PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 17 श्री गुरु नानक देव जी

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 श्री गुरु नानक देव जी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 17 श्री गुरु नानक देव जी

Hindi Guide for Class 10 PSEB श्री गुरु नानक देव जी Textbook Questions and Answers

(क) विषय-बोध

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा, सन् 1469 ई० को शेखूपुरा के तलवंडी गाँव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी के माता और पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता देवी जी और पिता का नाम मेहता कालू जी था।

PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 17 श्री गुरु नानक देव जी

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने छोटी आयु में ही कौन-कौन-सी भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया था ?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी ने छोटी-सी आयु में ही पंजाबी, फारसी, हिंदी और संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी को किस व्यक्ति ने दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन संबंधी कार्यों में लगाने का प्रयास किया था?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी को इनके पिता श्री मेहता कालू जी ने दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन कार्यों में लगाने का प्रयास किया था।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी को दुनियादारी में बांधने के लिए इनके पिता जी ने क्या किया?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी के पिता जी ने आप की शादी देवी सुलक्खनी से कर दी।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के कितनी संतानें थीं और उनके नाम क्या थे?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी के दो संतानें थीं। एक का नाम लखमीदास और दूसरे का नाम श्रीचंद था।

प्रश्न 7.
इस्लामी देशों की यात्रा के दौरान आप ने किस धर्म की शिक्षा दी?
उत्तर:
मुस्लिम देशों की यात्रा के दौरान आप ने ‘सांझे धर्म’ की शिक्षा दी।

प्रश्न 8.
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में गुरु नानक देव जी के कुल कितने पद और श्लोक हैं?
उत्तर:
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974 पद और श्लोक हैं।

प्रश्न 9.
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य कितने राग हैं?
उत्तर:
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य 31 राग हैं।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम वर्ष कहाँ बीते?
उत्तर:
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में बीते थे जो अब पाकिस्तान में है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के जन्म के संबंध में भाई गुरदास जी ने कौन-सी तुक लिखी?
उत्तर:
भाई गुरदास जी ने लिखा था
‘सुनी पुकार दातार प्रभु,
गुरु नानक जगि माहिं पठाया।’

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी पढ़ने के लिए किन-किन के पास गए थे?
उत्तर:
सात वर्ष की आयु में गुरु नानक देव जी को पांडे के पास पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया था। मौलवी सैय्यद हुसैन ने भी इन्हें पढ़ाया था। इन्होंने पंडित ब्रजनाथ से भी शिक्षा प्राप्त की थी। छोटी-सी आयु में ही इन्होंने पंजाबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

प्रश्न 3.
साधुओं की संगति में रहकर गुरु नानक देव जी ने कौन-कौन से ज्ञान प्राप्त किए?
उत्तर:
साधुओं की संगति में रह कर गुरु नानक देव जी ने भारतीय धर्म का ज्ञान प्राप्त किया। आपने साधुओं की संगति से भी विभिन्न संप्रदायों का ज्ञान प्राप्त किया। भारतीय धर्म ग्रंथों और शास्त्रों का ज्ञान भी आपको साधुओं की संगति से ही हुआ। राग विद्या भी आपने इन्हीं दिनों प्राप्त की थी।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने यात्राओं के दौरान कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण शहरों की यात्रा की?
उत्तर:
अपनी यात्राओं में गुरु नानक देव जी ने आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का-मदीना आदि शहरों की यात्रा की थी। आपने हिमालय पर स्थित योगियों के केंद्रों की यात्रा भी की। आपने उन्हें सही धर्म सिखाया। आपने हिंदू, मुसलमान सब को सही मार्ग दिखाया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन भारतीय जनता को किन बुराइयों से स्वतंत्र कराने का प्रयास किया?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी के समय में भारतीय हिंदू-मुस्लिम जनता धार्मिक आडंबरों से ग्रस्त थी। आपने उन्हें इन रूढ़ियों और आडंबरों से मुक्त कराने के लिए उन्हें सद्-उपदेश दिया। उन्हें सही रास्ता दिखाया। आपके उपदेश सहज और सरल थे।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
गुरु नानक देव जी की रचनाएँ जपुजी, आसा दी वार, सिद्ध गोसटि, पट्टी, दक्खनी ऊँकार, पहरे-तिथि, बारह माह, सुचज्जी-कुचज्जी, आरती आदि हैं। गुरु जी की इन रचनाओं के अतिरिक्त वाणी, श्लोक, पद, अष्टपदियां, सोहले, छन्द आदि के रूप में विद्यमान हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात वाक्यों में दीजिए

प्रश्न 1.
जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था उस समय भारतीय समाज अनेक बुराइयों से ग्रस्त था। वह अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में बंटा हुआ था। लोग रूढ़ियों में फंसे हुए थे। उनके विचार बहुत ही संकीर्ण थे। वे घृणा करने योग्य कार्यों में लगे रहते थे। धर्म के नाम पर दिखावे का बोल-बाला था। शासक वर्ग अत्याचारी था। आम जनता का अत्यधिक शोषण होता था। दलितों पर बहुत अत्याचार होते थे।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों को क्या-क्या उपदेश दिए?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी ने सन् 1499 से 1522 ई० के बीच पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण चारों दिशाओं में यात्राएं कीं। इन यात्राओं में आपने आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का-मदीना आदि स्थानों की यात्रा की थी। आप ने कश्मीर के पंडितों से विचार-विमर्श किया। हिमालय के योगियों को सही धर्म सिखाया। हिंदू नेताओं को देश सेवा का उपदेश दिया। मौलवी और मुसलमानों को साझे धर्म की शिक्षा देकर उन्हें सही रास्ता दिखाया। आपने अनेक फ़कीरों, सूफ़ियों, सन्तों आदि से भी धार्मिक विचार-विमर्श किए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की वाणी की विशेषता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गुरु नानक देव जी की वाणी के 974 पद और श्लोक आदि ग्रंथ में संकलित हैं। आपकी वाणी में अनेक विषयों की चर्चा प्राप्त होती है। आपने सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध में चर्चा की थी। आपने अकाल पुरुष के स्वरूप और स्थान का भी वर्णन किया है। आपने माया से दूर रहने तथा माया के बंधन काटने और शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने की प्रेरणा दी है। आपकी वाणी, जो ‘जपुजी साहिब’ के नाम से जानी जाती है, में सिक्ख सिद्धांतों का सार है। आपकी वाणी की शैली बहुत अद्भुत और अनूठी है।

(ख) भाषा-बोध

I. निम्नलिखित का संधि-विच्छेद कीजिए

परमात्मा, पतनोन्मुखी, जीविकोपार्जन, संगीताचार्य, देवोपासना, परमेश्वर।
उत्तर:
परमात्मा = परम + आत्मा
पतनोन्मुखी = पतन + उन्मुखी
जीविकोपार्जन = जीविका + उपार्जन
संगीताचार्य = संगीत + आचार्य
देवोपासना = देव + उपासना
परमेश्वर = परम + ईश्वर।

II. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाइए:

समाज, धर्म, अर्थ, परस्पर, राजनीति, पंडित, सम्प्रदाय, भारत, अध्यात्म, पंजाब।
उत्तर:
शब्द – विशेषण
समाज – सामाजिक
धर्म – धार्मिक
अर्थ – आर्थिक
परस्पर – पारस्परिक
राजनीति – राजनैतिक
पंडित – पांडित्य
सम्प्रदाय – साम्प्रदायिक
भारत – भारतीय
अध्यात्म – आध्यात्मिक
पंजाब – पंजाबी

III. निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए:

महान्, सरल, सहज, हरा, समान, शांत।
उत्तर:
शब्द – भाववाचक संज्ञा
महान् – महानता
सरल – सरलता
सहज – सहजता
हरा – हरियाली
समान – समानता
शांत – शांति।

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(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी आपके लिए किस तरह प्रेरणा स्रोत हैं। अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

(घ) पाठ्येतर सक्रियता

1. सिक्ख धर्म के सभी गुरुओं के जीवन चरित की जानकारी जुटाइए।

2. हिंदू, सिक्ख, मुस्लिम, ईसाई, जैन और बौद्ध आदि धर्मों के चिह्न बनाइए।

3.विभिन्न धार्मिक स्थानों जैसे-स्वर्ण मंदिर, आनंदपुर साहिब, हरिद्वार, मथुरा, मक्का मदीना आदि की जानकारी एकत्रित कीजिए।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की यात्राओं से संबंधित स्थानों को विश्व मानचित्र पर दर्शाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5.
सिक्ख धर्म के पाँच चिह्नों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

(ङ) ज्ञान-विस्तार

1. ननकाना साहिब-पाकिस्तान में स्थित पंजाब प्रांत का यह शहर गुरु नानक देव जी के नाम पर है। प्राचीन काल में इसका नाम ‘राय-भोई-दी-तलवंडी’ था। इतिहास से जुड़ा हुआ यह नगर सिख धर्म के लिए अति पवित्र तीर्थ है।

2. सुल्तानपुर लोधी-यह कपूरथला जिले का अत्यंत पुराना शहर है जहाँ गुरु नानक देव जी पहले रहते थे। इसी शहर में उनकी बहन बीबी नानकी और उनके पति भाई जयराम जी भी निवास करते थे।

3. मक्का -इस्लाम धर्म का यह सबसे अधिक पवित्र नगर है। प्रति वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। इस्लामी पैगम्बर मोहम्मद के द्वारा इसी नगर में सातवीं शताब्दी में इस्लाम की घोषणा की गई। बाद में यह नगर साऊदी अरब के शासन के अधीन आ गया था। अब यह मक्काह प्रांत की राजधानी है।

4. ताशकन्द-यह उजबेकिस्तान और ताशकेंत की राजधानी है।

5. श्री लंका-यह दक्षिण एशिया का देश है जो हिन्द महासागर के उत्तर में विद्यमान है। भारत से इसकी दूरी केवल 31 कि०मी० है। सन् 1972 तक इसका नाम ‘सीलोन’ था लेकिन अब यह श्री लंका के नाम से जाना जाता है। इसका नगर कोलंबो समुद्री परिवहन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

6. मदीना/अल-मदीना-इसे अति सम्मान के कारण ‘अल-मदीना-अल मुनवरा भी कहते हैं जिसका अर्थ हैचमकदार मदीना। यह इस्लाम धर्म का पवित्रतम दूसरा नगर है। इसी नगर में इस्लामी पैगम्बर मोहम्मद साहब की दफनगाह है। इस नगर का अपना ही विशेष ऐतिहासिक महत्त्व है।

7. श्री गुरु ग्रंथ साहिब-सिक्ख धर्म का परम पवित्र और प्रमुख ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी हैं जिसमें सिख गुरुओं तथा हिंदु-मुस्लिम संतों/भक्तों की वाणी भी संकलित की गई है। इसका संपादन सिक्ख धर्म के पाँचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया था। इसका पहला प्रकाश 16 अगस्त, सन् 1604 ई० को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ था। सन् 1705 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसमें गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द जोड़ कर इसे पूर्ण किया था। इस पवित्र ग्रंथ में कुल पृष्ठ संख्या 1430 है। इसमें सिख गुरुओं के अतिरिक्त 30 अन्य हिंदू और मुस्लिम-भक्तों की पवित्र वाणी को भी स्थान प्रदान किया गया है।

8. जपुजी साहिब-श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की मूलवाणी ‘जपुजी साहिब’ गुरु नानक देव जी के द्वारा उच्चरित की गई अति पवित्र वाणी है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक ज्ञान समाया हुआ है।

PSEB 10th Class Hindi Guide श्री गुरु नानक देव जी Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का बचपन किस शहर में बीता?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी का बचपन तलवंडी में बीता था।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों में कैसे किया?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा बीस रुपयों में भूखे साधुओं को खाना खिला कर किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी तीन दिन तक किस नदी में आलोप रहे?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी तीन दिन तक उई नदी में आलोप रहे।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की कितनी उदासियाँ हैं?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी की चार उदासियाँ हैं।

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प्रश्न 5.
प्रातःकालीन प्रार्थना के लिए गुरु जी की कौन-सी वाणी है?
उत्तर:
प्रात:कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी साहिब’ आपकी वाणी है।

प्रश्न 6.
भाई गुरदास जी ने आपकी उदासियों के सम्बन्ध में क्या कहा है?
उत्तर:
भाई गुरदास जी आपकी उदासियों के बारे में लिखते हैं-‘चढ़िआ सोधन धरत लुकाई।’ आपने सन् 1499 ई० से 1522 ई० तक पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण की चार उदासियाँ कीं। इसी समय आपने करतारपुर नगर बसाया था। इन यात्राओं में आपने भटके हुए लोगों को उचित उपदेश देकर सद्मार्ग दिखाया था।

प्रश्न 7.
सुल्तानपुर में रहते हुए आप ने क्या कुछ देखा था?
उत्तर;
सूबे की राजधानी होने के कारण सुल्तानपुर धार्मिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। यहाँ रहते हुए आपने हुकूमत की ज्यादतियाँ, मुल्ला, काज़ियों और हिंदुओं के धार्मिक आडंबर, कर्मकांड, अंधविश्वास आदि देखे थे। आपने आध्यात्मिक अवस्थाओं से गिरे हुए बनावटी जीवन को भी देखा था।

प्रश्न 8.
अन्य संतों की अपेक्षा गुरु नानक देव जी के उपदेश देने की शैली की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
अन्य सन्त जब उपदेश देते थे तो उनके कटुतापूर्ण शब्द लोगों को बुरे लगते थे। वे अपने शुष्क व्यवहार से लोगों को नाराज़ कर देते थे। वे तर्क की छुरी चला कर सामाजिक बुराइयों की चीर-फाड़ कर लोगों के मन को आहत कर देते थे। परन्तु गुरु जी सामाजिक बुराइयों का खंडन कोमल भाषा में करते थे। जैसे शरद ऋतु की पूर्णिमा का चंद्रमा चारों ओर अपनी शीतलता बिखेरता है वैसे ही गुरु जी भी अपनी वाणी की शीतलता से सब को उपदेश देते थे। अन्य सन्तों के उपदेशों से आहत मन पर वे मरहम का लेप करते थे।

एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तब भारत की क्या दशा थी?
उत्तर:
जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तब भारत अनेक प्रकार के कुसंस्कारों से ग्रस्त था।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी को किन्होंने शिक्षा दी थी?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी को मौलवी सैय्यद हुसैन और पंडित बृजनाथ ने शिक्षा दी थी।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी सन् 1499 ई० में किस नदी में स्नान करने गए थे?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी बेईं नदी में स्नान करने गए थे।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने प्रातःकालीन प्रार्थना के लिए किस ग्रंथ की रचना की थी?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी ने प्रात:कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी’ साहिब की रचना की थी।

बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
श्री गुरु नानक देव जी ने कितने रुपयों से भूखे साधुओं को खाना खिला कर सच्चा सौदा किया?
(क) पाँच
(ख) दस
(ग) बीस
(घ) पच्चीस।
उत्तर:
(ग) बीस

प्रश्न 2.
‘चढ़िया सोधन धरत लुकाई’-किसका कथन है?
(क) भाई रामदास
(ख) भाई गुरदास
(ग) भाई प्रेमदास
(घ) भाई सुखदास।
उत्तर:
(ख) भाई गुरदास

प्रश्न 3.
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में श्री गुरु नानक देव जी द्वारा रचित कितने पद और श्लोक हैं?
(क) 970
(ख) 972
(ग) 974
(घ) 976.
उत्तर:
(ग) 974

एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मुख्य कितने राग हैं? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
31

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी सन् 1539 में ज्योति-जोत समा गए। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
भाई मरदाना श्री गुरु नानक देव जी के साथ कभी नहीं रहा। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं

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प्रश्न 4.
‘न कोई हिन्दू न मुसलमान’-ये शब्द श्री गुरु नानक देव जी के हैं। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 5.
गंगा नदी में प्रवेश कर श्री गुरु नानक देव जी तीन दिन अलोप रहे। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 6.
उस समय के ……………. शोषक का रूप …………. कर चुके थे।
उत्तर:
राजा, धारण

प्रश्न 7.
लगभग …………. वर्ष की आयु तक आप अनेक मतों के ……….. की संगति में रहे।
उत्तर:
अठारह, साधुओं

प्रश्न 8.
लगभग ……………. वर्ष आप घूम फिर कर …………. का प्रचार करते रहे।
उत्तर:
बाईस, धर्म।

श्री गुरु नानक देव जी कठिन शब्दों के अर्थ

कुसंस्कारों = बुरी आदतों। ग्रस्त = पकड़े हुए। विभाजित = बंटा हुआ। रूढ़ियाँ = गलत परंपरायें, गलत रीति-रिवाज। घृणित = घृणा करने योग्य, नफ़रत करने योग्य। आचार = व्यवहार, चालढाल, चालचलन। संकीर्णता = नीचता, संकरापन। तीव्र = तेज़। प्रहार = चोट । कटुता = कड़वाहट। शुष्कता = नीरसता, सूखापन। उक्त = उन। खण्डन = तोड़ने-फोड़ने का काम, किसी मत के खिलाफ़ बोलना। मृदु = कोमल। भाषी = बोलने वाला। शरत काल = शरद ऋतु । पूर्णचंद्र = पूरा चाँद, पूर्णिमा का चाँद । स्निग्धता = चिकनापन, चिकनाहट। निर्मलता = सफ़ाई, स्वच्छता, शुद्धता, पवित्रता। शीतलता = ठंडक। आलोकित = प्रकाशित, रोशनी से भर देना। उद्वेलित = छलछलाना। शल्यचिकित्सा = चीरफाड़ करना। विभूति = शक्ति, व्यक्ति। प्रवर्तक = शुरू करने वाला। पतनोन्मुखी = पतन की ओर जाने वाला। पथ-प्रदर्शक = रास्ता दिखाने वाला। प्रकृति = स्वभाव, आदत। भ्रमणशील = घूमते रहने वाले, घुमक्कड़। कर्म = कार्य। चतुर्दिक = चारों ओर, सब दिशाओं में। उदात्त = अच्छी, ऊँची। सागर = समुद्र।

आध्यात्मिक = आत्मा से संबंधित। पथ = रास्ता, मार्ग। अविचलित = अटल, स्थिर, जो विचलित न हो। पथिक = मुसाफिर। अल्प = कम, थोड़ी। पियासा = प्यास । प्रवृत्त = किसी काम में लगा हुआ, किसी काम में लगना। काल = समय। विरक्ति = वैराग्य। सरगर्मियाँ = गतिविधियाँ । हुकूमत = शासन। आडंबर = दिखावा। कर्मकांड = धर्म से संबंधित कार्य, यज्ञ, आदि करना। विचलित = अस्थिर, व्याकुल, डांवाडोल। उद्धार = कल्याण। सांझा धर्म = मानव धर्म। पांडित्य = विद्वता, ज्ञानी। संकीर्ण = छोटी सोच। शैली = तरीका। अलोप = गायब हो जाना, छिप जाना। सुरुचिपूर्ण = अच्छाइयों से भरा। दर्शाया = दिखाया। विचार-विमर्श = सलाह-मशवरा। तर्क-वितर्क = बहस करना। कुतर्कों = बुरी बहस। तत्कालीन = उस समय के। आडंबर = दिखावा। अनुग्रह = कृपा। करामात = चमत्कार। अहंकार = घमंड। प्रत्यक्ष = आँखों देखा। कुमार्ग = गलत रास्ता। सुमार्ग = सही रास्ता। शोचनीय = बहुत हीन, बहुत चिंताजनक। शोषण = शोषण करने वाला। जुल्म = अत्याचार। संगीताचार्य = संगीत के आचार्य, संगीत में निपुण। निर्विकार = विकारों से रहित, बुराइयों से रहित। अद्भुत = विचित्र। पारस्परिक = आपसी। दृष्टिकोण = देखने का नज़रिया।

श्री गुरु नानक देव जी Summary

श्री गुरु नानक देव जी लेखिका परिचय

डॉ० सुखविंदर कौर बाठ का जन्म सन् 1962 ई० में पंजाब के गुरदासपुर जिले के छिछरेवाला गाँव में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की थी। इन्होंने अमृतसर से एम० ए०, एम० फिल०, पी-एच० डी० तथा डी० लिट की उपाधियाँ प्राप्त की। इनके पिता देश की सीमाओं के रक्षक थे इसलिए वे प्रायः बाहर ही रहते थे। इनकी शिक्षा और साहित्यिक रुचियों को जगाने वाली इनकी माता जी ही थीं। ‘गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी : संदर्भ और विश्लेषण’ इन का शोध-विषय था। इन्हें पंजाबी लोक-जीवन से विशेष लगाव रहा है। इसी कारण इन्होंने पंजाबी भाषा, संस्कृति, लोक-जीवन, लोक-गीतों आदि पर बहुत कार्य किया है। आप पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के पत्राचार विभाग में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।

डॉ० सुखविन्दर कौर बाठ की प्रमुख रचनाएं ‘पंजाब के संस्कार गत लोक-गीतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन’, ‘पंजाबी लोक रंग’, ‘गुरु तेग़ बहादुर की वाणी : संदर्भ और विश्लेषण’ आदि हैं। हिसार से प्रकाशित ‘पंजाबी संस्कृति’ की आप अतिथि संपादिका हैं। आपने शिव कुमार बटालवी की रचना ‘लूणा’ का देवनागरी में लिप्यंत्रण भी किया है। आपके निबंधों की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य है।

श्री गुरु नानक देव जी पाठ का सार

डॉ० सुखविंदर कौर बाठ द्वारा रचित लेख ‘श्री गुरु नानक देव जी’ में लेखिका ने अवतारी महापुरुष श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने उनके उपदेशों को समस्त मानवता के लिए शुभ एवं हितकारी माना है।

श्री गुरु नानक देव जी के जन्म के समय देश की दशा बहुत खराब थी। लोग अनेक बुराइयों में फंस कर भिन्नभिन्न जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों आदि में बंट गए थे। समाज रूढ़ियों तथा आडंबरों से ग्रस्त था। अनेक संतों ने अपने शुष्क तथा कट उपदेशों से लोगों को इन बुराइयों के लिए लताड़ कर अपने से नाराज़ कर दिया परंतु गुरु नानक देव जी ने अपनी कोमल वाणी से सब को अपने वश में करके समार्ग पर चलने की राह दिखायी।

पंजाब में भक्ति-आंदोलन को प्रारंभ करने वाले श्री गुरु नानक देव जी का जन्म शेखूपुरा जिले के तलवंडी गांव (पाकिस्तान) में सन् 1469 ई० को हुआ था। आपके पिता का नाम श्री मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता देवी जी था। आप की एक बहन थी जिसका नामक नानकी था। सात वर्ष की आयु में आपको पाठशाला में पांडे जी से पढ़ने के लिए जाना पड़ा। इनके बाद आपने मौलवी सैय्यद हुसैन और पंडित ब्रजनाथ से भी शिक्षा प्राप्त की। छोटी-सी आयु में ही आपने पंजाबी, अरबी, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। आपके पिता ने आप को सांसारिक व्यापारों में लगाना चाहा लेकिन आप का मन उसमें नहीं लगा। आप अठारह वर्षों तक अनेक मतों को मानने वाले साधुओं की संगति में रहे। उनसे भारतीय धर्म शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। इसी समय आपने बीस रुपए से भूखे साधुओं को खाना खिला कर सच्चा सौदा किया। आपको गृहस्थ में बांधने के लिए आपके पिता ने आपका विवाह माता सुलक्खनी जी से कर दिया। आप की दो सन्तानें लखमीदास और श्री चन्द थीं।।

सुल्तानपुर में रहते हुए आप को शासन के अत्याचारों, धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों आदि का पता चला तो बहुत व्याकुल हो गए। आप वेई नदी में प्रवेश कर के तीन दिन तक आलोप रहे। जब आप प्रकट हुए तो आप की वाणी ने उच्चारण किया ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान।’

श्री गुरु नानक देव जी ने सन् 1499 ई० से 1522 ई० तक चार उदासियाँ अर्थात् चार यात्रायें चारों दिशाओं में आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का-मदीना आदि तक की थीं। इन यात्राओं में आपने सद्मार्ग से भटके हुए सभी वर्ग के लोगों को सद्मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। योगियों, सिद्धों, नेताओं, हिंदुओं और मुसलमानों सब को आपने सहज, सरल और मीठी निरंकारी भाषा से सहज धर्म पालन करने का उपदेश दिया।
उस युग के लोग आडंबरों, करामातों, तंत्र-मंत्र, चमत्कारों आदि में बहुत विश्वास रखते थे। आपने भोली-भाली जनता को उपदेश देकर सही मार्ग दिखाया।

श्री गुरु नानक देव जी के समय में शासन की दशा बहुत दयनीय थी। शासक जनता का शोषण करते थे। उनके वज़ीर भी कुत्तों के समान जनता का शोषण कर रहे थे। इस कारण आप ने अपनी वाणी में कहा है-

‘राजे सीहं मुकदम कुत्ते जाए जगाइन बैठे सुत्ते।’
आपने ऐसे जुल्मी शासन में दलित लोगों की सहायता की। इसलिए भाई गुरदास ने इसी कारण लिखा है-‘सुनी पुकार दातार प्रभु, गुरु नानक जगि माहिं पठाइया।’
श्री गुरु नानक देव जी एक श्रेष्ठ कवि तथा संगीताचार्य भी थे। ‘आदिग्रंथ’ में आपके 974 पद तथा 2 श्लोक संकलित हैं। आप ने इसमें उन्नीस रागों का प्रयोग किया है। इन पदों में सृष्टि, जीव और ब्रह्म, अकाल पुरुष, नाम सिमरण आदि विषयों पर चर्चा की गई है। इन पदों के अतिरिक्त आपने ‘जपुजी’ की रचना की है जिसमें सिक्ख सिद्धांतों का सार मिलता है। आपकी अन्य रचनाएँ ‘आसा दी वार’, सिद्ध गोसटि, दक्खनी ऊँकार, बारहमाह, पहरे-तिथि, सुचज्जि कुचन्जि, आरती आदि हैं। इनकी वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियाँ, सोहले, छंद आदि के रूप में हैं। इनकी वाणी शैली पक्ष से अनूठी है।

PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 17 श्री गुरु नानक देव जी

श्री गुरु नानक देव जी ने सांसारिक ईर्ष्या, द्वेष, वैर आदि को मिटाने तथा प्रेम, समानता, सरलता आदि अपनाने का संदेश दिया है। इस कारण आप युग निर्माता तथा समाज सुधारक भी माने जाते हैं। वास्तव में आप ने अपने उपदेशों के द्वारा एक ऐसे धर्म का बीज बो दिया जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के रूप में विशाल वृक्ष बन कर प्रसिद्ध हुआ। जीवन के अंतिम वर्ष आपने करतारपुर में सद्-उपदेश देते हुए व्यतीत किए थे। सन् 1539 ई० में आप ज्योति-ज्योत समा गए थे। आप ने कर्मकांडों, बहुदेव पूजन आदि को नकारते हुए एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया था।

PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 16 ठेले पर हिमालय

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 ठेले पर हिमालय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 16 ठेले पर हिमालय

Hindi Guide for Class 10 PSEB ठेले पर हिमालय Textbook Questions and Answers

(क) विषय-बोध

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
लेखक कौसानी क्यों गये थे?
उत्तर:
लेखक हिमालय पर जमी हुई बर्फ की शोभा को बहुत निकट से देखने के लिए गये थे।

प्रश्न 2.
बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली किस नदी का ज़िक्र किया है?
उत्तर:
बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली कोसी नदी का ज़िक्र किया है।

PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 16 ठेले पर हिमालय

प्रश्न 3.
कौसानी कहाँ बसा हुआ है?
उत्तर:
नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से डरावने मोड़ों को पार करने के बाद कौसानी बसा हुआ है।

प्रश्न 4.
लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट किसके दर्शन से छूमंतर हो गई?
उत्तर:
लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट हिम दर्शन से छूमंतर हो गई।

प्रश्न 5.
लेखक और उनके मित्र कहां ठहरे थे?
उत्तर:
लेखक और उनके मित्र डाक बंगले में ठहरे थे।

प्रश्न 6.
दूसरे दिन घाटी से उतर कर लेखक और उनके मित्र कहां पहुंचे?
उत्तर:
दूसरे दिन घाटी से उतर कर लेखक और उनके मित्र बैजनाथ पहुंचे।

प्रश्न 7.
बैजनाथ में कौन-सी नदी बहती है?
उत्तर:
बैजनाथ में गोमती नदी बहती है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
लेखक को ऐसा क्यों लगा जैसे वे ठगे गये हैं?
उत्तर:
लेखक को ऐसा इसलिए लगा कि जैसे वे सुंदरता से भरे हुए लोक से किसी दूसरे ही लोक में चले आए थे। लेखक कौसानी की कत्यूर की घाटी के अपार सौंदर्य को देखकर स्तब्ध रह गया था। यहां हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरु की शिलाएं, काटकर बने हुए लाल रास्ते, किनारे सफेद पत्थर की पंक्ति, बेलों की लड़ियों-सी नदियां असीम सौंदर्य से परिपूर्ण थीं। यहां का सौंदर्य अति सुंदर, मोहक, सुकुमार और निष्कलंक था।

प्रश्न 2.
सबसे पहले बर्फ दिखाई देने का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
उत्तर:
लेखक को बर्फ बादलों के टुकड़े जैसी लगी थी जिसमें सफ़ेद, रूपहला और हलका नीला रंग शोभा दे रहा था। उसे ऐसा लगा जैसे घाटी के पार हिमालय पर्वत को बर्फ ने ढाँप रखा हो। उसे ऐसे लग रहा था जैसे कोई बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झांक रहा हो।

प्रश्न 3.
खानसामे ने सब मित्रों को खुशकिस्मत क्यों कहा?
उत्तर:
खानसामे ने उन सब मित्रों को खुशकिस्मत कहा क्योंकि उन्हें वहाँ आते ही पहले ही दिन बर्फ दिखाई दे गई थी। उनसे पहले 14 टूरिस्ट वहाँ आकर पूरा हफ्ता भर रहे पर उन्हें बादलों के कारण बर्फ दिखाई नहीं दी थी।

प्रश्न 4.
सूरज के डूबने पर सब गुमसुम क्यों हो गए थे?
उत्तर:
सूरज के डूबने पर सब गुमसुम इसलिए हो गए थे क्योंकि सूरज डूबने के साथ ही उनके हिम दर्शन की सारी इच्छाएं और आशाएं धूमिल हो गई थीं। जिस हिमदर्शन की आशा में लेखक अपने मित्रों के साथ बहुत समय से टकटकी लगा कर देख रहे थे। वे उससे वंचित रह गए थे।

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प्रश्न 5.
लेखक ने बैजनाथ पहुँच कर हिमालय से किस रूप में भेंट की?
उत्तर:
लेखक ने बैजनाथ पहुँच कर देखा कि गोमती निरन्तर प्रवाहित हो रही थी। गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही थी। लेखक ने नदी के इस जल में तैरते हुए हिमालय से भेंट की।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छः या सात पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
कोसी से कौसानी तक में लेखक को किन-किन दृश्यों ने आकर्षित किया?
उत्तर:
कोसी से कौसानी तक लेखक को अद्भुत प्राकृतिक दृश्य दिखाई दिए थे। उन्होंने लेखक को मंत्र मुग्ध कर दिया था। सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती कोसी अद्भुत थी। सोमेश्वर की हरी-भरी घाटी के उत्तर में ऊंची पर्वतमाला के शिखर पर कौसानी बसा हुआ था। नीचे पचासों मील चौड़ी घाटी में हरे-भरे कालीनों जैसी सुंदर वनस्पतियां फैली हुई थीं। घाटी के पार हरे खेत, नदियां और वन क्षितिज के नीले कोहरे में छिप रहे थे। बादल के एक टुकड़े के हटते ही पर्वतराज हिमालय दिखायी दिया जो सुंदरता में अद्भुत था। ग्लेशियरों में डूबता सूर्य पिघले हुए केसर जैसा रंग बिखराने लगा था। बर्फ लाल कमल के फूलों जैसी प्रतीत होने लगी थी।

प्रश्न 2.
लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं?
उत्तर:
लेखक अपने मित्रों के साथ जैसे ही सोमेश्वर की घाटी से चला वैसे ही उसे उत्तर दिशा में पर्वत-शिखर पर कौसानी दिखाई दिया। सारी घाटी में अपार सुंदरता बिखरी हुई थी। सारी घाटी रंग-बिरंगी दिखाई दे रही थी। हरेभरे मखमली कालीनों जैसे खेत थे। गेरु के लाल-लाल रास्ते थे और बेलों की लड़ियों जैसी सुंदर नदियां थीं। ऐसे अद्भुत दृश्यों को देखकर ऐसा लगा जैसे वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए थे।

प्रश्न 3.
लेखक को ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक कैसे सूझा?
उत्तर:
लेखक अपने मित्रों के साथ हिम दर्शन के लिए अल्मोड़ा यात्रा पर गए। लेखक अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ एक पान की दुकान पर खड़ा था कि तभी ठेले पर बर्फ की सिले लादे हुए बर्फ वाला आया। उस ठंडी, चिकनी और चमकती बर्फ से भाप उड़ रही थी। लेखक क्षण भर उसे देखता रहा और उठती भाप में खोया-सा रहा। उसे ऐसा अनुभव हो रहा था कि यही बर्फ़ तो हिमालय की शोभा है। इसी शोभा को देखने लेखक मित्रों के साथ कौसानी गया था। इसके बाद वे सोमेश्वर घाटी पहुँचे जो अत्यंत सुंदर एवं मखमली थी। इस घाटी को पार कर लेखक ने बादलों के बीच में पर्वतराज हिमालय के दर्शन किए। इसे बादलों ने ढक रखा था। बादलों की खिड़की से एक मित्र ने पर्वत पर बर्फ को देखा। इस क्षण भर के दर्शन से सबकी खिन्नता, निराशा, थकावट नष्ट हो गई। तत्पश्चात् सभी बादलों के छंटने के बाद हिम दर्शन की प्रतीक्षा में लीन हो गए। किन्तु सूर्य डूबने से धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा। बर्फ पिघलने लगी। इस प्रकार ठेले पर हिमालय शीर्षक सार्थक है।

(ख) भाषा-बोध

I. निम्नलिखित में संधि कीजिए

हिम + आलय ………..
सोम + ईश्वर ….
हर्ष + अतिरेक ………..
वि + आकुल ……
उत्तर:
हिम + आलय = हिमालय
हर्ष + अतिरेक = हर्षातिरेक
सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
वि + आकुल = व्याकुल।

II. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए

अच्छी किस्मत वाला ……………..
चार रास्तों का समूह ……………..
अपने में लीन …………..
जहां कोई न रहता हो ……………
जिसका कोई पार न हो …………….
जिसमें कोई कलंक न हो …………….
उत्तर:
चार रास्तों का समूह = चौराहा
अपने में लीन = आत्मलीन
जहां कोई न रहता हो = निर्जन
जिसका कोई पार न हो = अपार
जिसकी कोई सीमा न हो = असीम
जिसमें कोई कलंक न हो = निष्कलंक
अच्छी किस्मत वाला = भाग्यशाली।

III. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिएपहाड़

सूरज ……………
धरती …………..
कमल ……………
मुंह ……………
नदी …………….
बादल ………….
हाथ …………
उत्तर:
पहाड़ = पर्वत, नग
धरती = धरा, धरणि
मुँह = मुख, आनन
बादल = मेघ, बदरा
सूरज = सूर्य, तरणि
कमल = पंकज, जलज
नदी = तटिनी, निर्झरिणी
हाथ = हस्त, कर।

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(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
यदि हिमालय न होता तो क्या होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हिमालय को पर्वतों का राजा कहा जाता है। पर्वतराज हिमालय भारत वर्ष की आन-बान एवं शान है। यह भारतवर्ष की प्रहरी के समान रक्षा एवं सुरक्षा करता है। यदि हिमालय न होता तो हमारे देश की उत्तर दिशा की शोभा कम हो जाती। उत्तर दिशा से आने वाले ठंडी हवाएँ रुक नहीं पातीं। देश की गंगा, यमुना, आदि महत्त्वपूर्ण नदियां शुष्क हो जातीं। अनेक अमूल्य उपहार, औषधियां, लकड़ियां, धातुएं एवं खनिज प्राप्त नहीं होती। वातावरण असंतुलित हो जाता।

प्रश्न 2.
पहाड़, बर्फ, नदी, बादल, सीढ़ीनुमा खेत, घुमावदार रास्ते तथा हरियाली आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए अपनी कल्पना से प्रकृति पर पाँच-छः पंक्तियां लिखें।
उत्तर:

  1. प्रकृति हमारी माँ है।
  2. प्रकृति ने ही हमें सुंदर, आकर्षक पहाड़ दिए हैं।
  3. प्रकृति ने ही कल-कल करती नदियां प्रदान की हैं जो अपने निर्मल स्वच्छ जल से भारतवर्ष की भूमि को सींचती हैं।
  4. बादल प्रकृति की अनुपम भेंट है जो वर्षा करते हैं और धरा को हरी-भरी और उपजाऊ बनाते हैं।
  5. सीढ़ीनुमा खेतों में फ़सलें उगाई जाती हैं।
  6.  पहाड़ों के घुमावदार रास्ते अत्यन्त दर्शनीय होते हैं।
  7. प्रकृति के आंचल में चारों तरफ अपार हरियाली की शोभा विद्यमान है।

प्रश्न 3.
हम हर पल यात्रा करते हैं, कभी पैरों से तो कभी मन के पंखों पर-इस पर अपने विचार दीजिए।
उत्तर:
मनुष्य एक बुद्धिमान और सामाजिक प्राणी है। वह समाज में अपने कर्तव्यों को पूरा करने हेतु इधर-उधर आता-जाता रहता है। वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अनेक स्थानों पर प्रतिक्षण यात्रा करता है। वह एक कल्पनाशील प्राणी है। वह नई-नई कल्पनाएं करता है। वह किसी एक स्थान पर रहते हुए अपने मन के पँखों पर सवार होकर अनेक स्थानों की यात्राएं करता है। वह घर बैठे-बैठे विदेशों तक की यात्राएं कर लेता है। इतना ही मनुष्य कल्पना के बलबूते विश्व के कोने-कोने में यात्राएं करता रहता है। वह कभी धरा पर तो कभी आकाश में यात्राएं करता है।

(घ) पाठ्येतर सक्रियता

प्रश्न 1.
हिन्दी यात्रा साहित्य के पितामह राहुल सांकृत्यायन जीवन पर्यत दुनिया की सैर करते रहे। उनके यात्रा वृत्तांत लाइब्रेरी से लेकर पढ़िए।
उत्तर:
छात्र अपने शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
छुट्टियों में आप घूमने जाते हो तो उस यात्रा के अनुभव को एक डायरी में लिखिए और कक्षा में बताइए।
उत्तर:
छात्र अपने अनुभवों को डायरी में लिखें।

प्रश्न 3.
यात्रा के दौरान एक कैमरा साथ रखिए तथा प्रकृति के दुर्लभ और अद्भुत चित्रों को अपने कैमरे में कैद कीजिए।
उत्तर:
छात्र भ्रमण स्थल के अद्भुत चित्र एकत्र करें।

प्रश्न 4.
यात्रा के दौरान कैमरे से खींचे गए चित्रों को अपने कम्प्यूटर में अपलोड करना सीखिए।
उत्तर:
छात्र शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

(ङ) ज्ञान-विस्तार

1. अल्मोड़ा-यह उत्तराखंड के कुमाऊँ का एक ज़िला है और नैनीताल से 70 कि०मी० दूर है। यह अति सुंदर है। यह हस्तकला, वन्यजीवन और खानपान के लिए पर्यटकों में अत्यंत प्रसिद्ध है।

2. कोसी- कोसी’ एक नदी का नाम है। यह अल्मोड़ा और फिर कौसानी जाते समय साथ-साथ बहती हुई दिखाई देती है। यह नदी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के पट्टी बोरारू पल्ला के प्राकृतिक झरनों से निकल कर घुमावदार रास्तों से आगे बढ़ती है। इसके प्राकृतिक दृश्य वास्तव में ही अद्भुत हैं। यह बहती हुई सोमेश्वर की तरफ आगे बढ़ती है और वहाँ से अल्मोड़ा की तरफ दक्षिण-पूर्व की राह से पहुँचती है। रामनगर के निकट पहुँच कर यह नदी अपना अस्तित्व खो देती है।

3. कौसानी-यह पर्वतीय नगर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 53 कि०मी० उत्तर में बसा हुआ अद्भुत रूप से सुंदर नगर है। यह बागेश्वर जिले में है जहाँ से हिमालय की सुंदरता भव्य रूप से दिखाई देते है। यहां से बर्फ से ढके नंदा देवी पर्वत की चोटी अतीव सुंदर दिखाई देती है। कौसानी सुंदरता के कारण भारत का स्विटज़रलैंड नाम से प्रसिद्ध है। इस का अस्तित्व कोसी और गोमती के बीच में ही है।

4. गोमती-उत्तर भारत की इस नदी का आरंभ पीलीभीत जिले में माधाटांडा के निकट से होता है। उत्तर प्रदेश में यह लगभग 900 कि०मी० लंबी दूरी तक बहती है। इसका अस्तित्व वाराणसी के निकट सैदपुर के पास गंगा नदी में समाप्त हो जाता है।

5. हिमनद/ग्लेशियर (हिमानी)-हमारी धरती पर लगातार गतिशील रहने वाले बर्फ के बड़े-बड़े पिंडों को हिमनद, हिमानी या ग्लेशियर कहते हैं। प्रायः पर्वत के ऊपर एक हिमखंड होता है और उसके पिघलने से जल नीचे बहता है। हिमालय पर्वत पर लगभग 3350 वर्ग किलोमीटर में हज़ारों हिमनद हैं।

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6. रानीखेत-उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रानीखेत आता है जो भारतवर्ष का प्रमुख पहाड़ी पर्यटन स्थल है। यहां देवदार और बलूत के अत्यधिक पेड़ हैं जो प्रकृति की शोभा को बढ़ाते हैं। यह काठ-गोदाम रेलवे स्टेशन से 85 कि०मी० की दूरी पर स्थित पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है, जिस कारण पर्यटकों को आने-जाने में कोई कठिनाई नहीं आती।

7. नैनीताल-यह उत्तराखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ नैनी झील की सुंदरता अति अनूठी है। कुमाऊं क्षेत्र की यह झील अपनी सुंदरता से सभी को मोह लेती है। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बसा हुआ यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है जिनमें से प्रमुख नैनी झील है, इसी कारण इन नगर का नाम ‘नैनीताल’ है।

8. बैजनाथ-यह नगर अल्मोड़ा जिले के उत्तराखंड में स्थित गोमती नदी के तट पर बसा हुआ है। इसमें गोमती और गंगा नदियों की धारा बहती है और इनके संगम के किनारे मंदिर समूह है। इस मंदिर समूह के सभी मंदिरों में शिव मंदिर सर्व प्रमुख है। दोनों नदियों का संगम अब एक झील में परिवर्तित हो चुका है।

PSEB 10th Class Hindi Guide ठेले पर हिमालय Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
हिमालय को किस संज्ञा से विभूषित किया जाता है?
उत्तर:
हिमालय को ‘पर्वतराज’ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है।

प्रश्न 2.
लेखक के साथ उनके कौन-कौन मित्र थे?
उत्तर:
लेखक के साथ शुक्ल जी, सेन आदि कुछ मित्र थे।

प्रश्न 3.
लेखक की आँखों से अचानक क्या लुप्त हो गया?
उत्तर:
लेखक की आँखों से अचानक बर्फ़ लुप्त हो गया।

प्रश्न 4.
डाक बंगले के खानसामे ने लेखक और उनके साथियों को क्या बताया?
उत्तर:
डाक बंगले के खानसामे ने बताया कि वे बहुत खुशकिस्मत हैं क्योंकि उन्हें पहले दिन ही बर्फ के दर्शन हो गए अन्यथा पिछले यात्री हफ्ते भर पड़े रहे पर उन्हें दर्शन नहीं हुए।

प्रश्न 5.
गोमती की जलराशि में क्या तैर रही थी?
उत्तर:
गोमती की जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही थी।

प्रश्न 6.
‘नैनीताल’ नाम की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नैनीताल दो शब्दों के मेल से बना है। नैनी + ताल। नैनी का अर्थ है-आँखें और ताल का अर्थ है-झील अर्थात् झील की आँख । तात्पर्य यह है कि नैनीताल को झीलों का शहर कहा जाता है। इसमें नौ बड़ी झीलें हैं। इसलिए इसमें नौ झील होने के कारण भी इसका नाम नैनीताल पड़ा होगा।

प्रश्न 7.
‘हिमदर्शन से सारी खिन्नता, निराशा और थकावट छू मंतर हो गई’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय है कि हिमालय प्रकृति की अनुपम एवं अनूठी धरोहर है। यह प्रकृति की अनुपम घटा को बिखेरता प्रतीत होता है। इसका सौंदर्य एवं आकर्षण असीम एवं अद्वितीय है। यह अपने में विराट प्राकृतिक सौंदर्य को संजोए हुए है। इसलिए इसे पर्वतराज की संज्ञा दी जाती है। इस अद्भुत सौंदर्य को देखकर मानव मन की सारी खिन्नता, निराशा और थकावट छू मंतर होना स्वाभाविक है। कोई भी थका हारा मनुष्य ऐसे अद्भुत सौंदर्य को देखते ही खुश हो जाता है। उसकी निराशा आशा में बदल जाती है।

एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पान की दुकान पर खड़े हुए लेखक को क्या दिखाई दिया?
उत्तर:
एक ठेले पर बरफ लादे हुए बरफ वाले को लेखक ने देखा।

प्रश्न 2.
अलमोड़ा वासी मित्र ने ठेले पर लदी बरफ को देखकर लेखक से क्या कहा?
उत्तर:
उसने कहा कि यही बरफ तो हिमालय की शोभा है।

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प्रश्न 3.
कोसी से बस चलने पर कौन-सी सुंदर घाटी उन्हें दिखाई दी?
उत्तर:
उन्हें सोमेश्वर की सुंदर घाटी दिखाई दी।

प्रश्न 4.
कौसानी अड्डे पर उतर कर लेखक को क्यों लगा कि वे तो ठगे गए?
उत्तर:
क्योंकि वहाँ बरफ का कहीं भी कोई नामो-निशान तक नहीं था।

बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
लेखक मित्रों के साथ कौसानी क्या देखने के लिए गया था?
(क) मंदिर
(ख) प्राकृतिक सौंदर्य
(ग) बरफ
(घ) जन-जीवन।
उत्तर:
(ग) बरफ

प्रश्न 2.
लेखक ने किसे रंग-बिरंगी घाटी कहा है?
(क) कुत्यूर
(ख) सोमेश्वर
(ग) किन्नौर
(घ) कोसी।
उत्तर:
(क) कुत्यूर

प्रश्न 3.
डाक बंगले में किसने उन्हें खुशकिस्मत बताया?
(क) मैनेजर
(ख) मैडम
(ग) खानसामे
(घ) चौकीदार।
उत्तर:
(ग) खानसामे

एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के

प्रश्न 1.
क्या देखकर लेखक हर्षातिरेक से चीख उठा था? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
बरफ

प्रश्न 2.
घाटियाँ गहरी पीली हो गईं। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
बरफ कमल के सफेद फूलों में बदलने लगी। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 4.
हिमालय की शीतलता माथे को छू नहीं रही है। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 5.
छोटा-सा बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 6.
कहीं-कहीं ……. निर्जन………. के जंगलों से गुज़रती थी।
उत्तर:
सड़क, चीड़

प्रश्न 7.
बाल स्वभाव वाला ……… बादलों की ……… से झाँक रहा है।
उत्तर:
शिखर, खिड़की

प्रश्न 8.
आज भी ………………. याद आती है तो मन ………….. उठता है।
उत्तर:
उसकी, पिरा।

PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 16 ठेले पर हिमालय

ठेले पर हिमालय कठिन शब्दों के अर्थ

यकीन = विश्वास। तत्काल = उसी समय। कष्टप्रद = कष्टदायी, दुख देने वाला। कुरुप = बुरा, असुंदर। विस्मय = हैरानी। सुडौल = मज़बूत। शिखर = चोटी। अंचल = आँचल। अकस्मात् = अचानक। सुकुमार = कोमल। निष्कलंक = बिना कलंक, बेदाग। कतार = पंक्ति। निगाह = दृष्टि। विस्मय = हैरान। अटल = स्थिर। बेसाख्ता = हार्दिकता से। नगाधिराज = पर्वतों का राजा। ढाँपना = ढंकना। ढाल = उतार। हर्षातिरेक = बहुत ज्यादा खुशी। खिन्नता = उदासी, परेशानी। छूमंतर = खत्म हो गई। अनाव्रत = खुली। हिम = बर्फ। शीतलता = ठंडक। आत्मलीन = स्वयं में लीन। जलराशि = जलकण। स्मृतियाँ = यादें। तत्काल = तुरंत। आसार = चिह्न। संवेदन = अनुभूति। पिराना = पीड़ा होना।

ठेले पर हिमालय Summary

ठेले पर हिमालय लेखक परिचय

डॉ० धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी-साहित्य के प्रमुख साहित्यकार थे। उनका जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1926 ई० में इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा पीएच० डी० की उपाधियां प्राप्त की थीं। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी-प्राध्यापक भी रहे। वे साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान सम्पादक भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने सन् 1972 में उन्हें पदम श्री से सुशोभित किया।

रचनाएँ-डॉ० धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। उन्होंने गद्य एवं पद्य दोनों क्षेत्रों में अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है-
कहानी संग्रह-स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, मुर्दो का गाँव, बंद गली का आखिरी मकान, सांस की कलम से।
काव्य रचनाएं-सात गीत वर्ष, कनु प्रिया, ठंडा लोहा, सपना अभी भी। उपन्यास-सूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, गुनाहों का देवता, प्रारंभ व समापन। निबंध-संग्रह-कहानी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय, पश्यंती। काव्य-नाटक-अंधायुग। आलोचना-प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य। विशेषताएँ-धर्मवीर भारती जी के काव्य में दार्शनिक तत्व की प्रधानता है। निबंधों एवं कथा-साहित्य में उन्होंने सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण किया है।
भाषा-धर्मवीर भारती जी की भाषा प्राय: सरल एवं सहज है। उनके साहित्यिक निबंधों की भाषा का स्तर स्वयं ही ऊँचा उठ गया है। अपने वर्णनात्मक निबंधों में उन्होंने तत्सम शब्दों तथा छोटे-छोटे वाक्यों को प्रमुखता दी है।

ठेले पर हिमालय पाठ का सार

‘ठेले पर हिमालय’ डॉ० धर्मवीर भारती का प्रमुख यात्रा वृत्तांत है। इस में लेखक ने पर्वतराज, हिम सम्राट हिमालय का सजीव एवं अनूठा चित्रण किया है। लेखक अपने शब्दों के माध्यम से पाठकों को उस हिमालय पर्वत के समीप ले जाता है जहां बादल ऊपर से नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए शिखरों की हिम रेखाएं अनावृत हो रही थीं। इसमें लेखक ने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण करते हुए पर्वतीय स्थानों के प्रति आकर्षण जगाने का प्रयास किया है। लेखक अपने मित्रों शुक्ल, सेन आदि के साथ अलमोड़ा की यात्रा पर गए। वे वहाँ से केवल बर्फ़ को निकट से देखने के लिए ही कौसानी गए थे। वे नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी पहुँचे। यह रास्ता सूखा और कुरूप था किंतु कोसी से आगे का दृश्य बिल्कुल अलग था।

सुडौल पत्थरों पर कलकल करती हुई कोसी, किनारे पर छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत यहाँ सोमेश्वर की घाटी बहुत सुंदर थी। इस घाटी के उत्तर की पर्वतमाला ऊँची है। इसके शिखर पर कौसानी बसा हुआ है। कौसानी के बस अड्डे पर जब लेखक बस से उतरा तो अपार सौन्दर्य को देखकर पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। पर्वतमाला ने अपने आंचल में कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी थी। चारों तरफ अद्भुत सौंदर्य महक रहा था। इसी घाटी के पार पर्वतराज हिमालय दिखाई पड़ा, जिसे बादलों ने ढक रखा था। शुक्ल, सेन आदि सभी ने इस दृश्य को देखा पर अचानक वह लुप्त हो गया। इस हिम दर्शन ने लेखक तथा उसके मित्रों पर एक जादू-सा कर दिया। इसे देख सारी खिन्नता, निराशा और थकावट छू मंतर हो गई। तत्पश्चात् सभी हिम-दर्शन कर इंतजार करने लगे किन्तु डाक बंगले के खानसामे ने बताया कि वे खुशकिस्मत है जो उन्हें अचानक ही हिमालय के दर्शन हो गए थे।

इससे पहले चौदह पर्यटक हफ्ते भर इंतज़ार करते रहे थे लेकिन उन्हें हिमालय के दर्शन नहीं हुए थे। लेखक अपने मित्रों के साथ बरामदे में बैठकर अपलक हिमालय के दर्शनों का इंतज़ार करता रहा। सूर्य डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशिमरों में पिघला केसर बहने लगा। बर्फ कमल के लाल फूलों में बदल गई तथा घाटियां गहरी पीली हो गईं। अंधेरा होने लगा तो लेखक अपने मित्रों के साथ उठ गया। वे सभी मायूस होकर आत्मलीन हो गए। दूसरे दिन वे घाटी में उतरकर मीलों दूर बैजनाथ पहुँच गए। वहाँ गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैरती हुई दिखाई दे रही थी।

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions) Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

Complete the following sentences by putting sentence connectors in the blank spaces.

Note : Answer Key has been given at the end of the exercises.

1. (1) ………….. I was young, I used to travel a lot. (2) …………… now I am old (3) …………… it is difficult for me to show as much zeal (4) ……………. I had in my youth. (5) ……………. I can still do many things, there are certain things (6) ……………. are beyond my reach now.
Answer:
1. When 2. But 3. and 4. as 5. While 6. which.

2. (1) …………… did I reach the station (2) …………… the train left. I do not know (3) ……………. it happened with me. (4) .. ……….. I narrated the incident to my mother, she was disappointed to hear it. (5) ………….. I was coming back to my house, I met a stranger (6) ……………. was carrying a basket with him. I tried to talk to him (7) ……………. he gave no response.
Answer:
1. No sooner 2. than. 3. how 4. When 5 While 6. who 7. hut.

3. Music is said to be food for the soul. (1) …………… does it give relaxation to our mind, (2) ……………. helps us to forget our sorrows and worries of day-to-day life. There is no aspect of life (3) …………… we do not find it. There is hardly any party or function (4) …………… music is not played. (5) …………… we must enjoy it to forget our pains for some time.
Answer:
1. Not only 2. but also 3. where 4. where 5. But.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

4. Education has become a part of everybody’s life. There is not even a single field (1) ……………. education has not left its mark. The day is not far (2) ……. everybody would like to drink deep in its ocean. (3) ……………. the need of the hour is to spread education in every nook and corner (4) …………….. nobody is left without its mark.
Answer:
1. where 2. when 3. But 4. till.

5. One day (1) …………. I went to my friend’s house, I was surprised to see a man (2) …………… was wearing nothing. (3) ……………. I asked him the reason, he tried to avoid me, ……….. (4) I did not stop and asked him again. (5) ………….. some time, he told me the reason behind it. (6) …………… he was telling me a sad episode (7) ……………. had happened with him two days (8) ………….started weeping (9) …………… I heard his woeful tale.
Answer:
1. when. 2. who 3. When 4. but 5. After 6. While . 7 which 8. ago before 9. when.

6. The economic condition of a country depends on the resources available in the country (1) ……………. on its population. (2) ……………. the population increases, resources start decreasing. (3) …………… there is a need to control population (4) ……………. we want our country to move towards the path of development.
Answer:
1. as well as 2.When 3. So 4 . if.

7. I was pained to hear about your problem, (1) ……………. you should not worry (2) ……………. I am always there to help you. (3) ………… my means are limited, I will try to help you (4) …………. much (5) ………… I can. (6) ………….. you want to progress in life, you should have faith in your capabilities (7) ……… aspirations.
Answer:
1. but 2. because 3. Although 4. as 5. as 6. If 7. and.

8. (1) ……………. my knowledge is concerned, I can only say (2) ………….. nowadays, it has become difficult to make both ends meet. I was seven years old (3) ………….. my mother died. I tried to put a lot of efforts (4) ……………. I might get (5) ……………. I desired in my life. My sister (6) …………. I started running a shop (7) …………… was situated near our house. My sister (8) I managed the shop. (9) …………… we had limited means, we were honest.
Answer:
1. As far as 2. that 3. when 4. so that 5. what 6. and 7. which 8. and 9. Though

9. (1) ……………. I was nine years old, my parents told me (2) …………… We originally belonged to Kashmir. (3) ………… I grew up, I began to watch TV (4) I learnt about the happenings in Kashmir. (5) ……………. I saw some beautiful shots of the heavenly valley on the TV (6) ………….. in movies, I would remember Kashmir.
Answer:
1. When 2. that 3. As 4. So that 5. Whenever 6. Or.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

10. My friend had been suffering from cholera (1) …………. Monday. Today he reached his house, his family had left for the hospital. I hurriedly rushed towards the hospital (4) …………. he had been admitted. The doctor came (5) ……………… assured us about his early recovery. We heaved a sigh of relief (6) …………….. we heard the news of his recovery.
Answer:
1. since 2. because 3. When 4. where 5. and 6. when.

11. (1) ……….. I feel lonely, I prefer to enjoy the beauties of nature. Wordsworth was a famous poet (2) …………… wrote poems on the beautiful objects of nature. Some of his poems show the zeal (3) ………… he had in his veins. (4) ……………. I was at school, my English teacher used to tell me about some of Wordsworth’s poems (5) ……….. were worth reading.
Answer:
1. When 2. who 3. that 4. When 5. that.

12. (1) ……………. you do not get success despite your repeated efforts, you should not lose heart. Only those people get success (2) …………… have an optimistic approach towards life. (3) ……………. you want to win the lost game, you should not feel exhausted. You can go up in life (4) ……….. you persist in your efforts.
Answer:
1. If 2. who 3. If 4. if.

13. (1) ………….. did we step out of the house (2) ………….. the rain started. I love rainy season (3) ……………. in that season, my grandmother prepares lovely dishes for the whole family. I enjoy sitting alone (4) ………….. it is raining. (5) ………….. somebody comes to my house on a rainy day, I feel disturbed.
Answer:
1. No sooner 2. than 3. because 4. while 5. If.

14. The incident (1) …………… changed me was the death of my grandfather. (2) …………… he ate was flushed out of his system immediately. One morning, (3) …………… reciting his prayers, he passed away. I can never forget the day on (4) …………… my grandfather died. (5) …………… I was a child, he used to tell me stories (6) ……………. going to bed. (7) …………… today, I have not come out of the grief (8) ………….. engulfed me six years back.
Answer:
1. that 2. Whatever 3. while 4. which 5. When 6. before 7. Even 8. that.

15. (1) ……………. a certain Minister grew old, his hair fell off (2) …………… he became bald. (3) ……………. he was vain, he wore a wig of someone else’s hair (4) ……………. went out. (5) ……………. he was rushing out of Parliament one day, there was a gust of wind. His wig fell off (6) …………… exposed his bald pate. (7) ……………. everyone saw this, they started laughing at him.
Answer:
1. When 2. and 3. As 4. and 5. While 6. and 7. When.

Combine the following sentences, using the sentence connectors given in brackets.
Note : Answer Key has been given at the end of the exercises.

(A)

1. It was hot. We did not go out. (so)
2. He is working hard. He wants to get first division. (because)
3. He is rich. He is a miser. (but)
4. Mohan did not steal the book. Sohan did not steal the book. (neither-nor)
5. She is poor. She is honest. (but)
6. He does not take tea. He does not take coffee. (neither-nor)
7. The train left the station. The guard waved the green flag. (when)
8. He does not eat meat. He does not eat eggs. (neither-nor)
9. It was raining heavily. I went to my office. (when)
10. She is ill. She does not take medicine. (though-yet)
Answer:
1. It was hot, so we did not go out.
2. He is working hard because he wants to get first division.
3. He is rich, but he is a miser.
4. Neither Mohan nor Sohan stole the book
5. She is poor, but she is honest.
6. He takes neither tea nor coffee.
7. The train left the station when the guard waved the green flag.
8. He eats neither meat nor eggs.
9. It was raining heavily when I went to my office.
10. Though she is ill, yet she does not take medicine.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

(B)

1. The woman gave the beggar money. She also gave him food. (not only-but also)
2. I have not written to him. I have not spoken to him. (neither-nor)
3. He is not a rogue. He is not a fool. (neither-nor)
4. Our guns opened fire. The enemy fled. (as soon as)
5. Mohan is not going to Chandigarh. He is not going to Jalandhar. (neither-nor)
6. Anoop is going out for a walk. Saroop is going out for a walk. (both)
7. He brought a book for me. He brought a pen for me. (as well as)
8. I was placed on the merit list. I was not given a scholarship. (although-yet)
9. He worked hard. He failed. (though-yet)
10. He was tired. He could hardly stand. (so-that)
Answer:
1. The woman gave the beggar not only money, but also food.
2. I have neither written to him nor spoken to him.
3. He is neither a rogue nor a fool.
4. The enemy fled as soon as our guns opened fire.
5. Mohan is going neither to Chandigarh nor to Jalandhar.
6. Both Anoop and Saroop are going out for a walk.
7. He brought a book as well as a pen for me.
8. Although I was placed on the merit list, yet I was not given a scholarship.
9. Though he worked hard, yet he failed.
10. He was so tired that he could hardly stand.

(C)

1. There is life. There is hope. (Combine the two sentences)
2. I cannot stand. I cannot sit. (neither-nor)
3. He was taken to task. He was given a sound beating. (not only-but also)
4. I had reached home. It started raining. (hardly-when)
5. He must be mad. He must be drunk. (either-or)
6. I had reached home. It began to rain heavily. (scarcely-when)
7. Ravi did not come to her help. Shashi did not come to her help. (neither-nor)
8. Walk very carefully. You should not slip. (Join the sentences)
9. Make hay. The sun shines. (while)
10. He was sick. He did not go to school. (because)
Answer:
1. So long as there is life, there is hope.
2. I can neither stand nor sit.
3. He was not only taken to task, but was also given a sound beating.
4. I had hardly reached home when it started raining.
5. He must be either mad or drunk.
6. I had scarcely reached home when it began to rain heavily.
7. Neither Ravi nor Shashi came to her help.
8. Walk very carefully lest you should slip.
9. Make hay while the sun shines.
10. He did not go to school because he was sick.

(D)

1. Ram is good. Sham is equally good. (as-as)
2. I was late for school. I missed the first bus.(because)
3. He has stolen my book. His brother has stolen my book. (either-or)
4. The teacher did not punish him. The teacher did not fine him. (neither-nor)
5. I can do with a pen. I can also do with a pencil.(either-or)
6. Rakesh is not a good actor. He is not a good writer. (neither-nor)
7. It was quite cold. She did not light a fire. (although-yet)
8. Radha is intelligent. She is hard-working. (both-and)
9. She is extremely happy today. She has been engaged to a boy of her choice. (because)
10. The thief was caught red-handed. He was stealing a jewellery box. (while)
Answer:
1. Ram is as good as Sham.
2. I was late for school because I missed the first bus.
3. Either he or his brother has stolen my book.
4. The teacher neither. punished nor fined him.
5. I can do either with a pen or a pencil.
6. Rakesh is neither a good actor nor a good writer.
7. Although it was quite cold, yet she did not light a fire.
8. Radha is both intelligent and hard-working.
9. She is extremely happy today because she has been engaged to a boy of her choice.
10. The thief was caught red-handed while he was stealing a jewellery box.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

(E)

1. He is very weak. He cannot stand. (so-that)
2. The cat is away. The mice will play. (when)
3. Ram is not trustworthy. Sham is not trustworthy. (neither-nor)
4. I saw the lion. I ran away. (as soon as)
5. You must work hard. You will fail. (or)
6. Ram was singing. Ram was also dancing. (while)
7. Men may come. Men may go. I go on for ever. (and-but)
8. I saw a beggar. I was going to school. (when)
9. We left home. The rain started. (as soon as)
10. You will have to leave this house. You may wish it or not. (whether)
Answer:
1. He is so weak that he cannot stand.
2. When the cat is away, the mice will play.
3. Neither Ram nor Sham is trustworthy.
4. As soon as I saw the lion, I ran away.
5. You must work hard or you will fail.
6. Ram was dancing while he was singing.
7. Men may come and men may go but I go. on for ever.
8. I saw a beggar when I was going to school.
9. As soon as we left home, the rain started.
10. You will have to leave this house whether you wish it or not.

(F)

1. Reena came to my house. Teena came to my house. (as well as)
2. He worked hard. He fell ill. (so-that)
3. She is proud. She is mean. (not only-but also)
4. She spoke loudly. She spoke clearly. (and)
5. He is sad. He is hopeful. (but)
6. I don’t like coffee. I don’t like tea. (neither-nor)
7. You must leave at once. You may like or not. (whether)
8. Let us go to bed. It is late now. (as)
9. He called on me. I was at home. (when)
10. We stepped out. It began to rain. (hardly-when)
Answer:
1. Reena as well as Teena came to my house.
2. He worked so hard that he fell ill.
3. She is not only proud, but also mean.
4. She spoke loudly and clearly.
5. He is sad but hopeful.
6. I like neither coffee nor tea.
7. You must leave at once whether you like or not.
8. Let us go to bed as it is late now.
9. He called on me when I was at home.
10. Hardly had we stepped out when it began to rain.

(G)

1. Run fast. You will miss the train. (lest-should)
2. He failed. I don’t know the reason. (why)
3. We didn’t take a tonga. We didn’t take a taxi. (neither-nor)
4. The step taken was right. The step taken was wrong. (either-or)
5. A car struck against his scooter. No one was injured. (yet)
6. She wishes it. I shall help you. (since)
7. The patient had died. The doctor came. (before)
8. He is at his office. I shall call on him. (if)
9. Mohan has not come. He has sent no message. (neither-nor)
10. Mumbai is a famous city. It is a big centre of film industry. (which)
Answer:
1. Run fast lest you should miss the train.
2. I don’t know why he failed.
3. We took neither a tonga nor a taxi.
4. The step taken was either right or wrong.
5. A car struck against his scooter, yet no one was injured.
6. Since she wishes it, I shall help you.
7. The patient had died before the doctor came.
8. I shall call on him if he is at his office.
9. Mohan has neither come nor sent any message.
10. Mumbai is a famous city which is a big centre of film industry.

(H)

1. The thief saw the owner of the house. He ran away. (as soon as)
2. Ashok was invited to the party. Meena was invited to the party. (as well as)
3. Mary didn’t come to the church yesterday. John didn’t come to the church yesterday (neither-nor)
4. He didn’t work hard. He failed. (because)
5. Mohan is honest. He is sincere. (both-and)
6. I bought a saree. I bought a suit. (as well as)
7. The children saw the wolf. They ran away. (as soon as)
8. He is very lazy. He can’t get along with me. (so-that)
9. The sun rose. The fog disappeared. (as soon as)
10. Rajan is kind. He is honest. (both-and)
Answer:
1. The thief ran away as soon as he saw the owner of the house.
2. Ashok as well as Meena was invited to the party.
3. Neither Mary nor John came to the church yesterday.
4. He failed because he didn’t work hard.
5. Mohan is both honest and sincere.
6. I bought a saree as well as a suit.
7. As soon as the children saw the wolf, they ran away.
8. He is so lazy that he can’t get along with me.
9. The fog disappeared as soon as the sun rose.
10. Rajan is both kind and honest.

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

Conjunction

दो शब्दों, वाक्यांशों (Phrases) अथवा वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द को Conjunction कहा जाता है; जैसे
1. The teacher taught Mohan and Abdul.
2. I want some pen or pencil.
3. He will take tea, but I will take milk.
4. I will try to come as soon as I can.

The Use Of Some Conjunctions

(1) No sooner, hardly, scarcely.
No sooner के बाद सदा than का प्रयोग किया जाता है। Scarcely और Hardly के बाद when या before में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है।
1. No sooner did we reach the station than the train started.
2. She had hardly ! scarcely heard the news when / before she began to weep.

(2) Unless, if.
Unless के साथ not का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि unless = if not. If के साथ (यदि आवश्यकता हो तो) not का प्रयोग किया जा सकता है।
1. Unless you work very hard, you can’t pass.
2. If you do not work very hard, you can’t pass.

(3) Until (till), as long as (so long as), while.
Until (till) = उस समय तक जबकि = up to the time when (ये शब्द point of time की ओर संकेत करते हैं।) As long as = जितने समय तक So long as, while = during the time that (ये शब्द period of time की ओर संकेत करते हैं।)
यदि till / until का सम्बन्ध पहले वाक्य से हो तो प्रायः until का प्रयोग किया जाता है।
यदि till / until का सम्बन्ध पिछले वाक्य से हो तो प्रायः till का प्रयोग किया जाता है।
किन्तु till / until के प्रयोग में कोई विशेष अन्तर नहीं समझा जाता है।

1. Go straight on until you come to the post office and then turn left.
2. Until you told me I had heard nothing of it.
3. She won’t go away till you promise to help her.
4. Let us wait till the rain stops.
5. While there is life, there is hope.
As long as there is life, there is hope.
So long as there is life, there is hope.

(4) Because, so that (in order that).
Because का प्रयोग उस समय किया जाता है जब किसी बात का कारण (reason) बताना हो।
In order that अथवा so that का प्रयोग उस समय किया जाता है जब किसी उद्देश्य (Purpose) का वर्णन करना हो।
1. He failed because he did not work hard.
2. He worked hard so that he might win a scholarship.

(5) Since, before.
जब Since का प्रयोग एक Conjunction के रूप में किया जाए तो :
(i) इससे पूर्व आने वाले वाक्य में कभी भी Past Indefinite Tense का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
(ii) इसके बाद आने वाले वाक्य में सदा ही Past Indefinite Tense का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 10th Class English Grammar Sentence Connectors (Conjunctions)

1. Two months have passed since he came here.
2. It is two weeks since my examinations were over.

Before, if, until, unless, while, when, आदि समय – वाचक योजंका (Temporal Conjunctions) के बाद कभी भी Future Tense का प्रयोग नहीं किया जाता है यद्यपि मुख्य वाक्य (Principal Clause) Future Tense मे ही हो|

1. I will help him if he comes to me.
2. The crops will die before the rains fall.
3. I shall not let you go until you pay back my money.
4. I shall give him your message when he comes here.

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar anuchchhed lekhan अनुच्छेद लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन

1. एक आदर्श विद्यार्थी के गुण
संकेत बिंदु : (i) प्रातः जल्दी उठना व नित्य व्यायाम करना (ii) समय पर स्कूल जाना (iii) मन लगाकर पढ़ना (iv) सहपाठियों से मधुर संबंध (v) अनुशासनप्रिय।

एक आदर्श विद्यार्थी के गुण
आदर्श विद्यार्थी अपने सम्मुख सदा एक लक्ष्य रखता है और अपना लक्ष्य स्थिर रखने वाले विद्यार्थी सदा उसके अनुसार अपने जीवन क्रम को दिशा देने का प्रयत्न करता है। निष्ठापूर्वक उस लक्ष्य के अनुसार कार्य करता है। आदर्श विद्यार्थी को समय और अवसर के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे सुबह-सवेरे जल्दी उठकर सैर करनी चाहिए। उसे प्रतिदिन व्यायाम भी करना चाहिए। व्यायाम उसके शरीर को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ उसकी बुद्धि में चिंतन और मनन की क्षमता का विकास करता है। एक आदर्श विद्यार्थी के गुणों में उसका समय पर स्कूल जाना भी आता है। यह आदत उसे समय का महत्त्व समझाती है। समय पर अपने कार्य और जीवन को आगे बढ़ाने का काम करती है।

कक्षा में साथ में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं मधुर संबंध बनाए रखने वाला विद्यार्थी एक आदर्श विद्यार्थी कहलाता है। उसके विचार तथा व्यवहार दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने का काम करते हैं। एक आदर्श विद्यार्थी को कौवे के समान प्रयत्नशील, बगुले के समान ध्यानरत, कुत्ते के समान कम और सावधान निद्रा लेने वाला तथा विद्या की शरण लेने वाला होना चाहिए। उसे अपनी विद्या प्राप्ति के लिए खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए। विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। एक अच्छे और गुणी विद्यार्थी के लिए उसका शान्तिपूर्ण अनुशासित होना अति आवश्यक है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

2. जीवन में परिश्रम का महत्त्व
संकेत बिंदु : (i) सफलता का मूल मंत्र : परिश्रम (ii) आलस्य के कारण असफलता व निराशा (iii) परिश्रम से भाग्य का बदलना (iv) पुरुषार्थ से लक्ष्य प्राप्ति।

जीवन में परिश्रम का महत्त्व
जीवन नाम ही परिश्रम का है। इस संसार में जितने भी प्राणी हैं। उन सभी को अपना जीवनयापन करने के लिए परिश्रम करना ही पड़ता है। कर्म अथवा परिश्रम के बिना मानव जीवन की गाड़ी चल ही नहीं सकती है। सच है कि संसार में मनुष्य ने आज तक जितनी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। वह सब उनके परिश्रम का ही परिणाम है। परिश्रम का परम शत्रु है आलस्य। जिस व्यक्ति में आलस्य या सुस्ती की भावना घर कर जाती है, उसका विकास रुक जाता है। वह उन्नति के पथ पर पिछड़ जाता है। आलस्य के कारण उसे असफलता तथा निराशा का मुँह देखना पड़ता है।

परिश्रम ही छोटे से बड़े बनने का साधन है। परिश्रम करके व्यक्ति उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। परिश्रम व्यक्ति जीवन और उसके भाग्य को बदलने का काम करता है। परिश्रमी व्यक्ति ही स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान और सेवा-भाव से युक्त होता है। वह अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। इसी कारण वह अपने परिवार और देश की उन्नति में सहयोग देता है। पुरुषार्थ का रहस्य ही है कि मिट्टी सोना उगलती है।

3. सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने का मेरा पहला अनुभव
संकेत बिंदु : (i) घर के पास सब्जी मंडी का लगना (ii) सब्जी मंडी से सब्जी लेने जाना (iii) सब्जियाँ व फल खरीदना (iv) सब्जी मंडी का खट्टा-मीठा अनुभव।

सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने का मेरा पहला अनुभव
जीवन में जितनी आवश्यकता काम की है। उससे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस काम का अनुभव प्राप्त करना है। अनुभव कार्य में गति और प्रगति लाता है। अनुभव के आधार पर किया जाने वाला कार्य श्रेष्ठकर होता है। मेरा घर शहर के सैक्टर आठ क्षेत्र में है। हमारे घर के पास ही सब्जी मंडी लगती है। आस-पास के किसान सब्जी बेचने के लिए यहाँ आते हैं। बड़ी मंडी से भी कुछ छोटे दुकानदार सब्जी बेचने के लिए यहाँ आते हैं। सब्जी लेने और बेचने वालों का कोलाहल देखते ही बनता है। प्रायः वहाँ से सब्जी खरीदने के लिए मंडी मम्मी या बड़ी बहन ही जाते हैं लेकिन गत सप्ताह मैं सब्जी खरीदने वहाँ गया था। वह मेरे जीवन का अलग ही अनुभव था। सब्जी मंडी लोगों की भीड़ से भरी हुई थी।

रेहड़ियों की भीड़ के अतिरिक्त तरह-तरह की सब्जियां बेचने वाले ईंटों के बने फर्श पर बैठ कर अपना काम कर रहे थे। बड़े-बड़े टोकरों और धरती पर बिछाए हुए कपड़ों पर सब्जियों के ढेर लगे हुए थे। लोग दुकानदारों से सब्जियों के मोलभाव कर रहे थे। मैंने भी टमाटर, प्याज, आलू और मटर खरीदने के लिए मोलभाव किया। मैंने स्वयं सब्जियों को चुना और फिर उन्हें तुलवाया। मुझे केले और कीनू भी खरीदने थे। फल अधिकतर रेहड़ियों पर सजे हुए थे। मैंने चार-पाँच रेहड़ियों पर बिकने वाले फलों के दाम पूछे और फिर एक रेहड़ी से फल खरीदे। मुझे यह कार्य करके कुछ अलग प्रकार का संतोष अनुभव हुआ। सब्जियां और फल खरीद कर जब मैं घर पहुंचा तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं कुछ अलग ही काम करके वापस लौटा हूँ।

4. जब मुझे स्कूल के खेल-मैदान से बटुआ मिला
संकेत बिंदु : (i) खेल के मैदान से बटुए का मिलना (ii) बटुए में रुपयों का होना (iii) बटुए को अध्यापक को सौंपना (iv) प्रात:कालीन सभा में ईमानदारी की शाबाशी मिलना (v) मन फूला न समाना।

जब मुझे स्कूल के खेल-मैदान से बटुआ मिला
हमारे विद्यालय में खेल का एक बहुत बड़ा मैदान है। हम सभी आधी छुट्टी में तथा गेम के क्लास में खेलने के लिए खेल के मैदान में जाते हैं। प्रतिदिन की तरह आज भी मैं खेलने के लिए खेल के मैदान में गया। जब मैं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था तो वहीं घास में मुझे एक बटुआ मिला। बटुआ देखने में आकर्षक तथा महंगा लग रहा था। वह भारी भी था। जब बटुए को खोलकर देखा तो उसमें लगभग दो हज़ार रुपये थे। रूपयों को देखकर पलभर के लिए भी मेरा मन विचलित नहीं हुआ। मैंने उसमें पहचान ढूँढ़ने की कोशिश की, ताकि उसे उसके मालिक तक पहुँचाया जा सके।

काफी अथाह परिश्रम के बाद भी जब बटुए से कोई जानकारी नहीं मिली तो तुरंत ही, उस बटुए को मैंने कक्षा अध्यापक को सौंप दिया तथा बटुए के विषय में सारी बातें उन्हें बता दीं। अध्यापक ने मेरी ईमानदारी को देखते हुए अगले दिन प्रात:कालीन सभा में मेरी ईमानदारी का परिचय देते हुए मुझे शाबाशी दी। सभी ने मेरे द्वारा किए कार्य को प्रोत्साहित किया। प्रात:कालीन सभा में सारे स्कूल के सामने शाबाशी और प्रोत्साहन मिलने के कारण मन खूब रोमांचित हो रहा था। दिल में खुशी बढ़ती जा रही थी। मन खुशी से झूम रहा था।

5. परीक्षा से एक घंटा पूर्व
संकेत बिंदु : (i) परीक्षा भवन में एक घंटा पूर्व पहुँचना (ii) परीक्षार्थियों का चिंतित होना (iii) महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा से परेशानी दूर होना (iv) सूचना पट्ट पर परीक्षा में बैठने की योजना का लगना (v) परीक्षा भवन में प्रवेश।

परीक्षा से एक घंटा पूर्व
वैसे तो. प्रत्येक मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से भयभीत होता है। पराक्षी में पास होना आवश्यक है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। इसी घबराहट और डर के कारण परीक्षा से पूर्व का एक घंटा उसके लिए अति महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है। परीक्षा शुरू होने से एक घंटा पहले मैं जब परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए विद्यार्थी परीक्षा में आने वाले प्रश्नों को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे थे। कोई कह रहा था कि उसने सारा पाठ्यक्रम दोहरा लिया है लेकिन कोई प्रश्न घुमा-फिरा कर आ गया तो मुश्किल हो जाएगी। हम कुछ छात्र परीक्षा से पूर्व प्रश्न-पत्र हल करने को लेकर विचार-विमर्श कर रहे थे।

प्रश्नों को हल करने तथा समझने के तरीके एक-दूसरे से सांझा कर रहे थे। एक-दूसरे के विचारों को सुनने के बाद मानसिक तनाव तथा थकान में कमी महसूस हुई। परीक्षा भवन के बाहर विद्यार्थियों का जमघट लगा हुआ था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। परीक्षा भवन का गेट खुला। परीक्षा भवन के बाहर अनुक्रमांक और स्थान देखने के लिए सूचनापट्ट पर सूचनाएं तालिकाओं के रूप में क्रमबद्ध रूप में लगी हुई थीं। सभी विद्यार्थी देखते ही देखते अपना स्थान और अनुक्रमांक सूचना पट्ट में ढूँढ़ने लगे। सूचनापट्ट पर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया।

6. खुशियाँ और उमंग लाते हैं जीवन में त्योहार
संकेत बिंदु : (i) त्योहारों का महत्त्व (ii) विभिन्न त्योहार (iii) उमंग और जोश से भरे त्योहार (iv) सद्भावना, एकता व प्रेम के प्रतीक (v) सभी को त्योहारों का इंतज़ार।

खुशियाँ और उमंग लाते हैं जीवन में त्योहार
भारत त्योहारों का देश कहा जाता है। ये त्योहार अनेक प्रकार के हैं। कुछ त्योहार धार्मिक महत्त्व रखते हैं तो कुछ राष्ट्रीय त्योहारों के रूप में देश-भर में मनाए जाते हैं। हमारे देश के त्योहार चाहे धार्मिक दृष्टि से मनाए जा रहे हैं या नए वर्ष के आगमन के रूप में सभी अपनी विशेषताओं एवं क्षेत्रीय प्रभाव से मुक्त होने के साथ-साथ देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखण्डता को मज़बूती प्रदान करते हैं। ये त्योहार जहाँ जनमानस में उल्लास, उमंग एवं खुशहाली भर देते हैं, वहीं हमारे अंदर देशभक्ति एवं गौरव की भावना के साथ विश्व-बंधुत्व एवं समन्वय की भावना भी बढ़ाते हैं। भारत में विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। जैसे-होली, दीपावली, ईद, दशहरा, वैशाखी, रामनवमी, गुरुपर्व, बसंत पंचमी आदि। ये सभी त्योहार हमें समता और भाईचारे का प्रचार करने पर बल देते हैं। भारतीय त्योहार एक अलग अंदाज में एक अलग तरीके से मनाए जाते हैं।

यह हमें प्रसन्न रहने की प्रेरणा देते हैं। हमारे जीवन में उत्साह, उमंग एवं जोश का संचार करते हैं। ये आशा और उम्मीद को जन्म देने का काम भी करते हैं। त्योहार आपसी प्रेमभाव तथा सोहार्द्र को बढ़ाने का काम करते हैं। ये व्यक्ति में नई जागृति और चेतना पैदा करने का काम करते हैं। ये हमें शिक्षा देते हैं कि हमें कभी भी अत्याचार के सामने नहीं झुकना चाहिए। एक-दूसरे को साथ लेकर चलने तथा एकता के प्रसार पर बल देते हैं। हम सभी को बड़ी ही उत्सुकता के साथ त्योहारों का इतंजार रहता है। ये हमारी एकता एवं अखंडता को बनाए रखने का काम करते हैं।

7. नाटक में अभिनय में मेरा पहला अनुभव
संकेत बिन्दु : (i) स्कूल में नाटक मंचन की तैयारी (ii) स्वयं को नाटक में मुख्य रोल के लिए चुना जाना (ii) नाटक मंचन का अभ्यास (iv) मेकअप को लेकर उत्साह (v) मंचन के बाद आत्म-संतुष्टि व लोगों द्वारा सराहना।

नाटक में अभिनय मेरा पहला अनुभव
अभिनय करना एक कला है। इस कला के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर की भावनाओं एवं अनुभूतियों को अभिनय के माध्यम से प्रकट करता है। हमारे विद्यालय में समय-समय अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। बीते दिनों में स्कूल में ‘कन्या भ्रूण हत्या’ विषय को लेकर एक नाटक के मंचन की तैयारी की जाने लगी। मैंने भी बड़े चाव से इस नाटक में भाग लिया। नाटक के प्रति मेरी उत्सुकता तथा मेरे अभिनय कौशल को देखते हुए अध्यापकों ने मुझे नाटक . में मुख्य रोल के लिए चुन लिया। यह मेरे जीवन का सबसे उत्तम और अच्छा पल था। विद्यालय में हमें नाटक मंचन के अभ्यास के लिए प्रतिदिन आखिरी के तीन पीरियड मिले थे। हम सभी पूरे जोश तथा उत्साह के साथ नाटक मंचन के अभ्यास में लगे रहते थे।

हमारे नाटक और उत्साह की सभी ने सराहना भी की थी। अभिनय करने के लिए किया जाने वाला मेकअप हमारे लिए सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक काम था। हम सभी चरित्रों तथा उनकी आवश्यकतानुसार मेकअप करने में उत्साह दिखा रहे थे। नाटक में अभिनय करने के बाद मुझे आत्म-संतुष्टि का अनुभव हुआ। मैंने स्वयं को नाटक के चरित्र में डूबो दिया था। मेरी इस अभिनय कला की सभी ने सराहना भी की थी।

1. मेरी माँ की ममता

माँ का रिश्ता दुनिया के सब रिश्तेनातों से ऊपर है, इस बात से कौन इनकार कर सकता है। माँ को हमारे शास्त्रों में भगवान् माना गया है। जैसे भगवान् हमारी रक्षा, हमारा पालन-पोषण और हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं वैसे ही माँ भी हमारी रक्षा, पालन-पोषण और स्वयं कष्ट सहकर हमारी सब इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए कहा गया है कि माँ के कदमों में स्वर्ग है। मुझे भी अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी है। वह मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखती है। मैं भी अपनी माँ की सेवा करता हूँ। मेरी माँ घर में सबसे पहले उठती है। उठकर वह घर की सफ़ाई करने के बाद स्नान करती है और पूजा-पाठ से निवृत्त होकर हमें जगाती है। जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती है।

नाश्ता तैयार करके वह हमारे स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर हमें देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वह हमें नाश्ता परोसती है। स्कूल जाते समय वह हमें दोपहर के भोजन के लिए कुछ खाने के लिए डिब्बों में बंद करके हमारे बस्तों में रख देती है। स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से भी बाँट लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहत स्वादिष्ट भोजन बनाती है। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हम से। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सबको मिले।

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2. मेले की सैर

भारत एक त्योहारों का देश है। इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह-जगह मेले लगते हैं। इन मेलों का महत्त्व कुछ कम नहीं है। किंतु पिछले दिनों मुझे जिस मेले को देखने का सुअवसर मिला वह अपने आप में अलग ही था। भारतीय मेला प्राधिकरण तथा भारतीय कृषि और अनुसंधान परिषद के सहयोग से हमारे नगर में एक कृषि मेले का आयोजन किया गया था। भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों का इस मेले में सहयोग प्राप्त किया गया था। इस मेले में विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने मंडप लगाए थे। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से संबंधित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था।

केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रूई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी। अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कंपनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे। इसमें रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, डीज़ल पंप, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे। यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था। इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मंडप लगाए थे। इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था। इस मंडप को देखकर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटा-सा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है। हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे। मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफ़ी जानकारी प्राप्त हुई।

इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रांतों के लोकनृत्यों का आयोजन। सभी नृत्य एक से बढ़कर एक थे। मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे। इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था।

3. प्रदर्शनी अवलोकन

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी। मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। शाम को लगभग पाँच बजे हम प्रगति मैदान पहँचे। प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं। हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था।

अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे। प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था। प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबंध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी। प्रदर्शनी को देखने के लिए आने वालों की काफ़ी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीदकर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर-संचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूर-संचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फ़ोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का

मुकाबला करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए।

4. नदी किनारे एक शाम

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे। स्कूल जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की। एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए। कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी, कुछ प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन करके मन खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छह बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े।

दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था। ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो। पक्षी अपने-अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे। खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हज़ारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी।

हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर में जाता हुआ प्रतीत हुआ। नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेदसफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते-निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हमें जिंदगी-भर नहीं भूलेगी।

5. परीक्षा से पहले
अथवा
परीक्षा से एक घंटा पूर्व

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्नपत्र में न आए तो मेरा क्या होगा? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था।

परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मारकर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिताजी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण-शक्ति पर पूरा भरोसा था।

थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा।

6. मदारी का खेल

कल मैं बाज़ार सब्जी लेने के लिए घर से निकला। चौराहे के एक कोने पर मैंने कुछ लोगों की भीड़ देखी। दूर से देखने पर मुझे लगा कि शायद यहाँ कोई दुर्घटना हो गई। उत्सुकतावश मैं वहाँ चला गया। वहाँ जाकर मुझे पता चला कि वहाँ एक मदारी तमाशा दिखा रहा था। बच्चों की भीड़ जमा है। बहुत-से युवक-युवतियाँ और बुजुर्ग के लोग भी वहाँ एकत्र थे। जब मैं वहाँ पहँचा तो मदारी अपने बंदर और बंदरिया का नाच दिखा रहा था। मदारी डुगडुगी बजा रहा था और बाँसुरी भी बजा रहा था।

बंदरिया ने घाघरा-चोली पहन रखी थी और सिर पर चुनरी भी ओढ़ रखी थी। बंदर ने भी धोती-कुरता पहन रखा था। बंदरिया ने गले में मोतियों की माला और हाथों में चूड़ियाँ भी पहन रखी थीं। मदारी बंदर से पूछ रहा था कि क्या तुम ने विवाह करवाना है। बंदर हाँ में सिर हिलाता। फिर वह यही प्रश्न बंदरिया से करता। बंदरिया भी हाँ में सिर हिलाती। फिर मदारी ने पूछा कि कैसी लड़की से विवाह करवाएगा। बंदर ने हाव-भाव से बताया। उसके हाव-भाव को देखकर सभी हँसने लगे। फिर बंदर दूल्हा बनकर विवाह करने चला और बंदरिया को ब्याह कर लाया। इस सारे तमाशे में बंदर की हरकतों, बंदरिया के शर्माने के अभिनय को देखकर लोगों ने कई बार तालियाँ बजाईं। मदारी ने डुगडुगी बजाकर नाच समाप्त होने की घोषणा की। बंदर-बंदरिया का नाच दिखाने के बाद मदारी ने एक चौंका देने वाला तमाशा दिखाया।

मदारी ने अपने साथ एक छोटे लड़के को ज़मीन पर लिटाकर उसकी एक तेज़ छुरी से जीभ काट ली। बच्चा खून से लथपथ ज़मीन पर छटपटा रहा था। उस भीड़ में मौजूद स्त्रियाँ यह दृश्य देखकर काँप उठीं। कुछ स्त्रियों ने तो उस मदारी को बुरा-भला भी कहना शुरू कर दिया। मदारी पर उनका कोई प्रभाव न पड़ा। वह शांत बना रहा। उसने लोगों को बताया कि यह तो मात्र एक तमाशा है। क्या कोई अपने बच्चे की जीभ काट सकता है। उसने ज़मीन पर पड़े अपने बच्चे का नाम लेकर पुकारा और लड़का हँसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उसने अपना मुँह खोल कर लोगों को दिखाया तो उसकी जीभ सही सलामत थी। यह खेल दिखा कर मदारी ने बंदर और बंदरिया के हाथों में दो टोपियाँ पकड़ाकर लोगों से पैसा माँगने के लिए कहा-बंदर और बंदरिया लोगों के सामने मटकते हुए जाते और उनके आगे अपनी टोपी करते। सभी लोगों ने उनकी टोपी में कुछ-न-कुछ ज़रूर डाला जिन्होंने कुछ नहीं डाला उन्हें बंदरों ने घुड़की मारकर डराया और भागने पर विवश कर दिया। मदारी का तमाशा खत्म हुआ। भीड़ छट गई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

7. अवकाश का दिन

अवकाश के दिन की हर किसी को प्रतीक्षा होती है। विशेषकर विद्यार्थियों को तो इस दिन की प्रतीक्षा बड़ी बेसबरी से होती है। उस दिन न तो जल्दी उठने की चिंता होती है, न स्कूल जाने की। स्कूल में भी छुट्टी की घंटी बजते ही विद्यार्थी कितनी प्रसन्नता से कक्षाओं से बाहर आ जाते हैं। अध्यापक महोदय के भाषण का आधा वाक्य ही उनके मुँह में रह जाता है और विद्यार्थी कक्षा छोड़कर बाहर की ओर भाग जाते हैं। जब यह पता चलता है कि आज दिनभर की छुट्टी है तो विद्यार्थी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वे उस दिन खूब जी भरकर खेलते हैं, घूमते हैं। कोई सारा दिन क्रिकेट के मैदान में बिताता है तो कोई पतंगबाज़ी में सारा दिन बिता देते हैं।

सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं। कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता कि आज तो छुट्टी है। लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है। छुट्टी के दिन मुझे सुबह-सवेरे उठकर अपनी माताजी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है। मेरी माताजी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अतः उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं, बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माताजी का हाथ बटाना पड़ता है। इस दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं। दूसरे दिनों में तो सुबह-सवेरे तो सबको भागम-भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ़्तर। दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं। फिर माताजी मुझे लेकर बैठ जाती हैं। कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देती हैं। उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिए। शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है।

अवकाश के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाए जाते हैं। चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिंता होने लगती है और इस तरह अवकाश का दिन एक लड़की के लिए अवकाश का नहीं बल्कि अधिक काम का दिन होता है।

8. रेलवे प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। मैं प्लेटफॉर्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अंदर गया। पूछताछ खिड़की से पता चला कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आएगी। मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर पहुँच गया। वहाँ यात्रियों की बड़ी संख्या थी। कुछ लोग अपने प्रियजनों को लेने के लिए आए थे तो कुछ अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आए हुए थे। जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे।

कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे। मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफॉर्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं। उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नज़रें उस तरफ़ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफॉर्म पर भगदड़-सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखतेही-देखते गाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ पहुँची।

कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की। वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं अपनी केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे। उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर खुशी थी।

9. सूर्योदय का दृश्य

पूर्व दिशा की ओर उभरती हुई लालिमा को देखकर पक्षी चहचहाने लगते हैं। उन्हें सूर्य के आगमन की सबसे पहले सूचना मिल जाती है। वे अपनी चहचहाहट द्वारा समस्त प्राणी-जगत को रात के बीत जाने की सूचना देते हुए जागने की प्रेरणा देते हैं। सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए प्रकृति रूपी नदी भी प्रसन्नता में भरकर नाच उठती है। फूल खिल उठते हैं, कलियाँ चटक जाती हैं और चारों ओर का वातावरण सुगंधित हो जाता है।

सूर्य देवता के आगमन के साथ ही मनुष्य रात भर के विश्राम के बाद ताज़ा दम होकर जाग उठते हैं। हर तरफ़ चहल-पहल नज़र आने लगती है। किसान हल और बैलों के साथ अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। गृहणियाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त हो जाती हैं। मंदिरों एवं गुरुद्वारों में लगे लाउडस्पीकर से भजन-कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें झिंझोड़-झिंझोड़कर जगाने लगती हैं। दफ्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं जिससे समय पर बस पकड़कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाज़ों के घेरे में घिरने लगता है। सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं।

ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। प्रात: वेला में सोये रहने वाले लोग प्रकृति की इस सुंदरता के दर्शन नहीं कर सकते। कौन उन्हें बताए कि सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंदकर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती।

10. अपना घर

कहते हैं कि घरों में घर अपना घर । सच है अपना घर अपना ही होता है। अपने घर में चाहे सारी सुख-सुविधाएँ न भी प्राप्त हों तो भी वह अच्छा लगता है। जो स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने घर में होती है वह किसी बड़े-बड़े आलीशान घर में भी नहीं प्राप्त होती। पराये घर में जो झिझक, असुविधा होती है वह अपने घर में नहीं होती। अपने घर में व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है। दूसरे के घर में उस घर के स्वामी की इच्छानुसार अथवा उस घर के नियमों के अनुसार चलना होता है।

अपने घर में आप जो चाहें करें, जो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। इसीलिए तो किसी ने कहा है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे वह न बलख, न बुखारे।’ शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर जाते थे। आजकल स्त्री भी नौकरी करने घर से कई मील दूर जाती है परंतु आजकल सभी अपने-अपने घरों को लौटना पंसद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं। सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं।

पक्षी भी दिनभर दाना-दुनका चुगकर संध्या होते ही अपने-अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसलों में लौट आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर।

11. जब आँधी आई

मई का महीना था। सूर्य देवता लगता था मानो आग बरसा रहे हों। धरती भट्ठी की तरह जल रही थी। हवा भी गरमी के डर से सहमी हुई थम-सी गई थी। पेड़-पौधे तक भीषण गरमी से घबराकर मौन खड़े थे। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। उस दिन हमारे विद्यालय में जल्दी छुट्टी कर दी गई। मैं अपने कुछ सहपाठियों के साथ पसीने में लथपथ अपने घर की ओर लौट रहा था कि अचानक पश्चिम दिशा में कालिमा-सी दिखाई दी।

आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है। हम सब ने तेज़-तेज़ चलना शुरू किया जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपनेअपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ, दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे एक वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूटकर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं।

बहुत-से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ़ अफ़रा-तफरी मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप करीब घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी। यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंबे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँचकर मैंने सुख की साँस ली।

12. मतदान केंद्र का दृश्य

प्रजातंत्र में चुनाव अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। गत 22 फरवरी को हमारे नगर में विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव हुआ। चुनाव से कोई महीना भर पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया गया। धन का खुलकर वितरण किया गया। हमारे यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध है कि चुनाव के दिनों में यहाँ नोटों की वर्षा होती है। चुनाव आयोग ने लाख सिर पटका पर ढाक के तीन पात ही रहे। आज मतदान का दिन है।

मतदान से एक दिन पूर्व ही मतदान केंद्रों की स्थापना की गई है। मतदान वाले दिन जनता में भारी उत्साह देखा गया। इस बार पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था। अब मतदाताओं को मतदान केंद्र पर मत-पत्र नहीं दिए जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे। अब तो मतदाताओं को अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम और चुनावचिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था। इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किंतु मतदान केंद्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिए थे। उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झंडे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे। दो-तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं। जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केंद्र की संख्या तथा मतदान केंद्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे।

आठ बजने से पूर्व ही मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी पंक्तियाँ लगनी शुरू हो गई थीं। मतदाता खूब सज-धज कर आए थे। ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों। दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किंतु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बैठाकर ला रहे थे। सायं पाँच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केंद्र से हटकर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गई थी और सभी अपने-अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने लगे।

13. जब भूचाल आया

गरमियों की रात थी। मैं अपने भाइयों के साथ मकान की छत पर सो रहा था। रात लगभग आधी बीत चुकी थी। गरमी के मारे मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी अचानक कुत्तों के भौंकने का स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था और लगता था कि कुत्ते तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे हैं। कुछ ही क्षण बाद हमारी मुरगियों ने दड़बों में फड़फड़ाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने किसी साँप को देख लिया हो। मैं बिस्तर पर लेटा-लेटा कुत्तों के भौंकने के कारण पर विचार करने लगा। मैंने समझा कि शायद वे किसी चोर को या संदिग्ध व्यक्ति को देखकर भौंक रहे हैं।

अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा। छत से उतरते समय हम ने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेजी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँचकर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे, हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए। अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक ज़ोरदार झटका और आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ, दरवाज़े खड़-खड़ा उठे।

हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। ‘तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत-से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें भी आईं। हम में से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हम ने सोचा कि जितना भूचाल आना था आ चुका, हम उस जगह की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की अशंका में घरों से बाहर रहकर ही बिताई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

14. मेरी रेल-यात्रा

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर भी सीट की गारंटी नहीं देता। रेल का टिकट खरीदकर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की समस्या सामने आती है। यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं। रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है।

मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुंबई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी दो घंटे लेट थी। यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी। गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आजमाई शुरू हो गयी। किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका। गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा। यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया। गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डब्बे में सवार होना था। उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी। स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था।

सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाए वर्षा में भीगते हुए दूसरे डब्बे की ओर भागने लगे। मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एकदम से वह डब्बा चलने लगा। मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूटकर प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ी। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डब्बे की ओर बढ़ गया। गरमी का मौसम और उस डब्बे के पंखे बंद थे। गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली।

15. एक दिन बिजली न आई

मनुष्य विकास कर रहा है। वह अपनी सुख-सुविधाओं के साधन भी जुटाने लगा है। बिजली भी उन साधनों में से एक है। आजकल हम बिजली पर किसी हद तक निर्भर हो गए हैं इसका पता मुझे उस दिन चला जब हमारे शहर में सारा दिन बिजली नहीं आई। जून का महीना था। सूर्य देव ने उदय होते ही गरमी बरसानी शुरू कर दी थी। आकाश में धूल-सी चढ़ी हुई थी। सात बजे होंगे कि बिजली चली गई। बिजली जाने के साथ ही पानी भी चला गया। घर में बड़े बुजुर्ग तो स्नान कर चुके थे पर हम तो अभी सोकर ही उठे थे इसलिए हमारा नहाना बीच में ही लटक गया।

घर के अंदर इतनी तपश थी कि खड़ा न हुआ जाता था। बाहर निकलते तो वहाँ भी चैन न था। एक तो धूप की तेज़ी और ऊपर से हवा भी बंद थी। दिन चढ़ता गया और गरमी की प्रचंडता भी बढ़ने लगी। हमने बिजलीघर के शिकायत केंद्र को फ़ोन किया तो पता चला कि बिजली पीछे से ही बंद है। कोई पता नहीं कि कब आएगी। गरमी के मारे सब का बुरा हाल था। छोटे बच्चों की हालत देखी न जाती थी। गरमी के कारण माताजी को खाना पकाने में भी बड़ा कष्ट झेलना पड़ा। गला प्यास के मारे सूख रहा था। खाना खाने से पहले तक कई गिलास पानी पी चुके थे। इसलिए खाना भी ठीक ढंग से नहीं खाया गया। उस दिन हमें पता चला कि हम कितने बिजली पर निर्भर हो चुके हैं। मैं बार-बार सोचता था कि जिन दिनों बिजली नहीं थी तब लोग कैसे रहते होंगे। घर में हाथ से चलाने वाले पंखे भी नहीं थे। हम अखबार या कापी के गत्ते को ही पंखा बनाकर हवा ले रहे थे। सूर्य छिप जाने पर गरमी की प्रचंडता में कुछ कमी तो हुई किंतु हवा बंद होने के कारण बाहर खड़े होना भी कठिन लग रहा था।

हमें चिंता हुई कि यदि बिजली रातभर न आई तो रात कैसे कटेगी। बिजली आने पर लोगों ने घरों के बाहर या छत पर सोना छोड़ दिया था। सभी कमरों में ही पंखों, कूलरों को लगाकर ही सोते थे। बाहर सोने पर मच्छरों के प्रकोप को सहना पड़ता था। रात के लगभग नौ बजे बिजली आई और मुहल्ले के हर घर में बच्चों ने ज़ोर से आवाज़ लगाई–’आ गई, आ गई’ और हम सब ने सुख की साँस ली।

16. परीक्षा भवन का दृश्य

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक्– धक् कर रहा था। मैं रातभर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। लड़कों से ज़्यादा लड़कियाँ अधिक गंभीर नज़र आ रही थीं।

कुछ लड़कियाँ तो बड़े आत्मविश्वास से भरी दिखाई पड़ रही थीं। लड़कियाँ इसी आत्मविश्वास के कारण परीक्षा में लड़कों से बाज़ी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँचकर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गयीं और हम ने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्नपत्र बाँट दिए। कुछ विद्यार्थी प्रश्न-पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गए। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न-पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे।

मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

17. साइकिल चोरी होने पर

एक दिन मैं अपने स्कूल में अवकाश लेने का आवेदन-पत्र देने गया। मैं अपनी साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी कर के, उसे ताला लगाकर स्कूल के भीतर चला गया। थोड़ी देर में ही मैं लौट आया। मैंने देखा मेरी साइकिल वहाँ नहीं थी जहाँ मैं उसे खड़ी करके गया था। मैंने आसपास देखा पर मुझे मेरी साइकिल कहीं नज़र नहीं आई। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी साइकिल चोरी हो गयी है। मैं सीधा घर आ गया। घर आकर मैंने अपनी माँ को बताया कि मेरी साइकिल चोरी हो गयी है।

मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल से तीन हजार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुम ने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गयी है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गयी। किसी ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता-डरता पुलिस चौकी गया। मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझ से गुम हो गयी थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या यह मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी? निराश हो मैं घर लौट आया। लौटने पर पता चला कि मेरी साइकिल चोरी होने का समाचार सारे मुहल्ले में फैल गया है। हमारे देश में शोक प्रकट करने का कुछ ऐसा चलन है कि लोग मामूली-से-मामूली बात पर भी शोक प्रकट करने आ पहुँचते हैं। हर आने वाला मुझ से साइकिल कैसे चोरी हुई ? प्रश्न का उत्तर जानना चाहता था। मैं एक ही उत्तर सभी को देता उकता-सा गया। कुछ लोग मुझे सांत्वना देते हुए कहते-जो होना था सो हो गया।

ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से शोक-ग्रस्त था। क्योंकि यदाकदा वह मुझसे साइकिल माँगकर ले जाता था। कुछ लोग मुझे यह भी सलाह देने लगे कि मुझे अब कौन-सी कंपनी की बनी साइकिल खरीदनी चाहिए और किस दुकान से खरीदनी चाहिए तथा रसीद सँभालकर रखनी चाहिए। एक तरफ़ मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का दुख था तो दूसरी तरफ़ संवेदना प्रकट करने वालों की ऊल-जलूल बातों से परेशानी हो रही थी।

18. जेब कटने पर

यह घटना पिछले साल की है। परीक्षाएँ समाप्त होने के बाद मैं अपने ननिहाल जाने के लिए बस अड्डे पहुँचा। बस अड्डे पर उस दिन काफ़ी भीड़ थी। स्कूलों में छुट्टियाँ हो जाने पर बहुत-से माता-पिता अपने बच्चों को लेकर कहींन-कहीं छुट्टियाँ बिताने जा रहे थे। मेरे गाँव को जाने वाली बस में काफ़ी भीड़ थी। मैं जब बस में सवार हुआ तो बस में बैठने की कोई जगह खाली न थी। मैं भी अपने सामान का बैग कंधे पर लटकाए खड़ा हो गया। कुछ ही देर में बस खचाखच भर चुकी थी परंतु बस वाले अभी बस चलाने को तैयार नहीं थे। वे और सवारियों को चढ़ा रहे थे।

जब बस के अंदर तिल धरने को भी जगह न रही तो कंडक्टर ने सवारियों को बस की छत पर चढ़ाना शुरू कर दिया। गरमियाँ अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुई थी फिर भी हम बस के अंदर खड़े-खड़े पसीने से लथपथ हो रहे थे। मेरे पीछे एक सुंदर लड़की खड़ी थी। बस चलने से कुछ देर पहले वह लड़की यह कहकर बस से उतर गई कि यहाँ तो खड़ा भी नहीं हुआ जाता। मैं अगली बस से चली जाऊँगी। बड़ी मुश्किल से बस ने चलने का नाम लिया। बस चलने के बाद कंडक्टर ने टिकटें बाँटना शुरू किया। थोड़ी देर में ही पीछे खड़े यात्रियों में से दो यात्रियों ने शोर मचाया कि उनकी किसी ने जेब काट ली है। कंडक्टर ने उन्हें बस रोककर बस से उतार दिया। कंडक्टर जब मेरे पास आया तो मैंने पैंट की पिछली जेब से जैसे ही बटुआ निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। मैंने अनुभव किया कि मेरी जेब में बटुआ नहीं है। मैंने कंडक्टर को बताया कि मेरी जेब भी किसी ने काट ली है। सौभाग्य से मेरी दूसरी जेब में इतने पैसे थे कि मैं टिकट के पैसे दे. सकता।

कंडक्टर ने मुझे टिकट देते हुए कहा तुम फ़ैशन के मारे बटुए पैंट की पिछली जेब में रखोगे तो जेब कटेगी ही। मैं थोड़ा शर्मिंदा अनुभव कर रहा था। दूसरे यात्री हँस रहे थे कि मैं बस से उतारे जाने से बच गया। मुझे यह समझते देर न लगी कि जो फैशनेबल-सी लड़की मेरे पीछे खड़ी थी उसी ने मेरी जेब साफ़ की है। मेरी ही नहीं बल्कि दूसरे यात्रियों की जेबों की वही सफ़ाई कर गई है। मैं सोचने लगा कि बस अड्डे पर तो सरकार ने लिखा है कि जेबकतरों से सावधान रहें बसों में भी ऐसे बोर्ड लगवा देने चाहिए या फिर बस चालक गिनती से अधिक सवारियाँ बस में न चढ़ाएँ। इतनी भीड़ में तो किसी की भी जेब कट सकती है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

19. जीवन की अविस्मरणीय घटना

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद-विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठा कर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश-सा लगता था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देख कर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उसकी टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने के लिए कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया। उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उसके पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था।

मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी। वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देखकर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया। रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चींची करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उसका घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवनभर नहीं भुला पाऊँगा।

20. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं परंतु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किंतु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनोंदिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यंत रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच सुभाष एकादश और चंद्र एकादश की टीमों के बीच चेन्नई के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए देशभर में जानी जाती हैं।

दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय-स्तर के खिलाड़ी भाग ले रहे थे। चंद्र एकादश की टीम क्योंकि अपनी घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने सुभाष एकादश को मैच के आरंभिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फॉरवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किए। सुभाष एकादश का गोलकीपर बहुत ही चुस्त और होशियार था उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। जब सुभाष एकादश ने तेजी पकड़ी तो देखते-ही-देखते चंद्र एकादश के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर चंद्र एकादश की टीम ने एक-जुट होकर दो-तीन बार सुभाष एकादश पर कड़े आक्रमण किए परंतु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच चंद्र एकादश को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। सुभाष एकादश ने कई अच्छे मूव बनाए। उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था।

इसी बीच सुभाष एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे चंद्र एकादश के खिलाड़ी हताश हो गए। चेन्नई के दर्शक भी उनके खेल को देखकर कुछ निराश हुए। मध्यांतर के समय सुभाष एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यांतर के बाद खेल बड़ी तेजी से शुरू हुआ। चंद्र एकादश के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दाएँ कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर सुभाष एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से चंद्र एकादश के जोश में ज़बरदस्त वृद्धि हो गई। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी से नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देखकर आनंद आ गया।

21. पत्थर तोड़ती मज़दूरिन

जून का महीना था। गरमी इतनी प्रचंड पड़ रही थी कि मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक सभी घबरा उठे थे। दूरदर्शन पर बीती रात बताया गया था कि गरमी का प्रकोप 46 डिग्री तक बढ़ जाने का अनुमान है। सड़कें सूनी हो गई थीं। यातायात भी मानो रुक गया हो। लगता था वृक्षों की छाया भी गरमी की भीषणता से घबराकर छाया तलाश रही थी। ऐसे में हमारे मुहल्ले के कुछ लड़के वृक्षों की छाया में क्रिकेट खेल रहे थे। उनमें मेरा छोटा भाई भी था।

मेरी माँ ने कहा उसे बुला लाओ कहीं लू न लग जाए। मैं उसे लेने के लिए घर से निकला तो मैंने कड़कती धूप और भीषण गरमी में एक मज़दूरिन को एक नए बन रहे मकान के पास पत्थर तोड़ते देखा। जहाँ वह स्त्री पत्थर तोड़ रही थी वहाँ आसपास कोई वृक्ष भी नहीं था। वह गरमी की भयंकरता की परवाह न करके भी हथौड़ा चलाए जा रही थी। उसके माथे से पसीना टपक रहा था। कभी-कभी वह उदास नज़रों से सामने वाले मकानों की ओर देख लेती थी। जिनके अमीर मालिक गरमी को भगाने के पूरे उपाय करके अपने घरों में आराम कर रहे थे। उसे देखकर मेरे मन में आया कि विधि की यह कैसी बिडंबना है कि जो लोग मकान बनाने वाले हैं वे तो कड़कती दुपहरी में काम कर रहे हैं और जिन लोगों के मकान बन रहे हैं वे इस कष्ट से दूर हैं।

मेरी सहानुभूति भरी नज़र को देखकर वह मज़दूरिन पहले तो कुछ ठिठकी किंतु फिर कुछ ध्यान कर अपने काम में व्यस्त हो गयी। उसकी नज़रें मुझे जैसे कह रही हों काम नहीं करूँगी तो रात को रोटी कैसे पकेगी। मैं वेतन भोगी नहीं दिहाड़ीदार मज़दूर हूँ। इस सामाजिक अन्याय को देखकर मेरा हृदय चीत्कार कर उठा। काश ! मैं इन लोगों के लिए कुछ कर सकता।

22. आँखों देखी दुर्घटना

रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह-सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहत-से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठाकर सैर करते देखा।

अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर से एक ताँगा आता हुआ दिखाई दिया। उस में चार-पाँच सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपति ने ताँगे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ़ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस ताँगे से टकरा गई। ताँगा चलाने वाला और दो सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गये थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इस से पूर्व कि वह बच्चे समेत ताँगे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उनसे टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया। कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुंची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन-चार सिपाही तुरंत घटना-स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और हस्पताल को फ़ोन किया।

चंद मिनटों में वहाँ ऐंब्युलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठाकर ऐंब्युलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और ताँगा सामने आने पर ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती और चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपति ने उसका विशेष धन्यवाद किया।

23. हम ने मनाई पिकनिक

पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनायी जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सब ने अपने-अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया।

पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सब ने नाश्ता करने के बाद अपन-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा सी०डी० प्लेयर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपंसद गानों की सी०डी० भी रख ली। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की अनुच्छेद लेखन ओर बढ़ चले। लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुंच गए। वहाँ हम ने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा।

चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हम ने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारी। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने सी०डी० प्लेयर चला दिया और उसने गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे। कुछ देर तक हम ने इधर-उधर घूमकर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नजारा किया। दोपहर को हम सब ने अपने-अपने टिफ़न खोले और सबने मिल-बैठकर एक-दूसरे का भोजन बाँटकर खाया। उसके बाद हम ने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्टोराँ में जाकर चाय पी।

चाय-पान के बाद हम ने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एकदूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आप बीती हँसी-मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

24. पर्वतीय यात्रा

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिंतपूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने जाया करते थे। इस बार हमारे मुहल्लेवासियों ने मिलकर जम्मू-क्षेत्र में स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया। हमने एक बस का प्रबंध किया था जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए। सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी। पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची वहाँ कुछ रुकने के बाद हम ने जम्मू-क्षेत्र में प्रवेश किया। हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मूतवी पहुँच गयी।

सारे रास्ते में दोनों तरफ़ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न हो उठा। बस में सवार सभी यात्री माता की भेटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरावाली का जयकारा भी बुला रहे थे। प्रातः सात बजे हम कटरा पहुँच गए। वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णो देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त की। दूसरे दिन सुबह-सवेरे हम सभी माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग तथा दूसरा साधारण। हमने साधारण मार्ग को चुना। इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे। मार्ग में हमने बाण-गंगा में स्नान किया। पानी बर्फ़-सा ठंडा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी।

यात्रियों को बाण-गंगा में नहाना ज़रूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती। चढ़ाई बिलकुल सीधी थी। चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी साँस फूल रही थी परंतु सभी यात्री माता की भेटें गाते हुए और माता की जय-जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह-जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबंध किया गया था। कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गए। मंदिर के निकट पहुँचकर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गए। अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किए। श्रद्धापूर्वक माथा टेका और मंदिर से बाहर आ गए। आजकल मंदिर का सारा प्रबंध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है। सभी प्रबंध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे। घर लौटते तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव का अनुभव करते रहे।

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25. ऐतिहासिक यात्रा

यह बात पिछली गरमियों की है। मुझे मेरे मित्र का पत्र प्राप्त हुआ जिसने मुझे कुछ दिन उसके साथ आगरा में बिताने का निमंत्रण दिया गया था। यह निमंत्रण पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान को देखने का मुझे अवसर मिल रहा था। मैंने अपने पिता से बात की तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे आगरा जाने की अनुमति दे दी। मैं रेल द्वारा आगरा पहुँचा। मेरा मित्र मुझे स्टेशन पर लेने आया हुआ था। वह मुझे अपने घर ले गया। उस दिन पूर्णिमा थी और कहते हैं पूर्णिमा की चाँदनी में ताजमहल को देखने का आनंद ही कुछ और होता है। रात के लगभग नौ बजे हम घर से निकले। दूर से ही ताजमहल के मीनारों और गुंबदों का दृश्य दिखाई दे रहा था।

हमने प्रवेश-द्वार से टिकट खरीदे और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे। भारत सरकार ने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय किए हैं जिनमें यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करना भी एक है। ताजमहल के चारों ओर लाल पत्थर की दीवारें हैं जिसमें एक बहुत बड़ा सुंदर उद्यान है जिसकी सजावट और हरियाली देखकर मन मोहित हो उठता है। हमने ताजमहल परिसर में जब प्रवेश किया तो देखा कि अंदर देशी कम विदेशी पर्यटक अधिक थे। ताजमहल तक जाने के लिए सबसे पहले एक बहुत ऊँचे और सुंदर द्वार से होकर जाना पड़ता है। ताजमहल उद्यान के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो सफ़ेद संगमरमर का बना है। इसका गुंबद बहुत ऊँचा है उसके चारों ओर बड़ी-बड़ी मीनारें हैं। ताजमहल के पश्चिम की ओर यमुना नदी बहती है। यमुना जल में ताज की परछाईं बहुत सुंदर और मोहक लग रही थी। हम ने ताजमहल के भीतर प्रवेश किया। सबसे नीचे के भवन में मुगल सम्राट शाहजहाँ और उसकी पत्नी और प्रेमिका मुमताज महल की कब्रे हैं।

उन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और बहुत-से रंग-बिरंगे बेलबूटे बने हुए हैं। इस कमरे के ठीक ऊपर एक ऐसा ही भाग है। सौंदर्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। कहते हैं इसमें बनी संगमरमर की जाली की जगह पहले सोने की बनी जाली थी जिसे औरंगजेब ने हटवा दिया था। कहते हैं कि ताजमहल के निर्माण में बीस वर्ष लगे थे और उस युग में तीस लाख रुपये खर्च हुए थे। इसे बनाने में तीस हज़ार मजदूरों ने योगदान किया था। यह स्मारक बादशाह ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। इसे संसार के सात आश्चर्यों में भी गिना जाता है। दुनियाभर से हर वर्ष लाखों लोग इसे देखने के लिए आते हैं।

26. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं। कुछ सदाचारी हैं तो कुछ दुराचारी। हमें ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नत एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति का प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। क्योंकि ‘जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत’ कहा भी है कि किसी व्यक्ति के आचरण को जानने के लिए उसकी संगति को जानना चाहिए। क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मुहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं।

कहा गया है “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसकी संगति छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ रहता है। अच्छी पुस्तकों का अध्ययन भी सत्संग से कम नहीं। विद्वान् लेखक अपनी पुस्तक रूप में हमारे साथ रहता है। अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र एवं पथप्रदर्शक हैं। महान् व्यक्तियों के संपर्क ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को कंचन के समान बहुमूल्य बना दिया। दुष्टों एवं दुराचारियों का संग मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य को विवेक प्राप्त करने के लिए सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए। अपनी और समाज की उन्नति के लिए सत्संग से बढ़कर दूसरा साधन नहीं है। अच्छी संगति आत्म-बल को बढ़ाती है तथा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

27. सब दिन होत न एक समान

जीवन को जल की संज्ञा दी गई है। जल कभी सम भूमि पर बहता है तो कभी विषम भूमि पर। कभी रेगिस्तान की भूमि उसका शोषण करती है तो कभी वर्षा की धारा उसके प्रवाह को बढ़ा देती है। मानव-जीवन में भी कभी सुख का अध्याय जुड़ता है तो कभी दुख अपने पूरे दल-बल के साथ आक्रमण करता है। प्रकृति में दुख-सुख की धूप-छाया के दर्शन होते हैं। प्रात:काल का समय सुख का प्रतीक है तो रात्रि दुख का। विभिन्न ऋतुएँ भी जीवन के विभिन्न पक्षों की प्रतीक हैं। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है-
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशा दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-संपदा।
संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफ़र का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष-विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है-‘सब दिन होत न एक समान।’

28. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरीयसी

इस कथन का भाव है, “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए उसे अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ-हाँफ कर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभमि से अगाध प्रेम है। ध्रववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल-बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट् बहादुरशाह जफ़र की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं-
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा-ए-यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देशप्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्त्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्त्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

29. नेता नहीं, नागरिक चाहिए

लोगों के नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं। आदर्श नेता एक मार्ग-दर्शक के समान है जो दूसरों को सुमार्ग की ओर ले जाता है। आदर्श नागरिक ही आदर्श नेता बन सकता है। आज के नेताओं में सद्गुणों का अभाव है। वे जनता के शासक बनकर रहना चाहते हैं, सेवक नहीं। उनमें अहं एवं स्पर्धा का भाव भी पाया जाता है। वर्तमान भारत की राजनीति इस तथ्य की परिचायक है कि नेता बनने की होड़ ने आपसी राग-द्वेष को ही अधिक बढ़ावा दिया है। इसीलिए यह कहा गया है-नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्त्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है। यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता।

नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अतः नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज़्यादा जानता है, लेकिन कर्त्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्त्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए।

30. आलस्य दरिद्रता का मूल है

जो व्यक्ति श्रम से पलायन करके आलस्य का जीवन व्यतीत करते हैं वे कभी भी सुख-सुविधा का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी कार्य यहाँ तक कि स्वयं का जीना भी बिना काम किए संभव नहीं। यह ठीक है कि हमारे जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। दुर्भाग्य के कारण संभव है मनुष्य को विकास और वैभव के दर्शन न हों पर परिश्रम के बल पर वह अपनी जीविका के प्रश्न को हल कर ही सकता है। यदि ऐसा न होता तो श्रम के महत्त्व का कौन स्वीकार करता। कुछ लोगों का विचार है कि भाग्य के अनुसार ही मनुष्य सुख-दुख भोगता है। दाने-दाने पर मोहर लगी है, भगवान् सबका ध्यान रखता है। जिसने मुँह दिया है, वह खाना भी देगा। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भाग्य का निर्माण भी परिश्रम द्वारा ही होता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है-
ब्रह्मा ने कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है।

भगवान् ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनती? श्रम से उगले मिट्टी सोना परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य को परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है।

31. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता दिखा सकता है। यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं।

मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अत: ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

32. बादलों से घिरा आकाश

आकाश की शोभा बादल हैं। बादलों के बिना आकाश शून्य है। जब आकाश में बादल घिरते हैं तो आकाश का रूप । अत्यंत मोहक एवं आकर्षक बन जाता है। जब आकाश में बादल इधर-उधर विचरते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो हाथी मस्त होकर झूम रहे हों। बादलों की गर्जन वातावरण में संगीत भर देती है। बीच-बीच में बिजली की कौंध भी आकर्षक प्रतीत होती है। श्याम बादलों की छाया में प्राणी का हृदय आनंदित हो उठता है। ग्रीष्म ऋतु की झुलसा देने वाली लू से छुटकारा दिलाने वाला पावन ऋतु बादलों की रानी है। विज्ञान ने मानव की सेवा में अनेक साधन जुटाए हैं, लेकिन जो वरदान प्रकृति के पास है वह विज्ञान के पास कहाँ? जब प्रकृति प्रसन्न होती है तो स्वर्ग-सा दृश्य बन जाता है।

फूल महकने लगते हैं। भ्रमर गूंजने लगते हैं। बादलों से घिरा आकाश मनुष्य के हृदय को ही उल्लासित नहीं करता, पशु-पक्षी तक प्रसन्नता से झूमने लगते हैं। बादलों के बरस जाने के बाद तो दृश्य ही बदल जाता है। संतप्त धरा शांत हो जाती है। पेड़-पौधों में नव-जीवन का संचार होने लगता है। सर्वत्र हरियाली का दृश्य छा जाता है। शीतल हवा के झोंके शरीर को सुखद प्रतीत होते हैं। धरती से मीठी-मीठी सुगंध उठने लगती है। किसान बीज बोने की तैयारी करने लगते हैं। वर्षा का जल तो ईश्वरीय कृपा का जल है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

33. सबै सहायक सबल के

यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। लोग चढ़ते सूर्य की पूजा करते हैं। शक्तिशाली की सहायता के लिए सभी तत्पर रहते हैं लेकिन निर्बल को कोई नहीं पूछता। वायु भी आग को तो भड़का देती है, पर दीपक को बुझा देती है। दीपक निर्बल है, कमज़ोर है, इसलिए वायु का उस पर पूर्ण अधिकार है। व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जो निर्धन है, वे और निर्धन बनते जाते हैं, और जो धनवान हैं उनके पास और धन चला आ रहा है। इसका एकमात्र कारण यही है कि सबल की सभी सहायता कर रहे हैं और निर्धन उपेक्षित हो रहा है। सर्वत्र जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सामाजिक जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जीवन तक यह भावना काम कर रही है।

एक शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र की सहायता सहर्ष करता है जबकि निर्धन देशों को शक्ति संपन्न देशों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्राय: यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सत्कार एवं सहायता की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है। निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अत: वृंदकवि का यह कथन बिलकुल सार्थक प्रतीक होता है-सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।

34. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन-निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया।

सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अत: ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।”

35. जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है

प्रत्येक मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित करता है। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई कर्मचारी, कोई इंजीनियर बनने की लालसा से प्रेरित है तो कोई डॉक्टर बनकर घर भरना चाहता है। स्वार्थ पूर्ति के लिए किया गया काम उच्चकोटि की संज्ञा नहीं पा सकता। स्वार्थ के पीछे तो संसार पागल है। लोग भूल गए हैं कि जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है। जो व्यक्ति काम-भावना से प्रेरित होकर काम करता है, वह कभी भी सुपरिणाम नहीं ला सकता। उससे कोई लाभ हो भी तो वह केवल व्यक्ति विशेष को ही होता है। समाज को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। निष्काम सेवा के द्वारा ही मनुष्य समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में यह स्पष्ट किया है-
जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव।
कह कबीर वह क्यों मिले निहकामी निज देव॥

निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज-सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति के कल्याण की। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्तजी ने कहा है-‘वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”

36. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गरमियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं। भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है।

बस-यात्रा एक प्रकार से रेल-यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं। इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बसयात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

37. हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ

इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, उस सबके पीछे विधि का प्रबल हाथ है। मनुष्य के भविष्य के विषय में बड़े-बड़े ज्योतिषी भी सही अनुमान नहीं लगा सकते। भाग्य रूपी नर्तकी के क्रिया-कलाप बड़े विचित्र हैं। विधि के विधान पर भले कोई रीझे अथवा शोक मनाए पर होनी होकर और अपना प्रभाव दिखाकर रहती है। मनुष्य तो विधि के हाथ का खिलौना मात्र है। हमारे भक्त कलाकारों ने विधि की प्रबल शक्ति के आगे नत-मस्तक होकर जीवन की प्रत्येक स्थिति पर संतोष प्रकट करने की प्रेरणा दी है। उक्त उक्ति जीवन संबंधी गहन अनुभव का निष्कर्ष है।

जो व्यक्ति जीवन के सुखद एवं दुखद अनुभवों का भोक्ता बन चुका है, वह बिना किसी तर्क के इस उक्ति का समर्थन करेगा-“हानिलाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ” मनुष्य सोचता कुछ है पर विधाता और भाग्य को कुछ और ही स्वीकार होता है। मनुष्य लाभ के लिए काम करता है, दिन-रात परिश्रम करता है, वह काम की सिद्धि के लिए एड़ीचोटी का पसीना एक कर देता है, लेकिन परिणाम उसकी आशा के सर्वथा विपरीत भी हो सकता है। मनुष्य जीने की लालसा में न जाने क्या कुछ करता है पर जब मौत अनायास ही अपने दल-बल के साथ आक्रमण करती है तो सब कुछ धरे का धरा रह जाता है। मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है, पर उसे मिलती है बदनामी और निराशा। इतिहास में असंख्य उदाहरण हैं जो उक्त कथन के साक्षी रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

राम, कृष्ण, जगत जननी सीता एवं सत्य के उपासक राजा हरिश्चंद्र तक विधि की विडंबना से नहीं बच सके। तब सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है? वह व्यर्थ में ही अपनी शक्ति एवं साधनों की डींगे हाँकता है। उक्त उक्ति में यह संदेश निहित है कि मनुष्य को अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक आपदा का सामना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। कबीरजी ने भी कहा है कि-“करम गति टारे नाहिं टरे।”

38. दैव दैव आलसी पुकारा

इस उक्ति का अर्थ है कि आलसी व्यक्ति ही भाग्य की दुहाई देता है। वह भाग्य के भरोसे ही जीवन बिता देना चाहता है। सुख प्राप्त होने पर वह भाग्य की प्रशंसा करता है और दुख आने पर वह भाग्य को कोसता है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना तथा असफलता प्राप्त होने पर भाग्य को दोष देना किसी प्रकार भी उचित नहीं। प्रयास और परिश्रम की महिमा कौन नहीं जानता? परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को बदल सकता है। परिश्रम सफलता की कुंजी है। कहा भी है-“यदि पुरुषार्थ मेरे दाएँ हाथ में है तो विजय बाएँ हाथ में।” परिश्रम से मिट्टी भी सोना उगलती है। आलसी एवं कामचोर व्यक्ति ही भाग्य के लेख पढ़ते हैं।

वही ज्योतिषियों का दरवाजा खटखटाते हैं। कर्मठ व्यक्ति तो बाहबल पर भरोसा करते हैं। परिश्रमी व्यक्ति स्वावलंबी, ईमानदार, सत्यवादी एवं चरित्रवान होता है। आलसी व्यक्ति जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता। आलस्य जीवन को जड़ बनाता है। आलसी परावलंबी होता है। वह कभी भी पराधीनता के बंधन से मुक्त नहीं हो सकता। वह भाग्य के भरोसे रहकर जीवन-भर दुख भोगता रहता है।

39. आवश्यकता आविष्कार की जननी है

आवश्यकता अनेक आविष्कारों को जन्म देती है। शारीरिक तथा बौद्धिक दोनों प्रकार के बल का उपयोग करके मनुष्य ने अपने लिए अनेक सुविधाएँ जुटाई हैं। इन्हीं आविष्कारों के बल पर मनुष्य आज सुख-सुविधा के झूले में झूल रहा है। जब उसने अनुभव किया कि बैलगाड़ी की यात्रा न सुविधाजनक है और न ही इससे समय की बचत होती है। तो उसने तेज़ गति से चलने वाले वाहनों का आविष्कार किया। रेल, कार तथा वायुयान आदि उसकी आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हैं। बिजली के अनेक चमत्कार, टेलीफ़ोन आदि भी मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हैं। इन आविष्कारों की कोई सीमा नहीं। जैसे-जैसे मानव-जाति की आवश्यकता बढ़ती है वैसे-वैसे नए आविष्कार हमारे सामने आते हैं। मनुष्य की बुद्धि के विकास के साथ ही आविष्कारों की भी संख्या बढ़ती जाती है। अत: यह ठीक ही कहा है कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है।’

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40. आत्म-निर्भरता

आत्म-निर्भरता अथवा स्वावलंबन का अर्थ है-अपना सहारा आप बनना। बिना किसी की सहायता लिए अपना कार्य सिद्ध कर लेना आत्म-निर्भरता कहलाता है। आत्म-निर्भरता का यह अर्थ कदापि नहीं कि मनुष्य हर काम में मनमर्जी करे। आवश्यकतानुसार उसे दूसरों से परामर्श भी लेना चाहिए। आत्म-निर्भरता का गुण साधन एवं परिश्रम से आता है। आत्मविश्वास आत्म-निर्भरता का मूल आधार है। आत्मविश्वास के अभाव में आत्म-निर्भरता का गुण नहीं आता। आत्मनिर्भरता का गुण मनुष्य का एकमात्र सच्चा मित्र है। अन्य मित्र तो विपत्ति में साथ छोड़ सकते हैं, पर इस मित्र के बल पर मनुष्य चाहे तो विश्व-विजय का सपना साकार कर सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता-प्रिय होता है। वह अपने उद्धार के साथ-साथ देश और जाति का उद्धार करने में भी समर्थ होता है। जिस देश के प्रत्येक नागरिक में आत्म-निर्भरता का गुण होता है, वह प्रत्येक क्षेत्र में भरपूर उन्नति कर सकता है।

41. करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान

निरंतर अभ्यास से मूर्ख मनुष्य भी मेधावी बन सकता है। जिस प्रकार रस्सी के निरंतर आने-जाने से शिला पर निशान पड़ जाते हैं। उसी प्रकार अभ्यास से मनुष्य जड़मति से सुजान हो जाता है। यह ठीक है कि गधे को पीट-पीटकर घोड़ा तो नहीं बनाया जा सकता, किंतु निरंतर अभ्यास और प्रयत्न से अनेकानेक गुणों का विकास किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, कवियों में कविता करने की शक्ति ईश्वर-प्रदत्त होती है, परंतु निरंतर अभ्यास से भी कविता संपादित की जा सकती है। सच तो यह है कि अभ्यास सबके लिए आवश्यक है। कोई भी कलाकार बिना अभ्यास के सफलता की चरम-सीमा को नहीं छू सकता। परिपक्वता अभ्यास से ही आती है। जब हम किसी भी काम को सीखना चाहते हैं तो उसके लिए अभ्यास अनिवार्य है। एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए नित्य प्रति खेलने का अभ्यास आवश्यक है तो एक अच्छा संगीतकार बनने के लिए निरंतर स्वर-साधना का अभ्यास अपेक्षित है।

42. अधजल गगरी छलकत जाय

जल से आमुख भरी गगरी चुपचाप बिना उछले चलती है। आधी भरी हुई जल की मटकी उछल-उछलकर चलती है। ठीक यही स्वभाव मानव मन का भी है। वास्तविक विद्वान् विनम्र हो जाते हैं। नम्रता ही उनकी शिक्षा का प्रतीक होता है। दूसरी ओर जो लोग अर्द्ध-शिक्षित होते हैं अथवा अर्द्ध-समृद्ध होते हैं, वे अपने ज्ञान अथवा धन की डींग बहुत हाँकते हैं। अर्द्ध-शिक्षित व्यक्ति का डींग हाँकना बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक भी है। वे लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी अपूर्णता को ढकना चाहते हैं। उनके मन में अपने अधूरेपन के प्रति एक प्रकार की हीनता का मनोभाव होता है जिसे वे प्रदर्शन के माध्यम से झूठा प्रभाव उत्पन्न करके समाप्त करना चाहते हैं।

यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्चवर्ग के नहीं। उच्चवर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है। इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनती। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्रायः यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेज़ी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेजी बोलने तथा अंग्रेजी में निमंत्रण-पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अत: यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय।

43. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति ही नहीं कर सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा। महात्मा गांधीजी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृ-भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था। हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीनता की भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी-परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, “अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

44. वीर भोग्या वसुंधरा

वीर लोग ही वसुंधरा का भोग करते हैं। जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘स्कंदगुप्त’ में भटार्क नामक पात्र कहता है ‘वीर लोग एक कान से तलवार का तथा दूसरे से नूपुर की झंकार सुना करते हैं।’ यह सत्य उक्ति है कि वीरता और भोग परस्पर पूरक हैं। वीरता भोगप्रिय होती है। विजय पाने के लिए प्रेरणा चाहिए, उत्साह चाहिए, पौरुष और सामर्थ्य चाहिए। भोग . करने के लिए स्वस्थ, उमंगपूर्ण, उत्साहित एवं शक्तिशाली शरीर चाहिए। बूढ़े लोग कभी भोग नहीं कर सकते। हर गहरे भोग के लिए अंत:स्थल में जोश और आवेग होना चाहिए, जो वीरों में ही होता है। हिंदी साहित्य का आदिकाल इस प्रकार के उदाहरणों से भरा पड़ा है। तत्कालीन राजा लड़ते थे, भोगते थे, मर जाते थे।

इतिहास साक्षी है कि भोग के साधनों को उसी जाति या राजा ने विपुल मात्रा में जुटाया जो जूझारू थे, संघर्षशील थे। यह सामान्य मानव-प्रकृति है कि व्यक्ति युवावस्था में सांसारिक द्रव्यों के पीछे भागता है, उन्हें एकत्र करता है, किंतु वृद्धावस्था में उन्हीं द्रव्यों को मायामय कहकर तिरस्कृत करने लगता है। उस तिरस्कार के पीछे द्रव्य का मायामय हो जाना नहीं, अपितु उसकी भोग की इच्छा का शिथिल पड़ जाना है, उसकी पाचन-शक्ति मंद पड़ जाना है। युवावस्था में शरीर हर प्रकार की तेजस्विता से संपन्न होता है, इसलिए उस समय भोग की इच्छा सर्वाधिक उठती है। अतः यह प्रमाणित सत्य है कि वीर लोग ही धरती का तथा धरती के समस्त भोगों का रसपान करते हैं, कर पाते हैं।

45. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता। प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन-आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान् स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

46. व्यक्ति और समाज

व्यक्ति एवं समाज का आपस में गहरा संबंध है। व्यक्तियों के समूह से ही समाज बनता है। व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व के परिचायक हैं। व्यक्ति के समाज के प्रति अनेक कर्त्तव्य हैं। उसे समाज के नियमों का पालन करना पड़ता है। राज्य के आदेशों को स्वीकार करना पड़ता है, समाज में रहते हुए व्यक्ति को अपनी बात कहने का, स्वतंत्रतापूर्वक एक-दूसरे से मिलने-जुलने का अधिकार रहता है। व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह कोई भी काम ऐसा न करे जिससे समाज की व्यवस्था में बाधा पड़े। व्यक्ति का निर्माण समाज का निर्माण है। यदि सभी व्यक्ति अलगअलग से अपने चरित्र को संपन्न बना लें तो उनसे आदर्श समाज का निर्माण होगा। व्यक्ति कारण है तो समाज कार्य है।

अत: जिस समाज में रहने वाले व्यक्ति जितने सभ्य होंगे, वह समाज उतना ही सभ्य माना जाएगा। उत्तम नागरिक वही है जो कर्तव्यों का तत्परता से पालन करे और दूसरों की सुविधा का ध्यान रखे। व्यक्ति को केवल अपने लिए ही जीवित नहीं रहना होता बल्कि समाज के प्रति भी अपने दायित्व को निभाना होता है। व्यक्ति को अपनी अपेक्षा समाज को प्राथमिकता देनी चाहिए। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने इसी भावना पर बल देते हुए कहा है-“समष्टि के लिए व्यष्टि हों बलिदान।” अर्थात् समाज की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए व्यक्ति को त्याग एवं बलिदान के पथ पर बढ़ते रहना चाहिए। इस बात का हमेशा ध्यान रहे कि व्यक्तियों के समूह का नाम समाज नहीं। समाज बनता है आपसी संबंधों से। समूह में तो जानवर भी रहते हैं, पर उनके समूह को समाज की संज्ञा नहीं दी जाती। अतः व्यक्ति एवं समाज में समन्वय की नितांत आवश्यकता है।

47. तेते पाँव पसारिए जेती लांबी सौर

जीवन में अनेक दुख मनुष्य स्वयं मोल लेता है। इन दुखों का कारण उसके चरित्र में छिपी दुर्बलता होती है। अपव्यय की आदत भी एक ऐसी ही दुर्बलता है। जीवन में सुखी बनने के लिए अपनी आय एवं व्यय के बीच संतुलन रखना अत्यंत आवश्यक है। अपनी इच्छाओं पर अंकुश रखे बिना मनुष्य जीवन में सफल नहीं हो सकता। आय के अनुसार व्यय की आदत डालना जीवन में संयम, व्यवस्था एवं स्वावलंबन जैसे गुण लाती है।

आय के अनुरूप खर्च करना किसी प्रकार से भी कंजूसी नहीं कहलाता। कंजूस की संज्ञा तो वह पाता है जो धन के होते हुए भी जीवन के लिए आवश्यक कार्यों में भी धन खर्च नहीं करता। अल्प व्यय के गुण को लक्ष्य करके ही वृंद कवि ने कहा था कि “तेते पाँव पसारिए जेती लांबी सौर”।

यदि संसार के अधिकांश व्यक्ति अपव्ययी होते तो इस संसार का निर्माण भी संभव न होता। सरकार का भी कर्तव्य है कि वह व्यय करने में अपनी आय की मर्यादा का उल्लंघन न करे अन्यथा जनता को संतुलित रखने के लिए स्वयं को असंतुलित बनाना पड़ेगा। आय के अनुरूप व्यय करने से मनुष्य को कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पडता। मितव्ययिता के अभ्यास द्वारा उसका भविष्य भी सुरक्षित हो जाता है। उसे किसी की खुशामद नहीं करनी पड़ती। मितव्ययी बनने के लिए आवश्यक है कि अपना हर एक काम योजना बनाकर किया जाए। कहीं भी आवश्यकता से अधिक व्यय न करें। अपनी आय के अनुसार खर्च करने वाला व्यक्ति स्वयं भी आनंद उठाता है और उसका परिवार भी प्रसन्नचित्त दिखाई देता है। यह आदत समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है। अतः प्रत्येक को अधोलिखित सूक्ति के अनुसार अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करना चाहिए।
तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।

48. जहाँ चाह वहाँ राह

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन-यापन करने के लिए उसे निरंतर संघर्षशील रहना पड़ता है। इसके लिए वह नित्य नवीन प्रयास करता है जिससे उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे तथा वह नित्य प्रति उन्नति करता रहे। यदि मनुष्य के मन में उन्नति करने की इच्छा नहीं होगी तो वह कभी उन्नति कर ही नहीं सकता। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रयत्न करता है तब कहीं अंत में उसे सफलता मिलती है। सबसे पहले मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होनी चाहिए, तभी हम कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संस्कृत में एक कथन है कि ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अत: कहा जाता है कि जहाँ चाह वहाँ राह।

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49. का वर्षा जब कृषि सुखाने

गोस्वामी तुलसीदास की इस सूक्ति का अर्थ है-जब खेती ही सूख गई, तब पानी के बरसने का क्या लाभ है? जब ठीक अवसर पर वांछित वस्तु उपलब्ध न हुई तो बाद में उस वस्तु का मिलना बेकार ही है। साधन की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है, जब वे समय पर उपलब्ध हो जाएँ। अवसर बीतने पर सब साधन व्यर्थ पड़े रहते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है-लोहे पर तभी चोट करो जबकि वह गर्म हो अर्थात् जब लोहा मुड़ने और ढलने को तैयार हो, तभी उचित चोट करनी चाहिए। उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन-टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता।

अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ-पर-हाथ धरकर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है। जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगाने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता।

50. परिश्रम सफलता की कुंजी है

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है–’उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य-श्यामला बनाया जा सकता है। असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं।

कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं। जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है-जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अत: जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बनकर उपस्थित होगी।

51. पशु न बोलने से और मनुष्य बोलने से कष्ट उठाता है

मनुष्य को ईश्वर की ओर से अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनमें वाणी अथवा वाक्-शक्ति का गुण सबसे महत्त्वपूर्ण है। जो व्यक्ति वाणी का सदुपयोग करता है, उसके लिए तो यह वरदान है और जिसकी जीभ कतरनी के समान निरंतर चलती रहती है, उसके लिए वाणी का गुण अभिशाप भी बन जाता है। भाव यह है कि वाचालता दोष है। पशु के पास वाणी की शक्ति नहीं, इसी कारण जीवन-भर उसे दूसरों के अधीन रहकर कष्ट उठाना पड़ता है। वह सुखदुख का अनुभव तो करता है पर उसे व्यक्त नहीं कर सकता। उसके पास वाणी का गुण होता तो उसकी दशा कभी दयनीय न बनती। कभी-कभी पशु का सद्व्यवहार भी मनुष्य को भ्रांति में डाल देता है।

अनेक कहानियाँ ऐसी हैं जिनके अध्ययन से पता चलता है कि पशुओं ने मनुष्य-जाति के लिए अनेक बार अपने बलिदान और त्याग का परिचय दिया है पर वाक्-शक्ति के अभाव के कारण उसे मनुष्य के द्वारा निर्मम मृत्यु का भी सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत मनुष्य अपनी वाणी के दुरुपयोग के कारण अनेक बार कष्ट उठाता है। रहीम ने अपने दोहे में व्यक्त किया है कि जीभ तो अपनी मनचाही बात कहकर मुँह में छिप जाती है पर जूतियाँ का सामना करना पड़ता है बेचारे सिर को। अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। इस संसार में बहुत-से झगड़ों का कारण वाणी का दुरुपयोग है। एक नेता के मुख से निकली हुई बात सारे देश को युद्ध की ज्वाला में झोंक सकती है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि पशु न बोलने से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने से। कोई भी बात कहने से पहले उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए।

52. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर

जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है, प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य प्राप्ति का द्वारा खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात् पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। ससार के सभी महत्त्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अत: हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।

53. दूर के ढोल सुहावने

इस उक्ति का अर्थ है कि दूर के रिश्ते-नाते बड़े अच्छे लगते हैं। जो संबंधी एवं मित्रगण हम से दूर रहते हैं, वे पत्रों के द्वारा हमारे प्रति कितना अगाध स्नेह प्रकट करते हैं। उनके पत्रों से पता चलता है कि वे हमारे पहुँचने पर हमारा अत्यधिक स्वागत करेंगे। हमारी देखभाल तथा हमारे आदर-सत्कार में कुछ कसर न उठा सकेंगे। लेकिन जब उनके पास पहँचते हैं तो उनका दूसरा ही रूप सामने आने लगता है। उनके व्यवहार में यह चरितार्थ हो जाता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। दूर बजने वाले ढोल की आवाज़ भी तो कानों को मधुर लगती है। पर निकट पहुँचते ही उसकी ध्वनि कानों को कटु लगने लगती है। दूर से झाड़-झंखाड़ भी सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है पर निकट जाने पर पाँवों के छलनी हो जाने का डर उत्पन्न हो जाता है। ठीक ही कहा है-दूर के ढोल सुहावने।

54. लोभ पाप का मूल है

संस्कृत के किसी नीतिकार का कथन है कि लोभ पाप का मूल है। मन का लोभ ही मनुष्य को चोरी के लिए प्रेरित करता है। लोभ अनेक अपराधों को जन्म देता है। लोभ, अत्याचार, अनाचार और अनैतिकता का कारण बनता है। महमूद गज़नवी जैसे शासकों ने धन के लोभ में आकर मनमाने अत्याचार किए। औरंगज़ेब ने अपने तीनों भाइयों का वध कर दिया और पिता को बंदी बना लिया। ज़र, जोरू तथा ज़मीन के झगड़े भी प्रायः लोभ के कारण होते हैं। लोभी व्यक्ति का हृदय सब प्रकार की बुराइयों का अड्डा होता है। महात्मा बुद्ध ने कहा है कि इच्छाओं का लोभ ही चिंताओं का मूल कारण है। लालची व्यक्ति बहुत कुछ अपने पास रखकर भी कभी संतुष्ट नहीं होता। उसकी दशा तो उस मूर्ख लालची के समान हो जाती है जो मुरगी का पेट फाड़कर सारे अंडे निकाल लेना चाहता है। लोभी व्यक्ति अंत में पछताता है। लोभी किसी पर उपकार नहीं कर सकता। वह तो सबका अपकार ही करता है। इसलिए अगर कोई पाप से बचना चाहता है तो वह लोभ से बचे।

55. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं

‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं’ उक्ति का अर्थ है कि पराधीन व्यक्ति सपने में भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता। पराधीन और परावलंबी के लिए सुख बना ही नहीं। पराधीनता एक प्रकार का अभिशाप है। मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक पराधीनता की अवस्था में छटपटाने लगते हैं। पराधीन हमेशा शोषण की चक्की में पिसता रहता है। उसका स्वामी उसके प्रति जैसे भी अच्छा-बुरा व्यवहार चाहे कर सकता है। पराधीन व्यक्ति अथवा जाति अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख सकते। किसी भी व्यक्ति, जाति अथवा देश की पराधीनता की कहानी दुख एवं पीड़ा की कहानी है। स्वतंत्र व्यक्ति दरिद्रता एवं अभाव में भी जिस सुख का अनुभव कर सकता है, पराधीन व्यक्ति उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता। अत: ठीक ही कहा गया है-‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं।’

56. पर उपदेश कुशल बहुतेरे

दूसरों को उपदेश देना अर्थात् सब प्रकार से आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देना सरल है। जैसे कहना सरल तथा करना कठिन है, उसी प्रकार स्वयं अच्छे पथ पर चलने की अपेक्षा दूसरों को अच्छे काम करने का संदेश देना सरल है। जो व्यक्ति दूसरों को उपदेश देता है, वह स्वयं भी उन उपदेशों का पालन कर रहा है, यह जरूरी नहीं। हर व्यापारी, अधिकारी तथा नेता अपने नौकरों, कर्मचारियों तथा जनता को ईमानदारी, सच्चाई तथा कर्मठता का उपदेश देता है जबकि वह स्वयं भ्रष्टाचार के पथ पर बढ़ता रहता है। नेता मंच पर आकर कितनी सारगर्भित बातें कहते हैं, पर उनका आचरण हमेशा उनकी बातों के विपरीत होता है। माता-पिता तथा गुरुजन बच्चों को नियंत्रण में रहने का उपदेश देते हैं-पर वे यह भूल जाते हैं कि उनका अपना जीवन अनुशासनबद्ध एवं नियंत्रित ही नहीं।

57. जैसा करोगे वैसा भरोगे

जैसा करोगे वैसा भरोगे’ उक्ति का अर्थ है कि मनुष्य अपने जीवन में जैसा कर्म करता है, उसी के अनुरूप ही उसे फल मिलता है। मनुष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। सुकर्मों का फल अच्छा तथा कुकर्मों का फल बुरा होता है। दूसरों को पीड़ित करने वाला व्यक्ति एक दिन स्वयं पीड़ा के सागर में डूब जाता है। जो दूसरों का भला करता है, ईश्वर उसका भला करता है। कहा भी है, ‘कर भला हो भला’। पुण्य से परिपूर्ण कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जो दूसरों का शोषण करता है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली बात प्रसिद्ध है। मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्मों में रुचि लेनी चाहिए। दूसरों का हित करना तथा उन्हें संकट से मुक्त करने का प्रयास मानवता की पहचान है। मानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति मानव तथा दानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति दानव कहलाता है। मानवता की पहचान मनुष्य के शुभ कर्म हैं।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

58. समय का महत्त्व/समय सबसे बड़ा धन है

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन को सफलता-असफलता के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है-क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है। हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, खेल, शतरंज आदि में रुचि का होना आदि के द्वारा समय का नष्ट करना।

यदि हम चाहते हैं तो पहले अपना काम पूरा करें। बहुतसे लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी काम में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान् व्यक्तियों के महान् बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है–“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब।”

59. स्त्री-शिक्षा का महत्त्व

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
अर्धांगनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।

आज शिक्षा मानव-जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो?’-यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलगअलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है।

सामाजिक कर्त्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अत: नारी को गृह-विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो।

60. स्वास्थ्य ही जीवन है

जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है-‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया-से-बढ़िया खाद्य-पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है। समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफ़ाई की तरफ़ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है।

सफ़ाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्त्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक। व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।

61. मधुर-वाणी

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है। जो व्यक्ति विनम्र और मधुरवाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है।

मधुरवाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने के इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

62. नारी शक्ति

नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उदंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहीं है। नारी के बिना नर अपूर्ण है। नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है।

नारियाँ ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। एंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बचेंद्री पाल, सानिया मिर्जा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।

63. चाँदनी रात में नौका विहार

ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी के नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी से स्नात पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात-रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती है जो ऐसी लगती है मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो।

जब नौका नदी के मध्य में पहुँच जाती है तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो जाता है तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि-सी वक्र लग रही थी। नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारक वृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पो-सी सीधी तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे। जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए।

डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न होती थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों की ढेर-सी प्रतीत होती थी जिसे डंडों रूपी हथेलियों ने जल में बिखेर दिया हो। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य, अलौकिक एवं अपार्थिव ही लगता था।

64. राष्ट्रीय एकता

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील अस्तित्व से युक्त जनता से होता है। अत: राष्ट्रीय एकता वह भावना है जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है।

भारत की प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला. होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय के आवागमन में आस्था रखते हैं। भाषाई भेद-भाव होते हुए भी भारतवासियों की भाव-धारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ का एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेद-भाव से मुक्त है। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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65. जब मैं अकेली होती हूँ

जब कभी मैं अकेली होती हूँ मेरा मन न जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगता है। मुझे अपने आस-पास सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। उपन्यास, कहानी, पत्र-पत्रिकाएँ आदि व्यर्थ लगने लगती हैं। मैं रेडियो चलाकर गाने सुनने लगती हूँ। जब उनसे मेरा मन भर जाता है तो सी० डी० प्लेयर पर मन-पसंद दुख भरे गाने सुनने लगती हूँ। इनसे भी ऊब होने पर घर की हो चुकी सफ़ाई की पुनः सफ़ाई करने में जुट जाती हूँ, इतने से जब अकेलापन नहीं दूर होता तो चित्रकारी करने बैठ जाती हूँ। रेखांकन के पश्चात् जब रंग भरने लगती हूँ तो पुनः अकेलेपन का एहसास जाग उठता है तथा रंग भरने का उत्साह भी समाप्त हो जाता है। मुझे लगता है, यह अकेलापन मुझे पागल बना देगा। मैं जब भी अकेली होती हूँ मुझे अकेलेपन का एहसास चारों ओर से घेर कर ऐसा चक्रव्यूह बना लेता है जिससे निकलने के समस्त प्रयास करते-करते जब पराजित हो जाती हूँ तो अंत में निद्रा देवी की गोद में जाकर अकेलेपन से उबरने का प्रयास करती हूँ।

66. बारूद के इक ढेर पे बैठी है यह दुनिया

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक-दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु बमों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है। नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाई जा रही हैं जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अकसर दुर्घटनाएं होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर-तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है। धरती का हृदय चीर कर मेट्रो-रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।

67. जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता

समाचार-पत्र का हमारे आधुनिक जीवन में बहुत महत्त्व है। देश-विदेश के क्रिया-कलापों का परिचय हमें समाचारपत्र से ही प्राप्त होता है। कुछ लोग तो प्रायः अपना बिस्तर ही तभी छोड़ते हैं जब उन्हें चाय का कप और समाचारपत्र प्राप्त हो जाता है। जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता उस दिन इस प्रकार के व्यक्तियों को यह प्रतीत होता है कि मानो दिन निकला ही न हो कुछ लोग अपने घर के छज्जे आदि पर चढ़कर देखने लगते हैं कि कहीं समाचार-पत्र वाले ने समाचार-पत्र इतनी ज़ोर से तो नहीं फेंका कि वह छज्जे पर जा गिरा हो। वहाँ से भी जब निराशा हाथ लगती है तो वह आस-पास के घर वालों से पूछते हैं कि क्या उनका समाचार-पत्र आ गया है ? यदि उनका समाचार-पत्र आ गया हो तो वे अपने समाचार-पत्र वाले को कोसने लगते हैं।

उन्हें लगता है आज का उनका दिन अच्छा नहीं व्यतीत होगा। उनका अपने काम पर जाने का मन भी नहीं होता। वे पुराना अखबार उठाकर पढ़ने का प्रयास करते हैं किंतु पढ़ा हुआ होने पर उसे फेंक देते हैं तथा समाचार-पत्र वाहक पर आक्रोश व्यक्त करने लगते हैं। कई लोग तो समाचार-पत्र के अभाव में अपनी नित्य क्रियाओं से भी मुक्त नहीं हो पाते। वास्तव में जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता वह दिन अत्यंत फीका-फीका, उत्साह रहित लगता है।

68. वर्षा ऋतु की पहली बरसात

गरमी का महीना था। सूर्य आग बरसा रहा था। धरती तप रही थी। पशु-पक्षी तक गरमी के कारण परेशान थे। मज़दूर, किसान. रेहडी-खोमचे वाले और रिक्शा चालक तो इस तपती गरमी को झेलने के लिए विवश होते हैं। पंखों, कूलरों और एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गरमी की तपन का अनुमान नहीं हो सकता। जुलाई महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है। सबकी दृष्टि आकाश की ओर उठती है। किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं। अचानक एक दिन आकाश में बादल छा गए। बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर पिऊ-पिऊ मधुर आवाज़ में बोलने लगे। हवा में भी थोड़ी ठंडक आ गई। धीरे-धीरे हल्कीहल्की बूंदा-बाँदी शुरू हो गई। मैं अपने साथियों के साथ गाँव की गलियों में निकल पड़ा।

साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’। किसान भी खुश थे। उनका कहना था-‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएँ भी कह उठी ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियाँ भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए।’ वर्षा तेज़ हो गई थी। खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मजा ही कुछ और है। वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी। मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता। मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था। मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं।

69. बस अड्डे का दृश्य

हमारे शहर का बस अड्डा राज्य के अन्य उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबंध हर दृष्टि से बेकार है। इस बस अड्डे के निर्माण से पहले बसें अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग अड्डों से चला करती थीं। सरकार ने यात्रियों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी बस अड्डे एक स्थान पर कर दिए। आरंभ में तो ऐसा लगा कि सरकार का यह कदम बडा सराहनीय है किंतु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की परेशानियाँ बढ़ने लगीं। बस अड्डे पर अनेक दुकानें बनाई गई हैं जिनमें खान-पान, फल-सब्जियों, पुस्तकों आदि की अनेक दुकानें हैं । खानपान की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का कारण बनता है। दुकानों की साफ़-सफ़ाई की तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता। वहाँ माल बहुत महँगा मिलता है और गंदा भी। बस अड्डे में कई रेहडी वालों को भी फल बेचने की आज्ञा दी गई है।

ये लोग पोलीथीन के काले लिफ़ाफ़े रखते हैं जिनमें वे सड़े-गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफ़ाफ़ा इस चालाकी से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता। घर पहुँचकर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे बदल दिए गए हैं। बस अड्डे की शौचालय की साफ़-सफ़ाई न होने के बराबर है। यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती। लोग भाग-दौड़ कर बस में सवार होते हैं। औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में सवार होना ही कठिन होता है। अनेक बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अंदर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं। अनेक बस अड्डों का हाल तो उनसे भी गया-बीता है। जगहजगह गंदा पानी, कीचड़, मक्खियाँ, मच्छर और न जाने किस-किस गंदगी की भरमार है। सभी बस अड्डे जेबकतरों के अड्डे बने हुए हैं। हर यात्री को अपने-अपने घर पहुँचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस बुरी हालत की ओर ध्यान नहीं देता।

70. शक्ति अधिकार की जननी है

शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्राय: यह दो प्रकार की मानी जाती है-शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी-से-बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान् कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे। तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी।

तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश को आजादी प्राप्त हो गयी। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।

71. भाषण नहीं राशन चाहिए

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुरसी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है।

अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की गरीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं पर हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

72. हमारे पड़ोसी

अच्छे पड़ोसी तो रिश्तेदारों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। वे हमारे सुख-दुख के भागीदार होते हैं। जीवन के हर सुख-दुख में पड़ोसी पहले आते हैं और दूर रहने वाले सगे-संबंधी तो सदा ही देर से पहुँचते हैं। आज के स्वार्थी युग में ऐसे पड़ोसी मिलना बहुत कठिन है। जो सदा कंधे-से-कंधा मिलाकर सुख-दुख में एक साथ चलें। हमारे पड़ोस में एक अवकाश प्राप्त अध्यापक रहते हैं। वे सारे मुहल्ले के बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं। एक दूसरे सज्जन हैं जो सभी पड़ोसियों के छोटे-छोटे काम बड़ी प्रसन्नता से करते हैं। हमारे पड़ोस में एक प्रौढ़ महिला भी रहती है जिन्हें सारे मुहल्ले वाले मौसी कहकर पुकारते हैं। यह मौसी मुहल्ले भर के लड़के-लड़कियों की खोज-खबर रखती है। यहाँ तक कि किसकी लड़की अधिक फ़ैशन करती है, किसका लड़का अवारागर्द है।

मौसी को सारे मुहल्ले की ही नहीं, सारे शहर की खबर रहती है। हम मौसी को चलता-फिरता अखबार कहते हैं। वह कई बार झूठी चुगली करके कुछ पड़ोसियों को आपस में लड़वाने की कोशिश भी कर चुकी है। परंतु सब उसकी चाल को समझते हैं। हमारे सारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं। एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और समय पड़ने पर उचित सहायता भी करते हैं।

73. सपने में चाँद पर यात्रा

आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई-सी लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों जैसी सुंदरियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास ले गईं। वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे। उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे उठा दिया और डाँट पड़ी कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भाग कर बाहर की ओर चला गया।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

74. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना

मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से मुक्त दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़-भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

एक ही अनुच्छेद में किसी विषय से संबंधित विचारों को व्यक्त करना ‘अनुच्छेद लेखन’ कहलाता है। इसे लिखने के लिए कुशलता प्राप्त करना निरन्तर अभ्यास पर निर्भर करता है। अनुच्छेद को लिखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक होता है-

  1. अनुच्छेद लिखने के लिए दिए गए विषय को भली-भांति समझ लेना चाहिए। शीर्षक में दिए गए भावों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए।
  2. अनुच्छेद की भाषा शुद्ध, स्पष्ट और क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित और उचित शब्दों से युक्त होनी चाहिए।
  3. अनुच्छेद पूरी तरह से विषय पर ही आधारित होना चाहिए। उसमें व्यर्थ का विस्तार कदापि नहीं होना चाहिए।
  4. अनुच्छेद की शैली ऐसी होनी चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कह दी जाए। अप्रासंगिक और इधर-उधर की बातों को अनुच्छेद में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए।
  5. अनुच्छेद के सभी वाक्य विषय से ही संबंधित होने चाहिए।
  6. अनुच्छेद किसी निबन्ध की तरह विस्तृत नहीं होना चाहिए।
  7. वाक्य संरचना सरल, सरस, सार्थक और सुगठित होनी चाहिए।
  8. भाव और भाषा में स्पष्टता, मौलिकता और सरलता विद्यमान रहनी चाहिए।
  9. भाषा निश्चित रूप से विषय के अनुरुप और स्तरीय होनी चाहिए। विचार-प्रधान विषयों में विचारात्मकता और. तार्किकता होनी चाहिए। भावात्मकता में अनुभूतियों की अधिकता होनी चाहिए।
  10. वाक्य संरचना में सुघड़ता और लयात्मकता को स्थान दिया जाना चाहिए।

पाठ्य पुस्तक में दिए गए विषयों पर आधारित अनुच्छेद

1. मेरी दिनचर्या

प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को दिनचर्या कहते हैं। मैं प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठता हूँ। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सबसे अच्छा साधन व्यायाम है। व्यायामों में सबसे सरल और लाभदायक व्यायाम प्रातः भ्रमण ही है इसलिए मैं प्रतिदिन भ्रमण के लिए जाता हूँ। प्रातःकाल भ्रमण के अनेक लाभ हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य उत्तम होता है। इसके बाद कुछ योगासन करता हूँ। मैंने अपनी दिनचर्या बड़े क्रमबद्ध तरीके से बनाई हुई। योगासन के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर नाश्ता करता हूँ। फिर अपना बस्ता तैयार करके स्कूल के लिए साइकिल पर निकल जाता हूँ। दोपहर दो बजे तक विद्यालय पढ़ाई करने के बाद घर आकर भोजन करता हूँ। शाम को दोस्तों के साथ खेलने के लिए पार्क में जाता हँ। वहाँ हम सभी दोस्त मिलकर खेलते हैं। इसके बाद घर आकर अपना पढ़ाई का काम करता हूँ। फिर कुछ देर टी० वी० भी देखता हूँ। इतने में माँ रात का भोजन लगा देती है। रात का भोजन करने के बाद मैं बिस्तर में जाकर सो जाता हूँ।

2. मेरी पहली हवाई यात्रा

मानव जीवन में प्रायः ऐसी रोमांचक घटनाएं घटित होती हैं जो मानव को सदैव याद रह जाती हैं। ऐसे कुछ क्षण, ऐसी कुछ यादें ऐसी कुछ यात्राएँ जिन्हें मनुष्य सदा याद कर रोमांचित हो उठता है। बैंगलौर की हवाई यात्रा मेरे जीवन की एक ऐसी ही रोमांचकारी यात्रा थी। जो सदैव मुझे याद रहेगी। मुझे अच्छी तरह याद है कि वह जनवरी का महीना था। हमारी अर्द्धवार्षिक परीक्षा हो चुकी थी। हम घर पर छुट्टियों का आनंद उठा रहे थे कि एक दिन पिता जी दफ्तर से घर आए और कहा कि हम सब दो दिन बाद बैंगलौर घूमने जा रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पूरे परिवार की जैट एयर से उड़ान की टिकट बुक करवा ली थीं। ये सुनते ही मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना न था। निश्चित दिन हम सभी टैक्सी से एयरपोर्ट पहुँच गए। काऊंटर पर हमने अपना सामान जमा करवाया। कंप्यूटर से सारे सामान की जाँच हुई।

उसके बाद हमें यात्री पास मिले। हमारी भी चैकिंग हुई। इसके बाद हम विमान के अंदर गए। वहाँ विमान परिचारिकाओं ने हमें हमारी निश्चित सीट पर बैठाया। उड़ान से पूर्व हमें बताया गया कि हमारी उड़ान कहाँ और कितनी देर की है। हमें सीट बेल्ट बाँधने को कहा गया। मेरी सीट खिड़की के साथ थी। मैं आकाश से धरती के लगातार बदलते रूपों को देख रहा था। यह एक ऐसा निर्वचनीय आनंद था जिसकी अनुभूति तो हो सकती है पर वर्णन नहीं। यह मेरे जीवन की एक रोमांचक यात्रा थी जिसे मैं कभी नहीं भुला सकता।

3. मेरे जीवन का लक्ष्य

संसार में प्रत्येक मनुष्य के जीवन का कोई-न-कोई लक्ष्य अवश्य होता है। एक मनुष्य एवं सामाजिक प्राणी होने के नाते मैंने भी अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया है। मैं बड़ा होकर एक आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ और अध्यापक के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाता हुआ अपने राष्ट्र की सेवा करना चाहता हूँ। मैं आदर्श शिक्षक बनकर अपने राष्ट्र की भावी पीढ़ी के बौद्धिक स्तर को उच्च स्तर पर पहुँचाना चाहता हूँ ताकि मेरे देश की युवा पीढ़ी कुशल, विवेकशील, कर्मनिष्ठ बन सके और मेरा देश फिर से शिक्षा का सिरमौर बन सके। फिर से हम विश्व-गुरु की उपाधि को ग्रहण कर सकें। विद्यार्थी होने के कारण मैं भली-भांति जानता हूँ कि किसी अध्यापक का विद्यार्थियों पर कैसा प्रभाव पड़ता है। कोई अच्छा अध्यापक उनको उच्छी दिशा दे सकता है। मैं भी ऐसा करके देश के युवा वर्ग को नई दिशा देना चाहता हूँ।

4. हम घर में सहयोग कैसे करें?

मानव एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे अपने जीवन-यापन हेतु समाज में दूसरों से किसी-न-किसी कार्य के लिए सहयोग लेना और देना पड़ता है। मानवीय जीवन में सहयोग का बहुत महत्त्व है। हमें इसका प्रारंभ अपने घर से ही करना चाहिए। हमें अपने घर में प्रत्येक सदस्य के साथ सहयोगपूर्ण भावना से मिलजुल कर कार्य करना चाहिए जैसे माता-पिता अपना सब कुछ समर्पित करके घर को चलाते हैं। पिता जी सुबह से शाम तक कठिन परिश्रम करते हैं और माता जी सुबह से लेकर रात तक साफ-सफाई, भोजन बनाना, बर्तन धोना आदि घर के अनेक कार्यों को निपटाने में लगी रहती हैं।

इसलिए हमें भी घर के किसी-न-किसी कार्य में माता-पिता का सहयोग ज़रूर करना चाहिए। हम अनेक छोटे-बड़े कार्यों में माता-पिता का सहयोग कर सकते हैं ; जैसे-दुकान से फल-सब्जियां तथा रसोई का सामान लाना, लांड्री से कपड़े लाना, खाना परोसना आदि। हम अपने छोटे भाई-बहनों को उनके पढ़ाने में उनकी मदद कर सकते हैं। अपने बगीचे की साफ-सफाई तथा घर की सफाई में सहयोग दे सकते हैं। पौधों में खाद-पानी दे सकते हैं तथा उनकी नियमित देख-रेख कर सहयोग दे सकते हैं। इस प्रकार घर में सहयोग की भावना का विकास होगा जिससे पारस्परिक सद्भाव एवं प्रेम की भावना बढ़ेगी और घर खुशहाल बन जाएगा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

5. गाँव का खेल मेला

मेले भारतीय संस्कृति की अनुपम पहचान हैं। ग्रामीण संस्कृति में इनका विशेष महत्त्व है। हमारे गाँव में प्रति वर्ष
खेल मेले का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी हमारे गांव में मई मास में खेल मेले का धूमधाम से आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूरे गाँव को दुल्हन की तरह सजाया गया था। गांव की प्रत्येक गली में बड़ी-बड़ी लाइटें तथा ध्वनि यंत्र लगाए गए। खेल मैदान में दर्शकों के लिए बैठने की विशेष सुविधा की गई थी। मैदान में चारों तरफ लाइटों का भी विशेष प्रबंध था। इस मेले का उद्घाटन राज्य खेल मंत्री के कर कमलों से हुआ।

खेल प्रारंभ होने से पूर्व खेल मंत्री ने सभी टीमों से मुलाकात की तथा उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ियों को खेल-भावना से खेलना चाहिए। प्रथम दिवस कबड्डी, खो-खो तथा साइकिल दौड़ का आयोजन किया गया तथा दूसरे दिन सौदो सौ तथा पाँच सौ मीटर दौड़ आयोजित की गई। क्रिकेट मैच ने सब दर्शकों का मन मोह लिया। खेल मेले के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि शिक्षा अधिकारी ने प्रत्येक वर्ग में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहे सभी खिलाड़ियों को मेडल प्रदान किए। वास्तव में हमारे गाँव का खेल मेला अत्यंत रोचक, मनोरंजकपूर्ण रहा। यह हमारे लिए अविस्मरणीय रहेगा।

6. परीक्षा में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं

परीक्षा में विद्यार्थियों के धैर्य और वर्षभर किए गए परिश्रम की परख होती है। यह सत्य है कि परीक्षा में सभी विद्यार्थियों की अच्छे अंक पाने की कामना होती है और अच्छे अंक प्राप्त करने से उनका सभी जगह सम्मान होता है। इससे विद्यार्थी का आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है। उसकी स्वर्णिम भविष्य की राहें आसान हो जाती हैं। किंतु परीक्षा में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं हैं क्योंकि सफलता केवल अच्छे अंकों से ही प्राप्त नहीं होती बल्कि सफलता के इसके अतिरिक्त कई पहलू और भी हैं। सफलता के लिए आत्मविश्वास, साहस, विवेक, इच्छाशक्ति, सकारात्मक सोच होनी चाहिए। कम अंक पाने वाले लोग भी इन बिंदुओं के आधार पर सफलता की ऊँचाइयों को छू सकते हैं।

इसके लिए आदमी को अपनी क्षमता की पहचान अवश्य होनी चाहिए। दुनिया में ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें कम अंक पाने के बावजूद भी श्रेष्ठ स्तर की सफलता को प्राप्त किया है। दुनिया के श्रेष्ठ वैज्ञानिक आइंस्टाइन स्कूली स्तर पर औसत विद्यार्थी रहे लेकिन आगे चलकर उन्होंने अनूठे आविष्कार किए। इसी तरह मुंशी प्रेमचन्द ने दसवीं की परीक्षा मुश्किल से द्वितीय श्रेणी में पास की और कई बार फेल होने के बाद बी०ए० की परीक्षा पास की थी। इसके बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद दुनिया के अमर उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। इसी प्रकार अनेक क्रिकेटर, खिलाड़ी, संगीतकार, नेता, अभिनेता, गायक आदि हुए हैं जो अपने अकादमिक रूप में नहीं बल्कि अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। सचमुच परीक्षा में केवल अच्छे अंक पाना ही जीवन में सफलता की प्राप्ति का मापदंड नहीं है।

7. ज्ञान वृद्धि का साधन-भ्रमण

संसार में ज्ञान-वृद्धि और ज्ञानार्जन के अनेक साधन हैं। पाठ्य-पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं आदि पढ़कर तथा अनेक स्थलों की यात्राएं करके भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। रेडियो, टेलीविज़न सुन-देखकर भी देश-विदेश की अनेक जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। किन्तु भ्रमण ज्ञान वृद्धि का अनुपम साधन है। यह ज्ञानवृद्धि के साथ-साथ आनंद . और मौज-मस्ती का अनूठा साधन है। ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के भ्रमण से ज्ञानवृद्धि ही नहीं, मन की शांति, आत्मिक प्रसन्नता और सौंदर्यानुभूति भी प्राप्त होती है। इसी तरह नदियों, पर्वतों, झरनों, वनों, तालाबों आदि के भ्रमण से प्राकृतिक सौंदर्य का ज्ञान एवं आनंद ग्रहण किया जा सकता है। भ्रमण से मनुष्य को चहुँमुखी ज्ञान की प्राप्ति होती है। उसके आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है वस्तुतः भ्रमण ज्ञान वृद्धि का साधन है।

8. प्रकृति का वरदान : पेड़-पौधे

प्रकृति ने संसार को अनेक अनूठे उपहार भेंट किए हैं। पेड़-पौधे प्रकृति का अनूठा वरदान है। पेड़-पौधे संपूर्ण जीवजगत के जीवन का मूलाधार हैं। ये पर्यावरण को साफ, स्वच्छ एवं सुंदर बनाते हैं। ये कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन दूसरों को देते हैं। इस ऑक्सीजन से सम्पूर्ण प्राणी जगत सांस लेता है। पेड़-पौधे स्वयं सूर्य की तपन को सहन कर दूसरों को छाया प्रदान करते हैं। वे अपने फल स्वयं कभी नहीं खाते बल्कि उन्हें भी हमें ही दे देते हैं। वे इतने विन्रम होते हैं कि फल आने पर स्वयं ही नीचे की तरफ झुक जाते हैं। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। धरा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। भूमि को पानी के कटाव से रोकते हैं। पेड़-पौधों से हमें लकड़ियाँ, औषधियाँ, छाल आदि अनेक अमूल्य उपहार प्राप्त होते हैं। संभवतः पेड़-पौधे प्रकृति का अनूठा वरदान हैं। हमें भी पेड़-पौधों का संरक्षण करना चाहिए। अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए।

9. अपने नए घर में प्रवेश

मैंने बचपन में एक सपना देखा था कि हमारा नया घर होगा जिसमें हम सपरिवार खुशी से रहेंगे। मेरा यह सपना गत सप्ताह पूर्ण हुआ। पिछले सप्ताह ही हमारा नया घर बनकर तैयार हुआ जिसमें घर के अनुरूप नए पर्दै, फर्नीचर आदि लगवाया गया। सोमवार को हमारा गृह-प्रवेश था जिसमें हमने अपने सभी मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को सादर आमंत्रित किया था। इस अवसर पर सुबह सात बजे ही पंडित जी ने पूजा विधान का कार्यक्रम आरंभ कर दिया। इसके बाद हवन-यज्ञ किया गया जिसमें परिवार के सभी लोग सम्मिलित हुए। पंडित जी ने नारियल फोड़कर परिवार से गृहप्रवेश करवाया। पूजा-विधान के पश्चात् दोपहर के भोजन का प्रबंध किया गया था। हमारे सभी मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने आनंदपूर्वक भोजन किया और जाते समय सभी ने गृह-प्रवेश पर लाखों बधाइयां दी। हमने सपरिवार सभी मेहमानों का धन्यवाद किया। वास्तव में नए गृह-प्रवेश के अवसर पर हम सब बहुत उत्साहित थे।

10. कैरियर चनाव में स्वमूल्यांकन

कैरियर चुनाव मानव-जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि कैरियर चुनाव की सार्थकता ही मानव-जीवन की सफलता की सीढ़ी है। यह वर्तमान युवा वर्ग की सबसे बड़ी चुनौती है। यह बात सच है कि कैरियर के चुनाव में माता पिता, मित्र, रिश्तेदार आदि अनेक लोगों की राय होती हैं किंतु कैरियर चुनाव में स्वमूल्यांकन सर्वोत्तम है। युवा वर्ग को अपने विद्यार्थी जीवन के प्रारंभ से ही इसकी जानकारी होनी चाहिए। उसे प्रारंभ से स्वमूल्यांकन कर लेना चाहिए। अपनी पसंद, क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक, बुद्धि कौशल और आत्म-विश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करना अति महत्त्वपूर्ण है। यदि विद्यार्थी अपनी क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक बुद्धि-कौशल और आत्मविश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करता है तो वह अवश्य ही सफल होता है। उसे अपने कैरियर के चुनाव में किसी बात की कोई कठिनाई नहीं आती। वह अपनी रुचि के अनुकूल अपना कैरियर बनाने में सफल हो सकता है। अत: कैरियर चुनाव में दूसरों की राय की अपेक्षा स्वमूल्यांकन अत्यावश्यक है।

11. विद्यार्थी और अनुशासन

विद्यार्थी और अनुशासन एक-दूसरे के पूरक हैं। यूं कहें कि अनुशासन ही विद्यार्थी जीवन की नींव है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासित विद्यार्थी ही सफलता की ऊंचाई को छूने में सफल होता है जो विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन को नहीं अपनाता वह कभी भी सफल नहीं होता बल्कि अपने जीवन को ही बर्बाद कर लेता है। बिना अनुशासन के विद्यार्थी जीवन कटी-पतंग के समान होता है जिसका कोई लक्ष्य नहीं होता। जो विद्यार्थी अपने विद्यालय के प्रांगण में रहकर प्रतिक्षण अनुशासन का पालन करता है। अपने शिक्षकों का आदर करता है और इतना ही नहीं जीवन में हर पल नियमों-अनुशासन में बंधकर चलता है ; वह कदापि निष्फल नहीं हो सकता। सफलता उसके कदम अवश्य ही चूमती है। इसलिए विद्यार्थी को कभी भी अनुशासन भंग नहीं करना चाहिए बल्कि सदैव अनुशासन का पालन करना चाहिए। एक अनुशासित विद्यार्थी ही राष्ट्र का आदर्श नागरिक बनता है और देश के चहुंमुखी विकास में अपना योगदान देता है।

12. कोचिंग संस्थानों का बढ़ता जंजाल

वर्तमान युग कंपीटीशन का युग है। आज हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है। आज के विद्यार्थी को पग-पग पर अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। मेडिकल, सेना, कानून, प्रशासनिक सेवाओं, इंजीनियरिंग आदि कोरों में प्रवेश लेने के लिए अलग-अलग परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। इतना ही नहीं अनेक प्रकार की नौकरियां पाने के लिए भी आजकल प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं जिनके पास करने के उपरांत ही प्रतियोगी को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। आज के युग में प्रतियोगिता निरन्तर बढ़ती जा रही है। एक-एक सीट पर दाखिला लेने और नौकरी पाने के लिए हजारों-लाखों प्रतियोगी पंक्तिबद्ध होकर प्रतीक्षा में रहते हैं जिसके चलते आज कोचिंग संस्थानों की भरमार हो रही है।

चूंकि हर कोई अपने को सिद्ध करने के लिए कोचिंग संस्थानों की ओर भागता है। परिणामस्वरूप छोटे से लेकर बड़े शहरों तक कोचिंग संस्थानों ने अपना जाल बिछा दिया है। दिल्ली, मुंबई, बंगलौर जैसे शहरों में तो जगह-जगह बड़ेबड़े संस्थान खुले हुए हैं जिनमें लाखों लोग पढ़ रहे हैं। ये संस्थान लाखों की फीस ऐंठकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योंकि कोचिंग से बढ़कर स्वाध्ययन ज़रूरी है। स्वध्ययन से ही प्रतियोगी के अंदर आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न होती है और आत्मविश्वास ही सफलता होती है। इसलिए हमें स्वाध्ययन को ही आधार बनाना चाहिए।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

13. मैंने लोहड़ी का त्योहार कैसे मनाया?

लोहड़ी भारतीय संस्कृति का पवित्र और महत्त्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह प्रतिवर्ष 13 जनवरी को संपूर्ण भारत वर्ष में बड़े हर्षोल्लास एवं मौज-मस्ती के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष मैंने लोहड़ी का त्योहार अपने मामा जी के घर अमृतसर में मनाया। मैं एक दिन पहले ही अपने मामा जी के घर पहुंच गया था। लोहड़ी वाले दिन सुबह से ही ढोल-नगाड़े बजने प्रारंभ हो गए थे। सब गले मिलकर एक-दूसरे को पावन पर्व की बधाइयाँ दे रहे थे। मैंने भी अपने भाई के साथ मिलकर पूरे मोहल्ले वालों को बधाइयां दी। सब लोग एक-दूसरे के घर मिठाइयां, रेवड़ी, मूंगफली बांट रहे थे।

उस दिन शाम को मोहल्ले के बीच में सबने अपने-अपने घर से लकड़ियाँ लाकर बड़ा ढेर लगा दिया। सभी उसके चारों तरफ इकट्ठे हो गए। पूरी श्रद्धा एवं आनंद के साथ लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की गई। तत्पश्चात् सबने लोहड़ी की पूजा अर्चना की। सब उसकी परिक्रमा कर रहे थे और गीत गा रहे थे। पूजा के बाद सबको रेवड़ी, मूंगफली आदि का प्रसाद बांटा गया। इसके बाद ढोल-नगाड़े बजने लगे तो सभी लोग झूम उठे। लड़कियां गिद्दा पाने लगी तो लड़के भांगड़ा करने लगे। सचमुच यह लोहड़ी का त्योहार मैंने खूब आनंदपूर्वक मनाया। यह मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा।

14. जनसंचार के माध्यम

वर्तमान युग विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं भूमंडलीकरण का युग है। आज के युग में जनसंचार के क्षेत्र में क्रांति-सी आ गई है। आज पहले की अपेक्षा जनसंचार के आधुनिक एवं अनेक साधन हैं जिनसे हम दूसरों तक अपनी बात को आसानी से पहँचा सकते हैं। अब तो जनसंचार के लिए मोबाइल फोन हर व्यक्ति की जेब में सदा विद्यमान रहता है जिससे आप देश-विदेश कहीं भी बात कर सकते हो, संदेश प्राप्त कर सकते हो या उन्हें कहीं भी भेज सकते हो। इंटरनेट की सुविधा ने तो पूरे संसार को एक गाँव में बदल कर रख दिया है। पत्र-पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविज़न, मोबाइल, टेलीफोन, इंटरनेट, ई-मेल, फैक्स आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यम हैं। जनसंचार के इन माध्यमों को हम अनेक वर्गों में बांट सकते हैं। मौखिक और लिखित। दृश्य और श्रव्य तथा दृश्य एवं श्रव्य दोनों। इन सभी माध्यमों का देश के शिक्षा, व्यापार, व्यवसाय, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में अनूठा योगदान है।

15. भ्रूण हत्या : एक जघन्य अपराध

आज हमारे देश में दहेज प्रथा, बाल विवाह, जनसंख्या वृद्धि, कन्या भ्रूण हत्या आदि अनेक समस्याएं हैं जिनमें कन्या भ्रूण हत्या एक भयंकर समस्या है। यह एक ऐसा जघन्य अपराध है जो देश की महानता और गौरव-गरिमा को धूमिल कर रहा है। वैज्ञानिक उन्नति ने इस अपराध को बढ़ावा देने का कार्य किया है। मेडिकल क्षेत्र में नवीन खोज़ से जो बड़ीबड़ी और अति आधुनिक अल्ट्रासाऊंड मशीनें आई हैं जिनका उपयोग जनकल्याण कार्यों के लिए किया जाना था। आज कुछ स्वार्थी लोग अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु उनका गलत कार्यों के लिए उपयोग कर रहे हैं।

वे माता-पिता को जन्म से पूर्व ही अल्ट्रासांऊड के माध्यम से यह बता देते हैं कि गर्भ में पल रहा भ्रूण बेटा है अथवा बेटी। हालांकि ऐसा करना हमारे देश में कानूनी अपराध है किन्तु फिर भी कुछ लोग अपने लालच के कारण ऐसा कर रहे हैं जिससे मातापिता एक बेटे की चाह में उस कन्या को जन्म से पहले ही गर्भ में मरवा देते हैं। इसका दुष्परिणाम यह है कि देश में लड़कियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए। इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति को कड़ी सजा देनी चाहिए।

16. मेरी दिनचर्या

प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को दिनचर्या कहते हैं। मैं प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठता हूँ। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सबसे अच्छा साधन व्यायाम है। व्यायामों में सबसे सरल और लाभदायक व्यायाम प्रातः भ्रमण ही है इसलिए मैं प्रतिदिन भ्रमण के लिए जाता हूँ। प्रातःकाल भ्रमण के अनेक लाभ हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य उत्तम होता है। इसके बाद कुछ योगासन करता हूँ। मैंने अपनी दिनचर्या बड़े क्रमबद्ध तरीके से बनाई हुई है। योगासन के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर नाश्ता करता हूँ। फिर अपना बस्ता तैयार करके स्कूल के लिए साइकिल पर निकल जाता हूँ। दोपहर दो बजे तक विद्यालय पढ़ाई करने के बाद घर आकर भोजन करता हूँ। शाम को दोस्तों के साथ खेलने के लिए पार्क में जाता हूँ। वहाँ हम सभी दोस्त मिलकर खेलते हैं। इसके बाद घर आकर अपना पढ़ाई का काम करता हूँ। फिर कुछ देर टी०वी० भी देखता हूँ। इतने में माँ रात का भोजन लगा देती है। रात का भोजन करने के बाद मैं बिस्तर में जाकर सो जाता हूँ।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar apathit gadyansh अपठित गद्यांश Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अपठित गद्यांश

1. इस संसार में प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदत्त सबसे अमूल्य उपहार ‘समय’ है। ढह गई इमारत को दुबारा खड़ा किया जा सकता है। बीमार व्यक्ति को इलाज द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है; खोया हुआ धन दुबारा प्राप्त किया जा सकता है। किंतु एक बार बीता समय दुबारा नहीं पाया जा सकता। जो समय के महत्त्व को पहचानता है, वह उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। जो समय का तिरस्कार करता है, हर काम में टालमटोल करता है, समय को बर्बाद करता है, समय भी उसे एक दिन बर्बाद कर देता है। समय पर किया गया हर काम सफलता में बदल जाता है जबकि समय के बीत जाने पर बहुत कोशिशों के बावजूद भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता।

समय का सदुपयोग केवल कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है, लापरवाह, कामचोर और आलसी नहीं। आलस्य मनुष्य की बुद्धि और समय दोनों का नाश करता है। समय के प्रति सावधान रहने वाला मनुष्य आलस्य से दूर भागता है तथा परिश्रम, लगन व सत्कर्म को गले लगाता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अत्यधिक महत्त्व होता है। विद्यार्थी को अपने समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए न कि अनावश्यक बातों, आमोद. प्रमोद या फैशन में।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार क्या है?
उत्तर:
प्रकृति के द्वारा मनुष्य को दिया गया अमूल्य उपहार समय है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति किससे दूर भागता है?
उत्तर:
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति आलस्य से दूर भागता है।

प्रश्न 3.
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिये?
उत्तर:
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन से करना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘कर्मठ’ तथा ‘तिरस्कार’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कर्मठ-परिश्रमी, तिरस्कार-अपमान।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
समय-प्रकृति का अमूल्य उपहार।

2. हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है, क्योंकि हर समाज में ऐश्वर्यपूर्ण, स्वच्छंद और आडंबरपूर्ण जीवन जीने वाले लोग अधिक हैं। आज मनुष्य सुखभोग और धन-दौलत के पीछे भाग रहा है। उसकी असीमित इच्छाएँ उसे स्वार्थी बना रही हैं। वह अपने स्वार्थ के सामने दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक की परवाह नहीं करता जबकि विचारों की उच्चता में ऐसी शक्ति होती है कि मनुष्य की इच्छाएँ सीमित हो जाती हैं। सादगीपूर्ण जीवन जीने में उसमें संतोष और संयम जैसे अनेक सदुगुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त उसके जीवन में लोभ, द्वेष और ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं रहता।

उच्च विचारों से उसका स्वाभिमान भी बढ़ जाता है जो कि उसके चरित्र की प्रमुख पहचान बन जाता है। इससे वह छल-कपट, प्रमाद और अहंकार से दूर रहता है। किन्तु आज की इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में हरेक व्यक्ति की यही लालसा रहती है कि उसकी जिंदगी ऐशो-आराम से भरी हो। वास्तव में आज के वातावरण में मानव पश्चिमी सभ्यता, फैशन और भौतिक सुख साधनों से भ्रमित होकर उनमें संलिप्त होता जा रहा है। ऐसे में मानवता की रक्षा केवल सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले महापुरुषों के आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हर देश जाति और धर्म के महापुरुषों ने किस सिद्धांत पर बल दिया है?
उत्तर:
हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है।

प्रश्न 2.
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को किस चीज़ की परवाह नहीं रहती?
उत्तर:
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता को भी परवाह नहीं रहती।

प्रश्न 3.
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में कौन-कौन से गुण उत्पन्न हो जाते हैं?
उत्तर:
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में संतोष और संयम के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘प्रमाद’ तथा ‘लालसा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
प्रमाद-नशा/उन्माद, लालसा-अभिलाषा।

प्रश्न 5.
उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
सादा जीवन उच्च-विचार।

3. मनुष्य का जीवन कर्म-प्रधान है। मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फंसे बिना उसे लगातार कर्त्तव्यनिष्ठ रहना है। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किंतु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की संपत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते हैं, वह पूरा नहीं होता है। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं।

उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुनः प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, बल्कि उसके समस्त जीवन को ही ढंक लेता है। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्नबाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्त्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनंद एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर कैसा भाव होना चाहिए?
उत्तर:
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर सफलता-असफलता की चिंता को त्याग और केवल कर्त्तव्य के पालन का भाव होना चाहिए।

प्रश्न 2.
सफलता कब प्राप्त होती है?
उत्तर:
सफलता की प्राप्ति तब होती है जब मनुष्य बिना किसी आशा या निराशा के चक्र में फंसे हुए निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है।

प्रश्न 3.
जीवन में असफल होने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
जीवन में असफल होने पर कभी भी निराश-हतांश नहीं होना चाहिए और निरंतर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘निष्काम’ और ‘मनीषियों’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
निष्काम-असक्ति से रहित, निरीह।
मनीषियों-विचारशील पुरुषों, पंडितों/विद्वानों।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
जीवन में कर्म का महत्त्व।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

4. व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है। भारत सरकार इस दिशा में सराहनीय भूमिका निभा रही है। इस शिक्षा को प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। व्यावसायिक शिक्षा में ऐसे कोर्स रखे जाते हैं जिनमें व्यावहारिक प्रशिक्षण अर्थात् प्रैक्टीकल ट्रेनिंग पर अधिक जोर दिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता के लिए एक बेहतर कदम है। व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए भारत व राज्य सरकारों ने इसे स्कूल-स्तर पर शुरू किया है। निजी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभा रही हैं। कुछ स्कूलों में तो नौवीं कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है।

परंतु बड़े पैमाने पर इसे ग्यारहवीं कक्षा से शुरू किया गया है। व्यावसायिक शिक्षा का दायरा काफ़ी विस्तृत है। विद्यार्थी अपनी पसंद और क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यावसायिक कोरों में प्रवेश ले सकते हैं। कॉमर्स-क्षेत्र में कार्यालय प्रबंधन, आशुलिपि व कंप्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, मार्कीटिंग एंड सेल्ज़मैनशिप आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टैक्नोलॉजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। कृषि-क्षेत्र में डेयरी उद्योग, बागबानी तथा कुक्कुट ( पोल्ट्री) उद्योग से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। गह-विज्ञानक्षेत्र में स्वास्थ्य, ब्यूटी, फैशन तथा वस्त्र उद्योग आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

हैल्थ एंड पैरामैडिकल क्षेत्र में मैडिकल लैबोरटरी, एक्स-रे टैक्नोलॉजी एवं हैल्थ केयर साइंस आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमैंट, टूरिज्म एंड ट्रैवल, बेकरी से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। सूचना तकनीक के तहत आई० टी० एप्लीकेशन कोर्स किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय प्रबन्धन, जीवन बीमा, पत्रकारिता आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
व्यावसायिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवसाय अथवा रोज़गार पर आधारित शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2.
इंजीनियरिंग क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
उत्तर:
इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन और ऑटोमोबाइल टेक्नॉलाजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

प्रश्न 3.
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में कौन-कौन से कोर्स किए जा सकते हैं?
उत्तर:
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म एंड ट्रेवल, बेकरी आदि से संबंधित कोर्स किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘क्षमता’ तथा ‘विस्तृत’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
क्षमता–शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता, विस्तृत-फैला हुआ।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व।

1. साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी जिंदगी है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धम बनाते हैं।

(I) साहसी व्यक्ति की विशेषताएं लिखिए।
(II) साहस की जिंदगी की पहचान क्या है?
(III) क्रांति करने वाले क्या नहीं करते?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) साहसी व्यक्ति निडर होता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग उसके विषय में क्या कहते हैं। वह बिना किसी की नकल लिए हुए जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
(II) साहस की जिंदगी पूरी तरह से निडर और बेखौफ़ होती है। वह आस-पास और जनमत की चिंता नहीं करता।
(III) क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए न तो अपनी चाल धीमी करते हैं और न ही पड़ोसियों से अपनी तुलना करते हैं।
(IV) बेखौफ़ = बिना भय के। जनमत = लोगों का समर्थन।
(V) साहस की जिंदगी।

2. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन से नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथि बन कर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन रूपी संग्राम स्थल से जो रथ गुजरते हैं वे सरल-सीधे मार्ग से नहीं गुज़रते। वे तो कांटों से भरे बीहड़ रास्ते से गुजरते हैं।
(II) जीवन के कष्टों का सामना हम आत्म-विश्वास के शस्त्र से कर सकते हैं।
(III) निराशा की काली घटाएं दृढ़ आत्मविश्वास और आत्मिक शक्ति से समाप्त हो जाती हैं।
(IV) नंदन वन = स्वर्ग लोक में देवताओं का उपवन । सोपानों = सीढ़ियों।
(V) आत्म-विश्वास।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

3. आजकल हमारी शिक्षा पद्धति के विरुद्ध देश के कोने-कोने में आवाज़ उठाई जा रही है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इससे समाज की कितनी हानि हुई है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इसका उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए तैयार करना है। मैकाले ने इसका सूत्रपात शासन चलाने के निमित क्लर्क तैयार करने को किया था, दोषपूर्ण है। आधुनिक शिक्षा व्यय साध्य है। उसकी प्राप्ति पर सहस्रों रुपए व्यय करने पड़ते हैं। सर्व-साधारण ऐसे बहुमूल्य शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि ज्यों-त्यों करके करे भी तो इससे उसकी जीविका का प्रश्न हल नहीं होता।

क्योंकि शिक्षित युवकों में बेकारी बहुत बढ़ी हुई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य विद्यार्थियों को सभी विषयों का ज्ञाता बनाना है पर किसी विषय का पण्डित बनाना नहीं। सौभाग्य का विषय है कि अब इस शिक्षा-पद्धति में सुधार की योजना की जा रही है और निकट भविष्य में यह हमारे राष्ट्र के कल्याण का साधन बनेगी।

(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का क्या उद्देश्य है?
(II) आधुनिक शिक्षा में कौन-कौन से दोष हैं?
(III) शिक्षा-सुधार से देश में क्या अंतर दिखाई देगा?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए सस्ते क्लर्क तैयार करना है।
(II) आधुनिक शिक्षा महंगी है जो सब को सुलभ नहीं है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति को सभी विषयों का थोड़ाबहुत ज्ञान तो दिया जा सकता है लेकिन किसी विषय का पंडित नहीं बनाया जा सकता।
(III) शिक्षा-पद्धति में सुधार से राष्ट्र का कल्याण होगा तथा सभी शिक्षा को प्राप्त कर सकेंगे।
(IV) मैकाले = अंग्रेज़ी शासन में शिक्षा की नीतियों का रचयिता एक अंग्रेज़ अधिकारी। निमित्त = के लिए।
(V) वर्तमान शिक्षा प्रणाली।

4. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहंकार बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है। किंतु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है।

इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं है। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किस का विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहं के बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः अपने गुरुजनों या अपने से बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थी में अपने अधिकारों और माँगों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। विमुख = दूर होना, परे हटना।
(V) विद्यार्थी और अहंकार।

5. यह वह समय था जब दिल्ली पर मुसलमान सुल्तानों का राज्य था। एक समय ऐसा भी आया जब यहां के काज़ी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी। एक लोक गाथा यह भी है कि रांझे ने न्याय के लिए, इसी नगरी के काज़ी की शरण ली थी। मुगलों के बाद जब यह नगर रियासत पटियाला के अधिकार में आया तो इस नगर की सभ्यता ने भी पलटा खाया और लोगों का रहन-सहन पटियालवी रंग में रंग गया। वही चूड़ीदार पजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी। बंटवारे के उपरांत यह रंग-ढंग भी तिरोहित हो गए और अन्य नगरों की भांति सामाना के लोग भी पश्चिमी रंग में रंग गए हैं। एक और बड़े-बूढ़े प्राचीन परंपरा को संभाले हुए हैं और दूसरी ओर युवा पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर अग्रसर है।

(I) काज़ी को कब और क्या प्राप्त थी?
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला का क्या प्रभाव पड़ा?
(III) सामाना के नये और पुराने लोगों की वेशभूषा कैसी है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) दिल्ली पर मुसलमानों के शासन के समय काजी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी।
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला के रहन-सहन का प्रभाव पड़ा था जिस कारण वहाँ चूड़ीदार पाजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी लोकप्रिय हो गई थी।
(III) सामाना में बड़े-बूढ़े लोग परंपरागत वेशभूषा ही पहनते हैं लेकिन नयी पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर बढ़ रहे हैं।
(IV) उपरांत = के पश्चात्। तिरोहित = दूर।
(V) समयानुसार बदलती सभ्यता।

6. प्यासा आदमी कुएं के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परंतु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप सज्जनों के पास जाएं और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवन भर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उंडेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्त्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्संगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।

(I) घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(II) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का क्यों होता है?
(III) पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
(I) घर बैठे-बैठे पुस्तकों का अध्ययन करने से लेखकों के ज्ञान के द्वारा सत्संगति का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
(II) हर लेखक और कलाकार को ईश्वर के द्वारा अलग-अलग प्रकार की बुद्धि मिलती है जिसे वह अपनी पुस्तक के रूप में प्रकट कर देता है। इसलिए हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का होता है।
(III) घर बैठे-बैठे लोगों को सत्संगति का लाभ दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।
(IV) निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। स्वाध्याय = अपने आप अध्ययन करना।
(V) स्वाध्याय की उपयोगिता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

7. संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज़ नहीं है। धर्म ही एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या है। उस धर्म को समझने की आवश्यकता है। धर्म में त्याग की महत्ता है। इस त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है। त्याग परिवार के लिए, ग्राम के लिए, नगर के लिए, देश के लिए और मानव मात्र के लिए भी हो सकता है। परिवार से मनुष्य मात्र तक पहुंचते-पहुंचते हम एक संकुचित घेरे से निकल कर विशाल परिधि में घूमने लगते हैं। यही वह क्षेत्र है, जहां देश और जाति की सभी दीवारें गिर कर चूर-चूर हो जाती हैं। मनुष्य संसार भर को अपना परिवार और अपने-आप को उसका सदस्य समझने लगता है। भावना के इस विस्तार ने ही धर्म का वास्तविक स्वरूप दिया है जिसे कोई निर्मल हृदय संत ही पहचान सकता है।

(I) धर्म की प्रमुख उपयोगिता क्या है?
(II) धर्म का वास्तविक रूप किसमें निहित है?
(III) मनुष्य संसार को अपना कब समझने लगता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) धर्म मनुष्य को विवेक और त्याग की भावना प्रदान करता है जिससे मनुष्य पशु से भिन्न बनता है।
(II) धर्म का वास्तविक रूप त्याग और कर्त्तव्यपरायणता में विद्यमान है। त्याग और कर्त्तव्यपरायणता परिवार, ग्राम, नगर, देश, मानव आदि के लिए हो सकता है।
(III) मनुष्य सारे संसार को तब अपना समझने लगता है जब वह व्यक्ति से बाहर निकल मनुष्य-मात्र तक पहुँच जाता है, वहां देश और जाति की सभी दीवारें नष्ट हो जाती हैं और मनुष्य संसार को अपना समझने लगता है।
(IV) अन्यथा = नहीं तो। निहित = विद्यमान।
(V) धर्म का वास्तविक स्वरूप।

8. आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्याग कर भौतिक . स्तर से ऊंचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने का प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नये-नये रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपराणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।

(I) मानव जीवन में समस्याएं निरंतर क्यों बढ़ रही हैं?
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए क्या कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए।
(III) किन जीवन मूल्यों के द्वारा सुख प्राप्त की कामना की जा सकती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मानव जीवन में विवेक, ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों की कमी होती जा रही है जिस कारण उसमें समस्याएं निरन्तर बढ़ रही हैं।
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए सभी उचित-अनुचित कार्य कर रहा है। उसने विवेक और ईमानदारी को त्याग दिया है जो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए।
(III) सदाचार, कर्त्तव्यपरायणता, त्याग आदि जीवन मूल्यों के द्वारा जीवन में सुख की कामना की जा सकती है।
(IV) उत्तरोत्तर = निरंतर, लगातार। ऐश्वर्य = धन-दौलत।
(V) आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता।

9. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बंद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती, जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूंद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभीकभी ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान् कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है जिसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ।

(I) जीवन क्या है?
(II) जीवन में अचानक घटी घटनाएँ मनुष्य को कहाँ ले जाती हैं?
(III) लेखक क्या सुनाना चाहती है?
(IV) ‘समूह और रोमांचकारी’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन विभिन्न घटनाओं का समूह है। यह बहती हुई एक नदी के समान है।
(II) जीवन में अनाचक घटी घटनाएँ मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं।
(III) लेखक अपने जीवन की रोमांचकारी घटना सुनाना चाहता है।
(IV) समूह = झुंड। रोमांचकारी = आनंददायक।
(V) जीवन एक संघर्ष।

10. मनोरंजन का जीवन में विशेष महत्त्व है। दिन भर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है–मनोरंजन। मनोरंजन मानव जीवन में संजीवनी-बूटी का काम करता है। यह मनुष्य के थके-हारे शरीर को आराम की सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस बन कर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी न रह पाता।

(I) मनोरंजन क्या है?
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसा होता?
(III) नीरस मानव जीवन का सब से बड़ा नुकसान क्या होता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मनोरंजन मनुष्य की शारीरिक, मानसिक थकान को कम करके उसे सुख देने का साधन है। वह उसके जीवन की संजीवनी बूटी है।
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन पूर्ण रूप से नीरस होता।
(III) नीरस मानव जीवन उसे पूरी तरह से तोड़ डालता है और वह संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य न रह जाता।
(IV) दिनचर्या = दिन-भर के काम। संजीवनी बूटी = मृत व्यक्ति को फिर जीवित करने वाली जड़ी-बूटी।
(V) मनोरंजन का महत्त्व।

11. व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों ही रूपों का अध्ययन कराता है। यद्यपि इस प्रकार के अध्ययन का क्षेत्र मौखिक भाषा ही रहती है, तथापि भाषा के लिखित रूप को भी अध्ययन का विषय बनाया जाता है। भाषा और लिपि के परस्पर संबंध से कभी-कभी यह भ्रांति भी फैल जाती है कि दोनों अभिन्न हैं। वस्तुत: भाषा लिपि के बिना भी रह सकती है। आदिम जातियों की कई भाषाएं केवल मौखिक रूप में ही व्यवहृत हैं, उनके पास कोई लिपि नहीं है। पर लिपि भाषा के बिना नहीं रह सकती। किसी भी भाषा विशेष के लिए परंपरा के आधार पर एक विशेष लिपि रूढ़ि हो जाती है। जैसे-हिंदी के लिए देवनागरी लिपि। पर इसे अन्य लिपि (फ़ारसी या रोमन) में लिखना चाहें, तो लिख सकते हैं।

(I) व्याकरण किस अध्ययन का आधार है?
(II) भाषा की लिपि सदा आवश्यक क्यों नहीं होती?
(III) हिंदी की लिपि का नाम लिखिए।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों रूपों के अध्ययन का आधार है।
(II) यद्यपि भाषा और लिपि में गहरा संबंध है तो भी अनेक जातियां और कबीले केवल बोल कर ही व्यवहार करते हैं। उन्हें लिखने की आवश्यकता अनुभव नहीं होती।
(III) हिंदी की लिपि का नाम देवनागरी है।
(IV) अभिन्न = समान। व्यवहृत = प्रयोग में लायी जाती।
(V) भाषा और लिपि।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

12. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। पर खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता वरन् मनुष्यता भी बनती है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाता है जो उसे आगे चल कर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती हैं।

(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में क्या विचार है?
(II) खेल-कूद से क्या लाभ हैं?
(III) खेल-कूद का अच्छे नागरिक बनाने में क्या योगदान है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में विचार है कि खेल-कूद से केवल समय ही नष्ट होता है।
(II) खेल-कूद स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इससे साहस, नियमित जीवन, धैर्य, निराभिमानता, सहयोग की भावना के गुण उत्पन्न होते हैं।
(III) खेलकूद जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझाने में सहायता देते हैं जिससे लोगों को अच्छा नागरिक बनने में योगदान मिलता है।
(IV) अभिमान = घमंड। अनायास = अचानक।
(V) खेलकूद का महत्त्व।

13. वास्तव में जब तक लोग मदिरापान से होने वाले रोगों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर लेंगे तथा तब तक उनमें यह भावना जागृत नहीं होगी कि शराब न केवल सामाजिक अभिशाप है अपितु शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है, तब तक मद्यपान के विरुद्ध, वातावरण नहीं बन सकेगा। पूर्ण मद्य निषेध तभी संभव हो सकेगा, जब सरकार मद्यपान पर तरह-तरह से अंकुश लगाए और जनता भी इसका सक्रिय विरोध करे।

(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण कब संभव है?
(II) पूर्ण मद्य निषेध क्या है?
(III) पूर्ण मद्य निषेध कैसे है?
(IV) ‘जागृत’ और ‘मद्यपान’ के शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण तब तक संभव नहीं है जब तक लोग इस से होने वाले रोगों के विषय में नहीं जान लेते और वे इसे एक सामाजिक अभिशाप नहीं मान लेते।
(II) ‘पूर्ण मद्य निषेध’ का अर्थ है-जब न तो कोई शराब बनाये और न ही इसका सेवन करे।
(III) पूर्ण मद्य निषेध सरकार और जनता के आपस में सहयोग और समझदारी से संभव है।
(IV) जागृत = जागना। मद्यपान = मदिरापान, शराबपीना।
(V) मद्य निषेध।

14. लेखक का काम बहुत अंशों में मधुमक्खियों के काम से मिलता है। मधुमक्खियां मकरंद संग्रह करने के लिए कोसों के चक्कर लगाती हैं और अच्छे-अच्छे फूलों पर बैठकर उनका रस लेती हैं। तभी तो उनके मधु में संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता रहती है। यदि आप अच्छे लेखक बनना चाहते हैं तो आपकी भी (वृत्ति ) ग्रहण करनी चाहिए। अच्छे-अच्छे ग्रंथों का खूब अध्ययन करना चाहिए और उनकी बातों का मनन करना चाहिए फिर आपकी रचनाओं में से मधु का-सा माधुर्य आने लगेगा। कोई अच्छी उक्ति, कोई अच्छा विचार भले ही दूसरों से ग्रहण किया गया हो, पर यदि यथेष्ठ मनन करके आप उसे अपनी रचना में स्थान देंगे तो वह आपका ही हो जाएगा। मननपूर्वक लिखी गई चीज़ के संबंध में जल्दी किसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कि यह अमुक स्थान से ली गई है या उच्छिष्ट है। जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, वह फिर आपकी ही हो जाएगी।

(I) लेखक और मधुमक्खी में क्या समता है?
(II) लेखक किसी अच्छे भाव को मौलिक किस प्रकार बना लेता है?
(III) कौन-सी बात आप की अपनी हो जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) लेखक और मधुमक्खियां एक-सा कार्य करते हैं ! मधुमक्खियां प्रयत्नपूर्वक घूम-घूम कर फूलों से रस इकट्ठा करती हैं और उसे शहद में परिवर्तित करती हैं तथा लेखक अच्छे-अच्छे ग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञान अर्जित करके उन्हें अपनी पुस्तकों के द्वारा समाज को प्रदान करता है।
(II) लेखक किसी उक्ति या विचार पर भली-भान्ति मनन करके उसे अपने ही ढंग से भावों के रूप में प्रकट करके उसे मौलिक बना लेता है।
(III) जिस बात को अच्छी तरह से आत्मसात कर लिया जाये और फिर उसे प्रकट किया जाए वह आप की अपनी हो जाती है।
(IV) माधुर्य = मिठास। यथेष्ठ मनन = पूर्ण रूप से सोच-विचार।
(V) श्रेष्ठ लेखक की मौलिकता।

15. शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में लूंस दिया गया है और आत्मसात् हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रह कर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पांच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित हैं। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अंततोगत्वा ये दोनों ही अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं।

(I) शिक्षा का महत्त्व कब स्वीकार किया जा सकता है?
(II) शिक्षा का आचरण से क्या संबंध है?
(III) शिक्षा और आचरण को किस का रूप माना गया है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) शिक्षा मात्र जानकारियों का ढेर नहीं है। उसका महत्त्व तब स्वीकार किया जा सकता है जब वह जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक होती है।
(II) शिक्षा और आचरण सदा एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं। इनका विकास एक-दूसरे के आपसी सहयोग से होता
(III) शिक्षा और आचरण को अनुशासन का ही रूप माना गया है।
(IV) आत्मसात् = मन में धारण करना। अन्योन्याश्रित = एक-दूसरे पर आश्रित।
(V) शिक्षा और आचरण।

16. शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है, न कि शिक्षित होने के नाम पर अहं और गर्व का हाथी उसके मन मस्तिष्क पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो शिक्षानीति और पद्धति चली आ रही है वह लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है। उसने एक उत्पादन मशीन का काम किया है। इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इस देश की अपनी आवश्यकताएं और सीमाएं क्या हैं ? इनके निवासियों को किस प्रकार की व्यावहारिक शिक्षा की ज़रूरत है। बस सुशिक्षितों की ही नहीं, साक्षरों की एक बड़ी पंक्ति इस देश में खड़ी कर दी है जो किसी दफ्तर में क्लर्क और बाबू का सपना देख सकती है। हमारे देशवासियों को कर्म का बाबू बनाने की आवश्यकता है न कि कलम का बाबू-क्लर्क। अतः सरकार को आधुनिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन को समझने की आवश्यकता है।

(I) स्वतंत्रता से पहले कैसी शिक्षा नीति थी?
(II) देश को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है?
(III) सुशिक्षित और साक्षर में क्या अंतर है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : व्यावहारिक, अहं और गर्व।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) स्वतंत्रता से पहले शिक्षा नीति ऐसी थी जिससे क्लर्क और बाबू बनाये जा सकें।
(II) देशवासियों को कर्म की शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे देशवासी कर्मशील बन सकें।
(III) सुशिक्षित वे होते हैं जो व्यावहारिक जीवन में शिक्षा का उचित उपयोग कर सकें जबकि साक्षर केवल पढ़ालिखा तथा व्यवहार ज्ञान से शून्य व्यक्ति होता है।
(IV) व्यावहारिक = व्यवहार में आने या लाने योग्य।
अहं = अभिमान, अहंकार। गर्व = घमंड।
(V) शिक्षा का प्रयोजन।

17. आजकल भारत में अधिक आबादी की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। इस अनावश्यक रूप से बढ़ी आबादी के कारण कई प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। जीवन में हवा, पानी ज़रूरी है पर पानी के बिना हम अधिक दिन नहीं जी सकते। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी है जिसका औद्योगिक विकास तथा जनवृद्धि से घनिष्ठ संबंध है। कारखानों से काफ़ी मात्रा में गंदगी बाहर फेंकी जाती है। स्रोतों, नदियों, झीलों और समुद्र के जल को कीटनाशक, औद्योगिक, अवशिष्ट खादें तथा अन्य प्रकार के व्यर्थ पदार्थ प्रदूषित करते हैं। बड़े नगरों में सीवर का पानी सबसे बड़ा जल प्रदूषण है। प्रदूषित जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं ; जैसे-हैज़ा, टाइफायड, पेचिश, पीलिया आदि। यदि सागर, नदी और झील का पानी प्रदूषित हो गया, तो जल में रहने वाले प्राणियों को भी बहुत अधिक क्षति पहुंचेगी।

(I) भारत की सबसे गंभीर समस्या क्या है?
(II) जल प्रदूषित कैसे होता है?
(III) प्रदूषण से प्राणियों की क्षति कैसे होती है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : घनिष्ठ, संबंध, औद्योगिक।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) अधिक आबादी की समस्या भारत की सबसे गंभीर समस्या है।
(II) कारखानों से निकलने वाली गंदगी, औद्योगिक-अवशिष्ट खादें, कीटनाशक आदि व्यर्थ पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं।
(III) प्रदूषण से हैज़ा, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियां हो जाती हैं। जल में रहने वाले प्राणियों को भी क्षति होती है।
(IV) घनिष्ठ = गहरा। संबंध = साथ जुड़ना। औद्योगिक = उद्योग संबंधी।
(V) जल प्रदूषण।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

18. जब मक्खन शाह का जहाज़ किनारे लगा तो अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुआ। वह गुरुघर का भक्त छठे गुरु जी के काल से ही था। इससे पूर्व कश्मीर के रास्ते में मक्खन शाह की अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गांव गये थे जो कि जेहलम नदी के किनारे बसा हुआ था। सर्वप्रथम वह अमृतसर गया, जहां उसे गुरु जी के दिल्ली में होने की सूचना प्राप्त हुई। दिल्ली में पहुंचकर, गुरु हरिकृष्ण के उत्तराधिकारी का समाचार बाबा के बकाला में रहने का मिला। यहाँ पहुंचकर उसने विभिन्न मसंदों को गुरु रूप धारण किया हुआ पाया।

मक्खन शाह का असमंजस में पड़ना उस समय स्वाभाविक ही था। व्यापारी होने के कारण उसमें विवेकशीलता एवं सहनशीलता भी थी। उसने चतुराई से वास्तविक गुरु को ढूंढ़ने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चाल चली। उसने सभी गुरुओं के सम्मुख पाँच-पाँच मोहरें रखकर प्रार्थना की। उसे दृढ़ विश्वास था कि सच्चा गुरु अवश्य उसकी चालाकी को भांप लेगा, परंतु किसी भी पाखंडी ने उसके मन की जिज्ञासा को शांत नहीं किया।

(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी कहाँ गए थे?
(II) उसने सच्चे गुरु की खोज के लिए कौन-सी चाल चली?
(III) पाखंडी कौन थे?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-विवेकशीलता, दृढ़ विश्वास।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गाँव गए थे।
(II) उसने सबके सामने पाँच-पाँच मोहरें रखीं।
(III) सभी पाखंडी थे।
(IV) विवेकशीलता = समझदारी। दृढ़-विश्वास = पक्का विश्वास।
(V) विवेकशीलता।

19. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आंतरिक सहयोग पर अवलंबित है। किसी मशीन का उसके पुर्जे के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पांव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुंच जाता है। पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुंच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का संबंध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज की पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो जहां पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।

(I) समाज कैसे फलता-फूलता है?
(II) शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं?
(III) समाज और व्यक्ति का क्या संबंध है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-अविलंब, अनिवार्य।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) समाज व्यक्तियों के आपसी सहयोग से फलता-फूलता है।
(II) शरीर के किसी अंग पर चोट लगने पर सबसे पहले मन पर प्रभाव पड़ता है, फिर आँख उसे देखती हैं और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुंच जाता है। इस प्रकार शरीर के अंग आपस में सहयोग करते हैं।
(III) समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है। इस प्रकार और व्यक्ति का शरीर और अंग का संबंध है।
(IV) अविलंब = तुरंत, बिना देर किए। अनिवार्य = ज़रूरी, आवश्यक।
(V) सहयोग।

20. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर लोग फेंक देते हैं। मेरे लिए एक कहावत बनी है “पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात, पढ़ते ही छिप जात है, ज्यों तारा प्रभात।” पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है। मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में क्रम से संभाल कर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोगी अंगों को काटकर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी ग्राहकों की कीमत का एक तिहाई भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस प्रकार महान् उपकारी होने के कारण मैं दूसरे ही दिन नया जीवन पाता हूँ और अधिक जोर-शोर से सजधज के आता हूँ। इस प्रकार एक बार फिर सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न मेरे जीवन से। भाई ! ईर्ष्या नहीं स्पर्धा करो। आप भी मेरी तरह उपकारी बनो। तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।

(I) अखबार का जीवन नाशवान कैसे है?
(II) अखबार क्या-क्या लाभ पहुंचाता है?
(III) यह किस प्रकार उपकार करता है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-उपयोगी, स्पर्धा।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त ‘शीर्षक’ दीजिए।
उत्तर:
(I) इसे लोग एक बार पढ़ कर फेंक देते हैं। इसलिए अखबार का जीवन नाशवान है।
(II) अखबार ताज़े समाचार देने के अतिरिक्त रद्दी बन कर लिफाफ़े बनाने के काम आता है। कुछ लोग उपयोगी समाचार काट कर फाइल बना लेते हैं।
(III) रद्दी के रूप में बिक कर वह अपना एक-तिहाई मूल्य लौटा कर उपकार करता है।
(IV) उपयोगी = काम में आने वाला। स्पर्धा = मुकाबला।
(V) ‘अखबार’।

21. नारी नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है। किंतु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियां समाहित हैं।

(I) नारी किस-किस रूप में नर में शक्ति जगाती है?
(II) नारी को फूल-सी कोमल और वज्र-सी कठोर क्यों माना जाता है?
(III) नारी दुर्गा का रूप कैसे बन जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) नारी नर में माता, बहन, पत्नी और पुत्री के रूप में शक्ति जगाती है।
(II) ममतामयी होने के कारण नारी फूल-सी कोमल है और जब उस पर चोट पड़ती है तो वह अत्याचार का मुकाबला करने के लिए वज्र-सी कठोर हो जाती है।
(III) जब नारी अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए वज्र के समान कठोर बन जाती है तब वह दुर्गा बन जाती
(IV) ममतामयी = ममता से भरी हुई। सन्नद्ध = तैयार, उद्यत।
(V) नारी ही नर की शक्ति।

22. चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है। जो मनुष्य अपने चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देता है, वही जीवन में विजयी होता है। चरित्र-निर्माण से मनुष्य के भीतर ऐसी शक्ति जागृत होती है, जो उसे जीवन संघर्ष में विजयी बनाती है। ऐसा व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। वह जहां कहीं भी जाता है, अपने चरित्र-निर्माण की शक्ति से अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। वह सहस्त्रों और लाखों के बीच में भी अपना अस्तित्व रखता है। उसे देखते ही लोग उसके व्यक्तित्व के सामने अपना मस्तक झुका लेते हैं। उसके व्यक्तित्व में सूर्य का तेज, आंधी की गति और गंगा के प्रवाह की अबाधता है।

(I) जीवन में चरित्र निर्माण का क्या महत्त्व है?
(II) अच्छे चरित्र का व्यक्ति जीवन में सफलता क्यों प्राप्त करता है?
(III) चरित्रवान् व्यक्ति की तीन विशेषताएं लिखें।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है।
(II) चरित्र-निर्माण से मनुष्य को जीवन में आने वाले संघर्षों का मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन-संघर्ष में सफलता प्राप्त कर लेता है।
(III) चरित्रवान् व्यक्ति का सब लोग आदर करते हैं। उस का अपना-अलग व्यक्तित्व होता है। वह जीवन में सदा सफल रहता है।
(IV) सहस्रों = दस-सौवों की संख्या। व्यक्तित्व = व्यक्ति का गुण।
(V) चरित्र निर्माण : सफलता की कुंजी।

23. जिस जाति की सामाजिक अवस्था जैसी होती है, उसका साहित्य भी वैसा ही होता है। जातियों की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो उनके साहित्य-रूपी आईने में ही मिल सकती है। इस आईने के सामने जाते ही हमें तत्काल मालूम हो जाता है कि अमुक-जाति की जीवन-शक्ति इस समय कितनी या कैसी है और भूतकाल में कितनी और कैसी थी।आज भोजन करना बंद कर दीजिए, आपका शरीर क्षीण हो जाएगा और नाशोन्मुख होने लगेगा। इसी तरह आप साहित्य के रसास्वादन से अपने मस्तिष्क को वंचित कर दीजिए, वह निष्क्रिय होकर धीरे-धीरे किसी काम का न रह जाएगा।

बात यह है कि शरीर के जिस अंग का जो काम है वह उससे यदि न लिया जाए तो उसकी वह काम करने की शक्ति नष्ट हुए बिना नहीं रहती।शरीर का खाद्य भोजन पदार्थ है और मस्तिष्क का खाद्य साहित्य। अतएव यदि हम अपने मस्तिष्क को निष्क्रिय और कालांतर में निर्जीव-सा नहीं कर डालना चाहते, तो हमें साहित्य का सतत सेवन करना चाहिए और उसमें नवीनता तथा पौष्टिकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते जाना चाहिए। पर याद रखिए, विकृत भोजन से जैसे शरीर रुग्ण होकर बिगड़ जाता है उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।

मस्तिष्क का बलवान और शक्तिसंपन्न होना अच्छे साहित्य पर ही अवलंबित है। अतएव यह बात निर्धान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र साधन अच्छा साहित्य है। यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करनी है तो हमें श्रमपूर्वक बड़े उत्साह में सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए।

(I) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता कहाँ दिखाई देती है?
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से क्या होता है?
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क की क्या दशा होती है?
(V) रसास्वादन और अवलंबित शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
(I) साहित्य और विकास
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता उनके साहित्य रूपी आईने में दिखाई देती है।
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से मस्तिष्क धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाएगा और किसी काम का नहीं रहेगा।
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।
(V) रसास्वादन-आनंद अवलंबित-आधारित।

24. भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं-सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देरी नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतारचढ़ाव, तथ्य और आंकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अच्छे भाषण के कौन-से गुण होते हैं?
(III) श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं?
(IV) कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता?
(V) ‘श्रोता’ तथा ‘जोश’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) श्रेष्ठ भाषणकर्ता।
(II) अच्छे भाषण में सादगी, तथ्य, उत्साह, आँकड़ों का समावेश होना चाहिए।
(III) जो भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, उसे श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
(IV) जिस भाषण में सादगी, वास्तविकता और उत्साह नहीं होता, उस भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
(V) श्रोता = सुनने वाला। जोश = आवेग, उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

25. सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता तथा चरित्रहीन व्यक्ति सभ्य समाज का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अनुशासन किसे कहते हैं?
(III) मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता?
(IV) विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है?
(V) ‘सुव्यवस्थित’ और ‘आधारशिला’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) अनुशासन।
(II) सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन है।
(III) अनुशासन के बिना मनुष्य अपना चरित्र-निर्माण नहीं कर सकता।
(IV) विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।
(V) सुव्यवस्थित = उत्तम रूप से व्यवस्थित। आधारशिला = नींव।

26. सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव द्वारा सांप्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिंदू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) सभी धर्म किन बातों पर बल देते हैं?
(III) सांप्रदायिक सद्भावना कैसे बनाये रखी जा सकती है?
(IV) महात्मा गांधी घृणा को कैसे जीतना चाहते थे?
(V) ‘सद्भाव’ और ‘सौहार्द’ का अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक सद्भाव।
(II) सभी धर्म, सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं।
(III) साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखने के लिए सब धर्मों वालों को आपस में प्रेम और विश्वास बनाए रखते हुए सब धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
(IV) महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतना चाहते थे।
(V) सद्भाव = अच्छा भाव, मेलजोल। सौहार्द = सज्जनता, मित्रता।

27. लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर नहीं उठने देते।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है?
(III) धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है?
(IV) संप्रदाय क्या सिखाता है?
(V) ‘कृत्य’ और ‘अंतर्मुखी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक संकीर्णता।
(II) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड में अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(III) धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बना कर उसे हृदय के किवाड़ों को खोलकर उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है।
(IV) संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं और मनुष्य को जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
(V) कृत्य = कार्य, काम। अंतर्मुखी = परमात्मा की ओर ध्यान लगाने वाला।

28.
स्वतंत्र भारत का सम्पूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ऊपर है, क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए, ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप हैं।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण किसको अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए?
(III) भावी भारत के नागरिक कौन हैं?
(IV) हमारे राष्ट्र और समाज पर भार-स्वरूप कौन हैं?
(V) ‘निर्माण’ और ‘दायित्व’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) आज के विद्यार्थी कल के नागरिक।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए।
(III) आज के विद्यार्थी भावी भारत के नागरिक हैं।
(IV) जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप होते हैं।
(V) निर्माण = रचना करना, बनाना। दायित्व = ज़िम्मेदारी।

29. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है। एक सीमा तक आवश्यक भी है। परंतु आज के विद्यार्थियों में इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गये हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने उन अधिकारों को, जिनके वे अधिकारी नहीं हैं, उसे भी वे अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्त्तव्य दोनों एकदूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है, परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिये।
(V) उचित शीर्षक दीजिये।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहंकार बढ़ने और विनम्रता. न होने से नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः गुरुजनों या बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थियों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। सजग = सावधान।
(V) विद्यार्थियों में अहंकार।

30. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन में नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शास्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवनों के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है। लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा, जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अन्धकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) महान् जीवन के रथ फूलों से भरे वनों से ही नहीं गुज़रते बल्कि कांटों से भरे बीहड़ पथ पर भी चलते हैं।
(II) आत्म-विश्वास के शस्त्र के द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
(III) आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति के आगे निराशा की काली घटाएं समाप्त हो जाती हैं।
(IV) सोपानों = सीढ़ियों। ज्योति = प्रकाश।
(V) शीर्षक = आत्मविश्वास।

31. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश होता है जिसके आधार पर राष्ट्रीयता का जन्म तथा विकास होता है। इस कारण देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के उद्देश्य से कुछ विघटनकारी शक्तियां हमारे देश को देश न कहकर उपमहाद्वीप के नाम से संबोधित करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत के विस्तृत भू-खंड, जिसमें अनेक नदियां और पर्वत कभी-कभी प्राकृतिक बाधायें भी उपस्थित कर देते हैं, को ये शक्तियां संकीर्ण क्षेत्रीयता की भावनायें विकसित करने में सहायता करती हैं।

(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण क्या है?
(II) देश की इकाई किस लिए आवश्यक है?
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत कैसा है?
(IV) ‘उपकरण’ और ‘विघटनकारी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश है।
(II) देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है।
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत उपमहाद्वीप जैसा है जिसमें अनेक नदियां, पहाड़ और विस्तृत भूखंड है।
(IV) उपकरण = सामान। विघटनकारी = तोड़ने वाली।
(V) राष्ट्रीयता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

32. दस गीदड़ों की अपेक्षा एक सिंह अच्छा है। सिंह-सिंह और गीदड़-गीदड़ है। यही स्थिति परिवार के उन . सदस्य की होती है जिनकी संख्या आवश्यकता से अधिक हो। न भरपेट भोजन, न तन ढकने के लिए वस्त्र। न अच्छी शिक्षा, न मनचाहा रोज़गार। गृहपति प्रतिक्षण चिंता में डूबा रहता है। रात की नींद और दिन का चैन गायब हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर होने की विवशता। सम्मान और प्रतिष्ठा तो जैसे सपने की बातें हों। यदि दुर्भाग्यवश गृहपति न रहे तो आश्रितों का कोई टिकाना नहीं। इसलिए आवश्यक है कि परिवार छोटा हो।

(I) परिवार के सदस्यों की क्या स्थिति होती है?
(II) गृहपति प्रतिक्षण चिंता में क्यों डूबा रहता है?
(III) रात की नींद और दिन का चैन क्यों गायब हो जाता है?
(IV) ‘प्रतिक्षण’ और ‘प्रतिष्ठा’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जिस परिवार की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है, उस परिवार को न भरपेट भोजन, न वस्त्र, न अच्छी शिक्षा और न ही मनचाहा रोज़गार मिलता है। उनकी स्थिति दस गीदड़ों जैसी हो जाती है।
(II) गृहपति प्रतिक्षण परिवार के भरण-पोषण की चिंता में डूबा रहता है कि इतने बड़े परिवार का गुज़ारा कैसे होगा?
(III) रात की नींद और दिन का चैन इसलिए गायब हो जाता है क्योंकि बड़े परिवार के गृहपति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका सम्मान तथा प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। उसे अपने मरने के बाद परिवार की दुर्दशा के संबंध में सोचकर बेचैनी होती है।
(IV) प्रतिक्षण = हर समय। प्रतिष्ठा = इज्ज़त, मान सम्मान।
(V) छोटा परिवार : सुखी परिवार।

33. मैदान चाहे खेल का हो या युद्ध का और चाहे कोई और मन हारा कि बल हारा? मन गिर गया तो समझिए कि तन गिर गया। काम कोई भी, कैसा भी क्यों न हो, मन में उसे करने का उत्साह हुआ तो बस पूरा हुआ। सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है। साधारण छात्र कठिन प्रश्नों से बचता ही रहता है, किन्तु लगन वाला, उत्साही विद्यार्थी कठिन प्रश्नों पर पहले हाथ डालता है। उसमें कुछ नया सीखने और समझने तथा कठिन प्रश्न से जूझने की ललक रहती है। प्रेमचंद के रास्ते में सैंकड़ों कठिनाइयां थीं, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने की अजब धुन थी, इसलिए हिम्मतवान रहे। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य की जीत अथवा हार उसके मन की ही जीत अथवा हार है।

(I) सामान्य आदमी कैसा होता है?
(II) उत्साही छात्र की क्या विशेषता है?
(III) मन गिरने से तन कैसे गिर जाता है?
(IV) ‘हाथ डालना’ तथा ‘जूझना’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है।
(II) उत्साही छात्र को लगन होती है। वह कठिन प्रश्न पहले हल करता है। उसमें कुछ नया सीखने, समझने और करने की इच्छा होती है।
(III) मन में उत्साह नहीं हो तो मनुष्य कुछ नहीं कर पाता। वह अपने आप को कोसता रहता है और बीमार हो जाता है, जिससे मन गिरने से उसका तन भी गिर जाता है।
(IV) हाथ डालना = हस्तक्षेप करना, कोशिश करना। जूझना = संघर्ष करना।
(V) मन के हारे हार हैं मन जीते जग जीत।

34. मनुष्य जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है। वह खुद अपनी समझ में नहीं आता है। किसी न किसी रूप में अपनी ही आलोचना किया करता है। अपने ही मनोरहस्य खोला करता है। मानव संस्कृति का विकास ही इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपने को समझे। अध्यात्म और दर्शन की भांति साहित्य भी इसी खोज में है, अंतर इतना ही है कि वह इस उद्योग में रस का मिश्रण करते उसे आनंदप्रद बना देता है। इसलिए अध्यात्म और दर्शन केवल ज्ञानियों के लिए है, साहित्य मनुष्य मात्र के लिए है।

(I) मानव संस्कृति का विकास क्यों हुआ है?
(II) अध्यात्म और साहित्य में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य के लिए रहस्य क्या है?
(IV) ‘मनोरहस्य’ तथा ‘मिश्रण’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मानव संस्कृति का विकास इसलिए हुआ है कि मनुष्य स्वयं को समझ सके।
(II) अध्यात्म और साहित्य दोनों का लक्ष्य एक है। अध्यात्मक केवल ज्ञान की बात करता है जबकि साहित्य इसमें रस मिला कर इस प्रयास को आनंदप्रद, बना देता है।
(III) मनुष्य के लिए रहस्य स्वयं को समझना है कि वह क्या है?
(IV) मनोरहस्य = मन के भेद। मिश्रण = मिलावट।
(V) साहित्य और समाज।

35. प्रत्येक राष्ट्र के लिए अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है। इसके बल पर वह प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। मानव युगों-युगों से अपने को अधिक सुखमय, उपयोगी, शांतिमय एवं आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करता है। इस प्रयास का आधार वह सांस्कृतिक धरोहर होती है जो प्रत्येक मानव को विरासत के रूप में मिलती है और प्रयास के फलस्वरूप मानव अपना विकास करता है। यह विकास क्रम सांस्कृतिक आधार के बिना संभव नहीं होता। कुछ लोग सभ्यता एवं संस्कृति को एक ही अर्थ में लेते हैं। वह उनकी भूल है। यों तो सभ्यता और संस्कृति में घनिष्ठ संबंध है, किंतु संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ एवं उन्नत बनाने के साधनों का नाम है और सभ्यता उन साधनों के फलस्वरूप उपलब्ध हुई जीवन प्रणाली है।

(I) सांस्कृतिक धरोहर से क्या तात्पर्य है?
(II) संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य को विरासत में क्या-क्या मिला है?
(IV) ‘विरासत’ तथा ‘घनिष्ठ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सांस्कृतिक धरोहर से तात्पर्य उन सब बातों से होता है जो किसी व्यक्ति, जाति अथवा राष्ट्र के मन, रुचि, आचार-विचार, कला कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है।
(II) संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाने का साधन है तथा सभ्यता उन साधनों से प्राप्त जीवन प्रणाली
(III) मनुष्य को विरासत में वह सांस्कृतिक धरोहर मिली है जो उसे अपना जीवन सुखमय, उपयोगी, शांतिमय तथा आनंदपूर्ण बनाने में सहायक होती है।
(IV) विरासत = उत्तराधिकार, पूर्वजों से प्राप्त। घनिष्ठ = गहरा।
(V) संस्कृति और सभ्यता।

36. आधुनिक युग में मानव परोपकार की भावना से विरक्त होता जा रहा है। उसका हृदय स्वार्थ से भर गया है। उसे हर समय अपनी ही सुख-सुविधा का ध्यान रहता है। उसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है। हमारा इतिहास परोपकारी महात्माओं की कथाओं से भरा पड़ा है। महर्षि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया था। महाराज शिवि ने शरणागत की रक्षार्थ अपनी देह का मांस काट कर दे दिया था। हमारे कर्णधारों का नाम इसी कारण उज्ज्वल है। उनका सारा जीवन अपने भाइयों के हित एवं राष्ट्र-कल्याण में बीता। उनके कार्यों को हम कभी नहीं भूल सकते।

(I) किसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है?
(II) शरणागत की रक्षार्थ किसने अपनी देह का माँस दे दिया?
(III) हमारे कर्णधारों के नाम क्यों उज्ज्वल हैं?
(IV) ‘विरक्त’ तथा ‘स्वार्थ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) आधुनिक युग में मानव का हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है।
(II) शरणागत की रक्षार्थ महाराज शिवि ने अपनी देह का माँस दे दिया था।
(III) हमारे कर्णधारों के नाम परोपकार की भावना के कारण उज्ज्वल हैं।
(IV) विरक्त = उदासीन। स्वार्थ = अपना मतलब सिद्ध करना।
(V) परोपकार।

37. शिक्षा मनुष्य को मस्तिष्क तथा शरीर का उचित प्रयोग करना सिखाती है। वह शिक्षा जो मनुष्य को पाठ्य-पुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त कुछ और चिंतन दे, व्यर्थ है। यदि हमारी शिक्षा हमें सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती, तो उससे क्या लाभ? सहृदय, सच्चरित्र परंतु अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से कहीं अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है। संसार के सभी वैभव तथा सुख-साधन भी मनुष्य को तब तक सुखी नहीं बना सकते, जब तक मनुष्य को आत्मिक ज्ञान न हो। हमारे कुछ अधिकार और उत्तरदायित्व भी है। शिक्षित व्यक्ति को उत्तरदायित्व का भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना की अधिकारों का।

(I) कौन-सी शिक्षा मनुष्य के लिए व्यर्थ है?
(II) अनपढ़ मज़दूर स्नातक से किस प्रकार अच्छा है?
(III) किस ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन पाता?
(IV) ‘वैभव’ तथा ‘शिक्षित’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मनुष्य के लिए वह शिक्षा व्यर्थ है, जो उसे सहृदय, सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती।
(II) सहृदय, सच्चरित्र अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है।
(III) आत्मिक ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन सकता।
(IV) वैभव = ऐश्वर्य, धन-संपत्ति। शिक्षित = पढ़ा-लिखा।
(V) सच्ची शिक्षा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

38. आज भारत का बुद्धिजीवी युवक पाश्चात्य शिक्षा तथा दर्शन से इतना प्रभावित है कि वह भारतीय दर्शन तथा आध्यात्मिकता को थोथा और सारहीन समझने लगा है। आज भौतिकवाद की इतनी बाढ़ आई हुई है कि मनुष्य भारतीय चिंतन-सत्यों के प्रति उपेक्षा का भाव धारण किए हुए है। हमारा दृष्टिकोण राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमटकर रह गया है। आज का विज्ञान, दर्शन तथा मनोविज्ञान समाज के बदले हए रूप को सभ्य बनाने में नितांत असमर्थ है। इसका फल यह हुआ कि वैज्ञानिक प्रगति की शक्ति मनुष्य के लिए लाभकारी न होकर उसके संहार में ही अधिक प्रयोग में लाई जा रही है। आण्विक शक्ति ने निर्माण तथा रचनात्मक पहलू को ध्वस्त ही कर डाला है।

(I) भौतिकवादी विचारधारा ने मनुष्य पर क्या प्रभाव डाला है?
(II) आधुनिक मानव के जीवन का क्या लक्ष्य है?
(III) आण्विक शक्ति से क्या हानि हुई?
(IV) ‘उपेक्षा’ तथा ‘नितांत’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) भौतिकतावादी विचारधारा ने मनुष्य को भारतीय चिंतन सत्यों के प्रति उपेक्षित कर दिया है।
(II) आधुनिक मानव के जीवन का लक्ष्य राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमट कर रहा गया है।
(III) आणविक शक्ति का संहारक रूप अधिक प्रचलित हो गया है।
(IV) उपेक्षा = उदासीनता, लापरवाही। नितांत = बिल्कुल।
(V) आण्विक शक्ति का दुरुपयोग।

39. मित्र के चुनाव में सतर्कता का व्यवहार करना चाहिये क्योंकि अच्छे मित्र के चुनाव पर ही हमारे जीवन की सफलता निर्भर करती है। जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हमें दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए। मित्र एक ही अच्छा है। अधिक की आवश्यकता नहीं होती। बेकन का इस संबंध में कहना है-“समूह का नाम संगत नहीं। जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ लोगों की आकृतियाँ चित्रवत है और उनकी बातचीत झांझर की झनकार है।” अतः हमारे जीवन को उत्तम और आनंदमय करने में सहायता दे सके ऐसा एक मित्र सैंकड़ों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है।

(I) हमें कैसे व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए?
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता क्यों बरतनी चाहिए?
(III) कैसा मित्र श्रेष्ठ है?
(IV) ‘सतर्क’ और ‘समूह’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) हमें उन व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए जिनमें उत्तम वैद्य-सी निपुणता, अच्छी-से-अच्छी माता-सा धैर्य और कोमलता हो।
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता इसलिए बरतनी चाहिए क्योंकि जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हम दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए।
(III) जो व्यक्ति अपने मित्र को सही दिशा, उचित परामर्श एवं मार्गदर्शन करें वही श्रेष्ठ मित्र है।
(IV) सतर्क = सावधान। समूह = झुंड।
(V) मित्र का चुनाव।

जो गद्यांश पाठ्यक्रम से संबंधित नहीं होता उसे अपठित गद्यांश कहते हैं। यह पाठ्यक्रम से भिन्न किसी पत्रपत्रिका अथवा पुस्तक से संकलित किया जाता है। इसलिए विद्यार्थियों को नियमित पढ़ने की रुचि विकसित करनी चाहिए। अपठित गद्यांश से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने से पहले अपठित अवतरण को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिए। ऐसा करने से प्रश्नों के उत्तर देने में सरलता होगी। प्रश्नों का उत्तर सोच-विचार कर ही देना चाहिए। अपठित गद्यांश को उचित शीर्षक देना चाहिए। शीर्षक लंबा नहीं होना चाहिए। अपठित गद्यांश में से निम्न प्रश्न पूछे जाएंगे-
1. प्रथम तीन प्रश्न गद्यांश की विषय-सामग्री से सम्बन्धित होंगे।
2. चौथा प्रश्न गद्यांश में से दो कठिन शब्दार्थ-लेखन से संबंधित होगा।
3. पाँचवां प्रश्न गद्यांश के शीर्षक अथवा केंद्रीय भाव से संबंधित होगा।

पाठ्य-पुस्तक पर आधारित अपठित गद्यांश

1. मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 को बनारस के लमही नामक ग्राम में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। उनका बचपन अभावों में ही बीता और हर प्रकार के संघर्षों को झेलते हुए उन्होंने बी० ए० तक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की किंतु असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन कार्य में जुट गये। वे तो जन्म से ही लेखक और चिंतक थे। शुरू में वे उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखने लगे। एक ओर समाज की कुरीतियों और दूसरी ओर तत्कालीन व्यवस्था के प्रति निराशा और आक्रोश था। उनके लेखों में कमाल का जादू था। वे अपनी बात को बड़ी ही प्रभावशाली ढंग से लिखते थे।

जनता की खबरें पहुँच गयीं। अंग्रेज़ सरकार ने उनके लेखों पर रोक लगा दी। किंतु, उनके मन में उठने वाले स्वतंत्र एवं क्रान्तिकारी विचारों को भला कौन रोक सकता था। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखना शुरू कर दिया। इस तरह वे धनपतराय से प्रेमचंद बन गए। ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं जिनमें सामाजिक समस्याओं का सफल चित्रण है। इनके अतिरिक्त उन्होंने ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोगा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘बड़े भाई साहब’ और ‘पंच परमेश्वर’ आदि अनेक अमर कहानियाँ भी लिखीं।

वे आजीवन शोषण, रूढ़िवादिता, अज्ञानता और अत्याचारों के विरुद्ध अबाधित गति से लिखते रहे। गरीबों, किसानों, विधवाओं और दलितों की समस्याओं का प्रेमचंद जी ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे समाज में पनप चुकी कुरीतियों से बहुत आहत होते थे इसलिए उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास इनकी रचनाओं में सहज ही देखा जा सकता है। निःसंदेह वे महान् उपन्यासकार और कहानीकार थे। सन् 1936 में इनका देहांत हो गया।

प्रश्न 1.
मंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दे दिया था?
उत्तर:
प्रेमचंद ने असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।

प्रश्न 3.
वे आजीवन किसके विरुद्ध लिखते रहे?
उत्तर:
वे आजीवन सामाजिक समस्याओं से जुड़कर शोषण, अज्ञानता, रूढ़िवादी और गरीब किसानों, विधवाओ, दलितों आदि की विभिन्न समस्याओं और कुरीतियों के विरुद्ध लिखते रहे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
अबाधित तथा आहत शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘अबाधित’- बिना किसी रुकावट के, ‘आहत’-दुःखी।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
महान् उपन्यासकार एवं कहानीकार: मुंशी प्रेमचंद।

2. सच्चरित्र दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ संपत्ति मानी गयी है। पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि पंचभूतों से बना मानव-शरीर मौत के बाद समाप्त हो जाता है किंतु चरित्र का अस्तित्व बना रहता है। बड़े-बड़े चरित्रवान ऋषि-मुनि, विद्वान्, महापुरुष आदि इसका प्रमाण हैं। आज भी श्रीराम, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि अनेक विभूतियाँ समाज में पूजनीय हैं। ये अपने सच्चरित्र के द्वारा इतिहास और समाज को नयी दिशा देने में सफल रहे हैं। समाज में विद्या और धन भला किस काम का ।

अत: विद्या और धन के साथसाथ चरित्र का अर्जन अत्यंत आवश्यक है। यद्यपि लंकापति रावण वेदों और शास्त्रों का महान् ज्ञाता और अपार धन का स्वामी था किंतु सीता-हरण जैसे कुकृत्य के कारण उसे अपयश का सामना करना पड़ा। आज युगों बीत जाने पर भी उसकी चरित्रहीनता के कारण उसके प्रतिवर्ष पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। चरित्रहीनता को कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसा व्यक्ति आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से सदैव वंचित रहता है। वह कभी भी समाज में पूजनीय स्थान नहीं ग्रहण कर पाता है। जिस तरह पक्की ईंटों से पक्के भवन का निर्माण होता है उसी तरह सच्चरित्र से अच्छे समाज का निर्माण होता है। अतएव सच्चरित्र ही अच्छे समाज की नींव है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
दुनिया की समस्त संपत्तियों में किसे श्रेष्ठ माना गया है?
उत्तर:
सच्चरित्र को दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ माना गया है।

प्रश्न 2.
रावण को क्यों अपयश का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
रावण को सीता जी के हरण के कारण अपयश का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 3.
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव किससे वंचित रहता है?
उत्तर:
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से वंचित रहता है।

प्रश्न 4.
‘श्रेष्ठ’ तथा ‘प्रमाण’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘श्रेष्ठ’- सबसे बढ़िया (अच्छा), ‘प्रमाण’-सबूत।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
श्रेष्ठ संपत्ति-सच्चरित्रता।

3. हस्तकला ऐसे कलात्मक कार्य को कहा जाता है जो उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है। ऐसे कार्य मुख्य रूप से हाथों से अथवा छोटे-छोटे आसान उपकरणों या साधनों की मदद से ही किए जाते हैं। अपने हाथों से सजावट, पहनावे, बर्तन, गहने, खिलौने आदि से संबंधित चीज़ों का निर्माण करने वालों को हस्तशिल्पी या दस्तकार कहा जाता है। इसमें अधिकतर पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार काम करते आ रहे हैं। जो चीजें मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर बनायी जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता। भारत में हस्तशिल्प के पर्याप्त अवसर हैं।

सभी राज्यों की हस्तकला अनूठी है। पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई की विशेष तकनीक को फुलकारी कहा जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढाँचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थान वस्त्रों, कीमती हीरे जवाहरात से जड़े आभूषणों, चमकते हुए बर्तनों, मीनाकारी, वड़ियाँ, पापड़, चूर्ण, भुजिया के लिए जाना जाता है। आंध्र प्रदेश सिल्क की साड़ियों, केरल हाथी दांत की नक्काशी और शीशम की लकड़ी के फर्नीचर, बंगाल हाथ से बुने हुए कपड़े, तमिलनाडु ताम्र मूर्तियों एवं कांजीवरम साड़ियों, मैसूर रेशम और चंदन की लकड़ी की वस्तुओं, कश्मीर अखरोट की लकड़ी के बने फर्नीचर, कढ़ाई वाली शालों तथा गलीचों, असम बेंत के फर्नीचर, लखनऊ चिकनकारी वाले कपड़ों, बनारस ज़री वाली सिल्की साड़ियों, मध्य प्रदेश चंदेरी और कोसा सिल्क के लिए प्रसिद्ध है। हस्तकला के क्षेत्र में रोज़गार की अनेक संभावनाएं हैं। हस्तकला के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करके अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सकता है।

इसमें निपुणता के साथ-साथ आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की भी आवश्यकता रहती है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जब आप उत्कृष्ट व अनूठी चीज़ बनाते हैं तो हस्तकला के मुरीद लोगों की कमी नहीं रहती। अपने देश के साथ-साथ विदेशों में भी हाथ से बने सामान की माँग बढ़ती है। केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा भी हस्तकला को प्रोत्साहित किया जाता है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हस्तकला किसे कहते हैं?
उत्तर:
हस्तकला उस श्रेष्ठ कलात्मक कार्य को कहते हैं जो समाज के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
किन चीज़ों को हस्तकला की श्रेणी में नहीं लिया जाता?
उत्तर:
वे चीजें जो मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर तैयार की जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता।

प्रश्न 3.
पंजाब में हस्तकला के रूप में कौन-कौन सी चीजें प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई (फुलकारी) से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढांचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी अति प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
‘उत्कृष्ट’ तथा ‘निपुणता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘उत्कृष्ट’-बढ़िया, ‘निपुणता’- कुशलता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
हस्तकला का महत्त्व अथवा भारतीय हस्तकला।

4. किशोरावस्था में शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन आते हैं और इन्हीं परिवर्तनों के साथ किशोरों की भावनाएँ भी प्रभावित होती हैं। बार-बार टोकना, अधिक उपदेशात्मक बातें किशोर सहन नहीं करना चाहते। कोई बात बुरी लगने पर वे क्रोध में शीघ्र आ जाते हैं। यदि उनका कोई मित्र बुरा है तब भी वे यह दलील देते हैं कि वह चाहे बुरा है किन्तु मैं तो बुरा नहीं हूँ। कई बार वे बेवजह बहस एवं ज़िद्द के कारण क्रोध करने लगते हैं। अभिभावकों को उनके साथ डाँट-डपट नहीं अपितु प्यार से पेश आना चाहिए। उन्हें सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियां लाना, बिजली-पानी का बिल अदा करना आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में लगाना चाहिए।

अभिभावकों को उन पर विश्वास दिखाना चाहिए। उनके अच्छे कामों की प्रशंसा की जानी चाहिए। किशोरों को भी चाहिए कि वे यह समझें कि उनके माता-पिता मात्र उनका भला चाहते हैं। किशोर पढ़ाई को लेकर भी चिंतित रहते हैं। वे परीक्षा में अच्छे नंबर लेने का दबाव बना लेते हैं जिससे उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। इसके लिए उन्हें स्वयं योजनाबद्ध तरीके से मन लगाकर पढ़ना चाहिए। उन्हें दिनचर्या में खेलकूद, सैर, व्यायाम, संगीत आदि को भी शामिल करना चाहिए। इससे उनका तनाव कम होगा। उन्हें शिक्षकों से उचित मार्गदर्शन लेना चाहिए। मातापिता को भी उन पर अच्छे नम्बरों का दबाव नहीं बनाना चाहिए और न ही किसी से उनकी तुलना करनी चाहिए। अपने किसी सहपाठी या पड़ोस में किसी को सफलता मिलने पर कई किशोरों में ईर्ष्या की भावना आ जाती है। जबकि उन्हें ईर्ष्या नहीं, प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए। कई बार कुछ किशोर किसी विषय को कठिन मानकर उससे भय खाने लगते हैं कि इसमें पास होंगे कि नहीं जबकि उन्हें समझना चाहिए कि किसी समस्या का हल डर से नहीं अपितु उसका सामना करने से हो सकता है।

इसके अतिरिक्त कुछ किशोर शर्मीले स्वभाव के होते हैं, अधिक संवेदनशील होते हैं। उनका दायरा भी सीमित होता है। वे अपने उसी दायरे के मित्रों को छोड़कर अन्य लोगों से शर्माते हैं। इसके लिए उन्हें स्कूल की पाठ्येतर क्रियाओं में भाग लेना चाहिए जिससे उनकी झिझक दूर हो सके।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
किशोरावस्था में किशोरों की भावनाएँ किस प्रकार प्रभावित होती हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन किशारोवस्था में आते हैं और इन्हीं के कारण उनकी भावनाएँ बहुत तीव्रता से प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 2.
किशोरों की ऊर्जा को उचित देशों में कैसे लगाना चाहिए?
उत्तर:
किशोरों को सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ उपयोगी कार्यों की तरफ दिशा दिखानी चाहिए और उन्हें बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियाँ लेने भेजना, बिजली-पानी का बिल अदा करने आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में उन्मुख करना चाहिए।

प्रश्न 3.
किशोर अपनी चिंता और दबाव को किस तरह दूर कर सकते हैं?
उत्तर:
किशोर योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से पढ़कर, खेलकूद में भाग लेकर, सैर, व्यायाम और संगीत, सामाजिक गतिविधियों आदि को सम्मिलित करके अपनी चिंता और दबाव को दूर कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
‘प्रतिस्पर्धा’ तथा ‘संवेदनशील’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘प्रतिस्पर्धा’-होड़, ‘संवेदनशील’- भावुक।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था का भावनात्मक पक्ष।

5. जब एक उपभोक्ता अपने घर पर बैठे इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी करता है तो उसे ऑन लाइन खरीददारी कहा जाता है। इस तरह की खरीददारी आज अत्यंत लोकप्रिय हो गयी है। दुकानों, शोरूमों आदि के खुलने व बंद होने का समय होता है किंतु ऑनलाइन खरीददारी का कोई विशेष समय नहीं है।

आप जब चाहें इंटरनेट के माध्यम से खरीददारी कर सकते हैं। आप फर्नीचर, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं। यद्यपि यह बहुत ही सुविधाजनक व लाभदायक है तथापि इसमें कई जोखिम भी समाविष्ट हैं। अत: ऑनलाइन खरीददारी करते समय सावधानी बर्तनी चाहिए। सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि जिस वैबसाइट से आप खरीदारी करने जा रहे हैं वह वास्तविक है अथवा वस्तुओं की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही खरीददारी करें। बिक्री के नियम एवं शर्तों को पढ़ने के बाद उसका प्रिंट लेना समझदारी होगी। यदि आप क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान करते हैं तो भुगतान के बाद तुरंत जाँच लें कि आपने जो कीमत चुकाई है वह सही है या नहीं।

यदि आप उससे कोई भी परिवर्तन पाते हैं तो तत्काल संबंधित अधिकारियों से संपर्क स्थापित करके उन्हें सूचित करें। वैसे ऐसी साइटस को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें आर्डर की गई वस्तु की प्राप्ति होने पर नकद भुगतान करने की सुविधा हो एवं खरीदी गई वस्तु नापसंद होने पर वापिस करने का प्रावधान हो।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
ऑनलाइन खरीददारी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जब कोई उपभोक्ता बिना बाजार गए अपने घर बैठे-बैठे इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह वस्तुओं की खरीदारी करता है तो उसे ऑनलाइन खरीदारी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
आप इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन क्या-क्या खरीदारी कर सकते हो?
उत्तर:
हम इंटरनेट के माध्यम से फर्नीचर, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

प्रश्न 3.
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो तुरंत ही संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना दी जानी चाहिए।

प्रश्न 4.
‘समाविष्ट’ और ‘प्राथमिकता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाविष्ट-सम्मिलित होना, प्राथमिकता-वरीयता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
ऑनलाइन खरीदारी में सजगता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

6. पंजाब की संस्कृति का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई। यहीं प्राचीनतम सिंधु घाटी की सभ्यता का जन्म हुआ। यह गुरुओं की पवित्र धरती है। यहाँ गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक दस गुरुओं ने धार्मिक चेतना तथा लोक-कल्याण के अनेक सराहनीय कार्य किए हैं। गुरु तेग़ बहादुर जी एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है और ऐसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता।

यहाँ अमृतसर का श्री हरमंदिर साहिब प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसके अतिरिक्त आनंदपुर साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब, फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे भी प्रसिद्ध हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश के अन्न भंडार के लिए सबसे अधिक अनाज पंजाब ही देता है। पंजाब में लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों के अवसरों पर मेलों का आयोजन भी हर्षोल्लास से किया जाता है। आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला, मुक्तसर का माघी मेला, सरहिंद में शहीदी जोड़ मेला, फ़रीदकोट में शेख फरीद आगम पर्व, सरहिंद में रोज़ा शरीफ पर उर्स और छपार मेला जगराओं की रौशनी आदि प्रमुख हैं। पंजाबी संस्कृति के विकास में पंजाबी साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

मुसलमान सूफी संत शेख फरीद, शाह हुसैन, बुल्लेशाह, गुरु नानकदेव जी, शाह मोहम्मद, गुरु अर्जनदेव जी आदि की वाणी में पंजाबी साहित्य के दर्शन होते हैं। इसके बाद दामोदर, पीलू, वारिस शाह, भाई वीर सिंह, कवि पूर्ण सिंह, धनीराम चात्रिक, शिव कुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि कवियों, जसवंत सिंह, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल आदि उपन्यासकारों तथा अजमेर सिंह औलख, बलवंत गार्गी तथा गुरशरण सिंह आदि नाटककारों की पंजाबी साहित्य के उत्थान में सराहनीय भूमिका रही है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चारों वेदों की रचना कहाँ हुई?
उत्तर:
पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई।

प्रश्न 2.
पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
अमृतसर, आनंदपुर साहिब, फतेहगढ़ साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब आदि पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के प्रमुख त्योहार कौन-से हैं?
उत्तर:
लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि पंजाब के प्रमुख त्यौहार हैं।

प्रश्न 4.
‘सराहनीय’ तथा ‘हर्षोल्लास’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सराहनीय-प्रशंसनीय, ‘हर्षोल्लास’-प्रसन्नता और उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
पंजाब की महान् संस्कृति।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar vakya shuddhi वाक्य शुद्धि Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar वाक्य शुद्धि

निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि 1
उत्तर:
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि 2

शुद्ध वाक्य छाँट कर लिखिए

प्रश्न 1. (क) महादेवी विद्वान् स्त्री थी।
(ख) महादेवी विद्वान् विदुषी थी।
(ग) महादेवी विदुषी स्त्री थी।
(घ) महादेवी विदुषी थी।
उत्तर:
(घ) महादेवी विदुषी थी

प्रश्न 2. (क) सौन्दर्यता सबको मोह लेती है।
(ख) सौन्दर्य सबको मोह लेता है।
(ग) सौन्दर्यत्व सबको मोहता है।
(घ) सौन्दर्यत्व मोहक होता है।
उत्तर:
(ख) सौन्दर्य सबको मोह लेता है

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

प्रश्न 3. (क) वहाँ करोड़ों रुपये संकलित हो गए।
(ख) वहाँ करोड़ों रुपये एकत्र हो गए।
(ग) वहाँ करोड़ों रुपये मिलकर एक साथ हो गए।
(घ) वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए।
उत्तर:
(घ) वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए

प्रश्न 4. (क) मेरा रुमाल मेरी जेब ही में है।
(ख) मेरा रुमाल अपनी ही जेब में है।
(ग) मेरा रुमाल जेब ही में है।
(घ) मेरा रुमाल अपनी ही जेब में है।
उत्तर:
(क) मेरा रुमाल मेरी जेब में है

निम्नलिखित वाक्यों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
प्रतिदिन दाँत साफ करो। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 2.
सर्दियों में लोग गुनगुने गर्म पानी से नहाते हैं। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 3.
धन का प्रयोग समझकर करो। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 4.
सिपाही को देखते ही चोर सात चार ग्यारह हो गया। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
अच्छे विचारों को ग्रहण करो। (हाँ या नहीं लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
आप ग्रह-प्रवेश पर निमंत्रित हैं। (हाँ या नहीं लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं।

निम्नलिखित में से किसी एक अशुद्ध वाक्य को शुद्ध करके लिखिए-

वर्ष
(क) उसने भूख लगी है।
(ख) दूध में कौन गिर गया है?
उत्तर:
(क) उसे भूख लगी है।
(ख) दूध में क्या गिर गया है?

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

(क) लड़का ने पत्र लिखा।
(ख) बच्चे को काटकर सेब खिलाओ।
उत्तर:
(क) लड़के ने पत्र लिखा।
(ख) सेब काटकर बच्चे को खिलाओ।

(क) मेरी बहन ने मुझे कहानी सुनाया।
(ख) कॉपियाँ ये किसकी हैं?
उत्तर:
(क) मेरी बहन ने मुझे कहानी सुनाई।
(ख) ये कॉपियाँ किसकी हैं?

वर्ष
(क) पेड़ों में मत चढ़ो।
(ख) मेले में बच्ची गुम हो गया।
उत्तर:
(क) पेड़ों पर मत चढ़ो।
(ख) मेले में बच्ची गुम हो गई।

(क) लड़का ने पत्र लिखा।
(ख) बंदर छत में बैठा है।
उत्तर:
(क) लड़के ने पत्र लिखा।
(ख) बंदर छत पर बैठा है।

(क) उसने यह काम करा।
(ख) महात्मा लोग पधारें हैं।
उत्तर:
(क) उसने यह काम किया।
(ख) महात्मा पधारें हैं।

वर्ष
(i) मेरे को मंदिर जाना है।
(ii) मेधावी मेरी अनुज है।
उत्तर:
(i) मुझे मंदिर जाना है।
(ii) मेधावी मेरी अनुजा है।

सार्थक एवं पूर्ण विचार व्यक्त करने वाले शब्द समूह को वाक्य कहा जाता है। प्रत्येक भाषा का मूल ढांचा वाक्यों पर ही आधारित होता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि वाक्य रचना में पद-क्रम और अन्वय का विशेष ध्यान रखा जाए। इनके प्रति सावधान न रहने से वाक्य रचना में कई प्रकार की भूलें हो जाती हैं। वाक्य रचना के लिए अभ्यास की परम आवश्यकता होती है।

निर्देश-
(क) हिंदी में समाचार, होश, लोग, दर्शन, प्राण, आँसू, मुक्का, हस्ताक्षर, आदि शब्द सदा पुल्लिग रहते हैं और इनका प्रयोग सदा बहुवचन में होता है।
(ख) जब जातिवाचक पदार्थ, जैसे-जलेबी, मछली, कोयला, पेड़ा आदि, का परिमाण वाचक (किलो, पाव, क्विटल आदि के रूप में) विशेषण के साथ प्रयोग होता है तब बहुवचन का प्रयोग नहीं होता। किंतु जब संख्या का अलग उल्लेख करना हो तो बहुवचन में प्रयोग हो सकता है।
(ग) कोई, प्रत्येक और हर एक के साथ एक वचन तथा सब कोई के साथ बहुवचन क्रिया आती है।
(घ) मुहावरों का रूप बदलना नहीं चाहिए।
(ङ) भाववाचक संज्ञाओं का बहुवचन में प्रयोग नहीं होता। आगे कुछ ऐसे वाक्य दिए जा रहे हैं जिनमें सामान्य अशुद्धियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

1. संज्ञा संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. महात्मा पधार रहे हैं।
2. लड़के ने पत्र लिखा।
3. आपकी पत्नी का क्या नाम है?
4. माली पौधों को सींचता है।
5. वह रविवार को तुम्हारे घर आएगा।
6. उसने सभा में रोष प्रकट किया।
7. मैं अपने दादा के घर जाऊँगी।
8. वह माता-पिता की सेवा में लगा हुआ है।
9. राम ने मोहन की मत्यु पर दुःख प्रकट किया।
10. बढ़ई ने दरवाज़े का निर्माण किया।
11. ये विपत्तियां स्थायी नहीं हैं।

शद्ध वाक्य
1. महात्मा लोग पधार रहे हैं।
2. लड़का ने पत्र लिखा।
3. आपकी नारी का क्या नाम है?
4. माली जल से पौधों को सींचता है।
5. वह रविवार के दिन तुम्हारे घर आएगा।
6. उसने सभा में क्रोध प्रकट किया।
7. मैं अपने दादे के घर जाऊँगी।
8. वह माता-पिता की परिचर्या में लगा हुआ है।
9. राम ने मोहन की मृत्यु पर खेद प्रकट किया।
10. बढ़ई ने दरवाज़े की रचना की।
11. ये विपत्तियां टिकाऊ नहीं हैं।

2. परसर्ग संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. रानी युद्ध में वीरता के साथ लड़ी।
2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ।
3. पूनम यातनाओं को सहती है।
4. सब्जी को खूब पकी हुई चाहिए।
5. छाते को कहाँ से उड़ाया है?
6. पेड़ों में मत चढ़ो।
7. मुकेश ने पुस्तक पढ़ता है।
8. अरविंद स्कूल को जा रहा है।
9. हम पढ़ने को स्कूल जाते हैं।
10. उसने भूख लगी है।
11. मैं मेरी दीदी के पास जा रहा हूँ।
12. पिंकी से हमें उसकी माता जी के स्वर्गवास की होने की खबर मिली।

शुद्ध वाक्य
1. रानी युद्ध में वीरता से लडी।
2. मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
3. पूनम यातनाएं सहती है।
4. सब्जी खूब पकी होनी चाहिए।
5. छाता कहाँ से उड़ाया है?
6. पेड़ों पर मत चढ़ो।
7. मुकेश पुस्तक पढ़ता है।
8. अरविंद स्कूल जा रहा है।
9. हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
10. उसे भूख लगी है।
11. मैं अपनी दीदी के पास जा रहा हूँ।
12. पिंकी के द्वारा हमें उसकी माता जी के स्वर्गवास होने खबर मिली।

3. लिंग संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. सारा देश उसके लिए थाती था।
2. उन्होंने मुझे मुंबई घुमाई।
3. यह ट्रंक बहुत भारा है।
4. महादेवी विद्वान् स्त्री थी।
5. मेरा निकर मैला है।
6. रुचि मेरी अनुज है।
7. वह अध्यापिका विद्वान है।
8. कवि महादेवी वर्मा को सब जानते हैं।
9. चांदी महंगा हो गया है।
10. दूध गिर गई थी।
11. रेखा अच्छा गाता है।
12. आद्या गा रहा था।
13. चाची जी आया है।
14. पापा जी ज़ोर से चीखी।

शुद्ध वाक्य
1. सारा देश उसके लिए एक थाती था।
2. उसने मुझे मुंबई में घुमाया।
3. यह ट्रंक बहुत भारी है
4. महादेवी विदुषी थी।
5. मेरी नेकर मैली है।
6. रुचि मेरी अनुजा है।
7. वह अध्यापिका विदूषी है।
8. कवयित्री महादेवी वर्मा को सब जानते हैं।
9. चांदी महंगी हो गई है।
10. दूध गिर गया था।
11. रेखा अच्छा गाती है।
12. आद्या गा रही था।
13. चाची जी आई हैं।
14. पापा जी ज़ोर से चीखे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

4. वचन संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. दस आदमी के लिए चाय बनी है।
2. हम आपकी कृपाओं को कभी नहीं भूल सकते।
3. सैनिक ने युद्ध में प्राण की बाजी लगा दी।
4. अनुज ने हस्ताक्षर कर दिया है।
5. नीरजा के बाल बहुत लंबा है।
6. युद्ध में अनेकों सिपाही मारे गए।
7. सतीश और नीलम जा रही है।
8. वे सब आप की कृपाएँ हैं।
9. मेरा तो प्राण निकल गया।
10. उसे दो रोटी दे दो।

शुद्ध वाक्य
1. दस आदमियों के लिए चाय बनी है।
2. हम आपकी कृपा को कभी नहीं भूल सकते।
3. सैनिक ने युद्ध में प्राणों की बाजी लगा दी।
4. अनुज ने हस्ताक्षर कर दिये हैं।
5. नीरजा के बाल बहुत लंबे हैं।
6. युद्ध में अनेक सिपाही मारे गए।
7. सतीश और नीलम जा रहे हैं।
8. यह आप की कृपा है।
9. मेरे तो प्राण निकल गए।
10. उसे दो रोटियां दे दो।

5. सर्वनाम संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. इस संबंध में मेरा मत मैं पहले ही प्रकट कर चुका हूँ।
2. मेरा ध्यान मेरे मित्र में था।
3. उसे अपनी विद्वत्ता का अभिमान था, रमेश ने जोरदार शब्दों में ग़लत बात का खंडन किया।
4. उसने दृष्टि उसके चेहरे पर गड़ दी और शीला से कहा।
5. प्रशान्त ने भारती से कहा, “हम तुरन्त आ रहे हैं।”
6. मेरा रूमाल अपनी जेव में है।
7. मैं लिप्स्टिक को उनकी चीज़ समझकर समझकर उनके लिए छोड़ देता हूँ।
8. बहुत से झमेले हैं, जिसे निपटाना है।
9. डाकू मर भी जाए तो उनके लिए कौन रोता है।
10. नेता जी के जन्मदिवस पर भारत की स्वतंत्रता के लिए दिए गए उसके योगदान को स्मरण किया जाता है।
11. जब तक इन हाथों में ताकत है वह मेवाड़ मेवाड़ की रक्षा करेंगे।
12. मैं मेरे घर जा रहा हूं।
13. हम दूध पिऊँगा।
14. आप कहाँ गया था?
15. वे वहाँ खड़ा था।

शुद्ध वाक्य
1. इस संबंध में अपना मत मैं पहले ही प्रकट कर चुका हूँ।
2. मेरा ध्यान अपने मित्र की ओर था।
3. रमेश को अपनी विद्वत्ता का अभिमान था, इसलिए उसने जोरदार शब्दों में ग़लत बात का खंडन किया।
4. उसने दृष्टि शीला के चेहरे पर गड़ा दी और उसे कहा।
5. प्रशान्त ने भारती से कहा, “मैं तुरन्त आ रहा हूँ।”
6. मेरा रूमाल मेरी जेब में है।
7. मैं लिप्स्टिक को स्त्रियों की चीज़ स्त्रियों के लिए छोड़ देता हूँ।
8. बहुत-से झमेले हैं, जिन्हें निपटाना है।
9. डाकू मर भी जाए तो उसके लिए कौन रोता है।
10. नेता जी के जन्मदिवस पर, भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके योगदान को स्मरण किया जाता है।
11. जब तक इन हाथों में ताकत है, ये मेवाड़ की रक्षा करेंगे।
12. मैं अपने घर जा रहा हूँ।
13. मैं दूध पिऊँगा।
14. आप कहाँ गए थे?
15. वे वहाँ खड़े थे?

6. विशेषण संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. प्रेमचंद बड़े अच्छे कहानीकार थे।
2. रागिनी सुंदरतम् नाचती है।
3. मैं मधुरतम गाती हूँ।
4. नरेश ने झूठ बात कही।
5. गंगा को भारी प्यास लगी थी।
6. प्रत्येक व्यक्ति को चार-चार रोटी दे दो।
7. डाकुओं ने खूखार अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया।
8. ये लड़के बहुत बुरा है।
9. तुम्हारे दायां हाथ में क्या है?
10. युद्ध में खूखार अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग होता है।
11. कर्ण महान दायक थे।
12. नेता जी की मृत्यु से देश को अपूर्व क्षति हुई।

शुद्ध वाक्य
1. प्रेमचंद बहुत अच्छे कहानीकार थे।
2. रागिनी सुंदर नाचती है।
3. मैं मधुर गाती हूँ।
4. नरेश ने झूठी बात कही।
5. गंगा को बहुत प्यास लगी थी।
6. प्रत्येक व्यक्ति को चार रोटी दे दो।
7. डाकुओं ने विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया।
8. ये लड़के बहुत बुरे हैं।
9. तुम्हारे दायें हाथ में क्या है?
10. युद्ध में विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों का का प्रयोग होता है।
11. कर्ण महान् दानी थे।
12. नेता जी की मृत्यु से देश को महान् क्षति हुई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

7. क्रिया संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह चिल्ला उठा।
2. देश की अर्थ व्यवस्था उत्पादन पर निर्भर करती है।
3. वहाँ गहन अंधकार घिरा हुआ था।
4. बुरी भावना का जन्म होते ही उसे दबा दो।
5. उसका मूल्य आप नहीं नाप सकते।
6. उसको अभिनन्दन-पत्र प्रदान किया।
7. धन का प्रयोग समझकर करो।
8. वह कल तुम्हारे घर आऊँगा।
9. सभी को हरी सब्जियाँ खाना चाहिए।
10. मास्टर जी ने अच्छा भाषण किया।
11. मेरी माँ ने मुझे एक कहानी सुनाया।
12. वह औरत विलाप करके रोने लगी।

शुद्ध वाक्य
1. वह चिल्ला पड़ा।
2. देश की अर्थ-व्यवस्था उत्पादन पर निर्भर है।
3. वहाँ गहन अंधकार छाया हुआ था।
4. बुरी भावना को जन्म लेते ही दबा दो।
5. उसका मूल्य आप नहीं आंक सकते।
6. उसको अभिनंदन-पत्र भेंट किया।
7. धन का प्रयोग समझ-बूझकर करो।
8. वह कल तुम्हारे घर आएगा।
9. सभी को हरी सब्जियाँ खानी चाहिए।
10. मास्टर जी ने अच्छा भाषण दिया।
11. मेरी माँ ने मुझे एक कहानी सुनाई।
12. वह औरत विलाप करने लगी।

8. क्रिया विशेषण संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. मैं तो आपके आदेशों के अनुकूल चल रहा चल रहा हूँ।
2. रवींद्र नाथ टैगोर ने नोबेल पुरस्कार विजय किया।
3. प्रत्येक काम अपने अपने समय पर करो।
4. उसकी गर्दन शर्म से नीचे थी।
5. यह संभव नहीं हो सकता।
6. वहाँ करोड़ों रुपये संकलित हो गये।

शुद्ध वाक्य
1. मैं तो आपके आदेशों के अनुसार हूँ।
2. रवींद्रनाथ टैगोर ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।
3. प्रत्येक काम अपने समय पर करो।
4. उसकी गर्दन शर्म से नीची थी।
5. यह संभव नहीं है।
6. वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए।

9. अव्यय संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. यदि वह मोटी न होती तब और भी तेज़ दौड़ती।
2. वहाँ अपार जनसमूह एकत्रित था।
3. जाकर कोई रोटी खा लो।
4. कल हम तुम्हारे सब कुछ थे, और आज कोई भी नहीं।
5. तुम्हारी बात का कोई अर्थ नहीं निकलता।

शुद्ध वाक्य
1. यदि वह मोटी न होती तो और भी तेज़ दौड़ती।
2. वहाँ अपार जनसमूह एकत्र था।
3. जाकर थोड़ी-सी रोटी खा लो।
4. कल हम तुम्हारे सब कुछ थे, आज कुछ भी नहीं।
5. तुम्हारी बात का कुछ भी अर्थ नहीं निकलता।

10. बेमेल अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह प्रति पग-पग पर ठोकरें खाता है।
2. मोरनी को खुश करने के लिए मादा मोर नाचता है।
3. बात तो यह है कि तुम बहुत भोले हो।
4. प्रति रोज़ दाँत साफ़ करो।।
5. शरीफ पुरुष की सभी इज्जत करते हैं।
6. बॉल को फर्श पर लुढ़का दो।
7. मैं दसवीं कक्षा का स्टूडेंट हूँ।
8. समय को व्यर्थ वेस्ट न करो।
9. मेरा ब्रदर आया है।

शुद्ध वाक्य
1. वह पग-पग पर ठोकरें खाता है।
2. मोरनी को खुश करने के लिए मोर नाचता है।
3. बात यह है कि तुम बहुत भोले हो।
4. प्रतिदिन दाँत साफ करो।
5. शरीफ आदमी की सभी इज्जत करते हैं।
6. गेंद को फर्श पर लुढ़का दो।
7. मैं दसवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ।
8. समय को व्यर्थ न गंवाओ।
9. मेरा भाई आया है।

11. वाक्यगत सामान्य अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह चित्र मैं जब दसवीं का छात्र था तब का है।
2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे।
3. इस पुस्तक में साधारण लेखकों से जो हैं, उनका इस पुस्तक में अच्छा विवेचन है।
4. दादा की मृत्यु से बड़ा दुःख हुआ।
5. मेरी आयु बीस की है।
6. इस परिश्रम के बदले अपने कार्य से मनुष्य हैं, उनका इस पुस्तक में अच्छा विवेचन है।

शुद्ध वाक्य
1. यह चित्र तब का है, जब मैं दसवीं का छात्र था।
2. उसने अनेक ग्रंथ लिखे।
3. साधारण लेखकों से जो ग़लतियाँ होती गल्तियाँ होती है, उनका अच्छा विवेचन है।
4. दादा की मृत्यु से बड़ा शोक हुआ।
5. मेरी अवस्था बीस वर्ष की है।
6. अपने कार्य से मनुष्य को जो संतोष होता है, वही उसके परिश्रम का बदला है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

12. पुनरुक्ति संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. मेरे पिता सज्जन पुरुष हैं।
2. बेफिजूल बोल रहे हो।
3. उन लोगों में कुछ लोग धर्म के प्रति बड़े कट्टर होते हैं।।
4. सर्दियों में प्राय: लोग गुनगुने गर्म पानी से नहाते हैं।
5. आप में जिन आवश्यक गुणों की आवश्यकता है।
6. परिश्रम से अपने आगामी भविष्य को उज्ज्वल बनाया जा सकता है।
7. कृपया यहाँ पधारने की कृपा करें।
8. यह पठनीय कविता पढ़ने योग्य है।
9. यह उपवन केवल मात्र आपके लिए नहीं है।
10. शिमला में अनेक दर्शनीय स्थल देखने योग्य हैं।
11. वह सादर सहित सिर झुका रहा है।
12. वह निरंतर लगातार गाता रहता है।
13. यह गीत सुनने योग्य श्रव्य है।
14. राधा सप्रेम सहित नमस्ते कर रही है।

शुद्ध वाक्य
1. मेरे पिता सज्जन हैं।
2. फिजूल बोल रहे हैं।
3. उनमें से कुछ लोग धर्म के प्रति बड़े कट्टर होते हैं।
4. सर्दियों में प्रायः लोग गुनगुने पानी से नहाते हैं।
5. आप में जिन गुणों की आवश्यकता है।
6. परिश्रम से अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाया जा सकता है।
7. कृपया यहाँ पधारें।
8. यह कविता पढ़ने योग्य है।
9. यह उपवन केवल आपके लिए नहीं है।
10. शिमला में अनेक दर्शनीय स्थल हैं।
11. वह सादर सिर झुका रहा है।
12. वह निरंतर गाता रहता है।
13. यह गीत सुनने योग्य है।
14. राधा सप्रेम नमस्ते कर रही है।

13. सामान्य अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. लड़के पड़ रहे हैं।
2. मैं माता का दर्शन करने आया हूँ।
3. अत्यधिक किया कार्य भी थका देता है।
4. उत्तर दिशा जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा।
5. आप ग्रह प्रवेश पर निमंत्रित हैं।
6. आपकी पेन बहुत तेज़ दौड़ती है।
7. स्लेट में लिखो।
8. तुम्हारी बात समझ नहीं आती।
9. अच्छे विचारों का ग्रहण करो।
10. सौंदर्य सबको मोह लेती है।
11. एडीसन प्रसिद्ध विज्ञानी था।
12. तुम्हारी चातुर्यता हर बार कामयाब न होगी।

शुद्ध वाक्य
1. लड़के पढ़ रहे हैं।
2. मैं माता के दर्शन करने आया हूँ।
3. अत्यधिक कार्य भी थका देता है।
4. उत्तर दिशा में जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा।
5. आप गृह-प्रवेश पर आमंत्रित हैं।
6. आपका पेन तेज़ी से लिखता है।
7. स्लेट पर लिखो।
8. तुम्हारी बात समझ में नहीं आती।
9. अच्छे विचारों को ग्रहण करो।
10. सौंदर्य सबको मोह लेता है।
11. एडीसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक था।
12. तुम्हारा चातुर्य हर बार कामयाब न होगा।

14. व्यंजन की अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. सबको समान अंस देना चाहिए।
2. उसका अंत्य निकट था।
3. कमल अंबु में उत्पन्न होता है।
4. मैं किसी अन्न व्यक्ति से बात नहीं करता।
5. अनु-अनु में भगवान् विराजमान है।

शुद्ध वाक्य
1. सबको समान अंश देना चाहिए।
2. उसका अंत निकट था।
3. कमल अंबु में खिलता है।
4. मैं किसी अन्य व्यक्ति से बात नहीं करता।
5. कण-कण में भगवान् विराजमान है।

15. मुहावरों के प्रयोग में अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. यह काम चार-दो आदमियों का नहीं।
2. मुझे से पाँच-तीन न करना।
3. सिपाही को देखते ही चोर सात चार ग्यारह हो गया।।
4. कैसा निकम्मा नौकर पाले पड़ा है।
5. इकलौता पुत्र आँख का तारा होता है।

शुद्ध वाक्य
1. यह काम दो-चार आदमियों का नहीं।
2. मुझे से तीन-पाँच न करना।
3. सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।
4. कैसा निकम्मा नौकर पल्ले पड़ा है।
5. इकलौता पुत्र आँखों का तारा होता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

16. पदक्रम संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. पुस्तकें ये किसकी हैं?
2. कुछ मालाएँ फूलों की ले आओ।
3. अशोक वर्मा (डॉ०) बहुत ही प्रसिद्ध है।
4. वह काम पर गया दूध पीकर।
5. अनुजा ने गाना गाया बहुत ही मधुर था।
6. मैं नहीं नहाने जाऊँगा।
7. डाकिया लाया है आज की डाक।
8. सुमित्रा पढ़ रही हिंदी की पुस्तक।
9. रघु नहीं सुनता बात किसी की भी।
10. बंदर छत से कूदा था नीचे।
11. गर्म काली गाय का दूध पिया करो।
12. खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ।
13. धोकर फल-सब्जियां खानी चाहिए।
14. भौंकता कुत्ता इधर से नहीं गुजरा।

शुद्ध वाक्य
1. ये पुस्तकें किसकी हैं?
2. फूलों की कुछ मालाएँ ले आओ।
3. डॉ० अशोक वर्मा बहुत ही प्रसिद्ध है।
4. वह दूध पीकर काम पर गया।
5. अनुजा ने बहुत ही मधुर गाना गाया।
6. मैं नहाने नहीं जाऊँगा।
7. डाकिया आज की डाक लाया है।
8. सुमित्रा हिंदी की पुस्तक पढ़ रही है।
9. रघु किसी की भी बात नहीं सुनता।
10. बंदर छत से नीचे कूदा था।
11. काली गाय का गर्म दूध पिया करो।
12. गाजर काटकर खरगोश को खिलाओ।
13. फल-सब्जियां धोकर खाली चाहिए।
14. कुत्ता भौंकता हुआ इधर से नहीं गुजरा।

17. वाच्य संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. रेशमा द्वारा निबंध लिखा।
2. यह दोहा कबीर जी की पुस्तक से लिया है।
3. सेना द्वारा आतंकी को पकड़ा।
4. मैंने पतंग उड़ाया।

शुद्ध वाक्य
1. रेशमा द्वारा निबंध लिखा गया।
2. यह दोहा कबीर जी की पुस्तक से लिया गया है।
3. सेना द्वारा आतंकी को पकड़ा गया।
4. मेरे द्वारा पतंग उड़ाई गई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar anekarthi shabd अनेकार्थक शब्द Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अनेकार्थक शब्द

निम्नलिखित शब्दों के अनेकार्थी शब्द लिखिए

अंक – ……………..
अंबर – ……………….
आम – ……………..
गुरु – ……………..
घट – ……………..
निशान – ………………
लाल – ……………..
मत – ………………
भेंट – ………………
हल – ………………
उत्तर:
शब्द – अनेकार्थी शब्द
अंक – गोद, चिह्न, संख्या, भाग्य, नाटक का अंक, अध्याय।
अंबर – वस्त्र, आकाश, कपास, एक सुगंधित पदार्थ।
आम – मामूली, सर्वसाधारण, आम का फल।
गुरु – बड़ा, आचार्य, भारी, बृहस्पति, दो मात्राओं का अक्षर।
घट – घड़ा, शरीर, हृदय।
निशान – चिह्न, ध्वज, तेज करना, यादगार, लक्ष्य, पता-ठिकाना, परिचायक लक्षण।
लाल – रंग, बेटा, मूल्यवान पत्थर।
मत – नहीं, सम्मत, सम्मानित, सोचा-विचारा, सम्मति, वोट, मंशा, सिद्धान्त।
भेंट – मुलाकात, मिलन, नजर।।
हल – खेत जोतने का यंत्र, समाधान।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

निम्नलिखित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
अंबर के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) गोद-वस्त्र
(ख) आकाश-वस्त्र
(ग) कपास-केश
(घ) भाग्य-भार।
उत्तर:
(ख) आकाश-वस्त्र

प्रश्न 2.
अहि के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) साँप-बकरा
(ख) साँप-भ्रम
(ग) साँप-सूर्य
(घ) साँप-शिव।
उत्तर:
(ग) साँप-सूर्य

प्रश्न 3.
कनक के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) सोना-चाँदी
(ख) सोना-गेहूँ
(ग) सोना-जागना
(घ) सोना-खोना।
उत्तर:
(ख) सोना-गेहूँ

प्रश्न 4.
गो के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) जाना-आना
(ख) गाय-सूर्य
(ग) गाय-भूमि
(घ) खग-किरण।
उत्तर:
(ग) गाय-भूमि

प्रश्न 5.
नाग के अनेकार्थ हैं-साँप-हाथी (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
कुल के अनेकार्थ हैं-वंश-किनारा (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 7.
सारंग के अनेकार्थ हैं-साँप-हाथी (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 8.
बाल के अनेकार्थ हैं-बालक-केश (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 9.
श्रुति के अनेकार्थ हैं-नाक-कान (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

प्रश्न 10.
घट के अनेकार्थ हैं-शरीर-घड़ा (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

वर्ष
निम्नलिखित में से किसी एक शब्द के अनेकार्थक शब्द (कम-से-कम दो) लिखिए
फल, बोझ।
उत्तर:
फल = परिणाम, लाभ, प्रयोजन, पेड़ का फल।
बोझ = भार, भारी वस्तु, कार्य भार।

कर, बाल।
उत्तर:
कर = टैक्स, हाथ, किरण, सँड
बाल = बालक, केश, अनाज (का ऊपरी हिस्सा)।

नाक, हवा।
उत्तर:
नाक = साँस लेने एवं सूंघने की इंद्री, मगर, घड़ियाल, गौरव की बात।
हवा = वायु, साँस, अफ़वाह।

वर्ष
अंक, फल।
उत्तर:
अंक = गोद, भाग्य, संख्या, अध्याय
फल = परिणाम, लाभ, पेड़ का फल, प्रयोजन।

कनक, उत्तर।
उत्तर:
कनक = धतूरा, सोना, गेहूँ, पलाश
उत्तर = परिणाम, दिशा, जवाब देना, प्रतिकार।

चक्र, काल।
उत्तर:
चक्र = पहिया सैनिक व्यूह, चक्कर, कुम्हार का चक्र, फेरा
काल = समय, यम, अंत, मौसम, क्रियाओं को सूचित करने वाला।

वर्ष
हवा, धूप।
उत्तर;
हवा = पवन, वायु
धूप = सूर्य की धूप, पूजा के लिए प्रयोग की जाने वाली धूप।

प्रश्न 1.
अनेकार्थक शब्द से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भाषा में अनेक ऐसे शब्द होते हैं जिनके अर्थ प्रसंग के अनुसार अलग-अलग होते हैं। ऐसे शब्दों को अनेकार्थक कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनेकार्थक शब्दों के पांच उदाहरण वाक्य बना कर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. अंक-

  • संख्या-आप के पांच अंक काट दिए गए थे।
  • चिह्न-उसने दो का अंक मिटा दिया है।
  • नाटक का अंक-‘वीर राजा’ नाटक के तीन ही अंक थे।
  • गोद-बच्चा माँ के अंक में सो रहा था।
  • भाग्य-प्रत्येक बच्चा अपना अंक लेकर ही धरती पर आता है।
  • अध्याय-उत्तर के लिए आप पुस्तक का चौथा अंक देखिए।

2. नीलकंठ-मोर-नाचते हुए नीलकंठ ने अपने पंख फैला रखे थे।
शिवजी-दुःख की इस घड़ी में भगवान् नीलकंठ आप पर दया करें।

3. कुशल-चतुर-आप का भाई आप से अधिक कुशल निकला।
खैरियत-हम सब आप के कुशल मंगल की कामना करते हैं।

4. कृष्ण-काला-अब तो कृष्ण पक्ष आरंभ हो चुका है।
भगवान् कृष्ण-श्री कृष्ण द्वापर युग में अवतरित हुए थे।
वेद व्यास-महामुनि कृष्ण द्वैपायन ने ‘महाभारत’ की रचना की थी।

5. मित्र-प्रिय-आप की मित्र मंडली कहां से पधारी है?
दोस्त-अभी रास्ते में मुझे मेरा मित्र मिला था।
सूर्य-धरती पर जीवन का आधार तो मित्र ही है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

अनेकार्थक शब्दों के उदाहरण

अंक – भाग्य, अध्याय, गोद, चिहन, नाटक का अंक, संख्या।
अंग – भाग, शरीर का कोई हिस्सा।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा, रस, ज्योति, दवाई के रूप में पिया जाने वाला औषधियों का काढ़ा।
अनंत – आकाश, विष्णु, असीम, अंतहीन, ब्रह्म।
अर्थ – कारण, धन, ऐश्वर्य, इच्छा, प्रयोजन, मतलब, लिए।
अज – बकरा, ब्रह्मा, शिव, जीव, कामदेव, मेष राशि।
उत्तर – जवाब, उत्तर दिशा, बाद का, प्रतिकार।
अहि – साँप, कष्ट, सूर्य।
अधि – धरोहर, विपत्ति, अभिशाप, मानसिक पीड़ा।
आम – आम का फल, सर्वसाधारण, मामूली।
अंबर – आकाश, वस्त्र, कपास, एक सुगंधित पदार्थ।
अरुण – लाल, सूर्य, सूर्य का सारथी, सिंदूर, वृक्ष, संध्या, राग।
अच्युत – स्थिर, कृष्ण, विष्णु, अविनाशी।
अमृत – जल, पारा, दूध, अन्न।
अलि – सखा, पंक्ति, भौंरा। ‘आराम-बाग, विश्राम, शांति।
आलि – सखी, पंक्ति।
अतिथि–साधु, मेहमान, यात्री, राम का पोता या कुश का बेटा, अपरिचित व्यक्ति।
आपत्ति – मुसीबत, एतराज। अयन – घर, मार्ग, स्थान, आधा, वर्ष।
ईश्वर – प्रभु, स्वामी, धनी, समर्थ।
उत्तर – जवाब, उत्तर दिशा, प्रतिकार, बाद का।
कनक – धतूरा, सोना, गेहूँ, खजूर, छंद का एक भेद, पलाश।
कच – बाल, बादल, झुंड, बृहस्पति का बेटा।
कर्ता – स्वामी, ईश्वर, एक कारक, करने वाला।
कर – टैक्स, हाथ, किरण, सँड।
कर्ण – कान, समकोण के सामने की भुजा, कुंती पुत्र, पतवार।
कल – आगामी/बीता हुआ दिन, चैन, मशीन।
कोटि – श्रेणी, करोड़, धनुष का सिर।
कुशल – चतुर, खैरियत।
काल – समय, अंत, क्रियाओं को सूचित करने वाला शब्द (जैसे भूतकाल, वर्तमानकाल) मौसम, (जैसे शरद काल)।
कृष्ण – काला, वेदव्यास, भगवान् कृष्ण।
काम – इच्छा, कार्य, कामदेव।
कुल – वंश, सभी, सारा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

खर – गधा, तिनका, दुष्ट, तीक्ष्ण।
खग – पक्षी, तारा, बाण, ग्रह।
गुरु – बड़ा, आचार्य, बृहस्पति, दो मात्राओं का अक्षर।
गति – चाल, हालत, शिव के सैनिक।
गिरा – गिरना, वाणी, सरस्वति।
गो – भूमि, गाय, किरण, वाणी, इंद्रिय, नेत्र, स्वर्ण, आकाश, जल, शब्द, वज्र।
ग्रहण – अपनाना, पकड़ लेना, सूर्य-चंद्र ग्रहण।।
घन – घना, बादल, बहुत बड़ा हथौड़ा, किसी अंक को अंक से तीन बार गुणा करने पर प्राप्त होने वाला गुणनफल (जैसे चार का घन = 4 × 4 × 4 = 64 होगा)
घट – घड़ा, शरीर, हृदय।
घोड़ा – अश्व (पालतु पशु जिस पर सवारी की जाती है), घोड़े के आकार का बंदूक आदि का खटका (जैसे घोड़ा दबाना), शतरंज का मोहरा।
चरण – पैर, आचार, छंद का एक भाग।
चंदा – चाँद, सार्वजानिक कार्य हेतु दी गई आर्थिक सहायता, सदस्यता का शुल्क (जैसे-क्या आपने इस संस्था को वार्षिक चंदा दे दिया है।)
चपला – बिजली, लक्ष्मी।
चक्र – पहिया, कुम्हार का चाक, चक्की, सैनिक व्यूह (जैसे चक्रव्यूह) पानी का भँवर, हवा का बवंडर, चक्कर (फेरा), सुदर्शन चक्र, सैन्य पुरस्कार (वीर चक्र आदि), फेरा।
छज – पद, जल, ढंग, स्वेच्छा चार, हाथ का एक गहना।
जड़ – मूर्ख, मल, अचेतन।
जलज – कमल, चंद्रमा, शंख, मोती।
जीवन – जल, प्राण, वायु।
जलधर – बादल, समुद्र।
जेठ – बड़ा, जेठ का महीना, स्त्री के पति का बड़ा भाई।
तीर – किनारा, बाण।
तम – अंधेरा, पाप, तमाल का पेड़, तमोगुण।
ताल – तालाब, ताड़ का पेड़, गाने का परिणाम, ताली का शब्द।
तात – पिता, मित्र, भाई, पुत्र, शिष्य।
तत्व – मूल, यथार्थ, ब्रह्म, पंचभूत।
तमचर – राक्षस, उल्लू।
तीर्थ – यज्ञ, शास्त्र, उपाय, अवतार, मंत्र।
दंड – लाठी, दमन, सजा, यमराज का अस्त्र, साठ पल का समय।
दान – धर्म, त्याग, पुण्य, शुद्धि, हाथी का मद।
द्विज – पक्षी, ब्राह्मण, वैश्य, चांद।
दक्ष – चतुर, प्रजापति, ब्रह्मा का पुत्र।
दर्शन – भेंट, देखना, शास्त्र।
धन – गणित में जोड़ का निशान, पूंजी, द्रव्य।
धूप – पूजा के लिए प्रयोग की जाने वाली धूप, सूर्य की धूप।
ध्रुव – सत्य, एक नक्षत्र, स्थिर, नित्य, विष्णु का भय, बालक।
नाक – साँस लेने एवं सूंघने की इंद्रिय, मगर, घड़ियाल, गौरव की बात (जैसे नाक रखना)।
नगः – पहाड़, रत्न विशेष।
नाग – साँप, हाथी।
नव – नया, नौ की संख्या।
निशाचर – चोट, राक्षस, प्रेत, उल्लू।
नीलकंठ – शिव, मोर।
नंदन – बेटा, इंद्र की वाटिका, सुख प्रदान करने वाला।
नल – बॉस, नेजा, एक राक्षस, नाली।
पतंग – सूर्य, कनकौआ, पक्षी, विशेष प्रकार का कीड़ा, गुड्डी।
पय – दूध, पानी, पीने का द्रव।
पत्र – पत्ता, चिट्ठी।
पानी – जल, चमक, इज्ज़त।
पट – कपड़ा, परदा, द्वार।
पूर्व – पहला, एक दिशा।
पुर- नगर, शरीर, राक्षस का नाम।
फल – परिणाम, लाभ, प्रयोजन, पेड़ का फल।
बलि – बलिदान, भेंट, राजा बलि।
बली – पिशाच, बीता हुआ समय।
बल – शक्ति, सेना, भरोसा, बलराम, शिकन।
बाल – बालक, केश, अनाज (का ऊपरी हिस्सा)
बोझ – भार, भारी वस्तु, कार्यभार।
भूत – पिशाच, बीता हुआ समय।
भुवन – घर, संसार, लोक।
भव – संसार, जन्म।
भीष्म – भयंकर, भीष्म पितामह।
भाग – हिस्सा, दौड़, भाग्य।
मधु – शहद, शराब, वसंत ऋतु।
मंगल – सौर जगत का एक ग्रह, मंगलवार, शुभ।
मान – अभिमान, इज्ज़त, नाप तोल।
मकर – मगर नामक जलजन्तु, घड़ियाल, मछली, बारह राशियों में से एक राशि।
मूक – गूंगा, विवश, चुप।
यम – वायु, मृत्यु का देवता।
योग – मेल, समाधि, साधना।
रंग – आनंद, शोभा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

राग – प्रेम, गीत, मोह।
रजत – चांदी, सफेद।
रचना – सृष्टि, कृति, बनावट।
राशि – भंडार, मेष और तुला आदि राशियां।
लाल – बेटा, रंग, मूल्यवान पत्थर।
लघु – छोटा, नीच, अक्षर, ह्रस्व।
लय – स्वर, ताल।
लक्ष्य – निशाना, उद्देश्य।
मुद्रा – रुपया, मोहर, अंगूठी, आकृति, छाप।
मित्र – दोस्त, सूर्य, प्रिय।
वंश – कुल, बाँस।
व्रत – संकल्प, उपवास, नियम।
विधि – भाग्य, ब्रह्मा, रीति, नियम।
वर्ण – रंग, जाति, अक्षर।
वार – आघात, प्रहार, सप्ताह का प्रत्येक दिन।
वत्स – बेटा, बछड़ा।
विहंगम – पक्षी, बादल, बाण।
श्री – शोभा, लक्ष्मी, धन वैभव।
स्वर – तालाब, सिर, बाण।
सारंग – मोर, साँप, बादल, हाथी, शंख, हिरण, कोयल, भंवरा, रात्रि।
सर – तालाब, बान, सिर।
सुधा – अमृत, पानी।
सैंधव – घोड़ा, नमक, सिंधु का विशेषण।
सूत – धागा, सारथी।
सरस्वती – विद्या की देवी, एक नदी का नाम, वाणी।
संज्ञा – नाम, बुद्धि, सूर्य की पत्नी।
सूर – सूरदास, अंधा, सूर्य।
सरभि – गाय, वसंत ऋतु।
शिव – मंगल, महोदय, भाग्यशाली।
शस्य – धान, अनाज।
क्षीर – दूध, पानी।
क्षेत्र – अधिकार, स्थान, भू-भाग।
श्रुति – वेद, कान।
हवा – वायु, साँस, अफवाह।
हरि – इंद्र, विष्णु, बंदर, सूर्य, साँप, कोयल।
हंस – आत्मा, सूर्य, एक पक्षी।

PSEB 10th Class English Retranslation

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Retranslation Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class English Retranslation

Translate the following sentences into Hindi:

1. The Happy Prince

1. Why are you weeping then ?
फिर आप रो क्यों रहे हो?

2. They pulled down the statue of the Happy Prince.
उन्होंने प्रसन्नचित्त राजकुमार के बुत को नीचे गिरा दिया।

3. I am waited for in Egypt.
मेरा मित्र में इन्तज़ार हो रहा है।

4. It is very cold here.
यहां बहुत सर्दी है।

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5. I have a golden bedroom
मेरे पास एक सुनहरी शयनकक्ष है।

6. There is not a single cloud in the sky.
आसमान में एक भी बादल नहीं है।

7. Then another drop fell.
फिर एक और बूंद गिरी।

8. My courtiers called me the Happy Prince.
मेरे दरबारी मुझे प्रसन्नचित्त राजकुमार कहते थे।

9. I have come to bid you goodbye.
मैं आपको अलविदा कहने आया हूँ।

10. How hungry we are !
हम कितने भूखे हैं!

2. Where is Science Taking Us ?

1. Where is science taking us ?
विज्ञान हमें कहां ले जा रहा है?

2. This is the age of the machine.
यह मशीनी युग है।

3. War is the worst example.
युद्ध सबसे बुरा उदाहरण है।

4. I wish I had another hundred years.
काश, मेरे पास (जीवन में) एक सौ वर्ष और होते।

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5. Here Science is actually doing less than nothing.
असल में यहां विज्ञान कुछ नहीं से भी कम कर पा रहा है।

6. Who is to keep them ?
उन्हें कौन रखेगा?

7. Science goes on raising its problems.
विज्ञान अपनी समस्याएँ बढ़ाता चला जा रहा

8. What is really needed in the world today ?
वास्तव में आज संसार में किस चीज़ की जरूरत

9. What is science really after ?
विज्ञान वास्तव में क्या प्राप्त करना चाहता है?

10. What is its goal ?
इसका क्या उद्देश्य है?

3. Secret of Happiness

1. He never lost his calm.
उसने अपना धैर्य कभी नहीं खोया।

2. I didn’t want to die.
मैं मरना नहीं चाहता था।

3. Fear is one of man’s most common enemies.
डर इन्सान के सभी समान्य दुश्मनों में से एक

4. You are greater than you think.
आप उससे अधिक महान हैं जितना आप सोचते हैं।

5. I wanted to get out of there.
मैं वहां से बाहर निकलना चाहता था।

6. Then you will have total peace of mind.
तब तुम्हें मन की सम्पूर्ण शान्ति प्राप्त होगी।

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7. You must do it yourself.
तुम्हें इसे खुद करना पड़ेगा।

8. A fear is not unlike a ghost.
डर एक भूत से भिन्न नहीं है।

9. God watches over you and cares for you.
ईश्वर आप पर पूरी निगरानी रखता है और आपका ध्यान रखता है।

10. This is a problem common to us all.
यह एक समस्या है जो हम सब में आम है।

4. A Gift for Christmas

1. Her eyes were shining brilliantly.
उसकी आंखें शानदार ढंग से चमक रहीं थी।

2. Tears appeared in her eyes.
उसकी आंखों में आंस भर आए।

3. Della let fall her beautiful hair.
डैला ने अपने सुंदर बालों को नीचे तक गिरने दिया।

4. I sold the watch to get the money to buy your combs.
मैंने तुम्हारी कंघियां खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए घड़ी बेच दी।

5. Will you buy my hair ?
क्या आप मेरे बाल खरीदोगे?

6. Della finished crying.
डैला ने रोना बंद कर दिया।

7. It was a platinum watch-chain.
यह प्लैटिनम की बनी एक घड़ी की जंजीर थी।

8. Jim was never late.
जिम कभी देर से नहीं आता था।

9. She found it at last.
आखिर में उसे यह मिल ही गया।

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10. She stopped at a shop.
वह एक दुकान पर रुकी।

5. Some Glimpses of Ancient Indian Thought and Practices

1. The gods approached the sage Dadhichi.
देवतागण ऋषि दधीचि के पास पहुंचे।

2. Dadhichi took no time in laying down his life.
दधीचि ने अपने प्राणों का बलिदान देने में ज़रा सी भी देर न की।

3. Eat only after you’ve shared your meal with others.
भोजन तभी करो जब तुमने अपना भोजन दूसरों के साथ बाँट लिया हो।

4. A well-known sage named Ashtavakra was also invited to this meeting.
अष्टवक्र नाम के एक प्रसिद्ध ऋषि को भी उस सभा में निमन्त्रित किया गया।

5. The entire universe is one family.
पूरा ब्राह्माण्ड एक परिवार है।

6. This does not belong to me.
यह मेरी नहीं है।

7. They chose to be bricked alive.
उन्होंने जीते जी ईंटों में चिनवाया जाना चुना।

8. The history of this great land is full of examples.
इस महान् भूमि का इतिहास उदाहरणों से भरा पड़ा है।

9. The people of this country believe in the unity of life.
इस देश के लोग जीवन की एकता में विश्वास रखते हैं।

10. King Janak of Maithil called a / meeting of the scholars.
मैथिल के राजा जनक ने विद्वानों की एक सभा बुलाई।

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6. The Home-Coming

1. The boys were puzzled for a moment.
लड़के एक पल के लिए उलझन में पड़ गए।

2. Phatik refused to move.
फटिक ने हिलने से इन्कार कर दिया।

3. Phatik Chakravarti was the ring leader amongst the boys of the village.
फटिक चक्रवर्ती गांव के लड़कों के बीच उनका मुखिया था।.

4. He could not bear this injustice.
वह इस अन्याय को सहन नहीं कर सका।

5. The stranger asked him again.
अजनबी ने उसे दुबारा कहा।

6. At last Bhishamber asked the police to help him.
अंत में बिशम्बर ने पुलिस को उसकी मदद करने के लिए कहा।

7. One day. Phatik lost his lesson book.
एक दिन फटिक ने अपनी पाठ्य-पुस्तक खो दी।

8. The next morning Phatik was nowhere to be seen.
अगली सुबह फटिक कहीं भी नज़र न आया।

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9. Bishamber brough it in a doctor.
बिशम्बर एक डाक्टर को अंदर ले कर आया।

10. Mother, the holidays have come.
मां, छुट्टियां पड़ गई हैं।

7. The Making of the Earth

1. The sun and the planets with their satellites form a happy family.
सूर्य और ग्रह अपने-अपने उपग्रहों के साथ एक खुशहाल परिवार बनाते हैं।

2. At night you see thousands of stars in the sky.
रात के समय आप आकाश में हज़ारों ही तारे देखते हो।

3. The real stars are like our sun.
असली तारे हमारे.सूर्य की तरह हैं।

4. So the earth started to cool.
इसलिए धरती ठंडी होनी शुरू हो गई।

5. Stars twinkle, planets do not.
तारे टिमटिमाते हैं, ग्रह नहीं।

6. Can you distinguish between a planet and a star ?
क्या आप एक तारे और एक ग्रह में अंतर कर सकते हैं ?

7. The moon is called a satellite of the earth.
चांद को पृथ्वी का उपग्रह कहा जाता है।

8. Our earth belongs to the family of the sun.
हमारी पृथ्वी सूर्य के परिवार अर्थात् सौर-मंडल से संबंध रखती है।

9. In reality our sun itself is a star.
वास्तव में हमारा सूर्य स्वयं एक तारा है।

10. We think the earth is very big.
हम सोचते हैं कि धरती बहुत बड़ी है।

8. The Rule of the Road

1. You may not think so.
हो सकता है आप ऐसा न सोचते हों।

2. I’m going to walk where I like.
जहाँ मैं चाहती हूँ, वहीं चलूँगी।

3. He was obviously a well intentioned person.
वह स्पष्टत: एक नेक दिल इन्सान था।

4. We must be a judicious mixture of both.
हमें दोनों का एक विवेकपूर्ण मिश्रण होना पड़ेगा।

5. The great moments of heroism and sacrifice are rare.
वीरता तथा बलिदान के महान पल कभी-कभार ही आते हैं।

6. I hope my friend in the railway carriage will reflect on this.
मैं उम्मीद करता हूँ कि रेल के डिब्बे वाला मेरा मित्र इस पर विचार करेगा।

PSEB 10th Class English Retranslation

7. You have liberty to laugh at me.
आपको आजादी है मेरा मजाक उड़ाने की।

8. Liberty is not a personal affair only but a social contract.
स्वतन्त्रता सिर्फ एक निजी विषय नहीं है बल्कि एक सामाजिक समझौता होता है।

9. We have got liberty now.
अब हमें स्वतन्त्रता मिल चुकी है।

10. I may be as free as l like.
मैं जितना चाहूँ, स्वतन्त्र हो सकता हूँ।

1. The Happy Prince

1. He was gilded all over with thin leaves of fine gold.
वह पूर्णतया बढ़िया सोने की बारीक पत्तियों से ढका था।

2. The stars are quite clear and bright.
तारे बिल्कुल साफ़ और चमकदार हैं।

3. My feet are fastened to this pedestal.
मेरे पैर इस चौकी के साथ जकड़े हुए हैं।

4. The boy was tossing feverishly on his bed.
लड़का बुखार की बेचैनी से बिस्तर पर करवटें बदल रहा था।

5. Have you any commissions for Egypt ?
क्या आपको मिस्र में कोई काम है. ?

6. He is leaning over a desk covered with papers.
वह कागज़ों से भरी एक मेज पर झुका हुआ है।

7. There is no fire in the grate.
अंगीठी में आग नहीं है।

8. He sat on the mast of a large vessel.
वह एक बड़े जहाज़ के मस्तूल पर बैठ गया।

9. She has let her matches fall in the gutter.
वह अपनी माचिसें नाली में गिरा बैठी है।

10. There is no mystery so great as misery.
कोई भी रहस्य इतना बड़ा नहीं होता जितना कि (दरिद्रता की) पीड़ा का रहस्य।

11. He flew into dark lanes..
वह उड़ता हुआ अंधेरी गलियों में चला गया।

12. They wandered out into the rain.
वे बाहर वर्षा में भटकने लगे।

13. The living always think that gold can make them happy.
जीवित लोग प्रायः यही सोचते हैं कि सोना उन्हें खुश कर सकता है।

14. The streets looked as if they were made of silver.
गलियाँ ऐसी लग रही थीं मानो चाँदी की बनी हों।

PSEB 10th Class English Retranslation

15. The poor little Swallow grew colder and colder.
बेचारा नन्हा अबाबील ठण्डा तथा और ठण्डा होता चला गया।

16. I am going to the House of Death.
मैं मृत्यु के घर जा रहा हूँ।

17. We must really issue a proclamation.
हमें सचमुच एक घोषणा-पत्र जारी करना चाहिए।

2. Where is Science Taking Us ?

1. What is the meaning of life?
जीवन का क्या अर्थ है ?

2. Where are we all going ?
हम सब कहां जा रहे हैं ?

3. What drives men ever forward to work ?
कौन-सी चीज़ मनुष्यों को काम करने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती है ?

4. Let’s concentrate on material things.
आइए, हम भौतिक चीजों पर अपना ध्यान एकाग्र करें।

5. Each individual has six hundred human slaves in his machines.
प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी मशीनों के रूप में छ: सौ गुलाम हैं।

6. What are the consequences of this abnormal power ?
इस असामान्य शक्ति के क्या परिणाम हैं?

7. This would have been one of the greatest triumphs of science.
यह विज्ञान की महानतम विजयों में से एक होती।

8. We will need all our creative powers.
हमें अपनी सभी सृजनात्मक शक्तियों की आवश्यकता होगी।

9. Modern drug adds a little more to the average span of life.
आधुनिक दवाई जीवन की औसत अवधि को थोड़ा और बड़ा देती है।

10. Man is struggling in a sort of vicious circle.
मनुष्य एक प्रकार के दुष्चक्र में संघर्ष कर रहा है।

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11. Aims seem to be obvious.
लक्ष्य स्पष्ट लगते हैं।

12. Man needs more than food, shelter and clothing.
मनुष्य को रोटी, कपड़ा और मकान से कुछ ज्यादा चाहिए।

3. Secret of Happiness

1. Destiny has its own strange ways.
भाग्य के अपने ही निराले ढंग होते हैं।

2. The average man uses but twenty percent of his brain power.
एक औसत व्यक्ति अपने मस्तिष्क की शक्ति का केवल बीस प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है।

3. It is a source of inward power.
यह आंतरिक शक्ति का एक स्त्रोत है।

4. It touches every one of us in some way.
यह हम में से प्रत्येक को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है।

5. Fears of one kind and another haunt us.
एक या दूसरी किस्म के डर हमें निरन्तर सताते रहते हैं।

6. Fear lays its paralyzing hand upon an individual.
भय व्यक्ति पर अपना अशक्त बना देने वाला हाथ रख देता है।

7. Bring them out into the light of day.
उनको दिन की रोशनी में ले आइए।

8. Most of the things one fears never happen.
अधिकतर चीजें, जिनसे व्यक्ति डरता है, कभी घटित होती ही नहीं।

9. I sat transfixed, rooted to my chair.
मैं जड़ हो कर अपनी कुर्सी से जकड़ा हुआ बैठा रहा।

10. I leaped to the door and flung it open.
मैं दरवाज़े की तरफ झपटा और इसे एक झटके के साथ खोल दिया।

PSEB 10th Class English Retranslation

11. Kagawa, a preacher and social worker, once visited our country.
कगावा, जो एक उपदेशक तथा समाज सेवक था, एक बार हमारे देश में आया।

12. Kagawa had discovered a priceless secret.
कगावा ने एक अमूल्य रहस्य का भेद पा लिया था।

13. His eyesight was threatened.
उसकी आंखों की रोशनी खतरे में पड़ गई थी।

14. There is the real escape from fear.
भय से छुटकारा पाने का एक वास्तविक तरीका

15. Confidence, not fear, will be yours forever.
आत्मविश्वास, न कि भय, सदा के लिए आप का हो जाएगा।

4. A Gift for Christmas

1. The next day would be Christmas.
अगले दिन क्रिसमस का त्योहार था।

2. You see signs of poverty wherever you turn your eyes.
जिस तरफ भी आप नज़र घुमाएंगे, आपको ग़रीबी के चिन्ह नज़र आएंगे।

3. She stood by the window.
वह खिड़की की बगल में खड़ी हो गई।

4. She had been saving every penny she could for months.
वह कई महीनों से प्रत्येक वह पैनी बचाती आ रही थी जिसे वह बचा सकती थी।

5. Rapidly she pulled down her hair.
शीघ्रता से उसने अपने बाल खोल कर नीचे किए।

6. She put on her old brown jacket.
उसने अपनी पुरानी भूरी जैकेट पहन ली।

7. The shop was located on the second floor.
दुकान दूसरी मंजिल पर स्थित थी।

8. Della ran up the stairs.
डैला भागती हुई सीढ़ियों के ऊपर गई।

9. Take your hat off and let me have a look at it.
अपना हैट उतारो और मुझे इन्हें एक नज़र देखने दो।

10. Della spent the next two hours in the stores eagerly.
डैला ने अगले दो घंटे बहुत व्यग्रता से दुकानों में बिताए।

11. There was no other like it in any of the stores.
इसके जैसा कोई अन्य किसी भी दुकान में नहीं था।

PSEB 10th Class English Retranslation

12. She looked at the reflection in the mirror.
उसने दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को देखा।

13. The tiny curls made her look like a schoolboy.
उन छोटे-छोटे छल्लों के कारण वह एक स्कूली लड़के के जैसी दिख रही थी।

14. She turned white for just a moment.
वह केवल एक पल के लिए सफ़ेद पड़ गई।

15. The door opened and Jim stepped in and closed it.
दरवाज़ा खुला और जिम ने अंदर कदम रखा और इसे बंद कर दिया।

16. He needed a new overcoat.
उसे एक नए ओवरकोट की जरूरत थी।

17. Jim’s eyes were fixed on Della.
जिम की नज़र डैला पर टिकी थी।

18. Della got off the table and moved towards him.
डैला मेज़ से नीचे उतरी और जिम की तरफ बढ़ी।

19. Jim looked about the room curiously.
जिम ने उत्सुकतापूर्वक कमरे में इधर-उधर देखा।

20. Jim seemed to wake up at last, and to understand.
अन्त में मानो जिम जाग उठा हो और समझने लगा हो।

21. Della’s white fingers quickly opened the package.
डैला की सफ़ेद अंगुलियों ने तेजी से पैकेट को खोला।

22. Della jumped up like a little cat.
डैला एक छोटी बिल्ली की भांति उछल पड़ी।

23. Jim had not yet seen his beautiful present.
जिम ने अभी अपना सुंदर उपहार नहीं देखा था।

24. Jim sat down on the couch.
जिम सोफे पर बैठ गया।

5. Some Glimpses of Ancient Indian Thought and Practices

1. In desperation and anxiety, the gods went to Lord Vishnu.
निराशा और चिंता में देवतागण भगवान् विष्णु के पास गए।

2. Ashtavakara entered the portals of the palace hall.
अष्टवक्र ने महल के सभा-भवन में प्रवेश किया।

3. This put the entire assembly to shame.
इस बात ने पूरी सभा को लज्जित कर दिया।

4. The demons were having an upper hand.
असुरों का पलड़ा भारी हो रहा था।

PSEB 10th Class English Retranslation

5. I feel ashamed of being invited to this assembly of skinners.
चर्मकारों की इस सभा में निमन्त्रित किए जाने पर मुझे लज्जा आ रही है।

6. The Home-Coming

1. Everyone supported the proposal.
प्रत्येक ने सुझाव का समर्थन किया।

2. He appeared like a young philosopher.
वह एक छोटे दार्शनिक के जैसा लग रहा था।

3. His courage failed him at the crisis.
उस संकटपूर्ण स्थिति में उसकी हिम्मत उसका साथ छोड़ गई।

4. The other boys shouted themselves hoarse with delight.
अन्य लड़कों का खुशी से चिल्लाते हुए गला बैठ गया।

5. The first act of the drama was over.
नाटक का प्रथम अंक समाप्त हो गया।

6. A boat came up to the landing.
घाट पर एक नाव आ कर रुकी।

7. Phatik’s patience was already exhausted.
फटिक का धैर्य पहले ही समाप्त हो चुका था।

8. Phatik looked sheepish and ashamed.
फटिक लजित और मुंह छिपाता हुआ लगने लगा।

9. She recognized her brother.
उसने अपने भाई को पहचान लिया।

10. The next few days were full of rejoicing.
अगले कई दिन हंसी-खुशी में बीत गए।

11. The widowed mother readily agreed.
विधवा मां तुरन्त सहमत हो गई।

PSEB 10th Class English Retranslation

12. मां के लिए यह एक बड़ी भारी राहत वाली बात थी।
It was an immense relief to the mother.

13. बिशम्बर को सचमुच दो बार सोच लेना चाहिए था।
Bishamber should really have thought twice.

14. There is no worse nuisance than a boy at the age of fourteen.
चौदह साल के लड़के से बढ़ कर कोई अन्य परेशानी नहीं होती है।

15. A young lad most craves recognition and love.
एक जवान लड़का अपने मन में पहचान और स्नेह की अत्यधिक इच्छा रखता है।

16. He gaped and remained silent.
वह मुँह खोले देखता रहता और खामोश बना रहता।

17. एक दिन उसने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई।
One day, he summoned up all his courage.

18. Wait till the holidays come.
छुट्टियां होने तक प्रतीक्षा करो।

19. It was still raining and the streets were flooded.
वर्षा अब भी हो रही थी और गलियों में पानी भरा हुआ था।

20. He was wet through from head to foot.
वह सिर से पांव तक पूरी तरह भीगा हुआ था।

21. Throughout the night, the boy was delirious.
लड़का रात भर बड़बड़ाता रहा।

7. The Making of the Earth

1. The earth goes round the sun.
पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है।

2. The other planets have also got their satellites.
अन्य ग्रहों के भी अपने-अपने उपग्रह हैं।

3. Solar means belonging to the sun.
सौर का अर्थ होता है, सूर्य से संबंध रखने वाला।

4. The planets are really quite tiny like our earth.
वास्तव में (तारों की तुलना में) ग्रह हमारी पृथ्वी की ही भांति बहुत छोटे होते हैं।

PSEB 10th Class English Retranslation

5. We see it as a great ball of fire.
हम इसे आग की एक विशाल गेंद के रूप में देखते हैं।

6. The sun is millions of miles away.
सूर्य हम से लाखों मील दूर है।

7. Our earth also shot out from the sun.
हमारी पृथ्वी भी सूर्य से छिटक कर अलग हो गई।

8. It is full of glaciers and ice fields.
यह हिमनदियों और बर्फ के मैदानों से भरपूर है।

9. All the water-vapours in the air condensed into water.
हवा में विद्यमान सारे जल-वाष्प घने हो कर पानी बन गए।

8. The Rule of the Road

1. A stout old lady was walking with her basket.
एक हृष्ट-पुष्ट बूढ़ी महिला अपनी टोकरी उठाए हुए चली जा रही थी।

2. I have liberty to be indifferent to you.
मुझे आज़ादी है कि तुम्हारी उपेक्षा करूं।

3. I got into a railway carriage at a country station.
मैं एक ग्रामीण स्टेशन से रेल के डिब्बे में सवार हुआ।

4. I think I could enjoy a really good novel.
मेरे विचार से मैं वास्तव में ही किसी अच्छे उपन्यास का आनंद ले सकता था।

5. He had not the social sense.
उसमें सामाजिक बुद्धि नहीं थी।

6. He was not ‘a clubbable’ man.
वह किसी संगति में बैठने की बुद्धि नहीं रखता था।

PSEB 10th Class English Retranslation

7. He has no right to sit in his front room.
उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने आगे वाले कमरे में आ कर बैठ जाए।

8. You are interfering with the liberties of your neighbours.
आप अपने पड़ोसियों की स्वतन्त्रताओं में विघ्न डाल रहे है।

9. Clash of liberties seems to defy compromise.
आज़ादियों की भिड़न्त में कोई समझौता कर पाना असम्भव हो जाता है।

PSEB 10th Class English Translation

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Translation Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class English Translation

Translate the following sentences into-English :

Modal-related Sentences

1. मैं यह प्रश्न हल कर सकता हूं।
I can solve this question.

2. आपको किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिए।
You must consult some good doctor.

3. हमें अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए।
We ought to obey our parents.

PSEB 10th Class English Translation

4. हो सकता है, आज रात वर्षा हो।
It might rain tonight.

5. वह यहां रहा करता था।
He used to live here.

6. मेहनत करो, ऐसा न हो कि फ़ेल हो जाओ।
Work hard, lest you should fail.

7. हमें अपने देश की सेवा करनी चाहिए।
We should serve our country.

8. सबको एक न एक दिन मरना ही है।
Everybody has to die one day or the other

9. काश! मैं अमीर होता।
Would that I were rich!

10. मेरी क्या मज़ाल कि मैं आपका अपमान करूं।।
How can I dare to insult you?

Tense-based Sentences :

11. हम क्रिकेट खेलते हैं।
We play cricket.

12. मेरी घड़ी सही समय नहीं देती है।
My watch does not keep correct time.

13. पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती है।
The earth revolves round the sun.

PSEB 10th Class English Translation

14. वे कब सोते हैं?
When do they sleep?
(or) When do they go to bed?

15. मैं पत्र लिख रहा हूं।
I am writing a letter.

16. लड़के शोर मचा रहे हैं।
Boys are making a noise.

17. क्या चपड़ासी घंटी बजा रहा है?
Is the peon ringing the bell ?

18. आप अपनी किताबें क्यों खराब कर रहे हो?
Why are you spoiling your books ?

19. मैंने अपना काम समाप्त कर लिया है।
I have finished my work.

20. उसने इस पाठ की दोहराई नहीं की है।
He has not revised this lesson.

21. क्या वर्षा ऋतु शुरू हो गई है?
Has the rainy season set in ?

22. वह कभी भी आगरा नहीं गया है।
He has never visited Agra.
(or) He has never been to Agra.

23. सुबह से बूंदा-बाँदी हो रही है।
It has been drizzling since morning.

24. मैं दस वर्ष से इस स्कूल में पढ़ा रही हूं।
I have been teaching in this school for ten years.

PSEB 10th Class English Translation

25. क्या सुबह से मूसलाधार वर्षा हो रही है?
Has it been raining in torrents since morning ?
(or) Has it been raining cats and dogs since morning ?

26. क्या माली सुबह से पौधों को पानी नहीं दे रहा है?
Has the gardener not been watering the plants since morning ?

27. मैं कल अपने मित्र के घर गया।
I went to my friend’s house yesterday.

28. वे कल बाज़ार नहीं गए थे।
They did not go to the market yesterday.

29. क्या आपने अपना समय बर्बाद किया?
Did you waste your time ?

30. हम चाय पी रहे थे।
We were drinking tea.

31. वे क्रिकेट नहीं खेल रहे थे।
They were not playing cricket.

32. क्या वे स्कूल जा रहे थे? ।
Were they going to school ?

33. मेरे स्कूल पहुंचने से पहले घंटी बज चुकी थी।
The bell had rung before I reached the school.

34. क्या डॉक्टर के आने से पहले रोगी मर चुका था?
Had the patient died before the doctor arrived ?

35. लड़के दो दिन से नाचने का अभ्यास कर रहे थे।
Boys had been practising the dance for two days.

36. क्या वह काफी समय से पुस्तक लिख रहा था?
Had he been writing a book for a long time ?

PSEB 10th Class English Translation

37. वे पतंगें उड़ाएंगे।
They will fly kites.

38. क्या वे कल. स्कूल आएंगे?
Will they come to school tomorrow?

39. वे अपना पाठ याद कर रहे होंगे।
They will be learning their lesson.

40. क्या तुम्हारी माता जी खाना बना रही होंगी?
Will your mother be cooking food?

41. मैं तब तक सड़क पार कर चुका होऊँगा।
I will have crossed the road by then.

42. क्या वह मुझसे पहले स्कूल पहुंच चुका होगा?
Will he have reached the school before me?

43. मैं दो घंटे से पढ़ रहा होऊँगा।
I will have been studying for two hours.

44. क्या वह जालंधर में 1995 से रह रहा होगा?
Will he have been living in Jalandhar since 1995?

45. धोबी सुबह से कपड़े नहीं धो रहा होगा।
The washerman will not have been washing the clothes since morning.

Imperative Sentences

46. कभी झूठ मत बोलो।
Never tell a lie.

47. बुरी संगत से बचो।
Avoid bad company.

48. शोर मत मचाओ।
Do not make a noise.

49. सदैव सत्य बोलो।
Always speak the truth.

50. चुप रहो।
Keep silence.

51. उसको बोलने दो।
Let him / her speak.

52. मुझे जाने दो।
Let me go.

PSEB 10th Class English Translation

53. आओ, सैर के लिए चलें।
Come, let us go for a walk.

54. आओ; धूप में बैठे।
54. Come, let us sit in the sun.

55. मेरे लिए पानी का गिलास मँगवा दीजिए।
Get me a glass of water.

56. अपना समय बर्बाद न करें।
Do not waste your time.

57. मेरी बात सुनो।
Listen to me.
(or)
Listen to what I say.

58. बकवास मत करो।
Don’t talk nonsense.
(or)
Don’t talk rot.

59. यह पत्र डाक में डाल दो।
Post this letter.

60. अपनी किताबें खोलो।
Open your books.

PSEB 10th Class English Translation

Non-activity Sentences

61. आज मौसम बहुत सुहावना है।
The weather is very pleasant today.

62. आज बहुत गर्मी है।
It is very hot today.

63. आज बहुत ठंड है।
It is very cold today.

64. मैं एक विद्यार्थी हूँ।
I am a student.

65. आज हवा बंद है।
It is close today.

66. यह खबर सच है।
This news is true.

67. दिल्ली भारत की राजधानी है।
Delhi is the capital of India.

68. हमारी कक्षा में दस लड़कियाँ हैं।
There are ten girls in our class.

69. भारत त्योहारों की भूमि है।
India is a land of festivals.

70. मैं आज अच्छा महसूस नहीं कर रही हूँ।
I am not feeling well today.

Proverbs

71. हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। |
All that glitters is not gold.

72. जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं। .
Barking dogs seldom bite.

73. घर का जोगी जोगड़ा और बाहर का जोगी सिद्ध।।
A prophet is not honoured in his own country.

74. धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का।
No man can serve two masters.

75. जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।
You reap what you sow.

76. थोथा चना, बाजे घना।
Empty vessels make much noise.

77. जैसा देश, वैसा भेष।
While in Rome, do as the Romans.

PSEB 10th Class English Translation

78. परोपकार घर से ही शुरू होता है।
Charity begins at home.

79. अपना-अपना, पराया-पराया।
Blood is thicker than water.

80. चोर-चोर मौसेरे भाई।
Birds of a feather flock together.

Idiomatic Sentences

81. मेरे पिता जी मेरे घर के कर्ता-धर्ता हैं।
My father is all in all in my home.

82. मेरी बेटी मेरी आंखों का तारा है।
My daughter is the apple of my eye.

83. यह घर दोनों भाइयों के झगड़े का कारण है।
This house is the bone of contention between the two brothers.

84. उसका भाषण गांव वालों की समझ से बाहर था।
His lecture was beyond comprehension for the villagers.

85. अपने काम से काम रखो।
Mind your own business.

86. जिंदगी फूलों की सेज नहीं है।
Life is not a bed of roses.

87. इधर-उधर की मत हांको, अपने काम पर ध्यान |
Don’t beat about the bush, come to the point.

88. भारत दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।
India is progressing by leaps and bounds.

PSEB 10th Class English Translation

89. उसने अपनी सौतेली माता जी की मृत्यु पर झूठे आंसू
He shed crocodile tears on the death बहाए। of his stepmother.

90. उसको कम सुनाई देता है।
He is hard of hearing.

Interrogative Sentences

91. आप क्या चाहते हो?
What do you want ?

92. पौधों को पानी कौन दे रहा है?
Who is watering the plants ?

93. वह सुबह से कहां है?
Where is he since morning ?

94. वोट कैसे डाले जाते हैं ?
How are votes cast ?

95. आपने आने में इतना विलंब क्यों किया? ।
Why are you so late ?

Exclamatory Sentences

96. कितने सुंदर दिन हैं!
How pleasant the days are !

97. बच्चा कितना होशियार है!
How intelligent the child is

98. खेद है! भारत मैच हार गया।
Alas ! India has lost the match.

99. श्रीमान जी, शुभ सवेर।
Sir, good morning.
(or)
Good morning, sir.

100. वह कितना मासूम लगता है!
How innocent he looks!

Miscellaneous Exercise

1. प्रकृति के नियमों को कौन बदल सकता है ?
Who can change the laws of nature ?

2. उसने सभी को निमंत्रित कर लिया।
He invited one and all.

3. शान्त हो जाएं और धैर्य रखें।
Be quiet and have patience.

4. इस दफ्तर में कोई पद खाली नहीं है।
There is no vacancy in this office.

PSEB 10th Class English Translation

5. वह मेरा चचेरा भाई है।
He is my cousin.

6. वे एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
They are chips of the same block.

7. कितना सुन्दर दृश्य है !
What a beautiful scene it is!

8. मेरा नौकर वह चिट्ठी डाक में डाल चुका है।
My servant has posted that letter.

9. परमात्मा पर भरोसा रखो।
Trust in God.

10. क्या बच्चों में मिठाई बांटी जाएगी ?
Will sweets be distributed among the children?

11. डूबते को तिनके का सहारा।
A drowning man catches at a straw.

12. क्या उसने अंग्रेज़ी में अपनी कमी पूरी कर |
Has he made up his deficiency in ली है ?

13. यदि वह सच बोलेगा तो मैं उसे माफ कर दूंगा।
If he speaks the truth, I will forgive him.

14. सुन्दरता को गहनों की आवश्यकता नहीं।
Beauty needs no ornaments.

15. बुरी संगति से अकेला भला।
Batter alone than in bad company.

16. मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता है।
Man is the architect of his own fate.

17. भगवान करे कि आप परीक्षा में सफल हों!
May you succeed in the examination !

18. कल आपने कितनी देर तक काम किया ?
How long did you work yesterday?

19. मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा।
I will definitely help you.

20. वह एक सफल कलाकार है।
He is a successful artist.

21. मैं उसे धोखा नहीं दे सकता।
I can’t deceive him.

22. वह काम ढूँढ रहा है।
He is in search of a job.

PSEB 10th Class English Translation

23. क्या आप दुःख-सुख में मेरा साथ देंगे ?
Will you stand by me through thick and thin ?

24. लोकतन्त्र में लाभ भी हैं और नुकसान भी।
Democracy has its merits as well as demerits.

25. मैं थक कर चूर हो गया हूं।
I am dead tired.

26. यह बस दिल्ली को जाएगी।
This bus will go to Delhi.

27. वह किराए के मकान में रहता है।
He lives in a rented house.

28. कमरे में उस समय कोई नहीं था।
There was no one in the room at that time.

29. लड़के भिखारी के पीछे भागे।
Boys ran after the beggar.

30. मैं इस वर्ष दसवीं की परीक्षा दे रहा हूँ।
I am taking the Matriculation Examination this year.

31. The Indian team has already won three matches.
भारतीय टीम तीन मैच पहले ही जीत चुकी है।।

32. They have been waiting for the result since noon.
वे दोपहर से परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

33. I know him well.
मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ।

34. Women are in no way inferior to men.
स्त्रियां पुरुषों से किसी तरह भी हीन नहीं हैं।

35. He had no excuse for coming late.
उसके पास देरी से आने का कोई बहाना नहीं था।

PSEB 10th Class English Translation

36. Good health is the key to success.
अच्छा स्वास्थ्य सफलता का रहस्य है।

37. Banks are closed on holidays.
बैंक छुट्टी वाले दिनों में बन्द रहते हैं।

38. I had sent a message to my friend.
मैंने अपने मित्र को एक सन्देश भेजा था।

39. Where there is smoke, there is fire.
जहां धुआं हो, वहां आग ज़रूर होती है।

40. He gave his coat to be ironed.
उसने अपना कोट इस्तरी कराने के लिए दिया।

41. I am on the lookout for a job.
मैं नौकरी की तलाश में हूं।

42. He spread mischievous lies about me.
उसने मेरे बारे में शरारत-पूर्ण बातें फैलाई।

43. He often suffers from giddiness.
उसे साधारणत: चक्कर आते रहते हैं।

44. I am not even on speaking terms with him.
मेरी उससे बोलचाल नहीं है।

45. To err is human.
मनुष्य ग़लती का पुतला है।

46. He will reach here next week in connection with his business.
वह अगले सप्ताह अपने व्यापार के सम्बन्ध में यहां पहुंच जाएगा।

47. He was sentenced to three years of rigorous imprisonment.
उसे तीन वर्ष की सख्त सजा मिली।

48. He is a jolly fellow.
वह खुशमिजाज है।

PSEB 10th Class English Translation

49. Two of a trade seldom agree.
कुत्ते का कुत्ता बैरी।

50. Nothing succeeds like success.
चलती का नाम गाड़ी।

51. He has left bag and baggage
वह अपना सारा समान ले कर चला गया है।

52. Since when have you known him?
आप उसे कब से जानते हैं ?

53. His trousers have got torn.
उसकी पतलून फट गई है।

54. Time is a great healer.
समय सब घावों का मरहम है।

55. Do not find fault with others.
दूसरों में दोष मत निकालो।

56. Music is the language of the soul.
संगीत आत्मा की आवाज़ है।

57. He has spoken ill of you.
उसने तुम्हारी निंदा की है।

58. We do not sell on credit.
हम उधार नहीं बेचते।

59. A friend in need is a friend indeed.
मित्र वह जो दुःख में काम आए।

60. We must help the needy.
हमें ज़रूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।

61. I don’t like your childish habits.
मुझे आपकी बच्चों जैसी आदतें पसंद नहीं हैं।

62. Change is the law of Nature.
परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

63. Women are respected in India.
भारत में स्त्रियों का सम्मान किया जाता है।

64. He takes after his father.
उसकी शक्ल उसके पिता जी से मिलती है।

65. My friend stood by me through thick and thin.
मेरे मित्र ने दुःख-सुख में मेरा साथ दिया।

66. A rolling stone gathers no moss.
डावांडोल की मिट्टी खराब।

67. A bird in the hand is worth two in the bush.
नौ नकद न तेरह उधार।

68. A bad workman quarrels with his tools.
नाच न जाने आंगन टेढा।

PSEB 10th Class English Translation

69. A little knowledge is a dangerous thing.
नीम हकीम खतरा-ए-जान।

70. A bad man is better than a bad name.
बद अच्छा, बदनाम बुरा।

71. Prevention is better than cure.
इलाज से परहेज़ अच्छा।

72. Happiness lies in contentment.
सुख नाम संतोष का।

73. Handsome is that handsome does.
सुन्दर वह जो सुन्दर काम करे।

74. Honesty is the best policy.
ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।

75. Health is the greatest wealth.
स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।

76. Hunger is the best sauce.
भूख में चने भी बादाम।

77. Pride hath a fall.
अभिमान का सिर नीचा।

78. Riches change hands
दौलत आनी-जानी चीज़ है।

79. Self-praise is no recommendation.
अपने मुँह मियां मिठ्ठ।

80. Something is better than nothing.
सारी नहीं तो आधी सही।

81. Slow and steady wins the race.
सहज पके सो मीठा होय।

82. To live in Rome and fight with Pope!
समुद्र में रह कर मगरमच्छ से वैर!

PSEB 10th Class English Translation

83. To make a .mountain out of a molehill.
राई का पहाड़ बनाना।

84. The match ended in a draw.
मैच बराबर रहा।

85. He has no ear for music.
उसे संगीत का शौक नहीं है।

86. Nehru’s name is a household word.
नेहरू जी का नाम हर एक की जुबान पर है।

87. His arm was dislocated.
उसकी बाजू (भुजा) उतर गई।

88. He had a fracture in his arm.
उसकी बाजू (भुजा) टूट गई।

89. There was a pin-drop silence in the hall.
हॉल में बिल्कुल सन्नाटा था।

90. He is bent upon mischief.
वह शरारत पर तुला हुआ है।

91. What brings you here ?
आपका यहां कैसे आना हुआ?

92. Bill sticking is prohibited here.
यहाँ इश्तिहार लगाना मना है।

93. There is a screw loose in his brain.
उसके दिमाग में कुछ खराबी है।

94. This cloth will wear well.
यह कपड़ा अच्छा चलेगा।

95. How did you come by this book?
यह पुस्तक आपके हाथ कैसे लगी ?

96. Nip the evil in the bud.
बुराई को आरम्भ में ही दबा दो।

97. He always blows his own trumpet.
वह हमेशा अपनी ही डींग मारता है।

98. The railway compartment was packed to suffocation.
रेलगाड़ी का डिब्बा खचाखच भरा हुआ था।

99. Do not poke your nose into the affairs of others.
दूसरों के मामलों में टांग न अड़ाएं।

100. Your visits are few and far between.
आप ईद के चांद हो गये हैं।

101. It is only hearsay.
यह तो केवल सुनी-सुनाई बात है।

102. His tricks won’t succeed here.
उसकी दाल यहां नहीं गलेगी।

PSEB 10th Class English Translation

103. He lives like a lord.
वह बड़े ठाठ से रहता है।

104. All his plans ended in smoke.
उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया।

105. Never spend beyond your means.
कभी भी अपनी आय से अधिक खर्च न करो।

106. It is not like good people to backbite others.
दूसरों की चुगली करना अच्छे लोगों का काम नहीं।

107. Do not tamper with electricity.
बिजली से छेड़खानी न करो।

108. He indulges in tall talk.
वह बड़ी-बड़ी गप्पें हांकता है।

109. Exercise is a panacea for all ills.
व्यायाम सौ दवाइयों की एक दवा है।

110. People ran pell-mell there.
वहां भाग-दौड़ मच गई।

111. There is no stir in the air.
नाम-मात्र भी हवा नहीं है।

112. Please sup with me this evening.
आज शाम का खाना आप मेरे साथ खाइए।

113. He took my remarks ill.
उसने मेरी बात का बुरा मनाया।

114. This question is beyond my comprehension.
यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर है।

115. यह बात किसी से छुपी नहीं है।
This is an open secret.

116. आप मेरी आंखों में धूल नहीं झोंक सकते।
You cannot throw dust into my eyes.

117. यह समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया।
This news spread like wildfire.

118. You should feel ashamed of yourself.
चुल्लू भर पानी में डूब मरो!

119. Strange are the ways of God!
भगवान के खेल न्यारे हैं!

PSEB 10th Class English Translation

120. Change is the order of the world.
संसार परिवर्तनशील है।

121. अच्छे आदमी भगवान को जल्दी प्यारे हो जाते हैं।
Good men die early.

122. You are suffering from mania.
आपके सिर पर तो भूत सवार है।

123. Bad luck is dogging his footsteps.
दुर्भाग्य उसके पीछे पड़ा हुआ है।

124. He is no match for you.
आपके साथ उसका कोई मुकाबला नहीं।

125. You look much run down.
आप बड़े कमज़ोर हुए दिखाई देते हैं।

126. I always call a spade a spade.
मैं सदा खरी-खरी बात सुना देता हूं।

127. He does not look his age.
वह अपनी उमर का नहीं लगता है।

PSEB 10th Class English Translation

128. I cannot stand such an intense heat.
मैं इतनी सख्त गर्मी सहन नहीं कर सकता।

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Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Advertisement Writing Exercise Questions and Answers, Notes.

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