बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules.

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. बॉस्केट बाल कोर्ट की लम्बाई और चौड़ाई = 28 × 15 मीटर
  2. बॉस्केट बाल टीम के खिलाड़ी = 12 खिलाड़ी खेलते हैं, सात बदलवें
  3. कोर्ट के केन्द्रीय चर्क का अर्धव्यास = 1.80 मीटर सैं०मी०
  4. रेखाओं की चौड़ाई = 5 सैं० मी०
  5. बोर्ड की मोटाई = 3 सैं० मी०
  6. बोर्ड की ज़मीन से निचले भाग की ऊंचाई = 2.90 मीटर
  7. बोर्ड का आकार = 180 × 120 मीटर
  8. बाल का घेरा = 75 से 78 सै० मी०
  9. बाल का भार = 600 से 650 ग्राम
  10. बोर्ड के आयात का साइज़ = 49 × 45 ग्राम
  11. पोलों की दूरी = 2 मीटर
  12. खेल का समय = 40 मिनट के चार क्वाटर 10-2-10 (10) 10-2-10
  13. बास्केट बाल के अधिकारी = एक टेबल कमिश्नर, एक रैफरी, एक अम्पायर, एक चीफ रैफरी, एक टाइम कीपर, एक स्कोरर कम 24 सैकिण्ड आपरेटर
  14. फालतू समय की मियाद = 5 मिनट
  15. दो मध्य के बीच आराम = 10 मिनट।

बास्केट बाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Basket-Ball)

  1. बॉस्केट बाल का मैच दो टीमों के मध्य होता है। प्रत्येक टीम में पाँच-पाँच खिलाड़ी होते हैं। इसके अतिरिक्त सात अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं जिन्हें हम बदलवें खिलाड़ी (Substitutes) कहते हैं।
  2. प्रत्येक टीम चाहती है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद डाल दे तथा विरोधी टीम को न ही गेंद मिले और न ही प्वाईंट।
  3. बॉस्केट बाल खेल का मैदान आयताकार होता है। मैदान की लम्बाई 28 मीटर तथा चौड़ाई 15 मीटर होती है।
  4. टीम के प्रत्येक खिलाड़ी की बनियान के सामने और पीछे नम्बर लगे होते हैं। एक टीम के दो खिलाड़ी एक ही नम्बर नहीं डाल सकते।
  5. जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो या अधिकारी आज्ञा न दे कोई भी खिलाड़ी मैदान से बाहर नहीं जा सकता।
  6. खेल 10 – 2 – 10, 10, 10 – 2- 10 की चार अवधियों की होती है तथा दो अवधियों के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम होता है।
  7. बॉस्केट बाल के खेल में खिलाड़ियों को जितनी बार चाहे बदला जा सकता है।
  8. जब कोई टीम 4 फ़ाऊल कर जाती है तो विरोधी टीम को 2 या 3 फ्री-थ्रोज़ हालात अनुसार दी जाती हैं।
  9. किसी टीम का एक खिलाड़ी यदि 5 फ़ाऊल कर दे तो उसे मैच में से बाहर निकाल दिया जाता है।
  10. खेल के मध्य किसी समय भी कोई खिलाड़ी बदला जा सकता है परन्तु शर्त यह है कि थ्रो उस टीम की हो।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए। रैस्ट्रिक्टेड एरिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खेल-बॉस्केट बाल खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में पांच-पांच खिलाड़ी होते हैं। प्रत्येक टीम का यह लक्ष्य होता है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद फेंक दे, न विरोधी टीम के हाथ गेंद लगने दे और न ही अंक प्राप्त करने दे।

कोर्ट-बॉस्केट बाल कोर्ट 28 मीटर लम्बा और 15 मीटर चौड़ा होगा। यह आयताकार और ठोस धरातल वाला होगा। यदि खेल हाल कमरे में हो तो हाल की छत की ऊंचाई कम-से-कम 7 मीटर होनी चाहिए। सम्बन्धित अधिकारी दो मीटर की लम्बाई और दो मीटर चौड़ाई की सीमा के अन्दर परिवर्तन (यह परिवर्तन एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं) की आज्ञा दे सकता है। फिर भी फीबा (FIBA-International Amateur Basketball Federation) की बड़ी सरकारी प्रतियोगिताओं के लिए निर्णित लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार नई कोर्ट (Court) बनाई जाएगी। कोर्ट में पर्याप्त मात्रा में एक-सा प्रकाश रहना चाहिए।

सीमा-रेखाएं-कोर्ट की परिधि स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित की जाएगी जो प्रत्येक स्थान से बाधाओं से कम-से-कम 2 मीटर की दूरी पर होगी। इन रेखाओं और दर्शकों के बीच दूरी कम-से-कम 3 मीटर की होगी।
केन्द्रीय वृत्त-कोर्ट के मध्य में एक वृत्त अंकित किया जाएगा। उसका अर्द्धव्यास 1.80 मीटर होगा। इसे केन्द्रीय वृत्त कहा जाता है।
केन्द्रीय रेखा-अन्त रेखाओं के समानान्तर केन्द्रीय रेखा खींची जाएगी जो कोर्ट को आगे वाली कोर्ट और पीछे वाली कोर्ट में विभक्त करेगी। यह रेखा 15 सम बाहर दोनों तरफ होगी।
BASKET-BALL GROUND
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तीन अंक मैदानी गोल-क्षेत्र-एक नई मार्किंग “तीन अंक मैदानी गोल क्षेत्र” की जाती है। यह दो सीमित चापें होती हैं जिनमें से प्रत्येक का बाहरी किनारों से अर्द्धव्यास 6.25 मीटर होता है। केन्द्र फर्श पर बिन्दु होता है, टोकरी के केन्द्र के ठीक लम्ब रूप होता है और किनारे वाली लकीरों पर समाप्त होती हुई पार्श्व रेखाओं के समानान्तर रहती है। केन्द्र अन्तिम लकीर के केन्द्रीय बिन्दु से 1.20 मीटर 0.225 मीटर + 0.10 मीटर + 1.525 मीटर होता है।
नोट-यह चाप केवल अर्द्ध वृत्त तक ही है और इसके पश्चात् पार्श्व रेखा के समानान्तर है (देखो चित्र)
फ्री-थो रेखाएं-प्रत्येक अन्त-रेखा के समानान्तर एक फ्री-थ्रो रेखा खींची जाएगी जो अन्त-रेखा के भीतर किनारे से 5.80 मीटर दूर होगी। इसकी लम्बाई 3.60 मीटर होगी तथा केन्द्र बिन्दु दोनों अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा पर होगा।

प्रतिबद्ध क्षेत्र (रिस्ट्रिकटेड एरिया) तथा फ्री-थो रेखाएं-ये स्थान जिन पर परिधि अन्त-रेखाओं, फ्री-थ्रो रेखाओं से निकलने वाली रेखाओं से निर्धारित होती है, उन्हें प्रतिबद्ध क्षेत्र कहते हैं। सिरों की ओर फ्री-थ्रो रेखाएं इसके अर्द्धव्यास को अंकित करती हैं। इन रेखाओं का बाहरी किनारा अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दु से 3 मीटर होगा औरफ्री-थ्रो रेखाओं के सिरों पर आकर समाप्त हो जाएगा।
RESTRUCT AREA
REGULATION FREE THROW LANE
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फ्री-थ्रो रेखाएं वे प्रतिबद्ध स्थान हैं जो कोर्ट में 1.80 मीटर के अर्द्धव्यास वाले अर्द्ध-वृत्त में फैले होते हैं।
पहली रेखा सिरे वाली रेखा के भीतरी किनारे में 1.75 मीटर है। पहली गली के स्थान से आगे एक उदासीन क्षेत्र (Neutral Zone) होगा जिसकी चौड़ाई 30 सैंटीमीटर होगी। दूसरी गली का स्थान 85 सैंटीमीटर चौड़ा होगा और उदासीन क्षेत्र के साथ लगता होगा। तीसरी गली का स्थान दूसरी गली के साथ लगता है और इसकी चौड़ाई 85 सैंटीमीटर होगी। जहां तक टूटे हुए अर्द्ध वृत्त का सम्बन्ध है, प्रत्येक अंकित क्षेत्र की लम्बाई 35 सैंटीमीटर होगी और दोनों भागों के बीच की दूरी 40 सम होगी।

पिछले बोर्ड का आकार, पदार्थ और स्थिति (Back Board-Size, Material and Position)-पीछे वाले बोर्ड कठोर लकड़ी के बनाए जाएंगे या फाइबर ग्लास के भी हो सकते हैं जिनकी मोटाई 3 सम होगी। ये टेढ़े रुख 1.80 मीटर तथा खड़े रुख में 1.20 मीटर होंगे। यहां रिंग लगता है, उसके पीछे बोर्ड पर 59 सैंटीमीटर x 45 सैंटीमीटर की आयत बनाई जाती है। किनारा रिंग की सतह के बराबर होगा। बोर्ड की सीमाएं 5 सैंटीमीटर चौड़ी रेखाओं द्वारा अंकित की जाएंगी।
यह बोर्ड के रंग के उलट वाले रंग की होगी। बोर्ड का निचला किनारा ज़मीन से 2.75 मीटर ऊंचा होगा। पीछे बोर्ड के आधार स्तम्भ सीमा के बाहरी क्षेत्र में अन्त-रेखाओं के बाह्य किनारे से कम-से-कम 1.00 मीटर दूर गाड़े जाएंगे।

बॉस्केट-बॉस्केट छल्लों और जाली की बनी होती है। बॉस्केट नारंगी रंग वाले अन्दर से 45 सैंटीमीटर व्यास के लोहे के घेरे होते हैं। घेरे की धातु 20 मिलीमीटर मोटी होगी। जाल सफ़ेद रस्सी का बना होता है जोकि छल्लों से लटकता है। यह छल्ले इस प्रकार के बने होते हैं कि जब गेंद इनसे गुजरती है, वह इसे थोड़ी देर के लिए रोक लेते हैं।
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गेंद-गेंद गोलाकार होगी। यह चमड़े की बनी होगी और इसके अन्दर का ब्लैडर रबड़ का होगा। इसकी परिधि 75 सम से 78 सम होगी। इसका भार 600 ग्राम से 650 ग्राम होगा।
अब नियम यह आज्ञा देता है कि प्रयुक्त गेंद भी प्रयोग की जा सकती है। फिर भी गेंद के विषय रैफरी ने सहमति प्रकट की हो। रैफरी प्रयुक्त गेंद चुन सकता है। जब गेंद एक बार चुन ली गई हो तो कोई भी टीम खेल की गेंद का प्रयोग नहीं करती। यदि उचित पुरानी गेंद न मिल सकती हो तो नई गेंद प्रयुक्त की जा सकती है।

बॉस्केट बॉल का इतिहास (History of Basket Ball)
बॉस्केट बॉल एक उत्तेजना पूर्ण खेल है तथा इसका मूल स्थान अमेरिका है। इसका आविष्कार “अन्तर्राष्ट्रीय YMCA” के शिक्षक डॉ० स्मिथ (Dr. Smith) ने सन् 1891 में स्प्रिंगफील्ड मैसाशसटस (Spring filed Massa Chussets U.S.A.) में किया था। इसके नियम बाद में संशोधित (Revised) किए गए, जिनके अन्तर्गत ‘गोल’ (Goals) को कोर्ट (Court) के ठीक बाहर रखा गया, शारीरिक सम्पर्क (Body Contact) को स्वीकृति नहीं दी गई तथा गेंद के साथ-साथ दौड़ने को ‘फाऊल’ (Foul) घोषित कर दिया गया। अनुभवहीन खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के प्रयोजन से खेल को अधिक सरल बनाया गया। डॉ० स्मिथ ने खेल क्षेत्र के दोनों ओर दो बाक्स (Reach Baskets) दोनों ओर एक-एक, एक निश्चित ऊंचाई पर टांग दिए तथा खिलाड़ियों को स्कोर के लिए गेंद उन बाक्सों में फेंकनी पड़ती थी।

अब गेंद के बाक्स से वापस आने की समस्या थी इसलिए ‘बाक्स’ के स्थान पर आज की तरह के ‘गोल’ प्रयोग किए गए। इस प्रकार यह खेल अमेरिका में शुरू हुआ तथा इसके नियमों को सन् 1934 में मानक (Standardized) रूप दिया गया।
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बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में तकनीकी उपकरण (सामान) क्या-क्या होते हैं ?
उत्तर-
तकनीकी उपकरण (सामान)
(क) (1) खेल की घड़ी (गेम-वाच)
(2) टाइम-आऊट के लिए घड़ी (टाइम-आऊट वाच)-एक
(3) स्टाप घड़ियां (स्टाप वाचिज़)

  1. टाइम कीपर के पास कम-से-कम दो घड़ियां होनी चाहिएं और खेल घड़ी मेज़ पर रखी जाएगी।
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  2. स्कोर-शीट
  3. कम-से-कम 20 सम × 10 सम आकार के एक से पांच तक अंक-एक से चार तक के काले रंग के अंक तथा पांच के लिए लाल रंग के अंक।
  4. 24 सैकिंड नियम के प्रबन्ध के लिए एक योग्य यन्त्र जिसको खिलाड़ी और दर्शक देख सकें।
  5. सब को दिखाई देने वाला एक खेल अंक बोर्ड स्कोर बोर्ड होगा जिस पर दोनों टीमों के खेल अंक लिखे जाएंगे।
  6. स्कोरर के पास दो लाल झण्डे दोनों टीमों के फाऊल मार्कर के हाथ में होंगे। इसे आठ फाऊल एक अवधि में होने की अवस्था में इस टीम की तरफ लिया जाएगा तथा खिलाड़ियों, कोच साहिब और खेल अधिकारियों को दिखाई दे सकेगा।

टीमें-प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होंगे और सात खिलाड़ी प्रतिस्थापन के लिए होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी की कमीज़ के सामने और पिछली ओर कमीज़ के रंग से अलग नम्बर लगे होते हैं। यह नम्बर 4 से 15 तक होते हैं।
एक टीम के सभी खिलाड़ी ऐसी कमीजें पहनेंगे जिनका रंग आगे और पीछे की ओर एक जैसा होगा।
खिलाड़ी द्वारा कोर्ट छोड़ना-जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो जाए अथवा नियम स्वीकृति न दे कोई भी खिलाड़ी बिना अधिकारियों की आज्ञा के कोर्ट छोड़ कर बाहर नहीं जा सकता।
कप्तान-इसके अधिकार और कर्त्तव्य-केवल कप्तान की सूचना लेने के लिए या किसी तरह की व्याख्या के लिए अधिकारी से बातचीत कर सकता है। खिलाड़ी बदलने का अधिकार कोच या कोच के स्थान पर काम कर रहे अधिकारी का होता है। _खेल की अवधि-खेल 10-2-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों में खेला जाएगा। इन दोनों अवधियों में 10 मिनट का अवकाश होगा।

खेल का आरम्भ-खेल का आरम्भ रैफरी द्वारा किया जाएगा। वह दोनों विरोधियों के बीच केन्द्र में गेंद को ऊपर उछालेगा। खेल उस समय तक आरम्भ नहीं होगा जब तक एक टीम पांच खिलाड़ियों सहित मैदान में खेलने के लिए प्रस्तुत न हो जाए। यदि खेल आरम्भ होने के समय तक कोई अनुपस्थित टीम मैदान में नहीं पहंचती तो उसकी विरोधी टीम को वॉक ओवर मिल जाता है, अर्थात् उसे बिना खेल के ही विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न
जम्प बाल और जम्प बाल के समय फाऊल बताएं।
उत्तर-
जम्प बाल-जम्प बाल के समय दो कूदने वाले अर्द्ध-वृत्त के अन्दर पांव रख कर अपनी-अपनी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे तथा उनका एक पांव बीच में पड़ी रेखा के केन्द्र के पास होगा। उस समय कोई अधिकारी गेंद को इतनी ऊंचाई से ऊपर फैंकेगा कि उनमें से कोई खिलाड़ी उछल कर गेंद न पकड़ सके और गेंद उन दोनों के मध्य में गिरे। कोई खिलाड़ी गेंद को उस समय तक थपथपाने का यत्न नहीं करेगा जब तक उसने अधिकतम ऊंचाई प्राप्त न कर ली हो। कूदने वाला खिलाड़ी केवल दो बार ही गेंद को थपथपा सकता है।
जिस समय जम्प बाल (Jump Ball) में नियम तोड़ा जाता है इसके दण्ड-स्वरूप पार्श्व रेखा (Side line) पर से थ्रो-इन (Throw-in) दी जाती है। यह अपने विरोधियों के लिए केन्द्र बिन्दु होता है।

कोच (Coach)-खेल के आरम्भ होने के निश्चित समय से लगभग 20 मिनट पहले कोच (Coach) फलांकन कर्ता (Scorer) को उन खिलाड़ियों के नाम और गिनती जिन्होंने खेल में खेलना है, के अतिरिक्त कप्तान, कोच और सहायक कोच के नाम देगा। _ खेल के आरम्भ होने से स्कोर शीट (Score-Sheet) पर यह हस्ताक्षर करके खिलाड़ियों के नाम और गिनती से अपनी सहमति प्रकट करेंगे और उसी समय पांच खिलाडियों के नाम बताएंगे जिन्होंने खेल आरम्भ करना है।
ए (A) टीम का कोच यह जानकारी पहले देगा।
नोट-ऐसा न करने पर और जिससे खेल आरम्भ होने में देरी हो, कोच पर तकनीकी फाऊल (Technical Foul) का दोष लग सकता है और खेल दो फ्री-थ्रो (Free Throws) करने के पश्चात् आरम्भ होगा।
गोल-जब गेंद बास्केट में ऊपर से जाकर रुक जाए या निकल जाए तब गोल बन जाता है। रेखा के क्षेत्र से किए गए गोल के दो अंक तथा फ्री-थ्रो द्वारा किए गए गोल का एक अंक होता है।
बिन्दु रेखा से परे फील्ड गोल लगाने के लिए प्रयत्न करने के तीन अंक दिए जाएंगे।

आक्रमण के समय बाधा उत्पन्न करना-जिस समय गेंद बॉस्केट के समतल के ऊपर से नीचे की ओर आती है तो कोई खिलाड़ी अपने सीमित क्षेत्र में न तो गेंद को छु सकता है और न ही वह इसे पकड़ सकता है चाहे वह गोल बनाने की कोशिश में हो।
प्रतिरक्षा के समय गेंद में बाधा-जब विरोधी खिलाड़ी गोल करने के लिए गेंद फेंकता है तथा सारी गेंद बॉस्केट के घेरे की सतह के ऊपर हो, उस समय जैसे ही गेंद नीचे
आना शुरू करे, प्रतिरक्षा खिलाड़ी उसको छूने की बिल्कुल कोशिश नहीं करेगा। उल्लंघन होने पर गेंद मृत (Dead) हो जाती है। यदि फ्री-थ्रो के समय उल्लंघन हो तो फेंकने वाले के पक्ष में एक अंक यदि गोल की चेष्टा के समय हो तो फेंकने वाले के पक्ष में जोड़ दिए जाते हैं।
गोल के पश्चात् गेंद खेल में-गोल बनाने के 5 सैकिंड बाद विरोधी टीम का कोई खिलाड़ी, कोर्ट के अन्त में, परिधि से बाहर किसी भी बिन्दु से, जहां गोल बना था, गेंद खेल में डालेगा।

पिवटिंग
(Pivoting)
जब गेंद पकड़े हुए कोई खिलाड़ी एक ही पैर से एक बार या अधिक बार किसी दिशा में बढ़ता (घूमता) है तो इसे “पिवटिंग” (Pivoting) कहते हैं। खिलाड़ी के दूसरे पैर को जो ज़मीन के साथ सम्पर्क में रहता है-‘पिवट’ कहा जाता है।
बॉस्केट बॉल में पिवटिंग अग्रलिखित तीन प्रकार की होती है—
1. स्थित पिवट (Stationary Pivot)—इस पिवट में-

  1. एक खिलाड़ी दोनों पैरों को ज़मीन पर टिकाए हुए गेंद प्राप्त करता है।
  2. यह रिबाउण्ड (Rebound) लेता है।
  3. हवा में पास (Pass) देता है तथा दोनों पैरों को एक साथ ही भूमि पर टिकाते हुए वापस आता है। चाहे पैर एक-दूसरे के समान्तर हैं अथवा एक पैर दूसरे के सामने है। खिलाड़ी किसी भी पैर का प्रयोग करते हुए पिवट (रिवर्स अथवा रेयर पिवट) ले सकता है। यदि कोई खिलाड़ी ड्रिबलिंग (Dribbling) कर रहा है अर्थात् वह गतिशील है तो वह गेंद प्राप्त करके एक पैर को दूसरे पैर के सामने रखते हुए तथा सामने वाले पैर को किसी भी दिशा में गतिशील करते हुए स्ट्राइड स्टॉप (Stride Stop) में आ जाता है। इस पिवट का प्रयोग विपक्ष के खिलाड़ी से दूर जाने तथा अपने ही किसी साथी को खेल में लाने के लिए किया जाता है।

सामने या भीतरी पिवट
(Front or Inside Pivot)
इसकी तकनीक वही है जो रेयर पिवट (Rare Pivot) की है किन्तु इसमें अपने सामने के विपक्षी खिलाड़ी की तरफ टर्न (Turn) लिया जाता है अर्थात् गेंद पकड़े हुए खिलाड़ी एक पैर को आगे रख कर खड़ा होता है तथा दूरवर्ती पैर को विपक्षी खिलाड़ी के लगभग निकट रखते हुए अपने सामने के पैर पर पिवट लेता है।

आधिकारिक संकेत
(Official Signals)

  1. जब स्वतन्त्र थ्रो की संख्या का संकेत देता हो तो उंगलियों को अपने चेहरे की ऊंचाई पर रख कर कलाई से नीचे की ओर बार-बार गति दी जाती है।
  2. टाइम चार्ज (Charged Time Out) के लिए अधिकारी अपनी हथेली पर उंगलियों से T का चिह्न बनाता है।
  3. जम्प बॉल (Jump Ball) के संकेत के लिए अधिकारी अपने दोनों अंगूठे ऊपर करते हैं।
  4. त्रुटिपूर्ण ड्रिबल (Illegal dribble) के लिए वह Patting motion देता है।
  5. तीन सैकेण्ड के नियम (Three second rule) का उल्लंघन होने पर अधिकारी अपनी तीन उंगलियों (अंगूठा सहित) को साइड की तरफ करके संकेत करता है।
  6. किसी क्षेपण को निरस्त (Cancellation of a throw) करने के लिए अधिकारी अपने बाजुओं को अपने शरीर पर स्थानान्तरित करता है।
  7. स्टैपिंग (Stepping or travelling) के संकेत के लिए अधिकारी अपनी मुट्ठी घुमाता है।
  8. व्यक्तिगत फाऊल के लिए रैफरी बन्द मुट्ठी (Close fist) द्वारा संकेत करता है।
  9. व्यक्तिगत फाऊल की स्थिति में यदि कोई स्वतन्त्र क्षेपण न देता हो तो अधिकारी अपनी उंगली को साइड रेखा की तरफ कर देता है।
  10. किसी तकनीकी फाऊल का संकेत देने के लिए अधिकारी खुली हथेली से ‘T’ बनाता है तथा उसे दूसरी हथेली पर दिखाता है।
  11. दोहरे फाऊल के संकेत के लिए वह अपनी बन्द मुट्ठियों को अपने सिर के ऊपर हिलाता है।
  12. जानबूझ कर किए गए फाऊल के लिए रैफरी अपनी मुट्ठियों को बन्द रखते हुए अपनी कलाई को पकड़ कर संकेत करता है।
  13. धकेलने तथा चार्जिंग के संकेत के लिए रैफरी धकेलने जैसी नकल करता है।
  14. सीमाओं के उल्लंघन के लिए रैफरी हाथ हिला कर सीमा के बाहर संकेत करता है तत्पश्चात् उस टीम की बॉस्केट की तरफ संकेत करता है-जिसे “आऊट ऑफ़ बाऊण्ड-बॉल” दी गई है।
  15. टाइम आऊट के लिए अधिकारी सिर के ऊपर खुली हथेली से संकेत करता है।

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प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल के विभिन्न पासों के विषय में लिखें ।
उत्तर-
पास के प्रकार
(Types of Passes)
पासिंग (Passing)-बॉस्केट बॉल के खिलाड़ी को उन सभी प्रकार के पास (Passes) देने में निपुण होना चाहिए जिनका प्रयोग गेंद को अपने साथी को देने के लिए विपक्षी खिलाड़ी के ऊपर से, नीचे से अथवा उसके पास से फेंका जाता है।

पास देने के लिए आवश्यक बातें
(Some Essentials of Passing)
पास देने के लिए कुछ आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं—

  1. पास देने से पहले सामने देखने की आदत बनाओ।
  2. पास प्राप्त करने वाले साथी की दूरी का अनुमान लगाना तथा साथ ही यह अनुमान भी लगाना कि कितने समय में गेंद उसके पास पहुंचेगी।
  3. पास करने से पहले विपक्षी खिलाड़ी की स्थिति का अनुमान लगाना। (4) “पास” सही तथा शीघ्र होना चाहिए।

दो हाथ का छाती वाला या पुश पास
(Two Handed Chest Pass or Push Pass)
बॉस्केट बॉल में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला पास है। कम या मध्यम दूरियों के लिए इस पास का प्रयोग होता है तथा इसमें कलाई द्वारा अतिरिक्त शक्ति लगाई जाती है। गेंद को छाती की ऊंचाई पर लाना चाहिए ताकि इसे सरलता से प्राप्त (Catch) किया जा सके। पास देने के लिए गेंद को छाती के सामने दोनों हाथों में पकड़ा जाता है, कोहनियां काफ़ी दूर होती हैं ताकि गति में अवरोध न हो। इस स्थिति में खिलाड़ी गेंद को पास, शूट या स्टार्ट (Pass, Shoot or Start) कर सकता है। भुजाओं को फैला कर तथा हथेली को पास की दिशा में घुमाकर गेंद को शक्ति के साथ आगे की ओर धकेलना चाहिए।

दो हाथ का बाउन्स पास (Two Handed Bounce Pass) यह पास भी लगभग “Chest Pass” की तरह ही है। इसमें गेंद को ठीक पहले की तरह ही फेंका जाता है किन्तु इसे ज़मीन की तरफ प्राप्तकर्ता खिलाड़ी के यथासम्भव निकट फेंकते हैं ताकि वह गेंद को घुटनों तथा कमर के बीच किसी ऊंचाई पर प्राप्त करके ले। “बाउन्स पास” का प्रयोग साधारणतया छोटी दूरियों के लिए किया जाता है। बाउन्स पास देने के लिए गेंद को अपनी छाती या कभर की ऊंचाई पर दोनों हाथों में पकड़े कोहनियों को सीधा करें तथा हथेली से शक्ति के साथ गेंद को ज़मीन की तरफ इस प्रकार फेंको कि विपक्षी के पास से होकर जैसे ही गेंद जमीन को छुए, वह उछल कर प्राप्तकर्ता के हाथ में गिरे।

दो हाथों का अण्डर हैण्ड पास
(Two Handed Under Hand Pass)
इसे शौवल पास (Shoval Pass) भी कहते हैं। यह तब प्रयोग किया जाता है जब खिलाड़ी (Passer) अपने साथी खिलाड़ी के निकट ही हो। गेंद शीघ्र देने के लिए यह एक छोटा पास है। यह पास देने के लिए कोहनियों को बाहर की तरफ़ मोड़ते हुए दाएं या बाएं तरफ से दोनों हाथों का प्रयोग करो। दाईं साइड के पास के लिए बायां तथा बाईं साइड के पास के लिए तुम्हें दायां पैर आगे धकेलना चाहिए।

बेस बॉल पास
(Base Ball Pass)
यह पास बहुत प्रभावशाली है। इसका प्रयोग गेंद को पिवट खिलाड़ी (Pivot Player) को देने अथवा लम्बा पास देने के लिए होता है। सुविधा के अनुसार दायां या बायां हाथ प्रयोग किया जा सकता है। पास को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गेंद को अपने कन्धों के ऊपर तथा दाएं कान के निकट रखो। अब गेंद को पूरी शक्ति के साथ आगे फेंको। इस पूरी क्रिया में तुम्हारा दायां हाथ पीछे रहना चाहिए। इस पास में देखने की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेंद को कलाई (न कि बाजुओं) की मदद से कितनी शक्ति से धकेला जाता है।

दो हाथों वाला साइड पास
(Two Handed Side Pass)
सिवाय हाथों की स्थिति के, यह पास “बेस बॉल पास” की तरह ही है। इसमें हाथों को गेंद के दोनों तरफ फैलाना चाहिए। इसे हुक के दाएं या बाएं किसी तरफ से भी खेला जा सकता है।
बैक पास
(Back Pass)
अपने असुरक्षित साथी (Unguarded) को गेंद देने के लिए यह सर्वोत्तम पास है। इसमें गेंद को पीछे से, कलाई से तथा उंगलियों की मदद से पास किया जाता है। क्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कूल्हों (Hips) को थोड़ा हिलाया जा सकता है। किसी भी हाथ से यह पास प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है।

एक हाथ का बाऊन्स पास
(One Handed Bounce Pass)
यह दाएं या बाएं हाथ से दिया जाता है। इसका प्रयोग दो स्थितियों में किया जाता है।

  1. जब “गार्ड” खिलाड़ी (Guard Player) पासर खिलाड़ी (Passer Player) को बहुत निकट से गार्ड कर रहा है।
  2. जब गतिशील प्राप्तकर्ता खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड किया जा रहा हो।

इस ‘पास’ की तकनीक स्थिति के साथ बदलती रहती है। पहली स्थिति में पास को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे शीघ्रता से तथा अकस्मात् (Suddenness and Surprise) किया जाता है। इसकी साधारण विधि में इसे शुरू करके आवश्यकतानुसार किसी भी साइड में शीघ्रता से हट जाना होता है। ठीक उसी समय गार्ड खिलाड़ी से बचने के लिए बाजू को कदम की दिशा में बढ़ा कर गेंद प्राप्तकर्ता की तरफ आवश्यकतानुसार स्विग (Swing) के साथ उछाल दिया जाता है। दूसरे प्रकार का ‘एक हाथ वाला पास’ तब आवश्यक होता है जब दौड़ता हुआ प्राप्तकर्ता (Receiver) खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड हो रहा हो। इस स्थिति में ‘गार्ड’ द्वारा इसी प्रकार का सीधा पुश पास प्रयोग करना सम्भावित है। इस पास (Pass) को फेंकने के लिए गेंद को थोड़ा-सा कन्धों के ऊपर कानों के पास रखा जाता है। इसके बाद बाजू को आगे तथा नीचे की तरफ इस तरह फैलाया जाता है कि गेंद को सामने स्विंग किया जा सके परन्तु गेंद ‘गार्ड’ (जो प्राप्तकर्ता को कवर किए हैं) की पहुंच के बाहर होनी चाहिए।

फ्लिप पास
(Flip Pass) ‘फ्लिप पास’ का प्रयोग गेंद को निकट से ‘पास’ के लिए किया जाता है। यह आवश्यकतानुसार दोनों हाथों से या एक हाथ से किया जा सकता है। थोड़ी दूरी पर खड़े खिलाड़ी को गेंद फ्लिप करने के लिए झुकी हुई कलाई (Flexed Wrist) का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह एक छोटा ‘पास’ है गेंद को केवल कलाई द्वारा ही ‘फ्लिप’ किया जाता है ताकि गेंद को केवल इतना बल ही मिले कि प्राप्तकर्ता इसे सरलता से तथा निश्चित रूप से दबोच सके। क्योंकि दूरी कम होती है इसलिए प्रतिपक्षी खिलाड़ी इसे रोक नहीं सकता तथा प्राप्तकर्ता इसे सरलता से पकड़ लेता है।

एक हाथ का साइड पास
(One Handed Side Pass)
जब अधिक शुद्धता (Accuracy) तथा गति (Speed) की आवश्यकता न हो तो उस स्थिति में यह ‘पास’ प्रयोग किया जाता है। इस पास की तकनीक इस प्रकार है—
गेंद को अपने हाथों में पकड़ो, हाथों की उंगलियां अच्छी तरह फैली हुई हों ताकि पूरे गेंद को ढक सकें। अपने शरीर को थोड़ा-सा घुमाते हुए गेंद को दाएं कान के पास ले जाओ। कोहनियों को खोलते हुए तथा उसी समय बाएं पैर को आगे बढ़ाओ। कोहनी को नीचे की तरफ खोलते हुए दाएं हाथ से गेंद को आगे की ओर फेंको। विश्राम सहित (Relaxed) शरीर तथा कलाई द्वारा इसका पीछा करो। पास देते समय बाईं भुजा, दाईं भुजा की मदद करती है। परन्तु बाईं कोहनी छाती की ऊंचाई पर मुड़ी रहती है।

टिप अर्थात् वॉली पास
(Tip or Volley Pass)
किसी दिशा में भी एक कदम लेकर फ्रन्ट लाइन की स्थिति से यह पास दिया जा सकता है। गेंद पकड़ते समय एक हाथ गेंद के नीचे तथा दूसरा उसकी मदद करते हुए होता है। गेंद को उंगलियों के सिरों से या कलाई द्वारा फ्लिप करके थोड़ी दूर पर खड़े अपने साथी खिलाड़ी को लुढ़का दिया जाता है।

पासिंग क्रिया की आवश्यक बातें
(Some Hints on Passing Strategy)

  1. ‘पासर’ खिलाड़ी को प्राप्तकर्ता खिलाड़ी की स्थिति तथा उसके द्वारा की जाने वाली सम्भावित कार्यवाही का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए।
  2. पास देते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए विशेषकर जब उसका साथी विपक्षी खिलाड़ियों से घिरा हुआ हो।
  3. टीम का आफैन्स (Offence) मुख्य रूप से छोटे पासों (Short Passes) पर ‘निर्भर होता है।

बॉस्केटबाल में प्रयुक्त शब्दावली
पिछला कोर्ट-कोर्ट का आधा भाग जहां से आक्रामक टीम आती है। अन्य शब्दों में, वह अर्द्ध भाग है जिसमें कि बॉस्केट होती है जिसको उन्होंने बचाना होता है।
ब्लाईंड पास–एक दिशा में देखते हुए बाल को पृथक् दिशा का प्रयोग करते हुए दूसरी दिशा में पास देना।
स्पष्ट शॉट-यह शॉट जो बोर्डों या रिंग को बिना छुए सीधा बॉस्केट में जाता है।

क्षेत्र से क्षेत्र की प्रतिरक्षा (Zone to Zone defence) यह एक प्रकार की प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें खिलाड़ी किसी क्षेत्र की केवल प्रतिरक्षा के ज़िम्मेदार होते हैं। इनका ध्यान केवल गेंद की तरफ होता है, प्रतिपक्षी खिलाड़ी की तरफ नहीं।
खिलाड़ी से खिलाड़ी की प्रतिरक्षा (Man to Man defence)-यह वह प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी की ज़िम्मेदारी किसी विशेष शत्रु खिलाड़ी से प्रतिरक्षा की होती है।
मिश्रित प्रतिरक्षा (Combined defence)—यह प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों प्रणालियों ‘क्षेत्र से क्षेत्र’ तथा ‘खिलाड़ी से खिलाड़ी’ का मिश्रण है।
कट इन (Cut in)-किसी खिलाड़ी का दो या अधिक शत्रु खिलाड़ियों के मध्य से होकर गेंद प्राप्त करने के लिए किसी बॉस्केट की ओर तेज़ी से भागना ‘कट इन’ कहलाता है।

चार्जिंग (Charging)-किसी खिलाड़ी के साथ अनावश्यक शारीरिक सम्पर्क। किसी खिलाड़ी के बीच से निकलना तथा उससे बचने की कोशिश करना।
फाऊल आऊट (Fouled Out)-पांच फाऊलों के बाद खिलाड़ी को क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। इसे फाऊल आऊट कहते हैं।
फ्रीज या हैल्ड गेंद (Freeze or Held ball)-गेंद को बजाय खेलने की कोशिश करने के उसे अपने पास ही रख लेना।
ओवर लोडिंग (Over Loading)-‘क्षेत्र से क्षेत्र प्रतिरक्षा’ के विरुद्ध विरोधी खिलाडियों की आक्रामक प्रणाली। इस हेतु एक ही तरफ अधिक आक्रामक खिलाड़ियों को खड़े करने की प्रणाली को ओवरलोडिंग कहा जाता है।
पोस्ट खिलाड़ी (Post Player)—स्वतन्त्र थ्रो के क्षेत्र में खड़े आक्रामक खिलाड़ी को पोस्ट खिलाड़ी कहते हैं।
स्क्रीन (Screen)-जब कोई खिलाड़ी अपने साथी की रक्षा के लिए उसके गार्ड के मार्ग में स्वयं को खड़ा कर लेता है।
खेल का निर्णय-खेल में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा।

खेल का अधिकार छिन जाना—मध्यान्तर या टाइम-आऊट के पश्चात् यदि कोई टीम रैफरी के बुलाने के बाद एक मिनट के अन्दर खेल के लिए मैदान में नहीं उतरती तो गेंद खेल में लाई जाएगी और अनुपस्थित टीम खेल अधिकार खो देगी। यदि खेल के दौरान किसी टीम के खिलाड़ियों की संख्या दो से कम रह जाए तो खेल समाप्त हो जाएगा और टीम भी खेल अधिकार खो देगी।

स्कोर तथा अतिरिक्त समय—यदि दूसरे खेल अर्द्धक की समाप्ति तक दोनों टीमों के अंक बराबर हों तो पांच मिनटों की अधिक अवधि दी जाएगी और ऐसी अवधि जब तक खेल का फैसला न हो, दी जाएगी। अतिरिक्त समय में बॉस्केट के चुनाव के लिए टॉस होगा और उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त समय के लिए बॉस्केट बदल लिया जाएंगे।
टाइम-आऊट-मध्यान्तर तक प्रत्येक टीम को दो टाइम-आऊट मिल सकते हैं तथा अतिरिक्त समय में एक टाइम-आऊट मिल सकता है। किसी खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में एक मिनट का टाइम-आऊट मिलता है। यदि इस बीच घायल खिलाड़ी ठीक नहीं होता तो उसकी जगह नया खिलाड़ी ले लिया जाता है।

खेल की समाप्ति-टाइम कीपर द्वारा खेल की समाप्ति की सूचना दिए जाने पर खेल समाप्त कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी का बदलना-स्थानापन्न खिलाड़ी (Substitute Player) मैदान में उतरने से पहले स्कोरर के पास रिपोर्ट करेगा और तुरन्त खेलने के लिए प्रस्तुत रहेगा। अधिकारी का संकेत पाते ही मैदान में तुरन्त उतरेगा। स्थानापन्न को मैदान में उतरने के लिए 20 सैकिंड से अधिक समय नहीं लगना चाहिए। यदि उसे अधिक समय लगता है तो टाइमआऊट माना जाएगा और विरोधी दल के विरुद्ध अंकित कर दिया जाएगा।

मृत गेंद (Dead Ball)—गेंद उस समय भी मृत होती है जब गेंद जो पहले ही गोल के लिए शॉट (Shot) के लिए उड़ान में होती है और खिलाड़ी के द्वारा उस समय के पश्चात् छुई जाती है जब बाधा या फाऊल समय पूरा हो चुका होता है या जब फाऊल बुलाया जा चुका होता है। (ऊपर की ओर उड़ान में जब गेंद को छुआ जाता है, बॉस्केट यदि असफल हो, नहीं गिनी जाती।)

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बास्केट बाल खेल में तीन सैकिण्ड, पांच सैकिण्ड, आठ सैकिण्ड और चौबीस सैकिण्ड नियम क्या हैं ?
उत्तर-
तीन सैकिण्ड नियम-जब गेंद किसी टीम के अधिकार में हो तो उस टीम का कोई भी खिलाड़ी विरोधी टीम के प्रतिबद्ध क्षेत्र में तीन सैकिण्ड से अधिक नहीं रहेगा। पांच सैकिण्ड नियम-जब पास का कोई रक्षक खिलाड़ी गेंद को खेलने से रोकता है और वह पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को खेल में डालने की कोई सामान्य कोशिश नहीं करता तो वह ब्लॉकिंग कहलाता है।
आठ सैकिण्ड नियम -जब किसी टीम को मैदान के पिछले भाग में गेंद प्राप्त हो जाता है तो उसे आठ सैकिण्ड के अन्दर गेंद को अगले भाग में डालना पड़ता है।
चौबीस सैकिण्ड नियम-नये नियम के अनुसार पार्श्व रेखा (Side line) पर आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) से थ्रो-इन के पश्चात् एक नई चौबीस (26) सैकिण्ड की अवधि तब तक आरम्भ नहीं होती जब तक

  1. गेंद आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) नहीं जाती है और उसी टीम के खिलाड़ी के द्वारा थ्रो-इन नहीं ली जाती।
  2. अधिकारी (Officials) ने किसी आहत को बचाने के लिए खेल को रोक (Suspend) कर दिया हो और आहत खिलाड़ी वाली टीम के खिलाड़ी ने थ्रो-इन (Throw-in) ली हो।

24 सैकिण्ड आप्रेटर (Operator) उस समय से घड़ी को रोके हुए समय से चलाये जब तक वह टीम थ्रो-इन (Throw-in) किये जाने के पश्चात् पुनः काबू पा लेती है।
फाऊल के बाद गेंद खेल में-जब गेंद किसी फाऊल के साथ खेल से बाहर हो जाए तो इस स्थिर गेंद को—

  1. बाहर से थ्रो करके, या
  2. किसी एक वृत्त में जम्प बाल द्वारा, या
  3. एक या अधिक फ्री-थ्रो द्वारा फिर खेल में लाया जाएगा।

थो-इन-जब किसी नियम का उल्लंघन हो जाए तो गेंद स्थिर समझी जाती है और विरोधी टीम को साइड-लाइन के समीपवर्ती बिन्दु से थ्रो-इन के लिए दी जाती है।।
अब नियम उस खिलाड़ी को आज्ञा देता है जिसने थ्रो-इन (Throw-in) करना है कि वह समाप्ति रेखा (End line) को छुए और यह नियम का उल्लंघन नहीं है।
फ्री-थो-जिस खिलाड़ी पर फाऊल किया गया हो वह फ्री-थ्रो लेता है परन्तु किसी तकनीकी फाऊल होने की दशा में कोई भी खिलाड़ी फ्री-थ्रो ले सकता है। जब फ्री-थ्रो ली जाती है, तो खिलाड़ियों की स्थिति इस प्रकार होती है—

  1. विरोधी टीम के दो खिलाड़ी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे।
  2. अन्य खिलाड़ी भिन्न-भिन्न पोजीशन लेंगे।
  3. बाकी के खिलाड़ी कोई भी और पोजीशन ले सकते हैं परन्तु वे फ्री-थ्रो के समय बाधक नहीं बनने चाहिएं।

फ्री-थ्रो के उल्लंघन-फ्री-थ्रो करने वाले सैकिण्ड खिलाड़ी के अधिकार में गेंद देने के पश्चात्

  1. इन पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को इस तरह फेंकेगा कि खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले गेंद बॉस्केट में चली जाए या घेरे का स्पर्श कर ले।
  2. गेंद के बॉस्केट की ओर जाते समय या अन्दर पहुंचने पर न तो वह और न ही कोई दूसरा खिलाड़ी गेंद या बॉस्केट को छुएगा।
  3. वह फ्री-थ्रो लाइन या उसके परे भूमि को छुएगा और न ही किसी टीम का कोई दूसरा खिलाड़ी फ्री-थ्रो लाइन को छुएगा या फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को बाधा पहुंचाएगा।

खेल को प्रतिबन्धित करना (Game to be Forefeited)-नये नियम के अनुसार रैफरी को अब यह आवश्यक नहीं है कि वह गेंद को उस विधि से खेल में रखे जैसे कि दोनों टीमें फर्श पर खेलने के लिए और खेल को प्रतिबन्धित करने के लिए तैयार हों। अब रैफरी के खेल में बुलाने के पश्चात् यदि एक टीम खेलने से इन्कार कर देती है तो खेल प्रतिबन्धित हो जाता है।
गेंद का पिछली कोर्ट को वापिस जाना (Ball Return to Back Court)-नये नियम के अनुसार गेंद को टीम ए (A) को पिछली कोर्ट की ओर भेजा जाता है, शर्त यह है कि इसको टीम ए (A) का एक खिलाड़ी छूता है जबकि टीम ‘A’ सामने की कोर्ट में गेंद को नियन्त्रित रखती है। इसके अनुसार A, खिलाड़ी को छूना जबकि गेंद टीम ए के सामने की कोर्ट में टीम बी (B) के नियन्त्रण में है। यदि गेंद टीम ए (A) के सामने की कोर्ट में जाता है उसको ऐसा नहीं समझा जाता है कि पिछली कोर्ट में जाने दिया जाए।
इसके आगे केन्द्र (Mid-Point) से थ्रो-इन (Throw-in) के बीच अधिकारी (Official) यह निश्चित बताएगा कि खिलाड़ी बढ़ाई गई पार्श्व रेखा (Side-line) के दोनों ओर एक पैर रख कर पोजीशन स्थापित करता है।

आऊट आफ बाऊंड खेल पर नियम का उल्लंघन (Violation on out of bounds play)-यह नियम को तोड़ना नहीं है जबकि थ्रो-इन (Throw-in) दी गई है, खिलाड़ी गेंद को छोड़ते समय लकीर पर पांव रखता है।
दण्ड—

  1. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी द्वारा उल्लंघन होने पर कोई अंक रिकार्ड न होगा। फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विपक्षी की गेंद फ्री-थ्रो लाइन के सामने दे दी जाएगी।
  2. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को टीम के अन्य खिलाड़ी द्वारा नियम का उल्लंघन होने पर भी अंक रिकार्ड होगा। यदि नियम (ख) का बन दोनों टीमों द्वारा होता है तो कोई अंक दर्ज नहीं होगा और फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल द्वारा खेल जारी किया जाएगा।
  3. यदि नियम (ग) का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के साथी द्वारा होता है तथा फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिन लिया जाएगा और उसका दण्ड दिया जाएगा।
  4. यदि (ग) नियम का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विरोधियों से होता है तो फ्री-थ्रो सफल होने पर उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा।
  5. यदि नियम (ग) का उल्लंघन दोनों टीमों द्वारा होता है और फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा। फ्री-थ्रो सफल न होने की दशा में फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल के साथ खेल पुनः जारी किया जाएगा।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में खिलाड़ी के तकनीकी फाऊल लिखें।
उत्तर-
खिलाड़ी द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई भी खिलाड़ी अधिकारियों द्वारा दी गई चेतावनी की अवहेलना नहीं करेगा और न ही ऐसा व्यवहार करेगा जो एक खिलाड़ी को शोभा न दे, जैसे—

  1. अधिकारी को अपमानजनक ढंग से सम्बोधित करना या मिलना।
  2. असभ्य व्यवहार करना।
  3. विरोधी खिलाड़ी को तंग करना या उसकी आंखों के आगे हाथ करके उसे देखने में रुकावट डालना।
  4. खेल को अनुसूचित ढंग से विलम्बित करना।
  5. फाऊल का संकेत मिलने पर ठीक ढंग से बाजू न उठाना।
  6. स्कोरर या रैफरी को बिना सूचित किए अपना नम्बर बदलना।
  7. स्कोरर को सूचित किए बिना स्थानापन्न (Substitute) की तरह कोर्ट में प्रवेश करना।

दण्ड-प्रत्येक अपराध को एक फाऊल माना जाएगा और प्रत्येक फाऊल के लिए विरोधी को दो फ्री-थ्रो दी जाएंगी। इस नियम का बार-बार उल्लंघन किए जाने पर खिलाड़ी को अयोग्य घोषित करके खेल से निकाल दिया जाएगा।
कोच का स्थानापन्न (Substitute) द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई कोच या स्थानापन्न बिना अधिकारी की आज्ञा के कोर्ट में दाखिल नहीं हो सकता, न ही कोर्ट के कार्यों को जानने के लिए अपना स्थान छोड़ सकता है और न ही किसी अधिकारी या विरोधी को अपमानजक ढंग से बुला सकता है।

दण्ड-कोच द्वारा इस नियम का उल्लंघन करने पर उसके नाम फाऊल दर्ज किया जाएगा। प्रत्येक अपराध के लिए एक फ्री-थ्रो दी जाएगी और बाल उसी टीम को केन्द्रीय रेखा पर थ्रो-इन करने के लिए मिलेगा। इस नियम के बार-बार उल्लंघन किए जाने पर कोच को क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकाला जा सकता है।
निजी फाऊल-निजी फाऊल उस खिलाड़ी का होता है तो विरोधी खिलाड़ी को ब्लॉक करता है, पकड़ता है, धक्का देता है तथा उस पर आक्रमण करता है।
दण्ड-यदि शूटिंग करते समय खिलाड़ी पर फाऊल देता है तो—

  1. यदि गोल हो जाता है तो उसकी गिनती की जाएगी और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।
  2. यदि गोल (2 अंक) असफल हो, दो फ्री-थ्रो (Free Throw) दिए जाएंगे।
  3. यदि गोल (Goal) के लिए शाट (Shot) असफल होता है तो तीन फ्री-थ्रो (Free Throws) दिये जाएंगे।

जानबूझ कर (साभिप्राय) फाऊल-यह वह शारीरिक फाऊल है जो किसी खिलाड़ी द्वारा जानबूझ कर दिया जाता है। जो खिलाड़ी बार-बार साभिप्राय फाऊल करता है उसे अयोग्य करार देकर खेल से निकाला जा सकता है।
दण्ड-अपराधी पर शारीरिक फाऊल का दोष लगाया जाएगा और दो फ्री-थ्रो दिए जाएंगे। यदि यह फाऊल ऐसे खिलाड़ी पर होता है तो गोल बनाता है तो यह गोल माना जाएगा और एक अतिरिक्त फ्री-थ्रो दी जाएगी।
डबल फाऊल-डबल फाऊल उस स्थिति में होता है जब दो खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति लगभग एक ही समय फाऊल करते हैं। डबल फाऊल होने पर निकटतम वृत्त से जम्प बाल द्वारा खेल पुनः शुरू करवा दी जाएगी।
बहुपक्षीय (Multiple) फाऊल-बहुपक्षीय फाऊल उस समय होता है जब एक टीम के दो या तीन खिलाड़ी एक ही विरोधी खिलाड़ी पर निजी फाऊल कर देते हैं।
इस स्थिति में प्रत्येक अपराधी खिलाड़ी पर एक फाऊल लगेगा और जिस खिलाड़ी के प्रति अपराध हुआ है उसे दो फ्री-थ्रो दी जाएगी। यदि फेंकने की प्रक्रिया में किसी खिलाड़ी के प्रति फाऊल हुआ है तो गोल बनने पर किया जाएगा और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।

पांच फाऊल-यदि कोई खिलाड़ी पांच फाऊल (निजी या तकनीकी) करता है तो उसे नियमानुसार बाहर निकाल देना चाहिए।
तीन और दो नियम (Three for two Rule)-जब खिलाड़ी गोल करने लगा हो तो उस पर विरोधी टीम का खिलाड़ी फाऊल कर दे और यदि गोल बन जाए तो एक और फ्री-थ्रो मिलेगा। गोल न होने की अवस्था में दोनों फ्री-थ्रो में से एक भी न होने पर अतिरिक्त फ्री-थ्रो मिलेगा।
चयन का अधिकार (Right of Option) केन्द्र बिन्दु (Mid Point) से थ्रो-इन के लिए चयन का अधिकार एक, दो और तीन थ्रो की दशा में लागू होता है। चयन करने से पहले कप्तान को कोच के साथ संक्षिप्त परामर्श करने की आज्ञा होती है।
टीम के द्वारा चार फाऊल (Four fouls by the Team)-जब टीम किसी अवधि में चार खिलाड़ियों का फ़ाऊल (निजी और तकनीकी) कर चुकती है, इस अवधि समय में सभी बाद के खिलाड़ियों को फाऊल होने पर दो फ्री-थ्रो मिलती है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical बॉस्केट बाल (Basket Ball)

प्रश्न 1.
बास्केट-बाल टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 5 खिलाड़ी खेलते हैं और 7 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं।

प्रश्न 2.
बास्केट-बाल का कोर्ट बनाओ और लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल कोर्ट की लम्बाई 28 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर होती है। इसकी लम्बाई 2 मीटर और चौड़ाई एक मीटर कम की जा सकती है।

प्रश्न 3.
बास्केट-बाल के खेल का कितना समय होता है ? बराबर की स्थिति में आप क्या करोगे ?
उत्तर-
बास्केट-बाल खेल का समय 10-2-10,-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों का होता है। बराबर की स्थिति में 5-2-5 मिनट दिए जाते हैं। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो 5-5 मिनट दिए जाते हैं। परन्तु आराम का समय नहीं होता। 5 मिनट के पश्चात् केवल साइड ही बदलते हैं। उतनी देर तक 5-5 मिनट दिए जाएंगे जब तक फैसला नहीं होता।

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प्रश्न 4.
बास्केट-बाल के खेल में हार-जीत का फैसला कैसे होता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में हार-जीत का फैसला इस प्रकार होता है कि जो टीम अधिक प्वाईंट बना लेती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।

प्रश्न 5.
बास्केट-बाल के खेल में कितने फाऊल होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में 5 फाऊल होते हैं; जैसे—

  1. निजी फाऊल (Personal Foul)
  2. तकनीकी फाऊल (Technical Foul)
  3. दोहरा फाऊल (Double Foul)
  4. बहुमुखी फाऊल (Multiple Foul)
  5. जानबूझ कर फाऊल (Attentional Foul)

प्रश्न 6.
खिलाड़ी को कितने फाऊलों के बाद टीम में से निकाला जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में जब एक खिलाड़ी पांच फाऊल कर देता है तो उसको टीम से बाहर निकाल दिया जाता है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 7.
बास्केट-बाल की खेल में टाइम आऊट कितने होते हैं ? उनका समय बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में दो टाइम आऊट आराम से पहले दोनों अवधियों में और दो बाद में लिए जाते हैं। टाइम आऊट का समय एक मिनट का होता है।

प्रश्न 8.
कितने खिलाड़ियों को बास्केट-बाल के खेल में बदला जा सकता है और कितना समय लिया जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में किसी समय भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है । शर्त यह है कि साइड थ्रो उनकी हो तथा समय 30 सैकिंड का होता है।

प्रश्न 9.
बास्केट-बाल के खेल में तकनीकी सामान का वर्णन करो।
उत्तर-
तकनीकी सामान (Technical Equipments)

  1. खेल की घड़ी (Game Watch)
  2. टाइम आऊट के लिए घड़ी (Time out watch)
  3. 24 सैकिण्ड रूल स्कोर शीट के लिए 24 सैकिण्ड आप्रेटर (24 Second Operator for Twenty four second Rule Score Sheet)

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 10.
बास्केट-बाल का भार कितना होता है और उसका घेरा बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल का भार 600 से 650 ग्राम और घेरा 75 सैंटीमीटर से 78 सैंटीमीटर तक होता है।

प्रश्न 11.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में कितने चक्कर होते हैं और कितने चौड़े होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में तीन चक्कर होते हैं और चौड़ाई 1.80 मीटर होती है।

प्रश्न 12.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से कितनी दूरी पर बाहर होते
उत्तर-
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से एक मीटर बाहर होते हैं।

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प्रश्न 13.
बास्केट-बाल के खेल में स्कोर कैसे लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में यदि सीधी बास्केट हो तो 2 अंक होते हैं। Free Throw हो तो एक अंक माना जाता है। यदि सर्कल के बाहर से गोल हो तो तीन अंक मिलते हैं।

प्रश्न 14.
7 फाऊल रूल क्या है ?
उत्तर-
जो टीम 7 फाऊल कर देती है उसकी विरोध टीम को Free Throws दी जाती हैं।

प्रश्न 15.
आठ सैकिण्ड नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इसके आधार पर एक टीम को अपने कोर्ट में आठ सैकिण्ड के अन्दर बाल को दूसरे कोर्ट में देना पड़ता है। दूसरे कोर्ट में वह दूसरी बार बाल अपने कोर्ट में नहीं दे सकता।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 16.
तीन सैकिण्ड रूल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कोई खिलाड़ी वर्जित क्षेत्र (Restricted Area) में तीन सैकिण्ड से अधिक ठहरता है तो उस समय रैफरी द्वारा विरोधी को थ्रो दी जाती है।

प्रश्न 17.
24 सैकिण्ड से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब एक टीम बाल को नियन्त्रित रखती है तो वह उस टीम को 24 सैकिण्ड के अन्दर गेंद स्कोर करने के लिए हाथ में से नहीं छोड़नी चाहिए। फिर दूसरी टीम को बाल दे दिया जाता है। यह अवसर कभी-कभी ही खेल में आता है।

प्रश्न 18.
बास्केट-बाल के खेल में अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में निम्नलिखित अधिकारी होते हैं—

  1. रैफ़री = 1
  2. अम्पायर = 1
  3. स्कोरर = 1
  4. टाइम कीपर = 1
  5. 24 सैकिण्ड = 1
  6. ओप्रेटर = 1
  7. इंडीकेटर = 1

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 19.
बास्केट-बाल की खेल में बनियान के नम्बर किससे आरम्भ होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल की खेल में 4 से लेकर 15 तक बनियान के नम्बर लगाए जाते

प्रश्न 20.
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई बताएं।
उत्तर-
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई 40 सैंटीमीटर लम्बी होती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 6 पशु पालन

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 6 पशु पालन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 6 पशु पालन

PSEB 11th Class Agriculture Guide पशु पालन Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
पंजाब में गौओं और भैंसों की संख्या बताओ।
उत्तर-
पंजाब में लगभग 17 लाख गायें तथा 50 लाख भैंसें हैं।

प्रश्न 2.
मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन कितने दूध की आवश्यकता होती
उत्तर-
मनुष्य को तन्दुरुस्त रहने के लिए प्रतिदिन 250 ग्राम दूध की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 3.
दूध देने वाली उत्तम गाय की नस्ल का नाम बताएं।
उत्तर-
दूध देने वाली सबसे बढ़िया भारतीय नस्ल की गाय है साहीवाल।

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प्रश्न 4.
लाल सिन्धी गाय एक सूए में कितना दूध देती है ?
उत्तर-
यह एक प्रसूतिकाल में 1800 किलो दूध देती है।

प्रश्न 5.
गर्भवती गाय को प्रसूतन तिथि से कितने दिन पहले दूध से हटा लेना चाहिए ?
उत्तर-
गर्भवती गाय को प्रसूतन तिथि से लगभग 60 दिन पहले दूध से हटा लेना चाहिए।

प्रश्न 6.
400 किलो भार वाली गाय या भैंस को प्रतिदिन कितने चारे की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
400 किलो भार वाली गाय या भैंस को 35 किलो हरे चारे की ज़रूरत होती है।

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प्रश्न 7.
युवा गाय का 300 किलोग्राम भार कितने महीने बाद हो जाता है ?
उत्तर-
बछड़ी का 300 कि०ग्रा० भार 18 महीने की आयु में हो जाता है।

प्रश्न 8.
मुर्रा नस्ल की भैंस का एक सूए का दूध कितना होता है ?
उत्तर-
औसतन 1700-1800 किलोग्राम।

प्रश्न 9.
डेयरी फार्म के प्रशिक्षण के लिए कहां सम्पर्क करना चाहिए ?
उत्तर-
जिले के डिप्टी डायरैक्टर डेयरी विकास, कृषि विज्ञान केन्द्र या गडवासु, लुधियाना से।

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प्रश्न 10.
पंजाब में भैंसों की कौन-कौन सी नस्लें मिलती हैं ?
उत्तर-
मुर्रा तथा नीली रावी।

(ख) एक दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
साहीवाल नस्ल की गाय का विस्तारपूर्वक वर्णन करो।
उत्तर –

गुण साहीवाल
मूल घर इसका घर ज़िला मिंटगुमरी (पाकिस्तान) है।
रंग तथा कद रंग भूरा लाल, चमड़ी ढीली, शरीर मध्यम से भारी, टांगें छोटी, झालर बड़ी, सींग छोटे तथा भारी, मुहाना बड़ा।
बैल बैल बड़े सुस्त तथा धीमे होते हैं।
एक सूए का औसत दूध 1800 किलो
दूध में चर्बी 5.5%

 

प्रश्न 2.
होलस्टीन फ्रीजीयन गाय के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर –

गुण होलस्टीयन फ्रीजीयन
मूल घर हालैंड, अब अन्य देशों में भी मिलती है
रंग काला-सफ़ेद अथवा लाल
शरीर यह सबसे भारी तथा सबसे अधिक दूध देने वाली नसल है। इसका शरीर लम्बा तथा मुहाना बड़ा होता है।
एक प्रसवकाल में दूध 5500-6500 किलो
दूध में चर्बी 3.5-4.0%

 

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प्रश्न 3.
बढ़िया गाय का चुनाव कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
बढ़िया गाय का चुनाव निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर किया जाता

  • एक साधारण संकर गाय को पहला गर्भ धारण 24-30 महीने की आयु में करना चाहिए।
  • पहली बार गर्भ धारण के समय भार 400 किलो होना चाहिए।
  • गाय प्रसूतन के पश्चात् 60-70 दिनों में दुबारा गर्भाधारन योग्य हो जाए।
  • 3000 किलो से अधिक दूध दे तथा सूखे का समय 60 दिन हो।
  • गाय के दो सूए में अन्तर 12-14 महीने होना चाहिए।
  • दूध में चिकनाहट की मात्रा 4.0% 4.5% होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
प्रसूतन के बाद गाय की सम्भाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
प्रसूतन के बाद उपरान्त गाय को एक बाल्टी गुनगुने पानी में 50 ग्राम नमक मिलाकर पिलाना चाहिए। इसे प्रतिदिन चार दिनों तक 2 किलोग्राम पिसी गेहूं तथा एक किलोग्राम गुड़ का दलिया पका कर दो बार दो। प्रसव के बाद गाय की 2 घण्टे के भीतर चुआई कर लेनी चाहिए। अधिक दूध देने वाली गाय की पहले 2-3 दिन पूरी तरह चुआई नहीं करनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
गौओं के शैड का फर्श कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
पशुओं के खड़े होने के लिए 180-210 सेंटीमीटर (6-7 फुट) लम्बी जगह तथा चौड़ाई वाली तरफ 120 सेंटीमीटर (4 फुट) की आवश्यकता होती है। मल-मूत्र के सही निकास के लिए खुरली से नाली तक ढलान होनी चाहिए। नाली लगभग 1 फुट चौड़ी होनी चाहिए तथा हर पांच-छ: फुट दूरी पर एक इंच ढलान होनी चाहिए। फर्श ईंटों तथा सीमेन्ट का पक्का अच्छा रहता है। फर्श फिसलन वाला न हो इसलिए उस पर गहरी झर्रियां निकाल देनी चाहिएं। बिना छत वाली जगह पर फर्श पर ईंटें लगा देनी चाहिए।

प्रश्न 6.
वंड किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
वंड एक मिश्रण होता है। यह अनाज, तेल वाले बीजों की खल्ल तथा दूसरे कृषि औद्योगिक बाइप्राडक्टों को मिलाकर बनाया जाता है जिससे जानवरों को अनिवार्य ऊर्जा तथा प्रोटीन तत्त्वों की सन्तुलित खुराक मिल जाती है। साधारणतः दो तरह के बनाए जाते हैं। एक प्रकार में कम पाचन योग्य कच्चे प्रोटीन (13-15%) होते हैं तथा इसे फलीदार चारों जैसे बरसीम, लूसण तथा रवाह के साथ मिलाकर डाला जाता है। दूसरी किस्म के पाचन योग्य कच्चे प्रोटीन (16-18%) होते हैं तथा इसको गैर-फलीदार चारों जैसे कि हरी मक्की, बाजरा, चरी आदि से मिलाकर डाला जाता है।

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प्रश्न 7.
पशुओं के गोबर की सम्भाल कैसे करनी चाहिए ?
उत्तर-
गोबर प्रतिदिन निकाल कर शैड से दूर गड्ढे में फेंक देना चाहिए। गड्ढे का आकार 20 x 14 x 4 फुट होना चाहिए। इसे एक तरफ से भरना आरम्भ करें तथा भरी हुई जगह को मिट्टी से ढांप देना चाहिए, इस तरह गोबर की शक्ति नष्ट नहीं होती। पूरी तरह गली हुई रूढ़ी ही गड्ढे से निकालकर खेतों में डालनी चाहिए। ख़रीफ की फसल बोने के समय गर्मी कम होती है, इस तरह कूड़े के खाद के तत्त्व उड़ते नहीं।

प्रश्न 8.
दूध वाले बर्तनों की सफ़ाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
बर्तनों को 2-3 बार साफ़ ठण्डे पानी से धोना चाहिए। बर्तन की धातु अनुसार कपड़े धोने वाला सोडा सोडियम हैक्सामैटा फॉस्फेट, ट्राई सोडियम फॉस्फेट तथा सोडियम मैटासिलीकेट आदि प्रयोग करना चाहिए। सोडे को गुनगुने पानी में घोल कर बर्तन साफ़ करने चाहिए। बर्तन को 2-3 बार गुनगुने पानी से धोकर सोडा निकाल दो तथा फिर ठण्डे पानी से धोना चाहिए।

बर्तनों को गर्म पानी, भाप अथवा रसायन जैसे कैल्शियम तथा सोडियम हाइपोक्लोराइड आदि के प्रयोग से कीटाणु रहित करना चाहिए। रसायनों से साफ़ करके बर्तनों को अच्छी तरह साफ पानी से धोना चाहिए।

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प्रश्न 9.
कटड़ओं की संभाल के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
नवजात नाड़ 10 सें०मी० छोड़ कर कीटाणु रहित कैंची से काट देना चाहिए तथा कटङ्क को सूखे कपड़े से साफ़ करना चाहिए। हर रोज़ नाड़ को कीटाणु रहित करने के लिए टिंक्चर आयोडीन अथवा डिटोल 2-3 बार लगाओ जब तक यह सूख कर गिर न जाएं। बच्चे को जन्म से दो घण्टे के बीच दूध अवश्य पिलाएं। यदि कटड़ को किसी सहायता की जरूरत हो तो उसके मुंह में चूसने के लिए थन डाल दें। यदि माँ की प्रसव के पश्चात् मृत्यु हो जाए तो कटड़ को किसी अन्य गाय के दूध में 5 मिलीमीटर अरण्डी का तेल, पाँच मिलीमीटर मछली का तेल तथा एक अण्डा घोल कर 4 दिनों के लिए देना चाहिए। कटड़ओं को छोटी आयु में ही दाना तथा नर्म चारा खाने की आदत डाल देनी चाहिए, पर उन्हें ज़रूरत से अधिक नहीं खिलाना चाहिए। 15 दिन की आयु से कटड़ओं को बंड देनी आरम्भ कर दें। हरा चारा खाना शुरू कर देने पर बंड नहीं देनी चाहिए।

प्रश्न 10.
दूध दोहते समय कौन-से नुक्ते अपनाने चाहिए ?
उत्तर-

  • दूध की दुहाइ अलग-अलग कमरे में करनी चाहिए।
  • शांत तथा साफ-सुथरी जगह पर बर्तनों में दुहाइ करनी चाहिए।
  • दूध की दुहाइ से पहले थनों को डिटोल या लाल दवाई में भिगोकर कपड़े से साफ करना चाहिए।
  • दुहाइ पूरी मुट्ठी से करनी चाहिए तथा अंगूठा मोड़ कर दुहाइ नहीं करनी चाहिए।

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(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
दुधारु पशुओं की सम्भाल कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पंजाब में जलवायु के अनुसार पशुओं के निवास का विशेष ध्यान रखना चाहिए। निवास ऐसा होना चाहिए, जिसमें चारा खाने के समय तथा दूध निकालते समय पशुओं को बांधा जा सके तथा बाकी समय के दौरान खुले रहें। इस तरह सारा समय बांधने तथा सारा समय खुले रखने के अवगुणों से पशुओं को बचाया जा सकता है। शैड का . दरवाजा पूर्व-पश्चिम की ओर होना चाहिए तथा खुरली उत्तर की ओर ठीक रहती है।

1. स्थान की ज़रूरत-बड़े जानवरों के लिए 12-14 वर्ग मीटर स्थान काफ़ी है। इसमें से 4.25 मीटर स्थान छत वाला होना चाहिए तथा 8.6 वर्ग मीटर स्थान खुला होना चाहिए।

2. फर्श-पशु के खड़े होने के लिए 180-210 सेंटीमीटर की लम्बाई तथा चौड़ाई 120 सेंटीमीटर काफ़ी होती है। फर्श ईंटों तथा सीमेन्ट का न फिसलने योग्य होना चाहिए। फर्श में इसलिए गहरी झर्रियां निकाल देनी चाहिएं।

3. मल-मूत्र के निकास की नाली-मल-मूत्र के निकास के लिए खुरली से नाली तक ढलान रखनी चाहिए। यह नाली अवश्य बनाई जानी चाहिए।

4. दीवारें-शैड के इर्द-गिर्द दीवारें बना देनी चाहिएं।

5. छत-निवास वाले स्थान पर ईंट-बालों की छत सस्ती तथा आरामदायक रहती है। छत 3.6 मीटर ऊंची होनी चाहिए तथा उसे लीप देना चाहिए। छत की मिट्टी के नीचे पॉलीथीन कागज़ बिछा देना चाहिए ताकि वर्षा के समय छत में से पानी न टपके, दीमक से बचाव के लिए बलियों को कीटनाशक के घोल में डुबो देना चाहिए तथा छिड़काव करते रहना चाहिए।

6. पानी की खुरली-यह बड़े जानवरों के लिए लगभग 75 सेंटीमीटर (2.5 फुट) ऊंची तथा छोटे जानवरों के लिए 45 सेंटीमीटर (1.5 फुट) ऊंची होनी चाहिए। इसकी चौड़ाई लगभग 1-1.25 मीटर तक होनी चाहिए तथा लम्बाई चारे वाली खुरली का दसवां हिस्सा होनी चाहिए।

7. चारे के आचार वाला खड्डा-इसे चारा काटने वाली मशीन के नज़दीक बनाएं।

8. गोबर की सम्भाल-गोबर की सम्भाल 20 x 14 x 4 फुट के गड्ढे में करें तथा भर जाने पर इसे मिट्टी से ढक दें। गलने पर यह रूढ़ी खाद का काम देगा।

9. शैड को कीटाणु रहित करना-पशुओं के रहने वाली शैड को कीटाणु रहित करने के लिए 4% फिनायल के घोल से धोएं तथा छिड़काव करें। 6 घण्टे बाद दीवारों, फर्श तथा सामान को जहां फिनायल का छिड़काव किया था, पानी से धो दें।

10. गर्मियों तथा सर्दियों में पशुओं की सम्भाल-शैड के गिर्द छाया के लिए वृक्ष लगाएं तथा 3-4 बार गर्मियों में पशुओं को नहलाएं। पंखे तथा कूलर भी लगाए जा सकते हैं। सर्दियों में पशुओं को छत के नीचे रखो तथा अधिक सर्दी के वक्त अधिक शक्ति वाला चारा दें।

प्रश्न 2.
दुधारु पशुओं को खुराक खिलाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  • जानवर को उसकी आवश्यकतानुसार ही खिलाना चाहिए।
  • जानवर को समय पर ही खिलाना चाहिए। यह वंड या तो दूध निकालने से पहले अथवा दूध देते समय खिलाना चाहिए। दोनों बार पहले आधा-आधा करके वंड खिलाया जा सकता है।
  • अधिक खिलाने से जानवर खाना बन्द कर देते हैं।
  • वंड में अचानक परिवर्तन न लाएं।
  • दानों का हमेशा दलिया बना कर खिलाएं।
  • नेपियर बाजरा, बाजरा, मक्की आदि को कुतर कर खिलाना चाहिए।
  • 5-6 किलोग्राम हरे चारे के स्थान पर एक किलोग्राम सूखा चारा भी प्रयोग किया जा सकता है। अच्छी किस्म के हरे चारे वंड की बचत करते हैं।
  • पर कुछ पचने लायक तत्त्व गैर-फलीदार चारों में अधिक होते हैं। इसलिए दोनों तरह के चारों को ध्यान में रखते हुए वंड की बचत करनी चाहिए। आवश्यकता से अधिक प्रोटीन को जानवर ऊर्जा के लिए प्रयोग कर लेते हैं।
  • जिन चारों में नमी अधिक हो उन्हें कुछ समय धूप में रखकर अथवा इसमें तूड़ी आदि मिला कर खिलाना चाहिए।
  • अफारे तथा बदहजमी से बचाव के लिए फलीदार चारे खिलाने से पहले उनमें तूड़ी अथवा अन्य चारे मिला लेने चाहिएं।
  • साधारणतः हरे पत्तों का आचार दूध निकालने के पश्चात् खिलाना चाहिए, नहीं तो इसके दूध में गन्ध आने लगती है।
  • जानवरों के खाने वाले पदार्थ को सूखी हवा वाली जगह पर अच्छे ढंग से रखें।
  • फंगस लगे अथवा खराब खुराक पशुओं को न खिलाएं।

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प्रश्न 3.
दूध दोहने के बाद दूध की सम्भाल पर नोट लिखें।
उत्तर-
1. निकाले दूध की सम्भाल-दूध निकालने के तुरन्त पश्चात् शैड में से बाहर निकाल लें क्योंकि दूध में शैड के वातावरण की बदबू मिल सकती है। दूध छान कर उसमें से तूड़ी अथवा चारे के कण, बाल, धूड़, पतंगे आदि निकाले जा सकते हैं। दूध लोहे अथवा प्लास्टिक की छननी अथवा मलमल के कपड़े से छाना जा सकता है। हर बार छानने के पश्चात् छननी को अच्छी तरह धो लेना चाहिए तथा इसे हर बार कीटाणु रहित करना चाहिए। इस तरह दूध में बैक्टीरिया कम पैदा होंगे तथा दूध को देर तक सम्भाल कर रखा जा सकता है।

2. दूध को ठण्डा करना-दूध ठण्डा करने से बैक्टीरिया कम पैदा होते रहते हैं। दूध को 5°C तक ठण्डा करना चाहिए। दूध ठीक ढंग से ठण्डा न करने की हालत में दूध फट जाता है। ठण्डा करने के तरीके हैं-ड्रम तथा दूध के कैनों को बड़े टब में ठण्डे पानी में इस तरह डूबो कर रखें ताकि टब में पानी की सतह कैनों में दूध की सतह से ऊंची हो। दूध को गर्मियों में 2-3 घण्टे में एकत्र केन्द्र अथवा बेचने के स्थान पर ड्रम में डालकर उसकी ढुलाई करो। सारे कैन पूरी तरह भरे होने चाहिएं, ताकि उसमें दूध न हिले। गांवों में साइकिल, स्कूटर, बैलगाड़ी, टैम्पू आदि द्वारा दूध ढोकर शहरों में लाया जाता है।

प्रश्न 4.
सींग दागना पर नोट लिखें।
उत्तर-
सींग दागने से पशु सुन्दर लगते हैं। वे आपस में एक-दूसरे से भिड़ते नहीं है। इनके लिए कम स्थान की आवश्यकता पड़ती है। इनको खुले में भी रखा जा सकता है। सींग दागने के लिए लाल सुर्ख गर्म लोहे की दागनी का प्रयोग किया जाता है। कटड़ी के सींग 7-10 दिनों में तथा बछड़ी के सींग 15-20 दिनों की आयु में दागे जाते हैं।

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प्रश्न 5.
दुधारु पशु खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
एक पंजाबी कहावत मशहूर है कि ‘लवेरी लो चो के हाली लो जोत के’। इससे साफ़ है कि पशु खरीदते समय उससे दूध दुह कर खरीदो। कम-से-कम तीन बार दूध दुहने के बाद खरीदना चाहिए।

जानवर आगे-पीछे तथा ऊपर से देखने पर तिकोना लगे तथा उसकी चमड़ी पतली होनी चाहिए। दूध दुहने के पश्चात् मुहाना नींबू की तरह निचुड़ जाना चाहिए तथा यह भी देख लें कि मुहाने में कोई गांठ न हो। पशु हमेशा दूसरे-तीसरे सूए का ही खरीदें तथा अगर पीछे बछड़ी या कटड़ी हो तो इससे अच्छी कोई बात नहीं।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB पशु पालन Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छी भैंस की पहली बार सूए के समय आयु कितनी होती है ?
उत्तर-
36-40 माह।

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प्रश्न 2.
बढ़िया भैंस के दो सूयों में अंतर बताओ।
उत्तर-
15-16 माह।

प्रश्न 3.
हरियाणा नस्ल की गाय एक सूए में कितना दूध देती है ?
उत्तर-
1000 किलोग्राम दूध।

प्रश्न 4.
थारपार्कर गाय एक सूए में कितना दूध देती है ?
उत्तर-
1400 किलोग्राम।

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प्रश्न 5.
गाय का प्रसूतन के पश्चात् कितनी देर में दूध निकाल लेना चाहिए ?
उत्तर-
2 घण्टे में।

प्रश्न 6.
पांच साल से कम आयु के दुधारू जानवर को कितनी वंड फालतू देना चाहिए ?
उत्तर-
0.5 से 1.0 किलो।

प्रश्न 7.
पानी वाली खुरली की ऊंचाई छोटे जानवर के लिए लगभग कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
1.5 फुट ऊंची।

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प्रश्न 8.
नीली रावी का मूल घर बताओ।
उत्तर-
मिंटगुमरी (पाकिस्तान)।

प्रश्न 9.
दुधारू पशु का 305 दिनों के सुए का कम-से-कम दूध कितना होना चाहिए ?
उत्तर-
भैंस का 2500 किलोग्राम तथा गाय का 4000 किलोग्राम।

प्रश्न 10.
भैंस की पहले सूए के समय आयु बताओ।
उत्तर-
36 माह।

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प्रश्न 11.
गाय के पहले प्रसव की आयु बताओ।
उत्तर-
30 माह।

प्रश्न 12.
गाय का दोगलाकरण (संकरन) कौन-सी नस्ल से किया जाता है ?
उत्तर-
जर्सी नसल से।

प्रश्न 13.
नसलकशी का लाभ अथवा हानि कितने वर्षों बाद स्पष्ट होता है ?
उत्तर-
5-7 वर्ष बाद।

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प्रश्न 14.
दुधारु पशु खरीदते समय लगातार कितनी बार दुहाई के बाद खरीदना चाहिए ?
उत्तर–
तीन बार लगातार ।

प्रश्न 15.
साहीवाल के सींग तथा मुहाने के बारे में बताओ।
उत्तर-
सींग छोटे तथा मुहाना बड़ा होता है।

प्रश्न 16.
हरियाणा नसल के दूध तथा फैट की मात्रा बताओ।
उत्तर-
औसत दूध 1000 किलो (एक प्रसव का) फैट 4% ।

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प्रश्न 17.
साहीवाल की दूध की मात्रा तथा फैट के बारे बताओ।
उत्तर-
औसत दूध 1800 किलो (एक प्रसव) फैट 5% ।

प्रश्न 18.
लाल सिंधी का मूल घर बताओ।
उत्तर-
सिंध (पाकिस्तान)।

प्रश्न 19.
कच्छ (गुजरात) कौन-सी गाय का मूल घर है ?
उत्तर-
थारपार्कर।

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प्रश्न 20.
होलसटीन-फरीजीयन का औसत दूध तथा फैट बताओ।
उत्तर-
5500-6500 किलो दूध, फैट 3.5-4.0% 1

प्रश्न 21.
जरसी का मूल घर बताओ।
उत्तर-
इंग्लैंड का जरसी टापू।

प्रश्न 22.
जरसी का दूध तथा फैट बताओ।
उत्तर-
3000-5000 किलो, फैट 5%।

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प्रश्न 23.
डेयरी जानवर 80% ऊर्जा की आवश्यकता कहां से पूरी होती है ?
उत्तर-
निशास्ता।

प्रश्न 24.
कटड़ियों के सींग कितनी आयु में सींग दागने चाहिए ?
उत्तर-
7-10 दिन की आयु।

प्रश्न 25.
बछड़ी के सींग कितनी आयु में सींग दागने चाहिए ?
उत्तर-
15-20 दिन की आयु।

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प्रश्न 26.
बछड़ा, बछड़ी को कौन-सी बीमारियों से बचाव के लिए टीके लगाए जाने चाहिए ?
उत्तर-
मुँह खुर, गलघोंटु।

प्रश्न 27.
दूध की दुहाई कितनी देर में पूरी हो जाती है ?
उत्तर-
एक पशु को 6-8 मिनट लगते हैं।

प्रश्न 28.
गाय के शैड की दिशा किस तरफ होनी चाहिए ?
उत्तर-
पूर्व-पश्चिम की तरफ।

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प्रश्न 29.
बड़े जानवर के लिए कितने स्थान की आवश्यकता है ?
उत्तर-
12-14 वर्ग फुट।

प्रश्न 30.
150 क्विंटल हरे चारे का आचार बनाने के लिए गड्ढे का आकार बताओ।
उत्तर-
20 x 12 x 5 फुट।

प्रश्न 31.
भारत में भैंसों के एक सूए का औसत दूध बताओ।
उत्तर-
500 किलोग्राम।

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प्रश्न 32.
पंजाब में भैंसों के एक सूए का औसत दूध बताओ।
उत्तर-
1500 किलोग्राम।

प्रश्न 33.
मुर्रा का एक सुए का औसत दूध तथा फैट की मात्रा बताओ।
उत्तर-
1700-1800 किलोग्राम, 7% फैट।

प्रश्न 34.
पंजाब में ग्रामीण जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर-
पंजाब में 70% जनसंख्या ग्रामीण है।

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प्रश्न 35.
दुधारु पशुओं से हर वर्ष कितना दूध पैदा किया जाता है ?
उत्तर-
इनसे लगभग 94 लाख टन दूध वार्षिक पैदावार होती है।

प्रश्न 36.
पंजाब में प्रति पशु औसतन कितना दूध पैदा होता है ?
उत्तर-
यह औसत 937 ग्राम प्रति पशु रोज़ाना है।

प्रश्न 37.
राष्ट्रीय स्तर पर प्रति पशु रोज़ाना औसतन कितना दूध पैदा होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 291 ग्राम प्रति पशु रोज़ाना है।

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प्रश्न 38.
संसार में भारत का दूध की पैदावार में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर-
संसार में भारत का दूध पैदावार में पहला स्थान है।”

प्रश्न 39.
पंजाब में दोगले नसलीकरण का कार्य बड़े स्तर पर चलाने के लिए क्या किया गया है ?
उत्तर-
विदेशों से होल्स्टीयन फ्रीजियन तथा जरसी नसल की गायें तथा इस नसल के बैलों के टीके मंगवाने का प्रबन्ध किया गया है। ……..

प्रश्न 40.
देसी गाय एक प्रसव पश्चात् कितना दूध देती है ?
उत्तर-
देसी गाय एक प्रसव के पश्चात् लगभग 1000 से 1800 किलोग्राम दूध देती है।

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प्रश्न 41.
हरियाणा नसल की तथा साहीवाल तथा लाल सिन्धी गायों के दूध में चिकनाहट (फैट) कितनी होती है ?
उत्तर-
हरियाणा 4.0%, साहीवाल 5.0%, लाल सिन्धी 5.0%।

प्रश्न 42.
होल्स्टीयन-फ्रीजियन नसल की गाय एक प्रसव के पश्चात् कितना दूध देती है तथा इसमें कितनी चिकनाहट होती है ?
उत्तर-
यह 5500-6500 किलो दूध देती है। इसमें चिकनाहट 3.5 से 4.0% होती है।

प्रश्न 43.
जरसी नसल की गाय एक प्रसव काल में कितना दूध देती है तथा इसमें कितनी चिकनाहट (फैट) होती है ?
उत्तर-
यह एक प्रसवकाल में औसतन 3000-5000 किलो दूध देती है। इसमें चिकनाहट (फैट) 5% होती है।

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प्रश्न 44.
बरसीम से जानवरों को मोक (आफरा ) न लगे इसके लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
बरसीम में तूड़ी मिलाकर डालनी चाहिए।

प्रश्न 45.
बच्चे को खीस किस हिसाब में खिलानी चाहिए ?
उत्तर-
बच्चे के शरीर में वज़न के 10वें हिस्से के हिसाब से सर्दियों में 3-4 दिन तथा गर्मियों में 3 बार खिलानी चाहिए।

प्रश्न 46.
बछड़े को वंड कब से देनी आरम्भ करनी चाहिए ?
उत्तर-
बछड़े को वंड 15 दिन की आयु में देनी आरम्भ कर दो।

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प्रश्न 47.
कटड़ियों तथा बछड़ियों के सींग किस आयु में दागने चाहिए ?
उत्तर-
कटड़ियों के सींग 7-10 दिन की आयु में तथा बछड़ियों के सींग 15-20 दिन की आयु में ही लाल सुर्ख लोहे की दागनी से दागने चाहिएं।

प्रश्न 48.
18 महीने में बछड़े का भार कितना हो जाता है ?
उत्तर-
बछड़े का भार 300 कि०ग्रा० तक हो जाता है।

प्रश्न 49.
अगर दूध मशीन से निकालना हो तो थनों को किस घोल से साफ़ करना चाहिए ?
उत्तर-
50% बीटाडीन तथा 50% ग्लिसरीन के घोल से।

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प्रश्न 50.
पानी की खुरली कितनी ऊंची होनी चाहिए ?
उत्तर-
बड़े जानवरों तथा छोटे जानवरों के लिए क्रमशः 2.5 फुट तथा 1.5 फुट होनी चाहिए।

प्रश्न 51.
गोबर की सम्भाल के लिए खड्डे का आकार बताओ।
उत्तर-
इसका आकार 20 x 14 x 4 फुट होना चाहिए।

प्रश्न 52.
पंजाब में तथा भारत में भैंस के एक प्रसव का औसत दूध कितना है ?
उत्तर-
पंजाब में यह औसत 1500 किलोग्राम तथा भारत में 500 किलोग्राम है।

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प्रश्न 53.
भारत में भैंसों की कितनी नसलें हैं ?
उत्तर-
भारत में भैंसों की 15 नसलें हैं।

प्रश्न 54.
दूध के लिए किस धातु के बने बर्तन सबसे बढ़िया रहते हैं ?
उत्तर-
दूध के लिए सबसे बढ़िया बर्तन एल्यूमीनियम के रहते हैं।

प्रश्न 55.
बर्तनों को कीटाणु रहित करने के लिए रसायन का नाम लिखो।
उत्तर-
सोडियम तथा कैल्शियम हाइपोक्लोराइड।

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प्रश्न 56.
सबसे बढ़िया दो उद्देशीय गाय कौन-सी है ?
उत्तर-
गाय की हरियाणा नसल इस तरह की है।

प्रश्न 57.
निशास्ते के मुख्य स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
निशास्ते के मुख्य स्रोत पौधों के बीज की सेलुलोज़ तथा स्टार्च हैं।

प्रश्न 58.
अफारे तथा बदहज़मी से बचने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
फलीदार चारा खिलाने से पहले इनमें तूड़ी अथवा अन्य चारे मिला लेने चाहिए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दूध की बढ़ रही मांग को कैसे पूरा किया जा सकता है ?
उत्तर-
दूध की बढ़ रही मांग को पशुओं की संख्या बढ़ाकर तथा दूसरी उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता को बढ़ा कर भी किया जा सकता है। दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए दोगली नसलीकरण करने के लिए बढ़िया किस्म के विदेशी बैलों का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
लाभदायक डेयरी फार्म के व्यवसाय के लिए आर्थिक पक्ष से दुधारू पशुओं में कौन-से म्यार होने चाहिएं ?
उत्तर –

305 दिन के सूए का कम-से-कम दूध (किलोग्राम) 2500 4000
पूरे यौवन में एक दिन का कम से कम दूध (किलोग्राम) 12-13 19.20
पहले सूए की आयु (वर्ष) 3 (36 माह) 2 1/2 (30 माह)
दूध देने से हटने का समय (महीने) (प्रसव से पहले) 2 2

प्रश्न 3.
गायों का दूध बढ़ाने के लिए नस्ल सुधार किस तरह किया जा सकता
उत्तर-
पंजाब के मैदानी इलाकों में गायों का दूध बढ़ाने के लिए इस नस्ल सुधार होलस्टीन फ्रीजियन नस्ल के बैलों से देसी तथा दोगली गायों को मिला कर किया जा सकता है। अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों में जहां हरे चारे की कमी है, गायों का नस्लीकरण जरसी नसल के प्रयोग से किया जाता है। होलस्टीन फ्रीजियन नस्ल का दूध अधिक होता है तथा जरसी के दूध में चर्बी की प्रतिशत मात्रा अधिक है।

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प्रश्न 4.
गर्भवती वाली तथा दूध से हटी गाय की सम्भाल कैसे करोगे ?
उत्तर-
गर्भवती वाली गाय को प्रसव की तारीख से 60 दिन पहले दूध से हटा लेना चाहिए। ऐसा करने के लिए 5-7 दिन के लिए बंड बंद कर दो तथा हरा चारा भी घटा देना चाहिए। थनों की सूजन छिछड़ा रोग से बचाव के लिए कीटाणु नाशक दवाई लगा देनी चाहिए। पहले दो प्रसवों में इन गायों को एक किलो अतिरिक्त वंड डालनी चाहिए, क्योंकि उनकी शारीरिक वृद्धि भी हो रही होती है।

प्रसव के दो सप्ताह पहले गाय को अन्य गाय से अलग कर देना चाहिए। उसको साफ़ कमरे में रखें जहां आराम के लिए सूखी पुआल डाली हो। उम्मीद वाली गाय की ढुलाई नहीं करनी चाहिए। भीड़-भाड़ से गुरेज़ करें तथा पशु न फिसले। इस समय मुहाना काफ़ी बड़ा हो जाता है। इसलिए ध्यान रखें कि मुहाने पर कोई चोट अथवा ज़ख्म न लगे।

प्रश्न 5.
भैंसों की देखभाल बारे क्या जानते हो ?
उत्तर-
भैंसों की सम्भाल साधारणतः गाय जैसी ही होती है। भैंसों में दो प्रसवों का अन्तर अधिक होता है तथा कटड़ों की मृत्यु-दर अधिक होती है। कटड़ों की मौत को घटाने के लिए उनकी जन्म से पहले तथा बाद में अच्छी देखभाल करनी चाहिए। कमज़ोर भैंसें विशेषतः कम भार वाली भैंसों को प्रजनन नहीं करवाना चाहिए। भैंस के प्रसव से पहले अच्छी खुराक देनी चाहिए। गर्भ के आखिरी 3 महीने में उसकी अच्छी तरह देखभाल बहुत ज़रूरी है। नए पैदा हुए कटड़ों की खुराक की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। कटड़ों को छोटे ग्रुपों में बढ़िया सूखा बिछाए कमरों में रखें तथा जन्म से लेकर नियमबद्ध तरीके से क्रीम रहित करने वाली दवाई तथा बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीके लगवाने चाहिएं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाय की विदेशी नस्ल ( जर्सी) का वर्णन करो।
उत्तर-

गुण जर्सी
मूल घर इंग्लैंड में जर्सी टापू
रंग भूसला अथवा भूरे लाल धब्बे
शरीर यह सबसे छोटे कद वाली नसल है
एक सूए का औसतन दूध 3000-5000 किलो
दूध में चिकनाई फैट 5%

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 6 पशु पालन

प्रश्न 2.
भारत में बढ़ रही दूध की मांग कैसे पूरी हो सकती है ?
उत्तर-
दूध की बढ़ रही मांग को पूरा करने के लिए दो कार्य किए जा सकते हैं –

  1. दूध देने वाली गायों-भैंसों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए।
  2. दूध देने वाली गायों-भैंसों की नसल में सुधार करके भी दूध बढ़ाया जा सकता है।

लवेरों की संख्या तो पहले ही हमारे पास अधिक है तथा दूसरे ढंग के लिए विदेशी नसल की बढ़िया गायें मंगवाई जा सकती हैं परन्तु इनमें भी हमारे वातावरण को सहन करने की शक्ति कम है तथा ये शीघ्र ही बीमार हो जाती हैं। इसलिए मौजूदा लवेरों के दूध के सामर्थ्य को बढ़ाना इनका सही ढंग है। इसलिए लवेरों की नसल सुधार तथा अच्छी देखभाल की ज़रूरत है।
नसल सुधार के लिए बढ़िया किस्म के होलस्टीन फ्रीजियन तथा जर्सी नस्ल के बैलों की अच्छी सम्भाल की जाती है।

परन्तु भैंसें तो भारत में पहले ही दुनिया की सबसे बढ़िया किस्म की हैं। इसलिए इनमें दोगली नसलकशी के लिए कोई गुन्जाइश नहीं। इसलिए जो नसलें भारत में मौजूद हैं, उनका चुनाव करके सुधार भी किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
जानवरों के शरीर के संचालन के लिए खुराक की जानकारी दें।
उत्तर-
अधिक दूध की पैदावार के लिए जानवरों की खुराक तथा शरीर का संचालन ठीक ढंग से होना चाहिए। जानवरों के लिए अनिवार्य खुराकी तत्त्वों को चार भागों में बांटा जा सकता है –

  1. ऊर्जा देने वाले पदार्थ
  2. प्रोटीन
  3. खनिज पदार्थ
  4. विटामिन।

सभी जानवर अपनी ऊर्जा की आवश्यकता खाद्य तत्त्वों निशास्ता, प्रोटीन तथा चिकनाई से प्राप्त करते हैं। डेयरी जानवर 80% ऊर्जा आवश्यकता निशास्ते से पूरी करते हैं।

400 किलो वज़न की गाय अथवा भैंस के शरीर संचालन की ज़रूरत 35 किलो हरे चारे (बरसीम, लूसण, मक्की, ज्वार अथवा बाजरा) से पूरी हो सकती है। भारी जानवरों के लिए जैसे कि 500 किलो वज़न वाली गाय के लिए 45 किलो हरा चारा काफ़ी है। इसमें 10% तक तूड़ी मिलानी ठीक रहती है। क्योंकि हरे बरसीम अथवा लूसण में प्रोटीन अधिक होती है तथा सूखा मादा कम होता है। दूध की पैदावार के लिए अथवा बढ़ रहे बछड़े तथा बछड़ियों की ज़रूरत हरे चारे तथा सन्तुलित वंड मिश्रण से पूरी का जा सकती है। जो भैंसें 5 किलो तथा गायें 7 किलो दूध दे सकती हैं, उन्हें 40-60 किलो फलीदार हरा चारा काफ़ी है। बरसीम की पहली कटाइयों में तुडी मिलानी चाहिए ताकि जानवरों को अफारा न लगे। अधिक दूध देने वाली गायों को अधिक हरा चारा नहीं डालना चाहिए नहीं तो वह वंड नहीं खा सकेंगी।

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प्रश्न 4.
बछड़े के दूध छुड़ाने के बारे में बताओ।
उत्तर-
दूध छुड़ाना-बछड़ों को दूध चुसवाने की जगह पिलाना चाहिए। इसके लिए बछड़ों को जन्म से ही माँ से अलग कर दो। इस तरह दूध की पैदावार का सही अनुमान लग जाता है तथा बछड़े को आवश्यकतानुसार दूध भी पिलाया जा सकता है। दूध हमेशा ताज़ा तथा शारीरिक तापमान (30-40°C) पर ही पिलाना चाहिए। इस तरह थन ज़ख्मी नहीं होते तथा छूत की बीमारियां भी नहीं लगती। इसके साथ-साथ यदि बच्चा मर जाए तो पशु दूध आसानी से देते हैं।

प्रश्न 5.
बछड़े-बछड़ियों की पहचान तथा बछड़ों की सम्भाल तथा दुधारू पशुओं की देख-रेख के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
बछड़े-बछड़ियों की पहचान-जानवरों की संख्या अधिक होने की सूरत में उनकी ठीक-ठाक पहचान के लिए प्रबन्ध होना अनिवार्य है। छोटे जानवरों के कानों में नंबर लगा कर अथवा गले में रस्सी अथवा जंजीर में नम्बर लटका कर इनकी पहचान आसानी से की जा सकती है। बछड़ों तथा बड़े जानवरों की पहचान के लिए कानों में नम्बर वाली मुर्कियां (वालियां) डाली जा सकती हैं। अथवा गर्म लोहे से पीठ पर नम्बर लगाए जा सकते हैं।

बछड़ों की सम्भाल-अगर बछड़ों को बढ़िया राशन मिले तो उनकी प्रतिदिन 500700 ग्राम शारीरिक वृद्धि हो सकती है। साधारणत: उनके शरीर का भार 15 महीने की आयु में 200-250 किलो ग्राम तथा 18 महीने में 300 किलोग्राम हो जाता है। एक वर्ष की आयु से पशुओं में गर्भ धारण की निशानियों के लिए ध्यान से देखें।

दुधारू पशुओं की देख-रेख-प्रसव से 5 दिन पश्चात् दुधारु पशुओं को साधारण वंड डालना चाहिए। दूध की पैदावार तथा हरे चारे की मात्रा तथा क्वालिटी अनुसार वंड की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए। दुधारु पशुओं का (खासकर दूध देने वाले) प्रसव से पहले तीन महीने साधारणतः भार घटता है जो कि चिन्ता की बात नहीं।।

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प्रश्न 6.
पंजाब में भैंसों की दो नसलों के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
मुर्रा नसल-इसका मूल घर रोहतक (हरियाणा) में है। मुर्रा का अर्थ है मुड़ा हुआ। इस नसल का नाम इसके मुड़े हुए सींगों के कारण पड़ा है। इस नसल का रंग काला होता है। इसकी पूंछ की दुम (सिरा) सफेद तथा सींग मुड़े (कुण्डलदार), गर्दन तथा सिर पतले, भारी मुहाना तथा थन लम्बे होते हैं। भैंसों के शरीर का भार 430 किलोग्राम तथा नरों का 575 किलोग्राम होता है। यह नसल औसतन एक प्रसव में 1700-1800 किलोग्राम दूध देती है। इसके दूध में चिकनाहट 7% होती है।

नीली रावी-इसका मूल घर मिंटगुमरी (पाकिस्तान) में है। इसका रंग काला, माथा सफ़ेद (फूलदार), घुटनों तक टांगें सफ़ेद, पूंछ की दुम सफ़ेद होती है। इसका एक अन्य नाम पाँच कल्याणी भी है। इसका कद मध्यम, सींग छोटे तथा तेज़, आंखें बिल्ली होती हैं। भैंस का भार 450 किलोग्राम तथा नरों का 600 किलोग्राम होता है। एक प्रसव में औसतन दूध 1600-1800 किलोग्राम प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 7.
दूध वाले बर्तनों की सफाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
दूध वाले बर्तन-दूध वाले बर्तन कई तरह की धातुओं से बनाए जा सकते हैं। पर लोहे अथवा तांबे आदि धातुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह कुछ मात्रा में दूध में घुल जाती हैं तथा अवांछनीय रासायनिक क्रिया द्वारा दूध में मिल कर घटिया स्वाद तथा बदबू पैदा करती हैं। अच्छी तरह कलई किए तांबे, गैल्वेनाईज्ड लोहे तथा क्रोम निक्कल के बर्तन दूध के बर्तनों के तौर पर बहुत तस्सली बख्स रहते हैं। पर यह बहुत महँगे पड़ते हैं, जबकि एल्यूमीनियम के बर्तन सबसे बढ़िया सस्ते तथा अधिक देर तक चलने वाले होते हैं । यह दूध पर बुरा प्रभाव नहीं डालते। इन्हें आसानी से साफ़ तथा कीटाणु रहित किया जा सकता है।

बर्तनों की सफ़ाई-बढ़िया दूध पैदा करने के लिए बर्तनों को साफ़ तथा कीटाणु रहित करना . बहुत ज़रूरी है। दूध वाले बर्तनों को प्रयोग के तुरन्त पश्चात् धोकर साफ़ कर लेना चाहिए।

बर्तनों को तब तक धोते रहें, जब तक धोने वाला पानी साफ़ आना न शुरू हो जाए। धोने के लिए सोडे का प्रयोग किया जा सकता है। घोल में सोडा इतना ही डालें कि वह हाथों पर बुरा प्रभाव न डाले। बर्तन की धातु अनुसार सफ़ाई के लिए कपड़े धोने वाला सोडा, सोडियम हैक्सामैटाफॉस्फेट, ट्राई सोडियम फॉस्फेट, सोडियम मैटासिलीकेट आदि प्रयोग की जा सकती है।

सोडे को गुनगुने पानी (40°C) में घोल कर बर्तन में डालकर ब्रुश अथवा हाथों से अच्छी तरह अन्दर-बाहर से रगड़ कर साफ़ करें। बाद में बर्तन को 2-3 बार गुनगुने पानी से धोकर सोडा निकाल दें तथा अन्त में ठण्डे पानी से धो दें। साफ़ किए बर्तनों को उल्टे रखकर सुखा लेना चाहिए।

कीटाणु रहित करने से बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। कीटाण रहित करने के लिए उबलता हुआ पानी, भाप तथा रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। बर्तनों को 2-3 मिनट भाप की फुहार में रखकर कीटाणु रहित किया जा सकता है। दूध के बर्तनों में उबलता पानी डाल कर आधे घण्टे के लिए बन्द कर दें तथा बर्तन का तापमान लगभग 85°C होना चाहिए। सोडियम तथा कैल्शियम हाइपोक्लोराइड जैसे रसायन पदार्थ भी बर्तनों को कीटाणु रहित करने के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं। इन रसायनों की 200 ग्राम मात्रा 1000 लिटर पानी में घोल कर बर्तन में 2 मिनट के लिए डालना काफ़ी है। अगर कुआर्टनरी अमोनियम प्रयोग करना हो तो यह 50 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रयोग किया जा सकता है। रसायनों को साफ़ करने के पश्चात् बर्तन अच्छी तरह साफ़ पानी से धोने चाहिए नहीं तो इनकी गन्दगी दूध अथवा पदार्थों को खराब कर सकती है।

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प्रश्न 8.
देशी गायों की नस्लों का विस्तारपूर्वक वर्णन करो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 6 पशु पालन 1

पशु पालन PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • पंजाब में लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण है।
  • पंजाब में 17 लाख गायें तथा 50 लाख भैंसें हैं।
  • पंजाब में प्रति जीव औसतन 937 ग्राम दूध प्रतिदिन पैदा किया जाता है जबकिराष्ट्रीय स्तर पर यह 291 ग्राम है।
  • होलस्टीन-फ्रीज़ियन दूध देने वाली सबसे बढ़िया विदेशी नस्ल है।
  • देसी गाय एक सुए में लगभग 1000 से 1800 किलोग्राम दूध देती है।
  • गाय की देसी नसलें हैं हरियाणा, साहीवाल, लाल सिन्धी तथा थारपार्कर।
  • थारपार्कर तथा हरियाणा द्विउद्देशीय नसलें हैं।
  • गाय की विदेशी नसलें हैं होलस्टीयन-फ्रीज़ियन, जरसी। क्रमशः इनके एक सूए से औसतन 5500-6500, 3000-5000 किलो दूध मिल जाता है।
  • लगभग 35 किलो हरा चारा 400 किलो भारी गाय अथवा भैंस के शरीर के संचालन की आवश्यकता पूरी करता है।
  • जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्त्वों को मोटे तौर पर 4 भागों में बांट सकते हैं, जैसे ऊर्जा देने वाले पदार्थ, प्रोटीन, खनिज, पदार्थ तथा विटामिन।
  • जानवरों को पौष्टिक तत्व पूरे मिलें इसलिए बंड, जोकि अनाज, तेल वाले बीजों की खल्ल आदि मिश्रण है, दिया जाता है।
  • अगर दुहाई दूध निकालने वाली मशीन से करनी हो तो थनों को 50% बीटाडीन + 50% ग्लिसरीन के घोल में डुबो लेना चाहिए।
  • दूध से हट चुकी गर्भवती गाय को इधर-उधर नहीं ले जाना चाहिए तथा फिसलने से बचाना चाहिए।
  • गाय की प्रसूतन के 2 घण्टे बाद दुहाई कर लेनी चाहिए।
  • नये जन्मे बछड़े के नाड़ को प्रतिदिन 2-3 बार टिंचर आयोडीन या डीटोल लगा देनी चाहिए।
  • बछड़े को दूध पीलाना चाहिए तथा चूसवाना नहीं चाहिए।
  • कटड़ी तथा बछड़ी के क्रमश : 7-10 दिन तथा 15-20 दिनों की आयु में सिंग दाग देने चाहिए।
  • युवा गाय को अच्छा राशन मिले तो भार 18 महीने में 300 किलोग्राम हो जाता है।।
  • दूध दोहन का काम 6-8 मिनट में पूरी मुट्ठी से करना चाहिए।
  • बड़े पशु को लगभग 12-14 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है।
  • फालतू फलीदार चारे को सुखा कर हेय तथा गैर-फलीदार का आचार बना कर संभाला जा सकता है।
  • भारत में भैंस के एक सूए का औसतन दूध 500 किलोग्राम है। पंजाब में यह , 1500 किलोग्राम है।
  • भारत में भैंसों की 15 नसलें हैं। पंजाब में साधारणत: दो नसलें मिलती हैं मुर्रा तथा नीली रावी।
  • बढ़िया भैंस को पहले सूए में 2000 तथा दूसरे में 2500 किलोग्राम दूध देना चाहिए।
  • दूध को 5°C तक ठण्डा करके रखें, इस तरह बैक्टीरिया फलते फूलते नहीं।
  • दूध वाले बर्तनों को अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

PSEB 11th Class Geography Guide नमी और वर्षण क्रिया Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विशिष्ट नमी का अंग्रेज़ी में क्या नाम लिया जाता है?
उत्तर-
Specific Humidity.

प्रश्न (ख)
अगर वाष्पीकरण काफी हो, तो हवा में कौन-सी नमी बढ़ती है?
उत्तर-
निरपेक्ष नमी।

प्रश्न (ग)
नमी का तरल रूप क्या है?
उत्तर-
जल।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

प्रश्न (घ)
ओले ठोस होते हैं, इनका पहला गैस रूप क्या होता है?
उत्तर-
जल वाष्प।

प्रश्न (ङ)
अग्रभागी वर्षा का पंजाबी नाम क्या है ?
उत्तर-
चक्रवाती वर्षा।

2. प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1. (क)
नमी क्या होती है? इसकी किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
वायुमंडल में मौजूद नमी (जलवाष्प) को नमी कहते हैं। यह पानी के गैसीय रूप में विद्यमान रहती है। वायुमंडल में मौजूद नमी तीन प्रकार की होती है

  1. निरपेक्ष नमी
  2. विशिष्ट नमी
  3. सापेक्ष नमी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

प्रश्न (ख)
वर्षा से क्या अभिप्राय है? इसकी किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
वायुमंडल में मौजूद जल वाष्प संघनन होकर जब बूंदों के रूप में भू-तल पर गिरते हैं, तो उसे वर्षा कहते हैं। वर्षा की तीन किस्में हैं-

  1. संवहन वर्षा
  2. पर्वतीय वर्षा
  3. चक्रवाती वर्षा।

प्रश्न (ग)
वर्षण और वर्षा में क्या अंतर है? बताएं।
उत्तर-
जब वायु का तापमान ओस बिंदु से भी नीचे गिरता है, तो उसमें जलवाष्प जल में बदलकर किसी-न-किसी रूप में भू-तल पर गिरते हैं, उसे वर्षण कहते हैं। इसके तीन रूप हैं-बर्फबारी, ओले और वर्षा, परंतु जब ये जलवाष्प जल की बूंदों के रूप में भू-तल पर गिरते हैं, तो उसे वर्षा कहते हैं।

प्रश्न (घ)
संतृप्त वायु क्या होती है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
जब हवा का तापमान इतना कम हो जाए कि हवा जल वाष्प को संभाल न सके तो उसे संतृप्त हवा कहते हैं। हवा में जितना सामर्थ्य होता है, यदि हवा में उतनी नमी मौजूद हो, तो उस हवा को संतृप्त हवा कहते हैं। इस हालत में हवा में संघनन क्रिया आरंभ हो जाती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

प्रश्न (ङ)
वायु, नमी व तापमान का क्या संबंध है ? संक्षेप में बताएँ।
उत्तर-
तापमान के बढ़ने से हवा में जलवाष्प (नमी) धारण करने का सामर्थ्य बढ़ जाता है। तापमान कम होने पर नमी कम हो जाती है। गर्म हवा में नमी का सामर्थ्य बढ़ जाता है, परंतु वास्तविक नमी कम होती है।

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 100 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
नमी की किस्मों की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर-
1. निरपेक्ष नमी या वास्तविक नमी (Absolute Humidity)—किसी समय में किसी तापमान पर हवा में जितनी नमी मौजूद हो, उसे हवा की निरपेक्ष या वास्तविक नमी कहते हैं। यह एक ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर द्वारा प्रकट की जाती है। तापमान बढ़ने या कम होने पर भी हवा की वास्तविक नमी वही रहेगी, जब तक उसमें और अधिक जलवाष्प शामिल न हों या कुछ जल-कण अलग न हो जाएँ। वाष्पीकरण द्वारा वास्तविक नमी बढ़ जाती है और वर्षा द्वारा कम हो जाती है। हवा के ऊपर उठकर फैलने पर अथवा नीचे उतरकर सिकुड़ने से भी यह मात्रा बढ़ या कम हो जाती है। इस प्रकार की वायु की निरपेक्ष या वास्तविक नमी कभी भी स्थिर नहीं रहती।

विभाजन (Distribution)-

  • भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक निरपेक्ष नमी होती है और यह ध्रुवों की ओर कम होती जाती है।
  • गर्मी की ऋतु में सर्दियों की तुलना में और दिन में रात की तुलना में हवा की निरपेक्ष नमी अधिक होती है।
  • थल खंडों की अपेक्षा महासागरों में निरपेक्ष नमी अधिक होती है।
  • उच्च वायुदाब के क्षेत्रों में नीचे उतरती हुई हवाओं के कारण निरपेक्ष नमी कम होती है।
  • इससे वर्षा के संबंध में अनुमान लगाने में सहायता नहीं मिलती।

2. सापेक्ष नमी (Relative Humidity)-किसी तापमान पर हवा में कुल जितनी नमी समा सकती है, उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष नमी कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया 1

दूसरे शब्दों में, यह हवा की निरपेक्ष नमी और उसकी नमी धारण करने के सामर्थ्य का प्रतिशत अनुपात है।

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उदाहरण (Example)-यदि किसी हवा में 70° F पर 4 grain प्रति घन फुट नमी मौजूद है, परंतु यदि यह हवा 70°F तापमान पर 8 grain प्रति घन फुट नमी सहन कर सकती है, तो उस हवा की सापेक्ष नमी = 4/8 x 100 = 50 प्रतिशत होगी।
नोट-सापेक्ष नमी को भिन्न (Fraction) की अपेक्षा % से प्रकट किया जाता है।

इसे हवा की संतृप्तता का प्रतिशत अंश भी कहा जाता है। हवा के फैलने या सिकुड़ने से विशेष नमी बदल जाती है। तापमान के बढ़ने से हवा का वाष्प ग्रहण करने का सामर्थ्य बढ़ जाता है और सापेक्ष नमी कम हो जाती है। तापमान कम होने से हवा ठंडी हो जाती है और वाष्प धारण करने का सामर्थ्य कम हो जाता है। इस प्रकार सापेक्ष नमी बढ़ जाती है।

विभाजन (Distribution)—

  • भूमध्य रेखा पर सापेक्ष नमी अधिक होती है।
  • गर्म मरुस्थलों में सापेक्ष नमी कम हो जाती है।
  • निम्न वायु दाब वाले क्षेत्रों में सापेक्ष नमी अधिक परंतु उच्च वायु दाब वाले क्षेत्रों में सापेक्ष नमी कम होती है।
  • महाद्वीपों के भीतरी क्षेत्रों में सापेक्ष नमी कम होती है।
  • दिन को सापेक्ष नमी कम होती है, पर रात को यह बढ़ जाती है।
  • वर्षा ऋतु में सापेक्ष नमी बढ़ जाती है।

3. विशिष्ट नमी (Specific Humidity)-हवा के प्रति इकाई भार में मौजूद जल वाष्प के भार को विशिष्ट नमी कहते हैं अथवा हवा में मौजूद जल वाष्प के भार और उस वायु के भार के अनुपात को विशिष्ट नमी कहते हैं। वायु के आयतन के बढ़ने या कम होने से वायु का भार बढ़ या कम हो जाता है और विशिष्ट नमी बदल जाती है। भूमध्य रेखा और सागरों पर विशिष्ट नमी अधिक होती है।

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प्रश्न (ख)
वर्षा की किस्मों की व्याख्या करें।
उत्तर-
वायु में मौजूद जल वाष्प जब संघनन द्वारा जल का रूप धारण करके भू-तल पर गिरते हैं, तो उसे वर्षा कहते हैं। हवा की नमी ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण है-संतृप्त हवा का ठंडा होना। (Rainfall is caused due to the cooling of saturated air.) इस प्रकार जल-कणों का धरती पर गिरना ही वर्षा कहलाता है। वर्षा के लिए जरूरी है कि

  1. हवा में पर्याप्त नमी हो।
  2. हवा का किसी प्रकार ठंडा होना या द्रवीकरण क्रिया का होना।
  3. हवा में धूल के कणों का होना।

वर्षा की किस्में (Types of Rainfall) हवा तीन दशाओं में ठंडी होती है-

  1. गर्म और नम हवा का संवाहक धाराओं के रूप में ऊपर उठना।
  2. किसी पर्वत से टकराकर नम हवा का ऊपर उठना।
  3. ठंडी और गर्म वायु समूह का आपस में मिलना।

इन दशाओं के आधार पर वर्षा तीन प्रकार की होती है-
इसे चक्रवाती वर्षा (Cylonic Rainfall) कहते हैं। यह वर्षा लगातार बहुत देर तक परंतु थोड़ी मात्रा में होती है।

उदाहरण (Examples)

  • शीतोष्ण कटिबंध में सर्दी की ऋतु में पश्चिमी यूरोप में इसी प्रकार की वर्षा होती है।
  • पंजाब में सर्दी ऋतु में कुछ वर्षा रोम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा होती है।

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प्रश्न (ग)
विश्वभर में वर्षा के विभाजन की व्याख्या करें।
उत्तर-
विश्व में वर्षा का विभाजन (World Distribution of Rainfall)-

तापमान, वायु दाब और पवनें वर्षा की मात्रा को निर्धारित करते हैं। ये सभी दशाएँ विभिन्न कटिबंधों में भिन्न होती हैं। इसी कारण वर्षा का विभाजन भी इन्हीं कटिबंधों में एक समान नहीं होता है। ऋतु वैज्ञानिक पैटर्सन ने वर्षा का विभाजन कटिबंधों के अनुसार किया है, जो कि नीचे लिखे अनुसार है-

1. भूमध्य रेखीय प्रदेश (Equatorial Region)-भूमध्य रेखीय या डोलड्रम प्रदेश का विस्तार लगभग 7° उत्तरी और 7° दक्षिणी अक्षांशों के बीच होता है। यहाँ निरंतर संवहन धाराएँ उठती रहती हैं, जिसके कारण सारा साल वर्षा होती रहती है। यहाँ शुष्क ऋतु नहीं होती। इस प्रदेश में मुख्य रूप में संवहन वर्षा होती है, परंतु प्रदेश के पर्वतीय भागों में पर्वतीय वर्षा भी होती है। इस प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सैंटीमीटर से अधिक होता है।

2. व्यापारिक पवन पेटी (Trade Winds Belt)-ये कटिबंध दोनों गोलार्डों में 7° से 22° अक्षांशों के बीच _फैले हुए हैं। इन कटिबंधों में व्यापारिक और मानसूनी पवनों द्वारा वर्षा होती है। व्यापारिक पवनें महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर वर्षा करती हैं। इन कटिबंधों में वर्षा की मात्रा गर्मी की ऋतु में अधिक होती है। वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 200 सैंटीमीटर के बीच होता है परंतु कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 50 सैंटीमीटर से भी कम होता है।

3. उपोष्ण शुष्क कटिबंध (Sub-Tropical Dry Belt) दोनों गोलार्डों में 22° से 33° के बीच ये कटिबंध फैले हुए हैं। इनमें वर्षा की मात्रा कम होती है। वर्ष में 50° सैंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है। इन कटिबंधों के पश्चिमी भागों में विशाल मरुस्थल स्थित हैं क्योंकि यहाँ पहुँचते-पहुँचते पवनें शुष्क हो जाती हैं। इनके निकट शीतल धाराएँ भी बहती हैं।

4. भूमध्य सागरीय प्रदेश (Mediterranean Regions)—ये प्रदेश 33° से 44° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं। शीतकाल में ये उच्च वायु दाब का केंद्र होते हैं, इसीलिए यहाँ वर्षा नहीं होती। परंतु सर्दी की ऋतु में पश्चिमी पवनों की पेटी के प्रभाव में आ जाने के कारण यहाँ वर्षा होती है।

5. पश्चिमी पवन कटिबंध (Westerlies Belt) दोनों गोलार्डों में 40° से 61° अक्षांशों के बीच विस्तृत इन कटिबंधों में पश्चिमी पवनों द्वारा सारा साल वर्षा होती है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 150 से 200 सैंटीमीटर के बीच होती है।

6. ध्रुवीय प्रदेश (Polar Region)—ये प्रदेश दोनों गोलार्डों में 60°–90° अक्षांशों के बीच स्थित हैं। यहाँ वर्षा हिम के रूप में होती है।

1. संवहन वर्षा (Convectional Rainfall)-थल पर अधिक गर्मी के कारण हवा गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है। आस-पास की ठंडी हवा इस हवा का स्थान ले लेती है और गर्म होकर ऊपर उठ जाती है। इस प्रकार संवाहक धाराएँ पैदा हो जाती हैं। इन धाराओं के कारण कुछ ही ऊँचाई पर हवा ठंडी हो जाती है और वर्षा होती है। इसे संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) कहते हैं। यह वर्षा घनघोर, अधिक मात्रा में और तेज़ बौछारों के रूप में होती है। यह वर्षा स्थानीय गर्मी के कारण होती है। .

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया 4

उदाहरण (Examples)-

  • भूमध्य रेखा पर हवा प्रतिदिन दोपहर तक गर्म होकर ऊपर उठती है और शाम को वर्षा होती है।
  • उत्तरी महाद्वीपों के भीतरी भागों में गर्मियों की ऋतु तु चित्र-संवहन वर्षा में कभी-कभी इस प्रकार की वर्षा होती है।

2. पर्वतीय वर्षा (Orographic or Relief Rainfal)—किसी पर्वत के ऊपर उठती हुई, जल वाष्पों से लदी हुई हवा से होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall) कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा के लिए ज़रूरी है कि हवा में काफी मात्रा में नमी हो और पर्वतों का विस्तार पवन-दिशा में लंबवत् हो। विश्व में अधिकांश वर्षा इसी प्रकार की होती है, पर यह वर्षा पर्वतों की पवनमुखी ढलानों (windward slopes) पर अधिक होती है। पर्वतों की पवन-विमुखी या दूसरी ओर की ढलानों (Leeward Slopes) पर बहुत कम वर्षा होती है। ऐसे प्रदेश वर्षा छाया (Rain Shadow) के प्रदेश कहलाते हैं। पर्वत के दूसरी तरफ नीचे उतर रही हवाएँ (Descending winds) वर्षा नहीं करती हैं। उतरने की क्रिया में दबाव से हवा का तापमान बढ़ जाता है और द्रवीकरण क्रिया नहीं होती। पर्वत के पीछे तक पहुँचते-पहुँचते हवा की नमी समाप्त हो जाती है।

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उदाहरण (Example)-

  • भारत में पश्चिमी घाट पर समुद्र की ओर से आने वाली पवनें लगभग 400 सें०मी० वर्षा करती हैं, परंतु पूर्वी ढलानों पर वर्षा छाया (Rain Shadow) के कारण केवल 65 सें०मी० वर्षा होती है।
  • हिमालय के पीछे स्थित होने के कारण तिब्बत एक वर्षा छाया (Rain Shadow) वाला क्षेत्र है।

3. चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall)-चक्रवातों में गर्म और नम तथा ठंडी और शुष्क हवा के मिलने से एक शक्ति पैदा होती है और यह एक निम्न वायु भार केंद्र बन जाता है। इसके मध्य भाग में ठंडी हवा गर्म हवा को ऊपर उठा देती है। ऊपर उठने पर गर्म हवा के जल वाष्प ठंडे होकर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

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PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 8 नमी और वर्षण क्रिया

Geography Guide for Class 11 PSEB नमी और वर्षण क्रिया Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न तु (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
सापेक्ष नमी कितने % होती है ?
उत्तर-
100%.

प्रश्न 2.
संघनन के अलग-अलग रूप लिखें।
उत्तर-
हिम, पाला, ओस, धुंध और बादल।

प्रश्न 3.
नमी मापने वाले यंत्र का नाम बताएँ।
उत्तर-
हाइग्रो मीटर।

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प्रश्न 4.
नमी के दो प्रकार बताएँ।
उत्तर-

  1. सापेक्ष नमी
  2. निरपेक्ष नमी।

प्रश्न 5.
सापेक्ष नमी किस इकाई में मापी जाती है ?
उत्तर-
प्रतिशत में।

प्रश्न 6.
वर्षण के भिन्न-भिन्न रूप बताएँ।
उत्तर-
वर्षा, हिम और ओले।

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प्रश्न 7.
वर्षा होने का क्या कारण होता है ?
उत्तर-
संतृप्त हवा का ठंडा होना।

प्रश्न 8.
वर्षा मापने वाले यंत्र का नाम बताएँ।
उत्तर-
रेन-गेज़।

प्रश्न 9.
भूमध्य रेखीय खंड में हर रोज़ की वर्षा किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
संवहनीय वर्षा।

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प्रश्न 10.
पर्वत की ओट की शुष्क ढलान को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
वर्षा छाया।

प्रश्न 11.
भारत में किसी एक वर्षा छाया क्षेत्र का नाम बताएँ।
उत्तर-
दक्षिण पठार।

प्रश्न 12.
शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में किस प्रकार की वर्षा होती है ?
उत्तर-
चक्रवाती।

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प्रश्न 13.
किस प्राकृतिकखंड में सबसे अधिक वर्षा होती है ?
उत्तर-
भूमध्य-रेखीय खंड में।

बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
विश्व में सबसे अधिक वर्षा के क्षेत्र बताएँ।
(क) भूमध्य रेखीय खंड
(ख) ध्रुवीय प्रदेश
(ग) 20°-30° अक्षांश
(घ) उष्ण कटिबंध।
उत्तर-
भूमध्य रेखीय खंड।

प्रश्न 2.
किस खंड में सबसे अधिक निरपेक्ष नमी होती है ?
(क) भूमध्य रेखा
(ख) मरुस्थल
(ग) ध्रुवीय खंड
(घ) पर्वतीय खंड।
उत्तर-
भूमध्य रेखा।

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प्रश्न 3.
हवा के जलवाष्प के जल में बदलने की क्रिया है
(क) संघनन
(ख) वाष्पीकरण
(ग) विकिरण
(घ) संवहन।
उत्तर-
संघनन।

प्रश्न 4.
सापेक्ष नमी मापक है-
(क) हाइड्रो मीटर
(ख) हाइग्रो मीटर
(ग) बैरोमीटर
(घ) एनिमो मीटर।
उत्तर-
हाइग्रो मीटर।

प्रश्न 5.
पंजाब में शीतकाल की वर्षा किस प्रकार की होती है ?
(क) संवहनीय
(ख) पर्वतीय
(ग) चक्रवाती
(घ) वातावरणीय।
उत्तर-
चक्रवाती।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
नमी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वायु में जलवाष्प की मात्रा को नमी कहते हैं।

प्रश्न 2.
वाष्पीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस क्रिया के द्वारा जल द्रव अवस्था से जलवाष्प के रूप में बदल जाता है, उसे वाष्पीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 3.
वाष्पीकरण की मात्रा किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-

  1. शुष्क हवा
  2. तापमान
  3. वायु संचार
  4. जल खंड।

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प्रश्न 4.
संतृप्त वायु से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब वायु किसी निश्चित तापमान पर अपने सामर्थ्य के अनुसार अधिकतम जल वाष्प ग्रहण कर लेती है, उसे संतृप्त वायु कहते हैं।

प्रश्न 5.
निरपेक्ष नमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी भी समय वायु के किसी निश्चित आयतन में मौजूद जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष नमी कहते हैं।

प्रश्न 6.
विशिष्ट नमी (Specific Humidity) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वायु में मौजूद जलवाष्प के भार और वायु के भार के अनुपात को विशिष्ट नमी कहा जाता है।

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प्रश्न 7.
सापेक्ष नमी की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी निश्चित तापमान पर वायु में स्थित जलवाष्प की मात्रा और उस तापमान पर अधिकतम जलवाष्प ग्रहण करने के सामर्थ्य के अनुपात को सापेक्ष नमी कहते हैं।

प्रश्न 8.
सापेक्ष नमी ज्ञात करने का फार्मूला लिखें।
उत्तर-
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प्रश्न 9.
संघनन क्या होता है ?
उत्तर-
वायु में मौजूद जलवाष्प के जल रूप धारण करने की क्रिया को संघनन कहते हैं।

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प्रश्न 10.
ओस बिंदु (Dew Point) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिस तापमान पर संघनन क्रिया शुरू होने लगती है, उस तापमान को ओस बिंदु कहते हैं।

प्रश्न 11.
संघनन के अलग-अलग रूपों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. ओस
  2. पाला
  3. धुंध
  4. कोहरा।

प्रश्न 12.
धुंध और कोहरे में क्या अंतर है ?
उत्तर-
हल्के कोहरे को धुंध कहते हैं, जिसमें 2 किलोमीटर की दूरी तक की वस्तुएँ दिखाई देती हैं। घने बादलों के रूप को कोहरा कहते हैं, जिसमें 200 मीटर से अधिक दूर की वस्तुएँ नहीं दिखाई देतीं।

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प्रश्न 13.
स्मॉग (Smog) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
Smoke + Fog के सुमेल से Smog शब्द बनता है। औद्योगिक क्षेत्रों में धुएँ और जलवाष्प जम जाने से घना कोहरा बनता है, जिसे Smog कहते हैं।

प्रश्न 14.
बादल कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
जब संघनन क्रिया के बाद जल की बूंदें धूल कणों पर लटकने लगती हैं, तो बादल बनते हैं।

प्रश्न 15.
वर्षण किसे कहते हैं ? इसके अलग-अलग रूप बताएँ।
उत्तर-
किसी क्षेत्र में वायुमंडल से नीचे बरसने वाले कुल पानी की मात्रा को वर्षण कहते हैं। वायुमंडल से वर्षा. जल, बर्फबारी और ओलों का गिरना ही वर्षण कहलाता है। इसके तीन रूप हैं

  1. वर्षा – (Rainfall)
  2. बर्फबारी – (Snowfall)
  3. 37147 – (Hail Stones)

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प्रश्न 16.
एक सैंटीमीटर वर्षा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब वर्षा बिल्कुल सपाट धरती पर पड़े और वर्षा होने के बाद न उसके वाष्प बनें, न ज़मीन ही उसे सोखे और न ही पानी बह जाए और एक सैंटीमीटर पानी की परत धरती पर हो, तब उसे एक सैंटीमीटर वर्षा कहा जाता है।

प्रश्न 17.
सम वर्षा रेखा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सम वर्षा रेखा (Isohyet)-‘Isohyet’ दो शब्दों “Iso’ और ‘hyetos’ के मेल से बना है। ‘ISO’ शब्द का अर्थ है-‘समान’ और ‘hyetos’ शब्द का अर्थ है-‘वर्षा’। इस प्रकार किसी निश्चित समय में हुई समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को सम वर्षा रेखा कहते हैं। (“Isohyetos are the lines joining the places of equal rainfall.”)

प्रश्न 18.
‘वर्षा की छाया’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पर्वतों के सामने वाली पवन-मुखी ढलान पर बहुत वर्षा होती है, परंतु पर्वतों की ओट वाली ढलान शुष्क रह जाती है। पवन-मुखी ढलान के ऊपर उठती पवनें ठंडी होकर वर्षा करती हैं, परंतु ओट वाली ढलान से नीचे उतरती पवनें गर्म होकर शुष्क हो जाती हैं और वर्षा नहीं करतीं। इसलिए पर्वतों की ओट वाली ढलान को वर्षा की छाया (Rain Shadow) कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
वाष्पीकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
वायु जब जल के संपर्क में आती है, तो जल के कुछ कणों को यह सोख लेती है। जो जल वायु सोखता है, वह जल वायुमंडल में अदृश्य रूप में वायु में मौजूद रहता है। वायुमंडल में इस अदृश्य जल को जलवाष्प (Watervapour) का नाम दिया जाता है। जल के द्रव्य अवस्था से वाष्प रूप में बदल कर वायुमंडल में विलीन हो जाने को वाष्पीकरण (Evaporation) कहा जाता है। वाष्पीकरण की मात्रा और दर चार कारकों पर निर्भर करती है-

  1. शुष्क हवा (Dry Air)-शुष्क हवा में वाष्प सोख लेने का अधिक सामर्थ्य होता है। नम हवा के कारण वाष्पीकरण की मात्रा और दर कम हो जाती है।
  2. तापमान (Temperature)–धरातल पर तापमान के बढ़ जाने से वाष्पीकरण बढ़ जाता है, जबकि ठंडे धरातल पर कम वाष्पीकरण होता है।
  3. वायु संचार (Movement of Air)-वायु की हिलजुल के कारण वाष्पीकरण की मात्रा बढ़ जाती है।
  4. जल खंड (Water Bodies)-बड़े या विशाल महासागरों पर थल भाग की अपेक्षा अधिक वाष्पीकरण होता है।

प्रश्न 2.
नमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नमी (Humidity) वायुमंडल में मौजूद नमी को जलवायु मंडलीय नमी (Atmospheric Humidity) कहा जाता है। वायुमंडल में पाई जाने वाली विभिन्न गैसों का अनुपात भू-तल के निकट स्थानों पर लगभग समान रहता है, परंतु जलवाष्प की मात्रा समय और स्थान के अनुसार बदलती रहती है। उदाहरण के तौर पर मरुस्थलीय और शुष्क प्रदेशों में इसकी मात्रा बहुत कम और उष्ण सागरों में बहुत अधिक होती है। जंगलों से ढकी वनस्पति, इनसे रहित भूमि की तुलना में वायुमंडल को अधिक नमी प्रदान करती है। जलवाष्प का आधे से अधिक भाग वायुमंडल की निचली सतहों में लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई तक होता है। वायुमंडल में नमी रखने की शक्ति वायु की गर्मी पर निर्भर करती है। अधिक गर्म वायु जलवाष्प को अधिक मात्रा में सोखने का सामर्थ्य रखती है। इस प्रकार वह कम नम होती है।

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प्रश्न 3.
संवहन वर्षा और पर्वतीय वर्षा में अंतर बताएँ।
उत्तर-
संवहन वर्षा (Convectional Rainfall) –

  1. जब संवहन धाराओं के कारण ऊपर उठती हवा से हवा ठंडी होकर वर्षा करती है, तो उसे संवहन |
  2. यह वर्षा स्थानीय गर्मी के कारण होती है।
  3. यह वर्षा तेज़ बौछार के रूप में थोड़े समय के लिए होती है।
  4. भूमध्य रेखीय खंड में हर रोज़ संवहन वर्षा होती है।

पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall)

  1. किसी पर्वत के सहारे ऊपर उठती हुई नम होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा कहते हैं। वर्षा कहते हैं।
  2. यह वर्षा समुद्र से आने वाली नम हवा से होती है।
  3. पर्वतों के सामने वाली ढलान पर अधिक वर्षा होती है और पर्वतों की ओट वाली ढलान शुष्क रहती है।
  4. भारत में मानसून पवनें पश्चिमी घाट पर पर्वतीय वर्षा करती हैं।

प्रश्न 4.
निरपेक्ष नमी और सापेक्ष नमी में क्या अंतर है ? सापेक्ष नमी और वर्षा में संबंध बताएँ। .
उत्तर-
निरपेक्ष नमी (Absolute Humidity) किसी समय किसी तापमान पर हवा में जितनी नमी मौजूद हो, उसे हवा की निरपेक्ष नमी कहते हैं। यह एक ग्राम प्रति घन सैंटीमीटर द्वारा प्रकट की जाती है। तापमान बढ़ने या कम होने पर भी हवा की वास्तविक नमी उतनी ही रहेगी, जब तक कि उसमें और अधिक जल कण शामिल न हों, या कुछ जल कण अलग न हो जाएँ। वाष्पीकरण द्वारा वास्तविक नमी बढ़ जाती है और वर्षा द्वारा कम हो जाती है। हवा के ऊपर उठकर फैलने या नीचे उतरकर सिकुड़ने से भी यह मात्रा कम या बढ़ जाती है। इस प्रकार की वायु की वास्तविक नमी कभी भी स्थिर नहीं रहती है। भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक निरपेक्ष या वास्तविक नमी होती है और ध्रुवों की ओर कम हो जाती है।

सापेक्ष नमी (Relative Humidity)-किसी तापमान पर हवा में कुल जितनी नमी समा सकती है, उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष नमी कहते हैं।
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नोट-सापेक्ष नमी को भिन्न की अपेक्षा % से प्रकट किया जाता है।
भूमध्य रेखा पर सापेक्ष नमी अधिक होती है। गर्म मरुस्थलों में सापेक्ष नमी कम होती है। महाद्वीपों के भीतरी क्षेत्रों में सापेक्ष नमी कम होती है।

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प्रश्न 5.
द्रवीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
द्रवीकरण (Condensation)-जिस क्रिया के द्वारा हवा के जल-कण पानी रूप में बदल जाएँ, उसे द्रवीकरण कहते हैं। जल-कणों के वाष्प की स्थिति से तरल स्थिति में बदलने की क्रिया को द्रवीकरण कहते हैं। (“Change of Water-Vapours in to water is called Condensation”.) वायु का तापमान कम होने से, उस वायु की वाष्प ज़ब्त करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान उस अंक से नीचे इतना कम हो जाता है कि वायु जल-कणों को संभाल नहीं सकती और जल-कण द्रव बनकर वर्षा के रूप में गिरते हैं। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं-

  1. जब हवा लगातार ऊपर उठकर ठंडी हो जाए।
  2. जब नमी से भरी हवा किसी पर्वत के सहारे ऊँची उठकर ठंडी हो जाए।
  3. जब गर्म और ठंडी वायु-राशियाँ आपस में मिलती हों।

प्रश्न 6.
कोहरा और धुंध में अतंर बताएँ।
उत्तर-
कोहरा (Fog)-वायु में अनेक प्रकार के जल-कण, मिट्टी और रेत के कण तैरते रहते हैं। कोहरा एक प्रकार का बादल है, जो धरातल के निकट हवा में धूल के कणों पर लटके हुए जल की बूंदों से बनता है। (Fog is Condensed vapours hanging in the air.”) ठंडे धरातल या ठंडी हवा के संपर्क में आकर नमी से भरी हुई हवा जल्दी ठंडी हो जाती है। हवा में उड़ते रहने वाले धूल-कणों और जल-कणों का कुछ भाग जल की बूंदों के रूप में जमा हो जाता है, जिससे वातावरण धुंधला हो जाता है और दो सौ मीटर से अधिक दूर की वस्तु दिखाई नहीं देती और हवाई जहाज़ों की उड़ानें बंद करनी पड़ती हैं। ऐसा आम तौर पर साफ और शांत मौसम में सर्दी ऋतु की लंबी रातों के कारण होता है, जबकि धरातल पूरी तरह ठंडा हो जाता है। इसे धरती का कोहरा (Ground Fog) भी कहते हैं। नदियों, झीलों और समुद्रों के निकट के प्रदेशों में भी कोहरा मिलता है। औद्योगिक नगरों में धुएँ के साथ उड़ी हुई राख पर जल-बिंदु टिकने से कोहरा छाया रहता है। ऐसी धुएँ से मिली हुई धुंध को Smog कहते हैं। न्यू फांउडलैंड (New Found Land) के किनारे पर खाड़ी की गर्म धारा और लैबरेडोर की ठंडी धारा मिलने के कारण भी कोहरा छाया रहता है।

धुंध (Mist)-हल्के कोहरे को धुंध कहते हैं। (“A thin fog is called a mist.”) कोहरे और धुंध मे कोई बहुत अधिक अंतर नहीं होता क्योंकि दोनों एक जैसी स्थितियों में बनते हैं। कोहरे की अपेक्षा धुंध में घनापन कम होता है और 2 किलोमीटर की दूरी तक की वस्तुएँ दिखाई दे जाती हैं। कोहरे में शुष्कता अधिक होती है, परंतु धुंध में नमी अधिक होती है, पानी की बूंद बड़े आकार की होती हैं। सर्दी की ऋतु में शीतोष्ण कटिबंध में धुंध एक आम बात है। सूर्य निकलने या तेज़ हवाओं के कारण धुंध जल्दी ही समाप्त हो जाती है।

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प्रश्न 7.
ओलों की रचना कैसे होती है ?
उत्तर-
ओले (Hail Stones) जब द्रवीकरण की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है, तो जल वाष्प हिम-कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में ये हिम-कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं। नीचे से ऊपर जाने वाली संवहन धाराएँ जल-कणों को बार-बार हिम-कणों के संपर्क में ले आती हैं और उनका आकार बड़ा हो जाता है। धाराओं के वेग के कम होने पर ये नीचे गिरने लगते हैं। जब ओले गिरते हैं, तो बिजली चमकती है, गर्जना होती है और तेज़ हवा चलती है।

प्रश्न 8.
वर्षा किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
हवा की नमी ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का प्रमुख कारण है-संतृप्त हवा का ठंडा होना। (“Rainfall is caused due to the cooling of Saturated air.”) वर्षा होने की क्रिया कई चरणों (Stages) में होती है-

1. द्रवीकरण (Condensation) होना-नम हवा के ऊपर उठने से उसका तापमान प्रति 1000 फुट पर 50°C कम हो जाता है। तापमान के लगातार कम होने से हवा की वाष्प शक्ति कम हो जाती है। हवा संतृप्त हो जाती है और द्रवीकरण क्रिया (Condensation) होती है।

2. बादलों का बनना (Formation of Clouds) हवा में लाखों धूल-कण तैरते रहते हैं। जल वाष्प इन कणों पर जमा हो जाते हैं। ये बादलों का रूप धारण कर लेते हैं।

3. जल-कणों का बनना (Formation of Rain Drops)-छोटे-छोटे बादल-कणों के आपस में मिलने से पानी की बूंदें (Rain drops) बनती हैं। जब इन जल कणों का आकार और भार बढ़ जाता है, तो हवा इन्हें संभाल नहीं सकती। ये जल-कण धरती पर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

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प्रश्न 9.
ओस और ओस बिंदु में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ओस (Dew)-

  1. धरातल और वनस्पति पर जमा पानी की छोटी छोटी बूंदों को ओस कहते हैं।
  2. ओस बनने के लिए लंबी रातें, साफ आकाश और शांत वायुमंडल की ज़रूरत होती है।
  3. धरातलीय विकिरण के कारण हवा ठंडी और संतृप्त हो जाती है तथा जल वाष्प बूंदों में बदल जाते हैं।
  4. ओस बनने के लिए तापमान 0°C से अधिक होता है।

ओस बिंदु (Dew Point)

  1. जिस तापमान पर संघनन की क्रिया शुरू होती है, उसे ओस बिंदु कहते हैं।
  2. तापमान कम होने से हवा ओस बिंदु पर पहुँच जाती है।
  3. जब संतृप्त हवा जल वाष्प जब्त नहीं कर सकती, तो उस तापमान को ओस बिंदु कहते हैं।
  4. ओस बिंदु पर सापेक्ष नमी 100% होती है।

प्रश्न 10.
वर्षा और वर्षण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
वर्षा (Rainfall)-

  1. जल-कणों का धरती पर गिरना वर्षा कहलाता है।
  2. वर्षा मुख्य रूप में संवाहक, पर्वतीय और चक्रवाती होती है।
  3. जब जल-कणों का आकार बड़ा हो जाता है, तो वे धरती पर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

वर्षण (Precipitation)-

  1. वायुमंडल से नीचे बरसने वाली कुल जल-राशि को वर्षण कहते हैं।
  2. वर्षण मुख्य रूप में तरल और ठोस रूप में होता है।
  3. संघनन के बाद वर्षा, बर्फबारी और ओले वर्षण के प्रमुख प्रकार हैं।

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प्रश्न 11.
कोहरे और धुंध में अंतर बताएँ।
उत्तर-
कोहरा (Fog)

  1. कोहरा एक प्रकार का घना बादल होता है, जो धरातल के निकट हवा में धूल के कणों पर लटके हुए जल की बूंदों से बनता है।
  2. कोहरा घना होता है और इसमें 200 मीटर से अधिक दूर की वस्तुएँ दिखाई नहीं देतीं।
  3. कोहरा शुष्क होता है।
  4. सर्दी ऋतु की लंबी रातों के कारण धरती पर कोहरा बनता है।

धुंध (Mist)

  1. हल्के कोहरे को धुंध कहते हैं। इसमें भी जल-वाष्प के लटके हुए कण होते हैं।
  2. धुंध में घनापन कम होता है और 2 किलोमीटर दूर तक की वस्तुएँ दिखाई देती हैं।
  3. धुंध में नमी अधिक होती है।
  4. सर्दी की ऋतु में शीतोष्ण कटिबंध में धुंध एक साधारण बात है।

प्रश्न 12.
संवहन वर्षा और पर्वतीय वर्षा में अंतर बताएँ।
उत्तर –
संवहन (Convectional Rainfall)

  1. जब संवहन धाराओं के कारण ऊपर उठती हुई हवा ठंडी होकर वर्षा करती है, तो उसे संवहन वर्षा कहते हैं।
  2. यह वर्षा स्थानीय गर्मी के कारण होती है।
  3. यह वर्षा तेज़ बौछार के रूप में थोड़े समय के लिए होती है।
  4. भूमध्य रेखीय खंड में हर रोज़ संवहन वर्षा होती है।

पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall)

  1. किसी पर्वत के सहारे ऊपर उठती हई नम हवा से होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा कहते हैं।
  2. यह वर्षा समुद्र से आने वाली नम हवा से होती है।
  3. पर्वतों के सामने की ढलान पर अधिक वर्षा होती है परंतु पर्वतों की ओट वाली ढलान शुष्क रहती है।
  4. भारत में मानसून पवनें पश्चिमी घाट पर पर्वतीय वर्षा करती हैं।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
किसी स्थान की वर्षा किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
किसी स्थान की वर्षा नीचे लिखी बातों पर निर्भर करती है-
1. भूमध्य रेखा से दूरी (Lattitude)-वर्षा का सीधा संबंध तापमान से होता है। (“Rain follows the sun”) अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक नमी और अधिक वर्षा होती है। भूमध्य रेखा पर पूरा वर्ष अधिक गर्मी के कारण औसत वार्षिक वर्षा 200 सें०मी० से अधिक होती है, परंतु भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।

2. समुद्र से दूरी (Distance from the sea)-तट के निकट के स्थानों पर भीतरी स्थानों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। देश के भीतरी भागों तक पहुँचते-पहुँचते पवनों की नमी सूख जाती है।

3. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-समुद्र से आने वाली पवनें जल-कणों से भरी होती हैं और अधिक वर्षा करती हैं, परंतु थल से आने वाली पवनें शुष्क होती हैं।

4. पवनों की दिशा (Direction of the Winds)-जिस तरफ से पवनें चलती हैं, उसके निकट के क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, परंतु दूर के प्रदेशों तक पहुँचने पर हवा की नमी समाप्त हो जाती है और वर्षा नहीं होती।

5. पर्वतों की दिशा (Direction of the Mountains)—पर्वतों की स्थिति और दिशा भी वर्षा पर प्रभाव डालते हैं। यदि कोई पर्वत पवनों की लंबवत् दिशा में स्थित हो, तो वह पवनों को रोक लेता है। अरावली पर्वत के मानसून पवनों के समानांतर होने के कारण राजस्थान में वर्षा नहीं होती।

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प्रश्न 2.
वर्षण से क्या अभिप्राय है ? इसकी किस्में लिखें।
उत्तर-
वर्षण (Precipitation)—जब वायु का तापमान ओस बिंदु से नीचे गिरता है, तो उसमें संघनन क्रिया द्वारा जलवाष्प जल में परिवर्तित हो जाते हैं। जब यह जल किसी-न-किसी रूप में भू-तल पर गिरता है, तो उसे वर्षण कहते हैं। वर्षण तीन रूपों में धरती पर गिरता है। इसके तीन रूप हैं-हिमपात या बर्फ गिरना, ओले और वर्षा ।

1. हिमपात या बर्फ गिरना (Snowfall)—वायु में संघनन होते समय जब इसका तापमान हिम अंक से कम हो जाता है, तो जलवाष्प जल-कणों में नहीं बदलते, बल्कि हिमकणों में बदल जाते हैं। दूसरे शब्दों में, ओस अंक के हिम अंक से नीचे हो जाने पर जलवाष्प ठोस हिमकणों का रूप धारण कर लेते हैं। आरंभ में, हिमकण सूक्ष्म होते हैं, परंतु आपस में मिलकर बड़े आकार के हो जाते है और रूई की तरह भूतल पर गिरते हैं। इन्हें बर्फ के फाहे (Snow flakes) कहते हैं। ध्रुवीय और उच्च अक्षांशों के प्रदेशों और उच्च पर्वतों पर बहुत अधिक सर्दी के कारण भारी हिमपात होता है।

2. ओले (Hail Stones)-संघनन द्वारा जलवाष्प से बनी जल की बूंदें भूतल पर आ रही होती हैं, तो कभी कभी इनके मार्ग में ऐसी वायु-सतह आ जाती है जिसका तापमान हिम अंक से नीचे होता है। इस वायु-सतह को पार करते समय जल की बूंदें ठोस हिम का रूप धारण कर लेती हैं और भूतल पर गिरती हैं। इन्हें ओले कहते हैं। कभी-कभी जलवाष्प से बनी जल की बूंदों को तेजी से ऊपर उठने वाली संवहन धाराएँ इतनी ऊँचाई पर ले जाती हैं, जहाँ तापमान हिम अंक से कम होता है। फलस्वरूप ये बूंदें जमकर ठोस रूप धारण लेती हैं और अपने भार के करण भूतल पर ओलों के रूप में गिरती हैं।

3. वर्षा (Rainfall) वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प घने होकर जब बूंदों का रूप धारण करके भू-तल पर गिरते हैं, तो उसे वर्षा कहते हैं। वायु का तापमान जब ओस से नीचे हो जाता है, तो उसके जलवाष्प सूक्ष्म जलकणों में परिवर्तित होकर बादलों का रूप धारण कर लेते हैं। बादलों में जलकण अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, जिनका व्यास एक मिलीमीटर के 100वें भाग के बराबर होता है। ये सूक्ष्म जल-कण आसानी से लटके रहते हैं और भूतल पर गिरने में असमर्थ होते हैं।

यदि वे किसी प्रकार नीचे गिर भी जाते हैं, तो भूतल तक पहुँचने से पहले ही इनका वाष्पीकरण हो जाता है। इन जलकणों का आकार तब बढ़ता है, जब जलवाष्प अधिक मात्रा में जल का रूप धारण करें, भाव उसका तापमान ओस अंक से अधिक नीचे हो जाए। जब जलकणों का आकार एक मिलीमीटर के पाँचवें भाग के बराबर होता है, तो वे वर्षा की बंदों के रूप में भू-तल पर आ गिरते हैं।

गतका (Gattka) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions गतका (Gattka) Game Rules.

गतका (Gattka) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. गतके के प्लेटफार्म का आकार = गोल
  2. प्लेटफार्म का व्यास = 30”- 34″
  3. गतके छड़ की लम्बाई = 39 इंच
  4. छड़ी का भार = 500 ग्राम (लगभग)
  5. छड़ी बनी है = बैंत की
  6. छड़ी की मोटाई = लगभग % इंच
  7. बाउट का समय = 5 मिनट
  8. खिलाड़ियों की पोशाक = जर्सी या कमीज़, सिर पर पटका आवश्यक
  9. अधिकारी = 4 सदस्यों की रैफरी काउंसिल (1 मैदान के भीतर 3 बाहर साईड रैफरी) 2 स्कोरर, 1 टाइम कीपर
  10. फ्री का आकार = 9 इंच व्यास (लगभग)
  11. प्रतियोगिता का समय = 3 मिन्ट (1.5 मिन्ट + 1.5 मिनट)(अन्तराल 30 सैकंड)
  12. गतके के मैदान का परिमाप (घेरा) = भीतरी परिमाप (घेरा) 30 फुट व्यास, बाहरी परिमाप (घेरा) 34 फुट व्यास

शस्त्रों (हथियारों) की सूची

  1. तलवार
  2. ढाल
  3. वर्षा
  4. गंडासी
  5. कमंद तोड़
  6. छड़ी
  7. कटार
  8. गदा
  9. खण्डा
  10. तेग।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

गतका खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Gattka)

  1. गतके की खेल में सात खिलाड़ी होते हैं जिनमें पांच प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। दो खिलाड़ी बदलने होते हैं।
  2. गतके का प्लेटफार्म गोल और यह 71 मीटर रेडियम का होता है।
  3. गतके की लम्बाई हत्थी से तीन फुट (3′) की होती है जो बैंत की बनी होती है।
  4. गतके की बाऊट का समय पांच मिनट होता है।
  5. गतके की खेल में तीन जज, एक रैफरी और एक टाईम कीपर होता है।

PSEB 11th Class Physical Education Guide गतका (Gattka) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गतके की प्रतियोगिता में कौन-कौन से आय वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
अंडर 17 वर्ष, अंडर 19 वर्ष, अंडर 22 वर्ष, अंडर 25 वर्ष।

प्रश्न 2.
गतके की प्रतियोगिता में सिंगल लाठी टीम इवेंट में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
गतके की प्रतियोगिता में सिंगल लाठी टीम इवेंट में खिलाड़ियों की गिनती 3 + 1 = 4.

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
गतके की प्रतियोगिता में ग्राउंड को कितने भागों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
तीन भागों में खेल क्षेत्र, बाहर का क्षेत्र और आरक्षित क्षेत्र।

प्रश्न 4.
गतके की प्रतियोगिता में बाहरी क्षेत्र क्या होता है ?
उत्तर-
गतके के खेल क्षेत्र से बाहर वाले भाग को खेल का बाहरी क्षेत्र कहते हैं।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
गतके की प्रतियोगिता के लिये साधारण नियम कौन से हैं ?
उत्तर-

  1. सभी प्रतियोगिता के लिए ड्रा निकालने से पहले बाऊट के लिए खिलाड़ियों के नाम A, B, C, D, E लिए जाते हैं।
  2. गतके की प्रतियोगिता में A नाम वाला खिलाड़ी विरोधी की टीम के A वाले खिलाड़ी से बाऊट में भाग लेना।
  3. उन मुकाबलों में जिनमें चार से अधिक प्रतियोगी हों पहली सीरीज़ के लिए बाई निकाली जाती है ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम हो जाए।
  4. पहली सीरीज़ में जिन खिलाड़ियों को बाई मिलती है वह दूसरी सीरीज़ में पहले गतका खेलेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषम हो तो अंतिम बाई प्राप्त करने वाला खिलाड़ी दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता से बाऊट में भाग लेगा।
  5. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई और दूसरी सीरीज़ में Walk Over नहीं ले सकता न ही किसी को लगातार दो वाक ओवर मिलते हैं।

प्रश्न 6.
गतके के खेल को सिक्खों के किस गुरु का आशीर्वाद प्राप्त है?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और गुरु गोबिंद सिंह जी का।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB गतका (Gattka) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
गतका के प्लेटफार्म, पोशाक और समय के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्लेटफार्म-गतके का प्लेटफार्म गोल दायरा होता है जो 15 मीटर का होता है। पोशाक-प्रतियोगी जर्सी अथवा कमीज़ पहन सकता है परन्तु सिर पर पटका होना आवश्यक है।
गतके का साइज़-गतका बैत का होता है जिसकी हत्थी होती है और उस से लगी तीन फुट की बैत की छड़ लगी होती है।
समय-प्रत्येक बाऊट का समय पांच मिनट होता है।

प्रश्न 2.
गतका में ड्रा, बाई और वाक ओवर के बारे में बताइए।
उत्तर-
डा, बाई और वाक ओवर
Draw, Byes and Walkover

  1. सभी प्रतियोगिता के लिए ड्रा निकालने से पहले बाऊट के लिए खिलाड़ियों के नाम A, B, C, D, E लिये जाते
  2. गतके की प्रतियोगिता के A नाम वाला खिलाड़ी विरोधी की टीम के A वाले खिलाड़ी से बाऊट में भाग लेगा।
  3. उन मुकाबलों में जिनमें चार से अधिक प्रतियोगी हों। पहली सीरीज़ के लिए बाई निकाली जाती है ताकि दूसरी सीरीज़ से प्रतियोगियों की संख्या कम हो जाए।
  4. पहली सीरीज़ में जिन खिलाडियों को बाई मिलती है वह दूसरी सीरीज़ के पहले गतका खेलेंगे यदि बाइयों की संख्या विषम हो तो अन्तिम बाई प्राप्त करने वाला खिलाड़ी दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के जेतू के बाऊट में भाग लेगा।
    गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
  5. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाईं और दूसरी सीरीज़ में walkover नहीं ले सकता न ही किसी को लगातार दो वाक ओवर मिलते हैं।
    गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
गतका खेल में 20 प्रतियोगियों की बाऊट निकालने की सारणी बनाओ।
उत्तर-
सारणी-बाऊट की बाइयां निकालना

प्रविष्टियों की संख्या बाऊट बाई
5. 1 3
6. 2 2
7. 3 1
8. 4
9. 1 7
10. 2 6
11. 3 5
12. 4 4
13. 5 3
14. 6 2
15. 7 1
16. 8
17. 1 15
18. 2 14
19. 3 13
20. 4 12

 

प्रश्न 4.
गतका खेल की प्रतियोगिता कैसे करवाई जाती है ?
उत्तर-
गतके की प्रतियोगिता
(Competition of Gattka)
प्रतियोगिताओं की सीमा-किसी भी प्रतियोगिता में पांच प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है।
नया ड्रा (Fresh Draw)—यदि किसी एक ही स्कूल/कॉलेज/अथवा क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा निकाला जाएगा।

वापसी (Withdraw)-ड्रा निकालने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो अधिकारी प्रबन्धकों को इसकी सूचना देगा।

रिटायर होना (Retirement)—यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण मुकाबले से रिटायर होना चाहता है तो उसे अधिकारी को सूचित करना होगा।

बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे अधिकारी सहमत हो।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
गतका प्रतियोगिता में बाऊट को कौन नियन्त्रण करता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफरी, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा करवाए जाते हैं। जब तीन से कम जज हों तो रैफरी स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफरी द्वारा कण्ट्रोल किया जाएगा।
  2. रैफरी एक स्कोर पैड या जानकारी स्लिप का प्रयोग खिलाड़ियों के नाम के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब कि बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफरी इस पर रिपोर्ट करके अधिकारी को देगा।
  3. टाइम कीपर प्लेटफार्म के एक ओर बैठेगा तथा जज तीन ओर बैठेंगे।

सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे खिलाड़ियों को संतोषजनक ढंग से देख सके। ये दर्शकों से अलग होंगे।

प्वाईंट देना
(Awarding of Points)

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देंगे।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे।

स्कोरिंग
(Scoring)

  1. जो गतके का खिलाड़ी अपने विरोधी को सबसे अधिक बार गतके से छूएगा उसे उतने ही अंक मिलेंगे। सिर पर छू लेने के 2 अंक बाकी एक अंक मिलेगा।
  2. यदि बाऊट में दोनों खिलाड़ियों के मिले अंक बराबर हों तो सिर को जिस खिलाड़ी ने अधिक बार छूआ हो उसे विजेता घोषित किया जाएगा। यदि जज यह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर है तो वह अपना निर्णय उस खिलाड़ी के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

बाऊट रोकना
(Stopping the Bout)

  1. यदि रैफरी के मतानुसार एक खिलाड़ी को चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
  2. रैफरी को बाऊट रोकने का अधिकार है।
  3. यदि कोई प्रतियोगी समय पर बाऊट को शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

शक्ति फाऊल
(Suspected Foul)
यदि रैफरी को फाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है ।

गतका (Gattka) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
गतका खेल में त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां
(Fouls)

  1. कोहनी को मारना
  2. गर्दन या सिर के नीचे जान-बूझ कर चोट लगाना।
  3. गिरे हुए प्रतियोगी को मारना।
  4. पकड़ना।
  5. सिर या शरीर के भार लेटना।
  6. रफिंग।
  7. कन्धे मारना।
  8. कुश्ती करना।
  9. निरन्तर सिर ढक कर रखना।
  10. कानों पर दोहरी चोट मारना।

PSEB 6th Class Agriculture Objective Questions and Answers

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Agriculture Objective Questions and Answers.

PSEB 6th Class Agriculture Objective Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

पंजाब में कृषि-एक झलक

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में कितने क्षेत्रफल में कृषि होती है ?
(i) 40 लाख हैक्टेयर
(ii) 14.34 लाख हैक्टेयर
(iii) 100 लाख हैक्टेयर
(iv)64.43 लाख हैक्टेयर।
उत्तर-
(i) 40 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
सफेद क्रांति का संबंध किससे है ?
(i) मछली पालन
(ii) फसलों से
(iii) दूध पैदावार
(iv)धान से।
उत्तर-
(iii) दूध पैदावार।

रिक्त स्थान भरें-

  1. पंजाब में …………. प्रतिशत क्षेत्र सिंचाई के अधीन है।
  2. पंजाब दूध की पैदावार में …… स्थान पर है।
  3. …………… सहकारी संस्था गांव में से दूध ले लेती है।

उत्तर-

  1. 98
  2. चौथे
  3. मिल्कफेड।

गलत/ठीक –

  1. 1980 में कृषि वृद्धि दर 4.6% थी।
  2. पराली को आग लगाने से मिट्टी के उपजाऊ तत्त्व भी जल जाते हैं।
  3. पंजाब में 50% से अधिक क्षेत्रफल में पानी का स्तर 20 मीटर से गहरा हो गया है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)।

भूमि

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डाकर भूमि को ……… भूमि भी कहा जाता है।
(i) भारी
(ii) हल्की
(iii) काली
(iv) रेतली।
उत्तर-
(i) भारी।

प्रश्न 2.
रेतली भूमि कौन-से इलाके में मिलती है।
(i) राजस्थान
(ii) ओडिशा
(iii) आसाम
(iv) बिहार।
उत्तर-
(i) राजस्थान।

प्रश्न 3.
दक्षिण पश्चिमी पंजाब में कैसी मिट्टी मिलती है ?
(i) रेतली
(ii) चिकनी
(iii) मैरा से चिकनी
(iv) मैरा।
उत्तर-
(i) रेतली।

रिक्त स्थान भरें –

  1. भूमि बनने में कई कारक सहायता करते हैं जैसे ……….।
  2. लाल मिट्टी में ………. की मात्रा अधिक होती है।
  3. उत्तर पूर्वी इलाके में ………… से भूमिक्षरण की समस्या बहुत अधिक है।
  4. दक्षिण-पश्चिमी पंजाब में मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा ……….. की कमी ___ होती है।

उत्तर-

  1. चट्टानें तथा जलवायु
  2. आयरन ऑक्साइड
  3. पानी
  4. पोटाशियम।

गलत/ठीक –

  1. रेतली भूमि में पानी रोकने की क्षमता सब से कम होती है।
  2. कपास के लिए काली मिट्टी अच्छी रहती है।
  3. मैरा भूमि में जैविक मादा अधिक होता है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)।

फ़सलों का विभाजन

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्म जलवायु की फसल है।
(i) कमाद
(ii) कपास
(iii) धान
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
तेल बीज फसलें हैं।
(i) अलसी
(ii) गेहूँ
(ii) अदरक
(iv) चने।
उत्तर-
(i) अलसी।

प्रश्न 3.
सावनी की फसलें हैं।
(i) कपास
(i) बाजरा
(iii) मूंगी
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

प्रश्न 4.
करुसीफरी फैमिली की फसलें हैं।
(i) सरसों
(ii) तोरिया
(ii) मूली
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

रिक्त स्थान भरें –

  1. भिंडी ……….. फैमिली की फसल है।
  2. मक्की ………….. फैमिली की फसल है।
  3. गन्ना …………. वर्षीय फसल है।
  4. गन्ना तथा ……… चीनी वाली फसलें हैं।
  5. राजस्थान में होने वाली फसलें ……… होती हैं।

उत्तर-

  1. मालवेसी
  2. घास
  3. बहु
  4. चुकंदर
  5. बरानी।

गलत/ठीक –

  1. हल्दी मसाले वाली फसल है।
  2. सट्ठी मूंगी संकटकाल की फसल है।
  3. गेहूँ गर्म जलवायु की फसल है।
  4. बरसीम चारे वाली फसल है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✓)।

बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पौधों में लगभग कितने प्रतिशत पानी होता है –
(i) 60%
(ii) 90%
(iii) 50%
(iv) 80%।
उत्तर-
(ii) 90%।

प्रश्न 2.
घरेलू आवश्यकताओं के लिए कितने प्रतिशत पानी प्रयोग होता है –
(i) 50%
(ii) 20%
(iii) 8%
(iv) 15%।
उत्तर-
(iii) 8%।

प्रश्न 3.
पानी निकालने के लिए प्रयोग में आते हैं –
(i) पशु
(ii) मछली मोटर
(iii) पंखे वाले पम्प
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

रिक्त स्थान भरें –

  1. सबमर्सीबल पम्प को ……… पम्प भी कहते हैं।
  2. हल्की मिट्टी में ………. सिंचाई की आवश्यकता है।
  3. ………….. के समय मिट्टी में उचित नमी होनी चाहिए।
  4. खड़े पानी में खेत की जुताई करने को …………. कहते हैं।

उत्तर-

  1. मछली
  2. अधिक
  3. बुआई
  4. कद्दू करना।

गलत/ठीक –

  1. खड़े पानी में खेत की जुताई को कद्दू करना कहते हैं।
  2. पानी फसल को लू से बचाता है।
  3. 1980 में ट्यूबवेलों की संख्या 6 लाख से अधिक थी।
  4. बनावटी ढंग से फसलों को पानी देने को सिंचाई कहते हैं।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✓)।

खादें

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों को कितने पोषक तत्त्वों की आवश्यकता है –
(i) 10
(ii) 17
(iii) 20
(iv) 25
उत्तर-
(ii) 17

प्रश्न 2.
हरी खाद के लिए प्रयोग होने वाली फसल है –
(i) चा
(ii) गेहूँ
(iii) धान
(iv) कोई नहीं।
उत्तर-
(i) लैंचा।

प्रश्न 3.
फॉस्फोरस तत्त्व वाली खाद है –
(i) यूरिया
(ii) म्यूरेट ऑफ पोटाश
(iii) जिंक कार्बोनेट
(iv) कोई नहीं।
उत्तर-
(iv) कोई नहीं।

प्रश्न 4.
यूरिया में कितने प्रतिशत नाइट्रोजन होती है –
(i) 50%
(ii) 46%
(iii) 70%
(iv) 16%
उत्तर-
(ii) 46%

रिक्त स्थान भरें-

  1. म्यूरेट ऑफ पोटाश में पोटाश तत्त्व ………. प्रतिशत होता है।
  2. नाइट्रोजन खाद की अधिक मात्रा में प्रयोग से भूमि में …………. पन बढ़ जाता है
  3. फॉस्फोरस खादें ………………….. नाम के खनिज पदार्थों से बने हैं।
  4. डी.ए.पी. में ………….. तत्त्व होता है।

उत्तर-

  1. 60%
  2. खारा
  3. एक फास्फेट
  4. फॉस्फोरस।

गलत/ठीक

  1. खादें 10 प्रकार की होती हैं।
  2. हवा में 78% नाइट्रोजन गैस के रूप में है।
  3. म्यूरेट ऑफ पोटाश में 60% पोटाश तत्त्व होता है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✓)

कृषि के लिए मशीनरी तथा यन्त्र

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
ट्रैक्टर की हार्स पावर ……. होती है।
(i) 2
(ii) 5-90
(iii) 1000
(iv) कोई नहीं।
उत्तर-
(i) 5-901

प्रश्न 2.
पंजाब में कितने ट्रैक्टर हैं –
(i) 2 लाख
(ii) 10 लाख
(iii) 4.76 लाख
(iv) 7.46 लाख।
उत्तर-
(iii) 4.76 लाख।

प्रश्न 3.
पंजाब में ……. ट्यूबवेल बिजली से चलते हैं
(i) 11.5 लाख
(ii) 15 लाख
(iii) 17.9 लाख
(iv) 13.17 लाख।
उत्तर-
(i) 11.5 लाख।

प्रश्न 4.
जंदरा …………… काम आता है –
(i) जुताई में
(ii) मेढ़ बनाने में
(iii) समतल करने में
(iv) बुआई में।
उत्तर-
(ii) मेढ़ बनाने में।

रिक्त स्थान भरें –

  1. सुहागा भूमि को ………… तथा ………….. करने के काम आता है।
  2. कल्टीवेटर का प्रयोग तवियों के बाद ……… जुताई के लिए किया जाता है।
  3. ट्रांसप्लांटर द्वारा ………. की बुआई होती है।
  4. खुरपी से ………… की जाती है।
  5. रीपर का प्रयोग ………. के लिए होता है।

उत्तर-

  1. समतल/भुरभुरा
  2. दूसरी
  3. धान
  4. गुड़ाई
  5. कटाई।

गलत/ठीक –

  1. ट्रांसप्लांटर का प्रयोग धान की बुआई के लिए होता है।
  2. जंदरे का प्रयोग खेत में मेढ़ें बनाने के लिए होता है।
  3. डीज़ल ईंजन ट्रैक्टर से बड़ी मशीन होती है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)।

पंजाब के मुख्य फल

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अमरूद की किस्म नहीं है –
(i) सरदार
(ii) कलकत्तिया
(iii) इलाहाबाद सफैदा
(iv) पंजाब पिंक।
उत्तर-
(ii) कलकत्तिया।

प्रश्न 2.
फलों का राजा है
(i) अमरूद
(ii) आँवला
(iii) आम
(iv) बेर।
उत्तर-
(iii) आम।

प्रश्न 3.
टमाटर की तुलना में अमरूद में विटामिन-सी कितना अधिक है –
(i) 5 गुणा
(ii) 20 गुणा
(iii) 10 गुणा
(iv) 2 गुणा।
उत्तर-
(iii) 10 गुणा।

प्रश्न 4.
लीची की किस्म है
(i) प्रभात
(ii) सनौर-2
(iii) देहरादून
(iv) बग्गुगोशा।
उत्तर-
(ii) देहरादून।

प्रश्न 5.
बेर की किस्में हैं’
(i) उमरान
(ii) विलायती
(iii) सनौर-2
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

रिक्त स्थान भरें –

  1. गरेपफ्रूट …………. जाति का फल है।
  2. पंजाब का, आम की पैदावार में ………. स्थान है।
  3. ………. औरतों के स्तन कैंसर के लिए लाभदायक है।
  4.  ……….. रक्त साफ करता है।
  5. ………… ठण्डे इलाके का फल है।
  6.  पंजाब पिंक …………. की किस्म है।

उत्तर-

  1. नींबू
  2. तीसरा
  3. लीची
  4. बेर
  5. आड़
  6. अमरूद।

गलत/ठीक –

  1. उमरान आम की किस्म है।
  2. आम की कृषि में पंजाब तीसरे स्थान पर है।
  3. केले में पोटाशियम अधिक होता है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✓)।

पंजाब की मुख्य सब्जियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भिण्डी की किस्म है
(i) पंजाब-7
(ii) पंजाब-छुहारा
(iii) पूसा स्नोवाल-1
(iv) पंजाब-88।
उत्तर-
(i) पंजाब-7

प्रश्न 2.
प्याज की किस्म है
(i) पंजाब व्हाइट
(ii) पंजाब नरोया
(iii) पी.आर.ओ-6
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
बैंगन की वर्ष में कितनी फसलें ली जा सकती हैं –
(i) 2
(ii) 3
(iii) 10
(iv) 4.
उत्तर-
(iv) 4.

प्रश्न 4.
पत्तेदार सब्जी नहीं हैं –
(i) शलगम
(ii) धनिया
(iii) मेथी
(iv) पालक।
उत्तर-
(i) शलगम।

प्रश्न 5.
कदू जाति की सब्जी नहीं है –
(i) करेला
(i) टमाटर
(iii) खरबूजा
(iv) खीरा
उत्तर-
(ii) टमाटर।

रिक्त स्थान भरें –

  1. कुफरी पुखराज ……… की किस्म है।
  2. पालक ………. ऋतु की सब्जी है।
  3. पंजाब नगीना ………….. की किस्म है।
  4. मटर के बीज को ……………… का टीका लगाया जाता है।
  5. गोभी की फसल ………. दिनों में तैयार हो जाती है।

उत्तर-

  1. आलू
  2. सर्द
  3. बैंगन
  4. राइज़ोबीयम
  5. 90-100।

गलत/ठीक –

  1. पी.सी. 34 गाजर की किस्म है।
  2. मिर्च के लिए 200 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  3. पंजाब छुहारा टमाटर की किस्म है।
  4. पंजाब सदाबहार आलू की किस्म है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✗)।

मुख्य फूल और

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधे हवा में से …… गैस खींचते हैं।
(i) ऑक्सीजन
(ii) नाइट्रोजन
(iii) कार्बन डाइआक्साइड
(iv) कोई नहीं।
उत्तर-
(iii) कार्बन डाइआक्साइड।

प्रश्न 2.
सर्द ऋतु का फूल है –
(i) फ्लाक्स
(ii) वरबीना
(iii) गेंदा
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
कुक्कड़ कलगा को ………. माह में लगाया जाता है –
(i) मार्च
(ii) जुलाई
(iii) दिसम्बर
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(ii) जुलाई।

प्रश्न 4.
छिपकली लता ………… की सहायता से दीवार पर चढ़ती है –
(i) काँटे
(ii) रिस रहे पदार्थ
(iii) टैंडरिल
(iv) कोई नहीं।
उत्तर-
(ii) रिस रहे पदार्थ।

प्रश्न 5.
सजावट के लिए गमलों में लगाए जाने वाले पौधे हैं –
(i) मनी प्लांट
(ii) रबड़ प्लांट
(iii) पालक
(iv) सभी।
उत्तर-
(iv) सभी।

रिक्त स्थान भरें –

  1. गमफरीना …………. ऋतु का फूल है।
  2. …………. को पतझड़ की रानी कहा जाता है।
  3. हिवसकस के फूल का रंग …….. है।
  4. गोल्डन शावर को दीवार पर चढ़ने में ………. सहायक हैं।
  5. ……….. झुकी शाखाओं वाला वृक्ष है।

उत्तर-

  1. गर्मी
  2. गुलदौदी
  3. लाल
  4. टैंडरिल
  5. बोतल ब्रश।

गलत/ठीक –

  1. फलाक्स की पनीरी अक्तूबर-नवम्बर में तैयार की जाती है।
  2. रजनीगंधा फूलों का तेल निकाला जाता है।
  3. बोतल ब्रश के फूल लाल रंग के होते हैं।
  4. गुलाब से गुलकंद बनता है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✓)।

कृषि सहायक व्यवसाय

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्मी ऋतु की खुम्ब है –
(i) बटन
(ii) मिल्की खुम्ब
(iii) औइस्टर
(iv) शिटाकी।
उत्तर-
(i) मिल्की खुम्ब।

प्रश्न 2.
मधु-मक्खी पालन से शहद के इलावा मिलता है –
(i) बी-वैनम
(ii) रॉयल-जैली
(iii) वी-वैक्स
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
दोगली किस्म की गाय है
(i) होलसटीन फ्रीजीयन
(ii) जर्सी
(iii) दोनों ठीक
(iv) दोनों गलत।
उत्तर-
(iii) दोनों ठीक।

प्रश्न 4.
फलों तथा सब्जियों से क्या बनाया जाता है –
(i) अचार
(ii) मुरब्बे
(iii) सक्वै श
(iv) सभी ठीक।
उत्तर-
(iv) सभी ठीका

रिक्त स्थान भरें-

  1. पंजाब में ……… बटन खुम्बों की कृषि की जाती है।
  2. ………. मक्खी की किस्म पंजाब में अधिक प्रचलित है।
  3. जरसी तथा …………. दोगली गाय है।

उत्तर-

  1. 90%
  2. इटैलिटयन
  3. होलसटीन फ्रीजीयन।

गलत/ठीक –

  1. बटन गर्मी ऋतु की खुम्बें हैं।
  2. पंजाब में इटैलियन मक्खी प्रचलित है।
  3. जर्सी दोगली किस्म की गाय है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक व प्रणाली शब्द का अलग-अलग अर्थ स्पष्ट करते हुए राजनीतिक प्रणाली की कोई र विशेषताएं बताएं।
(Describe the word Political and System separately and also write any three features of Political System.)
अथवा राजनैतिक प्रणाली की परिभाषा लिखो। इसकी मुख्य विशेषताओं का विस्तार सहित वर्णन करो। (Define Political System. Write main characteristics of Political System.)
उत्तर-
आलमण्ड (Almond) तथा पॉवेल (Powell) के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्धित प्रकाशित पुस्तकों में राजनीतिक व्यवस्था (Political System) शब्दावली का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जा रहा है। पुरानी पाठ्य-पुस्तकें आमतौर पर राजनीतिक व्यवस्था के लिए ‘सरकार’, ‘राष्ट्र’ या ‘राज्य’ जैसे शब्दों का प्रयोग करती थीं। यह नवीन शब्दावली उस नए दृष्टिकोण का प्रतिबिम्ब है जो राजनीतिक व्यवस्था को एक नए ढंग से देखते हैं। आलमण्ड तथा पॉवेल आदि लेखकों का विचार है कि प्राचीन युग में प्रयोग होने वाले ये शब्द वैधानिक और संस्थात्मक अर्थों (Legal and Institutional Meanings) द्वारा सीमित है। आलमण्ड तथा पॉवेल का कहना है कि यदि वास्तव में राजनीति विज्ञान को प्रभावशाली बनाना है तो हमें विश्लेषण के अधिक व्यापक ढांचे की आवश्यकता है और वह ढांचा व्यवस्था विश्लेषण (System Analysis) का है। आलमण्ड तथा पॉवेल ने लिखा है, “राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा अधिक लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि यह किसी भी समाज के राजनीतिक क्रियाओं के सम्पूर्ण क्षेत्र की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है।”

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of the Political System)-राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग हैं-राजनीति तथा व्यवस्था। इन दोनों के अर्थ को समझने के बाद ही राजनीतिक व्यवस्था अथवा प्रणाली का अर्थ समझा जा सकता है। – 1. राजनीतिक (Political)-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा ज सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जात है । अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को अत्यधिक प्रभुत्व-समन्न तथा अन्तर्भावी र गठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है।” अरस्तु के मतानुसार, “राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों अथवा संघों से अलग करती है। अरस्तु के बाद अनेक विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि राजनीतिक सम्बन्धों में सत्ता, शासन और शक्ति किसी-न-किसी प्रकार । निहित है।

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Powers) का नाम दिया है।
मैक्स वैबर (Max Webber) के अनुसार, “किसी भी समुदाय को उस समय राजनीतक माना जा सकतज उसके आदेशों को एक निश्चित भू-क्षेत्र में लगातार शक्ति के प्रयोग अथवा शक्ति-प्रयोग की धमकी द्वारा मनवाया । सकता हो।”

डेविड ईस्टन (David Easton) ने राजनीतिक जीवन को इस प्रकार परिभाषित किया है- “यह अन्तक्रियाओं का समूह अथवा प्रणाली है जो इस तथ्य से अलंकृत है कि यह एक समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारण से कम या अधिक सम्बन्धित है।” (“A set or system of interactions defined by the fact that they are more or less directly related to the authoritative allocation of values for a society.”) लॉसवैल तथा कॉप्लान (Lasswell and Kaplan) ने ‘घोर-हानि’ (Severe Deprivation) की बात की है। राबर्ट ए० डाहल (Robert A. Dahl) ने ‘शक्ति , शासन तथा सत्ता’ (Power, Rule and Authority) का वर्णन किया है।

विभिन्न विद्वानों के विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीति का सम्बन्ध ‘शक्ति’, ‘शासन’ तथा ‘सत्ता’ से होता है और जिस समुदाय के पास ये गुण होते हैं उसे राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

2. व्यवस्था या प्रणाली (System)—व्यवस्था (System) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (Interaction) के समूह ) का संकेत करने के लिए किया जाता है।

ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (Concise Oxford Dictionary) के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है।” (A system is a complex whole, a set of connected things or parts, organised body of material or immaterial things.”)

वान बर्टलैंफी (Von Bertalanffy) के अनुसार, “प्रणाली (System) पारस्परिक अन्तक्रिया (Interaction) में बन्धे हुए तत्त्वों का समूह है।” (“System is a set of elements standing in interaction.”)

ए० हाल एवं आर० फैगन (A. Hall and R. Fagen) के अनुसार, “प्रणाली” पात्रों (Objects), पात्रों में पारस्परिक सम्बन्धों तथा पात्रों के लक्षणों के पारस्परिक सम्बन्धों का समूह है।” (“System is a set of objects together with relations between the objects and between their attitudes.”)

कालिन चैरे (Colin Cheray) के अनुसार, “प्रणाली” कई अंशों से मिलकर बनी एक समष्टि (Whole) कई लक्षणों का समूह है।” (“System is a whole which is compounded of many parts-an ensemble of attitudes.”)

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “एक व्यवस्था से अभिप्राय भागों (Parts) की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” (A system implies interdependence of parts of boundary of some kind between it and its environment.”)

विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं की विवेचना से स्पष्ट है कि व्यवस्था (System) एक पूर्ण इकाई होती है, जिसके कई भाग होते हैं और ये भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरणस्वरूप मानव शरीर एक व्यवस्था है। मानव शरीर के अनेक अंग हैं और ये सभी अंग अथवा भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा एक-दूसरे को और सम्पूर्ण मानव शरीर को भी प्रभावित करते हैं। ___ एक व्यवस्था के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों का अन्योन्याश्रय (Interdependence of parts)।

इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह को कहा जा सकता है जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का भी हाथ है।

व्यवस्था में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  • व्यवस्था भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  • व्यवस्था के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।
  • व्यवस्था के अंगों में एक-दूसरे को प्रभावित करने की समर्थता होती है।
  • व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं।
  • व्यवस्था में उप-व्यवस्थाएं (Sub-System) भी पाई जाती हैं।
  • प्रत्येक व्यवस्था में सम्पूर्णता का गुण होता है।
  • प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप में कार्य करने की योग्यता होती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main characteristics of Political System.)
अथवा
आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the characteristics of Political System according to Almond.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या करें। (Explain main characteristics of Political System.)
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की विभिन्न परिभाषाओं से राजनीतिक व्यवस्था की विशेषताओं का पता चलता है। आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं अग्रलिखित हैं-

1. मानवीय सम्बन्ध (Human Relations)–जिस प्रकार राज्य के लिए जनसंख्या का होना अनिवार्य है, उसी प्रकार राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्यों के परस्पर स्थायी सम्बन्धों का होना आवश्यक है। बिना मानवीय सम्बन्धों के राजनीतिक व्यवस्था नहीं हो सकती। परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।

2. औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग (Use of Legitimate Force)-राजनीतिक व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण शारीरिक दण्ड देने की शक्ति के प्रयोग करने के अधिकार के अस्तित्व को स्वीकार किया जाना है। इस गुण के आधार पर ही राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग किया जाता है। जिस प्रकार प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है और प्रभुसत्ता के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। प्रत्येक समाज में शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तथा अपराधियों को दण्ड देने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है, परन्तु शक्ति का प्रयोग औचित्यपूर्ण होना चाहिए। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।

3. व्यापकता (Comprehensiveness)-आलमण्ड के विचारानुसार, व्यापकता का अर्थ है कि राजनीतिक व्यवस्था में निवेश तथा निर्गत (Inputs and Outputs) की वे सभी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं जो शक्ति के प्रयोग या शक्ति प्रयोग की धमकी को किसी भी रूप में प्रभावित करती हैं। अन्य शब्दों में आलमण्ड के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में केवल संवैधानिक अथवा कानूनी ढांचों जैसे कि-विधानमण्डल, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि को ही सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि इसमें अनौपचारिक (Informal) संस्थाओं जैसे कि राजनीतिक दल, दबाव समूह, निर्वाचक मण्डल आदि के साथ-साथ सभी प्रकार के राजनीतिक ढांचों के राजनीतिक पहलुओं को भी शामिल किया जाता है।

4. उप-व्यवस्थाओं का अस्तित्व (Existence of Sub-System)-राजनीतिक व्यवस्था में कई उप-व्यवस्थाएं भी पाई जाती हैं, जिनके सामूहिक रूप को राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है। इन उप-व्यवस्थाओं में परस्पर निर्भरता होती है तथा वे एक-दूसरे की कार्यविधि को प्रभावित करती हैं। जैसे-विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, प्रशासनिक विभाग तथा दबाव समूह इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था की उप-व्यवस्थाएं हैं। इन उप-व्यवस्थाओं की कार्यशीलता से राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता प्रभावित होती है।

5. अन्तक्रिया (Interaction)-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है बल्कि बहुपक्षीय होती है।

6. अन्तर्निर्भरता (Interdependence) अन्तर्निर्भरता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। आलमण्ड (Almond) के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में अनेक उप-व्यवस्थाओं (Sub-systems) के राजनीतिक पहलू भी सम्मिलित हैं। उसके विचारानुसार राजनीतिक व्यवस्था की जब एक उप-व्यवस्था में परिवर्तन आता है तो इसका प्रभाव अन्य व्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। उदाहरणस्वरूप आधुनिक युग में संचार के साधनों का बहुत विकास हुआ है। संचार के साधनों के विकास के साथ चुनाव विधि, चुनाव व्यवहार, राजनीतिक दलों की विशेषताओं, विधानमण्डल तथा कार्यपालिका की रचना तथा कार्यों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार श्रमिक वर्ग को मताधिकार देने में राजनीतिक दलों, दबाव समूहों, सरकारों के वैधानिक तथा कार्यपालिका अंगों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

7. सीमाओं की विद्यमानता (Existence of Boundaries)-सीमाओं की विद्यमानता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। सीमाओं की विद्यमानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यवस्था किसी एक स्थान से शुरू होती है और किसी दूसरे स्थान पर समाप्त होती है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की कुछ सीमाएं होती हैं जो उसको अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं राज्य की तरह क्षेत्रीय सीमाएं नहीं होतीं। ये मानवीय सम्बन्धों तथा क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं की सीमाएं सदैव एक-जैसी अथवा निश्चित नहीं होतीं। प्राचीन तथा परम्परागत समाज में राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं इतनी स्पष्ट नहीं होती जितनी कि आधुनिक समाज में। जैसे-जैसे किसी व्यवस्था का आधुनिकीकरण तथा विकास होता है वैसे ही कार्यों के विशेषीकरण के कारण ये सीमाएं स्पष्ट होती जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाओं में समयानुसार परिवर्तन आते रहते हैं। कई बार राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं किसी घटना के कारण बढ़ भी सकती हैं और कम भी हो सकती हैं।

8. खुली व्यवस्था (Open System)-राजनीतिक व्यवस्था एक खुली व्यवस्था होती है, “जिस कारण समय, वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन होता रहता है। यदि राजनीतिक व्यवस्था बन्द व्यवस्था हो तो उस पर परिस्थितियों का प्रभाव ही न पड़े और ऐसी व्यवस्था में राजनीतिक व्यवस्था टूट सकती है।”

9. अनुकूलता (Adaptability)-राजनीतिक व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता अनुकूलता है। राजनीतिक व्यवस्था समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको परिवर्तित करने की विशेषता रखती है। उदाहरणस्वरूप भारत की राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप शान्ति के समय कुछ और होता है और संकटकाल में उसका स्वरूप बदल जाता है और संकटकाल समाप्त होने के बाद फिर परिवर्तित हो जाता है। वही राजनीतिक व्यवस्था स्थायी रह पाती है जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती है।

10. वातावरण (Environment) किसी भी व्यवस्था पर उसके वातावरण का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक तथा आवश्यक है। वातावरण से तात्पर्य है वे परिस्थितियां जो उसे चारों ओर से घेरे हुए हों। समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है और उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण भी कह सकते हैं । व्यक्ति अपने समाज की आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से बचे रहते हैं और इस प्रकार उनका राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। समाज में स्थित सभी समुदाय या संस्थाएं कभी-न-कभी, किसी-न-किसी रूप में राजनीतिक प्रणाली के वातावरण में रहती हैं और कभी-कभी यह उसका अंग भी बन जाती हैं। जैसे कि कोई मजदूर संघ वैसे तो राजनीतिक प्रणाली का वातावरण है, परन्तु जब वे सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करते हैं या सरकार पर कोई कानून बनाने के लिए जोर देते हैं तो वे राजनीतिक प्रणाली का अंग भी बन जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्य लिखें। (Describe the output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली के निवेश और निकास कार्यों का वर्णन करो।
(Write input and output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ बताते हुए इसके निवेश कार्यों की व्याख्या करें।
(Describe the meaning of ‘Political System’ and also explain its ‘Input Functions’.)
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
राजनीतिक प्रणाली के कार्य-आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के दो प्रकार के कार्यों का वर्णन किया हैनिवेश कार्य (Input Functions) तथा निर्गत कार्य (Output Functions)।

(क) निवेश कार्य (Input Functions)-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं। जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि।
आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं – (1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती, (2) हित स्पष्टीकरण, (3) हित समूहीकरण, (4) राजनीतिक संचारण।

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती (Political Socialisation and Recruitment) आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में भी धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।

आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियां (Political Cultures) स्थिर रखी जाती हैं अथवा उनको परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार के सम्पादन के माध्यम से पृथक्-पृथक् व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृति में प्रशिक्षित किया जाता है तथा राजनीतिक उद्देश्य की ओर उनके उन्मुखीकरण (Orientations) निर्धारित किए जाते हैं। राजनीति संस्कृति के ढांचे में परिवर्तन भी राजनीतिक समाजीकरण के माध्यम से आते हैं। अतः राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया का उपयोग, परिवर्तन लाने अथवा यथास्थिति बनाए रखने, दोनों ही के लिए हो सकता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। कभी बन्द नहीं होती। राजनीतिक दल, हितसमूह व दबाव-समूह आदि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा अधिक-से-अधिक लोगों को अपनी मान्यताओं के प्रति जागरूक कर, लोगों को इनकी ओर आकर्षित करते हैं। लोकतन्त्रात्मक व्यवस्थाओं में राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व और भी अधिक होता है क्योंकि राजनीतिक दलों का सफल होना अथवा न होना इसी पर निर्भर करता है।

राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। पुरानी भूमिकाएं बदलती रहती हैं और उनका स्थान नई भूमिकाएं लेती रहती हैं। पदाधिकारी बदल दिए जाते हैं, मर जाते हैं और उनका स्थान स्वाभाविक रूप से नए व्यक्ति ले लेते हैं। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।” (“We use the term political recruitment to refer to the function by means of which the rolls of political system are filled.”) राजनीतिक भर्ती सामान्य आधार पर भी हो सकती है और विशिष्ट आधार पर भी। पदाधिकारियों का चुनाव जब योग्यता के आधार पर किया जाता है तो उसे सामान्य आधार पर ही हुई भर्ती कहा जाता है। जब कोई भर्ती किसी विशेष वर्ग या कबीले या दल से की जाती है तो विशिष्ट आधार पर हुई भर्ती कही जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण (Interest Articulation) अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली की कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, पृथक्-पृथक् व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हम हित स्पष्टीकरण कहते हैं।” (“The process by which individuals and groups make demands upon the political decision makers we call interest articulation.”) राजनीतिक व्यवस्था में जिन अधिकारियों के पास नीति निर्माण व निर्णय लेने का अधिकार होता है, उनके सामने विभिन्न व्यक्ति तथा समूह अपनी मांगें पेश करते हैं अर्थात् अपने हित का स्पष्टीकरण करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में हित स्पष्टीकरण एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया होती है क्योंकि समाज के अन्तर्गत जब तक समूह या संघ अपने हित को स्पष्ट नहीं कर पाते, तब तक उनके हित की पूर्ति के लिए कानून या नीति निर्माण करना सम्भव नहीं। यदि समूह या संघ को अपने हित का स्पष्टीकरण करने का अवसर नहीं दिया जाता तो उसका परिणाम हिंसात्मक कार्यविधियां होता है। हित स्पष्टीकरण के कई साधन हैं। लिखित आवेदन-पत्रों, सुझावों, वक्तव्यों और कई बार प्रदर्शनियों द्वारा यह कार्य होता है। मजदूर संघ या छात्र संघ आदि हड़ताल भी करते हैं और कई बार हिंसात्मक तरीके भी अपनाते हैं। हित स्पष्टीकरण के समुचित एवं स्वस्थ साधन वर्तमान विशेषतः प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं की विशेषता होती है।

3. हित समूहीकरण (Interest Aggregration)-विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा। यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

4. राजनीतिक संचार (Political Communication) राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचार-व्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में संचार-व्यवस्था बहुमुखी, शक्तिशाली, समाज एवं शासक वर्ग में तटस्थ, लोचशील और प्रसारात्मक होती है। आलमण्ड एवं पॉवेल (Almond and Powell) के शब्दों में, “विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं का परीक्षण करने के लिए, राजनीतिक संचार के निष्पादन (Performance) का विश्लेषण एवं तुलना अत्यन्त रुचिपूर्ण एवं उपयोगी माध्यम है।” (“The analysis and comparison of the performance of political communication is one of the most interesting and useful means of examining different political systems.”) तुलनात्मक अध्ययनों में राजनीतिक संचार पर चार दृष्टियों से विचार किया जाता है-सूचनाओं में समरसता (Homogeneity), गतिशीलता (Mobility), मात्रा (Volume) तथा दिशा (Direction)

(ख) निर्गत कार्य (Output Functions)–राजनीतिक व्यवस्था के निर्गत कार्य शासकीय क्रिया-कलापों में काफ़ी समानता रखते हैं। यद्यपि आलमण्ड ने स्वयं स्वीकार किया है कि निर्गत कार्य परम्परागत सक्ति पृथक्करण सिद्धान्त में वर्णित सरकारी अंगों के कार्यों से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। फिर भी उसने इनको सरकारी कार्य-कलापों के स्थान पर निर्गत कार्य ही कहना अधिक उपयुक्त समझा है। डेविस व लीविस (Davis and Lewis) के शब्दों में, “इसका उद्देश्य संस्थाओं के विवरण पर अधिक बल देने के विचार को परिवर्तित करता है क्योंकि विभिन्न देशों में एक ही प्रकार की संस्थाओं के अलग-अलग प्रकार्य हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसके पीछे इन संस्थाओं द्वारा सम्पादित किए जाने वाले कार्य-कलापों की व्याख्या करने के लिए प्रकार्यात्मक अवधारणाओं का एक सैट प्रस्तुत करने की भावना भी उपस्थित है।”

जिस प्रकार सरकार के मुख्य कार्य तीन हैं-कानून-निर्माण, कानूनों को लागू करना और विवादों को निपटाना है, उसी प्रकार निर्गत कार्य तीन हैं
(1) नियम बनाना। (2) नियम लागू करना। (3) नियम निर्णयन कार्य।

1. नियम बनाना (Rule Making)-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाने का कार्य मुख्यतः व्यवस्थापिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है। आलमण्ड के विचारानुसार, ‘विधायन’ (Legislation) शब्द के स्थान पर ‘नियम निर्माण’ शब्द का प्रयोग उचित है क्योंकि ‘विधायन’ शब्द से कुछ विशेष संरचना तथा निश्चित प्रक्रिया का बोध होता है जबकि अनेक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्माण कार्य एक उलझी हुई (Diffuse) प्रक्रिया है जिसे सुलझाना तथा उसका विवरण देना कठिन होता है।

विधायन का काम औपचारिक तौर पर स्थापित संरचनाएं ही किया करती हैं जिन्हें संसद् अथवा कांग्रेस अथवा विधानपालिका कहा जाता है और जो सुनिश्चित एवं औपचारिक प्रक्रियाओं द्वारा ही काम करती हैं। परन्तु कुछ ऐसी राजनीतिक व्यवस्थाएं भी होती हैं जिनमें ऐसी औपचारिक संरचनाएं अथवा ऐसी औपचारिक प्रक्रियाएं होती ही नहीं। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में नियम निर्धारण का कार्य एक अलग ढंग से किया जाता है। आधुनिक लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्धारण का कार्य प्रायः कई जगहों पर कई पात्रों द्वारा किया जाता है। एल० ए० हठ ने नियमों के ऐसे प्रकारों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा अनुपूरक। प्रारम्भिक समाज में कुछ ऐसे प्राथमिक नियम थे जो व्यक्तियों के यौन सम्बन्धों, बल प्रयोग, आज्ञा पालन आदि के कामों को नियमित करते थे। ये नियम अटल थे और इनको बदला नहीं जा सकता था।

ऐसे नियमों को लागू करने के लिए तथा उनके उल्लंघन किए जाने पर दण्ड के नियम बनाए गए जिन्हें अनुपूरक नियम कहते हैं। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो संविधान भी अनुपूरक नियमों का समूह है, प्राथमिक नियमों का नहीं। आलमण्ड एवं पॉवेल के मतानुसार, संविधानवाद की यह मान्यता है, “नियमों का निर्माण निश्चित प्रकार की सीमाओं के अन्तर्गत विशिष्ट संस्थाओं द्वारा निश्चित विधियों से होना चाहिए।” (“Rule must be made in certain ways and by specific institutions and within certain kinds of limitations.”)

2. नियम लागू करना (Rule Application)-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का लक्ष्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं। कभी-कभी नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं द्वारा भी यह कार्य किया जाता है, परन्तु विकसित राजनीतिक व्यवस्थाओं के नियम प्रयुक्त संरचनाएं नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं से पृथक् होती हैं।

3. नियम निर्णयन कार्य (Rule Adjudication)—समाज में जब कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक हैं-जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है उसे दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। इसलिए नियमों में ही उसकी अवहेलना करने पर दण्ड देने का प्रावधान रहता है, परन्तु यह निर्णय करना पड़ता है कि नियमों को वास्तव में ही भंग किया गया है अथवा नहीं और अगर नियम भंग हुआ है तो किस सीमा तक तथा उसे कितना दण्ड दिया जाना चाहिए ? इसके अतिरिक्त कई बार नियमों के अर्थ पर विवाद उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में नियमों के अर्थ को भी स्पष्ट करना पड़ता है। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं, परन्तु सर्वसत्तावादी (Totalitarian) प्रणालियों में गुप्त पुलिस केवल लोगों पर निगरानी रखने एवं उन पर दोषारोपण करने का ही काम नहीं करती बल्कि वह तो उन पर चलाया गया मुकद्दमा भी सुनती हैं और उन्हें सज़ा सुना कर स्वयं सजा को लागू भी करती है। व्यवस्था (System) को बनाए रखने के लिए नियम निर्णयन का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। अतः एक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों का निष्पक्षता को कायम रखा जा सके और नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निष्कर्ष (Conclusion) उपर्युक्त कार्य प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था को अवश्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के अतिरिक्त प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था को विशेष परिस्थितियों में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विशेष कार्य करने पड़ते हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं के कार्य समान नहीं होते क्योंकि देश की राजनीतिक व्यवस्था को अपने देश की परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार नीतियों का निर्माण करना पड़ता है और उनके अनुसार कार्य करने पड़ते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 4.
निवेश-निकास प्रक्रिया के रूप में डेविड ईस्टन के राजनीतिक प्रणाली के मॉडल (रूप) की व्याख्या कीजिए।
(Explain David Easton’s model of Political system as input and output Process.)
अथवा
डेविड ईस्टन के विचारानुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों की व्याख्या करो।
(Discuss the functions of Political System according to David Easton.)
अथवा
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss the functions of Political System with reference to the views of David Easton.)
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने 1953 में ‘राजनीतिक प्रणाली’ (Political System) नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी। उस पुस्तक में डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली की धारणा की विवेचना की थी। डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली को निवेशों (Inputs) को निकासों (Outputs) में बदलने की प्रक्रिया बताया है।

निवेश क्या हैं? (What are Inputs ?)-डेविड ईस्टन ने एक विशेष रूप में विचार अभिव्यक्त किया है। उसके मतानुसार, “निवेश उस कच्चे माल के समान है जो राजनीतिक प्रणाली नामक मशीन में पाये जाते हैं।” जिस तरह किसी मशीन में कच्चे माल के बिना कोई तैयार माल अथवा वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती है, उसी तरह निवेश रूपी कच्चा माल राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में डालने के बिना राजनीतिक प्रणाली कोई सत्ताधारी निर्णय नहीं ले सकती है। ऐसे सत्ताधारी निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) का नाम दिया है। निवेशों के दो रूप (Two Types of Inputs)-डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेश दो प्रकार के होते हैं

(क) मांगों के रूप में निवेश (Inputs in the form of demands)-जब लोग राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की मांग करते हैं तो मांगों के रूप में निवेश होते हैं। डेविड ईस्टन ने मांगों के रूप में निवेशों को चार प्रकार का माना है

1. वस्तुओं तथा सेवाओं के विभाजन के लिये मांगें (Demands for the allocation of goods and services)-व्यक्ति सरकार से उचित वेतन, कार्य करने के लिये निश्चित समय, शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएं, यातायात के साधन, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं इत्यादि की मांग करते हैं। इनको डेविड ईस्टन ने वस्तुओं तथा सेवाओं को व्यवस्था की मांगें कहा है।

2. व्यवहार को नियमित करने के लिए मांगें (Demands for regulation of behaviour)—व्यक्ति राजनीतिक प्रणाली से सार्वजनिक सुरक्षा, सामाजिक व्यवहार सम्बन्धी नियमों के निर्माण आदि की मांगें करते हैं। कुशल और नियमित सामाजिक जीवन के लिये ऐसी मांगें प्रायः की जाती हैं।

3. राजीतिक प्रणाली में भाग लेने सम्बन्धी मांगें (Demands regarding participation in the political System)-लोग मांग करते हैं कि उनको मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार, राजनीतिक संगठन बनाने का अधिकार इत्यादि दिये जाएं। ये ऐसी मांगें हैं जिनके फलस्वरूप लोग राजनीतिक प्रणाली के कार्यों में भाग ले सकते हैं।

4. संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगें (Demands for Communication and Information)लोग राजनीतिक प्रणाली का संचार करने वाले विशिष्ट वर्ग से नीति निर्माण सम्बन्धी सूचनाएं प्राप्त करने, सिद्धान्त अथवा नियम निश्चित करने, संकट अथवा औपचारिक अवसरों पर राजनीतिक प्रणाली द्वारा शक्ति के दिखावे इत्यादि के लिये मांगें करते हैं। इन मांगों को डेविड ईस्टन ने संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगों का नाम दिया है।

(ख) समर्थन के रूप में निवेश (Inputs in the form of Support)-उपर्युक्त चार प्रकार के निवेश मांगों के रूप में हैं। ये ऐसे कच्चे माल के समान हैं जो राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में पाया जाता है। कोई भी मशीन उस समय तक कार्य नहीं कर सकती जब तक उसको विद्युत् अथवा तेल अथवा किसी अन्य साधन द्वारा शक्ति न दी जाए। इसी तरह डेविड ईस्टन ने निवेशों के दूसरे रूप को समर्थन निवेश (Support Inputs) का नाम दिया है। ऐसे समर्थन
निवेशों के बिना राजनीतिक प्रणाली कार्य नहीं कर सकती है क्योंकि ये समर्थन निवेश ही राजनीतिक प्रणाली को ऐसी शक्ति देते हैं जिसके बल से राजनीतिक प्रणाली निवेश मांगों (Demand Inputs) सम्बन्धी योग्य कार्यवाही कर सकती है।

निकास क्या होते हैं? (What are Outputs ?) डेविड ईस्टन ने निकासों (Outputs) का बड़ा सरल अर्थ बताया है। लोगों द्वारा निवेशों के रूप में सरकार के पास कुछ मांगें पेश की जाती हैं। राजनीतिक प्रणाली अपने साधन तथा सामर्थ्य के अनुसार उन मांगों सम्बन्धी निर्णय लेती है। इन निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) बताया है। निकास अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जब सरकार मानवीय व्यवहार को नियमित करने के लिये कोई कानूनी निर्णय लेती है उनको भी निकास कहा जाता है। जब सरकार सार्वजनिक सेवाएं अथवा पदों की व्यवस्था करती है उसके ऐसे निर्णय भी निकास कहलाते हैं। संक्षेप में, राजनीतिक प्रणाली के सत्ताधारी निर्णयों को निकास (Outputs) का नाम दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में मुख्य अन्तरों का वर्णन करो।
(Write main differences between State and Political System.)
अथवा
राज्य तथा राजनीतिक प्रणाली में अंतर बताओ।
(Make a distinction between State and Political System.)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य को राजनीतिशास्त्र का मुख्य विषय माना जाता था। गार्नर की भान्ति ब्लंटशली (Bluntschli), गैटेल (Gettell), गैरिस (Garies), गिलक्राइस्ट (Gilchrist), लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) इत्यादि विद्वानों ने राज्य को ही राजनीतिशास्त्र का केन्द्र-बिन्दु माना। परन्तु आधुनिक विद्वान् इस परम्परागत विचार से सहमत नहीं होते। वे राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था को आधुनिक राजनीति अथवा राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय मानते हैं। आधुनिक विद्वानों का विचार है कि राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को राज्य तक ही सीमित करना उसकी व्यावहारिकता को बिल्कुल नष्ट करने वाली बात है। इन विद्वानों में आलमण्ड तथा पॉवेल, चार्ल्स मेरियम (Charles Meriam), हैरल्ड लॉसवैल (Harold Lasswell), डेविड ईस्टन (David Easton), स्टीफन एल० वास्बी (Stephen L. Wasbi) इत्यादि के नाम मुख्य हैं। राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर पाए जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर करने से पहले राज्य और राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ स्पष्ट करना अति आवश्यक है।

राज्य का अर्थ (Meaning of State)-प्रो० गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में एक सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार मूल तत्त्व हैं जिनके बिना राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। यदि इन चार तत्त्वों में से कोई भी तत्त्व विद्यमान नहीं है तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती।

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of Political System)-राजनीतिक व्यवस्था में सरकार की संस्थाओं के अतिरिक्त वे सभी औपचारिक अथवा अनौपचारिक संस्थाएं अथवा समूह अथवां संगठन सम्मिलित हैं जो किसीन-किसी तरह राजनीतिक जीवन को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप में बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर (Difference between State and Political System)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं (State has four essential elements whereas political system has many elements)-राज्य तथा राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर यह है कि राज्य के अनिवार्य तत्त्व चार हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के तत्त्व अनेक हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता-राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो तो राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व होते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक प्रभावों की खोज, वैधता की प्राप्ति, परिवर्तनशीलता, अन्य विषयों तथा अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं का प्रभाव तथा प्रतिक्रियाओं का अध्ययन इत्यादि सम्मिलित होता है।

2. राज्य कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से सम्बन्धित होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होती है (State deals with legal and Institutional structure but political system deals with the processes)-राज्य का सम्बन्ध कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध प्रक्रियाओं (Processes) से होता है। कई लेखकों ने प्रक्रियाओं से सम्बन्धित मॉडल (Models) पेश किए जिनका सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था से है।

3. राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है (Scope of Political System is broader than the Scope of State)-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है। राज्य का मुख्य सम्बन्ध औपचारिक संस्थाओं से होता है जबकि राजनीति व्यवस्था में समाज में होने वाली प्रत्येक राजनीतिक प्रक्रिया, औपचारिक और अनौपचारिक भी शामिल की जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं व्यावहारिक (Practical) तथा नीति (Policy) विज्ञान पर आधारित होने के कारण बड़ी विस्तृत होती हैं।

4. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है (Sovereignty is the main feature of State while legitimate Physical coercive force is the main feature of Political System)-आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है अर्थात् राज्य सर्वशक्तिमान् होता है और सभी नागरिकों तथा संस्थाओं को राज्य के आदेशों का पालन करना पड़ता है। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् इस बात को नहीं मानते कि कोई भी राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक और बाहरी प्रभावों से बिल्कुल स्वतन्त्र होती है। आधुनिक वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक-समाज (Intra-Societal) और बाह्य-समाज (Extra-Societal) के वातावरण से अवश्य प्रभावित होती है। इसके साथ ही आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय युग में बाहरी प्रभुसत्ता का महत्त्व बहुत कम रह गया है। प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था पर दूसरे देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ता है। आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति (Legitimate Physical Coercive Force) शब्द का प्रयोग करते हैं अर्थात् उनके कथनानुसार राजनीतिक व्यवस्था के पास वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति है।

5. राज्य एक परम्परागत धारणा है जबकि राजनीतिक व्यवस्था एक आधुनिक धारणा है (State is a traditional concept while Political System is a modern one)-राज्य एक परम्परागत धारणा है और परम्परागत राजनीति में प्रायः राज्य, राष्ट्र, सरकार, संविधान, कानून, प्रभुसत्ता और धारणाओं का इस्तेमाल होता रहा है। परन्तु आजकल राज्य शब्द तथा इसके साथ सम्बन्धित धारणाओं का प्रयोग बहुत घट गया है। आधुनिक युग में यदि कोई विद्वान् राजनीतिक व्यवस्था के स्थान पर राज्य शब्द का प्रयोग करता है तो उसे परम्परावादी कहा जाता है।

6. राजनीतिक व्यवस्था में आत्म-निर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है (Political system implies the existence of interdependent parts while the concept of State is devoid of such Character)-सरकार की संस्थाएं अर्थात् विधानमण्डल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, राजनीतिक दल, हित समूह, संचार के साधन इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था के भाग माने जाते हैं। जब किसी एक भाग में किसी कारण से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था के अन्य भागों पर भी पड़ता है तथा सम्पूर्ण व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है। परन्तु राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं पाई जाती।।

7. राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित होती हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा GT HOAT (Boundaries of State are fixed whereas it is not possible to restrict the boundaries of Political System)-राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं होती है। किसी भी राज्य के बारे में यह पता लगाया जा सकता है कि उसकी सीमाएं कहां से शुरू होती हैं और कहां समाप्त होती हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं उसकी क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। ये सीमाएं बदलती रहती हैं।

8. राज्य एक से होते हैं, राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न प्रकार का होता है (States are the same everywhere, but political systems are Different)-सभी राज्य एक से होते हैं। वे छोटे हों या बड़े, उनमें चार तत्त्वों का होना अनिवार्य है-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता। भारत, इंग्लैण्ड, जापान, चीन, श्रीलंका, बर्मा (म्यनमार), रूस आदि सभी राज्यों में ये चार तत्त्व पाए जाते हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न राज्यों में विभिन्न होता है।

9. राज्य स्थायी है, राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील (State is permanent while Political System is Dynamic)-राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य का अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। फिर प्रभुसत्ता मिलने पर दोबारा राज्य की स्थापना हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।

10. राजनीतिक व्यवस्था में निवेशों को निर्गतों में परिवर्तित करने की क्रिया का विशिष्ट स्थान है, परन्तु राज्य की धारणा कुछ विशेष कार्यों से सम्बन्धित है (The concept of political system involves the process of conversion of inputs into outputs, while the concept of state deals with some specific functions)—निवेशों (Inputs) को निर्गतों (Output) में परिवर्तन करने की क्रिया राजनीतिक व्यवस्था की एक . महत्त्वपूर्ण विशेषता है। निवेशों और निर्गतों में परिवर्तन की प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर चलती रहती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक व्यवस्था को नियम बनाने का कार्य (Rule Making Functions), नियम लागू करने (Rule application) तथा नियमों के अनुसार निर्णय करने से सम्बन्धित कार्य (Rule adjudication functions) भी करने पड़ते हैं। परन्तु राज्य को कुछ विशेष प्रकार के कार्य ही करने पड़ते हैं। राजनीतिक विद्वानों ने राज्य के कार्यों को अनिवार्य कार्य (Compulsory functions) और ऐच्छिक कार्यों (Optional functional) में बांटा है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक क्षेत्र और सामाजिक जीवन के कुछ पक्ष राज्य के अधिकार क्षेत्र से पृथक् माने जाते हैं। परन्तु जीवन के किसी पहलू को राजनीतिक व्यवस्था से अलग नहीं माना जा सकता यदि किसी भी रूप में उसका कोई पक्ष या कार्य राजनीति से सम्बन्धित हो।

11. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक विश्लेषणात्मक धारणा है (Concept of Political System is more analytical than State)-राज्य के वर्णनात्मक विचार हैं। इसकी व्याख्या की जा सकती है, परन्तु इसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। परन्तु राज्य के विपरीत राजनीतिक व्यवस्था एक विश्लेषणात्मक धारणा है। इसका अस्तित्व व्यक्तियों के मन में होता है। यह वास्तविक जीवन में प्राप्त होने वाली चीज़ नहीं है।

12. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक एकता तथा सामंजस्य लाने का साधन है (Political system is a better means of bringing integration and adoption than the State)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में एक अन्य अन्तर यह है कि राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक सामंजस्य उत्पन्न करती है। आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था स्वतन्त्र राज्यों में एकीकरण
और सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए एक साधन है।”

13. राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक समाजीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का विशेष महत्त्व है, राज्य के लिए नहीं (Political Socialisation and Political culture have special importance in Political System, not for the State)राजनीतिक व्यवस्था की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की धारणाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है क्योंकि राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की क्रियाएं राजनीतिक व्यवस्था को निरन्तर प्रभावित करती रहती हैं और इसलिए राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहते हैं। परन्तु राज्य की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।
निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में हम यह कह सकते हैं कि राज्य एक परम्परागत धारणो है जबकि राजनीतिक व्यवस्था आधुनिक धारणा है और राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से बहुत अधिक व्यापक है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक तथा प्रणाली शब्दों के अर्थों की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक (पोलिटिकल) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली शब्द के दो भाग हैं-राजनीतिक तथा प्रणाली।
राजनीतिक शब्द का अर्थ-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है। अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को ‘अत्यधिक प्रभुत्व-सम्पन्न तथा अन्तर्भावी संगठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है। अरस्तु के मतानुसार राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों से अलग करती है। आल्मण्ड तथा पॉवेल ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) का नाम दिया है।

व्यवस्था या प्रणाली-प्रणाली शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है। आल्मण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “एक ब्यवस्था से अभिप्राय भागों की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” एक प्रणाली के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों की पारस्परिक निर्भरता।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखिए।
अथवा
राजनीतिक प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली में सरकारी संस्थाओं जैसे विधानमण्डल, न्यायालय, प्रशासकीय एजेन्सियां ही सम्मिलित नहीं होती बल्कि इनके अतिरिक्त सभी पारस्परिक ढांचे जैसे रक्त सम्बन्ध,जातीय समूह, अव्यवस्थित घटनाएं जैसे प्रदर्शन, लड़ाई-झगड़े, हत्याएं, डकैतियां, औपचारिक राजनीतिक संगठन आदि राजनीतिक पहलुओं सहित सभी सम्मिलित हैं। इस प्रकार राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं, संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषाएं दीजिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की परिभाषाएं अलग-अलग राजनीति-शास्त्रियों ने अलग-अलग ढंग से दी हैं, फिर भी एक बात पर इन विद्वानों का एक मत है कि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध न्यायसंगत शारीरिक दमन के प्रयोगों के साथ जुड़ा हुआ है। राजनीतिक व्यवस्था की इन सभी परिभाषाओं में न्यायपूर्ण प्रतिबन्धों, दण्ड देने की अधिकारपूर्ण शक्ति लागू करने की शक्ति और बाध्य करने की शक्ति आदि शामिल है।

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं, जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती हैं।”
  • रॉबर्ट डाहल के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था मानवीय सम्बन्धों का वह दृढ़ मान है जिसमें पर्याप्त मात्रा में शक्ति, शासन या सत्ता सम्मिलित हो।”
  • लॉसवेल और कॉप्लान के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था गम्भीर वंचना है जो राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती है।”

प्रश्न 4.
राजनीतिक प्रणाली की कोई चार विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • मानवीय सम्बन्ध-राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्य के परस्पर सम्बन्ध का होना आवश्यक है, परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता हैं जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।
  • औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग-औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।
  • अन्तक्रिया-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है, बल्कि बहपक्षीय होती है।
  • सर्व-व्यापकता-सर्व-व्यापकता का भाव यह है कि विश्व में कोई ऐसा समाज नहीं होगा जहां राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व न हो। सांस्कृतिक एवं असांस्कृतिक समाजों में भी राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व अवश्य होता है। यह ठीक है कि हर समाज में राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप एक समान नहीं होता, परन्तु राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप प्रत्येक समाज में अवश्य होता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में चार मुख्य अन्तर लिखो। .
अथवा
राज्य व राजनैतिक प्रणाली में कोई चार अंतर बताइए।
उत्तर-
राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो, तो राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  • राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  • राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य स्थायी है और इसका अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। प्रभुसत्ता मिलने पर राज्य की स्थापना दुबारा हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।
  • राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है।

प्रश्न 6.
फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
अथवा
डेविड ईस्टन की कच्चा माल फिर देने (Feed back loop) की प्रक्रिया का वर्णन करें।
अथवा
फीडबैक लूप (Feedback Loop) व्यवस्था से आपका क्या अभिप्राय है ।
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था में वह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक एक राजनीतिक व्यवस्था इस पर डाले गए दबावों और मांगों को सहन करती है, परन्तु जब यह खतरनाक सीमा को पार कर जाती है तो राजनीतिक व्यवस्था में दबाव और मांगों को सहन करने की शक्ति नहीं रहती और इससे राजनीतिक व्यवस्था का पतन हो जाता है।

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प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्यों के बारे में लिखिए।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के किन्हीं तीन निकास कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

प्रश्न 8.
राजनैतिक प्रणाली के निवेश कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के कोई तीन निवेश कार्य लिखिए।
उत्तर-
निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

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प्रश्न 9.
“राजनीतिक प्रणाली” की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य का वातावरण अन्य राज्यों से अलग होता है। इसी वातावरण में रहकर किसी राज्य की राजनीतिक व्यवस्था अपनी भूमिका निभाती है। वास्तव में राजनीतिक व्यवस्था निर्बाध रूप से कार्य नहीं कर सकती। उस पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है। यही वातावरण राजनीतिक व्यवस्था की भूमिका या कार्यों को सीमित कर देता है। आल्पण्ड और पॉवेल के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं जो इसको अन्य प्रणालियों से अलग करती हैं। राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्षेत्रीय नहीं बल्कि कार्यात्मक होती हैं और यह सीमाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। उदाहरणतया युद्ध के समय राजनीतिक प्रणाली की सीमाओं में विस्तार हो जाता है, लेकिन युद्ध समाप्त होते ही ये सीमाएं संकुचित हो जाती हैं।

प्रश्न 10.
कानून की दबावकारी शक्ति क्या होती है ?
अथवा
कानून की दबावकारी शक्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य व्यवस्था के सुचारु रूप से संचालन के लिए कानूनों का निर्माण किया जाता है। कानूनों के पीछे राज्य की शक्ति होती है। प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के कानून के अधीन होता है। सभी व्यक्तियों के साथ एक-जैसी परिस्थितियों में समान व्यवहार किया जाता है। देश के प्रत्येक नागरिक के लिए राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना अनिवार्य होता है। यदि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है अथवा कानून का पालन नहीं करता तो उसे राज्य शक्ति द्वारा दण्डित किया जा सकता है। कानून नागरिकों को किसी कार्य को करने अथवा न करने पर बाध्य कर सकता है। ऐसा न करने पर दण्ड दिया जा सकता है। इसे कानून की बाध्यकारी शक्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
राजनीतिक प्रणाली का हित स्पष्टीकरण कार्य क्या है ?
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के हित स्पष्टीकरण के कार्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हित स्वरूपीकरण या स्पष्टीकरण राजनीतिक प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। समाज में रहते सभी लोगों अथवा सभी वर्गों की मांगें तथा हित एक समान नहीं हो सकते। इसलिए यह अनिवार्य होता है कि विभिन्न वर्गों के लोग अपने हितों अथवा अपनी मांगों का स्पष्टीकरण करें ताकि सरकार उस सम्बन्धी योग्य निर्णय ले सके। जब राजनीतिक दल अथवा अन्य संगठन लोगों की मांगें सरकार तक पहुंचाते हैं तो वह हितों का स्पष्टीकरण कर रहे होते हैं। राजनीतिक दल तथा ऐसे अन्य संगठन राजनीतिक प्रणाली के अंग है। इसलिए उनके द्वारा किए कार्य राजनीतिक प्रणाली के कार्य माने जाते हैं। हित स्पष्टीकरण कार्य व्यापारिक संघों (Trade Unions) तथा अन्य दबाव समूहों (Pressure Groups) द्वारा भी किया जाता है।

प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली का राजनीतिक संचार कार्य लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचारव्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

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प्रश्न 13.
राजनीतिक प्रणाली का हित समूहीकरण कार्य क्या है?
अथवा
हित समूहीकरण से क्या भाव है ? यह कार्य कौन करता है ?
उत्तर-
विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा । यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

प्रश्न 14.
निवेशों से आपका क्या भाव है ?
अथवा
निवेश समर्थन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था का अपना राजनीतिक ढांचा होता है। राजनीतिक ढांचा तभी कार्य कर सकता है यदि इसके लिए उसे आवश्यक सामग्री प्राप्त हो। राजनीतिक व्यवस्था निवेशों के बिना नहीं चल सकती। डेविड ईस्टन ने निवेशों को दो भागों में बांटा है

1.निवेश मांगें- प्रत्येक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा संगठन राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की आशा रखते हैं और इसीलिए वे राजनीतिक व्यवस्था के सामने कुछ मांगें प्रस्तुत करते हैं। डेविड ईस्टन के अनुसार ये मांगें चार प्रकार की हो सकती हैं-(1) राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने की मांग (2) वस्तुओं और सेवाओं के वितरण की मांग (3) व्यवहार को नियमित करने के सम्बन्ध में मांग (4) संचारण और सूचना प्राप्त करने के सम्बन्ध में मांग।

2. निवेश समर्थन-डेविड ईस्टन के अनुसार समर्थन उन क्रियाओं को कहा जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की मांगों का मुकाबला करने की क्षमता प्रदान करती है। यदि किसी राजनीतिक व्यवस्था के पास किसी मांग के लिए समर्थन प्राप्त नहीं है अर्थात् उसके पास उसे पूरा करने की क्षमता नहीं है तो वह उसे पूरा नहीं कर सकती। समर्थन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-(1) भौतिक समर्थन (2) वैधानिक समर्थन (3) सहभागी समर्थन (4) सम्मान समर्थन।

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प्रश्न 15.
निकासों के अर्थों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
निकासों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में मांगों तथा समर्थनों द्वारा आरम्भ की गई गतिविधियों के परिणामों को ही निर्गत या निकास कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि मांगों की पूर्ति के ही निकास होते हैं। निकास मांगों के अनुकूल भी हो सकते हैं और उनके विरुद्ध भी। निकास अग्रलिखित प्रकार के हो सकते हैं

  • निकालना-यह लगान, कर, जुर्माना, लूट का माल और व्यक्तिगत सेवाओं के रूप में हो सकती है।
  • व्यवहार का नियमन-व्यवहार का नियम जो मनुष्यों के सम्पूर्ण व्यवहारों तथा सम्बन्धों को प्रभावित करता है।
  • वस्तुओं या सेवाओं का वितरण-निर्गत का एक अन्य रूप वस्तुओं, सेवाओं के अवसर और पदवियों का वितरण आदि है।
  • सांकेतिक निर्गत-इसमें मूल्यों तथा आदर्शों का पुष्टिकरण, राजनीतिक चिह्नों का प्रदर्शन, नीतियों की घोषणा आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 16.
राजनीतिक प्रणाली के छः कार्य लिखें।
उत्तर-
इसके लिए प्रश्न नं० 7 एवं 8 देखें।

1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं तथा संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था की दो परिभाषाएं लिखो।
उत्तर-

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती है।”

प्रश्न 3.
प्रणाली की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. प्रणाली भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  2. प्रणाली के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।

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प्रश्न 4.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में दो मुख्य अन्तर लिखो।
उत्तर-

  1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  2. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली में फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
‘शासन की प्रक्रिया’ (The Process of Government) नामक पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
‘शासन की प्रक्रिया’ नामक पुस्तक आर्थर बेंटले ने लिखी।

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प्रश्न 7.
‘राजनीतिक प्रणाली’ (The Political System) नाम की पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली (The Political System) नाम की पुस्तक डेविड ईस्टन ने सन् 1953 में लिखी।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली के दो निकास (Output) कार्यों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।
  2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली के दो निवेश कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-जब लोग राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।
  2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
राजनीतिक संचार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म 20वीं शताब्दी में हुआ।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली शब्द का प्रयोग सबसे पहले किस राजनीतिक विज्ञानी ने किया ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के अधीन ‘राजनीतिक’ शब्द का अर्थ बताएं।
उत्तर-
किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उसी समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है।

प्रश्न 4.
व्यवस्था शब्द का अर्थ लिखिए।
अथवा
प्रणाली शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
व्यवस्था (प्रणाली) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (interactions) के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह से लिया जाता है, जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का हाथ होता है।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”

प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था प्रत्येक समाज में पाई जाती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली का एक निवेश कार्य लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण और प्रवेश या भर्ती।

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प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली का एक निकास कार्य लिखें।
उत्तर-
नियम निर्माण कार्य।

प्रश्न 10.
राजनीतिक प्रणाली एवं राज्य में कोई एक अन्तर लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में आत्मनिर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है।

प्रश्न 11.
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ लिखें।
उत्तर-
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों के परिणामों को पुन: व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना।

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प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली की धारण को लोकप्रिय बनाने वाले किसी एक आधुनिक लेखक का नाम लिखें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन।

प्रश्न 13.
राजनीतिक व्यवस्था का वातावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण कहते हैं।

प्रश्न 14.
‘नियम निर्माण कार्य’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
परम्परावादी दृष्टिकोण के अनुसार विधानमण्डल को सरकार का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। इस अंग का मुख्य कार्य कानून बनाना है। इसी कार्य को ही आल्मण्ड ने राजनीतिक प्रणाली के नियम निर्माण के कार्य का स्वरूप बताया है।

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प्रश्न 15.
‘नियम निर्णय कार्य’ क्या होता है ?
उत्तर-
समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अतः यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
‘नियम लागू करने का कार्य’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
आल्मण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की सार्वभौमिकता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 18.
राजनीतिक प्रणाली के कौन-से निकास कार्य हैं ?
उत्तर-
(1) नियम बनाना
(2) नियम लागू करना
(3) नियम निर्णयन कार्य।

प्रश्न 19.
राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है, जोकि राजनीतिक प्रणाली की भूमिका को सीमित कर देता है। इसकी सीमाएं क्षेत्रीय नहीं, बल्कि कार्यात्मक होती हैं।

प्रश्न 20.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक अनौपचारिक ढांचे का नाम लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक दल।

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प्रश्न 21.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक औपचारिक ढांचे का नाम लिखें। ।
उत्तर-
विधानपालिका।

प्रश्न 22.
राजनीतिक प्रणाली के दो कार्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
(1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती
(2) हित स्पष्टीकरण।

प्रश्न 23.
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनैतिक समुदाय का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जो समूह सामूहिक क्रियाओं और प्रयत्नों द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं, उन्हें राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

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प्रश्न 24.
हित स्पष्टीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
आल्मण्ड व पावेल के अनुसार अलग-अलग व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हित स्पष्टीकरण कहते हैं।

प्रश्न 25.
राजनीतिक संचार से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 26.
हित समूहीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
विभिन्न हितों को एकत्र करने की क्रिया को हित समूहीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 27.
राजनीतिक भर्ती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है, जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें –

1. राजनीतिक व्यवस्था के दो भाग-राजनीतिक एवं ………………
2. राजनीतिक शब्द ……………….. का सूचक है।
3. व्यवस्था शब्द का प्रयोग …………….. के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।
4. राजनीतिक समाजीकरण एक …………….. कार्य है।
5. नियम निर्माण एक ……………….. कार्य है।
उत्तर-

  1. व्यवस्था
  2. सत्ता
  3. अन्तक्रियाओं
  4. निवेश
  5. निर्गत ।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. व्यवस्था भिन्न अंगों या हिस्सों से बनती है।
2. प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप कार्य करने की योग्यता होती है।
3. आल्मण्ड पावेल ने राजनीतिक समुदाय की शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति का नाम दिया है।
4. मूल्यों के सत्तात्मक आबंटन की धारणा आल्मण्ड पावेल से सम्बन्धित है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण है –
(क) शक्ति या सत्ता
(ख) संगठन
(ग) मानव व्यवहार
(घ) राबर्ट ई० रिग्स।
उत्तर-
(क) शक्ति या सत्ता

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग कौन-कौन से हैं ?
(क) राज्य एवं सरकार
(ख) अधिकार एवं कर्त्तव्य
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था
(घ) स्वतन्त्रता एवं समानता।
उत्तर-
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था

प्रश्न 3.
“राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है, जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है, तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।” यह कथन किसका है।
(क) आल्मण्ड पावेल
(ख) डेविड ईस्टन
(घ) राबर्ट डहल।
(ग) लासवैल
उत्तर-
(ख) डेविड ईस्टन

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प्रश्न 4.
राजनीतिक व्यवस्था की विशेषता है
(क) मानवीय सम्बन्ध
(ख) औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग
(ग) व्यापकता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
राजनीतिक व्यवस्था का निवेश कार्य है
(क) हित स्पष्टीकरण
(ख) हित समूहीकरण
(ग) राजनीतिक संचारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपत्र डेल्टा।

प्रश्न (ख)
विश्व की सबसे बड़ी कैनियन कौन-सी है ?
उत्तर-
अमेरिका की कोलोरा नदी पर ग्रांड कैनियन।

प्रश्न (ग)
डेल्टा और मियाँडर (Meander) (घुमाव ) शब्द कहाँ से लिए गए हैं ?
उत्तर-
डेल्टा यूनानी भाषा के चौथे अक्षर (A) से लिया गया है। मियाँडर तुर्की भाषा का शब्द है।

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प्रश्न (घ)
कोसी नदी के जलोढ़ पंखे की लंबाई-चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
154 किलोमीटर लंबा और 143 किलोमीटर चौड़ा।

प्रश्न (ङ)
डेल्टा किसे कहते हैं ? इसकी कोई एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
समुद्र के निकट दरिया के निक्षेप से बने त्रिकोण आकार के मलबे को डेल्टा कहते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसका उदाहरण है।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
भौतिक मौसमीकरण।
उत्तर-
जब यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-फूट कर चूरा-चूरा हो जाती हैं, तब उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार मौसमीकरण से चट्टानों की टूट-फूट (Disintegration) होती है। इससे रासा

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

प्रश्न (ग)
जैविक मौसमीकरण।
उत्तर-
पौधों, जानवरों और मनुष्यों की गतिविधियों के कारण जब चट्टानों का विघटन हो जाता है, तब इसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं। पौधे अपनी जड़ों से चट्टानों में दरारें डाल देते हैं।

प्रश्न (घ)
अपरदन।
उत्तर-
भू-तल पर काट-छाँट, कुरेदने और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं। नदी, हवा, हिमनदी इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ङ)
मानवीय गतिविधियों का मौसमीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
मनुष्य मकानों, सुरंगों, रेलमार्गों, खदानों आदि को बनाने के लिए चट्टानों को तोड़-फोड़ कर कमज़ोर कर देता है।

प्रश्न (च)
मौसमीकरण की क्रिया से क्या अभिप्राय है ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर-
बाहरी शक्तियों के कारण धरती के आकार को बदलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार धरती की सतह के ऊपर मौसम के प्रभाव से होने वाली तोड़-फोड़ को मौसमीकरण कहते हैं। जलवायु, नमी, वर्षा, कोहरे आदि के कारण चट्टानें टूटती, फैलती अथवा सिकुड़ती हैं, जिसे मौसमीकरण कहते हैं।

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3. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अनावृत्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? भू-निर्माण (Aggragation) और भू-निमान (निम्न) (Degradation) में अंतर व्याख्या सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
भीतरी और बाहरी शक्तियाँ- भूपटल पर भीतरी (Endogenetic) और बाहरी (Exogenetic) दो प्रकार की शक्तियाँ परिवर्तन लाती हैं। भीतरी शक्तियों द्वारा भूपटल के कुछ भाग ऊँचे उठकर पर्वत, पठार और मैदान बन जाते हैं। कई भाग नीचे धंस जाते हैं और दरारों, घाटियों आदि का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार धरातल समतल नहीं होता बल्कि ऊँचा-नीचा हो जाता है। भूपटल की इस असमानता को बाहरी शक्तियाँ (Exogenetic or External Forces) दूर करती हैं। वास्तव में भीतरी और बाहरी शक्तियाँ एक-दूसरे के विपरीत काम करती हैं। जैसे ही धरातल पर भीतरी शक्तियों द्वारा किसी भू-स्थल की रचना होती है, तो बाहरी शक्तियाँ उसे घिसाने का काम आरम्भ कर देती हैं। इन शक्तियों का एक ही काम होता है-धरातल की असमानता को दूर करके भूतल को समतल बनाना। बाहरी शक्तियों को परिवर्तन के बाहरी कारक (External Agents of change) भी कहते हैं।

अनावरण (Denudation)-

मौसमीकरण (Weathering) भूपटल पर परिवर्तन लाने वाली वह बाहरी शक्ति है, जो चट्टानों का विघटन और अपघटन करके उन्हें नष्ट करती है। इसके अलावा एक और प्रक्रिया है, जो चट्टानों को धीरे-धीरे घिसाकर उन्हें नंगा कर देती है और इन चट्टानों से प्राप्त सामग्री को उठाकर ले जाती है, इस प्रक्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं। मौसमीकरण और अपरदन के मिले-जुले प्रभाव को अनावरण कहते हैं। अनावरण चट्टानों को अलग-अलग साधनों द्वारा तोड़-फोड़ कर नंगा करने और फिर उन्हें सपाट करने की क्रिया को कहते हैं। (Denudation means to lay the rocks bare.)

अनावरण के कार्य (Works of Denudation)—अनावरण की क्रिया में नीचे लिखे तीन प्रकार के कार्य होते हैं-

1. अपरदन (Erosion) बहता जल, हिमनदी, वायु आदि शक्तियों के साथ बहते पत्थर, कंकर, रेत आदि भू तल को घिसाते और कुरेदते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।

2. स्थानांतरण (Transportation)-ये कारक अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। सामग्री को इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया को ,स्थानांतरण कहते हैं। स्थानांतरण की इस क्रिया में चट्टानों के टुकड़े, पत्थर, कंकड़ आदि आपस में
टकराकर टूटते भी रहते हैं।

3. निक्षेपण (Deposition)—ये कारक अपरदन से प्राप्त मलबे को ले जाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देते हैं। इसे निक्षेपण कहते हैं।

इसी प्रकार निचले स्थान को सपाट करने की क्रिया को भू-निर्माण (Aggaradation) कहते हैं और ऊँचे भाग को नीचा करने की क्रिया को भू-निमान (Degradation) कहते हैं।

प्रश्न (ख)
नदी की युवा अवस्था क्या है ? इस अवस्था में नदी कौन-कौन सी आकृतियाँ बनाती है ?
उत्तर-
नदी की युवा अवस्था अथवा प्राथमिक भाग नदी के स्रोत से लेकर मैदानी भाग तक होता है। इस भाग में जल की गति तेज़ होती है, तेज़ ढलान के कारण गहरा कटाव होता हैं और तंग घाटी बनती है। नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है और इसे युवा नदी कहते हैं।

नदी के कार्य (Works of River)-

भूमि-तल को समतल करने वाली बाहरी शक्तियों में से नदी का सबसे अधिक महत्त्व है। वर्षा का जो पानी धरातल पर बहते हुए पानी (Run-off ) के रूप में बह जाता है, वह नदियों का रूप धारण कर लेता है। नदी के कार्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपरदन (Erosion)
  2. स्थानांतरण (Transportation)
  3. निक्षेप (Deposition)

1. अपरदन (Erosion)-नदी का प्रमुख कार्य अपने तल और किनारों पर अपरदन करना है। नदियों का मुख्य . उद्देश्य धरती को समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.)

अपरदन की विधियाँ (Methods of Erosion)-नदी का अपरदन नीचे लिखे तरीकों से होता है-

(i) रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—यह अपरदन घुलन क्रिया (Solution) द्वारा होता है। नदी के जल के संपर्क में आने वाली चट्टानों के नमक (Salts) घुलकर पानी में मिल जाते हैं।

(ii) भौतिक अपरदन (Mechanical Erosion)-नदी के साथ बहने वाले कंकड़, पत्थर आदि नदी के तल और किनारों को काटते हैं। किनारों के कटने से नदी चौड़ी और तल के कटने से नदी गहरी होती है। भौतिक कटाव तीन प्रकार के होते हैं –

(क) तल का कुरेदना (Down cutting)
(ख) किनारों का कुरेदना अथवा तटीय अपरदन (Side Cutting)
(ग) तोड़-फोड़ (Attrition)

नदी के अपरदन की मात्रा आगे लिखी बातों पर निर्भर करती है

यनिक परिवर्तन नहीं होता। सूर्य का ताप और कोहरा इसके प्रमुख कारक हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

  1. पानी का परिमाण (Volume of water)
  2. धरातल की ढलान (Slope of the land)
  3. पानी का वेग (Velocity of water)
  4. नदी का भार (Load of water)
  5. चट्टानों की रचना (Nature of the Rocks)

नदी में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण अपरदन अधिक होता है।
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती हैं। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (square) का अनुपात होता है-

अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2
नदी के अपरदन के द्वारा नीचे लिखे भू-आकार बनते हैं-

1. ‘V’ आकार की घाटी (‘V’ Shaped valley)—नदी पहाड़ी भाग में अपने तल को गहरा करती है, जिसके कारण ‘V’ आकार की गहरी घाटी बनती है। ऐसी तंग, गहरी घाटियों को कैनियन (Canyons) अथवा प्रपाती घाटी भी कहते हैं।
उदाहरण-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलोराडो घाटी में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) 480 किलोमीटर लंबी और 2000 मीटर गहरी है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 1

2. गहरी घाटी/गॉर्ज (Gorges)—पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत गहरे और तंग नदी मार्गों को गॉर्ज (Gorge) अथवा कंदरा कहते हैं। पहाड़ी क्षेत्र ऊँचे उठते रहते हैं, परन्तु नदियाँ निरंतर गहरे कटाव करती रहती हैं। इस प्रकार ऐसे नदी मार्गों का निर्माण होता है, जिनकी दीवारें लंबरूप में होती हैं। उदाहरण-हिमालय पर्वत में सिंध नदी, असम में ब्रह्मपुत्र नदी और हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी गहरे गॉर्ज बनाती है।

3. चश्मे और झरने (Rapids and Water-falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे जल का झरना अथवा जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

(क) जब कठोर चट्टानों की परत नरम चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) रूप में हो, तो निचली नरम चट्टानें जल्दी कट जाती हैं, तब चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।

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उदाहरण-

(i) यू० एस० ए० में नियागरा (Niagra) जल-प्रपात जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है। (ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है। (iii) जब कठोर और नरम चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (vertical) में हों, तब कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

उदाहरण-अमेरिका में यैलो स्टोन नदी (Yellow Stone River) का जल-प्रपात।
चश्मे (Rapids)—जब कठोर और मुलायम चट्टानों की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछी हों और कुछ झुकी हों, तो चश्मों की एक लड़ी बन जाती है।

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उदाहरण-कांगो नदी (Cango River) में लिविंगस्टोन फॉल्ज़ (Living Stone Falls) नामक 32 झरनों की एक लड़ी है।

प्रश्न (ग)
जमा करने की क्रिया के दौरान नदी का भू-आकृतियों का धरातल (Topography) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
नदी का परिवहन कार्य (Transportation Work of River) –
नदी अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री (Load) को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। नदी द्वारा इस सामग्री के स्थान-परिवर्तन की क्रिया को नदी-परिवहन कहते हैं। इस सामग्री का स्थान-परिवर्तन अनेक प्रकार से होता है, जो आगे लिखे अनुसार है

1. जल में रगड़ के साथ (Traction)—इसमें बड़े चट्टानी टुकड़े, भारी पत्थर आदि नदी के तल के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं।

2. जल में उठाया हुआ मलबा (Load in Suspension)—मध्यवर्ती और सूक्ष्म श्रेणी की सामग्री नदी के जल के साथ तैरती जाती है।

3. जल में घुलकर (Solution)—जो सामग्री घुलनशील होती है, वह जल-धारा में घुले हुए रूप में प्रवाह करती है। नदी की परिवहन शक्ति दो तत्त्वों पर निर्भर करती है –

(i) नदी का वेग (Velocity of the River)
(ii) नदी के जल की मात्रा (Volume of water)-नदी के परिवहन और वेग में छठी शक्ति का अनुपात होता है –

नदी की परिवहन शक्ति = (नदी का वेग)6

नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)-

नदी का वेग जब कम हो जाता है और उसमें सामग्री की अधिकता हो जाती है, तो इस सामग्री का निक्षेप आरंभ हो जाता है। नदी की इस क्रिया को नदी का निक्षेपण (River Deposition) कहते हैं। इस प्रकार नदियों द्वारा निक्षेपण उनकी अपरदन क्रिया का प्रतिफल है। भारी पदार्थों का मैदानी मार्ग के ऊपरी भागों में और सूक्ष्म कणों का डेल्टा के भागों में निक्षेपण होता है।

नदी का निक्षेपण तब होता है, जब-

1. नदी का जल और अपरदन शक्ति कम हो जाए। 2. मुख्य नदी और सहायक नदियों का भार बढ़ जाए। 3. नदी की ढलान कम हो। 4. नदी का वेग धीमा हो।

नदी निक्षेपण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms produced by River Deposition)-

नदी अपने मैदानी मार्ग में अपरदन और निक्षेपण दोनों काम करती है, परंतु डेल्टाई भागों में इसका एक ही निक्षेपण का काम होता है। निक्षेपण क्रिया के फलस्वरूप नीचे लिखी भू-आकृतियों का निर्माण होता है-

1. जलोढ़ पंखे अथवा कोन (Alluvial Fan or Cone)–नदी जब पर्वतीय भागों को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है, तो भूमि की ढलान के कम हो जाने के कारण इसका बहाव धीमा हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाए चट्टानों के टुकड़ों, पत्थरों, कंकड़ों आदि को आगे ले जाने में असमर्थ हो जाती है और इस सामग्री को पर्वतों के पैरों में छोड़ देती है। यह निक्षेप ढेर के रूप में पर्वतों के सहारे एकत्र हो जाता है। यह ढेर एक कोण के आकार का होता है। इसे जलोढ़ी पंखा भी कहा जाता है।

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2. नदी विसर्पण अथवा नदी में घुमाव (River Meanders)—प्रौढ़ अवस्था में नदी की ढाल कम हो जाती है और नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है। नदी की धाराएँ अपने मार्ग में आने वाली छोटी-सी रुकावट के कारण भी मुड़ जाती हैं और एक किनारे की ओर से दूसरे किनारे की तरफ बहने लगती हैं। ये रुकावट वाले किनारे पर निक्षेपण और दूसरे किनारे पर अपरदन करती हैं। अपरदित किनारे से फिर पहले किनारे की ओर मुड़ जाती हैं और फिर वे किनारों को काटती हैं। इस प्रकार ये दोनों किनारे क्रम से कट जाते हैं। साथ-हीसाथ अपरदित सामग्री का किनारों पर निक्षेप भी होता है। इस प्रकार यदि किनारे का एक भाग कट के पीछे हटता है, तो इसी किनारे का दूसरा भाग इस पदार्थ को प्राप्त करके नदी की ओर बढ़ता है। ऐसी ही क्रिया दूसरे किनारे पर भी होती है। परिणामस्वरूप नदी में घुमाव आने शुरू हो जाते हैं। इन घुमावों को ही नदी विसर्पण कहते हैं। तुर्की देश की मिएंडर (Meanders) नदी के मार्ग में ऐसे अनेक घुमाव या विसर्पण हैं। इसीलिए इस नदी के घुमावों को मिएंडर (Meanders) कहते हैं।

3. धनुषदार झील (Oxbow Lake)-ज्यों-ज्यों नदी में विसर्प बड़े हो जाते हैं, वैसे-वैसे उनका आकार वृत्ताकार होता जाता है। इस अवस्था में नदी बाढ़ के समय मोड़ों को छोड़कर इसके निकटवर्ती भाग को काटकर बहने लगती है। यह सीधा प्रवाह-मार्ग बाढ़ के बाद भी बना रहता है। ऐसी अवस्था में मोड़ वाला भाग झील का रूप धारण कर लेता है। इसे धनुषदार झील कहते हैं। आकार में यह बैल के खुर या धनुष के समान प्रतीत होती है, इसलिए इसे गाय-खुर झील भी कहते हैं।

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4. प्राकृतिक बाँध अथवा तटीय बाँध और बाढ़ के मैदान (Natural Embankments or Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में नदी में अचानक बाढ़ आ जाती है, जिसके कारण नदी का जल तटों को पार करके निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने का यत्न करता है परंतु ये तट उसके फैलने पर रोक लगाते हैं, इसलिए वह अपना अधिकतर मलबा तटों पर ही इकट्ठा कर देती है। इससे ये किनारे ऊँचे उठ जाते हैं और बाँध के रूप में बाढ़ के पानी को निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने से रोकते हैं। इन्हें तटीय बाँध कहते हैं। ह्वांग-हो, गंगा और मिसीसिपी नदियों की निचली घाटियों में कई तटीय बाँध बन गए हैं। भयंकर बाढ़ के कारण जब ये बाँध टूट जाते हैं, तो उनकी रेत को नदी निकटवर्ती क्षेत्र में निक्षेप कर देती है। इस क्षेत्र को बाढ़ का मैदान कहते हैं।

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5. डेल्टा (Delta) सागर में प्रवेश करने से पहले ढलान बहुत कम होने के कारण नदी की शक्ति और वेग बहुत कम हो जाता है। फलस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाई सामग्री को अपने मुहाने पर ही एकत्र कर देती है और अपना मार्ग बंद कर लेती है। नदी अपना प्रवाह बनाए रखने के लिए नया मार्ग खोजती है। इस स्थल आकृति को डेल्टा कहा जाता है। इसका आकार यूनानी भाषा की वर्णमाला का चौथा अक्षर डेल्टा (Δ) से मिलता है।गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बने सुंदर वन डेल्टा और नील नदी का डेल्टा इसके विशेष उदाहरण हैं। डेल्टा के निर्माण के लिए नीचे लिखी स्थितियों का होना ज़रूरी है –
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  • नदी का स्रोत पर्वतों में हो, जहाँ से यह काफ़ी मात्रा में सामग्री बहाकर ला सके।
  • पर्वत और मैदानी मार्गों में कई सहायक नदियाँ मिलनी चाहिए, ताकि अधिक सामग्री प्राप्त हो सके।
  • नदी का मैदानी मार्ग अधिक लंबा होना चाहिए, ताकि उसका प्रवाह धीमा हो जाए और नदी द्वारा लाई सामग्री सीधी सागर में न जा गिरे।
  • नदी के मार्ग में कोई झील नहीं होनी चाहिए। मार्ग में यदि कोई झील होगी, तो सामग्री का निक्षेप उसमें हो जाएगा और डेल्टा के निर्माण के लिए सामग्री नहीं रहेगी।
  • नदी के मुहाने के पास सागर शांत होना चाहिए, नहीं तो सागर की धाराएँ, लहरें और ज्वारभाटा सामग्री को गहरे सागर में ले जाएंगे और मुहाने के पास निक्षेप नहीं होगा।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (घ)
नदी अपरदन की क्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें।
उत्तर-
नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of the River)-

नदी द्वारा प्रवाहित पत्थर, कंकड़, रेत आदि नदी घाटी को घिसाते, कुरेदते और चट्टानों की तोड़-फोड़ करते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।
नदी सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। नदी का मुख्य उद्देश्य धरती को काटकर समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.) नदी आगे लिखे तरीकों से अपरदन करती है-

  1. भौतिक अपरदन (Physical Erosion)—इसमें नदी किनारों के कटाव (Side Cutting) और तल के कटाव (Down Cutting) का काम करती है।
  2. रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—नदी घुलनशील चट्टानों को घोलकर नष्ट कर देती है।

नदी के अपरदन के प्रकार (Types of River Erosion)-

  1. रगड़न (Abrasion)–नदी बहते पत्थर, कंकड़, बज़री आदि के साथ रगड़ने की क्रिया करती है।
  2. सहरगड़न (Attrition)—पत्थर, कंकड़ आदि आपस में टकराते हैं।
  3. घुलकर (Solution)-नदी का जल कई चट्टानों को घोल देता है। अनुमान है कि नदियाँ हर वर्ष 500 करोड़ टन खनिज पदार्थ घोलकर समुद्र में ले जाती हैं।
  4. जल-दबाव क्रिया (Hydraulic action) नदी के जल के दबाव के साथ भी चट्टानें टूटती रहती हैं।

नदी अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling River Erosion)-नदी अपरदन को नीचे लिखे कारक नियंत्रित करते हैं-

1. नदी में जल की मात्रा (Volume of water in a River) नदी में जल की मात्रा अधिक होने से अपरदन भी अधिक होता है। यही कारण है कि जिन नदियों में बाढ़ें अधिक आती हैं, उनमें अपरदन भी अधिक होता है।

2. नदी के जल की गति (Velocity of River Water)—तेज़ी से प्रवाह करती हुई नदी में अधिक शक्ति होती है। नदी का वेग नदी घाटी की ढलान और जल प्राप्ति पर निर्भर करता है। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती है। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (Square) का अनुपात होता है
अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2

3. नदी जल में सामग्री की मात्रा (Volume of Load in a River)–नदी अपने जल के साथ घाटी से प्राप्त अनेक प्रकार की सामग्री का प्रवाह करती है। कुछ सामग्री जल में घुली हुई, कुछ तैरती हुई अवस्था में और कुछ तल के साथ-साथ लुढ़कती हुई चलती है। यह सामग्री नदी के उपकरण (Tools) होते हैं।

4. चट्टानों की कठोरता (Solidity of Rocks) नदी तल पर चट्टानों की संरचना और उनके लक्षणों पर भी अपरदन निर्भर करता है। तल की चट्टानों के कठोर होने के कारण कटाव धीरे-धीरे होता है। नदी तल पर चट्टानों में दरारें अपरदन में सहायता करती हैं।

प्रश्न (ङ)
अंतर बताएं :
(i) झरना-चश्मा (उछलकायें)
(ii) जलोढ़ कोन-जलोढ़ पंखा
(iii) जल कुंड-प्राकृतिक बांध
(iv) बाढ़ के मैदान-डेल्टा
उत्तर-
(i) झरना (Waterfall)

  1. जब नरम चट्टानों के ऊपर क्षैतिज अवस्था में कठोर चट्टानों की परत हो, तो झरना बनता है।
  2. नील नदी इसका उदाहरण है।

चश्मा (Rapid)-

  1. जब कठोर और नरम चट्टानों की परतें लंब रूप में होती हैं, जिसके फलस्वरूप जल चश्मे के रूप में बहना शुरू हो जाता है।
  2. नियागरा झरना इसका उदाहरण है।

(ii) जलोढ़ कोन (Alluvial Cone)-

  1. जब नदी पर्वतीय भाग से निकलकर पहाड़ों के दामन में निक्षेप करती है, तो जलोढ़ कोन बनते हैं।
  2. हिमालय के दामन में कई जलोढ़ कोन हैं।

जलोढ़ पंखे (Alluvial Fans)-

  1. कई जलोढ़ी कोन मिलकर एक जलोढ़ी पंखे का निर्माण करते हैं।
  2. कोसी नदी का जलोढ़ पंखा।

(iii) जलकुंड-
नदी के मार्ग में छोटे-छोटे गड़े बन जाते हैं। धीरे-धीरे ये गड्ढे बड़े होकर जलकुंड बन जाते हैं।

प्राकृतिक बाँध-
नदी के निचले भाग में नदी घाटी के मार्ग में निक्षेप के कारण एक बाँध बन जाता है जिसे प्राकृतिक बाँध कहते हैं।

(iv) बाढ़ के मैदान-
नदी का पानी अपने निचले मार्ग पर किनारों के बाहर बहता है, तब तलछट के निक्षेप से बाढ़ का मैदान बन जाता है।

डेल्टा –
समुद्र में गिरने से पहले नदी एक त्रिकोण के आकार की भू-आकृति बनाती है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

Geography Guide for Class 11 PSEB नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
किन्हीं तीन बाहरी शक्तियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हवा, नदी, हिमनदी।

प्रश्न 2.
अनावृत्तिकरण की क्रिया के दो कारक बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 3.
Mass Wasting से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
फ्लाक के अनुसार मलबे का परिवहन।

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प्रश्न 4.
कार्बनीकरण की क्रिया किन क्षेत्रों में होती है ?
उत्तर-
चूने की चट्टानों के क्षेत्र में।

प्रश्न 5.
जलकरण की क्रिया का एक क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
विंध्याचल पहाड़ियाँ।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के दो साधन बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और वर्षा।

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प्रश्न 7.
मौसमीकरण में सहायक एक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
ढलान।

प्रश्न 8.
सूर्य के ताप के माध्यम से मौसमीकरण किस प्रदेश में अधिक होता है ?
उत्तर-
मरुस्थल।

प्रश्न 9.
कोहरा पड़ने पर पानी के जम जाने से आयतन कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
1/11 गुणा।

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प्रश्न 10.
भारत में खाइयाँ (Ravines) किस प्रदेश में मिलती हैं ?
उत्तर-
चंबल घाटी।

प्रश्न 11.
भारत में मिट्टी के काम किस प्रदेश में मिलते हैं ?
उत्तर-
स्पीति घाटी।

प्रश्न 12.
ऑक्सीकरण की क्रिया के लिए कौन-सी गैस काम करती है ?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

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प्रश्न 13.
कार्बनीकरण का एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
गुफाओं का बनना।

बहुविकल्पी प्रश्न नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
ऑक्सीकरण क्रिया में कौन-सी गैस काम करती है ?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) कार्बन-डाइऑक्साइड
(घ) ओज़ोन।
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 2.
मिट्टी का निर्माण किस क्रिया से होता है?
(क) मौसमीकरण
(ख) अपरदन
(ग) परिवहन
(घ) निक्षेप।
उत्तर-
मौसमीकरण।

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प्रश्न 3.
जम जाने पर पानी का आयतन कितना बढ़ जाता है।
क) \(\frac{1}{2}\)
(ख) \(\frac{2}{3}\)
(ग) \(\frac{3}{4}\)
(घ) \(\frac{1}{10}\)
उत्तर-
\(\frac{1}{10}\)

प्रश्न 4.
कार्बन-डाइऑक्साइड किस चट्टान को घोल देती है ?
(क) चूने का पत्थर
(ख) ग्रेनाइट
(ग) बसालट
(घ) शैल।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

प्रश्न 5.
वर्षा के जल से कौन-सी क्रिया होती है ?
(क) भूमि का खिसकना
(ख) घोल
(ग) जलकरण
(घ) ऑक्सीकरण।
उत्तर-
भूमि का खिसकना।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न – (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—वायुमंडल की शक्तियों द्वारा चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अनावरण (Denudation)-चट्टानों को तोड़-फोड़ कर नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपरदन की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
अपरदन (Erosion)—दरियाओं के मौसमीकरण द्वारा हुई टूट-फूट को अपने साथ बहाकर ले जाना अपरदन कहलाता है।

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प्रश्न 4.
विघटन की परिभाषा दें।
उत्तर-
विघटन (Disintegration)—जब चट्टानें अपने स्थान पर ही टूटती हैं, तो उसे विघटन कहते हैं।

प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अपघटन (Decomposition)—जब चट्टानों के टूटने से उनकी रासायनिक संरचना बदल जाती है, तो उसे अपघटन कहते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक मौसमीकरण की परिभाषा दें।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-जब यांत्रिक शक्तियों के कारण चट्टानें टूट-फूट जाती हैं, तो उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 7.
रासायनिक मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-जब गैसों के प्रभाव से चट्टानें टूटती हैं, तो उसे रासायनिक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8.
जैविक मौसमीकरण क्या है ?
उत्तर-
जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-जब मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि चट्टानों को तोड़ने-फोड़ने में मदद करते हैं, तो उसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपवाह क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वह प्रदेश, जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और सहायक नदियों में बहता है, उसे नदी का अपवाह क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 10.
नदी के मार्ग को तीन भागों में बाँटें।
उत्तर-

  • ऊपरी भाग
  • मैदानी भाग
  • डेल्टा भाग।

प्रश्न 11.
नदी के अपरदन के अनुसार तीन अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर-

  • युवावस्था (Young Stage)
  • प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)
  • वृद्धावस्था (Old Stage)।

प्रश्न 12.
नदी अपरदन के दो तरीके बताएँ।
उत्तर-

  • भौतिक अपरदन
  • रासायनिक अपरदन।

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प्रश्न 13.
नदी के अपरदन और नदी के वेग में क्या संबंध है ?
उत्तर-
नदी की अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)। इस प्रकार नदी के अपरदन और वेग में वर्ग का अनुपात है।

प्रश्न 14.
नदी का अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर-

  • नदी में जल की मात्रा
  • नदी में जल की गति
  • नदी में उठाया सामान
  • चट्टानों की कठोरता।

प्रश्न 15.
गहरी घाटी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के पर्वतीय भाग में गहरे और तंग मार्ग को गहरी घाटी (Gorge) कहते हैं।

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प्रश्न 16.
भारत में गहरी घाटियों के दो उदाहरण दें।
उत्तर-
सतलुज नदी का गॉर्ज और ब्रह्मपुत्र नदी का गॉर्ज।

प्रश्न 17.
ग्रैंड कैनियन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तंग और गहरी नदी घाटी को कैनियन कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो नदी का ग्रैंड कैनियन 480 कि०मी० लम्बा और 1906 मीटर गहरा है।

प्रश्न 18.
झरना किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-
जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग से सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे झरना कहते हैं। अमेरिका में नियागरा झरना बहुत प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 19.
नदी के घुमाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी जब मोड़ खाती हुई चक्कर बना कर बहती है, तो उन्हें घुमाव अथवा मिएंडर (Meauders) कहते हैं।

प्रश्न 20.
किन्हीं तीन बाढ़ के मैदानों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गंगा नदी, मिसीसिपी नदी और ह्वांग हो नदी के मैदान।

प्रश्न 21.
गो-खुर झील (Oxbow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी में बाढ़ के समय एक मोड़ का किनारा जब दूसरे मोड़ के किनारे के निकट आ जाता है, तो नदी के मार्ग में एक मोड़ अलग होकर रह जाता है। इस नाम के खुर जैसे मोड़ को गो-खुर झील कहते हैं।

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प्रश्न 22.
डेल्टा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
नदी जब समुद्र में निक्षेप करती है, तो त्रिकोण आकार का थल रूप बनता है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 23.
संसार के प्रमुख डेल्टा के नाम बताएँ।
उत्तर-
नील नदी का डेल्टा, गंगा नदी का डेल्टा, मिसीसिपी नदी का डेल्टा, नाईज़र नदी का डेल्ट, यंगसी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 24.
पंजा डेल्टा क्या होता है?
उत्तर-
जब नदी कई शाखाओं में बँटकर निक्षेप करती है, तो उसकी धाराएँ उँगली के समान फैल जाती हैं, उसे पंजा डेल्टा कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अपरदन और मौसमीकरण में अंतर बताएँ-
उत्तर-
अपरदन (Erosion)-

  1. भू-तल पर काट-छाँट, खुरचन और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं।
  2. अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है।
  3. अपरदन गतिशील कारकों के द्वारा होता है जैसे नदी, हिमनदी, हवा आदि।
  4. मौसमीकरण अपरदन की क्रिया में मदद करता है।

मौसमीकरण (Weathering)-

  1. चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।
  2. मौसमीकरण एक छोटे क्षेत्र की क्रिया है।
  3. मौसमीकरण सूर्य के ताप, कोहरा और रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होता है।
  4. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में मदद करता है।

प्रश्न 2.
भौतिक मौसमीकरण और रासायनिक मौसमीकरण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-

  1. इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानें टूटकर चूर चूर-चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों की खनिज रचना में कोई अंतर नहीं आता।
  3. यह मौसमीकरण शुष्क और ठंडे प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. भौतिक मौसमीकरण की मुख्य शक्तियाँ ताप, कोहरा, वर्षा और हवा हैं।

रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-

  1. इसमें रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानें टूट-फूट कर चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों के खनिज भी बदल जाते हैं।
  3. यह मौसमीकरण उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. रासायनिक मौसमीकरण में कार्बन-डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव होता है।

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प्रश्न 3.
सूर्य का ताप किस प्रकार मौसमीकरण का काम करता है ?
उत्तर-
सूर्य का ताप (Temperature) सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एकदम गर्म होकर फैलती हैं और रात को तेज़ी से ठंडी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं फलस्वरूप ये टूटती हैं और चूरा-चूरा हो जाती है। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्य के ताप के द्वारा मौसमीकरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  • मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक और जल्दी मौसमीकरण होता है।
  • काले रंग की चट्टानों पर अधिक मौसमीकरण होता है।
  • पहाड़ी ढलानों और मरुस्थलों में मौसमीकरण महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में ताप में अधिक अंतर के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की आवाज़ जैसी होती है।

प्रश्न 4.
शीत प्रदेशों में कोहरा किस प्रकार मौसमीकरण का कार्य करता है ?
उत्तर-
कोहरा (Frost)—पहाड़ी ठंडे प्रदेशों में कोहरा मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में पानी भर जाता है। यह पानी सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग से दबाव डालता है। इस दबाव के साथ चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ रोड़ी (Scree) के रूप में जमा होता रहता है। हिमालय के पहाड़ी प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

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प्रश्न 5.
ऑक्सीकरण किस प्रकार मौसमीकरण की क्रिया में सहायक है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों तथा रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) भी कहते हैं। यह रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है आक्सीकरण (Oxidation)-चट्टानों के लौह खनिज के साथ ऑक्सीजन के मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं।

उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्षों में ही जंग लग गया।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण के प्रभाव (Effects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। यह मिट्टी वनस्पति और कृषि का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बनाकर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण के कारण ही घाटियाँ चौडी होती रहती हैं।

प्रश्न 7.
अपरदन और मौसमीकरण में अन्तर बताएँ।
नोट-
उत्तर के लिए प्रश्न नं० 1 (लघु उत्तरात्मक प्रश्न) देखें।

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प्रश्न 8.
भू-निर्माण (Aggradation) और भू-निमान (Degradation) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
धरती की बाहरी शक्तियाँ लगातार परिवर्तन करती रहती हैं। धरती का आकार बदलता रहता है। भू-आकार मिटते रहते हैं और नए भू-आकार बनते रहते हैं। भीतरी शक्तियाँ भू-आकारों का निर्माण करती है और बाहरी शक्तियां भू-आकारों को समतल करने का काम करती रहती हैं। इस प्रकार चट्टानों को तोड़-फोड़ और नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं।

भू-निर्माण (Aggradation) वह क्रिया है, जिसमें निक्षेप के द्वारा ऊँचे प्रदेशों का निर्माण होता है। बाहरी शक्तियाँ कुरेदे हुए मलबे को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और निचले स्थानों पर जमा कर देती हैं। इस प्रकार एक नए स्तर का अथवा तल का निर्माण होता है।

भू-निमान (Degradation) वह क्रिया है, जिसमें बाहरी शक्तियाँ अपरदन और मौसमीकरण के द्वारा ऊँचे प्रदेशों की ऊँचाई को कम कर देती हैं। इसमें अपरदन और मौसमीकरण किसी तल को नीचा करने का काम करते हैं। इस प्रकार भू-निर्माण और भू-निमान एक-दूसरे की विपरीत क्रियाएँ हैं, पर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं।

प्रश्न 9.
नदी मार्ग को स्रोत से लेकर मुहाने तक अलग-अलग भागों में बाँटें।
उत्तर-
नदी के भाग (Sections of a river)-
नदी का विस्तार किसी पहाड़ी प्रदेश से लेकर समुद्र तक होता है। नदी के निकास से लेकर नदी के मुहाने तक नदी को तीन भागों (Sections) में बाँटा जाता है। प्रत्येक भाग में नदी का कार्य, घाटी का रूप और भू-आकार अलग-अलग होते हैं।

1. पहाड़ी भाग अथवा आरंभिक भाग (Mountain Stage or Upper Course)—इस भाग में नदी की गति 10 मीटर प्रति कि०मी० से अधिक होती है। इसे युवा भाग (Young Stage) भी कहते हैं।

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2. घाटी वाला भाग अथवा मध्य भाग (Valley Stage or Middle Course)-इस भाग में नदी की गति 2 मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की प्रौढ़ अवस्था (Mature Stage) भी कहते हैं।

3. मैदानी भाग अथवा निचला भाग (Plain Stage or Lower Course)—इस भाग में नदी की गति मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की वृद्धावस्था (Old Stage) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
“नदी का अपरदन पानी की मात्रा और धरती की ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर-
नदी का अपरदन मुख्य रूप में पानी के वेग की मात्रा और घाटी की ढलान पर निर्भर करता है। अधिक ढलान के कारण नदी का वेग बढ़ जाता है और पर्वतीय भाग में कटाव अधिक होता है। बर्फ से ढके ऊँचे पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ अधिक पानी के कारण गहरी घाटियाँ बनाती हैं। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो नदी की अपरदन-शक्ति चौगुनी हो जाती है।

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प्रश्न 11.
धनुषदार झील (Ox-bow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी-मार्ग में बनने वाले मोड़ बड़े होकर पूरी तरह गोल हो जाते हैं। इनका आकार अंग्रेज़ी अक्षर ‘S’ जैसा हो जाता है। कई बार दो मोड़ एक-दूसरे के बहुत नज़दीक आ जाते हैं, तो गर्दन जैसे आकार का मोड़ बन जाता है। नदी के एक मोड़ का किनारा दूसरे किनारे से मिल जाता है। इस प्रकार नदी का एक मोड़ धनुष के आकार की झील के रूप में नदी से कट जाता है।

प्रश्न 12.
डेल्टा की रचना किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
समुद्र में गिरने से पहले नदी अपने मलबे के साथ डेल्टा की रचना करती है। नदी का अंतिम भाग समतल और धीमी ढलान वाला होता है। इसलिए मलबे का निक्षेप आसानी से हो जाता है। डेल्टा तब बनता है, यदि नदी के मुहाने पर ज्वारभाटे की कमी हो, समुद्र कम गहरा हो, कोई तेज़ धारा न बहती हो और नदी के मार्ग में कोई झील न हो, ताकि नदी का भार कम न हो जाए।

प्रश्न 13.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तेज़ ढलान होती है। यहाँ नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं, इसलिए मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। मलबे की कमी के कारण डेल्टा नहीं बनता। पश्चिमी तट की चौड़ाई भी कम है, इसलिए डेल्टा की रचना के लिए समतल भूमि की कमी है।

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प्रश्न 14.
जल-प्रपात की रचना के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जल-प्रपात (Water-Falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र में नीचे गिरता है, तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

1. जब कठोर चट्टानों की परत नर्म चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में हो, तो नीचे की नर्म चट्टानें जल्दी कट जाती हैं। उन चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।
उदाहरण-(i) यू०एस०एस० में नियागरा जल-प्रपात, जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है।
(ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है।

2. जब कठोर और नर्म चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (Vertical) हों, तो कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

प्रश्न 15.
‘V’ आकार घाटी और ‘U’ आकार घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
‘V’ आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-

  1. नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है।
  2. जब यह घाटी और अधिक गहरी हो जाती है, तो ‘I’ आकार की बन जाती है और इसे कैनियन कहते हैं।
  3. इसके किनारे पूरी तरह लंब रूप नहीं होते।
  4. नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है।

‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-

  1. हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
  2. यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती। इससे ऊँचाई से बनने वाली घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
  3. इसकी दीवारें लंब रूप में होती हैं।
  4. हिमनदी नदी घाटी का रूप बदलकर ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 16.
घुमाव/मोड़ (Meanders) कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
घुमाव/मोड़ (Meanders)—जब नदी मोड़ खाती हुई बहती है, तो उसके टेढ़े-मेढ़े रास्तों में छोटे-मोटे मोड़ पड़ जाते हैं, जिन्हें नदी के मोड़/घुमाव (Meanders) कहते हैं। नदी के अवतल किनारों (Concave Sides) के बाहरी तट पर तेज़ धारा के कारण कटाव होते हैं, पर नदी के उत्तल किनारों (Convex Sides) के भीतरी तट पर धीमी धारा के कारण निक्षेप होता है। इस प्रकार ये मोड़ और घुमाव धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं। तुर्की में मिएंडर (Meander) नदी के घुमाव को देखकर ही यह नाम रखा गया है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण की परिभाषा दें। इसकी अलग-अलग शक्तियों के कार्य बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—मौसम के भिन्न-भिन्न तत्त्वों द्वारा चट्टानों की टूट-फूट के कारण चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। (Weathering is the breaking up of Rocks by the elements of weather.) प्रसिद्ध भूगोलकार लॉबेक (Lobeck) के अनुसार, “मौसमीकरण चट्टानों के विघटन और अपघटन की प्रक्रियाओं के द्वारा होता है।” (Weathering results from the processes of rock disintegration and decomposition.)

चट्टानों की यह तोड़-फोड़ अथवा मौसमीकरण नीचे दी गई क्रियाओं से होती है-

  • विघटन (Disintegration)-ताप-अंतर के कारण जब चट्टानें टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं, तो उसे विघटन कहा जाता है।
  • अपघटन (Decomposition)-रासायनिक क्रियाओं द्वारा जब चट्टानें धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं, तो उसे अपघटन कहा जाता है। इस प्रकार चट्टानें ताप-अंतर द्वारा टूटती हैं और रासायनिक क्रिया द्वारा घिसती हैं और नष्ट होती हैं। इन चट्टानों का विघटन और अपघटन उनके अपने स्थान पर ही होता है।

मौसमीकरण को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Weathering)-

प्रत्येक स्थान पर मौसमीकरण एक समान नहीं होता क्योंकि भूतल पर चट्टानें और जलवायु सदा एक जैसी नहीं होतीं। मौसमीकरण नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करता है-

1. चट्टानों की संरचना (Structure of Rocks) असंगठित, घुलनशील और मुसामदार चट्टानों पर मौसमीकरण का प्रभाव बड़ी तेजी से होता है। नर्म चट्टानें जल्दी ही टूट जाती हैं, पर कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।

2. भूमि की ढलान (Slope of the Land)—वे क्षेत्र, जिनकी ढलान अधिक होती है, वहां मौसमीकरण तेज़ी से होता है। ढलान के कारण चट्टानों का संगठन कमज़ोर पड़ जाता है क्योंकि गुरुत्वा शक्ति के फलस्वरूप नीचे को खिसककर चट्टानें अपने आप ही टूटने लगती हैं और मार्ग में आने वाली चट्टानों को भी तोड़ देती हैं।

3. जलवायु में भिन्नता (Difference in Climate)-संसार के उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में तापमान की अधिकता और जल की अधिकता के कारण नर्म और घुलनशील चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं। इसके विपरीत उष्ण और शुष्क जलवायु के क्षेत्रों में दिन और रात के ताप में अंतर होने के कारण चट्टानें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस कारण इनका भौतिक मौसमीकरण होता है।

4. वनस्पति का प्रभाव (Effect of Vegetation) वनस्पति से रहित प्रदेशों में दिन के समय सूर्य-ताप के प्रभाव के कारण चट्टानें फैलती हैं और रात के समय ताप कम होने के कारण वही चट्टानें सिकुड़ने लगती हैं। इसी कारण उनका भौतिक विघटन होता है। इसके विपरीत वनों वाले क्षेत्रों में पेड़-पौधों की जड़ें चट्टानों को पकड़ कर रखती हैं।

5. चट्टानों के जोड़ व दरारें (Joints)-चट्टानों में जोड़ और दरारें तोड़-फोड़ में मदद करती हैं। इन दरारों में उगे पेड़ चट्टानों को चौड़ा करके उन्हें तोड़ देते हैं।

मौसमीकरण के प्रकार (Types of Weathering)-

मौसमीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)
  2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)
  3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)

1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)-जब चट्टानें भौतिक क्रिया द्वारा विघटित (Disintegrate) होती हैं और उनकी टूट-फूट होती है, तो उसे भौतिक मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। इसके कारण चट्टानों के खनिजों और गुणों में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि उनके खनिजों के टुकड़े हो जाते हैं। यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने स्थान पर ही टूट-फूट कर चूरा हो जाती हैं। इसे भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering) अथवा यांत्रिक मौसमीकरण (Mechanical Weathering) कहते हैं। भौतिक मौसमीकरण के नीचे लिखे तीन कारक हैं –

(i) सूर्य का ताप (Insolation) चट्टानों के भौतिक मौसमीकरण में सूर्य के ताप (Insolation) का बहुत महत्त्व है, जो कि उष्ण और शुष्क मरुस्थल में अपना प्रभाव डालता है।

(क) पिंड विघटन (Block Disintegration)—इन प्रदेशों में वर्षा की कमी और दिन-रात के तापमान में बहुत अंतर होने के कारण दिन में चट्टानें फैलती रहती हैं और रात के समय सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने को पिंड विघटन (Block Disintegration) कहते हैं। उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में अधिक तापमान के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की गोली की आवाज़ जैसी होती है।

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(ख) अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation)—दिन के समय मरुस्थलों में तीखी गर्मी पड़ती है, जिसमें चट्टानों की ऊपरी परत गर्म हो जाती है व फैल जाती है। इस प्रकार उनका आयतन बढ़ जाता है और उनकी बाहरी परत छिलके के समान अलग हो जाती है। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation) कहा जाता है।
उदाहरण-चट्टानों के टूट कर चूर्ण होने के कारण बने मलबे को टालस (Talus) कहते हैं।

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(ii) कोहरा (Frost)—ऊँचे अक्षांशों और ऊँचे पर्वतों पर अत्यधिक सर्दी होती है और बर्फ पड़ती है। दिन के समय सूर्य-ताप के कारण कुछ बर्फ पिघलकर जल का रूप धारण कर लेती है और फिर वह जल चट्टानों की दरारों में प्रवेश कर जाता है। ठंड होने पर फिर यह जल बर्फ का रूप धारण कर लेता है और इसका फैलाव बढ़ जाता है। जमने से पानी का आयतन 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी अपने आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस फैलाव के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है और दरारें बड़ी हो जाती हैं और टूट जाती हैं। ढलान पर पड़ी चट्टानें नीचे को लुढ़क जाती हैं और पर्वतों के पैरों में इकट्ठी हो जाती हैं। इस एकत्र हुए पदार्थ को चट्टानी मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है।
उदाहरण-हिमालय पर्वत के पहाड़ी प्रदेश में इस मौसमीकरण के कारण बड़े-बड़े टुकड़े टूटते रहते हैं।

(iii) वर्षा (Rainfall)-वर्षा का पानी बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है और प्रभाव डालता है।
(क) मिट्टी का अपरदन (Soil Erosion)-ढलान वाली भूमि और नदी घाटियों में वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले आता है। जैसे भारत में गंगा नदी हर रोज़ 10 लाख टन मिट्टी समुद्र तक बहाकर ले जाती है।

(ख) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land)-ज़ोर से वर्षा होने के कारण जल नालियाँ (Gullies) और खाइयाँ (Ravines) बन जाती हैं जिसके फलस्वरूप बंजर बिखरा हुआ धरातल बन जाता है, जैसे-भारत की चंबल घाटी में।

(ग) मिट्टी के खंभे (Earth Pillars)-वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है, पर कठोर चट्टानें एक टोपी (Cap) का काम करती हैं और मिट्टी के खंभे खड़े हो जाते हैं, जैसे–इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमाचल के स्पीति प्रदेश में।

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(घ) भू-स्खलन (Landslides)—वर्षा का पानी नर्म चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी बना देता है और चट्टानें ढलान की तरफ फिसल जाती हैं। सड़क मार्ग रुक जाते हैं। गढ़वाल क्षेत्र में भू-स्खलन के कारण सैंकड़ों मनुष्य दबकर मर गए थे।

(iv) हवा (Wind) हवा के कारण मौसमीकरण मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों अथवा वनस्पति-रहित प्रदेशों में होता है। रेत युक्त हवाएँ एक रेगमार (Sand Paper) के समान चट्टानों को चूर-चूर कर देती हैं।

(क) मरुस्थलों में से निकलने वाली रेलगाड़ियों को हर वर्ष रंग (Paint) करना पड़ता है।
(ख) टेलीग्राफ की तारें हवा के प्रहार से जल्दी घिस जाती हैं।
(ग) समुद्र तट की ओर के साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं,जैसे दानेदार शीशे (Frosted Glass) हों।
(घ) चट्टानों का आकार अजीब-सा हो जाता है। जैसे-राजस्थान में मांऊट आबू के पास Toad Rock |
(ङ) कई बार आकाशीय बिजली भी चट्टानों को तोड़-फोड़ देती है या पिघला देती है।

2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीज़न, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों और रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) कहते हैं। वर्षा का जल और गैसें रासायनिक मौसमीकरण के प्रमुख कारण हैं। मौसमीकरण अम्ल (Acid) और गैस मिले जल द्वारा होता है। रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है-

(क) ऑक्सीकरण (Oxidation)—इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौह युक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग (Rust) लगा देती है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष तक ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्ष में ही जंग लग गया।

(ख) कार्बनीकरण (Carbonation)-कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और पानी मिलकर चूने के पत्थर, जिप्सम, संगमरमर आदि को घोल देते हैं। चट्टानों के नष्ट होने से गुफाएँ बनती हैं।
उदाहरण-(i) यू०एस०ए० में Mammoth Caves (ii) भारत में खासी और चेरापूंजी, देहरादून प्रदेश।

(ग) जलकरण (Hydration)-हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें अंदर ही अंदर घिसकर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Keolin) का जन्म इस प्रकार फैलसपार (Felespar) चट्टानों के विघटन से हुआ है।

(घ) घोल (Solution)—पानी कई खनिजों को घोल देता है। ये खनिज घुलकर बह जाते हैं, जैसे चूना मिट्टी में से घुलकर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटराइट (Latrite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-वनस्पति, जीव-जंतुओं और मानवों द्वारा चट्टानों का जो मौसमीकरण होता है,उसे जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering) अथवा (OrganicWeathering) कहा जाता है।
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  • वनस्पति (Vegetation)-वनस्पति जैविक मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण कारक है। वनस्पति द्वारा चट्टानों का मौसमीकरण यांत्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार से होता है। चट्टानों की दरारों में पेड़-पौधे उग आते हैं। उनकी जड़ें चट्टानों को कमजोर कर देती हैं।
  • जीव-जंतु (Animals)-चट्टानों में मांदें बनाकर रहने वाले जीव जैसे-चूहे, खरगोश, लोमड़ी, चींटियां, कीड़े-मकौड़े, केंचुए, दीमक आदि चट्टानों को खोखला बना देते हैं। इससे चट्टानें असंगठित होकर टूट जाती हैं। इसके बाद वायु, जल आदि उन्हें बहाकर ले जाते हैं। चित्र-जैविक मौसमीकरण होमज़ के अनुसार प्रति एकड़ मिट्टी में 1,50,000 केंचुए हो सकते हैं, जो एक वर्ष के समय में 10 से 15 चट्टानों को उत्तम प्रकार की मिट्टी में बदल कर नीचे से ऊपर ले आते हैं।
  • मनुष्य (Man)-मनुष्य भी भूमि पर अनेक प्रकार के परिवर्तन करता है। वह भूमि से खनिज प्राप्त करने के लिए खदानें खोदकर चट्टानों को नर्म कर देता है। इमारतें और बाँध बनाने के लिए सामग्री जैसे-ईंटें, पत्थर, चूना, सीमेंट आदि चट्टानों को तोड़कर ही प्राप्त करता है।

मौसमीकरण के प्रभाव (Affects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। वह मिट्टी वनस्पति और खेती का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बना कर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण से ही नदी घाटियाँ चौड़ी होती रहती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 2.
नदी और नदी बेसिन की परिभाषा बताएँ। अलग-अलग अवस्थाओं में नदी के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
नदी (River)-
भूमि पर वर्षा के जल का कुछ भाग वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल में लोप हो जाता है और कुछ भाग भूमि की पारगामी चट्टानों में से होता हुआ धरती में चला जाता है, परंतु जल का अधिकतर भाग धरातल पर प्रवाहित (Run off ) होकर बह जाता है। वह प्रदेश जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और उसकी सहायक नदियों में बहता हो, वह प्रदेश नदी का अपवाह क्षेत्र (Drainage Area) अथवा बेसिन (Basin) कहलाता है।
जिन नदियों में पूरा वर्ष पानी बहता रहता है, उन्हें स्थायी नदियाँ (Perennial Rivers) कहा जाता है। जिन नदियों में जल केवल वर्षा ऋतु में ही बहता हो, उन्हें मौसमी नदियाँ (Seasonal Rivers) कहते हैं।

नदी की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of a River)-

नदी के स्रोत (Source) से लेकर मुहाने (Mouth) तक इसके विकासक्रम को तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। ये तीन अवस्थाएं नीचे लिखी हैं-

1. युवावस्था (Youthful Stage)—इस अवस्था में नदी पर्वतों में प्रवाह करती है, इसलिए नदी के इस मार्ग को पर्वतीय मार्ग (Mountain Track) भी कहते हैं। नदी की ढलान 50 फुट प्रति मील होती है। ढलान सीधी होने के कारण जल का बहाव तेज़ होता है। वेग तेज़ होने के कारण अपरदन कार्य तेज़ी से होता है और घाटी गहरी होती है। इस अवस्था में नदी का कार्य प्रमुख रूप से अपरदन का ही होता है। (The mountain stage as a whole, is the stage of erosion) नदी के पर्वतीय भाग को युवा नदी घाटी (Young River Valley) कहते हैं। इस भाग में कैनियन, गॉर्ज, चश्मे और झरने बनते हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-इस अवस्था में नदी मैदानों में से बहती है, इसलिए नदी के इस भाग को मैदानी मार्ग (Plain Track) भी कहते हैं। यहां भूमि की ढलान कम होती है, जो कि 10 फुट प्रति मील होती है। इस भाग की प्रमुख नदी में अनेक सहायक नदियाँ आकर मिल जाती हैं, इसलिए नदी में पानी की मात्रा काफ़ी अधिक हो जाती है, परंतु प्रवाह की गति कम हो जाने के कारण भारी पदार्थों और कंकड़ आदि का प्रवाह रुक जाता है और इसका निक्षेप होना शुरू हो जाता है। नदी के मैदानी भाग को प्रौढ़ नदी घाटी (Mature River Valley) भी कहते हैं। इस भाग में नदी, किनारे पर अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा घाटी को निरंतर चौड़ा करती रहती है। इस भाग में U-आकार घाटी, घुमाव, मोड़, गोखुर झील, तट, बांध आदि बनते हैं। वृद्धावस्था (Old Stage)-नदी-मुहाने (River Mouth) से पहले, मैदान के निचले भाग में ढलान बहुत ही कम हो जाने के कारण जल का प्रवाह अत्यंत मद्धम हो जाता है। नदी की ढलान 1 फुट प्रति मील हो जाती है, फलस्वरूप अपरदन कार्य बिल्कुल समाप्त हो जाता है और निक्षेप तेज़ी से होने लगता है। यह ही नदी की वृद्धावस्था है। नदी के इस मार्ग को डेल्टा मार्ग (Delta Track) भी कहते हैं और नदी की घाटी यहां प्रौढ़ नदी घाटी (Old River Valley) कहलाती है। प्रौढ़ नदी घाटी में नदी का केवल एक काम निक्षेप करना होता है।

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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

PSEB 10th Class Physical Education Guide एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलों का नाम ओलिम्पिक क्यों पड़ा ?
(Why Olympic games are called Olympic?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें ओलिम्पिया नामक नगर से आरम्भ हुई थीं। इसलिए इन का नाम ओलिम्पिक खेलें पड़ा।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कब आरम्भ हुईं ?
(When Ancient Olympic started ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 3.
ओलिम्पिक ध्वज में कितने रिंग होते हैं ?
(How many rings are there in Olympic Flag ?)
उत्तर-
पांच रिंग।

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प्रश्न 4.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के विजेता को क्या ईनाम मिलता था ?
(What prizes are given to the winners of Ancient Olympic ?)
उत्तर-
जीतने वाले को जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे।

प्रश्न 5.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें के कोई दो नियम लिखो।
(Write any two rules of Ancient Olympic.)
उत्तर-

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।

प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों किसने शुरू करवाईं ?
(Who was the founder of modern Olympic games ?)
उत्तर-
बैरन दि कुबर्टिन ने।

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प्रश्न 7.
नवीन ओलिम्पिक खेलें कहां तथा कब आरम्भ हुई ?
(When and where modern Olympic were started ?)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलें 1896 ई० में ऐथेन में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 8.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के कोई दो नियम लिखें।
(Write any two Rules of modern Olympic games.)
उत्तर-

  1. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकता।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलें किस के प्रयल से आरम्भ हुई ?
(Who has originated Asian Games ?)
उत्तर-
महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह और श्री जी० डी० सोंधी के प्रयत्नों से यह खेलें आरम्भ हुईं।

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प्रश्न 10.
एशियाई खेलें कब और कहां शुरू हुई ?
(When and where Asian games were started ?)
उत्तर-
पहली एशियाई खेलें 1951 में नई दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं।

प्रश्न 11.
ओलिम्पिक खेलें कितने वर्षों के बाद होती हैं ?
(After how many years olympic games were held ?).
उत्तर-
चार वर्ष के बाद।

प्रश्न 12.
पांचवीं एशियाई खेलें कहां हुई ?
(Where were the fifth Asian games were held ?)
उत्तर-
1966 में जकार्ता (इण्डोनेशिया) में।

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प्रश्न 13.
मिलखा सिंह ने कौन-से ओलिम्पिक में 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया ?
(In which Olympic Mr. Milkha Singh got 4th position in 400 meters race ?)
उत्तर-
1960 (Rome Olympic) खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

प्रश्न 14.
भारत ने ओलिम्पिक में पहली बार कब भाग लिया ?
(In which year India participated in Olympic first time ?)
उत्तर-
1920 की ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया।

प्रश्न 15.
2008 बीजिंग ओलम्पिक खेलों में किस भारतीय खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीता ?
(Name the Indian player who won the gold medal in 2008 Beizing olympic games.)
उत्तर-
श्री अभिनव बिंदरा ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक झण्डे के विषय में संक्षिप्त जानकारी दो।
(Give brief description about Olympic Flag.)
उत्तर-
ओलिम्पिक झण्डा 1919 ई० में एंटवर्प (Antwerp) में होने वाली ओलिम्पिक खेलों में फहराया गया। इस झण्डे की रचना क्यूबर्टिन ने की थी। इस झण्डे में पांच रंगोंलाल, हरे, पीले, नीले तथा काले से पांच चक्कर परस्पर जोड़ कर बनाए गए हैं। ये पांच चक्कर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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इन चक्रों का परस्पर जुड़ा होना इन पांच महाद्वीपों की मित्रता तथा सद्भावना का प्रतीक है।

प्रश्न 2.
एशियाई खेलें कब तथा क्यों शुरू हुईं ? इन खेलों को शुरू करने में भारत का क्या योगदान है ?
(When and where Asian games were started ? Write the contribution of India to start Asian games.)
उत्तर-
एशियाई खेलें (Asian Games)-14वीं ओलिम्पिक खेलों का 1948 ई० में लन्दन में आयोजन हुआ। उस समय श्री जी० डी० सोंधी ने यह विचार प्रस्तुत किया कि जब भारतीय या एशियाई खिलाड़ी यूरोपीय देशों में आयोजित खेलों के मुकाबलों में भाग लेने जाते हैं तो वे खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इसलिए यदि एशियाई देशों के खिलाड़ी पहले आपस में मुकाबला कर लें तो एक तो उनमें मुकाबला करने की शक्ति बढ़ेगी और दूसरे खेल का स्तर उन्नत होगा। इस विचार को कार्यरूप देने के लिए उन्होंने 8 अगस्त, 1945 ई० को लन्दन के साऊंड पायल होटल में एशियाई देशों की एक सभा बुलाई। इस सभा में कोरिया, बर्मा (म्यनमार), चीन, श्रीलंका आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन सभी सदस्यों ने एशिया में खेल मुकाबले करवाने के सुझाव का समर्थन किया।

महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह ने भी एशियाई खेलों के आरम्भ करने में विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फरवरी, 1949 में दिल्ली में एशियाई खेलों के लिए एशियाई देशों की सभा बुलाई। इस सभा में भारत, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, नेपाल, फिलीपाइन तथा थाइलैंड आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सभा में एशियाई एथलैटिक्स फैडरेशन को खेल फैडरेशन का नाम दिया गया था। इसके संविधान का निर्माण किया गया। एशियाई खेलों को हर चार वर्ष बाद आयोजित करने का निश्चय किया गया। पहली एशियाई खेलें 4 मार्च से 11 मार्च तक, 1951 में दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं। फिर 1982 में नौवीं एशियाई खेलें दिल्ली में तथा 10वीं एशियाई खेलें सिओल में सम्पन्न हुईं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलें कब और किन-किन देशों में हुईं ?
(When and where Olympic Games were organised ?)
उत्तर-
पहली ओलिम्पिक खेलों के स्थान एवं तिथियां
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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें 3
1906 के खेल, आधुनिक खेलों की 10वीं वर्षगांठ मनाए जाने हेतु खेले गये थे, मगर इनकी गिनती नहीं की गई क्योंकि ये खेल 1904-1908 के ओलिम्पियाड के प्रथम वर्ष में नहीं आयोजित किए गए थे।
यहां केवल घुड़-सवारी के खेल ही करवाए गए थे।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कहां और कब आरम्भ हुईं ?
(When and where Ancient Olympic was organised?)
उत्तर-
इतिहास (History)-प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान के ओलिम्पिया नामक नगर में आरम्भ हुईं। इन खेलों का आरम्भ करने का श्रेय इफिटस तथा कलाऊस्थैनीज़ को दिया जाता है। ये खेलें अगस्त तथा सितम्बर महीने की पूर्णिमा की रात को आरम्भ हुईं। प्रथम ओलिम्पिक खेलों के विजेता का नाम कोर्बस था। ये खेलें हर चार वर्ष के पश्चात् आयोजित की जाती थीं। 394 ई० पू० में रोमन सम्राट् थ्यूसिडियस के आदेश से ये खेलें बन्द हो गईं। ओलिम्पिक नगर एल्फिस नदी के तट पर बसा हुआ था। यह एलिस राज्य का पवित्र नगर था। 1100 ई० पू० में खेलों के लिए विशेष जगह बन गई जिनकी मन्दिर के समान पूजा होने लगी। ओलिम्पिक खेलों के शुरू होने पर सारे यूनान में लड़ाइयां बन्द हो जाती थीं। ओलिम्पिक नगर में कोई भी शस्त्रों के साथ प्रवेश नहीं कर सकता था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले केवल की दौड़ की वृद्धि की गई। पन्द्रहवीं ओलिम्पिक खेलों में तीन मील की दौड़ की वृद्धि की गई। 18वीं ओलिम्पिक में पेंटाथलीन (Pantathlon) शुरू की गई। इसमें लम्बी छलांग, दो सौ गज़ की दौड़, नेज़ा फेंकना तथा कुश्तियां पांच खेलें रखी गईं। 25वीं ओलिम्पिक्स में रथ दौड (Chariot Race) तथा 30वीं ओलिम्पिक्स में मुक्केबाज़ी, पानी की खेलें, कुश्तियां तथा पैक्ट्रयम आदि खेलें सम्मिलित की गईं। ये खेलें तीन से पांच दिन तक चलती थीं। पहले स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में स्त्रियों के लिए भी द्वार खोल दिए गए।

ईनाम (Rewards)—इन खेलों के विजेताओं को खूब सम्मानित किया जाता था। उन्हें जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे। लोग उनकी विजय के गीत गाते थे। विजेताओं के नाम पर खेलों के नाम रखे जाते थे। विजेताओं के साथी बाजा बजाकर उनके घर छोड़ कर आते थे। विजेता खिलाड़ियों पर देश गर्व करता था। सभी यूनानी इन खेलों में विजय प्राप्त करने की हार्दिक कामना करते थे।

समाप्ति (End)—समय की गति के साथ ये खेलें लोकप्रिय होती गईं और अन्य देशों तथा राष्ट्रों ने भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। रोमनों द्वारा यूनान की विजय के पश्चात् इन खेलों की लोकप्रियता को ठेस पहुंची। कई व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इनमें भाग लेने लगे। इससे इन खेलों में कई बुराइयां घर कर गईं। रोमन सम्राट् थिओडसस के आदेश से 394 ई० पू० में ये खेलें बन्द कर दी गईं। 395 ई० पू० में जीयस देवता का बुत भी तोड़ दिया गया। ओलिम्पिक नगर की चहल-पहल समाप्त हो गई। रोमन सम्राट् थिओडसस द्वितीय ने स्टेडियम भी नष्ट करवा दिया। इस प्रकार कुछ समय तक ओलिम्पिक खेलों तथा ओलिम्पिया नगर के चिन्ह ही मिट गए।

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प्रश्न 3.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम थे और कौन-कौन सी खेलें करवाई जाती थी ?
(What were the main rules of the Ancient Olympic Games ? Which were the different games organised ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of Ancient Olympics)प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना परमावश्यक था—

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. खिलाड़ी के लिए खेलों में भाग लेने से पूर्व किसी की देख-रेख में 10 मास तक प्रशिक्षण पाना ज़रूरी था। उसे अन्तिम एक मास ओलिम्पिक में व्यतीत करना पड़ता था।
  3. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।
  4. आरम्भ में औरतों को न तो खेलों में भाग लेने और न ही इन्हें देखने की आज्ञा थी।
  5. खिलाड़ियों को खेलों में ठीक ढंग से भाग लेने की शपथ लेनी पड़ती थी।
  6. खिलाड़ियों पर किसी प्रकार के अपराध का आरोप नहीं होना चाहिए था।
  7. ओलिम्पिक में खिलाड़ियों की देख-रेख की ज़िम्मेदारी खेलों के जजों की थी।
  8. पहला और अन्तिम दिन धार्मिक रीतियों और बलियों के लिए निश्चित था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले तो केवल एक दौड़ सम्मिलित थी परन्तु धीरे-धीरे इसमें और खेलों का समावेश हो गया। यह दौड़ लगभग 100 गज़ लम्बी थी। 724 ई० पू० में आयोजित 14वीं ओलिम्पिक खेलों में 400 गज़ की दौड़ और 15वीं ओलिम्पिक खेलों में 3 मील की दौड़ सम्मिलित की गई। 18वीं ओलिम्पिक खेलों में पेंटाथलोन आरम्भ की गई। इसमें लम्बी छलांग, नेज़ाबाजी, 300 गज़ दौड़, डिस्कस थ्रो तथा कुश्तियां पांच खेलें आती थीं। 25वीं ओलिम्पिक्स में पुरुषों के लिए बॉक्सिंग (मुक्केबाज़ी) आरम्भ की गई। ओलिम्पिक खेलों में रथ दौड़ तथा 30वीं ओलिम्पिक्स स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में उन्हें अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 4.
नवीन ओलिम्पिक खेलें किसने शुरू करवाईं ? उसके विषय में आप क्या जानते हो ?
(Who has started Modern Olympic Games ? What do you know about him ?)
उत्तर-
14वीं शताब्दी तक ओलिम्पिक खेलों के महत्त्व की ओर किसी ने तनिक ध्यान न दिया। परन्तु इन खेलों का पुनर्जन्म लिखा हुआ था। 1829 ई० में जापानी तथा फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने ओलिम्पिया की खुदवाई का काम आरम्भ किया। वर्षों के प्रयत्नों के पश्चात् उनके हाथ सफलता लगी। इन खुदाइयों से ओलिम्पिया के मन्दिर और स्टेडियम प्राप्त हुए।
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बैरन दि कबर्टिन को नवीन ओलिम्पिक खेलों के जन्मदाता माना जाता है। उनका जन्म 1863 ई० में फ्रांस में हुआ। वह फ्रांस के शिक्षा विभाग में कार्य करते थे। उनकी शारीरिक शिक्षा से विशेष रुचि थी। 1854 ई० में वे इंग्लैण्ड के भ्रमण पर गए। वे इंग्लैण्ड के शैक्षणिक ढांचे से अत्यधिक प्रभावित हुए।

कुबर्टिन बर्तानिया और अमेरिका गए। वहां इन्होंने लोगों को अपनी योजनाओं से अवगत कराया। इस पर अन्य खेल प्रेमियों ने उनको सहायता देने का समर्थन किया। कुबर्टिन खेलों के माध्यम से स्वास्थ्य, सुन्दरता, मनोरंजन तथा सहयोग बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने विभिन्न देशों का दौरा किया और वहां के लोगों को अपने विचारों की जानकारी दी। उन्होंने फ्रांस में फ्रांसीसी खेल संघ की आधारशिला रखी। 16 जून, 1894 ई० को एक अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष ओलिम्पिक योजना रखी गई।
इसका सभी ने समर्थन किया। फलस्वरूप 5 अप्रैल से 15 अप्रैल, 1896 ई० तक प्रथम ओलिम्पिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के लिए कुबर्टिन ने एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया। वह आदर्श है-“ओलिम्पिक खेलों में महत्त्वपूर्ण बात, जीत प्राप्त करना नहीं बल्कि उनमें भाग लेना है। आवश्यक बात जीतना नहीं है बल्कि अच्छी तरह मुकाबला करना है।” (“The important thing in Olympics is not to win but to take part. As the important thing in life is not triumph but struggle. The essential thing is not to have conquered but to have fought well.”;

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प्रश्न 5.
नवीन ओलिम्पिक खेलों का मॉटो तथा शपथ क्या है ?
(What is Olympic Motto and Olympic Oath of modern Olympic Games ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक मॉटो (Olympic Motto)-ओलिम्पिक मॉटो तीन शब्दों से बना है। ये तीन शब्द हैं—
सीटियस (Citius), आल्टीयस (Altius), फार्टियस (Fortius)
सीटियस (Citius) का अर्थ है बहुत तेज़.
आल्टीयस (Altius) का अर्थ है बहुत ऊंचा
फार्टियस (Fortius) का अर्थ है बहुत जोर से।
ये तीनों शब्द खिलाड़ी के लक्ष्य को सूचित करते हैं। इनका अभिप्राय है-बहुत तेज़ भागना, बहुत ऊंची छलांग लगाना तथा बहुत जोर से डिस्कस या गोला फेंकना।

ओलिम्पिक शपथ—यह रीति 1920 ई० में अन्तदीप में शुरू हुई थी। वर्ष 1984 में ओलिम्पिक खेलों के चार्टर रूप 63 में कहा गया है कि मेज़बान राष्ट्र का एक खिलाड़ी अपने बाएं हाथ में ओलिम्पिक झण्डे का कोना पकड़ कर और अपना दायां हाथ ऊपर उठा कर निम्नलिखित शपथ लेगा—

“सभी खिलाड़ियों की ओर से मैं बचन लेता हूं कि हम इन ओलिम्पिक खेलों में उन नियमों का आदर करते हुए और उन पर पाबन्द रहते हुए जो कि इसकी निगरानी करते हैं, खिलाड़ियों की सच्ची भावना से खेलों के गौरव और हमारी टीमों के सम्मान के लिए शामिल होंगे।”

ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag)—ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag) सर्वप्रथम बैल्जियम (Belgium) के ऐंटवरप (Antwerp) नगर में हुई ओलिम्पिक खेलों में लहराया गया। यह झण्डा सफ़ेद रंग का होता है। इसमें पांच चक्र परस्पर जुड़े हुए भिन्न-भिन्न रंगों के (लाल, हरा, पीला, नीला तथा काला) होते हैं। ये अंग्रेजी अक्षर W जैसे आकार के होते हैं। ये संसार के पांच महाद्वीपों यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। झण्डे पर ओलिम्पिक मॉटो (Motto), तीन शब्दों Citius, Altius तथा Fortius द्वारा दर्शाया जाता है।
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नोट—सभी खिलाड़ियों की ओर से ओलिम्पिक शपथ लेने वाले खिलाड़ी—

वर्ष नाम राष्ट्र एवं खेल
1920 विक्टर बैन (बैल्जियम, गतका)
1924 जियो एंङ्गीअ (फएंसम ऐथलैटिक्स)
1928 हैनरी डैनिस (नीदरलैंडस, फुटबाल)
1932 जार्ज चार्ल्स कैनन (अमेरिका, गतका)
1936 रुडुलफ इस्मायर (जर्मनी, भार उठाना)
1948 डोनलड फिनले (इंग्लैंड, ऐथलैटिक्स)
1952 हेईकी सावीलैनेन (फिनलैंड, जिमनास्टिक्स)
1956 जॉन लैंडी (आस्ट्रेलिया, ऐथलैटिक्स)
1960 एडोलफो कांसोलिनी (इटली, ऐथलैटिक्स)
1964 टकाशी ऊनो. (जापान, जिमनास्टिक्स)
1968 पाबलो मैरीडो (मैक्सिको, ऐथलैटिक्स)
1972 हेईडी सक्यूल  (पश्चिमी जर्मनी, ऐथलैटिक्स)
1976 पीएरे सेंट जीन (कैनेडा, भार उठाना)
1980 निकोलाई एंड्रीयनोव (सोवियत रूस, जिमनास्टिक्स)

 

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प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम हैं ? (अभ्यास का प्रश्न 5)
(Discuss the main rules of Modern Olympics.)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of New Olympics)-पहले. तो खेलों के नियम बहुत ही साधारण थे। कोई भी व्यक्ति इनमें भाग ले सकता था। 1908 ई० में ओलिम्पिक खेलें लन्दन में आयोजित की गईं और नियमों का निर्माण किया गया। ये नियम इस प्रकार हैं—

  1. प्रत्येक देश जो ओलिम्पिक खेलों का सदस्य है अपने किसी भी देशवासी को खेलों में भाग लेने के लिए भेज सकता है।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) इनमें भाग नहीं ले सकता। इस बात की पुष्टि उसकी राष्ट्रीय कमेटी करती है। इस विषय में खिलाड़ी को भी लिख कर देना पड़ता है।
  3. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का प्रतिबन्ध नहीं है।
  4. कोई भी खिलाड़ी नशे की हालत में खेलों में भाग नहीं ले सकता।
  5. खिलाड़ी के लिंग की जांच की जाती है।
  6. किसी एक देश की ओर से भाग लेने वाला खिलाड़ी किसी दूसरे राष्ट्र की ओर से भाग नहीं ले सकता।
  7. यदि कोई नया देश अस्तित्व में आया हो तो वह अपना खिलाड़ी भेज सकता है।

इन खेलों का आयोजन, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी द्वारा किया जाता है। इस कमेटी में प्रत्येक देश का मैम्बर होता है। परन्तु जिस देश में ओलिम्पिक कमेटियां स्थापित हों अथवा जहां खेलों का आयोजन भली-भांति हो, उसके दो सदस्य भी हो सकते हैं। इस कमेटी के सदस्य आठ वर्ष के लिए अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अतिरिक्त चार वर्ष के लिए दो उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं। पांच अन्य सदस्य भी इस कमेटी के सदस्य चुने जाते हैं। यह कमेटी नियमानुसार ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करती है।

प्रश्न 7.
भारतीय खिलाड़ियों को ओलिम्पिक खेलों में क्या स्थान प्राप्त है ?
(Discuss the main achievements of Indian players in Olympic ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलताएं (Achievements of Indian players in Olympics)-नवीन ओलिम्पिक खेलों का आरम्भ 1896 ई० में हुआ। इस कार्य में फ्रांस के बैरन दि कुबर्टिन ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। इसी कारण उसे ओलिम्पिक खेलों का जन्मदाता कहा जाता है। भारत ने इन खेलों में 1900 ई० में पहली बार भाग लिया। भारतीय खिलाड़ी नार्मन ने 200 मीटर की दौड़ में दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा प्राप्त किया। 1920 ई० की ओलिम्पिक खेलों में भारत की ओर से छ: खिलाड़ियों ने एथलैटिक्स और कुश्तियों में भाग लिया। 1924 में पैरिस ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इन में आठ भारतीय खिलाड़ियों ने भाग लिया। श्री जी० डी० सोंधी, एच० सी० बक और ए० जी० कारेन ने ओलिम्पिक लहर को देश में लोकप्रिय करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1927 ई० में इण्डियन

ओलिम्पिक एसोसिएशन की स्थापना हुई।—1928 ई० में भारतीय हॉकी टीम ने प्रथम बार एमस्टर्डम में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया। इसने सोने का तमगा जीता। 1928 ई० से 1956 ई० तक भारत हॉकी जगत् में छाया रहा। 1952 ई० में के० डी० यादव ने कुश्ती के मुकाबले में भाग लिया और तांबे का तमगा जीता। 1956 में मैलबोर्न में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारत की फुटबाल टीम ने पहली बार भाग लिया। इस टीम ने चौथा स्थान प्राप्त किया। 1960 में रोम में हई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और पहला स्थान पाकिस्तानी टीम ने प्राप्त किया। इसी वर्ष मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

1964 में टोकियो में ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय हॉकी की टीम फिर से प्रथम स्थान पाने में सफल हुई। 1968, 1972 तथा 1976 में आयोजित होने वाली ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी – प्रथम स्थान पा कर सोने का तमगा जीतने में सफल रही। 1976 में ओलिम्पिक खेलें मांट्रियाल में हुईं। इसमें शिवनाथ ने मैरथान दौड़ में ग्यारहवां और श्री राम ने 800 मीटर दौड़ में सातवां स्थान प्राप्त किया। 1980 में मास्को में हुई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने सोने का तमगा जीतने में सफलता प्राप्त की। इन खेलों में भारतीय टीम ने एथलैटिक्स, कुश्तियां, बॉक्सिग, बास्केट बाल, निशानेबाज़ी तथा वालीबाल में तो भाग लिया था, परन्तु इनमें उसे कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1984 में लास ऐंजलस में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। 28वीं ओलम्पिक खेलें 2004 में ऐन्थन ग्रीस में हुईं इसमें मेजर राजवर्धन सिंह राठौर ने सूटिंग मुकबाले में दूसरा स्थान प्राप्त करके भारत की शान बढ़ाई। ऐथलैटिक में अंजू बोबी जार्ज ने लोंग जम्प में छठा स्थान प्राप्त किया और भारतीय हाकी टीम सातवां स्थान ही प्राप्त कर सकी।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी के बारे संक्षेप से लिखें।
(Write in brief about International Olympic Committee I.O.A.)
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक (International Olympic Committee)
ओलिम्पिक खेलों के संगठन के लिए सर्वोच्चतम कमेटी अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी है। 25 जून, 1894 में पेरिस की कांग्रेस के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी को निम्न उत्तरदायित्व सौंपे गए—

  1. खेलों का लगातार करना।
  2. खेलें कुबर्टिन के आम आशय के अनुसार तथा सारे विश्व में प्रेम और शान्ति का सन्देश दें।
  3. खेलों में अव्यावसायिक प्रतियोगिता को उच्चतम स्थान दें।
  4. खेलें विश्व शान्ति तथा मैत्री को बढ़ाएं।

ओलिम्पिक खेलों की इस कमेटी में प्रत्येक देश का एक प्रतिनिधि होता है। परन्तु ऐसे देश जहां ओलिम्पिक खेलें हुई हों तथा वे देश जिन्होंने ओलिम्पिक खेल में महत्त्वपूर्ण काम किया हो, के दो सदस्य होते हैं अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी अपने लिए बैकट द्वारा अपना प्रधान चुनती है जो पांच वर्ष तक इस पद पर रहता है। फिर दुबारा चुने जाने पर वह चार वर्ष और रह सकता है। इसमें दो उप-प्रधान भी होते हैं जिनकी कार्य अवधि चार वर्ष होती है। यह दुबारा चुनाव लड़ सकते हैं। उप-प्रधान तथा पांच कार्यपालिका के सदस्य हर चार साल बाद इन खेलों को कराने में सहायता करते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी का मुख्य कार्यालय सीरोन (स्विट्ज़रलैण्ड) में है।
एशियाई खेलें
(Asian Games)
एशियाई खेलों का जन्म 13 जनवरी, 1949 में नई दिल्ली के पटियाला हाऊस में अफगानिस्तान, म्यनमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान तथा फिलीपाइन्स के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षरों के साथ हुआ। इन खेलों के लिए सदैव आगे (Ever onward) का आदर्श अपनाया गया। इन खेलों को प्रारम्भ करने का श्रेय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के भारतीय प्रतिनिधि स्वर्गीय जी० डी० सोंधी को है। श्री सोंधी तत्कालीन भारतीय ऐथलैटिक्स संघ के प्रधान थे। इन खेलों से पहले एशियन क्षेत्र में सुदूर पूर्व खेलें, पश्चिमी एशियन खेलें, जिनमें जापान, चीन, फिलीपाइन तथा स्वेज़ नहर के पूर्वी देश तथा सिंगापुर के पश्चिमी देश भाग लेते थे। मगर यह खेलें द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बन्द हो गई।

एशियाई खेलों को कराने के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि एशियाई सब देश खेल के मैदान में इच्छुक हो। इस सम्बन्ध में मार्च, 1949 में पंडित नेहरू द्वारा नई दिल्ली में एशियाई देशों सम्बन्धी कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें एशियाई खेलों की तरफ आए हुए सदस्यों का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया गया। जी० डी० सोंधी द्वारा पंडित नेहरू का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। श्री नेहरू के इस विचार का अपना अनुमोदन किया। 1949 में लन्दन के ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले एशियाई सदस्यों को एकत्र करके पहले एशियाई खेलों का प्रारम्भ 1950 में माना गया। फलस्वरूप प्रारम्भिक खेलें नई दिल्ली, मार्च, 1951 में कराई गई। ये खेलें हर चार साल बाद कराई जाती हैं। विभिन्न खेलों के विवरण इस तरह हैं—
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सदस्य देश
(Member Countries)
अफगानिस्तान, बेहरी, म्यनमार (बर्मा) चीन, हांगकांग, भारत, इण्डोनेशिया, ईरानइराक, इजराइल, जापान, गणतन्त्र कोरिया, गणतंत्र जनतांत्रिक कोरिया, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलिपाइन, सऊदी अरब, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम।

विभिन्न खेलें
(Different Games)
एथलैटिक, बैडमिन्टन, बास्केट बाल, बाक्सिंग, साइकलिंग, सलवान, खाली, फुटबाल, जिमनास्टिक, हॉकी, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल-टैनिस, लान-टैनिस यांत्री, भार उठाना, कुश्ती।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलों में भारतीयों ने कौन-कौन से इनाम जीते हैं ?
(Write about Indian players who won Lourels in Asian Games ?)
उत्तर-
एशियाई खेलों में भारत की सफलता (India’s achievement in Asian Games)-पहली एशियाई खेलों का आयोजन नई दिल्ली में 1951 ई० में हुआ।

इन खेलों में भारतीयों ने 15 स्वर्ण, 16 रजत तथा 21 कांस्य पदक जीते। भारतीय फुटबाल टीम ने सोने का तमगा जीता। भारतीय एथलीट लेरी पिंटो ने 100 तथा 200 मीटर दौड़ में, रणजीत सिंह ने 800 मीटर में, निक्का सिंह ने 1500 मीटर में एवं मदन लाल ने गोला फेंकने में तथा मक्खन सिंह ने डिस्कस फेंकने में सोने के पदक जीते। 1954 ई० में दूसरे एशियाई खेल मनीला में हुए। इन में अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में, सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीते जबकि सोहन सिंह ने 800 मीटर में तथा जोगिन्दर सिंह ने 400 मीटर दौड़ में रजत पदक पाये। भारतीय महिलाओं ने 4 × 100 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल हासिल किया। 1958 ई० में तीसरी एशियाई खेलें टोकियो में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 200 तथा 400. ‘ मीटर में, बलकार सिंह ने डिस्कस थ्रो में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में तथा महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में स्वर्ण पदक जीते तथा भारत का नाम खेल जगत् में ऊंचा किया। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा जीता। भारत ने इन खेलों में 5 सोने के, 4 चांदी के तथा 4 तांबे के तमगे जीते। 1962 की चतुर्थ एशियाई खेलें जर्काता में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 400 मीटर में, मोहिन्द्र सिंह ने 1500 मीटर में, तरलोक सिंह ने 10,000 मीटर में तथा पुरुषों की 4 × 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। भारत ने इन खेलों में 11 सोने के, 13 चांदी के तथा 10 तांबे के पदक जीते।

1966 ई० में एशियाई खेलों का आयोजन बैंकाक में हुआ जिन में भारतीय खिलाड़ियों ने 7 सोने के, 3 चांदी के तथा 11 तांबे के पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान पाया तथा भारतीय एथलीट अजमेर ने 400 मीटर में, बी० एस० बरुआ ने 800 मीटर में, भीम सिंह ने ऊंची छलांग लगाने में, परवीन ने डिस्कस और जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के पदक जीते।

1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में परवीन ने डिस्कस में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला में महिला एथलीट कंवलजीत सन्धु ने 400 मीटर दौड़ में सोने का तमगा जीत कर . ख्याति में वृद्धि की। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। कुल मिला कर भारत ने इन खेलों में 6 सोने के, 9 चांदी के और 10 तांबे के पदक जीते।

1974 में तेहरान में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 4 सोने, 12 चांदी और 12 तांबे के तमगे जीत कर सातवां स्थान प्राप्त किया। इन खेलों में श्री राम सिंह ने 800 मीटर दौड़ में, शिव नाथ सिंह ने 5000 मीटर (नया रिकार्ड) सोने का तथा 10,000 मीटर दौड़ में चांदी का तथा टी० सी० योगनन ने लम्बी छलांग में सोने के तमगे जीते।

1978 ई० में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 11 सोने के, 11 चांदी के तथा 6 तांबे के पदक जीत कर छठा स्थान प्राप्त किया। 5000 तथा 10,000 मीटर दौड़ में हरि चन्द ने, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में, सुरेश बाबू ने लम्बी छलांग में, हुक्म सिंह ने 20 किलोमीटर वाक में स्वर्ण पदक जीते। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर दौड़ में चांदी का मैडल तथा 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला।

1982 में नवम एशियाई खेलें नई दिल्ली में हुईं जिनमें भारत ने 13 सोने, 19 चांदी और 19 कांस्य पदक जीते। भारतीय महिला हॉकी टीम ने सोने का तथा पुरुष हॉकी टीम ने चांदी का पदक प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बाल सम्मा ने 400 मीटर हर्डल दौड़ में तथा 800 मीटर दौड़ में चार्ल्स बरोनियो ने सोने के पदक जीते। 1986 में एशियाई खेल सिओल में आयोजित किए गए। भारतीय महिला एथलीट पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 800 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थिति पर ला खड़ा किया। ऊषा ने 100 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान पाया। उसने सर्वोत्तम प्रदर्शन द्वारा भारत के नाम को रोशन किया। भारत ने कुल 5 सोने के, 9 चांदी के तथा 23 कांस्य पदक जीते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले भारतीय खिलाड़ियों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. लैरी पिंटो ने 1951 में हुई पहली एशियाई खेलों में 100 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान पाकर सोने का तमगा जीता।
  2. 1954 में मनीला में आयोजित एशियाई खेलों में सोहन सिंह ने 400 मीटर दौड़, अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते। इनके अतिरिक्त जोगिन्दर सिंह ने चांदी का और ए० ग्रेबियन ने 100 मीटर दौड़ तथा दालू राम ने 3000 और 5000 मीटर दौड़ में तीसरा स्थान प्राप्त करके तांबे के तमगे जीते।
  3. 1958 में हुई एशियाई खेलों में फ्लाईंग सिक्ख (Flying Sikh) मिलखा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, बलकार सिंह ने जैवलिन फेंकने में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में, एच० चांद ने 100 मीटर हर्डल्ज़ में और 400 मीटर हर्डल्ज़ में जगदेव सिंह ने सोने का तमगा प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त स्वीटी डिसूजा ने 200 मीटर दौड़ की हीट्स में नया रिकार्ड कायम किया। एलिज़ाबैथ डैवनपोर्ट ने 46.07 मीटर दूर जैवलिन फेंक कर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  4. 1966 में हुई एशियाई खेलों में अजमेर सिंह ने 400 मीटर, बी० एस० बरुआ ने डिस्कस थ्रो, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने तथा भीम सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते।
  5. 1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में कंवलजीत संधु ने 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त एडवर्ड शकेरा ने 5000 मीटर में, श्रीराम ने 800 मीटर में, लाभसिंह ने लम्बी छलांग तथा हाप स्टेप जम्प में चांदी के तमगे प्राप्त किये। मनजीत वालिया ने 80 मीटर हर्डल्ज़, सुच्चा सिंह ने 400 मीटर में और गुरमेज सिंह ने 3000 मीटर में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  6. 1974 में तेहरान में हुई एशियाई खेलों में शिवनाथ ने 5000 मीटर में नया रिकार्ड स्थापित किया। कंवलजीत संधू ने 56.5 सैकिण्ड में 400 मीटर की दौड़ जीत कर भारतीय स्त्री खिलाड़ियों की ओर से सोने का तमगा जीता। इन्हीं खेलों में टी० सी० योग ने लम्बी छलांग में तथा वी० एस० चौहान ने 1500 मीटर दौड़ में सोने का तमगा प्राप्त किया। निर्मल सिंह ने हैमर फेंकने में चांदी का तथा लैहम्बर सिंह ने 400 मीटर हर्डल में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  7. 1978 की एशियाई खेलों में हरिचन्द ने 1000 मीटर दौड़ में सोने का तमंगा प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर में चांदी तथा 800 मीटर दौड़ में सोने के तमगे प्राप्त किए।

उपर्युक्त खिलाड़ियों के अतिरिक्त कई अन्य भारतीय खिलाड़ियों ने ओलिम्पिक खेलों में भी अपने उत्तम खेल का प्रदर्शन करके अन्तर्राष्ट्रीय क्रीडा क्षेत्र में बहुत नाम कमाया।

1982 की नौवीं खेलें जो दिल्ली में हुई थीं, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में नया रिकार्ड कायम किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बालसम्मा ने 400 . मीटर हर्डल दौड़ में प्रथम स्थान, 800 मीटर दौड़ में बरोनियो ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। हॉकी में लड़कियों ने सोने का तमगा और लड़कों ने चांदी का तमगा जीता। कुश्तियों में सत्यपाल ने सोने का तमगा और करतार सिंह ने चांदी का तमगा जीता। कौर सिंह ने बाक्सिग में सोने का तमगा जीता। भारत की घोड़ों की टीम ने सोने के तमगे जीते और भारत की गोल्फ की टीम ने सोने के तमगे जीते।

1986 की एशियाई खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ी पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 400 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में सोने के पदक जीत कर खेल जगत में तहलका मचा दिया। ऊषा ने सिओल में सम्पन्न इन खेलों में 100 मीटर दौड़ में चांदी का पदक जीता।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

प्रश्न 10.
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें किस देश में हुई थीं।
उत्तर-
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें भारत में हुई थीं।

प्रश्न 11.
नवीन ओलिम्पिक खेलों में कौन-कौन सी खेलें होती हैं ?
(Name the main sports events which are organised in Modern Olympic.)
उत्तर-

  1. तीर अन्दाजी
  2. एथलैटिक्स
  3. बॉक्सिग
  4. बास्केटबाल
  5. कैनोईग
  6. साइकलिंग
  7. इकवीएस टीरंग
  8. फुटबाल
  9. जिम्नास्टिकस
  10. हैंडबाल
  11. हाकी
  12. जूड़ो
  13. निशानेबाजी
  14. रोईग
  15. तैराकी और डुबकी लगाना
  16. तलवार बाजी
  17. वालीबाल
  18. भार उठाना
  19. कुश्ती
  20. बाटर पोलो
  21. याट किशती दौड़।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

प्रश्न 12.
11वीं एशियाई खेलों में भारत ने कौन-कौन से इनाम प्राप्त किये?
(Which awards India won in the Eleventh Asian Games ?)
उत्तर-
11वीं एशियाई खेलें बीजिंग (चीन) में 1990 में हुई थी जिसमें भारत ने नीचे लिखे मुकाबलों में इनाम प्राप्त किए थे।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें 7

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पंजाब का कितना क्षेत्रफल कृषि के अधीन है ?
उत्तर-
41.58 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
दरम्यानी जमीन में प्रति एकड़ कितने क्यारे होने चाहिए ?
उत्तर-
तीन से चार इंच वाले ट्यूबवैल के लिए 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़।

प्रश्न 3.
धान लगाने के लिए कितने दिन पानी खेत में खड़ा रखना चाहिए ?
उत्तर-
15 दिन।

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प्रश्न 4.
गेहूँ की काश्त के लिए पहले पानी कम लगाने के लिए कौन-सी ड्रिल का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल की।

प्रश्न 5.
लेज़र लेवलर द्वारा फसलों के उत्पादन में कितनी वृद्धि होती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 6.
खेतों में पानी की कार्यक्षमता कितनी नापी गई है ?
उत्तर-
35-40%.

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प्रश्न 7.
पंजाब की मुख्य फसलें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

प्रश्न 8.
धान में उचित सिंचाई के लिए कौन-से यंत्र का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
टैंशियोमीटर।

प्रश्न 9.
कम पानी लेने वाली किन्हीं दो फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
तेल बीज फसलें, कपास।

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प्रश्न 10.
फसलों पर पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
वाष्पीकरण कम होता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
टैंशियोमीटर का प्रयोग कैसे करना चाहिए ?
उत्तर-
यह एक यन्त्र है जोकि कांच की पाइप से बना है, इसको फसल वाली भूमि में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में पहुंच जाता है तो ही खेत में पानी दिया जाता है।

प्रश्न 2.
जीरो टिल डिल का क्या लाभ है ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है जिससे पानी की बचत हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेज़र लेवलर (कंप्यूटर कराहा) का क्या लाभ है ?
उत्तर-
इससे समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत होती है तथा उपज भी 15-20% बढ़ती है।

प्रश्न 4.
हमें कौन-सी फसलों की काश्त मेड़ों पर करनी चाहिए ?
उत्तर-
जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों की खेती समतल खेत के स्थान पर मेड़ों पर करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
फव्वारा और बूंद-बंद सिंचाई के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
फव्वारा तथा बूंद-बूंद सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 6.
मल्चिग क्या होती है ?
उत्तर-
कई फसलें : जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम हो जाता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इस को मल्चिग कहा जाता है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 1
चित्र-मल्चिग

प्रश्न 7.
सिंचाई के लिए प्रयोग में आने वाले भिन्न-भिन्न तरीकों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. खेतों में खुला पानी देना
  2. बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई
  3. फव्वारा सिंचाई
  4. बैड्ड बनाकर सिंचाई
  5. मेड़ या नाली बना कर सिंचाई।

प्रश्न 8.
सिंचाई वाले क्यारों का आकार किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
क्यारों का आकार, मिट्टी की किस्म, ज़मीन की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 9.
वर्षा के पानी को कैसे संरक्षित किया जा सकता है ?
उत्तर-
गांव में छप्पड़ (जौहड़) खोदने चाहिएं तथा जौहड़ का पानी सिंचाई आपूर्ति कृषि में पानी का कुशल प्रयोग के लिए प्रयोग करना चाहिए। सूखे पड़े नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की आपूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि-विभिन्नता द्वारा पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पंजाब में सावनी की मुख्य फसल धान तथा आषाढ़ी की मुख्य फसल गेहूँ की खेती की जाती है तथा इन्हें पानी की बहुत मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। यदि ऐसी फसलें जिनको कम पानी की आवश्यकता है, जैसे-मक्का, तेल बीज फसलें, दालें, बासमती, कपास, जौ आदि की कृषि की जाए तो भूमिगत जल लम्बे समय तक बचा रह सकता है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
धान की काश्त में पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
धान में पहले 15 दिन पानी खड़ा रखने के बाद 2-2 दिन के अन्तर । पर सिंचाई करने से लगभग 25% पानी बच सकता है। धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करने से भी पानी की बचत हो जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 2
चित्र-टॅशियोमीटर
यह एक कांच की पाइप से बना यंत्र है। इसको ज़मीन में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में चला जाता है तभी पानी दिया जाता है।

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प्रश्न 2.
खेती में पानी के उचित प्रयोग के पाँच ढंग बताएं।
उत्तर-
खेती में पानी की बचत के ढंग—

  1. धान में टैंशियोमीटर यंत्र का प्रयोग करके पानी की बचत की जा सकती है।
  2. गेहूँ में जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है तथा पानी की बचत हो जाती है।
  3. लेज़र लेवलर से समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत हो जाती है तथा पैदावार 15-20% बढ़ती है।
  4. जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है ; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों को समतल खेत की जगह मेड़ों पर बोना चाहिए।
  5. फव्वारा तथा ड्रिप सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  6. कई फसलें जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम होता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अलग-अलग ज़मीन के लिए प्रति एकड़ कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तथा रेतली ज़मीन हो तो क्यारों की संख्या 17-18, दरम्यानी ज़मीन के लिए 10-11 तथा भारी जमीन के लिए 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होने चाहिएं।

प्रश्न 4.
वर्षा के पानी के संरक्षण के लिए क्या उपाय कर सकते हैं ?
उत्तर-
मध्य पंजाब के 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे हो गया है तथा एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक यह स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा। इसलिए वर्षा के पानी को बचाने की बहुत आवश्यकता है। इस काम के लिए आम लोग तथा सरकार को मिलकर काम करने की आवश्यकता भी है तथा अपने स्तर पर भी यह काम करना चाहिए। हमें गांव में जौहड़ खोदने चाहिएं। जौहड़ों के पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करना चाहिए। हमें सूख चुके नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की पूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 3
चित्र-पुराने सूखे कुओं द्वारा बारिश के पानी की पूर्ति

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प्रश्न 5.
कृषि-विभिन्नता से पानी की बचत पर संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
यह समय की मांग है कि हम जिस तरह भी हो पानी को बचाएं क्योंकि भूमिगत पानी का स्तर 70 फुट नीचे तक पहुंच गया है जोकि एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक 160 फुट से भी नीचे पहुँच जाएगा। इसलिए पानी बचाने के उपाय करने चाहिएं। इन उपायों में एक है कृषि विभिन्नता।

पंजाब में मुख्य फसलें गेहूँ तथा धान ही रही हैं तथा इनको पानी की बहुत आवश्यकता रहती है। इसलिए अब ऐसी फसलें लगाने की आवश्यकता है जिन्हें कम पानी की आवश्यकता हो, जैसे-दालें, तेल बीज, जौ, मक्का, बासमती, कपास आदि। इस प्रकार कृषि विभिन्नता लाकर हम पानी की बचत कर सकते हैं तथा पानी को लम्बे समय तक बचा सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल में से पंजाब में कितने प्रतिशत क्षेत्रफल सिंचित है ?
उत्तर-
98%.

प्रश्न 2.
पंजाब में फसल घनत्व को मुख्य रखते हुए वार्षिक औसतन पानी की आवश्यकता बताएं।
उत्तर-
4.4 मिलियन हैक्टेयर मीटर।

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प्रश्न 3.
पंजाब में आज कितने पानी की कमी है ?
उत्तर-
1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर।।

प्रश्न 4.
पंजाब में ट्यूबवैल से कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
तीन चौथाई के लगभग।

प्रश्न 5.
पंजाब में नहरों के द्वारा लगभग कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
लगभग एक चौथाई।

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प्रश्न 6.
मध्य पंजाब के 30% क्षेत्र में भूमिगत पानी का स्तर कहां पर है ?
उत्तर-
70 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 7.
वर्ष 2023 तक भूमिगत जल का स्तर कितना हो जाने की उम्मीद है ?
उत्तर-
160 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 8.
पानी का कुशलता से प्रयोग क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि पानी के स्रोत सीमित हैं।

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प्रश्न 9.
दरम्यानी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिएं।

प्रश्न 10.
भारी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 6-7 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिए।

प्रश्न 11.
कौन-सी फसलों को क्यारा विधि द्वारा पानी दिया जाता है ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

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प्रश्न 12.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली कौन-से क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध होती जा रही है ?
उत्तर-
पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 13.
कौन-से बागों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
अनार, अंगूर, अमरूद, किन्न, बेर, आम आदि।

प्रश्न 14.
कौन-सी सब्ज़ियों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, तरबूज, खीरा आदि।

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प्रश्न 15.
फव्वारा सिंचाई प्रणाली कौन-सी भूमियों में प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
रेतली तथा टिब्बों वाली भूमि में।

प्रश्न 16.
क्यारा विधि का क्या नुकसान है ?
उत्तर-
पानी की खपत अधिक होती है।

प्रश्न 17.
बैड्ड प्लांटर से गेहूँ बोने पर कितने प्रतिशत पानी बच जाता है ?
उत्तर-
18-25%.

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प्रश्न 18.
कोई दो फसलों के उदाहरण दें जिनसे पानी की बचत होती है ?
उत्तर-
तेल बीज फसलें, जौ, मक्का, नरमा (कपास)।

प्रश्न 19.
लेज़र लेवलर के प्रयोग से कितनी पैदावार बढ़ती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 20.
टैंशियोमीटर क्या है ?
उत्तर-
काँच की पाइप से बना यन्त्र।

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प्रश्न 21.
मल्चिंग कौन-सी फसलों में की जाती है ?
उत्तर-
शिमला मिर्च तथा साधारण मिर्च आदि।

प्रश्न 22.
नहरों तथा खालों को पक्का करके कितना पानी बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
10-20%.

प्रश्न 23.
केवल वर्षा पर आधारित कषि को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
बारानी या मारू खेती।

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प्रश्न 24.
सिंचाई के मुख्य साधन बताएं।
उत्तर-
नहरी तथा ट्यूबवैल सिंचाई।

प्रश्न 25.
सिंचाई किसको कहते हैं ?
उत्तर–
बनावटी तरीकों से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 26.
ऐसा सिंचाई का कौन-सा साधन है, जिससे सिंचाई करने के लिए किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती ?
उत्तर-
नहर का पानी।

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प्रश्न 27.
पानी की कमी का पौधों पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
पानी की कमी से पत्ते मुरझा जाते हैं तथा सूख जाते हैं।

प्रश्न 28.
आप रौणी से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खुले सूखे खेत को बुवाई के लिए तैयार करने के लिए सिंचाई करने को रौणी कहते हैं।

प्रश्न 29.
बीज कैसे अंकुरित होते हैं ?
उत्तर-
बीज भूमि में से पानी सोख कर फूल जाता है तथा अंकुरित हो जाता है।

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प्रश्न 30.
भूमि के अन्दर पानी कम हो जाए तो क्या होता है ?
उत्तर-
भूमि के अन्दर पानी आवश्यकता से कम हो जाए तो पौधे भूमि से अपने पोषक तत्त्व प्राप्त नहीं कर पाते।

प्रश्न 31.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं जिनमें से नहरें निकाल कर सिंचाई की जाती है ?
उत्तर-
सतलुज, ब्यास तथा रावी।

प्रश्न 32.
कछार क्या होता है ?
उत्तर-
नहरों के पानी में तैर रही बारीक मिट्टी को कछार कहते हैं।

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प्रश्न 33.
चरसा क्या है ?
उत्तर-
चरसा चमड़े का बड़ा बोका या थैला होता है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
बनावटी तरीके से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 2.
सिंचाई की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
पौधे पानी के बिना फल-फूल नहीं सकते। खेतों में बोई फसल को वर्षा के पानी या फिर अन्य साधनों द्वारा प्राप्त किए पानी से सींचा जा सकता है। सिंचाई से पौधों को रूप तथा आकार मिल जाता है। पानी धरती में से ठोस तत्त्वों को घोल कर भोजन योग्य बना देता है। पानी पौधे के भोजन को तरल का रूप देकर हर भाग में जाने के योग्य बना देता है। पानी धरती तथा पौधे का तापमान एक समान रखता है। सिंचाई की आवश्यकता को देखते हुए सरकार बड़े-बड़े डैम बना रही है जिनमें से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं।

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प्रश्न 3.
बारानी कृषि से क्या भाव है ?
उत्तर-
जब फसलों की सिंचाई का कोई भी साधन न हो तथा फसलें केवल वर्षा के पानी के आधार पर ही उगाई जाती हों तो इस तरह की खेती को बारानी या मारू खेती कहते है ।
बारानी कृषि केवल वर्षा पर निर्भर है इस प्रकार की कृषि वहीं संभव है जहां पर आवश्यकता अनुसार तथा समय पर वर्षा पड़ती हो।

प्रश्न 4.
नहरी सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
खेती के लिए नहरों का पानी अच्छा समझा जाता है क्योंकि इसमें कछार होती है जो खेत को उपजाऊ बनाती है।
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन ऐसी नदियां हैं जिनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया गया है। नहरी सिंचाई का प्रबंध सरकार के सिंचाई विभाग द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5.
ट्यूबवैल के खराब पानी को सिंचाई योग्य कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिणी से पश्चिमी भागों में ट्यूबवैल का पानी खराब या दरम्याना है। इस खराब पानी को विशेषज्ञों की सलाह से नहरों के पानी से मिला कर या इसमें जिपस्म डाल कर ठीक किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं ? इनका पानी सिंचाई के लिए कैसे प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन मुख्य नदियां हैं। इनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 7.
तालाबों द्वारा सिंचाई कहां होती है ? पंजाब में इसकी आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती ?
उत्तर-
दक्षिण भारत में वर्षा का पानी तालाबों में एकत्र किया जाता है तथा इसको बाद में सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
पंजाब में नहरी पानी तथा कुएं काफ़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए यहां तालाबों से सिंचाई नहीं की जाती।

प्रश्न 8.
कुएं में से पानी को सिंचाई के लिए निकालने के लिए प्रयोग होने वाले साधनों की सूची बनाओ।
उत्तर-
कुओं का पानी कई साधनों द्वारा निकाल कर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी सूची आगे दी गई है

  1. हल्ट
  2. चरसा
  3. पम्प
  4. ट्यूबवैल।

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प्रश्न 9.
हल्ट क्या होता है ? इसके भागों के नाम लिखें।
उत्तर-
कुएं में से पानी निकालने के लिए हल्ट का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसके निम्नलिखित भाग हैं—

  1. चकला
  2. चकली
  3. वैड़
  4. माहल
  5. पाड़छा
  6. नसार
  7. लट्ठ
  8. टिंडा
  9. कुत्ता।

प्रश्न 10.
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के नीचे लिखे नुकसान हो सकते हैं—

  1. अधिक पानी धरती के नीचे चला जाता है तथा इसका पौधों को कोई लाभ नहीं होता तथा यह अपने साथ पोषक तत्त्वों को भी घोल कर धरती के नीचे गहराई में ले जाता
  2. धरती के रोम बंद हो जाते हैं तथा हवा का आवागमन रुक जाता है।
  3. सेम की समस्या आ सकती है।
  4. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 11.
पौधों में कितना पानी हो सकता है ?
उत्तर-
पौधों में साधारणतयः 50 से 80% तक पानी हो सकता है, परन्तु बहुत छोटे पौधे तथा केले में 90% पानी होता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की विधियों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
पंजाब में सिंचाई के लिए मुख्य तौर पर दो विधियों का प्रयोग किया जाता है—
(1) नहरी सिंचाई
(2) ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई।

  1. नहरी सिंचाई-वर्षा के पानी को डैम में एकत्र करके नहरों, सूओं तथा खालों द्वारा आवश्यकता के अनुसार उसको खेतों तक पहुँचाया जाता है। इसको नहरी सिंचाई कहा जाता है।
  2. ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई-वर्षा का पानी जब धरती में समा जाता है तथा धरती की सतह के नीचे एकत्र हो जाता है। आवश्यकता के समय पानी को ट्यूबवैल द्वारा निकाल कर प्रयोग किया जाता है। पंजाब में तीन चौथाई भूमि की सिंचाई ट्यूबवैलों से की जाती है। ट्यूबवैल का पानी धरती में नमक की मात्रा के हिसाब से अच्छा या बुरा हो सकता है।

प्रश्न 2.
पौधे के लिए पानी के महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
पौधों के लिए पानी का महत्त्व-सिंचाई की क्रिया जो पौधों के लिए पानी प्रदान करती है, पौधे के फलने-फूलने के लिए कई प्रकार से सहायक होते हैं—

  1. पानी एक अच्छा घोलक है तथा भूमि में घुल कर ही पौधे को प्राप्त होते हैं।
  2. जड़ों द्वारा सोखे जाने के बाद खुराक पानी द्वारा पौधे के दूसरे भागों में पहुंचती है। इस प्रकार पानी पौधे के एक भाग से दूसरे भाग तक खुराक ले जाने का काम करता है।
  3. पानी दो तत्त्वों ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन से मिल कर बना है। यह दोनों तत्त्व पौधे के भोजन के अंश हैं। इसलिए पानी खुद एक खुराक है।
  4. पानी पौधों तथा भूमि के तापमान को स्थिर रखता है। गर्मियों में पानी पौधों को ठण्डा रखता है तथा सर्दी में पौधों को सर्दी से बचाता है।
  5. पानी के बिना पौधे सूर्य की रोशनी में प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं कर सकते। मतलब अपनी खुराक नहीं बना सकते।
  6. पानी भूमि को नर्म रखता है। यदि भूमि नर्म होगी तो जड़ें खुराक ढूंढ़ने के लिए इसके ऊपर आसानी से फैल सकेंगी।
  7. पानी से भूमि के अन्दर लाभदायक बैक्टीरिया अपना काम तेज़ी से कर सकते हैं।
  8. पानी भूमि में मौजूद कूड़ा-कर्कट, घास-फूस तथा अन्य जैविक पदार्थों को गलासड़ा कर भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है।
  9. कई बार पानी में बारीक मिट्टी मिली होती है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

प्रश्न 3.
सिंचाई के भिन्न-भिन्न तरीकों के बारे में विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
सिंचाई के भिन्न तरीके हैं—
(1) खेतों में खुला पानी देना (क्यारा विधि)
(2) बूंद-बूंद विधि (ड्रिप विधि)
(3) फव्वारा सिंचाई
(4) मेड़ या नाली बना कर सिंचाई
(5) बैड्ड बना कर सिंचाई।

1. खेतों में खुला पानी देना-पंजाब में इस ढंग का प्रयोग अधिक होता है। इस विधि से खेत को पानी एक मेड़ तोड़कर लगाया जाता है, इस प्रणाली में पानी की खपत अधिक होती है। क्यारे का आकार कई बातों पर निर्भर करता है; जैसे-मिट्टी की किस्म, खेत की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि। यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तो रेतली भूमि में पानी लगाने के लिए क्यारों की संख्या 17-14, दरम्यानी भूमि में 1011 तथा भारी भूमि में 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होनी चाहिए। गेहूँ तथा धान को पानी लगाने के लिए यही ढंग अपनाया जाता है।

2. बूंद-बूंद सिंचाई-इस प्रणाली को ड्रिप सिंचाई प्रणाली भी कहा जाता है। यह नए ज़माने की विकसित सिंचाई प्रणाली है। इससे पानी की बहुत बचत हो जाती है। इसको पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में प्रयोग करना लाभकारी है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 4
चित्र-बूंद-बूंद सिंचाई
इस प्रणाली में प्लास्टिक की पाइपों के द्वारा पानी पौधों के नज़दीक दिया जाता है, परन्तु बूंद-बूंद (टपक-टपक) करके, इसीलिए इसका नाम टपक सिंचाई प्रणाली भी है। यह ढंग प्रायः बागों में जहाँ-नींब, अनार, अमरूद, पपीता, अंगूर, आम, किन्न आदि तथा सब्जियों में जैसे-टमाटर, गोभी, तरबूज, खीरा, बैंगन आदि में प्रयोग होता है।

3. फव्वारा विधि- यह एक अच्छी सिंचाई प्रणाली है। इसका प्रयोग रेतली तथा टिब्बों वाली ज़मीन में किया जाता है क्योंकि इस ज़मीन को समतल करने का खर्चा बहुत होता है। इस ढंग में पानी की बहुत बचत हो जाती है। यह तरीका अपनाने से फसल की पैदावार तो बढ़ती है तथा साथ में गुणवत्ता भी बढ़ती है। इस प्रणाली की प्राथमिक लागत अधिक होने के कारण इसको नकदी फसलों तथा बागों तक ही सीमित रखा जाता है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 5
चित्र-फब्वारा विधि

4. मेड़ें या नाली बना कर सिंचाई- इस तरीके में मेड़ें बना कर या नाली बना कर सिंचाई की जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 6
चित्र–नाली बनाकर सिंचाई

5. बैड्ड बनाकर सिंचाई-इस ढंग में बैड्ड बनाकर सिंचाई की जाती है।
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चित्र-बैड्ड बनाकर सिंचाई

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

कृषि में पानी का कुशल प्रयोग PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पंजाब में कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल 41.58 लाख हैक्टेयर है।
  • कुल कृषि क्षेत्रफल का 98% सिंचित है।
  • पंजाब में फसल घनत्व को प्रमुख रखते हुए वार्षिक औसतन 4.4 मिलियन – हैक्टेयर मीटर पानी की आवश्यकता है।
  • पंजाब में आज लगभग 1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी की कमी है।
  • मध्य पंजाब में 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे जा चुका है।
  • एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक पानी का स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा।
  • सिंचाई के तरीके हैं-खेतों में खुला पानी देना, बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, मेड़ या नाली बनाकर सिंचाई, बैड्ड बनाकर सिंचाई।
  • पंजाब में अधिक प्रचलित क्यारा सिंचाई प्रणाली है।
  • बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली एक आधुनिक विकसित सिंचाई प्रणाली है जिसको ड्रिप (टपक) सिंचाई प्रणाली कहा जाता है।
  • फव्वारा प्रणाली भी एक बढ़िया सिंचाई प्रणाली है।
  • कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें ; जैसे-दालें, मक्का, तेल बीज, बासमती, कपास आदि की खेती से पानी की बचत हो जाती है।
  • लेज़र लेवलर से 25-30% पानी की बचत हो रही है।
  • धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करके भी पानी की बचत हो जाती है।
  • मक्का, गन्ना की फसलों में पराली की तह बिछाने से पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहते हैं।
  • नहरों तथा नालों को पक्का करने से 10-20% पानी की बचत हो जाती है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

PSEB 6th Class Agriculture Guide कृषि सहायक व्यवसाय Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
पंजाब में कितने किसान छोटे तथा सीमांत हैं ?
उत्तर-
एक तिहाई।

प्रश्न 2.
खुम्बों की कितनी किस्में हैं ?
उत्तर-
सर्दी की खुम्बें हैं-बटन, औइस्टर, शिटाकी। गर्मी की खुम्बें हैं-मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली।

प्रश्न 3.
मधुमक्खी की कौन-सी किस्म पंजाब में अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
इटैलियन।

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प्रश्न 4.
किस व्यवसाय के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरफ से सब्सिडी दी जाती है ?
उत्तर-
मधुमक्खी पालन व्यवसाय के लिए।

प्रश्न 5.
गाँवों से दूध कौन इकट्ठा करता है ?
उत्तर-
दूध सहकारी संस्थाएं।

प्रश्न 6.
पंजाब में सबसे अधिक कौन-सी खुम्ब की कृषि होती है ?
उत्तर-
बटन खुम्ब की।

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प्रश्न 7.
सब्जियों को आगे-पीछे करने के लिए किस तरह की कृषि करनी चाहिए ?
उत्तर-
सुरक्षित काश्त।

प्रश्न 8.
किसानों को मशीनें किराए पर देने वाले केंद्र को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
कृषि सेवा केन्द्र।

प्रश्न 9.
कौन-से पशु पालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती
उत्तर-
10 दोगली गाएं रखने वाले पशु-पालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती है।

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प्रश्न 10.
ऐग्रो प्रोसैसिंग कंपलैक्स (Agro processing complex) का मॉडल किस संस्था की ओर से दिया गया है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो

प्रश्न 1.
खुम्बों की कौन-कौन सी किस्में हैं ?
उत्तर-
सर्दी की खुम्बे हैं-बटन, औइस्टर, शिटाकी। गर्मी की खुम्बे हैं-मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली।

प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन में किन-किन पदार्थों का उत्पादन होता है ?
उत्तर-
शहद, बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रूड आदि पदार्थों का उत्पादन होता है।

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प्रश्न 3.
फलों और सब्जियों की छोटे स्तर पर प्रोसैसिंग किस रूप में की जा सकती है ?
उत्तर-
फलों तथा सब्जियों के अचार, मुरब्बे, सक्वैश आदि बना कर छोटे स्तर पर प्रोसैसिंग की जा सकती है।

प्रश्न 4.
खुम्बों की कृषि किस मौसम में की जाती है ?
उत्तर-
सर्दी ऋतु की खुम्बों की कृषि सितंबर से मार्च तथा गर्मी की अप्रैल से अगस्त में की जाती है।

प्रश्न 5.
गाय की किन किस्मों से अधिक आय होती है ?
उत्तर-
होलसटीन फ्रीजीयन तथा जर्सी गाय से।

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प्रश्न 6.
कृषि पदार्थों से अधिक आय कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
अनाज, दालें, तेल बीज आदि कृषि पदार्थों से आटा, बड़ियाँ, तेल आदि बना कर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 7.
कृषि परामर्श केंद्र में कौन-सी सेवाएं प्रदान की जाती हैं ?
उत्तर-
यहां कृषि से संबंधित सामान, जैसे- बीज, रसायन, खादें आदि बेचे जा सकते हैं तथा किसानों को समय-समय पर आवश्यक सलाह भी दी जा सकती है।

प्रश्न 8.
सहायक व्यवसायों को लघु स्तर से क्यों आरंभ करना चाहिए ?
उत्तर-
किसी भी काम को नया शुरू करने के लिए पूरी जानकारी तथा अनुभव नहीं होता है। इसलिए ऐसे काम में हानि भी हो सकती है। यदि कार्य छोटे स्तर पर किया हो तो हानि भी कम होने की संभावना रहती है। समय के साथ अनुभव हो जाता है तथा काम बड़े स्तर पर किया जा सकता है।

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प्रश्न 9.
घर में सब्ज़ियां लगाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
घर में सब्जियां लगाने से पैसे की बचत हो जाती है एवं ताजा तथा विष रहित सब्जियां मिल जाती हैं।

प्रश्न 10.
सहायक व्यवसाय संबंधी प्रशिक्षण कहाँ से लिया जा सकता है ?
उत्तर-
यह प्रशिक्षण पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा जिला स्तर पर कृषि विज्ञान केन्द्रों से लिया जा सकता है।

(ग) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दो

प्रश्न 1.
पंजाब की कृषि में ठहराव आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
गेहूं, धान के फसल चक्र में पड़कर पंजाब इन फसलों में आत्मनिर्भर बन गया परन्तु इस चक्र में फंस कर प्राकृतिक स्रोतों, पानी तथा मिट्टी का आवश्यकता से अधिक उपयोग किया गया तथा कीटनाशक, नदीननाशकों आदि का भी आवश्यकता से अधिक उपयोग किया गया। इस से भूमिगत जल का स्तर और नीचे चला गया तथा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो गई। पंजाब की कृषि दर कम हो गई तथा कृषि में एक ठहराव सा आ गया। पंजाब के एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इनका गुज़ारा भी केवल कृषि से नहीं हो रहा।

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प्रश्न 2.
किसानों को कृषि आधारित सहायक व्यवसाय अपनाने की सिफारिश की गई है ?
उत्तर-
पंजाब में लगभग एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इनके पास एक हैक्टेयर या इससे भी कम भूमि है। इनका गुजारा केवल कृषि की कमाई से होना मुश्किल है। इसलिए ऐसे किसानों से कृषि सहायक व्यवसाय अपनाने की सिफ़ारिश की जाती है।

प्रश्न 3.
कृषि परामर्श केंद्रों के बारे में संक्षिप्त विवरण दो।
उत्तर-
ऐसे केन्द्रों को खोल कर पढ़े-लिखे नवयुवक अपनी आय का स्रोत बना सकते हैं। इन केन्द्रों पर कृषि में आवश्यक सामान जैसे-बीज, रसायन, खादें आदि रखे जा सकते हैं तथा कमाई की जा सकती है। किसानों को समय-समय पर आवश्यक सलाह दी जाती है। इस तरह यह केन्द्र जहां एक तरफ नवयुवकों की कमाई का साधन बन सकते हैं वहीं किसानों के सहायक भी बन सकते हैं।

प्रश्न 4.
पशु-पालन से अधिक आय कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
पशु-पालन शुरू से ही किसानों का तथा गांव में प्रत्येक घर का अहम भाग रहा है। पशुओं से प्राप्त दूध जहां घर में प्रयोग किया जाता है वहीं फालतू दूध बेच कर कमाई भी की जा सकती है। वर्तमान समय में पंजाब के प्रत्येक गांव में सहकारी सभाएं हैं जहां दूध को एकत्र करके दूध की प्रोसैसिंग की जाती है तथा पशु पालक घर बैठे ही कमाई कर सकते हैं। इस व्यवसाय में दोगली गाएं जैसे जर्सी तथा होलसटीन फरीजीयन से अधिक कमाई की जा सकती है। 10 दोगली गाय रखने वाले पशु पालक को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाती है।

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प्रश्न 5.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से ऐग्रो प्रोसैसिंग में किन मशीनों की सिफ़ारिश की गई है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से एक ऐग्रो प्रोसैसिंग कम्पलैक्स का मॉडल दिया गया है जिसमें एक छोटी आटा चक्की, छोटी चावल निकालने की मशीन, तेल निकालने वाला कोल्हू, दालें तथा मसाले पीसने वाली मशीन, पेंजा, पशु खुराक तैयार करने वाली मशीनें आदि लगाई जाती हैं। नवयुवक किसान इस कम्पलैक्स को लगाकर आमदन का अच्छा साधन बना सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 6 PSEB कृषि सहायक व्यवसाय Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे तथा सीमांत किसानों के पास कितनी भूमि रह गई है ?
उत्तर-
एक हैक्टेयर या इससे भी कम।

प्रश्न 2.
खुम्बों की काश्त कहाँ की जा सकती है ?
उत्तर-
घर के किसी भी कमरे में।

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प्रश्न 3.
पंजाब में बटन खुम्बों की काश्त कितने प्रतिशत की जाती है ?
उत्तर-
90 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
कितनी दोगली गाय रखने पर सरकार द्वारा आर्थिक सहायता मिलती है ?
उत्तर-
10 दोगली गाय रखने पर।

प्रश्न 5.
आजकल अन्य कौन-से कृषि सहायक व्यवसाय अपनाए जा रहे हैं ?
उत्तर-
मुर्गी पालन, सुअर पालन, भेड़ तथा बकरी पालन, खरगोश पालन आदि।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा और क्या मिलता है ?
उत्तर-
मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रड आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन के लिए सब्सिडी किस विभाग से मिलती है ?
उत्तर-
पंजाब बागवानी विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा इस व्यवसाय के लिए सब्सिडी दी जाती है।

प्रश्न 3.
पशु पालन में कौन-सी गायों से अधिक आय मिल सकती है ?
उत्तर–
दोगली नस्लें जैसे जर्सी तथा होलस्टीन फ्रीजीयन से अधिक आय मिल सकती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खुम्बों की काश्त के बारे में बताएं।
उत्तर-
खुम्बों की काश्त घर के किसी भी कमरे में की जा सकती है। इसके लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती। गर्मी में मिल्की खुम्ब तथा धान की पराली वाली खुम्बें उगाई जाती हैं तथा सर्दी में बटन, औइस्टर तथा शिटाकी खुम्बों की काश्त होती है। गर्मी वाली खुम्बों को अप्रैल से अगस्त तथा सर्दी वाली खुम्बों को सितम्बर से मार्च तक उगाया जाता है।

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प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन का विवरण दें।
उत्तर-
मधुमक्खी पालन का व्यवसाय अपना कर कमाई की जा सकती है। इससे कृषि के कामों में कोई भी रुकावट नहीं पड़ती। पंजाब में इटैलियन मक्खी बहुत प्रचलित है।

मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रूड आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं। पंजाब बागवानी विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा इस व्यवसाय के लिए सब्सिडी भी दी जाती है।

कृषि सहायक व्यवसाय PSEB 6th Class Agriculture Notes

  1. हरित क्रांति से पंजाब गेहूं-धान जैसी फसलों में आत्मनिर्भर हो गया।
  2. पंजाब में एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं जिनके पास एक हैक्टेयर या इस से भी कम भूमि है।
  3. खुम्बों की काश्त घर के किसी भी कमरे में की जा सकती है।
  4. खुम्बों की सर्द ऋतु की किस्में हैं-बटन, औइस्टर तथा शिटाकी।
  5. गर्मी ऋतु के लिए मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली खुम्ब।
  6. पंजाब में 90 प्रतिशत बटन खुम्ब की काश्त की जाती है।
  7. पंजाब में इटैलियन मक्खी की किस्म बहुत प्रचलित है।
  8. मधुमक्खियों से बी वैक्स, रॉयल जैलीबी वैनम, वी ब्रूड जैसे पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  9. मधुमक्खी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरफ से सब्सिडी दी जाती है।
  10. पशु पालन व्यवसाय में दोगली गाएं; जैसे-जर्सी, होल्सटीन फ्रीजियन पाली जाती
  11. सब्जियों की काश्त से अच्छी कमाई की जा सकती है।
  12. खेती पदार्थों की प्रोसैसिंग करके भी अच्छी कमाई की जा सकती है।
  13. कृषि मशीनरी खरीद कर किसानों को किराए पर दी जा सकती हैं तथा कमाई की जा सकती है।
  14. पढ़े-लिखे नवयुवक कृषि से संबंधित सामान तथा कृषि से संबंधित परामर्श देने का केन्द्र खोल सकते हैं।