कुश्तियां : फ्री स्टाइल एवं ग्रीको रोमन (Wrestling : Free Style and Greeco Roman) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

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कुश्तियां : फ्री स्टाइल एवं ग्रीको रोमन (Wrestling : Free Style and Greeco Roman) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. कुश्ती के मैट का आकार = गोल
  2. मैट का साइज = 4.50 अर्ध व्यास
  3. घेरे का रंग = लाल
  4. प्लेटफार्म से मैट की ऊंचाई = 1.10 मीटर
  5. कार्नर के रंग = लाल और नीला
  6. कुश्ती का समय = 6 मिनट (2, 2, 2 मिनट के तीन हाफ)
  7. पुरुषों के कुल भार = 9, तीन आफ
  8. स्त्रियों के कुल भार = 7
  9. जुनियर के भार = 10
  10. अधिकारी = मैट लेयर मैच, 2 रैफरी, 3 जज
  11. मैट के आस-पास का खाली स्थान = 1.50 मीटर
  12. राऊण्ड के पश्चात् आराम का समय = 30 सैकेण्ड

फ्री स्टाइल एवं ग्रीको रोमन कुश्तियों की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of Free Style and Greeco Roman Wrestling

  1. कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने वाला प्रतियोगी पूर्ण रूप से स्वस्थ होना चाहिए। वह किसी छूत की बीमारी का शिकार नहीं होना चाहिए।
  2. कुश्तियों में भाग लेने वालों के नाखून अच्छी तरह से कटे होने चाहिएं। वे अपने शरीर पर तेल आदि चिकने पदार्थ नहीं मल सकते।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों के लिए 4.50 मीटर अर्द्ध-व्यास मैट का घेरा होता है।
  4. ओलम्पिक खेलों तथा विश्व चैम्पियनशिप मैचों के लिए मैट का आकार 4.50 मीटर अर्द्ध-व्यास मैट का घेरा होता है।
  5. कुश्ती का समय 6 मिनट होता है।
  6. कुश्ती करते समय विरोधी खिलाड़ी के बाल, मांस, कान या गुप्त अंगों को खींचना फाऊल है।
  7. मैट का मुखिया ‘विनर कलर’ को ऊंचा उठाकर विजेता की घोषणा करता है।
  8. यदि रैफरी किसी खिलाड़ी को तीन बार चेतावनी दे दे तो उसे हारा हुआ माना जाता है।
  9. कुश्ती लड़ने वाले खिलाड़ी की दाढ़ी कटी हुई या शेव ताज़ी होनी चाहिए।
  10. कुश्ती लड़ने वाला कड़ा या अंगूठी नहीं पहन सकता।
  11. कुश्तियों के मध्य किसी भी अधिकारी को बदला नहीं जा सकता है।

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प्रश्न
स्कूल स्तर पर विभिन्न भारों के कुश्ती मुकाबलों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्कूल स्तर पर प्रतियोगिताएं (Competitions at School Level)—
स्कूल स्तर पर निम्नलिखित भारों के आधार पर प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं—
प्रत्येक प्रतियोगी प्रतियोगिता में अपने शरीर के भार अनुरूप वाले वर्ग में भाग ले सकता है।
आयुवर्ग
(Age Group)

  1. स्कूली लड़के = 14-15 वर्ष
  2. कैडेट = 16-17 वर्ष
  3. जूनियर = 18-20 वर्ष
  4. सीनियर = 19-20 वर्ष

20 वर्ष से अधिक आयु के लिए
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17 वर्ष से 20 की आयु के लिए
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15 वर्ष से 16 वर्ष की आयु के लिए
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13 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के लिए सब-जूनियर लड़के
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प्रत्येक प्रतियोगी प्रतियोगिता में अपने शरीर के भार अनुसार वाले वर्ग में भाग ले सकता है।
फ्री स्टाइल कुश्तियां (Free Style Wrestling) —फ्री स्टाइल कुश्तियों में शरीर के किसी भी भाग से पकड़ा जा सकता है और कोई भी तकनीक लगाई जा सकती है परन्तु बाल, कान और लंगोटा पकड़ना मना है।

ग्रीको रोमन कुश्तियां (Greeco Roman Wrestling) ग्रीको रोमन कुश्तियों में टांगों का प्रयोग वर्जित है। शरीर के ऊपरी भाग (Waist Line) से ऊपर किसी भी प्रकार की तकनीक लगाई जा सकती है परन्तु इन कुश्तियों में भी बाल, कान और लंगोटा आदि पकड़ना मना है। शेष सभी नियम फ्री स्टाइल वाले ही होते हैं।

कुश्तियां : फ्री स्टाइल एवं ग्रीको रोमन (Wrestling : Free Style and Greeco Roman) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने वालों के लिए भार तोलने सम्बन्धित नियमों और उनके युगल बनाने की विधि का वर्णन करो।
उत्तर-
भार तोलना (Weighing)—

  1. प्रतियोगी निर्वस्त्र होकर भार देंगे। तोल से पूर्व उनका डॉक्टरी परीक्षण किया जाएगा, किसी छूत के रोग से ग्रस्त प्रतियोगी को डॉक्टर कुश्ती में भाग लेने से रोक देगा।
  2. खिलाड़ियों की शारीरिक दशा सन्तोषजनक होनी चाहिए। उनके नाखून खूब अच्छी तरह कटे होने चाहिएं।
  3. भार तोलने का काम पहले दिन कुश्तियां आरम्भ होने से कम-से-कम एक दिन पहले आरम्भ होगा।
  4. आगामी दिनों में भार तोलने का काम कम-से-कम दो घण्टे पहले आरम्भ होगा और पहली कुश्ती से एक घण्टा पहले समाप्त हो जाएगा।
  5. यदि जोड़े बनाते समय एक स्थान के दो-दो खिलाड़ी जोड़े में आ जाएं तो वे पहले राऊण्ड में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ेंगे।

पोशाक (Costume)—प्रतियोगी अखाड़े में एक टुकड़े वाली बनियान, जांघिया या जर्सी (लाल या नीली) में उतरेंगे और उसके नीचे वे एक लंगोटी या पेटी पहनेंगे। खिलाड़ी स्पोर्ट जूते पहनेंगे जो टखनों से अच्छी तरह बंधे होंगे। वे ऐड़ी वाले या कीलों से जड़े तले वाले जूते नहीं पहन सकते। प्रतियोगियों की दाढ़ी ताज़ी मुंडी हो या कई महीनों की बढ़ी हुई हो। निम्नलिखित बातें वर्जित हैं—

  1. बिना किसी चोट के कलाई, भुजाओं या टखनों पर पट्टियां लपेटना।
  2. कलाई घड़ी बांधना
  3. शरीर पर किसी चिकनी चीज़ का मलना।
  4. पसीने से तर होकर अखाड़े में उतरना।
  5. अंगूठी, हार, कड़ा आदि पहनना।

मैट (Mat)-मैट का आकार 4.50 मीटर अर्द्ध व्यास के गोल घेरा का होगा जिसके बाहर 50 सें०मी० का गोल घेरा लाल रंग की रेखा से अंकित होगा। दुर्घटना से बचने के लिए मैट के इर्द-गिर्द 2-2 मीटर जगह छोड़नी चाहिए। मैट को 1.10 मीटर ऊंचे प्लेटफार्म पर बिछाया जाएगा। मैट के कोने लाल या नीले रंग से चिन्हित होंगे तथा मैट के मध्य में वृत्त अंकित किया जाएगा।
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कुश्ती का आरम्भ और अवधि
(Start and Duration of Wrestling Bout)

  1. प्रत्येक कुश्ती का कुल समय 5 मिनट होता है।
  2. कुश्ती उस समय तक जारी रहेगी जब तक कोई एक खिलाड़ी गिर नहीं जाता या फिर यह 5 मिनट तक जारी रहेगी।

यदि कोई खिलाड़ी अपना नाम पुकारे जाने के पश्चात् 5 मिनटों के अन्दर-अन्दर मैट पर नहीं पहुंचता तो उसे गिरा हुआ माना जाएगा और मुकाबले से बाहर निकाला हुआ माना जाएगा।

कुश्ती की समाप्ति
(End of Bout)
घंटी बजने पर कुश्ती समाप्त हो जाएगी। रैफरी की सीटी पर भी कुश्ती रुक जाती है, घंटी बजने और रैफरी की सीटी के बीच कोई भी कार्य उचित नहीं माना जाता है। मैट का मुखिया विनिंग कलर दिखा कर विजेता की सूचना देता है। रैफरी विजेता का बाजू खड़ा करके फैसला बताता है। यदि कुश्ती बराबर हो तो तीन मिनट का समय और दिया जाता है: कुश्ती कभी भी बरबर नहीं रहती। यदि आठ मिनट में अंक बराबर रहे तो मैट चेयरमैन और जज ठीक लड़ने वाले पहलवान को विजेता करार दे देते हैं अथवा जिस पहलवान को कम चेतावनी दी गई हो उसे विजयी घोषित किया जाता है।

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प्रश्न
कुश्ती में फाऊल पकड़े कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर-
फाऊल पकड़ें
(Foul Holds)
निम्नलिखित फाऊल पकड़े हैं—

  1. बालों या मांस, कान, पोशाक इत्यादि को खींचना।
  2. अंगुलियों को मरोड़ना, लड़ाई-झगड़ा करना, धक्का देना।
  3. इस तरह पकड़ करनी कि वह विरोधी खिलाड़ी के लिए जान का भय बन जाए या यह भय हो कि विरोधी खिलाड़ी के अंगों पर चोट लग जाएगी अथवा उसे कष्ट दे, पीड़ा करें ताकि दूसरा खिलाड़ी विवश होकर खेल छोड़ जाए।
  4. विरोधी खिलाड़ी के पांवों पर अपने पांव रखना।
  5. विरोधी खिलाड़ी के चेहरे (आंखों की भवों से लेकर ठोड़ी तक) को स्पर्श करना।
  6. गले से पकड़ना।
  7. खड़ी स्थिति में पकड़ करनी।
  8. विरोधी को उठाना जबकि वह ‘ब्रिज़-पोजीशन’ में हो और फिर उसे मैट पर गिराना।
  9. सिर की ओर से धक्का देकर ब्रिज को तोड़ना।
  10. विरोधी खिलाड़ी के बाजू को 90° के कोण से अधिक मोड़ देना।
  11. दोनों हाथों से सिर को पकड़ना।
  12. कोहनी या घुटने को विरोधी खिलाड़ी के पेट में धकेलना।
  13. विरोधी के बाजू को पीछे की ओर मोड़ना और दबाना।
  14. किसी तरह से सिर को काबू करना।
  15. शरीर को या सिर को टांगों द्वारा कैंची मारना।
  16. मैट को पकड़े रखना।
  17. एक-दूसरे से बातें करनी और हानिकारक आक्रमण करना या गिराना।

चेतावनियां (Precautions) निम्नलिखित स्थिति में चेतावनी दी जा सकती है—
(क) स्थायी रुकावटें
(ख) फाऊल पकड़ें
(ग) कुश्ती समय अनुशासनहीनता
(घ) नियमों का उल्लंघन।

  1. ये चेतावनियां खेल के समय किए गए दूसरे फाऊलों के साथ गिनी जाएंगी।
  2. तीन सावधानियों अथवा चेतावनियों के बाद बिना कारण बताए खिलाड़ी को . पराजित घोषित किया जा सकता है।
  3. किसी बड़े उल्लंघन करने के दोष में किसी खिलाड़ी को खेल से निकाला जा सकता है।

स्थायी रुकावटें(Permanent Obstacles)—

  1. पेट के बल लेटे रहना।
  2. जान-बूझ कर मैट से बाहर जाना।
  3. विरोधी के दोनों हाथ पकड़े रखना ताकि वह खेल न सके।
  4. मैट के बाहर जाने की दशा में खिलाड़ी को चेतावनी दी जा सकती है।

कुश्तियों में रुकावट (Obstacles in Bout)
नाक में खून बहने, सिर के बाल गिरने या किसी अन्य कारण से अधिक-से-अधिक पांच मिनटों के लिए खेल को रोका जा सकता है। खेल की यह रुकावट एक या दो अवधियों में अधिक-से-अधिक पांच मिनट के लिए प्रत्येक खिलाड़ी के लिए हो सकती है।

प्रश्न
कुश्ती में स्कोर की गणना किस प्रकार होती है और निर्णय किस प्रकार दिया जाता है ?
उत्तर-
स्कोर (Score)

  1. एक अंक (प्वाइंट)-
    • उस खिलाड़ी को जो विरोधी खिलाड़ी को मैट पर गिराता है और उस पर नियन्त्रण स्थापित कर लेता है।
    • उस खिलाड़ी को जोकि नीचे से निकल कर ऊपर आ जाता है और विरोधी खिलाड़ी पर नियन्त्रण स्थापित करता है।
    • जो खिलाड़ी ठीक पकड़ लगाता है और विरोधी खिलाड़ी के सिर और कन्धों को मैट पर नहीं लगने देता।
    • एक चेतावनी का विरोधी के लिए एक प्वाऊंट होगा।
  2. दो अंक (प्वाइंट)-
    • उस खिलाड़ी को, जो ठीक पकड़ करता है और विरोधी खिलाड़ी को कुछ समय के लिए अपने अधीन रखता है (5 सैकिण्ड से कम समय के लिए)।
    • उस खिलाड़ी को, जिसका विरोधी शीघ्र ही गिर जाता है या लुढ़कता हुआ गिर जाता है।
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  3. तीन अंक (प्वाइंट)-
    • जो खिलाड़ी अपने विरोधी को खतरे में रखता है (कंधे मैट से पांच सैकिण्ड तक 90° से कम कोण बनाते हों।)
    • कई बार लुढ़कते हुए गिर जाने की स्थिति या 5 सैकिण्ड निरन्तर तीन की संख्या तक ब्रिज की स्थिति।

निर्णय (Decision)-जब विरोधी खिलाड़ियों का अन्तर एक अंक (प्वाइंट) से कम हो तो मैच बराबर रहता है, यदि कोई भी अंक न बना हुआ हो या अंक बराबर हों तो भी कुश्ती बराबर हो जाएगी। यदि एक से अधिक नम्बरों का अन्तर हो तो अधिक नम्बरों वाला खिलाड़ी विजयी होगा।
गिरना (Fall)

  1. पूरी तरह गिर जाने के लिए खिलाड़ी के कंधे और मैट का सम्पर्क ही पर्याप्त है।
  2. मैट के किनारे पर ठीक गिर जाने के लिए इतना ही काफ़ी है कि गिरने पर सिर और कंधे मैट को छू जाएं।
  3. यदि जज कोई आपत्ति न करे तो गिर जाना ठीक माना जाता है।

अंकों (प्वाइंटों) पर जीतना—
यदि 5 मिनटों में फाऊल न हो तो फैसला अंकों (प्लाइंटों) पर किया जाता हो, अधिक अंक प्राप्त करने वाला खिलाड़ी विजयी होगा।

फाइनल के लिए नियम
(Rules of Final)

  1. फाइनल दो खिलाड़ियों में होगा।
  2. जब तीन खिलाड़ी 6 पैनेल्टी अंक से फाइनल में पहुंच जाएं तो प्राप्त किए अंक समाप्त हो जाते हैं।
  3. यदि पहलवान पहले मुकाबला कर चुके हो तो फिर कुश्ती नहीं होती।
  4. फाइनल में खेलने वाले तीन खिलाड़ियों के पैनल्टी अंकों की गणना अवश्य ध्यान में रखी जाएगी।
  5. यदि तीन में से प्रत्येक खिलाड़ी ने पहले ही 6 पैनल्टी अंक प्राप्त कर लिए हों तो वे पहले लिखे अनुसार अंक खो देंगे।
  6. यदि फाइनल में पहुंचे तीनों खिलाड़ियों ने पहले ही 6 अंक लिए हों तो उसे तीसरा स्थान प्राप्त होगा, शेष दो प्रथम स्थिति के लिए कुश्ती करेंगे और पहले पैनल्टी प्वाइंट खो देते हैं।
  7. विजयी वह होगा जो अन्तिम तीनों कुश्तियों के समय कम-से-कम पैनल्टी अंक प्राप्त करें।
  8. यदि फाइनल के खिलाड़ियों के पैनल्टी अंक बराबर हों तो उनकी स्थिति इस तरह होगी। कुश्ती लड़ने पर इन्कार करने वाले पहलवान को काशन दिया जाता है और विरोधी पहलवान को एक अंक।

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PSEB 10th Class Physical Education Practical कुश्तियां : फ्री स्टाइल एवं ग्रीको रोमन (Wrestling : Free Style and Greeco Roman)

प्रश्न 1.
कुश्तियों के भारों का वर्णन करो।
उत्तर-
कुश्तियों के भार निम्नलिखित हैं—
WRESTLING WEIGHT CATEGORIES WOMEN

MEN WOMEN JUNIOR
50 kg 44 kg 42 kg
54 kg 48 kg 46 kg
58 kg 52 kg 50 kg
63 kg 56 kg 54 kg
69 kg 61 kg 58 kg
76 kg 66 kg 63 kg
85 kg +66 kg 69 kg
97 kg 76 kg
130 kg 85 kg
100 kg

Men = Total of Nine Categories
Women = Total of Seven Categories
Junior = Total of Ten Categories

प्रश्न 2.
कुश्तियों का समय बताइए।
उत्तर-
कुश्तियों का समय 6 मिनट होता है।

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प्रश्न 3.
कुश्तियों के मैट की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
कुश्तियों के मैट 4.50 अर्द्धव्यास मीटर के होने चाहिएं। ओलिम्पिक खेलों में विश्व चैम्पियनशिप मैचों में मैट का आकार 4.50 अर्द्धव्यास मीटर होता है।

प्रश्न 4.
रैफ़री एक खिलाड़ी को किनती बार चेतावनी दे सकता है ?
उत्तर-
यदि रैफ़री किसी खिलाड़ी को तीन बारी चेतावनी दे दे तो उसको हारा हुआ माना जाता है।

प्रश्न 5.
कुश्ती लड़ने वाले खिलाड़ी के लिए किस तरह का पहरावा होना चाहिए ?
उत्तर-
कुश्ती लड़ने वाले खिलाड़ी के लिए एक पीस का लाल या पीले रंग का पटका होना चाहिए। पोशाक शरीर के साथ चिपकी हुई होनी चाहिए। खिलाड़ी एड़ी और कीलों वाले बूट नहीं पहन सकता।

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प्रश्न 6.
कुश्ती में हार-जीत का निर्णय किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
कुश्तियों में गिर जाने पर या अधिक अंक ले जाने वाले को विजयी करार दिया जाता है।

प्रश्न 7.
कश्तियों में स्कोर कैसे गिने जाते हैं ?
उत्तर-

  1. प्वाईंट स्कोर (Point Score)—यह उस खिलाड़ी को दिया जाता है – अपने विरोधी खिलाड़ी को मैट पर गिराकर उस पर अपना पूरा अधिकार कर लेता है। उस खिलाड़ी को भी जो दूसरे खिलाड़ी के नीचे से निकल कर ऊपर आकर उस पर अधिक प्राप्त कर लेता है।
    उस खिलाड़ी को भी जो कि ठीक पकड़ करता है, सावधानी (Caution) का एक प्वाईंट विरोधी को दिया जाता है।
  2. Points-उस खिलाड़ी को जो अपने विरोधी को ठीक पकड़ द्वारा कुछ समय (पांच सैकिंड) के लिए विकट स्थिति में रखता है।
  3. Points-उस खिलाड़ी को जो अपने विरोधी को (मैट के साथ) कंधों से 90° से कम कोण बनाते हुए, विकट स्थिति (In danger) में पांच सैंकिंड तक रखता है।

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प्रश्न 8.
कुश्तियों का निर्णय किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
निर्णय (Decision) जब दो विरोधी खिलाड़ियों के स्कोर का अन्तर एक प्वाईंट से कम हो तो कुश्ती को बराबर घोषित (Declare a draw) किया जाता है।
जब एक बार या एक से अधिक प्वाईंट (Points) का अन्तर हो तो अधिक प्वाईंट प्राप्त करने वाले खिलाड़ी को विजयी घोषित किया जाएगा।
यदि स्कोर शीट पर कोई भी प्वाईंट दर्ज न हो या दोनों खिलाड़ियों के प्वाईंट बराबर हों तो कुश्ती को बराबर घोषित किया जाएगा।

प्रश्न 9.
कुश्तियों के अधिकारियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
कुश्तियों में जितनी भी प्रतियोगिताएं होती हैं, उनमें तीन अधिकारी होते हैं।

  1. मैट चेयरमैन (Mat Chairman)
  2. रैफरी (Referee)
  3. जज (Judge)

कुश्ती के मध्य किसी भी अधिकारी को बदला नहीं जा सकता है।

प्रश्न 10.
कुश्तियों के भार तोलने सम्बन्धी कुछ नियम बताओ।
उत्तर-

  1. भार तोलने का काम कुश्तियों के मुकाबले के आरम्भ होने के चार घण्टे पहले शुरू किया जाएगा।
  2. प्रत्येक प्रतियोगी (Competitor) अपने बराबर भार वाले के साथ कुश्ती लड़ सकता है।
  3. प्रतियोगी (Competitor) किसी छूत की बीमारी का रोगी नहीं होना चाहिए। वह पूरी तरह स्वस्थ होना चाहिए।
  4. प्रतियोगी (Competitors) नंगे तोले जाएंगे।
  5. उनके नाखून (Nails) छोटे काटे हुए होने चाहिएं। यह भार तोलते समय चैक किए जाएंगे।

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प्रश्न 11.
कुश्तियों में फाऊल पकड़ें कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर-
फाऊल पकड़ें (Foul Holds)—

  1. बाल, मांस, कान और गुप्त अंगों को खींचना।
  2. अंगुलियां मरोड़ना, गल दबाना और जीवन के लिए घातक दूसरी तरह की पकड़ें।
  3. अपने विरोधी के बाजू को 90° के कोण से अधिक मोड़ना।
  4. कैंची (Scissors grip) मार कर सिर या शरीर को पकड़ना।
  5. विरोधी के जांघिए (कपड़े) को पकड़ना।
  6. कुश्ती करने वालों का आपस में बातचीत करना।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Home Science Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन

PSEB 7th Class Home Science Guide भोजन समूह और सन्तुलित भोजन Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
अनाज से कौन-सा पोषक तत्त्व प्रमुख रूप से प्राप्त होता है?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट।

प्रश्न 2.
दालों में सबसे अधिक कौन-सा पौष्टिक तत्त्व पाया जाता है?
उत्तर-
प्रोटीन।

प्रश्न 3.
फलों से कौन-से पौष्टिक तत्त्व प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
फलों से विटामिन तथा खनिज लवण तथा मीठे फलों से कार्बोहाइड्रेट।

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प्रश्न 4.
दूध में कौन-से पोषक तत्त्व नहीं पाये जाते?
उत्तर-
दूध में लोहा और विटामिन ‘सी’ तत्त्व नहीं पाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
सूखे मेवों में से हमें कौन-से मुख्य पौष्टिक तत्त्व मिलते हैं?
उत्तर-
प्रोटीन, लोहा तथा विटामिन ‘बी’।

प्रश्न 6.
हरी मिर्च से कौन-सा पौष्टिक तत्त्व मिलता है?
उत्तर-
विटामिन ‘सी’।

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प्रश्न 7.
सोयाबीन किस पौष्टिक तत्त्व का मुख्य साधन है?
उत्तर-
प्रोटीन का।

प्रश्न 8.
गुड़, शक्कर और चीनी से कौन-सा पोषक तत्व प्राप्त होता है?
उत्तर-
ये हमें कार्बोहाइड्रेट देते हैं।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन को कौन-कौन से भोजन समूहों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-
भोजन के सात समूह हैं-

  1. कई प्रकार के अनाज,
  2. कई प्रकार की दालें और सूखे मेवे,
  3. भांति-भांति की सब्जियाँ,
  4. ताजे फल,
  5. दूध और दूध से बनी वस्तुएं,
  6. मांस समूह,
  7. गुड़, चीनी, तेल और तेलों के बीज।

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प्रश्न 2.
सन्तुलित भोजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
विभिन्न भोज्य पदाथों के मिश्रण से बना वह आहार जो हमारे शरीर को सभी पौष्टिक तत्त्व हमारी शारीरिक आवश्यकतानुसार, उचित मात्रा में प्रदान करता है, सन्तुलित भोजन (Balanced food) कहलाता है।

प्रश्न 3.
ताजी सब्जियाँ और फल हमारे लिए क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर-
ताजी सब्जियाँ-इस समूह में पत्ते वाली और बिना पत्ते वाली सभी सब्जियाँ शामिल हैं। इसमें हमें विटामिन और खनिज लवण मिलते हैं। हरे मटर, लोबिये की फलियों आदि से काफ़ी मात्रा में प्रोटीन मिलती है। फल-फलों में ग्लूकोज़ होता है जो बड़ी आसानी से पच जाता है। फलों में प्रोटीन और वसा (चिकनाई) नहीं होती, परन्तु विटामिन ‘ए’, ‘सी’, और लोहा काफ़ी मात्रा में होता है। कुछ मात्रा में विटामिन ‘बी’ भी मिलते हैं।

प्रश्न 4.
सोयाबीन का दूध और दही कैसे बनाते हैं?
उत्तर-
सोयाबीन का दूध बनाने के लिए उसे 3-4 घण्टे तक पानी में भिगोते हैं। अब धूप में सुखाकर उसका छिलका उतार लेते हैं। अब रातभर पानी में भिगोकर रगड़ते हैं जिससे छिलका साफ़ हो जाए। इसके बाद इसे 10 मिनट तक सोडियम बाइकार्बोनेट के गरम घोल में गिो देते हैं। इस मिश्रण को 15 मिनट तक उबालकर ठण्डा करते हैं। अब इसे छान लेते और इस प्रकार सोयाबीन का दूध तैयार हो जाता है। इसका दही बनाने के लिए दूध में थोड़ी चीनी या शहद मिलाकर और थोड़ा खट्टा मिलाकर दूध को जमा देते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 5.
चावल को पकाते समय इनके पौष्टिक तत्त्वों को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है?
उत्तर-
चावलों को पकाते समय इसके पौष्टिक तत्त्वों को मॉड़ नहीं निकालकर सुरक्षित रखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
सबसे बढ़िया दाल कौन-सी है और क्यों?
उत्तर-
सबसे बढ़िया दाल सोयाबीन की है, क्योंकि इसमें प्रोटीन और विटामिन ‘बी’ की अधिक मात्रा होती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक साधारण काम करने वाले व्यक्ति को कितने भोजन की ज़रूरत होती है ?
उत्तर-
साधारण काम करने वाले व्यक्ति का भोजन –
PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन 1

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन समूह और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 2.
नीचे लिखे भोजनों से हमें क्या-क्या मिलता है दूध, मीट, गेहूँ, सोयाबीन।
उत्तर-
दूध से-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा (चिकनाई), विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘डी’, चूना और फॉस्फोरस।
मीट से-प्रोटीन, लोहा, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, ‘ए’ और ‘बी’।
गेहूँ से- प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण। – सोयाबीन-प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, लोहा, कैल्शियम, विटामिन ‘बी’ आदि।

प्रश्न 3.
क्या गेहूँ सम्पूर्ण आहार है ? इसे सम्पूर्ण आहार कैसे बनाया जा सकता है।
उत्तर-
हाँ, गेहूँ सम्पूर्ण भोजन है क्योंकि इसमें अन्य अनाज़ों की अपेक्षा प्रोटीन अधिक और अच्छी किस्म का होता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन और खनिज लवण भी होते हैं। अन्य अनाजों की तरह इसमें अधिकतर कार्बोहाइड्रेट होते हैं। क्योंकि ज़्यादातर इसके पौष्टिक तत्त्व छिलके के पास ही होते हैं, इसलिए आटा अगर मशीन से बारीक पीसा जाए या मैदा बना लिया जाए तो पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं और मैदा में केवल कार्बोहाइड्रेट ही रह जाते हैं। इसे सम्पूर्ण भोजन बनाने के लिए दालें, दूध, सब्जियाँ और दूसरे आहारों का भी इस्तेमाल किया जाता है।

प्रश्न 4.
गेहूँ और मक्की के पौष्टिक तत्त्वों की तुलना करो।
उत्तर-
गेहूँ के छिलके के पास अधिक पौष्टिक तत्व होते हैं यदि इसे बारीक पीस दिया जाए तो इसके अत्यधिक पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसलिए गेहूँ और मक्का के आटे को बारीक नहीं पीसना चाहिए।

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प्रश्न 5.
अपने लिए एक दिन के सन्तुलित भोजन की सूची बनाओ।
उत्तर-
अपने लिए एक दिन के सन्तुलित भोजन की सूची –

मांसाहारी नाश्ता शाकाहारी नाश्ता
आमलेट पौष्टिक परांठे
दूध दही
मक्खन वाले टोस्ट चाय
अमरूद
मांसाहारी दोपहर का खाना शाकाहारी दोपहर का खाना
दाल दाल
आलू गोभी आलू फलियां
रायता रायता
फुलके फुलके
सन्तरा सन्तरा
शाम की चाय शाम की चाय
चाय चाय
मैदे के मटर बिस्कुट
रात का खाना रात का खाना
पालक मीट सरसों का साग
चावल मक्की की रोटी
सलाद सलाद
कोई मीठी चीज़ खीर।

Home Science Guide for Class 7 PSEB भोजन समूह और सन्तुलित भोजन Important Questions and Answers

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हरी साग-सब्जियों में कौन-कौन से पोषक तत्त्व मिलते हैं?
उत्तर-
कैल्शियम, लोहा, विटामिन ‘ए’, विटामिन ‘सी’ तथा अन्य खनिज लवण।

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प्रश्न 2.
किन व्यक्तियों के लिए भोजन में हरी स! जयों का समावेश अति आवश्यक है?
उत्तर-
बच्चों, गर्भवती तथा स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के लिए।

प्रश्न 3.
विटामिन ‘ए’ किन फलों से अधिक मिलता है?
उत्तर-
पपीता, आम तथा दूसरे पीले रंग के फलों से।

प्रश्न 4.
आहार में मसालों का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मसाले भोजन को सुगन्धित, आकर्षक, स्वादिष्ट तथा सुपाच्य बनाते हैं।

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प्रश्न 5.
कितने प्रतिशत लोग कार्बोहाइड्रेट्स की पूर्ति अनाज से करते हैं?
उत्तर-
लगभग 70 से 80% लोग।

प्रश्न 6.
सोयाबीन व मूंगफली के दूध में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व होते हैं?
उत्तर-
प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, लोहा, कैल्शियम, विटामिन ‘बी’ आदि।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्तुओं से प्राप्त होने वाले भोज्य-पदार्थों के नाम बताओ।
उत्तर-
जन्तुओं से प्राप्त होने वाले भोज्य-पदार्थ निम्नलिखित हैं

  1. दूध तथा दूध से बनी वस्तुएँ-दूध से बनी वस्तुआ में प्रमुख हैं-क्रीम, दही, मक्खन, मट्ठा, घी, पनीर।
  2. मांस।
  3. मछली।
  4. अण्डे।
  5. जन्तुओं से प्राप्त होने वाले वसा एवं तेल।

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प्रश्न 2.
मांस, मछली तथा अण्डों से मिलने वाले भोजन की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
मांस, मछली, मुर्गा आदि में उत्तम किस्म की प्रोटीन व विटामिन ‘बी’ उचित मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें विटामिन ‘ए’ नहीं होता। मछलियों में कैल्शियम होता है।
अण्डे में विटामिन ‘सी’ को छोड़कर सभी पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
मूंगफली का दूध किस प्रकार तैयार किया जाता है?
उत्तर-
मूंगफली का दूध बनाने के लिए उत्तम किस्म की मूंगफली का प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले मूंगफली का छिलका उतार कर दानों को तीन घण्टे के लिए पानी में भिगो देते हैं। अब उन्हें सिल पर या मिक्सी में पीस कर लुगदी बना लेते हैं। किलोग्राम लुगदी में 30 कप पानी मिलाकर उसमें 1/2 कप चूने का स्वच्छ पानी मिला देते हैं। घोल को छानकर 25 मिनट तक उबालते हैं। इसमें चीनी मिलाते हैं। दूध तैयार हो जाता है।

प्रश्न 4.
फलों के रस उपयोगी पेय हैं, क्यों?
उत्तर-

  1. इनमें प्रोटीन, शर्करा, खनिज लवण तथा विटामिन आदि पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
  2. ये मानव शरीर की गर्मी शान्त करते हैं।
  3. ये प्यास बुझाने के साथ-साथ मस्तिष्क को शीतल एवं बलिष्ठ बनाते हैं।
  4. ये स्वादिष्ट तथा पौष्टिक पेय होते हैं।

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प्रश्न 5.
चाय का मानव शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, क्यों?
उत्तर-
चाय के अधिक सेवन से निम्न हानिकारक प्रभाव होते हैं

  1. दिल की धड़कन तेज़ होकर रक्त-प्रवाह की गति तेज़ हो जाती है।
  2. पसीना अधिक बनता है।
  3. टैनिक अम्ल पाचन क्रिया को कमजोर बनाता है तथा कब्ज की शिकायत रहने लगती है।
  4. अनिद्रा रोग हो जाता है।
  5. भूख नहीं लगती।

प्रश्न 6.
हरी शाक-सब्जियों व जड़ों वाली सब्जियों की विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
हरी शाक सब्जियों जैसे-पालक, बथुआ, चौलाई, धनिया और दूसरी पत्तेदार सब्जियाँ प्रत्येक व्यक्ति के लिए ज़रूरी हैं। इन सबसे हमें कैल्शियम, लोहा, विटामिन “ए” और “सी” तथा अन्य खनिज लवण मिलते हैं। गर्भवती तथा स्तनपान करवाने वाली महिलाओं तथा बच्चों के लिए भोजन में इन हरी सब्जियों का होना जरूरी होता है।

प्रश्न 7.
वनस्पति दूध की क्या विशेषता है?
उत्तर-
वनस्पति दूध-यह वनस्पति पदार्थ सोयाबीन व मूंगफली से प्राप्त होता है। इनसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, लोहा, कैल्शियम, विटामिन “बी” इत्यादि सभी प्रकार के पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 8.
मक्की में पौष्टिक तत्वों के बारे में बताएं।
उत्तर-
इसमें प्रोटीन, चिकनाई, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए होता है। प्रोटीन अच्छी किस्म का नहीं है तथा विटामिन ‘बी’ कम होता है।

प्रश्न 9.
गेहूँ और मक्की के पौष्टिक तत्त्वों की तुलना करो।
उत्तर-

गेहूँ में पौष्टिक तत्त्व मक्की में पौष्टिक तत्त्व
गेहूँ में प्रोटीन अन्न अनाजों से अच्छी किस्म का होता है। इसमें खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, विटामिन ‘बी’ होते । इसमें पौष्टिक तत्त्व गेहूँ जितने ही होते हैं। इसमें गेहूँ से अधिक चिकनाई (वसा) और साथ में विटामिन ‘ए’ भी होता है। लेकिन इसकी प्रोटीन अच्छी किस्म की नहीं होती, न ही इसमें विटामिन ‘बी’ होती है।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
उच्च स्तर का कार्बोहाइड्रेट किस अनाज से प्राप्त होता है?
उत्तर-
चावल से।

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प्रश्न 2.
रॉगी में कौन-सा खनिज लवण पाया जाता ह?
उत्तर-
कैल्शियम।।

प्रश्न 3.
दालों को अनाज के साथ मिलाकर खाने से क्या लाभ होता है?
उत्तर-
भोजन की पौष्टिकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 4.
अंकरित दालें किस विटामिन का उत्तम स्त्रोत होती हैं?
उत्तर-
विटामिन ‘सी’ का।

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प्रश्न 5.
जड़ों वाली सब्जियों में मुख्य रूप से कौन-सा पोषक तत्त्व प्राप्त होता है?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट।

प्रश्न 6.
विटामिन ‘सी’ का मुख्य स्रोत क्या है?
उत्तर-
आंवला।

प्रश्न 7.
भोजन के कितने समूह हैं?
उत्तर-
सात।

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प्रश्न 8.
गेहूँ ……………. आहार है।
उत्तर-
सम्पूर्ण।

प्रश्न 9.
जड़ वाली सब्जियों में ……… अधिक मिलता है।
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स।

प्रश्न 10.
चीनी से क्या मिलता है?
उत्तर-
ऊर्जा (कार्बोज)।

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प्रश्न 11.
मक्की में कौन-सा विटामिन कम होता है?
उत्तर-
विटामिन ‘बी’।

भोजन समूह और सन्तुलित भोजन PSEB 7th Class Home Science Notes

  • हमारा शरीर कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, गन्धक, फॉस्फोरस, चूना, लोहा तथा अन्य कई रासायनिक तत्त्वों से मिलकर बना है।
  • गेहूँ सभी अनाजों से उत्तम माना जाता है।
  • भोजन में विटामिन ‘बी’ वाले और कोई खाद्य-पदार्थ शामिल न हों तो बेरी बेरी नामक रोग होने का भय रहता है।
  • गेहूँ एक सम्पूर्ण आहार नहीं है। इसलिए इसके साथ-साथ दालें, दूध, सब्जियाँ और दूसरे आहारों का भी प्रयोग करना चाहिए।
  • छिलके वाली और साबुत दालों का प्रयोग अधिक करना चाहिए क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
  • जड़ वाली सब्जियाँ-इनमें अधिक कार्बोहाइड्रेट मिलते हैं। ताजी सब्ज़ियाँ-इनमें हमें विटामिन और खनिज लवण मिलते हैं।
  • पत्ते वाली सब्जियाँ- इनमें लोहा, सोडियम, फॉस्फोरस, चूना, आयोडीन और गन्धक होता है। जितने गहरे रंग के पत्ते हों उतना ही ज़्यादा विटामिन ‘ए’ होता है।
  • आँवला, नींबू और टमाटर में विटामिन
  • ‘सी’ काफ़ी अधिक होता है। सभी फलों की अपेक्षा अमरूद में विटामिन ‘सी’ ज़्यादा होता है।
  • पपीता में शक्कर और विटामिन ‘ए’ काफ़ी मात्रा में होते हैं।
  • शाकाहारी लोगों को दूध, दही और पनीर का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
  • दूध को फटा कर पनीर तैयार किया जाता है।
  • भारत में अधिकतर भेड़ों और बकरों का मीट खाया जाता है।
  • मांस दो प्रकार के होते हैं-(i) पट्टे का मांस, (ii) खास अंगों का मांस जैसे कलेजी, गुर्दा, मगज आदि।
  • सन्तुलित भोजन उसे कहते हैं जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज की ठीक मात्रा शामिल हो।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा लगान सम्बन्धी नीतियों का भारत की अर्थ-व्यवस्था तथा समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
भारत मे ब्रिटिश राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा लगान सम्बन्धी नीतियों का भारत के सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र पर बहुत प्रभाव पड़ा। भारत जो कि कृषि प्रधान देश था, कई बार अकाल का शिकार हुआ। किसानों की दशा दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगी। ब्रिटिश सरकार ने कृषक तथा कृषि की ओर कोई ध्यान न दिया। देश में जो थोड़े बहुत कुटीर-उद्योग थे, उन्हें भी इंग्लैंड की औद्योगिक उन्नति के लिए नष्ट कर दिया गया। ब्रिटिश राज्य में भारत आर्थिक रूप से ऐसा पिछड़ा कि आज तक भी नहीं सम्भल सका। भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर ब्रिटिश राज्य का प्रभाव निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है

I. कृषि पर प्रभाव –

1. भूमि का स्वामित्व-अंग्रेज़ों से पूर्व भारत में भूमि आजीविका कमाने का साधन था । इसे न तो खरीदा जा सकता था और न बेचा जा सकता था। भूमि पर कृषि करने वाले उपज का एक निश्चित भाग भूमि-कर के रूप में सरकार को दे दिया करते थे, परन्तु अंग्रेजों ने इस आदर्श प्रणाली को समाप्त कर दिया। लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भूमि का स्थायी बन्दोबस्त किया। इसके अनुसार भूमि सदा के लिए ज़मींदारों को दे दी गई। उन्हें सरकारी खज़ानों में निश्चित कर जमा करना होता था। वे यह ज़मीन अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को दे सकते थे। इस तरह भूमि पर कृषि करने वालों का दर्जा एक नौकर के समान हो गया। स्वामी सेवक बन गए और भूमि-कर उगाहने वाले सेवक स्वामी बन गए।

2. कृषकों का शोषण- अंग्रेजी शासन के अधीन भूमि की पट्टेदारी की तीन विधियां आरम्भ की गईं-स्थायी प्रबन्ध, रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध तथा महलवाड़ी प्रबन्ध । इन तीनों विधियों के अन्तर्गत किसानों को ऐसे अनेक कष्ट सहने पड़े। भूमि का स्वामी किसानों को जब चाहे भूमि से बेदखल कर सकता था। इस नियम का सहारा लेकर वह किसानों से मनमानी रकम ऐंठने लगा। भूमि की सारी अतिरिक्त उपज वह स्वयं हड़प जाते थे। किसानों के पास इतना अनाज भी नहीं बचा था कि उन्हें पेट भर भोजन मिल सके। रैयतवाड़ी प्रथा के अनुसार तो किसानों को और भी अधिक कष्ट उठाने पड़े। किसान भूमि के स्वामी तो मान लिए गए, परन्तु कर की दर इतनी अधिक थी कि इनके लिए कर चुकाना भी कठिन था। कर चुकाने के लिए किसान साहूकारों से ऋण ले लिया करते थे और सदा के लिए साहूकार के चंगुल में फंस जाते थे। वास्तव में वह किसान जो भूस्वामी हुआ करता था, अंग्रेज़ी राज्य की छाया में मजदूर बन कर रह गया।

3. कृषि का पिछड़ापन- अंग्रेज़ी शासन के अधीन कृषक के साथ-साथ कृषि की दशा भी बिगड़ने लगी। कृषक पर भारी कर लगा दिए गए। ज़मींदार उससे बड़ी निर्दयता से रकम ऐंठता था। ज़मीदार स्वयं तो शहरों में रहते थे । उनके मध्यस्थ किसानों की उपज का अधिकतर भाग ले जाते थे। ज़मींदार की दिलचस्पी पैसा कमाने में थी। वह भूमि सुधारने में विश्वास नहीं रखता था। इधर किसान दिन-प्रतिदिन निर्धन तथा निर्बल होता जा रहा था। अत: वह भूमि में धन तथा श्रम दोनों ही नहीं लगा पा रहा था। उसे एक और भी हानि हुई। इंग्लैंड का मशीनी माल आ जाने से ग्रामीण उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए। अतः खाली समय में वह इन उद्योगों द्वारा जो पैसे कमाया करता था, अब बन्द हो गया। अब मुकद्दमेबाज़ी उसके जीवन का अंग बन गई । इन मुकद्दमों पर उसका समय तथा धन दोनों ही नष्ट होने लगे और कृषि पिछड़ने लगी। संक्षेप में, अंग्रेज़ों की भूराजनीति ने कृषक के उत्साह को बड़ी ठेस पहुंचाई जो कृषि के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

II. उद्योगों पर प्रभाव-

1. भारतीय सूती कपड़े के उद्योग का विनाश- अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से पूर्व भारतीय सूती कपड़ा उद्योग उन्नति की चरम सीमा पर पंहुचा हुआ था। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैंड में बड़ी मांग थी। इंग्लैंड की स्त्रियां भारत के बेलबूटेदार वस्त्रों को बहुत पसन्द करती थीं। कम्पनी ने आरम्भिक अवस्था में कपड़े का निर्यात करके खूब पैसा कमाया। परन्तु 1760 तक इंग्लैंड ने ऐसे कानून पास कर दिए जिनके अनुसार रंगे कपड़े पहनने की मनाही कर दी गई। इंग्लैंड की एक महिला को केवल इसलिए 200 पौंड जुर्माना किया गया था क्योंकि उसके पास विदेशी रूमाल पाया गया था। इंग्लैंड का व्यापारी तथा औद्योगिक वर्ग कम्पनी की व्यापारिक नीति की निन्दा करने लगा। विवश होकर कम्पनी को वे विशेषज्ञ इंग्लैंड वापस भेजने पड़े जो भारतीय जुलाहों को अंग्रेजों की मांगों तथा रुचियों से परिचित करवाते थे। इंग्लैंड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। इन सब बातों के परिणामस्वरूप भारत के सूती वस्त्र उद्योग को भारी क्षति पहुंची।

2. निर्धनता, बेकारी तथा अकाल- अंग्रेजी राज्य की स्थापना से भारत में निर्धनता का अध्याय आरम्भ हुआ। किसान भारी करों के बोझ तले दबने लगे। उनके गाढ़े पसीने की कमाई ज़मींदार, साहूकार तथा सरकार लूटने लगी। उन्हें पेट भर रोटी नसीब नहीं होती थी। इधर आर्थिक शोषण, करों की ऊंची दर तथा भारतीय धन की निकासी के कारण भी निर्धनता बढ़ने लगी। गरीबी की चरम सीमा उस समय देखने को मिली जब भारत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अकालों की लपेट में आ गया। उत्तर प्रदेश के अकाल (1860-61 ई०) में 2 लाख लोग मरे। पूर्वी प्रान्तों में फैले अकाल (1865-66 ई०) में 20 लाख लोगों की जानें गईं। दस लाख लोग केवल उड़ीसा राज्य में मरे। राजपूताना की रियासतों की जनसंख्या का तीसरा या चौथा भाग अकाल की भेंट चढ़ गया। 1876-78 ई० के अकाल ने तो त्राहि-त्राहि मचा दी। इस अकाल के कारण महाराष्ट्र के आठ लाख, मद्रास के तैंतीस लाख तथा मैसूर के लगभग 20 % लोग मृत्यु का ग्रास बने। ब्रिटिश राज्य में इन भयानक-दृश्यों के साथ-साथ बेकारी का दौर भी जारी रहा। अनेक कारीगर बेकार थे। व्यापारियों का व्यापार नष्ट हो चुका था। लाखों किसान अपनी ज़मीनें छोड़ कर भाग गए थे।

3. ग्रामीण उद्योगों का विनाश- अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से अंग्रेजी माल भारतीय गांवों में पहुंचने लगा। यह माल बढ़िया तथा सस्ता होता था। परिणामस्वरूप ग्रामीण उद्योगों को बड़ा धक्का लगा। ग्रामीण कारीगरों के हाथों से ग्राहक निकलने लगे और वे (कारीगर) अपना धंधा छोड़ काश्तकार के रूप में मजदूरी करने लगे। 19वीं शताब्दी के पहले 50 वर्षों में ऐसे दृश्य आम देखे जाते थे कि कैसे एक जुलाहा अपनी खड्डी छोड़कर हल धारण कर रहा है। यह परिवर्तन उन लोगों के लिए कितना दुःखदायी होगा जिनकी पीढ़ियां इन उद्योगों को अर्पित हो गई थीं। श्री ताराचन्द लिखते हैं, “उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यहां के गांवों के श्रमिक समाज में उजड़े हुए किसानों के बाद बुनकरों तथा गांव के अन्य कारीगरों का स्थान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था।” यह सब अंग्रेजी शासन का ही प्रभाव था।

III. व्यापार पर प्रभाव-

अंग्रेज़ी राज्य स्थापित होने से कृषि तथा उद्योगों के साथ-साथ भारतीय व्यापार को भी हानि पहुंची। कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर पूरा नियन्त्रण कर लिया। भारतीय तथा विदेशी व्यापारियों को विधिवत् रूप से व्यापार करने से रोक दिया गया। सारा व्यापार कम्पनी के हाथ में आ गया। कम्पनी के बड़े-बड़े कर्मचारियों ने अपने अलग व्यापारिक संस्थान खोल लिए और उनका देश के उत्पादित माल पर पूर्ण अधिकार हो गया। इस व्यापार का सारा लाभ कम्पनी के कर्मचारियों की जेब में जाता था। कम्पनी के बड़े-बड़े कर्मचारी मालामाल हो गए थे। गवर्नर-जनरल तक भी खूब हाथ रंगते थे। इस व्यापारिक धांधली के कारण न केवल भारतीयों को आन्तरिक व्यापार से बाहर ही निकाल दिया गया,बल्कि उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों के साथ छल भी किया गया। उन्हें सस्ते दामों पर कच्चा माल बेच कर महंगे दामों पर तैयार माल खरीदने के लिए बाध्य किया । व्यापार के इसी एकाधिकारपूर्ण नियम के कारण बंगाल अकाल की लपेट में आ गया। भारतीय माल पर करों की दर बढ़ा दी गई ताकि कोई विदेशी या भारतीय व्यापारी भारतीय माल का व्यापार न कर सके। इस प्रकार अंग्रेज़ी शासन के अधीन भारतीय व्यापार बिल्कुल नष्ट हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
इंग्लैंड में नई विचारधारा के संदर्भ में भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन सामाजिक सुधार तथा शिक्षा के विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
इंग्लैंड में नवीन विचारधारा के कारण यह विश्वास दृढ़ हो गया कि भारत के परम्परावादी सामाजिक ढांचे में परिवर्तन होना चाहिए। इस संदर्भ में भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन हुए और शिक्षा में पाश्चात्य विचारों का समावेश हुआ। इस तरह देश के सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में नवीन परिवर्तन हुए जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. सती प्रथा का अन्त- सती-प्रथा हिन्दू समाज में प्रचलित एक बहुत बुरी प्रथा थी। हिन्दू स्त्रियां पति की मृत्यु पर उसके साथ ही जीवित जल जाया करती थीं। राजा राममोहन राय ने इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनकी प्रार्थना पर विलियम बैंटिंक ने इस कुप्रथा का अन्त करने के लिए 1829 ई० में एक कानून बनाया। इस प्रकार सती-प्रथा को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया गया।

2. बाल हत्या पर रोक-कुछ हिन्दू जातियां अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अपने बच्चों को बलि चढ़ा दिया करती थीं। 1802 ई० में वैल्जेली ने इस प्रथा के विरुद्ध एक कानून पास किया। इसके अनुसार बाल-हत्या पर रोक लगा दी गई।

3. विधवा-विवाह- भारत में विधवाओं की दशा बड़ी खराब थी। उन्हें पुनः विवाह की आज्ञा नहीं थी। अतः अनेक युवा विधवाओं को दुःख और कठिनाई भरा जीवन व्यतीत करना पड़ता था । उनकी दुर्दशा को देखते हुए राजा राममोहन राय, महात्मा फूले, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर तथा महर्षि कर्वे ने विधवा-विवाह के पक्ष में जोरदार आवाज़ उठाई। फलस्वरूप 1856 में विधवा-विवाह वैध घोषित कर दिया गया।

4. दास प्रथा का अन्त- भारत में ज़मींदारी प्रथा के कारण किसान बहुत ही निर्धन हो गए थे। इन किसानों को दास बना कर ब्रिटिश उपनिवेशों में भेजा जाने लगा। इसके अतिरिक्त कुछ अंग्रेज़ भी भारतीयों से दासों जैसा व्यवहार करते थे और उनसे बेगार लेते थे। 1843 ई० में कानून द्वारा इस प्रथा का अन्त कर दिया गया। .

5. स्त्री शिक्षा का विकास- स्त्री-शिक्षा के लिए भारतीय महापुरुषों ने विशेष प्रयत्न किए। उनके प्रयत्नों से स्त्रियां कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने लगीं। फलस्वरूप देश में शिक्षित स्त्रियों की संख्या बढ़ने लगी।

6. जाति बन्धन में ढील- अंग्रेजी शिक्षा तथा ईसाई पादरियों के प्रचार के कारण भारत में जाति बन्धन टूटने लगे। ईसाई पादरी ऊंच-नीच की परवाह नहीं करते थे। इससे प्रभावित होकर निम्न जातियों के लोग ईसाई धर्म स्वीकार करने लगे। यह बात हिन्दू समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गई। अतः उस समय के समाज-सुधारकों ने जाति-प्रथा की निन्दा की। परिणामस्वरूप जाति बन्धन काफ़ी ढीले हो गए।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा का विकास- भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विस्तार की वास्तविक कहानी 1813 ई० से आरम्भ होती है। इससे पहले कम्पनी ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया। यदि कुछ कार्य हुए भी तो वे ईसाई पादरियों की ओर से हुए, परन्तु 1813 ई० में शिक्षा का विकास विधिवत् रूप से होने लगा। 1813 ई० में चार्टर एक्ट पास हुआ। इसमें कहा गया कि भारतीयों की शिक्षा पर हर वर्ष एक लाख रुपया खर्च किया जाएगा। यह भी कहा गया कि 50 वर्ष के अन्दर -अन्दर पूरे भारत में शिक्षा के प्रसार का कार्य सुचारू रूप से होने लगेगा। देश में कुछ स्कूल तथा कॉलेज भी खोले गए। परन्तु शीघ्र ही यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि यह धन किस शिक्षा पर व्यय किया जाए-भारतीय भाषाओं की शिक्षा पर अथवा अंग्रेज़ी शिक्षा पर।

शिक्षा के माध्यम का विवाद धीरे-धीरे गम्भीर रूप धारण कर गया। कुछ लोग अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे जबकि दूसरे लोग देशी भाषाओं को ही माध्यम बनाने के पक्ष में थे। आखिर अंग्रेजी माध्यम का पक्ष भारी रहा और इसे ही स्वीकार कर लिया गया। 1854 ई० में चार्ल्स वुड समिति बनाई गई। इस समिति ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए ये सुझाव दिए-

(i) भारत में लन्दन विश्वविद्यालय के ढंग पर विश्वविद्यालय खोले जाएं।
(ii) विश्वविद्यालय के अधीन कॉलेज खोले जाएं।

(iii) प्रत्येक प्रान्त में एक शिक्षा-विभाग खोला जाए। वुड समिति की इन सिफ़ारिशों के कारण शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। 1882 ई० में हण्टर आयोग की नियुक्ति की गई। इस आयोग ने बड़े अच्छे सुझाव दिए। सरकार ने हण्टर आयोग की सभी सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया। देश में नए-नए कॉलेज तथा स्कूल खुलने लगे। 1882 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया। विश्वविद्यालयों के क्षेत्र नियत कर दिए गए। अध्यापकों आदि की नियुक्ति का काम भी विश्वविद्यालयों को सौंप दिया गया। लॉर्ड कर्जन के इस एक्ट की भारतीयों ने बड़ी निन्दा की। 1917 ई० में भारत सरकार ने शिक्षा सुधार के लिए एक और आयोग नियुक्त किया जिसके अध्यक्ष मि० सैडलर थे। इस आयोग ने ये सिफ़ारिशें की-

(i) विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियन्त्रण कम कर दिया जाए।
(ii) माध्यमिक तथा इन्टरमीडियेट शिक्षा विद्यालय के नियन्त्रण में नहीं रहनी चाहिए।

(iii) कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होना चाहिए। इस प्रकार इस आयोग की सिफ़ारिशों के कारण देश में अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। मैसूर, उस्मानिया, अलीगढ़, दिल्ली, नागपुर आदि नगरों में विश्वविद्यालय खोले गए। इसके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार के लिए और कई पग उठाए गए। 1928 ई० में हरयेग कमेटी नियुक्त की गई। 1944 ई० में सार्जेन्ट योजना पर अमल किया गया। इस प्रकार भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार होने लगा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
भारत में पहली तार लाइन कब स्थापित की गई?
उत्तर-
1833 ई० में।

प्रश्न 2.
जी० टी० रोड का आधुनिक नाम क्या है?
उत्तर-
शेरशाह सूरी मार्ग।

प्रश्न 3.
भारत में कॉफी के बाग़ कब लगाने शुरू हुए?
उत्तर-
1860 ई० के पश्चात्।

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प्रश्न 4.
कलकत्ता मदरसा किस अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल ने स्थापित किया?
उत्तर-
लार्ड हेस्टिग्ज ने।

प्रश्न 5.
सती प्रथा को किसने अवैध घोषित किया?
उत्तर-
लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) लाहौर में गवर्नमेंट कॉलेज की स्थापना …………. ई० में हुई।
(ii) भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा स्थापित स्कूलों में …………. ढंग की शिक्षा दी जाती थी।
(iii) बंगाल में स्थायी बंदोबस्त …………….. में लागू हुआ।
(iv) सती प्रथा के विरुद्ध कानून ………………. के प्रभाव अधीन बना।
(v) भारत में पहली आधुनिक जहाज़रानी कम्पनी ………….. ई० में खोली गई।
उत्तर-
(i) 1864
(ii) अंग्रेजी
(iii) 1793
(iv) ईसाई मिशनरियों
(v) 1919.

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3. सही/गलत कथन

(i) पंजाब यूनिवर्सिटी 1888 में बनी। — (√)
(ii) बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लॉर्ड कार्नवालिस ने लागू किया। — (√)
(iii) भारत में पहली रेलवे लाइन की लंबाई 121 मील थी। — (×)
(iv) इंग्लैंड से बहुत-सा धन भारत लाया गया। — (×)
(v) भारत में सीमेंट तथा शीशा बनाने के उद्योग 1930 के बाद विकसित हुए। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
1791 में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई
(A) कलकत्ता में
(B) बनारस में
(C) बम्बई में
(D) मद्रास में।
उत्तर-
(B) बनारस में

प्रश्न (ii)
1857 में किस नगर में विश्वविद्यालय स्थापित हुआ?
(A) मद्रास
(B) बंबई
(C) कलकत्ता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iii)
निम्न स्थान भूमि के स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत नहीं आता था-
(A) मद्रास
(B) उड़ीसा
(C) उत्तरी सरकार
(D) बनारस।
उत्तर-
(A) मद्रास

प्रश्न (iv)
1857 ई० में इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किया गया-
(A) रिवाड़ी में
(B) दिल्ली में
(C) रुड़की में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) रुड़की में

प्रश्न (v)
अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया-
(A) 1935
(B) 1835
(C) 1857
(D) 1891.
उत्तर-
(B) 1835

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति किन दो वर्षों के मध्य प्रफुल्लित हुई ?
उत्तर-
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति सन् 1760 से 1830 के मध्य प्रफुल्लित हुई।

प्रश्न 2.
बर्तानिया के उद्योगपतियों को भारत में बिना कर व्यापार करने की छूट किस वर्ष में मिली तथा इस वर्ष कितने लाख-पौंड मूल्य का अंग्रेजी मशीनी कपड़ा भारत में आया ।
उत्तर-
बर्तानिया के उद्योगपतियों को भारत में बिना कर व्यापार करने की छूट 1813 में मिली। उस वर्ष 11 लाख पौंड का अंग्रेजी मशीनी कपडा भारत में आया।

प्रश्न 3.
1856 में बर्तानिया की मिलों में बना हुआ किस मूल्य का कपड़ा भारत में आया तथा किस मूल्य का कपड़ा भारत से बाहर भेजा गया ?
उत्तर-
1856 में साठ लाख पौंड का कपड़ा भारत आया और 8 लाख पौंड मूल्य का कपड़ा बाहर भेजा गया।

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प्रश्न 4.
1856 में कितने मूल्य की कपास तथा अनाज भारत से बाहर भेजे गए ?
उत्तर-
1856 में 43 लाख पौंड की कपास भारत से बाहर भेजी गई। 29 लाख पौंड का अनाज भी भारत से बाहर भेजा गया।

प्रश्न 5.
भारत में पहली कपड़ा मिल कब, किसने और कहां लगवाई? .
उत्तर-
कपड़े की पहली मिल मुम्बई में कावासजी नानाबाई ने 1853 में स्थापित की।

प्रश्न 6.
1880 तक भारत में कितनी कपड़ा मिलें थीं तथा उनमें कितने मजदूर काम करते थे ?
उत्तर-
1880 तक भारत में 56 कपड़ा मिलें थीं । इनमें 43 हजार मजदूर काम करते थे ।

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प्रश्न 7.
पटसन (जूट) के सबसे अधिक कारखाने भारत के किस प्रान्त में थे तथा बीसवीं सदी के शुरू में इनकी गिनती कितनी हो गई ?
उत्तर-
पटसन (जूट) के सब से अधिक कारखाने बंगाल प्रान्त में थे। बीसवीं सदी के आरम्भ में इन की गिनती 36 हो गई।

प्रश्न 8.
बीसवीं सदी में कौन से चार प्रकार के उद्योग भारत में विकसित हुए ?
उत्तर-
बीसवीं सदी में भारत में ऊनी कपड़ा बनाने का उद्योग, कागज़ बनाने का उद्योग, चीनी बनाने का उद्योग तथा सूती धागा बनाने का उद्योग विकसित हुए।

प्रश्न 9.
1930 के बाद विकसित होने वाले दो उद्योगों के नाम बताएं।
उत्तर-
1930 के पश्चात् भारत में सीमेंट तथा शीशा बनाने के उद्योग विकसित हुए।

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प्रश्न 10.
भारत में नील की खेती कब शुरू हुई तथा यह किसके हाथों में थी ?
उत्तर-
भारत में नील की खेती 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आरम्भ हुई। यह विदेशियों के हाथों में थी।

प्रश्न 11.
1825 में भारत में नील की खेती के अधीन कुल क्षेत्र कितना था तथा 1915 में नील की खेती लगभग कितने क्षेत्र में सीमित रह गई थी एवं इसके कम होने का क्या कारण था ?
उत्तर-
1825 में 35 लाख बीघा भूमि नील उत्पादन के अन्तर्गत थी और 1915 में नील की खेती तीन चार लाख बीघे तक सीमित रह गई। इस का कारण भूमि की कमी थी।

प्रश्न 12.
अंग्रेज़ी कम्पनी का चीन की चाय का एकाधिकार कब समाप्त हुआ तथा ‘आसाम टी कम्पनी’ कब बनाई गई ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी कम्पनी का चीन की चाय का एकाधिकार 1833 में समाप्त हो गया। 1839 में आसाम टी कम्पनी बनाई गई।

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प्रश्न 13.
1920 तक कितनी भूमि चाय की खेती के अधीन थी तथा कितने मूल्य की चाय भारत से बाहर भेजी जाती थी ?
उत्तर-
1920 तक 7 लाख एकड़ भूमि चाय की खेती के अधीन थी। उस समय तक 34 करोड़ पौंड मूल्य की चाय भारत से बाहर भेजी जाती थी ।

प्रश्न 14.
कॉफी के बाग कब लगने शुरू हुए तथा किस देश की कॉफी मण्डी में आने से भारत को नुकसान हुआ ?
उत्तर-
कॉफी के बाग 1860 के पश्चात् लगने आरम्भ हुए। ब्राजील की कॉफी मण्डी में आने से भारत को नुकसान पहुंचा।

प्रश्न 15.
भारत में पहली तार लाइन कब और किन दो नगरों के बीच स्थापित की गई ?
उत्तर-
पहली तार लाइन कलकत्ता (कोलकाता) से आगरा के बीच 1853 में स्थापित की गई ।

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प्रश्न 16.
किस गवर्नर जनरल ने एक ही मूल्य का डाक टिकट शुरू किया तथा इसका मूल्य क्या था ?
उत्तर-
लॉर्ड डल्हौजी ने एक ही मूल्य का डाक टिकट आरम्भ किया था। इस टिकट का मूल्य आधा आना था।

प्रश्न 17.
जी० टी० रोड किन दो शहरों को जोड़ती थी तथा इसका आधुनिक नाम क्या है ?
उत्तर-
जी० टी० रोड पेशावर (पाकिस्तान) तथा कलकत्ता (कोलकाता) को जोड़ती थी। इस का आधुनिक नाम शेरशाह सूरी मार्ग है ।

प्रश्न 18.
जी० टी० रोड किन वर्षों में पक्की की गई तथा 1947 में भारत में सड़कों की कुल लम्बाई कितनी थी ?
उत्तर-
जी० टी० रोड 1839 से लेकर 1864 तक के समय के बीच पक्की की गई। 1947 में भारत में सड़कों की कुल लम्बाई 2,96,000 मील थी ।

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प्रश्न 19.
भारत में पहली आधुनिक जहाजरानी कम्पनी कब खोली गई ?
उत्तर-
भारत में पहली आधुनिक जहाजरानी कम्पनी 1919 में खोली गई ।

प्रश्न 20.
भारत में हवाई यातायात की ओर कब ध्यान देना आरम्भ किया गया ? इससे पहले हवाई जहाजों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर-
भारत में हवाई यायायात की ओर 1930 के बाद ध्यान दिया गया । इससे पहले हवाई जहाज़ों का प्रयोग अधिकतर डाक तथा सामान ले जाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 21.
भारत में पहली रेलवे लाइन किन दो शहरों के बीच एवं कब बनी तथा इसकी लम्बाई कितनी थी ?
उत्तर-
भारत में पहली रेलवे लाइन 1853 में मुम्बई तथा थाना के बीच बनी इसकी लम्बाई 21 मील थी ।।

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प्रश्न 22.
1947 में भारत में रेलवे लाइन की कुल लम्बाई कितनी थी तथा रेलवे के कारण किन दो प्रकार के माल के निर्यात तथा आयात में तेजी से वृद्धि हुई ?
उत्तर-
1947 में भारत में रेलवे लाइन की कुल लम्बाई 40,000 मील थी। रेलों के कारण कच्चे माल के निर्यात तथा मशीनी चीजों के आयात में तेजी से वृद्धि हुई ।

प्रश्न 23.
किस वर्ष में भारत से धन की निकासी शुरू हुई तथा दादा भाई नौरोजी के अनुसार देश से हर वर्ष कितनी धन राशि इंग्लैंड भेजी जाती थी ?
उत्तर-
1757 से धन की निकासी आरम्भ हो गई। दादा भाई नौरोजी के अनुसार प्रति वर्ष 3-4 करोड़ पौंड की राशि भारत से इंग्लैंड भेजी जाती थी ।

प्रश्न 24.
स्थायी बन्दोबस्त किसने शुरू किया तथा यह कब और किस वर्ग के साथ किया गया ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त लार्ड कार्नवालिस ने 1793 में शुरू किया। यह बन्दोबस्त मध्यवर्ती ज़मींदार वर्ग के साथ किया गया।

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प्रश्न 25.
स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत इलाकों के नाम बताएं।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत उड़ीसा, उत्तरी सरकार तथा बनारस थे।

प्रश्न 26.
रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध किन दो प्रान्तों में तथा किस वर्ग पर लागू किया गया तथा उससे सम्बन्धित अंग्रेज़ अफसर का नाम क्या था?
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध मद्रास तथा महाराष्ट्र में किसानों पर लागू किया गया। इसे अंग्रेज अफसर मुनरो ने लागू किया था।

प्रश्न 27.
महलवाड़ी प्रबन्ध कौन से तीन क्षेत्रों में लागू किया गया तथा इसके अन्तर्गत लगान उगाहने की इकाई कौन-सी थी ?
उत्तर-
महलवाड़ी प्रबन्ध वर्तमान उत्तर प्रदेश में लागू किया गया । इसमें लगान उगाहने की इकाई ‘महल’ थी।

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प्रश्न 28.
अंग्रेजों के अधीन लगान प्रबन्ध की सभी व्यवस्थाओं से भारत के किस वर्ग को विशेष लाभ हुआ ?
उत्तर-
अंग्रेजों के अधीन लगान प्रबन्ध की सभी व्यवस्थाओं से भारत के ज़मींदार वर्ग को विशेष लाभ हुआ ।

प्रश्न 29.
1905 तक सरकार ने रेलों तथा सिंचाई के विकास पर कितना धन खर्च किया था ?
उत्तर-
1905 तक सरकार ने रेलों तथा सिंचाई के विकास पर 360 करोड़ रुपये खर्च किये।

प्रश्न 30.
1951 तक भारत में किन दो प्रकार के हल प्रचलित थे तथा इनमें से किसका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता था ?
उत्तर-
1951 तक भारत में लकड़ी तथा लोहे के फाले वाले हल प्रचलित थे। इन में से लोहे के फाले वाले हलों का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता था ।

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प्रश्न 31.
1939 में भारत में कितने कृषि कॉलेज थे तथा उनमें विद्यार्थियों की कुल संख्या कितनी थी ?
उत्तर-
1939 में भारत में केवल छः कृषि कॉलेज थे। उनमें विद्यार्थियों की कुल संख्या 1300 के लगभग थी।

प्रश्न 32.
भारत में ईसाई मिशनरियों को अपने केन्द्र स्थापित करने की छूट कब मिली तथा इनके स्कूल-कॉलेज में किस ढंग की शिक्षा दी जाती थी ?
उत्तर-
1813 में ईसाई मिशनरियों को अपने केन्द्र स्थापित करने की छूट मिल गई। इनके स्कूल-कॉलेज में अंग्रेज़ी ढंग की शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 33.
मिशनरियों के प्रभाव अधीन कौन-सा कानून बना ?
उत्तर-
मिशनरियों के प्रभाव अधीन सती प्रथा का अन्त करने का कानून बना ।।

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प्रश्न 34.
भारत में सती प्रथा को कब और किस गवर्नर-जनरल ने गैर कानूनी घोषित किया ?
उत्तर-
भारत में सती प्रथा को 1829 में गवर्नर-जनरल विलियम बैंटिंक ने गैर कानूनी घोषित किया।

प्रश्न 35.
सती प्रथा का प्रचलन कौन से वर्ग तथा जातियों में था ?
उत्तर-
सती प्रथा का प्रचलन राजघरानों, उच्च वर्गों अथवा ब्राह्मणों में था ।

प्रश्न 36.
“कलकत्ता (कोलकाता) मदरसा” कब और किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
कलकत्ता (कोलकाता) मदरसा 1781 में गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्ज़ ने स्थापित किया ।

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प्रश्न 37.
संस्कृत कॉलेज की स्थापना कब और कहां की गई ?
उत्तर-
संस्कृत कॉलेज की स्थापना 1791 में बनारस में की गई ।

प्रश्न 38.
1835 में शिक्षा सम्बन्धी क्या फैसला किया गया तथा इससे सम्बन्धित अंग्रेज अधिकारी का नाम क्या था ?
उत्तर-
1835 में शिक्षा सम्बन्धी यह निर्णय किया गया कि सरकार विज्ञान तथा पश्चिमी ढंग की शिक्षा अंग्रेज़ी भाषा में देने के लिये धन खर्च करेगी। इससे सम्बन्धित अंग्रेज़ अधिकारी का नाम ‘मैकाले’ था ।

प्रश्न 39.
1857 में किन तीन नगरों में विश्वविद्यालय स्थापित हुए ?
उत्तर-
1857 में बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) में विश्वविद्यालय स्थापित हुए ।

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प्रश्न 40.
1857 में मैडिकल कॉलेज कौन से तीन नगरों में थे तथा इंजीनियरिंग कॉलेज किस स्थान पर स्थापित किया गया ?
उत्तर-
1857 में मैडिकल कॉलेज बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) तथा मद्रास, (चेन्नई) में थे। इंजीनियरिंग कॉलेज रुड़की में स्थापित किया गया।

प्रश्न 41.
लाहौर में गवर्नमैंट कॉलेज तथा पंजाब यूनिवर्सिटी किन वर्षों में बने ?
उत्तर-
लाहौर में गवर्नमेंट कॉलेज 1864 में तथा पंजाब यूनिवर्सिटी 1888 में बने।

प्रश्न 42.
अंग्रेजी साम्राज्य का सबसे अधिक लाभ किस नये वर्ग को हुआ तथा इस वर्ग से सम्बन्धित चार व्यवसायों के नाम बताएं।
उत्तर-
अंग्रेज़ी साम्राज्य का सबसे अधिक लाभ मध्य वर्ग को हुआ इस वर्ग से सम्बन्धित चार व्यवसायों के नाम थेसाहूकार, डॉक्टर, अध्यापक तथा वकील ।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजी साम्राज्य ने भारत में विदेशी पूंजीपतियों की सहायता किस प्रकार की ?
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य ने विदेशी पूंजीपतियों की बड़ी सहायता की। देशी उद्योगों को नष्ट किया गया। इनके स्थान पर विदेशी पूंजीपतियों को प्रोत्साहित किया गया । इंग्लैंड की औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैंड के पूंजीपतियों ने यहां कारखाने लगाए। उन्हें यहां सस्ते मज़दूर मिलते थे और सरकार से पूरा सहयोग मिलता था। विदेशी पूंजीपतियों ने यहां रेलवे लाइनों में भी खूब पूंजी लगाई। वैसे भी उद्योग स्थापित करने की सुविधाएं भी उन्हें ही दी जाती थीं। कर की व्यवस्था भी उन के पक्ष में थी। विदेशी माल पर कर नहीं लगता था जबकि भारतीय माल पर शुल्क की दर बढ़ा दी गई थी। रेलों की स्थापना भी विदेशी व्यापार को सुविधा पहुंचाने के लिए की गई थी । सच तो यह है कि अंग्रेजी साम्राज्य ने विदेशी पूंजीपतियों की खूब सहायता की ।

प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन रेलों के विस्तार के कारण तथा उनका महत्त्व बताएं ।
उत्तर-
भारत में पहली रेलवे लाइन (1853) में डल्हौजी के समय में मुम्बई से थाना तक आरम्भ की गई । इसकी लम्बाई 21 मील थी। 1905 ई० तक लगभग 28,000 मील लम्बी रेलवे लाइन बनकर तैयार हो गई थी। रेलें यातायात का महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुईं । रेलों के कारण अन्तरिक सुरक्षा मजबूत हुई । सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में सुविधा हो गई। रेलों के कारण कच्चा माल बन्दरगाहों से कारखानों तक सफलतापूर्वक ले जाया जाने लगा और तैयार माल कारखानों से विभिन्न मण्डियों में भेजा जाने लगा। रेलों के कारण मशीनी चीजों के आयात में वृद्धि हुई । उदाहरण के लिए कपास का निर्यात पहले से तीन गुणा अधिक होने लगा और कपड़े का आयात पहले से दो गुणा ज्यादा हो गया । सच तो यह है कि रेलों के और पूंजीपतियों को हुआ।

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प्रश्न 3.
भारत में धन की निकासी किन तरीकों से होती थी ?
उत्तर-
अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण भारत को बहुत हानि हुई। देश का धन देश के काम आने के स्थान पर विदेशियों के काम आने लगा। 1757 के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा इसके कर्मचारियों ने भारत से प्राप्त धन को इंग्लैण्ड भेजना आरम्भ कर दिया। कहते हैं कि 1756 ई० से 1765 तक लगभग 60 लाख पौंड की राशि भारत से बाहर गई। और तो और लगान आदि से प्राप्त राशि भी भारतीय माल खरीदने में व्यय की गई। अतिरिक्त सिविल सर्विस और सेना के उच्च अफसरों के वेतन का पैसा भी देश से बाहर जाता था। औद्योगिक विकास का भी अधिक लाभ विदेशियों को ही हुआ। विदेशी पूंजीपति इस देश पर धन लगाते थे और लाभ की रकम इंग्लैण्ड में ले जाते थे। इस तरह भारत का धन कई प्रकार से विदेशों में जाने लगा।

प्रश्न 4.
स्थायी बन्दोबस्त क्या था तथा उसके क्या आर्थिक प्रभाव थे ?
उत्तर-
अंग्रेज़ शासक कृषि के क्षेत्र में भी भूमि से अधिक से अधिक आय प्राप्त करना चाहते थे। इसी उद्देश्य को सामने रख कर लगान व्यवस्था का पुनर्गठन किया गया। कार्नवालिस ने 1793 में बंगाल और बिहार में ‘परमानेंट सेटलमैंट’ अथवा स्थायी व्यवस्था की। इसके अन्तर्गत लगान वसूल करने वाले ज़मींदार भूमि के स्वामी बना दिये गये। इस व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़े। इस प्रकार सरकार की वार्षिक आय भी निश्चित हो गई जिस से बजट बनाना सरल हो गया। परन्तु किसानों की स्थिति केवल मुज़ारों की ही बन कर रह गई। ज़मींदार उन के साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकता था। सभी ज़मींदारों के लिए निश्चित लगान देना इतना सुगम सिद्ध न हुआ। बहुत से ज़मींदारों को अपनी भूमि बेचनी पड़ी। ये भूमि व्यापारी वर्ग के धनी साहूकारों ने खरीद ली। ये नये ज़मींदार शहरों में रहते थे तथा इनके गुमाश्ते किसानों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। भूमि से उपज कम होने लगी। परिणामस्वरूप कृषि और कृषक की दशा खराब हो गई।

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प्रश्न 5.
कौन-से नए विचारों के प्रभावाधीन भारत में सामाजिक सुधार लाने के प्रयास किए गए ?
उत्तर-
आरम्भ में कम्पनी के शासकों ने भारतीय समाज के प्रति विशेष रुचि न दिखाई। उनमें से अधिकांश का विचार था कि एक पुरानी सभ्यता होने के कारण भारतीय सभ्यता में परिवर्तन नहीं होना चाहिये। परन्तु 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में एक नई विचारधारा बल पकड़ने लगी। विज्ञान और यान्त्रिकी की उन्नति के साथ लोगों के विचारों और सामाजिक मूल्यों पर भी प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप यह रुचि बढ़ने लगी कि समाज को बदला जाये। ऐसे कानून बनाये जायें जिनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति न्याय प्राप्त करने में बराबर का अधिकारी हो। ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाई जाएं जिनसे आर्थिक प्रगति हो और जनसाधारण जीवन की आरम्भिक आवश्यकताओं का आनन्द भोग सकें। ऐसे रीति-रिवाजों का अन्त किया जाये जो अन्धविश्वासों पर आधारित थे। इसके साथ इंग्लैण्ड में ईसाई मत के प्रचार के समर्थक भी इस बात पर जोर देते थे कि भारतीय समाज को नवीन रंग में रंगा जाये।

प्रश्न 6.
भारत में अंग्रेजों ने शिक्षा सम्बन्धी क्या नीति अपनाई ?
उत्तर-
1813 में यह निर्णय किया गया कि भारतीयों को विज्ञान की शिक्षा भी दी जाये। बीस वर्ष तक यह विवाद चलता रहा कि अंग्रेजी साम्राज्य में शिक्षा भारतीय संस्कृति के अनुसार दी जाये अथवा पश्चिमी संस्कृति के आधार पर। 1835 में यह निर्णय हुआ कि पश्चिमी ढंग की शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम द्वारा उच्च स्तर पर दी जाये। इसी नीति के आधार पर 1857 में बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) में विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य शहरों में भी विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित हुए। नवीन शिक्षा नीति अपनाये जाने के अनेक कारण थे –

  • अंग्रेज़ अफसरों की बहुसंख्या इस बात में विश्वास रखती थी कि आधुनिक यूरोपीय सभ्यता विश्व की अन्य सभ्यताओं की तुलना में उत्तम है।
  • सरकारी कार्यों के लिए शिक्षित भारतीयों की आवश्यकता थी।
  • ईसाई पादरियों का विचार था कि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भारतीय जल्दी ही ईसाई बन जायेंगे।
  • कुछ का विश्वास था कि भारतीय अंग्रेज़ी रहन-सहन अपना लेंगे तो वे इंग्लैण्ड में बनी वस्तुओं का अधिक प्रयोग करेंगे और इस प्रकार अंग्रेजों के व्यापार में भी वृद्धि होगी।
  • बहुत-से भारतीय भी यह मांग करने लगे थे कि अंग्रेजी भाषा के द्वारा ही विज्ञान और साहित्य की शिक्षा दी जाये।

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प्रश्न 7.
अंग्रेजी साम्राज्य ने भारत में मध्य वर्ग के उत्थान में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य की समृद्धि के कारण भारत में मध्य वर्ग का जन्म हुआ। कम्पनी को अपने व्यापार की वृद्धि के लिये भारतीय व्यापारियों की सहायता की आवश्यकता थी। इसलिए जैसे-जैसे अंग्रेज़ी व्यापार का विकास हुआ, भारतीय व्यापारी भी धनी बने और उन का महत्त्व भी बढ़ा। इन्हीं व्यापरियों ने साहूकारी शुरू कर ऋण दिये। इन्होंने ही भूमि खरीदने की ओर ध्यान दिया। अधिक धनी साहूकारों ने निजी उद्योग स्थापित किये। इनमें से बहुत से लोग अंग्रेज़ी शिक्षा के पक्ष में थे। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरियों में भी उनकी संख्या में वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी शिक्षा पाकर मध्य वर्गों के लोग डॉक्टर, अध्यापक और वकील बने। इस प्रकार मध्य वर्ग का प्रभाव बढ़ता गया।

प्रश्न 8.
अंग्रेजी साम्राज्य में सामाजिक सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
अंग्रेजी साम्राज्य में भारत में किस प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी के आरम्भ में समाज सुधार की ओर ध्यान दिया। उन्होंने 1829 ई० में सती-प्रथा पर रोक लगा दी। उस समय राजपूत लोग लड़कियों को पैदा होते ही मार देते थे। इसी तरह कुछ अन्य लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अपने बच्चों की बलि दे देते थे। अतः पहले लॉर्ड विलियम बैंटिंक और फिर लॉर्ड हार्डिंग ने बाल हत्या पर रोक लगी दी। उस समय विधवाओं को समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। अतः 1856 ई० में लॉर्ड डल्हौज़ी ने एक कानून द्वारा विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा दे दी। अंग्रेज़ों का विचार था कि भारतीय समाज की गिरी हुई दशा को केवल पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से ही सुधारा जा सकता है। अतः भारत में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बना दिया गया। अंग्रेजों के प्रयत्नों से भारत में स्त्री शिक्षा का प्रसार भी हुआ।

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प्रश्न 9.
रैय्यतवाड़ी लगान व्यवस्था की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
1820 ई० में थामस मुनरो मद्रास का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नए ढंग से किया जिसे रैय्यतवाड़ी प्रथा के नाम से पुकारा जाता है। यह प्रबन्ध पहले-पहल दक्षिण के प्रान्तों में लागू किया। सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो अपने हाथों से कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक लाभदायक था क्योंकि इससे कृषकों के अधिकार बढ़ गए तथा सरकारी आय में वृद्धि हुई। इस प्रथा में कुछ दोष भी थे-जो भूमि कृषि के बिना रह जाती थी उसे सरकारी भूमि समझा जाता था। ऐसी भूमि में कृषि करने का अधिकार किसी भी किसान को न था। फलस्वरूप यह भूमि प्रायः खाली पड़ी रहती थी। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा। गांव की पंचायतों का महत्त्व भी कम हो गया। प्रत्येक किसान एक पृथक् व्यक्तित्व बन कर रह गया।

प्रश्न 10.
महलवाड़ी भूमि-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी प्रथा के दोषों को दूर करने के लिए उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में एक और नया प्रयोग किया गया जिसे महलवाड़ी प्रबन्ध कहा जाता है। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाई-चारे के साथ होता था। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी वसूली गांव के भाई-चारे से की जाती थी। ऐसे प्रबन्ध के कारण सरकार को कभी हानि नहीं होती थी। प्रत्येक गांव में जो भूमि अविभाजित रह जाती थी, उसे भाई-चारे की संयुक्त सम्पत्ति माना जाता था। ऐसी भूमि को ‘शामलात भूमि’ कहते थे। इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था। वह यह था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि-कर देना पड़ता था।

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प्रश्न 11.
ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय किसानों की निर्धनता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
ब्रिटिश शासनकाल में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। उनकी निर्धनता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। उनकी निर्धनता के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. ब्रिटिश शासन काल में ज़मींदारी प्रथा प्रचलित थी। भूमि के स्वामी बड़े-बड़े ज़मींदार होते थे जो किसानों का बहुत शोषण करते थे। वे उनसे बेगार भी लेते थे।
  2. किसानों के खेती करने के ढंग बहुत पुराने थे। कृषि के लिए अच्छे बीज तथा खाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध न होने के कारण किसानों को केवल वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था।
  3. ब्रिटिश सरकार ने किसानों की दशा सुधारने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
  4. किसान प्रायः साहूकारों से ऋण लेता था जिस पर उसे भारी ब्याज देना पड़ता था। सरकार की ओर से उन्हें ऋण देने का कोई प्रबन्ध नहीं था।
  5. किसानों को बहुत अधिक भूमि-कर देना पड़ता था। यह भी उनकी निर्धनता का एक बहुत बड़ा कारण था।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजी कम्पनी की व्यापारिक नीति कैसी थी और भारत पर इसका क्या आर्थिक प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अंग्रेजों की व्यापारिक नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो उन्होंने भारत के देशी तथा विदेशी व्यापार के प्रति अपनाई। आरम्भ में अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्य ध्येय भारतीय कपड़े को सस्ते दामों पर खरीद कर विदेशी मण्डियों में महंगे दामों पर बेचना था। परन्तु जब कम्पनी की लाभ नीति इंग्लैण्ड के उद्योगों के लिए घातक सिद्ध हुई, तो कम्पनी को अपनी नीति में परिवर्तन लाना पड़ा। औद्योगिक क्रान्ति के कारण इंग्लैण्ड में मशीनों द्वारा अधिक से अधिक माल तैयार होने लगा। इस सारे माल की खपत के लिए इंग्लैण्ड के व्यापारियों को अधिक से अधिक मण्डियों की आवश्यकता थी। अतः वहां के व्यापारी वर्ग ने इंग्लैण्ड की सरकार पर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करने के लिए दबाव डालना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप 1813 ई० में कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार छीन लिए गए और भारत को एक स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्र घोषित कर दिया। भारत के द्वार विदेशी वस्तुओं के लिए खोल दिये गये। उधर ब्रिटेन ने भारत के बने माल पर प्रतिवर्ष कर बढ़ाने आरम्भ कर दिये। 1824 ई० में भारतीय कैलिको पर 65\(\frac{1}{2}\)% और भारतीय मलमल पर 37\(\frac{1}{2}\)% शुल्क देना पड़ता था। भारतीय चीनी पर उसकी लागत से तीन गुणा अधिक कर देना पड़ता था। ऐसी भी कुछ भारतीय वस्तुएं थीं जिन पर इंग्लैण्ड ने 400% शुल्क लगा दिया। स्पष्ट है कि स्वतन्त्र व्यापारिक नीति ने भारत के व्यापारिक हितों को बड़ी हानि पहुंचाई।

नीति का आर्थिक प्रभाव-अंग्रेजी कम्पनी की व्यापारिक नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। भारत के देशी उद्योग नष्ट हो गये। भारतीय मजदूर तथा कारीगर बेकार हो गए और वे निर्धनता में अपना जीवन व्यतीत करने लगे। अधिक आयात के कारण भारत धन का भुगतान करने में असमर्थ हो गया। भारत के व्यापारिक असन्तुलन के कारण अनेक अंग्रेज़ उद्योगपतियों को अपनी पूंजी भारत में लगाने के लिए प्रेरित किया गया। परिणामस्वरूप देश में रेलों तथा सड़कों का जाल बिछ गया। परन्तु इससे भी अंग्रेजों को ही लाभ पहुंचा।

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प्रश्न 2.
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक और भूमि-कर सम्बन्धी नीतियों का भारत की अर्थ-व्यवस्था तथा समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा भूमि-कर सम्बन्धी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके अधीन भूमि का क्रय-विक्रय आरम्भ हो गया। अंग्रेजों ने भारत में भूमि की पट्टेदारी नए ढंग से आरम्भ की। बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त द्वारा ज़मींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार सरकार को लगान देने वाले ठेकेदार भूमि के स्वामी बन गए। पट्टेदारी की प्रचलित सभी विधियां किसानों के हितों के विरुद्ध थीं। जमींदार किसी भी समय कृषकों को बेदखल कर सकता था। इस नियम की आड़ में वे कृषकों से मनचाही रकम बटोरने लगे। रैय्यतवाड़ी प्रथा के अनुसार यद्यपि भूमि का स्वामी किसान को मान लिया गया तथापि कर की दर इतनी अधिक थी कि किसानों को साहूकारों से धन ब्याज पर लेना पड़ता था। अंग्रेज़ी शासन का भारत की कृषि पर भी बहुत प्रभाव पड़ा। ज़मींदार किसानों से पैसा तो खूब ऐंठते थे, परन्तु भूमि सुधार की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं देते थे। किसान के पास इतना भी धन नहीं रह पाता था कि वह स्वयं भूमि का सुधार कर सके। फलस्वरूप भारतीय कृषि पिछड़ने लगी।

अंग्रेजी शासन के अधीन भारतीय उद्योग-धन्धे भी नष्ट हो गए। भारत का सूती कपड़ा उद्योग बिल्कुल ठप्प हो गया। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैण्ड में बड़ी मांग थी। परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। धीरे-धीरे इंग्लैण्ड की सरकार ने ऐसे नियम बना दिए कि भारत का माल इंग्लैंड में बिकने की बजाय इंग्लैंड का माल भारत में बिकने लगा। इंग्लैण्ड में औद्योगिक विकास के कारण इंग्लैंड की आयात-निर्यात की नीति में भारी परिवर्तन आया। भारत से कच्चा माल आयात करना तथा तैयार माल का निर्यात करना उनका उद्देश्य बन गया। अंग्रेजी शासन के कारण भारत का काफ़ी सारा धन प्रति-वर्ष इंग्लैण्ड जाने लगा। अंग्रेजी राज्य के अधीन भारत में बेकारी और निर्धनता का वातावरण पैदा हो गया। कृषकों पर अधिक करों तथा भारतीय उद्योग-धन्धों की समाप्ति के कारण अनेक लोग बेकार हो गए। अंग्रेज़ी शासन के कारण भारतीय व्यापार भी ठप्प हो गया। कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर पूरी तरह अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश काल में उद्योगों के विकास की कमजोरियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अंग्रेज़ी शासन के अधीन औद्योगिक विकास के मार्ग की किन्हीं पांच बाधाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ब्रिटिश शासन के आरम्भ के साथ उद्योगों में तीन बातें घटित हुईं। पहली यह कि उन्होंने भारतीय कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया। दूसरे, इस देश को इंग्लैण्ड के औद्योगिक माल की मण्डी बना दिया। तीसरे, इस देश में कुछ नए उद्योग आरम्भ किए गए। अब देखना यह है कि इस औद्योगिक विकास की कमजोरियां क्या थीं-

1. भारी उद्योगों का अभाव-अंग्रेजों ने भारत में मूल उद्योग आरम्भ न किए। यदि ऐसा होता तो भारत में औद्योगिक विकास की आधारशिला तैयार हो जाती। परन्तु अंग्रेज़ भारत को उन्नत औद्योगिक राष्ट्र के रूप में देखना ही नहीं चाहते थे।

2. कम्पनी की आवश्यकताओं को प्राथमिकता-अंग्रेजों ने भारत में केवल वही उद्योग स्थापित किए जिनके उत्पादों की उन्हें आवश्यकता थी।

3. उद्योगों का एकाधिकार-सभी बड़े-बड़े उद्योगों का स्वामित्व अंग्रेजों को दिया गया। बहुत कम भारतीयों को उद्योग स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

4 उद्योगों का असमान वितरण-अंग्रेज़ों ने भारत के कुछ ही भागों में उद्योग स्थापित किए। शेष भाग उद्योगों से वंचित रहे।

5. कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन न देना-अंग्रेजों ने भारत में छोटे तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन न दिया। ऐसे उद्योगों द्वारा ही भारत की अधिकांश जनता को लाभ पहुँच सकता था।

6. कच्चे माल का निर्यात-अंग्रेज़ इंग्लैण्ड के हित में काम करते थे। वे इस देश से कच्चा माल इंग्लैण्ड को सस्ते दामों पर निर्यात करते थे और फिर तैयार माल लाकर भारत में महँगे दामों पर बेचते थे।

7. प्रशिक्षण का अभाव-अंग्रेजों ने न अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए और न ही श्रमिकों के प्रशिक्षण के लिए ही कोई प्रबन्ध किया। ऐसी अवस्था में उद्योगों का पूर्ण विकास नहीं हो सकता था।

8. दूषित कर-प्रणाली-अंग्रेजों ने कर प्रणाली भी इंग्लैण्ड के पक्ष में ही स्थापित की। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने वाले माल पर कस्टम ड्यूटी माफ कर दी। इसके विपरीत भारतीय माल पर इंग्लैण्ड में भारी कर लगा दिए। परिणामस्वरूप पहले भारतीय उद्योगों का विनाश हुआ और बाद में भारत इंग्लैण्ड के तैयार माल की मण्डी बन गया।

सच तो यह है कि अंग्रेजों ने भारत में औद्योगिक विकास की दृष्टि से उद्योग स्थापित न किए थे। उनका मुख्य उद्देश्य इंग्लैण्ड को लाभ पहुँचाना था।

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प्रश्न 4.
18वीं तथा 19वीं शताब्दी में भारत के आर्थिक शोषण की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की आर्थिक नीति की विवेचना कीजिए जिसके फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की बरबादी हुई।
उत्तर-
18वीं शताब्दी में भारत का शासन ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ में आ गया। कम्पनी सरकार ने अपने स्वार्थ तथा इंग्लैण्ड के हितों को बढ़ावा देने के लिए भारत तथा भारतीयों का खूब आर्थिक शोषण किया। इस उद्देश्य से अंग्रेज़ों ने निम्नलिखित कार्य किए-

1. ग्रामीण कपड़ा उद्योगों का विनाश-अंग्रेजी सरकार अपने गुमाश्तों द्वारा भारतीय जुलाहों से कपड़े का सस्ते दामों पर जबरदस्ती सौदा कर लेती थी। सौदा करने के लिए जुलाहों को पेशगी राशि दे दी जाती थी। यदि वे पेशगी लेने से इन्कार करते तो उन्हें पीटा जाता था और कोड़े लगाए जाते थे। इस प्रकार जुलाहे अपना माल कम्पनी को छोड़कर किसी के पास नहीं बेच सकते थे, भले ही उन्हें वहाँ से कितनी ही अधिक राशि क्यों न मिलती हो। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे भारतीय जुलाहों की कपड़ा उद्योग में रुचि समाप्त हो गई और भारतीय कपड़ा उद्योग समाप्त हो गया।

2. इंग्लैण्ड में भारतीय माल पर अधिक कर-इंग्लैण्ड में भारतीय कपड़े की बड़ी माँग थी। परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर भारी आयात कर लगा दिया। फलस्वरूप इंग्लैण्ड पहुँचते-पहुँचते भारतीय कपड़ा इतना महँगा हो जाता था कि वहां के लोग इसे खरीदने से भी डरने लगे। अतः इंग्लैण्ड में भारतीय कपड़े की माँग बिल्कुल समाप्त हो गई।

3. भारत का मण्डी के रूप में प्रयोग-इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद अनेक कारखाने खुल गए और भारी मात्रा में उत्पादन होने लगा। इन कारखानों को कच्चा माल जुटाने तथा वहाँ के तैयार माल को बेचने के लिए अंग्रेजों ने भारत को एक मण्डी बना दिया। वे यहाँ का सारा कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीद कर इंग्लैण्ड भेजने लगे। इंग्लैण्ड का तैयार माल भारत में बिना रोक-टोक आने लगा और यहाँ उसे महँगे दामों पर बेचा जाने लगा। परिणामस्वरूप भारत का धन निरन्तर इंग्लैण्ड पहुँचने लगा।

4. व्यापार पर एकाधिकार-अंग्रेजी कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। एक ओर तो वे भारतीय जुलाहों से सस्ते दामों पर कपड़े का सौदा कर लेते थे, दूसरी ओर सारा कच्चा माल पहले से ही खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते थे। विवश होकर भारतीय जुलाहों को किया गया सौदा पूरा करने के लिए महंगे दामों पर अंग्रेजों से कच्चा माल खरीदना पड़ता था। परिणामस्वरूप देखते ही देखते देश में निर्धनता और बेकारी फैल गई।

5. इंग्लैण्ड के हित में नए उद्योग-अंग्रेजों ने भारत में कुछ नए उद्योग भी लगाए। परन्तु इनका उद्देश्य भी भारत का आर्थिक शोषण करना ही था। उदाहरण के लिए, इंग्लैण्ड में चाय की माँग थी तो भारत में बड़े पैमाने पर चाय के बागान लगाए गए। इसी प्रकार कपास तथा पटसन आदि की खेती, नील उद्योग आदि सभी इंग्लैण्ड के हितों की ही पूर्ति करते थे। इन उद्योगों के आरम्भ से भारत आवश्यक उद्योगों में पिछड़ गया।
सच तो यह है कि अंग्रेज़ी सरकार ने अपनी प्रत्येक नीति भारत का धन हड़पने के लिए ही निर्धारित की।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों के अधीन भारत के सामाजिक जीवन में क्या-क्या परिवर्तन हुए ? किन्हीं पांच परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अंग्रेज़ इस देश में व्यापारी तथा शासक के रूप में लगभग 350 वर्ष तक रहे। उन्होंने लगभग 200 वर्ष तक यहां शासन भी किया। इस देश में उनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेज़ी सत्ता को दृढ़ करना था। इसलिए उन्होंने हमारे सामाजिक क्षेत्रों में काफी परिवर्तन किए। इन परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. आधुनिक शिक्षा का आरम्भ-आधुनिक शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है। 1835 ई० में यह निर्णय लिया गया कि भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होगा। 1854 ई० में वुड डिस्पैच तथा 1882 ई० में हण्टर आयोग के सुझावों को स्वीकार किया गया। इनके अनुसार देश में शिक्षा विभाग की स्थापना हुई, विश्वविद्यालय खोले गए तथा अनेक स्कूलों तथा कॉलेजों की व्यवस्था की गई। प्राइवेट स्कूलों को अनुदान देने की प्रणाली आरम्भ की गई। अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। इस प्रकार भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उन्नति हुई।

2. जाति बन्धन में ढील तथा सती प्रथा का अन्त-अंग्रेजी शिक्षा तथा ईसाई पादरियों के प्रचार के कारण भारत में जाति बन्धन टूटने लगे। ईसाई पादरी ऊंच-नीच की परवाह नहीं करते थे। इससे प्रभावित होकर निम्न जातियों के लोग ईसाई धर्म स्वीकार करने लगे। यह बात हिन्दू समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गई। इस खतरे को टालने के लिए उस समय के समाज-सुधारकों ने जाति-प्रथा की निन्दा की। परिणामस्वरूप जाति बन्धन काफ़ी ढीले हो गए। उस समय हिन्दू समाज में सती-प्रथा भी प्रचलित थी। इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने दिसम्बर, 1829 में एक कानून पास किया और सती-प्रथा को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया।

3. बाल-हत्या तथा नर-बलि पर रोक, विधवा विवाह की आज्ञा-मध्य भारत की कुछ जातियां दहेज आदि की कठिनाई से बचने के लिए कन्याओं को पैदा होते ही मार डालती थीं। इस पर रोक लगाने के लिए लॉर्ड वैल्ज़ली ने 1802 में एक कानून पास किया। इसके अनुसार बाल-हत्या पर रोक लगा दी गई। भारत के कुछ भागों में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नर-बलि दी जाती थी। यह प्रथा मद्रास में विशेष रूप से प्रचलित थी। विलियम बैंटिंक ने इस क्रूर प्रथा का भी अन्त कर दिया। विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए जुलाई, 1856 ई० में सरकार ने विधवा-विवाह को कानून द्वारा वैध घोषित कर दिया।

4. स्त्री शिक्षा का प्रसार-राजा राम मोहन राय, जगन्नाथ शंकर सेठ, रानाडे, महात्मा फूले तथा ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयत्नों के फलस्वरूप स्त्रियों को ये सुविधाएं मिलीं-

  1. उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने की आज्ञा दे दी गई,
  2. उनके लिए अलग कॉलेजों की व्यवस्था की गई,
  3. उन्हें विश्वविद्यालयों में भी प्रवेश पाने की आज्ञा दे दी गई।

5. साम्प्रदायिकता का आरम्भ-अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को दृढ़ बनाए रखने के लिए “फूट डालो और राज्य करो” की नीति अपनाई। इस नीति से देश में साम्प्रदायिकता का विष फैलने लगा।

6. भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ह्रास-भारत में अंग्रेज़ी शासन स्थापित होने से भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को भारी धक्का लगा। अंग्रेजों ने इस बात का प्रचार किया कि भारतीय असभ्य हैं और अंग्रेज़ उन्हें सभ्यता का पाठ पढ़ाने आए हैं। अत: भारतीय उनकी सभ्यता को उच्च मानकर उसी के प्रभाव में बहने लगे। इस प्रकार एक लम्बे समय तक भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास रुका रहा।

7. भारतीय मध्यम वर्ग का उदय-अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से भारत में मध्यम वर्ग का उदय हुआ। नवीन भूमि कानूनों के कारण ज़मींदार, महाजन तथा व्यापारी लोग अस्तित्व में आये। यही लोग बीसवीं शताब्दी में भारत की मध्यम श्रेणी के रूप में उभरे। पैसा अधिक होने के कारण इस श्रेणी के लोगों ने पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण की और राष्ट्रीय आन्दोलन में लोगों का नेतृत्व किया।

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प्रश्न 6.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत की कृषि की क्या दशा थी ? अंग्रेज़ी राज्य में इसमें कौन-कौन से परिवर्तन आए ? कोई पांच परिवर्तन लिखिए।
उत्तर-
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि की दशा-अंग्रेजों के आगमन से पूर्व खेती-बाड़ी की दशा अधिक अच्छी नहीं थी। कृषि का उद्देश्य केवल किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करना था। किसान को जिस चीज़ की जितनी मात्रा में आवश्यकता होती, वह केवल उतनी ही वस्तु का उत्पादन करता था। वह खाने के लिए अनाज, तेल के लिए सरसों, तोरिया, तिल, तारामीरा आदि तथा मीठे के लिए गन्ना उगा लेता था। वह वस्त्रों के लिए कपास और अपने पशुओं के लिए आवश्यक चारा भी उगा लेता था। अपनी आवश्यकता से अधिक वह किसी भी चीज़ का उत्पादन नहीं करता था।

उस समय की खेती में कुछ अन्य त्रुटियां भी थीं। खेती करने का ढंग पुराना था। सिंचाई के साधन भी अधिक विकसित नहीं थे। किसानों को सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था। यदि वर्षा ठीक समय पर उचित मात्रा में हो जाती तो उपज अच्छी हो जाती थी। इसके विपरीत वर्षा कम होने पर सूखा पड़ जाता और अधिक होने पर बाढ़ आ जाती थी। परिणामस्वरूप फसलें नष्ट हो जाती थीं और लोगों को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ता था।

अंग्रेजी राज्य में कृषि में परिवर्तन-18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति आई और वहां अनेक कारखाने खुल गए। इन कारखानों को चलाने के लिए अंग्रेजों को कच्चे माल की आवश्यकता थी। यह कच्चा माल भारतीय कृषि से मिल सकता था। इसलिए उन्होंने भारत की कृषि को उन्नत करने में रुचि ली और इसमें निम्नलिखित परिवर्तन किए-

1. यातायात के साधनों का विकास-उन्होंने यातायात के साधनों का विकास किया। उन्होंने किसान को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया ताकि वे अतिरिक्त उपज को बेच कर अधिक धन कमा सकें। कमाई के अच्छे अवसर देखकर किसान अपनी कृषि में सुधार लाने लगे।

2. आदर्श कृषि फार्म-देश में बड़े-बड़े फार्म खोले गए जिनमें नमूने की (आदर्श) खेती की जाती थी। इन्हें देखकर किसान भी अपनी खेती में सुधार लाने का प्रयत्न करने लगे।

3. सिंचाई के साधनों का विकास-सिंचाई के लिए देश के विभिन्न भागों में नहरें तथा कुएं खोदे गए। देश के दक्षिणी भागों में वर्षा का पानी इकट्ठा करके अथवा नदियों से पानी लेकर सिंचाई के लिए बड़े-बड़े तालाब बनाए गए।

4. नई फसलों का उत्पादन सरकार ने ऐसी फसलों के उत्पादन पर अधिक बल दिया जिनका प्रयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता था। उन्होंने बाहर से भी कुछ नई फसलें लाकर भारत में बोई। इन फसलों में अमेरिकन कपास, आलू, सिनकोना आदि प्रमुख थीं।

5. नये कृषि यन्त्र-कृषि के औजारों में परिवर्तन किया गया। अब लकड़ी के पुराने हलों के स्थान पर लोहे के नये हल चलाए गए।

6. उत्तम प्रकार के बीज-उत्तम प्रकार के बीज पैदा करने के लिए पूना में एक अनुसंधान विभाग खोला गया।

7. ऋण संस्थाएं-किसानों की सहायता के लिए कुछ संस्थाएं खोली गईं ताकि किसान धनवान महाजनों के चंगुल से बचें।

प्रश्न 7.
व्याख्या सहित बताओ कि अंग्रेजी शासन ने ग्रामों की आर्थिकता में कौन-कौन से परिवर्तन किए ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के समय भारत की लगभग 95 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में ही रहती थी। उस समय प्रत्येक गांव अपने आप में एक इकाई था। ग्रामीण आर्थिकता का आधार आत्म-निर्भरता थी। गांव के किसान खेती करते थे और अन्य लोग उनकी खेती सम्बन्धी तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करते थे। उदाहरण के लिए जुलाहे उनके लिए कपड़ा बुनते थे, कुम्हार उन्हें बर्तन आदि देते थे और बढ़ई तथा लुहार उनके लिए हल, पंजालियां आदि बनाते थे। इसके बदले में किसान केवल वही वस्तुएं उगाते थे जिनकी उन्हें या गांववासियों को आवश्यकता होती थी। आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता था। देश में अंग्रेजी राज्य स्थापित होने के कारण ग्रामों की आर्थिकता में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. व्यापारिक उपजों पर बल-इंग्लैंड के कारखानों को चलाने के लिए अधिक मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता थी। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड में अधिक अन्न भी चाहिए था। अंग्रेजों ने यह कच्चा माल और अनाज भारत से प्राप्त करने का प्रयत्न किया। उन्होंने सबसे पहले सड़कों, रेलों तथा भाप से चलने वाले जहाजों में सुधार किया ताकि देश के भिन्न-भिन्न भागों से माल को इंग्लैंड तक आसानी से पहुंचाया जा सके। इसके साथ ही भारतीय किसानों को व्यापारिक फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया गया ताकि इंग्लैंड में उनकी मांग को पूरा किया जा सके। फलस्वरूप गांवों में व्यापारिक फसलों की खेती होने लगी।

2. सिक्के का प्रसार-व्यापार आरम्भ होने से सिक्के का प्रसार बढ़ गया। अब किसान अपनी उपज बेचकर धन कमाने लगे और गांव में कई सेवाओं के बदले वे अनाज के स्थान पर नकद पैसे देने लगे। गांवों से कई लोग अधिक धन कमाने की इच्छा से नगरों में आकर भी काम करने लगे।

3. नए भूमि-प्रबन्ध-ग्रामों की आर्थिकता में सबसे बड़ा परिवर्तन नए भूमि-प्रबन्ध आरम्भ होने से आया। बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि का स्थायी बन्दोबस्त लागू किया गया। इसमें बड़े-बड़े ज़मींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया गया और सदियों से भूमि पर खेती करने वाले किसान भूमि-हीन हो गए। वे अपने ज़मींदारों की इच्छा के दास थे। फलस्वरूप उनके मन में खेती के प्रति उत्साह कम हो गया। नए भूमि-प्रबन्ध के कारण ग्रामों की आर्थिकता पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा।

4. नई न्याय प्रणाली-गांवों की आर्थिकता में पंचायतों का बड़ा महत्त्व था। प्रत्येक गांव में झगड़ों का निपटारा पंचायतें ही करती थीं और सभी को उसका निर्णय मानना पड़ता था। इसलिए झगड़ों के निपटारे पर अधिक धन और समय नष्ट नहीं होता था, परन्तु अंग्रेजों ने एक नई न्याय-प्रणाली आरम्भ की। इसके अनुसार अब गांव के झगड़ों का निपटारा पंचायतें नहीं कर सकती थीं। फलस्वरूप गांव के लोगों को भारी हानि उठानी पड़ी।

सच तो यह है कि अंग्रेजों के शासन काल में ग्रामीण आर्थिकता का रूप बिल्कुल बदल गया।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

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PSEB 12th Class Geography Guide मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

(क) शब्द ‘मानवीय भूगोल’ का विस्तृत अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
मानवीय भूगोल मनुष्य को अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वपक्षीय समानता का अध्ययन है।

(ख) पृथ्वी कौन-से मुख्य तत्त्वों से बनी है ?
उत्तर-
प्रकृति (भौतिक) प्राकृतिक पर्यावरण और जीवन के रूप।

(ग) मानवीय भूगोल के अन्तर्गत आने वाले प्रसंगों (Themes) के नाम बताओ।
उत्तर-
मानवीय भूगोल के अन्तर्गत वर्गों, आबादी का बढ़ना, प्रवास की बनावट इत्यादि प्रसंगों का अध्ययन किया जाता है।

(घ) भूगोल के उद्देश्य बताने वाले तीन दर्शन (फलस्फे) कौन-से हैं ?
उत्तर-
भूगोल के मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को मनुष्य के घर के रूप में देखना, मानना और समझना है।

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(ङ) कोई दो विश्व प्रसिद्ध भौगोलिक वेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
कार्ल रिटर, पौल विडाल डी, ला ब्लांश।

(च) निम्नलिखित का मिलान करें :
(i) राजनीतिक भूगोल — (क) जन-अंकण विज्ञान
(ii) आर्थिक भूगोल — (ख) चुनाव-विश्लेषण विज्ञान
(iii) जनसंख्या भूगोल — (ग) ग्राम योजनाबंदी
(iv) बस्ती भूगोल — (घ) राष्ट्रीय व्यापार।
उत्तर-

  1. (ख),
  2. (घ),
  3. (क),
  4. (ग)।

(छ) निम्नलिखित भौगोलिक कालों का मिलान करें।
(i) बस्तीवाद युग — (क) उत्तर आधुनिकतावाद
(ii) 1930s — (ख) मूलवाद/रैडीकल भूगोल
(iii) 1970s — (ग) क्षेत्रीय विश्लेषण
(iv) 1990s — (घ) इलाकाई विभिन्नता।
उत्तर-

  1. (ग),
  2. (घ),
  3. (ख),
  4. (क)।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

(क) पेंगुइन शब्दकोश के अनुसार स्थानीय बँटवारे की परिभाषा क्या है ?
उत्तर-
पेंगुइन शब्दकोश के अनुसार स्थानीय बँटवारा (Spatial Distribution)-का अर्थ है, पृथ्वी की सतह पर, विभिन्न स्थानों और खास वितरण या विशेषता के महत्त्व, कद्रों-कीमतों या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदंडों या निरीक्षणों का समूह है।

(ख) भौगोलिक क्रियाओं के लिए प्रयोग किए जाने वाले कोई चार मानवीय अंगों के नाम बताओ।
उत्तर-
चेहरा (पृथ्वी का चेहरा), मुख (दरिया का मुख) नाक (हिमनदी का नाक), गर्दन (थल डमरू की गर्दन)।

(ग) कौन-कौन से विषय निम्नलिखित अध्ययनों की व्याख्या करते हैं ?
उत्तर-

  1. धरती का अंतरीव-भू-विज्ञान का सम्बन्ध पृथ्वी की पपड़ी की बनावट के आन्तरिक हिस्से से सम्बन्धित है।
  2. मानवीय जनसंख्या-जनांकन विज्ञान का सम्बन्ध मानवीय जनसंख्या से है।
  3. प्राणी जगत्-प्राणी जगत् जानवरों से सम्बन्धित है।
  4. वनस्पति जगत्-वनस्पति जगत् वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित है।

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(घ) भौगोलिक धारणाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक धारणाओं का अर्थ है किसी विशेष समय, स्थान के संदर्भ में भौगोलिक ज्ञान के विकास को समझना होता है।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

(क) भूगोल को अलैग्जेंडर वों हमबोल्ट की देन पर नोट लिखें।
उत्तर-
हमबोल्ट का जन्म 14 सितम्बर, 1769 ई० में हुआ। उन्होंने ज्ञान की कई शाखाएँ जैसे वनस्पति विज्ञान, शारीरिक विज्ञान, भू-विज्ञान, जलवायु विज्ञान, परिस्थिति विज्ञान में अहम् योगदान दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तकों (Cosmos, Essay on the Geography of Plants) के माध्यम से आधुनिक भूगोल के लिए महत्त्वपूर्ण मॉडल पेश किये हैं। उन्होंने फसलों की वैज्ञानिक व्याख्या पेश की है और व्यापारिक कृषि पर समुद्र तल ऊंचाई, तापमान और वनस्पति के प्रभाव आदि के सिद्धांत पेश किए हैं। कम वायु दबाव का मनुष्य पर प्रभाव भी हमबोल्ट की ही देन है और पेरू की धारणा का अध्ययन करने वाला माहिर भी हमबोल्ट है।

(ख) आर्थिक भूगोल के उप-विषयों से सम्बन्धित विषय कौन-से हैं ?
उत्तर-
आर्थिक भूगोल के उप-विषयों से सम्बन्धित विषय हैं :

आर्थिक भूगोल के उप-विषय अन्य सम्बन्धित विषय
1. साधनों का भूगोल (Geography of Resources) 1. (i) अर्थ–शास्त्र

(ii) साधनों का अर्थशास्त्र

2. कृषि भूगोल (Geography of Agriculture) 2. कृषि विज्ञान
3. उद्योग का या व्यापारिक भूगोल (Industrial Geography) 3. व्यापारिक अर्थशास्त्र (Industrial Economics)

 

4. बाजारीकरण या बिक्री का भूगोल (Geography of Marketing) 4. व्यापार अध्ययन, अर्थशास्त्र, कामर्स (Trade, Economics, Commerce)
5. पर्यटन भूगोल (Geography of Tourism) 5. पर्यटन और यात्रा प्रबन्धन
6. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का भूगोल (Geography of International Relation) 6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार।

 

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(ग) विद्वानों ने भौगोलिक प्रक्रियाओं को मनुष्य अंगों और क्रियाओं के नाम किस प्रकार दिए हैं ?
उत्तर-
यह जानना बहुत रोमांचक है कि प्राकृतिक/भौतिक और मानवीय घटनाओं की व्याख्या के लिए प्रयोग किए रूपक भी मानवीय अंग विज्ञान के चिन्ह होते हैं। हम हमेशा ही यह बात करते हैं कि धरती का चेहरा (Face of the Earth), तूफ़ान की आँख, नदी का मुँह, हिमनदी का नाक, थल डमरू की गर्दन, मिट्टी की रूप रेखा। जैसे ही भूगोल में क्षेत्रीय कस्बों और गाँवों आदि का वर्णन जीवों के तौर पर किया जाता है। जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोल शास्त्री ने राज्य या देश को जीवित जीव के रूप में समझा है। सड़कें, रेल तथा जल मार्गों को यातायात की धमनियां कहकर प्रकट किया जाता है। प्रकृति को एक हस्ती के रूप में जीवित करने में चार्ल्स डारविन की बहुत अहम् भूमिका है।

(घ) प्राचीन काल में मानव भूगोल का केन्द्रीय विषय (Thrust) क्या था ?
उत्तर-
प्राचीन काल में मानव भूगोल का केन्द्रीय विषय नक्शे बनाना था और वह खगोलीय माप करते थे। पुराने अभिलेखों के मुताबिक विद्वानों की रुचि पृथ्वी के नक्शे बनाकर, खगोल की नपाई करके, धरती के भौतिक, प्राकृतिक ज्ञान को समझने की थी। यूनानी विद्वानों को प्रथम भूगोलवेत्ता होने का गर्व प्राप्त है। होमर, हैरोडोटस, थेलज, अरस्तु और ऐरेटोसथीनज इनमें से प्रसिद्ध है।

प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

(क) मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र क्या है ?
उत्तर-
हर विज्ञान की अपनी एक अलग धारणा, दर्शन और विषय-क्षेत्र होता है। जैसे कि अर्थशास्त्र में हम व्यापार उत्पादन आदि के बारे में पढ़ते हैं। वनस्पति विज्ञान में हम पौधों आदि के बारे में पढ़ते हैं। उसी प्रकार मानव विज्ञान का अपना एक विषय-क्षेत्र होता है। मानव विज्ञान में अध्ययन का मुख्य विषय मानवीय समाज उनके निवास स्थान और विकास स्थानों का प्रसार है। यह भी कहा जाता है कि इसमें मानवीय समाज का क्षेत्रीय विभाजन किया जाता है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल का विषय बहुत ही विशाल है।
फ्रेडरिक रैंटजेल के अनुसार मानवीय भूगोल मानवीय समाज और पृथ्वी की सतह के आपसी सम्बन्धों का संगठित/ संश्लेषणात्मक अध्ययन है।

मानव भूगोल के माध्यम से मानवीय जाति वर्गों का अध्ययन, संसार के अलग-अलग हिस्सों में जनसंख्या का बढ़ना, वितरण और घनत्व का अध्ययन, जनांकन की विशेषताओं का अध्ययन, स्थान बदली का अध्ययन, आयु संरचना का अध्ययन, लिंग अनुपात का अध्ययन, मानवीय समूहों, आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन और सांस्कृतिक मतभेदों का अध्ययन किया जाता है। यह मानव और उसके प्राकृतिक पर्यावरण के केंद्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करता है। मानव भूगोल सांस्कृतिक, धर्म, रीति-रिवाज, गाँवों में रहने की दिशा, शहरी बस्तियाँ, आकार और प्रसार की बढ़ौतरी, कामकाजी वर्ग विभाजन को भी अपने अध्ययन के क्षेत्र में ले लेता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि किसी क्षेत्र में रहने वालों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाओं और प्राकृतिक/भौतिक पर्यावरण के प्रभावों का अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है। मानव का उसके भौगोलिक पर्यावरण पर पड़ रहा प्रभाव भी आजकल लगातार बढ़ रहे महत्त्व का विषय है। मानव, भूगोल संसार में जैसे और कैसे हो सकता है से सम्बन्ध स्थापित करता है।
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(ख) नियतिवाद और नव-नियतिवाद क्या है ?
उत्तर-
नियतिवाद और नव-नियतिवाद की परिभाषा निम्नलिखित हैनियतिवाद (Determinism) नियतिवाद एक बहुत प्रसिद्ध विचार है कि वातावरण मनुष्य के कामों को प्रभावित करता है या फिर हम कह सकते हैं कि संसार में से मानवीय व्यवहार के मतभेदों को संसार में प्राकृतिक वातावरण के मतभेदों के पक्ष से ही समझा जा सकता है। जो विषय, दर्शन, विधियाँ, सिद्धांत वातावरण में से उपजते हैं उन्हें वातावरणीय नियतिवाद कहा जाता है। मनुष्य और प्राकृतिक वातावरण दोनों में नज़दीक के सम्बन्ध हैं। प्रकृति के भौतिक तत्त्व धरती, मौसम, मिट्टी, खनिज, पानी और वनस्पति मनुष्य समूह पर असर/प्रभाव डालते हैं। यह मानव की आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रकृति मनुष्य के कामों और जीवन दोनों को प्रभावित करती है इसे नियतिवाद का सिद्धांत कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर अरस्तु का विचार था कि ठंडे देशों के लोग बहादुर होते हैं। उनके राजनैतिक संगठनों में पड़ोसी देशों पर राज करने की क्षमता होती है और एशिया के लोगों में हिम्मत की कमी होती है। ऐसे विचारों को समर्थक हैं-अरस्तु सट्रैम्बो, कार्ल रिटर, डब्ल्यू० एम० डेविस और ऐलन चर्चिल सैंपल।

नव-नियतिवाद (Neo-Determinism) नव-नियतिवाद का सिद्धान्त ग्रिफिन टेलर ने 1920 के दशक में दिया। ग्रिफिन टेलर द्वारा दिए इस सिद्धांत में वातावरणीय नियतिवाद और सम्भववाद के आपसी रास्ते को अपनाया गया। टेलर ने इस सिंद्धात को रुको और जाओ नियतिवाद का नाम भी दिया और कहा कि आप में से जो शहरों में रहते हैं या कभी शहर गए हैं, ने देखा होगा कि चौकों में यातायात साधनों को रंगीन बत्तियों द्वारा संचालित किया जाता है। लाल-बत्ती का अर्थ है रुको, पीली जो कि लाल और हरी के बीच में है, तैयार रहने के लिए कहती है और हरी बत्ती जाने के लिए। यह सिद्धांत बताता है कि न कोई स्थिति संपूर्ण भौतिक बंधनों की है न कोई सम्पूर्ण आजादी जैसे हालात हैं। मनुष्य कुछ हद तक प्रकृति को बदल सकता है परन्तु उसे खुद की प्रकृति को बदलना पड़ता है। मनुष्य और प्रकृति दोनों मिल कर काम करते हैं। जैसे कि प्रकृति मनुष्य को कई तरह के लक्ष्य देती है ताकि वह विकास कर सके और इनकी सीमा निर्धारित होती है। अगर मनुष्य किसी की सीमाओं को पार करता है तो यह साबित करता है कि उसकी दोबारा वहाँ वापसी नहीं होगी। टेलर ने इस बात पर जोर दिया है कि भूगोलवेत्ता का मुख्य और अहम् काम है यह एक सलाहकार होना चाहिए और उसे प्रकृति के रेखा-चित्र में कोई दख़ल अंदाजी नहीं करनी चाहिए।

इसीलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य को प्रकृति के नियमों में बाँध कर उसे जीतना चाहिए। यह सिद्धांत मुख्य रूप में संतुलन लाने में और उसका द्वेष ख़त्म करने की कोशिश करता है।

Geography Guide for Class 12 PSEB मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा भौगोलिक वेत्ता फ्रांस से सम्बन्धित है ?
(A) सैंपल
(B) विडाल डी ला ब्लांश
(C) ट्रीवार्था
(D) हिटलर।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 2.
इनमें से भूगोल की कौन-सी शाखा मानव भूगोल से सम्बन्धित नहीं है ?
(A) जनसंख्या भूगोल
(B) आर्थिक भूगोल
(C) सामाजिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 3.
नव-नियतिवाद का सिद्धांत किसने दिया ?
(A) ग्रीफिन टेलर
(B) ब्लांश
(C) रिटर
(D) ट्रिवार्था।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 4.
जनांकिकी विज्ञान (Demography) भूगोल की एक उप-शाखा से संबंधित है।
(A) सांस्कृतिक भूगोल
(B) आर्थिक भूगोल
(C) जन-अंकन भूगोल
(D) राजनीतिक भूगोल।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 5.
ऐलन सी० सैंपल कौन-से देश से सम्बन्धित हैं ?
(A) यू०एस०ए०
(B) फ्रांस
(C) जर्मनी
(D) इंग्लैंड।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 6.
विडाल डी० ला ब्लांश निम्नलिखित में से किस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं ?
(A) नियतिवाद
(B) सम्भवतावाद
(C) नव-नियतिवाद
(D) रैडीकल।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 7.
Influence of Geographic Environment किसकी पुस्तक है ?
(A) ब्लांश
(B) श्रीमति सैंपल
(C) कार्ल रिटर
(D) ट्रीवार्था ।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 8.
आरंभिक काल में मानव भूगोल का कार्य क्षेत्र कौन-सा था?
(A) खोज यात्राएँ
(B) क्षेत्र विश्लेषण
(C) नक्शे बनाना
(D) क्षेत्रीय विभिन्नता।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 9.
बस्ती का भूगोल निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है ?
(A) गाँव योजनाबन्दी
(B) उद्योग
(C) परिवार नियोजन
(D) पर्यटन।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 10.
‘सम्भावनाओं के अमल का प्रयोग असल और एक मात्र भौगोलिक समस्या है।’ यह विचार किसने दिया ?
(A) फैबल
(B) रिटर
(C) अरैटीस्थीन
(D) सैम्पल।
उत्तर-
(A)

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B. खाली स्थान भरें :

  1. फ्रेडरिक रैंटज़ल ने अपने अध्ययन में ………………… पर ज्यादा जोर दिया है।
  2. ………………… का विचार है कि ठंडे देशों के लोग हिम्मती होते हैं।
  3. …………….. मूल सिद्धांत तक तबदील कर देने वाली सोच रखने वाला विचार है।
  4. चुनाव का भूगोल ……………….. भूगोल की उप-शाखा है।
  5. कृषि विज्ञान ………………… भूगोल से सम्बन्धित विषय है।

उत्तर-

  1. संश्लेषण,
  2. अरस्तु,
  3. रैडीकल,
  4. राजनीतिक,
  5. आर्थिक भूगोल।

C. निम्नलिखित कथन सही (✓) हैं या गलत (✗):

  1. विषय के तौर पर भूगोल अला!-अलग धारणाओं का शिकार हो रहा है।
  2. स्थानिक विश्लेषण में परिवर्तनशील तत्त्वों की श्रृंखला के ढांचे पर जोर दिया है।
  3. प्राणी विज्ञान पौधों के अध्ययन से सम्बन्धित है।
  4. मानव विज्ञान में अध्ययन का केंद्र धरातल है।
  5. मानव भूगोल, संसार से जैसे है, जैसे हो सकता है, से सम्बन्धित है।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. गलत,
  5. सही।

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II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
कौन-से दो ग्रीक शब्दों से भूगोल बना है ?
उत्तर-
भू + गोल (Geo + Graphy).

प्रश्न 2.
पहली बार भू-गोल शब्द का प्रयोग किसने किया ?
उत्तर-
इरैटोस्थीन्स।

प्रश्न 3.
धरती के कोई दो भागों के नाम लिखो।
उत्तर-
भौतिक वातावरण और जीवन के रूप।

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प्रश्न 4.
मानव वातावरण के मुख्य तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
घर, गाँव, शहर, उद्योग, रेल-मार्ग इत्यादि।

प्रश्न 5.
भौतिक वातावरण के मुख्य तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
मिट्टी, मौसम, पानी, वनस्पति, जीव-जन्तु, धरातल इत्यादि।

प्रश्न 6.
तकनीक का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तकनीक का अर्थ है कि स्रोत और तकनीक का प्रयोग करके कुछ नया बनाना।

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प्रश्न 7.
सामाजिक भूगोल के कोई पाँच उप-क्षेत्र और अन्य सम्बन्धित विषयों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
सामाजिक भूगोल के उप-क्षेत्र और अन्य सम्बन्धित विषय हैं :

उप-क्षेत्र सम्बन्धित विषय
1. व्यवहार का भूगोल 1. मनोविज्ञान (Psychology)
2. समाज की भलाई का भूगोल 2. भलाई का अर्थशास्त्र
3. Geography of leisure 3. समाजशास्त्र (Sociology)
4. संस्कृति का भूगोल 4. मानवशास्त्र (Anthropology)
5. चिकित्सा भूगोल (Medical Geography) 5. महामारी से सम्बन्धित इलाज शास्त्र।

 

प्रश्न 8.
राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत आने वाले उप-क्षेत्र कौन-से हैं ?
उत्तर-
चुनाव भूगोल, सैनिक भूगोल।

प्रश्न 9.
नव-नियतिवाद का सिद्धान्त किसने और कब दिया ?
उत्तर-
1920 में टेलर ने नव-नियतिवाद का सिद्धान्त दिया।

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प्रश्न 10.
नियतिवाद विचारों के समर्थकों के नाम बताएं।
उत्तर-
अरस्तु, स्ट्रैबो, कार्ल रिटर, डब्ल्यू, एम० डेविस, ऐलन चर्चिल सैम्पल।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूगोल क्या है ?
उत्तर-
भूगोल शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द ‘Geo’ जिसका अर्थ है ‘पृथ्वी’ और ‘Graphy’ जिसका अर्थ है ‘वर्णन’ से बना है। भूगोल पृथ्वी को मनुष्य का निवास मानकर इसका अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है।

प्रश्न 2.
भूगोल को सभी विज्ञानों की माँ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
भूगोल में भौतिक और मानवीय दोनों ही विषयों का अध्ययन किया जाता है और इनके अध्ययन अन्तर्गत आने वाली शाखाओं और उप-शाखाओं का अध्ययन भूगोल विषय में किया जाता है। इसलिए हम कहते हैं कि भूगोल सभी विज्ञानों की माँ है।

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प्रश्न 3.
भूगोल को ज्ञान का शरीर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
प्राचीन काल में भूगोल का उद्देश्य धरती से सम्बन्धित ज्ञान एकत्रित करना है। यह ज्ञान यात्रियों, व्यापारियों, योद्धों, शूरवीरों पर आधारित था। भूगोल में पृथ्वी की शक्ल, आकार, अक्षांश, देशांतर, सूर्य मंडल इत्यादि का ज्ञान भी शामिल है। भूगोल विषय हर विषय के बारे में ज्ञान भी देता है। इसलिए भूगोल को ज्ञान का शरीर भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
मानव भूगोल क्या है ?
उत्तर-
एक परिभाषा के अनुसार मानव भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक वातावरण से पारस्परिक समानता का अध्ययन है।

प्रश्न 5.
मानव भूगोल का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
मानव भूगोल का उद्देश्य किसी स्थान के प्राकृतिक साधनों और जनसंख्या का अध्ययन करना है ताकि इनके प्राकृतिक स्रोतों को मानव के विकास और भलाई के लिए प्रयोग किया जा सके। यह पर्यावरण के मनुष्य पर पड़ रहे प्रभाव का अध्ययन करता है। यह मनुष्य द्वारा मानव भूगोल, मानव पर्यावरण और अर्थशास्त्र का परस्पर अध्ययन है।

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प्रश्न 6.
‘मनुष्य मानव विज्ञान का धुरा है’ कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
हमारे आस-पास जहाँ मनुष्य रहता है उसको पर्यावरण कहते हैं। मनुष्य एक सरगर्म भौगोलिक प्राणी है। मनुष्य पृथ्वी के स्रोतों का प्रयोग करता है और अपने लिए भोजन पैदा करता है। वह अपना भोजन मछलियों, गायभैसों, भेड़ों इत्यादि से प्राप्त करता है। मनुष्य ने पानी से बिजली उत्पन्न की और कोयले का प्रयोग उद्योगों की चलाने के लिए किया। इसलिए मनुष्य को मानव विज्ञान का धुरा कहा जाता है क्योंकि सभी भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ उसके इर्द-गिर्द ही घूमती हैं।

प्रश्न 7.
नियतिवाद की परिभाषा दें।
उत्तर-
संसार में मनुष्य के रहन-सहन के मतभेदों को संसार के भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण के मतभेदों के पक्ष से ही समझा जा सकता है। जो उद्देश्य, धारणा या पहुँच, विधियाँ पर्यावरण से उपजते हैं, उन्हें नियतिवाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
मनुष्य प्रकृति दोनों का एक नज़दीकी सम्बन्ध है।
उत्तर-
प्रकृति के भौतिक तत्त्व पृथ्वी, मौसम, मिट्टी, खनिज, पानी और वनस्पति मनुष्य जीवन पर प्रभाव डालते हैं। यह मनुष्य की आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रकृति मनुष्य के कार्य और जीवन पर भी प्रभाव डालती है। इस सिद्धान्त को नियतिवाद कहते हैं। मनुष्य कुछ हद तक प्रकृति को बदल सकता है परन्तु उसको अपने आप को पर्यावरण के अनुकूल बदलना होता है। मनुष्य और प्रकृति एक साथ काम करते हैं।

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प्रश्न 9.
पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार स्थानीय विभाजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मानव भूगोल की पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार स्थानीय विभाजन का अर्थ है कि धरती की सतह पर अलगअलग स्थानों पर किसी खास व्यवहार या विशेषता के महत्त्व, कद्रों-कीमतों या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदण्डों या निरीक्षण का समूह है।

प्रश्न 10.
मानव भूगोल की प्रकृति पर नोट लिखो।
उत्तर-
मानव भूगोल अपने भौगोलिक पक्षों के विस्तार के अलावा प्राकृतिक भौतिक पर्यावरण से सीधे तौर से सम्बन्ध रखता है। तीन संदर्भ इसकी व्याख्या करते हैं :—

  1. स्थानीय विश्लेषण-इसमें जो तत्त्व परिवर्तनशील हैं उनकी श्रृंखला के ढांचे पर जोर दिया जाता है।
  2. मानवीय भूगोल और उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों का सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण अध्ययन है।
  3. क्षेत्रीय संश्लेषण या संगठन-इसमें पहले दोनों ही सन्दर्भो को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
भूगोल को एकीकरण का विज्ञान क्यों कहा जाता है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
भूगोल विषय का दूसरे विषयों से नज़दीक का सम्बन्ध है। अलग-अलग विषय अच्छी जानकारी देते हैं। परन्तु सिर्फ वही भाग पढ़े जा सकते हैं जो भूगोल के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करते हैं। भूगोल में कई बहु-विषयक (Interdisciplinary) विषयों का अध्ययन किया जाता है, इसलिए इसे एकीकरण का विज्ञान कहा जाता है।

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प्रश्न 12.
रैटज़ल के अनुसार मानव भूगोल क्या है ? उसने अधिक किस चीज़ पर जोर दिया है ?
उत्तर-
फ्रेडरिक रैटजल के अनुसार, “मानव भूगोल मनुष्य के समाज और पृथ्वी की सतह की सतह के आपसी संबंधों का संगठित/संश्लेषणात्मक अध्ययन है। इस परिभाषा में सब से अधिक बल संश्लेषण पर दिया गया है।

प्रश्न 13.
भूगोल एक बहुत ही व्यापक विषय है ? क्यों? कोई दो दृष्टिकोण दें।
उत्तर-

  1. भूगोल का स्वभाव विश्वव्यापी है। यह पृथ्वी का अध्ययन करता है।
  2. यह भौतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक गतिविधियों दोनों का ही अध्ययन है।

प्रश्न 14.
भूगोल प्राकृतिक विज्ञान भी है और सामाजिक भी। कैसे ?
उत्तर-
भूगोल संश्लेषण का विज्ञान है। यह किसी क्षेत्र के भौतिक और मानवीय स्वरूप का अध्ययन कर उस क्षेत्र की पूर्ण तस्वीर पेश करता है। इसके अन्तर्गत पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान इत्यादि प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन करते हैं। समाज विज्ञान मानवीय गतिविधियों, कृषि इत्यादि का अध्ययन करता है। इस तरह भूगोल भौतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 15.
आर्थिक भूगोल की मुख्य शाखाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  1. कृषि भूगोल
  2. औद्योगिक भूगोल
  3. व्यापार भूगोल।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक गतिविधियां सांस्कृतिक भूदृश्य पेश करती हैं। उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
कुशल और अच्छी तकनीक का प्रयोग कर मनुष्य भौतिक पर्यावरण के स्रोतों का प्रयोग करता है। मनुष्य स्रोतों के साथ संभावनाएं बनाता है और ऐसा करके स्रोतों को प्राप्त करता है। प्रकृति मनुष्य को अवसर प्रदान करती है और वह इन अवसरों का प्रयोग करता है। इसको संभवतावाद भी कहा जाता है। मानवीय गतिविधियों की छाप हर जगह बनाई गई है : जैसे—

  1. पहाड़ी, पर्वतीय स्थानों पर स्वास्थ्य घर।
  2. शहरी क्षेत्रों का फैलाव।
  3. बाग, खेत, चरागाह समतल इलाकों में।
  4. समुद्री तटीय क्षेत्रों में बन्दरगाहें।

प्रश्न 2.
भौतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक पर्यावरण में क्या अंतर है ?
उत्तर-
मानव भूगोल का विषय बहुत विशाल है। मानव भूगोल में पृथ्वी और मानव के आपसी संबंध के बारे में अध्ययन किया जाता है। एक प्रसिद्ध अमेरिकन भूगोलवेत्ता Finch और Trewartha ने मानव भूगोल का दो भागों में बाँटा है। भौतिक/प्राकृतिक वातावरण और सांस्कृतिक/मानवीय पर्यावरण।

  1. भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण-भौतिक पर्यावरण में मौसम, जलवायु, धरातल, प्राकृतिक स्रोत, वनस्पति, मिट्टी, खनिज पदार्थ, जंगल, स्थिति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  2. सांस्कृतिक/मानवीय पर्यावरण-सांस्कृतिक वातावरण में कई मानवीय कार्य भी शामिल हैं ; जैसे जनसंख्या, मानवीय रहन-सहन और मनुष्य से संबंधित कई कार्य जैसे-कृषि, निर्माण उद्योग, यातायात आदि के साधन इस वातावरण में शामिल हैं।

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प्रश्न 3.
भूगोल क्या है ? इसकी कोई तीन विशेषताएँ बतायें।
उत्तर-
भूगोल दो शब्दों से मिलकर बना है। Geo शब्द का अर्थ है पृथ्वी और Graphy शब्द का अर्थ है वर्णन। इसलिए भूगोल पृथ्वी को मनुष्य का निवास मान कर इसका अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है। हार्टशान के अनुसार, “भूगोल पृथ्वी तल पर एक स्थान से दूसरे तक मिलने वाले मतभेदों का वास्तविक और क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या है।”
विशेषताएँ-इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  1. पृथ्वी और मनुष्य संबंधी सिद्धांत बनाने वाला विज्ञान है।
  2. मानवीय संबंधों के बारे में भाषायी विशेषताएँ पेश करता है।
  3. भूगोल क्रमबद्ध अध्ययन करता है।

प्रश्न 4.
संभवतावाद के सिद्धांत की उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
एक विचार बताता है कि प्रकृति मनुष्य पर अपना नियंत्रण रखती है। कई भूगोलवेत्ताओं ने यह विचार मानने से इन्कार किया है। उन्होंने अधिक ज़ोर इस बात पर दिया है कि मनुष्य कोई भी चीज़ चुनने के लिए पूरी तरह आजाद है। जब मनुष्य को एक सक्रिम शक्ति के रूप में देखा जाए न कि किसी उदासीन शक्ति के रूप में इस सिद्धांत को संभवतावाद का सिद्धान्त कहा जाता है। फैंवर ने इसको संभवतावाद का नाम दिया है और उसने लिखा है संभवतावाद के कार्यान्वयन का उपयोग ही एकमात्र भौगोलिक समस्या है। विडाल डी ला ब्लांश भी संभवतावाद के सिद्धांत का समर्थन करते हैं। उनका भी यह विचार था कि सीमाएँ तय करते हुए मानवीय बस्तियों के लिए कुछ संभावनाएँ पेश करती हैं परंतु मनुष्य अपने परम्परागत ढंग के अनुसार इनके प्रति क्रिया करता है। प्रकृति केवल सलाहकार है। इससे अधिक और कुछ भी नहीं। यहाँ कोई सीमा नहीं बल्कि कई संभावनाएं मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त जे०जे० बुर्नेश आदि ने भी इस धारणा को अपनाया है।

प्रश्न 5.
मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र पर नोट लिखो।।
उत्तर-
मानव भूगोल का अपना एक विषय-क्षेत्र, दर्शन, धारणा है। जैसे कि अर्थ-शास्त्र का विषय-क्षेत्र उपज, उत्पादन, प्रयोग और गतिशीलता से संबंधित है। राजनीतिक भूगोल का विषय क्षेत्र चुनाव प्रणाली, सैनिक भूगोल आदि का अध्ययन करता है। इस तरह ही मानव भूगोल में हम मानवीय समाज, मानव के निवास स्थान और विकास स्थानों के विकास के बारे में अध्ययन करते हैं। मानव भूगोल के अंतर्गत अलग-अलग (भिन्न-भिन्न) जाति वर्ग संसार के भिन्न-भिन्न इलाकों की जनसंख्या और उसकी बढ़ोत्तरी, विभाजन और घनत्व जैसे तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। यह मानवीय समूह और संस्कृति दोनों ही मतभेदों का अध्ययन करता है। मानव भूगोल अपने विषय-क्षेत्र में संस्कृति, नस्ल, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनैतिक प्रबंध, संगीत, गाँव और रिहायशी स्थान इत्यादि को शामिल कर लेता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

प्रश्न 6.
मानव भूगोल की शाखाओं और उपशाखाओं पर नोट लिखो।
उत्तर-

शाखाएँ उप-शाखाएँ
1. सामाजिक भूगोल (i) व्यवहार का भूगोल (ii) समाज कल्याण भूगोल (iii) सांस्कृतिक भूगोल (iv) चिकित्सा भूगोल।
2. राजनीतिक भूगोल (i) चुनाव भूगोल (ii) सैनिक भूगोल
3. जनसंख्या भूगोल (i) मानवीय आबादी भूगोल
4. बस्तीवाद भूगोल शहरी और गाँव योजनाबंदी
5. आर्थिक भूगोल (i) कृषि भूगोल, (ii) साधनों का भूगोल, (iii) उद्योग भूगोल, (iv) बाजारीकरण या बिक्री भूगोल, (v) पर्यटन भूगोल, (vi) राष्ट्रीय साधनों का भूगोल।

 

प्रश्न 7.
भूगोल को एलन चर्चिल सैंपल की क्या देन है ?
उत्तर-
एलन चर्चिल सैंपल (8 जनवरी, 1863-8 मई, 1932) एक अमेरिकन भूगोलवेत्ता थे और Association of American Geographers की पहली महिला प्रधान बनी। वह नियतिवाद की समर्थक थीं। उनकी पुस्तकें American History and its Geographic conditions, Influence of Geographic Environment, Geography of Mediterrian Region. भूगोल को एक बहुत बड़ी देन है। उनका मुख्य विषय नियतिवाद था। नियति के समर्थक इस भूगोलवेत्ता के अनुसार मानव पृथ्वी की सतह का उत्पादन है और सिर्फ इसका बच्चा ही नहीं, धूल भी है। पृथ्वी ने उसको सिर्फ जन्म ही नहीं बल्कि भोजन भी दिया, कुछ काम करने को भी दिया, विचार दिये, मुश्किलों से अवगत करवाया, शारीरिक ताकत दी, बुद्धि दी, रास्ते ढूंढ़ने और सिंचाई जैसी मुश्किलें पेश करके उनके हल तक भी पहुँचाया। भूगोल को श्रीमती सैंपल अमेरिकी भूगोलवेत्ता की महत्त्वपूर्ण देन पर्यावरणीय नियतिवाद का सिद्धांत है।

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प्रश्न 8.
नव-नियतिवाद के सिद्धांत पर नोट लिखो।
उत्तर-
टेलर द्वारा 1920 के दशक में जो पर्यावरणीय नियतिवाद और संभवतावाद के बीच का रास्ता अपनाया, उसको नव-नियतिवाद का सिद्धांत दिया गया है। जैसे कि प्रकृति मनुष्य को विकास के कई तरह के लक्ष्य देती है और इसके अन्तर्गत कई सीमाएँ निर्धारित करती हैं। अगर कोई मनुष्य इन सीमाओं को पार करता है तो इसका भाव है कि (No Return) उसकी दोबारा वापसी नहीं होती। इस तरह संभवतावाद के सिद्धांत ने ही कई आलोचकों को निमंत्रण दिया। ग्रीफिन टेलर का एक नया सिद्धांत नव-नियतिवाद इस समय पेश किया जिसमें उसने इस बात पर जोर दिया कि भूगोलवेत्ता का मुख्य और कार्य यह है कि भूगोलवेत्ता एक सलाहकार होना चाहिए और उसको प्रकृति के रेखाचित्र में कोई दखल-अंदाजी नहीं करनी चाहिए। इस सिद्धांत के बारे में यह भी कहा गया कि रुको और नियतिवाद की ओर जाओ। यह नियतिवाद और संभवतावाद के बीच का रास्ता है। इसमें यह कहा गया है कि न तो कोई स्थिति पूरी तरह महत्त्वपूर्ण भौतिक बंधन की है, न ही कोई पूर्णतया स्वतन्त्र हालात हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य को प्राकृतिक नियमों में रहकर काम करना चाहिए।

प्रश्न 9.
शिल्प विज्ञान समाज के सांस्कृतिक विकास को स्पष्ट करती है। इसके पक्ष में तीन उदाहरण पेश करो।
उत्तर-
शिल्प विज्ञान का अर्थ है कि कुछ तकनीक और औजार के प्रयोग से कोई चीज़ तैयार की जाए। यह किसी प्राकृतिक पर्यावरण के महत्त्व को और अधिक बढ़ा देती है जैसे कि पेड़ की लकड़ी एक प्राकृतिक स्रोत है जब शिल्प विज्ञान की मदद से इससे फर्नीचर बना लिया जाता है तब इसका महत्त्व पहले से बढ़ जाता है। मनुष्य प्राकृतिक नियमों को समझता है और कुछ कला और तकनीकी ज्ञान का प्रयोग कर किसी चीज़ का निर्माण करता है। इस तरह शिल्प विज्ञान के सांस्कृतिक विकास के स्तर को स्पष्ट करता है।
उदाहरण—

  1. घर्षण और ताप के सिद्धांतों को समझने के बाद मनुष्य ने आग की खोज की।
  2. DNA और आनुवंशिकी (Genetics) के गुप्त रूप को समझने के बाद कई बीमारियों के ईलाज का पता चला।
  3. प्रकृति के बारे में ज्ञान ने मनुष्य को शिल्प विज्ञान के विकास करने की शिक्षा दी।

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प्रश्न 10.
भूगोल में दुविधा से आप क्या समझते हैं ? इसकी तीन उदाहरणे दें।
उत्तर-
दुविधा का अर्थ है जब हम एक ही जगह या किसी एक विषय में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का अध्ययन करें जैसे कि भूगोल विषय में इसके दो विचार हैं एक वातावरण और दूसरा मानव भूगोल के महत्त्व का।
—इसी तरह इसके एक, प्रादेशिक और दूसरा नियमबद्ध भूगोल के बारे में चिंतन करता है।
—यहाँ मानव भूगोल और भौतिक भूगोल में द्विविभाजन होता है।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानवी भूगोल से आप क्या समझते हैं ? अलग-अलग भूगोलवेत्ताओं का उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें।
उत्तर-
मनुष्य पृथ्वी पर एक भौगोलिक प्रतिनिधि है। मनुष्य पर्यावरण का एक सक्रिय हिस्सा है। मनुष्य अपनी मूलभूत-आवश्यकताओं जैसे कि खाना, रहना और कपड़ा इत्यादि की पूर्ति प्राकृतिक स्रोतों के प्रयोग करके करता है। मनुष्य प्रकृति का गुलाम नहीं है, परंतु उसकी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इसके अनुसार चलना पड़ता है। कई बार मनुष्य को अपने आपको प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार चलना पड़ता है। पर्यावरण के मतभेदों के कारण किसी क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन में मतभेद होता है। खाना, पहरावा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, परंपरा, सामाजिक-आर्थिक हालात, धार्मिक कार्यकुशलता सीधे रूप में पर्यावरण से संबंधित हैं और उस पर निर्भर हैं। जैसे कि जहाँ मानसून द्वारा वर्षा अधिक होती है वहाँ लोग अधिकतर कृषि का ही काम करते हैं। समशीतोष्ण उष्ण जलवायु में रहने वाले लोग अधिकतर, पशुपालन इत्यादि का काम करते हैं। मानवीय प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार अपने कार्य प्रणाली, रहन-सहन इत्यादि को बदल लेते हैं।

मानवीय भूगोल-बहुत सारी सांस्कृतिक आकृतियाँ मनुष्य और प्रकृति के आपसी संबंधों के कारण पैदा होती हैं। इनमें बस्तियां, कस्बे, सड़कें, उद्योग, इमारतें इत्यादि शामिल हैं। इस तरह मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से एक प्रकार की समानता का अध्ययन है। मानव भूगोल अपने भौगोलिक तत्वों के बिना भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण से सीधे तौर से संबंधित है। प्रत्येक प्राकृतिक, भौतिक, जीव और सामाजिक, आर्थिक विज्ञान का अपना विषय क्षेत्र है। मानवी भूगोल से हम मानवीय जाति वर्ग, जनसंख्या की बढ़ोत्तरी, घनत्व, जनाकंन की विशेषताएँ, प्रवास की बनावट, मानवीय समूह और आर्थिक क्रियाओं में भौतिक और सांस्कृतिक भिन्नता का अध्ययन किया जाता है। मानवीय भूगोल नस्ल, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनैतिक प्रबंध, मानसिक बहाव, यातायात, व्यापार, उद्योग, संचार साधनों को अपने अध्ययन क्षेत्र अधीन समेट लेता है।
मानवीय भूगोल की उदाहरणे समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कोई भी एक उदाहरण पूर्णव्यापी नहीं मानी जाती। मानवीय भूगोल के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं—

  1. मानवीय भूगोल की एक सरल परिभाषा के अनुसार, “मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापी समानता का अध्ययन है।”
  2. फ्रेडरिक रैटज़ल के अनुसार, “मानवीय भूगोल, मानवीय समाज और पृथ्वी की सतह के आपसी संबंधों का संगठित/संश्लेषणात्मक अध्ययन है।” (इस परिभाषा में ज्यादा ज़ोर संश्लेषण पर दिया गया है)
  3. पाल विडाल डी ला ब्लांश के अनुसार, “मानवीय, भूगोल प्रकृति और मनुष्य के आपसी संबंधों का अध्ययन है।”
  4. मानवीय भूगोल की पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार, “स्थानीय विभाजन से भाव है, पृथ्वी की सतह पर, अलग अलग स्थानों पर किसी विशेष व्यवहार या विशेषता के महत्त्व, मूल्य या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदंडों या निरीक्षकों का समूह है।”

इन उदाहरणों में काफी अंतर हैं पर सारे भूगोलवेत्ता एक बात से सहमत हैं कि मानवीय भूगोल उन समस्याओं का अध्ययन करती है जो मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंधों से पैदा होती हैं। मानवीय भूगोल मनुष्य का पर्यावरण से संगम का अध्ययन है। पर्यावरण से सम-तुलना और पर्यावरण में कुछ रूप परिवर्तन मनुष्य द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 2.
मानवी भूगोल की प्रकृति और विषय-क्षेत्र पर नोट लिखें।
उत्तर-
मानवीय भूगोल की प्रकृति-मानवीय भूगोल का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी पर जीवन की क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन करना होता है। अलग-अलग स्थानों पर रंग, कुशलता, रहन-सहन, रीति-रिवाज़, धर्म, सामाजिक, आर्थिक हालात में काफी भिन्नता देखने को मिलती है। यह भिन्नताएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में प्राकृतिक पर्यावरण से प्रभावित होती है। मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंध के कारण सांस्कृतिक प्राकृतिक, छवि पेश करते हैं। ट्रीवार्था के अनुसार, “मनुष्य और सांस्कृतिक गतिविधियां मानवीय भूगोल का मुख्य विषय है। इस तरह मानव भूगोल जनसंख्या, प्राकृतिक स्रोत, सांस्कृतिक भूदृश्यों के आपसी संबंधों का अध्ययन करता है।”

मानवीय भूगोल मनुष्य के उसके पर्यावरण से आपसी संबंधों का सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक अध्ययन करता है। मानवीय भूगोल का अध्ययन मानव पर्यावरण का एक व्यापक अध्ययन है। यह मनुष्य की प्राकृतिक पर्यावरण से समानता का अध्ययन करता है। मानवीय भूगोल सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक विकास इत्यादि का अध्ययन करता है। यह पर्यावरण अनुकूलन, क्षेत्रीय अनुकूलन, स्थानीय, संगठन का विश्लेषण करता है।

मनुष्य एक सक्रिय प्रतिनिधि है पर यह प्रकृति का हिस्सा नहीं है। मनुष्य एक सांस्कृतिक भूदृश बनाता है भौतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाकर। इस प्रकार मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापक समानता का अध्ययन करता है।

विषय क्षेत्र-मानवीय भूगोल का विषय-क्षेत्र बहुत विशाल है पर भूगोलवेत्ताओं के विचार में विषय-क्षेत्र को लेकर काफी भिन्नता पाई जाती है। मानवीय भूगोल पृथ्वी की सतह पर मिलने वाले अलग-अलग मानवीय जातिवर्ग का अध्ययन है। मानवीय भूगोल की विषय सामग्री प्रकृति, मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंध है।
मानवीय भूगोल के विषय क्षेत्र के मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं—

  1. मानवीय भूगोल के अधीन मानवीय जनसंख्या, मानवीय विभाजन और जनसंख्या के घनत्व का अध्ययन किया जाता है।
  2. मानवीय भूगोल के अंतर्गत किसी स्थान के प्राकृतिक स्रोतों, मनुष्य द्वारा प्रयोग किये जाने वाले साधनों और प्राकृतिक स्रोतों से कई प्रयोग योग्य बनाए उपयोगी साधनों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  3. मानवीय भूगोल अधीन सांस्कृतिक तत्व जैसे भाषा, धर्म, रीति-रिवाज और परंपराएं, ग्रामीण, शहरी जनसंख्या इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  4. मानवीय भूगोल के अधीन भौगोलिक और मानवीय रिश्तों का अध्ययन करके किसी स्थान पर मनुष्य और प्राकृतिक पर्यावरण के आपसी संबंधों के बारे जानकारी हासिल की जाती है।
  5. सामयिक विकास के बारे में अध्ययन प्राप्त किया जाता है।
  6. कई आर्थिक क्रियाएँ, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन, संचार के साधनों के स्थानीय विभाजन भी मानवीय भूगोल के विषय-क्षेत्र के अधीन आता है।

प्रश्न 3.
मानवीय भूगोल की शाखाओं और उप-शाखाओं पर नोट लिखो।।
उत्तर-
मानवीय भूगोल मानवीय जीवन के संपूर्ण तत्व और जीवन स्थान के बीच के रिश्तों की व्याख्या करता है। यह विषय पृथ्वी की सतह पर मानवीय तत्वों को समझने और व्याख्या करने के लिए सामाजिक विज्ञान से संबंधित और विषयों से भी महत्त्वपूर्ण और अर्थ-भरपूर संबंध रखता है। मानवीय भूगोल मानव पर पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन है। मानवीय भूगोल निम्नलिखित शाखाओं और उप-शाखाओं को अपने विषय-क्षेत्र में लेता है।

1. सामाजिक भूगोल (Social Geography)—इस शाखा के अंतर्गत सांस्कृतिक क्रियाएँ जैसे रहन-सहन,
भोजन, नस्ल, पहरावा, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठनों इत्यादि का अध्ययन शामिल है। भूगोलवेत्ता ने इस शाखा को सामाजिक भूगोल का नाम दिया है। इस शाखा के अंतर्गत आने वाली मुख्य शाखाएँ हैं और उनके अंतर्गत आने वाले सामूहिक विषय—

  1. व्यवहार का भूगोल-और सामूहिक क्षेत्र
  2. समाज भलाई भूगोल-भलाई का अर्थशास्त्र
  3. कार्यनिवृति का भूगोल-समाजशास्त्र
  4. सांस्कृतिक भूगोल-मानव शास्त्र, महिलायों से संबंधित शास्त्र
  5. चिकित्सा भूगोल-महामारियों से सम्बन्धित इलाज शास्त्र।

2. आर्थिक भूगोल (Economic Geography)-आर्थिक भूगोल आर्थिक मनुष्य की गतिविधियों का अध्ययन करता है। यह प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग, वाणिज्य, व्यापार प्रयोग इत्यादि का अध्ययन करता है। यह किसी स्थान और औद्योगिक विकास का अध्ययन भी करता है। इसी उप-शाखाएँ और सामूहिक क्षेत्र अग्रलिखित हैं।

उप शाखाएँ सामूहिक विषय
1. साधनों का भूगोल (i) अर्थशास्त्र

(ii) साधनों का अर्थशास्त्र

2. कृषि और जरायति भूगोल कृषि विज्ञान
3. उद्योगों का भूगोल उद्योग अर्थशास्त्र
4. बाजारीकरण या बिक्री भूगोल

 

(i) व्यापार अध्ययन,

(ii) अर्थशास्त्र वाणिज्य

5. पर्यटन भूगोल (i) पर्यटन

(ii) यात्रा व्यापार

6. राष्ट्रीय सम्बन्धों का भूगोल राष्ट्रीय व्यापार

 

3. जनसंख्या भूगोल (Population Geography)-जनांकन भूगोल में संसार के अलग-अलग भाग की आबादी वृद्धि, विभाजन और घनत्व जैसे तत्वों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मृत्यु दर, जन्म दर, लिंग अनुपात, आयु संरचना का अध्ययन भी शामिल है। यह उप शाखा जनांकन विज्ञान है।
4. राजनीतिक भूगोल (Political Geography)—इसमें राजनीतिक मामलों चुनाव, सैनिक, राजनीति आदि का अध्ययन किया जाता है। इसमें राजनीतिक सीमाएँ, राजधानी, स्थानीय सरकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों इत्यादि के बारे में भी अध्ययन किया जाता है। इसकी उप-शाखाएँ और समान क्षेत्र निम्नलिखित हैं—

उपशाखाएँ सामूहिक क्षेत्र
(i) चुनाव भूगोल राजनीतिक शास्त्र
(ii) सैनिक भूगोल चुनाव विश्लेषण अध्ययन, सैनिक विज्ञान।

 

5. बस्तीवादी भूगोल (Settlement Geography)-इसमें मानव के रहन-सहन, रीति-रिवाजों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। इसकी उपशाखाएँ हैं—

  1. शहरी योजनाबंदी
  2. ग्रामीण योजनाबंदी।

6. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)—एक प्राचीन समय के मुकाबले कितना भौगोलिक विकास हुआ है इस अध्ययन क्षेत्र के अधीन आता है।

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प्रश्न 4.
मानव भूगोल के मुख्य पड़ाव और उद्देश्य का विस्तृत विभाजन करें।
उत्तर-
मानव भूगोल मनुष्य को अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापी समानता का अध्ययन करता है। ऐतिहासिक तथ्य को देखते हुए पता चलता है कि मानवीय भूगोल कई पड़ावों से गुजर कर हम तक पहुँचा है और इन पड़ावों के कुछ उद्देश्य भी रहे हैं। मानव भूगोल के मुख्य पड़ाव और उनके उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
1. आरम्भिक बस्तीवाद काल-इस काल में भूगोलवेत्ताओं का काम खोज करना और यात्राएँ करना था, और उनके बाद इनकी यात्राओं के दौरान की गई खोजों का रिकार्ड एकत्र करना था। जैसे-जैसे राजनीतिक मुद्दों और व्यापारिक, चिंतन में वृद्धि होती गई वैसे-वैसे अलग-अलग स्थानों पर भूगोलवेत्ता और विद्वानों ने ज्यादा खोज यात्राएँ शुरू की ताकि व्यापार इत्यादि को उत्साहित करने के लिए नये-नये तरीके ढूढ़े जाएँ।

2. प्राचीन काल-प्राचीन काल में भूगोलवेत्ताओं का मुख्य कार्य निपुण बनाना था। वह नक्शे बनाते थे और खगोलीय नपाई करते थे। पुरातन प्रमाणों के अनुसार पता चलता है कि पुराने विद्वानों की मुख्य रुचि नक्शे को बनाने में थी वह नक्शे बनाकर खगोल की नपाई करते थे। सब से पहले भूगोलवेत्ताओं का खिताब यूनानी विद्वानों को जाता है। इनमें से मुख्य यूनानी भूगोलवेत्ता थे-होमर, हैरोडोटस, थेलज, अरस्तु और ऐरोटोस्थीनज।

3. बस्तीवादी काल का प्रारंम्भिक दौर-इस काल में विद्वानों का मुख्य कार्य विश्लेषण करना रहा है। इस काल में हर क्षेत्र के सभी पक्षों का विस्तृत अध्ययन और बाद में उसका वर्णन किया जाता था। इस समय और सोच का मुख्य विचार था कि सभी क्षेत्र मिल कर पूरी पृथ्वी बनाते हैं जिसका पूर्ण तौर पर अध्ययन ही सभी अध्ययन का रास्ता खोल देता है।

4. 1930 और दूसरे युद्ध के बीच का काल-इस काल का मुख्य कार्य क्षेत्रीय अलगाव करना है। इस क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी नवीनपन की पहचान करना होता था और पहचान करके फिर यह जानना था कि क्षेत्र किसी दूसरे क्षेत्र से कितना प्राकृतिक और मानवीय कारणों की वजह से अलग है।

5. 1950 से आखिर के 1960 तक-इस काल का मुख्य कार्य स्थानीय संगठन था। यह काल कंप्यूटर और उच्च तकनीक विज्ञान का प्रयोग काल था। इसमें मानवीय काम और विकास क्षेत्र के नक्शे तैयार किये जाते थे और विश्लेषण के नियमों का प्रयोग किया जाता था।

6. 1970 में-1970 के काल के दौरान भूगोलवेत्ता का मुख्य कार्य मानववादी, प्रगतिवादी और व्यवहारवादी सोच प्रक्रियाओं का उभार करना था। मात्रात्मक क्रांति से असंतुष्ट और भूगोल संबंधी अमानवीय और हिंसक चीजों और दंगों-तरीकों से मानवीय भूगोल में अलग-अलग सोच का जन्म हुआ।

7. 1980 में-इस दशक में भूगोल का मुख्य कार्य मानवीय भूगोल के सामाजिक राजनीतिक असंबंधी मानवीय प्रसंगों का अध्ययन किया जाता था।

8. 1990 में-इस दौरान भूगोलवेत्ताओं का मुख्य कार्य उत्तर आधुनिकतावाद था। अब मानवीय क्रियाओं की व्याख्या करने वाले सिद्धांतों पर सवाल उठना और आलोचना शुरू हो गई। हर प्रबन्ध की एक नई सोच सामने आई और एक नई सोच के महत्त्व पर अब जोर केंद्रित किया गया। अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं और भौगोलिक धाराणाओं में एक समय में अन्य विषयों को ज्ञान प्रदान करने का प्रयोग लगातार शुरू हो रहा था।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

मानव भूगोल और इसकी शाखाएं PSEB 12th Class Geography Notes

  • भूगोल न सिर्फ कई विषयों का सुमेल है, बल्कि अनुभव किया जाने वाला एक उपयोगी विषय है। ।
  • भूगोल को मुख्य रूप में दो हिस्सों-भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में विभाजित किया जाता है। भौतिक भूगोल में हम स्थिति, धरातल, पर्यावरण, जल प्रवाह, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, खनिज पदार्थों के बारे में अध्ययन करते हैं। मानव विज्ञान में हम संस्कृति, प्रजाति, धर्म, भाषा, तकनीक, सामाजिक । संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनीतिक प्रबंध इत्यादि के बारे में ज्ञान हासिल करते हैं। इस तरह से भौगोलिक या सम्पूर्ण पर्यावरण बनता है।
  • मानव भूगोल साधारण शब्दों में मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सर्वपक्षीय समानता का अध्ययन है।
  • मानव भूगोल, भूगोल का एक अहम् हिस्सा है, जिसमें हम पृथ्वी पर मानव होड़ और उसकी गतिविधियों के बारे में पढ़ते हैं।
  • भूगोल दो मुख्य भागों क्षेत्रीय और क्रमबद्धता में विभाजित है और मानव और मानव भूगोल क्रमबद्ध भूगोल का ही एक हिस्सा हैं।
  •  मानवीय भूगोल प्राकृतिक/भौतिक पर्यावरण से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। मानव भूगोल में मानव और ! उसके पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक अध्ययन किया जाता है।
  • मानव भूगोल के हर विषय की अपनी एक अध्ययन प्रणाली और विषय क्षेत्र होता है। जैसे कि अर्थशास्त्र में हम वस्तुओं के उत्पादन, उपभोग इत्यादि के बारे में पूछते हैं। भू-गर्भ विज्ञान में धरती की पपड़ी (Crust) की बनावट, वनस्पति विज्ञान में जानवरों और पौधों के बारे में।
  • इस तरह मानव विज्ञान का विषय असीमित है। इसमें हम जाति और वर्ग का अध्ययन करते हैं। इसमें आबादी के बारे में, विभाजन और घनत्व, जनांकन, प्रवास की बनावट, संस्कृति, अलगाव, आर्थिक क्रियाओं के बारे में पढ़ते हैं।
  • भौगोलिक धारणाएँ उस समय और सिद्धांत का अध्ययन है जिसके आधार पर भूगोल को एक विषय का .रुत्बा प्राप्त हुआ है। भूगोल विषय में भौगोलिक धारणाओं का अर्थ है कि किसी खास स्थान और संदर्भ में भौगोलिक ज्ञान और विकास को समझना है।
  • जो आदर्श , पहुँच, विधियों और सैद्धांतिक पर्यावरण में संबंधित सरकारों में से निकलते हैं। उन्हें नियतिवाद कहते हैं।
  • मानव-मानव प्रकृति का एक गुणी प्रतिनिधि है।
  • पर्यावरण-पर्यावरण का अर्थ है-हमारे आस-पास का दायरा जिसमें मनुष्य रहते हैं और काम करते हैं। यह मुख्य रूप में दो तरह का होता है-भौगोलिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण (पर्यावरण)।
  • मानवीय भूगोल-मानव भूगोल, मनुष्य के अपने आस-पास पर्यावरण के प्राकृतिक वातावरण से सर्वपक्षीय साझ का अध्ययन है।
  • मानवीय भूगोल का उद्देश्य-इसका मुख्य उद्देश्य मानव और प्रकृति के परिवर्तन का अध्ययन करना है।
  • भूगोल का विषय-क्षेत्र
    • भूगोल सांस्कृतिक भूदृश्य का अध्ययन करना है।
    • संसाधन उपयोग
    • पर्यावरण अनुकूलन (समायोजन)
  • मानवीय भूगोल की उप-शाखाएँ-मानव भूगोल की शाखाएँ निम्नलिखित हैं
    • सांस्कृतिक भूगोल
    • सामाजिक भूगोल
    • राजनीतिक भूगोल
    • जनसंख्या भूगोल
    • बस्ती भूगोल
    • आर्थिक भूगोल।
  • भौतिक वातावरण के मुख्य तत्त्व-मिट्टी, जलवायु, धरातल, पानी, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु आदि।
  • सांस्कृतिक भूगोल के मुख्य तत्त्व-घर, गाँव, शहर, सड़क, रेलमार्ग, उद्योग, बंदरगाह, खेत आदि।
  • मुख्य मानव भूगोलवेत्ता-रैट्ज़ेल, विडाल डी, ला ब्लाँश, ऐनल चर्चिल सैंपल, कार्ल रिटर, हमबोल्ट, टेलर, ट्रीवार्था इत्यादि।
  • Ozone Layer. प्रारम्भिक ग्रामीण कार्यों के कारण खराब हो रही है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 2 घर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 2 घर

PSEB 10th Class Home Science Guide घर Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की आवश्यकता के दो मुख्य कारण बताएं।
अथवा
घर की आवश्यकता किन कारणों से होती है?
उत्तर-

  1. घर सुरक्षा प्रदान करता है-घर की चार दीवारी में रहकर हम धूप, वर्षा, सर्दी, चोरों और जंगली जानवरों से सुरक्षित महसूस करते हैं।
  2. शिक्षा-मानव की शिक्षा घर से आरम्भ होती है। घर में ही हम भाषा और अच्छे सामाजिक गुण हासिल करते हैं।

प्रश्न 2.
आय के हिसाब से भारत में घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
आय के हिसाब से भारत में घरों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. कम आय वाले घर जिनमें सिर्फ एक या दो कमरे ही होते हैं।
  2. मध्य वर्गीय घर जिनमें कम-से-कम तीन या चार कमरे होते हैं।
  3. अमीर घर, ये घर उच्च वर्ग के लोगों के होते हैं जिनके कमरों की संख्या कई दर्जनों तक हो सकती है। यह घर सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस होते हैं।

प्रश्न 3.
घर बनाने के लिए कैसी भूमि अच्छी होती है?
अथवा
मकान बनाने के लिए हमें किस प्रकार की मिट्टी वाली भूमि चाहिए?
उत्तर-
घर बनाने के लिए मैदानी और सख्त भूमि अच्छी होती है। रेतीले, गड्ढों और निचली जगह वाली भूमि पर घर नहीं बनाना चाहिए।

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प्रश्न 4.
घर के लिए क्षेत्र का चुनाव क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा
घर का चुनाव करते समय क्षेत्र के चुनाव का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मकान को बारबार बनाना मुश्किल काम है। इसलिए मकान बनाने के लिए जगह का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार द्वारा प्रमाणित हो।
  2. साफ़-सुथरी हो और ऊँचाई पर हो।
  3. फैक्टरियों के नज़दीक न हो।
  4. आवश्यक सुविधाएं नज़दीक हों।

प्रश्न 5.
घर में वायु के आवागमन से आप क्या समझते हो?
अथवा
घर में हवा की आवाजाही से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
वायु के बिना जीवन सम्भव नहीं है और साफ़-सुथरी हवा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। घर में वायु के आवागमन का अर्थ है कि ताजी वायु घर के अन्दर आ सके और गन्दी वायु घर से बाहर जा सके। घर में खिड़कियां और रोशनदान इस काम के लिए रखे जाते हैं।

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प्रश्न 6.
घर में प्रकाश का उचित प्रबन्ध कैसे किया जा सकता है?
उत्तर-
घर में उचित रोशनी का प्रबन्ध अति आवश्यक है इसलिए घर की दिशा और खिड़कियों, दरवाज़ों का सही दिशा में होना आवश्यक है। यदि हो सके तो घर की दिशा ऐसी होनी चाहिए कि सुबह के समय सूर्य की किरणें घर के अन्दर दाखिल हों और सारा दिन घर में रोशनी रहे।

प्रश्न 7.
घर बनाने के लिए कौन-सी एजेन्सियों से धन/कर्जा लिया जा सकता है? किन्हीं चार के नाम लिखो।
उत्तर-
घर बनाने या खरीदने के लिए कर्जा/पैसा निम्नलिखित एजेन्सियों से लिया जा सकता है

  1. जीवन बीमा कम्पनियां
  2. बैंक
  3. ट्रस्ट
  4. मकान विकास निगम
  5. सहकारी मकान निर्माण- सभाएं
  6. सरकारी और गैर-सरकारी मोर्टगेज कम्पनियां।

प्रश्न 8.
सरकारी कर्मचारी आमतौर पर कहां से कर्जा लेते हैं और क्यों?
उत्तर-
सरकारी कर्मचारी प्राय: सरकार से कर्जा लेते हैं जिस पर उनको बहुत कम ब्याज देना पड़ता है। यह राशि प्रत्येक महीने उनके वेतन में से आसान किश्तों पर काटी जाती है। इसके अतिरिक्त कर्मचारी प्रोविडेण्ट फण्ड में से कर्जा ले लेते हैं जिसको वापिस करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

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प्रश्न 9.
घर बनाते समय प्रभाव डालने वाले दो कारकों के बारे में बताएं।
उत्तर-
घर बनाते समय निम्नलिखित कारक प्रभाव डालते हैं

  1. आर्थिक स्थिति-पैसा मकान बनाने के मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। मकान का साइज़, जगह और स्तर पैसे पर ही निर्भर करता है।
  2. पेशा – घर का साइज़ या उसको योजना पर घर के मुखिए के पेशे का भी प्रभाव पड़ता है। यदि घर किसी वकील या डॉक्टर ने बनाना हो तो उसके घर का नक्शा इस तरह का होगा, जिसमें उसका दफ्तर या क्लीनिक भी बन सकें।

प्रश्न 10.
कार्य के आधार पर घर को मुख्य कितने क्षेत्रों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
काम के आधार पर घर को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. एकान्त क्षेत्र (Private Area)-जैसे सोने का कमरा, बाथरूम और पूजा का कमरा।
  2. काम करने वाला क्षेत्र (Work Area)-जैसे रसोई, बरामदा, आंगन आदि।
  3. मन बहलावे वाला क्षेत्र वह भाग है जहां परिवार के सदस्य मिल-जुल कर बैठते हैं। गप-शप मारते, टी० वी० देखते हैं। मेहमानों का स्वागत किया जाता है। जैसे लॉबी या ड्राईंग रूम।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 11.
घर के लिए जगह (स्थान) का चुनाव करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
आप घर के स्थान का चुनाव कैसे करेंगे?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मकान बारबार नहीं बनाए जाते। इसलिए घर की जगह का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार की इजाजत वाली हो।
  2. घर का इर्द-गिर्द साफ़-सुथरा हो।
  3. मकान की जगह कुछ ऊँची हो।
  4. घर रोशनी और हवा वाली जगह पर हो।
  5. घर रेलवे लाइन और बड़ी सड़क के नज़दीक नहीं होना चाहिए।
  6. रोजाना सुविधाएं नज़दीक होनी चाहिएं।

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प्रश्न 12.
घर के लिए जगह का चुनाव करते समय भूमि की किस्म के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव करते समय भूमि की किस्म के बारे में जानकारी होनी इसलिए आवश्यक है क्योंकि मकान की सुरक्षा भूमि की किस्म पर निर्भर करती है। यदि भूमि रेतीली या नरम मिट्टी की होगी तो मकान किसी समय भी जमीन में धस सकता है और भूकम्प का थोड़ा-सा झटका नहीं सहार सकता। यदि मकान सख्त, मिट्टी वाली जगह पर बना हो तो वह सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न 13.
घर बनाते समय अच्छा क्षेत्र तथा ज़रूरतों का पास होना क्यों ज़रूरी है? घर के लिये क्षेत्र का चुनाव क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव इलाका देखकर करना चाहिए। उस इलाके का चुनाव करना चाहिए जहां अपने सामाजिक स्तर के लोग रहते हों। इससे सामाजिक मेलजोल की कोई मुश्किल नहीं होगी ! इसके अतिरिका हमें रोजाना आवश्यकताओं को पूर्ति नज़दीकी इलाके से होनी चाहिए जैसे बाज़ार, स्कूल, मन्दिर, हस्पताल आदि। इससे समय और शक्ति की बचत होती है।

प्रश्न 14.
स्वास्थ्य का सफ़ाई से तथा सफ़ाई का घर से सीधा सम्बन्ध है, कैसे?
उत्तर-
सफ़ाई का स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है इसलिए सफ़ाई का होना अति आवश्यक है और सफ़ाई घर से होनी चाहिए। यदि सभी लोग अपने घर साफ़-सुथरे रखें तो वातावरण साफ़ करने में सहायता मिल सकती है। घर की सफ़ाई का अर्थ घर के अन्दर की सफ़ाई नहीं बल्कि घर के इर्द-गिर्द की सफ़ाई भी है। इससे बहुत-सी बीमारियों जैसे मलेरिया, हैजा, टी० बी० आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य, सफ़ाई और घर एक दूसरे से सम्बन्धित हैं।

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प्रश्न 15.
घर बनाते समय वायु का आवागमन तथा पानी का उचित प्रबन्ध क्यों होना चाहिए?
उत्तर-
हवा और पानी मानव की दो महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक आवश्यकताएं हैं। इनके बिना जीवन सम्भव नहीं है। मानवीय स्वास्थ्य साफ़-सुथरी हवा और पानी पर निर्भर है इसलिए घर में साफ़ पानी और हवा का प्रबन्ध होना चाहिए। इसलिए घर वहां बनाना चाहिए जहां हवा स्वच्छ हो और साफ पानी का प्रबन्ध हो सके। केवल इस स्थिति में ही परिवार के सदस्य तन्दुरुस्त रह सकते हैं। इसलिए गंदे इलाकों में कभी भी घर नहीं बनाना चाहिए।

प्रश्न 16.
वित्तीय प्रबन्ध से आप क्या समझते हो? घर बनाते समय इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घर बनाने या खरीदने के लिए काफ़ी अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि घर बनाने के लिए सामान की कीमत, जगह की कीमत, मजदूरी, आर्कीटैक्ट के लिए काफ़ी पैसा चाहिए। कई बार मकान बनाते समय बजट बढ़ जाता है। इसलिए घर के लिए आवश्यक वित्तीय प्रबन्ध आवश्यक है। यह प्रबन्ध अपनी बचत, प्रोविडेण्ट फण्ड और कर्जे द्वारा किया जा सकता है। आजकल बहुत-सी बैंकों और अन्य संस्थाओं ने मकान बनाने के लिए ब्याज दरें कम कर दी हैं और सरकार भी ऐसे कर्जे पर आय – कर की छूट देती है। इसलिए आजकल मकान बनाने के लिए वित्त का प्रबन्ध पहले से आसान है।

प्रश्न 17.
वित्तीय प्रबन्ध कौन-कौन सी एजेन्सियों से किया जा सकता है?
उत्तर-
घर बनाने या खरीदते समय बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। क्योंकि घर बनाने के लिए जगह की कीमत, इमारत बनाने के लिए सामान की कीमत, मजदूरी और आर्कीटैक्ट आदि के लिए पैसा चाहिए। वैसे भी मकान बनाते समय कई बार कीमतें इतनी बढ़ जाती हैं कि खर्चा बजट से बाहर चला जाता है । यदि यह सारा धन इकट्ठा करके घर खरीदना हो तो हो सकता है आदमी की यह इच्छा कभी भी पूरी न हो, इसलिए धन का प्रबन्ध करने के लिए कर्जा लेना पड़ सकता है। यह कर्जा निम्नलिखित एजेन्सियों से लिया जा सकता है

  1. बैंक
  2. ट्रस्ट
  3. लाइफ इन्श्योरेन्स कम्पनियां
  4. सरकारी सोसायटियां
  5. गैर सरकारी सोसायटियां
  6. सरकारी और गैर सरकारी मोर्टगेज़ कम्पनियां आदि।

प्रश्न 18.
घर बनाते समय कौन-कौन से कारक प्रभाव डालते हैं?
उत्तर-
इसके लिए देखें प्रश्न नं० १ का उत्तर।

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प्रश्न 19.
अपना घर बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
हर कोई अपना घर बनाना चाहता है क्योंकि इसके निम्नलिखित लाभ हैं

  1. अपना घर होना एक सामाजिक गर्व वाली बात है।
  2. हर महीने किराया नहीं देना पड़ता।
  3. घर एक पक्की जायदाद है, इसकी कीमत बढ़ती रहती है।
  4. अपने घर में हम अपनी इच्छा से परिवर्तन कर सकते हैं।
  5. घर आदमी को सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।
  6. मालिक मकान से कभी झगड़ा नहीं होता।

प्रश्न 20.
अपना घर बनाने के क्या नुकसान हैं?
उत्तर-

  1. घर बनाते समय सारी बचत समाप्त हो जाती है और यदि कोई संकट आ जाए तो बहुत मुश्किल होती है।
  2. यदि पड़ोसी अच्छा न हो तो सारी जिंदगी का क्लेश रहता है।
  3. घर की मुरम्मत करवानी पड़ती है।
  4. घर बनाकर आदमी एक जगह से बन्ध जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 21.
घर के लिए कमरों का आयोजन कैसे करेंगे तथा कौन-कौन से कमरे ज़रूरी हैं?
उत्तर-
घर इन्सान की प्रारम्भिक आवश्यकताओं में एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। घर को मानवीय सभ्यता का आधार भी कहा जा सकता है। घर में परिवार के सदस्य इकट्ठे होकर अपनी-अपनी समस्याओं का हल ढूंढकर जीवन को सुखदायी बनाते हैं और सुरक्षित महसूस करते हैं । घर में ही मानव के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का आरम्भ होता है। घर को अस्तित्व में लाने के लिए मकान का होना आवश्यक है। मकान में एक छत के नीचे एक घर अस्तित्व में आता है। मकान का ढांचा परिवार की आवश्यकताओं और आर्थिक स्रोतों के अनुसार ही होना चाहिए। एक मध्यवर्गीय परिवार के मकान के लिए कमरों की योजनाबन्दी निम्नलिखित अनुसार होनी चाहिए

1. बैठक (Living Room) — घर जैसे भी हो उसमें एक कमरा ऐसा होना चाहिए जिसमें सभी घर के व्यक्ति आराम से बैठ सकें और अपना-अपना काम जैसे स्वैटर बुनना, पेंटिंग करनी, समाचार-पत्र पढ़ना, टेलीविज़न देखना आदि कार्य कर सकें। बैठक में ही बाहर से आए नज़दीकी मेहमानों को बिठाकर उनकी खातिरदारी की जाती है। इसलिए कमरे में रोशनी और हवा के आने जाने का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए। यह कमरा घर के बाहर की ओर होना चाहिए ताकि मेहमानों को इस कमरे तक ले जाने के लिए और कमरों से न गुज़रना पड़े। यह कमरा कम-से-कम 15×15 फुट का होना चाहिए और आवश्यकता अनुसार बढ़ाया घटाया भी जा सकता है।

2. खाना खाने का कमरा (Dining Room) — खाना खाने का कमरा बैठक और रसोई के निकट होना चाहिए ताकि पकाया हुआ खाना वहां आसानी से लाया जा सके
और जूठे बर्तनों को रसोई में ले जाया जा सके। इस कमरे में रसोई सीधी नज़र नहीं आनी चाहिए। रसोई और खाना खाने के कमरे में एक खिड़की (Service Window) भी रखी जा सकती है। इस कमरे के दरवाजे और खिड़कियां जाली वाले होने चाहिएं ताकि मक्खी-मच्छर अन्दर न आ सकें। इस कमरे के निकट यदि कोई बरामदा या रास्ता हो तो वहां हाथ धोने के लिए टूटी (Wash basin) लगानी चाहिए ताकि खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोए जा सकें। कमरे में हवा और धूप का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए।

3. सोने का कमरा (Bed Room) — सोने वाले कमरे घर के पीछे होने चाहिएं। यदि इन कमरों का रुख उत्तर-पूर्व (North-East) की ओर हो तो ज्यादा बेहतर है ताकि चढ़ते सूर्य की धूप आ सके और दोपहर के समय कमरे अधिक गरम न हों और गर्मियों में वहां आराम से सोया जा सके । ये कमरे आरामदायक होने – चाहिएं। इनके निकट शोर नहीं होना चाहिए। इन कमरों में धूप, हवा का ठीक प्रबन्ध । होना चाहिए।

4. बच्चों का कमरा (Children’s Room) — यह कमरा माता-पिता के कमरे के । निकट होना चाहिए। इसमें बच्चों के खेलने के लिए खाली जगह होनी चाहिए। दीवारों पर लगे फट्टे (Shelves) नीचे होने चाहिए ताकि बच्चे अपने खिलौने और किताबें वहां से आसानी से उतार सकें। बिजली के प्लग ऊँचे होने चाहिएं। इस कमरे में रोशनी और हवा का योग्य प्रबन्ध होना चाहिए। इस कमरे की दीवारों के ऊपर पेंट करवा दिया जाए तो अच्छा रहता है ताकि बच्चों द्वारा खराब की दीवारों को पानी से धोकर साफ़ किया जा सके। इस कमरे में फ़र्नीचर नीचा होना चाहिए ताकि बच्चे उसको आसानी से प्रयोग कर सकें।

5. पढ़ने का कमरा (Reading Room) -जिस घर में बच्चे स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले हों या घर की मालकिन और मालिक पढ़ने-पढ़ाने का व्यवसाय करते हों वहां पढ़ने वाला कमरा होना आवश्यक है। इसमें हवा और रोशनी का प्रबन्ध होना आवश्यक है। बच्चों की आयु के अनुसार मेज़ और कुर्सियों की ऊँचाई और आकार होना चाहिए। इस कमरे में किताबों की अलमारी का होना भी आवश्यक है। पढ़ने के मेज़ पर रोशनी बाईं ओर से आनी चाहिए।

6. स्टोर (Store) -इस कमरे का आकार 10 x 6 फुट होना चाहिए। इसमें 2 x 2 फुट की चौड़ी सलैब (Shelf) होनी चाहिए जिस पर टरंक आदि टिकाए जा सकें। इसका दरवाज़ा सोने वाले कमरे में खुलना चाहिए। इसमें घर का फालतू और ज़रूरी सामान इस ढंग से रखना चाहिए ताकि उसको निकालने में कोई मुश्किल न हो।

7. रसोई (Kitchen) — एक साधारण गृहिणी अपना अधिकतर समय रसोई में ही गुज़ारती है। इसलिए रसोई साफ़-सुथरी, खूबसूरत और आरामदायक होनी चाहिए। इसमें काम करने के क्षेत्र और हौदी इस प्रकार बनी होनी चाहिए कि गृहिणी को रसोई में कम-से-कम चलना पड़े। रसोई का डिजाइन कई तरह का हो सकता है यू-आकार (U-Shape), एल-आकार (L-Shape), वी-आकार (V-Shape) हो सकता है। आजकल रेडिमेड रसोई का रिवाज भी बढ़ता जा रहा है पर कीमत अधिक होने के कारण इस तरह की रेडिमेड रसोई सिर्फ उच्च आय वर्ग ही बना सकते हैं। साधारण रसोई में काम करने वाले काऊंटर और हौदी की ऊँचाई फ़र्श से 30 से 32 इंच होनी चाहिए ताकि बिना झुके काम आसानी से किया जा सके। इस काऊंटर के नीचे गैस का सिलिण्डर, आटे वाला ड्रम और बर्तन रखने के लिए शैल्फ होने चाहिएं। रसोई के दरवाज़े और खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए और रसोई में धूप और हवा का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। इसका आकार कम-से-कम 80 वर्ग फुट होना चाहिए।

8. गुसलखाना (Bathroom) — आजकल बड़े शहरों में जहां फ्लश सिस्टम का प्रबन्ध है। गुसलखाना और पाखाना इकट्ठे ही बनाए जाते हैं। यदि हो सके तो गुसलखाना प्रत्येक सोने वाले कमरे के साथ जुड़ा हुआ होना चाहिए। इसमें नल और फव्वारे का प्रबन्ध होना चाहिए और एक और हौदी (Sink) भी होनी चाहिए। सर्दियों में पानी का प्रबन्ध भी ज़रूरी है। इसका फर्श पक्का और आसानी से साफ़ होने वाला चाहिए। इसकी ढलान नाली की ओर होनी चाहिए ताकि पानी जल्दी निकल सके। गुसलखाने की दीवारें कम-से-कम 3 फुट ऊँचाई तक ऐसी होनी चाहिएं जो आसानी से साफ़ हो सकें, यहां एक शैल्फ का होना आवश्यक है जहां साबुन, तेल और अन्य प्रयोग करने की वस्तु को रखा जा सके।

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प्रश्न 22.
घर में बैठक का क्या महत्त्व है ? बड़े और छोटे घरों में बैठक कैसी होती है?
उत्तर-
घर में बैठक (Living Room) एक महत्त्वपूर्ण जगह होती है। इसको घर का दिल भी कहा जाता है। घर में यह एक ऐसी जगह होती है जिससे घर की धड़कन का पता लगता है। इस जगह में बैठ कर परिवार के सभी सदस्य अपने आप को घर के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और सामूहिक रूप में मेहमानों का स्वागत करते हैं। घर में बैठक (Living Room) का निम्नलिखित महत्त्व होता है —

  1. परिवार की साझी जगह — बैठक सारे परिवार की साझी जगह होती है। इस जगह सभी सदस्य बैठकर अपने आपको परिवार से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। संयुक्त परिवारों में इस जगह का महत्त्व और भी अधिक होता है क्योंकि यह जगह बड़े परिवारों के सदस्यों की एक दूसरे से अपने दुःख साझे करने वाली जगह होती है।
  2. मेहमान का स्वागत करने वाली जगह — बैठक में बाहर से आए मेहमानों को बिठाया जाता है और उनका स्वागत किया जाता है। इस जगह पर परिवार के सभी सदस्य मेहमानों को मिलते हैं और बातचीत करते हैं।
  3. आराम करने वाली जगह — बैठक परिवार के सदस्यों के लिए आराम करने वाली जगह भी होती है। यहाँ बैठकर परिवार के सदस्य अखबार पढ़ते हैं, टी०वी० देखते हैं, स्वैटर बुनते हैं और आपस में छोटी-छोटी बातें करते हुए अपने आपको आराम देते हैं। इससे परिवार का वातावरण स्वस्थ रहता है।
  4. घर की समस्याओं को विचारने वाली जगह — बैठक में परिवार के सभी सदस्य बैठकर परिवार या परिवार के किसी भी सदस्य की समस्या के बारे विचार करते हैं। मिल बैठकर परिवार के सदस्यों में निकटता और हमदर्दी बढ़ती है संचार की भी कोई मुश्किल नहीं आती। इस जगह पर घर के प्रत्येक सदस्य अपनी राय दे सकता है और प्रत्येक सदस्य को सुना जाता है।

उपरोक्त कारणों के कारण बैठक की प्रत्येक घर में एक विशेष जगह और महत्ता होती है। बैठक की रौनक से ही परिवार के सदस्यों के आपसी सम्बन्धों के बारे जानकारी मिल जाती है। एक खुश परिवार की बैठकों में रौनकें ही रहती हैं।

प्रश्न 23.
(A) घर का चयन करते समय हमें कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
घर बनाते समय हमें किन-किन बातों के बारे में सोचना चाहिए? विस्तार से लिखें।
अथवा
घर बनाते समय असर डालने वाले तत्त्वों के बारे में बताएं।
(B) घर का निर्माण करते समय पानी प्रबंधन कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
(A) घर बनाना परिवार के लक्ष्यों में से एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होता है। प्रत्येक गृहिणी के मन में अपने घर का एक सपना होता है जिसकी पूर्ति करके उसको बेमिसास सन्तुष्टि और खुशी प्राप्त होती है। इसलिए घर बनाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को सलाह और सोच-विचार करनी चाहिए ताकि एक ऐसा घर बनाया जाए जहां परिवार के सभी सदस्यों का बहुपक्षीय विकास हो सके। इसलिए घर बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है — घर के लिए जगह का चुनाव (Selection of Site)—घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण काम है क्योंकि घर बार-बार नहीं बनाए जाते और जगह के चुनाव के समय लिया ग़लत फैसला जीवन भर दुःख का कारण बन सकता है। घर बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार की ओर से प्रमाणित हो।
  2. घर का आस-पास साफ़-सुथरा हो और वातावरण को गन्दा करने वाली कोई वस्तु न हो जैसे छप्पड़, फैक्टरी आदि।
  3. मकान की जगह थोड़ी ऊंची हो ताकि वर्षा का पानी एक दम बाहर निकल जाए और घर के पानी के निकास की भी कोई समस्या न हो।
  4. भट्ठा, शैलर, बस स्टैंड, फैक्टरियां, रेलवे स्टेशन के निकट घर नहीं बनाना चाहिए।
  5. परिवार के लिए काम आने वाली सुविधाएं भी निकट हों जैसे कि स्कूल, अस्पताल, बाज़ार आदि।
  6. घनी जनसंख्या वाले इलाके में भी घर नहीं बनाना चाहिए।
  7. घर रेलवे लाइन या बड़ी सड़क के निकट भी नहीं होना चाहिए।
  8. जगह का चुनाव अपने आर्थिक और सामाजिक स्तर अनुसार ही करना चाहिए।

घर की जगह का चुनाव अग्रलिखित कारणों पर भी निर्भर करता है —

  1. मिट्टी की किस्म (Kind of Soil) — मकान बनाने के लिए समतल और सख्त भूमि की आवश्यकता होती है। इसलिए रेतीली और पथरीली जगह पर मकान नहीं बनाया जा सकता । गड्ढों को भरकर बराबर की हुई जगह पर भी मकान बनाना ठीक नहीं रहता।
  2. इलाका (Locality) — मकान बनाने के लिए ऐसे इलाके का चुनाव करना चाहिए जहां अपने सामाजिक स्तर के लोग रहते हों। इस तरह से बच्चों और बूढ़ों को ठीक संगति मिल सकेगी और सामाजिक मेल-जोल बढ़ेगा। इस तरह के इलाके में ही व्यक्ति अपना सामाजिक पद प्राप्त कर सकेगा। यदि कोई ग़रीब व्यक्ति किसी अमीर कालोनी पर घर बना ले तो उसका जीवन सुखदायक नहीं हो सकता।
  3. पानी का प्रबन्ध (Water Supply) — पानी हमारी प्रारम्भिक आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। घर के काम सुचारू रूप से करने के लिए साफ़-स्वच्छ और खुला पानी बहुत आवश्यक है। घर की जगह का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि साफ़-स्वच्छ पानी की . सप्लाई ठीक हो। पानी न होने की सूरत में घर के सभी कार्य जैसे नहाना, कपड़े धोना, खाना बनाना आदि रुक जाते हैं और साफ़-स्वच्छ पानी की कमी हमारा स्वास्थ्य खराब कर सकती है।
  4. हवा और रोशनी का आना-जाना (Ventilation and Light) — घर की जगह का चुनाव करते समय हवा के आने-जाने और रोशनी का ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसलिए घनी जनसंख्या वाले इलाके और बहुमंजिली इमारतों वाली कालोनी में घर नहीं बनाना चाहिए क्योंकि इन इलाकों में ताज़ी और साफ हवा और रोशनी आवश्यकता अनुसार नहीं मिल सकती।
  5. मूल्य (Value of Land) — मकान के लिए खरीदी जाने वाली जमीन का मूल्य अपनी क्षमता अनुसार होना चाहिए। व्यापारिक इलाकों में घर बनाने से गुरेज़ करना चाहिए क्योंकि वहां ज़मीन की कीमत बहुत अधिक होती है और यदि जगह खरीद ली जाए तो मकान बनाने के लिए पैसे नहीं बचते।
    उपरोक्त चर्चा के पश्चात् यह नतीजा निकाला जा सकता है कि मकान के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण फैसला है और यह फैसला ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

(B) देखें भाग (A)

प्रश्न 24.
घर बनाने का आर्थिक स्थिति से सीधा सम्बन्ध कैसे है? आप कैसे क्षेत्र में रहना पसन्द करोगे और क्यों?
उत्तर-
घर बनाना परिवार के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक मुख्य लक्ष्य होता है। प्रत्येक गृहिणी के लिए उसकी मनपसन्द के घर का बनना एक सपना होता है। घर बनाने के लिए कई बातें महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे जगह का चुनाव और पैसा। पैसा मकान बनाने की पहली आवश्यकता है क्योंकि पैसे के बिना घर का सपना साकार नहीं हो सकता। पैसे की उपलब्धि घर की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। जगह खरीदने और मकान बनाने के लिए काफ़ी पैसा आवश्यक होता है। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी आय या बचत में से मकान बना सकते हैं शेष लोगों को मकान बनाने के लिए पैसे का प्रबन्ध करना पड़ता है। आजकल के महंगाई के ज़माने में मकान बनाने वाले सामान पर बहुत खर्च होता है। आधुनिक मकान बनाने के लिए उसमें सभी सुविधाओं का होना आवश्यक समझा जाता है। प्रत्येक घर में बिजली, पानी, आधुनिक रसोई, बढ़िया बाथरूम, कूलर, एअर कंडीशनर, फर्नीचर आदि आवश्यक हो गया है। इसलिए मकान बनाने का अर्थ सिर्फ छत बनाना ही नहीं होता बल्कि उसमें सभी आधुनिक सुविधाओं को उपलब्ध करवाना होता है। इसलिए घर बनाने के लिए बहुत-सा पैसा चाहिए इसलिए, घर का स्तर, बनाने वाले की आर्थिक स्थिति से जुड़ा होता है। यद्यपि आज कल बहुतसे सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं से आसान और सस्ता ऋण मिलता है पर उस ऋण को उतारने के लिए घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होनी चाहिए।

घर बनाने के लिए उपयुक्त इलाका जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि घर बनाने का फैसला व्यक्ति की ज़िन्दगी का एक महत्त्वपूर्ण फैसला होता है और फैसला बड़ा सोच-विचार कर करना चाहिए।

घर बनाने के लिए जगह या इलाके का चुनाव एक अति महत्त्वपूर्ण फैसला है। हर समझदार व्यक्ति अपने घर के लिए ऐसे इलाके का चुनाव करेगा जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं हों

  1. मकान बनाने के लिए जगह सरकार के द्वारा मंजूरशुदा हो-मकान बनाने के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जो सरकार द्वारा मंजूरशुदा हो, नहीं तो मकान का नक्शा पास कराने और बिजली कुनैक्शन लेने में मुश्किल आएगी। गैर-मंजूरशुदा इलाके में बना मकान कई बार सरकार तोड़ देती है।
  2. आस-पास साफ़-सुथरा हो-मकान हमेशा ऐसे इलाके में बनाना चाहिए जो साफ़-सुथरा हो क्योंकि इर्द-गिर्द की गन्दगी बीमारियां फैला सकती है। इसलिए कभी भी मकान गन्दगी, स्टोर करने वाली जगह, छप्पड़, कारखानों और हड्डा रेढ़ी के निकट नहीं बनाना चाहिए।
  3. मकान की जगह ऊँची होनी चाहिए-कभी भी मकान नीची जगह में नहीं बनाना चाहिए क्योंकि थोड़ी वर्षा से भी ऐसे इलाकों में पानी भर जाता है जिससे मकान का नुकसान होता है और वातावरण दूषित हो जाता है। इसलिए मकान बनाने के लिए ऊँची जगह का चुनाव करना चाहिए।
  4. रेलवे लाइन या मुख्य सड़क से घर दूर होना चाहिए-मकान बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रेलवे लाइनों और मुख्य सड़क पास से गुज़रती न हो। क्योंकि इससे शोर प्रदूषण और हवा प्रदूषण बढ़ जाता है।
  5. रोज़ाना सुविधाएं निकट होनी चाहिएं-मकान ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ बाज़ार, स्कूल, अस्पताल, बस अड्डा निकट पड़ते हों। इससे घर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समय और शक्ति दोनों ही बचते हैं। गृहिणी और परिवार के सदस्यों को सुख मिलता है।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर जो व्यक्ति मकान बनाएगा उसको ज़िन्दगी में सुख और सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

Home Science Guide for Class 10 PSEB घर Important Questions and Answers

अति लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
आय के अनुसार भारतीय घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
तीन भागों में।

प्रश्न 2.
मध्यवर्गीय घरों में कितने कमरे होते हैं?
उत्तर-
ऐसे घरों में कम-से-कम तीन अथवा चार कमरे होते हैं।

प्रश्न 3.
घर में खिड़कियां तथा रोशनदान क्यों रखे जाते हैं?
उत्तर-
ताकि अच्छी वायु आ सके।

प्रश्न 4.
घर बनाने के लिए ऋण लेने के लिए कौन-सी एजेंसियां हैं?
उत्तर-
बैंक, जीवन बीमा कम्पनी, मकान विकास निगम आदि।

प्रश्न 5.
घर बनाते समय प्रभावित करने वाले दो कारकों के नाम बताओ।
उत्तर-
आर्थिक हालात, व्यवसाय।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

प्रश्न 6.
कार्य के आधार पर घर को कौन-कौन से क्षेत्रों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
एकान्त क्षेत्र, कार्य करने वाले क्षेत्र, मनोरंजन वाले क्षेत्र।

प्रश्न 7.
घर बनाने के लिए भूमि रेतीली या नर्म मिट्टी की क्यों नहीं होनी चाहिए?
उत्तर-
ऐसी भूमि पर घर नीचे धंस सकता है।

प्रश्न 8.
अपना घर बनाने का एक लाभ बताओ।
उत्तर-
घर एक पक्की जायदाद है इसकी कीमत बढ़ती रहती है।

प्रश्न 9.
बैठक का आकार कम-से-कम कितना होना चाहिए?
उत्तर-
15 फुट × 15 फुट, परन्तु आवश्यकता अनुसार कम-अधिक हो सकता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

प्रश्न 10.
घर बनाने की एक हानि बताओ।
उत्तर-
यदि पड़ोसी अच्छे न हों तो सदा के लिए क्लेश रहता है।

प्रश्न 11.
रसोई का डिजाईन कैसा हो सकता है?
उत्तर-
यू आकार, ऐल आकार आदि।

प्रश्न 12.
जिन इलाकों में घर बनाना है वहां लोगों का सामाजिक स्तर कैसा हो?
उत्तर-
अपने सामाजिक स्तर से मेल खाता हो।

प्रश्न 13.
रसोई का कम-से-कम आकार कितना हो?
उत्तर-
80 वर्ग फुट।

प्रश्न 14.
घर कैसे स्थान के पास नहीं होना चाहिए?
उत्तर-
बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, भट्ठा आदि के पास न हो।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

प्रश्न 15.
वायु का आवागमन और रोशनी के लिए घर में क्या होना चाहिए?
उत्तर-
खिड़कियां तथा रोशनदान।

प्रश्न 16.
आपके अनुसार हस्पताल घर के पास होना चाहिए या नहीं?
उत्तर-
होना चाहिए, इस प्रकार बीमारी की स्थिति में इलाज का प्रबन्ध शीघ्रता से हो जाता है।

लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिक्षा सम्बन्धी घर की आवश्यकता के बारे में बताएं।
उत्तर-
मनुष्य घर से ही अच्छे गुण, अच्छा व्यवहार, अच्छे संस्कार प्राप्त करता है। शिक्षा घर से ही शुरू होती है। शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले घरों में बच्चे अधिक तथा ऊँची शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं।

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प्रश्न 2.
घर के लिए स्थान का चयन करते समय आस-पास क्या नहीं होना चाहिए?
उत्तर-
रेलवे लाइन या बड़ी सड़क नहीं होनी चाहिए, बहुत ऊँचे वृक्ष नहीं होने चाहिएं, भट्ठियां, बस स्टैंड, फैक्टरियां आदि भी नहीं होने चाहिएं। घर के आसपास छप्पड़, नाला या वातावरण को हानि पहुंचाने वाला कुछ नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 3.
अमीर लोगों के घर के बारे में बताएं।
उत्तर-
अमीर आदमियों के घर बड़े होते हैं तथा इनमें बहुत से कमरे होते हैं। इन घरों के पीछे नौकरों के रहने के लिए कमरे भी होते हैं।

प्रश्न 4.
घर बनाते समय वहां के इलाके और सफ़ाई का ध्यान कैसे रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
घर बनाते समय वहां के स्थान और पानी के प्रबन्ध का ध्यान कैसे रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
रसोई और बच्चों के कमरे का आयोजन किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण कैसे है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 8.
घर के लिए स्थान का चयन कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 9.
घर का चुनाव करते समय पानी का प्रबन्ध और जरूरतों का नज़दीक होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दो या एक कमरे वाले घरों के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
शहरों में जगह कम होती जा रही है तथा इसलिए कई परिवारों को एक या दो कमरों वाले घर में ही गुज़ारा करना पड़ रहा है। कई बार लोग किराये के घर में रहते हैं जो कि एक या दो कमरों वाले होते हैं।

दो कमरों वाले घर में बाहर वाले कमरे का प्रयोग बैठक, खाने तथा पढ़ने वाले कमरे के रूप में होता है। अन्दर वाला कमरा सोने तथा तैयार होने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि घर में अधिक सदस्य हों तो बाहर वाले कमरे को रात के समय सोने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब घर एक कमरे वाला हो तो उस कमरे में लकड़ी आदि का प्रयोग करके कमरे के दो भाग कर लिए जाते हैं तथा बाहरी भाग में पढ़ने, बैठने, खाने वाले कार्य किए जाते हैं। अन्दर वाले भाग में खाना पकाया जा सकता है। बैठक की तरफ पुस्तकें तथा सजावट का सामान रखा जाता है तथा सोने वाले भाग की तरफ वस्त्र या अन्य छोटा सजावटी सामान रखा जाता है। स्थान की कमी हो तो पर्दा टांग कर भी भाग किए जाते हैं। यदि कमरा अधिक छोटा हो तो दोहरे मन्तव्य वाला फर्नीचर प्रयोग में लाना चाहिए। जैसे सोफा जो कि रात को खोल कर बैड बन जाता है, दीवान दिन के समय बैठने तथा रात में सोने के काम आ जाता है।

प्रश्न 2.
अपना घर बनाने के क्या लाभ तथा हानियां हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 3.
बैठक तथा खाना खाने वाले कमरों का आयोजन कैसे करोगे?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 4.
व्यक्ति के पेशे के अनुसार घर किस प्रकार का बनाना चाहिए?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 5.
घर का चयन करते समय पानी का प्रबन्ध तथा आवश्यकता का नज़दीक होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
घर बनाते समय प्रभाव डालने वाले तीन तत्वों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
अपना घर बनाने के क्या नुकसान (हानियाँ) हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. आय के हिसाब से (अनुसार) घरों को …………. भागों में बांटा जा सकता है।
  2. घर बनाने के लिए समतल तथा ………………… भूमि अच्छी रहती है।
  3. बैठक का आकार कम-से-कम ………………. … फुट होना चाहिए।
  4. घर बनाना परिवार के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक ……………… लक्ष्य है।
  5. रसोई का कम-से-कम आकार ……… वर्ग फुट होना चाहिए।

उत्तर-

  1. तीन,
  2. ठोस,
  3. 15 x 15,
  4. मुख्य,
  5. 80.

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. घर बनाने के लिए समतल भूमि अच्छी होती है।
  2. साफ़-शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
  3. घर, प्रकाशमान तथा वायु वाले स्थान पर हो।
  4. घर बनाने के लिए ऋण नहीं मिल सकता।
  5. मध्यमवर्गीय घरों में तीन या चार कमरे होते हैं।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आय के अनुसार भारतीय घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है
(क) दो
(ख) तीन
(ग) पांच
(घ) सात।
उत्तर-
(क) दो

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में ठीक है
(क) अपना घर होना सामाजिक मान का कारक है
(ख) माह के बाद किराया नहीं देना पड़ता
(ग) घर आदमी को सुरक्षा प्रदान करता है
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
घर बनाने के लिए ऋण देने वाली ऐजंसियां हैं
(क) बैंक
(ख) जीवन बीमा कम्पनी
(ग) सरकारी सोसायटियां
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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घर PSEB 10th Class Home Science Notes

  1. घर के बिना मानव सुरक्षित नहीं रह सकता।
  2. घर मानवीय जीव को इन्सान बनाता है।
  3. आय के हिसाब से समाज में ग़रीब, मध्य वर्ग और अमीर वर्ग के लोग रहते हैं।
  4. घर के लिए बढ़िया सख्त भूमि और अच्छे साफ़-सुथरे इलाके का चुनाव करना चाहिए।
  5. घर में रोशनी, हवा और पानी का प्रबन्ध होना चाहिए।
  6. आ. मकान बनाने के लिए बहुत-सी संस्थाओं से सस्ता ऋण मिल जाता है।
  7. मकान बनाते समय आरकीटैक्ट की सलाह अवश्य लें।
  8. मकान परिवार के सदस्यों की आवश्यकता अनुसार बनाना चाहिए।
  9. अपना मकान बनाने से आदमी का सामाजिक स्तर ऊँचा होता है।
  10. मकान बनाने से उचित धन राशि का प्रबन्ध पहले करना चाहिए।

घर एक ऐसी जगह है जहां इन्सान अपनी मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वास्तव में घर ही मनुष्य को एक जीव से इन्सान में परिवर्तित करता है। इसलिए घर को सामाजिक गुणों का पालना भी कहा जाता है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु अर्जन देव जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ
(Early Career and Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। गुरुगद्दी पर बैठते समय उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(Describe briefly the early life of Guru Arjan Dev Ji. What difficulties he had to face at the time of his accession to Guruship ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।

II. गुरु अर्जन देव जी की कठिनाइयाँ (Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. पृथी चंद का विरोध (Opposition of Prithi Chand)-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने गुरु रामदास जी के ज्योति-जोत समाने के समय यह अफवाह फैला दी कि गुरु अर्जन देव जी ने उन्हें विष दे दिया है। उसने गुरु अर्जन देव जी से संपत्ति भी ले ली। उसने लंगर के लिए आई माया भी हड़पनी आरंभ कर दी। जब 1595 ई० में गुरु साहिब के घर हरगोबिंद का जन्म हुआ तो उसने इस बालक की हत्या के कई प्रयत्न किए। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया। इस प्रकार पृथिया ने गुरु अर्जन साहिब को परेशान करने में कोई यत्न खाली न छोड़ा।

2. कट्टर मुसलमानों का विरोध (Opposition of Orthodox Muslims)-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस लहर का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।

3. ब्राह्मणों का विरोध (Opposition of Brahmans) गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के प्रमुख वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। सिखों ने ब्राह्मणों के बिना अपने रीति-रिवाज मनाने शुरू कर दिए थे। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो ब्राह्मणों ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।

4. चंदू शाह का विरोध (Opposition of Chandhu Shah)-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। क्योंकि उस समय तक सिखों को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल गया था इसलिए उन्होंने गुरु जी को यह रिश्ता स्वीकार न करने के लिए प्रार्थना की। परिणामस्वरूप गुरु साहिब ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अब चंदू शाह
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान 1
SRI HARMANDIR SAHIB : AMRITSAR
एक लाख रुपया लेकर गुरु जी के पास पहुँचा और गुरु जी को दहेज का लालच देने लगा। गुरु जी ने चंदू शाह से कहा, “मेरे शब्द पत्थर पर लकीर हैं। यदि तू समस्त संसार को भी दहेज में दे दे तो भी मेरा पुत्र तेरी पुत्री से विवाह नहीं करेगा।” इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया। .

गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास
(Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने क्या योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution in the evolution of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी द्वारा सिख धर्म के विकास के लिए किए संगठनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
(Describe the various organisational works done by Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की विभिन्न सफ़लताओं का विवरण दें। .
(Give an account of various achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन तथा विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe Guru Arjan Dev’s contribution to the organisation and development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी का योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।

इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1

2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4

1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का वर्णन करें। उनकी सिख धर्म को क्या देन है ?
(Briefly describe the early life of Guru Arjan Dev Ji. What is his contribution to Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।

गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1

2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4

1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

आदि ग्रंथ साहिब जी (Adi Granth Sahib Ji)

प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और इसके ऐतिहासिक महत्त्व के संबंध में एक विस्तृत नोट लिखें।
(Write a detailed note on the compilation and historical importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन, भाषा, विषय-वस्तु तथा महत्त्व पर एक आलोचनात्मक नोट लिखें ।
(Write a critical note on compilation, language, contents and significance of the Adi Granth Sahib Ji.) i
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था। सिखों के मन में इस ग्रंथ साहिब के प्रति वही श्रद्धा है, जो बाइबल के लिए ईसाइयों; कुरान के लिए मुसलमानों और गीता के लिए हिंदुओं के मन में है। वस्तुतः आदि ग्रंथ साहिब जी समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य निधि है। आदि ग्रंथ साहिब जी से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. संकलन की आवश्यकता (Need for its Compilation)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करनी आरंभ कर दी थी। पर गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की वाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची वाणी पढ़ने के लिए कहा था।

2. वाणी को एकत्रित करना (Collection of Hymns)-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी एकत्रित की। गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी की वाणी गुरु अमरदास जी के बड़े सुपुत्र बाबा मोहन जी के पास पड़ी थी। अतः गुरु साहिब स्वयं अमृतसर से गोइंदवाल साहिब नंगे पाँव गए। गुरु जी की नम्रता से प्रभावित होकर बाबा मोहन जी ने समस्त वाणी गुरु जी के सुपुर्द कर दी। गुरु रामदास जी की वाणी गुरु अर्जन देव जी के पास ही थी। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने हिंदू भक्तों और मुस्लिम संतों के श्रद्धालुओं से उनके गुरुओं की सही वाणी माँगी। इस प्रकार भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी का संग्रह किया गया।

3. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।

4. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले (The Contributors of the Adi Granth Sahib Ji)आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ (5,894 शब्द) है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है—

  • सिख गुरु (Sikh Gurus)—आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक (59 शब्द और 57 श्लोक) सम्मिलित किए गए।
  • भक्त एवं संत (Bhagats and Saints)-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सफ़ी संतों की वाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
  • भट्ट (Bhatts) आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-कलसहार जी, नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।।

5. वाणी का क्रम (Arrangement of the Matter)-आदि ग्रंथ साहिब जी में दर्ज की गई वाणी को तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में जपुजी साहिब, रहरासि साहिब और सोहिला आते हैं। दूसरे भाग में वर्णित वाणी को 31 रागों के अनुसार 31 भागों में विभाजित किया गया है। सभी गुरुओं के शब्दों में ‘नानक’ का नाम ही प्रयुक्त हुआ है, इसलिए उनके शब्दों में अंतर प्रकट करने के लिए महलों का प्रयोग किया गया है। तीसरे भाग में भट्टों के सवैये, सिख गुरुओं और भक्तों के वे श्लोक हैं जिन्हें रागों में विभाजित नहीं किया जा सका। आदि ग्रंथ साहिब जी ‘मुंदावणी’ नामक दो श्लोकों से समाप्त होता है। आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 अंग (पन्ने) है।

6. विषय (Subject) आदि ग्रंथ साहिब जी में प्रभु की भक्ति, नाम का जाप, सच्चखंड की प्राप्ति और गुरु के महत्त्व से संबंधित विषयों की जानकारी दी गई है। इसके अतिरिक्त इसमें मानवता के कल्याण, प्रभु की एकता और विश्व-बंधुत्व का संदेश दिया गया है।

7. भाषा (Language)-आदि ग्रंथ साहिब जी गुरुमुखी लिपी में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसमें पंजाबी, हिंदी, मराठी, गुजराती, संस्कृत तथा फ़ारसी इत्यादि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्व (Significance of Adi Granth Sahib Ji)

आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव समुदाय को जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी वाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है।

1. सिखों के लिए महत्त्व (Importance for the Sikhs) आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में एक विशेष स्थान है। प्रत्येक सिख गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़ को बहुत मान-सम्मान सहित उच्च स्थान पर रेशमी रुमालों में लपेट कर रखा जाता है तथा इसका प्रकाश किया जाता है। सिख संगतें इसके सामने बहुत आदरपूर्ण ढंग से माथा टेककर बैठती हैं। सिखों की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी रस्में गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख पूर्ण की जाती हैं। यह ग्रंथ आज भी इनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत है। डॉक्टर वजीर सिंह के अनुसार,
“आदि ग्रंथ साहिब जी वास्तव में उनका (गुरु अर्जन देव जी का) सिखों के लिए सबसे मूल्यवान् उपहार था।”5

2. भ्रातृत्व का संदेश (Message of Brotherhood)-आदि ग्रंथ साहिब जी में बिना किसी जातीय. ऊँचनीच, धर्म अथवा राष्ट्र के भेदभाव की वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को भाईचारे का संदेश दिया।

3. साहित्यिक महत्त्व (Literary Importance)-आदि ग्रंथ साहिब जी साहित्यिक पक्ष से एक उच्चकोटि का ग्रंथ है। इसमें सुंदर उपमाओं और अलंकारों का प्रयोग किया गया है। पंजाबी का जो उत्तम रूप ग्रंथ साहिब में प्रस्तुत किया गया है, उसकी तुलना उत्तरोत्तर लेखक भी नहीं कर पाए।

4. ऐतिहासिक महत्त्व (Historical Importance)—अगर ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से देखें, तो आदि ग्रंथ के गहन अध्ययन से हम 15वीं से 17वीं शताब्दी की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं। बाबर के आक्रमण के समय पंजाब के लोगों की दुर्दशा का आँखों देखा हाल गुरु नानक देव जी ने ‘बाबर वाणी’ में किया है। सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियों को बहुत निम्न स्थान प्राप्त था। विधवा का बहुत अनादर किया जाता था। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। उस समय की कृषि तथा व्यापार के संबंध में भी पर्याप्त प्रकाश गुरु ग्रंथ साहिब जी में डाला गया है। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“इसका (आदि ग्रंथ साहिब जी का) संकलन निस्संदेह सिख इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी।”6

5. “The Adi Granth was indeed his most precious gift to the Sikh world.” Dr. Wazir Singh, Guru Arjan Dev (New Delhi : 1991) p. 21.
6. “Its compilation was undoubtedly an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) pp. 103-04.

गरु अर्जन देव जी का बलिदान । (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेवार हालातों का वर्णन करें।
(Explain the circumstances responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? इस शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेदार कारणों का वर्णन करें। शहीदी का वास्तविक कारण क्या था ?
(Explain the causes which led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the real cause of his martyrdom ?)
अथवा गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों की व्याख्या कीजिए। उनकी शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(Examine the circumstances leading to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी थीं। उनके बलिदान का क्या महत्त्व था ?
(Describe the circumstances that led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण एवं महत्त्व बताएँ।
(Discuss the causes and importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इस घटना से सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारणों और महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है—

I. बलिदान के कारण
(Causes of Martyrdom)

1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता (Fanaticism of the Jahangir)-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था। इस संबंध में उसने अपनी आत्मकथा तुजकए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है।

2. सिख पंथ का विकास (Development of Sikh Panth)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढ़ती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।

3. पृथी चंद की शत्रुता (Enmity of Prithi Chand)—पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने इस बात की घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसने मसंदों द्वारा गुरुघर के लंगर के लिए लाया धन हड़प करना आरंभ कर दिया। उसने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।

4. चंदू शाह की शत्रुता (Enmity of Chandu Shah)-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था, इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। जहाँगीर पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।

5. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqshbandis)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का भी बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों का संप्रदाय था। यह संप्रदाय इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि नक्शबंदियों का नेता था का मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इसलिए जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब के विरुद्ध कार्यवाई करने का निर्णय किया।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन भी गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बना। गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर को कहा कि इस ग्रंथ में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं। गुरु जी का कहना था कि इस ग्रंथ में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी गई जो किसी भी धर्म के विरुद्ध हो। जहाँगीर ने ग्रंथ साहिब में हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में भी लिखने के लिए कहा। गुरु साहिब का कहना था कि वे ईश्वर के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकते। निस्संदेह, जहाँगीर के लिए यह बात असहनीय थी।

7. खुसरो की सहायता (Help to Khusrau)-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो अपने पिता के विरुद्ध असफल विद्रोह के बाद भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँचकर खुसरो गुरु अर्जन साहिब का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरनतारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खान को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।

II. बलिदान कैसे हुआ ? (How was Guru Martyred ?)

जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाकर लाहौर लाया गया। जहाँगीर ने गुरु जी को मृत्यु के बदले 2 लाख रुपए जुर्माना देने के लिए कहा। गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप मुग़ल अत्याचारियों ने गुरु साहिब को लोहे के तपते तवे पर बिठाया और शरीर पर गर्म रेत डाली गई। गुरु साहिब ने इन अत्याचारों को ईश्वर की इच्छा समझकर, यह कहते हुए अपना बलिदान दे दिया,

तेरा किया मीठा लागे।
हरि नाम पदार्थ नानक माँगे।

इस प्रकार 30 मई, 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी लाहौर में शहीद हो गए।

III. गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व (Importance of the Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—

1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल के अनुसार,
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने समस्या को प्रबल बनाया। इसने पंजाब तथा सिख राजनीति को नई दिशा दी।”7

2. सिखों में एकता (Unity among the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन (Change in the relationship between Mughals and the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।

4. सिखों पर अत्याचार (Persecution of the Sikhs) गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ ही मग़लों के सिखों पर अत्याचार आरंभ हो गए। जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। शाहजहाँ के समय गुरु जी को मुग़लों के साथ लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। 1675 ई० में औरंगजेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को दिल्ली में शहीद कर दिया था। उसके शासनकाल में सिखों पर घोर अत्याचार किए गए। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डटकर सामना किया तथा हँसतेहँसते शहीदियाँ दीं।

5. सिख धर्म की लोकप्रियता (Popularity of Sikhism)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी का यह कहना पूर्णत: सही है,
“गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख धर्म के विकास में एक नया मोड़ था।”8

7. “Guru Arjan’s martyrdom precipitated the issues. It gave a new complexion to the shape of things in the Punjab and the Sikh polity.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 123.
8. “The martyrdom of Guru Arjan marks a turning point in the development of Sikh religion.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 146.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi ?)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को सर्वप्रथम अपने बड़े भाई पृथी चंद के विरोध का सामना करना पड़ा। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने मुग़ल बादशाह जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काने का हर संभव प्रयत्न किया। पंजाब के कट्टर मुसलमान पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव से घबरा रहे थे। उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध जहाँगीर के कान भरे। कट्टर मुसलमान होने के कारण जहाँगीर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा। चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की का गुरु अर्जन देव जी द्वारा उनके सुपुत्र हरगोबिंद जी के साथ रिश्ते को इंकार करने के कारण घोर शत्रु बन गया।

प्रश्न 2.
श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व पर संक्षेप में लिखें। (Give a brief account of the foundation and importance of Sri Harmandir Sahib.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में क्य योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान को संक्षेप में लिखें। (Describe briefly the contribution of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के संगठनात्मक कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the organisational works of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करके गुरु अर्जन देव जी ने सिखों को एक पावन तीर्थ स्थान प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब ने लाहौर में एक बाऊली का निर्माण करवाया।
  3. पसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
रिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब का सिख इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना सिखों के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी ने की थी। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव 1588 ई० में विख्यात सूफ़ी संत मियाँ मीर जी द्वारा रखवाई थी। हरिमंदिर से अभिप्राय था-ईश्वर का मंदिर। गुरु साहिब ने हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से निम्न रखाया क्योंकि गुरु साहिब का मानना था कि जो निम्न होगा, वही उच्च कहलाने के योग्य होगा। शीघ्र ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ-स्थान बन गया।

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प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Masand system and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप.क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
(What do you know about Masand system ? Explain.)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ।
(Who started Masand system ? What were its aims?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है?
(What do you mean by Masand system ?)
उत्तर-
मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से बना है जिसका अर्थ है ‘उच्च स्थान’। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन साहिब जी के समय में हुआ। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दसवाँ भाग गुरु साहिब को भेंट करें। मसंदों का मुख्य कार्य इसी धन को इकट्ठा करना था। ये मसंद धन एकत्रित करने के साथ-साथ सिख धर्म का प्रचार भी करते थे। मसंद प्रथा सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

प्रश्न 5.
मसंदों के प्रमुख कार्य क्या थे? (What were the main functions of the Masands ?)
उत्तर-

  1. मसंद अपने अधीन प्रदेश में सिख धर्म का प्रचार करते थे।
  2. वह सिख धर्म के विकास कार्यों के लिए सिखों से दसवंध एकत्रित करते थे।
  3. मसंद प्रत्येक वर्ष एकत्रित हुए धन को वैसाखी तथा दीवाली के अवसरों पर गुरु साहिब के पास अमृतसर आ कर जमा करवाते थे।

प्रश्न 6.
तरन तारन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने 1590 ई० में तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर की खुदवाई भी आरंभ करवाई। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भवसागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत-से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन जाटों ने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

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प्रश्न 7.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ।
[Write a note on the compilation and importance of Adi Granth Sahib Ji (Guru Granth Sahib Ji).]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी के काल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। इसका उद्देश्य गुरुओं की वाणी को एक स्थान पर एकत्रित करना था। गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का कार्य रामसर में आरंभ किया। आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य भाई गुरदास जी ने किया। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिबों, अन्य संतों और भक्तों की वाणी को भी सम्मिलित किया। इसका संकलन 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। बाद में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी इसमें सम्मिलित की गई। आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of Adi Granth Sahib Ji ?)
आदि ग्रंथ साहिब जी के ऐतिहासिक महत्त्व की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Briefly explain the historical significance of Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इससे सिखों को एक अलग पवित्र धार्मिक ग्रंथ उपलब्ध हुआ। इसने सिखों में एक नवीन चेतना उत्पन्न की। इसमें बिना किसी जातीय भेदभाव ऊँच-नीच, धर्म अथवा राष्ट्र के वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को आपसी भाईचारे का संदेश दिया। इसमें किरत करने, नाम जपने तथा बाँट छकने का संदेश दिया गया है। यह 15वीं से 17वीं शताब्दी के पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा को जानने के लिए हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है।

प्रश्न 9.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? ..
(Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बहुत स्वार्थी स्वभाव का था। यही कारण है कि गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। इससे पृथी चंद क्रोधित हो उठा। पृथी चंद ने गुरुगद्दी के लिए गुरु अर्जन देव का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। वह यह आशा लगाए बैठा था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी परंतु जब हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया।

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प्रश्न 10.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया?
(Why did Chandu Shah oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर प्रांत का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। उसके परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इस पर चंदू शाह ने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में पत्नी के विवश करने पर रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा। गुरु अर्जन देव जी ने इस शगुन को लेने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंदू शाह ने मुग़ल बादशाह अकबर तथा जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध बहुत भड़काया।

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कोई तीन मुख्य कारण बताएँ।
(Mention any three main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Briefly explain any three causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  2. लाहौर का दीवान चंदू शाह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करना चाहता था। गुरु साहिब द्वारा इंकार करने पर वह गुरु साहिब का घोर शत्रु बन गया।
  3. पृथी चंद इस बात को सहन करने को कभी तैयार नहीं था कि गुरुगद्दी उसे न मिलकर किसी ओर को मिले।
  4. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में कट्टरपंथी नक्शबंदियों का बहुत बड़ा हाथ था।
  5. गुरु अर्जन देव जी द्वारा जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो को दी गई सहायता भी उनके बलिदान का तत्कालिक कारण बनी।

प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqshbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर ‘ विचारों का था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

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प्रश्न 13.
जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ? (Why was Jahangir against Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  2. कुछ मुसलमानों द्वारा सिख धर्म को अपनाने के कारण जहाँगीर का खून खौल रहा था।
  3. गुरु अर्जन देव जी द्वारा विद्रोही शहज़ादे खुसरो को तिलक लगाने के कारण जहाँगीर भड़क गया था।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बनी। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया।

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। .
(Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh History. ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के प्रभाव बताएँ। (Write down the impact of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। इस बलिदान के कारण शाँति से रह रहे सिख भड़क उठे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि अब शस्त्र उठाने बहुत आवश्यक हैं। इसीलिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। इस प्रकार सिख एक संत सिपाही बन गया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों एवं मुग़लों में मित्रतापूर्वक संबंधों का अंत हो गया। इसके पश्चात् सिखों और मुग़लों के मध्य एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। दूसरी ओर इस शहीदी ने सिखों को संगठित करने में सराहनीय योगदान दिया।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1563 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?’
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम बताओ।
उत्तर-
बीबी भानी जी।

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प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 6.
गुरु अर्जन देव जी कब से लेकर कब तक गुरुगद्दी पर बने रहे ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल लिखें ।
उत्तर-
1581 ई० से 1606 ई०।

प्रश्न 7.
पृथिया कौन था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का सबसे बड़ा भाई।

प्रश्न 8.
पृथी चंद ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि वह स्वयं को गुरुगद्दी का वास्तविक अधिकारी मानता था।

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प्रश्न 9.
पृथी चंद ने किस संप्रदाय की नींव रखी ?
उत्तर-
मीणा।

प्रश्न 10.
मेहरबान के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
पृथी चंद।

प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।

प्रश्न 12.
गुरु अर्जन साहिब की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता बताएँ ।
उत्तर-
अमृतसर में हरिमंदिर साहिब की स्थापना की। ।

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प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हरि (परमात्मा) का मंदिर (घर)।

प्रश्न 14.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण किस गुरु ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 15.
हरिमंदिर साहिब की आधारशिला किसने रखी ?
उत्तर-
सूफी संत मीयाँ मीर जी।

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प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1588 ई०।

प्रश्न 17.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
1601 ई०। ।

प्रश्न 18.
हरिमंदिर साहिब का पहला मुख्य ग्रंथी कौन था ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।

प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब के कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
उत्तर-चार।

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प्रश्न 20.
हरिमंदिर साहिब की चारों दिशाओं में चार द्वार क्यों बनाए गए हैं ?
अथवा
हरिमंदिर साहिब के चार दरवाज़े किस उपदेश का संकेत करते हैं ?
उत्तर-
यह मंदिर चार जातियों और चार दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला है।

प्रश्न 21.
‘तरन तारन’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर-
इस सरोवर में स्नान करने वाला व्यक्ति इस भवसागर से पार हो जाएगा।

प्रश्न 22.
तरन तारन नगर का निर्माण किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 23.
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 24.
मसंद शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऊँचा स्थान।

प्रश्न 25.
दशांश (दसवंध) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दशम भाग जो कि सिख मसंदों को अपनी आय में से देते थे।

प्रश्न 26.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब किया गया था ?
उत्तर-
1604 ई०।

प्रश्न 27.
आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना किस ने की थी ?
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 28.
आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने के लिए गुरु अर्जन देव जी ने किसकी सहायता ली ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी की।

प्रश्न 29.
हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब किया गया था ?
उत्तर-
16 अगस्त, 1604 ई०।

प्रश्न 30.
आदि ग्रंथ साहिब जी में सर्वाधिक शब्द किसके हैं ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 31.
गुरु अर्जन देव जी ने कितने शब्द लिखे थे ?
उत्तर-
2216.

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प्रश्न 32.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कितने भक्तों की वाणी शामिल की गई है ?
उत्तर-
15.

प्रश्न 33.
किसी एक भक्त का नाम लिखो जिनकी वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया गया।
उत्तर-
भक्त कबीर जी।

प्रश्न 34.
आदि ग्रंथ साहिब जी को कुल कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर-
31 रागों में।

प्रश्न 35.
आदि ग्रंथ साहिब जी के कुल पृष्ठों (अंगों) की गिनती बताएँ।
उत्तर-
1430.

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प्रश्न 36.
आदि ग्रंथ साहिब जी की लिपि का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरुमुखी।

प्रश्न 37.
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक (ग्रंथ साहिब) का नाम लिखो।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी।

प्रश्न 38.
आदि ग्रंथ साहिब जी किस वाणी के साथ आरंभ होता है ?
उत्तर-
जपुजी साहिब जी।

प्रश्न 39.
जपुजी साहिब का पाठ कब किया जाता है ?
उत्तर-
सुबह के समय।

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प्रश्न 40.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इसने संपूर्ण मानवता को एकता का संदेश दिया।

प्रश्न 41.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
उत्तर-
दरबार साहिब अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी।

प्रश्न 42.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
उत्तर-
श्री हरिमंदिर साहिब (अमृतसर)।

प्रश्न 43.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।

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प्रश्न 44.
शेख अहमद सरहिंदी कौन था ?
उत्तर-
नक्शबंदी संप्रदाय का नेता।

प्रश्न 45.
जहाँगीर के सबसे बड़े बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर-
खुसरो।

प्रश्न 46.
शहीदी प्राप्त करने वाले सिखों के प्रथम गुरु कौन थे ?
अथवा
शहीदों के सिरताज किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 47.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी किस मुग़ल बादशाह के आदेश पर हुई ?
उत्तर-
जहाँगीर।

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प्रश्न 48.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी कब शहीद हुए ?
उत्तर-
30 मई, 1606 ई०।

प्रश्न 49.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
लाहौर में।

प्रश्न 50.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का कोई एक प्रभाव बताओ।
उत्तर-
इस शहीदी के कारण सिखों की भावनाएँ भड़क उठीं।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के …………… गुरु थे।
उत्तर-
(पाँचवें)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम ………. था।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम ……………
उत्तर-
(बीबी भानी)

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम ……………… था।
उत्तर-
(हरगोबिंद)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ……………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1581 ई०)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 6.
पृथी चंद ने …………… संप्रदाय की स्थापना की।
उत्तर-
(मीणा)

प्रश्न 7.
शेख अहमद सरहिंदी ने ………….. लहर की स्थापना की।
उत्तर-
(नक्शबंदी)

प्रश्न 8.
नक्शबंदी ने अपना मुख्य केंद्र ………….. में स्थापित किया।
उत्तर-
(सरहिंद)

प्रश्न 9.
चंदू शाह ……. का दीवान था।
उत्तर-
(लाहौर)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 10.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण …………… ने करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

प्रश्न 11.
हरिमंदिर साहिब की नींव पत्थर ……………….. ने रखा।
उत्तर-
(मीयाँ मीर)

प्रश्न 12.
तरनतारन की स्थापना. ……………. ने की थी।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)

प्रश्न 13.
……………….. ने लाहौर में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 14.
………….. ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी के लेखन का महान् कार्य …………… में संपूर्ण हुआ।
उत्तर-
(1604 ई०)

प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब में पहला मुख्य ग्रंथी ……………. को नियुक्त किया गया।
उत्तर-
(बाबा बुड्डा जी)

प्रश्न 17.
जहाँगीर की आत्मकथा का नाम …………….. है।
उत्तर-
(तुज़क-ए-जहाँगीरी)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 18.
दारा शिकोह के पिता का नाम ………… था।
उत्तर-
(जहाँगीर)

प्रश्न 19.
गुरु अर्जन साहिब को ……………. में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 20.
गुरु अर्जन साहिब को …………..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(लाहौर)

प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल बादशाह …….. …….. ने शहीद किया।
उत्तर-
(जहाँगीर)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम तृप्ता देवी था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम हरगोबिंद था।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 5.
मीणा संप्रदाय की स्थापना पृथी चंद ने की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
चंदू शाह गुरु अर्जन देव जी का मित्र बन गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य 1688 ई० में आरंभ किया गया था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
हरिमंदिर साहिब की नींव सूफ़ी संत मीयाँ मीर ने रखी थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
मसंद प्रथा के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
बाबा बुड्डा जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को लिखने का कार्य किया।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब के प्रथम मुख्य ग्रंथी बाबा बुड्डा जी थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को 33 रागों के अनुसार बांटा गया है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 पन्ने (अंग) हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
गुरु ग्रंथ साहिब जी में छ: गुरुओं की बाणी शामिल है।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी को संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 18.
तुज़क-ए-जहाँगीरी का लेखक बाबर था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 19.
गुरु अर्जन देव जी को 1606 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु अर्जन देव जी को औरंगज़ेब के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए-

प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1539 ई० में
(ii) 1560 ई० में
(iii) 1563 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) अमृतसर
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(iii)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) भाई गुरदास जी
(iv) हरीदास जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) बीबी भानी जी
(ii) बीबी अमरो जी
(iii) बीबी अनोखी जी
(iv) बीबी दानी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
पृथिया ने किस संप्रदाय की स्थापना की थी ?
(i) मीणा
(ii) उदासी
(iii) हरजस
(iv) निरंजनिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
मेहरबान किसका पुत्र था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी का
(ii) श्री चंद जी का
(iii) भाई मोहन जी का
(iv) पृथी चंद का।
उत्तर-
(iv)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1580 ई० में
(ii) 1581 ई० में
(iii) 1585 ई० में
(iv) 1586 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 9.
पंजाब में नक्शबंदियों का मुख्यालय कहाँ था ?
(i) मालेरकोटला
(ii) लुधियाना
(iii) जालंधर
(iv) सरहिंद।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी के समय नक्शबंदी लहर का नेता कौन था ?
(i) बाबा फ़रीद जी
(ii) दाता गंज बख्स
(iii) शेख अहमद सरहिंदी
(iv) राम राय।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
(i) लाहौर का दीवान
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) मुलतान का दीवान।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी ने हरिमंदिर साहिब की नींव कब रखी थी ?
(i) 1581 ई० में
(ii) 1585 ई० में
(iii) 1587 ई० में
(iv) 1588 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) बाबा फ़रीद जी ने
(iii) संत मीयाँ मीर ने
(iv) बाबा बुड्डा जी ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य कहाँ आरंभ किया ?
(i) रामसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) बाबा बकाला।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य किसको दिया ?
(i) बाबा बुड्डा जी को
(ii) भाई गुरदास जी को
(iii) भाई मोहकम चंद जी को
(iv) भाई मनी सिंह जी को।
उत्तर-
(ii)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 16.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब पूर्ण हुआ ?
(i) 1600 ई० में
(ii) 1601 ई० में
(iii) 1602 ई० में
(iv) 1604 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कहाँ हुआ ?
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) ननकाणा साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब हुआ ?
(i) 1602 ई० में
(ii) 1604 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब जी के पहले मुख्य ग्रंथी कौन थे ?
(i) भाई गुरदास जी
(ii) भाई मनी सिंह जी
(iii) बाबा बुड्डा जी ।
(iv) बाबा दीप सिंह जी।
उत्तर-
(iii)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 20.
आदि ग्रंथ साहिब जी में वाणी को कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
(i) 10
(ii) 15
(iii) 21
(iv) 31.
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 21.
आदि ग्रंथ साहिब जी को किस लिपि में लिखा गया है ? (i) हिंदी .
(ii) फ़ारसी
(iii) मराठी
(iv) गुरमुखी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
(i) हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी थे
(ii) आदि ग्रंथ साहिब जी की वाणी लिखने वाले
(iii) हरिमंदिर साहिब की नींव रखने वाले
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 23.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ का नाम बताएँ।
(i) आदि ग्रंथ साहिब जी।
(ii) दशम ग्रंथ साहिब जी
(iii) ज़फ़रनामा
(iv) रहितनामा।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 24.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) शीश गंज
(iii) रकाब गंज
(iv) केशगढ़ साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
(i) तुज़क-ए-बाबरी
(ii) तुजक-ए-जहाँगीरी
(iii) जहाँगीरनामा
(iv) आलमगीरनामा।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 27.
किस मुगल बादशाह ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश दिया था ?
(i) जहाँगीर
(ii) बाबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) औरंगजेब।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 28.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली
(ii) अमृतसर
(iii) लाहौर
(iv) मुलतान।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1604 ई० में
(ii) 1605 ई० में
(iii) 1606 ई० में
(iv) 1609 ई० में।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji’ after he ascended the Gurgaddi.)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Write a brief note on the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi.)
उत्तर-
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. पृथी चंद का विरोध-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए गुरु अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया।

2. कट्टर मुसलमानों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।

3. पुजारी वर्ग का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के पुरोहित वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में पुजारी वर्ग का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो पुजारी वर्ग ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।

4. चंदू शाह का विरोध-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। किंतु गुरु साहिब जी ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। जिनका विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब का निर्माण सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर प्रमाणित हुआ।

2. तरनतारन की स्थापना-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना—गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था ‘ईश्वर का शहर’। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. मसंद प्रथा का विकास-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका।

5. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। बाद में इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

6. घोड़ों का व्यापार-गुरु अर्जन देव जी सिखों को आर्थिक पक्ष से खुशहाल बनाना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब जी की स्थापना गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक है। इसका निर्माण अमृत सरोवर के मध्य आरंभ किया गया। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी से 13 जनवरी, 1588 ई० को रखवाई। इस समय कुछ सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वहीं ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी जातीय या अन्य भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब की शान को देखकर गुरु अर्जन देव जी ने इस शब्द का उच्चारण किया,

डिठे सभे थांव नहीं तुध जिहा।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि हरिमंदिर साहिब की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा तथा यदि कोई यात्री सच्ची श्रद्धा से अमृत सरोवर में स्नान करेगा, उसे इस भवसागर से मुक्ति प्राप्त होगी। इसका लोगों के दिलों पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे बड़ी संख्या में यहाँ आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार में बड़ी सहायता मिली। 16 अगस्त, 1604 ई० को यहाँ आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश किया गया तथा बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार हरिमंदिर साहिब सेवा, सिमरिन तथा सांझीवालता का प्रतीक बन गया।

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प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand System and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Masand System ?)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ। (Who started Masand System ? What were its aims ?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा पर संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write.a short note on Masand System.)
उत्तर-
सिख पंथ के विकास में जिन संस्थाओं ने अति प्रशंसनीय योगदान दिया मसंद प्रथा उनमें से एक थी। इस प्रथा के विभिन्न पक्षों का संक्षिप्त इतिहास निम्न अनुसार है :—
1. मसंद प्रथा से भाव-मसंद शब्द फ़ारसी के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है। मसनद से भाव है उच्च स्थान। क्योंकि संगत में गुरु साहिबान के प्रतिनिधि उच्च स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा।

2. आरंभ-मसंद प्रथा का आरम्भ कब हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ गुरु रामदास जी के समय हुआ। इसी कारण आरंभ में मसंदों को रामदासिए भी कहा जाता था। अनेक इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ तो यद्यपि गुरु रामदास जी ने किया था पर इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन देव जी के समय हुआ।

3. मसंद प्रथा की आवश्यकता-मसंद प्रथा को आरंभ करने का मुख्य कारण यह था कि गुरु रामदास जी को अमृतसर नगर तथा यहाँ आरंभ किए गए अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई के लिए धन की आवश्यकता थी। दूसरा, क्योंकि इस समय तक सिख संगत की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी अतः बड़े पैमाने पर लंगर के प्रबंध के लिए भी धन की आवश्यकता थी। तीसरा, मसंद प्रथा को आरंभ करने का उद्देश्य यह था कि सिख पंथ का योजनाबद्ध ढंग से सुदूर प्रदेशों में प्रचार किया जा सके।

4. मसंदों की नियुक्ति-मसंद के पद पर उन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था जो बहत सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। प्रदेश के लोगों में उनका बहुत सम्मान होता था। वे अपने निर्वाह के लिए श्रम करते थे तथा गुरु घर के लिए एकत्र धन में से एक पैसा लेना भी घोर पाप समझते थे। मसंदों का पद पैतृक नहीं होता था।

5. मसंद प्रथा का महत्त्व-मसंद प्रथा ने आरंभ में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। इस कारण सिख धर्म का दूर के क्षेत्रों में प्रचार संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। तीसरा, आय में बढ़ोतरी के कारण लंगर संस्था को अच्छे ढंग से चलाया जा सका। चतुर्थ, मसंद प्रथा सिखों को संगठित करने में काफ़ी सहायक सिद्ध हुई|

प्रश्न 5.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ। [Write a note on the compilation and importance of Adi Granth (Guru Granth Sahib Ji.)]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Discuss in brief about the importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप में नोट लिखें। (Write a note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था।
1 संकलन की आवश्यकता-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की बाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया था। इसलिए गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की बाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची बाणी पढ़ने के लिए कहा था।

2. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।

3. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले-आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है

  • सिख गुरु-आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक सम्मिलित किए गए।
  • भक्त एवं संत-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सूफ़ी संतों की बाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
  • भट्ट-आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।

4. आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्त्व-आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी बाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है। आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें 16वीं-17वीं शताब्दियों के पंजाब की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दशा के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 6.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद अथवा पृथिया गुरु रामदास जी का सबसे बड़ा पुत्र और गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बहुत स्वार्थी एवं लोभी स्वभाव का था। इसके कारण गुरु रामदास जी ने उसे गुरुगद्दी सौंपने की अपेक्षा गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। पृथी चंद यह जानकर क्रोधित हो उठा। वह तो गुरगद्दी पर बैठने के लिए काफ़ी समय से स्वप्न देख रहा था। परिणामस्वरूप गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए उसने गुरु अर्जन देव जी का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। उसने घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसका यह विचार था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी, परंतु जब गुरु साहिब के घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसके ये षड्यंत्र गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक कारण बने।

प्रश्न 7.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इससे चंदू तिलमिला उठा। उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में चंदू शाह की पत्नी द्वारा विवश करने पर वह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा, क्योंकि अब तक गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा उनके संबंध में कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था। इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब चंदू शाह को यह ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब से अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का निर्णय किया। उसने पहले मुग़ल बादशाह अकबर तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। इसका जहाँगीर पर वांछित प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का निर्णय किया। अत: चंदू शाह का विरोध गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के छः मुख्य कारण बताएँ।
(Mention six causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly explain the causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था।

2. सिख पंथ का विकास गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।

3. पृथी चंद की शत्रुता–पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।

4. चंदू शाह की शत्रुता—चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब इस रिश्ते को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। अतः जहाँगीर ने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।

5. नक्शबंदियों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। उस समय इस संप्रदाय का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। वह सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काया।

6. खुसरो की सहायता—गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। इस आंदोलन का मुख्य केंद्र सरहिंद में था। यह आंदोलन पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को देखकर बौखला उठा था। इसका कारण यह था कि यह आंदोलन इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर विचारों का था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। उसका कथन था कि यदि समय रहते सिखों का दमन न किया गया तो इसका इस्लाम पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बना। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। जब शाही सेनाओं ने खुसरो को पकड़ने का यत्न किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँच कर खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारनं पहुँचा। अकबर का पौत्र होने के कारण, जिसके सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। साथ ही गुरु-घर में आकर कोई भी व्यक्ति गुरु साहिब को आशीर्वाद देने की याचना कर सकता था। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता भी प्रदान की। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया। उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए। उन्हें घोर यातनाएँ देकर मौत के घाट उतार दिया जाए तथा उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाए।

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh history.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—

1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे।

2. सिखों में एकता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन शुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे, किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।

4. सिखों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ मुग़लों का सिखों पर अत्याचार का युग आरंभ होता है। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डट कर सामना किया तथा अनेक शहीदियाँ दी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिखों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया।

5. सिख धर्म की लोकप्रियता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।

6. स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों ने प्रण किया कि जब तक वे मुग़लों के शासन का, अंत नहीं कर लेते तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे। अतः उन्होंने शस्त्र उठा लिए। इस प्रकार अंत में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिखों का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का सपना यथार्थ हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। गुरु रामदास जी ने अमृतसर में अमृत सरोवर की खुदवाई आरंभ करवाई थी। इस कार्य को गुरु अर्जन देव जी ने संपूर्ण करवाया था। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर ने रखी थी। सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचे रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था।

  1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य किस गुरु साहिब ने किया था ?
  2. हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
  3. हरिमंदर साहिब की नींव ……….. में रखी गई थी।
  4. हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
  5. हरिमंदिर साहिब का क्या महत्त्व था ?

उत्तर-

  1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
  2. हरिमंदिर साहिब की नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी।
  3. 1588 ई०।
  4. हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए चार दरवाज़े रखे गए थे।
  5. इस कारण सिखों को उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मिला।

2
मसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों में से एक था। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। क्योंकि गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। गुरु अर्जन साहिब जी के समय सिखों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी इसलिए उन्हें लंगर के लिए तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे।

  1. मसंद प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. मसंद किस भाषा का शब्द है ?
  3. दसवंध से क्या भाव है ?
  4. मसंद प्रथा का क्या महत्त्व था ?
  5. मसंद प्रथा का विकास किस गुरु साहिब के समय हुआ ?
    • गुरु रामदास जी
    • गुरु अर्जन देव जी
    • गुरु हरगोबिंद जी
    • गुरु गोबिंद सिंह जी।

उत्तर-

  1. मसंद प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी।
  2. मसंद फ़ारसी भाषा का शब्द है।
  3. दसवंध से भाव है आमदनी का दसवाँ भाग।
  4. इस कारण सिख धर्म का प्रचार दूर-दूर तक फैल गया।
  5. गुरु अर्जन देव जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

3
जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है, “ब्यास नदी के किनारे गोइंदवाल में अर्जन नामक हिंदू पीर अथवा शेख के लिबास में रहता था। उसने अपने रंग ढंग से बहुत-से सरल स्वभाव वाले हिंदुओं और मूर्ख एवं नासमझ मुसलमानों पर डोरे डाल रखे थे। उसने अपने पीर एवं वली होने का खूब डंका बजाया हुआ था। लोग उसे गुरु कहते थे। सभी ओर से मासूम और अजनबी लोग उसके पास आकर अपनी पूर्ण श्रद्धा प्रकट करते थे। तीन चार पीढ़ियों से उन्होंने यह दुकान चला रखी थी। काफ़ी समय से मेरे मन में यह विचार आता रहा था कि इस झूठ की दुकान को बंद करना चाहिए अथवा उसे इस्लाम में ले आना चाहिए।”

  1. जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
  2. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ?
  3. जहाँगीर किसे झूठ की दुकान कहता है ?
  4. गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
  5. गुरु अर्जन देव जी को ……………. में शहीद किया गया था।

उत्तर-

  1. जहाँगीर की आत्मकथा का नाम तुज़क-ए-जहाँगीरी था।
  2. वह गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म के शीघ्र प्रसार को सहन करने को तैयार नहीं था।
  3. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए जा रहे प्रचार को झूठ की दुकान कहता है।
  4. गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० को शहीद किया गया था।
  5. लाहौर।

गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान PSEB 12th Class History Notes

  • आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ–आपके पिता जी का नाम गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी था-आपका विवाह मऊ गाँव के वासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ-आप 1581 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का आपके बड़े भाई पृथी चंद ने कड़ा विरोध किया-आपको नक्शबंदी संप्रदाय तथा ब्राह्मण वर्ग का भी कड़ा विरोध सहना पड़ा-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी आपसे नाराज़ था।
  • गरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरुगद्दी काल दौरान सिख पंथ के विकास के लिए बहुपक्षीय कार्य किए-उनके गुरु काल में हरिमंदिर साहिब का निर्माण 1588 ई० में आरंभ करवाया गया-इसका निर्माण कार्य 1601 ई० में पूर्ण हुआ-1590 ई० में तरनतारन, 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर तथा 1595 ई० में हरगोबिंदपुर नामक नगरों की स्थापना की गई-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था-यह महान् कार्य 1604 ई० में पूर्ण हुआ-गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-गुरु साहिब ने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया- उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सिख पंथ के द्वार खुले रखे।
  • गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
    • कारण (Causes)-जहाँगीर बड़ा ही कट्टर सुन्नी मुसलमान था–सिख पंथ की हो रही उन्नति उसके लिए असहनीय थी-गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद ने गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए षड्यंत्र आरंभ कर दिए थे-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी अपने अपमान का गुरु साहिब से बदला लेना चाहता था–नक्शबंदियों ने जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध खूब भड़काया-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।
    • बलिदान (Martyrdom)—जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाया गया-उन्हें 2 लाख रुपये जुर्माना देने को कहा गया जो गुरु जी ने इंकार कर दिया-30 ‘मई, 1606 ई० को गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया गया।
    • महत्त्व (Importance) -गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिख इतिहास की एक महान् घटना माना जाता है क्योंकि गुरु अर्जन देव जी शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे, इसलिए उन्हें ‘शहीदों का सरताज’ कहा जाता है-इस शहीदी के परिणामस्वरूप सिख धर्म के स्वरूप में परिवर्तन आ गयागुरु हरगोबिंद जी ने मीरी तथा पीरी नामक नई नीति धारण करने का निर्णय किया-सिख एकता के सत्र में बंधने लगे-सिखों तथा मुग़लों में तनावपूर्ण संबंध स्थापित हो गए-मुग़ल अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया-सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 9 महासागर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 9 महासागर

PSEB 11th Class Geography Guide महासागर Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए-

प्रश्न (i)
जलमंडल धरती की सतह का कितने प्रतिशत भाग घेरता है ?
उत्तर-
71%.

प्रश्न (ii)
धरती को नीला ग्रह क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
धरती पर जल के अधिक होने के कारण।

प्रश्न (iii)
समुद्रों की गहराई को कैसे मापा जाता है ?
उत्तर-
सॉनिक डैप्थ रिकार्डर द्वारा।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (iv)
प्लैक्टन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जीव-जंतुओं के गले सड़े अंश।

प्रश्न (v)
हिंद महासागर की एक गहरी खाई (Trench) का नाम लिखें।
उत्तर-
सुंडा खाई। (Sunda Trench)।

प्रश्न (vi)
विश्व के सबसे बड़े महासागर का नाम क्या है ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (vii)
ऐगुल्लास धारा (Agulhas Current) कौन-से महासागर की धारा है ?
(क) हिंद महासागर
(ख) अंध महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर
(घ) शांत महासागर।
उत्तर-
(क) हिंद महासागर।

प्रश्न (vii)
प्रशांत महासागर की सबसे गहरी खाई (Deepest Trench) का नाम क्या है ?
उत्तर-
मेरिआना।

प्रश्न (ix)
हिंद महासागर की औसत गहराई कितनी है ?
उत्तर-
3960 मीटर।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (x)
प्रशांत महासागर के किनारे किन पाँच महाद्वीपों को छूते हैं ?
उत्तर-

  1. उत्तरी अमेरिका
  2. दक्षिणी अमेरिका
  3. एशिया
  4. आस्ट्रेलिया
  5. अंटार्कटिका।

प्रश्न (xi)
सुनामी लहरें क्या होती हैं ?
उत्तर-
महासागर के धरातल पर भूकंप के कारण बहुत ऊंची लहरें उठती हैं, जिन्हें सुनामी. कहते हैं।

प्रश्न (xii)
तापमान अक्षांश और गहराई बढ़ने से कम होता है, क्यों ?
उत्तर-
भूमध्य रेखा पर पूरा वर्ष सूर्य की किरणें लंब रूप में पड़ती हैं और इसलिए वहाँ तापमान अधिक होता है, परंतु ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान कम होता है। गहराई के बढ़ने से तापमान कम हो जाता है। 200 मीटर की गहराई पर तापमान 15.9°C रहता है परंतु 1000 मीटर की गहराई पर केवल 5°C हो जाता है।

प्रश्न (xiii)
भूमध्य रेखा के नज़दीक गर्मी की ऋतु में खुले महासागर का औसत तापमान क्या होता है ?
उत्तर-
26° C.

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प्रश्न (xiv)
क्या गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) गर्म जल की धारा है ?
उत्तर-
हाँ, यह गर्म जल की धारा है।

प्रश्न (xv)
अल्बेडो (Albedo) की परिभाषा दें।
उत्तर-
सूर्य की किरणों के परिवर्तन को अल्बेडो कहते हैं।

प्रश्न (xvi)
खारापन (लवणता) क्या होता है ?
उत्तर-
खारेपन से अभिप्राय समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा है।

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प्रश्न (xvii)
निम्नलिखित अक्षांशों में से सबसे अधिक खारापन कहाँ होगा ?
(क) 10°A – 15°N
(ख) 15°N – 40°N
(ग) 60°S – 70°S.
उत्तर-
(ख) 15°N – 40°N पर सबसे अधिक खारापन होगा।

प्रश्न (xviii)
महासागरों के जल का खारापन नापने की इकाई क्या है ?
(क) 10 ग्राम
(ख) 1000 ग्राम
(ग) 100 ग्राम।
उत्तर-
(ख) 1000 ग्राम।

प्रश्न (xix)
सागरीय लवणता को कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
(i) हिंद महासागर संसार का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जोकि तीन तरफ से स्थल भागों (अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया) से घिरा हुआ है। इसका विस्तार 20° पूर्व से लेकर 115° पूर्व तक है। इसकी औसत गहराई 4000 मीटर है। यह सागर उत्तर में बंद है और दक्षिण में अंध महासागर और प्रशांत महासागर से मिल जाता है।
(ii) समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस महासागर में कई पहाड़ियाँ मिलती हैं-

(क) मध्यवर्ती पहाड़ी (Mid Indian Ridge) कन्याकुमारी से लेकर अंटार्कटिका महाद्वीप तक 75° पूर्व देशांतर के साथ-साथ स्थित है। इसके समानांतर पूर्वी हिंद पहाड़ी और पश्चिमी हिंद पहाड़ियाँ स्थित हैं। दक्षिण में ऐमस्ट्रडम-सेंट पॉल पठार स्थित है।
(ख) अफ्रीका के पूर्वी सिरे पर स्कोटा छागोश पहाड़ी।
(ग) हिंद महासागर के पश्चिम में मैडगास्कर और प्रिंस ऐडवर्ड पहाड़ियाँ और कार्ल्सबर्ग पहाड़ियाँ स्थित हैं।

(ii) सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-कई पहाड़ियों (Ridges) के कारण हिंद महासागर कई छोटे-छोटे बेसिनों में बँट गया है, जैसे-खाड़ी बंगाल, अरब सागर, सोमाली बेसिन, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन और दक्षिणी हिंद बेसिन।

(iv) समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—इस सागर में समुद्री निवाण बहुत कम हैं। सबसे अधिक गहरा स्थान सुंडा खाई (Sunda Trench) के निकट प्लैनट निवाण है, जोकि 4076 फैदम गहरा है।

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(v) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-हिंद महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर उत्तर की ओर हैं, जो इस प्रकार हैं-

(क) लाल सागर (Red Sea)
(ख) खाड़ी सागर (Persian Gulf)
(ग) अरब सागर (Arabian Sea)
(घ) खाड़ी बंगाल (Bay of Bengal)
(ङ) मोज़म्बिक चैनल (Mozambique Strait)
(च) अंडमान सागर (Andaman Sea)।

(vi) द्वीप (Islands)

(क) श्रीलंका और मैलागासी जैसे बड़े द्वीप
(ख) अंडमान-निकोबार, जंजीबार, लक्षद्वीप और मालदीव,
(ग) मारीशस और रीयूनियन जैसे ज्वालामुखी द्वीप।

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प्रश्न (xx)
अंतर स्पष्ट करें-लवणता/तापमान।
उत्तर-
लवणता उस अनुपात को कहते हैं, जो घुले हुए पदार्थों के भार और समुद्री जल के भार में होती है। महासागरीय जल के तापमान पर महासागरों की गतियाँ निर्भर करती हैं। महासागरीय जल के तापमान का प्रमुख स्रोत सूर्य की गर्मी है।

2. निम्नलिखित को परिभाषित करें-

प्रश्न (i)
महाद्वीपीय ढलान।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे महासागर की ओर तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं।

प्रश्न (ii)
सपाट पर्वत (Guyots) और सागरीय पर्वत (Sea Mount)।
उत्तर-
सपाट शिखर वाली पहाड़ियों को. सपाट पर्वत कहते हैं। 1000 मीटर से अधिक ऊँची पहाड़ियों को समुद्री पर्वत कहते हैं।

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प्रश्न (iii)
जल चक्र।
उत्तर-
समुद्री जल के वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल और जल पर पानी के चक्र में घूमने को जल चक्र कहा जाता है।

प्रश्न (iv)
गहरे मैदान (Abyssal Plains) और महाद्वीपीय ढलान (Continental Slopes)।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे महासागर की ओर तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं। महाद्वीपीय ढलान से आगे समतल मैदान (3000 से 6000 मीटर तक) को गहरा सागरीय मैदान कहते हैं।

प्रश्न (v)
महासागरीय धाराएँ।
उत्तर-
महासागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में लगातार प्रवाह को महासागरीय धाराएँ कहते हैं।

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प्रश्न (vi)
सागरीय धाराएँ क्यों पैदा होती हैं ? कोई चार कारण विस्तार से लिखें।
उत्तर-
समुद्र विज्ञान (Oceanography)—महासागरों का अध्ययन प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है। महासागरों की परिक्रमा, ज्वारभाटे की जानकारी आदि ईसा से कई वर्ष पूर्व ही प्राप्त थी। जलवायु, समुद्री मार्गों, जीवविज्ञान आदि पर प्रभाव के कारण समुद्री विज्ञान भौतिक भूगोल में एक विशेष स्थान रखता है।

समुद्र विज्ञान दो शब्दों Ocean + Graphy के मेल से बना है। इस प्रकार इस विज्ञान में महासागरों का वर्णन होता है। एम०ए०मोरमर (M.A. Mormer) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों की आकृति, स्वरूप, पानी और गतियों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of the Science of Oceans-its form, nature, waters and movements.)। मोंक हाऊस के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों के भौतिक और जैव गुणों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of a wide range of Physical and biological phenomena of oceans.)

I डब्ल्यू० फ्रीमैन (W. Freeman) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान भौतिक भूगोल का वह भाग है, जो पानी की गतियों
और मूल शक्तियों का अध्ययन करता है। इस अध्ययन में ज्वारभाटा, धाराओं, तट रेखाओं, समुद्री धरातल और जीवों का अध्ययन शामिल होता है।”

महासागर-विस्तार (Ocean-Extent)-पृथ्वी के तल पर जल में डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल में महासागर, सागर, खाड़ियाँ, झीलें आदि सभी जल-स्रोत आ जाते हैं। सौर-मंडल में पृथ्वी ही एक-मात्र ग्रह है, जिस पर जलमंडल मौजूद है। इसी कारण पृथ्वी पर मानव-जीवन संभव है।

पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है। इसलिए इसे जल-ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है, इसलिए इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं।

धरातल पर जलमंडल लगभग 3,61,059,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं जोकि पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्रफल का 71% भाग है।
उत्तरी गोलार्द्ध का 61% भाग और दक्षिणी गोलार्द्ध का 81% भाग महासागरों द्वारा घिरा हुआ है। उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक है, इसलिए इसे (Water Hemisphere) भी कहते हैं। जल और थल का विभाजन प्रति ध्रुवीय (Antipodal) है। उत्तरी ध्रुव की ओर चारों तरफ आर्कटिक महासागर स्थित है और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका महाद्वीप द्वारा घिरा हुआ है ।

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जलमंडल का क्षेत्रफल (Area of Hydrosphere) ब्रिटिश भूगोल वैज्ञानिक जॉन मरें (John Murray) ने जलमंडल का क्षेत्रफल 3626 लाख वर्ग किलोमीटर बताया है । महासागरों में प्रमुख प्रशांत महासागर, अंधमहासागर, हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर हैं । प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है, जो जलमंडल के 45.1% भाग पर फैला हुआ है ।

Areas of Different Oceans

Ocean — Area (Sq. K.m.)
प्रशांत महासागर — 16,53, 84,000
अंध महासागर — 8,22,17,000
हिंद महासागर — 7,34,81,000
आर्कटिक महासागर –1,40,56,000

महासागरों की औसत गहराई 3791 मीटर है। स्थल मंडल की अधिकतम ऊँचाई एवरेस्ट चोटी (Everest Peak) है, जोकि समुद्र तल से 8848 मीटर ऊँची है। जलमंडल की अधिकतम गहराई 11,033 मीटर, फिलीपीन देश के निकट प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में चैलंजर निवाण (Challeger Deep) में है। इस प्रकार यदि संसार के सबसे ऊँचे शिखर ऐवरेस्ट को प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो उसके शिखर पर 2000 मीटर से अधिक पानी होगा।

प्रश्न (vii)
अंध महासागर की कोई दो गर्म पानी की धाराओं की व्याख्या करें।
उत्तर-

  • फ्लोरिडा गर्म पानी की धारा-यह धारा दक्षिणी-पूर्वी (यू०एस०ए०) तट से होते हुए चलती है, जोकि फ्लोरिडा की धारा के नाम से जानी जाती है। ..
  • नॉर्वे की गर्म पानी की धारा-अंध महासागर के पूर्वी हिस्से में पहुँचकर (North Atlantic Drift) उत्तरी अटलांटिक धारा दो हिस्सों में बाँटी जाती है, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ हिस्सा नॉर्वे के तटों के साथ-साथ होता हुआ आर्कटिक (Arctic) सागर में जा मिलता है, जो नॉर्वे की गर्म पानी की धारा के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न (viii)
न्यूफाउंडलैंड में धुंध होने के कारण क्या हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-
न्यूफाउंडलैंड के निकट खाड़ी की गर्म धारा और लैब्रेडोर की ठंडी धाराएँ आपस में मिलती हैं। इनके प्रभाव से धुंध पैदा हो जाती है और जहाज़ों के आने-जाने में रुकावट पैदा होती है।

प्रश्न (ix)
महासागरीय धाराओं और ज्वारभाटा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
महासागरों में एक विशेष दिशा में लगातार प्रवाह को महासागरीय धाराएँ कहते हैं। जबकि सागरीय जल के समय के अनुसार उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।

प्रश्न (x)
गहराई के साथ समुद्री तापमान में बदलाव क्यों आता है ? ताप-परतों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
गहराई के साथ-साथ समुद्री जल का तापमान कम होता जाता है। सूर्य की किरणें 100 फैदम तक ही पानी को गर्म करती हैं। पहली परत 500 मीटर तक होती है। दूसरी परत 500-1000 मीटर तक होती है, जिसे थर्मोक्लाईन कहते हैं। इससे अधिक गहराई पर तापमान कम होना शुरू होने लगता है।

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प्रश्न (xi)
सागरीय धाराओं का तापमान पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
धाराओं से ऊपर बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या सर्दी ले जाती हैं। गर्म धाराओं के प्रभाव से निकट के क्षेत्र में तापमान ऊँचा हो जाता है और जलवायु सम हो जाती है। (Warm currents raises and cold currents lowers the temprature)। ठंडी धाराओं के कारण सर्दी की ऋतु आरंभ हो जाती है।

प्रश्न (xii)
महासागरीय जल के तापमान वितरण के ऊपर प्रभाव डालने वाले तत्त्वों के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size)—यह त्रिभुज (A) आकार का महासागर पृथ्वी के 30% भाग पर फैला हुआ है। इसकी औसत गहराई 5000 मीटर है। उत्तर में यह बेरिंग समुद्र और आर्कटिक महासागर द्वारा बंद है। प्रशांत महासागर भूमध्य रेखा पर लगभग 16000 कि०मी० चौड़ा है।

2. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—प्रशांत महासागर में पहाड़ियों (Ridges) की कमी है। इसके कुछ भागों में पठारों के रूप में उठे हुए चबूतरे पाए जाते हैं। प्रमुख उभार इस प्रकार हैं –

  • हवाई उभार, जोकि लगभग तीन हज़ार कि०मी० लंबा है।
  • अल्बेट्रोस पठार, जोकि लगभग 1500 कि०मी० लंबा है।
  • इस सागर में अनेक उभार (Swell), ज्वालामुखी पहाड़ियाँ और प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं।

3. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-प्रशांत महासागर में कई प्रकार के बेसिन मिलते हैं, जो छोटी-छोटी पहाड़ियों (Ridges) द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। प्रमुख बेसिन इस प्रकार हैं –

  • ऐलुशीयन बेसिन
  • फिलिपीन बेसिन
  • फिज़ी बेसिन
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन
  • प्रशांत अंटार्कटिका बेसिन।

4. सागरीय निवाण (Ocean Deeps)—इस महासागर में लगभग 32 निवाण मिलते हैं, जिनमें से अधिक Trenches हैं। इस सागर के निवाण (Deeps) और खाइयाँ (Trenches) अधिकतर इसके पश्चिमी भाग में हैं। इस सागर में सबसे गहरा स्थान मैरियाना खाई (Mariana Trench) है, जिसकी गहराई 11022 मीटर है। इसके अलावा ऐलुशीयन खाई, क्यूराइल खाई, जापान खाई, फिलीपाइन खाई, बोनिन खाई, मिंडानो टोंगा खाई और एटाकामा खाई प्रसिद्ध सागरीय निवाण हैं, जिनकी गहराई 7000 मीटर से भी अधिक है।

5. सीमवर्ती सागर (Marginal Seas)—प्रशांत महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर पश्चिमी भागों में मिलते हैं। इसके पूर्वी भाग में कैलीफोर्निया की खाड़ी और अलास्का की खाड़ी है। शेष महत्त्वपूर्ण सागर पश्चिमी भाग में हैं(i) बेरिंग सागर (Bering Sea) (ii) पीला सागर (Yellow Sea) (iii) ओखोत्सक सागर (Okhotsk Sea) (iv) जापान सागर (Japan Sea) (v) चीन सागर (China Sea)।

6. द्वीप (Islands)—प्रशांत महासागर में लगभग 20 हज़ार द्वीप पाए जाते हैं। प्रमुख द्वीप ये हैं-

  • ऐलुशियन द्वीप और ब्रिटिश कोलंबिया द्वीप।
  • महाद्वीपीय द्वीप, जैसे-क्यूराईल द्वीप, जापान द्वीप समूह, फिलीपाइन द्वीप, इंडोनेशिया द्वीप और न्यूज़ीलैंड द्वीप।
  • ज्वालामुखी द्वीप जैसे-हवाई द्वीप।
  • प्रवाल द्वीप, जैसे-फिजी द्वीप।

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प्रश्न (xiii)
लहरें (तरंगें) क्या होती हैं ?
उत्तर-
पवनों के प्रभाव से महासागरीय तल का जल ऊँचा-नीचा होता है, जिन्हें लहरें कहते हैं।

प्रश्न (xiv)
सुनामी लरहें (तरंगें) क्या होती हैं और इनके कारण होने वाली तबाही के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर–
महासागर के धरातल पर भूकंप के कारण बहुत ऊँची लहरें उठती हैं, जिन्हें सुनामी कहते हैं। ये लहरें बहुत विनाशकारी होती हैं। इन सुनामी लहरों के कारण सन् 2004 में दक्षिणी भारत में जान और माल का बहुत नुकसान हुआ था।

प्रश्न (xv)
लहरों की लंबाई क्या होती है ? .
उत्तर-
महासागरों में लहरों के कारण जल ऊँचा-नीचा होता रहता है, जिन्हें तरंगें या लहरें कहते हैं। लहरों के ऊपरी भाग को शिखर (Crest) और निचले भाग को गर्त (Trough) कहते हैं। इस शिखर और गर्भ के बीच की लंबाई को लहर की लंबाई कहते हैं।

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प्रश्न (xvi)
लहर की ऊँचाई क्या होती है ?
उत्तर-
लहर के निचले हिस्से गर्त (Trough) से लेकर लहर के शिखर तक की ऊँचाई को लहर की ऊँचाई कहते हैं।

प्रश्न (xvi)
लहरों और पवनों का आपसी संबंध बताएँ। लहरों की गति देखने के लिए किस फॉर्मूले का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
महासागरों का जल हवा की दिशा के साथ लहरों के रूप में गतिशील होता है। जल के ऊपर उठने और नीचे आने की क्रिया को लहर कहते हैं। लहरों को मापने के लिए नीचे लिखे फार्मूले का प्रयोग किया जाता है।
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प्रश्न (xvii)
Surge की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
जब कोई लहर समुद्र-तट की ओर आती है, तो उसे Swash या Surge कहते हैं। यह लहर हानिकारक होती है।

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प्रश्न (xix)
ज्वारभाटा कब आता है ?
उत्तर-
समुद्र का जल नियमित रूप से दिन में दो बार (24 घंटे में) ऊपर उठता है और नीचे आता है। इसे ज्वारभाटा कहते हैं।

प्रश्न (xx)
ज्वार दिन में कितनी बार आता है और इनका आपसी अंतर (Magnitude) क्या होता है ?
उत्तर-
प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घंटे 26 मिनट के बाद आता है। हर रोज़ ज्वार पिछले दिन की तुलना में देर से आता है।

प्रश्न (xxi)
एक औसतन ज्वार की ऊँचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
0.55 मीटर।

प्रश्न (xxii)
अंतर स्पष्ट करेंऊँचा ज्वार (Spring Tide) और छोटा ज्वार (Neap Tide)
उत्तर-
ऊँचा ज्वार (Spring Tide)-सबसे ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। यह हालत अमावस्या (New Moon) और पूर्णिमा (Full Moon) को होती है।
छोटा ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे छोटा ज्वार कहते हैं। इस हालत को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब चाँद आधा (Half Moon) होता है।

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3. विस्तार से दें-

प्रश्न (i)
महासागरीय बेसिन (Ocean Basin) क्या होता है ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
महासागरीय बेसिन (Ocean Basin)-समुद्री धरातल के ऊँचे-नीचे भाग को महासागरीय बेसिन कहते हैं। इसके फर्श पर पठार, टीले, घाटियाँ और खाइयाँ मिलती हैं। महासागरीय बेसिन को नीचे लिखे प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-

1. महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)-समुद्री किनारे के साथ समुद्री हिस्से को महाद्वीपीय शैल्फ कहा जाता है। महाद्वीपीय शैल्फ समुद्री किनारों से लेकर समुद्रों के नीचे उस सीमा तक फैले हुए होते हैं, जहाँ से समुद्र की गहराई शुरू होती है। महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई 100 फैदम (Fathom) तक मानी जाती है, परंतु कई बार यह अधिक भी हो सकती है। इसकी ढलान बहुत कम होने के कारण यह समतल ही नज़र आती है।

विस्तार-महासागरों के 7.5% भाग (260 लाख वर्ग किलोमीटर) पर महाद्वीपीय शैल्फों का विस्तार है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंधमहासागर (13.3%) में है। इसकी औसत चौड़ाई 67 किलोमीटर और गहराई लगभग 72 फैदम होती है। आर्कटिक सागर के तट पर इसका विस्तार 1000 किलोमीटर से भी अधिक है।

उत्पत्ति-महाद्वीपीय शैल्फ की उत्पत्ति के बारे में विचारकों के नीचे लिखे विचार हैं-

  • कुछ विचारकों के अनुसार महाद्वीपीय शैल्फ वास्तव में स्थल का बढ़ा हुआ रूप होता है। समुद्र तल के ऊपर उठ जाने से या स्थल भाग के नीचे धंस जाने से महाद्वीपीय शैल्फ की रचना हुई।
  • यह भी माना जाता है कि सागरीय अपरदन से भी इनकी रचना हुई।
  • नदियों, लहरों, वायु आदि द्वारा तलछट के निक्षेप से भी इनका निर्माण हुआ।

महत्त्व-महाद्वीपीय शैल्फ मनुष्य के लिए काफी लाभदायक है। इन प्रदेशों में मछलियों के भंडार होते हैं। यहाँ तेल और गैस का उत्पादन होता है। यहाँ समुद्री जीवों और वनस्पति की अधिकता होती है।

2. महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope) समुद्री फ़र्श का यह भाग महाद्वीपीय शैल्फ के समाप्त होने पर शुरू होता है और गहरे समुद्री मैदान तक जारी रहता है। दूसरे शब्दों में महाद्वीपीय ढलान महाद्वीपीय शैल्फ और गहरे समुद्री मैदान के बीच का भाग होता है। इस भाग की गहराई 100 फैदम से लेकर 2000 फैदम तक मानी जाती है। (भाव 200 मीटर से 4000 मीटर तक)। इसका कुल विस्तार 8.5% क्षेत्रफल पर है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर में है, जो कि 72.4% होता है। इस ढाल का औसत कोण 4° होता है, परंतु स्पेन के निकट यह कोण 36° होता है। इस ढाल की मुख्य रूप से पाँच किस्में हैं –

  • कैनियन द्वारा कटे हुए ढाल।
  • पहाड़ियों और बेसिन वाला मंद ढाल।
  • दरार के कारण टूटा हुआ ढाल।
  • सीढ़ीदार ढाल।
  • समुद्री टीलों वाला ढाल।

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3. गहरा समुद्री मैदान (Deep Sea Plain)-महाद्वीपीय ढलान से निचले चौड़े और समतल क्षेत्र को गहरे समुद्री मैदान कहा जाता है। इनकी औसत गहराई 3000 से लेकर 6000 मीटर तक होती है। कुल महासागर में इसका विस्तार 7.7% है। इसका सबसे अधिक विस्तार प्रशांत महासागर में है। इन मैदानों की ढाल 1/1000 से भी कम होती है। इन मैदानों के ऊपर कई भू-दृश्य पाए जाते हैं, जैसे—समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges), समुद्री टीले (Sea Mounts) आदि। इस भाग में अधिकतर मरे हुए जानवरों के अवशेष, हड्डियाँ, खोल और कीचड़ आदि पाए जाते हैं। समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—समुद्री मैदानों में पाए जाने वाले सबसे गहरे हिस्सों को समुद्री निवाण कहा जाता है। इनका क्षेत्रफल बहुत कम और ढलान बहुत अधिक तीखी होती है।

4. समुद्री निवाण (Ocean Deeps) आमतौर पर द्वीप श्रृंखलाओं के निकट, ज्वालामुखी पर्वतों और भूकंप वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। कुल महासागरों के 7% भाग पर समुद्री निवाण पाए जाते हैं। विश्व के कुल सागरों में 57 खाइयाँ हैं, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में, 19 अंधमहासागर में और 6 हिंद महासागर में हैं। इन खाइयों की नीचे लिखी विशेषताएं है-

  • ये महासागरों के किनारे के साथ-साथ पाई जाती हैं।
  • ये अधिकतर ज्वालामुखी क्षेत्रों में होती हैं।
  • ये द्वीप श्रृंखलाओं की चाप के साथ-साथ मिलती हैं।

5. समुद्री कटक, घाटियाँ, पठार और ज्वालामुखी पहाड़ियाँ (Ocean Ridges, Valleys, Plateaus and Volcano Hills)-समुद्रों में कई स्थानों पर समुद्री कटक, घाटियाँ, पठार और ज्वालामुखी पहाड़ियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए अंध-महासागर में मध्यवर्ती कटक (Mid-Atlantic Ridge) ग्रीनलैंड से लेकर अंटार्कटिक तक फैली हुई है।

प्रश्न (ii)
पंजाब की जलगाहों के विषय में जानकारी दें और इनका प्रदूषण रोकने के लिए सुझाव दें।
उत्तर-
पंजाब के दो जलगाह नीचे लिखे हैं-
1. हरीके पत्तन जलगाह-यह जलगाह बहुत गहरी और बड़ी, जल की आर्द्रभूमि है, जो पंजाब के तरनतारन जिले में स्थित है। 1953 ई० में हरीके के स्थान पर सतलुज नदी के पानी को बांधकर इस जलगाह को बनाया गया था। यहाँ सतलुज और ब्यास नदियों का संगम होता है। यह जलगाह मनुष्य द्वारा बनाई गई है, जोकि 4100 हैक्टेयर के क्षेत्र में तीन जिलों तरनतारन, फिरोजपुर और कपूरथला में फैली हुई है।

2. कांजली जलगाह-पंजाब के कपूरथला जिले की यह जलगाह 1870 ई० में सिंचाई के उद्देश्य से बनाई गई थी। यह जलगाह काली बेंई जोकि ब्यास नदी में से निकलती है, के बहाव को बाँधकर बनाई गई थी। इस जलगाह को 2002 ई० में रामसर समझौते के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व वाली जलगाहों वाला दर्जा दिया गया था।

इनके प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी सुझाव-इन जलगाहों में फैंके गए कूड़ा-कर्कट के कारण प्रदूषण होता है। यह कूड़ा-कर्कट पानी के ऊपर तैरता रहता है इसलिए इन जलगाहों को प्रदूषण से बचाने के लिए इनमें कूड़ाकर्कट न फेंका जाए।

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प्रश्न (iii)
महासागरीय जल के तापमान वितरण पर प्रभाव डालने वाले तत्त्वों के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
सागरों का जल, तापमान का एक उत्तम संचालक होता है, इसलिए थल की तुलना में जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक-समान नहीं होता। सागरीय जल का अलगअलग तापमान नीचे लिखी बातों पर निर्भर करता है-

1. भूमध्य रेखा से दूरी-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें पूरा वर्ष सीधी पड़ती हैं, इसलिए भूमध्यवर्ती सागरों में तापमान अधिक होता है और पूरा वर्ष एक-समान रहता है। भूमध्य रेखा के ऊपर यह तापमान 26°C के लगभग होता है। 70° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 5°C पाया जाता है। इसी प्रकार उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में तापमान कम हो जाता है।

2. प्रचलित पवनें-जब स्थायी पवनें चलती हैं, तो सागरों की सतह के जल को गतिशील बना देती हैं। एक स्थान से हिले हुए जल का स्थान लेने के लिए निचला जल ऊपर आ जाता है। इसे Upwelling of Water कहते हैं। इसके फलस्वरूप सागरों के तापमान पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

3. सागरीय धाराओं का प्रभाव-सागरीय धाराएँ जिस क्षेत्र से आती हैं, उसका जल अपने साथ ले आती हैं। यदि कोई सागरीय धारा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चल रही हो, तो स्वाभाविक तौर पर ध्रुवों का जल जब भूमध्यरेखीय धाराओं के संपर्क में आएगा, तो उसका तापमान भी बढ़ जाएगा। जो धारा ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलती है, तो उसका तापमान कम हो जाएगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सागरीय धाराएँ सागरों के तापमान पर गहरा प्रभाव डालती हैं। खाड़ी की गर्म धारा पश्चिमी यूरोप के तापमान को 5°C तक बढ़ा देती है परन्तु लैबरेडोर की ठंडी धारा तापमान को 0°C तक कम कर देती है।

4. खारेपन की मात्रा-सागरों का खारापन भी सागरीय जल के तापमान को प्रभावित करता है। सागरों का जल जितना अधिक खारा होगा, उतना ही तापमान अधिक होगा। जितना खारापन कम होगा, उतना ही तापमान कम होगा।

5. थल-मंडलों का प्रभाव-उष्ण-कटिबंध में स्थल द्वारा घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है, परंतु शीत कटिबंध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई-समुद्र की गहराई बढ़ने से तापमान कम होता जाता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से कम होकर 20°C तक रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से कम होकर 1.6°C रह जाता है।

प्रश्न (iv)
अलग-अलग सागरों में खारेपन की मात्रा को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र का पानी हमेशा खारा होता है। सागरीय जल के 1000 ग्राम पानी में लगभग 35 ग्राम नमक घुला हुआ होता है। खारेपन की यह मात्रा भिन्न-भिन्न सागरों में भिन्न-भिन्न होती है। खारेपन की यह भिन्नता नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करती है-

1. ताजे जल की पूर्ति (Supply of Fresh Water) ताज़े पानी की अधिकता से सागरों में खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। साफ़ जल की पूर्ति कई साधनों द्वारा होती है। भूमध्यरेखीय खंड में अधिक वर्षा के कारण सागरीय जल में खारेपन की मात्रा कम होती है, इसलिए कर्क रेखा और मकर रेखा के आसपास खारेपन की मात्रा अधिक होती है। ध्रुवीय प्रदेशों में हिम (बर्फ) के पिघलने से साफ़ जल प्राप्त होता रहता है, जिससे खारापन कम हो जाता है। बड़ी नदियों के मुहानों पर खारापन कम होता है।

2. वाष्पीकरण (Evaporation)—जिन महासागरों में वाष्पीकरण अधिक होता है, उनका जल अधिक खारा होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा सागरीय-जल वाष्प बनकर ऊपर उठता है और बाकी बचे जल में खारेपन की मात्रा बढ़ जाती है। अधिक तापमान, वायु की तीव्रता और शुष्कता के कारण सागरों में खारापन अधिक होता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट अधिक वाष्पीकरण के कारण खारापन अधिक होता है। कम तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण खारापन कम हो जाता है।

3. पवनों की दिशा (Wind Direction) यदि एक ही दिशा से तेज़ गति वाली पवनें दूसरी दिशा की ओर चल रही हों, तो वे सागरों की सतह का जल भी अपने साथ बहाकर ले जाती हैं, जिस कारण सागरों में खारेपन की मात्रा परिवर्तित होती रहती है। नीचे उतरती पवनों के कारण अधिक वाष्पीकरण और अधिक खारापन होता है।

4. सागरीय जल की गति (Movement of the Sea Water) सागरों के जल की गति द्वारा भी खारेपन पर प्रभाव पड़ता है। सागरों का जल गतिशील होने के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता है और अपने मूल गुणों को भी बहाकर ले जाता है। यदि मूल जल में खारेपन की मात्रा अधिक होगी, तो नए स्थान का खारापन अधिक हो जाएगा। दूसरी तरफ अधिक ताज़ा जल नए स्थान का खारापन कम कर देता है।

5. समुद्री धाराएँ (Currents)-खुले सागरों में धाराएँ एक भाग से दूसरे भाग तक जल ले जाती हैं । गर्म धाराएँ खारेपन की मात्रा को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराओं के साथ खारेपन की मात्रा कम हो जाती है।

6. समुद्री जल की मिश्रण क्रिया (Mixing of Water)–ज्वारभाटा, लहरें और धाराएँ समुद्री जल को दूर दूर तक बहाकर ले जाती हैं। जल के इस मिश्रण से स्थानीय रूप में खारापन बढ़ जाता है या कम हो जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (v)
समुद्री धाराएँ क्या होती हैं ? ये किस प्रकार पैदा होती हैं ? उदाहरण भी दें।
उत्तर-
समुद्री धाराएँ (Ocean Currents)-समुद्र के एक भाग से दूसरे भाग की ओर, एक विशेष दिशा में पानी के लगातार प्रवाह को समुद्री धाराएँ कहते हैं (Regular Movement of water from one part of the ocean to another is called an ocean current)। समुद्री धाराओं में पानी नदियों के समान आगे बढ़ता है। इनके किनारे स्थिर पानी वाले होते हैं। इन्हें समुद्री नदियाँ भी कहते हैं (An ocean current is like a river in the ocean)।

धाराओं के पैदा होने के कारण (Causes)—समुद्री धाराओं के पैदा होने के प्रमुख कारण नीचे लिखे हैं-

1. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)- हवा अपनी अपार शक्ति के कारण पानी को गति देती है। धरातल पर चलने वाली स्थायी पवनें (Planetary winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। संसार की प्रमुख धाराएँ स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं (Ocean currents are wind determined)। मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा और उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • व्यापारिक पवनें (Trade Winds)—इनके द्वारा उत्तरी और दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएँ (Equatorial Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं।
  • पश्चिमी पवनें (Westerlies)-इनके प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) और क्यूरोशियो (Kuroshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

2. तापमान की भिन्नता (Difference in Temperature)-गर्म पानी हल्का होकर फैलता है और उसकी ऊँचाई बढ़ जाती है। ठंडा पानी भारी होने के कारण नीचे बैठ जाता है। कम ताप के कारण ठंडा पानी सिकुड़कर भारी हो जाता है। इस प्रकार समुद्र के पानी की सतह बराबर नहीं रहती और धाराएँ चलती हैं।

3. खारेपन में भिन्नता (Difference in Salinity)–अधिक खारा पानी भारी होने के कारण तल के नीचे की ओर बहता है। कम खारा पानी हल्का होने के कारण तल पर ही बहता है।

उदाहरण (Examples)

(क) भूमध्य सागर के अधिक खारे पानी की धारा तल के नीचे अंध महासागर की ओर चलती है।
(ख) बाल्टिक सागर (Baltic Sea) से कम खारे पानी की धारा तल पर उत्तरी सागर (North sea) की ओर बहती है।

4. वाष्पीकरण और वर्षा की मात्रा (Evaporation and Rainfall)-अधिक वाष्पीकरण से पानी भारी और अधिक खारा हो जाता है और तल की ओर नीचा हो जाता है, परंतु वर्षा अधिक होने से पानी हल्का हो जाता है और उसका तल ऊँचा हो जाता है। इस प्रकार ऊँचे तल से निचले तल की ओर धाराएँ चलती हैं।

5. धरती की दैनिक गति (Rotation)-फैरल के सिद्धान्त (Ferral’s law) के अनुसार धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। धरती की गति के कारण धाराओं का प्रवाह गोल आकार का बन जाता है।
उदाहरण (Examples)–धाराओं का चक्र उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा के अनुकूल (Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-Clockwise) चलता है।

6. तटों का आकार (Shape of Coasts)-तटों का आकार धाराओं के मार्ग में रोक पैदा कर देता है। समुद्री जल तटों से टकराकर धाराओं के रूप में बहने लगता है। धाराएँ तट के सहारे मुड़ जाती हैं। यदि थल प्रदेश न होते, तो धरती के आस-पास एक महान् भूमध्य रेखीय धारा (Great Equatorial Current) चलती।

उदाहरण (Examples)-

(क) ब्राज़ील के नुकीले तट पर सेन-रॉक अंतरीप (Cape san-Rocque) से टकराकर भूमध्य रेखीय धारा ब्राजील की धारा के रूप में बहती है।

(ख) महाद्वीपों की खाड़ियों वाले तटों पर पानी की अधिक मात्रा इकट्ठी हो जाती है। जिस प्रकार मैक्सिको की खाड़ी (Gulf of Maxico) से फ्लोरिडा (Florida) की धारा।

7. ऋतु परिवर्तन (Change of Season) मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होने के कारण धाराओं की दिशा भी बदल जाती है।
उदाहरण (Examples)-हिंद महासागर में गर्मी की ऋतु में S.W. Monsoon Drift और सर्दी की ऋतु में N.E. Monsoon Drift बहती है।

प्रश्न (vi)
अंध महासागर की धाराओं का वर्णन करें और पड़ोसी देशों पर उनके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
अंध महासागर की धाराएँ (Currents of the Atlantic Ocean)-अंध महासागर स्पष्ट रूप से उत्तरी और दक्षिणी अंध महासागर के दो भागों में बंटा हुआ है। दोनों भागों में धाराओं का प्रभाव-क्रम एक समान है। उत्तरी अंध महासागर में धाराएँ घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चक्र पूरा करती हैं, परंतु दक्षिणी अंध महासागर में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा (Anti-clockwise) में चक्र पूरा करती हैं। अंध महासागर की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं-

1. उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा (North Equatorial Current)—यह गर्म जल की धारा है, जो भूमध्य रेखा के उत्तर में व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। इस धारा का जल मैक्सिको की खाड़ी (Gulf of Maxico) में इकट्ठा हो जाता है।

2. खाड़ी की धारा (Gulf Stream Current)-उत्पत्ति (Origin)—यह धारा मैक्सिको की खाड़ी में एकत्रित जल द्वारा पैदा होती है, इसीलिए इसे खाड़ी की धारा कहते हैं । यह धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर न्यूफाउंडलैंड (New Foundland) तक बहती है। यह गर्म जल की धारा है, जो एक नदी के समान तेज़ चाल से बहती है। इसका रंग नीला होता है। यह लगभग 1 कि०मी० गहरी, 50 कि०मी० चौड़ी है और इसकी गति 8 कि०मी० प्रति घंटा है।

शाखाएँ और क्षेत्र (Branches and Area)—यह धारा 40° उत्तरी अक्षांश के निकट पश्चिमी पवनों (Westerlies) के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। इसकी मुख्य धारा यूरोप की ओर बहती है, जिसे उत्तरी अटलांटिक प्रवाह (North Atlantic Drift) कहते हैं। यह एक धीमी धारा है, जिसे पश्चिमी पवनों के कारण पश्चिमी पवन प्रवाह (West Wind Drift) भी कहते हैं । यूरोप के तट पर यह धारा कई शाखाओं में बँट जाती है। ब्रिटेन का चक्कर लगाती हुई एक शाखा नॉर्वे के तट को पार करके आर्कटिक सागर में स्पिट्ज़बर्जन (Spitsbergen) तक पहुँच जाती है, जहाँ इसे नार्वेजियन (Norwegian) धारा कहते हैं।

प्रभाव (Effects) –

  • यह एक गर्म जल धारा है, जो ठंडे अक्षांशों में गर्म जल पहुँचाती है।
  • यह धारा पश्चिमी यूरोप को गर्मी प्रदान करती है। यूरोप में सर्दी की ऋतु में साधारण से ऊँचा तापमान इसी धारा की देन है।
  • पश्चिमी यूरोप की सुहावनी जलवायु इस धारा की देन है, इसलिए इसे यूरोप की जीवन रेखा (Life line of Europe) भी कहते हैं।
  • पश्चिमी यूरोप की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में नहीं जमतीं और व्यापार के लिए खुली रहती हैं।
  • इस धारा के ऊपर से निकलने वाली पश्चिमी पवनें (westerlies) यूरोप में बहुत वर्षा करती हैं।

3. कनेरी की धारा (Canary Current)-यह ठंडे जल की धारा है, जो स्पेन, पुर्तगाल और अफ्रीका के उत्तर-पश्चिमी भागों पर कनेरी द्वीप के निकट से गुज़रती है। दैनिक गति के प्रभाव से उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट का कुछ जल दक्षिण की ओर मुड़कर भूमध्य रेखा की ओर निकलता है। इसके प्रभाव से सहारा (Sahara) मरुस्थल शुष्क रहता है।

4. लैबरेडोर की धारा (Labrador Current)—यह ठंडे पानी की धारा है, जो आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) से उत्तरी अंध-महासागर की ओर बहती है। यह धारा बैफिन खाड़ी (Bafin Bay) से निकलकर कनाडा के तट के साथ बहती हुई न्यूफाउंडलैंड तक आ जाती है। यहाँ यह खाड़ी की धारा के साथ मिल जाती है, जिससे घना कोहरा पैदा होता है। इसकी एक शाखा सेंट लारेंस (St. Lawrence) घाटी में दाखिल होती है, जो कई महीने बर्फ से जमी रहती है।

प्रभाव (Effects)-

  • ये प्रदेश बर्फ से ढके रहने के कारण अनुपजाऊ हैं।
  • इस ठंडी धारा के कारण इस प्रदेश के तट की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में जम जाती हैं और व्यापार बंद हो जाता है।
  • ये धाराएँ अपने साथ आर्कटिक सागर पर बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें ले आती हैं। कोहरे के कारण जहाज़ इन हिमशैलों से टकराकर दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं।

5. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)—यह धारा भूमध्य रेखा के दक्षिण में भूमध्य रेखा के समानांतर बहती है। व्यापारिक पवनों के प्रभाव से यह पूर्व से पश्चिम की दिशा में बहती है। यह गर्म जल की धारा है, जो अफ्रीका की गिनी की खाड़ी (Gulf of Guinea) से आरम्भ होकर ब्राज़ील के (Brazil) तट तक बहती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 1

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (vii)
किसी देश की जलवायु और व्यापार पर समुद्री धाराओं के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्री धाराओं का प्रभाव (Effects of Ocean Currents) समुद्री धाराएँ निकट के क्षेत्रों के मानवीय जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है
1. जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)-

  • जलवायु (Climate)-जिन तटों पर गर्म या ठंडी धाराएँ चलती हैं, वहाँ की जलवायु क्रमशः गर्म या ठंडी हो जाती है।
  • तापमान (Temperature)-धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या सर्दी ले जाती हैं। गर्म धाराओं के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापमान अधिक हो जाता है और जलवायु सम हो जाती है (Warm currents raise and cold temperature lower the temperature of the neighbouring areas) I OST धारा के कारण सर्दी की ऋतु में तापमान बहुत कम हो जाता है और जलवायु विषम और कठोर हो जाती है।

उदाहरण (Examples)-

(i) लैबरेडोर (Labrador) की ठंडी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट और क्यूराईल (Kurile) की ठंडी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट सर्दी ऋतु में बर्फ से जमा रहता है।

(ii) खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूह और नॉर्वे के तट के भागों का तापमान उच्च रहता है और पानी सर्दी की ऋतु में भी नहीं जमता। जलवायु सुहावनी और सम रहती है।

(iii) वर्षा (Rainfall)-गर्म धाराओं के निकट के प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है परंतु ठंडी धाराओं के निकट के प्रदेशों में कम वर्षा होती है। गर्म धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है, पर ठंडी धाराओं के संपर्क में आकर पवनें ठंडी हो जाती हैं और वे अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तर-पश्चिमी यूरोप में खाड़ी की गर्म धारा के कारण और जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोशियो की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  • संसार के प्रमुख मरुस्थलों के तटों के नज़दीक ठंडी धाराएँ बहती हैं, जैसे सहारा तट पर कनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पेरू की धारा।

(iv) धुंध की उत्पत्ति (Fog)-गर्म और ठंडी धाराओं के मिलने से धुंध और कोहरा पैदा हो जाता है। गर्म धारा के ऊपर की हवा ठंडी हो जाती है। उसके जलकण सूर्य की किरणों का रास्ता रोककर कोहरा पैदा कर देते हैं।
उदाहरण (Examples)-खाड़ी की गर्म धारा और लैबरेडोर की गर्म धारा के ऊपर की हवा के मिलने से न्यूफाऊंडलैंड (New Foundland) के निकट धुंध पैदा हो जाती है।

(v) तूफ़ानी चक्रवात (Cyclones)-गर्म और ठंडी धाराओं के मिलने से गर्म हवा बड़े वेग से ऊपर उठती है और तेज़ तूफानी चक्रवातों को जन्म देती है।

2. व्यापार पर प्रभाव (Effects on Trade)-

(i) बंदरगाहों का खुला रहना (Open Sea-ports)-ठंडे प्रदेशों में गर्म धाराओं के प्रभाव से सर्दियों में बर्फ नहीं जमती और बंदरगाह व्यापार के लिए सारा साल खुले रहते हैं, परंतु ठंडी धाराओं के निकट का तट बर्फ से जमा रहता है। ठंडी धाराएँ व्यापार में रुकावट डालती हैं।

उदाहरण (Examples)–

  • खाड़ी की धारा के कारण नॉर्वे और ब्रिटिश द्वीप समूह की बंदरगाहें पूरा वर्ष खुली रहती हैं, परंतु हॉलैंड, फिनलैंड और स्वीडन की बंदरगाहें समुद्र का पानी जम जाने के कारण सर्दी की ऋतु में बंद हो जाती हैं।
  • लैबरेडोर की ठंडी धारा के कारण पूर्वी कनाडा और सेंट लॉरेंस घाटी (St. Lawrance Valley) की बंदरगाहें तथा क्यूराईल की ठंडी धारा के कारण व्लाडिवॉस्टक (Vladivostok) की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में जम जाती हैं।

(ii) समुद्री मार्ग (Ocean Routes)-धाराएँ जल-मार्ग को निर्धारित करती हैं। ठंडे सागरों से ठंडी धाराओं के साथ बहकर आने वाले हिम-शैल (Icebergs) जहाज़ों का बहुत नुकसान करते हैं। इनको ध्यान में रखकर समुद्री मार्ग निर्धारित किए जाते हैं।

(iii) जहाजों की गति पर प्रभाव (Effect on the velocity of the Ships)-प्राचीन काल में धाराओं का बादबानी जहाज़ों की गति पर प्रभाव पड़ता था। धाराओं के अनुकूल दिशा में चलने से उनकी गति बढ़ जाती थी, परंतु विपरीत दिशा में जाने से उनकी चाल कम हो जाती थी। आजकल भाप से चलने वाले जहाज़ों (Steam Ships) की गति पर धाराओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

(iv) समुद्र के जल की शुद्धि-धाराओं के कारण समुद्र का जल गतिशील, शुद्ध और साफ रहता है। धाराएँ तट पर जमा पदार्थ दूर बहाकर ले जाती हैं और समुद्र तट गंदे होने से बचे रहते हैं।

(v) दुर्घटनाएँ-कोहरे और धुंध के कारण दृश्यता (visibility) कम हो जाती है। आमतौर पर जहाज़ों के डूबने और टकराने की दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

3. समुद्री जीवों पर प्रभाव (Effects on Marine life)-
समुद्री जीवों का भोजन (Plankton)-धाराएँ समुद्री जीवों की प्राण हैं। ये अपने साथ अनेकों गली-सड़ी वस्तुएँ (plankton) बहाकर ले आती हैं। ये पदार्थ मछलियों के भोजन का आधार हैं।

प्रश्न (viii)
महासागरीय धाराओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (ix)
गर्म और ठंडी धाराओं का आस-पास के क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
महासागरीय जल में तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-अर्ध-खुले सागरों और खुले सागरों के तापमान में भिन्नता होती है। इसका कारण यह है कि अर्ध खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती क्षेत्रों का प्रभाव पड़ता है।

(क) महासागरों में जल पर तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-महासागरों में जल-तल (Water-surface) के तापमान का क्षैतिज विभाजन नीचे लिखे अनुसार है :

  • भूमध्य रेखीय भागों के जल का तापमान 26° सैल्सियस, ध्रुवीय क्षेत्रों में 0° सैल्सियस से -5° (minus five degree) सैल्सियस और 20°, 40° और 60° अक्षांशों के तापमान क्रमशः 23°, 14° और 1° सैल्सियस रहता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर महासागरीय जल का क्षैतिज तापमान कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लंब और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं।
  • ऋतु परिवर्तन के साथ महासागरों के ऊपरी तल के तापमान में परिवर्तन आ जाता है। गर्मी की ऋतु में दिन लंबे होने के कारण तापमान ऊँचा और सर्दी की ऋतु में दिन छोटे होने के कारण तापमान कम रहता है।
  • स्थल की तुलना में जल देरी से गर्म और देरी से ही ठंडा होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में जल की तुलना में स्थल अधिक है और दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का क्षेत्र अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समुद्री जल का तापमान स्थलीय प्रभाव के कारण ऊँचा रहता है। इसकी तुलना में जल की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान कम रहता है।

3. अर्ध-खले सागरों में जल के तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Partially Enclosed Seas) अर्ध-खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती स्थलखंडों का प्रभाव अधिक पड़ता है।

(i) लाल सागर और फारस की खाड़ी (Red Sea and Persian Gulf)—ये दोनों अर्ध-खुले सागर हैं, जो संकरे जल संयोजकों (Straits) द्वारा हिंद महासागर से मिले हुए हैं। इन दोनों के चारों ओर मरुस्थल हैं, जिनके प्रभाव से तापमान उच्च, क्रमश: 32° से० और 34° से० रहता है। विश्व में सागरीय तल का अधिक-सेअधिक तापमान 34° से० है, जोकि फारस की खाड़ी में पाया जाता है।

कुछ सागरों के जल का तापमान-

सागर — तापमान
लाल सागर — 32°C.
खाड़ी फारस –34°C.
बाल्टिक सागर –10°C.
उत्तरी सागर –17°C.
प्रशांत महासागर –19.1°C.
हिंद महासागर –17.0°C.
अंध महासागर — 16.9°C.

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 6

(ii) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)-इस सागर में तापमान कम रहता है और शीत ऋतु में यह बर्फ में बदल जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह शीत प्रदेशों से घिरा हुआ है, जोकि सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं। इसकी तुलना में निकट का विस्तृत उत्तर सागर (North Sea) कभी भी नहीं जमता। इसका कारण यह है कि एक तो यह खुला सागर है और दूसरा अंध महासागर की तुलना में गर्म जलं इसमें बेरोक प्रवेश करता है।

(iii) भूमध्य सागर या रोम सागर (Mediterranean Sea)—यह भी एक अर्ध-खुला समुद्र है, जो जिब्राल्टर (Gibraltar) जल संयोजक द्वारा अंध महासागर से जुड़ा हुआ है। इसका तापमान उच्च रहता है क्योंकि इसके दक्षिण और पूर्व की ओर मरुस्थल हैं। दूसरा, इस जल संयोजक की ऊँची कटक महासागर के जल को इस सागर में बहने से रोकती है।

महासागरीय जल में ताप का लंबवर्ती विभाजन-(Vertical Distribution of Temperature of Ocean Water)-सूर्य का ताप सबसे पहले महासागरीय तल का जल प्राप्त करता है और सबसे ऊपरी परत गर्म होती है। सूर्य के ताप की किरणें ज्यों-ज्यों गहराई में जाती हैं, तो बिखराव (Scattering), परावर्तन (Reflection) और प्रसारण (Diffusion) के कारण उनकी ताप-शक्ति नष्ट हो जाती है। इस प्रकार तल के नीचे के पानी का तापमान गहराई के साथ कम होता जाता है।

महासागरीय जल का तापमान-
गहराई के अनुसार (According to Depth)-

गहराई (Depth) मीटर — तापमान (°C)
200 — 15.9°C
400 —  10.0°C
1000 — 4.5°C
2000 — 2.3°C
3000 — 1.8°C
4400 — 1.7°C

1. महासागरीय जल का तापमान गहराई बढ़ने के साथ-साथ कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणें अपना प्रभाव महाद्वीपीय बढ़ौतरी की अधिकतम गहराई भाव 183 मीटर (100 फैदम) तक ही डाल सकती हैं।
2. महाद्वीपीय तट के नीचे महासागरों में तापमान अधिक कम होता है परंतु अर्ध-खुले सागरों में तापमान जल संयोजकों की कटक तक ही गिरता है और इससे आगे कम नहीं होता।

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हिंद महासागर के ऊपरी तल और लाल सागर के ऊपरी तल का तापमान लगभग समान (27°C) होता है। इन दोनों के बीच बाब-अल-मेंडर जल संयोजक की कटक है। उस गहराई तक दोनों में तापमान एक समान कम होता है क्योंकि इस गहराई तक हिंद महासागर का जल लाल सागर में प्रवेश करता रहता है। परंतु इससे अधिक गहराई पर लाल सागर का तापमान कम नहीं होता, जबकि हिंद महासागर में यह निरंतर कम होता रहता है।

3. गहराई के साथ तापमान कम होने की दर सभी गहराइयों में एक समान नहीं होती। लगभग 100 मीटर की गहराई तक जल का तापमान निकटवर्ती धरातलीय तापमान के लगभग बराबर होता है। धरातल से 1000 से 1800 मीटर की गहराई पर तापमान लगभग 15° से कम होकर लगभग 2°C रह जाता है। 4000 मीटर की गहराई पर तापमान कम होकर 1.6°C रह जाता है। महासागरों में किसी भी गहराई पर तापमान 1°C से कम नहीं होता। यद्यपि ध्रुवीय महासागरों की ऊपरी परत जम जाती है, पर निचला पानी कभी नहीं जमता। इसी कारण मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु निचले जल में मरते नहीं।

महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

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प्रश्न (x)
हिंद महासागर की धाराओं का वर्णन करें। उत्तरी हिंद महासागर की धाराओं का मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
हिंद महासागर की धाराएँ (Currents of Indian Ocean)-हिंद महासागर के माध्यम से धाराओं और पवनों के संबंध को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। यहाँ मानसून पवनों के कारण समुद्री धाराओं का क्रम भी मौसमी (Seasonal) होता है। उत्तरी हिंद महासागर में चलने वाली धाराएँ, मानसून पवनों के कारण प्रति छह महीने बाद अपनी दिशा बदल लेती हैं। परंतु दक्षिणी हिंद महासागर में धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलने के कारण स्थायी होती हैं।

उत्तरी हिंद महासागर की परिवर्तनशील धाराएँ-मानसून के प्रभाव के कारण धाराएँ पूरा वर्ष अपनी दिशा बदलती रहती हैं। वास्तव में कोई भी निश्चित धारा नहीं मिलती। छह महीने के बाद इन धाराओं की दिशा और क्रम बदल जाता है।

  • दक्षिण-पश्चिमी मानसून प्रवाह (S.W. Monsoon Drift)–यह धारा गर्मी की ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव से चलती है। इस धारा का जल अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ बहकर अरब सागर, श्रीलंका और बंगाल की खाड़ी का चक्कर लगाता है। यह धारा बर्मा के तट तक पहुँच जाती है।
  • उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह (N.E. Monsoon Drift)-सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की दिशा उल्टी हो जाती है और धाराओं का क्रम भी उल्टा हो जाता है। यह धारा बर्मा के तट से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का चक्कर लगाकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक बहती है।

दक्षिणी हिंद महासागर की स्थायी धाराएँ-ये धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलती हैं, इसलिए इन्हें स्थायी धाराएँ कहते हैं। ये धाराएँ घड़ी की विपरीत दिशा में (Anti-clockwise) चक्कर काटती हैं।

1. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)-यह एक गर्म धारा है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण में व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। यह धारा इंडोनेशिया से निकलकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक बहती है। मैडागास्कर द्वीप के निकट यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।

2. भारतीय विपरीत धारा (Indian Counter Current)-भूमध्य रेखा के निकट पश्चिम से पूर्व दिशा में बहने वाली धारा को भारतीय विपरीत धारा कहते हैं।

3. मोज़म्बीक की धारा (Mozambique Current)—मैडागास्कर (मलागासी द्वीप) के कारण भूमध्य रेखीय – धारा कई शाखाओं में बँट जाती है-

  • मैडागास्कर धारा (Medagasker)-यह गर्म धारा मैडागास्कर के पूर्व में बहती है। इसमें दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा कई शाखाओं में बँट जाती है।
  • मोज़म्बीक धारा (Mozambique Current)-यह मैडागास्कर द्वीप के पश्चिम में एक तंग भाग Mozambique channel में बहती है। यह धारा भँवर के रूप में होती है। (iii) ऐगुलॉस धारा (Agulhas Current) ऊपर लिखित दोनों धाराएं मिलकर मैडागास्कर के दक्षिण में एक नई धारा को जन्म देती है, जिसे ऐगुलॉस धारा कहते हैं।

4. अंटार्कटिक धारा (Antarctic Current)-यह ठंडे जल की धारा है।।
5. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की धारा (West Australian Current)—यह ठंडी धारा ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर बहती है।

6. विपरीत भूमध्य रेखीय धारा (Counter Equatorial Current)-पानी की अधिकता और धरती की दैनिक गति के कारण भूमध्य रेखा के साथ-साथ विपरीत भूमध्य रेखीय धारा बहती है। यह धारा पश्चिम से पूर्व में अफ्रीका के गिनी तट तक बहती है। इसे गिनी की धारा (Guinea stream) भी कहते हैं।

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PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 9

7. ब्राज़ील की धारा (Brazilian Current)—यह एक गर्म पानी की धारा है, जो ब्राज़ील तट के साथ दक्षिण की ओर बहती है। उत्तर की ओर ब्राज़ील की गर्म धारा के मिलने से कोहरा पैदा हो जाता है। इससे जहाज़ों का आना-जाना बंद हो जाता है।

8. फाकलैंड धारा (Falkland Current)-यह ठंडी धारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी सिरे (Cape Horn) और फाकलैंड के निकट बहती है। उत्तर की ओर ब्राज़ील की गर्म धारा के मिलने से कोहरा पैदा हो जाता है। इससे जहाजों का आना-जाना बंद हो जाता है।

9. अंटार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)—यह बहुत ठंडे पानी की धारा है, जो अंटार्कटिक महाद्वीप के चारों तरफ पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। यह अंध महासागर, शांत महासागर और हिंद महासागर की सांझी धारा है। थल की कमी के कारण यह पश्चिमी पवनों के प्रवाह से लगातार बहती है।

10. बैंगुऐला धारा (Benguela Current)—यह ठंडे पानी की धारा दक्षिणी अफ्रीका के पश्चिमी तट पर बहती है। व्यापारिक पवनों के कारण तल का गर्म जल दूर बह जाता है और नीचे का ठंडा पानी ऊपर आ जाता है, जिसे Upwelling of water कहते हैं। अफ्रीका में कालाहारी मरुस्थल इसी धारा के कारण है।

प्रश्न (xi)
ज्वारभाटा किसे कहते हैं ? ये कैसे पैदा (बनते) होते हैं और इनका क्या महत्त्व है ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
ज्वारभाटा समुद्र की एक गति है। समुद्र का जल नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार ऊँचा उठता है और दो बार नीचे उतरता है। “समुद्री जल के इस नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।” (“Regular rise and fall of sea water is called Tides.”)। पानी के ऊपर उठने की क्रिया को ज्वार (Flood or High Tide or Incoming Tide) कहते हैं। पानी के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा (Ebb or low Tide or Out Going Tide) कहते हैं।

विशेषताएँ :

  1. प्रत्येक स्थान पर ज्वारभाटे की ऊँचाई अलग-अलग होती है।
  2. प्रत्येक स्थान पर ज्वार और भाटे का समय अलग-अलग होता है।
  3. समुद्र का पानी 6 घंटे 13 मिनट तक ऊपर चढ़ता है और इतनी ही देर में नीचे उतरता है।
  4. ज्वारभाटा एक स्थान पर नित्य ही एक समय पर नहीं आता।

उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin)—पुरातन काल में यूनान और रोम के निवासियों को ज्वारभाटे की जानकारी थी। ज्वारभाटे की उत्पत्ति का मूल कारण चंद्रमा की आकर्षण शक्ति होती है। सबसे पहले न्यूटन ने यह बताया था कि सूर्य और चंद्रमा की गतियों (Movements) तथा ज्वारभाटा में आपस में कुछ संबंध होता है।

चाँद अपने आकर्षण बल (Gravitational Attraction) के कारण धरती के जल को अपनी ओर खींचता है। स्थल-भाग कठोर होता है, इस कारण खींचा नहीं जा सकता, परंतु जल-भाग तरल होने के कारण ऊपर उठ जाता है। यह पानी चाँद की ओर उठता है। वहाँ से निकट का पानी सिमटकर ऊपर उठता जाता है, जिसे ऊँचा ज्वार (High Tide) कहते हैं। जिस स्थान पर पानी की मात्रा कम रह जाती है, वहाँ पानी अपने तल से नीचे गिर जाता है, उसे नीचा ज्वार (Low Tide) कहते हैं। धरती की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर दिन-रात में दो बार ज्वार आता है। एक ही समय में धरती के तल पर दो बार ज्वार पैदा होते हैं-एक ठीक चाँद के सामने और दूसरा उसकी विपरीत दिशा में (Diametrically Opposite)। चाँद की आकर्षण शक्ति के कारण ज्वार उठता है, इसे सीधा ज्वार (Direct Tide) कहते हैं। विपरीत दिशा में अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) के कारण पानी ऊपर उठता है और ऊँचा ज्वार पैदा होता है। इसे Indirect Tide कहते हैं। इस प्रकार धरती के एक तरफ ज्वार आकर्षण शक्ति की अधिकता के कारण और दूसरी तरफ अपकेंद्रीय शक्ति की अधिकता के कारण पैदा होते हैं।

सूर्य का प्रभाव (Effect of Sun)-सभी ग्रहों पर सूर्य का प्रभाव होता है। धरती पर सूर्य और चंद्रमा दोनों का आकर्षण होता है। समुद्र के जल पर भी दोनों का आकर्षण होता है। सूर्य चाँद की तुलना में बहुत दूर है, इसलिए सूर्य की आकर्षण शक्ति बहुत साधारण है और चाँद की तुलना में 5/11 भाग कम है।

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ऊँचा ज्वारभाटा (Spring Tide)—सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को बड़ा ज्वार कहते हैं। यह महीने में दो बार पूर्णिमा (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) को होता है।

कारण (Causes)-इस दशा में सूर्य, चंद्रमा और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं। सूर्य और चाँद की सांझी आकर्षण शक्ति बढ़ जाने से ज्वार-शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य और चाँद के कारण उत्पन्न ज्वार इकट्ठे हो जाते हैं (Spring tide is the sum of Solar and Lunar tides.)। इन दिनों में ज्वार अधिक ऊँचा और भाटा कम-से-कम नीचा होता है। ऊँचा ज्वार साधारण ज्वार से 20% अधिक ऊँचा होता है।

लघु ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे लघु-ज्वार कहते हैं। इस हालत को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब आधा चाँद (Half Moon) होता है।

कारण (Causes)-इस हालत में सूर्य और चाँद, धरती के समकोण (At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य और चांद की आकर्षण-शक्ति विपरीत दिशाओं में काम करती है। जहाँ सूर्य ज्वार पैदा करता है, चाँद वहाँ भाटा पैदा करता है। सूर्य और चाँद के ज्वार-भाटा एक-दूसरे को कम करते हैं (Neap tide is the difference of Solar and Lunar tides)। इन दिनों में ऊँचा ज्वार, कम ऊँचा और भाटा कम नीचा होता है। लघु ज्वार अक्सर साधारण ज्वार से 20% कम ऊँचा होता है।

ज्वारभाटे के लाभ (Advantages)-

  1. ज्वारभाटा समुद्र के तटों को साफ़ रखता है। यह उतार के समय कूड़ा-कर्कट, कीचड़ आदि को अपने साथ बहाकर ले जाता है।
  2. ज्वारभाटे की हलचल के कारण समुद्र का पानी जमता नहीं।
  3. ज्वार के समय नदियों के मुहानों पर पानी की गहराई बढ़ जाती हैं, जिससे बड़े-बड़े जहाज़ सेंट लारेंस, हुगली, हडसन नदी में प्रवेश कर सकते हैं। ज्वारभाटे के समय को बताने के लिए टाईम-टेबल बनाए जाते हैं।
  4. ज्वारभाटे के मुड़ते हुए पानी से पन-बिजली पैदा की जा सकती है। इस बिजली का प्रयोग करने के लिए फ्रांस और अमेरिका में कई प्रयत्न किए गए हैं।
  5. ज्वारभाटे के कारण बहुत सी सिप्पियां, कोड़ियाँ, अन्य वस्तुएँ आदि तट पर इकट्ठी हो जाती है। कई समुद्री जीव तटों पर पकड़े जाते हैं।
  6. ज्वारभाटा बंदरगाहों की अयोग्यता को दूर करते हैं और आदर्श बंदरगाहों को जन्म देते हैं। कम गहरी बंदरगाहों में बड़े-बड़े जहाज़ ज्वार के साथ दाखिल हो जाते हैं और भाटे के साथ वापस लौट आते हैं, जैसे-कोलकाता, कराची, लंदन आदि।
  7. ज्वारभाटा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल, आसान और निरंतर रखता है।

हानियाँ (Disadvantages)-

  1. ज्वारभाटे से कभी-कभी जहाज़ों को नुकसान होता है। छोटे-छोटे जहाज़ और नाव डूब जाते हैं।
  2. इससे बंदरगाहों के निकट रेत जम जाने से जहाजों के आने-जाने में रुकावट आती है।
  3. ज्वारभाटे के कारण मिट्टी के बहाव के कारण डेल्टा नहीं बनते।
  4. मछली पकड़ने के काम में रुकावट होती है।
  5. ज्वार का पानी जमा होने से तट पर दलदल बन जाती है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB महासागर Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न | (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी के कितने % भाग पर जल है ?
उत्तर-
71%।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय शैल्फ तट की औसत गहराई बताएँ।
उत्तर-
150 से 200 मीटर।

प्रश्न 3.
विश्व में सबसे अधिक गहरे स्थान के बारे में बताएँ।
उत्तर-
मेरियाना खाई – 11022 मीटर।

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प्रश्न 4.
किस महासागर के मध्य में ‘S’ आकार की पहाड़ी है ?
उत्तर-
अंध महासागर।।

प्रश्न 5.
किस महासागर में सबसे अधिक खाइयाँ हैं ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

प्रश्न 6.
जल में डूबी पहाड़ियों की कुल लंबाई बताएँ।
उत्तर-
7500 कि० मी०।

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प्रश्न 7.
किसी एक प्रसिद्ध केनीयन का नाम बताएँ।
उत्तर-
ओशनो ग्राफर केनीयन।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय ढलान का कोण बताएँ।
उत्तर-
2°-5° तक।

प्रश्न 9.
संसार के प्रमुख महासागरों के नाम बताएँ।
उत्तर-
प्रशांत महासागर, अंध महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर।

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प्रश्न 10.
पृथ्वी को जलीय ग्रह क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
अधिक जल होने के कारण।

प्रश्न 11.
किस गोलार्द्ध को जलीय गोलार्द्ध कहते हैं ?
उत्तर-
दक्षिणी गोलार्द्ध।

प्रश्न 12.
किस यंत्र से समुद्र की गहराई मापी जाती है ?
उत्तर-
Sonic Depth Recorder.

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प्रश्न 13.
महासागरीय जल के गर्म होने की क्रियाएं बताएँ।
उत्तर-
विकिरण और संवहन।

प्रश्न 14.
महासागरों में नमक के स्रोत बताएँ।
उत्तर-
नदियाँ, लहरें और ज्वालामुखी।

प्रश्न 15.
महासागरीय जल के प्रमुख लवणों के नाम बताएँ।
उत्तर-
सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, मैग्नीशियम सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, पोटाशियम सल्फेट।

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प्रश्न 16.
तरंग के दो भाग बताएँ।
उत्तर-
शिखर और गहराई।

प्रश्न 17.
भूमध्य रेखा पर सागरीय जल का ताप बताएँ।
उत्तर-
भूमध्य रेखा – 26°

प्रश्न 18.
पलावी हिम शैल के दो स्रोत बताएँ।
उत्तर-
अलास्का और ग्रीन लैंड।

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प्रश्न 19.
घिरे हुए एक सागर का नाम और उसका खारापन बताएँ।
उत्तर-
ग्रेट साल्ट झील – 220 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 20.
भूमध्य रेखा के निकट खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-
अधिक वर्षा के कारण।

प्रश्न 21.
काले सागर में खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-
नदियों से ताज़ा पानी प्राप्त होने के कारण।

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प्रश्न 22.
लाल सागर में खारापन अधिक क्यों है ?
उत्तर-
नदियों की कमी और अधिक वाष्पीकरण के कारण।

प्रश्न 23.
महासागरों में औसत खारापन बताएँ।
उत्तर-
35 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 24.
महासागरीय जल की तीन गतियाँ बताएँ।
उत्तर-

  1. तरंगें
  2. धाराएँ
  3. ज्वारभाटा।

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प्रश्न 25.
ज्वारभाटा कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
लघु ज्वारभाटा और ऊँचा ज्वारभाटा।

प्रश्न 26.
तरंगों के तीन प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-
सरफ, स्वैश और अध-प्रवाह।

प्रश्न 27.
ऊँचा ज्वारभाटा कब उत्पन्न होता है ?
उत्तर-
अमावस्या और पूर्णिमा को।

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प्रश्न 28.
लघु ज्वारभाटा कब होता है ?
उत्तर-
कृष्ण और शुक्ल अष्टमी को।

प्रश्न 29.
अंध-महासागर में सबसे प्रसिद्ध गर्म धारा बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी की धारा।

प्रश्न 30.
ज्वारभाटा के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर-
चंद्रमा की आकर्षण-शक्ति।

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प्रश्न 31.
सरफ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
तटीय क्षेत्रों की टूटती लहरों को।

प्रश्न 32.
ज्वार की सबसे अधिक ऊँचाई कहाँ होती है ?
उत्तर-
फंडे की खाड़ी में।

प्रश्न 33.
न्यूफाउंडलैंड के निकट कोहरा क्यों पैदा होता है ?
उत्तर-
लैबरेडोर की ठंडी और खाड़ी की धारा मिलने के कारण।

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प्रश्न 34.
प्रशांत महासागर की दो ठंडी धाराओं के नाम बताएँ।
उत्तर-
पेरु की धारा और कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 35.
कालाहारी मरुस्थल के तट पर कौन-सी धारा चलती है ?
उत्तर-
बैंगुएला की धारा।

प्रश्न 36.
दो ज्वारों के बीच समय का अंतर बताएँ।
उत्तर-
12 घंटे 26 मिनट।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी का जल-मंडल कितने प्रतिशत है ?
(क) 51%
(ख) 61%
(ग) 71%
(घ) 81%.
उत्तर-
71%.

प्रश्न 2.
विश्व में सबसे गहरी खाई कौन-सी है ?
(क) पोरटोरिको
(ख) मेरियाना
(ग) सुंडा
(घ) एटाकामा।
उत्तर-
मेरियाना।

प्रश्न 3.
कौन-सा भाग महासागरीय तल का सबसे अधिक भाग घेरता है ?
(क) निमग्न तट
(ख) महाद्वीपीय फाल
(ग) महासागरीय मैदान
(घ) खाइयाँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय मैदान।

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प्रश्न 4.
महाद्वीपीय निमग्न तट की औसत गहराई है-
(क) 100 फैदम
(ख) 500 फुट
(ग) 300 मीटर
(घ) 400 मीटर।
उत्तर-
100 फैदम।

प्रश्न 5.
विश्व में सबसे छोटा महासागर कौन-सा है ?
(क) हिंद महासागर
(ख) अंध महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर
(घ) प्रशांत महासागर।
उत्तर-
आर्कटिक महासागर ।

प्रश्न 6.
महासागरों में खारेपन को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है-
(क) धाराएँ
(ख) पवनें
(ग) वाष्पीकरण
(घ) जल-मिश्रण।
उत्तर-
वाष्पीकरण।

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प्रश्न 7.
विश्व में औसत खारापन है-
(क) 35 ग्राम प्रति हज़ार
(ख) 210 ग्राम प्रति हज़ार
(ग) 16 ग्राम प्रति हज़ार
(घ) 112 ग्राम प्रति हज़ार।
उत्तर-
35 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 8.
किस सागर में सबसे अधिक खारापन है ?
(क) लाल सागर
(ख) बाल्टिक सागर
(ग) मृत सागर
(घ) भूमध्य सागर।
उत्तर-
मृत सागर।

प्रश्न 9.
काले सागर में औसत खारापन है-
(क) 170 ग्राम प्रति हज़ार
(ख) 18 ग्राम प्रति हज़ार
(ग) 40 ग्राम प्रति हज़ार
(घ) 330 ग्राम प्रति हजार।
उत्तर-
18 ग्राम प्रति हजार

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में प्रशांत महासागर की धारा बताएँ।
(क) मैडगास्कर की धारा
(ख) खाड़ी की धारा
(ग) क्यूरोशियो की धारा
(घ) लैबरेडोर की धारा।
उत्तर-
क्यूरोशियो की धारा।

प्रश्न 11.
महासागरीय धाराओं का प्रमुख कारण है-
(क) पवनें
(ख) जल के घनत्व में अंतर
(ग) पृथ्वी की दैनिक गति
(घ) स्थल खंडों की रुकावट।
उत्तर-
पवनें।

प्रश्न 12.
लघु ज्वार कब होता है ?
(क) पूर्णिमा
(ख) अमावस्या
(ग) अष्टमी
(घ) पूर्ण चंद्रमा।
उत्तर-
अष्टमी।

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प्रश्न 13.
अंध महासागर की गर्म धारा है।
(क) खाड़ी की धारा
(ख) कनेरी की धारा
(ग) लैबरेडोर की धारा
(घ) अंटार्कटिका की धारा।
उत्तर-
खाड़ी की धारा।

प्रश्न 14.
कालाहारी मरुस्थल के तट पर बहने वाली धारा है-
(क) खाड़ी की धारा
(ख) बैंगुएला की धारा
(ग) मानसून की धारा ।
(घ) लैबरेडोर की धारा।
उत्तर-
बैंगुएला की धारा।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
जलमंडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी के तल पर पानी के नीचे डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल के अधीन महासागर, सागर, खाड़ी, झील आदि सब आ जाते हैं।

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प्रश्न 2.
जलमंडल का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
प्रसिद्ध भूगोल वैज्ञानिक क्रुम्मेल (Krummel) के अनुसार जलमंडल का विस्तार पृथ्वी के 71% भाग पर है। जलमंडल लगभग 3626 लाख वर्ग किलोमीटर पर फैला हुआ है।

प्रश्न 3.
जलीय गोलार्द्ध (Water Hemisphere) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्तरी गोलार्द्ध में 40% जल और 60% थल भाग हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में 81% जल और 19% थल भाग हैं।
दक्षिणी गोलार्द्ध में जल अधिक होने के कारण यह जलीय गोलार्द्ध कहलाता है। उत्तरी गोलार्द्ध को थल गोलार्द्ध (Land Hemisphere) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
विश्व के प्रसिद्ध चार महासागरों के नाम और उनके क्षेत्रफल बताएँ।
उत्तर-

  1. प्रशांत महासागर – 1654 लाख वर्ग कि०मी०
  2. अंध महासागर – 822 लाख वर्ग कि०मी०
  3. हिंद महासागर – 735 लाख वर्ग कि०मी० .
  4. आर्कटिक महासागर – 141 लाख वर्ग कि०मी०

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न 5.
महासागरीय फ़र्श को कितने मुख्य भागों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-
महासागरीय फ़र्श को चार मुख्य भागों में बाँटा जाता है-

  1. महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)
  2. महाद्वीपीय missing (Continental Slope)
  3. महाद्वीपीय मैदान (Deep Sea Plain)
  4. समुद्री गहराई (Ocean Deeps)

प्रश्न 6.
महासागरीय फ़र्श पर सबसे अधिक मिलने वाली भू-आकृतियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • समुद्री उभार (Ridges)
  • पहाड़ियाँ (Hills)
  • समुद्री टीले (Sea Mounts)
  • डूबे हुए द्वीप (Guyots)
  • खाइयाँ (Trenches)
  • कैनियान (Canyons)
  •  प्रवाह भित्तियाँ (Coral Reefs)।

प्रश्न 7.
पृथ्वी को जल ग्रह और नीला ग्रह क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
पृथ्वी के तल पर 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है, इसलिए इसे जल ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। इस कारण अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है और इसे नीला ग्रह (Blue Planet) कहते हैं।

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प्रश्न 8.
प्रति-ध्रुवीय स्थिति (Anti-Podal) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इसका अर्थ है कि पृथ्वी पर जल और स्थल एक-दूसरे के विपरीत स्थित हैं। यदि पृथ्वी के केंद्र से कोई व्यास खींचा जाए तो उसके एक सिरे पर जल और दूसरे सिरे पर स्थल होगा। यह स्थिति Diametrically Opposite होगी।

प्रश्न 9.
पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है और उसका क्षेत्रफल कितना है ?
उत्तर–
प्रशांत महासागर पृथ्वी का सबसे बड़ा महासागर है, जिसका क्षेत्रफल 1654 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 10.
महासागरों की गहराई किस यंत्र से मापी जाती है ?
उत्तर-
महासागरों की गहराई Sound Waves का प्रयोग करके Sonic Depth Recorder नामक यंत्र के द्वारा मापी जाती है।

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प्रश्न 11.
पृथ्वी के सबसे ऊँचे भाग और महासागरों के सबसे गहरे भाग में कितना अंतर है ?
उत्तर-
पृथ्वी के सबसे ऊँचे भाग मांऊट एवरेस्ट की ऊँचाई 8848 मीटर है और सबसे गहरे भाग मेरियाना खाई की गहराई 11033 मीटर है और दोनों में अंतर 19881 मीटर है। यदि एवरेस्ट शिखर को मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो इसके शिखर पर 2185 मीटर गहरा पानी होगा।

प्रश्न 12.
महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
महाद्वीपों के चारों ओर के मंद ढलान वाले, समुद्री हिस्से को महाद्वीपीय शैल्फ कहा जाता है। यह क्षेत्र जल में डूबा रहता है।

प्रश्न 13.
महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई और विस्तार बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई 100 फैदम (Fathom) या 183 मीटर मानी जाती है। महासागरों के 7.6% भाग (360 लाख वर्ग कि०मी०) पर इसका विस्तार है। सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर में 13.3% क्षेत्र पर है।

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प्रश्न 14.
महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope) की परिभाषा दें।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे गहरे समुद्री भाग तक तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं। इसकी औसत ढलान 2° से 5° तक होती है और इसकी गहराई 200 मीटर से 3660 मीटर तक होती है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर के 12.4% भाग पर है।

प्रश्न 15.
महाद्वीपीय शैल्फ की रचना की विधियाँ बताएँ।
उत्तर-

  • जल सतह के ऊपर उठने या थल सतह के धंसने से।
  • अपरदन से।
  • तटों पर निक्षेप से।

प्रश्न 16.
विश्व में सबसे गहरी खाई कौन-सी है ?
उत्तर-
अंधमहासागर में गुयाम द्वीप के निकट मेरियाना खाई (11033 मीटर गहरी) सबसे गहरी खाई है।

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प्रश्न 17.
समुद्री खाई और कैनियन में क्या अंतर है ?
उत्तर-
महासागरीय फ़र्श पर गहरे मैदान में बहुत गहरी, तंग, लंबी और तीखी ढलान वाली गहराई को खाई (Trench) कहते हैं। परंतु महाद्वीपीय शैल्फ और ढलान पर तीखी ढलान वाली गहरी घाटियों और खाइयों को समुद्री कैनियन (Canyons) कहते हैं।

प्रश्न 18.
प्रशांत महासागर की तीन खाइयों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  • चैलंजर खाई
  • होराइज़न खाई
  • ऐमडन खाई।

प्रश्न 19.
विश्व में कुल कितनी खाइयाँ हैं ? सबसे अधिक खाइयाँ किस महासागर में हैं ?
उत्तर-
विश्व में सभी महासागरों में 57 खाइयाँ हैं। सबसे अधिक खाइयाँ प्रशांत महासागर में हैं।

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प्रश्न 20.
प्रशांत महासागर की उत्पत्ति के बारे में बताएँ।
उत्तर-
एक विचार के अनुसार पृथ्वी से चंद्रमा के अलग होने के बाद बने गर्त से प्रशांत महासागर बना है। दूसरे विचार के अनुसार एक विशाल भू-खंड के धंस जाने से यह महासागर बना है।

प्रश्न 21.
मध्यवर्ती अंध महासागरीय कटक का वर्णन करें।
उत्तर-
यह ‘S’ आकार की कटक 14400 कि०मी० लंबी है और अंध-महासागर के मध्य में उत्तर में आइसलैंड से लेकर दक्षिण में बोविट टापू तक फैली हुई है और औसत रूप में 4000 मीटर गहरी है।

प्रश्न 22.
अंध महासागर की तीन प्रसिद्ध कटकोम के नाम बताएँ
उत्तर-

  1. डॉल्फिन कटक
  2. चैलंजर कटक
  3. वैलविस कटक
  4. रियो ग्रांड कटक
  5. विवल टामसन कटक।

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प्रश्न 23.
हिंद महासागर का क्षेत्रफल और आकार बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर का कुल क्षेत्रफल लगभग 735 लाख वर्ग किलोमीटर है, जोकि जल-मंडल का 20% भाग है। यह त्रिकोण आकार का महासागर उत्तर में बंद है और स्थल-खंड से घिरा हुआ है।

प्रश्न 24.
हिंद महासागर को आधा-महासागर (Half Ocean) क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
हिंद महासागर का विस्तार केवल कर्क रेखा तक है और उत्तर में यह स्थल-खंड से बंद है। यह केवल दक्षिणी गोलार्द्ध में ही पूरी तरह फैला हुआ है, इसलिए इसे आधा महासागर कहते हैं।

प्रश्न 25.
हिंद महासागर का सबसे गहरा स्थान बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर में सुंडा खाई (Sunda Trench) सबसे गहरा स्थान है, जो 7450 मीटर गहरा है और इंडोनेशिया के निकट स्थित है।

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प्रश्न 26.
महासागरों के तापमान के विभाजन पर कौन-से कारक प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-

  • भूमध्य रेखा से दूरी
  • प्रचलित पवनें और धाराएँ
  • थल खंडों का प्रभाव
  • हिम खंडों का बहाव।

प्रश्न 27.
उत्तरी सागर का तापमान ऊँचा क्यों रहता है ?
उत्तर-
खाड़ी की गर्म धारा के कारण।

प्रश्न 28.
लाल सागर और खाड़ी फारस के जल का तापमान बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी फारस के जल का तापमान 34°C और लाल सागर के जल का तापमान 32°C रहता है।

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प्रश्न 29.
1° अक्षांश पर महासागरों के जल के तापमान के कम होने की क्या दर है ?
उत्तर-
1° अक्षांश पर 0.3°C तापमान कम होता है।

प्रश्न 30.
महासागरों के तापमान का कटिबंधों के अनुसार विभाजन बताएँ।
उत्तर-

  • उष्ण कटिबंध में उच्च तापमान (27°C)
  • शीतोष्ण कटिबंध में मध्यम तापमान (15°C)
  • ध्रुवीय कटिबंध में निम्न तापमान (0°C)

प्रश्न 31.
महासागरों में सूर्य की किरणों का प्रभाव कितनी गहराई तक होता है ?
उत्तर-
लगभग 183 मीटर तक।

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प्रश्न 32.
तीन महासागरों की सतह के जल का तापमान बताएँ।
उत्तर-

  • प्रशांत महासागर – 19.1°C
  • हिंद महासागर – 17.03°C
  • अंध महासागर-16.9°C

प्रश्न 33.
4000 मीटर की गहराई पर महासागरों का तापमान कितना होता है ?
उत्तर-
1.7°C.

प्रश्न 34.
हिंद महासागर और लाल सागर की 2400 मीटर की गहराई पर पानी के तापमान में बहुत अंतर क्यों है ?
उत्तर-
इन दोनों सागरों में बॉब० एल० मंदेब (Bob-el Mandeb) नाम के कटक पानी के मिलने में रुकावट डालते हैं। हिंद महासागर की गहराई पर 15°C तापमान है जबकि लाल सागर में 21°C है।

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प्रश्न 35.
महासागरों के खारेपन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महासागरीय जल का खारापन वह अनुपात है, जो घुले हुए नमक की मात्रा और सागरीय जल की मात्रा में होता है।

प्रश्न 36.
महासागरीय खारेपन के स्रोत बताएँ।
उत्तर-

  • नदियाँ
  • लहरें
  • ज्वालामुखी।

प्रश्न 37.
महासागरीय जल में से नमक हटा लेने से क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर-

  • महासागरीय जल के नमक को यदि भू-तल पर बिछा दिया जाए, तो भू-तल पर 55 मीटर की परत बिछ जाएगी।
  • समुद्र तल लगभग 30 मीटर नीचा हो जाएगा।

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प्रश्न 38.
महासागरीय जल का औसत खारापन कितना है ?
उत्तर-
महासागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम नमक प्रति 1000 ग्राम जल है और इसे 35% के रूप में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 39.
महासागरीय जल के पाँच प्रसिद्ध लवण (नमक) और उनकी मात्रा बताएँ।
उत्तर-

  1. सोडियम क्लोराइड – 77.8%
  2. मैग्नीशियम क्लोराइड – 10.9%
  3. मैग्नीशियम सल्फेट – 4.7%
  4. कैल्शियम सल्फेट – 3.6%
  5. पोटाशियम सल्फेट – 2.5%

प्रश्न 40.
महासागरीय जल के खारेपन को नियंत्रित करने वाले तीन कारक बताएँ।
उत्तर-

  • तजें जल की प्रपत्ति वर्षा ओर नदियों से
  • वाष्पीकरण की तीव्रता और मात्रा।
  • पवनों और धाराओं द्वारा पानी की मिश्रण क्रिया।

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प्रश्न 41.
पानी के उत्थान (Upwelling of Water) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस प्रदेश से प्रचलित पवनें पानी बहाकर ले जाती हैं, उस स्थान पर नीचे से पानी की गहरी सतह ऊपर आ जाती है। इस क्रिया को पानी का उत्थान कहते हैं।

प्रश्न 42.
कर्क रेखा और मकर रेखा पर अधिक खारेपन के तीन कारण बताएँ।
उत्तर-

  • बादल रहित आकाश के कारण तीव्र वाष्पीकरण।
  • उच्च वायुदाब पेटियों के कारण वर्षा की कमी।
  • बड़ी नदियों का न होना।

प्रश्न 43.
भूमध्य रेखीय खंड में खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-

  • हर रोज़ तेज़ वर्षा होने के कारण।
  • बड़ी-बड़ी नदियों (अमेज़न आदि) के कारण ताज़े जल की प्राप्ति।

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प्रश्न 44.
ध्रुवीय प्रदेशों में न्यूनतम खारेपन का कारण बताएँ।
उत्तर-

  • सूर्य का ताप कम है और वाष्पीकरण कम है।
  • हिम पिघलने से ताज़े जल की प्राप्ति।
  • विशाल नदियों से ताज़े जल की प्राप्ति।

प्रश्न 45.
भूमध्य सागर और लाल सागर में उच्च खारापन क्यों हैं ?
उत्तर-
भूमध्य सागर (39%) और लाल सागर (41%) में अधिक खारेपन का मुख्य कारण निकट के मरुस्थलों के कारण तीव्र वाष्पीकरण है। बड़ी नदियों की कमी के कारण ताज़े जल की प्राप्ति कम है।

प्रश्न 46.
काला सागर और बाल्टिक सागर में खारापन कम क्यों है ? .
उत्तर-
काला सागर (18%) और बाल्टिक सागर (8%) में कम खारेपन का मुख्य कारण इन शीत प्रदेशों में वाष्पीकरण की कमी है। अधिक वर्षा, हिम के पिघलने और बड़ी नदियों से ताज़े जल की पर्याप्त प्राप्ति है।

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प्रश्न 47.
मृत सागर कहाँ स्थित है और इसमें बहुत ऊँचा खारापन क्यों है ?
उत्तर-
मृत सागर पश्चिमी एशिया में इज़रायल और जॉर्डन देशों की सीमा पर स्थित है। इस पूर्ण बंद सागर में 237% खारापन है। आस-पास के शुष्क मरुस्थलों के कारण वाष्पीकरण तेज़ होता है, वर्षा नहीं होती, यह एक अंदरूनी प्रवाह वाला सागर है और कोई भी नदी इससे बाहर नहीं बहती।

प्रश्न 48.
किन्हीं तीन घिरे हुए बंद सागरों और झीलों के नाम और खारापन बताएँ।
उत्तर-

  • मृत सागर – 237.5%
  • ग्रेट साल्ट लेक – 220%
  • वान झील – 330%.

प्रश्न 49.
महासागर के जल की कौन-सी विभिन्न गतियाँ हैं ?
उत्तर-
महासागर के जल की तीन प्रकार की गतियाँ हैं-

  • लहरें
  • धाराएँ
  • ज्वारभाटा।

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प्रश्न 50.
समुद्री लहरें क्या होती हैं ?
उत्तर-
महासागरों में जल के ऊपर उठने और नीचे आने की गति (हलचल) को लहर कहा जाता है।

प्रश्न 51.
लहर के दो प्रमुख भाग बताएँ।
उत्तर-
लहर में जल के ऊपर उठे हुए भाग को शिखर (Crest) और निचले भाग को गर्त (Trough) कहते हैं।

प्रश्न 52.
लहर की लंबाई की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
लहर के एक शिखर से दूसरे शिखर तक की दूरी को लहर की लंबाई कहते हैं।

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प्रश्न 53.
लहर की गति का नियम क्या है ?
उत्तर-
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प्रश्न 54.
महासागरीय लहरों की प्रमुख किस्में बताएँ।
उत्तर-

  1. सी (sea)
  2. स्वैल (Swell)
  3. सर्फ (Surf)।

प्रश्न 55.
स्वॉश (Swash) और बैकवॉश (Backwash) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
लहर का जल जब तट पर प्रवाह करता है, तो उसे स्वॉश कहते हैं। तट से लौटते हुए जल को उल्ट प्रवाह या बैकवॉश (Backwash) कहते हैं।

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प्रश्न 56.
सागरीय धारा की परिभाषा दें।
उत्तर-
समुद्र के एक भाग से दूसरे भाग की ओर, एक निश्चित दिशा में, विशाल जल-राशि के लगातार प्रवाह को सागरीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 57.
ड्रिफ्ट और धारा में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जब पवनों के वेग से, सागर तल पर जल धीमी गति से आगे बढ़ता है, तो उसे ड्रिफ्ट कहते हैं, जैसेमानसून ड्रिफ्ट। जब सागरीय जल तेज़ गति से आगे बढ़ता है तो उसे धारा कहते हैं।

प्रश्न 58.
धाराओं की उत्पत्ति के तीन प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर-

  • प्रचलित पवनें
  • तापमान और खारेपन में विभिन्नता
  • पृथ्वी की दैनिक गति।

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प्रश्न 59.
उत्तरी हिंद महासागर में धाराएँ सर्दी और गर्मी में अपनी दिशा क्यों बदल लेती हैं ?
उत्तर-
यहाँ गर्मियों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें चलती हैं, परंतु सर्दियों में उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें चलती हैं। पवनों की दिशा बदलने से धाराएँ भी अपनी दिशा बदल लेती हैं।

प्रश्न 60.
धाराओं के संबंध में फैरल के सिद्धान्त का उल्लेख करें।
उत्तर-
फैरल के सिद्धान्त के अनुसार धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रश्न 61.
महासागरों में भूमध्य रेखीय विपरीत धारा का क्या कारण है ?
उत्तर-
भूमध्य रेखा पर अपकेंद्रीय बल अधिक होने के कारण जल पृथ्वी की परिभ्रमण दिशा के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर बहता है।

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प्रश्न 62.
तीनों महासागरों की सांझी धारा कौन-सी है ?
उत्तर–
तीनों महासागरों में निर्विघ्न विस्तार के कारण जल की लगातार एक सांझी धारा बहती है, जिसे पश्चिमी पवन प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 63.
पश्चिमी यूरोप पर गल्फ स्ट्रीम के कोई दो प्रभाव बताएँ।
उत्तर-

  • पश्चिमी यूरोप में सर्दी की ऋतु में तापमान साधारण से 50°C ऊँचा रहता है।
  • पश्चिमी यूरोप की बंदरगाहें सारा साल व्यापार के लिए खुली रहती हैं।

प्रश्न 64.
नीचे लिखी धाराओं के कारण कौन-कौन से मरुस्थल बनते हैं
(i) कनेरी की धारा
(ii) पेरु की धारा
(iii) बैंगुएला की धारा।
उत्तर-
(i) कनेरी की धारा – सहारा मरुस्थल
(ii) पेरु की धारा – ऐटेकामा मरुस्थल
(iii) बैंगुएला की धारा – कालाहारी मरुस्थल।

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प्रश्न 65.
हिम शैलों (खंडों) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जल में तैरते हुए हिम खंडों के बड़े-बड़े टुकड़ों को हिम शैल कहते हैं। इनका 1/10 भाग ही जल की सतह के ऊपर रहता है।

प्रश्न 66.
हिम शैलों के किन्हीं दो प्रदेशों के नाम बताएँ।
उत्तर-
अलास्का और ग्रीनलैंड।

प्रश्न 67.
अंध महासागर की कौन-सी दो धाराएँ न्यूफाऊंडलैंड के निकट आपस में मिलती हैं ?
उत्तर-
लैबरेडोर की ठंडी धारा और खाड़ी की गर्म धारा।

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प्रश्न 68.
ज्वारभाटा की परिभाषा दें।
उत्तर-
सागरीय जल के नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं। पानी के ऊपर उठने को ज्वार और पानी के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा कहते हैं।

प्रश्न 69.
विश्व में सबसे ऊँचा ज्वार कहाँ आता है ?
उत्तर-
दक्षिण-पूर्वी कनाडा की फंडे की खाड़ी (Bay of Funday) में 22 मीटर ऊँचा ज्वार आता है।

प्रश्न 70.
ज्वारभाटे की उत्पत्ति का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर–
ज्वारभाटे की उत्पत्ति का प्रमुख कारण चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति है।

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प्रश्न 71.
ऊँचा ज्वार और लघु ज्वार में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जब सूर्य, चाँद और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं, तो सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। जब सूर्य और चाँद धरती से समकोण की स्थिति में होते हैं, तो कम ऊँचे ज्वार को लघु ज्वार कहते हैं।

प्रश्न 72.
लघु ज्वार और ऊँचा ज्वार किन तिथियों को आते हैं ?
उत्तर-
ऊँचा ज्वार अमावस्या और पूर्णिमा को आते हैं, जबकि लघु ज्वार अष्टमी वाले दिनों में आते हैं।

प्रश्न 73.
दो बंदरगाहों के नाम बताएँ, जहाँ जहाज़ ज्वारभाटा की मदद से प्रवेश करते हैं ?
उत्तर-
कोलकाता और कराची।

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प्रश्न 74.
किसी स्थान पर ज्वार हर दिन 52 मिनट देरी से क्यों आता है ?
उत्तर-
चाँद पृथ्वी के सामने 24 घंटे बाद पहले स्थान पर नहीं आता, बल्कि 13° के कोण में आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के सामने आने के लिए 13° x 4 = 52 मिनट का अधिक समय लगता है।

प्रश्न 75.
ज्वार की दीवार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब ज्वार का जल नदी में प्रवेश कर जाता है, तो वह जल की विपरीत दिशा में बहता है। ज्वार की लहर की ऊँचाई बढ़ जाती है। इसे ज्वार की दीवार कहते हैं।

प्रश्न 76.
किन नदियों में ज्वार की दीवार बनती है ?
उत्तर-
हुगली नदी, अमेज़न नदी, हडसन नदी।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न । (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मनुष्य के लिए महासागरों की महत्ता का वर्णन करें।
उत्तर-
महासागरों की महत्ता (Significance of Oceans)—महासागर अनेक प्रकार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के लिए उपयोगी हैं-

  1. महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं।
  2. महासागर मनुष्यों के लिए मछलियों और खाद्य-पदार्थों के विशाल भंडार हैं।
  3. समुद्री जंतुओं से तेल, चमड़ा आदि कई उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
  4. महासागरों के कम गहरे क्षेत्रों में तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार हैं और वहाँ कई खनिज भी मिलते हैं।
  5. महासागरों में ज्वारीय और भू-तापीय ऊर्जा पैदा की जा सकती है।
  6. महासागर आवाजाही के महत्त्वपूर्ण, सस्ते और प्राकृतिक स्रोत हैं।

प्रश्न 2.
“महासागर भविष्य के भंडार हैं।” कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
महासागर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धरती पर नमी, वर्षा, तापमान आदि पर प्रभाव डालते हैं। महासागर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य-पदार्थों के विशाल स्रोत हैं। मछलियाँ मानवीय भोजन का 10% भाग प्रदान करती हैं। मनुष्य कई प्रकार के उपयोगी पदार्थों के लिए महासागरों पर निर्भर करता है। खनिज तेल के 20% भंडार महासागर में मौजूद हैं। कई देशों में ऊर्जा संकट पर नियंत्रण करने के लिए महासागर से ज्वारीय और भू-तापीय ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इस प्रकार भविष्य में मनुष्य की बढ़ती हुई माँगों की पूर्ति महासागरों से ही की जा सकेगी, इसीलिए महासागरों को भविष्य के भंडार कहा जाता है।

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय शैल्फ और महाद्वीपीय ढलान में अंतर बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)-

  1. महाद्वीपों के चारों ओर पानी के नीचे डूबे चबूतरों को महाद्वीपीय शैल्फ कहते हैं।
  2. इसकी औसत गहराई 200 मीटर (100 फैदम) होती है।
  3. सभी महासागरों के 7.5% भाग पर इसका विस्तार है।
  4. इसकी औसत ढलान 1° से कम है।
  5. मछली क्षेत्रों और पैट्रोलियम के कारण इसकी आर्थिक महत्ता है।

महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope)-

  1. महाद्वीपीय शैल्फ से महासागर के ओर की ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं।
  2. इसकी औसत गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर तक होती है।
  3. सभी महासागरों के 8.5% भाग पर इसका विस्तार है।
  4. इसकी औसत ढलान 2° से 5° तक है।
  5. इस पर अनेक समुद्री कैनियन मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
समुद्री पर्वत और डूबे हुए द्वीप में अंतर बताएँ।
उत्तर-
समुद्री पर्वत (Sea Mounts)-

  1. यह एक प्रकार की समुद्री पहाड़ी होती है।
  2. यह समुद्र तल से 1000 मीटर ऊँचे होते हैं।
  3. इनकी चोटियाँ नुकीली होती हैं।

डूबे हुए द्वीप (Guyots)-

  1. ये ज्वालामुखी चोटियों के बचे-खुचे भाग होते हैं।
  2. ये समुद्री द्वीप कम ऊँचे होते हैं।
  3. इनकी चोटियाँ कटाव के कारण चौकोर होती

प्रश्न 5.
समुद्री खाई और समुद्री कैनियन में अंतर बताएँ।
उत्तर –
समुद्री खाई (Sub-marine Trench)-

  1. ये समुद्र के गहरे भागों में मिलती हैं।
  2. ये लंबी, गहरी और तंग खाइयाँ होती हैं।
  3. ये मोड़दार पर्वतों के साथ पाई जाती हैं।
  4. मेरियाना खाई सबसे गहरी खाई है, जोकि 11 किलोमीटर गहरी है।

समुद्री कैनियन (Sub-marine Canyon)-

  1. ये महाद्वीपीय शैल्फ और ढलानों पर मिलती हैं।
  2. ये तंग और गहरी ‘V’ आकार की घाटियाँ होती हैं।
  3. ये समुद्री तटों और नदियों के मुहानों पर पाई जाती हैं।
  4. बैरिंग कैनियन विश्व में सबसे बड़ी कैनियन है, जोकि 400 किलोमीटर लंबी है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न 6.
धरती पर महासागरों को जलवायु के महान् नियंत्रक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, इसलिए इन्हें जलवायु के प्रमुख नियंत्रक कहा जाता है।

  • महासागर धरती पर नमी, वर्षा और तापमान के विभाजन पर प्रभाव डालते हैं।
  • महासागर सूर्य की ऊर्जा के भंडार हैं।
  • महासागरों के कारण तटीय भागों में समकारी जलवायु पाई जाती है।
  • समुद्री धाराएँ अपने निकट के तटीय प्रदेशों के तापमान को समकारी बनाती हैं।

प्रश्न 7.
झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
झीलों और आंतरिक सागरों में खारापन (Salinity in Lakes and Inland Seas)-झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इनमें गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न है। झीलों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान से वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन बढ़ जाता है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में खारापन 14 ग्राम प्रति हज़ार ग्राम जल है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हजार ग्राम जल है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारापन 220 ग्राम प्रति हज़ार है। जॉर्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारापन 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण खारापन अधिक है।

प्रश्न 8.
सागरीय जल के खारेपन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समुद्र के जल का स्वाद खारा होता है। यह खारापन कई स्थानों पर अधिक और कई स्थानों पर कम होता है। समुद्र के जल में खारापन पैदा करने में नदियों का योगदान होता है। नदियों के पानी में कई तरह के नमक घुले होते हैं, जिन्हें नदियाँ अपने साथ समुद्रों में ले जाती हैं। इन नमक युक्त पदार्थों को ही खारेपन का नाम दिया जाता है। अनुमान है कि विश्व की सभी नदियाँ हर वर्ष 5 अरब 40 करोड़ टन नमक समुद्रों में ले जाती हैं। समुद्रों का औसत खारापन 35% होता है, परंतु सभी समुद्रों में यह एक समान नहीं होता। कहीं बहुत अधिक और कहीं बहुत कम होता है।

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प्रश्न 9.
झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन का विभाजन बताएँ।
उत्तर-
झीलों और आंतरिक सागरों (Lakes and Inland Seas) में खारापन झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इन में गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न होती है। झीलों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन अधिक हो जाता है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में खारापन 14 ग्राम प्रति हज़ार है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हज़ार है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारापन 220 प्रति हज़ार है। जार्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारापन 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक खारापन अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 10.
अलग-अलग सागरों के खारेपन की मात्रा पर वाष्पीकरण का क्या प्रभाव है ?
उत्तर-
जिन महासागरों में वाष्पीकरण अधिक होगा, उनका जल अधिक खारा होगा। ऐसा इसलिए होता है कि वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा सागरीय जल वाष्प बनकर उड़ जाता है और बाकी बचे जल में खारेपन की मात्रा अधिक हो जाती है। अधिक तापमान, वायु की तीव्रता और शुष्कता के कारण सागरों का खारापन बढ़ जाता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट अधिक वाष्पीकरण के कारण खारापन अधिक होता है। कम तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण खारापन कम हो जाता है।

प्रश्न 11.
महासागरीय धाराओं की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-

  1. धाराएँ लगातार एक निश्चित दिशा में बहती हैं।
  2. गर्म धाराएँ निचले अक्षांशों से ऊँचे अक्षांशों की ओर बहती हैं।
  3. ठंडी धाराएँ ऊँचे अक्षांशों से निचले अक्षांशों की ओर बहती हैं।
  4. उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं।
  5. निचले अक्षांशों में पूर्वी तटों पर गर्म धाराएँ और पश्चिमी तटों पर ठंडी धाराएँ बहती हैं।
  6. उच्च अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर गर्म धाराएँ और पूर्वी तटों पर ठंडी धाराएँ बहती हैं।

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प्रश्न 12.
हुगली नदी में जहाज़ चलाने के लिए ज्वारभाटे की महत्ता बताएँ।
उत्तर-
हुगली नदी में ज्वारभाटे की विशेष महत्ता है। कोलकाता बंदरगाह एक कम गहरी और कृत्रिम बंदरगाह है। जब ज्वार के समय पानी ऊपर होता है, तो कोलकाता की कम गहरी बंदरगाह में बड़े-बड़े जहाज़ दाखिल हो जाते हैं। इस प्रकार पानी के बड़े-बड़े जहाज़ समुद्र में कई मील अंदर तक प्रवेश कर जाते हैं। भाटे के समय जहाज़ वापस हो जाते हैं। कोलकाता हुगली नदी के किनारे समुद्र तट से 120 किलोमीटर दूर है। परंतु हुगली नदी में आने वाले ऊँचे ज्वारभाटे के कारण पानी के जहाज़ कोलकाता तक पहुँच जाते हैं। जब ज्वार नहीं होता, तो जहाज़ों को कोलकाता से 70 किलोमीटर दूर डायमंड हार्बर (Diamond Harbour) में रुके रहना पड़ता है।

प्रश्न 13.
ज्वार की दीवार पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।।
उत्तर-
ज्वार की दीवार (Tidal Wall)-नदियों के मुहाने में पानी की ऊँची दीवार को ज्वार की दीवार कहते हैं। जब ज्वार उठता है, तो पानी की एक धारा नदी घाटी में प्रवेश करती हैं। यह, लहर नदी के जल को विपरीत दिशा में बहाने का यत्न करती है, ज्वार की लहर की ऊँचाई बहुत बढ़ जाती है। नदियों में पानी का बहाव विपरीत हो जाता है। पानी समुद्र से अंदर की ओर बहने लगता है। पानी की इस ऊँची दीवार को ज्वार-दीवार कहते हैं। ज्वारदीवार विशेषकर उन नदियों में दिखाई देती है, जिनका खुला मुहाना कुप्पी जैसा होता है। तंग मुँह और तेज़ धारा के कारण ज्वार-लहर के आगे एक दीवार खड़ी हो जाती है। यह ज्वार-दीवार बहुत विनाशकारी होती है। इससे नावें उलट जाती हैं। जहाज़ों के रस्से टूट जाते हैं। जहाज़ नष्ट हो जाते हैं । हुगली नदी में इन दीवारों के कारण छोटी नावों को बहुत नुकसान होता है। यंग-सी घाटी (चीन) में 3-4 मीटर ऊँची ज्वार की दीवार पाई जाती है, जो 16 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से नदी में अंदर बढ़ती जाती है।

प्रश्न 14.
“धाराएँ प्रचलित पवनों के द्वारा निर्धारित होती हैं।” व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-हवा अपनी अपार शक्ति के कारण पानी को गति देती है। धरातल पर चलने वाली स्थायी पवनें (Planetary Winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। विश्व की प्रमुख धाराएँ स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं। (Ocean currents are wind determined) । मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा और उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

उदाहरण (Examples)-

  1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds)—इनके द्वारा उत्तरी और दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएँ (Equational Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं।
  2. पश्चिमी पवनें (Westerlies)—इनके प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) और क्यूरोशियो (Curoshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

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प्रश्न 15.
किसी क्षेत्र की वर्षा पर धाराओं के प्रभाव का उल्लेख करें।
उत्तर-
गर्म धाराओं के निकट के प्रदेशों में वर्षा अधिक होती है, परंतु ठंडी धाराओं के निकट के प्रदेशों में वर्षा कम होती है। गर्म धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है, परंतु ठंडी धाराओं के संपर्क में आकर पवनें ठंडी हो जाती हैं और अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं।

उदाहरण (Examples)–

  • उत्तर-पश्चिमी यूरोप में खाड़ी की गर्म धारा के कारण और जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोशिओ की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  • विश्व के प्रमुख मरुस्थलों के तटों के निकट ठंडी धाराएँ बहती हैं, जैसे-सहारा तट पर कैनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पेरू की धारा।

प्रश्न 16.
खाड़ी की धारा का वर्णन करते हुए इसके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी की धारा (Gulf Stream Current)
उत्पत्ति (Origin)—यह धारा खाड़ी मैक्सिको में एकत्र पानी द्वारा पैदा होती है, इसीलिए इसे खाड़ी की धारा कहते हैं। यह धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर न्यूफाउंडलैंड (New Foundland) तक बहती है। यह गर्म पानी की धारा है, जो एक नदी के समान तेज़ चाल से चलती है। इसका रंग नीला होता है। यह लगभग 1 किलोमीटर गहरी और 50 किलोमीटर चौड़ी है और इसकी गति 8 किलोमीटर प्रति घंटा है।

शाखाओं के क्षेत्र (Areas)- 40° उत्तरी अक्षांशों के निकट यह धारा पश्चिमी पवनों (Westerlies) के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। इसकी मुख्य धारा यूरोप की ओर बहती है, जिसे उत्तरी अटलांटिक प्रवाह (North Atlantic Drift) कहते हैं। यह एक धीमी धारा है, जिसे पश्चिमी पवनों के कारण पश्चिमी पवन प्रवाह (West Wind Drift) भी कहते हैं। यूरोप के तट पर यह धारा कई शाखाओं में बाँटी जाती है। ब्रिटेन का चक्कर लगाती हुई एक शाखा नॉर्वे के तट को पार करके आर्कटिक सागर में स्पिटसबर्जन (Spitsbergen) तक पहुँच जाती है, जहाँ इसे नॉर्वेजियन धारा (Norwegian Current) कहते हैं।

प्रभाव (Effects)-

  1. यह एक गर्म जलधारा है, जो ठंडे अक्षांशों में गर्म जल पहुँचाती है।
  2. यह धारा पश्चिमी यूरोप को गर्मी प्रदान करती है। यूरोप में सर्दी की ऋतु में साधारण तापमान इसी धारा की देन है।
  3. पश्चिमी यूरोप की सुहावनी जलवायु इसी धारा की देन है, इसलिए इसे यूरोप की जीवन-रेखा (Life Line of Europe) भी कहते हैं।
  4. पश्चिमी यूरोप के बंदरगाह सर्दी की ऋतु में नहीं जमते और व्यापार के लिए खुले रहते हैं।
  5. इस धारा के ऊपर से निकलने वाली पश्चिमी पवनें (Westerlies) यूरोप में बहुत वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 17.
लैबरेडोर की धारा का वर्णन करें।
उत्तर-
लैबरेडोर की धारा (Labrador Current)—यह ठंडे पानी की धारा है, जो आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) से उत्तरी अंध-महासागर की ओर बहती है। यह धारा बैफिन खाड़ी (Baffin Bay) से निकलकर कनाडा के तट के साथ बहती हुई न्यूफाउंडलैंड तक आ जाती है। यहाँ यह खाड़ी की धारा के साथ मिल जाती है, जिससे घना कोहरा पैदा होता है, इसकी एक शाखा सैंट लारेंस (St. Lawrance) घाटी में प्रवेश करती है, जो कई महीने बर्फ से जमी रहती है।

प्रभाव (Effects)-

  • ये प्रदेश बर्फ से ढके रहने के कारण अनुपजाऊ होते हैं।
  • ठंडी धारा के कारण इस प्रदेश के बंदरगाह सर्दी की ऋतु में जम जाते हैं और व्यापार बंद हो जाता है।
  • यह धारा अपने साथ आर्कटिक सागर से बर्फ के बड़े-बड़े खंड (Icebergs) ले आती है। कोहरे के कारण जहाज़ इन खंडों से टकराकर दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 18.
उत्तरी हिंद महासागर की धाराओं पर मानसून पवनों के प्रभाव के बारे में बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर की धाराएं (Currents of Indian Ocean)-धाराओं और पवनों का संबंध हिंद महासागर में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। यहाँ मानसून पवनों के कारण समुद्री धाराओं का क्रम भी मौसमी (Seasonal) होता है। यहाँ उत्तरी हिंद महासागर में चलने वाली धाराएँ, मानसून पवनों के कारण छह महीने के बाद अपनी दिशा बदल लेती हैं। परंतु दक्षिणी हिंद महासागर में धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलने के कारण स्थायी होती हैं।

मानसून के प्रभाव के कारण धाराएँ सारा साल अपनी दिशा बदलती रहती हैं। वास्तव में कोई भी निश्चित धारा नहीं मिलती। छह महीने बाद इन धाराओं की दिशा और कर्म बदल जाते हैं।

प्रश्न 19.
ज्वारभाटा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ज्वारभाटा समुद्र की एक गति है। समुद्र का जल नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार ऊपर उठता है और दो बार नीचे उतरता है। “समुद्री जल के इस नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।” (Regular rise and fall of sea water is called Tides) जल के ऊपर उठने की क्रिया को ज्वार (Flood or High Tides or Incoming Tide) कहते हैं। जल के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा (Ebb or low Tide or Outgoing Tide) कहते हैं।

विशेषताएँ

  1. प्रत्येक स्थान पर ज्वारभाटे की ऊँचाई अलग-अलग होती है।
  2. प्रत्येक स्थान पर ज्वार और भाटे का समय अलग-अलग होता है।
  3. समुद्र का जल 6 घंटे 13 मिनट तक ऊपर चढ़ता है और इतनी ही देर में नीचे उतरता है।
  4. ज्वारभाटा एक स्थान पर नित्य ही एक समय नहीं आता।

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प्रश्न 20.
ज्वारभाटे की उत्पत्ति के कारण बताएँ।
उत्तर-
उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin) चंद्रमा अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational Attraction) के कारण धरती के जल को अपनी ओर खींचता है। स्थल भाग कठोर होता है, इस कारण वह खींचा नहीं जा सकता, परंतु जल भाग तरल होने के कारण ऊपर उठता जाता है। यह जल चंद्रमा की ओर उठता है। वहाँ से निकट का जल सिमटकर ऊपर उठता जाता है, जिसे उच्च ज्वार (High Tide) कहते हैं। जिस स्थान पर जल की मात्रा कम रह जाती है, वहाँ जल अपने तल से नीचे गिर जाता है, उसे नीचा ज्वार (Low Tide) कहते हैं। धरती की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर दिन-रात में दो बार ज्वार आता है। एक ही समय में धरती के तल पर दो बार ज्वार पैदा होते हैंएक ठीक चाँद के सामने और दूसरा उसकी विपरीत दिशा में (Diametrical Opposite) चाँद की आकर्षण शक्ति के कारण ज्वार उठता है। इसे सीधा ज्वार (Direct Tide) कहते हैं। विपरीत दिशा में अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) के कारण ज्वार उठता है और ऊँचा ज्वार पैदा होता है। इसे अप्रत्यक्ष ज्वार (Indirect Tide) कहते हैं। इस प्रकार धरती के एक तरफ ज्वार आकर्षण शक्ति की अधिकता के कारण और दूसरी तरफ अपकेंद्रीय शक्ति की अधिकता के कारण पैदा होते हैं।

प्रश्न 21.
लघु ज्वार और ऊँचे ज्वार में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ऊँचा ज्वार (Spring Tide)-सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। यह दशा अमावस्या (New moon) और पूर्णिमा (Full Moon) के दिन होती है।

कारण (Causes)-इस दशा में सूर्य, चाँद और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं। सूर्य और चाँद की सांझी आकर्षण-शक्ति अधिक हो जाने से ज्वार-शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य और चाँद के कारण उत्पन्न ज्वार इक्ट्ठे हो जाते हैं। (Spring tide is the sum of solar and luner tides.)। इन दिनों में ज्वार अधिक ऊँचा और भाटा बहुत कम नीचा होता है। ऊँचे ज्वार साधारण ज्वार से 20% अधिक ऊँचे होते हैं।

लघु ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे लघु ज्वार कहते हैं। इस दशा को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब चाँद आधा (Half Moon) होता है।

कारण (Causes)—इस दशा में सूर्य और चाँद धरती की समकोण दशा (At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य और चाँद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति विपरीत दिशाओं में काम करती है। जहाँ सूर्य ज्वार पैदा करता है, वहाँ चाँद भाटा पैदा करता है। सूर्य और चाँद के ज्वारभाटा एक-दूसरे को कम करते हैं। (Neap tide is the difference of solar and luner tides) । इन दिनों में ऊँचा ज्वार कम ऊँचा और भाटा कम नीचा होता है। छोटा ज्वार प्रायः साधारण ज्वार से 20% कम ऊँचा होता है।

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प्रश्न 22.
दो ज्वारों के बीच कितने समय का अंतर होता है ?
उत्तर-
ज्वारभाटे का नियम (Law of Tides)—किसी स्थान पर ज्वारभाटा नित्य एक समय पर नहीं आता। धरती अपनी धुरी पर 24 घंटों में एक पूरा चक्कर लगाती है। इसलिए विचार किया जाता है कि ज्वार प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे बाद आए, परंतु प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है। हर रोज़ ज्वार पिछले दिन की तुलना में देर से आता है।

कारण (Causes)–चाँद धरती के चारों ओर 28 दिनों में पूरा चक्कर लगाता है। धरती के चक्कर का 28 वाँ भाग चाँद हर रोज़ आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के सामने दोबारा आने में 24 घंटे से कुछ अधिक समय ही लगता है। 24 घंटे 60 मिनट

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 12

दूसरे शब्दों में, हर 24 घंटे के बाद चाँद अपनी पहले वाली स्थिति से लगभग 13° (360/28 = 13°) आगे निकल जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के ठीक सामने आने में 13 x 4 = 52 मिनट अधिक समय लग जाता है क्योंकि दिन में दो बार ज्वार आता है, इसलिए प्रतिदिन ज्वार 26 मिनट के अंतर से अनुभव किया जाता है। पूरे 12 घंटे बाद पानी का चढ़ाव देखने में नहीं आता, बल्कि ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है। 6 घंटे 13 मिनट तक जल ऊपर उठता और उसके बाद 6 घंटे 13 मिनट तक जल नीचे उतरता रहता है। ज्वार के उतार-चढ़ाव का यह क्रम चलता रहता है।

निबंधात्मक प्रश्न । (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अंध महासागर की स्थल रूपरेखा के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर-
अंधमहासागर (Atlantic Ocean)-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size) इस सागर का क्षेत्रफल 8 करोड़ 20 लाख किलोमीटर है जोकि कुल सागरीय क्षेत्रफल का 1/6 भाग है। इसका आकार अंग्रेज़ी के ‘S’ अक्षर जैसा है। यह सागर भूमध्य रेखा पर लगभग 2560 कि०मी० चौड़ा है, परंतु दक्षिण की ओर इसकी चौड़ाई 4800 कि० मी० है। यह सागर उत्तर की ओर से बंद है, जबकि दक्षिण की ओर से खुला होने के कारण यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के साथ मिल जाता है।

2. समुद्र तल (Ocean Floor)—इस सागर के तटों पर चौड़ा महाद्वीपीय शैल्फ पाया जाता है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के तटों पर इसकी चौड़ाई 400 कि०मी० तक होती है। यहाँ प्रसिद्ध मछली क्षेत्र पाए जाते हैं।

3. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस सागर में नीचे लिखी प्रमुख समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges) हैं

  • अंध महासागरीय मध्यवर्ती पहाड़ी (Central Ridge)
  • डॉल्फिन पहाड़ी (Dolphin Ridge)
  • दक्षिणी भाग में चैलंजर पहाड़ी (Challanger Ridge)
  • उत्तरी भाग में टैलीग्राफ पठार।

4. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-अंध महासागर में कई छोटे-छोटे बेसिन पाए जाते हैं, जैसे

  • लैबरोडोर बेसिन
  • स्पेनिश बेसिन
  • उत्तरी अमेरिका बेसिन
  • केपवरडे बेसिन
  • गिनी का बेसिन
  • ब्राज़ील का बेसिन।

5. अंध-महासागर के निवाणं (Deeps of Atlantic Ocean)-इस सागर के तट के साथ-साथ मोड़दार पर्वत होने के कारण यहाँ निवाण (Deeps) कम ही मिलते हैं। Mr. Murry के अनुसार इस सागर में 10 निवाण हैं। प्रमुख इस प्रकार हैं-

(i) प्यूरटो रीको निवाण (Puerto Rico Deep) यह इस सागर का सबसे गहरा स्थान (4812 फैदम) है।
(ii) रोमांच निवाण (Romanche Deep)—यह 4030 फैदम गहरा है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 13

(iii) दक्षिणी सैंडविच निवाण (South Sandwitch Deep)-यह फाकलैंड के निकट 4575 फैदम गहरा है।
(iv) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-अंध-महासागर में सीमावर्ती समुद्र कम ही मिलते हैं। इसमें पाए जाने वाले सीमावर्ती सागर अधिकतर यूरोप की ओर हैं। प्रमुख सीमावर्ती सागर इस प्रकार हैं-

(क) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)
(ख) उत्तरी सागर (North Sea)
(ग) रोम सागर (Mediterranean Sea)
(घ) काला सागर (Black Sea)
(ङ) कैरेबीयन सागर (Caribbean Sea)
(च) बेफिन की खाड़ी (Baffin Bay)
(छ) खाड़ी मैक्सिको (Mexica Bay)
(ज) हडसन की खाड़ी (Hudson Bay)।

(v) द्वीप (Islands)—इस सागर में ग्रेट ब्रिटेन और न्यूफाउंडलैंड महत्त्वपूर्ण द्वीप हैं, जोकि महाद्वीपीय शैल्फ के ऊँचे भाग हैं। वेस्ट इंडीज़ द्वीपों का समूह है, जोकि चाप के रूप में उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के बीच फैला हुआ है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये डूबे हुए पहाड़ों के ऊँचे उठे हुए भाग हैं। मध्यवर्ती उभार पर कई द्वीप मिलते हैं, जैसे-

(क) फैरोस द्वीप (Faroes Island)
(ख) अज़ोरस द्वीप (Azores Island)
(ग) फाकलैंड द्वीप (Falkland Island)
(घ) सेंट हैलेना द्वीप (St. Helena Island)
(ङ) बरमुदा द्वीप (Barmuda Island)।
(च) अफ्रीका तट पर ज्वालामुखी के केपवरडे द्वीप और कनेरी द्वीप आदि।

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प्रश्न 2.
प्रशांत महासागर की स्थल रुपरेखा के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size)—यह त्रिभुज (A) आकार का महासागर पृथ्वी के 30% भाग पर फैला हुआ है। इसकी औसत गहराई 5000 मीटर है। उत्तर में यह बेरिंग समुद्र और आर्कटिक महासागर द्वारा बंद है। प्रशांत महासागर भूमध्य रेखा पर लगभग 16000 कि०मी० चौड़ा है।

2. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—प्रशांत महासागर में पहाड़ियों (Ridges) की कमी है। इसके कुछ भागों में पठारों के रूप में उठे हुए चबूतरे पाए जाते हैं। प्रमुख उभार इस प्रकार हैं –

  • हवाई उभार, जोकि लगभग तीन हज़ार कि०मी० लंबा है।
  • अल्बेट्रोस पठार, जोकि लगभग 1500 कि०मी० लंबा है।
  • इस सागर में अनेक उभार (Swell), ज्वालामुखी पहाड़ियाँ और प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं।

3. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-प्रशांत महासागर में कई प्रकार के बेसिन मिलते हैं, जो छोटी-छोटी पहाड़ियों (Ridges) द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। प्रमुख बेसिन इस प्रकार हैं –

  • ऐलुशीयन बेसिन
  • फिलिपीन बेसिन
  • फिज़ी बेसिन
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन
  • प्रशांत अंटार्कटिका बेसिन।

4. सागरीय निवाण (Ocean Deeps)—इस महासागर में लगभग 32 निवाण मिलते हैं, जिनमें से अधिक Trenches हैं। इस सागर के निवाण (Deeps) और खाइयाँ (Trenches) अधिकतर इसके पश्चिमी भाग में हैं। इस सागर में सबसे गहरा स्थान मैरियाना खाई (Mariana Trench) है, जिसकी गहराई 11022 मीटर है। इसके अलावा ऐलुशीयन खाई, क्यूराइल खाई, जापान खाई, फिलीपाइन खाई, बोनिन खाई, मिंडानो टोंगा खाई और एटाकामा खाई प्रसिद्ध सागरीय निवाण हैं, जिनकी गहराई 7000 मीटर से भी अधिक है।

5. सीमवर्ती सागर (Marginal Seas)—प्रशांत महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर पश्चिमी भागों में मिलते हैं। इसके पूर्वी भाग में कैलीफोर्निया की खाड़ी और अलास्का की खाड़ी है। शेष महत्त्वपूर्ण सागर पश्चिमी भाग में हैं(i) बेरिंग सागर (Bering Sea) (ii) पीला सागर (Yellow Sea) (iii) ओखोत्सक सागर (Okhotsk Sea) (iv) जापान सागर (Japan Sea) (v) चीन सागर (China Sea)।

6. द्वीप (Islands)—प्रशांत महासागर में लगभग 20 हज़ार द्वीप पाए जाते हैं। प्रमुख द्वीप ये हैं-

  • ऐलुशियन द्वीप और ब्रिटिश कोलंबिया द्वीप।
  • महाद्वीपीय द्वीप, जैसे-क्यूराईल द्वीप, जापान द्वीप समूह, फिलीपाइन द्वीप, इंडोनेशिया द्वीप और न्यूज़ीलैंड द्वीप।
  • ज्वालामुखी द्वीप जैसे-हवाई द्वीप।
  • प्रवाल द्वीप, जैसे-फिजी द्वीप।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 3

प्रश्न 3.
हिंद महासागर के फर्श का वर्णन करें।
उत्तर-
(i) हिंद महासागर संसार का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जोकि तीन तरफ से स्थल भागों (अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया) से घिरा हुआ है। इसका विस्तार 20° पूर्व से लेकर 115° पूर्व तक है। इसकी औसत गहराई 4000 मीटर है। यह सागर उत्तर में बंद है और दक्षिण में अंध महासागर और प्रशांत महासागर से मिल जाता है।
(ii) समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस महासागर में कई पहाड़ियाँ मिलती हैं-

(क) मध्यवर्ती पहाड़ी (Mid Indian Ridge) कन्याकुमारी से लेकर अंटार्कटिका महाद्वीप तक 75° पूर्व देशांतर के साथ-साथ स्थित है। इसके समानांतर पूर्वी हिंद पहाड़ी और पश्चिमी हिंद पहाड़ियाँ स्थित हैं। दक्षिण में ऐमस्ट्रडम-सेंट पॉल पठार स्थित है।

(ख) अफ्रीका के पूर्वी सिरे पर स्कोटा छागोश पहाड़ी।
(ग) हिंद महासागर के पश्चिम में मैडगास्कर और प्रिंस ऐडवर्ड पहाड़ियाँ और कार्ल्सबर्ग पहाड़ियाँ स्थित हैं।

(ii) सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-कई पहाड़ियों (Ridges) के कारण हिंद महासागर कई छोटे-छोटे बेसिनों में बँट गया है, जैसे-खाड़ी बंगाल, अरब सागर, सोमाली बेसिन, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन और दक्षिणी हिंद बेसिन।

(iv) समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—इस सागर में समुद्री निवाण बहुत कम हैं। सबसे अधिक गहरा स्थान सुंडा खाई (Sunda Trench) के निकट प्लैनट निवाण है, जोकि 4076 फैदम गहरा है।

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(v) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-हिंद महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर उत्तर की ओर हैं, जो इस प्रकार हैं-

(क) लाल सागर (Red Sea)
(ख) खाड़ी सागर (Persian Gulf)
(ग) अरब सागर (Arabian Sea)
(घ) खाड़ी बंगाल (Bay of Bengal)
(ङ) मोज़म्बिक चैनल (Mozambique Strait)
(च) अंडमान सागर (Andaman Sea)।

(vi) द्वीप (Islands)

(क) श्रीलंका और मैलागासी जैसे बड़े द्वीप
(ख) अंडमान-निकोबार, जंजीबार, लक्षद्वीप और मालदीव,
(ग) मारीशस और रीयूनियन जैसे ज्वालामुखी द्वीप।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न 4.
महासागरों के विस्तार का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र विज्ञान (Oceanography)—महासागरों का अध्ययन प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है। महासागरों की परिक्रमा, ज्वारभाटे की जानकारी आदि ईसा से कई वर्ष पूर्व ही प्राप्त थी। जलवायु, समुद्री मार्गों, जीवविज्ञान आदि पर प्रभाव के कारण समुद्री विज्ञान भौतिक भूगोल में एक विशेष स्थान रखता है।

समुद्र विज्ञान दो शब्दों Ocean + Graphy के मेल से बना है। इस प्रकार इस विज्ञान में महासागरों का वर्णन होता है। एम०ए०मोरमर (M.A. Mormer) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों की आकृति, स्वरूप, पानी और गतियों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of the Science of Oceans-its form, nature, waters and movements.)। मोंक हाऊस के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों के भौतिक और जैव गुणों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of a wide range of Physical and biological phenomena of oceans.) I ___डब्ल्यू० फ्रीमैन (W. Freeman) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान भौतिक भूगोल का वह भाग है, जो पानी की गतियों
और मूल शक्तियों का अध्ययन करता है। इस अध्ययन में ज्वारभाटा, धाराओं, तट रेखाओं, समुद्री धरातल और जीवों का अध्ययन शामिल होता है।”

महासागर-विस्तार (Ocean-Extent)-पृथ्वी के तल पर जल में डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल में महासागर, सागर, खाड़ियाँ, झीलें आदि सभी जल-स्रोत आ जाते हैं। सौर-मंडल में पृथ्वी ही एक-मात्र ग्रह है, जिस पर जलमंडल मौजूद है। इसी कारण पृथ्वी पर मानव-जीवन संभव है।

पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है। इसलिए इसे जल-ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है, इसलिए इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं।

धरातल पर जलमंडल लगभग 3,61,059,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं जोकि पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्रफल का 71% भाग है।
उत्तरी गोलार्द्ध का 61% भाग और दक्षिणी गोलार्द्ध का 81% भाग महासागरों द्वारा घिरा हुआ है। उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक है, इसलिए इसे (Water Hemisphere) भी कहते हैं। जल और थल का विभाजन प्रति ध्रुवीय (Antipodal) है। उत्तरी ध्रुव की ओर चारों तरफ आर्कटिक महासागर स्थित है और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका महाद्वीप द्वारा घिरा हुआ है ।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 2

जलमंडल का क्षेत्रफल (Area of Hydrosphere) ब्रिटिश भूगोल वैज्ञानिक जॉन मरें (John Murray) ने जलमंडल का क्षेत्रफल 3626 लाख वर्ग किलोमीटर बताया है । महासागरों में प्रमुख प्रशांत महासागर, अंधमहासागर, हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर हैं । प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है, जो जलमंडल के 45.1% भाग पर फैला हुआ है ।

Areas of Different Oceans

Ocean — Area (Sq. K.m.)
प्रशांत महासागर — 16,53, 84,000
अंध महासागर — 8,22,17,000
हिंद महासागर — 7,34,81,000
आर्कटिक महासागर –1,40,56,000

महासागरों की औसत गहराई 3791 मीटर है। स्थल मंडल की अधिकतम ऊँचाई एवरेस्ट चोटी (Everest Peak) है, जोकि समुद्र तल से 8848 मीटर ऊँची है। जलमंडल की अधिकतम गहराई 11,033 मीटर, फिलीपीन देश के निकट प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में चैलंजर निवाण (Challeger Deep) में है। इस प्रकार यदि संसार के सबसे ऊँचे शिखर ऐवरेस्ट को प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो उसके शिखर पर 2000 मीटर से अधिक पानी होगा।

प्रश्न 5.
सागरीय जल के खारेपन से क्या अभिप्राय है ? विश्व के भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन के विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र के जल का स्वाद खारा होता है। खारापन कई स्थानों पर अधिक और कई स्थानों पर कम होता है। समुद्र के जल में खारापन पैदा करने में दरिया के पानी का हाथ होता है। दरिया के पानी में कई प्रकार के नमक घुले हुए होते हैं, जिन्हें दरिया अपने साथ समुद्र में ले जाते हैं। इन नमक पदार्थों को भी खारेपन का नाम दिया जाता है। अनुमान है कि विश्व के सभी दरिया हर वर्ष 5 अरब 40 करोड़ टन नमक समुद्र में ले जाते हैं। समुद्रों का औसत खारापन 35% होता है, परंतु यह सब समुद्रों में एक समान नहीं है। कहीं बहुत अधिक है और कहीं बहुत कम। विश्व के भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन का विभाजन इस प्रकार है-

खारेपन का विभाजन-कई भौगोलिक तत्त्वों के कारण भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है-

1. खुले महासागरों में खारापन (Salinity in Open Seas)-

(i) भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्र (Near the Equator)—इन सागरों में औसत खारापन कम है, जोकि प्रति हजार ग्राम पानी में लगभग 34 ग्राम है।
कारण (Causes)

  • अधिक वर्षा का होना।
  • अमेज़न और कांगो जैसी बड़ी-बड़ी नदियों से ताज़े जल की प्राप्ति।

(ii) कर्क और मकर रेखा के निकट (Near the Tropics)—यहाँ खारेपन की मात्रा सबसे अधिक है, जोकि 36% है।
कारण (Causes)-

  • अधिक वाष्पीकरण का होना।
  • वर्षा का कम होना।
  • बड़ी नदियों की कमी होना।

(iii) ध्रुवीय क्षेत्र (Polar Areas)-इन क्षेत्रों में खारेपन की मात्रा 20 से 30 ग्राम प्रति हज़ार होती है।
GARUT (Causes) –

  • कम तापमान के कारण कम वाष्पीकरण का होना।
  • पश्चिमी पवनों द्वारा अधिक वर्षा का होना।
  • बर्फ के पिघलने से ताज़े जल की प्राप्ति होना।

2. घिरे हुए समुद्रों में खारापन (Salinity in Enclosed Seas)-इन सागरों के खारेपन में काफी अंतर पाया जाता है। जैसे-

  • भूमध्य सागर में जिब्रालटर के निकट खारेपन की मात्रा 37 ग्राम प्रति हज़ार से 39 ग्राम प्रति हज़ार होती है। अधिक खारापन शुष्क गर्म ऋतु, अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।
  • लाल सागर में 39 ग्राम प्रति हज़ार, खाड़ी स्वेज़ 41 ग्राम प्रति हज़ार और खाड़ी फारस में 38 ग्राम प्रति हज़ार खारेपन की मात्रा पाई जाती है।
  • काला सागर में 17 ग्राम प्रति हजार और इज़ेव सागर में 18 ग्राम प्रति हज़ार खारेपन की मात्रा है। बाल्टिक सागर में यह केवल 8 ग्राम प्रति हज़ार है।

कारण (Causes)-

  • यहाँ वाष्पीकरण कम है।
  • बड़ी-बड़ी नदियों का पानी साफ है।
  • हिम के पिघलने से भी अधिक जल की प्राप्ति होती है।

3. झीलों और आंतरिक सागरों में (Lakes and Inland Seas)-झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इनमें गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न है। समुद्रों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन अधिक हो जाता है। कैस्पियन सागर के उतरी भाग में खारेपन की मात्रा 14 ग्राम प्रति हज़ार है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हज़ार है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारेपन की मात्रा 220 ग्राम प्रति हज़ार है। जॉर्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारेपन की मात्रा 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक खारापन अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न 6.
महासागरों में तापमान के क्षितिजीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
महासागरीय जल में तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-अर्ध-खुले सागरों और खुले सागरों के तापमान में भिन्नता होती है। इसका कारण यह है कि अर्ध खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती क्षेत्रों का प्रभाव पड़ता है।

(क) महासागरों में जल पर तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-महासागरों में जल-तल (Water-surface) के तापमान का क्षैतिज विभाजन नीचे लिखे अनुसार है :

  • भूमध्य रेखीय भागों के जल का तापमान 26° सैल्सियस, ध्रुवीय क्षेत्रों में 0° सैल्सियस से -5° (minus five degree) सैल्सियस और 20°, 40° और 60° अक्षांशों के तापमान क्रमशः 23°, 14° और 1° सैल्सियस रहता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर महासागरीय जल का क्षैतिज तापमान कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लंब और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं।
  • ऋतु परिवर्तन के साथ महासागरों के ऊपरी तल के तापमान में परिवर्तन आ जाता है। गर्मी की ऋतु में दिन लंबे होने के कारण तापमान ऊँचा और सर्दी की ऋतु में दिन छोटे होने के कारण तापमान कम रहता है।
  • स्थल की तुलना में जल देरी से गर्म और देरी से ही ठंडा होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में जल की तुलना में स्थल अधिक है और दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का क्षेत्र अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समुद्री जल का तापमान स्थलीय प्रभाव के कारण ऊँचा रहता है। इसकी तुलना में जल की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान कम रहता है।

3. अर्ध-खले सागरों में जल के तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Partially Enclosed Seas) अर्ध-खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती स्थलखंडों का प्रभाव अधिक पड़ता है।

(i) लाल सागर और फारस की खाड़ी (Red Sea and Persian Gulf)—ये दोनों अर्ध-खुले सागर हैं, जो संकरे जल संयोजकों (Straits) द्वारा हिंद महासागर से मिले हुए हैं। इन दोनों के चारों ओर मरुस्थल हैं, जिनके प्रभाव से तापमान उच्च, क्रमश: 32° से० और 34° से० रहता है। विश्व में सागरीय तल का अधिक-सेअधिक तापमान 34° से० है, जोकि फारस की खाड़ी में पाया जाता है।

कुछ सागरों के जल का तापमान-

सागर — तापमान
लाल सागर — 32°C.
खाड़ी फारस –34°C.
बाल्टिक सागर –10°C.
उत्तरी सागर –17°C.
प्रशांत महासागर –19.1°C.
हिंद महासागर –17.0°C.
अंध महासागर — 16.9°C.

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 6

(ii) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)-इस सागर में तापमान कम रहता है और शीत ऋतु में यह बर्फ में बदल जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह शीत प्रदेशों से घिरा हुआ है, जोकि सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं। इसकी तुलना में निकट का विस्तृत उत्तर सागर (North Sea) कभी भी नहीं जमता। इसका कारण यह है कि एक तो यह खुला सागर है और दूसरा अंध महासागर की तुलना में गर्म जलं इसमें बेरोक प्रवेश करता है।

(iii) भूमध्य सागर या रोम सागर (Mediterranean Sea)—यह भी एक अर्ध-खुला समुद्र है, जो जिब्राल्टर (Gibraltar) जल संयोजक द्वारा अंध महासागर से जुड़ा हुआ है। इसका तापमान उच्च रहता है क्योंकि इसके दक्षिण और पूर्व की ओर मरुस्थल हैं। दूसरा, इस जल संयोजक की ऊँची कटक महासागर के जल को इस सागर में बहने से रोकती है।

महासागरीय जल में ताप का लंबवर्ती विभाजन-(Vertical Distribution of Temperature of Ocean Water)-सूर्य का ताप सबसे पहले महासागरीय तल का जल प्राप्त करता है और सबसे ऊपरी परत गर्म होती है। सूर्य के ताप की किरणें ज्यों-ज्यों गहराई में जाती हैं, तो बिखराव (Scattering), परावर्तन (Reflection) और प्रसारण (Diffusion) के कारण उनकी ताप-शक्ति नष्ट हो जाती है। इस प्रकार तल के नीचे के पानी का तापमान गहराई के साथ कम होता जाता है।

महासागरीय जल का तापमान-
गहराई के अनुसार (According to Depth)-

गहराई (Depth) मीटर — तापमान (°C)
200 — 15.9°C
400 —  10.0°C
1000 — 4.5°C
2000 — 2.3°C
3000 — 1.8°C
4400 — 1.7°C

1. महासागरीय जल का तापमान गहराई बढ़ने के साथ-साथ कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणें अपना प्रभाव महाद्वीपीय बढ़ौतरी की अधिकतम गहराई भाव 183 मीटर (100 फैदम) तक ही डाल सकती हैं।

2. महाद्वीपीय तट के नीचे महासागरों में तापमान अधिक कम होता है परंतु अर्ध-खुले सागरों में तापमान जल संयोजकों की कटक तक ही गिरता है और इससे आगे कम नहीं होता।

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हिंद महासागर के ऊपरी तल और लाल सागर के ऊपरी तल का तापमान लगभग समान (27°C) होता है। इन दोनों के बीच बाब-अल-मेंडर जल संयोजक की कटक है। उस गहराई तक दोनों में तापमान एक समान कम होता है क्योंकि इस गहराई तक हिंद महासागर का जल लाल सागर में प्रवेश करता रहता है। परंतु इससे अधिक गहराई पर लाल सागर का तापमान कम नहीं होता, जबकि हिंद महासागर में यह निरंतर कम होता रहता है।

3. गहराई के साथ तापमान कम होने की दर सभी गहराइयों में एक समान नहीं होती। लगभग 100 मीटर की गहराई तक जल का तापमान निकटवर्ती धरातलीय तापमान के लगभग बराबर होता है। धरातल से 1000 से 1800 मीटर की गहराई पर तापमान लगभग 15° से कम होकर लगभग 2°C रह जाता है। 4000 मीटर की गहराई पर तापमान कम होकर 1.6°C रह जाता है। महासागरों में किसी भी गहराई पर तापमान 1°C से कम नहीं होता। यद्यपि ध्रुवीय महासागरों की ऊपरी परत जम जाती है, पर निचला पानी कभी नहीं जमता। इसी कारण मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु निचले जल में मरते नहीं।

प्रश्न 7.
महासागरीय जल में खारेपन के कारण और महत्ता बताएँ।
उत्तर-
महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

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प्रश्न 8.
समुद्री तरंगों की रचना और किस्मों का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्री तरंगें या लहरें (Sea Waves)—पवनों के प्रभाव के कारण समुद्री तल के किसी भाग में जल ऊँचा और किसी भाग में नीचा होता है। इस क्रिया को लहर कहते हैं। लहरों के कारण जल आगे को नहीं बढ़ता, बल्कि अपने स्थान पर ही ऊँचा-नीचा और आगे-पीछे होता रहता है। लहर के ऊपर उठे भाग को तरंग शिखर (Crest) और निचले भाग को तरंग गर्त (Trough) कहते हैं। एक शिखर से दूसरे शिखर तक और एक गर्त से दूसरे गर्त तक की लंबाई को Wave Length कहा जाता है। गर्त और शिखर के बीच की दूरी को लहर की ऊँचाई (Amplitude of Wave) कहते हैं।

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लहर की किस्में (Types of Waves) –
पवनों द्वारा उत्पन्न महासागरीय जल की तरंगें तीन किस्म की होती हैं-

  1. सी
  2. स्वैल
  3. सरफ।

1. सी (Sea)—पवनों के घर्षण से कई बार एक ही समय में विभिन्न लंबाई (Wave Length) वाली और विभिन्न दिशाओं में बढ़ने वाली तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। इन्हें ‘सी’ (Sea) कहकर पुकारा जाता है।

2. महातरंग या स्वैल (Swell)-जब सी नामक अनियमित तरंगें महासागरीय जल-तल को उथल-पुथल करने वाली पवनों के प्रभाव से मुक्त होकर नियमित रूप में तरंग शिखर और तरंग गर्त की श्रृंखला में बढ़ती हैं, तो इन्हें महातरंग या स्वैल कहा जाता है।

3. सरफ (Surf)-जब महातरंग या स्वैल तट के निकट गहरे पानी (Deep Water) में पहुँचती है, तो इसके तरंग शिखर आपस में मिलकर ऊँचे हो जाते हैं, तरंग शिखर आगे की ओर झुक जाता है और टूट जाता है। तब इन्हें ब्रेकर या भंग-तरंग (Breaker) कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
अन्तर्विवाह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह विवाह जिसमें व्यक्ति को एक निश्चित समूह, जाति या उपजाति के अंदर ही विवाह करवाना पड़े, अन्तर्विवाह होता है।

प्रश्न 2.
विवाह संस्था की उत्पत्ति के कोई दो महत्त्वपूर्ण आधार बताइये।
उत्तर-
शारीरिक आवश्यकता, भावात्मक आवश्यकता, समाज को आगे बढ़ाना तथा बच्चों का पालन-पोषण करके विवाह की संस्था सामने आयी।

प्रश्न 3.
एक विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक पुरुष का एक समय में एक स्त्री के साथ विवाह होता है तो इसे एक विवाह का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 4.
साली विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक व्यक्ति अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् उसकी बहन से विवाह कर लेता है तो उसे साली विवाह कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
बहुपति विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-भातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई होते हैं तथा अभ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते।

प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-द्वि-पत्नी विवाह जिसमें एक व्यक्ति की दो पत्नियाँ होती हैं तथा बहुपत्नी विवाह जिसमें व्यक्ति की कई पत्नियाँ होती हैं।

प्रश्न 7.
अन्तर्विवाह के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
मुसलमानों में शिया तथा सुन्नी अन्तर्वैवाहिक समूह हैं। ईसाइयों में रोमन कैथोलिक तथा प्रोटैस्टैंट अन्तर्वैवाहिक समूह है।

प्रश्न 8.
विवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
लुण्डबर्ग के अनुसार, “विवाह के नियम तथा तौर-तरीके होते हैं जो पति पत्नी के एक-दूसरे के प्रति अधिकारों, कर्तव्यों तथा विशेष अधिकारों का वर्णन करते हैं।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 9.
परिवार के दो प्रकार्य बताइये।
उत्तर-

  1. परिवार बच्चों का समाजीकरण करता है।
  2. परिवार बच्चे को सम्पत्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
आकार के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
आकार के आधार पर परिवार के तीन प्रकार होते हैं-केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार।

प्रश्न 11.
सत्ता के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सत्ता के आधार पर परिवार के दो प्रकार होते हैं-पितृसत्तात्मक व मातृसत्तात्मक।

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प्रश्न 12.
वैवाहिक सम्बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह नातेदारी जो विवाह के पश्चात् बनती है, उसे वैवाहिक नातेदारी कहते हैं। उदाहरण के लिए सास, ससुर, जमाई, बहू इत्यादि।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह परिवार जिसमें दो से अधिक पीढ़ियों के लोग रहते हैं तथा एक रसोई में खाना खाते हैं, संयुक्त परिवार होता है।

प्रश्न 14.
नातेदारी से आप क्या समझते हैं ? .
उत्तर-
नातेदारी में वह संबंध शामिल होते हैं जो काल्पनिक या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित तथा समाज द्वारा प्रभावित होते हों।

प्रश्न 15.
नातेदारी के प्रकार बताइये।
उत्तर-
नातेदारी दो प्रकार की होती है :- वैवाहिक तथा रक्त संबंधी।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्था शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है तथा न ही संगठन है। संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रियाओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिसके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
अधिमान्य नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक संस्था के कुछ अधिमान्य नियम होते हैं जिन्हें सबको मानना पड़ता है। उदाहरण के लिए विवाह एक ऐसी संस्था है जो पति-पत्नी के बीच संबंधों को नियमित करती है। इस प्रकार शैक्षिक संस्थाओं के रूप में स्कूल तथा कॉलेज के अपने-अपने नियम तथा कार्य करने के तौर-तरीके होते हैं।

प्रश्न 3.
अनुलोम तथा प्रतिलोम क्या है ?
उत्तर-

  • अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
  • प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

प्रश्न 4.
बहुविवाह के दो प्रकारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-

  1. बहपति विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक स्त्री के कई पति होते हैं तथा इसके दो प्रकार होते हैं। भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई होते हैं तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई नहीं होते।
  2. बहुपत्नी विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक पति की एक समय में कई पत्नियाँ होती हैं।

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प्रश्न 5.
भ्रातृत्व बहपति विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पत्नी के कई पति होते हैं तथा वह सभी आपस में भाई होते हैं। बच्चों का पिता बड़े भाई को माना जाता है तथा पत्नी से संबंध बनाने से पहले बड़े भाई की आज्ञा लेनी पड़ती है।

प्रश्न 6.
निकटाभिगमन निषेध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
निकटाभिगमन निषेध का अर्थ है शारीरिक अथवा वैवाहिक संबंध उन दो व्यक्तियों के बीच एक-दूसरे के साथ रक्त संबंधित हैं अथवा एक परिवार से संबंध रखते हैं। इस प्रकार के संबंध सभी मानवीय समाजों में वर्जित हैं। किसी भी संस्कृति में रक्त संबंधियों के बीच किसी प्रकार के लैंगिक संबंधों की आज्ञा नहीं होती है।

प्रश्न 7.
गोत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखीय संतान होते हैं। पूर्वज साधारणतया कल्पित ही होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। यह बहिर्वैवाहिक समूह होते हैं। यह वंश समूह का ही विस्तृत रूप है जोकि माता या पिता के अनुरेखित रक्त संबंधियों से बनता है।

प्रश्न 8.
सलिंग तथा विलिंग सहोदर विवाह के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-

  • सलिंग विवाह एक प्रकार का विवाह है जिसमें दो भाइयों या दो बहनों के बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। मुसलमानों में यह विवाह प्रचलित है।
  • विलिंग सहोदर विवाह में व्यक्ति के मामा की बेटी या बुआ की लड़की के साथ विवाह हो जाता है। इस प्रकार के विवाह गोंड, उराओं तथा खड़िया जनजातियों में प्रचलित हैं।

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प्रश्न 9.
निकटता तथा दूरी के आधार पर नातेदारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
निकटता तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार की नातेदारी होती है-

  • प्राथमिक रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जिनके साथ हमारा सीधा तथा नज़दीक का रक्त संबंध होता है जैसे कि माता-पिता, भाई-बहन।
  • द्वितीय रिश्तेदार-यह हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि पिता के पितादादा।
  • तृतीय रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जो हमारे द्वितीय संबंधियों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि चाचा की पत्नी-चाची।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. विवाह-विवाह सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है जिसकी सहायता से व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाने तथा बच्चे पैदा करने की आज्ञा होती है। विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण होता है।

2. परिवार-जब व्यक्ति विवाह करता है तथा बच्चे पैदा करता है तो परिवार का निर्माण होता है। परिवार ही व्यक्ति को जीवन जीने के तरीके सिखाता है तथा उसे समाज में रहने के तरीके सिखाता है।

3. नातेदारी-नातेदारी रिश्तेदारों की व्यवस्था है जिसमें रक्त संबंधी व वैवाहिक संबंधी रिश्तेदार शामिल होते हैं। रिश्तेदारी के बिना व्यक्ति जीवन जी नहीं सकता है।

प्रश्न 2.
विवाह की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है।
  • विवाह लैंगिक संबंधों को सीमित तथा नियन्त्रित करता है।
  • विवाह से व्यक्ति के लैंगिक संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।
  • विवाह से स्त्री व पुरुष को सामाजिक स्थिति प्राप्त हो जाती है।
  • अलग-अलग समाजों में अलग-अलग प्रकार के विवाह होते हैं।
  • इसकी सहायता से धार्मिक रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखा जाता है।

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प्रश्न 3.
विवाह के स्वरूपों के रूप में एक विवाह तथा बहविवाह के बीच विवाह के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-
1. एक विवाह-आजकल के समय में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष एक समय में एक ही स्त्री से विवाह करवा सकता है। इसमें एक पति या पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। पति-पत्नी के संबंध गहरे, स्थायी तथा प्यार से भरपूर होते हैं।

2. बहुविवाह-बहुविवाह का अर्थ है एक से अधिक विवाह करवाना। अगर एक स्त्री या पुरुष एक से अधिक विवाह करवाए तो इसे बहुविवाह कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है-बहुपत्नी विवाह तथा बहुपति विवाह । बहुपति विवाह दो प्रकार का होता है-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह।

प्रश्न 4.
परिवार के प्रकार्यों को समझाइये।
उत्तर-

  • परिवार में बच्चे का समाजीकरण होता है। परिवार में व्यक्ति समाज में रहने के तौर-तरीके सीख़ता है तथा अच्छा नागरिक बनता है।
  • परिवार हमारी संस्कृति को संभालता है। प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को संस्कृति देता है जिससे संस्कृति का पीढ़ी दर पीढ़ी संचार होता रहता है।
  • परिवार में व्यक्ति की संपत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है तथा इससे व्यक्ति के जीवन भर की कमाई सुरक्षित रह जाती है।
  • पैसे की आवश्यकता व्यक्ति की आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए होती हैं तथा इस कारण ही परिवार पैसे का भी प्रबन्ध करता है।
  • परिवार व्यक्ति के ऊपर नियन्त्रण रखता है ताकि वह गलत रास्ते पर न जाए।

प्रश्न 5.
(अ) अनुलोम (ब) प्रतिलोम (स) लेवीरेट/ देवर विवाह (द) सोरोरेट/साली विवाह जैसी अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(अ) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(ब) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(स) देवर विवाह-विवाह की इस प्रथा में पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी पति के छोटे भाई से विवाह कर लेती है। इससे परिवार की जायदाद सुरक्षित रह जाती है तथा परिवार टूटने से बच जाता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।

(द) साली विवाह-इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपनी साली से विवाह करवा लेता है। यह दो प्रकार का होता है-सीमित साली विवाह तथा समकालीन साली विवाह।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
संस्था से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएं बताइये।
उत्तर-
संस्था का अर्थ (Meaning of Institution)-हम अपने जीवन में हजारों बार इस संस्था शब्द का प्रयोग करते हैं। एक आम इन्सान की नज़र में संस्था का अर्थ किसी इमारत (Building) तक ही सीमित रहता है जबकि एक समाज शास्त्री की नज़र में इसका अर्थ किसी इमारत या लोगों के समूह से नहीं लिया जाता। समाज शास्त्री तो संस्था का अर्थ विस्तृत शब्दों में तथा समाज के अनुसार करते हैं। इनके अनुसार एक संस्था नियमों तथा परिमापों की व्यवस्था है जो मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में मदद करती हैं। इस तरह संस्था तो व्यक्तियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का समूह है। यह तो वह प्रक्रिया है जिनकी मदद से व्यक्ति अपने कार्य करता है। संस्था तो सम्बन्धों की वह संगठित व्यवस्था है जिसमें समाज की कीमतें शामिल होती हैं तथा जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका कार्य मनुष्य की आवश्यताओं को पूरा करना होता है तथा मनुष्य के कार्य तथा व्यवहारों को पूरा करना होता है। इसमें पदों तथा भूमिकाओं का भी जाल होता है तथा इन्हें विभाजित किया जाता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि संस्था मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यविधियां, व्यवस्थाओं तथा नियमों का संगठन है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अनेक समूहों का सदस्य बनना पड़ता है। हर समूह में अपने सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कोशिशें होती रहती हैं। बहुत-सी सफल तथा असफल कोशिशों के बाद समूह अपने सदस्य की ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके ढूंढ लेता है तथा समूह के सभी सदस्य इन तरीकों को मान लेते हैं। इस तरह समूह के सभी नहीं तो ज्यादातर सदस्य इनको मान लेते हैं। इस तरह समाज में कुछ विशेष हालातों के लिए कुछ विशेष प्रकार के तरीके निर्धारित हो जाते हैं तथा इन तरीकों के विरुद्ध काम करना ठीक नहीं समझा जाता। इस तरह मनुष्यों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करना तथा सभी के द्वारा मान्यता प्राप्त कार्यविधियों को संस्था कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  • मैरिल तथा एलडरिज़ (Meril and Eldridge) के अनुसार, “सामाजिक संस्थाएं सामाजिक प्रतिमान हैं जोकि मनुष्य प्राणियों के अपने मौलिक कार्यों को करने में व्यवस्थित व्यवहार को स्थापित करती है।”
  • एलवुड (Elwood) के अनुसार, “संस्था इकट्ठे मिलकर रहने के प्रतिमानित तरीके हैं जो समुदाय की सत्ता द्वारा स्वीकृत, व्यवस्थित तथा स्थापित किए गए हों।”
  • सुदरलैंड (Sutherland) के अनुसार, “समाजशास्त्रीय भाषा में संस्था उन लोक रीतों तथा रूढ़ियों का समूह है जो मनुष्यों के उद्देश्यों या लक्षणों को प्राप्ति में केन्द्रित हो जाता है।”

इस तरह उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्था का विकास किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही हुआ है। इसलिए यह रीति-रिवाजों, परिमापों, नियमों, कीमतों आदि का भी समूह है। समनर (sumner) ने अपनी पुस्तक “Folkways” में, सामाजिक संरचना को भी संस्था में शामिल कर लिया है। संस्था व्यक्ति को व्यक्तिगत व्यवहार के तरीके पेश करती है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि संस्था क्रियाओं का वह संगठन होता है, जिसे समाज किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वीकार कर लेता है। समाज में अलगअलग सभाएं पाई जाती हैं तथा हर एक सभा की अपनी ही संस्था होती है, जिसके द्वारा वह अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेती है। उदाहरण के लिए राज्य की संस्था सरकार होती है। यह संस्थाएं व्यक्तियों को आपस में बाँध कर रखती हैं।

संस्था की विशेषताएं (Characteristics of Institution) –

1. यह सांस्कृतिक तत्त्वों से बनती है (It is made up of cultural things)-समाज में संस्कृति के जो तत्त्व मौजूद होते हैं जैसे रूढ़ियों, लोकरीतियों, परिमाप, प्रतीमान के संगठन को संस्था कहते हैं। एक समाज शास्त्री ने तो इसे प्रथाओं का गुच्छा कहा है। जब समाज में मिलने वाली प्रथाएं रीति-रिवाज, लोकरीतियां, रूढियां संगठित हो जाती हैं तथा एक व्यवस्था का रूप धारण कर लेती हैं तो यह संस्था है। इस तरह व्यवस्था संस्कृति में मिलने वाले तत्त्वों से बनती है तथा यह फिर मनुष्य की अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करती है।

2. यह स्थायी होती है (It is Permanent) एक संस्था तब तक उपयोगी नहीं हो सकती जब तक वह ज्यादा समय तक लोगों की ज़रूरतों को पूरा न करे। अगर वह कम समय तक लोगों की आवश्यकता को पूरा करती है तो वह संस्था नहीं बल्कि सभा कहलाएगी। इस तरह संस्था अधिक समय तक लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि संस्था कभी भी अलोप हो सकती है। किसी भी संस्था मांग समय के अनुसार होती है। किसी विशेष समय में किसी संस्था की मांग कम भी हो सकती है तथा अधिक भी। अगर किसी समय में किसी संस्था की आवश्यकता नहीं होती या कोई संस्था अगर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती तो वह धीरे-धीरे अलोप हो जाती है।

3. इसके कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं (It has some special motives or objectives)-जब भी संस्था का निर्माण होता है तो उसका कोई विशेष उद्देश्य होता है। संस्था को यह ज्ञान होता है कि अगर वह बन रही है तो उसके क्या उद्देश्य हैं। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों की विशेष प्रकार की ज़रूरतों को पूरा करना है। इस तरह लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना ही इनका विशेष उद्देश्य होता है परन्तु फिर भी यह हो सकता है कि समय बदलने के साथ-साथ संस्था लोगों की आवश्यकताओं को पूरा न कर सके तो फिर इन स्थितियों में उसकी जगह कोई और संस्था उत्पन्न हो जाती है।

4. संस्कृति के उपकरण (Cultural Equipments)-संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्कृति के भौतिक पक्ष का सहारा लिया जाता है, जैसे फर्नीचर, ईमारत इत्यादि। इनका रूप तथा व्यवहार दोनों ही निश्चित किए जाते हैं। इस तरह अगर संस्था को अपने उद्देश्य पूरे करने हैं तो उसे भौतिक संस्कृति से बहुत कुछ लेना पड़ता है। अभौतिक संस्कृति जैसे विचार, लोक रीतियां, रूढ़ियां इत्यादि तो पहले ही संस्था में रहते हैं।

5. अमूर्तता (Abstractness)—जैसे कि ऊपर बताया गया है कि संस्था का विकास लोक रीतियों, रूढ़ियों, रिवाजों के साथ होता है। ये सभी अभौतिक संस्कृति का ही भाग हैं तथा अभौतिक संस्कृति के इन पक्षों को हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं। इस तरह संस्था में अमूर्त्तता का पक्ष शामिल होता है। इसे स्पर्श नहीं सकते केवल महसूस किया जा सकता है। संस्था किसी स्पर्श करने वाली वस्तुओं का संगठन नहीं बल्कि नियमों, कार्य प्रणालियों, लोक रीतों का संगठन है जोकि मनुष्य की ज़रूरत को पूरा करने के लिए विकसित होती है।

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प्रश्न 2.
एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

प्रश्न 3.
विवाह के विभिन्न प्रकारों अथवा स्वरूपों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
प्रत्येक समाज अपने आप में दूसरे समाज से अलग है। प्रत्येक समाज के अपने-अपने नियम, परम्पराएं व संस्थाएं होती हैं व प्रत्येक समाज में अलग-अलग संस्थाओं के भिन्न-भिन्न प्रकार होते हैं। क्योंकि प्रत्येक समाज में इन प्रकारों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बनाया जाता है। इस तरह विवाह नामक संस्था की अलगअलग समाजों में उनकी आवश्यकताओं के मुताबिक प्रकार किस्में या रूप हैं। इन रूपों का वर्णन निम्नलिखित है-

1. एक विवाह (Monogamy)-आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन अधिक है। इस तरह से विवाह में एक आदमी एक समय में एक ही औरत से विवाह करवा सकता है। एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थाई, गहरे, प्यार व हमदर्दी पूर्ण होते हैं। इसमें बच्चों का पालन-पोषण सही ढंग से हो सकता है और उन्हें माता-पिता का भरपूर प्यार मिलता है। इस तरह के विवाह में पति-पत्नी में पूरा तालमेल होता है जिससे परिवार में झगड़े होने की सम्भावना काफ़ी कम रहती है। किन्तु इस तरह के विवाह में कई समस्याएं भी हैं। पत्नी अथवा पति के अस्वस्थ होने पर सारे काम रुक जाते हैं व बच्चों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया जा सकता।

2. बहु पति विवाह (Polyandry)- इसमें एक स्त्री के कई पति होते हैं। यह आगे दो प्रकार का होता है।

(i) भ्रातृ बहुपति विवाह (Fraternal Polyandry)-इस विवाह के अनुसार स्त्री के सारे पति आपस में भाई होते हैं पर कभी-कभी ये सगे भाई न होकर एक ही जाति के व्यक्ति भी होते हैं। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है और उसके सब भाई उस पर पत्नी के रूप में अधिकार मानते हैं व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी पत्नी भी सब भाइयों की पत्नी होती है जितने बच्चे होते हैं वह सब बड़े भाई के माने जाते हैं व सम्पत्ति में अधिकार भी सबसे अधिक बड़े भाई या सबसे पहले पति का होता है। भारत में ये प्रथा मालाबार, पंजाब, नीलगिरि, लद्दाख, सिक्किम व आसाम में पाई जाती है।

(ii) गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non Fraternal Polyandry) बहुपति विवाह के इस प्रकार में एक स्त्री के पति आपस में भाई नहीं होते। यह सब पति भिन्न-भिन्न स्थान के रहने वाले होते हैं। ऐसे हालात में स्त्री निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है व फिर दूसरे के पास व फिर तीसरे के पास। इस तरह सम्पूर्ण वर्ष वह अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय में एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दौरान दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने के पश्चात् कोई एक पति एक विशेष संस्कार से उसका पिता बन जाता है। वह गर्भावस्था में स्त्री को तीर कमान भेंट करता है व उसे बच्चे का पिता मान लिया जाता है। बारी-बारी सभी पतियों को ऐसा करने दिया जाता है।

3. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह की प्रथा भारतवर्ष में पुराने समय में प्रचलित थी। राजा और उसके बड़े-बड़े मन्त्री बहुत सी पत्नियों को रखा करते थे। उस समय राजा के स्तर का अनुमान उसके द्वारा रखी गयी पत्नियों से होता था। मध्यकाल में भी मुग़ल वंशों में बहुत-सी पत्नियां रखने की प्रथा प्रचलित थी और अब भी मुसलमानों में चार विवाहों की प्रथा प्रचलित है। पुरुष की लैंगिक इच्छा को पूरा करने और परिवार की इच्छा को पूरा करने के कारण विवाह की इस प्रथा को अपनाया गया। इस प्रथा से समाज में बहुत सी समस्याएं पैदा हो गयी हैं और समाज में स्त्री को निम्न स्तर प्राप्त होता है।

4. साली विवाह (Sarorate-Marriage)—इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की बहन के साथ विवाह करता है। साली के साथ विवाह दो तरह का होता है। साली विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकाली साली विवाह में पति अपनी पत्नी की सभी छोटी बहनों को अपनी पत्नी जैसा समझ लेता है। विवाह की इस पहली प्रथा का प्रचलन दूसरी प्रथा से अधिक प्रचलित है। इस प्रथा में परिवार के टूटने की शंका नहीं रहती और बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह से हो जाता है।

5. देवर विवाह (Levirate Marriage)-विवाह की इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति की मौत के बाद पति के छोटे भाई से विवाह करती है। इस प्रथा के कारण ही एक तो घर की जायदाद सुरक्षित रहती है और दूसरा परिवार भी टूटने से बच जाता है, तीसरा बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है। इस प्रथा के अनुसार लड़के के माता-पिता को लड़की के माता-पिता का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

6. प्रेम विवाह (Love Marriage)-आधुनिक समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है। इस विवाह में लड़का और लड़की में कॉलेज में पढ़ते हुए या इकट्ठे दफ्तर में नौकरी करते हुए पहली नज़र में ही प्यार हो जाता है। उनमें आपस की मुलाकातों का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। वह दोनों होटल, सिनेमा, पार्क आदि में मिलते रहते हैं। वह सच्चे प्यार और आपस में जीने मरने की कसमें खाते हैं। समाज उनको विवाह करने से रोकता है और उनके रास्ते में कई तरह की समस्याएं खड़ी करने की कोशिश की जाती है पर वह दोनों अपने फैसले पर अटल रहते हैं। यदि लड़का और लड़की के माता-पिता उनके विवाह को इजाजत नहीं देते हैं। वह दोनों अदालत में जाकर कानूनी तौर पर विवाह कर लेते हैं। इस तरह इस विवाह को प्रेम विवाह कहा जाता है।

7. अन्तर्विवाह (Endogamy)—अन्तर्विवाह के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी ही जाति की स्त्री से विवाह करवाना पड़ता था। अन्तर्विवाह के गुणों का वर्णन इस प्रकार है। इसके साथ रक्त की शुद्धता को सम्भाल कर रखा जाता है। इसके साथ समाज में एकता को बनाये रखा जाता है। इसके साथ सामूहिक जाति की सम्पत्ति सुरक्षित रहती है। इस विवाह में स्त्रियां काफ़ी खुश रहती हैं क्योंकि अपनी ही संस्कृति मिलने से उनका आपस में तालमेल अच्छा बैठता है। परन्तु दूसरी तरफ इस तरह का विवाह देश की एकता में रुकावट पैदा करता है। इस तरह जातिवाद को बढ़ावा मिलता है जिससे सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा होती है।

8. बहिर्विवाह (Exogemy)-बहिर्विवाह का अर्थ अपने गोत्र अपने गांव के बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना है। एक ही गोत्र और गांव के आदमी और औरत आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्टमार्क के अनुसार ऐसे विवाह का उद्देश्य नज़दीकी रिश्तेदारी में यौन सम्बन्धों को स्थापित न करना। यह विवाह प्रगतिवाद का सूचक है। इस विवाह से अलग-अलग समूहों में सम्बन्ध बढ़ता है। जैविक दृष्टिकोण से भी इस विवाह को उचित माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें लड़का और लड़की को एक-दूसरे के विचारों को समझने में मुश्किल होती है। बर्हिविवाह करने से अलग-अलग समूहों में प्यार बढ़ता है। इस तरह राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिलता है।

9. अनुलोम विवाह (Anulom Marriage)-अनुलोम हिन्दू विवाह का एक नियम है जिसमें उच्च जाति या पुरुष अपने से नीची जाति की लड़कियों से विवाह कर सकता है। उदाहरण के तौर पर एक ब्राह्मण व्यक्ति क्षत्रिय, वैश्य और निम्न जाति की लड़की के साथ विवाह कर सकता था। इसका मुख्य कारण निम्न जाति के लोग उच्च जाति में विवाह करना अपनी इज्जत समझते थे क्योंकि इस तरह के विवाह से उनको भी समाज में उच्च स्थान मिल जाता था।

10. प्रतिलोम विवाह (Pratilom Marriage)–इस तरह के विवाह में निम्न जाति के पुरुष उच्च जाति की स्त्रियों के साथ विवाह करते थे। मनु ने इस तरह के विवाह का सख्त विरोध किया है। मनु के अनुसार इस तरह के विवाह से पैदा हुई सन्तान को अस्पृश्य माना जाता है। मनु ने ब्राह्मण स्त्री और निम्न जाति पुरुष से पैदा हुई सन्तान को चंडाल की संज्ञा दी थी। इसलिए इस तरह का विवाह हमेशा संकीर्णता के साथ देखा गया है। इस तरह से पैदा हुई सन्तान को किसी भी वंश के नाम को धारण नहीं कर सकती थी।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 4.
विवाह को परिभाषित कीजिए। जीवन साथी चुनने के नियमों को विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

साथी के चुनाव के नियम (Rules of Mate Selection)—प्रत्येक समाज में जीवन साथी के चुनाव के नियम पाए जाते हैं, जो व्यक्ति को यह बताते हैं कि वह किस लड़की या लड़के से विवाह करवा सकता है व किससे नहीं करवा सकता यह नियम निम्नलिखित है-

  1. अन्तर्विवाह (Endogamy)
  2. बहिर्विवाह (Exogamy) –
  3. अनुलोम (Hyperpamy)
  4. प्रतिलोम (Hypogamy)

अन्तर्विवाह (Endogamy)-अन्तर्विवाह के नियम के द्वारा व्यक्ति को अपनी जाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति आगे उप-जातियों में (Sub-caste) बंटी हुई थी। इस प्रकार व्यक्ति को उपजाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति प्रथा के समय अन्तः विवाह के इस नियम को बहुत सख्ती से लागू किया गया था। यदि कोई व्यक्ति इस नियम की उल्लंघना करता था तो उसको जाति में से बाहर निकाल दिया जाता था व उससे हर तरह के सम्बन्ध भी तोड़ लिए जाते थे। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार समाज को चार जातियों में बांटा हुआ था।

यह जातियां आगे उप-जातियों में बंटी हुई थीं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी उप-जाति में ही विवाह करवाता था। वर्तमान भारतीय समाज में विवाह के इस रूप में काफ़ी परिवर्तन देखने को मिलता है।

होईबल (Hoebal) के अनुसार, “अन्तर्विवाह एक सामाजिक नियम है जो यह मांग करता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक समूह में जिसका वह सदस्य है विवाह करवाए।”
(“Endogamy is a social rule which demands that a person should marry with in a group at in which he is a member.”)

बहिर्विवाह (Exogamy) – विवाह की संस्था एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। कोई भी समाज किसी जोडे को बिना विवाह के पति-पत्नी के सम्बन्धों को स्थापित करने की स्वीकृति नहीं देता। इसी कारण प्रत्येक समाज विवाह स्थापित करने के लिए कुछ नियम बना लेता है। सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य साथी का चुनाव करना होता है। बहिर्विवाह में भी साथी के चुनाव करने का नियम होता है।

कई समाज में जिन व्यक्तियों में रक्त के सम्बन्ध होते हैं या अन्य किसी किस्म से वह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों तो ऐसी अवस्था में उन्हें विवाह करने की स्वीकृति नहीं दी जाती।

इस प्रकार बहिर्विवाह का अर्थ होता है कि व्यक्ति को अपने समूह में विवाह करवाने की मनाही होती है। एक ही माता-पिता के बच्चों को आपस में विवाह करने से रोका जाता है।

मुसलमानों में माता-पिता के रिश्तेदारों में विवाह करने की इजाजत दी जाती है। इंग्लैण्ड के रोमन कैथोलिक चर्च में व्यक्ति को अपनी पत्नी की मौत के पश्चात अपनी साली से विवाह करने की इजाजत नहीं दी जाती।
ऑस्ट्रेलिया में लड़का अपने पिता की पत्नी से विवाह कर सकता है यदि वह उसकी सगी मां नहीं है।

बर्हिविवाह के नियम अनुसार व्यक्ति को अपनी जाति, गोत्र, स्पर्वर, सपिंड आदि में विवाह करवाने की आज्ञा नहीं दी जाती इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं

1. गोत्र बहिर्विवाह-गोत्र बहिर्विवाह का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति को अपने गोत्र में विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती। अर्थात् एक ही गोत्र के व्यक्तियों में विवाहित सम्बन्ध स्थापित नहीं किए जा सकते। गोत्र का अर्थ गायों को पालने वाला समूह होता है। मैक्स मूलर के अनुसार जो लोग अपनी गायों को एक ही स्थान पर बाँधते थे, उनमें नैतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते थे जिस कारण वह आपस में विवाह नहीं करवा सकते थे। इस प्रकार गोत्र में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें नैतिक सम्बन्ध या रक्त सम्बन्ध पाए जाएं। इसी कारण एक गोत्र के व्यक्ति को दूसरे गोत्र के व्यक्ति से विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती।

2. स्पर्वर बहिर्विवाह-स्पर्वर बहिर्विवाह के नियम अनुसार एक ही पर्वर (Pravara) के लड़के व लड़की को विवाह करवाने की इजाजत नहीं होती। पर्वर में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें साझे ऋषि-पूर्वज होते हैं। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने पर्वर के पूर्वजों से सम्बन्धित औरत से विवाह नहीं करवा सकता।

3. सपिंडा बहिर्विवाह-सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम अनुसार उन सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी एक ही होते हैं। पुत्र के शरीर में माता-पिता दोनों के रक्त कण होते हैं। वैज्ञानिकों ने रक्त से सम्बन्धित रिश्तेदारों में माता द्वारा पांच पीढ़ियों व पिता द्वारा सात पीढ़ियों के व्यक्तियों को शामिल किया है। इस तरह से सम्बन्धित लोगों में पुरुष व स्त्री विवाह नहीं करवा सकते। माता व पिता की तरफ से पीढ़ियों को निश्चित करना समाज के अपने ऊपर निर्भर करता है।

गांव बहिर्विवाह-इस नियम के अनुसार एक गांव के व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। उत्तरी भारत में विवाह का यह नियम काफ़ी प्रचलित है। एक ही गांव के व्यक्तियों को आपस में सगे-सम्बन्धियों से भी अधिक माना जाता है। जैसे पंजाब में आमतौर से यह शब्द कहे जाते हैं कि गांव की बहन बेटी सबकी ही होती इसके अतिरिक्त गांव में लोग एक-दूसरे को रिश्तेदारियों के नाम से ही बुलाना शुरू कर देते हैं।

5. टोटम बहिर्विवाह-इस विवाह के नियम के अनुसार एक टोटम की पूजा करने वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। टोटम का अर्थ किसी पौधे या जानवर आदि को अपना देवता मान लेते हैं। इस प्रकार का नियम भारत के कबाईली लोगों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति अपने टोटम से बर्हिविवाह करवाता है।

अनुलोम विवाह (Hypergamy)-अनुलोम विवाह का वह नियम होता है जिसमें लड़की का विवाह उसके बराबर या उससे ऊंची जाति वाले लड़के के साथ किया जाता है। दूसरे अर्थ अनुसार उच्च जाति का पुरुष, निम्न जाति की स्त्री से जब विवाह करवाता था तो उसे अनुलोम विवाह का नाम दिया जाता था। इस प्रकार के विवाह को कुलीन विवाह का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार के विवाह में ब्राह्मण लड़की, केवल ब्राह्मण लड़के से ही विवाह करवा सकती है। क्षत्रिय लड़की क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है। वैश्य लड़की वैश्य लड़के या क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है।

इसके अतिरिक्त ब्राह्मण लड़का किसी भी जाति की लड़की से विवाह करवा सकता है। क्षत्रिय लड़का ब्राह्मण लड़की के अलावा बाकी किसी भी लड़की से विवाह करवा सकता है। वैश्य लड़का ब्राह्मण व क्षत्रिय लड़की के अलावा किसी भी लड़की से व निम्न जाति का लड़का केवल निम्न जाति की लड़की से ही विवाह करवा सकता है। जब अन्तः विवाह के द्वारा समाज में समस्याएं पैदा होनी आरम्भ हो गईं तो अनुलोम विवाह को प्रोत्साहन मिला।

कुलीन विवाह भी अनुलोम विवाह की भान्ति थे। इस नियम अनुसार एक ही जाति का व्यक्ति, उसी जाति या निम्न जाति की लड़की से विवाह करवा सकता था। कुलीन विवाह के पाए जाने के कुछ कारण भी थे। एक तो यह कि प्रत्येक कोई अपनी लड़की का विवाह उच्च जाति के लड़के से करना चाहता था। उच्च जाति में लड़कियों की कमी होनी शुरू हो जाती थी। इस कारण कई लड़कों को बिना विवाह के ही ज़िन्दगी गुजारनी पड़ जाती थी। लड़की की कीमत बढ़ जाती थी। कई बार उच्च जाति का वर ढूंढ़ते समय उन्हें बड़ी उम्र के व्यक्ति से अपनी लड़की का विवाह करना पड़ जाता था। बहु विवाह की प्रथा भी इसी नियम के कारण ही पाई जाती थी। इसके अतिरिक्त अनैतिकता में भी बढ़ोत्तरी हुई व औरत की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई। इस प्रकार कुलीन विवाह की प्रथा ने भी हमारे भारतीय समाज में कई सामाजिक बुराइयां पैदा की जिन्हें समाप्त करने के लिए सरकार को कई कानून बनाने पड़े।

प्रतिलोम विवाह (Hypogamy)-अन्तर्जातीय विवाह का दूसरा नियम प्रतिलोम है। यह नियम अनुलोम के बिल्कुल विपरीत है। इस नियम के अनुसार निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था। जैसे ब्राह्मण जाति की लड़की क्षत्रिय जाति के लड़के से विवाह करवाए या फिर क्षत्रिय जाति का लड़का ब्राह्मण लड़की से। प्रतिलोम विवाह के नियम में यदि निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था तो उससे पैदा सन्तान किसी भी जाति में नहीं रखी जाती थी व उसको चाण्डाल कहा जाता था।

अन्तर्जातीय विवाह के दोनों रूप हमारे भारतीय समाज में विकसित रहे हैं। वर्तमान समाज में अन्तर्जातीय विवाह की पाबन्दी नहीं है। जाति प्रथा का भेद-भाव भी हमारे भारतीय समाज में समाप्त हो गया है। अन्तर्जातीय विवाह की मदद से हम भारतीय समाज में पाई जा रही कई सामाजिक बुराइयों का खात्मा कर सकेंगे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
परिवार किसे कहते हैं ? परिवार की मूलभूत विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
यदि हम मानवीय समाज का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि सबसे पहला समूह परिवार ही है। प्राचीन समय में तो श्रम-विभाजन परिवारों के आधार पर ही होता था। हमें कोई भी समाज ऐसा नहीं मिलेगा जहां कि परिवार नाम की संस्था न हो। आदिम समाज से लेकर आधुनिक समाज तक प्रत्येक स्थान पर यह संस्था मौजूद रही है। चाहे और बहुत सारी संस्थाएं विकसित हैं या समाप्त हो गईं पर परिवार की संस्था वहीं पर ही खड़ी है। चाहे आजकल के विकसित समाज में परिवार का महत्त्व कुछ कम हो गया है, परिवार के बहुत सारे कार्य अन्य संस्थाओं ने ले लिए हैं, परन्तु आजकल भी मानव की अधिकतर क्रियाएं परिवार को केन्द्र मानकर ही होती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिस तरह का परिवार बच्चे को प्राप्त होता है, उसी प्रकार का चरित्र बच्चे का बनता है व वह उसी अनुसार आगे चलकर कार्य करता है। सामाजिक विघटन व समाज की बहुत सारी समस्याओं के कारण ही परिवार में विघटन होता है।

परिवार सामाजिक संगठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण समूह है, अंग्रेजी शब्द ‘Family’ रोमन भाषा के शब्द ‘Famulous’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नौकर’। रोमन कानून के अनुसार इस शब्द का अर्थ ऐसे समूह से है, जिसमें नौकर, दास या मालिक वह सभी सदस्य शामिल होते हैं जो रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। यह एक ऐसा समूह है, जो आदमी व औरत की लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज द्वारा बनाया जाता है। बच्चा परिवार में पल कर बड़ा होता है व समाज का एक नागरिक बनता है।

साधारण शब्दों में परिवार का अर्थ पति-पत्नी व उनके बच्चों से है, पर समाज शास्त्र में इसका अर्थ केवल लोगों का संग्रह ही नहीं बल्कि उनके आपसी सम्बन्धों की व्यवस्था है व इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना, समाजीकरण करना व लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति करना है।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. मैकाइवर (Maclver) के अनुसार, “परिवार बच्चों की उत्पत्ति व पालन-पोषण की व्यवस्था करने के लिए काफ़ी रूप से निश्चित व स्थायी यौन सम्बन्धों से परिभाषित एक समूह है।”

2. जी० पी० मर्डोक (G. P. Murdock) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है, जिसकी विशेषताएं साझी रिहायश, आर्थिक सहयोग व सन्तान की उत्पत्ति या प्रजनन हैं। इसमें दोनों लिंगों के बालिग शामिल होते हैं, जिनमें कम-से-कम दो में समाज द्वारा स्वीकृत लैंगिक सम्बन्ध होता है व लैंगिक सम्बन्धों में बने इन बालिगों में अपने या स्वीकृत एक या अधिक बच्चे होते हैं।”

3. एच० एम० जॉनसन (H. M. Johnson) के अनुसार, “परिवार रक्त, विवाह या गोद लेने के आधार पर सम्बद्ध दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह है। इन सभी व्यक्तियों को एक परिवार का सदस्य समझा जाता है।”

इस प्रकार परिवार वह समूह है जिसमें आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को समाज के द्वारा स्वीकृत किया जाता है। यह एक सर्व व्यापक समूह है। इसके अर्थ के बारे में अन्त में हम यह कह सकते हैं कि परिवार एक जैविक इकाई है जिसको लैंगिक सम्बन्धों के लिए एक संस्था के तौर पर स्वीकृत किया जाता है। इसमें सदस्य एक दूसरे से निजी रूप से प्रजनन की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि परिवार में मातापिता व बच्चों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्येक समाज में विकसित हैं।

विशेषताएं (Characteristics)-

1. सर्वव्यापकता (Universality)-परिवार एक सामाजिक समूह है। यह मानवीय इतिहास में पहली संस्था के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्रत्येक समय पर प्रत्येक समाज में यह किसी-न-किसी किस्म में विकसित रहा है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य ज़रूर होता है।

2. भावात्मक आधार (Emotional Basis)-परिवार मानवीय समाज की नींव होता है जो व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होती है जैसे-सन्तान उत्पत्ति, पति-पत्नी सम्बन्ध, वंश परम्परा कायम रखना, जायदाद की सुरक्षा आदि जैसी भावनाएं भी इसमें सम्मिलित होती हैं व इसके साथ ही सहयोग, प्यार, त्याग इत्यादि की भावना का भी विकास होता है जो समाज की प्रगति व विकास के लिए भी आवश्यक होता है।

3. रचनात्मक प्रभाव (Formative Influence) सामाजिक संरचना में परिवार को एक महत्त्वपूर्ण इकाई माना जाता है। परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी रचनात्मक प्रभाव डालता है। परिवार ही पहली ऐसी संस्था होती है जिसमें रहकर बच्चा सामाजिक व्यवहार के बारे में जानकारी लेता है। व्यक्ति का बहुपक्षीय विकास परिवार की संस्था में ही हो सकता है।

4. लघु आकार (Small Size)-परिवार का आकार सीमित होता है क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया होता है या जिनमें विवाह के सम्बन्ध होते हैं उसे ही परिवार में शामिल किया जाता है। प्राचीन समय में जब कृषि प्रधान समाज होता था तो संयुक्त परिवार पाया जाता था जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताया-ताई इकट्ठे मिलकर रहते थे। जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का विकास हुआ, स्त्रियों का नौकरी करना आरम्भ हुआ इत्यादि के साथ मूल परिवार अस्तित्व में आया जिसमें माता-पिता व बच्चे ही केवल शामिल किए जाते हैं। छोटे आकार का अर्थ होता है कि परिवार में व्यक्ति की सदस्यता केवल जन्म पर आधारित होती है व इसमें रक्त सम्बन्ध भी पाए जाते हैं।

5. सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थान (Central position in the Social Structure)-परिवार पर हमारा सारा समाज आधारित होता है व अलग-अलग सभाओं का निर्माण भी परिवार से ही होता है। इसी कारण सामाजिक संरचना में इसको केन्द्रीय स्थान प्राप्त होता है। आरम्भिक समाज में संगठन परिवार पर ही आधारित होता था। सामाजिक प्रगति भी इस पर आधारित होती थी। चाहे आजकल के समय में अन्य संस्थाओं ने परिवार के कई काम ले लिए हैं परन्तु फिर भी कुछ काम समाज के लिए परिवार जो कर सकता है, वह दूसरी संस्थाएं नहीं कर सकती।

6. सदस्यों की ज़िम्मेदारी (Responsibility of the members)—परिवार का प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे से जुड़ा होता है व परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को भी संभालते हैं। इसमें किसी भी सदस्य में स्वार्थ की भावना नहीं होती बल्कि वह जो कुछ भी करता है अपने परिवार के विकास के लिए ही करता है। यहां तक कि उसमें त्याग की भावना का विकास भी परिवार में रहकर ही होता है। जिस तरह के निजी सम्बन्ध परिवार के सदस्यों में पाए जाते हैं उस प्रकार के सम्बन्ध किसी दूसरी संस्था में नहीं पाए जाते। परिवार में यदि कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो दूसरे सदस्य अपना फर्ज़ समझने लगते हैं कि उस व्यक्ति की सेवा करें। इस प्रकार उनमें सहयोग की भावना का भी विकास हो जाता है।

7. यौन सम्बन्ध (Sexual relation)-परिवार के द्वारा ही आदमी व औरत में यौन सम्बन्धों की स्थापना होती है क्योंकि समाज के द्वारा स्वीकृति भी विवाह के पश्चात् ही परिवार का निर्माण करने की होती है। आरम्भिक समाज में यौन सम्बन्धों की उत्पत्ति से सम्बन्धित किसी प्रकार के कोई नियम नहीं होते थे तो परिवार का वास्तविक रूप भी नहीं था। हमारे सामने समाज भी विघटन की दिशा की ओर अग्रसर था।

प्रश्न 6.
परिवार के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझाइये ।
उत्तर-
अलग-अलग समाजों में अलग-अलग आधारों पर कई प्रकार के परिवार पाए जाते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(A) सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Authority)-सत्ता के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. पित प्रधान परिवार (Patriarchal Family)
  2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)

1. पितृ प्रधान परिवार (Patriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार की किस्म में सम्पूर्ण शक्ति आदमी के हाथ में होती है। परिवार का मुखिया भी आदमी को बनाया जाता है। वंश परम्परा भी पिता पर ही निर्भर होती है। विवाह के पश्चात् औरत, आदमी के घर रहने लग जाती है व जायदाद भी केवल लडकों के बीच बांटी जाती है। घर में सबसे बड़े लड़के को सबसे अधिक आदर व सम्मान मिलता है। उसकी घर में इज्ज़त पिता के बराबर ही होती है। घर के हर तरह के ज़रूरी मामलों में भी आदमियों की ही दखलअंदाजी को ठीक समझा जाता है। यदि हम प्राचीन हिन्दू समाज की तरफ देखें तो भी वैदिक ग्रन्थों के अनुसार आदमी को ही औरत के लिए परमात्मा समझा जाता था। पिता के मरने के पश्चात् उसके सारे अधिकार उनके पुत्र को मिल जाते हैं।

2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार में स्त्री जाति की ही समाज में प्रधानता होती थी। घर की सारी जायदाद की मलकीयत भी उसके हाथ में होती थी। परिवार की स्त्रियों का ही सम्पत्ति पर अधिकार होता है। विवाह के पश्चात् लड़का-लड़की के घर रहने चला जाता था। पुरोहितों का काम भी स्त्रियां ही करती थीं। परिवार की जायदाद का विभाजन भी स्त्रियों के बीच ही होता था। स्त्री की वंश- परम्परा ही आगे चलती थी। मैकाइवर ने मात प्रधान परिवार की कुछ विशेषताओं का वर्णन किया जो निम्नानुसार है –

  • इन बच्चों का वंश परिवार में मां के वंश के साथ निर्धारित होता है। इसलिए बच्चे पिता के कुल के नहीं बल्कि मां के कुल से सम्बन्धित समझे जाते हैं।
  • स्त्री व उसकी मां, भाई-बहन व बहनों के बच्चे शामिल होते हैं।
  • इन परिवारों के बीच पुत्र को पिता से कोई सम्पत्ति नहीं प्राप्त होती क्योंकि सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार माता द्वारा निश्चित किए जाते हैं।
  • सामाजिक सम्मान के पद पुत्र की बजाए भांजे को मिलते हैं।
  • इन परिवारों का अर्थ यह नहीं कि समाज में सभी अधिकार औरतों के होते हैं, आदमियों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते। कई क्षेत्रों में पुरुषों को कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु मिलते औरतों के द्वारा ही हैं।

(B) विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Marriage)विवाह के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygamous Family)
  3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)

1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)-जब एक पुरुष एक स्त्री से या एक स्त्री एक पुरुष से विवाह करवाती है तो इस विवाह के आधार पर जो परिवार पाया जाता है उसको एक विवाह परिवार का नाम दिया जाता है। आधुनिक समय में इस परिवार को अधिक महत्ता प्राप्त है। इस परिवार की किस्म में सदस्यों का रहन-सहन का दर्जा ऊंचा होता है। बच्चों की परवरिश बहुत अच्छे ढंग से होती है। पुरुष व स्त्री के सम्बन्धों में भी बराबरी पाई जाती है। इसमें बच्चों की संख्या भी बहुत कम होती है। जिस कारण परिवार का आकार छोटा होता है।

2. बहु-पत्नी परिवार (Polygamous Family)-परिवार की इस प्रकार में एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाह करवाता है। आरम्भ के राजा-महाराजाओं के समय इस प्रकार के विवाह द्वारा पाए गए परिवार को महत्ता प्राप्त थी। राजा-महाराजा कितने-कितने विवाह करवा लेते थे व पैदा हुए बच्चों का सम्मान भी काफ़ी होता था। फर्क कई बार यह होता था कि पहली पत्नी से पैदा हुए बच्चे को राजगद्दी दी जाती थी। आधुनिक समय में भारत में कानून द्वारा इस प्रकार के विवाह की पाबन्दी लगा दी है।

3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)-इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के कितने ही पति होते थे। इसमें दो प्रकार पाए जाते हैं। इस प्रकार के परिवार को भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है व दूसरे प्रकार के परिवार में स्त्री के सभी पतियों का भाई होना ज़रूरी नहीं होता। इस कारण इसको गैर भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है। इस प्रकार के परिवार में स्त्री बारी-बारी सभी पतियों के पास रहती है। कुछ कबायली समाज में अभी भी इस प्रकार के विवाह की प्रथा के आधार पर परिवार पाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर देहरादून के ‘ख़स’ कबीले व आस्ट्रेलिया के कुछ कबीलों में भी इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

(C) वंश के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Nomenclature)-

  1. पितृ वंशी परिवार (Patrilineal)
  2. मातृ वंशी परिवार (Matrilineal)
  3. दो वंश-नामी परिवार (Bilinear)
  4. अरेखकी परिवार (Nonunilineal)

पितृ वंशी परिवार में व्यक्ति का वंश अपने पिता वाला होता है। इस प्रकार का परिवार आजकल भी पाया जा रहा है। मात वंशी परिवार में मां के वंश नाम ही बच्चों को प्राप्त होता है। दो वंश नामी परिवार में माता व पिता दोनों का वंश साथ-साथ चलता है व अरेखकी परिवार में वंश के रिश्तेदार जो माता द्वारा या पिता द्वारा होते हों, इसके आधार पर पाया जाता है।

(D) रहने के स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Residence)—इस आधार पर परिवार के तीन प्रकार हैं-

  1. पितृ स्थानीय परिवार (Patrilocal Family)
  2. मातृ स्थानीय परिवार (Matrilocal Family)
  3. नव-स्थानीय परिवार (Neolocal Family)

पितृ स्थानीय परिवार में विवाह के बाद लड़की पति के घर जाकर रहने लग जाती है व मातृ स्थानीय परिवार में पति विवाह के पश्चात् पत्नी के घर रहने लग जाता है व नव स्थानीय परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी दोनों अपना अलग किस्म का घर बनाकर रहने लग जाते हैं।

(E) रिश्तेदारी के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Relatives)- लिंटन ने इस प्रकार के परिवारों को दो भागों में बांटा है-

  1. रक्त सम्बन्धी परिवार (Consanguine family)
  2. विवाह सम्बन्धी परिवार (Conjugal family)

रक्त सम्बन्धी परिवार में केवल लिंग सम्बन्ध नहीं बल्कि दूसरे ही शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार में सम्बन्ध व्यक्ति के जन्म पर आधारित होते हैं। यह तलाक होने पर भी टूटता नहीं। विवाह सम्बन्धी परिवार में पतिपत्नी व उनके अविवाहित बच्चे पाए जाते हैं।
इस प्रकार का परिवार पति-पत्नी के तलाक होने के पश्चात् टूट जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
समकालीन समय में परिवार संस्था में होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आधुनिक समय में परिवार नामक संस्था में हर पक्ष से परिवर्तन आ गए हैं क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहे हैं, उसी तरह से पारिवारिक व्यवस्था भी बदल रही है। परिवार की बनावट और कामों पर नए हालातों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। अब हम देखेंगे कि परिवार के ढांचे और कामों में किस तरह के परिवर्तन आए हैं-

1. स्थिति में परिवर्तन-पुराने समय में लडकी के जन्म को शाप माना जाता था। उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए, औरत ने भी शिक्षा लेनी प्रारम्भ कर दी। पहले विवाह के बाद औरत सिर्फ़ पति पर ही निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफ़ी औरतें आर्थिक पक्ष से आज़ाद हैं और वह पति पर कम निर्भर हैं। कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज़्यादा है। इन हालातों में पारिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है। इसके अलावा पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहं एक-दूसरे से नीचा नहीं होता। इस कारण दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण हैं जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे काफ़ी बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।

शैक्षिक कार्यों में परिवर्तन-समाज में परिवर्तन आने के साथ इसकी सारी संस्थाओं में भी परिवर्तन आ रहे हैं। परिवार जो भी काम पहले अपने सदस्यों के लिए करता था। उनमें भी ख़ासा परिवर्तन आया है। प्राचीन समाजों में बच्चा शिक्षा परिवार में ही लेता था और शिक्षा भी परिवार के परम्परागत काम से सम्बन्धित होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी और जो काम पिता करता था वही काम पुत्र भी करता था और पिता के अधीन पुत्र भी उस काम में माहिर हो जाता था। धीरे-धीरे आधुनिकता के अधीन बच्चा पढ़ाई करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में जाने लग गया और इसके कारण वह अब परिवार के परम्परागत कामों से दूर होकर कोई अन्य कार्य अपनाने लग गया है। इस तरह परिवार का शिक्षा का परम्परागत काम उससे कट कर शिक्षण संस्थाओं के पास चला गया है।

2. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन-पहले समय में परिवार आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र होता था। रोटी कमाने का सारा काम परिवार ही करता था जैसे-आटा पीसने का काम, कपड़ा बनाने का काम, आदि। इस तरह जीने के सारे साधन परिवार में ही उपलब्ध थे। पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके साथ-साथ परिवार के यह सारे काम बड़े-बड़े उद्योगों ने ले लिए हैं, जैसे कपड़ा बनाने का काम कपड़े की मिलें कर रही हैं, आटा चक्की पर पीसा जाता है। इस तरह परिवार के आर्थिक कार्य कारखानों में चले गए हैं। इस तरह आर्थिक उत्पादन की ज़िम्मेदारी परिवार से दूसरी संस्थाओं ने ले ली है।

3. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन-पुराने समय में परिवार का एक मुख्य काम परिवार के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा देना होता है। परिवार में ही बच्चे को नैतिकता और धार्मिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं। पर जैसे-जैसे नई वैज्ञानिक खोजें और आविष्कार सामने आएं, वैसे-वैसे लोगों का दृष्टिकोण बदलकर धार्मिक से वैज्ञानिक हो गया। पहले ज़माने में धर्म की बहुत महत्ता थी, परन्तु विज्ञान ने धार्मिक क्रियाओं की महत्ता कम कर दी है। इस प्रकार परिवार के धार्मिक काम भी अब पहले से कम हो गए हैं।

4. सामाजिक कार्यों में परिवर्तन-परिवार के सामाजिक कार्यों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है। पराने ज़माने में पत्नी अपने पति को परमेश्वर समझती थी। पति का यह फर्ज़ होता था कि वह अपनी पत्नी को खुश रखे। इसके अलावा परिवार अपने सदस्यों पर सामाजिक नियन्त्रण रखने का भी काम करता था, पर अब सामाजिक नियन्त्रण का कार्य अन्य एजेंसियां, जैसे पुलिस, सेना, कचहरी आदि, के पास चला गया है। इसके अलावा बच्चों के पालनपोषण का काम भी परिवार का होता था। बच्चा घर में ही पलता था और बड़ा हो जाता था और घर के सारे सदस्य उसको प्यार करते थे। पर धीरे-धीरे आधुनिकीकरण के कारण औरतों ने घर से निकलकर बाहर काम करना शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश के लिए क्रैच खुल गए जहां बच्चों को दूसरी औरतों द्वारा पाला जाने लग गया। इस तरह परिवार के इस काम में भी कमी आ गई है।

5. पारिवारिक एकता में कमी-पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे, पर आजकल परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए हैं। हर किसी के अपने-अपने आदर्श हैं। कोई एक-दूसरे की दखलअंदाजी पसंद नहीं करता। इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं, खाते-पीते हैं पर एक-दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते। उनमें एकता का अभाव होता है।

प्रश्न 8.
नातेदारी को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रकारों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी का अर्थ (Meaning of Kinship)-Kin शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जोकि शब्द Cynn से निकला है जिसका अर्थ केवल ‘रिश्तेदार’ होता है और समाज शास्त्रियों और मानव वैज्ञानियों ने अपने अध्ययन के वक्त इस ‘रिश्तेदार’ शब्द को मुख्य रखा है। नातेदारी शब्द में रिश्तेदार होते हैं ; जैसे रक्त सम्बन्धी, सगे और रिश्तेदार।

आम शब्दों में समाज शास्त्र में नातेदारी व्यवस्था से मतलब उन नियमों के संकूल से है जो वंश क्रम, उत्तराधिकार, विरासत, विवाह, विवाह के बाहर लैंगिक सम्बन्धों, निवास आदि का नियमन करते हुए समाज विशेष में मनुष्य या उसके समूह की स्थिति उसके रक्त के सम्बन्धों या विवाहिक सम्बन्धों के पक्ष से निर्धारित करते हों। इसका यह अर्थ हुआ कि असली या रक्त और विवाह द्वारा बनाए और विकसित सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था नातेदारी व्यवस्था कहलाती है। इसका साफ़ एवं स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि वह सम्बन्ध जो खून द्वारा बनाए होते हैं और विवाह द्वारा बन जाते हैं वह सभी नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं। इसमें वह सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं जोकि खून और विवाह द्वारा बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, ताया-ताई, भाई-बहन, सास-ससुर, साला-साली आदि। यह सभी हमारे रिश्तेदार होते हैं और नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  1. लूसी मेयर (Lucy Mayor) के अनुसार, “बंधुत्व या नातेदारी में, सामाजिक सम्बन्धों को जैविक शब्दों में व्यक्त किया जाता है।”
  2. चार्ल्स विनिक (Charles Winick) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वह सम्बन्ध शामिल किए जाते हैं जो कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित और समाज द्वारा प्रभावित होते हैं।”
  3. लैवी टास (Levi Strauss) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था एक निरंकुश व्यवस्था है।”
  4. रैडक्लिफ ब्राऊन (Redcliff Brown) के अनुसार, “परिवार और विवाह के अस्तित्व से पैदा हुए या इसके परिणामस्वरूप पैदा हुए सारे सम्बन्ध नातेदारी व्यवस्था में होते हैं।”
  5. डॉ० मजूमदार (Dr. Majumdar) के अनुसार, “सारे समाजों में मनुष्य भिन्न प्रकार के बन्धनों में समूह में बंधे हुए हैं। इन बन्धनों में सबसे सर्वव्यापक और सबसे ज़्यादा मौलिक वह बन्धन है जोकि सन्तान पैदा करने पर आधारित है जोकि आन्तरिक मानव प्रेरणा है। यही नातेदारी कहलाती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि दो व्यक्ति रिश्तेदार होते हैं यदि उनके पूर्वज एक ही हों तो वह एक व्यक्ति की संतान होते हैं। नातेदारी व्यवस्था रिश्तेदारों की व्यवस्था है जोकि रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होता है। नातेदारी व्यवस्था सांस्कृतिक है और इसकी बनावट सारे संसार में अलगअलग है। नातेदारी व्यवस्था में उन सभी असली या नकली रक्त-सम्बन्धों को शामिल किया जाता है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। एक नाजायज़ बच्चे को नातेदारी में ऊंचा स्थान प्राप्त नहीं हो सकता, पर एक गोद लिए बच्चे को नातेदारी व्यवस्था में ऊंचा स्थान प्राप्त हो जाता है। यह एक विशेष नातेदारी समूह की व्यवस्था है जिसमें सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं और जो एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियां समझते हैं। इस तरह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त असली या नकली रक्त के और विवाह द्वारा स्थापित और गहरे सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था को नातेदारी व्यवस्था कहा जाता है।

नातेदारी के प्रकार (Types of Kinship)-व्यक्ति की नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। नातेदारी में सभी रिश्तेदारों में एक जैसे सम्बन्ध नहीं पाए जाते हैं। जो सम्बन्ध हमारे अपने माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चों के साथ होंगे वह हमारे अपने चाचे-भतीजे, मामा-मामी के साथ नहीं हो सकते क्योंकि हमारा अपने माता-पिता, पति-पत्नी के साथ जो सम्बन्ध है वह चाचा, भतीजे, मामा आदि के साथ नहीं हो सकता। उनमें बहुत ज्यादा गहरे सम्बन्ध नहीं पाए जाते। इस नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. प्राथमिक रिश्तेदार (Primary relatives)-पहली श्रेणी की नातेदारी में प्राथमिक रिश्तेदार जैसे, पतिपत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, माता-पुत्री, पिता-पुत्री, बहन-बहन, भाई-बहन, बहन-भाई, भाई-भाई आदि आते हैं। मरडोक के अनुसार, यह आठ प्रकार के होते हैं। यह प्राथमिक इसलिए होते हैं क्योंकि इनमें सम्बन्ध प्रत्यक्ष और गहरे होते हैं।

2. गौण सम्बन्धी (Secondary relations)-हमारे कुछ रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं जैसे, माता, पिता, बहन, भाई आदि। इनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता होता है। पर कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं जिनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता बल्कि, हम उनके साथ प्राथमिक रिश्तेदार के माध्यम के साथ जुड़े होते हैं जैसे-माता का भाई, पिता का भाई, माता की बहन, पिता की बहन, बहन का पति, भाई की पत्नी आदि। इन सब के साथ हमारा गहरा रिश्ता नहीं होता बल्कि यह गौण सम्बन्धी होते हैं। मर्डोक के अनुसार, यह सम्बन्ध 33 प्रकार के होते हैं।

3. तीसरे दर्जे के सम्बन्धी (Tertiary Kins) सबसे पहले रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं और फिर गौण सम्बन्धी अर्थात् प्राथमिक सम्बन्धों की मदद के साथ रिश्ते बनते हैं। तीसरी प्रकार के सम्बन्धी वह होते हैं जो गौण सम्बन्धियों के प्राथमिक रिश्तेदार हैं। जैसे पिता के भाई का पुत्र, माता के भाई की पत्नी-(मामी), पत्नी के भाई की पत्नी अर्थात् साले की पत्नी, माता की बहन का पति अर्थात् मौसा जी इत्यादि। मर्डोक ने इनकी संख्या 151 दी है।

इस प्रकार यह तीन श्रेणियों की नातेदारी होती है पर यदि हम चाहें तो हम चौथी और पांचवीं श्रेणी के बारे में ज्ञान सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 9.
सामाजिक जीवन में नातेदारी के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी व्यवस्था का सामाजिक संरचना में एक विशेष स्थान है। इसके साथ ही समाज की बनावट बनती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो समाज एक संगठन की तरह नहीं बन सकेगा और सही तरीके से काम नहीं कर सकेगा। इसलिए इसका महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है जिसका वर्णन अग्रलिखित है

1. नातेदारी सम्बन्धों के माध्यम से ही कबाइली और खेती वाले समाजों के बीच अधिकार और परिवार एवं विवाह, उत्पादन और उपभोग की पद्धति और राजनीतिक सत्ता के अधिकारों का निर्धारण होता है। शहरी समाजों में भी विवाह और पारिवारिक उत्सवों के समय नातेदारी सम्बन्धों का महत्त्व देखने को मिलता है।

2. नातेदारी, परिवार और विवाह में गहरा सम्बन्ध है। नातेदारी के माध्यम से ही इस बात का निर्धारण होता है कि कौन किसके साथ विवाह कर सकता है और कौन-कौन से सम्बन्धों की शब्दावली भी है। नातेदारी से ही वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान का निर्धारण होता है और वंश, गोत्र और खानदान में बहिर्विवाह का सिद्धान्त पाया जाता है।

3. पारिवारिक जीवन, वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान के सदस्यों के बीच नातेदारी के आधार पर ही जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों एवं कर्म-काण्डों में किसका क्या अधिकार और ज़िम्मेदारी है, इसका निर्धारण होता है, जैसे ; विवाह के संस्कार और इसके साथ जुड़े कर्म-काण्डों में बड़े भाई, मां और बुआ का विशेष महत्त्व है। मृत्यु के बाद आग कौन देगा, इसका सम्बन्ध भी नातेदारी पर निर्भर करता है। जिन लोगों को आग देने का अधिकार होता है, नातेदारी उनके उत्तराधिकार को निश्चित करती है। सामाजिक संगठन (जन्म, विवाह, मौत) और सामूहिक उत्सवों के मौकों और नातेदारी या रिश्तेदारों को बुलाया जाना जरूरी होता है, ऐसा करने के साथ सम्बन्धों में और मज़बूती बढ़ती है।

4. नातेदारी व्यवस्था के साथ समाज को मज़बूती मिलती है। नातेदारी व्यवस्था सामाजिक संगठन को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो सामाजिक संगठन टूट जाएगा और समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

5. नातेदारी व्यवस्था लैंगिक सम्बन्धों को निश्चित करती है। नातेदारी व्यवस्था में लैंगिक सम्बन्ध बनाने, हमारे समाज में वर्जित है। यदि नातेदारी व्यवस्था न हो तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी और नाजायज़ लैंगिक सम्बन्ध और अवैध बच्चों की भरमार होगी जिसके साथ समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

6. नातेदारी व्यवस्था विवाह निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने गोत्र में विवाह नहीं करवाना, माता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, पिता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, यह सब कुछ नातेदारी व्यवस्था पर भी निर्भर करता है। यदि यह व्यवस्था न हो तो विवाह करने में किसी भी नियम की पालना नहीं होगी जिसके कारण समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

7. नातेदारी व्यवस्था मनुष्य को मानसिक शान्ति प्रदान करती है। आजकल के औद्योगिक समाज में चाहे हमारे विचार Practical हो चुके हैं पर फिर भी मनुष्य नातेदारी के बन्धनों से मुक्त नहीं हो सका है। वह अपने बुजुर्गों की तस्वीरें घर में टांग कर रखता है, उनकी तस्वीरों का संग्रह करता है, मरने के बाद उनका श्राद्ध करता है। मनुष्य जाति नातेदारी पर आधारित समूहों में रही है। नातेदारी के बिना व्यक्ति एक मरे हुए व्यक्ति के समान है। हमारे रिश्तेदार हमें सबसे ज्यादा जानते हैं, पहचानते हैं। वह अपने आपको अपने परिवार का हिस्सा समझते हैं। यदि हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारे रिश्तेदार हमें मानसिक तौर पर शान्त करते हैं। हम अपने रिश्तेदारों में ही रह कर सबसे ज्यादा प्रसन्नता और आनन्द महसूस करते हैं।

8. हमारी नातेदारी ही हमारे विवाह और परिवार का निर्धारण करती है कि किसके साथ विवाह करना है, किसके साथ नहीं करना है। सगोत्र, अन्तर्जातीय विवाह सब कुछ ही नातेदारी पर ही निर्भर करता है। परिवार में ही खून और विवाह के सम्बन्ध पाए जाते हैं। नातेदारी के कारण ही विवाह और नातेदारी में व्यवस्था पैदा होती है।

प्रश्न 10.
वैवाहिक तथा रक्त सम्बन्धों में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
(i) रक्त संबंधी नातेदारी (Consanguinity) सगोत्र नातेदारी शुरुआती परिवार के आधार पर और इसमें पैदा हुए असली या नकली रक्त के वंश परम्परागत सम्बन्धों को सगोत्र नातेदारी कहते हैं। आम शब्दों में वह सभी रिश्तेदार या व्यक्ति जो रक्त के बन्धनों में बन्धे होते हैं उनको सगोत्र नातेदारी कहते हैं। रक्त का सम्बन्ध चाहे असली हो या नकली इसको नातेदारी व्यवस्था में तो ही ऊंचा स्थान प्राप्त होता है। यदि इस सम्बन्ध को समाज की मान्यता प्राप्त हो। उदाहरण के तौर पर नाजायज़ बच्चे को, चाहे उसके साथ भी रक्त सम्बन्ध होता है, समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती क्योंकि उसको समाज की मान्यता प्राप्त नहीं होती और गोद लिए बच्चे को, चाहे उसके साथ रक्त सम्बन्ध नहीं होता, समाज में मान्यता प्राप्त होती है और वह सगोत्र प्रणाली का हिस्सा होते हैं। रक्त सम्बन्धों को हर प्रकार के समाजों में मान्यता प्राप्त है।

इस तरह इस चर्चा से स्पष्ट है कि शुरुआती परिवार के आधार पर रक्त-वंश परम्परागत सम्बन्धों से पैदा हुए सारे रिश्तेदार इस सगोत्र नातेदारी प्रणाली में शामिल है। हम उदाहरण ले सकते हैं बहन-भाई, मामा, चाचा, ताया, नाना-नानी, दादा-दादी आदि। यहाँ यह बताने योग्य है कि रक्त सम्बन्ध सिर्फ़ पिता वाली तरफ से ही नहीं होता बल्कि माता वाली तरफ से भी होता है। इस तरह पिता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को पितृ पक्ष रिश्तेदार कहते हैं और माता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को मात पक्ष रिश्तेदार।

वर्गीकरण-खून के आधार पर आधारित रिश्तेदारों को अलग-अलग नामों के साथ जाना जाता है। एक ही मां-बाप के बच्चे, जो आपस में सगे भाई-बहन होते हैं, को सिबलिंग (Sibling) कहते हैं और सौतेले बहन-भाई को हॉफ़ सिबलिंग (Half sibling) कहते हैं। पिता वाली तरफ सिर्फ आदमियों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ आदमी होते हैं उनको सगा-सम्बन्धी (Agnates) कहते हैं और इसी तरह माता वाली तरफ सिर्फ औरतों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ औरतें होती हैं, उनको (Utrine) कहते हैं। इसी तरह वह लोग जो रक्त सम्बन्धों के कारण सम्बन्धित हों, उनको रक्त सम्बन्धी रिश्तेदार (Consanguined kin) कहा जाता है। इन रक्त सम्बन्धियों को दो हिस्सों में बांटा जाता है।

  • एक रेखकी रिश्तेदार (Unilineal Kin)-इस प्रकार की रिश्तेदारी में वह व्यक्ति आते हैं जो वंश क्रम की सीधी रेखा द्वारा सम्बन्धित हों जैसे पिता, पिता का पिता, पुत्र और पुत्र का पुत्र ।
  • कुलेटरल या समानान्तर रिश्तेदार (Collateral Kin)-इस प्रकार के रिश्तेदार वह व्यक्ति होते हैं, जो हर रिश्तेदारों के द्वारा असीधे तौर पर सम्बन्धित हों जैसे पिता का भाई चाचा, मां की बहन मौसी, मां का भाई मामा आदि।

(ii) विवाह संबंधी नातेदारी (Affinity)—इसको सामाजिक नातेदारी का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार की नातेदारी में उस तरह के रिश्तेदार शामिल होते हैं जो किसी आदमी या औरत के विवाह करने से पैदा होते हैं। जब किसी लड़के का लड़की से विवाह होता है तो उसका सिर्फ लड़की के साथ ही सम्बन्ध स्थापित नहीं होता बल्कि लड़की के माध्यम से उसके परिवार के बहुत सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसी तरह जब लड़की का लड़के के साथ विवाह होता है तो लड़की का भी लड़के के परिवार के सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इस तरह सिर्फ विवाह करवाने के साथ ही लड़का-लड़की के कई प्रकार के नए रिश्ते अस्तित्व में आ जाते हैं। इस तरह विवाह पर आधारित नातेदारी को विवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर जीजा-साला, साढू-जमाई, ससुर, ननद, भाभी, बहु, सास आदि। इस तरह की नातेदारी की प्राणीशास्त्री महत्ता के साथ-साथ सामाजिक महत्ता भी होती है। प्राणीशास्त्रीय महत्त्व तो पति-पत्नी के लिए है पर सास-ससुर, देवर, ननद, भाभी, साढ़, साली, साला, जमाई आदि रिश्ते सामाजिक होते हैं। मॉर्गन ने दुनिया के कई भागों में प्रचलित साकेदारियों का अध्ययन किया और इनको वर्णनात्मक और व्यक्तिनिष्ठ नामकरण के साथ तो मनुष्य श्रेणियों में बांटा है। वर्णनात्मक प्रणाली में आम-तौर पर विवाहिक सम्बन्धियों के लिए एक ही नाम दिया जाता है। ऐसे नाम नातेदारी की तुलना में सम्बन्ध के बारे में ज्यादा बताते हैं। व्यक्तिनिष्ठ शब्द असली सम्बन्धों के बारे में बताते हैं। जैसे-अंकल को हम मामा, चाचा, फुफड़ और मौसा के लिए प्रयोग करते हैं। यह पहले प्रकार की उदाहरण है। परन्तु फादर या पिता के लिए कोई शब्द प्रयोग नहीं हो सकते।

इस तरह Nephew को भतीजे या भांजे के लिए, cousin को मामा, चाचा, ताया, मासी, बुआ के बच्चों के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह Sister-in-law को साली और ननद और Brother-in-law को देवर तथा साले के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस तरह आधुनिक समाज में नए-नए शब्दों का प्रयोग किया जाता है। असल में यह सारे शब्द नातेदारी के सूचक हैं और विवाहिक नातेदारी पर आधारित होते हैं। जैसे व्यक्ति को जमाई का दर्जा, पति का दर्जा, औरत को बहू और पत्नी का दर्जा विवाह के कारण ही प्राप्त होता है। इस तरह हम बहुत सारी वैवाहिक रिश्तेदारियों को गिन सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
समाज की आधारभूत इकाई कौन-सी होती है ?
(A) परिवार
(B) विवाह
(C) नातेदारी
(D) सरकार।
उत्तर-
(A) परिवार।

प्रश्न 2.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी है जिसे ……. कहते हैं।
(A) विवाह
(B) परिवार
(C) सरकार
(D) नातेदारी।
उत्तर-
(A) विवाह।

प्रश्न 3.
बच्चे का समाजीकरण कौन शुरू करता है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) पड़ोस
(D) खेल समूह।
उत्तर-
(B) परिवार।

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प्रश्न 4.
कौन अगली पीढ़ी को संस्कृति का हस्तांतरण करता है ?
(A) पड़ोस
(B) सरकार
(C) परिवार
(D) समाज।
उत्तर-
(C) परिवार।

प्रश्न 5.
यौन इच्छा ने किस संस्था को जन्म दिया ?
(A) परिवार
(B) समाज
(C) सरकार
(D) विवाह।
उत्तर-
(D) विवाह।

प्रश्न 6.
मातुलेय परिवारों में किन रिश्तेदारों में निकटता होती है ?
(A) मामा-भांजा
(B) माता-पुत्री
(C) पिता-पुत्र
(D) चाचा-भतीजा।
उत्तर
(A) मामा-भांजा।

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प्रश्न 7.
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्धी ……. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(A) प्राथमिक।

प्रश्न 8.
जो सम्बन्ध हमारे माता पिता के लिए प्राथमिक होता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) प्राथमिक सम्बन्ध
(B) द्वितीय सम्बन्ध
(C) तृतीय सम्बन्ध
(D) चतुर्थ सम्बन्ध।
उत्तर-
(B) द्वितीय सम्बन्ध।

प्रश्न 9.
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे ……….. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(C) तृतीय।

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प्रश्न 10.
बच्चे की प्रथम पाठशाला कौन सी होती है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) खेल समूह
(D) पड़ोस।
उत्तर-
(B) परिवार।

प्रश्न 11.
उस परिवार को क्या कहते हैं जिसमें पति पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं ?
(A) केंद्रीय परिवार
(B) संयुक्त परिवार ।
(C) विस्तृत परिवार
(D) नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
(A) केन्द्रीय परिवार।

प्रश्न 12.
इनमें से कौन सा परिवार का कार्य है ?
(A) बच्चे का समाजीकरण
(B) बच्चों पर नियंत्रण
(C) बच्चे का पालन-पोषण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 13.
विवाह के आधार पर परिवार का प्रकार बताएं।
(A) एक विवाह परिवार
(B) बहु विवाही परिवार
(C) समूह विवाही परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
नातेदारी के कितने प्रकार होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर-
(B) दो।

प्रश्न 15.
प्राथमिक रिश्तेदार कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) पाँच
(B) छः
(C) आठ
(D) दस।
उत्तर-
(C) आठ।

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प्रश्न 16.
द्वितीयक सम्बन्धी कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) 30
(B) 33
(C) 36
(D) 39.
उत्तर-
(B) 33.

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ……….. परिवार में पिता की सत्ता चलती है।
2. ………… परिवार में माता की सत्ता चलती है।
3. ………….. विवाह में अपने समूह में ही विवाह करवाया जाता है।
4. ……….. परिवार में दो या अधिक पीढ़ियों में परिवार इकट्ठे रहते हैं।
5. बहुपति विवाह …………….. प्रकार का होता है।
6. आकार के आधार पर परिवार ……….. प्रकार के होते हैं।
7. सत्ता के आधार पर परिवार …………… प्रकार के होते हैं।
उत्तर-

  1. पितृसत्तात्मक,
  2. मातृसत्तात्मक,
  3. अन्तः,
  4. संयुक्त,
  5. दो,
  6. तीन,
  7. दो।

III. सही/गलत (True/False) :

1. एकाकी परिवार में संपूर्ण नियंत्रण पिता के हाथों में होता है।
2. स्त्रियों की संख्या कम होने के कारण बहुपति विवाह होते हैं।
3. बहुविवाह संसार में सबसे अधिक प्रचलित हैं।
4. नातेदारी के दो प्रकार होते हैं।
5. परिवार संस्कृति के वाहक के रूप में कार्य करता है।
6. मातृवंशी परिवार में सम्पत्ति पुत्री को नहीं मिलती है।
7. परिवार के सदस्यों में रक्त संबंध होते हैं।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. सही,
  6. गलत,
  7. सही।

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IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
एक विवाह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है तो उसे एक विवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
बहुविवाह के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर-
बहुविवाह के तीन प्रकार हैं।

प्रश्न 3.
द्विविवाह में एक पुरुष की कितनी पत्नियां होती हैं ?
उत्तर-
द्विविवाह में एक पुरुष की दो पत्नियां होती हैं।

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प्रश्न 4.
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कितने पति हो सकते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कई पति हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
अन्तर्विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति केवल अपनी ही जाति में विवाह करवा सकता हो उसे अंतर्विवाह कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बर्हिविवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपनी गोत्र के बाहर परंतु अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना पड़े तो उसे बर्हिविवाह कहते हैं।

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प्रश्न 7.
यह शब्द किसके हैं, “विवाह एक समझौता है जिसमें बच्चों की पैदाइश तथा देखभाल होती
उत्तर-
यह शब्द मैलीनोवस्की के हैं।

प्रश्न 8.
संसार में विवाह का कौन-सा प्रकार सबसे अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
संसार में विवाह का सबसे अधिक प्रचलित प्रकार एक विवाह है।

प्रश्न 9.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 10.
बहु-पति विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब कई पुरुष मिलकर एक स्त्री से विवाह करते हैं, तो उसे बहु-पति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 11.
एफिनिटी क्या होता है ?
उत्तर-
सामाजिक सम्बन्ध जो विवाह पर आधारित होते हैं, उन्हें एफिनिटी कहते हैं।

प्रश्न 12.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए सामाजिक मान्यता प्राप्त संस्था कौन-सी है ?
उत्तर-
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी हुई है, जिसे परिवार कहते हैं।

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प्रश्न 13.
यौन इच्छा ने किस प्रथा को जन्म दिया ?
उत्तर-
यौन इच्छा ने विवाह नामक प्रथा को जन्म दिया।

प्रश्न 14.
विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
यौन सम्बन्धों को समाज ने एक प्रथा के द्वारा मान्यता दी हुई है, जिसे विवाह कहते हैं।

प्रश्न 15.
कुलीन विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक ही जाति में ऊंचे कुलों से सम्बन्धित लड़के-लड़की का विवाह होता है तो उसे कुलीन विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 16.
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम क्या है ?
उत्तर-
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम गंधर्व विवाह है।

प्रश्न 17.
भ्रातृक बहुपति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
अगर सभी भाई एक स्त्री से इकट्ठे विवाह करें तो उसे भ्रातृक बहुपति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 18.
कौन-से पुरुष को पूर्ण पुरुष कहा जाता है ?
उत्तर-
जिस पुरुष के स्त्री तथा बच्चे हों, उसे पूर्ण पुरुष कहा जाता है।

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प्रश्न 19.
अन्तर्विवाह का कोई कारण बताओ।
उत्तर-
रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए अन्तर्विवाह की आवश्यकताएं पड़ी।

प्रश्न 20.
प्राथमिक सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? ।
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्ध प्राथमिक सम्बन्ध होते हैं, जैसे कि पिता, माता, भाई, बहन इत्यादि।

प्रश्न 21.
द्वितीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
जो हमारे माता या पिता का प्राथमिक सम्बन्धी होता है वह हमारे लिए द्वितीय सम्बन्धी होता है, जैसे मामा, चाचा, ताया, बुआ इत्यादि।

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प्रश्न 22.
तृतीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? .
उत्तर-
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे तृतीय सम्बन्धी होते हैं, जैसे पिता की बहन का पति, माता के भाई की पत्नी इत्यादि।

प्रश्न 23.
समूह विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब बहुत सारी स्त्रियों का बहुत सारे पुरुषों के साथ इकट्ठे विवाह होता है, उसे समूह विवाह कहते

प्रश्न 24.
बहिर्विवाह में किससे बाहर विवाह करना पड़ता है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह में अपने सपिण्ड, प्रवर तथा गोत्र से बाहर करना पड़ता है।

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प्रश्न 25.
अन्तर्विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपने समूह या जाति के अन्दर विवाह करना पड़े तो उसे अन्तर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 26.
प्रतिलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब निम्न जाति का पुरुष उच्च जाति की स्त्री से विवाह करता है तो उसे प्रतिलोम विवाह कहते हैं।

प्रश्न 27.
कौन-सी संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है।

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प्रश्न 28.
किस संस्था से समाज विघटन से बचता है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था के कारण समाज का विघटन नहीं होता।

प्रश्न 29.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

प्रश्न 30.
बहु-पति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक स्त्री के कई पति हों तो उस विवाह को बहुपति विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 31.
बहु-पति विवाह के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह के दो प्रकार-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रात बहुपति विवाह होते हैं।

प्रश्न 32.
एक विवाह को आदर्श क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि इससे परिवार अधिक स्थायी रहते हैं।

प्रश्न 33.
पितृ सत्तात्मक परिवार में ……….. शक्ति अधिक होती है।
उत्तर-
पितृ सत्तात्मक परिवार में पिता की शक्ति अधिक होती है।

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प्रश्न 34.
मातृ सत्तात्मक परिवार में …………… की सत्ता चलती है।
उत्तर-
मातृ सत्तात्मक परिवार में माता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 35.
रक्त सम्बन्धी परिवार में कौन-से सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी परिवार में रक्त सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 36.
सदस्यों के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार होते हैं।

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प्रश्न 37.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार के दो प्रकार-एक विवाही परिवार तथा बहुविवाही परिवार होते हैं।

प्रश्न 38.
वंश के आधार पर कितने प्रकार के परिवार होते हैं ?
उत्तर-
चार प्रकार के परिवार ।

प्रश्न 39.
केन्द्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर-
वह परिवार जिसमें पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हों उसे केन्द्रीय परिवार कहा जाता है।

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प्रश्न 40.
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह एक्ट कब पास हुआ था ?
उत्तर-
सन् 1856 में।

प्रश्न 41.
शब्द Family किस भाषा के शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द का अंग्रेज़ी रूपान्तर है।

प्रश्न 42.
शब्द Family लातीनी भाषा के किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द Famulus से निकला है।

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प्रश्न 43.
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन का एक कारण बताओ।
उत्तर-
आजकल स्त्रियां घर से जाकर दफ्तरों में काम करने लगी हैं जिससे उनकी परिवार तथा पति पर निर्भरता काफ़ी कम हो गई है।

प्रश्न 44.
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है। कैसे ?
उत्तर-
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है क्योंकि यह प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पाया जाता है।

प्रश्न 45.
परिवार में सदस्यों के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध होते हैं ?
उत्तर-
परिवार में सदस्यों के बीच रक्त सम्बन्ध होते हैं।

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प्रश्न 46.
समाज में परिवार का किस प्रकार का स्थान होता है ?
उत्तर-
समाज में परिवार का केन्द्रीय स्थान होता है।

प्रश्न 47.
परिवार के सदस्यों में किस प्रकार के गुण पाए जाते हैं ? ।
उत्तर-
परिवार के सदस्यों में हमदर्दी, त्याग, प्रेम जैसे गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न 48.
परिवार के दो जैविक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार में ही व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता है।
  2. परिवार में ही सन्तान उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 49.
परिवार के दो आर्थिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सदस्यों के खाने का प्रबन्ध करता है।
  2. परिवार एक उत्पादक इकाई के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 50.
परिवार में उत्तराधिकार का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर-
बेटों में जायदाद का समान विभाजन कर दिया जाता है।

प्रश्न 51.
परिवार के दो सामाजिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार व्यक्ति को सामाजिक स्थिति प्रदान करता है।
  2. परिवार संस्कृति को अगली पीढ़ी को सौंप देता है।

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प्रश्न 52.
कौन-सी संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है ?
उत्तर-
परिवार नामक संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
विवाह के कारण व्यक्ति को समाज में कई सारे पद मिल जाते हैं, जैसे-पति, पिता, जीजा, दामाद इत्यादि। इन सभी पदों में ज़िम्मेदारी होती है। विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है।

प्रश्न 2.
मनु ने प्रतिलोम विवाह के बारे में कौन-से विचार व्यक्त किए हैं ?
उत्तर-
मनु के अनुसार निम्न जाति के पुरुष का उच्च जाति की स्त्री से विवाह करना पाप है। इसे उन्होंने निषेध करार दिया है। इस प्रकार के विवाह से पैदा होने वाली सन्तान को उन्होंने चण्डाल कहा है।

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प्रश्न 3.
अनुलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह करता है तो उसे अनुलोम विवाह कहते हैं। इस प्रकार के विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त है तथा इस प्रकार के विवाह साधारणतया होते रहते थे।

प्रश्न 4.
विवाह पर प्रतिबन्ध।
उत्तर-
कई समाजों में विवाह करवाने के ऊपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध होते हैं कि किस समूह में विवाह करना है तथा किस में नहीं। साधारणतया रक्त सम्बन्धी, एक ही गोत्र वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते।

प्रश्न 5.
गैर-भातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
बहुपति विवाह का वह प्रकार जिसमें पत्नी के सभी पति आपस में भाई नहीं होते गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह होता है। विवाह के पश्चात् पत्नी निश्चित समय के लिए अलग-अलग पतियों के साथ रहती है।

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प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
यह विवाह का वह प्रकार है जिसमें एक व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां होती हैं। यह दो प्रकार का होता है-प्रतिबन्धित तथा अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह । इस प्रकार का विवाह आजकल वर्जित है।

प्रश्न 7.
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति।
उत्तर-
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है क्योंकि उसे कई पुरुषों से विवाह तथा संबंध रखने पड़ते हैं। इसका उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा उनकी सामाजिक स्थिति भी निम्न होती है।

प्रश्न 8.
एक विवाह पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
जब एक ही स्त्री से एक ही पुरुष विवाह करवाता है तो विवाह को एक विवाह कहते हैं। जब तक दोनों जीवित हैं अथवा एक दूसरे से तलाक नहीं ले लेते, वह दूसरा विवाह नहीं करवा सकते।

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प्रश्न 9.
बहु-पति विवाह के दो अवगुण।
उत्तर-

  1. इस प्रकार के विवाह में स्त्री का स्वास्थ्य खराब हो जाता है क्योंकि उसे कई पतियों की लैंगिक इच्छा को पूर्ण करना पड़ता है।
  2. इस प्रकार के विवाह में स्त्री के लिए पतियों में झगडे होते रहते हैं।

प्रश्न 10.
एक विवाह के दो गुण।
उत्तर-

  1. एक विवाह में पति-पत्नी के संबंध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इस विवाह में बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।
  3. इस विवाह में पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  4. इसमें पति-पत्नी में तालमेल रहता है।

प्रश्न 11.
बहुपत्नी विवाह के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन संबंधों की इच्छा के कारण बहुपत्नी विवाह सामने आए।
  2. लड़कियां पैदा होने के कारण तथा लड़का होने की इच्छा के कारण यह विवाह बढ़ गए।
  3. राजा-महाराजाओं के अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण यह विवाह सामने आए।

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प्रश्न 12.
परिवार क्या होता है ?
उत्तर-
परिवार उस समूह को कहते हैं जो यौन सम्बन्धों पर आधारित है और जो इतना छोटा व स्थायी है कि उससे बच्चों की उत्पत्ति तथा पालन-पोषण हो सके। इसमें सभी रक्त संबंधी शामिल होते हैं।

प्रश्न 13.
पितृ सत्तात्मक परिवार कौन-सा होता है ?
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार पिता के हाथ में होते हैं, परिवार पिता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर पिता का पूरा नियन्त्रण होता है। घर के सभी सदस्यों को पिता की आज्ञा के अनुसार कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
मातृ-सत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार माता के हाथ में होते हैं, परिवार माता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर माता का नियन्त्रण होता है। सम्पत्ति पर माता का अधिकार होता है तथा माता के पश्चात् सम्पत्ति पुत्री को प्राप्त होती है।

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प्रश्न 15.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते हैं-

  1. एक विवाही परिवार
  2. बहु विवाही परिवार।

प्रश्न 16.
परिवार में शिक्षा संबंधी कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर–
पहले परिवार बच्चों को शिक्षा देता था परन्तु अब इसमें परिवर्तन आ गया है। अब परिवार का यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों ने लिया है। पहले परिवार के बड़े बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे परन्तु अब यह कार्य औपचारिक संस्थाओं के पास है।

प्रश्न 17.
परिवार की केंद्रीय स्थिति।
उत्तर-
परिवार की समाज में केन्द्रीय स्थिति है क्योंकि परिवार के बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता तथा प्रत्येक व्यक्ति समाज में ही रहना पसंद करता है। परिवार के कारण ही समाज अस्तित्व में आता है।

प्रश्न 18.
बच्चों का पालन-पोषण।
उत्तर-
बच्चों का पालन-पोषण परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि परिवार ही बच्चों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण करता है। परिवार उसे अच्छा नागरिक बनाने के लिए सभी चीजें उपलब्ध करवाता है।

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प्रश्न 19.
घर की व्यवस्था।
उत्तर-
परिवार अपने सदस्यों के लिए घर की व्यवस्था करता है। घर के बिना परिवार न तो बन सकता है तथा न ही प्रगति कर सकता है। इस प्रकार घर की व्यवस्था करके परिवार सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास भी करता है।

प्रश्न 20.
परिवार में सहयोग।
उत्तर-
पति तथा पत्नी एक-दूसरे से सहयोग करते हैं ताकि परिवार का कल्याण हो सके। वह अपने बच्चों तथा परिवार को अच्छा जीवन देने के लिए एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। पति-पत्नी के सहयोग के कारण ही परिवार सामने आता है।

प्रश्न 21.
साझे परिवार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर-
साझे परिवार में रहने वाले व्यक्ति पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के अधीन आ रहे हैं। इस कारण वह अपने सांझे परिवारों को छोड़ रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार बसा रहे हैं। इस तरह साझे परिवार खत्म हो रहे हैं।

प्रश्न 22.
परिवार के दो कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. परिवार में व्यक्ति की सम्पत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँच जाती है तथा किसी तीसरे व्यक्ति के पास नहीं जाती।
  2. बच्चों के पालन-पोषण तथा सुरक्षा का कार्य परिवार का ही होता है तथा उनका सही विकास परिवार में ही हो सकता है।

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प्रश्न 23.
परिवार के कार्यों में कोई दो परिवर्तन।
उत्तर-

  1. आजकल के परिवार अधिक प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. स्त्रियां घरों से बाहर निकल कर कार्य कर रही हैं जिस कारण उनके कार्य बदल रहे हैं।
  3. परिवार के मुखिया का नियन्त्रण कम हो गया है तथा सभी अपनी इच्छा से कार्य करते हैं।

प्रश्न 24.
नवस्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी अपने माता-पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि अपना नया घर बसाते हैं तथा बिना रोक-टोक के रहते हैं। आजकल इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संस्था।
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है और न ही संगठन है। सामाजिक संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमाप की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण क्रिया के आस-पास केन्द्रित रूढियों और लोक रीतों का जाल है। संस्थाएं तो संरचिंत प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
संस्था के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व बताइये।
उत्तर-

  1. निश्चित उद्देश्य-संस्था विशेष मानवीय आवश्यकता के लिए विकसित होती है। बिना उद्देश्य के संस्था नहीं होती है। इस प्रकार संस्था किसी निश्चित उद्देश्य के लिए बनती है।
  2. एक विचार-विचार ही संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी भी आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसको समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा हेतु वह संस्था को विकसित करता है।

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प्रश्न 3.
संस्था की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. संस्था व्यवस्था एक इकाई है।
  2. संस्था के स्पष्ट तौर पर परिभाषित उद्देश्य हैं।
  3. संस्था अमूर्त होती है।
  4. संस्था की एक परम्परा व प्रतीक होता है।

प्रश्न 4.
संस्था के कोई चार कार्य बतायें।
उत्तर-

  1. संस्था समाज के ऊपर नियन्त्रण रखती है।
  2. संस्था व्यक्ति को पद एवं भूमिका प्रदान करती है।
  3. संस्था उद्देश्य को पूरा करने में मदद करती है।
  4. संस्था सांस्कृतिक एकसारता प्रदान करती है।
  5. संस्था संस्कृति की वाहक है।

प्रश्न 5.
संस्था कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं, पर साधारणतया संस्थाएं चार प्रकार की होती हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं (Social Institutions)
  2. राजनैतिक संस्थाएं (Political Institutions)
  3. आर्थिक संस्थाएं (Economic Institutions)
  4. धार्मिक संस्थाएं (Religious Institutions)।

प्रश्न 6.
विवाह का अर्थ।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में परिवार की स्थापना के लिए स्त्री व पुरुष के लिंगक सम्बन्धों को स्थापित करने की मान्यता विवाह द्वारा दी जाती है। इस प्रकार लिंग सम्बन्धों को निश्चित करने व संचालित करने के लिए बच्चों के पालनपोषण की ज़िम्मेदारी को निर्धारित करने व परिवार को स्थाई रूप देने के लिए बनाए गए नियमों को विवाह कहते हैं। परिवार बसाने के लिए दो या दो से अधिक स्त्रियों व पुरुषों के बीच ज़रूरी सम्बन्ध स्थापित करने व उन्हें स्थिर रखने के लिए संस्थात्मक व्यवस्था को विवाह कहते हैं। जिसका उद्देश्य घर की स्थापना, यौन सम्बन्धों में प्रवेश व बच्चों का पालन-पोषण है।

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प्रश्न 7.
एक विवाह।
उत्तर-
आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस तरह के विवाह में एक पुरुष एक ही समय, एक ही स्त्री के साथ विवाह कर सकता है। एक विवाह में पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह करना गैरकानूनी माना जाता है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध गहरे, स्थायी और प्यार हमदर्दी वाले होते हैं। इसमें बच्चों का पालनपोषण अच्छे ढंग से हो जाता है। उनको माता-पिता का पूरा प्यार मिलता है। पति-पत्नी में प्यार और तालमेल होता है। इसमें पुरुष और स्त्री के सम्बन्धों में समान अधिकार पाये जाते हैं।

प्रश्न 8.
एक विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इसमें बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह होता है।
  3. पति-पत्नी में तालमेल अधिक रहता है।
  4. पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  5. व्यक्ति मनोवैज्ञानिक और जैविक तनावों से मुक्त रहता है।
  6. लड़का और लड़की दोनों को समान अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
एक विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. बीमारी या गर्भावस्था में पति-पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रख सकता इसलिए वह बाहर जाना आरम्भ कर देता है।
  2. बाहरी सम्बन्धों की वजह से अनैतिकता बढ़ती है।
  3. कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  4. पति का पत्नी के बीमार होने से घरेलू काम रुक जाते हैं, जिससे बच्चों का पालन-पोषण सही नहीं हो पाता।

प्रश्न 10.
बहिर्विवाह से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह का अर्थ है कि अपनी गोत्र, अपने सपिण्ड और टोटम से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध पैदा करने पड़ते हैं। एक ही गोत्र, सपिण्ड और टोटम के पुरुष और स्त्री आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्ट मार्क के अनुसार इस विवाह का उद्देश्य नज़दीक के रिश्तेदारों में यौन सम्बन्ध स्थापित न होने देना है। ये विवाह प्रगतिवाद का सूचक है और ये विवाह भिन्न-भिन्न वर्गों में सम्पर्क बढ़ाता है। जैविक दृष्टिकोण से यह विवाह ठीक माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें वर-वधू को एक-दूसरे के विचारों को जानने में बड़ी मुश्किलें आती हैं।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह।
उत्तर-
अन्तर्विवाह में व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करना पड़ता था। इसमें विवाह का एक बन्धन क्षेत्र होता है जिसके अनुसार आदमी औरत एक निश्चित सामाजिक समूह के अधीन ही विवाह कर सकते हैं। इसके साथ समूह की एकता रखी जा सकती है। यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा करती है। इसके साथ जातिवाद की भावना को भी बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 12.
दो पत्नी विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष का विवाह दो स्त्रियों के साथ होता है। ये दोनों स्त्रियां उस पुरुष की पत्नियां होती हैं। इसलिये इस विवाह को दो पत्नी विवाह कहा जाता है। इसमें पुरुष को दो पत्नियां रखने की इजाजत दी जाती है।

प्रश्न 13.
बहु-पत्नी प्रथा।
उत्तर-
यह बहु-विवाह का एक अन्य रूप है। इस तरह के विवाह में व्यक्ति एक से अधिक पत्नियों के साथ विवाह करवाता है। रिउटर के अनुसार बहु-पत्नी विवाह विवाह का वह रूप है, जिसमें व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों को रख सकता है। ये प्रथा संसार के सभी समाजों में पाई जाती है। पुरुष में यौन की इच्छा और बड़े परिवार की चाह के कारण इस विवाह प्रथा को अपनाया गया।

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प्रश्न 14.
बहु-पत्नी विवाह के कारण।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छाओं के कारण बहु विवाह होते हैं।
  2. बड़े परिवार की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  3. लड़कियां होने पर लड़कों की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  4. स्त्रियों की गणना बढ़ने के कारण भी यह विवाह होते थे।
  5. राजाओं, महाराजाओं की अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण इस प्रकार के विवाह होते थे।

प्रश्न 15.
बहु-पत्नी विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. बच्चों का बढ़िया पालन-पोषण हो जाता है।
  2. मर्दो की अधिक यौन इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।
  3. सम्पत्ति घर में ही रहती है।
  4. सन्तान शक्तिशाली और सेहतमंद पैदा होती है।
  5. एक पत्नी के बीमार होने से घर के काम चलते रहते हैं।
  6. लिंग सम्बन्धों की पूर्ति के कारण अनैतिकता नहीं फैलती।

प्रश्न 16.
बहु-पत्नी विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. इसके साथ स्त्रियों का दर्जा निम्न होता है।
  2. स्त्रियों की यौन इच्छा पूरी नहीं होती, जिसके लिये वह बाहर जाती हैं और अनैतिकता फैलती है।
  3. अधिक पत्नियों के कारण उनमें झगड़ा रहता है।
  4. परिवार में अशान्ति रहती है।
  5. परिवार में आर्थिक बोझ बढ़ता है।

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प्रश्न 17.
कुलीन विवाह।
उत्तर-
हिन्दू समाज में बहु-पत्नी विवाह का सबसे मुख्य उदाहरण कुलीन बहु-विवाह है। सभी चाहते हैं कि उनकी लड़कियों का विवाह बड़ी जाति के लड़कों के साथ हो पर कुलीन वंश की गिनती अधिक नहीं थी। एक-एक कुलीन ब्राह्मण 100-100 लड़कियों के साथ विवाह करवाता था। इस कारण दहेज प्रथा बढ़ गई और समाज में अनैतिकता भी बढ़ गई।

प्रश्न 18.
साली विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की बहन के साथ विवाह करता है। ये विवाह दो तरह का होता है। सीमित साली विवाह, समकालीन साली विवाह, सीमित साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की मौत के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकालीन साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की सभी-बहनों को अपनी पत्नियों के समान मानता है। पहली किस्म का प्रचलन अधिक है। इनमें परिवार नहीं टूटता और बच्चों का पालन-पोषण अधिक अच्छी तरह होता है।

प्रश्न 19.
देवर विवाह।
उत्तर-
विवाह की इस प्रथा में पत्नी अपने पति की मौत के बाद उसके भाई के साथ विवाह करवाती है। इसके साथ परिवार की सम्पत्ति सुरक्षित रह जाती है। परिवार टूटने से बचता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक हो जाता है। इस विवाह के साथ लड़के के माता-पिता को लड़की का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

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प्रश्न 20.
बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में एक स्त्री बहुत से पतियों के साथ विवाह करती है। एक ही समय में वह सभी की पत्नी होती है इसके दो प्रकार हैं। भ्रात बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं और गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई नहीं होते। ग़रीबी और स्त्रियों की कम गिनती के कारण ये प्रथा बढ़ी।

प्रश्न 21.
भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह की प्रथा के अनुसार स्त्री के सारे पति परस्पर भाई हुआ करते थे अथवा एक ही जाति के व्यक्ति होते थे। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है तथा उसके सब भाइयों का उस पर पत्नी रूप में अधिकार होता है व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी भी पत्नी सब भाइयों की पत्नी होती है, जो बच्चे होते हैं वो सब बड़े भाई के नाम से माने जाते हैं व सम्पत्ति पर भी अधिकार बड़े भाई का अधिक होता है।

प्रश्न 22.
गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर–
बहु-पति विवाह की इस प्रकार में एक औरत के पति आपस में भाई नहीं होते। यह पति सब भिन्न-भिन्न स्थानों में रहते हैं। ऐसे समय में औरत निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है इस प्रकार दूसरे, तीसरे, चौथे के पास। इस तरह सारा साल अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने पर एक विशेष संस्कार अनुसार पति उसका पिता बन जाता है जो वह गर्भावस्था में स्त्री को धनुष (तीर-कमान) भेंट करता है। उसे उस बच्चे का पिता मान लिया जाता है।

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प्रश्न 23.
परिवार का अर्थ।
उत्तर-
परिवार एक ऐसी संस्था है जिससे स्त्री व पुरुष समाज से मान्यता प्राप्त लिंग सम्बन्ध स्थापित करता है। परिवार व्यक्तियों का वह समूह है जो एक विशेष नाम से पहचाना जाता है जिसमें पति-पत्नी के स्थाई लिंग सम्बन्ध होते हैं जिसमें सदस्यों के पालन-पोषण की पूर्ण व्यवस्था होती है जिससे सदस्यों में खून के सम्बन्ध होते हैं व इसके सदस्य एक खास निवास स्थान पर रहते हैं।

प्रश्न 24.
परिवार की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सर्वव्यापक है।
  2. परिवार लिंग सम्बन्धों से उत्पन्न समूह है।
  3. परिवार का सामाजिक आधार में केन्द्रीय स्थान होता है।
  4. परिवार में रक्त सम्बन्धों का बन्धन होता है।
  5. परिवार में सदस्यों की ज़िम्मेदारी अन्य सदस्य चुनते हैं।
  6. परिवार सामाजिक नियन्त्रण का आधार होता है।

प्रश्न 25.
परिवार व सामाजिक नियन्त्रण।
उत्तर-
परिवार ही बच्चों पर नियन्त्रण रखता है व उसको नियन्त्रण में रहना सिखाता है। परिवार उस पर इस प्रकार से नियन्त्रण रखता है कि उसमें ग़लत आदतें न उत्पन्न हो सकें। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इस तरह बच्चा अनुशासन में रहना सीखता जाता है। इस प्रकार परिवार बच्चे पर निगरानी रखकर एक तरह से सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

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प्रश्न 26.
परिवार व समाजीकरण।
उत्तर-
परिवार माता-पिता व बच्चों की स्थायी संस्था है, जिसका प्रथम कार्य बच्चों का समाजीकरण करना है। परिवार में बच्चा हमदर्दी, प्यार व ज़िम्मेदारी की पालना करना सीखता है। परिवार से ही वह छोटे, बराबर के व बड़ों के प्रति व्यवहार प्रकट करना सीखता है। परिवार में उसकी आदतों, अनुभवों, शिक्षाओं व कार्यों से ही आगे जाकर समाज में उसका काम व आचरण निश्चित होता है। परिवार में ही वह सामाजिक रीति-रिवाजों, रस्मों, आचरण, नियमों, सामाजिक बन्धनों की पालना इत्यादि सीखता है। इस प्रकार परिवार समाजीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न 27.
एकाकी परिवार क्या है ?
उत्तर-
इकाई परिवार वह परिवार है जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग घर कायम कर लेते हैं। यह सबसे छोटे परिवार होते हैं। यह परिवार अधिक प्रगतिशील होते हैं व उनके फैसले तर्क के आधार पर होते हैं। इसमें पति-पत्नी को बराबर का दर्जा हासिल होता है। आजकल इकाई परिवार का अधिक चलन है।

प्रश्न 28.
इकाई परिवार की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. केन्द्रीय परिवार या इकाई परिवार आकार में छोटा होता है।
  2. इकाई परिवार में सम्बन्ध सीमित होते हैं।
  3. परिवार के प्रत्येक सदस्य को महत्त्व मिलता है।
  4. परिवार की सत्ता साझी होती है।

प्रश्न 29.
इकाई परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. इकाई परिवारों में औरतों की स्थिति ऊंची होती है।
  2. इसमें रहने-सहने का दर्जा उच्च वर्ग का होता है।
  3. व्यक्ति को मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।
  4. व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
  5. सदस्यों में सहयोग की भावना होती है।

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प्रश्न 30.
इकाई परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. यदि माता या पिता में से कोई बीमार पड़ जाए तो घर के कामों में रुकावट आ जाती है।
  2. इसमें बेरोज़गार व्यक्ति का गुजारा मुश्किल से होता है।
  3. पति की मौत के पश्चात् यदि औरत अशिक्षित हो तो परिवार की पालना कठिन हो जाती है।
  4. कई बार आर्थिक मुश्किलों के कारण पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।

प्रश्न 31.
संयुक्त परिवार।
उत्तर-
संयुक्त परिवार एक मुखिया की ओर से शासित अनेकों पीढ़ियों के रक्त सम्बन्धियों का एक ऐसा समूह है जिनका निवास, चूल्हा व सम्पत्ति संयुक्त होते हैं। वह सब कर्तव्यों व बन्धनों में बंधे रहते हैं। संयुक्त परिवार की विशेषताएं हैं-(1) साझा चूल्हा (2) साझा निवास (3) साझी सम्पत्ति (4) मुखिया का शासन (5) बड़ा आकार। आजकल इस प्रकार के परिवारों की बजाय केन्द्रीय परिवार चलन में आ गए हैं।

प्रश्न 32.
संयुक्त जायदाद या ‘संयुक्त सम्पत्ति’।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में सम्पत्ति पर सभी सदस्यों का बराबर अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार इस सम्पत्ति में अपना योगदान डालता है। जिस व्यक्ति को जितनी आवश्यकता होती है वह उतनी सम्पत्ति खर्च कर लेता है। परिवार का कर्त्ता साझी जायदाद की देख-रेख करता है।

प्रश्न 33.
साझा रसोई-घर।
उत्तर-
संयुक्त परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके सभी सदस्य एक ही रसोई घर का इस्तेमाल करते हैं। भाव यह कि उनका खाना एक ही जगह बनता है व उसे वह इकट्ठे ही मिलकर खाते हैं। ऐसा करते समय वह अपने विचार एक-दूसरे से बांटते हैं। इससे उनका आपसी प्यार व हमदर्दी बनी रहती है।

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प्रश्न 34.
साझे परिवार में कर्ता।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में घर के मुखिया की मुख्य भूमिका होती है जिसको कर्ता कहते हैं। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य परिवार का मुखिया या कर्ता होता है। परिवार से सम्बन्धित सारे महत्त्वपूर्ण फैसले उसके द्वारा लिए जाते हैं। वह परिवार की साझी सम्पत्ति की देखभाल करता है। परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। कर्ता की मृत्यु के पश्चात् परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसके सबसे बड़े बेटे पर आ जाती है और वह परिवार का कर्ता बन जाता है।

प्रश्न 35.
संयुक्त परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार संस्कृति व समाज की सुरक्षा करता है।
  2. संयुक्त परिवार बच्चों का पालन-पोषण करता है।
  3. संयुक्त परिवार सामाजिक नियन्त्रण व मनोरंजन का केन्द्र होता है।
  4. संयुक्त परिवार सम्पत्ति के विभाजन को रोकता है, उत्पादन में बढ़ोत्तरी व खर्च में कमी करता है।
  5. बुजुर्गों व बीमार सदस्यों की मदद करता है।

प्रश्न 36.
संयुक्त परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता।
  2. संयुक्त परिवार में औरतों का निम्न दर्जा होता है।
  3. इनमें व्यक्तियों की खाली रहने की आदत पड़ जाती है।
  4. चिंता न होने से अधिक संतान उत्पत्ति होती है।
  5. लड़ाई-झगड़े अधिक होते हैं।
  6. पति-पत्नी को एकान्त प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 37.
क्यों संयुक्त परिवार टूट रहे हैं ?
उत्तर-
संयुक्त परिवारों के टूटने के कई कारण हैं; जैसे-

  1. धन की बढ़ती महत्ता के कारण।
  2. पश्चिमी प्रभाव के कारण।
  3. औद्योगीकरण के बढ़ने के कारण।
  4. सामाजिक गतिशीलता के सामने आने के कारण।
  5. जनसंख्या की बढ़ती दर के कारण।
  6. यातायात के साधनों का विकास की वजह से।
  7. स्वतन्त्रता व समानता के आदर्श के सामने आने से।
  8. औरतों के आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने से।

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प्रश्न 38.
पितृ-मुखी परिवार क्या है ?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के सम्पूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियन्त्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है व पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस प्रकार के परिवार मिलते हैं।

प्रश्न 39.
मातृ-वंशी परिवार।
अथवा
मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। सम्पत्ति का वारिस पुत्र नहीं बल्कि मां का भाई या भांजा होता है। परिवार मां के नाम से चलता है। इस प्रकार का परिवार भारत में कुछ कबीलों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाता है।

प्रश्न 40.
परिवार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. लैंगिक सम्बन्धों की पूर्ति करता है।
  2. सन्तान पैदा करना।
  3. सदस्यों की सुरक्षा व पालन-पोषण करता है।
  4. सम्पत्ति की देखभाल व आय-व्यय का प्रबन्ध करता है।
  5. धर्म की शिक्षा देना।
  6. बच्चों का समाजीकरण करता है।
  7. संस्कृति का संचार व विकास करता है।
  8. परिवार सामाजिक नियन्त्रण में मदद करता है।

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प्रश्न 41.
परिवार के कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर-

  1. परिवार अधिकतर प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. धार्मिक उत्तरदायित्वों की पालना की भावना कम हो रही है।
  3. पारिवारिक महत्त्व काफ़ी कम हो गया है।
  4. औरतें काम करने के लिए बाहर जाती हैं, इसलिए उनके काम बदल रहे हैं।
  5. संयुक्त परिवार कम हो रहे हैं।

प्रश्न 42.
रक्त सम्बन्धी परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में रक्त-सम्बन्ध का स्थान सर्वोच्च होता है। इनमें किसी प्रकार के लिंग सम्बन्ध नहीं होते। इसमें पति-पत्नी भी होते हैं परन्तु वह परिवार के आधार नहीं होते। इसमें सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। तलाक भी इन परिवारों को भिन्न नहीं कर सकता और यह स्थाई होते हैं।

प्रश्न 43.
पितृ स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में लड़की विवाह के उपरान्त अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है और पति के माता-पिता व पति के साथ वहीं घर बसाती है। इस प्रकार के परिवार आमतौर से प्रत्येक समाज में मिल जाते हैं।

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प्रश्न 44.
नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार पहली दोनों किस्मों से भिन्न हैं। इसमें पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि वह किसी और स्थान पर जाकर नया घर बसाते हैं। इसलिए इसको नव स्थानीय परिवार कहते हैं। आजकल के औद्योगिक समाज में इस तरह के परिवार आम पाए जाते हैं।

प्रश्न 45.
नातेदारी क्या होती है ?
अथवा
नातेदारी।
उत्तर-
चार्लस विनिक के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वे सम्बन्ध शामिल किये जाते हैं जोकि कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों के ऊपर आधारित एवं समाज के द्वारा प्रभावित होते हैं।”

प्रश्न 46.
नातेदारी को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
निम्न तीन में बांटा जा सकता है-

  1. व्यावहारिक नातेदारी।
  2. सगोत्र नातेदारी।
  3. कल्पित या रस्मी नातेदारी।

प्रश्न 47.
सगोत्र नातेदारी क्या होती है ?
उत्तर-
वह सभी व्यक्ति जिनमें रक्त का बन्धन है, सगोत्र नातेदारी का ही भाग होते हैं। रक्त का सम्बन्ध यद्यपि वास्तविक हो या कल्पित तो ही इसी आधार के ऊपर सम्बन्धित व्यक्तियों को नातेदारी व्यवस्था में स्थान प्राप्त है यदि इसको सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।

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प्रश्न 48.
वंश समूह क्या होता है ?
उत्तर-
वंश समूह माता या पिता में से किसी एक के रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इन सभी सम्बन्धियों के किसी एक स्त्री या पुरुष के साथ वास्तविक वंश परम्परागत होते (Ties) हैं। सभी सदस्य वास्तविक साझे पूर्वज की सन्तान होने के कारण अपने वंश समूह में विवाह नहीं करवाते। इस प्रकार वंश समूह उन रक्त के सम्बन्धियों का समूह होता है। जो साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होते है और जिनकी पहचान को अनुरेखित किया जाता
है।

प्रश्न 49.
गोत्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
गोत्र वंश समूह का ही विस्तृत रूप है, जोकि माता-पिता के किसी एक के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इस तरह गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है, जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होती है। पूर्वज आमतौर पर कल्पित ही होते हैं। क्योंकि इनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है। यह बहिर्विवाही समूह होते हैं।

प्रश्न 50.
वैवाहिक नातेदारी।
उत्तर-
वैवाहिक नातेदारी पति-पत्नी के यौन सम्बन्धों पर आधारित होती है। यद्यपि उनमें कोई रक्त सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु उनमें विवाह के बाद सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। विवाह के बाद व्यक्ति को पति के साथ जवाई, फूफड़, जीजा, सांदू आदि के रुतबे हासिल होते हैं। इस तरह स्त्री को भी पत्नी के साथ-साथ, देवराणी, जेठानी, चाची, ताई इत्यादि का रुतबा प्राप्त होता है। इस तरह के रुतबों को वैवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
विवाह की विशेषताओं का वर्णन नीचे दिया गया है-
1. विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है (It is an universal insitutions)-विवाह की संस्था चाहे प्राचीन थी, चाहे आधुनिक है, सभी समाजों में पाई जाती है। यह सर्वव्यापक है। इस संस्था के बिना किसी स्थिर समाज की हम कल्पना तक नहीं कर सकते।

2. इस संस्था के द्वारा आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है (Social sanction)-बिना सामाजिक मान्यता के यह सम्बन्ध गैर कानूनी करार दिए जाते हैं। इस संस्था का सदस्य बन कर व्यक्ति अपने दूसरे अधिकारों को भी जान जाता है व उसका दायरा कुछ सीमित हो जाता है।

3. दो विरोधी लिंगों का सम्बन्ध इस संस्था को जन्म देता है (Development of institution)-इससे मानव अपनी जैविक ज़रूरत को भी पूरा कर लेता है। पशुओं में भी विरोधी लिंगों का मेल होता है। लेकिन मानवों के इस मेल के द्वारा विवाह की संस्था का जन्म होता है परन्तु जानवरों का इस संस्था से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता।

4. विवाह की संस्था के द्वारा व्यक्ति को सामाजिक स्थिति भी प्राप्त हो जाती है (Provide social status)-विवाह के पश्चात् पुरुष व स्त्री, पति-पत्नी के रूप में स्वीकृत किए जाते हैं। बच्चा पैदा होने के बाद उनकी सामाजिक स्थिति माता-पिता से सम्बन्धित हो जाती है जिसके साथ परिवार का जन्म हो जाता है।

5. विवाह को एक समझौता भी समझा जाता है (Social Contract)—इसमें आदमी व औरत न केवल अपनी लिंग इच्छाओं की पूर्ति करते हैं बल्कि बच्चों के पालन-पोषण का बोझ भी सम्भालते हैं व पारिवारिक उत्तरदायित्वों को भी अदा किया जाता है।

6. विवाह के प्रकार अलग-अलग समाजों में अलग-अलग पाए जाते हैं (Different types in different societies)—प्रत्येक समाज की अपनी ही संस्कृति होती है जिसकी सुरक्षा से बाकी संस्थाएं जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए मुसलमानों की संस्कृति एक से अधिक विवाह की आज्ञा दे देती है परन्तु हिन्दुओं की संस्कृति इसके विपरीत है अर्थात् एक से अधिक विवाह को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं होती।

7. विवाह के द्वारा व्यक्ति को कानूनन मान्यता प्राप्त हो जाती है (Legal Sanction)-इससे पुरुष व स्त्री के विवाह सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं।

8. इस संस्था के द्वारा धार्मिक रीति-रिवाज भी सुरक्षित रहते हैं। चाहे आधुनिक समय में कोर्ट-मैरिज होने लगी है, परन्तु धार्मिक संस्कार अभी भी इस संस्था से जुड़े हुए हैं।

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प्रश्न 2.
एक विवाह का क्या अर्थ है ? इसके कारणों, लाभों तथा कमियों का वर्णन करें।
उत्तर-
आधुनिक समय में अधिकतर पाई जाने वाली विवाह का प्रकार ‘एक विवाह’ है। एक विवाह का अर्थ है जब एक आदमी, एक समय एक ही औरत से या एक औरत, एक समय, एक ही आदमी से विवाह करवाती है तो इसको एक विवाह का नाम दिया गया है। आजकल के सांस्कृतिक समाजों में इसको काफ़ी महत्ता प्राप्त है।

मैलिनोवस्की (Malinoviski) के अनुसार, “एक विवाह ही, विवाह का वास्तविक प्रकार है, जो पाई जा रही है व पाई जाती रहेगी।”
पीडीगंटन (Piddington) के अनुसार, “एक विवाह, विवाह का वह स्वरूप है, जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों के साथ एक ही समय पर विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता।”

वुकेनोविक के अनुसार, “उसी विवाह को एक विवाह कहना ठीक होता है, जिसमें न केवल एक व्यक्ति की पत्नी या पति हो, बल्कि किसी की भी मौत हो जाने पर दूसरा विवाह न करे। आमतौर पर एक पति या पत्नी के जीते जी किसी से न विवाह करना ही एक विवाह माना जाता है।”

भारतीय समाज में हिन्दू धर्म के अनुसार भी एक विवाह को ही आदर्श विवाह माना जाता है। प्राचीन समय से ही स्त्री के लिए उसका पति ही परमेश्वर होता था। पति की मौत के साथ वह औरत आप भी सती होना बेहतर समझती थी। भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के अधीन भी बहु-विवाह को समाप्त कर दिया गया व एक विवाह करने की ही स्वीकृति हो गई। आधुनिक समय में तो कानून इतने सख्त हैं कि तलाक लिए बिना आदमी व औरत दूसरा विवाह नहीं करवा सकते। कुछ हालातों में दूसरे विवाह की इजाजत दी गई जैसे सन्तान न होने की सूरत में. पति या पत्नी में कोई एक ला-इलाज बीमारी से सम्बन्धित हो आदि।

कारण (Causes)-

1. आधुनिक समाज में एक विवाह की प्रथा ही प्रचलित रही है। इस प्रथा के आने से ही हमारे समाज में भी प्रगति हुई है। जहां एक विवाह की प्रथा पाई गई उस समाज में प्रगति भी अधिक हुई। समाज की प्रगति के लिए भी एक विवाह को आवश्यक समझा गया।

2. स्त्रियों व पुरुषों की जनसंख्या की दर में बराबरी पाए जाने के कारण भी एक विवाह ही ज़रूरी समझा गया। इस अनुपात की बराबरी के कारण समाज में स्थिरता भी आ गई।

3. एकाधिकार की भावना के कारण भी एक विवाह को स्वीकृति प्राप्त हुई। आदिम समाज में जब विवाह की संस्था अधिक नियमित नहीं थी हुई तो कोई भी आदमी, किसी भी औरत से सम्बन्ध रख लेता था। कुछ देर के बाद उनमें ईर्ष्या की भावना पैदा होनी शुरू हो गई क्योंकि प्रत्येक आदमी यह इच्छा रखने लगा कि उसकी औरत, दूसरे आदमी के पास न जाए। उस समय जो आदमी शारीरिक तौर पर अधिक बलवान् थे, उन्होंने स्त्री पर एकाधिकार रखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आजकल के समय में आदमी व औरत दोनों के द्वारा एकाधिकार की भावना को अपनाया जाने लगा व आधुनिक समाज में एक विवाह के प्रकार को अपनाया गया।

4. प्राचीन समय में स्त्री का मूल्य रखा जाता था। जो भी पुरुष उस कीमत को अदा कर देता था उसको वह स्त्री दे दी जाती थी। इसके अतिरिक्त परिवार की स्थिरता के कारण एक पुरुष व एक स्त्री का विवाह प्रचलित था।

एक विवाह के लाभ (Advantages of Monogamy)-

1. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the Status of Women)–प्राचीन समय से स्त्रियों की समाज में काफ़ी निम्न स्थिति थी। पुरुष ने जिस तरह चाहा, उसी तरह का स्त्री से व्यवहार किया। यहां तक कि आश्रम व्यवस्था में स्त्री ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकती थी। उस का कार्य केवल बच्चे पैदा करना, घर का काम करना इत्यादि तक सीमित था।

इसके अतिरिक्त यदि जाति-प्रथा पर नजर डालें तो वहां भी औरत के जन्म को बुरा समझा जाता था। बिना पुरुष के उसको समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं होता था वह पति की मौत पर अपने आप को सती कर देती थी। धीरे-धीरे जब शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन हुआ तो उनकी स्थिति पुरुषों के समान हो गई। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के साथ स्त्री ने अपनी स्थिति को स्त्री के समान ही समझा। इस विवाह के प्रकार ने स्त्री की स्थिति में अधिक परिवर्तन किया।

2. बच्चों का पालन-पोषण (Up-bringing of Children)-एक विवाह के प्रकार के आधार पर जो परिवार पाया गया, उसमें बच्चों की परवरिश पहले से अधिक अच्छे ढंग से हो गई। दूसरे विवाह के प्रकारों में बच्चों में ईर्ष्या की भावना रहती थी। यहां तक कि परिवार के सभी सदस्यों में प्यार केवल दिखावा मात्र तक ही सीमित था। इस विवाह की किस्म से माता-पिता द्वारा बच्चों को सम्पूर्ण प्यार प्राप्त हुआ। उनकी हर तरह की ज़रूरतों की ओर ध्यान दिया गया। बच्चों में योग्यता व ज्ञान बढ़ा। उसके व्यक्तित्व का भी विकास हुआ।

3. परिवार की स्थिरता (Stability of Family)-एक विवाह से परिवार पहले से अधिक स्थिर हो गए। आदमी व औरत को एक-दूसरे के विचार समझने का मौका मिला। परिवार तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक पुरुष व स्त्री दोनों में सूझ-बूझ न हो। बहु-विवाह में लड़ाई-झगड़ा अधिक रहता था, न तो पुरुष स्त्री को पूरा प्यार दे सकता था न ही स्त्री पुरुष को पूरा प्यार दे सकती थी। तनाव की स्थिति तकरीबन विकसित रहती थी। इस स्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़ता था जिससे बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता था। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के द्वारा ही पारिवारिक जिन्दगी को अधिक स्थिरता प्राप्त हुई।

4. जायदाद का विभाजन (Division of Property)-जायदाद का विभाजन बहु-विवाह में एक समस्या बन जाती थी। कई बार तो भाई-भाई आपस में एक-दूसरे को मारने के लिए भी तैयार हो जाते थे। परन्तु एक विवाह की प्रथा में इस समस्या का हल हो गया। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी जायदाद उसके बच्चों में बराबरी से विभाजित कर दी जाती थी।

5. रहन-सहन का उच्च-स्तर (Higher Standard of living)-आधुनिक समय में व्यक्ति की ज़िन्दगी प्राचीन समय से अधिक आरामदायक हो गई। एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री व एक स्त्री को केवल एक ही पुरुष की देखभाल करनी पड़ती थी। हरेक व्यक्ति अपने बच्चों को अपनी इच्छा अनुसार अधिक-से-अधिक अच्छी शिक्षा दे सकता है व अपने आराम की सहूलतें भी प्राप्त कर लेता है। बहु-विवाह की प्रथा में अधिक बच्चों की परवरिश भी मुश्किल हो जाती थी। एक विवाह की प्रथा से सीमित परिवार को ज्यादातर अपनाया गया।

एक विवाह की कमियां (Demerits of Monogamy)-

1. एक विवाह की प्रथा में जब स्त्री बच्चा पैदा करने की अवस्था में होती है तो वह पुरुष को पूरा सहयोग नहीं दे सकती इसके अतिरिक्त बीमारी के समय पुरुष अपनी लैंगिक इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर जाना शुरू हो गया जिससे वेश्याओं को समाज में जगह मिल गई। कई स्थितियों में पुरुष व स्त्री को मजबूरन इकटे रहना पड़ता है चाहे उनमें आपसी प्यार न हो तो भी पुरुष व स्त्री दोनों अपनी जैविक भूख को मिटाने के लिए घर से बाहर जाने लगे हैं।

2. दूसरी कमी एक विवाह की प्रथा का कारण यह रहा कि यदि घर में पति या पत्नी दोनों में से कोई भी एक बीमार हो या दोनों, ऐसी स्थिति में घर बिलकुल बेहाल हो जाता है। बच्चों को खाने-पीने की समस्या का सामना करना पड़ जाता है व कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

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प्रश्न 3.
बहु-विवाह की परिभाषाओं, प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
बहु-विवाह का अर्थ है जब तक एक से अधिक आदमी या औरतों से विवाह करने की स्वीकृति हो, उसको बह-विवाह का नाम दिया गया है। बलसेरा (Balsera) के अनुसार, “विवाह की वह प्रकार जिसमें पतियों व पत्नियों की बहुलता होती है, वह बहु-विवाह कहलाता है।”
बहु-विवाह के आगे भी कुछ प्रकार पाए गए हैं जो निम्नलिखित अनुसार है-

  1. दो-पत्नी विवाह (Bigamy)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)
  3. बहु-पति विवाह (Polyandry)

दो-पत्नी विवाह (Bigamy)-विवाह की इस प्रथा में एक पुरुष को केवल दो स्त्रियों से विवाह करवाने की आज्ञा होती है। विवाह का यह प्रकार पंजाब में भी प्रचलित रहा था।

बहु-पत्नी विवाह (Polygyny) विवाह के इस प्रकार का अर्थ है जब एक पुरुष का विवाह अधिक स्त्रियों से कर दिया जाता है, तो उसको बहु-पत्नी विवाह कहा जाता है।

के० एम० कपाड़िया (Kapadia) के अनुसार, “बहु-पत्नी विवाह, विवाह का वह प्रकार होता है, जिसमें पुरुष एक ही समय एक से अधिक स्त्रियां रख सकता है।”
जी० डी० मिचैल (G.D. Mitchell) के अनुसार, “एक पुरुष यदि एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाता है तो उसको बहु-पत्नी विवाह का नाम दिया जाता है।

यह दो प्रकार का होता है :

  1. प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny Marriage) .
  2. अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny Marriage)

प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह के इस प्रकार में पत्नियों की संख्या सीमित कर दी जाती है। व्यक्ति उस सीमा से अधिक पत्नियां व्यक्ति नहीं रख सकता। मुसलमानों में प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह की प्रथा अनुसार एक व्यक्ति के लिए पत्नियों की संख्या भी निश्चित कर दी जाती है।

अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny)–इस प्रथा के अनुसार कोई भी पुरुष जितनी मर्जी पत्नियां रख सकता है। भारत में भी प्राचीन समय में विवाह की यह प्रथा ही प्रचलित थी।

बहु-पत्नी विवाह के कारण (Causes of Polygyny)-वैस्टर मार्क ने बहु-पत्नी विवाह के कई कारण दिए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. स्त्रियों के पुरुषों से जल्दी बूढ़े हो जाने के कारण बहु-पत्नी विवाह प्रचलित रहा। बच्चा पैदा होने के पश्चात् स्त्रियों की सेहत भी कमजोर हो जाती थी। ऐसा अधिकतर असभ्य समाजों में पाया गया है।
  2. विवाह के पश्चात् कुछ समय स्त्री व पुरुष के वैवाहिक सम्बन्धों पर पाबन्दी लगा दी जाती थी। उदाहरण के तौर पर गर्भवती स्त्री के लिए भी यौन सम्बन्धों पर पाबन्दी होती थी। इस कारण भी एक से अधिक विवाह की आज्ञा दी जाती थी।
  3. पुरुषों में अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छा भी इस विवाह के कारणों में मुख्य थी व कई बार पुरुषों द्वारा परिवर्तन चाहने के कारण भी बहु-पत्नी विवाह प्रचलित था।
  4. विशाल परिवार को प्राचीन समय में अच्छा दर्जा प्राप्त होता था। बड़े आकार के परिवार की इच्छा भी बहुपत्नी विवाह को प्रभावित करती थी।
  5. प्राचीन कबीले-समाजों में समाज को सम्मान प्राप्त करने के लिए भी कबीले के सरदार एक से अधिक विवाह करवाने में विश्वास रखते थे। क्योंकि लोग उसको अधिक अमीर परिवार से सम्बन्धित कर देते थे।

बहु-पत्नी विवाह के लाभ (Merits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा से बच्चों का पालनपोषण बहुत बढ़िया ढंग से हो जाता था क्योंकि कई औरतें मिल कर उनकी देखभाल कर लेती थीं। यदि एक औरत बीमार हो जाती थी तो दूसरी औरत उसके बच्चों को रोटी इत्यादि दे देती थी।
  2. इस विवाह का लाभ यह भी था कि वेश्याओं के पास पुरुष को जाकर पैसा बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। घर में ही उसको अधिक काम इच्छा के लिए आवश्यक नवीनता भी प्राप्त हो जाती थी। इसकारण घर की सम्पत्ति भी सुरक्षित रहती थी।
  3. इस प्रथा से बच्चे भी स्वस्थ होते थे। क्योंकि एक स्त्री को ही अकेले बहुत बच्चों को जन्म देने के लिए उपयोग नहीं किया जाता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह से जब कुलीन विवाह पाया गया तो निम्न जाति की लड़की भी उच्च जाति के लड़के से शादी करने लगी जिसके परिणामस्वरूप समाज में भाईचारे की भावना भी अधिक जागृत हुई।

बहु-पत्नी विवाह की हानियां (Demerits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की सबसे बड़ी कमी यह थी कि स्त्रियों का दर्जा समाज में बहुत निम्न था। क्योंकि स्त्री को केवल पुरुष के मनोरंजन के साधन रूप में ही समझा जाता था। आदमी के लिए औरत के प्रति प्यार की भावना नहीं थी बल्कि वह उसको केवल लिंग इच्छा की पूर्ति से ही सम्बन्ध रखता था। औरत की भावनाओं की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता था। समाज में तो औरत की कोई पहचान ही नहीं थी।
  2. स्त्रियां जब लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति से अधूरी रह जाती थी तो वह घर से बाहर जाकर अपने यौन सम्बन्ध कायम करने लग जाती थी क्योंकि एक पुरुष बहु-पत्नियों से विवाह करवा कर अपनी सन्तुष्टि तो कर सकता है परन्तु स्त्रियों की सन्तुष्टि नहीं हो सकती।
  3. परिवार में विवाह की इस प्रथा के साथ-माहौल दुःखदायक ही रह जाता था क्योंकि अधिक पत्नियां होने से आपस में लड़ाई-झगड़ा लगा रहता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा के कारण समाज में परिवार के मुखिया पर आर्थिक बोझ अधिक होता था क्योंकि कमाने वाला एक होता था व बाकी परिवार के सभी सदस्य उस पर ही निर्भर होते थे। परिवार के रहन-सहन का दर्जा काफ़ी निम्न हो जाता था।
  5. बहु-पत्नी विवाह में परिवार का आकार बड़ा होता था जिस कारण मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा रहती थीं।

प्रश्न 4.
बहु-पति विवाह के प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
संसार के कई समाजों में बहु-पति विवाह की प्रथा प्रचलित है। बहु-पति विवाह का अर्थ विवाह की वह प्रथा है जिसमें एक औरत एक ही समय में एक से अधिक आदमियों से विवाह करवाए। उसको बह-पति विवाह का नाम दिया जाता है। अधिकतर यह विवाह तिब्बत (Tibet) पोलीनेशिया (Polynesia) के मार्कयूज़नीम, मालाबार के टोडा (Todas) मलायाद्वीप के कुछ कबीलों में अभी भी प्रचलित है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में महाभारत के अनुसार पांच पाण्डव भाइयों की भी एक ही पत्नी थी। भारत में देहरादून के खस कबीले, मध्य भारत के टोडा कबीले, केरल के कोट कबीले में भी बह-पति विवाह की प्रथा अभी भी प्रचलित है। इसके अतिरिक्त कई पहाडी कबीलों में भी इसी प्रथा को मान्यता प्राप्त हुई है। बहु-पति विवाह के बारे अलग-अलग विद्वानों के विचार नीचे दिए जा रहे हैं-

के० एम० कपाड़िया (K.M. Kapadia) के अनुसार, “बहु-पति विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें एक स्त्री के एक ही समय एक से अधिक पति होते हैं या इस प्रथा के अनुसार सभी भाइयों की सामूहिक रूप से एक पत्नी या कई पत्नियां होती हैं।” ___* जी० डी० मिचैल (G. D. Mitchell) के अनुसार, “एक स्त्री का दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह की प्रथा बहु-पति विवाह है।” इस प्रकार जिस विवाह में एक स्त्री के एक से अधिक पति हों को बहु-पति विवाह कहा जाता है।

बहु-पति विवाह के प्रकार (Types of Polyandrous Marriage)-बहु-पति विवाह के दो मुख्य रूप पाए होते हैं :

  1. भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)
  2. गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)

भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)-बहु-पति विवाह के इस प्रकार के अनुसार स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं। बड़े भाई को बच्चे का पिता समझा जाता था व बाकी छोटे भाई उस औरत के पति होते हैं व वह अपने बड़े भाई की आज्ञा के बिना यौन सम्बन्ध नहीं स्थापित कर सकते थे। घर में बड़े भाई की आज्ञा ही चलती थी व उसकी ही ज़िम्मेदारी होती थी कि वह बच्चों का पालन-पोषण करे। विवाह के पश्चात् यदि पति का और भाई भी जन्म लेता है तो उसको भी उस औरत का पति ही समझा जाता था। यदि बड़े के अलावा कोई और भाई भी किसी और जगह विवाह कर ले तो भी उसकी औरत के बाकी भाइयों से पत्नी वाले सम्बन्ध ही होते थे। यदि भाई इस बात को न मानें, अपनी पत्नी पर केवल अपना अधिकार ही समझे तो उसको जायदाद में से बेदखल कर दिया जाता था। भारत में नीलगिरी, लद्दाख, सिक्किम, असम इत्यादि में भी यह प्रथा पाई जाती है।

गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)-बहुपति विवाह के इस प्रकार में स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते बल्कि वह सब अलग-अलग स्थान पर रहते हैं। औरत के लिए समय निश्चित किया जाता है कि उसने कितने समय के लिए एक पति के पास रहना है। निश्चित समय समाप्त होने पर वह दूसरे पति के साथ रहती है। इस प्रकार बारी-बारी वह सब पतियों के साथ रहती है। इस प्रकार में यदि स्त्री की मृत्यु हो जाए तो सारे पतियों को विधुर सा जीवन जीना पड़ता है। कई कबीले जिनमें यह प्रथा पाई जाती है तो सब जब स्त्री गर्भवती होती है तो गर्भ अवस्था में जो पति उसको तीरकमान भेंट करता है तो उसी को बच्चे का पिता स्वीकार कर लिया जाता है व बारी-बारी सभी पतियों को इस रस्म के अदा करने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार इस प्रथा अनुसार यह भी नियम होता है कि एक निश्चित समय के लिए वह जिस पति के साथ रह रही होती है तो बाकी पतियों के उसके साथ लिंग सम्बन्धों की आज्ञा नहीं होती।

बहु-पति विवाह के कारण (Causes of Polyandry)-

1. प्राचीन कबीलों में रहते हुए लोगों के लिए एक व्यक्ति द्वारा पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी मुश्किल होती थी जिस कारण व्यक्ति मिल कर एक स्त्री से विवाह करवा लेते थे। डॉ० कपाड़िया के अनुसार यह प्रथा कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण भी पाई जाती थी। प्राचीन समय में रोजी रोटी के लिए व्यक्ति को बहुत लम्बा समय अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था इस कारण कुछ व्यक्ति इस काम में व्यस्त रहते थे व बाकी पुरुष परिवार की देख-रेख के लिए घर रहते थे।

2. बढ़ती हुई जनसंख्या को सीमित करने के लिए भी विवाह की यह प्रथा पाई गई। इसमें परिवार सीमित रहता है। क्योंकि बच्चे कम पैदा होते हैं।

3. कई स्थानों पर रोजी रोटी के साधन सीमित होने के कारण भी यह प्रथा पाई गई क्योंकि कमाने वालों की संख्या सीमित साधनों के कारण अधिक थी व खाने वाले कम हो जाते थे, जिससे उनमें खुशहाली भी थी।

4. कई समाज शास्त्रियों के अनुसार विवाह की इस प्रथा के प्रचलित होने का कारण औरतों की संख्या का मर्दो की संख्या से कम होना भी है। ___5. कुछ क्षेत्रों में लड़की की कीमत अदा करने पर ही उसको पत्नी बनाया जा सकता था व कई बार लड़की की कीमत इतनी अधिक होती थी कि अकेले व्यक्ति की हैसियत से बाहर होती थी। इस कारण कई व्यक्ति मिलकर उसको पत्नी बनाने के लिए कीमत अदा करने के काबिल होते थे। इसी कारण वह सभी मिलकर एक ही औरत को अपनी पत्नी स्वीकार कर लेते थे।

बहुपति विवाह के लाभ (Merits of Polyandry)-
1. बहु-पति विवाह की प्रथा से जनसंख्या सीमित की जा सकती है क्योंकि कई समाजों में ग़रीबी का कारण भी बढ़ती. आबादी द्वारा होता है, इस प्रथा से बच्चों की संख्या कम हो जाती है।

2. इस प्रथा से जैसे जनसंख्या सीमित होती है उसी तरह रहन-सहन का दर्जा ऊंचा हो जाता है, क्योंकि कमाने वाले पर परिवार का बोझ काफ़ी कम होता है। कमाने वालों की संख्या अधिक होती है जिस कारण परिवार पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पड़ता।

3. संयुक्त परिवार इस प्रथा के द्वारा ही पाया जाता है व साथ ही परिवार का आकार भी सीमित होता है। इस कारण लड़ाई-झगड़े भी कम हो जाते हैं क्योंकि प्रत्येक परिवार का सदस्य, परिवार के साझे लाभ के लिए ही मेहनत करता है।

4. बहुपति विवाह की प्रथा में बच्चों का पालन-पोषण अधिक स्थिर ढंग से होता है क्योंकि बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी परिवार के सभी सदस्यों की साझी होती है। माता व पिता का प्यार जो बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए पाया जाता है, भी बच्चों को प्राप्त हो जाता है। संघर्ष की स्थिति बहुत कम पाई जाती है।

बहुपति विवाह की हानियाँ (Demerits of Polyandry)-
1. बहुपति विवाह का सबसे बड़ा नुकसान औरतों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि एक स्त्री को कितने ही पुरुषों की लैंगिक इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती है जिस कारण उनका स्वास्थ्य कमज़ोर हो जाता था।

2. विवाह की इस प्रथा से जन्म दर बहुत कम होती थी। यदि यह विवाह कुछ कबीलों में विकसित रहा तो आने वाले वर्षों में हो सकता है कि समाज भी समाप्त हो जाए।

3. सभी पुरुषों की काम वासना पूरी नहीं की जा सकती क्योंकि औरत के लिए प्रत्येक आदमी के पास रहने का समय निश्चित किया जाता है। जब वह निश्चित समय एक आदमी के पास रह रही होती है तो बाकी आदमियों को उसके साथ सहवास करने की मनाही होती है। ऐसी स्थिति में आदमी अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार परिवार व समाज दोनों के बीच झगड़े से अनैतिकता में अधिकता पाई जाती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
विवाह की संस्था में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
1. सरकार द्वारा लाए गए परिवर्तन-जब विवाह को एक संस्था के रूप में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हुई तो इस संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन भी लाए गए। विवाह सम्बन्धी कानून पास किए गए जिनमें हिन्दू मैरिज एक्ट सन् 1955 (Hindu Marriage Act 1955) में पास किया गया। इस कानून के तहत बहु-विवाह की प्रथा पर पाबन्दी लगा दी गई। एक विवाह को ही समाज द्वारा स्वीकारा गया व एक आदर्श विवाह भी माना गया। बाल विवाह जैसी बुराई जो बहुत समय से इस समाज में चली आ रही थी, को भी समाप्त किया गया व कानून की उल्लंघना करने वाले को कठोर सज़ा दिए जाने का भी प्रावधान बना। तलाक सम्बन्धी कानून भी पास किया ताकि आदमी व औरत की ज़िन्दगी तनाव भरपूर न रहे। पुराने समय में औरत से चाहे पति दुर्व्यवहार करे तो भी उसको अपनी सारी ज़िन्दगी बितानी पड़ती थी परन्तु अब आदमी व औरत दोनों को छूट दी गई है कि कोई भी अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि सुख से भरपूर जीवन व्यतीत कर सके।

2. विवाह को सामाजिक समझौते से सम्बन्धित किया गया-पुरानी विचारधारा के अनुसार आदमी व औरत के लिए विवाह एक धार्मिक बन्धन तक ही सीमित होता था, परन्तु आजकल की विचारधारा के अनुसार विवाह को इस बात तक सही बताया कि यदि पुरुष व स्त्री के बीच अच्छे सम्बन्ध हैं तो ठीक है, नहीं तो इस समझौते को तोड़ा भी जा सकता है। कई हालातों में जबरदस्ती विवाह कर दिया जाता है तो बाद में सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए पति-पत्नी के द्वारा आप भी फ़ैसला लिया जा सकता है क्योंकि दोनों के लिए नियम भी समान के बनाए जाते हैं। आधुनिक समय में विवाह को निजी खुशी से सम्बन्धित किया है ताकि परिवार में बच्चों की देखभाल भी ठीक ढंग से हो सके।

3. औरतों की स्थिति में परिवर्तन-जैसे-जैसे औरतें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में हिस्सा लेने लगी हैं वैसे-वैसे विवाह का स्वरूप भी बदल गया है। शुरू में समाज में औरत आर्थिक पक्ष से बिलकुल ही दूसरों पर आधारित होती थी। इस तरह वह हर तरह का दुःख भी बर्दाश्त कर लेती थी। परन्तु धीरे-धीरे औरत ने जब शिक्षा प्राप्त कर ली तो उससे वह आर्थिक तौर पर स्वतन्त्र हो गई। वह अपने फ़ैसले आप लेने लगी। कानूनी पक्ष से भी उसे काफ़ी मदद प्राप्त हुई। पति के जुल्म करने की स्थिति में वह उससे अलग होकर अपना जीवन अधिक अच्छी तरह गुज़ारने लगी। इस प्रकार जब औरत ने समाज में अपनी एक जगह बना ली तो विवाह की संस्था में स्वयं परिवर्तन आ गया। तलाक दर में तेजी आई। औरत की स्थिति पहले से अधिक अच्छी हो गई।

4. शिक्षा के विकास द्वारा परिवर्तन-शुरू में शिक्षा की ओर कोई महत्त्व नहीं दिया जाता था। इसी कारण धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए विवाह की प्रथा विकसित रही। परन्तु जैसे-जैसे शिक्षा में बढ़ोत्तरी हुई तो विवाह को ज़रूरी न समझा गया व न ही छोटी उम्र में लड़की व लड़के की शादी की गई। शिक्षित बच्चे अपनी मर्जी से विवाह करवाने की इच्छा जाहिर करने लगे।

5. औद्योगीकरण के विकास द्वारा लाया परिवर्तन-पुराने समाज में विवाह सम्बन्धी नियम इतने कठोर होते थे कि हर एक व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करवाना पड़ता था। यदि वह उस नियम की उल्लंघना भी करता तो उसको सज़ा दी जाती थी। परन्तु जैसे-जैसे पैसे का महत्त्व समाज में बढ़ा तो विवाह के सम्बन्धों में परिवर्तन आ गया। प्राचीन समय की भान्ति विवाह में पवित्रता नहीं रही। आदमी व औरत ने अपने सम्बन्धों को भी काफ़ी हद तक पैसे के सुपुर्द कर दिया जिस कारण कई बार उनका एक-दूसरे पर विश्वास भी समाप्त हो जाता है व वह अलग रहना शुरू कर देते हैं। इसके अतिरिक्त औरतों व आदमियों दोनों तरफ से कुछ कमियां पैदा हो गई हैं जिनसे विवाह की संस्था की प्रबलता में भी कमी आई।

प्रश्न 6.
परिवार के मुख्य कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने परिवार के कार्यों को अपने-अपने ढंग से वर्गीकृत किया। इनका वर्णन अग्रलिखित अनुसार है
I. जैविक कार्य (Biological Functions of Family)

1. लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति (Satisfaction of Sexual desire) परिवार का यह ज़रूरी कार्य तब से पाया जा रहा है जब से मानवीय समाज पाया गया है क्योंकि लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति परिवार का प्रारम्भिक कार्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति ही आदमी व औरत को लम्बे समय तक जोड़े रखती है, जिसके साथ इनमें शख्सियत का भी निर्माण होता है। यदि हम इस इच्छा को दबा देते हैं तो इससे कई ऐसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिनसे सामाजिक सम्बन्ध भी टूट जाते हैं।

2. सन्तान उत्पत्ति (Reproduction)—मानवीय समाज को जीवित रखने के लिए भी यह ज़रूरी होता है कि हम मानवीय नस्ल को आगे से आगे बढ़ाएं। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार व्यक्ति को तब तक मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती जब तक उसके पुत्र पैदा नहीं होता। समाज भी परिवार से बाहर पैदा हुए बच्चे को गैर-कानूनी करार दे देता है। इसी कारण परिवार को ही सन्तान उत्पत्ति का मनोरथ कहा जाता है।

3. रहने की व्यवस्था (Provision of Shelter)-परिवार के द्वारा व्यक्ति की सुरक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है। व्यक्ति के रहने के लिए घर की व्यवस्था की जाती है ताकि रोज़ाना के कार्यों से वापिस आकर वह घर में अपने परिवार सहित रह सके। आजकल के समय में क्लबों, होटलों आदि में चाहे आदमी को रहने के लिए जगह मिल जाती है परन्तु घर उसके लिए स्वर्ग के समान होता है क्योंकि जो आराम उसको घर में रहकर मिलता है वह कहीं और नहीं मिलता।

4. बच्चों का पालन-पोषण (Upbringing of Children) बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी का कार्य भी परिवार का ही होता है। बच्चा पैदा करने का अर्थ यह नहीं कि उसको परिवार की ज़रूरत नहीं बल्कि बच्चे का सही विकास माता-पिता की देख-रेख में ही ठीक हो सकता है। यह ठीक है कि आधुनिक समय में औरतों के रोज़गार में आ जाने से बच्चों की सम्भाल परिवार से बाहर क्रैचों में जाकर होने लगी है, परन्तु फिर भी हम यह देखते हैं कि जो बच्चे माता-पिता की देख-रेख में बड़े होते हैं, उनमें अधिक गुणों का भी विकास हुआ होता है। हैवलॉक (Havelock) के अनुसार अमेरिका में माँ का दूध पीने वाले बच्चों के बीच मृत्यु दर, दूसरा दूध पीने वाले बच्चों से बहुत कम है। इस प्रकार परिवार की सहायता के साथ ही हम बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से कर सकते हैं व इससे ही बच्चे का सम्पूर्ण विकास भी हो सकता है।

II. आर्थिक कार्य (Economic Functions)-परिवार को शुरू से आर्थिक कार्यों का केन्द्र माना जाता रहा है क्योंकि अपने सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा भी इसी से प्राप्त होती है। परंपरागत समाजों में तो काफ़ी चीजें घर में रहकर ही बनाई जाती थीं। परिवार के आर्थिक कार्य इस प्रकार हैं-

1. जायदाद की सुरक्षा (Protection of Property)—परिवार में व्यक्ति की जायदाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है। प्राचीन समय में अधिकतर पितृ प्रधान परिवार में जायदाद का विभाजन केवल लड़कों में ही किया जाता था परन्तु आजकल के आधुनिक समय में जायदाद का विभाजन कानून के द्वारा लड़के व लड़की दोनों के बीच किया जाने लगा है। यदि कोई व्यक्ति विवाहित नहीं होता तो उसकी मौत के बाद जायदाद के विभाजन पीछे, रिश्तेदारों के बीच भी लड़ाई शुरू हो जाती है। इस प्रकार जायदाद परिवार के सदस्यों के बीच परिवार के मुखिया की इच्छा के मुताबिक विभाजित कर दी जाती है।

2. पैसे का प्रबन्ध (Provision of Money)-पैसे की ज़रूरत परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए होती है। इस कारण परिवार के मुखिया द्वारा ही प्राचीन समय में पैसे का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल आदमी व औरत दोनों मिलकर मेहनत करके परिवार के सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं।

III. परिवार के सामाजिक कार्य(Social functions of family)—

1. समाजीकरण (Socialization)-परिवार में व्यक्ति समाज के बीच रहने के तौर-तरीके सीखकर ही एक अच्छा नागरिक बनता है व परिवार के द्वारा ही बच्चे का सामाजिक सम्पर्क भी स्थापित होता है। व्यक्ति का जन्म परिवार में होता है व सबसे पहले वह अपने माता-पिता के सम्पर्क में आता है क्योंकि उसकी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति भी इन्हीं से ही होती है। स्थिति व भूमिका की प्राप्ति भी व्यक्ति के परिवार में ही रहकर होती है। प्रदत्त पद की प्राप्ति भी परिवार से ही होती है।

परिवार में रहकर ही बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता है। यह सामाजिक विशेषता उसको परिवार में रहकर ही प्राप्त होती है। सैण्डरसन ने व्यक्ति की पशु प्रवृत्तियों को नियन्त्रण में रखना, अच्छी आदतों का निर्माण करना, ज़िम्मेदारियों को समझना व व्यक्ति में स्वः विश्वास का विकास करना भी परिवार के द्वारा किए जाने वाले कार्यों के रूप में स्वीकार किया गया है। सहयोग, प्यार, कुर्बानी, अनुशासन इत्यादि जैसे गुणों का विकास भी बच्चे में परिवार के बीच रहकर ही होता है। जिस प्रकार की शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर प्राप्त करता है, उस प्रकार का असर बच्चे में समाज के लिए भी विकसित हो जाता है। उसको हर तरह से समाज में व्यवहार करने के बारे में पता लग जाता है।

2. सामाजिक संस्कृति को सुरक्षित रखना व आगे पहुंचाना (Protection and transmission of culture)-परिवार हमारी संस्कृति को सम्भालता है व यह संस्कृति ही हमारी सामाजिक विरासत होती है। इसमें निरन्तरता बनी रहती है। प्रत्येक परिवार अपनी यह ज़िम्मेदारी समझता है कि वह नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार, आदतें, रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि प्रदान करे, बच्चा वह हर चीज़ अचेतन प्रक्रिया में ही सीखता रहता है। क्योंकि वह जो कुछ भी अपने माता-पिता को करता देखता है वही वह आप करने लग जाता है। प्रत्येक परिवार के अपने रीति-रिवाज होते हैं जिन पर वह आधारित होता है। परिवार कुछ चीजें बच्चों को चेतन रूप में भी सिखाता है ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए आदर्शों के मुताबिक चले। इस प्रकार इस निरन्तरता के आधार पर ही परिवार की संस्कृति सुरक्षित भी रहती है व अगली पीढ़ी तक भी पहुंच जाती है।

3. सामाजिक नियन्त्रण (Social Control)-परिवार को सामाजिक नियन्त्रण की एक एजेंसी के रूप में महत्ता प्राप्त है क्योंकि यह पहली एजेंसी होती है जिसमें बच्चे पर नियन्त्रण रखा जाता है ताकि गलत आदतों का निर्माण उसमें न हो सके। उदाहरण के लिए माता-पिता बच्चे के झूठ बोलने पर नियन्त्रण रखते हैं, बड़ों के साथ गलत व्यवहार आदि पर नियन्त्रण करते हैं ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए कुछ नियमों की पालना करे। प्रत्येक सदस्य परिवार के लिए ऐसा काम करना चाहता है जिससे समाज में उसके परिवार का गौरव अधिक बढ़े। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इससे बच्चा आज्ञाकारी व अनुशासन प्रिय बन जाता है। यदि घर का एक बच्चा अपने बड़े भाई बहन या माता-पिता से गलत तरीके से व्यवहार करेगा तो समाज के बाकी सदस्यों के साथ भी वह दुर्व्यवहार करने लग जाता है। जैसे चोरी करना जोकि समाज के कानूनों के द्वारा जुर्म करार दिया जाता है। उसकी आदत भी कई बार परिवार के बड़े सदस्यों को देखकर सीखी जाती है। यदि परिवार के माता-पिता बच्चे के किसी प्रकार की वस्तु चोरी करके घर लाने पर मनाही नहीं करेंगे तो बच्चा बड़ा होकर यही काम करने लगेगा। इसी तरह से परिवार बच्चे पर हर तरह की निगरानी रखकर सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

4. स्थिति प्रदान करना (Provide Status)-परिवार में रहकर बच्चे को अपने स्थान व भूमिका का पता · चलता है। प्राचीन समाज में तो बच्चा जैसे भी परिवार में पैदा होता था उसी तरह का आदर उसको प्राप्त होने लग जाता था। जैसे अमीर परिवार, राजा-महाराजा के परिवार, जागीरदार के परिवार आदि में पैदा हुए बच्चे को उतना ही सम्मान समाज में प्राप्त होता था जितना उसके माता-पिता को। उसकी स्थिति वही होती थी। एक गरीब घर में पैदा हुए बच्चे की स्थिति भी निम्न होती थी। चाहे आजकल के समय में बच्चा समाज के बीच अपनी स्थिति परिश्रम से प्राप्त करने लगा है परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक बच्चा जिस तरह के परिवार में जन्म लेता है उसको उसी प्रकार कम या अधिक परिश्रम करना पड़ता है।

IV. शिक्षा सम्बन्धी कार्य (Educational Function)-परिवार बच्चे की शिक्षा के लिए प्राथमिक साधन होता है क्योंकि सबसे प्रथम शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर ही प्राप्त करता है। अच्छी आदतें सीखना व और अन्य कई गुण आदि परिवार से ही सम्बन्धित होते हैं। प्राचीन समाजों में व्यापार सम्बन्धी शिक्षा, धर्म सम्बन्धी शिक्षा, अच्छा नागरिक बनने सम्बन्धी, बच्चा परिवार में ही प्राप्त करता है। चाहे आज के समाज में बच्चे के शिक्षात्मक कार्य दूसरी संस्थाओं के पास चले गए हैं परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक परिवार अभी भी इस शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को अदा कर रहा है।

V. राजनीतिक कार्य (Political Function)-राजनीतिक क्षेत्र के लिए परिवार को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं। कनफ्यूशियस के अनुसार मनुष्य सबसे पहला सदस्य परिवार का है व बाद में राज्य का। आदिम (Primitve) समाज में परिवार की महत्ता राजनीतिक पक्ष से अधिक प्रबल होती थी। समाज अलग-अलग कबीलों में बंटा हुआ था। इन कबीलों के ऊपर सबसे बड़ी आयु वाले व्यक्तियों को मुखिया बनाया जाता था। परिवार में भी सबसे बड़ी आयु वाला मुखिया होता था व परिवार के बाकी सदस्य उसके मुताबिक चलते थे। भारतीय संयुक्त परिवार प्रणाली में भी परिवार के मुखिया की ही प्रतिनिधिता होती थी। यह मुखिया परिवार का दादा, पड़दादा आदि हो सकता था। परिवार के सदस्यों को अलग-अलग स्थितियां व रोल दिए जाते थे जिन्हें निभाना परिवार के प्रत्येक सदस्य का फर्ज होता था। परिवार की स्थिरता भी इसी कारण होती थी। आधुनिक समाज में परिवार के असंगठन का कारण ही परिवार के राजनीतिक कार्यों की कमी होती है। परिवार ही व्यक्ति को एक राजनीतिक व्यक्ति बनाने में मदद करता है जिससे व्यक्ति समाज का एक अच्छा नागरिक बन सकता है। यह राजनीतिक संगठन ही एक.ऐसा ताकतवर संगठन होता है जो व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्धों को भी नियमित करता है। सो पारिवारिक संगठन ही हमारे सामाजिक संगठन के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार परिवार राजनीतिक कार्य भी अदा करता है।

VI. धार्मिक कार्य (Religious Function)-धार्मिक संस्कारों के बारे जानकारी व्यक्ति को परिवार से ही प्राप्त होती है। जैसे हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार तब तक धार्मिक संस्कार अधूरे होते हैं जब तक पत्नी न हो। परिवार धार्मिक क्रियाओं का केन्द्र होता है। भारतीय समाज में विवाह को ही धार्मिक बन्धन का नाम दिया जाता है। धार्मिक क्रियाओं के द्वारा ही इसको पूरा किया जाता है। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के धार्मिक संस्कार परिवार द्वारा अदा किए जाते हैं। व्यक्ति में नैतिकता का विकास भी धर्म के द्वारा होता है। धर्म एक प्रकार से व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है। इससे व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है जैसे कुर्बानी अथवा त्याग की भावना, प्यार, सहयोग इत्यादि।

धर्म के आधार पर ही पारिवारिक जीवन भी निर्भर करता है। इस प्रकार धर्म अपने सदस्यों को धार्मिक आदर्शों, नियमों आदि प्रति पहचान करवाता है जिससे व्यक्तियों में एकता इत्यादि की भावना भी कायम रहती है। चाहे आजकल के समाज में लोगों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया है परन्तु फिर भी परिवार धार्मिक रिवाजों को कायम रख रहा है।

VII. मनोरंजन के कार्य (Recreational Function) परिवार अपने सदस्यों के मनोरंजन के लिए भी सहूलतें प्रदान करता है। शुरू के समाज में व्यक्ति रात के समय परिवार में इकट्ठे बैठकर एक-दूसरे से अपनी रोज़ाना की बातचीत करते थे व परिवार के बुजुर्ग सदस्य अपनी बाल कथाएं आदि सुनाकर शेष का मनोरंजन करते थे। उस समय मनोरंजन के दूसरे साधन विकसित नहीं थे। इसके अतिरिक्त त्योहारों के समय भी परिवार के सदस्य इकट्ठे मिल कर नाचते, गाना गाते थे जिनसे सबका मनोरंजन होता था।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
गोत्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गोत्र को वंश समूह का विस्तृत रूप कह सकते हैं। जब कोई वंश समूह विकास के कारण बढ़ जाता है तो वह गोत्र का रूप धारण कर लेता है। यह माता या पिता के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों को मिलाकर बनता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि गोत्र रक्त के रिश्तेदारों का समूह होता है और वह सभी किसी साझे पूर्वज के एक रेखकी सन्तान होते हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि यह साझे पूर्वज काल्पनिक होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को पता नहीं होता है।

गोत्र किसी ऐसे व्यक्ति या पूर्वज से शुरू होता है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। क्योंकि यह माना जाता है कि उसने ही परिवार को या उस गोत्र को शुरू किया था इसलिए उसको संस्थापक मान लिया जाता है। उस गोत्र का नाम भी उसके पूर्वज के नाम के साथ रख लिया जाता है। गोत्र हमेशा एक तरफ को चलती है मतलब किसी बच्चे के माता-पिता के गोत्र एक नहीं हो सकते वह हमेशा अलग-अलग होंगे। यह एक पक्ष का ही होता है। इसका यह अर्थ है कि माता की गोत्र अलग परिवारों का इकट्ठ है और पिता की गोत्र भिन्न परिवारों का इकट्ठ है। इस तरह यह गोत्र बाहर व्यक्ति का समूह होता है। एक ही गोत्र में विवाह नहीं हो सकता।

परिभाषाएं (Definitions) –

(1) मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “एक क्लैन या सिब अक्सर कुछ वंश समूहों का जुट होता है जोकि आपसी उत्पत्ति एक कल्पित पूर्वज से मानते हैं जोकि मनुष्य या मनुष्य की तरह, पशु, वृक्ष, पौधा या निर्जीव वस्तु हो सकता है।”
(“A clan or sib is often the combination of a few lineages and descent into may be ultimately traced to a mythical ancestor, who may be human, human like, animal, plant or even in animate.”)

(2) पिंडिगटन (Pidington) के अनुसार, “एक गोत्र जिसको कभी-कभी कुल (Sib) भी कहते हैं, एक बाहर विवाही सामाजिक समूह है जिसके सदस्य अपने आपको एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित समझते हैं, जो आमतौर पर अपनी उत्पत्ति एक काल्पनिक वंशानुक्रम द्वारा किसी बड़े-बूढ़ों से मानते हैं।”
(“A clan some times called sib is an exogamous social group whose members regard themselves as being related to each other usually by functional descent from a common ancestor.”)

(3) रिवर्ज़ (Rivers) के अनुसार, “गोत्र में कबीले का एक बाहर विवाहित विभाजन है जिसके सदस्य अपने ही कुछ बन्धनों द्वारा एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित रहते हैं। इस बन्धन का आकार एक साझे पूर्वज की सन्तान या वंश होने में विश्वास एक साझा टोटम या एक साझे भू-भाग में निवास हो सकता है।”(“Clan is an exogamous division of tribe the members of which are held to be related to one another by same common lies, it may be descent from a common ancestor, possession of a common totom or hibitationed of a common territory.”) .

इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि गोत्र एक काफ़ी बड़ा रक्त समूह होता है जोकि एक वंश के सिद्धान्त पर आधारित होता है। गोत्र अपने आप में एक पूरा सामाजिक संगठन है जोकि एक समाज की अलगअलग गोत्रों को एक खास रूप अर्थात् और काम प्रदान करती है। गोत्र या तो मातृ वंशी होती है या फिर पितृ वंशी, मतलब कि बच्चे या तो पिता की गोत्र के सदस्य होते हैं या फिर माता की गोत्र के सदस्य । एक गोत्र बाहरी समूह होता है अर्थात् विवाह गोत्र से बाहर होना चाहिए है। इसलिए माता-पिता के गोत्र अलग-अलग होने चाहिए।

गोत्र की विशेषताएं (Characteristics of Clan) –

1. गोत्र की सदस्यता वंश पर आधारित होती है (Membership of Clan depends upon Lineage)गोत्र की सदस्यता वंश परम्परा पर आधारित होती है। यह चाहे पितृ वंशी या मातृ वंशी हो सकता है जोकि उस समाज पर निर्भर करता है। व्यक्ति की गोत्र उसके हाथ में नहीं होती। यह उसकी इच्छा पर भी आधारित नहीं होती। यह तो जन्म पर आधारित होता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है उसका सदस्य बन जाता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है, उसमें ही बड़ा होता है और उसमें ही मर जाता है।

2. हर गोत्र का नाम होता है (Each clan has a name)-हर गोत्र का एक खास नाम होता है। चाहे यह नाम, पशु, वृक्ष, किसी प्राकृतिक वस्तु आदि से भी लिया जा सकता है। यह चार प्रकार के होते हैं-भू-भागी नाम, टोटम वाले नाम, उपनाम, ऋषि नाम।

3. एक पक्ष (Unilateral)–गोत्र हमेशा एक पक्ष का होता है। यह कभी भी दो पक्ष की नहीं हो सकती। इसका मतलब यह हुआ कि गोत्र या पितृ वंशी समूह होगा या मातृ वंशी समूह। पितृ वंशी समूह से मतलब है कि वह बच्चा पिता के वंश का सदस्य होगा और मातृ वंशी से मतलब है कि वह माता के वंश का सदस्य होगा। इस तरह सिर्फ एक पक्ष होगा दोनों तरफ से नहीं।

4. गोत्र के सदस्य एक स्थान पर नहीं रहते (Member of a clan do not live at one place)-गोत्र के सदस्यों में खून का सम्बन्ध होता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्थान पर रहते हों। इनका निवास स्थान साझा नहीं होता।

5. साझा पूर्वज (Common Ancestor)—गोत्र का एक साझा पूर्वज होता है चाहे उस पूर्वज के बारे में किसी को पता नहीं होता। यह साझा पूर्वज हमेशा कल्पना पर आधारित होता है। चाहे वह पूर्वज असल में भी हो सकते हैं पर यह आमतौर पर कल्पित भी हो सकता है।

6. बर्हिविवाही समूह (Exogamous group)-गोत्र एक बर्हिविवाही समूह है। इसका मतलब है कि कोई भी एक ही गोत्र में विवाह नहीं करवा सकता। यह वर्जित होता है। यह इस वज़ह के कारण होता है क्योंकि गोत्र के सारे सदस्य एक साझे असली या कल्पित पूर्वज की पैदावार होते हैं और उन सभी में खून के सम्बन्ध होते हैं। इस वज़ह के कारण उस रिश्ते में बहन-भाई हुए और इनमें वर्जित है। विवाह अपनी गोत्र से बाहर ही करवाया जा सकता है

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

विवाह, परिवार तथा नातेदारी PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक समाज ने अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कुछ संस्थाओं का निर्माण किया होता है। संस्था सामाजिक व्यवस्था का एक ढांचा है जो एक समुदाय के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करती है। यह विशेष प्रकार की आवश्यकता को पूर्ण करती है जो समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
  • संस्थाओं की कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह विशेष आवश्यकताएं पूर्ण करती हैं, यह नियमों का एक गुच्छा हैं, यह अमूर्त व सर्वव्यापक होती हैं, यह स्थायी होती हैं जिनमें आसानी से परिवर्तन नहीं आते, इनमें प्रकृति सामाजिक होती है इत्यादि।
  • विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है। यह समाज की एक मौलिक संस्था . है। विवाह से दो विरोधी लिंगों के व्यक्तियों को पति-पत्नी के रूप में इकट्ठे रहने की आज्ञा मिल जाती है। वह लैंगिक संबंध स्थापित करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं तथा समाज के आगे बढ़ने में योगदान देते हैं।
  • वैसे तो समाज में विवाह के कई प्रकार मिलते हैं परन्तु एक विवाह तथा बहु विवाह ही प्रमुख हैं। बहुविवाह आगे दो भागों में विभाजित हैं-बहुपति विवाह तथा बहुपत्नी विवाह । बहुपति विवाह कई जनजातीय समाजों में प्रचलित है तथा बहुपत्नी विवाह पहले हमारे समाजों में प्रचलित था।
  • हमारे समाज में जीवन साथी के चुनाव के कई तरीके प्रचलित हैं जिनमें से अन्तर्विवाह (Endogamy) तथा बहिर्विवाह (Exogamy) प्रमुख हैं। अन्तर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह के अंदर ही विवाह करना पड़ता है तथा बहिर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह से बाहर विवाह करवाना पड़ता है।
  • विवाह की संस्था में पिछले कुछ समय में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं। इन परिवर्तनों के कई मुख्य कारण हैं जैसे कि औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिक शिक्षा, नए कानूनों का बनना, स्त्रियों की स्वतन्त्रता, पश्चिमी समाजों का प्रभाव इत्यादि।
  • परिवार एक ऐसी सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में मौजद है। व्यक्ति केजीवन में परिवार नामक संस्था का काफ़ी अधिक प्रभाव है तथा इसके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।
  • परिवार के कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह सर्वव्यापक संस्था है, इसका भावात्मक आधार होता है, इसका आकार छोटा होता है यह स्थायी तथा अस्थायी दोनों प्रकार का होता है, यह व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करता है इत्यादि।
  • परिवार के कई प्रकार होते हैं तथा इनके रहने के स्थान, सत्ता, सदस्यों इत्यादि के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  • पिछले कुछ समय में परिवार नामक संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं जैसे कि आकार का छोटा होना, परिवारों का टूटना, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन, नातेदारी के संबंधों का कमज़ोर होना, कार्यों में परिवर्तन इत्यादि।
  • नातेदारी व्यक्ति के रिश्तों की व्यवस्था है। इसमें कई प्रकार के रिश्ते आते हैं। नातेदारी को दो आधारों पर विभाजित किया जा सकता है। वह दो आधार हैं-रक्त संबंध तथा विवाह।
  • नज़दीकी तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार के रिश्तेदार पाए जाते हैं-प्राथमिक, द्वितीय तथा तृतीय प्रकार के रिश्तेदार। प्राथमिक रिश्तेदार माता-पिता, बहन-भाई होते हैं। द्वितीय रिश्तेदार हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे पिता का पिता-दादा। तृतीय प्रकार के रिश्तेदार द्वितीय रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे-चाचा का पुत्र-चचेरा भाई।
  • पितृसत्तात्मक (Patriarchal)-वह परिवार जहाँ पिता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • मातृसत्तात्मक (Matriarchal)—वह परिवार जहाँ माता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • एकाकी परिवार (Nuclear Family)—वह परिवार जहाँ पति, पत्नी व उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हों।
  • संयुक्त परिवार (Joint Family)-वह परिवार जिसमें दो या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे रहते हों तथा एक ही रसोई में से खाना खाते हों।
  • अन्तर्विवाह (Endogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि जाति में ही विवाह करवाना।
  • बहिर्विवाह (Exogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि गोत्र या परिवार से बाहर विवाह करवाना।
  • एक विवाह (Monogamy)-जब एक स्त्री का एक पुरुष से विवाह हो उसे एक विवाह कहते हैं।
  • बहु विवाह (Polygamy)-जब एक पुरुष या स्त्री दो या अधिक विवाह करवाएं तो उसे बहुविवाह कहते है।
  • विवाह मूलक नातेदारी (Affinal Kinship)—वह रिश्तेदारी जो व्यक्ति के विवाह के पश्चात् बनती है जैसे कि जमाई, जीजा, इत्यादि।
  • रक्त मूलक नातेदारी (Consanguineous Kinship)—वह नातेदारी जो व्यक्ति के जन्म के पश्चात् ही बन जाती है जैसे-पुत्र, पुत्री, माता, पिता, भाई, बहन इत्यादि।
  • नातेदारी (Kinship)-सामाजिक संबंध जो वास्तविक या काल्पनिक आधारों पर रक्त या विवाह के अनुसार बनते हों।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

PSEB 12th Class Geography Guide चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

प्रश्न 1.
पर्यावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के आस-पास जो एक घेरा बना है जिसमें वह लगातार सहजीवी रिश्ते में रह रहा है, पर्यावरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
प्रदूषण की परिभाषा दो।
उत्तर-
जब भौतिक पर्यावरण में कुछ जहरीले पदार्थ तथा रसायन अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं जो पानी, वायु तथा मिट्टी को जीवन भर के लिए अयोग्य बना देते हैं, प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 3.
भू-प्रदूषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
मिट्टी में हानिकारक पदार्थों के जमा होने के साथ मिट्टी की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक संरचना बुरी तरह तहस-नहस हो जाती है जिसके साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाती है, इसको भू-प्रदूषण कहते हैं।

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प्रश्न 4.
यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यूट्रोफिकेशन कुपोषण प्रक्रिया तब घटती है जब अधिक मात्रा में रासायनिक खादों के रूप में प्रयोग किए जाने वाले नाइट्रेट फास्फेट जल के स्रोतों में मिल कर ऐलगी को खाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ा देते हैं जिसके साथ पानी में घुलने वाली आक्सीजन कम हो जाती है तथा पानी के जीव-जन्तु मर जाते हैं।

प्रश्न 5.
जल-प्रदूषण के कोई दो बिन्दु स्रोतों (Point Sources) के नाम बताओ।
उत्तर-
जल प्रदूषण के बिन्दु स्रोत हैं-शहरी सीवरेज़, कारखानों से निकली पाइपें इत्यादि।

प्रश्न 6.
जल दिवस (Water Day) कब मनाया जाता है ?
उत्तर-
जल दिवस हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है।

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प्रश्न 7.
‘नमामि गंगा’ मिशन क्या है ?
उत्तर-
भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ रखने के लिए तथा इसको बचाने के लिए नमामि गंगा मिशन की शुरुआत की है।

प्रश्न 8.
हवा-प्रदूषण क्या है ?
उत्तर-
जब हवा में जहरीले तथा अनचाहे पदार्थ मिल कर वायु को दूषित कर देते हैं तथा यह वायु मनुष्य के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालती है, तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण के कोई दो प्राकृतिक स्रोत बताओ। किस आकार के धूल के कण सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं ?
(i) PM5 किलोमीटर
(ii) PM10 माइक्रोमीटर
(iii) PM 2.5 माइक्रोमीटर
(iv) PM 3 किलोमीटर।
उत्तर-
(ii) PM 2.5 माइक्रोमीटर।

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प्रश्न 10.
धरती दिवस मनाया जाता है ?
(i) 5 जून
(ii) 23 मार्च
(ii) 22 अप्रैल
(iv) 17 सितंबर।
उत्तर-
(ii) 22 अप्रैल।

प्रश्न 11.
सिआचिन का शब्द अर्थ क्या है ?
उत्तर-
सिआ (Sia) + चिन (Chen) का भाव है-बड़ी संख्या में गुलाब के फूल।

प्रश्न 12.
LOAC से क्या भाव है ?
उत्तर-
LOAC का अर्थ है-लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल। यह सिआचिन ग्लेशियर के क्षेत्र में एक विवादग्रस्त सीमा रेखा है।

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प्रश्न 13.
सिंध जल सन्धि में पूर्वी नहरें कौन-सी मानी गई हैं ?
उत्तर-
सिंध जल सन्धि में पूर्वी नहरें सतलुज, ब्यास तथा रावी मानी गई हैं।

प्रश्न 14.
पाक खाड़ी में 14वीं सदी दौरान कौन-से टापू प्रकट हुए ?
उत्तर-
पाक खाड़ी में 14वीं सदी दौरान कच्चातिवु तथा रामेश्वरम् के टापू प्रकट हुए।

प्रश्न 15.
पहाड़ी इलाकों में मिलते ‘LA’ का क्या हैं ?
उत्तर-
उत्तरी भारतीय भाषा में ‘LA’ तथा दर्रा दोनों शब्दों को पहाड़ी नदियों को समझने के लिए एक-दूसरे की जगह पर प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 16.
भारत में हाथ से काम करने के योग्य लोगों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
भारत में हाथ से काम करने वाले लोगों की संख्या 48 करोड़ 60 लाख के लगभग है।

प्रश्न 17.
संसद् में स्त्रियों के प्रतिनिधित्व के लिए संसार में कौन-सा देश सबसे आगे है ?
उत्तर-
संसद् में स्त्रियों के प्रतिनिधित्व के लिए संसार में रवान्डा, देश है, जहां संसद् में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व 64 प्रतिशत है।

प्रश्न 18.
राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण का कौन-सा मुद्दा सबसे जरूरी भौगोलिक अध्ययन मांगता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषणों के मामले सबसे ज़रूरी भौगोलिक अध्ययन मांगते हैं।

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प्रश्न 19.
भारत में कुल कितना पशुधन है ?
उत्तर-
भारत में कुल 19.1 प्रतिशत पशुधन है।

प्रश्न 20.
कौन-से रसदार फलों के उत्पादन के लिए पंजाब देश में आगे है ?
उत्तर-
किन्नू तथा अंगूर जैसे फलों के उत्पादन के लिए पंजाब देश में आगे है।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
भूमि प्रदूषण के क्या कारण हैं ? इसका कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
भूमि प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

  1. कृषि के उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने वाले नदीननाशक, जहरीली दवाइयां इत्यादि के छिड़काव के कारण भूमि प्रदूषित होती है।
  2. बड़ी मात्रा में लगे कूड़े इत्यादि के ढेर भी भूमि को दूषित करते हैं।
  3. जंगलों के अंतर्गत कम क्षेत्र भी भूमि को दूषित करते हैं।
  4. शहरीकरण होने के कारण भी प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

कृषि पर प्रभाव-भूमि प्रदूषण के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव हैं-

  1. इस कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  2. मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरता कम होती है; जिस कारण मिट्टी अधिक खुरती है। मिट्टी में मौजूद ज़रूरी उपजाऊ तत्त्व खत्म हो जाते हैं। मिट्टी में खारापन आ जाता है।

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प्रश्न 2.
चार R क्या है ?
उत्तर-
प्राकृतिक स्रोतों के योग्य प्रयोग के लिये निम्नलिखित चार ‘R’ के बारे में ज्ञान आवश्यक है।

  • मना करना (Refuse) हमें अपने घरों में फालतू सामान नहीं रखना चाहिए सिर्फ ज़रूरत अनुसार सामान ही घरों में रखना चाहिए। पॉलीथीन में लिपटा सामान तथा पॉलीथीन के लिफाफे लेने से इन्कार कर देना चाहिए।
  • दोबारा उपयोग (Reuse) जो सामान दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है उसको दोबारा प्रयोग करना चाहिए जैसे कि लकड़ी, स्टील, कांच इत्यादि के सामान को दोबारा प्रयोग किया जा सकता है।
  • दोबारा प्रयोग योग्य बनाना (Recycle)—घर का न प्रयोग होने वाला सामान इकट्ठा करके कबाड़ी तक पहुँचा देना चाहिए, ताकि उसको पिघला कर दोबारा प्रयोग योग्य बनाया जा सके। बाज़ार जाते समय वस्त्र या पटसन का थैला लेकर जाओ। पॉलिथीन के लिफाफे में डालने से खाने-पीने का सामान, फल इत्यादि जहरीले हो सकते हैं।
  • कम करना (Reduce)-हमें प्लास्टिक तथा फालतू सामान के प्रयोग को कम करके अपनी ज़रूरतों को
    सीमित करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
जल प्रदूषण क्या होता है ? अलग-अलग प्रकार के जल प्रदूषकों के नाम बताओ।
उत्तर-
जल में भौतिक या रासायनिक परिवर्तन के कारण जब जल दूषित हो जाता है, उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषणों के नाम- अलग-अलग जल प्रदूषणों के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. रासायनिक खादों के रूप में उपयोग किए जाने वाले नाइट्रेट व फास्फेट।
  2. सीवरेज़।
  3. कारखानों की पाइप के द्वारा निकाला पदार्थ।
  4. कई तरह के तेज़ाब, ज़हरीले पदार्थ जैसे पोलीक्लोरीनेटड थाई फिनाइल, डी०डी०टी० इत्यादि तथा ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी दूषित करते हैं।

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प्रश्न 4.
जल प्रदूषण रोकने के कोई चार तरीके बताओ।
उत्तर-
जल प्रदूषण को रोकने के मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं-

  • ताप बिजली घरों के गर्म पानी को नहरों में फेंकने से पहले पानी ठंडा कर लेना चाहिए।
  • घरों का सीवरेज कई बार पेयजल के स्रोतों में फेंका जाता है, इस पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए।
  • नदी के साथ-साथ उगे हुए पेड़-पौधों को राइपेरियन बफर कहा जाता है। इसके साथ नदी के पानी की रक्षा ‘होती है। इसलिए सरकार को इस राइपेरियन बफर को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।
  • जल प्रदूषण की समस्या विकासशील देशों में काफी खतरनाक रूप धारण कर चुकी है। भारत के तकरीबन सारे राज्यों में सन् 1974 में बने कानून जल प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पोल्यूशन एक्ट लागू हो गया है। इस कानून के अनुसार सभी नगर पालिकाओं तथा उद्योग प्रयोग किए गए पानी को नदियोंमें फेंकने से पहले साफ करेंगे तथा ज़हरीले पदार्थों को बाहर निकालेंगे और फिर पानी नदी में छोड़ा जाएगा।

प्रश्न 5.
वायु प्रदूषण करने वाले कोई चार कारकों के नाम बताओ। मानवीय स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
ज़हरीले तथा अनचाहे पदार्थों द्वारा वायु को दूषित कर देने को, वायु प्रदूषण कहते हैं। मुख्य वायु प्रदूषण करने वाले कारक हैं :

  • ज्वालामुखी विस्फोट कारण निकली गैसें इत्यादि।
  • कार्बन तथा ऑक्साइड।
  • नाइट्रोजन तथा ऑक्साइड।
  • हवा में धूल कण।
  • धुआं, ओज़ोन, सल्फ्यूरिक अम्ल इत्यादि।

मानवीय स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव-PM10 मोटे कण 10 माइक्रोमीटर तक ये कण फेफड़ों तक जाकर मनुष्य की मौत का कारण बन सकते हैं। वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख लोग भारत में हर साल मर जाते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत की दरपेश कोई चार मुश्किलों के नाम बताओ जो भौगोलिक अध्ययन मांगती हैं ?
उत्तर-
भारत की दरपेश मुश्किलें जो भौगोलिक अध्ययन मांगती हैं इस प्रकार हैं-
प्रदूषण की समस्या, विश्व में रहते लोगों, समाज तथा देश में एक पक्ष सामान है, वह है-जीवन का आधार । पृथ्वी तथा पृथ्वी से जुड़े प्राकृतिक स्रोत का यह पक्ष भौगोलिक दृष्टिकोण को अध्ययन में लेकर आता है। विकासशील देशों में विकास का अर्थ लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना तथा हर मनुष्य को सुरक्षा प्रदान करना है। भारत की दरपेश कुछ मुद्दों का अध्ययन करने की मांग है-

  • सिआचिन ग्लेशियर का मुद्दा- यह ग्लेशियर सिंध तथा नुबरा नदियों को जल प्रदान करता है तथा पाकिस्तानी हमलावरों को दक्षिण की तफ बढ़ने से रोकता है। इस क्षेत्र की सीमाबंदी की जानी अभी बाकी है। बल्कि तार इत्यादि लगाकर सीमा को स्पष्ट करना चाहिए तथा सीमा सम्बन्धी मामलों के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत करके मामला निपटा लेना चाहिए।
  • सरकरीक का मुद्दा-यह एक दलदली खाड़ी है। देश के विभाजन समय कच्छ का इलाका बोबे प्रैजीडैन्सी के अधीन था और पाकिस्तान का दावा है कि कच्छ के तत्कालीन बादशाह तथा सिंध की सरकार के बीच 1914 में हुए समझौते के अनुसार यह क्षेत्र पाकिस्तान का होना चाहिए। यह सीमा क्षेत्र दोनों देशों के मध्य एक मुद्दा है।
  • कच्चातिवु-कच्चातिवु श्रीलंका में पड़ता एक विवाद ग्रस्त टापू है।
  • सिंध जल संधि का मुद्दा।

प्रश्न 7.
आर्थिक पक्ष से हम विश्व के देशों का विभाजन कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक पक्ष से हम विश्व के देशों का विभाजन इस प्रकार कर सकते हैं-आर्थिक पक्ष से हम विश्व को तीन भागों में बाँट सकते हैं-विकसित, विकासशील तथा अल्पविकसित देश। जब लोग गरीब देशों की बात करते हैं उनमें खास कर तीसरी श्रेणी में शामिल किया जाता है। जो देश अभी विकास कर रहे हैं उनको विकासशील देश कहते हैं तथा जिन देशों में काफी हद तक विकास हो चुका है, उन्हें विकसित देश कहते हैं। तीसरे हिस्से के देशों में पेनांग, जेनेवा, ताईवान इत्यादि। विकासशील देशों में भारत, चीन, इण्डोनेशिया इत्यादि विकसित देशों में यू०एस०ए० जापान, इटली, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 8.
सिंध जल संधि के मुताबिक पश्चिमी नदियों का जल कौन से कारणों के लिए भारत उपयोग कर सकता है ?
उत्तर-
सिंध जल संधि जो सन् 1960 में हुई। इस संधि के अनुसार पश्चिमी नदियों के जल का प्रयोग करने के लिए भारत को पूरी तरह से आजादी है। वह इन नदियों पर 3.6 MAF मात्रा तक भंडारण कर सकता है पर भंडारण में 0.5 MAF पानी हर साल छोड़ कर एकत्र करना होगा। पश्चिमी नदियों (चिनाब, जेहलम तथा सिंध) का पानी पाकिस्तान बिना किसी रुकावट के प्रयोग कर सकता है तथा भारत की ज़िम्मेदारी है कि इन नदियों का सारा जल जाने दिया जाए, सिर्फ चार स्थितियों के बिना-

  1. घरेलू उपयोग के लिए
  2. किसी ऐसे उपयोग के लिए प्रयोग किए पानी को खत्म न करे।
  3. कृषि के लिए।
  4. पन बिजली उत्पादन के लिए।

प्रश्न 9.
भौगोलिक सिरमौरता पक्ष से अध्ययन की कोई चार शाखाओं के नाम लिखो।
उत्तर-
भौगोलिक सिरमौरता प्राकृतिक तथा मानवीय प्रक्रियाओं के स्थानीय विभाजन की प्रसन्नता जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास, स्थानीय विभाजन करवाना होता है। इसकी मुख्य शाखाएं हैं-

  • भू-आकृति वैज्ञानिक पक्ष-इसमें जलवायु वैज्ञानिक सिरमौरता, महासागरीय देन तथा अलग पेड़-पौधे तथा जीव जन्तु इत्यादि आते हैं।
  • मानवीय साधनों की उत्तमता-इसमें कृषि क्षेत्र की उपज, बुनियादी ढांचे की सुंदरता, औद्योगिक प्राप्तियां शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक विशेषताएं- इसके अंतर्गत राष्ट्रीय चिन्ह, कबाइली दौलत तथा धार्मिक सहवास शामिल हैं।
  • जन-आंकड़े-इसके अधीन ऐतिहासिक स्थान, यूनेस्को से संबंधित दौलत तथा सैलानी रुचि के स्थानों की शान शामिल हैं।

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प्रश्न 10.
समुद्र तल से ऊँचा जाने के साथ क्या बिमारी होती है तथा इससे कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर-
समुद्र तल से ऊंचा जाने पर माऊंटेस सिकनैस नामक बिमारी हो जाती है तथा इस बिमारी से बचने के लिए ऐसे क्षेत्र में रहना चाहिए जहाँ पहले 2-3 दिन कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्र में प्रवास के लिए अपने आप को ढालना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण रोकने पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण की रोकथाम निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-ताप या उत्प्रेरक का असर कम करने के लिए आवश्यक है कि प्रदूषित कणों को रोका जाए। भारत में ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टेंडर्स ने वायु की गुणवत्ता का सूचकांक बनाया है जो कि 0 से 500 के करीब है। अगर सूचकांक बढ़ता है तो इसका अर्थ है, हवा के प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। वायु के प्रदूषण को कम करने के लिए अपारंपरिक स्रोतों का प्रयोग, जैसे-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि को बढ़ाना आवश्यक है। पेड़ों को काटने पर रोक लगानी चाहिए तथा अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। फालतू सड़कों के बैरियर तथा चैक पोस्टों इत्यादि को कम करना चाहिए, ताकि प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सके तथा तेल को बचाया जा सके। वायु की निगरानी के लिए उपकरण, वायु साफ करने वाले फिल्टर, रेडियो मीटर इत्यादि को महत्त्वपूर्ण स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
लासैंट अध्ययन के मुताबिक कितने भारतीय वायु प्रदूषण से पीड़ित हैं ? इसका क्या असर हो रहा
उत्तर-
मैडिकल मैगजीन द लासैंट के अध्ययन के मुताबिक भारत में जहरीली हवा या प्रदूषित वायु में लोग सांस ले रहे हैं। जिस कारण भारत में औसतन दो मौतें हर रोज़ हो रही हैं। ये मौतें इस जहरीली वायु के कारण ही हो रही हैं। दुनिया के प्रदूषित शहरों में कुछ शहर भारत में ही हैं। 2010 में किए एक अध्ययन के अनुसार विश्व में 2.7 से 3.4 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के कारण निश्चित समय से पहले पैदा होते हैं तथा एशिया में यह दर 1.6 तक है।

प्रश्न 3.
भारत के भू-जल में आर्सेनिक की समस्या के बारे में एक नोट लिखो।।
उत्तर-
आर्सेनिक पूरे संसार में पृथ्वी के नीचे वाले पानी की बहुत गंभीर समस्या बनती जा रही है। खास कर ट्यूबवैल अधिक मात्रा वाले गंगा डेल्टा में, पश्चिमी बंगाल के क्षेत्र में बहुत सारे लोग इसका शिकार हो गए हैं। 2007 के साल में किए एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया के 70 देशों में 1 करोड़ 37 लाख लोग आर्सेनिक जहर के शिकार हो चुके हैं। भारत की भूमि के नीचे वाला पानी में जो कि पीने योग्य पानी है कारखानों, नगरपालिका में से निकले दृषित जल के कारण दूषित हो गया है। मानवीय स्वास्थ्य के लिए खासकर नवजात बच्चों के लिए बहुत खतरनाक है। पृथ्वी के नीचे पीने योग्य पानी में क्लोराइड की मात्रा बढ़ने के कारण मांसपेशीय तथा दिमागी रोग हो रहे हैं, इसके अतिरिक्त आंतड़ियों के रोग, दांतों के रोग भी मानवीय स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं। इसी प्रकार आर्सेनिक दिमाग की बिमारियों, फेफड़ों की बिमारियों तथा चमड़ी के कैंसर की बिमारियों का मुख्य कारण बनती जा रही है। साल 2030 तक संसार में पानी की मांग अब के समय से 50% बढ़ने का एक अनुमान है। कहते हैं कि यह मांग शहरी क्षेत्र में अधिक बढ़ने का अनुमान है।

प्रश्न 4.
ऑपरेशन मेघदूत क्या था ? जान-पहचान करवाओ।
उत्तर-
युद्ध के समय सिआचिन (सैंची) ग्लेशियर का महत्त्व काफी है जिस पर पाकिस्तान अपना अधिकार जमाने की लगातार कोशिश कर रहा है। अप्रैल 1984 से भारतीय सेना को समुद्र तल से 6400 मीटर की ऊँचाई पर NH9842 पर इंदिरा कोल के मध्य आगे वाली चौकी पर तैनात रहने की इस सैनिक कार्रवाई को मेघदूत के नाम से जाना जाता है। सिआचिन (सैंची) ग्लेशियर पर कब्जे का मुद्दा सियासी तथा राजनीतिक दोनों स्तरों पर हल की मांग करता है जिस कारण पिछले कुछ सालों से यह क्षेत्र सैनिक कार्रवाई का एक आधार ही बन गया है। भारत ने सिआचिन ग्लेशियर पर अपने अस्तित्व का आरम्भिक ढांचा तैयार कर ही लिया है तथा यह दावा भी भारत कर रहा है कि दोनों चीन तथा पाकिस्तान के पक्ष से भारत अच्छी हालात में है। भारतीय सेना क्षेत्र की सुरक्षा कर रही है।

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प्रश्न 5.
सर करीक क्षेत्र का प्राकृतिक साधनों के पक्ष से क्या महत्त्व है ? लिखो।
उत्तर-
सर करीक एक दलदली खाड़ी है जो कि भारत के गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध के प्रदेशों के मध्य का एक प्रांत है। लगभग 96 किलोमीटर लम्बी इस सागरीय सीमा दोनों देशों के मध्य एक मुद्दा है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं। सर करीक क्षेत्र के प्राकृतिक साधनों के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

  • खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस की अधिकता के कारण इस स्थान का आर्थिक महत्त्व काफ़ी बढ़ जाता है।
  • इसके तटीय क्षेत्र में भूमि पर तथा सागरीयं तल पर प्राकृतिक गैस के काफ़ी भंडार हैं।
  • यहाँ हाइड्रोकार्बन के अस्तित्व की भी काफ़ी संभावनाएं हैं।
  • मछुआरों की गतिविधियां काफी हैं।

प्रश्न 6.
सिंध जल संधि जम्मू तथा कश्मीर के लिए नुकसानदायक सिद्ध हुई है। कैसे ?
उत्तर-
सिंध जल संधि जम्मू तथा कश्मीर के लिए नुकसानदायक सिद्ध हुई है क्योंकि इस संधि में इलाके के लोगों की ज़रूरतों तथा इच्छा का ध्यान नहीं रखा गया। यह संधि लोग विरोधी तथा एक तरफ की संधि लगती है जिसको या तो रद्द किया जाना या फिर दुबारा उस पर विचार करना आवश्यक है। सन् 1960 के पानी की 159MAF मात्रा में कमी हो गई तथा कुल मात्रा 117MAF रह गई जिस कारण जम्मू-कश्मीर के लोग काफी चिंता में पड़ गए। एक अनुमान अनुसार 2050 तक सिंध के जलतंत्र की भारतीय नदियों में 17 प्रतिशत पानी कम होने की उम्मीद है तथा पाकिस्तान में पहुँचते पानी में भी 27 प्रतिशत कमी आने की उम्मीद है। सिंध जल संधि करते समय जम्मू तथा कश्मीर के लोगों के पक्ष को नज़र अंदाज किया गया। जम्मू तथा कश्मीर में रोक लगाई गई कि 9.7 लाख एकड़ से अधिक भूमि कृषि के उद्देश्य के लिए नहीं प्रयोग की जाएगी।

प्रश्न 7.
पंजाब की भौगौलिक सिरमौरता वर्णन करते कोई आठ कारण लिखें।
उत्तर-
पंजाब की भौगौलिक सिरमौरता वर्णन करते मुख्य कारण हैं-

  • पंजाब में देश के हर प्रांत के मुकाबले किन्नू का उत्पादन सबसे अधिक होता है।
  • पंजाब में अंगूर की प्रति हैक्टेयर उपज देश में सबसे अधिक होती है।
  • पंजाब हर साल 7.16 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन कर रहा है, जो देश के कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत
  • प्रति व्यक्ति अंडों के उत्पादन में देश में पंजाब सबसे आगे हैं।
  • देश में पंजाब से संयुक्त राज्य अमेरिका को शहद निर्यात किया जाता है।
  • पंजाब देश की 22 प्रतिशत गेहूँ, 12 प्रतिशत चावल, 23 प्रतिशत कपास पैदा कर रहा है।
  • पंजाब में जंगलों अधीन क्षेत्र में 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्र की वृद्धि हुई जो और किसी प्रांत में नहीं हुई।
  • पंजाब लैंड एक्ट 1900 के अनुसार रक्षित किए गए 55 हजार हैक्टेयर जंगली क्षेत्र को कंडी क्षेत्र के लोगों के लिए कृषि करने तथा रोजी-रोटी कमाने के लिए प्रयोग करने की स्वतन्त्रता दी गई।

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प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत श्रीलंका मध्य कच्चातीवू मसला क्या हैं ? यह भारत की तरफ खुद पैदा की मुश्किल है, कैसे ?
उत्तर-
श्रीलंका में पड़ते कच्चातीवू का टापू विवादों से घिरा हुआ है। यह टापू 285.2 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस टापू पर मनुष्य जनसंख्या नहीं है। 14वीं सदी में सागर तल पर घटी ज्वालामुखी कार्रवाई के कारण कच्चातीवू तथा रामेश्वरमू नामक टापू अस्तित्व में आए। ऐतिहासिक समय में कच्चातीवू टापू का प्रयोग भारतीय मछुआरे करते थे। इस टापू पर रामनद का राजा राज कर रहा था। बाद में मद्रास प्रेजीडेंसी का ही एक हिस्सा बन गया था। भारत मानता है कि कच्चातीवू टापू पर श्रीलंका का कब्जा होना चाहिए परन्तु इस कब्ज़े को कानूनी तौर पर मान्यता हासिल नहीं है। इसका कारण है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1974 में संसद् की मन्जूरी के बिना ही टापू का मालिकाना श्रीलंका को दे दिया था। यह टापू (कच्चातीवू) सांस्कृतिक पक्ष से तमिल लोगों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा यह टापू मछलियां पकड़ने के रोज़गार के लिए भारत तथा श्रीलंका दोनों ही देशों के मछुआरों के द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है जबकि इस टापू पर पेयजल की कमी है।

राष्ट्रीय भाईचारे की तरफ से इस टापू को देश के अंग के तौर पर पहचाना गया है। श्रीलंका वाले. भाग से इस टापू पर मछलियां पकड़ने का काम अधिक किया जाता है। सारे क्षेत्र में सागरीय स्रोतों की बहुतायत है। श्रीलंकाई मछुआरों को तमिलनाडु के मछुआरों के मुकाबले मछली पकड़ने का काम करने में बहुत कठिनाइयां आ रही हैं। भारतीय मछुआरों के पास अच्छी तकनीक है पर भारतीय सागरीय फर्श को जाल से खींचने वाली नावों ने उजाड़ दिया है जिस कारण भारतीय जल क्षेत्र से श्रीलंका जल क्षेत्र मछलियां पकड़ने में आगे हैं। मछलियां पकड़ने के लिए लाइसेंस प्रबंध जो कि मछली पकड़ने के नियम बताता है जो नियम कानून बने हैं अगर उनका पालन किया जाए, तो तमिलनाडु की सरकार तथा भारत सरकार की सहायता से दोनों देशों के सागरीय मछुआरों सागरीय जीवों को जमा कर बहुत देर के लिए सम्भाल कर रखने, खराब होने से बचाने तथा ऐसी अन्य सुविधाएं लेकर अपनी रोजी रोटी का अच्छा आसान साधन बना सकते हैं।

प्रश्न 2.
सिंध जल संधि की रक्षा के लिए भारत अपना आप गुप्त करके भी काम कर रहा है ? कैसे ?
उत्तर-
सिंध जल संधि 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल मुहम्मद अयूब खान के मध्य में सिंध की नदियों के पानी के विभाजन को लेकर हुई। इस संधि के मुताबिक भारत की पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास तथा रावी के पानी को बिना किसी रोक-टोक के भारत प्रयोग कर सकता है तथा पश्चिमी नदियों का जल सिंध, चिनाब, जेहलम पाकिस्तान के हिस्से आएगा। भारत ने जल संधि को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है तथा तीन लड़ाइयां, उग्रवाद के समय में संधि के नियमों का पालन किया तथा कभी संधि भंग करने का कोई प्रयास नहीं किया। भारत ने सिंध जल संधि की रक्षा अपना आप गुप्त करके भी की है। निम्नलिखित बातों से यह बात स्पष्ट हो जाती हैं-

  • 80 प्रतिशत से अधिक जल इन नदियों का पाकिस्तान के हिस्से आ रहा है क्योंकि पश्चिमी नदियों में बह रहे जल की मात्रा पूर्वी नदियों से कहीं अधिक है।
  • जम्मू तथा कश्मीर में रोक लगाई गई है कि जम्मू तथा कश्मीर 9.7 लाख एकड़ से अधिक भूमि किसी भी कृषि कार्य में नहीं लगाएगा।
  • भारत तथा पाकिस्तान की इस संधि द्वारा भारत को सिंचाई के लिए तथा जल-ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए हमेशा पानी की कमी रही जो कभी पूरी नहीं हुई।
  • 1960 में हुई संधि के अनुसार भारत की तरफ से तैयार की जाती इलाकई योजना परखी जाती है तथा पश्चिम की नदियों के किनारों के पास लाई गई हर एक ईंट के बारे में भी प्रसिद्ध पर्यावरण विद् तथा राष्ट्रीय संस्थाओं की सलाह अनुसार आगे का काम किया जाता है।
  • जम्मू तथा कश्मीर के नागरिकों का पक्ष सिंध जल संधि करते समय नज़रअंदाज किया गया है। भारत तथा पाकिस्तान की सीमा के पास 54 स्थायी नदियां, नहरें इत्यादि हैं तथा भारत अपनी पूरी ज़िम्मेदारी की बारे में समझता है। कूटनीतियों द्वारा भारत का स्टैंड हिलाया नहीं जा सकता, इसके कई कारण हैं-
    • एक तो भारत की राष्ट्रीय भरोसे योग्यता में कमी आ सकती है। इस तरह भारत अपनी प्राप्त की स्थिति खो सकता है जो उसको संयुक्त राष्ट्र सलामति कौशल जैसी संस्थाओं को हासिल हैं।
    • भारतीय सीमाओं के पानी की साझ समय पड़ोसी देशों में भी भारत के लिए संदेह स्वभाव पैदा हो जाएगा।

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प्रश्न 3.
भारत की भौगोलिक सिरमौरता को प्रकट करते तथ्य से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत की भौगोलिक सिरमौरता को प्रकट करते तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • भौगोलिक सिरमौरता हमें अभिमान महसूस करवाता है कि संसार की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट जो एशिया महाद्वीप में है।
  • सुंदरवन डेल्टा जो विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है वह हमारे देश की बंगाल की खाड़ी में स्थित है।
  • भारतीय जनसंख्या में दो तिहाई भाग में 15 से 64 साल के लोग रहते हैं तथा 48 करोड़ 60 लाख के करीब हाथ से काम करने वाले लोग रहते हैं तथा भारत में मध्यम आयु 29 साल है।
  • भारत में 19.1 प्रतिशत पशु प्रधान हैं जिस कारण भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत संसार के 17 भिन्न प्रकार के जानवर तथा पौधे इत्यादि की बड़ी गिनती वाले देशों में एक है।
  • भारत के उत्तर में 6.1 किलोमीटर की औसतन ऊँचाई वाला हिमालय पर्वत है जो कि उत्तरी ध्रुवीय पवनों के असरदायक होने पर रोक लगाता है।
  • भारत के पास कुल 9.6 प्रतिशत जल संसाधन हैं तथा 4 प्रतिशत जल का पुन: उपयोग किया जाता है।
  • 2016 के साल में भारत में बागाती उपज 28 करोड़ 34 लाख टन तक पहुँच गया था तथा इसका पूरा श्रेय भारतीय किसानों को जाता है।
  • भारत के पास संसार में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है तथा दूसरे नंबर पर सड़कों का जाल है।
  • हिमालय पर्वत माला भारत में संसार की सबसे ऊँची पर्वत माला है जो समुद्र तल से लगभग 6.1 किलोमीटर की ऊँचाई पर है।
  • भारतीय महाद्वीपों के नाम से पहचाने जाते पांच महाद्वीपों में भारत सबसे अधिक अलग पहचान रखता है।
  • भारत हिंद महासागर के 23 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले जल पर अपना अधिकार जमा रहा है।
  • देश का 90 प्रतिशत तक का भाग 6° से 52°C तापमान के मध्य का क्षेत्र है, जिस कारण देश में पूरा साल कोई न कोई पेड़ पौधों को उगाने के हालात कहीं न कहीं आवश्यक होते हैं। किसान तीन प्रकार की फसलें एक साल में आसानी से उगा लेते हैं।

प्रश्न 4.
भौगोलिक सिरमौरता क्या होती है ? भूगोल में इसके अध्ययन की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
भौगोलिक सिरमौरता-प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार की क्रियाएं जिनके स्थानीय विभाजन की प्रशंसा, जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास करवाना होता है, भौगोलिक सिरमौरता कहलाती है। प्राकृतिक की तरफ मनुष्य को दिए गए प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग करके कोई प्रशंसा हासिल करना या प्रशंसा तक पहुँचने की मानवीय पहुँच ही भौगोलिक सिरमौरता कहलाती है। भौगोलिक सिरमौरता व्याख्यात्मक विषय है। भौगोलिक सिरमौरता ऐसा विषय है जो हर एक स्पष्ट तथा अस्पष्ट तथा हर किस्म के साधनों की व्याख्या करता है जो हमारी पृथ्वी, हमारे देश, शहर, कस्बे इत्यादि को बाकी कस्बों, शहरों इत्यादि से अलग बनाते हैं।

भौगोलिक सिरमौरता का अध्ययन हमें हर पक्ष से गर्व महसूस करवाता है तथा हमें संतुष्टि देता है कि हमारे सारे देश में यह चीज़ सबसे अधिक हैं जैसे कि भूगोल में इसके अध्ययन से हमें पता चलता है कि विश्व की सबसे ऊँची चोटी माऊंट एवरेस्ट हमारे महाद्वीप में है या सुंदरवन संसार का सबसे बड़ा डेल्टा हमारी बंगाल की खाड़ी में मौजूद है। इसके साथ हमें अपने देश की सिरमौरता के बारे में पता चलता है तथा हमें अपने देश पर गर्व महसूस होता है।

भूगोल में इसके अध्ययन की काफी आवश्यकता है। भौगोलिक सिरमौरता का उद्देश्य, भौगोलिक पक्ष से विकसित हो रहे मनों को इस ग्रह के हर देश में मिलने वाले स्रोतों की भौगोलिक दौलत से इस अध्ययन के द्वारा परिचित करवाया जाता है। भारत ने इस क्षेत्र के अध्ययन की तरफ काफी उन्नति की है। पर मीडिया सिर्फ लोगों के दुःख, तकलीफों तथा असफलताओं की गाथाएं ही सुनाता आ रहा है। उनकी ये बातें सच्ची हैं पर यदि सिर्फ नकारात्मक बातें ही लोगों तक पहुँचती रहीं तो लोगों की सोच की सीमाएं कुछ समय के बाद सीमित हो जाएंगी। वह देश को आने वाले संभावित खतरों तथा उन खतरों द्वारा आने वाली कमियों के बारे में नहीं सोच सकेंगे। जैसे कि एक उदाहरण है कि भारतीय कृषि के हालात कुल मिलाकर बहुत अच्छे नहीं हैं पर तथ्य यह है कि देश के 85 प्रतिशत किसान छोटे तथा मध्यम हैं उनके पास काम करने के लिए 21 प्रतिशत तक कृषि योग्य भूमि है तथा 79 प्रतिशत भूमि मध्यम दों के किसानों के पास हैं तथा फिर भी सहकारी तथा मिलकर की जाने वाली कृषि ही देश के प्रारंभिक कार्य को बचा रही है। भौगोलिक सिरमौरता का अध्ययन हमें गर्व महसूस करवाता है इसलिए भौगोलिक अध्ययन के क्षेत्र में इसकी बहुत आवश्यकता है।

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Geography Guide for Class 12 PSEB चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
सिआचिन से क्या भाव है ?
(A) बड़ी संख्या में गुलाब के फूल
(B) बड़ी संख्या में झाड़ियां
(C) बड़ी संख्या में कमल के फूल
(D) बड़ी संख्या में जानवरों के झुंड।
उत्तर-
(A) बड़ी संख्या में गुलाब के फूल

प्रश्न 2.
सिआचिन ग्लेशियर किस तरफ से आने वाले पाकिस्तानी हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकता है ?
(A) उत्तर
(B) दक्षिण
(C) पूर्व
(D) पश्चिम।
उत्तर-
(B) दक्षिण

प्रश्न 3.
माऊनटेन सिकनैस की बिमारी खास कर कहां होती है ?
(A) दलदली भूमि पर
(B) पठारी इलाकों में
(C) समुद्री तल से ऊँचे क्षेत्रों में
(D) तटीय क्षेत्रों के नज़दीक।
उत्तर-
(C) समुद्री तल से ऊँचे क्षेत्रों में

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प्रश्न 4.
सरकरीक की दलदली खाड़ी भारत तथा पाकिस्तान के कौन-से क्षेत्रों में स्थित है ?
(A) गुजरात तथा सिंध
(B) लायलपुर तथा पंजाब
(C) लाहौर तथा गुजरात
(D) आन्ध्र प्रदेश तथा रावलपिंडी।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा सिंध

प्रश्न 5.
सिंध जल संधि कब हुई ?
(A) 1960
(B) 1965
(C) 1959
(D) 1970.
उत्तर-
(A) 1960

प्रश्न 6.
भारत को कौन-सी दिशा की नदियों का पानी प्रयोग करने की छूट है ?
(A) पश्चिमी
(B) पूर्वी
(C) दक्षिणी
(D) उत्तरी।
उत्तर-
(A) पश्चिमी

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प्रश्न 7.
पर्यावरण को मोटे तौर पर हम कितने भागों में विभाजित कर सकते हैं ?
(A) प्राकृतिक तथा भौतिक
(B) भौतिक तथा सांस्कृतिक
(C) सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक
(D) भौतिक तथा रासायनिक।
उत्तर-
(C) सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक

प्रश्न 8.
प्रदूषण का प्रमुख स्रोत क्या है ?
(A) फसलें
(B) ठोस कूड़ा-कर्कट
(C) जंगल
(D) जानवर।
उत्तर-
(B) ठोस कूड़ा-कर्कट

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण का प्राकृतिक स्रोत कौन-सा है ?
(A) मनुष्य
(B) कृषि
(C) पानी
(D) ज्वालामुखी।
उत्तर-
(D) ज्वालामुखी।

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प्रश्न 10.
गंगा की ढाल के साथ प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत क्या है ?
(A) चमड़ा उद्योग
(B) कागज़ उद्योग
(C) गैसें
(D) फालतू नाले।
उत्तर-
(A) चमड़ा उद्योग

प्रश्न 11.
पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?
(A) 22 अप्रैल
(B) 22 जून
(C) 22 मार्च
(D) 22 सितंबर।
उत्तर-
(B) 22 जून

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा भू-प्रदूषण का कारक नहीं है ?
(A) तेज़ाब
(B) कीटनाशक
(C) तांबा
(D) मशीनें।
उत्तर-
(D) मशीनें।

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प्रश्न 13.
आर्सेनिक कौन-से पानी की गंभीर समस्या है ?
(A) पेयजल की
(B) पृथ्वी के नीचे वाले पानी की
(C) नहरों के पानी की
(D) समुद्र के पानी की।
उत्तर-
(B) पृथ्वी के नीचे वाले पानी की

प्रश्न 14.
भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ करने के लिए कौन-से मिशन का आगाज़ किया है ?
(A) नमामि गंगे
(B) बहु आयामी योजना
(C) स्वच्छ भारत अभियान
(D) गंगा साफ योजना।
उत्तर-
(A) नमामि गंगे

प्रश्न 15.
भारत की औसत मध्यम आयु कितनी है ?
(A) 22 माल
(B) 29 साल
(C) 30 साल
(D) 25 साल।
उत्तर-
(B) 29 साल

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प्रश्न 16.
पंजाब का शहद किस क्षेत्र को निर्यात किया जाता है ?
(A) यू०एस०ए०
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) जापान
(D) चीन।
उत्तर-
(A) यू०एस०ए०

प्रश्न 17.
भारत में सालाना दूध का कितना उत्पादन होता है ?
(A) 16 करोड़ टन
(B) 120 करोड़ टन
(C) 10,000 करोड़ टन
(D) 15 करोड़ टन।
उत्तर-
(A) 16 करोड़ टन

प्रश्न 18.
वाहनों में से निकलता धुआं स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है ?
(A) खून में ऑक्सीजन कम करता है
(B) सांस के रोग
(C) आँखों के गम्भीर रोग
(D) गले की सूजन।
उत्तर-
(A) खून में ऑक्सीजन कम करता है

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प्रश्न 19.
विश्व जल दिवस कब मनाया जाता है ?
(A) 22 मार्च
(B) 22 अप्रैल
(C) 22 जून
(D) 22 अक्तूबर।
उत्तर-
(A) 22 मार्च

प्रश्न 20.
भारत में संसार का कितना पशुधन है ?
(A) 19.1 फीसदी
(B) 10 फीसदी
(C) 50 फीसदी
(D) 51 फीसदी।
उत्तर-
(A) 19.1 फीसदी

B. खाली स्थान भरें :

1. सन् 1972 में ………………… समझौते में 1949 के सीमा रेखा के संबंधी समझौते के बारे में कोई परिवर्तन नहीं किया गया।
2. कच्चातीवू टापू …………… एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
3. भारत को सतलुज ………………… तथा ………………… पानी को बेरोक करने की स्वतन्त्रता है।
4. पर्यावरण ………………… तथा ………………… दो भागों में विभाजित किया जाता है।
5. कार्बन मोनोऑक्साइड खून में ………………. की मात्रा को कम कर देती है।
उत्तर-

  1. शिमला
  2. 285.2 एकड़
  3. ब्यास, रावी
  4. प्राकृतिक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण
  5. ऑक्सीजन।

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C. निम्नलिखित कथन सही (√) हैं या गलत (x):

1. बारीक कण 2.5 माइक्रोमीटर के कण सबसे अधिक खतरनाक होते हैं।
2. सल्फर-डाइऑक्साइड (SO2) तेज़ाबी वर्षा का कारण बनती है।
3. भारतीय संसद् में स्त्रियों की प्रतिनिधिता 50 प्रतिशत है।
4. कई तेज़ाब भी पानी को प्रदूषित करते हैं।
5. 1975 में सिंध जल संधि भारत तथा पाकिस्तान के मध्य हुई।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
मानव भूगोल क्या है ?
उत्तर-
मानव जीवन का भौगोलिक दृष्टिकोण मानव भूगोल कहलाता है।

प्रश्न 2.
कंधी क्षेत्र में प्रमुख दर्रे कौन-से हैं ?
उत्तर-
सिआला, बिलाफोंडला, गिओंग ला।

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प्रश्न 3.
सिआचिन ग्लेशियर के क्षेत्र में पड़ती विवादग्रस्त सीमाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
LOC तथा LOAC.

प्रश्न 4.
सिआचिन कौन-सी नदियों को जल प्रदान करता है ?
उत्तर-
सिंध तथा नूबरा।

प्रश्न 5.
औरो पॉलिटिक्स से क्या भाव है ?
उत्तर-
औरो पॉलिटिक्स से भाव सियासी मामलों के लिए पहाड़ी क्षेत्रों का नाजायज़ प्रयोग करने से है।

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प्रश्न 6.
सरकरीक क्या है ?
उत्तर-
यह एक दलदली खाड़ी है जो भारत के गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के मध्य है।

प्रश्न 7.
स्थल वेंग सिद्धान्त किन नहरों पर लागू है ?
उत्तर-
जहाजरानी करने योग्य पर।

प्रश्न 8.
कच्चातीवू टापू का प्रयोग इतिहास में कौन करते थे ?
उत्तर-
भारतीय मछुआरे।

प्रश्न 9.
कच्चातीवू टापू पर सबसे पहले किसका स्वामित्व था ?
उत्तर-
रामनद के राजे का।

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प्रश्न 10.
सिंध जल संधि किन-किन के मध्य में हुई ?
उत्तर-
यह संधि 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के मध्य में हुई।

प्रश्न 11.
पश्चिमी नहरों के नाम बताओ जिसका जल पाकिस्तान प्रयोग करता है ?
उत्तर-
चिनाब, जेहलम तथा सिंध।

प्रश्न 12.
पर्यावरण को कौन-से हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
प्राकृतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण।

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प्रश्न 13.
प्रदूषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब भौतिक पर्यावरण में कुछ ज़हरीले, अनचाहे पदार्थ तथा रसायन मिल जाते हैं उसको प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 14.
कौन-सा शहर वाहन कार्बन मोनोऑक्साइड छो है ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 15.
भू-प्रदूषण का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
जंगलों की लगातार कटाई।

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प्रश्न 16.
वायु प्रदूषण के कोई दो कारकों के नाम बताओ।
उत्तर-
ज्वालामुखी तथा उद्योग।

प्रश्न 17.
उस गैस का नाम बताओ जो ओज़ोन गैस को दूषित कर रही है ?
उत्तर-
CFC क्लोरोफ्लोरो कार्बन।

प्रश्न 18.
प्रदूषण के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर-

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. भूमि प्रदूषण ।

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प्रश्न 19.
भारत में सालाना कितना अनाज पैदा किया जाता है ?
उत्तर-
25 करोड़, 70 लाख टन।

प्रश्न 20.
भूमि प्रदूषण को हम किस प्रकार रोक सकते हैं ?
उत्तर-
रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग कम करके।

प्रश्न 21.
छूत के रोग लगने वाले कीटाणु कौन-से हैं ?
उत्तर-
बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, परजीवी तथा वाइरस इत्यादि।

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प्रश्न 22.
जल प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार अजीवी मिश्रण कौन-से हैं ?
उत्तर-
तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि।

प्रश्न 23.
केन्द्र सरकार ने नमामि गंगा प्रोजैक्ट के लिए कितने रुपये जारी किए हैं ?
उत्तर-
20,000 करोड़।

प्रश्न 24.
वायु प्रदूषित कारक संसार की कितनी वायु को दूषित कर रहे हैं ?
उत्तर-
85 प्रतिशत।

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प्रश्न 25.
ऐल्डीहाइड प्रदूषण के साथ स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
साँस के रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 26.
वायु में धूल के कण SPM कब पैदा होते हैं ?
उत्तर-
उद्योग, खनन, पॉलिश, सूती वस्त्र उद्योग, खनिज तेल इत्यादि के जलने से।

प्रश्न 27.
वायु प्रदूषण के कारण होने वाली भारतीय मौतों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
10 लाख हर साल।

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प्रश्न 28.
भारत में सालाना दूध का कितना उत्पादन होता है ?
उत्तर-
16 करोड़ टन।

प्रश्न 29.
भारत में प्रति व्यक्ति दूध का कितना उपभोग होता है ?
उत्तर-
1032 मि०मी० रोज़ाना।

प्रश्न 30.
संसार की सबसे ऊंची पर्वत माला कौन-सी है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वतमाला।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

प्रश्न 31.
भारत में स्तनधारी जानवरों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
86 प्रतिशत।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रदूषण और प्रदूषक में क्या भेद है ?
उत्तर-
प्रदूषण से अभिप्राय वायु, भूमि तथा जल साधनों का अवनयन तथा हानिकारक बनाना है। प्रदूषक उन पदार्थों को कहते हैं जो पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।

प्रश्न 2.
माउनटेन सिकनैस क्या है ?
उत्तर-
यह एक बिमारी है जो कि समुद्र तल से काफी ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में होती है। इसलिए इससे बचने के लिए पहले 2-3 दिन कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में रहने के लिए अपने आपको उनके अनुसार ढालना ज़रूरी है।

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प्रश्न 3.
बाण गंगा का क्षेत्र कौन-सा है ?
उत्तर-
सरकरीक एक दलदली खाड़ी है तथा लगभग 96 किलोमीटर लम्बी यह गुजरात तथा सिंध के मध्य में सागरीय सीमा है जिसका दोनों देशों के बीच एक मसला है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
कच्चातीवू टापू का इतिहास क्या है ?
उत्तर-
कच्चातीवू टापू का प्रयोग सबसे पहले मछुआरों द्वारा किया जाता था। इस टापू पर पहले रामनंद के राजा का राज्य होता था जो बाद में अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। श्रीलंका का इस पर कब्जा आज के समय में भी है।

प्रश्न 5.
सिंध जल संधि 1968 में नदियों के पानी का विभाजुन कैसे किया गया ?
उत्तर-
सिंध जल संधि 1960 में पूर्वी तथा पश्चिमी नदियों का विभाजन कर दिया गया। पूर्वी नदियों के पानी (सतलुज, व्यास, रावी) पर भारत का तथा पश्चिमी नदियों के पानी (चिनाब, सिंध, जेहलम) पर पाकिस्तान का अधिकार हो गया।

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प्रश्न 6.
पर्यावरण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के आस-पास फैले घेरे को जिसमें परस्पर मनुष्य विचरते हैं पर्यावरण कहते हैं। इसको मुख्य रूप में दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment)
  2. सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment)

प्रश्न 7.
पर्यावरण प्रदूषण क्या है ?
उत्तर-
भौतिक पर्यावरण (जल, वायु, मिट्टी) में जब कुछ ज़हरीले पदार्थ तथा रसायन अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। यह मुख्य रूप में तीन प्रकार का होता है

  1. जल प्रदूषण
  2. वायु प्रदूषण
  3. मिट्टी प्रदूषण।

प्रश्न 8.
भू/मिट्टी प्रदूषण के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भू/मिट्टी प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

  • रासायनिक खादों, कीटनाशकों, नदीननाशकों तथा ज़हरीली दवाइयों का छिड़काव इत्यादि।
  • शहरों, कस्बों इत्यादि में कूड़े-कर्कट के ढेर।
  • जंगलों के अंतर्गत क्षेत्र का कम होना तथा जंगलों की कटाई।
  • शहरीकरण में वृद्धि।

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प्रश्न 9.
भूमि-प्रदूषण के कारण कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
भूमि प्रदूषण के कारण कृषि पर होने वाले प्रभाव हैं-

  • इस द्वारा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  • मिट्टी में नाइट्रोजन की स्थिरता कम हो जाती है।
  • मिट्टी अधिक खुरने लगती है।
  • उपजाऊ शक्ति कम होने कारण फसलों का उत्पादन कम हो जाता है।
  • मिट्टी में प्रदूषण के कारण खारापन काफी बढ़ जाता है।

प्रश्न 10.
पोषण-सुपोषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब जल के दो स्रोतों में रासायनिक खादों के रूप में प्रयोग में लाए जा रहे नाइट्रेट फास्फेट मिलकर जल में खास कर एलगी की वृद्धि का एक कारण बन जाते हैं तथा जिस कारण एलगी को खाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा पानी में मौजूद ऑक्सीजन कम हो जाती है जिस कारण मछलियां इत्यादि मरने लगती हैं इसको पोषण-सुपोषण कहते हैं।

प्रश्न 11.
गंगा नदी को साफ करने के चरणों में से तुरन्त नज़र आने वाले प्रभाव कौन-से हैं ?
उत्तर-
तुरन्त नज़र आने वाले प्रभाव हैं-

  1. गंगा नदी के पानी में तैरता कूड़ा-कर्कट हटाया जाएगा।
  2. लोगों को सफाई के लिए जागरूक करना।
  3. गंदे पानी का निकास गंगा नदी में जाने से रोकना।
  4. आधी जली लाशों को गंगा नदी में फेंके जाने पर पूरी तरह से पाबन्दी।
  5. गंगा घाट के दोबारा से निर्माण करने की योजना।

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प्रश्न 12.
वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
वायु प्रदूषण के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं-

  1. ज्वालामुखी के विस्फोट कारण निकली जहरीली गैसें।
  2. वायु इत्यादि के साथ उड़ रही रेत।
  3. धूल, मिट्टी।
  4. जंगलों तथा फसलों को लगने वाली आग इत्यादि।

प्रश्न 13.
नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण के मुख्य स्रोत कौन-से हैं तथा स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता
उत्तर-
नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण के मुख्य स्रोत कोयले तथा वाहनों में से निकला धुआं है तथा इसके कारण साँस के रोग, आँखों की बिमारियाँ, फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 14.
सल्फर-डाइऑक्साइड के पड़ते प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
सल्फर-डाइऑक्साइड (SO.) की बढ़ती मात्रा तेज़ाबी वर्षा का एक कारण बन सकती है इसके साथ इमारतों तथा साथ ही जंगलों का काफी नुकसान हो जाता है। इसके द्वारा नदियों तथा झीलों का पानी भी तेज़ाबी हो जाता

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प्रश्न 15.
सफर को परिभाषित करो।
उत्तर-
सफर-यह प्रकल्प भारत सरकार के पृथ्वी तथा विज्ञान मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए हैं जिसमें (WMO) विश्व मौसम विभाग की संस्थाओं द्वारा भारत के महानगरों में प्रदूषण के स्तर को मापा जाता है तथा प्रदूषण के बारे में भविष्यवाणी की जाती है।

प्रश्न 16.
पंजाब की भौगोलिक सिरमौरता के कोई दो पक्ष बताओ।
उत्तर-

  1. पंजाब में हर साल 7.16 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता है।
  2. पंजाब में प्रति व्यक्ति अंडों का उत्पादन अधिक होता है। भारत में इस पक्ष की औसतन संख्या 35 है जबकि पंजाब में यह संख्या 125 तक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिआचिन ग्लेशियर का महत्त्व बयान करो।
उत्तर-
सिआचिन ग्लेशियर की महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. इसके द्वारा नूबर तथा सिंध नदियों को जल प्रदान करवाया जाता है।
  2. पाकिस्तानी हमलावर दक्षिण की तरफ से भारत में दाखिल नहीं होते। यह हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकता
  3. सिआचिन का उत्तर तरफ का क्षेत्र इंदिरा कोल, पाकिस्तान के द्वारा गैर-कानूनी तरीके से चीन को दिए गिलगिट, बालिस्तान के क्षेत्रों की सकीम घाटी पर नज़र बनाए रखने का स्थान है।
  4. चीन भी सिआचिन को हासिल करने की इच्छा रखता है, क्योंकि चीन तथा पाकिस्तान के आपसी गठजोड़ में यह अहम् भूमिका निभा सकता है।
  5. भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1949 के कराची समझौते के आधार पर गोलाबंदी रेखा NJ9842 प्वाइंट से आगे है अर्थ है कि ग्लेशियरों के उत्तर दिशा में।
  6. यह ग्लेशियर पाकिस्तान के सैनिकों को सेल्टरों कंधी के पश्चिम की तरफ ऊंचाई का लाभ देता है। जो कि रणनीतिक लाभ है।

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प्रश्न 2.
सरकरीक की खाड़ी पर नोट लिखो।
उत्तर-
सरकरीक एक दलदली खाड़ी है। यह खाड़ी गुजरात तथा सिंध क्षेत्रों के बीच स्थित है। स्वतन्त्रता से पहले गुजरात के क्षेत्र पर अंग्रेज़ों का राज्य था तथा पाकिस्तान का दावा है कि कच्छ का क्षेत्र-तत्कालीन बादशाह तथा सिंध की सरकार के बीच 1914 में हुए समझौते के मुताबिक पाकिस्तान का होना चाहिए। यह एक सागरीय सीमा है जिसकी लंबाई लगभग 96 किलोमीटर है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं। 1914 में हुए समझौते के अनुसार सरकरीक के पूर्वी किनारे को भारत सीमा मानते हैं।

प्रश्न 3.
सरकरीक की खाड़ी की मुख्य विशेषता क्या है ?
अथवा
सरकरीक की खाड़ी की आर्थिक महत्ता किन तत्त्वों से पता चलती है ?
उत्तर-
सरकरीक की खाड़ी दलदली खाड़ी जो गुजरात तथा सिंध के क्षेत्रों के बीच स्थित है। इस खाड़ी की सैनिक महत्ता कम है पर आर्थिक महत्त्व काफी है। इसका महत्त्व निम्नलिखित है-

  • इस स्थान पर खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं।
  • हाइड्रोकार्बनों के अस्तित्व की बड़ी संभावना है।
  • मछुआरों की गतिविधियां काफ़ी तेज हैं। इस स्थान पर पाकिस्तान तथा भारत के मछुआरे मछलियां पकड़ने का काम करते हैं।
  • जब एक बार इसकी सीमा निर्धारित कर दी जाएगी तब यह समुद्री सीमा को निश्चित कर देंगी जिसके साथ
    आर्थिक क्षेत्र की सीमाएं भी सीमित हो जाएंगी तथा आर्थिक ज़ोन (EEZ) 200 नोटीकल मील (370 km) तक फैल जाएगा जिसके साथ वाणिज्य संबंधी उपयोग शुरू हो जाएगा।

प्रश्न 4.
वायु प्रदूषण के मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं-

  1. वायुमंडल की ओजोन परत रासायनिक पदार्थों के कारण नष्ट होती जा रही है। क्लोरो-फ्लोरो कार्बन तथा हिमनदी के सिकुड़ने इत्यादि के कारण ओजोन परत नष्ट हो रही है।
  2. वायु प्रदूषण के कारण मानव को कई प्रकार की बिमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि फेफड़ों की बिमारियां, गले की बिमारियां तथा चमड़ी की बिमारियां इत्यादि।
  3. काला धुआं इत्यादि के इकट्ठा करने के साथ जो मुख्य क्षेत्रों में तथा शहरों में हो रहा है इसका कारण जहरीली गैसें हैं जो वायुमंडल में प्रचलित हैं।
  4. वायु प्रदूषण तेज़ाबी वर्षा का कारण बनती है।

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प्रश्न 5.
भारत में वायु प्रदूषण के कोई चार स्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं-

  1. प्राकृतिक स्रोत-जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफान, अग्नि इत्यादि।
  2. उद्योग-उद्योगों से निकली गैसें, धूल कण इत्यादि।
  3. फैक्टरी-फैक्ट्रियों से निकला धुआं तथा राख इत्यादि।
  4. मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमंडल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरोफ्लोरो कार्बन भी वायुमंडल में छोड़ा जाता है।

प्रश्न 6.
ऑपरेशन जिब्राल्टर (Operation Gibraltar) पर नोट लिखो।
उत्तर-
ऑपरेशन जिब्राल्टर एक कोड नाम है जो पाकिस्तान की कूटनीति जो जम्मू तथा कश्मीर में प्रवेश करने की थी तथा प्रवेश करके वहाँ पर एक विद्रोह शुरू करना था। यदि यह विद्रोह शुरू हो जाता तो पाकिस्तान का अधिकार जम्मू-कश्मीर पर हो जाना निश्चित था। 1965 में पाकिस्तान की सेना आजाद कश्मीर रैगुलर फोर्स जम्मू तथा कश्मीर में दाखिल हुई। कश्मीरी मुसलमानों को अपने साथ मिलाने के लिए यह ऑपरेशन 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई का एक कारण बना। वास्तव में 1950 से 1960 तक के वर्षों से ही पाकिस्तान सिआचिन पर अपना अधिकार करना चाहता था तथा सैनिक नफ़री को बढ़ाकर पाकिस्तान मसले को जीवित भी रख रहा था। 1984 तक भारत तथा पाकिस्तान के 2000 तक सैनिक अपनी जान खो चुके थे, क्योंकि पर्यावरण काफी कठोर था।

प्रश्न 7.
कच्चातीवू के मसले को लेकर इंदिरा गांधी की एमरजैंसी पर नोट लिखो।
उत्तर-
1974 में कच्चातीवू श्रीलंका को सौंपा गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा यह इलाका इंडो-श्रीलंका मैरीटाइम ऐग्रीमैंट के अनुसार श्रीलंका के हिस्से कर दिया था। इस ऐग्रीमैंट के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने मज़बूरन इंदिरा गांधी को लिखा था कि किसी समय यह धरती इतिहास में रामनद के अंतर्गत होती थी। भारत कच्चातीवू टापू पर श्रीलंका में कब्जे को मानता तो है पर इस कब्जे को कोई कानूनी मान्यता नहीं मिली क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सन् 1974 में संसद् की मंजूरी के बिना टापू का मालिकाना श्रीलंका को दिया। कुछ समय के बाद फिर 1976 में एक ऐग्रीमैंट पास हुआ जिसमें दोनों ने तमिलनाडु तथा श्रीलंका के मछुआरों को एक-दूसरे के इलाके में जाने पर रोक लगा दी गई।

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प्रश्न 8.
भूमि प्रदूषण क्या है ? इसके पर्यावरण तथा शहरों पर पड़ते प्रभाव के बारे में बताओ।
उत्तर-
भूमि में जैविक तथा अजैविक पदार्थों की एक पतली परत होती है। जब मिट्टी में जहरीले पदार्थ का जमाव हो जाता है तथा मिट्टी की रासायनिक, भौतिक संरचना बुरी तरह खराब हो जाती है। भूमि प्रदूषण कहलाता है। इसका पर्यावरण तथा शहरों पर पड़ने वाला प्रभाव निम्नलिखित है-

पर्यावरण पर प्रभाव-

  1. इस प्रदूषण के कारण वनस्पति की काफी कमी होती है।
  2. इस प्रदूषण के कारण पारिस्थितिक तंत्र भी नष्ट होता है।
  3. मिट्टी के आवश्यक जैविक-अजैविक बैक्टीरिया की कमी भी आ जाती है।

शहरों पर प्रभाव –

  1. सीवरेज कूड़े तथा मिट्टी के साथ भर जाता है।
  2. सीवरेज का प्रवाह थम जाता है।
  3. कूड़े के ढेर लग जाते हैं जिस कारण बदबूदार तथा ज़हरीली गैसें मिट्टी में मिलने लगती हैं।

प्रश्न 9.
सिंध जल संधि का भारत के लिए होने वाले महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
सिंध जल संधि 9 सितंबर, 1960 तक भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी।

  • सिंध जल संधि के कारण पिछले 58 सालों में भारत शांतिपूर्ण तरीके से सिंध नदियों का पानी प्रयोग कर रहा है।
  • इस संधि के प्रबंध अनुसार सिंध तथा इसकी सहायक नदियों का जल भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों के द्वारा प्रयोग किया जा रहा है, जबकि संधि के अनुसार व्यास, रावी तथा सतलुज भारतीय सरकार तथा सिंध, चिनाब तथा जेहलम के जल का अधिकार पाकिस्तान की सरकार के पास है।
  • इस संधि के अनुसार जहां सिंध नदी भारत में दाखिल होती है। भारत इसका 20 प्रतिशत पानी प्रयोग कर सकता है। यह जल सिंचाई, यातायात इत्यादि के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • इस संधि के द्वारा मध्यम वाला रचनातन्त्र मिलता है जो बीच के झगड़ों का निपटारा भी करता है। इस तरह जैसे सिंध नदी तिब्बत (चीन) में शुरू होती है जिसने इस संधि को संभाला हुआ है। यदि चीन इसके जल को रोक ले तो यह भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों पर प्रभाव डालेगा।

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प्रश्न 10.
गंगा नदी के जल प्रदूषकों तथा प्रदूषण के प्रकार के बारे में बताओ।
उत्तर-
गंगा नदी के मुख्य पानी प्रदूषकों हैं-

  1. कानपुर के नीचे का भाग।
  2. वाराणसी के नीचे।
  3. फरक्का बैरज़ से इलाहाबाद तक।

प्रदूषण के प्रकार-

  1. कानपुर जैसे नगरों में औद्योगिक प्रदूषण फैल रहा है।
  2. घरेलू अपशिष्ट पदार्थों के फैलाव के कारण जो मुख्य रूप में शहरी क्षेत्रों से अधिक आता है।
  3. पशु लाशों या मृत शरीरों को पानी में फेंकना जिस कारण गंगा नदी के जल में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है।
  4. फैक्ट्री तथा उद्योगों इत्यादि का गंदा जल नदी में जा रहा है, जिस कारण नदी का पानी गंदा हो रहा है।

प्रश्न 11.
वायु में मौजूद धूल के कण SPM पर नोट लिखो।
उत्तर-
वायु में मौजूद धूल के कण (Suspended Particulate Matter) बहुत बारीक से लेकर बड़े-बड़े आकार के हो सकते हैं; ऐसे कण हमें खासकर उद्योगों से, खनन की प्रक्रिया से, सूती वस्त्र उद्योग से, खनिज तेल के ईंधन के साथ पैदा होते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से लेकर 10 मिलीमीटर तक हो सकता है। ठंडे तथा नमी वाले हालातों में संघनन की क्रिया में न्यूक्लियस का काम भी यह कण करते हैं तथा कुहरा घना दिखाई देता है। विशेष तौर पर SPM दो प्रकार के होते हैं। एक तो काफी बारीक कण जो 2.5 माइक्रोमीटर तक होते हैं तथा यह सबसे अधिक हानिकारक होते हैं तथा दूसरे मोटे कण जो 10 माइक्रोमीटर तक हैं। ये कण फेफड़ों तक पहुँच कर मनुष्य की मौत का कारण भी बन सकते हैं।

प्रश्न 12.
भारत को सबसे अधिक गौरवान्वित पेश करते पक्ष बताओ।
उत्तर-
भारत को सबसे अधिक गौरवान्वित पेश करते पक्ष हैं-

  • देश का 90% तक का हिस्सा 85°C से 52°C तापमान के बीच के औसत क्षेत्र में पड़ता है तथा देश में हर समय पौधों के उगने के हालात होते हैं जिसके कारण किसान फसलों की पैदावार सहज रूप में कर सकता है।
  • भारत में 19.1 प्रतिशत पशुधन हैं जिसके कारण भारत दूध का बड़ा उत्पादक है।
  • बड़ी संख्या में आर्थिक मध्य वर्ग भारत में प्रवास कर रहा है जो कि अपने जीवन का स्तर सुधारने के लिए खुल कर खर्चा करने तथा संसार के उत्पादकों को खरीदने की ताकत रखता है।
  • भारत में उत्पादन लागतें भी कम हैं।
  • भारत हर साल 25 करोड़ 70 लाख टन अनाज पैदा करता है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भूमि प्रदूषण क्या है ? भूमि प्रदूषण के स्रोत, कारण, प्रभाव तथा रोकने के सुझाव बताओ।
अथवा
भूमि (मिट्टी) प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि (मिट्टी) प्रदूषण (Soil Pollution)-कंकरीट, इमारतों तथा सड़कों इत्यादि के उभार के कारण, एक धरती का हिस्सा जो पहले मिट्टी के साथ ढकी हुई थी। इसके अलग-अलग नाम हैं जैसे कि मिट्टी, गीली मिट्टी, कीचड़, भूमि इत्यादि तथा यह सारे हमारे लिए बहुत आवश्यक हैं जो पौधे हमें भोजन प्रदान करते हैं, मिट्टी में ही पैदा होते हैं तथा हमें स्वस्थ (तंदरुस्त) बनाते हैं। पर बाकी प्राकृतिक स्रोतों की तरह धरती का मिट्टी स्रोत भी गंदा हो रहा है। मिट्टी प्रदूषण का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा फैलाई गंदगी है। जब मिट्टी में जहरीले पदार्थों के जमाव होने के कारण मिट्टी में मौजूद जैविक तथा अजैविक पदार्थों की पतली परत नष्ट होनी शुरू हो जाती है जिस कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होनी शुरू हो जाती है। इसको भूमि (मिट्टी) प्रदूषण कहते हैं।

स्रोत (Sources)-मिट्टी को प्रदूषित करने वाले जहरीले पदार्थ हैं-पारा, तेज़ाब, सीसा, तांबा, जिंक, कैडमियम, खार, साइनाइड, करोमेट, कीटनाशक, रासायनिक खादें तथा रेडियोधर्मी पदार्थ, फैक्ट्रियाँ तथा उद्योगों में से निकला फालतू पदार्थ।

मिट्टी प्रदूषण के मुख्य कारण (Main Causes of Soil Pollution)-
1. औद्योगिक क्रियाओं का योगदान (Role of Industrial Activities)-यह पिछली सदी से काफ़ी अधिक बढ़ गया है। खासकर जब से निर्माण उद्योग तथा खनन की गतिविधियाँ बढ़ गई हैं। अधिकतर उद्योगों के लिए कच्चा माल खानों से धरती की खुदाई करके निकाला जाता है। इस प्रकार औद्योगिक विकास के कारण धरती पर मिट्टी प्रदूषित हो रही है।

2. कृषि क्रियाएं (Agricultural Activities) रासायनिक खादों, कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार कई रसायनों का मेल होता है जो कि प्राकृतिक तौर पर नष्ट नहीं किए जा सकते। इस प्रकार यह रसायन धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं। कई रसायन मिट्टी की बनावट को भी खराब करते हैं।

3. कूड़ा-कर्कट का निष्कासन (Disposal of Garbage/Wastage) अधिकतर हम कई बार अपने घर के कूड़े-कर्कट का निष्कासन करते हैं। औद्योगिक फालतू पदार्थों के अतिरिक्त मनुष्य अपने गंदे सामान का निष्कासन करता है जिस कारण कई बार सीवरेज़ के पानी के साथ मिलने के कारण गंदगी फैलती है।

4. तेल का छलकाव (Oil Spill)-कई बार पाइप द्वारा जब तेल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। तब उस समय कई बार तेल लीक हो जाता है जिस कारण यह तेल मिट्टी में मिल जाता है तथा मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।

5. तेजाबी वर्षा (Acid Rain)-एसिड तेजाबी वर्षा तब होती है जब प्रदूषिक मौजूद वायु में मिल जाते हैं तथा वर्षा के साथ धरती पर गिरते हैं तथा यह गंदा पानी मिट्टी के साथ मिल कर मिट्टी को भी गंदा कर देते हैं।

6. बड़ी मात्रा में शहरों तथा गाँवों में लगे कूड़े के ढेर भी प्रदूषण का कारण बनते हैं।

7. शहरीकरण के कारण भी मिट्टी प्रदूषण में लगातार वृद्धि हो रही है।

8. जंगलों की हो रही अंधा-धुंध कटाई भी मिट्टी प्रदूषण का एक बड़ा कारण सिद्ध हो रही है।

9. गहन कृषि भी प्रदूषण की समस्या को बढ़ा रही है।

10. सड़कों का मलबा इत्यादि।

मिट्टी प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil Pollution)-

1. मानव के स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect on Human Health)—पहले इस पक्ष पर ध्यान देना चाहिए कि मिट्टी एक कारण है जो हमारी ज़िन्दगी को संभाल रही है। इसमें प्रदूषण की मात्रा की वृद्धि का मनुष्य के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पौधे तथा फसलें जो इस प्रदूषित मिट्टी में उग रहे हैं अपने अंदर ये प्रदूषिक तत्त्व समा लेते हैं जो हमारे तक पहुंच जाते हैं। इस प्रकार मनुष्य को कैंसर जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इसके बिना जैव ईजाफा (Eutrophication) हो जाता है। पृथ्वी पर पड़े बड़े कूड़े के ढेरों से जहरीली गैसें मिट्टी में मिल जाती हैं जो मनुष्य की प्रजनन शक्ति को कम कर देती हैं। कैंसर या मन मितलाने जैसे खतरनाक रोग मनुष्य को लग जाते हैं। इसके बिना भोजन पर होने वाले इसके प्रभाव के कारण मनुष्य अंदर जैसे भोजन के खाने के बाद फूड प्वाइजनिंग जैसी बीमारियां हो जाने की संभावना बढ़ जाती हैं।

2. पेड़-पौधों पर प्रभाव (Effect on Growth of Plants)-पर्यावरण व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है जब मिट्टी
लगातार प्रदूषित होती जाती है। जब कम समय में ही मिट्टी तेजी के साथ बदलती है तब पौधों तथा मिट्टी की रसायन प्रक्रिया पूरी तरह बदल जाती है। फंगी तथा बैक्टीरिया की मिट्टी में मात्रा कम होनी शुरू हो जाती है जिस कारण मिट्टी प्रदूषित होने लगती है। धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरता भी कम हो जाती है। मिट्टी अपरदन अधिक है, जिस कारण पेड़-पौधों तथा फसलों के उत्पादन में कमी आ जाती है।

3. जहरीली धूल (Toxic Dust)-कूड़ा-कर्कट में कई तरह की जहरीली गैसें निकलती हैं जो पर्यावरण को गंदा करती हैं तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इस धूल की बदबू मनुष्य को कठिनाइयों में डाल देती है।

4. पर्यावरण पर प्रभाव (Effects on Environment)-इस द्वारा वनस्पति कम हो जाती है तथा पारिस्थितिक तंत्र भी तहस-नहस होता है।

5. शहरों का प्रभाव (Effects m Cities)-नालियां कूड़ा इत्यादि तथा मिट्टी से भर जाती हैं तथा पानी के सीवरेज प्रवाह में मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।

मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिए सुझाव (Control Measures for Soil Pollution)-

  • मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिए हमें फालतू सामान तथा प्लास्टिक का प्रयोग कम करना चाहिए तथा उपयोग किए गए फालतू सामान को इकट्ठा करके कबाड़ी तक पहुंचाना चाहिए ताकि इसको दोबारा प्रयोग योग्य बनाया जा सके।
  • रासायनिक खादों पैस्टीसाइड, फर्टीलाइजर इत्यादि का प्रयोग कृषक गतिविधियों को कम करना चाहिए।
  • लोगों को चार R से परिचित करवाना चाहिए। यह चार R हैं Refuse मतलब कि पॉलिथीन लिफाफे इत्यादि लेने से मना कर देना, Reuse द्वारा प्रयोग, Recycle द्वारा उत्पादन तथा Reduce कम करना इत्यादि।
  • पैकट चीजें खरीदने से परहेज़ करो बाद में यह पैकट ही कूड़े के ढेर बन जाते हैं, धरती पर कूड़े के ढेर लगाने नहीं चाहिए।
  • ध्यान रखो कि फालतू गंदगी या कूड़ा-कर्कट न फैलाओ।
  • हमेशा स्वाभाविक तरीके से सड़नशील पदार्थ खरीदो।
  • हमेशा जैविक कृषि करो तथा जैव भोजन खाओ तथा रासायनिक दवाइयों का प्रयोग कम करो।
  • हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए।
  • कूड़े के पड़े ढेरों पर बिजली बनाने का काम लिया जाना चाहिए।
  • निर्माण के कामों पर सामान की बर्बादी को कम करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
जल प्रदूषण क्या है ? इसके कारण, प्रभाव तथा सुझाव के बारे चर्चा करो।
अथवा
जल प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
जल प्रदूषण (Water Pollution)-जल प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी समस्या है। जल के स्रोतों (नदियों, झरने, समुद्र तथा नीचे वाले पानी) इत्यादि के प्रदूषण को जल प्रदूषण कहते हैं। यह पर्यावरण में औद्योगिक प्रदूषकों के द्वारा होता है जो सीधे या असीधे तौर पर पानी में विसर्जित होते हैं। बिना किसी शोधन से जब कई कारखानों का या घरों का गंदगी पानी में घुल जाता है तब वह पानी को प्रदूषित बनाता है।

जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water Pollution)-जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं : –

1. बिन्दु स्रोत (Point Resources)—जो प्रदूषिक पानी में किसी एक खास स्रोत से आ रहे हो जैसे कि सीवरेज पाइपों या कारखानों में पाइपों के द्वारा गंदे पदार्थ का बहाव जब नदियों, झीलों तथा अन्य साफ जल के स्रोतों के साथ मिल जाता है तब जल प्रदूषित हो जाता है।

2. गैर-बिन्दु स्रोत (Non-Point Sources) गैर-बिन्दु स्रोत बिखरे हुए बेकार पदार्थों के कारण पैदा होते हैं।
यह किसी एक खास स्रोत से नहीं आते। इनके मुख्य स्रोत हैं-कृषि वाले क्षेत्र, जंगल, गाँव तथा शहर, सड़कों पर बहने वाला जल जब साफ जल से मिल जाता है। इस प्रकार पानी दूषित हो जाता है। गैर-बिन्दु स्रोतों के कारण जो प्रदूषण फैलता है। इसको कंट्रोल करना काफ़ी मुश्किल है।

जल प्रदूषण के कारण तथा प्रभाव (Causes and Effects of Water Pollution)-
1. प्राकृतिक कारण (Natural Causes) वर्षा के जल में वायु में गैसें तथा धूल कण इत्यादि मिल जाने के कारण यह जल जहाँ पर भी जमा होता है वहां जल को प्रदूषित कर देता है। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी इत्यादि भी इसके महत्त्वपूर्ण कारण हैं।

2. रोग लगाने वाले कीटाणु (Pathogens)—यह प्रदूषण कई रोगों का जनक भी है। इस कारण बैक्टीरिया, जीवाणु, परजीवी, वाइरस इत्यादि होते हैं। यह मुख्य रूप में जल के एक स्थान इकट्ठे रहने के कारण आते हैं। इसके अतिरिक्त यह सड़े-गले पदार्थों में भी पैदा होते हैं।

3. दूषित पदार्थ (Polluted Substances)-इसमें कार्बनिक तथा अकार्बनिक हर प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। वस्त्रों की धुलाई या बर्तनों को साफ करना, मनुष्य या जानवरों का साबुन का प्रयोग करना। इसके साथ साबुन पानी में मिल जाता है। खाद्य पदार्थ इत्यादि अन्य पदार्थों के जल में मिलने से भी जल प्रदूषित हो जाता है। पेट्रोल इत्यादि पदार्थों के रिसाव से समुद्री जल प्रदूषित हो जाता है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्रों द्वारा किया जाता है। इन जहाज़ों में कई बार रिसाव होने के कारण जहाज़ किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। उसके डूबने से तेल समुद्र में फैल जाता है तथा जल प्रदूषित हो जाता है।

4. अजीवी मिश्रण (Toxic Substances)-कई प्रकार के तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी को प्रदूषित बनाते हैं तथा जल को अयोग्य बना देते हैं।

5. कई स्थानों पर जहां लोग नदी के किनारे जाकर रहने लगे हैं। वे लोग किसी व्यक्ति की मौत के बाद उनकी लाशों को जलाने की बजाए नदी में बहा देते हैं। जैसे-जैसे लाश सड़कर गलने लगती है वैसे ही जल में कीटाणुओं की संख्या बढ़ने लगती है जिसके साथ पानी प्रदूषित होता है।

6. अक्सर किसी त्योहार पर मूर्तियों की पूजा करके मूर्तियों का विसर्जन समुद्र, नदी या फिर तालाबों में किया जाता है। यह भी जल को प्रदूषित करती है। हमें चाहिए कि त्योहार समय ऐसी मूर्तियों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया हो ताकि प्रदूषण कम हो।

7. जब नदी या तालाब के जल में Nuclear Test किया जाता है तब वह टैस्ट के दौरान जल में न्यूक्लियर के कुछ पार्टीकल रह जाते हैं जिससे जल दूषित हो जाता है।

8. किसानों द्वारा कृषि में प्रयोग किए गए रसायन भी जल में मिल जाते हैं जिसके साथ ही जल प्रदूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण को रोकने का सुझाव (Measures to Control Water Pollution) हम सभी जानते हैं कि जल ही जीवन है तथा यदि इस जल प्रदूषण को समय रहते ठीक न किया गया तब वह दिन दूर नहीं जब एक देश दूसरे देश के साथ जल की प्राप्ति के लिए लड़ेगा। इस प्रदूषण को रोकने के कुछ सुझाव हैं-

1. तालाब या नदी में कपड़े या बर्तन न धोएं जाएं। अक्सर देखा गया है कि धोबी या आस-पास रहने वाले लोग कपड़े तथा बर्तन तालाब में धोते हैं। इस प्रकार जल में रहने वाले जीव-जन्तु तथा जल को हानि पहुँचती है इसलिए इसको बंद किया जाना चाहिए।

2. जानवरों को तालाबों में न नहाने दिया जाए क्योंकि तालाब का जल स्थिर रहता है तथा जानवरों के नहाने के साथ जल धीरे-धीरे गंदा हो जाता है तथा बाद में किसी भी चीज़ के लिए उपयोगी नहीं रहता।

3. राइप्रेयन बफ़र नदी के साथ-साथ उगने वाले वृक्षों तथा पेड़-पौधों की कतारें होती हैं, जो कि आस-पास के क्षेत्रों के नहर इत्यादि के जल की रक्षा करती हैं तथा जैव भिन्नता में वृद्धि भी करती हैं। आम लोगों तथा सरकारों को इस बफ़र में वृद्धि करनी चाहिए तथा वृक्षों को काटने पर रोक लगानी चाहिए।

4. हमें जल प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए सारे कानूनों का पालन करना चाहिए। भारत के लगभग सारे राज्यों में 1947 में कानून बना था। यह कानून इस बात को आवश्यक करता है कि सारे परिषद् के उद्योग प्रयोग किए गए गंदे पानी को नदियों इत्यादि में फेंकने से पहले उसको साफ करें तथा फिर नदी में छोड़ें।

5. उद्योगों तथा औद्योगिक संसाधनों को अधिक ज़िम्मेदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए।

6. जहरीले कचरे का उचित निपटारा करना चाहिए। जिन फैक्ट्रियों में पेंट, साफ सफाई तथा दाग मिटाने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जहां से निकलने वाले पानी की उचित सफाई शौध होनी आवश्यक है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर भी पूरी तरह से रोक लगनी आवश्यक है।

7. जल में उपजने वाले पौधे जो पानी को साफ रखते हैं। हमें अधिक-से-अधिक ऐसे पौधे लगाने चाहिए।

8. मृतक शरीरों को नदियों में नहीं फेंकना चाहिए। हर शहर तथा कस्बे में सीवरेज की पूरी सुविधा होनी चाहिए।

9. हमें मल-मूत्र तथा सीवरेज के जल को शहरों तथा कस्बों में रहने वाले जल से मिलने से रोकना चाहिए। उनको खड्डों में प्रवाहित करना चाहिए। ऐसा करने के साथ वह खाद में बदल जाएंगे तथा कृषि के लिए इस्तेमाल किए जा सकेंगे।

10. जल में बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए इसमें ब्लीचिंग पाऊडर या अन्य रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है।

11. अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना चाहिए।

12. प्राकृतिक कृषि करने के लिए किसानों को उत्साहित करना चाहिए तथा पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद के तौर पर किया जाना चाहिए।

13. समुद्र इत्यादि जल स्रोतों के जल में मिले हुए तेल को साफ करने के लिए कागज़ उद्योग के एक बचे हुए उत्पाद – बीगोली का प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

प्रश्न 3.
वायु प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण (Air Pollution)-वायुमंडल पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। मानव जीवन के लिए वायु का होना बहुत आवश्यक है। वायु के बिना मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि मानव वायु के बिना 5-6 मिनट से अधिक नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिनभर में औसतन 20 हजार बार सांस लेते हैं। इसके दौरान मानवं 35 पौंड वायु का प्रयोग करता है। अगर यह प्राण देने वाली वायु शुद्ध नहीं होगी तो यह प्राण देने के बजाए प्राण ले लेगी। वायुमंडल में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड इत्यादि गैसें एक निश्चित अनुपात में होती हैं जब इनके संतुलन में परिवर्तन आता है तब वायुमंडल अशुद्ध हो जाता है। वायु में जब ज़हरीले तथा अनचाहे पदार्थ घुलकर वायु को दूषित कर देते हैं तब वह हवा मनुष्य स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालती है।

वायु प्रदूषण के स्रोत (Sources of Air Pollution)-

1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) ज्वालामुखी विस्फोट के कारण निकली गैसों तथा साथ उड़ रही धूल, रेत, जंगलों को लगी आग इत्यादि।

2. मानव द्वारा पैदा किये स्रोत (Man Made Sources)-औद्योगिक क्रियाओं द्वारा निकलने वाले धुएं, मनुष्य द्वारा लगाए गए कूड़े के ढेर, खाना इत्यादि बनाने के लिए लगाई आग, वाहनों के प्रयोग से निकला धुआं इत्यादि। हमारी 85% वायु को कार्बन के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, वायु में मौजूद धूल कण, कार्बन के यौगिक, इत्यादि दूषित कर रहे हैं।

हवा प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution)—विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने प्राकृतिक साधनों का अधिक प्रयोग किया है। औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े बंजर बनते जा रहे हैं। इन शहरों तथा नगरों में जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ शहरों, नगरों में रहने के लिए स्थान की समस्या आ रही है। इस समस्या को सुलझाने के लिए लोगों ने बस्तियों का निर्माण किया तथा वहाँ जलनिकासी नालियां इत्यादि का अच्छी बंदोबस्त न होने के कारण गंदी बस्ती में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। उद्योगों में से निकलने वाला धुआं, किसानों द्वारा रसायनों का प्रयोग से वायु के प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

उद्योगों में जीवाश्म ईंधन (Use of Fossil Fuels in Industries) अधिकतर वायु प्रदूषक औद्योगिक क्रियाओं कारण पैदा होते हैं। इनसे कुछ उद्योगों में जीवाश्म ईंधन की प्रक्रिया के कारण ओज़ोन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि गैसें निकलती हैं जो वायु को दूषित करती हैं।

घरों को गर्म रखने के लिए कई प्रकार के ईंधन (Fossil Fuels) का प्रयोग जैसे तेल, गैस, कोयला इत्यादि किया जाता है। इनके ईंधन का अर्थ है कि महत्त्वपूर्ण प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड का पैदा होना। यदि घरों को गर्मी देने के लिए बिजली का प्रयोग किया जाता है तो जो बिजली पैदा करने वाले प्लांट हैं उनको चलाने के लिए भी इन जीवाश्म ईंधनों का ही प्रयोग किया जाता है जिसके साथ वायु प्रदूषित हो जाती है।

ज्वालामुखी इत्यादि के फटने के साथ वायु में कई जहरीली गैसें मिल जाती हैं। सल्फर डाइऑक्साइड इनमें ही एक गैस है जो ज्वालामुखी के फटने से निकलती है। इसके अतिरिक्त जंगलों को लगी आग के कारण कई प्रदूषक वायु में मिल जाते हैं जिसके साथ वायु दूषित हो जाती है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air Pollution)-
1. जब वायुमंडल में लगातार कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन इत्यादि मिलते रहते हैं तब स्वाभाविक ही है कि ऐसे प्रदूषित पर्यावरण में साँस लेने के साथ साँस से संबंधित बिमारियां होने लगती हैं। इसके साथ ही घुटने, सिरदर्द, आँखों का दर्द, आँखों में जलने इत्यादि बिमारियों का सामना मनुष्य को करना पड़ता है।

2. वाहनों तथा कारखानों से निकलते धुएं में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा होती है जो कि पहले सल्फाइड तथा बाद में सल्फ्यूरिक अम्ल में बदल जाती है तथा फिर वायु में बूंदों के रूप में रहती है। वर्षा के दिनों में यह वर्षा के जल के साथ धरती पर गिरती है जिसके साथ भूमि की उत्पादन शक्ति कम हो जाती है साथ ही सल्फर डाइऑक्साइड के कारण दमा इत्यादि रोग हो जाते हैं।

3. कुछ रासायनिक गैसें वायुमंडल में पहुंच कर वायु में ओज़ोन मंडल के साथ क्रिया करके उसकी मात्रा को कम कर देती है। ओजोन मंडल ब्रह्मांड से आने वाले हानिकारक विकिरणों को रोकती है। हमारे लिए ओज़ोन मंडल एक ढाल का काम करती है। पर जब ओज़ोन मंडल की कमी होगी तब स्किन कैंसर जैसे भयानक रोग भी हो सकते हैं।

4. वायु प्रदूषण का असर भवनों, स्मारकों इत्यादि पर भी होता है जैसे कि ताजमहल को खतरा मथुरा तेल शोधन कारखाने से हुआ है।

5. वायुमंडल में ऑक्सीजन का स्तर कम होना भी प्राणियों के लिए खतरनाक है क्योंकि ऑक्सीजन भी प्राणियों के लिए आवश्यक है।

6. उद्योगों, खनन, पॉलिश, सूती वस्त्र उद्योग इत्यादि से निकलने वाले धूलकण भी वायु का प्रदूषण फैलाते हैं।

वायु प्रदूषण को रोकने के सुझाव (Measures to Control Air Pollution)-

  • कारखानों को शहरी क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए। साथ ही ऐसी तकनीक का प्रयोग करना चाहिए जिसके साथ धुएं का अधिकतर भाग बाहर न निकले तथा फालतू पदार्थ तथा अधिक गैसों की मात्रा वायु में न मिल सके।
  • जनसंख्या शिक्षा के उचित प्रबंध भी किए जाने चाहिए ताकि जनसंख्या की वृद्धि को रोका जा सके।
  • शहरीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए गाँव तथा कस्बों में रोज़गार के अच्छे उद्योगों तथा अन्य सुविधाओं की उपलब्धि करवानी चाहिए।
  • वाहनों में से निकलते धुएं को इस तरह समायोजित करना चाहिए कि कम से कम धुआं बाहर निकले।
  • सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • इस प्रकार के ईंधन का प्रयोग करने का सुझाव देना चाहिए जिसके प्रयोग करने के साथ उसका पूरा ऑक्सीकरण हो जाए तथा धुआं कम से कम निकले।
  • जंगलों की हो रही अंधा-धुंध कटाई को रोका जाना चाहिए। इस काम के लिए सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाओं तथा हर एक मानव को आगे आना चाहिए तथा जंगलों की कटाई को रोकना चाहिए।
  • शहरों तथा नगरों में फालतू पदार्थों के निकास के लिए सीवरेज हर स्थान पर होने चाहिए।
  • बच्चों के पाठ्यक्रम में इस विषय प्रति चेतना जागृति करनी बहत आवश्यक है इसकी जानकारी इस कारण होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने के लिए दूरदर्शन, रेडियो, अखबारों इत्यादि के माध्यम द्वारा देनी चाहिए।
  • ताप या उत्प्रेरक ईंधन के साथ प्रदूषित कणों को रोकना चाहिए ताकि उनका नुकसान कम हो।

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प्रश्न 4.
सिआचिन का शाब्दिकार्थ क्या है ? इसका महत्त्व तथा भारत के पक्ष के बारे में वर्णन करो।
उत्तर-
बलोचिस्तान के पास पड़ते क्षेत्र में बलती भाषा में ‘सिआ’ का अर्थ है कि एक प्रकार का जंगली गुलाब तथा ‘चिन’ का अर्थ है ‘बहुतांत’। इस तरह सिआचिन का अर्थ है बड़ी मात्रा में ‘गुलाब के फूल’। सिआचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी कराकोरम पर्वतमाला में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग स्थिति एक (हिमानी) ग्लेशियर है। यह कराकोरम के पांच ग्लेशियरों में सबसे बड़ा ग्लेशियर है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई इसके स्रोत इंदिरा कोल पर लगभग 5,753 मीटर है तथा सिआचिन ग्लेशियर पर 1984 से भारत का नियंत्रण है तथा भारत जहाँ अपने जम्मू तथा कश्मीर राज्य के लद्दाख खंड के लेह जिले के अधीन प्रशासन करता है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर भारत के नियंत्रण का अंत करने के लिए असफल यत्न किए हैं पर वर्तमान में भी सिआचिन विवाद जारी रहा है। भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही जहाँ अपने अधिकार का दावा करते हैं। सिआचिन ग्लेशियर का इलाका असल में भारत की दो विवादग्रस्त सीमाओं लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) तथा लाइन ऑफ ऐक्चूअल कंट्रोल (LOAC) की भूमि है।

सिआचिन ग्लेशियर की महत्ता (Importance of Siachan Glacier)-

  • यह ग्लेशियर प्रसिद्ध नूबरा तथा सिंध नदियों को जल प्रदान करने वाला एक बड़ा स्रोत है।
  • सिआचिन ग्लेशियर एक ऐसा स्रोत है जिससे भारतीय उपमहाद्वीप को ताजा जल मिलता है। यह वह स्थान है · जहां नूबर नदी निकलनी शुरू होती है तथा सिंध नदी जो पंजाब के कई क्षेत्रों को कृषि की सिंचाई के लिए जल प्रदान करती है या यहाँ जल लेती है।
  • सिआचिन ग्लेशियर का धुर उत्तरी इंदिरा कोल का क्षेत्र पाकिस्तान की तरफ से गैर-कानूनी ढंग से चीन को दिए गिलगिट-वालिस्तान का क्षेत्र की सरगर्म घाटी पर नज़र रखने के लिए अच्छा स्थान है।
  • चीन की दिलचस्पी भी सिआचिन को हासिल करने की है, क्योंकि चीन पाकिस्तान गठजोड़ में अच्छी भूमिका अदा कर सकता है।
  • यह ग्लेशियर पाकिस्तानी सैनिकों को भी सैल्टरी कंधों की ऊंचाई वाले पश्चिमी हिस्से का रणनीतिक लाभ भी देता है तथा साथ ही लद्दाख की सीओंक घाटी में घुसपैठ को रोकता है।
  • सिआचिन पर कब्जा होने की कोई अवस्था अक्साइचिन तथा अरुणाचल प्रदेश के मुद्दों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
  • सिआचिन पर अधिकार होने का मुख्य आधार जम्मू तथा कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के ज़िले पर भारतीय क्षेत्र कारण है।
  • सन् 1949 में हुआ कराची का समझौता (भारत + पाक) जिसके अनुसार ‘गोलाबन्दी रेखा’ को आगे भाव ग्लेशियरों के उत्तर में NJ9842 प्वाईंट।
  • 1972 में हुए शिमला समझौते में 1949 की कंट्रोल रेखा के संबंध पर कोई बदलाव नहीं किया गया।

भारत का पक्ष (India’s Concern)-सिआचिन ग्लेशियर भारत का क्षेत्र है इसमें कोई शक नहीं है। इस क्षेत्र की सीमाबंदी की जानी अभी बाकी है। इस ग्लेशियर पर कब्जे के लिए सैनिकों की जिंदगी तथा अन्य स्रोतों के नुकसान हमेशा सवाल खड़ा करते रहे हैं पर ऐसी कठिनाइयों के बाद भी भारत सरकार तथा भारतीय फौज के फैसलों तथा ज़ज्बे की अन्य कोई मिसाल ढूंढनी मुश्किल है। सिआचिन के देख-रेख के लिए, इस प्राकृतिक स्रोत के स्थान की सुरक्षा के लिए सैनिकों की तथा पर्वतीय देख-रेख दलों की आवश्यकता तो हमेशा ही रहेगी क्योंकि भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा रहे हैं। 1970, 1980 से लगातार एक लाइन NJ9842 करोकोरम दरों से दिखाई दे रही है जिसके बारे में भारत का विचार था कि यह एक कारटोग्राफिक नुक्स है तथा शिमला समझौते के विरोध का कारण बनी है। 1984 ई० में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत चलाया जो कि एक सैनिक ऑपरेशन था जो भारत का सिआचिन ग्लेशियर पर उसको उसका कब्जा दिया है।

1984 से 1999 तक भारत और पाकिस्तान के बीच काफी मुठभेड़ हुए। भारत के सैनिकों की तरफ से सिआचिन ग्लेशियर पर हर समय लगे रहने की सैनिक कारवाई को ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया जाता है। सिआचिन ग्लेशियर पर कब्जे का मामला सियासी भी था तथा राजनीतिक स्तर पर भी हल मांग रहा है पर पिछले कुछ सालों में यह मुद्दा तथा क्षेत्र सिर्फ एक सैनिक कार्रवाई का आधार बन गया है। भारत ने सिआचिन पर अपनी अस्तित्व की प्रारंभिक संरचना पूरी तरह तैयार कर ली है तथा यह दावा करने वाले दोनों पक्षों भाव चीन तथा पाकिस्तान से अधिक अच्छा स्थिति में पहुंच गया है। भारतीय सेना क्षेत्र के प्राकृतिक स्रोतों के साथ किसी भी प्रकार की छेड़खानी करने को छोड़कर उनकी रक्षा कर रही है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

प्रश्न 5.
1960 की सिंध जल संधि पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
सिंध जल संधि जल के वितरण को लेकर भारत तथा पाकिस्तान के बीच हुई थी। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार तीन पूर्वी नदियों-व्यास, रावी, तथा सतलुज का नियन्त्रण भारत के पास तथा पश्चिमी नदियों-सिंध, चिनाब तथा जेहलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। पर इनके बीच विवादग्रस्त प्रावधान था जिसके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा यह अभी निश्चित होना है, क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है। संधि के अनुसार भारत को उनका उपभोग सिंचाई के लिए तथा बिजली के उत्पादन के लिए किए जाने की मन्जूरी दे दी गई। सिंध जल संधि के बाद सिंध नदियों के जलतंत्र के जल की पूरी तथा विश्वसनीय प्रयोग करने के लिए आपसी नेक नीति तथा दोस्ताना जज्बे के साथ हदबंदी पर विभाजन हो सके। एकदूसरे के हक तथा ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखा गया तथा आपसी सहयोग के साथ इन नदियों के जल का प्रयोग किया जा सके।

सिंध नदी सिस्टम में तीन पश्चिमी नदियां सिंध, जेहलम तथा चिनाब तथा तीन पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी शामिल हैं। इस संधि के अनुसार रावी, ब्यास तथा सतलुज पूर्वी नदियां पाकिस्तान के प्रवेश करने से पूर्व इन नदियों का जल बेरोक-टोक भारत को प्रयोग की मन्जूरी मिल गई। भारत ने 1960 से 1970 तक के दशक में तथा 1973 तक नहर प्रबंध को पूरी तरह से निर्माण कर लेने तक पूर्वी नदियों के पानी को छुआ तक भी नहीं था। पूर्वी नदियों का जल पाकिस्तान के क्षेत्र में दाखिल हो जाने के बाद पाकिस्तान को उनके प्रयोग की खुली स्वतन्त्रता का हक मिल गया। धारा-III जो कि पाकिस्तान के पश्चिमी नदियों के बारे में है। इसके अनुसार इनके जल के बेरोक प्रयोग का हक पाकिस्तान को है। पर भारत की ज़िम्मेदारी है कि इन नदियों का सारा जल बहने दिया जाए।

सिर्फ 4 स्थितियों के अतिरिक्त बिना घरेलू प्रयोग के, किसी ऐसे उपयोग के लिए प्रयोग जिससे पानी खत्म न हो, कृषि के लिए, बिजली के उत्पादन के लिए। पाकिस्तान की तरह भारत को आजादी है कि वह पश्चिमी नदियों के जल पर पानी की 3.6 MAF मात्रा तक भंडारण कर सकता है पर ऐसे भंडारण में 0.5 MAF जल हर साल छोड़ कर और इकट्ठा करना होगा। सिंध जल संधि, नदियों के बेसिन के विभाजन के पक्ष से पक्षीय विभाजन का एक नमूना है. जो कि दो देशों के इंजीनियरों तथा इंजीनियरी विभाजन का ही एक दस्तावेज है। संधि वास्तव में नदियों के पानी के दोहरे प्रबंध के लिए होनी चाहिए थी पर आपसी झगड़े विभाजन की कड़वाहट ने दोनों ही पक्षों को एक-दूसरे पर शक करने वाला बना बना दिया था। जिस कारण संधि की शर्तों में अधिकार कम तथा प्रतिबन्ध अधिक लिखे गए थे। जिस कारण जम्मू तथा कश्मीर में इस संधि के खिलाफ निराशा फैल गई क्योंकि इस संधि में लोगों की इच्छाओं को नज़रअंदाज किया गया था। यह संधि लोग विरोधी तथा एक तरफ की संधि थी। जिस पर दुबारा से विचार करना बहुत आवश्यक था।

सन् 1960 के बाद पानी की 159 MAF तक की मात्रा में कमी आ गई थी तथा 17MAF रह गई। जिस कारण जम्मू तथा कश्मीर के लोगों को चिंता हो गई। एक अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक सिंध का जलतंत्र तथा भारतीय ‘नदियों के पानी की मात्रा में 17 प्रतिशत तक की कटौती का अनुमान लगाया गया तथा पाकिस्तान में पहुँच रहे जल में 27% तक की कमी के अनुमान लगाये गए। मौसमी परिवर्तन के कारण जैसे कि बर्फ का कम टिकना इत्यादि के कारण राष्ट्रीय स्वामित्व तथा प्रबंध सिंध बेसिन की प्राकृतिक सामूहिक एकता बनाने के लिए तथा प्राकृतिक सामूहिक एकता बनाने के प्रयास किए जाने की मांग बढ़ गई।

दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों में रोज़ाना बदल रहे मौसम के नज़रिए के कारण, बाँध तथा सिंचाई योजनाओं निर्माण की ज़रूरत में वृद्धि हो गई पर यह कार्रवाई हर पक्ष से पूर्ण होनी ज़रूरी है। भारत ने जल संधि को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है तथा तीन लड़ाइयां, आतंकवाद तथा अन्य युद्ध तथा ठंडे संबंधों के बाद भी भारत ने इस संधि की शर्तों को भंग नहीं किया। भारत ने अपना आप खोकर भी इस संधि की रक्षा की तथा सारी शर्तों की पालना की, क्योंकि-

  • पाकिस्तान के क्षेत्र में पड़ने वाली पश्चिमी नदियों का जल अधिक है तथा पाकिस्तान का 80 प्रतिशत जल पर अधिकार है तथा इस जल की मात्रा कहीं कम है।
  • 9.7 लाख एकड़ भूमि पर जम्मू तथा कश्मीर के क्षेत्र पर पाबंदी भी लगाई गई कि वह इस भूमि को कृषि के लिए प्रयोग नहीं करेंगे।
  • भारत को इस संधि के द्वारा सिंचाई तथा बिजली उत्पादन के लिए जितना भी जल मिला उसके साथ भारत की जरूरतें कभी पूरी नहीं हुईं।
  • भारत में बनाई गई कोई भी क्षेत्रीय योजना का 1960 की संधि के अनुसार परीक्षण किया जाएगा तथा पश्चिमी नदियों के किनारों के नज़दीक लाई गई हर एक ईंट के बारे में भी प्रसिद्ध पर्यावरण विदों तथा राष्ट्रीय संस्थाओं की सलाह (परामर्श) अनुसार कार्रवाई की गई है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र PSEB 12th Class Geography Notes

  • मानवीय जीवन के भौगोलिक दृष्टिकोण से किए अध्ययन को मानव भूगोल कहते हैं। सारे विश्व में मानवीय जीवन एक जैसा नहीं होता।
  • सिआचिन ग्लेशियर 35°5′ अक्षांश से 76°9′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यहां सर्दियों में 35 फुट के करीब बर्फवारी होती है तथा तापमान 50°C तक पहुँच जाता है। इस ग्लेशियर का ज्यादातर हिस्सा भारत तथा पाकिस्तान के मध्य कंट्रोल रेखा के अंतर्गत आता है।
  • 1972 के शिमला समझौते के अनुसार 1949 में कंट्रोल रेखा से संबंधित समझौते के बारे में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता।
  • गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध के प्रांतों में एक दलदली खाड़ी सरकरीक है। 1914 के समझौते के अनुसार सरकरीक का सारा इलाका पाकिस्तान का होना चाहिए। यह सीमान्त दोनों देशों के मध्य एक गंभीर मसला है।
  • पर्यावरण प्रदूषण मुख्य रूप में तीन प्रकार का होता है-भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण।
  • पृथ्वी पर भौतिक पर्यावरण में जब कुछ ज़हरीले पदार्थ तथा रसायनों की मात्रा बढ़ जाती है तथा ये पदार्थ भूमि, हवा, जल को अयोग्य बना देते हैं तो इसे प्रदूषण कहते हैं।
  • भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण, जंगलों की अंधा-धुंध कटाई, कीटनाशकों का अधिक प्रयोग, शहरीकरण इत्यादि। हम 22 अप्रैल को राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाते हैं।
  • जल में रसायनों के मिलने के कारण पानी दूषित हो जाता है, इसको जल प्रदूषण कहते हैं।
  • कई तरह के तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी को प्रदूषित करते हैं तथा पानी पीने योग्य नहीं रहता।
  • भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ़ रखने के लिए ‘नमामि गंगा’ नामक मिशन का आगाज़ किया है।
  • वायु में जहरीले पदार्थों तथा अनचाहे पदार्थों के मिलने से वायु दूषित हो जाती है। इसके प्रमुख स्रोत हैंरेत, जंगलों को लगी आग, कार्बन के आक्साइड, हवा में धूलकण, धूल, धुआं, ओज़ोन, सल्फ्यूरिक एसिड इत्यादि।
  • पृथ्वी पर विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार ने सफर प्रकल्प शुरू किया जो विश्व मौसम विभाग की संस्थाओं भारत के महानगरों का स्तर आंकते हैं।
  • प्राकृतिक तथा मानवीय प्रक्रियाओं के स्थानीय विभाजन की प्रशंसा जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास, सार्थक ढंग से करवाना भौगोलिक सर्वोच्चता कहलाती है।
  • मानव भूगोल-मानवीय जीवन के भौगोलिक दृष्टिकोण से किए जाने वाले अध्ययन को मानवीय भूगोल , कहते हैं।
  • सिआचिन ग्लेशियर-सिआदिन का अर्थ है-बड़ी संख्या में ‘गुलाब के फूल’। सिआचिन ध्रुवीय इलाकों के अतिरिक्त दूसरे नंबर का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यह हिमालय पर्वतों की पूर्वी कराकुरम श्रृंखला में 35°5′ उत्तरी अक्षांश तथा 76°9’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
  • कच्चातिवु—कच्चातिवु श्रीलंका में पड़ने वाला एक विवादों में घिरा वह टापू है जो कि 285.2 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • प्रदूषण–भौतिक पर्यावरण में जब कुछ ज़हरीले पदार्थों तथा रसायनों में वृद्धि होती है जो कि जल, वायु तथा मिट्टी को अयोग्य बना जाते हैं, इसको प्रदूषण कहते हैं।
  • भू-प्रदूषण के स्रोत-कारखानों से निकले जहरीले पदार्थ-पारा, सीसा, तांबा, जिंक, साइनाइड, तेज़ाब, कीटनाशक इत्यादि।
  • चार R-Refuse, Reuse, Recycle and Reduce
  • जल प्रदूषण-जब जल में कुछ रसायन तथा घरेलू कचरा इत्यादि पदार्थ मिल जाते हैं तब पानी दूषित हो जाता है जिसको जल प्रदूषण कहते हैं।
  • वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत-ज्वालामुखी विस्फोट के कारण निकले पदार्थ-रेल, धूल तथा जंगलों को – लगने वाली आग इत्यादि कारणों के कारण हवा दूषित हो जाती है।
  • PM10 मोटे कण 10 माइक्रोमीटर तक ये कण फेफड़ों तक जाकर मनुष्य की मौत का कारण बन सकते हैं।
  • भारत की औसत मध्यम आयु 29 साल है जबकि जापान में 49 साल तथा यू०एस०ए० में मध्यम आयु करीब 38 साल है।
  • भारत के पास विश्व का 9.6 प्रतिशत जल संसाधन है।
  • पंजाब के हर शहर, गाँव तथा बस्ती में एक महिला स्वास्थ्य संघ स्थापित है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

SST Guide for Class 7 PSEB पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
धरती की कितनी पर्ते हैं? इनके नाम लिखो।
उत्तर-
धरती की तीन पर्ते हैं-स्थल मण्डल, मैंटल तथा केन्द्रीय भाग। इन्हें क्रमशः सियाल, सीमा तथा नाइफ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
धरती पर कितनी प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर-
धरती पर कई प्रकार की चट्टानें (शैलें) पाई जाती हैं। निर्माण के आधार पर चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय चट्टानें, तलछटी या तहदार चट्टानें तथा परिवर्तित चट्टानें।

प्रश्न 3.
धरती के मैंटल भाग के बारे में लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी की ऊपरी पर्त के नीचे पृथ्वी का मैंटल भाग है। इसकी सामान्य मोटाई 2900 किलोमीटर है। इनको दो भागों में बांटा जाता है-ऊपरी मैंटल और निचली मैंटल।

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प्रश्न 4.
धरती की सियाल परत को इस नाम से क्यों पुकारा जाता है?
उत्तर-
धरती की सियाल परत में सिलिकॉन (Si) तथा एल्युमीनियम (AI) तत्त्वों की अधिकता है। इसी कारण इस परत को सियाल (Si + Al = SIAL) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
धरती के आन्तरिक भाग (परत) को क्या कहते हैं? यह कौन-कौन से तत्त्वों की बनी हुई है?
उत्तर-
पृथ्वी के आन्तरिक भाग को ‘नाइफ़’ कहते हैं। यह परत निक्कल तथा लोहे से बनी है।

प्रश्न 6.
धरती के भूमि कटाव से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर-
धरती को निम्नलिखित उपायों द्वारा भूमि कटाव से बचाया जा सकता है –

  1. अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाकर
  2. खेतीबाड़ी के अच्छे ढंग अपनाकर
  3. पशुओं की चराई को घटाकर।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में दो।

प्रश्न 1.
अग्नि (आग्नेय) चट्टानें किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार की हैं? अंतर्वेदी (अंतर्वेधी) चट्टानों के बारे में लिखो।
उत्तर-
अग्नि (आग्नेय) चट्टान वह चट्टान है जिसका निर्माण मैग्मा तथा लावा के ठण्डा होने से हुआ है। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-अंतर्वेदी (अन्तर्वेधी) चट्टानें तथा बाहरवेदी (बहिर्वेधी) चट्टानें।

अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें-कभी-कभी मैग्मा पृथ्वी के अन्दर ही धीरे-धीरे ठण्डा होकर जम जाता है। इस प्रकार बनी चट्टानों को अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें कहते हैं। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-पातालीय आग्नेय चट्टानें तथा . मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें।

1. पातालीय आग्नेय चट्टानें-जब पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मैग्मा बहुत अधिक गहराई पर चट्टान का रूप ले लेता है, तो उस चट्टान को पाताली अग्नि (पातालीय आग्नेय) चट्टान कहा जाता है। ग्रेनाइट इसी प्रकार की चट्टान है ।

2. मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें-कभी कभी मैग्मा पृथ्वी के मध्य भागों की दरारों में जम जाता है। इस प्रकार जो चट्टानें बनती हैं उन्हें मध्यवर्ती अग्नि (आग्नेय) चट्टानें कहते हैं। डाइक तथा सिल इन चट्टानों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
पर्तदार (सतहदार) चट्टानें किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार की हैं?
उत्तर-
पर्तदार (सतहदार) चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पर्तों (परतों) के रूप में पाई जाती हैं। ये अनाच्छादन के कारकों की जमाव क्रिया से बनती हैं। ये जमाव पृथ्वी के निचले स्थानों पर पाए जाते हैं।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप 1
पृथ्वी के तल पर वर्षा, वायु, गर्मी, सर्दी, नदी तथा हिमनदी के कारण शैलें टूटती रहती हैं। नदी-नाले इन टूटे हुए शैल कणों को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। जब ये नदी-नाले समुद्र में जाकर गिरते हैं तो सारा तलछट समुद्र की तह में जमा हो जाता है। वायु भी अनेक शैल कण उड़ाकर समुद्र में फेंकती है। समुद्र में जमा होने वाली इस सामग्री को तलछट अथवा अवसाद कहते हैं। समय बीतने के साथ-साथ नदियां तलछट की परतों पर परतें बिछाती रहती हैं। लाखों वर्षों के पश्चात् दबाव के कारण तलछट की परतें कठोर हो जाती हैं और तलछटी अथवा तहदार चट्टानों का रूप धारण कर लेती हैं। रचना के आधार पर तलछटी शैलें दो प्रकार की होती हैं-जैविक तथा अजैविक।

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प्रश्न 3.
रूपान्तरित चट्टानों के बारे में लिखो, इन चट्टानों के प्रमुख उदाहरण दो।
उत्तर-
धरती के अंदर ताप एवं दबाव या दोनों के संयुक्त प्रभाव के कारण, आग्नेय और तहदार चट्टानों के रंग, रूप, संरचना, कठोरता आदि में परिवर्तन आ जाता है। इन परिवर्तनों के कारण मूल रूप से बदल जाने वाली इन चट्टानों को परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टानें कहते हैं। रूपान्तरण दो प्रकार का होता है, तापीय और क्षेत्रीय।

तापीय रूपान्तरण-जब दरारों और नालियों आदि में बहता हुआ मैग्मा चट्टानों के सम्पर्क में आता है, तो वह अपने उच्च तापमान के कारण उनको पिघला देता है। इसे तापीय रूपान्तरण कहते हैं।

क्षेत्रीय रूपान्तरण-किसी बड़े क्षेत्र में ऊपर की चट्टानों के अत्यन्त दबाव के कारण नीचे की चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन आ जाता है। इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण कहते हैं।
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प्रश्न 4.
धरती में मिलने वाले खनिज पदार्थों का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
धरती में पाये जाने वाले खनिजों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जा सकता है –

  1. धात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु के अंश होते हैं। लोहा, तांबा, टिन, एल्युमीनियम, सोना, चांदी आदि खनिज धात्विक खनिज हैं।
  2. अधात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु के अंश नहीं होते। सल्फर (गंधक), अभ्रक, जिप्सम, पोटाश, फॉस्फेट आदि खनिज अधात्विक खनिज हैं।
  3. शक्ति खनिज-इन खनिजों से ज्वलन शक्ति तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा से कारखाने, मोटरगाड़ियां आदि चलाई जाती हैं। इन खनिजों में कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि शामिल हैं।

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प्रश्न 5.
अभ्रक (अबरक) किस प्रकार का खनिज है? यह कौन से काम आता है?
उत्तर-
अभ्रक (अबरक) एक अधात्विक खनिज है। इसके कई लाभ हैं जिसके कारण यह एक महत्त्वपूर्ण खनिज बन गया है।

  1. इस खनिज का अधिकतर उपयोग बिजली का सामान बनाने में किया जाता है।
  2. इसका उपयोग लैंप की चिमनियों, रंग-रोगन, रबड़, कागज़, दवाइयों, मोटरों, पारदर्शी चादरों आदि के निर्माण . में किया जाता है।
  3. अभ्रक की पतली शीटें बिजली की मोटरों और गर्म करने वाली वस्तुओं में ताप नष्ट होने और करंट लगने से बचाव के लिए डाली जाती हैं।

प्रश्न 6.
तरल सोना किसे कहते हैं? इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर-
तरल सोना खनिज तेल को कहा जाता है। इसे यह नाम इसलिए दिया जाता है क्योंकि यह एक तरल खनिज है और बहुत ही उपयोगी है। इसे पेट्रोलियम अथवा चालक शक्ति भी कहते हैं। क्योंकि खनिजों की तरह इसे भी धरती में से निकाला जाता है, इसलिए इसे खनिज तेल कहा जाता है। इसे पेट्रोलियम नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह दो शब्दों-पेट्रो और उलियम के जोड़ से बना है। लातीनी भाषा में पैट्रो का अर्थ होता है चट्टान और उलियम का अर्थ होता है-तेल। इस प्रकार पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ चट्टान से प्राप्त खनिज तेल है। यह वनस्पति और मरे हुए जीव-जन्तुओं के परतदार चट्टानों के बीच दब जाने से बना है।

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प्रश्न 7.
पृथ्वी पर मिट्टी का क्या महत्त्व है? इसके बारे में लिखो ।
उत्तर-
मिट्टी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमि साधन है। मिट्टी का महत्त्व इसकी उपजाऊ शक्ति में निहित है। उपजाऊ मिट्टी सदैव मनुष्य को आकर्षित करती रही है, क्योंकि मनुष्य को भोजन की वस्तुएं इसी से प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि मनुष्य आरम्भ से ही उपजाऊ भूमियों पर रहना पसन्द करता है। प्राचीन सभ्यताओं का जन्म एवं विकास भी संसार की उपजाऊ नदी-घाटियों में ही हुआ है। इसमें सिन्ध, नील, दजला-फरात, यंगसी घाटियों का विशेष योगदान रहा है। आज भी उपजाऊ नदी-घाटियों और मैदानों में ही घनी जनसंख्या पाई जाती है। भारत अपनी उपजाऊ मिट्टी के कारण ही इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए भोजन पैदा करने में समर्थ हो सका है।

प्रश्न 8.
भारत में लोहा, कोयला व पैट्रोलियम कहां-कहां पाया जाता है ?
उत्तर-
भारत में ये खनिज क्रमश: निम्नलिखित प्रदेशों में पाया जाता है –

  1. लोहा- भारत में लोहा उड़ीसा, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक तथा गोवा में पाया जाता है।
  2. कोयला- भारत में कोयला मुख्य रूप से दामोदर घाटी में पाया जाता है। इसके अन्य उत्पादक प्रदेश पश्चिम बंगाल तथा मध्य प्रदेश हैं।
  3. पैट्रोलियम-पैट्रोलियम मुख्य रूप से भारत के तटीय क्षेत्रों में मिलता है। इसके मुख्य उत्पादक राज्य गुजरात, असम तथा महाराष्ट्र हैं।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125-130 शब्दों में दो।

प्रश्न 1.
धरती पर मिलने वाली चट्टानों (शैलों) के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी की ऊपरी पर्त जिन पदार्थों से मिलकर बनी है, उन सभी पदार्थों को शैल कहते हैं। शैलें पत्थर की तरह कठोर भी होती हैं और रेत की तरह नर्म भी। कुछ शैलें बहुत कठोर होती हैं और देर से टूटती हैं। कुछ शैलें नर्म होती हैं और शीघ्र टूट जाती हैं। शैलें तीन प्रकार की होती हैं –

1. आग्नेय शैलें-आग्नेय का अर्थ होता है-आग या अग्नि से सम्बन्धित। यहां अग्नि से भाव है-उच्च तापमान अथवा गर्मी से है। आग्नेय शैलें पृथ्वी की आन्तरिक गर्मी से बनती हैं। इसलिए इनका नाम आग्नेय शैलें पड़ गया है। पृथ्वी के भीतरी भाग में बहुत गर्मी होती है। यहां सब पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होते हैं। इन पिघले हुए पदार्थों को मैग्मा कहते हैं। पृथ्वी के बाहर आने वाले मैग्मा को लावा कहा जाता है। बाहर निकलने पर गर्म लावा धीरे-धीरे ठण्डा होकर ठोस बन जाता है। इस प्रकार आग्नेय शैलों का निर्माण होता है। आग्नेय शैलें दो प्रकार की होती हैं –
(i) अन्तर्वेधी शैलें तथा
(ii) बहिर्वेधी शैलें।
(i) अन्तर्वेधी शैलें-ये शैलें धरातल के भीतर बनती हैं। ये भी दो प्रकार की होती हैं-पातालीय तथा मध्यवर्ती।
(a) पातालीय आग्नेय शैलें-कई बार लावा धरातल के नीचे ही ठण्डा होकर जम जाता है। धरातल के नीचे बनी इस प्रकार की आग्नेय शैलों को पातालीय आग्नेय शैलें कहा जाता है। ग्रेनाइट इस प्रकार की चट्टान है।
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(b) मध्यवर्ती आग्नेय शैलें-प्रायः लावा पृथ्वी के धरातल को फाड़कर बाहर निकलने का प्रयास करता है। परन्तु कभी यह धरातल पर नहीं पहुंच पाता और धरातल की दरारों में ही ठण्डा होकर कठोर रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार बनी आग्नेय चट्टानों को मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें कहते हैं। डाइक, सिल, डोलोराइट आदि आग्नेय शैलों का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(ii) बहिर्वेधी शैलें-ये शैलें धरातल पर लावे के ठण्डा होने से बनती हैं।

2. तलछटी या अवसादी शैलें-पृथ्वी के धरातल की शैलें वर्षा, वायु, नदी, हिमनदी और गर्मी-सर्दी के कारण टूटती-फूटती रहती हैं। इनके टूटे-फूटे कणों को नदियां और हिमनदियां अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और किसी एक स्थान पर इकट्ठा कर देती हैं। धीरे-धीरे इन कणों की तहें एक-दूसरे पर जमा होने लगती हैं। हज़ारों सालों तक दबाव के कारण ये तहें कठोर हो जाती हैं। इस तरह ये तहें तलछटी चट्टानों का रूप धारण कर लेती हैं। इन शैलों को अवसादी या परतदार शैलें भी कहते हैं। गंगा और सिन्धु का मैदान तथा हिमालय पर्वत भी इसी प्रकार की शैलों से बना है।

3. रूपान्तरित शैलें-ये चट्टानें आग्नेय तथा तहदार चट्टानों की संरचना के रंग-रूप तथा गुण आदि बदलने से बनती हैं। यह रूपान्तरण पृथ्वी के भीतर की गर्मी और दबाव के कारण होता है। उदाहरण के लिए चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है, जो एक रूपान्तरित शैल है। भारत का दक्षिणी पठार रूपान्तरित चट्टानों से बना है।

रूपान्तरित चट्टानें धरातल के नीचे बहुत अधिक गहराई में पाई जाती हैं। ये दो प्रकार से बनती हैं-तापीय रूपान्तरण द्वारा तथा क्षेत्रीय रूपान्तरण द्वारा।
(i) तापीय रूपान्तरण द्वारा-जब गर्म मैग्मा पृथ्वी के भीतर की दरारों तथा नालियों में से गुज़रता है, तो यह अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों को पका देता है। इसे तापीय रूपान्तर कहते हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानें बनती हैं।

(ii) क्षेत्रीय रूपान्तरण द्वारा-कभी-कभी एक बड़े क्षेत्र में ऊपरी शैलों के दबाव के कारण निचली शैलों का मूल रूप बदल जाता है। इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण कहते हैं।

रूपान्तरित चट्टान में मूल चट्टान के कुछ गुण अवश्य रह जाते हैं। उदाहरण के लिए तहदार चट्टान से बनी रूपान्तरित चट्टान भी तहदार होती है। इसी प्रकार आग्नेय चट्टान से बनी परिवर्तित (रूपान्तरित) चट्टान के कुछ गुण मूल चट्टान से मिलते-जुलते होते हैं।

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प्रश्न 2.
खनिज पदार्थ किसे कहते हैं? हमारी धरती पर कौन-से खनिज पदार्थ मिलते हैं? इनका वर्गीकरण करो। धातु खनिजों के बारे में भी जानकारी दें।
उत्तर-
चट्टानों का निर्माण करने वाले पदार्थों को खनिज पदार्थ कहते हैं। इन्हें धरती को खोदकर निकाला जाता है। हमारी धरती पर अनेक प्रकार के खनिज मिलते हैं।
खनिजों का वर्गीकरण-इन खनिजों को तीन वर्गों में बांटा गया है –

  1. धात्विक (धातु) खनिज-इन में धातु के अंश होते हैं। इनमें लोहा, तांबा, टिन, एल्युमीनियम, सोना, चांदी आदि खनिज शामिल हैं।
  2. अधात्विक खनिज-इन खनिजों में धातु का अंश नहीं होता। इनमें सल्फर, जिप्सम, अभ्रक, फॉस्फोरस, पोटाश आदि खनिज शामिल हैं।
  3. शक्ति खनिज-इन खनिजों से ज्वलन शक्ति, ऊर्जा आदि मिलते हैं। इनसे हमारे थर्मल प्लांट, कारखाने, मोटर गाड़ियां आदि चलती हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि मुख्य शक्ति खनिज हैं।

धात्विक खनिज-मुख्य धात्विक खनिजों का वर्णन इस प्रकार है –
1. लोहा-लोहे का उपयोग छोटी-सी कील से लेकर बड़े-बड़े समुद्री जहाज़ बनाने में होता है। पूरी औद्योगिक मशीनरी, मोटर कारों, रेलों, खेती के लिए मशीनरी आदि का निर्माण भी इसी खनिज पर आधारित है। लोहे और इस्पात ने औद्योगिक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। लोहा लगभग संसार के सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। भारत में उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और गोवा लोहे के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

2. तांबा-तांबा मनुष्य द्वारा खोजी गई सबसे पहली धातु थी। इसके औद्योगिक महत्त्व को देखते हुए लोहे के बाद तांबे का ही स्थान आता है। धातु-युग का आरम्भ तांबे के प्रयोग से ही हुआ था। इससे कई प्रकार के बर्तन बनाए जाते हैं। आज के युग में इसका महत्त्व और भी बढ़ गया है। इसका उपयोग बिजली का सामान बनाने के लिए किया जाता है। यह बिजली का सुचालक है। इसी कारण बिजली की तारें अधिकतर तांबे की ही बनाई जाती हैं। टेलीफोन-केबल तारें, रेलवे-इंजन, हवाई-जहाज़ और घड़ियों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
चिली (दक्षिण अमेरिका) संसार में सबसे अधिक तांबा पैदा करता है। दूसरे नम्बर पर संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) आता है। अफ्रीका महाद्वीप में भी तांबे के पर्याप्त भण्डार हैं। इसके अतिरिक्त भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया में भी तांबे का उत्पादन होता है। भारत में झारखण्ड, मध्य प्रदेश, सीमांध्र, राजस्थान राज्यों में तांबे के भण्डार पाए जाते हैं।

3. बॉक्साइट-बॉक्साइट से एल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है। एल्युमीनियम हल्के भार वाली धातु है, जिसका अधिकतर उपयोग हवाई जहाज़ बनाने में किया जाता है। रेल-गाड़ियों, मोटरों, बसों, कारों और बिजली की तारों में भी इसका उपयोग होता है। इससे बर्तन बनाए जाते हैं। इससे बर्तन भी बनाए जाते हैं। इससे बनी वस्तुओं को जंग नहीं लगता। इसलिए ये वस्तुएं बहुत देर तक प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
संसार में सबसे अधिक बॉक्साइट ऑस्ट्रेलिया में निकाला जाता है। भारत में बॉक्साइट महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में पाया जाता है।

4. मैंगनीज़-मैंगनीज़ भी एक अति महत्त्वपूर्ण खनिज पदार्थ है। इसका अधिक उपयोग कच्चे लोहे (जो कि धरती में से मिलता है) से स्टील बनाने में किया जाता है। यह ब्लीचिंग पाऊडर, कीट-नाशक दवाएं, रंग-रोगन और शीशा बनाने के लिये भी उपयोग में लाया जाता है। रूस, जार्जिया, यूक्रेन, कज़ाखिस्तान में मैंगनीज़ के काफ़ी भण्डार हैं। इनके अतिरिक्त दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील (दक्षिणी अमेरिका) और भारत भी मैंगनीज़ के मुख्य उत्पादक देश हैं। भारत में मध्य-प्रदेश से सबसे अधिक मैंगनीज़ प्राप्त होता है। तेलंगाना, सीमांध्र, कर्नाटक, उड़ीसा और झारखण्ड में भी मैंगनीज़ मिलता है।

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प्रश्न 3.
शक्ति खनिज किसे कहते हैं? किसी एक शकिा खनिज के विषय में जानकारी दें।
उत्तर-
वे खनिज जिनसे कारखाने, मोटर गाड़ियां आदि चलाने के लिए ऊर्जा तथा ज्वलन ऊर्जा प्राप्त होती है, शक्ति खनिज कहलाते हैं। मुख्य शक्ति खनिज कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि हैं। इनमें से कोयले तथा खनिज तेल का औद्योगिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. कोयला-कोयला मुख्य शक्ति खनिज है। अब कोयले का सीधे शक्ति के रूप में उपयोग.कम हो गया है। अब इससे बिजली पैदा करके शक्ति प्राप्त की जाने लगी है। इस उद्देश्य के लिए उपयोग में लाया जाने वाला कोयला प्रत्थरी कोयला है। यह कोयला हजारों साल पहले वनों के धरती की गहरी परतों में दबे रहने और उन पर धरती की गर्मी और ऊपर की तहों के दबाव के कारण बना था। इस प्रक्रिया में करोड़ों वर्ष लग गए।

संसार में कोयले के अधिकतर भण्डार 35° से 65° अक्षांशों में पाये जाते हैं। संसार का 90% कोयला चीन, यू० एस० ए०, रूस और यूरोपीय देशों में मिलता है। इनके अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और एशिया महाद्वीप में भी कोयले के विशाल भण्डार हैं। जापान और थाइलैण्ड में भी कोयला पाया जाता है। भारत संसार का 5% कोयला पैदा करता है। भारत में दामोदर घाटी प्रमुख कोयला क्षेत्र है। पश्चिमी बंगाल और मध्य-प्रदेश राज्यों में भी कोयला पाया जाता है।

2. खनिज तेल-खनिज तेल को तरल सोना भी कहा जाता है। इसे यह नाम इसके बढ़ते हुए उपयोग तथा महत्त्व
के कारण दिया गया है। इसे पेट्रोलियम तथा चालक शक्ति भी कहते हैं। क्योंकि खनिजों की तरह इसे भी धरती में से निकाला जाता है, इस कारण इसे खनिज तेल कहा जाता है। इसे पेट्रोलियम नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह दो शब्दों-‘पेट्रो’ और ‘ओलियम’ के जोड़ से बना है। लातीनी भाषा में पैट्रा का अर्थ है-चट्टान और ओलियम का अर्थ है-तेल। इस प्रकार पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ चट्टान से प्राप्त खनिज तेल है। यह वनस्पति और मरे हुए जीव-जन्तुओं के परतदार चट्टानों के बीच दब जाने से बना है। जो पेट्रोल हमें धरती के नीचे से मिलता है, वह अशुद्ध और अशोधित होता है। इसे कच्चा तेल कहा जाता है। कच्चे तेल को शोधक कारखानों में शुद्ध करके इससे कई वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जैसे-पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी का तेल, गैस, चिकनाहट वाले तेल, ग्रीस, मोम आदि।

संसार में सबसे बड़े तेल भण्डार दक्षिण-पश्चिमी एशिया में हैं। इस क्षेत्र में सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत तथा यू० ए० ई० (यूनाइटिड अरब अमीरात) शामिल हैं।
नोट : विद्यार्थी दोनों में से कोई एक लिखें।

प्रश्न 4.
भारत में पायी जाने वाली मिट्टी की किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
मिट्टी (मृदा) एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। यह कृषि का आधार है। भारत में मुख्य रूप से छः प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है –
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1. जलोढ़ मिट्टी-जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी है जो नदियों द्वारा लाई गई तलछट के जमाव से बनती है। यह संसार को सबसे उपजाऊ मिट्टियों में से एक है। भारत में यह मिट्टी सतलुज-गंगा के मैदान और महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी के डेल्टों में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी का प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण होता रहता है। इसका कारण यह है कि नदियां हर वर्ष नई मिट्टी लाकर बिछाती हैं। नई जलोढ़ मिट्टी को खादर तथा पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर कहते हैं।

2. काली मिट्टी-लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनी मिट्टी को काली मिट्टी कहते हैं। इसमें फॉस्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन की बहुत कमी होती है, जबकि मैग्नीशियम, लोहा, चूना तथा जीवांश काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। यह मिट्टी नमी को काफ़ी समय तक समाए रखती है। यह मिट्टी कपास की उपज के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसलिए इसे कपास की मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। हमारे देश में काली मिट्टी उत्तरी महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश और पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है।

3. लाल मिट्टी-इस मिट्टी का निर्माण आग्नेय शैलों से हुआ है। इसमें लोहे का अंश अधिक होता है। इसी कारण ही इसका रंग लाल या पीला होता है। यह मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं होती। परन्तु खादों के उपयोग द्वारा इस मिट्टी से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। भारत में लाल मिट्टी प्रायद्वीप के दक्षिण तथा पूर्व के गर्म-शुष्क प्रदेशों में फैली हुई है।

4. लैटराइट मिट्टी-यह मिट्टी अधिक वर्षा वाले गर्म प्रदेशों में मिलती है। भारी वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण इस मिट्टी के पोषक तत्त्व घुल कर मिट्टी के नीचे चले जाते हैं। इस क्रिया को निक्षालन (Deaching) कहते हैं। पोषक तत्त्वों की कमी के कारण यह मिट्टी कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं होती। भारत में यह मिट्टी पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर के पठार तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के कुछ भागों में फैली हुई है।

5. शुष्क रेतीली अथवा मरुस्थली मिट्टी-इस मिट्टी में रेत के कणों की अधिकता होती है, परन्तु इसमें ह्यूमस का अभाव होता है। इसलिए यह मिट्टी उपजाऊ नहीं होती। भारत में यह मिट्टी राजस्थान तथा गुजरात के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

6. पर्वतीय (पर्वती) मिट्टी-पर्वतीय मिट्टी कम गहरी तथा पतली सतह वाली होती है। इसमें लोहे का अंश अधिक होता है। पर्याप्त वर्षा मिलने पर इस मिट्टी में चाय की कृषि की जाती है। भारत में यह मिट्टी हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 2 पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप

PSEB 7th Class Social Science Guide पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी पर्वत कैसे बनता है? इसका एक उदाहरण दें।
उत्तर-
ज्वालामुखी पर्वत धराबल में से बाहर निकलने वाले लावे के इकट्ठा होने से बनता है। जापान का फियूजीयामा पर्वत इस का एक उत्तम उदाहरण है।

प्रश्न 2.
छिद्रदार (Porous) तथा छिद्रहीन (Non Porous) चट्टानों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
छिद्रदार चट्टानों में रेत की मात्रा अधिक होती है, जबकि छिद्रहीन चट्टानों में चिकनी मिट्टी की मात्रा अधिक होती है।

प्रश्न 3.
पानी समा सकने के आधार पर चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर–
पानी समा सकने के आधार पर चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-पारगामी (पारगम्य) तथा अपारगामी (अपार-गम्य)। पारगामी चट्टानों में पानी आसानी से प्रवेश कर जाता है, परन्तु अपारगामी चट्टानों में पानी प्रवेश नहीं कर पाता।

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प्रश्न 4.
रासायनिक रचना के आधार पर चट्टानें कौन-कौन से दो प्रकार की होती हैं?
उत्तर-

  1. क्षारीय चट्टानें तथा
  2. तेज़ाबी अथवा अम्लीय चट्टानें।

प्रश्न 5.
मैग्मा तथा लावा में क्या अन्तर है?
उत्तर-
धरातल के अन्दर पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा कहलाता है। जब यह मैग्मा दरारों में से होकर धरातल पर आ जाता है, तो इसे लावा कहते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक चट्टानें किन्हें कहते हैं और क्यों? इनकी दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर सबसे पहले इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ था।
विशेषताएं-

  1. आग्नेय चट्टानें रवेदार पिण्डों में पाई जाती हैं। इसलिए इनमें तहें या परतें नहीं होती।
  2. इन चट्टानों में वनस्पति और जीव-जन्तुओं के अवशेष भी नहीं पाये जाते।

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प्रश्न 7.
मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर-
मिट्टी धरातल के ऊपर का वह भाग है जो चट्टानों की टूट-फूट से बनती हैं। इसके कण बहुत बारीक, कोमल और अलग-अलग होते हैं ताकि पौधों की जड़ें इसमें आसानी से प्रवेश कर सकें।

प्रश्न 8.
मिट्टी में कौन-से दो प्रकार के तत्त्व होते हैं?
उत्तर-
मिट्टी में दो प्रकार के तत्त्व अथवा पदार्थ होते हैं-खनिज पदार्थ और कार्बनिक पदार्थ। मिट्टी को खनिज पदार्थ मूल चट्टान से प्राप्त होते हैं। मिट्टी में शामिल वनस्पति और जीव-जन्तुओं के गले-सड़े पदार्थ को ‘कार्बनिक पदार्थ’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
मिट्टी (मृदा) की रचना में कौन-से कारक सहायक होते हैं?
उत्तर-
मिट्टी (मृदा) की रचना में निम्नलिखित कई कारक सहायक होते हैं –
1. मूल शैल-मूल शैल से अभिप्राय उस शैल से है जिससे मृदा अथवा मिट्टी का निर्माण होता है। मृदा की विशेषताएं जनक शैल के अनुरूप होती हैं। उदाहरण के लिए शैल (Shale) से चीका मिट्टी बनती है, जबकि बलुआ पत्थर से बालू के कण प्राप्त होते हैं।

2. जलवाय-मदा निर्माण को प्रभावित करने वाले जलवायु के कारकों में तापमान और वर्षा प्रमुख हैं। तापमान में बार-बार परिवर्तन होने और वायुमण्डल में जल की उपस्थिति से अपक्षय की दर बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप मृदा के निर्माण की गति में तेजी आ जाती है।

3. स्थलाकृति-किसी क्षेत्र की स्थलाकृति उसके अपवाह को प्रभावित करती है। तीव्र ढाल पर अपक्षयित शैल कण टिक नहीं पाते। जल के द्वारा तथा गुरुत्व बल के प्रभाव से ये कण ढाल पर नीचे की ओर सरक जाते हैं। इसके विपरीत मैदानों और मंद ढालों पर मृदा बिना किसी बाधा के टिकी रहती है।

4.. मृदा में विद्यमान मृत पौधे तथा जीव-जन्तु-मृत पौधों और जीव-जन्तुओं से मृदा को हमस प्राप्त होती है। ह्यमस वाली मृदा अधिक उपजाऊ होती है।

5. समय-मृदा निर्माण के कारक के रूप में समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मृदा के निर्माण में जितना अधिक समय लगता है, उतनी ही अधिक मोटी उसकी परत होती है।

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प्रश्न 10.
मिट्टी के अपरदन अथवा भूमि कटाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तेज़ वायु तथा बहता जल मिट्टी की ऊपरी सतह को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। इसे मिट्टी का अपरदन अथवा भूमि का कटाव कहते हैं। इसके कारण मिट्टी कृषि योग्य नहीं रहुती। यह क्रिया उन स्थानों पर अधिक होती है जहां भूमि की ढाल बहुत तीव्र हो और जहां वर्षा बहुत तेज़ बौछारों के रूप में होती है। भूमि कटाव उन क्षेत्रों में भी अधिक होता है, जहां वनस्पति कम हो, जैसे कि मरुस्थलीय क्षेत्र में।

प्रश्न 11.
किस मिट्टी को कपास की मिट्टी कहा जाता है और क्यों?
उत्तर-
काली अथवा रेगड़ मिट्टी को कपास की मिट्टी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि यह मिट्टी कपास की फसल के लिए आदर्श होती है।

प्रश्न 12.
जलोढ़ मिट्टी की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. इस मिट्टी में पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।
  2. इस मिट्टी में नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।

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प्रश्न 13.
काली अथवा रेगड़ मिट्टी की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. काली मिट्टी लावा के प्रवाह से बनी है।
  2. यह मिट्टी कपास की फसल के लिए अधिक उपयोगी है।

प्रश्न 14.
लैटराइट मिट्टी की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. लैटराइट मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
  2. यह मिट्टी घास और झाड़ियों के पैदा होने के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 15.
मरुस्थलीय मिट्टी को कृषि के लिए उपयोगी कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर-
सिंचाई की सुविधाएं जुटा कर मरुस्थलीय मिट्टी को कृषि के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है।

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(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. आज तक विश्व ग्लोबल गांव नहीं बन सका।
  2. जीव जगत में पेड़-पौधे शामिल नहीं हैं।
  3. समुद्र का धरती पर सबसे अधिक प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।
  4. बुध ग्रह के इर्द-गिर्द वायुमण्डल नहीं है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓)

(ख) सही जोड़े बनाएं:

  1. धातु खनिज – अत्यधिक उपजाऊ
  2. अधातु खनिज – सोना, चांदी
  3. रेतीली मिट्टी – पोटाश, फास्फेट
  4. जलौढ़ मिट्टी – ह्यूमस की कमी

उत्तर-

  1. धातु खनिज – सोना, चांदी
  2. अधातु खनिज – पोटाश, फास्फेट
  3. रेतीली मिट्टी – ह्यूमस की कमी
  4. जलौढ़ मिट्टी – अत्यधिक उपजाऊ।

(ग) सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
जापान का फ्यूजीयामा पर्वत लावे से बना है। यह लावा कहां से आता है?
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(i) ऊँचे पर्वतों से
(ii) धरती के आन्तरिक भाग से
(iii) पर्तदार या तलछटी चट्टानों के जमने से ।
उत्तर-
(ii) धरती के आन्तरिक भाग से।

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प्रश्न 2.
भारत में गंगा सतलुज का मैदान एक विशेष प्रकार की सामग्री से बना है। इस सामग्री का जमाव कैसे होता
(i) बहते हुए पानी के द्वारा
(ii) हिमनदी तथा वायु द्वारा
(iii) इन सबके द्वारा।
उत्तर-
(iii) इन सबके द्वारा।

पृथ्वी का आन्तरिक तथा बाहरी स्वरूप PSEB 7th Class Social Science Notes

  • स्थलमण्डल – इसमें पृथ्वी की ऊपरी कठोर परत आती है, जिसे सियाल कहते हैं। इस भाग की साधारण मोटाई 100 किलोमीटर के लगभग है। इसमें सिलिकॉन और एल्युमीनियम के तत्त्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
  • खनिज – खनिज वे प्राकृतिक पदार्थ हैं जो किसी एक या एक से अधिक तत्त्वों के मेल से बने हैं।
  • चट्टान (शैल) – प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले खनिजों के मिश्रण को चट्टान कहते हैं। निर्माण के आधार पर ये तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय, तलछटी तथा रूपांतरित।
  • मैग्मा – पृथ्वी की गहराई में अधिकांश पदार्थ पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। इसे मैग्मा कहते हैं।
  • लावा – जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर पहुंचता है, तो वह लावा कहलाता है।
  • आग्नेय शैल तथा रूपान्तरित शैल – आग्नेय शैल पिघले हुए लावे के ठण्डा होकर जमने से बनती है। जबकि रूपान्तरित शैलों का निर्माण तलछटी या आग्नेय शैलों के गुण तथा रंग-रूप बदलने से होता है। उदाहरण के लिए ग्रेनाइट एक आग्नेय शैल है, जबकि ग्रेनाइट के रूप परिवर्तन से बनी नीस एक रूपान्तरित शैल है।
  • धात्विक खनिज – इन खनिजों में धातु के अंश पाये जाते हैं; जैसे-लोहा, सोना, चांदी, तांबा आदि चिल्ली (दक्षिणी अमेरिका) संसार में सबसे अधिक तांबा पैदा करता है।
  • अधात्विक खनिज – इन खनिजों में धातु के अंश नहीं पाये जाते; जैसे-अभ्रक, पोटाश, जिप्सम आदि।
  • खनिजों का संरक्षण – खनिजों के निर्माण में सैंकड़ों वर्ष लग जाते हैं। इसलिए इनका संरक्षण आवश्यक है।
  • चालक शक्ति – जिस शक्ति (ऊर्जा) से हमारे वाहन चलते हैं, उसे चालक शक्ति कहते हैं।