म हो जाता है।

पानी की उचित मात्रा (Proper Quantity)-पानी की मात्रा में ऋतु, व्यवसाय या खुराक के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। साधारणतया एक दिन में 5-6 गिलास पानी पीना चाहिए।

6. विटामिन (Vitamins) -2016 भोजन में विटामिन भी उचित मात्रा में होने चाहिएं। इनका मानव शरीर के लिए विशेष महत्त्व है। इनके बिना शरीर का कोई काम नहीं हो सकता। विटामिनों से रहित भोजन सन्तुलित भोजन नहीं कहला सकता। विटामिन, प्राय: ताजे फल, हरी तरकारियों तथा अण्डों में मिलते हैं। ये मुख्यतः 6 प्रकार के होते हैं। विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के।
लाभ (Advantages)-

  1. ये पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  2. विभिन्न रोगों को रोकते हैं।
  3. हमारे शरीर की चर्म रोगों से रक्षा करते हैं।
  4. हमारी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई की प्राप्ति के क्या साधन हैं तथा इनकी उचित मात्रा कितनी होनी चाहिए ? (What are the sources of carbohydrates, fats and proteins ? How much quantity we should take all of these ?)
उत्तर-
(क) प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन। वनस्पति प्रोटीन सोयाबीन, मूंगफली, बादाम, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाई जाती है। पशु प्रोटीन मांस, ‘ मछली, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाई जाती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।

(ख) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को गर्मी और शक्ति प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन में तो 70-80% तक ही यह तत्त्व पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति के दैनिक भोजन में 400 से 700 ग्राम तक कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

(ग) वसा की मात्रा (Quantity of Fats)—वसा शरीर को शक्ति देती है। वसा दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा। वनस्पति वसा सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, सोयाबीन, अखरोट, बादाम, मूंगफली, अखरोट आदि में पाई जाती है। घी, मक्खन, दूध, मछली, मांस, अण्डे आदि पशु वनस्पति के मुख्य स्रोत हैं।
एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 से 75 ग्राम तक वसा की मात्रा होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
खनिज लवण तथा विटामिनों के लाभ बताओ।
(Describe the advantages of Mineral Salts and Vitamins.)
उत्तर-
खनिज लवणों के लाभ (Advantages of Mineral Salts) मानव शरीर में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट्स, वसा तथा पानी की मात्रा 96% होती है तथा शेष 4% खनिज लवण होते हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, क्लोरीन, सल्फर, आयरन, आयोडीन आदि मुख्य खनिज लवण हैं। खनिज लवणों के निम्नलिखित लाभ हैं

  1. ये दांतों तथा हड्डियों की वृद्धि करते हैं और इन्हें मज़बूत बनाते हैं।
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) की वृद्धि करते हैं।
  3. ये रक्त का रंग लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम रक्त के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. ये शरीर का सारा काम ठीक ढंग से चलाने के लिए आवश्यक हैं। विटामिनों के लाभ (Advantages of Vitamins) विटामिन भोजन के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। ये संख्या में छः हैं-विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के। इनके लाभ क्रमशः इस प्रकार हैं

विटामिन ‘ए’ के लाभ

  1. यह आंखों की सेशनी तेज़ करता है।
  2. यह आंखों, आमाशय तथा आंतों की झिल्लियों को मज़बूत बनाता है।
  3. छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  4. यह शरीर को बढ़ाने तथा विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।
  5. यह भूख बढ़ाता है और पाचन-क्रिया को ठीक रखता है।

विटामिन ‘बी’ के लाभ—

  1. यह मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है।
  2. यह हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  3. बच्चों की वृद्धि में सहायता पहुंचाता है।
  4. इससे पाचन-शक्ति ठीक होती है और भूख लगती है।
  5. त्वचा को ठीक रखता है।

विटामिन ‘सी’ के लाभ—

  1. शरीर की छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  2. दांतों तथा मसूड़ों को मजबूत बनाता है।
  3. घावों को भरने तथा टूटी हड्डियों को ठीक करने में सहायता करता है।

विटामिन ‘डी’ के लाभ-हड्डियों को मजबूत करता है।
विटामिन ‘ई’ के लाभ-यह प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है।
विटामिन ‘के’ के लाभ-यह रक्त के जमने की क्रिया में सहायता पहुंचाता है।

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प्रश्न 8.
एक सामान्य खिलाड़ी के लिए उचित खराक की मात्रा बताओ।
(Describe the Balanced Diet of an ordinary sports person.)
उत्तर-
एक सामान्य साधारण खिलाड़ी के लिए उचित खुराक की मात्रा नीचे दी जाती है—
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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 11
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
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मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
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मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम अतिरिक्त चिकनाई एवं तेल जोड़ा जा सकता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

PSEB 10th Class Agriculture Guide फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में कितनी किस्म के चूहे मिलते हैं ?
उत्तर-
8 किस्मों के।

प्रश्न 2.
झाड़ियों का चूहा पंजाब के किस इलाके में मिलता है ?
उत्तर-
रेतीले तथा खुश्क इलाके में मिलता है।

प्रश्न 3.
सियालू मक्की उगने के समय चूहे कितना नुकसान कर देते हैं ?
उत्तर-
10.7%.

प्रश्न 4.
जहरीला चुग्गा प्रति एकड़ कितने स्थानों पर रखना चाहिए ?
उत्तर-
40 स्थानों पर 10 ग्राम के हिसाब से प्रत्येक स्थान पर रखो।

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प्रश्न 5.
चूहों को खाने वाले दो मित्र पक्षियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
उल्लू तथा गिद्ध।

प्रश्न 6.
फसलों को कौन-सा पक्षी सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है ?
अथवा
कृषि में सबसे हानिकारक पक्षी कौन-सा है?
उत्तर-
तोता।

प्रश्न 7.
उजका (डरावा) फसल से कम-से-कम कितना ऊंचा होना चाहिए ?
उत्तर-
एक मीटर।

प्रश्न 8.
एक चिड़िया एक दिन में अपने बच्चों को कितनी बार चुग्गा देती है ?
उत्तर-
250 बार।

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प्रश्न 9.
टिटिहरी अपना घोंसला कहां बनाती है ?
उत्तर-
भूमि पर।

प्रश्न 10.
चक्की राहा अपनी खराक में क्या खाता है?
उत्तर-
कीड़े-मकौड़े।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
खेती-उत्पादों को हानिकारक जीवों से बचाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
कृषि के क्षेत्र में हुई उन्नति तभी बनी रह सकती है यदि कृषि उत्पादों को अच्छी तरह सम्भाल कर रखा जाए। कृषि उत्पादकों को हानि पहुंचाने वाले जीवों से रक्षा करना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
चूहों को आदत डालने का क्या ढंग है?
उत्तर-
अधिक चूहे पकड़े जाएं इसके लिए चूहों को पिंजरों में आने के लिए आदत डालें। इसके लिए प्रत्येक पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा अथवा ज्वार अथवा गेहूं का दलिया, जिसमें 2% पिसी हुई चीनी तथा मूंगफली अथवा सूरजमुखी का तेल भरा हो, 23 दिन तक रखते रहें तथा पिंजरों का मुँह खुला रहने दें।

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प्रश्न 3.
बरोमाडाइलोन के प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर-
बरोमाडाइलोन का प्रभाव विटामिन ‘के’ के प्रयोग से कम किया जा सकता है। इस विटामिन का प्रयोग डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिए।

प्रश्न 4.
ग्रामीण स्तर पर चूहे को मारने के अभियान के द्वारा चूहों का खात्मा कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
थोड़े क्षेत्र में चूहों की रोकथाम का कोई अधिक लाभ नहीं होता क्योंकि साथ वाले खेतों से चूहे फिर आ जाते हैं। इसलिए अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए चूहे मारने 1. के अभियान को गांव स्तर पर अपनाना बहुत ही आवश्यक है। इसके अन्तर्गत गांव की सारी भूमि (बोई हुई, बागों वाली, जंगलात वाली तथा खाली) पर सामूहिक तौर पर चूहों का खात्मा किया जाता है।

प्रश्न 5.
उजका (डरावा) से क्या अभिप्राय है ? फसलों की रक्षा में इसकी क्या भूमिका है ?
उत्तर-
एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।

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प्रश्न 6.
तोते से तेल बीजों वाली फसलों का बचाव कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।

प्रश्न 7.
सघन वृक्षों वाले स्थानों के पास सूर्यमुखी की फसल क्यों नहीं बोयी जानी चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि वृक्षों पर पक्षियों का घर होता है तथा वह इन पर आसानी से बैठतेउठते रहते हैं तथा फसलों को आसानी से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

प्रश्न 8.
मित्र पक्षी फसलों की रक्षा में किसान की कैसे मदद करते हैं ?
उत्तर-
मित्र पक्षी जैसे उल्लू, गिद्ध, बाज, शिकरे आदि चूहों को खा लेते हैं, तथा कुछ अन्य पक्षी जैसे नीलकंठ, गाय, बगुला, छोटा उल्लू / चुगल टटिहरियां आदि हानिकारक कीड़े-मकौड़े खाकर किसान की सहायता करते हैं।

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प्रश्न 9.
गाय बगुले की पहचान आप कैसे करेंगे ?
उत्तर-
यह सफेद रंग का पक्षी है जिसकी चोंच पीली होती है। इस पक्षी को अक्सर खेत को जोतते समय ट्रैक्टर अथवा बैलों के पीछे भूमि पर कीड़े खाते देख सकते हैं।

प्रश्न 10.
जहरीले चुग्गे का प्रयोग करते समय आवश्यक सावधानियों के बारे में आप क्या जानते हो? . .
उत्तर-
जहरीले चोगे के प्रयोग सम्बन्धी सावधानियां-

  • चोगे में ज़हरीली दवाई मिलाने के लिए डंडे अथवा खुरपे की सहायता लो, नहीं – तो हाथों पर रबड़ के दस्ताने पहन लो। मुंह, नाक तथा आंखों को ज़हर से बचा कर रखो।
  • चूहेमार दवाइयां तथा ज़हरीला चोगा बच्चों तथा पालतू जानवरों से दूर रखना चाहिए।
  • ज़हरीला चोगा कभी भी रसोई के बर्तनों में न बनाओ।
  • जहरिला चोगा रखने तथा ले जाने के लिए पॉली थिन के लिफाफे का प्रयोग करो तथा बाद में इन्हें मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • मरे हुए चूहे इकट्ठे करके तथा बचा चोगा मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • जिंक फॉस्फाइड मनुष्यों के लिए काफ़ी हानिकारक है। इसलिए हादसा होने पर मरीज़ के गले में उंगलियां मारकर उल्टी करवा देनी चाहिए तथा मरीज़ को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चूहे कितनी किस्म के होते हैं ? पंजाब में भिन्न-भिन्न इलाकों में मिलने वाले चूहों का विवरण दीजिए।
उत्तर-
पंजाब के खेतों में मुख्यत: 8 किस्मों के चूहे तथा चुहियां मिलती हैं। यह हैंझाड़ियों का चूहा, भूरा चूहा, नर्म चमड़ी का चूहा, अन्धा चूहा, घरों की चुहिया, भूरी चुहिया तथा खेतों की चुहिया।
अन्धा चूहा तथा नर्म चमड़ी वाला चूहा गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में मिलते हैं। नर्म चमड़ी वाला चूहा कल्लरी भूमि में, झाड़ियों का चूहा तथा भूरा चूहा रेतीले तथा खुश्क इलाकों में तथा झाड़ियों का चूहा कण्डी के इलाके (ज़िला होशियारपुर) में पाया जाता है।

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प्रश्न 2.
जहरीला चुग्गा तैयार करने की दो विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर-
1. 2% जिंक फॉस्फाइड (काली दवाई) वाला चोगा-1 किलो बाजरा, ज्वार अथवा गेहूं का दलिया अथवा इन सभी अनाजों का मिश्रण लेकर उसमें 20 ग्राम तेल तथा 25 ग्राम जिंक फॉस्फाइड दवाई डालकर अच्छी तरह मिला लो, चोगा तैयार है। इसका ध्यान रखें कि इस चोगे में कभी भी पानी न डाला जाए तथा हमेशा ताज़ा तैयार किया चोगा ही प्रयोग करो।

2. 0.005% ब्रोमाइडिलोन तथा चोगा-0.25% ताकत का 20 ग्राम ब्रोमाइडिलोन पाऊडर, 20 ग्राम तेल तथा 20 ग्राम पिसी हुई चीनी को एक किलो पिसी हुई गेहूं अथवा किसी अन्य अनाज के आटे में डाल कर यह चोगा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 3.
बहुद्देश्यीय योजना से चूहों की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
किसी एक तरीके से कभी भी सारे चूहे नहीं मारे जा सकते। किसी एक समय चूहों की रोकथाम करने के पश्चात् बचे हुए चूहे बड़ी तेजी से बच्चे पैदा करके अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं। इसलिए एक-से-अधिक तरीके अपनाकर चूहों को मारना चाहिए। खेतों में पानी लगाते समय चूहों को डंडों से मारो। फसल बोने के पश्चात् उचित समयों पर रासायनिक ढंग प्रयोग करो। ज़हरीला चोगा खेतों में डालने के पश्चात् बचे खड्डों में गैस वाली गोलियां भी डाल दो। जिंक फॉस्फाइड दवाई के प्रयोग से तुरन्त पश्चात् आवश्यक हो तो ब्रोमाइडिलोन अथवा गैस वाली गोलियों का प्रयोग करो।

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प्रश्न 4.
पक्षियों से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव के लिए कौन-से परम्परागत तरीके हैं ?
उत्तर-
पक्षियों के कारण फसलों को होने वाली हानि से बचाव के पारंपरिक ढंग-

  • कई कीमती फसलें जैसे सूरजमुखी तथा मक्की आदि को बचाने के लिए इन फसलों के इर्द-गिर्द बाहर वाली दो-तीन पंक्तियों में बैंचा या बाजरा जैसी कम कीमत वाली फसलें लगा देनी चाहिए।
    पक्षी इन फसलों को पसंद करते हैं तथा इनको पहले खाते हैं तथा मुख्य फसल बच जाती है।
  • पक्षियों के बैठने वाले स्थान जैसे घने वृक्ष तथा बिजली की तारों के पास सूरजमुखी की बोबाई नहीं करनी चाहिए।
  • सूरजमुखी तथा मक्की की फसल को तोते द्वारा हानि से बचाने के लिए इनकी बुआई कम-से-कम दो तीन एकड़ के क्षेत्र में करो। तोता फसल के अंदर जाकर फसल को कम हानि पहुंचाता है।

प्रश्न 5.
भिन्न-भिन्न यांत्रिक विधियों से आप फसलों का पक्षियों से बचाव कैसे कर सकते हो ?
उत्तर-
यांत्रिक विधियों द्वारा फसलों का पक्षियों से बचाव-

  • धमाका करना-भिन्न-भिन्न समय पर पक्षी उड़ाने के लिए बंदूक से धमाका करना चाहिए।
  • डरने का प्रयोग-एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।
  • कौओं के पुतले लगाना-तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।
  • पटाखों की रस्सी का प्रयोग-एक रस्सी के साथ छ: से आठ ईंच की दूरी पर पटाखों के छोटे-छोटे बडंल बांध दिए जाते हैं तथा रस्से के निचले भाग को सुलगा दिया जाता है। इस तरह थोड़ी-थोड़ी देर बाद धमाके होते रहते हैं तथा पक्षी डर कर उड़ जाते हैं। बीज अंकुरित हो रहे हों तो रस्सी खेत में तथा फसल पकने के समय खेत के किनारे . से दूर लटकानी चाहिए।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
किसानों के मित्र पक्षी हैं –
(क) नीलकंठ
(ख) गुटार
(ग) गाय बगला
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 2.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
(क) 4-5
(ख) 8-10
(ग) 1-2
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(क) 4-5

प्रश्न 3.
टिटहरी अपना घोंसला कहां बनाती है?
(क) भूमि पर
(ख) वृक्षों पर
(ग) पानी में
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) भूमि पर

प्रश्न 4.
चूहे मारने के लिए प्रयोग होने वाले रसायन हैं
(क) सोडियम
(ख) पोटाशियम क्लोराइड
(ग) जिंक फास्फाइड
(घ) सभी।
उत्तर-
(ग) जिंक फास्फाइड

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प्रश्न 5.
पंजाब में कितनी किस्म के पक्षी मिलते हैं?
(क) 100
(ख) 50
(ग) 300
(घ) 500.
उत्तर-
(ग) 300

प्रश्न 6.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला वृक्षों की गुहायों (खोड़ों) में बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) नीलकंठ।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

प्रश्न 7.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला समूहों में वृक्षों के ऊपर बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) उल्लू।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 8.
गेहूँ के उगते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
(क) 2.9%
(ख) 10.7%
(ग) 4.5%
(घ) 1.1%
उत्तर-
(क) 2.9%

II. ठीक/गलत बताएँ

1. नीलकंठ पक्षी कीड़े-मकौड़े तथा चूहों को खाता है।
2. पंजाब के खेतों में 8 प्रकार के चूहे मिलते हैं।
3. कृषि में सब से हानिकारक पक्षी तोता है।
4. चूहे मारने के लिए प्रयोग में आने वाला रसायन जिंक फास्फाइड है।
5. उल्लू, बाज आदि किसान के मित्र पक्षी हैं।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. डरना (बजूका) फ़सलों से कम से कम ………… मीटर ऊँचा होना चाहिए।
2. चूहों को पकड़ने के लिए कम से कम ……………… पिंजरे प्रति एकड़ के हिसाब से रखे जाते हैं।
3. घुग्गीयां, कबूतर तथा बया वर्ष में लगभग ………….. रुपये मूल्य का धान खा जाते हैं।
4. …………… पक्षी की चोंच का रंग पीला होता है।
5. कल्लरी भूमि में …………. चमड़ी का चूहा होता है।
उत्तर-

  1. एक
  2. 16
  3. दो करोड़
  4. गाय बगुला
  5. नर्म।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहे कहां रहते हैं ?
उत्तर-
चूहे बिलों में रहते हैं।

प्रश्न 2.
गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में कौन-से चूहे होते हैं ?
उत्तर-
अन्धा तथा नर्म चमड़ी वाले चूहे।

प्रश्न 3.
कल्लरी भूमि में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
नर्म चमड़ी वाला।

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प्रश्न 4.
कण्डी के इलाके में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
झाड़ियों का चूहा।

प्रश्न 5.
गेहूं के उगने तथा पकने के समय चूहों द्वारा कितना नुकसान किया जाता है?
उत्तर-
उगने के समय 2.9% तथा पकने के समय 4.5% ।

प्रश्न 6.
मटरों में पकते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
1.1.% ।

प्रश्न 7.
बेट के इलाके में गेहूं के पकने तक चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
25% |

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प्रश्न 8.
सिंचाई के समय बिलों से निकले चूहों को कैसे मारोगे ?
उत्तर-
डंडों से।

प्रश्न 9.
चूहे पकड़ने के लिए एक एकड़ में कितने पिंजरे रखने चाहिएं ?
उत्तर-
16 पिंजरे।

प्रश्न 10.
पिंजरों का दुबारा प्रयोग कितने दिनों बाद करना चाहिए ?
उत्तर-
30 दिनों के फासले के पश्चात्।

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प्रश्न 11.
जिंक फॉस्फाइड वाला एक किलो चोगा कितने क्षेत्र के लिए प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
29 एकड़ के लिए।

प्रश्न 12.
चूहों की प्राकृतिक रोकथाम कैसे की जाती है ?
उत्तर-
कुछ पक्षी तथा जानवर कैसे गिद्ध, उल्लू, बाज़, शिकरा, सांप, बिल्लियां, नेवला तथा गीदड़ चूहों को मारकर खा जाते हैं।

प्रश्न 13.
पंजाब में कितनी किस्मों के पक्षी मिलते हैं ?
उत्तर-
300 किस्मों के।

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प्रश्न 14.
घुग्गियां, कबूतर तथा बया वार्षिक कितने मूल्य का धान खा जाते
उत्तर-
2 करोड़ रुपए मूल्य का।

प्रश्न 15.
डरने के स्थान, दिशा तथा पोशाक कितने दिनों के पश्चात् बदलनी चाहिए ?
उत्तर-
दस दिनों के बाद।

प्रश्न 16.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
उत्तर-
4-5 चूहे।

प्रश्न 17.
चूहे मारने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम बताओ।
उत्तर-
जिंक फॉस्फाइड।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हमें अपने आसपास पक्षियों को बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?
उत्तर-

  • हमें अपने आसपास पारंपरिक वृक्ष जैसे बरगद, पीपल, कीकर, शीशम, शहतूत आदि लगाने चाहिए।
  • लकड़ी तथा मिट्टी के बनावटी घोंसले लाकर पक्षियों को घोंसलों के लिए स्थान उपलब्ध करवाने चाहिए।

प्रश्न 2.
नीलकंठ के बारे बताओ।
उत्तर-
इसका पेट हल्के पीले रंग का तथा छाती भूरे रंग की होती है। इसका आकार कबूतर जैसा होता है। इसका आहार कीड़े-मकौड़े होते हैं। इसका घोंसला वृक्षों की खोखलों में होता है।

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प्रश्न 3.
टटिहरी के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
इस पक्षी का सिर, छाती तथा गर्दन का रंग काला होता है। यह ऊपर से सुनहरी रंग तथा नीचे से सफेद होता है। यह कीड़े-मकौड़े तथा घोघे खाता है तथा अपना घोंसला भूमि पर बनाता है।

प्रश्न 4.
बिजूका/डरने से फसलों की रखवाली कैसे की जाती है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहों को मारने के रासायनिक ढंगों के बारे में लिखें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
मशीनी ढंगों से चूहों से फसलों को कैसे बचाया जाता है ?
उत्तर-

  • चूहों को मारना-फसल की कटाई के बाद पानी देने से बिलों में पानी भरने से चूहे बाहर निकलते हैं। उन्हें डंडे से मारो।
  • पिंजरों का प्रयोग-स्वयं लिखें।
  • आदत डालना-स्वयं लिखें।

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प्रश्न 3.
पिंजरों का उपयोग करके फसलों को चूहों से कैसे बचाते हैं ?
उत्तर-
पिंजरों का प्रयोग करके चूहे पकड़कर पानी में डुबोकर मार दिए जाते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दो खानों वाला पिंजरा विकसित किया गया है। इससे एक बार में ही कई चूहे पकड़े जा सकते हैं। खेतों में प्रति एकड़ के हिसाब से 16 पिंजरे चूहों के आने-जाने वाले रास्तों, चूहों के नुकसान वाले स्थानों पर रखने चाहिएं। घरों, मुर्गी खानों, गोदामों आदि में एक पिंजरा 4 से 8 प्रति वर्ग मी० के हिसाब से दीवारों के साथ, कमरों के कोनों, अनाज जमा करने वाली वस्तुओं तथा सन्दूकों आदि के पीछे रखने चाहिएं। कोल्ड स्टोरों में पिंजरों को अखबार के कागज़ में लपेट कर रखना चाहिए। चूहों को पकड़ने के लिए उन्हें पहले पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा, 2% पिसी हुई चीनी तथा 2% मूंगफली के तेल मिले हुए चोगे की आदत डालनी चाहिए। इस तरह चूहों को तीन दिन तक पकड़ो तथा इस तरह पिंजरों का प्रयोग करके चूहों को पकड़कर फसलों की हानि होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
हमें फसलों के लिए लाभदायक पक्षियों को क्यों नहीं मारना चाहिए?
उत्तर-
लाभदायक पक्षी चूहों तथा कीड़े-मकौड़ों को खा जाते हैं। यहां तक कि चिड़िया तथा बया अपने बच्चों को कीड़े-मकौड़े खिलाते हैं। कई पक्षी जैसे उल्ल, चील, बाज आदि भी चूहों को खा जाते हैं। एक उल्लू एक दिन में 4-5 चूहों को खा लेता है। इस तरह यह पक्षी किसान के मित्र हैं तथा इन्हें मारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 5.
चूहे मारने के लिए जहरीला चोगा प्रयोग करते समय किन-किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
आप कठफोड़वे की पहचान कैसे करेंगे ?
उत्तर-
इस की चोंच लम्बी, नुकीली तथा थोड़ी सी मुड़ी होती है। इस के पंख, शरीर तथा पूंछ के ऊपरी तरफ सफेद तथा काले रंग की धारियां होती हैं। इसके सिर पर कलगी होती है।

फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • हमारे देश में मिलने वाले पक्षियों में से लगभग 98% पक्षियों की जातियां किसानों के लिए लाभदायक हैं।
  • लाभदायक पक्षी हैं-कोतवाल, टिटहरी, नीलकंठ, गुटार, गाय बगला, कठफोड़वा आदि।
  • यह पक्षी कीड़े-मकौड़े तथा चूहों को खाते हैं।
  • चूहे फसलों का काफी नुकसान करते हैं।
  • चूहे बिलों में रहते हैं।
  • पंजाब के खेतों में 8 किस्मों के चूहे मिलते हैं। अन्धा चूहा, नर्म चमड़ी चूहा, झाड़ियों का चूहा, भूरा चूहा, घरों की चुहिया, खेतों की चुहिया तथा भूरी चुहिया।
  • फसलों का मुख्य नुकसान उगने तथा पकने के समय होता है।
  • चूहों को पकड़ने के लिए कम-से-कम 16 पिंजरे प्रति एकड़ के हिसाब से रखने चाहिएं।
  • पिंजरे में पकड़े चूहों को पानी में डुबो कर मार देना चाहिए तथा पिंजरों का प्रयोग कम-से-कम 30 दिनों बाद करना चाहिए।
  • चूहों को मारने के लिए ज़हरीला चोगा डाला जाता है।
  • ज़हरीले चोगे में जिंक फॉस्फाइड, ब्रोमाडाइलोन आदि का प्रयोग होता है।
  • ज़हरीले चोगे तथा मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए।
  • ज़हरीले चोगे मानवों के लिए भी हानिकारक हैं, इनका प्रयोग बड़े ध्यान से करना चाहिए।
  • चूहों को उल्लू, गिद्ध, शिकरे, बिल्लियां, बाज़, नेवला तथा गीदड़ आदि खा लेते |
  • एक फसल में 2 बार जिंक फॉस्फाइड दवाई के प्रयोग के बीच फासला कम से-कम 2 महीने होना चाहिए।
  • चूहे मारने का अभियान गांव स्तर पर चलाया जाना चाहिए।
  • पंजाब में 300 किस्म के पक्षी मिलते हैं। इनमें से बहुत कम ऐसे हैं जो कृषि को हानि पहुंचाते हैं।
  • तोता सबसे अधिक हानिकारक पक्षी है। यह लगभग सभी फसलों तथा फलों को हानि पहुंचाता है।
  • घुग्गियां, कबूतर तथा बया वर्ष में लगभग 2 करोड़ रुपए मूल्य का धान खा जाते हैं।
  • पक्षी उड़ाने के लिए बन्दूक के धमाके किए जाते हैं तथा डराने का प्रयोग किया जाता है।
  • तोते से बचाव के लिए मरे हुए कौओं को लाठी पर लटका कर रखो।
  • कीमती फसलों को बचाने के लिए फसलों के इर्द-गिर्द हैं, अथवा बाजरे जैसी फसलों को बो देना चाहिए। पक्षी इन फसलों को अधिक पसन्द करते हैं।
  • उल्लू एक दिन में 4-5 चूहे खा जाते हैं।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
गेहूँ की दो मक्सीकन किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लरमा रोहो, सोनारा 64.

प्रश्न 2.
बीज साफ करने वाली मशीन का नाम लिखिए।
उत्तर-
सीड ग्रेडर।

प्रश्न 3.
गेहूं की दो नई विकसित किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
डब्ल्यू० एच० 1105, पी० बी० डल्ल्यू० 621.

प्रश्न 4.
प्रमाणित बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगते हैं?
उत्तर-
दो, हरा तथा नीला।

प्रश्न 5.
बुनियादी बीज पर कौन-से रंग का टैग लगता है ?
उत्तर-
सफेद टैग।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
टी० एल० बीज का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
टरुथफुली लेबलड (Truthfully Labelled)।

प्रश्न 7.
बीज कानून कौन-से वर्ष में बना था?
उत्तर-
वर्ष 1966 में।

प्रश्न 8.
गेहूँ के प्रमाणीकृत बीज की कम-से-कम कितनी उर्वरक शक्ति होनी चाहिए?
उत्तर-
85% से कम नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
धान के प्रमाणीकृत बीज के लिए कम-से-कम कितनी शुद्धता होती है?
उत्तर-
98%.

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 10.
नरमे के किसी एक आनुवंशिकी (पुश्तैनी) गुण का नाम लिखिए।
उत्तर-
टींडों की संख्या, टींडों का औसत भार ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीज अधिनियम के क्या उद्देश्य हैं तथा इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर-
इस एक्ट का उद्देश्य था किसानों को उचित नस्ल का बीज उचित दाम पर प्रदान करवाना। इस कानून को 1966 में लागू किया गया।

प्रश्न 2.
नरमे की फसल के दो आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
नरमे की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-टीडों की संख्या, टीडों का औसत भार, फलदार शाखाओं की संख्या आदि।

प्रश्न 3.
बुनियादी बीज से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बुनियादी बीज वह बीज है जिससे प्रमाणित बीज तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 4.
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था (Punjab State Seed Certification Authority) है।

प्रश्न 5.
गेहूँ की फ़सल के तीन महत्त्वपूर्ण आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-प्रति पौधा शाख की संख्या, प्रति बल्ली दानों की संख्या, दानों का वजन, बल्ली की लम्बाई आदि।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
ब्रीडर बीज किस संस्था की ओर से तैयार किया जाता है?
उत्तर-
जिस संस्था द्वारा उस किस्म की खोज की जाती है वह प्राथमिक बीज तैयार करती है।

प्रश्न 7.
बीज के कोई तीन बाहरी आभा वाले गुणों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बीज के बाहरी दिखाई देने वाले गुण हैं-बीज का रंग-रूप, आकार, भार आदि।

प्रश्न 8.
प्रमाणीकृत बीज की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज वह बीज है जो निश्चित किए गए मानकों के अनुसार पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था की निगरानी अधीन पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज उत्पादन में विलक्षण दूरी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इस तरह दूसरी फ़सलों का प्रभाव बीज की गुणवत्ता पर नहीं पड़ता।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 10.
अनजान पौधों को बीज फसल में से निकालना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
इस तरह बीज गुणवत्ता वाले मिलते हैं तथा मिलावटी नहीं होते।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीजों के आनुवंशिकी तथा बाहरी आभा वाले गुणों में क्या तर है ?
उत्तर-
बीज की बाहरी दिखावट वाले गुण-बीज का रंग-रूप, आकार, भार, टूट फूट रहित, कूड़ा-कर्कट रहित, नदीन रहित तथा अन्य फ़सलों के बीजों की मिलावट से रहित बीजों को अच्छी गुणवत्ता के शुद्ध बीज माना जाता है।
फसलों के आनुवंशिक गुण-यह वह गुण है जो बाहर से देख कर पता नहीं लगते, यह बीज के अंदर होते हैं, यह एक फ़सल से अगली फसल में प्रवेश करते हैं। इन्हें नसली गुण भी कहा जाता है। भिन्न-भिन्न पौधों के नस्ली गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी फ़सल की भिन्न-भिन्न किस्मों में जो अन्तर दिखाई देते है वह इन्हीं गुणों के कारण है।

प्रश्न 2.
बीज फसल के कोई तीन स्तर लिखिए।
उत्तर-

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में रोग वाले पौधों की संख्या।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीज गुणवत्ता के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणित बीजों का उत्पादन करने के लिए दो तरह के मानकों की पालना की जाती है-

  1. खेत में बीज वाली फसल के मानक
  2. बीजों के मानक।

1. खेत में बीज वाली फसल के मानक-बीज फसल को फेल या पास करने के लिए निम्नलिखित मानक हैं –

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में बीमारी वाले पौधों की संख्या।

2. बीजों के मानक-प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की जांच करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 4.
व्यापारिक स्तर पर प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए विधि लिखिए।
उत्तर-
व्यापारिक स्तर पर यह धंधा शुरू करने के लिए ढंग इस तरह हैं-

  • यह धंधा शुरू करने से पहले बीज उत्पादन सम्बन्धी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यह जानकारी पी० ए० यू० लुधियाना, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विभाग, पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था, पनसीड जैसी संस्था, विभागों से ली जा सकती है।
  • कौन-सी फसल का उत्पादन करना है उसकी चयन, बीज उत्पादन के लिए आवश्यक ढांचा, मण्डीकरण आदि के बारे में उचित योजनाबंदी करना आवश्यक है।
  • कंपनी बना कर कृषि विभाग से लाइसेंस लेना।
  • बीज साफ करने वाली मशीन, पक्का फर्श, स्टोर, थैले सिलने वाली मशीन, बीज पैक करने वाली थैलियां आदि प्राथमिक आवश्यकताएं हैं जिनके बारे में फैसला करने के लिए पूर्ण जानकारी तथा अनुभव की आवश्यकता है।
  • बुनियादी बीज को निर्देशक बीज, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से लिया जा सकता है। बीज का बिल फर्म/कंपनी के नाम पर होना ज़रूरी है।
  • फाऊंडेशन बीज से सिफ़ारिश अनुसार फसल पैदा करके फसल को पंजाब राज्य सीड सर्टीफिकेशन विभाग में रजिस्ट्रेशन करवानी चाहिए।
  • फसल में अन्य पौधे, रोग वाले पौधे तथा नदीनों को निकालते रहना चाहिए। ऊपर बताए विभाग द्वारा फसल का दो तीन बार निरीक्षण किया जाता है।
  • फसल काट कर साफ करके उचित ढंग से पैक करना चाहिए तथा आवश्यक टैग बीज वाले थैले पर लगा देने चाहिए। इससे पहले बीज को विभाग द्वारा बीज जांच प्रयोगशाला में जांचा जाता है।

प्रश्न 5.
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दु इस तरह है-

  • इस बात की अच्छी तरह जांच कर लें कि कौन-सी फसल का बीज उत्पादन अच्छा लाभ,देगा तथा इसको पैदा करना सरल है या नहीं।
  • फसल का चयन क्षेत्र के अनुसार करें या जिसकी कृषि करते हो उसे चुनो।
  • बड़े स्तर पर उपयोग होने वाला बीज चुनना चाहिए, जैसे-गेहूँ का।
  • पनसीड के रजिस्टर्ड किसान बन कर बीज पनसीड को बेचा जा सकता है।
  • जिस भी क्षेत्र से सम्बन्धित बीज उत्पादन करना है। उस की अच्छी जांच-पड़ताल करके, पूर्ण जानकारी तथा ट्रेनिंग ले कर ही धंधा शुरू करें।
  • हाइब्रीड बीज का उत्पादन करके अच्छा लाभ लिया जा सकता है परन्तु इसके लिए बहुत मेहनत, प्रशिक्षण तथा सब्र की आवश्यकता है।
  • इस कार्य के लिए प्राथमिक ढांचा तैयार करना पड़ता है जिस पर पैसा खर्च होता है। प्राथमिक ढांचे में स्टोर, पक्का फ़र्श, सीड ग्रेडर तथा अन्य मशीनों आदि की आवश्यकता होती है।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्रमाणित बीज उत्पादन Important Questions and Answers

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बीज की श्रेणियां हैं.
(क) प्राथमिक
(ख) ‘ब्रीडर
(ग) बुनियादी तथा प्रमाणिक
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 2.
बुनियादी बीज के थैले पर कौन-से रंग का टैग होता है ?
(क) सफेद
(ख) नीला
(ग) लाल
(घ) पीला।
उत्तर-
(क) सफेद

प्रश्न 3.
जनक (ब्रीडर) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(क) गोल्डन

प्रश्न 4.
गेहूँ को नई विकसित किस्में जिनको रोग कम लगता है
(क) डब्ल्यू० एच० 1105
(ख) पी० बी० डब्ल्यू० 621
(ग) एच० डी० 3086
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 5.
प्रमाणिक बीज के थैले पर सरकारी टैग का रंग क्या होता है?
(क) नीला
(ख) हरा
(ग) सफेद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) नीला

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
बुनियादी (फाऊंडेशन) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(ख) सफेद

प्रश्न 7.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगे होते हैं ?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 5
(घ) 4.
उत्तर-
(क) 2

प्रश्न 8.
धान के प्रमाणित बीजों की कम-से-कम शुद्धता कितनी होनी चाहिए ?
(क) 98%
(ख) 80%
(ग) 85%
(घ) 13%.
उत्तर-
(क) 98%

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

II. ठीक/गलत बताएँ-

1. आनुवंशिक गुणों को नस्ली गुण भी कहा जाता है।
2. पी० बी० डब्ल्यू० 621 गेहूँ की किस्म है।
3. प्रमाणित बीजों के थैले पर दो टैग लगे होते हैं।
4. लरमा रोहो गेहूँ की मैक्सीकन किस्म है।
5. धान के प्रमाणीकृत बीज की कम से कम शुद्धता 98% है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. टींडों की संख्या ……………… का एक आनुवंशिक गुण है।
2. प्रमाणीकृत बीज के बैग पर सरकारी विभाग की तरफ से ………… रंग का टैग लगा होता है।
3. हरित क्रांति का मूल ……………… गेहूँ की किस्में हैं।
4. गोल्डन (सुनहरा) रंग का टैग ……………. बीज के थैले पर लगा होता है।
5. बुनियादी बीज के बैग पर …………… टैग लगा होता है।
उत्तर-

  1. नरमा
  2. नीले
  3. मैक्सीकन
  4. ब्रीडर
  5. सफेद।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि पहली बार कब की गई ?
उत्तर-
1955-56 में।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति का मूल कहां से बना ?
उत्तर-
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि से।

प्रश्न 3.
मक्की की फसल के आनुवंशिक गुण बताओ।
उत्तर-
मक्की की लम्बाई तथा मोटाई, प्रति छल्ली दानों की औसत संख्या, 1000 दानों का औसत भार, पकने के लिए समय आदि।

प्रश्न 4.
चावल के प्रमाणित बीज में उगने योग्य शक्ति के बारे में बताओ।
उत्तर-
उगने योग्य शक्ति 70% से कम नहीं होनी चाहिए।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज के बैग तथा सरकारी विभाग द्वारा कौन-से रंग का बैग लगाया जाता है ?
उत्तर-
नीले रंग का।

प्रश्न 6.
पनसीड द्वारा गेहूँ के बीज तैयार करने के कितने रुपए सरकार द्वारा निश्चित मूल्य से अधिक दिए जाते हैं ?
उत्तर-
250/- रुपये प्रति क्विंटल।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छे बीजों का अहसास किसानों को कब हुआ ?
उत्तर-
लगभग 50 वर्ष पहले जब मैक्सीकन गेहूँ की बौनी किस्मों की कृषि की गई तथा पैदावार एकदम दोगुणा हो गई।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 2.
बीज क्या है ?
उत्तर-
ऐसे दाने या पौधे के भाग, जैसे कि जड़ें, तना, ट्यूबर, गांठे आदि जिनको बो कर नई फसल पैदा की जाती है। इन सब को बीज कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीजों के गुण बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज के निम्नलिखित गुण हैं –

  • यह बीज़ निश्चित शुद्धता वाला होता है।
  • रोग तथा नदीनों के बीजों से रहित होता है।
  • निश्चित उगने योग्य शक्ति वाला होता है।

प्रश्न 4.
गेहूँ के प्रमाणित बीज़ के संभव गुण बताओ।
उत्तर-

  • उगने योग्य शक्ति -85% से कम न हो।
  • शुद्धता-98% से कम न हो।
  • नमी-12% से अधिक न हो।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज पर लगे हरे टैग से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
टैग के ऊपर बीज के उगने योग्य शक्ति, शुद्धता, रोग तथा अन्य मानकों का पूरा विवरण दिया होता है।

प्रश्न 6.
पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था का मुख्य कार्यालय कहां है ?
उत्तर-
क्षेत्रीय कार्यालय लुधियाना, जालन्धर, कोटकपुरा में है।

प्रश्न 7.
प्रमाणित बीज तक कैसे पहुंचा जाता है ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज से ब्रीडर बीज मिलता है, ब्रीडर बीज से बुनियादी बीज तथा बुनियादी बीज से प्रमाणित बीज मिलता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 8.
भिन्न-भिन्न बीजों की थैलियों से कैसे टैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
ब्रीडर बीज पर गोल्डन टैग, बुनियादी बीज पर सफेद टैग, प्रमाणित बीज पर नीले टैग लगाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज कानून अनुसार बीज कितनी किस्म के हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज, ब्रीडर बीज, बुनियादी बीज़, प्रमाणित बीज, चार प्रकार के हैं।

प्रश्न 10.
टी० एल० बीज के बारे में बताओ।
उत्तर-
यदि किसी बीज की प्रमाणिकता नहीं करवाई गई तो इसको (Truthfully Labelled) टी० एल० कहा जाता है परन्तु ऐसे बीज की गुणवत्ता, जैसे आनुवंशिक शुद्धता, उगने योग्य शक्ति आदि ठीक होनी चाहिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज के संबंध में लाभ-हानि की संभावना तथा मण्डीकरण के बारे में बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज का धंधा लाभ वाला होता है। ऐसे बीजों की कीमत साधारण बीजों से अधिक होती है। परन्तु उन्हें पैदा करने के लिए कुछ प्राथमिक खर्चे भी होते हैं, जैसे-फाऊंडेशन बीज का खर्चा, सर्टीफिकेशन फीस, सील करना तथा बीज को स्टोर करना आदि। एक अनुमान के अनुसार गेहूँ तथा चावल के बीज पैदा करने पर ₹ 200 प्रति क्विंलट बीज का खर्चा हो जाता है। अप्रैल 2017 में गेहूँ का प्रमाणित बीज मार्किट में प्रमाणित बीज उत्पादन 2500 रु० प्रति क्विंटल से भी अधिक बेचा गया जबकि कुल लागत सारे खर्चे डाल कर 1825 रुः प्रति क्विंटल बनती थी। इस तरह बीज उत्पादन का धंधा प्रमाणित तथा हाइब्रीड बीज बहुत लाभदायक है।

इस धंधे में भी हानि होने का डर अन्य धंधों जैसे ही होता है। कई बार बीज बिना बिके ही रह जाता है तथा यह फेल भी हो सकता है। परन्तु बिना बिके रहने की संभावना बहुत ही कम होती है क्योंकि बीज की पहले ही इतनी मांग है कि जो पूरी नहीं हो रही। इसलिए यह धंधा बहुत ही लाभदायक है।

प्रश्न 2.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज का क्या अर्थ है ? इसके तीन गुण लिखो।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 3.
बीज परख प्रयोगशाला में बीजों की परख करके कौन-कौन से चार मानकों की पड़ताल की जाती है ?
उत्तर-
प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की परख करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

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प्रमाणित बीज उत्पादन PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • गेहूँ की मैक्सीकन बौने कद वाली किस्में हैं –’लरमा रोहो’ ‘सोनारा-64’ ।
  • किसानों का बीज़ों की गुणवत्ता के बारे में ज्ञान अधूरा है।
  • बाहरी दिखावट (आभा) के हिसाब से अच्छी गुणवत्ता के बीजों से भाव है;
  • बीज़ों का रंग-रूप, आकार, वजन, टूट-फूट रहित होना, कूड़ा-कर्कट रहित होना, नदीन के बिना तथा अन्य फसलों के बीजों का मिलावट रहित होना।
  • आनुवंशिक (पुश्तैनी) गुण बीज द्वारा एक फसल से अगली फसल में प्रवेश करते हैं। इन्हें नसली गुण भी कहा जाता है।
  • गेहूँ की नई किस्में जिन्हें रोग कम लगते हैं तथा पैदावार भी अधिक होती है डब्ल्यू० एच० 1105, पी० बी० डब्ल्यू० 621, एच० डी० 3086, पी० बी० डब्ल्यू 677.
  • आनुवंशिक गुण कैसे हों, यह पी० ए० यू० द्वारा छपी पुस्तक ‘पंजाब की फसलों के लिए सिफ़ारिशें’ में से पता लग सकता है।
  • प्रमाणीकृत बीज किसी विश्वसनीय संस्था से खरीदने चाहिए।
  • वे बीज जो निश्चित किए गए मानकों के अनुसार पंजाब राज्य बीज प्रमाणीकरण प्राधिकरण की निगरानी अधीन पैदा किए जाते हैं, सर्टीफाइड या प्रमाणिक बीज कहलाते हैं।
  • प्रमाणित बीजों के थैले के ऊपर दो टैग लगे होते हैं, एक नीला तथा एक हरा। नीला सरकारी तथा हरा कंपनी की तरफ से लगा होता है।
  • 1966 में एक कानून “बीज एक्ट 1966” लागू किया गया।
  • इस कानून के अनुसार बीजों को चार श्रेणियों में बांटा गया है- प्राथमिक, ब्रीडर, बुनियादी, प्रमाणिक बीज।
  • ब्रीडर बीज के ऊपर गोल्डन टैग, बुनियादी बीज के थैले के ऊपर सफेद टैग प्रमाणिक बीज के ऊपर नीले रंग का टैग पैकिंग के समय लगाया जाता है।
  • जो बीज प्रमाणित नहीं हैं तो उसे टी० एल० (Truthfully Labelled) बीज कहा जाता है।
  • पंजाब में गेहूँ लगभग 35 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बोई जाती है तो इस प्रकार 35 लाख क्विटल से अधिक बीज की आवश्यकता पड़ती है।
  • गेहूँ का बीज तैयार करने पर पनसीड की तरफ से 250/- रु० प्रति क्विंटल, किसानों को सरकारी निश्चित भाव से अधिक दिए जा रहे हैं। इसी तरह चावल के बीज के पीछे 200 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिल रहे हैं।
  • मल्टी नैशनल कम्पनियां हाइब्रीड बीजों का करोड़ों अरबों का कारोबार कर रही है।
  • बीज उत्पादन का धंधा किसानों के लिए एक वरदान है, खुशहाली का मार्ग है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न.

PSEB 10th Class Social Science Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

Class 10th Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

प्रत्येक देश की सरकार समाज में कानून की व्यवस्था और शांति स्थापित करती है। इस कार्य को सरकार कानूनों के निर्माण और व्यवस्था की स्थापना करके करती है। परन्तु सरकार अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाकर मनमानी नहीं कर सकती। देश की सरकार को संविधान मौलिक कानून के अनुसार ही कार्य करने होते हैं। इस प्रकार संविधान देश के प्रशासन और राज्य प्रबन्ध को निर्धारित करने वाले नियमों का मूल स्रोत होता है और यह शक्ति के दुरुपयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है। जहाँ यह सरकार के अंगों के परस्पर और नागरिक के साथ सम्बन्धों को निर्धारित करता है, वहाँ यह सरकार द्वारा शक्ति के दुरुपयोग पर रोक भी लगाता है।

(a) संविधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
संविधान एक मौलिक कानूनी दस्तावेज़ या लेख होता है जिसके अनुसार देश की सरकार अपना कार्य करती

(b) प्रस्तावना में वर्णित कोई तीन उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना में भारतीय शासन प्रणाली के स्वरूप तथा इसके बुनियादी उद्देश्यों को निर्धारित किया गया है। ये उद्देश्य निम्नलिखित हैं —
(1) भारत एक प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य होगा।
(2) सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिले।
(3) नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्राप्त होगी।
(4) कानून के सामने सभी नागरिक समान समझे जाएंगे।
(5) लोगों में बन्धुत्व की भावना को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति की गरिमा बढ़े और राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को बल मिले।

(2)

अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। अन्य शब्दों में कर्तव्यों के बिना अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं। अतः सारे देशों ने संविधान में अपने नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ उनके मौलिक कर्त्तव्य भी अंकित किये हैं। भारतीय संस्कृति में सदा ही अधिकारों के स्थान पर कर्तव्यों पर अधिक बल दिया गया है। मूल संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी। 1976 में संविधान के बयालीसवें संशोधन द्वारा नया अध्याय IV A में नागरिकों के दस कर्तव्य निर्धारित किये गए हैं। सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा एक नया कर्तव्य जोड़ा गया है।

(a) भारतीय संविधान में नागरिकों के कर्त्तव्यों को कब और क्यों जोड़ा गया?
उत्तर-
मूल संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी। इन्हें 1976 में (संविधान के 42वें संशोधन द्वारा) संविधान में सम्मिलित किया गया।

(b) भारतीय नागरिकों के तीन कर्त्तव्य बताएं।
उत्तर-
भारतीय नागरिकों के कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं —

  1. संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का सम्मान करना।
  2. भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष को प्रोत्साहित करने वाले आदर्शों का सम्मान तथा पालन करना।
  3. भारत की प्रभुसत्ता, एकता एवं अखण्डता की रक्षा करना।
  4. भारत की रक्षा के आह्वान पर राष्ट्र की सेवा करना।
  5. धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय अथवा वर्गीय विभिन्नताओं से ऊपर उठ कर भारत के सभी लोगों में परस्पर मेलजोल और बन्धुत्व की भावना का विकास करना।
  6. सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करना और इसे बनाए रखना।
  7. वनों, झीलों, नदियों, वन्य जीवन तथा प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करना।
  8. वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद, अन्वेषण और सुधार की भावना का विकास करना।
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना।

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(3)

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली सबसे उत्तम समझी जाती है। वर्तमान समय में संसार के बहुत से देशों ने लोकतांत्रिक शासन को अपनाया हुआ है और यह बहुत लोकप्रिय हो चुकी है। इसके बावजूद लोकतांत्रिक शासन प्रणाली प्रत्येक देश में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुई।
लोकतन्त्र की सफलता के लिए प्रत्येक नागरिक अच्छे आचरण वाला, चेतन तथा बुद्धिमान सुशिक्षित, विवेकशील तथा समझदार, उत्तरदायी तथा सार्वजनिक मामलों में रुचि लेने वाला होना चाहिए। समाज में अच्छे तथा योग्य नेता, सामाजिक और आर्थिक समानता तथा निष्पक्ष प्रैस तथा न्यायपालिका, अच्छे राजनैतिक संगठित दल और नागरिकों में सहनशक्ति तथा सहयोग का होना लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं। जे.एस. मिल के अनुसार लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए लोगों में लोकतांत्रिक शासन को नियमित करने की इच्छा और उसे चलाने की योग्यता, लोकतन्त्र की रक्षा के लिए सदा प्रयत्नशील रहना और नागरिकों में अधिकारों की रक्षा और कर्तव्यों के पालन की इच्छा बेहद आवश्यक है।

(a) लोकतन्त्र से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
लिंकन के अनुसार, लोकतन्त्र लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन होता है।

(b) लोकतन्त्र को सफल बनाने की तीन शर्ते लिखिए।
उत्तर-
हमारे देश में लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं

  1. शिक्षा का प्रसार-सरकार को शिक्षा के प्रसार के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं। गांव-गांव में स्कूल खोलने चाहिए, स्त्री शिक्षा का उचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन देना चाहिए।
  2. पाठ्यक्रमों में परिवर्तन-देश के स्कूलों तथा कॉलजों के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन लाना चाहिए। बच्चों को राजनीति शास्त्र से अवगत कराना चाहिए। शिक्षा केन्द्रों में प्रजातान्त्रिक सभाओं का निर्माण करना चाहिए। जिनमें बच्चों को चुनाव तथा शासन चलाने का प्रशिक्षण मिल सके।
  3. चुनाव-प्रणाली में सुधार-देश में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि चुनाव एक ही दिन में सम्पन्न हो जाएं और उनके परिणाम भी उसी दिन घोषित हो जाएं।
  4. न्याय-प्रणाली में सुधार-देश में न्यायधीशों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि मुकद्दमों का निपटारा जल्दी हो सके। निर्धन व्यक्तियों के लिए सरकार की ओर से वकीलों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता-देश में समाचार-पत्रों को निष्पक्ष विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
  6. आर्थिक विकास-सरकार को नये-नये उद्योगों की स्थापना करनी चाहिए। उसे लोगों के लिए अधिक-सेअधिक रोज़गार जुटाने चाहिएं। ग्रामों में कृषि के उत्थान के लिए उचित पग उठाने चाहिएं।

(4)

लोकतन्त्र और लोकमत के गहरे सम्बन्ध को समझने के लिये यह जान लेना आवश्यक है कि लोकमत, लोकतन्त्र का आधार होता है। आज का युग लोकतन्त्र का युग है और लोकतन्त्र सदैव लोगों के कल्याण हेतु चलाया जाता है। इसके अतिरिक्त सही अर्थों में लोकमत, लोकतांत्रिक सरकार की आत्मा होता है क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार अपनी सारी शक्ति जनमत से ही प्राप्त करती है और इसी के आधार पर कायम रहती है। ऐसी सरकार का हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि लोकमत उनके पक्ष में रहे भाव उसके विरुद्ध न जाये। इस प्रकार हम लोकमत को कल्याणकारी सरकार की आत्मा भी कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक सरकार में सरकार को राह पर चलाने के लिए जाग्रत जनमत की बहुत आवश्यकता है।

(a) लोकमत से आपका क्या भाव है?
उत्तर-
लोकमत से हमारा अभिप्राय जनता की राय अथवा मन से है।

(b) (लोकतंत्र में) लोकमत की भूमिका बताओ।
उत्तर-
लोकमत अथवा जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की आत्मा होता है, क्योंकि लोकतान्त्रिक सरकार अपनी शक्ति लोकमत से ही प्राप्त करती है। ऐसी सरकार का सदा यह प्रयत्न रहता है कि लोकमत उनके पक्ष में रहे। इसके अतिरिक्त लोकतन्त्र लोगों का राज्य होता है। ऐसी सरकार जनता की इच्छाओं और आदेशों के अनुसार कार्य करती है। प्रायः यह देखा गया है कि आम चुनाव काफ़ी लम्बे समय के पश्चात् होते हैं जिसके फलस्वरूप जनता का सरकार से सम्पर्क टूट जाता है और सरकार के निरंकुश बन जाने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है। इससे लोकतन्त्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। ऐसी अवस्था में जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की सफलता का मूल आधार बन जाता है।

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(5)

प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिमण्डल में एक कड़ी की भूमिका निभाता है। मंत्रिमण्डल के निर्णयों को राष्ट्रपति को अवगत कराना उसका संवैधानिक कर्तव्य है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से किसी भी विभाग सम्बन्धी सूचना प्राप्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री राष्ट्रपति से मिलना चाहता है या परामर्श लेना चाहता है तो वह ऐसा प्रधानमंत्री के द्वारा ही कर सकता है। संक्षेप में वह राष्ट्रपति और मंत्रिमण्डल के सदस्यों में मध्यस्थ का कार्य करता है।
प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता माना जाता है। प्रत्येक विपरीत परिस्थिति में लोकसभा इसके नेतृत्व की इच्छा करती है। प्रधानमंत्री की इच्छा के विपरीत लोकसभा कुछ भी नहीं कर सकती क्योंकि उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है। वह लोकसभा में सरकार की नीतियों और निर्णयों की घोषण करता है। अक्ष्यक्ष प्रधानमंत्री के परामर्श से सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है।

(a) प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है?
उत्तर-
राष्ट्रपति संसद् में बहुमत प्राप्त करने वाले दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।

(b) प्रधानमंत्री के किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों (शक्तियों) का वर्णन करो।
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का धुरा होता है।

  1. वह मन्त्रियों की नियुक्ति करता है और वही उनमें विभागों का बंटवारा करता है।
  2. वह जब चाहे प्रशासन की कार्यकुशलता के लिए मन्त्रिमण्डल का पुनर्गठन कर सकता है। इसका अभिप्राय यह है कि वह पुराने मन्त्रियों को हटा कर नए मन्त्री नियुक्त कर सकता है। वह मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन कर सकता है। यदि प्रधानमन्त्री त्याग-पत्र दे दे तो पूरा मन्त्रिमण्डल भंग हो जाता है।
  3. यदि कोई मन्त्री त्याग-पत्र देने से इन्कार करे तो वह त्याग-पत्र देकर पूरे मन्त्रिमण्डल को भंग कर सकता है। पुनर्गठन करते समय वह उस मन्त्री को मन्त्रिमण्डल से बाहर रख सकता है। इसके अतिरिक्त वह मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है और उनकी तिथि, समय तथा स्थान निश्चित करता है।

(6)

संविधान के अनुसार यदि राज्यपाल राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दे या राष्ट्रपति को किसी भरोसेमन्द सूत्रों से यह सूचना मिले कि राज्य सरकार संवैधानिक ढंग से नहीं चल रही तो वह राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है। ऐसी घोषणा के उपरान्त राष्ट्रपति राज्य की मंत्रि परिषद् को बर्खास्त कर देता है और विधान सभा को भंग कर सकता है या स्थगित कर सकता है राष्ट्रपति शासन के अधीन राज्यपाल राज्य का वास्तविक कार्याध्यक्ष बन जाता है भाव वह केन्द्रीय सरकार के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। संवैधानिक ढाँचा फेल होने पर राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होती हैं और वैधानिक शक्तियाँ संसद को प्राप्त हो जाती हैं।

(a) राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है?
उत्तर-
राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्ष के लिए की जाती है।

(b) संवैधानिक संकट की घोषणा का राज्य प्रशासन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति में राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति राज्य में संवैधानिक आपात्काल की घोषणा कर सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि सम्बद्ध राज्य की विधानसभा को भंग अथवा निलम्बित कर दिया जाता है। राज्य की मन्त्रिपरिषद् को भी भंग कर दिया जाता है। राज्य का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ में ले लेता है। इसका अर्थ यह है कि कुछ समय के लिए राज्य का शासन केन्द्र चलाता है। व्यवहार में राष्ट्रपति राज्यपाल को राज्य का प्रशासन चलाने की वास्तविक शक्तियां सौंप देता है। विधानमण्डल की समस्त शक्तियां अस्थाई रूप से केन्द्रीय संसद् को प्राप्त हो जाती हैं।

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(7)

भारत ने गुट निरपेक्षता को अपनी विदेश नीति का मूल सिद्धान्त बनाया है। जब भारत आजाद हुआ तब सारा विश्व दो गुटों में बँटा हुआ था-रूस और एंग्लो-अमरीकन गुट। भारत की विदेश नीति के निर्माता पंडित नेहरू ने अनुभव किया कि राष्ट्र के निर्माण हेतु भारत को शक्ति-गुटों के संघर्ष से दूर रहना चाहिए। इसलिए पंडित नेहरू ने गुट निरपेक्ष नीति को अपनाया-गुट निरपेक्षता का अर्थ है कि प्रतियोगी शक्ति-गुटों से जानबूझ कर अलग रहना, किसी देश के प्रति वैर-विरोध का भाव न रखना और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का गुण के आधार पर निर्णय करना तथा स्वतन्त्र नीति अपनाना। भारत के प्रयत्नों के फलस्वरूप गुट-निरपेक्ष आन्दोलन समूचे विश्व में एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली आन्दोलन बन गया है।

(a) भारत की परमाणु नीति क्या है?
उत्तर-
भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। परंतु हमारी विदेश नीति शांतिप्रियता पर आधारित है। इसलिए भारत की परमाणु नीति का आधार शांतिप्रिय लक्ष्यों की प्राप्ति करना और देश का विकास करना है। वह किसी पड़ोसी देश को अपनी परमाणु शक्ति के बल पर दबाने के पक्ष में नहीं है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध की स्थिति में भी हम परमाणु शक्ति का प्रयोग करने की पहल नहीं करेंगे।

(b) गुट-निरपेक्ष नीति का अर्थ और भारत का इसे अपनाने का क्या कारण है?
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष नीति भारतीय विदेश नीति के मूल सिद्धान्तों में से एक है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अलग रहना। इसका यह भाव नहीं है कि हम अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दर्शक बने रहेंगे बल्कि गुण के आधार पर निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। हम अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहेंगे। भारत द्वारा गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने का कारण-भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व दो मुख्य शक्ति गुटोंऐंग्लो-अमरीकन शक्ति गुट और रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था। विश्व की सारी राजनीति इन्हीं गुटों के गिर्द घूम रही थी और दोनों में शीत युद्ध चल रहा था। नव स्वतन्त्र भारत इन शक्ति गुटों के संघर्ष से दूर रह कर ही उन्नति कर सकता था। इसीलिए पं० नेहरू ने गुट-निरपेक्षता को विदेश नीति का आधार स्तम्भ बनाया।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 2 धरातल

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2 धरातल Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 2 धरातल

SST Guide for Class 10 PSEB धरातल Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न का एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
भारत की प्रमुख भौतिक इकाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भारत की प्रमुख भौतिक इकाइयां हैं-(i) हिमालय पर्वतीय क्षेत्र, (ii) उत्तरी विशाल मैदान, (iii) प्रायद्वीपीय पठार का क्षेत्र, (iv) तटीय मैदान, (v) भारतीय द्वीप।

प्रश्न 2.
हिमालय पर्वत श्रेणी का आकार कैसा है?
उत्तर-
हिमालय पर्वत श्रेणी का आकार एक उत्तल चाप (Convex Curve) जैसा है।

प्रश्न 3.
ट्रांस हिमालय की प्रमुख चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
ट्रांस हिमालय की मुख्य चोटियां हैं-माऊंट के (K2), गाडविन ऑस्टिन, हिडन पीक, ब्राड पीक, गैशरबूम, राकापोशी तथा हरमोश।

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प्रश्न 4.
बृहत् हिमालय में 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
बृहत् हिमालय की 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां हैं-माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर), कंचन जंगा (8598 मीटर), मकालू (8481 मीटर), धौलागिरी (8172 मीटर), मनायशू, चोंउज, नागापर्वत तथा अन्नपूर्णा।

प्रश्न 5.
भारत की युवा एवं प्राचीन पर्वत मालाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत भारत के युवा पर्वत हैं और यहां के प्राचीन पर्वत अरावली, विन्ध्याचल, सतपुड़ा आदि हैं।

प्रश्न 6.
देश में रिफ्ट या दरार घाटियां कहां मिलती हैं?
उत्तर-
भारत में दरार घाटियां प्रायद्वीपीय पठार में पाई जाती हैं।

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प्रश्न 7.
डेल्टा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
नदी द्वारा अपने मुहाने पर बने स्थल-रूप को डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के मुख्य डेल्टाई क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत के प्रमुख डेल्टाई क्षेत्र हैं-गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र, गोदावरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कावेरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कृष्णा नदी डेल्टा क्षेत्र तथा महानदी का डेल्टा क्षेत्र।

प्रश्न 9.
हिमालय पर्वत के दरों के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत में पाये जाने वाले मुख्य दरै हैं-बुरजिल, जोझीला, लानक ला, चांग ला, खुरनक ला, बाटा खैपचा ला, शिपकी ला, नाथु ला, तत्कला कोट इत्यादि।

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प्रश्न 10.
लघु हिमालय की मुख्य पर्वत श्रेणियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय की पर्वत श्रेणियां हैं-(i) कश्मीर में पीर पंजाल तथा नागा टिब्बा, (ii) हिमाचल में धौलाधार तथा कुमाऊं, (iii) नेपाल में महाभारत, (iv) उत्तराखण्ड में मसूरी, (v) भूटान में थिम्पू।

प्रश्न 11.
लघु हिमालय में स्थित स्वास्थ्यवर्धक घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय के मुख्य स्वास्थ्यवर्धक स्थान शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग तथा चकराता हैं।

प्रश्न 12.
देश की प्रमुख ‘दून’ घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
देश की मुख्य दून घाटियां हैं-देहरादून, पतली दून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि।

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प्रश्न 13.
हिमालय क्षेत्र की पूर्वी किनारे वाली प्रशाखाओं (Eastern off shoots) के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय की प्रमुख पूर्वी श्रेणियां पटकोई बम्म, गारो, खासी, जयन्तिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 14.
उत्तर के विशाल मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित प्रमुख भू-आकृतियों के नाम बताइए।
उत्तर-
उत्तरी मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित भू-आकार हैं-जलोढ़ पंख, जलोढ़ शंकु, सर्पदार मोड़, दरियाई सीढ़ियां, प्राकृतिक बांध तथा बाढ़ के मैदान।।

प्रश्न 15.
ब्रह्मपुत्र के मैदानों का आकार (Size) क्या है?
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र का मैदान 640 किलोमीटर लम्बा तथा 90 से 100 किलोमीटर तक चौड़ा है।

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प्रश्न 16.
अरावली पर्वत श्रेणी का विस्तार कहां से कहां तक है तथा इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है?
उत्तर-
अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक फैली हुई है। इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम गुरु शिखर (1722 मीटर) है।

प्रश्न 17.
पश्चिमी घाट की ऊंची चोटियों के नाम बताओ।
उत्तर-
पश्चिमी घाट की ऊंची चोटियां हैं-वाणुला माला (2339 मी०), कुदरमुख (1894 मी०), पुष्पगिरी (1714 मी०), कालसुबाई (1646 मी०) इत्यादि।

प्रश्न 18.
पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियों के नाम बताइए।
उत्तर-
जवद्दी (Jawaddi), गिन्गी, शिवराई, कौलईमाला, पंचमलाई, गोंडुमलाई इत्यादि पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियां हैं।

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प्रश्न 19.
अन्नाई मुदी की पर्वत गांठ पर कौन-कौन सी पर्वत श्रेणियां आकर मिलती हैं?
उत्तर-
कार्डमम या ईलामी (Elami), अन्नामलाई तथा पलनी।

प्रश्न 20.
दक्षिणी पठार के पहाड़ी भागों पर कौन-कौन से रमणीय स्थान ( हिल स्टेशन) हैं?
उत्तर-
दोदाबेटा, ऊटाकमुंड, पलनी तथा कोडाईकनाल।

प्रश्न 21.
उत्तर-पूर्वी तटवर्ती मैदान के उप-भागों के नाम बताओ।
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी तटीय मैदान के उप-भाग हैं- (i) उड़ीसा के मैदान, (ii) उत्तरी सरकार।

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प्रश्न 22.
अरब सागर में मिलने वाले द्वीपों के नाम बताओ।
उत्तर-
अरब सागर में स्थित उत्तरी द्वीपों को अमीनदिवी (Aminodivi), मध्यवर्ती द्वीपों को लक्काद्वीप तथा दक्षिणी भाग को मिनीकोय कहा जाता है।

प्रश्न 23.
देश के तट के समीप द्वीपों के नाम बताओ।
उत्तर-
देश के तट के समीप सागर, शोरट, न्युमूर, भासरा, मंढापस, ऐलिफैंटा, दीव (Diu) आदि द्वीप मिलते हैं।

प्रश्न 24.
देश का दक्षिणी बिन्द कहां स्थित है?
उत्तर-
देश का दक्षिणी बिन्दु ग्रेट निकोबार के इंदिरा प्वाइंट (Indira Point) पर स्थित है।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर दो —

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत माला एवं दक्षिण के पठार के बीच क्या कुछ समानताएं पायी जाती हैं?
उत्तर-
हिमालय पर्वत तथा दक्षिण के पठार में निम्नलिखित समानताएं पायी जाती हैं

  1. हिमालय पर्वत का निर्माण दक्षिणी पठार की उपस्थिति के कारण हुआ है।
  2. प्रायद्वीपीय पठार की पहाड़ियां, भ्रंश घाटियां तथा अपभ्रंश हिमालय पर्वत श्रृंखला से आने वाले दबाव के कारण बनी है।
  3. हिमालय पर्वतों की भान्ति दक्षिणी पठार में भी अनेक खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।
  4. इन दोनों भौतिक भागों में वन पाये जाते हैं जो देश में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

प्रश्न 2.
क्या हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है। इनकी उत्पत्ति नदियों द्वारा टैथीज सागर में बिछाई गई तलछट से हुई है। बाद में इसके दोनों ओर स्थित भूखण्डों के एक-दूसरे की ओर खिसकने से तलछट में मोड़ पड़ गया जिससे हिमालय पर्वतों के रूप में ऊपर उठ आए। आज भी ये पर्वत ऊंचे उठ रहे हैं। इसके अतिरिक्त इन पर्वतों का निर्माण देश के अन्य पर्वतों की तुलना में काफ़ी बाद में हुआ। अतः हम कह सकते हैं कि हिमालय पर्वत अभी भी अपनी युवा अवस्था में हैं।

प्रश्न 3.
बृहत् हिमालय की धरातलीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
महान् हिमालय पश्चिम में सिन्धु नदी की घाटी से लेकर उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र की दिहांग घाटी तक फैला हुआ है। इसकी मुख्य धरातलीय विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-

  1. यह देश की सबसे लम्बी तथा रची पर्वत श्रेणी है। इसमें ग्रेनाइट तथा नीस जैसी परिवर्तित रवेदार चट्टानें मिलती
  2. इसकी चोटियां बहुत ऊंची हैं। संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर) इसी पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यहां की चोटियां सदा बर्फ से ढकी रहती हैं।
  3. इसमें अनेक रे हैं जो पर्वतीय मार्ग जुटाते हैं।
  4. इसमें काठमाण्डू तथा कश्मीर जैसी महत्त्वपूर्ण घाटियां स्थित हैं।

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प्रश्न 4.
उत्तरी विशाल मैदानी भाग में किस-किस जलोढ़ी मैदान का निर्माण हुआ है?
उत्तर-
उत्तरी विशाल मैदान में निम्नलिखित जलोढ़क मैदानों का निर्माण हुआ है —

  1. खादर के मैदान,
  2. बांगर के मैदान,
  3. भाबर के मैदान,
  4. तराई के मैदान,
  5. बंजर मैदान।

प्रश्न 5.
थार मरुस्थल पर एक संक्षिप्त भौगोलिक लेख लिखो।
उत्तर-
थार मरुस्थल पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात के रण ऑफ़ कच्छ तक फैला हुआ है। यह मरुस्थल समतल तथा शुष्क है। अरावली पर्वत श्रेणी इसकी पूर्वी सीमा बनाती है। इसके पश्चिम में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा लगती है। यह लगभग 640 कि० मी० लम्बा तथा 300 कि० मी० चौड़ा है। अति प्राचीन काल में यह क्षेत्र समुद्र के नीचे दबा हुआ था। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि यह मरुस्थल किसी समय उपजाऊ रहा होगा। परन्तु वर्षा की मात्रा बहुत कम होने के कारण आज यह क्षेत्र रेत के बड़े-बड़े टीलों में बदल गया है।

प्रश्न 6.
स्थिति के आधार पर भारतीय द्वीपों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
स्थिति के अनुसार भारत के द्वीपों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है-तट से दूर स्थित द्वीप तथा तट के निकट स्थित द्वीप।

  1. तट से दूर स्थित द्वीप-इन द्वीपों की कुल संख्या 230 के लगभग है। ये समूहों में पाये जाते हैं। दक्षिणी-पूर्वी अरब सागर में स्थित ऐसे द्वीपों का निर्माण प्रवाल भित्तियों के जमाव से हुआ है। इन्हें लक्षद्वीप कहते हैं। अन्य द्वीप क्रमशः अमीनदिवी, लक्काद्वीप तथा मिनीकोय के नाम से प्रसिद्ध हैं। बंगाल की खाड़ी में तट से दूर स्थित द्वीपों के नाम हैं-अण्डमान द्वीप समूह, निकोबार, नारकोडम तथा बैरन आदि।
  2. तट के निकट स्थित द्वीप-इन द्वीपों में गंगा के डेल्टे के निकट स्थित सागर, शोरट, ह्वीलर, न्युमूर आदि द्वीप शामिल हैं। इस प्रकार के अन्य द्वीप हैं-भासरा, दीव, बन, ऐलिफंटा इत्यादि।

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प्रश्न 7.
तटवर्ती मैदानों की देश को क्या महत्त्वपूर्ण देन है ?
उत्तर-
तटीय मैदानों की देश को निम्नलिखित देन है —

  1. तटीय मैदान बढ़िया किस्म के चावल, खजूर, नारियल, मसालों, अदरक, लौंग, इलायची आदि की कृषि के लिए विख्यात हैं।
  2. ये मैदान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अग्रणी हैं।
  3. इन मैदानों से समस्त देश में बढ़िया प्रकार की समुद्री मछलियां भेजी जाती हैं।
  4. तटीय मैदानों में स्थित गोआ, तमिलनाडु तथा मुम्बई के समुद्री बीच पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।
  5. देश में प्रयोग होने वाला नमक पश्चिमी तटीय मैदानों में तैयार किया जाता है।

प्रश्न 8.
हिमालय क्षेत्रों का देश के विकास में योगदान बताइए।
उत्तर-
हिमालय क्षेत्रों का देश के विकास में निम्नलिखित योगदान है —

  1. वर्षा-हिन्द महासागर से उठने वाली मानसून पवनें हिमालय पर्वत से टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। इस प्रकार यह उत्तरी मैदान में वर्षा का दान देता है। इस मैदान में पर्याप्त वर्षा होती है।
  2. उपयोगी नदियां-उत्तरी भारत में बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि सभी मुख्य नदियां हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां सारा साल बहती हैं। शुष्क ऋत में हिमालय की बर्फ इन नदियों को जल देती है।
  3. फल तथा चाय-हिमालय की ढलानें चाय की खेती के लिए बड़ी उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त पर्वतीय ढलानों पर फल भी उगाए जाते हैं।
  4. उपयोगी लकडी-हिमालय पर्वत पर घने वन पाये जाते हैं। ये वन हमारा धन हैं। इनसे प्राप्त लकड़ी पर भारत के अनेक उद्योग निर्भर हैं। यह लकड़ी भवन निर्माण कार्यों में भी काम आती है।
  5. अच्छे चरागाह-हिमालय पर हरी-भरी चरागाहें मिलती हैं। इनमें पशु चराये जाते हैं।
  6. खनिज पदार्थ-इन पर्वतों में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
प्रायद्वीपीय पठार देश के अन्य भागों को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर-

  1. प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवाना लैंड का भाग है। इसी से निकलने वाली नदियों ने पहले हिमालय का निर्माण किया और फिर हिमालय तथा अपने यहां से बहने वाली नदियों के तलछट से विशाल उत्तरी मैदानों का निर्माण किया।
  2. प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर घाटों पर बने जल-प्रपात तटीय मैदानों को सिंचाई के लिए जल तथा औद्योगिक विकास के लिए बिजली देते हैं।
  3. यहां के वन देश के अन्य भागों में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करें(i) तराई और भाबर, (ii) बांगर और खादर।
उत्तर-

  1. तराई और भाबर–भाबर वे मैदानी प्रदेश होते हैं जहां नदियां पहाड़ों से निकलते ही तुरन्त मैदानी प्रदेश .में प्रवेश करती हैं और अपने साथ लाए रेत, कंकड़, बजरी, पत्थर आदि का यहां निक्षेप करती हैं। भाबर क्षेत्र में नदियां भूमि तल पर बहने की बजाए भूमि के नीचे बहती हैं। जब भाबर मैदानों की भूमिगत नदियां पुनः भूमि पर उभरती हैं, तो ये दलदली क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। शिवालिक पहाड़ियों के समानान्तर फैली इस आर्द्र तथा दलदली भूमि की पट्टी को तराई प्रदेश कहते हैं। यहां घने वन भी पाये जाते हैं तथा जंगली जीव जन्तु भी अधिक संख्या में मिलते हैं।
  2. बांगर और खादर-उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में बहने वाली नदियों में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आ जाती है और वे अपने आस-पास के क्षेत्रों में मिट्टी की नई परतें बिछा देती हैं। बाढ़ से प्रभावित इस तरह के मैदानों को खादर के मैदान कहा जाता है। – बांगर वह ऊंची भूमि होती है जो बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होती और जिसमें चूने के कंकड़-पत्थर अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसे रेह तथा कल्लर भूमि भी कहते हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दें —

प्रश्न 1.
भारत को धरातलीय आधार पर विभिन्न भागों में बांटो तथा किसी एक भाग का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
धरातल के आधार पर भारत को हम पाँच भौतिक विभागों में बांट सकते हैं —

  1. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र
  2. विशाल उत्तरी मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार का क्षेत्र
  4. तट के मैदान
  5. भारतीय द्वीप।

इनमें से हिमालय पर्वतीय क्षेत्र का वर्णन इस प्रकार है —
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र-हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक चाप के रूप में फैले हैं। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लम्बाई 2400 कि० मी तथा चौड़ाई 240 से 320 कि० मी० तक है।
ऊंचाई के आधार पर हिमालय पर्वतों को निम्नलिखित पाँच उपभागों में बांटा जा सकता है —

  1. ट्रांस हिमालय-इस विशाल पर्वत-श्रेणी का अधिकांश भाग तिब्बत में होने के कारण इसे तिब्बती हिमालय भी कहा जाता है। इसकी कुल लम्बाई 970 कि० मी० तथा चौड़ाई (किनारों पर) 40 किमी० है। इन पर्वतों की औसत ऊंचाई 6100 मी० है। माऊंट K2 तथा गॉडविन ऑस्टिन (8611 मी०) इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटियां हैं।
  2. महान् हिमालय-यह भारत की सबसे लम्बी तथा ऊंची पर्वत-श्रेणी है। इसकी लम्बाई 2400 कि० मी० तथा चौड़ाई 100 से 200 कि० मी० तक है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। संसार की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मी०) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है।
  3. लघु-हिमालय-इसे मध्य हिमालय भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई 3500 मी० से लेकर 5000 मी० तक है। इस पर्वत श्रेणी की ऊंची चोटियां शीत ऋतु में बर्फ से ढक जाती हैं। यहां शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि स्वास्थ्यवर्धक स्थान पाये जाते हैं।
  4. बाह्य हिमालय-इस पर्वत श्रेणी को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय तथा दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। इन पर्वतों के दक्षिण में कई झीलें पायी जाती थीं। बाद में इनमें मिट्टी भर गई और इन्हें दून (Doon) (पूर्व में इन्हें द्वार (Duar) कहा जाता है) कहा जाने लगा। इनमें देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि शामिल हैं।
  5. पहाड़ी शाखाएं-हिमालय पर्वतों की दो शाखाएं हैं-पूर्वी शाखाएं तथा पश्चिमी शाखाएं।
    पूर्वी शाखाएं-इन शाखाओं को पूर्वांचल भी कहा जाता है।
    इन शाखाओं में ढ़फा बुम, पटकाई बुम, गारो, खासी, जैंतिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां सम्मिलित हैं।
    पश्चिमी शाखाएं-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गांठ से हिमालय की दो उपशाखाएं बन जाती हैं। एक शाखा पाकिस्तान की साल्ट रेंज, सुलेमान तथा किरथर होते हुए दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर तक पहुंचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान में स्थित हिम्दुकुश तथा कॉकेशस पर्वत श्रेणी से जा मिलती है।

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प्रश्न 2.
हिमालय की उत्पत्ति एवं बनावट पर लेख लिखो और बताइए कि क्या हिमालय अभी भी बढ़ रहे हैं?
उत्तर-
हिमालय की उत्पत्ति तथा बनावट का वर्णन इस प्रकार है —
उत्पत्ति-जहां आज हिमालय है, वहां कभी टैथीज (Tythes) नाम का सागर लहराता था। यह दो विशाल भू-खण्डों से घिरा एक लम्बा और उथला सागरं था। इसके उत्तर में अंगारा लैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड नाम के दो भू-खण्ड थे। लाखों वर्षों तक इन दो भू-खण्डों का अपरदन होता रहा। अपरदित पदार्थ अर्थात् कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टैथीज सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भू-खण्ड धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। सागर में जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी की सतह से ऊपर आ गये। कालान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।
बनावट-हिमालय पर्वतीय क्षेत्र एक उत्तल चाप (Convex Curve) जैसा दिखाई देता है जिसका मध्यवर्ती भाग नेपाल की सीमा तक शुकी हुआ है। इसके उत्तर-पश्चिमी किनारे सफ़ेद कोह, सुलेमान तथा किरथर की पहाड़ियों द्वारा अरब सागर में पहुंच जाते हैं। इसी प्रकार के उत्तर-पूर्वी किनारे टैनेसरीम पर्वत श्रेणियों के माध्यम से बंगाल की खाड़ी तक पहुंच जाते हैं।
हिमालय पर्वतों की दक्षिणी ढाल भारत की ओर है। यह ढाल बहुत ही तीखी है। परन्तु इसकी उत्तरी ढाल साधारण है। यह चीन की ओर है। दक्षिणी ढाल के अधिक तीखा होने के कारण इस पर जल-प्रपात तथा तंग नदी-घाटियां पाई जाती हैं।
ऊंचाई की दृष्टि से हिमालय की पर्वत श्रेणियों को पांच उपभागों में बांटा जा सकता है-

  1. ट्रांस हिमालय,
  2. महान् हिमालय,
  3. लघु हिमालय,
  4. बाह्य हिमालय तथा
  5. पहाड़ी शाखाएं।

हिमालय पर्वत की मुख्य विशेषता यह है कि ये आज भी ऊंचे उठ रहे हैं।

प्रश्न 3.
पश्चिमी एवं पूर्वी तटीय मैदानों की तुलना करो।
उत्तर-
पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों की आपसी तुलना इस प्रकार की जा सकती है —

पश्चिमी मैदान पूर्वी मैदान
(1) इनके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियां हैं। (1) पूर्वी तट के मैदानों के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा | पश्चिम में पूर्वी घाट की पहाड़ियां हैं।
(2) इन मैदानों की लम्बाई 1500 कि० मी० और चौड़ाई 30 से 80 कि० मी० है। इन मैदानों में डेल्टाई निक्षेप का अभाव है। (2) इन मैदानों की लम्बाई 2000 कि० मी० है और इनकी औसत चौड़ाई 150 कि० मी० है। ये अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं तथा इनमें जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप है।
(3) पश्चिमी मैदानों को धरातलीय विस्तार के आधार पर चार भागों में बांटते हैं-गुजरात का तटीय मैदान, कोंकण का तटीय मैदान, मालाबार तट का मैदान, केरल का मैदान। (3) पूर्वी तटीय मैदान के दो भाग हैं-उत्तरी तटीय मैदान तथा दक्षिण तटीय मैदान। उत्तरी मैदान को उत्तरी सरकार या गोलकुण्डा या काकीनाडा भी कहते हैं। दक्षिण तटीय मैदान को कोरोमण्डल तट भी कहते है।
(4) इन मैदानों में नर्मदा तथा ताप्ती नदियां बहती हैं। ये डेल्टा बनाने की बजाए ज्वारनदमुख बनाती है। (4) इस मैदान की प्रमुख नदियां महानदी, कावेरी, गोदावरी | तथा कृष्णा हैं।
(5) पश्चिमी मैदान में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है। यह वर्षा दक्षिण-पश्चिम पवनों के कारण होती है। (5) इस मैदान में शरद् ऋतु में वर्षा होती है। यह वर्षा | उत्तर-पूर्वी पवनों के कारण होती है।

 

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प्रश्न 4.
देश के उत्तरी विशाल मैदानों के आकार, जन्म एवं क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के उत्तरी विशाल मैदानों के आकार, जन्म तथा क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन इस प्रकार है —
आकार-रावी नदी से लेकर गंगा नदी के डैल्टे तक इस मैदान की कुल लम्बाई लगभग 2400 कि० मी० तथा चौड़ाई 100 से 500 कि० मी० तक है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 180 मी० के लगभग है। अनुमान है कि इसकी गहराई 5 कि० मी० से लेकर 32 कि० मी० तक है। इसका कुल क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग कि० मी० है।
जन्म-भारत का उत्तरी मैदान उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में विशाल प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई हुई मिट्टी से बना है। लाखों, करोड़ों वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल में उत्तरी मैदान के स्थान पर टैथीज नामक एक सागर लहराता था। इस सागर से विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम हिमालय के नाम से पुकारते हैं। हिमालय की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ उस पर नदियां तथा अनाच्छादन के दूसरे कारक सक्रिय हो गए। इन कारकों ने पर्वत प्रदेश का अपरदन किया और यह भारी मात्रा में गाद ला-ला कर टैथीज सागर में जमा करने लगे। सागर सिकुड़ने लगा। नदियां जो मिट्टी इसमें जमा करती रहीं, वह बारीक पंक जैसी थी। इस मिट्टी को जलोढ़क कहते हैं। अतः टैथीज सागर के स्थान पर जलोढ़ मैदान अर्थात् उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ।
क्षेत्रीय विभाजन-उत्तरी विशाल मैदान को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है —

  1. पंजाब हरियाणा का मैदान- इस मैदान का निर्माण सतलुज, रावी, ब्यास तथा घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों से हुआ है। इसमें बारी दोआब, बिस्त दोआब, मालवा का मैदान तथा हरियाणा का मैदान शामिल है।
  2. थार मरुस्थल का मैदान-पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात में स्थित कच्छ की रण तक के इस मैदान को थार मरुस्थल का मैदान कहते हैं।
  3. गंगा का मैदान-गंगा का मैदान उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में स्थित है।
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान-इसे असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के अति उत्तरी भाग सादिया (Sadiya) तक लगभग 640 किलोमीटर तक फैला हुआ है।

प्रश्न 5.
प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार एवं धरातलीय रचना क्या है ? ढलान को आधार मानकर इसके उपभागों का विवरण दें।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत से लेकर उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार तक फैला हुआ है। दक्षिण में यह त्रिकोणीय आकार में कन्याकुमारी तक विस्तृत है। इस कठोर भू-भाग ने भारत के धरातलीय भाग का 50% भाग अपनी लपेट में लिया हुआ है। इसका क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग कि० मी० है और इसकी औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर तक है।
रचना-प्रायद्वीपीय पठार का जन्म कई करोड़ वर्ष पूर्व प्रीकैम्बरीअन काल में हुआ। यह लावा के ठण्डा होने से बना है। इसकी पर्वत श्रेणियों तथा पठारी भागों में नाईस, क्वार्टज़ तथा संगमरमर जैसी कठोर शैलें पाई जाती हैं।
विभाजन-इसके उत्तरी भाग को मालवा का पठार तथा दक्षिण भाग को दक्कन का पठार कहते हैं। दक्कन के पठार की ढाल दक्षिण पूर्व से उत्तर-पूर्व की ओर है। ___ मालवा का पठार-मालवा के पठार में बनास, चम्बल, केन तथा बेतवा नदियां बहती हैं। इसमें खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मीटर है। पारसनाथ (1365 मीटर) यहां की सबसे ऊंची चोटी है। मालवा के पठार में पाई जाने वाली तीन श्रेणियां हैं-अरावली श्रेणी, विन्ध्याचल श्रेणी, सतपुड़ा श्रेणी।
दक्कन का पठार-इसकी औसत ऊंचाई 300 से 900 मीटर तक है। इसके धरातल को मौसमी नदियों ने कांटछांट कर सात स्पष्ट भागों में बांटा हुआ है-महाराष्ट्र का टेबल लैंड, दंडकारणय-छत्तीसगढ़ क्षेत्र, तेलंगाना का पठार, कर्नाटक का पठार, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, दक्षिणी पहाड़ी समूह । पश्चिमी घाट की ऊंचाई 1200 मीटर और पूर्वी घाट की 500 मीटर है। दक्षिण भारत की सभी महत्त्वपूर्ण नदियां पश्चिमी घाट से निकलती हैं। पश्चिमी और पूर्वी घाट जहां जाकर मिलते हैं, उन्हें नीलगिरि पर्वत कहते हैं। इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी दोदावेटा है, जो 2637 मीटर ऊंची है।
सच तो यह है कि प्रायद्वीपीय पठार खनिज पदार्थों का भण्डार है और इसका भारत की आर्थिकता में बड़ा महत्त्व है।

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प्रश्न 6.
हिमालय व प्रायद्वीपीय पठार के धरातली लक्षणों की तुलना करें व अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार की तुलना भूगोल की दृष्टि से बड़ी रोचक है।

  1. बनावट-हिमालय तलछटी शैलों से बना है और यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक है। इसकी औसत ऊंचाई 5100 मीटर है।
    इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार का जन्म आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकैम्बरीअन महाकाल में हुआ था। ये आग्नेय शैलों से निर्मित हुआ है। इस पठार की औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर तक है।
  2. विस्तार-हिमालय जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसके पूर्व में पूर्वी श्रेणियां और पश्चिम में पश्चिमी श्रेणियां हैं। पूर्वी श्रेणियों में खासी, गारो, जयन्तिया तथा पश्चिमी श्रेणियों में हिन्दुकुश तथा किरथर श्रेणियां पाई जाती हैं। हिमालय के पांच भाग हैं-ट्रांस हिमालय, महान् हिमालय, लघु हिमालय, बाह्य हिमालय तथा पहाड़ी शाखाएं।
    इस के विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं-मालवा का पठार तथा दक्कन का पठार। ये अरावली पर्वत से लेकर शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसमें पाई जाने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैंअरावली पर्वत श्रेणी, विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
    इसके अतिरिक्त यहां पूर्वी घाट की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा नीलगिरि पर्वत आदि पाये जाते हैं।
  3. नदियां-हिमालय से निकलने वाली नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण सारा साल बहती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की नदियां बरसाती नदियां हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी का अभाव हो जाता है।
  4. आर्थिक महत्त्व-प्रायद्वीपीय पठार में अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर नोट लिखो(क) विन्ध्याचल, (ख) सतपुड़ा, (ग) अरावली पर्वत, (घ) सप्तक पठार (ङ) नीलगिरि।
उत्तर-
(क) विन्ध्याचल-विन्ध्याचल पर्वत श्रेणियों का पश्चिमी भाग लावे से बना है। इसका पूर्वी भाग कैमूर तथा भानरेर की श्रेणियां कहलाता है। इसकी दक्षिणी ढलानों के पास नर्मदा नदी बहती है।
(ख) सतपुड़ा-सतपुड़ा की पहाड़ियां नर्मदा नदी के दक्षिण किनारे के साथ-साथ पूर्व में महादेव तथा मैकाल की पहाड़ियों के सहारे बिहार में स्थित छोटा नागपुर की पहाड़ियों तक जा पहुंचती हैं। इसकी मुख्य चोटियां हैं-धूपगढ़ (1350 मी०) तथा अमरकंटक (1127 मी०) ! इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊँचाई 1120 मी० है।
(ग) अरावली पर्वत-अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक 725 कि० मी० की लम्बाई में फैला हुआ है। इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम है और यहां अब पहाड़ियों के बचे-खुचे टुकड़े ही रह गये हैं। इसकी सबसे ऊंची चोटी माऊंट आबू (1722 मी०) है।
(घ) सप्तक पठार-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में बुन्देलखण्ड तथा बघेलखण्ड, पूर्व में छोटा नागपुर, राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग के पठार तक और दक्षिण की ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों तक घिरा हुआ पठार मालवा का पठार कहलाता है। इसका शीर्ष शिलांग के पठार पर है। इस पठार की उत्तरी सीमा अवतल चाप की तरह है। इस पठार में बनास, चम्बल, केन तथा बेतवा नामक नदियां बहती हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मी० है। पारसनाथ तथा नैत्रहप्पाट इसकी मुख्य चोटियां हैं। इसकी तीन पर्वत श्रेणियां हैं- अरावली पर्वत श्रेणी, विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।।
(ङ) नीलगिरि-पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा पूर्वी घाट की पहाड़ियां दक्षिण में जहां जाकर आपस में मिलती हैं, उन्हें दक्षिणी पहाड़ियां या नीलगिरि की पहाड़ियां कहते हैं। इन्हें नीले पर्वत भी कहते हैं। इनकी औसत ऊंचाई 1220 मी० है।

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प्रश्न 8.
“क्या भारत के अलग-अलग भौतिक अंश आज़ाद इकाइयां हैं तथा एक-दूसरे के पूरक हैं ?” व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि भारत की भिन्न-भिन्न भौतिक इकाइयां एक-दूसरे की पूरक हैं। वे देखने में अलग अवश्य लगते हैं, परन्तु उनका अस्तित्व अलग नहीं है। यदि हम उनके जन्म और उनके मिलने वाले प्राकृतिक भण्डारों का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जायेगा कि वे पूरी तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(क) जन्म-

  1. हिमालय पर्वत का जन्म ही प्रायद्वीपीय पठार के अस्तित्व में आने के पश्चात् हुआ है।
  2. उत्तरी मैदानों का जन्म उन निक्षेपों से हुआ है, जिनके लिए प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वत की नदियां उत्तरदायी हैं।
  3. प्रायद्वीपीय पठार की पहाड़ियां, दरार घाटियां तथा अपभ्रंश हिमालय के दबाव के कारण ही अस्तित्व में आए हैं।
  4. तटीय मैदानों का जन्म प्रायद्वीपीय घाटों की मिट्टी से हुआ है।

(ख) प्राकृतिक भण्डार-

  1. हिमालय पर्वत बर्फ का घर है। इसकी नदियां जल प्रपात बनाती हैं और इनसे जो बिजली बनाई जाती है, उसका उपयोग पूरा देश करता है।
  2. भारत के विशाल मैदान उपजाऊ मिट्टी के कारण पूरे देश के लिए अन्न का भण्डार है। इसमें बहने वाली गंगा नदी सारे भारत को प्रिय है।
  3. प्रायद्वीपीय पठार में खनिजों का खज़ाना दबा पड़ा है। इसमें लोहा, कोयला, तांबा, अभ्रक, मैंगनीज़ आदि कई प्रकार के खनिज दबे पड़े हैं, जो देश के विकास के लिए अनिवार्य हैं।
  4. तटीय मैदान देश को चावल, मसाले, अदरक, लौंग, इलायची जैसे व्यापारिक पदार्थ प्रदान करते हैं।
    सच तो यह है कि देश की भिन्न-भिन्न इकाइयां एक दूसरे की पूरक हैं और ये देश के आर्थिक विकास में अपना विशेष योगदान देती हैं।

IV. भारत के नक्शे पर दिखाएं:

1. कराकोरम, जस्कर, कैलाश, पीरपंजाल और शिवालिक पर्वतीय श्रेणियां।
2. कोरोमंडल, कोंकण और मालाबार तटवर्ती हिस्से।
3. थाल घाट, भोर घाट और पाल घाट के रास्ते।
4. जाजीला, नाथुला, जलेपला तथा शिपकी ला दरे।
5. माऊंट आबू, दार्जिलिंग, शिमला, पर्यटन केंद्र।
6. माऊंट एवरेस्ट, नन्दा देवी, कंचनजंगा, माऊँट गाडविन, असटिन।
उत्तर-
विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

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PSEB 10th Class Social Science Guide धरातल Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत के प्रायद्वीपीय भाग को देश की प्राकृतिक बनावट का केन्द्र क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि भारत के प्रायद्वीपीय भाग ने देश के सम्पूर्ण धरातल के निर्माण में योगदान दिया है।

प्रश्न 2.
हिमालय का क्या अर्थ है?
उत्तर-
हिमालय का अर्थ है-हिम (बर्फ) का घर।

प्रश्न 3.
ट्रांस हिमालय को ‘तिब्बत हिमालय’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि ट्रांस हिमालय का अधिकतर भाग तिब्बत में है।

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प्रश्न 4.
ट्रांस हिमालय की औसत ऊंचाई कितनी है?
उत्तर-
ट्रांस हिमालय की औसत ऊंचाई 6100 मीटर है।

प्रश्न 5.
दून किसे कहते हैं?
उत्तरं-
‘दून’ बाह्य हिमालय में स्थित वे झीलें हैं जो मिट्टी से भर गई हैं।

प्रश्न 6.
हिमालय की पूर्वी शाखाओं की किन्हीं दो प्रमुख ऊंची चोटियों के नाम बताओ।
उत्तर-
दफा बम्म (4578 मी०) तथा सारामती (3926 मी०) हिमालय की पूर्वी शाखाओं की दो प्रमुख चोटियां हैं।

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प्रश्न 7.
विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी कौन-सी है?
उत्तर-
माऊंट एवरेस्ट।

प्रश्न 8.
माऊंट एवरेस्ट समुद्रतल से कितनी ऊंची है?
उत्तर-
8848 मी०।

प्रश्न 9.
ब्रह्मपुत्र के मैदान की लम्बाई तथा चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
इस मैदान की लम्बाई 640 किलोमीटर और चौड़ाई 90 से 100 किलोमीटर तक है।

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प्रश्न 10.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिन्दु कौन-सा है?
उत्तर-
कन्याकुमारी।

प्रश्न 11.
नागपुर के पठार की कोई एक विशेषता लिखो।
उत्तर-
लावे से बना यह पठार कटा-फटा है।

प्रश्न 12.
पश्चिमी घाट के दरों के नाम लिखो।
उत्तर-
थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट पश्चिमी घाट के दरें हैं।

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प्रश्न 13.
जोग झरना कहां है और यह कितना ऊंचा है?
उत्तर-
जोग झरना शरावती नदी पर है जिसकी ऊंचाई 250 मीटर है।

प्रश्न 14.
चिलका झील कितनी लम्बी है?
उत्तर-
चिलका झील 70 कि० मी० लम्बी है।

प्रश्न 15.
अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह में कितने-कितने द्वीप हैं?
उत्तर-
अण्डमान द्वीप समूह में 120 तथा निकोबार द्वीप समूह में 18 द्वीप सम्मिलित हैं।

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प्रश्न 16.
कौन-सी नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है?
उत्तर-
नर्मदा।

प्रश्न 17.
भारत के प्रमुख द्वीप समूह कौन-कौन से हैं और ये कहां स्थित हैं?
उत्तर-
(i) भारत के प्रमुख द्वीप समूह अण्डमान तथा निकोबार और लक्षद्वीप हैं।
(ii) ये क्रमशः बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में स्थित हैं।

प्रश्न 18.
हिमालय पर्वतों की उत्पत्ति किस सागर से हुई है?
उत्तर-
टैथीज़।

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प्रश्न 19.
हिमालय पर्वत किस प्रकार के पर्वत हैं?
उत्तर-
युवा मोड़दार।

प्रश्न 20.
हिमालय का अधिकतर भाग कहां फैला है?
उत्तर-
हिमालय का अधिकतर भाग तिब्बत में फैला है।

प्रश्न 21.
ट्रांस हिमालय की मुख्य अथवा पृथ्वी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी कौन-सी है?
उत्तर-
गॉडविन आस्टिन तथा माऊंट K2 ट्रांस हिमालय अथवा पृथ्वी की दूसरी सबसे ऊंची चोटियां हैं।

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प्रश्न 22.
भारत की सबसे लंबी और ऊंची पर्वत श्रृंखला है?
उत्तर-
बृहत् हिमालय।

प्रश्न 23.
हिमालय की कौन-सी श्रेणी शिवालिक कहलाती है?
उत्तर-
बाह्य हिमालय।

प्रश्न 24.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में किस-किस जल प्रवाह प्रणाली का योगदान रहा है?
उत्तर-
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों का योगदान है।

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प्रश्न 25.
रावी और ब्यास के मध्य भाग को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
बिस्त दोआब।

प्रश्न 26.
भारत का कौन-सा भू-भाग त्रिभुजाकार है?
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 27.
अरावली पर्वत श्रेणी की माऊंट आबू की सबसे ऊंची चोटी कौन-सी है?
उत्तर-
गुरु शिखर।

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प्रश्न 28.
गोआ से मंगलौर तक का समुद्री तट क्या कहलाता है?
उत्तर-
मालाबार तट।

प्रश्न 29.
कोंकण तट कहां से कहां तक फैला है?
उत्तर-
कोंकण तट दमन से गोआ तक फैला है।

प्रश्न 30.
भारत का कौन-सा भू-भाग सभी प्रकार के खनिजों का विशाल भंडार है?
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. ट्रांस हिमालय की लम्बाई ……………. मीटर है।
  2. दफा बम्म तथा …………. हिमालय की पूर्वी शाखाओं की प्रमुख चोटियां हैं।
  3. ……………… विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।
  4. भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिन्दु ……………… है।
  5. थाल घाट, भोर घाट तथा …………. पश्चिमी घाट के रॆ हैं।
  6. चिल्का झील ………… कि०मी० लम्बी है। ।
  7. …………. नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है।
  8. …………… हिमालय भारत की सबसे लम्बी और ऊंची पर्वत श्रृंखला है।
  9. मालाबार तट का विस्तार गोआ से ………… तक है।
  10. छत्तीसगढ़ का मैदान ………….. द्वारा बना है।

उत्तर-

  1. 6100
  2. सारामती,
  3. माऊंट ऐवरेस्ट,
  4. कन्याकुमारी,
  5. पाल घाट,
  6. 70,
  7. नर्मदा,
  8. बृहत्,
  9. मंगलौर,
  10. महानदी।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई है —
(A) 9848 मी०
(B) 7048 मी०
(C) 8848 मी०
(D) 6848 मी।
उत्तर-
(C) 8848 मी०

प्रश्न 2.
जोग झरना कहां है?
(A) गंगा नदी पर
(B) शरावती नदी पर
(C) यमुना नदी पर
(D) चिनाब नदी पर।
उत्तर-
(B) शरावती नदी पर

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प्रश्न 3.
हिमालय का अधिकतर भाग फैला है —
(A) भारत में
(B) नेपाल में
(C) तिब्बत में
(D) भटान में।
उत्तर-
(C) तिब्बत में

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वतों की उत्पत्ति हुई है —
(A) टैथीज़ सागर से
(B) अंध महासागर से
(C) हिंद महासागर से
(D) खाड़ी बंगाल से।
उत्तर-
(A) टैथीज़ सागर से

प्रश्न 5.
रावी और व्यास के मध्य भाग को कहा जाता है —
(A) बिस्त दोआब
(B) प्रायद्वीपीय पठार
(C) चज दोआब
(D) मालाबार दोआब।
उत्तर-
(A) बिस्त दोआब

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प्रश्न 6.
भारत का त्रिभुजाकार भू-भाग कहलाता है —
(A) बृहत् हिमालय
(B) भोर घाट
(C) बिस्त दोआब
(D) प्रायद्वीपीय पठार।
उत्तर-
(D) प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 7.
अरावली पर्वत श्रेणी में माऊंट आबू की सबसे ऊंची चोटी है —
(A) K2
(B) गाडविन आस्टिन
(C) गुरु शिखर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(C) गुरु शिखर

प्रश्न 8.
कोंकण तट का विस्तार है —
(A) दमन से गोआ तक
(B) मुम्बई से गोआ तक
(C) दमन से बंगलौर तक
(D) मुम्बई से दमन तक।
उत्तर-
(A) दमन से गोआ तक

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प्रश्न 9.
पश्चिमी घाट की प्रमुख चोटी है —
(A) गुरु शिखर
(B) वाणुलामाला
(C) कोंकण शिखर
(D) माऊंट K2
उत्तर-
(B) वाणुलामाला

प्रश्न 10.
सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों से बना मैदान कहलाता है —
(A) दक्षिणी विशाल मैदान
(B) पूर्वी विशाल मैदान
(C) उत्तरी विशाल मैदान
(D) तिब्बत का मैदान।
उत्तर-
(C) उत्तरी विशाल मैदान

प्रश्न 11.
अण्डेमान द्वीप समूह में कुल कितने द्वीप हैं?
(A) 120
(B) 150
(C) 18
(D) 130
उत्तर-
(A) 120

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प्रश्न 12.
निकोबार द्वीप समूह में कुल कितने द्वीप हैं —
(A) 30
(B) 18
(C) 28
(D) 20
उत्तर-
(B) 18

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं —

  1. ट्रांस हिमालय को तिब्बत हिमालय भी कहा जाता है।
  2. हिमालय के अधिकतर स्वास्थ्यवर्धक स्थान बृहत् हिमालय में स्थित हैं।
  3. उत्तरी विशाल मैदान की रचना में कावेरी तथा कृष्णा नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  4. पश्चिम घाट में थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट नामक स्थित हैं।
  5. विश्व की सबसे अधिक वर्षा मसीनरम (Mansynram) में होती है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✓)

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V. उचित मिलान

  1. जोग झरना — कन्याकुमारी
  2. भारत में हिमालय की सबसे लम्बी और ऊंची शृंखला — बिस्त दोआब
  3. भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिन्दु — शरावती नदी
  4. रावी और व्यास का मध्य भाग — बृहत् हिमालय।

उत्तर-

  1. जोग झरना — शरावती नदी,
  2. भारत में हिमालय की लम्बी और ऊंची श्रृंखला — बृहत् हिमालय
  3. भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिन्दु — कन्याकुमारी,
  4. रावी और व्यास का मध्य भाग — बिस्त दोआब।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. ये पर्वत भारत के उत्तर में स्थित हैं। ये एक चाप की तरह कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं। संसार का कोई भी पर्वत इनसे अधिक ऊंचा नहीं है। इनकी लम्बाई 2400 किलोमीटर और चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।
  2. हिमालय पर्वत की तीन समानान्तर शृंखलाएं हैं। उत्तरी श्रृंखला सबसे ऊंची है तथा दक्षिणी श्रृंखला सबसे कम ऊंची है। इन शृंखलाओं के बीच बड़ी उपजाऊ घाटियां हैं।
  3. इन पर्वतों की मुख्य चोटियां ऐवरेस्ट, नागा पर्वत, गाडविन ऑस्टिन, नीलगिरि, कंचनजंगा आदि हैं। ऐवरेस्ट संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है।
  4. हिमालय की पूर्वी शाखाएं भारत तथा म्यनमार की सीमा बनाती हैं। हिमालय की पश्चिमी शाखाएं पाकिस्तान में हैं। इनके नाम सुलेमान तथा किरथर पर्वत हैं। इन शाखाओं में खैबर तथा बोलान के दर्रे स्थित हैं।

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प्रश्न 2.
भारत के मध्यवर्ती विशाल मैदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारत की अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर-भारत का मध्यवर्ती विशाल मैदान हिमालय पर्वत के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व तक फैला हुआ है। इसका विस्तार राजस्थान से असम तक है। इसके कुछ पश्चिमी रेतीले भाग को छोड़कर शेष सारा मैदान बहुत ही उपजाऊ है। इनका निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से हुआ है। इसलिए इसे जलोढ़ मैदान भी कहते हैं। इस मैदान की लम्बाई 2400 किलोमीटर तथा चौड़ाई 100 किलोमीटर से 500 किलोमीटर तक है। इसे चार भागों में बांटा जा सकता है-

  1. पंजाब-हरियाणा का मैदान,
  2. थार मरुस्थलीय मैदान,
  3. गंगा का मैदान,
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान। भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार यही विशाल मैदान है। यहां नाना प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। इसके पूर्वी भागों में खनिज पदार्थों के विशाल भण्डार विद्यमान हैं।

प्रश्न 3.
भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों की तुलना करो।
उत्तर-

पश्चिमी तटीय मैदान पूर्वी तटीय मैदान
(1) ये मैदान पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित हैं। (1) ये मैदान पूर्वी घाट तथा खाड़ी बंगाल के बीच स्थित हैं।
(2) ये मैदान बहुत ही असमतल एवं संकुचित हैं। (2) ये मैदान अपेक्षाकृत समतल एवं चौड़ा है।
(3) इस मैदान में कई ज्वारनदमुख और लैगून हैं। (3) इस मैदान में कई नदी डेल्टा हैं।

 

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प्रश्न 4.
किन्हीं चार बातों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार तथा उत्तर के विशाल मैदानों की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
(1) उत्तर के विशाल मैदानों का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ है जबकि प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण प्राचीन ठोस चट्टानों से हुआ है।
(2) उत्तर के विशाल मैदानों की समुद्र तल से ऊंचाई प्रायद्वीपीय पठार की अपेक्षा बहुत कम है।
(3) विशाल मैदानों की नदियां हिमालय पर्वत से निकलने के कारण सारा वर्ष बहती हैं। इसके विपरीत पठारी भाग की नदियां केवल बरसात के मौसम में ही बहती हैं।
(4) विशाल मैदानों की भूमि उपजाऊ होने के कारण यहां गेहूं, जौ, चना, चावल आदि की कृषि होती है। दूसरी ओर पठारी भाग में कपास, बाजरा तथा मूंगफली की कृषि की जाती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर नोट लिखो —
1. पश्चिमी घाट
2. पूर्वी घाट।
उत्तर-
1. पश्चिमी घाट- यह दक्षिणी पठार की प्रमुख पर्वत श्रेणी है। यह पर्वत श्रेणी पश्चिमी तट के साथ-साथ ताप्ती नदी से कन्याकुमारी तक फैली हुई है। इसकी सबसे ऊंची चोटी (2,339 मी०) वाणु ला माला है। इस घाट में थाल घाट, भोर घाट और पाल घाट नामक तीन दर्रे भी हैं।
2. पूर्वी घाट-ये घाट उत्तर में महानदी घाटी से लेकर दक्षिण में नीलगिरि पहाड़ियों तक दक्षिणी पठार के पूर्वी किनारों पर लगभग 800 किलोमीटर लम्बे और 500 मीटर ऊँचे हैं। इसकी सबसे ऊंची चोटी महेन्द्रगिरि (1,500 मीटर) है।

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प्रश्न 6.
ट्रांस हिमालय से क्या भाव है?
उत्तर-
ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas)-हिमालय पर्वत की विशाल श्रेणियाँ भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित पामीर की गाँठ (Pamir’s Knot) से उत्तर-पूर्वी दिशा के समानान्तर फैली हुई हैं। इसका अधिकतर भाग तिब्बत में है। इसलिए इन्हें ‘तिब्बत हिमालय’ भी कहा जाता है। इनकी कुल लम्बाई 970 किलोमीटर और चौड़ाई (दोनों किनारों पर) 40 किलोमीटर है परन्तु इसका केन्द्रीय भाग 222 किलोमीटर के लगभग चौड़ा हो जाता है। इनकी औसत ऊँचाई 6100 मीटर है। इसकी मुख्य पर्वतीय श्रेणियाँ जस्कर, कराकोरम, लद्दाख और कैलाश हैं। यह पर्वतीय क्षेत्र बहुत ऊँची एवं मोड़दार चोटियों तथा विशाल हिमानियों (Glaciers) के लिए प्रसिद्ध है। माऊंट K2 इस क्षेत्र की सबसे ऊँची एवम् पृथ्वी की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है।

प्रश्न 7.
बृहत् हिमालय के नाम, स्थिति तथा आकार का वर्णन करो।
उत्तर-
बृहत् हिमालय का वर्णन इस प्रकार है

  1. नाम-हिमालय क्षेत्र के इस भाग को हिमाद्रि, आन्तरिक हिमालय या केन्द्रीय हिमालय भी कहा जाता है।
  2. स्थिति-यह उप-भाग पश्चिम में सिन्धु नदी के गहरे गॉर्ज (Gorge) से लेकर उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी की दिहांग घाटी तक फैली हुई देश की सबसे लम्बी और ऊँची पर्वत श्रृंखला है। इसमें ग्रेनाइट, शिस्ट एवं नाईस जैसी प्राचीन महाकल्प की चट्टानें मिलती हैं।
  3. आकार-इस पर्वत श्रेणी की लम्बाई 2400 किलोमीटर और औसत ऊँचाई 6000 मीटर है। इसकी चौड़ाई 100 से 200 किलोमीटर तक है।

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प्रश्न 8.
लघु हिमालय पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
लघु हिमालय-लघु हिमालय को हिमाचल या मध्य हिमालय भी कहा जाता है। इस की औसत ऊँचाई… 3500 मीटर से लेकर 5000 मीटर तक है। इन श्रेणियों की पहाड़ियाँ 60 से 80 किलोमीटर की चौड़ाई में मिलती है।

  1. श्रेणियाँ-जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल व नागा टिब्बा, हिमाचल में धौलाधार, नेपाल में महाभारत, उत्तराखण्ड में मसूरी और भूटान में थिम्पू इस पर्वतीय भाग की मुख्य पर्वत श्रेणियां हैं।
  2. घाटियाँ-इस भाग में कश्मीर घाटी के कुछ भाग, कांगड़ा घाटी, कुल्लू घाटी, भागीरथी घाटी व मन्दाकिनी घाटी जैसी लाभकारी व स्वास्थ्यवर्द्धक घाटियाँ मिलती हैं।
  3. स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान-इस क्षेत्र में शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि प्रमुख स्वास्थ्य वद्धक व रमणीय केन्द्र है।

प्रश्न 9.
बाह्य हिमालय पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
बाह्य हिमालय को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय और दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पर्वत श्रेणियाँ लघु हिमालय के समानान्तर दक्षिण में पूर्व से पश्चिम की तरफ फैली हुई हैं। इनकी औसत ऊँचाई 900 से 1200 मीटर तथा चौड़ाई 15 से 50 किलोमीटर तक है। इस क्षेत्र का निर्माण टरशरी युग में हुआ था। इस क्षेत्र में लम्बी व गहरी तलछटी चट्टानें मिलती हैं जिनकी रचना चिकनी मिट्टी, रेत, पत्थर, स्लेट आदि के निक्षेपों द्वारा हुई है जो हिमालय से अपरदन द्वारा इन क्षेत्रों में जमा किया जाता रहा है। इस भाग की प्रसिद्ध घाटियां देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, छोखम्भा, उधमपुर तथा कोटली हैं।

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प्रश्न 10.
हिमालय की पूर्वी तथा पश्चिमी शाखाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. पूर्वी शाखाएँ-इन शाखाओं को पूर्वांचल (Purvanchal) भी कहते हैं। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्म’ नदी की दिहांग गॉर्ज से लेकर ये श्रृंखलाएँ भारत और म्यनमार (बर्मा) की सीमा बनाती हुई दो भागों में बंट जाती है

  1. गंगा-ब्रह्मपुत्र द्वारा निर्मित शाखाएं बंगलादेश के मैदानों तक पहुंचती हैं जिसमें दफा बम्म, पटकोई बाम, गारी, खांसी, जयन्तिया व त्रिपुरा की पहाड़ियाँ आती हैं।
  2. ये शाखाएं पटकोई बम्म से शुरू होकर नागा पर्वत, बरेल, लुशाई से होती हुई इरावदी के डेल्टे तक पहुंचती है। हिमालय की इन पूर्वी शाखाओं में दफा बम्म (4578 मीटर) और सारामती (3926 मीटर) प्रमुख ऊँची चोटियों हैं।

2. पश्चिमी शाखाएँ-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गाँठ से हिमालय श्रेणियों की आगे दो उप-शाखाएँ बन जाती है। एक शाखा पाकिस्तान के मध्य में से सॉल्ट रेन्ज, सुलेमान व किरथर होती हुई दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में अरब सागर तक पहुँचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान से होकर हिन्दुकुश तथा कॉकेशस पर्वत की श्रृंखला से जा मिलती है।

प्रश्न 11.
उत्तरी विशाल मैदानों की चार धरातलीय विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
उत्तरी विशाल मैदानों की चार प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. समतल मैदान-सम्पूर्ण उत्तरी भारतीय मैदान समतल और सपाट है। इसमें मीलों तक कंकड़-पत्थर दिखाई नहीं पड़ता।
  2. नदियों का जाल-इस सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्र में दरियाओं व नदनालों (Choes) का जाल सा बिछा हुआ है। इसके साथ दोआब के क्षेत्रों का निर्माण होता है। पंजाब राज्य का नाम भी पाँच नदियों के बहने के कारण तथा एकसार मिट्टी जमा होने के कारणं पंज-आब से पडा है।
  3. भं-आकार नदियों द्वारा जमा मिट्टियों से निर्मित मैदान जिसमें जलोढ़ पंखे, जलोढ़ीय शंकुओं, सर्प समान घुमाव, दरियाई सीढ़ियाँ, प्राकृतिक बन्ध, बाढ़ के मैदान जैसे भू-आकार देखने को मिलते हैं।
  4. मैदानी तलछट इन मैदानों के तलछट में चिकनी मिट्टी (clay), बालू, दोमट और सिल्ट ज्यादा मोटाई में मिलती है। चिकनी मिट्टी अर्थात् पाण्डु मिट्टी नदियों के मुहानों के समीप अधिक मिलती है और ऊपरी भागों में बालू की मात्रा में वृद्धि होती जाती है।

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प्रश्न 12.
उत्तरी विशाल मैदानों में पाये जाने वाले चार जलोढ़क मैदानों का वर्णन करो।
उत्तर-
उत्तरी विशाल मैदोनों में पाये जाने वाले चार जलोढ़क मैदानों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. खादर के मैदान-उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल की नदियों में हर साल बाढ़ों के आने के कारण मृदा की नई तहें बिछ जाती हैं। इन नदियों के आस-पास बाढ़ वाले क्षेत्रों को खादर के मैदान कहा जाता है।
  2. बांगर के मैदान-ये वे ऊँचे मैदानी क्षेत्र हैं जहाँ पर बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। यहाँ की पुरानी तलछटों में चूने के कंकड़ अधिक मात्रा में मिलते हैं।
  3. भाबर के मैदान-उत्तर भारत में जब दरिया शिवालिक के पहाड़ी प्रदेशों को छोड़कर समतल प्रदेश में प्रवेश करते हैं तो ये अपने साथ लाई बाल, कंकड़, बजरी, पत्थर व बट्टे आदि के जमाव द्वारा जिन मैदानों का निर्माण करते हैं, उसे भाबर के मैदान कहा जाता है। ऐसे मैदानी क्षेत्रों में छोटी-छोटी नदियों का पानी अक्सर धरती के नीचे बहता है।
  4. तराई के मैदान जब भाबर क्षेत्रों में अलोप हुई नदियों का पानी पुनः धरातल पर निकल आता है तब पानी के इकट्ठे हो जाने के कारण दलदली क्षेत्र (Marshy Lands) बन जाते हैं। इसमें गर्मी व नमी के कारण सघन वन उत्पन्न हो जाते हैं और जंगली जीव-जन्तुओं की भरमार हो जाती है।

प्रश्न 13.
पंजाब-हरियाणा मैदान की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. यह मैदान सतलुज, रावी, ब्यास व घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों के जमाव के कारण बना है। 1947 में भारत व पाकिस्तान के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के बन जाने के कारण इसका अधिकतर भाग पाकिस्तान में चला गया है।
  2. पाकिस्तान सीमा से लेकर यमुना नदी तक इसकी लम्बाई पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम दिशा में 500 किलोमीटर तथा उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम में 640 किलोमीटर है।
  3. इस मैदान के उत्तरी भाग 300 मीटर तक ऊँचे हैं और दक्षिण पूर्वी भागों की ओर यह ऊँचाई 200 मीटर रह जाती है।
  4. इस उपजाऊ मैदान का क्षेत्रफल 1.75 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 14.
ब्रह्मपुत्र के मैदान पर एक भौगोलिक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र के मैदान को असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के सुदूर उत्तर-पूर्व में सादिआ (Sadiya) तक फैला हुआ है। यह लगभग 640 किलोमीटर लम्बा और 90 से 100 किलोमीटर तक चौड़ा है। इसमें ब्रह्मपुत्र, सेसिरी, दिबांग और लोहित नदियों द्वारा हिमालय पर्वत और इसके आस-पास की पहाड़ी शाखाओं से मृदा लाकर जमा की गई है। इस तंग मैदान में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ों के कारण नवीन तलछटों का निक्षेप होता रहता है। इस मैदान का ढलान उत्तर-पूर्वी तथा पश्चिम की ओर है।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गंगा के मैदान के विभिन्न भौगोलिक पक्षों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गंगा के मैदान के मुख्य भौगोलिक पक्षों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. स्थिति-यह मैदान उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल राज्यों में स्थित है। यह पश्चिम में यमुना, पूर्व में बंगलादेश की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा, उत्तर में शिवालिक तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी विस्तार के मध्य फैला हुआ है।
  2. नदियाँ-इस मैदान में गंगा, यमुना, घागरा, गण्डक, कोसी, सोन, बेतवा तथा चम्बल नदियां बहती हैं।
  3. भू-आकारीय नाम-गंगा के तराई वाले उत्तरी क्षेत्रों में बनी दलदली पेटियों को ‘कौर’ (caur) कहा जाता है। इसकी दक्षिणी सीमा में बड़े-बड़े खड्ड (Ravines) मिलते हैं जिन्हें ‘जाला’ व ‘ताल’ (Jala & Tal) अथवा बंजर भूमि कहते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त मैदान में पुरानी जमीं बांगर और नई बिछी खादर की जलोढ़ पट्टियों को ‘खोल’ (Khols) कहा जाता है। गंगा और यमुना दोआब में पवनों के निक्षेप द्वारा निर्मित बालू के टीलों को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद तथा बिजनौर जिलों में ‘भूर’ (Bhur) के नाम से जाना जाता है।
  4. ढलान तथा क्षेत्रफल-गंगा के मैदान की ढलान पूर्व की ओर है। 5. विभाजन-ऊँचाई के आधार पर गंगा के मैदानों को अग्रलिखित तीन उप-भागों में विभाजित किया जा सकता है —
    1. ऊपरी मैदान-इन मैदानों को गंगा-यमुना दोआब भी कहते हैं। इनके पश्चिम में यमुना नदी है तथा 100 मीटर की ऊँचाई तक मध्यम ढाल वाले क्षेत्र इसकी पूर्वी सीमा बनाते हैं। रुहेलखण्ड तथा अवध का मैदान भी इन्हीं मैदानों में सम्मिलित है।
    2. मध्यवर्ती मैदान-इस मैदान को बिहार के मैदान या मिथिला (Mithila) मैदान भी कहते हैं, जिसकी ऊँचाई लगभग 50 से 100 मीटर के बीच है। यह घागरा नदी से लेकर कोसी नदी तक 35,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
    3. निचले मैदान-गंगा के ये मैदानी भाग समुद्र तल से लगभग 50 मीटर ऊंचे हैं। ये राजमहल तथा गारो पर्वत श्रेणियों के मध्य एक समतल डेल्टाई क्षेत्र बनाते हैं। इसके उत्तर में तराई पट्टी के द्वार (Duar) मिलते हैं तथा दक्षिण में विश्व का सबसे बड़ा सुन्दरवन डेल्टा स्थित है।

प्रश्न 2.
पश्चिमी तटीय मैदानों का उसके उपभागों सहित विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी तटीय मैदान अरब सागर और पश्चिमी घाट के मध्य, उत्तर से दक्षिण की ओर फैले हुए हैं। ये लगभग 1500 किलोमीटर की लम्बाई तथा 30 से 80 किलोमीटर की चौड़ाई में विस्तृत संकरे मैदान हैं। इनका ढलान दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर है। मैदानों को धरातलीय विशेषताओं के आधार पर चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है —
(1) गुजरात तट, (2) कोंकण तट, (3) मालाबार तट, (4) केरल का मैदान।

  1. गुजरात तट-इस तटवर्ती मैदानी भाग में साबरमती, माही, लुनी, बनास, नर्मदा, ताप्ती आदि नदियों के तलछट के जमाव से कच्छ तथा काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय मैदान और सौराष्ट्र के लम्बवत् मैदानों का निर्माण हुआ है। कच्छ का क्षेत्र अभी भी दलदली तथा समुद्र तल से नीचा है। काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय भाग में लावा युक्त गिर पर्वतीय श्रेणियाँ भी मिलती हैं। यहाँ की गिरनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ चोटी (1117 मीटर) की ऊंचाई सबसे अधिक है। गुजरात का यह तटवर्ती मैदान 400 किलोमीटर लम्बा तथा 200 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी औसत ऊँचाई 300 मीटर है।
  2. कोंकण तट-दमन से लेकर गोआ तक का मैदान कोंकण तट कहलाता है। इसके अधिकतर तटवर्ती भागों में धसने की क्रिया होती रहती है। इसीलिए इस 500 किलोमीटर लम्बे मैदान की पट्टी की चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक रह जाती है। इस मैदानी भाग में तीव्र समुद्री लहरों द्वारा बनी संकरी खाड़ियां, आन्तरिक कटाव (Coves) और समुद्री बालू में बीच (Beach) आदि भू-आकृतियां मिलती हैं। थाना की संकरी खाड़ी में प्रसिद्ध मुम्बई द्वीप स्थित है।
  3. मालाबार तट-यह गोआ से लेकर मंगलौर तक लगभग 225 किलोमीटर लम्बा तथा 24 किलोमीटर चौड़ा मैदान है। इसे कर्नाटक का तटवर्ती मैदान भी कहते हैं। यह उत्तर की ओर संकरा परन्तु दक्षिण की ओर चौड़ा है। कई स्थानों पर इसका विस्तार कन्याकुमारी तक भी माना जाता है। इस मैदान में मार्मागोआ, मान्ढवी तथा शेरावती नदियों के समुद्री जल में डूबे हुए मुहाने (Estuaries) मिलते हैं। ..
  4. केरल के मैदान-मंगलौर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किलोमीटर लम्बे, 10 किलोमीटर चौड़े तथा 300 मीटर ऊँचे भाग केरल के मैदान कहलाते हैं। इन में बहुत-सी झीलें (Lagoons) तथा काईल (Kayals) पाये जाते हैं। यहाँ पर वैम्भानद (Vembanad) और अष्टमुदई (Astamudi) झीलों वाले क्षेत्रों में नौकाओं का व्यापारिक स्तर पर प्रयोग होता है।

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धरातल PSEB 10th Class Geography Notes

  1. भारत का धरातल-भारत का धरातल एक समान नहीं है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत तथा उसकी नदियों द्वारा बने विस्तृत मैदान हैं। देश का दक्षिणी भाग एक पठारीय प्लेट है जो प्राचीन चट्टानों से बना है।
  2. भारत के भौतिक भाग-धरातल के अनुसार भारत को पाँच भागों में बांटा जा सकता है-(1) हिमालय पर्वतीय क्षेत्र, (2) उत्तरी विशाल मैदान, (3) प्रायद्वीपीय पठार का क्षेत्र (4) तटीय मैदान (5) भारतीय द्वीप।
  3. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र- बर्फ से ढका रहने वाला यह पर्वतीय क्षेत्र एक विशाल दीवार की तरह पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में कश्मीर तक फैला हुआ है। ये संसार के सबसे ऊंचे पर्वत हैं। इनकी लम्बाई 2400 किलोमीटर तथा चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।
  4. उत्तरी विशाल मैदान-ये मैदान हिमालय पर्वत और दक्षिणी पठार के बीच फैले हुए हैं। ये मैदान नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से बने हैं और ये अत्यंत ही उपजाऊ हैं।
  5. प्रायद्वीपीय पठार- यह पठारी भाग भारत का सबसे प्राचीन भाग है जो पहाड़ियों से घिरा है। यह आग्नेय चट्टानों से बना है।
  6. तटीय मैदान-ये मैदान पूर्वी और पश्चिमी घाट के साथ-साथ फैले हुए हैं। पूर्वी तट के मैदान पश्चिमी तट के मैदानों से चौड़े हैं।
  7. भारतीय द्वीप-बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में अनेक भारतीय द्वीप हैं। ये समूहों के रूप में मिलते हैं। इनमें से लक्षद्वीप समूह तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह प्रमुख हैं।
  8. जल प्रवाह अथवा नदियां-जल प्रवाह का अर्थ है-नदियां। भारत की नदियों को दो भागों में बांटा जा सकता है-उत्तरी भारत की नदियां और दक्षिण भारत की नदियां। उत्तरी भारत की नदियां सारा साल बहती हैं, परन्तु दक्षिणी भारत की नदियां केवल वर्षा ऋतु में ही बहती हैं।