PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु का पहला नाम था?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।

प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंगत में इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे।

प्रश्न 3.
गोइन्दवाल में बाऊली (जल स्त्रोत) की नींव किस गुरु ने रखी थी?
उत्तर-
गोइन्दवाल में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।

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प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु को मिलने गोइन्दवाल आया?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।

प्रश्न 5.
मसन्द प्रथा के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसन्द प्रथा के मुख्य उद्देश्य थे-सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।

प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।

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प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब की नींव 1589 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मियां मीर ने रखी।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिन्दपुर तथा छहरटा।

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प्रश्न 10.
‘दसवन्ध’ से क्या भाव है?
उत्तर-
‘दसवन्ध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।

प्रश्न 11.
‘आदि ग्रन्थ’ का संकलन क्यों किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्धतम तथा प्रामाणिक वाणी का ज्ञान करवाने के लिए किया गया।

प्रश्न 12.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरम्भ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।

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प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।

प्रश्न 14.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा (लंगर) को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।

प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।

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प्रश्न 16.
गोइन्दवाल के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया।

प्रश्न 17.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।

प्रश्न 18.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खण्डन किया।

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प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु सम्बन्धी क्या सुधार किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनन्द’ वाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के समय ईश्वर का स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।

प्रश्न 20.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र मिल गया।

प्रश्न 21.
लाहौर की बाऊली (जल स्त्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।

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प्रश्न 22.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रन्थ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ तथा सुन सकें।

प्रश्न 23.
गुरु अर्जन देव जी के समय घोड़ों के व्यापार के लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खज़ाने में भी धन की वृद्धि हुई।

प्रश्न 24.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।

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प्रश्न 25.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के सम्बन्धों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 26.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।

प्रश्न 27.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि पीरी’ लकार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 28.
अमृतसर की किलाबन्दी बारे गुरु हरगोबिन्द जी ने क्या किया?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गोइन्दवाल की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य गुरु अमरदास जी ने पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके 84वीं सीढ़ी पर स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइन्दवाल की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेल-जोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।

प्रश्न 2.
मंजी-प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में इसका प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

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प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख सम्प्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए?
उत्तर-गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अन्तर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरम्भ की।

प्रश्न 5.
आनन्द साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनन्द’ साहिब का पाठ करें। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मन्त्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म-विवाह तथा प्रसन्नता के अन्य अवसरों पर इसी राग को गाते हैं।

प्रश्न 6.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की, परन्तु उन्होंने देखा कि गोइन्दवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अत: उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।

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प्रश्न 7.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी सम्प्रदाय से अलग कर दिया था, परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह धर्म-स्थल सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रन्थी बने।
हरिमंदिर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

प्रश्न 9.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”

प्रश्न 10.
गुरु साहिबों के समय दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबों के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ

  1. गोइन्दवाल की बाऊली-गोइंदवाल की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमरदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब (Japuji Sahib) का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
  2. लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।

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प्रश्न 11.
मसन्द प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब नियमित तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा सन्तोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य सम्पन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
  2. मसन्द प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूरदूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिन्द साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बन्दूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिन्द जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों को प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

प्रश्न 14.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब हरमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अन्दर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी महाराज (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।

प्रश्न 16.
‘मसन्द प्रथा’ सिक्ख धर्म के विकास के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुई?
उत्तर-
प्रश्न नं० 11 देखें।

प्रश्न 17.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के पंचम पातशाह (सिक्ख गुरु) गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति छोड़ दी। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रन्थ इसी भाषा में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. उदासियों को सिक्ख धर्म से निकालना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
  5. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परन्तु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
    सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गोइन्दवाल की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइन्दवाल के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइन्दवाल की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
  2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
  3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि-ग्रन्थ साहिब के संकलन का आधार बनी।
  4. मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रान्तों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रान्त को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केन्द्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
  5. उदासियों से सिक्खों को पृथक करना-गुरु साहिब ने उदासी सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का जोरदार शब्दों में खण्डन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
  6. नई परम्पराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिन्दुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परन्तु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरम्भ की जिसे आनन्द कारज कहते हैं।
  7. आनन्द साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरम्भ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी मज़बूती प्रदान की।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भलीभान्ति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खण्डन किया। उनका विश्वास था कि जातीय तभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है।
  2. छुआछूत की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
  3. विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
  4. सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निन्दा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
  5. पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
  6. नशीली वस्तुओं की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निन्दा की है। गुरु अमरदास जी गुरु नानक देव जी की भान्ति ऐसी शराब का सेवन करना चाहते थे जिसका नशा कभी न उतरे। वह नशा बेहोश करने वाला न होकर, समाज सेवा के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए।
  7. सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
  8. जन्म तथा मृत्यु के सम्बन्ध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिन्दुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।

प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यल किए?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे. गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया —

  1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलम प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
  2. मसन्द प्रथा का आरम्भ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसन्द प्रथा का आरम्भ किया। इन मसन्दों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
  3. उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी.सम्प्रदाय से अलग कर दिया था। परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की. श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
  4. सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरम्भ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निन्दा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मत्यु-सम्बन्धी कुछ नए नियम जारी किए।
  5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परन्तु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों. का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।’
  6. गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धान्त-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरु-गद्दी अपने छोटे, परन्तु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी।
    गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
    सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परन्तु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी सम्भालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिन्दुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हरमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।
  2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।
  4. हरगोबिन्दपुर तथा छरहटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिन्द के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिन्दपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालन्धर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
  6. मसन्द प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसन्दों को जमा कराएं। मसन्द वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केन्द्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ . कहते थे।
  7. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन करके सिक्खों को एक धार्मिक ग्रन्थ प्रदान किया। गुरु जी ने रामसर में आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य आरम्भ कर दिया। इस कार्य में भाई गुरदास जी ने गुरु जी को सहयोग दिया। अन्त में आदि ग्रन्थ साहिब की रचना का कार्य 1604 ई० में सम्पन्न हुआ। इस पवित्र ग्रन्थ में उन्होंने अपने से पहले चार गुरु साहिबान की वाणी, फिर अपने भक्तों की वाणी तथा उसके पश्चात् भट्टों की वाणी का संग्रह किया।
  8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए
    (i) उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
    (ii) इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।
  9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
    संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रन्थ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

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प्रश्न 6.
मसन्द प्रथा के आरम्भ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरम्भ-मसन्द प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरम्भ किया। जब गुरु जी ने सन्तोखसर तथा अमृतसर के तालाबों की, खुदवाई आरम्भ करवाई तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चन्दा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसन्द कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसन्द प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरन्तर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित बातों द्वारा मसन्द प्रथा का रूप निखारा —

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवन्द) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
  2. गुरु अर्जन देव जी ने दसवन्द की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसन्द कहा जाता था। ये मसन्द एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसन्दों को रसीद दी जाती थी।
  3. इन मसन्दों ने दसवन्द एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवन्द एकत्रित करके मसन्दों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
  4. मसन्द अथवा संगतिये दसवन्द की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
  5. ये मसन्द न केवल अपने क्षेत्र में दसवन्द एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसन्दों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।

महत्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब निरन्तर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उनके इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
  2. पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।
    सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसन्द प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिन्द जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शान्ति-प्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं —

  1. राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना–नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘सच्चे.पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरम्भ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बन्द कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर ली। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
  2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने सन्त सिक्खों को सन्त सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
  3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परन्तु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
  4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक पृथक सेना थी।
  5. घोड़े तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक सम्भव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई। .
  6. अमृतसर की किलेबन्दी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
  7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रातःकाल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
  8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर जबरदस्ती आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परन्तु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

प्रश्न 8.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरु गद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चन्द गुरु हरगोबिन्द साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर कीरतपुर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
  2. पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिन्द साहब ने अनेक पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। . यहां तक कि कई पहाड़ी राजा भी उनके सिक्ख बन गए। परन्तु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिन्दू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरम्भ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
  3. गुरु हरगोबिन्द जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिन्द साहब के मुग़ल सम्राट् जहांगीर से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गए। इस शान्तिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं की। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहाँ पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहाँ पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
    गुरु हरगोबिन्द जी ननकाना साहब भी गए। वहाँ से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहाँ से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोजपुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए।
  4. धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिन्द जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने भाई विधिचन्द को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
  5. हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अन्तिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिन्द जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 9.
सिक्ख धर्म के विकास के लिए गुरु हरराय जी के कामों (कार्यों) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरराय जी सिक्खों के सातवें गुरु थे। उन्होंने गुरु हरगोबिन्द साहिब के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरुगद्दी सम्भाली। वह स्वभाव से कोमल मन तथा शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। उनके गुरु काल (1645-1661 ई०) में सिक्ख धर्म के विकास का वर्णन इस प्रकार है —

  1. सिक्ख धर्म के प्रति सेवाएं-गुरु हरराय जी ने युद्ध की नीति को त्याग दिया और सदा शान्ति की नीति का अनुसरण किया। वह जीवन भर गुरु नानक देव जी के पद-चिह्नों पर चले। उनका अधिकतर समय कीरतपुर में व्यतीत हुआ। उन्होंने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते थे और उन्हें सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए
    1. वह प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वह लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
    2. उन्होंने अनेक लोगों को सिक्ख धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नए शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गोंदा तथा भाई भगत।
    3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नाम के एक बैरागी को अपना चेला बना लिया। गुरु जी ने उसका नाम भक्त भगवान् रखा और उसे पूर्व में धर्म प्रचार का कार्य सौंप दिया। वह इतना प्रभावशाली प्रचारक सिद्ध हुआ कि उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं। गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए। उन्होंने मुख्य रूप से करतारपुर, मुकन्दपुर (जालन्धर), दोसांझ तथा मालवा में धर्म-प्रचार का कार्य किया। इस प्रकार गुरु हरराय जी के काल में सिक्ख धर्म में बड़ी उन्नति हुई।
  2. फूल और उसके परिवार को आशीर्वाद देना-गुरु हरराय जी एक बार मालवा के एक गांव नथाना (Nathana) में गए। वहां उन्होंने फूल नामक एक गूंगे बालक को आशीर्वाद दिया कि वह बड़ा धनवान् तथा प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा और उसकी सन्तान के घोड़े यमुना का पानी पीयेंगे। इसके अतिरिक्त वे कई पीढ़ियों तक राज करेंगे और जितनी गुरु की सेवा करेंगे उतना ही उनका सम्मान बढ़ेगा। गुरु जी की भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल की सन्तान ने नाभा, जींद और पटियाला के राज्यों पर राज किया।
  3. दारा शिकोह को आशीर्वाद-गुरु हरराय जी बड़े शान्तिप्रिय व्यक्ति थे और लड़ाई-झगड़े से दूर ही रहना चाहते थे। शाहजहां के बड़े पुत्र दारा शिकोह के साथ उनके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। 1657-58 ई० में शाहजहां के बेटों में सिंहासन प्राप्ति के लिए युद्ध आरम्भ हो गया। इसमें औरंगजेब की जीत हुई और दारा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। दारा अपने बच्चों सहित पंजाब की ओर भाग निकला। दारा गुरु जी से परिचित था। अतः गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करने तथा उनसे सहायता लेने के लिए वह उनके पास गया। गुरु जी बहुत शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। वह दारा को सैनिक सहायता नहीं दे सकते थे। अत: उन्होंने दारा को केवल शरण और आशीर्वाद दिया।
  4. गुरु हरराय जी का दिल्ली बुलाया जाना-मुग़ल सम्राट औरंगजेब गुरु हरराय जी द्वारा दारा शिकोह को दी जाने वाली सहायता के बारे में जानना चाहता था। अतः उसने गुरु जी को दिल्ली बुलवा भेजा। गुरु जी ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र रामराय को औरंगजेब के दरबार में भेज दिया। औरंगजेब ने रामराय से बहुत-से प्रश्न किए जिनका रामराय ने बड़ी योग्यतापूर्वक उत्तर दिया। औरंगजेब यह सिद्ध करना चाहता था कि कुछ बातें ग्रन्थ साहिब में मुसलमानों के विरुद्ध लिखी हुई हैं। इसी उद्देश्य से उसने गुरु नानक देव जी की ‘आसा दी वार’ के एक श्लोक की ओर इशारा किया जिसका भाव इस प्रकार है-“मुसलमान की मिट्टी कुम्हार के भट्टे में जाकर जल सकती है, क्योंकि इससे बर्तन और ईंट बनता है। ज्यों-ज्यों यह जलती है, यह चिल्लाती है।” रामराय ने चतुराई दिखाते हुए जान-बूझ कर कुछ शब्द बदल दिये। रामराय ने औरंगजेब को बताया कि श्लोक में ‘मुसलमान’ शब्द भूल से लिखा गया है। वास्तव में यह शब्द ‘बेइमान’ है, परन्तु जब गुरु जी को इस बात का पता चला तो वे बड़े दुःखी हुए। उन्होंने रामराय के विषय में यह घोषणा की कि ऐसे डरपोक को गुरुगद्दी पर बैठने का कोई हक नहीं है।
  5. हरकृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करनी-गुरुं हरराय जी रामराय को उसकी कायरता के कारण क्षमा न कर सके। अतः उन्होंने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया और अपने पांच वर्षीय पुत्र हरकृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। लगभंग सत्रह वर्ष तक गुरुगद्दी सम्भालने के पश्चात् 6 अक्तूबर, 1661 को गुरु हरराय जी ज्योति-जोत समा गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर में हुआ। उनकी माता का नाम सुलखणी तथा पिता का नाम गुरु हरराय जी था। वह 1661 ई० में सिक्खों के आठवें गुरु बने। इस समय उनकी आयु केवल पांच वर्ष की थी। एक बालक होने के कारण गुरु हरकृष्ण जी को ‘बाल गुरुं’ के नाम से भी याद किया जाता है। उनके गुरुकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. रामराय का विरोध-गुरु हरकृष्ण जी को अपने स्वार्थी भाई रामराय के विरोध का सामना भी करना पड़ा। रामराय सातवें गुरु हरराय जी का बड़ा पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। वह किसी भी मूल्य पर गुरुगद्दी के अधिकार को खोना नहीं चाहता था। अत: उसने औरंगजेब के दरबार में न्याय की मांग की। औरंगजेब उस समय विद्रोहों को दबाने में लगा हुआ था। इसलिए वह इस ओर कोई विशेष ध्यान न दे सका, परन्तु कुछ समय पश्चात् उसने दोनों भाइयों का झगड़ा निपटाने का फैसला कर लिया। उसने गुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली आने के लिये आमन्त्रित किया।
  2. गुरु जी दिल्ली में-गुरु हरकृष्ण जी मार्ग में सिक्ख धर्म का प्रचार करते हुए दिल्ली पहुंचे। वहां वह मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे। राजा जय सिंह ने गुरु साहिब की सूझ-बूझ देखने के लिए अपनी महारानी को एक दासी के वस्त्र पहना कर अन्य दासियों के बीच बिठा दिया। तब गुरु जी को महारानी की गोद में बैठने के लिये कहा गया। गुरु जी ने सभी स्त्रियों के चेहरों को ध्यानपूर्वक देखा और महारानी को पहचान गए। वह झट से उसकी गोद में जा बैठे। राजा जय सिंह गुरु साहिब की सूझबूझ से बहुत प्रभावित हुआ। इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।
  3. ज्योति-जोत समाना-उन दिनों दिल्ली में चेचक तथा हैजे की बीमारियां फैली हुई थीं। गुरु जी ने बीमारों और ज़रूरतमन्दों की अथक सेवा की परन्तु गुरु जी को चेचक के भयंकर रोग ने जकड़ लिया । उन्होंने अपना अन्त समय निकट जान अपना उत्तराधिकारी घोषित करने का प्रयास किया। वह केवल ‘बाबा बकाला’ के ही शब्द बोल सके तथा उस परम ज्योति में समा गए। बाबा बकाला से अभिप्राय यह था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव (अमृतसर) में है। यह घटना 30 मार्च, 1664 ई० की थी। गुरु जी की याद में यमुना के किनारे गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की मालवा-यात्रा का वर्णन करो।
उत्तर-
1673 ई० के मध्य में गुरु तेग़ बहादुर साहिब मालवा प्रदेश की यात्रा पर गए। इस यात्रा में उनकी पत्नी गुजरी जी तथा पुत्र गोबिन्द दास भी उनके साथ थे।

  1. गुरु साहिब सर्वप्रथम सैफ़ाबाद पहुंचे। सैफ़ाबाद में गुरु साहिब की यह दूसरी यात्रा थी। यहां के मनसबदार – नवाब सैफूद्दीन ने उनका पुनः हार्दिक स्वागत किया। उसने गुरु साहिब तथा उनके परिवार को दुर्ग में ठहराया। गुरु साहिब यहां तीन मास तक रहे। यहां रहकर उन्होंने सिख धर्म का प्रचार किया।
  2. सैफ़ाबाद के पश्चात् गुरु साहिब ने मालवा तथा बांगर प्रदेश के अनेक गांवों तथा नगरों की यात्रा की। डॉ० त्रिलोचन सिंह के अनुसार, इस प्रदेश में गुरु साहिब ने लगभग 10 स्थानों का भ्रमण किया। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण स्थान ये थे : मूलोवाल, सेखों, ढिल्लवां, जोगा, भीखी, खीवा, समऊं, खियाला, मौंड, तलवंडी साबो, भठिंडा, बराह, धमधान आदि। इन सभी स्थानों पर आज भी गुरुद्वारे बने हुए हैं जो गुरु साहिब की यात्रा की याद दिलाते हैं। मूलोवाल में गुरु साहिब में पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुआं खुदवाया। अन्य गांव भी काफ़ी पिछड़े हुए थे। गुरु साहिब ने इन सभी गांवों में लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास किया। गुरु साहिब 1673 से 1675 ई० के बीच इस प्रदेश के गांवों का भ्रमण करते रहे और यहां के लोगों में धर्म का प्रचार करते रहे।

प्रभाव-मालवा में गुरु साहिब की यात्राओं का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा

  1. गुरु साहिब के प्रेमपूर्वक व्यवहार से प्रभावित होकर वहां के ज़मींदारों ने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार करना आरम्भ कर दिया।
  2. गुरु साहिब ने स्थान-स्थान पर धर्म-प्रचार केन्द्र स्थापित किए। उनके आकर्षक व्यक्तित्व तथा मधुर वाणी से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके शिष्य बन गए।
  3. उनके उपदेशों के फलस्वरूप लोगों में नई चेतना का संचार हुआ। उनमें नया धार्मिक उत्साह उत्पन्न हुआ और वे साहसी एवं निडर बने। सिक्खों में ऐसे उत्साह एवं एकता को देखकर मुग़ल सरकार भी चिन्ता में पड़ गई।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।

प्रश्न 2.
लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।

प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में ‘मत्ते दी सराय’ के निवासी श्री देवीचन्द जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दत्तू तथा दस्सू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरों तथा बीबी अनोखी थीं।

प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्री चन्द जी ने स्थापित किया।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र कौन-सा स्थान था?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।

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प्रश्न 9.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 10.
गुरु अमरदास जी को गद्दी सम्भालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचन्द के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

प्रश्न 11.
सिक्खों के दूसरे गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था?
उत्तर-
भाई लहना।

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प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी को गुरु-गही कब सौंपी गई?
उत्तर-
1538 ई० में।

प्रश्न 14.
लंगर प्रथा किसने चलाई?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।

प्रश्न 15.
उदासी सम्प्रदाय किसने चलाया?
उत्तर-
श्रीचन्द जी ने।

प्रश्न 16.
गोइन्दवाल की स्थापना (1546 ई०) किसने की?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।

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प्रश्न 17.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहाँ करवाया?
उत्तर-
खडूर साहिब में।

प्रश्न 19.
गोइन्दवाल में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 20.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 21.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किस मुगल शासक के काल में हुई?
उत्तर-औरंगज़ेब।

प्रश्न 22.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरम्भ करवाई?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 23.
‘आनन्द’ नामक बाणी की रचना किसने की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 24.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

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प्रश्न 25.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।

प्रश्न 26.
मसंद प्रथा का आरम्भ सिक्खों के किस गुरु ने आरम्भ किया?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 27.
सिक्खों के पांचवें गरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 28.
अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

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प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी ने कौन-कौन से शहर बसाये?
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर तथा हरगोबिन्दपुर।

प्रश्न 30.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का सम्बन्ध किस प्रथा से है?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।

प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 32.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 33.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
1606 ई० में।

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प्रश्न 34.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 35.
गुरु हरगोबिन्द जी का पठान सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैदा खां।

प्रश्न 36.
अकाल तख़्त का निर्माण, लोहगढ़ का निर्माण तथा सिक्ख सेना का संगठन सिक्खों के किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 37.
अमृतसर की किलाबन्दी किसने करवाई?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

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प्रश्न 38.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी?
उत्तर-
राजा कल्याण चन्द ने।

प्रश्न 39.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बनाया?
उत्तर-
जहांगीर ने।

प्रश्न 40.
सिक्खों के सातवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु हरराय जी।

प्रश्न 41.
शाहजहां के किस पुत्र को गुरु हरराय जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ?
उत्तर-
दारा शिकोह को।

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प्रश्न 42.
‘आसा-दी-वार’ के एक श्लोक का अर्थ बदलने की ग़लती किसने की?’
उत्तर-
रामराय ने।

प्रश्न 43.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु-गद्दी पर कब बैठे?
उत्तर-
1661 ई० में।

प्रश्न 44.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी किसके बंगले पर ठहरे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी दिल्ली में राजा जयसिंह के बंगले पर ठहरे।

प्रश्न 45.
बालगुरु के नाम से कौन विख्यात है?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी।

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प्रश्न 46.
गुरुद्वारा बंगला साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 47.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में कौन थे?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 48.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने घूके वाली गाँव का नाम क्या रखा?
उत्तर-
गुरु का बाग।

प्रश्न 49.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत कब हुई?
उत्तर-
1675 ई० में।

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प्रश्न 50.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
पटना में।

प्रश्न 51.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666.

प्रश्न 52.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी कहाँ हुई?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 53.
गुरु अमरदास जी के कितने पुत्र तथा पुत्रियां थीं? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के दो पुत्र थे। मोहन तथा मोहरी तथा उनकी दो पुत्रियां दानी और भानी थीं।

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प्रश्न 54.
गोइन्दवाल की बावली में कितनी सीढ़ियां बनवाई गईं और क्यों?
उत्तर-
इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई गईं क्योंकि गुरु साहिब ने घोषणा की थी कि प्रत्येक सीढ़ी पर बैठ कर जपुजी साहिब का पाठ करने वाले को 84 लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिल जाएगी।

प्रश्न-55.
‘मंजियों’ की स्थापना किस गुरु साहिब ने की?
उत्तर-
‘मंजियों’ की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की।

प्रश्न 56.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनन्द विवाह की पद्धति आरम्भ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।

प्रश्न 57.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइन्दवाल में बावली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।

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प्रश्न 58.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।

प्रश्न 59.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइन्दवाल में एकत्रित होते थे।

प्रश्न 60.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।

प्रश्न 61.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरुगद्दी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।

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प्रश्न 62.
गुरु अमरदास जी ने गुरु-गद्दी किस घराने को सौंपी?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने यह गद्दी गुरु रामदास जी तथा बीबी भानी जी के सोढी घराने को सौंपी।

प्रश्न 63.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 64.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चन्द, महादेव तथा अर्जन देव।

प्रश्न 65.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसन्द प्रथा को आरम्भ किया। मसन्दों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।

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प्रश्न 66.
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम क्या था? इसकी स्थापना किसने की थी?
उत्तर-
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम रामदासपुर था तथा इस नगर की स्थापना चौथे गुरु रामदास जी ने की।

प्रश्न 67.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।

प्रश्न 68.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो बाज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा बसाया गया यह बाज़ार ‘गुरु का बाज़ार’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 69.
गुरु रामदास जी ने “गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।

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प्रश्न 70.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइन्दवाल में हुआ।

प्रश्न 71.
गुरु अर्जन देव जी के माता-पिता का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के पिता का नाम गुरु रामदास जी तथा उनकी माता जी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 72.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।

प्रश्न 73.
गुरु रामदास जी ने पृथी चन्द को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यन्त्रकारी था।

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प्रश्न 74.
गुरु गद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।

प्रश्न 75.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।

प्रश्न 76.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया। वे समझ गए कि धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना आवश्यक है।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के सम्बन्ध बिगड़ गए।

प्रश्न 77.
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की?
उत्तर-
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।

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प्रश्न 78.
हरमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 79.
गुरु जी के प्रतिनिधियों को क्या कहते थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसन्द कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

प्रश्न 80.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने किया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

प्रश्न 81.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कब सम्पूर्ण हुआ?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।

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प्रश्न 82.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब को अमृतसर के हरमंदर साहिब में स्थापित किया गया। .

प्रश्न 83.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी बाबा बुड्डा जी. को नियुक्त किया गया।

प्रश्न 84.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 61, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।

प्रश्न 85.
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।

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प्रश्न 86.
गुरु हरगोबिन्द जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी?
उत्तर-
गुरु गद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।

प्रश्न 87.
गुरु हरगोबिन्द जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने की कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
मुग़लों और सिक्खों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ चुके थे। अतः सिक्खों की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।
अथवा
सिक्ख धर्म में जाटों के प्रवेश से भी सैन्य-नीति को बल मिला।

प्रश्न 88.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक गोइन्दवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।

प्रश्न 89.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसन्द’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 90.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचन्द, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।

प्रश्न 91.
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।

प्रश्न 92.
गुरु हरगोबिन्द जी को बन्दी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसन्द न आई।
अथवा
चन्दू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।

प्रश्न 93.
गुरु हरगोबिन्द जी को ‘बन्दी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई?
उत्तर-
52 बन्दी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।

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प्रश्न 94.
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुगलों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए? यह युद्ध कब और कहां हुए?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।

प्रश्न 95.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम अलमस्त, फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।

प्रश्न 96.
गुरु हरराय जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी तथा उनकी माता का नाम निहाल कौर जी था।

प्रश्न 97.
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम थे-रामराय तथा हरकृष्ण।

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प्रश्न 98.
गुरु हरराय जी के किन्हीं चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम थे-बैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडी तथा भाई भगतू।

प्रश्न 99.
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए किन तीन व्यक्तियों को नियुक्त किया?
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए कई व्यक्तियों को नियुक्त किया जिनमें से प्रमुख थे-भक्त भगवान, भाई फेरू और भाई गौंडा।

प्रश्न 100.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी जहां रुके थे आज वहां कौन-सा गुरुद्वारा है?
उत्तर-
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे, वहां उस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु …………. का पहला नाम भाई लहना था।
  2. ……………. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
  3. ……………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
  4. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष …………. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  5. गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री …………….. और मां का नाम माता ………….. था।
  6. ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र ………… जी ने स्थापित किया।
  7. मंजियों की स्थापना गुरु ………….. ने की।
  8. गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को ………… में हुआ।
  9. ……….. शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु थे।
  10. हरमंदर साहब का निर्माण कार्य …………. ई० में पूरा हुआ।

उत्तर-

  1. अंगद साहिब,
  2. गुरु रामदास जी,
  3. गोइंदवाल साहिब,
  4. कीरतपुर साहिब,
  5. फेरूमल तथा सभराई देवी,
  6. बाबा श्रीचंद,
  7. अमर दास जी,
  8. गोइंदवाल साहिब
  9. गुरु अर्जन साहिब,
  10. 1601.

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III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी-
उत्तर –
(A) गुरु अर्जन देव जी ने
(B) गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु अंगद देव जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(C) गुरु अंगद देव जी ने

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया-
(A) अमृतसर
(B) जालंधर
(C) कीरतपर साहिब
(D) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(A) अमृतसर

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच किस नगर की नींव रखी?
(A) जालंधर
(B) गोइंदवाल साहिब
(C) अमृतसर
(D) तरनतारन।
उत्तर-
(D) तरनतारन।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली
(A) 1479 ई० में
(B) 1539 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1670 ई० में।
उत्तर-
(B) 1539 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(A) 1552 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1479 ई० में।
उत्तर-
(A) 1552 ई० में

प्रश्न 6.
जहांगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(A). गुरु अंगद देव जी
(B) गुरु अमरदास जी
(C) गुरु अर्जन देव जी
(D) गुरु राम दास जी।
उत्तर-
(C) गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 7.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु गद्दी पर बैठे
(A) 1661 ई० में
(B) 1670 ई० में
(C) 1666 ई० में
(D) 1538 ई० में।
उत्तर-
(A) 1661 ई० में

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प्रश्न 8.
बालगुरु के नाम से विख्यात हैं
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(B) गुरु हरकृष्ण जी

प्रश्न 9.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ
(A) कीरतपुर साहिब में
(B) पटना में
(C) दिल्ली में
(D) तरनतारन में।
उत्तर-
(B) पटना में

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(A) 1564 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1574 ई० में।
उत्तर-
(D) 1574 ई० में।

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प्रश्न 12.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु रामदास जी ने
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(A) गुरु अमरदास जी ने

प्रश्न 13.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया-
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु अर्जन देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(B) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 14.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया
(A) भाई पृथिया को
(B) श्री महादेव जी को
(C) बाबा बुड्डा जी को
(D) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(C) बाबा बुड्डा जी को

प्रश्न 15.
दिल्ली में गुरु हरराय जी किस के घर-ठहरे?
(A) राजा जय सिंह के
(B) गुरु हरगोबिन्द जी के
(C) बैरागी भक्त गीर के
(D) मुगल शासक जहांगीर के।
उत्तर-
(A) राजा जय सिंह के

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. गुरु अंगद साहिब का पहला नाम भाई लहना था।
  2. अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।
  3. गुरु रामदास जी सिखों के छठे गुरु थे।
  4. हरमंदर साहिब की नींव गुरु रामदास जी ने रखी।
  5. गुरु अर्जन देव जी ने रावी और ब्यास नदियों के बीच तरनतारन नगर की नींव रखी।
  6. गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु तेग बहादुर जी ने की थी।
  7. जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
  8. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  9. गुरुद्वारा बंगला साहिब पटना में स्थित है।
  10. गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत 1675 ई० में हुई।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✗),
  5. (✓),
  6. (✗),
  7. (✓),
  8. (✓)
  9. (✗),
  10. (✓)

V. उचित मिलान

  1. भाई लहना – गुरु रामदास जी
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया – सूफी संत मियां मीर
  3. सिक्खों के चौथे गुरु – गुरु अंगद साहिब
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी – गुरु अमरदास जी

उत्तर-

  1. भाई लहना-गुरु अंगद साहिब,
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया-गुरु अमरदास जी,
  3. सिक्खों के चौथे गुरु-गुरु रामदास जी,
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी-सूफी संत मियां मीर।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिक्ख पन्थ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परम्परा कैसे स्थापित हुई?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी सम्भाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परम्परा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास के बाद के समय में यह विचार गुरु पन्थ के सिद्धान्त के रूप में विकसित हुआ।

प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चन्द तथा लक्षमी दास के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे

  1. आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धान्त था, परन्तु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धान्त का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धान्त का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
  2. नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र था, परन्तु बाबा श्री चन्द नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना नम्रता तथा सेवा-भाव की साक्षात् मूर्ति थे।
  3. गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परन्तु उनके पुत्र श्रीचन्द जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ़ विश्वास था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख मिल कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक आश्रय स्थान का कार्य करने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा प्रसिद्धि का एक महान् यन्त्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चंढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिन्दुओं द्वारा अकेले में स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परन्तु गुरु जी का लंगर सम्भवतः पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवण्ड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवण्ड को दरबार से निकाल दिया। अन्त में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।

प्रश्न 5.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने? उन्हें गुरु गद्दी कैसे मिली?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी। वे वाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरन्त गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठण्ड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पड़े। यह देख कर एक बुनकर की. पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद-भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

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प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”

प्रश्न 8.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खण्डन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. मुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

प्रश्न 9.
पंथ के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अनेक कार्य किये

  1. उन्होंने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
  2. उन्होंने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी।
  3. उन्होंने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। उन्होंने बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया।
  4. सिक्ख पहले अपनी इच्छा से गुरु जी को भेंट देते थे, परन्तु अब गुरु जी ने सिक्खों से आय का दसवां भाग एकत्रित करने के लिए स्थान-स्थान पर सेवक रखे। इन सेवकों को मसन्द कहते थे।

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प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

प्रश्न 11.
आदि ग्रन्थ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रमाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रन्थ को साक्षी मान कर सम्पन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रन्थ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भण्डार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनन्द प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
आदि ग्रन्थ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यन्त ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निन्दा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म माम की कोई चीज नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिन्दू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 13.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे —

  1. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था।
  2. पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा।
  3. गुरु जी का शाही ठाठ-बाठ-गुरु जी ने एक शानदार दरबार की स्थापना कर ली थी और वह शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उन्होंने अब ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली थी। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस बात को सहन न कर सका और उसने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया।
  4. गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई —

  1. गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर लिया। अब सिक्ख ‘सन्त सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।।
  2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे उनके मन में मुगल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई।
  3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसन्द प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिन्दपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
  3. उन्होंने ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन करके एक महान् सम्पादक होने का परिचय दिया।
  4. उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहां रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।

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प्रश्न 16.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया

  1. मुगलों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट् जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिन्द जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
  3. गुरु अर्जन देव जी के अन्तिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने सन्देश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरम्भ कर दी।
  4. जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतन्त्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।

प्रश्न 17.
गुरु हरगोबिन्द जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पन्थ को एक नया मोड़ दिया। –

  1. उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण की। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।
  2. उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  3. जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परन्तु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बन्दी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
  4. गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट् शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।

प्रश्न 18.
सिक्ख धर्म के प्रति गुरु हरराय जी की कोई चार सेवाएं बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए

  1. वे प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल को धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
  2. उन्होंने अनेक लोगों को इस धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नवीन शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडा तथा भाई भगतु।
  3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नामक एक बैरागी साधु को अपना शिष्य बना लिया और उसका नाम भक्त भगवान् रखा। उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं।
  4. गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। इस शहीदी का क्या महत्त्व है?
अथवा
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिक्ख इतिहास के पन्ने पलट दिए।” इस कथन की पुष्टि करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं.

  1. सिक्ख धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।
  2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। यह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।
  3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुगल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परन्तु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदुशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।
  4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अत: अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़कना शुरु कर दिया।
  5. चन्दू शाह की शत्रुता-चन्दू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इन्कार कर दिया था। अतः उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।
  6. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रन्थ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अत: जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रन्थ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रन्थ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रन्थ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परन्तु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।
  7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परन्तु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहांगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनने का आदेश दिया गया।
  8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई, 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गईं। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० को गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
    शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

    1. गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अतः शान्तिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘सन्त सिपाही’ बन गए।
    2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुगलों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
    3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
      निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शान्तिप्रिय सिक्खों को सन्त सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।

प्रश्न 2.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी निम्नलिखित कारणों से हुई.

  1. सिक्खों और मुगलों में बढ़ता हुआ विरोध-जहांगीर ने सिक्ख गुरु अर्जन देव जी को शहीद किया था। अतः सिक्खों ने आत्मरक्षा के लिए शस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए थे। उनके शस्त्र धारण करते ही मुग़लों तथा सिक्खों में शत्रुता इतनी गहरी हो गई जो आगे चलकर गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का कारण बनी।
  2. औरंगजेब की असहनशीलता की नीति-औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपनी हिन्दू जनता । पर अत्याचार करने शुरू कर दिए और उन पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयास भी किया। औरंगज़ेब द्वारा निर्दोष लोगों पर लगाए जा रहे प्रतिबन्धों ने गुरु तेग बहादुर जी के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपनी जान देकर भी इन अत्याचारों से लोगों की रक्षा करेंगे। आखिर उन्होंने यही किया।
  3. सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्ण प्रचार-गुरु नानक देव जी के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ही सिक्खों के एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने स्थान-स्थान पर भ्रमण करके सिक्ख मत का प्रचार किया। औरंगजेब सिक्ख धर्म के इस प्रचार को सहन न कर सका। वह मन ही मन सिक्ख गुरु तेग बहादुर जी से ईर्ष्या करने लगा।
  4. राम राय की शत्रुता-गुरु हरकृष्ण जी के भाई रामराय ने औरंगजेब से शिकायत की कि गुरु जी का धर्म प्रचार का कार्य राष्ट्र हित के विरुद्ध है। उसकी बातों में आकर औरंगजेब ने गुरु जी को सफ़ाई पेश करने के लिए मुग़ल दरबार में (दिल्ली) बुलाया और यहां गुरु जी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
  5. कश्मीरी ब्राह्मणों की पुकार-कुछ कश्मीरी ब्राह्मण मुसलमानों के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। गुरु साहिब ने महसूस किया कि धर्म को बलिदान की आवश्यकता है। अतः उन्होंने ब्राह्मणों से कहा कि वे औरंगजेब से जाकर कहें कि “पहले गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बनाओ, फिर हम सब लोग भी आपके धर्म को स्वीकार कर लेंगे।”

इस प्रकार आत्म-बलिदान की भावना से प्रेरित होकर गुरु तेग़ बहादुर जी दिल्ली की ओर चल पड़े जहां उन्हें शहीद कर दिया गया। महत्त्व-इतिहास में गुरु तेग़ बहादुर साहिब की शहीदी के महत्त्व को निम्नलिखित बातों के आधार पर जाना जा सकता है

  1. धर्म की रक्षा के लिए बलिदान की परम्परा को बनाये रखना-गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देकर गुरु साहिबान द्वास बलिदान की परम्परा को बनाए रखा।
  2. मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान से सारे पंजाब में मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं भड़क उठीं।
  3. खालसा की स्थापना-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से गुरु गोबिन्द सिंह जी इस परिणाम पर पहुंचे कि जब तक भारत में मुग़ल राज्य रहेगा, तब तक धार्मिक अत्याचार समाप्त नहीं होंगे। मुग़ल अत्याचारों का सामना करने के लिए उन्होंने 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में खालसा की स्थापना की।
  4. मुगल साम्राज्य को धक्का-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला दी। गुरु गोबिन्द सिंह जी के वीर खालसा मुग़ल साम्राज्य से निरन्तर जूझते रहे जिससे मुग़लों की शक्ति को भारी धक्का लगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान PSEB 10th Class History Notes

  • गुरु अंगद देव जी-दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रन्थ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
  • गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइन्दवाल चले गए। वहां उन्होंने एक बावली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी ने विवाह की एक साधारण विधि प्रचलित की और इसे आनन्द-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
  • गुरु रामदास जी-चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरम्भ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अन्तिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसन्द प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
  • गुरु अर्जन देव जी-गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। आपने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया। आपने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी। आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया।
  • गुरु हरगोबिन्द जी-गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही ‘नवीन नीति’ अपनाई। इसके अनुसार वह सिक्खों के धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये। उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  • श्री गुरु हरराय जी तथा श्री हरकृष्ण जी-गुरु हरगोबिन्द जी के पश्चात् श्री गुरु हरराय जी तथा श्री गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्खों का धार्मिक नेतृत्व किया। उनका समय सिक्ख इतिहास में शान्तिकाल कहलाता है।
  • श्री गुरु तेग बहादुर जी-नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी गुरु नानक देव जी की भान्ति शान्त स्वभाव, गुरु अर्जन देव जी की भान्ति आत्म-त्यागी तथा पिता गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति साहसी तथा निर्भीक थे। उन्होंने बड़ी निर्भीकता से सिक्ख धर्म का नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी शहीदी द्वारा सिक्ख धर्म में एक नवीन क्रान्ति पैदा कर दी।
  • मसन्द प्रथा-‘मसन्द’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।
  • आदि ग्रन्थ का संकलन-आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया। गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।
  • मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules.

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. बॉस्केट बाल कोर्ट की लम्बाई और चौड़ाई = 28 × 15 मीटर
  2. बॉस्केट बाल टीम के खिलाड़ी = 12 खिलाड़ी खेलते हैं, सात बदलवें
  3. कोर्ट के केन्द्रीय चर्क का अर्धव्यास = 1.80 मीटर सैं०मी०
  4. रेखाओं की चौड़ाई = 5 सैं० मी०
  5. बोर्ड की मोटाई = 3 सैं० मी०
  6. बोर्ड की ज़मीन से निचले भाग की ऊंचाई = 2.90 मीटर
  7. बोर्ड का आकार = 180 × 120 मीटर
  8. बाल का घेरा = 75 से 78 सै० मी०
  9. बाल का भार = 600 से 650 ग्राम
  10. बोर्ड के आयात का साइज़ = 49 × 45 ग्राम
  11. पोलों की दूरी = 2 मीटर
  12. खेल का समय = 40 मिनट के चार क्वाटर 10-2-10 (10) 10-2-10
  13. बास्केट बाल के अधिकारी = एक टेबल कमिश्नर, एक रैफरी, एक अम्पायर, एक चीफ रैफरी, एक टाइम कीपर, एक स्कोरर कम 24 सैकिण्ड आपरेटर
  14. फालतू समय की मियाद = 5 मिनट
  15. दो मध्य के बीच आराम = 10 मिनट।

बास्केट बाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Basket-Ball)

  1. बॉस्केट बाल का मैच दो टीमों के मध्य होता है। प्रत्येक टीम में पाँच-पाँच खिलाड़ी होते हैं। इसके अतिरिक्त सात अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं जिन्हें हम बदलवें खिलाड़ी (Substitutes) कहते हैं।
  2. प्रत्येक टीम चाहती है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद डाल दे तथा विरोधी टीम को न ही गेंद मिले और न ही प्वाईंट।
  3. बॉस्केट बाल खेल का मैदान आयताकार होता है। मैदान की लम्बाई 28 मीटर तथा चौड़ाई 15 मीटर होती है।
  4. टीम के प्रत्येक खिलाड़ी की बनियान के सामने और पीछे नम्बर लगे होते हैं। एक टीम के दो खिलाड़ी एक ही नम्बर नहीं डाल सकते।
  5. जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो या अधिकारी आज्ञा न दे कोई भी खिलाड़ी मैदान से बाहर नहीं जा सकता।
  6. खेल 10 – 2 – 10, 10, 10 – 2- 10 की चार अवधियों की होती है तथा दो अवधियों के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम होता है।
  7. बॉस्केट बाल के खेल में खिलाड़ियों को जितनी बार चाहे बदला जा सकता है।
  8. जब कोई टीम 4 फ़ाऊल कर जाती है तो विरोधी टीम को 2 या 3 फ्री-थ्रोज़ हालात अनुसार दी जाती हैं।
  9. किसी टीम का एक खिलाड़ी यदि 5 फ़ाऊल कर दे तो उसे मैच में से बाहर निकाल दिया जाता है।
  10. खेल के मध्य किसी समय भी कोई खिलाड़ी बदला जा सकता है परन्तु शर्त यह है कि थ्रो उस टीम की हो।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए। रैस्ट्रिक्टेड एरिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खेल-बॉस्केट बाल खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में पांच-पांच खिलाड़ी होते हैं। प्रत्येक टीम का यह लक्ष्य होता है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद फेंक दे, न विरोधी टीम के हाथ गेंद लगने दे और न ही अंक प्राप्त करने दे।

कोर्ट-बॉस्केट बाल कोर्ट 28 मीटर लम्बा और 15 मीटर चौड़ा होगा। यह आयताकार और ठोस धरातल वाला होगा। यदि खेल हाल कमरे में हो तो हाल की छत की ऊंचाई कम-से-कम 7 मीटर होनी चाहिए। सम्बन्धित अधिकारी दो मीटर की लम्बाई और दो मीटर चौड़ाई की सीमा के अन्दर परिवर्तन (यह परिवर्तन एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं) की आज्ञा दे सकता है। फिर भी फीबा (FIBA-International Amateur Basketball Federation) की बड़ी सरकारी प्रतियोगिताओं के लिए निर्णित लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार नई कोर्ट (Court) बनाई जाएगी। कोर्ट में पर्याप्त मात्रा में एक-सा प्रकाश रहना चाहिए।

सीमा-रेखाएं-कोर्ट की परिधि स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित की जाएगी जो प्रत्येक स्थान से बाधाओं से कम-से-कम 2 मीटर की दूरी पर होगी। इन रेखाओं और दर्शकों के बीच दूरी कम-से-कम 3 मीटर की होगी।
केन्द्रीय वृत्त-कोर्ट के मध्य में एक वृत्त अंकित किया जाएगा। उसका अर्द्धव्यास 1.80 मीटर होगा। इसे केन्द्रीय वृत्त कहा जाता है।
केन्द्रीय रेखा-अन्त रेखाओं के समानान्तर केन्द्रीय रेखा खींची जाएगी जो कोर्ट को आगे वाली कोर्ट और पीछे वाली कोर्ट में विभक्त करेगी। यह रेखा 15 सम बाहर दोनों तरफ होगी।
BASKET-BALL GROUND
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तीन अंक मैदानी गोल-क्षेत्र-एक नई मार्किंग “तीन अंक मैदानी गोल क्षेत्र” की जाती है। यह दो सीमित चापें होती हैं जिनमें से प्रत्येक का बाहरी किनारों से अर्द्धव्यास 6.25 मीटर होता है। केन्द्र फर्श पर बिन्दु होता है, टोकरी के केन्द्र के ठीक लम्ब रूप होता है और किनारे वाली लकीरों पर समाप्त होती हुई पार्श्व रेखाओं के समानान्तर रहती है। केन्द्र अन्तिम लकीर के केन्द्रीय बिन्दु से 1.20 मीटर 0.225 मीटर + 0.10 मीटर + 1.525 मीटर होता है।
नोट-यह चाप केवल अर्द्ध वृत्त तक ही है और इसके पश्चात् पार्श्व रेखा के समानान्तर है (देखो चित्र)
फ्री-थो रेखाएं-प्रत्येक अन्त-रेखा के समानान्तर एक फ्री-थ्रो रेखा खींची जाएगी जो अन्त-रेखा के भीतर किनारे से 5.80 मीटर दूर होगी। इसकी लम्बाई 3.60 मीटर होगी तथा केन्द्र बिन्दु दोनों अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा पर होगा।

प्रतिबद्ध क्षेत्र (रिस्ट्रिकटेड एरिया) तथा फ्री-थो रेखाएं-ये स्थान जिन पर परिधि अन्त-रेखाओं, फ्री-थ्रो रेखाओं से निकलने वाली रेखाओं से निर्धारित होती है, उन्हें प्रतिबद्ध क्षेत्र कहते हैं। सिरों की ओर फ्री-थ्रो रेखाएं इसके अर्द्धव्यास को अंकित करती हैं। इन रेखाओं का बाहरी किनारा अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दु से 3 मीटर होगा औरफ्री-थ्रो रेखाओं के सिरों पर आकर समाप्त हो जाएगा।
RESTRUCT AREA
REGULATION FREE THROW LANE
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फ्री-थ्रो रेखाएं वे प्रतिबद्ध स्थान हैं जो कोर्ट में 1.80 मीटर के अर्द्धव्यास वाले अर्द्ध-वृत्त में फैले होते हैं।
पहली रेखा सिरे वाली रेखा के भीतरी किनारे में 1.75 मीटर है। पहली गली के स्थान से आगे एक उदासीन क्षेत्र (Neutral Zone) होगा जिसकी चौड़ाई 30 सैंटीमीटर होगी। दूसरी गली का स्थान 85 सैंटीमीटर चौड़ा होगा और उदासीन क्षेत्र के साथ लगता होगा। तीसरी गली का स्थान दूसरी गली के साथ लगता है और इसकी चौड़ाई 85 सैंटीमीटर होगी। जहां तक टूटे हुए अर्द्ध वृत्त का सम्बन्ध है, प्रत्येक अंकित क्षेत्र की लम्बाई 35 सैंटीमीटर होगी और दोनों भागों के बीच की दूरी 40 सम होगी।

पिछले बोर्ड का आकार, पदार्थ और स्थिति (Back Board-Size, Material and Position)-पीछे वाले बोर्ड कठोर लकड़ी के बनाए जाएंगे या फाइबर ग्लास के भी हो सकते हैं जिनकी मोटाई 3 सम होगी। ये टेढ़े रुख 1.80 मीटर तथा खड़े रुख में 1.20 मीटर होंगे। यहां रिंग लगता है, उसके पीछे बोर्ड पर 59 सैंटीमीटर x 45 सैंटीमीटर की आयत बनाई जाती है। किनारा रिंग की सतह के बराबर होगा। बोर्ड की सीमाएं 5 सैंटीमीटर चौड़ी रेखाओं द्वारा अंकित की जाएंगी।
यह बोर्ड के रंग के उलट वाले रंग की होगी। बोर्ड का निचला किनारा ज़मीन से 2.75 मीटर ऊंचा होगा। पीछे बोर्ड के आधार स्तम्भ सीमा के बाहरी क्षेत्र में अन्त-रेखाओं के बाह्य किनारे से कम-से-कम 1.00 मीटर दूर गाड़े जाएंगे।

बॉस्केट-बॉस्केट छल्लों और जाली की बनी होती है। बॉस्केट नारंगी रंग वाले अन्दर से 45 सैंटीमीटर व्यास के लोहे के घेरे होते हैं। घेरे की धातु 20 मिलीमीटर मोटी होगी। जाल सफ़ेद रस्सी का बना होता है जोकि छल्लों से लटकता है। यह छल्ले इस प्रकार के बने होते हैं कि जब गेंद इनसे गुजरती है, वह इसे थोड़ी देर के लिए रोक लेते हैं।
बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
गेंद-गेंद गोलाकार होगी। यह चमड़े की बनी होगी और इसके अन्दर का ब्लैडर रबड़ का होगा। इसकी परिधि 75 सम से 78 सम होगी। इसका भार 600 ग्राम से 650 ग्राम होगा।
अब नियम यह आज्ञा देता है कि प्रयुक्त गेंद भी प्रयोग की जा सकती है। फिर भी गेंद के विषय रैफरी ने सहमति प्रकट की हो। रैफरी प्रयुक्त गेंद चुन सकता है। जब गेंद एक बार चुन ली गई हो तो कोई भी टीम खेल की गेंद का प्रयोग नहीं करती। यदि उचित पुरानी गेंद न मिल सकती हो तो नई गेंद प्रयुक्त की जा सकती है।

बॉस्केट बॉल का इतिहास (History of Basket Ball)
बॉस्केट बॉल एक उत्तेजना पूर्ण खेल है तथा इसका मूल स्थान अमेरिका है। इसका आविष्कार “अन्तर्राष्ट्रीय YMCA” के शिक्षक डॉ० स्मिथ (Dr. Smith) ने सन् 1891 में स्प्रिंगफील्ड मैसाशसटस (Spring filed Massa Chussets U.S.A.) में किया था। इसके नियम बाद में संशोधित (Revised) किए गए, जिनके अन्तर्गत ‘गोल’ (Goals) को कोर्ट (Court) के ठीक बाहर रखा गया, शारीरिक सम्पर्क (Body Contact) को स्वीकृति नहीं दी गई तथा गेंद के साथ-साथ दौड़ने को ‘फाऊल’ (Foul) घोषित कर दिया गया। अनुभवहीन खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के प्रयोजन से खेल को अधिक सरल बनाया गया। डॉ० स्मिथ ने खेल क्षेत्र के दोनों ओर दो बाक्स (Reach Baskets) दोनों ओर एक-एक, एक निश्चित ऊंचाई पर टांग दिए तथा खिलाड़ियों को स्कोर के लिए गेंद उन बाक्सों में फेंकनी पड़ती थी।

अब गेंद के बाक्स से वापस आने की समस्या थी इसलिए ‘बाक्स’ के स्थान पर आज की तरह के ‘गोल’ प्रयोग किए गए। इस प्रकार यह खेल अमेरिका में शुरू हुआ तथा इसके नियमों को सन् 1934 में मानक (Standardized) रूप दिया गया।
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बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में तकनीकी उपकरण (सामान) क्या-क्या होते हैं ?
उत्तर-
तकनीकी उपकरण (सामान)
(क) (1) खेल की घड़ी (गेम-वाच)
(2) टाइम-आऊट के लिए घड़ी (टाइम-आऊट वाच)-एक
(3) स्टाप घड़ियां (स्टाप वाचिज़)

  1. टाइम कीपर के पास कम-से-कम दो घड़ियां होनी चाहिएं और खेल घड़ी मेज़ पर रखी जाएगी।
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  2. स्कोर-शीट
  3. कम-से-कम 20 सम × 10 सम आकार के एक से पांच तक अंक-एक से चार तक के काले रंग के अंक तथा पांच के लिए लाल रंग के अंक।
  4. 24 सैकिंड नियम के प्रबन्ध के लिए एक योग्य यन्त्र जिसको खिलाड़ी और दर्शक देख सकें।
  5. सब को दिखाई देने वाला एक खेल अंक बोर्ड स्कोर बोर्ड होगा जिस पर दोनों टीमों के खेल अंक लिखे जाएंगे।
  6. स्कोरर के पास दो लाल झण्डे दोनों टीमों के फाऊल मार्कर के हाथ में होंगे। इसे आठ फाऊल एक अवधि में होने की अवस्था में इस टीम की तरफ लिया जाएगा तथा खिलाड़ियों, कोच साहिब और खेल अधिकारियों को दिखाई दे सकेगा।

टीमें-प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होंगे और सात खिलाड़ी प्रतिस्थापन के लिए होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी की कमीज़ के सामने और पिछली ओर कमीज़ के रंग से अलग नम्बर लगे होते हैं। यह नम्बर 4 से 15 तक होते हैं।
एक टीम के सभी खिलाड़ी ऐसी कमीजें पहनेंगे जिनका रंग आगे और पीछे की ओर एक जैसा होगा।
खिलाड़ी द्वारा कोर्ट छोड़ना-जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो जाए अथवा नियम स्वीकृति न दे कोई भी खिलाड़ी बिना अधिकारियों की आज्ञा के कोर्ट छोड़ कर बाहर नहीं जा सकता।
कप्तान-इसके अधिकार और कर्त्तव्य-केवल कप्तान की सूचना लेने के लिए या किसी तरह की व्याख्या के लिए अधिकारी से बातचीत कर सकता है। खिलाड़ी बदलने का अधिकार कोच या कोच के स्थान पर काम कर रहे अधिकारी का होता है। _खेल की अवधि-खेल 10-2-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों में खेला जाएगा। इन दोनों अवधियों में 10 मिनट का अवकाश होगा।

खेल का आरम्भ-खेल का आरम्भ रैफरी द्वारा किया जाएगा। वह दोनों विरोधियों के बीच केन्द्र में गेंद को ऊपर उछालेगा। खेल उस समय तक आरम्भ नहीं होगा जब तक एक टीम पांच खिलाड़ियों सहित मैदान में खेलने के लिए प्रस्तुत न हो जाए। यदि खेल आरम्भ होने के समय तक कोई अनुपस्थित टीम मैदान में नहीं पहंचती तो उसकी विरोधी टीम को वॉक ओवर मिल जाता है, अर्थात् उसे बिना खेल के ही विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न
जम्प बाल और जम्प बाल के समय फाऊल बताएं।
उत्तर-
जम्प बाल-जम्प बाल के समय दो कूदने वाले अर्द्ध-वृत्त के अन्दर पांव रख कर अपनी-अपनी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे तथा उनका एक पांव बीच में पड़ी रेखा के केन्द्र के पास होगा। उस समय कोई अधिकारी गेंद को इतनी ऊंचाई से ऊपर फैंकेगा कि उनमें से कोई खिलाड़ी उछल कर गेंद न पकड़ सके और गेंद उन दोनों के मध्य में गिरे। कोई खिलाड़ी गेंद को उस समय तक थपथपाने का यत्न नहीं करेगा जब तक उसने अधिकतम ऊंचाई प्राप्त न कर ली हो। कूदने वाला खिलाड़ी केवल दो बार ही गेंद को थपथपा सकता है।
जिस समय जम्प बाल (Jump Ball) में नियम तोड़ा जाता है इसके दण्ड-स्वरूप पार्श्व रेखा (Side line) पर से थ्रो-इन (Throw-in) दी जाती है। यह अपने विरोधियों के लिए केन्द्र बिन्दु होता है।

कोच (Coach)-खेल के आरम्भ होने के निश्चित समय से लगभग 20 मिनट पहले कोच (Coach) फलांकन कर्ता (Scorer) को उन खिलाड़ियों के नाम और गिनती जिन्होंने खेल में खेलना है, के अतिरिक्त कप्तान, कोच और सहायक कोच के नाम देगा। _ खेल के आरम्भ होने से स्कोर शीट (Score-Sheet) पर यह हस्ताक्षर करके खिलाड़ियों के नाम और गिनती से अपनी सहमति प्रकट करेंगे और उसी समय पांच खिलाडियों के नाम बताएंगे जिन्होंने खेल आरम्भ करना है।
ए (A) टीम का कोच यह जानकारी पहले देगा।
नोट-ऐसा न करने पर और जिससे खेल आरम्भ होने में देरी हो, कोच पर तकनीकी फाऊल (Technical Foul) का दोष लग सकता है और खेल दो फ्री-थ्रो (Free Throws) करने के पश्चात् आरम्भ होगा।
गोल-जब गेंद बास्केट में ऊपर से जाकर रुक जाए या निकल जाए तब गोल बन जाता है। रेखा के क्षेत्र से किए गए गोल के दो अंक तथा फ्री-थ्रो द्वारा किए गए गोल का एक अंक होता है।
बिन्दु रेखा से परे फील्ड गोल लगाने के लिए प्रयत्न करने के तीन अंक दिए जाएंगे।

आक्रमण के समय बाधा उत्पन्न करना-जिस समय गेंद बॉस्केट के समतल के ऊपर से नीचे की ओर आती है तो कोई खिलाड़ी अपने सीमित क्षेत्र में न तो गेंद को छु सकता है और न ही वह इसे पकड़ सकता है चाहे वह गोल बनाने की कोशिश में हो।
प्रतिरक्षा के समय गेंद में बाधा-जब विरोधी खिलाड़ी गोल करने के लिए गेंद फेंकता है तथा सारी गेंद बॉस्केट के घेरे की सतह के ऊपर हो, उस समय जैसे ही गेंद नीचे
आना शुरू करे, प्रतिरक्षा खिलाड़ी उसको छूने की बिल्कुल कोशिश नहीं करेगा। उल्लंघन होने पर गेंद मृत (Dead) हो जाती है। यदि फ्री-थ्रो के समय उल्लंघन हो तो फेंकने वाले के पक्ष में एक अंक यदि गोल की चेष्टा के समय हो तो फेंकने वाले के पक्ष में जोड़ दिए जाते हैं।
गोल के पश्चात् गेंद खेल में-गोल बनाने के 5 सैकिंड बाद विरोधी टीम का कोई खिलाड़ी, कोर्ट के अन्त में, परिधि से बाहर किसी भी बिन्दु से, जहां गोल बना था, गेंद खेल में डालेगा।

पिवटिंग
(Pivoting)
जब गेंद पकड़े हुए कोई खिलाड़ी एक ही पैर से एक बार या अधिक बार किसी दिशा में बढ़ता (घूमता) है तो इसे “पिवटिंग” (Pivoting) कहते हैं। खिलाड़ी के दूसरे पैर को जो ज़मीन के साथ सम्पर्क में रहता है-‘पिवट’ कहा जाता है।
बॉस्केट बॉल में पिवटिंग अग्रलिखित तीन प्रकार की होती है—
1. स्थित पिवट (Stationary Pivot)—इस पिवट में-

  1. एक खिलाड़ी दोनों पैरों को ज़मीन पर टिकाए हुए गेंद प्राप्त करता है।
  2. यह रिबाउण्ड (Rebound) लेता है।
  3. हवा में पास (Pass) देता है तथा दोनों पैरों को एक साथ ही भूमि पर टिकाते हुए वापस आता है। चाहे पैर एक-दूसरे के समान्तर हैं अथवा एक पैर दूसरे के सामने है। खिलाड़ी किसी भी पैर का प्रयोग करते हुए पिवट (रिवर्स अथवा रेयर पिवट) ले सकता है। यदि कोई खिलाड़ी ड्रिबलिंग (Dribbling) कर रहा है अर्थात् वह गतिशील है तो वह गेंद प्राप्त करके एक पैर को दूसरे पैर के सामने रखते हुए तथा सामने वाले पैर को किसी भी दिशा में गतिशील करते हुए स्ट्राइड स्टॉप (Stride Stop) में आ जाता है। इस पिवट का प्रयोग विपक्ष के खिलाड़ी से दूर जाने तथा अपने ही किसी साथी को खेल में लाने के लिए किया जाता है।

सामने या भीतरी पिवट
(Front or Inside Pivot)
इसकी तकनीक वही है जो रेयर पिवट (Rare Pivot) की है किन्तु इसमें अपने सामने के विपक्षी खिलाड़ी की तरफ टर्न (Turn) लिया जाता है अर्थात् गेंद पकड़े हुए खिलाड़ी एक पैर को आगे रख कर खड़ा होता है तथा दूरवर्ती पैर को विपक्षी खिलाड़ी के लगभग निकट रखते हुए अपने सामने के पैर पर पिवट लेता है।

आधिकारिक संकेत
(Official Signals)

  1. जब स्वतन्त्र थ्रो की संख्या का संकेत देता हो तो उंगलियों को अपने चेहरे की ऊंचाई पर रख कर कलाई से नीचे की ओर बार-बार गति दी जाती है।
  2. टाइम चार्ज (Charged Time Out) के लिए अधिकारी अपनी हथेली पर उंगलियों से T का चिह्न बनाता है।
  3. जम्प बॉल (Jump Ball) के संकेत के लिए अधिकारी अपने दोनों अंगूठे ऊपर करते हैं।
  4. त्रुटिपूर्ण ड्रिबल (Illegal dribble) के लिए वह Patting motion देता है।
  5. तीन सैकेण्ड के नियम (Three second rule) का उल्लंघन होने पर अधिकारी अपनी तीन उंगलियों (अंगूठा सहित) को साइड की तरफ करके संकेत करता है।
  6. किसी क्षेपण को निरस्त (Cancellation of a throw) करने के लिए अधिकारी अपने बाजुओं को अपने शरीर पर स्थानान्तरित करता है।
  7. स्टैपिंग (Stepping or travelling) के संकेत के लिए अधिकारी अपनी मुट्ठी घुमाता है।
  8. व्यक्तिगत फाऊल के लिए रैफरी बन्द मुट्ठी (Close fist) द्वारा संकेत करता है।
  9. व्यक्तिगत फाऊल की स्थिति में यदि कोई स्वतन्त्र क्षेपण न देता हो तो अधिकारी अपनी उंगली को साइड रेखा की तरफ कर देता है।
  10. किसी तकनीकी फाऊल का संकेत देने के लिए अधिकारी खुली हथेली से ‘T’ बनाता है तथा उसे दूसरी हथेली पर दिखाता है।
  11. दोहरे फाऊल के संकेत के लिए वह अपनी बन्द मुट्ठियों को अपने सिर के ऊपर हिलाता है।
  12. जानबूझ कर किए गए फाऊल के लिए रैफरी अपनी मुट्ठियों को बन्द रखते हुए अपनी कलाई को पकड़ कर संकेत करता है।
  13. धकेलने तथा चार्जिंग के संकेत के लिए रैफरी धकेलने जैसी नकल करता है।
  14. सीमाओं के उल्लंघन के लिए रैफरी हाथ हिला कर सीमा के बाहर संकेत करता है तत्पश्चात् उस टीम की बॉस्केट की तरफ संकेत करता है-जिसे “आऊट ऑफ़ बाऊण्ड-बॉल” दी गई है।
  15. टाइम आऊट के लिए अधिकारी सिर के ऊपर खुली हथेली से संकेत करता है।

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प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल के विभिन्न पासों के विषय में लिखें ।
उत्तर-
पास के प्रकार
(Types of Passes)
पासिंग (Passing)-बॉस्केट बॉल के खिलाड़ी को उन सभी प्रकार के पास (Passes) देने में निपुण होना चाहिए जिनका प्रयोग गेंद को अपने साथी को देने के लिए विपक्षी खिलाड़ी के ऊपर से, नीचे से अथवा उसके पास से फेंका जाता है।

पास देने के लिए आवश्यक बातें
(Some Essentials of Passing)
पास देने के लिए कुछ आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं—

  1. पास देने से पहले सामने देखने की आदत बनाओ।
  2. पास प्राप्त करने वाले साथी की दूरी का अनुमान लगाना तथा साथ ही यह अनुमान भी लगाना कि कितने समय में गेंद उसके पास पहुंचेगी।
  3. पास करने से पहले विपक्षी खिलाड़ी की स्थिति का अनुमान लगाना। (4) “पास” सही तथा शीघ्र होना चाहिए।

दो हाथ का छाती वाला या पुश पास
(Two Handed Chest Pass or Push Pass)
बॉस्केट बॉल में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला पास है। कम या मध्यम दूरियों के लिए इस पास का प्रयोग होता है तथा इसमें कलाई द्वारा अतिरिक्त शक्ति लगाई जाती है। गेंद को छाती की ऊंचाई पर लाना चाहिए ताकि इसे सरलता से प्राप्त (Catch) किया जा सके। पास देने के लिए गेंद को छाती के सामने दोनों हाथों में पकड़ा जाता है, कोहनियां काफ़ी दूर होती हैं ताकि गति में अवरोध न हो। इस स्थिति में खिलाड़ी गेंद को पास, शूट या स्टार्ट (Pass, Shoot or Start) कर सकता है। भुजाओं को फैला कर तथा हथेली को पास की दिशा में घुमाकर गेंद को शक्ति के साथ आगे की ओर धकेलना चाहिए।

दो हाथ का बाउन्स पास (Two Handed Bounce Pass) यह पास भी लगभग “Chest Pass” की तरह ही है। इसमें गेंद को ठीक पहले की तरह ही फेंका जाता है किन्तु इसे ज़मीन की तरफ प्राप्तकर्ता खिलाड़ी के यथासम्भव निकट फेंकते हैं ताकि वह गेंद को घुटनों तथा कमर के बीच किसी ऊंचाई पर प्राप्त करके ले। “बाउन्स पास” का प्रयोग साधारणतया छोटी दूरियों के लिए किया जाता है। बाउन्स पास देने के लिए गेंद को अपनी छाती या कभर की ऊंचाई पर दोनों हाथों में पकड़े कोहनियों को सीधा करें तथा हथेली से शक्ति के साथ गेंद को ज़मीन की तरफ इस प्रकार फेंको कि विपक्षी के पास से होकर जैसे ही गेंद जमीन को छुए, वह उछल कर प्राप्तकर्ता के हाथ में गिरे।

दो हाथों का अण्डर हैण्ड पास
(Two Handed Under Hand Pass)
इसे शौवल पास (Shoval Pass) भी कहते हैं। यह तब प्रयोग किया जाता है जब खिलाड़ी (Passer) अपने साथी खिलाड़ी के निकट ही हो। गेंद शीघ्र देने के लिए यह एक छोटा पास है। यह पास देने के लिए कोहनियों को बाहर की तरफ़ मोड़ते हुए दाएं या बाएं तरफ से दोनों हाथों का प्रयोग करो। दाईं साइड के पास के लिए बायां तथा बाईं साइड के पास के लिए तुम्हें दायां पैर आगे धकेलना चाहिए।

बेस बॉल पास
(Base Ball Pass)
यह पास बहुत प्रभावशाली है। इसका प्रयोग गेंद को पिवट खिलाड़ी (Pivot Player) को देने अथवा लम्बा पास देने के लिए होता है। सुविधा के अनुसार दायां या बायां हाथ प्रयोग किया जा सकता है। पास को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गेंद को अपने कन्धों के ऊपर तथा दाएं कान के निकट रखो। अब गेंद को पूरी शक्ति के साथ आगे फेंको। इस पूरी क्रिया में तुम्हारा दायां हाथ पीछे रहना चाहिए। इस पास में देखने की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेंद को कलाई (न कि बाजुओं) की मदद से कितनी शक्ति से धकेला जाता है।

दो हाथों वाला साइड पास
(Two Handed Side Pass)
सिवाय हाथों की स्थिति के, यह पास “बेस बॉल पास” की तरह ही है। इसमें हाथों को गेंद के दोनों तरफ फैलाना चाहिए। इसे हुक के दाएं या बाएं किसी तरफ से भी खेला जा सकता है।
बैक पास
(Back Pass)
अपने असुरक्षित साथी (Unguarded) को गेंद देने के लिए यह सर्वोत्तम पास है। इसमें गेंद को पीछे से, कलाई से तथा उंगलियों की मदद से पास किया जाता है। क्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कूल्हों (Hips) को थोड़ा हिलाया जा सकता है। किसी भी हाथ से यह पास प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है।

एक हाथ का बाऊन्स पास
(One Handed Bounce Pass)
यह दाएं या बाएं हाथ से दिया जाता है। इसका प्रयोग दो स्थितियों में किया जाता है।

  1. जब “गार्ड” खिलाड़ी (Guard Player) पासर खिलाड़ी (Passer Player) को बहुत निकट से गार्ड कर रहा है।
  2. जब गतिशील प्राप्तकर्ता खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड किया जा रहा हो।

इस ‘पास’ की तकनीक स्थिति के साथ बदलती रहती है। पहली स्थिति में पास को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे शीघ्रता से तथा अकस्मात् (Suddenness and Surprise) किया जाता है। इसकी साधारण विधि में इसे शुरू करके आवश्यकतानुसार किसी भी साइड में शीघ्रता से हट जाना होता है। ठीक उसी समय गार्ड खिलाड़ी से बचने के लिए बाजू को कदम की दिशा में बढ़ा कर गेंद प्राप्तकर्ता की तरफ आवश्यकतानुसार स्विग (Swing) के साथ उछाल दिया जाता है। दूसरे प्रकार का ‘एक हाथ वाला पास’ तब आवश्यक होता है जब दौड़ता हुआ प्राप्तकर्ता (Receiver) खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड हो रहा हो। इस स्थिति में ‘गार्ड’ द्वारा इसी प्रकार का सीधा पुश पास प्रयोग करना सम्भावित है। इस पास (Pass) को फेंकने के लिए गेंद को थोड़ा-सा कन्धों के ऊपर कानों के पास रखा जाता है। इसके बाद बाजू को आगे तथा नीचे की तरफ इस तरह फैलाया जाता है कि गेंद को सामने स्विंग किया जा सके परन्तु गेंद ‘गार्ड’ (जो प्राप्तकर्ता को कवर किए हैं) की पहुंच के बाहर होनी चाहिए।

फ्लिप पास
(Flip Pass) ‘फ्लिप पास’ का प्रयोग गेंद को निकट से ‘पास’ के लिए किया जाता है। यह आवश्यकतानुसार दोनों हाथों से या एक हाथ से किया जा सकता है। थोड़ी दूरी पर खड़े खिलाड़ी को गेंद फ्लिप करने के लिए झुकी हुई कलाई (Flexed Wrist) का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह एक छोटा ‘पास’ है गेंद को केवल कलाई द्वारा ही ‘फ्लिप’ किया जाता है ताकि गेंद को केवल इतना बल ही मिले कि प्राप्तकर्ता इसे सरलता से तथा निश्चित रूप से दबोच सके। क्योंकि दूरी कम होती है इसलिए प्रतिपक्षी खिलाड़ी इसे रोक नहीं सकता तथा प्राप्तकर्ता इसे सरलता से पकड़ लेता है।

एक हाथ का साइड पास
(One Handed Side Pass)
जब अधिक शुद्धता (Accuracy) तथा गति (Speed) की आवश्यकता न हो तो उस स्थिति में यह ‘पास’ प्रयोग किया जाता है। इस पास की तकनीक इस प्रकार है—
गेंद को अपने हाथों में पकड़ो, हाथों की उंगलियां अच्छी तरह फैली हुई हों ताकि पूरे गेंद को ढक सकें। अपने शरीर को थोड़ा-सा घुमाते हुए गेंद को दाएं कान के पास ले जाओ। कोहनियों को खोलते हुए तथा उसी समय बाएं पैर को आगे बढ़ाओ। कोहनी को नीचे की तरफ खोलते हुए दाएं हाथ से गेंद को आगे की ओर फेंको। विश्राम सहित (Relaxed) शरीर तथा कलाई द्वारा इसका पीछा करो। पास देते समय बाईं भुजा, दाईं भुजा की मदद करती है। परन्तु बाईं कोहनी छाती की ऊंचाई पर मुड़ी रहती है।

टिप अर्थात् वॉली पास
(Tip or Volley Pass)
किसी दिशा में भी एक कदम लेकर फ्रन्ट लाइन की स्थिति से यह पास दिया जा सकता है। गेंद पकड़ते समय एक हाथ गेंद के नीचे तथा दूसरा उसकी मदद करते हुए होता है। गेंद को उंगलियों के सिरों से या कलाई द्वारा फ्लिप करके थोड़ी दूर पर खड़े अपने साथी खिलाड़ी को लुढ़का दिया जाता है।

पासिंग क्रिया की आवश्यक बातें
(Some Hints on Passing Strategy)

  1. ‘पासर’ खिलाड़ी को प्राप्तकर्ता खिलाड़ी की स्थिति तथा उसके द्वारा की जाने वाली सम्भावित कार्यवाही का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए।
  2. पास देते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए विशेषकर जब उसका साथी विपक्षी खिलाड़ियों से घिरा हुआ हो।
  3. टीम का आफैन्स (Offence) मुख्य रूप से छोटे पासों (Short Passes) पर ‘निर्भर होता है।

बॉस्केटबाल में प्रयुक्त शब्दावली
पिछला कोर्ट-कोर्ट का आधा भाग जहां से आक्रामक टीम आती है। अन्य शब्दों में, वह अर्द्ध भाग है जिसमें कि बॉस्केट होती है जिसको उन्होंने बचाना होता है।
ब्लाईंड पास–एक दिशा में देखते हुए बाल को पृथक् दिशा का प्रयोग करते हुए दूसरी दिशा में पास देना।
स्पष्ट शॉट-यह शॉट जो बोर्डों या रिंग को बिना छुए सीधा बॉस्केट में जाता है।

क्षेत्र से क्षेत्र की प्रतिरक्षा (Zone to Zone defence) यह एक प्रकार की प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें खिलाड़ी किसी क्षेत्र की केवल प्रतिरक्षा के ज़िम्मेदार होते हैं। इनका ध्यान केवल गेंद की तरफ होता है, प्रतिपक्षी खिलाड़ी की तरफ नहीं।
खिलाड़ी से खिलाड़ी की प्रतिरक्षा (Man to Man defence)-यह वह प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी की ज़िम्मेदारी किसी विशेष शत्रु खिलाड़ी से प्रतिरक्षा की होती है।
मिश्रित प्रतिरक्षा (Combined defence)—यह प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों प्रणालियों ‘क्षेत्र से क्षेत्र’ तथा ‘खिलाड़ी से खिलाड़ी’ का मिश्रण है।
कट इन (Cut in)-किसी खिलाड़ी का दो या अधिक शत्रु खिलाड़ियों के मध्य से होकर गेंद प्राप्त करने के लिए किसी बॉस्केट की ओर तेज़ी से भागना ‘कट इन’ कहलाता है।

चार्जिंग (Charging)-किसी खिलाड़ी के साथ अनावश्यक शारीरिक सम्पर्क। किसी खिलाड़ी के बीच से निकलना तथा उससे बचने की कोशिश करना।
फाऊल आऊट (Fouled Out)-पांच फाऊलों के बाद खिलाड़ी को क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। इसे फाऊल आऊट कहते हैं।
फ्रीज या हैल्ड गेंद (Freeze or Held ball)-गेंद को बजाय खेलने की कोशिश करने के उसे अपने पास ही रख लेना।
ओवर लोडिंग (Over Loading)-‘क्षेत्र से क्षेत्र प्रतिरक्षा’ के विरुद्ध विरोधी खिलाडियों की आक्रामक प्रणाली। इस हेतु एक ही तरफ अधिक आक्रामक खिलाड़ियों को खड़े करने की प्रणाली को ओवरलोडिंग कहा जाता है।
पोस्ट खिलाड़ी (Post Player)—स्वतन्त्र थ्रो के क्षेत्र में खड़े आक्रामक खिलाड़ी को पोस्ट खिलाड़ी कहते हैं।
स्क्रीन (Screen)-जब कोई खिलाड़ी अपने साथी की रक्षा के लिए उसके गार्ड के मार्ग में स्वयं को खड़ा कर लेता है।
खेल का निर्णय-खेल में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा।

खेल का अधिकार छिन जाना—मध्यान्तर या टाइम-आऊट के पश्चात् यदि कोई टीम रैफरी के बुलाने के बाद एक मिनट के अन्दर खेल के लिए मैदान में नहीं उतरती तो गेंद खेल में लाई जाएगी और अनुपस्थित टीम खेल अधिकार खो देगी। यदि खेल के दौरान किसी टीम के खिलाड़ियों की संख्या दो से कम रह जाए तो खेल समाप्त हो जाएगा और टीम भी खेल अधिकार खो देगी।

स्कोर तथा अतिरिक्त समय—यदि दूसरे खेल अर्द्धक की समाप्ति तक दोनों टीमों के अंक बराबर हों तो पांच मिनटों की अधिक अवधि दी जाएगी और ऐसी अवधि जब तक खेल का फैसला न हो, दी जाएगी। अतिरिक्त समय में बॉस्केट के चुनाव के लिए टॉस होगा और उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त समय के लिए बॉस्केट बदल लिया जाएंगे।
टाइम-आऊट-मध्यान्तर तक प्रत्येक टीम को दो टाइम-आऊट मिल सकते हैं तथा अतिरिक्त समय में एक टाइम-आऊट मिल सकता है। किसी खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में एक मिनट का टाइम-आऊट मिलता है। यदि इस बीच घायल खिलाड़ी ठीक नहीं होता तो उसकी जगह नया खिलाड़ी ले लिया जाता है।

खेल की समाप्ति-टाइम कीपर द्वारा खेल की समाप्ति की सूचना दिए जाने पर खेल समाप्त कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी का बदलना-स्थानापन्न खिलाड़ी (Substitute Player) मैदान में उतरने से पहले स्कोरर के पास रिपोर्ट करेगा और तुरन्त खेलने के लिए प्रस्तुत रहेगा। अधिकारी का संकेत पाते ही मैदान में तुरन्त उतरेगा। स्थानापन्न को मैदान में उतरने के लिए 20 सैकिंड से अधिक समय नहीं लगना चाहिए। यदि उसे अधिक समय लगता है तो टाइमआऊट माना जाएगा और विरोधी दल के विरुद्ध अंकित कर दिया जाएगा।

मृत गेंद (Dead Ball)—गेंद उस समय भी मृत होती है जब गेंद जो पहले ही गोल के लिए शॉट (Shot) के लिए उड़ान में होती है और खिलाड़ी के द्वारा उस समय के पश्चात् छुई जाती है जब बाधा या फाऊल समय पूरा हो चुका होता है या जब फाऊल बुलाया जा चुका होता है। (ऊपर की ओर उड़ान में जब गेंद को छुआ जाता है, बॉस्केट यदि असफल हो, नहीं गिनी जाती।)

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बास्केट बाल खेल में तीन सैकिण्ड, पांच सैकिण्ड, आठ सैकिण्ड और चौबीस सैकिण्ड नियम क्या हैं ?
उत्तर-
तीन सैकिण्ड नियम-जब गेंद किसी टीम के अधिकार में हो तो उस टीम का कोई भी खिलाड़ी विरोधी टीम के प्रतिबद्ध क्षेत्र में तीन सैकिण्ड से अधिक नहीं रहेगा। पांच सैकिण्ड नियम-जब पास का कोई रक्षक खिलाड़ी गेंद को खेलने से रोकता है और वह पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को खेल में डालने की कोई सामान्य कोशिश नहीं करता तो वह ब्लॉकिंग कहलाता है।
आठ सैकिण्ड नियम -जब किसी टीम को मैदान के पिछले भाग में गेंद प्राप्त हो जाता है तो उसे आठ सैकिण्ड के अन्दर गेंद को अगले भाग में डालना पड़ता है।
चौबीस सैकिण्ड नियम-नये नियम के अनुसार पार्श्व रेखा (Side line) पर आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) से थ्रो-इन के पश्चात् एक नई चौबीस (26) सैकिण्ड की अवधि तब तक आरम्भ नहीं होती जब तक

  1. गेंद आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) नहीं जाती है और उसी टीम के खिलाड़ी के द्वारा थ्रो-इन नहीं ली जाती।
  2. अधिकारी (Officials) ने किसी आहत को बचाने के लिए खेल को रोक (Suspend) कर दिया हो और आहत खिलाड़ी वाली टीम के खिलाड़ी ने थ्रो-इन (Throw-in) ली हो।

24 सैकिण्ड आप्रेटर (Operator) उस समय से घड़ी को रोके हुए समय से चलाये जब तक वह टीम थ्रो-इन (Throw-in) किये जाने के पश्चात् पुनः काबू पा लेती है।
फाऊल के बाद गेंद खेल में-जब गेंद किसी फाऊल के साथ खेल से बाहर हो जाए तो इस स्थिर गेंद को—

  1. बाहर से थ्रो करके, या
  2. किसी एक वृत्त में जम्प बाल द्वारा, या
  3. एक या अधिक फ्री-थ्रो द्वारा फिर खेल में लाया जाएगा।

थो-इन-जब किसी नियम का उल्लंघन हो जाए तो गेंद स्थिर समझी जाती है और विरोधी टीम को साइड-लाइन के समीपवर्ती बिन्दु से थ्रो-इन के लिए दी जाती है।।
अब नियम उस खिलाड़ी को आज्ञा देता है जिसने थ्रो-इन (Throw-in) करना है कि वह समाप्ति रेखा (End line) को छुए और यह नियम का उल्लंघन नहीं है।
फ्री-थो-जिस खिलाड़ी पर फाऊल किया गया हो वह फ्री-थ्रो लेता है परन्तु किसी तकनीकी फाऊल होने की दशा में कोई भी खिलाड़ी फ्री-थ्रो ले सकता है। जब फ्री-थ्रो ली जाती है, तो खिलाड़ियों की स्थिति इस प्रकार होती है—

  1. विरोधी टीम के दो खिलाड़ी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे।
  2. अन्य खिलाड़ी भिन्न-भिन्न पोजीशन लेंगे।
  3. बाकी के खिलाड़ी कोई भी और पोजीशन ले सकते हैं परन्तु वे फ्री-थ्रो के समय बाधक नहीं बनने चाहिएं।

फ्री-थ्रो के उल्लंघन-फ्री-थ्रो करने वाले सैकिण्ड खिलाड़ी के अधिकार में गेंद देने के पश्चात्

  1. इन पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को इस तरह फेंकेगा कि खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले गेंद बॉस्केट में चली जाए या घेरे का स्पर्श कर ले।
  2. गेंद के बॉस्केट की ओर जाते समय या अन्दर पहुंचने पर न तो वह और न ही कोई दूसरा खिलाड़ी गेंद या बॉस्केट को छुएगा।
  3. वह फ्री-थ्रो लाइन या उसके परे भूमि को छुएगा और न ही किसी टीम का कोई दूसरा खिलाड़ी फ्री-थ्रो लाइन को छुएगा या फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को बाधा पहुंचाएगा।

खेल को प्रतिबन्धित करना (Game to be Forefeited)-नये नियम के अनुसार रैफरी को अब यह आवश्यक नहीं है कि वह गेंद को उस विधि से खेल में रखे जैसे कि दोनों टीमें फर्श पर खेलने के लिए और खेल को प्रतिबन्धित करने के लिए तैयार हों। अब रैफरी के खेल में बुलाने के पश्चात् यदि एक टीम खेलने से इन्कार कर देती है तो खेल प्रतिबन्धित हो जाता है।
गेंद का पिछली कोर्ट को वापिस जाना (Ball Return to Back Court)-नये नियम के अनुसार गेंद को टीम ए (A) को पिछली कोर्ट की ओर भेजा जाता है, शर्त यह है कि इसको टीम ए (A) का एक खिलाड़ी छूता है जबकि टीम ‘A’ सामने की कोर्ट में गेंद को नियन्त्रित रखती है। इसके अनुसार A, खिलाड़ी को छूना जबकि गेंद टीम ए के सामने की कोर्ट में टीम बी (B) के नियन्त्रण में है। यदि गेंद टीम ए (A) के सामने की कोर्ट में जाता है उसको ऐसा नहीं समझा जाता है कि पिछली कोर्ट में जाने दिया जाए।
इसके आगे केन्द्र (Mid-Point) से थ्रो-इन (Throw-in) के बीच अधिकारी (Official) यह निश्चित बताएगा कि खिलाड़ी बढ़ाई गई पार्श्व रेखा (Side-line) के दोनों ओर एक पैर रख कर पोजीशन स्थापित करता है।

आऊट आफ बाऊंड खेल पर नियम का उल्लंघन (Violation on out of bounds play)-यह नियम को तोड़ना नहीं है जबकि थ्रो-इन (Throw-in) दी गई है, खिलाड़ी गेंद को छोड़ते समय लकीर पर पांव रखता है।
दण्ड—

  1. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी द्वारा उल्लंघन होने पर कोई अंक रिकार्ड न होगा। फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विपक्षी की गेंद फ्री-थ्रो लाइन के सामने दे दी जाएगी।
  2. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को टीम के अन्य खिलाड़ी द्वारा नियम का उल्लंघन होने पर भी अंक रिकार्ड होगा। यदि नियम (ख) का बन दोनों टीमों द्वारा होता है तो कोई अंक दर्ज नहीं होगा और फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल द्वारा खेल जारी किया जाएगा।
  3. यदि नियम (ग) का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के साथी द्वारा होता है तथा फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिन लिया जाएगा और उसका दण्ड दिया जाएगा।
  4. यदि (ग) नियम का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विरोधियों से होता है तो फ्री-थ्रो सफल होने पर उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा।
  5. यदि नियम (ग) का उल्लंघन दोनों टीमों द्वारा होता है और फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा। फ्री-थ्रो सफल न होने की दशा में फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल के साथ खेल पुनः जारी किया जाएगा।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में खिलाड़ी के तकनीकी फाऊल लिखें।
उत्तर-
खिलाड़ी द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई भी खिलाड़ी अधिकारियों द्वारा दी गई चेतावनी की अवहेलना नहीं करेगा और न ही ऐसा व्यवहार करेगा जो एक खिलाड़ी को शोभा न दे, जैसे—

  1. अधिकारी को अपमानजनक ढंग से सम्बोधित करना या मिलना।
  2. असभ्य व्यवहार करना।
  3. विरोधी खिलाड़ी को तंग करना या उसकी आंखों के आगे हाथ करके उसे देखने में रुकावट डालना।
  4. खेल को अनुसूचित ढंग से विलम्बित करना।
  5. फाऊल का संकेत मिलने पर ठीक ढंग से बाजू न उठाना।
  6. स्कोरर या रैफरी को बिना सूचित किए अपना नम्बर बदलना।
  7. स्कोरर को सूचित किए बिना स्थानापन्न (Substitute) की तरह कोर्ट में प्रवेश करना।

दण्ड-प्रत्येक अपराध को एक फाऊल माना जाएगा और प्रत्येक फाऊल के लिए विरोधी को दो फ्री-थ्रो दी जाएंगी। इस नियम का बार-बार उल्लंघन किए जाने पर खिलाड़ी को अयोग्य घोषित करके खेल से निकाल दिया जाएगा।
कोच का स्थानापन्न (Substitute) द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई कोच या स्थानापन्न बिना अधिकारी की आज्ञा के कोर्ट में दाखिल नहीं हो सकता, न ही कोर्ट के कार्यों को जानने के लिए अपना स्थान छोड़ सकता है और न ही किसी अधिकारी या विरोधी को अपमानजक ढंग से बुला सकता है।

दण्ड-कोच द्वारा इस नियम का उल्लंघन करने पर उसके नाम फाऊल दर्ज किया जाएगा। प्रत्येक अपराध के लिए एक फ्री-थ्रो दी जाएगी और बाल उसी टीम को केन्द्रीय रेखा पर थ्रो-इन करने के लिए मिलेगा। इस नियम के बार-बार उल्लंघन किए जाने पर कोच को क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकाला जा सकता है।
निजी फाऊल-निजी फाऊल उस खिलाड़ी का होता है तो विरोधी खिलाड़ी को ब्लॉक करता है, पकड़ता है, धक्का देता है तथा उस पर आक्रमण करता है।
दण्ड-यदि शूटिंग करते समय खिलाड़ी पर फाऊल देता है तो—

  1. यदि गोल हो जाता है तो उसकी गिनती की जाएगी और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।
  2. यदि गोल (2 अंक) असफल हो, दो फ्री-थ्रो (Free Throw) दिए जाएंगे।
  3. यदि गोल (Goal) के लिए शाट (Shot) असफल होता है तो तीन फ्री-थ्रो (Free Throws) दिये जाएंगे।

जानबूझ कर (साभिप्राय) फाऊल-यह वह शारीरिक फाऊल है जो किसी खिलाड़ी द्वारा जानबूझ कर दिया जाता है। जो खिलाड़ी बार-बार साभिप्राय फाऊल करता है उसे अयोग्य करार देकर खेल से निकाला जा सकता है।
दण्ड-अपराधी पर शारीरिक फाऊल का दोष लगाया जाएगा और दो फ्री-थ्रो दिए जाएंगे। यदि यह फाऊल ऐसे खिलाड़ी पर होता है तो गोल बनाता है तो यह गोल माना जाएगा और एक अतिरिक्त फ्री-थ्रो दी जाएगी।
डबल फाऊल-डबल फाऊल उस स्थिति में होता है जब दो खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति लगभग एक ही समय फाऊल करते हैं। डबल फाऊल होने पर निकटतम वृत्त से जम्प बाल द्वारा खेल पुनः शुरू करवा दी जाएगी।
बहुपक्षीय (Multiple) फाऊल-बहुपक्षीय फाऊल उस समय होता है जब एक टीम के दो या तीन खिलाड़ी एक ही विरोधी खिलाड़ी पर निजी फाऊल कर देते हैं।
इस स्थिति में प्रत्येक अपराधी खिलाड़ी पर एक फाऊल लगेगा और जिस खिलाड़ी के प्रति अपराध हुआ है उसे दो फ्री-थ्रो दी जाएगी। यदि फेंकने की प्रक्रिया में किसी खिलाड़ी के प्रति फाऊल हुआ है तो गोल बनने पर किया जाएगा और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।

पांच फाऊल-यदि कोई खिलाड़ी पांच फाऊल (निजी या तकनीकी) करता है तो उसे नियमानुसार बाहर निकाल देना चाहिए।
तीन और दो नियम (Three for two Rule)-जब खिलाड़ी गोल करने लगा हो तो उस पर विरोधी टीम का खिलाड़ी फाऊल कर दे और यदि गोल बन जाए तो एक और फ्री-थ्रो मिलेगा। गोल न होने की अवस्था में दोनों फ्री-थ्रो में से एक भी न होने पर अतिरिक्त फ्री-थ्रो मिलेगा।
चयन का अधिकार (Right of Option) केन्द्र बिन्दु (Mid Point) से थ्रो-इन के लिए चयन का अधिकार एक, दो और तीन थ्रो की दशा में लागू होता है। चयन करने से पहले कप्तान को कोच के साथ संक्षिप्त परामर्श करने की आज्ञा होती है।
टीम के द्वारा चार फाऊल (Four fouls by the Team)-जब टीम किसी अवधि में चार खिलाड़ियों का फ़ाऊल (निजी और तकनीकी) कर चुकती है, इस अवधि समय में सभी बाद के खिलाड़ियों को फाऊल होने पर दो फ्री-थ्रो मिलती है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical बॉस्केट बाल (Basket Ball)

प्रश्न 1.
बास्केट-बाल टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 5 खिलाड़ी खेलते हैं और 7 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं।

प्रश्न 2.
बास्केट-बाल का कोर्ट बनाओ और लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल कोर्ट की लम्बाई 28 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर होती है। इसकी लम्बाई 2 मीटर और चौड़ाई एक मीटर कम की जा सकती है।

प्रश्न 3.
बास्केट-बाल के खेल का कितना समय होता है ? बराबर की स्थिति में आप क्या करोगे ?
उत्तर-
बास्केट-बाल खेल का समय 10-2-10,-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों का होता है। बराबर की स्थिति में 5-2-5 मिनट दिए जाते हैं। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो 5-5 मिनट दिए जाते हैं। परन्तु आराम का समय नहीं होता। 5 मिनट के पश्चात् केवल साइड ही बदलते हैं। उतनी देर तक 5-5 मिनट दिए जाएंगे जब तक फैसला नहीं होता।

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प्रश्न 4.
बास्केट-बाल के खेल में हार-जीत का फैसला कैसे होता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में हार-जीत का फैसला इस प्रकार होता है कि जो टीम अधिक प्वाईंट बना लेती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।

प्रश्न 5.
बास्केट-बाल के खेल में कितने फाऊल होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में 5 फाऊल होते हैं; जैसे—

  1. निजी फाऊल (Personal Foul)
  2. तकनीकी फाऊल (Technical Foul)
  3. दोहरा फाऊल (Double Foul)
  4. बहुमुखी फाऊल (Multiple Foul)
  5. जानबूझ कर फाऊल (Attentional Foul)

प्रश्न 6.
खिलाड़ी को कितने फाऊलों के बाद टीम में से निकाला जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में जब एक खिलाड़ी पांच फाऊल कर देता है तो उसको टीम से बाहर निकाल दिया जाता है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 7.
बास्केट-बाल की खेल में टाइम आऊट कितने होते हैं ? उनका समय बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में दो टाइम आऊट आराम से पहले दोनों अवधियों में और दो बाद में लिए जाते हैं। टाइम आऊट का समय एक मिनट का होता है।

प्रश्न 8.
कितने खिलाड़ियों को बास्केट-बाल के खेल में बदला जा सकता है और कितना समय लिया जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में किसी समय भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है । शर्त यह है कि साइड थ्रो उनकी हो तथा समय 30 सैकिंड का होता है।

प्रश्न 9.
बास्केट-बाल के खेल में तकनीकी सामान का वर्णन करो।
उत्तर-
तकनीकी सामान (Technical Equipments)

  1. खेल की घड़ी (Game Watch)
  2. टाइम आऊट के लिए घड़ी (Time out watch)
  3. 24 सैकिण्ड रूल स्कोर शीट के लिए 24 सैकिण्ड आप्रेटर (24 Second Operator for Twenty four second Rule Score Sheet)

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प्रश्न 10.
बास्केट-बाल का भार कितना होता है और उसका घेरा बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल का भार 600 से 650 ग्राम और घेरा 75 सैंटीमीटर से 78 सैंटीमीटर तक होता है।

प्रश्न 11.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में कितने चक्कर होते हैं और कितने चौड़े होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में तीन चक्कर होते हैं और चौड़ाई 1.80 मीटर होती है।

प्रश्न 12.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से कितनी दूरी पर बाहर होते
उत्तर-
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से एक मीटर बाहर होते हैं।

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प्रश्न 13.
बास्केट-बाल के खेल में स्कोर कैसे लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में यदि सीधी बास्केट हो तो 2 अंक होते हैं। Free Throw हो तो एक अंक माना जाता है। यदि सर्कल के बाहर से गोल हो तो तीन अंक मिलते हैं।

प्रश्न 14.
7 फाऊल रूल क्या है ?
उत्तर-
जो टीम 7 फाऊल कर देती है उसकी विरोध टीम को Free Throws दी जाती हैं।

प्रश्न 15.
आठ सैकिण्ड नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इसके आधार पर एक टीम को अपने कोर्ट में आठ सैकिण्ड के अन्दर बाल को दूसरे कोर्ट में देना पड़ता है। दूसरे कोर्ट में वह दूसरी बार बाल अपने कोर्ट में नहीं दे सकता।

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प्रश्न 16.
तीन सैकिण्ड रूल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कोई खिलाड़ी वर्जित क्षेत्र (Restricted Area) में तीन सैकिण्ड से अधिक ठहरता है तो उस समय रैफरी द्वारा विरोधी को थ्रो दी जाती है।

प्रश्न 17.
24 सैकिण्ड से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब एक टीम बाल को नियन्त्रित रखती है तो वह उस टीम को 24 सैकिण्ड के अन्दर गेंद स्कोर करने के लिए हाथ में से नहीं छोड़नी चाहिए। फिर दूसरी टीम को बाल दे दिया जाता है। यह अवसर कभी-कभी ही खेल में आता है।

प्रश्न 18.
बास्केट-बाल के खेल में अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में निम्नलिखित अधिकारी होते हैं—

  1. रैफ़री = 1
  2. अम्पायर = 1
  3. स्कोरर = 1
  4. टाइम कीपर = 1
  5. 24 सैकिण्ड = 1
  6. ओप्रेटर = 1
  7. इंडीकेटर = 1

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प्रश्न 19.
बास्केट-बाल की खेल में बनियान के नम्बर किससे आरम्भ होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल की खेल में 4 से लेकर 15 तक बनियान के नम्बर लगाए जाते

प्रश्न 20.
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई बताएं।
उत्तर-
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई 40 सैंटीमीटर लम्बी होती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

PSEB 10th Class Physical Education Guide एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलों का नाम ओलिम्पिक क्यों पड़ा ?
(Why Olympic games are called Olympic?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें ओलिम्पिया नामक नगर से आरम्भ हुई थीं। इसलिए इन का नाम ओलिम्पिक खेलें पड़ा।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कब आरम्भ हुईं ?
(When Ancient Olympic started ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 3.
ओलिम्पिक ध्वज में कितने रिंग होते हैं ?
(How many rings are there in Olympic Flag ?)
उत्तर-
पांच रिंग।

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प्रश्न 4.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के विजेता को क्या ईनाम मिलता था ?
(What prizes are given to the winners of Ancient Olympic ?)
उत्तर-
जीतने वाले को जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे।

प्रश्न 5.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें के कोई दो नियम लिखो।
(Write any two rules of Ancient Olympic.)
उत्तर-

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।

प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों किसने शुरू करवाईं ?
(Who was the founder of modern Olympic games ?)
उत्तर-
बैरन दि कुबर्टिन ने।

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प्रश्न 7.
नवीन ओलिम्पिक खेलें कहां तथा कब आरम्भ हुई ?
(When and where modern Olympic were started ?)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलें 1896 ई० में ऐथेन में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 8.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के कोई दो नियम लिखें।
(Write any two Rules of modern Olympic games.)
उत्तर-

  1. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकता।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलें किस के प्रयल से आरम्भ हुई ?
(Who has originated Asian Games ?)
उत्तर-
महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह और श्री जी० डी० सोंधी के प्रयत्नों से यह खेलें आरम्भ हुईं।

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प्रश्न 10.
एशियाई खेलें कब और कहां शुरू हुई ?
(When and where Asian games were started ?)
उत्तर-
पहली एशियाई खेलें 1951 में नई दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं।

प्रश्न 11.
ओलिम्पिक खेलें कितने वर्षों के बाद होती हैं ?
(After how many years olympic games were held ?).
उत्तर-
चार वर्ष के बाद।

प्रश्न 12.
पांचवीं एशियाई खेलें कहां हुई ?
(Where were the fifth Asian games were held ?)
उत्तर-
1966 में जकार्ता (इण्डोनेशिया) में।

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प्रश्न 13.
मिलखा सिंह ने कौन-से ओलिम्पिक में 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया ?
(In which Olympic Mr. Milkha Singh got 4th position in 400 meters race ?)
उत्तर-
1960 (Rome Olympic) खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

प्रश्न 14.
भारत ने ओलिम्पिक में पहली बार कब भाग लिया ?
(In which year India participated in Olympic first time ?)
उत्तर-
1920 की ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया।

प्रश्न 15.
2008 बीजिंग ओलम्पिक खेलों में किस भारतीय खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीता ?
(Name the Indian player who won the gold medal in 2008 Beizing olympic games.)
उत्तर-
श्री अभिनव बिंदरा ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक झण्डे के विषय में संक्षिप्त जानकारी दो।
(Give brief description about Olympic Flag.)
उत्तर-
ओलिम्पिक झण्डा 1919 ई० में एंटवर्प (Antwerp) में होने वाली ओलिम्पिक खेलों में फहराया गया। इस झण्डे की रचना क्यूबर्टिन ने की थी। इस झण्डे में पांच रंगोंलाल, हरे, पीले, नीले तथा काले से पांच चक्कर परस्पर जोड़ कर बनाए गए हैं। ये पांच चक्कर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें 1
इन चक्रों का परस्पर जुड़ा होना इन पांच महाद्वीपों की मित्रता तथा सद्भावना का प्रतीक है।

प्रश्न 2.
एशियाई खेलें कब तथा क्यों शुरू हुईं ? इन खेलों को शुरू करने में भारत का क्या योगदान है ?
(When and where Asian games were started ? Write the contribution of India to start Asian games.)
उत्तर-
एशियाई खेलें (Asian Games)-14वीं ओलिम्पिक खेलों का 1948 ई० में लन्दन में आयोजन हुआ। उस समय श्री जी० डी० सोंधी ने यह विचार प्रस्तुत किया कि जब भारतीय या एशियाई खिलाड़ी यूरोपीय देशों में आयोजित खेलों के मुकाबलों में भाग लेने जाते हैं तो वे खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इसलिए यदि एशियाई देशों के खिलाड़ी पहले आपस में मुकाबला कर लें तो एक तो उनमें मुकाबला करने की शक्ति बढ़ेगी और दूसरे खेल का स्तर उन्नत होगा। इस विचार को कार्यरूप देने के लिए उन्होंने 8 अगस्त, 1945 ई० को लन्दन के साऊंड पायल होटल में एशियाई देशों की एक सभा बुलाई। इस सभा में कोरिया, बर्मा (म्यनमार), चीन, श्रीलंका आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन सभी सदस्यों ने एशिया में खेल मुकाबले करवाने के सुझाव का समर्थन किया।

महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह ने भी एशियाई खेलों के आरम्भ करने में विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फरवरी, 1949 में दिल्ली में एशियाई खेलों के लिए एशियाई देशों की सभा बुलाई। इस सभा में भारत, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, नेपाल, फिलीपाइन तथा थाइलैंड आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सभा में एशियाई एथलैटिक्स फैडरेशन को खेल फैडरेशन का नाम दिया गया था। इसके संविधान का निर्माण किया गया। एशियाई खेलों को हर चार वर्ष बाद आयोजित करने का निश्चय किया गया। पहली एशियाई खेलें 4 मार्च से 11 मार्च तक, 1951 में दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं। फिर 1982 में नौवीं एशियाई खेलें दिल्ली में तथा 10वीं एशियाई खेलें सिओल में सम्पन्न हुईं।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलें कब और किन-किन देशों में हुईं ?
(When and where Olympic Games were organised ?)
उत्तर-
पहली ओलिम्पिक खेलों के स्थान एवं तिथियां
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1906 के खेल, आधुनिक खेलों की 10वीं वर्षगांठ मनाए जाने हेतु खेले गये थे, मगर इनकी गिनती नहीं की गई क्योंकि ये खेल 1904-1908 के ओलिम्पियाड के प्रथम वर्ष में नहीं आयोजित किए गए थे।
यहां केवल घुड़-सवारी के खेल ही करवाए गए थे।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कहां और कब आरम्भ हुईं ?
(When and where Ancient Olympic was organised?)
उत्तर-
इतिहास (History)-प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान के ओलिम्पिया नामक नगर में आरम्भ हुईं। इन खेलों का आरम्भ करने का श्रेय इफिटस तथा कलाऊस्थैनीज़ को दिया जाता है। ये खेलें अगस्त तथा सितम्बर महीने की पूर्णिमा की रात को आरम्भ हुईं। प्रथम ओलिम्पिक खेलों के विजेता का नाम कोर्बस था। ये खेलें हर चार वर्ष के पश्चात् आयोजित की जाती थीं। 394 ई० पू० में रोमन सम्राट् थ्यूसिडियस के आदेश से ये खेलें बन्द हो गईं। ओलिम्पिक नगर एल्फिस नदी के तट पर बसा हुआ था। यह एलिस राज्य का पवित्र नगर था। 1100 ई० पू० में खेलों के लिए विशेष जगह बन गई जिनकी मन्दिर के समान पूजा होने लगी। ओलिम्पिक खेलों के शुरू होने पर सारे यूनान में लड़ाइयां बन्द हो जाती थीं। ओलिम्पिक नगर में कोई भी शस्त्रों के साथ प्रवेश नहीं कर सकता था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले केवल की दौड़ की वृद्धि की गई। पन्द्रहवीं ओलिम्पिक खेलों में तीन मील की दौड़ की वृद्धि की गई। 18वीं ओलिम्पिक में पेंटाथलीन (Pantathlon) शुरू की गई। इसमें लम्बी छलांग, दो सौ गज़ की दौड़, नेज़ा फेंकना तथा कुश्तियां पांच खेलें रखी गईं। 25वीं ओलिम्पिक्स में रथ दौड (Chariot Race) तथा 30वीं ओलिम्पिक्स में मुक्केबाज़ी, पानी की खेलें, कुश्तियां तथा पैक्ट्रयम आदि खेलें सम्मिलित की गईं। ये खेलें तीन से पांच दिन तक चलती थीं। पहले स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में स्त्रियों के लिए भी द्वार खोल दिए गए।

ईनाम (Rewards)—इन खेलों के विजेताओं को खूब सम्मानित किया जाता था। उन्हें जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे। लोग उनकी विजय के गीत गाते थे। विजेताओं के नाम पर खेलों के नाम रखे जाते थे। विजेताओं के साथी बाजा बजाकर उनके घर छोड़ कर आते थे। विजेता खिलाड़ियों पर देश गर्व करता था। सभी यूनानी इन खेलों में विजय प्राप्त करने की हार्दिक कामना करते थे।

समाप्ति (End)—समय की गति के साथ ये खेलें लोकप्रिय होती गईं और अन्य देशों तथा राष्ट्रों ने भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। रोमनों द्वारा यूनान की विजय के पश्चात् इन खेलों की लोकप्रियता को ठेस पहुंची। कई व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इनमें भाग लेने लगे। इससे इन खेलों में कई बुराइयां घर कर गईं। रोमन सम्राट् थिओडसस के आदेश से 394 ई० पू० में ये खेलें बन्द कर दी गईं। 395 ई० पू० में जीयस देवता का बुत भी तोड़ दिया गया। ओलिम्पिक नगर की चहल-पहल समाप्त हो गई। रोमन सम्राट् थिओडसस द्वितीय ने स्टेडियम भी नष्ट करवा दिया। इस प्रकार कुछ समय तक ओलिम्पिक खेलों तथा ओलिम्पिया नगर के चिन्ह ही मिट गए।

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प्रश्न 3.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम थे और कौन-कौन सी खेलें करवाई जाती थी ?
(What were the main rules of the Ancient Olympic Games ? Which were the different games organised ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of Ancient Olympics)प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना परमावश्यक था—

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. खिलाड़ी के लिए खेलों में भाग लेने से पूर्व किसी की देख-रेख में 10 मास तक प्रशिक्षण पाना ज़रूरी था। उसे अन्तिम एक मास ओलिम्पिक में व्यतीत करना पड़ता था।
  3. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।
  4. आरम्भ में औरतों को न तो खेलों में भाग लेने और न ही इन्हें देखने की आज्ञा थी।
  5. खिलाड़ियों को खेलों में ठीक ढंग से भाग लेने की शपथ लेनी पड़ती थी।
  6. खिलाड़ियों पर किसी प्रकार के अपराध का आरोप नहीं होना चाहिए था।
  7. ओलिम्पिक में खिलाड़ियों की देख-रेख की ज़िम्मेदारी खेलों के जजों की थी।
  8. पहला और अन्तिम दिन धार्मिक रीतियों और बलियों के लिए निश्चित था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले तो केवल एक दौड़ सम्मिलित थी परन्तु धीरे-धीरे इसमें और खेलों का समावेश हो गया। यह दौड़ लगभग 100 गज़ लम्बी थी। 724 ई० पू० में आयोजित 14वीं ओलिम्पिक खेलों में 400 गज़ की दौड़ और 15वीं ओलिम्पिक खेलों में 3 मील की दौड़ सम्मिलित की गई। 18वीं ओलिम्पिक खेलों में पेंटाथलोन आरम्भ की गई। इसमें लम्बी छलांग, नेज़ाबाजी, 300 गज़ दौड़, डिस्कस थ्रो तथा कुश्तियां पांच खेलें आती थीं। 25वीं ओलिम्पिक्स में पुरुषों के लिए बॉक्सिंग (मुक्केबाज़ी) आरम्भ की गई। ओलिम्पिक खेलों में रथ दौड़ तथा 30वीं ओलिम्पिक्स स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में उन्हें अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 4.
नवीन ओलिम्पिक खेलें किसने शुरू करवाईं ? उसके विषय में आप क्या जानते हो ?
(Who has started Modern Olympic Games ? What do you know about him ?)
उत्तर-
14वीं शताब्दी तक ओलिम्पिक खेलों के महत्त्व की ओर किसी ने तनिक ध्यान न दिया। परन्तु इन खेलों का पुनर्जन्म लिखा हुआ था। 1829 ई० में जापानी तथा फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने ओलिम्पिया की खुदवाई का काम आरम्भ किया। वर्षों के प्रयत्नों के पश्चात् उनके हाथ सफलता लगी। इन खुदाइयों से ओलिम्पिया के मन्दिर और स्टेडियम प्राप्त हुए।
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बैरन दि कबर्टिन को नवीन ओलिम्पिक खेलों के जन्मदाता माना जाता है। उनका जन्म 1863 ई० में फ्रांस में हुआ। वह फ्रांस के शिक्षा विभाग में कार्य करते थे। उनकी शारीरिक शिक्षा से विशेष रुचि थी। 1854 ई० में वे इंग्लैण्ड के भ्रमण पर गए। वे इंग्लैण्ड के शैक्षणिक ढांचे से अत्यधिक प्रभावित हुए।

कुबर्टिन बर्तानिया और अमेरिका गए। वहां इन्होंने लोगों को अपनी योजनाओं से अवगत कराया। इस पर अन्य खेल प्रेमियों ने उनको सहायता देने का समर्थन किया। कुबर्टिन खेलों के माध्यम से स्वास्थ्य, सुन्दरता, मनोरंजन तथा सहयोग बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने विभिन्न देशों का दौरा किया और वहां के लोगों को अपने विचारों की जानकारी दी। उन्होंने फ्रांस में फ्रांसीसी खेल संघ की आधारशिला रखी। 16 जून, 1894 ई० को एक अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष ओलिम्पिक योजना रखी गई।
इसका सभी ने समर्थन किया। फलस्वरूप 5 अप्रैल से 15 अप्रैल, 1896 ई० तक प्रथम ओलिम्पिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के लिए कुबर्टिन ने एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया। वह आदर्श है-“ओलिम्पिक खेलों में महत्त्वपूर्ण बात, जीत प्राप्त करना नहीं बल्कि उनमें भाग लेना है। आवश्यक बात जीतना नहीं है बल्कि अच्छी तरह मुकाबला करना है।” (“The important thing in Olympics is not to win but to take part. As the important thing in life is not triumph but struggle. The essential thing is not to have conquered but to have fought well.”;

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प्रश्न 5.
नवीन ओलिम्पिक खेलों का मॉटो तथा शपथ क्या है ?
(What is Olympic Motto and Olympic Oath of modern Olympic Games ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक मॉटो (Olympic Motto)-ओलिम्पिक मॉटो तीन शब्दों से बना है। ये तीन शब्द हैं—
सीटियस (Citius), आल्टीयस (Altius), फार्टियस (Fortius)
सीटियस (Citius) का अर्थ है बहुत तेज़.
आल्टीयस (Altius) का अर्थ है बहुत ऊंचा
फार्टियस (Fortius) का अर्थ है बहुत जोर से।
ये तीनों शब्द खिलाड़ी के लक्ष्य को सूचित करते हैं। इनका अभिप्राय है-बहुत तेज़ भागना, बहुत ऊंची छलांग लगाना तथा बहुत जोर से डिस्कस या गोला फेंकना।

ओलिम्पिक शपथ—यह रीति 1920 ई० में अन्तदीप में शुरू हुई थी। वर्ष 1984 में ओलिम्पिक खेलों के चार्टर रूप 63 में कहा गया है कि मेज़बान राष्ट्र का एक खिलाड़ी अपने बाएं हाथ में ओलिम्पिक झण्डे का कोना पकड़ कर और अपना दायां हाथ ऊपर उठा कर निम्नलिखित शपथ लेगा—

“सभी खिलाड़ियों की ओर से मैं बचन लेता हूं कि हम इन ओलिम्पिक खेलों में उन नियमों का आदर करते हुए और उन पर पाबन्द रहते हुए जो कि इसकी निगरानी करते हैं, खिलाड़ियों की सच्ची भावना से खेलों के गौरव और हमारी टीमों के सम्मान के लिए शामिल होंगे।”

ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag)—ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag) सर्वप्रथम बैल्जियम (Belgium) के ऐंटवरप (Antwerp) नगर में हुई ओलिम्पिक खेलों में लहराया गया। यह झण्डा सफ़ेद रंग का होता है। इसमें पांच चक्र परस्पर जुड़े हुए भिन्न-भिन्न रंगों के (लाल, हरा, पीला, नीला तथा काला) होते हैं। ये अंग्रेजी अक्षर W जैसे आकार के होते हैं। ये संसार के पांच महाद्वीपों यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। झण्डे पर ओलिम्पिक मॉटो (Motto), तीन शब्दों Citius, Altius तथा Fortius द्वारा दर्शाया जाता है।
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नोट—सभी खिलाड़ियों की ओर से ओलिम्पिक शपथ लेने वाले खिलाड़ी—

वर्ष नाम राष्ट्र एवं खेल
1920 विक्टर बैन (बैल्जियम, गतका)
1924 जियो एंङ्गीअ (फएंसम ऐथलैटिक्स)
1928 हैनरी डैनिस (नीदरलैंडस, फुटबाल)
1932 जार्ज चार्ल्स कैनन (अमेरिका, गतका)
1936 रुडुलफ इस्मायर (जर्मनी, भार उठाना)
1948 डोनलड फिनले (इंग्लैंड, ऐथलैटिक्स)
1952 हेईकी सावीलैनेन (फिनलैंड, जिमनास्टिक्स)
1956 जॉन लैंडी (आस्ट्रेलिया, ऐथलैटिक्स)
1960 एडोलफो कांसोलिनी (इटली, ऐथलैटिक्स)
1964 टकाशी ऊनो. (जापान, जिमनास्टिक्स)
1968 पाबलो मैरीडो (मैक्सिको, ऐथलैटिक्स)
1972 हेईडी सक्यूल  (पश्चिमी जर्मनी, ऐथलैटिक्स)
1976 पीएरे सेंट जीन (कैनेडा, भार उठाना)
1980 निकोलाई एंड्रीयनोव (सोवियत रूस, जिमनास्टिक्स)

 

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प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम हैं ? (अभ्यास का प्रश्न 5)
(Discuss the main rules of Modern Olympics.)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of New Olympics)-पहले. तो खेलों के नियम बहुत ही साधारण थे। कोई भी व्यक्ति इनमें भाग ले सकता था। 1908 ई० में ओलिम्पिक खेलें लन्दन में आयोजित की गईं और नियमों का निर्माण किया गया। ये नियम इस प्रकार हैं—

  1. प्रत्येक देश जो ओलिम्पिक खेलों का सदस्य है अपने किसी भी देशवासी को खेलों में भाग लेने के लिए भेज सकता है।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) इनमें भाग नहीं ले सकता। इस बात की पुष्टि उसकी राष्ट्रीय कमेटी करती है। इस विषय में खिलाड़ी को भी लिख कर देना पड़ता है।
  3. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का प्रतिबन्ध नहीं है।
  4. कोई भी खिलाड़ी नशे की हालत में खेलों में भाग नहीं ले सकता।
  5. खिलाड़ी के लिंग की जांच की जाती है।
  6. किसी एक देश की ओर से भाग लेने वाला खिलाड़ी किसी दूसरे राष्ट्र की ओर से भाग नहीं ले सकता।
  7. यदि कोई नया देश अस्तित्व में आया हो तो वह अपना खिलाड़ी भेज सकता है।

इन खेलों का आयोजन, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी द्वारा किया जाता है। इस कमेटी में प्रत्येक देश का मैम्बर होता है। परन्तु जिस देश में ओलिम्पिक कमेटियां स्थापित हों अथवा जहां खेलों का आयोजन भली-भांति हो, उसके दो सदस्य भी हो सकते हैं। इस कमेटी के सदस्य आठ वर्ष के लिए अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अतिरिक्त चार वर्ष के लिए दो उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं। पांच अन्य सदस्य भी इस कमेटी के सदस्य चुने जाते हैं। यह कमेटी नियमानुसार ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करती है।

प्रश्न 7.
भारतीय खिलाड़ियों को ओलिम्पिक खेलों में क्या स्थान प्राप्त है ?
(Discuss the main achievements of Indian players in Olympic ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलताएं (Achievements of Indian players in Olympics)-नवीन ओलिम्पिक खेलों का आरम्भ 1896 ई० में हुआ। इस कार्य में फ्रांस के बैरन दि कुबर्टिन ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। इसी कारण उसे ओलिम्पिक खेलों का जन्मदाता कहा जाता है। भारत ने इन खेलों में 1900 ई० में पहली बार भाग लिया। भारतीय खिलाड़ी नार्मन ने 200 मीटर की दौड़ में दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा प्राप्त किया। 1920 ई० की ओलिम्पिक खेलों में भारत की ओर से छ: खिलाड़ियों ने एथलैटिक्स और कुश्तियों में भाग लिया। 1924 में पैरिस ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इन में आठ भारतीय खिलाड़ियों ने भाग लिया। श्री जी० डी० सोंधी, एच० सी० बक और ए० जी० कारेन ने ओलिम्पिक लहर को देश में लोकप्रिय करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1927 ई० में इण्डियन

ओलिम्पिक एसोसिएशन की स्थापना हुई।—1928 ई० में भारतीय हॉकी टीम ने प्रथम बार एमस्टर्डम में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया। इसने सोने का तमगा जीता। 1928 ई० से 1956 ई० तक भारत हॉकी जगत् में छाया रहा। 1952 ई० में के० डी० यादव ने कुश्ती के मुकाबले में भाग लिया और तांबे का तमगा जीता। 1956 में मैलबोर्न में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारत की फुटबाल टीम ने पहली बार भाग लिया। इस टीम ने चौथा स्थान प्राप्त किया। 1960 में रोम में हई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और पहला स्थान पाकिस्तानी टीम ने प्राप्त किया। इसी वर्ष मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

1964 में टोकियो में ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय हॉकी की टीम फिर से प्रथम स्थान पाने में सफल हुई। 1968, 1972 तथा 1976 में आयोजित होने वाली ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी – प्रथम स्थान पा कर सोने का तमगा जीतने में सफल रही। 1976 में ओलिम्पिक खेलें मांट्रियाल में हुईं। इसमें शिवनाथ ने मैरथान दौड़ में ग्यारहवां और श्री राम ने 800 मीटर दौड़ में सातवां स्थान प्राप्त किया। 1980 में मास्को में हुई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने सोने का तमगा जीतने में सफलता प्राप्त की। इन खेलों में भारतीय टीम ने एथलैटिक्स, कुश्तियां, बॉक्सिग, बास्केट बाल, निशानेबाज़ी तथा वालीबाल में तो भाग लिया था, परन्तु इनमें उसे कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1984 में लास ऐंजलस में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। 28वीं ओलम्पिक खेलें 2004 में ऐन्थन ग्रीस में हुईं इसमें मेजर राजवर्धन सिंह राठौर ने सूटिंग मुकबाले में दूसरा स्थान प्राप्त करके भारत की शान बढ़ाई। ऐथलैटिक में अंजू बोबी जार्ज ने लोंग जम्प में छठा स्थान प्राप्त किया और भारतीय हाकी टीम सातवां स्थान ही प्राप्त कर सकी।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी के बारे संक्षेप से लिखें।
(Write in brief about International Olympic Committee I.O.A.)
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक (International Olympic Committee)
ओलिम्पिक खेलों के संगठन के लिए सर्वोच्चतम कमेटी अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी है। 25 जून, 1894 में पेरिस की कांग्रेस के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी को निम्न उत्तरदायित्व सौंपे गए—

  1. खेलों का लगातार करना।
  2. खेलें कुबर्टिन के आम आशय के अनुसार तथा सारे विश्व में प्रेम और शान्ति का सन्देश दें।
  3. खेलों में अव्यावसायिक प्रतियोगिता को उच्चतम स्थान दें।
  4. खेलें विश्व शान्ति तथा मैत्री को बढ़ाएं।

ओलिम्पिक खेलों की इस कमेटी में प्रत्येक देश का एक प्रतिनिधि होता है। परन्तु ऐसे देश जहां ओलिम्पिक खेलें हुई हों तथा वे देश जिन्होंने ओलिम्पिक खेल में महत्त्वपूर्ण काम किया हो, के दो सदस्य होते हैं अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी अपने लिए बैकट द्वारा अपना प्रधान चुनती है जो पांच वर्ष तक इस पद पर रहता है। फिर दुबारा चुने जाने पर वह चार वर्ष और रह सकता है। इसमें दो उप-प्रधान भी होते हैं जिनकी कार्य अवधि चार वर्ष होती है। यह दुबारा चुनाव लड़ सकते हैं। उप-प्रधान तथा पांच कार्यपालिका के सदस्य हर चार साल बाद इन खेलों को कराने में सहायता करते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी का मुख्य कार्यालय सीरोन (स्विट्ज़रलैण्ड) में है।
एशियाई खेलें
(Asian Games)
एशियाई खेलों का जन्म 13 जनवरी, 1949 में नई दिल्ली के पटियाला हाऊस में अफगानिस्तान, म्यनमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान तथा फिलीपाइन्स के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षरों के साथ हुआ। इन खेलों के लिए सदैव आगे (Ever onward) का आदर्श अपनाया गया। इन खेलों को प्रारम्भ करने का श्रेय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के भारतीय प्रतिनिधि स्वर्गीय जी० डी० सोंधी को है। श्री सोंधी तत्कालीन भारतीय ऐथलैटिक्स संघ के प्रधान थे। इन खेलों से पहले एशियन क्षेत्र में सुदूर पूर्व खेलें, पश्चिमी एशियन खेलें, जिनमें जापान, चीन, फिलीपाइन तथा स्वेज़ नहर के पूर्वी देश तथा सिंगापुर के पश्चिमी देश भाग लेते थे। मगर यह खेलें द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बन्द हो गई।

एशियाई खेलों को कराने के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि एशियाई सब देश खेल के मैदान में इच्छुक हो। इस सम्बन्ध में मार्च, 1949 में पंडित नेहरू द्वारा नई दिल्ली में एशियाई देशों सम्बन्धी कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें एशियाई खेलों की तरफ आए हुए सदस्यों का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया गया। जी० डी० सोंधी द्वारा पंडित नेहरू का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। श्री नेहरू के इस विचार का अपना अनुमोदन किया। 1949 में लन्दन के ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले एशियाई सदस्यों को एकत्र करके पहले एशियाई खेलों का प्रारम्भ 1950 में माना गया। फलस्वरूप प्रारम्भिक खेलें नई दिल्ली, मार्च, 1951 में कराई गई। ये खेलें हर चार साल बाद कराई जाती हैं। विभिन्न खेलों के विवरण इस तरह हैं—
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सदस्य देश
(Member Countries)
अफगानिस्तान, बेहरी, म्यनमार (बर्मा) चीन, हांगकांग, भारत, इण्डोनेशिया, ईरानइराक, इजराइल, जापान, गणतन्त्र कोरिया, गणतंत्र जनतांत्रिक कोरिया, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलिपाइन, सऊदी अरब, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम।

विभिन्न खेलें
(Different Games)
एथलैटिक, बैडमिन्टन, बास्केट बाल, बाक्सिंग, साइकलिंग, सलवान, खाली, फुटबाल, जिमनास्टिक, हॉकी, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल-टैनिस, लान-टैनिस यांत्री, भार उठाना, कुश्ती।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलों में भारतीयों ने कौन-कौन से इनाम जीते हैं ?
(Write about Indian players who won Lourels in Asian Games ?)
उत्तर-
एशियाई खेलों में भारत की सफलता (India’s achievement in Asian Games)-पहली एशियाई खेलों का आयोजन नई दिल्ली में 1951 ई० में हुआ।

इन खेलों में भारतीयों ने 15 स्वर्ण, 16 रजत तथा 21 कांस्य पदक जीते। भारतीय फुटबाल टीम ने सोने का तमगा जीता। भारतीय एथलीट लेरी पिंटो ने 100 तथा 200 मीटर दौड़ में, रणजीत सिंह ने 800 मीटर में, निक्का सिंह ने 1500 मीटर में एवं मदन लाल ने गोला फेंकने में तथा मक्खन सिंह ने डिस्कस फेंकने में सोने के पदक जीते। 1954 ई० में दूसरे एशियाई खेल मनीला में हुए। इन में अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में, सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीते जबकि सोहन सिंह ने 800 मीटर में तथा जोगिन्दर सिंह ने 400 मीटर दौड़ में रजत पदक पाये। भारतीय महिलाओं ने 4 × 100 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल हासिल किया। 1958 ई० में तीसरी एशियाई खेलें टोकियो में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 200 तथा 400. ‘ मीटर में, बलकार सिंह ने डिस्कस थ्रो में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में तथा महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में स्वर्ण पदक जीते तथा भारत का नाम खेल जगत् में ऊंचा किया। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा जीता। भारत ने इन खेलों में 5 सोने के, 4 चांदी के तथा 4 तांबे के तमगे जीते। 1962 की चतुर्थ एशियाई खेलें जर्काता में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 400 मीटर में, मोहिन्द्र सिंह ने 1500 मीटर में, तरलोक सिंह ने 10,000 मीटर में तथा पुरुषों की 4 × 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। भारत ने इन खेलों में 11 सोने के, 13 चांदी के तथा 10 तांबे के पदक जीते।

1966 ई० में एशियाई खेलों का आयोजन बैंकाक में हुआ जिन में भारतीय खिलाड़ियों ने 7 सोने के, 3 चांदी के तथा 11 तांबे के पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान पाया तथा भारतीय एथलीट अजमेर ने 400 मीटर में, बी० एस० बरुआ ने 800 मीटर में, भीम सिंह ने ऊंची छलांग लगाने में, परवीन ने डिस्कस और जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के पदक जीते।

1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में परवीन ने डिस्कस में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला में महिला एथलीट कंवलजीत सन्धु ने 400 मीटर दौड़ में सोने का तमगा जीत कर . ख्याति में वृद्धि की। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। कुल मिला कर भारत ने इन खेलों में 6 सोने के, 9 चांदी के और 10 तांबे के पदक जीते।

1974 में तेहरान में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 4 सोने, 12 चांदी और 12 तांबे के तमगे जीत कर सातवां स्थान प्राप्त किया। इन खेलों में श्री राम सिंह ने 800 मीटर दौड़ में, शिव नाथ सिंह ने 5000 मीटर (नया रिकार्ड) सोने का तथा 10,000 मीटर दौड़ में चांदी का तथा टी० सी० योगनन ने लम्बी छलांग में सोने के तमगे जीते।

1978 ई० में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 11 सोने के, 11 चांदी के तथा 6 तांबे के पदक जीत कर छठा स्थान प्राप्त किया। 5000 तथा 10,000 मीटर दौड़ में हरि चन्द ने, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में, सुरेश बाबू ने लम्बी छलांग में, हुक्म सिंह ने 20 किलोमीटर वाक में स्वर्ण पदक जीते। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर दौड़ में चांदी का मैडल तथा 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला।

1982 में नवम एशियाई खेलें नई दिल्ली में हुईं जिनमें भारत ने 13 सोने, 19 चांदी और 19 कांस्य पदक जीते। भारतीय महिला हॉकी टीम ने सोने का तथा पुरुष हॉकी टीम ने चांदी का पदक प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बाल सम्मा ने 400 मीटर हर्डल दौड़ में तथा 800 मीटर दौड़ में चार्ल्स बरोनियो ने सोने के पदक जीते। 1986 में एशियाई खेल सिओल में आयोजित किए गए। भारतीय महिला एथलीट पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 800 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थिति पर ला खड़ा किया। ऊषा ने 100 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान पाया। उसने सर्वोत्तम प्रदर्शन द्वारा भारत के नाम को रोशन किया। भारत ने कुल 5 सोने के, 9 चांदी के तथा 23 कांस्य पदक जीते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले भारतीय खिलाड़ियों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. लैरी पिंटो ने 1951 में हुई पहली एशियाई खेलों में 100 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान पाकर सोने का तमगा जीता।
  2. 1954 में मनीला में आयोजित एशियाई खेलों में सोहन सिंह ने 400 मीटर दौड़, अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते। इनके अतिरिक्त जोगिन्दर सिंह ने चांदी का और ए० ग्रेबियन ने 100 मीटर दौड़ तथा दालू राम ने 3000 और 5000 मीटर दौड़ में तीसरा स्थान प्राप्त करके तांबे के तमगे जीते।
  3. 1958 में हुई एशियाई खेलों में फ्लाईंग सिक्ख (Flying Sikh) मिलखा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, बलकार सिंह ने जैवलिन फेंकने में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में, एच० चांद ने 100 मीटर हर्डल्ज़ में और 400 मीटर हर्डल्ज़ में जगदेव सिंह ने सोने का तमगा प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त स्वीटी डिसूजा ने 200 मीटर दौड़ की हीट्स में नया रिकार्ड कायम किया। एलिज़ाबैथ डैवनपोर्ट ने 46.07 मीटर दूर जैवलिन फेंक कर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  4. 1966 में हुई एशियाई खेलों में अजमेर सिंह ने 400 मीटर, बी० एस० बरुआ ने डिस्कस थ्रो, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने तथा भीम सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते।
  5. 1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में कंवलजीत संधु ने 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त एडवर्ड शकेरा ने 5000 मीटर में, श्रीराम ने 800 मीटर में, लाभसिंह ने लम्बी छलांग तथा हाप स्टेप जम्प में चांदी के तमगे प्राप्त किये। मनजीत वालिया ने 80 मीटर हर्डल्ज़, सुच्चा सिंह ने 400 मीटर में और गुरमेज सिंह ने 3000 मीटर में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  6. 1974 में तेहरान में हुई एशियाई खेलों में शिवनाथ ने 5000 मीटर में नया रिकार्ड स्थापित किया। कंवलजीत संधू ने 56.5 सैकिण्ड में 400 मीटर की दौड़ जीत कर भारतीय स्त्री खिलाड़ियों की ओर से सोने का तमगा जीता। इन्हीं खेलों में टी० सी० योग ने लम्बी छलांग में तथा वी० एस० चौहान ने 1500 मीटर दौड़ में सोने का तमगा प्राप्त किया। निर्मल सिंह ने हैमर फेंकने में चांदी का तथा लैहम्बर सिंह ने 400 मीटर हर्डल में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  7. 1978 की एशियाई खेलों में हरिचन्द ने 1000 मीटर दौड़ में सोने का तमंगा प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर में चांदी तथा 800 मीटर दौड़ में सोने के तमगे प्राप्त किए।

उपर्युक्त खिलाड़ियों के अतिरिक्त कई अन्य भारतीय खिलाड़ियों ने ओलिम्पिक खेलों में भी अपने उत्तम खेल का प्रदर्शन करके अन्तर्राष्ट्रीय क्रीडा क्षेत्र में बहुत नाम कमाया।

1982 की नौवीं खेलें जो दिल्ली में हुई थीं, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में नया रिकार्ड कायम किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बालसम्मा ने 400 . मीटर हर्डल दौड़ में प्रथम स्थान, 800 मीटर दौड़ में बरोनियो ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। हॉकी में लड़कियों ने सोने का तमगा और लड़कों ने चांदी का तमगा जीता। कुश्तियों में सत्यपाल ने सोने का तमगा और करतार सिंह ने चांदी का तमगा जीता। कौर सिंह ने बाक्सिग में सोने का तमगा जीता। भारत की घोड़ों की टीम ने सोने के तमगे जीते और भारत की गोल्फ की टीम ने सोने के तमगे जीते।

1986 की एशियाई खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ी पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 400 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में सोने के पदक जीत कर खेल जगत में तहलका मचा दिया। ऊषा ने सिओल में सम्पन्न इन खेलों में 100 मीटर दौड़ में चांदी का पदक जीता।

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प्रश्न 10.
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें किस देश में हुई थीं।
उत्तर-
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें भारत में हुई थीं।

प्रश्न 11.
नवीन ओलिम्पिक खेलों में कौन-कौन सी खेलें होती हैं ?
(Name the main sports events which are organised in Modern Olympic.)
उत्तर-

  1. तीर अन्दाजी
  2. एथलैटिक्स
  3. बॉक्सिग
  4. बास्केटबाल
  5. कैनोईग
  6. साइकलिंग
  7. इकवीएस टीरंग
  8. फुटबाल
  9. जिम्नास्टिकस
  10. हैंडबाल
  11. हाकी
  12. जूड़ो
  13. निशानेबाजी
  14. रोईग
  15. तैराकी और डुबकी लगाना
  16. तलवार बाजी
  17. वालीबाल
  18. भार उठाना
  19. कुश्ती
  20. बाटर पोलो
  21. याट किशती दौड़।

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प्रश्न 12.
11वीं एशियाई खेलों में भारत ने कौन-कौन से इनाम प्राप्त किये?
(Which awards India won in the Eleventh Asian Games ?)
उत्तर-
11वीं एशियाई खेलें बीजिंग (चीन) में 1990 में हुई थी जिसमें भारत ने नीचे लिखे मुकाबलों में इनाम प्राप्त किए थे।
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बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules.

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. डबल्ज़ खिलाड़ियों के लिए कोर्ट का = 40′ × 20′, 13.40 × 6.10 मीटर आकार
  2. सिंगल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार = 40′ × 17′, 13.40 × 5.18 मीटर
  3. जाल की चौड़ाई = 2′ × 6″
  4. जाल की केन्द्र से पृथ्वी से ऊंचाई = 5′, 1.52 मीटर
  5. पोलो से जाल की ऊंचाई = 5′, 1″, 1.55 मीटर
  6. शटल के परों की गिनती = 16
  7. शटल के परों की लम्बाई = 21/2″ से 33/4″, 62 से 70 मि० मी०
  8. डबल्ज़ खेल में अंक = 21
  9. स्त्रियों के सिंगल खेल के अंक = 21
  10. किनारों की गैलरी का आकार = 1.6″ 45 सी० मी०
  11. पिछली गैलरी का आकार = 2′ 6″, 75 सै० मी०
  12. रैकट का भार और लम्बाई = 85 से 140 ग्राम, लम्बाई 27″, 686 मि०मी०
  13. अधिकारी = रैफ़री एक, अम्पायर एक, सर्विस अम्पायर एक, लाइनमैन 10
  14. सैटों की संख्या = तीन
  15. रैकेट की लम्बाई = 27″ अथवा 80 मि०मी०
  16. फ्रेम की लम्बाई = 11″ या 270 मि०मी०
  17. फ्रेम की चौड़ाई = 9″

बैडमिन्टन खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Badminton Game)

  1. बैडमिन्टन खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल में एक खेलने वाला तथा एक अतिरिक्त खिलाड़ी होता है। डबल्ज़ में चार खिलाड़ी, दो खेलने वाले तथा दो स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. सिंगल्ज़ खेल के लिए बैडमिन्टन कोर्ट का आकार 13.40 मीटर × 5.18 मीटर (44′. × 17) होता है तथा डबल्ज़ के लिए 13.40 मीटर × 6.10 मीटर (44.20)
  3. टॉस जीतने वाला इस बात का फैसला करता है कि उसने पहले सर्विस करनी है या साइड लेनी है।
  4. पुरुषों का डबल्ज़ खेल भी 21 अंकों का होगा।
  5. लड़कियों के लिए सिंगल मैच के 11 प्वाईंट का होता है।
  6. सर्विस तब तक नहीं की जा सकती जब तक विरोधी खिलाड़ी पूरी तरह तैयार न हो।
  7. सिंगल्ज़ खेल में 5 प्वाईंट हो जाने पर दोनों खिलाड़ी आधी कोर्ट बदल लेंगे।
  8. बैडमिन्टन खेल का समय नहीं होता बल्कि इसमें बैस्ट आफ थ्री गेम्ज़ होती हैं। जो टीम तीन में से दो गेमें जीत जाती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।
  9. खेल में व्हिसल का प्रयोग नहीं किया जाता।
  10. इस खेल को प्राय: Indoor Stadium में ही खेला जाता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन कोर्ट, जाल, बल्लियां और शटल काक के विषय में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेलें होती हैं-सिंगल्ज़ और डबल्ज। इन दोनों खेलों के लिए बैडमिन्टन कोर्ट के नाप को चित्र में दिखाई \(1 \frac{1}{2}\) (4 सम) मोटी सफ़ेद या लाल रेखाओं से स्पष्ट किया जाएगा।
डबल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार 44 फुट × 20 फुट तथा सिंगल्ज़ के लिए 44 फुट × 17 फुट होगा। नैट के दोनों ओर \(6 \frac{1}{2}\) फुट शर्ट सर्विस रेखा खींची जाएगी। कोर्ट को दो समान भागों में बांटने के लिए साइड लाइन के समानान्तर एक रेखा खींची जाएगी। कोर्ट का बायां आधा भाग बाईं सर्विस कोर्ट तथा दायां आधा भाग दाई सर्विस कोर्ट कहलाएगा। पीछे की गैलरी \(2 \frac{1}{2}\) फुट तथा साइड गैलरी \(1 \frac{1}{2}\) फुट होगी।

बल्लियां (Poles)-नैट (जाल) को तान कर रखने के लिए दो बल्लियां लगाई जाएंगी। ये बल्लियां, फर्श से 5 फुट 1 इंच (1.55 मी०) ऊंची होंगी।
जाल (Net)—जाल बढ़िया रंगीन डोरी का बना होगा। इसकी जाली \(\frac{3}{4}\)” से 1″ होगी। इसकी चौड़ाई 2 फुट 6 इंच (0.76 मीटर) होनी चाहिए। इसका ऊपरी भाग केन्द्र में भूमि से 5 फुट तथा बल्लियों से 5 फुट 1 इंच ऊंचा होना चाहिए। जाल के दोनों सिरों पर 3′ दोहरी टेप होनी चाहिए जिनके बीच डोरियां हों जो जाल को बल्लियों पर कस कर ताने रखने के काम लाई जा सकें।।

चिड़ियां (शटल कॉक) (Shuttle Cock)-चिड़िया का वज़न 73 ग्रेन (4.73 ग्राम) से 85 ग्रेन (5.50 ग्राम) हो। इसमें 1″ से \(1 \frac{1}{2}\)व्यास वाली कार्क में 14 से 16 तक कस कर पर लगे हुए हों। परों की लम्बाई \(2 \frac{1}{2}\) से \(2 \frac{3}{4}\) हो तथा ये \(2 \frac{1}{8}\) से \(2 \frac{1}{2}\) फैले हुए हों। कार्क का व्यास \(1 \frac{1}{2}\) तक होता है।
BADMINTON COURT
बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में खिलाड़ी, स्कोर और दिशाएं बदलना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ी (Players) डबल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में दो खिलाड़ी तथा सिंगल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में एक खिलाड़ी होगा। खेल के शुरू में जो टीम पहले सर्विस करेगी, उस टीम की साइड को इन साइड (Inside) और विरोधी टीम की साइड को आऊट साइड (Outside) कहेंगे।
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टॉस (Toss) खेल प्रारम्भ होने से पहले दोनों पक्षों द्वारा टॉस किया जाएगा। टॉस जीतने वाला पक्ष निम्नलिखित का चुनाव करेगा—

  1. पहले सर्विस करना या
  2. पहले सर्विस न करना या
  3. दिशा का चुनाव करना।

शेष बातों का चुनाव टॉस हारने वाला पक्ष करेगा।
स्कोर (Score)-(1) पुरुषों के डबल्ज़ और सिंगल्ज़ के लिए 15 अंकों की खेल होती है। (2) महिलाओं के खेल में 11 अंक होते है। पुरुषों के खेल में स्कोर 14-14 बराबर होने पर पहले 14 अंक बनाने वाला पक्ष 3 अंक पर खेल स्थिर (सैट) कर लेता है। 14 अंकों पर स्थिर होने पर 17 अंक पहले लेने वाला विजयी होता है। महिलाओं के खेल में 10 अंक बराबर होने पर 12 अंक की खेल होती है। जिसने पहले 10 अंक बनाए हों वह 12 अंकों की ऑपशन ले सकता है। जहां पर लड़के और लडकियां बैडमिंटन फैडरेशन के (I.B.E.) अनुसार लागू किए गए हैं।

दिशाएं बदलना (Changing Sides)-पूर्व निर्णय के अनुसार विपक्षी दल तीन खेल खेलेंगे। तीनों में से दो खेल जीतने वाला विजेता कहलाएगा। खिलाड़ी दूसरा खेल आरम्भ होने पर दिशाएं बदलेंगे। यदि खेल के निर्णय के लिए तीसरा खेल आवश्यक हो तो उसमें भी दिशाएं बदली जाएंगी।

प्रश्न-बैडमिन्टन खेल में डबल्ज़ और सिंगल्ज़ खेल क्या होते हैं ?
उत्तर-डबल्ज़ खेल (Doubles)-(1) पहले सर्विस करने वाले पक्ष का निर्णय होने पर उस पक्ष के दायें अर्द्ध-क्षेत्र का खिलाड़ी शुरू करेगा। वह दायें अर्द्ध-क्षेत्र के विपक्षी को सर्विस देगा। यदि विपक्षी खिलाड़ी चिड़िया (शटल कॉक) के भूमि से स्पर्श करने से पहले उसे वापिस कर दे तो खेल आरम्भ करने वाला खिलाड़ी फिर उसे वापिस करेगा। इस प्रकार खेल तब तक जारी रहेगा जब तक कि फाऊल न हो जाए या चिड़िया खेल में न रहे। सर्विस वापिस न होने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने वाले पक्ष के खिलाड़ी अपना अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे। अब सर्विस करने वाला बायें अर्द्धक में रहेगा तथा सामने की ओर बायें अर्द्धक का खिलाड़ी सर्विस प्राप्त करेगा।
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(2) प्रत्येक पारी के आरम्भ में प्रत्येक टीम पहली सर्विस दायें अर्द्ध-क्षेत्र से करेगी।
सर्विस सम्बन्धी अन्य नियम (Some other rules regarding Service)—

  1. सर्विस वही खिलाड़ी प्राप्त करेगा जिसे सर्विस दी जाती है। यदि चिड़िया दूसरे खिलाड़ी को स्पर्श कर जाए या वह उसे मार दे तो सर्विस करने वाले को अंक मिल जाता है। एक खिलाड़ी खेल में दो बार सर्विस प्राप्त नहीं कर सकता।
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  2. पहली पारी में खेल आरम्भ करने वाला केवल एक ही खिलाड़ी सर्विस करेगा। आगे की पारियों में प्रत्येक खिलाड़ी सर्विस कर सकता है। खेल जीतने वाला पक्ष ही पहले सर्विस करेगा। जीते हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी सर्विस कर सकता है और हारे हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी इसे प्राप्त कर सकता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना या ग़लत अर्द्ध-क्षेत्र से सर्विस कर दे और अंक जीत जाए तो वह सर्विस ‘लैट’ (LET) कहलाएगी, परन्तु इस ‘लैट’ की मांग दूसरी सर्विस शुरू होने से पहले की जानी चाहिए।

सिंगल्ज खेल के लिए (For Singles) ऊपर के सभी नियम सिंगल्ज़ खेल में लागू होंगे परन्तु—

  1. खिलाड़ी उसी दिशा में दायें अर्द्ध-क्षेत्र में सर्विस करेगा या प्राप्त करेगा जब स्कोर शून्य (0) है या खेल में सम (Even) अंक प्राप्त किए गए हों। अंक विषय (Odd) होने की दशा में सर्विस सदैव बायें अर्द्ध-क्षेत्र की ओर से प्राप्त की जाएगी।
  2. अंक बन जाने पर दोनों खिलाड़ी बारी-बारी से अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे।

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प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
त्रुटियां (Faults) खेल रहे पक्ष के खिलाड़ी द्वारा त्रुटि होने पर उस पक्ष का सर्विस करने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा। यदि विपक्षी त्रुटि करता है तो खेल रहे पक्ष को एक अंक प्राप्त होगा।
त्रुटि मानी जाएगी—

  1. यदि सर्विस करते समय चिड़िया खिलाड़ी की कमर से ऊंची हो या रैकट का अगला सिरा चिड़िया को मारते समय सर्विस करने वाले रैकट वाले हाथ से ऊंचा उठा हो।
  2. यदि सर्विस करते समय खिलाड़ी के पांव ठीक अर्द्ध-क्षेत्र में न हों।
  3. यदि खिलाड़ी सर्विस करने से पहले या सर्विस करते समय जानबूझ कर विपक्ष के रास्ते में रुकावट डाले।
  4. यदि सर्विस करते समय, खेल के समय चिड़िया सीमाओं से बाहर निकल जाए, जाल के बीच या नीचे से निकल जाए या जाल न पार कर सके या किसी खिलाड़ी के किसी कपड़े या छाती को छू जाए।
  5. यदि खेल के समय जाल पर जाने पर पहले ही मारने वाली की ओर चिड़िया टकरा जाए।
  6. जब चिड़िया खेल में हो और खिलाड़ी रैकट शरीर या कपड़ों से जाल या बल्लियों को छू दे।
  7.  चिड़िया रैकट पर रुक जाए, कोई खिलाड़ी चिड़िया को लगातार दो बार मार दे या पहले वह और बाद में उसका साथी बारी-बारी लगातार मार दे।
  8. विपक्षी तैयार माना जाएगा यदि खेल के समय वह चिड़िया को वापिस करता है या मारने की चेष्टा करता है भले ही वह क्षेत्र की सीमा के बाहर खड़ा हो या भीतर।
  9. यदि कोई खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की खेल में रुकावट डालता है।

साधारण नियम
(General Rules)

  1. सर्विस करने वाला या सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी अपने-अपने अर्द्ध-क्षेत्रों की सीमाओं में खड़े होंगे तथा इनके दोनों पांवों के कुछ अंग सर्विस प्राप्त होने तक भूमि से टिके रहेंगे।
  2. सर्विस उस समय तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि विपक्षी तैयार नहीं होता, परन्तु यदि विपक्षी सर्विस प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो उसे तैयार माना जाएगा।

खेल में आराम-यदि दोनों टीमें सहमत हों तो दूसरी तथा तीसरी खेल के मध्य में पांच मिनट का आराम ले सकती हैं।
फाऊल
(Foul)
अधिकारी फाऊल खेलने पर अथवा खेल में किसी प्रकार की अनुचित कारवाई के लिए खिलाडियों को दो प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो इस प्रकार हैं—
पीला कार्ड (Yellow Card)- यह कार्ड खिलाड़ी को उसके अनुचित व्यवहार के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card)- यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Practical बैडमिन्टन (Badminton)

प्रश्न 1.
बैडमिन्टन में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेल होती है जैसे-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल्ज़ में 2 खिलाड़ी होते हैं जिनमें एक खिलाड़ी खेलता है और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है। डबल्ज में तीन खिलाड़ी होते हैं जिनमें दो खेलते हैं और एक अतिरिक्त (Substitute) होता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 2.
बैडमिन्टन कोर्ट की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो तरह के कोर्ट होते हैं—

  1. सिंगल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 17 फुट होती है।
  2. डबल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 20 फुट होती है।

प्रश्न 3.
खेल किस प्रकार शुरू होता है ?
उत्तर-
टॉस जीतने वाला यह फैसला करता है कि सर्विस करनी है या साइड लेनी है।

प्रश्न 4.
खेल कितने अंकों की होती है ?
उत्तर-
बैडमिन्टन खेल लड़कों की 15 और लड़कियों की 11 अंकों की होती

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
बैडमिन्टन कोर्ट को हम कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
इसको हम दो भागों में बांट सकते हैं-दाईं कोर्ट और बाई कोर्ट।

प्रश्न 6.
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की गैलरी की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की लम्बाई 2/2 फुट और चौड़ाई 19 फुट होती है।

प्रश्न 7.
जाल की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
जाल की लम्बाई इतनी हो कि सीमा रेखाओं के दोनों ओर फैल जाए। उसकी चौड़ाई 2 फुट-6 इन्च हो और स्तम्भों की तरफ से इसकी ऊंचाई 5 फुट 1 इन्च हो और मध्य में इसकी ऊंचाई 5 फुट हो।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 8.
शटल का भार बताओ।
उत्तर-
शटल का भार 73 ग्रेन से 85 ग्रेन तक होता है।

प्रश्न 9.
डबल्ज़ खेल के मुख्य नियम बताओ।
उत्तर-

  1. इसमें कुल चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। दो-दो की टीम होती है। टॉस के पश्चात् टीमें अपनी-अपनी कोर्ट सम्भाल कर सर्विस शुरू करती हैं।
  2. इसमें लड़कों के लिए 15 प्वाईंट और लड़कियों के 11 प्वाईंट होते हैं।
  3. यदि 15 प्वाईंट की खेल हो तो 14-14 बराबर होने पर यह गेम 3 प्वाईंट और आगे चल सकती है।

प्रश्न 10.
सिंगल खेल के क्या नियम हैं ?
उत्तर-
इस खेल के लिए डबल के सारे नियम लागू होते हैं। केवल निम्नलिखित बातें ध्यान योग्य हैं—

  1. जब सर्विस करने वाले का प्वाईंट Even हो तो सर्विस हमेशा दाईं कोर्ट में की जाती है या प्राप्त की जाती है। यदि Odd हो तो बाईं कोर्ट में से सर्विस करनी और प्राप्त करनी चाहिए।
  2. एक प्वाईंट हो जाने पर खिलाड़ी कोर्ट बदल लेते हैं।

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प्रश्न 11.
बैडमिन्टन खेल की मुख्य त्रुटियों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. यदि सर्विस ओवर हैड हो अर्थात् सर्विस करते समय शटल खिलाड़ी की कमर से ऊपर हो या उसका हाथ रैकट वाले हाथ से ऊपर हो।
  2. यदि सर्विस करते समय शटल गलत क्षेत्र में जाकर गिरे भाव वह सर्विस करने वाले के सामने वाले आधे भाग में जाकर गिरे या लम्बी सर्विस रेखा से एक तरफ जा गिरे।
  3. सर्विस करते समय खिलाड़ी के पैर ठीक आधे क्षेत्र में न हो या जब तक सर्विस न हो चुके, सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी के पैर अपने अर्द्धक्षेत्र में न हों।
  4. यदि खेल के समय दोनों खिलाड़ी एक समय ही शटल पर चोट करें।
  5. यदि खेल के मध्य खिलाड़ी का रैकट, कपड़ा आदि नैट को छू जाएं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए

प्रश्न 1.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराना।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ? उनके पुत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (ज़िला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं। उनके पुत्रों के नाम श्री चन्द तथा लक्षमी दास थे।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान पाप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 4.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खाँ लोधी के अधीन मोदी खाने में भण्डारी का काम किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां कौन-सी हैं?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण जैसे अंधविश्वासों में पड़ने की बजाय प्रभु भक्ति और शुभ कर्म करने चाहिएं।

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प्रश्न 7.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडम्बरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् , सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।

प्रश्न 9.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए?
उत्तर-
अपनी दूसरी उदासी के समय गुरु साहिब सर्वप्रथम आधुनिक हिमाचल प्रदेश में गए। यहां उन्होंने बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों का भ्रमण किया और कई लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया। इस उदासी में गुरु साहिब तिब्बत, कैलाश पर्वत, लद्दाख तथा कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भी गए। तत्पश्चात् उन्होंने हसन अब्दाल तथा सियालकोट का भ्रमण किया। वहां से वह अपने निवास स्थान करतारपुर चले गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे सम्बन्धी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारम्भिक मन्त्र पढ़ने के पश्चात् पण्डित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परन्तु उन्होंने इसे पहनने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुम्बा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अन्ध-विश्वासों का खण्डन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी तथा दक्षिण भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया।
    अंततः पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए वह सुल्तानपुर लोधी पहुंच गए।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुरु साहिब ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ पाकपट्टन से किया। अन्ततः वह सैय्यदपुर से आ गए। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित स्थानों की यात्रा की

  1. मुल्तान
  2. मक्का
  3. मदीना
  4. बग़दाद
  5. तेहरान
  6. कंधार
  7. पेशावर
  8. हसन अब्दाल तथा
  9. गुजरात।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये।
कार्य-

  1. इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि वाणियों की रचना की ।
  2. करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
  3. कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अन्त निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-काण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. ईश्वर की महिमा–गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है
    1. एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
    2. ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
    3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
      (iv) ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
  2. सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर से मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
  3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
  4. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
  5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
  7. जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
  8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
  9. मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की
  10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-काण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
  11. सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द की (सचखण्ड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
  12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धान्त प्रस्तुत किए-
    1. सदा सत्य बोलना।
    2. चोरी न करना।
    3. ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना।
    4. दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना।
      सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
      नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई छ: शिक्षाएं लिखें।

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प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (यात्रा) के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा लगभग 1500 ई० में आरम्भ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया

  1. सैय्यदपुर-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहाँ उन्होंने लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तुलम्बा अथवा तालुम्बा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी मुल्तान जिला में स्थित तुलम्बा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परन्तु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धन्धा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मन्दिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
  3. कुरुक्षेत्र-तुलम्बा से गुरु साहिब हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिन्दू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
  4. पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुँचे। यहाँ से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुँचे। यहाँ गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरम्भ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है ? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
  5. गोरखमता-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहाँ उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
  6. बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुँचे। यहाँ उनकी भेंट पण्डित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
  7. गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया।
    यहाँ से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  8. आसाम-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुँचे। वहाँ उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुन्दरता सच्चरित्र में है।
  9. ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मन्दिर में उन्होंने बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहाँ पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है। ईश्वर सर्वव्यापक है।
  10. दक्षिणी भारत-पुरी से गुरु नानक देव जी दक्षिण की ओर गए। वह गंटूर, कांचीपुरम, त्रिचन्नापल्ली, नागापट्टम, रामेश्वरम, त्रिवेन्द्रम होते हुए लंका पहुँचे। वहाँ का राजा शिवनाभ गुरु जी के व्यक्तित्व तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुआ और वह गुरु जी का शिष्य बन गया। लंका में गुरु साहिब ने झंडा बेदी नामक एक श्रद्धालु को ईश्वर का प्रचार करने के लिए भी नियुक्त किया। · ।
    वापसी यात्रा-लंका से वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुँचे। वहाँ पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ।
    पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए गुरु साहिब वापिस सुल्तानपुर लोधी आ गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू राम जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था।
बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पण्डित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पण्डित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ गुरु जी ने ‘ओ३म’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पण्डित जी को चकित .कर दिया। सिक्ख परम्परा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता पिता ने सनातनी रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परन्तु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।

विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहाँ भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू राम जी निराश हो गए। उन्होंने इनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी।

उनके यहां श्री चन्द और लक्षमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू राम जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहाँ उन्हें नवाब दौलत खाँ के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।

ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली बेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिन्तन भी करते थे। एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरन्तर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिन्तन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भान्ति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सुल्तानपुर लोधी के समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू राम जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहाँ वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खाँ के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भण्डार) में भण्डारी की नौकरी मिल गई। वहाँ वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधुसन्तों में लुटा रहे हैं। परन्तु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।

गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहाँ सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह शहर के साथ बहती हुए बेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमन्दों को सहायता के लिए देते थे।

ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह बेई नदी पर स्नान करने गए। परन्तु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुँचे। इस पर सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी के बेईं नदी में डूब जाने की अफवाह फैल गई। नानक जी के सगे सम्बन्धी तथा अन्य सज्जन चिन्ता में पड़ गए। लोग तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे। परन्तु गुरु नानक जी ने वे तीन दिन गम्भीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अन्तिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया।

ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी वापस पहुँचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं । उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने सन्देश का प्रचार आरम्भ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर लम्बी यात्राएँ आरम्भ कर दी।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-
इसके लिए 100-120 शब्दों वाला प्रश्न नं0 3 पढ़ें।

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प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं

  1. ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का सन्देश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मन्त्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचन्द नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
  2. ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
    “दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
    एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
  4. ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों को अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनन्दित करता रहता है।
  5. ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आप जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परन्तु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
  6. ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसकी प्रत्येक आज्ञा को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। आजकल इसे ननकाना साहिब कहते हैं।

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प्रश्न 2.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने क्या किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के मोदीखाने में दस वर्ष तक कार्य किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ कहां किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ करतारपुर में किया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ किन दो संस्थाओं द्वारा किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

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प्रश्न 8.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।

प्रश्न 9.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई?
उत्तर-
सज्जन ठग से गुरु नानक देव जी की भेंट तुलम्बा में हुई।

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
गुरु जी के सम्पर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।

प्रश्न 12.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया था और उन्होंने गुरु जी की महानता को स्वीकार कर लिया था। इसी घटना के बाद गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के अन्तिम वर्ष कहां व्यतीत हुए?
उत्तर-
गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया?
उत्तर-
पण्डित गोपाल के पास।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से फ़कीरों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
सच्चा सौदा।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचन्द और लक्ष्मीदास।

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, (वैशाख मास) 1469 ई० को हुआ।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई?
उत्तर-
1499 ई० में।

प्रश्न 22.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे?
उत्तर-
भाई मरदाना।

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता।

प्रश्न 24.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहाँ गए?
उत्तर-
भारत के उत्तर में।

प्रश्न 25.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई?
उत्तर-
सन्त शंकर देव से।

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प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरम्भ की?
उत्तर-
1517 ई० में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया?
उत्तर-
कामरूप।

प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।

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प्रश्न 29.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
सियालकोट में।

प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ किस स्थान से किया?
उत्तर-
पाकपट्टन से।

प्रश्न 31.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया?
उत्तर-
सैय्यदपुर।

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प्रश्न 32.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निन्दा की है?
उत्तर-
बाबर-वाणी में।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल कहाँ व्यतीत किए?
उत्तर-
करतारपुर में।

प्रश्न 34.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस वाणी में मिलता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।

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प्रश्न 35.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।

प्रश्न 36.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 37.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
22 सितम्बर, 1539।

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प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिन्दू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को ………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
  2. …………… गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
  3. गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………… तथा …………
  4. गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……….. नामक चार वाणियां हैं।
  5. गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप …………… नामक गांव में हुआ।
  6. गुरुद्वारा पंजा साहिब …………… में स्थित है।

उत्तर-

  1. सच्चा सौदा,
  2. बीबी सुलखनी,
  3. श्रीचंद तथा लक्षमी दास,
  4. जपुजी साहिब, बारह माहा,
  5. तलवंडी,
  6. सियालकोट।

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी रहने वाली थीं
(A) बटाला की
(B) अमृतसर की
(C) भठिण्डा की
(D) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(A) बटाला की

प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(A) गुरु अंगद देव जी ने
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने

प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट हुई
(A) पटना में
(B) सियालकोट में
(C) तुलम्बा में
(D) करतारपुर में।
उत्तर-
(C) तुलम्बा में

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प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(A) सुलखनी जी
(B) तृप्ता जी
(C) नानकी जी
(D) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(B) तृप्ता जी

प्रश्न 5.
बाबर ने गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया
(A) सियालकोट में
(B) कीरतपुर साहिब में
(C) सैय्यदपुर में
(D) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(C) सैय्यदपुर में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. करतारपुर की स्थापना 1526 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की थी।
  2. श्री गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में हुई।
  3. गुरुद्वारा पंजा साहिब अमृतसर में स्थित है।
  4. श्री गुरु नानक देव जी 22 सितम्बर 1539 ई० को ज्योति जोत समाए।
  5. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी 1499 ई० में आरम्भ की।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. गुरु नानक देव जी — भाई मरदाना
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि — करतारपुर की स्थापना
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी — संत शंकर देव
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई — दीवान करोड़ी मल खत्री।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी-करतारपुर की स्थापना,
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि-दीवान करोड़ी मल खत्री,
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी-भाई मरदाना,
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई-संत शंकर देव।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं की। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे सम्भवतः भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

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प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खण्डन किया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकाण्डों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकाण्डों का खण्डन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार विधियां और रीति-रिवाज। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी स्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खण्डन किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दी –

  1. ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
  2. जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-ग़रीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी समान हैं।
  3. शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
  4. ईश्वर भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए।
  5. गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
  6. मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
  7. नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। वह बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म देती है। इसलिए सभी को स्त्री का सम्मान करना चाहिए।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो ।
उत्तर-
(क) महान् शिक्षक के रूप में

  1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा वाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ़ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धान्तों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
  2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष सम्प्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।

(ख) सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का मिश्रण मात्र था, परन्तु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धान्त ऐसे भी थे जो न तो हिन्दू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) 1514 ई० में आरम्भ की। इस बार वह उत्तर दिशा में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए —

  1. हिमाचल प्रदेश-गुरु जी ने पंजाब के प्रदेशों में से गुजरते हुए आधुनिक हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ पर सबसे पहले उनकी भेंट पीर बुड्डन शाह से हुई। वह पीर गुरु जी का अनुयायी बन गया। हिमाचल में गुरु जी बिलासपुर, मंडी, सुकेत, रिवालसर, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों पर गए और वहाँ के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाया।
  2. तिब्बत-स्पीति घाटी पार करके गुरु नानक साहिब ने तिब्बत में प्रवेश किया। जब वह मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो यहां पर उन्होंने अनेक सिद्ध योगियों से भेंट की। गुरु जी ने उन्हें उपदेश दिया कि पहाड़ों पर बैठने से कोई लाभ नहीं। उन्हें मैदानों में जाकरं अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहे लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाना चाहिए।
  3. लद्दाख-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु जी लद्दाख गए। वहाँ पर अनेक श्रद्धालुओं ने उनकी याद में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया।
  4. कश्मीर-सकारदू तथा कारगिल होते हुए गुरु जी कश्मीर में अमरनाथ की गुफ़ा में गए। इसके बाद वह पहलगांव तथा मटन नामक स्थानों पर पहुंचे। मटन में उनकी भेंट पण्डित ब्रह्मदास से हुई जो वेद-शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता था। गुरु जी ने उसे उपदेश दिया कि केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। यहाँ से गुरु जी बारामूला, अनंतनाग तथा श्रीनगर भी गए।
  5. हसन अब्दाल-कश्मीर से वापस आते हुए गुरु जी रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हसन अब्दाल नामक स्थान पर ठहरे। वहाँ उन्हें एक अहंकारी मुसलमान फ़कीर वली कंधारी ने पहाड़ी से पत्थर फेंक कर मारने का प्रयास किया। परन्तु गुरु जी ने उस पत्थर को अपने पंजे से रोक लिया। आजकल वहां एक सुन्दर गुरुद्वारा पंजा साहिब बना हुआ है।
  6. सियालकोट-जेहलम तथा चिनाब नदियों को पार करने के पश्चात् गुरु नानक साहिब सियालकोट पहुँचे। वहाँ पर भी उन्होंने अपने प्रवचनों से अपने श्रद्धालुओं को प्रभावित किया। अंत में गुरु जी अपने निवास स्थान करतारपुर में चले गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने तीसरी उदासी (यात्रा) 1517 ई० में आरम्भ की। इस बार उन्होंने एक मुस्लिम हाजी वाला नीला पहरावा धारण किया। इस बार वह पश्चिमी एशिया की ओर गए। मरदाना भी उनके साथ था। इस यात्रा में वह निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. पाकपट्टन तथा मुल्तान-सर्वप्रथम गुरु साहिब पाकपट्टन पहुंचे। यहाँ शेख ब्रह्म से मिलने के उपरान्त वह मुल्तान पहुँचे। यहाँ पर उनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त शेख बहाउद्दीन से हुई जो गुरु जी के विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुआ।
  2. मक्का-गुरु नानक देव जी उच्च शुकर, मियानी तथा हिंगलाज नामक स्थानों पर प्रचार करते हुए हजरत मुहम्मद के जन्म स्थान मक्का पहुँचे। वहाँ गुरु जी काबे की ओर पाँव करके सो गए। वहाँ के काज़ी रुकनुद्दीन ने गुरु जी के ऐसा करने पर आपत्ति प्रकट की। परन्तु गुरु जी शांत रहे। उन्होंने काजी से प्रेमपूर्वक ये शब्द कहे- “आप मेरे पाँव उठा कर उस ओर कर दें, जिधर अल्लाह नहीं है।” काजी तुरन्त समझ गया कि अल्लाह का निवास हर जगह है।
  3. मदीना-मक्का के बाद गुरु जी मदीना पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने हज़रत मुहम्मद की कब्र देखी। गुरु जी ने यहाँ इमाम आज़िम खान से धार्मिक विषय पर बातचीत भी की और अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  4. बग़दाद-मदीना से गुरु जी ने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। वहां वह शेख बहलोल लोधी से मिले। वह उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। गुरु जी की इस यात्रा की पुष्टि नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेख बहलोल के मकबरे पर अरबी भाषा में अंकित शब्दों से होती है।
  5. काबुल-बग़दाद से गुरु जी तेहरान तथा कन्धार होते हुए काबुल पहुँचे। काबुल में उस समय बाबर (मुग़ल बादशाह) का राज्य था। यहाँ पर गुरुजी ने अपने उपदेशों का प्रचार किया और अनेक लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया।
  6. सैय्यदपुर-काबुल से दर्रा खैबर पार करके गुरु नानक देव जी पेशावर, हसन अब्दाल तथा गुजरात होते हुए सैय्यदपुर पहुंचे। उस समय सैय्यदपुर पर बाबर ने आक्रमण किया हुआ था। इस आक्रमण के समय बाबर ने सैय्यदपुर के लोगों पर बड़े अत्याचार किए। उसने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया। गुरु नानक साहिब भी इन में से एक थे। जब बाबर को इस बात का पता चला तो वह स्वयं गुरु जी को मिलने के लिए आया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी सहित अनेक बंदियों को मुक्त कर दिया। गुरु नानक देव जी ने ‘बाबरवाणी’ में बाबर के इस आक्रमण की घोर निन्दा की है। उन्होंने इसकी तुलना पाप की बारात से की है।
    गुरु नानक देव जी ने अपनी अन्तिम उदासी (यात्रा) 1521 ई० में पूर्ण की। इसके बाद वह पंजाब के आस-पास ही यात्राएं करते रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष करतारपुर में अपने परिवार के साथ एक आदर्श गृहस्थी के रूप में ही व्यतीत किए।

गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं PSEB 10th Class History Notes

  • जन्म-गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। भाई मेहरबान तथा भाई मनी सिंह की पुरातन साखी के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ। आजकल इस स्थान को ननकाना साहिब कहते हैं।
  • माता-पिता-गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राम जी था। मेहता कालू राम जी एक पटवारी थे।
  • जनेऊ की रस्म-गुरु नानक देव जी व्यर्थ के आडम्बरों के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने सूत के धागे से बना जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया।
  • सच्चा सौदा-गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिए थे। गुरु नानक देव जी ने इन रुपयों से भूखे साधु-सन्तों को भोजन कराकर ‘सच्चा सौदा’ किया।
  • ज्ञान-प्राप्ति-गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति बेईं नदी में स्नान करते समय हुई। उन्होंने नदी में गोता लगाया और तीन दिन बाद प्रकट हुए।
  • उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में कीं। इन उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।
  • करतारपुर में निवास-1522 ई० में गुरु नानक साहिब परिवार सहित करतारपुर में बस गए। यहां रह कर उन्होंने ‘वार मल्हार’, ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘बारह माहा’
    आदि वाणियों की रचना की। उन्होंने संगत तथा पंगत (लंगर) की प्रथाओं का विकास भी किया।
  • गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए। 22 सितम्बर, 1539 ई० को वह ज्योति-जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  • ईश्वर सम्बन्धी विचार-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयंभू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान् , दयालु तथा महान् है। उसे आत्म-त्याग तथा सच्चे गुरु की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • संगत तथा पंगत-‘संगत’ से अभिप्राय गुरु के शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठ कर गुरु जी के उपदेशों पर विचार करते थे। ‘पंगत’ के अनुसार शिष्य इकडे मिल कर एक पंगत में बैठकर भोजन खाते थे।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए

प्रश्न 1.
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलों के नाम बताइए।
उत्तर-
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलें हैं-चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, पटसन तथा कपास।

प्रश्न 2.
रबी के मौसम में कौन-कौन सी फसल बोई जाती हैं?
उत्तर-
रबी के मौसम में गेहूं, जौ, चना, सरसों और तोरिया आदि फ़सलें बोई जाती हैं।

प्रश्न 3.
उर्वरक क्या है ?
उत्तर-
उर्वरक भूमि को पोषक तत्त्व देने वाले रासायनिक पदार्थ होते हैं।

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प्रश्न 4.
दुधारू पशु किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे पशु जिनसे हमें दूध मिलता है, दुधारू पशु कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर-
परती भूमि वह भूमि है जिसमें दो या तीन वर्षों में केवल एक ही फसल उगाई जाती है।

प्रश्न 6.
देश के कितने प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं?
उत्तर-
देश के 22.7 प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं।

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प्रश्न 7.
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के कितने प्रतिशत भाग पर वन होना जरूरी है?
उत्तर-
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन होना ज़रूरी है।

प्रश्न 8.
पंजाब में वन क्षेत्रफल कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पंजाब में 5.7 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं।

प्रश्न 9.
भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
उत्तर-
भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।

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प्रश्न 10.
देश में गेहूँ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक राज्य है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ देश के किस राज्य से प्राप्त होता है?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ पंजाब से प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
चरागाह की भूमि घटने का कौन-सा प्रमुख कारण है?
उत्तर-
देश में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चरागाहों को कृषि भूमि में बदला जा रहा है।

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प्रश्न 13.
चावल उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक राज्य का नाम क्या है?
उत्तर-
चावल उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।

प्रश्न 14.
पंजाब प्रति हेक्टेयर गेहं की पैदावार के हिसाब से देश में कौन-से स्थान पर है?
उत्तर-
पहले स्थान पर।

प्रश्न 15.
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है।

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प्रश्न 16.
पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्र 95 हजार हेक्टेयर रह गया।

प्रश्न 17.
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या को कितने खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी ?
उत्तर-
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या (अनुमानित 160 से 170 करोड़ के बीच) को 40 करोड़ टन खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी।

प्रश्न 18.
भारतीय कृषि वर्तमान समय में तीन प्रमुख समस्याएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
भारतीय कृषि की तीन मुख्य समस्याएं हैं-
(i) भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव
(ii) कृषि भूमि का असमान वितरण
(iii) कृषकों का अनपढ़ होना।

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प्रश्न 19.
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 20.
तिलहन फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तिलहन फसलें हैं-मूंगफली, सरसों, तोरिया, सूरजमुखी के बीज, बिनौला, नारियल आदि।

प्रश्न 21.
मूंगफली का उत्पादन किन दो राज्यों में अधिक होता है?
उत्तर-
मूंगफली का उत्पादन गुजरात तथा महाराष्ट्र में सबसे अधिक होता है।

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प्रश्न 22.
तिलहन उत्पादन क्षेत्रफल में किस दशक में देश में सबसे तेजी से वृद्धि हुई?
उत्तर-
तिलहन उत्पादन के क्षेत्रफल में 1980 से 1990 के दशक में सबसे अधिक वृद्धि हुई।

प्रश्न 23.
देश के मुख्यता कपास उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, सीमांध्र, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु।

प्रश्न 24.
कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार कितनी है?
उत्तर-
भारत में कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार 249 किलोग्राम है।

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प्रश्न 25.
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पंजाब।

प्रश्न 26.
पंजाब में प्रमख आल उत्पादक जिलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब में प्रमुख आलू उत्पादक जिले हैं-जालन्धर, होशियारपुर, पटियाला तथा लुधियाना।

प्रश्न 27.
पशुधन में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
पशुधन में पंजाब का देश में तेरहवां स्थान है।

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प्रश्न 28.
पशुधन किस राज्य में सबसे अधिक पाया जाता है?
उत्तर-
देश में सबसे अधिक पशुधन उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।

प्रश्न 29.
फलों तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 30.
सेब उत्पादन में दो प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश मुख्य राज्य हैं।

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II. निम्न प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।

  1. कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
  2. कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
  3. अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है।
  2. जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है।
  3. उर्वरकों तथा अच्छी किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि हरित क्रान्ति से कृषि तथा कृषि-उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 3.
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत किन-किन चीज़ों को शामिल किया जाता है?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत फ़सलें उगाने के अतिरिक्त निम्नलिखित चीजें शामिल हैं —

  1. पशु पालन
  2. मत्स्य उद्योग
  3. वानिकी
  4. रेशम के कीड़े पालना
  5. मधुमक्खी पालना
  6. मुर्गी पालन।

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प्रश्न 4.
दुधारू एवं भारवाहक पशुओं के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुधारू पशुओं से अभिप्राय उन पशुओं से है जिनसे हमें दूध मिलता है। उदाहरण के लिए गाय और भैंस दुधारू पशु हैं। इसके विपरीत भारवाही पशु जुताई, बुवाई, गहाई और कृषि उत्पादों के परिवहन में कृषकों की सहायता करते हैं। बैल, भैंसा, ऊँट आदि पशु भारवाही पशुओं के मुख्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.
चालू परती एवं पुरानी परती भूमि के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कुछ भूमि ऐसी होती है जिसे केवल एक ही वर्ष के लिए खाली छोड़ा जाता है। एक वर्ष के बाद उस पर फिर से कृषि की जाती है। ऐसी भूमि को चालू परती भूमि (Current Fallow Land) कहा जाता है। शेष परती भूमि को पुरानी परती भूमि (Old Fallow Land) कहते हैं। इस पर काफ़ी समय से कृषि नहीं की गई।

प्रश्न 6.
गेहूं की फसल उगाने हेतु उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जाती है। इसके लिए 50 सें०मी० से 75 सें.मी० की वर्षा पर्याप्त रहती है। वर्षा थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।

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प्रश्न 7.
चावल उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भारत के प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र अनलिखित हैं —
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदान एवं डेल्टाई प्रदेश, उत्तर-पूर्वी भारत के मैदान तथा निचली पहाड़ियां, हिमालय की गिरिपाद पहाड़ियां, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरी आन्ध्र प्रदेश तथा सम्पूर्ण उड़ीसा।
कम वर्षा वाले क्षेत्र-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदान, हरियाणा, पंजाब तथा पंजाब-हरियाणा के साथ लगने वाले राजस्थान के कुछ जिले।

प्रश्न 8.
गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गन्ने की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां उपयुक्त रहती हैं —

  1. इसे गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए लगभग 21° से ग्रे० से 27° से ग्रे० तक तापमान अच्छा रहता है। गन्ने के पौधे के लिए पाला बहुत हानिकारक है।
  2. गन्ने को अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा 75 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होनी चाहिए।
  3. इसके लिए वायु में नमी अधिक होनी चाहिए।
  4. गन्ने की कृषि के लिए भूमि उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। यदि मिट्टी में फॉस्फोरस तथा चूने के अंश अधिक हों तो गन्ने की फसल बहुत अच्छी होती है।
  5. भूमि समतल होनी चाहिए ताकि सिंचाई अच्छी तरह हो सके।

प्रश्न 9.
वनों के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर-
वन एक बहुमूल्य सम्पदा है। इनके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. वन पारिस्थितिक सन्तुलन तथा प्राकृतिक पारितन्त्र को बनाये रखने में बहुत अधिक योगदान देते हैं।
  2. इनसे हमें इमारती तथा ईंधन योग्य लकड़ी मिलती है। इमारती लकड़ी से फ़र्नीचर, पैकिंग के बक्से, नावें आदि बनाई जाती हैं। इसका उपयोग भवन निर्माण कार्यों में भी होता है।
  3. मुलायम लकड़ी से लुग्दी बनाई जाती है जिसकी कागज़ उद्योग में भारी मांग है।
  4. वनों से हमें लाख, बेंत, राल, जड़ी-बूटियां, गोंद आदि उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  5. वनों से पशुओं के लिए चारा (घास) भी प्राप्त होता है।

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प्रश्न 10.
भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
भारत में अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। छोटे-छोटे खेतों पर श्रम तथा पूंजी तो अधिक लगती है, परन्तु आर्थिक लाभ बहुत ही कम होता है। छोटे किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवैल का पानी तथा कृषि यन्त्र बड़े किसानों से किराए पर लेने पड़ते हैं। उन्हें महंगे उर्वरक भी बाजार से खरीदने पड़ते हैं। इससे उनकी शुद्ध बचत बहुत ही कम हो जाती है। इन्हीं कारणों से भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि कहते हैं।

प्रश्न 11.
देश में पशधन विकास के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत में पशुधन के विकास के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं-उनकी नस्ल सुधारने, उन्हें विविध प्रकार की बीमारियों से बचाने, पशु रोगों पर नियन्त्रण करने तथा बाज़ार की अधिक अच्छी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किये गये हैं। देश के प्रत्येक विकास खण्ड में कम-से-कम एक पशु चिकित्सालय खोला गया है। ग्रामीण स्तर पर भी पशुधन स्वास्थ्य केन्द्र खोले गये हैं।

प्रश्न 12.
‘हरित क्रान्ति’ को कुछ लोग ‘गेहूं-क्रान्ति’ का नाम क्यों देते हैं?
उत्तर-
गेहूं के उत्पादन में हरित-क्रान्ति के बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। भारत में हरित क्रान्ति का आरम्भ 1966-67 के वर्ष से माना जाता है। गेहूं का उत्पादन जो वर्ष 1960-61 में 1 करोड़ 10 लाख टन था, वर्ष 2004-05 में यह उत्पादन 20 करोड़ टन तक पहुंच गया। गेहूं के अतिरिक्त किसी अन्य खाद्यान्न में हरित क्रान्ति के दौरान इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई। गेहूं उत्पादन में इस अभूतपूर्व उत्पादन वृद्धि के कारण ही कई लोग ‘हरित क्रान्ति’ को ‘गेहूं-क्रान्ति’ की संज्ञा देते हैं।

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प्रश्न 13.
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के क्या कारण हैं?
उत्तर-
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के दो मुख्य कारण हैं-जनसंख्या में वृद्धि तथा आर्थिक विकास। आबादी के बढ़ने से शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों का विस्तार हो रहा है। इसी प्रकार विकास कार्यों में तेजी आने से काफ़ी बड़ा क्षेत्रफल सड़कों, नहरों, औद्योगिक एवं सिंचाई परियोजनाओं तथा अन्य विकास सुविधाओं के विस्तार के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।

प्रश्न 14.
वनों का महत्त्व संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर-
वनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी —

  1. वनों द्वारा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण. करके वायुमण्डल के तापमान को बढ़ने से रोकते हैं।
  2. वन, वन्य प्राणियों के घर हैं। वे उन्हें संरक्षण देते हैं।
  3. वनों से वर्षण की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बार-बार सूखा नहीं पड़ता।
  4. वन जल का भी संरक्षण करते हैं और मिट्टी का भी। वे नदियों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ों को रोकने में समर्थ हैं।

प्रश्न 15.
आजादी के बाद खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि की उन्नति के लिए भरसक प्रयास किए गए। परिणामस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1950-51 तथा 1994-95 के मध्य चावल के उत्पादन में चार गुणा और गेहूं के उत्पादन में दस गुणा वृद्धि हुई। इस तरह कृषि के क्षेत्र में उन्नति के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि पर भी प्रभाव पड़ा। 1950 के वर्ष में यह 395 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी। 2005 में यह बढ़कर 500 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई।

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प्रश्न 16.
देश में कृषि जोतों के छोटा होने के क्या कारण हैं तथा इसका भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
देश में 58% जोतों का आकार 1 हेक्टेयर से कम है। जोतों का आकार छोय होने का कारण उत्तराधिकार का नियम है। पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी भूमि उसकी सन्तान में बराबर बांट दी जाती है। अत: भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते बोझ के कारण जोतों का आकार छोटा है।
जोतें छोटी होने के कारण न तो किसान आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग ही कर सकता है और न ही आधुनिक सिंचाई के साधनों की व्यवस्था कर सकता है। उसे पानी भी किराए पर लेना पड़ता है और कृषि यन्त्र भी। परिणामस्वरूप उसकी शुद्ध बचत कम होती है और वह दिन प्रतिदिन निर्धन होता जा रहा है।

प्रश्न 17.
चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में चावल का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। वर्ष 2003-04 में यहां कुल 140 लाख टन चावल का उत्पादन किया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पंजाब एवं उड़ीसा का नम्बर आता है। इनमें से हर एक राज्य में प्रति वर्ष 60 लाख टन से अधिक चावल पैदा होता है। इनके अतिरिक्त झारखण्ड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में भी बड़ी मात्रा में चावल का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 18.
पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
पंजाब गेहूं उत्पादन की दृष्टि से भारत में दूसरे स्थान पर आता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर गेहूं की उपज एवं केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में इस राज्य का प्रथम स्थान है। पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब में गेहूं की खेती बहुत ही विस्तृत आधार पर की जाती है। यहां के किसान इसे व्यावसायिक फसल के रूप में पैदा करते हैं।
  2. पंजाब के किसानों को अच्छी सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
  3. यहां उगाई जाने वाली गेहूं का झाड़ अधिक होता है।
  4. तेजी से हो रहे मशीनीकरण के कारण भी पंजाब से गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि हुई है।

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प्रश्न 19.
दालों के उत्पादक क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —

  1. दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
  2. कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया
  3. बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।

प्रश्न 20.
डेयरी उद्योग के लाभ बताओ।
उत्तर-
डेयरी उद्योग से अभिप्राय दूध प्राप्त करने के लिए पशु पालने से है। वास्तव में डेरी उद्योग कृषि का ही भाग है। इस उद्योग के लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. डेयरी उद्योग से सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों को रोजगार मिलता है और किसान कृषि की फसल नष्ट होने के बावजूद अच्छा गुजारा कर सकते हैं।
  2. डेयरी उद्योग से कृषि को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है जिससे उनकी कृषि आय में वृद्धि होती है।
  3. दूध के उत्पादन में वृद्धि होने के कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन अभी कम क्यों है?
उत्तर-
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से कम है। आओ इस कमी का पता लगाएं —

  1. दालों के उत्पादन में कमी-देश में दालों के उत्पादन में कमी का मुख्य कारण दाल उत्पादन क्षेत्रों में कमी आना है। हरित क्रान्ति के पश्चात् इन क्षेत्रों पर गेहूं तथा चावल की फसलें बोई जाने लगी हैं। इस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
  2. तिलहन के उत्पादन में कमी-देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति दालों के विपरीत है। तिलहन उत्पादक क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है और तिलहन उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद देश में तिलहन की मांग पूरी नहीं हो पा रही। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में तिलहनों की मांग 5 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है और इसके साथ जनसंख्या की वृद्धि दर इस समस्या को गम्भीर बना रही है।”

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प्रश्न 22.
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं क्या हैं ?
उत्तर-
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं अनलिखित हैं —

  1. वन तथा चरागाह कम होने के कारण मिट्टी का कटाव अधिक होता है।
  2. पंजाब के कई जिलों की मिट्टियों में अधिक लवणता पाई जाती है। अकेले फिरोजपुर जिले में एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि इससे प्रभावित है।
  3. अधिकतर किसान अनपढ़ होने के कारण वैज्ञानिक ढंग से फसल-चक्र नहीं अपना पाते।
  4. अकृषि कार्यों के लिए भूमि-उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र कम होता जा रहा है।
  5. अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। ऐसी जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं। महंगे कृषि औज़ारों को किराए पर लेने, महंगी रासायनिक खादें आदि खरीदने के कारण किसानों की शुद्ध बचत बहुत कम हो जाती है। पंजाब की कृषि की अन्य समस्याएं हैं-भूमिगत जल स्तर में कमी तथा मिट्टियों की उर्वरता का ह्रास।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में आये फसल चक्र में तेजी से आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में फसल चक्र में तेजी से परिवर्तन हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश) में कृषि उत्पादकता बढ़ गई है। परन्तु परम्परागत रूप से चावल उत्पन्न करने वाले पूर्वी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता कम हो गई है। इससे देश के कृषि विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में कृषि विकास में एक ठहराव-सा आ गया है। इन समस्याओं से निपटने के लिए भारत के विभिन्न भागों में किसान नये-नये फसल चक्र अपनाने लगे हैं। उन्होंने ऐसे फसल चक्र अपनाये हैं जो आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी हैं।

प्रश्न 24.
वे कौन-से संकेत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारतीय कृषि निर्वाह की ओर से व्यापारिक कृषि की ओर बढ़ रही है?
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान फसल बो कर अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं ही पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। निम्नलिखित तथ्य भारतीय कृषि को उसकी निर्वाह अवस्था से निकालकर व्यापारिक अवस्था में पहुंचाने में सहायक हुए —

  1. ज़मींदारी प्रथा का कानून द्वारा उन्मूलन हो चुका है। इस तरह सरकार और भू-स्वामियों के मध्य आने वाले बिचौलिये समाप्त हो गए हैं।
  2. चकबन्दी द्वारा किसानों के दूर-दूर बिखरे खेत बड़ी जोतों में बदल दिए गए हैं।
  3. सहकारिता आन्दोलन के अन्तर्गत किसान मिल-जुल कर स्वयं ही अपनी ऋण और उपज की बिक्री सम्बन्धी समस्याएं सुलझा रहे हैं।
  4. राष्ट्रीय बैंक किसानों को आसान शतों पर ऋण देने लगे हैं।
  5. खेतों में उपज बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम, केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, कृषि विश्वविद्यालय, डेयरी विकास बोर्ड तथा दूसरी संस्थाएं किसानों को सहायता पहुंचा रही हैं।
  6. कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है जिससे किसानों को किसी मज़बूरी में अपनी उपज कम कीमत पर नहीं बेचनी पड़ती।

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प्रश्न 25.
कृषि विकास के लिए भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए गए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि की शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन-खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के अधीन नदियों के पानी को रोककर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय कृषि की अनेक समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय कृषि की सम्भवतः सबसे बड़ी समस्या भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। देश की अर्जक जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर तो करता है परन्तु वह देश की कुल आय का 29 प्रतिशत भाग ही जुटा पाता है।
  2. देश में अधिकांश जोतें छोटी हैं और उनका वितरण बहुत ही असामान्य है। छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से बड़ी अलाभकारी हैं।
  3. वनों और चरागाहों के कम होने के कारण मिट्टी के कटाव के साथ-साथ उनकी उर्वरता बनाये रखने वाले स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।
  4. देश के अधिकांश कृषक अनपढ़ हैं। वे वैज्ञानिक ढंग से फसल चक्र तैयार नहीं कर पाते। इससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता कम होती है। इसी तरह गहन कृषि का भी प्राकृतिक उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  5. देश में सिंचाई भी एक समस्या बन गई है। एक ओर जहां राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़ेबड़े राज्यों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता है, वहां पंजाब में सिंचाई साधनों की अधिकता के कारण जलसंतृप्तता (Water logging) तथा लवणता (Salinity) की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  6. घटता पूंजी निवेश कृषि की एक अन्य समस्या है। 1980-81 में जहां यह निवेश 1769 करोड़ था, वहां 1990-91 में यह घटकर 1002 करोड़ रुपए रह गया। परन्तु इसके बाद से इस निवेश में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  7. उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने में भी नाममात्र प्रगति हुई है।
  8. फसलों की किस्मों की विभिन्नता का अभाव तथा धीमी वृद्धि दर भी भारतीय कृषि की एक गम्भीर समस्या है।
    सच तो यह है कि सरकार का कृषि क्षेत्र पर कड़ा नियन्त्रण है और वह कृषि उत्पादनों के मूल्यों पर भी नियन्त्रण रखती है। कृषक वर्ग को इतनी अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती जितनी कि उद्योगों तथा विभिन्न सेवाओं में लगे लोगों को प्रदान की जाती है।

प्रश्न 2.
देश में ‘हरित क्रान्ति’ पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति से अभिप्राय उस कृषि क्रांति से है जिसका आरम्भ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए किया गया। हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषता यह है कि इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है। जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है। उर्वरकों तथा अच्छी नस्ल के बीजों का प्रयोग भी होता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। भारतीय कृषि के विकास के लिए जहां अन्य विधियां अपनायी गयीं वहां अच्छे बीजों और यन्त्रों का भी प्रयोग किया गया। 1961 में इस काम के लिए देश के सात जिलों को चुना गया। पंजाब का लुधियाना ज़िला इन सात जिलों में से एक था। लुधियाना के साथ-साथ सारे पंजाब पर हरित क्रान्ति का प्रभाव पड़ा और पंजाब एक बार फिर भारत की ‘अनाज की टोकरी’ बन गया। प्रभाव-भारतीय समाज पर हरित क्रान्ति के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं —
1. आर्थिक प्रभाव —

  1. हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।
  2. कृषि निर्वाह अवस्था से निकलकर व्यापारिक अवस्था में बदल गई है।
  3. कृषि का मशीनीकरण हो गया है।
  4. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप सिंचाई का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है।
  5. किसानों ने आर्थिक दृष्टि से अधिक-से-अधिक लाभकारी फसल-चक्र अपना लिया है।

2. सामाजिक प्रभाव—

  1. प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के परिणामस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में प्रगति हुई है। किसान अब पहले से अच्छे और पक्के मकानों में रहते हैं। उनके पास निजी वाहन हैं।
  2. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप किसानों में साक्षरता बढ़ रही है, गांव-गांव में जहां स्कूल खुल रहे हैं वहां अस्पतालों की भी व्यवस्था की जा रही है।

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प्रश्न 3.
देश में चावल की खेती का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
देश में चावल की खेती का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चावल भारत का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। भारत के दो-तिहाई लोगों का मुख्य आहार चावल ही है। इसकी उपज के लिए भौगोलिक परिस्थितियां, इसके उत्पादक राज्यों तथा इसके व्यापार का वर्णन इस प्रकार है —
भौगोलिक परिस्थितियां-चावल की खेती के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनकल रहती हैं —

  1. चावल उष्ण आर्द्र कटिबन्ध की उपज है। इसके लिए ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए तापमान 25° सेंटीग्रेड से अधिक होना चाहिए। इसे काटते समय विशेष रूप से तापमान काफ़ी ऊंचा होना चाहिए।
  2. चावल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें पानी में डूबी रहनी चाहिएं। इसके लिए 100 सें० मी० तक की वर्षा अच्छी मानी जाती है। इसकी सफलता मानसून पर निर्भर करती है। जिन भागों में वर्षा कम होती है वहां कृत्रिम सिंचाई का सहारा लिया जाता है।
  3. चावल की खेती के लिए भी सभी कार्य हाथों से करने पड़ते हैं। अत: इसकी कृषि के लिए श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस कारण इसकी कृषि प्रायः उन भागों में होती है जहां जनसंख्या अधिक हो और सस्ते श्रमिक सरलता से मिल जाएं।
    चावल उत्पादक राज्य-भारत का चावल उत्पन्न करने में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में सबसे अधिक चावल पश्चिमी बंगाल में उत्पन्न होता है। दूसरा स्थान तमिलनाडु और तीसरा बिहार का है। कर्नाटक, झारखण्ड, केरल, असम, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश आदि अन्य मुख्य चावल उत्पादक राज्य हैं। पंजाब और हरियाणा में भी काफ़ी मात्रा में चावल बोया जाता है। 2001-02 में भारत में लगभग 4.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर चावल की बिजाई की गई थी। इस वर्ष चावल का कुल उत्पादन 8.20 करोड़ टन के लगभग था।

प्रश्न 4.
गेहूं की कृषि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गेहूं एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भौगोलिक परिस्थितियां-गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जा सकती है। इसके लिए 50 सें० मी० से 75 सें० मी० तक की वर्षा पर्याप्त रहती है। परन्तु वर्षा थोड़े-थोड़े समय पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।
    उत्पादक राज्य-भारत में सबसे अधिक गेहूं उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। इसके उत्पादन में दूसरा स्थान पंजाब का है। हरियाणा भी गेहूं का उत्पादन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा महाराष्ट्र में भी काफ़ी मात्रा में गेहूं पैदा होता है।
    उत्पादन-हरित क्रान्ति तथा उसके बाद के वर्षों में गेहूं के उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। 1960-61 में इसका उत्पादन केवल 1 करोड़ 60 लाख टन था। 2000-01 में यह बढ़कर 6 करोड़ 87 लाख टन हो गया।

प्रश्न 5.
देश में दालों की कृषि पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
देश दालों के उत्पादन में अधिक उन्नतिशील नहीं रहा क्योंकि हमने इनके उत्पादन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। पिछले कई दशकों में दालों का उत्पादन घटता-बढ़ता रहा है।
मुख्य दालों में चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर और मटर सम्मिलित हैं। दालें भारी वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में उगाई जाती हैं। एक बात और-मूंग, उड़द और मसूर रबी तथा खरीफ़ दोनों मौसमों में उगाई जाती है।
देश में दालों के क्षेत्रफल में भी वृद्धि नहीं हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद गेहूं तथा चावल जैसी फसलों में लगा दिया गया है। वर्ष 1960-61 में दालों का उत्पादन 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर किया गया, जो 2000-01 में घटकर 2.3 करोड़ हेक्टेयर रह गया। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
देश में दालों का कुल उत्पादन 1960-61 में 1.3 करोड़ टन था जो बढ़कर 2000-01 में केवल 1.7 करोड़ टन तक ही पहुंच सका।
सच तो यह है कि दालों के न तो उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि हुई है और न ही उत्पादन में। यह एक चिन्ता का विषय है। सरकार को चाहिए कि वह अच्छे बीजों की खोज के लिए अथक एवं निरन्तर प्रयास करे।

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प्रश्न 6.
तिलहन उत्पादक क्षेत्रफल में हरित क्रान्ति के बाद हुई गिरावट के कारणों पर प्रकाश डालिए तथा सरकार द्वारा तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
क्षेत्रफल में गिरावट के कारण-तिलहन ऐसी फसलें हैं जो अन्य फसलों के साथ उगाई जाती हैं और जो भूमि की उर्वरता में वृद्धि भी करती हैं। फसलों के वैज्ञानिक चक्र में तिलहन धुरी का काम करती है। इसके बावजूद ऐसे क्षेत्र में कमी आई है जिसमें तिलहन बोया जाता रहा है। हरित क्रान्ति के कारण पंजाब में तिलहन उत्पादन क्षेत्रों में कमी आई है। यहां तिलहन उत्पादक क्षेत्र जो 197576 में 3.2 लाख हेक्टेयर था, 1990-91 तक 1.00 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया। इसके बाद इसमें कुछ वृद्धि अवश्य हुई, परन्तु क्षेत्रफल अस्थिर रहा। 2000-01 में कुल उत्पादक क्षेत्रफल 2 करोड़ 13 लाख हेक्टेयर था। तिलहन उत्पादन में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
सरकारी प्रयास-तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार उन्नत किस्म के बीजों की व्यवस्था कर रही है। इसके अतिरिक्त वह कृषकों को तिलहन के अच्छे मूल्यों की गारण्टी दे रही है, ताकि किसानों की तिलहन की कृषि में रुचि बढ़े।

प्रश्न 7.
कपास उत्पादन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत कपास के पौधे का मूल स्थान है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के अध्ययन से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस समय भी कपास की पैदावार होती थी। उस काल में यहां की कपास को बेबीलोन के लोग ‘सिन्धु’ तथा यूनानी इसे ‘सिन्दों’ के नाम से पुकारते थे। कपास लंबे, मध्यम तथा छोटे रेशे वाली होती है। भारत में मुख्यतः मध्यम तथा छोटे रेशे वाली कपास उगाई जाती है। लंबे रेशे वाली कपास केवल पंजाब तथा हरियाणा में ही पैदा होती है। देश में कपास उत्पादन का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कपास दक्कन के काली मिट्टी वाले शुष्क भागों में खूब उगती है। गुजरात और महाराष्ट्र दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन सबसे अधिक होता है। दूसरे स्थान पर गुजरात व तीसरे स्थान पर पंजाब का नाम आता है।
  2. राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु अन्य कपास उत्पादक राज्य हैं।
  3. पिछले वर्षों में पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र निरन्तर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप कपास के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस समय पंजाब में 17 लाख से भी अधिक कपास की गांठों का उत्पादन होता है।
  4. वर्ष 2000-01 में देश में 86 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की गई। इस वर्ष कुल 97 लाख कपास की गांठों का उत्पादन हुआ। इनमें से प्रत्येक गांठ का वजन 170 कि० ग्रा० था।
  5. कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव काफी अधिक होता है। इसका कारण फ़सलों में होने वाली बीमारियां हैं। कपास के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों से भी कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव आता रहता है।

प्रश्न 8.
भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बागवानी खेती से अभिप्राय सब्जियों, फूलों तथा फलों की गहन खेती से है। भारत का फल तथा सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में फलों का उत्पादन 3.9 करोड़ टन तथा सब्जियों का उत्पादन 6.5 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हमारे देश में विभिन्न प्रकार की कृषि-जलवायु दशाएं पाई जाती हैं। इसलिए यहां पर विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, फूल, मसाले तथा अन्य बागानी फसलें उगाना सम्भव है। उच्च पहाड़ी भागों पर चाय तथा कहवा उगाया जाता है तो समुद्र तटीय भागों में नारियल के पेड़ उगाये जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि देश में विभिन्न प्रकार की बागवानी खेती की सम्भावनाएं हैं।
  2. केला, आम, नारियल और काजू उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इसके अतिरिक्त मौसमी, सेब, सन्तरा, किन्न, अनानास आदि के उत्पादन में भारत विश्व के दस बड़े उत्पादक देशों में से एक है। इसी प्रकार भारत गोभी के उत्पादन में प्रथम तथा आलू, टमाटर, प्याज एवं हरे मटर के उत्पादन में विश्व के दस बड़े उत्पादकों में से एक है।
  3. देश से होने वाले कुल कृषि निर्यातों में बागवानी उत्पादों का हिस्सा लगभग 25.0 प्रतिशत है।
  4. हाल के वर्षों में देश में फूलों के उत्पादन को भारी बढ़ावा मिला है। इसका मुख्य कारण फूलों के लिए बाहर के देशों की बढ़ती हुई मांग है। फूलों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 200 निर्यातमुखी इकाइयों को चुना गया है।
  5. भारत में सेब के उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्य के नाम सबसे ऊपर हैं। सन्तरों और केलों के उत्पादन में महाराष्ट्र, आम उत्पादन में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र तथा काजू उत्पादन में कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल प्रमुख हैं।
    इस प्रकार भारत बागवानी कृषि में निरन्तर प्रगति कर रहा है।

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IV. निम्नलिखित को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए :

  1. प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र।
  2. प्रमुख ज्वार-बाजरा उत्पादक क्षेत्र।
  3. प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र।
  4. प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र।
  5. आलू उत्पादक राज्य।
  6. तिलहन उत्पादक प्रमुख क्षेत्र।
  7. गन्ना उत्पादक क्षेत्र।
  8. दालों के प्रमुख उत्पादक राज्य।
  9. मक्का उत्पादक क्षेत्र।

उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
वन बाढ़ों पर किस प्रकार नियन्त्रण करते हैं?
उत्तर-
वन वर्षा के जल को मृदा के अन्दर रिसने में सहायता करते हैं और धरातल पर जल के प्रवाह को मंद कर देते हैं।

प्रश्न 2.
वनों की वृद्धि से सूखे की समस्या पर कैसे नियन्त्रण पाया जा सकता है?
उत्तर-
वन वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

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प्रश्न 3.
बंजर भूमि का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बंजर भूमि वह भूमि है जिसका इस समय उपयोग नहीं हो रहा।

प्रश्न 4.
मनुष्य किन दो तरीकों से बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है?
उत्तर-
(i) अति चराई द्वारा।
(ii) वनों के विनाश द्वारा।

प्रश्न 5.
भारत में भूमि की मांग क्यों बढ़ती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत में भूमि की मांग बढ़ रही है।

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प्रश्न 6.
भारत में मृदा की प्राकृतिक उर्वरता क्यों कम होती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
वनों तथा चरागाहों की कमी का मृदा की प्राकृतिक उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न 7.
भारत में जोतों को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बनाने का कोई एक उपाय बताओ।
उत्तर-
जोतों की चकबन्दी की जाए और जुताई सहकारिता के आधार पर की जाए।

प्रश्न 8.
शष्क कृषि में मेड़बन्दी और समोच्च रेखीय जुताई का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इससे मृदा में नमी बनी रहती है और मृदा का अपरदन भी नहीं होता।

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प्रश्न 9.
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर-
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हरी तथा गोबर जैसी खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि मूल्य आयोग का क्या कार्य है?
उत्तर-
कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है।

प्रश्न 11.
भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुओं के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में मुख्य रूप से दो कृषीय ऋतुएँ हैं-खरीफ तथा रबी।

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प्रश्न 12.
डेल्टा प्रदेश चावल की कृषि के लिए उत्तम क्यों हैं?
उत्तर-
डेल्टा प्रदेशों की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है जो चावल की कृषि के अनुकूल है।

प्रश्न 13.
भारत में गेहूं उत्पादक तीन मुख्य राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

प्रश्न 14.
कोई दो दूधारू पशुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
गाय तथा बकरी।

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प्रश्न 15.
भारत में दालों की कृषि का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखो।
उत्तर-
दालें भारत की शाकाहारी जनता के लिए प्रोटीन का मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 16.
तिलहन क्या हैं?
उत्तर-
वे बीज जिन से हमें तेल प्राप्त होते हैं, तिलहन कहलाते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में चाय के दो सर्वप्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
असम और पश्चिमी बंगाल चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

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प्रश्न 18.
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य कौन-से हैं?
उत्तर-
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र हैं।

प्रश्न 19.
भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में समृद्ध मत्स्य क्षेत्र क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर-
भारत में महाद्वीपीय निमग्न तट में समुद्री धाराएं चलती हैं और यहां बड़ी-बड़ी नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं।

प्रश्न 20.
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र में मैन्ग्रोव जाति के सुन्दरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी लकड़ी से नावें और बक्से बनाए जाते हैं।

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प्रश्न 21.
भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर-
भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि. मी. है।

प्रश्न 22.
जिस परती भूमि को केवल एक ही साल के लिए खाली छोड़ा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
चालू परती।

प्रश्न 23.
भारत में कुल भूमि के कितने प्रतिशत भाग पर खेती की जाती है?
उत्तर-
56 प्रतिशत।

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प्रश्न 24.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 25.
देश की कुल राष्ट्रीय आय का कितने प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है?
उत्तर-
29 प्रतिशत।

प्रश्न 26.
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
उत्तर-
जनसंख्या का भारी दबाव।

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प्रश्न 27.
पंजाब में मिट्टी की जल संतृप्त तथा लवणता जैसी समस्याओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर-
अधिक सिंचाई।

प्रश्न 28.
‘जायद’ की किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तरबूज़ तथा ककड़ी।

प्रश्न 29.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल कौन-सी है?
उत्तर-
चावल।

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प्रश्न 30.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 31.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फसल कौन-सी है?
उत्तर-
गेहूं।

प्रश्न 32.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन तथा केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

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प्रश्न 33.
मक्का मूल रूप से किस देश की फ़सल है?
उत्तर-
अमेरिका की।

प्रश्न 34.
संसार में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 35.
देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को किस क्रान्ति का नाम दिया जाता है?
उत्तर-
हरित क्रांति।

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प्रश्न 36.
भारत की तीन रेशेदार फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कपास, जूट तथा ऊन।

प्रश्न 37.
गन्ने का मूल स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 38.
गन्ने के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

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प्रश्न 39.
कृषि पारितंत्र कैसे बनता है?
उत्तर-
कृषि पारितंत्र खेत, कृषक तथा उसके पशुओं के मेल से बनता है।

प्रश्न 40.
सेब उत्पादन में भारत के कौन-से दो राज्य सबसे आगे हैं?
उत्तर-
जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 41.
भारत में सबसे अधिक पशुधन किस राज्य में है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश में।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. मनुष्य वनों के विनाश तथा अति चराई द्वारा ……………. भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है।
  2. खरीफ़ तथा ………….. भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुएं है।
  3. भारत में …………… और असम चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  4. ……….. भारत का प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है।
  5. चालू परती भूमि को केवल ……………… साल के लिए खाली छोड़ा जाता है।
  6. देश की कुल राष्ट्रीय आय का ……………. प्रतिशत भाग कृषि से प्राप्त होता है।
  7. देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को ……………… कहा जाता है।
  8. ………………. गन्ने का मूल स्थान है।
  9. फलों में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में ……………. का उत्पादन सबसे अधिक है।
  10. ………………… राज्य में सबसे अधिक पशुधन है।

उत्तर-

  1. बंजर,
  2. रबी,
  3. पश्चिमी बंगाल,
  4. महाराष्ट्र,
  5. एक,
  6. 29,
  7. हरित क्रांति,
  8. भारत,
  9. सेब,
  10. उत्तर प्रदेश।

II. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं —
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र
(B) पंजाब तथा राजस्थान
(C) बिहार तथा गुजरात
(D) पश्चिमी बंगाल तथा महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र

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प्रश्न 2.
भारत का कुल क्षेत्रफल है —
(A) 62.8 लाख वर्ग कि० मी०
(B) 42.8 लाख वर्ग कि० मी०
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०
(D) 23.8 लाख वर्ग कि० मी०।
उत्तर-
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०

प्रश्न 3.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र है —
(A) 92.2 प्रतिशत
(B) 60.2 प्रतिशत
(C) 72.2 प्रतिशत
(D) 82.2 प्रतिशत।
उत्तर-
(D) 82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल है —
(A) गेहूं
(B) मक्का
(C) चावल
(D) बाजरा।
उत्तर-
(C) चावल

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प्रश्न 5.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है —
(A) पश्चिमी बंगाल
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) पश्चिमी बंगाल

प्रश्न 6.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फ़सल है —
(A) चावल
(B) गेहूं
(C) मक्का
(D) बाजरा।
उत्तर-
(B) गेहूं

प्रश्न 7.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन में पंजाब का देश में स्थान है —
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) पहला
(D) चौथा।
उत्तर-
(C) पहला

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. भारत में वनों का क्षेत्रफल वैज्ञानिक आदर्श से बहुत कम है।
  2. भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या घनत्व का कोई प्रभाव नहीं है।
  3. हरित क्रांति के बाद अपनाया गया फ़सल-चक्र आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।
  4. गेहूं देश की पहली महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
  5. भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✗),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — रबी
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — तिलहन
  3. गेहूं, जौं, चना, सरसों — खरीफ़
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — परती।

उत्तर-

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — परती,
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — खरीफ़,
  3. गेहूँ, जौं, चना, सरसों — रबी,
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — तिलहन।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता औसत जन-घनत्व की अपेक्षा अधिक सार्थक कैसे है?
उत्तर-
कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता से अभिप्राय यह है कि हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में औसत रूप से कितनी कृषि योग्य भूमि आती है। इसे देश की कुल कृषि योग्य भूमि को देश की कुल जनसंख्या से भाग देकर जाना जा सकता है। इस गणना के अनुसार हमारे देश में कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता 0.17 हेक्टेयर के लगभग है। यह एक अच्छा लक्षण है, क्योंकि हमारे देश में औसत जनघनत्व बहुत अधिक (382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) है। अतः हम कह सकते हैं कि यहां कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता यहां के औसत जनघनत्व से अधिक सार्थक है।

प्रश्न 2.
किसी देश के भूमि उपयोग के प्रारूप को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
किसी देश के भूमि प्रारूप को जानना निम्नलिखित बातों के कारण आवश्यक है —

  1. इससे भूमि के उपयोग में सन्तुलन पैदा किया जा सकता है।
  2. विभिन्न भूमि क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
  3. आवश्यकता के अनुसार भूमि-उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।
  4. बंजर भूमि तथा परती भूमि के उचित उपयोग की योजना बनाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की सबसे सन्तोषजनक विशेषता क्या है? इसकी असन्तोषजनक विशेषताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
सन्तोषजनक विशेषता-भारत में भूमि के उपयोग की सन्तोषजनक विशेषता यह है कि देश में शुद्ध बोए गए क्षेत्र का विस्तार हो रहा है। पिछले तीन दशकों में इसमें 2.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप आजकल यह क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेयर हो गया है। यह कुल कृषि का 47.7 प्रतिशत है।
असन्तोषजनक विशेषताएं-भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की निम्नलिखित दो असन्तोषजनक विशेषताएं हैं —

  1. भारत में वन-क्षेत्र बहुत कम है। यहां केवल 22.7 प्रतिशत भूमि पर ही वन हैं, परन्तु आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रों में वनों का होना अनिवार्य है।
  2. भारत में चरागाह क्षेत्र भी बहुत कम है।

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प्रश्न 4.
परती भूमि तथा बंजर भूमि में अन्तर बताओ। परती भूमि से किसानों को होने वाले दो लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
परती भूमि-परती भूमि वह सीमान्त भूमि है जिसमें हर वर्ष फ़सलें पैदा नहीं की जाती। ऐसी भूमि से दो या तीन वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है। एक फसल लेने के बाद इसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इसका बहुत कुछ उपयोग अच्छी तथा समय पर होने वाली वर्षा पर निर्भर करता है। बंजर भूमि-बंजर भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जिसका उपयोग नहीं हो रहा है। इसमें मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा मरुभूमियां शामिल हैं।
परती भूमि के लाभ-

  1. परती भूमि अपनी खोई हुई उर्वरता फिर से प्राप्त कर लेती है।
  2. भूमि की उत्पादकता बढ़ जाने के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।

प्रश्न 5.
किस कारण से हमें अपने वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है?
अथवा
आप कैसे कह सकते हैं कि पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए बड़ा वन क्षेत्र होना अनिवार्य है?
उत्तर-
भारत में वन क्षेत्र वैज्ञानिक आदर्श से कम हैं, परन्तु आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिक सन्तुलन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक बड़े वन-क्षेत्र का होना आवश्यक है। एक बात ध्यान देने योग्य यह कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता ग्रीन हाऊस के प्रभाव को बढ़ा देती है। इससे तापमान इतना अधिक बढ़ सकता है कि बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में समुद्र तट के निकटवर्ती क्षेत्र पानी में डूब जाएंगे। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने वन क्षेत्र को बढ़ाएं।

प्रश्न 6.
भारतीय कषि की पिछड़ी दशा के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर-
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय किसान प्राचीन ढंग से खेती करते हैं। वे आधुनिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम करते हैं।
  2. उनके कृषि के उपकरण पुराने ढंग के हैं।
  3. किसान उत्तम बीजों का प्रयोग नहीं करते हैं। इससे उत्पादन कम होता है।
  4. भारत का किसान निर्धन तथा निरक्षर है। यह बात कृषि की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी हुई है।

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प्रश्न 7.
कृषि की उन्नति के लिए सरकार द्वारा कौन-से पाँच कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि की उन्नति के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने जो पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं, उनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. किसानों को नवीन कृषि विधियों से परिचित करवाया जा रहा है।
  2. किसानों को सस्ती दरों पर ऋण की सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि वे नए कृषि-यन्त्र खरीद सकें।
  3. बांध बना कर नहरी सिंचाई का विस्तार किया जा रहा है।
  4. खेतों में चकबन्दी कर दी गई है ताकि खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े न होने पाएं।
  5. अधिक-से-अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई जा रही है ताकि फसलों की नलकूपों द्वारा सिंचाई की जा सके।

प्रश्न 8.
भारत की वर्तमान कृषि की दशा सुधारने के लिए कोई पांच उपाय सुझाइए।
उत्तर-

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।
  4. सिंचाई की सुविधाओं का विकास करना चाहिए।
  5. राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा किसानों को आसान शर्तों पर ऋण देने चाहिएं।

प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि और व्यापारिक कृषि में अन्तर करने के साथ प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान अपनी फ़सल से केवल अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। व्यापारिक कृषि में प्रायः एक ही फ़सल की खेती पर बल दिया जाता है और यह कृषि बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। उदाहरण: निर्वाह कृषि-भारत में गेहूँ की कृषि। व्यापारिक कृषि-भारत में चाय की कृषि।

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प्रश्न 10.
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलों के नाम बताइए। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए दो उपाय लिखिए।
उत्तर-
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलें चाय तथा पटसन हैं। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं —

  1. कृषि का विशिष्टीकरण करना चाहिए। अर्थात् एक क्षेत्र में केवल एक ही व्यापारिक फ़सल बोनी चाहिए।
  2. परिवहन एवं संचार के साधनों का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहिए।

प्रश्न 11.
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो रोपण फ़सलों के नाम बताइए। गन्ने की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश में होती है। दो कारण लिखिए।
उत्तर-
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो अन्य रोपण फ़सलें गन्ना और कपास हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की अधिक खेती होने के दो कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने के लिए गर्म-आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश की जलवायु इसके अनुकूल है।
  2. गन्ने की कृषि से सम्बन्धित अधिकतर काम हाथों से करने पड़ते हैं। अत: सस्ते श्रमिकों का मिलना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में अधिक जनसंख्या के कारण मजदूरी सस्ती है।

प्रश्न 12.
जूट (पटसन) मुख्यतः पश्चिमी बंगाल में क्यों उगाया जाता है? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
पटसन से रस्सियां, बोरियां, टाट आदि वस्तुएं बनाई जाती हैं। यह अधिकतर पश्चिमी बंगाल में पैदा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि पटसन के लिए बहुत ही उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है और पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी हर साल नई मिट्टी लाकर बिछा देती है। नदी द्वारा लाई गई मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है। दूसरे, बंगाल की जलवायु भी पटसन के लिए आदर्श है।

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प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि का विकास बड़ी तेजी से हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन पहले से तीन गुना हो गया है। विभाजन के कारण जूट तथा कपास के उत्पादन में कमी आ गई थी, परन्तु अब इस कमी को पूरा कर लिया गया है। यहां प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ी है। अधिक भूमि हल के नीचे लाई गई है और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार अधिक क्षेत्र में किया गया है। कृषि के नवीन ढंग भी अपनाए गए हैं।

प्रश्न 14.
तेजी से बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में क्या-क्या सुधार किए जाने चाहिएं?
उत्तर-
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में निम्नलिखित सुधार किए जाने चाहिएं —

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।

प्रश्न 15.
चावल की उपज पंजाब में क्यों बढ़ रही है ? कोई चार कारण लिखो।
उत्तर-
पंजाब में चावल की उपज बढ़ने के निम्नलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब का कृषक गहन कृषि करता है और वह अपने खेतों में अच्छे बीजों और अच्छी खादों का प्रयोग करता है।
  2. यहां सिंचाई के साधन बड़े उन्नत हैं।
  3. पंजाब की भूमि उपजाऊ है और यहां के किसान बड़े परिश्रमी हैं।
  4. यहां का कृषि विश्वविद्यालय किसानों को उपज बढ़ाने के नए-नए ढंगों से परिचित कराता रहता है।

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प्रश्न 16.
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण क्या हैं?
उत्तर-
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने की खेती केवल वर्षा पर ही निर्भर है, परन्तु भारत की वर्षा अनिश्चित तथा अनियमित है।
  2. भारत में गन्ने की उन्नत किस्म का अभाव है। इसलिए गन्ने का उत्पादन कम होता है।
  3. आर्द्रता कम होने के कारण गन्ने का रस सूख जाता है।
  4. भारत में कृषि के पुराने ढंग प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
फल उत्पादन में भारत की क्या स्थिति है?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु होने के कारण भारत कई प्रकार के फल पैदा करता है। हम हर वर्ष दो करोड़ टन फल पैदा करते हैं, परन्तु हमारे देश में फलों की प्रति व्यक्ति खपत बहुत ही कम है। आम, केला, संतरा और सेब हमारे देश के मुख्य फल हैं। आम हमारे देश का सबसे बढ़िया फल माना गया है। भारत में आमों की लगभग 100 किस्में उगाई जाती हैं। विदेशों में आम की मांग प्रति वर्ष बढ़ रही है। केला दक्षिणी भारत से आता है। संतरों के लिए: नागपुर और पूना प्रसिद्ध हैं। अंगूरों की खेती का विस्तार किया जा रहा है। सेब के लिए हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर राज्य प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 18.
श्वेत क्रान्ति का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
श्वेत क्रान्ति को ऑपरेशन फ्लड भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य दूध के उत्पादन को बढ़ाना है। ग्रामीण जीवन के सामूहिक विकास के लिए श्वेत क्रान्ति की सफलता अनिवार्य है। इससे छोटे और सीमान्त किसानों को अतिरिक्त आय हो सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खाद तथा बायो गैस प्राप्त की जा सकती है। दूध व्यवसाय के विकास से अनेक परिवार निर्धनता की रेखा से ऊपर उठ सकते हैं।

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प्रश्न 19.
भारत के मत्स्य उद्योग के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
हमें मछलियां तटीय भागों के साथ-साथ फैले बीस लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्राप्त हो सकती हैं। भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं। इससे सभी क्षेत्र मत्स्य क्षेत्र बन गए हैं। 1950-51 में मछली का उत्पादन 5 लाख टन था, जो 2000-01 में बढ़कर 5656 हज़ार टन (अनुमानित) हो गया। भारत में बने बांधों के पीछे झीलों में भी मछली पालने का व्यवसाय उन्नत किया जा रहा है।

प्रश्न 20.
भारत के पशुधन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारतीय किसान के लिए पशुओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत पशुओं की दृष्टि से संसार में सबसे आगे है। यहां भैंस, गाय, बैल, भेड़, बकरी, ऊंट तथा घोड़ा आदि पशु पाये जाते हैं।
महत्त्व-

  1. भारवाही पशु भारतीय किसान को कृषि कार्यों में सहायता देते हैं।
  2. दुधारू पशुओं के दूध से किसान को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
  3. पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र खाद का काम देते हैं।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में भूमि के विभिन्न उपयोगों के प्रारूप की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.7 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों में होता है —

  1. कृषि,
  2. चरागाह,
  3. वन,
  4. उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।

1. कृषि-भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 56 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। देश में 16.3 करोड़ हेक्टेयर … भूमि शुद्ध बोये गए क्षेत्र के अधीन है। 1.3 प्रतिशत भाग फलों की कृषि के अन्तर्गत आता है। पाँच प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है।
2. चरागाह-हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है। फिर भी यहां संसार में सबसे अधिक पशु पाले जाते हैं। इन्हें प्रायः पुआल, भूसा तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराये जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अन्तर्गत रखा गया है।
3. वन-हमारे देश में केवल 22.7 प्रतिशत से भी कम भूमि पर वन हैं। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रफल में वनों का होना आवश्यक है। अतः हमारे देश में वन-क्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम है। भूमि उपयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां वनों का विस्तार 6.7 करोड़ हेक्टेयर भूमि में है। परन्तु उपग्रहों द्वारा लिए गए छाया चित्रों के अनुसार यह क्षेत्र केवल 4.6 करोड़ हेक्टेयर ही है।
4. उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास-देश की शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास के लिए किया जा रहा है। परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन-स्तर के कारण मानव आवास के लिए भूमि की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप अन्य सुविधाओं के विकास के लिए भूमि का निरन्तर अभाव होता जा रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का उपयोग सन्तुलित नहीं है। अतः हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों में सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? कृषि की दशा को सुधारने के लिए कुछ सुझाव दो।
उत्तर-
कृषि के पिछड़ेपन के कारण-भारत की कृषि के पिछड़ेपन के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. कृषि की वर्षा पर निर्भरता — भारत का किसान सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर है, परन्तु वर्षा अविश्वसनीय तथा अनिश्चित होने के कारण हमारी कृषि पिछड़ी हुई है।
  2. भूमि में नाइट्रोजन का अभाव — भारत की भूमि में नाइट्रोजन की कमी है। इसका कारण यह है कि हज़ारों साल से हमारी भूमि पर कृषि हो रही है। इसके कारण हमारी भूमि की उपजाऊ शक्ति काफी कम हो गई है।
  3. उचित श्रम का अभाव — हमारे कृषक दुर्बल हैं। परिणामस्वरूप वे इतना परिश्रम नहीं कर पाते जितना कि कृषि के लिए आवश्यक है।
  4. खेतों का अपघटन — हमारे देश में पिता की मृत्यु के बाद भूमि उसके बेटों में बंट जाती है। इस प्रकार खेतों के आकार छोटे होते जाते हैं जिससे उत्पादन कम हो जाता है।
  5. कृषि के पुराने ढंग — भारतीय किसान अभी तक पुराने ढंग से कृषि कर रहा है। इस कारण हमारी कृषि पिछड़ी
  6. अच्छे बीजों का प्रयोग न करना — निर्धन होने के कारण भारतीय कृषक अच्छे बीजों का प्रयोग नहीं कर पाते। अतः हमारे खेतों में उपज कम होती है।
  7. धन का अभाव — कृषि के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है, परन्तु भारतीय कृषक निर्धन हैं।
  8. दुर्बल पश — भारतीय किसान बैलों की सहायता से अपने खेतों में हल चलाता है। परन्तु हमारे यहां के अधिकतर बैल अच्छी नस्ल के नहीं हैं। ये बैल दुर्बल होते हैं। इनसे कृषि का पूरा कार्य नहीं लिया जा सकता।
  9. निरक्षरता — भारतीय किसान निर्धन होने के अतिरिक्त निरक्षर भी हैं। अत: वह कृषि के नए ढंग अपनाने में कठिनाई अनुभव करता है।

कृषि की दशा सुधारने के उपाय-कृषि की दशा में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए जा सकते हैं —

  1. सहकारी कृषि-सहकारी कृषि की प्रणाली जारी करनी चाहिए। इससे खेत बड़े हो जाएंगे और सभी सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी।
  2. सिंचाई की अधिक सुविधाएं-कृषि की स्थिति में सुधार लाने के लिए सिंचाई की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिएं।
  3. गहन खेती-हमारे देश में किसान को गहन कृषि के ढंगों को अपनाना चाहिए। इससे भूमि की शक्ति बढ़ जाती है और थोड़ी-सी भूमि से भी अधिक ऊपज प्राप्त होती है।
  4. अच्छे बीज और खाद-सरकार को चाहिए कि वह किसानों को सस्ते दामों पर अच्छे बीज दे। अच्छी खाद खरीदने के लिए उन्हें सरकार द्वारा सहायता मिलनी चाहिए।
  5. नवीन कृषि यत्रों का प्रयोग यदि कृषि के नवीन यन्त्रों का प्रयोग किया जाए तो कृषि में काफी सुधार हो सकता है। सरकार को इन औजारों को खरीदने के लिए कृषक की धन से सहायता करनी चाहिए। .

प्रश्न 3.
केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए कौन-कौन से प्रमुख कदम उठाए हैं?
उत्तर-
केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि में बार-बार एक ही फसल बोने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि की इस शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद भी देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन- खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। अब लकड़ी की जगह लोहे का हल प्रयोग किया जाता है। बड़े-बड़े खेतों में ट्रैक्टरों से जुताई की जाती है। फसल काटने तथा बोने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं में भाखडा – नंगल योजना, तुंगभद्रा योजना तथा दामोदर घाटी योजना प्रमुख हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
भारत की प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्यों के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्य —

क्र० सं० फ़सल का नाम उत्पादक राज्य
1. चावल पश्चिमी बंगाल, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब।
2. गेहूं उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, गुजरात तथा महाराष्ट्र।
3. ज्वार, बाजरा ज्वार-कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान।
बाजरा-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात व राजस्थान।
4. मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान।
5. दालें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा।
6. कपास गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु।
7. तिलहन सरसों, तोरिया—उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान।
मूंगफली—पश्चिमी और दक्षिणी भारत, गुजरात, महाराष्ट्र। मध्य प्रदेश तिलहन उत्पादन का मुख्य राज्य है। दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है।
8. गन्ना तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, गुजरात।

 

भूमि उपयोग एवं कृषि विकास PSEB 10th Class Geography Notes

  • भूमि उपयोग-भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि० मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.2 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यतः चार रूपों में होता है-(1) कृषि, (2) चरागाह, (3) वन, (4) उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।
  • कृषि–भारत के लगभग 51 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। इसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि दोनों सम्मिलित हैं।
  • शद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि-शुद्ध बोया गया क्षेत्र वह कृषि क्षेत्र है जिस पर एक समय में फसलें उग रही होती हैं। परती भूमि वह भूमि है जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जातीं। इससे एक फसल लेने के बाद इसे एक-दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह फिर से उर्वरा शक्ति प्राप्त कर ले।
  • बंजर भूमि-जिस भूमि का उपयोग नहीं हो रहा है, उसे बंजर भूमि कहा जाता है। इसमें चट्टानी प्रदेश, ऊंचे पर्वत, रेतीले मरुस्थल आदि शामिल हैं। इसे मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण आदि को रोक कर उपयोगी बनाया जा सकता है।
  • वन क्षेत्र-आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक तिहाई क्षेत्रफल पर वन का होना अनिवार्य है परन्तु खेद की बात है कि भारत में केवल 22.7 प्रतिशत क्षेत्र पर वन हैं। इसलिए वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है।
  • कृषि का महत्त्व-कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार रहा है। हमारी जनसंख्या के 2/3 भाग की जीविका का आधार कृषि ही है। पशुपालन, मत्स्य ग्रहण तथा वानिकी भी कृषि के ही अन्तर्गत आते हैं।
  • कृषि विकास-स्वतन्त्रता के बाद भारतीय कृषि का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन तिगुना हो गया है। संसार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10-11 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है, परन्तु सौभाग्य से भारत का 51 प्रतिशत क्षेत्रफल कृषि अधीन है।
  • कृषि से सम्बन्धित समस्याएं-भारतीय कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। अधिकतर जोतें छोटी हैं। वनों और चरागाहों के कम होते जाने के कारण मृदा की प्राकृतिक उर्वरता बनाए रखने के स्रोत भी सूखते जा रहे हैं।
  • कृषि एक प्रगतिशील उद्योग-कृषि को इसकी निर्वाह अवस्था से हटाकर एक आत्म-निर्भर प्रगतिशील उद्योग बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं। ज़मींदारी प्रथा कानून बना कर समाप्त कर दी गई है। चकबन्दी के द्वारा दूर-दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदल दिया गया है। सहकारिता आन्दोलन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक जिले में मार्गदर्शक बैंक खोले गए हैं। राष्ट्रीय बीज निगम, भूमि उपयोग एवं कृषि विकास केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि प्रदर्शन फार्मों, डेरी विकास बोर्ड तथा ऐसी अन्य संस्थाओं का गठन भी किया गया है।
  • प्रमुख फसलें-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां गेहूं, चावल, कपास, पटसन, गन्ना, चाय, कहवा, ज्वारबाजरा आदि कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
  • बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अनाज-भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करके अनाजों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
  • खाद्यान्न फसलें-भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं, चावल और मक्का हैं। गेहूं मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है। चावल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा आदि हैं। मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होता है।
  • रेशेदार फसलें-भारत की प्रमुख रेशेदार फसलें कपास और पटसन हैं। कपास से सूती वस्त्र बनते हैं। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में होती है। पटसन का मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।
  • चाय तथा कहवा-चाय तथा कहवा मुख्य पेय पदार्थ हैं। चाय की कृषि असम, मेघालय, पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। कहवा कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में उगाया जाता है।
  • पशुधन-पशुओं की संख्या में भारत संसार में सबसे आगे है। परन्तु यहां अच्छी नस्ल के पशुओं का अभाव है। अतः केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पशु धन के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

PSEB 10th Class Welcome Life Guide आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Textbook Questions and Answers

अभ्यास-I

सही/ग़लत चुनें

  1. बार-बार अभ्यास करने से कौशल तेज़ होता है।
  2. गायन अभ्यास के साथ परिष्कृत किया जा सकता है।
  3. प्रतिभा जन्म से ही किस्मत वाले लोगों को मिलता है।
  4. प्रतिभा को तराशने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही।

अभ्यास-II

सोचो और बताओ

प्रश्न 1.
कौन-सी बात पर करियर का एक अच्छा विकिल्प निर्भर करता है?
उत्तर-
एक अच्छे करियर का चुनाव किसी के झुकाव पर निर्भर करता है कि वह किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा झका है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करियर चुनता है जो उसे पसंद नहीं है, तो वह करियर उसके लिए अच्छा नहीं होगा। यह व्यक्ति के घर की परिस्थितियों और उस समय की आवश्यकता पर भी निर्भर करता है जिसे वह चुनता है।

प्रश्न 2.
करियर काऊंसलर ने कितने प्रकार की काउंसलिंग के बारे में बताया है?
उत्तर-
करियर काऊंसलर ने तीन प्रकार के परामर्श का सुझाव दिया

  1. पर्सनल काऊंसलिंग-जब एक काऊंसलर किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से काऊंसलिंग करता है, तो उसे व्यक्तिगत परामर्श कहा जाता है।
  2. ग्रुप काऊंसलिंग-जब कुछ छात्र या व्यक्ति एक परामर्शदाता के साथ बातचीत करते हैं, तो उसे ग्रुप काऊंसलिंग कहते हैं।
  3. क्लास काऊंसलिंग-जब काऊंसलर पूरी कक्षा से एक साथ बात करता है और उन्हें करियर के विकल्पों के बारे में बताता है, तो इसे क्लास काऊंसलिंग कहा जाता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 3.
नवदीप किस चीज़ को लेकर खुश था?
उत्तर-
नवदीप खुश था कि स्कूल में अब अच्छे कार्य हो रहे हैं क्योंकि छात्रों का करियर के लिए जागरूक किया जा रहा है।

प्रश्न 4.
आजकल करियर के एक से अधिक विकल्पों के साथ चलना क्यों जरूरी है?
उत्तर-
आजकल एक से अधिक करियर विकल्पों के साथ आगे बढ़ना ज़रूरी है, क्योंकि

  1. हो सकता है कि व्यक्ति की आने वाले समय में उस व्यवसाय में रुचि ही खत्म हो जाए।
  2. यह संभव है कि भविष्य में समाज में एक करियर विशेष का महत्त्व ही खत्म हो जाए।
  3. दूसरी नौकरी में हो सकता है, एक व्यक्ति को आत्म संतुष्टि और अधिक पैसा मिले। ऐसी परिस्थितियों में करियर के लिए एक से अधिक विकल्पों को रखना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 5.
आप अपने स्कूल में किन अच्छी चीजों को देखते हैं?
उत्तर-

  1. हमारा स्कूल छात्रों के बहुमुखी विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
  2. छात्रों को भविष्य के करियर विकल्पों की एक श्रृंखला में परिचित कराया जाता है।
  3. छात्रों को कहा जाता है कि वे केवल एक करियर के बारे में नहीं बल्कि कम-से-कम तीन करियर विकल्पों के बारे में सोचें।
  4. स्कूल के शिक्षक बच्चों के साथ अच्छे संबंध रखते हैं और समय-समय पर उनको सलाह देते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
मनीषा में आपको कौन-सा गुण मिलता है?
उत्तर-
मनीषा में हमने जानने का गुण देखा। वह जानना चाहती थी कि बच्चों में फॉर्म में तीन विकल्प क्यों भरने को कहा गया। यह गुण हर बच्चे में होना चाहिए कि वह कोई काम क्यों करें। इसका लाभ यह है कि बच्चा तर्कसंगत सोच की गुणवत्ता विकसित करता है।

Welcome Life Guide for Class 10 PSEB आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति में कौशल …………. से आता है।
(a) अभ्यास
(b) अध्ययन
(c) भटकना
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) अभ्यास।

प्रश्न 2.
अभ्यास से किसी के गायन कौशल को कैसे सुधार सकते हैं?
(a) गाने सीखकर
(b) अभ्यास द्वारा
(c) गाने सुनकर
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) अभ्यास द्वारा।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 3.
किसी के कौशल को कैसे तराशा जा सकता है?
(a) मेहनत के साथ
(b) एकाग्रता के साथ
(c) अभ्यास के साथ
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
मानव स्वभाव …………. होता है।
(a) परिवर्तनशील
(b) स्थिर
(c) समान
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) परिवर्तनशील।

प्रश्न 5.
संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति
(a) नकारात्मकता फैलाता है
(b) कभी भी खुश नहीं होता
(c) कभी आलोचना को स्वीकार नहीं करता
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
एक व्यक्ति की सोच
(a) खुली होनी चाहिए
(b) तंग होनी चाहिए
(c) समान होनी चाहिए
(d) असंतुष्ट होनी चाहिए।
उत्तर-
(a) खुली होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
इनमें से एक अच्छे व्यक्तित्व की विशेषता क्या है?
(a) मिलनसार
(b) चुनौती स्वीकार करना
(c) सीखने के लिए तैयार रहना
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 8.
करियर के कम-से-कम…………. विकल्प सभी को रखने चाहिएं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पांच।
उत्तर-
(b) तीन।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 9.
इनमें से कौन-सी एक प्रकार की काऊंसलिंग है ?
(a) पर्सनल
(b) क्लास
(c) ग्रुप
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 10.
व्यक्ति को अपने ………. अनुसार करियर चुनना चाहिए।
(a) क्षमता
(b) शौक
(c) रुझान
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

(ख) खाली स्थान भरें

  1. वरिंदर कुमार एक शिक्षक के साथ-साथ एक ……………. भी थे।
  2. करियर के ……………. विकल्प सभी को रखने चाहिए।
  3. एक व्यक्ति की ………….. प्रकृति उसकी प्रगति के रास्ते में बाधा बन जाती है।
  4. ……………….. ने समाज को बहुत प्रगति दी है।
  5. ………… प्रकृति का नियम है।

उत्तर-

  1. काऊंसलर,
  2. तीन,
  3. कठोर,
  4. प्रौद्योगिकी
  5. बदलाव।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति हमेशा प्रगति करता है।
  2. प्रत्येक बच्चा कुशल नहीं है।
  3. अभ्यास किसी के कौशल को बढ़ाता है।
  4. किसी व्यक्ति को अपनी आलोचना खुल कर स्वीकार करनी चाहिए।
  5. व्यक्ति को अपनी रुचि के अनुसार करियर चुनना चाहिए।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. ग़लत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. सही।

(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए  —  कॉलम बी
(a) प्रतिभा — (i) रुझान
(b) विदेशी — (ii) गुणवत्ता
(c) दृष्टिकोण — (iii) ब्रिटिश
(d) व्यक्तित्व — (iv) दृष्टिकोण
(e) रुचि — (v) व्यक्तिगत।
उत्तर-
(a) प्रतिभा — (ii) गुणवत्ता
(b) विदेशी — (iii) ब्रिटिश
(c) दृष्टिकोण — (iv) दृष्टिकोण
(d) व्यक्तित्व — (v) व्यक्तिगत
(e) रुचि — (i) रुझान ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक व्यक्ति को क्या विशेष बनाता है?
उत्तर-
एक व्यक्ति में मौजूद कौशल उसे एक व्यक्ति को विशेष बनाते हैं।

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प्रश्न 2.
किसी व्यक्ति का कौशल कैसे चमकता है?
उत्तर-
एक व्यक्ति का कौशल केवल अभ्यास के साथ चमकता है।

प्रश्न 3.
हम किसी के गायन कौशल में सुधार कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
किसी व्यक्ति के गायन कौशल में निरंतर अभ्यास से ही सुधार किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
किसी व्यक्ति की प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
निरंतर अभ्यास, कड़ी मेहनत और एकाग्रता किसी की प्रतिभा को बेहतर बना सकते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 5.
मनुष्य का स्वभाव कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
मनुष्य का स्वभाव परिवर्तनशील होना चाहिए।

प्रश्न 6.
संकीर्ण मानसिकता का एक अवगुण दीजिए।
उत्तर-
संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति हमेशा नकारात्मकता फैलाता है।

प्रश्न 7.
खुली मानसिकता का क्या फायदा है?
उत्तर-
खुली मानसिकता वाला व्यक्ति हमेशा खुश रहता है और दूसरों को खुश रखता है।

प्रश्न 8.
क्या संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति संबंध बनाए रख सकता है?
उत्तर-
नहीं, वह संबंध नहीं बना सकता।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 9.
खुलेपन का क्या अर्थ है?
उत्तर-
खुलापन किसी के स्वभाव की गुणवत्ता है जो हमें खुलकर सोचने में मदद करता है।

प्रश्न 10.
खुले दिमाग वाले व्यक्ति का एक गुण बताओ।
उत्तर-
एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हमेशा मिलनसार होता है।

प्रश्न 11.
संकीर्ण मानसिकता वाले व्यक्ति का एक दोष बताओ।
उत्तर-
वह हर चीज़ का आलोचक है।

प्रश्न 12.
किसी व्यक्ति का जिद्दी स्वभाव उसके लिए कितना हानिकारक है?
उत्तर-
किसी व्यक्ति का ज़िद्दी स्वभाव उसकी प्रगति के रास्ते में एक बाधा बन जाता है।

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प्रश्न 13.
व्यक्ति को किस तरह की ज़िद्दी करनी चाहिए?
उत्तर-
ईमानदारी, परिश्रम के साथ कार्य करने की जिद्द, नक्ल न करना, रिश्वत न लेना इत्यादि।

प्रश्न 14.
हम समाज के ज़िम्मेदार नागरिक कैसे बन सकते हैं?
उत्तर-
सामाजिक नियमों का पालन करके और समाज से गलत चीज़ों को हटाने से हम ज़िम्मेदार नागरिक बन सकते हैं।

प्रश्न 15.
एक व्यक्ति के पास कितने करियर विकल्प होने चाहिएं?
उत्तर-
उसके पास न्यूनतम तीन करियर विकल्प होने चाहिएं।

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प्रश्न 16.
करियर का चुनाव करते समय व्यक्ति को क्या ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
अपनी रुचि और समय की ज़रूरत का ध्यान रखना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम किसी कार्य में कैसे महारत हासिल कर सकते हैं? एक उदाहरण से समझाएं।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ कौशल होता है और उस कौशल को चमकाने की आवश्यकता होती है। किसी के कौशल को चमकाने के लिए अभ्यास करने की आवश्यकता है। यदि वह अभ्यास से कम है तो वह कौशल का स्वामी नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, प्रथम श्रेणी के छात्र का लेखन कभी अच्छा नहीं हो सकता, लेकिन निरंतर लिखने के बाद हो सकता है। बच्चों के रूप में, हम साइकिल चलाना नहीं जानते थे लेकिन अभ्यास के साथ हमने साइकिल चलाना सीख लिया। इस तरह, अभ्यास से एक काम में महारत हासिल कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
किसी व्यक्ति को अपने दिमाग को खुला क्यों रखना चाहिए?
उत्तर-
एक व्यक्ति को अपना दिमाग खुला रखना चाहिए। जैसा कि कहा जाता है कि बहता पानी अच्छा दिखता है लेकिन स्थिर पानी गंदा हो जाता है। उसी तरह संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति जीवन में प्रगति नहीं कर सकता। वह न तो खुद को खुश करता है और न ही दूसरों को खुश होने देता है। वह रिश्तों को ठीक से संभाल भी नहीं सकता। वह कभी भी अपनी आलोचना को स्वीकार नहीं करता, जो वास्तव में उसे स्वीकार करनी चाहिए। अपनी सोच को खुला रखना चाहिए और आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
खुले दिमाग के होने के क्या फायदे हैं?
उत्तर-

  1. एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हमेशा परिवर्तन को स्वीकार करता है।
  2. वह अपनी आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करता है और खुद में बदलाव लाता है।
  3. वह सामाजिक प्रगति में योगदान देता है और अपनी प्रगति भी करता है।
  4. वह खुद को खुश रखता है और दूसरों को भी खुश रखता है।
  5. वह रिश्तों को बेहतर तरीके से बनाए रखता है।

प्रश्न 4.
हमारे जीवन में तकनीक की क्या भूमिका है?
उत्तर-
आजकल नई तकनीक हमारे सामने आ रही है और हम इसे सकारात्मक तरीके से अपना रहे हैं। तकनीक के साथ जीवन लगातार आगे बढ़ रहा है। पुरानी पीढ़ी उतनी तेज़ नहीं है जितनी आज के युवा आधुनिक तकनीक के साथ इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हम अपना हर काम आसानी से कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कपड़े हाथ से धोए जाते थे लेकिन अब मशीन उन्हें आसानी से धो देती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रौद्योगिकी हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और हमारे काम को काफी आसान बनाती है।

प्रश्न 5.
व्यक्ति ज़िद्दी या लचीला होना चाहिए, अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
व्यक्ति को ज़िद्दी नहीं बल्कि स्वभाव से लचीला होना चाहिए। उसकी ज़िद्द उसकी प्रगति के रास्ते में एक बाधा बन जाती है जैसे कि लड़के और लड़कियों को समान नहीं मानना। लोग भेदभाव करना शुरू कर देते हैं और इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसी ज़िद्द को बदलना चाहिए। परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन करके व्यक्ति परिवार की प्रगति, समाज की प्रगति और राष्ट्रीय प्रगति में योगदान दे सकता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
ज़िम्मेदार नागरिक के कर्त्तव्य क्या हैं?
उत्तर-

  1. उसे परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदलना चाहिए।
  2. उसे सामाजिक बुराइयों को स्वीकार नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें समाप्त करना चाहिए।
  3. उसे सामाजिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए।
  4. उसे दूसरों को सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  5. उसे सामाजिक परिवर्तन लाने और स्वयं को भी बदलने की कोशिश करनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुण और अवगुण दें।
उत्तर-
गुण-

  1. सबसे पहले उसे कुछ नया सीखने के लिए तैयार होना चाहिए ताकि परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदल सके।
  2. उसे मिलनसार होना चाहिए और दूसरों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखना चाहिए।
  3. उसे हर चुनौती को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि यदि वह नहीं स्वीकारता तो वह स्थिर हो जाएगा और व्यक्तिगत प्रगति नहीं कर पाएगा।
  4. उसे सभी सामाजिक नियमों का पालन करना चाहिए और दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

अवगुण-

  1. एक ज़िद्दी व्यक्ति हमेशा अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागता है जो उसके जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है।
  2. एक ज़िद्दी व्यक्ति कभी किसी की सलाह नहीं लेता है। वह हमेशा अपने मन की करता है जिसका उसे नुकसान होता है।
  3. वह अचानक क्रोधित हो जाता है जो खतरनाक हो सकता है।
  4. वह बहुत जल्दी अपना आपा खो देता है।
  5. कई बार वह नियमों का पालन नहीं करता बल्कि उन्हें तोड़ता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित चित्रों का अवलोकन करें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।
PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन 1
(क) चित्र (1) में क्या दिखाया गया है?
(ख) आप चित्र (2) में क्या देखते हैं?
(ग) दोनों तस्वीरों से हमें क्या पता चलता है?
उत्तर-
(क) चित्र (1) हमें संकीर्ण मानसिकता वाले व्यक्ति के बारे में बताता है। वह हमेशा दुखी रहता है। वह न केवल खुद को चोट पहुंचाता है बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी चोट पहुँचाता है। वह अपने रिश्तों को भी बनाए नहीं रख सकता।
(ख) दूसरी तस्वीर में व्यक्ति खुली सोच और स्वभाव का है जो हमेशा बदलाव को स्वीकार करता है। वह खुद भी खुश रहता है और दूसरों को भी खुश रखता है। वह अपने रिश्तों को अच्छी तरह से बनाए रखता है।
(ग) दोनों चित्रों को देखने के बाद, हम कह सकते हैं कि एक व्यक्ति को ज़िद्दी नहीं होना चाहिए। बल्कि खुले दिमाग और परिप्रेक्ष्य का होना चाहिए। यह उनके जीवन को खुशहाल बनाता है। इसके विपरीत, ज़िद्दी व्यक्ति हर बार उदास रहता है जो सही नहीं है। इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हमें चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और खुश रहना चाहिए।

आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति में कुछ प्रतिभाएं होती हैं और यह प्रतिभा किसी भी प्रकार की हो सकती है।
  • निश्चित रूप से प्रतिभा को चमकाने की ज़रूरत है जो एक व्यक्ति के पास है और इसे बार-बार अभ्यास के माध्यम से पॉलिश किया जा सकता है।
  • किसी भी काम के निपुन्न बनने के लिए बार-बार अभ्यास करना होगा। अभ्यास के बिना कोई भी कार्य उचित तरीके से नहीं किया जा सकता। इसलिए अभ्यास किसी भी प्रतिभा को चमकाने का एक साधन है।
  • मनुष्य और उसका स्वभाव, दोनों ही परिवर्तनशील हैं। जिस तरह से प्रकृति में परिवर्तन आता है, उसी तरह व्यक्ति का स्वभाव भी समय के साथ बदलता है।
  • व्यक्ति को अपनी सोच संकीर्ण नहीं बल्कि खुली रखनी चाहिए और प्रत्येक परिवर्तन का स्वागत करना चाहिए।
  • संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति न तो खुद खुश रहता है न ही दूसरों को खुश रहने देता है। संकीर्ण रवैये वाला व्यक्ति अपने रिश्तों को अच्छी तरह से संभाल नहीं सकता है। वह अपनी आलोचना नहीं सुन सकता। एक व्यक्ति को अपनी आलोचना सुनने के भीतर एक गुणवत्ता विकसित करनी चाहिए और अपने जीवन के उस पहलू को बदलना होगा जिसके लिए उसकी आलोचना की जा रही है।
  • एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हर बदलाव को खुले दिल से स्वीकार करता है और जीवन में प्रगति करता है। खुले दिमाग वाला व्यक्ति स्वयं को परिस्थिति के अनुसार ढालता है तो प्रगति करता है। यदि हम ने आधुनिक तकनीक को अपनाया है, तो यह हमारी खुली मानसिकता के कारण है।
  • एक व्यक्ति को कठोर रवैये का नहीं होना चाहिए। इसके बजाय वह लचीली प्रकृति का होना चाहिए। इसके साथ वह अपने सामने आते प्रत्येक हालात को स्वीकार कर लेता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को एक जिम्मेवार बनने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हमारे आस-पास कुछ गलत हो रहा है, तो हमें इसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को यह समस्या न हो।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण होता है व्यक्ति का अपना रुझान देखना । व्यक्ति का जिस क्षेत्र में रुझान होता है। उसको उसी क्षेत्र में ही काम करना चाहिए जिसमें वह इच्छुक है अन्यथा वह किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर पाएगा। रुझानों को देखने के बाद, उसे उस क्षेत्र में कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इस तरह वह आने वाले करियर के बारे में जागरूक हो जाएगा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्लांट क्लीनिक Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई ?
उत्तर-
1993 में।

प्रश्न 2.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कुल कितने प्लांट क्लीनिक स्थापित हैं ?
उत्तर-
18 कृषि विज्ञान केन्द्र तथा क्षेत्रीय खोज केन्द्र अबोहर, बठिंडा, गुरदासपुर।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किए जाने वाले किन्हीं उपकरणों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर, माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 4.
फसलों पर छिड़काव की जाने वाली दवाइयों की उचित मात्रा पता करने के लिए किस सिद्धान्त को आधार बनाया जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक हानि की सीमा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
स्लाइडों से किस उपकरण की सहायता से चित्र देखे जा सकते हैं ?
उत्तर-
प्रोजैक्टर द्वारा।

प्रश्न 6.
छोटे आकार की निशानियों की पहचान किस उपकरण से की जाती है ?
उत्तर-
माईक्रोस्कोप द्वारा।

प्रश्न 7.
बीमार पत्तों के नमूनों को संभालकर रखे जाने वाले दो रसायनों के नाम लिखिए।
उत्तर-
फार्मालीन, एसीटिक अम्ल।

प्रश्न 8.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
उत्तर-
Plantclinic @ pau.edu

प्रश्न 9.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक से किस टैलीफोन नम्बर पर सम्पर्क किया जा सकता है ?
उत्तर-
फोन नं० 0161-240-1960 जिसकी एक्सटेंशन 417 है। मोबाइल नं० 9463048181.

प्रश्न 10.
पी० ए० यू० के प्लांट क्लीनिक के पास गांव-गांव जाकर तकनीकी जानकारी देने के लिए कौन-सी वैन है ?
उत्तर-
निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए मोबाइल बैन (Mobile diagnosis cum exhibition van)।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का एक -दो वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक क्या है ?
उत्तर-
यह वह कमरा अथवा ट्रेनिंग सैंटर है जहां बीमार पौधों की विभिन्न बीमारियों के बारे में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक शिक्षा का लाभ बताएं।
उत्तर-
इस सिद्धान्त के प्रयोग से ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। इस तरह शिक्षार्थी तो पौधों को देखकर सभी कुछ समझते ही हैं, किसानों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है।

प्रश्न 3.
मनुष्यों के अस्पतालों से प्लांट क्लीनिक कैसे भिन्न हैं ?
उत्तर-
मानवीय अस्पतालों में मनुष्य को होने वाले बीमारियों का पता लगाकर उनका इलाज किया जाता है जबकि पौधों के अस्पताल में बीमार पौधों के इलाज के अतिरिक्त बीमार पौधों के बारे में जांच शिक्षा तथा ट्रेनिंग भी करवाई जाती है।

प्रश्न 4.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन से विषयों का अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर-
इनमें पौधों पर बीमारी का हमला, तत्त्वों की कमी, कीड़े का हमला तथा अन्य कारणों का भी अध्ययन किया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक उपकरणों की सूची बनाएं।
उत्तर-
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक साजो-सामान इस तरह है-
माइक्रोस्कोप, मैग्नीफाइंग लैंस, रसायन, इंकुबेटर, कैंची, चाकू, सूखे-गीले सैम्पल सम्भालने का साजो-सामान, कम्प्यूटर, फोटो कैमरा तथा प्रोजैक्टर, किताबें आदि।

प्रश्न 6.
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र का प्लांट क्लीनिक में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधे की चीरफाड़ करके बीमारी के लक्षण देखने के लिए माइक्रोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। सही रंगों, छोटी निशानियों आदि की पहचान भी इसी से की जाती है।

प्रश्न 7.
इक्नोमिक फैशहोल्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों को लगी बीमारियां अथवा कीड़ों आदि से हुए बचाव के लिए दवाई की उचित मात्रा ढूंढकर छिड़काव करना चाहिए। जब फसल को हानि पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए तब ही दवाई स्प्रे करनी चाहिए ताकि फसलों को लाभ भी हो। इस विधि को धैशहोल्ड का नाम दिया गया है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 8.
प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कई तरह से सैम्पल न तो गीले तथा न ही सूखे सम्भाले जा सकते हैं। ऐसे नमूनों को स्कैन करके कम्प्यूटर में सम्भाल लिया जाता है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 9.
उष्मामित्र किस तरह पौधों की बीमारी ढूंढ़ने में मदद करता है ?
उत्तर-
उल्ली आदि को मीडिया के ऊपर रख कर इनकुबेटर (उष्मामित्र) में उचित तापमान तथा नमी पर रख कर उल्ली को उगने का पूरा वातावरण दिया जाता है तथा इसकी पहचान करके जीवाणु की पहचान की जाती है।

प्रश्न 10.
पौधों के नमूनों को शीशे के बर्तनों में अधिक समय रखने के लिए कौन-से रसायनों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
इस काम के लिए फार्मालीन, एल्कोहल आदि का प्रयोग किया जाता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक के महत्त्व के बारे में एक नोट लिखिए।
अथवा
प्लांट क्लीनिक के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक में पौधों में भूमिगत खाद्य तत्त्वों की कमी से पैदा हुए लक्षणों की जांच करके पौधों की बीमारियां तथा हानि पहुंचाने वाले कीड़ों की पहचान की जाती है।
  • खेतों से लाए बीमार पौधों आदि की बीमारी के लक्षणों की पहचान करके मौके पर ही इन बीमारियों की रोकथाम के लिए इलाज बताये जाते हैं।
  • प्लांट क्लीनिकों में व्यक्तियों को शनाख्ती चिन्हों की पहचान करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
  • आवश्यक खनिज तथा रसायनों आदि की आवश्यक सही मात्रा निकालने के बारे में बताया जाता है ताकि इनका सही प्रयोग करके अतिरिक्त खर्चे से बचा जा सके।
  • प्लांट क्लीनिकों में फसलों के मुख्य कीड़ों के लिए इक्नामिक के धैशहोल्ड बारे में भी जानकारी दी जाती है। इस तरह प्रयोग की जाने वाली कीड़ेमार दवाइयां तथा पौधों में तत्त्वों की कमी का सही तरह पता लग जाता है तथा इन दवाइयों का प्रयोग सही मात्रा में किया जा सकता है।
  • विभिन्न स्प्रे पम्पों तथा अन्य उपकरणों के प्रयोग बारे भी जानकारी दी जाती है।
  • विद्यार्थियों को बीमार पौधे लाकर दिखाये जाते हैं तथा इलाज की विधि बारे बताया जाता है।
  • प्लांट क्लीनिकों में पौधों का अध्ययन करने के लिए आवश्यक उपकरणों, साजो-सामान, दवाइयां, पौधों के नमूने, पम्पों, खादों, बीज तथा अन्य सम्बन्धित, चीज़ों अथवा उनके नमूने अथवा उनकी तस्वीरें रखी जाती हैं।

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प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं ?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक पर किसान भाइयों को तकनीकी जानकारी दी जाती है।
  • फ़सलों के रोगों की पहचान, पहचान चिन, कीड़ों द्वारा फ़सलों को पहुंची हानि आदि के बारे में पता लगाया जाता है।
  • मिट्टी तथा पानी जांच की सुविधा भी उपलब्ध है।
  • टैलीफ़ोन, व्हट्स एप तथा ई-मेल द्वारा किसान अपनी समस्या को हल करवा सकते हैं।
  • इस अस्पताल के पास पौधों के निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए चलती फिरती वैन है जिस द्वारा गांव-गांव जाकर कृषि की तकनीकी जानकारी फिल्में दिखा कर दी जाती है।
  • क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुंचाने के लिए पी० ए० यू० दूत तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान अपना ई-मेल तथा मोबाइल नम्बर रजिस्ट्र करवा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक की पृष्ठभूमि बताते हुए उसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कृषि सम्बन्धी उच्च स्तरीय कोरों में पिछले कई वर्षों में शहरी विद्यार्थियों का दखल काफ़ी बढ़ा है। इन्हें कृषि के बारे में प्रैक्टिकल जानकारी बडी कम होती है तथा जब यह शहरी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करके खेतों में कार्य करने के लिए जाते हैं तो इन्हें काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

पहला प्लांट क्लीनिक, पौधा रोग विभाग, पी० ए० यू० में 1978 में स्थापित किया गया था तथा बाद में पी० ए० यू० की तरफ से सैंट्रल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में 1993 में शुरू किया गया। भिन्न-भिन्न जिलों में 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं। इन क्लीनिकों द्वारा पढ़ाई का विद्यार्थी को काफ़ी लाभ मिल रहा है। इस सिद्धान्त के परिणामस्वरूप ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। रोगों तथा कीटों के हमलों की मौके पर ही पहचान करके इलाज तथा रोकथाम के बारे में बताया जाता है। कृषि विकास से जुड़े व्यक्तियों को पहचान चिन्हों की पहचान का प्रशिक्षण दिया जाता है। भिन्न-भिन्न फ़सलों के मुख्य कीड़ों के लिए आर्थिक हानि की सीमा के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है।

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प्रश्न 4.
मोबाइल डाईग्नोस्टिक कम एगज़ीबिशन वैन का विस्तारपूर्वक वर्णन करें ?
उत्तर-
प्लांट क्लीनिकों को गांव-गांव पहुंचाने के लिए प्लांट क्लीनिकों के पास पौधों का निरीक्षण करने हेतु मोबाइल वैन उपलब्ध है। इसको मोबाइल डाईगनोस्टिक कम एगजीबिशन वैन कहा जाता है। इस वैन में प्लांट क्लीनिक से संबंधित साजो-सामान होता है तथा गांव में किसानों को खेती तकनीकों की जानकारी देने के लिए फिल्में भी दिखाई जाती हैं। मौके पर पौधे को आई समस्याओं का निरीक्षण करके कृषि विशेषज्ञों द्वारा इलाज भी बताया जाता है। इस प्रकार किसान को काफ़ी लाभ मिल रहा है।

प्रश्न 5.
फ़ोटो कैमरे तथा स्लाइड प्रोजैक्टर प्लांट क्लीनिक में किस तरह मददगार होते हैं ?
उत्तर-
कैमरे की सहायता से रोगी पौधे की फोटो खींच ली जाती है। इस प्रकार तैयार फ़ोटो तथा स्लाइडों को प्लांट क्लीनिक में संभाल कर रखा जाता है। फ़ोटो तथा स्लाइडों से कोई भी विद्यार्थी तथा वैज्ञानिक रोगी पौधों की पहचान सरलता से कर सकता है। इस तरह स्लाइडों को देखने के लिए प्रोजैक्टर की आवश्यकता पड़ती है। यह फ़ोटो तथा स्लाइडों को बड़े आकार में दिखा सकता है। फ़ोटो को बड़े-बड़े आकार में बनाकर क्लीनिक में लगा लिया जाता है।

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Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्लांट क्लीनिक Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रोगी पौधों के नमूने संभाल कर रखने के लिए रसायन का नाम –
(क) फार्मालीन
(ख) ग्लूकोस
(ग) सोडियम ब्रोमाइड
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) फार्मालीन

प्रश्न 2.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई?
(क) 2010
(ख) 1993
(ग) 1980
(घ) 1955.
उत्तर-
(ख) 1993

प्रश्न 3.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने के लिए कौन-सा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
(क) सूक्ष्मदर्शी
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)
(ग) प्रोजैक्टर
(घ) सभी।
उत्तर-
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)

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प्रश्न 4.
पंजाब के कितने कृषि विज्ञान केन्द्रों में प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं ?
(क) 7
(ख) 27
(ग) 18
(घ) 22.
उत्तर-
(ग) 18

प्रश्न 5.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
(क) www.gadvasu.in
(ख) www.pddb.in
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu
उत्तर-
(ग) [email protected]

प्रश्न 6.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का लैंडलाइन टेलीफोन नम्बर क्या है ?
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417
(ख) 94630-48181
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu.
उत्तर-
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417

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II. ठीक/गलत बताएँ

1. पी० ए० यू० के द्वारा वर्ष 1993 में सैंटरल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में स्थापित किया गया।
2. प्लांट क्लीनिक में कई तरह के उपकरण तथा साजो-समान की आवश्यकता होती
3. प्लांट क्लीनिक में रसायनों की आवश्यकता नहीं होती।
4. पंजाब एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता plantclinic@ par.edu है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. गलत
  4. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. स्लाइडों पर चित्र ………………… द्वारा देखे जाते हैं।
2. बीमार पौधों के नमूनों को संभाल कर रखने वाला रसायन ……………… है।
3. कम्प्यूटर, ……………… आदि भी प्लांट क्लीनिक का महत्त्वपूर्ण भाग है।
4. पौधे की चीर फाड़ के लिए चाकू, ………….. आदि का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-

  1. प्रोजैक्टर
  2. फार्मलीन
  3. स्कैनर
  4. कैंची।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई एक कारण बताओ जिस कारण पौधे आवश्यक पैदावार देने से अमसर्थ हो जाते हैं ?
उत्तर-
खाद्य तत्त्वों की कमी, बीमारी का हमला, कीड़ों का हमला।

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प्रश्न 2.
पौधों की चीर फाड़ करने के बाद बीमारी के चिन्ह देखने के लिए कौनसा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 3.
पौधे की चीर फाड़ के लिए क्या प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
चाकू, कैंची आदि।

प्रश्न 4.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने में कौन-सा उपकरण प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इनकुबेटर।

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प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम लिखो।
उत्तर-
फार्मालीन।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक में चाकू आदि की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
चाकू आदि का प्रयोग पौधे को माइक्रोस्कोप के नीचे देखने के लिए, काट कर प्रयोग करने के लिए होता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में मैग्नीफाईंग लेन्ज का प्रयोग क्यों होता है ?
उत्तर-
इसका प्रयोग पौधों के छोटे भाग तथा कीड़े तथा अन्य जन्तुओं की पहचान के लिए होता है।

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प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुँचाने के लिए कौन-सी सेवा शुरू की गई है ?
उत्तर-
पी० ए० यू० दूत सेवा तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान भाई अपना ई-मेल तथा फोन रजिस्ट्रर करवा कर इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इक्नामिक बैशहोल्ड का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
पौधों की बीमारियां तथा फसलीय कीटों को समाप्त करने वाली दवाइयों की सही मात्रा ढूंढ़ कर पौधों पर इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस तरह पौधों को अधिक-से-अधिक लाभ मिल सकेगा तथा साथ ही खर्च भी कम-से-कम आएगा। कीडेमार दवाइयों के अन्धाधुन्ध तथा अनावश्यक प्रयोग से कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जैसे कीड़ों का दवाई के लिए आदि हो जाना, मरने के स्थान पर इनका आदी हो जाना, मित्र कीड़ों का समाप्त होना, जो कीड़े पहले फसलों की हानि नहीं करते थे उनके द्वारा अब नुकसान करना आरम्भ कर देना तथा समूचे वातावरण का गंदा होना खासतौर पर वर्णनीय है।

किसी भी कीडे का फसल पर प्रत्येक वर्ष एक जैसा हमला नहीं होता। यह हमला किसी वर्ष अधिक तथा किसी वर्ष कम होता है। इसके लिए दवाइयों का प्रयोग सोचसमझकर करना चाहिए।

दवाई का प्रयोग तब ही करें जब फसल को नुकसान पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए। इस तरह दवाई स्प्रे करने से फसलों को फायदा होगा तथा इस तरह अनावश्यक स्प्रे से भी बचा जा सकेगा।

इस विधि को आर्थिक आधार (इक्नामिक धैशहोल्ड) का नाम दिया जाता है। कीड़ों के लिए आर्थिक आधार कीड़ों की वहीं संख्या है जिस पर हमें फसल पर दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। कीड़ों की संख्या इस नियत हुई संख्या से बढ़ने नहीं देनी चाहिए तथा साथ ही फसल का नुकसान भी न हो तथा किसानों को भी दवाई के अनावश्यक प्रयोग से वित्तीय घाटा न हो।

कई कीड़ों के लिए उनकी संख्या नहीं अपितु आक्रमण की निशानियों को आर्थिक आधार मान लिया जाता है। जैसे धान के गडुएं की संख्या की बजाए धान के गडुएं के हमले से सभी छिद्रों की गिनती कर ली जाती है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक के भविष्य के बारे में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
आने वाला समय मुकाबले वाला है इसलिए किसानों को अपनी उपज को बीमारी तथा खाद्य कमियां नहीं होने देनी चाहिएं ताकि अधिक मुनाफा कमाया जा सके। अब कृषि से सम्बन्धित व्यापार प्रान्त अथवा देश में ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगा है। किसानों ने उपज को विदेशों में निर्यात करना होता है।

उपज बढ़िया किस्म की हो तथा मुनाफा अधिक मिल सके इसके लिए प्लांट क्लीनिक की सहायता ली जा सकती है। इनकी मदद से फसल में खाद्य तत्त्वों की कमियों का पता लगाकर इनको दूर किया जा सकता है। बीमारी तथा कीड़ों के लिए उचित दवाई की मात्रा का पता लगाया जा सकता है जिससे अनावश्यक तथा अन्धाधुन्ध दवाई के प्रयोग से बचा जा सकता है तथा दवाई के खर्च को घटाया जा सकता है। इस तरह इक्नामिक क्लीनिकों का भविष्य में बढ़िया उपज प्रदान करने के लिए बहुत योगदान होगा।

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प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक क्या है ? प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर किस काम आता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्लांट क्लीनिक PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • पौधों के अस्पतालों में पौधों में आहारीय तत्त्वों की कमी, बीमारी का हमला, कीड़े का हमला आदि कारणों का अध्ययन किया जाता है।
  • प्लांट क्लीनिक ऐसा स्थान है यहां पौधों की भिन्न-भिन्न समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा इन समस्याओं को दूर करने के लिए इलाज भी बताया जाता है।
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1993 में सैंट्रल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में स्थापित किया गया।
  • भिन्न-भिन्न जिलों के 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह प्लांट क्लीनिक चलाए जा रहे हैं तथा क्षेत्रीय खोज केन्द्र अबोहर, बठिण्डा तथा गुरदासपुर में स्थापित किएगए हैं।
  • आर्थिक नुकसान की हद फसली बीमारी तथा कीड़ों की वह अवस्था है, जब इनका हमला या संख्या पौधों में एक विशेष स्तर पर पहुंच जाती है तथा उचित दवाई का प्रयोग उचित मात्रा में करना अत्यावश्यक हो जाता है। इस तरह पौधों को अधिक-से-अधिक लाभ हो तथा खर्चा भी कम-से-कम हो।
  • किसान टैलीफोन नं० 0161-240-1960 की एक्सटेंशन 417 द्वारा अपनी समस्या का हल कृषि विशेषज्ञों द्वारा घर बैठे ही ले सकते हैं। मोबाइल नं० 9463048181.
  • प्लांट क्लीनिक को ई० मेल द्वारा प्रभावित पौधों के चित्र भेजकर भी समस्या का हल प्राप्त कर सकते हैं। ई० मेल हैं plantclinic @ pau.edu. व्हट्स एप (Whats app) पर भी चित्र भेज कर समस्या का हल पूछ सकते हैं। ।
  • प्लांट क्लीनिक में कई तरह का साजो-सामान तथा उपकरणों की आवश्यकता पडती है जैसे-सूक्ष्मदर्शी, मैगनीफाईंग लेंस, इनकुबेटर, रसायन, अलमारियां, कम्प्यूटर, प्रोजैक्टर आदि।
  • प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किए जाते रसायन हैं-फार्मालीन, कॉपर एसीटेट, एसीटिक एसिड, अल्कोहल आदि।
  • कम्प्यूटर, स्कैनर आदि भी प्लांट क्लीनिक का महत्त्वपूर्ण भाग है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 3 योग

PSEB 10th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधि कौन-सी है ?
(Which is the oldest method of Indian Exercises ?)
उत्तर-
योगासन।

प्रश्न 2.
शीर्षासन प्रतिदिन कम-से-कम कितने समय के लिए करना चाहिए ?
(How much time Shirsh Asana may be performed daily ?)
उत्तर-
2 मिनट के लिए।

प्रश्न 3.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantage of Shirsh Asana.)
उत्तर-

  1. शीर्षासन से स्मरण शक्ति तेज़ होती है।
  2. मोटापा दूर होता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 4.
वज्रासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Vajur Asana.)
उत्तर-

  1. वज्रासन से स्वप्न दोष दूर होता है।
  2. इससे शूगर का रोग दूर हो जाता है। ..

प्रश्न 5.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताओ।
उत्तर-

  1. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  2. बार-बार मूत्र आना बन्द हो जाता है।

प्रश्न 6.
भुजंगासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Describe any two advantages of Bhujang Asana.)
उत्तर-

  1. कब्ज दूर हो जाती है।
  2. धातु रोग दूर हो जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 7.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Dhanur Asana.)
उत्तर-

  1. गठिया की बीमारी दूर हो जाती है।
  2. औरतों के योनि विकार और मासिक धर्म सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
हर्निया तथा नल रोगों को ठीक करने में कौन-सा आसन सहायक हो सकता है ?
(Name the Asana which prevent Hernia and urinary disease.)
उत्तर-
चक्र आसन।

प्रश्न 9.
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का महत्त्वपूर्ण ढंग कौन-सा है ?
(Which is the means of uniting soul with God ?)
उत्तर-
योग।

प्रश्न 10.
मानसिक एकाग्रता के लिए कौन-सा योगासन सर्वोत्तम है ?
(Which is the best Asana for mental concentration ?
उत्तर-
पद्मासन।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की है ?
(Mention the types of Fatigue.)
उत्तर-
दो तरह की

  1. मनोरूक,
  2. शारीरिक

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
योग किसे कहते हैं ? इसके क्या लाभ हैं ?
(What is Yoga ? Discuss its uses.)
उत्तर-
भारत की प्राचीन कसरत या व्यायाम की विधि योग है। अतीत में साधु-सन्त, महात्मा लोग इसका अभ्यास करते थे तथा अपना शरीर स्वस्थ रखते थे। इसे हम सामान्यतः तपस्या करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। योग प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है।
लाभ-योग के हमें निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. योगासनों से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
  2. इससे बहुत-सी बीमारियां दूर हो
  3. मानसिक कमजोरी दूर हो जाती है।
  4. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  5. मनुष्य पर शीघ्र घबराहट का प्रभाव नहीं पड़ता।
  6. चिन्ता तथा परेशानियां दूर हो जाती हैं।
  7. मनुष्य का शरीर आकर्षक तथा सुगठित बन जाता है।

प्रश्न 2.
“योग आत्मा और परमात्मा में मिलाप करने का महत्त्वपूर्ण साधन है।” कैसे ?
(“Yoga is the means of uniting soul with God.” How ?)
उत्तर-
प्राचीन काल के साधु-महात्माओं की बातें तथा विचार हम आज तक सुनते आ रहे हैं। उनके विचारों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने आत्मा का परमात्मा से मिलाप कराना है तो उसका साधन हमारा शरीर है। वही मनुष्य आत्मा को परमात्मा से मिला सकता है या दर्शन करा सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। अभिप्राय यह कि उसका मन पूर्णतः स्वच्छ और स्वस्थ हो।
हम योग साधनों के द्वारा शरीर को ठीक रख सकते हैं। इनसे बहुत-सी बीमारियां अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि योग आत्मा तथा परमात्मा का मिलाप कराने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए हमें योगासनों का अभ्यास करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से 8 अंग बताए हैं ? उनके बारे में लिखो।
(अभ्यास का प्रश्न 2)
(What are the eight components of Ashtang Yoga according to Patanjali Rishi ? Write briefly about)
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं निरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)-नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं जैसे शरीर की सफ़ाई, नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है।
  2. यम (Restraint) ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रख कर टांगों को किसी विशेष दिशा में रख कर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)—किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstraction)—प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगाना।
  7. ध्यान (Meditation) -इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने-आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा-परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 4.
“योग स्वास्थ्य का साधन है।” इस बारे अपने विचार प्रकट करो।
(“Yoga is means of Good Health.” Write.)
उत्तर-
योग का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रूप से दृढ़ व सचेत तथा व्यवहार में पूर्णतया अनुशासित बनाना। इसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं—

  1. योग से मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक बुनियादी शक्तियां विकसित होती हैं। प्राणायाम द्वारा फेफड़ों में बहुत-सी वायु चली जाती है जिससे फेफड़ों की कसरत होती है। इससे फेफड़ों के बहुत-से रोग दूर होते हैं।
  2. योगाभ्यास करने से शरीर पूर्णतया स्वस्थ रहता है। धोती क्रिया तथा बस्ती क्रिया क्रमशः आमाशय तथा आंतों को साफ़ करती है। शरीर सदैव नीरोग रहता है।
  3. योग करने से शरीर मज़बूत बनता है।
  4. योगाभ्यास करने से शारीरिक अंग लचकदार बनते हैं। जैसे हल आसन तथा धनुर आसन करने से रीढ़ की हड्डी की लचक बढ़ती है।
  5. योगासन करने से शरीर की सभी प्रणालियां ठीक प्रकार से काम करने लगती हैं।
  6. योगाभ्यास मनुष्य के शरीर को अच्छी स्थिति (Posture) में रखता है जिससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। उदाहरणार्थ वृक्ष आसन करने से घुटने नहीं भिड़ते और पद्म आसन करने से न ही पेट आगे को निकलता है और न ही कन्धों में कुबड़ापन आता है।
  7. योगासन करने से मानसिक अनुशासन आता है। यम तथा नियम द्वारा मानवीय संवेग विकारों तथा अनुचित इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने की शक्ति देता है।
  8. उचित आसन करने से कई प्रकार के रोग दूर भागते हैं तथा कई रोगों की रोकथाम हो जाती है। वज्र आसन तथा मत्स्येन्द्रासन मधुमेह (Diabetes) के रोगों को ठीक करता है। इसी प्रकार प्राणायाम फेफड़ों का रोग नहीं लगने देता।
  9. योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट को दूर भगाने में सहायता प्रदान करते हैं। शव आसन मनुष्य की थकावट को कोसों दूर भगाता है।
  10. करने से बुद्धि तेज़ होती है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है| हस बात के लिए शीर्षासन बहुत ही उपयोगी है।
  11. योगाभ्यास करने से मनुष्य के शरीर में ताल (Rhythm) आ जाता है। इससे शरीर की शक्ति संयम से व्यय होती है।
  12. योग मानसिक सन्तुलन तथा प्रसन्नता प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कोई 6 आसनों की विधि और लाभ लिखो।
(Discuss the methods of any six Asans and give their uses.)
उत्तर-
1.शव आसन की स्थिति-पीठ के बल लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ देना चाहिए।
विधि-

  1. पीठ के बल लेट कर शरीर को ढीला छोडो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 1
  2. धीरे-धीरे लम्बे सांस लो।
  3. लेट कर शरीर के समस्त अंगों को पूरा आराम करने दें।
  4. दोनों पैरों को डेढ़ फुट की दूरी पर रखो।।
  5. दोनों हाथों की हथेलियों को ऊपर की ओर करके शरीर से लगभग 6 इंच की दूरी पर रखो।
  6. आंखें बन्द करके अन्तर्ध्यान हो जाओ।
  7. शरीर को पूर्ण विश्राम की स्थिति में रखो।

महत्त्-

  1. शरीर की थकावट को दूर करता है।
  2. मानसिक तनाव दूर हो जाता है।
  3. उच्च रक्त चाप दूर हो जाता है।
  4. मस्तिष्क तथा हृदय में ताज़गी आ जाती है।
  5. शरीर को शक्ति मिल जाती है।

2. पश्चिमोत्तान आसन–इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ना होता है।
विधि-

  1. पश्चिमोत्तान आसन करने के लिए टांगों को आगे फैला कर ज़मीन पर बैठो।
  2. दोनों हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़ो।
  3. इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए नाक से घुटनों को छूने का प्रयास करो।
  4. धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर ऊपर उठाओ और पहली वाली स्थिति में आ जाओ।
  5. यह आसन प्रतिदिन 10-15 बार करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 2
    पश्चिमोत्तान आसन

लाभ-

  1. यह आसन पेट गैस की बीमारी को दूर करता है।
  2. यह आसन नाड़ियों को साफ़ करता है।
  3. इससे पैर शक्तिशाली हो जाते हैं।
  4. इससे शरीर में बढ़ी चर्बी घट जाती है।
  5. यह आसन पेट की बीमारियों को ठीक करता है।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

3. धनुरासन-स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति कमान की भान्ति होती है।
विधि-

  1. इस आसन को करने के लिए पेट के भार आराम से लेट जाओ।
  2. पैरों को पीठ की ओर करो।
  3. हाथों से टखनों को पकड़ो।
  4. लम्बा सांस लेकर सिर तथा छाती को जहां तक सम्भव हो उठाकर शरीर का आकार धनुष की भान्ति बनाओ।
  5. जितनी देर हो सके इसी स्थिति में रहो। धीरे-धीरे सांस छोड़ते हए शरीर को ढीला छोड़ दो और पहले वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ—

  1. यह आसन आंतों को पुष्ट करता है।
  2. पाचन शक्ति बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 3
    धनुरासन स्थिति
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. गठिया आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।

4. पद्मासन की स्थिति–इस आसन में शरीर की स्थिति कमल के समान होती है।
विधि-

  1. पद्मासन करने के लिए पहले चौकड़ी मार के बैठो।
  2. दायां पांव बायें पांव पर इस प्रकार रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ की हड्डी को छुए। इसके बाद बायें पांव को उठा कर दाईं जांघ के ऊपर उसी प्रकार रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 4
    पद्मासन
  3. रीढ़ की हड्डी सीधी रखो।

लाभ—

  1. इस आसन से मन स्थिर रहता है।
  2. इस आसन से कमर का दर्द दूर हो जाता है।
  3. इस आसन से दिल तथा पेट की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  4. पाचन–शक्ति बढ़ जाती है।
  5. बार-बार पेशाब आने का रोग नहीं हो सकता।
  6. बहुत-सी आन्तरिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. बाजू तथा पांव मजबूत होते हैं।
  8. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  9. शरीर स्वस्थ रहता है।

5. हल आसन की स्थिति
विधि—अपने पांव फैला कर पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को नितम्बों की बगल में जमा दो। कमर के निचले भाग को (दोनों पांवों को) ज़मीन से धीरे से ऊपर उठाओ और इतना ऊपर ले जाओ कि दोनों पांव के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन से लग जाएं। जब तक सम्भव हो, इसी स्थिति में रहो।
पांवों को धीरे से उसी स्थान पर वापस ले जाओ जहां से आरम्भ किया था।
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हल आसन
नोट-

  1. यह आसन हर आयु की स्त्री, पुरुष के लिए लाभदायक है।
  2. यह आसन हृदय रोगियों या उच्च या निम्न रक्त चाप वालों के लिए मना है।
  3. इस आसन को झटके से नहीं करना चाहिए।

लाभ—

  1. यह आसन सारे शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है। फलस्वरूप चर्म रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
  2. मोटापा दूर करने के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। कमर और नितम्ब को पतला करता है।
  3. पेट की स्थूलता को आसानी से कम करता है।
  4. रीढ़ की हड्डी लचकीली होती है। शरीर सुन्दर और नीरोग हो जाता है।
  5. यह आसन शरीर की दुर्गन्ध को दूर करता है। शरीर को सुन्दर बनाता है।
  6. चेहरा प्रसन्न हो जाता है।
  7. आंखों में तेज़ आ जाता है।

6. सर्वांगासन स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति अर्द्ध-हल की भान्ति हो जाती
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 6
सर्वांगासन
विधि—

  1. इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के भार सीधा लेट जाओ।
  2. हाथों को पेट के बराबर सीधा रखो।।
  3. दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाकर हथेलियों से पीठ को सहारा देते हुए कुहनियों को ज़मीन पर टिकाओ।
  4. सारे शरीर को सीधा रखो।
  5. सारे शरीर का भार कन्धों तथा गर्दन पर रहे।
  6. ठोडी को छाती के साथ स्पर्श करो।
  7. कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद फिर पहली वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. बाजू और पैर मज़बूत हो जाते हैं।
  5. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 2.
भुजंगासन (Bhujangasana), अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatsyandrasana), मत्स्यासन (Matsyasana) और मयूरासन (Mayurasana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. भुजंगासन (Bhujangasana)—
स्थिति-पेट के बल लेटना।
विधि—

  1. पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएं। दोनों हाथों के साथ कन्धों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ।
  2. टांगों और हथेलियों को अकड़ाते हुए धीरे-धीरे सिर और छाती को इतना उठाइए कि बाजू सीधे हो जाएं।
  3. पंजों को अन्दर की ओर देखो और सिर को पीछे की ओर फेंको।
  4. धीरे-धीरे पहले की स्थिति में जाओ।
  5. इस आसन को तीन से चार बार करो।

लाभ-

  1. यह आसन पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 7
    भुजंगासन
  2. जिगर के रोगों को दूर करता है।
  3. कब्ज दूर हो जाती है।
  4. यह स्वप्न-दोष दूर करता है।
  5. हड्डियां मज़बूत होती हैं।
  6. तिलों को आराम देता है।

2. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana)-इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पार्यों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बायं पांव की एडी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ जिससे एड़ी का भाग गुदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्ष स्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी
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अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएं।
लाभ-

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hemia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

3. मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर (Supine) लेटे हुए और पीछे की ओर (arch) बनाते हैं।
विधि- पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
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मत्स्यासन
लाभ-

  1. यह आसन चेहरे तथा त्वचा को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर में लचक आती है कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र रोग दोषों को दूर करता है। यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

4. मयूरासन (Mayurasana)
विधि-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कुहनियों को आपस में मिला कर नाभि पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर देकर घुटनों और पैरों को ज़मीन से उठाए रखो।
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मयूरासन
लाभ-

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है। इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  4. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

प्रश्न 3.
वज्रासन (Vajurasana), शीर्षासन (Shirshasana), चक्रासन (Chakarasana) और गरुड़ आसन (Garur Asana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि-

  1. घुटने मोड कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हो।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 11
    वज्रासन

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

2. शीर्षासन (Shirsh Asana)– इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि-

  1. एक दरी या कम्बल बिछ। कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 12
    शीर्षासन
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ –

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां –

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दो।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सकें तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो।

इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।
3. चक्रासन की स्थिति- इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 13
चक्रासन
विधि-

  1. पीठ के भार लेट कर घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को ज़मीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को कमान या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ-

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्नियां तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मज़बूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दो की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

4. गरुड़ आसन (Garur Asana)-गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खडा होना होता है।
विधि-

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा-सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ-

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिशाली बनाता है।
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    गरुड़ आसन
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 4.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में लिखो।
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं नीरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है, जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)—नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे शरीर की सफ़ाई नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है। नियमों के पांच अंग हैं-
    • शौच
    • सन्तोष
    • तप
    • स्वाध्याय और
    • ईश्वर परिधान।
  2. यम (Restraint)-ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है। इसके पांच अंग हैं-
    • अहिंसा
    • असत्य
    • अस्तेय
    • अपरिग्रह
    • ब्रह्मचर्य।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखकर टांगों को किसी विशेष दिशा में रखकर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)-किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है। यह उपासना का अंग है। इसके तीन भाग हैं-
    • पूरक
    • रेचक
    • कुम्भक।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है, जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstration)-प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगानः
  7. ध्यान (Meditation)-इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 5.
योग के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? (What are the main Principles of Yoga ?)
उत्तर-
योग के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Yoga)-योग करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन अवश्य करना चाहिए। इन सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार हैं—

  1. स्नान करके योगासन किए जाएं तो और भी अच्छा रहेगा। स्नान करने से शरीर हल्का होता है, लचक आती है और आसन अच्छे ढंग से होते हैं। वैसे सायंकाल भी जब पेट खाली हो तो आसन किए जा सकते हैं।
  2. आसन करने का स्थान शांत व स्वच्छ होना चाहिए। किसी उद्यानवाटिका में आसन किए जाएं तो बहुत अच्छा है।
  3. दरी या कम्बल बिछाकर आसन करने चाहिएं, ताकि भूमि की चुम्बकीय शक्ति आपके ध्यान को तोड़े नहीं और नीचे से कोई चीज़ आपको गड़े नहीं।
  4. जितना आप एकाग्र होकर आसन करेंगे, उतना ही अधिक शारीरिक व मानसिक लाभ मिलेगा। आसन शुरू करने से पहले श्वासन करके अपने श्वास, शरीर और मन को शांत कर लें।
  5. इसको करते समय झटके नहीं लगने चाहिएं। हर आसन को शरीर तान कर और खींच कर धीरे-धीरे करें। उसके बाद कुछ क्षण अपने शरीर को शिथिल करें। जब आपका श्वास स्वाभाविक स्थिति में आ जाये तब दूसरा आसन करें।
  6. आसन की पूर्ण स्थिति तक जाने का प्रतिदिन अभ्यास करें। धीरे-धीरे आपके बंद खुलेंगे और शरीर में लचक पैदा होगी।
  7. ऋतु के अनुसार आसनों का कम-से-कम कपड़े पहन कर अभ्यास करें।
  8. योगासनों का अभ्यास सभी वर्गों के बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष कर सकते हैं । दस वर्ष से लेकर 80/85 वर्ष तक के व्यक्ति योगाभ्यः । कर सकते हैं। आसनों का अभ्यास विधिपूर्वक करना चाहिए।
  9. योगासन करने वाले व्यक्ति को अपना भोजन हल्का रखना चाहिए। भोजन सुपाच्य, सात्विक व प्राकृतिक होना चाहिए। जितना हल्का भोजन होगा, उतनी उसकी कार्य शक्ति बढ़ जाएगी।
  10. कठिन रोगों तथा ज्वर से पीड़ित व्यक्ति को आसन, प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  11. शुरू में एक ही दिन बहुत-से आसन न करें। प्रत्येक आसन को मनोयोग से आंख मूंद कर धीरे-धीरे करें : सर्वांगासन व शोसन धीरे-धीरे बढ़ाकर दस मिन्ट तक कर
    सकते हैं। आसन की पहली स्थिति से अन्तिम स्थिति में और अन्तिम स्थिति से वापस जल्दी न आएं।
  12. आसनों का अभ्यास-क्रम इस प्रकार रखना चाहिए कि आसन के बाद उसका उपासन (काउन्टरपोज) कर सकें। जैसे पश्चिमोत्तानासन और उसका उपासन कोणासन, सर्वांगासन का बाद मत्स्यासन आदि।
  13. योगासनों की समाप्ति के बाद कुछ समय के लिए श्वासन अवश्य करें। आसनों का लाभ तभी मिल पाएगा जब आप श्वासन करके अपने शरीर को थोड़ा विश्राम दें। श्वासन अपने-आप में पूर्ण आसन है और इससे शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है।
  14. योगासन प्राणायम का कार्यक्रम समाप्त करने के बाद कम-से-कम आधे घण्टे तक कुछ न खाएं।
  15. वायु को बाहर निकालने के पश्चात् श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास करना चाहिए।
  16. योगाभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 6.
अन्य व्यायाम जैसे सैर, दंड-बैठक, मुग्दर, मल्ल-युद्ध पश्चिमी देशों के खेलों आदि में क्या दोष हैं और योगासनों में ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जो उन्हें ही जीवन का अंग बनाया जाए ?
(What are the disadvantages of western exercises like, Astrolt, Dand-Bethak, Wrestling, Mugdhar etc ? Why Yoga is important for our life ?)
उत्तर-

  1. अन्य जितने भी व्यायाम हैं, वे मुख्यत: मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं, जिससे बाहरी शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता है, अंदर काम करने वाले यन्त्रों पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह पाता। जबकि योगासनों से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है और शरीर के सैल बनते अधिक व टूटते कम हैं।
  2. अन्य व्यायाम व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है। खेल तो साथियों के बिना खेले ही नहीं जा सकते, जबकि योगासन अकेले ही दरी व चादर पर किए जा सकते हैं।
  3. दूसरे व्यायामों का प्रभाव मन और इन्द्रियों पर बहुत कम पड़ता है, जबकि योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है।
  4. दूसरे व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जबकि योगासनों में बहुत कम भोजन की आवश्यकता पड़ती है।
  5. योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को अन्दर रुकने नहीं देता, तुरन्त बाहर निकालने का प्रयत्न करता है, जिसके आप रोगमुक्त होते हैं।
  6. योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है, जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है, शरीर के हर अंग में रक्त का संचार ठीक होता है, अधिक आयु में भी व्यक्ति युवा लगता है और काम करने की शक्ति बनी रहती है। अन्य व्यायामों से मांसपेशियों में कड़ापन आ जाता है, शरीर कठोर हो जाता है और बुढ़ापा जल्दी आता है।
  7. जिस प्रकार नाली की गंदगी को झाड़ लगाकर, पानी फेंक कर साफ़ करते हैं, उसी प्रकार अलग-अलग आसनों से रक्त की नलिकाओं व कोशिकाओं को साफ़ करते हैं, ताकि उनमें रवानगी रहे और शरीर रोगमुक्त हो। यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है, अन्य व्यायामों से नहीं। अन्य व्यायामों से तो हृदय की गति तेज़ हो जाती है और रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
  8. फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने फेफड़ों के फेलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं जिससे अधिक-से-अधिक ओषजनक वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त की शुद्धि कर सके। दूसरे व्यायामों में फेफड़े जल्दी-जल्दी श्वास लेते हैं, जिससे प्राण वायु फेफड़ों के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाती, जिसका परिणाम होता है विकार और विकार रोग का कारण है।
  9. वर्तमान समय में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यन्त्रों का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। उन्हें क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं, जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड जाती है।
  10. मेरुदण्ड पर हमारा यौवन निर्भर करता है। सारा रक्त संचार व नाड़ी संचालन, इसी से होकर शरीर में फैलता है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना ही शरीर स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक संतुलन बना रहेगा। यह केवल योगासनों से ही सम्भव है।
  11. दूसरे व्यायामों से आपको थकावट आएगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पडेगी, जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त की जाती है. क्योंकि योगासन धीरे-धीरे और आराम से किए जाते हैं। इन्हें अहिंसक और शान्तिप्रिय क्रियाएं कहा जाता है।
  12. अन्य व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। योगासन स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाते हैं। यौगिक क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता है, मन स्थिर रहता है। मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है, सत्वगुण की प्रधानता होती है और सत्वगुण से मानसिक शक्ति का विकास होता है। ये सब लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से ही प्राप्त हो सकते हैं।
  13. हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं, जो हमें स्वस्थ व निरोग रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इन ग्रन्थियों का रस रक्त में मिल जाता है, जिससे मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है। गले की थाइराइड व पैराथाइराइड ग्रन्थियों से निकलने वाले रस पर्याप्त मात्रा में न होने से बालकों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर में प्रसन्नता नहीं रहती। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियों को सजग करके पर्याप्त मात्रा में रस देने के योग्य बनाने के लिए योगासन पद्धति बड़ी कारगर है। अन्य व्यायामों का प्रभाव इस दिशा में नगण्य है।
  14. शरीर के रोगों को दूर करने में, प्राणायाम और षट्कर्म राम-बाण का काम करते हैं। जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हें बाहर निकाल पाने में समर्थ नहीं होते, तो रोग का आरम्भ होता है। इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है और अपने आपको स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
  15. शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योग पद्धति २.तम पद्धति है। इसका मुकाबला और कोई पद्धति नहीं कर सकती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 7.
योग का महत्त्व विस्तार से लिखें।
उत्तर-
योग का महत्त्व (Importance of Yoga)—मानव जीवन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। योग मानव में सम्पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग द्वारा मनुष्य में निम्नलिखित गुणों का विकास होता है—

  1. शारीरिक, मानसिक एवं गुप्त शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Hidden qualities)—प्राणायाम और अष्टांग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों का विकास होता है। अष्टांग योग के नियम और आसन अंगों द्वारा व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के अंग क्रियाशील एवं विकसित होते हैं। इसका हमारी विभिन्न प्रणालियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
  2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Purification and Development of Body)योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। आसनों से शरीर स्वस्थ होता है, योगाभ्यास द्वारा मन पर नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान का आपसी तालमेल बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर स्वस्थ तथा फुर्तीला बना रहता है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा प्राप्त होता है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार आसन और प्राणायाम शरीर की आन्तरिक सफ़ाई में सहायक सिद्ध होते हैं।
  3. संवेगों पर नियन्त्रण (Control over Eniutions)–आधुनिक युग में मनुष्य मानसिक और आत्मिक शान्ति का इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि साधारण सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दु:खी कर देती है कि हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हम मदमस्त हो जाते हैं। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता की झलक दिखाई देती है। योग हमें अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों में समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने मन के उद्देश्यों पर नियन्त्रण करना चाहिए और सफलता या असफलता को एक समान महत्त्व देना चाहिए।
  4. रोगों से प्राकतिक बचाव (Natural prevention of Diseases) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। रोगों के कीटाणु एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके रोग फैलाते हैं। योग ज्ञान हमें इन रोगों का मुकाबला करने, इसे छुटकारा पाने और स्वयं को स्वस्थ रखने के ढंग बताता है। जैसे-आसान, धोती, नेचि और जौली आदि द्वारा हमारे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं और हमें रोगों से मुक्ति मिलती है।
  5. त्याग एवं अनुशासन की भावना (Feeling of Sacrifice and Discipline)योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन से कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
    अन्ततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि योग मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में विशेष महत्त्व रखता है।

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions फुटबाल (Football) Game Rules.

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. फुटबाल मैदान की लम्बाई = 120m × 80m (130 गज़ × 100 गज़)
  2. फुटबाल मैदान की चौड़ाई = 50 गज़ से 100 गज़, 45-90 मीटर
  3. मैदान का आकार = आयताकार
  4. खिलाड़ियों की गिनती = 11, बदलवे 7
  5. फुटबाल की परिधि = 27″ से 28″, 68 सैं०मी० 70 सैं०मी०
  6. फुटबाल का भार = 14 से 16 औंस, 410 ग्राम से 450 ग्राम
  7. खेल का समय = 45—45 मिनट के दो हाफ
  8. आराम का समय = 15 मिनट
  9. मैच में बदले जा सकने वाले खिलाड़ी = 3 मिनट
  10. मैच के अधिकारी = एक टेबल आफिशल, एक रैफ़री और दो लाइन मैन.
  11. अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिए मैदान का आकार = अधिक-से-अधिक 110 × 75 मीटर 100 × 64 मीटर कम-से-कम
  12. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप = अधिकतम 110 मी० × 75 मीटर (120 गज़ × 80 गज़) कम-से-कम 100 मी० × 64 मी० (100 गज़ × 70 गज़)
  13. गोल पोस्ट की ऊँचाई = 2.44 मीटर
  14. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई = कम-से-कम 5 फीट

फुटबाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Football Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम में 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 11 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता है।
  2. एक टीम मैच में तीन से अधिक खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
  3. एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
  4. खेल का समय 45-5-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
  5. मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
  6. खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  7. मैच खिलाने के लिए एक टेबल अधिकारी, एक रैफरी और दो लाइनमैन होते हैं।
  8. गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
  9. खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
  10. मैदान के बाहरी भाग से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
  11. जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
  12. रैफ़री स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर क्षेत्र, रेखाएं और गेंद के बारे में बताइए।
खेल का मैदान
(Playing Field)
आकार-फुटबॉल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 m से कम और 120 m से अधिक न होगी। इसकी चौड़ाई 55 m से कम और 90 m से अधिक न होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 90 से 120 m तक चौड़ाई 50 से 90 m होगी। – रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 1.50 m ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज़ पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 9.15 m गज़ होगा।
FOOTBALL GROUND
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
कार्नर क्षेत्र-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट से खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई वृत्त खींचा जाएगा।
गोल क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगी। ये मैदान में 5.5 m की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
पैनल्टी क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 16.50 m की दूरी पर गोल रेखा के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएंगी। ये मैदान में 16.50m की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा खींच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।

गोल-गोल रेखा के मध्य में से 7.32 m की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 2.44 m ऊंचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी। देखें खेल के मैदान का चित्र।
गेंद-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए। इसकी परिधि 27″ से 28″ तक होगी। इसका भार 14 औंस से 16 औंस तक होगा। रैफ़री की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदली नहीं जा सकती।

खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी का सामान-खिलाड़ी प्रायः जर्सी या कमीज़, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाकी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
निम्नलिखित से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों की संख्या, अधिकारियों की गिनती, खेल की अवधि, स्कोर अथवा गोल।
खिलाड़ियों की संख्या-फुटबॉल का खेल दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह तथा अतिरिक्त (Extra) 5 खिलाड़ी होते हैं। एक मैच में किसी टीम को दो से अधिक खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती। बदले हुए खिलाड़ी को पुनः इस मैच में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। मैच में गोलकीपर बदल सकते हैं। । अधिकारी-एक रैफ़री, दो लाइनमैन, एक टाइम कीपर रैफ़री खेल के नियमों का पालन करवाता है और किसी भी झगड़े वाले प्रश्न का निर्णय करता है। खेल में क्या हुआ और परिणाम क्या निकला इस पर उसका निर्णय अन्तिम होता है।
खेल की अवधि-खेल 45-45 मिनट की दो समान अवधियों में खेला जाएगा। पहले 45 मिनट के खेल के बाद 10 मिनट का मध्यान्तर (Interval) या इससे अधिक
होगा।

गोल्डन गोल (Golden Goal)-फुटबॉल खेल में यदि समय समाप्ति पर दोनों टीमें बराबर रहती हैं तो बराबर की स्थिति में फालतू समय 15-15 मिनट का खेल होगा। इस समय के खेल में जहां भी गोल हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है। गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है। उसके बाद यदि फिर भी गोल न हो तो दोनों टीमों को 5-5 पैनल्टी किक उस समय तक दिए जाते रहेंगे जब तक फैसला नहीं हो जाता परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।
खेल का आरम्भ-खेल के प्रारम्भ में टॉस द्वारा किक मारने और साइड (पक्ष) चुनने का निर्णय किया जाता है। टॉस जीतने वाली टीम को किक लगाने या साइड चुनने की छूट होती है। गेंद खेल से बाहर-गेंद खेल से बाहर मानी जाएगी—

  1. जब गेंद भूमि या हवा में गोल रेखा या स्पर्श रेखा पूरी तरह पार कर जाए।
  2. जब रैफरी खेल को रोक दे।

स्कोर (फलांकन) या गोल-जब गेंद नियमानुसार गोल पोस्टों के बीच क्रास बार के नीचे और गोल रेखा के पार चली जाए तो गोल माना जाता है। जो भी टीम अधिक गोल बना लेगी उसे विजयी माना जाएगा। यदि कोई गोल नहीं होता या बराबर संख्या में गोल होते हैं तो खेल बराबर माना जाएगा। परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

प्रश्न
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऑफ साइड-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता।
ऑफ साइड उस समय होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।

  1. उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
  2. वह मैदान में अपने अंर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
  3. गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेली न गई हो।
  4. उसे गोल-किक, कार्नर किक, थ्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिली हो या रैफ़री ने न फेंका हो।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां पर नियम का उल्लंघन हुआ हो।
फ्री किक-फ्री किक दो प्रकार की होती है-प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को छू न जाए।
जब कोई खिलाड़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाता है तो अन्य खिलाड़ी गेंद से कम से कम दस गज की दूरी पर होंगे। वे अपने परिधि पथ और पैनल्टी क्षेत्र को पार करते ही गेंद फौरन खेलेंगे। यदि गेंद पैनल्टी क्षेत्र से परे सीधे खेल में किक नहीं लगाई गई तो किक पुनः लगाई जाएगी।
दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर रक्षक टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाने को मिलेगी।
फ्री किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को दूसरी बार उस समय तक नहीं छू सकता जब तक इसे किसी अन्य खिलाड़ी ने न छू लिया हो।
पैनल्टी किक-पैनल्टी किक पैनल्टी निशान से लगाई जाएगी। पैनल्टी किक लगाने के समय किक मारने वाला (प्रहारक) तथा गोल रक्षक ही पैनल्टी क्षेत्र में होंगे। बाकी ‘खिलाड़ी पैनल्टी क्षेत्र से बाहर और पैनल्टी के निशान से कम से कम 10 गज़ दूर होंगे। गेंद को किक लगने तक गोल रक्षक गोल रेखा पर स्थिर खड़ा रहेगा। किक मारने वाला गेंद को दूसरी बार छू नहीं सकता जब तक कि उसे गोल कीपर छू नहीं लेता।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर—

  1. यदि रक्षक टीम द्वारा उल्लंघन होता है और यदि गोल न हुआ हो तो किक दूसरी बार ली जाएगी।
  2. यदि आक्रामक टीम द्वारा उल्लंघन होता है तो गोल हो जाने पर भी दोबारा किक दी जाएगी।
  3. यदि पैनल्टी किक लेने वाले खिलाड़ी से अथवा उसके साथी से गोल उल्लंघन होता है तो विरोधी खिलाड़ी उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष गोल किक लगाएगा।

थो-इन-जब गेंद भूमि पर या हवा में पार्श्व रेखाओं (Side Lines) से बाहर चली जाती है तो विरोधी टीम का एक खिलाड़ी उस स्थान से जहां से गेंद पार हुई होती है, खड़ा होकर गेंद मैदान के अन्दर फेंकता है।
गेंद अन्दर फेंकने वाला खिलाड़ी मैदान की ओर मुंह करके दोनों पांवों का कोई भाग स्पर्श रेखा या स्पर्श रेखा से बाहर ज़मीन पर रख कर खड़ा हो जाता है। वह हाथों से गेंद पकड़ कर सिर के ऊपर से घुमा कर अन्दर मैदान में फेंकेगा। वह उस समय तक गेंद को नहीं छू सकता जब तक किसी दूसरे खिलाड़ी ने इसे न छू लिया हो।
दण्ड—

  1. यदि थ्रो-इन उचित ढंग से न हो तो विरोधी टीम का खिलाड़ी थ्रो-इन करेगा।
  2. यदि थ्रो-इन करने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले ही स्वयं छू लेता है तो विरोधी टीम को एक अप्रत्यक्ष किक लगाने को दी जाएगी।
    फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
    गोल किक-किसी आक्रामक टीम के खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर जब गेंद भूमि के साथ हवा में गोल रेखा को पार कर जाए तो रक्षक टीम का खिलाड़ी इसे गोल क्षेत्र से बाहर किक करता है। यदि वह गोल क्षेत्र से बाहर नहीं निकलती और सीधे खेल के मैदान में नहीं पहुंच पाती तो किक दोबारा लगाई जाएगी। किक करने वाला खिलाड़ी गेंद को उस समय तक पुनः नहीं छू सकता जब तक इसे किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छू न लिया जाए।
    दण्ड-यदि किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा छूने से पहले पुनः छू ले तो विरोधी को उसी स्थान से एक अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जहां कि उल्लंघन हुआ है।

कार्नर किक-जब रक्षक टीम के किसी खिलाड़ी द्वारा रखेले जाने पर गेंद भूमि पर या हवा में गोल रेखा पार कर जाए तो आक्रामक टीम का खिलाड़ी निकटतम कार्नर फ्लैग पोस्ट के चौथाई वृत्त के भीतर से गेंद को किक लगाएगा। ऐसी किक से प्रत्यक्ष गोल भी किया जा सकता है। जब तक कार्नर किक न ले ली जाए, विरोधी टीम के खिलाड़ी 10 गज दूर रहेंगे। किक करने वाला खिलाड़ी भी उस समय तक गेंद को दुबारा नहीं छू सकता जब तक किसी अन्य खिलाड़ी ने उसे छ न लिया हो।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर विरोधी टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल खेल में कौन-कौन से फाऊल हो सकते हैं ?
उत्तर-
फाऊल तथा त्रुटियां
(क) यदि कोई भी खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4

  1. विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की कोशिश करे।
  2. विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
  3. विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
  5. विरोधी खिलाडी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
  6. विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
  7. विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने या टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे।
  8. विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से धक्का दे।
  9. गेंद को हाथ से पकड़ता है।

यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझकर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।
(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी—

  1. जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
  2. जब गेंद कुछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
  3. गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
  4. गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह
    • विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो।
    • गेंद पकड़ रहा हो।
    • गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
    • गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
    • गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाकी में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।

(ग) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी

  1. खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
  2. दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
  3. शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।

(घ) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि—

  1. वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
  2. चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
  3. वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीकों के बारे में लिखें।
उत्तर-
किकिंग-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बॉल को इच्छित दिशा में पांवों की सहायता से इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बॉल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए, आगे बढ़ाया जाता है । किकिंग की कला में सही निशाना, गति, दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दहने में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद नवसिखयों को सिखलाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने की ज़रूरत है। युवकों और नवसिखयों को दोनों पांवों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतबे पर पहुंच पाना असम्भव है।

  1. पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना—
  2. पावों का बाहरी भाग—

जब बॉल को नज़दीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम लगाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
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हॉफ़ वाली तथा वॉली किक—
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जब बॉल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या हवा में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी। इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात ज़रूरी है वह है शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।

ओवर हैड किकइस किक—
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का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है (क) सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बॉल की और दिशा में मोड़ना, (ख) बॉल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और (ग) बॉल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना. जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित वॉली किक है और इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बॉल को मारने हेतु किया जाता है।
पास देना—
फुटबॉल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बॉल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं।
पास देने की क्रिया को आमतौर पर दो भागों में बांटा गया है-लम्बे पास तथा छोटे पास।

  1. लम्बे पास-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांवों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मज़बूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
  2. छोटे पास-छोटे पास 15 गज़ या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।

पुश पास—
पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बॉल डालने के लिए और बॉल को बाएं-दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है।
लॉब पास—
यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इसमें बॉल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बॉल लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसके सिर के ऊपर से बॉल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।
पांव का बाहरी भाग……..फलिक या जॉब पास—
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फलिक पास से पाँव को भीतर की ओर घुमाते हुए बॉल को फलिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बॉल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग—
ट्रैपिंग बॉल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बॉल को ट्रैप करने का अर्थ बॉल को खिलाड़ी के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बॉल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बॉल को मजबूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बॉल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इससे उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई

  1. रेंगते बॉल तथा
  2. उछलते बॉल के लिए दी जानी चाहिए।

पांव के निचले भाग से ट्रैप—
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यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आसपास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती है।

पांव के भीतरी भाग से ट्रैप—
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यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बॉल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं ओर से या तिरछे आ रहे बॉल के लिए अच्छा है। यदि बॉल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बॉल ने जाना होता है।

पांव के बाहरी भाग से ट्रैप—
यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि हरकत में खिलाड़ी को बदन का भार बाहर की तथा केन्द्र से बाहर सन्तुलन करने के लिए ज़रूरी होता है।
पेट तथा सीना ट्रैप—
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यदि बॉल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो सकता हो तो बॉल को पेट तथा सीने पर सीधा या धरती से उछलता हुआ लिया जाता है।
हैड ट्रैप—
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यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है और उसके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
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(क) सामने की ओर हैडिंग

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(ख) बाई तथा दाई ओर हैडिंग

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(ग) नीचे की ओर हैडिंग

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PSEB 10th Class Physical Education Practical फुटबाल (Football)

प्रश्न 1.
फुटबाल के मैदान की लम्बाई और चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की लम्बाई 130 गज़ से अधिक और 100 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए और चौड़ाई 100 गज़ से अधिक और 50 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में लम्बाई 120 गज़ से 110 गज़ और चौड़ाई 70 से 80 गज़ तक होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
फुटबाल की खेल में कुल खिलाड़ी कितने होते हैं और किन-किन स्थितियों में खेलते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में कुल 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 11 खिलाडी खेलते हैं और 5 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं। स्थिति-गोल कीपर = 1, फुलबैक = 2, हाफ = 3, फ़ारवर्ड = 5.

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प्रश्न 3.
फुटबाल के खेल का समय बताइए।
उत्तर-
फुटबाल के खेल का समय 45-5-45 मिनट होता है।

प्रश्न 4.
फुटबाल का भार कितना होता है और उसकी गोलाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल का भार 14 औंस से 16 औंस तक होता है और उसकी गोलाई 27 इंच से 28 इंच तक होती है।

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प्रश्न 5.
फुटबाल के मैदान की लाइनों की मोटाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की सभी लाइनें 5 सैं० मी० चौड़ी होती हैं।

प्रश्न 6.
फुटबाल में हवा का भार कितना होता है ?
उत्तर-
फुटबाल में हवा का भार 0.6007 या 9.01505 पौंड वर्ग इंच होगा।

प्रश्न 7.
फुटबाल का खेल कैसे शुरू होता है ?
उत्तर-
फुटबाल का खेल गेंद के पास द्वारा शुरू होता है।

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प्रश्न 8.
गोल पोस्टों की लम्बाई और ऊंचाई बताओ।
उत्तर-
गोल पोस्टों की लम्बाई 8 गज़ और ऊंचाई 8 फुट होती है।

प्रश्न 9.
पैनल्टी किक की दूरी बताओ।
उत्तर-
पैनल्टी किक 16 गज़ की दूरी से लगाई जाती है।

प्रश्न 10.
गोल कब होता है ?
उत्तर-
जब गेंद गोल पोस्टों के मध्य रेखा गोल को पार कर जाए तो गोल माना जाता है।

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प्रश्न 11.
फुटबाल में किक लगाते समय विरोधी खिलाड़ियों को कितनी दूरी पर खड़े होना चाहिए?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में किक लगाते समय 10 गज की दूरी पर विरोधी खिलाड़ियों को खड़े होना चाहिए।

प्रश्न 12.
थो-इन किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जब गेंद खेल के मैदान से पूरे तौर पर बाहर चली जाती है तो विरोधी खिलाड़ी उसी स्थान पर खड़े होकर गेंद को अन्दर फेंकता है तो उसको थ्रो-इन कहा जाता है।

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प्रश्न 13.
फुटबाल के खेल में कितने फ्लैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में 6 फ्लैग लगाए जाते हैं जिनमें से 4 ग्राऊंड के कार्नर में तथा दो ग्राऊंड की मध्य की सैंटर लाइन के अन्त में एक गज़ की दूरी पर पीछे हट कर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
फुटबाल की खेल के चार फाऊल बताओ।
उत्तर-
फुटबाल की खेल के चार फाऊल निम्नलिखित हैं—

  1. विरोधी खिलाड़ी को ठुड्ड मारना,
  2. फुटबाल को हाथ लगाना।
  3. धक्का देना।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से हमला करना।

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प्रश्न 15.
फुटबाल के खेल को खेलाने वाले अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-

  1. टेबल आफिसर = 1
  2. रैफरी = 1
  3. लाइनमैन = 2