PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 29 हरियाली

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 29 हरियाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 29 हरियाली

Hindi Guide for Class 11 PSEB हरियाली Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हरियाली’ लघु कथा का विषय राष्ट्रीय महत्त्व का है-आपका इस के बारे में क्या विचार है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में हरियाली को राष्ट्रीय समृद्धि से जोड़ा गया है। विदेशों में बनी वस्तुएँ भले ही हमें थोड़ी देर के लिए आकर्षक और सुन्दर लगें, किन्तु जब हमें यह पता चलता है कि विदेशी वस्तुओं के खरीदने से देश आर्थिक दृष्टि से कितना कमज़ोर हो रहा है, देश का धन विदेशों में जाने की बात समझ में आने पर हमारी आँखें खुलती हैं। अतः भारतीय बनो और भारतीय खरीदो का सन्देश देने वाली इस कहानी का विषय राष्ट्रीय महत्त्व का है। इसी उद्देश्य से स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना हुई है।

प्रश्न 2.
नरेन्द्र की चिन्ता का क्या विषय है ? लेखक के घर में विदेशी ब्लेडों के प्रयोग को लेकर वह क्या कहता
उत्तर:
नरेन्द्र की चिन्ता का विषय है उसका मित्र लेखक विदेशी ब्लेडों का प्रयोग करता है। विदेशों में बना सामान खरीदने से देश का धन विदेशों में चला जाता है और देश की आर्थिक दशा कमज़ोर होती है। नरेन्द्र का कहना है कि विदेशों में बना माल भले ही हमें थोड़ी देर आकर्षक लगता है, किन्तु हमारा ध्यान इससे होने वाली हानि की ओर नहीं जाता।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 29 हरियाली

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार अमीर आदमी के पड़ोसी होने का क्या फायदा है ? आपका अपना इस विषय पर क्या विचार है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के अनुसार अमीर आदमी के पड़ोसी होने का यह फायदा है कि फलदार वृक्ष चाहे पड़ोसी ने उगाए वृक्ष झुके तो हमारे कोठे की तरफ हैं। हमारा मत लेखक से भिन्न है। बेगानी छाछ पर कोई मूंछे नहीं मुंडवा देता, जैसे लेखक के पडोसी के सुन्दर पेड-पौधे उसके घर की नींव को खोखला कर देते हैं। तब उसे फलदार वृक्ष अच्छे नहीं लगते हैं। वह सोचने लगता है कि पड़ोसी से कहकर पेड़ कटवा देने चाहिए। मनुष्य पर जब स्वयं पर संकट आता है तब वह अपने विषय के साथ-साथ देश के विषय में सोचने लगता है और अपना विरोध प्रकट करने के लिए उपाय सोचने लगता है। व्यक्ति को अपनी ही चादर का ध्यान रखना चाहिए। कहा भी है देख बेगानी चोपड़ी न तरसाइए जी।

प्रश्न 4.
“देखो तो इन पौधों की जड़ें तुम्हारे मकान की नींव को खाए जा रही हैं।” नरेन्द्र के इन शब्दों का गहन अर्थ क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
नरेन्द्र के प्रस्तुत शब्दों का गहन अर्थ यह है कि विदेशों में बनी वस्तुएँ भले ही हमें आकर्षक और सुन्दर लगती हैं किन्तु इससे होने वाली हानि का हमें बाद में पता चलता है। जैसे भारतेन्दु जी ने भी कहा है-“पै धन विदेश चलि जाव इहै अतिवारी” अर्थात् विदेशी माल खरीदने पर हमारे देश का धन विदेशों में चला जाएगा और हमारे ही पैसे से विदेशी हाथ मज़बूत होंगे। जैसे लेखक के अमीर पड़ोसी के सुन्दर पेड़-पौधों की जड़ें लेखक के मकान की जड़ें खोखली कर रही हैं, वैसे ही हमारे देश की आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो रही है।

प्रश्न 5.
सप्रसंग व्याख्या करें
(i) आपकी बात सही है। नींव ही खोखली हो गई तो दीवारें ढहते कितनी देर लगती है।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सुरेन्द्र मंथन द्वारा लिखित लघु कथा हरियाली में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक के मित्र ने उनका ध्यान घर की नींव खोखली हो रही है इस ओर दिलाया।

व्याख्या :
लेखक ने अपने मित्र नरेन्द्र से कहा कि तुम्हारी बात सही है कि पड़ोसी के सुन्दर दिखने वाले पेड़-पौधे मेरे मकान की नींव को खोखला कर रहे हैं। नींव खोखली हो गई तो दीवारों को गिरने में देर नहीं लगेगी।

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(ii) यही तो फायदा है अमीर आदमी के पड़ोसी होने का। फल चाहे पड़ोसी ने उगाए हैं-झुके तो हमारे कोठे की तरफ हैं।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां श्री सुरेश मंथन द्वारा लिखित लघु कथा हरियाली में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक अपने मित्र को अमीर आदमी के पड़ोसी होने का लाभ बता रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक के मित्र ने जब उसके पड़ोसी के सुन्दर पेड़-पौधों का उल्लेख किया तो लेखक ने कहा कि अमीर आदमी के पड़ोस में रहने का यही तो फायदा है। फलदार वृक्ष भले ही पड़ोसी ने लगाए हैं किन्तु ये झुके तो हमारे कोठे (आंगन) की ओर ही हैं।

(iii) तुम्हें नहीं लगता, हमारे ही पैसे से विदेशी हाथ मज़बूत होंगे ? अपना आर्थिक ढाँचा चरमरा जाएगा।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सुरेन्द्र मंथन द्वारा लिखित लघु कथा ‘हरियाली’ में से लो गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक मित्र विदेशी चीजों की खरीदारी से दूर रहने को कहता है।

व्याख्या :
लेखक को विदेशी ब्लेड प्रयोग करते देख और लेखक द्वारा उनकी प्रशंसा करने पर लेखक का मित्र नरेन्द्र कहता है कि विदेशों में बना माल खरीदने पर तुम्हें यह नहीं लगता कि हमारे देश का धन विदेशों में जा रहा है। हमारे ही धन से विदेशी हाथ मज़बूत हो रहे हैं जिससे हमारा आर्थिक ढाँचा चरमरा रहा है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide हरियाली Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हरियाली’ लघुकथा किस भावना पर आधारित है ?
उत्तर:
स्वदेशी भावना पर आधारित है।

प्रश्न 2.
देश की आर्थिकता की नींव को कौन खोखला कर रहा है ?
उत्तर:
विदेशी समान की चकाचौंध।

प्रश्न 3.
नरेन्द्र क्यों खुश होता है ?
उत्तर:
नरेन्द्र पड़ोसी के घर उगे पेड़-पौधों को देखकर खुश हो जाता है।

प्रश्न 4.
लेखक किस ब्लेड से शेव बनाता था ?
उत्तर:
विदेशी ब्लेड से।

प्रश्न 5.
लेखक के मित्र का क्या नाम था ?
उत्तर:
नरेन्द्र।

प्रश्न 6.
विदेशी सामान के बारे में लेखक का मित्र उसे क्या कहता है ?
उत्तर:
विदेशी सामान खरीदकर हम अपने देश की आर्थिक स्थिति कमज़ोर कर रहे हैं।

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प्रश्न 7.
………… के पौधे लेखक को फल और छाया देते थे।
उत्तर:
पड़ोसी।

प्रश्न 8.
नरेन्द्र ने लेखक का ध्यान किस ओर खींचा ?
उत्तर:
पेड़ की जड़ों की ओर।

प्रश्न 9.
पेड़ की जड़ें कहाँ सीलन पैदा कर रही थीं ?
उत्तर:
लेखक के घर की दीवारों पर।

प्रश्न 10.
सीलन के कारण घर की नींव ………. हो रही थी।
उत्तर:
खोखली।

प्रश्न 11.
लेखक का पड़ोसी कैसा था ?
उत्तर:
अमीर और दबदबे वाला।

प्रश्न 12.
घर की दीवारें कब गिरने लगती हैं ?
उत्तर:
नींव के कमजोर होने पर।

प्रश्न 13.
लेखक अपना विरोध प्रकट करने के लिए क्या करता है ?
उत्तर:
विदेशी ब्लेड का पैकट पडोसी के घर फेंक देता है।

प्रश्न 14.
लेखक ने पाठ में हरियाली को किससे जोड़ा है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय समृद्धि से।

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प्रश्न 15.
‘हरियाली’ लघुकथा भारतीय बनो और ……. खरीदों का संदेश देती हैं।
उत्तर:
भारतीय।

प्रश्न 16.
‘हरियाली’ लघुकथा का मूल विषय क्या है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय महत्त्व।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘हरियाली’ रचना की विधा क्या है ?
(क) लघु कथा
(ख) कथा
(ग) कहानी
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(क) लघु कथा

प्रश्न 2.
हरियाली लघु कथा किस भावना पर आधारित है ?
(क) प्रेम
(ख) विरह
(ग) स्वदेशी
(घ) विदेशी।
उत्तर:
(ग) स्वदेशी

प्रश्न 3.
विदेशी सामान किस नींव को खोखला कर रहा है ?
(क) आर्थिक
(ख) धार्मिक
(ग) राजनैतिक
(घ) सामाजिक।
उत्तर:
(क) आर्थिक।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

पैंफ्लेट-विज्ञापन-पत्र। चरमराना-गिरना। आत्म विभोर होना-प्रसन्न होना।

हरियाली Summary

हरियाली कथा सार

‘हरियाली’ लघु कथा सुरेन्द्र मंथन द्वारा लिखित है। यह स्वदेशी भावना पर आधारित है। विदेशी सामान की चकाचौंध देश की आर्थिकता की नींव को खोखला किए जा रही है। लेखक विदेशी ब्लेड से शेव बनाता है उसका मित्र नरेन्द्र उसे कहता है कि विदेशी सामान खरीदकर हम अपने देश की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर कर रहे हैं। नरेन्द्र लेखक के पड़ोसी के घर में उगे पेड़-पौधे देखकर खुश होता है। लेखक कहता है कि दूसरों के पौधे उसे फल और छाया देते हैं। परन्तु नरेन्द्र उसका ध्यान पेड़ की जड़ों की ओर खींचता है। पेड़ की जड़ें, लेखक के घर की दीवारों पर सीलन पैदा कर रही थीं तथा घर की नींव को खोखला कर रही थीं। लेखक का पड़ोसी अमीर और दबदबे वाला व्यक्ति है, परन्तु जब अपने घर की नींव के खोखले होने की बात आती है तो वह सोचने पर मजबूर हो जाता है। घर हो या देश जब नींव ही कमजोर हो जाएगी तो दीवारें तो गिर ही जाएंगी। वह अपना विरोध प्रकट करने के लिए विदेशी ब्लेड का पैकेट पड़ोसी के घर फेंक देता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 27 अपना-अपना दःख

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 27 अपना-अपना दःख Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 27 अपना-अपना दःख

Hindi Guide for Class 11 PSEB अपना-अपना दःख Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘अपना-अपना दुःख’ कहानी में पति-पत्नी का दुःख क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में पति-पत्नी अपनी चार महीने की बेटी की मृत्यु से दुखी हैं। उस दुःख को कम करने या उसे भुला देने के लिए अपनी बेटी से जुड़ी प्रत्येक वस्तु को अपने से दूर करने की कोशिश करते हैं किन्तु उसकी निप्पल हाथ में आते ही पिता के अन्दर की पीड़ा जाग उठती है।

प्रश्न 2.
लेखक अपनी बेटी की सभी निशानियों को मिटाने का प्रयास क्यों करता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक कनु, अपनी चार महीने की बेटी, की मृत्यु हो जाने के बाद, उसकी जुदाई के दुःख को भुलाने के लिए उस से जुड़ी सब निशानियों को चुपके से बाहर फेंक देता है। वह बेटी की जुदाई से होने वाली मानसिक पीड़ा से मुक्त होना चाहता है।

प्रश्न 3.
‘अपना-अपना दुःख’ लघु कथा रिश्तों की संवेदनशीलता से जुड़ी है, आप इस से कहाँ तक सहमत
उत्तर:
अपना-अपना दुःख’ लघु कथा रिश्तों की संवेदनशीलता से जुड़ी कहानी है। लेखक और उसकी पत्नी अपनी चार महीने की बेटी कनु को दफ़नाने के बाद मानसिक तनाव को झेलते हैं। वे एक-दूसरे का दुःख कम करने के लिए अपने दु:ख को छिपाने का प्रयास करते हैं। हम रिश्तों की संवेदनशीलता से जुड़ी इस बात से पूर्णतः सहमत हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 27 अपना-अपना दःख

PSEB 11th Class Hindi Guide अपना-अपना दःख Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘अपना-अपना दुःख’ कहानी का कथ्य अपने शब्दों में स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में पति-पत्नी के अपनी चार मास की बेटी की मृत्यु पर अपने-अपने तौर पर दुःख झेलने और मानसिक तनाव से ग्रसित होने की बात कही गयी है। पति-पत्नी एक-दूसरे के दुःख को कम करने के लिए अपने दुःख को भीतर ही भीतर लिए रहते हैं।

प्रश्न 2.
‘अपना-अपना दुःख’ कहानी के नामकरण की समीक्षा करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में पति-पत्नी अपने-अपने दुःख को भीतर ही भीतर लिए रहते हैं ताकि दूसरे के दुःख में वृद्धि न हो। ऐसा करके वे मानसिक तनाव से ग्रसित रहते हैं। अतः कहना न होगा कि कहानी का यह शीर्षक अत्यन्त सार्थक एवं उपयुक्त बन पड़ा है।

प्रश्न 3.
कनु की फीडिंग बोतल की निप्पल के स्पर्श से लेखक की क्या दशा होती है-अपने शब्दों में लिखें।
उनर:
अपनी बेटी कनु की फीडिंग बोतल की निप्पल को हाथ में लेते ही लेखक के अन्दर का जमा हुआ लावा पिघल कर उसकी आँखों से बाहर निकलने लगता है। इस अनुभूति से उसकी आँखों में आँसू छलक आते हैं और वह सिसकियाँ भरने लगता है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत लघु कथा के आधार पर राशि के चरित्र की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
राशि अपनी बेटी की मृत्यु के दुःख को स्वयं ही झेलने का प्रयत्न करती है। वह कनु के कपड़ों को अपनी टांगों पर रख कर लिहाफ से ढक देती है, ताकि उसके पति न देख लें।
राशि अपने पति से भी स्नेह करने वाली है। उसकी छलकती आँखों को देख वह उसे दिलासा देती है।

प्रश्न 5.
लेखक के लिहाफ से मुलायम-सी चीज़ टकराती है-वह मुलायम-सी चीज़ क्या है ? वह चीज़ कहानी को कैसे गति देती है ?
उत्तर:
लेखक की पत्नी जब लिहाफ़ ओढ़ने लगती है तो लिहाफ़ से टकरा कर एक मुलायम सी चीज़ लेखक के बिस्तर पर गिर पड़ती है। वह मुलायम सी चीज़ उनकी बेटी कनु की फीडिंग बोतल की निप्पल थी। निप्पल के हाथ में आते ही लेखक के अन्दर जमा हुआ लावा पिघल कर उसकी आँखों में आँसुओं के रूप में छलक आता है। यही निप्पल का स्पर्श कहानी को गति प्रदान करता है। लेखक अपने मन की पीड़ा को चुपचाप सहन करने का प्रयास करता है। आँखें गीली होने का कारण वह किसी स्वप्न को देखना बताता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 27 अपना-अपना दःख

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अपना-अपना दुःख’ में लेखक ने क्या दर्शाया है ?
उत्तर:
रिश्तों की संवेदनशीलता को।

प्रश्न 2.
लेखक सिमर सदोष अपनी पत्नी से नज़र क्यों नहीं मिलाता ?
उत्तर:
अपना दुःख छिपाने के लिए।

प्रश्न 3.
‘अपना-अपना दुःख’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
लघुकथा।

प्रश्न 4.
पति-पत्नी एक-दूसरे का दुःख मिटाने के लिए क्या करते हैं ?
उत्तर:
अपना-अपना दुःख अंदर लिए रहते हैं।

प्रश्न 5.
लेखक किसकी निशानियों को पत्नी की नज़रों से दूर कर देता है ?
उत्तर:
अपनी बेटी की।

प्रश्न 6.
लेखक के हाथ में …………….. का निप्पल लगा है।
उत्तर:
बेटी की बोतल।

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प्रश्न 7.
लेखक की बेटी की आयु कितनी थी ?
उत्तर:
चार माह।

प्रश्न 8.
पति-पत्नी क्यों दुःखी थे ?
उत्तर:
अपनी चार माह की बेटी की मृत्यु से।

प्रश्न 9.
पिता के अंतर्मन की पीड़ा क्यों जाग उठती है ?
उत्तर:
बेटी का निप्पल हाथ लगने से।

प्रश्न 10.
लेखक की बेटी का क्या नाम था ?
उत्तर:
कनु।

प्रश्न 11.
लेखक किससे मुक्त होना चाहता था ?
उत्तर:
बेटी की जुदाई से होने वाली पीड़ा से।

प्रश्न 12.
लेखक और उसकी पत्नी ने बेटी की मृत्यु के बाद क्या किया ?
उत्तर:
उसे दफना दिया।

प्रश्न 13.
अपना-अपना दुःख अंदर लेने के कारण पति-पत्नी किस से ग्रसित थे ?
उत्तर:
मानसिक तनाव से।

प्रश्न 14.
लेखक की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
राशि।

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प्रश्न 15.
राशि अपने पति से …….. करती थी।
उत्तर:
स्नेह।

प्रश्न 16.
लेखक के लिहाफ से क्या चीज़ टकराती है ?
उत्तर:
मुलायम-सी चीज़।

प्रश्न 17.
लेखक अंधेरे में किस चीज़ को टटोलने का प्रयास करता है ?
उत्तर:
बेटी की फीडिंग निप्पल को।

बहुविकल्पी पथ्नोत्तर

प्रश्न 1.
अपना अपना दुःख किस विधा की रचना है ?
(क) कथा
(ख) लघुकथा
(ग) कहानी
(घ) निबंध।
उत्तर:
(ख) लघुकथा

प्रश्न 2.
लेखक की बेटी का क्या नाम था ?
(क) कनु
(ख) कनुप्रिया
(ग) तनु
(घ) तनुप्रिया।
उत्तर:
(क) कनु

प्रश्न 3.
इस कथा में पति-पत्नी किस कारण दुखी हैं ?
(क) पैसे के
(ख) बेटी की मृत्यु के
(ग) बेटे के कारण
(घ) पिता के जाने के
उत्तर:
(ख) बेटी की मृत्यु के।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

फीडिंग बाटल = दूध पिलाने की बोतल। लिहाफ़ = रजाई। दिलासा = सहानुभूति। संयमित = शांत । महसूस करना = अनुभव करना। स्वप्न = सपना। प्रयास = कोशिश। टटोलना = तलाश करना। लावा = दुःख।

सप्रसंग व्याख्या

1. वह लिहाफ ओढ़ लेती है। मैं अन्धेरे में कुछ टटोलने का प्रयास करता हूँ। दोनों एक दूसरे को धोखा देकर, अपने-अपने आँसू छिपा कर अपना दुःख लिए सोये होने का बहाना करने लगते हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सिमर सदोष द्वारा लिखित लघु कथा ‘अपना-अपना दुःख’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने व्यक्तिगत जीवन की वेदना का चित्रण किया है।

व्याख्या :
लेखक अपनी बेटी कनु की फीडिंग बोतल की निप्पल का स्पर्श पा कर भावुक हो उठता है। उसकी आँखों में आँसू छलक आते हैं किन्तु वह अपने दुःख को अपनी पत्नी से छिपाते हुए स्वप्न में आँखें गीली होने की बात कहता है। तत्पश्चात् उसकी पत्नी लिहाफ ओढ़ लेती है और लेखक अन्धेरे में उस निप्पल को टटोलने का प्रयास करता है। इस तरह पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे को धोखा देकर, अपने-अपने आँसू छिपाकर अपना-अपना दुःख मन में लिए सोने का बहाना करते हैं।

2. निप्पल को हाथ में लेते ही मेरे अन्दर का जमा हुआ लावा पिघलकर आँखों से बाहर निकलने लगता है। राशि द्वारा कंधे पर हाथ रखने पर महसूस करता हूँ-मेरी सिसकियाँ अवश्य ही ऊँची हई होंगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सिमर सदोष द्वारा लिखित लघु कथा ‘अपना-अपना दुःख’ में से ली गई हैं।

व्याख्या :
लेखक के बिस्तर पर उसकी मृत बेटी कनु की फीडिंग बोतल की निप्पल गिरती है। उस के स्पर्श से लेखक के मन में छिपा दुःख आँसू बन कर उसकी आँखों में छलक आता है। पति को रोते देख कर जब उसकी पत्नी उसके कंधे पर हाथ रख कर दिलासा देने लगती है, तो लेखक सोचता है कि उसकी सिसकियों की आवाज़ अवश्य ही ऊँची हो गई होगी तभी तो उसकी पत्नी उसे दिलासा देने के लिए उठकर उसके पास आई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 27 अपना-अपना दःख

अपना-अपना दुःख Summary

अपना-अपना दुःख कथा सार

‘अपना-अपना दुःख’ ‘सिमर सदोष’ की रिश्तों की संवेदनशीलता से जुड़ी एक लघुकथा है। पति-पत्नी दोनों एकदूसरे के दुःख कम करने के लिए अपना-अपना दुःख भीतर लिए रहते हैं। लेखक अपनी पत्नी से अपना दुःख छिपाने के लिए उससे नजर नहीं मिलाता। वह अपनी बेटी की सभी निशानियों को पत्नी की नज़रों से दूर कर देता है। लेखक के हाथ में बेटी की बोतल का निप्पल लगा है। उसे अपने अंदर कुछ टूटता हुआ लगता है। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। राशि उसके दुःख को अनुभव करती है। लेखक अपना दुःख उसे छिपा लेता है। इस तरह दोनों रात अंधेरे में एक-दूसरे से आंसू छिपा लेते हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 28 अटूट बंधन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 28 अटूट बंधन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 28 अटूट बंधन

Hindi Guide for Class 11 PSEB अटूट बंधन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘अटूट बन्धन’ के आधार पर नीरज के अन्दर भय और अविश्वास का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें।
उत्तर:
नीरज समाचार-पत्रों में छपी बातों को पढ़ कर भयग्रस्त हो जाता है । उसे लगता है जैसे पंजाब में हिन्दुओं और सिक्खों में मार-काट चल रही है। हालांकि उसकी पत्नी ने उसे समझाया भी कि नाखुनों से मांस कभी अलग नहीं हो सकता। भाई-भाई को नहीं मार सकता। किन्तु नीरज का डर दूर नहीं हुआ। उसका यह डर तब दूर होता है जब चाचा के गाँव जाते हुए एक सिक्ख ट्रैक्टर वाला उसे अपने ट्रैक्टर पर बैठा कर उसके चाचा के घर पहुँचा देता है। तब उसे रिश्तों के इस अटूट बन्धन का एहसास हुआ।

प्रश्न 2.
‘अटूट बन्धन’ मानवीय सम्बन्धों की गरिमा की कहानी है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘अटूट बन्धन’ लघु कथा में मानवीय रिश्तों के अटूट बन्धन का उल्लेख किया गया है। पंजाब में सदियों से हिन्दू और सिक्ख प्रेमपूर्वक आपसी भाईचारे के साथ रह रहे हैं। कुछ देर के लिए इस में दरार अवश्य आई थी किन्तु रिश्तों के अटूट बन्धन ने उस दरार को शीघ्र ही पाट दिया, जैसे नीरज जो पहले पंजाब आने से डरता था, यहाँ के यथार्थ को देखकर रिश्तों के इस अटूट बन्धन के बारे में सोचने पर विवश हुआ।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 28 अटूट बंधन

PSEB 11th Class Hindi Guide अटूट बंधन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘अटूट बंधन’ के कथ्य को स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी मानवीय रिश्तों से जुड़ी एक लघु कथा है। नीरज को समाचार-पत्रों में पढ़कर और सुनकर पंजाब जाने में डर लगता है, क्योंकि उसे लगता है कि वहाँ हिन्दू सिक्ख आपस में लड़ रहे हैं जबकि वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत थी। नीरज पंजाब में जाकर जब अपने साथ किए गए व्यवहार को देखता है तो उसे रिश्तों के इस अटूट बंधन का एहसास होता है।

प्रश्न 2.
‘अटूट बन्धन’ कथा के नामकरण की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा का नामकरण ‘अटूट बन्धन’ अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है क्योंकि इस लघु कथा में मानवीय रिश्तों के अटूट बन्धन का उल्लेख किया गया है। नीरज जो पहले पंजाब जाने से डरता है, पंजाब में आकर वहाँ के लोगों के व्यवहार को देख कर, अपनत्व की भावनाओं को देखकर सोचने पर विवश हो जाता है कि नाखूनों से कभी मांस अलग नहीं हो सकता। रिश्तों के ये बन्धन अटूट हैं।

प्रश्न 3.
‘अटूट बन्धन’ के आधार पर नीरज का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
नीरज पंजाब की घटनाओं से जुड़े समाचारों को पढ़ कर पंजाब जाने से डरता है। उसे लगता है मानो पंजाब में हिन्दुओं का कत्ल हो रहा हो। वह मन में अविश्वास लेकर पंजाब जाता है। डरता भी है कि उसके साथ कोई अनहोनी घटना न घट जाए किन्तु अपने चाचा के गाँव जाते समय ट्रैक्टर पर सवार एक सिक्ख उसके साथ जैसा व्यवहार करता है, उसे देखकर उसके मन का भय दूर हो जाता है और रिश्तों के इस अटूट बन्धन का अहसास होने लगता है।

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अति लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक प्रेम विज के अनुसार कौन-सा रिश्ता बड़ा है ?
उत्तर:
इनसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा रिश्ता है।

प्रश्न 2.
नीरज बहुत सालों बाद किसके विवाह में जाता है ?
उत्तर:
अपने चचेरे भाई के विवाह में जाता है।

प्रश्न 3.
सरदार नीरज से क्या कहता है ?
उत्तर:
सरदार नीरज से कहता है कि वह अपने ट्रेक्टर पर उसे गाँव तक छोड़ देगा।

प्रश्न 4.
‘अटूट बंधन’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
लघु कथा।

प्रश्न 5.
……….. का साया कुछ देर के लिए मानवीय संबंधों को घेर लेता है।
उत्तर:
अविश्वास।

प्रश्न 6.
नीरज को किससे लगाव था ?
उत्तर:
अपने चाचा जी के परिवार से।

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प्रश्न 7.
किस चीज़ ने नीरज की सोच को प्रभावित किया था ?
उत्तर:
पंजाब के आतंकवाद ने।

प्रश्न 8.
नीरज के अनुसार उसके चाचा जी बाल बढ़ाकर क्या करने लगे थे ?
उत्तर:
आतंकवादियों का साथ देने लगे थे।

प्रश्न 9.
नीरज को उसकी सोच के लिए कौन समझाता था ?
उत्तर:
उसकी पत्नी।

प्रश्न 10.
नीरज की पत्नी उसे किस चीज़ का महत्त्व समझाती है ?
उत्तर:
खून के रिश्ते का महत्त्व।

प्रश्न 11.
नीरज …………… में छपी बातों को पढ़कर भयग्रस्त हो जाता है।
उत्तर:
समाचार-पत्रों।

प्रश्न 12.
पंजाब में सदियों से हिन्दू और ……… प्रेमपूर्वक साथ रह रहे थे।
उत्तर:
सिक्ख।

प्रश्न 13.
नीरज कहाँ जाने से डरता था ?
उत्तर:
पंजाब।

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प्रश्न 14.
नीरज मन में …………. लेकर पंजाब जाता है।
उत्तर:
अविश्वास।

प्रश्न 15.
‘अटूट बंधन’ लघुकथा के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
प्रेम विज।

प्रश्न 16.
नीरज के मन के टूटे रिश्ते को किसने अटूट किया था ?
उत्तर:
सरदार जी के प्यार और अपनेपन ने।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अटूट बंधन’ लघु कथा का मूलभाव क्या है ?
(क) मानवीय रिश्ते
(ख) मानवता
(ग) दानवंता
(घ) अमानवीय रिश्ते।
उत्तर:
(क) मानवीय रिश्ते

प्रश्न 2.
किसका रिश्ता सबसे बड़ा एवं महान है ?
(क) धर्म का
(ख) कर्म का
(ग) इन्सानियत का
(घ) अपनों का।
उत्तर:
(ग) इन्सानियत का

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 28 अटूट बंधन

प्रश्न 3.
मानवीय रिश्तों को किसका साया घेर लेता है ?
(क) अविश्वास का
(ख) विश्वास का
(ग) धन का
(घ) लालच का।
उत्तर:
(क) अविश्वास का

प्रश्न 4.
नीरज की सोच को किसने प्रमाणित किया ?
(क) आतंकवाद ने
(ख) आदर्शवाद ने
(ग) अंधविश्वास ने
(घ) प्रेम ने।
उत्तर:
(क) आतंकवाद ने।

कठिन शब्दों के अर्थ :

केस = बाल। शंका = संदेह। सम्मुख = सामने। दुविधा = असमंजस। इकहरा = दुबला-पतला। अटूट = न टूटने वाला, मज़बूत । बन्धन = जोड़, बांधने का भाव ।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 28 अटूट बंधन

अटूट बन्धन Summary

अटूट बन्धन कथा सार

‘अट बन्धन’ प्रेम विज की मानवीय रिश्तों से जुड़ी लधुकथा है। इनसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा रिश्ता है। अविश्वास का साया कुछ देर के लिए मानवीय सम्बन्धों को घेर लेता है परन्तु भाई-भाई और विश्वास के उजाले में प्रेम का अटूट बन्धन विश्वास को मज़बूत कर देता है नीरज को अपने चाचा जी के परिवार से बहुत लगाव था परन्तु पंजाब में बढ़ते आंतकवाद ने नीरज की सोच को प्रभावित किया। उसे लगने लगा कि उसके चाचा जी बाल बढ़ाकर आंतकवादियों का साथ देने लगे हैं। उसकी पत्नी उसकी सोच के लिए उसे समझाती है और खून के रिश्तों का महत्त्व समझाती है। नीरज बहुत सालों बाद अपने चचेरे भाई के विवाह में जाता है। वहाँ उसे पहुँचने में देरी हो जाती है। रास्ते में एक सरदार उसे अपने ट्रैक्टर पर गांव तक छोड़ने की बात कहता है। नीरज उसकी तरफ देखता है तो उसे उसकी आंखों में केवल प्यार दिखता है। नीरज सोचता है कि पंजाब की जो तस्वीर उसने अपने मन में बैठा रखी थी वह इस समय बहुत भिन्न थी। सरदार जी के प्यार और अपनेपन ने नीरज के टूटे रिश्तों को फिर से अटूट कर दिया था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 26 मजबूरी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 26 मजबूरी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 26 मजबूरी

Hindi Guide for Class 11 PSEB मजबूरी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘मजबूरी’ कहानी में बदलते जमाने के दबावों से परिचित नई पीढ़ी व उससे बेखबर पुरानी पीढ़ी के द्वन्द्व को उजागर किया गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं क्यों ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में दो पीढ़ियों में आपसी संघर्ष या द्वन्द्व दिखाया गया है। रामेश्वर की मां पुरानी पीढ़ी की है जो अपने बच्चों पर ममता और वात्सल्य ही बरसाना जानती है। उसका वात्सल्य उसके पोते बेटू के लिए कितना घातक सिद्ध हो रहा है, इससे वह बेखबर है। क्योंकि अपने पोते को वह अकेलेपन का साथी समझती है। दूसरी ओर बेटे रामेश्वर और बहू रमा को अपनी मजबूरी है। दूसरा बच्चा होने की सूरत में उनके लिए दो बच्चों को एक साथ संभाल पाना उनके लिए कठिन था। अत: वे विवशता से अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाते हैं। परन्तु कुछ ही सालों में उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाता है।

जब वे देखते हैं कि उनका छोटा बेटा तो सभ्य भाषा में बात करता है। स्कूल भी जाने लगा है जबकि बड़ा बेटा वैसे का वैसा उजड्ड है जैसा वे उसे दादी के पास छोड़ गए थे। दादी के पास रहकर गली मुहल्ले में गन्दे-गन्दे बच्चों से खेलता है, अत्यधिक जिद करता है। इन्हीं बातों ने बहू को मजबूर कर दिया कि वह अपने बड़े बेटे को अपने साथ मुम्बई ले जाए। दादी से दूर, उसके लाड़-प्यार से दूर, दादी की अपनी सोच है। वह अपने वात्सल्य से मजबूर है। बदलते ज़माने की बढ़ती हुई प्रतियोगिता से वह बेखबर है। दूसरी ओर रमा जानती है कि आज के युग में शिक्षा कितनी ज़रूरी है आज बच्चों को अच्छा भविष्य बनाने की चिन्ता होनी चाहिए न कि लाड़-प्यार की। प्रस्तुत कहानी में इन्हीं मजबूरियों का वर्णन किया गया है।

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प्रश्न 2.
इस कहानी के आधार पर महानगरीय जीवन व ग्रामीण जीवन का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में ग्रामीण जीवन का ही उल्लेख किया गया है। जबकि महानगरीय जीवन का उल्लेख बहुत कम फिर भी दोनों की तुलना यहाँ प्रस्तुत है। ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाली रामेश्वर की बूढ़ी माँ है । रामेश्वर तीन साल के बाद घर आ रहा है। यह समाचार जानकर गठिया से जुड़ी बूढ़ी अम्मा सर्दी में भी आंगन लीपने बैठ जाती है और खड़िया मिट्टी से पुताई करने की बात सोचती है। बेटे की आने की खुशी में वह इस कद्र उतावली है कि अपनी बीमारी को भी भूल जाती है। किसी के घर आने पर गाँव में ही ऐसी उत्सुकता और खुशी दिखाई पड़ती है। जबकि महानगरीय जीवन में घर आया मेहमान मुसीबत लगता है। प्रसिद्ध है कि शहरी लोग कहते हैं कि रोटी भी तैयार है और गाड़ी भी।

रामेश्वर की माँ अपने पोते से जिस ढंग से लाड़-प्यार करती है उस ढंग का लाड़-प्यार शहर में रहने वाली माएँ नहीं करतीं। क्योंकि शहरों में रहने वाली बहू या स्त्रियों के सामने बच्चों के भविष्य की सुरक्षा का प्रश्न होता है। वे बच्चों से लाड़-प्यार ज़रूरी समझती हैं, परन्तु सुखद भविष्य को देखते हुए सख्ती करना भी उन्हें आवश्यक लगता है। गाँव में बच्चे का ज़िद करना कोई बुरी बात नहीं समझी जाती। रामेश्वर की माँ कहती भी है कि बचपन में कौन ज़िद नहीं करता। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की। साल दो साल और कर ले, फिर अपने आप सब कुछ छूट जाएगा। जवकि शहरी जीवन में बच्चों का इस प्रकार ज़िद करना एक बुरी आदत समझा जाता है। ग्रामीण जीवन में बच्चों से लाड़-प्यार अधिक किया जाता है जबकि महानगरीय जीवन में बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।

आज के इस प्रतियोगिता के युग में महानगरीय जीवन में जो कुछ बच्चों के साथ किया जाता है वही सही प्रतीत होता है।

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प्रश्न 3.
इस कहानी के शीर्षक के औचित्य पर विचार करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘मजबूरी’ अत्यन्त उपयुक्त, सार्थक और सटीक है। क्योंकि प्रस्तुत कहानी में बूढी दादी और उसकी बहू की मजबूरी का मार्मिक चित्रण किया गया है। दादी अपनी सोच, अपने वात्सल्य से मजबूर है। बदलते ज़माने की बढ़ती हुई प्रतियोगिता से बेखबर वह अपने पोते पर बस प्यार ही लुटाती है। उसे उस प्रतियोगिता के लिये तैयार नहीं करती। दूसरी ओर बहू की भी मजबूरी है। दो बच्चे इकट्ठे न सम्भाल सकने के कारण वह बड़े बेटे को मजबूरी में अपनी सास के पास छोड़ जाती है। किंतु अपनी यह मजबूरी तब खलने लगती है जब वह देखती है कि उसका बड़ा बेटा न स्कूल जाता है न सभ्य भाषा सीखता है। बस दादी के आँचल से ही बंधा रहता है। उसके गली-मोहल्ले के गंदे-गंदे बच्चों से खेलना तथा अत्यधिक ज़िद करना बहू को मजबूर कर देता है कि वह अपने बड़े बेटे को जबरदस्ती अपने साथ वापिस बम्बई ले जाए। ताकि वहाँ जाकर वह पढ़-लिख जाए, सभ्य भाषा सीखे और अपने भविष्य को सुरक्षित कर ले। प्रस्तुत कहानी में सास और बहू की इन्हीं मजबूरियों का खुलासा किया है अतः यह शीर्षक अत्यंत सार्थक बन पड़ा है।

प्रश्न 4.
इस कहानी के आधार पर बूढ़ी अम्मा या उसकी बहू का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
(क) बूढ़ी अम्मा

‘मजबूरी’ कहानी में मन्नू भंडारी ने दोनों नारी-पात्रों की मज़बूरी का वर्णन किया है। दादी अपनी सोच अपने वात्सल्य से मजबूर दूसरी ओर बहू बच्चे के भविष्य की सुरक्षा के लिए मजबूर है दोनों के चरित्र अपनी मजबूरी को चित्रित करते हैं।

बूढी अम्मा गाँव में रहने वाली एक सीधी-साधी, स्नेहमयी और ममतामयी माँ है। तीन बरस बाद उसका बेटा और बहू पोते को साथ लेकर आ रहे हैं। यह समाचार सुनकर वह इतनी प्रसन्न होती है कि गठिया रोग से पीड़ित होने पर भी वह घर की सफाई करती है, बेटे और बहू के लिए नहाने के लिए पानी गर्म करती है। बूढ़ी अम्मा अपने बेटे के विरुद्ध कोई बात नहीं सुनना चाहती। वह अपनी नौकरानी को कहती है कि “मेरे रामेसुर के लिए कुछ मत कहना। यह तो मैं जानती हूँ कि तीन-तीन बरस मुझसे दूर रहकर उसके दिन कैसे बीतते हैं, पर क्या करें, नौकरी तो आखिर नौकरी ही है।”

बूढ़ी अम्मा की बहू ने कहा कि इस बार वह अपने बेटे को उसी के पास छोड़ जाएगी तो बूढ़ी अम्मा खुश हो जाती है। वह इस बात को गाँव भर में प्रत्येक व्यक्ति को बताती फिरती है, इस डर से कि कहीं बहू अपना इरादा न बदल दे।

बूढ़ी अम्मा ने अपने पोते को पालने के लिए बहुत कुछ नया सीखा। बच्चे को बोतल से दूध पिलाना सीखा, बच्चे को दूध समय पर पिलाने के लिए घड़ी में समय देखना सिखा किंतु वह अपने पोते को लाड़ प्यार के सिवा कुछ न सिखा सकी। अपने बेटे को विकसित और शिक्षित होता न देख बूढी अम्मा की बहू अपने बेटे को जबरदस्ती शहर ले गई। इस पर बूढ़ी अम्मा काफी दुःखी होती है किंतु जब उसे यह पता चलता है कि पोता माँ के पास जाकर दादी को भूल गया है तो वह मजबूर होकर प्रसाद बाँटने को तैयार हो जाती है।

(ख) बूढ़ी अम्मा की बहू रमा

रमा एक पढ़ी-लिखी आधुनिक नारी है, वह अपने पति के साथ मुम्बई में रहती है, वह दूसरे बच्चे के जन्म पर अपना पहला बच्चा अपनी सास के पास छोड़ जाती है। वह अपनी मज़बूरी के कारण ऐसा करती है दूसरा बच्चा जब बड़ा होता है तो उसका ध्यान अपने पहले बच्चे पर जाता है जो दादी के पास गाँव में रहता है। उसे अपने बेटे के भविष्य की चिन्ता सताती है। वह गाँव में जाकर देखती है कि उसका बच्चा दादी के लाड़-प्यार के साये में बिगड़ गया है। उसमें एक भी अच्छी बात नहीं है। वह स्कूल भी नहीं जाता। रमा अपनी सास से सख्ती से पेश आती है। यहाँ पर वह स्वार्थी लगती है कि अपनी मज़बूरी के कारण बच्चे को सास के पास छोड़ जाती है, परन्तु समय निकल जाने पर वह बच्चे को ले जाना चाहती है। परन्तु यहाँ पर एक ऐसी माँ दिखाई देती है जिसे अपने बच्चे के भविष्य की चिन्ता है। उसे लगता है छोटे बेटे की अपेक्षा बड़ा बेटा पिछड़ न जाए। इसलिए वह सख्ती से अपने पति और सास के साथ पेश आती है।

वह अपने बेटे को बहला-फुसलाकर साथ ले जाती है, परन्तु उसे साथ रखने में नाकामयाब होती है। अगली बार वह जब गाँव आती है और बेटे का बिगड़ा रूप देखकर वह बच्चे के साथ सख्ती करती हुई मुम्बई ले जाती है जहाँ वह उसे आस-पास के बच्चों के साथ खेल में लगा देती है। इस तरह वह अपनी समझदारी से अपने बेटे के सुखद भविष्य के लिए उसे अपने पास रखने में कामयाब हो जाती है। यहाँ उसकी मजबूरी का मार्मिक वर्णन है जब उसके दूसरा बच्चा होता है तब वह बड़े बेटे से अलग हो जाती है, परन्तु जब दूसरा बच्चा उसे बड़े बेटे से आगे निकलता दिखाई देता है तब उसे लगता है कि वह उसका भविष्य खराब कर रही है और उसके अच्छे भविष्य के लिए उसे वह मुम्बई ले जाती है। इसके लिए उसे अपनी सास को भी दुःखी करना पड़ता, परन्तु वह बच्चे के भविष्य के कारण मजबूर है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
बूढ़ी अम्मा के बड़े पोते व छोटे पोते के व्यक्तित्व में क्या अंतर था ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा का बड़ा पोता स्कूल नहीं जाता। सदा दादी के आँचल से बंधा रहता है। गली मुहल्ले के गंदेगंदे बच्चों के साथ खेलता रहता है। अत्यधिक ज़िद करता है, बल्कि बूढ़ी अम्मा का छोटा पोता स्कूल जाने लगा है ! उसने अंग्रेज़ी की छोटी-छोटी कविताएँ याद कर रखीं और बड़े अदब के साथ बोलता है। हालांकि उसे दो महीने पहले ही अंग्रेजी स्कूल में भर्ती करवाया गया था।

प्रश्न 2.
इस कहानी में रामेश्वर के किस धर्म संकट की चर्चा की गई है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में रामेश्वर जब अपने तीन साल के बेटे को लेकर गाँव आता है तो अपने बड़े बेटे की हालत देखकर उसकी पत्नी जब अपने बेटे को साथ बम्बई ले जाना चाहती है, यह जानकर रामेश्वर धर्म संकट में पड़ गया। एक तरफ उसकी माँ थी जो उसके बेटे के साथ इतना घुल मिल गई थी कि उसे छोड़ने को किसी भी हालत में तैयार नहीं थी। दूसरी तरफ उसकी अपनी पत्नी की बातें थीं जिनमें उसे सार नज़र आता था। जिसमें बेटे के भविष्य की चिन्ता थी। अतः सारा निर्णय अपनी पत्नी पर छोड़कर वह बम्बई लौट जाता है।

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प्रश्न 3.
पोते को घर में रखने के लिए बूढ़ी अम्मा ने क्या-क्या कार्य लगन से सीखे ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा की बहू रमा पढ़ी-लिखी थी। वह बच्चे का पालन-पोषण नए जमाने के अनुसार कर रही थी इसलिए जाने से पोते को घर में रखने के लिए सबसे पहले बूढी अम्मा ने उससे पहले वह अपनी सास को सब सिखाना चाहती थी। दूध पिलाना सीखा क्योंकि उसने कभी भी बच्चे को शीशी से दूध नहीं पिलाया था। बच्चे को दूध समय पर दिया जाता है इसलिए उसने घड़ी देखना सीखा। यह सारे काम उसने एक जिज्ञासु की तरह सीखे।

प्रश्न 4.
कहानी के आरम्भ में बूढ़ी अम्मा बेटे-बहू के स्वागत के लिए क्या-क्या तैयारियाँ करती है ?
उत्तर:
तीन वर्षों के बाद उसका बेटा अपनी पत्नी और पुत्र के साथ घर आ रहा था। उसके स्वागत के लिए उसने लोरियाँ गाते आँगन को लीपा और खड़िया मिट्टी से आँगन को मांडने के लिए अपनी नौकरानी से कहा। जोड़ों के दर्द से पीड़ित होने पर भी उसने दूसरा चूल्हा जलाकर उनके नहाने के लिए गर्म पानी रख दिया। लगे हाथ तरकारी भी काट ली ताकि बेटे के साथ अधिक देर तक बातें कर सके।

प्रश्न 5.
बूढ़ी अम्मा ने गाँव भर में किस बात का खूब प्रचार किया था ? क्यों ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा ने गाँव भर इस बात का प्रचार किया कि उसका पोता बेटू अब उसके पास रहेगा इसीलिए बूढ़ी अम्मा ने सबसे पहले अपने पति वैद्यराज को यह बात बताई कि बहू ने कहा है कि इस बार बेटू यहीं रहेगा। दोपहर में उसने अपनी नौकरानी से यही बात कही। उसके बाद घर में जो कोई भी आया उसे यही खबर सुनाई गई। अम्मा इस बात का इतना प्रचार कर देना चाहती थी कि यदि किसी कारण से बहू का मन फिर भी जाए तो शर्म के मारे वह अपना इरादा न बदल पाए।

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PSEB 11th Class Hindi Guide मजबूरी Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रामेश्वर कितने समय बाद अपने परिवार के साथ गाँव आया था ?
उत्तर:
तीन वर्ष बाद।

प्रश्न 2.
रामेश्वर ने जाते समय अपने माता-पिता को क्या दिया ?
उत्तर:
ढेर सारे कपड़े बनवाकर दिए।

प्रश्न 3.
माँ ने रामेश्वर से क्या माँगा ?
उत्तर:
हर साल घर आने का वादा।

प्रश्न 4.
रामेश्वर की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
रमा।

प्रश्न 5.
बेटु को कौन अपने साथ ले गया ?
उत्तर:
रामेश्वर और उसकी पत्नी रमा।

प्रश्न 6.
‘मजबूरी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
कहानी।

प्रश्न 7.
रामेश्वर की पत्नी रमा कितने वर्ष बाद आई थी ?
उत्तर:
दो वर्ष।

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प्रश्न 8.
रमा ने अपने बेटे को किस कारण बिगड़ा हुआ पाया ?
उत्तर:
दादी के लाड़ प्यार के कारण।

प्रश्न 9.
रमा ने किससे शिकायत की थी ?
उत्तर:
अम्मा से।

प्रश्न 10.
रामेश्वर ने अपने छोटे बेटे का दाखिला कहाँ करवाया ?
उत्तर:
शहर के एक अंग्रेजी स्कूल में।

प्रश्न 11.
बेटू दादी से …………. गया था।
उत्तर:
हिल-मिल।

प्रश्न 12.
दादी से अलग होने पर बेटू को क्या हुआ ?
उत्तर:
बुखार चढ़ गया।

प्रश्न 13.
दादी किसे लेकर गाँव लौट आई थी ?
उत्तर:
बेटू को।

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प्रश्न 14.
बेट्र को जबरदस्ती कहाँ ले जाया गया था ?
उत्तर:
बम्बई।

प्रश्न 15.
दादी क्यों दुःखी थी ?
उत्तर:
बेटू द्वारा उसे भूल जाने के कारण।

प्रश्न 16.
बूढ़ी अम्मा की बहू का क्या नाम था ?
उत्तर:
रमा।

प्रश्न 17.
बेटू किसके साथ खेलता था ?
उत्तर:
गली मुहल्ले के गंदे बच्चों के साथ।

प्रश्न 18.
बेटू स्वभाव से कैसा था ?
उत्तर:
जिददी।

प्रश्न 19.
कहानी में किसकी मजबूरियों का उल्लेख हुआ है ?
उत्तर:
सास बहू की।

प्रश्न 20.
वैद्यराज कौन था ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा का पति।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मजबूरी किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) निबंध
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कहानी

प्रश्न 2.
रमा ने शिकायत किससे की ?
(क) पिता जी से
(ख) अम्मा से
(ग) भाई से
(घ) बहन से।
उत्तर:
(ख) अम्मा से

प्रश्न 3.
बेटू का स्वभाव कैसा था ?
(क) शक्की
(ख) जिद्दी
(ग) सनकी
(घ) दब्बू।
उत्तर:
(ख) ज़िद्दी

प्रश्न 4.
बेटू को गांव लेकर कौन आया ?
(क) दादी
(ख) दादा
(ग) पिता
(घ) माँ।
उत्तर:
(क) दादी।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

मांडना-सजाना। नून-नमक। नवाई-नई बात। मसान-शमशान। संशय-शंका। शिथिल-बिना प्राण के। नीरस-बिना रस के। जिज्ञासु-सब जानने की इच्छा रखने वाला। एकाकी-अकेले। प्रयाण करना-जाना। सामंजस्य-तालमेल । बोराना-पागल होना। कौर-टुकड़ा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) “देख नर्बदा, मेरे रामेसर के लिए कुछ मत कहना। यह तो मैं जानती हूँ कि तीन-तीन बरस मुझसे दूर रह कर उसके दिन कैसे बीतते हैं, पर क्या करे, नौकरी तो आखिर नौकरी ही है। मेरे पास आज लाखों का धन होता तो बेटे को यों नौकरी करने परदेस नहीं दुरा देती, पर….”

प्रसंग :
यह गद्यांश श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से अवतरित है। रामेश्वर तीन साल बाद अपने घर लौट रहा है उसकी माँ उसके स्वागत की तैयारियों में जुटी है। उसकी उत्सुकता देख घर की नौकरानी नर्वदा जब बेटे के मन में मोह माया न होने की बात कहती है तो रामेश्वर की माँ उसे प्रस्तुत पंक्तियाँ कहती है।

व्याख्या :
रामेश्वर की माँ ने अपनी नौकरानी को टोकते हुए कहा कि उसके रामेसुर को कुछ मत कहना। वह यह जानती है कि तीन-तीन वर्ष तक उस के दिन उस से अलग रह कर किस तरह बीतते हैं, अर्थात् उसका बेटा उसको बहुत प्यार करता है परन्तु वह नौकरी के कारण मजबूर है। परन्तु वह भी क्या करे अर्थात् उसके हाथ में कुछ नहीं है। नौकरी तो आखिर नौकरी है अर्थात् नौकरी करने के कारण तीन वर्षों तक वह मुझ से मिलने नहीं आ सका। यदि उसके पास लाखों रुपए होते तो वह अपने बेटे को नौकरी करने के लिए परदेस में नहीं भेजती, परन्तु ऐसा नहीं है इसीलिए उसे बेटे से दूर रहना पड़ता है। बूढ़ी माँ अपनी मजबूरी की बात कहते कहते रुक जाती है।

विशेष :

  1. स्नेहमयी और ममतामयी माँ के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है जो किसी सूरत में अपने बेटे की बुराई नहीं सुन सकती।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। तद्भव शब्दावली है। भावात्मक शैली है।

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(2) “तुम क्या कही रही हो बहू, बेटू को मेरे पास छोड़ जाओगी, मेरे पास ! सच ? हे भगवान, तुम्हारी सब साध पूरी हों, तुम बड़भागी होओ। मेरे इस सूने घर में एक बच्चा रहेगा तो मेरा मन सफल हो जाएगा।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर की पत्नी रमा ने जब अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाने की बात कही तो प्रसन्न होकर रामेश्वर की बूढ़ी माँ ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रमा के यह कहने पर कि इस बार वह अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाएगी तो आँखें फाड़-फाड़ कर रामेश्वर की माँ ने बहू से कहा कि वह यह सब सच कह रही है कि बेटू को इसके पास छोड़ जाएगी। क्या यह बात सच है ? (रामेश्वर की माँ को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने ऐसी बात सुनी है।) यह सुन कर रामेश्वर की माँ ने रमा को आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसकी सब इच्छाएँ पूरी हों, वह सौभाग्यवती होओ। इस सूने घर में एक बच्चा रहेगा तो उसका जन्म सफल हो जाएगा। रामेश्वर की माँ पोते के पास रहने की खुशी में बहू को आशीर्वाद देती है कि उसने उसका अकेलापन दूर कर दिया और उसकी सभी मनोकामना पूरी हो।।

विशेष :

  1. रामेश्वर की माँ के भोलेपन की ओर संकेत किया गया है जो रमा के स्वार्थ मेरे कृत्य को न समझ सकी।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है। तद्भव शब्दावली है। भावात्मक शैली है। वात्सल्य रस है।

(3) “उन्होंने तो रामेश्वर को अपने ढंग से पाला था। जब बच्चा रोया, झट दूध पिला दिया। दूध के लिए भी समय देखना पड़ता है, यह बात उनके लिए नई थी। दो साल तक तो उन्होंने रामेश्वर को अपना दूध पिलाया था, उस के बाद गिलास से पिलाती थीं। यह शीशी का नखरा उस जमाने में था ही नहीं, और होगा भी तो शहरों में।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में रामेश्वर की माँ बच्चों के लालन-पालन में अपने द्वारा अपनाई गई विधि का उल्लेख कर रही है जो शहरी तरीका बिल्कुल न था।

व्याख्या :
बेटू को दूध पिलाने के लिए भी समय का ध्यान रखना होता है। इसी बात को लेकर रामेश्वर की माँ कहती है कि उसने तो रामेश्वर को अपने तरीके से पाला था। जब बच्चा रोया, झट दूध पिला दिया। दूध के लिए भी समय देखना पड़ता है, यह बात रामेश्वर की माँ के लिए नयी थी। उसने दो साल तक तो रामेश्वर को अपना दूध पिलाया था, उसके बाद उसे गिलास से पिलाने लगी थी। शीशी में दूध पिलाने का नखरा उसके ज़माने में नहीं था और यदि है तो शहरों में होगा। रामेसर की माँ बहू से नए जमाने के अनुसार बच्चे को पालने का ढंग सीख रही थी जो उसे अजीब लग रहा था।

विशेष :

  1. बच्चों के पालन-पोषण को लकर शहरी और ग्रामीण तरीके के अन्तर पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है, विचारात्मक शैली है।

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(4) “देख रामेसर, यह तीन-तीन बरस तक घर का मुँह न देखने वाली बात अब नहीं चलेगी। साल में एक बार तो आ ही जाया कर मेरे लाला नौकरी की जगह नौकरी है, और माँ-बाप की जगह माँ-बाप! मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती, किसी दिन भी आँख मूंदी रह जाएगी तो मैं तेरी सूरत को भी तरस जाऊँगी। सो कम से कम इस बूढ़िया माँ को …..” पर आगे वे कुछ कह नहीं सकी, बस फूट-फूट कर रोने लगीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर अपने बेटे को अपनी माँ के पास छोड़ कर जब जाने लगा तो उसकी बूढ़ी माँ ने रोते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रामेश्वर के जाते समय बूढ़ी माँ रोते हुए रामेश्वर से कहती है कि रामसुर, यह तीन-तीन वर्ष तक घर से दूर रहना अब नहीं चलेगा, अर्थात् अब उन सबसे दूर नहीं रहा जाता है इसलिए साल में एक बार अवश्य चक्कर लगा जाया करो। नौकरी अपनी जगह है और माँ-बाप अपनी जगह। अब उसकी तबीयत भी कुछ ठीक नहीं रहती। इसलिए किसी दिन आँखें यूँ ही बन्द हो जाएंगी तो उसकी सूरत देखने को भी तरस जाऊँगी। इसलिए कम-से-कम अपनी बूढी माँ के लिए जल्दी-जल्दी चक्कर लगाया करो। इस से आगे वह कुछ न कह सकी। बस फूट-फूट कर रोने लगी।

विशेष :

  1. माँ की ममता का चित्रण किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
  3. भावात्मक शैली है। भाषा मुहावरेदार है।

(5) अरे बचपन में कौन ज़िद नहीं करता बहू। रामेसुर भी ऐसे ही किया करता था, यह तो सच हू ब हू उसी पर पड़ा है। समय आने पर सब अपने आप छूट जाएगा। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की, साल दो साल और कर ले, फिर अपने आप सब कुछ छूट जाएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर अपने बेटे को दादी के पास छोड़ गया था। दूसरे साल रामेश्वर नहीं उसकी पत्नी रमा आई। शायद अपने बेटे को देखने के लिए। आकर उसने अपने बेटे को दादी के लाड़-प्यार से बिगड़ा अनुभव किया। वह बात-बात पर ज़िद करता था। इसी बात को लेकर जब उसने रामेश्वर की माँ से शिकायत की तो रामेश्वर की माँ ने रमा से प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रमा की शिकायत सुनकर रामेश्वर की माँ ने हँसते हुए सहज भाव से कहा कि बचपन में कौन ज़िद नहीं करता अर्थात् सभी जिद करते हैं रामेसुर भी ऐसे ही ज़िद किया करता था। उसका यह बेटा तो भी उसी पर गया है। समय आने पर ज़िद करने की आदतें अपने आप छूट जाएंगी। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की, साल दो साल में बच्चे बड़े हो जाते हैं तथ उनकी जिद करने की आदतें स्वयं ही छूट जाती हैं।

विशेष :

  1. ग्रामीण माँ और शहरी माँ की सोच में अन्तर को स्पष्ट किया गया है। शहर की माँ जिस आदत को बच्चे को बिगाड़ने वाली समझती है, ग्रामीण माँ उसे सहज और स्वाभाविक मानती है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है।
  4. भावात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 26 मजबूरी

(6) क्या कहा ….. बेटू भूल गया ? वहाँ जम गया ? सच मेरी बड़ी चिन्ता दूर हुई। इस बार भगवान ने मेरी सुन ली। ज़रूर परसाद चढ़ाऊँगी। मेरे बच्चे के जी का कलेश मिटा, मैं परसाद नहीं चढाऊँगी भला ?

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से अवतरित है। रामेश्वर की माँ ने उस समय कही हैं जब उसे बताया जाता है कि उसका पोता शहर में जाकर वहाँ के वातावरण में हिलमिल गया है तो उसे ठेस पहुँचती। इसी प्रसंग में वह प्रस्तुत पक्तियाँ कहती हैं।

व्याख्या :
रामेश्वर की माँ को जब यह सूचना मिलती है कि उसका बड़ा पोता शहर में अपने वातावरण में हिलमिल गया है तो उसे बड़ी हैरानी होती है कि उसका पोता शहर जाकर दादी को कैसे भूल गया ? फिर वह सोचती है कि चलो उसकी चिन्ता दूर हुई। इस बार भगवान् ने उसकी सुन ली। वह अपने मां-बाप के पास रहने लगा था। उसके बच्चे (रामेश्वर) के जी का कष्ट मिट गया। इस खुशी में वह प्रसाद नहीं चढ़ाएगी भला ? रामेशवर की माँ एक ओर दुःखी होती है कि उसका पोता उसे भूल गया है और दूसरी ओर खुश ही होती है कि उसके बेटे का दुःख दूर हो गया है !

विशेष :

  1. बेटे और पोते के व्यवहार से माँ की ममता को ठेस लगने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है।
  4. भावात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 26 मजबूरी

मजबूरी Summary

मजबूरी कहानी का सार

रामेश्वर तीन वर्ष पश्चात् अपनी पत्नी और बेटे के साथ गाँव में अपने माता-पिता से मिलने आ रहा है। उनके आने की खुशी में रामेश्वर की माँ गठिया से जुड़ी होने पर भी घर की साफ़ सफ़ाई में जुट जाती है। उनके नहाने के लिए चूल्हे पर पानी गर्म करती है, तरकारी आदि काटकर पहले से तैयार रखती है ताकि वर्षों बाद आने वाले बेटे से खुलकर बातें कर सके।

रामेश्वर के नहाने जाने के पश्चात् रामेश्वर की माँ ने बहू से पूछा कि उसे कितने महीने चढे हैं। बहू ने साहस बटोर कर कहा कि इस बार बेटू को आप ही रखेंगे। जैसे-तैसे भी हो, इसे अपने से हिला लीजिए। मैं तो इसके मारे परेशान थी, दो-दो को तो नहीं संभाला जा सकता। रामेश्वर की माँ बहू की यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उसने यह बात सबको ज़ोर दे देकर बताई ताकि रामेश्वर की पत्नी अपना इरादा न बदल दे।

रामेश्वर ने जाते समय अपने माता-पिता को ढेर सारे कपड़े बनवा दिए और माँ ने भी उससे हर साल घर आने का वादा मांगा। किंतु अगले दो साल बाद रामेश्वर तो नहीं आया हाँ, उसकी पत्नी रमा अवश्य आई। उसने अपने बेटे को दादी के लाड़ प्यार के कारण बिगड़े हुए पाया। उसने अम्मा से शिकायत भी की किंतु अम्मा का बच्चों को पालने-पोसने का अपना ही तरीका था। दो साल ओर बीत गए। रमा और रामेश्वर तीन साल के अपने छोटे बेटे को लेकर अपने मातापिता से मिलने के लिए आए। उन्होंने अपने छोटे बेटे को शहर के एक अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवा दिया था। किंतु बड़ा बेटा उसे वैसे का वैसा लगा जैसा वह छोड़ गई थी। न चाहते हुए भी रामेश्वर और रमा बेटू को अपने साथ ले गए। लेकिन बेटू दादी से इतना हिल-मिल गया था कि उसका बिछोड़ा उससे सहन न हो सका। उसे जाते ही बुखार चढ़ आया। यह समाचार सुनकर दादी उसे लेकर गाँव लोट आई। एक साल ओर बीत गया। इस बार तो बेटू को जबरदस्ती बम्बई ले जाया गया। उसे इस प्रकार सिखाया-पढ़ाया गया कि वह शहर के वातावरण में हिल-मिल गया। बूढ़ी दादी को जब यह बात मालूम हुई कि बेटू उसे भूल गया है तो उसकी चिंता दूर हुई। किंतु अंदर ही अंदर वह दुःखी थी कि बेट उसे भूल गया है।

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions Poem 4 My Dear Soldiers Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 English Poem 4 My Dear Soldiers

Activity 1.

Look up the following words in a dictionary. You should seek the following information about the words and put them in your WORDS notebook.
1. Meaning of the word as used in the poem (adjective/noun/verb. etc.)
2. Pronunciation (The teacher may refer to the dictionary or a mobile phone for correct pronunciation.)
3. Spellings.

defenders border deed windy scorching
sweltering treading marshes surveillance vibrate

Vocabulary Expansion

Activity 2.

Write synonyms of the following words.

(a) very hot – Scorching
(b) protect – defend

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

Read the following pairs of words carefully.

1. great sons
2. windy season
3. snowy days
4. scorching sun

All the highlighted words are ‘adjectives’ and the partner words are ‘nouns.’ Sometimes adjectives can be changed to nouns. For example ‘beautiful is an adjective. The noun from the adjective ‘beautiful is ‘beauty’

Sr. No. Adjective Noun
1. strong wind
2. active members
3. rich people
4. wise men
5. loyal soldiers
6. careful student
7. kind person
8. happy lad
9. good friend
10. faithful dog

Learning to Read and Comprehend

Activity 4.

Read the stanza and answer the questions that follow.

A. Oh! Defenders of borders
You are great sons of my land
When we are all asleep in
You still hold on to your deed.
Windy season or snowy days
Or scorching sun’s sweltering rays
You are there guarding all the time awake
Treading the lonely expanses as Yogis.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

(a) Name the poet of the poem ‘My Dear Soldiers’.
‘My Dear Soldiers’ कविता के लेखक का नाम बताएं
Answer:
The poet of this poem is A.P.J. Abdul Kalam.

(b) Who are being referred to as ‘Defenders of borders’ ?
‘सीमाओं का रक्षक’ किसे कहा जा रहा है
Answer:
Indian soldiers are being referred to Defenders of Borders’.

(c) How do these great sons serve their motherland ?
ये महान सपूत मातृभूमि की सेवा कैसे करते हैं ?
Answer:
They guard the borders of their motherland day and night.

(d) What kind of weather conditions do the soldiers have to face ?
सैनिक किस प्रकार की मौसमी दशाओं का सामना करते हैं ?
Answer:
They face windy and snowy weather.

B. Climbing the heights or striding the valleys
Defending the desert guarding the marshes
Surveillance in seas and by securing the air
Prime of your youth given to the nation!!
Wind chimes of my land vibrate your feat
We pray for you brave men!!
May the Lord bless you all!!

(a) Whom has the poem been addressed to ?
कविता किसे संबोधित की गई है ?
Answer:
The poem is addressed to the Indian soldiers.

(b) What do these great sons sacrifice for the nation ?
ये महान सपूत राष्ट्र के लिए क्या त्याग करते हैं ?
Answer:
They sacrifice their lives and their youth for the nation.

(c) What is the intention of the poet ?
कवि का इरादा क्या है?
Answer:
The poet wishes to tribute to our brave soldiers. He also wishes that they should enjoy God’s blessings.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

(d) Explain: ‘Wind chimes of my land vibrate your feat’.
व्याख्या कीजिए : “मेरे देश की पावन की झंकार तुम्हारे कदमों में सुनाई देती है”
Answer:
It means that our soldiers march forward with rhythmical sound.

Learning Language

Formation of Adverbs

A large number of adverbs are formed by adding ‘-ly’ to certain adjectives.

1. Most of the adverbs formed this way are the Adverbs of Manner. For example :

Sl.No Adjective Adverb 
1. strong strongly
2. faithful faithfully
3. sincere sincerely
4. quick quickly
5. slow slowly
6. neat ready
7. busy busily.
8. happy happily
9. true truly
10. severe severely

2. Some adverbs have the same form as the corresponding adjectives. For example :

S. No Adjective Adverb
1. Fie put in a lot of hard work. He worked hard.
2. I want a little sugar. Please move a little.
3. Fie has high aims. He aims high in life.
4. I want an early reply. Please reply early.

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3. Some adverbs are formed by combining a noun and a qualifying adjective. For example : yesterday, otherwise, meanwhile, sometimes.
4. Some adverbs are formed by adding a noun to ‘a’, ‘be’ and ‘to’, etc. For example : today, abreast, ahead, besides, etc.
5. Some adverbs are formed by combining ‘à or ‘be’ and an adjective. For example : aloud, anew, behind, aloud, alone, etc.
6. Some adverbs are formed from participles. For example : wittingly, surprisingly, knowingly, etc.
7. Some adverbs are formed in the following ways. For example : 1… one

1. one once
2. two twice
3. three thrice
4. four fourfold
5. many manifold

8. There are several adverbs which we used together having been joined together with
conjunctions to form adverbial phrases. For example :
(a) by and by (within a short period)
(b) again and again
(c) far and wide
(d) first and foremost
(e) to and fro
(f) off and on (occasionally) etc.

Activity 5.

Change the following adjectives to adverbs.

S. No. Adjective Adverb
1. bad badly
2. angry angrily
3. fast faddy
4. bold boldly
5. brisk briskly
6. meek meekly
7. nice nicely
8. soft softly
9. fair fairly
10. clean cleanly

Activity 6.

In the following sentences, same words are used both as an adjective and as an adverb. Underline the word and write whether it is used as an adjective or an adverb.

(a) You gave a beautiful, presentation. — ‘beautiful’ as an adjective
(b) Your work is beautifully presented. — ‘beautifully as an adverb
(c) I get a monthly paycheque. — ‘monthly’ as an adjective
(d) My company pays me monthly. — ‘monthly’ as an adverb
(e) She dressed elegantly. — ‘elegandy’ as an adverb
(f) She looks very elegant in suit.– ‘elegant’ as an adjective
(g) That boy is so loud. — ‘loud’ as an adjective
(h) That boy speaks so loudly. — ‘loudly as an adverb
(i) He is a gentle person. — ‘gently as an adjective
(j) He hugged me gently. — ‘gently’ as an adverb.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

Activity 7.

You will tell your partner something that she/he doesn’t know about you. You may talk about one of the following topics.

  • your pet
  • yourself
  • something you have bought
  • a neighbour
  • a place

While speaking. include two or three lies too. Take turns in speaking. The listener will listen carefully and note down in the notebook what she/he thinks is not true’ or ‘a lie’. When both of you have taken turns in speaking, you will tell your partner what you think was not true in his/her story.

The teacher must go to each bench to ensure that students are using English. Alternatively, the teacher can give two stories with lies which they can read and the partner can point out the lies.

My Pet

I have a pet. It is dog. It is small. But it is very greedy. It can eat one kilo of rice and twelve eggs for a single meal. It eats its rice with a spoon. When I come from outside, it jumps out me and talks to me in English. It scolds me if I reach home late. My father, is very happy with my dog because it helps him in cleaning the house.
Or
A Visit to Simla

I went to Simla for a vacation. It is a very big city. It is a very warm place. I went there on a shop. I did a lot of shopping there. I bought juices from there. I also bought an aeroplane from there and came home on that aeroplane. I keep the aeroplane in my garage and go to my school on my plane everyday.

Learning to Speak (Pairwork)

There are birds of prey that live on high mountains and trees. They have very good eye sight and can see things on the ground while flying in the sky. If they see something that they can eat, they dive like a thunderbolt to catch their prey.

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Activity 8.

Think of a wild animal or a bird that you like. Write its different qualities in the mind map given below. Take 2-3 minutes to do this work. You can use the following hints.
(a) kind of bird or animal
(b) its appearance and size
(c) its habitat
(d) its eating habits – herbivorous/carnivorous
(e) some special quality
(f) usefulness of the animal/bird
PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers 1

Now speak for two minutes about the animal or the bird you have made notes on. You can refer to your notes while speaking.
Answer:
Elephant is my favourite animal. It lives in dense forests, mostly in dry-wet areas. It is a royal animal that walks gracefully. It has big body greyish to brown in colour. It is a herbivorous. Sugarcane is its favourite food. It has a trunk and two long teeth. It carries heavy logs of wood. It gives rides too.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers 2

Learning to Write

Letter Writing

Letter writing is an important skill. We need to write letters in our daily life. It may be stated that these days people write emails more than letters. However, the art of writing letters and emails is the same though the format is different. Let us look at a complete letter written below:

Write a letter to your younger brother congratulating him on his brilliant success.

A 204 Rishi Apartments
Sector 70
SAS Nagar
June 10, 20…
Dear Harnaaz
Heartiest congratulations on achieving brilliant success in your board examination! I just came to know about it and I am very happy. I hope you are also extremely happy to receive the news of your result. You have stood first in your stater It is the result of your hard work. I am really proud of you. Your parents must also be very happy. If you continue to work hard like this, you will be a successful person in life.
I wish you a lot of success in your future too.
Yours sincerely
Mankeerat.

Activity 9

Now, using the format of letter writing given earlier and the notes written by you in the mind map above, write a letter to your friend telling him/her all about the animal/ bird you wrote about. At the end of the letter, you must write to your friend about why human beings should try to protect birds and animals from getting hunted by poachers.
Answer:
C-203, Sardar Patel Marg
Sector–22
Chandigarh
21 May, 20…..
Dear Divyadeep
India is a land of bio-diversity (जैव – विविधता) We have many kinds of birds and animals wild and domestic. They have different colours, sizes and different food habits. They live in different climatic conditions (जलवायु दशाएं). They are the beauty of our planet. Elephant is a royal animal. He has kingly grace. Bengal Tiger is another wild animal worth mentioning. Lion is the king of forest. Killing of these animals for food and profit is banned. But it is a pity that poachers hunt them for money. They don’t spare even innocent birds like peacock. It must be stopped otherwise our earth will become a poor place to live in.
Yours Sincerely
Jasjeet.

Word Meanings

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers 3

PSEB 8th Class English Solutions Poem 4 My Dear Soldiers

My Dear Soldiers Poem Summary in English

My Dear Soldiers Summary in English

It is a patriotic poem by A.P.J. Abdul Kalam. It is dedicated to the Indian soldiers. They are the great sons of India. Sun or shine they do their duty. They don’t care for hot sun rays or chilly winds. They are awake day and night guarding borders, the sea, the air and marshes.

Our soldiers are true patriots and selfless soldiers. They sacrifice their all for the sake of the country. They die for the sake of their motherland in the prime of their youth. They are worthy of our praise, respect and god’s blessing. Every Indian prays for the glory of our brave soldiers.

My Dear Soldiers Summary in Hindi

यह A.P.J. Abdul Kalam द्वारा लिखी गई देशभक्ति की एक कविता है। यह भारतीय सैनिकों को समर्पित है। वे भारत के महान् सपूत हैं। वे हर मौसम में अपना कर्तव्य निभाते हैं। वे सूर्य की गर्म किरणों या शीतल हवाओं की परवाह नहीं करते। वे हमारी सीमाओं-सागरों, हवाई मार्गों तथा दलदली भूमियों-की रक्षा करते हुए दिन-रात जागते रहते हैं। हमारे सैनिक सच्चे देशभक्त और नि:स्वार्थ सिपाही हैं। वे देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। वे भरी जवानी में देश के लिए अपने प्राण दे देते हैं। वे हमारी प्रशंसा, हमारे सम्मान और परमात्मा के आशीर्वाद के पात्र हैं। हर भारतीय भारतीय सैनिकों के गौरव के लिए प्रार्थना करता है।

Central Idea of The Poem

This poem sings the glory of our soldiers. They are true patriots who sacrifice their all for the sake of their country. They guard our boundaries day and night. Sun or shine they are alert. Let us pray for their honour and glory.

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 25 सेब और देव

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 25 सेब और देव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 25 सेब और देव

Hindi Guide for Class 11 PSEB सेब और देव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ कहानी का सार लिखिए।
उत्तर:
प्रोफैसर गजानंद पंडित दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ-साथ पुरातत्व की खोज में भी आए हैं। पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने एक सुन्दर कन्या को झरने के पास खड़े देखा। उन्हें उस कन्या में सरस्वती का रूप दिखाई पड़ा। किन्तु इस कन्या के हाथ में वीणा के स्थान पर एक छोटी लकड़ी थी। प्रोफैसर साहब ने उस कन्या से बड़े ही कोमल स्वर में पूछा कि तुम कहाँ रहती हो ? लड़की ने उसका कोई उत्तर न दिया और हैरान होकर जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर उतरने लगी।

रास्ता चलते-चलते उन्हें सेबों के पेड़ नज़र आए जिनकी रखवाली करने वाला वहाँ कोई नहीं था। यह देख प्रोफैसर साहब के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव और भी बढ़ गया। वे थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्होंने एक लड़के को सेब चुराते हुए पकड़ा। प्रोफैसर साहब ने उसके द्वारा चुराए सेब घास में फेंक दिए और उसे डाँटते हुए ईमान न बिगाड़ने की बात कही। प्रोफैसर साहब कुछ आगे बढ़े तो उन्हें प्राचीन मनु जी का मन्दिर याद आया। उस मन्दिर के दर्शन कर उन्होंने पुजारी से पूछा कि क्या कोई ऐसा मन्दिर आस-पास है ? पुजारी ने एक ऐसे मन्दिर का पता बताया जो बिल्कुल निर्जन स्थान पर उपेक्षित अवस्था में पड़ा था।

प्रोफैसर साहब ने उस मन्दिर में पहुँचकर लगभग 500 वर्ष पुरानी उन मूर्तियों को देखा। उन मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन बेईमान होने लगा। आस-पास नज़र दौड़ाई तो वहाँ कोई नज़र न आया। उन्होंने एक मूर्ति उठाई और उसे अपने ओवरकोट में छिपाकर गाँव की ओर लौट पड़े। लौटते समय उन्होंने फिर एक लड़के को सेब चुराते हुए देखा। उन्होंने उसे पकड़कर डाँटा और उसकी छाती में धक्का दिया। इस पर वह लड़का चीख मारकर रो उठा। प्रोफैसर साहब को लगा कि उसने सेब अपने कोट की जेब में छिपाए थे जो धक्का लगने पर उसे चुभ गए थे। एकाएक प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि इसने तो सेब चुराया है, वे तो देवस्थान ही लूट लाए हैं। घर पहुँचते–पहुँचते उनकी आत्मा ग्लानि से भर उठी थी। अतः उन्होंने अंधेरा होने से पहले ही उस मन्दिर में पहुँचकर चुराई हुई मूर्ति को यथास्थान रख दिया। मूर्ति को अपने स्थान पर रखते समय उनके मन में शान्ति उमड़ आई और दुनिया उन्हें अच्छी लगने लगी।

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प्रश्न 2.
प्रस्तुत कहानी में प्राकृतिक सुन्दरता तथा वहाँ के लोगों के रहन-सहन तथा सादगी का चित्रण बड़े स्वाभाविक ढंग से किया गया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक ने एक झरने के किनारे खड़ी बाला को देख पहले उसे हंसिनी समझा, फिर सरस्वती। बालिका का यह भोलापन प्रोफैसर साहब को अच्छा लगा। वे सोचने लगे कितने सीधे-साधे सरल स्वभाव के होते हैं यहाँ के लोग। पहाड़ों पर प्रकृति के दृश्य मन मोह लेते हैं उन पर से नज़र नहीं हटती। झरने चाँद की धारा लगते हैं, या प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से लगती है। प्रकृति की सुख देने वाली गोद में खेलते हुए इन्हें न कोई चिन्ता है, न कोई डर है, न कोई लोभ-लालच। वे लोग खाने-पीने, पशु चुराने और नाच गाकर ही अपना दिन बिता देते हैं। इसी कारण बाहर से आने वाले लोगों को देखकर उन्हें संकोच होता है।

अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से कोई मतलब नहीं होता। प्रोफैसर साहब पहाड़ी लोगों के विषय में सोचते हैं कि ऐसे भले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष आज बचे हैं, वे भी बच न पाते। इन पर यूरोपियन सभ्यता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि यह तो आज भी फाहियान के ज़माने के आदर्श को अपनाए हुए हैं। सबको अपने काम से मतलब है, दूसरों के काम में दखल देना, दूसरों के लाभ की ओर दृष्टि डालना यह लोग महापाप समझते हैं। यह लोग अपने पशुओं को दिन में चरने को छोड़ देते हैं और सायं को आकर उन्हें ले जाते हैं। यहाँ कभी चोरी नहीं होती कभी कोई शिकायत नहीं की जाती। खेती खड़ी है, किन्तु कोई पहरेदार नहीं है। मजाल है कि एक भुट्टा भी चोरी हो जाए। प्रोफैसर सोचते हैं कि यदि एक चवन्नी यहाँ मैं रास्ते में फेंक दूं तो कोई उठाएगा भी नहीं। यह सोचकर कि यह चवन्नी न जाने किसकी है और कौन लेने आए।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
प्रोफैसर ने लड़के को कितनी बार पीटा और क्यों ?
उत्तर:
प्रोफैसर साहब ने सेब चुराने वाले लड़के को दो बार पकड़ा और उसे पीटा। पहली बार तो उसके द्वारा चुराए गए सेब तो प्रोफैसर साहब ने घास में फेंक दिए। किन्तु दूसरी बार उनकी नज़र कोट में छिपाए गए सेबों पर न पड़ी। प्रोफैसर साहब ने उस लड़के को इसलिए पीटा कि उनको लगा कि यह लड़का उस सारी आर्य सभ्यता को एक साथ ही नष्ट-भ्रष्ट किए दे रहा है जो फाहियान के समय से सदियों पहले अक्षुण्ण बन चली आई है।

प्रश्न 2.
देवमूर्ति चुराने के बाद प्रोफैसर साहब के अन्तर्द्वन्द्व का वर्णन कर बताइए कि उन्हें शान्ति कैसे मिली ?
उत्तर:
प्रोफैसर चोर और चोरी दोनें से नफ़रत करते हैं, परन्तु वही प्रोफैसर मंदिर से मूर्ति चुरा कर लाते हैं तो उनके मन पर एक बोझ होता है उन्हें वह लड़का फिर मिलता जिसे उन्होंने चोरी करने पर मारा था उस बालक को देखकर उनके मन में एक विचार कौंध गया कि इसने तो सेब चुराया है, तुम देवस्थान ही लूट लाए। प्रोफैसर साहब ने जो पाप किया था उसे वह अच्छी तरह जानते थे। इसलिए उन्होंने मन्दिर से चुराई मूर्ति को यथास्थान रखकर मन की शान्ति प्राप्त की।

प्रश्न 3.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
कहानी का शीर्षक सेब और देव अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है। क्योंकि एक तरफ से प्रोफैसर साहब सेब चुराने वाले लड़के को इसलिए पीटते हैं कि वे उसे आर्य सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट करने वाला मानते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वयं को एक देवमूर्ति को चुराने की कुचेष्टा करते हैं। और अंतः आत्मग्लानि के फलस्वरूप उस देवमूर्ति को यथास्थान रखकर मानसिक शान्ति का अनुभव करते हैं। शीर्षक की सार्थकता इसी एक वाक्य में सिमट आती है-इसने तो सेब चुराया है, तुम देवस्थान ही लूट लाए।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने प्रोफैसर और एक लड़के के माध्यम से मनुष्य के अन्दर छिपी दुर्बलता को दिखाया है। ‘प्रोफैसर’ चोरी कर ने पर लड़के को मारता है वही काम स्वयं प्रोफैसर करता है अर्थात् चोरी करता है। मंदिर से मूर्ति चुरा लेता है इसलिए इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि दूसरों के दोष देखने से पहले हमें अपने दोषों को भी देखना चाहिए। जो शिक्षा हम दूसरों को देते हैं, उस पर स्वयं भी अमल करना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 25 सेब और देव

PSEB 11th Class Hindi Guide सेब और देव Important Questions and Answers

अति लघुजरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
अज्ञेय।

प्रश्न 2.
प्रोफैसर गजानंद पण्डित क्या थे ?
उत्तर:
दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक थे।

प्रश्न 3.
रास्ता चलते-चलते प्रोफैसर को क्या दिखाई पड़े ?
उत्तर:
सेबों के पेड़।

प्रश्न 4.
मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन कैसा हुआ ?
उत्तर:
प्रोफैसर का मन बेईमान हो गया।

प्रश्न 5.
प्रोफैसर ने मूर्ति को छुपाकर कहाँ रखा ?
उत्तर:
प्रोफैसर ने मूर्ति को छुपाकर अपने ओवरकोट में रखा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 25 सेब और देव

प्रश्न 6.
प्रोफैसर साहब कहाँ आए थे ?
उत्तर:
कुल्लू-मनाली में।

प्रश्न 7.
प्रोफैसर साहब कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ ………. के लिए आए थे।
उत्तर:
पुरातत्व की खोज।

प्रश्न 8.
प्रोफैसर ने कन्या को कहाँ देखा था ?
उत्तर:
झरने के पास।

प्रश्न 9.
प्रोफैसर को कन्या में किसका रूप दिखाई दिया ?
उत्तर:
सरस्वती का।

प्रश्न 10.
कन्या के हाथ में क्या था ?
उत्तर:
एक छोटी लकड़ी।

प्रश्न 11.
लड़की कहाँ से उतर रही थी ?
उत्तर:
पहाड़ी से।

प्रश्न 12.
सेब के पेड़ों की रक्षा करने वाला ………. था।
उत्तर:
कोई नहीं।

प्रश्न 13.
प्रोफैसर के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति …….. था।
उत्तर:
आदर एवं सम्मान।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 25 सेब और देव

प्रश्न 14.
प्रोफैसर ने लड़के को क्या करते हुए पकड़ा था ?
उत्तर:
सेब चुराते हुए।

प्रश्न 15.
प्रोफैसर ने चुराए हुए सेब कहाँ फेंके ?
उत्तर:
घास में।

प्रश्न 16.
प्रोफैसर ने लड़के से क्या कहा ?
उत्तर:
ईमान न बिगाड़ने की बात।

प्रश्न 17.
आगे चलकर ………….. का मंदिर आया।
उत्तर:
मनु।

प्रश्न 18.
प्रोफैसर ने कितनी पुरानी मूर्तियों को देखा था ?
उत्तर:
500 वर्ष पुरानी।

प्रश्न 19.
मूर्ति को चुराकर प्रोफैसर कहाँ चल पड़े ?
उत्तर:
गाँव की ओर।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 25 सेब और देव

प्रश्न 20.
घर पहुँचते-पहुँचते प्रोफैसर की आत्मा …….. से भर गई।
उत्तर:
ग्लानि।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ कहानी के कथाकार कौन हैं ?
(क) अज्ञेय
(ख) अदिती
(ग) आनंद
(घ) अनाम।
उत्तर:
(क) अज्ञेय

प्रश्न 2.
प्रोफैसर गजांनद पंडित किस विषय के अध्यापक हैं ?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेजी
(ग) इतिहास और पुरातत्व
(घ) विज्ञान।
उत्तर:
(ग) इतिहास और पुरातत्व

प्रश्न 3.
प्रोफैसर कुल्लू-मनाली में किसकी खोज करने आए थे ?
(क) पुरातत्व
(ख) पर्वत
(ग) भूतत्व
(घ) खगोल।
उत्तर:
(क) पुरातत्व

प्रश्न 4.
प्रोफैसर को कन्या में किसका रूप दिखाई दिया ?
(क) देवी का
(ख) माँ का
(ग) सरस्वती का
(घ) बेटी का।
उत्तर:
(ग) सरस्वती का।

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प्रमख अवतरणों की प्रसंग सहित व्याख्या

(1) बाला को वहाँ खड़े देखकर उसके पैरों के पास बहते झरने का शब्द सुनते हुए उन्हें पहले तो एक हंसिनी का ख्याल आया, फिर सरस्वती का। यद्यपि बाला के हाथ में वीणा नहीं, एक छोटी-सी छड़ी थी। उन्होंने अपने स्वर को यथा-सम्भव कोमल बनाकर पूछा-“तुम कहाँ रहती हो ?”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। प्रोफैसर गजानन पण्डित दिल्ली में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) में प्राचीन सभ्यता की खोज में आए थे। घूमने निकले प्रोफैसर साहब को एक पहाड़ी लड़की दिखाई पड़ी। उसी के सौन्दर्य को निहारते हुए प्रोफैसर साहब ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने उस पहाड़ी लड़की के पैरों के पास बहते झरने का स्वर सुन कर पहले तो उसे हंसिनी समझा, फिर उन्हें लगा कि देवी सरस्वती वहाँ खड़ी हैं। परन्तु उस लड़की के हाथ में वीणा नहीं थी इसलिए प्रोफैसर का ध्यान उस लड़की की ओर गया। एक छोटी-सी लड़की थी। प्रोफैसर साहब कलपना की दुनिया से बाहर आए तो अपने स्वर को यथासम्भव कोमल बनाकर उस लड़की से पूछा कि वह ‘कहाँ रहती है।’

विशेष :

  1. प्रोफैसर साहब की नज़र की पवित्रता की ओर संकेत किया गया है जो एक पहाड़ी लड़की में सरस्वती देवी का रूप देखते हैं।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. शैली भावात्मक है।

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(2) कितने सीधे-सादे सरल स्वभाव के होते हैं यहाँ के लोग। प्रकृति की सुखद गोद में खेलते हुए न इन्हें फिन है, न खटका है, न लोभ लालच हैं। अपने खाने-पीने, पशु चराने, गाने-नाचने में दिन बिता देते हैं। तभी तो बाहर से आने वाले आदमी को देखकर संकोच होता है। अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से क्या सरोकार।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। इनमें प्रोफैसर गजानन पंडित ने पहाड़ी लोगों के सादा जीवन के विषय में अपने विचार व्यक्त किए हैं।

व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने झरने के किनारे खड़ी एक पहाड़ी कन्या से यह पूछा था कि वह कहाँ रहती है ? यह सुन कर वह भोली पहाड़ी कन्या बिना उत्तर दिए आगे बढ़ जाती है। उसके भोलेपन को देखते हुए प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि यहाँ के लोग कितने सीधे-सादे और सरल स्वभाव के होते हैं। वे सभी प्रकार के स्वार्थ से दूर होते हैं। प्रकृति की गोद में खेलते हुए इन्हें कोई चिन्ता नहीं होती है, किसी का डर नहीं होता, और न कोई मन में लोभ लालच होता है। वे अपना दिन खाने-पीने, पशु चराने और नाच-गाने में बिता देते हैं। तभी तो बाहर से आने वाले लोगों से इन्हें संकोच होता है, जैसे उस पहाड़ी कन्या ने प्रोफैसर से संकोच किया था, अपने आप में मस्त रहने वाले इन लोगों को बाहर वालों से क्या मतलब। अर्थात् पहाड़ी लोग संकोची स्वभाव के होते हैं।

विशेष :

  1. प्रोफेसर साहब पहाड़ी लोगों के भोले और संकोची स्वभाव से प्रभावित थे।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम, तद्भव शब्दावली है। लेखक ने छोटे-छोटे वाक्यों से पहाड़ी लोगों का वर्णन किया था।
  4. शैली विवरणात्मक है।

(3) ऐसे भोले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष बचे हैं, ये भी क्या रह जाते ? खुदा-न-खास्ता ये लोग यूरोपीयन सभ्यता को सीखे हुए होते तो एक दूसरे को नोच-नोच कर खा जाते। उसकी राख भी न बची रहने देते, लेकिन यहाँ तो फाहियान के जमाने का ही आदर्श है। सब को अपने काम से मतलब है। दूसरों के काम में दखल देना, दूसरों के मुनाफे की ओर दृष्टि डालना महापाप है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में प्रोफैसर गजानन पंडित पहाड़ी लोगों के रहन-सहन की विशेषताओं के विषय में सोच रहे हैं।

व्याख्या :
प्रोफैसर गजानन पंडित पहाड़ी लोगों के सरल स्वभाव और रहन-सहन के ढंग के बारे में सोचते हैं कि ऐसे भले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो निशान बचे हैं, वे क्या बचे रह सकते थे। अर्थात् लोगों में इतना लालच बढ़ गया है कि कोई भी सभ्यता के अवशेष बचे रहना चमत्कार है? ईश्वर की कृपा से यदि ये लोग यूरोपीय सभ्यता को सीखे हुए होते, तो एक-दूसरे को नोच-नोच कर खा जाते, उसकी राख भी देखने को न मिलती, किन्तु यहाँ तो प्राचीन समय के फाहियान (एक चीनी पर्यटक जो भारत आया था और उसने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का गुणगान किया था।) के समय का ही आदर्श अभी तक देखने को मिलता है। अर्थात् जैसे भोले लोग उस समय थे वैसे ही आज हैं। यहाँ के लोगों को अपने काम से मतलब है, दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना, दूसरों के लाभ पर दृष्टि डालना, ये लोग महापाप समझते हैं अर्थात् ये लोग ईश्वर से डरते हैं।

विशेष :

  1. पहाड़ी लोगों को प्राचीन सभ्यता को बचाने वाला बताते हुए यूरोपीय सभ्यता के कुप्रभाव की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम और उर्दू मिश्रित शब्दावली है।
  4. शैली विवरणात्मक है।

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(4) “पाजी कहीं का चोरी करता है। तेरे जैसों के कारण तो पहाड़ी लोग बदनाम हो गए। क्यों चुराये ये सेब ? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लेता। ईमान क्यों बिगाड़ता है ?”

प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से लिया गया है। कुल्लू-मनाली में सैर करने गए प्रोफैसर गजानन पण्डित को एक दिन रास्ते पर जाते हुए उन्हें एक लड़का सेब चोरी करता दिखाई पड़ा। उन्होंने उसके सेब छीन कर घास में फेंक दिए और लड़के को पकड़ कर रास्ते की ओर ले आते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या ;
प्रोफैसर साहब ने सेब चोरी करते हुए लड़के को डाँटते हुए कहा कि-पाजी कहीं का चोरी करता है। उसके जैसे लोगों के कारण तो पहाड़ी लोग बदनाम हो गए। प्रोफैसर साहब को लगा कि यह लड़का पहाड़ की प्राचीन सभ्यता को नष्ट करने का काम कर रहा है। फिर उन्होंने लड़के से पूछा क्यों चुराए ये सेब ? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लेता। धर्म क्यों बिगड़ता है ? अर्थात् कुछ लोगों के कारण भोले-भाले पहाड़ी लोग बदनाम हो रहे हैं।

विशेष :

  1. प्रोफैसर साहब को लड़के का सेब चुराना पहाड़ी सभ्यता के विपरीत लगा।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
  3. तद्भव तथा उर्दू मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
  4. शैली भावात्मक है।

(5) उफ ! देवत्व की कितनी उपेक्षा ! मानव नश्वर है, वह मर जाए और उसकी अस्थियों पर कीड़े रेंगे, यह समझ में आता है लेकिन देवता………..पत्थर जड़ है उसका महत्त्व कुछ नहीं। लेकिन मूर्ति तो देवता की ही है। देवत्व की चिन्तनता की निशानी तो है। एक भावना है, पर भावना आदरणीय है।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से लिया गया है। इसमें प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर में एक सुन्दर मूर्ति को देख कर कही हैं।

व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर की मूर्ति को उपेक्षित अवस्था में पड़ी देखकर सोचा कि इस स्थान पर देवता की कितनी उपेक्षा हो रही है। मानव तो नाशवान् है, इसलिए जब वह मर जाता है तो उसकी अस्थियों पर कीड़े रेंगने लगते हैं। यह बात तो समझ में आती है, लेकिन देवता तो पत्थर की जड़ मूर्ति है उन पर कीड़ों का रंगने से उसके महत्त्व पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन यह मूर्ति तो देवता की ही है। देवत्व की चिन्तन होने की निशानी तो है। भले ही एक भावना है, विचार है, किन्तु यह भावना आदरणीय है। अर्थात् इसका निर्जन स्थान पर अपेक्षित स्थिति में होना चिन्ता का विषय है।

विशेष :

  1. किसी निर्जन स्थान पर बने मन्दिर में पड़ी उपेक्षित मूर्ति को देखकर प्रोफैसर साहब के मन में उठने वाले भावों का वर्णन किया गया है।
  2. मानव शरीर की नश्वरता का वर्णन किया गया है।
  3. भाषा सरल तथा स्वाभाविक है । तत्सम शब्दावली की अधिकता है। विचारात्मक शैली है।

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(6) “मूर्ति के उपयुक्त यह स्थान कदापि नहीं है। मन्दिर है, पर यहाँ पूजा ही नहीं होती, वह कैसा मन्दिर ? और क्या गाँव वाले परवाह करते हैं ? यहाँ मन्दिर भी गिर जाए, तो शायद उन्हें महीनों पता ही न लगे। कभी किसी भटकी भेड़-बकरी की खोज में आया हुआ गडरिया आकर देखें तो देखें। यहाँ मूर्ति को पड़े रहने देना भूल ही नहीं पाप है।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर की मूर्ति को उपेक्षित पड़े देखकर कही हैं।

व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने मन्दिर की उपेक्षित पड़ी मूर्ति को उठाया और फिर उसे यथास्थान रखकर सोचने लगे कि इस मूर्ति के लायक यह स्थान कदापि उपयुक्त नहीं है। मन्दिर गाँव से बाहर था। इसलिए वहाँ पर पूजा ही नहीं होती जिस स्थान पर देवता की पूजा नहीं होती वह कैसा मंदिर है। मंदिर जंगल में होने के कारण गाँव वाले और फिर गाँव वालों को इसकी देखभाल या रख-रखाव की परवाह नहीं करते है। यह मन्दिर गिर भी जाए तो शायद महीनों तक गाँव वालों को पता ही न चले। कभी किसी भटकी हुई भेड़-बकरी की खोज में आया कोई गडरिया इस मन्दिर को देख ले तो देख ले। यहाँ मूर्ति को इस हाल में पड़े रहने देना भूल ही नहीं पाप है अर्थात् निर्जन स्थान पर उपेक्षित स्थिति में मूर्ति का पड़ा रहना, पाप का कारण बन सकता है।

विशेष :

  1. प्रोफैसर के मानसिक द्वन्द्व पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। तत्सम् शब्दावली है।
  3. विचारात्मक शैली है।

(7) उस समय प्रोफैसर साहब के भीतर, जो कुल्लू-प्रेम का ही नहीं, मानव प्रेम का, संसार भर की शुभेच्छा का रस उमड़ रहा था, उसकी बराबरी रस भरे सेब भी क्या करते ? प्रोफैसर साहब की स्नेह उँडेलती हुई दृष्टि के नीचे से मानों सेब ओर पक कर और रस से भर जाते थे, उनका रंग कुछ ओर लाल हो जाता था। कितने रसगद्गद् हो रहे थे, प्रोफैसर साहब !

प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब ओर देव’ में से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने मन्दिर से मूर्ति चुरा कर लाते समय प्रोफैसर के मानसिक उल्लास का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि जब प्रोफैसर साहब मन्दिर से चुराकर वापस लौट रहे थे तो उनके मन में कुल्लू प्रेम की ही नहीं, मानव प्रेम की ओर संसार भर की शुभकामना की भावना उमड़ रही थी, अर्थात् उस समय प्रोफैसर को लग रहा था कि उन्होंने मूर्ति को और अधिक उपेक्षित होने से बचा लिया है साथ ही उन्हें यह प्रसन्नता थी कि उनके पास एक दुर्लभ मूर्ति है इसलिए उनकी प्रसन्नता सेब से अधिक रसीली थी। इसलिए उस भावना की बराबरी रस से भरे सेब भी नहीं कर पा रहे थे। प्रोफैसर साहब की प्यार उड़ेलती नज़र के नीचे से मानों सेब ओर पक कर रस से भर जाते थे, उन सेबों का रंग ओर लाल हो जाता था। अपने हृदय में उत्पन्न प्रसन्नता के भावों से प्रोफैसर साहब गद्गद् हो रहे थे अर्थात् प्रोफैसर साहब को सब कुछ रसमय लग रहा था। उन्हें लग रहा था जैसे मूर्ति लेकर जाने से सारा वातावरण रसमय हो गया है।

विशेष :

  1. किसी अमूल्य वस्तु को अनायास पा जाने पर व्यक्ति जिस प्रकार उल्लास से भर उठता है, उसी प्रकार प्रोफैसर साहब भी प्रसन्न हो रहे थे, गद्गद् हो रहे थे।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। तत्सम शब्दावली है।
  3. शैली भावात्मक है।

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(8) अँधेरा होते-होते वे मन्दिर में पहुँचे। किवाड़ एक ओर पटककर उन्होंने मूर्ति को यथा स्थान रखा। लौटकर चलने लगे तो आस-पास के वृक्ष अँधेरे में और भयानक हो गए। सुनसान ने उन्हें फिर सुझाया कि वे एक निधि को नष्ट कर रहे हैं, लेकिन जाने क्यों उनके मन में शान्ति उमड़ आई। उन्हें लगा कि दुनिया बहुत ठीक है, बहुत अच्छी है।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने प्रोफैसर के द्वारा मन्दिर से चुराई मूर्ति को यथास्थान रखकर शान्ति अनुभव करने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मूर्ति चुराने पर प्रोफैसर साहब के मन में आत्मग्लानि और पाप की भावना जागृत हुई इसलिए वे अन्धेरा होते-होते उसी मन्दिर में पहुँचे, जिस मन्दिर से उन्होंने मूर्ति चुराई थी। उनके मन पर चोरी करने का बोझ इतना था कि उन्होंने जल्दी से मन्दिर के दरवाज़े को एक ओर करके उन्होंने मूर्ति को उसी स्थान पर रख दिया, जहाँ से उसे उठाया था। जब वे लौटकर चलने लगे तो आस-पास के वृक्ष अन्धेरे में और भी भयानक लगने लगे थे। उस सुनसान वातावरण ने उन्हें सुझाया कि वे ऐसा करके अर्थात् मूर्ति को यथास्थान रखकर एक खज़ाने को नष्ट कर रहे हैं, किन्तु जाने क्यों उस समय प्रोफैसर साहब के मन में शान्ति उमड़ आई और उन्हें लगने लगा कि यह दुनिया बहुत सही है और अच्छी है। अर्थात् मूर्ति को उसके स्थान पर रखकर वे अपने को हल्का अनुभव कर रहे थे उन्हें फिर से सब अच्छा लगने लगा था।

विशेष :

  1. किसी भी पाप का प्रायश्चित करने पर मन को सदा ही शान्ति प्राप्त होती है-इसी तथ्य पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है, तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  3. शैली भावात्मक है।

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सेब और देव Summary

सेब और देव कहानी का सार

प्रोफैसर गजानंद पंडित दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ-साथ पुरातत्व की खोज में भी आए हैं। पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने एक सुन्दर कन्या को झरने के पास खड़े देखा। उन्हें उस कन्या में सरस्वती का रूप दिखाई पड़ा। किन्तु इस कन्या के हाथ में वीणा के स्थान पर एक छोटी लकड़ी थी। प्रोफैसर साहब ने उस कन्या से बड़े ही कोमल स्वर में पूछा कि तुम कहाँ रहती हो ? लड़की ने उसका कोई उत्तर न दिया और हैरान होकर जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर उतरने लगी।

रास्ता चलते-चलते उन्हें सेबों के पेड़ नज़र आए जिनकी रखवाली करने वाला वहाँ कोई नहीं था। यह देख प्रोफैसर साहब के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव और भी बढ़ गया। वे थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्होंने एक लड़के को सेब चुराते हुए पकड़ा। प्रोफैसर साहब ने उसके द्वारा चुराए सेब घास में फेंक दिए और उसे डाँटते हुए ईमान न बिगाड़ने की बात कही। प्रोफैसर साहब कुछ आगे बढ़े तो उन्हें प्राचीन मनु जी का मन्दिर याद आया। उस मन्दिर के दर्शन कर उन्होंने पुजारी से पूछा कि क्या कोई ऐसा मन्दिर आस-पास है ? पुजारी ने एक ऐसे मन्दिर का पता बताया जो बिल्कुल निर्जन स्थान पर उपेक्षित अवस्था में पड़ा था।

प्रोफैसर साहब ने उस मन्दिर में पहुँचकर लगभग 500 वर्ष पुरानी उन मूर्तियों को देखा। उन मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन बेईमान होने लगा। आस-पास नज़र दौड़ाई तो वहाँ कोई नज़र न आया। उन्होंने एक मूर्ति उठाई और उसे अपने ओवरकोट में छिपाकर गाँव की ओर लौट पड़े। लौटते समय उन्होंने फिर एक लड़के को सेब चुराते हुए देखा। उन्होंने उसे पकड़कर डाँटा और उसकी छाती में धक्का दिया। इस पर वह लड़का चीख मारकर रो उठा। प्रोफैसर साहब को लगा कि उसने सेब अपने कोट की जेब में छिपाए थे जो धक्का लगने पर उसे चुभ गए थे। एकाएक प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि इसने तो सेब चुराया है, वे तो देवस्थान ही लूट लाए हैं। घर पहुँचते–पहुँचते उनकी आत्मा ग्लानि से भर उठी थी। अतः उन्होंने अंधेरा होने से पहले ही उस मन्दिर में पहुँचकर चुराई हुई मूर्ति को यथास्थान रख दिया। मूर्ति को अपने स्थान पर रखते समय उनके मन में शान्ति उमड़ आई और दुनिया उन्हें अच्छी लगने लगी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 24 उसकी माँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 24 उसकी माँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 24 उसकी माँ

Hindi Guide for Class 11 PSEB उसकी माँ Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ कहानी का सार लिखें।
उत्तर:
‘उसकी मां’ कहानी पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह कहानी राष्ट्रीय भावना से पूर्ण है। कुछ क्रान्तिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दे दिया। लेखक ने कहानी में लाल की माँ के बलिदान और ममता का वर्णन किया है।

लेखक दोपहर के समय अपनी पुस्तकालय से किसी महान् लेखक की कृति देखने की बात सोच रहा था कि उसके घर पुलिस सुपरिटेंडेंट पधारे। उन्होंने एक तस्वीर दिखाकर उसके विषय में जानकारी चाही। लेखक ने बताया कि वह उनका पड़ोसी लाल है जो कॉलेज में पढ़ रहा है। जाते-जाते पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को सलाह दी कि वह लाल के परिवार से जरा सावधान और दूर रहे। – लेखक ने लाल की माँ से भी उसके विषय में जानने की कोशिश की कि उसका बेटा आजकल क्या करता है। कहीं वह सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वालों का साथी तो नहीं बन गया है। उसने लाल से भी यही बात पूछी। लाल ने बताया कि वह किसी षड्यन्त्र में शामिल नहीं पर उसके विचार अवश्य स्वतन्त्र हैं। वह देश की दुर्दशा पर दु:खी है। लेखक ने लाल को समझाया कि उसे केवल पढ़ना चाहिए। पहले घर का उद्धार कर लो तब सरकार के उद्धार का काम करना।

एक दिन लेखक ने लाल की माँ से लाल के मित्रों के बारे में जानना चाहा तो लाल की माँ ने बताया कि लाल और उसके मित्र पुलिस के अत्याचारों की बातें करते हैं। लेखक कुछ दिनों के लिए बाहर गया। लौटने पर उसे मालूम हुआ कि पुलिस लाल और उसके बारह-पन्द्रह साथियों को पकड़कर ले गई है। तलाशी में लाल के घर से दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस और पत्र बरामद हुए थे। उन पर हत्या, षड्यन्त्र और सरकार उल्टने की चेष्टा आदि के अपराध लगाए गए।

लाल और उसके साथियों पर कोई एक वर्ष तक मुकद्दमा चला कि कोई भी वकील उनका केस लड़ने को तैयार न हुआ। मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबको नियमपूर्वक भोजन पहुँचाती रही। फिर एक दिन अदालत का फैसला आया, जिसके अनुसार लाल और उसके तीन साथियों को फाँसी और उसके शेष साथियों को सात से दस वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गई। फांसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को लिखा कि वह भी वहीं आ जाए। वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाज़े पर मरी पड़ी है।

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प्रश्न 2.
सरलता, ममता, त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति के आधार पर लाल की माँ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
लाल की माँ प्रस्तुत कहानी की नायिका है। वह इतनी सरल हृदया है कि उसे अपने बेटे और उसके मित्रों की बातों से किसी षड्यन्त्र की बू नहीं आती। उसका तो बस अपने पुत्र लाल से और उसके मित्रों से स्नेहमयी, ममतामयी माँ का रिश्ता है। लाल के मित्र भी उसे लाल जैसे प्यारे दिखते हैं। जब वे सभी उसे माँ कहकर पुकारते हैं, तब उसकी छाती फूल उठती है-मानों वे उसके बच्चे हों। उसकी यह कामना है कि सारे बच्चे हँसते रहें।

लाल और उसके साथियों के पकड़े जाने पर वह बड़े प्यार से उनके लिए परांठे, हलवा और तरकारी बनाती है। मुकद्दमा लड़ने के लिए, बच्चों को भोजन पहुँचाने के लिए वह घर का सारा सामान बेच देती है। स्वयं सूखकर काँटा हो जाती है पर जेल में बन्द बच्चों को हृष्ट-पुष्ट रखती है। अन्त में बच्चों की इच्छा के अनुरूप ही वह परलोक भी सिधार जाती है। कहानीकार ने लाल की माँ जानकी को ममता, त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। कहानी का शीर्षक भी उसी के अनुरूप दिया गया है जो अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़ा है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

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प्रश्न 1.
पुलिस सुपरिटेंडेंट के पूछने पर लेखक ने लाल के परिवार के बारे में उन्हें क्या बताया ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट के पूछने पर लेखक ने बताया कि लाल नाम के इस लड़के का घर उसके बंगले के ठीक सामने है। घर में वह और उसकी बूढ़ी माँ रहती है। सात वर्ष हुए लाल के पिता का देहान्त हो गया। उसका पिता जब तक जीवित रहा लेखक की ज़िमींदारी का मुख्य मैनेजर था। उसका नाम रामनाथ था। वही लेखक के पास कुछ हज़ार रुपए जमा कर गया था, जिससे अब तक उनका खर्च चल रहा है। लड़का कॉलेज में पढ़ रहा है।

प्रश्न 2.
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को लाल से सावधान और दूर रहने का सुझाव क्यों दिया ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को लाल से सावधान और दूर रहने का सुझाव इसलिए दिया था क्योंकि उसे शक था कि लाल राजविरोधी गतिविधियों में संलिप्त है और राज उलटने के षड्यन्त्र में शामिल है। पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक से यह बात अत्यन्त गोल-मोल ढंग से कही। उसने इतना ही कहा कि फिलहाल इससे अधिक मुझे कुछ कहना नहीं!

प्रश्न 3.
लाल और उसके साथियों को पैरवी करने के लिए कोई भी वकील क्यों नहीं मिला ?
उत्तर:
लाल और उसके साथियों को पैरवी करने के लिए कोई भी वकील इसलिए नहीं मिल रहा था कि तत्कालीन शासन तन्त्र के अत्याचारों से आम लोग ही नहीं वकील भी भयभीत थे। इसलिए कोई भी एक विद्रोही की माँ से सम्बन्ध रखकर या विद्रोहियों के मुकद्दमे की पैरवी करके कोई भी मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था। उस समय की समाज व्यवस्था भी ऐसी ही थी।

प्रश्न 4.
लाल की माँ सभी युवकों को लाल की तरह ही क्यों मानती थी ?
उत्तर:
लाल की माँ सभी युवकों को लाल की तरह ही इसलिए मानती थी कि सभी लापरवाह, हँसते-गाते और हल्ला मचाते थे। उनकी इन हरकतों को देखकर लाल की माँ मुग्ध हो जाती थी। वे सभी बड़े प्रेम से उसे ‘माँ’ कहते थे। इस सम्बोधन शब्द को सुनकर लाल की माँ को लगता था कि वे सब उसी के बच्चे हैं। एक दिन तो लाल के एक हँसोड़ मित्र ने उसे भारत माँ ही बना दिया।

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प्रश्न 5.
लड़कों ने माँ से अपनी फाँसी की सजा की बात क्यों छिपाई ?
उत्तर:
लड़कों ने माँ से अपनी फाँसी की सजा की बात इसलिए छिपाई कि उनकी माँ को उनके मरने का दुःख न हो। उन्होंने परोक्ष रूप में माँ को भी वहां आने के लिए कहा। जहाँ वे लोग जा रहे थे। लड़कों ने यह भी कहा कि वहाँ हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर तुझे इधर-से उधर दौड़ते रहेंगे। लड़कों की बातें सुनकर भोली जानकी के मुँह से इतना ही निकला, तुम वहां जाओगे पगलो ?

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी से लाल और उसके साथियों से आज के नवयुवकों को क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लाल और उसके साथियों से आज के नवयुवकों को राष्ट्र भक्ति की प्रेरणा मिलती है। देश पर कुर्बान होने की प्रेरणा मिलती है। देश के लिए हँसते-हँसते कष्ट सहने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही यह भी प्रेरणा मिलती है कि राष्ट्र या समाज का अहित करने वाले के विरुद्ध डटकर खड़ा हो जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘उसकी माँ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक और सटीक बन पड़ा है। पूरी कहानी में लाल की माँ जानकी को लेखक ने केन्द्र में ही रखा। उसे कहानी की नायिका के रूप में प्रस्तुत किया। न वह राजभक्त है और न राजद्रोही। राजनीति से उसका कोई लेना-देना नहीं। वह तो स्नेहमयी, ममतामयी माँ है। त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति है। अतः कहना न होगा कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘उसकी माँ’ अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़ा है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 24 उसकी माँ

PSEB 11th Class Hindi Guide उसकी माँ Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ कहानी के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’।

प्रश्न 2.
लेखक पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ दोपहर के समय अपने पुस्तकालय में क्या देखने की सोच रहा था ?
उत्तर:
किसी महान् लेखक की कृति देखने के बारे में।

प्रश्न 3.
लाल और उसके साथियों पर कितने समय तक मुकद्दमा चला ?
उत्तर:
लगभग एक वर्ष तक।

प्रश्न 4.
मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबके लिए क्या भेजती रही ?
उत्तर:
भोजन।

प्रश्न 5.
अगले दिन लेखक ने क्या देखा ?
उत्तर:
अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाजे पर मरी पड़ी है।

प्रश्न 6.
लेखक ने लाल के बारे में किससे जानना चाहा था ?
उत्तर:
लाल की माँ से।

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प्रश्न 7.
लेखक के घर कौन आया था ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट।

प्रश्न 8.
लाल किसके पड़ोस में रहता था ?
उत्तर:
लेखक के।

प्रश्न 9.
लाल कहाँ पढ़ रहा था ?
उत्तर:
कॉलेज में।

प्रश्न 10.
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को किस से सावधान रहने की सलाह दी ?
उत्तर:
लाल के परिवार से।

प्रश्न 11.
लाल के विचार कैसे थे ?
उत्तर:
स्वतंत्र तथा देश हित में।

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प्रश्न 12.
लाल दुःखी क्यों था ?
उत्तर:
देश की दुर्दशा पर।

प्रश्न 13.
लेखक ने लाला को पहले किसका उद्धार करने की बात कही ?
उत्तर:
अपने घर का।

प्रश्न 14.
तलाशी में लाल के घर से क्या मिला था ?
उत्तर:
दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस तथा पत्र।

प्रश्न 15.
लाल तथा उसके साथियों पर कौन-से आरोप लगाए गए थे ?
उत्तर:
हत्या, षड्यंत्र तथा सरकार पलटने का।

प्रश्न 16.
फाँसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को ………… लिखा।
उत्तर:
पत्र।

प्रश्न 17.
लाल और उसके साथियों का केस लड़ने को कौन तैयार नहीं था ?
उत्तर:
कोई भी वकील।

प्रश्न 18.
लाल के साथ उसके कितने साथियों को फाँसी की सजा हुई थी ?
उत्तर:
तीन।

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प्रश्न 19.
शेष साथियों को क्या सजा मिली थी ?
उत्तर:
सात से दस वर्ष की कड़ी सजा।

प्रश्न 20.
पत्र में लाल ने क्या लिखा था ?
उत्तर:
वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ग) निबंध
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कहानी

प्रश्न 2.
‘उसकी माँ’ कहानी किस भावना से पूर्ण है ?
(क) राष्ट्रीय भावना
(ख) विचारधारा
(ग) आशावादी
(घ) हास्यपूर्ण।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय भावना

प्रश्न 3.
लाल की माँ किसकी मूर्ति थी ?
(क) ममता
(ख) त्याग
(ग) तपस्या
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

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प्रश्न 4.
भारतमाता का सिर क्या है ?
(क) हिमालय
(ख) देवालय
(ग) गंगा
(घ) यमुना।
उत्तर:
(क) हिमालय

प्रश्न 5.
भारतमाता का नाम क्या है ?
(क) हिमालय
(ख) विन्धयांचल
(ग) पूर्वांचल
(घ) उत्तरोंचल।
उत्तर:
(ख) विन्धयांचल।

कठिन शब्दों के अर्थ :

फरमादार = आदेश मानने वाले, सेवा करने वाले। दुर्दशा = बुरी स्थिति। हवाई किले उठाना = बड़े-बड़े सपने बुनना। वय = आयु। सहस्त्र = हजार। छाती फूल उठना = बहुत प्रसन्न हो जाना। गप हाँकना = जिन बातों का कोई अर्थ नहीं। त्रास = दु:ख। दाँत निपोरना = खुशामद करना। निस्तेज = तेज हीन। कमर टूटना = सब कुछ समाप्त होना, बहुत ज्यादा दु:खी होना। दूध का दूध और पानी का पानी होना = सभी बातों का साफ होना, गलत फहमी दूर होना, सच और झूठ का पता चलना। गाँव का सिवान = गाँव की सीमा। ब्यालू = रात का भोजन। दिवाकर = सूर्य।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) “तुम्हारी ही बात सही, तुम षड्यन्त्र में नहीं, विद्रोह में नहीं, पर यह बक-बक क्यों ? इससे फायदा ? तुम्हारी इस बक-बक से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न उसकी पराधीनता। तुम्हारा काम पढ़ना है, पढ़ो। इसके बाद कर्म करना होगा, परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो, तब सरकार के सुधार पर विचार करना।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। लेखक से जब सुपरिटेंडेंट पुलिस ने लाल के बारे में जानकारी प्राप्त की तो जाते-जाते उस परिवार से सावधान और दूर रहने की सलाह दी तो लेखक को यह शक हुआ कि लाल सरकार के विरुद्ध किसी षड्यन्त्र में शामिल है। उसने लाल से यही बात पूछी। लाल के इन्कार करने पर लेखक ने उसे समझाते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
लाल ने जब किसी षड्यन्त्र में शामिल न होने की बात कही तो लेखक ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हारी ही बात सही है कि तुम किसी षडयन्त्र में या विद्रोह में शामिल नहीं हो। किन्तु तुम सरकार के विरुद्ध, सरकार की दुर्व्यवस्था के विरुद्ध क्यों बोलते हो। तुम्हारे इस काम का अथवा बोलने का कोई लाभ न होगा। तुम्हारी इन बातों से न तो देश की दुर्दशा सुधरेगी और न ही उसकी पराधीनता समाप्त होगी। तुम अभी विद्यार्थी हो। अतः तुम्हारा काम केवल पढ़ना है। पढ़ाई समाप्त होने पर तुम्हें कर्म करना होगा। परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो तब सरकार के सुधार का विचार करना अर्थात् उसे बदलने की बात सोचना।

विशेष :

  1. लाल के राष्ट्रभक्त और लेखक के राजभक्त होने की ओर संकेत किया गया है। कहना न होगा कि लेखक जैसे राजभक्तों के कारण ही देश कई सौ वर्षों तक गुलाम बना रहा।
  2. भाषा सरल, व्यावहारिक और सहज है। बक-बक करना मुहावरे का प्रयोग है।

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(2) “चाचा जी, नष्ट हो जाना यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान् की सहस्त्र भुजाओं की सखियाँ हैं।”

प्रसंग :
यह गद्यावतरण पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। लाल ने दुष्ट, व्यक्तिनाशक राज के सर्वनाश में अपना हाथ होने की बात कही तो लेखक ने उसे समझाते हुए अथवा यूँ कहें कि डराते हुए कहा कि तुम्हारे हाथ दुर्बल हैं जिस सरकार से तुम मुकाबला करने जा रहे हो, वह सरकार तुम्हारे हाथों को तोड़-मरोड़ देगी। लेखक का यह उत्तर सुनकर लाल ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
जब लेखक ने लाल से शासन तन्त्र के ताकतवर होने की बात कही जो उसे नष्ट कर देगी तो लाल ने कहा, चाचा जी, नष्ट हो जाना तो प्रकृति का नियम है। जो बना है, वह बिगड़ेगा ही, किन्तु हमें अपनी कमजोरी के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। तात्पर्य यह है कि हमें हर हाल में कर्म करते रहना चाहिए। कर्म करते समय हमारी भुजाओं में कमज़ोरी नहीं आती कर्म करने पर बल्कि भगवान् की हज़ारों भुजाओं जैसी शक्ति आ जाती है।

विशेष :

  1. भारतवासियों की एक विशेषता कर्म में विश्वास रखना अथवा कर्मवीर होना पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली ओजपूर्ण है।

(3) “माँ त। त तो ठीक भारत माता-सी लगती है। तू बूढ़ी, वह बढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश। हाँ नक्शे से साबित करता हूँ, तू भारत माता है। सिर तेरा हिमालय माथे की दोनों गहरी बड़ी रेखाएँ गंगा और यमुना, यह नाक विन्धयाचल, ठोड़ी कन्याकुमारी तथा छोटी-बड़ी झुर्रियाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियाँ हैं। ज़रा पास आ मेरे। तेरे केशों को पीछे से आगे बाएँ कन्धे पर लहरा ढूँ। वह बर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शद्ध न होगा।”

प्रसंग :
यह गद्यांश पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’जी के द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लाल की माँ लेखक को लाल के एक हँसोड़ मित्र द्वारा उसे भारत माता कहकर पुकारे जाने का वर्णन कर रही है।

व्याख्या :
लाल की माँ जानकी लेखक को, लाल के एक मित्र को जब वह उसे हलवा परोस रही थी तो उसने मुँह की तरफ देखकर जो कहा उसका वर्णन करती हुई कहती है कि माँ तू तो ठीक भारत माता जैसी लगती है। तू भी बूढ़ी है और भारत माता भी। उसका उजला हिमालय है अर्थात् बर्फ से ढका है और तेरे केश भी बर्फ की तरह सफ़ेद हैं।

लाल की माँ कहती है कि इसके बाद उस लड़के ने नक्शा बनाकर समझाते हुए कहा कि तेरा सिर हिमालय है, माथे की दोनों गहरी रेखाएं गंगा और यमुना हैं, तुम्हारी नाक विन्धयाचल पर्वत जैसी है तो तेरी ठोडी कन्याकुमारी है। तेरे मुँह पर बनी यह छोटी-बड़ी झुर्रियां भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियां हैं। फिर उसने मुझे पास बुलाकर कहा तेरे केशों को पीछे से आगे बाएं कन्धे पर लहरा दूं तो वर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शुद्ध न होगा।

विशेष :

  1. प्राचीन समय का बर्मा जो आज म्यांमार कहलाता है, पहले भारत का ही एक भाग हुआ करता था। लाल के मित्रों की देश-भक्ति का परिचय मिलता है। वे लाल की माँ में भारत माता को देखते हैं।
  2. भाषा अलंकृत है। शैली भावपूर्ण है।

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(4) “पुलिस वाले केवल सन्देह पर भले आदमियों के बच्चों को नाम देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा को परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे घुलाना-मिटाना है।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लाल की माँ लेखक से लाल के साथियों के उत्तेजित होकर पुलिसवालों के अत्याचारों का वर्णन करती हुई कह रही

व्याख्या :
लाल की माँ लेखक को बताती है कि महीना भर पहले लड़के बहुत उत्तेजित थे। सरकार न जाने कहां लड़कों को पकड़ रही थी। इस पर एक लड़के ने कहा कि पुलिस वाले केवल सन्देह के आधार पर ही भले घरों के बच्चों को पकड़ कर डराते धमकाते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है जो निर्दोष लड़कों को पकड़कर तंग करती है। ऐसी नीच शासन प्रणाली को स्वीकार करना, अपने धर्म,कर्म, आत्मा और परमात्मा को भूलने के समान है तथा ऐसी शासन प्रणाली को स्वीकार करना अपने आपको धीरे-धीरे धुलाना और मिटाना है।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ी शासन के दौरान पुलिस के अत्याचारों की ओर संकेत किया गया है तथा ऐसे शासन तन्त्र के विरुद्ध आह्वान किया गया है। अत्याचारी शासन के स्वीकार करना परमात्मा तथा स्वयं के साथ धोखा करना है।
  2. भाषा सरल, सहज और स्वाभाविक है।
  3. शैली ओजगुण से युक्त है।

(5) “अजी, ये परदेसी कौन लगते हैं हमारे जो बरबस राजभक्त बनाए रखने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाए अड़े और खड़े हैं। उफ़! इस देश के लोगों के हिये की आँखें मुंद गई हैं। तभी तो इतने जुल्मों आत्मा की चिता संवारते फिरते हैं। नाश हो इस परतन्त्रवाद का।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल के एक मित्र ने उत्तेजित भाव से कही हैं जिन्हें लाल की माँ लेखक को बता रही हैं।

व्याख्या :
लाल की माँ कहती है कि पुलिस वालों के अत्याचार की बात सुनकर लाल के एक मित्र ने उत्तेजित भाव से कहा कि यह परदेसी अर्थात् अंग्रेज़ हमारे क्या लगते हैं जो ज़बरदस्ती हमें राजभक्त बनाएँ रखने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाए खड़े हैं। उफ! इस देश के लोगों के हृदय की आँखें भी मूंद गई हैं। तभी तो यह क्रान्ति की आवाज़ नहीं उठा पा रहे। अंग्रेजों के इतने अत्याचार सहकर भारतवासी इतना डरा हुआ है कि उसे एक-दूसरे से डर लगता है। भारतवासी आज अपने शरीर की रक्षा के लिए अपनी आत्मा को दबा रहे हैं। ऐसे परतन्त्रवाद का नाश हो। लाल के मित्र के कहने का भाव यह है कि अंग्रेजों के अत्याचारों से लोग इतने डरे हुए हैं कि उनके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पा रहे। उन्हें अपने शरीर की रक्षा की अधिक चिन्ता है आत्मा की नहीं।

विशेष :

  1. लाल के मित्र के भावों में किसी क्रान्तिकारी के विचारों की झलक मिलती है। अंग्रेज़ी शासन के अत्याचारों और उनसे भयभीत आम लोगों का वर्णन किया गया है।
  2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। ‘आँखें मूंदना’ मुहावरे का प्रयोग है। शैली भावपूर्ण है।

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(6) “लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यता हीन नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पले हुए पशुओं को शराब से कबाब से, मोटा-ताज़ा रखती है। यह सरकार धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे देश का धर्म, प्राण और धन-चूसती चली जा रही है यह शासन-प्रणाली।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। इनमें लाल के एक मित्र द्वारा अंग्रेज़ी शासन प्रणाली की आलोचना की गई है।

व्याख्या :
लाल के एक मित्र ने पुलिस के अत्याचारों का उल्लेख किया था तथा दूसरे मित्र ने परतन्त्रवाद का विरोध किया, यह सुन लाल के एक अन्य मित्र ने अंग्रेजी सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि अंग्रेजी शासन ने ऐसी शिक्षा-प्रणाली लागू कर रखी है जिससे भारतवासी ज्ञान न प्राप्त कर सकें। इसलिए सरकार ने भारतीयों के पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। ताकि ज्ञान प्राप्त करके भारतीय वीर न बन सकें तथा न ही अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त होकर स्वाधीन होने की बात सोच सकें।

इसके लिए अंग्रेज़ी शासन ने ऐसे अपमानजनक और मानवताहीन कानून बनाए हैं, जिनसे नीति का नाश हो सके। ग़रीबों का खून चूसकर सेना के नाम पर पल रहे पशुसमान मनुष्यों को शराब पिलाकर मांस खिलाकर मोटा-ताज़ा रखे हुए हैं। यह शासन प्रणाली जोंक की तरह धीरे-धीरे हमारे धर्म, प्राण और धन को चूसती जा रही है।

विशेष :

  1. अंग्रेजी सरकार की शोषक-नीति पर प्रकाश डाला गया है। अंग्रेजों ने भारतीयों से मनुष्य से मनुष्य होने का अधिकार भी छिन लिया।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली ओजस्वी है।

(7) “सब झूठ है। न जाने कहाँ से पुलिस वालों ने ऐसी-ऐसी चीजें हमारे घरों से पैदा कर दी हैं। वे लड़के केवल बातूनी हैं। हाँ, मैं भगवान् का चरण छूकर कह सकती हूँ, तुम्हें जेल में जाकर देख आओ, वकील बाब! भला, फूल-से बच्चे हत्या कर सकते हैं ?”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल की माँ ने लाल और उसके साथियों का मुकदमा लड़ रहे वकील से कही हैं।

व्याख्या :
लाल की माँ ने गिड़गिड़ाते हुए वकील से कहा कि लाल और उसके साथियों पर जो आरोप लगाए गए हैं वे सब झूठ हैं। पुलिस वालों ने न जाने कहाँ से हमारे घर में हथियार रख दिए। यह लड़के तो केवल बातें ही बनाते हैं। हाँ मैं भगवान् का चरण छूकर कह सकती हूँ, तुम जेल में जाकर देख आओ कि भला ऐसे फूल से बच्चे हत्या कर सकते हैं।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ी शासन में पुलिस द्वारा निर्दोष युवकों पर झूठे मुकद्दमे बनाकर उन्हें सज़ा दिलवाने की ओर संकेत किया गया है। लाल की माँ का ममतामयी और स्नेहमयी रूप हमारे सामने आता है। जिसने अपने बच्चों के लिए अपने गहने तथा अपने घर का लोटा थाली तक बेच दिया था।
  2. भाषा तत्सम और तद्भव प्रधान है। शैली भावात्मक है।

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(8) “माँ!” वह मुस्कराया, “अरे, हमें तो हलवा खिला-खिलाकर तूने गधे-सा तगड़ा कर दिया है, ऐसा कि फाँसी की रस्सी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें। मगर तू स्वयं सूखकर काँटा हो गई है। क्यों पगली, तेरे लिए घर में खाना नहीं है क्या ?”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल के एक मित्र ने फाँसी की सजा पाने के बाद बेड़ियां बजाते हुए मस्ती से झूमते हुए अदालत से बाहर आते समय कही हैं।

व्याख्या :
लाल के एक मित्र ने लाल की माँ को कहकर पुकारा और कहा कि तुमने तो हमें हलवा खिला-खिलाकर गधे के समान ऐसा तगड़ा कर दिया है कि फांसी की रस्सी भी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें। उसने लाल की माँ के कमज़ोर शरीर को देखकर कहा हमें मोटा-ताज़ा रखकर तुम क्यों सूखकर कांटा हो गई हो ? क्या घर में तुम्हारे लिए खाना नहीं है।

विशेष :

  1. लाल की माँ के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है जिसने स्वयं भूखे रहकर लाल और उसके साथियों के लिए भोजन जुटाया। इस भोजन जुटाने में उसने अपने सब गहने और घर का सारा सामान तक बेच दिया।
  2. भाषा तत्सम, तद्भव और मुहावरेदार है। शैली भावपूर्ण है।

(9) “माँ!” उसके लाल ने कहा, “तू भी जल्द वहीं आना जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहां से थोड़ी ही देर का रास्ता है, माँ! एक साँस में पहुंचेगी। वहीं हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर इधर से उधर दौड़ते फिरेंगे। समझती है ? वहाँ बड़ा आनन्द है।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। जब अदालत ने उसे और उसके तीन साथियों को झूठे मुकद्दमे में फँसा कर फाँसी की सजा सुनाई थी। तब लाल ने यह पंक्तियाँ अपनी माँ से कहीं हैं।

व्याख्या :
फाँसी की सजा पाए हुए लाल ने अपनी माँ से कहा कि वह भी शीघ्र ही वहां आ जाए जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहां से थोड़ी ही देर का रास्ता है। एक सांस में पहुंचेगी। लाल का संकेत स्वर्ग सिधारने की ओर था। यहां पहुँचने के लिए एक ही सांस की ज़रूरत होती है। लाल ने अपनी माँ से कहा कि हे माँ, स्वर्ग में ही हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर इधर-उधर दौड़ते फिरेंगे। हे माँ, स्वर्ग में बड़ा आनन्द है।

विशेष :

  1. लाल की मातृ-भक्ति एवं मातृ स्नेह की ओर संकेत किया गया है। लाल अपनी शहीदी के बाद अपनी माँ को अकेली छोड़ना नहीं चाहता। इसलिए वह अपनी मां से उनके पास आने के लिए कहता है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा शैली भावात्मक है।

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उसकी माँ Summary

उसकी माँ कहानी का सार

‘उसकी मां’ कहानी पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह कहानी राष्ट्रीय भावना से पूर्ण है। कुछ क्रान्तिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दे दिया। लेखक ने कहानी में लाल की माँ के बलिदान और ममता का वर्णन किया है।

लेखक दोपहर के समय अपनी पुस्तकालय से किसी महान् लेखक की कृति देखने की बात सोच रहा था कि उसके घर पुलिस सुपरिटेंडेंट पधारे। उन्होंने एक तस्वीर दिखाकर उसके विषय में जानकारी चाही। लेखक ने बताया कि वह उनका पड़ोसी लाल है जो कॉलेज में पढ़ रहा है। जाते-जाते पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को सलाह दी कि वह लाल के परिवार से जरा सावधान और दूर रहे। – लेखक ने लाल की माँ से भी उसके विषय में जानने की कोशिश की कि उसका बेटा आजकल क्या करता है। कहीं वह सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वालों का साथी तो नहीं बन गया है। उसने लाल से भी यही बात पूछी। लाल ने बताया कि वह किसी षड्यन्त्र में शामिल नहीं पर उसके विचार अवश्य स्वतन्त्र हैं। वह देश की दुर्दशा पर दु:खी है। लेखक ने लाल को समझाया कि उसे केवल पढ़ना चाहिए। पहले घर का उद्धार कर लो तब सरकार के उद्धार का काम करना।

एक दिन लेखक ने लाल की माँ से लाल के मित्रों के बारे में जानना चाहा तो लाल की माँ ने बताया कि लाल और उसके मित्र पुलिस के अत्याचारों की बातें करते हैं। लेखक कुछ दिनों के लिए बाहर गया। लौटने पर उसे मालूम हुआ कि पुलिस लाल और उसके बारह-पन्द्रह साथियों को पकड़कर ले गई है। तलाशी में लाल के घर से दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस और पत्र बरामद हुए थे। उन पर हत्या, षड्यन्त्र और सरकार उल्टने की चेष्टा आदि के अपराध लगाए गए।

लाल और उसके साथियों पर कोई एक वर्ष तक मुकद्दमा चला कि कोई भी वकील उनका केस लड़ने को तैयार न हुआ। मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबको नियमपूर्वक भोजन पहुँचाती रही। फिर एक दिन अदालत का फैसला आया, जिसके अनुसार लाल और उसके तीन साथियों को फाँसी और उसके शेष साथियों को सात से दस वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गई। फांसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को लिखा कि वह भी वहीं आ जाए। वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाज़े पर मरी पड़ी है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 23 प्रेरणा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 23 प्रेरणा

Hindi Guide for Class 11 PSEB प्रेरणा Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी मानव मन की सूक्ष्म वृत्तियों का खुलासा करती है-कैसे ? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में मानव मन की सूक्ष्म वृत्तियों का खुलासा किया गया है। सूर्यप्रकाश एक उदंड लड़का है। उसकी शरारतों और दादागिरी से स्कूल के प्रिंसीपल से लेकर चपड़ासी तक सारा स्कूल डरता है। वह नित नई-नई शरारतें करता है। क्योंकि उस समय उस पर कोई उत्तरदायित्व नहीं था कथावाचक उस लड़के को प्यार, उपेक्षा, मारफटकार, अपमान, आदि उपायों से सुधारने की कोशिश करता है। किन्तु वह बिगड़ा हुआ बालक सुधरता नहीं, लेकिन जैसे ही उस पर छोटे से मोहन को सम्भालने का दायित्व आ जाता है, वह खुद और खुद सही रास्ते पर आ जाता है।

अब वह अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाना चाहता था कि उसका छोटा भाई मोहन उससे प्रेरणा ले सके। मानव मनोविज्ञान का एक सत्य यह भी है कि व्यक्ति पर कोई दायित्व आ जाता है, तब उसके भीतर से ही एक प्रेरणा प्रस्फुटित होती है, जो उसके जीवन की दशा को बदल देती है। कहानी में सूर्यप्रकाश को सुधारने का यत्न कथावाचक अध्यापक करता है। किन्तु उसमें शायद वह इसलिए सफल नहीं हो पाता कि इसमें कोई कमी थी। जिसके कारण वह सूर्यप्रकाश की प्रेरणा न बन सका जबकि सूर्यप्रकाश मोहन की ज़िम्मेदारी लेकर कर्मठ बनकर अपने जीवन को भी सफल बना लेता है।

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प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ कहानी में समकालीन व्यवस्था में फैली भ्रष्टता का अमानवीय चेहरा दिखाया गया हैकैसे ? युक्ति युक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर:
लेखक इंग्लैंड में विद्या अभ्यास करने के बाद लौट कर एक कॉलेज का प्रिंसीपल बन गया। उसकी इच्छा और अधिक उन्नति पाने की थी। उसके लिए उसने शिक्षा मन्त्री से जान-पहचान बढ़ाई। शिक्षा मन्त्री को शिक्षा के मौलिक सिद्धान्तों का कुछ भी ज्ञान नहीं था। अतः उन्होंने सारा भार लेखक पर डाल दिया। परिणाम यह हुआ कि राजनीतिक विपक्षियों ने लेखक का विरोध शुरू कर दिया। उस पर बे-वजह आक्रमण होने लगे। लेखक सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा का विरोधी था।

उसके अनुसार यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की ज़रूरत है भारत में नहीं। इसके अतिरिक्त लेखक का यह भी विचार था कि कम वेतन पाने वाले अध्यापक से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह कोई ऊँचा आदर्श पेश करें। अतः लेखक ने विधानसभा में अनिवार्य शिक्षा का जो प्रस्ताव पेश करवाया मन्त्री महोदय ने उसका विरोध किया वह प्रस्ताव पारित न हो सका। उस दिन के बाद मन्त्री महोदय और लेखक में नोंक-झोंक शुरू हो गई। उसे गरीब की बीवी की तरह सबकी भाभी बनना पड़ा। उसे देशद्रोही, उन्नति का शत्रु, और नौकरशाही का गुलाम कहा गया। उसके द्वारा किए जाने वाले हर कार्य की आलोचना की जाने लगी। फलस्वरूप व्यवस्था में फैली भ्रष्टता और अमानवीयता के कारण लेखक को त्याग-पत्र देना पड़ा।

प्रश्न 3.
‘प्रेरणा’ कहानी के आधार पर सूर्यप्रकाश और उसके अध्यापक (कथावाचक) का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
(1) सूर्यप्रकाश

सूर्यप्रकाश के दो रूप हमारे सामने आते हैं-पहला एक उदंड लड़के के रूप में तथा दूसरा एक सफल व्यक्ति के रूप में। पहले पहल वह स्कूल में अपनी शरारतों और दादागिरी से सबको डराकर रखता था। उस पर किसी अध्यापक की सुधारनीति का असर नहीं होता था। बारह-तेरह साल के उस उदण्ड बालक से सारा स्कूल थर-थर काँपता था। वार्षिक परीक्षा में भी न जाने किस रहस्य के कारण ऊँचे अंक प्राप्त करता था।

किन्तु उसी सूर्यप्रकाश के कन्धों पर जब छोटे भाई को सम्भालने का बोझ आ पड़ता है तो वह अपने आप सुधरने लगता है, बदल जाता है वह अपने आप ही सही रास्ते पर आ जाता है। एक अपने छोटे भाई मोहन की प्रेरणा बनने के लिए वह एक कर्मठ और परिश्रमी बालक बन जाता है। वही उद्यमी बालक जब परिश्रमी बन जाता है तो एक दिन जिले का डिप्टी कमिश्नर बन जाता है। वह जानता है कि जीवन में प्रेरणा सफलता को देने वाली है।

(2) अध्यापक (कथावाचक)

अध्यापक (कथावाचक) की नियुक्ति एक ऐसे स्कूल में होती है जहाँ सूर्यप्रकाश नाम के एक लड़के ने सबको डरा रखा है। सूर्यप्रकाश क्योंकि अध्यापक की कक्षा का विद्यार्थी था अतः उसकी शरारतों को उसे अधिक भोगना पड़ता था। एक दिन तो सूर्यप्रकाश ने उसकी मेज़ के दराज़ में एक मेंढ़क छिपा दिया, क्रोध से उसकी तरफ देखने पर सिर झुकाकर मुस्कराता रहा। उस स्कूल से अध्यापक का तबादला होने पर ही वह सूर्य प्रकाश की शरारतों से बच सका। किन्तु दूसरे स्कूल में जाकर भी उसे सूर्यप्रकाश याद आता रहा।

अध्यापक को संयोग से इंग्लैंड में विद्याभ्यास करने का अवसर मिल गया। तीन साल बाद लौटने पर उसे एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। अध्यापक की पदलिप्सा और भी बढ़ गई। उसने मन्त्री महोदय से जान-पहचान पढ़ाई, किन्तु शिक्षा-प्रणाली के विषय को लेकर उसकी मन्त्री महोदय और कॉलेज कॉउन्सिल से खटपट हो गई और उसे त्याग-पत्र देना पड़ा। बेकारी से बचने के लिए अपने गाँव में एक छोटी-सी पाठशाला खोल ली। वहीं एक दिन उसे बचपन का उदंड सूर्यप्रकाश जिले के डिप्टी कमिश्नर के रूप में मिलता है। वह उसे बताता है कि किस प्रकार वह अपने भाई की प्रेरणा बनकर इस पद तक पहुँचा है। तब लेखक को लगता है कि शायद उसी में कोई कमी थी जो वह सूर्यप्रकाश की प्रेरणा न बन सका।

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प्रश्न 4.
‘प्रेरणा’ कहानी के शीर्षक के औचित्य पर विचार कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक, सटीक और उपर्युक्त है। कहानी में यह बताया गया है कि किस प्रकार व्यक्ति पर कोई दायित्व आ जाने पर उसके भीतर से ही एक ऐसी प्रेरणा जागती है जो उसके जीवन की दशा को बदल देती है। कहानी के अनुसार सूर्यप्रकाश को प्रेरित करने में, उसको सुधारने में उसके सारे अध्यापक असफल हो जाते हैं। प्यार, उपेक्षा, मार फटकार, अपमान किसी भी उपाय से वह बिगड़ा हुआ बालक सुधरता नहीं है, लेकिन जैसे ही उस पर छोटे भाई मोहन को संभालने का दायित्व आ जाता है, वह स्वयंमेव ही सही रास्ते पर आ जाता है। अब वह अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाना चाहता था कि मोहन उससे प्रेरणा ले सके। वह मोहन का आदर्श बनना चाहता था। सच है जब मनुष्य पर कोई ज़िम्मेवारी आ जाती है तो उसे अपने आप ही इस बात का एहसास हो जाता है कि उसे निभाना है, इसमें सफल होना। तब व्यक्ति अपनी प्रेरणा स्वयं बनता है और जीवन में सफल हो जाता है। भीतर से पैदा होने वाली प्रेरणा कभी मरती नहीं। यही वास्तविक प्रेरणा है। अतः कहना न होगा कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक मुंशी प्रेमचन्द जी ने सर्वथा उचित और सार्थक दिया है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
सूर्यप्रकाश ने मोहन की देखभाल के लिए क्या क्या प्रयास किए ?
उत्तर:
सूर्यप्रकाश ने मोहन की देखभाल के लिए सबसे पहला काम यह किया कि होस्टल छोड़कर एक किराए के मकान में उसके साथ रहने लगा। मोहन बहुत कमज़ोर और गरीब था। सूर्यप्रकाश उसे बड़ी मुश्किल से भोजन करने के लिए उठाता, दिन चढ़ने तक सोया रहने पर उसे गोद में उठाकर बिठा लेता, उसे कोई बीमारी होती तो डॉक्टर के पास दौड़ता, दवाई लाता और मोहन को खुशामद करके दवा पिलाता।

प्रश्न 2.
कथावाचक (अध्यापक) को गाँव में रहने पर कैसा अनुभव हुआ ?
उत्तर:
कथावाचक (अध्यापक) संसार से विरक्त होकर हमारे और एकांतवास जीवन में दिन व्यतीत करने का निश्चय करके एक छोटे से गाँव में जा बसा। चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे टीले थे, एक ओर गंगा बहती थी। कथावाचक ने नदी के किनारे एक छोटा-सा घर बना लिया और उसी में रहने लगा। बेकारी मिटाने के लिए उसने एक छोटी-सी पाठशाला खोल ली।

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प्रश्न 3.
इस कहानी में शिक्षा से होने वाले कौन-कौन से लाभों का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में शिक्षा के विषय में कहा गया है कि मनुष्य को उन विषयों में ज्यादा स्वाधीनता होनी चाहिए, जिसका उससे निज का सम्बन्ध है। ग़रीब से ग़रीब हिन्दुस्तानी मज़दूर भी शिक्षा के उपकारों का कायल है। इसलिए वह चाहता है कि उसका बच्चा पढ़-लिख जाए। इसलिए नहीं कि पढ़-लिखकर उसे कोई अधिक अधिकार मिले बल्कि इसलिए कि विद्या मानवीयशील का श्रृंगार है।

प्रश्न 4.
कथावाचक ने इस्तीफा क्यों दिया ?
उत्तर:
कथावाचक ने अपने कॉलेज के एक चपड़ासी को नौकरी से अलग कर दिया। सारी काउन्सिल उसके पीछे पंजे झाड़ कर पड़ गई। आखिर मन्त्री महोदय को विवश होकर उस चपड़ासी को बहाल करना पड़ा। यह अपमान कथावाचक को सहन न हो सका। इसी तरह के और भी सारहीन आक्षेपों के कारण कथावाचक ने कॉलेज के प्रिंसीपल पद से इस्तीफा दे दिया।

प्रश्न 5.
कहानी के आधार पर सूर्यप्रकाश द्वारा की गई शरारतों की सूची बनाइए।
उत्तर:
सूर्यप्रकाश की सब से बड़ी शरारत थी कि उसने स्कूल में इंस्पैक्टर साहब के मुआयने के लिए आने पर स्कूल में ग्यारह बजे तक लड़कों को आने ही नहीं दिया। सूर्य प्रकाश ने कथावाचक (अध्यापक) की मेज़ की दराज में एक बड़ा-सा मेंढक लाकर डाल दिया। अध्यापक के क्रोध से देखने पर वह सिर झुकाकर हँसता रहा।

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PSEB 11th Class Hindi Guide प्रेरणा Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद।

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ कहानी में लेखक ने क्या बताया है ?
उत्तर:
मानवीय, स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चितता का वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
‘प्रेरणा’ कहानी में कथावाचक क्या थे ?
उत्तर:
एक स्कूल में अध्यापक।

प्रश्न 4.
सूर्य प्रकाश नाम का लड़का स्वभाव से कैसा था ?
उत्तर:
उदण्ड।

प्रश्न 5.
सूर्य प्रकाश ने किसकी फ़ौज बना ली थी ?
उत्तर:
खुदाई फ़ौजदारों की।

प्रश्न 6.
खुदाई फ़ौजदारों के दम पर सूर्य प्रकाश किस पर शासन करता था ?
उत्तर:
सारी पाठशाला पर।

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प्रश्न 7.
सूर्य प्रकाश का रौब कैसा था ?
उत्तर:
मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे काँपते थे।

प्रश्न 8.
स्कूल में कौन आने वाला था ?
उत्तर:
इंस्पैक्टर।

प्रश्न 9.
…………. बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया।
उत्तर:
ग्यारह।

प्रश्न 10.
छात्रों को स्कूल आने से किसने रोका था ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश ने।

प्रश्न 11.
मंत्री महोदय से झगड़ा क्यों हुआ था ?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली को लेकर।

प्रश्न 12.
लेखक ने गाँव में आकर ……… खोली।
उत्तर:
छोटी-सी पाठशाला।

प्रश्न 13.
पाठशाला के पास किसकी कार आकर रुकी थी ?
उत्तर:
डिप्टी कमिश्नर।

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प्रश्न 14.
डिप्टी कमिश्नर का नाम क्या था ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश।

प्रश्न 15.
सूर्य प्रकाश के छोटे भाई का क्या नाम था ?
उत्तर:
मोहन।

प्रश्न 16.
मोहन की सेवा किसने की थी ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश।

प्रश्न 17.
मोहन की मृत्यु कैसे हुई थी ?
उत्तर:
बीमारी के कारण।

प्रश्न 18.
किसकी प्रेरणा सूर्य प्रकाश का मार्गदर्शन बनी ?
उत्तर:
छोटे भाई मोहन की पवित्र आत्मा।

प्रश्न 19.
कथावाचक ने अपने कॉलेज के एक चपड़ासी को ……….. से अलग कर दिया था।
उत्तर:
नौकरी।

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प्रश्न 20.
सूर्य प्रकाश ने कथावाचक की मेज़ की दराज में क्या रखा था ?
उत्तर:
मेढ़क।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) देवचन्द
(ग) नेमचन्द
(घ) प्रसाद।
उत्तर:
(क) प्रेमचन्द

प्रश्न 2.
सूर्य प्रकाश स्वभाव से कैसा था ?
(क) सरल
(ख) उदण्ड
(ग) नीरस
(घ) सरस।
उत्तर:
(ख) उदण्ड

प्रश्न 3.
लेखक स्वभाव से कैसा है ?
(क) निराशावादी
(ख) आशावादी
(ग) आस्थावादी
(घ) घमंडी।
उत्तर:
(क) निराशावादी

प्रश्न 4.
डिप्टी कमिश्नर का नाम क्या था ?
(क) सूर्य
(ख) प्रकाश
(ग) सूर्य प्रकाश
(घ) अशोक प्रकाश।
उत्तर:
(ग) सूर्य प्रकाश।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

उधमी = शरारती। साबका न पड़ा = पाला नहीं पड़ा। मुख्य अधिष्ठाता = मुख्य अधिकारी। निर्दिष्ट = दिए गए। अक्ल काम न करना = बुद्धि का जबाव दे देना, समझ में न आना कि क्या किया जाए। गिरह = गाँठ। जहीन = होशियार । निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। निष्कपट = छल रहित, बिना किसी कपट के। अल्पकाय = छोटी सी काया। दस्तूर = नियम। मालिन्य = मैल से भरा। सात्विक = शुद्ध। आक्षेप = आरोप। बहाल करना = दुबारा नौकरी पर रखना। तीक्षता = तेजी। भृकुटि = आँख की भौंहें। अवलंब = सहारा। विरक्त होना = मोह-माया से दूर होना। जिला देना = जीवन देना। जीर्ण काया = कमज़ोर शरीर । तातील = बहुत ज्यादा तपन, गर्मी।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा उधमी कोई लड़का न था। बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से सामना न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनंद आता था। ऐसे-ऐसे षड्यन्त्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे मंसूबे बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने सूर्यप्रकाश नाम के एक शरारती विद्यार्थी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश सब से ज्यादा उद्यम मचाने वाला लड़का था। मुझे अध्यापन काल के दस वर्षों में ऐसे बिगड़ा हुआ विद्यार्थी कभी न मिला था। वह छल-कपट करने में माहिर था। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने में तथा मेहनती लड़कों को छेड़ने और रुलाने में उसे आनन्द आता था। वह ऐसे षड्यन्त्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसी-ऐसी योजनाएँ बनाता कि देखकर आश्चर्य होता था। गुटबन्दी या धड़े बंदी बनाने का उसे अभ्यास हो चुका था।

विशेष :

  1. सूर्य प्रकाश के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
  3. शैली सूत्रात्मक है।

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(2) मुझे अपनी संचालन विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कॉलेज में इस विषय में मैंने ख्याति प्राप्त की थी। मगर यहां मेरा सारा संचालन-कौशल मोर्चा खा गया था। कुछ अक्ल ही काम नहीं करती कि शैतान को कैसे मार्ग पर लाएं। कई अध्यापकों की बैठक हुई, पर यह गिरह न खुली। नई शिक्षा विधि के अनुसार मैं दण्ड-नीति का पक्षपाती न था, मगर हम यहां इस नीति से केवल विरस्त थे की कहीं उपचार रोग से भी असाध्य न हो जाए।

प्रसंग :
यह गद्यावतरण मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से अवतरित है। इसमें स्कूल के सारे स्टॉफ द्वारा सूर्यप्रकाश की शरारतों से तंग आए अध्यापकगण उसे सुधारने के लिए एक बैठक बुलाते हैं। इसी प्रसंग में लेखक अपनी संचालन विधि पर गर्व करते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कह रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मुझे अपनी पढ़ाई के दौरान बच्चों को सम्भालने की विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कॉलेज में इसी विषय पर मेरी कार्यकुशलता को देखकर मैंने सबकी प्रशंसा प्राप्त की थी। परन्तु इस स्कूल में सूर्यप्रकाश के सामने मेरा सारा संचालन कौशल असफल हो गया था। अक्ल ही काम नहीं करती थी कि उस शैतान को कैसे रास्ते पर लाया जाए। कई बार अध्यापकों की बैठक हुई, पर समस्या का कोई समाधान न निकला। नई शिक्षा-नीति के अनुसार में विद्यार्थी को दण्ड देने के पक्ष में नहीं था। किन्तु यहां दण्ड नीति का प्रयोग न करना ऐसा लगता था कि कहीं इस इलाज से रोग और भी असाध्य न हो जाए।

विशेष :

  1. स्कूलों में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को दण्ड न दिए जाने की नीति का उल्लेख किया गया है।
  2. भाषा सरल, मुहावरेदार है शैली सूत्रात्मक है।
  3. शरारती बच्चों को सुधारने के लिए कोई उपाय काम नहीं आता।

(3) मैं कदाचित स्वभाव से ही निराशावादी जरा भी हूँ। अन्य अध्यापकों को मैं सूर्य प्रकाश के विषय में चिंतित न पाता था। मानो ऐसे लड़कों का स्कूल में आना कोई नई बात, मगर मेरे लिए एक विकट रहस्य था।अगर यही ढंग रहे, तो एक दिन वह जेल में होगा या पागल खाने में।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक द्वारा कड़ी निगरानी किए जाने के बावजूद वार्षिक परीक्षा में शरारती बालक सूर्य प्रकाश ने अच्छे अंक प्राप्त किए। इसी प्रसंग में लेखक को जानबूझकर मक्खी निगलनी पड़ी। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने सूर्य प्रकाश के विषय में अपना मत व्यक्त किया है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि मैं स्वभाव से ही निराशावादी हूँ। स्कूल के दूसरे अध्यापक सूर्य प्रकाश के विषय में तनिक भी चिंतित न थे। ऐसे लगता था कि उनके लिए ऐसे शरारती लड़कों का स्कूल में आना कोई नई बात न हो। परन्तु लेखक के लिए यह एक भयानक रहस्य था। सूर्य प्रकाश के बारे में लेखक सोचने लगा कि अगर उसके यही रंगढंग रहे तो एक दिन ऐसा शरारती लड़का या तो जेल जाएगा या पागल खाने में।।

विशेष :

  1. सूर्य प्रकाश की कपट-क्रीड़ा के प्रभाव को लेखक पर पड़ते दर्शाया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. लेखक को सूर्यप्रकाश के भविष्य की चिन्ता है।

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(4) उसकी झिझक तो क्षमा योग्य थी, पर मेरा अवरोध अक्षम्य था। सम्भव था, उस करुणा और ग्लानि की दशा में मेरी दो-चार निष्कपट बातें तो उसके दिल पर असर कर जाती, मगर इन्हीं खोए हुए अवसरों का नाम तो जीवन है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुन्शी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक का तबादला किसी दूसरी जगह हो जाता है। सभी लड़के गीली आँखों से उसे विदा करने स्टेशन पर पहुंचे। उन लड़कों में सूर्यप्रकाश भी था, जो सबसे पीछे लज्जित खड़ा था। उसकी आँखों में भी आँसू थे। वह कुछ कहना चाहता था किन्तु लेखक ने उससे कोई बात न की। इसी प्रसंग में ग्लानि का अनुभव करता हुआ लेखक प्रस्तुत पंक्तियाँ कह रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि सूर्यप्रकाश की मुझसे बात न करने की झिझक तो क्षमा योग्य थी, पर मेरा उससे बात न करना क्षमा योग्य नहीं था। लेखक सोचता है कि हो सकता है कि उस करुणा और ग्लानि की दशा में पड़े हुए सूर्यप्रकाश को कही हुई उसकी दो-चार निष्कपट बातें उसके दिल पर असर कर जातीं। मगर ऐसा न हो सका। इन्हीं खोए हुए अवसरों का नाम तो जीवन है।

विशेष :

  1. कथावाचक की चलते समय सूर्यप्रकाश से बात न करने पर उत्पन्न ग्लानि की ओर संकेत किया गया
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है शैली सूत्रात्मक है।

(5) मैं सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा का विरोधी हूँ। मेरा विचार है कि प्रत्येक मनुष्य को उन विषयों में ज्यादा स्वाधीनता होनी चाहिए, जिसका उससे निज का सम्बन्ध है। मेरा विचार है कि यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की जरूरत है, भारत में नहीं। भौतिकता पश्चिमी सभ्यता का मूल तत्व है। वहां किसी काम की प्रेरणा आर्थिक लाभ के आधार पर होती है। ज़िन्दगी की ज़रूरतें ज्यादा हैं, इसलिए जीवन-संग्राम भी अधिक भीषण है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक इंग्लैंड में पढाई के बाद लौट कर एक कॉलेज के प्रिंसीपल बन गए। वहीं उन्होंने वर्तमान शिक्षा-नीति पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए प्रस्तुत पंक्तियां कही हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मैं सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा को लागू किए जाने के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा विचार है कि प्रत्येक मनुष्य को ऐसे विषय चुनने की आज़ादी होनी चाहिए जिसका संबंध उसके अपने से हो। मेरा विचार है कि यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की ज़रूरत है, भारत में नहीं। पाश्चात्य सभ्यता में भौतिकता मूल तत्व है। वहाँ किसी काम की प्रेरणा आर्थिक दृष्टि से लाभ को देखकर होती है। उन लोगों के जीवन की ज़रूरतें अधिक होने के कारण उन्हें जीवन संघर्ष भी कड़ा करना पड़ता है।

विशेष :

  1. भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा नीति की तुलना की गई है और साथ ही यह भी बताया गया है कि पाश्चात्य देशों में शिक्षा को आर्थिक दृष्टि से नापा जाता है।
  2. लेखक अनिवार्य शिक्षा का विरोधी है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है, शैली सूत्रात्मक है।

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(6) भारतीय जीवन में सात्विक सरलता है। हम उस वक्त तक अपने बच्चों से मजदूरी नहीं कराते जब तक परिस्थिति हमें विवश न कर दे। दरिद्र से दरिद्र हिन्दुस्तानी मजदूर भी शिक्षा के उपकारों का कायल है। उसके मन में यह अभिलाषा होती है कि मेरा बच्चा चार कक्षा पढ़ जाए। इसलिए नहीं कि उसे कोई अधिकार मिलेगा, बल्कि केवल इसलिए कि विद्या मानवीशील का श्रृंगार है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक विद्या के महत्त्व को स्पष्ट कर रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतीय जीवन में सरलता है। भारत में लोग उस समय तक अपने बच्चों से मजदूरी नहीं कराते, जब तक कि परिस्थितियाँ उन्हें विवश न कर दें। गरीब से गरीब हिन्दुस्तानी मज़दूर भी शिक्षा के उपकारों को मानता है। उसके मन में यह इच्छा होती है कि उसका बच्चा चार जमात पढ़ जाए। इसलिए नहीं कि पढ़-लिखकर उसे कोई अधिकार मिलेगा, बल्कि केवल इसलिए कि वे लोग विद्या को इन्सानियत का श्रृंगार मानते हैं।

विशेष :

  1. भारतीयों द्वारा शिक्षा के उद्देश्य को किस ढंग से लिया जाता है इस पर प्रकाश डाला गया है।
  2. गरीब व्यक्ति भी शिक्षा के महत्त्व को समझता है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है, शैली सूत्रात्मक है।

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(7) अर्द्धशिक्षित और अल्प वेतन पाने वाले अध्यापकों से आप यह आशा नहीं कर सकते हैं कि वह कोई ऊंचा आदर्श अपने सामने रख सके। अधिक-से-अधिक इतना ही होगा कि चार-पांच वर्ष में बालक को अक्षर का ज्ञान हो जाएगा। मैं इसे पर्वत खोदकर चुहिया निकालने के तुल्य मानता हूँ। वयस प्राप्त हो जाने पर यह मामला एक महीने में आसानी से तय किया जा सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं कि युवावस्था में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्त कर सकते हैं, उतना बाल्यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते, फिर खामखाह बच्चों को मदरसे में कैद करने से क्या लाभ ?

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी प्रेरणा में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक अनिवार्य शिक्षा के विपक्ष में अपना मत प्रस्तुत कर रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि कम पढ़े-लिखे और कम वेतन पाने वाले अध्यापकों से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे कोई ऊँचा आदर्श सामने रख सकें। अधिक से अधिक इतना ही होगा कि चार-पांच वर्ष में वे बालक को अक्षर ज्ञान करवा दें। लेखक इसे पर्वत खोदकर चुहिया निकालने के बराबर मानता है। लेखक के अनुसार बड़ी उम्र का हो जाने पर जितना बालक तीन-चार वर्षों में सीखता है वह एक महीने में आसानी से सीख जाएगा। तात्पर्य यह है कि जवानी में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्त कर सकते हैं उतना बाल्यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते फिर व्यर्थ में बच्चों को स्कूल में कैद कर रखना कहाँ तक उचित है ?

विशेष :

  1. लेखक बच्चों को बंद कमरे में शिक्षा देने के विरुद्ध है। उनके विकास के लिए शिक्षा उन पर लादनी नहीं चाहिए।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली उपदेशात्मक है।

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(8) मैं जीवन में अब तक उन्हीं के सहारे खड़ा था। जब वह अबलंबहीन रहा, तो जीवन कहाँ रहता। खाने और सोने का नाम जीवन नहीं। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का। यह लगन गायब हो गई। मैं संसार से विरक्त हो गया, और एकांतवास में जीवन के दिन व्यतीत करने का निश्चय करके एक छोटे से गाँव में जा बसा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ कथावाचक अध्यापक अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद अपने जीवन में आए एकाकीपन की चर्चा कर रहे हैं।

व्याख्या :
कथावाचक अध्यापक कहता है कि मैं जीवन में अब तक उन्हीं के सहारे खड़ा था। अब वह सहारा (मेरी पत्नी) ही न रहा तो जीवन कहां रहता। जीवन केवल खाने और सोने का नाम नहीं है, जीवन नाम है आगे बढ़ते रहने की लग्न का। किन्तु मेरी पत्नी की मृत्यु के बाद मेरी वह लग्न ही लुप्त हो गई। अतः मैं संसार से विरक्त हो गया और अकेले रह कर जीवन व्यतीत करने का निश्चय करके मैं छोटे से गाँव में जा बसा।

विशेष :

  1. लेखक अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए छोटे गाँव में रहने लगे।
  2. भाषा सरल और शैली सूत्रात्मक है।

(9) इस एकांत जीवन में मुझे जीवन के तत्त्वों का वह ज्ञान हुआ, जो सम्पत्ति और अधिकार की दौड़ में किसी तरह सम्भव न था। इतिहास और भूगोल के पीथे चाटकर यूरोप के विद्यालयों की शरण जाकर भी मैं अपनी ममता को न मिटा सका। बल्कि यह रोग दिन-दिन और असाध्य हो जाता था।

प्रसंग :
यह गद्यांश मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ से लिया गया है। कथावाचक अध्यापक से जब उनके डिप्टी कमिश्नर बने पुराने शिष्य सूर्यप्रकाश ने मन्त्री महोदय से उनके त्यागपत्र देने की घटना का उल्लेख करने की बात कही तो कथावाचक अध्यापक ने उस एकांतवास को मन को शांति देने वाला बताते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही है।

व्याख्या :
कथावाचक (अध्यापक) कहता है उन्हें जो दंड मिला है जो उनकी स्वार्थ-लिप्सा के कारण मिला था अत: मन्त्री महोदय से पूछना व्यर्थ है। दूसरे मुझे इस एकांतवास में जीवन के जिस रहस्य का ज्ञान हुआ है जो मुझे सम्पत्ति और अधिकार की दौड़ में किस तरह न मिल सकता था। विदेश में जाकर इतिहास और भूगोल की पुस्तकों को पढ़कर भी अपने अन्दर की ममता को न मिटा सका बल्कि यह रोग दिन-ब-दिन और भी ला इलाज होता गया।

विशेष :

  1. लेखक ने एकान्तवास के लाभ की चर्चा की है। एकान्त में मनुष्य स्वयं को खोज सकता है।
  2. भाषा सरल है। शैली सूत्रात्मक है।

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(10) आप सीढ़ियों पर पाँव रखे बगैर छत की ऊंचाई तक नहीं पहुँच सकते। सम्पत्ति की अट्टालिका तक पहुँचने में दूसरे जिन्दगी ही जीनों का काम देती है। आप उन्हें कुचल कर ही लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। वहां सौजन्य और सहानुभूति का स्थान ही नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से से ली गई हैं। इनमें कथावाचक अपने शिष्य सूर्यप्रकाश को स्वार्थ लिप्सा पूरा करने के लिए दूसरों का अहित करने की बात बता रहे हैं।

व्याख्या :
कथावाचक (अध्यापक) अपने शिष्य सूर्य प्रकाश को बताता है कि सीढ़ियों पर पाँव रखे बिना छत की ऊँचाई तक नहीं पहुँच सकते । यदि तुम्हें सम्पत्ति के महल तक पहुँचना है तो किसी दूसरे का जीवन सीढ़ियों का काम करता है। आप दूसरों को कुचल कर ही अपना स्वार्थ पूरा कर सकते हैं। स्वार्थ के मामले में किसी दूसरे का भला था उससे सहानुभूति का कोई स्थान नहीं है।

विशेष :

  1. स्वार्थ पूरा करने के लिए व्यक्ति कैसे दूसरों का गला घोंटता है, दूसरों का अहित करता है-इसी तथ्य पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है। शैली भावात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

प्रेरणा Summary

प्रेरणा कहानी का सार

‘प्रेरणा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इस कहानी में मानवीय स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चिता का वर्णन किया गया है। मनुष्य पर जब कोई दायित्व आ जाता है। तब उसके अन्दर से एक ऐसी प्रेरणा प्रस्फुटित होती है जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है।

कथावाचक एक स्कूल में अध्यापक थे। उस स्कूल में सूर्यप्रकाश नाम का एक लड़का बड़ा उदंड था। उसने खुदाई फ़ौजदारों की एक फ़ौज बना ली थी और उसके आतंक से वे सारी पाठशाला पर शासन किया करता था। मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे थर-थर काँपते थे। एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। स्कूल में इंस्पैक्टर साहब आने वाले थे। मुख्याध्यापक ने सब लड़कों को आधा घण्टा पहले आने का आदेश दिया। किन्तु ग्यारह बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया। सूर्यप्रकाश ने उन सबको रोक रखा था, पर पूछने पर किसी ने भी उसका नाम नहीं लिया। परीक्षा में वह कथावाचक की असाधारण देखभाल के कारण अच्छे अंक प्राप्त कर सका। उसकी शरारतें देखकर लेखक को लगा कि एक दिन वह जेल जाएगा या पागलखाने में।

लेखक का उस स्कूल से तबादला हो गया। फिर वह इंग्लैण्ड पढ़ने के लिए चला गया। तीन साल बाद वहाँ से लौटा तो एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। उसका शिक्षा प्रणाली को लेकर मंत्री महोदय से झगड़ा हो गया। परिणामस्वरूप उन्होंने उसे पदच्युत कर दिया। तब लेखक ने किसी गाँव में आकर एक छोटी-सी पाठशाला खोली। एक दिन वह अपनी कक्षा को पढ़ा रहा था कि पाठशाला के पास जिले के डिप्टी कमिश्नर की कार आकर रुकी। कथावाचक ने झेंपते हुए उनसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो डिप्टी कमिश्नर ने उसके पैरों की ओर झुककर अपना सिर उन पर रख दिया। डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उसका नाम सूर्यप्रकाश है। उसने बताया कि आज वह जो कुछ है उन्हीं के आशीर्वाद का परिणाम है।

सूर्यप्रकाश ने अपनी राम कहानी सुनाते हुए कहा कि किस तरह उसने अपने ऊपर अपने छोटे भाई की ज़िम्मेदारी ली और शरारती लड़के से एक कर्मठ और जिम्मेवार व्यक्ति बन गया। उसने अपने छोटे भाई मोहन के बीमार होने पर बहुत सेवा की, किन्तु उसे बचा न सका। छोटे भाई की पवित्र आत्मा ही उसकी प्रेरणा बन गई और वह कठिन से कठिन परीक्षाओं में भी सफल होता गया। उस दिन से लेखक कई बार सूर्यप्रकाश से मिले। वह अब भी मोहन को अपना इष्टदेव समझता है। मानव प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है जिसे लेखक आज तक नहीं समझ पाया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 22 विज्ञापन युग

Hindi Guide for Class 11 PSEB विज्ञापन युग Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘विज्ञापन युग’ निबन्ध में लेखक ने विज्ञापन कला पर करारा व्यंग्य किया है।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने विज्ञापन कला पर करारा व्यंग्य किया है। लेखक कहते हैं कि उसे गज़लों, गानों और गीतों के साथ-साथ सिर दर्द के विज्ञापन भी सुनने को मिलते हैं। लेखक कहते हैं-पहले बहुत मीठे गले से ‘रहना नहीं देश विराना है’ की लय और उसके तुरन्त बाद-क्या आपके शरीर में खुजली होती है? खुजली का नाश करने के लिए एक ही राम बाण औषधि है-कर लें भगत कबीर क्या करते हैं। खुजली कंपनी उनकी जिस रचना पर चाहे अपनी मोहर चिपका सकती है। _लेखक कहते हैं कि विज्ञापन गीत गज़लों तक ही सीमित नहीं रहते, आज हर चीज़ का विज्ञापन मौजूद है। अजन्ता और एलोरा की मूर्तियों के केश सौन्दर्य लेखक को तेल की एक शीशी के विज्ञापन की याद दिलाता है; उन मूर्तियों की आँखें किसी फॉर्मेसी का विज्ञापन प्रतीत होती हैं तथा उनका समूचा शरीर किसी पेट्रोल कम्पनी का विज्ञापन।

लेखक विज्ञापन कला पर व्यंग्य करते हुए कि देश के कोने में स्थित मन्दिर, पुराने खंडहर स्मारक आदि पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ विज्ञापनों का भी साधन बन सकते हैं। लेखक को डर है कि विज्ञापन कला जिस तेज़ी से उन्नति कर रहा है एक दिन ऐसा आएगा जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य का प्रयोग केवल विज्ञापन के लिए ही रह जाएगा तथा विज्ञापन का उपयोग एक-दूसरे पर आश्रित जगहों पर किया जाएगा। जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन और मक्खन के डिब्बों पर दवा की शीशियों के विज्ञापन।

लेखक के अनुसार आज हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन नज़र आते हैं। लेखक को हर चेहरे में एक विज्ञापन नज़र आता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 2.
‘विज्ञापन युग’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध एक व्यंग्यपरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला के विकसित होने पर उसे सिर दर्द कारण भी बताया गया है। लेखक कहते हैं कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गज़लों और भजनों के साथ चाय, तेल और सिर दर्द की टिक्कियों के विज्ञापन सुनने पड़ते हैं। यह विज्ञापन लेखक के दिलो-दिमाग़ पर सदा छाए रहते हैं। परिणाम यह हुआ है कि लेखक के लिए गज़ल-गज़ल न रह कर किसी न किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए। लेखक को लगता है कि हर चीज़ विज्ञापन बन कर रह गई है। अजन्ता एलोरा की मूर्तियों का केश विन्यास लेखक को एक तेल की शीशी की याद दिलाता है। इसी तरह मूर्तियों की आँखें एवं उनका समूचा कलेवर किसी-न-किसी कम्पनी का विज्ञापन बन कर रह गया है।

लेखक कहते हैं कि देश में जितने भी मन्दिर पुराने किले और स्मारक आदि हैं वे सब पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ एक विशेष ब्रांड के सीमेंट की मजबूती को व्यक्त करने के प्रतीक बन सकें। इसी तरह सफ़ेद रंग के शहद का विज्ञापन और सेब के मुरब्बे का विज्ञापन हो सकता है। लेखक का मत है कि विज्ञापन किसी भी चीज़ का हो सकता है। हम जहाँ भी रहे विज्ञापनों की लपेट से नहीं बच सकते।

लेखक का मत है कि विज्ञापन कला इतनी तेजी से उन्नति कर रही है कि उसे डर है कि आने वाले समय में शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का उपयोग विज्ञापन कला के लिए ही रह जाएगा। लेखक कहते हैं कि अभी तक बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जिनका विज्ञापन के लिए प्रयोग नहीं किया जा सका है जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन होने चाहिएँ। कम्बलों और दुशालों में चाय और कोको के विज्ञापन दिए जा सकते हैं। अस्पताल की दीवारों पर वैवाहिक विज्ञापन लगाए जा सकते हैं। यह तो भविष्य की बात है, पर आज की स्थिति यह है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक को चाय देने वाला लड़का भी क्लोरोफ़िल मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है। तब लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज़ में यह विज्ञापन सुनाई पड़ता है कि लिवर ठीक रखने के लिए लिवर इमल्शन लीजिए। लेखक को अपने सामने आने वाला हर चेहरा किसी विज्ञापन का रूप नज़र आता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विज्ञापन ने व्यक्तिगत जीवन में किस प्रकार प्रवेश कर लिया है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
विज्ञापन आज व्यक्तिगत जीवन में भी प्रवेश कर गया है। इस बात पर प्रकाश डालते हुए लेखक कहते हैं कि उन्हें गीत, भजन और गज़ल सुनने के साथ-साथ चाय, तेल और सिरदर्द की टिकियों के विज्ञापन भी सुनने पड़ते हैं। परिणामस्वरूप लेखक के लिए कोई गज़ल, गज़ल नहीं रही, गीत-गीत न रहा सब किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए हैं। दिन भर यह गीत और विज्ञापन लेखक का पीछा करते रहते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृत्तियों को नई सार्थकता कैसे प्राप्त हुई है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियां जो ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृतियां थीं आज विज्ञापन के सहारे उन्हें एक नई सार्थकता प्राप्त हो गई है। आज उन मूर्तियों का सौन्दर्य लेखक को तेल की शीशी की याद दिलाता है, उनकी आँखें एक फॉर्मेसी का विज्ञापन प्रतीत होती हैं, और उनका समूचा कलेवर एक पेट्रोल कम्पनी की कला अभिरुचि को प्रमाणित करता है। उन कलाकृतियों का निर्माण करने वाले हाथ भी आज एक बिस्कुट कम्पनी की विकास योजना के विज्ञापन के रूप में सार्थक हो रहे हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 3.
हर चीज़, हर जगह अपने अलावा किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है? लेखक के इस कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के प्रस्तुत कथन में यह व्यंग्य छिपा हुआ है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक का दिमाग हर चेहरे, हर आवाज़ और हर नाम का सम्बन्ध किसी-न-किसी विज्ञापन के साथ जोड़ देता है। सुबह चाय लाने वाले को जब वह चाय लाने के लिए कहता है तो चाय का नाम लेते ही लेखक को नीलगिरि की सुन्दरी का ध्यान हो जाता है।

प्रश्न 4.
शिक्षा, विज्ञान संस्कृति और साहित्य जैसे क्षेत्रों में विज्ञापन कला में अपनी धाक कैसे जमा ली है?
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में जब विद्यार्थियों को दीक्षान्त समारोह पर डिग्रियां दी जाएंगी तो उनके निचले कोने में एक विज्ञापन छिपा रहेगा। विज्ञान के क्षेत्र में मूर्तियों के नीचे ऐसा विज्ञापन रहेगा कि इस मूर्ति और भवन के निर्माण का श्रेय लाल हाथी के निर्माण वाले निर्माताओं को है। वास्तु-सम्बन्धी अपनी सभी आवश्यकताओं के लिए लाल हाथी का निशान कभी मत भूलिए। इसी तरह किसी उपन्यास की जिल्द पर एक ओर बारीक अक्षरों में छिपा होगा-“साहित्य में अभिरुचि रखने वालों को इक्का मार्का साबुन बनाने वालों की एक ओर तुच्छ भेंट।”

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

PSEB 11th Class Hindi Guide विज्ञापन युग Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सी कला तेज़ी से उन्नति कर रही है ?
उत्तर:
विज्ञापन कला।

प्रश्न 2.
लेखक के लिए गज़ल-गजल न होकर क्या थी ?
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 3.
मूर्तियों का समूचा क्लेवर क्या बनकर रह गया था ?
उत्तर:
किसी कम्पनी का विज्ञापन।

प्रश्न 4.
‘विज्ञापन युग’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
मोहन राकेश की।

प्रश्न 5.
लेखक को चाय देने वाला लड़का कौन-सी मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है ?
उत्तर:
क्लोरोफ़िल मुस्कराहट।

प्रश्न 6.
लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज में क्या सुनाई पड़ा ?
उत्तर:
विज्ञापन।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 7.
कम्बलों और दुशालों में किसके विज्ञापन दिए जा सकने के डर हैं ?
उत्तर:
चाय और कोक के।

प्रश्न 8.
खुजली का नाश करने के लिए ……… औषधि है।
उत्तर:
रामबाण।

प्रश्न 9.
लेखक ने विज्ञापन कला पर …….. किया है।
उत्तर:
करारा व्यंग्य।

प्रश्न 10.
आज प्रत्येक चीज़ का ……. मौजूद है।
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 11.
लेखक ने विज्ञापनों के ………… जीवन पर दखल देने पर व्यंग्य किया है।
उत्तर:
व्यक्तिगत।

प्रश्न 12.
हम किसकी लपेट से नहीं बच सकते ?
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 13.
आज हर जगह क्या नजर आते हैं ?
उत्तर:
विज्ञापन ही विज्ञापन ।

प्रश्न 14.
विज्ञापन कला का क्षेत्र ………… है।
उत्तर:
अत्यंत व्यापक।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 15.
भगवान् की बनाई धरती का आजकल क्या हो रहा है ?
उत्तर:
दुरुपयोग।

प्रश्न 16.
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक धरती का कोई भी कोना ……. से नहीं बचा।
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 17.
मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व ……. हो गया है।
उत्तर:
विज्ञापनमय।

प्रश्न 18.
किस वस्तु का उपभोग होगा ?
उत्तर:
जिसका विज्ञापन अधिक होगा।

प्रश्न 19.
आने वाले समय में जीवन का प्रत्येक क्षेत्र किससे जुड़ जाएगा ?
उत्तर:
विज्ञापन कला से।

प्रश्न 20.
……… आज व्यक्तिगत जीवन में भी प्रवेश कर गया है।
उत्तर:
विज्ञापन।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विज्ञापन युग कैसा निबंध है ?
(क) हास्यपरक
(ख) व्यंग्यपरक
(ग) सामाजिक
(घ) धार्मिक।
उत्तर:
(ख) व्यंग्यपरक

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार विज्ञापन कला का विकास किसका कारण है ?
(क) सिरदर्द का
(ख) द्वन्द्व का
(ग) हास्य का
(घ) सफलता का।
उत्तर:
(क) सिरदर्द का

प्रश्न 3.
लेखक ने इस निबंध में किस कला पर कटु व्यंग्य किया है ?
(क) नृत्य
(ख) गायन
(ग) भजन
(घ) विज्ञापन।
उत्तर:
(घ) विज्ञापन

प्रश्न 4.
‘विज्ञापन युग’ किसकी रचना है ?
(क) धर्मवीर भारती
(ख) मोहन राकेश की
(ग) पंत की
(घ) निराला की।
उत्तर:
(ख) मोहन राकेश का।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

कठिन शब्दों के अर्थ :

स्मारक = यादगार। चस्पा करना = चिपकाना। पार्वतय सुषमा = पर्वतों का प्राकृतिक सौन्दर्य । विधाता = विधाता, ईश्वर। अन्योन्याश्रित = एक दूसरे पर निर्भर। बरीकी बीनी = सूक्ष्म दृष्टि। अन्देशा = डर, चिन्ता। खासा = बहुत।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) परिणाम यह है कि अब मेरे लिए कोई गज़ल-गज़ल नहीं रही, कोई गीत-गीत नहीं रहा, सब किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए हैं। दिन भर ये गीत और विज्ञापन मेरा पीछा करते रहते हैं। पहले बहुत मीठे गले से रहना नहीं देश विराना है’ की लय और उसके तुरन्त बाद-क्या आपके शरीर में खुजली होती है ? खुजली का नाश करने के लिए एक ही राम बाण औषधि हैं……..कर लें भगत कबीर क्या करते हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने विज्ञापनों के व्यक्तिगत जीवन में दखल देने पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गीत, भजन और गज़लों के साथ कुछ विज्ञापन सुनने की आदत हो गई जिसका परिणाम यह हुआ कि आज मेरे लिए न कोई गज़ल-गज़ल रह गई और न ही कोई गीत-गीत सभी किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन कर रह गये हैं। विज्ञापनों ने मनुष्य के जीवन को इतना अधिक प्रभावित कर दिया है कि उसे सब जगह विज्ञापन दिखाई और सुनाई देते हैं। दिन भर ये गीत और उनके पीछे दिये जाने वाले विज्ञापन मेरा पीछा करते रहते हैं।

विज्ञापनों के कारण जीवन का आनन्द समाप्त हो गया है, जैसे पहले एक मधुर कण्ठ से कबीर के इस भगत की पंक्ति उभरती है ‘रहना नहिं देश वीराना है उस पंक्ति के तुरन्त बाद खुजली का विज्ञापन प्रसारित होता है-खुजली का नाश करने के लिए एक ही रामबाण औषधि है …. । लेखक कहते हैं कि इस विज्ञापन को सुनकर कबीर भी कुछ नहीं कर सकते हैं अर्थात् ऐसा लगता है जैसे भजन सुनकर खुजली होने वाली है।

विशेष :

  1. विज्ञापनों के व्यक्तिगत जीवन में दखल देने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। मिश्रित भाषा शब्दावली का प्रयोग है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(2) कोई चीज़ ऐसी नहीं जो किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन न हो। अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियाँ कभी अछूती कला का उदाहरण रही होंगी, परन्तु आज उस कला को एक नयी सार्थकता प्राप्त हो गई है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने ऐतिहासिक कलाकृतियों को नयी सार्थकता प्राप्त होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है आज के युग में कोई चीज़ ऐसी नहीं है जिसका विज्ञापन न हो। सभी चीज़ों का विज्ञापन होने लगा है। अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियां कभी अछूती कला का उदाहरण रही होंगी, किन्तु आज के विज्ञापन यग में इन ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृतियों को भी एक नयी सार्थकता प्राप्त हो गई है। मनुष्य अपने लाभ के लिए ऐतिहासिक कलाकृतियों का प्रयोग विज्ञापन के लिए कर सकता है।

विशेष :

  1. विज्ञापन युग में सभी चीज़ों का विज्ञापन सम्भव है।
  2. भाषा सरल, सुबोध स्पष्ट है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।

(3) कश्मीर की सारी पार्वत्त्य सुषमा, वहां की नव युवतियों का भाव सौन्दर्य और वहां के कारीगरों की दिन रात की मेहनत, ये सब इस बात को विज्ञापित करने के लिए हैं कि सफेद रंग का वह शहद जो बन्द डिब्बों में मिलता है, सबसे अच्छा शहद है।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ से अवतरित हैं। इसमें लेखक ने शहद के विज्ञापन में कश्मीर के प्राकृतिक सौन्दर्य का हवाला दिये जाने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मनुष्य किसी भी वस्तु की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए किसी भी चीज़ का प्रयोग कर सकते हैं। कश्मीर की सारी पर्वतीय प्राकृतिक सुन्दरता, वहाँ की नवयुवतियों का भाव-सौन्दर्य और वहाँ के कारीगरों की दिन-रात की मेहनत ये सभी इस बात का विज्ञापन देने में काम आते हैं कि सफेद रंग का शहद जो डिब्बों में बंद मिलता है, सबसे अच्छा शहद है। कश्मीर की सफेद बर्फीली चोटियाँ, वहाँ की नवयुवतियों का सौन्दर्य और मधुमख्यियों की तरह कारीगरों की मेहनत की तुलना शहद से की है।

विशेष :

  1. शहद के विज्ञापन में किस-किस तरह की वस्तुओं से साम्यता दर्शायी जाती है। इस पर व्यंग्य किया गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है।
  3. तत्सम शब्दावली है। शैली व्यग्यात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(4) विधाता ने इतनी बारीकबीनी से यह जो धरती बनाई है, और मनुष्य ने विज्ञान के आश्रय से उसमें जो चार चाँद लगाए हैं, वे इसलिए कि विज्ञापन कला के लिए उपयुक्त भूमि प्रस्तुत की जा सके। उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक कोई कोना ऐसा न बचा होगा जिसका किसी-न-किसी चीज़ के विज्ञापन के लिए उपयोग न किया जा रहा हो। हर चीज़ हर जगह अपने अलावा किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने दुनिया के कोने-कोने में, हर जगह विज्ञापन लगाने की बात कही है अर्थात् भगवान और मनुष्य ने मिलकर धरती को सुन्दर बनाया है, परन्तु कुछ लोग इसी धरती का दुरुपयोग अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि विधाता ने इतनी सूक्ष्म दृष्टि से जो धरती बनाई है और जिसे मनुष्य ने विज्ञान का सहारा लेकर सुन्दर बनाया है, स्वार्थी मनुष्य ने धरती को इसीलिए सुन्दर बनाया है कि विज्ञापन चिपकाने के लिए उपयुक्त भूमि तैयार की जा सके। उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक धरती का कोई भी कोना नहीं बचा जिसका किसीन-किसी चीज़ के विज्ञापन के लिए उपयोग न किया गया हो। हर चीज़, हर जगह अपने के अतिरिक्त किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है अर्थात् विज्ञापन के लिए किसी स्थान का सम्बन्ध वस्तु से होना आवश्यक नहीं हैं परन्तु उसका उपयोग वस्तु के साथ जोड़ दिया जाता है।

विशेष :

  1. भगवान की बनाई धरती जिसे मानव ने सुन्दर बनाया आज उसका दुरुपयोग हो रहा है।
  2. भाषा सरल सुबोध एवं स्पष्ट है, मिश्रित शब्दावली है।
  3. व्यग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(5) विज्ञापन-कला जिस तेज़ी से उन्नति कर रही है, उससे मुझे भविष्य के लिए और भी अंदेशा है। लगता है, ऐसा युग आने वाला है जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य, इनका केवल विज्ञापन कला के लिए ही उपभोग रह जाएगा। वैसे तो आज भी इस कला के लिए इनका खासा उपयोग होता है। मगर आने वाले युग में यह कला, दो कदम और आगे बढ़ जाएगी।

प्रसंग :
यह गद्यांश श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने व्यंग्य से कहा है भविष्य में विज्ञापनों का उपयोग शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य में भी होने लगेगा।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस तेज़ी से विज्ञापन-कला उन्नति कर रही है, उसे देखते हुए मुझे डर है कि आने वाले समय में ऐसा युग आने वाला है जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का केवल विज्ञापन कला के लिए ही उपयोग रह जाएगा। मानव का भविष्य विज्ञापन कला पर निर्भर रह जाएगा। जिस वस्तु के विज्ञापन का अधिक से अधिक प्रचार होगा उसी का उपभोग अधिक होगा चाहे वह किसी क्षेत्र से सम्बन्धित हो। वैसे तो आज भी इस कला के लिए इनका बहुत विशिष्ट उपयोग होता है। मगर आने वाले समय में यह कला, दो कदम आगे बढ़ जाएगी अर्थात् जीवन का हर क्षेत्र विज्ञापन कला से जुड़ जाएगा।

विशेष :

  1. विज्ञापन कला का क्षेत्र इतना व्यापक हो जाएगा जिससे मनुष्य का भविष्य उस पर निर्भर हो जाएगा।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। तत्सम शब्दावली है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(6) दफ़्तर की नई टाइपिस्ट रोज़ी का समूचा व्यक्तित्व मुझे लाल रंग की लिपिस्टिक का विज्ञापन प्रतीत होता है और किसी को कहिएगा नहीं, पर हालत यहां तक पहुंच गई है कि अब मैं खुद आइने के सामने खड़ा होता हूँ तो लगता है कि अपना चेहरा नहीं सिल्वर सॉल्ट का विज्ञापन देख रहा हूँ।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला पर तीखा व्यंग्य किया है।

व्याख्या :
लेखक विज्ञापन कला पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि अपने दफ्तर की नई टाइपिस्ट रोज़ी को जब मैं लाल वस्त्रों में देखता हूँ तो मुझे उसका समूचा व्यक्तित्व लाल रंग की लिपिस्टिक का विज्ञापन लगता है और किसी से कहिएगा नहीं कि हालत यहां तक पहुंच गई है कि जब मैं स्वयं दर्पण के सामने खड़ा होता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं अपना चेहरा नहीं सिल्वर सॉल्ट का विज्ञापन देख रहा हूँ। लेखक को सब जगह, सब चीज़ों में, अपने में तथा दूसरों में, सब में विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देते हैं।

विशेष :

  1. मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विज्ञापनमय हो गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। मिश्रित शब्दावली है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

विज्ञापन युग Summary

विज्ञापन युग निबन्ध का सार

प्रस्तुत निबन्ध एक व्यंग्यपरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला के विकसित होने पर उसे सिर दर्द कारण भी बताया गया है। लेखक कहते हैं कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गज़लों और भजनों के साथ चाय, तेल और सिर दर्द की टिक्कियों के विज्ञापन सुनने पड़ते हैं। यह विज्ञापन लेखक के दिलो-दिमाग़ पर सदा छाए रहते हैं। परिणाम यह हुआ है कि लेखक के लिए गज़ल-गज़ल न रह कर किसी न किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए। लेखक को लगता है कि हर चीज़ विज्ञापन बन कर रह गई है। अजन्ता एलोरा की मूर्तियों का केश विन्यास लेखक को एक तेल की शीशी की याद दिलाता है। इसी तरह मूर्तियों की आँखें एवं उनका समूचा कलेवर किसी-न-किसी कम्पनी का विज्ञापन बन कर रह गया है।

लेखक कहते हैं कि देश में जितने भी मन्दिर पुराने किले और स्मारक आदि हैं वे सब पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ एक विशेष ब्रांड के सीमेंट की मजबूती को व्यक्त करने के प्रतीक बन सकें। इसी तरह सफ़ेद रंग के शहद का विज्ञापन और सेब के मुरब्बे का विज्ञापन हो सकता है। लेखक का मत है कि विज्ञापन किसी भी चीज़ का हो सकता है। हम जहाँ भी रहे विज्ञापनों की लपेट से नहीं बच सकते।

लेखक का मत है कि विज्ञापन कला इतनी तेजी से उन्नति कर रही है कि उसे डर है कि आने वाले समय में शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का उपयोग विज्ञापन कला के लिए ही रह जाएगा। लेखक कहते हैं कि अभी तक बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जिनका विज्ञापन के लिए प्रयोग नहीं किया जा सका है जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन होने चाहिएँ। कम्बलों और दुशालों में चाय और कोको के विज्ञापन दिए जा सकते हैं। अस्पताल की दीवारों पर वैवाहिक विज्ञापन लगाए जा सकते हैं। यह तो भविष्य की बात है, पर आज की स्थिति यह है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक को चाय देने वाला लड़का भी क्लोरोफ़िल मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है। तब लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज़ में यह विज्ञापन सुनाई पड़ता है कि लिवर ठीक रखने के लिए लिवर इमल्शन लीजिए। लेखक को अपने सामने आने वाला हर चेहरा किसी विज्ञापन का रूप नज़र आता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 21 शहीद सुखदेव

Hindi Guide for Class 11 PSEB शहीद सुखदेव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें

प्रश्न 1.
‘क्रान्तिकारी इतिहास में सुखदेव का महत्त्व किसी भी प्रकार कम नहीं आंका जा सकता।’ लेखक के इस कथन के आधार पर सुखदेव के गुण लिखें।
उत्तर:
क्रान्तिकारी इतिहास में सुखदेव का महत्त्व किसी प्रकार भी कम नहीं आंका जा सकता। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को देखते हुए सुखदेव के मन में उन के प्रति नफ़रत की भावना निरन्तर बढ़ती गई। जलियांवाला बाग की घटना ने जलती पर घी का काम किया। सरकार ने मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी स्कूलों में सेना अधिकारी तैनात कर दिए गए। एक दिन परेड के समय सभी छात्रों को अंग्रेज़ी अफ़सर को सलामी देने को कहा गया। सुखदेव ने स्पष्ट रूप में घोषणा की “मैं अंग्रेज़ को किसी भी कीमत पर सलामी नहीं दूंगा।” इस पर अंग्रेज़ अफ़सर ने उन्हें खूब पीटा।

बड़े होने पर सुखदेव के स्वभाव में दृढ़ता और अंग्रेज़ी सत्ता के प्रति नफ़रत और भी बढ़ती चली गई। हाई स्कूल की परीक्षा पास कर सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं वे क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए। सन् 1926 में भगत सिंह तथा भगवती चरण वर्मा के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” का गठन किया जिसका उद्देश्य लोगों में राष्ट्र-चेतना जागृत करना था। सुखदेव, भगत सिंह आदि के सुझाव पर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट ‘रिपब्लिकन आर्मी’ का गठन किया गया। सुखदेव को पंजाब प्रान्त का प्रमुख संगठनकर्ता घोषित किया गया।

सुखदेव चाहते थे कि उन्हें जनता की सहानुभूति भी प्राप्त हो सके। लोग क्रान्तिकारियों को आतंकवादी न समझ लें। सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव की अहम भूमिका रही। असैंबली बम कांड के कुछ ही दिन बाद सुखदेव को भी कैद कर लिया गया। वहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। 23 मार्च, सन् 1931 को अंग्रेज़ सरकार ने जनता के कड़े विरोध के बावजूद इन तीनों देशभक्तों को फाँसी दे दी।

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प्रश्न 2.
सुखदेव की राष्ट्रवादी सोच पर किन-किन व्यक्तियों ने अपना गहरा प्रभाव दिखाया ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। वहीं सुखदेव की भेंट प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानन्द, जयचन्द विद्यालंकार आदि कुछ ऐसे अध्यापकों से हुई जो स्वयं तो राष्ट्र सेवा में जुटे हुए थे, साथ ही कॉलेज के विद्यार्थियों में देश प्रेम की भावना जागृत करने का प्रयास कर रहे थे। मित्रों में सुखदेव सिंह को भगत सिंह का साथ मिला। दोनों एक साथ रहते और घण्टों समाजवाद तथा देश की स्थिति पर चर्चा करते रहते। सुखदेव की राष्ट्रवादी सोच पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाले व्यक्तियों में भगवती चरण वर्मा तथा चन्द्रशेखर आज़ाद का गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 3.
‘शहीद सुखदेव’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
‘शहीद सुखदेव डॉ० रविकुमार ‘अनु’ द्वारा लिखित निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने शहीद सखदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव को हिलाने में पंजाब के क्रांतिकारियों द्वारा हुए आंदोलनों के पीछे शहीद सुखदेव की महत्त्वूपर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है। शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, सन् 1907 को लुधियाना के मुहल्ला नौधराँ में हुआ। आपके पिता उन दिनों लायलपुर में व्यापार करते थे। आपके जन्म के बाद आपके पिता ने इन्हें माता सहित लायलपुर बुला लिया। सन् 1910 में आपके पिता का देहांत हो गया। आपका पालन-पोषण आपके ताया लाला चिंतराम थापर ने किया। लाला चिंतराम आर्य समाजी विचारधारा रखते थे। वे आर्यसमाज के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। सुखदेव पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा।

बचपन से आप पढ़ाई के अतिरिक्त समाज सेवा के कामों में भी हिस्सा लिया करते थे। हरिजन बच्चों को उन दिनों सरकारी और धार्मिक स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता था। यह देख कर सुखदेव दुःखी हो उठे थे। उन्होंने पास की बस्तियों में जाकर हरिजन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों की दमनकारी नीति के कारण वे उन से घृणा करते थे। बड़े होकर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी भेंट लाला लाजपत राय से हुई। वहीं प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानंद, जयचंद्र विद्यालंकार सरीखे अध्यापकों से उनकी भेंट हुई। सरदार भगत सिंह से भी इनकी मुलाकात यहीं हुई। उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।

क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में सांडर्स की हत्या कर दी। सरकार सचेत हो गई। जगह-जगह छापे पड़ने लगे। 8 अप्रैल, सन् 1929 को भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। 15 अप्रैल, सन् 1929 को एक बम फैक्टरी पर पड़े छापे के दौरान सुखदेव भी साथियों सहित गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर भगत सिंह और दत्त के साथ ही मुकद्दमा चलाया गया और अंग्रेजी सरकार ने गुप्त रूप से 23 मार्च, सन् 1931 को सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में उनको फाँसी दे दी।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
सुखदेव का बचपन कहां बीता? उन्होंने कहाँ-कहाँ शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर:
सुखदेव का बचपन लायलपुर (अब पाकिस्तान) में बीता। उनके ताया लाला चिन्तराम थापर शेरे लायलपुर कहलाते थे। लायलपुर के सनातन धर्म स्कूल में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। तदुपरांत उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी क्रान्तिकारी सोच परवान चढ़ी।।

प्रश्न 2.
दीपावली पर झाँसी की रानी की तस्वीर खरीदने पर उन्होंने अपनी माँ से क्या कहा? इस से उनके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर:
दीवाली के अवसर पर जहाँ सभी बच्चे खिलौने खरीद रहे थे सखदेव ने झाँसी की रानी की तस्वीर खरीदी और घर लौट कर अपनी माँ को बड़े उत्साह के साथ बताया, “देखो माँ लक्ष्मी बाई की तस्वीर। इसने अंग्रेजों से लोहा लिया था न? इसकी बहादुरी तो देखो? एक हाथ में तलवार और एक हाथ में घोड़े की लगाम सम्भाले पीठ पर बच्चा बाँध कर यह कितनी बहादुरी से लड़ी होगी? मैं भी ऐसा ही बनूँगा।” प्रस्तुत घटना से सुखदेव के चरित्र की इस विशेषता का पता चलता है कि देश भक्ति के अंकुर उन में बचपन से ही थे।

प्रश्न 3.
निबन्ध के आधार पर उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जिन दिनों सुखदेव सनातम धर्म स्कूल के विद्यार्थी थे, तो उन्हें पता चला कि हरिजन बच्चों को सरकारी और धार्मिक स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जाता तो सुखदेव सिंह को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने स्वयं ही लायलपुर के पास की हरिजन बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

सन् 1918 में जब महामारी फैली तो सुखदेव ने बच्चों के साथ मिलकर एक सेवा समिति बनाई। जिस का काम दवाइयाँ इकट्ठा करना और घर-घर बाँटना था। उन दिनों सुखदेव ने अपनी चिन्ता न कर के दिन-रात लोगों की सेवा की।

प्रश्न 4.
स्कूल में आए अंग्रेज़ अफ़सर को उन्होंने सलामी क्यों नहीं दी?
उत्तर:
सुखदेव के मन में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को देखते हुए उनके प्रति नफ़रत की भावना बढ़ती गई थी। उन्हीं दिनों जलियांवाला बाग की घटना के कारण सुखदेव का खून खौल उठा था। इसी नफ़रत के कारण उन्होंने ने अंग्रेज़ अफ़सर को सलामी देने से इन्कार कर दिया।

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प्रश्न 5.
लाहौर नेशनल कॉलेज पहुँचने पर सुखदेव का सम्पर्क किन क्रान्तिकारियों से हुआ? इससे उनके दृष्टिकोण में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
लाहौर नेशनल कॉलेज में सुखदेव इतिहास के अध्यापक जयचन्द्र विद्यालंकार के माध्यम से क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए। वहीं उनकी भेंट भगतसिंह और भगवती चरण जैसे देशभक्त क्रान्तिकारियों से हई। इससे उनकी कार्यशैली में अनेक परिवर्तन आए। उन्होंने क्रान्तिकारी कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। सुखदेव को पंजाब प्रान्त का प्रमुख संगठनकर्ता नियुक्त किया गया। उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अनेक प्रदर्शन किए और लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने की योजना बनाने का जिम्मा भी इन्हें ही सौंपा गया।

प्रश्न 6.
नौजवान भारत सभा की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
नौजवान भारत सभा का वास्तविक उद्देश्य इश्तहारों, भाषणों और सभाओं के द्वारा जन साधारण में राष्ट्रीय भावना जागृत करना था। इस मंच के द्वारा वे नवयुवकों को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते थे। लोगों में देश के लिए एक नई चेतना जागृत करने के उद्देश्य से सन् 1926 में भगत सिंह और भगवती चरण के साथ मिलकर नौजवान सभा की स्थापना की और उन्होंने करतार सिंह सराभा का शहीदी दिन मनाया था।

प्रश्न 7.
क्रान्तिकारियों की बैठक में कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए?
उत्तर:
क्रान्तिकारियों की बैठक में पहला महत्त्वपूर्ण फैसला यह लिया गया कि क्रान्तिकारी संगठनों की एक केन्द्रीय समिति बनाई जाए। इस दल को नया नाम दिया गया–हिन्दुस्तान ‘सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’। इस दल का उद्देश्य केवल आजादी की लड़ाई तक ही सीमित नहीं अपितु आज़ादी के बाद समाज में शोषण की प्रक्रिया को भी समाप्त करना था। चन्द्रशेखर आजाद को पार्टी का कमाण्डर इन चीफ बनाया गया।

प्रश्न 8.
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने में सुखदेव की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
क्रान्तिकारियों ने लाला जी आहत होने का बदला लेने का मन बना लिया था। सुखदेव को इस कार्य की योजना बनाने का काम सौंपा गया। सुखदेव इस कार्य को इस ढंग से करना चाहते थे जिससे लोगों की सहानुभूति प्राप्त हो सके। वे नहीं चाहते थे कि लोग क्रान्तिकारियों को सामान्य लूट-मार करने वाले अपराधी समझें। इसलिए वे प्रोपेगैंडा एक्शन्स में विश्वास रखते थे। 17 नवम्बर को लाला जी की मृत्यु हो जाने पर इन लोगों का काम आसान हो गया। उन्होंने स्कॉट की हत्या की योजना बनाई। सुखदेव ने अकेले ही सारे हथियारों को दूसरी सुरक्षित जगह पहुँचाया था।

प्रश्न 9.
दिल्ली असैम्बली में बम फेंकने की योजना क्यों बनाई गई?
उत्तर:
सुखदेव का विचार था कि असैम्बली की कार्यवाही को रोकने का एक ही उपाय है कि उसे बीच में ही रोक दिया जाए। सुखदेव चाहते थे कि असैम्बली में बम गिरने के बाद क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी होगी तो वे पुलिस और जनता के सामने वज़नदार तर्क प्रस्तुत कर जनता में जागृति की भावना जागृत करने में सफल हो सकते हैं। भगत सिंह और दत्त ने असैम्बली में बम फेंक कर गिरफ्तारी दी और अपना मुकद्दमा लड़ते समय ऐसे तर्क दिए जो जनता में जागृति लाने में सहायक सिद्ध हुए।

प्रश्न 10.
सुखदेव की गिरफ्तारी कैसे हुई? उन्हें फाँसी क्यों दी गई?
उत्तर:
15 अप्रैल, सन् 1929 को सुखदेव अपने कुछ साथियों सहित लाहौर बम फैक्टरी पर डाले गए छापे के दौरान पकड़े गए। उन पर चलाए जाने वाले मुकद्दमे के दौरान यह सिद्ध किया गया कि सुखदेव सारे क्रान्तिकारी षड्यन्त्रों के सरदार थे और भगत सिंह उनका का दायां हाथ था। 7 अक्तूबर, सन् 1930 को उन्हें फाँसी की सज़ा देने का फैसला सुनाया गया।

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PSEB 11th Class Hindi Guide शहीद सुखदेव Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शहीद सुखदेव’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
डॉ० रविकुमार ‘अनु’।

प्रश्न 2.
सुखदेव पास की बस्तियों में किसे पढ़ाते थे ?
उत्तर:
हरिजन बच्चों को।

प्रश्न 3.
बचपन में सुखदेव पढ़ाई के अतिरिक्त क्या करते थे ?
उत्तर:
समाज सेवा के कार्य।

प्रश्न 4.
शहीद सुखदेव का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
15 मई, सन् 1907 को।

प्रश्न 5.
शहीद सुखदेव का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
पंजाब राज्य के लुधियाना शहर के मुहल्ला नौधरा में।

प्रश्न 6.
शहीद सुखदेव के पिता पेशे से क्या थे ?
उत्तर:
व्यापारी।

प्रश्न 7.
शहीद सुखदेव के पिता का देहांत कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1910 में।

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प्रश्न 8.
शहीद सुखदेव का पालन-पोषण किसने किया था ?
उत्तर:
ताया लाला चिंतराम थापर ने।

प्रश्न 9.
लाला चिंतराम किस प्रकार की विचारधारा रखते थे ?
उत्तर:
आर्य समाजी।।

प्रश्न 10.
शहीद सुखदेव अंग्रेजों से घृणा क्यों करते थे ?
उत्तर:
उनकी दमनकारी नीतियों के कारण।

प्रश्न 11.
शहीद सुखदेव ने किस कॉलेज में दाखिला लिया था ?
उत्तर:
नेशनल कॉलेज में।

प्रश्न 12.
नेशनल कॉलेज कहाँ पर स्थित है ?
उत्तर:
लाहौर में।

प्रश्न 13.
शहीद सुखदेव की भेंट लाला लाजपतराय से कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
लाहौर नेशनल कॉलेज में।

प्रश्न 14.
शहीद सुखदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर किस सभा की स्थापना की थी ?
उत्तर:
नौजवान भारत सभा।

प्रश्न 15.
क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में किसकी हत्या की थी ?
उत्तर:
सांडर्स की।

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प्रश्न 16.
असेंबली में बम कब फेंका गया था ?
उत्तर:
8 अप्रैल, सन् 1929 को।

प्रश्न 17.
असेंबली में बम किसने फेंका था ?
उत्तर:
भगतसिंह और सुखदेव ने।

प्रश्न 18.
असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और सुखदेव ने क्या किया ?
उत्तर:
अपनी गिरफ्तारी दी।

प्रश्न 19.
सुखदेव की गिरफ्तारी कब हुई थी ?
उत्तर:
15 अप्रैल, सन् 1929 को।

प्रश्न 20.
सुखदेव की गिरफ्तारी कहां हुई थी ?
उत्तर;
एक बम फैक्टरी में।

प्रश्न 21.
सुखदेव को फांसी कब हुई थी ?
उत्तर:
23 मार्च, सन् 1931 को।

प्रश्न 22.
सुखदेव को फांसी कहाँ दी गई ?
उत्तर:
सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में।

प्रश्न 23.
सुखदेव को किस प्रकार फांसी दी गई ?
उत्तर:
गुप्त रूप से।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शहीद सुखदेव ने किस साम्राज्य की नींव को हिला दिया था ?
(क) अंग्रेज़ी
(ख) हिंदी
(ग) मुग़ल
(घ) डच।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी

प्रश्न 2.
शहीद सुखदेव का जन्म कब हुआ था ?
(क) 1905 ई०
(ख) 1906 ई०
(ग) 1907 ई०
(घ) 1908 ई०.
उत्तर:
(ग) 1907 ई०

प्रश्न 3.
लाला चिंताराम किस विचारधारा के व्यक्ति थे ?
(क) आर्य समाज
(ख) धर्म समाज
(ग) रूही समाज
(घ) ब्रह्म समाज।
उत्तर:
(क) आर्य समाज

प्रश्न 4.
शहीद सुखदेव ने किसके साथ मिलकर नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की ?
(क) शहीद भगत सिंह के
(ख) तांत्या टोपे के
(ग) नेता जी के
(घ) राजगुरु के।
उत्तर:
(क) शहीद भगत सिंह के।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

कट्टर = पक्के । महासचिव = महामंत्री। अंकुरित करना = पैदा करना। नफ़रत = घृणा। समाहित = शामिल । वक्ताओं = भाषणों। उग्र = तीव्र, तेज़। संरचना = बनावट। अनुग्रह = कृपा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) देख माँ, रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर। इन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था ना। इनकी बहादुरी को देखो। एक हाथ में तलवार तथा एक हाथ घोड़े की लगाम सम्भाले पीठ पर बच्चा बाँधकर वह कितनी बहादुरी से लड़ी होगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० रवि कुमार अनु द्वारा लिखित निबन्ध ‘शहीद सुखदेव’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने शहीद सुखदेव के जीवन की घटनाओं का भावमय शैली में वर्णन किया है। इसमें सुखदेव के बचपन की घटनाओं का वर्णन किया है

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियाँ उस समय कही गयी हैं जब शहीद सुखदेव दीपावली के अवसर पर अन्य बच्चों की तरह खिलौने न खरीद कर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर खरीदकर अपनी माँ को दिखाता है।

सुखदेव अपनी मां से तस्वीर दिखाकर कहता है कि माँ! यह लक्ष्मीबाई की तस्वीर है। ये वो वीरांगना है जो अंग्रेज़ों से लडी थीं। इन्होंने बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया है। इन्होंने युद्ध के मैदान में एक हाथ में तलवार पकड़ी है तो दूसरे हाथ में घोड़े की लगाम है और पीठ पर बच्चे को बाँधे रखा था। ऐसी अवस्था में वे कितनी बहादुरी से लड़ी थीं।

विशेष :
शहीद सुखदेव बचपन से ही वीरता की प्रतिमूर्तियों से प्रभाव थे। “भाषा सरल तथा सहज है मुहावरे के प्रयोग से रोचकता आ गई है।” चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।

(2) मैं अंग्रेज़ को किसी भी कीमत पर सलामी नहीं दूंगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० रवि कुमार (अनु) द्वारा लिखित निबन्ध ‘शहीद सुखदेव’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में शहीद सुखदेव के जीवन की घटनाओं का भावमय शैली में वर्णन किया है। इन पंक्तियों में सुखदेव के बचपन की घटना का वर्णन किया है कि वे बचपन से ही अंग्रेजों से नफ़रत करते थे।

व्याख्या :
अंग्रेज़ अफसर को परेड के समय सलामी न देने पर सुखदेव ने अपने प्राचार्य से कहा कि वह अंग्रेज़ को किसी कीमत पर भी सलामी नहीं देगा क्योंकि उसके दिल में अंग्रेज़ों के प्रति भारी घृणा थी।

विशेष :

  1. शहीद सुखदेव के मन में बचपन से ही अंग्रेजों के प्रति नफ़रत थी।
  2. भाषा सरल एवं सहज है। ओज गुण विद्यमान है।

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शहीद सुखदेव Summary

शहीद सुखदेव निबन्ध का सार

‘शहीद सुखदेव डॉ० रविकुमार ‘अनु’ द्वारा लिखित निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने शहीद सखदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव को हिलाने में पंजाब के क्रांतिकारियों द्वारा हुए आंदोलनों के पीछे शहीद सुखदेव की महत्त्वूपर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है। शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, सन् 1907 को लुधियाना के मुहल्ला नौधराँ में हुआ। आपके पिता उन दिनों लायलपुर में व्यापार करते थे। आपके जन्म के बाद आपके पिता ने इन्हें माता सहित लायलपुर बुला लिया। सन् 1910 में आपके पिता का देहांत हो गया। आपका पालन-पोषण आपके ताया लाला चिंतराम थापर ने किया। लाला चिंतराम आर्य समाजी विचारधारा रखते थे। वे आर्यसमाज के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। सुखदेव पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा।

बचपन से आप पढ़ाई के अतिरिक्त समाज सेवा के कामों में भी हिस्सा लिया करते थे। हरिजन बच्चों को उन दिनों सरकारी और धार्मिक स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता था। यह देख कर सुखदेव दुःखी हो उठे थे। उन्होंने पास की बस्तियों में जाकर हरिजन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों की दमनकारी नीति के कारण वे उन से घृणा करते थे। बड़े होकर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी भेंट लाला लाजपत राय से हुई। वहीं प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानंद, जयचंद्र विद्यालंकार सरीखे अध्यापकों से उनकी भेंट हुई। सरदार भगत सिंह से भी इनकी मुलाकात यहीं हुई। उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।

क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में सांडर्स की हत्या कर दी। सरकार सचेत हो गई। जगह-जगह छापे पड़ने लगे। 8 अप्रैल, सन् 1929 को भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। 15 अप्रैल, सन् 1929 को एक बम फैक्टरी पर पड़े छापे के दौरान सुखदेव भी साथियों सहित गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर भगत सिंह और दत्त के साथ ही मुकद्दमा चलाया गया और अंग्रेजी सरकार ने गुप्त रूप से 23 मार्च, सन् 1931 को सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में उनको फाँसी दे दी।