PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती

PSEB 10th Class Agriculture Guide आषाढी की सब्जियों की खेती Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-झे शब्दों में उतर दीजिए-

प्रश्न 1.
अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कितनी सब्जी खानी चाहिए ?
उत्तर-
284 ग्राम।

प्रश्न 2.
आलू कौन-सी ज़मीन में बढ़िया उगता है?
उत्तर-
रेतली मैरा भूमि में।

प्रश्न 3.
दो तरह की कौन-कौन सी खादें होती हैं ?
उत्तर-
दो प्रकार की-रासायनिक तथा जैविक।

प्रश्न 4.
काली गाजर की नयी किस्म कौन-सी है ?
उत्तर-
पंजाब ब्लैक ब्यूटी।

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प्रश्न 5.
मूली की पूसा चेतकी किस्म की बुआई कब करनी चाहिए ?
उत्तर-
अप्रैल से अगस्त में।

प्रश्न 6.
मटरों की दो अगेती किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
मटर अगेता-6 तथा 7, अरकल।

प्रश्न 7.
बरोकली की पनीरी बोने का उचित समय कौन-सा है ?
उत्तर-
मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर।

प्रश्न 8.
आलू की दो पछेती किस्में कौन-सी हैं ?
उत्तर-
कुफरी सिन्धूरी तथा कुफरी बादशाह।

प्रश्न 9.
एक एकड़ की पनीरी पैदा करने के लिए बंदगोभी का कितना बीज चाहिए ?
उत्तर-
200 से 250 ग्राम।

प्रश्न 10.
फास्फोरस तत्त्व कौन-सी खाद से मिलता है?
उत्तर-
सिंगल सुपरफास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
सब्जी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पौधे का वह नर्म भाग; जैसे-फूल, फल, तना, जड़, पत्ते आदि जिन्हें कच्चा सलाद के रूप में या पका कर खाया जाता है, को सब्जी कहते हैं।

प्रश्न 2.
पनीरी के साथ कौन-कौन सी सब्जियां लगायी जाती हैं ?
उत्तर-
पनीरी के साथ वे सब्ज़ियां लगायी जाती हैं जो उखाड़ने के बाद फिर से बोने का झटका सहन कर लें। ये सब्जियां हैं-बंदगोभी, चीनी बंदगोभी, प्याज, सलाद, फूलगोभी आदि।

प्रश्न 3.
काली गाजर के मानव के शरीर को क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
काली गाजर में लौह तत्व होता है जो एनीमिया से बचाव करती है। इनमें ऐथोसाइनिन तथा फिनोल, कैंसर से बचाव करते हैं। काली गाजर की काँजी बनाते हैं जो पाचन शक्ति को ठीक रखती है।

प्रश्न 4.
मटरों में खरपतवारों की रोकथाम कैसे की जाती है ?
उत्तर-
मटरों में खरपतवारों की रोकथाम के लिए स्टोंप 30 ताकत 500 ग्राम एक लीटर या एफालॉन 50 ताकत 500 ग्राम प्रति एकड़ नदीन उगाने से पहले तथा बुआई के 2 दिनों में 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 5.
आलू में से खरपतवारों की रोकथाम के बारे में लिखें।
उत्तर-
आलू में से खरपतवारों की रोकथाम के लिए स्टोप 30 ताकत एक लीटर या एरीलान 75 ताकत 500 ग्राम या सैनकोर 70 ताकत 200 ग्राम का 150 लीटर पानी में घोल बनाकर नदीनों के जमने से पहले तथा पहली सिंचाई के बाद छिड़काव करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
गाजर की बुआई का समय, प्रति एकड़ बीज की मात्रा तथा अंतर के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
बुआई का समय-ठंडा मौसम, सितम्बर से अक्तूबर माह। प्रति एकड़ बीज की मात्रा-4-5 किलोग्राम।
फासला-गाजरों को मेड़ों पर बोया जाता है तथा मेड़ों में फासला 45 सैं०मी० होना चाहिए।

प्रश्न 7.
आलुओं की उन्नत किस्मों, प्रति एकड़ बीज की मात्रा तथा बुआई के उचित समय के बारे में लिखिए।
उत्तर-
उन्नत किस्म-कुफरी सूर्य, कुफरी पुखराज, कुफरी ज्योति, कुफरी पुष्कर, कुफरी सिंधूरी, कुफरी बादशाह।
बीज की मात्रा प्रति एकड़-12-18 क्विंटल। बुआई का सही समय-पतझड़ के लिए अंत सितम्बर से मध्य अक्तूबर तथा बहार ऋतु के लिए जनवरी का पहला पखवाड़ा है।

प्रश्न 8.
रासायनिक खादें कौन-कौन सी होती हैं तथा नाइट्रोजन तत्व वाली खादों के बूटे के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
रासायनिक खादें कारखानों में तैयार की जाती हैं। ये हैं नाइट्रोजन तत्व वाली जैसे यूरिया, किसान खाद। फास्फोरस तत्व वाली जैसे सिंगल सुपरफास्फेट तथा डाईअमोनियम फास्फेट, पोटाश तत्व वाली खाद जैसे म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा कई अन्य तत्वों वाली खादें भी होती हैं। नाइट्रोजन खाद पौधों में वृद्धि का कार्य करती है तथा प्रोटीन की मात्रा बढ़ाती है।

प्रश्न 9.
सब्जियों के भविष्य से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हमारे देश में प्रति व्यक्ति जितनी सब्जी खानी चाहिए। उससे कम मिल रही हैं तथा सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने की अत्यन्त आवश्यकता है इस प्रकार सब्जियों का भविष्य हमारे देश में उज्ज्वल है।

प्रश्न 10.
पोटाश तत्व वाली खाद का पौधों के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर-
यह तत्व फसल को रोगों से बचाता है तथा पौधे में पानी का प्रवेश ठीक रखने में सहायक है। इस तत्व की अधिक आवश्यकता आलू, गाजर तथा शक्करकंदी की फसलों में होती है।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
मूली की सारा साल खेती कैसे की जाती है ?
उत्तर-
मूली की सारा साल खेती निम्न सारणी के अनुसार की जाती है-
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प्रश्न 2.
मानव के खाद्य में सब्जियों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-मानव के खाद्य में सब्जियों का बहुत महत्त्व है। इनमें आहारीय तत्व कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, धातु, विटामिन होते हैं जो शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार एक वयस्क को प्रतिदिन 284 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए। इनमें 114 ग्राम पत्तों वाली, 85 ग्राम जड़ वाली तथा 85 ग्राम अन्य सब्जियां होनी चाहिए। सब्जियों को कच्चा ही अथवा आग पर पका कर खाया जाता है। भारत जैसे देश में यहां अधिक जनसंख्या शाकाहारी है इसलिए सब्जियों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

प्रश्न 3.
सर्दियों की सब्जियों को कीड़ों तथा बीमारियों से कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
सर्दियों की सब्जियों का कीड़ों तथा बीमारियों से बचाव –

  1. गर्मी के मौसम में हल के द्वारा जुताई करने से धरती की कीड़े, उल्ली तथा कई नीमाटोड मर जाते हैं।
  2. यदि सही फसल चक्र अपनाया जाए तो आलू तथा मटर की कुछ बीमारियों से बचाव हो जाता है।
  3. अगेती फसल की बुआई की हो तो कीड़ों को हाथ से समाप्त किया जा सकता है।
  4. रोग वाले पौधों को नष्ट करके अन्य पौधों को रोगों से बचाया जा सकता है।
  5. बीज की सफाई करके बोने से रोगों तथा कीटों से बचा जा सकता है। बीज की सफाई कैपटान अथवा थीरम से की जाती है।
  6. सेवन, फेम आदि कीटनाशक का प्रयोग करके संडियों को मारा जा सकता है। इन चूसने वाले कीड़ों तथा तेले पर काबू पाने के लिए रोगर, मैटासिसटाकस तथा मैलाथियान का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
अगेती मटरों की खेती के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
उन्नत किस्म-अगेते मटर की उन्नत किस्में हैं-मटर अगेता-6 तथा 7, अरकल।
पैदावार-20-32 क्विंटल प्रति एकड़।
मौसम-ठंडा मौसम।
बुआई का समय-मध्य अक्तूबर से मध्य नवम्बर।
बीज की मात्रा-45 किलो प्रति एकड़। यदि बुआई पहली बार करनी हो तो राईजोबीयम का टीका लगाना चाहिए।
फासला-30 × 7 सैं०मी० ।
सिंचाई-पहली 15-20 दिन बाद, दूसरी फूल आने पर तथा तीसरी फलियां पड़ने पर।
खरपतवारों की रोकथाम-सटोंप 30 ताकत एक लीटर या टैफलान 50 ताकत 500 ग्राम प्रति एकड़ नदीन उगने से पहले तथा बुआई से 2 दिनों में 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
तुड़ाई-खाने के लिए ठीक अवस्था में फलियां तोड़ लेनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
फूल गोभी की अगेती, मुख्य तथा पछेती फसल के लिए पनीरी बोने का समय, प्रति एकड़ बीज की मात्रा तथा अंतर के बारे में लिखिए।
उत्तर-
1. पनीरी बोने का समय-

  • अगेती-जून से जुलाई।
  • मुख्य फसल-अगस्त से मध्य सितम्बर।
  • पछेती फसल-अक्तूबर से नवम्बर।

2. प्रति एकड़ बीज की मात्रा-

  • अगेती फसल के लिए 500 ग्राम बीज प्रति एकड़।
  • अन्य के लिए 250 ग्राम बीज प्रति एकड़।

3. फासला-45 x 30 सें०मी० के अनुसार।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB आषाढी की सब्जियों की खेती Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
विशेषज्ञों के अनुसार एक वयस्क को प्रतिदिन ………. ग्राम सब्जी खानी चाहिए।
(क) 500
(ख) 285
(ग) 387
(घ) 197.
उत्तर-
(ख) 285

प्रश्न 2.
जड़ वाली सब्जी नहीं है-
(क) गाजर
(ख) मूली
(ग) शलगम
(घ) मटर।
उत्तर-
(घ) मटर।

प्रश्न 3.
पनीरी लगा कर बुआई करने वाली सब्जियां हैं-
(क) फूल गोभी
(ख) बरोकली
(ग) प्याज़
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 4.
आषाढ़ी की सब्ज़ियां हैं
(क) गाजर
(ख) मटर
(ग) फूल गोभी
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 5.
मूली की किस्म नहीं है-
(क) पूसा चेतकी
(ख) जापानी व्हाइट
(ग) पूसा सनोवाल
(घ) पूसा पसंद।
उत्तर-
(ग) पूसा सनोवाल

प्रश्न 6.
आलू की किस्में हैं-
(क) कुफरी सूर्य
(ख) कुफरी पुष्कर
(ग) कुफरी ज्योति
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 7.
फसलों को रस चूसने वाले कीटों से बचाने के लिए कौन-सा कीटनाशक प्रयोग किया जाता है ?
(क) राइजोबियम
(ख) कैप्टान
(ग) स्टौंप
(घ) मेलाथियान।
उत्तर-
(घ) मेलाथियान।

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II. ठीक/गलत बताएँ-

1. पालम समृद्धि बरोकली की किस्म है।
2. जपानी व्हाइट मूली की किस्म है।
3. खादें दो तरह की होती हैं।
4. काली गाजर की किस्म है-पंजाब ब्लैक ब्यूटी।
5. पूसा सनोवाल-1, फूल गोभी की उन्नत किस्म है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. पूसा हिमानी …………… की किस्म है।
2. कुफरी संधूरी ……………… की किस्म है।
3. मटर की मुख्य किस्म की पैदावार ……………… क्विंटल प्रति एकड़ है।
4. मटर के बीज को ……………… का टीका लगाया जाता है।
5. अर्कल ……………… की किस्म है।
उत्तर-

  1. मूली
  2. आलू,
  3. 47-55,
  4. राहजोबियम,
  5. मटर।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक वयस्क को अच्छे स्वास्थ्य के लिए कितने ग्राम सब्जी खानी चाहिए ?
उत्तर-
284 ग्राम।

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प्रश्न 2.
हमारे देश में सब्जियों का भविष्य कैसा है ?
उत्तर-
भविष्य उज्ज्वल है।

प्रश्न 3.
सब्जियों को पकने के लिए कितना समय लगता है ?
उत्तर-
बहुत कम, वर्ष में 2-4 फसलें ही लगाई जा सकती हैं।

प्रश्न 4.
गेहूँ, चावल के फसली चक्कर की तुलना में सब्जियों का उत्पादन कितना अधिक है ?
उत्तर-
5-10 गुणा।

प्रश्न 5.
सब्जियों की कृषि के लिए कौन-सी भूमि अच्छी मानी जाती है ?
उत्तर-
रेतली मैरा या चीकनी मैरा भूमि।

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प्रश्न 6.
जड़ वाली सब्जियों के लिए कैसी भूमि अच्छी रहती है ?
उत्तर-
रेतली मैरा भूमि।

प्रश्न 7.
खादें कितनी प्रकार की होती हैं ?
उत्तर-
दो प्रकार की।

प्रश्न 8.
खादों के प्रकार बताएं।
उत्तर-
रासायनिक तथा जैविक।

प्रश्न 9.
बीज कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
बीज अच्छी किस्म का तथा रोग रहित होना चाहिए।

प्रश्न 10.
रासायनिक खादों में कौन-से तत्व होते हैं ?
उत्तर-
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश।

प्रश्न 11.
बीज बोने के कौन-से दो ढंग हैं ?
उत्तर-
सीधी बुआई तथा पनीरी लगाकर।

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प्रश्न 12.
सीधी बुआई करके बोयी जाने वाली सब्जियों के नाम लिखो।
उत्तर-आलू, गाजर, मेथी, धनिया आदि।

प्रश्न 13.
पनीरी लगाकर बोई जाने वाली सब्जियां बतायें।
उत्तर-
चीनी बंदगोभी, फूलगोभी, बरोकली, प्याज, सलाद आदि।

प्रश्न 14.
सब्जियों के सम्बन्ध में गर्मी के मौसम में हल जोतने से क्या होता है ?
उत्तर-
धरती के कीड़े, फफूंदी तथा नीमाटोड मर जाते हैं।

प्रश्न 15.
सब्जियों के बीजों को कौन-सी दवाई से सोधा जा सकता है ?
उत्तर-
कैपटान या थीरम से।

प्रश्न 16.
सब्जियों में इंडियों को मारने के लिए कीटनाशक बताओ।
उत्तर-
सेवन, फेम।

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प्रश्न 17.
रस चूसने वाले कीड़े तथा तेले पर काबू करने के लिए दवाई बताएं।
उत्तर-
रोगर, मैटासिसटाकस, मैलाथियान।

प्रश्न 18.
आषाढ़ी की सब्जियों के नाम बताएं।
उत्तर-
गाजर, मूली, बंदगोभी, फूलगोभी, आलू, मटर आदि।

प्रश्न 19.
गाजर की कौन-सी किस्म अधिक ताप सह सकती है ?
उत्तर-
देसी किस्म।

प्रश्न 20.
पंजाब में गाजर की किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब ब्लैक ब्यूटी, पंजाब कैरेट रेड।

प्रश्न 21.
पंजाब कैरेट रेड, गाजर की पैदावार तथा रंग बताएं।
उत्तर-
लाल रंग, 230 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 22.
गाजर कहां बोयी जाती है ?
उत्तर-
मेड़ों पर।

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प्रश्न 23.
गाजर के लिए मेड़ों का फासला बताओ।
उत्तर-
मेड़ों का फासला 45 सैं०मी०।

प्रश्न 24.
गाजर के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
4-5 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 25.
गाजरों को अधिक पानी लगाने से क्या नुकसान होता है ?
उत्तर-
गाजर का रंग नहीं बनता।

प्रश्न 26.
गाजर की तैयारी को लगने वाला समय बताओ।
उत्तर-
90-100 दिनों में किस्मों के अनुसार गाजर तैयार हो जाती है।

प्रश्न 27.
मूली की किस्में बताओ।
अथवा
मूली की एक उन्नत किस्म का नाम लिखें।
उत्तर-
पंजाब पसंद, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जापानी व्हाइट, पंजाब सफेद मूली-2.

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प्रश्न 28.
मूली की पैदावार बताओ।
उत्तर-
105-215 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 29.
मूली के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
4-5 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 30.
मूली की बुआई कहां की जाती है तथा फासला बताओ।
उत्तर-
मेड़ों पर फासला लाइनों में 45 सैं०मी० तथा पौधों में 7 सैं०मी० ।

प्रश्न 31.
मूली कितने दिनों में निकालने योग्य हो जाती है ?
उत्तर-
45-60 दिनों में।

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प्रश्न 32.
मटर की अगेती किस्में बताओ।
उत्तर-
अगेता-6 तथा 7, अरकल।

प्रश्न 33.
मटर की अगेती किस्मों की पैदावार बताओ।
उत्तर-
20-32 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 34.
मटर की मुख्य मौसम की किस्में बताओ।
उत्तर-
मिठी फली, पंजाब-89.

प्रश्न 34.
(क) ‘मिठीफली’ कौन सी सब्जी की उन्नत किस्म है ?
उत्तर-
मटर।

प्रश्न 35.
मटर की मुख्य किस्म की पैदावार बताओ।
उत्तर-47-55 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 36.
मटर की कौन-सी किस्म बिना छिले खाई जा सकती है ?
उत्तर-
मिठी फली।

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प्रश्न 37.
मटर की बुआई का उचित समय बताओ।
उत्तर-
मध्य अक्तूबर से मध्य नवम्बर।

प्रश्न 38.
मटर के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
अगेती किस्म के लिए 45 कि०ग्रा० तथा मुख्य फसल 30 कि०ग्रा० बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 39.
मटर के लिए फासला बताओ।
उत्तर-
अगेती किस्म के लिए फासला 30 x 7 सैं०मी० तथा मुख्य फसल के लिए 30 x 10 सैं०मी० ।

प्रश्न 40.
मटर के बीज को कौन-सा टीका लगाया जाता है ?
उत्तर-
राईज़ोबियम का।

प्रश्न 41.
फूलगोभी की काश्त के लिए कितना तापमान ठीक है ?
उत्तर-
15-20 डिग्री सेंटीग्रेड।

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प्रश्न 42.
फूलगोभी की मुख्य समय की किस्म बताओ।
उत्तर-
जाईंट सनोवाल।

प्रश्न 43.
फूलगोभी की पिछेती बुआई की किस्म बताओ।
उत्तर-
पूसा सनोवाल-1, पूसा सनोवाल के-1.

प्रश्न 44.
फूलगोभी की फसल कब तैयार हो जाती है ?
उत्तर-
खेत में पनीरी निकाल कर लगाने के 90-100 दिनों के बाद।

प्रश्न 45.
बंदगोभी की पनीरी खेत में लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
सितम्बर से अक्तूबर।

प्रश्न 46.
बंदगोभी के लिए बीज की मात्रा बताएं।
उत्तर-
200-250 ग्राम प्रति एकड़।

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प्रश्न 47.
बंदगोभी की लाइनों में तथा पौधों में फासला बताएं।
उत्तर-
45 × 45 सैं०मी० फासला अगेती किस्म तथा 60 × 45 सैं०मी० फासला पिछेती किस्म के लिए।

प्रश्न 48.
(क) बरोकली की किस्म की पैदावार बताओ।
(ख) पंजाब बरोकली-1 कौन-सी सब्जी की उन्नत किस्म है ?
उत्तर-
(क) पंजाब बरोकली -1 तथा पालम समृद्धि, औसत पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़।
(ख) यह बरोकली की किस्म है। यह फूलगोभी जैसी होती है।

प्रश्न 49.
बरोकली के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
250 ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 50.
बरोकली के लिए पनीरी लगाने का उचित समय बताओ।
उत्तर-
मध्य अगस्त से मध्य सितंबर ।

प्रश्न 51.
चीनी बंदगोभी की पनीरी की बुआई का उचित समय बताओ।
उत्तर-
मध्य सितंबर में पनीरी बीज कर मध्य अक्तूबर में निकाल कर खेत में लगाएं।

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प्रश्न 52.
चीनी बंदगोभी के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
पनीरी के लिए 200 ग्राम प्रति एकड़ तथा सीधी बुआई के लिए एक किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है।

प्रश्न 53.
चीनी बंदगोभी की कितनी कटाईयां हो जाती हैं ?
उत्तर-
कुल छः कटाईयां।

प्रश्न 54.
आलू की अगेती किस्में बताओ।
उत्तर-
कुफरी सूर्य तथा कुफरी पुखराज।

प्रश्न 55.
आलू की अगेती किस्में कितने दिनों में तैयार हो जाती हैं ?
उत्तर-
90-100 दिनों में।

प्रश्न 56.
आलू की अगेती किस्मों की पैदावार बताएं।
उत्तर-
100-125 क्विंटल प्रति एकड़।।

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प्रश्न 57.
आलू की मध्यम समय की किस्में बताओ।
उत्तर-
कुफरी ज्योती, कुफरी पुष्कर।

प्रश्न 58.
आलू की मध्यम समय की फसलें कितने दिनों में तैयार हो जाती हैं ? पैदावार बताओ।
उत्तर-
100-110 दिन, पैदावार 120-170 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 59.
आलू की पिछेती किस्में बताओ।
उत्तर-
कुफरी सिंधूरी, कुफरी बादशाह।

प्रश्न 60.
आलू की पिछेती किस्मों की तैयारी तथा पैदावार बताओ।
उत्तर-
110-120 दिन, पैदावार 120-130 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 61.
आलू की बुआई के लिए मेड़ों के बीच तथा आलुओं के बीच फासला बताओ।
उत्तर-
60 सैं०मी०, 20 सैं०मी० ।

प्रश्न 62.
आलू का बीज कैसे बोना चाहिए ?
उत्तर-
काट कर।

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प्रश्न 63.
फूलगोभी की उन्नत किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
पूसा सनोबाल-1, पूसा सनोबाल के-1, जाईंट सनोवाल।

प्रश्न 64.
कुफरी पुखराज कौन सी सब्जी की उन्नत किस्म है ?
उत्तर-
आलू की।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सब्जी से क्या भाव है ?
उत्तर-
पौधे का नर्म भाग जैसे फल, फूल, तना, जड़ें, पत्ते आदि जिन्हें कच्चा स्लाद के रूप में या पका कर खाया जा सकता है, को सब्जी कहते हैं।

प्रश्न 2.
सब्ज़ी में कौन-से पौष्टिक तत्व होते हैं ?
उत्तर-
सब्जियों में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, धातु, विटामिन आदि मिलते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक है।

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प्रश्न 3.
प्रत्येक वयस्क को 284 ग्राम सब्जी प्रतिदिन खानी चाहिए इसमें भिन्नभिन्न सब्जियों के भाग बताओ।
उत्तर-
284 ग्राम सब्जी में 114 ग्राम पत्तों वाली, 85 ग्राम जड़ों वाली, 85 ग्राम अन्य सब्जियों का सेवन करना चाहिए।

प्रश्न 4.
जैविक खादों के लाभ बताओ।
उत्तर-
जैविक खादें भूमि की भौतिक तथा रासायनिक अवस्था को ठीक रखती हैं तथा भूमि ढीली रहती है जिसे वायु का आवागमन सरलता से हो जाता है।

प्रश्न 5.
कौन-सी सब्जियां पनीरी लगा कर बोई जाती हैं ?
उत्तर-
ऐसी सब्जियां जो पनीरी को उखाड़ने तथा फिर से लगाने के झटके को सहन कर लें, जैसे-बंदगोभी, बरोकली, प्याज़ आदि।

प्रश्न 6.
सर्दी की सब्जियों के कीड़ों तथा रोगों की रोकथाम के लिए दवाइयों का क्या योगदान है ?
उत्तर-
बीज की सुधाई के लिए कैपटान या थीरम का प्रयोग किया जाता है जिससे कीड़े तथा रोगों के हमले से बचाव हो जाता है।
कुछ कीटनाशक दवाइयां जैसे फेम, सेवन आदि का प्रयोग करके संडियों को मारा जा सकता है। रस चूसने वाले कीड़े तथा तेले को काबू करने के लिए रोगर, मैटासिसटाकस तथा मैलाथियान दवाइयों का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती

प्रश्न 7.
गाजर की फसल के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
गाजर को 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुआई से तुरन्त बाद, दूसरी 10-12 दिनों बाद करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
मूली को किस प्रकार प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मूली को सलाद के रूप में, सब्जी बनाने के लिए तथा परांठे बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 9.
मूली की पंजाब में बोई जाने वाली मुख्य किस्मों तथा पैदावार बताओ।
उत्तर-पंजाब पसंद, पंजाब सफेद मूली-2, पूसा चेतकी मूली की किस्में हैं जो पंजाब में मुख्य रूप से बोई जाती हैं तथा पैदावार 105-215 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।

प्रश्न 10.
मूली की सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
पहली सिंचाई बुआई से तुरन्त बाद तथा बाद में गर्मियों में 6-7 दिनों बाद तथा सर्दियों में 10-12 दिन बाद भूमि की किस्म के अनुसार करें।

प्रश्न 11.
यदि भूमि में मटर पहली बार बोए जाने हों तो बीज को कौन-सा टीका लगाया जाता है तथा क्यों ?
उत्तर-
मटर के बीज को राइजोबियम का टीका लगाया जाता है तथा इससे मटर की पैदावार बढ़ जाती है तथा भूमि में नाइट्रोजन इकट्ठी करने में सहायता मिलती है।

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प्रश्न 12.
मटर में खरपतवारों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
खरपतवारों की रोकथाम के लिए टैफलान 50 ताकत 500 ग्राम या सटोंप 30 ताकत एक लीटर प्रति एकड़ नदीन उगने से पहले तथा बुआई से 2 दिन में 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 13.
फूल गोभी की सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
इसको कुल 8-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई पनीरी उखाड़ कर खेत में लगाने के तुरन्त बाद करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
फूल गोभी तथा बंद गोभी तथा बरोकली में खरपतवारों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
खरपतवारों की रोकथाम के लिए सटोंप 30 ताकत एक लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में घोल कर अच्छी प्रकार नमी वाले खेत में पौधे लगाने से एक दिन पहले छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 15.
चीनी बंदगोभी के पत्ते किस काम आते हैं ? इसकी कटाई कितने दिनों में हो जाती है ?
उत्तर-
चीनी बंद गोभी के पत्ते साग बनाने के काम आते हैं। इसकी पहली कटाई 30 दिन बाद की जा सकती है।

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प्रश्न 16.
बंदगोभी लगाने का उचित समय तथा बीज की मात्रा लिखो।
उत्तर-
बंदगोभी के लिए पनीरी खेत में लगाने का समय सितम्बर से अक्तूबर है। एक एकड़ की पनीरी के लिए बीज की मात्रा 200-250 ग्राम है।

प्रश्न 17.
सब्जियों की कृषि के लिए कैसी भूमि का चुनाव किया जाता है ?
उत्तर-
सब्जियों की कृषि भिन्न-भिन्न तरह की भूमि में की जा सकती है। परन्तु रेतली मैरा या चीकनी मैरा ज़मीन सब्जियों की कृषि के लिए अच्छी है। जड़ वाली सब्जियां; जैसे-गाजर, मूली, शलगम, आलू आदि के लिए रेतली मैरा भूमि अच्छी है।

प्रश्न 18.
चीनी बंदगोभी की उन्नत किस्में लिखें।
उत्तर–
चीनी सरसों-1, साग सरसों।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गाजर की कृषि का विवरण दें-
(i) किस्में, रंग
(ii) पैदावार
(iii) बीज की मात्रा
(iv) तैयारी
(v) फासला।
उत्तर-
(i) किस्में-दो किस्में हैं-देसी तथा विदेशी। पंजाब में गाजर की दो किस्में हैं-पंजाब कैरेट रेड तथा पंजाब ब्लैक ब्यूटी। पंजाब कैरेट रेड लाल रंग की तथा पंजाब ब्लैक ब्यूटी जामुनी काले रंग की है।
(ii) पैदावार-काली किस्म 196 क्विंटल प्रति एकड़ तथा लाल किस्म 230 क्विंटल प्रति एकड़।
(iii) बीज की मात्रा-4-5 किलो प्रति एकड़।
(iv) तैयारी-किस्म के अनुसार 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है।
(v) फासला-गाजर मेड़ों पर बोई जाती है तथा मेड़ों में फासला 45 सैं०मी० रखें।

प्रश्न 2.
बरोकली की खेती का विवरण निम्नलिखित अनुसार दीजिए
(क) उन्नत किस्म
(ख) बुआई का समय
(ग) बीज की मात्रा प्रति एकड़
(घ) पौधों के बीच दूरी।
उत्तर-
(क) उन्नत किस्म-पंजाब बरोकली-1, पालम समृद्धि। पैदावार-70 क्विंटल प्रति एकड़।।
(ख) बुआई का समय-पनीरी बोने का समय मध्य अगस्त से मध्य सितंबर तक है तथा पनीरी एक महीने की हो जाने पर निकाल कर खेत में लगा दें।
(ग) बीज की मात्रा-250 ग्राम प्रति एकड़।
(घ) पौधों के बीच दूरी-पंक्तियों में तथा पौधों में फासला 45 सैं०मी० ।

प्रश्न 3.
आलू की कृषि के बारे बताओ –
उत्तर-
1. किस्में-

  • अगेती-कुफरी सूर्य, कुफरी पुखराज।
  • मध्मय समय की-कुफरी ज्योती, कुफरी पुष्कर।
  • पिछेती-कुफरी बादशाह, कुफरी सिंधूरी।।

2. पैदावार-

  • अगेती-100-125 क्विंटल प्रति एकड़।
  • मध्यम-120-170 क्विंटल प्रति एकड़।
  • पिछेती-120-130 क्विंटल प्रति एकड़।

3. तैयारी का समय-

  • अगेती-90-100 दिन।
  • मध्यम-100-110 दिन।
  • पिछेती-110-120 दिन।

4. बुआई का समय-उचित समय पतझड़ के लिए सितंबर से मध्यम अक्तूबर तथा बहार ऋतु के लिए जनवरी का पहला पखवाड़ा।
5. बीज की मात्रा-12-18 क्विंटल प्रति एकड़ 1 बहार ऋतु की अगेती किस्म का 8 क्विंटल तथा पिछेती किस्म का 4-5 क्विंटल बीज प्रति एकड़ प्रयोग करें तथा बीज को काट कर लगाना चाहिए।
6. फासला-मेड़ों में आपसी फासला 60 सैंमी० तथा आलुओं में 20 सैंमी० ।
7. खरपतवारों की रोकथाम-सटोंप 30 ताकत एक लीटर या एरीलान 75 ताकत 500 ग्राम या सैनकोर 70 ताकत 200 ग्राम का 150 लीटर पानी में घोल बना कर नदीनों के जमने तथा पहली सिंचाई के बाद छिड़काव करना चाहिए।
8. सिंचाई-बुआई से तुरन्त बाद पहली सिंचाई करो। इससे फसल जल्दी उगती है।

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प्रश्न 4.
सब्जियों की बिजाई के पांच लाभ लिखो।
उत्तर-

  • सब्जियों की फसल जल्दी तैयार हो जाती है तथा वर्ष में 3-4 या अधिक बार बेच कर अच्छी आमदन हो जाती है।
  • भारत में शाकाहारी लोग अधिक हैं तथा सब्जियों की खपत भी अधिक है।
  • सब्जियों में पौष्टिक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, प्रोटीन, धातु आदि होते हैं।
  • सब्जियां रोज़गार का अच्छा साधन हैं।
  • सारे परिवार को घर पर ही रोजगार मिल जाता है, कृषि साधनों का पूर्णतः प्रयोग सारा वर्ष होता रहता है।

प्रश्न 5.
मूली की खेती का विवरण निम्नलिखित अनुसार दीजिए :
(क) दो उन्नत किस्में
(ख) बीज की मात्रा प्रति एकड़
(ग) मेड़ों के बीच की दूरी
(घ) खुदाई
(ङ) उपज प्रति एकड़।
उत्तर-
(क) दो उन्नत किस्में-पूसा चेतकी, पूसा हिमानी।
(ख) बीज की मात्रा प्रति एकड़-4-5 किलो प्रति एकड़।
(ग) मेड़ों की बीच की दूरी-45 सें.मी. ।
(घ) खुदाई-45-60 दिनों बाद।
(ङ) उपज प्रति एकड़-105-215 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 6.
आलू की अगेती किस्मों की खेती का विवरण निम्नलिखित अनुसार दीजिए:
(क) दो उन्नत किस्में
(ख) बीज की मात्रा प्रति एकड़
(ग) मेड़ों की बीच की दूरी (घ) सिंचाई
(ङ) उपज प्रति एकड़।
उत्तर-
(क) दो उन्नत किस्में-कुफरी सूर्या, कुफरी पुखराज।
(ख) बीज की मात्रा प्रति एकड़-8 क्विंटल।
(ग) मेड़ों की बीच की दूरी-60 सें.मी तथा आलूओं में 20 सें.मी. ।
(घ) सिंचाई-बुआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें।
(ङ) उपज प्रति एकड़-100-125 क्विंटल प्रति एकड़।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 4 आषाढी की सब्जियों की खेती

प्रश्न 7.
मटर की अगेती किस्मों की खेती का विवरण निम्नलिखित अनुसार दीजिए:
(क) दो उन्नत किस्में
(ख) बीज की मात्रा प्रति एकड़
(ग) दूरी
(घ) सिंचाई
(ङ) उपज प्रति एकड़।
उत्तर-
स्वयं करें।

आषाढी की सब्जियों की खेती PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • मनुष्य के आहार में एक आवश्यक अंग सब्जियां हैं।
  • सब्जियों में कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन, धातुएं, विटामिन आदि होते हैं।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार एक वयस्क को प्रतिदिन 284 ग्राम सब्जी खानी चाहिए।
  • सब्जियां कम समय में तैयार हो जाती हैं तथा एक वर्ष में 2-4 फसलें ली जा सकती हैं।
  • सब्जियों की पैदावार गेहूँ चावल के फसली चक्र से 5-10 गुणा अधिक है तथा इस प्रकार आमदन भी अधिक होती है।
  • सब्जी की कृषि के लिए रेतली मैरा या चिकनी मैरा भूमि अच्छी रहती है।
  • जड़ वाली सब्जियां हैं-गाजर, मूली, शलगम आदि के लिए रेतली मैरा भूमि ठीक रहती है। ।
  • खादें दो प्रकार की हैं-जैविक तथा रासायनिक।
  • जैविक खादें भूमि की रासायनिक तथा भौतिक अवस्था को ठीक रखती है।
  • रासायनिक खादों को कारखानों में बनाया जाता है तथा इनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश तत्व होते हैं।
  • बीज को दो तरीकों से बोया जाता है
    (i) सीधी बुआई (ii) पनीरी लगाकर।
  • गाजर, मूली, मेथी, धनिया, आलू आदि को सीधी बुआई द्वारा बोया जाता है।
  • पनीरी लगाकर बुआई करने वाली सब्जियां हैं-फूलगोभी, बंदगोभी, चीनी बन्द गोभी, बरोकली, प्याज, सलाद आदि।
  • सब्जी की फसल को मुरझाने से पहले ही पानी देना ज़रूरी है।
  • सब्जी के बीज को कैप्टान या थीरम से सुधाई करके बोने से कीड़ों तथा रोगों के हमले से बचा जा सकता है।
  • आषाढी या सर्दी की मुख्य सब्जियां हैं-गाजर, मूली, मटर, फूलगोभी, बंदगोभी, आलू, ब्रोकली, चीनी बंदगोभी आदि।
  • गाजर की दो किस्में हैं-देसी तथा विदेशी।
  • मूली की किस्में हैं–पंजाब पसंद, पूसा चेतकी, जापानी व्हाइट।
  • मटर ठंडे मौसम की मुख्य फसल है, इसमें प्रोटीन काफ़ी मात्रा में होते हैं।
  • फूलगोभी की कृषि के लिए 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता है।
  • फूलगोभी की किस्में हैं- जाईंट सनोवाल, पूसा सनोवाल-1, पूसा सनोवाल , के-1।
  • बंदगोभी की अगेती पैदावार के लिए सीधी बुआई की जा सकती है।
  • पंजाब बरोकली-1 तथा पालम समृद्धि बरोकली की उन्नत किस्में हैं। इसकी पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ है। 24. चीनी बंदगोभी की किस्में हैं-चीनी, सरसों तथा साग सरसों।
  • आलू की किस्में हैं-कुफरी सूर्य, कुफली पुखराज, कुफरी पुष्कर, कुफरी ज्योति, कुफरी सिंधूरी तथा कुफरी बादशाह ।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science Geography Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

SST Guide for Class 6 PSEB पृथ्वी की गतियाँ Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न (क)
पृथ्वी की दैनिक गति किसे कहते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी सूर्य के सामने अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती रहती है। यह 24 घण्टे में एक चक्र पूरा करती है। इसे पृथ्वी की दैनिक गति कहते हैं। दैनिक गति के कारण पृथ्वी पर दिन और रात बनते हैं।

प्रश्न (ख)
पृथ्वी के अक्ष के झुकाव का क्या अर्थ है?
उत्तर-
पृथ्वी का अक्ष एक कल्पित रेखा है जो पृथ्वी के बीच में से गुज़रती है। यह सीधा नहीं है। यह अपनी पथ-रेखा (कक्ष-तल) के साथ 66½° का कोण बनाता है। इसे पृथ्वी के अक्ष का झुकाव कहते हैं।

प्रश्न (ग)
ऋतु परिवर्तन के क्या कारण हैं?
उत्तर-
ऋतुएं निम्नलिखित कारणों से बदलती हैं –

  1. पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर एक ही दिशा में झुके रहना।
  2. पृथ्वी द्वारा 365¼ दिनों में सूर्य की एक परिक्रमा करना।
  3. दिन-रात का छोटा-बड़ा होना।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

प्रश्न (घ)
21 जून को सूर्य की किरणें कहां पर सीधी पड़ती हैं?
उत्तर-
21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं।

प्रश्न (ङ)
दक्षिणी गोलार्द्ध में 23 सितम्बर को कौन-सा मौसम होता है?
उत्तर-
बसन्त का मौसम।

प्रश्न (च)
शीत अयनान्त कब होती है?
उत्तर-
22 दिसम्बर को।

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II. निम्नलिखित में अन्तर बताओ

(क) उष्ण अयनान्त और शीत अयनान्त
(ख) बसन्त-विसूवी और पतझड़-विसूवी
(ग) दैनिक गति और वार्षिक गति
(घ) कक्षा में ‘पृथ्वी की गतियों’ एक क्विज़ प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर-
(क) उष्ण अयनान्त और शीत अयनान्त-21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है। इसे उष्ण अयनान्त कहते हैं। इसके विपरीत शीत अयनान्त 22 दिसम्बर की अवस्था में होता है। इस अवस्था में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं।
(ख) बसन्त-विसूवी और पतझड़-विसूवी-21 मार्च को उत्तरी अर्द्धगोले में बसन्त ऋतु होती है। इसे बसन्त-विसवी कहा जाता है।
23 सितम्बर को उत्तरी अर्द्धगोले में पतझड़ की ऋतु होती है। इसे पतझड़-विसूवी कहते हैं।
(ग) दैनिक गति और वार्षिक गति
दैनिक गति

  1. इस गति में पृथ्वी अपने धुरे (अक्ष) पर घूमती है।
  2. इस गति में पृथ्वी 24 घण्टे में एक चक्र पूरा करती है।
  3. इस गति से दिन-रात बनते हैं।

वार्षिक गति

  1. इस गति में अपने धुरे पर घूमती हुई पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
  2. इस गति में पृथ्वी 365¼ दिन में एक चक्र पूरा करती है।
  3. इस गति से दिन-रात छोटे-बड़े होते हैं और ऋतुएं बनती हैं।

(घ) अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

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III. कारण बताओ

प्रश्न (क)
सूर्य पूर्व में निकलता है और पश्चिम में छिपता है।
उत्तर-
हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। परन्तु सूर्य अपने स्थान पर स्थिर है। जब किसी घूमती हुई या चलती हुई वस्तु से खड़ी वस्तुओं को देखें, तो वे विपरीत (उल्टी) दिशा में जाती हुई दिखाई देती हैं। यही कारण है कि सूर्य पूर्व से पश्चिम (पृथ्वी के घूमने की उल्टी दिशा) की ओर चलता दिखाई देता है। दूसरे शब्दों में, सूर्य पूर्व में निकलता है और पश्चिम में छिपता है।

प्रश्न (ख)
दिन और रात हमेशा बराबर नहीं होते।
उत्तर-
दिन और रात हमेशा बराबर नहीं होते। इसके दो मुख्य कारण हैं-
(1) पृथ्वी का अक्ष अपने कक्ष-तल पर 66%2° के कोण पर झुका रहता है।

(2) पृथ्वी सूर्य के गिर्द घूमती है जिसके कारण उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव बारी-बारी से सूर्य के सामने आते रहते हैं। परिणामस्वरूप सूर्य की किरणें एक निश्चित अवधि के बाद कर्क रेखा तथा मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं। जब किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती (21 जून) हैं तो उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थिति इसके विपरीत होती है। इसी प्रकार जब (22 दिसम्बर) सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं तो दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं।

प्रश्न (ग)
21 जून को दक्षिणी ध्रुव पर निरंतर अन्धेरा होता है।
उत्तर-
21 जून को उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है, जबकि दक्षिणी ध्रुव सूर्य से परे होता है। इस लिए सूर्य की किरणें दक्षिणी ध्रुव तक नहीं पहुंच पाती और वहां निरंतर अन्धेरा (रात) रहता है।

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प्रश्न (घ)
सूर्य, चन्द्रमा और तारे पृथ्वी के इर्द-गिर्द पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते हुए क्यों दिखाई देते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी अपने धुरे पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। पृथ्वी की इस गति के कारण हमें सूर्य, चन्द्रमा और तारे उल्टी दिशा अर्थात् पूर्व से पश्चिम दिशा में घूमते हुए दिखाई देते हैं।

प्रश्न (ङ)
लीप वर्ष का क्या अर्थ है? आम वर्ष की अपेक्षा लीप वर्ष में एक दिन अधिक क्यों होता है?
उत्तर-
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 365/4 दिन का समय लेती है। इस समय को एक वर्ष कहा जाता है। परन्तु हम आमतौर पर 365 दिन का एक वर्ष गिनते हैं। इस प्रकार हर वर्ष 14 दिन का समय शेष बच जाता है और चौथे वर्ष 1 दिन पूरा (¼×4 = 1) हो जाता है। इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन बढ़ जाता है। इसी वर्ष को हम लीप वर्ष कहते हैं। इसमें अन्य वर्षों से एक दिन अधिक (366 दिन) होता है।

IV. रिक्त स्थान भरो –

(क) पृथ्वी …………… दिशा से …………… दिशा की ओर घूमती है।
(ख) …………. एक रेखा (कील) होती है जिसके इर्द-गिर्द पृथ्वी घूमती है।
(ग) पृथ्वी जिस पथ पर सूर्य के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती है, उसे …………. कहते हैं।
(घ) ………….. क्षेत्रों में छः मास का दिन और छ: मास की रात होती है।
उत्तर-
(क) पश्चिम, पूर्व
(ख) धुरा या अक्ष
(ग) पथ-रेखा / कक्षा
(घ) ध्रुवीय।

PSEB 6th Class Social Science Guide पृथ्वी की गतियाँ Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आपकी आयु 11 वर्ष है। आपने पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य के कितने चक्कर काटे होंगे?
उत्तर-
11.

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प्रश्न 2.
यदि पृथ्वी अपनी दैनिक गति न करती तो दिन रात संबंधी एक बहुत बड़ी , समस्या पैदा हो जाती। वह क्या होती?
उत्तर-
पृथ्वी पर दिन-रात न बनते।

प्रश्न 3.
2016 को लीप वर्ष था। अगला लीप वर्ष कब होगा और क्यों?
उत्तर-
अगला लीप वर्ष 2020 को होगा क्योंकि हर चौथे वर्ष लीप वर्ष होता है।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
21 जून को सूर्य किस ध्रुव की ओर झुका होता है?
(क) आधा उत्तरी-आधा दक्षिणी
(ख) दक्षिणी
(ग) उत्तरी।
उत्तर-
(ग) उत्तरी।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की वार्षिक गति के कई परिणाम होते हैं, निम्न में इसका कौन-सा परिणाम नहीं होता?
(क) दिन-रात बनना ।
(ख) दिन-रात की लम्बाई में अन्तर
(ग) मौसम (ऋतु) में बदलाव।
उत्तर-
(क) दिन-रात बनना ।

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प्रश्न 3.
किस देश में क्रिसमस गर्मी की ऋतु में मनाई जाती है?
(क) आस्ट्रेलिया
(ख) भारत
(ग) इंग्लैंड।
उत्तर-
(क) आस्ट्रेलिया

सही (✓) या गलत (✗) कथन

  1. उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में सदैव एक-दूसरे के उल्ट मौसम रहते हैं।
  2. विषुवी वह समय है जब सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं।
  3. पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण चलती हुई हवाओं की दिशा बदल जाती है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)

सही जोड़े

  1. पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना – (क) दिन बड़े, रातें छोटी
  2. पृथ्वी का सूर्य के गिर्द-घूमना – (ख) वार्षिक गति
  3. दिन-रात बराबर होना – (ग) दैनिक गति
  4. मकर रेखा पर सूर्य की सीधी किरणें – (घ) विषुवी।

उत्तर-

  1. पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना – दैनिक गति,
  2. पृथ्वी का सूर्य के गिर्द घूमना – वार्षिक गति,
  3. दिन-रात बराबर होना – विषुवी,
  4. मकर रेखा पर सूर्य की सीधी किरणें – दिन बड़े, रातें छोटी।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की दो गतियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-

  1. दैनिक गति अथवा घूर्णन
  2. वार्षिक गति अथवा परिक्रमण।

प्रश्न 2.
पृथ्वी को एक बार घूर्णन करने में कितना समय लगता है?
उत्तर-
24 घण्टे।

प्रश्न 3.
सामान्य वर्ष कितने दिनों का होता है?
उत्तर-
365 दिन का।

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प्रश्न 4.
लीप वर्ष अथवा अधिवर्ष कितने दिनों का होता है?
उत्तर-
366 दिन का।

प्रश्न 5.
ऋतु परिवर्तन का मुख्य कारण बताइए।
उत्तर-
पृथ्वी की वार्षिक गति।

प्रश्न 6.
जब दिन बड़े होते हैं तो कौन-सी ऋतु होती है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु।

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प्रश्न 7.
पृथ्वी के कौन-से भाग में सारा वर्ष दिन-रात बराबर रहते हैं?
उत्तर-
भूमध्य रेखा पर।

प्रश्न 8.
सूर्य की किरणें दिन में कब लम्बवत् पड़ती हैं?
उत्तर-
दोपहर के समय।

प्रश्न 9.
पृथ्वी की कक्षा का आकार कैसा है?
उत्तर-अंडाकार।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की वार्षिक गति से क्या भाव है? इसको वार्षिक गति क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
पृथ्वी सूर्य के गिर्द अंडाकार मार्ग पर चक्कर लगाती है और एक वर्ष में एक चक्कर पूरा करती है। इसे पृथ्वी की वार्षिक गति कहते हैं। पृथ्वी द्वारा सूर्य के गिर्द एक चक्र में लगने वाले समय को एक वर्ष माना जाता है। इसी कारण पृथ्वी की इस गति को वार्षिक गति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
ऋतु परिवर्तन से क्या भाव है?
उत्तर-
वार्षिक गति में पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुकाव की स्थिति बदलती रहती है। इसके कारण पृथ्वी पर दिन-रात छोटे-बड़े होते रहते हैं। छोटे-बड़े दिन पृथ्वी पर ऋतुओं में बदलाव लाते रहते हैं। इसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी पर मुख्य रूप से चार ऋतुएं पाई जाती हैं।

कारण बताओ :

प्रश्न 3.
हमें पृथ्वी घूमती हुई प्रतीत नहीं होती।
उत्तर-
जिस प्रकार तेज़ बस या गाड़ी में बैठे हुए व्यक्ति को बाहर की खड़ी वस्तुएं चलती हुई दिखाई देती हैं और उसे ऐसा नहीं लगता कि बस या गाड़ी चल रही है, ठीक इसी प्रकार तेज़ी से घूमती हुई पृथ्वी से हमें सूर्य तथा चन्द्रमा तो चलते दिखाई देते हैं, परन्तु पृथ्वी घूमती हुई प्रतीत नहीं होती।

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प्रश्न 4.
21 मार्च और 23 सितम्बर को दिन-रात बराबर क्यों होते हैं?
उत्तर-
21 मार्च और 23 सितम्बर को पृथ्वी के दोनों ध्रुव सूर्य की ओर एक समान झुके होते हैं और सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। फलस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी गोलार्डों का ठीक आधा भाग अन्धकार में रहता है और आधा भाग प्रकाश में। अतः दोनों गोलार्डों में दिन और रात समान होते हैं।

प्रश्न 5.
उत्तरी अर्द्धगोले में ऋतुएं दक्षिणी अर्द्धगोले से उल्ट जाती हैं।
उत्तर-
पृथ्वी पर ऋतुओं का परिवर्तन वार्षिक गति के कारण होता है। जब उत्तरी ध्रुव का झुकाव सूर्य की ओर होता है, तो उत्तरी अर्द्धगोले में गर्मी की ऋतु और दक्षिणी अर्द्धगोले में सर्दी की ऋतु होती है। इसी तरह जब दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सामने होता है तो दक्षिणी अर्द्धगोले में ग्रीष्म ऋतु और उत्तरी अर्द्धगोले में शीत ऋतु होती है। ऐसा दोनों अर्द्धगोलों में दिन-रात छोटे-बड़े होने के कारण होता है।

प्रश्न 6.
पृथ्वी की वार्षिक गति के कोई तीन प्रभाव बताओ।
उत्तर-

  1. वार्षिक गति के आधार पर हम अपने कैलेंडर (समय सारणी) बनाते हैं।
  2. पृथ्वी पर ऋतुओं का परिवर्तन भी वार्षिक गति के कारण ही होता है।
  3. दिन और रात का घटना-बढ़ना भी वार्षिक गति के कारण ही होता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

प्रश्न 7.
ध्रुवों पर छः मास का दिन और छः मास की रात क्यों होती है?
उत्तर-
पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण 22 मार्च से 23 सितम्बर तक के छ: मास उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका रहता है। अतः पूरे छः मास तक सूर्य की किरणें पड़ती हैं और यहां छः महीने का दिन होता है। इसके विपरीत इन छ: महीनों में दक्षिणी ध्रुव सूर्य । से परे रहता है और इस पर सूर्य की किरणें बिल्कुल नहीं पड़ती। इसलिए इन छ: महीनों में दक्षिणी ध्रुव पर रात रहती है। अगले छ: महीनों अर्थात् 23 सितम्बर से 22 मार्च तक दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सामने झुका होता है, जबकि उत्तरी ध्रुव सूर्य से परे रहता है.और उत्तरी । ध्रुव इन महीनों में पूरी तरह अंधकार में रहता है। परिणामस्वरूप इन छ: मासों में दक्षिणी . ध्रुव पर दिन रहता है और उत्तरी ध्रुव पर रात।

प्रश्न 8.
यदि पृथ्वी का अक्ष-तल पर 66½° का कोण बनाने के स्थान पर लम्बवत् होता तो दिन और रात की लम्बाई तथा ऋतु परिवर्तन पर क्या प्रभाव पड़ता?
उत्तर-
यदि पृथ्वी का अक्ष कक्ष-तल पर 66½° का कोण बनाने के स्थान पर लम्बवत् होता तो प्रकाश वृत्त पृथ्वी को दो समान भागों में बांटता और सूर्य किसी विशेष स्थान पर सदा एक ही ऊंचाई पर रहता। इसके परिणामस्वरूप दिन-रात की लम्बाई तथा ऋतु परिवर्तन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते –

  1. पृथ्वी का प्रत्येक स्थान आधा समय प्रकाश में और आधा समय अन्धेरे में रहता है। अतः प्रत्येक स्थान पर दिन-रात बराबर होते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे का दिन तथा 12 घण्टे की रात होती है।
  2. सूर्य की समान ऊंचाई के कारण ऋतु परिवर्तन न होता अर्थात् जिस स्थान पर जो ऋतु होती, वहां वही ऋतु रहती।

प्रश्न 9.
यदि पृथ्वी अपनी धुरी पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमती होती तो क्या होता?
उत्तर-
पृथ्वी का पूर्व से पश्चिम की ओर घूमना-यदि पृथ्वी पूर्व से पश्चिम की ओर घूमती होती तो सूर्य पश्चिम दिशा से निकलता हुआ और पूर्व दिशा में छिपता हुआ दिखाई देता।

पृथ्वी के धुरी पर न घूमने का परिणाम-यदि पृथ्ह्यवी धुरी पर न घूमती होती तो दिन-रात न बनते। इसके साथ ही सूर्य निकलने तथा छिपने के समय निश्चित न किए जा सकते।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की दैनिक गति से क्या अभिप्राय है? इस गति के कारण क्या परिणाम (प्रभाव) होते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी अपनी धुरी पर सृदा पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और लगभग 24 घण्टे में एक चक्र पूरा करती है। पृथ्वी की इस गति को दैनिक गति कहते हैं।
परिणाम- इस गति के निम्नलिखित परिणाम होते हैं –

1. इस गति के कारण दिन और रात बनते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य के सामने घूमती है। घूमते हुए इसका एक भाग सूर्य के सामने रहता है और दूसरा भाग सूर्य से दूर रहता है। इसके सूर्य के सामने वाले भाग में प्रकाश होगा और वहां दिन होगा, परन्तु इसका जो भाग सूर्य से दूर होगा वहां अन्धेरा होगा और वहां रात होगी।

2. इस गति के कारण सूर्य, ग्रह, उपग्रह आदि पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। इससे यह्यह पता चलता है कि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूम रही हैं।

3. पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही भिन्न-भिन्न स्थानों का समय भिन्न-भिन्न होता है।

4. पृथ्वी की दैनिक गति के कारण पृथ्वी पर चलने वाली स्थायी पवनों तथा सागरीय धाराओं की दिशा बदलती है। अर्थात् वे अपने बाईं या दाईं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की वार्षिक गति से क्या अभिप्राय है? इस गति के कारण क्या परिणाम निकलते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। यह सूर्य के गिर्द एक निश्चित अण्डाकार रास्ते पर घूमती है और 365¼ दिन में एक चक्र पूरा करती है। पृथ्वी की इस गति को वार्षिक गति कहते हैं।
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ 1
परिणाम-पृथ्वी की वार्षिक गति के परिणाम इस प्रकार हैं –

  1. इस गति के कारण ऋतुएं बदलती हैं।
  2. वार्षिक गति से पूरे वर्ष का कैलण्डर बनता है। इस परिक्रमा को हम एक वर्ष का मान कर 12 महीनों में बांट लेते हैं। महीनों को दिनों में बांट लिया जाता है।
  3. पृथ्वी पर दिन-रात का समय एक समान नहीं रहता। सर्दियों में रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं, परन्तु गर्मियों में रातें छोटी और दिन बड़े होते हैं। यह भिन्नता भी वार्षिक गति के कारण ही होती है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

प्रश्न 3.
ऋतुओं के बदलने की क्रिया का सचित्र वर्णन करो।
उत्तर-
ऋतुएं निम्नलिखित कारणों से बदलती हैं –

  1. पृथ्वी का अपनी धुरी पर एक ही दिशा में झुके रहना।
  2. पृथ्वी का 365¼ दिनों में सूर्य की परिक्रमा करना।
  3. दिन-रात का छोटा-बड़ा होना।

ऋतु परिवर्तन की अवस्थाएं-पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए 3-3 महीने के पश्चात् अपनी अवस्था बदलती रहती है, जिससे ऋतुओं में परिवर्तन आता है। इन अवस्थाओं का वर्णन इस प्रकार है –

21 जून की अवस्था-21 जून को उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है और दक्षिणी ध्रुव सूर्य से दूर होता है। इसलिए उत्तरी अर्द्ध गोले में गर्मी की ऋतु और दक्षिणी अर्द्ध गोले में सर्दी की ऋतु होगी। उत्तरी अर्द्ध गोले का अधिक भाग प्रकाश में और कम भाग अन्धेरे में होता है। इसलिए वहां दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। इसके विपरीत दक्षिणी अर्द्ध गोले में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ 2

23 सितम्बर की अवस्था-23 सितम्बर को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों ही एक समान सूर्य की ओर झुके होते हैं। इस समय सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर पड़ती हैं। उत्तरी अर्द्ध गोले में पतझड़ और दक्षिणी अर्द्ध गोले में बसन्त ऋतु होती है।

22 दिसम्बर की अवस्था-22 दिसम्बर को उत्तरी ध्रुव सूर्य से दूर होता है और दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका हुआ होता है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी पड़ रही होती हैं। इस दशा में दक्षिणी अर्द्ध गोले में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। अतः दक्षिणी अर्द्ध गोले में गर्मी की ऋतु और उत्तरी अर्द्ध गोले में सर्दी की ऋतु होती है।

21 मार्च की अवस्था-इस दिन सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। दोनों ध्रुव एक समान सूर्य की ओर झुके होते हैं। उत्तरी अर्द्ध गोले में बसन्त ऋतु और दक्षिणी अर्द्ध गोले में पतझड़ की ऋतु होती है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ

पृथ्वी की गतियाँ PSEB 6th Class Social Science Notes

  • घूर्णन – पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, घूर्णन कहलाता है।
  • परिक्रमण/वार्षिक गति – पृथ्वी का सूर्य के गिर्द घूमना, वार्षिक गति कहलाता है।
  • दिन-रात का बनना – दिन-रात पृथ्वी की दैनिक गति के परिणामस्वरूप बनते हैं।
  • ऋतु-परिवर्तन – ऋतुओं में परिवर्तन पृथ्वी की वार्षिक गति का परिणाम है।
  • समान दिन-रात – 21 मार्च तथा 23 सितंबर को सारे संसार में दिन और रात समान होते हैं।
  • विसूवी – वह समय जब सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर. सीधी पड़ती हैं तथा दिन-रात बराबर होते हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

PSEB 6th Class Agriculture Guide फ़सलों का विभाजन Textbook Questions and Answers

(क) एक या दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
मूली के परिवार समूह का नाम बताओ।
उत्तर-
सरसों या करुसीफरी परिवार समूह।

प्रश्न 2.
दो चारे वाली फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
ज्वार, बाजरा।

प्रश्न 3.
दो चीनी वाली फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कमाद, चुकंदर।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 4.
रबी की दो फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
धान, मक्की।

प्रश्न 5.
ख़रीफ की दो फसलों का नाम बताओ।
उत्तर-
गेहूँ, बरसीम।

प्रश्न 6.
किस परिवार समूह की फसलों के पौधे वायुमण्डल में व्याप्त-नाइट्रोजन को ज़मीन में जमा करते हैं ?
उत्तर-
दाल या लैगूमनोसी।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 7.
किस परिवार समूह की फसलों के दानों में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है ?
उत्तर-
दाल या लैगूमनौसी।

प्रश्न 8.
कौन-सी फसलों को खेत में ही जोत दिया जाता है ?
उत्तर-
हरी खाद वाली फसलें जैसे सन, ढेंचा।

प्रश्न 9.
गर्म जलवायु (Tropical) की दो फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कमाद, कपास, धान।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 10.
मुख्य फसलों के मध्य शेष समय में बोई जानी वाली फसलों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
आपात्कालीन फसलें जैसे-तोरिया, सट्ठी मूंगी, सट्ठी मक्की आदि।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
फसल को कहते हैं ?
उत्तर-
किसी विशेष उद्देश्य के लिए उगाए जाने वाले पौधों के समूह जोकि आर्थिक या व्यापारिक महत्त्व रखते हैं, को फसल कहा जाता है।

प्रश्न 2.
फसलों का विभाजन क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
फसलों को भिन्न भिन्न आधार पर भिन्न-भिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस तरह उनसे सम्बन्धित जानकारी, योजनाबंदी, पैदावार, सुरक्षा तथा उनके प्रयोग को आसान किया जा सकता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 3.
दाल या लैगूमनोसी (Leguminoseae) परिवार समूह के बारे में बताओ।
उत्तर-
इस पारिवारिक समूह में दालों वाली फसलें जैसे कि मंगी, अरहर, चने, माह तथा सोयाबीन आदि आते हैं। इस परिवार की फसलों में प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है। इस परिवार की फसलों के पौधे हवा में से नाइट्रोजन को अपनी जड़ों की गांठों द्वारा ज़मीन में एकत्र करते हैं। इनको इसलिए यूरिया की छोटी फैक्ट्रियां भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अंतर फसलें क्या होती हैं ?
उत्तर-
यह ऐसी फसलें हैं जिनको किसी मुख्य फसल की कतारों में खाली बचती जगह में कतारों में ही बोया जाता है, जैसे-कपास में मूंगी आदि।

प्रश्न 5.
ट्रैप (Trap) फसलें कौन-सी होती हैं ?
उत्तर-
इन फसलों का काम मुख्य फसल को कीटों से बचाना होता है इनको कीटों को आकर्षित करने के लिए बोया जाता है क्योंकि कीट इस फसल को मुख्य फसल से अधिक पसंद करते हैं। इन फसलों का उद्देश्य पूरा होने पर इन्हें उखाड़ दिया जाता है। जैसे-कमाद में मक्की।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 6.
वार्षिक और बहुवार्षिक फसलों में क्या अंतर है ?
उत्तर-
वार्षिक फसलें-

  1. ये फसलें एक वर्ष में अपना जीवनकाल पूरा कर लेती हैं।
  2. उदाहरण-गेहूँ, मक्की।

बहुवार्षिक फसलों –

  1. ये फसलें एक बार पैदा होने के बाद कई वर्षों तक चलती रहती हैं।
  2. उदाहरण-कमाद, किन्नू, आम।

प्रश्न 7.
आपात्कालीन फसलें कौन-सी होती हैं ?
उत्तर-
ये फसलें दो मुख्य फसलों के बीच बचते समय या मुख्य फसल खराब हो जाने की हालत में बोई जाती हैं। ये बहुत जल्दी बढ़ती हैं : जैसे-सट्ठी मूंगी, सट्ठी मक्की, तोरिया आदि।

प्रश्न 8.
धागे वाली फसलों का किस उद्योग में प्रयोग किया जाता है ? उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर-
कपास, सन तथा पटसन ऐसी फसलें हैं। इन फसलों को बारीक तथा मोटा धागा प्राप्त करने के लिए उगाया जाता है। इस धागे को कपड़ा तथा पटसन उद्योग में प्रयोग किया जाता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 9.
किनारे पर बोआई के लिए कौन-सी फसलें उपयोगी होती हैं ?
उत्तर-
यह फसलें मुख्य फसल को आंधी या पशुओं आदि से बचाने के काम आती हैं तथा इनमें कुछ अतिरिक्त आमदन भी हो जाती है। इनको खेत के चारों ओर किनारों पर लगाया जाता है-जैसे अरहर, जंतर आदि।

प्रश्न 10.
गर्म और सर्द जलवायु की फसलों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  1. गर्म जलवायु वाली फसल-कमाद, कपास, धान ।
  2. ठण्डे जलवायु वाली फसल-गेहूँ, जौ।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
दाल या लैगूमनोसी (Leguminoseae) परिवार समूह के बारे में विस्तारपूर्वक बताओ।
उत्तर-
इस परिवार समूह में दालों वाली फसलें जैसे, मांह, मुंगी, चने, सोयाबीन, अरहर आदि आती हैं । इस परिवार समूह की फसलें हवा में से नाइट्रोजन को अपनी जड़ों की गांठों द्वारा ज़मीन में जमा कर लेती हैं। इनको यूरिया की छोटी प्राकृतिक फैक्ट्रियां भी कहा जाता है।
इन फसलों के दानों में पोषक तत्त्व तथा प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 2.
हरी खाद वाली फसलों पर नोट लिखें।
उत्तर-
यह फलीदार पौधों की फसल होती हैं जो हवा में से नाइट्रोजन को ज़मीन में जमा करती है तथा जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में सहायक है। यह फसल जब हरी होती है तो इसको खेत में ही जोत दिया जाता है, इसकी उदाहरण है-सन, जंतर आदि।

प्रश्न 3.
पशुओं के आचार (Silage) के लिए कौन-सी फसलें उपयोगी होती हैं और क्यों ?
उत्तर-
ये फसलें हैं मक्की, जवी, ज्वार आदि। यह फसलें पशुओं के लिए चारे से अचार बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इस अचार को हरे चारे के कमी वाले दिनों के लिए प्रयोग किया जाता है। इन फसलों में नमी कम तथा सूखा मादा अधिक होता है।

प्रश्न 4.
असिंचित फसलें किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इन फसलों की सिंचाई के लिए कोई प्रबन्ध नहीं किए जाते या नहीं किए जा सकते इसलिए ये फसलें केवल वर्षा के पानी के सहारे ही उगाई जाती हैं तथा वर्षा का होना निचित नहीं होता। राजस्थान में होने वाली फसलें बरौनी (असिंचित) फसलें होती है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 5.
ऋतुओं के आधार पर फसलों के विभाजन के बारे में बताओ।
उत्तर-
ऋतुओं के अनुसार विभाजन-
1. ख़रीफ की फसलें-ये फसलें जूनजुलाई या मानसून के आने पर बोई जाती हैं। इनको अक्तूबर नवंबर में काट लिया जाता है। उदाहरण-धान, मक्की, बासमती, कपास, गन्ना, बाजरा, अरहर, मूंगफली आदि।

2. रबी की फसलें-ये फसलें अक्तूबर-नवंबर में बोई जाती हैं। इनको मार्च अप्रैल में काट लिया जाता है। उदाहरण-गेहूँ, जौ, जवी, बरसीम, लूसण, चने, मसूर, सरसों, तोरिया, तारामीरा, सूर्यमुखी तथा अलसी आदि।

Agriculture Guide for Class 6 PSEB फ़सलों का विभाजन Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ख़रीफ की फसलें किस महीने बोई जाती हैं ?
उत्तर-
जून-जुलाई या मानसून के आने पर।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 2.
रबी की फसलें कब बोई जाती हैं ?
उत्तर-
इनको अक्तूबर-नवंबर के माह में बोया जाता है।

प्रश्न 3.
घास या ग्रैमनी परिवार समूह का उदाहरण दें।
उत्तर-
गेहूँ, धान, मक्का , जौ।

प्रश्न 4.
यूरिया की छोटी प्राकृतिक फैक्टरी किस फसल को कहा जाता है ?
उत्तर-
दाल या लैगूमनोसी परिवार समूह की फसलें जैसे मूंगी, मांह आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 5.
मालवेसी परिवार समूह का उदाहरण दें।
उत्तर-
कपास तथा भिण्डी।

प्रश्न 6.
अनाज की फसलों की उदाहरण दें।
उत्तर-
धान, बासमती, ज्वार, बाजरा, गेहूँ।

प्रश्न 7.
प्रोटीन की मात्रा कौन-सी फसलों में अधिक होती है ?
उत्तर-
दाल वाली फसलों में।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 8.
तेल बीज फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
तोरिया, अलसी, सूर्यमुखी, तारामीरा।

प्रश्न 9.
मसाले वाली फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
धनिया, अदरक, हल्दी, काली मिर्च आदि।

प्रश्न 10.
चारे वाली फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
बरसीम, लूसण, जवी आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 11.
बहुवर्षीय फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
कमाद, किन्न, आम आदि।

प्रश्न 12.
आपात्कालीन या संकटकालीन फसल का उदाहरण दें।
उत्तर-
तोरिया, सट्ठी मूंगी, सट्ठी मक्की।

प्रश्न 13.
गर्म जलवायु की फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
कमाद, कपास, धान आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 14.
ठण्डे जलवायु की फसलों की उदाहरण दें।
उत्तर-
गेहूँ, जौ।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किनारे पर बोने वाली फसलों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
ये फसलें मुख्य फसलों को आंधी या पशुओं आदि से बचाती हैं तथा इनसे अतिरिक्त आय भी हो जाती है। इनको खेत के चारों तरफ किनारों पर लगाया जाता है, जैसे अरहर, जंतर आदि।

प्रश्न 2.
सिंचित फसलों के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
ये फसलें ऐसी हैं जिनकी सिंचाई के लिए पानी का प्रबंध होता है। ये केवल वर्षा के पानी पर निर्भर नहीं होती जैसे-पंजाब में होने वाली फसलें।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

प्रश्न 3.
धागे वाली फसलों के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
कपास, सन तथा पटसन ऐसी फसलें हैं। इन फसलों को बारीक तथा मोटे धागे प्राप्त करने के लिए उगाया जाता है। इस धागे को कपड़ा तथा पटसन उद्योग में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
अनाज वाली फसलों के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
कोई भी घास जैसी फसल जिसके दानों को खाने के लिए प्रयोग किया जाता है उसको अनाज वाली फसल कहा जाता है-जैसे-गेहूँ, धान, ज्वार आदि।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
फसलों के जलवायु आधारित विभाजन के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. गर्म जलवायु (Tropical) की फसलें-ये फसलें गर्म क्षेत्रों में होती हैं जहां ठण्ड नहीं पड़ती, जैसे कपास, धान, कमाद आदि।
  2. ठण्डी जलवायु (Temperate) वाली फसलें-जिन स्थानों पर ठण्ड पड़ना निश्चित होता है ये फसलें ऐसे क्षेत्रों में होती हैं-जैसे-गेहूँ, जौ आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फ़सलों का विभाजन

फ़सलों का विभाजन PSEB 6th Class Agriculture Notes

  1. आर्थिक व व्यापारिक महत्त्व वाले पौधों के समूह को जब किसी विशेष उद्देश्य के लिए उगाया जाता है तो इसको फसल कहा जाता है।
  2. ऋतु अनुसार फसल दो तरह की होती है-रबी की फसलें, खरीफ की फसलें।
  3. वनस्पति विज्ञान के आधार पर फसलों के कुछ परिवार समूह हैं-घास या ग्रेमनी, दाल या लेगूमनोसी, सरसों या करुसीफरी, मालवेसी आदि।
  4. फसल प्रबंध या आर्थिक आधार पर फसलों का विभाजन इस तरह है-अनाज वाली फसलें, दाल वाली, तेल बीज वाली, चारे वाली, स्टार्च वाली, धागे वाली, सब्जी वाली, चीनी वाली, मसाले वाली आदि।
  5. वार्षिक फसलें हैं-गेहूँ, मक्की।
  6. द्विवार्षिक फसलें-प्याज़, चुकंदर।
  7. बहुवर्षीय फसलें हैं-कमाद, किन्नू, आम आदि।
  8. हरी खाद वाली फसलें-सन, जंतर (ढेंचा)।
  9. आपात्कालीन फसलें-तोरिया, सट्ठी मक्की, सट्ठी मूंगी।
  10. पशुओं के लिए अचार वाली फसलें-मक्का, जवी, ज्वार।
  11. अंतर फसलें-कपास में मंगी।
  12. किनारे पर बोई जाने वाली फसलें-अरहर, जंतर।
  13. ट्रैप फसलें-कमाद में मक्की।
  14. गर्म जलवायु की फसलें-कमाद, कपास, धान।
  15. ठण्डी (सर्द) जलवायु की फसलें-गेहूँ, जौ।
  16. सेंजू (सिंचित) फसलें वे हैं जिनको सिंचाई वाले पानी की सहायता से उगाया जाता है।
  17. बरौनी (असिंचित) फसलें वे हैं जो वर्षा के पानी से ही उगाई जाती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

PSEB 11th Class Geography Guide प्रमुख भू-आकार Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में दें:

प्रश्न (क)
भारत में अंदरूनी (आंतरिक) पर्वतों का सबसे बड़ा उदाहरण कौन-सा है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत।

प्रश्न (ख)
पूर्व कैंबरीअन काल कितने वर्ष पुराने समय को माना जाता है ?
उत्तर-
4.6 बिलियन (अरब) वर्ष।

प्रश्न (ग)
महाद्वीपों के खिसकने से पहले के सुपर महाद्वीप का नाम क्या था ?
उत्तर-
पैंजीआ।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (घ)
पृथ्वी की ऊपरी प्लेट के दो भाग कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर-
क्रस्ट और मैंटल।

प्रश्न (ङ)
एशिया का दिल’ किस प्रकार की भू-आकृति को कहते हैं ?
उत्तर-
पठार।

प्रश्न (च)
गुंबद पठार का विश्व प्रसिद्ध उदाहरण कौन-सा है ?
उत्तर-
ओज़ारक पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (छ)
अफ्रीका की कौन-सी नदी ‘बाड़ के मैदान’ बनाती है ?
उत्तर-
नील नदी।

प्रश्न (ज)
ऑस्ट्रेलिया में नदियों के मैदानों को क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
मरे-डार्लिंग मैदान।

प्रश्न (झ)
परेरी, पंपाज़ और कैंटरबरी क्या हैं ?
उत्तर-
घास के मैदान।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ब)
पृथ्वी पर ऊँचाई कहाँ से नापी जाती है ?
उत्तर-
समुद्र तल से।

2. प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में दें

प्रश्न (क)
धरातलीय स्वरूपों को कौन-कौन से भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-

  1. पहली श्रेणी के स्थल रूप
  2. दूसरी श्रेणी के स्थल रूप
  3. तीसरी श्रेणी के स्थल रूप।

प्रश्न (ख)
आकार के आधार पर पर्वतों को वर्गीकृत करें।
उत्तर-

  1. बलदार पर्वत
  2. ब्लॉक पर्वत
  3. गुंबददार पर्वत
  4. संग्रह पर्वत।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ग)
बलदार या वलन पर्वत की परिभाषा दें।
उत्तर-
पर्वत भू-पटल की परतों में बल पड़ने के कारण इन्हें बलदार पर्वत कहा जाता है। तलछट में मोड़ पड़ने के कारण ऊँचे उठे भाग को Anticline और नीचे धंसे भाग को Syncline कहा जाता है।

प्रश्न (घ)
अलफ्रेड वैगनर ने कब और कौन-सी पुस्तक में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त पेश किया था ?
उत्तर-
अल्फ्रेड वैगनर ने 1915 में अपनी पुस्तक ओरिज़न ऑफ कौन्टीनैंट एंड ओशंस (Origin of Continents and Oceans) में महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त पेश किया था।

प्रश्न (ङ)
लुरेशिया में कौन-सा क्षेत्र सम्मिलित था ?
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड, यूरोप, रूस और चीन लुरेशिया में शामिल थे। इसे अंगारा लैंड भी कहा जाता है।

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प्रश्न (च)
सीमावर्तीय पठार कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
पुरानी पर्वत श्रेणियों के साथ लगते पठारों को सीमावर्तीय पठार कहते हैं। ये पर्वतों के दामन में स्थित होते हैं।

प्रश्न (छ)
मैदान निर्माण के लिए जानी जाती रूस व चीन की नदियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-
रूस में उब, येनसी, लीना और बोलगा नदियाँ और चीन में ह्वांग-हो, यांग-सी-कियांग नदियाँ मैदानों का निर्माण करती हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें

प्रश्न (क)
ब्लॉक पर्वतों की परिभाषा दें।
उत्तर-
तनाव के कारण धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। कुछ भाग नीचे की ओर धंस जाते हैं और कुछ भाग बीच में ही खड़े रह जाते हैं। इन ऊँचे भागों को ब्लॉक पर्वत कहा जाता है। ये पर्वत खड़ी ढलान वाले होते हैं और ऊपरी तल समतल होता है, जैसे जर्मनी में हारझुट पर्वत, भारत में विंध्याचल पर्वत।

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प्रश्न (ख)
आप अगर कृषि, सिंचाई तथा यातायात की सुविधाओं वाले क्षेत्रों में रह रहे हों, तो भौगोलिक पक्ष से ये कौन-से क्षेत्र होंगे ? विश्व-भर के ऐसे क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर-
मैदानों में कृषि की सुविधाएँ होती हैं। यहाँ नदियाँ और नहरें जल सिंचाई प्रदान करती हैं। यहाँ परिवहन के आसान साधन होते हैं। यहाँ सड़कों और रेलों के निर्माण की सुविधा होती है। ये सब क्षेत्र मैदान होते हैं। जैसे-अमेरिका में परेरी, यूरोप में स्टैपे, ऑस्ट्रेलिया में मरे-डार्लिंग, दक्षिण अमेरिका में पंपास, भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र, चीन में ह्वांग-हो और यांग-सी-कियांग।

प्रश्न (ग)
भौगोलिक पक्ष से खनिज पदार्थों की बहुतायत कौन-से धरातलीय क्षेत्रों में होती है ? विश्वभर से उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
विश्व में बहुत-से खनिज पठारों से मिलते हैं। पठार आग्नेय चट्टानों से बनते हैं। इनमें बहुमूल्य खनिज मिलते हैं। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सोना, अफ्रीका के पठार में हीरा, सोना और तांबा, ब्राजील के पठार में लोहा और मैंगनीज़, दक्षिणी भारत में सोना, अभ्रक, मैंगनीज़ और छोटा नागपुर के पठार में लोहा, तांबा, अभ्रक और मैंगनीज़ के भंडार हैं।

प्रश्न (घ)
प्लेट टैक्टौनिक का सिद्धान्त विस्तार से समझाएँ।
उत्तर-
स्थलमंडल भू-प्लेटों में बंटा हुआ है। इसमें 6 मुख्य प्लेटें और 14 छोटे आकार की प्लेटें हैं। ये भू-प्लेटें खिसकती रहती हैं। परिणामस्वरूप महाद्वीप भी खिसकते रहते हैं। संपीड़न क्रिया प्लेटों की गति के कारण होती है। इससे महाद्वीप खिसकते हैं और पर्वत-निर्माण क्रिया होती है।

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प्रश्न (ङ)
ताज़ा झरने, कीमती लकड़ी और घने जंगल पृथ्वी के कौन-से धरातलीय भाग में मिलते हैं ? विश्व-भर से उदाहरण देते हुए संक्षेप में चर्चा करें।
उत्तर-

  1. पर्वत धरती पर नदियों और झरनों के स्रोत हैं। ये पूरा वर्ष जल-सिंचाई प्रदान करते हैं। गंगा का मैदान हिमालय पर्वत का वरदान है।
  2. पर्वत घने जंगलों से ढके रहते हैं। यहाँ स्वास्थ्यवर्धक स्थान भी पाए जाते हैं।
  3. पर्वत बहुमूल्य लकड़ी के भंडार हैं। इन पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कनाडा, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड आदि देशों का आर्थिक विकास जंगलों के कारण ही है। नॉर्वे, इटली, स्विट्ज़रलैंड में अनेकों जल-झरने मिलते हैं, जो पनबिजली पैदा करते हैं।

प्रश्न (च)
पर्वत-निर्माण शक्तियाँ या ओरोजैनी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धरती पर भू-अभिनीतियों में करोड़ों वर्षों से तलछट जमा हो रहे हैं। इन्हें भू-अभिनीति कहते हैं। तलछट में मोड़ पड़ने पर बलदार पर्वतों का निर्माण हुआ। उदाहरण के लिए हिमालय का निर्माण टेथिस भू-अभिनीति के तलछट में बल पड़ने के कारण हुआ। भू-अभिनीतियों में संपीड़न शक्तियों के कारण बलदार पर्वत बने हैं। इसे ओरोजैनी क्रिया कहते हैं।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
पर्वतों के वर्गीकरण के आधार क्या-क्या हो सकते हैं ? उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वत (Mountains)-पर्वत प्रकृति की रहस्यमयी रचनाओं में से एक हैं। इन्होंने धरती का 12 प्रतिशत भाग घेरा हुआ है। _ ‘पर्वत ऐसे ऊँचे उठे हुए भू-खंड को कहते हैं, जो आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।’ __पर्वतों का आधार-क्षेत्र बड़ा होता है, पर ऊँचाई के साथ-साथ विस्तार कम होता जाता है, इसीलिए पर्वतों की चोटियों के क्षेत्र छोटे होते हैं। पर्वत और पहाड़ी में केवल ऊँचाई का अंतर होता है। पहाड़ी की ऊँचाई 900 मीटर से कम होती है।

पर्वत की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Mountains)-

  1. आस-पास के क्षेत्रों से अधिक ऊँचाई (Highland Area)
  2. शिखर पर कम विस्तार (Small Summit)
  3. तीखी ढलान (Steep Slope)
  4. ऊँची-नीची भूमि (Rugged Land)
  5. आधार-क्षेत्र का बड़ा होना (Large Base)

पर्वतों के प्रकार (Types of Mountains)-धरातल पर पाए जाने वाले पर्वतों में बहुत भिन्नताएँ हैं। “किन्हीं भी दो पर्वतों में पूर्ण समानता नहीं होती है।” (“No two mountains are exactly alike)” ऊँचाई की दृष्टि से पर्वतों में बहुत अंतर होता है। ऊँचाई के अनुसार पर्वतों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

1. ऊँचाई के अनुसार (According to height)

  • छोटे पर्वत (Low Mountains)—जो पर्वत 3000 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
  • कम ऊँचाई के पर्वत (Rugged Mountains)—जो पर्वत 3000 मीटर से 6000 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
  • ऊँचे पर्वत (High Mountains)—जो पर्वत 6000 मीटर से अधिक ऊँचे होते हैं।

2. रचना के अनुसार (According to Formation)-

  • बलदार पर्वत (Folded Mountains)
  • ब्लॉक या अवरोधी पर्वत (Block Mountains)
  • अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)
  • ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)
  • गुंबददार पर्वत (Dome Mountains)

(i) बलदार पर्वत (Folded Mountain)-बलदार पर्वतों का निर्माण भू-गर्भ के संपीड़न (Contraction) की दबाव (Compression) शक्तियों के कारण धरातल की परतों में बल पड़ने या मोड़ पड़ने के कारण होता है। पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण धरातल में मोड़ (Folds) पड़ जाते हैं। इस हलचल के कारण धरातल का एक भाग ऊपर उठ जाता है और दूसरा भाग नीचे धंस जाता है। ऊपर उठे हुए भाग को Anticline और नीचे धंसे हुए भाग को Syncline कहते हैं। बलदार पर्वत विश्व में सबसे नवीन, सबसे ऊँचे और अधिक विस्तार वाले हैं। सृजन और आयु के आधार पर ये पर्वत दो तरह के हैं-

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(क) नवीन बलदार पर्वत (Young Fold Mountains)—जिस प्रकार भारत में हिमालय, यूरोप में अल्पस (Alps), उत्तरी अमेरिका में रॉकी (Rocky) और दक्षिणी अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वत हैं।

(ख) प्राचीन बलदार पर्वत (Old Fold Mountains)-जिस प्रकार उत्तरी अमेरिका में अपैलशियन (Appalachian) पर्वत और नॉर्वे के पर्वत।

(ii) ब्लॉक पर्वत या अवरोधी या भू-खंडीय पर्वत (Block Mountains) ब्लॉक पर्वत आमतौर पर समानांतर दरारों के बीच स्थित होते हैं, जिनका आकार मेज़ के समान होता है। ये पर्वत तनाव की क्रिया (Expansion) से बनते हैं। तनाव के कारण धरातल पर दरारें (Faults) पड़ जाती हैं। दरारों के कारण धरातल का एक बड़ा भाग ब्लॉक (Block) के रूप में ऊपर या नीचे सरक जाता है। इस प्रकार ऊपर उठे हुए भाग को होरस्ट (Horst) कहते हैं और नीचे धंसे भाग को गरैबन्स (Grabens) कहते हैं। इस प्रकार धरती की लंबवर्ती हलचलों (Vertical Movements) के कारण ब्लॉक पर्वत बनते हैं। ब्लॉक पर्वतों का ऊपरी भाग पठार के समान साफ होता है, परंतु चित्र-ब्लॉक पर्वत इसके किनारे तीखी ढलान वाले होते हैं। दरारों के द्वारा निर्माण के कारण इन्हें Fault Mountains भी कहते हैं।

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उदाहरण (Examples)-जर्मनी में वॉसजिज़ (Vosges) और ब्लैक फॉरेस्ट (Black Forest), पाकिस्तान में नमक के पहाड़ (Salt Range) और भारत में विंध्याचल पर्वत।

रिफ्ट घाटी (Rift Valley)—इसी प्रकार जब दो समानांतर दरारों (Faults) के बीच का भाग नीचे की ओर सरक जाता है और आस-पास के हिस्से ऊँचे उठे हुए दिखाई देते हैं, तो नीचे को सरका हुआ भाग रिफ्ट घाटी कहलाता है। उदाहरण (Examples)-यूरोप में राइन घाटी (RhineValley) और अमेरिका (U.S.A.) में कैलीफोर्निया घाटी (California Valley), एशिया में मृत सागर (Dead Sea), भारत में नर्मदा घाटी।

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(iii) अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)-ये पर्वत बाहरी साधनों नदी, बर्फ, वायु आदि के खुरचने के कारण बनते हैं। बहुत समय तक लगातार अपरदन होने के कारण पर्वतों की ऊँचाई बहुत कम हो जाती है। ये पर्वत घिस-घिसकर नीची पहाड़ियों के रूप में बदल जाते हैं। इस प्रकार के पर्वत पुराने पर्वतों के बचेखुचे भाग होते हैं। इसलिए इन्हें Relict Mountains भी कहते हैं। कहीं-कहीं कठोर चट्टानों से बने भू-भाग ऊँचे क्षेत्रों के रूप में खड़े रहते हैं। ऐसे ऊँचे क्षेत्रों को अवशेषी पर्वत कहते हैं। अपरदन के साधनों से बने होने के कारण इन्हें अपरदित पर्वत (Mountains of Denudation) भी कहते हैं।

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उदाहरण (Examples) भारत में अरावली पर्वत (Aravali Mountains) और पूर्वी घाट, अमेरिका (U.S.A.) में ओज़ार्क (Ozark) पर्वत।

(iv) ज्वालामुखी पर्वत (Valcanic Moun tains) ज्वालामुखी पर्वत धरती के नीचे से निकलने वाला लावा (Lava) राख (Ash) आदि ठोस पदार्थों के जमाव के कारण बनते हैं। ज्वालामुखी के मुँह से निकला हुआ यह पदार्थ उसके मुख या गर्त के चारों तरफ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में लगातार जमता जाता है। इस प्रकार एक शंकु (Cone) का निर्माण हो जाता है। गाढ़े लावे के ऊँचे पर्वत बनते हैं। ऐसे पर्वतों को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।

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उदाहरण (Examples)-जापान में फ्यूज़ीयामा (Fujiyama) पर्वत, चिली में ऐकनकेगुआ (Aconcagua),
इटली में वेसुवियस (Vesuvious) पर्वत और अफ्रीका में किलीमंजारो (Kilimanjaro) पर्वत।

(v) गुंबददार पर्वत (Dome Mountains)-भीतरी हलचल के कारण गर्म लावा बाहर आने का यत्न करता है।
नीचे की ओर दबाव के कारण धरातल पर एक उभार पैदा हो जाता है। जब धरातल एक चाप (Arch) के आकार में ऊपर उठ जाता है, तो गुंबद के आकार के पर्वत बनते हैं। गुंबद का ऊपरी भाग गोलाकार होता है। लावा के इस उभार से लोकोलिथ (Loccolith) और बैथोलिथ (Batholith) नाम के पर्वत बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • हवाई द्वीप में मोना लोआ (Maunaloa)
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में हैनरी पर्वत (Henry Mountains)

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प्रश्न (ख)
पठारों का वर्गीकरण करें और प्रत्येक किस्म की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर-
पठार (Plateau)—पठार एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक इकाई है। धरती का एक बड़ा भाग (33%) पठारों से घिरा हुआ है। “पठार वह प्रदेश होता है, जो आमतौर पर समुद्र तल से एक समान ऊँचाई वाला हो, इर्द-गिर्द के धरातल से एकदम ऊँचा और तीखी ढलान वाला हो।” (A Plateau is a highland with broad, flat summits.”) पठार आमतौर से समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर तक ऊँचे होते हैं, पर पठार की ऊँचाई कुछ भी हो सकती है; जैसे अमेरिका (U.S.A.) में पीडमांट पठार (Piedmont Plateau) केवल 600 मीटर ऊँचा है, पर पामीर का पठार कई ऊँचे पर्वतों से भी ऊँचा है और उसे ‘संसार की छत’ (Roof of the world) कहते हैं।

पठारों की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Plateau)-

  1. सपाट और विशाल शिखर।
  2. किनारों से तीखी ढलान।
  3. मेज के समान चौकोर ऊपरी सतह।
  4. पास के क्षेत्रों से एकदम ऊँचा होना।
  5. मैदानों की तुलना में अधिक ऊँचाई।

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पठार पठारों की किस्में (Types of Plateaus) –

1. अंतर-पर्वतीय पठार (Intermonteue Plateaus) 2. गिरीपद पठार (Piedmont Plateaus) 3. महाद्वीपीय पठार (Continental Plateaus) 4. ज्वालामुखी पठार (Volcanic Plateaus) 5. अपरदित पठार (Dissected Plateaus) 6. लोएस पठार (Loess Plateaus)

1. अंतर-पर्वतीय पठार (Intermonteue Plateaus) ये पठार चारों तरफ से ऊँचे पर्वतों से घिरे होते हैं।
(Such Plateaus have a mountain rim around them.”) ये पठार आस-पास के पर्वतों के निर्माण के साथ-साथ बनते रहते हैं, पर इन पठारों में मोड़ नहीं पड़ते और ये समतल रह जाते हैं। इन पठारों में नदियाँ किसी झील में गिरती हैं और अंतरवर्ती जल-प्रवाह (Inland Drainage) होता है। संसार के सबसे ऊँचे पठार इसी प्रकार के हैं।

उदाहरण (Examples) –

  • तिब्बत का पठार (Tibet Plateau) हिमाचल और कुनलुन (Kunlun) पर्वतों के बीच में स्थित है, जो कि 3600 मीटर ऊँचा है।
  • दक्षिणी अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वतों से घिरा हुआ है-बोलीविया (Bolivia) का पठार।

2. गिरीपद पठार (Piedmont Plateaus)—ये पठार पर्वतों के आधार पर बने होते हैं। इनके एक तरफ ऊँचे पर्वत और दूसरी तरफ मैदान या समुद्र होता है। मैदान की तरफ तीखी ढलान (Escarpment) होती है। इनका क्षेत्रफल बहुत नहीं होता।

उदाहरण (Examples)-

  • दक्षिण अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वत और अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के बीच स्थित पेटेगोनिया (Patagonia) का पठार।
  • अमेरिका (U.S.A.) में एपलेशीयन (Appalachian) पर्वत के निकट पीडमांट पठार।

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3. महाद्वीपीय पठार (Continental Plateaus)—ये पठार ऐसे विशाल पठार हैं, जो किसी महाद्वीप या देश के काफ़ी बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। ये पठार मैदान या समुद्र के निकट एकदम ऊपर उठ जाते हैं। धरातल के सपाट क्षेत्रों में उभार (Uplift) के कारण ये पठार बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • सारा अफ्रीका महाद्वीप एक विशाल महाद्वीपीय पठार है।
  • स्पेन, अरब और ग्रीनलैंड के पठार।

4. ज्वालामुखी पठार (Volcanic Plateaus)—ये पठार धरातल पर लावा (Lava) के प्रवाह से बनते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के समय लावा चारों तरफ दूर-दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार ये प्रदेश आस-पास के क्षेत्रों से दिखाई देते हैं। इन्हें ज्वालामुखी पठार कहते हैं। उदाहरण (Examples)-भारत का दक्षिणी पठार लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। अमेरिका (U.S.A.) में कोलंबिया पठार।

5. अपरदित पठार (Dissected Plateaus)—ये पठार नदियों के द्वारा अपरदित होते हैं। नदियाँ पठारों को काटकर कई इकाइयों (Platforms) में बाँट देती हैं। नमी वाले प्रदेशों में ढलान वाली ज़मीन पर अधिक कटाव होता है और कई तंग घाटियाँ (Ravines) बन जाती हैं। ऐसे ऊँचे-नीचे धरातल वाले पठार को अपरदित (Dissected) पठार कहते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • भारत में छोटा नागपुर का पठार।
  • स्कॉटलैंड (Scotland) का पठार।

6. लोएस पठार (Loess Plateaus)—वायु द्वारा बने पठार को लोएस पठार (Loess Plateau) कहते हैं। हवा अपने साथ मरुस्थलों से काफी मात्रा में बारीक मिट्टी उड़ाकर लाती है। यह मिट्टी एक परत पर दूसरी परत के रूप में जमा होती रहती है और पठार का रूप धारण कर लेती है।

उदाहरण (Examples)-(i) एशिया (Asia) के गोबी (Gobi) मरुस्थल से आने वाली हवाओं के कारण उत्तर-पश्चिमी चीन में लोएस (Loess) का पठार बन गया है। ये पठार पीली मिट्टी के जमाव के कारण बना है।

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प्रश्न (ग)
मैदानी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों को पहाड़ों में रहने वाले लोगों के मुकाबले क्या आसानी होती है और क्या परेशानी होती है ? चर्चा करें।
उत्तर-
मैदानों का महत्त्व (Importance of Plains)—मैदानों में कृषि, उद्योग, व्यापार और मानवीय विकास की सभी सुविधाएँ होती हैं।

1. निवास की सुविधाएँ (Settlement of Population)—मैदानों में सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास – संभव है। मैदानों में संसार की 75% आबादी निवास करती है।
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2. कृषि की सुविधाएँ (Agriculture Facilities)—समतल भूमि और उपजाऊ मिट्टी के कारण, मैदान कृषि योग्य उत्तम क्षेत्र होते हैं।

3. अन्न के भंडार (Storehouse of Grains)-मैदानों में सिंचाई की सुविधाएँ, उपजाऊ मिट्टी और मशीनों के प्रयोग के कारण अन्न का उत्पादन अधिक होता है। संसार की सभी व्यापारिक फसलें गेहूँ, गन्ना, कपास और पटसन आदि मुख्य तौर पर मैदानों में ही होती हैं।

4. सभ्यता (Civilization) संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास मैदानों में ही हुआ है। चीन और मिस्र की सभ्यता ने नदी घाटियों में ही जन्म लिया।

5. आसान परिवहन (Easy Transport)—मैदानों में सपाट भूमि के कारण चौड़ी और लंबी सड़कों (Highways), रेलमार्गों (Railways), जलमार्गों (Waterways) और हवाई अड्डों (Aerodromes) को बनाना आसान होता है। नदियों के द्वारा भी आवाजाही आसान होती है। नदियों की धीमी चाल के कारण इनमें नाव और जहाज़ चलाए जा सकते हैं।

6. उद्योग (Industries)—मैदान आर्थिक जीवन की धुरी होते हैं। सभी सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण, संसार के सभी बड़े उद्योग मैदानों में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि सबसे पहले, मैदानों में कच्चा माल (Raw Material) आसानी से मिल जाता है। दूसरे, परिवहन और संचार के साधन प्राप्त होने के कारण माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से लाया व ले जाया जा सकता है। तीसरे, जनसंख्या अधिक होने के कारण मज़दूरी सस्ती होती है। व्यापार का विकास होता है।

7. नगर (Towns)-आर्थिक और सामाजिक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के प्रमुख नगर मैदानों में ही स्थित हैं।

प्रश्न (घ)
उत्पत्ति के आधार पर मैदानों की भिन्न-भिन्न किस्मों का वर्णन करें।
उत्तर-
मैदान (Plains)-प्रमुख भू-आकारों (Major Landforms) में मैदान सबसे अधिक स्पष्ट और सरल हैं। स्थल के बहुत बड़े भाग (41%) पर इनका विस्तार है। मैदान धरती के निचले और समतल (सपाट) क्षेत्र होते हैं। “मैदान स्थल के वे सपाट भाग हैं, जो समुद्र तल से 150 मीटर से कम ऊँचाई पर हों और उनकी ढलान सपाट, मध्यम और साधारण हो।” (Plains are low lands of low relief and horizontal structure.”) मैदान सागर तल से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं, परंतु अपने आस-पास के पठार या पर्वत से कभी भी ऊँचे नहीं हो सकते।

मैदानों के लक्षण (Features of Plains)-

  1. एक तरह की चट्टानें
  2. कम ढलान
  3. नीचा धरातल
  4. सपाट और एक समान सतह।

सभी मैदान समुद्र तल से एक समान ऊँचाई के नहीं होते। कई मैदान समुद्र तल से बहुत ऊँचे होते हैं, जैसे अमेरिका के महान मैदान (Great Plains of U.S.A.) 6000 फुट ऊँचे हैं, पर हॉलैंड (Holland) का तट समुद्र तल से भी नीचा है। धरातल के अनुसार मैदान चार तरह के हैं-

  1. सपाट मैदान (Flat Plains)
  2. ऊँचे-नीचे मैदान (Undulating Plains)
  3. लहरदार मैदान (Rolling Plains)
  4. अपरदित मैदान (Dissected Plains)

मैदान की रचना (Formation of Plains)-
मैदान तीन तरह से बनते हैं-

  1. अपरदन (Erosion) से।
  2. निक्षेप (Deposition) से।
  3. धरती की हलचल (Earth Movements) से।

मैदानों की किस्में (Types of Plains)-
रचना के अनुसार मैदानों की निम्नलिखित किस्में हैं-

  1. जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains)
  2. अपरदन के मैदान (Pene Plains)
  3. हिमानी मैदान (Glaciated Plains)
  4. सरोवर से निर्मित मैदान (Lacustrine Plains)
  5. ज्वालामुखी मैदान (Volcanic Plains)
  6. तट के मैदान (Coastal Plains)
  7. चूनेदार मैदान (Karst Plains)
  8. लोएस मैदान (Loess Plains)

1. जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains)-नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से विशाल जलोढ़ मैदान बनते हैं। नदियों का उद्देश्य थल भाग को काटकर समुद्र तक ले जाना होता है। (Rivers Carry land to sea.) केवल उत्तरी अमेरिका की नदियाँ ही 80 करोड़ टन मिट्टी हर वर्ष समुद्र में जमा करती हैं। पर्वतों से निकलकर नदियाँ भाबर के मैदान (Bhabar Plains) बनाती हैं। निचली घाटी में बाढ़ के समय बारीक मिट्टी के जमाव के कारण बाढ़ के मैदान (Flood Plains) बनते हैं। सागर में गिरने से पहले एक समतल तिकोने आकार का एक मैदान बनता है, जिसे डेल्टा (Delta) कहते हैं। नदियों द्वारा बने मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • भारत में गंगा-सतलुज का विशाल मैदान।
  • चीन में ह्वांग-हो (Hwang Ho) नदी का मैदान।
  • अमेरिका (U.S.A.) में मिसीसीपी (Missisipi) का मैदान।

2. अपरदन के मैदान (Pene Plains)-‘Pene Plains’ शब्द दो शब्दों ‘Pene’ और ‘Plain’ के जोड़ से बना है। ‘Pene’ शब्द का अर्थ है-‘लगभग’ या आम तौर पर (Almost) और ‘Plain’ का अर्थ है-मैदान। इस प्रकार ‘Pene Plains’ का अर्थ है-लगभग मैदान या आम तौर पर समभूमि। एक लंबे समय तक बाहरी साधन बर्फ, जल, हवा आदि के लगातार कटाव के कारण, पर्वत या पठार घिसकर नीचे हो जाते हैं और मैदान का रूप धारण कर लेते हैं। ये मैदान पूरी तरह से सपाट नहीं होते। इन मैदानों की ढलान अत्यंत हल्की होती है। इनमें कठोर चट्टानों के रूप में ऊँचे टीले मिलते हैं। ऐसे मैदानों में कठोर चट्टानों के टीले नष्ट नहीं होते और बचे रहते हैं। इन्हें मोनैडनॉक (Monadnocks) कहते हैं। संसार में इस तरह के पूर्व सम-मैदान (Perfect Plains) बहुत कम मिलते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • फिनलैंड और साइबेरिया का मैदान।
  • भारत में अरावली प्रदेश।

3. हिमानी मैदान (Glaciated Plains)—ये मैदान हिम नदी या ग्लेशियर के कारण बनते हैं। ग्लेशियर कटाव द्वारा ऊँचे भागों को काट-छाँट कर सपाट मैदान बनाते हैं। इनमें झीलें, झरने, ऊँचे-नीचे और दलदली क्षेत्र मिलते हैं। जब बर्फ पिघलती है, तो अपने साथ बहाकर लाई हुई मिट्टी, बजरी, कंकर आदि निचले स्थानों और खड्डों में भर देती है। इससे सपाट मैदान बन जाता है। इन मैदानों में हिमोढ़ (Moraines) के जमाव से बने मैदान को ड्रिफ्ट मैदान (Drift Plains) भी कहते हैं। हिम नदी के अपरदन से भी मैदान बनते हैं, जिसमें छोटेछोटे टीले इधर-उधर बिखरे होते हैं।

उदाहरण (Examples)-हिम युग (Great Ice age) में उत्तरी अमेरिका और यूरोप बर्फ से ढके हुए थे। बर्फ के पिघलने से वहाँ हिमानी मैदान बन गए।

4. सरोवरी मैदान (Lacustrine Plains)-झीलों के भर जाने या सूख जाने से उन स्थानों पर सरोवरी मैदान बन जाते हैं। झीलों में गिरने वाली नदियाँ अपने साथ लाई हुई मिट्टी आदि झील में जमा करती रहती हैं, जिससे झील का तल (Bed) ऊँचा हो जाता है, गहराई कम हो जाती है और धीरे-धीरे झील पूरी तरह भरकर एक सपाट मैदान बन जाती है। धरती की अंदरूनी हलचल के कारण झील का तल ऊपर उठ जाने से भी ऐसे मैदान बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तरी अमेरिका की परेरीज़ (Prairies) का हरा मैदान प्राचीन काल की अगासीज़ (Agassiz) झील के भर जाने के कारण बना है।
  • कैस्पीयन सागर (Caspian Sea) का उत्तरी भाग सूख जाने के कारण मैदान बन गया है।

5. ज्वालामुखी मैदान (Volcanic Plains)-ज्वालामुखी के मुख से निकला पिघला लावा (Basic Lava) कई
किलोमीटर दूर तक फैल कर जम जाता है। लावा एक पतली चादर के रूप में, परतों में निचले क्षेत्र में जमा हो जाता है। इस प्रकार एक सपाट मैदान बनता है।

उदाहरण (Examples)-

  • इटली में नेपल्स (Naples) नगर के निकट वैसुवियस (Vesuvious) का मैदान।
  • अमेरिका (U.S.A.) के स्नेक (Snake) नदी का क्षेत्र।

6. तट के मैदान (Coastal Plains)-तट के मैदान आम तौर पर समुद्र के किनारे पर स्थित होते हैं। तट के जो भाग, पानी में डूब जाते हैं। वे भाग रेत और मिट्टी बिछ जाने के कारण तट के मैदान बनते हैं। समुद्र के पीछे हटने से भी थल भाग सूखकर मैदान बन जाते हैं। धरती की हलचल के कारण, तट के निकट कम गहरा समुद्र ऊँचा उठ जाता है, जिससे तट के मैदान बनते हैं। आम तौर पर तट के मैदानों की ढलान समुद्र की ओर कम होती है। इनका महत्त्व बंदरगाहों और समुद्री व्यापार के कारण होता है।

उदाहरण (Examples)-

  • अमेरिका (U.S.A.) में खाड़ी के तट का मैदान (Gulf Coast Plain)।
  • भारत के पूर्वी तट का मैदान।।

7. चूनेदार मैदान (Karst Plains)-चूने के क्षेत्रों में भूमिगत पानी के एक विशेष प्रकार के धरातल पर जल प्रवाह नहीं होता। चूने का पत्थर जल में घुल जाता है। सारे प्रदेश में चूने के ढेर और टीले दिखाई देते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • यूगोस्लाविया में कार्ट प्रदेश
  • भारत में जबलपुर क्षेत्र।

8. लोएस का मैदान (Loess Plains)—हवा द्वारा बने मैदानों को रेगिस्तानी या लोएस का मैदान कहते हैं। हवा रेत को उड़ाकर दूर-दूर के स्थानों पर जमा करती है। ऐसे मैदानों में रेत के टीले (Sand Dunes) अधिक होते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तर-पश्चिमी चीन में शैंसी और शांसी प्रदेशों में लोएस के मैदान मिलते हैं।
  • पंजाब और हरियाणा की सीमा पर लोएस के मैदान मिलते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ङ)
भारत के छोटे नागपुर क्षेत्र के लोग, केरल व हिमाचल प्रदेश के लोगों से किन मुद्दों पर भिन्न हो सकते हैं ? चर्चा करें।
उत्तर-
छोटा नागपुर का पठार एक अपरदित पठार है। बहता हुआ जल ऊँचे पर्वत को क्षीण कर पठार का आकार देता है। हिमाचल प्रदेश एक मोड़दार पर्वत है और केरल एक तटीय मैदान है। इन प्रदेशों के लोगों का जीवन और क्रियाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है और यहाँ कृषि की कमी है। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती होती है। ठंडी जलवायु के कारण गेहूँ की खेती सीमित होती है। यहाँ फलों की खेती महत्त्वपूर्ण है। हिमाचल के सेबों के बाग विश्व-भर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ परिवहन के साधन सीमित हैं।

छोटा नागपुर एक अपरदित पठार है। यहाँ वर्षा की अधिक मात्रा के कारण मिट्टी का कटाव अधिक है। यहाँ खनिज । पदार्थ बहुत मिलते हैं। यहाँ लोहे और कोयले के भंडार हैं। खानें खोदना लोगों का कार्यक्षेत्र है। वनों का घनत्व बहुत अधिक है। आदिवासी लोग जंगलों में रहते हैं और पेड़ काटना भी एक रोज़गार है।

केरल के तटीय मैदानों में वर्षा बहुत अधिक होती है। यहाँ चावल की कृषि होती है। लोगों का मुख्य भोजन चावल है। यहाँ साक्षरता की ऊँची दर है, इसलिए लोग तकनीकी रूप से विकसित हैं। औद्योगिक विकास बहुत अधिक है। जनसंख्या का घनत्व भी अधिक है। मछली पकड़ना लोगों का एक रोज़गार है।

Geography Guide for Class 11 PSEB प्रमुख भू-आकार Important Questions and Answers

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पर्वतों की औसत ऊँचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
900 मीटर से अधिक।

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प्रश्न 2.
मोड़दार पर्वतों की रचना में कौन-सी शक्ति काम करती है ?
उत्तर-
संपीड़न क्रिया।

प्रश्न 3.
पर्वत के ऊँचे-ऊँचे भागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Anticline.

प्रश्न 4.
पर्वतीय भाग में नीचे धंसे भागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Syncline.

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प्रश्न 5.
नवीन मोड़दार पर्वतों का एक उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 6.
ब्लॉक पर्वतों में ऊँचे उठे भाग को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
होरस्ट।

प्रश्न 7.
दो समानांतर दरारों के बीच धंसे भाग को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
रिफ्ट घाटी।

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प्रश्न 8.
रिफ्ट घाटी का एक उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
राइन घाटी।

प्रश्न 9.
भारत में बचे-खुचे पर्वतों के उदाहरण दें।
उत्तर-
अरावली पर्वत।

प्रश्न 10.
अंतर-पर्वतीय पठार का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
तिब्बत पठार।

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प्रश्न 11.
मैदानों की औसत ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
150 मीटर।

प्रश्न 12.
लोएस पठार कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
उत्तर-पश्चिमी चीन में।

बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
किसी पर्वत की कम-से-कम ऊँचाई होती है।
(क) 500 मीटर
(ख) 600 मीटर
(ग) 900 मीटर
(घ) 1000 मीटर।
उत्तर-
900 मीटर।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे में से कौन-सा मोड़दार पर्वत है ?
(क) ब्लॉक पर्वत
(ख) हिमालय
(ग) ओज़ारन
(घ) स्कॉटलैंड।
उत्तर-
हिमालय।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे में से अंतर-पर्वतीय पठार बताएँ।
(क) पैट्रोलियम
(ख) तिब्बत
(ग) लोएस
(घ) छोटा नागपुर।
उत्तर-
तिब्बत।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न : (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
भू-तल पर प्रमुख भू-आकार बताएँ।
उत्तर-

  1. पर्वत
  2. मैदान
  3. पठार।

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प्रश्न 2.
पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पर्वत ऐसे ऊँचे उठे हुए भू-खंड को कहते हैं, जो आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।

प्रश्न 3.
पर्वत और पहाड़ी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
900 मीटर से कम ऊँचे प्रदेश को पहाड़ी कहते हैं, जबकि 900 मीटर से अधिक ऊँचे प्रदेश को पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 4.
Anticline और Syncline में क्या अंतर है ? ।
उत्तर-
किसी वलण या बलदार पर्वत (Folded Mountains) के शिखर को Anticline और नीचे से हुए भाग को Syncline कहते हैं।

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प्रश्न 5.
युवा या नवीन बलदार पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
टरशरी युग (5 करोड़ वर्ष) के बाद बनने वाले पर्वतों को युवा पर्वत कहते हैं, जैसे-हिमालय, अल्पस पर्वत।

प्रश्न 6.
प्राचीन बलदार पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
टरशरी युग से पहले बने पर्वतों को प्राचीन बलदार पर्वत कहते हैं, जैसे-युराल पर्वत और अरावली पर्वत. भारत के सबसे प्राचीन बलदार पर्वत हैं।

प्रश्न 7.
होरस्ट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दरारों के कारण कुछ भाग नीचे धंस जाते हैं। जो बीच वाला भाग ऊपर उठा होता है, तो उसे होरस्ट कहते हैं।

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प्रश्न 8.
दरार घाटी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
दो दरारों के बीच वाले भाग के नीचे फँस जाने से दरार घाटी की रचना होती है।

प्रश्न 9.
दरार घाटी के चार उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. राइन घाटी
  2. नर्मदा घाटी
  3. मृत सागर
  4. लाल सागर।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी पर्वतों के तीन उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. फ्यूज़ीयामा पर्वत
  2. वैसुवीयस पर्वत
  3. कोटोपैक्सी पर्वत।

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प्रश्न 11.
पठार की परिभाषा दें।
उत्तर-
पठार वह प्रदेश होता है, जो समुद्र तल से एक जैसी ऊँचाई वाला हो और इर्द-गिर्द से एकदम ऊँचा और तीखी ढलान वाला हो।

प्रश्न 12.
अंतर-पर्वतीय पठार क्या होता है ?
उत्तर-
चारों तरफ से ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे प्रदेश को अंतर-पर्वतीय पठार कहते हैं, जैसे-तिब्बत का पठार।

प्रश्न 13.
पीडमांट पठार क्या है ?
उत्तर-
पर्वतों की निचली ढलानों पर स्थित पठार को पीडमांट पठार कहते हैं, जैसे-पैंटागोनिया पठार।

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प्रश्न 14.
संसार के प्राचीन पठारों के उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. ब्राज़ील पठार
  2. कनाडा का पठार
  3. गोंडवाना पठार।

प्रश्न 15.
पृथ्वी के तल पर थल और जल का विभाजन क्या है ?
उत्तर-
थल 29.2% और जल 70.8% ।

प्रश्न 16.
क्या महाद्वीप और महासागर स्थायी हैं ?
उत्तर-
नहीं।

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प्रश्न 17.
महाद्वीप विस्थापन सिद्धांत किसने पेश किया ?
उत्तर-
सन् 1915 में अल्फ्रेड वैगनर ने।

प्रश्न 18.
पैंजीया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आदिकाल में जब सारे महाद्वीप इकट्ठे थे, तो उसे पैंजीया कहते थे।

प्रश्न 19.
पैंजीया के मध्यवर्ती भाग में कौन-सा सागर था ?
उत्तर-
टैथीज़ सागर।

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प्रश्न 20.
गोंडवाना लैंड में कौन-से महाद्वीप शामिल थे ?
उत्तर-
ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका।

प्रश्न 21.
अंगारालैंड की क्या स्थिति थी ?
उत्तर-
टैथीज़ सागर के उत्तर में यूरेशिया महाद्वीप को अंगारालैंड कहते थे।

प्रश्न 22.
वैगनर के अनुसार अमेरिका के पश्चिम की ओर खिसकने का क्या कारण था ?
उत्तर-
ज्वारीय शक्ति।

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प्रश्न 23.
Jig-Saw-Fit से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों को यदि जोड़ा जाए, तो ये एक आरे के ब्लेडों के समान एकदूसरे में फिट हो जाते हैं जैसे कि ये दोनों कभी इकट्ठे थे।

प्रश्न 24.
प्लेट-टैक्टौनिक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी की पपड़ी और महासागरीय भू-पटल 6 कठोर भू-प्लेटों पर टिका हुआ है। ये प्लेटें खिसकती रहती हैं। इस क्रिया को Plate-Tectonics कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न : (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पर्वत क्या होते हैं ? इनकी तीन प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-
पर्वत (Mountains)-पर्वत प्रकृति की रहस्यमयी रचनाओं में एक हैं। इन्होंने धरती का 12 प्रतिशत भाग घेरा हुआ है।
“पर्वत ऐसे उठे हुए भू-खंडों को कहते हैं, जो अपने आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।”

पर्वतों का आधार-क्षेत्र बड़ा होता है, पर ऊंचाई के साथ-साथ इनका विस्तार कम होता जाता है, इसलिए पर्वतों की चोटियों के क्षेत्र छोटे होते हैं। पर्वत और पहाड़ी में केवल ऊँचाई का अंतर होता है। पहाड़ी की ऊँचाई 900 मीटर से कम होती है।

पर्वतों की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Mountains)-

  1. आस-पास के क्षेत्रों से अधिक ऊँचाई (High level area)
  2. शिखर का कम विस्तार (Small Summit)
  3. तीखी ढलान (Steep slope)

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प्रश्न 2.
अवशेषी पर्वत कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)-ये पर्वत बाहरी साधनों नदी, बर्फ, वायु आदि के अपरदन के कारण बनते हैं। बहुत समय तक लगातार अपरदन होने के कारण पर्वतों की ऊँचाई बहुत कम हो जाती है। ये पर्वत घिसघिस कर नीची पहाड़ियों के रूप में बदल जाते हैं। इस तरह के पर्वत पुराने पर्वतों के बचे-खुचे भाग होते हैं, इसलिए इन्हें Relict Mountains भी कहते हैं। कहीं-कहीं कठोर चट्टानों के बने भू-भाग ऊँचे क्षेत्रों के रूप में बंधे खड़े रहते हैं। ऐसे ऊँचे क्षेत्रों को अवशेषी पर्वत कहते हैं। अपरदन के साधनों से बने होने के कारण इन्हें अपरदन के पर्वत (Mountains of Denudation) भी कहते हैं।

उदाहरण (Examples)—भारत में अरावली पर्वत (Aravali Mountains) और पूर्वी घाट, अमेरिका (U.S.A.) में ओज़ारक (Ozark) पर्वत।

प्रश्न 3.
पठार क्या होते हैं ? पठारों की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठार (Plateau)—पठार एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक इकाई है। धरती का एक बड़ा भाग (33%) पठारों से घिरा हुआ है। “पठार वह प्रदेश होता है, जो आमतौर पर समुद्र तल से एक समान ऊँचाई वाला हो। इर्द-गिर्द के धरातल से एकदम ऊँची और तीखी ढलान वाला हो।”
(“A Plateau is a highland with broad and flat summits”)

पठार आमतौर पर समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर तक ऊँचे होते हैं, पर पठार की ऊँचाई कुछ भी हो सकती है, जैसे अमेरिका (U.S.A.) में पीडमांट पठार (Piedmont Plateau) केवल 600 मीटर ऊँचा है, पर पामीर का पठार कई ऊँचे पर्वतों से ऊँचा है और उसे ‘संसार की छत’ (Roof of the world) कहते हैं।

पठार की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of Plateau)-

  1. सपाट और विशाल शिखर
  2. किनारों से तीखी ढलान।
  3. मेज के समान चौकोर ऊपरी सतह।
  4. निकट के क्षेत्रों से एकदम ऊँचा होना।

प्रश्न 4.
मैदान क्या होते हैं ?
उत्तर-
मैदान (Plains)—प्रमुख भू-आकारों (Major Land forms) में मैदान सबसे अधिक स्पष्ट और सरल होते हैं। थल के अधिकांश भाग (41%) पर इनका विस्तार है। मैदान धरती के निचले और समतल (सपाट) क्षेत्र होते हैं। “मैदान थल के वे सपाट भाग होते हैं, जो समुद्र तल से 150 मीटर से कम ऊँचाई पर होते हैं और जिनकी ढलान सपाट, मध्यम और साधारण होती है।” (“Plains are Lowlands of Low relief and horizontal structure”) मैदान सागर-तल से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं, परन्तु अपने इर्द-गिर्द के पठार या पर्वत से कभी भी ऊँचे नहीं हो सकते।

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प्रश्न 5.
अपरदन के मैदान कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
अपरदन के मैदान (Pene Plains)—’Pene Plains’ शब्द दो शब्दों Pene और Plain के जोड़ से बना है। ‘Pene’ शब्द के अर्थ हैं ‘लगभग’ या आमतौर पर ‘Almost’ और ‘Plain’ का अर्थ है-मैदान। इस प्रकार ‘Pene Plain’ का अर्थ है-लगभग मैदान या आमतौर पर ‘समभूमि। एक लंबे समय तक बाहरी साधनों बर्फ, जल, हवा आदि के लगातार कटाव के कारण पर्वत या पठार घिसकर नीचे हो जाते हैं और मैदान का रूप धारण कर लेते हैं। ये मैदान पूरी तरह से सपाट नहीं होते। इन मैदानों की ढलान अत्यंत हल्की होती है। इनके बीच कठोर चट्टानों के रूप में ऊँचे टीले मिलते हैं। ऐसे मैदानों में कठोर चट्टानों के टीले नष्ट नहीं होते और बचे रहते हैं। इन्हें मोनैडनाक (Monadnaks) कहते हैं। विश्व में इस प्रकार के पूर्ण सम-मैदान (Perfected Pene Plains) बहुत कम मिलते हैं।

उदाहरण (Examples)–

  • फिनलैंड और साइबेरिया के मैदान
  • भारत में अरावली प्रदेश।

प्रश्न 6.
‘पठार खनिज पदार्थों के भंडार होते हैं।’ व्याख्या करें।
उत्तर-
बहुत-से पठारों से लाभदायक खनिज मिलते हैं। कई पठार ज्वालामुखी की प्रक्रिया के कारण खनिज पदार्थों के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत के दक्षिणी पठार में कोयला, लोहा, मैंगनीज़ आदि मिलता है। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के पठार चूने की खानों के लिए प्रसिद्ध हैं। कनाडा के पठारों में तांबा और ब्राज़ील में लोहा मिलता है।

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प्रश्न 7.
मैदानों में संसार की सबसे घनी जनसंख्या होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
विश्व की 80% जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। मैदानों की सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास होता है। सपाट भूमि और उपजाऊ भूमि के कारण ये मैदान कृषि योग्य प्रदेश होते हैं। मैदानों में रेलों, सड़कों और हवाई अड्डों का निर्माण आसान होता है। मैदान आर्थिक पक्ष से भी बड़े लाभदायक होते हैं, इसीलिए विश्व की अधिक जनसंख्या मैदानों में मिलती है।

प्रश्न 8.
मैदानों को विश्व का ‘अन्न भंडार’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
मैदान सपाट और उपजाऊ धरती के क्षेत्र हैं। गहरी मिट्टी और ऊँचे जल-स्तर के कारण यहाँ जल-सिंचाई के साधन मिलते हैं। मशीनों के प्रयोग के कारण अधिक अनाज उत्पन्न होता है। संसार की प्रमुख फसलें-कपास, गेहूँ, गन्ना, चावल आदि मैदानों में ही उगाई जाती हैं, इसीलिए मैदानों को संसार का ‘अन्न भंडार’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पर्वतों से प्राप्त होने वाली संपत्तियों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
पर्वतों से मनुष्यों को अनेक लाभदायक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं-

  1. पर्वत खनिज संपत्ति के भंडार हैं, जैसे-कोयला, सोना, ताँबा, मैंगनीज आदि।
  2. पर्वतों से इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। नर्म लकड़ी के कई उद्योग पर्वतों पर निर्भर करते हैं।
  3. पर्वत पन बिजली के स्रोत हैं।
  4. पर्वतों पर कई किस्म की फसलें उगाई जा सकती हैं; जैसे–चाय।

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प्रश्न 10.
मैदानों पर मनुष्य का अधिकार सबसे पुराना है। क्यों ?
उत्तर-
प्राचीन काल से ही मैदान मानवीय सभ्यता के केन्द्र रहे हैं। आज भी मैदानों में संसार की 75% जनसंख्या निवास करती है।
नदी घाटियों और जलोढ़ मैदानों पर निवास स्थान, कृषि और आवाजाही की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। इन्हीं सुविधाओं के कारण ही प्राचीन सभ्यताओं का जन्म नदी घाटियों में ही हुआ था। रोम, मिस्र और सिंधु घाटी की सभ्यताओं के उदाहरण दिए जा सकते हैं। नदी घाटियों को सभ्यताओं का पालना (Cradle of Civilizations) भी कहा जाता है। यही कारण है कि मैदानों पर मनुष्य का अधिकार सबसे पुराना है।

प्रश्न 11.
अंतर-पर्वतीय पठारों और पर्वत-प्रांतीय पठारों में अंतर बताएँ।
उत्तर –
अंतर-पर्वतीय पठार (Piedmont Plateau) –

  1. ये पठार चारों तरफ से ऊँचे पर्वतों से घिरे होते हैं।
  2. इन पठारों में अंदरूनी जल-प्रवाह होता है।
  3. इनका विस्तार अधिक होता है।
  4. तिब्बत का पठार एक अंतर-पर्वतीय पठार है।

पर्वत-प्रांतीय पठार (Intermont Plateau) –

  1. ये पठार पर्वतों के आधार पर बने होते हैं।
  2. इनके एक तरफ समुद्र या मैदान स्थित होते
  3. इनका क्षेत्रफल सीमित होता है।
  4. पैंटोगोनीया का पठार एक पर्वत-प्रांतीय पठार है।

प्रश्न 12.
ब्लॉक पर्वतों और बलदार पर्वतों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ब्लॉक पर्वत (Fold Mountains)-

  1. ये पर्वत धरती की परतों में दरारें पड़ने से बनते हैं।
  2. इनका निर्माण सिकुड़ने और दबाव की शक्तियों से होता है।
  3. इनका शिखर मेज के समान चौकोर और समतल होता है।
  4. ऊँचे उठे हुए पर्वत को होरस्ट (Horst) और नीचे धंसे हुए पर्वत को दरार घाटी कहते हैं।
  5. विंध्याचल और वासजिस इसके उदाहरण हैं।

बलदार पर्वत (Block Mountains)-

  1. ये पर्वत चट्टानों की परतों में बल पड़ने से बनते हैं।
  2. इनका निर्माण तनाव और खिंचाव की शक्तियों से होता है।
  3. इसका शिखर ऊँचा-नीचा होता है।
  4. ऊपर उठे हुए भाग को Anticline और नीचे फँसे हुए भाग को Syncline कहते हैं।
  5. हिमालय और एल्पस पर्वत इसके उदाहरण हैं।

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प्रश्न 13.
ब्लॉक पर्वत और रिफ्ट घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ब्लॉक पर्वत (Block Mountains)-

  1. दो दरारों के बीच ऊपर उठे हुए भू-खंड को ब्लॉक पर्वत कहते हैं।
  2. इसे होरस्ट पर्वत भी कहते हैं।
  3. इसका निर्माण ऊपर उठने की क्रिया से होता है।
  4. विंध्याचल एक ब्लॉक पर्वत है।

रिफ्ट घाटी (Rift Valley)-

  1. दो दरारों के बीच नीचे धंसे हुए भू-भाग को दरार घाटी कहते हैं।
  2. इसे रिफ्ट घाटी भी कहते हैं।
  3. इसका निर्माण नीचे धंसने की क्रिया से होता है।
  4. राइन घाटी एक रिफ्ट घाटी है।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मैदानों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
मैदानों का महत्त्व (Importance of Plains)-मैदानों में कृषि, उद्योग, ढुलाई, व्यापार और मानवीय विकास की सभी सुविधाएँ होती हैं।
1. निवास की सुविधाएँ (Settlement of Population) मैदानों में सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास संभव है। मैदानों में संसार की 75% जनसंख्या निवास करती है।

2. कृषि की सुविधाएँ (Agriculture facilities)-समतल भूमि, गहरी और उपजाऊ मिट्टी के कारण मैदान कृषि-योग्य उत्तम क्षेत्र होते हैं।

3. अन्न के भंडार (Store house of foodgrains)—मैदानों में सिंचाई की सुविधाएँ, उपजाऊ मिट्टी और मशीनों के प्रयोग के कारण अधिक अनाज उत्पन्न होता है। संसार की सभी व्यापारिक फसलें गेहूँ, गन्ना, कपास और पटसन आदि मुख्य रूप से मैदानों में होती हैं।

4. सभ्यताएँ (Civilizations)—संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास मैदानों में ही हुआ था। चीन और मिस्र की सभ्यताओं ने नदी घाटियों में ही जन्म लिया था।

5. आसान आवाजाही (Easy Transport)-मैदानों में सपाट भूमि के कारण चौड़ी और लंबी सड़कों (Highways), रेलमार्गों (Railways), जलमार्गों (Waterways) और हवाई अड्डों (Aerodromes) का निर्माण आसान होता है। नदियों द्वारा भी आवाजाही में आसानी होती है। नदियों की धीमी चाल के कारण इनमें नावें और जहाज़ चलाए जा सकते हैं।

6. उद्योग (Industries)-मैदान आर्थिक जीवन की धुरी होते हैं। सभी सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के सभी बड़े उद्योग मैदानों में स्थित हैं। इसका कारण यह है कि सबसे पहले, मैदानों में कच्चा माल (Raw materials) आसानी से मिल जाता है। दूसरे, आवाजाही और संचार के साधन उपलब्ध होने के कारण माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से लाया व ले जाया जा सकता है। तीसरे, जनसंख्या अधिक होने के कारण मज़दूरी सस्ती होती है। व्यापार का विकास होता है।

7. नगर (Towns/Cities)-आर्थिक और सामाजिक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के प्रमुख नगर मैदानों में ही स्थित हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
पठारों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
पठारों का महत्त्व (Importance of Plateaus)-
1. ठंडी जलवायु (Cool Climate)-पठार मैदानों की तुलना में ठंडे होते हैं। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अफ्रीका के पठारों में यूरोप के निवासी जा बसे हैं और जनसंख्या अधिक है।

2. भेड़ें पालना (Sheep rearing)—पठारों में चरागाहों की सुविधा होती है। यहाँ भेड़-बकरियाँ पाली जाती हैं और ऊन प्राप्त होती है।

3. डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming)-पठारों में घास के मैदानों में पशु पाले जाते हैं। यही कारण है कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) का अधिक विकास हुआ है।

4. खनिज पदार्थों के भंडार (Storehouse of Minerals)-बहुत से पठार लाभदायक धातुओं और खनिज पदार्थों के भंडार हैं, जिनके आधार पर अलग-अलग उद्योगों का विकास हुआ है, जैसे-ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में ताँबा और सोना, अफ्रीका में हीरा, भारत में लोहा और मैंगनीज़।

5. उपजाऊ मिट्टी (Fertile Land) ज्वालामुखी पठार लावे की मिट्टी के कारण लाभदायक होते हैं; जैसे दक्षिण का पठार काली मिट्टी के कारण कपास की खेती के लिए लाभदायक है।

6. पन-बिजली (Water Power)—पठार की नदियाँ झरने बनाती हैं, जिनसे पन-बिजली प्राप्त होती है। अफ्रीका और भारत के दक्षिणी पठार में पन-बिजली की अधिक संभावनाएँ हैं।

दोष (Demerits)-
नीचे लिखे पठार मनुष्यों के निवास के योग्य नहीं होते-

  1. जहाँ जलवायु प्रतिकूल हो।
  2. जहाँ की भूमि उपजाऊ न हो।
  3. जिनमें कटाव आदि अधिक हो।
  4. जो बहुत ऊँचे और ठंडे हों।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 3.
पर्वतों के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
पर्वत आर्थिक दृष्टि से सहायक हैं और रुकावट भी। इन प्रदेशों में सपाट भूमि की कमी, कम गहरी मिट्टी और पथरीली बनावट के कारण ज़मीन खेती के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं होती है। आवाजाही के साधनों की कमी, प्रतिकूल जलवायु और निवास स्थानों की कमी के कारण जनसंख्या भी बहुत कम होती है। फिर भी पर्वत अनेक प्रकार से लाभदायक हैं1.

1. खनिज संपत्ति के स्त्रोत (Sources of Mineral Wealth)—पर्वत लाभदायक धातुओं और खनिजों के भंडार होते हैं। इन प्रदेशों में खानों के खनन का व्यवसाय विकास कर जाता है। रूस के यूराल पर्वतों में लोहा और मैंगनीज़, दक्षिणी अमेरिका के ऐंडीज़ में सोना, चाँदी, ताँबा, और संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) के एपलेशियन पर्वत में कोयला मिलता है।

2. जंगलों का घर (Home of Forests)-पर्वत अलग-अलग प्रकार की इमारती लकड़ी से ढके होते हैं, जैसे हिमालय पर्वत पर साल और सागवान के जंगल मिलते हैं। कई तरह के उद्योग जंगलों पर आधारित होते हैं। इन जंगलों से ईंधन, कागज़, रेशम, दियासलाई आदि बनाने के लिए लकड़ी प्राप्त होती है। कई पहाड़ी देशों, जैसे स्वीडन और नॉर्वे की उन्नति इन जंगलों पर ही आधारित है।

3. स्वास्थ्यवर्धक स्थान (Health Resorts)-पर्वत मैदानों में रहने वाले लोगों को सदा अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्वतों का निम्न तापमान, स्वास्थ्यवर्धक, सुहावनी जलवायु और आकर्षक दृश्य गर्मियों की ऋतु में आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। जिस प्रकार कश्मीर और स्विट्ज़रलैंड में लाखों पर्यटक मन बहलाने के लिए विदेशों से घूमने-फिरने के लिए आते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग (Tourist Industry) की आमदनी बढ़ जाती है। लोग अनेक पहाड़ी ढलानों पर स्कींग (Skiing) आदि खेल भी खेलते हैं।

4. सुरक्षा (Defence) सुरक्षा की दृष्टि से भी पर्वत लाभदायक हैं। भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत देश की रक्षा का काम करता है। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में पर्वत भी देश को आक्रमण से नहीं बचा सकते, जैसे-1962 में चीन ने हिमालय पर्वत के तिब्बत की ओर से भारत पर आक्रमण किया था।

5. प्राकृतिक सीमाएँ (Natural Boundaries)—ऊँचे पर्वत अलग-अलग देशों के बीच प्राकृतिक और राजनीतिक सीमाएँ बनाते हैं, जिस प्रकार भारत और चीन के बीच हिमालय पर्वत एक प्राकृतिक सीमा है। पर्वतीय स्थिति वाले बहुत-से छोटे-छोटे देश सदा स्वतंत्र रहते हैं, जैसे-नेपाल, स्विट्ज़रलैंड आदि। परंतु पर्वतीय सीमाएँ सही ढंग से निर्धारित नहीं होती हैं।

6. जलवायु (Climate)-पर्वतों की स्थिति और दिशा, वर्षा और तापमान पर प्रभाव डालती हैं। पर्वत नमी से भरपूर पवनों को रोककर वर्षा करते हैं। जैसे हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर भारत में काफी वर्षा करते हैं। पर्वत स्थिति के अनुसार गर्म और ठंडी वायु को एक देश से दूसरे देश में प्रवेश करने से रोकते हैं। हिमालय पर्वत मध्य एशिया की ठंडी हवाओं को रोक लेता है, नहीं तो उत्तरी भारत में सर्दियों की ऋतु चीन के समान अत्यंत कठोर होती। यदि हिमालय पर्वत न होता, तो गंगा का मैदान एक मरुस्थल होता।

7. चरागाह (Pastures)-पर्वतीय ढलानों पर चरागाहों की सुविधा होती है, जहाँ भेड़-बकरियाँ चराई जाती हैं पहाड़ी प्रदेशों में मौसमी पशु चारण (Transhumance) भी होता है।

8. नदियों के स्त्रोत (Sources of Rivers)-ऊँचे पर्वतों से अनेक नदियाँ निकलती हैं। ऊँचे बर्फीले पर्वतों से निकलने वाली नदियों से पूरा साल जल प्राप्त होता रहता है और सिंचाई के लिए स्थायी नहरें निकाली जाती हैं। गंगा का मैदान हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियों के कारण ही बना है।

9. पन-बिजली (Water Power)-पर्वतीय प्रदेशों में नदियों के मार्ग में अनेक झरने बनते हैं, जो पन-बिजली के विकास के लिए आदर्श स्थान होते हैं। जापान, इटली और स्वीडन जैसे पहाड़ी प्रदेशों में पन-बिजली के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

10. विशेष पैदावार (Special Crops)-पर्वतीय ढलानें कुछ विशेष उपजों के लिए अनुकूल क्षेत्र होती हैं, जैसे-चाय और कहवा/कॉफी आदि। भारत में असम की पहाड़ी ढलानों पर चाय के बाग़ (Tea Estates) मिलते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 4.
पर्वत निर्माणकारी परिकल्पना भू-अभिनीति का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वत निर्माणकारी परिकल्पना भ-अभिनीति (Mountain Building Theory-Geosynclines)-
पर्वत पृथ्वी के रहस्यमय भू-आकार हैं। इनकी रचना बहुत जटिल है। पर्वत-निर्माण एक निरंतर क्रिया नहीं है और कुछ युगों तक सीमित है। पर्वतीय सिलसिले बहुत जटिल हैं। इनके अध्ययन से इनकी विशेषताओं का पता चलता है-

1. तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks) विश्व के सभी पर्वत परतदार चट्टानों से बने हैं। इन चट्टानों का जन्म समुद्र में होता है। पर्वतों के मोड़ों में उपलब्ध जीवाश्म भी प्रकट करते हैं कि पर्वत समुद्री फर्श से ही ऊपर उठे हैं। (Mountains have arisen out of sea.)

2. चाप आकार (Arc Shape)-संसार के बड़े-बड़े पर्वतों की स्थिति समुद्री तटों के समानांतर एक चाप के आकार की है, जैसे रॉकी एंडीज़ और हिमालय पर्वत । इनकी रचना धरातल की समानांतर दिशा पर दबाव पड़ने से हुई है इसीलिए इनका आकार बाहर की ओर चाप के समान है। एक खोज से पता चला है कि पर्वतीय क्षेत्रों की लंबाई अधिक है और चौड़ाई कम है। तलछटी चट्टानों की बहुत अधिक मोटाई का कारण खोजना बहुत कठिन है। इतनी अधिक मोटाई में तलछट के एकत्र होने का कारण भू-अभिनीति (Geosyncline) ही संभव है। भू-अभिनीति धरातल पर एक लंबा, तंग और कम गहरा भाग है, जिसमें नदियों के द्वारा जमा किए गए तलछट इकट्ठे होते हैं और उनके भार के नीचे दबकर वह नीचे को धंसता रहता है। (Geosynclines are long but narrow and shallow depressions in which sedimentation and subsidence take place simultaneously.) 1873 में एक वैज्ञानिक डैना ने इस प्रकार के निर्माण को भू-अभिनीति का नाम दिया। इसके आधार पर पर्वत-निर्माण में तीन चरण ज़रूरी हैं-

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(i) भू-अभिनीति चरण (Geosyncline Stage)-पर्वत निर्माण में यह पहला चरण है, जबकि एक कम गहरे स्थान पर तलछट जमा होते हैं जिससे यह स्थान भर जाते हैं, इन्हें भू-अभिनीति कहते हैं। इस अवस्था में भू-अभिनीति की उत्पत्ति, तलछट का जमाव, तल का नीचे धंसना आदि क्रियाएँ होती हैं। इनके लिए कुछ दशाओं का होना ज़रूरी होता है

(क) भू-अभिनीति का समुद्र से नीचे मौजूद होना।
(ख) यह भू-अभिनीति लंबी, तंग और एक गर्त (Trough) के आकार के समान हो।
(ग) भू-अभिनीति के निकट कोई-न-कोई ऊँचा प्रदेश हो, जहाँ से नदियाँ मलबे को बहाकर ला सकें और भू-अभिनीति धीरे-धीरे मलबे से भर जाए।

(ii) पर्वत निर्माण का चरण (Orogenic Stage)-जब भू-अभिनीति पूरी हो जाती है, तो जमा हुई तलछट की मोटाई हज़ारों फुट तक पहुँच जाती है। तनाव और संपीड़न के कारण वलन क्रिया होती है, जिससे पर्वत बनते हैं। इसलिए भू-अभिनीतियों को पर्वतों का झूला (Cradle of Mountains) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
वैगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का वर्णन करें। इसके पक्ष में प्रमाण दें।
उत्तर-
वैगनर की महाद्वीपीय विस्थापन परिकल्पना (Wegner’s Continental Drift Hypothesis). महाद्वीपों के विस्थापन की कल्पना सबसे पहले फ्रांसीसी विद्वान् एंटोनीयो स्नाइडर ने सन् 1858 में की थी। इसके बाद एफ० जी० टेलर (F.G. Taylor) ने भी ऐसा ही विचार पेश किया था। परंतु ये दोनों विद्वान् अपने विचारों को स्पष्ट रूप देने में असमर्थ रहे, इसीलिए उन्हें मान्यता नहीं मिली। सन् 1912 में जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वैगनर (Alfred Wegner) ने कुछ तथ्यों को सामने रखकर महाद्वीपीय विस्थापन की परिकल्पना प्रस्तुत की। सन् 1929 में वैगनर ने इसमें कुछ शोध करके इसे फिर से पेश किया। वैगनर वास्तव में एक मौसम वैज्ञानिक था, जो ऋतु-परिवर्तन (Variation of climate) की समस्याओं का समाधान खोजने में जुटा हुआ था।

थल-मंडल में अनेक क्षेत्रों में उष्ण-कटिबंधीय (Tropical), भू-मध्य-रेखीय (Equatorial) और ध्रुवीय (Polar) जलवायु अपनी वर्तमान स्थिति से दूर के स्थानों में पाई जाती है। इसके दो ही कारण हो सकते हैं-

  1. एक तो यह कि जलवायु में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है।
  2. फिर महाद्वीप खिसककर एक जलवायु खंड से दूसरे जलवायु खंड में आते रहते हैं। वैगनर ने उपरोक्त दूसरे कारण के आधार पर अपनी परिकल्पना पेश की।

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वैगनर के सिद्धांत की रूपरेखा (Outline of Wegner’s Hypothesis)-

1. वैगनर ने सियाल (SIAL) के बने हुए महाद्वीपों को बसाल्ट की सीमा पर तैरते हुए माना। वैगनर के अनुसार आदिकाल पुरातन जीवी महाकल्प (Late Palezoic Period-2700 years ago) में सभी महाद्वीप किसी विशाल महाद्वीप का अंग थे। इस विशाल महाद्वीप को उसने पैंजीया का नाम दिया। पैंजीया चारों तरफ से एक विशाल महासागर से घिरा हुआ था जिसे वैगनर ने पैंथालामा (Panthalamma) कहा है।

2. अंगारालैंड और गोंडवानालैंड-जीया के मध्य में पूर्व-पश्चिम दिशा में एक विस्तृत पर कम गहरा सागर था, जिसे टेथीज़ (Tetheys) का नाम दिया जाता है। टेथीज़ सागर के उत्तर के विस्तृत भाग को लुरेशिया (Laurasia) या अंगारालैंड (Angaraland) और सागर के दक्षिण के विस्तृत महाद्वीप को गोंडवानालैंड का नाम दिया गया है।

3. भूमध्यरेखा की ओर विस्थापन-वैगनर के अनुसार यह पैंजीया टूटकर भूमध्य रेखा और पश्चिम दिशा में स्थित हो गया। भूमध्य रेखा की ओर स्थित होने के कारण गुरुत्वाकर्षण में अंतर था।

4. पश्चिम की ओर विस्थापन-पैंजीया के खंडों का पश्चिम की ओर विस्थापन चंद्रमा की ज्वारीय शक्ति (Tide force) के कारण था। भूमध्य रेखा की ओर विस्थापन से मुख्य रूप में यूरोप और अफ्रीका प्रभावित हुए। पश्चिम की ओर विस्थापन से उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका प्रभावित हुए।

5. इसके बाद अलग-अलग युगों में टरशियरी युग (Tertiary Period-60 Lakh years ago) में अलग-अलग महाद्वीप और महासागर बने।

परिकल्पना के पक्ष में प्रमाण (Evidences in favour of the Hypothesis)-इस परिकल्पना के पक्ष में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, जो नीचे लिखे हैं-

1. भौगोलिक प्रमाण (Geographical Proofs)-अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों में समानता पाई गई है। ये दोनों तट एक आरे के समान तथा एक-दूसरे में फिट होने की स्थिति में होते हैं। पूर्वी ब्राज़ील का . उभार (Bulge) पश्चिमी अफ्रीका और गिनी तट में आसानी से फिट हो जाता है। इसे Jig-saw fit कहते हैं। अंध महासागर की मध्यवर्ती कटक (Mid-Atlantic Ridge) के एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ अफ्रीका जुड़ जाते हैं। .

2. भू-गर्भीय प्रमाण (Geological Proofs)-अंध महासागर के दोनों तटों पर स्थित पर्वत श्रेणियों की दिशा और चट्टानों की ओर रेखाओं में समानता देखी गई है। अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तट किसो समय एक थे।

3. चट्टानों के प्रमाण (Proofs of Rocks)-अंध महासागर के दोनों तटों पर पाई जाने वाली शैलों में समानता देखी गई है। ब्राज़ील का पठार, दक्षिण अफ्रीका, भारत का प्रायद्वीप पठार और ऑस्ट्रेलिया पठार की चट्टानें लगभग एक जैसी हैं।

4. जैविक प्रमाण (Biological Proofs)-उत्तर-पश्चिमी यूरोप और पूर्वी अमेरिका के भागों में वनस्पति और जीवों के अवशेषों में समानता पाई जाती है।

5. सर्वेक्षण के प्रमाण (Geodesy’s Proofs)—ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रीनलैंड 32 मीटर प्रति वर्ष की गति से उत्तरी अमेरिका की ओर खिसक रहा है। यह तथ्य 1832, 1870, और 1917 के माप पर आधारित है।
इस तथ्य से वैगनर के महाद्वीप खिसकने के विचार की पुष्टि होती है।

6. नवीन और आधुनिक प्रमाण प्लेट टैक्टौनिक का सिद्धांत (Plate Tectonic Theory) आधुनिक सर्वेक्षण में प्लेट टैक्टौनिक के सिद्धांत ने वैगनर के सिद्धांत की पुष्टि की है। जब इन भू-प्लेटों की सीमाओं पर संवहन धाराओं (Convection _Currents) की क्रिया होती है, तब भू-प्लेटें खिसकती हैं और महाद्वीप भी खिसकते हैं।

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प्रश्न 6.
भू-प्लेट टैक्टौनिक सिद्धान्त की व्याख्या करें।
उत्तर-
भू-प्लेट टैक्टौनिकस (Plate-tectonics)-आधुनिक परीक्षणों और खोज से पता चलता है कि स्थल मंडल और मैंटल भू-प्लेटों में विभाजित हैं। ये भू-प्लेटें खिसकती रहती हैं। भू-प्लेटों की सीमाओं पर अंदरूनी हलचल होती रहती है। परिणामस्वरूप भू-प्लेटों के साथ-साथ महाद्वीप भी खिसकते रहते हैं और कई क्रियाएँ और भू-आकार जन्म लेते हैं।

भू-प्लेटों के प्रकार (Types of Plates)-स्थल मंडल भू-प्लेटों का समूह है, जिसमें 6 मुख्य भू-प्लेटें और 14 छोटे आकार की प्लेटें हैं। इन भू-प्लेटों की औसत मोटाई 100 कि० मी० है और ये प्लेटें कई हज़ार कि०मी० चौड़ी हैं। भू-प्लेटें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं-

1. महाद्वीपीय भू-प्लेटें (Continental Plates)—इन प्लेटों में अधिक भाग महाद्वीपीय थल मंडल का होता
2. महासागरीय प्लेटें (Oceanic Plates)—इन प्लेटों का विस्तार महासागर के तल पर होता है। सारी पृथ्वी
को 6 मुख्य भू-प्लेटों में बाँटा गया है।

  • प्रशांत महासागरीय प्लेट
  • एशियाई प्लेट
  • अमेरिकी प्लेट
  • भारतीय प्लेट
  • अफ्रीकी प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट

भू-प्लेटों के खिसकने के कारण-

1. तापीय संवहन-सन् 1928 में आर्थर होमज़ (Arthur Holmes) ने यह सिद्धान्त पेश किया कि मैगमा की संवहन तरंगों (Convection currents) के द्वारा महाद्वीपों का खिसकना होता है। उस समय इस सिद्धान्त को पूरी मान्यता नहीं मिली थी। आधुनिक समय में चुंबकीय सर्वे, रेडियो एक्टिव पदार्थों की खोज, मध्यसागरीय कटकों और सागरीय तल के फैलने (Ocean spreading) की खोज ने सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी के मैटल भाग में मैगमा की संवहन धाराएँ चलती हैं। इस प्रकार यह मैगमा ऊपर उठता है। इसके प्रवाह से भू-प्लेटें खिसकती हैं। परिणामस्वरूप महाद्वीपीय विस्थापन होता है। इस प्रकार पृथ्वी के केंद्रीय भाग में अणु-ऊर्जा के कारण संवहन धाराएं चलती हैं। ये भू-प्लेटें एक-दूसरे से महासागरीय कटकों और ट्रैचों के द्वारा अलग-अलग होती हैं।

2. संचालन क्रिया-गर्म धाराएँ ऊपर की ओर उठती हैं और फ़िर नीचे की ओर जाकर ठंडी हो जाती हैं। ये धाराएँ भू-प्लेटों को गतिशील बना देती हैं।

3. ज्वालामुखी क्रिया-भूतल के नीचे ज्वालामुखी के केंद्र संवहन धाराओं को जन्म देते हैं। इन्हें गर्म स्थल (Hot Spot) कहते हैं। ये भू-प्लेटों को गतिशील करते हैं।

भू-प्लेटों की कार्यविधि-भू-प्लेटों की तीन प्रकार की सीमाएँ बनती हैं-

  • निर्माणकारी प्लेट सीमा निर्माणकारी क्षेत्र वे सीमाएँ हैं, जहाँ प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं और मैगमा बाहर आता है। ऐसी सीमाओं पर ज्वालामुखी क्रिया और भूचाल आते हैं।
  • विनाशकारी प्लेट सीमा-ये वे सीमाएँ हैं, जहाँ एक प्लेट का सिरा दूसरी प्लेट के ऊपर चढ़ जाता है।
  • रूपांतर प्लेट सीमा-यहाँ भू-प्लेटें एक-दूसरे की विपरीत दिशा में साथ-साथ खिसकती हैं।

प्रभाव (Effects)-

1. महाद्वीपों का खिसकना (Continental Drift)-भू-प्लेटों के खिसकने का महाद्वीपों पर प्रभाव पड़ता है। महाद्वीप भू-प्लेटों के अंदर स्थापित हैं, इसीलिए वे प्लेटों के साथ गति करते हैं। इस खिसकाव से रिफ्ट घाटी, सागर और महासागर की रचना होती है।

2. पर्वत निर्माणकारी क्रिया (Mountain Building)-भू-प्लेटें अपनी सीमाओं पर सागरीय कटकों के द्वारा अलग-अलग होती हैं। इन सीमाओं पर भू-प्लेटें खिसकती हैं या टकराती हैं। कई स्थानों पर नीचे सरकने से भू-अभिनीति (Geosyncline) की रचना होती है। इसमें करोड़ों वर्षों तक तलछट जमा होते रहते हैं। इनके उठाव (uplift) के कारण मोड़दार पर्वत बनते हैं। गोंडवाना प्लेट के उत्तर की ओर खिसकने के कारण टैथीज़ सागर में हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है। उत्तरी अमेरिका की भू-प्लेट के पश्चिम की ओर खिसकने से रॉकी और एंडीज़ पर्वतों का निर्माण हुआ है। इस प्रकार इस आधुनिक परिकल्पना ने भू-विज्ञान में एक नई क्रांति पैदा की है। इस सिद्धान्त से वैगनर के विस्थापन सिद्धान्त की पुष्टि होती है।

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PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के जीवन तथा सन्देश की चर्चा करें।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। इतिहास में उन्हें महान् स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन में भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखाया और धर्मान्धता से पीड़ित समाज को राहत दिलाई। जिस समय श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ, उस समय पंजाब का सामाजिक तथा धार्मिक वातावरण अन्धकार में लिप्त था। लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। हिन्दू और मुसलमानों में बड़ा भेदभाव था। श्री गुरु नानक देव जी ने इन सभी बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने ‘सत्यनाम’ का उपदेश दिया और लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया। उनके जीवन तथा शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :-

जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवण्डी (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था। आपकी बहन का नाम बेबे नानकी जी था।

बाल्यकाल, शिक्षा तथा व्यावसायिक जीवन-बचपन से ही श्री गुरु नानक देव जी दयावान थे। दीन-दुःखियों को देखकर उनका मन पिघल जाता था। 7 वर्ष की आयु में उन्हें पण्डित गोपाल की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। पण्डित जी उन्हें सन्तुष्ट न कर सके। तत्पश्चात् उन्हें पं० बृज नाथ के पास पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां गुरु जी ने ‘ओ३म्’ शब्द का वास्तविक अर्थ बता कर पण्डित जी को चकित कर दिया। पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देखकर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने श्री गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा। परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन खिलाने में व्यय कर दिये और इस व्यापार को सच्चा सौदा कहा।

विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू जी निराश हो गए। उन्होंने गुरु जी का विवाह बटाला के क्षत्रिय मूलचंद की सुपुत्री सुलक्खणी जी से कर दिया। उस समय गुरु जी की आयु केवल 14 वर्ष की थी। उनके यहां श्री चन्द और लखमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। विवाह के पश्चात् गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी चले गये। वहां उन्हें नवाब दौलत खां के अनाज घर में नौकरी मिल गई। उन्होंने पूरी ईमानदारी से काम किया। फिर भी वहां उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल हुई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था। इस प्रकार अपनी ईमानदारी से वहां भी उन्होंने यश प्राप्त किया।

ज्ञान प्राप्ति, उदासियां तथा ज्योति जोत समाना-अपने जीवन के अगले 21 वर्षों में उन्होंने अनेक स्थानों का भ्रमण करके ज्ञान का प्रचार किया। वह लंका, तिब्बत, मक्का, कामरूप तथा भारत के कई नगरों में गए। उनकी यात्राओं को उदासियां कहा जाता है। अपनी यात्राओं के मध्य उन्होंने लोगों को जीवन का सच्चा मार्ग दिखाया। आप ने 1521 ई० में रावी नदी के किनारे करतारपुर साहिब नगर बसाया। यहां ही आप ने अपने जीवन के अंतिम समय धर्म प्रचार किया। अपना अन्त समय निकट आया देखकर गुरु जी ने अपना उत्तराधिकारी चुनना उचित समझा। उन्होंने अपने सेवक भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनके बाद भाई लहना ने गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरु पद संभाला। 1539 ई० में श्री गुरु नानक देव जी ज्योति जोत समा गए।

सन्देश-श्री गुरु नानक देव जी का सन्देश बड़ा आदर्श था। उन्होंने अपनी शिक्षाओं द्वारा पथ-विचलित जनता को जीवन का सच्चा मार्ग दिखाया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है :-

1. ईश्वर सम्बन्धी विचार-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अतः इसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए। उनके अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है। वह संसार के कण-कण में रहता है। सारा संसार उसी की शक्ति से ही चल रहा है।

2. परमात्मा के नाम का जाप-श्री गुरु नानक देव जी ने परमात्मा के जाप पर बल दिया। उनके अनुसार गुरु सबसे महान् है। उसके बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर ही संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। अतः वह मनुष्य बड़ा भाग्यशाली है, जिसे सच्चा गुरु मिल जाता है।

3. अन्य शिक्षाएं-
1. जाति-पाति का खण्डन-श्री गुरु नानक देव जी रंग, धर्म तथा जाति के भेदभावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनका कहना था कि हम सभी एक ही ईश्वर की सन्तान हैं। इसलिए हम सब भाई-भाई हैं।

2. यज्ञ, बलि आदि का विरोध-श्री गुरु नानक देव जी ने यज्ञ, बलि, व्रत आदि कर्मकाण्डों को व्यर्थ बताया।

3. मानव-प्रेम और समाज सेवा-श्री गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को मानव-प्रेम और समाज-सेवा का उपदेश दिया।

4. उच्च नैतिक जीवन-श्री गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि सदा सत्य बोलो, नाम जपो, मिल-बाँट कर छको, ईमानदारी की कमाई खाओ और दूसरे की भावनाओं को कभी ठेस मत पहुंचाओ।

5. गृहस्थ जीवन-गुरु नानक देव जी मुक्ति प्राप्त करने के लिए गृहस्थ जीवन को त्यागने के हक में नहीं थे। आप अंजन में निरंजन के समर्थक थे।

गुरु नानक देव जी का सन्देश निःसन्देह बड़ा महान् था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताए मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेदभाव न था। उन्होंने सभी के लिए मुक्ति का मार्ग खोलकर सभी नर-नारियों के मन में एकता का भाव दृढ़ किया। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा जोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी तथा गुरु अर्जन देव जी की सिक्ख पंथ के विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी-श्री गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक थे। उनके सरल सन्देश से प्रभावित हो कर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए थे। उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने एक सिक्ख भाई लहना जी को गुरुगद्दी पर नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु और सिक्ख की स्थिति परस्पर परिवर्तनशील बन गई। आगे चलकर सिक्ख इतिहास में यह विचार गुरु-पंथ के सिद्धान्त के रूप में विकसित हुआ। भाई लहना गुरु अंगद देव जी कहलाये।

गुरु अंगद देव जी-गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। उन्होंने अमृतसर जिले में स्थित खडूर साहिब में अपना प्रचार कार्य आरम्भ किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित किया और उसे गुरुमुखी लिपि मे लिखा। यह वाणी बाद में गुरु ग्रन्थ साहिब के संकलन में सहायक सिद्ध हुई। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम पर वाणी लिखी। इससे गुरु पद की एकता दृढ़ हुई। उन्होंने संगत और लंगर की संस्थाओं को भी दृढ़ बनाया। गुरु नानक देव जी के पदचिन्हों पर चलते हुए 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने भी अपने एक शिष्य अमरदास जी को गुरुगद्दी सौंप दी और स्वयं ज्योति-जोत समा गए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने गुरु-पद संभाला।

गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी ने लगभग 22 वर्ष तक सिक्खों का पथ-प्रदर्शन किया। इस अवधि में उन्होंने सिक्ख पंथ में अनेक नई बातों का समावेश किया। गुरु अंगद देव जी की भान्ति उन्होंने भी गुरु नानक देव जी के नाम पर वाणी की रचना की। उन्होंने खडूर साहिब को छोड़कर गोइन्दवाल साहिब को अपना प्रचार केन्द्र बना लिया। वहां उन्होंने बन रही बावली (बाऊली) का निर्माण कार्य पूरा करवाया। गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा अन्य अवसरों पर पढ़ने के लिये आनन्द साहिब नामक वाणी की रचना की। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई। इसलिए उन्होंने गोइन्दवाल साहिब के बाहर भी प्रचार कार्य के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किये। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या और भी बढ़ने लगी। उन्होंने पाठ-कीर्तन के लिए स्थान-स्थान पर अपनी धर्मशालाएं स्थापित की। उन्होंने लंगर प्रथा का विस्तार भी किया।

गुरु रामदास जी-गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। वह 1574 ई० से 1581 ई० तक गुरु पद पर रहे। उन्होंने सिख धर्म के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया

  1. उनका सबसे बड़ा योगदान रामदास पुर शहर की नींव डालना था। वह स्वयं भी यहीं रह कर प्रचार कार्य करने लगे।
  2. उन्होंने अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवर खुदवाए।
  3. उन्होंने मसंद प्रथा प्रारम्भ की। मसंद उनके लिए उनके सिक्खों से भेंट एकत्रित करके लाते थे।
  4. उनके समय में सिक्खों तथा उदासियों में समझौता हो गया।
  5.  गुरु रामदास जी ने अपने सबसे छोटे परन्तु योग्य पुत्र अर्जन देव जी को गुरुपद सौंपा।

गुरु अर्जन देव जी-गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। आप 1581 ई० से 1606 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। सिक्ख धर्म के विकास में उन्होंने निम्नलिखित योगदान दिया

1. हरिमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी ने अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरम्भ किया था, परन्तु उनके ज्योति जोत समाने के कारण यह कार्य पूरा न हो सका था। अब यह कार्य गुरु अर्जन देव जी ने अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिक्खों के सहयोग से इन दोनों सरोवरों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। जो कि सिक्खों का पवित्र धार्मिक स्थान बन गया।

2. तरनतारन की स्थापना तथा लाहौर में बावली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के मध्य डब्बी बाजार में एक बावली का निर्माण करवाया। इसके निर्माण से बावली के निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।

3. हरगोबिन्दपुर तथा छहरटा की स्थापना और करतारपुर की नींव-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिन्द के जन्म के उपलक्ष्य में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिन्द नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छ: रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा। धीरे-धीरे यहां पर एक नगर बस गया जो आज भी विद्यमान है। गुरु जी ने 1593 ई० में जालन्धर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया।

4. मसन्द प्रथा का विकास-मसन्द प्रथा का आरम्भ गुरु रामदास जी ने किया था। गुरु अर्जन देव जी ने इस प्रथा में सुधार लाने की आवश्यकता अनुभव की। उन्होंने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग आवश्यक रूप से मसन्दों को जमा कराएं। मसन्द वैशाखी के दिन इस राशि को अमृतसर में गुरु जी के केन्द्रीय कोष में जमा करवा देते थे।

राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे। मसन्द दशांश इकट्ठा करने के अतिरिक्त अपने क्षेत्र में सिक्ख धर्म का प्रचार भी करते थे।

5. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु अर्जन देव जी ने ‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन करके सिक्खों को एक धार्मिक ग्रन्थ प्रदान किया। इस पवित्र ग्रन्थ में उन्होंने अपने से पहले चार गुरु साहिबान की वाणी, फिर भक्तों की वाणी तथा उसके पश्चात् भाटों की वाणी का संग्रह किया। इसमें भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत रविदास, जयदेव, रामानन्द तथा सूरदास जी की वाणी को भी स्थान दिया गया। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रन्थ साहिब में गुरु तेग बहादुर जी की बाणी शामिल की गई तथा आदि ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब का दर्जा दिया गया। गुरु अर्जन देव जी ने धर्म पर दृढ़ रहकर अपने जीवन का बलिदान (1606) भी दिया। इस शहीदी से सिक्खों में एक नवीन उत्साह पैदा हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी, गुरु हरगोबिन्द जी, गुरु तेग बहादुर जी तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के सिक्ख पंथ के रूपान्तरण में योगदान की चर्चा करें।
उत्तर-
सिक्ख पंथ के विकास का आधार गुरु नानक देव जी के सरल एवं प्रभावशाली सन्देश थे। एक लम्बे समय तक यह पंथ शान्तिमय रूप धारण किए रहा। परन्तु गुरु अर्जन देव जी के समय में मुग़लों के धार्मिक अत्याचार बढ़ने लगे। उनके अत्याचारों का सामना शान्तिमय ढंग से करना असम्भव हो गया था। अतः सिक्ख पंथ का रूपान्तरण करना आवश्यक हो गया। इस कार्य में गुरु अर्जन देव जी, गुरु हरगोबिन्द जी, गुरु तेग बहादुर जी तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपना-अपना योगदान दिया, जिसका वर्णन इस प्रकार है: –

I. गुरु अर्जन देव जी के अधीन-

मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। ।

जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई। अत: जहांगीर ने अपने पुत्र को आशीर्वाद देने के जुर्म में गुरु अर्जन देव जी को कठोर शारीरिक कष्ट देने का आदेश जारी कर दिया। सिक्ख परम्पराओं के अनुसार गुरु जी को गर्म लौह पर बिठाया गया और उनके शरीर पर तपती हुई रेत डाली गई। फिर उन्हें उबलते पानी की देश में डाला गया। आप इन तसीहों को परमात्मा का हुक्म समझ कर सहते रहे। आप 30 मई, 1606 ई० को लाहौर में शहीद हो गये।

गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई : (1) गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश दिया, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है, जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। (2) गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुगल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। (3) इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

II. गुरु हरगोबिन्द जी के अधीन-

गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उनके पिता गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल सम्राट जहांगीर ने शहीद करवा दिया था। उनकी शहीदी से सिक्खों के मन में गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अनुभव किया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इस उद्देश्य से गुरु हरगोबिन्द जी ने नवीन नीति अपनाई।

नवीन नीति की कार्यवाहियां-
1. गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु हरगोबिन्द जी ने तलवारें धारण की और इस अवसर पर उन्होंने यह घोषणा की कि अब सिक्ख सत्यनाम का जाप करने के साथ-साथ अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिए भी सदा तैयार रहेंगे। यह गुरु जी की नवीन नीति का आरम्भ था।

2. नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की। उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर ली।

3. गुरु हरगोबिन्द जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन बातों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने पीरी और मीरी नामक दो तलवारें धारण की।

4. गुरु जी सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। परन्तु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया जिसका नाम ‘अकाल तख्त’ (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।

गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए एक सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयंसेवक सम्मिलित थे। गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने मसन्दों को सन्देश भेजा कि यदि धन के बजाय घोड़े तथा सैनिक शस्त्र उपहार अथवा भेंट के रूप में भेजें। परिणामस्वरूप काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई। सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार भी बनवाई गई। इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी किया गया, जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस प्रकार के कार्यों से सिक्खों में धार्मिक भावना के साथ-साथ सैनिक गुणों का भी विकास हुआ। फलस्वरूप उन्होंने मुगल अत्याचारों का डटकर सामना किया।

III. गुरु तेग़ बहादुर जी के अधीन-

नौवें सिक्ख गुरु तेग़ बहादुर जी के समय में कई मुसलमानों ने सिक्ख धर्म स्वीकार कर लिया। औरंगज़ेब इस बात को सहन नहीं कर सकता था; इसलिए उसने गुरु तेग़ बहादुर जी को दण्ड देने का निश्चय कर लिया। इन्हीं दिनों मुग़ल अत्याचारों से तंग आकर कुछ कश्मीरी ब्राह्मण गुरु जी की शरण में आए। उन्होंने गुरु जी को बताया कि उनको ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा है। यह सुनकर गुरु जी ने कहा कि सम्राट् से कहो कि यदि तुम हमारे गुरु साहिब जी को मुसलमान बना लोगे तो वे भी इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया। अतः गुरु जी को 1675 ई० मे दिल्ली बुलाया गया और उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया गया, परन्तु गुरु जी अपने धर्म पर अटल रहे। क्रोध में आकर औरंगजेब ने 11 नवम्बर, 1675 ई० को उन्हें शहीद करवा दिया। गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी से सिक्खों में एक नवीन जागृति आई।

IV. गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन-

गुरु तेग़ बहादुर जी के पश्चात् गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के गुरु बने। उन्होंने सिक्ख धर्म की उन्नति के लिए विशेष प्रयत्न किए। उन्होंने मुग़ल अत्याचारों के विरुद्ध तलवार उठाई। वे अपने शिष्यों से भी भेंट के रूप में घोड़े तथा शस्त्र लेने लगे। उन्होंने सिक्खों को स्थायी सैनिक का रूप देने के लिए 1699 में खालसा की स्थापना की। इस प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह जी ने एक विशाल सेना तैयार कर ली। गुरु जी ने साधारण व्यक्तियों को वीर सैनिकों में परिवर्तित कर दिया। इस प्रकार वह राजनीतिक शक्ति में संगठित हुए और उन्होंने समय-समय पर मुग़लों से अनेक युद्ध किए।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
‘सच्चा सौदा’ किस सिक्ख गुरु से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी से।

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प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
लाहौर के समीप तलवंडी नामक गांव में।

प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी की माता का क्या नाम था?
उत्तर-
माता तृप्ता जी।

प्रश्न 4.
अमृतसर नगर किसने बसाया?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

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प्रश्न 5.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन किस गुरु साहिब ने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 6.
कौन-से गुरु ‘बाल गुरु’ के नाम से प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर-
श्री गुरु हरकृष्ण जी।

प्रश्न 7.
सिक्खों के नौंवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु तेग बहादुर जी।

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प्रश्न 8.
शहीदी देने वाले दो सिक्ख गुरुओं के नाम बताओ।
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी तथा श्री गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 9.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ?
(ii) उनके माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
(i) 22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में
(ii) उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग़ बहादुर जी था।

प्रश्न 10.
भंगानी की विजय के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने कौन-कौन से किले बनवाए ?
उत्तर-
आनन्दगढ़, केसगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़।

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प्रश्न 11.
पांच प्यारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई साहब सिंह तथा भाई हिम्मत सिंह।

प्रश्न 12.
खालसा का सृजन कब और कहां किया गया?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।

2. रिक्त स्थान भरें

(i) ……………….. गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
(ii) गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………………… तथा ……………….
(iii) गुरु नानक देव जी द्वारा रचित चार बाणियां वार मल्हार, वार आसा, ……………… और …………..
(iv) ……………… का पहला नाम भाई लहना था।
(v) ………….. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
(vi) ……………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
(vii) गुरु हरगोबिन्द जी ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष …………… में धर्म-प्रचार में व्यतीत किए।
(viii) उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र ………………. जी ने स्थापित किया।
(ix) मंजियों की स्थापना श्री गुरु ………………. ने की।
(x) गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को ……….. में हुआ।
(xi) हरमंदिर साहिब का निर्माण कार्य ….. ……. ई० में पूरा हुआ।
उत्तर-
(i) बीबी सुलखनी
(ii) श्रीचंद, लखमी दास
(iii) जपुजी साहिब, बारहमाहा
(iv) गुरु अंगद साहिब
(v) गुरु रामदास जी
(vi) गोइन्दवाल साहिब
(vii) कीरतपुर साहिब
(viii) बाबा श्रीचंद जी
(ix) अमरदास जी
(x) गोइन्दवाल साहिब
(xi) 1601.

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3. सही/गलत कथन

(i) औरंगजेब कश्मीरी पंडितों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। — (√)
(ii) गुरु गोबिंद सिंह जी ने काजी पीर मुहम्मद से शिक्षा लेने से इन्कार कर दिया। — (×)
(iii) खालसा की स्थापना श्री गुरु हरगोबिंद जी ने की। — (×)
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘ज़फरनामा’ नामक पत्र मुग़ल सम्राट औरंगजेब को लिखा। — (√)
(v) दिल्ली में गुरु हरराय जी राजा जयसिंह के यहां ठहरे थे। — (×)

4. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
गोइन्दवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) का निर्माण किसने करवाया ?
(A) गुरु अर्जन देव जी ने
(B) गुरु नानक देव जी ने ।
(C) गुरु अमरदास जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(C) गुरु अमरदास जी ने

प्रश्न (ii)
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच किस नगर की नींव रखी ?
(A) जालंधर
(B) गोइन्दवाल साहिब
(C) अमृतसर
(D) तरनतारन।
उत्तर-
(D) तरनतारन।

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प्रश्न (iii)
जहांगीर के काल में शहीद होने वाले सिक्ख गुरु थे –
(A) गुरु अंगद देव जी
(B) गुरु अमरदास जी
(C) गुरु अर्जन देव जी
(D) गुरु रामदास जी।
उत्तर-
(C) गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न (iv)
गुरु हरकृष्ण जी गुरु गद्दी पर बैठे-
(A) 1661 ई० में
(B) 1670 ई० में
(C) 1666 ई० में
(D) 1538 ई० में।
उत्तर-
(A) 1661 ई० में

प्रश्न (v)
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी

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प्रश्न (vi)
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ
(A) कीरतपुर साहिब में
(B) पटना में
(C) दिल्ली में
(D) तरनतारन में।
उत्तर-
(B) पटना में

प्रश्न (vii)
गुरु गद्दी को पैतृक रूप दिया
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु रामदास जी ने
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(A) गुरु अमरदास जी ने

प्रश्न (viii)
हरमंदिर साहिब का पहला मुख्य ग्रन्थी नियुक्त किया गया
(A) भाई पृथिया को
(B) श्री महादेव जी को
(C) बाबा बुड्डा जी को
(D) नत्था मल जी को।
उत्तर-
(C) बाबा बुड्डा जी को

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्ख पंथ के बारे में जानकारी के गुरुमुखी लिपि में चार महत्त्वपूर्ण स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
सिक्ख पंथ के बारे में जानकारी के गुरुमुखी लिपि में चार महत्त्वपूर्ण स्रोत गुरु ग्रन्थ साहिब, भाई गुरदास की वारें, जन्मसाखियां तथा गुरसोभा हैं।

प्रश्न 2.
कौन-से दो गुरु साहिबान के हुक्मनामे उपलब्ध हैं ?
उत्तर-
हमें गुरु तेग़ बहादुर जी तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के हुक्मनामे उपलब्ध हैं।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी का जीवन मुख्य रूप से कौन-से तीन भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जीवन मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-आरम्भिक जीवन तथा सुल्तानपुर लोधी में ज्ञान प्राप्ति, उनकी यात्राएँ अथवा उदासियाँ तथा करतारपुर में एक नये भाईचारे की स्थापना।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ।

प्रश्न 5.
सुल्तानपुर लोधी में गुरु नानक देव जी ने किस लोधी अधिकारी के अधीन, किस विभाग में कितने वर्ष काम किया ?
उत्तर-
सुल्तानपुर लोधी में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के अधीन काम किया। उन्होंने मोदीखाने में दस वर्ष . तक कार्य किया।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी को सत्य की प्राप्ति कहाँ और लगभग किस आयु में हुई ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी में सत्य की प्राप्ति हुई। इस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने एक नये भाईचारे का आरम्भ कहाँ और किन दो संस्थाओं द्वारा किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नये भाईचारे का आरम्भ करतारपुर में संगत तथा लंगर नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी मनुष्य के किन पांच शत्रुओं की बात करते हैं ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मनुष्य के पांच शत्रुओं काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की बात करते हैं।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के अनुसार सच्चा गुरु कौन है और वह किसके द्वारा शिक्षा देता है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार सच्चा गुरु परमात्मा है। परमात्मा ‘शब्द’ के द्वारा शिक्षा देता है।

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प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के अनुसार सही आचरण की आधारशिला क्या है तथा उसके लिए क्या करना आवश्यक है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार सही आचरण की आधारशिला दूसरों की सेवा है। उसके लिए मेहनत की कमाई करना आवश्यक है।

प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी का आरम्भिक नाम क्या था और वे कब से कब तक गुरुगद्दी पर रहे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का आरम्भिक नाम भाई लहना था। वह 1539 से 1552 तक गुरुगद्दी पर रहे।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र कौन-सा स्थान था तथा उन्होंने कौन-से कस्बे का निर्माण किया ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था। उन्होंने गोइन्दवाल साहिब कस्बे का निर्माण किया।

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प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी ने किस नाम से वाणी रची और उन्होंने गुरुगद्दी के लिए किसको मनोनीत किया ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने नानक नाम से वाणी की रचना की। उन्होंने गुरुगद्दी के लिए गुरु अमरदास जी को मनोनीत किया।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी ने बावली का निर्माण कहां करवाया तथा इसमें कितनी सीढ़ियां हैं ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइन्दवाल साहिब में बावली का निर्माण कराया, जिसमें 84 सीढ़ियां हैं।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने साधारण जीवन के किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा मरण के मौकों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियाँ निश्चित की।

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प्रश्न 16.
मंजियों की स्थापना किन गुरु साहिब ने की और वे कब-से-कब तक गुरुगद्दी पर रहे ?
उत्तर-
मंजियों की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की। वे 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे।

प्रश्न 17.
अमृतसर की स्थापना करने वाले तथा सरोवर की खुदवाई करवाने वाले दो गुरु साहिबानों के नाम बताएं।
उत्तर-
अमृतसर की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। गुरु रामदास जी तथा गुरु अर्जन देव जी ने सरोवर की खुदाई कराई थी।

प्रश्न 18.
गुरु अमरदास जी के उत्तराधिकारी कौन थे ? उनका आरम्भिक नाम तथा गुरुआई का समय बताएं।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के उत्तराधिकारी गुरु रामदास जी थे। इनका आरम्भिक नाम भाई जेठा जी था। उनकी गुरुआई का समय 1574 ई० से 1581 ई० तक था।

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प्रश्न 19.
अमृत सरोवर में ‘धर्मशाला’ किन्होंने बनवाई तथा इसे क्या नाम दिया ?
उत्तर-
अमृत सरोवर में गुरु अर्जन देव जी ने धर्मशाला बनवाई थी और इसको हरमंदर साहिब का नाम दिया।

प्रश्न 20.
गुरु अर्जन देव जी ने किन तीन नगरों की नींव रखी और यह कौन-से दो दोआबों में हैं ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने बारी दोआब में तरनतारन तथा श्री हरगोबिन्दपुर और जालन्धर दोआब में करतारपुर की नींव रखी।

प्रश्न 21.
गुरु के प्रतिनिधियों को क्या कहा जाता था और ये संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे ?
उत्तर-
गुरु के प्रतिनिधियों को मसन्द कहा जाता था। ये संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

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प्रश्न 22.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने और कब सम्पूर्ण किया ?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में सम्पूर्ण किया।

प्रश्न 23.
आदि ग्रन्थ साहिब में जिन गुरुओं की वाणी सम्मिलित है, उनके नाम बताएं।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी तथा गुरु अर्जन देव जी की वाणी सम्मिलित है। बाद में गुरु तेग बहादुर जी की वाणी भी सम्मिलित की गई।

प्रश्न 24.
‘मीरी’ और ‘पीरी’ की तलवारें किसने धारण की और ये किसकी प्रतीक थीं ?
उत्तर-
‘मीरी’ और ‘पीरी’ की तलवारें गुरु हरगोबिन्द जी ने धारण की। ‘पीरी’ की तलवार आध्यात्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी और ‘मीरी’ की तलवार सांसारिक नेतृत्व की।

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प्रश्न 25.
गुरु हरगोबिन्द जी की गुरुगद्दी का समय क्या था और उन्होंने अमृतसर में कौन-से दो महत्त्वपूर्ण भवन बनवाए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी की गुरुगद्दी का समय 1606 ई० से 1645 ई० तक था। उन्होंने अमृतसर में लोहगढ़ का किला बनवाया तथा हरमंदर साहिब के सामने अकाल तख्त बनवाया।

प्रश्न 26.
गुरु हरगोबिन्द जी को किस मुग़ल बादशाह ने कौन-से किले में नजरबन्द करवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी को जहांगीर ने ग्वालियर के किले में नजरबन्द करवाया।

प्रश्न 27.
गुरु हरगोबिन्द जी ने लाहौर प्रान्त को छोड़कर किस इलाके में किस स्थान पर रहने का फैसला किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने लाहौर प्रान्त को छोड़कर कीरतपुर साहिब के स्थान पर रहने का फैसला किया।

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प्रश्न 28.
पिरथी चन्द कौन था तथा उसके अनुयायियों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
पिरथी चन्द गुरु हरगोबिन्द जी का चाचा था। उसके अनुयायियों को ‘मीणे’ कहा जाता था।

प्रश्न 29.
मिहरबान का आरम्भिक नाम क्या था तथा वह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
मिहरबान का आरम्भिक नाम मनोहर दास था। वह पिरथी चन्द का पुत्र था।

प्रश्न 30.
धीरमल किसका पौत्र था तथा वह किस स्थान पर रहने लगा था ?
उत्तर-
धीरमल गुरु हरगोबिन्द जी का पौत्र था। वह करतारपुर में रहने लगा था।

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प्रश्न 31.
गुरु हर राय जी किनके पौत्र थे और वे गुरुगद्दी पर कब से कब तक रहे ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी गुरु हरगोबिन्द जी के पौत्र थे। वे 1645 ई० से 1661 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे।

प्रश्न 32.
गुरु हर राय जी पर किस मुग़ल बादशाह ने किस शहज़ादे की सहायता करने का आरोप लगाया ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी पर औरंगजेब ने शहज़ादा दारा शिकोह की सहायता करने का आरोप लगाया।

प्रश्न 33.
गुरु हर राय जी के दो बेटों के नाम बताएं तथा उनमें से किन को गुरुगद्दी दी गई ?
उत्तर-
गुरु हर राय जी के दो बेटों के नाम थे-रामराय जी तथा हरकृष्ण जी। गुरुगद्दी हरकृष्ण जी को दी गई थी।

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प्रश्न 34.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने किस वर्ष में गुरुआई सम्भाली और इस समय वे किस गांव में थे तथा यह किन दो नगरों के मध्य स्थित है ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी ने 1664 ई० में गुरुआई सम्भाली। इस समय वह बकाला में थे जो अमृतसर तथा जालन्धर के मध्य में है।

प्रश्न 35.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने किस पहाड़ी रियासत के इलाके में किस नये कस्बे की नींव रखी और यह बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी ने बिलासपुर रियासत में माखोवाल कस्बे की नींव रखी। यह बाद में आनन्दपुर साहिब के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 36.
गुरु तेग बहादुर जी अपनी यात्रा के दौरान किन चार नगरों में गये तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कौन-से नगर में हुआ ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी अपनी यात्रा के दौरान आगरा, बनारस तथा गया में गये। गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म पटना में हुआ।

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प्रश्न 37.
गुरु तेग़ बहादुर जी को किस वर्ष में, किस शहर में, किस स्थान पर शहीद किया गया ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी को 1675 ई० में दिल्ली में चांदनी चौक में शहीद किया गया।

प्रश्न 38.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने पूर्वजों में से किन की नीति अपनाने का निश्चय किया तथा उन्होंने भेंट में किन दो वस्तुओं को प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने गुरु हरगोबिन्द जी की नीति अपनाने का निश्चय किया। उन्होंने भेंट में शस्त्र तथा घोड़े प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया।

प्रश्न 39.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का पहला युद्ध किस वर्ष में, किस स्थान पर और कहां के राजा के विरुद्ध हुआ ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी का पहला युद्ध श्रीनगर के राजा के साथ 1686 ई० में भंगाणी नामक स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 40.
किस पहाड़ी राजा के कहने पर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मुगलों के विरुद्ध कौन-सी लड़ाई लड़ी तथा इसमें किसकी जीत हुई ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजा भीमचन्द के कहने पर मुगलों के विरुद्ध नादौन की लड़ाई लड़ी। इसमें पहाड़ी राजाओं की जीत हुई।

प्रश्न 41.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर की सुरक्षा के लिए किन चार किलों का निर्माण किया था ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर की सुरक्षा के लिए आनन्दगढ़, केसगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़ किलों का निर्माण किया था।

प्रश्न 42.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-से वर्ष, किस दिन और कहां पर खालसा की साजना की ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में वैसाखी के दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा की साजना की।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने सन्देश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं कीं। उनकी इन यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को तीन या चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक देव जी ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपटन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वह सम्भवत: भारत से बाहर लंका, मक्का, मदीना तथा बगदाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आये। ये लोग भान्ति-भान्ति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ‘माया’ मुक्ति के मार्ग की एक बहुत बड़ी बाधा है। उनका माया का संकल्प वास्तविक है। यह वेदान्त की भान्ति ब्रह्माण्डीय भ्रम डालने वाला नहीं है। उनके अनुसार प्रभु ने ब्रह्माण्ड की रचना स्वयं को रूपवान करने के लिए की है। अतः रचनाकार और रचना में अन्तर जानना आवश्यक है। मनुष्य के मलिन भाव और ऐन्द्रिक सुख मनुष्य को माया से बाँध कर रखते हैं। इसलिए वह परमात्मा से दूर रहता है। इसी सन्दर्भ में ही गुरु नानक देव जी मनुष्य के पांच शत्रुओं की बात करते हैं, जिनके नाम हैं-काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। मनुष्य में अहं अथवा ‘हउमै’ की अभिव्यक्ति है। यह परमात्मा और मनुष्य के बीच एक सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दीवार है। मनुष्य की ‘मनमुखता’ ही उसके लिए यह समझना कठिन कर देती है कि केवल परमात्मा ही एक सर्वशक्तिमान् सत्ता है।

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प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों का खण्डन किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अनेक व्यर्थ के धार्मिक विश्वासों एवं व्यवहारों का खण्डन किया। उन्होंने अनुभव किया कि ब्राह्मण बाहरी कर्मकाण्ड में रत हैं जिनमें सही आत्मिक जिज्ञासा या धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार-विधियां और रीति-रिवाजों का खंडन किया। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे : जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी अस्वीकृत किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को कोई स्थान न दिया। उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, रस्मों एवं व्यवहारों का खण्डन किया।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ क्या थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्रीपुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेदभाव न था। उन्होंने सभी के लिए मुक्ति का मार्ग खोलकर सभी नर-नारियों के मन में एकता का भाव दृढ़ किया। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। उनके अनुयायियों में समानता के विचार को वास्तविक रूप संगत और लंगर की संस्थाओं में मिला। इसलिए यह समझना कठिन नहीं है कि गुरु नानक देव जी ने जात-पात पर आधारित भेदभावों का बड़े स्पष्ट शब्दों में खण्डन क्यों किया। उन्होंने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इस स्थिति में उन्होंने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा जोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने ब्राह्मणों तथा मुल्लाओं का खण्डन क्यों किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ब्राह्मणों तथा मुल्लाओं का जोरदार खण्डन किया। ब्राह्मण दिखावे के कर्मकाण्डों में लिप्त थे। वे लोग वेद, शास्त्रों, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा तथा जन्म-मरण के अवसर पर विभिन्न धार्मिक संस्कारों पर भी बड़ा बल देते हैं। वह स्वयं सच्ची प्रभु भक्ति में विश्वास रखते थे। इसी कारण उन्होंने ब्राह्मणों तथा उनकी धार्मिक पद्धति का कड़ा विरोध किया। इस्लाम धर्म में मुल्ला लोगों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया हुआ था। वे अपने आपको इस्लाम का रक्षक समझते थे और इसके सिद्धान्तों को बाहरी रूप से अपनाने पर बड़ा बल देते थे। गुरु नानक देव जी को दिखावे का यह जीवन बिल्कुल पसन्द नहीं था। अत: उन्होंने उस समय ब्राह्मणों के साथ-साथ मुल्लाओं के आडंबरों का भी विरोध किया।

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। आपका जन्म अमृतसर जिले में हुआ था। आपने गुरु अंगद देव जी की सेवा बहुत श्रद्धा और प्यार से की। इसी के फलस्वरूप आपको गुरुगद्दी प्राप्त हुई। गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर बीस वर्ष रहे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास के लिए अनेक कार्य किये।

  • गुरु अंगद देव जी की भान्ति गुरु अमरदास जी ने भी श्री गुरु नानक देव जी के नाम से वाणी की रचना की।
  • उन्होंने गोइन्दवाल साहिब में एक बावली बनवाई, जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। इस बावली की 84 सीढ़ियां हैं।
  • गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा अन्य अवसरों पर पढ़ने के लिये आनन्द साहिब नामक वाणी की रचना की।
  • उन्होंने गोइन्दवाल साहिब के बाहर प्रचार कार्य के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या बढ़ने लगी।
  • उन्होंने पाठ-कीर्तन के लिए स्थान-स्थान पर अपनी धर्मशालाएं स्थापित की।

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प्रश्न 7.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। वह 1574 से 1581 तक गुरु पद पर रहे। उन्होंने सिख धर्म के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-

  • उनका सबसे बड़ा योगदान रामदास पुर शहर की नींव डालना था। वह स्वयं भी यहीं कह कर प्रचार कार्य करने लगे।
  • उन्होंने अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवर खुदवाए।
  • उन्होंने मसंद प्रथा प्रारम्भ की। मसंद उनके लिए उनके सिक्खों से भेंट एकत्रित करके लाते थे।
  • उनके समय में सिक्खों तथा उदासियों में समझौता हो गया।

प्रश्न 8.
आदि ग्रन्थ साहिब के संकलन तथा महत्त्व के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन सिक्ख पंथ के विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। इसके लिए तैयारी पहले गुरु साहिबान के समय में आरम्भ हो चुकी थी। गुरु अर्जन देव जी ने गुरु अमरदास जी के बड़े पुत्र से पहले तीन गुरु साहिबान तथा कुछ भक्तों की वाणी की पोथियां प्राप्त की। इसमें उन्होंने गुरु रामदास जी तथा अपनी वाणी के साथ-साथ और कुछ अन्य सन्तों, भक्तों एवं सूफ़ी शेखों की रचनायें शामिल की। यह काम 1604 ई० तक सम्पूर्ण कर लिया गया। आदि ग्रन्थ साहिब की हरिमंदर साहिब में स्थापना की गई और बाबा बुड्डा जी इसके पहले ग्रन्थी नियुक्त हुए। आदि ग्रन्थ साहिब को गुरु ग्रन्थ साहिब का दर्जा दिया गया और यह सिक्ख धर्म का मूल स्रोत बन गया। गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय ही आदि ग्रन्थ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी सम्मिलित कर ली गई। आदि ग्रन्थ साहिब का महत्त्व इस बात से जाना जा सकता है कि इस ग्रन्थ में भक्तों तथा सन्तों के साथ-साथ गुरु साहिबानों की वाणी सामूहिक रूप में प्राप्त हुई जो सिक्ख पंथ का सच्चा मार्गदर्शन करने लगी।

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प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्ख पंथ के इतिहास पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख पंथ के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।
1. गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जाओ, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया।

2. गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों के मन में मुगल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी।

3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिन्द साहिब की नई नीति तथा गतिविधियों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब की नवीन नीति तथा गतिविधियों के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। गुरु साहिब ने आत्मरक्षा के लिए एक सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयंसेवक सम्मिलित थे। गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने मसन्दों को सन्देश भेजा कि वह धन के बजाय घोड़े तथा शस्त्र उपहार अथवा भेंट के रूप में भेजें। सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई गई। इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी किया गया, जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस प्रकार के कार्यों से सिक्खों में धार्मिक भावना के साथ-साथ सैनिक गुणों का भी विकास हुआ। फलस्वरूप उन्होंने मुग़ल अत्याचारों का डटकर सामना किया।

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प्रश्न 11.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख पंथ में साम्प्रदायिक विभाजन तथा बाहरी खतरे की समस्या को कैसे हल किया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख धर्म में विद्यमान अनेक सम्प्रदायों की तथा बाहरी खतरों की समस्या को भी बड़ी कुशलता से निपटाया। सर्वप्रथम गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं से अनेक युद्ध किए और उन्हें पराजित किया। उन्होंने अत्याचारी मुग़लों का भी सफल विरोध किया। 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह साहिब ने खालसा की स्थापना करके अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण पग उठाया। खालसा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिक्खों ने शस्त्रधारी का रूप धारण कर लिया। खालसा की स्थापना से गुरु जी को सिक्ख धर्म में विद्यमान् विभिन्न सम्प्रदायों से निपटने का अवसर भी मिला। गुरु जी ने घोषणा की कि सभी सिक्ख ‘खालसा’ का रूप हैं और उनके साथ जुड़े हुए हैं। इस प्रकार मसन्दों का महत्त्व समाप्त हो गया और सिक्ख धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय खालसा में विलीन हो गए।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
ईश्वर के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का वर्णन करते हुए उनकी किन्हीं पांच शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्मकाण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सत्यनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है :

1. ईश्वर की महिमा-गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है :

  • एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे।
  • ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
  • ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है- श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
  • ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह अपने भक्तों के पास हर पल रहता है। उनके सभी काम आप संवारता है।

2. सतनाम के जाप पर बल–श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि आत्मा की बुरे विचारों रूपी मैल को सतनाम के जाप से ही धोया जा सकता है।

3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।

4. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।

5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया है। उन्होंने लोगों को संसार में रहकर अच्छा जीवन व्यतीत करने और पवित्र बनने का सन्देश दिया है। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा गलत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।

6. मनुष्य-मात्र से प्रेम-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं। वह कहते थे, “मैं सभी मनुष्यों को महान् समझता हूँ और किसी को भी नीचा नहीं समझता क्योंकि सभी मनुष्यों को बनाने वाला एक ही है।” अतः उन्होंने लोगों को मनुष्य-मात्र से प्रेम करने का सन्देश दिया।

7. जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।

8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को निःस्वार्थ भाव से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।

9. मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है।

10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्मकाण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।

11. सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसका दुःखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।

12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए कई सिद्धान्त प्रस्तुत किए-

  • सदा सत्य बोलना।
  • नाम जपना।
  • नेक कमाई खाना।
  • दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना
  • मिल-बाँट कर छकना। ‘किरत करना, वंड खाना तथा नाम जपना’ इस सिद्धान्त का मूल सार है।
    सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे।

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प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
अथवा
सिख धर्म के प्रसार के लिए श्री गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए गए किन्हीं पांच कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी सम्भालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरिमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन किया जिसे सिक्ख धर्म में सबसे अधिक पूजनीय स्थान प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है :-

1. हरिमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक सरोवरों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि हरिमंदर साहिब सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।

2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इसके निर्माण से बाऊली के निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।

4. हरगोबिन्दपुर तथा छहरटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिन्द के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिन्दपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसे छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।

5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1539 ई० में जालन्धर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक सरोवर का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।

6. मसन्द प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने मसन्द प्रथा में सुधार लाने की आवश्यकता अनुभव की। उन्होंने सिक्खों को आदेश दिया कि वह अपनी आय का 1/10 भाग आवश्यक रूप से मसन्दों को जमा कराएं। मसन्द वैशाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केन्द्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हे ‘संगती’ कहते थे। दशांश इकट्ठा करने के अतिरिक्त मसन्द उस क्षेत्र में सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे।

7. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन करके सिक्खों को एक महान् धार्मिक ग्रन्थ प्रदान किया। गुरु जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य रामसर में आरम्भ किया। इस कार्य में भाई गुरदास जी ने गुरु जी को सहयोग दिया। अन्त में 1604 ई० में आदि ग्रन्थ साहिब की रचना का कार्य सम्पन्न हुआ। इस पवित्र ग्रन्थ में उन्होंने अपने से पहले चार गुरु साहिबान की वाणी, फिर भक्तों की वाणी तथा उसके पश्चात् भाटों की वाणी का संग्रह किया।

8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए :

  • उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
  • इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।

9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया। उनके प्रभाव में आकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए। इनमें कुछ मुसलमान भी सम्मिलित थे।

संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रन्थ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरिमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

प्रश्न 3.
आदि ग्रन्थ साहिब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। वे इसका ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ कहकर आदर करते हैं। इस ग्रन्थ का संकलन श्री गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
आदि ग्रन्थ साहिब की रचना (संकलन) के कारण-आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कई कारणों से किया गया-

1. गुरु अर्जन देव जी के पहले के चार गुरु साहिबान की रचनाएं बिखरी पड़ी थीं। गुरु अर्जन देव जी ने इन रचनाओं को सुरक्षित करने के लिए इनका संग्रह आवश्यक समझा।

2. गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने सिक्ख गुरु साहिबान के नाम पर अनेक गीतों की रचना कर ली थी। अतः एक साधारण सिक्ख के लिए गुरु साहिबान के वास्तविक शबदों को ढूंढ़ना बड़ा कठिन हो गया था। इस बात को ध्यान में रखते हुए गुरु साहिबान की वास्तविक वाणी का संग्रह करना आवश्यक था।

3. गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पथ-प्रदर्शन के लिए कुछ विशेष नियम बनाना चाहते थे। अतः उनके मन में एक नियमपुस्तक तैयार करने का विचार उत्पन्न हुआ।

4. सिक्खों के पास अपनी लिपि तथा भाषा पहले ही थी। अब गुरु अर्जन देव जी ने यह अनुभव किया कि उन्हें उनकी बोलचाल की भाषा में एक धार्मिक ग्रन्थ दिया जाना चाहिए।

आदि ग्रन्थ साहिब की रचना-सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास जी के पुत्र बाबा मोहन गोइन्दवाल साहिब में पहले तीन गुरु साहिबान की रचनाओं को लिपिबद्ध कर रहे थे। यह रचनाएं प्राप्त करने के लिए गुरु अर्जन देव जी स्वयं नंगे पांव चलकर गोइन्दवाल साहिब गए। बाबा मोहन जी गुरु जी की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सारी वाणी गुरु अर्जन देव जी को सौंप दी। गुरु जी ने अनेक हिन्दू और मुसलमान विद्वानों को भी आदि ग्रन्थ साहिब की रचना में सहायता देने के लिए आमन्त्रित किया।

प्रारम्भिक तैयारी के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर से लगभग पांच मील दक्षिण की ओर एक एकान्त स्थान पर आदि ग्रन्थ साहिब की रचना का कार्य आरम्भ किया। 1604 ई० में यह कार्य मुकम्मल हो गया। इसको अमृतसर के हरिमंदर साहिब में प्रतिष्ठित किया गया। बाबा बुड्डा जी को वहां का पहला मुख्य ग्रन्थी नियुक्त किया गया।

विषय-वस्तु-आदि ग्रन्थ साहिब में पहले पांच सिक्ख गुरु साहिबान की बाणी सम्मिलित है। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में गुरु तेग़ बहादुर जी की बाणी भी इसमें शामिल कर ली गई। इसमें कुछ हिन्द्र तथा मुसलमान सन्तों और फ़कीरों तथा प्रसिद्ध भाटों की रचनाएं भी शामिल हैं।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान क्यों हुआ ? इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान मुग़ल सम्राट जहांगीर के समय में जून 1606 ई० को हुआ।
कारण-
(1) गुरु साहिब की शहीदी के पीछे मुख्यतः जहांगीर की कट्टर धार्मिक नीति का हाथ था। वह कट्टर मुसलमान था।

(2) गुरु जी द्वारा आदि ग्रन्थ साहिब की रचना ने जहांगीर के सन्देह को और बढ़ा दिया। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रन्थ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध काफ़ी कुछ लिखा गया है। यह सुनकर मुग़ल सम्राट का क्रोध काफ़ी बढ़ गया। उसने श्री गुरु अर्जन देव जी को कठोर शारीरिक कष्ट देने का आदेश जारी कर दिया। बाद में लाहौर के मुसलमान फकीर मियांमीर के प्रयत्नों से इस दण्ड को दो लाख रुपए के जुर्माने में बदल दिया गया। परन्तु गुरु जी ने जुर्माना देना स्वीकार नहीं किया। वह अपने धन का प्रयोग केवल निर्धनों एवं अनाथों की सेवा के लिए ही व्यय करना चाहते थे। अतः मुग़ल सम्राट ने क्रोध में आकर गुरु जी के लिए फिर से मृत्यु दण्ड का आदेश जारी कर दिया। सिक्ख परम्पराओं के अनुसार गुरु जी को क्रूर यातनाएं दी गईं। उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई और उन्हें उबलते पानी में डाला गया। कुछ विद्वानों के अनुसार गुरु जी ने यातनाओं के बीच रावी नदी में स्नान करने की इच्छा प्रकट की और वहां उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

शहीदी की प्रतिक्रिया-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई :

1. गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया।

2. गुरु जी की शहीदी से सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहंची और उनके मन में मुस्लिम राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई।

3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिये तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

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प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिन्द जी की नई नीति का वर्णन करो।
अथवा
श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब की नई नीति की पांच मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शान्ति-प्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं:

1. राजसी चिन्ह तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना-नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिन्ह धारण करने आरम्भ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी की जगह दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर ली। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।

2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों की शारीरिक उन्नति पर विशेष बल दिया। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने सन्त सिक्खों को सन्त सिपाहियों का रूप भी दे दिया।

3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरिमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परन्तु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस प्रकार भवन के अन्दर निर्मित 12 फुट ऊंचे चबूतरे पर बैठकर वे सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे।

4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय लोग गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फ़ानी के मतानुसार, गुरु जी ने सेना में 800 घोड़े 300,घुड़सवार तथा 60 बन्दूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक पृथक् सेना थी।

5. घोड़ों तथा शस्त्रों का संग्रह-गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि जहां तक सम्भव हो वे शस्त्र तथा घोड़े ही भेंट में दे। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई।

6. अमृतसर की किलेबन्दी-गुर जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृत्सर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई । इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।

7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरिगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रातःकाल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मण्डलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरिगोबिन्द जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल पर न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही किसी पर ज़बरदस्ती आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध लड़े। परन्तु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

प्रश्न 6.
(क) उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
(ख) सिक्ख इतिहास में उनकी शहीदी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
(क) परिस्थितियां-गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी निम्नलिखित परिस्थितियों में हुई :

1. सिक्खों और मुग़लों में बढ़ता हुआ विरोध-अकबर के शासनकाल के बाद मुग़लों और सिक्खों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ने लगे, परन्तु जहांगीर के समय से मुग़लों और सिक्खों में आपसी शत्रुता शुरू हो गई। जहांगीर ने सिक्ख गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया था। अतः सिक्खों ने भी आत्मरक्षा के लिए शस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए थे। उनके शस्त्र धारण करते ही मुग़लों तथा सिक्खों में शत्रुता इतनी गहरी हो गई जो आगे चलकर गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का कारण बनी।

2. औरंगजेब की असहनशीलता की नीति-औरंगज़ेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपनी हिन्दू जनता पर अत्याचार करने शुरु कर दिए और उन पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए गए। उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयास भी किया। औरंगज़ेब द्वारा निर्दोष लोगों पर लगाए जा रहे प्रतिबन्धों ने गुरु तेग़ बहादुर जी के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपनी जान देकर भी इन अत्याचारों से लोगों की रक्षा करेंगे। आखिर उन्होंने यही किया।

3. सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्ण प्रचार-गुरु नानक देव जी के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने भी स्थान-स्थान पर भ्रमण करके सिक्ख मत का प्रचार किया। औरंगज़ेब सिक्ख धर्म के इस प्रचार को सहन न कर सका। वह मन ही मन सिक्ख गुरु तेग़ बहादुर जी से ईर्ष्या करने लगा।

4. राम राय की शत्रुता-गुरु हरकृष्ण जी के भाई राम राय ने औरंगजेब से शिकायत की कि गुरु जी का धर्म प्रचार का कार्य राष्ट्र हित के विरुद्ध है। उसकी बातों में आकर औरंगजेब ने गुरु जी को सफ़ाई पेश करने के लिए मुग़ल दरबार में (दिल्ली) बुलाया और जहां गुरु जी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।

5. कश्मीरी ब्राह्मणों की पुकार-कुछ कश्मीरी ब्राह्मण मुग़ल अत्याचारों से तंग आ चुके थे। उन्हें कश्मीर का मुग़ल गवर्नर ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। उन्होंने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें। ब्राह्मणों की दुःख भरी कहानी सुनकर गुरु जी ने कहा कि इस समय धर्म को बलिदान की आवश्यकता है। अतः उन्होंने ब्राह्मणों से कहा कि वे औरंगजेब से जाकर कहें कि “पहले हमारे गुरु साहिब को मुसलमान बनाओ, फिर हम सब लोग भी आपके धर्म को स्वीकार कर लेंगे।” इस प्रकार आत्म-बलिदान की भावना से प्रेरित होकर गुरु तेग़ बहादुर जी दिल्ली की ओर चल पड़े जहां उन्हें शहीद कर दिया गया।

(ख) शहीदी का महत्त्व-इतिहास में गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के महत्त्व को निम्नलिखित बातों के आधार पर जाना जा सकता है-

1. धर्म के प्रति बलिदान की परम्परा को बनाये रखना-गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म के प्रति अपने जीवन का बलिदान देकर गुरु साहिबान के बलिदान की परम्परा को बनाए रखा। उनसे पहले गुरु अर्जन देव जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

2. खालसा की स्थापना- गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से गुरु गोबिन्द सिंह जी इस परिणाम पर पहुंचे कि जब तक भारत में मुग़ल राज्य रहेगा, तब धार्मिक अत्याचार समाप्त नहीं होंगे। मुग़ल अत्याचारों का सामना करने के लिए उन्होंने 1699 ई में आनन्दपुर साहिब में खालसा की स्थापना की।

3. मुग़लों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं भड़क उठीं।

4. मुग़ल साम्राज्य को धक्का-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला दी। गुरु गोबिन्द सिंह जी के वीर खालसा मुग़ल साम्राज्य से निरन्तर जूझते रहे जिससे मुग़लों की शक्ति को भारी धक्का पहुंचा।

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प्रश्न 7.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन तथा पूर्व खालसा काल में सफलताओं का सक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
निम्नलिखित पर नोट लिखिए :
(क) भंगानी तथा नादौन के युद्ध
(ख) खालसा की स्थापना।
उत्तर
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा अन्तिम गुरु थे। वे अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे। उनमें एक साथ अनेक योग्यताएं विद्यमान् थीं। वह एक महान् आध्यात्मिक नेता जन्मजात सेनानायक, कुशल संगठनकर्ता और प्रतिभाशाली विद्वान् थे। डॉ० इन्दु भूषण बैनर्जी के शब्दों में “गुरु गोबिन्द सिंह जी की गणना सभी युगों के सबसे महान् भारतीयों में की जानी चाहिए। वे नौवें गुरु तेग बहादुर जी के इकलौते पुत्र थे। इनका जन्म 22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में हुआ। उनके बचपन के 6 वर्ष पटना में व्यतीत हुए।

शिक्षा तथा पिता की शहीदी- 1673 ई० में गुरु तेग बहादुर जी पटना से मक्खोवाल आ गए। वहां गोबिन्द राय जी को घुड़सवारी तथा युद्ध कला की शिक्षा दी गई। इन्होंने अरबी तथा फ़ारसी तथा गुरुमुखी का ज्ञान प्राप्त किया।

गोबिन्द राय अभी 9 वर्ष के ही थे कि इनके पिता गुरु तेग़ बहादुर को हिन्दू धर्म के लिए शहीदी देनी पड़ी। इस शहीदी का गोबिन्द राय पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। गुरुगद्दी सम्भालते ही उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए सैनिक तैयारियां आरम्भ कर दी। डॉ० इन्दु भूषण बैनर्जी ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन को दो कालों में बांटा है-(क) पूर्व खालसा काल (ख) उत्तर खालसा काल।

(क) पूर्व खालसा काल (1675-1699) –

पूर्व खालसा काल में गुरु जी ने सर्वप्रथम अपनी एक सेना तैयार करनी आरम्भ की और कुछ ही समय में उन्होंने एक शक्तिशाली सेना तैयार कर ली। गुरु जी ने एक नगारा भी बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था।

बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु जी की बढ़ती हुई सैनिक शक्ति से घबरा उठा और वह उनके विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। श्रीनगर के राजा का ‘बिलासपुर से सम्बन्ध होने से दोनों की शक्ति बढ़ गई। यह बात नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के लिए चिन्ताजनक थी। उसने गुरु जी से सम्बन्ध बढ़ाने चाहे और गुरु जी को अपने यहां आमन्त्रित किया। गुरु जी ने उसके निमन्त्रण को स्वीकार कर लिया। वहां उन्होंने पौण्टा नामक किले का निर्माण करवाया। पौण्टा में गुरु जी ने फिर से सेना का संगठन आरम्भ कर दिया।

भंगानी तथा नादौन के युद्ध-1688 ई० में बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिल कर गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पौण्टा से लगभग 6 मील दूर भंगानी के स्थान पर पहाड़ी राजाओं तथा सिक्खों में घमासान युद्ध हुआ। युद्ध में पठान तथा उदासी सैनिक गुरु जी का साथ छोड़ गए। परन्तु ठीक इसी समय पर सढौरा का पीर बुद्धशाह गुरु जी की सहायता के लिए आ पहुंचा। उनकी सहायता से गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया। यह गुरु जी की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी। भंगानी विजय के पश्चात् गुरु जी आनन्दपुर वापस आ गए। उन्होंने आनन्दपुर को अपना कार्य-क्षेत्र बनाया। उन्होंने लोहगढ़, केसगढ़, आनन्दगढ़ तथा फतेहगढ़ नामक चार दुर्गों का निर्माण भी करवाया।

उनकी बढ़ती हुई शक्ति को देखकर भीमचन्द तथा अन्य पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से मित्रता कर लेने में ही अपनी भलाई समझी। अब वे इतने निश्चिन्त हो गए कि उन्होंने मुग़ल सम्राट् को वार्षिक कर देना भी बन्द कर दिया। मुग़ल सम्राट् इसे सहन न कर सका। उसने सरहिन्द के मुग़ल गवर्नर को पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध कार्यवाही करने का आदेश दिया। शीघ्र ही सरहिन्द के मुग़ल-गवर्नर ने अलिफ खां के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु जी के विरुद्ध एक विशाल सेना भेज दी। कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन के स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। मुग़ल बुरी तरह पराजित हुए। कुछ समय पश्चात् सरहिन्द के गवर्नर ने गुरु जी के विरुद्ध एक बार फिर सेना भेजी, परन्तु अब भी उसे पराजय ही हाथ लगी। अन्त में औरंगजेब के बेटे राजकुमार मुअज्जम ने मिर्जाबेग के नेतृत्व में एक भारी सेना गुरु जी के विरुद्ध भेजी। गुरु जी ने मिर्जाबेग को भी पराजित कर दिया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना 1

खालसा की स्थापना-1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में एक विशाल सभा बुलवाई। इस सभा में लगभग 80 हज़ार लोग शामिल हुए। जब सभी लोग अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने नंगी तलवार घुमाते हुए कहा-“क्या आप में कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ?” सारी सभा में सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया। तब लाहौर निवासी दयाराम ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे शिविर में ले गए और खून से लथपथ तलवार लेकर बाहर आए। एक बार फिर उन्होंने बलिदान की मांग की। इस प्रकार यह मांग बार-बार दोहराई गई। क्रमश: धर्मदास, मोहकम चन्द, साहिब चन्द तथा हिम्मत राय ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। सिक्ख इतिहास में इन पांचों व्यक्तियों को पांच प्यारे’ कह कर पुकारा जाता है। गुरु जी ने दोधारी तलवार (खण्डा) से पाहुल तैयार करके इन पांचों व्यक्तियों को अमृत पान करवाया। इस प्रकार वे ‘खालसा’ कहलाए और सिंह बन गए। गुरु जी ने स्वयं भी उनके हाथों से अमृत पान किया। इस प्रकार वे भी गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह बन गए। गुरु जी द्वारा खालसा की स्थापना के विषय में डॉ० इन्दू बनर्जी ने लिखा है-

“उन्होंने खालसा नामक एक नवीन संगठन को जन्म देकर भारतीय इतिहास में एक सक्रिय शक्ति का समावेश fanelli” (“He brought a new people (Khalsa) into being and released a new dynamic force into the arena of Indian History.”)

प्रश्न 8.
उत्तर खालसा काल में गुरु गोबिन्द सिंह जी की गतिविधियों एवं सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन की 1699 ई० के पश्चात् की अवधि उत्तर खालसा काल के नाम से प्रसिद्ध है। इस काल में गुरु साहिब की गतिविधियों एवं सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है :-

आनन्दपुर साहिब का प्रथम (1701 ई० ) तथा दूसरा युद्ध ( 1703 ई०)-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा घबरा गए। अतः भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर आनन्दपुर साहिब पर आक्रमण कर दिया। कम सैनिकों के होने पर भी गुरु जी ने उनका डटकर सामना किया। पहाड़ी राजा पराजित हुए। परन्तु कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों से सहायता प्राप्त करके आनन्दपुर साहिब पर एक बार फिर आक्रमण कर दिया। इस बार भी उन्हें कोई सफलता न मिली। विवश होकर उन्हें गुरु जी से सन्धि करनी पड़ी। पहाड़ी राजा सन्धि के बाद भी सैनिक तैयारियां करते रहे। उन्होंने गुजरों को अपने साथ मिला लिया। मुग़ल सम्राट ने भी उनकी, सहायता की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। 1703 ई० में सरहिन्द के गवर्नर वज़ीर खां ने सिक्खों की शक्ति को कुचलने के लिए एक विशाल सेना भेजी। सभी ने मिलकर आनन्दपुर साहिब को घेरा डाल दिया।

गुरु जी ने अपने वीर सिक्खों की सहायता से मुग़लों का डट कर सामना किया। परन्तु अन्त में गुरु जी को आनन्दपुर साहिब छोड़ना पड़ा। मुग़ल सैनिकों ने गुरु जी का पीछा किया। जब वे सिरसा नदी पार कर रहे थे तो सेना में भगदड़ मच जाने के कारण गुरु जी की माता जी तथा उनके दो छोटे पुत्र जुझार सिंह तथा फतेह सिंह उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी के पुराने रसोइए गंगू ने गुरु जी से विश्वासघात किया और गुरु पुत्रों को मुग़लों के हवाले कर दिया। सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खां ने उन्हें मुसलमान बनने को कहा, परन्तु निडर साहिबजादों ने अपना धर्म बदलने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप उन्हें दीवार में चिनवा दिया गया और वे शहीदी को प्राप्त हुए।

चमकौर साहिब (1704 ई०) तथा खिदराना ( 1705 ई०) के युद्ध-सिरसा नदी को पार करके गुरु जी चमकौर पहुंचे। पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें यहां भी आ घेरा। उस समय गुरु जी के साथ उनके दो पुत्र अजीत सिंह तथा जोरावर सिंह के अतिरिक्त केवल 40 सिक्ख थे। उन्होंने मुग़लों का डटकर सामना किया। गुरु जी के दोनों पुत्र और 35 सिक्ख सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। सिक्खों के प्रार्थना करने पर गुरु जी अपने 5 साथियों सहित माछीवाड़ा के जंगलों में चले गए। इसके बाद गुरु जी कोटकपूरा पहुंचे। मुग़ल सेना अब भी उनके पीछे थी। इसलिए कोटकपूरा के चौधरी ने गुरु जी को शरण देने से इन्कार कर दिया। गुरु जी वहां से सीधे खिदराना पहुंचे । यहा मुग़लों के साथ उनका अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे चालीस सिक्ख भी गुरु जी से आ मिले जो आनन्दपुर साहिब के युद्ध में उनका साथ छोड़ गये थे। इस बार वे बड़ी वीरता से लड़े और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने इन शहीदों को अपनी पिछली भूल के लिए क्षमा कर दिया और उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना भी की । इसलिए खिदराना का नाम ‘श्री मुक्तसर साहिब’ पड़ गया।

ज्योति जोत समाना-गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम कुछ वर्ष तलवण्डी साबो में व्यतीत किए। 1707 ई० में बहादुरशाह सम्राट् बना। वह गुरु साहिब को अपना मित्र समझता था क्योंकि उत्तराधिकार के युद्ध में गुरु साहिब ने उसकी सहायता की थी। 1708 ई० में गुरु जी बहादुर शाह के साथ दक्षिण की ओर गए। मार्ग में वह कुछ समय के लिए नांदेड नामक स्थान पर ठहरे। यहां एक पठान ने उन पर छुरे से वार कर दिया। अतः 1708 ई० को वे ज्योति जोत समा गए।

इस प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन संघर्ष और बलिदान की एक अनोखी गाथा है। डॉ० हरि राम गुप्ता के शब्दों में, “गुरु साहिब के आदर्श तथा कारनामें उनकी पीढ़ी में ही लोगों के धार्मिक, सैनिक तथा राजनीतिक जीवन में एक परिवर्तन ले आये।”<sup>1</sup>

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

प्रश्न 9.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की नींव कैसे रखी ?
अथवा
खालसा पंथ की स्थापना के लिए कौन-सी परिस्थितियां उत्तरदायी थीं ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना 1699 ई० में वैशाखी के दिन की। इसके लिए अनेक परिस्थितियां उत्तरदायी थीं :
(1) गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय में भारत की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। गुरु जी यह सब देखकर बहुत दु:खी हुए। काफ़ी विचार के पश्चात् वे इस निर्णय पर पहुंचे कि मुग़लों के अत्याचारों से बचने के लिए स्थायी रूप से शस्त्र उठाना आवश्यक है। इसीलिए गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की।

(2) भारतीय समाज में अभी बहुत-सी बुराइयां चली आ रही थीं। इनमें से एक बुराई जाति-प्रथा थी। डॉ० गंडा सिंह के मतानुसार जाति-प्रथा राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा बन गई थी। कई जातियों के लोगों में काफ़ी अन्तर आ चुका था। इस अन्तर को मिटाने के लिए ही गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की।

(3) खालसा की स्थापना से पहले गुरु गोबिन्द सिंह जी पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते थे। परन्तु शीघ्र ही गुरु जी को यह पता चल गया कि पहाड़ी राजाओं पर विश्वास करना ठीक नहीं है। अनेक अवसरों पर पहाड़ी राजा गुरु जी के विरुद्ध मुग़ल सरकार से जा मिले। ऐसी दशा में औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिए अपने सैनिकों का दल होना आवश्यक था। अतः उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।

(4) खालसा पंथ की स्थापना का एक और कारण सिक्ख धर्म की आन्तरिक दशा भी थी। रामराय और धीरमल के अनुयायी गुरु जी को बहुत तंग कर रहे थे। गुरु तेग़ बहादुर जी भी रामराइयों तथा धीरमल्लियों से तंग आकर आनन्दपुर साहिब चले गए थे। गुरु गोबिन्द सिंह जी बुरे लोगों से सिक्ख धर्म की रक्षा करना चाहते थे। इसलिए भी उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।

(5) गुरु अर्जन देव जी के समय में मसन्द भेंट इकट्ठा करने के साथ-साथ प्रचार कार्यों में बड़ी रुचि लेते थे। परन्त धीरे-धीरे मसन्द प्रथा में दोष आ गए। मसन्द भेंट से प्राप्त धन का दुरुपयोग करने लगे थे और अपने आपको स्वतन्त्र समझने लगे थे। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने यह अनुभव किया कि जब तक इस प्रथा का अन्त नहीं किया जाता तब तक सिक्ख धर्म उन्नति नहीं कर सकता । अतः गुरु जी ने मसन्दों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए नए वर्ग खालसा की स्थापना की।

पांच प्यारों का चुनाव- 1699 ई० में बैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ का निर्माण किया। इस वर्ष उन्होंने बैशाखी के दिन आनन्दपुर साहिब में सिक्ख धर्म के अनुयायियों की एक महान् सभा बुलाई। इस सभा में विभिन्न प्रदेशों से 80,000 के लगभग लोग इकट्ठे हुए। जब सब लोग सभा में बैठ गए तो गुरु जी सभा में पधारे । उन्होंने तलवार को म्यान से निकाल कर घुमाया और ललकार कर कहा-“कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपना सीस भेंट कर सकता है। यह सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया। अन्त में दयाराम नामक एक क्षत्रिय ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे समीप लगे एक तम्बू में ले गए । तंबू से बाहर आकर उन्होंने एक अन्य बलिदान की मांग की। इस बार दिल्ली निवासी धर्मदास ने अपने आपको भेंट किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने यह क्रम तीन बार फिर दोहराया। गुरु जी की आज्ञा का पालन करते हुए क्रमश: मोहकम चन्द, साहिब चन्द तथा हिम्मत राय नामक तीन और व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि गुरु जी ने यह सब कुछ अपने अनुयायियों की परीक्षा लेने के लिए किया था। अन्त में गुरु जी पांचों व्यक्तियों को सभा के सामने लाए और उन्हें पांच प्यारे’ का नाम दिया।

खण्डे का पाहुल-गुरु जी ने पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् पांच प्यारों को अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का. पाहुल’ कहा जाता है। गुरु जी ने इन्हें आपस में मिलते समय ‘श्री वाहिगुरु जी का खालसा, श्री वाहिगुरु जी की फतेह’ कहने का आदेश दिया। इसी समय गुरु जी ने बारी-बारी पांचों प्यारों की आंखों तथा केशों पर अमृत के छींटे डाले और उन्हें (प्रत्येक प्यारे को) ‘खालसा’ का नाम दिया। सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत ग्रहण किया। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ। गुरु जी का कथन था कि उन्होंने यह सब ईश्वर के आदेश से किया है। खालसा की स्थापना के अवसर पर गुरु जी ने ये शब्द कहे-“खालसा गुरु है और गुरु खालसा है। तुम्हारे और मेरे बीच अब कोई अन्तर नहीं है।”

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 11 श्री गुरु नानक देव जी और सिक्ख पंथ की स्थापना

प्रश्न 10.
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था ?
अथवा
खालसा की स्थापना सिख शक्ति के उत्थान में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई ? किन्हीं पांच तथ्यों के आधार पर इसकी विवेचना कीजिए।
उत्तर-
खालसा की स्थापना सिक्ख इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। डॉ० हरिराम गुप्ता के शब्दों में “खालसा की स्थापना देश के धार्मिक तथा राजनीतिक इतिहास की एक युग-प्रवर्तक घटना थी।” (“The creation of the Khalsa was an epoch making event in the religious and political history of the country.”)

इस घटना का महत्त्व निम्नलिखित बातों से जाना जाता है :-
1. गुरु नानक देव जी द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्यों की पूर्ति-गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी थी। उनके सभी उत्तराधिकारियों ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण काम किए। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके उनके द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्य को सम्पन्न किया।

2. मसन्द प्रथा का अन्त-चौथे गुरु रामदास जी ने मसन्द प्रथा का आरम्भ किया था। कुछ समय तक मसन्दों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया। परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी के समय तक मसन्द लोग स्वार्थी, लोभी तथा भ्रष्टाचारी हो गए। इसलिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने धीरे-धीरे मसन्द प्रथा का अंत कर दिया।

3. खालसा संगतों के महत्त्व में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह साहिब ने खालसा संगत को खण्डे का पाहुल छकाने का अधिकार दिया। उन्हें आपस में मिलकर निर्णय करने का अधिकार भी दिया गया। परिणामस्वरूप खालसा संगतों का महत्त्व बढ़ गया।

4. सिक्खों की संख्या में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्खों को अमृत छका कर खालसा बनाया। इसके उपरान्त गुरु साहिब ने यह आदेश दिया कि खालसा के कोई पाँच सिंह अमृत छका कर किसी को भी खालसा में शामिल कर सकते हैं। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने लगी।

5. सिक्खों में नई शक्ति का संचार-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नई शक्ति का संचार हुआ। अमृत छकने के बाद वे स्वयं को सिंह कहलाने लगे। सिंह कहलाने के कारण उनमें भय तथा कायरता का कोई अंश न रहा। वे अपना चरित्र भी शुद्ध रखने लगे। इसके अतिरिक्त खालसा जाति-पाति का भेदभाव समाप्त हो जाने से सिंहों में एकता की भावना मज़बूत हुई।

6. मुगलों का सफलतापूर्वक विरोध-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके सिक्खों में वीरता तथा साहस की भावनाएं भर दीं। उन्होंने चिड़िया को बाज़ से तथा एक सिक्ख को एक लाख से लड़ना सिखाया। परिणामस्वरूप गुरु जी के सिक्खों ने 1699 ई० से 1708 ई० तक मुग़लों के साथ कई सफलतापूर्वक युद्ध लड़े।

7. गुरु साहिब के पहाड़ी राजाओं से युद्ध-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा भी घबरा गए। विशेष रूप में बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु साहिब की सैनिक कार्यवाहियों को देख कर भयभीत हो उठा। उसने कई अन्य पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ करके गुरु साहिब की शक्ति को दबाने का प्रयास किया। अतः गुरु साहिब को पहाड़ी राजाओं से कई युद्ध करने पड़े।

8. सिक्ख सम्प्रदाय का पृथक स्वरूप-गुरु गोबिन्द सिंह जी के काल तक सिक्खों के अपने कई तीर्थ-स्थान बन गए थे। उनके लिए पवित्र ग्रन्थ ‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन भी हो चुका था। वे अपने ही ढंग से तीज-त्योहार मनाते थे। अब खालसा की स्थापना से सिक्खों ने पाँच ‘ककारों’ का पालन करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने बाहरी स्वरूप को भी जन-साधारण से अलग कर लिया।

9. हिन्दू धर्म की रक्षा-औरंगज़ेब हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार कर रहा था। खालसा के सिंह इन अत्याचारों का डट कर सामना करने लगे। खालसा से प्रभावित होकर देश के अन्य राज्यों के लोग भी औरंगजेब के अत्याचारों के विरुद्ध उठ खड़े हुए। परिणामस्वरूप हिन्दू धर्म मिटने से बच गया।

10. अन्ध-विश्वासों का अन्त-खालसा हिन्दुओं में प्रचलित अन्ध-विश्वासों को नहीं मानता था। उन्होंने यज्ञ, बलि, व्रत, मूर्ति पूजा तथा अन्य कई अन्ध-विश्वासों से नाता तोड़ लिया। इस प्रकार खालसा की साजना से अंध-विश्वासों तथा अज्ञान का नाश हुआ।

11. सिक्खों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान-खालसा के संगठन से सिक्खों में वीरता, निडरता, हिम्मत तथा आत्म-बलिदान की भावनाएँ जागृत हो उठीं। परिणामस्वरूप उन्होंने गुरु जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् भी मुग़लों से संघर्ष जारी रखा। अंतत: बन्दा बहादुर के नेतृत्व में उन्होंने पंजाब के बहुत-से प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। बन्दा . बहादुर के बाद सिक्खों को भले ही भयंकर कष्टों और भीषण संकट से गुज़रना पड़ा, तो भी उन्होंने बड़े साहस तथा दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। अंतत: पंजाब के विभिन्न भागों में छोटे-छोटे स्वतन्त्र सिक्ख राज्य (मिसलें) स्थापित हो गए।
सच तो यह है कि खालसा की स्थापना ने ‘सिंहों’ को ऐसा अडिग विश्वास प्रदान किया जिसे कभी भी विचलित नहीं किया जा सकता।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 17 चालुक्य तथा पल्लव

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 17 चालुक्य तथा पल्लव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 17 चालुक्य तथा पल्लव

SST Guide for Class 6 PSEB चालुक्य तथा पल्लव Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
दक्षिण भारत के चालुक्यों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
सातवाहन शासकों के पतन के पश्चात् दक्षिण भारत में छोटे-छोटे राज्य अस्तित्व . में आ गए। वाकाटकों ने एक मज़बूत राज्य बनाने का प्रयत्न किया लेकिन वह अधिक समय टिक न सका। उसी समय छठी शताब्दी ई० में दक्षिण भारत में शक्ति चालुक्य वंश के हाथों में आ गई। इन्होंने बीजापुर जिले में वातापी को अपनी राजधानी बनाया। पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन तथा पुलकेशिन द्वितीय आदि इस वंश के प्रमुख शासक थे। परन्तु पुलकेशिन द्वितीय इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसने नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्धन को बुरी तरह . से हराया था। उसने दक्षिण भारत के बहुत-से प्रदेशों को जीता था तथा तमिलनाडु के पल्लवों को हराया था। लेकिन वह पल्लव शासक नरसिंहवर्मन से हार गया तथा 642 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। पुलकेशिन द्वितीय के उत्तराधिकारी अयोग्य थे। इसलिए 8वीं शताब्दी के मध्य में राष्ट्रकूटों ने चालुक्यों को हराकर चालुक्य वंश का अन्त कर दिया।

प्रश्न 2.
चालुक्य मन्दिरों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
चालुक्य शासकों को मन्दिर निर्माण से विशेष प्रेम था। इसलिए उन्होंने एहोल, वातापी तथा पट्टदकल में अनेक प्रसिद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया। वीरूपाक्ष तथा पम्पनाथ के मन्दिर बहुत प्रसिद्ध हैं। चालुक्यों ने प्रमुख रूप से ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की पूजा के लिए मन्दिर बनवाए। इन मन्दिरों की दीवारों पर रामायण के दृश्यों को बहुत सुन्दर ढंग से दिखाया गया है। चालुक्यों ने वातापी में गफ़ा-मन्दिरों का भी निर्माण करवाया, जो अपनी कलात्मक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

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प्रश्न 3.
पल्लवों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
पल्लव शासक तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के कई भागों पर शासन करते थे। पहले वे सातवाहनों के अधीन थे। परंतु सातवाहनों के पतन के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। पल्लव राजवंश आंरभ में पल्लव राजा विष्णु, गोपवर्मन गुप्त शासक समुद्र गुप्त से हार गया था।

छठी शताब्दी के अन्त में सिंहवर्मन ने एक नवीन पल्लव वंश की स्थापना की। महेन्द्रवर्मन प्रथम, नरसिंहवर्मन प्रथम तथा नरसिंहवर्मन द्वितीय इस वंश के प्रसिद्ध शासक थे। महेन्द्रवर्मन चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के साथ लम्बे समय तक लड़ता रहा। वह चित्रकला तथा नाच-गाने का बहुत शौकीन था। नरसिंहवर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को युद्ध में हराया था। उसने श्रीलंका पर भी दो बार सफल हमले किए थे। नौवीं शताब्दी में पल्लव चोल राजाओं से हार गए तथा उनका राज्य समाप्त हो गया।

प्रश्न 4.
पल्लवों की मूर्ति कला एवं भवन-निर्माण के बारे में लिखें।
उत्तर-
पल्लव शासक कला तथा भवन निर्माण कला के महान् प्रेमी एवं संरक्षक थे। इन्होंने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया। इन्होंने महाबलिपुरम में समुद्र के तट पर कई गुफ़ा-मन्दिर बनवाए। इनमें से कुछ मन्दिरों को रथ-मन्दिर कहते हैं तथा इनके नाम महाभारत के पाण्डवों के नाम परं रखे गए हैं। पल्लवों ने अपनी राजधानी कांचीपुरम में कैलाशनाथ नामक एक प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया था। इनके मन्दिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों के अतिरिक्त पल्लव राजा-रानियों की मूर्तियां भी स्थापित थीं।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

  1. चालुक्य वंश के …………. एवं ……………. प्रसिद्ध राजा थे।
  2. चालुक्य शासक …………… के महान् संरक्षक थे।
  3. ……………… ने पल्लव वंश की नींव रखी।
  4. पल्लवों की राजधानी तामिलनाडु में चेन्नई के समीप ………. में थी।
  5. पल्लव ………….. एवं ……………. कला के प्रेमी तथा संरक्षक थे।

उत्तर-

  1. पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन
  2. कला
  3. सिंह वर्मन
  4. कांचीपुरम
  5. मूर्तिकला, भवन निर्माण।

III. सही जोड़े बनायें:

  1. ईरानी राजदूत – (क) चालुक्य मन्दिर
  2. वीरूपाक्ष – (ख) पुलकेशिन द्वितीय
  3. महाबलिपुरम – (ग) पल्लव राजा
  4. महेन्द्रवर्मन – (घ) रथ मन्दिर

उत्तर-सही जोड़े

  1. ईरानी राजदूत – पुलकेशिन द्वितीय
  2. वीरूपाक्ष – चालुक्य मन्दिर
  3. महाबलिपुरम – रथ मन्दिर
  4. महेन्द्रवर्मन – पल्लव राजा

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IV. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) बताएं

  1. पुलकेशिन द्वितीय का हर्षवर्धन से युद्ध हुआ।
  2. एहोल तथा पट्टदकल को समुद्र तट के लिए जाना जाता है।
  3. कांचीपुरम चालुक्यों की राजधानी थी।
  4. कैलाशनाथ मन्दिर पल्लवों ने बनवाया था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)

PSEB 6th Class Social Science Guide चालुक्य तथा पल्लव Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
चालुक्य दक्षिणी दक्कन के प्रसिद्ध राजा (छठी शताब्दी ई०) थे। उनकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
वातापी (बादामी)।

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प्रश्न 2.
चालुक्यों द्वारा बनवाए गए दो सबसे प्रसिद्ध मंदिरों के नाम बताएं।
उत्तर-
वीरूपाक्ष तथा पम्पनाथ मंदिर।

प्रश्न 3.
कांची का प्रसिद्ध ‘कैलाशनाथ मंदिर’ किस राजवंश के शासकों ने बनवाया था?
उत्तर-
पल्लव।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चालुक्यों ने किस धर्म को संरक्षण दिया?
(क) हिन्दू धर्म
(ख) जैन धर्म
(ग) इस्लाम धर्म।
उत्तर-
(ख) जैन धर्म

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प्रश्न 2.
नीचे दर्शाए गए मंदिर का निर्माण किस वंश के शासकों ने करवाया?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 17 चालुक्य तथा पल्लव 1
(क) पल्लव
(ख) चालुक्य
(ग) गुप्त।
उत्तर-
(क) पल्लव

प्रश्न 3.
भारत में कई विदेशी यात्री भारत आये। इनमें कुछ चीनी यात्री भी शामिल थे। इनमें से कौन-सा यात्री 641 ई० में पुलकेशिन द्वितीय के राज्य में आया था?
(क) फाह्यान
(ख) ह्यूनसांग
(ग) इत्सिंग।
उत्तर-
(ख) ह्यूनसांग

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुलकेशिन द्वितीय के राज्य में कौन-सा यात्री भारत आया था?
उत्तर-
पुलकेशिन द्वितीय के राज्य में चीनी यात्री ह्यनसांग भारत आया था।

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प्रश्न 2.
चालुक्य राजाओं ने किन-किन नगरों में कई प्रसिद्ध मन्दिर बनवाए?
उत्तर-
चालुक्य राजाओं ने एहोल, वातापी तथा पट्टदकल में कई प्रसिद्ध मन्दिर बनवाए।

प्रश्न 3.
पल्लव वंश का राज्य-विस्तार बताएं।
उत्तर-
पल्लव वंश का राज्य-विस्तार तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश के कई भागों में था।

प्रश्न 4.
गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने कौन-से पल्लव शासक को हराया था?
उत्तर-
गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने पल्लव शासक गोपवर्मन को हराया था।

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प्रश्न 5.
महाबलिपुरम के रथ मन्दिरों के नाम किन के नाम पर रखे गए हैं?
उत्तर-
महाबलिपुरम के रथ मन्दिरों के नाम महाभारत के पाण्डवों के नाम पर रखे गए हैं।

प्रश्न 6.
कांचीपुरम में स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर का नाम लिखो। यह किसने बनवाया था?
उत्तर-
कांचीपुरम में स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर ‘कैलाशनाथ’ है। यह मन्दिर पल्लव शासकों ने बनवाया था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चालुक्य राज्य की स्थापना पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
उत्तरी महाराष्ट्र तथा बरार (विदर्भ) में सातवाहनों के पतन के पश्चात् वाकाटकों ने एक शक्तिशाली राज्य की नींव रखने का यत्न किया लेकिन वे अपने प्रयत्नों में सफल न हो सके। फिर चालुक्य वंश ने छठी शताब्दी के आरम्भ में दक्षिण भारत के पश्चिम में अपना राज्य स्थापित कर लिया। इस वंश की राजधानी वातापी थी। इस वंश की स्थापना का श्रेय पुलकेशिन प्रथम को प्राप्त था।

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प्रश्न 2.
कीर्तिवर्मन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
कीर्तिवर्मन पुलकेशिन प्रथम का पुत्र था जो उसकी मृत्यु के पश्चात् चालुक्य वंश का राजा बना। कीर्तिवर्मन काफ़ी शक्तिशाली राजा था। उसने उत्तरी कोंकण तथा कन्नड़ प्रदेश को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसे भवन-निर्माण का बहुत शौक था। उसने वातापी में अनेक सुंदर तथा शानदार इमारतों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 3.
पल्लव राजा नरसिंहवर्मन के बारे में लिखें।
उत्तर-
नरसिंहवर्मन एक शक्तिशाली पल्लव राजा था। पल्लवों का चालुक्य वंश के साथ संघर्ष चलता रहता था। चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने महेन्द्रवर्मन को हराया था। लेकिन नरसिंहवर्मन ने पुलकेशिन द्वितीय को हरा दिया तथा उसको मार डाला। इसने कई अन्य विजयें भी प्राप्त की तथा अपने राज्य का विस्तार किया। इसने पाण्ड्य, चेर तथा चोल राजाओं के साथ युद्ध किए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुलकेशिन द्वितीय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली राजी था। उसने अपने 33 वर्षों के शासनकाल में अनेक युद्ध करके अपनी सैनिक योग्यता को सिद्ध किया। उसने सबसे पहले अपने चाचा को हरा कर उससे अपना राज्य वापिस लिया। उसने राष्ट्रकूटों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया तथा कादम्बों पर आक्रमण करके उनकी राजधानी बनवासी को लूटा। उसकी शक्ति से प्रभावित होकर गंगवादी के गंगों तथा मालाबार के अलूपों ने उसकी अधीनता स्वीकार की। उसने उत्तरी कोंकण के मौर्य राजा को भी हराया। दक्षिण गुजरात के लाटों, मालवों तथा गुज्जरों ने भी उसकी शक्ति को स्वीकार कर लिया था। उसकी सैनिक सफलताओं से डर कर चोल, चेर तथा पांड्य के राजाओं ने भी उसकी अधीनता मान ली थी। यहां तक कि उसने हर्षवर्धन को भी युद्ध में हरा कर पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था।

पुलकेशिन द्वितीय एक महान विजेता ही नहीं बल्कि उच्चकोटि का राजनीतिज्ञ भी था। उसने विदेशी राजाओं के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किए। उसने फारस के राजा खुसरू द्वितीय के पास अपना राजदूत भी भेजा।

परन्तु पुलकेशिन द्वितीय के अन्तिम दिन बड़े कष्टमय थे। पल्लवों ने अपने शासक नरसिंहवर्मन के नेतृत्व में चालुक्य राज्य पर कई बार सफल हमले किए तथा उसकी राजधानी वातापी को नष्ट कर दिया। 642 ई० में पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो गई।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 17 चालुक्य तथा पल्लव

प्रश्न 2.
महाबलिपुरम के मन्दिरों की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
महाबलिपुरम के मन्दिर चेन्नई से 69 किलोमीटर दूर महाबलिपुरम में स्थित हैं। ये मन्दिर पल्लव शासकों विशेष तौर पर महेन्द्रवर्मन तथा उसके पुत्र नरसिंहवर्मन द्वारा सातवीं शताब्दी में बनाए गए थे। इनमें से कुछ मन्दिरों को रथ मन्दिर कहा जाता है क्योंकि थोड़ी दूर से देखने पर इनका आकार रथ जैसा ही दिखाई देता है। इन रथ मन्दिरों के नाम पांडवों के नाम पर द्रौपदी रथ, धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ आदि रखे गए हैं। ये मन्दिर एक ही चट्टान को काट कर बनाए गए हैं तथा इनमें कहीं भी जोड़ नहीं है। इन मन्दिरों में जो मूर्तियां रखी गई हैं, वे भी एक चट्टान को काटकर बनाई गई हैं। ये मूर्तियां बहुत सुन्दर तथा विशाल हैं। ये सभी मन्दिर शैव मन्दिर हैं। इन मन्दिरों के मुख्य दरवाज़ों को अच्छी प्रकार से सजाया गया है तथा मन्दिरों की दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियों के अलावा पल्लव राजाओं-रानियों की मूर्तियां भी हैं।
महाबलिपुरम में ही पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वारा समुद्र तट पर बनवाए कई गुफ़ामन्दिर हैं जिन्हें कई प्रकार की मूर्तियों से सजाया गया है।

चालुक्य तथा पल्लव PSEB 6th Class Social Science Notes

  • चालुक्य वंश के महत्त्वपूर्ण राजा – चालुक्य वंश के आरम्भिक दो महत्त्वपूर्ण राजा पुलकेशिन प्रथम तथा कीर्तिवर्मन थे।
  • चालुक्य वंश की राजधानी – चालुक्य वंश की राजधानी वातापी थी, जिसे आजकल बादामी कहते हैं।
  • चालुक्य वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा – चालुक्य वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा पुलकेशिन द्वितीय था।
  • चालुक्य वंश का अन्त – चालुक्य वंश का अन्त 800 ई० के मध्य में हुआ।
  • पल्लवों के राज्य की स्थापना – पल्लवों के राज्य की स्थापना भी दक्षिणी भारत में चालुक्य वंश के साथ ही हुई थी। इस वंश का तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश के कई भागों पर शासन था।
  • पल्लवों की राजधानी – पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम थी।
  • पल्लव वंश के प्रसिद्ध राजा – विष्णुगोपवर्मन, सिंहवर्मन, महेन्द्रवर्मन तथा नरसिंहवर्मन प्रथम, पल्लव वंश के प्रसिद्ध राजा थे।
  • पल्लव काल के गुफ़ामन्दिर – पल्लव काल में महाबलिपुरम् में समुद्र तट पर गुफ़ा-मन्दिरों का निर्माण हुआ था।
  • पल्लव शासकों का धर्म – पल्लव शासक जैन तथा शैव धर्म के अनुयायी थे, लेकिन वे अन्य धर्मों का भी सम्मान करते थे
  • मणिमेखलाई तथा शिल्पादिकरम – मणिमेखलाई तथा शिल्पादिकरम पल्लव काल में लिखी गई दो महान् पुस्तकें थीं।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

महाराजा रणजीत सिंह का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Maharaja Ranjit Singh)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के आरंभिक जीवन के बारे में विस्तार से लिखें।
(Describe in detail the early life of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के प्रारंभिक जीवन का वर्णन कीजिए। उसका प्रारंभिक जीवन कहाँ तक शिवाजी के जीवन से भिन्न था ?
(Describe the early life of Maharaja Ranjit Singh. How far is his early life different from that of Shivaji ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का सिख इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसने अपनी योग्यता के बल पर अपने छोटे से राज्य को एक विस्तृत साम्राज्य में बदल दिया। महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में सिख राज्य के स्वप्न को साकार किया। महाराजा रणजीत सिंह के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-रणजीत सिंह का जन्म शुकरचकिया मिसल के नेता महा सिंह के घर 1780 ई० में हुआ था। उनकी जन्म तिथि और जन्म स्थान के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद पाया जाता है । ओसबोर्न, ग्रिफिन, लतीफ़ एवं कन्हैया लाल जैसे इतिहासकार रणजीत सिंह के जन्म की तिथि 2 नवंबर, 1780 ई० बताते हैं। दूसरी ओर सोहन लाल सूरी तथा दीवान अमरनाथ जो कि रणजीत सिंह के समकालीन इतिहासकार थे, रणजीत सिंह की जन्म तिथि 13 नवंबर, 1780 ई० बताते हैं। इसी प्रकार रणजीत सिंह के जन्म स्थान के विषय में भी कुछ इतिहासकारों का विचार है कि रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला में हुआ जबकि कुछ का विचार है कि उनका जन्म जींद राज्य के बडरुखाँ (Badrukhan) नामक स्थान पर हुआ। आधुनिक इतिहासकार गुजरांवाला को रणजीत सिंह का जन्म स्थान मानते हैं। रणजीत सिंह की माता का नाम राज कौर था क्योंकि वह मालवा प्रदेश की रहने वाली थी इसलिए वह माई मलवैण व माई मलवई के नाम से प्रसिद्ध हुई। रणजीत सिंह के बचपन का नाम बुध सिंह था।

2. बचपन और शिक्षा (Childhood and Education) रणजीत सिंह अपने माता-पिता की एक मात्र संतान था इसलिए उसका पालन पोषण बहुत लाड-प्यार से किया गया था। रणजीत सिंह अभी छोटा ही था कि उस पर चेचक का भयंकर आक्रमण हो गया। इस बीमारी के कारण रणजीत सिंह की बाईं आँख सदा के लिए खराब हो गई। रणजीत सिंह जब 5 वर्ष का हुआ तो उसे गुजरांवाला में भाई भाग सिंह के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा गया। क्योंकि रणजीत सिंह की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी इसलिए वह जीवन पर्यंत अनपढ़ ही रहा। रणजीत सिंह ने भी अपना अधिकतर समय घुड़सवारी करने, तलवारबाजी सीखने और शिकार खेलने में व्यतीत किया। रणजीत सिंह की योग्यता को देखते हुए उसके पिता महा सिंह ने यह भविष्यवाणी की थी,
“गुजरांवाला का राज्य मेरे वीर पुत्र रणजीत सिंह के लिए पर्याप्त नहीं होगा। वह एक महान् योद्धा बनेगा ।”1

3. वीरता के कारनामे (Acts of Bravery) रणजीत सिंह अभी 12 वर्ष का भी नहीं हुआ था कि जब उसे लड़ाई में जाने का प्रथम अवसर मिला। सौद्धरां दुर्ग के आक्रमण के समय महा सिंह अपने पुत्र रणजीत सिंह को भी साथ ले गया। अचानक बीमार हो जाने के कारण महा सिंह ने सेना की कमान रणजीत सिंह के सुपुर्द की। रणजीत सिंह ने न केवल दुश्मनों के दाँत खट्टे किए, बल्कि उनका गोला-बारूद भी लूट लिया। इस विजय के कारण महा सिंह ने अपने पुत्र का नाम बुध सिंह से बदल कर रणजीत सिंह रख दिया। रणजीत सिंह से भाव है रण (लड़ाई) को जीतने वाला शेर। 1793 ई० में एक बार रणजीत सिंह शिकार खेलता हुआ अकेला लाडोवाली गाँव के समीप पहुँच गया। चट्ठा कबीले का सरदार हशमत खाँ उसे अकेला देखकर एक झाड़ी में छुप गया। जब रणजीत सिंह उस झाड़ी के पास से गुज़रा तो हशमत खाँ ने अपनी तलवार से रणजीत सिंह पर प्रहार किया। रणजीत सिंह ने तीव्रता से हशमत खाँ पर जवाबी प्रहार किया और उसका सिर धड़ से जुदा कर दिया।

4. विवाह (Marriage)-रणजीत सिंह की 6 वर्ष की अल्पायु में ही कन्हैया मिसल के मुखिया जय सिंह की पौत्री मेहताब कौर के साथ सगाई कर दी गई थी। जब रणजीत सिंह 16 वर्ष का हो गया था तो उसका विवाह बहुत धूम-धाम से किया गया। रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने रणजीत सिंह को शक्ति बढ़ाने में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। ग्रिफ़िन के अनुसार रणजीत सिंह की 18 रानियाँ थीं।

5. तिक्कड़ी का संरक्षण (The Triune Regency)-1792 ई० में अपने पिता की मृत्यु के समय रणजीत सिंह नाबालिग था। इसलिए राज्य-व्यवस्था का कार्य उसकी माता राज कौर के हाथ में आ गया। परन्तु उसने शासन-व्यवस्था का कार्य अपने एक चहेते दीवान लखपत राय को सौंप दिया। 1796 ई० में जब रणजीत सिंह का विवाह हो गया तो उसकी सास सदा कौर भी शासन-व्यवस्था में रुचि लेने लग पड़ी। इस प्रकार 1792 ई० से लेकर 1797 ई० तक शासन-व्यवस्था तीन व्यक्तियों-राज कौर, दीवान लखपतराय और सदा कौर के हाथ में रही। इसलिए इस काल को तिक्कड़ी के संरक्षण का काल कहा जाता है।

6. तिक्कड़ी के संरक्षण का अंत (The End of Triune Regency)-जब रणजीत सिंह 17 वर्ष का हो गया तो उसने शासन-व्यवस्था को अपने हाथों में लेने का निर्णय किया। कुछ यूरोपीय व मुस्लिम इतिहासकारों ने यह प्रमाणित करने का यत्न किया है कि रणजीत सिंह ने अपनी माता तथा दीवान लखपत राय की अवैध संबंधों के कारण हत्या कर दी थी। परंतु डॉ० एन० के० सिन्हा, सीताराम कोहली तथा खुशवंत सिंह का कथन है कि यदि ऐसा हुआ होता तो समकालीन इतिहासकार इसका वर्णन अवश्य करते। दूसरा, रणजीत सिंह पर यह आरोप उसके चरित्र के साथ मेल नहीं खाता। रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में बड़े-से-बड़े अपराधी को भी मृत्यु-दंड नहीं दिया था। ऐसा शासक भला अपनी माता की कैसे हत्या कर सकता है। डॉ०एच० आर० गुप्ता अनुसार, “यह कहानी पूरी तरह अनुचित तथा पक्षपात पर आधारित थी।”2

1. “The State of Gujranwala will not be a sufficient place for my brave son Ranjit Singh. He would become a great warrior.” Mahan Singh.
2. “The story is purely malicious and absolutely unfair and unjust.” Dr. H.R. Gupta, History of the Sikhs (New Delhi : 1991) Vol.5, p.10.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें 1
MAHARAJA RANJIT SINGH

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

पंजाब की राजनीतिक दशा (Political Condition of the Punjab)

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के गद्दी पर बैठते समय पंजाब की राजनीतिक हालत का वर्णन करो।
(Describe the political condition of Punjab on the eve of Maharaja Ranjit Singh’s accession to power.)
अथवा
रणजीत सिंह के गद्दी पर बैठते समय पंजाब की राजनीतिक अवस्था कैसी थी ? यह अवस्था उसकी शक्ति के उत्थान में कैसे सहायक हुई ?
(What was the political condition of Punjab on the eve of Ranjit Singh’s accession ? How did this condition prove helpful in his rise to power ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के राजगद्दी पर बैठते समय पंजाब की राजनीतिक टिप्पणी कैसी थी? व्याख्या करें।
(What was the political condition of the Punjab on the eve of Maharaja Ranjit Singh’s accession to throne ? Describe it.)
उत्तर-
1797 ई० में रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली थी तो पंजाब में चारों ओर अशाँति व अराजकता फैली हुई थी। पंजाब में मुग़लों का शासन समाप्त हो चुका था और उसके खंडहरों पर सिखों, अफ़गानों और राजपूतों ने अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित कर लिए थे। पंजाब की यह राजनीतिक दशा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। महाराजा रणजीत सिंह के समय की राजनीतिक दशा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

सिख मिसलें (The Sikh Misls)
पंजाब के अधिकाँश भाग में सिखों की 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित थीं। रणजीत सिंह के सौभाग्य से 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों तक कोई भी मिसल बहुत शक्तिशाली नहीं रही थी। मुख्य मिसलों का विवरण निम्न प्रकार है—
1. भंगी मिसल (Bhangi Misl) रणजीत सिंह के उत्थान से पूर्व सतलुज नदी के उत्तर-पश्चिम की ओर भंगी मिसल काफ़ी शक्तिशाली थी। इस मिसल में पंजाब के दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शहर लाहौर तथा अमृतसर सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त गुजरात एवं स्यालकोट भी इनके अधीन थे। भंगी सरदारों में चेत सिंह, साहेब सिंह तथा मोहर सिंह प्रमुख थे। इन सभी भंगी शासकों को भांग पीने तथा अफ़ीम खाने का व्यसन था। वे अपने अत्याचारों के कारण अपनी प्रजा में बहुत बदनाम थे। अतः यह मिसल बहुत तीव्रता से अपने अंत की और बढ़ रही थी।

2. आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)—आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह आहलूवालिया था। वह एक महान् योद्धा था। उसने जालंधर दोआब तथा बारी दोआब के कुछ क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। 1783 ई० में इस योद्धा का देहांत हो गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। किन्तु उसमें जस्सा सिंह आहलूवालिया जैसे गुणों का अभाव था।

3. कन्हैया मिसल (Kanahiya Misl) कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह कन्हैया था। उसके अधीन मुकेरियाँ, गुरदासपुर, दातारपुर, धर्मपुर तथा पठानकोट के क्षेत्र थे। 1786 ई० में जय सिंह के बेटे गुरबख्श सिंह की मृत्यु हो गई थी। वह अपने पिता की भांति बहादुर था। 1796 ई० में गुरबख्श सिंह की बेटी मेहताब कौर का विवाह महाराजा रणजीत सिंह के साथ हुआ। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् इस मिसल का नेतृत्व गुरबख्श सिंह की विधवा सदा कौर के हाथ में आ गया। वह एक महत्त्वाकांक्षी स्त्री थी।

4. शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl) शुकरचकिया मिसल का संस्थापक रणजीत सिंह का दादा चढ़त सिंह था। उसने गुजरांवाला, ऐमनाबाद और स्यालकोट के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। 1774 ई० में चढ़त सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका बेटा महा सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। उसने भी शुकरचकिया मिसल के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1792 ई० में रणजीत सिंह अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। क्योंकि उस समय रणजीत सिंह अभी काफ़ी छोटा (12 वर्ष) था इसलिए शासन प्रबंध 1797 ई० तक मुख्यतया रणजीत सिंह की माता राज कौर, दीवान लखपत राय तथा सास सदा कौर के हाथों में रहा।

5. रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)—स० जस्सा सिंह रामगढ़िया बहुत उत्साही, वीर तथा योद्धा था। उसके राज्य में गुरदासपुर, कलानौर, बटाला तथा कादियाँ शामिल थे। चूंकि जस्सा सिंह रामगढ़िया काफ़ी वृद्ध हो चुका था इसलिए वह रणजीत सिंह के मार्ग में बाधा नहीं बन सकता था।

6. फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सिख पंथ का सबसे संकटमयी समय में योग्यतापूर्वक नेतृत्व किया था। वह एक बहादुर एवं योग्य सरदार था। इस मिसल का क्षेत्र जालंधर, बहरामपुर, नूरपुर, पट्टी आदि तक फैला हुआ था। 1795 ई० में उसका पुत्र बुध सिंह सिंहासन पर बैठा। वह कोई योग्य शासक प्रमाणित न हुआ।

7. अन्य मिसलें (Other Misls)-उपर्युक्त मिसलों के अतिरिक्त उस समय पंजाब में डल्लेवालिया, फुलकियाँ, करोड़सिंघिया, निशानवालिया एवं शहीद नामक मिसलें भी स्थापित थीं।

मुसलमानों के राज्य (Muslim States)
18वीं शताब्दी के अंत में पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों ने कई स्वतंत्र रियासतें स्थापित कर ली थीं। इनमें से कसूर, मुलतान, कश्मीर, अटक और पेशावर की रियासतें प्रसिद्ध थीं। कसूर पर पठान शासक निज़ामुद्दीन, मुलतान में मुज्जफर खाँ, कश्मीर में अत्ता मुहम्मद खाँ, अटक में जहाँदद खाँ और पेशावर में फ़तह खाँ का शासन था। इनके अतिरिक्त कुछ छोटी अन्य मुस्लिम रियायतें भी अस्तित्व में थीं। इन शासकों में भी परस्पर एकता नहीं थी। फलस्वरूप उनमें से कोई भी इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह रणजीत सिंह के मार्ग में बाधा डाल सके।

पहाड़ी रियासतें (Hilly States)
पंजाब के उत्तर में बहुत-सी स्वतंत्र पहाड़ी रियासतें स्थापित थीं जिनमें से काँगड़ा की रियासत सुविख्यात थी। काँगड़ा का राजपूत शासक संसार चंद कटोच समस्त पंजाब को अपने अधिकार में लेना चाहता था। काँगड़ा के अतिरिक्त मंडी, कुल्लू, चंबा, सुकेत, नूरपुर तथा जम्मू की पहाड़ी रियासतों में भी राजपूत शासकों का शासन था। इनके शासक बहुत दुर्बल थे और वे परस्पर झगड़ते रहते थे।

गोरखे (The Gorkhas)
नेपाल के गोरखे अपनी बहादुरी के लिए विश्व भर में विख्यात थे। 18वीं शताब्दी के अंत में गोरखों ने अपनी शक्ति का विस्तार पंजाब की ओर करना आरंभ कर दिया था। 1794 ई० में उन्होंने गढ़वाल और कमाऊँ पर अधिकार कर लिया था। भीम सेन थापा अपने योग्य पुत्र अमर सिंह थापा के नेतृत्व में पंजाब पर आक्रमण करना चाहता था। इसलिए रणजीत सिंह तथा गोरखों के बीच टकराव होना अनिवार्य था।

जॉर्ज थॉमस (George Thomas)
जॉर्ज थॉमस एक निडर अंग्रेज़ था। उसने पंजाब के दक्षिण-पूर्व में हाँसी में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली थी। यहाँ उसने अपने ही नाम पर ‘जॉर्जगढ़’ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया था। उसने कई बार पटियाला तथा जींद प्रदेशों पर आक्रमण करके लूटपाट की। जॉर्ज थॉमस का शासन थोड़े समय के लिए रहा। उसे फ्रांसीसी जनरल पैरों ने पराजित कर दिया था, परंतु वह भी अधिक समय तक शासन न कर पाया।

मराठा (Marathas)
1797 ई० तक मराठों ने अपने योग्य नेता दौलत राव सिंधिया के नेतृत्व में मेरठ एवं दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। वह पंजाब को अपने अधीन करने के स्वपन देख रहा था। एक अन्य मराठा नेता धारा राव ने पंजाब के दक्षिण-पूर्व में स्थित फुलकियाँ मिसल पर कुछ आक्रमण भी किए थे। रणजीत सिंह के सौभाग्यवश ठीक उसी समय मराठों को अंग्रेजों के साथ उलझना पड़ गया। इस कारण वे पंजाब की ओर अपना ध्यान न दे पाए।

अंग्रेज़ (The British)
18वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेज़ भले ही पंजाब की ओर ललचाई हुई दृष्टि से देख रहे थे, किंतु वे मराठों, निज़ाम तथा अन्य उलझनों में उलझे हुए थे। इसलिए रणजीत सिंह को अंग्रेज़ों की ओर से कोई तुरंत ख़तरा नहीं था।

शाह ज़मान (Shah Zaman)
1793 ई० में शाह ज़मान अफ़गानिस्तान का नया शासक बना था। उसने पंजाब पर अधिकार करने हेतु उसने 1793 ई० से 1798 ई०के दौरान चार बार आक्रमण किए। परंतु हर बार उसके गृह प्रदेश में विद्रोह हो जाता। इस कारण शाह ज़मान को विद्रोह का दमन करने के लिए वापिस जाना पड़ा। इस प्रकार रणजीत सिंह की शक्ति के लिए उत्पन्न होने वाला संकट भी टल गया।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० जी० एल० चोपड़ा का कथन है,
“19वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा दृढ़-निश्चयी तथा श्रेष्ठ व्यक्ति के उत्थान के लिए पूर्ण रूप से अनुकूल थी जो परस्पर विरोधी तत्त्वों को जोड़ कर एक संगठित राज्य स्थापित कर पाए तथा जैसे कि हम देखेंगे, रणजीत सिंह ने इस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाया।”3

3. “Thus the political situation on the eve of the 19th century was eminently suited for the rise of a resolute and outstanding personality who might weld these discordant elements steadily organised kingdom, and as we shall see, Ranjit Singh availed himself of this opportunity.’ Dr. G.L. Chopra, The Punjab As A Sovereign State (Hoshiarpur : 1960) p. 6.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

सिरव मिसलों के प्रति रणजीत सिंह की नीति (Ranjit Singh’s Policy towards the Sikh Misls)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के सिख मिसलों के साथ संबंधों का वर्णन करें। (Describe the relations of Maharaja Ranjit Singh with the Sikh Misls.)
अथवा
रणजीत सिंह की मिसल नीति की आलोचनात्मक चर्चा करें। (Examine critically the Misl policy of Ranjit Singh)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (Give an account of the salient features of the Misl policy of Ranjit Singh.)
उत्तर-
1797 ई० में जब रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उसका राज्य छोटे से प्रदेश तक ही सीमित था । वह अपने राज्य को साम्राज्य में परिवर्तित करना चाहता था। इस संबंध में उसने सर्वप्रथम अपना ध्यान पंजाब की सिख मिसलों की ओर लगाया।

मिसल नीति की विशेषताएँ (Characteristics of the Misl Policy)
रणजीत सिंह की सिख मिसलों के प्रति नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—

  1. राज्य विस्तार के लिए न तो रिश्तेदारी और न ही कृतज्ञता की भावना को कोई महत्त्व देना।
  2. यह नहीं देखना कि राज्य पर अधिकार करना न्यायपूर्ण है अथवा नहीं ।
  3. शक्तिशाली मिसल सरदारों के साथ मित्रता तथा विवाह-संबंध स्थापित करना ताकि राज्य–विस्तार के लिए उनका सहयोग प्राप्त किया जा सके।
  4. दुर्बल मिसलों पर आक्रमण करके उनके प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित करना।
  5. अवसर पाकर मित्र मिसल सरदारों से विश्वासघात करना।
  6. सिखों की केंद्रीय संस्था ‘गुरमता’ को समाप्त करना ताकि कोई मिसलदार रणजीत सिंह की समानता न कर सके ।

शक्तिशाली मिसलों के प्रति नीति (Policy Towards the Powerful Misls)
1. कन्हैया मिसल के साथ विवाह संबंध (Matrimonial Relations with Kanahiya Misl) रणजीत सिंह ने सर्वप्रथम कन्हैया मिसल के गुरबख्श सिंह की पुत्री मेहताब कौर से 1796 ई० में विवाह करवा लिया। इस कारण रणजीत सिंह की स्थिति मज़बूत हो गई। रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने रणजीत सिंह को लाहौर, भसीन
और अमृतसर की विजय के समय बहुमूल्य सहायता प्रदान की।

2. नकई मिसल से विवाह संबंध (Matrimonial Relations with Nakai Misl)–तरनतारन में रणजीत सिंह ने 1798 ई० में नकई मिसल के सरदार खज़ान सिंह की पुत्री राज कौर से दूसरा विवाह करवा लिया। इस विवाह के कारण रणजीत सिंह को अपने राज्य के विस्तार में नकई मिसल से भी पर्याप्त सहयोग प्राप्त हुआ।

3. फ़तह सिंह आहलूवालिया से मित्रता (Friendship with Fateh Singh Ahluwalia) रणजीत सिंह के समय आहलूवालिया मिसल एक शक्तिशाली मिसल थी। उस समय इस मिसल का नेता फ़तह सिंह आहलूवालिया था। 1801 ई० में रणजीत सिंह और फ़तह सिंह आहलूवालिया ने परस्पर पगड़ियाँ बदली तथा गुरु ग्रंथ साहिब के सामने शपथ ली कि वे सदा भाइयों की भाँति रहेंगे और दुःख-सुख में एक दूसरे का साथ देंगे। इसके पश्चात् फ़तह सिंह ने रणजीत सिंह की अनेक लड़ाइयों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

4. जोध सिंह रामगढ़िया से मित्रता (Friendship with Jodh Singh Ramgarhia)-1803 ई० में सरदार जोध सिंह रामगढ़िया मिसल का नया सरदार बना। वह भी अपने पिता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया की भाँति बड़ा वीर था। रणजीत सिंह ने कूटनीति से काम लेते हुए जोध सिंह से मित्रता कर ली। जोध सिंह ने कई सैनिक अभियानों में रणजीत सिंह की सहायता की थी।

5. तारा सिंह घेबा से मित्रता (Friendship with Tara Singh Gheba)–तारा सिंह घेबा डल्लेवालिया मिसल का नेता था। वह वीर तथा शक्तिशाली था। इसलिए रणजीत सिंह ने उससे भी मित्रता के संबंध स्थापित किए।

दुर्बल मिसलों के प्रति नीति (Policy towards the Weak Misls)
रणजीत सिंह ने जहाँ एक ओर शक्तिशाली मिसलों से मित्रता स्थापित की वहाँ दूसरी ओर कमज़ोर मिसलों पर आक्रमण करके उन को अपने राज्य में सम्मिलित करने की नीति अपनाई। इनका विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. भंगी मिसल (Bhangi Misl) रणजीत सिंह ने जुलाई 1799 ई० में भंगी सरदारों से लाहौर छीन लिया था। यह विजय रणजीत सिंह की सबसे महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। 1805 ई० में गुलाब सिंह भंगी की विधवा माई सुक्खाँ को पराजित करके अमृतसर पर अधिकार कर लिया। इसी प्रकार रणजीत सिंह ने 1808 ई० में स्यालकोट के जीवन सिंह भंगी को और 1809 ई० में गुजरात के साहिब सिंह भंगी को हराकर उनके प्रदेशों को अपने राज्य में शामिल कर लिया था। इन विजयों के परिणामस्वरूप भंगी मिसल समाप्त हो गई।

2. डल्लेवालिया मिसल (Dallewalia MisI)-रणजीत सिंह ने डल्लेवालिया मिसल के नेता तारा सिंह घेबा से मित्रता की थी । 1807 ई० में तारा सिंह घेबा का देहांत हो गया। उसी समय रणजीत सिंह ने आक्रमण करके डल्लेवालिया मिसल के क्षेत्रों राहों, नकोदर तथा नौशहरा आदि को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।

3. करोड़सिंधिया मिसल (Karorsinghia Misl)-1809 ई० में करोड़सिंघिया मिसल के नेता बघेल सिंह की मृत्यु हो गई। यह स्वर्ण अवसर पाकर रणजीत सिंह की सेना ने करोड़सिंघिया मिसल पर अधिकार कर लिया।

4. नकई मिसल (Nakkai Misl)-नकई मिसल से महाराजा रणजीत सिंह के गहरे संबंध थे परंतु रणजीत सिंह ने 1810 ई० में नकई मिसल पर आक्रमण करके इसके नेता काहन सिंह के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

5. फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-1795 ई० में बुद्ध सिंह फैज़लपुरिया मिसल का नया नेता बना। वह बड़ा अयोग्य था। परिणामस्वरूप फैजलपुरिया मिसल का पतन होना आरंभ हो गया। रणजीत सिंह ने इस स्वर्ण अवसर को देखकर 1811 ई० में फैज़लपुरिया मिसल पर अधिकार कर लिया।

मित्र मिसलों के प्रति नीति में परिवर्तन (Change in the Policy towards the Friendly Misls)
जब महाराजा रणजीत सिंह का राज्य काफ़ी सुदृढ़ हो गया तो उसने अब मित्र मिसलों के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन करना उचित समझा। इस नीति का वर्णन अग्रलिखित अनुसार है—
1. कन्हैया मिसल (Kanahiya Misl)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1796 ई० में कन्हैया मिसल के गुरबख्श सिंह तथा उसकी पत्नी सदा कौर की पुत्री मेहताब कौर से विवाह किया था। परंतु 1821 ई० में महाराजा ने अपनी सास सदा कौर को बंदी बना लिया तथा उसके प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

2. रामगढ़िया मिसल (Ramgharhia Mis)-जब तक जोध सिंह रामगढ़िया जीवित रहा, महाराजा ने उससे मित्रता के संबंध बनाए रखे, परंतु 1815 ई० में जब जोध सिंह की मृत्यु हो गई तो रणजीत सिंह ने रामगढ़िया मिसल पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।

3. आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)—फ़तह सिंह आहलूवालिया से रणजीत सिंह की गहरी मित्रता थी। उसने कई सैनिक अभियानों में रणजीत सिंह की सहायता की थी। 1825-26 ई० में फ़तह सिंह आहलूवालिया अपने परिवार सहित अंग्रेज़ों की शरण में चला गया। महाराजा रणजीत सिंह ने फ़तह सिंह के सभी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1827 ई० में दोनों में पुनः समझौता हो गया। महाराजा रणजीत सिंह ने कुछ क्षेत्र फ़तह सिंह आहलूवालिया को लौटा दिए जबकि शेष अपने राज्य में शामिल रखे।

गुरमता की समाप्ति (Abolition of Gurmata)
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता मिसल सरदारों की एकता, संगठन तथा समानता का प्रतीक था। गुरमता की सभा अमृतसर में अकाल तख्त पर हुआ करती थी। विभिन्न मिसलों के सरदार इस सभा में महत्त्वपूर्ण विषयों पर संयुक्त रूप से विचार-विमर्श करते थे। 1805 ई० में गुरमता संस्था को समाप्त कर दिया। इस संस्था की समाप्ति से महाराजा रणजीत सिंह अपने राजनीतिक निर्णय लेने में पूर्णतया स्वतंत्र हो गया।

(क) मिसल नीति की आलोचना (Criticism of the Misl Policy)
कुछ इतिहासकारों ने, जिनमें ग्रिफ़िन, सिन्हा तथा लतीफ़ शामिल हैं, ने महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति की निम्नलिखित आधार पर आलोचना की है—
1. महाराजा रणजीत सिंह ने डल्लेवालिया, भंगी, फैजलपुरिया, नकई तथा करोड़सिंघिया मिसलों पर आक्रमण करके उनके प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इन सरदारों ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था।

2. महाराजा रणजीत सिंह की मिसलों के प्रति नीति पूर्णतया स्वार्थपूर्ण तथा अनैतिक थी। उसने उन शक्तिशाली मिसल सरदारों से भी अच्छा व्यवहार न किया जिन्होंने उसके उत्थान में सहायता की थी । यहाँ तक कि उसने 1821 ई० में अपनी सास सदा कौर के प्रदेशों को भी अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था। डॉ० एन० के० सिन्हा के कथनानुसार,
“रणजीत सिंह की नीति सभी मिसलों को हड़प कर जाने की नीति थी। न तो रिश्तेदारी के बंधन और न ही कृतज्ञता की भावना उसके मार्ग में बाधा डाल सकती थी।”4

3. रणजीत सिंह की मिसल नीति का मुख्य उद्देश्य सब सिख मिसलों को हड़पना था। इस संबंध में उसने न किसी रिश्तेदार तथा न ही किसी की कृतज्ञता की भावना को देखा।

4. “Ranjit Singh’s policy was one of absorption of all the Sikh confederacies. No tie of kinship, no sentiment of gratitude was strong enough to stand in his way.” Dr. N.K. Sinha, Ranjit Singh (Calcutta 1975), p. 66..

(ख) मिसल नीति की उचितता (Justification of the Misl Policy)
कुछ अन्य निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति को उचित ठहराते हैं—

  1. महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित मिसल सरदारों के प्रति दयालुता का रुख अपनाया। उन्हें निर्वाह के लिए बड़ी-बड़ी जागीरें दीं।
  2. महाराजा रणजीत सिंह ने मिसलों को समाप्त करके कोई गलत कार्य नहीं किया। ऐसा करके वह एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की स्थापना कर सका।
  3. महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति पंजाब के लोगों के लिए एक वरदान सिद्ध हुई। इसने पंजाब में एक नए युग का सूत्रपात किया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

महाराजा रणजीत सिंह की विजयें (Conquests of Maharaja Ranjit Singh)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह की विजयों का संक्षिप्त विवरण लिखें।
(Give a brief description of the victories of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मुख्य विजयों का वर्णन करें। (Explain the conquests of Maharaja Ranjit Singh.)
अथवा
“महाराजा रणजीत सिंह एक विजयी और साम्राज्य निर्माता था।” इस कथन की व्याख्या करते हुए महाराजा रणजीत सिंह की विजयों पर संक्षिप्त प्रकाश डालें।
(“Maharaja Ranjit Singh was a great conqueror and an empire-builder.” In the light of this statement, give a brief account of the important conquests of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक महान् विजेता था। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा तो वह एक छोटीसी रियासत शुकरचकिया का सरदार था, किंतु उसने अपनी वीरता व योग्यता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। महाराजा रणजीत सिंह की विजयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. लाहौर की विजय 1799 ई० (Conquest of Lahore 1799 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह की सर्वप्रथम तथा महत्त्वपूर्ण विजय लाहौर की थी । लाहौर कई वर्षों से पंजाब की राजधानी चली आ रही थी। उस समय लाहौर पर तीन भंगी सरदारों-साहिब सिंह, मोहर सिंह तथा चेत सिंह का शासन था। लोग उनके अत्याचारों तथा कुशासन के कारण बहुत दुःखी थे। अफ़गानिस्तान के शासक शाह ज़मान ने नवंबर, 1798 ई० में लाहौर पर आसानी से अधिकार कर लिया परंतु काबुल में बगावत हो जाने के कारण शाहज़मान को वापिस जाना पड़ा। इस स्थिति का लाभ उठाकर भंगी सरदारों ने पुनः लाहौर पर अधिकार कर लिया। इस पर लाहौर की प्रजा ने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर अधिकार करने का निमंत्रण दिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सास सदा कौर की सहायता से 6 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण का समाचार मिलते ही भंगी सरदार लाहौर छोड़कर भाग गए। इस तरह रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। फकीर सैयद वहीदउद्दीन के अनुसार,
“इस (लाहौर) के अधिकार ने रणजीत सिंह की शक्ति एवं महत्त्व को ही नहीं बढ़ाया अपितु इससे उसको शेष पंजाब पर अधिकार करने का राजकीय अधिकार भी मिल गया।”5

2. भसीन की लड़ाई 1800 ई० (Battle of Bhasin 1800 A.D.)-लाहौर की विजय के कारण अधिकाँश सरदार महाराजा के विरुद्ध हो गये। अमृतसर के गुलाब सिंह भंगी तथा कसूर के निजामुद्दीन महाराजा के विरुद्ध अपनी सेनाओं को लेकर लाहौर के समीप भसीन नामक गाँव में पहुँच गये। अकस्मात् एक दिन गुलाब सिंह भंगी जो कि गठजोड़ का नेता था, अधिक शराब पीने के कारण मर गया। इससे महाराजा रणजीत सिंह के विरोधियों का साहस टूट गया। इस तरह बिना रक्तपात के ही महाराजा रणजीत सिंह को विजय प्राप्त हुई।

3. अमृतसर की विजय 1805 ई० (Conquest of Amritsar 1805 A.D.)-धार्मिक पक्ष से अमृतसर शहर का सिखों के लिये महत्त्व था। सिख इसको अपना ‘मक्का’ समझते थे। पंजाब का महाराजा बनने के लिए महाराजा रणजीत सिंह के लिये अमृतसर पर अधिकार करना बहुत आवश्यक था। 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खाँ को जो अमृतसर में अपने अवयस्क पुत्र गुरदित्त सिंह के नाम पर शासन कर रही थी, को लोहगढ़ का किला तथा प्रख्यात जमजमा तोप उसको सौंपने के लिए कहा। माई सुक्खाँ ने ये माँगें स्वीकार न की। महाराजा रणजीत सिंह ने तुरंत अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खाँ ने थोड़े से विरोध के उपरांत अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस तरह अमृतसर पर महाराजा रणजीत सिंह का अधिकार हो गया।

4. सतलुज पार के आक्रमण 1806-08 ई० (Cis-Sutlej Expeditions 1806-08 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज पार के प्रदेशों पर तीन बार क्रमश: 1806 ई०, 1807 ई० तथा 1808 ई० में आक्रमण किये। इन आक्रमणों के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने पहली बार लुधियाना, जगरांव, दाखा, जंडियाला, तलवंडी के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। अपने दूसरे अभियान के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने मोरिडा, सरहिंद, जीरा, कोटकपूरा एवं धर्मकोट के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। अपने तीसरे अभियान के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने फरीदकोट, अंबाला तथा शाहबाद के क्षेत्रों पर अधिकार किया था। महाराजा ने ये सारे प्रदेश अपने साथियों में बाँट दिये थे। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने इन अभियानों के दौरान पटियाला, नाभा, जींद, मलेरकोटला, शाहबाद, कैथल तथा अंबाला आदि के शासकों से ‘खिराज’ भी प्राप्त किया।

5. डल्लेवालिया मिसल पर विजय 1807 ई० (Conquest of Dallewalia Misl 1807 A.D.) डल्लेवालिया मिसल के नेता तारा सिंह घेबा की 1807 ई० में मृत्यु हो गई। उचित अवसर देखकर महाराजा रणजीत सिंह ने डल्लेवालिया मिसल पर आक्रमण कर दिया। तारा सिंह की विधवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुछ समय तक सामना किया परंतु वह पराजित हो गई। महाराजा ने डल्लेवालिया मिसल के सभी प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।

6. स्यालकोट की विजय 1808 ई० (Conquest of Sialkot 1808 A.D.) स्यालकोट के शासक का नाम जीवन सिंह था। 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने उसको स्यालकोटका किला सौंपने के लिये कहा। उसके इंकार करने पर महाराजा रणजीत सिंह ने स्यालकोट पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। जीवन सिंह ने छोटी-सी मुठभेड़ के उपरांत अपनी पराजय स्वीकार कर ली।

7. काँगड़ा की विजय 1809 ई० (Conquest of Kangra 1809 A.D.)-1809 ई० में नेपाल के गोरखों ने काँगड़े के किले पर आक्रमण कर दिया था। काँगड़े के शासक संसार चंद कटोच ने महाराजा रणजीत सिंह से गोरखों के विरुद्ध सहायता माँगी। इसके बदले उसने महाराजा को काँगड़ा का किला देने का वचन दिया। महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने गोरखों को भगा दिया परंतु अब संसार चंद ने किला देने में कुछ आनाकानी की। महाराजा रणजीत सिंह ने संसार चंद के पुत्र अनुरुद चंद को बंदी बना लिया। विवश होकर, उसने काँगड़े का किला पहाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया।

8. गुजरात की विजय 1809 ई० (Conquest of Gujarat 1809 A.D.)—गुजरात का शहर अपने आर्थिक स्रोतों के लिये बहुत प्रख्यात था। यहाँ का शासक साहिब सिंह भंगी महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा था। 1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने फकीर अज़ीज़उद्दीन के नेतृत्व में गुजरात के विरुद्ध अभियान भेजा। उसने साहिब सिंह भंगी को पराजित करके गुजरात पर अधिकार कर लिया।

9. अटक की विजय 1813 ई० (Conquest of Attock 1813 A.D.)—अटक का किला भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह के समय यहाँ अफ़गान गवर्नर जहाँदद खाँ का शासन था। कहने को तो वह काबुल सरकार के अधीन था, परंतु वास्तव में वह स्वतंत्र रूप में शासन कर रहा था। 1813 ई० में जब काबुल के वज़ीर फतह खाँ ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो वह घबरा गया। उसने एक लाख रुपये की वार्षिक जागीर के बदले अटक का किला महाराजा को सौंप दिया। फतह खाँ ने अटक के किले को अपने अधीन करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ कूच किया। 13 जुलाई, 1813 ई० में हजरो या हैदरो के स्थान पर हुई एक भीषण लड़ाई में महाराजा ने फतह खाँ को पराजित किया। इस विजय के कारण महाराजा रणजीत सिंह की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैल गई।

10. मुलतान की विजय 1818 ई० (Conquest of Multan 1818 A.D.)-मुलतान का भौगोलिक तथा आर्थिक पक्ष से बहुत महत्त्व था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह मुलतान पर अपना अधिकार करना चाहता था। उस समय मुलतान में नवाब मुजफ्फर खाँ का शासन था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1802 ई० से 1817 ई० के मध्य मुलतान पर अधिकार करने के लिए 6 बार अभियान भेजे किन्तु हर बार नवाब महाराजा रणजीत सिंह को नज़राना भेंट कर टाल देता रहा। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर अधिकार करने का निर्णय किया। उसने एक विशाल सेना मिसर दीवान चंद के नेतृत्व में भेजी। भीषण युद्ध के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं ने मुलतान पर अधिकार कर लिया। इस आक्रमण में नवाब मुजफ्फ़र खाँ अपने पाँच पुत्रों के साथ लड़ता हुआ मारा गया था। महाराजा ने कई दिनों तक इस विजय के उपलक्ष्य में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये। मिसर दीवान चंद को ‘ज़फ़र जंग’ की उपाधि दी गई।

11. कश्मीर की विजय 1819 ई० (Conquest of Kashmir 1819 A.D.)-कश्मीर की घाटी अपने सौंदर्य तथा व्यापार के कारण बहुत प्रसिद्ध थी, इस कारण महाराजा इस प्राँत पर अपना अधिकार करना चाहता था। 1818 ई० में मुलतान की विजय से महाराजा रणजीत सिंह बहत उत्साहित हआ। उसने 1819 ई० में मुलतान के विजयी सेनापति मिसर दीवान चंद के नेतृत्व में एक विशाल सेना कश्मीर की विजय के लिए भेजी। इस सेना ने कश्मीर के अफ़गान गवर्नर ‘जबर खाँ’ को पराजित करके कश्मीर पर अधिकार कर लिया। कश्मीर की विजय के कारण अफ़गानों की शक्ति को बहुत आघात पहुँचा। यह विजय आर्थिक पक्ष से महाराजा के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। डॉक्टर जी० एस० छाबड़ा के अनुसार,
“कश्मीर की विजय महाराजा की शक्ति के विकास के लिए बहुत महत्त्व रखती थी।”6

12. पेशावर की विजय 1834 ई० (Conquest of Peshawar 1834 A.D.) भौगोलिक पक्ष से इस प्रदेश का बहुत महत्त्व था। उत्तर-पश्चिमी सीमा से पंजाब आने वाले आक्रमणकारी प्रायः इसी मार्ग से ही आते थे। इसलिए पेशावर की विजय के बिना पंजाब में स्थायी शाँति स्थापित नहीं की जा सकती थी। 1823 ई० में ही महाराजा रणजीत सिंह ने इस महत्त्वपूर्ण प्राँत पर विजय प्राप्त कर ली थी, परंतु इसको 1834 ई० में सिख राज्य में शामिल किया गया।

5. “Its capture, therefore, not only added much to Ranjit Singh’s strength and importance, but also invested him with title to the rest of the Punjab.” Fakir Syed Waheeduddin, The Real Ranjit Singh (Patiala : 1981) p. 54.
6. “The conquest of Kashmir had a great significance in the Maharaja’s development of power.” Dr. G.S. Chhabra, Advanced History of The Punjab (Jalandhar : 1972) Vol. 2, p. 61.

राज्य का विस्तार (Extent of the Empire)
महाराजा रणजीत सिंह का राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक तथा पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला हुआ था। रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। ।
डॉक्टर जी० एल० चोपड़ा के अनुसार, “40 वर्ष के भीतर रणजीत सिंह एक छोटे सरदार से एक विशाल साम्राज्य का महाराजा बन गया था।”7

7. “Ranjit Singh, within forty years, raised himself from a petty sardar to the rulership of an extensive kingdom.” Dr. G.L. Chopra, op. cit., p. 22.

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मुलतान की विजय (Conquest of Multan)

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान विजय के विभिन्न चरणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। इस विजय का महत्त्व भी बताएँ।
(Briefly describe the various stages in the conquest of Multan by Ranjit Singh. Point out its significance.)
उत्तर-
मुलतान भौगोलिक तथा आर्थिक पक्ष से एक महत्त्वपूर्ण प्राँत था। 1779 ई० में अहमद शाह अब्दाली के उत्तराधिकारी तैमूर शाह ने भंगी सरदारों को हरा कर नवाब मुजफ्फर खाँ को मुलतान का गवर्नर नियुक्त किया। शीघ्र ही अफ़गानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नवाब मुजफ्फ़र खाँ ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। महाराजा रणजीत सिंह के समय मुलतान पर मुजफ्फर खाँ का राज्य था। मुलतान पर विजय प्राप्त करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने 1802 ई० से लेकर 1818 ई० के मध्य 7 अभियान भेजे। इन अभियानों का विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. पहला अभियान 1802 ई० (First Expedition 1802 A.D.)-1802 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं मुलतान के विरुद्ध प्रथम अभियान का नेतृत्व किया। इस पर घबराकर मुजफ्फर खाँ महाराजा को भारी धनराशि तथा प्रति वर्ष कुछ नज़राना देने को तैयार हो गया। रणजीत सिंह बिना लड़े ही मुलतान से काफ़ी धन लेकर लाहौर लौट गया।

2. दूसरा अभियान 1805 ई० (Second Expedition 1805 A.D.)-1802 ई० की संधि के अनुसार मुजफ्फर खाँ ने रणजीत सिंह को दिया जाने वाला वार्षिक नज़राना न भेजा। इसलिए रणजीत सिंह ने 1805 ई० में मुलतान पर दूसरी बार आक्रमण कर दिया परंतु मराठा सरदार जसवंत राय होल्कर के पंजाब आगमन के कारण, यह अभियान बीच में ही छोड़ दिया गया। .

3. तीसरा अभियान 1807 ई० (Third Expedition 1807 A.D.)-1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर तीसरी बार आक्रमण किया। इसका कारण यह था कि मुजफ्फर खाँ झंग तथा कसूर के शासकों को रणजीत सिंह के विरुद्ध सहायता दे रहा था। अतः महाराजा रणजीत सिंह ने तीसरी बार मुलतान पर आक्रमण कर दिया। महाराजा की सेना मुलतान के किले पर विजय प्राप्त न कर सकी और मुजफ्फ़र खाँ से 70,000 रुपए नज़राना लेकर लौट गई।

4. चौथा अभियान 1810 ई० (Fourth Expedition 1810 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1810 ई० में चौथी बार मुलतान के विरुद्ध दीवान मोहकम चंद के नेतृत्व में एक सेना भेजी। इस बार भी सिख सेना पूर्ण रूप से सफल न हो सकी। अंत में, मुजफ्फर खाँ ने रणजीत सिंह को दो लाख रुपये देने स्वीकार किए।

5. पाँचवां अभियान 1816 ई० (Fifth Expedition 1816 A.D.)-1816 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसर दीवान चंद के नेतृत्व में एक सेना मुलतान भेजी। अकाली फूला सिंह भी अपने कुछ अकालियों के साथ इस अभियान में शामिल हुआ। इस बार भी मुजफ्फर खाँ ने महाराजा रणजीत सिंह की सेनाओं को नज़राना देकर टाल दिया।

6. छठा अभियान 1817 ई० (Sixth Expedition 1817 A.D.)-1817 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुजफ्फर खाँ से लाहौर दरबार की ओर शेष रहता नज़राना वसूल करने के लिए कुछ सेना मुलतान भेजी। यह अभियान अपने उद्देश्यों में असफल रहा।

7. सातवाँ अभियान 1818 ई० (Seventh Expedition 1818 A.D.)-1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान को अपने अधिकार में ले लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। 20,000 घुड़सवारों और पैदल सैनिकों की कमांड मिसर दीवान चंद को सौंपी गई। इस सेना ने मुलतान के दुर्ग पर घेरा डाला। यह घेरा चार माह तक जारी रहा। 2 जून की शाम को अकाली नेता साधू सिंह अपने कुछ साथियों को साथ लेकर दुर्ग के भीतर जाने में सफल हो गया। इस लड़ाई में मुजफ्फ़र खाँ अपने पाँच पुत्रों सहित वीरता से लड़ता हुआ मारा गया। इस प्रकार रणजीत सिंह की सेनाओं ने मुलतान के दुर्ग को 2 जून, 1818 ई० को विजित कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने इस विजय की प्रसन्नता में लाहौर एवं अमृतसर में भारी दीपमाला की। युद्ध में वीरता दिखाने वाले सरदारों तथा सैनिकों को भी मूल्यवान उपहार दिए गए। मिसर दीवान चंद को ज़फ़र जंग की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मुलतान की विजय का महत्त्व (Importance of the Conquest of Multan)
मुलतान की विजय महाराजा रणजीत सिंह की महत्वपूर्ण विजयों में से एक थी।
1. मुलतान की विजय से पंजाब में से अफ़गान शक्ति का दबदबा सदैव के लिए समाप्त हो गया। इस विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि सिख अफ़गानों से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं।

2. मुलतान की विजय का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह भी हुआ कि छोटी मुस्लिम रियासतों के शासकों ने भय से शीघ्र ही रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार कर ली।

3. मुलतान का प्रदेश बहुत उपजाऊ तथा समृद्ध था। इसलिए इसकी विजय से रणजीत सिंह की आय में काफ़ी वृद्धि हुई।

4. मुलतान की विजय से जहाँ महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य में वृद्धि हुई, वहीं उसके मान-सम्मान में चार चाँद लग गए। सभी उसकी शक्ति का लोहा मानने लगे।

5. मुलतान की विजय व्यापारिक पक्ष से भी बहुत लाभप्रद सिद्ध हुई। इस महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र पर रणजीत सिंह का अधिकार हो जाने के कारण पंजाब के व्यापार को काफ़ी प्रोत्साहन मिला। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,

“इस ( मुलतान ) विजय से न केवल रणजीत सिंह के आर्थिक साधनों में वृद्धि हुई अपितु उसका अपने दुश्मनों पर दबदबा भी स्थापित हो गया।’8

8. “The conquest besides adding to his financial sources, established Ranjit Singh’s prestige among his enemies.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. IV, p. 85.

कश्मीर की विजय (Conquest of Kashmir)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा कश्मीर को विजित करने के लिए भेजे गए विभिन्न अभियानों का वर्णन कीजिए। इस विजय का महत्त्व भी बताएँ। (Discuss the various expeditions sent to conquer Kashmir. Study its significance.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की कश्मीर विजय का वर्णन करें।
(Describe Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Kashmir.)
उत्तर-
कश्मीर की घाटी अपनी सुंदरता, प्राकृतिक दृश्यों, मनमोहक जलवायु, स्वादिष्ट फलों तथा समृद्ध व्यापार के कारण सदैव विख्यात रही है । इसे धरती का स्वर्ग कहा जा सकता है महाराजा रणजीत सिंह के समय कश्मीर का अफ़गान गवर्नर अत्ता मुहम्मद खाँ था । 1809 ई० में अफ़गानिस्तान में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर अत्ता मुहम्मद खाँ ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। काबुल का वज़ीर फ़तह खाँ कश्मीर पर पुनः अधिकार करना चाहता था। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह भी कश्मीर को विजित करने की योजनाएँ बना रहा था। 1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा फ़तह खाँ के मध्य रोहतास में एक समझौता हुआ। इस समझौते । के अनुसार दोनों राज्यों की सम्मिलित सेनाएँ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण करेंगी। महाराजा के कश्मीर अभियानों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

कश्मीर का प्रथम अभियान-1813 ई० (First Expedition of Kashmir-1813 A.D.)
1813 ई० में रोहतास में हुए समझौते के अनुसार रणजीत सिंह का सेनापति दीवान मोहकम चंद अपने 12,000 सैनिकों सहित तथा फ़तह खाँ अपनी भारी सेना को साथ लेकर साँझे रूप में कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए चल पड़े। फ़तह खाँ की सेनाएँ एक मार्ग से कश्मीर में प्रविष्ट हुईं तथा दूसरे मार्ग से मोहकम चंद की सेनाएँ कश्मीर पहुँचीं। कश्मीर के गवर्नर अत्ता मुहम्मद खाँ को जब दोनों सेनाओं के आगमन का समाचार मिला तो उसने शेरगढ़ (Shergarh) के किले के निकट उन्हें रोकने का प्रयत्न किया। अत्ता मुहम्मद खाँ थोड़े से मुकाबले के पश्चात् युद्ध क्षेत्र से भाग गया। इस तरह कश्मीर पर आसानी से अधिकार कर लिया गया। कश्मीर की विजय के बाद फ़तह खाँ ने घोषणा की कि सिखों को विजित क्षेत्रों तथा लूट के सामान से कुछ नहीं मिलेगा ।

जब महाराजा रणजीत सिंह को यह पता चला कि फ़तह खाँ ने धोखा किया है तो महाराजा ने एक लाख रुपये वार्षिक जागीर के बदले में जहाँदद खाँ से अटक का महत्त्वपूर्ण किला प्राप्त कर लिया। इस पर फ़तह खाँ भड़क उठा। वह अटक को पुनः प्राप्त करने के लिए चल पड़ा। 13 जुलाई, 1813 ई० को दोनों सेनाओं के मध्य हज़रो अथवा हैदरो के स्थान पर हुई लड़ाई में बहु-संख्या में अफ़गान मारे गए और फ़तह खाँ को भागना पड़ा। इस लड़ाई में सिखों ने पहली बार अफ़गान सेनाओं को कड़ी पराजय दी थी।

कश्मीर का दूसरा अभियान 1814 ई० (Second Expedition of Kashmir 1814 A.D.)
हज़रो की विजय से उत्साहित होकर रणजीत सिंह ने अप्रैल, 1814 ई० में कश्मीर पर आक्रमण करने का निर्णय किया। इस समय कश्मीर पर फ़तह खाँ का छोटा भाई अज़ीम खाँ गवर्नर के रूप में काम कर रहा था। महाराजा रणजीत सिंह के अनुभवी सेनापति मोहकम चंद ने महाराजा को परामर्श दिया कि वह अभी कश्मीर पर आक्रमण न करे। महाराजा ने दीवान मोहकम चंद के इस परामर्श की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह स्वयं दीवान मोहकम चंद के पोते रामदयाल तथा सेना को साथ लेकर कश्मीर की ओर चल पड़ा।

जब रणजीत सिंह की सेनाएँ राजौरी पहुँची तो वहाँ के सरदार अगर खाँ (Agar Khan) के ग़लत परामर्श से महाराजा ने अपनी सेना को दो भागों में बाँट दिया। इस विभाजन के कारण रामदयाल के नेतृत्व में सिख सेना को जुलाई 1814 ई० में सोपियाँ (Sopian) की लड़ाई में काफ़ी क्षति उठानी पड़ी। अत: रणजीत सिंह को भी बिना मुकाबला किए लौट जाना पड़ा। खराब मौसम होने से रणजीत सिंह की सेना की जन-धन की भारी क्षति हुई। रामदयाल को भी भारी क्षति उठाकर लाहौर लौटना पड़ा।

कश्मीर का तीसरा अभियान-1819 ई० (Third Expedition of Kashmir-1819 A.D.)
1818 ई० में अज़ीम खाँ ने अपने भाई ज़बर खाँ को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त कर दिया। वह एक निकम्मा तथा अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। महाराजा रणजीत सिंह ऐसी स्थिति से पूरा लाभ उठाना चाहता था। दूसरा 1818 ई० में मुलतान की विजय के कारण महाराजा रणजीत सिंह के सैनिकों में एक नया जोश भर गया था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह अप्रैल, 1819 ई० को 30,000 सैनिकों की एक विशाल सेना लेकर कश्मीर की ओर चल पड़ा। सेना का मुख्य भाग मिसर दीवान चंद के अधीन रखा गया । दोनों सेनाओं में 5 जुलाई, 1819 ई० में सुपीन (Supin) के स्थान पर भारी युद्ध हुआ। सिख सेना के सामने अफ़गान सेना अधिक समय तक न ठहर सकी तथा वह युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ी हुई। ज़बर खाँ भी पेशावर की ओर भाग गया। इस प्रकार सिखों ने कश्मीर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने इस विजय पर बहुत खुशी मनाई। मिसर दीवान चंद को फ़तह-ओ-नुसरत नसीब की उपाधि प्रदान की गई।

कश्मीर विजय का महत्त्व (Importance of the Conquest of Kashmir)
कश्मीर की विजय महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। प्रथम, इस कारण महाराजा की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई। दूसरे, कश्मीर पर सिखों का अधिकार हो जाने से अफ़गान शक्ति को एक और गहरा आघात पहुँचा। तीसरे, सिखों के हौंसले बुलंद हो गए। चौथा, इस विजय से महाराजा को भारी आर्थिक लाभ हुआ। इस प्राँत से महाराजा को 40,00,000 रुपये वार्षिक आय होती थी। पाँचवां, कश्मीर की विजय व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुई। यह राज्य शालों के उद्योग के लिए विश्व भर में विख्यात था। खुशवंत सिंह के अनुसार,
“कश्मीर पंजाब के लिए एक अति महत्त्वपूर्ण प्राप्ति थी।”9

9. “Kashmir was an important acquisition for the Punjab.” Khushwant Singh, Ranjit Singh : Maharaja of the Punjab (Bombay : 1973) p. 56.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

पेशावर की विजय (Conquest of Peshawar)

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह की पेशावर की विजय तां इसे साम्राज्य में सम्मिलित करने के मुख्य चरणों का वर्णन कीजिए।
(Give the main stages of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Peshawar and its anņexation to his kingdom.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की पेशावर विजय का वर्णन करें।
(Describe the conquest of Peshawar by Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
पेशावर पंजाब की उत्तर पश्चिमी सीमा पर स्थित था। इसलिए यह भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। उत्तर-पश्चिमी सीमा से पंजाब आने वाले आक्रमणकारी प्रायः इसी मार्ग से आते थे । परिणामस्वरूप पंजाब राज्य की सुरक्षा के लिए रणजीत सिंह के लिए पेशावर पर अधिकार करना आवश्यक था। महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर विजय के लिए विभिन्न अभियान भेजे। इन अभियानों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. प्रथम अभियान 1818 ई० (First Expedition 1818 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 ई० में पेशावर पर प्रथम आक्रमण किया। उस समय पेशावर पर दो भाई-यार मुहम्मद खाँ तथा दोस्त मुहम्मद खाँ संयुक्त रूप से शासन कर रहे थे। वे सिख सेना का बिना सामना किए पेशावर से भाग गए। इस प्रकार 20 नवंबर, 1818 को पेशावर पर अधिकार कर लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने अटक के भूतपूर्व शासक जहाँदद खाँ को पेशावर का गवर्नर नियुक्त किया।

2. द्वितीय अभियान 1819 ई० (Second Expedition 1819 A.D.)—शीघ्र ही यार मुहम्मद खाँ तथा दोस्त मुहम्मद खाँ ने पेशावर पर पुनः अधिकार कर लिया। इस पर महाराजा ने 12,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पेशावर पर आक्रमण के लिए भेजी। यार मुहम्मद खाँ तथा दोस्त मुहम्मद खाँ ने महाराजा की अधीनता स्वीकार कर ली।

3. तृतीय अभियान 1823 ई० (Third Expedition 1823 A.D.)-कुछ समय पश्चात् पेशावर पर काबुल के वज़ीर अजीम खाँ ने अधिकार कर लिया। अज़ीम खाँ जानता था कि उसे कभी भी महाराजा की सेनाओं का सामना करना पड़ सकता है। शीघ्र ही महाराजा ने हरी सिंह नलवा, शहजादा शेर सिंह तथा अतर सिंह अटारीवाला के नेतृत्व में एक विशाल सेना पेशावर भेजी। 14 मार्च, 1823 ई० को दोनों सेनाओं के बीच नौशहरा में एक निर्णायक लड़ाई हुई। इस लड़ाई को टिब्बा टेहरी (Tibba Tehri) की लड़ाई भी कहते हैं। आरंभ में खालसा सेना के पाँव उखड़ने लगे। ऐसे समय महाराजा रणजीत सिंह ने सैनिकों में एक नया जोश भरा। अंत में अज़ीम खाँ और उसके साथी लड़ाई के मैदान से भाग खड़े हुए और सिख विजयी हुए। महाराजा रणजीत सिंह ने एक बार फिर यार मुहम्मद खाँ को पेशावर का गवर्नर नियुक्त कर दिया।

4. चतुर्थ अभियान 1827-31 ई० (Fourth Expedition 1827-31 A.D.)-1827 ई० से 1831 ई० के समय के बीच महाराजा रणजीत सिंह को सय्यद अहमद के विद्रोह का दमन करने के लिए कई सैनिक अभियान भेजने पड़े थे। अफ़गान नेता सय्यद अहमद ने पेशावर पर अधिकार कर लिया था। इस पर महाराजा रणजीत सिंह ने शहज़ादा शेर सिंह तथा जनरल वेंतूरा को सेना देकर पेशावर भेजा। इस सेना ने सय्यद अहमद तथा उसके सैनिकों को कड़ी पराजय दी। किन्तु वह भागने में सफल हो गया। सय्यद अहमद 1831 ई० में बालाकोट में शेर सिंह के साथ लड़ता हुआ मारा गया। सुल्तान मुहम्मद खाँ को पेशावर का नया गवर्नर नियुक्त किया गया।

5. पाँचवाँ अभियान 1834 ई० (Fifth Expedition 1834 A.D.) महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 ई० में पेशावर को अपने साम्राज्य में सम्मिलित करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से शहज़ादा नौनिहाल सिंह तथा हरी सिंह नलवा के नेतृत्व में एक विशाल सेना पेशावर भेजी गई। दोस्त मुहम्मद खाँ सिख सैनिकों का बिना सामना किए काबुल भाग गया। इस प्रकार सिखों ने 6 मई, 1834 ई० को सरलता से पेशावर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर का शासन प्रबंध चलाने के लिए हरी सिंह नलवा को वहाँ का गवर्नर नियुक्त किया।

जमरौद की लड़ाई (Battle of Jamraud)
अफ़गानिस्तान का तत्कालीन शासक दोस्त मुहम्मद खाँ पेशावर को पुनः हासिल करना चाहता था। दूसरी ओर हरी सिंह नलवा ने अफ़गानों के आक्रमणों को रोकने के लिए जमरौद में एक शक्तिशाली दुर्ग का निर्माण करवाया। दोस्त मुहम्मद खाँ ने अपने पुत्रों के अधीन 20,000 सैनिकों को जमरौद पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस सेना ने 28 अप्रैल, 1837 ई० को जमरौद पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में 30 अप्रैल, 1837 ई० को हरी सिंह नलवा शहीद हो गया। इस पर क्रोधित सिख सेना ने इतना जोरदार आक्रमण किया कि अफ़गानों को पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार सिख जमरौद की इस निर्णायक लड़ाई में विजयी रहे और पेशावर पर उनका अधिकार हो गया।

पेशावर की विजय का महत्त्व (Significance of the Conquest of Peshawar)
पेशावर की विजय महाराजा रणजीत सिंह की एक निर्णायक विजय थी। महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का काफ़ी विस्तार हुआ। उसकी सैनिक-शक्ति की धाक् समस्त भारत में जम गई। पंजाबियों ने भी सुख की साँस ली क्योंकि इसी मार्ग से होकर मुस्लिम आक्रमणकारी पंजाब तथा भारत के अन्य भागों पर आक्रमण करते थे। महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पेशावर पर अधिकार कर लिए जाने के कारण इन आक्रमणों का भय दूर हो गया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह की वार्षिक आय में काफ़ी वृद्धि हो गई। ये आक्रमण बहुत विनाशकारी थे। पेशावर पर अधिकार महाराजा के लिए आर्थिक पक्ष से भी बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ। प्रोफेसर हरबंस सिंह का यह कथन पूर्णतः ठीक है,
“सिखों की पेशावर की विजय ने उत्तर-पश्चिमी दिशा से होने वाले लगातार आक्रमणों का सदैव के लिए अंत कर दिया।”10

10. “The Sikh conquest of Peshawar finally ended the long sequence of invasions from the north west.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 140.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Give a brief account of the career of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की गणना न केवल पंजाब बल्कि भारत के महानतम शासकों में की जाती है। आपका जन्म 13 नवंबर, 1780 ई० को गुजराँवाला में हुआ। आप ने 1799 ई० से 1839 ई० तक शासन किया। आप ने एक विशाल एवं स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना की। लाहौर, मुलतान, कश्मीर एवं पेशावर आपकी सब से महत्त्वपूर्ण विजयें थीं। आपके राज्य में सभी धर्मों का समान आदर किया जाता था। आपने एक उच्चकोटि के शासन प्रबंध की व्यवस्था की। निस्संदेह आप पंजाब के ‘शेरे-ए-पंजाब’ थे।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठने के समय पंजाब की राजनीतिक स्थिति कैसी थी ?
(What was the political condition of Punjab at the time of Maharaja Ranjit Singh’s accession to power ?)
अथवा
जब महाराजा रणजीत सिंह गद्दी पर बैठे, तो पंजाब की राजनीतिक अवस्था कैसी थी ?
(What was the political condition of the Punjab on the occasion of Maharaja Ranjit Singh’s accession to throne ?)
उत्तर-
रणजीत सिंह ने 1797 ई० में जब शुकरचकिया मिसल का नेतृत्व संभाला तो उस समय पंजाब में हर तरफ अशाँति तथा अव्यवस्था थी। सिखों ने अपनी 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित कर ली थीं। इन मिसलों की परस्पर एकता समाप्त हो चुकी थी। पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों के कुछ स्वतंत्र रियासतों की स्थापना कर ली थी। अफ़गानिस्तान के शासक शाह ज़मान ने पंजाब को अपने अधिकार में लेने के उद्देश्य से पंजाब पर आक्रमण आरंभ कर दिए थे। काँगड़ा के शासक संसार चंद तथा नेपाल के शासक भीमसेन थापा पंजाब पर अधिकार करने का स्वप्न देख रहे थे।

प्रश्न 3.
शाह ज़मान पर एक टिप्पणी लिखें।
(Write a short note on Shah Zaman.)
उत्तर-
शाह ज़मान 1793 ई० में अपने पिता तैमूरशाह की मृत्यु के पश्चात् अफ़गानिस्तान का शासक बना था। उसने सबसे पहले पंजाब को अपने अधिकार में लेने के प्रयत्न आरंभ किए। इस उद्देश्य के लिए उसने 1793 ई० और पुनः 1795 ई० में पंजाब पर आक्रमण किए, परंतु उसे यह अभियान मध्य में ही छोड़ कर काबुल लौट जाना पड़ा था। पंजाब पर अपने तीसरे आक्रमण के समय उसने जनवरी, 1797 ई० में लाहौर पर आसानी से अधिकार कर लिया था। नवंबर, 1798 ई० में शाह ज़मान ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था । 1800 ई० में काबुल में शाह ज़मान का तख्ता पलट दिया गया।

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प्रश्न 4.
रणजीत सिंह द्वारा लाहौर विजय तथा इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the conquest of Lahore by Ranjit Singh and its significance.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Lahore.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सर्वप्रथम तथा महत्त्वपूर्ण विजय लाहौर की थी। उस समय लाहौर पर तीन भंगी सरदारों-साहिब सिंह, मोहर सिंह तथा चेत सिंह का शासन था। रणजीत सिंह ने अपनी सास सदा कौर की सहायता से लाहौर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण की सूचना मिलते ही साहिब सिंह तथा मोहर सिंह भाग गए। चेत सिंह ने कुछ संघर्ष के पश्चात् अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस प्रकार रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। यह विजय महाराजा रणजीत सिंह के जीवन में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 5.
भसीन की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Bhasin.)
उत्तर-
लाहौर की विजय के कारण अमृतसर के गुलाब सिंह भंगी तथा कसूर के निजामुद्दीन ने 1800 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठबंधन कर लिया। वे अपनी सेनाएँ लेकर लाहौर के निकट भसीन नामक गाँव में पहुँच गए। रणजीत सिंह भी उनका सामना करने के लिए भसीन आ डटा। अचानक एक दिन गुलाब सिंह भंगी जो कि गठबंधन का नेता था, अधिक शराब पीने से मर गया। इससे रणजीत सिंह के विरोधियों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार बिना रक्तपात के रणजीत सिंह को विजयश्री मिल गई।

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह की अमृतसर की विजय तथा इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly about the conquest of Amritsar by Maharaja Ranjit Singh and its importance.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के आरंभिक जीवन में अमृतसर की विजय का क्या महत्त्व था ?
(What is the significance of the conquest of Amritsar in the early career of Maharaja Ranjit Singh ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अमृतसर की विजय का संक्षिप्त वर्णन करो।
(Describe briefly about the conquest of Amritsar by Maharaja Ranjit Singh.) .
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अमृतसर विजय पर संक्षेप नोट लिखो।
(Write a brief note on Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Amritsar.)
उत्तर-
1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर शासन करने वाली माई सुक्खाँ को लोहगढ़ का किला तथा प्रसिद्ध जमजमा तोप उसके सुपुर्द करने के लिए कहा। माई सुक्खाँ ने इंकार कर दिया। इस कारण महाराजा ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खाँ ने थोड़े-से संघर्ष के बाद पराजय स्वीकार कर ली। इस प्रकार 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर कब्जा कर लिया। अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कैसे विजय प्राप्त की ? (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Multan ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान विजय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Multan.)
उत्तर-
मुलतान भौगोलिक तथा व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1802 ई० से लेकर 1817 ई० तक मुलतान के विरुद्ध.6 सैनिक अभियान दल भेजे। मुलतान का शासक मुजफ्फर खाँ हर बार . नज़राना देकर टालता रहा। 1818 ई० में रणजीत सिंह ने सातवीं बार एक विशाल सेना मिसर दीवान चंद के नेतृत्व में मुलतान की ओर भेजी। 2 जून, 1818 ई० को सिख सेना ने मुलतान के नवाब मुजफ्फर खाँ को हरा कर मुलतान पर कब्जा कर लिया।

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान की विजय का महत्त्व बताएँ। (Describe the significance of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Multan.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान विजय के तीन महत्त्व बताएँ। (Discuss the three significance of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Multan.)
उत्तर-
मुलतान की विजय महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। इस विजय से पंजाब में से अफ़गान शक्ति का दबदबा सदैव के लिये समाप्त हो गया। इस विजय से सिखों की सेना के हौंसले बुलंद हो गए। इस विजय से जहाँ महाराजा रणजीत के साम्राज्य में वृद्धि हुई, वहीं उसके मान-सम्मान में चार चाँद लग गए। परिणामस्वरूप मुलतान की विजय से पंजाब के व्यापार में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कैसे अधिकार किया ? (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Kashmir ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह और फ़तह खाँ के मध्य हुए समझौते के अनुसार 1813 ई० में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर का गवर्नर अता मुहम्मद खाँ इन दोनों सेनाओं से टक्कर लेने के लिए आगे बढ़ा, परंतु शेरगढ़ के स्थान पर हुई लड़ाई में वह हार गया। 1814 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर दूसरी बार आक्रमण किया, परंतु महाराजा को असफलता का सामना करना पड़ा। महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर तीसरी बार आक्रमण किया तथा कश्मीर को विजित करने में सफल हुआ।

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प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह की कश्मीर की विजय का महत्त्व बताएँ। (Describe the significance of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Kashmir.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की कश्मीर विजय से उसकी प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई। दूसरा, लेह, ल्हासा तथा उसकी शक्ति की धाक प्राकृतिक सीमा तक पहुंच गई। तीसरा, कश्मीर पर सिखों का अधिकार हो जाने से अफ़गान शक्ति को एक और भारी आघात पहुँचा। चौथा, कश्मीर की विजय से महाराजा को भारी आर्थिक लाभ हुआ। पाँचवां कश्मीर की विजय व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत लाभप्रद साबित हुई।

प्रश्न 11.
नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a brief note on the battle of Naushehra or Tibba Tehri.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह और आज़िम खाँ की सेनाओं के मध्य 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी के स्थान पर बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। आरंभ में अफ़गानों का पलड़ा भारी रहा। अकाली फूला सिंह तथा कई अन्य विख्यात योद्धा इस लड़ाई में मारे गए। ऐसे समय में महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गान सेना पर एक ऐसा ज़ोरदार आक्रमण किया कि उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए रण क्षेत्र से भागना पड़ा। इस निर्णायक लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की विजय से उसकी सेना का प्रोत्साहन बहुत बढ़ गया।

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह की पेशावर की विजय एवं इसके महत्त्व पर संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Peshawar and its significance.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 ई० में पेशावर पर विजय प्राप्त की। इस विजय से महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का काफ़ी विस्तार हुआ। पेशावर पर रणजीत सिंह का अधिकार हो जाने से पंजाबियों ने सुख की साँस ली, क्योंकि इसी मार्ग से होकर मुस्लिम आक्रमणकारी पंजाब तथा भारत के अन्य भागों पर आक्रमण करते थे। पेशावर पर अधिकार महाराजा के लिए आर्थिक पक्ष से भी लाभप्रद सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त इस विजय ने पंजाब में अफ़गानों की शक्ति को पूर्णत: नष्ट कर दिया।

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प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित शासकों के प्रति क्या नीति धारण की?
(What policy did Maharaja Ranjit Singh adopt towards the defeated rulers ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने न केवल बहुत-से प्रदेशों पर अधिकार किया, अपितु उनके प्रति एक सफल प्रशासनिक नीति भी अपनाई। यह नीति सभी शासकों पर समान रूप से लागू होती थी, चाहे वह शासक हिंदू, सिख अथवा मुसलमान थे। कई शासकों को, जिन्होंने रणजीत सिंह की अधिराज्य शर्ते स्वीकार कर ली थीं, उनके क्षेत्र लौटा दिए गए। जिन शासकों के क्षेत्र सिख राज्य में सम्मिलित कर लिए गए उन्हें महाराजा ने अपने दरबार में नौकरी पर रख लिया अथवा उन्हें गुज़ारे के लिए जागीरें दे दी गईं। विरोध जारी रखने वाले शासकों के विरुद्ध कड़ी नीति अपनाई गई।

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने सिख मिसलों के संबंध में क्या नीति अपनाई? (What policy did Maharaja Ranjit Singh adopt towards the Sikh Misls ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की सिख मिसलों के प्रति नीति के बारे में बताओ। (Write down the policy of Maharaja Ranjit Singh towards Sikh Misls ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति की विवेचना करें। (Examine the Misl policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
रणजीत सिंह ने जिस समय शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली, उस समय पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित थीं। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से सिख मिसलों को अपने अधीन करने की योजना बनाई। उसने आरंभ में इन शक्तिशाली मिसलों के साथ या तो विवाह संबंध स्थापित कर लिए अथवा मित्रता कर ली। उनके सहयोग से रणजीत सिंह ने दुर्बल मिसलों पर अधिकार कर लिया। जब रणजीत सिंह के साधनों का विस्तार हो गया तो उसने शक्तिशाली मिसलों को एक-एक करके अपने राज्य में शामिल कर लिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
13 नवंबर, 1780 ई०।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कहाँ हआ ?
उत्तर-
गुजरांवाला।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
राज कौर।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
महा सिंह।

प्रश्न 5.
राज कौर कौन थी?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की माँ।

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प्रश्न 6.
रणजीत सिंह की माता को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
रणजीत सिंह की माता को माई मलवैण कहा जाता था।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के दादा जी का क्या नाम था?
उत्तर-
चढ़त सिंह।

प्रश्न 8.
रणजीत सिंह कब सिंहासन पर बैठा?
उत्तर-
1792 ई०।

प्रश्न 9.
रणजीत सिंह का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
बुध सिंह।

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प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह का संबंध किस मिसल के साथ था ?
उत्तर-
शुकरचकिया मिसल।

प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह का पहला विवाह किसके साथ हुआ था ?
उत्तर-
मेहताब कौर के साथ।

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह का पहला विवाह कब हुआ था ?
उत्तर-
1796 ई० में।।

प्रश्न 13.
सदा कौर कौन थी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सास।

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प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह की सासू का क्या नाम था ?
उत्तर-
सदा कौर।

प्रश्न 15.
कौर कौन-सी मिसल से संबंधित थी?
अथवा
सदा कौर का संबंध किस मिसल से था ?
उत्तर-
कन्हैया मिसल।

प्रश्न 16.
रणजीत सिंह के उत्थान के समय लाहौर में किन सरदारों का शासन था ?
उत्तर-
भंगी सरदारों का।

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह के उत्थान के समय कसूर पर किस शासक का शासन था ?
उत्तर-
निज़ामुद्दीन।

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प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह के उत्थान के समय काँगड़ा का शासक कौन था ?
उत्तर-
संसार चंद कटोच।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के उत्थान के समय गोरखों का प्रसिद्ध नेता कौन था ?
उत्तर-
भीम सेन थापा।

प्रश्न 20.
जॉर्ज थामस कौन था ?
उत्तर-
वह एक बहादुर अंग्रेज़ था जिसने हाँसी में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।

प्रश्न 21.
शाह ज़मान कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का बादशाह।

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प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत का शासनकाल क्या था ?
उत्तर-
1799 ई० से 1839 ई०

प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह के आक्रमण के समय लाहौर पर किस मिसल का शासन था ?
उत्तर-
भंगी मिसल।

प्रश्न 24.
रणजीत सिंह ने लाहौर पर कब विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर-
7 जुलाई, 1799 ई०।

प्रश्न 25.
लाहौर की विजय महाराजा रणजीत सिंह के लिए किस प्रकार महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई ?
उत्तर-
इस विजय के कारण महाराजा रणजीत सिंह को पंजाब का स्वामी समझा जाने लगा।

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प्रश्न 26.
रणजीत सिंह को कब पंजाब का महाराजा घोषित किया गया ?
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की ताजपोशी कब हुई ?
उत्तर-
12 अप्रैल, 1801 ई०।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह की ताजपोशी कहाँ हुई ?
उत्तर-
लाहौर।

प्रश्न 28.
महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को कब जीता ?
उत्तर-
1805 ई०।

प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को किस से जीता था ?
उत्तर-
माई सुखां से।

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प्रश्न 30.
जमजमा क्या थी ?
उत्तर-
एक प्रसिद्ध तोप थी।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा के प्रदेशों पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
तीन बार।

प्रश्न 32.
महाराजा रणजीत सिंह की कसूर विजय के समय वहाँ पर किसका शासन था ?
उत्तर-
नवाब कुतब-उद-दीन ।

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर पर कब विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर-
1807 ई० में।

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प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा पर कब विजय प्राप्त की ?
उत्तर-
1809 ई०।

प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह की काँगड़ा विजय के समय वहाँ किसका शासन था ?
उत्तर-
संसार चंद कटोच।

प्रश्न 36.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात को कब जीता था ?
उत्तर-
1809 ई०।

प्रश्न 37.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात को किससे विजय किया था ?
उत्तर-
साहिब सिंह भंगी।

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प्रश्न 38.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक पर कब विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर-
1813 ई०।

प्रश्न 39.
महाराजा रणजीत सिंह की अटक विजय के समय वहाँ पर किसका शासन था ?
उत्तर-
नवाब जहाँदाद खाँ।।

प्रश्न 40.
हजरो अथवा हैदरो अथवा छछ की लड़ाई कब हुई थी ?
उत्तर-
13 जुलाई, 1813 ई०

प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह के समय मुलतान का शासक कौन था ?
उत्तर-
नवाब मुजफ्फर खाँ।

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प्रश्न 42.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब विजय प्राप्त की ?
उत्तर-
2 जून, 1818 ई०।

प्रश्न 43.
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा मुलतान की विजय के समय सिख सेना का नेतृत्व किस सेनापति ने किया ?
उत्तर-
मिसर दीवान चंद।

प्रश्न 44.
मुलतान की विजय का कोई एक महत्त्वपूर्ण परिणाम बताएँ।
उत्तर-
इस विजय से अफ़गानों की शक्ति को भारी आघात पहुँचा।

प्रश्न 45.
रणजीत सिंह ने फ़तह खाँ के साथ कब कश्मीर पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से समझौता किया ?
उत्तर-
1813 ई०।

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प्रश्न 46.
वफ़ा बेग़म कौन थी ?
उत्तर-
वह अफ़गानिस्तान के शासक शाह शुज़ाह की पत्नी थी।

प्रश्न 47.
महाराजा रणजीत सिंह ने वफ़ा बेगम से क्या प्राप्त किया ?
उत्तर-
कोहेनूर हीरा

प्रश्न 48.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर पहली बार कब आक्रमण किया था ?
उत्तर-
1813 ई०

प्रश्न 49.
महाराजा रणजीत सिंह के कश्मीर पर प्रथम आक्रमण के समय वहाँ पर किसका शासन था ?
उत्तर-
अता मुहम्मद खाँ

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प्रश्न 50.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर दूसरी बार कब आक्रमण किया था ?
उत्तर-
1814 ई०

प्रश्न 51.
1814 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के कश्मीर आक्रमण के समय वहाँ पर किसका शासन था ?
उत्तर-
आज़िम खाँ।

प्रश्न 52.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कब विजय प्राप्त की ?
उत्तर-
5 जुलाई, 1819 ई० को।

प्रश्न 53.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर का पहला गवर्नर किसे नियुक्त किया था ?
उत्तर-
दीवान मोती राम।

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प्रश्न 54.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर पहली बार कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
1818 ई०।

प्रश्न 55.
1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के पेशावर आक्रमण के समय वहाँ पर किसका शासन था ?
उत्तर-
यार मुहम्मद खाँ तथा दोस्त मुहम्मद खाँ।

प्रश्न 56.
नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी की प्रसिद्ध लड़ाई कब लड़ी गई थी ?
उत्तर-
14 मार्च, 1823 ई० को।

प्रश्न 57.
नौशहरा की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह के कौन-से प्रसिद्ध योद्धा ने वीरगति प्राप्त की ?
उत्तर-
अकाली फूला सिंह।

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प्रश्न 58.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को कब सिख साम्राज्य में शामिल किया ?
उत्तर-
1834 ई० में।

प्रश्न 59.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर का पहला गवर्नर जनरल किसे नियुक्त किया था ?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा।

प्रश्न 60.
जमरौद की लड़ाई कब लड़ी गई थी ? ।
उत्तर-
1837 ई०

प्रश्न 61.
जमरौद की लड़ाई में सिखों का कौन-सा प्रसिद्ध जरनैल मारा गया ?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा।

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प्रश्न 62.
हरी सिंह नलवा किस लड़ाई में शहीद हुआ था ?
उत्तर-
जमरौद की लड़ाई।

प्रश्न 63.
जमरौद की लड़ाई में किसकी पराजय हुई ?
उत्तर-
अफ़गानों की।

प्रश्न 64.
महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
लाहौर।

प्रश्न 65.
महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति की कोई एक विशेषता बताओ।
उत्तर-
अपने राज्य का विस्तार करने के लिए न तो किसी रिश्तेदारी और न ही किसी के प्रति कृतज्ञता की भावना को कोई महत्त्व देना।

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प्रश्न 66.
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़िया मिसल के किस सरदार से मित्रता की थी ?
उत्तर-
जोध सिंह रामगढ़िया।

प्रश्न 67.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुरमता संस्था का अंत कब किया ?
उत्तर-
1805 ई०।

प्रश्न 68.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
27 जून, 1839 ई०।

प्रश्न 69.
महाराजा रणजीत सिंह का उत्तराधिकारी कौन बना ?
उत्तर-
खड़क सिंह।

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प्रश्न 70.
खड़क सिंह कौन था ?
उत्तर-
खड़क सिंह महाराजा रणजीत सिंह का बड़ा बेटा था।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह……..मिसल के साथ संबंधित थे।
उत्तर-
(शुकरचकिया)

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म………….में हुआ।
उत्तर-
(1780 ई०)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के पिता जी का नाम…………था।
उत्तर-
(महा सिंह)

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह की माता जी का नाम…………..था।
उत्तर-
(राज कौर)

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह के बचपन का नाम……………था।
उत्तर-
(बुध सिंह)

प्रश्न 6.
1796 ई० में रणजीत सिंह का विवाह…………..के साथ हुआ।
उत्तर-
(मेहताब कौर)

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह की सास का नाम……………था।
उत्तर-
(सदा कौर)

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह के समय लाहौर पर……………मिसल का शासन था।
उत्तर-
(भंगी)

प्रश्न 9.
रणजीत सिंह ने………….में लाहौर पर विजय प्राप्त की।
उत्तर-
(1799 ई०)

प्रश्न 10.
रणजीत सिंह…………में पंजाब का महाराजा बना।
उत्तर-
(1801 ई०)

प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी का नाम……था।
उत्तर-
(लाहौर)

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प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को ………में विजय किया।
उत्तर-
(1805 ई०)

प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह ने……..में काँगड़ा पर विजय प्राप्त की।
उत्तर-
(1809 ई०)

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह के समय काँगड़ा का शासक…….था।
उत्तर-
(संसार चंद कटोच)

प्रश्न 15.
1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात के शासक………..को पराजित किया।
उत्तर-
(साहिब सिंह भंगी)

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प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक पर………में विजय प्राप्त की।
उत्तर-
(1813 ई०)

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह के समय मुलतान का नवाब……..था।
उत्तर-
(मुजफ्फर खाँ)

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर………में विजय प्राप्त की।
उत्तर-
(1818 ई०)

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के समय कश्मीर का गवर्नर…….था।
उत्तर-
(अत्ता मुहम्मद खाँ)

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प्रश्न 20.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर पहली बार……में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1813 ई०)

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर दूसरी बार……..में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1814 ई०)

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर……….में विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
(1819 ई०)

प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर आक्रमण बार………..में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1818 ई०)

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प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह के समय सिखों और अफ़गानों के मध्य टिब्बा टेहरी की लड़ाई………में हुई।
उत्तर-
(14 मार्च, 1823 ई०)

प्रश्न 25.
अकाली फूला सिंह अफ़गानों का मुकाबला करते समय…………के युद्ध में मारा गया था।
उत्तर-
(नौशहरा)

प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को…………….में अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया था।
उत्तर-
(1834 ई०)

प्रश्न 27.
सिखों और अफ़गानों के मध्य जमरौद की लड़ाई……में हुई।
उत्तर-
(1837 ई०)

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प्रश्न 28.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु……में हुई।
उत्तर-
(1839 ई०)

(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का संबंध कन्हैया मिसल के साथ था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 1780 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के पिता का नाम महा सिंह था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह की माता का नाम सदा कौर था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 5.
सदा कौर कन्हैया मिसल से संबंध रखती थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के बचपन का नाम बुध सिंह था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 8.
शाह जमान तैमूर शाह का बेटा था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
शाह जमान अफ़गानिस्तान का शासक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
रणजीत सिंह ने 1799 ई० में लाहौर पर विजय प्राप्त की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
रणजीत सिंह ने 1801 ई० में पंजाब का महाराजा बना।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1805 ई० में अमृतसर को माई सुक्खां से जीता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
जमजमा एक किले का नाम था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 ई० में काँगड़ा पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 ई० में अटक पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान को 1818 ई० में जीता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर प्रथम बार 1814 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह के समय कश्मीर के प्रथम आक्रमण के समय वहाँ का गवर्नर अत्ता मुहम्मद खाँ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर 1819 ई० में विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 20.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर प्रथम बार 1818 ई० में आक्रमण किया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 21.
हजरो की लड़ाई 13 जुलाई, 1813 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
नौशहरा की प्रसिद्ध लड़ाई 1813 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
अकाली फूला सिंह नौशहरा की लड़ाई में मारा गया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 ई० में पेशावर को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 25.
जमरौद की लड़ाई 1837 ई० में हुई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 27 जून, 1839 ई० को हुई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर को अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 28.
महाराजा दलीप सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के बाद उसके साम्राज्य की बागडोर संभाली।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 29.
महाराजा खड़क सिंह महाराजा रणजीत सिंह का उत्तराधिकारी था।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
(i) 1770 ई० में
(ii) 1775 ई० में
(iii) 1776 ई० में
(iv) 1780 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) गुजराँवाला में
(i) लाहौर में
(iii) अमृतसर में
(iv) मुलतान में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह का संबंध किस मिसल के साथ था ?
(i) कन्हैया
(ii) शुकरचकिया
(iii) रामगढ़िया
(iv) फुलकियाँ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) बुध सिंह
(ii) चढ़त सिंह
(iii) महा सिंह
(iv) भाग सिंह।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
‘माई मलवैण’ के नाम से कौन प्रसिद्ध थी ?
(i) दया कौर
(ii) रतन कौर
(iii) राज कौर
(iv) सदा कौर।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
रणजीत सिंह शुकरचकिया मिसल का सरदार कब बना ?
(i) 1790 ई० में
(ii) 1792 ई० में
(iii) 1793 ई० में
(iv) 1795 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 7.
सदा कौर कौन थी ?
(i) रणजीत सिंह की रानी
(ii) रणजीत सिंह की सास
(iii) रणजीत सिंह की बहन
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 8.
रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान के समय लाहौर पर कौन-से भंगी सरदार का शासन था ?
(i) चेत सिंह
(ii) साहिब सिंह
(iii) मोहर सिंह
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 9.
रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान के समय कसूर पर किसका शासन था ?
(i) निज़ामुद्दीन
(ii) कदम-उद-दीन
(iii) वज़ीर खाँ
(iv) जकरिया खाँ।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 10.
रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान के समय संसार चंद कटोच कहाँ का शासक था ?
(i) नेपाल का
(ii) काँगड़ा का
(iii) जम्मू का
(iv) स्यालकोट का।।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 11.
18वीं शताब्दी में गोरखों का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) भीमसेन थापा
(ii) अगरसेन थापा
(iii) अमर सिंह थापा
(iv) तेज बहादुर थापा।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
18वीं शताब्दी में जॉर्ज थॉमस ने कहाँ एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली थी ?
(i) झाँसी में
(ii) हाँसी में
(iii) सरहिंद में
(iv) मुरादाबाद में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 13.
शाह ज़मान कौन था ?
(i) ईरान का शासक
(ii) नेपाल का शासक
(iii) अफ़गानिस्तान का शासक
(iv) चीन का शासक।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
रणजीत सिंह की प्रथम सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
(i) अमृतसर की
(ii) लाहौर की
(iii) भसीन की
(iv) कश्मीर की।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर कब विजय प्राप्त की ?
(i) 1799 ई० में
(ii) 1801 ई० में
(iii) 1803 ई० में
(iv) 1805 ई० में।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने किसको अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया था ?
(i) लाहौर को
(ii) अमृतसर को
(iii) कश्मीर को
(iv) पेशावर को।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह की ताजपोशी कब हुई थी ?
(i) 1799 ई० में
(ii) 1800 ई० में
(iii) 1801 ई० में
(iv) 1805 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर कब विजय प्राप्त की थी ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1806 ई० में
(iii) 1808 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 19.
हजरो अथवा हैदरो की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1809 ई० में
(ii) 1811 ई० में
(iii) 1813 ई० में
(iv) 1814 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 20.
महाराजा रणजीत सिंह के समय मुलतान में किसका शासन था ?
(i) मिसर दीवान चंद
(ii) अत्ता मुहम्मद खाँ
(iii) मुजफ्फर खाँ
(iv) दोस्त मुहम्मद खाँ।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब विजय प्राप्त की ?
(i) 1802 ई० में
(ii) 1805 ई० में
(iii) 1817 ई० में
(iv) 1818 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह ने कोहेनूर हीरा किससे प्राप्त किया था ?
(i) शाह शुज़ा से
(ii) वफ़ा बेगम से
(iii) फ़तह खाँ
(iv) ज़बर खाँ से।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1811 ई० में
(ii) 1812 ई० में
(iii) 1813 ई० में
(iv) 1818 ई० में।
उत्तर-
(iii)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह ने जब प्रथम आक्रमण कश्मीर पर किया तब कश्मीर का गवर्नर कौन था ?
(i) अत्ता मुहम्मद खाँ
(ii) शाह शुजा
(iii) ज़बर खाँ
(iv) कुतुबुद्दीन।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कब विजय प्राप्त की थी ?
(i) 1813 ई० में
(ii) 1814 ई० में
(iii) 1818 ई० में
(iv) 1819 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर पहली बार कब आक्रमण किया ?
(i) 1802 ई० में
(ii) 1805 ई० में
(iii) 1809 ई० में
(iv) 1818 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 27.
किस प्रसिद्ध लड़ाई में अकाली फूला सिंह अफ़गानों से लड़ता हुआ शहीद हो गया था ?
(i) जमरौद की लड़ाई
(ii) नौशहरा की लड़ाई
(iii) सोपियाँ की लड़ाई
(iv) सुपीन की लड़ाई।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 28.
नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1818 ई० में
(ii) 1819 ई० में
(iii) 1821 ई० में
(iv) 1823 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह ने कब पेशावर पर विजय प्राप्त की थी ?
(i) 1819 ई० में
(ii) 1821 ई० में
(iii) 1823 ई० में
(iv) 1834 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 30.
महाराजा रणजीत सिंह ने कब पेशावर को सिख साम्राज्य में शामिल किया था ?
(i) 1823 ई० में
(ii) 1825 ई० में
(iii) 1834 ई० में
(iv) 1839 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 31.
जमरौद की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1818 ई० में
(ii) 1819 ई० में
(iii) 1823 ई० में
(iv) 1837 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 32.
जमरौद की लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह का कौन-सा प्रसिद्ध जरनैल मारा गया था ?
(i) हरी सिंह नलवा
(ii) अकाली फूला सिंह
(iii) मिसर दीवान चंद
(iv) दीवान मोहकम चंद।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह ने निम्नलिखित में से किस मिसल के साथ मित्रता की नीति नहीं अपनाई ?
(i) आहलूवालिया
(ii) भंगी
(iii) रामगढ़िया
(iv) डल्लेवालिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह किस मिसल सरदार को बाबा कह कर पुकारता था ?
(i) गुरबख्श सिंह को
(ii) फ़तह सिंह आहलूवालिया को
(iii) जोध सिंह रामगढ़िया को
(iv) तारा सिंह घेबा को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुरमता संस्था की कब समाप्ति कर दी ?
(i) 1799 ई० में
(ii) 1801 ई० में
(iii) 1802 ई० में
(iv) 1805 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 36.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई ?
(i) 1829 ई० में
(ii) 1831 ई० में
(iii) 1837 ई० में
(iv) 1839 ई० में।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the career of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की गणना न केवल पंजाब बल्कि भारत के महानतम शासकों में की जाती है। आपका जन्म 13 नवंबर, 1780 ई० को गुजराँवाला में हुआ। आपके पिता का नाम महा सिंह तथा माता जी का नाम राज कौर था। आपके पिता जी शुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। आप में बचपन से ही वीरता के गुण पाए जाते थे। महाराजा रणजीत सिंह अनपढ़ होते हुए भी बुद्धिमान व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली। 1799 ई० में आपने अपनी सास सदा कौर की सहायता से भंगी सरदारों से लाहौर को विजित किया। निस्संदेह यह विजय आपके जीवन में एक परिवर्तनकारी मोड़ प्रमाणित हुई। आपने 1801 ई० में महाराजा की उपाधि धारण की। महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 ई० तक शासन किया। आपने एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना की। आपकी 1805 ई० में अमृतसर की विजय, 1818 ई० में मुलतान की विजय, 1819 ई० में कश्मीर की विजय एवं 1834 ई० की पेशावर की विजय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थीं। महाराजा रणजीत सिंह द्वारा स्थापित साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक तथा पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रबंधक भी सिद्ध हुए। उनके शासन प्रबंध का मुख्य उद्देश्य प्रजा की भलाई करना था। महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाकर उन्हें एक सूत्र में बाँधा। उन्होंने सेना का पश्चिमीकरण करके उसे शक्तिशाली बनाया। उन्होंने पंजाब को अंग्रेजों के साथ मित्रता करके अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित होने से बचाए रखा। इन सभी गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब कहा जाता है। निस्संदेह महाराजा रणजीत सिंह को सिख इतिहास में एक गौरवमयी स्थान प्राप्त है।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन पर बैठने के समय पंजाब की राजनीतिक स्थिति कैसी थी ?
(What was the political condition of Punjab at the time of Maharaja Ranjit Singh’s accession to power ?)
अथवा
जब महाराजा रणजीत सिंह गद्दी पर बैठे, तो पंजाब की राजनीतिक अवस्था कैसी थी ?
(What was the political condition of the Punjab on the occassion of Maharaja Ranjit Singh’s accession to throne ?)
उत्तर-
जब रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल का नेतृत्व संभाला तो उस समय पंजाब की राजनीतिक स्थिति बहुत दयनीय थी। हर तरफ अशाँति तथा अव्यवस्था थी। मुग़लों का शक्तिशाली राज्य छिन्नभिन्न हो चुका था तथा उसके खंडहरों पर कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य स्थापित हो चुके थे। पंजाब के अधिकाँश क्षेत्र पर सिखों ने अपनी 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित कर ली थीं। इन मिसलों की परस्पर एकता समाप्त हो चुकी थी और उन्होंने सत्ता के लिए परस्पर झगड़ना आरंभ कर दिया था। पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों ने कुछ स्वतंत्र रियासतों की स्थापना कर ली थी, परंतु इनमें आपसी एकता की कमी थी। अफ़गानिस्तान के शासक शाह ज़मान ने पंजाब को अपने अधिकार में लेने के उद्देश्य से पंजाब पर आक्रमण कर दिए थे। काँगड़ा के शासक संसार चंद तथा नेपाल के शासक भीमसेन थापा पंजाब पर अधिकार करने के लिए ललचाई दृष्टि से उसकी ओर देख रहे थे। मराठे तथा अंग्रेज भी पंजाब को अपने अधीन करने के स्वप्न देख रहे थे, परंतु इस समय वे अन्य समस्याओं में ग्रस्त थे। पंजाब की यह राजनीतिक दशा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान के लिए सहायक सिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
शाह ज़मान पर एक टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Shah Zaman.)
उत्तर-
शाह ज़मान 1793 ई० में अपने पिता तैमूरशाह की मृत्यु के पश्चात् अफ़गानिस्तान का शासक बना था। उसने सबसे पहले पंजाब को अपने अधिकार में लेने के प्रयत्न आरंभ किए। इस उद्देश्य के लिए उसने 1793 ई० और पुनः 1795 ई० में पंजाब पर आक्रमण किए, परंतु उसे यह अभियान मध्य में ही छोड़ कर काबुल लौट जाना पड़ा था। पंजाब पर अपने तीसरे आक्रमण के समय उसने जनवरी, 1797. ई० में लाहौर पर आसानी से अधिकार कर लिया था। लाहौर के भंगी सरदार लहणा सिंह तथा गुज्जर सिंह शाह ज़मान के आक्रमण की सूचना पाते ही लाहौर छोड़कर भाग गए थे, परंतु इसी मध्य काबुल में विद्रोह हो जाने से शाह ज़मान को काबुल लौटना पड़ा था। स्थिति का लाभ उठाकर भंगी सरदारों ने लाहौर पर सहजता से अधिकार कर लिया था। नवंबर, 1798 ई० में शाह जमान ने पुनः एक बार लाहौर पर अधिकार कर लिया था, परंतु इस बार भी काबुल में विद्रोह हो जाने के कारण उसे लौट जाना पड़ा। 7 जुलाई, 1799 ई० को महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था। 1800 ई० में काबुल में शाह ज़मान का तख्ता पलटा दिया गया।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह की छः विजयों का संक्षिप्त विवरण लिखें। (Explain briefly any six conquests of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
रणजीत सिंह एक महान् विजेता था। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा तो वह एक छोटीसी रियासत शुकरचकिया का सरदार था, किंतु उसने अपनी वीरता व योग्यता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। महाराजा रणजीत सिंह की विजयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. लाहौर की विजय 1799 ई०-महाराजा रणजीत सिंह की सर्वप्रथम विजय लाहौर की थी। यहाँ तीन भंगी सरदारों-साहिब सिंह, मोहर सिंह तथा चेत सिंह का राज्य था। रणजीत सिंह ने लाहौर पर आक्रमण कर 7 जुलाई, 1799 ई० को इस पर सुगमता से अधिकार कर लिया।

2. अमृतसर की विजय 1805 ई०-पंजाब का महाराजा बनने के लिए रणजीत सिंह को अमृतसर पर अधिकार करना आवश्यक था। अत: 1805 ई० में रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण करके माई सुक्खाँ को पराजित कर दिया। इस प्रकार अमृतसर को लाहौर राज्य में शामिल कर लिया गया।

3. गुजरात की विजय 1809 ई०-गुजरात शहर अपने साधनों के कारण काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ का शासक साहिब सिंह भंगी रणजीत सिंह के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा था। 1809 ई० में रणजीत सिंह ने फकीर अजीजुद्दीन के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण कर दिया और उसने साहिब सिंह भंगी को हरा कर गुजरात पर अधिकार कर लिया।

4. मुलतान की विजय 1818 ई०-मुलतान को विजित करने के लिए महाराजा ने 7 बार आक्रमण किए। मुलतान का शासक मुज़फ्फर खाँ प्रत्येक बार रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर टालता रहा। 1818 ई० में रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना मिसर दीवान चंद के अधीन भेजी। घमासान युद्ध के बाद रणजीत सिंह की सेनाओं ने मुलतान पर अधिकार कर लिया।

5. कश्मीर की विजय 1819 ई०-कश्मीर की घाटी अपने सौंदर्य व व्यापार के कारण सुविख्यात थी। मुलतान की विजय से रणजीत सिंह बहुत प्रोत्साहित हुआ था। उसने 1819 ई० में मिसर दीवार चंद के नेतृत्व में ही एक विशाल सेना कश्मीर को विजित करने के लिए भेजी। इस सेना ने कश्मीर के शासक जबर खाँ को पराजित करके कश्मीर पर अधिकार कर लिया।

6. पेशावर की विजय 1834 ई०—पेशावर का क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। 1823 ई० में अफ़गानिस्तान के वज़ीर मुहम्मद आज़िम खाँ ने पेशावर पर अधिकार कर लिया था। अतः महाराजा रणजीत सिंह ने उसे नौशहरा में हुई एक घमासान लड़ाई में पराजित करके पेशावर पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार पेशावर को 1834 ई० में लाहौर साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।

प्रश्न 5.
रणजीत सिंह द्वारा लाहौर विजय तथा इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the conquest of Lahore by Ranjit Singh and its significance.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर विजय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a brief note on Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Lahore.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लाहौर विजय का क्या महत्त्व था ? संक्षेप में वर्णन करें।
(What is the importance of Maharaja Ranjit Singh’s Lahore conquest ? Briefly explain.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सर्वप्रथम तथा महत्त्वपूर्ण विजय’ लाहौर की थी। लाहौर पंजाब का सबसे बड़ा तथा प्राचीन शहर होने के कारण बहुत महत्त्व रखता था। इसके अतिरिक्त लाहौर काफ़ी समय से पंजाब की राजधानी चला आ रहा था। यहाँ तीन भंगी सरदारों-साहिब सिंह, मोहर सिंह तथा चेत सिंह का शासन था। इनके अत्याचारों तथा कुप्रबंध के कारण प्रजा बहुत दुःखी थी। नवंबर, 1798 ई० में अफगानिस्तान के शासक शाह ज़मान ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था, परंतु काबुल में विद्रोह हो जाने के कारण उसे वापस लौटना पड़ा। इस स्थिति से लाभ उठाकर भंगी सरदारों ने लाहौर पर सहजता से अधिकार कर लिया था। क्योंकि लाहौर के लोग उनसे बहुत दुःखी थे, इसलिए उन्होंने रणजीत सिंह को लाहौर पर अधिकार करने का निमंत्रण दिया। एक सुनहरी अवसर देखकर रणजीत सिंह ने अपनी सास सदा कौर की सहायता से लाहौर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण की सूचना मिलते ही साहिब सिंह तथा मोहर सिंह भाग गए। चेत सिंह ने रणजीत सिंह का संक्षिप्त-सा मुकाबला करने के पश्चात् अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस प्रकार रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। यह विजय महाराजा रणजीत सिंह के जीवन में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

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प्रश्न 6.
भसीन की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Bhasin.)
उत्तर-
लाहौर की विजय के कारण बहुत-से सरदार रणजीत सिंह के विरुद्ध हो गए। अमृतसर के गुलाब सिंह भंगी तथा कसूर के निजामुद्दीन ने महाराजा के विरुद्ध गठबंधन कर लिया। वे अपनी सेनाएँ लेकर लाहौर के निकट भसीन नामक गाँव में पहुँच गए। रणजीत सिंह भी उनका सामना करने के लिए भसीन आ डटा। लगभग दो माह किसी ने भी आक्रमण करने का साहस न किया। अचानक एक दिन गुलाब सिंह भंगी जो कि गठबंधन का नेता था, अधिक शराब पीने से मर गया। इससे रणजीत सिंह के विरोधियों का साहस टूट गया और इनमें भगदड़ मच गई। इस प्रकार बिना रक्तपात के रणजीत सिंह को विजयश्री मिल गई। इस विजय से रणजीत सिंह का एक बड़ा खतरा टल गया और लाहौर पर उसका अधिकार पक्का हो गया। भसीन की लड़ाई के पश्चात् सिख सरदारों ने रणजीत सिंह के विरुद्ध फिर कोई गठजोड़ करने का यत्न न किया।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह की अमृतसर की विजय तथा इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly about the conquest of Amritsar by Maharaja Ranjit Singh and its importance.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह के आरंभिक जीवन में अमृतसर की विजय का क्या महत्त्व था ?
(What is the significance of the conquest of Amritsar in the early career of Ranjit Singh ?) .
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अमृतसर विजय का संक्षिप्त वर्णन करो। (Describe briefly about the conquest of Amritsar by Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
धार्मिक दृष्टि से अमृतसर का सिखों में बड़ा महत्त्व था। सिख इसे अपना मक्का समझते थे। इसके अतिरिक्त यह पंजाब का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र भी था। पंजाब का महाराजा बनने के लिए भी रणजीत सिंह के लिए अमृतसर पर अधिकार करना अत्यावश्यक था। 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने गुलाब सिंह भंगी की विधवा माई सुखाँ को जो अमृतसर में अपने अवयस्क पुत्र गुरदित्त सिंह के नाम पर शासन कर रही थी, लोहगढ़ का किला तथा प्रसिद्ध.जमजमा तोप उसके सुपुर्द करने के लिए कहा। माई सुखाँ ने महाराजा की ये मांगें मानने से इंकार कर दिया। इस कारण महाराजा ने अपनी सास सदा कौर और फतह सिंह आहलूवालिया को साथ लेकर अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुखाँ ने संक्षिप्त से विरोध के पश्चात् पराजय स्वीकार कर ली। इस प्रकार 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर कब्जा कर लिया। अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। अमृतसर एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह के आर्थिक साधनों में वृद्धि हुई। इनके अतिरिक्त महाराजा को अकालियों की सेवाएँ भी प्राप्त हुईं।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कैसे विजय प्राप्त की ? (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Multan ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान विजय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Ranjit Singh’s conquest of Multan.)”
उत्तर-
मुलतान भौगोलिक तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह इसे अपने अधिकार में करना चाहता था। मुलतान पर उस समय अफ़गान गवर्नर नवाब मुज़फ्फर खाँ का शासन था। कहने को तो वह काबुल सरकार के अधीन था परंतु वास्तव में वह स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1802 ई० से 1817 ई० तक 6 अभियान मुलतान भेजे थे। नवाब मुज़फ्फर खाँ हर बार नज़राना देकर रणजीत सिंह की सेना को टाल देता था। 1818 ई० में महाराजा ने मुलतान पर अधिकार करने का निर्णय कर लिया। मुलतान पर आक्रमण करने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियाँ आरंभ कर दी गईं। मिसर दीवान चंद, जो महाराजा के विख्यात सेनापतियों में से एक था, के अधीन 20,000 सैनिकों की विशाल सेना जनवरी, 1818 ई० में मुलतान पर आक्रमण करने के लिए भेजी गई। उधर नवाब मुज़फ्फर खाँ ने महाराजा की सेनाओं का सामना करने के लिए अपनी तैयारियाँ आरंभ कर दी थीं। उसने सिखों के विरुद्ध जेहाद (धर्म युद्ध) की घोषणा कर दी थी। मुलतान का घेरा चार महीने तक जारी रहा, परंतु सिख किले पर अधिकार करने में विफल रहे। 2 जून, 1818 ई० को अकाली नेता साधु सिंह अपने कुछ साथियों सहित किले के भीतर प्रवेश करने में सफल हो गए। उसके पीछे-पीछे सिख सेनाएं भी किले के भीतर प्रवेश कर गईं। नवाब मुज़फ्फर खाँ तथा उसके पुत्रों ने डट कर सामना किया। अंत में इस लड़ाई में मुज़फ्फर खाँ तथा उसके पाँच बेटे मारे गए। छठा पुत्र घायल हो गया तथा शेष दो ने क्षमा माँग ली। इस प्रकार मुलतान के किले पर अंततः सिख सेना का अधिकार हो गया। जब महाराजा रणजीत सिंह को इस महत्त्वपूर्ण विजय की सूचना मिली तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। विजय के उपलक्ष्य में कई दिनों तक उत्सव मनाया जाता रहा। मिसर दीवान चंद को ‘जफर जंग’ की उपाधि प्रदान की गई। यह विजय महाराजा रणजीत सिंह के लिए अनेक पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुई।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान की विजय का महत्त्व बताएँ। (Describe the significance of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Multan.)
उत्तर-
मुलतान की विजय महाराजा रणजीत सिंह की एक महत्त्वपूर्ण विजय थी। यह विजय कितनी महान् थी, इसका अनुमान हम निम्नलिखित तथ्यों से आसानी से लगा सकते हैं—
1. अफ़गान शक्ति को गहरा आघात-मुलतान विजय से पंजाब से अफ़गान शक्ति का दबदबा समाप्त हो गया। इस विजय ने पंजाब से अफ़गान शक्ति का अंत करके यह प्रमाणित कर दिया कि सिख अफ़गानों से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं।

2. मुलतान सिंध एवं बहावलपुर के मध्य एक दीवार बन गया-महाराजा रणजीत सिंह द्वारा मुलतान पर अधिकार कर लिए जाने के कारण सिंध तथा बहावलपुर के मुसलमान अलग-अलग हो गए। इनके पृथक् हो जाने से वे महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध कोई संयुक्त मोर्चा बनाने के योग्य न रहे। इस प्रकार मुलतान, सिंध तथा बहावलपुर के मध्य एक दीवार बन गया।

3. कुछ छोटी मुस्लिम रियासतों ने रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार कर ली-महाराजा रणजीत सिंह की मुलतान की विजय का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि बहावलपुर, डेराजात, डेरा गाज़ी खाँ तथा डेरा इस्माइल खाँ जो छोटी मुस्लिम रियासतें थीं, के शासक बहुत भयभीत हो गए और उन्होंने शीघ्र ही रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार कर ली।

4. आय में वृद्धि-मुलतान का प्रदेश बहुत उपजाऊ तथा समृद्ध था। इसलिए इसकी विजय से रणजीत सिंह की आय में 7 लाख रुपए वाषिक की वृद्धि हुई। यहाँ से प्राप्त किए धन से महाराजा रणजीत सिंह को भविष्य में अपनी कई योजनाओं को पूर्ण करने का अवसर मिला।

5. व्यापार को प्रोत्साहन-मुलतान की विजय महाराजा रणजीब सिंह के लिए व्यापारिक एवं सैनिक पक्षों से भी बहुत लाभप्रद सिद्ध हुई। मुलतान के मार्ग से भारत का अफ़गानिस्तान तथा मध्य एशिया देशों के साथ व्यापार होता था। इस महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र पर रणजीत सिंह का अधिकार हो जाने के कारण पंजाब के व्यापार को काफी प्रोत्साहन मिला।

6. रणजीत सिंह के सम्मान में वृद्धि-मुलतान की विजय से जहाँ महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य में वृद्धि हुई, वहाँ उसके मान-सम्मान में चार चाँद लग गए। सभी उसकी शक्ति का लोहा मानने लगे।

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प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कैसे अधिकार किया ? (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Kashmir ?)
उत्तर-
कश्मीर अपनी सुंदरता तथा व्यापार के लिए बहुत विख्यात था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर पर अधिकार करना चाहता था। ठीक उसी समय काबुल का वज़ीर फ़तह खाँ भी कश्मीर को अपने अधिकार में लेने की योजनाएँ बना रहा था। क्योंकि वे दोनों अकेले कश्मीर को जीतने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए दोनों के मध्य रोहतास में एक समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार 1813 ई० में इन दोनों सेनाओं ने कश्मीर की ओर प्रस्थान किया। कश्मीर का गवर्नर अता मुहम्मद खाँ इन दोनों सेनाओं से टक्कर लेने के लिए आगे बढ़ा, परंतु शेरगढ़ के स्थान पर हुई लड़ाई में वह हार गया। कश्मीर पर अधिकार करने के पश्चात् फ़तह खाँ ने रणजीत सिंह को कुछ भी न दिया। 1814 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर दूसरी बार आक्रमण किया, परंतु इस आक्रमण में महाराजा को असफलता का सामना करना पड़ा। 1818 ई० में मुलतान की विजय से उत्साहित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर तीसरी बार आक्रमण किया। 5 जुलाई, 1819 ई० को सोपियाँ के स्थान पर हुई लड़ाई ने कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर जबर खाँ की कड़ी पराजय हुई। इस प्रकार अंततः महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर को विजित करने में सफल हुआ। इस भव्य विजय के कारण महाराजा रणजीत सिंह ने बहुत खुशियाँ मनाईं।

प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह की कश्मीर की विजय का महत्त्व बताएँ। (Describe the significance of Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Kashmir.)
उत्तर-
1. महाराजा रणजीत की प्रतिष्ठा में वृद्धि-कश्मीर की विजय महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। इस विजय से महाराजा की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई तथा लेह, लहासा तथा कराकुर्म के पहाड़ों के दूसरी ओर तक उसकी शक्ति की धाक जम गई। उत्तर में अब उसके राज्य की सीमा प्राकृतिक सीमा तक पहुंच गई।

2. अफ़गान शकित को गहरा आघात-कश्मीर पर सिखों का अधिकार हो जाने से अफगान शक्ति को एक और भारी आघात पहुँचा तथा सिख सेना का साहस और बढ़ गया।

3. आय में वृद्धि-कश्मीर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह को भारी आर्थिक लाभ हुआ। इस प्राँत से महाराजा को 40,00,000 रुपए वार्षिक आय होती थी।

4. व्यापार को प्रोत्साहन-कश्मीर की विजय व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुई। यह राज्य शालों के उद्योग के लिए विश्व भर में विख्यात था। इसके अतिरिक्त कश्मीर विभिन्न प्रकार के फलों, केसर तथा वनों के कारण भी जाना जाता था। कश्मीर के पंजाब में सम्मिलित होने से यहाँ के व्यापार में वृद्धि हुई।

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प्रश्न 12.
नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a brief note on the battle of Naushehra or Tibba Tehri.)
उत्तर-
जनवरी, 1823 ई० में काबुल के शासक अजीम खाँ ने पेशावर पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में ले लिया था। उसने सिखों के विरुद्ध धर्म युद्ध का नारा लगाया था जिसके कारण बहुत-से अफगान उसके झंडे के नीचे एकत्र होने लगे थे। दूसरी ओर रणजीत सिंह ने अज़ीम खाँ का सामना करने के लिए 20,000 सैनिकों की एक विशाल सेना भेजी। इस सेना के साथ हरी सिंह नलवा, जनरल एलार्ड, जनरल बैंतूरा, अकाली फूला सिंह, फतह सिंह आहलूवालिया तथा राजकुमार खड़क सिंह को भेजा गया। इस सारी सेना का नेतृत्व महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं किया। 14 मार्च, 1823 ई० को दोनों सेनाओं में नौशहरा अथवा टिब्बा टेहरी के स्थान पर बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। आरंभ में अफ़गानों का पलड़ा भारी रहा। अकाली फूला सिंह तथा कई अन्य विख्यात योद्धा इस लड़ाई में मारे गए। ऐसे समय में महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेनाओं में एक नया प्रोत्साहन पैदा किया। अब सिखों ने अफ़गान सेना पर एक ऐसा ज़ोरदार आक्रमण किया कि उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए रण क्षेत्र से भागना पड़ा। इस निर्णायक लड़ाई में महाराजा रणजीत सिंह की विजय से उसकी सेना का प्रोत्साहन बहुत बढ़ गया और अज़ीम खाँ इस अपमान के कारण शीघ्र ही इस संसार से चल बसा।

प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह की पेशावर की विजय एवं इसके महत्त्व पर संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Peshawar and its significance.)
उत्तर-
पेशावर की विजय महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। महाराजा रणजीत सिंह को पेशावर पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से 1818 ई० से 1834 ई० तक एक कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इस समय के दौरान उसने अपने पाँच सैनिक अभियानों को पेशावर भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने यद्यपि 1823 ई० में पेशावर विजित करने में सफलता प्राप्त की थी किंतु इसे उसने 1834 ई० में अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। इस विजय से महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का काफ़ी विस्तार हुआ। उसकी सैनिक शक्ति की धाक समस्त भारत में जम गई। उसके सम्मान में भी काफ़ी वृद्धि हुई। पेशावर पर रणजीत सिंह का अधिकार हो जाने के कारण 8 शताब्दियों के पश्चात् पंजाबियों ने सुख की सांस ली क्योंकि इसी मार्ग से होकर मुस्लिम आक्रमणकारी पंजाब तथा भारत के अन्य भागों पर आक्रमण करते थे। इस कारण यहाँ भारी विनाश हुआ, वहीं उन्होंने लोगों की नींद हराम कर दी थी। महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पेशावर पर अधिकार महाराजा के लिए आर्थिक पक्ष से भी बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ। इस प्राँत से रणजीत सिंह को वार्षिक लगभग लाख रुपये आय प्राप्त हुई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित शासकों के प्रति क्या नीति धारण की ? (What policy did Maharaja Ranjit Singh adopt towards the defeated rulers ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक दूरदर्शी तथा उदार शासक था। उसने न केवल बहुत-से प्रदेशों पर अधिकार किया, अपितु उनके प्रति एक सफल प्रशासनिक नीति भी अपनाई। यह नीति सभी शासकों पर समान रूप से लागू होती थी, चाहे वह शासक हिंदू, सिख अथवा मुसलमान थे। कई शासकों को, जिन्होंने रणजीत सिंह की अधिराज्य शर्ते स्वीकार कर ली थीं, उनके क्षेत्र लौटा दिए गए। जिन शासकों के क्षेत्र सिख राज्य में सम्मिलित कर लिए गए उन्हें महाराजा ने अपने दरबार में नौकरी पर रख लिया अथवा उन्हें गुज़ारे के लिए जागीरें दे दी गईं। विरोध जारी रखने वाले शासकों के विरुद्ध कड़ी नीति अपनाई गई। उनके विरुद्ध सैनिक अभियान भेजे गए तथा उनके राज्यों को हड़प लिया गया। संक्षेप में, महाराना रणजीत सिंह ने पराजित शासकों के प्रति जो नर्म तथा दयालुता का व्यवहार किया उसकी उस समय कोई अन्य उदाहरण नहीं मिलती।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने सिख मिसलों के प्रति कैसी नीति अपनाई ?
(What policy did Maharaja Ranjit Singh adopt towards the Sikh Misls ?)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति का वर्णन करें।
(Examine the Misl policy of Maharaja Ranjit Singh.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सिख मिसलों के संबंध में विशेष नीति अपनाई थी। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलखित थीं।

  1. अपने राज्य का विस्तार करने के लिए न किसी रिश्तेदारी और न ही किसी के प्रति एहसानमंदी की भावना को महत्त्व देना।
  2. राज्य के विस्तार के समय यह नहीं देखना कि किसी मिसल सरदार के राज्य पर अधिकार करना न्यायोचित है अथवा नहीं।
  3. शक्तिशाली मिसल सरदारों से मित्रता कर लेना अथवा उनसे विवाह संबंध स्थापित कर लेना।
  4. दुर्बल मिसल सरदारों के राज्यों पर आक्रमण करके उनके प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लेना।
  5. अवसर पाकर मित्र मिसल सरदारों से विश्वासघात करना और उनके प्रदेशों को अपने राज्य में शामिल करना।
  6. सिखों की महत्त्वपूर्ण केंद्रीय संस्था गुरमता को समाप्त करना ताकि कोई मिसलदार रणजीत सिंह की समानता न कर सके।

महाराजा रणजीत सिंह ने सर्वप्रथम कन्हैया मिसल से मित्रता स्थापित की। उसने 1796 ई० में गुरबख्श सिंह की पुत्री मेहताब कौर से विवाह किया। इस प्रकार 1798 ई० में उसने नकई मिसल के सरदार खजान सिंह की पुत्री राजकौर से विवाह किया। 1801 ई० में उसने फतह सिंह आहलूवालिया से एक-दूसरे का सदैव साथ देने का प्रण किया। इसी प्रकार जोध सिंह रामगढ़िया तथा डल्लेवालिया मिसल के सरदार तारा सिंह घेवा से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए। इस नीति के कारण महाराजा अपने राज्य का विस्तार करने में सफल हुआ।

दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने कमज़ोर मिसलों पर आक्रमण करके उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित करने की नीति अपनाई। उसने भंगी मिसल, डल्लेवालिया मिसल, करोड़सिंधिया मिसल, नकई मिसल, फैज़लपुरिया मिसल पर आक्रमण करके उनके प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। जब महाराजा रणजीत सिंह की स्थिति शक्तिशाली हो गई तो उसने कन्हैया मिसल, रामगढ़िया मिसल तथा आहलूवालिया मिसल प्रदेशों को हड़प लिया यद्यपि उनके रणजीत सिंह के साथ मैत्री संबंध थे। इस कारण कुछ इतिहासकार महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति की आलोचना करते हैं, पर वास्तव में यह नीति पंजाब के लोगों के लिए एक वरदान सिद्ध हुई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 1780 ई० में शुकरचकिया मिसल के नेता महा सिंह के घर हुआ। यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह अनपढ़ रहा, तथापि उसने तलवारबाजी और घुड़सवारी में बहुत कुशलता प्राप्त कर ली थी। उसने बाल्यकाल से ही अपनी वीरता के कारनामे दिखाने आरंभ कर दिए थे। 1797 ई० में रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय पंजाब की राजनीतिक स्थिति बहुत डावाँडोल थी। यह एक अंधकारमय युग में से गुजर रहा था। महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी विजयों का श्रीगणेश 1799 ई० में लाहौर की विजय से आरंभ किया था। मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर उसकी अन्य सबसे महत्त्वपूर्ण विजयें थीं। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी वीरता एवं योग्यता से अपने छोटे से राज्य को एक विस्तृत और शक्तिशाली साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था। उसके राज्य की सीमाएँ उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक तथा पूरब में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैली हुई थीं।

  1. महाराजा रणजीत सिंह का जन्म ……… में हुआ। ।
  2. महाराजा रणजीत सिंह का संबंध किस मिसल के साथ था ?
  3. 18वीं सदी में पंजाब की राजनीतिक स्थिति कैसी थी ?
  4. महाराजा रणजीत सिंह की दो महत्त्वपूर्ण विजयें कौन-सी थीं?
  5. महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ?

उत्तर-

  1. 1780 ई०।
  2. महाराजा रणजीत सिंह का संबंध शुकरचकिया मिसल के साथ था।
  3. 18वीं सदी में पंजाब की राजनीतिक स्थिति स्थिर नहीं थी।
  4. महाराजा रणजीत सिंह की दो महत्त्वपूर्ण विजयें लाहौर तथा पेशावर थीं।
  5. महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 ई० में हुई थी।

2
जब रणजीत सिंह 12 वर्ष का था तो 1792 ई० में उसके पिता महा सिंह की मृत्यु हो गई थी। क्योंकि रणजीत सिंह अभी नाबालिग था इसलिए राज्य-व्यवस्था का कार्य उसकी माता राज कौर के हाथ में आ गया, किंतु राज कौर में प्रशासकीय योग्यता नहीं थी। इसलिए उसने शासन-व्यवस्था का कार्य अपने एक चहेते दीवान लखपत राय को सौंप दिया। 1796 ई० में जब रणजीत सिंह का विवाह मेहताब कौर से हो गया तो उसकी सास सदा कौर भी शासन-व्यवस्था में रुचि लेने लग पड़ी। इस प्रकार 1792 ई० से लेकर 1797 ई० तक शासन-व्यवस्था तीन व्यक्तियों-राज कौर, दीवान लखपत राय और सदा कौर के हाथ में रही। इसलिए इस काल को तिक्कड़ी के संरक्षण का काल कहा जाता है।

  1. महाराजा रणजीत सिंह के पिता जी का क्या नाम था ?
  2. राज कौर कौन थी ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह का पहला विवाह किसके साथ हुआ था ?
  4. मेहताब कौर का संबंध किस मिसल के साथ था ?
    • शुकरचकिया मिसल
    • कन्हैया मिसल
    • भंगी मिसल
    • रामगढ़िया मिसल।
  5. सदा कौर कौन थी ?

उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह के पिता जी का नाम महा सिंह था।
  2. राज कौर महाराजा रणजीत सिंह की माता जी का नाम था।
  3. महाराजा रणजीत सिंह का विवाह मेहताब कौर से हुआ।
  4. कन्हैया मिसल।
  5. सदा कौर महाराजा रणजीत सिंह की सास का नाम था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

3
रणजीत सिंह के उत्थान से पूर्व सतलुज नदी के उत्तर-पश्चिम की ओर भंगी मिसल काफ़ी शक्तिशाली थी। इस मिसल में पंजाब के दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शहर लाहौर तथा अमृतसर सम्मिलित थे। इनके अतिरिक्त इस मिसल के अधीन गुजरात तथा स्यालकोट के क्षेत्र भी थे। 1797 ई० में लाहौर में तीन भंगी सरदारों चेत सिंह, साहिब सिंह तथा मोहर सिंह, अमृतसर में गुलाब सिंह, स्यालकोट में जीवन सिंह तथा गुजरात में साहिब सिंह भंगी का शासन था। इन सभी भंगी शासकों को भांग पीने तथा अफीम खाने का व्यसन था। वे सारा दिन रंगरलियाँ मनाने में व्यस्त रहते थे। प्रजा उनके अत्याचारों से बहुत दुखी थी। गुजरात के साहिब सिंह भंगी ने तो दूसरे भंगी सरदारों से ही लड़ना आरंभ कर दिया था। परिणामस्वरूप यह मिसल दिन-प्रतिदिन तीव्रता से पतन की ओर जा रही थी।

  1. भंगी मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
  2. भंगी मिसल का शासन कौन-से शहरों में था ?
  3. …………….. में लाहौर में तीन भंगी सरदारों का शासन था।
  4. भंगी शासकों का शासन कैसा था ?
  5. कहाँ के भंगी शासकों ने आपस में लड़ना आरंभ कर दिया था ?

उत्तर-

  1. भंगी मिसल का यह नाम यहाँ के शासकों द्वारा भांग पीने के कारण पड़ा।
  2. भंगी मिसल का शासन लाहौर, अमृतसर, स्यालकोट तथा गुजरात में था।
  3. 1797 ई०।
  4. भंगी शासक अपना अधिकतर समय ऐशो-आराम में व्यतीत करते थे।
  5. गुजरात के शासक साहिब सिंह ने दूसरे भंगी शासकों के साथ लड़ना आरंभ कर दिया था।

4
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक रणजीत सिंह का दादा चढ़त सिंह था। उसने गुजरांवाला, ऐमनाबाद और स्यालकोट के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। 1774 ई० में चढ़त सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र महा सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। उसमें एक योग्य सरदार के सभी गुण थे। उसने रसूलनगर तथा अलीपुर के क्षेत्रों को जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र रणजीत सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। क्योंकि उस समय रणजीत सिंह की आयु केवल 12 वर्ष थी, इसलिए शासन प्रबंध मुख्यतया रणजीत सिंह की माता राज कौर, दीवान लखपत राय तथा सास सदा कौर के हाथों में रहा। जवान होने पर रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शासन स्वयं संभाल लिया। वह एक योग्य, वीर तथा दूरदर्शी शासक प्रमाणित हुआ।

  1. शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
  2. महा सिंह ने किन दो प्रदेशों पर विजय प्राप्त की थी ?
  3. तिक्कड़ी के संरक्षण का काल क्या था ?
  4. रणजीत सिंह ने ………….. में स्वतंत्र रूप से शासन स्वयं संभाल लिया।
  5. रणजीत सिंह कैसा शासक सिद्ध हुआ ?

उत्तर-

  1. शुकरचकिया मिसल का संस्थापक चढ़त सिंह था।
  2. महा सिंह ने रसूल नगर तथा अलीपुर नाम के दो प्रदेशों पर विजय प्राप्त की थी।
  3. तिक्कड़ी के संरक्षण का काल 1792 ई० से 1797 ई० तक था।
  4. 1797 ई०।
  5. रणजीत सिंह एक योग्य, बहादुर तथा दूरदर्शी शासक था।

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5
कश्मीर अपनी सुंदरता तथा व्यापार के लिए बहुत विख्यात था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर पर अधिकार करना चाहता था। ठीक उसी समय काबुल का वज़ीर फ़तह खाँ भी कश्मीर को अपने अधिकार में लेने की योजनाएँ बना रहा था। क्योंकि वे दोनों अकेले कश्मीर को जीतने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए दोनों के मध्य रोहतास में एक समझौता हुआ। 1813 ई० में इन दोनों सेनाओं ने कश्मीर की ओर प्रस्थान किया। कश्मीर का गवर्नर अत्ता मुहम्मद खाँ इन दोनों सेनाओं से टक्कर लेने के लिए आगे बढ़ा, परंतु शेरगढ़ के स्थान पर हुई लड़ाई में अत्ता मुहम्मद खाँ हार गया। कश्मीर पर अधिकार करने के पश्चात् फ़तह खाँ ने रणजीत सिंह को कुछ भी न दिया। 1814 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर दूसरी बार आक्रमण किया, परंतु इस आक्रमण में महाराजा को असफलता का सामना करना पड़ा। 1818 ई० में मुलतान की विजय से उत्साहित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर तीसरी बार आक्रमण किया। 5 जुलाई, 1819 ई० को सुपीन के स्थान पर हुई लड़ाई में कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर ज़बर खाँ की कड़ी पराजय हुई। इस प्रकार अंततः महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर को विजित करने में सफल हुआ।

  1. महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर को अपने अधीन क्यों करना चाहता था ?
  2. रोहतास समझौता कब हुआ ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह के कश्मीर के पहले आक्रमण के समय वहाँ का गवर्नर कौन था ?
  4. महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर कब विजय प्राप्त की थी ?
  5. महाराजा रणजीत सिंह की कश्मीर विजय समय वहाँ का गवर्नर कौन था ?
    • फतेह खाँ
    • ज़बर खाँ
    • नुसरत खाँ
    • दीवान मोहकम चंद।

उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर की सुंदरता तथा इसके व्यापार के कारण इसे अपने अधीन करना चाहता था।
  2. रोहतास समझौता 1813 ई० में हुआ।
  3. महाराजा रणजीत सिंह के कश्मीर पर पहले आक्रमण के समय वहाँ का गवर्नर अत्ता मुहम्मद खाँ था।
  4. महाराजा रणजीत सिंह ने 1819 ई० में कश्मीर पर विजय प्राप्त की थी।
  5. ज़बर खाँ।

महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें PSEB 12th Class History Notes

  • महाराजा रणजीत सिंह का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Maharaja Ranjit Singh) रणाजीत सिंह का जन्म शुकरचकिया मिसल के नेता महा सिंह के घर 1780 ई० में हुआ-रणजीत सिंह की माता का नाम राज कौर था-बचपन में चेचक हो जाने के कारण रणजीत सिंह की बाईं आँख की रोशनी सदा के लिए जाती रही-रणजीत सिंह बचपन से ही बड़ा वीर था-16 वर्ष की आयु में उसका विवाह कन्हैया मिसल के सरदार जय सिंह की पोती मेहताब कौर से हुआ-जब महा सिंह की मृत्यु हुई तब रणजीत सिंह नाबालिग था, इसलिए शासन व्यवस्था-राज कौर, दीवान लखपत राय और सदा कौर की तिक्कड़ी के हाथ में रही-17 वर्ष का होने पर रणजीत सिंह ने-तिक्कड़ी के संरक्षण का अंत करके शासन व्यवस्था स्वयं संभाल ली।।
  • पंजाब की राजनीतिक दशा (Political Condition of the Punjab)—जब रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय पंजाब के चारों ओर अशाँति व अराजकता फैली हुई थी-पंजाब के अधिकाँश भागों में सिखों की 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित थीं-ये मिसलें परस्पर झगड़ती रहती थीं-पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों ने भी स्वतंत्र रियासतें स्थापित कर ली थीं-इन रियासतों में भी एकता का अभाव था-पंजाब के उत्तर में कुछ राजपूत रियासतें थीं-नेपाल के गोरखे पंजाब की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे थे-अंग्रेज़ों और मराठों से रणजीत सिंह को खतरा न था क्योंकि वे तब परस्पर युद्धों में उलझे थे -अफ़गानिस्तान के शासक शाह जमान ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था।
  • सिख मिसलों के प्रति रणजीत सिंह की नीति (Ranjit Singh’s Policy towards the Sikh Misls)-महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति मुग़ल बादशाह अकबर की राजपूत नीति के समान थी-इसमें रिश्तेदारी और कृतज्ञता की भावना के लिए कोई स्थान नहीं था-रणजीत सिंह ने शक्तिशाली मिसलों जैसे कन्हैया तथा नकई मिसल के साथ विवाह संबंध स्थापित किए और आहलूवालिया तथा रामगढ़िया मिसलों के साथ मित्रता की-उनके सहयोग से दुर्बल मिसलों पर आक्रमण करके उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया गया-अवसर पाकर रणजीत सिंह ने मित्र मिसलों के साथ विश्वासघात करके उन्हें भी अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया-1805 ई० में रणजीत सिंह ने गुरमता संस्था को समाप्त करके राजनीतिक निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।
  • महाराजा रणजीत सिंह की विजयें (Conquests of Maharaja Ranjit Singh)—महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों का वर्णन इस प्रकार है—
    • लाहौर की विजय (Conquest of Lahore)-महाराजा रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को भंगी सरदारों से लाहौर को विजय किया था-यह उसकी प्रथम तथा सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी-लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की राजधानी रही।
    • अमृतसर की विजय (Conquest of Amritsar)-1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खाँ से अमृतसर को विजय किया था इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई क्योंकि सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे।
    • मुलतान की विजय (Conquest of Multan)-महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब्जा करने के लिए 1802 ई० से 1817 ई० के समय दौरान सात अभियान भेजे-अंतत: 2 जून, 1818 ई० को मुलतान पर विजय प्राप्त की गई-वहाँ का शासक मुज्जफ़र खाँ अपने पाँच पुत्रों के साथ युद्ध में मारा गया-मुलतान विजेता मिसर दीवान चंद को जफर जंग की उपाधि दी गई।
    • कश्मीर की विजय (Conquest of Kashmir)-महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को विजय करने के लिए तीन बार आक्रमण किए-उसने 1819 ई० में अपने तृतीय सैनिक अभियान दौरान कश्मीर को विजित किया-कश्मीर का तत्कालीन गवर्नर जबर खाँ था-यह विजय महाराजा के लिए अनेक पक्षों से लाभदायक रही।
    • पेशावर की विजय (Conquest of Peshawar)—महाराजा रणजीत सिंह ने यद्यपि 1823 ई० में पेशावर पर विजय प्राप्त कर ली थी परंतु इसे 1834 ई० में अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया-इससे अफ़गानों की शक्ति को गहरा आघात लगा।
    • अन्य विजयें (Other Conquests)-महाराजा रणजीत सिंह की अन्य महत्त्वपूर्ण विजयों में कसूर तथा सँग (1807), स्यालकोट (1808), काँगड़ा (1809), जम्मू (1809), अटक (1813) तथा डेरा गाजी खाँ (1820) आदि के नाम वर्णनीय हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

PSEB 12th Class Geography Guide मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें :

प्रश्न 1.
मानवीय विकास का कोई एक महत्त्वपूर्ण पहलू क्या है ?
उत्तर-
लोगों के पास अवसर का होना मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।

प्रश्न 2.
मानवीय विकास के स्तम्भ माने जाते किसी एक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
हक या इन्साफ, निरंतरता इत्यादि मानवीय विकास के स्तम्भ हैं।

प्रश्न 3.
रहन-सहन का कैसा स्तर अच्छे मानवीय विकास का सूचक है ?
उत्तर-
लिंग-समानता, स्त्रियों की अपेक्षाकृत अधिक प्राप्तियां, मानवीय ग़रीबी सूचक इत्यादि रहन-सहन के स्तर अच्छे मानवीय विकास के सूचक हैं।

प्रश्न 4.
आर्थिक निरीक्षण (2011) के अनुसार मानवीय विकास सूचक स्तर भारत के किस राज्य में सबसे अधिक है और कितना ?
उत्तर-
आर्थिक निरीक्षण (2011) के अनुसार मानवीय विकास सूचक स्तर भारत के केरल राज्य (0.7117) में सबसे अधिक है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

प्रश्न 5.
मानवीय बस्तियों को कौन-से दो भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
मानवीय बस्तियों को ग्रामीण बस्तियाँ और शहरी बस्तियाँ दो भागों में विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब का कौन-सा शहर ‘स्मार्ट सिटी’ प्रोजैक्ट के प्रथम दौर में शामिल हआ है ?
उत्तर-
पंजाब का लुधियाना शहर ‘स्मार्ट सिटी’ प्रोजैक्ट के प्रथम दौर में शामिल हुआ है।

प्रश्न 7.
फ्रांसिस पैरोकस (1955) ने विकास के कौन-से फोकल प्वाइंट की धारणा विकसित की ?
उत्तर-
फ्रांसिस पैरोकस ने 1955 में विकास के धुरे की धारणा विकसित की।

प्रश्न 8.
वर्तमान में विकास का इंजन’ किस किस्म के शहर को कहा गया है ?
उत्तर-
वह शहर जहाँ सूचना तकनीक, एक प्रमुख ढांचा अपने निवासियों को सेवाएं प्रदान करने के लिए एक आधार का काम करता है, स्मार्ट शहर के विकास का इंजन’ कहलाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

प्रश्न 9.
किसी तालाब के किनारे बसी जनसंख्या कैसी बस्ती का नमूना होगी ?
उत्तर-
किसी तालाब के किनारे बसी जनसंख्या गोलाकार नमूना होगी।

प्रश्न 10.
संसार में किस देश का मानवीय सूचक अंक सबसे ज्यादा है और कितना ?
उत्तर-
संसार में नार्वे (0.949) देश का मानवीय सूचक अंक सबसे अधिक है।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
मानवीय विकास सूचक का नवीन सिद्धांत कौन-से अर्थशास्त्री ने दिया ?
उत्तर-
1990 तक देश का विकास उस देश में हो रहे आर्थिक विकास से मापा जाता है। विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू थे लोगों की जीवन गुणवत्ता, लोगों के पास रोज़गार के अवसर, लोगों के द्वारा आज़ादी मानना इत्यादि। पाकिस्तान के अर्थशास्त्री डॉक्टर महबूब-उल-हक और भारतीय मूल के नोबल, विजेता डॉक्टर अमर्त्य सेन के अनुसार, मानवीय चुनाव दायरे में वृद्धि करना है, ताकि वे लम्बी और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें। इस सिद्धांत को मानवीय विकास, सूचक का नवीन सिद्धांत कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत ने कौन-से तीन तरीके मानवीय विकास के तौर पर चुने हैं ?
उत्तर-

  1. लिंग समानता।
  2. स्त्रियों की अपेक्षाकृत अधिक प्राप्तियाँ।
  3. मानवीय ग़रीबी सूचक।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

प्रश्न 3.
मानवीय विकास के स्तंभ के तौर पर जाने जाते चार तरीके कौन-से हैं ?
उत्तर-
मानवीय विकास के स्तंभ के तौर पर जाने जाते चार तरीके—

  1. हक या इन्साफ़
  2. निरंतरता-आर्थिक अवसरों की उपलब्धि।
  3. उत्पादकता-आर्थिक जिंदगी के हर क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि।
  4. शक्तिकरण-अपनी मर्जी का अवसर चुनने की शक्ति का होना।

प्रश्न 4.
मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार भारत के चार पहले राज्य कौन से हैं ?
उत्तर-
मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार भारत में केरल (0.7117) अंक से देश में पहले स्थान पर है और हिमाचल प्रदेश (0.6701) दूसरे स्थान पर, गोवा (0.6701) तीसरे स्थान पर, महाराष्ट्र (0.6659) चौथे स्थान पर है।

प्रश्न 5.
मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार भारत की विश्व में स्थिति के विषय में लिखो।
उत्तर-
मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार 0.624 अंक कीमत से 188 देशों में से क्रमवार भारत 131वें स्थान पर है। भारत देश का स्थान शुरुआत में 119 (साल 2010 में) से बदल कर 131 (2016 में) तक पहुँच गया।

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प्रश्न 6.
ग्रामीण बस्तियाँ आमतौर पर कौन से इलाकों में मिलती हैं ?
उत्तर-
भारत गाँवों का देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के 6,40,930 गाँव में 68.84% आबादी रहती हैं। गाँव बस्तियाँ आमतौर पर बाढ़ के मैदानों, नदी के किनारों, पहाड़ों की ढलानों, घाटी मैदानों, तटवर्ती इलाकों इत्यादि में मिलती हैं।

प्रश्न 7.
स्थानीय सरकारी विभाग की परिभाषा के अनुसार शहरी क्षेत्रों की प्रबंधक संस्थाएं कौन-सी हो सकती हैं ?
उत्तर-
स्थानीय सरकारी विभाग की परिभाषा के अनुसार शहरी क्षेत्रों की प्रबंधक संस्थाएं हैं। नगरपालिकाएँ, नगरपरिषद्, नगर निगम, नोटीफाइड एरिया कमेटियाँ, कैनटोनमैंट बोर्ड इत्यादि।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
किसी देश के विकास की कहानी में मानवीय विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
विकास का अर्थ होता है, स्वतन्त्रता तथा आज़ादी। इसका सम्बन्ध अवसरों में स्वतन्त्रता, आराम, सुख, खुशहाली से होता है। हमारे आज के समाज में औद्योगीकरण, कम्प्यूटर तथा यातायात तथा संचार साधनों की उपलब्धि के कारण, अच्छी शिक्षा तथा सेहत सेवाओं के कारण लोगों का जीवन स्तर काफी हद तक सुधर गया है तथा ये सभी विकास के चिन्ह हैं। विकास का स्तर इन भिन्न-भिन्न मानवीय विकास के सूत्रों द्वारा मापा जाता है। मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य मानव के लिए अवसर या चुनाव करने के घेरे को बढ़ाना तथा मानव के हालातों को सुधारना होता है। इससे मानवीय गुणों में विकास होता है। मानवीय विकास प्रदूषण को कम करना तथा मानवीय ज़िन्दगी को आरामदायक बनाता है। देश का आर्थिक, राजनैतिक अथवा सामाजिक विकास करता है। सुधरा हुआ मानवीय जीवन ग़रीबी तथा अन्य कई सामाजिक बुराइयों का अंत कर देता है। इस तरह जिस देश का मानवीय विकास सूचक अंक ज्यादा होता है, उस देश का आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास अंक भी अधिक होता है।

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प्रश्न 2.
असम, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में केरल तथा हिमाचल के मुकाबले खुशहाली कम है। कैसे ?
उत्तर-
मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार केरल का सूचक अंक 0.7117 है अथवा हिमाचल प्रदेश का 0.6701 है और मानवीय विकास सूचक अंक के अनुसार भारत में पहला और दूसरा स्थान रखते हैं। परन्तु इसके विपरीत असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का मानवीय विकास सूचक अंक बहुत पीछे है। किसी प्रदेश का आर्थिक, सामाजिक विकास मानवीय विकास सूचक अंक निर्धारित करता है। इन प्रदेशों का आर्थिक विकास का स्तर केरल और हिमाचल प्रदेश से कम है, जिसके कारण मानवीय विकास सूचक अंक भी केरल और हिमाचल प्रदेश के मुकाबले काफ़ी कम है। किसी देश का विकास उसके आर्थिक विकास, राजनैतिक, सांस्कृतिक विकास पर निर्भर करता है और यह विकास उस देश में ही होगा जहाँ के लोगों का जीवन खुशहाल होगा और उन्हें रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे। उनकी जीवन गुणवत्ता का विकास होगा। उनका जीवन लंबा और स्वस्थ होगा और हर काम को चुनने की पूरी आजादी होगी।

प्रश्न 3.
महानगर किसी विशाल शहर क्षेत्र से अलग है। कैसे ?
उत्तर-
महानगर एक बड़ा शहर होता है। महानगर की जनसंख्या 10 लाख व्यक्ति या इससे अधिक होती है। परन्तु विशाल शहरी क्षेत्र बड़े शहरी क्षेत्र होते हैं, जिसमें ऐसे महानगर शामिल होते हैं। जब महानगर की वृद्धि होती है, उसके साथ ही कई शहरी बस्तियाँ बस जाती हैं, तो ये महानगर विशाल शहरी क्षेत्रों में तबदील होने शुरू हो जाते हैं। 1981 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 12 महानगर ही थे, परन्तु 2001 ई० में इनकी संख्या बढ़ कर 35 हो गई, जब कि 2011 में इनकी संख्या 53 तक बढ़ गई। मुख्य महानगरों में दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद इत्यादि बड़े शहर शामिल होते हैं। विशाल शहरी क्षेत्र की धारणा सबसे पहले जीन गोटमैन द्वारा अमेरिका के उत्तर-पूर्वी समुद्री क्षेत्र के साथ बसने वाले शहरी क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाई गई। हमारे देश में ऐसा विशाल शहरी क्षेत्र नहीं है।

प्रश्न 4.
कोई ग्रामीण क्षेत्र, कोई शहरी क्षेत्र घोषित किया गया है। परिभाषा के अनुसार उसमें क्या-क्या परिवर्तन हो सकते हैं ?
उत्तर-
शहरी शब्द ग्राम क्षेत्र के विपरीत स्थान के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें शहर, गांव, कस्बे, नगर, महानगर इत्यादि शामिल होते हैं। शहरी क्षेत्र में सिर्फ कृषि की बेहतर सुविधायें ही नहीं, बल्कि उद्योग, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा की सुविधाएँ और अन्य उपयोगी सुविधाएँ आसानी से मिल जाती हैं।

कोई ग्राम क्षेत्र तभी शहरी घोषित किया जाता है, जब वह पूरी तरह विकसित शहरी बस्ती बन जाता है, जहाँ हर प्रकार के शहरी धंधे विकसित हो जाते हैं। जब इसकी जनसंख्या निर्धारित सीमा से ऊपर हो जाती है तो उस क्षेत्र को शहरी क्षेत्र घोषित किया जाता है और उसमें आए औद्योगिक विकास, स्वास्थ्य संबंधी, यातायात और संचार साधनों के विकास इत्यादि के कारण कुछ परिवर्तन आ जाने के कारण उसको एक शहरी श्रेणी में शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 5.
मानवीय विकास के कोई दो स्तंभों का वर्णन करो।
उत्तर-
मानवीय विकास का अध्ययन मुख्य रूप में चार स्तम्भों पर आधारित है। ये हैं-हक या इन्साफ, निरंतरता, उत्पादकता, शक्तिकरण। इनका वर्णन निम्नलिखित है—
1. हक या इन्साफ-हक या इन्साफ का अर्थ है, समानता का अधिकार। हर व्यक्ति के लिए, हर एक अवसर के लिए बिना किसी जाति-पाति, नस्ल, रंग-भेद के भेदभाव से उस अवसर को हासिल करने का पूरा-पूरा हक है। इसका अर्थ है कि हर इन्सान के लिए हर अवसर की प्राप्ति के लिए पूरी पहुँच करवानी। हर जरूरत को बिना किसी भेदभाव के समान समझ कर विभाजित किया जाना चाहिए।

2. निरंतरता-निरंतरता का अर्थ है, अवसर की तलाश और उपलब्धता में पूरी आज़ादी होनी चाहिए। मानव विकास के लिए हर पीढ़ी के लिए स्रोतों का पूरा विभाजन होना चाहिए। वर्तमान में स्रोतों को इस तरह प्रयोग किया जाए कि आने वाली पीढ़ियां भी उन स्रोतों की उपयोगिता का प्रयोग कर सकें। किसी भी अवसर का गलत प्रयोग आने वाली पीढ़ी के लिए खतरा बन सकता है।

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प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
ग्रामीण बस्तियों के अलग नमूनों की संक्षेप व्याख्या करें।
उत्तर-
ग्रामीण इलाके में बनी बस्तियों को ग्राम बस्तियाँ कहा जाता है। शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में । जनसंख्या का घनत्व कम होता है। भारत गाँवों का देश है। इसकी 68.84% आबादी गाँवों में रहती है। धरातल और जमीन की उपलब्धि के कारण हमारे देश में ग्रामीण बस्तियाँ घनी या बिखरी हुई हो सकती हैं।
भारत में ग्रामीण बस्तियों के कुछ नमूने निम्नलिखित हैं—

1. रैखिक नमूना (Linear Settlement Pattern)—
यह देखने में एक रस्सी की तरह दिखता है। इस प्रकार की बस्तियां मुख्य रूप में सड़क, रेलवे लाइन या नहर के समानांतर होती हैं। यह एक रेखा की तरह दिखाई देता है।
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Linear Settlement Pattern

2. चैक बोर्ड नमूना (Check Board Pattern)—जिस स्थान पर कोई रास्ता या यातायात का साधन एक-दूसरे को समकोण पर मिलते हों, उस तरह की बस्ती को चैक बोर्ड नमूना कहा जाता है।
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Check Board Pattern

3. आयताकार नमूना (Rectangular Pattern)-इस तरह की बस्तियाँ मुख्य रूप में आयताकार या वर्ग आकार की तरह होती हैं।
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Rectangular Pattern

4. अर्ध-व्यास नमूना (Radial Settlement Pattern)—यह एक वह केन्द्रीय धुरा होता है, जिस जगह पर कई रास्ते, गलियाँ या पैदल रास्ते और चक्र के अर्ध-व्यास की तरह, अलग-अलग दिशाओं से आकर एक केन्द्रीय स्थान पर मिलते हैं अर्ध-व्यास नमूना कहलाता है।
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Radial Settlement Pattern

5. तारों सा नमूना (Star Like Pattern)-जिस तरह एक अर्ध-व्यास में सभी स्थान एक धुरे से मिलते हैं, यह उसका ही एक रूप है। इसमें भी किसी मकान के निर्माण का काम एक केंद्रीय धुरे से शुरू किया जाता है और सभी दिशाओं में फैल जाता है। इस प्रकार आमतौर पर पंजाब और हरियाणा में मिलता है।
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Star Like Pattern

6. त्रिकोणी नमूना (Triangular Pattern)—इस तरह का नमूना त्रिकोण आकार का होता है, जिसमें तीन तरफ से किसी रुकावट के कारण, इस तरह का नमूना बनना शुरू हो जाता है।
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Triangular Pattern

7. गोलाकार बस्तियों का नमूना (Circular Pattern)—इस प्रकार की बस्ती किसी मंदिर, मस्जिद, तालाब, झील इत्यादि के पास बननी शुरू हो जाती है।
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Circular Pattern

8. अर्ध-गोलाकार नमना (Semi Circular Pattern)—इस प्रकार की बस्तियाँ आमतौर पर नदी के नजदीक खुर-आकार की झीलों या पहाड़ों के पैरों में बनी झीलों के पास बनती हैं। वह अर्ध-गोलाकार शक्ल धारण कर लेते हैं।
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Semi Circular Pattern

9. तीर जैसा नमूना (Arrow Shaped Pattern)-जो गाँव किसी कैप के सिर या बल खाती झील या नदी के तीखे मोड़ पर निवास करते हैं उन्हें तीर जैसा नमूना कहा जाता है। इस तरह की बस्तियाँ आमतौर पर कन्याकुमारी, चिलका झील, सोनार नदी इत्यादि के किनारों पर मिलती हैं।
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Arrow Shaped Pattern

10. बादल जैसा नमूना (Cloud Shaped Pattern)-इस तरह के नमूनों की बनावट एक बादल जैसी होती है। इस तरह की बस्तियों की सड़कें मुख्य तौर पर गोलाकार ही होती हैं। भारत में पंजाब के 12581 गाँवों में आबादी, 1,73,44,192 व्यक्ति हैं। एक गाँव की औसतन आबादी 1425 व्यक्ति है। उपरोक्त दिए नमूनों के आधार पर गाँव को अलग-अलग नमूनों में विभाजित किया गया है।
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Cloud Shaped Pattern

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प्रश्न 2.
‘स्मार्ट शहर’ क्या है ? इस प्रोजैक्ट सम्बन्धी नोट लिखो।
उत्तर-
स्मार्ट शहर-स्मार्ट शहर का दर्जा उस स्थान को दिया जाता है जहाँ सूचना तकनीक, एक प्रमुख ढांचा, अपने निवासियों को ज़रूरी सेवाएँ देना, जैसे स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएँ, शिक्षा सम्बन्धी सेवाएँ प्रदान करने के लिए एक आकार का काम करे। स्मार्ट शहर वह शहर क्षेत्र कहलाता है, जिस शहर में सभी प्रमुख ढांचे जैसे कि अच्छी ज़मीन, जायदाद, संचार और यातायात के साधन और मण्डी की स्थिरता इत्यादि क्षेत्र में अधिक विकसित हों। शहर के लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मिलें क्योंकि वहाँ व्यापार पूरी तरह से विकसित होते हैं। नागरिकों को निवास के लिए साफसुथरा और अच्छा पर्यावरण मिलता हो, जिस कारण लोगों की जीवन गुणवत्ता बढ़ जाती है, स्मार्ट शहर कहलाते हैं।

भारत में कई शहर ऐसे हैं, जिनको स्मार्ट शहर का दर्जा दिया जा सकता है। सरकार ने मौजूदा शहरों में से कुछ शहरों को यह दर्जा देने की घोषणा की थी। सरकार की इस घोषणा के पीछे मुख्य उद्देश्य शहरों को बेहतर बनाना और नागरिकों को बहुत आवश्यक (बुनियादी) सुविधाएं प्रदान करवाना था। सरकार का मकसद था कि शहरों को विकसित किया जा सके और शहरी नागरिकों को साफ-सुथरा और अच्छा वातावरण प्रदान करवाना था ताकि उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार आए।

स्मार्ट शहरों को विकास का इंजन भी कहा जाता है, क्योंकि जिस स्थान पर अपेक्षित सुविधाएं, सेवाएँ, साधनों इत्यादि की बहुलता होगी, लोगों का जीवन स्तर अच्छा होगा और जिन स्थानों पर यह सारी सुविधाएं होती हैं उसको स्मार्ट शहर का दर्जा दिया गया है इस तरह हम कह सकते हैं कि स्मार्ट शहरों को विकास का इंजन कहा जाता है।

शुरुआत में भारत ने इस प्रोजैक्ट के अधीन 100 शहरों को स्मार्ट शहर के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। परन्तु अगस्त 2015 में 98 शहरों को ही स्मार्ट शहर रूप में विकसित करने के लिए चुना गया। इनमें से जो 98 शहर चुने गये थे, उनमें से 24 शहर तो बड़ी राजधानियाँ ही थीं और बाकी 24 बड़े व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्र थे, 18 सांस्कृतिक क्षेत्र और पर्यटन केंद्र थे और बाकी 5 बंदरगाह शहर और 1 शैक्षिक और स्वास्थ्य संभाल केन्द्र थे।

भारत सरकार ने इन 98 चुने गए शहरों में से कार्य आरंभ करने वाले 90 स्मार्ट शहर की सूची जारी की है। यह 90 शहर केंद्रीय फंड प्राप्त करने वाले सब से अगली कतार/पंक्ति वाले केंद्र होंगे और स्मार्ट शहर विकसित करने की प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे।
स्मार्ट शहर प्रोजैक्ट का उद्देश्य शहरों का विकास करना है। स्मार्ट शहर के बुनियादी तत्त्वों के अधीन कुछ मापदंड शामिल किये गए हैं—

  1. यहाँ जल की उचित सप्लाई होगी।
  2. निश्चित बिजली का प्रबंध हो।
  3. ठोस कूड़ा-कर्कट प्रबंध के साथ ही साफ पर्यावरण नागरिकों के लिए होगा।
  4. कुशल शहरी गतिशीलता और यातायात।
  5. सस्ते घर खास तौर पर ग़रीब जनता के लिए।
  6. सूचना तकनोलॉजी का विशेष प्रबंध और नागरिकों के लिए अच्छा प्रशासन। नागरिकों के लिए सुरक्षा।
  7. उचित स्वास्थ्य और शैक्षिक सेवाएं।

प्रश्न 3.
मानवीय विकास की धारणा और इसके आधारों का वर्णन करें।
उत्तर-
वृद्धि और विकास दोनों के द्वारा ही समय के साथ कुछ परिवर्तन आता है। इसलिए ये दोनों स्तर एक-दूसरे से अलग हैं। वृद्धि परिमाणात्मक होती है, जिसके धनात्मक और ऋणात्मक दोनों ही चिन्ह हैं। इस तरह वृद्धि को किसी वस्तु के बढ़ने और घटने दोनों चिन्हों द्वारा पेश किया जा सकता है। जबकि विकास गुणात्मक होता है, जिसमें हमेशा धनात्मक परिवर्तन होता है। इसका अर्थ है जब तक किसी स्थान पर वृद्धि नहीं होती, अर्थ मौजूदा हालातों में कुछ सुधार नहीं होता, उतना समय विकास संभव नहीं होता। जनसंख्या की वृद्धि से विकास नहीं होता विकास तब होता है, जब विशेषता में वृद्धि होती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी क्षेत्र की जनसंख्या 10 लाख से 20 लाख हो गई, तो इससे सिर्फ जनसंख्या में वृद्धि होगी, परंतु अगर मूल जरूरतों, जैसे कि-घर, पानी की सप्लाई, ऊर्जा यातायात इत्यादि साधनों में विकास होता है, तो उसको विकास कहा जाता है।

1990 तक इस देश की वृद्धि दर को वहाँ के आर्थिक विकास के हिसाब से मापा जाता था। इसका अर्थ यह है कि जिस देश में विकसित आर्थिक सुविधाएं थीं वे देश विकसित देश हैं और जिन देशों में इस तरह की सुविधाओं की कमी थी वे विकसित देश नहीं माने जाते थे। इस तरह इन अंदाज़ों के आधार पर सही स्थिति के बारे में पता लगाना एक मुश्किल काम था क्योंकि कई बार कुछ मामलों में आर्थिक वृद्धि का लाभ लोगों तक नहीं पहुँचता था। इस प्रकार विकास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू भी निर्धारित किए गए, जैसे—

  1. लोगों की जीवन गुणवत्ता
  2. लोगों के पास अवसर का होना
  3. लोगों द्वारा स्वतन्त्रता को मानना।

उपर्युक्त विचार स्पष्ट रूप में सबसे पहले 1980 के अंत और 1990 की शुरुआत के दौर में बनाए गए और यह विचार एशिया के महान् अर्थशास्त्रियों ने दिए। इनमें से एक थे महबूब-उल-हक जो कि पाकिस्तान के थे और दूसरे भारतीय नोबल विजेता डॉक्टर अमर्त्य सेन थे। महबूब-उल-हक ने 1990 में मानवीय विकास का सूचक बनाया। उनके अनुसार विकास का अर्थ है कि लोगों के चुनाव के दायरे को बढ़ाना, ताकि वे शान से लंबी और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें।
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डॉक्टर अमर्त्य सेन ने अपने विचार में कहा कि स्वतंत्रता बहुत ज़रूरी है और यह विकास का मूल उद्देश्य है। स्वतन्त्रता में आज़ादी के साथ विकास का आना स्वाभाविक हो जाता है। उसने अधिकतर इस बात पर बल दिया है कि सामाजिक और आर्थिक संस्थाओं को मनुष्य को पूरी स्वतन्त्रता देनी चाहिए। इस तरह विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं—

  1. लंबा और स्वस्थ जीवन
  2. अच्छी ज़िन्दगी का विकास
  3. ज्ञान की प्राप्ति के लिए योग्यता हासिल करना।

डॉक्टर हक के अनुसार लोग ही विकास का धुरा हैं। लोगों के विकल्प निर्धारित नहीं हैं ये बदलते रहते हैं। विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों के लिए इस तरह के हालात पैदा करना है, जिससे एक महत्त्वपूर्ण और सार्थक ज़िन्दगी व्यतीत कर सकें।

सार्थक ज़िन्दगी का अर्थ सिर्फ यह नहीं कि वे लम्बा जीवनयापन करें। यह एक ऐसी ज़िन्दगी होगी जो कुछ संकल्पों के लिए होगी। इसका अर्थ है कि लोग स्वस्थ होने चाहिए, ताकि वे अपनी योग्यता को सुधार सकें, समाज की गतिविधियों में हिस्सा ले सकें और अपने उद्देश्यों को हासिल करने में स्वतन्त्र बन सकें।

उपर्युक्त पहलुओं के अनुसार यह आवश्यक है कि स्रोतों तक पहुँच होनी चाहिए, अच्छी सेहत और शिक्षा की सहूलियत होनी चाहिए, पर अधिकतर लोग अपनी योग्यताएं हासिल करने और अपने विकल्पों के चुनाव में स्वतंत्रता न होने के कारण फेल हो जाते हैं। इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं जैसे शिक्षा की कमी, गरीबी, सामाजिक भेदभाव इत्यादि। ये हालात मनुष्य को एक स्वस्थ जीवन जीने से रोकते हैं। इस तरह लोगों के विकल्प के दायरे को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि उनकी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामर्थ्य को बढ़ाया जाए और साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी वृद्धि की जाए। सामर्थ्य की कमी के कारण कई बार विकल्प के चुनाव की कमी पैदा हो जाती है।

आम शब्दों में कहा जा सकता है कि विकास का अर्थ है स्वतन्त्रता। विकास और स्वतन्त्रता का सम्बन्ध आधुनिकता, आराम, सुख और खुशहाली से होता है। हमारे आज के समय में औद्योगीकरण, कम्प्यूटरीकरण, अच्छा यातायात और संचार के साधन, अच्छी शिक्षा के कारण, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण, लोगों की सुरक्षा और बचाव इत्यादि विकास सुविधाओं के मापदण्डों को माना जाता है।

मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य मानवीय विकल्प या चुनाव के दायरे को बड़ा करना और मानवीय हालातों को सुधारना होता है। इसका निशाना मानवीय गुणों में सुधार लाना है और यह तब ही संभव है, अगर समाज के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों में जरूरी निवेश किया जाएं।

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प्रश्न 4.
बस्तियों के पक्ष से विकास धुरा और विकास केंद्र क्या होते हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
विकास धुरे की धारणा सबसे पहली बार फ्रांसिस पैरोकस ने 1955 में दी थी, जिसका कुछ समय के बाद मिस्टर बोडविले ने विस्तार किया। उनका कहना था कि विकास हर स्थान पर एक जैसा नहीं होता। यह अलग-अलग वेग से ‘बिंदु’ केंद्र और धुरों में होता है। सभी भाग या हिस्से विकास का एक प्राकृतिक रुझान नहीं रखते। कुछ केंद्रों की विकास केंद्र या विकास धुरे के तौर पर पहचान करते हैं और फिर उनको पूरी तरह विकसित करने पर जोर देते हैं। ये हिस्से आगे बढ़ने वाले होते हैं और आर्थिक विकास पर गुणात्मक प्रभाव डालते हैं।
आर०पी० मिश्रा ने विकास केंद्र में चार सत्र शामिल किए हैं—

  1. स्थानीय सेवा केंद्र
  2. विकास बिंदु
  3. विकास केंद्र
  4. विकास धुरा।

जहाँ तक विकास का सम्बन्ध है, सेवा केंद्र और विकास बिन्दु स्थानीय स्तर की जरूरतें पूरी करने वाले केंद्र माने जाते हैं।
विकास केंद्र और विकास धुरा दोनों ही उत्पादन का केंद्र हैं, जिनका मुख्य काम निर्माण कार्य का होता है।
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विकास धुरे का अर्थ है आर्थिक विकास, वृद्धि और इसके अनुसार कहा जाता है कि विकास हर स्थान पर एक जैसा नहीं होता। यहाँ तक कि एक क्षेत्र में विकास एक जैसा नहीं होता पर यह विकास कुछ समूहों में होता है। यह विकास खास तौर पर केन्द्रीय उद्योगों के साथ विकसित होता है, जिसके साथ जुड़े हुए उद्योग बनने शुरू हो जाते हैं। यह अधिकतर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पड़े प्रभाव के कारण होता है। केंद्रीय उद्योग में कई तरह के क्षेत्र, जैसे कि मोटरगाड़ियाँ, इलैक्ट्रॉनिक, इस्पात-उद्योग इत्यादि शामिल हैं। केंद्र उद्योगों पर पड़ रहे इन क्षेत्रों के प्रभाव के कारण केंद्रीय उद्योग कुछ सेवाएँ और वस्तुएँ खरीदते हैं और ये सेवाएं और वस्तुएँ ग्राहकों को उपलब्ध करवाते हैं।

केन्द्रीय भाग के विकास के साथ उत्पादन, रोजगार, पूंजी निवेश इत्यादि में भी वृद्धि होती है और इसके साथ ही तकनीकी विकास और नए औद्योगिक सैक्टर का जन्म भी होता है और विकास धुरा केंद्रीय विकास में सब से ऊँचा स्थान रखता है। ऐसे केन्द्र आमतौर पर 5 से 25 लाख की जनसंख्या की जरूरतें पूरी करते हैं। विकास धुरा क्षेत्रीय आर्थिक विकास का केन्द्र बिंदु होता है। जहाँ वित्तीय, शैक्षिक तकनीकी और औद्योगिक विभागों का बोल-बाला होता है।
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विकास केन्द्र या विकास फोकल प्वाइंट की श्रृंखला में विकास तीसरे स्तर पर आता है। आमतौर पर विकास केन्द्र उत्पादन के केन्द्र हैं, जिनका मुख्य काम निर्माण करना होता है। यह दूसरे और तीसरे दर्जे के कार्य का केन्द्र माना जाता है। विकास केन्द्र 1 से 2 लाख तक की जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करता है। इन केन्द्रों का काम-काजी चरित्र होने से ये औद्योगिक केन्द्र के तौर पर भी काम करते हैं। ये केन्द्र शैक्षिक सेवाओं के साथ-साथ अनाज एकत्रित करने में, भंडारण करने में, कृषि के उपकरणों के केन्द्र, खादों तथा कीड़ेमार दवाइयों इत्यादि की सुविधा भी लोगों को उपलब्ध करवाते हैं।

Geography Guide for Class 12 PSEB मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
विकास क्या है ?
(A) विशिष्टता आश्रित परिवर्तन
(B) धनात्मक परिवर्तन
(C) ऋणात्मक परिवर्तन
(D) सादा (साधारण) परिवर्तन।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 2.
समय में कौन-सी सीमाएँ विकास के मापदंड माने जाते हैं ?
(A) औद्योगीकरण
(B) आधुनिकता
(C) आर्थिक विकास
(D) जनसंख्या का बढ़ाव।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा भाग मनुष्य के विकास का सूचक नहीं है ?
(A) आज़ादी
(B) अवसर
(C) स्वास्थ्य
(D) लोगों की संख्या।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 4.
साल 2017 में भारत का कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता दर्जाबंदी में कौन-सा स्थान है ?
(A) 122वां
(B) 123वां
(C) 125 वां
(D) 121वां।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा मापदंड मानव विकास का मापदंड नहीं है ?
(A) औद्योगीकरण
(B) अच्छी यातायात
(C) चिकित्सा सुविधा
(D) ऋणात्मक विकास।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 6.
भारत में निम्नलिखित राज्यों में कौन-से राज्य का मानवीय विकास सूचक सबसे अधिक है ?
(A) केरल
(B) तमिलनाडु
(C) पंजाब
(D) बिहार।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 7.
मानवीय विकास अंक के साथ संसार में भारत का दर्जा कितना है ?
(A) 134
(B) 107
(C) 122
(D) 137
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 8.
नीचे लिखे में से कौन-से देश का मानवीय विकास सूचक अंक सबसे अधिक है ?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) नार्वे
(C) पंजाब
(D) अफ्रीका।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 9.
नीचे लिखे में से कौन-से विद्वान् ने मानव विकास का नवीन सिद्धान्त दिया है ?
(A) डॉ० महबूब-उल-मुलक
(B) ऐलन० सी० सैंपल
(C) ट्रीबार्था
(D) रैटजल।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 10.
आर०पी० मिश्रा के विकास केन्द्र में कौन-सा स्तर इनमें से शामिल नहीं किया गया ?
(A) सेवा केन्द्र
(B) विकास बिंदु
(C) विकास केन्द्र
(D) टिकाऊ पर्यावरण
उत्तर-
(D)

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प्रश्न 11.
शहरी बस्ती की सबसे छोटी इकाई कौन-सी है ?
(A) कस्बा
(B) शहरी गाँव
(C) महानगर
(D) गाँव।
उत्तर-
(A)

B. खाली स्थान भरें :

  1. ……………… गाँव आधे शहरी होते हैं।
  2. कोनअरथेशन की खोज ………………….. ने की।
  3. विकास केन्द्र ………………….. की जरूरतें पूरी करते हैं।
  4. भारत …………. प्रतिशत आबादी देश के कुल …………… गाँवों में रहती है।
  5. कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक …………….. में भूटान के नरेश ………………. ने दिया।

उत्तर-

  1. शहरी,
  2. पैटरिक गैडिस,
  3. 1 से 2 लाख जनसंख्या,
  4. 68.84%, 6.40930,
  5. 1979, जिगमे सिंह बांगचू।

C. निम्नलिखित कथन सही (✓) हैं या गलत (✗):

  1. लम्बा और स्वस्थ जीवन मानवीय विकास का महत्त्वपूर्ण पहलू है।
  2. ऑस्ट्रेलिया मानवीय विकास सूचक अंक अनुसार संसार में दूसरे स्थान पर आता है।
  3. रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की तीन बुनियादी ज़रूरतें हैं।
  4. जो बस्ती तीन ओर से किसी रुकावट के परिणाम के कारण खोज में आती है उसे अर्ध गोलाकार कहते हैं।
  5. शहर एक विकसित शहरी बस्ती होती है।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही।

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II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
विकास से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब किसी वस्तु, मनुष्य या तकनीक की गुणवत्ता में वृद्धि होती है, उसे विकास कहते हैं।

प्रश्न 2.
पाकिस्तान और भारत के उन विद्वानों के नाम बताओ, जिन्होंने पहली बार मानवीय विकास सूचक का सिद्धान्त दिया।
उत्तर-
डॉ० महबूब-उल-हक और डॉ० अमर्त्य सेन।।

प्रश्न 3.
सकारात्मक विकास से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब गुणवत्ता में सकारात्मक बदलाव आता है, उसे सकारात्मक विकास कहते हैं।

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प्रश्न 4.
मानवीय विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू कौन-से हैं ?
उत्तर-
लम्बा और स्वस्थ जीवन, ज्ञान की प्राप्ति, साधन इत्यादि मानवीय विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।

प्रश्न 5.
मानवीय विकास के स्तंभ कौन-से हैं ?
उत्तर-
हक, निरंतरता, उत्पादकता, शक्तिकरण मानवीय विकास के स्तंभ हैं।

प्रश्न 6.
भारत में बच्चों का कौन-सा समूह स्कूल जाना छोड़ देता है ?
उत्तर-
आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए बच्चों का समूह।

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प्रश्न 7.
एक अच्छा जीवनयापन करने के लिए मनुष्य की बुनियादी जरूरतें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
रोटी, कपड़ा और मकान।

प्रश्न 8.
I.L.0 क्या है ?
उत्तर-
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन।

प्रश्न 9.
UNDP क्या है ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम।

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प्रश्न 10.
कितने देशों में मानवीय विकास का अंक ज्यादा है ?
उत्तर-
57 देशों में।

प्रश्न 11.
भारत का मानवीय विकास का अंक सभी देशों में कितना स्थान है ?
उत्तर-
134 वां।

प्रश्न 12.
मानवीय बस्तियों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-
मानवीय बस्तियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है—

  1. ग्रामीण बस्तियाँ,
  2. शहरी बस्तियाँ।

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प्रश्न 13.
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के एक गाँव में औसतन आबादी कितनी है और गाँव का औसत क्षेत्रफल कितना है ?
उत्तर-
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के एक गाँव में औसत जनसंख्या 1395 व्यक्ति और क्षेत्रफल 5.5 वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 14.
ग्रामीण बस्तियों का चेक बोर्ड नमूना किस तरह का होता है ?
उत्तर-
ये बस्तियाँ अधिकतर वहाँ विकसित होती हैं, जहाँ दो रास्ते या यातायात के साधन एक-दूसरे को समकोण पर मिलते हों।

प्रश्न 15.
कस्बा किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
कस्बा शहरी बस्ती की सबसे छोटी इकाई होती है। यहाँ शहरी काम करने के तरीके इत्यादि देखने को मिलते

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प्रश्न 16.
ग्रामीण बस्तियाँ अधिकतर कहां पर मिलती हैं ? ।
उत्तर-
ग्रामीण बस्तियाँ, घाटी के मैदानों, तटवर्ती इलाकों, पहाड़ों की ढलानों, नदी के किनारों इत्यादि के नज़दीक मिलती हैं।

प्रश्न 17.
मानवीय विकास का सूचक सिद्धान्त किसने और कब बनाया ?
उत्तर–
पाकिस्तान के अर्थशास्त्री महबूब उल-हक ने 1990 में यह सिद्धान्त बनाया।

प्रश्न 18.
भारत में मानवीय विकास को मापने के लिए कौन-से तीन सैट चुने गए हैं ?
उत्तर-
लिंग समानता, स्त्रियों की अपेक्षाकृत अधिक प्राप्ति और मानवीय गरीबी सूचक।

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प्रश्न 19.
मानवीय विकास सूचक की कीमत क्या होती है ?
उत्तर-
मानवीय विकास सूचक की कीमत 0 से 1 के बीच होती है।

प्रश्न 20.
उच्च मानवीय विकास सूचक का अंक क्या है ?
उत्तर-
0.8 या इससे अधिक।

प्रश्न 21.
विकास कब होता है ?
उत्तर-
विकास तब होता है जब सकारात्मक परिवर्तन किसी स्थान पर होता है।

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प्रश्न 22.
किसमें धनात्मक तबदीली होती है ? विकास में या बढ़ोत्तरी में।
उत्तर-
विकास में।

प्रश्न 23.
विकास का मुख्य लक्ष्य क्या होता है ?
उत्तर-
इस तरह के हालात या सुविधा पैदा करनी, जिसके साथ मनुष्य समृद्ध जीवन बिता सके।

प्रश्न 24.
उत्तरी अमेरिका के कौन-से देश का मानवीय विकास सूचक सबसे अधिक है ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका।

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प्रश्न 25.
किस देश का संसार में मानवीय विकास अंक ज्यादा है और कितना है ?
उत्तर-
नार्वे का (0.963)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानवीय विकास से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
विकास का अर्थ है गुणात्मक परिवर्तन। यह किसी प्रदेश के संसाधनों के विकास के लिए अधिकतम शोषण की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी प्रदेश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य लक्ष्य मनुष्य के लिए अवसरों की पहुंच को बढ़ाना है।

प्रश्न 2.
मानवीय विकास के चिन्ह या सूचक कौन से हैं ?
उत्तर-
विश्व बैंक प्रति वर्ष विश्व विकास रिपोर्ट तैयार करके प्रस्तुत करता है। इसमें उत्पादन, स्वास्थ्य, शिक्षा, मांग, ऊर्जा, व्यापार, जनसंख्या वृद्धि, इत्यादि के आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। यह रिपोर्ट कुछ सूचकों पर आधारित होती है। ये सूचक हैं—

  1. जीवन अवधि
  2. साक्षरता
  3. रहन-सहन का स्तर।

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प्रश्न 3.
मानवीय विकास के सिद्धान्त के अनुसार उत्पादकता से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
इसका अर्थ है जिन्दगी के प्रत्येक क्षेत्र में उत्पादन का बढ़ना। देश की जनसंख्या या देश के लोग देश की असल पूँजी हैं। इसलिए उन लोगों की सामर्थ्य बढ़ाने के लिए उनको बढ़िया चिकित्सा सुविधाएं और शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
विकास से क्या अभिप्राय है ? इसके कोई तीन मूल बिंदु बताओ।
उत्तर-
विकास का अर्थ है गुणात्मक परिवर्तन। इसके तीन मूल बिंदु हैं—

  1. लोगों के जीवन की गुणवत्ता
  2. अवसर
  3. लोगों की स्वतंत्रता।

प्रश्न 5.
एक उचित जीवन जीने के लिए जरूरी पहलू कौन से हैं ?
उत्तर-
एक उचित जीवन जीने के लिए ज़रूरी पहलू निम्नलिखित अनुसार हैं—

  1. लंबा और स्वस्थ जीवन
  2. ज्ञान में वृद्धि
  3. एक सार्थक जीवन के पर्याप्त साधन।

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प्रश्न 6.
कुछ लोग मूल ज़रूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते। इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर-
अधिकतर लोगों के पास योग्यता की कमी होने के कारण और आजादी की कमी के कारण वे अपनी मूल जरूरतों को नहीं पूरा कर सकते, क्योंकि—
—ज्ञान प्राप्त करने की सामर्थ्य का न होना
—लोगों की गरीबी
—सामाजिक विभिन्नता।
उदाहरण—एक अशिक्षित बच्चा कभी डॉक्टर नहीं बन सकता। एक गरीब साधनों की कमी के कारण चिकित्सा उपचार नहीं करवा सकता।

प्रश्न 7.
प्रो० अमर्त्य सेन के अनुसार विकास का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
अमर्त्य सेन के अनुसार विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों की स्वतंत्रता में वृद्धि करना है। यह विकास का एक सबसे प्रभावशाली और योग्य साधन है। सामाजिक और राजनैतिक संस्थाएं आजादी को बढ़ाती हैं।

प्रश्न 8.
एक सार्थक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-
एक सार्थक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ हैं—

  1. लोगों का जीवन स्वस्थ होना चाहिए।
  2. लोगों में अपनी प्रतिभा के विकास करने की योग्यता होनी चाहिए।
  3. प्रत्येक सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो।
  4. संसाधनों तक पहुँच, स्वस्थ जीवन।

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प्रश्न 9.
हक या इन्साफ से आपका क्या अर्थ है ? इसमें कौन सी मुश्किलें आती हैं ?
उत्तर-
इन्साफ का अर्थ है कि हर मनुष्य को हर अवसर में एक बराबर पहुंच है या हर अवसर को हर मनुष्य प्राप्त कर सकता है। हर मनुष्य को जो भी अवसर मिले वह बराबर मिले। पर इसमें कुछ मुश्किलें भी आती हैं जैसे कि—
—लिंग असमानता
—पीढ़ी भिन्नता
—जाति।

प्रश्न 10.
निरंतरता क्या है ? कोई तीन स्रोतों के नाम लिखें जो निरंतरता में प्रयोग किये जाते हैं।
उत्तर-
निरंतरता का अर्थ है अवसरों की उपलब्धि में निरंतरता। हर पीढ़ी की अपनी जरूरतें होती हैं, इसलिए स्रोतों का गलत प्रयोग नहीं होना चाहिए परन्तु फिर भी कुछ स्रोतों का गलत प्रयोग होता है। जैसे कि—

  1. पर्यावरण,
  2. मनुष्य,
  3. आमदनी।

प्रश्न 11.
भारत में ग्रामीण बस्तियों के कौन-कौन से नमूने मिलते हैं ?
उत्तर-
भारत में ग्रामीण बस्तियों के निम्नलिखित नमूने मिलते हैं—

  1. रेखीय नमूना
  2. चैक बोर्ड
  3. आयताकार नमूना
  4. अर्धव्यास नमूना
  5. तारों के समान
  6. त्रिकोण नमूना
  7.  गोलाकार
  8. अर्धगोलाकार
  9. तीर जैसा
  10. बादल जैसा।

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प्रश्न 12.
शहरी बस्तियों को कौन-सी मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
शहरी बस्तियों को नीचे लिखी श्रेणियों में विभाजित किया जाता है—

  1. शहरी गाँव
  2. कस्बा
  3. शहरा
  4. महानगर
  5. विशाल शहरी क्षेत्र
  6. शहरों के समूह।

प्रश्न 13.
मानवीय विकास सूचक के अनुसार देशों को कैसे विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
मानवीय विकास सूचक के अनुसार देशों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

मानवीय विकास सूचक अंक देश
1. उच्च मानवीय विकास सूचक स्तर 0.8 से ज्यादा 57
2. मध्यम विकास सूचक स्तर 0.5 से 0.799 88
3. सबसे कम विकास सूचक स्तर 0.5 से कम 32

 

प्रश्न 14.
स्मार्ट शहर से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
स्मार्ट शहर उन शहरी क्षेत्रों को कहते हैं जो पूरी तरह विकसित शहर हैं। यहाँ तकनीक एक संपूर्ण बुनियादी ढाँचा, टिकाऊ जमीन जायदाद, अपने नागरिकों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ, संचार साधन, मंडीकरण और आवश्यक सेवाएँ आसानी से प्राप्त हों, स्मार्ट शहर कहलाते हैं।

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प्रश्न 15.
आर० पी० मिश्रा ने विकास केन्द्र में कौन से स्तर शामिल किये हैं ?
उत्तर-

  1. स्थानिक सेवा केन्द्र
  2. विकास बिंदु
  3. विकास केन्द्र
  4. विकास धुरा इत्यादि चार स्तरों को आर० पी० मिश्रा ने विकास फोकल प्वाइंट में शामिल किया है।

प्रश्न 16.
भारत में मानवीय विकास को मापने के लिए कौन-से तीन कारकों को चुना गया है ?
उत्तर-

  1. लिंग समानता
  2. स्त्रियों की अपेक्षाकृत अधिक प्राप्तियाँ
  3. मानवीय गरीबी सूचक।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादकता से क्या अभिप्राय है ? इसमें किस प्रकार वृद्धि की जा सकती है ?
उत्तर-
उत्पादकता का अर्थ है मानव कार्य के संदर्भ में उत्पादकता। देश के लोग ही देश की असल दौलत हैं। अगर लोगों को अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी तो भविष्य में उत्पादन बढ़ाने में योगदान डालेंगे। इसमें वृद्धि करने के उपाय हैं—

  1. लोगों की क्षमताओं का निर्माण करना।
  2. लोगों के ज्ञान में वृद्धि करना।
  3. बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करके।
  4. कार्यक्षमता बेहतर करके।

प्रश्न 2.
सशक्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? लोगों को कैसे सशक्त किया जा सकता है ? .
उत्तर-
सशक्तिकरण का अर्थ है-अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति से स्वतंत्रता और क्षमता बढ़ती है। लोगों को सशक्त करने के उपाय हैं—

  1. लोगों की स्वतंत्रता का स्तर बढ़ा कर
  2. योग्यता का स्तर बढ़ा कर
  3. सुशासन
  4. लोकोन्मुखी नीतियाँ।

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प्रश्न 3.
मानव विकास के मापन के लिए कौन-से प्रमुख क्षेत्रों को चुना गया है ? भारत में मानवीय विकास सूचक की कीमत क्या है ?
उत्तर-
मानवीय विकास को मापने के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं-जन्म दर, मृत्यु दर, बाल मृत्यु दर, पोषक तत्व और जन्म के समय जीवन संभावना, साक्षरता, स्त्रियों की साक्षरता, स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या, छात्रों का अनुपात, आर्थिक मापदंड, आमदनी, रोजगार, उत्पादन, गरीबी की घटनायें, रोजगार के क्षेत्रों को शामिल किया जाता है। ये सारे मुख्य क्षेत्र आपस में मिल कर मानवीय विकास सूचक अंक का निर्माण करते हैं जो 0 से 1 के बीच हैं। इसकी कीमत एक के जितने पास होगी उतना ही मानवीय विकास सूचक अंक उच्च होगा।

प्रश्न 4.
कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता क्या है ? इसके कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू कौन-से हैं ?
उत्तर-
भूटान के राजा जिगमें सिंह वांगचू ने यह सूचकांक 1979 में सुझाया था। इसके द्वारा मानवीय विकास को मापा जाता है। इसका अर्थ है कि मानसिक शांति, खुशी, प्रसन्नता, संतोष इत्यादि जिन्दगी के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं और यह सिर्फ पैसे की बदौलत या पैसे की बहुलता से ही पूरा नहीं होता। कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता का सिद्धान्त हमें पवित्र धार्मिक गुणात्मक पहलू के विकास की ओर बल देने का सुझाव देता है। वर्ष 2017 में भारत का कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता दर्जाबंदी में 122वां स्थान था जो पड़ोसी देशों से भी कम है।

प्रश्न 5.
मानवीय विकास का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य मानवीय चुनाव के क्षेत्र को बढ़ाना है जिसके साथ मानवीय दिशाओं का सुधार होता है। यह उत्पादन का स्तर बढ़ाता है। मानवीय विकास का महत्त्व निम्नलिखित है—

  1. यह मानवीय जनसंख्या की वृद्धि को कम करने में सहायक होता है।
  2. हर तरह का प्रदूषण कम करने और मानवीय जिन्दगी को आरामदायक पर्यावरण प्रदान करने में सहायता करता
  3. इस तरह गरीबी दूर होती है और सामाजिक बुराइयों का खात्मा होता है तथा राजनीतिक संतुलन और मजबूत बनता है।

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प्रश्न 6.
मानवीय बस्तियों का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की तीन जरूरतें हैं। इस तरह मनुष्य अपनी हैसियत और इच्छानुसार मकान बनाकर उसमें रहता है। जिस स्थान को मनुष्य, अपना मकान या रहने के लिए चुनता है उसे बस्ती कहा जाता है। जब मनुष्य इन बस्तियों में रहना शुरू कर लेता है, वे मानवीय बस्तियाँ कहलाती हैं। आबादी के घनत्व, सुख-सुविधाएँ सेवाएँ और अवसरों इत्यादि के आधार पर मानवीय बस्तियों को मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. ग्रामीण बस्तियाँ,
  2. शहरी बस्तियाँ।

प्रश्न 7.
शहरों के समूह से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
Conurbation (शहरों का समूह) शब्द की खोज और प्रयोग सबसे पहले पैट्रिक गैडिस ने किया। शहरों का समूह इस तरह का शहरी क्षेत्र होता है जिसमें कई महानगर और कई छोटे-बड़े कस्बे विलीन हो जाते हैं और एक बहुत बड़े शहरी क्षेत्र को आकार मिल जाता है। उदाहरण के तौर पर भारत में कोलकाता ही एक ऐसा बड़ा महानगर है, जिसमें 85 के करीब छोटे-बड़े कस्बे और शहरी क्षेत्र शामिल होते हैं। यह क्षेत्र हुगली नदी के दोनों ओर फैला हुआ है। हावड़ा, डम-डम, कालीघाट, बिशनूपुर, डॉयमंड हार्बर और कोलकाता अन्य स्थान इसमें शामिल होते हैं। इनको शहरों का समूह कहा जाता है। परन्तु इस क्षेत्र में लोगों को विकास के साथ-साथ अनेकों मुसीबतों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे कि इन क्षेत्रों में आबादी की वृद्धि के कारण हर क्षेत्र में गैर योजनाबंदी होती जा रही है।

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प्रश्न 8.
स्मार्ट शहर प्रोजैक्ट का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
स्मार्ट शहर प्रोजैक्ट का मुख्य उद्देश्य शहरों का हर तरफ से विकास करने से है। इसके लिए महत्त्वपूर्ण तत्वों के मापदण्ड निम्नलिखित हैं—

  1. उचित जलापूर्ति और बिजली का उचित प्रबन्ध
  2. सफाई का अच्छा प्रबन्ध और टिकाऊ पर्यावरण।
  3. कुशल यातायात और संचार के साधन।
  4. गरीब जनसंख्या के लिए घर।
  5. सूचना तकनीक का उचित प्रबंध।
  6. सरकार द्वारा उचित प्रशासन।
  7. नागरिकों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध।
  8. उचित शिक्षित, साहित्यिक और स्वास्थ्य सेवाएँ इत्यादि।

प्रश्न 9.
मानवीय विकास के चिन्ह और सूचक कौन से हैं ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम द्वारा हर साल मानवीय विकास इन्डैक्स या रिपोर्ट बनाई जाती है। इसमें उत्पादक, खपत और मांग, व्यापार ऊर्जा, जनसंख्या की वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि से सम्बन्धित जानकारी प्रदान की जाती है। यह रिपोर्ट कुछ चिन्हों पर आधारित होती है। मानवीय विकास के तीन मुख्य घटक हैं—

  1. दीर्घायु,
  2. ज्ञान स्तर,
  3. रहन-सहन का स्तर।

भारत का मानवीय विकास सूचकांक देशों में 134वां है और नार्वे का पहला स्थान है। मानवीय विकास के मुख्य चिन्ह हैं—

  1. जन्म पर जीवन अवधि
  2. साक्षरता
  3. G.D.P. और G.N.P.
  4. आयु संरचना इत्यादि।

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प्रश्न 10.
देश के कुछ भागों में मानवीय विकास सूचकांक साधारण है। इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर-
साधारण मानवीय विकास सूचकांक वाले देशों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस भाग में 88 देशों को शामिल किया गया है।
कारण—

  1. अधिकतर ये वे देश हैं जो विकास कर रहे देशों के साथ मिल चुके हैं।
  2. “बहुत सारे देश इसमें भूतपूर्व कालोनियों के हैं।
  3. कुछ देश सोवियत यूनियन के टूटने के बाद 1990 में उभर कर सामने आए।
  4. कुछ देशों ने मानवीय विकास का सूचकांक सामाजिक भेदभाव और मानवीय विकास पर आधारित योजनाओं को बनाकर किया है।
  5. इनमें से बहुत सारे देशों में बहुत ज्यादा भेदभाव देखने को मिलता है। अन्य देशों के मुकाबले यहाँ मानवीय सूचकांक ज्यादा है।
  6. काफी देशों में राजनीतिक अस्थिरता भी साधारण मानवीय विकास का कारण है।

प्रश्न 11.
विकास धुरे की अवधारणा से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
1955 में फ्रांसिस पैरोकस ने सबसे पहले विकास धुरे की अवधारणा पेश की जिसे बाद में मिस्टर बोडविले ने विस्तार से पेश किया था। उनके अनुसार हर स्थान पर विकास एक समय या एक जैसा नहीं होता। विकास का स्तर और विकास का समय, हर स्थान पर अलग होता है। यह विकास अलग-अलग वेग के साथ ‘बिंदु’ केन्द्र में होता है। इस प्रकार अलग-अलग स्थानों के विकास का ज्ञान इकट्ठा करने के लिए और विकास धुरे की पहचान करने के लिए विकास धुरे को विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है। यह हिस्सा विकास और स्थिति को गुणात्मक बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान डालते हैं।
आर०पी० शर्मा ने इसमें चार स्तरों या दों को शामिल किया है—

  1. स्थानीय सेवा केन्द्र
  2. विकास बिंदु
  3. विकास केन्द्र
  4. विकास धुरा।

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प्रश्न 12.
विकासशील देशों पर नोट लिखो।
उत्तर-
विकासशील देशों में मुख्य उद्योग, जैसे कि कृषि, वन, खनन, मछली पकड़ना, राष्ट्रीय आर्थिकता पर मुख्य अधिकार रखते हैं। अधिकतर जनसंख्या कृषि के काम में लगी हुई है और कृषि मुख्य रूप में अपने गुजर-बसर के लिए की जाती है। कृषि के लिए भूमि का आकार छोटा होता है। मशीनीकरण बहुत ही कम होता है और फसल का मुनाफा भी कम ही होता है जिसके कारण ज्यादातर क्षेत्र ग्रामीण आबादी के अधीन आता है। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही अधिक होती हैं। बच्चों की संख्या अधिक होती है। खाने में पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण प्रोटीन की कमी, भुखमरी और कुपोषण की समस्या आम मिलती है। विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आती है, जिसके कारण बहुत सारी बीमारियां क्षेत्र में फैल जाती हैं। ये क्षेत्र जनसंख्या की वृद्धि के कारण भीड़ वाले बन जाते हैं, जहां घरों की हालात बहुत खराब होती है। शिक्षा सेवा भी पूरी विकसित नहीं होती। समाज में स्त्रियों की दशा भी ठीक नहीं होती।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानवीय विकास से आपका क्या अभिप्राय है ? इस मनोभाव का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
मानवीय विकास एक प्रगतिशील सिद्धान्त है। मानवीय विकास का अर्थ है विकास का प्रक्रम और यह किसी प्रदेश के संसाधनों के विकास के लिए अधिकतम शोषण की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी प्रदेश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य मानव के लिए इस प्रकार का पर्यावरण पैदा करना होता है, जिसमें कोई बच्चा बिना शिक्षा से न रहे। जहाँ किसी भी मनुष्य को स्वास्थ्य सुविधा के लिए कोई मनाही न हो, जहाँ पर हर प्राणी अपनी योग्यता को बढ़ा सके।

भूगोलवेत्ता और समाज वैज्ञानिकों ने मानवीय विकास के क्षेत्र में विशिष्ट ध्यान दिया है। उन्होंने गरीबी का नाश करने और मानवीय जीवन को आनंदमय बनाने का उपदेश दिया है।

विकास का अर्थ स्वतंत्रता से है। आज के समाज में औद्योगीकरण, कम्प्यूटरीकरण, अच्छे यातायात और संचार के साधनों, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण मनुष्य विकास कर रहा है।

मानवीय विकास का महत्त्व-मानवीय विकास के कारण आबादी की दर में कमी आ रही है। प्रदूषण जैसी समस्याओं को काबू करने के लिए भिन्न तरीके अपनाये जा रहे हैं। जिन्दगी को सुहावना और टिकाऊ बनाने के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं के साथ-साथ पर्यावरण की सफाई पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इस कारण कई सामाजिक बुराइयों का अंत हो रहा है।

मानवीय विकास के चिन्ह या सूचक-संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम द्वारा हर साल मानवीय विकास इन्डैक्स विकसित किया जाता है। इसमें उत्पादन, खपत, मांग, ऊर्जा, वित्त, व्यापार, जनसंख्या वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। यह रिपोर्ट कुछ सूचकों पर आधारित होती है। इसके तीन मूल घटक हैं-जीवन अवधि, ज्ञान, रहन-सहन का स्तर। मानवीय विकास के सूचक अंक के अनुसार, भारत का 134वां और नार्वे का पहला स्थान है। निम्नलिखित कुछ तत्व मानवीय विकास इन्डैक्स में शामिल किये गये हैं—

  1. जन्म पर जीवन अवधि (Life Expectancy)
  2. साक्षरता (ज्ञान का स्तर) (Level of Knowledge)
  3. जनसंख्यात्मक विशेषताएं (Demographic Characteristics)
  4. मानवीय गरीबी सूचक (Human Poverty Indicators)

1. जन्म पर जीवन अवधि-विश्व की औसत रूप से आयु 65 वर्ष है। उत्तरी अमेरिका में जीवन अवधि 77 वर्ष है जो कि विश्व में सबसे अधिक है। इसके उलट अफ्रीका में सबसे कम जीवन अवधि 54 वर्ष है जो कि सबसे कम है। विकसित देशों में पौष्टिक तत्व, चिकित्सा सेवाएं इत्यादि के कारण लोगों की आयु लम्बी होती है।
Life Expectancy Rate (2012)

Country Life Expectancy % of population above 65 years
Japan 83 24
Canada 81 14
Switzerland 82 17
Australia 82 14
France 82 17
India 65 5

 

2. ज्ञान का स्तर-ज्ञान किसी भी देश के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास के लिए सबसे अधिक विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। गरीबी को दूर करने के लिए शिक्षा का होना अनिवार्य है। साक्षरता जनसांख्यिकीय विशेषताओं को प्रभावित करती है। विकसित देशों में साक्षरता का स्तर विकासशील देशों के मुकाबले ज्यादा होगी। ज्यादा साक्षरता खासकर आस्ट्रेलिया, यू०एस०ए, कैनेडा, जर्मनी, इत्यादि देशों में देखने को मिलती है। भारत में स्त्रियों की साक्षरता दर 65.5% और पुरुषों की साक्षरता दर 80% हैं।

3. मानवीय गरीबी सूचक-GDP और GNP देश की प्रति व्यक्ति (Per capita) आय दिखाती है, जो मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिस देश की प्रति व्यक्ति आय अधिक होगी वे देश भी अधिक विकसित होंगे। विकसित देशों में लोग विकासशील देशों से अधिक कमाते हैं। यू० एस० ए०, स्विट्ज़रलैंड, कैनेडा, जापान, आस्ट्रेलिया की GDP की आय अधिक है।

4. जनसंख्यात्मक विशेषताएँ-देश की आर्थिक स्थिति किसी देश की जनसंख्या के विभाजन, वृद्धि और घनत्व को प्रभावित करती है। विकसित और विकासशील देशों की जनसंख्या में विशेष अंतर पाए जाते हैं।

  • प्राकृतिक जनसंख्या में वृद्धि-कच्ची आयु और मृत्यु दर के बीच के फर्क को प्राकृतिक जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं। यह व्यापार, आर्थिकता पर विशेष प्रभाव डालते हैं।
  • आयु वर्ग-यह भी विकसित और विकासशील देशों में अलग होती है। विकासशील देशों में ज्यादातर आश्रित जनसंख्या रहती है जैसे कि (0-14 साल) और 60 साल से ऊपर के लोग, परन्तु यह आश्रित जनसंख्या की संख्या विकसित देशों में कम होती है।

इस प्रकार उपरोक्त कारकों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विश्व में मानवीय विकास असमान है।
इसी प्रकार मानवीय विकास का जो यह अनमोल सिद्धान्त है, इसको मुख्य रूप में चार स्तंभों के अधीन विभाजित किया गया है।

  1. समता-इसका मतलब हर इन्सान को अपनी मर्जी का रोजगार चुनने का पूरा-पूरा अधिकार है।
  2. निरंतरता- इसका अर्थ है कि लोगों को अलग-अलग प्रकार के अवसर लगातार मिलते रहने चाहिए।
  3. उत्पादकता- इसका अर्थ हर एक क्षेत्र में उत्पादन में वृद्धि से है।
  4. शक्तिकरण- इसका अर्थ है अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्रदान करना।

इस प्रकार उपरोक्त कारकों के आधार पर हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि विश्व में मानवीय विकास का सूचक अंक असमान है। हर समाज, आर्थिकता इत्यादि में अलग है। यहां विकासशील और विकसित देशों के सूचक अंक में भिन्नता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

प्रश्न 2.
मानवीय बस्तियों पर नोट लिखो।
उत्तर-
रोटी, कपड़ा और मकान मानव की तीन मूल जरूरतें हैं। मनुष्य अपनी हैसियत और इच्छा के अनुसार अपना घर बनाता है। जिस स्थान पर कोई मनुष्य रहता है, वह उसका बसेरा या बस्ती होती है। जनसंख्या और विकास के आधार पर बस्तियों को दो भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. ग्रामीण बस्तियाँ
  2. शहरी बस्तियाँ।

I. ग्रामीण बस्तियाँ-गाँवों में बने निवास स्थानों को ग्रामीण बस्तियाँ कहते हैं। ग्रामीण बस्तियाँ आमतौर पर बाढ़ के मैदानों, नदी के किनारों पर, पहाड़ी क्षेत्रों में, घाटी के मैदानों, तटवर्ती इलाकों इत्यादि में मिलती हैं। धरातल और भूमि इत्यादि के आधार पर हमारे देश में कई स्थानों पर घनी और कई स्थानों पर बिखरी हुई ग्रामीण बस्तियां मिलती हैं। भारत में ग्रामीण बस्तियों के कुछ नमूने इस प्रकार हैं—
(A) रैखिक नमूना-इस प्रकार की बस्तियाँ अधिकतर हमें सड़कों के किनारों, रेल लाइनों के नजदीक या किसी नहर इत्यादि के पास मिलती हैं।
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Linear Pattern

2. चेक बोर्ड नमूना-ऐसी बस्तियाँ उन स्थानों पर मिलती हैं यहाँ यातायात के साधन और सड़कें एक-दूसरे को एक समकोण पर काटते हैं।
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Check Board Pattern

3. आयताकार प्रतिरूप-यह नमूना देखने में चेक बोर्ड के नमूने के जैसा ही होता है। यहां भी सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं और खासकर ये एक वर्ग आकार की होती हैं।
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Rectangular Pattern

4. अर्धव्यास नमूना-इस प्रकार की बस्तियाँ एक केन्द्रीय धुरे से शुरू होती हैं, जहाँ कई सड़कें, रास्ते इत्यादि अलग-अलग दिशाओं से एक केन्द्रीय स्थान पर इकट्ठे होते हैं।
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5. तारे जैसा नमूना-ये बस्तियाँ अर्धव्यास के नमूने में हुए कुछ सुधारों का नतीजा है।
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6. त्रिकोण नमूना- इस प्रकार की बस्तियाँ त्रिकोण आकार की होती हैं जो कि तीनों ओर से घिरी होती हैं।
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7. गोलाकार नमूना-इस प्रकार की बस्तियाँ आमतौर पर किसी नदी, तालाब, मस्जिद, मंदिर इत्यादि के आस-पास मिलती हैं।
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8. अर्धगोलाकार नमूना-इस प्रकार का नमूना किसी नदी के किनारे पर मिलता है। पर नदी का दूसरा हिस्सा किसी पहाड़ी इलाके के साथ मिला होना चाहिए। यह देखने में अर्ध गोल आकार की बन जाती है।
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9. तीर नमूना-इस प्रकार की बस्तियाँ किसी नदी के किनारों या नदी की उप-नदियों के किनारों के साथ-साथ मिलती हैं।
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10. बादल जैसा नमूना-यह देखने में एक बादल जैसी होती है।
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II. शहरी बस्तियाँ-शहरी बस्तियों का सम्बन्ध कस्बों या नगरों से होता है। इन क्षेत्रों में लोग ग्रामीण लोगों के जैसे कृषि के काम की अपेक्षा औद्योगिक विकास के कारण उद्योगों इत्यादि में काम करते हैं। यहाँ ग्रामीण मुकाबले विकास ज्यादा के होने कारण जनसंख्या का घनत्व भी ज्यादा होता है। शहरी बस्तियों को भी आगे कुछ श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। जैसे—

1. शहरी गाँव-इस प्रकार के गाँव के ढंग, तरीके शहरी होते हैं। इसको शहरी, ग्रामीण, कस्बा या शहरी बस्ती कहते हैं। यह किसी गाँव में हुए परिवर्तन को दिखाता है।

2. कस्बा-यह किसी शहरी बस्ती की सबसे छोटी इकाई होती है।

3. शहर-यह पूरी तरह से विकसित बस्ती होती है। यहां शहरी काम और जटिल अंदरूनी बनावट का बोलबाला होता है। जिस बस्ती की जनसंख्या एक लाख या इससे ज्यादा व्यक्तियों की होती हैं, वह शहर कहलाते हैं। यहां आबादी की वृद्धि शहर में मिलने वाली सेवाओं, सुविधाओं और रोजगार के अवसरों के कारण होती है।

4. महानगर-यह एक विशाल शहर होता है जिसकी जनसंख्या दस लाख या इससे ज्यादा व्यक्तियों की होती है। जैसे-जैसे विकास और समय बदलता जा रहा है, इस प्रकार के शहरों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है। इस प्रकार एक रिकार्ड अनुसार 1981 ई० में देश में सिर्फ 12 महानगर थे, जो कि 2011 में 53 तक बढ़ गए।

5. विशाल शहरी क्षेत्र-यह एक बहुत बड़ा विशाल शहरी क्षेत्र होता है जिसमें कई महानगर शामिल होते हैं। महानगर के विकास के कारण कई शहरी बस्तियाँ इसमें शामिल हो जाती हैं। जिस कारण यह क्षेत्र एक विशाल शहरी क्षेत्र में बदल जाता है। इस सिद्धान्त को सबसे पहली बार जीन गोटमैन ने दिया। इस धारणा का मुख्य रूप में उत्तर पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए उपयोग किया गया।

6. शहरों का समूह-यह एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें कई महानगर और छोटे-बड़े शहरी क्षेत्र आपस में समा जाते हैं और यह एक शहर के समूह को जन्म देते हैं। हमारे भारत में इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोलकाता शहर का है जिसमें 85 के करीब छोटे-बड़े शहरी क्षेत्र शामिल हैं।

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प्रश्न 3.
विकसित तथा विकासशील देशों में विकास की तुलना करो।
उत्तर-
विकसित और विकासशील देशों में मानवीय विकास का सूचक अंक अलग-अलग होता है। विकसित देशों में सेजगार के अच्छे अवसर और स्वास्थ्य सेवायें आसानी से मिल जाती हैं, जिस कारण मानवीय विकास अधिक होता है और विकासशील देशों में मानवीय विकास कम होता है। इनकी तुलना निम्नलिखित—

विकसित देश विकासशील देश
1. इन देशों में राष्ट्रीय आर्थिक पूंजी का मुख्य स्रोतऔद्योगिक काम होते हैं। 1. इन देशों में लोगों का मूल रोजगार जैसे कि कृषि, मछली पालन, खनन इत्यादि होते हैं।।
2. इन देशों में बहुत कम लोग कृषि का काम करते 2. अधिकतर देश की आबादी कृषि के कामों में लगी होती है।
3. मुख्य रूप में कृषि व्यापार के लिए की जाती है और अच्छी मशीनों की सहायता से खेती की जाती है। भूमि का आकार बड़ा होता है। 3. कृषि सिर्फ अपने ही निर्वाह के लिए की जाती है, क्योंकि खेत छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया होता है और मशीनीकरण की कमी होती है।
4. मुख्य तौर पर जनसंख्या शहरी होती है और अधिकतर 80% लोग शहरों और कस्बों में रहते हैं। 4. मुख्य तौर पर जनसंख्या गाँवों में रहती है और 80% के लगभग जनसंख्या ग्रामीण होती है।
5. जन्म दर और मृत्यु दर कम होती है और आयु हमेशा अधिक होती है। बच्चे और बूढ़े, भाव निर्भर जनसंख्या कम होती है और काम करने वालों की जनसंख्या ज्यादा होती है। 5. जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही अधिक होती हैं और आयु हमेशा छोटी होती है। बच्चे और बुजुर्ग अर्थात् निर्भर अधिक जनसंख्या होती है और काम करने वालों की संख्या कम होती है।
6. इन देशों में पौष्टिक आहार के कारण बीमारियों का खतरा कम होता है और लोग विकास के कामों में लगे रहते हैं। 6. इन देशों में पौष्टिक आहार की कमी होती है जिस कारण बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
7. इन देशों में अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ लोगों के लिए होती हैं। 7. इन क्षेत्रों में अच्छी चिकित्सा सुविधाएं नहीं होतीं।
8. सामाजिक हालात इन क्षेत्रों में अधिकतर अच्छे होते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ अच्छा घर और पर्यावरण होता है। 8. इन क्षेत्रों में भीड, घटिया मकान और सफाई का प्रबंध कम होता है जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषित होता है।
9. इन क्षेत्रों में अच्छी शिक्षित सेवा प्रदान की जाती है, जिस कारण साक्षरता दर ऊँची होती है और साक्षरता दर उच्च होने के कारण इन क्षेत्रों में मानवीय विकास का स्तर उच्च होता है। 9. इन क्षेत्रों में शिक्षित सेवा उच्च स्तर की नहीं होती, जिस कारण साक्षरता दर कम होती है और मानवीय विकास दर कम होती है।
10. स्त्रियों की दशा में काफी सुधार होता है। स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्रदान किये जाते हैं। 10. अशिक्षा के कारण लोगों की सोच अच्छी नहीं होती जिस कारण स्त्रियों को पुरुषों के समान नहीं समझा जाता।
11. विकसित होने के कारण लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मिलते हैं। 11. ये देश आज भी विकास कर रहे हैं जिस कारण इतने अच्छे रोजगार के अवसर नहीं मिलते।

 

प्रश्न 4.
मानव विकास की धारणा क्या है ? इसका महत्त्व और इसके स्तंभों के बारे में विस्तार से चर्चा करो।
उत्तर-
वृद्धि और विकास दोनों द्वारा ही समय के साथ कुछ परिवर्तन आता जाता है, इसलिए ये दोनों स्तर एक-दूसरे से अलग हैं। विकास गुणवत्ता पर आधारित परिवर्तन होता है और वृद्धि का सम्बन्ध संख्या से होने कारण यह धनात्मक और ऋणात्मक भी हो सकता है। इस प्रकार विकास किसी वस्तु की वृद्धि और कमी दोनों ही चिन्हों द्वारा दर्शाया जा सकता है। इस तरह विकास गुणात्मक होता है जिसमें हमेशा धनात्मक परिवर्तन होता है। इसका अर्थ है कि जंब तक किसी स्थान पर वृद्धि नहीं होती अर्थात् मौजूदा हालातों में कुछ सुधार नहीं होता उतना समय विकास संभव नहीं होता। जनसंख्या की वृद्धि से विकास नहीं होता। विकास तब होता है, जब योग्यता में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए अगर किसी क्षेत्र की आबादी 10 लाख से 20 लाख हो गई तो इससे सिर्फ जनसंख्या में वृद्धि होगी, पर अगर मूल जरूरतों जैसे-घरों की सप्लाई, जल, ऊर्जा, यातायात इत्यादि साधनों में विकास होता है, तो उसे विकास कहते हैं।

1990 से पहले देश में वृद्धि दर को और विकास दर को वहाँ की आर्थिक समृद्धि के हिसाब से मापा जाता था। इसका अर्थ है कि देश में विकसित आर्थिक अवसरों के साथ उस देश के विकसित होने पर अंदाजा लगाया जाता था, पर इन अंदाजों के आधार पर सही स्थिति के बारे में जान पाना काफी मुश्किल होता था, क्योंकि कई बार कुछ मसलों में आर्थिक वृद्धि के लाभ मनुष्य तक नहीं पहुंचते थे। इस प्रकार विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं—

  1. लोगों की जीवन क्षमता
  2. लोगों के पास अवसरों का होना
  3. लोगों द्वारा स्वतंत्रता या खुलेपन को मानना।

उपरोक्त विचार स्पष्ट रूप में सबसे पहली बार 1980 के अंत के समय और 1990 के पहले दौर में दिये गये। यह विचार मशहूर अर्थशास्त्री महबूब उल हक और डॉ० अमर्त्य सेन द्वारा दिये गये। महबूब उल हक ने 1990 में मानवीय विकास का अर्थ बताया कि लोगों के चुनाव के घेरे को बढ़ाना चाहिए, ताकि वे शान से लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकें। डॉ० हक के अनुसार, “लोग ही विकास का धुरा हैं। लोगों के विकल्प, निर्धारित नहीं। ये बदलते रहते हैं। विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों के लिए ऐसे अवसर पैदा करना है जिनके साथ वे एक सार्थक जिन्दगी बिता सकें। डॉक्टर अमर्त्य सेन ने अपने विचारों में कहा है, “मनुष्य की स्वतंत्रता में वृद्धि होना जरूरी है, क्योंकि यह ही विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। विकास के लिए मनुष्य की स्वतंत्रता बहुत ज़रूरी है। उसने ज्यादातर राजनीतिक और सामाजिक आधारों द्वारा मनुष्य को स्वतंत्रता देने पर जोर दिया है।
मानवीय विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
—लम्बा और स्वस्थ जीवन
—ज्ञान की प्राप्ति के लिए योग्यता हासिल करना
—खूबसूरत जिन्दगी बिताने के लिए योग्य साधनों का होना।
आम शब्दों में विकास का अर्थ खुलापन या स्वतंत्रता से है। विकास और स्वतंत्रता का आपस में अच्छा संबंध है। विकास के स्तर को आधुनिक सुविधायों की मौजूदगी और उन तक पहुँच से मापा जा सकता है।

मानवीय विकास का महत्त्व-मानवीय विकास एक संयुक्त इंडेकस है-जैसे कि आयु संरचना, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय इत्यादि सारे सूचक अंक इसका हिस्सा है। ये किसी देश को एक क्रम प्रदान करते हैं और इनके अनुसार ही देश के विकास का अंदाजा लगाया जाता है। एक देश में मानवीय विकास सूचक अंक प्राप्त कर लेता है जब वहाँ के नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा होगा, शिक्षा सेवाएँ अच्छी होंगी और लोग (GDP) और (GNP) के विकास में अपना योगदान दे पायेंगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य मानवीय विकल्पों के क्षेत्र को बढ़ाना है और मानवीय परिस्थितियों को और आगे बढ़ाना है। यह उत्पादन के स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक है। इस तरह ये मानवीय गुणों में सुधार लाने में सहायक हैं। यह तभी सम्भव है जब समाज के सभी तत्वों में ज़रूरत अनुसार निवेश किया जाए। मानवीय विकास देश की आबादी में वृद्धि की दर को कम करता है क्योंकि साक्षरता के कारण उनकी सोचने की क्षमता में विकास होता है। प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है और मानव जीवन को शुद्ध और साफ-सुथरा पर्यावरण प्रदान किया जा सकता है। सुधरा हुआ मानवीय जीवन राजनैतिक और सामाजिक संतुलन को मजबूत करता

मानवीय विकास के स्तंभ
जिस तरह एक मकान बनाने के लिए कुछ स्तंभों की जरूरत होती है, उसी प्रकार मानवीय विकास के लिए कुछ स्तभों की जरूरत होती है। जैसे कि—

1. हक या इंसाफ-हक या इंसाफ का अर्थ है अवसरों और रोजगार को हासिल करने में हर इंसान को समानता। जो भी अवसर उपलब्ध हैं वह हर एक के लिए समान हों बिना किसी लिंग, नस्ल, धर्म, जाति इत्यादि के भेदभाव से। ज्यादातर गरीब लोगों को अच्छे अवसर नहीं मिलते और वे अपने हक को प्राप्त करने से असमर्थ हो जाते हैं।

2. निरंतरता-इसका अर्थ है अवसरों की लगातार उपलब्धि। इसका अर्थ है हमारी हर पीढ़ी को एक समान अवसर मिलने चाहिए। इसलिए हमें अपने पर्यावरण, पूंजी, मानवीय स्रोतों का फालतू प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमें ये स्रोत अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए संभाल कर रखने चाहिए ताकि वे भी इनका फायदा उठा सकें। हमें इनका प्रयोग सही रूप में करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इनका लाभ उठा सकें।

3. उत्पादकता- इसका अर्थ मजदूर वर्ग की उत्पादकता या मानवीय काम में उत्पादकता से है। यह मानवीय योग्यताओं को सम्पन्न बनाता है और कहा जाता है कि देश के लोग ही इसकी असली पूंजी हैं। अगर उनके ज्ञान के विकास के लिए कोशिश की जाए और अच्छी सुविधाएँ प्रदान की जाएं, अच्छा स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाएं दी जाएं तो वे अपने कार्य में कुशलता हासिल कर सकेंगे।

4. शक्तिकरण-इसका अर्थ है कि लोगों के पास अपनी मर्जी के अवसरों को चुनने की शक्ति का होना। इसका अर्थ है लोगों में अपने अवसर बनाने की शक्ति होनी चाहिए। इस तरह की शक्ति स्वतंत्रता और योग्यताओं द्वारा मानव में आती है। अच्छी सरकारी नीतियां और लोगों की भलाई के लिए सरकार द्वारा किए गए काम भी इस श्रेणी में शामिल हैं। लोगों को शक्तिकरण प्रदान करने के लिए लोकहित में बनी नीतियां या अच्छे प्रशासन की जरूरत है।

मानवीय विकास सूचक को ज्ञात करने के लिए सारे तत्वों के औसत मूल्य को जोड़कर तत्वों की संख्या के साथ भाग करके इसका मूल्य पता किया जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 3 मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ

मानवीय संसाधन-मानवीय विकास तथा बस्तियाँ PSEB 12th Class Geography Notes

  • वृद्धि से भाव किसी वस्तु या चीज़ की संख्या से है और विकास का भाव किसी गुणवत्ता की वृद्धि से होता है। विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू हैं—लोगों की गुणवत्ता में वृद्धि, लोगों के पास अवसर का होना । अथवा लोगों द्वारा आज़ादी को मानना।
  • लंबा और स्वस्थ जीवन, ज्ञान की प्राप्ति के लिए योग्यता का होना, बेहतरीन जिंदगी बनाने के लिए साधनों का होना इत्यादि कुछ पहलू मानवीय विकास के लिए आवश्यक हैं।
  • मानवीय विकास का मुख्य उद्देश्य, मानवीय चुनाव के क्षेत्र को और अधिक विशाल करना और मानवीय हालातों को सुधारना है। हक या इन्साफ़, उत्पादकता, अवसर की उपलब्धता, मनमर्जी के अवसर, मानवीय विकास के स्तंभ माने जाते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम द्वारा मानवीय विकास इन्डैक्स विकसित किया गया, जिसमें लंबी उम्र, ज्ञान का स्तर, रहन-सहन का स्तर इत्यादि तत्त्व शामिल किए गए हैं।
  • मानवीय विकास सूचक की कीमत 0 से 1 के बीच होती है। जिसकी कीमत 1 के नज़दीक या आस- पास होगी, मानवीय विकास का स्तर उतना ही उच्च होगा।
  • रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की तीन मुख्य ज़रूरतें हैं। मानवीय बस्तियों को ग्रामीण और शहरी दो भागों में बाँटा जाता है। !
  • नार्वे जिसका मानवीय सूचक अंक 0.949 है, दुनिया में पहले स्थान पर आता है।
  • मानवीय विकास सूचक अंक अनुसार भारत में केरल पहले और फिर हिमाचल प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु इत्यादि प्रदेश आते हैं।
  • भारत सरकार ने मौजूद शहरों में कुछ शहरों को स्मार्ट शहर बनाने का ऐलान किया है। स्मार्ट शहर प्रोजैक्ट का मुख्य उद्देश्य शहरों का हर पक्ष से विकास करना है। इसलिए एक स्मार्ट शहर के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किए गए हैं–जैसे-जलापूर्ति, निश्चित बिजली का प्रबंध, अच्छी साफ़-सफ़ाई, गरीबों के लिए सस्ते घर इत्यादि।
  • फ्रांसिस पैरोकस ने 1955 में विकास धुरे की धारणा दी, जिसका बाद में मिस्टर बोडविले ने विस्तार किया। | उनका विचार था कि विकास हर जगह पर एक ही समय में नहीं होता। इसमें अलग-अलग वेग से बिन्दु, । केंद्र और अक्ष में विकास होता है।
  • मानव विकास-मानव विकास का अर्थ है लोगों की जीवन गुणवत्ता में वृद्धि होना।
  • मानवीय विकास के चिन्ह—
    • दीर्घायु,
    • ज्ञान का स्तर,
    • रहन-सहन का स्तर।
  • मानवीय विकास सूचकांक का सिद्धांत डॉक्टर महबूब-उल-हक ने 1990 ई० में दिया।
  • मानवीय विकास के स्तम्भ-हक, निरन्तरता, उत्पादकता, शक्तिकरण मानवीय विकास के स्तम्भ के तौर पर जाने जाते हैं।
  • मानवीय विकास की 2005 की रिपोर्ट के अनुसार नार्वे जिसका मानवीय सूचक अंक 0.949 है, दुनिया भर में – पहले स्थान पर आता है।
  • मानवीय बस्तियों को सुविधाओं और आबादी के अनुसार दो मुख्य-श्रेणियों में विभाजित किया जाता है
    • ग्रामीण बस्तियाँ,
    • शहरी बस्तियाँ।
  • कस्बा-यह शहर की सबसे छोटी इकाई होती है। यहाँ शहरी रहने के तरीके, काम-काज साफ़ देखने को मिलता है।
  • महानगर-जिस शहर की आबादी 10 लाख व्यक्ति या इससे ज्यादा हो, उसे महानगर कहा जाता है।
  • स्मार्ट शहर-जिस शहर में तकनीक, प्रमुख ढांचे, अपने नागरिकों के मुताबिक सेवाएं हों उन्हें स्मार्ट शहर कहते हैं।
  • विकास केंद्र में चार स्तर या दर्जे—
    • स्थानिक सेवा केंद्र
    • विकास बिंदु
    • विकास केंद्र
    • विकास धुरा।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules.

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. टेबल टेनिस खेल की किस्म = दो सिंगल और डबल
  2. टेबल टेनिस मेज़ की लम्बाई और चौड़ाई = 274 × 152.5 सैंटीमीटर
  3. खेलने वाले फर्श की ऊंचाई = 76 सैंटीमीटर
  4. खेलने वाले फर्श से जाल की ऊंचाई = 15.25 सेंटीमीटर
  5. जाल की लम्बाई = 183 सैंटीमीटर
  6. गेंद का वज़न = 2.5 ग्रेन से 2.7 ग्रेन
  7. गेंद किस वस्तु का बना होता है। = सेल्यूलाइड अथवा सफेद प्लास्टिक
  8. गेंद की परिधि = 40 सैंटीमीटर
  9. गेंद का रंग = सफेद
  10. मैच के अधिकारी = 1 रैफ़री, अम्पायर, 1 सहायक, 4 कार्नर जज
  11. गेमों के मध्य अन्तराल = 1 मिनट
  12. मैच के दौरान टाइम आउट = 1 मिनट
  13. रेखाओं की चौड़ाई = 2 सैं०मी०
  14. सतह को विभाजित करने वाली रेखा की चौड़ाई = 3 मि०मी०
  15. मेज़ का आकार = आयताकार
  16. मेज़ का रंग = पक्का हरा

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

टेबल टेनिस खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Table Tennis Game)

  1. टेबल टेनिस के मेज़ की लम्बाई 274 सैंटीमीटर और चौड़ाई 152.5 सैंटीमीटर होती है।
  2. टेबल टेनिस की खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ तथा डबल्ज़। सिंगल्ज़-इसमें कुल खिलाड़ी दो होते हैं। एक खिलाड़ी खेलता है तथा एक खिलाड़ी अतिरिक्त होता है। डबल्ज़-इसमें चार खिलाड़ी होते हैं, जिनमें से दो खेलते हैं तथा दो खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।
  3. डबल्ज़ खेल के लिए खेलने की सतह (Playing Surface) को 3 सैंटीमीटर चौड़ी सफ़ेद रेखाओं द्वारा दो भागों में बांटा जाएगा।
  4. टेबल टेनिस की खेल में सिरों तथा सर्विस आदि के चुनाव का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  5. टॉस जीतने वाला सर्विस करने का फैसला करता है तथा टॉस हारने वाला सिरे का चुनाव करता है।
  6. सिंगल्ज़ खेल में 2 प्वाइंटों के बाद सर्विस बदल दी जाती है।
  7. मैच की अन्तिम सम्भव गेम में जब कोई खिलाड़ी या जोड़ी पहले 10 प्वाइंट कर ले तो सिरे बदल लिए जाते हैं।
    टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
  8. मैच एक पांच गेमों या सात गेमों में से सर्वोत्तम गेम होता है।
  9. टेनिस के टेबल की लाइनें सफेद होनी चाहिएं।
  10. टैनिस के टेबल का शेष भाग हरा और नीला होना चाहिए।

PSEB 11th Class Physical Education Guide टेबल टेनिस (Table Tennis) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
टेबल टेनिस के मेज़ का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
आयताकार।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
टेबल टेनिस मेज़ की ऊंचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
टेबल टेनिस मेज़ की ऊँचाई 76 सेंटीमीटर होती है।

प्रश्न 3.
टेबल टेनिस मेज़ का रंग कैसा होता है ?
उत्तर-
पक्का हरा।

प्रश्न 4.
टेबल टेनिस खेल में कितने अधिकारी होते हैं ?
उत्तर-
रैफरी = 1, अम्पायर = 1, कार्नर जज = 4

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
टेबल टेनिस मैच में टास जीतने वाला खिलाड़ी सर्विस का चयन करता है या साइड का चयन करता
उत्तर-
टास जीतने वाला खिलाड़ी सर्विस या साइड दोनों में से एक का चयन कर सकता है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB टेबल टेनिस (Table Tennis) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
टेबल टेनिस की खेल के सामान का संक्षेप वर्णन करें।
उत्तर-
मेज़ (Table)-मेज़ आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 274 सैंटीमीटर तथा चौड़ाई 152.5 सेंटीमीटर होती है। इसकी ऊपरी सतह फर्श से 76 सैंटीमीटर ऊंची होगी। मेज़ किसी भी पदार्थ से निर्मित हो सकता है, परन्तु उसके धरातल पर 30.5 सेंटीमीटर की ऊंचाई से कोई प्रामाणिक गेंद फैंकने पर एक सार ठप्पा खाएगी जो 22 सैंटीमीटर से कम तथा 25 सैंटीमीटर से अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए। मेज़ के ऊपरी धरातल को क्रीड़ा तल (Playing Surface) कहते हैं। यह गहरे हल्के रंग का होता है। इसके प्रत्येक किनारे 42 सैंटीमीटर चौड़ी श्वेत रेखा होगी, 152.2 सैं० मी० के किनारे वाली रेखाएं अन्त रेखाएं तथा 23.4 सैंटीमीटर किनारे की रेखाएं पार्श्व (साइड) रेखाएं कहलाती हैं। डबल्ज़ खेल में मेज़ की सतह 3 मिलीमीटर चौड़ी सफेद रेखा दो भागों में विभक्त होती है जो साइड रेखा के समान्तर तथा प्रत्येक के समान दूरी पर होती है, इसे केन्द्र रेखा कहते हैं।
Class 11 Physical Education Practical टेबल टेनिस (Table Tennis) 2
जाल (Net) जाल की लम्बाई 183 सैं० मी० होती है। इसका ऊपरी भाग क्रीड़ा तल (Playing Surface) से 15.25 सैं० मी० ऊंचा होता है। यह रस्सी द्वारा 15.25 सैं० मी० ऊंचे सीधे खड़े डण्डों से बांधा होता है। प्रत्येक डण्डे की बाहरी सीमा उसी पार्श्व रेखा अर्थात् 15.25 सैंटीमीटर से बाहर की ओर होती है।

गेंद (Ball)-गेंद गोलाकार होती है। यह सैल्यूलाइड अथवा प्लास्टिक की सफ़ेद पीली परन्तु प्रतिबिम्बहीन होती है। इसका व्यास 37.2 मिलीमीटर से कम तथा 40 मि० मी० से अधिक नहीं होता। इसका भार 2.5 ग्रेन से कम तथा 2.7 ग्रेन से अधिक नहीं होता।
रैकेट (Racket) रैकेट किसी भी आकार या भार का हो सकता है। इसका तल गहरे रंग का होना चाहिए। यह खेल 21 अंक का होता है।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
टेबल टेनिस खेल में निम्नलिखित से आपका क्या भाव है ?
(1) टेबल का कम
(2) बाल खेल में
(3) अच्छी सर्विस
(4) अच्छी वापिसी
(5) लैट।
उत्तर-
खेल का क्रम (Order of Play) एकल (Single) खेल में सर्विस करने वाला (सर्वर) लगातार पांच वार सर्विस करता है, चाहे उसका अंक बने या न बने। उसके पश्चात् सर्विस दूसरे खिलाड़ी को मिलती है। इस तरह उसे भी पांच सर्विस करने का हक मलता है। इस तरह हर पांच सर्विस करने के बाद सर्विस में तबदीली होती है।
Class 11 Physical Education Practical टेबल टेनिस (Table Tennis) 3
दोकल (Double)-खेल में सर्वर सर्विस करता है तथा रिसीवर अच्छी वापसी करेगा। सर्वर का साथी फिर बढ़िया वापसी करेगा और बारी-बारी प्रत्येक खिलाड़ी उसी क्रम से बढ़िया वापसी करेंगे।

उत्कृष्ट (अच्छी) सर्विस (Good Service)-सर्विस में गेंद का सम्पर्क करता हुआ मुक्त हाथ खुला, अंगुलियां जुड़ी हुईं तथा अंगूठा मुक्त रहेगा और क्रीड़ा तल के लेवल के द्वारा सर्वर गेंद को ला कर हवा में इस प्रकार सर्विस शुरू करेगा कि गेंद हर समय निर्णायक को नज़र आए।
गेंद फिर इस प्रकार प्रहारित होगी कि सर्वप्रथम सर्वर का स्पर्श करके सीधे जाल के ऊपर या आस-पास पार करती हुई पुनः प्रहारक के क्षेत्र का स्पर्श कर ले।

दोकल (Double)-खेल में गेंद पहले सर्वर का दायां अर्द्धक या उसके जाल की ओर की केन्द्र रेखा स्पर्श करके जाल के आस-पास या सीधे ऊपर से गुज़र कर प्रहारक के दायें अर्द्धक या उसके जाल की ओर केन्द्र रेखा स्पर्श करे।

उत्कृष्ट (अच्छी) वापसी (A Good Return)-सर्विस या निवर्तन (Return) की हुई गेंद खिलाड़ी द्वारा इस प्रकार प्रहारित की जाएगी कि वह सीधे जाल को पार करके या चारों ओर पार करके विरोधी के क्षेत्र को स्पर्श कर ले।
बाल खेल में (Ball in Play)-सर्विस में हाथ द्वारा आगे को बढ़ाने के क्षण में गेंद खेल में मानी जाएगी जब तक कि—

  1. गेंद एक क्षेत्र में दो बार स्पर्श नहीं कर लेती।
  2. वह किसी खिलाड़ी को या उसके वस्त्र को छू नहीं लेती।
  3. वह किसी खिलाड़ी द्वारा एक से अधिक बार लगातार प्रहारित नहीं हो जाती।
  4. सर्विस को छोड़ कर वह प्रत्येक क्षेत्र को रैकेट तुरन्त प्रहारित किए बिना एकान्तर से स्पर्श नहीं कर लेती।
  5. बिना टप्पा खाए आती है।
  6. वह जाल तथा उसकी टेकों (Supports) को छोड़ कर किसी अन्य वस्तु से छू जाए।
  7. दोकल (Double) खेल की सर्विस में सर्वर या रिसीवर की बाईं कोर्ट को छू ले।
  8. डबल्ज़ खेल में यदि टीम से बाहर के खिलाड़ी ने प्रहार किया हो।

लैट (Let)-विराम लैट होता है—

  1. अच्छी सर्विस होने पर गेंद यदि जाल पार करते समय जाल या उसकी टेकों को छू जाती है।
  2. जब सर्विस प्राप्तकर्ता या उसके साथी के तैयार न होने की अवस्था में सर्विस कर दी जाए।
  3. यदि किसी दुर्घटना के कारण कोई खिलाड़ी अच्छी सर्विस या रिटर्न करने से रुक जाता है।
  4. यदि किसी त्रुटि को दूर करने के लिए खेल रोका जाता है।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
टेबल टेनिस खेल में अंक कैसे मिलते हैं और खिलाड़ी कैसे विजय होता है ?
उत्तर-
अंक (Points)-नियम 9 में दी गई स्थिति को छोड़ कर कोई भी खिलाड़ी अंक खो देगा—

  1. यदि वह अच्छी सर्विस करने में असफल रहता है।
  2. यदि विपक्षियों में से किसी एक द्वारा सर्विस या अच्छी रिटर्न होते पर वह अच्छी रिटर्न में असफल हो जाए।
  3. यदि किसी खिलाड़ी या गेंद के खेल में रहते हुए क्रीड़ा तल को हिला दे।
  4. यदि उसका मुक्त हाथ गेंद के खेल में रहते हुए क्रीड़ा तल का स्पर्श कर ले।
  5. यदि गेंद खेल में आने से पूर्व अन्त रेखा या पार्श्व रेखा पार करती हुई उनकी ओर की मेज़ के क्रीड़ा तल को स्पर्श नहीं कर पाई है।
  6. यदि गेंद बिना टप्पा खाये लौटता है।
  7. दोकल खेल (Double) में यदि वह उचित अनुक्रम के बिना गेंद को प्रहारित नहीं करता।

जब कोई खिलाडी सर्विस करता है या कोई स्ट्रोक मारता है तो उसकी तरफ से खेली गई गेंद विरोधी तरफ से टप्पा खाने की बजाए सीधी उसके रैकेट को लगती है तो उस अवस्था में टेकन होता है जो अंक या स्ट्रोक मारने वाले को मिलता है।

खेल (Game)-खेल उस खिलाड़ी या जोड़े द्वारा जीती हुई मानी जाएगी जो पहले 11 अंक बना लेगा। यदि दोनों खिलाड़ी जोड़े 10 अंक बना लेते हैं तो उस वक्त दोनों खिलाड़ी या जोड़े को क्रमवार एक-एक सर्विस करने के लिए सुचेत किया जाता है जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले दो अंक विरोधी से अधिक बना लेगा वह विजयी कहलाएगा।

मैच (Match)-मैच एक गेम, तीन गेम या पांच गेम का होगा। खेल निरन्तर जारी रहेगा, जब तक कोई खिलाड़ी या युगल विश्राम के लिए नहीं कहता। यह विश्राम पांच खेल वाले में से तीसरी और चौथी खेल के बीच पांच मिनट से अधिक नहीं होगा। अन्तरवर्ती क्षेत्रों में विश्राम एक मिनट से अधिक नहीं होगा।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
टेबल टेनिस में दिशा और सर्विस का चुनाव कैसे होता है ? दिशा परिवर्तन कैसे होता है ? सर्विस और रसीव करने की ग़लतियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
दिशा और सर्विस का चुनाव (Selection of side and service)-प्रत्येक मैच में दिशा का चुनाव तथा सर्वर या प्रहारक बनने का अधिकार चुनता है तो विपक्षी को दिशा चुनने का अधिकार होगा। यह रीति विपरीत क्रम में भी रहेगी। टॉस जीतने वाला यदि चाहे तो विपक्षी को प्रथम चयन का अधिकार दे सकता है।

दोकल (Double)-खेल में जिस जोड़े को पहले सर्विस करने का अधिकार होगा वह निश्चित करेगा कि किस साथी को ऐसा करना है। इसी प्रकार मैच के प्रथम खेल में विपक्षी जोड़ा भी यह निश्चित करेगा कि किस साथी खिलाड़ी ने पहले सर्विस प्राप्त करनी है।

दिशा परिवर्तन तथा सर्विस
(Change of Ends and Service)
खेल में एक दिशा से प्रारम्भ करने वाला खिलाड़ी या जोड़ा उससे अगले खेल में दूसरी ओर से प्रारम्भ करेगा। यह क्रम मैच के अन्त तक जारी रहेगा। मैच के अन्तिम खेल में जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले 5 फलांकन बना लेगा वह दिशा परिवर्तन कर सकता है। एकल (Single) खेल में 2 अंक के पश्चात् रिसीवर सर्वर बन जाएगा और सर्वर रिसीवर और यही क्रम मैच के अन्त तक जारी रहेगा (नीचे दी हुई स्थिति को छोड़ कर)।

दोकल खेल में पहली 2 सर्विस उस जोड़े के चुने हुए साथी द्वारा होगी जिन्हें निर्णय का अधिकार या विपक्षी जोड़े के चुने हुए साथी द्वारा प्राप्त की जाएगी। दूसरी 2 सर्विस, प्रथम 2 सर्विस प्राप्त करने वाला प्रहार करेगा तथा पहली 2 सर्विस करने वाला सर्वर उन्हें प्राप्त करेगा। तीसरी 2 सर्विस प्रथम 2 सर्विस करने वाला सर्वर का साथी करेगा तथा प्रथम 2 सर्विस प्राप्त करने वाला प्रहारक का साथी उन्हें प्राप्त करेगा। चौथी 2 सर्विस प्रथम 2 सर्विस करने वाला प्रहारक का साथी करेगा तथा प्रथम 2 सर्विस करने वाला सर्वर उन्हें प्राप्त करेगा। पांचवीं 2 सर्विस प्रथम 2 सर्विस के समान संक्रमिन होगी। खेल इसी क्रम में जारी रहेगा जब तक खेल समाप्त नहीं हो (नीचे दी हुई स्थिति को छोड़ कर) जाता।

फलांकन के 10 अंक होने पर या खेल के एकस्पिडाइट पद्धति के अन्तर्गत खेले जाने पर सर्विस और प्रहार करने का क्रम वही रहेगा, किन्तु खेल के अन्त तक प्रत्येक खिलाड़ी बारी-बारी से केवल एक सर्विस करेगा जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले खेल में सर्विस करेगा वह उससे अगले खेल में सर्विस प्राप्त करेगा।

‘दोकल’ मैच के अन्तिम खेल में 5 फलांकन पर जोड़े दिशा परिवर्तन कर लेंगे। इस तरह सिगल्ज़ में भी अन्तिम गेंद में 10 अंक खेलने के बाद दिशा बदल जाती है।

दिशा में सर्विस अनियमतता (Out of orders of Ends of Service) यदि कोई खिलाड़ी समय पर दिशा परिवर्तन नहीं करते तो वे त्रुटि ज्ञात होते ही दिशाएं बदलेंगे, जब तक कि त्रुटि के बाद खेल समाप्त न हो चुका हो। तब त्रुटि की उपेक्षा कर दी जाएगी। किसी भी परिस्थिति में त्रुटि ज्ञात होने से पूर्व वे सब बनाए हुए अंक माने जाएंगे।

यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना सर्विस करता है तो त्रुटि ज्ञात होते ही खेल रोक दिया जाएगा और खेल उस खिलाड़ी की सर्विस या प्राप्ति द्वारा पुनः जारी किया जाएगा जिस खेल के प्रारम्भिक क्रम के अनुसार करनी चाहिए थी या फलांकन के 5 पर पहुंचने पर। यदि नियम 14 के अंतर्गत उस क्रम में परिवर्तन हो गया तो उसी क्रम के अनुसार उसे सर्विस करनी या प्राप्त करनी चाहिए। किसी भी परिस्थिति में त्रुटि होने से पूर्व के सब बनाये हुए अंक माने जाएंगे।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 8 समस्या का हल

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 8 समस्या का हल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 8 समस्या का हल

PSEB 10th Class Welcome Life Guide समस्या का हल Textbook Questions and Answers

भाग-1

प्रश्न 1.
अपनी नोटबुक में अपने डर और चिंताओं को लिखें जो आपको पूरा दिन परेशान करते हैं?
उत्तर-
(i) पहला डर यह है कि कुछ ऐसा होगा जिसकी उम्मीद नहीं है।
(ii) दूसरा डर यह है कि मैं कक्षा में पीछे नहीं हूँ। मैं हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान पर रहता हूँ और मुझे डर है कि कोई मुझे पार कर सकता है। इसलिए मैं हमेशा भय में रहता हूँ।
(iii) मुझे हमेशा डर लगता है कि मेरे बॉस मुझसे नाराज़ हो जाएंगे और मुझे नौकरी से निकाल देंगे।
इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक डर है जो उन्हें परेशान करता है।

भाग-2

सही/ग़लत

  1. असफलता के डर को कम करने के लिए कड़ी मेहनत करें, भय दूर हो जाएगा।
  2. कभी-कभी डर भी हमारे लिए फायदेमंद होता है।
  3. एक सैनिक स्वीकार करता है कि देश की सेवा उसके जीवन से अधिक मूल्यवान है। वह युद्ध के दौरान मौत से नहीं डरता। इस तरह डर के बारे में ज्यादा जानने से बचा जा सकता है।
  4. डर को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है।
  5. जब आप बड़े होते हैं, तो सभी डर अपने आप गायब हो जाते हैं।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. ग़लत,
  5. ग़लत।

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अभ्यास-II

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
हमारे जीवन में एकाग्रता का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
एकाग्रता का अर्थ है पूरी तरह से केंद्रित होना। किसी भी काम को करने के लिए एकाग्रता बहुत आवश्यक है। हम एकाग्रता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते हैं, भले ही वह अध्ययन करना हो, व्यवसाय करना हो, अनुसंधान कराना हो या कुछ भी करना हो। प्रत्येक काम को करने में एकाग्रता लगती है। चाहे हम एक काम करें या कई काम, हम एकाग्रता के बिना काम पूरा नहीं कर पाएंगे। इस तरह, हम कह सकते हैं कि हमारे जीवन में एकाग्रता का बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 2.
आप अपनी एकाग्रता को बढ़ाने के लिए क्या करेंगे?
उत्तर-
हम एकाग्रता के बिना जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए हमें अभ्यास करना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें नहीं सोचना चाहिए दूसरे क्या कर रहे हैं। प्रत्येक कार्य में विशेषज्ञता केवल अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। इस तरह अभ्यास के माध्यम से एकाग्रता प्राप्त की जा सकती है।

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सही/ग़लत

1. एकाग्रता बढ़ाने के लिए संतुलित आहार, सैर, गहरी नींद, ध्यान लगाना इत्यादि बहुत महत्त्वपूर्ण है।
2. एकाग्रता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
उत्तर-
1. सही,
2. ग़लत।

पाठ पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
बच्चो कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें क्रोधित नहीं होना चाहिए। यदि क्रोध आ भी जाए तो उसको नियंत्रित करके भुला देना चाहिए और अपने दोस्तों से मिल-जुल कर रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
क्या रॉबिन का छोटी सी बात पर क्रोधित होना जायज़ है?
उत्तर-
जी नहीं, उसका छोटी-छोटी बात पर क्रोधित होना जायज़ नहीं है बल्कि छोटी-छोटी बातों को महत्त्व ही नहीं देना चाहिए। इससे वैर बढ़ता है और प्यार कम होता है।

प्रश्न 3.
रॉबिन ने कहानी में किससे शिक्षा ली ?
उत्तर-
रॉबिन ने कहानी में कुत्तों से शिक्षा ली, जो पहले लड़ रहे थे परंतु बाद में रोटी खाने के बाद आपस में मिल-जुल कर खेलने लग पड़े।

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प्रश्न 4.
क्रोध पर नियंत्रित करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
क्रोध पर नियंत्रित करना इसलिए ज़रूरी होता है कि क्रोध से बहुत-से काम खराब हो जाते हैं, हम अपने मित्रों, रिश्तेदारों से दूर हो जाते हैं और सभी काम ग़लत कर देते हैं। यदि हम वही काम प्यार से करें तो वह सभी सही ढंग से हो जाएंगे और किसी भी बात का नुकसान नहीं होगा।

प्रश्न 5.
क्रोध या गिला-शिकवा करने पर आपके मन की स्थिति कैसी हो जाती है?
उत्तर-
क्रोध या गिला-शिकवा करने पर हमारे मन की स्थिति एक गले सड़े टमाटर सी हो जाती है जिसमें ईर्ष्या और द्वेष की बदबू आ रही होती है। इसका अर्थ यह है कि क्रोध से मन की स्थिति काफी खराब हो जाती है और व्यक्ति वह सब कुछ कर देता है जो उसे नहीं करना चाहिए। क्रोध करने पर किसी का लाभ नहीं होता बल्कि नुकसान होता है।

प्रश्न 6.
क्रोध की अवस्था में हम यह कभी भी नहीं सोचते कि क्रोध के बाद क्या होगा?
उत्तर-
यह सत्य है कि क्रोध की अवस्था में इस क्रोध के नतीजों की चिंता नहीं करते बल्कि क्रोध में ग़लत काम कर देते हैं जिसके परिणाम हमें बाद में झेलने पड़ते हैं।

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प्रश्न 7.
क्या आप इस प्रश्न का हल कर सकते हो कि कमरे में 5 आदमी हैं। बाहर से एक आदमी अंदर आ जाता है और पांच में से चार को मार देता है, अब कमरे में कितने आदमी हैं?
उत्तर-
6 आदमी हैं क्योंकि 5 के 5 आदमी कमरे में ही हैं और एक नया आदमी अंदर आया है, मरे हुए आदमी भी कमरे में ही हैं।

प्रश्न 8.
अवकाश के बाद आपको लगता है कि आपके बैग में एक पुस्तक गायब थी, आप क्या करेंगे?
उत्तर-
सबसे पहले, मैं यहां और वहां खोजने की कोशिश करूँगा, अन्य छात्रों से पुस्तक के बारे में पूलूंगा और यदि कोई सुराग नहीं मिला, तो मैं अपने शिक्षकों को मामले की रिपोर्ट करने के लिए कहूंगा।

प्रश्न 9.
आप देरी से स्कूल पहुंचते हैं। आप कक्षा में कैसे प्रवेश करेंगे?
उत्तर-
यदि मैं स्कूल में देर से पहुँचता हूँ तो मैं शिक्षक को सही कारण बताऊँगा कि मैं देर से क्यों आया हूँ। शिक्षक मेरी बात ज़रूर सुनेंगे और मुझे कक्षा में बैठने देंगे।

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Welcome Life Guide for Class 10 PSEB समस्या का हल Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
…………. एक मन की स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति बेचैन महसूस करता है और शांति से दूर चला जाता है।
(a) गुस्सा
(b) खुशी
(c) ईर्ष्या
(d) द्वेष।
उत्तर-
(a) गुस्सा।

प्रश्न 2.
क्रोधित होने से हमेशा ……… होता है।
(a) लाभ
(b) नुकसान
(c) ईर्ष्या
(d) शांति।
उत्तर-
(b) नुकसान।

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प्रश्न 3.
रॉबिन ने किससे सीखा?
(a) दोस्तों से
(b) कुत्तों से
(c) पड़ोसी से
(d) माता-पिता से।
उत्तर-
(b) कुत्तों से।

प्रश्न 4.
नियंत्रण रखने के लिए क्या किया जा सकता है?
(a) सकारात्मक दृष्टिकोण
(b) अच्छी किताबें पढ़ो
(c) गहरे श्वास लेकर दस तक गिनें
(d) ये सभी।
उत्तर-
(d) ये सभी।

प्रश्न 5.
……… भविष्य में किसी भी नुकसान की कल्पना है।
(a) डर
(b) शांति
(c) क्रोध
(d) ईर्ष्या।
उत्तर-
(a) डर।

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प्रश्न 6.
कई बार ……. भी बहुत फायदेमंद होता है।
(a) क्रोध
(b) डर
(c) शांति
(d) ईर्ष्या।
उत्तर-
(b) डर।

प्रश्न 7.
………….. कौरवों और पांडवों के शिक्षक थे।
(a) द्रोणाचार्य
(b) कृपाचार्य
(c) भीष्म पितामह
(d) धृतराष्ट्र।
उत्तर-
(a) द्रोणाचार्य।

(ख) खाली स्थान भरें

  1. ………… को बढ़ाया जा सकता है।
  2. एकाग्रता बढ़ाने के लिए ……………. लगाना बहुत ज़रूरी है।
  3. …………….. का अर्थ है पूरी तरह से किसी भी चीज़ के बारे में सोचना।
  4. …………….. हमें भविष्य के खतरे से सुचेत करता है।
  5. हमारे पास ………………. सोच होनी चाहिए।

उत्तर-

  1. एकाग्रता,
  2. ध्यान,
  3. एकाग्रता,
  4. डर,
  5. सकारात्मक।

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(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. डर भविष्य में किसी भी नुकसान की कल्पना है।
  2. क्रोध पर नियंत्रण रखने के लिए हमें अच्छी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए।
  3. वैसे भी एकाग्रता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
  4. क्रोध मन की शांति को नष्ट करता है।
  5. क्रोध के लाभ हैं।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही,
  5. ग़लत।

(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम 1 — कॉलम 2
(a) क्रोध — (i) ठीक से समझना
(b) गिला-शिकवा — (ii) मन की स्थिति
(c) ध्यान टिकाना — (iii) अच्छी किताबें पढ़ना
(d) एकाग्रता — (iv) शिकायत
(e) सकारात्मक सोच — (v) ध्यान देना।
उत्तर-
कॉलम 1 — कॉलम 2
(a) क्रोध — (ii) मन की स्थिति
(b) गिला-शिकवा — (iv) शिकायत
(c) ध्यान टिकाना — (i) ठीक से समझना
(d) एकाग्रता — (v) ध्यान देना
(e) सकारात्मक सोच — (iii) अच्छी किताबें पढ़ना

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रोध क्या है?
उत्तर-
क्रोध एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति बहुत घबरा जाता है और शांति से बहुत दूर चला जाता है।

प्रश्न 2.
क्रोधित होने से क्या हानि है?
उत्तर-
इस मामले में, वह ऐसा कर जाता है जिसका नुकसान उसे लंबे समय तक झेलना पड़ता है।

प्रश्न 3.
हम कब क्रोधित होते हैं?
उत्तर-
क्रोध उस समय आता है जब हम जो चाहते हैं वह हमें नहीं मिलता या हमारे अनुसार नहीं होता।

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प्रश्न 4.
रॉबिन में क्या समस्या थी?
उत्तर-
वह छोटे सी बात पर ही गुस्सा हो जाते थे।

प्रश्न 5.
रॉबिन ने कुत्तों से क्या सीखा?
उत्तर-
रॉबिन सीखते हैं कि हमें क्रोधित नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, हमें एक-दूसरे के साथ रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
किसी प्रति बुरी सोच का क्या नुकसान है?
उत्तर-
किसी का बुरा सोचना भी हमारे दिमाग को गंदा कर देगा जो केवल हमें नुकसान पहुंचाएगा।

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प्रश्न 7.
गुस्से पर नियंत्रण रखने का एक तरीका बताएं।
उत्तर-
अच्छी किताबें पढ़ें और सकारात्मक सोच रखें।

प्रश्न 8.
जब हम गुस्से को नियंत्रित करने के लिए तरीके लाग करते हैं तो क्या होता है?
उत्तर-
यह एक व्यक्ति में मानसिक और व्यावहारिक में परिवर्तन लाता है।

प्रश्न 9.
सहनशीलता और विनम्रता जैसे गुणों को अपनाने से क्या होता है?
उत्तर-
यह एक व्यक्ति में मानसिक विकार को दूर करते हैं और उसके व्यक्तित्व को विकसित करते हैं।

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प्रश्न 10.
डर क्या है?
उत्तर-
डर भविष्य में किसी भी नुकसान की कल्पना है।

प्रश्न 11.
यदि हमें किसी बात पर गुस्सा आता है तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-
हमें खुद को उस बात या घटना से दूर कर लेना चाहिए।

प्रश्न 12.
हम डर को कैसे दूर कर सकते हैं?
उत्तर-
इसका कारण समझकर हम डर पर काबू पा सकते हैं।

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प्रश्न 13.
एकाग्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
एकाग्रता हमारी मन की स्थिर स्थिति है जब हमारी सभी शक्तियाँ ध्यान की स्थिति में होती हैं।

प्रश्न 14.
एकाग्रता का क्या लाभ है?
उत्तर-
एकाग्रता से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 15.
एकाग्रता की कमी से क्या हानि होती है?
उत्तर-
व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता और असफल रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रोध की स्थिति पर चर्चा करें।
उत्तर-
क्रोध एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति बहुत घबराहट और बेचैनी महसूस करता है और शांति से बहुत दूर चला जाता है। इस मामले में वह ऐसा नुकसान झेलता है जो उसे लंबे समय तक झेलना पड़ता है।
वास्तव क्रोध उस समय आता है जब हमें वह नहीं मिलता जो हम चाहते हैं। ऐसी स्थिति में हम अपना आपा खो देते हैं और गलत काम करते हैं।

प्रश्न 2.
क्रोध को काबू में रखने के कुछ तरीके बताएं।
उत्तर-

  1. किसी भी चीज़ पर हमेशा एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।
  2. हमें अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए।
  3. एक बढ़िया शौक रखें और उस शौक में समय व्यतीत करें।
  4. जब आप क्रोधित होते हैं, तो गहरी सांस लें और एक से दस तक गिनें।
  5. जब आप क्रोधित होते हैं, तो धीरे-धीरे पानी पीएं।

प्रश्न 3.
क्रोध को नियंत्रित करने के बारे में पता चलने पर किसी व्यक्ति में क्या बदलाव आते हैं?
उत्तर-
जब किसी को क्रोध पर नियंत्रण रखने के बारे में पता चलता है, तो वह अपने मानसिक और व्यावहारिक संबंधी पहलुओं में कई बदलाव महसूस करता है। यदि हम विनम्रता और सहनशीलता जैसे गुणों को अपनाते हैं, तो हम अपनी बहुत-सी कमियों को दूर कर सकते हैं और अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं। इसके साथ, हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं, जो ज़िम्मेदार नागरिकों से भरा हो, जो खुशी से रह सकें और अपने जीवन का आनंद लें।

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प्रश्न 4.
डर पर एक छोटा सा नोट लिखें।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति को किसी-न-किसी भी चीज़ से डर लगता है। डर और कुछ नहीं, भविष्य में नुकसान होने की कल्पना है और यह कल्पना हर किसी के दिमाग में रहती है। लेकिन हमें इस डर को दूर करना होगा। कई बार इस डर से कई फायदे भी होते हैं। डर हमें भविष्य में आने वाले खतरे के बारे में जागरूक करता है। लेकिन हमें डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। डर को आसानी से खत्म किया जा सकता है अगर हम डर के कारण को ध्यान से समझें।

प्रश्न 5.
हमें अपनी समस्याओं का समाधान कैसे खोजना चाहिए?
उत्तर-

  1. सबसे पहले हमें अपनी समस्या के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए।
  2. तब हमें पूरे ध्यान, आत्मविश्वास और धैर्य के साथ उस समस्या का हल खोजने का प्रयास करना चाहिए।
  3. कभी-कभी किसी समस्या के कई समाधान पाए जाते हैं। इसलिए हमें सभी उपलब्ध समाधानों में से सबसे अच्छा समाधान चुनने की आवश्यकता है।
  4. समाधान खोजने के दौरान, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि समाधान हमारी आवश्यकताओं और संसाधनों के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 6.
एकाग्रता की शक्ति को एक उदाहरण से समझाइए।
उत्तर-
एकाग्रता का अर्थ एक चीज़ पर मन की सभी शक्तियों का ध्यान केंद्रित करना है। हमारे पास महाभारत में एकाग्रता की शक्ति का एक बड़ा उदाहरण है जब शिक्षक द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों की धनुर्विद्या की परीक्षा ली थी। उन्होंने एक हीरे की आँख के साथ एक पक्षी को दूर रखा और उन सभी से पूछा कि वे क्या देख रहे हैं। तब केवल अर्जुन ने उत्तर दिया कि वह केवल पक्षी की आँख देख रहा है। यह हमें अर्जुन की एकाग्रता की शक्ति के बारे में स्पष्ट रूप से बताता है और इसीलिए वह महान धनुर्धर बन जाता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-क्रोध पर काब करने के लिए मौलवी जी की कहानी पर चर्चा करें, जोकि अध्याय में दी गई है।
उत्तर-
पुराने समय में, बच्चे शिक्षा लेने के लिए मौलवी जी के पास जाते थे। मौलवी जी ने अपने छात्रों से पछा कि वे किसी से नाराज़ हैं या नहीं। कई छात्रों ने उसके सवाल का सकारात्मक जवाब दिया। तब मौलवी जी ने उन्हें अपने घर से एक टमाटर लाने को कहा। अगले दिन, जब छात्र टमाटर लेकर आए तो मौलवी जी ने उनको कहा कि जिस विद्यार्थी के लिए उनके दिल में गुस्सा है, उसका नाम कागज़ पर लिखकर और टमाटर पर लपेटकर अपने बैग में डालें। बहुत दिनों के बाद मौलवी जी ने अपने छात्रों को अपने बैग से टमाटर निकालने को कहा। जब टमाटर को बाहर लाया गया, तो वे पूरी तरह से सड़े हुए थे और बदबू आ रही थी। तब मौलवी जी ने अपने छात्रों से पूछा कि क्रोध हमें सड़े हुए टमाटर की तरह बनाता है जो बदबू देगा। हमारा मन भी सड़े हुए टमाटर जैसा हो जाएगा। इससे कोई फायदा नहीं है बल्कि इससे हमें नुकसान होता है। इस तरह बच्चों को एहसास हुआ कि मौलवी जी क्या कहना चाहते हैं और उन्होंने एक-दूसरे पर गुस्सा करना बंद कर दिया।

समस्या का हल PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • क्रोधित होना बहुत बुरी बात है। क्रोध एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति बहुत घबरा जाता है और शांति से बहुत दूर चला जाता है। इस स्थिति में वह ऐसा नुकसान झेलता है जो उसे लंबे समय तक झेलना
    पड़ता है।
  • हमें क्रोध उस समय आता है जब हमें वह वस्तु नहीं मिलती जो हम चाहते हैं। ऐसी स्थिति में हम अपना आपा खो देते हैं और गलत काम करते हैं।
  • क्रोध को कई तरह से नियंत्रित किया जा सकता है जैसे सकारात्मक सोच, अच्छी किताबें पढ़ना, सांस लेना इत्यादि।
    हम कुछ छोटे-छोटे उपाय करके अपनी मानसिक स्थिति को नियंत्रित कर सकते हैं।
  • यदि हम अपने मौजूद अवगुणों को दूर करें तो हम अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं। इस तरह, एक समाज का गठन किया जाएगा, जिसमें सद्गुणों से भरे लोग होंगे।
  • डर भी हमारे व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी चीज़ से डरता है। उदाहरण के लिए एक छात्र जो कक्षा में प्रथम आता है वह डरता है कि कोई दूसरा व्यक्ति पहले आ सकता है। इसलिए वह कई प्रयास करता है लेकिन उसका डर वैसा ही रहता है।
  • कई बार डर हमारे लिए फलदायी भी साबित होता है। हम उस डर के बारे में जानते हैं और कोई ऐसा काम नहीं करते कि डर हमारे ऊपर हावी हो जाए।
  • आपके अंदर छिपे डर को आसानी से हल किया जा सकता है। इसलिए समस्या को अच्छी तरह से समझना ज़रूरी है, इसके बारे में शांति से सोचें और जो भी सबसे अच्छा समाधान है उसे गले लगा लें।
  • एकाग्रता का अर्थ है पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना। जब हमारी मनःस्थिति एक स्थान पर रहती है, तो हम कह सकते हैं कि एकाग्रता की स्थिति आ गई है।