PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे

SST Guide for Class 8 PSEB कहाँ, कब तथा कैसे Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दो :

प्रश्न 1.
इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को कौन-से तीन कालों में विभाजित किया है ? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
(1) प्राचीन काल (2) मध्यकाल तथा (3) आधुनिक काल।

प्रश्न 2.
भारत में आधुनिक काल का आरम्भ कब हुआ ?
उत्तर-
भारत में आधुनिक काल का आरम्भ 18वीं शताब्दी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद से माना जाता है।

प्रश्न 3.
हैदराबाद के स्वतन्त्र राज्य की नींव कब तथा किसने रखी ?
उत्तर-
हैदराबाद के स्वतन्त्र राज्य की नींव 1724 ई० में निज़ाम-उल-मुल्क ने रखी।

प्रश्न 4.
आधुनिक काल के समय में भारत में आई यूरोपीयन शक्तियों के नाम लिखो।
उत्तर-
पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी तथा अंग्रेज़।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे

प्रश्न 5.
कब तथा किसने अवध राज्य को स्वतन्त्र राज्य घोषित किया ?
उत्तर-
अवध को 1739 ई० में सआदत खां ने स्वतन्त्र राज्य घोषित किया।

प्रश्न 6.
पुस्तकें ऐतिहासिक स्रोत के रूप में हमारी किस तरह से सहायता करती हैं ?
उत्तर-
आधुनिक काल में छापेखाने के आविष्कार के कारण भारतीय तथा अंग्रेज़ी भाषा में अनेक पुस्तकें छापी गईं।
इन पुस्तकों से हमें मनुष्य द्वारा साहित्य, कला, इतिहास, विज्ञान तथा संगीत आदि क्षेत्रों में की गई उन्नति का पता चलता है। इन पुस्तकों से हम और अधिक उन्नति करने की प्रेरणा ले सकते हैं।

प्रश्न 7.
ऐतिहासिक भवनों के बारे में संक्षेप जानकारी लिखें।
उत्तर-
आधुनिक काल में बने ऐतिहासिक भवन इतिहास के जीते-जागते उदाहरण हैं। इन इमारतों (भवनों) में इण्डिया गेट, संसद् भवन, राष्ट्रपति भवन, बिरला हाऊस तथा कई अन्य इमारतें शामिल हैं। ये भवन हमें भारत की भवन निर्माण कला के भिन्न-भिन्न पक्षों की जानकारी देते हैं।

प्रश्न 8.
समाचार-पत्र, पत्रिकाएं तथा सूचना पत्रिकाएं इतिहास लिखने के लिये कैसे सहायक होते हैं ?
उत्तर-
आधुनिक काल में भारत में भिन्न-भिन्न भाषाओं में बहुत-से समाचार-पत्र, रिसाले तथा पत्रिकाएं छापी गईं। इनमें से द ट्रिब्यून, द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया आदि समाचार-पत्र आज भी छपते हैं। ये समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं हमें आधुनिक काल की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी देती हैं।

प्रश्न 9.
सरकारी दस्तावेज़ों पर नोट लिखो।
उत्तर-
सरकारी दस्तावेज़ आधुनिक भारतीय इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इन दस्तावेज़ों से हमें भारत में विदेशी शक्तियों की गतिविधियों, अंग्रेजों द्वारा भारत-विजय तथा भारत में अंग्रेज़ी प्रशासन की जानकारी मिलती है। हमें यह भी पता चलता है कि अंग्रेजों ने किस प्रकार भारत का आर्थिक शोषण किया।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. यूरोप में आधुनिक काल का आरम्भ …………. सदी में हुआ माना जाता है।
2. भारत में 16वीं सदी में …………. काल था।
3. 18वीं सदी में भारत में……………तथा पठान एवं राजपूत आदि नई शक्तियां अस्तित्व में आईं।
उत्तर-

  1. 16वीं,
  2. मध्य,
  3. मराठे, सिक्ख, रोहिल्ले।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही'(✓)या ‘गलत’ (x) का चिन्ह लगाएं :

1. 18वीं सदी में भारतीय समाज में अनेक सामाजिक बुराइयां प्रचलित थीं। – (✓)
2. पश्चिमी शिक्षा एवं साहित्य के साथ-साथ पश्चिमी विचारों ने भी भारतीयों को जागृत किया। – (✓)
3. 18वीं सदी में भारत में मुग़ल साम्राज्य अधिक शक्तिशाली था। – (✗)

PSEB 8th Class Social Science Guide कहाँ, कब तथा कैसे Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक भवन नहीं है-
(i) संसद् भवन
(ii) इण्डिया गेट
(iii) लाल किला
(iv) गेटवे ऑफ इंडिया।
उत्तर-
गेटवे ऑफ इंडिया

प्रश्न 2.
यूरोप में आधुनिक युग का आरम्भ कब हुआ ?
(i) 16वीं सदी
(ii) 15वीं सदी
(iii) 18वीं सदी
(iv) 17वीं सदी।
उत्तर-
16वीं सदी

प्रश्न 3.
मध्य युग में भारत में किन शासकों का राज था ?
(i) गुप्त
(ii) मुगल
(iii) अंग्रेज़
(iv) पुर्तगाली।
उत्तर-
मुग़ल।

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(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. सुआदत खान – यूरोपीय
2. निजाम-उल-मुल्क – अवध
3. बाबर – हैदराबाद
4. डच – मुग़ल।
उत्तर-

  1. अवध
  2. हैदराबाद,
  3. मुग़ल,
  4. यूरोपीय।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार के इतिहास को कौन-कौन से तीन भागों में बांटा गया है ?
उत्तर-
प्राचीन काल, मध्य काल तथा आधुनिक काल।

प्रश्न 2.
यूरोप में आधुनिक काल का आरम्भ किस शताब्दी से माना जाता है ?
उत्तर-
16वीं शताब्दी से।

प्रश्न 3.
भारत में 18वीं शताब्दी में उदय होने वाली किन्हीं चार नई शक्तियों के नाम बताओ।
उत्तर-
मराठे, सिक्ख, रुहेले तथा पठान।

प्रश्न 4.
भारत किस वर्ष स्वतन्त्र हुआ ?
उत्तर-
1947 में।

प्रश्न 5.
यूरोप में आधुनिक काल का आरम्भ भारत से पहले क्यों हुआ ?
उत्तर-
संसार के जिन देशों ने तेजी से उन्नति की थी, वहां आधुनिक काल का आरम्भ अन्य देशों की तुलना में पहले हुआ। यूरोप के देशों ने भी तेज़ी से उन्नति की थी।

प्रश्न 6.
आधुनिक काल में भारतीय शासकों ने देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए क्या किया ?
उत्तर-
उन्होंने खेती, व्यापार तथा उद्योगों को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 7.
कर्नाटक के युद्ध कब और किस-किसके बीच हुए ? इनमें किसकी विजयी हुई ?
उत्तर-
कर्नाटक के युद्ध 1746 से 1763 ई० तक अंग्रेज़ों तथा फ्रांसीसियों के बीच हुए। इनमें अंग्रेजों की विजय हुई।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक भारत में पश्चिमी शिक्षा तथा साहित्य ने भारत की स्वतन्त्रता का मार्ग कैसे प्रशस्त किया ?
उत्तर-
आधुनिक काल में भारत में बहुत-से स्कूल तथा कॉलेज स्थापित किए गए जहां पूर्वी (भारतीय) भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं की शिक्षा भी दी जाती थी। पश्चिमी शिक्षा तथा साहित्य के माध्यम से देश में पश्चिमी विचारों का प्रसार हुआ।

पश्चिमी सभ्यता, इतिहास तथा दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीयों में स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे की भावना का विकास हुआ। वे भारत में अंग्रेज़ी शासन तथा भारत के आर्थिक शोषण को सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने बहुत-से कष्ट सहने तथा बलिदान देने के पश्चात् 1947 में देश को स्वतन्त्रता दिलाई।

प्रश्न 2.
आधुनिक काल में भारत में स्वतन्त्र राज्यों के उदय पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
भारत के भिन्न-भिन्न भागों में बहुत-सी रियासतों ने मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोरी का लाभ उठा कर स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। सबसे पहले 1724 ई० में निज़ाम-उल-मुल्क ने हैदराबाद राज्य की नींव रखी। इसके बाद मुर्शिद कुली खां तथा अलीवर्दी खां ने बंगाल को स्वतन्त्र राज्य बना दिया। 1739 ई० में सआदत खां ने अवध में स्वतन्त्र राज्य की नींव डाली। इसी प्रकार दक्षिण में हैदर अली के नेतृत्व में मैसूर राज्य की नींव पड़ी। हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के अधीन मैसूर राज्य का बहुत अधिक विकास हुआ। मराठों ने भी स्थिति का लाभ उठाया। उन्होंने पेशवाओं के नेतृत्व में मुग़ल प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक भारतीय इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इतिहास तथ्यों पर आधारित होता है। इसलिए इतिहास की रचना के लिए इतिहासकारों को अलग-अलग स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। आधुनिक भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के भी अनेक स्रोत हैं। इनमें से मुख्य स्रोतों का वर्णन इस प्रकार है –

1. पुस्तकें-आधुनिक काल में छापेखाने के आविष्कार के कारण भारतीय तथा अंग्रेज़ी भाषा में अनेक पुस्तकें छापी गईं। इन पुस्तकों से हमें मनुष्य द्वारा साहित्य, कला, इतिहास, विज्ञान तथा संगीत आदि क्षेत्रों में की गई उन्नति का पता चलता है। इन पुस्तकों से हम और अधिक उन्नति करने की प्रेरणा ले सकते हैं।

2. सरकारी दस्तावेज़-सरकारी दस्तावेज़ आधुनिक काल के इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इनके अध्ययन से हमें भारत में विदेशी शक्तियों की गतिविधियों, अंग्रेजों द्वारा भारत-विजय तथा भारत में अंग्रेज़ी प्रशासन की जानकारी मिलती है। हमें यह भी पता चलता है कि अंग्रेजों ने किस प्रकार भारत का आर्थिक शोषण किया।

3. समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं-आधुनिक काल में भारत में भिन्न-भिन्न भाषाओं में बहुत से समाचार-पत्र, उपन्यास तथा पत्रिकाएं छापी गईं। इनमें से द ट्रिब्यून, द टाइम्ज़ ऑफ़ इण्डिया आदि समाचार-पत्र आज भी छपते हैं। ये समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं हमें आधुनिक काल की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी देती हैं।

4. ऐतिहासिक भवन-आधुनिक काल में बने ऐतिहासिक भवन इतिहास के जीते-जागते उदाहरण हैं। इन इमारतों (भवनों) में इण्डिया गेट, संसद् भवन, राष्ट्रपति भवन, बिरला हाऊस तथा कई अन्य इमारतें शामिल हैं। ये भवन हमें भारत की भवन निर्माण कला के भिन्न-भिन्न पक्षों की जानकारी देते हैं।

5. चित्रकारी तथा मूर्तिकला-बहुत से चित्र तथा मूर्तियां भी आधुनिक इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये स्रोत हमें राष्ट्रीय नेताओं तथा महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों की सफलताओं की जानकारी देते हैं।

6. विविध स्रोत-ऊपर दिए गए स्रोतों के अतिरिक्त आधुनिक भारतीय इतिहास के अन्य भी कई महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण फिल्में हैं जो समकालीन व्यक्तियों तथा उनकी जीवन शैली पर प्रकाश डालती हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी तथा पं० नेहरू आदि के पत्रों से हमें उनके व्यक्तित्व तथा उनकी सोच के बारे में पता चलता है।

प्रश्न 2.
भारतीय इतिहास के आधुनिक काल की मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
भारत में आधुनिक काल का आरम्भ 18वीं शताब्दी में औरंगज़ेब की मृत्यु (1707) के बाद हुआ। इस काल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-

1. नई शक्तियों का उदय-इस काल में बहुत-सी पुरानी शक्तियां कमज़ोर हो गईं और उनका स्थान नई शक्तियों ने ले लिया। इन शक्तियों में मराठे, सिक्ख, रुहेले, पठान तथा राजपूत आदि शामिल थे।

2. विदेशी शक्तियों का आगमन-इन शक्तियों के आपसी झगड़ों ने अनेक विदेशी शक्तियों को भारत में अपनी सर्वोच्चता तथा सत्ता स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। इनमें पुर्तगाली, अंग्रेज़, डच तथा फ्रांसीसी शामिल थे। भारत में इन्हीं यरोपीय शक्तियों के आगमन के साथ ही आधुनिक काल का आरम्भ हुआ।

3. सामाजिक तथा आर्थिक सुधार-उस समय विदेशी समाजों की तुलना में भारतीय समाज में बहुत अधिक बुराइयां पाई जाती थीं। इन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए भारतीय समाज सुधारकों ने बहुत अधिक प्रयास किये। उस समय आर्थिक क्षेत्र में भी बहुत-सी त्रुटियां पाई जाती थीं। इसलिए भारतीय शासकों ने खेती, व्यापार तथा उद्योगों की ओर विशेष ध्यान दिया और अर्थव्यवस्था की त्रुटियों को दूर करने के प्रयास किये।

4. शिक्षा का प्रसार-आधुनिक काल में भारत में अनेक स्कूल तथा कॉलेज स्थापित किए गए जहां पूर्वी (भारतीय) भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं की शिक्षा भी दी जाती थी। पश्चिमी शिक्षा तथा साहित्य के माध्यम से देश में पश्चिमी विचारों का प्रसार हुआ। फलस्वरूप देश में जागृति आई जो आधुनिक युग का प्रतीक थी।

5. राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ तथा भारत की स्वतन्त्रता-पश्चिमी सभ्यता, इतिहास तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने वाले भारतीयों में स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे की भावना का विकास हुआ। वे भारत में अंग्रेजी शासन तथा भारत के आर्थिक शोषण को सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ कर दिया। बहुत-से कष्ट सहने तथा बलिदान देने के पश्चात् उन्होंने 1947 में देश को स्वतन्त्रता दिलाई।

6. अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश तथा देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन का कार्य आरम्भ हुआ। परिणामस्वरूप पिछले छः दशकों में भारत ने विश्व के महान् देशों में अपना स्थान बना लिया है।
इस प्रकार भारत का आधुनिक युग बहुत-से उतारों-चढ़ावों, तनावों तथा चुनौतियों से भरपूर है। फिर भी भारत आज प्रगति तथा समृद्धि की ओर बढ़ रहा है।

प्रश्न 3.
भारतीय इतिहास के आधुनिक काल में हुई प्रमुख प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के इतिहास में आधुनिक काल के आरम्भ अथवा 18वीं शताब्दी के काल को अंधकार युग माना जाता है। इसका कारण यह है कि इस युग में मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद देश कमज़ोर हो गया। स्थानीय शक्तियों में आपसी संघर्ष के साथ-साथ उनका विदेशी शक्तियों के साथ भी संघर्ष आरम्भ हो गया। । स्वतन्त्र राज्यों का उदय-भारत के भिन्न-भिन्न भागों में बहुत-सी रियासतों ने मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोरी का लाभ उठाकर स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।

  • सबसे पहले 1724 ई० में निज़ाम-उल-मुल्क ने हैदराबाद राज्य की नींव रखी।
  • इसके बाद मुर्शिद कुली खां तथा अलीवर्दी खां ने बंगाल को स्वतन्त्र राज्य बना दिया।
  • 1739 ई० में सआदत खां ने अवध में स्वतन्त्र राज्य की नींव डाली।
  • इसी प्रकार दक्षिण में हैदर अली के नेतृत्व में मैसूर राज्य की नींव पड़ी।
  • हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के अधीन मैसूर राज्य का बहुत अधिक विकास हुआ।
  • मराठों ने भी स्थिति का लाभ उठाया। उन्होंने पेशवाओं के नेतृत्व में मुग़ल प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए।

विदेशी शक्तियों में संघर्ष-पुर्तगालियों, डचों, फ्रांसीसियों, अंग्रेज़ों आदि यूरोपीय शक्तियों ने भी मुग़ल राज्य की कमज़ोरी का लाभ उठाते हुए भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने के प्रयास आरम्भ कर दिये। अत: 1746 ई० से 1763 ई० तक अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच कर्नाटक में तीन युद्ध हुए। इनमें अंग्रेज़ विजयी रहे और भारत में अंग्रेज़ी सत्ता की स्थापना का मार्ग खुल गया।

भारत की अर्थव्यवस्था पर अंग्रेज़ों का अधिकार-मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद देश में फैली अशांति के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। भारतीय व्यापार पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार कर लिया। इसलिए भारत के हस्तशिल्प तथा दस्तकार बर्बाद हो गए। इससे पहले भारत अपने हस्तशिल्पों के लिए संसारभर में प्रसिद्ध था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 9 कहाँ, कब तथा कैसे

कहाँ, कब तथा कैसे PSEB 8th Class Social Science Notes

  • इतिहास का काल-विभाजन – संसार के इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक काल में बांटा गया है। इसी प्रकार भारतीय इतिहास को भी तीन भागों में बांटा गया है-प्राचीन, मध्यकालीन तथा
  • आधुनिक काल – आधुनिक काल यूरोप में आधुनिक काल का आरम्भ 16वीं शताब्दी में हुआ, जबकि भारत में इसका आरम्भ 18वीं शताब्दी में हुआ।
  • भारत में आधुनिक काल – आधुनिक काल में भारत में नयी शक्तियों का उदय हुआ, यूरोपीय शक्तियां भारत में आईं तथा भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना हुई। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से देश में जागृति आई और राष्ट्रीय आन्दोलन चला जिसने 1947 में भारत को स्वतन्त्रता दिलाई।
  • आधुनिक भारत के इतिहास के स्रोत – आधुनिक भारत के इतिहास के मुख्य स्रोत हैं-(1) पुस्तकें (2) सरकारी दस्तावेज़ (3) समाचार-पत्र, मैगज़ीन तथा उपन्यास (4) ऐतिहासिक इमारतें (5) चित्रकारी तथा मूर्तिकला के नमूने (6) राजनीतिक नेताओं के पत्र आदि।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 3 नगरीय समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 3 नगरीय समाज

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाजों में आवास हीनता के कारण नहीं हैं-
(क) आवास की कमी
(ख) आवास का अधिकार मिलना
(ग) भूमि का अधिकार मिलना .
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में लोगों का स्थान परिवर्तन कहलाता है :
(क) नगरीय समाज
(ख) ग्रामीण समाज
(ग) नगरवाद
(घ) नगरीकरण।
उत्तर-
(घ) नगरीकरण।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3.
नगरीय समाज में झुग्गी-झोंपड़ी (स्लमज) की वृद्धि का कारण है :
(क) निर्धनता
(ख) बढ़ती जनसंख्या
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) दोनों में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) (क) तथा (ख) दोनों।

प्रश्न 4.
कौन-सी सामाजिक समस्याएं नगरीय समाज में पाई जाती हैं?
(क) अपराध
(ख) नशीली दवाओं का सेवन
(ग) शराबखोरी
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज में आवासहीनता का क्या कारण है ?
(क) आवास की कमी
(ख) स्वयं निर्भरता
(ग) विकास
(घ) मंडीकरण।
उत्तर-
(क) आवास की कमी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. नगरीय समाज आकार में ……………. तथा स्वभाव में ………………. होता है।
2. नगरीय समाज अपने ………………. श्रम विभाजन के लिए जाना जाता है।
3. नगरीय समाज में सामाजिक नियन्त्रण के ………………. साधन पाए जाते हैं।
4. आवास समस्या ………………. के नाम से भी जानी जाती है।
5. ………………. नगरीय जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
6. ………………. एवम ………………. नगरीय समाज की समस्याएं हैं।
उत्तर-

  1. बड़े, जटिल
  2. विशेषीकरण
  3. औपचारिक
  4. बेघर होना
  5. नगरवाद
  6. रहने की समस्या, झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. नगरीय समाज आकार में छोटे होते हैं।
2. व्यापार, उद्योग व वाणिज्य नगरीय आर्थिकता के मुख्य स्तम्भ हैं।
3. नगरीय समाज में सामाजिक गतिशीलता के अवसर कम हैं।
4. महानगर आवास समस्या के शिकार हैं।
5. झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां ग्रामीण समाज का अंग होती हैं।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आवास की कमी — मलिन बस्तियाँ
नगरीय जीवन की शैली — शहरी समाज
अस्तरीय आवास संरचना — विजायतीयता
विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों का अतः मिश्रण — नगरवाद
रस्मी संबंध — आवासहीनता
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आवास की कमी — आवासहीनता
नगरीय जीवन की शैली — नगरवाद
अस्तरीय आवास संरचना — मलिन बस्तियाँ
विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों का अतः मिश्रण — विजायतीयता

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. नगर का वह भू-खण्ड जहां निर्धनता तथा निम्न स्तर की जीवन दशाएं हों उसे क्या कहते हैं ? ।
उत्तर-झुग्गी-झोंपड़ी या झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां।

प्रश्न 2. भीड़-भाड़, गलियों का दोषपूर्ण होना, समुचित प्रकाश व्यवस्था का न होना आदि किस प्रकार के समाज की विशेषताएं हैं ?
उत्तर-ये सभी नगरीय समाज के लक्षण हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3. बड़े स्तर पर श्रम का विभाजन एवं विशिष्टीकरण किस समाज में पाया जाता है ?
उत्तर-नगरीय समाज में।

प्रश्न 4. वह दृष्टिकोण जहाँ वैयक्तिक हित, सामूहिक हितों पर हावी हो जाते हैं क्या कहलाता है ?
उत्तर-व्यक्तिवादिता (Individualism).

प्रश्न 5. अधिक व्यक्तियों में रहकर भी सबसे अनजान रहना क्या कहलाता है ?
उत्तर-औपचारिकता।

प्रश्न 6. नगरीय समाज में कौन-से संबंध प्रभावी होते हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज में औपचारिक संबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 7. जनजातीय समाज में किस प्रकार की आर्थिकता पाई जाती है ?
उत्तर-जनजातीय समाज में निर्वाह आर्थिकता देखने को मिलती है।

प्रश्न 8. नगरीय जनसंख्या का आकार क्या है ?
उत्तर-भारत में 37.7 करोड़ लोग या 32% जनसंख्या नगरों में रहती है।

प्रश्न 9. भारतीय जनगणना के अनुसार, नगरीय क्षेत्र क्या है ?
उत्तर- भारत की जनगणना के अनुसार वह क्षेत्र नगरीय समाज है जहां पर Municipality, कार्पोरेशन, कैन्ट क्षेत्र या Notified Town Area Committee है।

प्रश्न 10. नगरीय जनसंख्या का आकार क्या है ?
उत्तर-देखें प्रश्न 8.

प्रश्न 11. भारत में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों (स्लमज़) के लिए प्रयोग किए जाने वाले भिन्न नाम लिखें।
उत्तर-झुग्गी-झोपड़ी या मलिन बस्तियां।

प्रश्न 12. स्लमज़ में दो प्रकार के आपराधिक व्यवहारों के नाम लिखें।
उत्तर-अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, नशाखोरी, मद्यपान इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
नगरीय समाज से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नगरीय समाज वह समाज होता है जिसमें लोगों के बीच औपचारिक संबंध होते हैं, जहां अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों के लोग इकट्ठे रहते हैं, जो आकार में बड़े होते हैं व जहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर कृषि कार्यों में लगी होती है।

प्रश्न 2.
गैर-कृषि व्यवसाय की चर्चा करें।
उत्तर-
वह पेशे जो कृषि से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं होते उन्हें गैर कृषि पेशे कहा जाता है। ऐसे पेशे नगरों में आम मिल जाते हैं जहां की 75% जनसंख्या ग़ैर-कृषि पेशे अपनाती है। उदाहरण के लिए नौकरी, उद्योग, व्यापार इत्यादि।

प्रश्न 3.
व्यक्तिवाद क्या है ?
अथवा
व्यक्तिवादिता
उत्तर-
जब व्यक्ति केवल अपने बारे, अपनी सुख-सुविधाओं इत्यादि के बारे में सोचता है तो इस प्रक्रिया को व्यक्तिवाद कहते हैं। इसमें व्यक्ति को समाज या किसी अन्य की परवाह नहीं होती। वह केवल अपने बारे ही सोचता है तथा केवल अपने लाभ के ही कार्य करता है।

प्रश्न 4.
आप आवास से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आवास का अर्थ उस इमारत से है जिसमें लोग रहते हैं। यह वह भौतिक संरचना है जो हमें आँधी, तूफान, बारिश से सुरक्षा प्रदान करती है। आवास का स्तर कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि परिवार का आकार, आय, जीवन जीने का स्तर इत्यादि।

प्रश्न 5.
भीड़-भाड़ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भीड़-भाड़ का अर्थ है काफ़ी अधिक लोगों का होना। ग्रामीण लोग नगरों की तरफ जाते हैं जिस कारण नगरों की जनसंख्या बढ़ जाती है व वहां रहने के स्थान की कमी हो जाती है। एक ही कमरे में बहुत-से लोगों को रहना पड़ता है। इसे ही भीड़-भाड़ कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 6.
स्लमज (झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां) क्या होती है ?
उत्तर-
स्लमज वे बस्तियां होती हैं जहाँ मज़दूर व निर्धन लोग गंदे हालातों में तथा बिना किसी सुविधाओं के रहते हैं। साधनों की कमी के कारण इन्हें गंदे हालातों व झुग्गी-झोंपड़ियों में रहना पड़ता है जिसका उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
आप नगरीकरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें ग्रामीण लोग नगरों की तरफ जाते हैं, वहाँ बस जाते हैं तथा नगरों का विकास हो जाता है। इसमें लोग न केवल अपने गांव छोड़ देते हैं बल्कि अपने विचार, आदर्श, आदतें इत्यादि भी बदल देते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
नगरीय समाज की दो विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  • जनसंख्या का आकार-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि यहां की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। अधिक रोजगार की मौजूदगी, शिक्षा, स्वास्थ्य व मनोरंजन सुविधाओं की मौजूदगी ग्रामीण लोगों को नगरों की तरफ आकर्षित करती है।
  • गैर-कृषि पेशे-नगरीय समाज की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर-कृषि पेशों में लगी होती है। यहां श्रम विभाजन व विशेषीकरण की प्रधानता होती है।

प्रश्न 2.
आवास की समस्या के तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • घरों की कमी-नगरों में रहने वाले घरों की कमी होती है जिस कारण वहां घरों की समस्या बनी रहती है।
  • निर्धनता-नगरों की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है जिनमें बहुत से लोग निर्धन होते हैं जो घर नहीं खरीद सकते। इस कारण घरों की समस्या बनी रहती है।
  • अधिक जनसंख्या-जिस तेज़ी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है उतनी तेज़ी से नए घर नहीं बढ़ रहे हैं। इस वजह से भी घरों की समस्या बनी रहती है।

प्रश्न 3.
नगरीय समाज में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों (स्लमज) के लिए ज़िम्मेदार तीन कारणों का उल्लेख करें।
अथवा
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां (स्लमज) नगरीय समाज की सामाजिक समस्या है। विवेचना कीजिए।
उत्तर-

  • ग्रामीण-नगरीय प्रवास-ग्रामीण लोग नगरों में काम की तलाश में प्रवास करते हैं परन्तु उनके पास नगरों में रहने का स्थान नहीं होता। इस कारण उन्हें मलिन बस्तियों में रहना पड़ता है।
  • नगरीकरण-नगरों में बहुत-सी सुविधाएं मिलती हैं जिस कारण ग्रामीण लोग इनकी तरफ आकर्षित होते हैं। इन लोगों को रहने का अन्य स्थान नहीं मिलता जिस कारण इन्हें झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है।
  • निर्धनता-निर्धनता झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों को बढ़ाने में सहायता करती है। लोगों के पास अपना घर खरीदने के लिए पैसा नहीं होता जिस कारण वे मलिन बस्तियों में रहते हैं।

प्रश्न 4.
नगरीय समाज में दो मुख्य परिवर्तनों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • नगरीय समाज में धीरे-धीरे पेशे बढ़ रहे हैं। पहले कुछ ही पेशे मौजूद होते थे परन्तु औद्योगीकरण व पढ़ने-लिखने के कारण पेशे बढ़ रहे हैं। लोग उन्हें अपना रहे हैं तथा बेरोज़गारी को दूर कर रहे हैं।
  • नगरीय समाज में व्यक्तिवादिता बढ़ रही है। अब लोगों को यह भी नहीं पता होता कि उनके पड़ोस में कौन रह रहा है। उन्हें केवल अपने हितों के बारे में पता होता है जिस कारण वह कुछ भी करने को तैयार होते हैं।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
नगरीय समाज एक ऐसा समाज है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैला होता है, जहाँ की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है, जहाँ बहुत-से पेशों की भरमार होती है; जहाँ लोगों में काफ़ी अधिक विविधता होती है, जहाँ व्यक्तिवादिता का बोलबाला होता है; जहाँ सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन होते हैं तथा जहाँ पारिवारिक रिश्तों का काफी कम महत्त्व होता है। यहाँ पर केंद्रीय परिवार पाया जाता है जहाँ स्त्रियों को उच्च स्थिति प्राप्त होती है। इस समाज में व्यक्ति केवल स्वयं के लिए ही जीता है तथा व्यक्तिवादिता के साथ ही जीता है।

प्रश्न 6.
आप नगरीय समाज से क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर-

  • जनसंख्या का आकार-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि यहां की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। अधिक रोजगार की मौजूदगी, शिक्षा, स्वास्थ्य व मनोरंजन सुविधाओं की मौजूदगी ग्रामीण लोगों को नगरों की तरफ आकर्षित करती है।
  • गैर-कृषि पेशे-नगरीय समाज की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर-कृषि पेशों में लगी होती है। यहां श्रम विभाजन व विशेषीकरण की प्रधानता होती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाज पर विस्तारपूर्वक टिप्पणी लिखें।
अथवा
नगरीय समाज को परिभाषित कीजिए। नगरीय समाज की मुख्य विशेषताओं की विस्तृत रूप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में शहर तथा शहरों में रहने वाले लोग तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में आजकल के समय में 5000 से भी अधिक शहर तथा कस्बे हैं। शहरों में बढ़ रही जनसंख्या के कारण वहां के लोगों का जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ है। मध्य तथा उच्च वर्ग के लोगों की आवश्यकताएं तो पूर्ण हो जाती हैं परन्तु निम्न वर्ग के लोगों के लिए अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करना काफ़ी मुश्किल हो जाता है।

साधारण शब्दों में शहर एक ऐसा औपचारिक तथा फैला हुआ समुदाय है जिसका निर्धारण एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर तथा शहरी विशेषताओं के आधार पर होता है। शब्द ‘शहर’ अंग्रेज़ी भाषा के शब्द CITY का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ है नागरिकता। इस प्रकार अंग्रेजी भाषा का शब्द URBAN लातिनी भाषा के शब्द URBANUS से निकला है जिसका अर्थ भी शहर ही है। शहर शब्द के अर्थ को अच्छी तरह समझने के लिए अलगअलग विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है :

जनसंख्या के आधार पर परिभाषा (Definition on the basis of Population)-अमेरिका के जनगणना ब्यूरो (Census Bureau of America) के अनुसार शहर ऐसे स्थान को कहते हैं जहां की जनसंख्या 25,000 अथवा इससे अधिक हो। इस प्रकार मित्र में 11,000 तथा फ्रांस में 2,000 से ऊपर जनसंख्या वाले स्थानों को शहर का नाम दिया जाता है। हमारे देश भारत में 5,000 से अधिक जनसंख्या वाले समुदाय को शहरी क्षेत्र कहा जाता है जहां की जनसंख्या का घनत्व 400 अथवा इससे अधिक हो तथा 75% या इससे अधिक लोग गैर कृषि के कार्यों में लगे हुए हों।

पेशे के आधार पर परिभाषाएं (Definitions on the basis of Occupation)-ऐसा क्षेत्र जहां लोगों का मुख्य पेशा कृषि नहीं बल्कि और कुछ होता है, उसको शहर माना जाता है।

  • विलकाक्स (Willcox) के अनुसार, “शहर का अर्थ उन सभी क्षेत्रों से है जहां प्रति वर्ग मील में जनसंख्या का घनत्व 1000 व्यक्तियों से अधिक हो तथा वहां व्यावहारिक रूप में कृषि न की जाती हो।”
  • बर्गल (Bergal) के अनुसार, “शहर एक ऐसी संस्था है जहां के अधिकतर निवासी कृषि के कार्यों के अतिरिक्त
    और उद्योगों में लगे हों।”
  • आनंद कुमार (Anand Kumar) के अनुसार, “शहरी समुदाय वह जटिल समुदाय है जहां अधिक जनसंख्या होती है, द्वितीय संबंध होते हैं जो कि साधारणतया पेशागत वातावरणिक अंतरों पर आधारित होते हैं।”
  • लइस ममफोर्ड (Lewis Mumford) के अनुसार, “शहर वह केन्द्र है जहां समुदाय की अधिक-से-अधिक शक्ति तथा संस्कृति का केन्द्रीकरण होता है।”
  • लुइसवर्थ (Louisworth) के अनुसार, “शहर में सामाजिक भिन्नता वाले लोग एक अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में रहते हैं।”
  • थिऔडोरसन तथा थिऔडोरसन (Theodorson and Theodorson) के अनुसार, “शहर एक ऐसा समुदाय है जिसमें गैर कृषि पेशों की प्रमुखता, जटिल श्रम विभाजन से पैदा हुआ विशेषीकरण तथा स्थानीय सरकार की औपचारिक व्यवस्था मिलती है।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि शहरी समुदाय आकार में बड़े होते हैं, द्वितीय संबंधों की प्रधानता होती है, बहुत अधिक पेशे होते हैं, श्रम विभाजन, विशेषीकरण तथा सामाजिक गतिशीलता जैसे लक्षण पाए जाते हैं।

विशेषताएं (Characteristics) हमारे देश में जिस भी क्षेत्र की जनसंख्या 5000 से अधिक हो तथा 75% से अधिक जनसंख्या गैर कृषि के कार्यों में लगी हो, उसको नगर का नाम दिया जाता है। नगरीय समाज की कुछ विशेषताएं अथवा लक्षण होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. अधिक जनसंख्या (Large Population)-नगरीय समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या में घनत्व का अर्थ है कि प्रतिवर्ग कि०मी० में कितने लोग रहते हैं। दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व 9200 लोगों के करीब है। कम या अधिक जनसंख्या के आधार पर नगरीय को अलग-अलग वर्गों जैसे कि छोटे नगर, मध्यम नगर अथवा महानगरों में बांटा जा सकता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि जैसे महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ से भी अधिक है जबकि भारत के कई राज्यों की जनसंख्या एक करोड़ से भी कम है। नगरों में औद्योगिक घरानों, शिक्षा संस्थाओं, व्यापारिक केन्द्रों तथा वाणिज्य केन्द्रों की भरभार होती है जिस कारण नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण ही नगर में निर्धनता, बेरोज़गारी, अपराध, भुखमरी, झुग्गी झोपड़ी बस्तियों इत्यादि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

2. रहने के स्थान की कमी (Less place of Living)–नगरों की एक और मुख्य विशेषता रहने के स्थानों की कमी होती है। यह इस कारण है कि नगरों की जनसंख्या बहुत अधिक होती है। बड़े-बड़े नगरों में तो यह बहुत ही गंभीर समस्या है। बहुत-से गरीब लोग सड़कों के किनारे, पेड़ों के नीचे या फिर मुर्गियों की झोंपड़ियों में अपनी रातें व्यतीत करते हैं। नगरों में रहते हुए मध्य वर्गीय परिवार एक छोटे से घर में ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं जहां न तो बच्चों के लिए खेलने की जगह होती है तथा न ही बच्चों के सोने या पढ़ने के लिए अलग कमरा होता है। इस कारण ही कई बार बच्चे वह सब भी देख लेते हैं जोकि उन्हें नहीं देखना चाहिए। इस प्रकार नगरों में रहने के लिए स्थान बहुत ही कम होता है।

3. द्वितीय तथा औपचारिक संबंध (Secondary and Formal Relations)-नगरीय समाजों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण सभी लोगों के आपस में प्राथमिक संबंध या आमने-सामने के संबंध नहीं होते हैं। नगरों में लोगों में अधिकतर औपचारिक संबंध विकसित होते हैं। यह संबंध अस्थायी होते हैं। व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर और व्यक्तियों से संबंध स्थापित कर लेते हैं तथा आवश्यकता पूर्ण होने के बाद इन संबंधों को खत्म कर लेते हैं। इस प्रकार द्वितीय तथा औपचारिक संबंध नगरीय समाज का आधार होते हैं।

4. अलग-अलग पेशे (Different Occupations) नगर अलग-अलग पेशों के आधार पर ही विकसित हैं। नगरों में बहुत-से उद्योग, पेशे तथा संस्थाएं पाई जाती है जिनमें बहुत-से व्यक्ति अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं। डॉक्टर, मैनेजर, इंजीनियर विशेषज्ञ मज़दूर तथा परिश्रम करने वाले मजदूर इत्यादि ऐसे हज़ारों पेशे या कार्य शहरी समाजों में मौजूद होते हैं। इन अलग-अलग पेशों की पूर्ति के लिए अधिक जनसंख्या का होना बहुत आवश्यक है।

5. आर्थिक वर्ग विभाजन (Division in Economic Classes)–नगरीय समुदाय में व्यक्ति की जाति, धर्म अथवा रंग को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता परन्तु जनसंख्या को आर्थिक आधारों पर कई आर्थिक वर्गों में बांटा जाता है। शहरों में जनसंख्या को केवल पूँजीपति तथा मज़दूर दो वर्गों में ही नहीं बाँटा जाता बल्कि बहुत-से छोटे-छोटे वर्ग तथा उपवर्ग भी आर्थिक स्थिति के आधार पर पाए जाते हैं। वर्गीय आधार पर उच्च-निम्न का अंतर भी शहरों में पाया जाता है।

6. प्रतियोगिता (Competition)-नगरीय समुदाय में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के मौके प्राप्त होते हैं। नगरों में पढ़े-लिखे तथा योग्य व्यक्ति भी बहुसंख्या में मिल जाते हैं इस कारण ही शहरों की शैक्षिक संस्थाओं में दाखिला प्राप्त करने के लिए, नौकरी प्राप्त करने के लिए तथा नौकरी में उन्नति प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रतियोगिता होती है। औद्योगिकीकरण के विकसित होने से तो नगरों में प्रतियोगिता और बढ़ गई है।

7. व्यक्तिवादिता (Individualism)-नगरीय समुदाय में रहने वाले लोगों में व्यक्तिवादिता का गुण भी देखने को मिलता है। नगरों में लोगों के बीच सामुदायिक भावना की जगह व्यक्तिवादिता की भावना देखने को मिल जाती है। नगरों में व्यक्ति केवल अपने तथा अपने हितों के बारे में सोचता है। व्यक्ति अपने जीवन का एक ही उद्देश्य मानता है तथा वह है अधिक-से-अधिक पैसे इकट्ठे करना तथा अधिक-से-अधिक सुख सुविधाओं के साधन प्राप्त करना। व्यक्ति में इस व्यक्तिवादिता का गुण केवल आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पारिवारिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी यह आ चुका है।

8. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरों में अधिक सामाजिक गतिशीलता पाई जाती है। नगरों में लोग अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए या अच्छी नौकरी के लिए एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लोगों में स्थानीय गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक गतिशीलता देखने को भी मिल जाती है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उसके जीवन में कई बार समाज में उसकी स्थिति उच्च या निम्न होती रहती है।

9. स्त्रियों की उच्च स्थिति (Higher Status of Women) नगरीय समाजों में स्त्रियों की स्थिति ग्रामीण समाजों की तुलना में काफी उच्च होती है। नगरीय समाजों में हम स्त्रियों को बिना किसी प्रतिबंध के पुरुषों की तरह ही प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हुए देख सकते हैं। नगरों में पर्दा प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों को शिक्षा न देना, स्त्रियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध इत्यादि बहुत ही कम या न के बराबर होते हैं। इस कारण ही नगरों में स्त्रियों को अपना व्यक्तित्व विकसित करने का मौका प्राप्त हो जाता है। नगरों में स्त्रियों को मर्दो के जैसे प्रत्येक क्षेत्र में मों जैसी भूमिकाएं निभाते हुए देखा जा सकता है।

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10. कम पारिवारिक नियंत्रण (Less Family Control)-नगरीय समाजों के प्राथमिक संबंध कम होते हैं तथा सामुदायिक भावना की भी कमी होती है। नगरों में व्यक्ति को खाना बनाने, कपड़े धोने तथा बच्चों की देख-रेख के लिए क्रेचों इत्यादि की सुविधा प्राप्त हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए परिवार के और सदस्यों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इस कारण ही नगरों में स्त्रियां घर के कार्य छोड़ कर दफ्तरों में नौकरियां करती हैं। इस का कारण यह है कि स्त्रियों की बच्चों तथा परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों को और संस्थाओं ने संभाल लिया है। इस प्रकार पारिवारिक संबंधों का स्थान पैसे ने ले लिया है। इस कारण ही परिवार की अपने सदस्यों पर नियंत्रण में कमी आयी है।

11. सामाजिक समस्याओं का केन्द्र (Centre of Social Problems)-नगरीय समाजों ने भी कई प्रकार की समस्याओं को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आजकल के समाजों में जितनी भी समस्याएं हैं, उनमें से बहुत-सी समस्याएं नगरों के कारण ही हैं। अपराध, भ्रष्टाचार, शराबखोरी, निर्धनता, बेरोज़गारी, पारिवारिक विघटन, अलग-अलग वर्गों में संघर्ष नैतिक कीमतों में कमी इत्यादि जैसी बहुत-सी समस्याओं का केन्द्र नगर ही है। शहरों की जनसंख्या तथा शहरों का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है तथा इस कारण सभी समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं।

प्रश्न 2.
आवास से क्या अभिप्राय है ? आवास के उत्तरदायी विभिन्न कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
आवास का अर्थ है वह इमारत जिसमें लोग रहते हैं। इसका अर्थ है वह भौतिक संरचना जो लोगों को तूफान, अंधेरी, बारिश इत्यादि से सुरक्षा प्रदान करती है। अगर आवास न हो तो लोगों को खुले आसमान के नीचे रहना पड़ेगा तथा वह किसी भी प्रकार से अपनी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे। किसी के भी आवास का स्तर कई कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि परिवार की आय कम है या अधिक है, परिवार छोटे आकार का है या बड़े आकार का है, उनका जीवन जीने का तरीका क्या है तथा परिवार का शिक्षा स्तर कितना है।

हमारा देश भारत अभी भी लाखों लोगों की मूलभूत घर की आवश्यकता पूर्ण नहीं कर पा रहा है। रहने का स्थान व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। स्वतन्त्रता के 69 वर्ष बाद भी हमारा देश घरों की समस्या, विशेषतया निर्धन लोगों के लिए से जूझ रहा है। देश की बढ़ती नगरीय जनसंख्या ने इस समस्या को और बढ़ाया है। काम की तलाश में ग्रामीण जनता का नगरों की तरफ प्रवास भी नगरीय आवास तथा मूलभूत सुविधाओं पर काफ़ी अधिक प्रभाव डालता है। इस कारण नगरों में माँग तथा सप्लाई में अंतर बढ़ जाता है तथा आवास या घरों की कमी हो जाती है।

पिछले कुछ समय से नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है कि प्रत्येक व्यक्ति को घर प्रदान करना लगभग नामुमकिन हो गया है। इस कारण आवास की समस्या, जिसे आवासहीनता भी कहा जाता है, नगरों में काफ़ी बड़ी समस्या बनती जा रही है। नगरों में रहने वाले स्थानों पर इतना दबाव होता है कि बहुत-से लोग सड़कों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन व झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में रहने को बाध्य होते हैं। यह कहा जाता है कि नगरों की आधी जनसंख्या या तो गंदे घरों में रहती है या उन्हें अपनी आय का लगभग 20% घर के किराएं के रूप में देना पड़ता है। बड़े नगर जैसे कि मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली व चेन्नई इस समस्या से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं।

आवास की समस्या के कई कारण होते हैं, जैसे कि-

  • घरों की कमी।
  • भूमि की मलकीयत।
  • बेघर व्यक्ति की व्यक्तिगत स्थिति।
  • घर की मलकीयत।

प्रश्न 3.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती क्या है ? विस्तारपूर्वक टिप्पणी करें।
उत्तर-
हमारे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इस जनसंख्या के बढ़ने से हमारे नगरों में बहुत-सी समस्याएं बढ़ रही हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या जो कि हमें बहुत अधिक तंग कर रही है वह है शहरों में रहने की समस्या। शहरों में लोगों को रहने के लिए घर नहीं मिलते तथा अगर मिलते भी हैं तो वह भी बहुत महंगे रेटों पर मिलते हैं जोकि एक आदमी या ग़रीब व्यक्ति खरीद नहीं सकता है, परन्तु उनको अपने कार्य के लिए शहरों में रहना ही पड़ता है। इसलिए उन्हें झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। इस प्रकार झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां नगरों में एक महत्त्वपूर्ण तथा गंभीर समस्या बनकर उभरी है। उनको झुग्गियां, चालें, झोंपड़पट्टी, बस्तियां इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है।

इस तरह हम झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि, “गंदे घरों या इमारतों का वह समूह जहां ज़रूरत से अधिक लोग जीवन न जीने के हालातों में रहते हैं, जहां निकासी का सही प्रबन्ध न होने के कारण या सुविधाओं के न होने के कारण लोगों को गंदे वातावरण में रहना पड़ता है तथा जिससे उन के स्वास्थ्य और समूह में रहने वाले लोगों की नैतिकता पर ग़लत असर पड़ता है।”

इस तरह से झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती नगर में एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां रहने का स्थान बहुत ही घटिया होता है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों को हम एक सामाजिक तथ्य के रूप में भी देख सकते हैं। इस प्रकार झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में हम निम्नलिखित चीज़ों को आसानी से देख सकते हैं

  1. जनसंख्या का अधिक घनत्व (More density of population)
  2. लोगों की भीड़ (Crowd of people)
  3. गंदे पानी की निकासी न होना (No Sanitation)
  4. गंदे घर (Substandard Houses)
  5. अपराध (Crime)
  6. निर्धनता (Poverty)।

इस तरह से झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में बहुत-से लोग इकट्ठे मिल कर जीवन न जीने वाले वातावरण में रहते हैं, जहां बहुत अधिक निर्धनता, गंदे घर होते हैं, जहां गंदे पानी की निकासी नहीं होती है। यह ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां कि व्यक्ति जीवन नहीं जी सकता तथा जहां का वातावरण इस लायक नहीं होता कि व्यक्ति अच्छी तरह जीवन जी सके।

2001 के Census के अनुसार झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती वह है-

  • जिसको कि राज्य सरकार, स्थानीय सरकार अथवा केन्द्रशासित प्रशासन द्वारा झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती घोषित कर दिया गया है।
  • वह तंग क्षेत्र जहां कम-से-कम 300 लोग रहते हैं अथवा जहां 60-70 घर गंदे ढंग से बने हुए हैं, जहां का वातावरण स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता है, जहां का Infrastructure बहुत घटिया होता है तथा जहां पीने के पानी और निकासी की समस्या होती है।

झुग्गी-झोंपड़ी की विशेषताएं (Characteristics of Slums)-

1. रहने के स्थान की समस्या (Problem of place of living)—झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की सबसे पहली महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन में रहने के स्थान मिलने की समस्या होती है। लोग नगरों में कार्य की तलाश में अपने गांव के घर बार छोड़ कर आते हैं। उनको नगर में कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहने का स्थान या घर नहीं मिलता है। इन बस्तियों में एक ही कमरे में 8-10 व्यक्ति बहुत ही बुरे हालातों में रहते हैं तथा खाना बनाते हैं। इस प्रकार से इन बस्तियों में रहने के स्थानों की समस्या होती है।

2. अपराधों से भरपूर (Full of Crimes)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां अपराधों से भरपूर होती हैं। यहां रहने वाले लोगों में से अधिकतर लोगों के व्यवहार विघटित होते हैं। विघटित व्यवहार में हम अपराध वेश्यावृत्ति, बाल अपराध, आत्म हत्या, पारिवारिक विघटन, शराबनोशी, नशे का प्रयोग इत्यादि ले सकते हैं । झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में नैतिकता नाम की कोई चीज़ नहीं होती है। वहां रहने वाले लोगों में अनपढ़ता अधिक होती है तथा गलत व्यवहार की तरफ खुलापन अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में आमतौर पर अपराध की तरफ जाने के मौके व्यक्ति के लिए अधिक होते हैं।

3. सुविधाओं की कमी (Lack of Facilities)–झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में सुविधाओं की कमी होती है। यह बस्तियां आमतौर पर गैर-कानूनी होती हैं तथा किसी ओर की भूमि पर कब्जा करके बनायी होती है। गैर-कानूनी होने के कारण यहां सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधाएं जैसे कि बिजली, पानी, नालियां, सड़कें, गंदे पानी की निकासी इत्यादि भी नहीं मिलती है। इन सुविधाओं के न मिलने के कारण यहां रहने वाले लोगों के पास सुविधाओं की कमी होती है जिस कारण उन्हें नर्क जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है। यहां का वातावरण रहने लायक नहीं होता है तथा गंदगी से भरपूर होता है। गंदा पानी तथा बिजली का न होना इन बस्तियों की प्रमुख विशेषता है। बच्चे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं तथा कई बार मर भी जाते हैं। यहां पैदा होने वाले बच्चों को गम्भीर बीमारियां लगने के मौके काफ़ी अधिक होते हैं। गंदे पानी की निकासी नहीं होती तथा स्वास्थ्य सुविधाएं भी बहुत कम होती हैं।

4. बहुत अधिक जनसंख्या (Over Populated)-आमतौर पर झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बड़े-बड़े नगरों जैसे कि दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि में मिलती हैं। लोग गाँवों में अपने घर बार छोड़कर या छोटे शहरों से अच्छे कार्य की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं। शहरों में कोई न कोई कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहने की अच्छी जगह नहीं मिलती है। अच्छी जगह वाले फ्लैट या घर का किराया बहुत अधिक होता है तथा आम आदमी इतना अधिक किराया नहीं दे सकता है। इस कारण उसको रहने की सस्ती जगह ढूंढ़नी पड़ती है तथा सस्ती जगह तो बस्तियों में ही मिलती है लोग बहुत अधिक संख्या में यहां रहने के लिए आ जाते हैं तथा यहां की जनसंख्या बढ़ जाती है यहां तक कि एक ही कमरे में 8-10 लोग रहते भी हैं तथा खाना भी बनाते हैं।

5. सभ्य समाज से दूर (Away from Civilized Society)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहने वाले लोग सभ्य समाज से दूर गंदे वातावरण में रहते हैं। उन लोगों का सभ्य समाज से कोई सम्पर्क का साधन नहीं होता है। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को यह भी पता होता है कि यहां रहना उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है तथा यहां का वातावरण काफ़ी गंदा और दूषित है। परन्तु उन लोगों के पास वहां रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। वह तमाम उम्र ही गरीबी, बेरोज़गारी, अपराधों से संघर्ष करते रहते हैं तथा अपने आपको बेसहारा महसूस करते हैं। अच्छी सुविधाएं तो उनसे बहुत ही दूर होती हैं।

6. समस्याओं की भरमार (Full of Problems)-झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में प्रत्येक प्रकार की सामाजिक समस्या मिल जाती है। गरीबी, बेरोज़गारी, वेश्यावृत्ति, अपराध, बाल अपराध, हिंसा, नशों का प्रयोग, झुग्गी-झोंपड़ी आदतें, विघटित व्यवहार इत्यादि ऐसी समस्याएं हैं जो यहां मिल जाती हैं। रोज़ पैसे कमाने वाले मज़दूर रेहड़ी खींचने वाले, छोटे-मोटे चोर अपराधी इत्यादि यहां पर रहते हैं। एक ही कमरे में माता-पिता, बच्चे इत्यादि रहते हैं। छोटी आयु में ही बच्चे वह सब कुछ देख लेते हैं जोकि उन्हें नहीं देखना चाहिए। फिर वह उन कार्यों में प्रति खींचे चले जाते हैं तथा छोटी उम्र में ही अपराध की तरफ बढ़ जाते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बड़े शहरों में मिलने वाले वह स्थान हैं जहां हज़ारों लोग कम स्थान पर गंदे वातावरण में रहते हैं। इन बस्तियों में अपराधों तथा समस्याओं की भरमार होती है तथा यहां का वातावरण अच्छा जीवन जीने के लायक नहीं होता है।

प्रश्न 4.
नगरीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का विस्तारपूर्वक वर्णन करो।
उत्तर-
आधनिक समय में नगरों में प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन आ रहे हैं क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहे हैं, उसी तरह से नगरीय व्यवस्था भी बदल रही है। नगरीय परिवार तथा अन्य संस्थाओं की बनावट
और कामों पर नए हालातों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। अब हम देखेंगे कि नगरों के ढांचे और कामों में किस तरह के परिवर्तन आए हैं

1. पारिवारिक ढांचे में परिवर्तन (Change in Family Structure)—शुरू के समाजों में संयुक्त परिवार की ज्यादा महानता रही है। पुराने ज़माने में हर जगह पर संयुक्त परिवार पाए जाते थे। पर आधुनिक समय में परिवार के ढांचे में बहुत बड़ा परिवर्तन यह आया है कि अब संयुक्त परिवार काफ़ी हद तक खत्म हो रहे हैं और इनकी जगह केन्द्रीय परिवार आगे आ रहे हैं। केन्द्रीय परिवार के आने से समाज में भी कुछ परिवर्तन आए हैं।

2. परिवारों का टूटना (Breaking up of Families)-पुराने समय में लड़की के जन्म को श्राप माना जाता था। उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए, औरत ने भी शिक्षा लेनी प्रारम्भ कर दी। पहले विवाह के बाद औरत सिर्फ़ पति पर ही निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफ़ी औरतें आर्थिक पक्ष से आजाद हैं और वह पति पर कम निर्भर हैं। कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज्यादा है। इन हालातों में पारिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहंकार एक-दूसरे से नीचा नहीं होता। इसके कारण दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण हैं जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे काफ़ी बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

3. शैक्षिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Educational Functions) समाज में परिवर्तन आने के साथ इसकी सभी संस्थाओं में भी परिवर्तन आ रहे हैं। परिवार जो भी काम पहले अपने सदस्यों के लिए करता था उनमें भी बहुत परिवर्तन आया है। शुरू के प्राचीन समाजों में बच्चा शिक्षा परिवार में ही लेता था और शिक्षा भी परिवार के परम्परागत काम से सम्बन्धित होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी और जो काम पिता करता था वही काम पुत्र भी करता था और पिता के अधीन पुत्र भी उस काम में माहिर हो जाता था। धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण बच्चा पढ़ाई करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में जाने लग गया और इसके कारण वह अब परिवार के परम्परागत कामों से दूर होकर कोई अन्य कार्य अपनाने लग गया है। इस तरह परिवार का शिक्षा का परम्परागत काम उसे कट कर शिक्षण संस्थाओं के पास चला गया है।

4. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Economic Functions)-पहले समय में परिवार आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र होता था। रोटी कमाने का सारा काम परिवार ही करता था ; जैसे-आटा पीसने का काम, कपड़ा बनाने का काम, आदि। इस तरह जीने के सारे साधन परिवार में ही उपलब्ध थे। पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके साथ-साथ परिवार के यह सारे काम बड़े-बड़े उद्योगों ने ले लिए हैं, जैसे कपड़ा बनाने का काम कपड़े की मिलें कर रही हैं, आटा चक्की पर पीसा जाता है इत्यादि। इस तरह परिवार के आर्थिक काम कारखानों में चले गए हैं। इस तरह आर्थिक उत्पादन की ज़िम्मेदारी परिवार से दूसरी संस्थाओं ने ले ली है।

5. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Religious Functions)-पुराने समय में परिवार का एक मुख्य काम परिवार के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा देना होता है। परिवार में ही बच्चे को नैतिकता और धार्मिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं। पर जैसे-जैसे नई वैज्ञानिक खोजें और आविष्कार सामने आएं, वैसे-वैसे लोगों का दृष्टिकोण बदलकर धार्मिक से वैज्ञानिक हो गया। पहले ज़माने में धर्म की बहुत महत्ता थी, परन्तु विज्ञान ने धार्मिक क्रियाओं की महत्ता कम कर दी है। इस प्रकार परिवार के धार्मिक काम भी पहले से कम हो गए हैं।

6. सामाजिक कामों में परिवर्तन (Changes in Social Functions)-परिवार के सामाजिक कार्यों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है। पुराने समय में पत्नी अपने पति को परमेश्वर समझती थी। पति का यह फर्ज़ होता था कि वह अपनी पत्नी को खुश रखे। इसके अलावा परिवार अपने सदस्यों पर सामाजिक नियन्त्रण रखने का भी काम करता था, पर अब सामाजिक नियन्त्रण का कार्य अन्य एजेंसियां, जैसे पुलिस, सेना, कचहरी आदि, के पास चला गया है। इसके अलावा बच्चों के पालन-पोषण का काम भी परिवार का होता था। बच्चा घर में ही पलता था और बड़ा हो जाता था और घर के सारे सदस्य उसको प्यार करते थे। पर धीरे-धीरे आधुनिकीकरण के कारण औरतों ने घर से निकलकर बाहर काम करना शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश के लिए क्रैच आदि खुल गए, जहां बच्चों को दूसरी औरतों द्वारा पाला जाने लग गया। इस तरह परिवार के इस काम में भी कमी आ गई है।
इसके अतिरिक्त पहले परिवार में बुजुर्गों की रक्षा होती थी, उनका पूरा सम्मान होता था पर आजकल पति-पत्नी दोनों काम करते हैं और उनकी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि उनके पास बुजुर्गों का ध्यान रखने के लिए समय ही नहीं होता। आजकल तो बुजुर्गों के लिए भी Old Age Homes खुल गए हैं, जहां उनका ध्यान बढ़िया तरीके से रखा जाता है। यहां बुजुर्ग अन्य बुजुर्गों को मिलते हैं और अपना समय आराम से व्यतीत कर लेते हैं इस तरह परिवार के सामाजिक कामों में काफ़ी कमी आई है।

7. पारिवारिक एकता में कमी (Lack in Family Unity)—पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे, पर आजकल परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए हैं। हर किसी के अपने-अपने आदर्श हैं। कोई एकदूसरे की दखल अन्दाजी पसन्द नहीं करता। इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं, खाते-पीते हैं पर एक-दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते उनमें एकता का अभाव होता है।

8. व्यक्तिवादी दृष्टिकोण (Individualistic Approach)-आजकल के समय में समाज के सभी सदस्यों में दृष्टिकोण व्यक्तिगत हो गए हैं। प्रत्येक सदस्य केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचता है। प्राचीन समय में तो ग्रामीण समाजों में परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को दबा देता था। व्यक्तिवादिता पर सामूहिकता हावी थी। व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छा की कोई कीमत नहीं होती थी। परन्तु आज कल के शहरी समाजों में ये चीजें बिलकुल ही बदल गई हैं। व्यक्ति अपनी इच्छा के आगे परिवार की इच्छा को दरकिनार कर देता है। उसके लिए समाज की इच्छा का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। उसके लिए केवल उसकी इच्छा का ही महत्त्व है। व्यक्ति का दृष्टिकोण अब व्यक्तिवादी हो गया है।

9. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the status of Women) शहरी स्त्रियों की स्थिति में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है। पहले ग्रामीण समाजों में स्त्रियों का जीवन नर्क से भी बदतर था। उसको सारा जीवन घर की चारदीवारी में ही रहना पड़ता था। सारा जीवन उसको परिवार तथा पति के अत्याचार सहन करने पड़ते थे। उसकी स्थिति नौकर या गुलाम जैसी थी परन्तु शहरी परिवारों की स्त्री पढ़ी-लिखी स्त्री है। पढ़ लिखकर वह दफ्तरों, फैक्टरियों, स्कूलों, कॉलेजों में नौकरी कर रही है तथा आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है। वह परिवार पर बोझ नहीं है बल्कि परिवार को चलाने वाली सदस्य है। यदि पति को कुछ हो जाए तो वह ही परिवार का पेट पालती है। इस कारण उसकी स्थिति मर्द के समान हो गई है। अब वह पति तथा ससुराल वालों के जुल्म नहीं सहती है, बल्कि तलाक लेकर पति से अलग होना पसन्द करती है। वैसे तो सरकार ने स्त्रियों की स्थिति ऊँचा करने के लिए कई प्रकार के कानून बनाए हैं। यदि पति या उसके घर वाले स्त्री का शोषण करते हैं तो वह उनको जेल में कैद भी करवा सकती है। आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर तथा साक्षर स्त्री को अपने अधिकारों का पता चल गया है तथा वह अब अपने अधिकारों के लिए समाज से लड़ सकती है। इस प्रकार शहरी परिवार की स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आ गया है तथा इस कारण ही शहरी परिवारों में तलाकों की संख्या बढ़ रही है।

9. रहने-सहने का उच्च स्तर (Higher Standard of Living) शहरी परिवारों में रहने-सहने का स्तर भी काफ़ी ऊँचा हो गया है। शहरी परिवार आकार में छोटे होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। इस कारण ही इसको केन्द्रीय परिवार कहा जाता है। ग्रामीण समाजों में व्यक्ति की सारी आय परिवार के पालन-पोषण में ही खर्च हो जाती है। बेकार सदस्य भी घर में बैठकर खाते हैं जिस कारण परिवार के रहने-सहने का स्तर काफ़ी निम्न होता है परन्तु शहरी परिवार आकार में छोटे होते हैं जिस कारण व्यक्ति की सम्पूर्ण आय में से कुछ पैसा बच जाता है। इसके साथ ही उसकी पत्नी भी नौकरी करती है या फिर कोई कार्य करती है जिस कारण परिवार की आर्थिक स्थिति काफ़ी अच्छी हो जाती है। अच्छी आर्थिक स्थिति के कारण परिवार ऐशो आराम के सारे सामान खरीद लेते हैं जिस कारण परिवार के रहने-सहने का स्तर काफ़ी ऊँचा हो जाता है।

10. सम्पत्ति का बराबर विभाजन (Equal distribution of Property) संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या काफ़ी अधिक होती है जिस कारण उनको परिवार की सम्पत्ति में से कुछ हिस्सा ही मिल पाता है। वह हमेशा ही ज्यादा हिस्से के लिए लड़ते रहते हैं परन्तु शहरी परिवारों से सदस्यों की संख्या कम होती है। घर में एक या दो बच्चे होते हैं। इस कारण ही परिवार में सम्पत्ति के विभाजन के समय कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होता है। आराम से ही सम्पत्ति का बराबर विभाजन हो जाता है। सभी बच्चों को समान हिस्सा मिल जाता है।

प्रश्न 5.
जनजातीय, ग्रामीण व नगरीय समाज में अंतर को विस्तार सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज 1

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS) –

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरों के लिए कौन-सा आधार सही है ?
(क) बड़ा आकार
(ख) अधिक जनसंख्या घनत्व
(ग) व्यक्तिवादिता
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सी विशेषता नगरीय समाज की नहीं है ?
(क) कम जनसंख्या घनत्व
(ख) खुला संगठन
(ग) जटिल जीवन
(घ) द्वितीय सामाजिक सम्बन्ध।
उत्तर-
(क) कम जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 3.
हमारे देश की कितनी जनसंख्या नगरों में रहती है ?
(क) 68%
(ख) 32%
(ग) 70%
(घ) 30%.
उत्तर-
(ख) 32%.

प्रश्न 4.
भारत की जनसंख्या कितनी है ?
(क) 102 करोड़
(ख) 112 करोड़
(ग) 121 करोड़
(घ) 131 करोड़।
उत्तर-
(ग) 121 करोड़।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 5.
नगरों का जनसंख्या घनत्व कम-से-कम …………. व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए।
(क) 200
(ख) 300
(ग) 100
(घ) 400.
उत्तर-
(क) 200.

प्रश्न 6.
………. नगरीय रहन-सहन का तरीका दर्शाता है।
(क) नगरवाद
(ख) नगरीकरण
(ग) संस्कृतिकरण
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(क) नगरवाद।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. 2011 में ……………. लोग नगरों में रहते थे।
2. …………….. समाज में आधुनिक सामाजिक जीवन की सभी सुविधाएं मौजूद होती हैं।
3. नगरीय समाजों में गतिशीलता ……………. होती है।
4. नगरीय समाजों में ……………… का महत्त्व होता है।
5. नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के ……………… साधन मिलते हैं।
6. नगरों में ……………. परिवार मिलते हैं।
उत्तर-

  1. 37.7 करोड़
  2. नगरीय
  3. अधिक
  4. व्यक्तिवादिता
  5. औपचारिक
  6. केंद्रीय।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. नगरों की 30% जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में लगी होती है।
2. नगरों में विशेषीकरण व श्रम विभाजन की कमी होती है।
3. नगरीय समाजों की जनसंख्या में विविधता पाई जाती है।
4. नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं।
5. नगरों में केंद्रीय परिवारों के स्थान पर संयुक्त परिवार सामने आ रहे हैं।
6. नगरों की प्रमुख समस्याएं झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों का होना है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. नगरीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-जब गांव के लोग नगरों में रहने के लिए चले जाएं तथा वहां के आदर्श, मूल्य, आदतें इत्यादि अपना लें तो इसे नगरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2. नगरवाद क्या है ?
उत्तर-नगरवाद नगरों में जीवन जीने का तरीका है जिसमें बाहर से आने वाले लोग उसे अपना लेते हैं।

प्रश्न 3. नगर क्या है ?
उत्तर-वह भौगोलिक क्षेत्र जहां 75% से अधिक जनसंख्या गैर-कृषि में लगी हो, उसे नगर कहते हैं।

प्रश्न 4. नगर की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-नगरों में श्रम विभाजन व विशेषीकरण पाया जाता है।

प्रश्न 5. कस्बा क्या होता है ?
उत्तर-जो क्षेत्र गाँव से बड़ा हो परन्तु नगर से छोटा हो उसे कस्बा कहते हैं।

प्रश्न 6. देश की कितनी जनसंख्या नगरों में रहती है ?
उत्तर-देश की लगभग 32% जनसंख्या या 37.7 करोड़ जनता नगरों में रहती है।

प्रश्न 7. नगर की जनसंख्या कम-से-कम कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-नगर की जनसंख्या कम-से-कम 5000 होनी चाहिए।

प्रश्न 8. नगरों का जनसंख्या घनत्व कितना होना चाहिए ?
उत्तर-नगरों का जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए।

प्रश्न 9. नगरीय समाजशास्त्र का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर-जार्ज सिम्मेल को नगरीय समाजशास्त्र का पिता माना जाता है।

प्रश्न 10. नगरीय समाज आकार में कैसे होते हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि वहां की जनसंख्या अधिक होती है।

प्रश्न 11. नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के कौन-से साधन होते हैं ?
उत्तर-नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन होते हैं जैसे कि पुलिस, कानून, न्यायालय इत्यादि।

प्रश्न 12. नगरों में किस प्रकार के परिवार मिलते हैं ?
उत्तर-नगरों में केंद्रीय परिवार मिलते हैं जो आकार में छोटे होते हैं।

प्रश्न 13. नगरीय अर्थव्यवस्था किस पर आधारित होती है ?
उत्तर-नगरीय अर्थव्यवस्था गैर-कृषि पेशों पर आधारित होती है।

प्रश्न 14. नगरीय समाज में कौन-से मुख्य मुद्दे हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज के दो मुख्य मुद्दे हैं-घरों की समस्या व झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां।

प्रश्न 15. आवास की समस्या का एक कारण लिखो।
उत्तर-काफ़ी अधिक जनसंख्या आवास की समस्या का प्रमुख कारण है।

प्रश्न 16. स्लमज के अलग-अलग नाम बताएं।
उत्तर-झुग्गी-झोंपड़ी, चाल, अहाता, झोपड़पट्टी इत्यादि।

प्रश्न 17. झुग्गी-झोंपड़ी की एक प्रमुख विशेषता बताएं।
उत्तर-काफी अधिक निर्धनता तथा बेरोज़गारी झुग्गी-झोंपड़ी की प्रमुख विशेषताएं हैं।

प्रश्न 18. 2011 की जनगणना के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र क्या है?
उत्तर- सारे स्थान जैसे नगरपालिका, नगर निगम, सैनिक छावनी बोर्ड, कस्बा जिनमें कई विशेषताएं होती हैं, अधिसूचित क्षेत्र की परिधि में आते हैं।

प्रश्न 19. लूइसवर्थ ने नगरवाद की कौन-सी चार विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर-लूइसवर्थ के अनुसार अस्थायीपन, प्रदर्शन, गुमनामी व वैयक्तिकता नगरवाद की चार विशेषताएं हैं।

प्रश्न 20. नगरीय समाज की अर्थव्यवस्था किस पर आधारित होती है?
उत्तर-नगरीय समाज की अर्थव्यवस्था मुख्यत: गैर कृषि व्यवसायों पर आधारित होती है।

प्रश्न 21. 1991 में भारत के कितने लोग झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहते थे?
उत्तर-1991 में भारत के 46.78 मिलियन लोग झुग्गी-झोंपडी बस्तियों में रहते थे।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस क्षेत्र को नगरीय क्षेत्र माना जाता है ?
उत्तर-
वह क्षेत्र जहां पर

  • कम-से-कम जनसंख्या 5000 हो।
  • 75% से अधिक जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में लगी हो।
  • जनसंख्या घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।

प्रश्न 2.
किसे नगरीय समाजशास्त्र का जनक माना जाता है तथा क्यों ?
उत्तर-
जार्ज सिम्मेल को नगरीय समाजशास्त्र का जनक माना जाता है। ऐसा इस कारण है कि उन्होंने नगरीय समाजशास्त्र के क्षेत्र में काफी अधिक योगदान दिया विशेषतया उनकी 1903 में छपी पुस्तक ‘The Metropolis and Mental Life’ के कारण।

प्रश्न 3.
नगरीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब गांवों की जनसंख्या नगरों की तरफ जाना शुरू कर दे तो इसे नगरीकरण कहते हैं। यह द्वि-पक्षीय प्रक्रिया है। इसमें न केवल लोग गांवों से नगरों की तरफ प्रवास करते हैं बल्कि इससे उनके पेशे, आदतों, व्यवहार, मूल्यों इत्यादि में भी परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 4.
नगरवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
नगरवाद नगरीय समाज का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है जो यहां के लोगों की पहचान तथा व्यक्तित्व को ग्रामीण व जनजातीय समाज से अलग करता है। यह जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है। यह नगरीय संस्कृति के प्रसार तथा नगरीय समाज के उद्विकास के बारे में बताता है।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज की सामाजिक विविधता।
उत्तर-
नगरीय समाज में अलग-अलग धर्मों, जातियों, संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के साथ मिल कर रहते हैं। इनके बीच अन्तक्रियाओं के कारण नई संस्कृति का विकास होता है। यह लोग अलग-अलग स्थानों से आकर नगरों में रहते हैं तथा अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। इसे ही सामाजिक विविधता कहते हैं।

प्रश्न 6.
श्रम विभाजन।
उत्तर-
नगरीय समाज में काफ़ी अधिक श्रम विभाजन देखने को मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति सभी कार्य नहीं कर सकता जिस कारण कार्य को विभाजित कर दिया जाता है। व्यक्ति जिस कार्य को सबसे बढ़िया ढंग से करता है उसे ही वह कार्य दिया जाता है। इसे ही श्रम विभाजन कहा जाता है।

प्रश्न 7.
नगरीय परिवार।
उत्तर-
नगरीय परिवार संयुक्त नहीं बल्कि केंद्रीय परिवार होते हैं जिसमें माता-पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। इनमें कम सहयोग होता है तथा नियन्त्रण भी कम होता है। इन परिवारों में माता-पिता के पास अपने बच्चों के साथ व्यतीत करने के लिए काफी कम समय होता है।

प्रश्न 8.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां।
उत्तर-
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां वह कालोनी होती है जिसे प्रवासी मज़दूरों ने बसाया होता है जो इतने निर्धन होते हैं कि वह अपना कार्य भी नहीं कर सकते। इन बस्तियों में रहने वाले लोग गंदे हालातों में रहते हैं क्योंकि उनके पास साधनों की कमी होती है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां नगरीय जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न ।

प्रश्न 1.
शहर का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
साधारण शब्दों में, शहर एक ऐसा रस्मी तथा फैला हुआ समुदाय है जिसका निर्धारण एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर तथा शहरी विशेषताओं के आधार पर होता है। शहर शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द CITY का हिन्दी रूपान्तर है। CITY शब्द लातीनी भाषा के शब्द CIVITAS से बना है जिसका अर्थ है नागरिकता। इस प्रकार शब्द URBAN भी लातीनी भाषा के शब्द URBANUS से निकला है जिसका अर्थ भी शहर ही है।

प्रश्न 2.
शहर की दो परिभाषाएं।
उत्तर-

  1. विलकाक्स (Willcox) के अनुसार, “शहर का अर्थ उन सभी क्षेत्रों से है जहां प्रति वर्ग मील में
  2. आनन्द कुमार (Anand Kumar) के अनुसार, “शहरी समुदाय वह जटिल समुदाय है जहां अधिक जनसंख्या होती है, द्वितीय सम्बन्ध होते हैं जोकि साधारणतया पेशागत वातावरणिक अन्तरों पर आधारित होते हैं।”

प्रश्न 3.
नगरीकरण।।
उत्तर-
नगरीकरण की प्रक्रिया से शहरों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होती है। शहर अचानक विकसित नहीं होते हैं, बल्कि ग्रामीण समुदाय धीरे-धीरे शहरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इस प्रकार जब ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे परिवर्तनों के कारण जब शहरों की विशेषताओं का विकास हो जाता है तो इन परिवर्तनों को नगरीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 4.
शहरी समाज-अधिक जनसंख्या।
उत्तर-
शहरी समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या के घनत्व का अर्थ है कि प्रति वर्ग किलोमीटर में कितने लोग रहते हैं। दिल्ली की जनसंख्या का घनत्व 9200 के करीब है। कम या अधिक जनसंख्या के आधार पर ही शहरों को अलग-अलग वर्गों जैसे कि छोटे शहर, मध्यम शहर अथवा महानगर में बांटा जा सकता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि महानगरों की जनसंख्या 1 करोड़ से भी अधिक है जबकि भारत में 13 राज्यों की जनसंख्या 1 करोड़ से भी कम है। शहरों में उद्योगों, शैक्षिक संस्थाओं, व्यापारिक केन्द्रों तथा वाणिज्य केन्द्रों की भरमार होती है जिस कारण शहरों में जनसंख्या का घनत्व काफ़ी अधिक होता है।

प्रश्न 5.
शहरी समाज-द्वितीय तथा औपचारिक सम्बन्ध।
उत्तर-
शहरी समाजों में जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण सभी लोगों के आपसी सम्बन्ध प्राथमिक अथवा आमने-सामने में नहीं होते। शहरों में लोगों में अधिकतर औपचारिक सम्बन्ध विकसित होते हैं। यह सम्बन्ध अस्थायी होते हैं। व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर और व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है तथा आवश्यकता पूर्ण हो जाने के बाद इन सम्बन्धों को ख़त्म कर लेता है। इस प्रकार द्वितीय तथा औपचारिक सम्बन्ध शहरी समाज का आधार होते हैं।

प्रश्न 6.
शहरी समाज-पेशों की भरमार।
उत्तर-
शहर अलग-अलग पेशों के आधार पर ही विकसित हुए हैं। शहरों में बहुत-से उद्योग-धन्धे तथा संस्थाएं पाई जाती हैं जिनमें बहुत-से व्यक्ति अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं। डॉक्टर, मैनेजर, इन्जीनियर, विशेषज्ञ मज़दूर, परिश्रम करने वाले मज़दूर, टीचर, प्रोफेसर, चपड़ासी व्यापारी इत्यादि जैसे अनगिनत कार्य अथवा पेशे शहरी समाजों में मौजूद होते हैं। इन अलग-अलग पेशों की पूर्ति के लिए अधिक जनसंख्या का होना भी बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
शहरी समाज-वर्गों में विभाजन।
उत्तर-
शहरी समुदाय में व्यक्ति की जाति, धर्म अथवा पेशे को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता परन्तु जनसंख्या को आर्थिक आधारों पर कई आर्थिक वर्गों में बांटा जाता है। शहर में जनसंख्या को केवल पूंजीपति तथा मज़दूर दो वर्गों में ही नहीं बांटा जाता बल्कि बहुत-से छोटे-छोटे वर्ग तथा उपवर्ग भी आर्थिक स्थिति के अनुसार पाए जाते हैं। वर्गीय आधार पर उच्च तथा निम्न का अन्तर भी शहरों में पाया जाता है।

प्रश्न 8.
शहरी समाज-अधिक सामाजिक गतिशीलता।
उत्तर-
लाभ प्राप्त करने के लिए अथवा अच्छी नौकरी के लिए एक स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लोगों में स्थानीय गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक गतिशीलता देखने को मिल जाती है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उसके जीवन में कई बार समाज में उसकी स्थिति उच्च अथवा निम्न होती रहती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण तथा शहरी समाज में अन्तर।
उत्तर-

  • ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार होते हैं जिसमें परिवार के सभी सदस्य मिल कर रहते हैं तथा शहरी समाज में केन्द्रीय परिवार पाए जाते हैं जिनमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं।
  • शहरी समाजों में पड़ोस का काफ़ी कम महत्त्व होता है तथा लोग अपने पड़ोसियों को जानते तक नहीं होते हैं। परन्तु ग्रामीण समाजों में पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है तथा बच्चे तो पलते भी वहीं हैं।
  • शहरी समाजों में विवाह को एक धार्मिक संस्कार न मानकर एक समझौता समझा जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है परन्तु ग्रामीण समाजों में विवाह को एक धार्मिक संस्कार समझा जाता है जिसे कभी नहीं तोड़ा जा सकता है।
  • शहरों में अधिक पेशे पाए जाते हैं परन्तु शहरों में कम पेशे पाए जाते हैं। (v) शहरों की जनसंख्या अधिक होती है परन्तु गांवों की जनसंख्या कम होती है।

प्रश्न 10.
नगरवाद।
उत्तर-
नगरवाद नगरीकरण का ही एक रूप है। नगरीकरण ऐसी प्रक्रिया है जो वास्तव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से शहरी अर्थ-व्यवस्था की तरफ परिवर्तन दिखाती है परन्तु नगरवाद की प्रक्रिया में लोगों की प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ से हटकर नगरों की तरफ बढ़ जाती है। वह गांवों को छोड़ कर शहरों की तरफ जाना चाहते हैं तथा यह चाहत ही नगरवाद की प्रक्रिया को उत्साहित करती है।

प्रश्न 11.
शहरी परिवार।
उत्तर-
शहरी परिवार ग्रामीण परिवारों के विपरीत होते हैं। शहरी परिवार संयुक्त नहीं, बल्कि केन्द्रीय परिवार होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। शहरी परिवारों के सदस्यों के बीच के सम्बन्ध ग्रामीण परिवारों की तरह गर्मजोशी से भरपूर नहीं होते। शहरी परिवारों के बहुत-से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए हैं। शहरी परिवार व्यक्ति की सभी ज़रूरतें पूर्ण नहीं करता है। शहरी परिवार को तलाक अथवा दूर जाने से किसी भी समय तोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 12.
शहरी परिवार-सीमित आकार।
उत्तर-
शहरी परिवार आकार में सीमित होते हैं क्योंकि यह केन्द्रीय परिवार होते हैं। केन्द्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना अलग ही केन्द्रीय परिवार बसा लेते हैं। शहरों में हमें बड़े परिवार देखने को नहीं मिलते हैं। कोई विशेष परिवार ही संयुक्त परिवार होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार न होने के कारण तथा केन्द्रीय परिवार होने के कारण इनका आकार सीमित होता है।

प्रश्न 13.
शहरी परिवारों में आ रहे परिवर्तन।
उत्तर-

  1. शहरी परिवार संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवारों में परिवर्तित हो रहे हैं।
  2. परिवार के शैक्षिक कार्य खत्म हो गए हैं तथा यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों इत्यादि ने ले लिए हैं।
  3. परिवार के धार्मिक कार्यों का महत्त्व कम हो गया है तथा लोगों के पास धार्मिक कार्य करने के लिए समय नहीं है।
  4. शहरी परिवार के सदस्यों पर व्यक्तिवादिता हावी हो गई है। व्यक्ति परिवार के स्थान पर केवल अपने बारे ही सोचता है।
  5. शहरी परिवारों में स्त्रियों की स्थिति भी बदल गई है। पढ़ने-लिखने तथा नौकरी करने के कारण उसकी स्थिति ऊंची हो गई है।

प्रश्न 14.
शहरी परिवारों के टूटने के कारण।
उत्तर-

  • पैसे का महत्त्व बढ़ जाने से परिवार बिखरने शुरू हो गए हैं।
  • लोगों में पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से उनकी मानसिकता बदल रही है जिस कारण परिवार टूट रहे हैं।
  • स्वतन्त्रता तथा समानता के आदर्श आगे आ रहे हैं जिस कारण घरों में टकराव बढ़ रहे हैं तथा परिवार टूट रहे हैं।
  • शहरों में सामाजिक गतिशीलता बढ़ गई है। लोग कामकाज करने के लिए घरों को भी छोड़ देते हैं जिस कारण परिवार टूट जाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 15.
विवाह अब धार्मिक संस्कार नहीं है। कैसे ?
उत्तर-
प्राचीन समय में विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि व्यक्ति धर्म की पूर्ति के लिए विवाह करवा रहा है। धर्म के अनुसार पुत्र-प्राप्ति, यज्ञ पूर्ण करने तथा ऋण उतारने व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। इसलिए व्यक्ति इन सभी कार्यों के लिए विवाह करवाता था। जिस स्त्री के साथ वह धार्मिक रीतियों के अनुसार विवाह करवाता था उसको वह तमाम उम्र छोड़ नहीं सकता था। परन्तु आजकल के समय में प्रेम विवाह हो रहे हैं, कचहरी में विवाह हो रहे हैं। अब विवाह को धार्मिक संस्कार नहीं समझा जाता बल्कि समझौता समझा जाता है जिसे किसी भी समय तोड़ा जा सकता है। अब विवाह में धर्म तथा धार्मिक संस्कार वाला महत्त्व खत्म हो गया है। विवाह को अब अच्छा जीवन जीने का साधन समझा जाता है।

प्रश्न 16.
शहरी अर्थव्यवस्था।
अथवा
नगरीय समाज की आर्थिक व्यवस्था पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
औद्योगिक क्रान्ति ने सबसे पहले यूरोप पर प्रभाव डाला तथा फिर एशिया के देशों पर अपना प्रभाव डाला। इससे लोगों ने गांव छोड़कर शहरों में जाना शुरू कर दिया तथा लोगों के आपसी सम्बन्ध बिल्कुल ही बदल गए। समाज ने तेजी से विकास करना शुरू कर दिया। उद्योग तेज़ी से लगने लग गए। मण्डियों का तेजी से विकास शुरू हुआ। इस कारण ही शहरी अर्थव्यवस्था भी विकसित हुई। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था वह होती है जिसमें बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, बड़े-बड़े उद्योग होते हैं, पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण होता है, लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है तथा पेशों की विभिन्नता होती है।

प्रश्न 17.
औद्योगिक अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
शहरी अर्थव्यवस्था को औद्योगिक अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर ही आधारित होती है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए होते हैं जिनमें हजारों लोग कार्य करते हैं। बड़े उद्योग होने के कारण उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। इन बड़े उद्योगों के मालिक निजी व्यक्ति होते हैं। उत्पादन मण्डियों के लिए होता है। यह मण्डियां न केवल देसी बल्कि विदेशी भी होती हैं। कई बार तो उत्पादन केवल विदेशी मण्डियों को ही ध्यान में रखकर किया जाता है। बड़े-बड़े उद्योगों के मालिक अपने लाभ के लिए ही उत्पादन करते हैं तथा मजदूरों का शोषण भी करते हैं।

प्रश्न 18.
श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण।
उत्तर-
शहरी समाजों में पेशों की भरमार तथा विभिन्नता पाई जाती है। प्राचीन समय में परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। सभी कार्य परिवार में ही हो जाया करते थे। परन्तु शहरों के बढ़ने से हज़ारों प्रकार के उद्योग विकसित हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर एक बड़ी फैक्टरी में हज़ारों प्रकार के कार्य होते हैं तथा प्रत्येक प्रकार का कार्य करने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है। उस कार्य को केवल वह व्यक्ति ही कर सकता है जिसे उस कार्य में महारत हासिल है। इस प्रकार शहरों में कार्य अलग-अलग लोगों के पास बंटे हुए होते हैं जिस कारण श्रम विभाजन बहुत अधिक प्रचलित है। लोग अपने-अपने कार्य में माहिर होते हैं तथा इस कारण ही विशेषीकरण का भी बहुत महत्त्व है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण अंग श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण हैं।

प्रश्न 19.
व्यावसायिक भिन्नता।
उत्तर-
प्राचीन समय में परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। उदाहरण के तौर पर गांव में परिवार ही कपास का उत्पादन करता था, कपास से धागा बनाता था तथा धागे को खड्डी पर चढ़ा कर कपड़ा बुनता था। इस ढंग से परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने कार्य में माहिर होता था। उनको कोई भी कार्य करने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था। परन्तु आजकल के समय में, चाहे गांव हो या शहर, प्रत्येक व्यक्ति अपना अलग ही कार्य करता है तथा वह उस कार्य का माहिर होता है। इस प्रकार समाज में मिलने वाले अलग-अलग देशों को व्यक्तियों द्वारा अपनाए जाने को व्यावसायिक भिन्नता का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 20.
शहरी समाज में व्यावसायिक भिन्नता के आधार पर मिलने वाली श्रेणियां।
उत्तर-
व्यावसायिक भिन्नता के आधार पर शहरी समाज में तीन प्रकार की श्रेणियां पाई जाती हैं तथा वे हैं-

  1. निम्न श्रेणी (Lower Class)
  2. EZT Suit (Middle Class)
  3. उच्च श्रेणी (Higher Class)।

प्रश्न 21.
निम्न श्रेणी।
उत्तर-
औद्योगिक क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्ति, मजदूर, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले मज़दूर, शहरों में रेहड़ी रिक्शा खींचने वाले लोग इत्यादि इस श्रेणी का हिस्सा होते हैं। उनका जीवन स्तर निम्न होता है क्योंकि वह अपने हाथों से कार्य करते हैं तथा उनके पास अपना परिश्रम बेचने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है। उनकी आय भी निम्न होती है जिस कारण यह लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते तथा इनके बच्चे भी निर्धन ही रह जाते हैं। यह लोग अनपढ़ होते हैं तथा उनको कानूनी सुरक्षा का पता नहीं होता है। वह अलग-अलग जातियों, धर्मों, इत्यादि से सम्बन्ध रखते हैं तथा वह कार्य भी अलग-अलग ही करते हैं। यह लोग गन्दी बस्तियों में रहते हैं। इस वर्ग को असंगठित वर्ग भी कहते हैं।

प्रश्न 22.
मध्य वर्ग।
उत्तर-
अमीर व्यक्तियों तथा निर्धन व्यक्तियों के बीच एक और श्रेणी आती है जिसको मध्य श्रेणी का नाम दिया जाता है। इस श्रेणी में साधारणतया नौकरी पेशा श्रेणी अथवा छोटे दुकानदार तथा व्यापारी होते हैं। यह श्रेणी उच्च श्रेणीके लोगों के पास नौकरी करती है अथवा सरकारी नौकरी करती है। छोटे-बड़े व्यापारी, छोटे-बड़े दुकानदार, क्लर्क, चपड़ासी, छोटे बड़े अफ़सर, छोटे-बड़े किसान, ठेकेदार, ज़मीन-जायदाद का कार्य करने वाले लोग, कलाकार इत्यादि सभी इस श्रेणी में आते हैं। उच्च श्रेणी इस श्रेणी की सहायता से ही निम्न श्रेणी पर अपना प्रभुत्त्व कायम रखती है।

प्रश्न 23.
उच्च श्रेणी।
उत्तर-
उच्च श्रेणी में बहुत अमीर व्यक्ति आ जाते हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति, बडे-बडे नेता इस श्रेणी में आ जाते हैं। उद्योगपतियों के पास पैसा होता है। वह अपने पैसे को निवेश करके बड़े-बड़े उद्योग स्थापित करते हैं, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग के लोगों को वहां पर नौकरी देते हैं। उद्योगपति का पैसे निवेश करने का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना होता है। बड़े-बड़े नेताओं के हाथ में देश की सत्ता होती है जिस कारण यह उच्च श्रेणी में होते हैं। इन सभी का जीवन स्तर ऊंचा होता है तथा रहने-सहने का स्तर भी काफ़ी ऊंचा होता है। अधिक पैसा तथा सत्ता हाथ में होने के कारण यह उच्च श्रेणी का हिस्सा होते हैं।

प्रश्न 24.
गन्दी बस्तियां।
उत्तर-
गन्दी बस्तियों को हम ढंग से परिभाषित कर सकते हैं कि गन्दी बस्तियां गन्दे घरों अथवा इमारतों का वह समूह होता है जहां आवश्यकता से अधिक लोग जीवन न जीने के हालातों में रहते हैं, जहां गन्दे पानी की निकासी का ठीक प्रबन्ध न होने के कारण अथवा सुविधाओं के न होने के कारण लोगों को गन्दे वातावरण में रहना पड़ता है तथा जिससे उनके स्वास्थ्य और समूह में रहने वाले लोगों की नैतिकता पर बुरा असर पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 25.
गन्दी बस्तियों की विशेषताएं।
उत्तर-

  • गन्दी बस्तियों में रहने के स्थान की समस्या होती है क्योंकि यहां पर काफ़ी अधिक जनसंख्या में लोग रहते हैं।
  • गन्दी बस्तियां अपराधों से भरपूर होती हैं क्योंकि यहां पर रहने वाले लोगों के व्यवहार बहुत विघटित होते हैं।
  • यहां पर रहने वाले लोगों के पास सुविधाओं की काफ़ी कमी होती है क्योंकि ये बस्तियां गैर-कानूनी ढंग से बनी होती हैं।
  • यहां की जनसंख्या काफी अधिक होती है क्योंकि निम्न श्रेणी के लोग शहर में कार्य करने आते हैं तथा पैसे न होने के कारण उन्हें यहीं पर रहना पड़ता है।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीकरण का क्या अर्थ है ? इसमें निर्धारित तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
नगरीकरण (Urbanization)-नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हैं। इस नगरीकरण की प्रक्रिया से शहरों की जनसंख्या बढ़ती है। शहर एक दम तथा एक तरफा ही विकसित नहीं होते हैं। बल्कि ग्रामीण समुदाय धीरे-धीरे शहरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इसलिए शहर की पहली अवस्था गांव ही है। इस प्रकार जब ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे परिवर्तनों के कारण शहरों की विशेषताओं का विकास हो जाता है तो इन परिवर्तनों को ही नगरीकरण कहते हैं।
बर्गल (Bergal) के अनुसार, “हम ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों में बदलने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।”
एंडरसन (Anderson) के अनुसार, “नगरीकरण एक तरफा प्रक्रिया नहीं बल्कि दो तरफा प्रक्रिया है। इसमें न केवल गांवों से शहरों की तरफ जाना तथा कृषि पेशों से कारोबार, व्यापार, सेवाओं तथा और पेशों की तरफ परिवर्तन ही शामिल हैं, बल्कि प्रवासियों की मनोवृत्तियां, विश्वासों, मूल्यों तथा व्यावहारिक प्रतिमानों में भी परिवर्तन शामिल होता है।”

साधारणतया नगरीकरण या शहरीकरण एक प्रक्रिया है जो असल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से शहरी अर्थव्यवस्था की तरफ परिवर्तन दिखाती है। जब ग्रामीण क्षेत्रों में धीरे-धीरे उद्योग, शैक्षिक संस्थाओं तथा व्यापारिक केन्द्रों इत्यादि का विकास हो जाता है तो अलग-अलग जातियों, वर्गों, धर्मों तथा सम्प्रदायों के लोग आकर बस जाते हैं जनसंख्या बढ़ जाती है तथा अलग-अलग रोज़गार के साधन विकसित हो जाते हैं। बड़े स्तर पर उत्पादन, यातायात तथा संचार के साधनों का विकास हो जाता है। इसके साथ ही संबंधों की संरचना भी बदल जाती है। द्वितीय संबंध विकसित हो जाते हैं। उस समय यह नगरीकरण की प्रक्रिया कहलानी शुरू हो जाती है। संसार के और देशों की तुलना में भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया अधिक विकसित नहीं हो सकी है क्योंकि यहां ग्रामीण समुदाय बहुत अधिक हैं तथा उनका मुख्य पेशा कृषि है।

नगरीकरण में निर्धारक तत्त्व (Determinants of Urbanization)-नगरीकरण को निर्धारित करने वाले तत्त्व अलग-अलग होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. अनुकूल भौगोलिक वातावरण (Favourable Geographical Environment) किसी भी शहर का विकास करने के लिए यह आवश्यक है कि वहां का भौगोलिक वातावरण सही हो। जहां कहीं भी भौगोलिक वातावरण अच्छा होता है वहां शहर विकसित हो जाते हैं। अच्छा भौगोलिक वातावरण होने से व्यक्ति अपनी रोज़ाना की आवश्यकताओं को आसानी से पूर्ण कर लेते हैं। हमारे अपने देश भारत में बहुत-से प्राचीन शहर गंगा, यमुना, सिंध इत्यादि नदियों के किनारे विकसित हुए थे। गंगा नदी के किनारों पर तो 100 से अधिक शहरों तथा कस्बों का विकास हुआ है।।

2. यातायात के साधनों की खोज (Invention of the means of Transport) प्राचीन समय में गांवों से अतिरिक्त भोजन को शहरों तक पहुँचाने के लिए पहिए, नावों, पशुओं इत्यादि का प्रयोग किया जाता था। धीरे-धीरे समय के साथ-साथ यातायात के और साधन विकसित हो गए जिस कारण शहर विकसित होने शुरू हो गए। इस प्रकार यातायात के साधनों ने भी शहरों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. अधिक खाद्य सामग्री (Surplus Food Products)-गांव के लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है। जब गांवों में लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक है। जब गांवों में लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक खाद्य सामग्री पैदा करने लग गए तो वहां अधिक लोगों ने रहना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इन जगहों पर जनसंख्या के बढ़ने के साथ नए उद्योगों तथा मण्डियों का विकास होना शुरू हो गया। इस कारण गांव शहरों में बदलने लग गए।

4. शहरों का आकर्षण (Attraction of the Cities) अपने जीवन को अधिक-से-अधिक सुखी तथा खुशहाल बनाने के लिए, शिक्षा प्राप्त करने लिए तथा रोजगार प्राप्त करने के लिए लोग दूर-दूर के क्षेत्रों से शहरों की तरफ खिंचे चले आते हैं। इस कारण ही शहरों का अधिक विकास हुआ। भारत में पाटलीपुत्र शहर के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय के कारण विकसित हुआ।

5. धार्मिक महत्त्व (Religious Importance)-भारत में कई स्थान ऐसे हैं जो धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाते हैं। इन स्थानों की धार्मिक उपयोगिता के कारण ही कई शहर विकसित हो गए। हरिद्वार, मथुरा, काशी, प्रयाग, आनंदपुर साहिब इत्यादि ऐसे शहर हैं जो धार्मिक उपयोगिता के कारण भी विकसित हुए।

6. सांस्कृतिक तथा आर्थिक महत्त्व (Cultural and Economic Importance) किसी भी शहर के विकास में उस क्षेत्र की सांस्कृतिक तथा आर्थिक सुविधाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे देश में भी कई शहर इस सांस्कृतियों तथा आर्थिक महत्त्व के कारण ही विकसित हुए; जैसे पाटलिपुत्र या आजकल के पटना का विकास नालंदा विश्वविद्यालय के कारण हुआ तथा ढाका व्यापारिक कारणों के कारण विकसित हुआ। इस प्रकार मुरादाबाद, बरेली इत्यादि शहर भी इन कारणों के कारण ही विकसित हुए। प्राचीन भारत में कई शहर इस कारण ही प्रचलित हुए क्योंकि वहां विशेष प्रकार के औद्योगिक पेशे अथवा दस्तकारी के कार्य प्रचलित थे।

7. सैनिक छावनियों की स्थापना (Establishment of Army Camps)-प्राचीन समय में साधारणतया जीतने वाला राजा हारे हुए राजा पर नियंत्रण रखने के लिए गांवों के इर्द-गिर्द सैनिक छावनियां स्थापित कर लेते थे। धीरे-धीरे इन गांवों के इर्द-गिर्द सैनिक छावनियों ने शहरों का रूप धारण कर लिया। दिल्ली, कलकत्ता, आगरा इत्यादि जैसे शहर इस कारण ही विकसित हुए।
इस प्रकार इन तत्त्वों को देखकर हम कह सकते हैं कि यह तत्त्व शहरों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2.
नगरीय परिवार की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1. केन्द्रीय परिवार (Nuclear Family) ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार पाए जाते हैं जिसमें दादादादी, माता-पिता, विवाहित तथा बिन ब्याहे बच्चे, चाचा-चाची, ताया-तायी, उनके बच्चे रहते हैं। इस प्रकार के परिवार को विस्तृत परिवार भी कहा जा सकता है। परन्तु शहरी परिवार इतने बड़े नहीं होते। वह बहुत ही छोटे तथा केन्द्रीय परिवार होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना ही अलग घर बसा लेते हैं। इस तरह यह परिवार केन्द्रीय ही रहता है। बड़े-बड़े शहरों में इस प्रकार के परिवार साधारणतया ही देखने को मिल जाते हैं।

2. कम बच्चे (Less number of Children) शहरी परिवारों में बच्चों की संख्या कम होती है। शहरी मातापिता पढ़े-लिखे होते हैं तथा उनको अपनी जिम्मेदारियां, कर्तव्यों इत्यादि के बारे में पता होता है। शहरी परिवार अपने कार्यों के प्रति चेतन होते हैं। इसके साथ ही शहरों में खर्चे भी बहुत होते हैं तथा माता-पिता को पता होता है कि वह अधिक बच्चों को अच्छी परवरिश नहीं दे सकते। इसलिए वह कम बच्चे (एक या दो) ही रखते हैं ताकि उनको अच्छी परवरिश देकर अच्छा भविष्य दिया जा सके तथा देश का अच्छा नागरिक बनाया जा सके।

3. सीमित आकार (Limited Size)-शहरी परिवार आकार में सीमित होते हैं क्योंकि यह केन्द्रीय परिवार होते हैं। केन्द्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना अलग ही केन्द्रीय परिवार बसा लेते हैं। शहरों में हमें बड़े परिवार देखने को नहीं मिलते हैं। कोई हज़ारों में एक परिवार ही संयुक्त परिवार होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार के न होने तथा केन्द्रीय परिवार के होने के कारण इनका आकार सीमित होता है।

4. व्यक्तिवादिता (Individualism) शहरी परिवार के सदस्यों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है। वह केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। प्राचीन समय में परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार के भले के बारे में ही सोचता था। परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को दबा लेता था। दूसरे शब्दों में, व्यक्तिवादिता पर सामूहिकता भारी थी। परन्तु आजकल के शहरी परिवारों में परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को नहीं छोड़ता, बल्कि अपनी इच्छा पूर्ण कर लेता है। आजकल सामूहिकता पर व्यक्तिवादिता हावी है। कई बार तो व्यक्ति की इच्छा के आगे परिवार को ही झुकना ही पड़ता है। आजकल के Practical समाज में व्यक्ति का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी है।

5. कम नियन्त्रण (Less Control)-शहरी परिवारों में परिवार का अपने सदस्यों पर कम नियन्त्रण होता है। ग्रामीण समाजों में तो व्यक्ति की इच्छा पर सामूहिकता हावी होती है। व्यक्ति पर परिवार का बहुत नियन्त्रण होता है तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य को परिवार के मुखिया का कहना मानना पड़ता है। परन्तु शहरी परिवार इसके बिल्कुल विपरीत हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है। वह केवल परिवार के सदस्यों की सलाह लेता है परन्तु मर्जी वह अपनी ही चलाता है। कोई उस पर अपनी मर्जी नहीं थोपता है। इस प्रकार शहरी परिवारों में परिवार का अपने सदस्यों पर काफ़ी कम नियन्त्रण होता है।

6. स्त्रियों की समान स्थिति (Equal status of Women) शहरी समाजों में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान होती है जबकि ग्रामीण परिवारों में स्त्रियों की स्थिति निम्न होती है। शहरी स्त्री पढ़ी-लिखी होती है तथा उसको अपने अधिकारों के बारे में पता होता है। इसके साथ ही अधिकतर शहरी स्त्रियां बाहर कार्य करती हैं। वह दफ्तरों, फैक्टरियों, स्कूलों, कॉलेजों इत्यादि में कार्य करती हैं तथा पुरुषों के समान पैसे कमाती है। कई स्थितियों में तो स्त्री की आय पुरुष से भी अधिक होती है। घर की अर्थिक तौर पर सहायता करने के कारण वह यह चाहती है कि उसको भी पुरुषों के बराबर अधिकार मिलें। यदि पुरुष ऐसा नहीं करते तो वह तलाक लेकर अलग भी हो सकती है। इस प्रकार शहरी स्त्री को उसकी पढ़ाई-लिखाई तथा आर्थिक स्थिति के कारण मर्दो के समान स्थिति प्राप्त होती है।

7. औपचारिक सम्बन्ध (Formal Relations)-शहरी परिवारों में सदस्यों के बीच सम्बन्ध औपचारिक तथा अव्यक्तिगत होते हैं। परिवार के सदस्यों का एक-दूसरे पर इस कारण नियन्त्रण कम होता है क्योंकि उनके आपसी सम्बन्धों में गर्मजोशी नहीं होती है। लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है इसलिए वह एक-दूसरे से केवल काम की बात करते हैं। यहां तक कि एक-दूसरे के सुख-दुःख में कम ही साथ देते हैं। केवल पति-पत्नी ही एक-दूसरे का साथ देते हैं। उनके आपसी सम्बन्ध औपचारिक होते हैं तथा केवल स्वार्थ भरे सम्बन्ध होते हैं।

8. धर्म का कम होता प्रभाव (Decreasing influence of Religion)-शहरी परिवारों में धर्म का महत्त्व काफ़ी कम हो गया है। ग्रामीण परिवारों में धर्म का बहुत महत्त्व होता है तथा उनकी प्रत्येक गतिविधि में धर्म का प्रभाव देखने को मिल जाता है। जन्म, विवाह, मृत्यु के समय तो धार्मिक संस्कार अच्छी तरह पूर्ण किए जाते हैं परन्तु शहरी परिवारों पर धर्म का प्रभाव काफ़ी कम हो गया है। शहरी लोग पढ़े-लिखे होते हैं तथा प्रत्येक कार्य को तर्क की कसौटी पर तोलते हैं। वह किसी भी कार्य को करने से पहले यह जानना चाहते हैं कि यह कार्य क्यों हो रहा है तथा धर्म इस बारे में सब कुछ नहीं बता सकता है। शहरों में धार्मिक गतिविधियां काफ़ी कम हो गई हैं। जन्म, विवाह, मृत्यु इत्यादि के समय बहुत ही कम धार्मिक संस्कार पूर्ण किए जाते हैं। पण्डित एक-डेढ़ घण्टे में ही विवाह करवा देता है या मृत्यु की रस्में भी बहुत ही जल्दी पूर्ण करवा देता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3.
शहरी परिवारों के टूटने के क्या कारण हैं ? वर्णन करो।
उत्तर-
शहरी परिवार टूट रहे हैं। ये टूटने का जो सिलसिला है, एक-दो वर्षों में नहीं हुआ, बल्कि यह बदलाव कई वर्षों के परिवर्तन का नतीजा है। यह सभी परिवर्तन कई भिन्न-भिन्न कारणों से आए, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों की बनावट और उसके रूप में अद्भुत बदलाव देखने को मिलते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं, जिनको हम विस्तारपूर्वक इस सन्दर्भ में देखेंगे

1. पैसों का महत्त्व (Importance of Money)-आधुनिक समाज में व्यक्ति ने पैसों को कमाकर अपनी जीवन शैली में कई तरह के परिवर्तन ला दिए हैं और इस शैली को कायम रखने के लिए उसे हमेशा ज्यादा से ज्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ती है और इस प्रक्रिया में वह अपनी योग्यता के अनुसार अपनी कमाई में बढ़ौतरी करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके रहने-सहने का तरीका बदलता जा रहा है और ऐश्वर्य की सभी वस्तुएं आज उसके जीवन के लिए सामान्य और आवश्यकता की वस्तुएं बनती जा रही हैं और इन सभी को पूरा करने के लिए पैसा अति आवश्यक है। इस तरह हम कह सकते हैं कि वह उन सीमित साधनों से ज्यादा सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इस कारण शहरी परिवारों का महत्त्व कम हो रहा है और आदमी अपने परिवारों से अलग रहना पसन्द करता है। यह उसकी ज़रूरत भी है और मज़बूरी भी। इस कारण वह अपने परिवारों से अलग रहने लग पड़ा है।

2. पश्चिमी प्रभाव (Impact of Westernization)-भारत में अंग्रेजों के शासनकाल और उसके बाद भारतीय समाज में कई तरह से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए, जिससे कि हमारी संस्कृति और व्यवहार इत्यादि में कई तरह परिवर्तन आए, जिनके कारण व्यक्तिवाद का जन्म होने लगा। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों के जीवन को स्वतन्त्र तरीके से रहने के तरीके सिखाएं। इस तरह से भौतिकतावादी सोच के कारण, आधुनिकता की चकाचौंध से लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया और लोगों में संयुक्त परिवार से लगाव कम होना शुरू हो गया। इसका अंत में नतीजा यह निकला कि संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने लगे और इकाई अथवा केन्द्रीय परिवार का उद्भव शुरू हो गया। लोगों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली और स्त्रियों की स्वतन्त्रता के कारण, नौकरी करने वालों का शहरों में पलायन ने संयुक्त परिवारों का अस्तित्व समाप्त करना शुरू कर दिया और टूटना दिन-प्रतिदिन जारी हैं।

3. औद्योगिकीकरण (Industrialization)-आधुनिक समाज को आज औद्योगिक समाज की संज्ञा दी जाती है। जगह-जगह पर कारखानों और नए-नए तरीकों से समाज में परिवर्तन नज़र आते हैं। हर रोज़ नए-नए आविष्कारों के कारण समाज में कार्य करने के तरीकों एवं मशीनीकरण का चलन बढ़ता जा रहा है। घरों में कार्य करने वाले लोग अब कारखानों में काम करने लगे हैं। लोग अब अपने पैतृक कार्यों को छोड़कर उद्योगों में जा रहे हैं। लोगों ने महसूस करना शुरू कर दिया है कि इस दौड़ में अगर रहना है तो मशीनों का सहारा लेना ही पड़ेगा और इस बदलाव के कारण, शहरीकरण और भौगोलिक दृष्टि से कारखानों का बढ़ना इत्यादि लोगों को पलायन करवाता है। इस कारण लोगों ने संयुक्त परिवारों को छोड़कर, जहां पर उन्हें रोटी-रोज़ी मिली, वे उधर चल पड़े और यह सभी कुछ हुआ, उद्योगों के लगने की वजह से। इस तरह औद्योगीकरण के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, जिससे यह बात साफ हो जाती है कि इकाई परिवारों का चलन या अस्तित्व, उद्योगों की वजह से बढ़ रहा है। बच्चे नौकरियां करने के लिए शहर जाने लग गए तथा शहरी परिवार भी टूटने लग गए हैं।

4. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)-आधुनिक समाज में व्यक्ति की स्थिति, उसकी योग्यता के आधार पर आंकी जाती है। इसलिए उसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और ज्यादा धन कमाना पड़ता है। हर व्यक्ति समाज में ऊपर उठना चाहता है। संयुक्त परिवार में व्यक्ति की स्थिति उसकी योग्यता के आधार पर न होकर अपने परिवार की हैसियत के अनुसार आंकी जाती है। इस प्रकार वह परिश्रम ही नहीं करता। औद्योगीकरण और शिक्षा के प्रसार ने व्यक्ति को गतिशील कर दिया है। यातायात के साधनों और संचार के माध्यम से आदमी के लिए दूरियां कम हो गई हैं। उसका सोचने का तरीका बदलता जा रहा है। इस नए समाज में उसके ज़िन्दगी के मूल्य भी बदल गए और वह भौतिकवाद की ओर अग्रसर है और उसी प्रक्रिया में उसमें भी तेजी आनी स्वाभाविक है और इस कारण वह संयुक्त परिवार के बन्धनों से मुक्त होना चाहता है। इसी कारण से भी शहरी परिवारों का टूटना निरन्तर जारी है।

5. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of Transport)—यही पर बस नहीं आधुनिक यातायात के साधनों में आया बदलाव भी अपने आप में इस सोच का कारण बना है। व्यक्ति को इन्हीं सुविधाओं के कारण ही नई राहों पर चलना आसान हो गया है। हर क्षेत्र में काम करने की संभावनाओं को इन्हीं साधनों ने बढ़ा दिया है, आज कोई भी व्यक्ति पचास-सौ किलोमीटर को कुछ भी नहीं समझता। प्राचीन काल में ये सुविधाएं नहीं थीं या बहुत ही कम थीं, इस कारण से लोग एक ही जगह पर रहना पसन्द करते थे। आज के युग में इन साधनों ने व्यक्ति की दूरियों को कम कर दिया है। इनकी वजह से भी आदमी बाहर अपने काम-धन्धों को आसानी से कर पाता है और संयुक्त परिवार का मोह छोड़कर केन्द्रीय परिवार की सभ्यता को अपना रहा है।

6. जनसंख्या में बढ़ौतरी (Increase in Population)-भारत में जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इससे कुछ ही समय में ही प्रत्येक परिवार में ऐसी स्थिति आ जाती है कि परिवार की भूमि या जायदाद सारे सदस्यों के पालनपोषण के लिए काफ़ी नहीं होती और नौकरी या व्यवसाय की खोज में सदस्यों को परिवार छोड़ना पड़ता है। इसलिए भी शहरी परिवारों में विघटन हो रहा है।’

7. शहरीकरण और आवास की समस्या (Problem of Urbanization and Housing) संयुक्त परिवारों के टूटने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण देश का तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण है, जिससे लोग गांव छोड़कर शहरों में आ रहे हैं। जबकि शहरों में मकानों की भारी कमी है। शहरों में मकान कम ही नहीं छोटे भी होते हैं। इसलिए मकानों की समस्या के कारण ही शहरों में परिवारों में विघटन हो रहा है।

8. स्वतन्त्रता और समानता के आदर्श (Ideals of Independence & Equality)—संयुक्त परिवार एक तरह से तानाशाही राजतन्त्र है जिसमें परिवार के मुखिया का निर्देश शामिल होता है। इसका कहना सबको मानना पड़ता है व कोई उसके विरुद्ध बोल नहीं सकता। इसलिए यह आधुनिक विचारधारा के विरुद्ध है। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से नए नौजवान लड़के और लड़कियों में समानता और स्वतन्त्रता की भावना से शहरी परिवार टूट रहे हैं।

9. वैधानिक कारण (Legislative Reasons) ब्रिटिश शासन में अनेकों नए अधिनियमों से संयुक्त परिवारों में विघटन हुआ है। 1929 के हिन्दू उत्तराधिकार कानून (The Hindu Law of Inheritance Amendment Act 1929)
और 1937 के हिन्दू औरतों के सम्पत्ति पर अधिकार के कानून (Hindu Women’s Right of Property Act of 1937) से संयुक्त परिवार के विघटन को उत्साह मिला। चूंकि परिवार की सम्पत्ति का विभाजन होने लगा। कुछ कानूनों से परिवार के कार्यकर्ता को ज़मीन आदि बेचने या गिरवी रखने का अधिकार मिल गया। इस प्रकार शहरी परिवार की साझी सम्पत्ति बिखरने लगी और उसका विघटन होने लगा।

प्रश्न 4.
शहरी समाज की अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
यदि हम ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था तथा शहरी समाज की अर्थव्यवस्था की तुलना करें तो हमें पता चलेगा कि शहरी समाज की अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था में से ही निकली है। शहर पहले गांव ही थे परन्तु समय के साथ-साथ गांवों की जनसंख्या बढ़ गई। जनसंख्या के बढ़ने से उनका आकार बड़ा होता गया। आकार बड़ा होने के साथ-साथ वहां अलग-अलग नए प्रकार के देशों का जन्म हुआ। पहले छोटे उद्योग स्थापित हुए तथा धीरे-धीरे बड़े उद्योग भी स्थापित हो गए। उत्पादन छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर होने लग गया। गांवों ने कस्बों का रूप ले लिया तथा धीरे-धीरे कस्बे शहर बन गए। बहुत अधिक जनसंख्या के बढ़ने के कारण शहरों ने महानगरों का रूप ले लिया। पहले लोग केवल अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए ही चीज़ों का उत्पादन किया करते थे। परन्तु जनसंख्या के बढ़ने के कारण लोगों ने बाजार के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया। शहरों ने बहुत बड़ी मण्डी का रूप ले लिया। आजकल के शहर इस प्रकार के ही है जहां पेशों की भरमार होती है। लोग उत्पादन अपने लिए नहीं बल्कि बेचने के लिए करते हैं।

यदि शहरों में उत्पादन बड़े स्तर पर होने लग गया है तो इस के पीछे औद्योगिक क्रान्ति की सबसे बड़ी भूमिका है। औद्योगिक क्रान्ति यूरोप में 18वीं सदी के दूसरे भाग में शुरू हुई। सबसे पहले इसने यूरोप में अपना प्रभाव डाला तथा उपनिवेशवाद के कारण यह 19वीं शताब्दी में एशिया के देशों में भी आनी शुरू हो गई। औद्योगिक क्रान्ति के साथ लोगों के आपसी संबंध बिल्कुल ही बदल गए। समाज ने तेजी से विकास करना शुरू कर दिया। उद्योग तेजी से बढ़ने लग गए। मण्डियों का तेजी से विकास हुआ। इस कारण ही शहरी अर्थव्यवस्था भी विकसित हुई। इस प्रकार से 19वीं शताब्दी के बाद तो शहरी अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन आए। आज की शहरी अर्थव्यवस्था इन सभी पर ही आधारित है। जहां बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, बड़े-बड़े उद्योग होते हैं, पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण होता है, लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है, पेशों की विभिन्नता होती है। इन सब को देख कर हम शहरी समाज की कुछ विशेषताओं का जिक्र कर सकते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगिक अर्थव्यवस्था (Industrial Economy)-शहरी अर्थव्यवस्था को औद्योगिक अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर ही आधारित होती है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे होते हैं जिनमें हज़ारों लोग कार्य करते हैं। बड़े उद्योग होने के कारण उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। इन बड़े उद्योगों के मालिक निजी व्यक्ति होते हैं। उत्पादन मण्डियों के लिए होता है। यह मण्डियां न केवल देसी बल्कि विदेशी भी होती हैं। कई बार तो उत्पादन केवल विदेशी मण्डियों को ध्यान में रख कर किया जाता है। बड़े-बड़े उद्योगों के मालिक अपने लाभ के लिए ही उत्पादन करते हैं तथा मजदूरों का शोषण भी करते हैं।

2. श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण (Division of Labour and Specialization)-शहरी समाजों में पेशों की भरमार तथा विभिन्नता पाई जाती है। प्राचीन समय में तो परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। सारे कार्य परिवार में ही हुआ करते थे। परन्तु शहरों के बढ़ने के कारण हज़ारों प्रकार के पेशे तथा उद्योग विकसित हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर एक बड़ी फैक्टरी में सैंकड़ों प्रकार के कार्य होते हैं तथा प्रत्येक कार्य को करने के लिए एक विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है। उस कार्य को केवल वह व्यक्ति ही कर सकता है जिस को उस कार्य में महारत हासिल हो। इस प्रकार शहरों में कार्य अलग-अलग लोगों के पास बटे हुए होते हैं जिस कारण श्रम विभाजन बहुत अधिक प्रचलित है। लोग अपने-अपने कार्य में माहिर होते हैं जिस कारण विशेषीकरण का बहुत महत्त्व होता है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण अंग श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण हैं।

3. बड़े स्तर पर उत्पादन (Production on a Large Scale)-शहरी अर्थव्यवस्था में उत्पादन बड़े स्तर पर होता है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए होते हैं। जहां हज़ारों मज़दूर, क्लर्क, अफसर इत्यादि कार्य करते हैं। इन बड़े उद्योगों में पैसे भी बहुत लगे हुए होते हैं। मालिक तो ही लाभ कमा सकता है यदि उस उद्योग में उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाए। यह उत्पादन न केवल देसी मार्किट बल्कि विदेशी मार्किट के लिए भी होता है। कई औद्योगिक इकाइयां तो उत्पादन केवल विदेशी मार्किट को मुख्य रख कर ही करती हैं। उत्पादन को पूर्ण लाभ के साथ विदेशी मार्किट में बेचा जाता है ताकि सभी को कुछ लाभ मिल सके। यह उद्योग बड़े स्तर पर उत्पादन करने के लिए दिनरात कार्य में लगे रहते हैं।

4. पेशों की विभिन्नता (Occupational Diversity) किसी भी शहरी समाज या औद्योगिक समाज की मुख्य विशेषता वहां पेशों की भरमार का होना है। शहरों में हजारों की संख्या में पेशे मिल जाते हैं। कोई अफसर है, कोई चपड़ासी, अध्यापक, बढ़ई, लोहार, मजदूर, रिक्शा खींचने वाले, रेहड़ी वाले, सब्जी तथा फलों की दुकान इत्यादि जैसे हज़ारों पेशे हैं जो कि शहरों में मिल जाते हैं। एक उद्योग में ही हमें सैंकड़ों प्रकार के कार्य मिल जाएंगे। इस प्रकार हम प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं कि शहरों में पेशे बहुसंख्या में होते हैं।

5. अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति (Nature of getting more Profit)-शहरी अर्थव्यवस्था का एक और महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यहां लोगों में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है। उद्योगपति कमसे-कम पैसे लगाकर अपनी वस्तु को अधिक-से-अधिक लाभ से बेचना चाहता है। दुकानदार ग्राहक से अपनी चीज़ की अधिक-से-अधिक कीमत प्राप्त करना चाहता है। कई कार्यों में तो 100% या 200% तक भी लाभ हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है जिस कारण वह सही या गलत ढंग अपनाने के प्रयास भी करता है। मज़दूर अधिक-से-अधिक मज़दूरी प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अमीर बनने की इच्छा होती है जिस कारण उन में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।

6. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) सामाजिक गतिशीलता का अर्थ होता है अपनी एक सामाजिक स्थिति को छोड़ कर दूसरी सामाजिक स्थिति की तरफ जाना। शहरों में सामाजिक गतिशीलता बहुत पाई जाती है। नगरों में बहुत-से व्यक्ति नौकरी करते हैं, यदि किसी व्यक्ति को किसी और नौकरी में अधिक वेतन तथा अच्छी स्थिति मिल जाती है तो वह पहली नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी की तरफ चला जाता है। छोटे दुकानदार उन्नति करके बड़ी दुकान बना लेते हैं। लोग एक घर को छोड़कर दूसरे घर में चले जाते हैं। यह गतिशीलता ही है। इस के साथ ही नगरों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण बहुत होता है। माहिर व्यक्तियों की बहुत मांग होती है। माहिर व्यक्ति तो साल बाद ही नौकरी बदल लेते हैं। इस कारण उनके मेल-जोल का सामाजिक दायरा भी बढ़ता है। इस कारण व्यक्ति अपने रहने-सहने का स्तर भी ऊंचा कर लेता है तथा यह भी गतिशीलता है। इस प्रकार नगरीय अर्थव्यवस्था में गतिशीलता बहुत अधिक होती है।

7. प्रतियोगिता (Competition)-नगरीय अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता बहुत अधिक देखने को मिलती है। शहरों में लोग पढ़-लिख रहे हैं तथा अलग-अलग प्रकार के कोर्स कर रहे हैं और ट्रेनिंग ले रहे हैं। एक नौकरी को प्राप्त करने के लिए 15-20 लोग खड़े होते हैं। इसके साथ-साथ बड़े-बड़े उद्योगों में अपना माल बेचने के लिए प्रतियोगिता होती है। वह मूल्य कम करके अपनी चीज़ बेचने की कोशिश करते हैं जिससे ग्राहक का लाभ होता है। इस प्रकार छोटे बड़े दुकानदार भी एक-दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं ताकि उनका माल अधिक-से-अधिक बिक सके। इसलिए वह अपने माल पर सेल लगाने से भी पीछे नहीं हटते। कई दुकानदार तथा कंपनियां 50% तक की छूट तथा इससे ऊपर भी 60% या 70% तक की छूट भी दे देती है ताकि अधिक-से-अधिक माल बेचा जा सके। उनको देख कर और कंपनियों को भी अपना माल इतनी ही छूट से बेचना पड़ता है जिसका असली लाभ ग्राहक को होता है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक प्रतियोगिता देखने को मिल जाती है।

8. अधिक जनसंख्या (More Population)-नगरीय अर्थव्यवस्था का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण अधिक जनसंख्या का होना है। जहां कहीं भी उद्योग विकसित हुए हैं वहां पर शहर बस गए हैं। लोग इन उद्योगों में कार्य करने के लिए अपना घर, गांव तक छोड़ कर नगर में आ जाते हैं। यदि उद्योगों में कार्य मिल जाए तो ठीक है नहीं तो वे कोई और कार्य करने लग जाते हैं। धीरे-धीरे शहर की जनसंख्या बढ़ जाती है। जनसंख्या के बढ़ने से उसकी आवश्यकताएं भी बढ़ जाती हैं जिनकी पूर्ति करना आवश्यक हो जाती है। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दुकानें तथा मण्डियां खुल जाती हैं, सरकारी तथा निजी दफ्तर खुल जाते हैं। बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल, कॉलेज खुल जाते हैं। जनसंख्या को नियन्त्रण में रखने के लिए पुलिस की स्थापना हो जाती है। इस प्रकार धीरे-धीरे नगर एक महानगर बन जाता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि इसी प्रकार के महानगर हैं।

9. अपराध (Crimes)–यदि शहर बढ़ते हैं तो उनके साथ-साथ अपराध भी बढ़ जाते हैं। जनसंख्या में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जोकि परिश्रम से नहीं बल्कि छीन कर खाना पसन्द करते हैं। चोर, डकैत, ठग, लुटेरे इत्यादि इस श्रेणी में आते हैं। लोगों को रहने के लिए घर नहीं मिलते जिस कारण झुग्गी झोपड़ी बस्तियां स्थापित हो जाती हैं। इन बस्तियों में ही सबसे अधिक अपराध होते हैं। चोरी, कत्ल, डकैती, बलात्कार, वसूली, मार पिटाई इत्यादि सभी कुछ यहां आम होता है।

10. अधिक पूंजी निवेश (More Capital Investment)-शहरी आर्थिकता में अधिक पूंजी निवेश की बहुत आवश्यकता होती है। नगरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित होते हैं जिनको स्थापित करने के लिए हज़ारों करोड़ों रुपयों की ज़रूरत होती है। जो व्यक्ति इन उद्योगों को चलाता है वह सारा पैसा निवेश करता है। कच्चा माल लाने के लिए, उत्पादन करने के लिए, उत्पादित माल बेचने के लिए, पैसे इकट्ठे करने के लिए बहुत बड़े नैटवर्क की ज़रूरत होती है। इस कारण पूंजी का अधिक निवेश होता है जो व्यक्ति इतना पैसा निवेश करता है वह उस से लाभ भी कमाता है। ___11. पैसे का महत्त्व (Importance of Money)–नगरीय अर्थव्यवस्था में पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है क्योंकि आजकल तो प्रत्येक कार्य पैसे से ही होता है। यहां तक कि सामाजिक स्थिति भी पैसे से ही प्राप्त होती है। जिन लोगों के पास अधिक पैसा होता है उनकी सामाजिक स्थिति काफ़ी ऊंची होती है तथा जिन के पास पैसा नहीं होता उनकी सामाजिक स्थिति निम्न होती है। अमीर व्यक्तियों, नेताओं इत्यादि की स्थिति बहुत ऊंची होती है क्योंकि इनके पास पैसा होता है परन्तु निर्धन व्यक्ति को कोई पूछता भी नहीं है।

प्रश्न 5.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने के क्या कारण हैं ? इनमें सुधार कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
यदि हम ध्यान से देखें तो हमें पता चलेगा कि झग्गी झोपडी बस्तियां आधुनिक समाजों के कारण ही सामने आई हैं। आधुनिक समाजों को बनाने के लिए आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाएं सामने आई। औद्योगिकीकरण के कारण बड़े-बड़े उद्योग बन गए तथा उद्योगों के इर्द-गिर्द बस्तियां तथा शहर बन गए। लोग बाहर के क्षेत्रों से उद्योगों में कार्य करने आए तथा शहरों में ही रहने लग गए। कम आय के कारण उनको बस्तियों में ही रहना पड़ा। बस्तियों में सुविधाओं के न होने के कारण वहां का वातावरण प्रदूषित होना शुरू हो गया तथा धीरे-धीरे इन बस्तियों ने झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों का रूप ले लिया। इस प्रकार झुग्गी झोंपड़ी बस्तियां सामने आ गईं। ये बस्तियां किसी एक या दो कारणों के कारण नहीं बल्कि कई कारणों के कारण सामने आई जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. आर्थिक कारण (Economic Reasons)-यदि हम ध्यान से देखें तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने का कारण ही आर्थिक है। लोग गरीबी के कारण अपने गांवों को छोड़कर पैसे कमाने नगरों में आते हैं तथा पैसे कमाने के लिए शहर में ही रह जाते हैं। अपने भोजन के साथ-साथ उनके लिए गांव में बैठे अपनी पत्नी तथा बच्चों के लिए पैसे बचाना ज़रूरी होता है। आय कम होती है परन्तु खर्चे अधिक होते हैं। इस कारण वह महंगे मकानों में रह नहीं सकते तथा उन्हें झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। उनको अपनी खराब स्थिति को मजबूरी में सहन करना पड़ता है। वह जहां रहते हैं वहां धीरे-धीरे गंदा वातावरण होना शुरू हो जाता है क्योंकि जनसंख्या बढ़ जाती है इस प्रकार से वह सभी ही कम पैसे खर्च करके इन बस्तियों में रहने को मजबूर होते हैं।

2. औद्योगिकीकरण (Industrialization)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बसने में सबसे बड़ा हाथ औद्योगिकीकरण का होता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि जहां कहीं भी उद्योग बनने शुरू हुए थे उसके इर्द-गिर्द लोगों ने रहना शुरू कर दिया था। लोग गांवों में घर बार छोड़ कर शहरों में इन उद्योगों में कार्य की तलाश में आते हैं। उनको काम तो मिल जाता है परन्तु आय कम होती है जिस कारण वह महंगे घरों में नहीं रह सकते। इस कारण ही उनको झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है जहां एक ही कमरे में 8-10 लोग रहते हैं। इन बस्तियों का वातावरण तथा रहने का स्थान काफ़ी दूषित होता है जिस कारण उन्हें कई समस्याओं तथा बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार से औद्योगिकीकरण के कारण झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बस जाती हैं।

3. राजनीतिक कारण (Political Reasons)-हमारे देश में लोकतन्त्र है तथा हमारे देश में झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने का कारण राजनीतिक दल हैं। ये राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए हमेशा लड़ते रहते हैं। गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए उनके अपने कार्यक्रम तथा अपनी ही विचारधारा होती है। परन्तु उनके अपने जीवन में गरीबी की कोई जगह नहीं होती है तथा वह गरीबों की मुश्किलों से बहुत दूर होते हैं। चाहे यह दल गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए कार्यक्रम बनाते रहते हैं परन्तु असल में कुछ करते नहीं हैं। ये कार्यक्रम केवल इन लोगों के वोट प्राप्त करने के लिए बनाए जाते हैं। इनके हालात सुधारने के लिए बहुत ही कम कोशिशें होती हैं। राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को बचाने के लिए इनको उनकी जगह से छोड़ना नहीं चाहते हैं। इस तरह हमारी राजनीतिक व्यवस्था भी झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों के लिए जिम्मेदार हैं।

4. सामाजिक व्यवस्था (Social System) हमारे समाज की मौजूदा सामाजिक व्यवस्था भी झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बनने के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं है। हमारी सामाजिक व्यवस्था में गरीबों तथा कमज़ोर लोगों की कोई जगह नहीं है। ग़रीब लोग शहरों में उन स्थानों पर रह रहे हैं जहां कि जानवर भी रहना पसन्द नहीं करते। उनको मजबूरी में उस अमानवीय वातावरण में रहना पड़ता है। उनको समाज, सरकार तथा उद्योगपतियों द्वारा ग़ैर-ज़रूरी समझा जाता है। सरकार तथा उद्योगपति तो अपने स्वार्थों के कारण इनसे काम लेते हैं तथा इनको ऊँचा उठने नहीं देते। यदि यह ऊंचा उठ गए तो यह उच्च वर्ग के लिए खतरा बन जाएंगे। इस प्रकार हमारी सामाजिक व्यवस्था भी इसके लिए दोषी है।

5. प्रशासकीय कारण (Administrative Causes) स्थानीय प्रशासन भी झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बनने के लिए ज़िम्मेदार है। स्थानीय प्रशासन को हमेशा ही भ्रष्ट तथा अयोग्य समझा जाता है क्योंकि यह लोगों के लिए आर्थिक प्रशासकीय तथा सामाजिक नीतियां सही प्रकार से नहीं बना सके। सम्पूर्ण शहर के विकास के लिए एक मास्टर प्लान बनाया जाता है परन्तु किसी कारणवश मास्टर प्लान में या तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता या फिर इनको जानबूझ कर छोड़ दिया जाता है। कम वित्तीय साधन भी इस प्लान के पूर्ण न होने के लिए उत्तरदायी हैं। यदि सीमित वित्तीय साधनों को भी सही ढंग से प्रयोग किया जाए तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों का सुधार हो सकता है। परन्तु इस तरह होता नहीं है तथा जिस कारण झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बढ़ती जाती हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

सुधार के तरीके (Ways of Improvement)– कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जोकि हल न हो सके। इस प्रकार अगर हमारी सरकार, नेता तथा अफ़सर सही प्रकार से कार्य करें तो यह झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की समस्या भी हल हो सकती है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में सुधार करने के कुछ तरीकों का वर्णन इस प्रकार हैं-

  • इन बस्तियों में सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है लोगों को साफ़ पानी पीने के लिए नहीं मिलता है। जिस कारण उन्हें गंदे पानी पर ही गुज़ारा करना पड़ता है। सरकार को 24 घंटे के लिए इन बस्तियों में साफ़ पानी पहुंचाने की प्रबन्ध करना चाहिए।
  • इसी प्रकार से गंदे पानी की निकासी भी बहुत बड़ी समस्या है। यदि गंदे पानी की निकासी हो तो इन बस्तियों में से बीमारियों को दूर किया जा सकता है। सरकार को पक्की गलियों, सीवरेज़, पाखानों इत्यादि का प्रबन्ध करके बस्तियों को बीमारियों से दूर रखना चाहिए।
  • इन बस्तियों में बिजली न होना भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इन इलाकों में बिजली की तारें डालकर बिजली देने का भी प्रबन्ध करना चाहिए।
  • उद्योगों को भी इन बस्तियों की स्थिति सुधारने के लिए आगे आना चाहिए जो भी मज़दूर उद्योगों में कार्य करते हैं उन्हें उद्योगों की तरफ से पक्के मकान रहने के लिए देने चाहिए ताकि बस्तियों की जनसंख्या न बढ़े।
  • हमारे नेताओं, अफसरों तथा सरकार को राजनीति के क्षेत्र से ऊंचा उठकर समाज की सेवा करने के लिए अपने स्वार्थों को छोड़ कर कार्य करना चाहिए। इनको ईमानदारी से इन बस्तियों के उत्थान के लिए कार्य करने चाहिए ताकि यह भी समाज में अच्छा जीवन जी सकें।
  • इनके क्षेत्रों में रहने के पक्के घरों का भी प्रबन्ध करना चाहिए ताकि लोग झुग्गियों-झोंपड़ियों से बाहर निकल कर अच्छा जीवन जी सकें। __इस प्रकार से अगर सरकार, नेता तथा अफसर सही ढंग से कार्य करें तो इन झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की बहुत-सी समस्याओं को दूर करके इनमें रहने वाले लोगों को अच्छा जीवन दिया जा सकता है।

नगरीय समाज PSEB 12th Class Sociology Notes

  • पिछले कुछ समय से देश की ग्रामीण जनसंख्या नगरों की तरफ बढ़ रही है जिस कारण नगरीय जनसंख्या में काफ़ी बढ़ौतरी हो रही है। नगरों में काफ़ी सुविधाएँ होती हैं जिस कारण लोग नगरों की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।
  • 2011 के जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार, “देश की 121 करोड़ जनसंख्या में 37.7 करोड़ लोग या 32% जनसंख्या नगरों में रहती थी। इस सर्वेक्षण के अनुसार वह सभी क्षेत्र जहां नगरपालिका, कारपोरेशन, कैंटोनमैंट बोर्ड या Notified Town Area Committee है, नगरीय क्षेत्र हैं।”
  • जब ग्रामीण लोग गाँवों को छोड़कर नगरों की तरफ बढ़ने लग जाएं तो इस प्रक्रिया को नगरीकरण अथवा शहरीकरण कहा जाता है। इस प्रक्रिया ने नगरीय समाजों की प्रगति में काफ़ी योगदान दिया है। यह एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें न केवल लोग नगरों की तरफ बढ़ते हैं तथा उनके पेशों में परिवर्तन आता है बल्कि उनके रहन-सहन आदतों, विचारों में भी परिवर्तन आ जाता है।
  • नगरवाद नगरीय समाज का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो नगरीय समाज के लोगों की पहचान तथा व्यक्तित्व को ग्रामीण समाज या जनजातीय समाज के लोगों से अलग करता है। यह जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है।
  • नगरीय समाज की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि अधिक जनसंख्या, असमानता, सामाजिक नियन्त्रण के द्वितीय साधन, सामाजिक गतिशीलता, लोगों का कृषि छोड़कर कोई अन्य कार्य करना, श्रम विभाजन, विशेषीकरण, व्यक्तिवाद इत्यादि।
  • ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार मिलते हैं परन्तु नगरों में केंद्रीय परिवार मिलते हैं। व्यक्तिवादिता के कारण लोग केंद्रीय परिवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • नगरीय अर्थव्यवस्था व्यावसायिक भिन्नता (Occuptional Diversity) तथा गतिशीलता पर निर्भर करती है। अलग-अलग कार्य एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं जिस कारण लोग एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर होते हैं।
  • वैसे तो नगरीय समाज में काफ़ी समस्याएं मिलती हैं परन्तु रहने की समस्या तथा झुग्गी झोपड़ियों या मलिनvबस्तियों की समस्या काफ़ी प्रमुख है। नगरीकरण के बढ़ने से भी यह समस्याएं काफ़ी बढ़ती जा रही है।
  • गाँव से लोग नगरों में रहने तथा कार्य की तलाश में जाते हैं। उन्हें वहां पर कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहनेvका स्थान नहीं मिल पाता जिस कारण उन्हें मलिन झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। इन बस्तियों के कारण ही नगरों में कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
  • नगरीय समाज (Urban Society)—वह समाज जहां असमानता द्वितीय संबंध, नकलीपन, गतिशीलता तथा गैर-कृषि पेशों की प्रधानता होती है। यह आकार में बड़े होते हैं तथा लोग प्रगतिशील होते हैं।
  • नगरीकरण (Urbanisation)-नगरीकरण ग्रामीण लोगों की नगरों की तरफ जाने की प्रक्रिया है जिससे नगरों का आकार बड़ा हो जाता है। यह वह प्रक्रिया भी है जिससे ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • नगरवाद (Urbanism)-नगरवाद जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है। यह नगरीय संस्कृति के फैलाव तथा नगरीय समाज के उद्विकास के बारे में भी बताता है।
  • निर्धनता (Poverty)—निर्धनता एक प्रकार की स्थिति है जिसमें लोग अपनी रोटी, कपड़ा व मकान की आवश्यकता भी पूर्ण नहीं कर सकते।
  • आवास (Housing)—किसी भी सभ्य समाज की प्रथम आवश्यकता घर की होती है क्योंकि यह व्यक्ति को रहने का स्थान देती है।
  • झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां (Slums)-झुग्गी-झोंपड़ी नगरों में रहने का वह स्थान है जहां लोग मलिन बस्तियों में झुग्गी-झोंपड़ी की स्थितियों में रहते हैं। प्रत्येक नगर में इन बस्तियों का आकार अलग-अलग होता है तथा इनमें साफ-सफाई, साफ पीने वाले पानी, बिजली इत्यादि की कमी होती है। इनमें साधारण मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं

SST Guide for Class 8 PSEB संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. लोकसभा के सदस्यों की कुल गिनती …………. है।
2. राज्य सभा के सदस्यों की कुल गिनती …………. है।
3. पंजाब से लोकसभा के लिए …………. सदस्य चुने जाते हैं।
4. भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए ………… आयु आवश्यक है।
5. संसदीय सरकार को …………. सरकार भी कहा जाता है।
6. केवल धन बिल ही ………… में पेश हो सकता है।
उत्तर-

  1. 545
  2. 250
  3. 13
  4. कम से कम 35 वर्ष
  5. उत्तरदायी
  6. लोकसभा।

II. निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या ग़लत (✗) के निशान लगाओ :

1. राज्यसभा के 1/3 सदस्य हर दो साल बाद रिटायर होते हैं। – (✓)
2. संसदीय सरकार में कार्यपालिका और विधानपालिका में गहरा सम्बन्ध होता है। – (✗)
3. संसदीय सरकार में प्रधानमन्त्री नाममात्र का मुखिया होता है। – (✗)
4. संसद् द्वारा बनाये गए कानून सर्वोच्च होते हैं। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
राष्ट्रपति राज्य सभा में कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है ?
(क) 08
(ख) 12
(ग) 02
(घ) 10.
उत्तर-
12

प्रश्न 2.
पंजाब राज्य में से राज्य सभा के लिए कितने सदस्य चुने जाते हैं ?
(क) 11
(ख)13
(ग) 07
(घ) 02.
उत्तर-
07

प्रश्न 3.
संसद् के दोनों सदनों के मतभेद कौन दूर करता है ?
(क) स्पीकर
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) राष्ट्रपति –
(घ) उप-राष्ट्रपति।
उत्तर-
राष्ट्रपति

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं

IV. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
संसद् के शाब्दिक अर्थ लिखो।
उत्तर-
संसद् अंग्रेजी शब्द पार्लियामैंट (Parliament) का अनुवाद है। यह अंग्रेज़ी शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द पार्लर (Parler) से लिया गया है जिसका अर्थ है बातचीत करना। इस प्रकार संसद् एक ऐसी संस्था है जहां बैठकर लोग राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर बातचीत करते हैं।

प्रश्न 2.
सरकार संसद् के प्रति क्यों जवाबदेह है ?
उत्तर-
सरकार अपने सभी कार्यों तथा नीतियों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार तभी तक अपने पद पर रह सकती है जब तक उसे संसद् (विधानमण्डल) का बहुमत प्राप्त रहता है।

प्रश्न 3.
संसद् में कानून कैसे बनता है ?
उत्तर-
साधारण बिल को संसद् के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। दोनों सदनों में पारित होने के पश्चात् बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने पर बिल कानून बन जाता है।

प्रश्न 4.
लोकसभा चुनाव के बाद सरकार कैसे बनती है ?
उत्तर-
लोकसभा के चुनाव के पश्चात् राष्ट्रपति के आमंत्रण पर बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल सरकार बनाता है। यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो गठबन्धन सरकार अस्तित्व में आती है।

प्रश्न 5.
संसदीय सरकार के प्रमुख विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • नाममात्र तथा वास्तविक कार्यपालिका में अन्तर
  • कार्यपालिका तथा विधान मण्डल में गहरा सम्बन्ध
  • उत्तरदायी सरकार
  • प्रधानमन्त्री की प्रधानता।
  • विरोधी दल को कानूनी मान्यता।
  • कार्यपालिका की अनिश्चित अवधि।

प्रश्न 6.
लटकती संसद् से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब संसद् में दो या दो से अधिक राजनीतिक दलों की आपस में मिलकर सरकार बनती है, तो उसे लटकती संसद् कहते हैं। इस प्रकार की सरकार अल्पमत सरकार कहलाती है।

V. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखें :

प्रश्न 1.
भारतवर्ष में संसदीय शासन प्रणाली ही क्यों लागू की गई ?
उत्तर-
भारत में निम्नलिखित कारणों से संसदीय प्रणाली लागू की गई है-

  • लोगों को संसदीय प्रणाली का ज्ञान-भारतीय लोग संसदीय प्रणाली से परिचित हैं। इसे सर्वोत्तम सरकार माना गया है। देश में 1861, 1892, 1919 तथा 1935 के कानूनों द्वारा संसदीय सरकार ही स्थापित की गई थी।
  • संविधान सभा के सदस्यों द्वारा समर्थन-भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी संसदीय शासन का समर्थन किया था। संविधान सभा की मसौदा कमेटी के प्रधान डॉ० बी० आर० अम्बेदकर ने कहा था कि इस प्रणाली में उत्तरदायित्व तथा स्थिरता दोनों गुण पाये जाते हैं। इसलिए संसदीय सरकार ही सबसे अच्छी सरकार है।
  • उत्तरदायित्व पर आधारित-भारत शताब्दियों तक परतन्त्र रहा है। इसलिए देश को ऐसी सरकार की आवश्यकता थी जो उत्तरदायित्व की भावना पर आधारित हो। इसी कारण संसदीय प्रणाली लागू की गई।
  • परिवर्तनशील सरकार-भारत ने लम्बे समय के पश्चात् स्वतन्त्रता प्राप्त की थी। इसलिए लोग ऐसी सरकार चाहते थे जो निरंकुश न बन सके। अतः संसदीय सरकार को चुना गया जिसे किसी भी समय बदला जा सकता है।
  • लोकतन्त्र की स्थापना-लोकतन्त्र की सही अर्थों में स्थापना वास्तव में संसदीय सरकार ही करती है। इसमें संसद् सर्वोच्च होती है। वह प्रश्न पूछ कर, आलोचना करके तथा कई अन्य तरीकों से सरकार (कार्यपालिका) पर नियन्त्रण बनाये रखती है।

प्रश्न 2.
संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर-
संसदीय प्रणाली में दो प्रकार की कार्यपालिका होती है-नाममात्र की कार्यपालिका तथा वास्तविक कार्यपालिका। राष्ट्रपति देश का संवैधानिक मुखिया है। उसे विधानिक, कार्यपालिका तथा न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं। परन्तु नाममात्र की कार्यपालिका होने के कारण राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छा से नहीं कर सकता। इन सभी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिमण्डल करता है, क्योंकि वह वास्तविक कार्यपालिका है। प्रधानमन्त्री तथा उसके मन्त्रिमण्डल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वैसे तो वह लोकसभा में बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है, परन्तु आज गठबन्धन सरकारें बनने के कारण इस काम में उसे काफ़ी सूझ-बूझ से काम लेना पड़ता है।

प्रश्न 3.
संसद् की स्थिति में गिरावट के लिए जिम्मेवार कारणों को लिखो।
उत्तर-
संसद् भारत में कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है। एक लम्बे समय तक यह एक मजबूत संस्था रही है पर दुःख की बात है कि आज इसकी स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। इसके निम्नलिखित मुख्य कारण हैं-

  • मिली-जुली सरकारें अथवा लटकती संसद् ।
  • सदन में सदस्यों की गैर हाजिरी।
  • सदन की बैठकों की कमी।
  • कमेटी प्रणाली का पतन।
  • स्पीकर की निष्पक्षता पर शक।
  • कानून को लागू करने के तरीकों में परिवर्तन।
  • संसद् की कार्यवाही में सदस्यों द्वारा बार-बार रुकावट।

प्रश्न 4.
संसद् की स्थिति को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी सुझाव दो।
उत्तर-
संसद् की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • क्षेत्रीय दलों की बढ़ती हुई संख्या पर रोक लगाई जाए।
  • संसद् की कार्यवाही को सुनिश्चित बनाने के लिए कानून बनाए जाएं।
  • प्रधानमन्त्री की कमज़ोर होती स्थिति की मजबूती के लिए कदम उठाए जाएं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं

प्रश्न 5.
भारतीय संसद् की बनावट लिखें।
उत्तर-
गठन-संसद् के दो सदन हैं-लोकसभा तथा राज्यसभा।

  • लोकसभा-लोकसभा लोगों का सदन है। इसे निम्न सदन भी कहा जाता है। इस समय लोकसभा के सदस्यों की संख्या 545 है। इनमें से 543 सदस्य वयस्क नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। शेष दो सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करता है। लोकसभा में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित हैं।
  • राज्यसभा-राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के विधानमण्डलों के चुने हुए सदस्यों द्वारा किया जाता है। इसके कुल 250 सदस्यों में से 238 सदस्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा चुने जाते हैं। शेष 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है। परन्तु हर 2 साल के बाद इसके एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उनके स्थान पर नये सदस्यों का चुनाव कर लिया जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Guide संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए :

1. लोक सभा – विधानपालिका
2. राज्य सभा – भारत की कानून बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था
3. संसद – लोगों का सदन
4. सरकार का एक मुख्य अंग स्थायी सदन।
उत्तर-

  1. लोगों का सदन,
  2. स्थायी सदन
  3. भारत की कानून बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था,
  4. विधानपालिका।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली किस प्रकार की है ?
अथवा
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली की क्या विशेषता है ?
उत्तर-
भारत में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली लागू की गई है। इस प्रकार की शासन प्रणाली में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि प्रशासन चलाते हैं। वे अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब से लोकसभा के लिए कितने सदस्य चने जाते हैं ?
उत्तर-
पंजाब से लोकसभा के लिए 13 सदस्य चुने जाते हैं।

प्रश्न 3.
आप कैसे कह सकते हैं कि राज्य सभा एक स्थायी सदन है ?
उत्तर-
राज्य सभा कभी भी पूरी तरह भंग नहीं होती। हर 2 साल के बाद इसके एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उनके स्थान पर नये सदस्यों का चुनाव कर लिया जाता है। इस प्रकार यह सदन सदा कार्यशील रहता है।

प्रश्न 4.
सरकार के कौन-कौन से तीन रूप (अंग) होते हैं ?
उत्तर-

  1. विधानमण्डल
  2. कार्यपालिका तथा
  3. न्यायपालिका।

प्रश्न 5.
राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (समागम) कब बुलाता है ?
उत्तर-
कभी-कभी किसी बिल पर दोनों सदनों में मतभेद पैदा हो जाता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है, ताकि उत्पन्न मतभेदों को दूर किया जा सके।

प्रश्न 6.
कोई छः तरीके बताओ जिनके द्वारा सेंसद सरकार पर अपना नियन्त्रण बनाये रखती है।
उत्तर-

  1. मन्त्रियों से प्रश्न पूछना
  2. स्थगन प्रस्ताव
  3. निन्दा प्रस्ताव
  4. विश्वास प्रस्ताव
  5. अविश्वास प्रस्ताव
  6. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव।

प्रश्न 7.
संसद् को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
संसद् को सुदृढ़ बनाने की इसलिए आवश्यकता है, ताकि अच्छे कानून बनाये जा सकें। देश के प्रधानमन्त्री की स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए भी सुदृढ़ संसद् की आवश्यकता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान के अनुसार प्रधानमन्त्री की क्या स्थिति है ? वर्तमान समय में उसकी स्थिति क्यों डगमगा गई है ?
उत्तर-
संविधान के अनुसार देश में प्रधानमन्त्री की स्थिति सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह मन्त्रिमण्डल, मन्त्रिपरिषद् तथा लोकसभा का नेता होता है। देश की सभी नीतियां तथा कानून उसी के परामर्श के अनुसार बनते हैं। अपने मन्त्रिमण्डल के लिए मन्त्रियों का चुनाव वही करता है। कोई भी मन्त्री उसकी इच्छा के बिना अपने पद पर नहीं रह सकता।

परन्तु वर्तमान समय में लोकसभा चुनावों में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता। इससे त्रिशंकु संसद् अस्तित्व में आती है। इसी कारण वर्तमान समय में प्रधानमन्त्री की स्थिति डगमगा गई है।

प्रश्न 2.
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद तथा पं० जवाहर लाल नेहरू कौन थे ? मज़बूत केन्द्र के बारे में उनके क्या विचार थे ?
उत्तर-
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति तथा पं० जवाहर लाल नेहरू प्रथम प्रधानमन्त्री थे। ये. दोनों ही बड़े प्रभावशाली नेता थे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के विचार-डॉ० राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए अधिक शक्तियां देने के पक्ष में थे। वह केन्द्र को मज़बूत बनाना चाहते थे, क्योंकि भारत को कई शताब्दियों के पश्चात् स्वतन्त्रता मिली थी।

पं० जवाहर लाल नेहरू के विचार-पं० नेहरू भी केन्द्र को सुदृढ़ बनाने के समर्थक थे। वह चाहते थे कि प्रधानमन्त्री तथा उसके मन्त्रिमण्डल को अधिक शक्तियां दी जाएं।

प्रश्न 3.
“किसी समय भारतीय संसद् एक बहुत ही सुदृढ़ संस्था थी। परन्तु अब इसका पतन हो रहा है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
संसद् भारत में कानून बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था है। पं० जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी के समय यह एक बहुत ही सुदृढ़ संस्था रही है, परन्तु अब दिन-प्रतिदिन इसका पतन हो रहा है। एक ही दिन में दस-दस कानून पारित हो जाते हैं। उन पर ठीक से बहस भी नहीं हो पाती। कानून को वास्तविक रूप प्रदान करने का ढंग भी बदल गया है। संसद् के पतन के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

  • त्रिशंकु संसद् का बनना।
  • जिद्द की राजनीति।
  • सदन में सदस्यों की अनुपस्थिति।
  • सदन की बैठकों की संख्या में कमी।
  • कमेटी प्रणाली का कमज़ोर होना।
  • स्पीकर की निष्पक्षता के सम्बन्ध में सन्देह।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 27 संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं

प्रश्न 4.
संविधान के अनुसार प्रधानमन्त्री की क्या स्थिति है ? वर्तमान समय में उसकी स्थिति क्यों डगमगा गई है ?
उत्तर-
संविधान के अनुसार देश में प्रधानमन्त्री की स्थिति सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह मन्त्रिमण्डल, मन्त्रिपरिषद् तथा लोकसभा का नेता होता है। देश की सभी नीतियां तथा कानून उसी के परामर्श के अनुसार बनते हैं। अपने मन्त्रिमण्डल के लिए मन्त्रियों का चुनाव वही करता है। कोई भी मन्त्री उसकी इच्छा के बिना अपने पद पर नहीं रह सकता।
परन्तु वर्तमान समय में लोकसभा चुनावों में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता। इससे त्रिशंकु संसद् अस्तित्व में आती है। इसी कारण वर्तमान समय में प्रधानमन्त्री की स्थिति डगमगा गई है।

प्रश्न 5.
विधानपालिका तथा कार्यपालिका के अर्थ तथा संगठन के बारे में लिखो।
उत्तर-
अर्थ-विधानपालिका तथा कार्यपालिका संसदीय सरकार के दो भाग हैं। विधानपालिका सरकार का वह अंग है जो कानून बनाता है। कार्यपालिका का कार्य विधानपालिका द्वारा बनाये गए कानूनों को लागू करना है। __ संगठन-विधानपालिका के दो सदन हैं-लोकसभा तथा राज्यसभा। लोकसभा को निम्न सदन कहा जाता है। यह एक अस्थायी सदन है। इसके विपरीत राज्यसभा एक स्थाई सदन है। इसे उच्च सदन कहा जाता है। लोकसभा के सदस्यों की संख्या 545 तथा राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 250 निश्चित की गई है।

कार्यपालिका में राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिमण्डल शामिल है। राष्ट्रपति नाममात्र की तथा प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिमण्डल वास्तविक कार्यपालिका है।

राष्ट्रपति की सभी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा उसका मन्त्रिमण्डल करता है। इनकी नियुक्ति विधानपालिका में से की जाती है। राष्ट्रपति का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव किया जाता है।

प्रश्न 6.
संसदीय प्रणाली में संसद् की स्थिति कैसी होती है ?
उत्तर-
संसदीय प्रणाली में संसद् सर्वोच्च होती है। कार्यपालिका (सरकार) अपने कार्यों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद् कई तरीकों से सरकार पर अपना नियन्त्रण रखती है, जैसे- मन्त्रियों से प्रश्न पूछना, बहस, जीरो आवर (Zero Hour), स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव, ध्यान आकर्षण प्रस्ताव आदि।

प्रश्न 7.
भारत में संसदीय सरकार के अपनाने के कारण लिखें।
उत्तर-

  • संसदीय सरकार को सर्वोत्तम माना गया है।
  • संसदीय प्रणाली में उत्तरदायित्व और स्थिरता दोनों गुण पाये जाते ।
  • संसदीय सरकार कभी भी बदली जा सकती है। इसलिए यह निरंकुश नहीं बन पाती।
  • लोकतन्त्र को सही अर्थों में संसदीय सरकार ही स्थापित करती है।

संसद्-बनावट, भूमिका तथा विशेषताएं PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत में संसदीय सरकार – भारत में संसदीय सरकार की व्यवस्था है। केन्द्रीय सरकार के तीन प्रमुख अंग हैं –
    कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। राष्ट्रपति कार्यपालिका का मुखिया होता है। परन्तु वह नाममात्र का मुखिया है।
  • संसद् के सदन – संसद् के दो सदन हैं- लोकसभा और राज्यसभा। संसद् देश के लिए कानून बनाती है।
  • संसद् की सर्वोच्चता – संसद् की सर्वोच्चता से अभिप्राय यह है कि संसद् देश की सर्वोच्च संस्था है। इसमें जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य होते हैं। अतः इसके द्वारा बनाए गए कानून वास्तव में | जनता स्वयं बनाती है। संसद् द्वारा पारित कानून पर राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं।
  • राष्ट्रपति और प्रधान मन्त्री के सम्बन्ध – भारत में प्रधानमन्त्री की स्थिति राष्ट्रपति से अधिक महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रपति कार्यकारी मुखिया है परन्तु उसकी सभी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिपरिषद् करता है। राष्ट्रपति के लिए प्रधानमन्त्री की सलाह मानना अनिवार्य है। प्रधानमन्त्री समयसमय पर राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् में हुई बैठकों की सूचना देता है। इस प्रकार वह राष्ट्रपति तथा मन्त्रिपरिषद् के बीच कड़ी का काम करता है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

SST Guide for Class 9 PSEB पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक मुस्लिम समाज के कौन-से वर्ग में आते थे ?
(क) उच्च वर्ग
(ख) मध्य वर्ग
(ग) निम्न वर्ग
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) मध्य वर्ग

प्रश्न 2.
देवी दुर्गा की पूजा करने वालों को क्या कहा जाता था ?
(क) वैष्णव
(ख) शैव
(ग) शाक्त
(घ) सुन्नी।
उत्तर-
(ग) शाक्त

प्रश्न 3.
जज़िया क्या है ?
(क) धर्म
(ख) धार्मिक कर
(ग) प्रथा
(घ) गहना।
उत्तर-
(ख) धार्मिक कर

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

प्रश्न 4.
उलमा कौन थे ?
(क) मजदूर
(ख) हिंदू धार्मिक नेतां
(ग) मुस्लिम धार्मिक नेता
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) मुस्लिम धार्मिक नेता

प्रश्न 5.
सच्चा सौदा की घटना कहाँ घटी ?
(क) चूहड़काने
(ख) राय भोय
(ग) हरिद्वार
(घ) सैय्यदपुर।
उत्तर-
(क) चूहड़काने

(ख) रिक्त स्थान भरें:

  1. मुसलमानों के सुन्नी और ………….. दो मुख्य संप्रदाय थे।
  2. …………… को मानने वाले लोग विष्णु की पूजा करते थे।
  3. श्री गुरु नानक देव जी के जीवन का उद्देश्य …………….. का कल्याण था।
  4. श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में ….. ……………… का संदेश दिया।
  5. सुल्तानपुर में रहते हुए गुरु जी रोज़ ……………. नदी में स्नान करने जाते थे।

उत्तर-

  1. शिया
  2. वैष्णव मत
  3. सारी मनुष्य जाति/सरबत
  4. नाम जपो, किरत करो और बौटकर छको
  5. वेई

(ग) सही मिलान करें :

1. पानीपत का पहला युद्ध – (क) चूहड़काना
2. सच्चा सौदा – (ख) 1526 ई०
3. गुरु अंगद देव जी – (ग) तलवंडी रायभोय
4. गुरु नानक देव जी का जन्म – (घ) भाई लहणा।

उत्तर-

  1. 1526 ई०
  2. चहडकाना
  3. भाई लहणा
  4. तलवडा रायभा

(घ) अंतर बताओ :

प्रश्न 1.
1. मुस्लिम उच्च वर्ग और मुस्लिम मध्यम वर्ग
2. वैष्णव मत और शैव मत।
उत्तर-

  1. मुस्लिम उच्च वर्ग और मुस्लिम मध्यम वर्ग
    • मुस्लिम उच्च वर्ग-इस वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरदारों का जीवन प्रायः भोग-विलास में डूबा हुआ था। वे महलों अथवा बड़े-बड़े भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुंदरी और संगीत में खोये रहते थे। उलेमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था।
    • मुस्लिम मध्यम वर्ग-मध्यम वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर निम्न था।
  2. वैष्णव मत और शैव मत।
    • वैष्णव मत-वैष्णव मत को मानने वाले लोग विष्णु और उसके अवतारों राम, कृष्ण आदि की पूजा करते थे। ये लोग शुद्ध शाकाहारी थे।
    • शैव मत-शैव मत को मानने वाले लोग शिवजी की आराधना करते थे। इनमें गोरख पंथी, नाथ नंथी और कनफटे जोगी शामिल थे। ये अधिकतर संन्यासी थे।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोधी वंश का अंतिम शासक कौन था ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी।

प्रश्न 2.
बाबर को पंजाब पर हमला करने के लिए किसने निमंत्रण भेजा ?
उत्तर-
बाबर को दौलत खां लोधी ने पंजाब पर हमला करने का निमंत्रण भेजा।

प्रश्न 3.
लोधीकाल में किन धार्मिक नेताओं को राजनीतिक संरक्षण मिलता था ?
उत्तर-
लोधीकाल में मुस्लिम कुलीन वर्ग के उलमा और सूफी शेखों को राजनीतिक संरक्षण मिलता था।

प्रश्न 4.
जजिया कर क्या था ?
उत्तर-
जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर था जो मुग़ल शासक गैर-मुस्लिम लोगों से एकत्रित करते थे। इसके बदले वे उनकी रक्षा की जिम्मेवारी लेते थे।

प्रश्न 5.
तीर्थ यात्रा कर के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
तीर्थ यात्रा कर ग़ैर-मुसलमानों से लिया जाता था। यह कर लोग अपने धार्मिक स्थानों की यात्रा करने के लिए देते थे।

प्रश्न 6.
पानीपत की पहली लड़ाई कब और किसके बीच हुई ?
उत्तर–
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच हुई।

प्रश्न 7.
मुस्लिम धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय कौन-से थे ?
उत्तर-
सुन्नी और शिया।

प्रश्न 8.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में राय भोय की तलवंडी (ज़िला शेखूपुरा, पाकिस्तान) में हुआ। अब इस स्थान को श्री ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 9.
श्री गुरु नानक देव जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी और पिता का नाम मेहता कालू जी था।

प्रश्न 10.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा रचित किन्हीं दो प्रमुख बाणियों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी ने जपुजी साहिब, वार माझ, वार मल्हार आदि बाणियों की रचना की।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

प्रश्न 11.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की यात्राओं को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की गई यात्राओं को उदासियां कहा जाता है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
16वीं शताब्दी के आरंभ से स्त्रियों की स्थिति पर नोट लिखो।
उत्तर-
16वीं शताब्दी के आरंभ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे हीन और पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें घर की चार दीवारी में रखा जाता था और सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे। मुस्लिम समाज में भी स्त्री की दशा शोचनीय थी। वह मन बहलाव का साधन मात्र ही समझी जाती थी। उन्हें पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था।

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी ने शिक्षा कहां से प्राप्त की ? नोट लिखो।
उत्तर-
बचपन से ही श्री गुरु नानक देव जी दयावान् थे। दीन-दुःखियों, को देखकर उनका मन पिघल जाता था। 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पंडित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। परन्तु पंडित जी उन्हें संतुष्ट न कर सके। तत्पश्चात् उन्हें पंडित बृज लाल के पास पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां गुरु जी ने ‘ओ३म्’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पंडित जी को अचम्भे में डाल दिया। सिक्ख परंपरा के अनुसार उन्हें अरबी और फारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित सच्चा सौदा घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी के पिता जी ने गुरु जी का ध्यान सांसारिक कार्यों में लगाने के लिए 20 रुपये देकर ‘चूहड़काने’ नगर में व्यापार करने के लिए भेजा था। परंतु मार्ग में गुरु जी को कुछ साधु मिल गए जो भूखे थे। अतः गुरु जी ने ये रुपए संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी ने किन रीति-रिवाजों का खंडन किया ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकांडों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकांडों का खंडन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से जुड़े व्यर्थ के संस्कार, विधियां और रीति-रिवाज । गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी अस्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खंडन किया।

प्रश्न 5.
लोधी काल में मुस्लिम मध्य वर्ग पर नोट लिखो।
उत्तर-
लोधी काल में मुस्लिम मध्य वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे।
मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी, फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिंदुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। उन्हें राज्य की ओर से काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिंदुओं की अपेक्षा काफी ऊंचा था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोधीकाल में पंजाब में मुसलमानों की सामाजिक स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर-
11वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक पंजाब मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। इन शासकों के समय में बहुतसे मुसलमान स्थायी रूप से पंजाब में बस गए थे। उन्होंने यहां की स्त्रियों से विवाह कर लिए थे जिनमें वेश्याएं तथा दासियां भी सम्मिलित थीं। पंजाब की बहुत-सी निम्न जातियों के हिंदुओं ने शासकों के भय से तथा सूफियों के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इस समय बहुत-से मुग़ल तथा ईरानी जाति के लोग भी पंजाब में आ बसे थे। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में मुसलमानों की काफी संख्या थी। उनकी स्थिति हिंदुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था।
(क) मुसलमानों के वर्ग-मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित था-

1. उच्च वर्ग-इस वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरकारों के पास अपने सैनिक होते थे और आवश्यकता पड़ने पर वे सुल्तान को सैनिक सेवाएं प्रदान करते थे। उनका दैनिक जीवन प्रायः भोग-विलास का जीवन था। वे महलों अथवा भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुंदरी और संगीत में खोये रहते थे और ऐश्वर्य के लिए अनेक स्त्रियां रखते थे। उलमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था। उन्हें अरबी भाषा तथा कुरान की पूर्ण जानकारी होती थी। यही कारण है कि मुस्लिम शासकों के दरबार में उनका बड़ा महत्त्व था। वे सुल्तान की सुविधा के लिए इस्लामी कानून की व्याख्या करते थे और शरीयत के अनुसार शासन चलाने में सहायता करते थे। अनेक उलेमा राज्य के न्याय कार्यों में लगे हुए थे। वे काजियों के पदों पर आसीन थे और धार्मिक तथा न्यायिक पदों पर काम कर रहे थे।

2. मध्य वर्ग-मध्य वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी। फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिंदुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिंदुओं की अपेक्षा काफी ऊंचा था।

3. निम्न वर्ग-निम्न वर्ग में लुहार, बढ़ई, सुनार आदि शिल्पकारों, निजी सेवकों, दास-दासियों आदि की गणना की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर अधिक ऊंचा नहीं था। उन्हें आजीविका कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था।

(ख) स्त्रियों की दशा-मुस्लिम समाज में उच्च घरानों की स्त्रियों की दशा कुछ अच्छी थी, परन्तु अन्य वर्गों की स्त्रियों की दशा दयनीय थी। उन्हें बुर्का पहनना पड़ता था और घर की चार दीवारी में ही रहना पड़ता था। उन्हें पढ़नेलिखने और स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने का अधिकार नहीं था। अमीर लोग कई-कई पत्नियां रखते थे। तलाक की प्रथा भी प्रचलित थी। घर के मामलों में स्त्री की राय लेना ज़रूरी नहीं समझा जाता था।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी के समय सामाजिक एवं धार्मिक अवस्था का वर्णन करें।
उत्तर-
I. सामाजिक अवस्था-सोलहवीं शताब्दी में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी शोचनीय थी। समाज में भेदभाव था। हिंदुओं की अपेक्षा मुसलमानों से अच्छा व्यवहार होता था। शिक्षा का उचित प्रबंध नहीं था। लोगों को फारसी पढ़ने के लिए विवश किया जाता था। स्त्रियों की दशा बड़ी शोचनीय थी। लड़की का जन्म दुर्भाग्य का प्रतीक समझा जाता था। अंधविश्वास और आडंबरों के कारण इस युग के अंधकार में और भी वृद्धि हुई। संक्षेप में सोलहवीं शताब्दी के पंजाब की सामाजिक दशा का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है।

1. मुसलमानों की स्थिति–11वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक पंजाब मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। इन शासकों के समय में बहुत-से मुसलमान स्थायी रूप से पंजाब में बस गए थे। उन्होंने यहां की स्त्रियों से विवाह कर लिए थे जिनमें वेश्याएं तथा दासियां भी सम्मिलित थीं। पंजाब के बहुत-से निम्न जातियों के हिंदुओं ने शासकों के भय से तथा सूफियों के प्रभाव में आकर धर्म स्वीकार कर लिया था। इसी समय बहुत-से मुग़ल तथा ईरानी जाति के लोग भी पंजाब में आ बसे थे। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में मुसलमानों की काफी संख्या थी। इनमें से अधिकतर मुसलमान गांवों की अपेक्षा नगरों में रहते थे। सोलहवीं शताब्दी के समाज में मुसलमानों की स्थिति हिंदुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था। लगभग सभी बातों में मुसलमानों का पक्ष लिया जाता था। उच्च श्रेणी के मुसलमानों को विशेषाधिकार भी प्राप्त थे। .

2. मुसलमानों की श्रेणियां-16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  • उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काज़ी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मंत्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
  • मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काज़ी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
  • निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।

3. हिंदुओं की स्थिति-सोलहवीं शताब्दी के हिंदू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। प्रत्येक हिंदू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिंदुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आकर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकंदर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था। यह भी कहा जाता है-कि सिकंदर लोधी एक बार कुरुक्षेत्र के एक मेले में एकत्रित होने वाले सभी हिंदुओं को मरवा देना चाहता था। परंतु वह हिंदुओं के विद्रोह के डर से ऐसा कर नहीं पाया।

4. स्त्रियों की स्थिति-16वीं शताब्दी को स्त्री का जीवन इस प्रकार था-

  • स्त्रियों की दशा-16वीं शताब्दी के आरंभ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे अबला, हीन और . पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे।
  • कुप्रथाएं-समाज में अनेक कुप्रथाएं भी प्रचलित थीं जो स्त्री जाति के विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थीं। इनमें से मुख्य प्रथाएं सती-प्रथा, कन्या-वध, बाल-विवाह, जौहर प्रथा, पर्दा-प्रथा, बहु-पत्नी प्रथा आदि प्रमुख थीं।
  • पर्दा प्रथा-पर्दा प्रथा हिंदू तथा मुसलमान दोनों में ही प्रचलित थी। हिंदू स्त्रियों को बूंघट निकालना पड़ता था और मुसलमान स्त्रियां बुर्के में रहती थीं। मुसलमानों में बहु-पत्नी प्रथा ज़ोरों से प्रचलित थी। सुल्तान तथा बड़े सरदार अपने मनोरंजन के लिए सैंकड़ों स्त्रियां रखते थे। स्त्री शिक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया.जाता था। केवल कुछ उच्च घराने की स्त्रियां ही अपने घर पर शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं। शेष स्त्रियां प्रायः अनपढ़ ही थीं। पंजाब में प्रायः स्त्री के विषय में यह कहावत प्रसिद्ध थी-“घर विच बैठी लक्ख दी, बाहर गई कख दी।”

II. धार्मिक अवस्था-16वीं शताब्दी में हिंदू धर्म पंजाब का प्रमुख धर्म था। वेद, रामायण, महाभारत, उपनिषद, गीता आदि पर आधारित अनेक हिंदू शिक्षाएं प्रचलित थीं। हिंदू धर्म कई संप्रदायों में बंटा हुआ था।

  1. वैष्णव मत-वैष्णव मत को मानने वाले लोग विष्णु और उसके अवतारों राम, कृष्ण आदि की आराधना करते थे। ये लोग शुद्ध शाकाहारी थे।
  2. शैव मत-शैव मत को मानने वाले शिवजी के उपासक थे। ये अधिकतर संन्यासी थे। जिनमें गोरखपंथी, नाथपंथी और कनफटे जोगी शामिल थी।
  3. शाक्त मत-शाक्त मत को मानने वाले लोग काली और दुर्गा की शक्ति के रूप में पूजा करते थे। ये लोग पूजा के लिए जानवरों की बलि भी देते थे।

बहुत सारे लोग जादू-टोनों में विश्वास करते थे। कुछ लोग पितरों व स्थानीय देवताओं जैसे-गूगा पीर और शीतला माता आदि की पूजा करते थे। सभी गैर-मुसलमान हिंदू नहीं थे। इसके इलावा उस समय पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों में बुद्ध और मैदानी भागों में जैन धर्म को मानने वाले लोग भी थे, जोकि अहिंसा में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की पहली उदासी (यात्रा) की व्याख्या करें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा 1499 ई० में आरंभ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया-

  1. सैय्यदपुर-एमनाबाद-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहां उन्होंने भाई लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया। यहाँ उन्होंने मलिक भागों नामक एक अमीर को ईमानदारी का पाठ भी पढ़ाया। उन्होंने उसकी हवेली में ठहरने और वहां भोजन करने से इन्कार कर दिया क्योंकि उसने गरीबों का खून चूस कर धन इकट्ठा किया था। इस प्रकार गुरु जी ने लोगों को भी किरत (मेहनत) करके कमाई करने का संदेश दिया।
  2. तालुंबा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी सुल्तान ज़िला में स्थित तालुंबा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परंतु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धंधा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मंदिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
  3. कुरुक्षेत्र-तुलुंबा से गुरु साहिब हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिंदू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
  4. पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुंचे। यहां से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार चले गए। यहां गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुंह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अंधविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरंभ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
  5. गोरखमता (वर्तमान नानकमत्ता)-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहां उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
  6. बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुंचे। यहां उनकी भेंट पंडित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
  7. गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुंचे। यहां उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया। यहां से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  8. आसाम (कामरूप)-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुंचे। वहां उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुंदरता सच्चरित्र में है।
  9. ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुंचे। वहां पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मंदिर बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहां पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है क्योंकि प्रकृति की हर चीज़ उसी की आलौकिक आरती करती रहती है। ईश्वर निराकार तथा सर्वव्यापक है।।
  10. वापसी-वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुंचे। वहां पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। 1510 ई० में गुरु साहिब वापिस अपने गांव तलवंडी पहुंचे। उन्होंने भाई मरदाना को भी अपने घर जाने की अनुमति दे दी।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-कांड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का संदेश उन्होंने अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

  1. ईश्वर की महिमा अथवा परमात्मा संबंधी विचार-गुरु साहिब ने ईश्वर अथवा परमात्मा सबसे महान् है। उसकी महानता का वर्णन कर पाना असंभव है। उन्होंने परमात्मा की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है-
    • एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
    • ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
    • ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
    • ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
    • ईश्वर चिर-स्थायी है-गुरु जी ने बताया कि ईश्वर चिरस्थायी अर्थात् सदा रहने वाला है। बाकी सब कुछ नश्वर है।
    • परमात्मा की दया, मेहर तथा सहायता-गुरु नानक देव जी ने उपदेश दिया कि मनुष्य को परमात्मा की मेहर. दया तथा सहायता पाने के लिए उसका सिमरन करना चाहिए।
    • परमात्मा का हुक्म-गुरु नानक देव जी ने उपदेश दिया कि मनुष्य को परमात्मा के हुक्म अथवा मर्जी के अनुसार रहना चाहिए। परमात्मा नहीं है, वह सब झूठ है।
  2. सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर में मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
  3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
  4. कर्म सिद्धांत में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर के छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
  5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया है। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की संतान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
  7. जाति-पाति का खंडन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिंद था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
  8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
  9. मूर्ति-पूजा का खंडन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खंडन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की वास्तविक पूजा उसके नाम का जाप करने और सर्वत्र उसकी उपस्थिति का अनुभव करने में है।
  10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-कांडों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकांडों का घोर खंडन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
  11. सर्वोच्च आनंद (सचखंड) की प्राप्ति)-गुरु नानक देव जी के अनुसार जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनंद की (सचखंड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनंद वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिंताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शांत हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
  12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धांत प्रस्तुत किए
    • सदा सत्य बोलना,
    • चोरी न करना,
    • ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना,
    • दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचना।

सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् संत और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर बाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी कहां की रहने वाली थी ?
(क) बटाला की
(ख) अमृतसर की
(ग) भटिंडा की
(घ) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(क) बटाला की

प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(क) गुरु अंगद देव जी ने
(ख) श्री गुरु नानक देव जी ने
(ग) गुरु रामदास जी ने
(घ) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(ख) श्री गुरु नानक देव जी ने

प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट कहां हुई ?
(क) पटना में
(ख) सियालकोट में
(ग) तालुंबा में
(घ) करतारपुर में।
उत्तर-
(ग) तालुंबा में

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(क) सुलखनी जी
(ख) तृप्ता जी
(ग) नानकी जी
(घ) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(ख) तृप्ता जी

प्रश्न 5.
बाबर द्वारा गुरु नानक देव जी को बंदी बनाया गया
(क) सियालकोट में
(ख) कीरतपुर साहिब में
(ग) सैय्यदपुर में
(घ) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(ग) सैय्यदपुर में

प्रश्न 6.
बाबर ने 1526 की लड़ाई में हराया
(क) दौलत खां लोधी को
(ख) बहलोल लोधी को
(ग) इब्राहिम लोधी को
(घ) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(ग) इब्राहिम लोधी को

प्रश्न 7.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ
(क) 1269 ई० में
(ख) 1469 ई० में
(ग) 1526 ई० में
(घ) 1360 ई० में।
उत्तर-
(ख) 1469 ई० में

प्रश्न 8.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया ?
(क) बहलोल लोधी ने ।
(ख) इब्राहिम लोधी ने
(ग) दौलत खां लोधी ने
(घ) सिकंदर लोधी ने।
उत्तर-
(क) बहलोल लोधी ने ।

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प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा लोधी सुल्तान नहीं था ?
(क) बहलोल लोधी
(ख) इब्राहिम लोधी
(ग) दौलत खां लोधी
(घ) सिकंदर लोधी।
उत्तर-
(ग) दौलत खां लोधी

प्रश्न 10.
मुसलमानों का धार्मिक ग्रंथ कौन-सा है ?
(क) शरीयत
(ख) उलेमा
(ग) कुरान
(घ) बशेखायत।
उत्तर-
(ग) कुरान

रिक्त स्थान भरें :

(क)

  1. बाबर ने पंजाब को ……………… ई० में जीता।
  2. मुसलमानों की कुरान के अनुसार जीवन-यापन की पद्धति ……………… कहलाती है।
  3. इब्राहिम लोधी ने …………… लोधी को दंड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।
  4. तातार खां लोधी के बाद ……………… को पंजाब का सूबेदार बनाया गया।
  5. मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रदार पगड़ी को ……………… कहा जाता था। .
  6. ……………… दौलत खां लोधी का पुत्र था।

उत्तर-

  1. 1526
  2. शरीयत
  3. दौलत खां
  4. दौलत खां लोधी
  5. चीरा
  6. दिलावर खां लोधी।

(ख)

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को …………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
  2. …………………. गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
  3. गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम ……………… तथा ……………… थे।
  4. गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……………. नामक चार ___ बाणियां हैं।
  5. गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप ………….. नामक गांव में हुआ।
  6. गुरुद्वारा पंजा साहिब ……………… में स्थित है।

उत्तर-

  1. सच्चा सौदा
  2. बीबी सुलखनी
  3. श्रीचंद तथा लक्ष्मी दास (चंद)
  4. जपुजी साहिब बारह माह
  5. तलवंडी
  6. सियालकोट।

सही मिलान करो :

(क) -(ख)
1. तीसरी उदासी – (i) तलवंडी
2. तातार खां – (ii) ज्वालाजी
3. श्री गुरु नानक देव जी की पत्नी सुलखनी – (iii) बहलोल लोधी
4. लोधी वंश का प्रसिद्ध शासक – (iv) बटाला
5. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म – (v) सिकंदर लोधी

उत्तर-

  1. ज्वालाजी
  2. बहलोल लोधी
  3. बटाला
  4. सिकंदर लोधी
  5. तलवंडी।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

(I)

प्रश्न 1.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई० को हुआ परन्तु उनका जन्म दिवस कार्तिक की पूर्णिमा (अक्तूबर-नवंबर) को मनाया जाता है।

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म तलवंडी नामक गांव (आधुनिक पाकिस्तान में) में हुआ था जिसे ननकाना साहिब कहते हैं।

प्रश्न 3.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने कहाँ और कितने समय तक काम किया ?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खां लोधी के मोदीखाने (अनाज के भण्डार) में दस वर्ष तक कार्य किया।

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प्रश्न 4.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन-कराना।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (जिला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं।।

प्रश्न 6.
(i) गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा
(ii) उनका क्या भाव था ?
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिंदू न कोई मुसलमान।’
  2. इसका भाव था कि हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।

प्रश्न 7.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया ?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खां लोधी के अधीन मोदी खाने में भंडारी का काम किया।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियों के नाम लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए ?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को अपनी शारीरिक पवित्रता की बजाय अपने मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।

प्रश्न 10.
गुरु नानक साहिब की बनारस यात्रा के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बनारस में गुरु जी की भेंट पंडित चतुरदास से हुई जो गुरु जी के उपदेशों से बहुत प्रभावित हुआ और गुरु जी का शिष्य बन गया।

प्रश्न 11.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडंबरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है ? कोई चार विचार लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी कैसा जनेऊ पहनना चाहते थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी सद्गुणों के धागे से बना जनेऊ पहनना चाहते थे।

प्रश्न 14.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रुपए से साधु-संतों को रोटी खिला कर किया था।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम जी के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ कहां किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ करतारपुर में किया।

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ किन दो संस्थाओं द्वारा किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अंध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया ?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।

(II)

प्रश्न 1.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम क्या था ?
उत्तर-
तृप्ता जी।

प्रश्न 3.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहां स्थित है ?
उत्तर-
सियालकोट में।

प्रश्न 4.
तीसरी उदासी में गुरु नानक देव जी के एक साथी का नाम बताओ।
उत्तर-
मरदाना/हस्सू लुहार।

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प्रश्न 5.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बंदी बनाया ?
उत्तर-
सैय्यदपुर।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निंदा की है ?
उत्तर-
बाबरबाणी में।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 साल कहां व्यतीत किए ?
उत्तर-
करतारपुर (पाकिस्तान) में।

प्रश्न 8.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस रचना में मिलता है ?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।

प्रश्न 9.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए ?
उत्तर-
22 सितंबर, 15391

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिंदू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।

प्रश्न 13.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।

प्रश्न 14.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई ?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई ?
उत्तर-
सज्जन ठग से मुरु नानक देव जी की भेंट तुलुंबा में हुई।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
गुरु जी के संपर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।

प्रश्न 17.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा ?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी द्वारा नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझाने के कारण।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी के अंतिम वर्ष कहां व्यतीत हुए ?
उत्तर-
गुरु जी के अंतिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी विचार क्या थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

(III)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया ?
उत्तर-
पंडित गोपाल के पास।

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प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से साधु-संतों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
सच्चा सौदा।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचंद और लखमी दास (चंद)।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई ?
उत्तर-
1499 ई० में।

प्रश्न 5.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे ?
उत्तर-
भाई मरदाना।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा ?
उत्तर-
गोरखमता।

प्रश्न 7.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहां गए ?
उत्तर-
दक्षिणी भारत में।

प्रश्न 8.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई ?
उत्तर-
संत शंकर देव से।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरंभ की ?
उत्तर-
1515 ई० में।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया ?
उत्तर-
कामरूप।

प्रश्न 11.
बहलोल खां लोधी कौन था ?
उत्तर-
बहलोल खां लोधी दिल्ली का सुल्तान (1450-1489) था।

प्रश्न 12.
इब्राहिम लोधी का कोई एक गुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी एक वीर सिपाही तथा काफ़ी सीमा तक सफल जरनैल था।

प्रश्न 13.
इब्राहिम लोधी के कोई दो अवगुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी अयोग्य, हठी तथा घमंडी था।

प्रश्न 14.
बाबर ने पंजाब पर अपना अधिकार कब किया ?
उत्तर-
बाबर ने पंजाब पर 21 अप्रैल, 1526 को अधिकार किया।

प्रश्न 15.
मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था ?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अंत में मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  1. उलेमा तथा सैय्यद,
  2. मध्य श्रेणी तथा
  3. गुलाम अथवा दास।

प्रश्न 16.
आलम खां ने बाबर से जो संधि की, उसके विषय में लिखिए।
उत्तर-
संधि के अनुसार यह तय हुआ किबाबर आलम खां को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने के लिए सैन्य सहायता देगा।
अथवा
आलम खां पंजाब के सभी इलाकों पर कानूनी तौर पर बाबर का अधिकार स्वीकार होगा।

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प्रश्न 17.
उलेमा कौन थे ?
उत्तर-
उलेमा मुस्लिम धार्मिक वर्ग के नेता थे जो अरबी तथा धार्मिक साहित्य के विद्वान् थे।

प्रश्न 18.
मुस्लिम तथा हिंदू समाज के भोजन में क्या फ़र्क था ?
उत्तर-
मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काजी लोगों का भोजन बहुत तैलीय (घी वाला) होता था, जबकि हिंदुओं का भोजन सादा तथा वैष्णो (शाकाहारी) होता था।

प्रश्न 19.
सैय्यद कौन थे ?
उत्तर-
सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की संतान मानते थे।

प्रश्न 20.
मुस्लिम-मध्य श्रेणी में कौन-कौन शामिल था ?
उत्तर-
मुस्लिम मध्य श्रेणी में सरकारी कर्मचारी, सिपाही, व्यापारी तथा किसान शामिल थे।

(IV)

प्रश्न 1.
मुसलमान स्त्रियों के पहरावे का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमा स्त्रियां जंपर, घाघरा तथा पायजामा पहनती थीं और बुर्के का प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 2.
मुसलमानों के मनोरंजन के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम सरदारों तथा अमीरों के मनोरंजन के मुख्य साधन चौगान, घुड़सवारी, घुड़दौड़ आदि थे, जबकि ‘चौपड़’ का खेल अमीर तथा ग़रीब दोनों में प्रचलित था।

प्रश्न 3.
हिंदुओं के अंधविश्वास व अज्ञानता का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब में हिंदू देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि देते थे और जादू टोने, तावीज़ तथा करामातों में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 4.
इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब की राजनीतिक दशा कैसी थी ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करके षड्यंत्र रच रहा था।

प्रश्न 5.
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दिल्ली क्यों बुलवाया ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दंड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।

प्रश्न 6.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया ?
उत्तर-
बहलोल लोधी को।

प्रश्न 7.
लोधी-वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह किसे माना जाता है ?
उत्तर-
सिकंदर लोधी को।

प्रश्न 8.
तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार कौन बना ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी।

प्रश्न 9.
दौलत खां लोधी के छोटे पुत्र का नाम बताओ।
उत्तर-
दिलावर खां लोधी।

प्रश्न 10.
बाबर ने 1519 के अपने पंजाब आक्रमण में किन स्थानों पर अपना अधिकार किया. ?
उत्तर-
बजौर तथा भेरा पर। प्रश्न 11. बाबर का लाहौर पर कब्जा कब हुआ ?
अथवा
बाबर ने पंजाब को कब जीता ? उत्तर-1524 ई०।

प्रश्न 12.
पानीपत की पहली लड़ाई (21 अप्रैल, 1526) किसके बीच हुई ?
उत्तर-
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के बीच।

प्रश्न 13.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फातिमा की संतान कौन मानता था ?
उत्तर-
सैय्यद।

प्रश्न 14.
मुस्लिम समाज में न्याय संबंधी कार्य कौन करते थे ?
उत्तर-
काजी।

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प्रश्न 15.
मुस्लिम समाज में सबसे निचले दर्जे पर कौन था ?
उत्तर-
गुलाम।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी से पहले हिंदुओं को क्या समझा जाता था ?
उत्तर-
जिम्मी।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी से पहले हिंदुओं पर लगा एक धार्मिक कर बताइए।
उत्तर-जज़िया।

प्रश्न 18.
‘सती’ की कुप्रथा किस जाति में प्रचलित थी ?
उत्तर-
हिंदुओं में।

प्रश्न 19.
मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रेदार पगड़ी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
चीरा

प्रश्न 20.
दौलत खां लोधी ने दिल्ली के सुल्तान के पास अपने पुत्र दिलावर खां को क्यों भेजा ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी भांप गया कि सुल्तान उसे दंड देना चाहता है।

प्रश्न 21.
दौलत खां लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए क्यों बुलाया ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी की शक्ति का अंत करके स्वयं पंजाब का स्वतंत्र शासक बनना चाहता था।

प्रश्न 22.
दौलत खां लोधी बाबर के विरुद्ध क्यों हुआ ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी को विश्वास था कि विजय के पश्चात् बाबर उसे सारे पंजाब का गवर्नर बना देगा जबकि बाबर ने उसे केवल जालंधर का ही शासन सौंपा तो वह बाबर के विरुद्ध हो गया।

प्रश्न 23.
दौलत खां लोधी ने बाबर का सामना कब किया ?
उत्तर-
बाबर द्वारा भारत पर, पांचवें आक्रमण के समय दौलत खां लोधी ने उसका सामना किया।

प्रश्न 24.
बाबर के पंजाब पर पांचवें आक्रमण का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर-
इस लड़ाई में दौलत खां लोधी पराजित हुआ और सारे पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।

प्रश्न 25.
16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा के विषय में गुरु नानक देव जी के विचारों पर एक वाक्य लिखो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी लिखते हैं-
“राजा शेर है तथा मुकद्दम कुत्ते हैं जो दिन-रात प्रजा का शोषण करने में लगे रहते हैं।” अर्थात् शासक वर्ग अत्याचारी है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे संबंधी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारंभिक मंत्र पढ़ने के पश्चात् पंडित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परंतु उन्होंने इसे पहनने से साफ़ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारंभिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिंतन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परंतु गुरु जी ने ये रुपये साधु-संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा संबंधी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा संबंधी विचारों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया है कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का संदेश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मंदिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बंद नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों पर दया तथा मेहर करता है और उनकी सहायता करता है।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए ?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए-

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना शिष्य बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तालुंबा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अंध-विश्वासों का खंडन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी आदि कई स्थानों का भ्रमण किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए ?
उत्तर-

  1. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी 1510 ई० में आरम्भ की। इस दौरान उन्होंने मालवा के संतों तथा माऊंट आबू के जैन मुनियों से मुलाकात की। वे पुष्कर भी गए।
  2. इसके बाद गुरु साहिब ने हैदराबाद, नन्देड़, कटक, गंटूर, गोलकुंडा, मद्रास, कांचीपुरम तथा रामेश्वरम् के तीर्थ स्थान की यात्रा की।
  3. गुरु जी समुद्री मार्ग से श्रीलंका गए, जहां लंका का राजा शिवनाथ तथा कई अन्य लोग उनकी बाणी से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए।
  4. अपनी वापिसी यात्रा में गुरु जी त्रिवेन्द्रम, श्री रंगापटनम, सोमनाथ, द्वारका, बहावलपुर, मुल्तान आदि स्थानों से होते हुए 1515 ई० को अपने गांव तलवंडी पहुंचे। यहां से वे सुल्तानपुर गए।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
सुल्तानपुर लोधी में कुछ समय रहने के बाद गुरु जी ने 1515 ई० से लेकर 1517 ई० तक अपनी तीसरी उदासी की। इस उदासी में भाई मरदाना भी उनके साथ थे। आरम्भ में हस्सू लुहार तथा सीहां छींबे ने भी उनका साथ दिया। इस उदासी के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. मुकाम पीर बुढ्नशाह, तिब्बत, नेपाल, गोरखमत्ता अथवा नानकमत्ता।
  2. बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वालाजी, कांगड़ा, कुल्लू आदि पहाड़ी इलाके।
  3. कश्मीर घाटी में कैलाश पर्वत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, आनंतनाग, बारामूला आदि।

प्रश्न 7.
श्री गुरु नानक देव जी की चौथी उदासी का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। .
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी चौथी उदासी 1517 ई० से 1521 ई० तक भाई मरदाना जी को साथ लेकर की। इस उदासी के दौरान उन्होंने पश्चिम एशिया के देशों की यात्रा की। वह मुल्तान, उच्च, मक्का, मदीना, बगदाद, कंधार, काबुल, जलालाबाद, पेशावर, सैय्यदपुर आदि स्थानों पर गए। इस यात्रा में उन्होंने मुसलमान हाज़ियों वाली नीली वेशभूषा धारण की हुई थी।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये। कार्य-

  1. इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि बाणियों की रचना की
  2. करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
  3. कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अंत निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 9.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं कीं। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक देव साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे संभवत्: भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग 20-21 वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के संपर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

प्रश्न 10.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बंधन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ संबंधित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खंडन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

प्रश्न 11.
श्री गुरु नानक देव जी की किन्हीं पांच शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दीं-

  1. ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
  2. जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-गरीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी सामान हैं।
  3. शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
  4. परमात्मा का सिमरन सच्चे मन से करना चाहिए।
  5. गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
  6. मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।

प्रश्न 12.
सिकंदर लोधी की धार्मिक नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर लोधी एक न्यायप्रिय, बुद्धिमान् तथा प्रजा हितैषी शासक था। परंतु डॉ० इंदु भूषण बैनर्जी इस मत के विरुद्ध हैं। उनका कथन है कि सिकंदर लोधी की न्यायप्रियता अपने वर्ग (मुसलमान वर्ग) तक ही सीमित थी। उसने अपनी हिंदू प्रजा के प्रति अत्याचार और असहनशीलता की नीति का परिचय दिया। उसने हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया और उनके मंदिरों को गिरवाया। हजारों की संख्या में हिंदू सिकंदर लोधी के अत्याचारों का शिकार हुए।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

प्रश्न 13.
इब्राहिम लोधी के समय हुए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में निम्नलिखित दो मुख्य विद्रोह हुए

  1. पठानों का विद्रोह-इब्राहिम लोधी ने स्वतंत्र स्वभाव के पठानों को अनुशासित करने का प्रयास किया। पठान इसे सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने विद्रोह कर दिया। इब्राहिम लोधी इस बग़ावत को दबाने में असफल रहा।
  2. पंजाब में दौलत खां लोधी का विद्रोह-पंजाब का सूबेदार दौलत खां लोधी था। वह इब्राहिम लोधी के कठोर, घमंडी तथा शक्की स्वभाव से दुखी था। इसलिए उसने स्वयं को स्वतंत्र करने का निर्णय कर लिया और वह दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। उसने अफ़गान शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भी आमंत्रित किया।

प्रश्न 14.
दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया ?
उत्तर-
दिलावर खां लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफ़ाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खां को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दंड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बंदी बना लिया। परंतु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खां समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।

प्रश्न 15.
बाबर के सैय्यदपुर के आक्रमण का वर्णन करो।
उत्तर-
सियालकोट को जीतने के बाद बाबर सैय्यदपुर (ऐमनाबाद) की ओर बढ़ा। वहां की रक्षक सेना ने बाबर की घुड़सेना का डटकर सामना किया। फिर भी अंत में बाबर की जीत हुई। शेष बची हुई रक्षक सेना को कत्ल कर दिया गया। सैय्यदपुर की जनता के साथ भी निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया गया। कई लोगों को दास बना लिया गया। गुरु नानक देव जी ने इन अत्याचारों का वर्णन ‘बाबर वाणी’ में किया है।

प्रश्न 16.
बाबर के 1524 ई० के हमले का हाल लिखो।
उत्तर-
1524 ई० में बाबर ने भारत पर चौथी बार आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खां ने बाबर से प्रार्थना की थी कि वह दिल्ली का सिंहासन पाने में उसकी सहायता करे। पंजाब के सूबेदार दौलत खां ने भी बाबर से सहायता के लिए प्रार्थना की थी। अतः बाबर भेरा होते हुए लाहौर के निकट पहुंच गया। यहां उसे पता चला कि दिल्ली की सेना ने दौलत खाँ को मार भगाया है। बाबर ने दिल्ली की सेना से दौलत खां लोधी की पराजय का बदला तो ले लिया, परंतु दीपालपुर में दौलत खां तथा बाबर के बीच मतभेद पैदा हो गया। दौलत खां को आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा, परंतु बाबर ने उसे केवल जालंधर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। दौलत खां ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह पहाड़ियों में भाग गया ताकि तैयारी करके बाबर से बदला ले सके। स्थिति को देखते हुए बाबर ने दीपालपुर का प्रदेश आलम खां को सौंप दिया और स्वयं और अधिक तैयारी के लिए काबुल लौट गया।

प्रश्न 17.
आलम खां ने पंजाब को हथियाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए ?
उत्तर-
अपने चौथे अभियान में बाबर ने आलम खां को दीपालपुर का प्रदेश सौंपा था। अब वह पूरे पंजाब को हथियाना चाहता था। परंतु दौलत खां लोधी ने उसे पराजित करके उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अब वह पुनः बाबर की शरण में जा पहुंचा। उसने बाबर के साथ एक संधि की। इसके अनुसार उसने बाबर को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने में सहायता देने का वचन दिया। उसने यह भी विश्वास दिलाया कि पंजाब का प्रदेश प्राप्त होने पर वह वहां पर बाबर के कानूनी अधिकार को स्वीकार करेगा। परंतु उसका यह प्रयास भी असफल रहा। अंत में उसने इब्राहिम लोधी (दिल्ली का सुल्तान) के विरुद्ध दौलत खां लोधी की सहायता की। परंतु यहां भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा और उसकी पंजाब को हथियाने की योजनाएं मिट्टी में मिल गईं।

प्रश्न 18.
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी तथा बाबर की फ़ौज की योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी की सेना संख्या में एक लाख थी। इसे चार भागों में बांटा गया था-

  1. आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी,
  2. केंद्रीय सेना,
  3. दाईं ओर की सेना तथा
  4. बाईं ओर की सेना। सेना के आमे लगभग 5000 हाथी थे।

बाबर ने अपनी सेना के आगे 700 बैलगाड़ियां खड़ी की हुई थीं। इन बैलगाड़ियों को चमड़े की रस्सियों से बांध दिया गया था। बैलगाड़ियों के पीछे तोपखाना था। तोपों के पीछे अगुआ सैनिक टुकड़ी तथा केंद्रीय सेना थी। दाएं था बाएं तुलुगमा पार्टियां थीं। सबसे पीछे बहुत-सी घुड़सवार सेना तैनात थी जो छिपी हुई थी।

प्रश्न 19.
अमीरों तथा सरदारों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
अमीर तथा सरदार ऊंची श्रेणी के लोग थे। इनको ऊंची पदवी और खिताब प्राप्त थे। सरदारों को ‘इक्ता’ अर्थात् इलाका दिया जाता था जहां से वे भूमिकर वसूल करते थे। इस धन को वह अपनी इच्छा से व्यय करते थे।
सरदार सदा लड़ाइयों में ही व्यस्त रहते थे। वे सदा स्वयं को दिल्ली सरकार से स्वतंत्र करने की सोच में रहते थे। स्थानीय प्रबंध की ओर वे कोई ध्यान नहीं देते थे। धनी होने के कारण ये लोग ऐश्वर्य प्रिय तथा दुराचारी थे। ये बड़ीबड़ी हवेलियों में रहते थे और कई-कई विवाह करवाते थे। उनके पास कई पुरुष तथा स्त्रियां दासों के रूप में रहती थीं।

प्रश्न 20.
मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
मुसलमानों के धार्मिक नेता दो उप-श्रेणियों में बंटे हुए थे। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. उलेमा-उलेमा धार्मिक वर्ग के नेता थे। इनको अरबी तथा धार्मिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त था।
  2. सैय्यद-उलेमाओं के अतिरिक्त एक श्रेणी सैय्यदों की थी। वे अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की संतान मानते थे। समाज में इन का बहुत आदर मान था।

इन दोनों को मुस्लिम समाज में प्रचलित कानूनों का भी पूरा ज्ञान था।

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प्रश्न 21.
गुलाम श्रेणी का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. गुलामों का मुस्लिम समाज में सबसे नीचा स्थान था। इनमें हाथ से काम करने वाले लोग (बुनकर, कुम्हार, मज़दूर) तथा हिजड़े सम्मिलित थे। युद्ध बंदियों को भी गुलाम बनाया जाता था। कुछ गुलाम अन्य देशों से भी लाये जाते थे।
  2. गुलाम हिजड़ों को बेग़मों की सेवा के लिए रनिवासों (हरम) में रखा जाता था।
  3. गुलाम स्त्रियां अमीरों तथा सरदारों के मन-बहलाव का साधन होती थीं। इनको भर-पेट खाना मिल जाता था। उनकी सामाजिक अवस्था उनके मालिकों के स्वभाव पर निर्भर करती थी।
  4. गुलाम अपनी चतुराई से तथा बहादुरी दिखाकर ऊंचे पद प्राप्त कर सकते थे अथवा गुलामी से छुटकारा पा सकते
  5. गुलामों को खरीदा बेचा जा सकता था।

प्रश्न 22.
मुसलमान लोग क्या खाते-पीते थे ?
उत्तर-
उच्च वर्ग के लोगों का भोजन-मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काज़ियों का भोजन बहुत घी वाला होता था। उनके भोजन में मिर्च मसालों की अधिक मात्रा होती थी। ‘पुलाव तथा कोरमा’ उनका मन-पसंद भोजन था। मीठे में हलवा तथा शरबत का प्रचलन था। उच्च वर्ग के मुसलमानों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना साधारण बात थी।
साधारण लोगों का भोजन-साधारण मुसलमान मांसाहारी थे। गेहूं की रोटी तथा भुना हुआ मांस उनका रोज़ का भोजन था। यह भोजन बाजारों में पका पकाया भी मिल जाता था। हाथ से काम करने वाले मुसलमान खाने के साथ लस्सी (छाछ) पीना पसंद करते थे।

प्रश्न 23.
मुसलमानों के पहरावे के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. उच्च वर्गीय मुसलमानों का पहनावा भड़कीला तथा बहुमूल्य होता था। उनके वस्त्र रेशमी तथा बढ़िया सूत के बने होते थे। अमीर लोग तुर्रेदार पगड़ी पहनते थे। पगड़ी को ‘चीरा’ भी कहा जाता था।
  2. शाही गुलाम (दास) कमरबंद पहनते थे। वे अपनी जेब में रूमाल रखते थे और पैरों में लाल जूता पहनते थे। उनके सिर पर साधारण सी पगड़ी होती थी।
  3. धार्मिक श्रेणी के लोग मुलायम सूती वस्त्र पहनते थे। उनकी पगड़ी सात गज़ लंबी होती थी। पगड़ी का पल्ला उनकी पीठ पर लटकता रहता था। सूफ़ी लोग खुला चोगा पहनते थे।
  4. साधारण लोगों का मुख्य पहनावा कमीज़ तथा पायजामा था। वे जूते और जुराबें भी पहनते थे।
  5. मुसलमान औरतें जंपर, घाघरा तथा उनके नीचे तंग पायजामा पहनती थीं।

प्रश्न 24.
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है-

  1. महिलाओं को समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था।
  2. अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
  3. समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परंतु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
  4. साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘ज़नान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।

प्रश्न 25.
गुरु नानक साहिब के काल से पहले की जाति-पाति अवस्था के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के काल से पहले का हिंदू समाज विभिन्न श्रेणियों अथवा जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। इन जातियों के अतिरिक्त अन्य भी कई उपजातियां उत्पन्न हो चुकी थीं।

  1. ब्राह्मण-ब्राह्मण समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य भूल कर स्वार्थी बन गए थे। वे उस समय के शासकों की चापलूसी करके अपनी श्रेणी को बचाने के प्रयास में रहते थे। साधारण लोगों पर ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत अधिक था। वे ब्राह्मणों के कारण अनेक अंधविश्वासों में फंसे हुए थे।
  2. वैश्य तथा क्षत्रिय-वैश्यों तथा क्षत्रियों की दशा ठीक थी।
  3. शूद्र-शूद्रों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अछूत समझ कर उनसे घृणा की जाती थी। हिंदुओं की जातियों तथा उप-जातियों में आपसी संबंध कम ही थे। उनके रीति-रिवाज भी भिन्न-भिन्न थे।

प्रश्न 26.
सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब का राजनीतिक वातावरण बड़ा शोचनीय चित्र प्रस्तुत करता है। उन दिनों यह प्रदेश लाहौर प्रांत के नाम से जाना जाता था और यह दिल्ली सल्तनत का अंग था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकंदर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। उनके अधीन पंजाब में राजनीतिक अराजकता फैली हुई थी। सारा प्रवेश षड्यंत्रों का अखाड़ा बना हुआ था। पूरे पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे और वे अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था कि न्याय दुनिया से उड़ गया है। भाई गुरुदास ने भी इस समय में पंजाब में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वर्णन किया है।

प्रश्न 27.
16वीं शताब्दी के आरंभ में इब्राहिम लोधी तथा दौलत खां लोधी के बीच होने वाले संघर्ष का क्या कारण था ? इब्राहिम लोधी से निपटने के लिए दौलत खां ने क्या किया ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर था। कहने को तो वह दिल्ली के सुल्तान के अधीन था, परंतु वास्तव में वह एक स्वतंत्र शासक के रूप में कार्य कर रहा था। उसने इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खां लोधी को दिल्ली की राजगद्दी दिलाने में सहायता देने का वचन देकर उसे अपनी ओर गांठ लिया। इब्राहिम लोधी को जब दौलत खां के षड्यंत्रों की सूचना मिली तो उसने दौलत खाँ को दिल्ली बुलाया। परंतु दौलत खां ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र दिलावर खां को भेज दिया। दिल्ली पहुंचने पर सुल्तान ने दिलावर खां को बंदी बना लिया। कुछ ही समय के पश्चात् दिलावर खां जेल से भाग निकला और अपने पिता के पास लाहौर जा पहुंचा। दौलत खां ने इब्राहिम लोधी के इस व्यवहार का बदला लेने के लिए बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।

प्रश्न 28.
बाबर तथा दौलत खां में होने वाले संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खां लोधी ने ही आमंत्रित किया था। उसे आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा। परंतु बाबर ने उसे केवल जालंधर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। अतः उसने बाबर के विरुद्ध विद्रोह का झंडा फहरा दिया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया जिसमें दौलत खां और उसका पुत्र गाजी खां पराजित हुए। इसके बाद बाबर वापस काबुल लौट गया। उसके वापस लौटते ही दौलत खाँ ने बाबर के प्रतिनिधि आलम खां को मार भगाया और स्वयं पुन: सारे पंजाब का शासक बन बैठा। आलम खां की प्रार्थना पर बाबर ने 1525 ई० में पंजाब में पुन: आक्रमण किया। दौलत खां लोधी पराजित हुआ और पहाड़ों में जा छिपा।

प्रश्न 29.
बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच संघर्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन कीजिए। पंजाब के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
बाबर दौलत खां को हरा कर दिल्ली की ओर बढ़ा। दूसरी ओर इब्राहिम लोधी भी एक विशाल सेना के साथ शत्रु का सामना करने के लिए दिल्ली से चल पड़ा। 21 अप्रैल, 1526 ई० के दिन पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हो गई। इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और रणक्षेत्र में ही मारा गया। बाबर अपनी विजयी सेना सहित दिल्ली पहुंच गया और उसने वहां अपनी विजय पताका फहराई। यह भारत में दिल्ली सल्तनत का अंत और मुग़ल सत्ता का श्रीगणेश था। इस प्रकार पानीपत की लड़ाई ने न केवल पंजाब का बल्कि सारे भारत के भाग्य का निर्णय कर दिया।

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प्रश्न 30.
सोलहवीं शताब्दी के पंजाब में हिंदुओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के हिंदू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी । प्रत्येक हिंदू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिंदुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आकर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकंदर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था।

प्रश्न 31. 16वीं शताब्दी में पंजाब में मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों का वर्णन करें।
उत्तर-16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था

  1. उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काजी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मंत्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
  2. मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काजी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफ़ी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
  3. निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था। । बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में गोपाल पंडित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पंडित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां गुरु जी ने ‘ओ३म्’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पंडित जी को चकित कर दिया। सिक्ख परंपरा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता-पिता ने सनातनी रीतिरिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परंतु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।

विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिंतन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परंतु गुरु जी ने ये रुपये संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि पैदा करने के लिये मेहता कालू जी ने उनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी। उनके यहां श्री चंद श्री गुरु नानक देव जी तथा समकालीन समाज और लखमी दास (चंद) नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहां उन्हें नवाब दौलत खां के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परंतु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।

ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रात:काल ‘काली वेई’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिंतन भी करते थे। एक प्रात: जब वह स्नान करने गए तो निरंतर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिंतन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भांति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरंभ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।

प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब के सुल्तानपुर लोधी में बिताए गए समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहां वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खां के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भंडार) में भंडारी की नौकरी मिल गई। वहां वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधु-संतों में लुटा रहे हैं। परंतु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।

गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहां सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह नगर के साथ बहती हुए वेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमंदों को सहायता के लिए देते थे।

ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह वेई नदी पर स्नान करने गए। परंतु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुंचे। गुरु नानक देव जी ने वे तीन दिन गंभीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अंतिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु जी घर वापस पहुंचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे’न कोई हिंदू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धांतों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिंदुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं। उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने संदेश का प्रचार आरंभ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर लंबी यात्राएं आरंभ कर दी।

प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब की उदासियों (यात्राओं) का वर्णन कीजिए।’
उत्तर-
ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी ने अपने दिव्य ज्ञान से संसार को आलौकिक करने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक फ़कीर के रूप में भ्रमण के लिए निकल पड़े। इन लंबी यात्राओं में गुरु नानक देव जी को लगभग 21-22 वर्ष लगे। उनकी इन्हीं यात्राओं को सिक्ख इतिहासकारों ने उदासियों का नाम दिया है।
उदासियों का उद्देश्य-गुरु नानक देव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य पथ-विचलित मानवता को जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाना था। इसके अतिरिक्त व्यर्थ के रीति-रिवाजों तथा कर्मकांडों का खंडन करना और सतनाम के जाप का प्रचार करना भी उनकी यात्राओं का उद्देश्य था।
गुरु नानक देव जी की उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों को चार भागों में बांटा जा सकता है जिनका वर्णन इस प्रकार है
पहली उदासी-अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए-

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुंबा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अंधविश्वासों का खंडन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी आदि कई स्थानों का भ्रमण किया।

दूसरी उदासी-

  1. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी 1510 ई० में आरम्भ की। इस दौरान उन्होंने मालवा के संतों तथा माऊंट आबू के जैन मुनियों से मुलाकात की। वे पुष्कर भी गए।
  2. इसके बाद गुरु साहिब ने उज्जैन, हैदराबाद, नन्देड़, कटक, गोलकुंडा, गंटूर, मद्रास, कांचीपुरम तथा रामेश्वरम् के तीर्थ स्थान की यात्रा की।
  3. गुरु जी समुद्री मार्ग से श्रीलंका गए जहां लंका का राजा शिवनाभ तथा कई अन्य लोग उनकी बाणी से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए।
  4. अपनी वापसी यात्रा में गुरु जी त्रिवेन्द्रम, श्री रंगापटनम, सोमनाथ, द्वारका, बहावलपुर, मुल्तान आदि स्थानों से होते हुए 1515 ई. को अपने गांव तलवड़ी पहुंचे। यहां से वे सुल्तानपुर गए।

तीसरी उदासी-सुल्तानपुर लोधी में कुछ समय रहने के बाद गुरु जी ने 1515 ई० से लेकर 1517 ई० तक अपनी तीसरी उदासी की। इस उदासी में भाई मरदाना भी उनके साथ थे। इस उदासी में हस्सू लुहार तथा सीहा छींबे ने भी उनका साथ दिया। इस उदासी के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए-

  1. मुकाम पीर बुढ्नशाह, तिब्बत, नेपाल, गोरखमत्ता अथवा नानकमत्ता।
  2. बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वालाजी, कांगड़ा, कुल्लू आदि पहाड़ी इलाके।
  3. कश्मीर घाटी में कैलाश पर्वत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, आनंतनाग, बारामूला आदि।

चौथी उदासी-श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी चौथी उदासी 1517 ई० से 1521 ई० तक भाई मरदाना जी को साथ लेकर की। इस उदासी के दौरान उन्होंने पश्चिम एशिया के देशों की यात्रा की। वह मुल्तान, उच्च, मक्का, मदीना, बगदाद, कंधार, काबुल, जलालाबाद, पेशावर, सैय्यदपुर आदि स्थानों पर गए। इस यात्रा में उन्होंने मुसलमान हाज़ियों वाली नीली वेशभूषा धारण र्की हुई थी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

प्रश्न 4.
गुरु नानक साहिब के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मंत्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं-

  1. ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का संदेश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मंत्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचंद नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
  2. ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मंदिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बंद नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
    “दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
    एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
  4. ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनंदित करता रहता है।
  5. ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असंभव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आपै जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परंतु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
  6. ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसके हुक्म को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो।
उत्तर-
I. महान् शिक्षक के रूप में
1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा बाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी।
गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धांतों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।

2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष संप्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।

II. सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में
गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिंदू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धांतों का मिश्रण मात्र था, परंतु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धांत ऐसे भी थे जो न तो हिंदू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले (16वीं शताब्दी के आरंभ में ) पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। यह प्रदेश उन दिनों लाहौर प्रांत के नाम से प्रसिद्ध था और दिल्ली सल्तनत का अंग था। परंतु दिल्ली सल्तनत की शान अब जाती रही थी। इसलिये केंद्रीय सत्ता की कमी के कारण पंजाब के शासन में शिथिलता आ गई थी। संक्षेप में, 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब के राजनीतिक जीवन की झांकी इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है

  1. निरंकुश शासन-उस समय पंजाब में निरंकुश शासन था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकंदर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। राज्य की सभी शक्तियां उन्हीं के हाथों में केंद्रित थीं। उनकी इच्छा ही कानून था। ऐसे निरंकुश शासक के अधीन प्रजा के अधिकारों की कल्पना करना भी व्यर्थ था।
  2. राजनीतिक अराजकता-लोधी शासकों के अधीन सारा देश षड्यंत्रों का अखाड़ा बना हुआ था। सिकंदर लोधी के शासन काल के अंतिम वर्षों में सारे देश में विद्रोह होने लगे। इब्राहिम लोधी के काल में तो इन विद्रोहों ने और भी भयंकर रूप धारण कर लिया। उसके सरदार तथा दरबारी उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे थे। प्रांतीय शासक या तो अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयास में थे या फिर सल्तनत के अन्य दावेदारों का पक्ष ले रहे थे। परंतु वे जानते थे कि पंजाब पर अधिकार किए बिना कोई भी व्यक्ति दिल्ली का सिंहासन नहीं पा सकता था। अतः सभी सूबेदारों की दृष्टि पंजाब पर ही टिकी हुई थी। फलस्वरूप सारा पंजाब अराजकता की लपेट में आ गया।
  3. अन्याय का नंगा नाच-16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग-विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे तथा अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “न्याय दुनिया से उड़ गया है।” वह आगे कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो रिश्वत लेता या देता न हो। शासक भी तभी न्याय देता है जब उसकी मुट्ठी गर्म कर दी जाए।”
  4. युद्ध-इस काल में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना हुआ था। सभी पंजाब पर अपना अधिकार जमा कर दिल्ली की सत्ता हथियाने के प्रयास में थे। सरदारों, सूबेदारों तथा दरबारियों के षड्यंत्रों तथा महत्त्वाकांक्षाओं ने अनेक युद्धों को जन्म दिया। इस समय इब्राहिम लोधी और दौलत खां में संघर्ष चला। यहां बाबर ने आक्रमण आरंभ किए।

प्रश्न 7.
बाबर की पंजाब पर विजय का वर्णन करो।
उतार-
बाबर की पंजाब विजय पानीपत की पहली लड़ाई का परिणाम थी। यह लड़ाई 1526 ई० में बाबर तथा दिल्ल के सुल्तान इब्राहिम लोधी के बीच हुई। इसमें बाबर विजयी रहा और पंजाब पर उसका अधिकार हो गया।
बाबर का आक्रमण-नवंबर, 1525 ई० में बाबर 12000 सैनिकों सहित काबुल से पंजाब की ओर बढ़ा। मार्ग में दौलत खां लोधी को पराजित करता हुआ वह दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोधी एक लाख सेना लेकर उसके विरुद्ध उत्तर पश्चिम की ओर निकल पड़ा। उसकी सेना चार भागों में बंटी हुई थी-आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी, केंद्रीय सेना, दाईं ओर की सैनिक टुकड़ी तथा बाईं ओर की सैनिक टुकड़ी। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे। दोनों पक्षों की सेनाओं का पानीपत के मैदान में सामना हुआ।

युद्ध का आरंभ-पहले आठ दिन तक किसी ओर से भी कोई आक्रमण नहीं हुआ। परंतु 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः इब्राहिम लोधी की सेना ने बाबर पर आक्रमण कर दिया। बाबर के तोपचियों ने भी लोधी सेना पर गोले बरसाने आरंभ कर दिए। बाबर की तुलुगमा सेना ने आगे बढ़कर शत्रु को घेर लिया । बाबर की सेना के दाएं तथा बाएं पक्ष आगे बढ़े और उन्होंने ज़बरदस्त आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी की सेनाएं चारों ओर से घिर गईं। वे न तो आगे बढ़ सकती थीं और न पीछे हट सकती थीं। इसी बीच इब्राहिम लोधी के हाथी घायल होकर पीछे की ओर दौड़े और उन्होंने अपने ही सैनिकों को कुचल डाला। देखते ही देखते पानीपत के मैदान में लाशों के ढेर लग गए। दोपहर तक युद्ध समाप्त हो गया। इब्राहिम लोधी हज़ारों लाशों के मध्य मृतक पाया गया। बाबर को पंजाब पर पूर्ण विजय प्राप्त हुई।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव

पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव PSEB 9th Class History Notes

  • जन्म – गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। भाई मेहरबान तथा भाई मनी सिंह की पुरातन साखी के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ। आजकल इस स्थान को श्री ननकाना साहिब कहते हैं।
  • माता-पिता – गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी तथा पिता का नाम मेहता कालू जी था। मेहता कालू जी एक पटवारी थे।
  • जनेऊ की रसम – गुरु नानक देव जी व्यर्थ के कर्मकांडों तथा आडंबरों के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने सूत के धागे से बना जनेऊ पहनने से इंकार कर दिया।
  • सच्चा सौदा – गुरु नानक देव जी को उनके पिता जी ने व्यापार करने के लिए 20 रुपए दिए थे। गुरु नानक देव जी ने इन रुपयों से संतों को भोजन कराकर ‘सच्चा सौदा’ किया।
  • ज्ञान-प्राप्ति ( 1499 ई.) – सुलतानपुर में गुरु नानक देव जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली वेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिंतन भी करते थे। 1499 ई० में एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरंतर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिंतन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। आजकल इस स्थान पर गुरुद्वारा तप-स्थान बना हुआ है।
  • उदासियां (1499-1521 ई०) – गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में कीं। इन उदासियों का उद्देश्य अंध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था। उन्होंने विभिन्न दिशाओं में चार महत्त्वपूर्ण उदासियां कीं।।
  • करतारपुर में निवास – 1522 ई० में गुरु नानक साहिब परिवार सहित करतारपुर में बस गए। यहां रह कर उन्होंने ‘वार मल्हार’, ‘मार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’, ‘पट्टी’, ‘बारह माहा’ आदि वाणियों की रचना की। उन्होंने संगत तथा पंगत (लंगर) की प्रथाओं का विकास भी किया
  • गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना – गुरु जी के अंतिम वर्ष करतारपुर (पाकिस्तान)में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए। 22 सितंबर, 1539 ई० को वह ज्योति-जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  • ईश्वर संबंधी विचार – गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयंभू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालू तथा महान् है। उसे आत्म-त्याग तथा सच्चे गुरु की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • संगत तथा पंगत – ‘संगत’ से अभिप्राय गुरु के शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठ कर गुरु जी के उपदेशों पर विचार करते थे। ‘पंगत’ के अनुसार शिष्य इकट्ठे मिलकर एक पंगत में बैठकर भोजन खाते थे।
  • लोधी शासक – पंजाब लोधी वंश के अधीन तथा। इस राजवंश के महत्त्वपूर्ण शासक बहलोल लोधी, सिकंदर लोधी तथा इब्राहिम लोधी थे।
  • लोधी शासकों के अधीन पंजाब – लोधी वंश के समय में पंजाब षड्यंत्रों का अखाड़ा बना हुआ था। समाज में जाति प्रथा तथा अन्य कई कुरीतियां फैली हुई थीं। लोग अंधविश्वास, अज्ञानता तथा भ्रमों में फंसे हुए थे।
  • दौलत खां लोधी तथा बाबर – बाबर द्वारा भारत पर पांचवें आक्रमण के समय पंजाब के सूबेदार दौलत खां लोधी ने उसका सामना किया। इस लड़ाई में दौलत खां लोधी पराजित हुआ।
  • राजनीतिक अवस्था – गुरु नानक देव जी के जीवन-काल से पहले पंजाब की राजनीतिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं थी। यहां के शासक कमज़ोर तथा परस्पर फूट के शिकार थे। पंजाब पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे।
  • सामाजिक अवस्था – इस काल में पंजाब की सामाजिक अवस्था प्रशंसा योग्य नहीं थी। हिंदू समाज कई जातियों व उप-जातियों में बंटा हुआ था। महिलाओं की दशा बहुत दयनीय थी। लोग सदाचार को भूल चुके थे तथा व्यर्थ के भ्रमों में फंसे हुए थे।
  • बाबर की पंजाब विजय – 1526 ई० में पानीपत की पहली लड़ाई हुई। इस लड़ाई में इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।
  • मुस्लिम समाज – मुस्लिम समाज तीन वर्गों-उच्च वर्ग, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा तथा सैय्यद; मध्य वर्ग में व्यापारी, कृषक, सैनिक तथा छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। निम्न वर्ग में शिल्पकार, निजी सेवक तथा दास-दासियां शामिल थीं।
  • हिंदू समाज – 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब का हिंदू समाज चार मुख्य जातियों में बंटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र । सुनार, बुनकर, लुहार, कुम्हार, दर्जी, बढ़ई आदि उस समय की कुछ अन्य जातियां तथा उप-जातियां थीं।
  • 15 अप्रैल, 1469 ई० – श्री गुरु नानक देव जी का जन्म।
  • 1499 ई० – सुलतानपुर में ज्ञान की प्राप्ति।
  • 1499 ई०-1510 ई० – पहली उदासी
  • 1510 ई०-1515 ई० – दूसरी उदासी .
  • 1515 ई०-1517 ई० – तीसरी उदासी
  • 1517 ई०-1521 ई० – चौथी उदासी
  • 1522 ई० – श्री गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे करतारपुर बसाया।
  • 1526 ई० – पानीपत की पहली लड़ाई।
  • 22 सितंबर, 1539 ई० – श्री गुरु नानक देव जी करतारपुर (पाकिस्तान) में ज्योति-जोत समाए।
  • 1451-1489 ई० – बहलोल लोधी का शासन
  • 1489-1517 ई० – सिकंदर लोधी का शासन
  • 1517-1526 ई० – इब्राहिम लोधी का शासन
  • 1500 -1525 ई० – दौलत खां लोधी का लाहौर पर शासन।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 8 भोजन पकाना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 भोजन पकाना

PSEB 9th Class Home Science Guide भोजन पकाना Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
खाना पकाना क्यों ज़रूरी है? कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
भोजन को पचने लायक बनाने के लिए पकाया जाता है। भोजन में निशास्ते के कणों के इर्द-गिर्द सैलूलोज़ की कोर परत होती है जिसे हमारा शरीर किसी भी तरह हज्म रहीं कर सकता है। भोजन पकाने से यह परत टूट जाती है तथा भोजन पचने योग्य हो जाता है।

प्रश्न 2.
एक ही भोजन में पकाने से भिन्नता लायी जा सकती है। उदाहरण दो।
उत्तर-
एक भोजन पदार्थ को एक ढंग से पका कर खाया जाये तो मन भर जाता है। इसलिए एक ही भोजन पदार्थ को विभिन्न ढंगों से पका कर विभिन्नता लाई जा सकती है।
जैसे-आलुओं के परौंठे, आलू चिप्स, आलू के पकौड़े, आलू चाट आदि। घीये की सब्जी, घीये के कोफ्ते, घीये का रायता।

प्रश्न 3.
पकाने से कीटाण कैसे नष्ट हो जाते हैं?
उत्तर-
बैक्टीरिया की 40°C पर वृद्धि रुक जाती है तथा 60°C से अधिक तापमान पर भोजन पकाने से जीवाणुओं के स्पोरज़ भी मर जाते हैं। इसीलिए बीमारी की हालत में पानी को भी उबाल कर पीने की सलाह दी जाती हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

प्रश्न 4.
क्या पकाने से भोजन अधिक समय के लिये सुरक्षित रखा जा सकता है? यदि हां तो कैसे?
उत्तर-
भोजन पदार्थों के खराब होने का साधारण कारण बैक्टीरिया अथवा कीटाणु होते हैं। जब भोजन को पकाया जाता है तो तापमान काफ़ी बढ़ जाता है तथा इतने तापमान पर कीटाणु आदि समाप्त हो जाते हैं तथा भोजन को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए उबला हुआ दूध अधिक समय तक सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 5.
पकाने से भोजन की पौष्टिकता कैसे बढ़ाई जा सकती है?
उत्तर-
दो अथवा अधिक भोजन पदार्थ मिलाकर पकाए जाने से पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि होती है। क्योंकि एक भोजन पदार्थ की कमी को दूसरा भोजन पदार्थ पूरा करता है।

प्रश्न 6.
भोजन पकाने के ढंगों की बांट किस आधार पर की जाती है?
उत्तर-
भोजन को सीधे आग पर अथवा तेल में अथवा पानी में पकाया जा सकता है। भोजन पकाने के ढंगों की बांट माध्यम के अनुसार की जाती है।

प्रश्न 7.
भोजन पकाने के कौन-कौन से ढंग हैं? नाम लिखो।
उत्तर-
भोजन पकाने के तीन ढंग हैं-
(i) सूखे सेंक से पकाना।
(ii) घी अथवा तेल में पकाना।
(iii) पानी अथवा गीले सेंक से पकाना।

  1. सूखे सेंक से पकाना-भोजन को सीधे आग पर रख कर पकाया जाता है।
  2. घी अथवा तेल में पकाना-घी अथवा तेल को गर्म करके इसमें भोजन पकाने के . ढंग को तलना कहते हैं।
  3. पानी अथवा गीले सेंक से पकाना-जब भोजन को नमी की मौजूदगी में पकाया जाता है तो इसे गीले सेंक से पकाना चाहिए।

प्रश्न 8.
बेक करने और सेंकने में क्या अन्तर है?
उत्तर –

प्रश्न 9.
गीले सेंक से पकाने से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
जब भोजन को नमी की मौजूदगी में पकाया जाता है तो इसे गीले सेंक से पकाना कहते हैं। यह काम तीन ढंगों से किया जा सकता है
उबालना, धीमी आग पर थोड़े पानी में पकाना तथा भाप से पकाना।

प्रश्न 10.
गीले सेंक से पकाने का सबसे उत्तम तरीका कौन-सा है?
उत्तर-
भाप से पकाने का ढंग सबसे बढ़िया है।

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प्रश्न 11.
उबालने और धीमी-धीमी आग पर पकाने में क्या अन्तर है?
उत्तर-

उबालना धीमी आग पर पकाना
1. इसमें भोजन पदार्थों को उबलते पानी में अच्छी तरह डुबो कर तेज़ आग पर पकाया जाता है। 1. इसमें भोजन पदार्थ को थोड़े पानी में धीमी-धीमी आंच पर पकाया जाता है।
2. इस ढंग से पकाया भोजन बहुत स्वादिष्ट होता है। 2. इस ढंग से पकाया भोजन बहुत स्वादिष्ट नहीं होता है।

प्रश्न 12.
दाल पकाने का उत्तम तरीका कौन-सा है?
उत्तर-
दालों को उबालकर बनाना बढ़िया तरीका है। इस तरीके से चावल तथा सब्जियों को भी पकाया जाता है।
पहले घरों में अंगीठी होती थी धीमी आंच पर दालों को पकाना बढ़िया समझा जाता था।

प्रश्न 13.
भाप से खाना पकाने से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
यह भोजन पकाने का सबसे बढ़िया ढंग है। इसमें भोजन को उबलते पानी की भाप से पकाया जाता है। इसके तीन तरीके हैं प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तथा दबाव में भाप से पकाना।

प्रश्न 14.
दबाव द्वारा भाप से खाना कैसे बनाया जाता है?
उत्तर-
दबाव में भाप से खाना पकाना भाप से खाना पकाने का सबसे उत्तम तरीका है। इस तरीके से खाना पकाने के लिए प्रैशर कुक्कर का प्रयोग किया जाता है। प्रैशर कुक्कर में थोड़े पानी में भोजन डालकर कुक्कर को बन्द करके आग पर रख दिया जाता है। इस तरह प्रैशर में भाप की गर्मी से खाना पकाया जाता है।

प्रश्न 15.
तलने से आप क्या समझते हो ? तलने के कौन-कौन से तरीके हैं , नाम बताओ।
उत्तर-
घी अथवा तेल को गर्म करके इसमें भोजन पकाने के तरीका को तलना कहते हैं। तलने के तीन तरीके हैं

  1. सूखा भूनना तलना।
  2. कम घी में तलना।
  3. खुले घी में तलना।

प्रश्न 16.
तलते समय बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-
तेल का उबाल दर्जा पानी से बहुत ही अधिक होता है। यदि शरीर के किसी अंग पर गर्म तेल गिर जाए तो वह अंग बुरी तरह जल जाता है। इसलिए तलने के समय बहुत सावधानी की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 17.
तले भोजन के लाभ तथा हानि बताओ।
उत्तर-
हानि-

  1. यह शीघ्र हज़म नहीं होता।
  2. इसमें पौष्टिक तत्त्व भी काफ़ी कम होते हैं।
  3. यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होते।

लाभ-

  1. खाना जल्दी पक जाता है।
  2. खाना स्वादिष्ट बनता है।

प्रश्न 18.
मरीज़ को खाना देने के लिए खाना पकाने के कौन-कौन से तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर-

  1. बीमारों के लिए उबला हुआ खाना ठीक रहता है।
  2. अप्रत्यक्ष भाप से पकाने वाले तरीके से खाना पकाकर भी रोगियों को दिया जा सकता है।

प्रश्न 19.
पकाते समय फल और सब्जियों का रंग कैसे कायम रखा जा सकता है?
उत्तर-
फल तथा सब्जियों को ढककर पकाना चाहिए। भोजन इतने समय के लिए पकाओ कि गलकर खाने योग्य हो जाएं। इन्हें तेज़ाबी मादे में न पकाओ। सोडा अथवा खारा माध्यम हरी सब्जियों का रंग बरकरार रखने में मदद करता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

लय उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 20.
भोजन पकाने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
भोजन पकाने के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. भोजन को पचने योग्य बनाने के लिए।
  2. स्वाद, सुगन्ध तथा स्वरूप सुधारने के लिए।
  3. भोजन में विभिन्नता लाने के लिए।
  4. अधिक समय के लिए सुरक्षित रखने के लिए।
  5. कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए।
  6. पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए।

1. कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए-पकाने से भोजन को खराब करने वाले हानिकारक बैक्टीरिया तथा सूक्ष्मदर्शी जीवाणु मर जाते हैं क्योंकि 40°C से अधिक तापमान पर बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है तथा 60°C से अधिक तापमान पर भोजन पकाने से जीवाणुओं के स्पोरज़ भी मर जाते हैं। इसीलिए जब कोई महामारी फैलती है तो पीने वाला पानी भी उबाला जाता है। इस तरह भोजन पदार्थों को पकाने से इनके अन्दर वाले जर्म मर जाते हैं तथा इस तरह भोजन स्वास्थ्य के पक्ष से भी लाभदायक हो जाता है।

2. अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए पका हुआ भोजन प्रायः कच्चे भोजन से अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है जैसे उबाला हुआ दूध अधिक समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर ही दूध को पॉस्चुराइज़ भी किया जाता है। इसीलिए मक्खन से घी तथा कच्चे पनीर से तला हुआ पनीर काफ़ी समय तक सुरक्षित रहते हैं।

3. पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए-पकाते समय दो अथवा अधिक भोजन पदार्थों को मिलाकर पकाया जा सकता है। इस तरह भोजन की पौष्टिकता में सुधार लाया जा सकता है। जैसे दो अथवा तीन दालें इकट्ठी मिलाकर बनाई जाएं अथवा कई सब्जियां आलू-गाजर-मटर, बंद गोभी, मटर-आलू, पालक गाजर, आलू आदि की सब्जी को बनाने से भोजन के पौष्टिक तत्त्वों में वृद्धि होती है। आटे में यदि बेसन अथवा सोयाबीन का आटा मिला लिया जाये अथवा आटा गूंथते समय मूली, मेथी आदि मिला लिए जायें तो ऐसे आटे के परौंठे अधिक पौष्टिक हो जाते हैं। इसी तरह एक भोजन के पौष्टिक तत्त्वों की कमी दूसरा भोजन पूरी कर देता है। इसी तरह अनाज तथा दालें इकट्ठी खाने से बढ़िया प्रोटीन प्राप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 21.
खाना पकाने की विधियों को पकाने वाले माध्यम के अनुसार कौन-कौन से भागों में बांट सकते हो?
उत्तर-
माध्यम के अनुसार खाना पकाने की विधियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है

  1. सूखे सेंक से पकाना- भोजन को सीधे आग पर रखकर पकाने के ढंग को सूखे सेंक से पकाना कहा जाता है। इसके भी आगे तीन ढंग हैं
    (i) सेंकना (ii) भूनना (iii) बेक करना।
  2. गीले सेंक अथवा पानी से पकाना-जब भोजन को नमी की मौजूदगी में पकाया जाता है तो इसे गीले सेंक से पकाना कहते हैं। यह काम तीन ढंगों से किया जा सकता है
    उबालना, धीमी आंच पर थोड़े पानी में पकाना तथा भाप से पकाना। इनमें से भाप से पकाने का ढंग सबसे बढ़िया है।
  3. घी अथवा तेल में पकाना-घी अथवा तेल को गर्म करके इसमें भोजन पकाने के ढंग को तलना कहते हैं। तलने के तीन तरीके हैं
    (i) सूखा भूनना तलना (ii) कम घी में तलना (iii) खुले घी में तलना।

प्रश्न 22.
सूखे सेंक से पकाने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर-
सूखे सेंक से पकाने के निम्नलिखित तरीके हैं
(i) सेंकना (ii) भूनना तथा (iii) बेक करना।

  1. सेंकना-भोजन पदार्थ को सीधे ही आग पर रखकर पकाने को सेंकना कहते हैं। जैसे- मांस, मुर्गा आदि को लोहे की सलाखों पर लगाकर सीधी आग पर रखकर सेंके जाते हैं।
  2. भूनना-भोजन पदार्थों को किसी धातु के बर्तन में डालकर आग पर रखकर अप्रत्यक्ष सेंका जाता है। इसे भूनना कहते हैं। जैसे कड़ाही में रेत को गर्म करके इसमें दाने भूने जाते हैं।
  3. बेक करना- भोजन पदार्थ को किसी भट्ठी अथवा भोजन ओवन में बन्द करके गर्म हवा से पकाने को बेक करना कहते हैं। जैसे-बिस्कुट, ब्रेड, केक, खताइयां आदि को इसी तरह पकाया जाता है।

प्रश्न 23.
गीले सेंक से खाना पकाने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर-
गीले सेंक से खाना पकाने के तीन तरीके हैं
(i) उबालना
(ii) धीमी आग पर थोड़े पानी में पकाना
(iii) भाप से पकाना।

  1. उबालना-भोजन पदार्थों को उबलते पानी में पूरी तरह डुबो कर तेज़ आग पर पकाने को उबालना कहते हैं। चावल, कई दालें तथा सब्जियों को इसी तरीके से पकाया जाता है।
  2. धीमी आंच पर पकाना-किसी बर्तन में थोड़े पानी में भोजन पदार्थ को डालकर धीमी-धीमी आंच पर रखकर पकाया जाता है। पहले दालों आदि को इसी तरीके से पकाया जाता था।
  3. भाप से पकाना-इस तरीके से में भोजन पदार्थ को उबलते पानी की भाप से पकाया जाता है। इसके आगे तीन तरीके हैं
    (क) प्रत्यक्ष (ख) अप्रत्यक्ष (ग) दबाव में भाप से पकाना।

प्रश्न 24.
कौन-कौन से तरीकों द्वारा भोजन तला जा सकता है?
उत्तर-
भोजन को तीन तरीकों द्वारा तला जा सकता है
(i) सूखा भूनना तलना (ii) कम घी में तलना (iii) खुले घी में तलना।

  1. सूखा भूनना तलना-थोड़ा-सा घी बर्तन को लगाकर भोजन पदार्थ को इसमें पकाकर आग पर रखकर पकाया जाता है तथा भोजन पदार्थ को जल्दी-जल्दी हिलाया जाता है। घी को भोजन पदार्थ सोख लेता है।
  2. कम घी में तलना-इसमें फ्राइंग पैन अथवा तवे पर थोड़ा सा घी डालकर भोजन पदार्थ को तला जाता है। परौंठे, आमलेट आदि इसी तरह तले जाते हैं।
  3. खुले घी में तलना-इस ढंग में खुले मुंह वाले बर्तन अथवा कड़ाही में काफ़ी सारा घी अथवा तेल लेकर इसे गर्म करके भोजन पदार्थ को इसमें तला जाता है। घी इतना होता है कि सारा भोजन पदार्थ इसमें डूब जाये।
    पकौड़े, जलेबियां आदि इसी ढंग से बनाये जाते हैं।

प्रश्न 25.
मरीज़ को भोजन तलकर देना चाहिए या उबालकर?
उत्तर-
बीमारों को भोजन पदार्थ उबालकर देने चाहिएं न कि तल कर। उबला हुआ भोजन शीघ्र पचने लायक होता है जबकि तला हुआ भोजन जल्दी हज्म नहीं होता तथा इसमें पौष्टिक तत्त्वों की भी कमी होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

प्रश्न 26.
धीमी आंच पर पकाने और भाप से पकाने में क्या अन्तर है?
उत्तर

धीमी आंच पर पकाना भाप से पकाना
1. इसमें भोजन पदार्थ को थोड़े पानी में धीमी-धीमी आंच पर पकाया जाता है। 1. इसमें भोजन को उबलते पानी की भाप से पकाया जाता है।
2. इसमें समय अधिक लगता है। 2. इसमें समय कम लगता है।
3. फलों की स्टियू बनाने के लिए इस ढंग से पकाया जाता है। 3. इडली, पुडिंग, दालों आदि को इस ढंग का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 27.
तलते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
तलते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. भोजन को उस समय तलना चाहिए जब घी अथवा तेल अच्छी तरह गर्म हो जाये तथा इसमें से हल्का नीला धुआँ निकलने लगे।
  2. तला हुआ भोजन कड़ाही से निकालने से पहले इसमें से घी अथवा तेल निचोड़ लेना चाहिए।
  3. तले जाने वाले भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े कड़ाही में इकट्ठे हो जाते हैं, इन्हें निकाल देना चाहिए।
  4. भोजन को अधिक सेंक पर न पकाएं क्योंकि इस तरह बाहर से भोजन जल जायेगा पर अन्दर से कच्चा ही रह जाता है।
  5. भोजन को बाहर निकालकर सोखने वाले कागज़ पर रख लेना चाहिए ताकि अतिरिक्त तेल निचुड़ जाये।
  6. खाना पकाने के पश्चात् बचे हुए तेल को मलमल के टुकड़े अथवा बारीक छाननी से छान लेना चाहिए।

प्रश्न 28.
क्या पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाया जा सकता है?
उत्तर-
भोजन पकाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. सब्जियों के छिलके उतारे बिना अथवा बहुत पतला छिलका उतारकर सब्जी बनानी चाहिए।
  2. अनाज, दालों तथा सब्जियों को अधिक नहीं धोना चाहिए।
  3. बिना छाना हुआ आटा प्रयोग करना चाहिए।
  4. भोजन को ज़रूरत से ज्यादा सेंकना अथवा तलना नहीं चाहिए।
  5. जिस पानी में भोजन को उबाला जाए उसे फेंकना नहीं चाहिए।
  6. सब्जियों को काटने अथवा फलियों से दाने, खाना पकाते समय ही निकालने चाहिएं।
  7. प्रेशर कुक्कर में भोजन पकाने से तत्त्वों का कम-से-कम नुकसान होता है।
  8. भोजन को उतने समय के लिए ही पकाओं ताकि यह गलकर खाने योग्य हो जाये।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 29.
भोजन क्यों पकाया जाता है?
उत्तर-
भोजन पकाने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. भोजन को पचने योग्य बनाने के लिए।
  2. स्वाद, सुगन्ध तथा स्वरूप सुधारने के लिए।
  3. भोजन में विभिन्नता लाने के लिए।
  4. अधिक समय के लिए सुरक्षित रखने के लिए।
  5. कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए।
  6. पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए।

1. भोजन को पचने योग्य बनाने के लिए भोजन पदार्थों में निशास्ते के कणों के इर्दगिर्द साधारणतया सख्त परत होती है। इस परत को मानवीय पाचन तन्त्र नहीं तोड़ सकता। जब भोजन को पकाया जाता है तो निशास्ते के कण पानी सोख लेते हैं और फूल जाते हैं। इस तरह यह सख्त परत फट जाती है। अब इस पर पाचक रस आसानी से असर कर सकते हैं। जैसे चावल, दालें, अनाज और मीट पकाने से नर्म हो जाते हैं और इनको चबाना भी आसान हो जाता है।

2. स्वाद, सुगन्ध और स्वरूप सुधारने के लिए-पकाने से भोजन पदार्थों का स्वाद, सुगन्ध और स्वरूप सुधारा जा सकता है जैसे भूना हुआ मीट, अण्डे का आमलेट, बैंगन का भुरथा आदि बनाने से इन भोजनों का स्वाद, सुगन्ध और स्वरूप ही बदल जाता है और इन को खाने से मज़ा भी आता है। भोजन पकाते समय मसालों का प्रयोग भी भोजन के स्वरूप, स्वाद और सुगन्ध पर अच्छा प्रभाव डालता है। कई भोजन जैसे करेले, जिमींकद आदि में प्राकृतिक रूप में कड़वाहट या लेसलापन होता है। पकाने से यह भोजन पदार्थ खुशबूदार हो जाते हैं और इन में से लेस या कड़वाहट भी दूर हो जाती है। __कुछ पदार्थों जैसे बासमती चावल में अंदरूनी खुशबू होती है जो पकाने से बाहर आ जाती है।

3. भोजन में भिन्नता लाने के लिए-पकाने से भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है। एक ही तरह का भोजन खाने से मन भर जाता है, परन्तु पकाने के भिन्न-भिन्न ढंगों से एक भोजन को भिन्न-भिन्न रूप दिए जा सकते हैं। आलू के परौंठे, आलू चिप्स, आलू के पकौड़े, आलू चाट आदि आलू को भिन्न-भिन्न ढंगों से पका कर लाई भिन्नता की निशानी है। पकाते समय एक भोजन को भिन्न-भिन्न भोजनों से मिलाकर भी भिन्नता लाई जा सकती है।

4. अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए-पका हुआ भोजन प्रायः कच्चे भोजन से अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है। जैसे उबाला हुआ दूध अधिक समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर ही दूध को पास्चराइज़ भी किया जाता है। इसीलिए मक्खन से घी तथा कच्चे पनीर से तला हुआ पनीर काफ़ी समय तक सुरक्षित रहते हैं।

5. कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए-पकाने से भोजन को खराब करने वाले हानिकारक बैक्टीरिया तथा सूक्ष्मदर्शी जीवाणु मर जाते हैं क्योंकि 40°C से अधिक तापमान पर बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है तथा 60°C से अधिक तापमान पर भोजन पकाने से जीवाणुओं के स्पोरज़ भी मर जाते हैं। इसीलिए जब कोई महामारी फैलती है तो पीने वाला पानी भी उबाला जाता है। इस तरह भोजन पदार्थों को पकाने से इनके अन्दर वाले कीटाणु मर जाते हैं तथा इस तरह भोजन स्वास्थ्य के पक्ष से भी लाभदायक हो जाता है।

6. पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए-पकाते समय दो अथवा अधिक भोजन पदार्थों को मिलाकर पकाया जा सकता है। इस तरह भोजन की पौष्टिकता में सुधार लाया जा सकता है। जैसे दो अथवा तीन दालें इकट्ठी मिलाकर बनाई जाएं अथवा कई सब्जियां आलूगाजर-मटर, बंद गोभी, मटर-आलू, पालक गाजर, आलू आदि की सब्जी को बनाने से भोजन के पौष्टिक तत्त्वों में वृद्धि होती है। आटे में बेसन अथवा सोयाबीन का आटा मिला लिया जाये अथवा आटा गूंथते समय मूली, मेथी आदि मिला लिए जाए तो ऐसे आटे के परौंठे अधिक पौष्टिक हो जाते हैं। इसी तरह एक भोजन के पौष्टिक तत्त्वों की कमी दूसरा भोजन पूरी कर देता है। इसी तरह अनाज तथा दालें इकट्ठी खाने से बढ़िया प्रोटीन प्राप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 30.
खाना पकाने के कौन-कौन से तरीके हैं? किन्हीं दो के बारे में बताओ।
उत्तर-
भोजन पकाने के तीन तरीके हैं

  1. सूखे सेंक से पकाना
  2. गीले सेंक अथवा पानी से पकाना
  3. घी तथा तेल में पकाना।

1. सूखे सेंक से पकानासूखे सेंक से पकाने के निम्नलिखित तरीके हैं(i) सेंकना (i) भूनना तथा (iii) बेक करना।

  1. सेंकना- भोजन पदार्थ को सीधे ही आग पर रखकर पकाने को सेंकना कहते हैं। जैसे- मांस, मुर्गा आदि को लोहे की सलाखों पर लगाकर सीधी आग पर रखकर सेंके जाते हैं।
  2. भूनना-भोजन पदार्थों को किसी धातु के बर्तन में डालकर आग पर रखकर अप्रत्यक्ष सेंका जाता है। इसे भूनना कहते हैं। जैसे कड़ी में रेत को गर्म करके इसमें दाने भूने जाते हैं।
  3. बेक करना-भोजन पदार्थ को किसी भट्ठी अथवा ओवन में बन्द करके गर्म हवा से पकाने को बेक करना कहते हैं। जैसे-बिस्कुट, ब्रेड, केक, खताइयां आदि को इसी तरह पकाया जाता है।

2. घी तथा तेल में पकानाभोजन को तीन तरीकों द्वारा तला जा सकता है
(i) सूखा भूनना तलना (ii) कम घी में तलना (iii) खुले घी में तलना।

  1. सूखा भूनना तलना-थोड़ा-सा घी बर्तन को लगाकर भोजन पदार्थ को इसमें पकाकर आग पर रखकर पकाया जाता है तथा भोजन पदार्थ को जल्दी-जल्दी हिलाया जाता है। घी को भोजन पदार्थ सोख लेता है।
  2. कम घी में तलना-इसमें फ्राइंग पैन अथवा तवे पर थोड़ा सा घी डालकर भोजन पदार्थ को तला जाता है। परौंठे, आमलेट आदि इसी तरह तले जाते हैं।
  3. खुले घी में तलना-इस तरीके से में खुले मुंह वाले बर्तन अथवा कड़ाही में काफ़ी सारा घी अथवा तेल लेकर इसे गर्म करके भोजन पदार्थ को इसमें तला जाता है। घी इतना होता है कि सारा भोजन पदार्थ इसमें डूब जाये।
    पकौड़े, जलेबियां आदि इसी ढंग से बनाये जाते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

प्रश्न 31.
किस तरीके से पकाया भोजन सबसे स्वादिष्ट होता है?
उत्तर-
भाप से भोजन पकाना एक उत्तम तरीका है। इसमें भोजन को उबलते पानी को भाप से पकाया जाता है। भाप से पकाने के तीन तरीके हैं प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तथा दबाव में भाप से पकाना।

  1. प्रत्यक्ष-किसी खुले पतीले में पानी डालकर इसको उबालकर भाप बनाई जाती है तथा भोजन पदार्थ को किसी छननीदार बर्तन में डालकर इस पतीले पर रख दिया जाता है। इस तरह भोजन पदार्थ सीधे भाप के सम्पर्क में आता है तथा पककर तैयार हो जाता है। परन्तु इस ढंग से भोजन पकाते समय भोजन के कई आवश्यक खाद्य तत्त्व पानी में गिरते रहते हैं तथा विटामिन ऑक्सीकरण द्वारा नष्ट हो जाते हैं। इस ढंग से ईंधन का खर्च भी अधिक होता है। परन्तु इस तरह पका हुआ भोजन आसानी से पचने योग्य होता है। इडली इसी तरह बनाई जाती है।
    हानियां-इस तरीके से भोजन पकाते समय भोजन के कई आवश्यक खुराकी तत्त्व पानी में गिरते रहते हैं और विटामिन ऑक्सीकरण द्वारा नष्ट हो जाते हैं, इस ढंग से ईंधन का खर्च अधिक होता है।
  2. अप्रत्यक्ष- इस तरीके से भोजन पदार्थ को किसी डिब्बे में बंद करके भाप के सम्पर्क में लाया जाता है तथा भाप का सीधा सम्पर्क भोजन पदार्थ से नहीं होता। इसलिए इसे भाप द्वारा भोजन पकाने का अप्रत्यक्ष ढंग कहा जाता है। इस ढंग में भोजन के खाद्य तत्त्व नाम मात्र नष्ट होते हैं तथा सुगन्ध भी कायम रहती है। कई तरह के कस्टर्ड तथा पुडिंग इस ढंग से तैयार किये जाते हैं। इस तरीके से, पकाए खाने को गर्म भी किया जा सकता है।
    भाप से पकाये भोजन हल्के होते हैं इसलिए रोगियों को देने की सिफ़ारिश की जाती है।
  3. दबाव में भाप से पकाना-भाप से भोजन पकाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है। इस ढंग में प्रैशर कुक्कर का प्रयोग करके खाना पकाया जाता है। प्रैशर कुक्कर में थोड़ा-सा पानी डालकर प्रैशर में भाप की गर्मी से इसमें खाना पकाया जाता है।
    प्रेशर कुक्कर पर एक भार लगा होता है जो प्रैशर (दबाव) को नियन्त्रित करता है। जब भाप अधिक बन जाती है तो भार ऊपर उठ जाता है तथा भाप बाहर निकल जाती है। प्रैशर कुक्कर के प्रयोग से समय तथा ईंधन की काफ़ी बचत होती है। प्रेशर कुक्कर को कभी भी दो तिहाई (2/3) से अधिक न भरें। इस ढंग में भोजन पदार्थों के पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन आसानी से पचने योग्य होता है।

प्रश्न 32.
पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाने के लिए किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. फलों तथा हरी सब्जियों के छिलके के नीचे वाली परत में विटामिन तथा खनिज पदार्थ होते हैं। इसलिए जहां तक हो सके इन्हें छिलके समेत पकाया जाना चाहिए अथवा फिर छिलका बहुत बारीक उतारना चाहिए।
  2. सब्जियों को काटने से पहले अच्छी तरह धो लेना चाहिए। पकाने के लिए सब्जियों के टुकड़े बहुत बारीक न करो क्योंकि जितने टुकड़े अधिक होंगे उतना ही विटामिनों तथा खनिज पदार्थों का नुकसान भी अधिक होगा।
  3. सब्जियों को काटने अथवा फलियों से दाने निकालने का काम खाना पकाते समय ही करें।
  4. भोजन पकाने के लिए कम-से-कम पानी का प्रयोग करना चाहिए अथवा फिर जिस पानी में भोजन पकाया जाये उसे फेंकने की जगह किसी दूसरे पकवान में प्रयोग कर लेना चाहिए।
  5. खाने वाले भोजन पदार्थों को कम-से-कम समय के लिए इतना पकाओ कि वह गलकर खाने योग्य हो जाएं। अधिक समय तक पकाने से पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  6. विटामिन तथा खनिज पदार्थ अनाजों की ऊपरि परत में ही होते हैं इसलिए बिना छाने आटे तथा बिना पॉलिश किये चावल अथवा दालों आदि का ही प्रयोग करो।
  7. भोजन को सदा ढककर ही पकाएं क्योंकि खुले बर्तन में पकाने से भी उड़ने वाले खाद्य तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  8. प्रैशर कुक्कर के प्रयोग से तत्त्वों का कम-से-कम नुकसान होता है तथा समय तथा ईंधन की बचत भी होती है।
  9. भोजन को जल्दी पकाने के लिए सोडा तथा बेकिंग पाऊडर का प्रयोग न करें क्योंकि इनके प्रयोग से भी पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  10. तलने के लिए घी बहुत ज्यादा गर्म न करें।

प्रश्न 33.
धीमी आंच पर खाना पकाने और सूखे सेंक से खाना पकाने में क्या अन्तर है? इन तरीकों में से सबसे उत्तम तरीका कौन-सा है और क्यों?
उत्तर-

सूखे सेंक से पकाना धीमी आंच पर पकाना
(i) इसमें भोजन पदार्थ को सीधे ही आंच मौजूदगी पर रख कर पकाया जाता है। (i) इसमें भोजन पदार्थ को पानी की में पकाया जाता है।
(ii) इस तरीके से भोजन पकाने के तीन धीमी ढंग हैं-सेंकना, भूनना तथा बेक पकाया करना। (ii) इस तरीके से भोजन पकाने के लिए आंच पर थोड़े पानी में पकाना भोजन जाता है।
(iii) इसमें भोजन पदार्थों के खुराकी से-कम नष्ट होते हैं। (iii) इसमें भोजन के खुराकी तत्त्व कमतत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
(iv) इस तरीके से पकाया भोजन रोगियों के के लिए बढ़िया नहीं होता। (iv) इस तरके से पकाया भोजन रोगियों लिए बढ़िया होता है।

धीमी आंच पर गीले सेंक से खाना पकाने का ढंग बढ़िया है क्योंकि इस तरह पकाये भोजन में से खुराकी तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन पचने योग्य भी होता है।

प्रश्न 34.
खाना पकाने का भोजन के तत्त्वों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
खाद्य पदार्थों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, विटामिन तथा खनिज लवण आदि खाद्य तत्त्वों पर ताप का अलग-अलग तरीके से प्रभाव पड़ता है।

  1. कार्बोहाइड्रेट्स
    1. निशास्ते के कण पानी में पकाने पर पानी सोख कर फूल जाते हैं तथा फट जाते हैं तथा पानी में घुल जाते हैं तथा फिर पचने योग्य हो जाता है।
    2. सेंकने से निशास्ता डैक्सिट्रन तथा फिर शर्करा में बदल जाता है जिसको पचाना आसान होता है।
    3. चीनी गर्म करने पर पिघलती है। बिना पानी के पकाई चीनी भूरे रंग की हो जाती है। इसको कैरामलाइज्ज़ चीनी कहा जाता है तथा इससे कस्टर्ड, पुडिंग आदि का रंग तथा स्वाद अच्छा हो जाता है।
  2. प्रोटीन-गर्म करने पर प्रोटीन जम तथा सिकुड़ जाता है तथा कुछ हानिकारक एन्ज़ाइम जोकि विटामिनों को नष्ट करते हैं, पकाने से नष्ट हो जाते हैं। पशु प्रोटीन अधिक पकाने पर सख्त हो जाते हैं। इसलिए इन्हें कम ताप पर धीरे-धीरे पकाना चाहिए ताकि वे जल्दी पच सकें परन्तु पौधों से मिलने वाली प्रोटीन (चने, मटर, सोयाबीन आदि) को पानी में अधिक ताप पर पकाना चाहिए। इससे यह जल्दी पच जाते हैं तथा स्वादिष्ट भी बनते हैं।
  3. चर्बी-अधिक देर तक चर्बी को गर्म करने पर इसका विघटन हो जाता है तथा यह अम्लों में बदल जाती है तथा इसका स्वाद तथा सुगन्ध भी खराब हो जाते हैं तथा चर्बी जल्दी नहीं पचती। इसीलिए बार-बार एक ही तेल में नहीं तलना चाहिए। इसी तरह कम ताप पर चर्बी को गर्म करने पर खाद्य पदार्थ अधिक चर्बी सोख लेते हैं तथा इन्हें पचाना कठिन है।
  4. विटामिन-अधिक देर तक तेज़ आग पर पकाने से विटामिन ‘बी’ की काफ़ी मात्रा तथा विटामिन ‘सी’ नष्ट हो जाते हैं। उबलते पानी में सब्जियां पकाई जाएं तो कम विटामिन नष्ट होते हैं। तलने तथा भूनने से भी विटामिन नष्ट हो जाते हैं। विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’ पर गर्मी का अधिक प्रभाव नहीं होता। सोडा डालकर भोजन पकाने से भी विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
  5. खनिज लवण-खनिज लवण पकाते समय पानी में घुल जाते हैं। इसीलिए इस पानी को तरी की तरह प्रयोग कर लेना चाहिए, फेंकना नहीं चाहिए। उबालने से सोडियम भी नष्ट हो जाता है। इसकी कमी नमक डालकर पूरी की जा सकती है। दूध उबालने पर थोड़ी कैल्शियम भी नष्ट होती है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB भोजन पकाना Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. भाप से पकाने के ……………. ढंग हैं।
  2. अधिक समय तक भोजन पकाया जाए तो …………. तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  3. बैक्टीरिया की …………….. °C पर वृद्धि रुक जाती है।
  4. बीमारों के लिए …………………. खाना ठीक रहता है।
  5. इडली को …………………. ढंग से पकाया जाता है।

उत्तर-

  1. तीन,
  2. पौष्टिक,
  3. 40,
  4. उबला,
  5. भाप।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बेक करके पकाई जाने वाली एक वस्तु बताएं।
उत्तर-
केक।

प्रश्न 2.
तले भोजन की एक हानि बताएं।
उत्तर-
शीघ्र पचता नहीं।

प्रश्न 3.
जीवाणुओं के स्पोरज़ कितने तापमान पर मर जाते हैं?
उत्तर-
60°C.

प्रश्न 4.
कौन-से विटामिन पर गर्मी का प्रभाव नहीं पड़ता?
उत्तर-
विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’।

प्रश्न 5.
बिना पानी के पकाई चीनी को क्या कहते हैं?
उत्तर-
कैरेमालाइज़ड।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. बैक्टीरिया की 40°C पर वृद्धि रुक जाती है।
  2. सूखे सेंक से पकाने के तीन ढंग होते हैं।
  3. ज्यादा समय तक पकाना अच्छा है।
  4. दो या अधिक भोजन मिला कर पकाना अच्छा है।
  5. तले भोजन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ग़लत,
  4. ग़लत,
  5. ग़लत।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तलने के ढंग हैं
(A) सूखा भूनना तलना
(B) कम घी में तलना ।
(C) खुले घी में तलना
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं
(A) रोगी के लिए उबला हुआ भोजन ठीक रहता है
(B) तले भोजन जल्दी पचते नहीं
(C) भाप से बना खाना पकाना सबसे अच्छा ढंग है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
सूखे सेंक से पकाने के ढंग हैं
(A) सेंकना
(B) भूनना
(C) वेक करना
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 4.
भोजन पकाने के कारण हैं
(A) भोजन को पचने योग्य बनाना
(B) भोजन में भिन्नता लाना
(C) कीटाणुओं को नष्ट करना
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(A) भोजन को पचने योग्य बनाना

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सम्पूर्ण भोजन क्या होता है? किन्हीं दो सम्पूर्ण भोजन पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
सम्पूर्ण भोजन वह होता है जिसमें शरीर के लिए आवश्यक सभी पौष्टिक तत्त्व होते हैं। दूध तथा अण्डे को सम्पूर्ण भोजन माना जाता है।

प्रश्न 2.
दाने कौन-सी विधि द्वारा पकाये जाते हैं ? इस विधि द्वारा और क्या बनाया जाता है?
उत्तर-
दानों को कढ़ाही में रेत गर्म करके भूना जाता है। बैंगन को गर्म राख में भूना जाता है तथा शकरकंदी को भी इसी तरह भूना जाता है।

प्रश्न 3.
सीधी तेज़ आंच पर रखकर पकाने का क्या नुकसान है?
उत्तर-
सीधी तेज़ आंच पर रखकर पकाने से बाहरी परत जल जाती है तथा कई पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
जिस पानी में भोजन पकाया जाये, उसे फेंकना क्यों नहीं चाहिए?
उत्तर-
जिस पानी में भोजन पकाया जाये उसे इसलिए नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि उसमें खनिज लवण घुल जाते हैं तथा पानी फेंकने से यह पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
कौन-से भोजन पदार्थों को बिना पकाये खाया नहीं जा सकता? सूची बनाओ।
उत्तर-
निम्नलिखित भोजन पदार्थों को बिना पकाये नहीं खाया जा सकता, जैसेअनाज, दालें, मांस, मछली, अण्डा आदि।

प्रश्न 6.
भोजन को प्रैशर कुक्कर में पकाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
प्रैशर कुक्कर में पका हुआ भोजन पौष्टिक होता है तथा इससे ईंधन की भी बचत होती है।

प्रश्न 7.
फल तथा सब्जियों के छिलके क्यों नहीं उतारने चाहिएं?
उत्तर-
फल तथा सब्जियों के छिलके की निचली परत में पौष्टिक तत्त्व अधिक होते हैं। इसलिए फल तथा सब्जियों को बिना छीले ही प्रयोग में लाना चाहिए।

प्रश्न 8.
बिना छना आटा क्यों प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर-
भोजन की पौष्टिकता बनाये रखने के लिए बिना छना आटा प्रयोग करना चाहिए क्योंकि छान बूरे को निकालने से विटामिन तथा खनिज नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
तले हुए भोजन से क्या नुकसान होते हैं?
उत्तर-
तले हुए भोजन से मोटापा होता है तथा अधिक तलने से विटामिन भी नष्ट हो जाते हैं तथा तला हुआ भोजन पचाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 10.
भट्ठी में भोजन पकाते समय क्या सावधानियां रखनी चाहिएं?
उत्तर-
भट्ठी में भोजन पकाने के लिए भट्ठी पहले से तपी होनी चाहिए तथा एक बार भोजन रखकर उसे बार-बार नहीं खोलना चाहिए।

प्रश्न 11.
भाप द्वारा भोजन पकाने का अप्रत्यक्ष ढंग से अभिप्राय है?
उत्तर-
इस ढंग से भोजन पदार्थ को किसी डिब्बे में बन्द कर दिया जाता है तथा डिब्बे को भाप से गर्म करके बीच के पदार्थ को पकाया जाता है।

प्रश्न 12.
सब्जियों के छोटे टुकड़े क्यों नहीं काटने चाहिएं?
उत्तर-
क्योंकि छोटे-छोटे टुकड़ों से खनिज पदार्थों तथा विटामिनों की अधिक हानि होगी।

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प्रश्न 13.
कैरामालाइज्ड चीनी क्या होती है?
उत्तर-
चीनी को जब बिना पानी के पकाया जाता है तो यह भूरे रंग की हो जाती है, इसको कैरामालाइज्ड चीनी कहते हैं।

प्रश्न 14.
कौन-कौन से भोजन पदार्थों को भूना जा सकता है?
उत्तर-
निम्नलिखित भोजन पदार्थों को भूना जा सकता है

  1. आलू
  2. बैंगन
  3. माँस के टुकड़े
  4. मुर्गा
  5. मक्की की छल्ली
  6. रोटी
  7. मछली
  8. दाने।

प्रश्न 15.
फलों का स्टियू बनाने के लिए कौन-सी विधि का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
फलों का स्टियू बनाने के लिए सेब अथवा नाशपाती को थोड़े पानी में चीनी डालकर धीमी आंच पर रखकर पकाया जाता है।

प्रश्न 16.
भोजन पदार्थों को कैसे भूना जा सकता है? कोई दो उदाहरणे दो।
उत्तर-
किसी धातु के बर्तन को आग पर रखकर अथवा अप्रत्यक्ष सेंक से भोजन पदार्थों को भूना जाता है। जैसे कड़ाही में रेत डालकर दाने भूने जाते हैं तथा बैंगन को गर्म राख में रखकर भूना जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पके हुए भोजन तथा कच्चे भोजन में क्या अन्तर है?
उत्तर-

पका हुआ भोजन कच्चा भोजन
(i) पका हुआ भोजन नर्म हो जाता है, तथा चबाने तथा पचाने में आसान होता है। (i) कच्चा भोजन कठोर होता है। इसलिए इसे चबाना, पचाना कठिन होता है।
(ii) पके हुए भोजन का रंग-रूप, स्वाद तथा खुशबू अच्छे हो जाते हैं। (ii) बिना पकाये भोजन देखने अथवा खाने तथा खुशबू में अच्छे नहीं होते।
(iii) पकाने से अधिक तापमान के कारण कई हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं। (iii) कच्चे भोजन में कई हानिकारक कीटाणु होते हैं जो स्वास्थ्य को हानि पहँचाते हैं।
(iv) पकाने से एक ही वस्तु को विभिन्न तरीकों से बनाया जा सकता है। (iv) यदि भोजन को न पकाया जाए तथा इसे एक ही रूप में खाया जाये तो उससे जल्दी मन भर जाता है।
(v) पकाने से भोजन को अधिक देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है। (v) कच्चा भोजन जल्दी खराब हो जाता है। उसमें जीवाणु पैदा हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
उबालने तथा तलने के लाभ तथा हानियां लिखो।
उत्तर-
उबालने तथा तलने के निम्नलिखित लाभ तथा हानियां हैंउबालने के लाभ —

  1. उबला हुआ भोजन आसानी से पचने योग्य होता है।
  2. इस विधि में भोजन के पौष्टिक तत्त्व कम नष्ट होते हैं।
  3. यह विधि सरल तथा कम खर्चीली है।
  4. प्रैशर कुक्कर में खाद्य पदार्थ उबालने से समय तथा ईंधन की भी बचत होती है।

उबालने की हानियां —

  1. अधिक तेजी से पानी शीघ्र सूख जाता है तथा अधिक ईंधन खर्च होता है।
  2. इस विधि में वस्तु जल्दी नहीं पकती।

तलने के लाभ —

  1. तला हुआ भोजन अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।
  2. भोजन पदार्थों का चिकनाहट से संयोग होने के कारण कैलोरी भार अधिक बढ़ जाता है।
  3. तले हुए पदार्थ शीघ्र खराब नहीं होते।

तलने के दोष —

  1. अधिक तलने-भूनने से कुछ पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  2. भोजन भारी हो जाता है।
  3. भोजन पचने योग्य न होने के कारण कभी-कभी पाचन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 3.
बेक करने तथा भूनने में क्या अन्तर है?
उत्तर-
बेक करने तथा भूनने में निम्नलिखित अन्तर हैं —

बेक करना भूनना
(i) इसमें पदार्थ को बन्द गर्म भट्ठी में रखकर गर्मी से पकाया जाता है। (i) इसमें पदार्थ को थोड़ी-सी चिकनाहट लगाकर सेंका जाता है।
(ii) भोजन वाले बर्तन को पहले अधिक तथा फिर कम सेंक पर रखा जाता है। (ii) इसमें भोजन पदार्थ को सीधा ही आंच पर पकाया जाता है।
(iii) इसमें भट्ठी का तापमान बराबर चाहिए। (iii) इसमें भट्ठी का तापमान सदा मद्धम रहना रहना चाहिए।
(iv) इसमें पानी के बिना भोजन के सभी जाते हैं0964 (iv) इसमें भोजन के तत्त्व भी आग में गिर तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।
(v) इसमें कच्चे केले तथा अन्य फलों को भी मसाला लगाकर पकाया जाता है। (v) इसमें दाने भट्ठी तथा कढ़ाही में रेत डाल कर भूने जाते हैं।

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प्रश्न 4.
उबालते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखोगे?
उत्तर-

  1. भोजन पदार्थों को उबालने से पहले अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
  2. बर्तन अथवा पतीला ऐसा हो जिसका ढक्कन अच्छी तरह फिट हो जाये ताकि भाप कम-से-कम बाहर निकले तथा भोजन सूख कर न जले।
  3. ज़रूरत से अधिक न उबालें क्योंकि अधिक पका भोजन रंग, स्वाद तथा आकार के पक्ष से बिगड़ जाता है।
  4. आल या जड़ों वाली सब्जियों को छिलका उतारे बिना ही उबालना चाहिए।

प्रश्न 5.
टेबल सैट करने के लिए ध्यान रखने योग्य कौन-सी बातें हैं?
उत्तर-

  1. जिस कमरे में तथा मेज़ पर भोजन खाना होता है उनकी सफ़ाई सबसे ज़रूरी है। थालियां, कटोरियां, गिलास, चम्मच तथा अन्य सभी तरह के बर्तन अच्छी तरह से साफ़ किये होने चाहिएं। इन्हें सुखा कर रख लेना चाहिए। मेज़पोश तथा सभी टेबल नैप्किन भी अच्छी तरह साफ़ तथा प्रेस किये होने चाहिएं।
  2. मेज़ पर पड़ी चीजें इतनी दूर हों कि खाने वालों की पहुंच में हों। टेबल के एक ही तरफ सभी चीजें इकट्ठी नहीं कर लेनी चाहिएं।
  3. सभी प्लेटें तथा बर्तन इस ढंग से रखो कि खाने वालों को कोई कठिनाई न आये।
  4. मेज पर एक व्यक्ति के खाने के लिए इतनी जगह ज़रूर हो कि दूसरे व्यक्ति को कोई रुकावट न हो।
  5. टेबल सैट करने के लिए सरल तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 6.
फैमिली स्टाइल मेज़ सैट करने के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
फैमिली स्टाइल में सभी व्यक्ति एक मेज़ पर बैठकर खाना खाते हैं। प्रत्येक की के आगे एक व्यक्ति के लिए आवश्यक बर्तन रख दिये जाते हैं। भोजन की योजनाबन्दी अनुसार मेज़ सैट किया जाता है। फैमिली स्टाइल में मेज़ सैट करने के लिए साधारण नियम निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. टेबल पर जितने व्यक्तियों ने भोजन ग्रहण करना हो, उस अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्लेटें, गिलास, कटोरियां, चम्मच आदि इकट्ठे करके पोंछ कर रख दो तथा मेज़ पर उतने ही टेबल मैट्स भी बिछा दो।
  2. टेबल मैट मेज़ के किनारे के साथ बिछाकर किनारे से 2.5 सेंटीमीटर स्थान छोड़कर टेबल मैट के बीच एक बड़ी प्लेट रखी जाती है।
  3. प्लेट के दाईं ओर चम्मच तथा छुरी रखो तथा बाईं और हाथ का कांटा रखो। छुरी का तीखा सिरा प्लेट की ओर रखना चाहिए। सभी चीजों का डण्डी वाला हिस्सा टेबल के किनारे की ओर अर्थात् व्यक्ति की ओर रखना चाहिए। इन्हें प्लेट से 2.5 सेंटीमीटर स्थान छोड़कर बिल्कुल सीधा रखना चाहिए।
  4. नैप्किन प्लेट के दाईं ओर सादा सी परत लगा के रखा जाता है।
  5. पानी का गिलास चम्मच के सिरे पर रखा जाता है।
  6. सभी पकवान मेज़ के बीच एक लाइन में रखे जाते हैं। कड़छियां प्रत्येक सब्जी के साथ दाईं ओर रखी जाती हैं तथा इनकी डण्डी वाला हिस्सा जिस तरफ मेहमान बैठे हों उस तरफ होना चाहिए।
  7. मेज़ सजाने के लिए मेज़ के बीच में अथवा एक कोने पर एक छोटा-सा फूलों का गुलदस्ता रखना चाहिए। परन्तु फूल खुशबूदार नहीं होने चाहिएं क्योंकि फूलों की गहरी सुगन्ध में भोजन की सुगन्ध दब जाएगी।
  8. पकवान मेज़ पर रखते समय यह ध्यान रखो कि मेहमान की तरफ सबसे पहले स्लाद, फिर चपातियां अथवा चावल, फिर सब्जियां, दही, अचार आदि रखा जाये।

प्रश्न 7.
बुफे स्टाइल में मेज़ सैट करने के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
इस प्रकार की सैटिंग तब की जाती है जब बड़ी चाय पार्टी अथवा बहुत सारे लोगों को खाने की दावत देनी हो। इसमें मेहमान मेज़ से खाने वाली चीजें प्लेटों में डालकर, खड़े होकर अथवा किसी अन्य स्थान पर बैठ कर खाते हैं। इसका तरीका निम्नलिखित है

  1. मेहमानों की संख्या के अनुमान अनुसार उतनी ही संख्या में प्लेटें, चम्मच, कप, गिलास तथा नैप्किन ले लें।
  2. एक बड़े टेबल पर खाने-पीने वाली चीजें रखने का इन्तज़ाम कर लेना चाहिए।
  3. एक तरफ नैप्किन, फिर प्लेटें तथा चम्मच रखने चाहिएं। यदि चाय पार्टी हो तो छोटी प्लेटें रखनी चाहिएं। यदि भोजन खिलाना हो तो बड़ी प्लेटें रखनी चाहिएं।
  4. फिर मेज़ के बीच एक लाइन में सभी खाने वाली चीजें रख देनी चाहिएं। मेहमानों को नैप्किनों वाली तरफ आरम्भ करने के लिए कहना चाहिए। कमरे के बाकी हिस्से में दीवारों के साथ-साथ मेहमानों के बैठने का प्रबन्ध किया जा सकता है। यदि कमरा छोटा हो तो बुफे स्टाइल की सैटिंग बाहर बरामदे में अथवा किसी खुली जगह पर की जा सकती है।

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प्रश्न 8.
भोजन परोसने के तरीके के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-

  1. गृहिणी को अपनी कुर्सी, मेज़ के एक तरफ लेनी चाहिए तथा उसकी कुर्सी रसोई की तरफ होनी चाहिए।
  2. एक तरफ से एक चीज़ का प्रयोग आरम्भ करने का संकेत गृहिणी को करना चाहिए। आरम्भ होने के बाद एक व्यक्ति इसको लेकर अगले व्यक्ति को देता है। इसी तरह करतेकरते एक खाने वाली चीज़ सभी व्यक्तियों में घूम जानी चाहिए।
  3. सभी चीजें सभी के पास पहुंच जाने के पश्चात् ही सभी को खाना आरम्भ करना चाहिए। इससे पहले किसी व्यक्ति को खाना आरम्भ नहीं करना चाहिए।
  4. कभी भी दूसरे व्यक्ति के आगे बाजू लम्बी करके वस्तु नहीं उठानी चाहिए।
  5. प्लेट एक बार ही वस्तुओं से नहीं भरनी चाहिए।
  6. जिस बर्तन में पकवान डालकर रखा जाता है वह साफ़-सुथरा होना चाहिए। बर्तन के किनारों पर सब्जी बिल्कुल नहीं लगी होनी चाहिए।
  7. फलों को काटकर बांटना चाहिए।
  8. टेबल पर सूप वितरण के पश्चात् खाना बांटना चाहिए।
  9. सजी हुई प्लेट को अन्य खाने वाली चीज़ों से पहले परोसना चाहिए।
  10. गृहिणी को प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखना चाहिए कि किस व्यक्ति को किस चीज़ की जरूरत है।
  11. टेबल पर बैठकर उदासी भरी बातें नहीं अपितु खुशी भरी बातें करनी चाहिएं।
  12. सभी व्यक्ति खाना समाप्त कर लें, तभी मेज़ से उठना चाहिए।
  13. गृहिणी को खाने वाली चीजें बाईं तरफ से तथा पानी दाईं तरफ से बांटना चाहिए।

प्रयोगी

कुछ भोजन नुस्खे

रोटी (चपाती) बनाना

प्राय: गेहूँ के आटे की रोटी बनाई जाती है। पर सर्दियों में मक्की की तथा बेसन की रोटी भी बनाई जाती है।

गेहूं के आटे की रोटी बनाना

सामान —

  1. आटा — 200 ग्राम
  2. पानी — 175 मिली लिटर
  3. घी अथवा मक्खन — लगाने के लिए

विधि —

  1. थाली अथवा परात में आटे को विरल छननी से छानो ताकि छान कम-से-कम निकले। बारीक तथा साफ़-सुथरे आटे को छानने की कोई ज़रूरत नहीं होती।
  2. थोड़ा-सा आटा रखकर बाकी को थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर ग्रंथो।
  3. परात अथवा थाली में गीला हाथ फेरकर दबावों से आटा गूंथो ताकि यह एक सा हो जाये।
  4. फिर इसे मलमल के गीले कपड़े से 15-20 मिनट के लिए ढक कर रख दो।
  5. एक बार फिर परात में गीला हाथ फेरकर दबावों से आटा गूंथों तथा ढककर रख लो।
  6. तवे को साफ़ करके गर्म होने के लिए आग पर रख दो।
  7. आटे के छोटे-छोटे पेड़े करें।
  8. पेड़े को सूखा आटा लगाकर दोनों हाथों की उंगलियों से दबा कर चपटा करें।
  9. फिर से पलाथी लगाकर चपटे किये पेड़े को चकले पर रख कर बेलन से पतली रोटी बेल लो।
  10. बेली हुई रोटी को गर्म तवे पर डाल दो।
  11. ऊपर से शुष्क हो जाये तो रोटी को उल्टा दो।
  12. दूसरी तरफ से थोड़ा-सा अधिक सेंक देना चाहिए। जब बादामी रंग के दाग पड़ जायें तो रोटी को उल्टा कर पहली तरफ फिर सेंके।।
  13. रोटी को कपड़े से थोड़ा-थोड़ा दबाते रहो तकि रोटी फल जाये।
  14. तवे से उतार कर इच्छानुसार घी अथवा मक्खन से इसको चुपड़ लो।

सादा परांठा

सामान —

  1. आटा — 200 ग्राम
  2. पानी — 175 मिली लीटर
  3. नमक — स्वादानुसार
  4. घी — 50 ग्राम

विधि —

  1. आटे में नमक डालकर गूंथो।
  2. पेड़े बनाकर रोटी बेल लो।
  3. बेली हुई रोटी के ऊपर की तरफ थोड़ा घी लगाओ।
  4. अब रोटी का एक तिहाई हिस्सा मोड़ लो तथा अब दूसरी तरफ से भी एक हिस्सा इस मुड़े हुए हिस्से ऊपर मोड़ो।
  5. इस रोटी को लम्बाई वाले दोनों सिरों को अन्दर की ओर इस तरह मोड़ो कि यह वर्गाकार बन जाये।
  6. इस को सूखा आटा लगाकर फिर से बेलें।
  7. इसको गर्म तवे पर डालकर चुपड़ दें।
  8. हल्का सेंकने के पश्चात् उल्टा दें तथा दूसरी तरफ से भी चुपड़ दो।
  9. परांठे को उल्टा-उल्टा कर सेंको तथा दोनों तरफ से करारा कर लो।
  10. सब्जी रायते आदि से गर्म-गर्म परोसो।

मेथी का परांठा

सामान —

  1. गेहूं का आटा — 225 ग्राम (तीन हिस्से)
  2. मक्की का आटा — 75 (1 हिस्सा)
  3. प्याज़ — 10 ग्राम
  4. हरी मेथी — 20 ग्राम
  5. हरी मिर्चे — 2
  6. नमक — स्वादानुसार

विधि —

  1. मेथी चुनकर तथा धोकर बारीक काटो।
  2. प्याज तथा हरी मिर्च को भी बारीक-बारीक काटो।
  3. आटे में नमक, मिर्च, मेथी तथा प्याज़ मिलाकर गूंथ लो।
  4. पेड़ा बनाकर रोटी बेलो तथा गर्म तवे पर डालकर चुपड़ दो।
  5. हल्का सेंकने के पश्चात् दूसरी तरफ पलटें तथा इसे भी चुपड़े दो।
  6. इसको दही अथवा मक्खन से गर्म-गर्म परोसो।

आलुओं का परांठा

सामान—

  1. गेहूं — 200 ग्राम
  2. आलू — 100 ग्राम
  3. छोटा प्याज़ — 1
  4. हरी मिर्चे — 2
  5. धनिया — कुछ पत्ते
  6. अदरक — एक टुकड़ी
  7. घी — तलने के लिए
  8. नमक — स्वादानुसार

विधि—

  1. आटा गूंथ कर तैयार कर लो।
  2. आलू उबाल कर छील लो तथा ठण्डे होने के पश्चात् इन्हें मसल लो।
  3. प्याज़, हरी मिर्च, अदरक तथा धनिया को धोकर छोटा-छोटा काट लो। यह सभी कुछ तथा स्वादानुसार नमक मसाले आलुओं में डालकर अच्छी तरह मिला लो।
  4. आटे का पेड़ा लो तथा थोड़ी-सी मोटी रोटी बेलो तथा घी लगाओ।
  5. आलुओं का पेड़ा बनाकर बेली हुई रोटी में आलुओं का पेड़ा रखकर रोटी में आलू छिपा दो तथा फिर से पेड़ा बना लो।
  6. गोल परांठा बेल कर गर्म तवे पर डाल दो।
  7. परांठा दोनों तरफ से घी तलकर करारा कर लो।
  8. इसको दही, मक्खन, लस्सी अथवा चाय के साथ गर्म-गर्म परोसें।

नोट-गोभी, मूली के परांठे अथवा किसी अन्य तरह के परांठे बनाने के लिए उपरोक्त विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

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चावल उबालना

सामान —

  1. चावल — 1 गिलास
  2. पानी — 2 गिलास

विधि —

  1. चावलों को चुनो तथा धो लो तथा पानी को उबलने के लिए रख दो।
  2. जब पानी उबल रहा हो तो इनमें चावल डालो तथा इन्हें कड़छी से हिलाकर अच्छी तरह ढक दो।
  3. एक उबाला आने पर दोबारा हिलाओ तथा फिर अच्छी तरह ढक दो।
  4. सेंक हल्का करो, कुछ मिनटों के पश्चात् चावल खाने योग्य हो जायेंगे।
  5. चावलों को तरी वाली सब्जी के साथ परोसो।
  6. चावलों में इच्छानुसार नमक तथा घी भी डाला जा सकता है।

नोट-पुराने चावल नये चावलों से अच्छे रहते हैं पर इनमें नए चावलों से थोड़ा अधिक पानी पड़ता है। नमकीन चावलों को जीरे का तड़का लगाया जा सकता है।

मटर का पुलाव

सामान —

  1. पानी — 2 गिलास
  2. चावल — 1 गिलास
  3. मटर निकाले हुए — 100 ग्राम
  4. प्याज़ — 1 छोटा
  5. लौंग — 4
  6. दाल चीनी — 2 छोटे टुकड़े
  7. घी — 50 ग्राम
  8. नमक — स्वादानुसार
  9. काली मिर्च — 10-12

विधि—

  1. चावलों को चुनो तथा धो लो।
  2. घी गर्म करो तथा इसमें लम्बे काटे हुए प्याज भूनो तथा इन्हें किसी कटोरी आदि में निकाल लो।
  3. फिर उसी घी में दालचीनी, लौंग, काली मिर्च तथा मटर डालकर दो-तीन मिनट तक भूनो।
  4. धोए हुए चावलों को भी एक मिनट के लिए भूनो तथा नमक तथा पानी डालकर हिलाओ।
  5. एक उबाल आने के पश्चात् एक बार फिर हिलाओ तथा अच्छी तरह से ढक दो, हल्के सेंक पर बनने दो।
  6. भुने हुए प्याज़ों से सजाकर परोसो।

नोट-इसी तरह गोभी, आलू, गाजर, फ्रैंच बींस, आलू, धनिया आदि सब्जियां डालकर पुलाव बनाया जा सकता है तथा सब्जियां भी प्रयोग की जा सकती हैं।

राज मांह

सामान —

  1. राज मांह — 250 ग्राम
  2. टमाटर — 100 ग्राम
  3. प्याज़ — 100 ग्राम
  4. अदरक — एक टुकड़ा
  5. लहसुन — 6 तुरियां
  6. गर्म मसाला — 1 चम्मच
  7. लाल मिर्च तथा नमक — स्वादानुसार
  8. घी — 100 ग्राम
  9. पानी — 500 मिली लिटर

विधि —

  1. राजमांह चुनो तथा रातभर इन्हें पानी में भिगोकर रख दो।
  2. प्याज़ों को चाकू से बारीक-बारीक काट लो अथवा कद्दू-कस कर लो।
  3. अदरक तथा लहसुन बारीक-बारीक काट लें तथा टमाटर और हरी मिर्चों को भी काट लो।
  4. कुक्कर में घी डालकर प्याज़ को भून कर बादामी रंग का कर लो।
  5. अब इसमें टमाटर, हरी मिर्चे, लहसुन तथा अदरक डालकर तब तक भूनो जब तक कि टमाटर न गल जाएं।
  6. भीगे हुए राजमांह, मिर्च, नमक तथा पानी कुक्कर में डालकर इन्हें 35 मिनट तक पकने दो।
  7. अब गर्म मसाले से सजा कर परोसो।

साबुत मूंगी की दाल

सामान —

  1. मूंगी की दाल — 200 ग्राम
  2. टमाटर — 100 ग्राम
  3. पानी — 600 मिलीलिटर
  4. घी — 100 ग्राम
  5. अदरक — एक टुकड़ा
  6. लहसुन — 6 तुरियां
  7. प्याज़ — 1
  8. हरी मिर्च — 2
  9. गर्म मसाला — 1 चम्मच
  10. हल्दी — 1 चम्मच

विधि —

  1. दाल को चुनो तथा धो लो।
  2. अदरक तथा लहसुन बारीक काट लो तथा टमाटर, हरी मिर्च तथा प्याज़ को भी काटो।
  3. कुक्कर में दाल, लहसुन, अदरक, नमक तथा पानी को डालकर सेंक कर रखो तथा पूरा दबाव बनने के पश्चात् 8 मिनट के लिए पकायो।
  4. घी गर्म करें प्याज़ भूनो तथा इसके पश्चात् टमाटर तथा हरी मिर्च डालकर पकाओ जब तक कि टमाटर गल न जाएं।
  5. इस मसाले को दाल में मिलाओ तथा गर्म मसाला डालकर परोसो।

नोट-अन्य दालें जैसे साबुत मसूर तथा धुली मुंगी की दाल आदि भी कुक्कर में इसी विधि से बनाई जा सकती है। पर पूरा दबाव बनने के पश्चात् केवल तीन मिनट के लिए पकाओ। दालों को कुक्कर के बिना धीमी आंच पर भी पकाया जाता है परन्तु इस तरह पानी और ईंधन अधिक लगता है। साबुत माह के लिए 55 मिनट तक पकाओ।

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दम आलू

सामान —

  1. आलू — 500 ग्राम (बहुत छोटे-छोटे)
  2. घी — 100 ग्राम
  3. टमाटर — 250 ग्राम
  4. जीरा — 1/2 चम्मच
  5. इलायची — 2
  6. दालचीनी — 1 छोटा टुकड़ा
  7. अदरक — 1 छोटा टुकड़ा
  8. हरी मिर्च — 1
  9. लाल मिर्च — 1 चम्मच अथवा स्वादानुसार
  10. हल्दी — 1/2 चम्मच
  11. नमक — स्वादानुसार

विधि —

  1. उबाल कर आलुओं को छील लो तथा साबुत ही रखो।
  2. हरी मिर्च तथा टमाटर काट लो।
  3. अब जीरा, दाल चीनी, इलायची तथा पीसा हुआ अदरक घी में भून लो।
  4. इस मसाले में हरी मिर्च, टमाटर तथा नमक डालकर भूनो जब तक कि टमाटर गल न जाए।
  5. इसमें आलू डालकर अच्छी तरह हिलाओ।
  6. रोटी के साथ इन्हें गर्म-गर्म परोसो।

मटर पनीर

सामान —

  1. मटर — 500 ग्राम
  2. पनीर — 200 ग्राम
  3. घी— 60 ग्राम
  4. अदरक — 1 टुकड़ा
  5. प्याज़ — 2
  6. हल्दी — 1/2 चम्मच
  7. जीरा — 1/2 चम्मच
  8. मसाला — 1/2 चम्मच
  9. हरा धनिया — कुछ पत्ते
  10. टमाटर — 2
  11. नमक — स्वादानुसार

विधि—

  1. पनीर को चौकोर टुकड़ों में काटो तथा तल लें।
  2. प्याज़ कद्दूकस करो तथा अदरक और हरा धनिया बारीक काट लो।
  3. घी में प्याज़ भूनो तथा टमाटर, अदरक तथा अन्य मिर्च-मसालों को भी इसमें डाल दो।
  4. अब इसमें मटर डालो तथा थोड़ी देर पश्चात् इसमें कच्चा अथवा तला हुआ पनीर डालो।
  5. दो मिनट के लिए पकाओ तथा आग से उतार कर धनिये के हरे पत्तों से सजाकर परोसो।

नोट-आलू मटर, रसमिसे आलू अथवा तरी वाली सब्जियां इसी विधि से ही बनाई जाती हैं।

भिण्डी की सब्जी

सामान —

  1. भिण्डी — 300 ग्राम
  2. घी अथवा तेल — 60 ग्राम
  3. आमचूर — 1/2 चम्मच
  4. पिसा हुआ धनिया — 1/2चम्मच
  5. गर्म मसाला — 1/2 चम्मच
  6. नींबू — 1/2
  7. प्याज़ — 2
  8. हरी मिर्च — 2
  9. नमक मिर्च — स्वादानुसार

विधि —

  1. भिण्डियों को धोकर तथा सुखाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटो तथा प्याज़ तथा हरी मिर्च को भी काट लो।
  2. घी अथवा तेल को कड़ाही में डालकर अच्छी तरह गर्म करो तथा बीच में भिण्डियां डाल दो।
  3. भिण्डियों को थोड़ा सेंक लगाने के पश्चात् प्याज़ भी डाल दो।
  4. कुछ समय के लिए तलो तथा भिण्डी में लेस होने पर इसमें नींबू निचोड़ दो।
  5. नमक, मिर्च, आमचूर, हल्दी, धनिया डालकर हल्के सेंक पर तब तक पकाओ जब तक भिण्डी गल न जाये।
  6. उतारने से पहले इसमें गर्म मसाला डाल दो तथा गर्म-गर्म परोसो।

नोट-साबुत भिण्डी बनानी हो तो भिण्डी को लम्बे रुख चीरा देकर मसाला भर कर तला जाता है।

आलू गोभी

सामान —

  1. गोभी — 1 किलोग्राम
  2. आलू — 400 ग्राम
  3. टमाटर — 150 ग्राम
  4. घी — 60 ग्राम
  5. अदरक — 1 टुकड़ा
  6. प्याज़ — 2
  7. गर्म मसाला — 1 चम्मच
  8. हरा धनिया — कुछ पत्ते
  9. नमक मिर्च — स्वादानुसार

विधि —

  1. गोभी धोकर सुखा लो और इसके डण्ठल काट दो और धोकर फूल के टुकड़े काट लो और आलुओं को छीलकर काट लो।
  2. टमाटर, अदरक, हरी मिर्च, प्याज, हरा धनिया काट लो।
  3. घी में प्याज को भूनो और भूनने के पश्चात् टमाटर, हरी मिर्च और अदरक इस में डाल दो।
  4. अब इसमें आलू और गोभी डाल कर कड़छी से हिलाओ और पकने के लिए ढक दो।
  5. जब आलू गल जाएं तो गर्म मसाला और हरा धनिया डाल कर उतार लो। गर्म-गर्म परोसो।

नोट-आलू-गाजर, आलू-मेथी, बेंगन-आलू, बन्दगोभी-मटर आदि सब्जियां बनाने की भी यही विधि है। यदि सब्जी में पानी रह जाए तो पानी सुखा लेना चाहिए।

भरी हुई शिमला मिर्च

सामान —

  1. शिमला मिर्च — 250 ग्राम
  2. मटर निकाले हुए — 60 ग्राम
  3. आलू — 100 ग्राम
  4. गाजर — 50 ग्राम
  5. टमाटर — 100 ग्राम
  6. घी — 50 ग्राम
  7. जीरा — 1/2 चम्मच
  8. अदरक — 1 टुकड़ा
  9. प्याज — 1 टुकड़ा
  10. हरी मिर्च — 2
  11. नमक, मिर्च — स्वादानुसार

विधि —

  1. शिमला मिर्चों को धो लो और ऊपर से काट लो तथा मटर भी छील लो।
  2. आलुओं की छील उतार लो तथा बारीक काट लो।
  3. प्याज़ को कद्दूकस करो, टमाटर, अदरक, हरी मिर्च काट लो तथा थोड़े से घी में इन सभी सब्जियों को भून कर पका लो तथा नमक, मिर्च, मसाले भी इस में मिला लो तथा पानी सूख जाने दो।
  4. यह सब कुछ शिमला मिर्च में भर दो।
  5. घी को कड़ाही में डालकर गर्म करो तथा शिमला मिर्चों को इसमें तलो।
  6. पक जाने पर आग से उतारकर रोटी के साथ परोसो। नोट-करेले तथा भरे हुए बैंगन बनाने की यही विधि है।

कोफ्ते

सामान —

  1. घीआ (नर्म) — 250 ग्राम
  2. बेसन — 50 ग्राम
  3. टमाटर — 150 ग्राम
  4. हल्दी — 1/2 चम्मच
  5. काली मिर्च — 1/2 चम्मच
  6. सूखा धनिया — 1/2 चम्मच
  7. प्याज़ — 3
  8. अदरक — एक टुकड़ा
  9. हरी मिर्च — 2
  10. हरा धनिया — कुछ पत्ते
  11. गर्म मसाला — 1 चम्मच
  12. नमक मिर्च — स्वादानुसार
  13. घी — तलने के लिए

विधि —

  1. घीआ छील कर धो लो तथा कद्दूकस कर लो।
  2. कद्दूकस किये घीये में बेसन, सूखा धनिया, काली मिर्च, थोड़ा-सा नमक पानी डालकर गाढ़ा घोल बना लो।
  3. कड़ाही में घी डालकर गर्म करो तथा जब घी में से धुआँ निकलने लगे तो उपरोक्त घोल के गोल-गोल कोफ्ते बना कर गर्म घी में डालो तथा कोफ्तों को थोड़ा-सा तल कर बाहर निकाल लो।
  4. प्याज़ तथा अदरक कद्दूकस कर लो तथा हरी मिर्च, हरा धनिया तथा टमाटर बारीक-बारीक काट कर घी में भून कर तरी बना लो।
  5. नमक, मिर्च, मसाला, पानी डालकर उबाल लो तथा कोफ्ते डालकर कुछ समय तक पकने दो तथा हरे धनिये से सजा कर परोसो।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

मीठे पकवान

खीर

सामान —

  1. दूध — 1 लिटर
  2. चीनी — 2 बड़े चम्मच
  3. चावल — 2 बड़े चम्मच
  4. छोटी इलायची — 1/4 चम्मच
  5. सूखे मेवे — आवश्यकतानुसार

विधि —

  1. चावलों को चुन लो तथा धोकर 15 मिनट तक भिगो कर रखो।
  2. दूध उबालो तथा उबले हुए दूध में चावल डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाते जाओ।
  3. अच्छी तरह चावल घुल जाएं तो चीनी तथा इलायची डालकर कुछ देर के लिए पकने
  4. बादाम, किशमिश तथा पिस्ता आदि खीर पर डालकर परोसो।

कस्टरड

सामान —

  1. दूध — 1/2 लिटर
  2. कस्टरड पाऊडर — 2 बड़े चम्मच
  3. चीनी — 4 बड़े चम्मच

विधि —

  1. कस्टरड को आधा कप दूध में घोलो तथा बाकी दूध को उबाल लो।
  2. उबले दूध में चीनी तथा कस्टरड वाला दूध धीरे-धीरे डालो तथा दूसरे हाथ से चम्मच से अच्छी तरह दूध को हिलाते जाओ ताकि गिल्टियां न बन जायें। उबाला आ जाये तो आंच से उतार लो। इसको गर्म अथवा ठण्डा करके परोसा जा सकता है। ऋतु अनुसार कस्टरड में फल जैसे केला, आम, अंगूर, सेब तथा सूखे मेवे डाले जा सकते हैं। यदि फल पकाने हों तो कस्टरड को फ्रिज में रखकर अच्छी तरह ठण्डा कर लो। ठण्डे कस्टरड को जैली के साथ परोसा जा सकता है।

सूजी का हलवा

सामान —

  1. सूजी — 100 ग्राम
  2. घी — 100 ग्राम
  3. चीनी — 100 ग्राम
  4. पानी — 35 मिलीलिटर
  5. बादाम तथा पिस्ता बारीक कटे हुए — 25 ग्राम
  6. इलायची — 2
  7. केसर — 1/4 चाय का चम्मच

विधि —

  1. चीनी तथा इलायची के छिलकों को पानी में डालकर उबाल लो ताकि चाश्नी बन जाये।
  2. चाश्नी को पतले कपड़े अथवा बारीक छाननी से छान लो।
  3. थोड़ा-सा गर्म पानी लेकर केसर घोलो।
  4. घी को गर्म करो तथा सूजी को धीमी आग पर भूनो।
  5. जब सूजी हल्की लाल हो जाए तो घी छोड़ दे तो इसमें चाश्नी डाल दो। धीरे-धीरे पकाओ ताकि पानी खुश्क हो जाये।
  6. इलायची, बादाम, पिस्ता तथा किशमिश मिला दो तथा गर्म-गर्म परोसो।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन पकाना

भोजन पकाना PSEB 9th Class Home Science Notes

  • प्रायः शरीर के लिए आवश्यक तत्त्व किसी एक भोजन पदार्थ में नहीं पाये जाते परन्तु अण्डे तथा दूध को सम्पूर्ण भोजन समझा जाता है।
  • भोजन पकाने के निम्नलिखित कारण हैं —
    भोजन को पकाने योग्य बनाने के लिए स्वाद, सुगन्ध तथा स्वरूप सुधारने के लिए, भोजन में विभिन्नता लाने के लिए, कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए, अधिक समय के लिए भोजन सुरक्षित रखने के लिए, पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए।
  • भोजन पकाने के लिए निम्नलिखित मुख्य ढंग हैं —
    सूखे सेंक के साथ पकाना, गीले सेंक अथवा पानी से पकाना, घी अथवा तेल में पकाना।
  • सूखे सेंक से पकाने के तीन ढंग हैं —
    सेंकना, भूनना तथा बेक करना।
  • गीले सेंक अथवा पानी से पकाने के लिए तीन ढंग हैं — उबालना, धीमी च पर थोड़े पानी में पकाना, भाप से पकाना। भाप से पकाने के आगे फिर तीन ढंग हैं — प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, दबाव में भाप से पकाना।
  • घी अथवा तेल में पकाने के तीन ढंग हैं — सूखा भूनना ,तलना, कम घी में तलना, खुले घी में तलना।
  • अधिक समय तक भोजन पकाया जाए तो खुराकी तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

PSEB 8th Class Agriculture Guide भूमि का माप एवम् रिकार्ड Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
प्राचीन समय में भू-माप (भूमि का माप) किस से किया जाता था?
उत्तर-
रस्सी के साथ।

प्रश्न 2.
भू-सुधारों का जनक किस सम्राट को कहा जाता है?
उत्तर-
मुगल बादशाह अकबर

प्रश्न 3.
एक हैक्टेयर में कितने एकड़ होते हैं ?
उत्तर-
2.5 एकड़।

प्रश्न 4.
एक कनाल में कितने मरले होते हैं ?
उत्तर-
20 मरले।

प्रश्न 5.
भारत के किन-किन प्रांतों में मुरब्बाबंदी सुनिश्चित ढंग से हुई है ?
उत्तर-
पंजाब तथा हरियाणा।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

प्रश्न 6.
मुरब्बाबंदी किस दशक (दहाके) में आरम्भ हुई थी ?
उत्तर-
1950 के दशक में।

प्रश्न 7.
जमाबंदी फर्द देखने के लिए कौन-सी साइट ढूंढ़नी होगी ?
उत्तर-
www.plrs.org.in.

प्रश्न 8.
मुरब्बाबंदी अधिनियम के अनुसार भूमि को कितने एकड़ के भागों में बांटा गया ?
उत्तर-
25-25 एकड़ के टुकड़ों में।

प्रश्न 9.
रब्बी की गिर्दावरी किस समय होती है ?
उत्तर-
1 मार्च से 31 मार्च।

प्रश्न 10.
नई जमाबंदी कितने वर्षों के बाद तैयार होती है ?
उत्तर-
पहले 4 साल बाद होती थी पर अब 5 साल बाद होती है।

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
झगड़े वाली भूमि की गिर्दावरी सशुद्धि कौन करता है ?
उत्तर-
झगड़े वाली भूमि की गिर्दावरी तहसीलदार की कचहरी में जाकर सशुद्धि करवा सकते हैं।

प्रश्न 2.
जमाबंदी क्या होती है ?
उत्तर-
जमाबंदी फर्द पंजाब लैंड रैवन्यु एक्ट में भूमि की मालकी का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। इसमें खेवट नंबर, खतौनी, गाँव की पत्ती का नाम, मालिक का नाम हिस्से के अनुसार, काबज़ काश्तकार और सिंचाई के साधन आदि का विवरण दर्ज होता है।

प्रश्न 3.
इन्तकाल क्या होता है ?
उत्तर-
भूमि के एक मालिक से दूसरे मालिक के नाम मालिकाना अधिकार परिवर्तित करने को इन्तकाल कहा जाता है।

प्रश्न 4.
निशानदेही करने के लिए कौन-कौन सी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती
उत्तर-
लडे के ऊपर बना नक्शा और ज़रीब की सहायता से पटवारी तथा कानूनगो खसरा नंबर की लंबाई-चौड़ाई को माप कर निशान लगा देते हैं।

प्रश्न 5.
गोशवारा क्या होता है ?
उत्तर-
सभी फसलों के सारणीबद्ध कुल जोड़ को गोशवारा कहा जाता है।

प्रश्न 6.
रहन अथवा गहना क्या होता है ?
उत्तर-
रहन या गहना से भाव है जब कोई भी भूमि का मालिक अपनी भूमि के एक टुकड़े को एक निश्चित की हुई कीमत पर आरजी तौर पर किसी अन्य व्यक्ति को दे दें। असली मालिक पैसे वापिस करके भूमि वापिस प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 7.
फसलों का खराबा (क्षति) क्या होता है ? इसे किस प्रकार मापा जा सकता है ?
उत्तर-
खेतों में बोई फसलों का बाढ़ या टिड्डी दल के हमले आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण बड़े स्तर पर खराब होने को खराबा कहा जाता है। इलाके में फसल की पैदावार को 100 प्रतिशत मान कर खराबा की औसत निकाल सकते हैं।

प्रश्न 8.
शिज़रा क्या होता है एवम् इसके अन्य क्या नाम हैं?
उत्तर-
एक लट्ठे के कपड़े पर गाँव का नक्शा बना होता है जिस पर गाँव की भूमि के सारे खसरा नंबर उकरे होते हैं। इसको शिज़रा कहा जाता है। इसको विस्तवार, पारचा, लट्ठा भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
मुरब्बाबंदी क्या होती है एवम् इसका क्या लाभ है ?
उत्तर-
किसी ज़मींदार की भूमि को भिन्न-भिन्न स्थानों पर भूमि के टुकड़ों को एक स्थान पर इकट्ठा करने को मुरब्बाबंदी या चकबंदी कहा जाता है। मुरब्बाबंदी करने से भूमि से संबंधित सभी कार्य आसान हो जाते हैं।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

प्रश्न 10.
ज़रीब क्या होती है ?
उत्तर-
यह लोहे की कड़ियों की बनी हुई चैन होती है जिसको भूमि की पैमाइश के लिए प्रयोग किया जाता है। यह 55 फुट लम्बी होती है।

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
गिर्दावरी क्या होती है और कब की जाती है ?
उत्तर-
यह फसलों का सर्वेक्षण होता है। इसको गिर्दावरी या गरदौरी कहा जाता है। यह मौके पर किया गया सर्वेक्षण है जो कि की गई कृषि को दर्शाता है। गिर्दावरी वर्ष में दो बार की जाती है।
आषाढ़ी में एक मार्च से 31 मार्च तक तथा सावनी में एक अक्तूबर से 31 अक्तूबर तक। जायद की फसलों के लिए (आषाढी तथा सावनी तथा सावनी से आषाढ़ी के बीच वाली फसलों) भी दो बार गिरदावरी की जाती है। 1 मई से 15 मई तथा 1 दिसम्बर से 15 दिसम्बर तक।

प्रश्न 2.
विभाजन (तकसीम) क्यों और कैसे किया जाता है?
उत्तर-
जब किसी भूमि के भागीदार मालिक (अंशधारी स्वामी) दो या अधिक हो जाएं तो भागीदारों की सहमति से उस भूमि को हिस्सों में बांटने को तकसीम करना कहते हैं। बांटने के बाद प्रत्येक भागीदार अपनी भूमि का स्वयंभू मालिक होता है। वह अपनी इच्छा से भूमि को गहने या बैअ या बैंक से ऋण ले सकता है।

प्रश्न 3.
भू-रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण क्या है ?
उत्तर-
सरकार द्वारा आजकल सारी भूमि के रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण किया जा रहा है। तसदीकशुदा साक्ष्यांकित जमाबंदी या इन्तकाल का रिकार्ड लेने के लिए नज़दीक की उपतहसील में आवश्यक फीस भर कर तुरन्त भूमि का रिकार्ड मिल जाता है। इस रिकार्ड को www.plrs.org.in वैबसाइट पर देखा जा सकता है।

प्रश्न 4.
जमाबन्दी फर्द देखने के लिए कौन-सी साइट देखनी पड़ेगी?
उत्तर-
जमाबन्दी फर्द देखने के लिए www.plrs.org.in साइट को देखना पड़ता है। इससे हम घर बैठे ही भूमि का रिकार्ड देख सकते हैं।

प्रश्न 5.
ठेका अथवा चकोता क्या होता है ?
उत्तर-
भूमि का मालिक अपनी भूमि को किसी अन्य व्यक्ति को निश्चित समय के लिए, जैसे-एक वर्ष या पाँच वर्ष के लिए कृषि करने के लिए आपस में दोनों पक्षों द्वारा निश्चित धन राशि पर दे देता है तो इसको ठेका या चकोता कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भूमि के पंजीकरण (रजिस्ट्री) पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि, मकान, दुकान आदि को जब एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को निश्चित कीमत पर बेच दिया जाता है या गहने किया जाता है तो दोनों पार्टियां तहसीलदार के कार्यालय में जाकर संबंधित पक्षों की सहमति से फोटो सहित रजिस्टर में दर्ज करवाया जाता है इसको रजिस्ट्री या रजिस्टर्ड वाकिया कहा जाता है। रजिस्ट्री की भिन्न-भिन्न किस्में हैं-रजिस्ट्री बैअ, गहना, हिस्सा (विभाजन), तबदील मलकीयत (हस्तांतरित) आदि।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB भूमि का माप एवम् रिकार्ड Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में भूमि के माप में किसका मुख्य योगदान रहा ?
उत्तर-
टोडर मल।

प्रश्न 2.
वर्ष 1580 से पहले भूमि का टैक्स (कर अथवा मामला) सरकार को किस रूप में दिया जाता था ?
उत्तर-
फसल के रूप में।

प्रश्न 3.
वर्ष 1580 के बाद भूमि का मामला (कर) किस रूप में दिया जाने लगा ?
उत्तर-
नकद अदायगी।

प्रश्न 4.
ज़रीब की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
10 करम या 55 फुट।

प्रश्न 5.
मुसतील क्या है ?
उत्तर-
मुरब्बाबंदी में बड़े टुकड़े को मुरब्बा या मुसतील कहा जाता है।

प्रश्न 6.
इन्तकाल के कितने खाने होते हैं ?
उत्तर-
15 कालम होते हैं।

प्रश्न 7.
जमाबंदी फर्द के कितने खाने होते हैं ?
उत्तर-
1-12 तक।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

प्रश्न 8.
सावनी की गिर्दावरी कब होती है ?
उत्तर-
1 अक्तूबर से 31 अक्तूबर तक।

प्रश्न 9.
जैद फसलों की गिर्दावरी कब की जाती है ?
उत्तर-
1 मई से 15 मई, 1 दिसम्बर से 15 दिसम्बर।

प्रश्न 10.
खराबे की औसत कैसे पता की जाती है ?
उत्तर-
क्षेत्र में फसल की उपज को 100 प्रतिशत मान कर।

प्रश्न 11.
1 फुट = ………..
उत्तर-
12 इंच।

प्रश्न 12.
1 गज़ = ………
उत्तर-
3 फुट।

प्रश्न 13.
1 फर्लाग = ……….
उत्तर-
220 गज़।

प्रश्न 14.
1 मील = ……………….. गज़ = ……….. फलांग।
उत्तर-
1760 गज़ = 8 फल्ग।

प्रश्न 15.
1 करम = ……………………. इंच = ……………..
उत्तर-
66 इंच = 5.5 फुट।

प्रश्न 16.
1 वर्ग करम = …………….. सरसाही।
उत्तर-
1 सरसाही।

प्रश्न 17.
1 मरला = …………….. सरसाहियां।
उत्तर-
9.

प्रश्न 18.
1 मरला = …………….. वर्ग फुट।
उत्तर-
272.

प्रश्न 19.
1 मरला = …………….. वर्ग गज़।
उत्तर-
30.

प्रश्न 20.
1 कनाल = …………….. मरले।
उत्तर-
20.

प्रश्न 21.
1 कनाल = ……………. बिस्वा।
उत्तर-
2.

प्रश्न 22.
1 किला = ……………. एकड़
उत्तर-
1.

प्रश्न 23.
1 किला = …………….. कनाल।
उत्तर-
8.

प्रश्न 24.
1 किला = …………….. मरले = ……………. वर्ग फुट।
उत्तर-
160 मरले = 220 × 198 वर्ग फुट।

प्रश्न 25.
1 किला = …………….. वर्ग मीटर।
उत्तर-
4000.

प्रश्न 26.
1 बिस्वा खाम = …………….. वर्ग गज़।
उत्तर-
50.

प्रश्न 27.
1 मुरब्बा या मस्तील = …………….. एकड़।
उत्तर-
25.

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

प्रश्न 28.
1 हेक्टेयर = …………….. एकड़।
उत्तर-
2.5.

प्रश्न 29.
1 हेक्टेयर = ………….. वर्ग मीटर।
उत्तर-
10000.

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अकबर के समय भूमि का मामला (कर) किस रूप में दिया जाता था ?
उत्तर-
पहले यह मामला (कर) फसल के रूप में दिया जाता था तथा वर्ष 1580 के बाद मामला नकद रूप में दिया जाने लगा।

प्रश्न 2.
इन्तकाल की भिन्न-भिन्न किस्में बताओ।
उत्तर-
इन्तकाल की किस्में हैं-बै, रहन, आधिकारिक स्थानांतरण, तकसीम (विभाजन), विरासत आदि।

प्रश्न 3.
इन्तकाल दर्ज करने की कारवाई बताएं।
उत्तर–
पटवारी इन्तकाल दर्ज करता है, फील्ड कानूगो इसको रिकार्ड के अनुसार चैक करता है, फिर नायब या तहसीलदार मौके पर जाकर दोनों पक्षों (दलों) को बुला कर, नंबरदार को साक्ष्यांकित करने पर इन्तकाल स्वीकार करता है।

प्रश्न 4.
भूमि की मालकी में किस तरह के परिवर्तन जमाबंदी में दर्ज होती है ?
उत्तर-
भूमि को गहने करना, वै करना, बारानी (ऊसर) से नहरी (उर्वरा) होना, आय अथवा विभाजन में परिवर्तन, भू-स्वामी का बदलना, स्थानांतरण करना आदि।

प्रश्न 5.
खराबा होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
खराबा होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-वर्षा का पानी रुकना, प्राकृतिक आपदा, जैसे-टिड्डी दल का हमला आदि।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरदावरी, भूमि की रजिस्ट्री पर नोट लिखें।
उत्तर-
देखे उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 2.
ठेका, तकसीम पर नोट लिखें।
उत्तर-
देखे उपरोक्त प्रश्नों में।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. ज़रीब की लम्बाई 10 करम होती है।
  2. जमाबंदी फर्द में 1-12 खाने होते हैं।
  3. 1 कनाल = 40 मरले।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
एक कनाल में कितने मरले हैं—
(क) 20
(ख) 50
(ग) 10
(घ) 60.
उत्तर-
(क) 20

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 3 भूमि का माप एवम् रिकार्ड

प्रश्न 2.
जमाबंदी फर्द ढूंढने के लिए साइट है—
(क) www.Jamabandi.dk
(ख) www.plrs.org.in
(ग) www.plrs.ac.
(घ) www.org.plrs.in
उत्तर-
(ख) www.plrs.org.in

प्रश्न 3.
शिज़रा किसे कहते हैं—
(क) नक्शा
(ख) घर
(ग) सड़क
(घ) स्कूल।
उत्तर-
(क) नक्शा

रिक्त स्थान भरें

  1. ………… में बड़े टुकड़े को मुसतील कहा जाता है ।
  2. …………… की लम्बाई 55 फुट होती है।
  3. लट्ठे के ऊपर बने नक्शे को ………….. कहा जाता है।

उत्तर-

  1. मुरब्बाबंदी,
  2. ज़रीब,
  3. शिज़रा

भूमि का माप एवम् रिकार्ड PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • भारत में भूमि के माप का काम मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल में शुरू हुआ था और टोडर मल का इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
  • लगभग वर्ष 1580 में सम्राट अकबर ने कर की अदायगी नकद शुरू की थी।
  • आज़ादी के बाद भूमि के माप में और भी सुधार हुए और 1950-60 के दौरान भूमि का मुरब्बाबंदी एक्ट एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था।
  • भूमि को मापने वाली लोहे की कड़ियों की चेन (शृंखला) को ज़रीब कहा जाता
  • पंजाब में भूमि का माप एकड़, कनाल या मरलों में किया जाता है।
  • ज़रीब की लंबाई 10 करम या 55 फुट होती है।
  • शिज़रा, लठे के कपड़े पर बनाया हुआ गाँव का नक्शा होता है और इस पर गाँव की भूमि के सारे नंबर खसरे उकरे होते हैं।
  • पंजाब मुरब्बाबंदी एक्ट के अनुसार भूमि को 25-25 एकड़ के बड़े टुकड़ों में बांटा गया है।
  • सारी फसलों के सारणीबद्ध कुल जोड़ को गोशवारा कहते हैं।
  • भूमि के एक मालिक (स्वामी) से दूसरे मालिक के नाम मलिकाना अधिकार परिवर्तित करने को इंतकाल कहते हैं।
  • जमाबंदी फर्द पंजाब लैंड रैवन्यु एक्ट में भूमि की मालकी (स्वामित्व) का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है।
  • जमाबंदी पहले चार साल बाद तैयार की जाती थी पर अब पाँच साल बाद तैयार की जाती है।
  • जमाबंदी फर्द में 1-12 खाने होते हैं। 14. गिर्दावरी या गरदौरी भूमि अथवा फसलों का सर्वेक्षण है जो मौके पर खेत में की कृषि को दिखाता है।
  • घर पर बैठे भूमि का रिकार्ड देखने के लिए www.plrs.org.in. वैबसाइट देखी जा सकती है।
  • 1 फुट = 12 ईंच, 1 गज़ = 3 फुट
  • 1 मरला = 9 सरसाहियाँ = 272 वर्ग फुट
  • 1 कनाल = 20 मरले
  • 1 किला (एकड़) = 8 कनाल
  • 1 हैक्टेयर = 2.5 एकड़ = 20 कनाल।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 4 हमारी कृषि Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Geography Chapter 4 हमारी कृषि

SST Guide for Class 8 PSEB हमारी कृषि Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर 20-25 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
कृषि से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कृषि से अभिप्राय फ़सलें पैदा करने, पशु पालने तथा अन्य कृषि सम्बन्धी व्यवसायों से है। डेयरी फार्मिंग, मुर्गी पालन, शहद की मक्खियाँ पालना, मछली पालन, फूलों की खेती करना, गुड़ बनाना, आटा चक्की लगाना आदि सभी व्यवसाय कृषि में शामिल हैं।

प्रश्न 2.
कृषि को कौन-कौन से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
कृषि को मुख्य रूप से निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं — (1) जलवायु (2) धरातल (3) मिट्टी के प्रकार (4) सिंचाई की व्यवस्था (5) कृषि करने का ढंग (6) मण्डियों की सुविधा (7) यातायात के साधन (8) बैंकों की सुविधा।

प्रश्न 3.
बागाती कृषि का उत्तर संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
बागाती कृषि में फलों, सब्जियों तथा फूलों के बीजों की कृषि की जाती है। इसमें कृषि की आधुनिक विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं। यह कृषि किसानों के लिए बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध हो रही है।

प्रश्न 4.
अनाज उपजों के नाम लिखो।
उत्तर-
मुख्य अनाज उपजें चावल, गेहूं, मक्की, ज्वार, बाजरा, दालें तथा तेल निकालने के बीज हैं।

प्रश्न 5.
“क” करना किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चावल पैदा करने के लिए पहले पौध अथवा पनीरी तैयार की जाती है। फिर जिस खेत में पौध लगानी हो, उसे समतल करके उसमें पानी भर दिया जाता है। इसे खेत को ‘कद्दू’ करना कहते हैं।

प्रश्न 6.
मक्की से क्या-क्या तैयार किया जाता है ?
उत्तर-
मक्की से ग्लूकोज़, कल्फ स्टार्च तथा अल्कोहल तैयार किया जाता है। इससे वनस्पति तेल भी तैयार किया जाता है।

प्रश्न 7.
‘रेशे की लम्बाई’ के आधार पर कपास की किस्में बताइए।
उत्तर-
रेशे की लम्बाई के आधार पर कपास तीन किस्म की होती है–(1) लम्बे रेशे वाली कपास (2) मध्यम दर्जे के रेशे वाली कपास तथा (3) छोटे रेशे वाली कपास।

प्रश्न 8.
पटसन से कौन-कौन सी वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं ?
उत्तर-
पटसन से बोरियां, रस्सियां, सूतली आदि बनाये जाते हैं। इससे शो-पीस भी बनते हैं।

प्रश्न 9.
चाय का पौधा किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
चाय का पौधा एक झाड़ी जैसा होता है। इसकी पत्तियों से चायपत्ती प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 10.
कॉफी की तीन किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
कॉफी की तीन किस्में हैं(1) अरेबिका, (2) रोबसटा तथा (3) लाइबैरिका।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

प्रश्न 11.
यू० एस० ए० और पंजाब में कितने-कितने प्रतिशत लोग कृषि व्यवसाय करते हैं ?
उत्तर-
यू० एस० ए० में 30% जबकि पंजाब में लगभग 58% लोग कृषि व्यवसाय करते हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 70-75 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
कृषि कितने प्रकार की है ? सघन और विशाल कृषि में अन्तर लिखो।
उत्तर-
कृषि के प्रकार-कृषि अग्रलिखित कई प्रकार की होती है –

  • स्थाई कृषि (Permanent agriculture)
  • स्थानान्तरी कृषि (Shifting agriculture)
  • शुष्क कृषि (Dry farming)
  • नमी वाली कृषि (Wet farming)
  • सघन कृषि (Intensive farming)
  • विशाल कृषि (Extensive farming)
  • मिश्रित कृषि (Mixed farming)
  • बागबानी कृषि (Horticulture)
  • निजी कृषि (Private or individual agriculture)
  • सहकारी कृषि (Cooperative farming)
  • सांझी कृषि (Collective farming)
  • बागाती कृषि (Plantation agriculture)
  • आत्मनिर्भर अथवा निर्भरता कृषि (Subsistence agriculture)
  • व्यापारिक कृषि (Commercial farming)

सघन तथा विशाल कृषि में अन्तर-

  • सघन कृषि कम भूमि में की जाती है, जबकि विशाल कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है।
  • सघन कृषि में सिंचाई साधनों तथा उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ाया जाता है। इसके विपरीत विशाल कृषि में मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
  • सघन कृषि भारत के पंजाब राज्य में की जाती है, जबकि विशाल कृषि संयुक्त राज्य अमेरिका के बड़े-बड़े . खेतों में की जाती है।

प्रश्न 2.
निर्वाह और व्यापारिक कृषि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
निर्वाह कृषि-निर्वाह कृषि छोटे पैमाने पर की जाती है। इसमें किसान अपनी आवश्यकतानुसार अपने गुज़ारे के लिए फ़सलें उगाता है। वह इन्हें बेच नहीं पाता क्योंकि उसके पास फ़ालतू फ़सल बचती ही नहीं है। यदि वह थोड़ी बहुत फसल बेच भी लेता है तो वह उन पैसों से अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए घर का सामान खरीद लेता है।

व्यापारिक कृषि-इस प्रकार की कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है। इसमें किसान मशीनों तथा अन्य साधनों का भरपूर प्रयोग करते हैं। उपजों को बाज़ार में बेचने के लिए उगाया जाता है ताकि नकद धन कमाया जा सके। संसार के अधिक क्षेत्रफल वाले देशों में, जहां किसानों के पास बड़ी-बड़ी ज़मीनें हैं, प्रायः इसी प्रकार की कृषि की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा अपनी व्यापारिक कृषि के लिए जाने जाते हैं। अब भारत में भी व्यापारिक कृषि का प्रचलन बढ़ रहा है।

प्रश्न 3.
चावल पैदा करने वाले मुख्य क्षेत्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
चावल मुख्य रूप से गर्म तथा तर (नम) जलवायु वाले प्रदेशों में पैदा किया जाता है। संसार में चीन, भारत, बंगलादेश, जापान तथा दक्षिण पूर्वी देश चावल के उत्पादन के लिए विख्यात हैं। इनमें से चीन का संसार में पहला स्थान है। वह संसार के कुल चावल का 36% पैदा करता है। वहाँ की यंगसी क्यिांग की नहरी घाटियां चावल के उत्पादन के लिए जानी जाती हैं। बंगलादेश में चावल उत्पन्न करने वाला मुख्य क्षेत्र गंगा डैल्टा है। जापान अधिक उत्पादन के लिए चावल की जैपोनिका किस्म की बीजाई करता है। __ चावल के उत्पादन में भारत का संसार में दूसरा स्थान है। संसार का 20% चावल भारत में ही पैदा किया जाता है। भारत के चावल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश तथा हरियाणा हैं। पंजाब में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज सबसे अधिक है। इस राज्य में चावल मुख्यतः अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, जालन्धर, पटियाला तथा लुधियाना जिलों में उगाया जाता है।

प्रश्न 4.
कपास और पटसन पैदा करने के लिए भौगोलिक अवस्थाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
कपास पैदा करने के लिए आवश्यक अवस्थाएं

तापमान – 20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक और कम-से-कम 20 कोहरा रहित दिन।
वर्षा – 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक
धरातल – समतल या हल्की ढलान वाली भूमि
मृदा – काली, जलौढ़ मिट्टी और उर्वरक की आवश्यकता होती है।
श्रमिक – कपास चुनने के लिए सस्ते और प्रशिक्षित श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

पटसन पैदा करने के लिए आवश्यक अवस्थायें :
तापमान – 24° सेल्सियस से 35° सेल्सियस तक।
वर्षा – 120 सेंटीमीटर से 150 सेंटीमीटर तक; 80 से 90% सापेक्ष नमी आवश्यक है।
धरातल – समतल धरातल।
मृदा – जलौढ़, चिकनी और दोमट मिट्टी
श्रमिक – सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5.
पंजाब में कपास उत्पादन पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब हरियाणा के साथ मिलकर देश की लगभग 25% कपास पैदा करता है। राज्य के कपास उत्पन्न करने वाले मुख्य जिले बठिंडा, फिरोजपुर तथा संगरूर हैं। पंजाब में बी०टी० काटन बीज के बहुत अच्छे परिणाम रहे हैं। राज्य के मालवा क्षेत्र में कपास को सफ़ेद सोना अथवा श्वेत सोना भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
चाय तथा कॉफ़ी के पौधों की सम्भाल कैसे की जाती है ? .
उत्तर-
चाय-चाय के पौधों को साफ़ की हुई ढलानों पर लगाया जाता है। पौधों के विकास के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पानी पौधों की जड़ों में न ठहरे। पौधों के ठीक ढंग से विकास के लिए इनकी कांट-छांट भी की जाती है।
कॉफ़ी-कॉफ़ी के पौधों को उचित सिंचाई तथा कांट-छांट की आवश्यकता होती है। खेतों में समय-समय पर उर्वरकों का प्रयोग भी करना चाहिए।

प्रश्न 7.
यू० एस० ए० में कृषि के लिए मशीनों के प्रयोग पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
यू० एस० ए० में भारत की तुलना में किसानों के पास बहुत अधिक कृषि भूमि है। इसलिए खेतों का आकार बड़ा है। यहां के एक फार्म का औसत आकार 700 एकड़ है। खेतों का आकार बड़ा होने के कारण यहां विस्तृत (Extensive) प्रकार की खेती की जाती है। इनमें मशीनों का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। वास्तव में यू० एस० ए० के फार्मों में मशीनों के बिना कृषि करना सम्भव नहीं है। फ़सलों की बीजाई से लेकर फ़सलों को स्टोरों तथा मण्डियों तक ले जाने का सारा काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है। कृषि के लिए हैलीकाप्टरों और वायुयानों का प्रयोग भी होता है। यहां का किसान मिट्टी की प्रकार, जलवायु और सिंचाई साधनों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् ही फ़सल का चुनाव करता है। कीटनाशक दवाइयों का भी काफ़ी प्रयोग किया जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में लिखो :

प्रश्न 1.
गेहूं की फ़सल के लिए आवश्यक अवस्थाएं बताकर गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
गोहूं एक महत्त्वपूर्ण अन्न उपज है। संसार के धनी देशों के लोग चावल की तुलना में गेहूं खाना अधिक पसन्द करते हैं। गेहूं को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिनों से परिपूर्ण अन्न माना जाता है।
गेहूं उत्पादन के लिए आवश्यक अवस्थाएं :

तापमान – 10° सेल्सियस से 20° सेल्सियस तक
वर्षा – 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक
धरातल – समतल अथवा थोड़ा ढलान वाला
मृदा (मिट्टी) – दोमट, चिकनी, काली तथा लाल मिट्टी
बीज और उर्वरा – बढ़िया बीज और उर्वरक (रासायनिक खादें) उत्पादन बढ़ाने के लिए अति आवश्यक हैं।
श्रमिक – फ़सल की बीजाई तथा कटाई के समय श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

गेहूं की बीजाई नवम्बर-दिसम्बर में की जाती है। गेहूं बीजते समय तापमान कम और काटते समय अधिक होना चाहिए। फ़सल के पकते समय मौसम गर्म और शुष्क होना चाहिए। समय-समय पर इसे वर्षा या सिंचाई की आवश्यकता भी होती है।

गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्र-संसार तथा भारत में गेहूं उत्पन्न करने वाले मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

संसार-संसार में चीन, यू० एस० ए०, रूस, फ्रांस, कनाडा तथा जर्मनी गेहूं पैदा करने वाले मुख्य देश हैं। इन देशों में भूमि की अधिकता तथा मशीनों के प्रयोग के कारण गेहूं का उत्पादन बहुत अधिक होता है। यू० एस० ए० के कंसास, डकोटा, मोनटाना, मिनीसोटा, टैक्सास तथा महान् झील के आस-पास के क्षेत्र गेहं पैदा करने के लिए विख्यात हैं। कनाडा के मुख्य गेहूं उत्पादक क्षेत्र ओंटारियो तथा ब्रिटिश कोलम्बिया हैं।

भारत-गेहूं पैदा करने में भारत का संसार में दूसरा स्थान है। देश की कुल गेहूं का 72% से भी अधिक भाग उत्तरी भारत के तीन राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा पैदा करते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा बिहार राज्य भी गेहूं उगाते हैं। पंजाब के लगभग सभी जिलों में गेहूं पैदा होता है। पंजाब में आई ‘हरी क्रान्ति’ (Green Revolution) ने गेहूँ के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि की है। उत्तम बीजों, उर्वरकों तथा सिंचाई साधनों के प्रयोग से पंजाब में गेहूँ का उत्पादन कई गुणा बढ़ गया है। केन्द्रीय अनाज में पंजाब के गेहूं का योगदान अन्य सभी राज्यों से अधिक है।

प्रश्न 2.
चाय और कॉफी पैदा करने के लिए आवश्यक अवस्थाएं कौन-कौन सी हैं ? भारत में चाय और कॉफी के मुख्य क्षेत्र बताइए।
उत्तर-
चाय और कॉफी पैदा करने के लिए आवश्यक अवस्थाएं अग्रलिखित हैं – चाय पैदा करने के लिए आवश्यक अवस्थाएं :

तापमान – 200 सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक
वर्षा – 150 सेंटीमीटर से 300 सेंटीमीटर तक, सारा साल रुक-रुक कर।
धरातल – ढलानदार
मृदा – दोमट मिट्टी, जंगली मिट्टी (जिसमें लौह तथा जैविक तत्त्वों की अधिकता हो।)
श्रमिक अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
मण्डी – चाय का मांग क्षेत्र, जहां चाय बेची जा सके।
PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि 1

कॉफी उत्पादन के लिए आवश्यक अवस्थाएं :

तापमान – 150 सेल्सियस से 280 सेल्सियस तक
वर्षा – 100 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर तक
धरातल – पर्वतीय एवं ढलानदार
मृदा – दोमट या जैविक तत्वों वाली मिट्टी
श्रमिक – कॉफी के. भिन्न-भिन्न प्रकार के बीजों को अलग करने के लिए प्रशिक्षित श्रमिक।

भारत में चाय के मुख्य क्षेत्र-चाय के उत्पादन में भारत का संसार में पहला स्थान है। देश के चाय पैदा करने वाले मुख्य राज्य असम, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा तथा कर्नाटक हैं।

  • भारत की कुल चाय का 51% भाग केवल असम राज्य उत्पन्न करता है। इस राज्य की ब्रह्मपुत्र तथा सुरमा घाटियां चाय के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। असम के डिबरूगढ़, लखीमपुर, सिबसागर, दुर्ग, गोलपाड़ा आदि ज़िले चाय उत्पन्न करने वाले मुख्य क्षेत्र हैं।
  • पश्चिमी बंगाल में चाय मुख्यतः दार्जिलिंग, जलपाइगुड़ी तथा कूच-बिहार के जिलों में उगाई जाती है।
  • तमिलनाडु में चाय नीलगिरी तथा अन्नामलाई की पहाड़ियों पर पैदा की जाती है।
  • देश के अन्य चाय उत्पादक क्षेत्र कर्नाटक के हसन तथा चिकमंगलूर और केरल के कोटायाम, कोलाम तथा थिरूवान्थापुरम (तिरुवन्तापुरम्) ज़िले हैं।

भारत में कॉफी के मुख्य क्षेत्र-भारत संसार की केवल 2.2 प्रतिशत कॉफी पैदा करता है। देश में इसका उत्पादन करने वाले मुख्य राज्य कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु हैं। भारत की कॉफी का 70% भाग अकेले कर्नाटक राज्य उत्पन्न करता है। केरल के कोडंगू, चिकमंगलूर, शिमोगा तथा कोलम ज़िले और तमिलनाडु के नीलगिरी, मदुरै, सेलम तथा कोयम्बटूर ज़िले कॉफी के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रश्न 3.
पटसन की कृषि कैसे की जाती है ? पटसन के प्रयोग और संसार में इसके वितरण का विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए।
उत्तर-
पटसन रीड (reed) जैसा पतला तथा लम्बा पौधा होता है। इसका रेशा बहुत ही उपयोगी होता है। इससे बोरियां, रस्सियां, सूतली आदि वस्तुएँ बनाई जाती हैं जो काफ़ी मजबूत होती हैं। परन्तु प्लास्टिक तथा कृत्रिम रेशों के बढ़ते प्रयोग से पटसन से बनी वस्तुओं पर बुरा प्रभाव पड़ा है क्योंकि ये महँगी पड़ती हैं।

पटसन की कृषि–पटसन को प्रायः फरवरी-मार्च में बोया जाता है और अक्तूबर के महीने में काट लिया जाता है। आजकल पटसन की कई किस्में जल्दी भी तैयार हो जाती हैं। पटसन की फसल को काटने के पश्चात् उसकी गाँठें बना ली जाती हैं जिन्हें दो-तीन सप्ताह के लिए खड़े जल के नीचे रखा जाता है। इससे पौधों का रेशा नर्म होकर उतरने लगता है। तब इन्हें पानी से निकाल कर सुखा लिया जाता है और रेशे को अलग कर लिया जाता है। इसे साफ़ करके भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है।

पटसन का वितरण-पटसन गर्म तथा सीले जलवायु वाले क्षेत्रों में पैदा होता है। इसका उत्पादन करने वाले संसार समय देश चीन, भारत, बंगलादेश, थाईलैंड और ब्राज़ील हैं। भारत तथा बंगलादेश पटसन उत्पन्न करने वाले देशों
में सबसे आगे हैं।

भारत में पटसन की खेती गंगा-ब्रह्मपत्र नदियों के डेल्टाई भागों में बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत की लगभग 99% पटसन देश के चार राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, असम तथा उड़ीसा पैदा करते हैं। पटसन की खेती की अनुकूल अवस्थाओं के कारण अकेले पश्चिमी बंगाल देश की 80% पटसन पैदा करता है। कुछ पटसन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा केरल में भी पैदा होती है। पश्चिमी बंगाल में नादिया, मुर्शिदाबाद, 24 परगना, जलपाइगुड़ी तथा हुगली, बिहार में पुरनियां तथा दरभंगा और असम में गोलपाड़ा, दुर्ग तथा सिंबसागर ज़िले पटसन के मुख्य उत्पादक हैं।

प्रश्न 4.
पंजाब तथा यू०एस०ए० की खेती में क्या समानताएं तथा भिन्नताएं मिलती हैं ?
उत्तर-
पंजाब की खेती-

  • पंजाब के लगभग 58% लोग कृषि में लगे हुए हैं। राज्य की कुल आय में कृषि का योगदान 35% है।
  • यहां की मिट्टी उपजाऊ है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए किसान खादों का प्रयोग करते हैं।
  • पंजाब का किसान अपने खेतों में अलग-अलग प्रकार की फ़सल उगाता है। अधिक उत्पादन के लिए वह विकसित बीजों का प्रयोग करता है। खेत के अनुरूप ट्रेक्टर और हारवैस्टर का भी प्रयोग किया जाता है।
  • पंजाब में समस्त कृषि योग्य भूमि सिंचाई पर निर्भर करती है।
  • कृषि में उपज को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • पंजाब का कृषक चाहे मशीनों का प्रयोग करता है, फिर भी उसे श्रमिकों की सहायता लेनी पड़ती है।

यू० एस० ए० में खेती-

  • खेती अथवा कृषि की दृष्टि से यू० एस० ए० एक विकसित देश माना जाता है। इस देश के केवल 30% लोग कृषि व्यवसाय में लगे हुए हैं। इसका मुख्य कारणं यह है कि यहां कृषि का सारा काम मनुष्य के स्थान पर मशीनों द्वारा किया जाता है।
  • कृषि देश की कुल भूमि के लगभग 20% भाग पर की जाती है। देश के उत्तरी-पश्चिमी, उत्तर-पूर्वी. तटीय क्षेत्र तथा भीतरी मैदान कृषि के लिए जाने जाते हैं। देश के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार की उपजें उगाई जाती
  • यू० एस० ए० में भारत की तुलना में कृषकों के पास अधिक भूमि है। इसलिए खेतों का आकार बड़ा है। यहां के एक फार्म का औसत आकार 700 एकड़ है।
  • खेतों का आकार बड़ा होने के कारण यहां विस्तृत (Extensive) कृषि की जाती है। कृषि में मशीनों का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। वास्तव में यू० एस० ए० के फार्मों में मशीनों के बिना कृषि करना लगभग असम्भव है। एक फार्म में एक ही प्रकार (Single Crop) की फ़सल उगाई जाती है। फ़सलों को बोने से लेकर फ़सलों को स्टोरों तथा मण्डियों तक ले जाने का सारा काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है।
  • कृषि के लिए हैलीकाप्टरों तथा वायुयानों का प्रयोग भी किया जाता है।
  • यहां का कृषक मिट्टी की किस्म, जलवायु तथा सिंचाई साधनों की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् ही फ़सल का चुनाव करता है।
  • यहाँ फ़सलों को दोषों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि यू० एस० ए० का किसान एक किसान की तरह नहीं बल्कि एक व्यापारी की तरह कृषि करता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

PSEB 8th Class Social Science Guide हमारी कृषि Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. ……….. कृषि को झूमिंग कृषि भी कहते हैं।
2. शुष्क कृषि अधिकतर ………….. भागों (प्रदेशों) में की जाती है।
3. चावल के उत्पादन में ………….. संसार में पहले स्थान पर है।
उत्तर-

  1. स्थानांतरी,
  2. मरुस्थली,
  3. चीन।

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं :

1. मक्की के पौधे की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमरीका में हुई।
2. पंजाब राज्य के केवल सीमावर्ती जिलों में गेहूं पैदा की जाती है।
3. चाय पहाड़ी ढलानों पर उगाई जाती है।
उत्तर-

(ग) सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
संसार में सबसे अधिक चाय कौन-सा देश पैदा करता है ?
(i) चीन
(ii) भारत
(iii) श्रीलंका
(iv) जापान।
उत्तर-
(ii) भारत

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सी फ़सल रेशेदार है ?
(i) चाय
(ii) पटसन
(iii) मक्की
(iv) बाजरा।
उत्तर-
(ii) पटसन

प्रश्न 3.
बागाती कृषि में प्रायः किस फसल के बाग लगाए जाते हैं ?
(i) चाय
(ii) रबड़
(iii) काफी
(iv) ये सभी।
उत्तर-
(iv) ये सभी।

(घ) सही जोड़े बनाइए :

1. विशाल कृषि – उपजें तथा पशु-पालन
2. मिश्रित कृषि – बार-बार उपज प्राप्त करना
3. सघन कृषि – कृषि मशीनों का प्रयोग
4. स्थाई कृषि – पंजाब राज्य।
उत्तर-

  1. कृषि मशीनों का प्रयोग,
  2. उपजें तथा पशु-पालन,
  3. पंजाब राज्य,
  4. बार-बार उपज प्राप्त करना।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थाई कृषि क्या होती है ?
उत्तर-
जब किसान एक ही स्थान पर रह कर कृषि करते हैं, तो उसे स्थाई कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में उसी भूमि में बार-बार फ़सलें पैदा की जाती हैं। भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए प्राकृतिक (जैविक) तथा रासायनिक खादों (उर्वरकों) का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
मिश्रित कृषि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मिश्रित कृषि में अनाज, फल, सब्ज़ियां आदि उगाने के साथ-साथ किसान पशु भी पालता है। इसमें उत्तर
तथा मधुमक्खियाँ भी पाली जाती हैं। इस प्रकार किसान की आय काफ़ी बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
बागानी कृषि की क्या विशेषता है ?
उत्तर-
बागानी कृषि में फ़सलों को बाग़ के रूप में लगाया जाता है और बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। चाय, कॉफी, नारियल तथा रबड़ के बाग़ बागानी कृषि के उदाहरण हैं। इन बागों से लगातार कई वर्षों तक फल प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 4.
रेशेदार तथा पीने योग्य फ़सलों की सूची बनाओ।
उत्तर-
रेशेदार फ़सलें – पीने योग्य फ़सलें
(Fibre Crops) – (Beverage Crops)
कपास – चाय
पटसन – कॉफी
सन – कोको

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

प्रश्न 4.
A. कपास की कौन-सी किस्म सबसे अच्छी मानी जाती है और भारत में कपास पैदा करने वाले किसी एक राज्य का नाम बताओ।
उत्तर-
लम्बे रेशे वाली कपास सबसे अच्छी किस्म की कपास मानी जाती है। भारत में महाराष्ट्र तथा गुजरात दो मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

प्रश्न 5.
संसार के धनी देशों के लोग चावल की अपेक्षा गेहूं खाना अधिक पसन्द क्यों करते हैं ?
उत्तर-
गेहूं को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिनों से परिपूर्ण अन्न माना जाता है। इसी कारण संसार के धनी देशों के लोग चावल की बजाय गेहूं खाना अधिक पसन्द करते हैं।

प्रश्न 6.
मक्की की उपज के लिए आवश्यक तापमान तथा वर्षा की मात्रा लिखें। इसके लिए कैसा धरातल होना चाहिए ?
उत्तर –
तापमान -18° से० से 27° से० तक, मौसम कोहरा रहित होना चाहिए।
वर्षा – 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक।
धरातल – समतल या हल्की ढलान वाला

प्रश्न 7.
तेल वाले बीज क्या होते हैं ? तेल का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ? .
उत्तर-
वे बीज जिनसे तेल प्राप्त किया जाता है, तेल वाले बीज कहलाते हैं। इनमें सरसों, तिल, सूर्यमुखी के बीज शामिल हैं। तेल हमारे भोजन तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रश्न 8.
रेशा हमें कौन-कौन से संसाधनों से प्राप्त होता है ? भेड़ से मिलने वाला रेशा किस काम आता है ?
उत्तर-
रेशा हमें जानवरों तथा पौधों से प्राप्त होता है। भेड से मिलने वाला रेशा (ऊन) गर्म कपड़े बनाने के काम आता है।

प्रश्न 9.
कपास के रेशे का क्या उपयोग है ?
उत्तर-
कपास का रेशा सूती कपड़ा उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे बना कपड़ा भार में हल्का तथा पहनने में उत्तम होता है।
PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि 2

प्रश्न 10.
भारत में कपास पैदा करने वाले मुख्य राज्यों के नाम बताओ। इन राज्यों में कपास अधिक पैदा होने का क्या कारण है ?
उत्तर-
भारत में कपास पैदा करने वाले मुख्य राज्य महाराष्ट्र, गुजरात तथा तेलंगाना हैं। ये राज्य देश की 60% से भी अधिक कपास पैदा करते हैं। इन राज्यों में अधिक कपास पैदा होने का मुख्य कारण यहां मिलने वाली काली मिट्टी है।

प्रश्न 11.
चाय की खेती पहाड़ी ढलानों पर क्यों की जाती है ?
उत्तर-
चाय के पौधे को सारा साल एक समान वर्षा की ज़रूरत होती है। परन्तु वर्षा का पानी पौधे की जड़ों में खड़ा नहीं होना चाहिए। पहाड़ी ढलानें इन बातों के अनुकूल होती हैं।

प्रश्न 12.
कॉफी पाऊडर कैसे तैयार किया जाता है ? इसका कौन-सा तत्त्व हमारे शरीर में उत्तेजना पैदा करता है ?
उत्तर-
कॉफी पाऊडर कॉफी के बीजों को सुखाकर, भून कर तथा पीस कर तैयार किया जाता है। कॉफी का ‘कैफीन’ नामक तत्त्व हमारे शरीर में उत्तेजना पैदा करता है।

प्रश्न 13.
कॉफी का पौधा कैसे उगाया जाता है ?
उत्तर-
कॉफी के पौधे पहले नर्सरी में उगाए जाते हैं। छ: या आठ महीने बाद इन्हें तैयार खेतों में लगा दिया जाता है। जब पौधे तीन-चार वर्ष के हो जाते हैं, तो ये फल देने लगते हैं।

प्रश्न 14.
संसार के भिन्न-भिन्न भागों में कृषि के विकास में काफ़ी भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। इसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
अफ्रीका महाद्वीप के बहुत-से भागों में कृषि अभी भी पिछड़ी अवस्था में है। दूसरी ओर उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में कृषि एक बहुत ही लाभदायक व्यवसाय माना जाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानान्तरी कृषि की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
स्थानान्तरी कृषि प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों तथा खुले जंगलों में रहने वाले लोग करते हैं। वे जंगल के एक टुकड़े के पेड़-पौधों को साफ़ करके वहां कुछ समय के लिए कृषि करते हैं। जब उस स्थान की उपजाऊ शक्ति समाप्त हो जाती है तो ये लोग उस स्थान को छोड़कर किसी और स्थान पर जाकर कृषि करने लगते हैं। इस प्रकार की कृषि लोग प्रायः अपना गुजारा करने के लिए करते हैं। स्थानान्तरी कृषि को झूमिंग कृषि (Zhuming cultivation) भी कहते हैं। अभी भी संसार के कई देशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है।

प्रश्न 2.
शुष्क कृषि तथा नमी वाली कृषि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
शुष्क कृषि-

  1. इस प्रकार की कृषि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा 50 सें० मी० से भी कम होती है।
  2. यह कृषि संसार के मरुस्थली भागों, जिनमें राजस्थान भी शामिल है, में की जाती है।
  3. शुष्क कृषि में दालें, जौ, मक्की आदि फ़सलें उगाई जाती हैं।

नमी वाली कृषि-

  1. इस प्रकार की कृषि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा 200 सें० मी० या इससे अधिक होती है।
  2. यह कृषि एशिया के अधिक वर्षा वाले दक्षिणी पूर्वी भागों में की जाती है। भारत में इस प्रकार की कृषि पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा तथा दक्षिणी भारत के अधिक वर्षा वाले भागों में होती है।
  3. नमी वाली कृषि की मुख्य फ़सल चावल है।

प्रश्न 3.
निजी कृषि और संयुक्त कृषि में अन्तर बताओ।
उत्तर-
निजी कृषि-निजी कृषि में किसान स्वयं भूमि का स्वामी होता है। कृषि में प्रयोग आने वाले सभी यन्त्र, खाद और वस्तुओं का नियन्त्रण कृषक के अपने हाथ में होता है। भूमि से होने वाली पूरी आय कृषक की अपनी निजी आय होती है।

संयुक्त कृषि-इस प्रकार की कृषि में भूमि पर सरकार का अधिकार होता है। कृषि से प्राप्त आय का कुछ भाग सरकार को कर के रूप में चला जाता है। शेष लाभ भूमि पर काम करने वाले किसानों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार की कृषि पूर्व सोवियत संघ (USSR) के देशों में अधिक प्रचलित थी।

प्रश्न 4.
सहकारी कृषि के बारे में लिखें।
उत्तर-
सहकारी कृषि में किसान आपस में मिलकर एक सहकारी संस्था बना लेते हैं। इस संस्था के सभी सदस्य किसान अपनी-अपनी भूमि पर कृषि करते हैं। फ़सल आदि का सारा हिसाब-किताब सहकारी संस्था के हाथों में होता है। संस्था द्वारा वही फैसला लिया जाता है जो सभी सदस्यों के हित में होता है। कृषि से प्राप्त लाभ को सभी सदस्यों के बीच उनकी भूमि के अनुपात में बांटा जाता है। जिन कृषकों के पास ज़मीन कम होती है, उनके लिए तो सहकारी कृषि वरदान सिद्ध हुई है। इसलिए भारत सरकार इस प्रकार की खेती को प्रोत्साहित कर रही है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 4 हमारी कृषि

प्रश्न 5.
चावल की कृषि के लिए अनुकूल अवस्थाओं की सूची बनाइए।
उत्तर-
तापमान – 20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक
वर्षा – 100 से 200 सेंटीमीटर तक। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
मिट्टी – जलौढ़, चिकनी, दोमट, डैल्टाई या काली मिट्टी।
धरातल – भूमि समतल होनी चाहिए ताकि वर्षा या सिंचाई द्वारा प्राप्त पानी खेतों में खड़ा रह सके।
श्रमिक – चावल की कृषि के लिए विशेषकर जब चावल की पौध लगाने और फ़सल काटने के समय
अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रमिक प्रशिक्षित तथा कुशल होने चाहिएं।

प्रश्न 6.
संसार तथा भारत में मक्की पैदा करने वाले क्षेत्रों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
संसार-संसार में मक्की पैदा करने वाले मुख्य देश यू० एस० ए०, चीन तथा ब्राज़ील हैं। संसार की लगभग आधी मक्की अकेले यू० एस० ए० उत्पन्न करता है। यू० एस० ए० की मक्का पेटी (Corm Belt) संसार भर में प्रसिद्ध है। यहां सूअर, घोड़े तथा अन्य पशु मक्की पर पाले जाते हैं। ब्राज़ील तथा अर्जनटाइना में भी मक्की का बहुत अधिक उत्पादन होता है।

भारत – भारत की आधी से भी अधिक मक्की का उत्पादन मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान राज्य करते हैं। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब मक्की पैदा करने वाले अन्य राज्य हैं। पंजाब के रूपनगर, अमृतसर, होशियारपुर तथा जालन्धर ज़िले मक्की की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 7.
पंजाब में कृषि के विकास पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब कृषि में भारत के अन्य राज्यों से आगे है। यहां की कृषि के विकास की झलक निम्नलिखित बातों में देखी जा सकती है

  • पंजाब के लगभग 58% लोग कृषि में लगे हुए हैं। राज्य की कुल आय में कृषि का योगदान 35% प्रतिशत है।
  • यहां की मिट्टी उपजाऊ है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाये रखने के लिए किसान खादों का प्रयोग करते हैं।
  • पंजाब का किसान अपने खेतों में अलग-अलग प्रकार की फ़सल उगाता है। अधिक उत्पादन के लिए वह विकसित बीजों का प्रयोग करता है। खेत के अनुरूप ट्रेक्टर और हारवैस्टर का भी प्रयोग किया जाता है।
  • पंजाब में समस्त कृषि योग्य भूमि सिंचाई पर निर्भर करती है।
  • कृषि में उपज को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग बड़े पैमाने पर 4-5
  • पंजाब का कृषक बेशक मशीनों का प्रयोग करता है फिर भी उसे श्रमिकों की सहायता लेनी पड़

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न-कपास कैसी फ़सल है ? इसकी खेती कैसे की जाती है ? कपास पैदा करने वाले क्षेत्रों के बारे में लिखें।
उत्तर-कपास एक रेशेदार फ़सल है। इसे सूती कपड़ा उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे बनने वाला कपड़ा भार में हल्का और पहनने में उत्तम क्वालिटी का माना जाता है। कपास को रेशों के आधार पर तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-लम्बे रेशों वाली कपास, मध्यम दर्जे के रेशों वाली कपास और छोटे रेशों वाली कपास। लम्बे रेशों वाली कपास सबसे बढिया और भाव में महँगी होती है।

कपास की कृषि-कपास मैदानी भागों में अप्रैल-मई के महीने में बोई जाती है और कोहरा शुरू होने से पहले दिसम्बर तक चुन ली जाती है। भारत के दक्षिण भागों में कपास की उपज अक्तूबर से अप्रैल-मई तक होती है, क्योंकि वहाँ ठंड या कोहरे की कोई सम्भावना नहीं होती। कपास को बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए अच्छे बीजों तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। कपास के फूल या डोडे चुनने के लिए सस्ते तथा कुशल श्रमिकों की ज़रूरत होती है।

कपास पैदा करने वाले क्षेत्र-
संसार-कपास उत्पन्न करने में यू० एस० ए० संसार में प्रथम स्थान पर तथा चीन दूसरे स्थान पर है। भारत को कपास पैदा करने में तीसरा स्थान प्राप्त है। कपास के अन्य मुख्य उत्पादक पूर्व सोवियत संघ के देश, मैक्सिको, मिस्र, सूडान तथा पाकिस्तान हैं। मिस्र अपने लम्बे रेशे वाली कपास के लिए संसार भर में विख्यात है। यू० एस० ए० में कपास का उत्पादन धीरे-धीरे कम हो रहा है।

भारत-भारत में काली मिट्टी वाले राज्य कपास पैदा करने में अन्य राज्यों से आगे हैं। भारत में भी बढ़िया प्रकार के बीज और रासायनिक खादों की सहायता से लम्बे रेशे वाली कपास पैदा की जाती है। देश में कपास पैदा करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना, सीमांध्र मुख्य हैं। ये राज्य देश की 60% से भी अधिक कपास पैदा करते हैं। इन प्रदेशों में मुख्य रूप से काली मिट्टी पाई जाती है जो कपास पैदा करने के लिए उत्तम मानी जाती है। पंजाब और हरियाणा दोनों राज्य मिलकर देश का लगभग 25% कपास पैदा करते हैं। देश में अमरावती, नंदेड़, वर्धा तथा जलगाव (महाराष्ट्र), सुरेन्द्रनगर तथा वड़ोदरा (गुजरात), गंटूर तथा प्रकासम (पूर्व आन्ध्र प्रदेश) और बटिंडा, फिरोजपुर तथा संगरूर (पंजाब) आदि ज़िले कपास पैदा करने के लिए विख्यात हैं। पंजाब में बी० टी० काटन बीज के अच्छे परिणाम निकले हैं। पंजाब के मालवा क्षेत्र में इसे सफ़ेद सोना या श्वेत सोना भी कहा जाता है। भारत में मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर, नागपुर, शोलापुर, चेन्नई, दिल्ली तथा कोलकाता कपास (सूती कपड़ा) उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं।

हमारी कृषि PSEB 8th Class Social Science Notes

  • कृषि – कृषि का अर्थ है फ़सलें पैदा करना, पशु पालना और कृषि सम्बन्धी धन्धों को अपनाना। कृषि बहुत ही प्राचीन तथा महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है।
  • कृषि को प्रभावित करने वाले तत्त्व – (1) जलवायु (2) धरातल (3) मिट्टी (4) सिंचाई सुविधा (5) कृषि करने का ढंग (6) मंडियों की सुविधा (7) यातायात संसाधन, बैंक आदि की सुविधाएं।
  • कृषि के प्रकार-
    1. स्थाई कृषि
    2. अस्थाई या स्थानांतरी कृषि
    3. शुष्क कृषि
    4. नमी वाली कृषि
    5. सघन कृषि
    6. विशाल कृषि
    7. मिश्रित कृषि
    8. बाग़वानी कृषि
    9. कृषि
    10. सहकारी कृषि
    11. सांझी कृषि
    12. बागाती कृषि
    13. निर्भरता कृषि
    14. व्यापारिक कृषि
  • मुख्य फ़सलें- अन्न फ़सलें-चावल, गेहूं, मक्की, ज्वार, बाजरा, दालें, तेल निकालने के बीज।
    रेशेदार फ़सलें-कपास, पटसन और सन।
    पेय फ़सलें-चाय, कॉफी तथा कोको।
    सब्जियां और फल-आलू, मटर, सेब, संगतरा, केला, आम, आड़ आदि।

कृषि का विकास – यू० एस० ए०-खेतों का बड़ा आकार, विशाल कृषि, मशीनों का प्रयोग, फ़सलों का उत्पादन व्यापारिक रूप में, प्रति एकड़ कम उत्पादन। पंजाब-खेतों का छोटा आकार, सघन कृषि, मशीनों का कम प्रयोग, निर्वाह और मण्डी में बेचने के लिए कृषि, प्रति एकड़ अधिक उत्पादन।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 भारतीय ओलंपिक संघ

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 6 भारतीय ओलंपिक संघ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 6 भारतीय ओलंपिक संघ

PSEB 9th Class Physical Education Guide भारतीय ओलंपिक संघ Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
सन् 1925 में।

प्रश्न 2.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के पहले प्रधान कौन बने ?
उत्तर-
श्री दोराव जी टाटा।

प्रश्न 3.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के प्रथम सहायक सचिव कौन थे ?
उत्तर-
श्री जी० डी० सोंधी।

प्रश्न 4.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के पदाधिकारी पाँच वर्ष के बाद चुने जाते हैं। सही अथवा ग़लत ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 5.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन का कोई मुख्य कार्य लिखो।
उत्तर-
भारत में भिन्न-भिन्न खेलों के मुकाबले करवाना और इसके बारे अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी को जानकारी देना है।

प्रश्न 6.
I.O.A. का क्या भाव है ?
उत्तर-
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन।

प्रश्न 7.
I.O.C. का भाव लिखो।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी।

प्रश्न 8.
अपनी मनपसन्द खेल एसोसिएशन का नाम लिखें।
उत्तर-
बास्केटबाल फैडरेशन ऑफ़ इण्डिया।

प्रश्न 9.
किसी दो भारतीय खेल फैडरेशनों के नाम लिखें जो भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन से सम्बन्धित हों।
उत्तर-

  • इण्डियन हॉकी फैडरेशन
  • सर्व भारतीय फुटबाल एसोसिएशन।

प्रश्न 10.
भारतीय ओलम्पिक कमेटी का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर-
ओलम्पिक अन्दोलन व एमेच्योर (Amateur) खेलों की प्रगति करना।

प्रश्न 11.
पहली मॉडल ओलम्पिक खेलें कहां हुई ?
उत्तर-
यह खेलें 1891 में एथेन्स (Greek) में हुईं।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के विषय में विस्तारपूर्वक लिखो।
(Write in detail about Indian Olympic Association.)
उत्तर-
आधुनिक ओलम्पिक खेलों का आरम्भ 1896 ई० में एथन्ज़ (यूनान) में हुआ। इस काम में बैरन दि कुबर्रिटन ने विशेष भूमिका निभाई। भारत ने सबसे पहले इन खेलों में 1900 ई० में भाग लिया। भारत में ओलम्पिक एसोसिएशन की स्थापना 1927 ई० में हुई। इसके संगठन का श्रेय वाई० एम० सी० ए० नामक संस्था को ही जाता है। डॉ० ए० सी० नोहरान तथा एच० सी० बक ने इसकी स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। श्री दोराव जी० टाटा को भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन का प्रथम अध्यक्षं होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसका सचिव पद डॉ० ए० सी० नोहरान ने सम्भाला जबकि श्री जी० डी० सोंधी इसके प्रथम सहायक सचिव बने। 1927 में यह अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन की सदस्य बनी।

भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन, सर्विसिज़, कण्ड्रोल बोर्ड तथा रेलवे स्पोर्टस कण्ट्रोल बोर्ड का संघ है। प्रान्त स्तर पर प्रान्त की सभी खेल एसोसिएशने मिलकर इसे स्थापित करती हैं। इस प्रकार जिला स्तर की सभी एसोसिएशनें इसकी सदस्य हैं। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन का चुनाव चार वर्षों में एक बार होता है। इस संस्था के निम्नलिखित पदाधिकारी होते हैं

1. अध्यक्ष (एक) 2. उपाध्यक्ष (सात) 3. सचिव (एक) 4. सहायक सचिव (दो) 5. कोषाध्यक्ष (एक) 6. प्रान्तीय ओलम्पिक एसोसिएशनों के 5 सदस्य 7. नौ सदस्य राष्ट्रीय खेल एसोसिएशन, रेलवे स्पोर्टस कण्ट्रोल बोर्ड तथा सर्विसिज़ कण्ट्रोल बोर्ड।
इन सभी सदस्यों का चुनाव 4 वर्ष के लिए किया जाता है। ये 8 वर्ष से अधिक सदस्य नहीं रह सकते।

प्रश्न 2.
भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के मुख्य उद्देश्य लिखें। (Deseribe the main objectives of Indian Olympic Association.)
उत्तर-
उद्देश्य (Objectives) यह संघ निम्नलिखित उद्देश्यों को सामने रख कर गठित किया गया –

  • ओलम्पिक आन्दोलन व एमेच्योर (Amateur) खेलों की प्राप्ति के लिए।
  • नवयुवकों की शारीरिक, नैतिक व सभ्याचार की शिक्षा को उत्साहित करने व बढ़ाने के लिए ताकि नवयुवक अच्छे व्यक्तित्व वाले स्वस्थ व अच्छे नागरिक बन सकें।
  • अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ के सभी नियम लागू करने के लिए।
  • इस अधिकार को बचाने व लागू करने के लिए संघ ही ओलम्पिक झण्डे के निशान का प्रयोग कर सकता है। यह देखता है कि ये दोनों ओलम्पिक खेलों से ही सम्बन्धित हैं।
  • पूरी तरह एक सरकारी संगठन के तौर पर काम करना व देश के सारे ओलम्पिक खेलों सम्बन्धी विषयों का सारा काम-काज अपने हाथ में लेना।
  • सभी देशवासियों को खेलों के एमेच्योर (Amateur) की कीमत (Value) बारे – अवगत कराना।
  • राष्ट्रीय स्पोर्ट्स संघ व महासंघ में तालमेल के साथ उन सभी भारतीय टीमों व उनके संगठन को नियन्त्रित करना जो टीमें ओलम्पिक खेलों व अन्य खेलों जो कि अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के तहत होती हैं, में भाग लेती हैं, को नियन्त्रित करना।
  • राष्ट्रीय खेल संघ व महासंघ के तालमेल के साथ नियमों को लागू करना।
  • कला प्रतियोगिता में ऊंचे आदर्शों को बनाए रखना और लोगों में ओलम्पिक खेलों और दूसरी खेलें जो कि अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी की सर्वसम्मति द्वारा की जाती हैं, के लिए रुचि बढ़ाना।
  • ओलम्पिक खेलों और दूसरी खेलें जो कि अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी ही सर्वसम्मति द्वारा की जाती हैं, में भारत के भाग लेने सम्बन्धी सारे विषयों पर पूरा नियन्त्रण रखना।
  • जो भारतीय टीमें अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी की सर्वसम्मति के अधीन ही ओलम्पिक खेलों और अन्य खेलों में भाग लेती हैं, उन टीमों का राष्ट्रीय स्पोर्टस फैडरेशन और एसोसिएशनों की सहायता से वित्त प्रबन्ध, आवागमन देख-रेख और कल्याण बारे प्रबन्ध करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबले के लिए यह भारतीय खिलाड़ियों को प्रमाणित करती है कि वे एमेच्योर (Amateur) स्तर के हों। अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबले में ये प्रमाण स्तर ज़रूरी होते हैं।
  • यह भारतीय लोगों में ओलम्पिक खेलों के लिए अधिक शौक बढ़ाती है और इस मन्तव्य को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक राज्य में राज्य ओलम्पिक एसोसिएशन और राष्ट्रीय एमेच्योर खेल फैडरेशन बनाती है।
  • यह राष्ट्रीय स्पोर्टस फैडरेशन और भारत सरकार में फैडरेशन की वित्तीय सहायता के लिए काम करती है।
  • यह राज्य की ओलम्पिक एसोसिएशन और राष्ट्रीय एमेच्योर स्पोर्टस फैडरेशन को दाखिल करती है। राज्य की ओलम्पिक एसोसिएशन और राष्ट्रीय एमेच्योर स्पोर्ट्स फैडरेशन अपनी सालाना रिपोर्टों के कार्य की जांच-पड़ताल की सूचना अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन को देगी।
  • यदि कोई फैडरेशन कोई गलत काम करके बदनामी लेता है तो उस के विरुद्ध अनुशासन सम्बन्धी कार्यवाही करती है।
  • एमेच्योर स्पोर्ट्स (Amateur Sports) और खेलों की उन्नति सम्बन्धी कोई भी काम करेगी।

प्रश्न 3.
ओलम्पिक चार्ट के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (What do you know about Olympic Chart ?).
उत्तर-
ओलम्पिक चार्ट (Olympic Chart) सभी खेल मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय खेल संघ व भारतीय ओलम्पिक संघ के नियन्त्रण अधीन करवाए जाते हैं। इस में किसी तरह का राजनीतिक, धार्मिक, जाति या रंगभेद का भेदभाव नहीं किया जाता है, लेकिन ओलम्पिक चार्ट में यह वर्णन नहीं किया गया कि अगर राष्ट्रीय खेल संघ व भारतीय ओलम्पिक संघ इस तरह काम करे जिस से खेलों को क्षति पहुंचे या देश के सम्मान को चोट लगे तो क्या सरकार हस्तक्षेप कर सकती है या नहीं। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के सदस्यों ने कई बार अपना यह विचार पेश किया है कि जहां सरकार इन संस्थाओं को ऋण देती है वहां सरकार को यह भी चाहिए कि वह इस बात की जानकारी रखे कि कोष ठीक तरह खर्च किया जा रहा है या नहीं। इन संस्थाओं के कार्यों के बारे में भी सरकार पूछताछ प्राप्त कर सकती है।

जब राष्ट्रीय खेल संघ (N.S.F.) व भारतीय ओलम्पिक संघ (I.0.A.) काम करने में असफल रहे या विरोधी संघ पैदा हो जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय संघ देश की सरकार से राय पूछती है।

जब किसी देश में अन्तर्राष्ट्रीय खेल (International Games) हो रही हों जैसे कि एशियाई खेलें, तो उस देश की सरकार की भी बहुत ज़िम्मेदारी होती है।
सरकार संघों को भरपूर सुविधाएं दे ताकि खेलें सफलतापूर्वक करवाई जा सकें। इस तरह अगर राष्ट्रीय खेल संघ (N.S.F.) व भारतीय ओलम्पिक संघ (I.O.A.) अपनी जिम्मेवारी (जैसे कि कार्यों का चयन व उनका प्रशिक्षण इत्यादि) में असफल हो जाए तो सरकार मूक दर्शक (Silent Spectator) नहीं बन सकती। इस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इन संस्थाओं के लिए कुछ लाभदायक संकेत (Guidelines) भी बनाए हैं ताकि ये इनके अनुसार काम करें। लेकिन कितने दुःख की बात है कि इन मार्गदर्शन संकेतों (Guidelines) का पूरी तरह पालन नहीं किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारत के मुख्य खेल मुकाबलों पर नोट लिखो। (Write a note on sports competitions in India.)
उत्तर–
प्रत्येक व्यक्ति में मुकाबले की भावना होती है। यही भावना उसे उन्नति के मार्ग पर आगे कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। यही भावना उसे सम्मान पाने में सहायता प्रदान करती है। पुरातन काल में खेल मुकाबले बहुत ही घातक होते थे। खेल में विरोधी खिलाड़ी की जान ले ली जाती थी। परन्तु समय की गति के साथ खेल मुकाबलों में मैत्री भाव ने स्थान ग्रहण कर लिया। आज के युग की मुकाबले की भावना से व्यक्ति के मनोभावों की तृप्ति होती है। इससे व्यक्ति को न केवल अपने कौशल (Skills) की प्राप्ति होती है बल्कि वह इसमें दक्षता भी प्राप्त करता है।

इस प्रकार वह सर्वोत्तम खेल का प्रदर्शन करने में सफल होता है। खेल मुकाबले न केवल मनोरंजन ही प्रदान करते हैं बल्कि ये व्यक्ति को स्वस्थ एवं नीरोग भी बनाते हैं। प्राचीन काल में घुड़सवारी, तीरअन्दाजी, नेज़ा फेंकना तथा मल्ल युद्ध आदि खेलें ही लोकप्रिय थीं और इन्हीं खेलों के मुकाबलों का आयोजन किया जाता था। परन्तु समय की करवटों के साथ भारतीयों के अंग्रेज़ों के सम्पर्क में आने से हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट आदि खेलें इतनी लोकप्रिय हो गई हैं कि इन्हीं खेलों के मुकाबलों का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया जाता है।

प्रश्न 5.
सन 1927 में चुनी गई भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के अध्यक्ष, सचिव और सहायक सचिव कौन थे ?
(Who were the President, Secretary and Assistant Secretary of the Indian Olympic Association selected in 1927 ?)
उत्तर-
भारत में ओलम्पिक एसोसिएशन की स्थापना 1927 में ई० में हुई। इस के संगठन का सेहरा बाई० एम ०सी० ए० नामी संस्था के सिर है। डॉ. ए० सी० नोहरान
और एच० सी० बैंक ने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्री दोराव जी टाटा ने भारतीय ओलम्पिक संघ का पहला अध्यक्ष होने का सौभाग्य प्राप्त किया। इस का सचिव पद डॉ० ए० सी० नोहरान ने संभाला जबकि श्री जी० डी० सोंधी इस के पहले सहायक सचिव बने।
(नोट-भारत में आयोजित किए जाने वाले विभिन्न खेल मुकाबलों के विवरण के लिए अगले प्रश्न देखें।)

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय खेल संघ व प्रदेश खेल संघ के कार्य लिखें।
(Describe the functions of National Sports Federation or State Sports Association.)
उत्तर-
राष्ट्रीय खेल संघ व प्रदेश खेल संघ (National Sports Federation and State Sports Association)-राष्ट्रीय खेल संघ व प्रदेश खेल संघ अपनीअपनी खेलों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय महासंघ से जुड़ी (Affiliated) हैं। राष्ट्रीय संघ के अपनी-अपनी खेलों के राज्य स्तर पर भी अंग हैं, जैसे प्रदेश ओलम्पिक संघ इत्यादि। ये प्रदेश में टूर्नामैंट (Tournament) इत्यादि करवाना तय करते हैं।

कार्य (Functions) –

  • मुकाबले करवाना (To conduct competitions)—ज़िला, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर जूनियर व सीनियर स्तर के मुकाबले प्रत्येक वर्ष करवाना।
  • योजनाएं बनाना (Planning)-राष्ट्रीय टीम तैयार करने के लिए एक वर्ष या चार वर्ष की योजनाएं बनाना।
  • सामान का प्रबन्ध करना (To make arrangement for equipment)खेलों का स्तर ऊंचा उठाने के लिए खेलों के सामान व अन्य ज़रूरी समान का प्रबन्ध करना। अगर कोई सामान विदेशों से मंगवाना है तो केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय (Union Education Ministry) की मदद से भारतीय ओलम्पिक संघ या नेता जी सुभाष चन्द्र खेल राष्ट्रीय संस्थान पटियाला की सहायता से प्राप्त करना।
  • चुनाव करने वालों की उपस्थिति (Attendance of selectors)—यह देखता है कि इनके चुनाव कार्यकर्ता राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर जूनियर व सीनियर के मुकाबलों में हाज़िर रहें। Probabilities की सूची बनाई जाए और उसको प्रदर्शित किया जाए। सम्भावना की सूची बनाना व छपवाना, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सम्भावनाओं का पता लगाना।
  • राष्ट्रीय प्रशिक्षक नियुक्त करना (To appoint national coach) प्रत्येक राष्ट्रीय खेल संघ/महासंघ एक राष्ट्रीय प्रशिक्षक (Natioanl Coach) नियुक्त करेगा।
  • राष्ट्रीय टीम के चयन में मदद (Help in selection of national team)अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों के लिए राष्ट्रीय टीम व मुकाबलों के चयन के लिए यह भारतीय ओलम्पिक संघ (I.O.A.) व अखिल भारतीय खेल समिति (A.I.S.C.) की मदद करेगी।
  • खेलों के नियम तय करना (To frame rules of Games)-नेता जी सुभाष चन्द्र राष्ट्रीय खेल संस्थान के सहयोग (Co-operation) से खेलों के नियम बनाती है।
  • अम्पायर व प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (Tranning of Impires and coaches)-यह नेता जी सुभाष खेल संस्थान व भारतीय ओलम्पिक संघ की अम्पायर व प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए मदद करती है।
  • चयनकर्ताओं की सूची तैयार करना (To prepare a list of sciectors)यह शुद्ध योग्यता (Purely merit) के आधार पर चयनकर्ताओं की सूची (Panel of selectors) तैयार करती है।
  • पदाधिकारियों का चुनाव (Selection of officers)-इसके पदाधिकारियों का चुनाव संघ के संविधान के अनुसार होना चाहिए। चुनाव के समय इसे भारतीय ओलम्पिक संघ (I.O.A.) व अखिल भारतीय खेल समिति (A.I.S.C.) के एक-एक निरीक्षक (Observer) भी बुलाने चाहिएं।
  • विवाद का निर्णय करना (To settle dispute) अगर किसी संघ में विवाद पैदा हो जाए तो आई० ए० ओ० या ए० ओ० या ए० आई० एस० एफ० को भेजा जाता है। इनका फैसला मानना ज़रूरी होता है। अगर भारतीय ओलम्पिक संघ (I.O.A.) व राष्ट्रीय खेल संघ (N.S.F.) में कोई विवाद (Dispute) पैदा हो जाए तो उसका निर्णय अखिल भारतीय खेल समिति (A.I.S.C.) करती है।
  • खातों की जांच (Audit of accounts)—यह संघ की ज़िम्मेवारी होती है कि अपने हिसाब-किताब की जांच रिपोर्ट समय पर पेश करे।

प्रश्न 2.
भारतीय ओलम्पिक संघ से जो भिन्न-भिन्न खेल संघ सम्बन्धित हैं, उनके नाम लिखें।
(Write the names of different Associations of India which are affiliated with Indian Olympic Association.)
उत्तर-
अलग-अलग खेलों के सम्बन्ध, संघ (Federations regarding different games or sports)–अलग-अलग खेलों की एसोसिएशनें व संघ इस तरह हैं

  1. भारतीय हॉकी संघ (The Indian Hockey Federation 1925)
  2. अखिल भारतीय फुटबाल संघ (The All Indian Football Federation 1937)
  3. भारतीय तैराकी संघ (The Swimming Federation of India 1940)
  4. एमेच्योर एथलैटिक्स फैडरेशन ऑफ़ इण्डिया (The Amateur Athlelic Federation of India 1944)
  5. भारतीय कुश्ती संघ (The Wrestling Federation of India 1948)
  6. भारतीय वालीबाल संघ (The Volley Ball Federation of India 1951)
  7. भारतीय बास्केट बाल संघ (Basket Ball Federation India 1950)
  8. राष्ट्रीय राइफल संघ (The National Rifle Association 1953)
  9. भारतीय जिम्नास्टिक संघ (The Gymnastic Federation of India 1951)
  10. इण्डियन एमेच्योर बॉक्सिग फैडरेशन (The Indian Amateur Boxing Federation 1951)
  11. राष्ट्रीय साइकिल फैडरेशन (The National Cycle Federation 1938)
  12. भारतीय क्रिकेट नियन्त्रण बोर्ड (Cricket Control Board of India 1926)
  13. भारतीय लॉन टेनिस संघ (The Indian Lawn Tennis Federation 1920)
  14. भारतीय टेबल टेनिस संघ (The Table Tennis Federation of India 1938)
  15. अखिल भारतीय बैडमिंटन संघ (The All India Badminton Association 1934)
  16. हैंडबाल संघ (The Indian Hand ball Association 1969-70)
  17. तीरंदाजी संघ (The Archery Association 1969)
  18. भारतीय कबड्डी संघ (The Kabaddi Federation of India 1951-52)
  19. भारतीय पोलो संघ (The Indian Polo Federation 1935)
  20. भारतीय भारत्तोलक संघ (Indian Weightlifting Federation 1935)
  21. भारतीय बिलियर्डस संघ (The Indian Billiards Association 1910)
  22. भारतीय स्कवैश रैकेट संघ (The Indian Squash Racket Association 1953)

ऊपरलिखित संघ व एसोसिएशनों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर कुछ अन्य भी खेल संस्थाएं (Game bodies) हैं, जिनका अपना अलग अस्तित्व है।

  1. सर्विस खेल नियन्त्रण बोर्ड (The Service Sports Control Board 1919) इस का 1945 में पुनर्गठन किया गया।
  2. भारतीय स्कूल खेल संघ (School Games Federation of India 1954)
  3. अन्तर्विश्वविद्यालय खेल नियन्त्रण बोर्ड (Inter-Unviersities Sports Control Board)
  4. रेलवे खेल नियन्त्रण बोर्ड (Railway Sports Control Board)
  5. अखिल भारतीय पुलिस खेल परिषद् बोर्ड (All India Police Sports Board 1950)

इसी तरह अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग खेलों के अपने संघ हैं जो कि राष्ट्रीय खेल संघ के साथ जुड़े हैं व प्रदेश ओलम्पिक संघ से भी सम्बन्धित हैं। इनका काम अपने प्रदेश में अन्तर-जिला मुकाबले करवाना, प्रशिक्षण शिविर लगाना व प्रदेशों की टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर शामिल करवाना है।

  • भारत में अव्यावसायिक खेल मुकाबलों का आयोजन करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी को इसकी पुष्टि करना।
  • भारत में अव्यावसायिक खिलाड़ियों के लिए विशेष खेल प्रबन्ध करना।
  • भारत की ओर से ओलम्पिक झण्डे तथा मोहर का प्रयोग करना, देश में ओलम्पिक मामलों को निपटाना तथा ओलम्पिक चार्टर का पालन करना।
  • भारत के विभिन्न प्रान्तों में प्रान्तीय ओलम्पिक एसोसिएशनों की स्थापना करना तथा इनके खर्चों की निगरानी करना।
  • विभिन्न भारतीय खेल एसोसिएशनों को अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों में भाग लेने की आज्ञा देना तथा इन मुकाबलों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना।
  • प्रति वर्ष अगस्त मास में ओलम्पिक सप्ताह मनाना तथा देशवासियों को इस बारे में जानकारी देना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर नोट लिखो –
(क) रंगास्वामी कप ( 1980 M)
(ख) आगाखान कप (1984 E)
(ग) मुम्बई स्वर्ण कप (1984 M)
(घ) अखिल भारतीय नेहरू सीनियर हॉकी प्रतियोगिता।
(ङ) अखिल भारतीय नेहरू जूनियर हॉकी प्रतियोगिता।
[Write notes on the following (a) Ranga Swami Cup (National Hockey Championship) (b) Agha Khan Cup (c) Mumbai Gold Cup (d) All India Nehru Senior Hockey Competition (e) All India Nehru Junior Hockey Competition.]
उत्तर-
(क) रंगास्वामी कप राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता (Rangaswami Cup National Hockey Championship) – भारतीय हॉकी एसोसिएशन ने प्रथम राष्ट्रीय मुकाबले 1927 ई० में करवाये। ये मुकाबले राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता के नाम से विख्यात हैं। 1935 ई० में मोरिस (Morris) नामक एक न्यूजीलैंड के निवासी ने प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए एक शील्ड भेंट की। 1928-1944 तक यह प्रतियोगिता 2 वर्ष में एक बार करवाई जाती थी। 1946 में पंजाब ने यह प्रतियोगिता जीती थी और असली शील्ड पंजाब हॉकी एसोसिएशन के सचिव बख्शीश अली के पास थी। इसलिए 1947 में देश का विभाजन होने से यह शील्ड पाकिस्तान में ही रह गई क्योंकि शेख साहिब पाकिस्तान में ही रहे।

भारत के विभाजन के पश्चात् चेन्नई के समाचार-पत्र ‘हिन्दू’ तथा ‘स्पोर्टस एण्ड पासटाईम’ के स्वामियों ने अपने सम्पादक श्री रंगास्वामी के नाम पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए एक नया कप दिया। इस कारण अब यह प्रतियोगिता ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से प्रसिद्ध है। 1947 ई० के बाद यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष होने लगी। सबसे पहले इस प्रतियोगिता को उत्तर प्रदेश ने जीता और पंजाब ने इसे जीतने का पहली बार श्रेय 1949 में प्राप्त किया। पहले यह प्रतियोगिता नाक-आऊट स्तर पर करवाई जाती थी परन्तु आजकल यह प्रतियोगिता लीग-कम-नाक-आऊट स्तर पर होती है।

(ख) आगा खान कप (Agha Khan Cup) –
सर आगा खान ने 1896 ई० में पहली बार इस प्रतियोगिता के लिए कप दिया। उन्हीं के नाम से यह प्रतियोगिता आगा खां कप के नाम से प्रसिद्ध हुई। 1912 में चैशायर रेजीमैंट ने इसे पक्की तरह जीत लिया। इस पर सर आगा खान ने एक अन्य कप इस प्रतियोगिता के लिए दिया। आज तक विजेता टीम को यही कप दिया जाता है। इस कप को सर्वप्रथम जीतने का श्रेय मुम्बई ‘जिमखाना’ को प्राप्त हुआ। 1949 में इसे पंजाब पुलिस ने पहली बार जीता। इस प्रतियोगिता का आयोजन आगा खाँ टूर्नामैंट कमेटी करती है। इसमें भारत की प्रसिद्ध टीमें भाग लेती हैं। आजकल यह प्रतियोगिता नाक-आऊट स्तर पर करवाई जाती है।

(ग) मुम्बई स्वर्ण कप (Mumbai Gold Cup) –
मुम्बई प्रान्त ने अपने प्रान्तीय फण्ड में से 10,000 रु० का स्वर्ण कप तैयार करवा कर इस प्रतियोगिता के लिए दिया जो मुम्बई स्वर्ण कप प्रतियोगिता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रतियोगिता का आयोजन प्रति वर्ष मुम्बई हॉकी एसोसिऐशन द्वारा किया जाता है। सर्वप्रथम इस प्रतियोगिता को मुम्बई की ‘लूसीटेनियन’ नामक क्लब ने जीता। 1958 में इस प्रतियोगिता को पंजाब टीम ‘पंजाब हॉक्स’ ने जीता। यह प्रतियोगिता नाक-कमलीग के आधार पर होती है।

(घ) अखिल भारतीय नेहरू सीनियर हॉकी प्रतियोगिता (All India Nehru Senior Hockey Competition)-
1964 में स्व० प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू की पुण्य स्मृति में नई दिल्ली में यह टूर्नामेंट आरम्भ हुआ। उन्हीं के नाम पर इसका नाम नेहरू हॉकी प्रतियोगिता रखा गया। यह प्रतियोगिता नाक-आऊट-कम-लीग के आधार पर होती है। इस प्रतियोगिता में श्रेष्ठ टीमें भाग लेती हैं। सर्व-प्रथम उत्तर प्रदेश ने इसे जीतने का श्रेय प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता के पुरस्कारों का वितरण भारत के राष्ट्रपति करते हैं।

(ङ) अखिल भारतीय नेहरू जूनियर हॉकी प्रतियोगिता (All India Nehru Junior Hockey Competition) –
इस प्रतियोगिता का आयोजन प्रतिवर्ष नई दिल्ली में नेहरू हॉकी टूर्नामेंट कमेटी द्वारा किया जाता है। इस प्रतियोगिता में 16 वर्ष की आयु तक के खिलाड़ी भाग लेते हैं। देश के विभिन्न प्रान्तों से टीमें इसमें भाग लेने के लिए आती हैं। भारत सरकार का शिक्षा विभाग श्रेष्ठ खिलाड़ियों को वजीफ़े देता है। यह प्रतियोगिता लीग-कम-नाक-आऊट के आधार पर खेली जाती है। इसका फाइनल मुकाबला स्व० प्रधानमन्त्री नेहरू के जन्म दिन 14 नवम्बर को होता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर नोट लिखो
(क) डूरांड कप (ख) रोवर्ज़ कप (1984 E) (ग) सुबरोटो मुकर्जी कप (घ) सन्तोष ट्राफी (ङ) रणजी ट्राफी (च) सी० के० नायडू ट्राफी (1984 E)। [Write notes on the following(a) Durand Cup (b) Rovers cup (c) Subroto Mukerjee Cup (d) Santosh Trophy (e) Ranji Trophy () C.K. Naidu Trophy.]
उत्तर-
(क) डरांड कप (Durand Cup) –
यह कप ब्रिटिश इण्डिया के विदेश सचिव (Foreign Secretary) सर मोर्टीमोर डूरांड ने 1895 में ब्रिटिश सैनिकों के मुकाबलों के लिए दिया। पहले यह टूर्नामैंट शिमला में ‘शिमला टूर्नामैंट’ के नाम से खेला जाता है। 1950 से प्रतियोगिता का आयोजन नई दिल्ली में होने लगा। 1899 ई० में इस कप को ‘ब्लैक वाच रैजिमैंट’ ने स्थायी रूप से जीत लिया। इसके पश्चात् सर मोर्टीमोर ने एक और कप दिया। यह कप आज तक इस प्रतियोगिता की विजेता टीम को दिया जाता है। 1931 में इस प्रतियोगिता में सेना के अतिरिक्त असैनिक (Civil) टीमें भी भाग लेने लगीं। सबसे पहले इस प्रतियोगिता में भाग लेने का सौभाग्य ‘पटियाला टाईगर’ को प्राप्त हुआ। यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष नाकआऊट-कम-लीग स्तर पर करवाई जाती है। इसमें देश-विदेश की उच्चकोटि की टीमें भी लेती हैं।

(ख) रोवर्ज़ कप (Rovers Cup) –
यह फुटबाल मुकाबला रोवर्ज कप टूर्नामैंट कमेटी की ओर से प्रति वर्ष करवाया जाता है। इसमें भारत के विभिन्न भागों से टीमें भाग लेने के लिए आती हैं।

(ग) सुबरोटो मुकर्जी कप (Subroto Mukerjee Cup) –
इसे जूनियर डूरांड मुकाबला कहा जाता है। इस प्रतियोगिता का आयोजन एयर मार्शल सुबरोटो मुकर्जी की स्मृति में किया गया। इस को डूरांड कमेटी प्रति वर्ष नई दिल्ली में आयोजित करती है। इसमें 16 वर्ष की आयु तक के खिलाड़ी भाग लेते हैं। इस प्रतियोगिता,में सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को भारत सरकार द्वारा वजीफ़े दिए जाते हैं।

(घ) सन्तोष ट्राफी (Santosh Trophy) –
महाराजा सन्तोष जो कूच बिहार के राजा थे, उनके नाम पर राष्ट्रीय फुटबाल प्रतियोगिता के लिए एक ट्राफी दी गई , जो सन्तोष ट्राफी के नाम से प्रसिद्ध हो गई है। यह प्रतियोगिता भारतीय फुटबाल एसोसिऐशन द्वारा प्रति वर्ष अपने किसी मैम्बर एसोसिएशन की तरफ से करवाई जाती है। इस प्रतियोगिता में भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों की टीमें, रेलवे और सैनिकों की टीमें भाग लेती हैं।
ये मुकाबले नाक-आऊट कम लीग स्तर पर करवाए जाते हैं। बंगाल ने सबसे अधिक बार इस प्रतियोगिता को जीता है और पंजाब ने पहली बार 1970 में जालन्धर में यह ट्राफी जीती।

(ङ) रणजी ट्रा की (Ranji Trophy) –
1934 में सर सिकन्दर हयात खां की अध्यक्षता में क्रिकेट प्रेमियों की शिमला में एक सभा हुई। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट मुकाबले करवाने का प्रस्ताव रखा गया। फलस्वरूप पटियाला के महाराजा सर भूपेन्द्र सिंह ने क्रिकेट के महान् खिलाड़ी रणजीत सिंह के नाम पर राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली प्रतियोगिता के लिए एक ट्राफी भेंट की। यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड द्वारा आयोजित की जाती है। यह अन्तरप्रान्तीय स्तर पर करवाई जाती है। ये मुकाबले लीग-स्तर पर होते हैं। क्षेत्रीय मुकाबलों में विजेता प्रान्त आगे-नाक-आऊट स्तर पर खेलता है। मुम्बई की टीम ने इस प्रतियोगिता को सबसे अधिक बार अर्थात् 15 बार जीता। इस प्रतियोगिता में प्रान्तों की टीमों के अतिरिक्त रेलवे स्पोर्टस कण्ट्रोल बोर्ड तथा सर्विसिज़ कण्ट्रोल बोर्ड भी भाग लेते हैं।

(च) सी० के० नायडू ट्राफी (C.K. Naidu Trophy) –
इस प्रतियोगिता का आयोजन स्कूल गेम्ज़ फैडरेशन की ओर से प्रति वर्ष किया जाता है। इस ट्राफी का नाम भारत के सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सी० के० नायडू के नाम पर रखा गया है। यह प्रतियोगिता स्कूल के बच्चों के लिए है और नाक-आऊट स्तर पर होती है। जो टीम एक बार हार जाती है उसे टूर्नामेंट से बाहर जाना पड़ता है।

भारतीय ओलंपिक संघ PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन-भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन की स्थापना 1927 ई० में हुई, जिसके प्रथम प्रधान दोराव जी टाटा थे। इसका कार्य अव्यावसायिक खेल प्रतियोगिता का प्रबन्ध करना और भारतीय खेल एसोसिएशनों को आर्थिक सहायता देना है।
  • भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के उद्देश्य-खेलों की प्रगति के लिए कार्य करना, अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन के नियमों को लागू करना और अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के अधीन होने वाली खेलों में भाग लेने वाली टीमों का वित्तीय प्रबन्ध और दूसरी देखभाल करना होता है।
  • भारत में मुख्य खेल प्रतियोगिता-खेल प्रतियोगिता केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं, यह मनुष्य को स्वस्थ और निरोग बनाती है। प्राचीन समय में घुड़सवारी, तीर अंदाजी, नेजा फेंकना और मल्ल युद्ध ही प्रिय खेलें थीं। अब हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, वॉलीबाल, बॉस्कटवाल खेलें लोकप्रिय हैं।
  • रंगा स्वामी कप-यह प्रतियोगिता राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता के नाम से प्रसिद्ध है।
  • ड्ररांग कप-1950 से यह फुटबाल प्रतियोगिता नई दिल्ली में करवाई जाने लगी और प्रतिवर्ष नाक आऊट कम लीग स्तर पर करवाई जाती है। इस प्रतियोगिता में देश की उच्च स्तरीय टीमें भाग लेती हैं।
  • संतोष ट्राफी-यह प्रतियोगिता भारतीय फुटबाल एसोसिएशन द्वारा प्रतिवर्ष अपने किसी मैंबर एसोसिएशन की तरफ से करवाई जाती है। इस प्रतियोगिता में भारत की भिन्न प्रान्तों की टीमें, रेलवे और सैनिक टीमें भाग लेती हैं।
  • रणजीत ट्राफी-यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड द्वारा आयोजित की जाती है। यह अन्तर प्रांतीय लीग स्तर पर करवाई जाती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

SST Guide for Class 8 PSEB भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी जी किस देश से तथा कब वापिस आए ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी 1891 ई० में इंग्लैण्ड से तथा 1915 ई० में दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापिस आए।

प्रश्न 2.
सत्याग्रह आन्दोलन से क्या भाव है ?
उत्तर-
सत्याग्रह महात्मा गांधी का बहुत बड़ा शस्त्र था। इसके अनुसार वह अपनी बात मनवाने के लिए धरना देते थे या व्रत रखते थे। कभी-कभी वह आमरण व्रत भी रखते थे।

प्रश्न 3.
खिलाफ़त आन्दोलन से क्या भाव है ?
उत्तर-
भारत के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफ़ा तथा धार्मिक नेता मानते थे। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् अंग्रेज़ों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। इसलिए मुसलमानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ कर दिया जिसे खिलाफ़त आन्दोलन कहते हैं।

प्रश्न 4.
असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत वकालत छोड़ने वाले तीन व्यक्तियों के नाम बताएं।
उत्तर-
मोती लाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, आर० सी० दास, सरदार पटेल, लाला लाजपत राय आदि।

प्रश्न 5.
साइमन कमीशन के विषय में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी सरकार ने 1919 ई० के सुधार एक्ट की जांच करने के लिए 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत में भेजा। इस कमीशन के सात सदस्य थे, परन्तु इनमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। अतः इस कमीशन का काली झंडियों तथा ‘साइमन वापिस जाओ’ के नारों से जोरदार विरोध किया गया। पुलिस ने इन आन्दोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया। परिणामस्वरूप लाला लाजपत राय घायल हो गए तथा बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

प्रश्न 6.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए 1930 ई० से 1934 ई० तक सिविल अवज्ञा आन्दोलन चलाया। उन्होंने इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए नमक सत्याग्रह आरम्भ किया। 12 मार्च, 1930 ई० को गान्धी जी ने अपने 78 साथियों सहित साबरमती आश्रम से डांडी की ओर पद-यात्रा आरम्भ की। 15 अप्रैल, 1930 ई० को उन्होंने अरब सागर के तट पर स्थित डांडी गांव में समुद्र के खारे पानी से नमक बना कर नमक कानून का उल्लंघन किया। उनका अनुसरण करते हुए सारे भारत में लोगों ने स्वयं नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया। जहां पर नमक नहीं बनाया जा सकता था। वहां पर अन्य कानूनों का उल्लंघन किया गया। हज़ारों छात्रों ने स्कूलों-कॉलेजों में जाना बन्द कर दिया। लोगों ने सरकारी नौकरियों का त्याग कर दिया। महिलाओं ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने शराब तथा विदेशी वस्तुएं बेचने वाली दुकानों के आगे धरने दिए। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए इण्डियन नैशनल कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया तथा कांग्रेस के नेताओं को बन्दी बना लिया। पुलिस ने अनेक स्थानों पर गोलियां चलाईं। परन्तु सरकार इस आन्दोलन का दमन करने में असफल रही।

प्रश्न 7.
भारत छोड़ो आन्दोलन क्या था ?
उत्तर-
द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड जापान के विरुद्ध लड़ा था। अतः जापान ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया क्योंकि भारत पर अंग्रेज़ों का शासन था। गान्धी जी का मानना था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ कर चले जाएं तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। अत: 8 अगस्त, 1942 ई० को गान्धी जी ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन आरम्भ किया। सरकार ने 9 अगस्त, 1942 को गान्धी जी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओं को बन्दी बना लिया। क्रोध में आकर लोगों ने स्थान-स्थान पर पुलिस थानों, सरकारी भवनों, डाकखानों तथा रेलवे स्टेशनों आदि को भारी क्षति पहुंचाई। सरकार ने भी कठोरता की नीति अपनाई। परन्तु वह आन्दोलनकारियों को दबाने में सफल न हो सकी।

प्रश्न 8.
आज़ाद हिन्द फ़ौज पर नोट लिखो।
उत्तर-
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना सुभाष चन्द्र बोस ने जापान में की। इसका उद्देश्य भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त कराना था। आज़ाद हिन्द फ़ौज में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान द्वारा बन्दी बनाए गए भारतीय सैनिक शामिल थे। सुभाष चन्द्र बोस ने ‘दिल्ली चलो’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ तथा ‘जय हिन्द’ आदि नारे लगाए थे। परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय हो गई। अतः आज़ाद हिन्द फ़ौज भारत को आजाद कराने में असफल रही। सुभाष चन्द्र बोस की 1945 ई० में एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में मृत्यु हो गई। अंग्रेज़ों ने आज़ाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों को बन्दी बना लिया। इस कारण भारतीय लोगों ने सारे देश में हड़तालें कीं तथा जलसे किए। अन्त में अंग्रेज़ों ने आज़ाद हिन्द फ़ौज के सभी सैनिकों को मुक्त कर दिया।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. महात्मा गांधी जी ने रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए पूरे देश में ………… आंदोलन शुरू किया।
2. महात्मा गांधी जी ने ……….. ई० में असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया।
3. ननकाना साहिब गुरुद्वारे का महन्त ………… एक चरित्रहीन व्यक्ति था।
4. 1928 में भेजे गए साइमन कमीशन के …………. सदस्य थे।
5. 26 जनवरी, 1930 ई० को सम्पूर्ण भारत में …………. दिवस मनाया गया।
उत्तर-

  1. असहयोग
  2. 1922,
  3. नारायण दास,
  4. सात,
  5. स्वतंत्रता।

III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं :

1. असहयोग आन्दोलन के अधीन महात्मा गांधी जी ने अपनी केसर-ए-हिंद की उपाधि सरकार को … वापिस कर दी।
2. स्वराज पार्टी की स्थापना महात्मा गांधी जी ने की थी।
3. नौजवान भारत सभा की स्थापना 1926 ई० में भगत सिंह तथा उसके साथियों ने की थी।
4. 5 अप्रैल, 1930 ई० को महात्मा गांधी जी ने डांडी (दांडी) गांव में समुद्री पानी से नमक तैयार करके नमक कानून की अवज्ञा की।
उत्तर-

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

IV. सही जोड़े बनाएं :

1. अहिंसा – महाराजा रिपुदमन सिंह
2. भारत छोड़ो आंदोलन – महात्मा गांधी
3. क्रांतिकारी लहर – 8 अगस्त, 1942
4. जैतों का मोर्चा – सरदार भगत सिंह
उत्तर-
1. अहिंसा – महात्मा गांधी
2. भारत छोड़ो आंदोलन – 8 अगस्त, 1942
3. क्रांतिकारी लहर -सरदार भगत सिंह
4. जैतों का मोर्चा – महाराजा रिपुदमन सिंह

PSEB 8th Class Social Science Guide भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
साइमन कमीशन भारत आया-
(i) 1918 ई०
(i) 1919 ई०
(iii) 1928 ई०
(iv) 1920 ई०।
उत्तर-
1928 ई०

प्रश्न 2.
महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया-
(i) 1930 ई० से 1934 ई०
(ii) 1942 ई० से 1945 ई०
(iii) 1919 ई० से 1922 ई०
(iv) 1945 ई० से 1947 ई०
उत्तर-
1930 ई० से 1934 ई०

प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ –
(i) 15 अगस्त, 1947 ई०
(ii) 8 अगस्त, 1945 ई०
(iii) 8 अगस्त, 1942 ई०
(iv) 15 अगस्त, 1930 ई०
उत्तर-
8 अगस्त,1942 ई०

प्रश्न 4.
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ नारा दिया –
(i) लाला लाजपत राय
(i) महात्मा गांधी
(iii) सरदार पटेल
(iv) सुभाष चन्द बोस।
उत्तर-
सुभाष चन्द्र बोस

प्रश्न 5.
मार्च 1946 में भारत आया –
(i) साइमन कमीशन
(ii) कैबिनेट मिशन
(iii) राम कृष्ण मिशन
(iv) जैतों मोर्चा।
उत्तर-
कैबिनेट मिशन

प्रश्न 6.
‘दिल्ली चलो’ तथा ‘जय हिन्द’ के नारे किसने दिए ?
(i) महात्मा गांधी
(ii) लाला लाजपत राय
(iii) सुभाष चन्द्र बोस
(iv) पं० नेहरू।
उत्तर-
सुभाष चन्द्र बोस

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

प्रश्न 7.
चाबियों के मोर्चों का सम्बन्ध किस गुरुद्वारे से था ?
(i) श्री हरिमंदर साहिब
(ii) ननकाना साहिब
(iii) गुरु का बाग़
(iv) पंजा साहिब।
उत्तर-
श्री हरिमंदर साहिब।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रौलेट एक्ट क्या था ? लोगों ने इसका विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
‘रौलेट एक्ट’ जनता के आन्दोलन को कुचलने के लिए बनाया गया था। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल सन्देह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था। इसलिए लोगों ने इसका विरोध किया।

प्रश्न 2.
‘साइमन कमीशन’ भारत में कब आया और इसके विरोध में किए गए आन्दोलन में किस महान् नेता की मृत्यु हुई थी ?
उत्तर-
‘साइमन कमीशन’ भारत में 1928 ई० में आया। इसके विरोध में किए गए आन्दोलन में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 3.
भगत सिंह के सहयोगियों के नाम बतायें। उन्हें फांसी की सज़ा कौन-से वर्ष में दी गई थी ?
उत्तर-
भगत सिंह के सहयोगी थे-सुखदेव और राजगुरु। उन्हें 23 मार्च, 1931 ई० को फांसी दी गई।

प्रश्न 4.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग कब और कहां की ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग 1929 ई० में अपने लाहौर अधिवेशन में की।

प्रश्न 5.
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ किस वर्ष शुरू हुआ ? .
उत्तर-
भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई० में शुरू हुआ। सरकार ने इस आन्दोलन को पूर्ण कठोरता से दबाने का प्रयत्न किया।

प्रश्न 6.
भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम कब पास हुआ ?
उत्तर-
भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 16 जुलाई, 1947 ई० को पास हुआ। परन्तु इसे अन्तिम स्वीकृति दो दिन बाद मिली।

प्रश्न 7.
क्रिप्स कहां का मन्त्री था तथा 1942 ई० में उसके भारत में आने का क्या कारण था ?
उत्तर-
क्रिप्स ब्रिटिश सरकार का एक मन्त्री था। भारतीयों को सन्तुष्ट करने तथा उनकी सहायता करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उसे 1942 ई० में भारत भेजा।

प्रश्न 8.
असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया गया ?
उत्तर-
अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में एक शान्त भीड़ पर गोलियां चलाई गईं। इस घटना के कारण गान्धी जी ने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय किया।

प्रश्न 9.
असहयोग आन्दोलन कब वापिस लिया गया तथा इसका क्या कारण था ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन 1922 ई० में वापस लिया गया। इसका कारण था-उत्तर प्रदेश में चौरी-चौरा के स्थान पर हुई हिंसात्मक घटना।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता संग्राम के संघर्ष में लाला लाजपत राय का क्या योगदान था ?
उत्तर-
लाला लाजपत राय एक महान् देशभक्त थे। उन्होंने बंगाल विभाजन का कड़ा विरोध किया। उन्होंने साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए लाहौर में एक जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस ने इन पर लाठियां बरसाईं, जिसके कारण वह शहीदी को प्राप्त हुए।

प्रश्न 11.
आजादी की लड़ाई में सरदार भगत सिंह ने क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
सरदार भगत सिंह एक महान् क्रान्तिकारी थे। उन्होंने अंग्रेजों तक जनता की आवाज़ पहुंचाने के लिए असेम्बली हाल में बम फेंका। वह उन क्रान्तिकारियों में भी शामिल थे जिन्होंने सांडर्स को गोली से उड़ाया था।

प्रश्न 12.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्यों चलाया गया ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन की असफलता के बाद सरकार ने अब ऐसे कानून पास किए जो जनता के हित में नहीं थे। करों की दर इतनी अधिक थी कि साधारण व्यक्ति उन्हें चुका नहीं सकता था। इन्हीं कानूनों के विरोध में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया गया।

प्रश्न 13.
स्वराज्य (स्वराज) पार्टी की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
स्वराज्य (स्वराज) पार्टी की स्थापना 1923 ई० में पं० मोती लाल नेहरू तथा सी० आर० दास ने की।

प्रश्न 14.
स्वराज्य (स्वराज) पार्टी का क्या उद्देश्य था ? क्या यह अपने उद्देश्य में सफल रही ?
उत्तर-
स्वराज्य (स्वराज) पार्टी का मुख्य उद्देश्य चुनावों में भाग लेना तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करना था। 1 नवम्बर, 1923 ई० को हुए केन्द्रीय असेम्बली तथा विधानसभाओं के चुनावों में स्वराज्य पार्टी को महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई।

प्रश्न 15.
पुणे (पूना) समझौता कब और किस के मध्य में हुआ ?
उत्तर-
पूना समझौता सितम्बर, 1932 ई० में महात्मा गान्धी तथा डॉ० अम्बेडकर के मध्य हुआ।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1915 ई० तक गान्धी जी के जीवन का वर्णन करो।
उत्तर-
महात्मा गान्धी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को दीवान कर्मचन्द गान्धी जी के घर काठियावाड़ (गुजरात) के नगर पोरबन्दर में हुआ था। उनकी माता का नाम पुतली बाई था। गान्धी जी दसवीं की परीक्षा पास करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये। 1891 ई० में इंग्लैण्ड से वकालत पास करने के बाद वह भारत लौट आये। 1893 ई० में गान्धी जी दक्षिण अफ्रीका में गये। वहां अंग्रेज़ लोग भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करते थे। गान्धी जी ने इसकी निन्दा की। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलाए। 1915 ई० में गान्धी जी भारत लौट आये।

प्रश्न 2.
मांटेग्यू-चैम्सफोर्ड रिपोर्ट के आधार पर कब और कौन-सा एक्ट पास किया गया ? इसकी प्रस्तावना में क्या कहा गया था ?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों ने अंग्रेज़ों की सहायता की। अतः अंग्रेज़ों ने उन्हें ख़ुश करने के लिए मांटेग्यूचैम्सफोर्ड रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के आधार पर. 1919 ई० में एक्ट पास किया। इस एक्ट की प्रस्तावना में ये बातें कही गयी थीं

  1. भारत ब्रिटिश साम्राज्य का ही एक अंग रहेगा।
  2. भारत में धीरे-धीरे उत्तरदायी शासन स्थापित किया जाएगा।
  3. राज प्रबन्ध के प्रत्येक विभाग में भारतीय लोगों को सम्मिलित किया जाएगा।

प्रश्न 3.
1919 के एक्ट की क्या धाराएं थीं ? इण्डियन नैशनल कांग्रेस ने इसका विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
1919 ई० के एक्ट की मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं –

  1. इस एक्ट द्वारा केन्द्र तथा प्रान्तों के बीच विषयों का विभाजन कर दिया गया।
  2. प्रान्तों में दोहरी शासन प्रणाली स्थापित की गई।
  3. साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली का विस्तार किया गया।
  4. केन्द्र में दो सदनीय विधान परिषद् (राज्य परिषद् तथा विधानसभा) की व्यवस्था की गई।
  5. राज्य परिषद् की सदस्य संख्या 60 तथा विधानसभा के सदस्यों की संख्या 145 कर दी गई।
  6. सैक्रेटरी ऑफ़ स्टेट्स के अधिकार एवं शक्तियों को कम कर दिया गया। उसकी कौंसिल के सदस्यों की संख्या भी घटा दी गई।

1919 ई० के एक्ट के अनुसार किये गये सुधार भारतीयों को खुश नहीं कर सके। अत: इण्डियन नैशनल कांग्रेस ने इस एक्ट का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 4.
रौलेट एक्ट पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीय लोगों ने 1919 ई० के एक्ट के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन करना आरम्भ कर दिया था। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिये 1919 ई० में रौलेट एक्ट पास किया। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार बिना वारंट जारी किये या बिना किसी सुनवाई के किसी भी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। बन्दी व्यक्ति अपने बन्दीकरण के विरुद्ध न्यायालय में अपील (प्रार्थना) नहीं कर सकता था। अतः इस एक्ट का जोरदार विरोध हुआ। पण्डित मोती लाल नेहरू ने ‘न अपील, न वकील, न दलील’ कह कर रौलेट एक्ट की निन्दा की। गान्धी जी ने रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए सारे देश में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ किया।

प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन गान्धी जी ने 1920 ई० में अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध चलाया। अंग्रेज़ी सरकार को कोई सहयोग न दिया जाए-यह इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था। इस आन्दोलन की घोषणा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में की गई। गान्धी जी ने जनता से अपील की कि वे किसी भी तरह सरकार को सहयोग न दें। एक निश्चित कार्यक्रम भी तैयार किया गया। इसके अनुसार लोगों ने सरकारी नौकरियां तथा उपाधियां त्याग दीं। महात्मा गान्धी ने अपनी केसरए-हिंद की उपाधि सरकार को लौटा दी। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों में जाना बन्द कर दिया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी। विदेशी वस्तुओं का भी त्याग कर दिया गया और लोग स्वदेशी माल का प्रयोग करने लगे। परन्तु चौरी-चौरा नामक स्थान पर कुछ लोगों ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी जिससे कई पुलिस वाले मारे गए। हिंसा का यह समाचार मिलते ही गान्धी जी ने इस आन्दोलन को स्थगित कर दिया।

प्रश्न 6.
गुरुद्वारों के सम्बन्ध में सिक्खों तथा अंग्रेज़ों में बढ़ रहे तनाव पर नोट लिखें।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महन्तों को प्रोत्साहन देते थे। ये लोग सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेज़ी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महन्तों को अंग्रेज़ों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे। इसलिए गुरुद्वारों के सम्बन्ध में सिक्खों तथा अंग्रेज़ों के बीच तनाव बढ़ रहा था।

प्रश्न 7.
‘गुरु का बाग मोर्चा’ की घटना का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिनके साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की।

प्रश्न 8.
‘जैतों का मोर्चा’ की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर-
जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेज़ों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि अकाली कमेटी तथा अन्य सभी देश भक्त सिक्खों ने सरकार के इस कार्य की निन्दा की। 21 फरवरी, 1924 ई० को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। इस संघर्ष में अनेक सिक्ख मारे गए तथा घायल हुए। अन्त में सिक्खों ने सरकार को अपनी मांग स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 9.
जलियांवाला बाग की घटना कब, क्यों और किस प्रकार हुई ? एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
जलियांवाला बाग की घटना अमृतसर में 1919 ई० में वैसाखी वाले दिन हुई। इस दिन अमृतसर की जनता जलियांवाला बाग में एक सभा कर रही थी। यह सभा अमृतसर में लागू मार्शल लॉ के विरुद्ध की जा रही थी। जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के इस शान्तिपूर्ण सभा पर गोली चलाने की आज्ञा दे दी। इससे सैंकड़ों निर्दोष व्यक्तियों की जानें गईं और अनेक लोग घायल हुए। परिणामस्वरूप सारे देश में रोष की लहर दौड़ गई और स्वतन्त्रता संग्राम ने एक नया मोड़ ले लिया। अब यह सारे राष्ट्र की जनता का संग्राम बन गया।

प्रश्न 10.
जलियांवाला बाग की घटना ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम को किस प्रकार नया मोड़ दिया ?
उत्तर-
जलियांवाला बाग की घटना (13 अप्रैल, 1919 ई०) के कारण कई लोग शहीद हुए। इस घटना में हुए रक्तपात ने भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। यह संग्राम इससे पहले गिन चुने लोगों तक ही सीमित था। अब यह जनता का संग्राम बन गया। इसमें श्रमिक, किसान, विद्यार्थी आदि भी शामिल होने लगे। दूसरे, इसके साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत जोश भर गया तथा संघर्ष की गति बहुत तीव्र हो गई।

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प्रश्न 11.
पूर्ण स्वराज्य (स्वराज) के प्रस्ताव पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
31 दिसम्बर, 1929 ई० को इंडियन नैशनल कांग्रेस ने अपने वार्षिक सम्मेलन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया। यह सम्मेलन लाहौर में रावी नदी के किनारे पं० जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ था। इस सम्मेलन में यह भी निर्णय लिया गया कि यदि सरकार भारत को शीघ्र आज़ाद नहीं करती तो 26 जनवरी, 1930 ई० को सारे देश में स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। सम्मेलन में स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ करने का भी निर्णय लिया गया। 26 जनवरी, 1930 ई० को समस्त भारत में स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया।

प्रश्न 12.
गोलमेज़ सम्मेलन (कांफ्रेंस) कहां हुए थे ? इनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गोलमेज़ सम्मेलन लंदन में हुए।
पहले दो सम्मेलन-पहला गोलमेज़ सम्मेलन 1930 ई० में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने के लिए बुलाया। परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस द्वारा किये गये बहिष्कार के कारण असफल रहा।
5 मार्च, 1931 ई० में गान्धी जी तथा लॉर्ड इरविन के मध्य गान्धी-इरविन समझौता हुआ। इस समझौते में गान्धी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन बन्द करना तथा दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में भाग लेना स्वीकार कर लिया। दूसरी गोलमेज़ . कांफ्रेंस सितम्बर, 1931 ई० में लन्दन में हुई। इस कांफ्रेंस में गान्धी जी ने केन्द्र तथा प्रान्तों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाले शासन को समाप्त करने की मांग की। परन्तु वह अपनी मांग मनवाने में असफल रहे। फलस्वरूप उन्होंने 3 जनवरी, 1931 ई० को फिर से सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। अतः गान्धी जी को अन्य कांग्रेसी नेताओं सहित बन्दी बना लिया गया।
तीसरा सम्मेलन-यह सम्मेलन 1932 ई० में हुआ। गान्धी जी ने इसमें भी भाग नहीं लिया।

प्रश्न 13.
क्रिप्स मिशन को भारत में क्यों भेजा गया ? क्या वह कांग्रेस के नेताओं को सन्तुष्ट कर सका ?
उत्तर-
सितम्बर, 1939 ई० में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हुआ। भारत में अंग्रेज़ी सरकार ने कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना ही भारत के इस युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी। कांग्रेस के नेताओं ने इस घोषणा की निन्दा की तथा प्रान्तीय विधानमण्डलों से त्याग-पत्र दे दिए। समस्या के समाधान के लिये अंग्रेजी सरकार ने मार्च, 1942 ई० में सर स्टैफर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में क्रिप्स मिशन को भारत में भेजा। उसने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष कुछ सुझाव रखे जो उन्हें सन्तुष्ट न कर सके।

प्रश्न 14.
मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
1939 ई० में कांग्रेस के नेताओं की ओर से प्रान्तीय विधानमण्डलों से त्याग-पत्र दे देने के कारण मुस्लिम लीग बहुत प्रसन्न हुई। इसलिए लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्नाह ने 22 सितम्बर, 1939 ई० को मुक्ति दिवस मनाने का निर्णय किया। 23 मार्च, 1940 ई० को मुस्लिम लीग ने लाहौर में अपने सम्मेलन में हिन्दुओं तथा मुसलमानों को दो अलग राष्ट्र बताते हुए मुसलमानों के लिए स्वतन्त्र पाकिस्तान की मांग की। अंग्रेज़ों ने भी इस सम्बन्ध में मुस्लिम लीग को सहयोग दिया क्योंकि वे राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर करना चाहते थे।

प्रश्न 15.
केबिनेट मिशन तथा इसके सुझावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मार्च, 1946 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने तीन सदस्यों वाला केबिनेट मिशन भारत में भेजा। इसका प्रधान लॉर्ड पैथिक लारेंस था। इस मिशन ने भारत को दी जाने वाली राजनीतिक शक्ति के बारे में भारतीय नेताओं के साथ विचारविमर्श किया। इसने भारत का संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा स्थापित करने तथा देश में अन्तरिम सरकार की स्थापना करने का सुझाव दिया। सुझाव के अनुसार सितम्बर, 1946 ई० में कांग्रेस के नेताओं ने जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में अन्तरिम सरकार की स्थापना की। 15 अक्तूबर, 1946 ई० को मुस्लिम लीग भी अन्तरिम सरकार में सम्मिलित हो गई।

प्रश्न 16.
1946 के पश्चात् भारत को स्वतन्त्रता अथवा विभाजन की ओर ले जाने वाली घटनाओं की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
20 फरवरी, 1947 को इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री लॉर्ड एटली ने घोषणा की कि 30 जून, 1948 ई० तक अंग्रेज़ी सरकार भारत को स्वतन्त्र कर देगी। 3 मार्च, 1947 ई० को लॉर्ड माऊंटबैटन भारत का नया वायसराय बन कर भारत आया। उसने कांग्रेस के नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया। उसने घोषणा की कि भारत को आजाद कर दिया जायेगा, परन्तु इसके दो भाग–भारत तथा पाकिस्तान बना दिये जायेंगे। कांग्रेस ने इस विभाजन को स्वीकार कर लिया क्योंकि वे साम्प्रदायिक दंगे तथा रक्तपात नहीं चाहते थे।

18 जुलाई, 1947 ई० को ब्रिटिश संसद् ने भारतीय स्वतन्त्रता एक्ट पास कर दिया। परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत में अंग्रेज़ी शासन समाप्त हो गया तथा भारत स्वतन्त्र हो गया। परन्तु इसके साथ ही भारत के दो भाग बन गए। एक का नाम भारत तथा दूसरे का नाम पाकिस्तान रखा गया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी ने किन सिद्धान्तों के आधार पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयत्न किए ?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेज़ों ने भारतीयों के साथ किये अपने वचनों को पूरा नहीं किया। अत: भारतीयों ने महात्मा गान्धी के नेतृत्व में अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाने के लिए योजना बनाई। महात्मा गान्धी ने निम्नलिखित सिद्धान्तों के आधार पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयत्न किये-

  • अहिंसा-महात्मा गान्धी ने अंग्रेज़ों का मन जीतने के लिए शान्ति एवं अहिंसा की नीति अपनाई। वैसे भी गान्धी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे।
  • सत्याग्रह आन्दोलन-महात्मा गान्धी सत्याग्रह आन्दोलन में विश्वास रखते थे। इसके अनुसार वह अपनी बात मनवाने के लिए धरना देते थे या कुछ दिनों तक उपवास रखते थे। कभी-कभी वह आमरणव्रत भी रखते थे। ऐसा करने से सारे संसार का ध्यान उनकी ओर जाता था।
  • हिन्दू-मुस्लिम एकता-महात्मा गान्धी ने सभी भारतीयों विशेष रूप से हिन्दुओं तथा मुसलमानों की एकता पर बल दिया। जब कभी किसी कारण से लोगों में दंगे-फसाद हो जाते थे तो गांधी जी वहां पहुंच कर शान्ति स्थापित करने का प्रयास करते थे।
  • असहयोग आन्दोलन-महात्मा गान्धी ने अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों के साथ किये जा रहे अन्यायं का विरोध करने के लिए असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। इसके अनुसार गान्धी जी ने भारतीय लोगों को सरकारी कार्यालयों, न्यायालयों, स्कूलों तथा कॉलेजों आदि का बहिष्कार करने को कहा।
  • खादी एवं चरखा-गान्धी जी ने ग्रामीण लोगों को खादी के वस्त्र पहनने तथा चरखे से सूत कात कर कपड़ा तैयार करने के लिए कहा। उन्होंने प्रचार किया कि विदेशी वस्तुओं का उपयोग छोड़ कर स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग किया जाए।
  • समाज सुधार-महात्मा गान्धी ने समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे कि अस्पृश्यता को समाप्त करने का प्रयास किया। उन्होंने महिलाओं के कल्याण के लिए भी प्रयत्न किये।

प्रश्न 2.
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड तथा खिलाफ़त आन्दोलन का वर्णन करो।
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड-1919 ई० के रौलेट एक्ट के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए गान्धी जी के आदेश पर पंजाब में हड़तालें हुईं, जलसे किये गये तथा जुलूस निकाले गये। 10 अप्रैल, 1919 ई० को अमृतसर में प्रसिद्ध नेताओं डॉ० किचलू तथा डॉ० सत्यपाल को बन्दी बना लिया गया। भारतीयों ने इसका विरोध करने के लिए जुलूस निकाला। सरकार ने इस जुलूस पर गोली चलाने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप कुछ व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अतः भारतीयों ने क्रोध में आकर 5 अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या कर दी। अंग्रेजी सरकार ने स्थिति पर नियन्त्रण करने के लिए अमृतसर शहर को सेना के हाथों में सौंप दिया।

13 अप्रैल, 1919 ई० को वैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए लगभग 20,000 लोग एकत्रित हुए। जनरल डायर ने इन लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागना आरम्भ कर दिया, परन्तु इस बाग़ का मार्ग तीन ओर से बन्द था तथा चौथी ओर के मार्ग में सैनिक होने के कारण लोग वहीं पर ही घिर गये। थोड़े ही समय में सारा बाग़ खून और लाशों से भर गया। इस रक्त रंजित घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये तथा 3,000 से अधिक लोग घायल हुए। इस हत्याकांड का समाचार सुन कर लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष की भावना फैल गई।

ख़िलाफ़त आन्दोलन-प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने अंग्रेजों के विरुद्ध जर्मनी की सहायता की। भारत के मुसलमान तुर्की के सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय को अपना ख़लीफ़ा एवं धार्मिक नेता मानते थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज़ों की सहायता इसलिए की थी कि युद्ध समाप्त होने के बाद तुर्की के ख़लीफ़ा को कोई क्षति नहीं पहुंचायी जायेगी। परन्तु युद्ध समाप्त होने पर अंग्रेजों ने तुर्की,को कई भागों में बांट दिया तथा ख़लीफ़ा को बन्दी बना लिया। अतः भारत के मुसलमानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक ज़ोरदार आन्दोलन आरंभ कर दिया जिसे ख़िलाफ़त आन्दोलन कहा जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व शौकत अली, मुहम्मद अली, अबुल कलाम आज़ाद तथा अजमल खां ने किया। महात्मा गांधी तथा बाल गंगाधर तिलक ने भी हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए इस आन्दोलन में भाग लिया।

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प्रश्न 3.
महात्मा गान्धी युग का वर्णन करो।
उत्तर-
महात्मा गान्धी 1919 ई० में भारत की राजनीतिक गतिविधियों में सम्मिलित हुए। 1919 ई० से लेकर 1947 ई० तक स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए जितने भी आन्दोलन किए गए, उनका नेतृत्व महात्मा गान्धी ने किया। अत: इतिहास में 1919 ई० से 1947 ई० के समय को ‘गान्धी युग’ कहा जाता है। गान्धी जी के जीवन तथा कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

जन्म तथा शिक्षा-महात्मा गान्धी के बचपन का नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को काठियावाड़ में पोरबन्दर के स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गान्धी था जो पोरबन्दर के दीवान थे। गान्धी जी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा भारत में ही प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। वहां उन्होंने वकालत पास की और फिर भारत लौट आए।

राजनीतिक जीवन-गान्धी जी के राजनीतिक जीवन का आरम्भ दक्षिणी अफ्रीका से हुआ। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने के बाद कुछ समय तक भारत में वकील के रूप में कार्य किया। परन्तु फिर वह दक्षिणी अफ्रीका चले गए।

गान्धी जी दक्षिणी अफ्रीका में- गान्धी जी जिस समय दक्षिणी अफ्रीका पहुंचे। उस समय वहां भारतीयों की दशा बहुत बुरी थी। वहां की गोरी सरकार भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करती थी। गान्धी जी इस बात को सहन न कर सके। उन्होंने वहां की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलाए।

गान्धी जी भारत में-1914 ई० में गान्धी जी दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे। उस समय प्रथम विश्व-युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेज़ी सरकार इस युद्ध में उलझी हुई थी। उसे जन और धन की काफ़ी आवश्यकता थी। अतः गान्धी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेज़ों को सहयोग दें। वह अंग्रेज़ी सरकार की सहायता करके उसका मन जीत लेना चाहते थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेज़ी सरकार युद्ध जीतने के बाद भारत को स्वतन्त्र कर देगी। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने युद्ध में विजय होने के बाद भारत को कुछ न दिया। उसके विपरीत उन्होंने भारत में रौलेट एक्ट लागू कर दिया। इस काले कानून के कारण गान्धी जी को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया।

असहयोग आन्दोलन-1920 ई० में गान्धी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। जनता ने गान्धी जी का पूरा-पूरा साथ दिया। सरकार को गान्धी जी के इस आन्दोलन के सामने झुकना पड़ा। परन्तु कुछ हिंसक घटनाएं हो जाने के कारण गान्धी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन-1930 ई० में गान्धी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने डाण्डी यात्रा की और नमक कानून को भंग किया। सरकार घबरा गई। उसने भारतवासियों को नमक बनाने का अधिकार दे दिया। 1935 ई० में सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण एक्ट भी पास किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन-गान्धी जी का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। भारत के लाखों नर-नारी गान्धी जी के साथ हो गए। इतने विशाल जन आन्दोलन से अंग्रेज़ी सरकार घबरा गई और उसने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हुआ। इस स्वतन्त्रता का वास्तविक श्रेय गान्धी जी को ही जाता है।

अन्य कार्य-गान्धी जी ने भारतवासियों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए अनेक काम किए। भारत में गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का सन्देश दिया। अछूतों के उद्धार के लिए गान्धी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गान्धी जी ने गांव-गांव घूमकर लोगों को भाईचारे का सन्देश दिया।

देहान्त-30 जनवरी, 1948 ई० की. संध्या को गान्धी जी की निर्मम हत्या कर दी गई। भारतवासी गान्धी जी की सेवाओं को कभी भुला नहीं सकते। आज भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 4.
महात्मा गान्धी के असहयोग आन्दोलन का वर्णन करो।
उत्तर-
1920 ई० में महात्मा गान्धी ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। इस आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) पंजाब में लोगों पर किए जा रहे अत्याचारों तथा अनुचित नीतियों की निन्दा करना। (2) तुर्की के सुल्तान (खलीफ़ा) के साथ किए जा रहे अन्याय को समाप्त करना। (3) हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करना। (4) अंग्रेजी सरकार से स्वराज (स्वतन्त्रता) प्राप्त करना।

असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम : (1) सरकारी नौकरियों का त्याग किया जाए। (2) सरकारी उपाधियों को लौटाया जाए। (3) सरकारी उत्सवों तथा सम्मेलनों में भाग न लिया जाए। (4) विदेशी वस्तुओं का उपयोग न किया जाए। इनके स्थान पर अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग किया जाए। (5) सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार किया जाए तथा अपने विवादों का निर्णय पंचायतों द्वारा करवाया जाए। (6) चरखे द्वारा बने खादी के कपड़े का उपयोग किया जाए।

असहयोग आन्दोलन की प्रगति-महात्मा गान्धी ने अपनी केसर-ए-हिन्द की उपाधि सरकार को लौटा दी ! उन्होंने भारतीय लोगों से आन्दोलन में भाग लेने की अपील की। अनेकों भारतीयों ने गान्धी जी के कहने पर अपनी नौकरियां त्याग दी तथा उपाधियां सरकार को लौटा दीं। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों ने स्कूलों तथा कॉलेजों में जाना बन्द कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा-संस्थाओं जैसे कि काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ आदि में पढ़ना आरम्भ कर दिया। देश के सैंकड़ों वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी। इनमें मोतीलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, सी० आर० दास, परदार पटेल, लाला लाजपत राय आदि शामिल थे। लोगों ने विदेशी कपड़ों का त्याग कर दिया तथा चरखे द्वारा बने खादी के कपड़े का उपयोग करना आरम्भ कर दिया।

सरकार ने इस आन्दोलन के दमन के लिए हज़ारों की संख्या में आन्दोलनकारियों को बन्दी बना लिया। 1922 ई० में उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के गांव चौरी-चौरा में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। इस अधिवेशन में लगभग 3000 किसान भाग ले रहे थे। यहां पर पुलिस ने उन पर गोलियां चलाईं। किसानों ने क्रोध में आकर पुलिस थाने पर आक्रमण कर दिया और उसे आग लगा दी। परिणामस्वरूप थाने में 22 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। अतः गान्धी जी ने 12 फरवरी, 1922 ई० को बारदौली में असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया। . ___

महत्त्व-भले ही महात्मा गान्धी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया था, फिर भी इसका राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

  • इस आन्दोलन में भारत के लगभग सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया था जिससे उनमें राष्ट्रीय भावना पैदा हुई।
  • महिलाओं ने भी इसमें भाग लिया। अतः उनमें भी आत्म-विश्वास पैदा हुआ।
  • इस आन्दोलन के कारण कांग्रेस पार्टी की लोकप्रियता बहुत अधिक बढ़ गई।
  • आन्दोलन वापिस लिए जाने के कारण कांग्रेस के कुछ नेता गान्धी जी से नाराज़ हो गए। इनमें पं० मोती लाल नेहरू तथा सी० आर० दास शामिल थे। उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए 1923 ई० में ‘स्वराज्य पार्टी’ की स्थापना की।

प्रश्न 5.
क्रान्तिकारी आन्दोलन (1919-1947 के दौरान) का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए देश में कई क्रान्तिकारी आन्दोलन भी चले। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. बब्बर अकाली आन्दोलन-कुछ अकाली सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे। उन्हें बब्बर अकाली कहा जाता है। उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित करके होशियारपुर तथा जालन्धर में अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध आवाज़ उठाई। 26 फरवरी, 1923 को उन्हें उनके 186 साथियों सहित बन्दी बना लिया गया। इनमें से 5 को फांसी दी गई।
2. नौजवान भारत सभा-नौजवान भारत सभा की स्थापना 1926 में लाहौर में हुई। इसके संस्थापक सदस्य भगत सिंह, राजगुरु, भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव आदि थे।

मुख्य उद्देश्य-इस सभा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे –

  • बलिदान की भावना का विकास करना।
  • लोगों को देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत करना।
  • जनसाधारण में क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार करना।

सदस्यता-इस सभा में 18 वर्ष से 35 वर्ष के सभी नर-नारी शामिल हो सकते थे। केवल वही व्यक्ति इसके सदस्य बन सकते थे जिनको इनके कार्यक्रम में विश्वास था। पंजाब की अनेक महिलाओं तथा पुरुषों ने इस सभा को अपना सहयोग दिया। दुर्गा देवी वोहरा, सुशीला मोहन, अमर कौर, पार्वती देवी तथा लीलावती इस सभा की सदस्या थीं।

गतिविधियां-इस सभा के सदस्य साइमन कमीशन के आगमन के समय पूरी तरह सक्रिय हो गए। पंजाब में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने साइमन कमीशन के विरोध में जुलूस निकाला। अंग्रेज़ी सरकार ने जुलूस पर लाठीचार्ज किया। इसमें लाला लाजपतराय बुरी तरह से घायल हो गए। 17 नवम्बर, 1928 ई० को उनका देहान्त हो गया। इसी बीच भारत के सभी क्रान्तिकारियों ने अपनी केन्द्रीय संस्था बनाई जिसका नाम रखा गयाहिन्दोस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन । नौजवान भारत सभा के सदस्य भी इस एसोसिएशन के साथ मिलकर काम करने लगे।

असेम्बली बम केस-8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम फेंक कर आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस ने दो अन्य क्रान्तिकारियों सुखदेव तथा राजगुरु को भी बन्दी बना लिया।

23 मार्च, 1931 ई० को भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के अपराध में फांसी दे दी गई।

सच तो यह है कि नौजवान भारत सभा के क्रान्तिकारी भगत सिंह ने अपना बलिदान देकर एक ऐसा उदाहरण पेश किया जिस पर आने वाली पीढ़ियां गर्व करेंगी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947

प्रश्न 6.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन के बारे में लिखो।
उत्तर-
1920 ई० से 1925 ई० तक के काल में पंजाब में गुरुद्वारों को महन्तों के अधिकार से मुक्त कराने के लिए ‘गुरुद्वारा सुधार लहर’ की स्थापना की गई। इस लहर को अकाली लहर भी कहा जाता है क्योंकि अकालियों द्वारा ही गुरुद्वारों को मुक्त कराया गया था।

गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अकाली दल ने कई मोर्चे लगाए जिनमें से कुछ मुख्य मोर्चों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. ननकाना साहिब का मोर्चा-ननकाना साहिब का महन्त नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महन्त ने जत्थे के साथ बड़ा जुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मण सिंह तथा इसके साथियों को जीवित जला दिया गया।

2. हरमन्दर साहिब के कोष की चाबियों का मोर्चा- हरमन्दर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेज़ों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां मांगीं, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेज़ों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिक्खों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफ़त कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेज़ों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।

3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। इनके सदस्यों को लाठियों से पीटा गया।

4. पंजा साहिब की घठना-सरकार ने ‘गुरु का बाग’ के मोर्चे में बंदी बनाए गए सिक्खों को रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को हसन अब्दाल में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। इन दोनों की शहीदी के अतिरिक्त दर्जनों सिक्खों के अंग कट गए।

5. जैतों का मोर्चा-जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेज़ों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। अकालियों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उनका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।

6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। सरकार ने धीरे-धीरे सभी बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया।

इस प्रकार अकाली आन्दोलनों के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ट महन्तों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।

भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 PSEB 8th Class Social Science Notes

  • सत्य और अहिंसा -1916 ई० के पश्चात् भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मुख्य नेता महात्मा गांधी जी थे। उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाकर राष्ट्रीय आन्दोलन को सबल बनाया। उनके द्वारा चलाए गए सभी आन्दोलन सत्य और अहिंसा पर आधारित थे।
  • आन्दोलन की घटनाएं – प्रमुख खिलाफ़त आन्दोलन, साइमन कमीशन का आगमन, डाण्डी यात्रा, भारत छोड़ो आन्दोलन तथा कुछ अन्य घटनाएं इस आन्दोलन में मील का पत्थर सिद्ध हईं।
  • रौलेट एक्ट – अंग्रेज़ों ने यह कानून भारतीय भावनाओं को कुचलने के लिए 1919 में पास किया। इसके अनुसार किसी व्यक्ति को बिना मुकद्दमा चलाए बन्दी बनाया जा सकता था।
  • जलियांवाला बाग़ दुर्घटना – रौलेट एक्ट के विरोध में भारत में स्थान-स्थान पर जलसे और जुलूस निकाले गए। ऐसी ही एक विरोध सभा 13 अप्रैल, 1919 का अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में हुई। निःशस्त्र भीड़ पर गोलियां चलाकर जनरल डायर ने अनगिनत लोगों की हत्या की तथा अनगिनत लोगों को घायल कर दिया।
  • असहयोग आन्दोलन यह आन्दोलन अंग्रेज़ी शासन के विरोध में 1920 में आरम्भ किया गया। इसमें हिन्दू तथा मुसलमानों ने एक साथ मिलकर सरकार का विरोध किया।
  • खिलाफ़त आन्दोलन यह आन्दोलन असहयोग आन्दोलन के साथ-साथ चला। मुसलमानों ने यह आन्दोलन अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध इसलिए चलाया था, क्योंकि इंग्लैण्ड की सरकार ने तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था।
  • नौजवान सभा – नौजवान सभा की स्थापना 1925-26 ई० में सरदार भगत सिंह ने की। नौजवान सभा
    के मुख्य उद्देश्य थे-नवयुवकों में बलिदान की भावना पैदा करना, देश-भक्ति तथा क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार करना।
  • अकाली लहर अथवा गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन – अंग्रेजों के समय पंजाब के गुरुद्वारों का प्रबन्ध भ्रष्ट महन्तों के हाथ में था। सिक्ख भ्रष्ट महन्तों से अपने धार्मिक स्थानों को बचाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारा आन्दोलन सुधार का आरम्भ किया।
  • बब्बर अकाली लहर – कई सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे।
    उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित करके होशियारपुर तथा जालन्धर में अंग्रेज़ी पिटुओं के दमन के विरुद्ध प्रचार किया।
  • साइमन कमीशन – यह कमीशन 1928 में इसलिए भारत भेजा गया था ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि 1919 के कानून के बाद भारतीयों को और क्या राजनीतिक सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं।
  • पूर्ण स्वराज्य (स्वराज) – 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया।
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन – यह आन्दोलन 1930 ई० में गांधी जी ने डाण्डी मार्च के साथ आरम्भ किया। इसका प्रथम चरण 1931 में समाप्त हुआ। इसका दूसरा चरण 1934 में आरम्भ हुआ। सरकार ने भारतीय जनता पर बड़े अत्याचार किए।
  • भारत छोड़ो आन्दोलन – द्वितीय महायुद्ध के दौरान कांग्रेस ने गांधी जी की अध्यक्षता में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। सभी बड़े-बड़े भारतीय नेताओं को बन्दी बना लिया गया। इससे अंग्रेज़ भारत को स्वतन्त्र करने के लिए बाध्य हो गए।
  • भारत की स्वतन्त्रता – भारत 1947 में स्वतन्त्र कर दिया गया। इसके एक भाग को इससे अलग कर दिया गया। यह नया भाग पाकिस्तान के नाम से अस्तित्व में आया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

SST Guide for Class 8 PSEB कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन Textbook Questions and Answers

कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास की रचना किसने की थी ?
उत्तर-
बंकिमचन्द्र चटर्जी ने।

प्रश्न 2.
लघु-वार्ता के प्रसिद्ध लेखकों के नाम लिखें।
उत्तर-
लघु-वार्ता के प्रसिद्ध लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद, यशपाल, जेतिंदर कुमार, कृष्ण चन्द्र आदि थे।

प्रश्न 3.
भारत में सबसे पहला छापाखाना कब तथा किसने शुरू किया ?
उत्तर-
भारत में सबसे पहला छापाखाना 1557 ई० में पुर्तगालियों ने शुरू किया।

प्रश्न 4.
बाल गंगाधर तिलक ने कौन-से दो अखबारों का प्रकाशन करवाया ?
उत्तर-
मराठी भाषा में ‘केसरी’ तथा अंग्रेज़ी भाषा में ‘मराठा’ नामक अखबारों का।

प्रश्न 5.
बड़ौदा यूनिवर्सिटी के आर्ट स्कूल के प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर-
जी० आर० सन्तोष, गुलाम शेख, शान्ति देव आदि।

प्रश्न 6.
मद्रास कला स्कूल के प्रसिद्ध कलाकारों के नाम लिखें।
उत्तर-
सतीश गुजराल, रामकुमार तथा के० जी० सुब्रामणियम।

प्रश्न 7.
19वीं सदी तथा 20वीं सदी के आरम्भ में साहित्य पर नोट लिखें।
उत्तर-
19वीं तथा 20वीं सदी के आरम्भ में साहित्य के हर क्षेत्र में विकास हुआ जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
1. उपन्यास कहानी आदि कथा साहित्य-

  1. बंगाली साहित्य के प्रमुख लेखक बंकिम चन्द्र चटर्जी, माइकल मधुसूदन दत्त, शरत चन्द्र चटर्जी आदि थे। बंकिम चन्द्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनन्द मठ’ को ‘बंगाली देश-प्रेम की बाइबल’ कहा जाता है।
  2. मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों ‘गोदान’ तथा ‘रंगभूमि’ में अंग्रेजी सरकार द्वारा किसानों के शोषण पर प्रकाश डाला है। उन्होंने उर्दू तथा हिन्दी में और भी कई उपन्यास लिखे।
  3. हेमचन्द्र बैनर्जी, दीनबन्धु मित्र, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि लेखकों ने देश-प्रेम की रचनाएं लिखीं।

2. काव्य-रचना-यूरोप के साहित्य के सम्पर्क में आने के पश्चात् भारतीय काव्य-रचना में रोमांसवाद का आरम्भ हुआ। परन्तु भारतीय काव्य-रचना में राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीय आन्दोलन पर अधिक बल दिया गया। काव्य-रचना को समृद्ध बनाने वाले प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर (बंगला), इकबाल (उर्दू), केशव सुत (मराठी), सुब्रह्मण्यम भारती (तमिल) आदि हैं।

3. नाटक तथा सिनेमा-भारतीय नाटककारों तथा कलाकारों ने पूर्वी तथा पश्चिमी शैली को एक करने का प्रयास किया। इस काल के प्रसिद्ध नाटककार थे-गिरीश कारनंद (कन्नड़), विजय तेंदुलकर (मराठी) और मुलखराज आनन्द तथा आर० के० नारायण (अंग्रेज़ी)। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं में राष्ट्रीय जागृति तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानववाद पर बल दिया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

प्रश्न 8.
19वीं सदी तथा 20वीं सदी के आरम्भ में चित्रकारी पर नोट लिखो।
उत्तर-
19वीं तथा 20वीं सदी के आरम्भ में विभिन्न कला स्कूलों तथा कला ग्रुपों द्वारा चित्रकारी को नया रूप मिला जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  • राजा रवि वर्मा ने यूरोपीय प्रकृतिवाद को भारतीय पौराणिक कथाओं के साथ मिलाकर चित्रित किया।
  • बंगाल कला स्कूल के चित्रकारों रवीन्द्रनाथ टैगोर, हॉवैल कुमार स्वामी ने भारतीय पौराणिक कथाओं, महाकाव्यों तथा पुरातन साहित्य पर आधारित चित्र बनाये।।
  • अमृता शेरगिल तथा जार्ज कीट के चित्र आधुनिक यूरोपीय कला, आधुनिक जीव-आत्मा तथा हाव-भावों से अधिक प्रभावित हैं। जार्ज कीट द्वारा प्रयोग की गई रंग-योजना बहुत ही प्रभावशाली है।
  • रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जल रंगों तथा रंगदार चाक से सुन्दर चित्र बनाये। .
  • बम्बई के प्रसिद्ध कलाकारों के फूलों तथा स्त्रियों के चित्र अपने रंगों के कारण बहुत ही सुन्दर बन पड़े हैं। इन कलाकारों में फ्रांसिस न्यूटन सुजा, के० एच० अरा, एस० के० बैनर आदि के नाम लिए जा सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त बड़ौदा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ आर्ट, मद्रास कला स्कूल तथा नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट का भी चित्रकला को लोकप्रिय बनाने में काफ़ी योगदान रहा।

प्रश्न 9.
कलाओं में परिवर्तन से क्या भाव है ?
उत्तर-
कलाओं में विशेष रूप से संगीत, नृत्य तथा नाटक आदि सम्मिलित हैं। अंग्रेजों के भारत में आने से पहले इन क्षेत्रों में भारत की धरोहर बहुत ही समृद्ध थी। हमारे देश का पुरातन संगीत, हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक संगीत स्कूल भारत की इस समृद्ध धरोहर के उदाहरण हैं।

  • हमारे देश के लोक संगीत तथा लोक नृत्य लोगों में उत्साह भर देते हैं। इनमें हमारा पुरातन भारतीय नृत्य, कथाकली, कुचिपुड़ी तथा कत्थक आदि के नाम लिए जा सकते हैं।
  • रंगमंचों पर मंचित हमारे नाटक तथा पुतलियों के नाच हमारी सांस्कृतिक परम्परा के महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
  • भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार के वाद्य यन्त्र जैसे कि सितार, ढोल, तूम्बी, सारंगी, तबला आदि प्रचलित हैं। बांसुरी, शहनाई, अलगोजे आदि हवा वाले वाद्य यन्त्र हैं।
  • भारत के महान् कलाकारों, जैसे कि कुमार गन्धर्व, रविशंकर, रुकमणी देवी, रागिनी देवी, उदय शंकर तथा पण्डित जसराज ने भारतीय संगीत तथा नृत्य के क्षेत्र में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त की।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. ……………. में बंगाली भाषा में बहुत से साहित्य की रचना की गई।
2. ‘वन्देमातरम’ राष्ट्रीय गीत………… द्वारा रचा गया।
3. मुंशी प्रेमचन्द ने …………. तथा …………. भाषा में कई उपन्यास लिखे।
4. अमृता शेरगिल तथा …………. प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे।
उत्तर-

  1. 19वीं सदी
  2. बंकिम चंद्र चटर्जी
  3. उर्दू, हिन्दी
  4. जार्ज कीट।

III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘संही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाओ :

1. प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम को आजकल ‘छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय’ भी कहा जाता है। – (✓)
2. मैरीना समुद्री तट 10 किलोमीटर लंबा है। – (✗)
3. वार मैमोरियल विश्व के प्रथम युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया। – (✓)
4. आजकल फोर्ट सैंट जार्ज भवन में तमिलनाडु शासन की विधानसभा तथा सचिवालय के कार्यालय हैं। – (✗).

PSEB 8th Class Social Science Guide कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
‘आनन्दमठ’ उपन्यास की रचना की-
(i) इकबाल
(ii) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(iii) बंकिम चन्द्र चैटर्जी
(iv) मुंशी प्रेमचन्द।
उत्तर-
बंकिम चन्द्र चटर्जी

प्रश्न 2.
भारत में सबसे पहला छापाखाना स्थापित किया –
(i) पुर्तगालियों ने
(ii) फ्रांसीसियों ने
(iii) अंग्रेज़ों ने
(iv) डचों ने।
उत्तर-
पुर्तगालियों ने

प्रश्न 3.
बड़ौदा यूनिवर्सिटी के आर्ट स्कूल के प्रसिद्ध चित्रकार हैं-
(i) जी० आर० सन्तोष
(ii) गुलाम शेख
(iii) शान्ति देव
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
गोदान तथा रंग भूमि के लेखक हैं-
(i) अवीन्द्र नाथ
(ii) रवीन्द्र नाथ टैगोर
(iii) बंकिम चन्द्र चैटजी
(iv) मुंशी प्रेमचन्द।
उत्तर-
मुंशी प्रेमचन्द

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

प्रश्न 5.
दो शिल्पकारों जार्ज विलटेट तथा उसके मित्र जॉन बेग ने निम्न भवन का निर्माण किया –
(i) इंडिया गेट
(ii) चर्च गेट
(iii) लाहौरी गेट
(iv) गेटवे ऑफ़ इंडिया।
उत्तर-
गेटवे ऑफ इंडिया

प्रश्न 6.
वन्दे मातरम् गीत किसने लिखा ?
(i) मुंशी प्रेमचन्द
(ii) रविन्द्र नाथ टैगोर
(iii) बंकिम चन्द्र चैटर्जी
(iv) वीरसलिंगम।
उत्तर-
बंकिम चन्द्र चैटर्जी।

(ख) सही कथन पर (✓) तथा गलत कथन (✗) पर का निशान लगाएं :

1. रविन्द्रनाथ टैगोर ने शांति निकेतन में ‘कला भवन’ की स्थापना की।
2. फोर्ट सेंट जार्ज भारत में पहला अंग्रेज़ी किला था।
3. वंदे मातरम गीत ‘आनंद विवाह’ नामक उपन्यास में शामिल है।
उत्तर-

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वन्दे मातरम्’ नामक राष्ट्रीय गीत किस उपन्यास से लिया गया है ?
उत्तर-
‘आनन्दमठ’ से।

प्रश्न 2.
बंकिम चन्द्र चटर्जी के किस उपन्यास को ‘बंगाली देश-प्रेम की बाइबल’ कहा जाता है और क्यों ?
उत्तर-
बंगला उपन्यास ‘आनन्दमठ’ को, क्योंकि इसमें राष्ट्र-प्रेम के बहुत-से गीत हैं।

प्रश्न 3.
मुंशी प्रेमचन्द के किन्हीं दो प्रसिद्ध उपन्यासों के नाम बताओ।
उत्तर-
गोदान तथा रंगभूमि।।

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित दो अख़बारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
संवाद कौमुदी तथा मिरत-उल-अख़बार।

प्रश्न 5.
राजा रवि वर्मा कौन था ?
उत्तर-
राजा रवि वर्मा आधुनिक भारत का एक प्रसिद्ध चित्रकार तथा मूर्तिकार था। उसके चित्र भारतीय महाकाव्यों तथा संस्कृत साहित्य से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 6.
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कलो-भवन की स्थापना कहां की ?
उत्तर-
शान्ति निकेतन में।

प्रश्न 7.
मद्रास कला स्कूल के दो प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम बताओ।
उत्तर-
डी० आर० चौधरी तथा के० सी० एस० पानिकर।

प्रश्न 8.
हवा वाले (वात्) तीन वाद्य यन्त्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
(1) बांसुरी (2) शहनाई (3) अलगोज़ा।

प्रश्न 9.
‘मुम्बई के प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम’ का आधुनिक नाम क्या है ? यह किस भवन के निकट स्थित
उत्तर-
मुम्बई के प्रिंस ऑफ वेल्ज़ म्यूज़ियम का आधुनिक नाम ‘छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय’ है। यह गेटवे ऑफ़ इण्डिया के निकट स्थित है।

प्रश्न 10.
गेटवे ऑफ़ इंडिया को किन दो शिल्पकारों ने बनाया था ?
उत्तर-
जार्ज विलटेट तथा उसके मित्र जॉन बेग ने।

प्रश्न 11.
चेन्नई के दो प्रसिद्ध समुद्री तटों के नाम बताइए।
उत्तर-
मैरीना तथा वी० जी० बी० गोल्डन बीच।।

प्रश्न 12.
चेन्नई की ‘वार मैमोरियल’ नामक इमारत किसकी याद में बनाई गई थी ?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों की याद में।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक उपन्यास के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक काल में बंकिम चन्द्र चटर्जी, माइकल मधुसूदन दत्त तथा शरत् चन्द्र चटर्जी बंगाली साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान् थे। बंकिम चन्द्र चटर्जी ने बंगला भाषा में एक प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनन्द मठ’ लिखा। इसमें कई गीत हैं। इनमें हमारा राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ भी शामिल है। इस उपन्यास को वर्तमान ‘बंगाली देश-प्रेम की बाइबल’ कहा गया है। ___मुंशी प्रेमचन्द ने उर्दू तथा हिन्दी भाषा में कई उपन्यास लिखे। उन्होंने अपने ‘गोदान’ तथा ‘रंगभूमि’ उपन्यासों में अंग्रेज़ी सरकार द्वारा किसानों के शोषण पर प्रकाश डाला है। हेमचन्द्र बैनर्जी, दीन बन्धु मित्र, रंग लाल, केशव चन्द्र सेन, रवीन्द्र नाथ टैगोर (ठाकुर) आदि विद्वानों की रचनाओं ने भी लोगों के दिलों में देश-प्रेम की भावनाएं कूट-कूट कर भर दी थीं।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक काव्य-रचना के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
यूरोप के साहित्य के संपर्क में आने के पश्चात् भारतीय काव्य-रचना में रोमांसवाद का आरम्भ हुआ। परन्तु भारतीय काव्य रचना ने राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय आन्दोलन पर अधिक बल दिया। भारत के प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर (बंगाली), इक़बाल (उर्दू), कॉज़ी नज़रुल इस्लाम (बंगाली), केशव सुत (मराठी), सुब्रह्मण्यम भारती (तमिल) आदि हैं। 1936 ई० के पश्चात् की काव्य-रचना में लोगों के दैनिक जीवन तथा उनके कष्टों का वर्णन मिलता है। फैज तथा मेज़ाज़ (उर्दू), जीवन नन्द दास (बंगाली), अज्ञेय तथा मुक्ति बोध (हिन्दी) आदि कवियों ने नई काव्य-रचना प्रस्तुत की। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद नई काव्य-रचना रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह (हिन्दी), शक्ति चट्टोपाध्याय (बंगाली) आदि कवियों द्वारा की गई।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक नाटक तथा सिनेमा के क्षेत्र में क्या विकास हुआ ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक भारतीय कलाकारों तथा नाटककारों ने नाटक प्रस्तुति में पश्चिमी तथा पूर्वी शैलियों को मिश्रित करने का प्रयत्न किया। सिनेमा संगठन ने नाटक तथा सिनेमा में लोगों की रुचि पैदा करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान किया। गिरीश कारनंद (कन्नड़), विजय तेंदुलकर (मराठी) आदि इस काल के प्रसिद्ध नाटककार हैं। मुलख राज आनन्द, राजा राऊ, आर० के० नारायण ने अंग्रेज़ी भाषा में नाटक लिखे।

रवीन्द्र नाथ टैगोर भी इस काल के प्रसिद्ध नाटककार थे। उनकी रचनाओं में प्राचीन भारतीय परम्पराओं तथा यूरोप की नव-जागृति का सुन्दर मिश्रण मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा राष्ट्रीय जागृति लाने तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानववाद को विकसित करने का प्रयास किया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

प्रश्न 4.
फोर्ट सेंट जार्ज पर नोट लिखो।
उत्तर-
फोर्ट सेंट जार्ज चेन्नई में स्थित है। यह भारत में पहला अंग्रेज़ी किला था। इसका निर्माण 1639 ई० में हुआ था। इसका नाम सेंट जार्ज के नाम पर रखा गया था। शीघ्र ही यह किला अंग्रेज़ों की व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। कर्नाटक क्षेत्र में अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित करने में इसका काफ़ी योगदान रहा। आजकल इस भवन में तमिलनाडु राज्य की विधानसभा तथा सचिवालय (सेक्रेट्रिएट) के दफ़्तर स्थित हैं। इस किले की चारदीवारी पर टीपू सुल्तान के चित्र मौजूद हैं जो इसकी शोभा बढ़ाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं तथा 20वीं सदी के आरम्भ में चित्रकारी कला के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
19वीं सदी तथा 20वीं सदी के आरम्भ में कला स्कूलों तथा कला ग्रुपों द्वारा भारतीय चित्रकारी के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आये। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. राजा रवि वर्मा-राजा रवि वर्मा चित्रकला में अति निपुण था। वह केवल चित्रकला में ही नहीं अपितु मूर्तियाँ बनाने में भी प्रवीण था। उसने यूरोपियन प्रकृतिवाद को भारतीय पौराणिक कथा तथा किस्सों (कहानियों) के साथ मिला कर चित्रित किया। उसके द्वारा बनाये गये चित्र भारत में महाकाव्यों तथा संस्कृत साहित्य से सम्बन्धित हैं। उसने भारत के अतीतकाल को चित्रों के माध्यम से प्रकट किया है।

2. बंगाल का कला स्कूल-रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा हावैल कुमार स्वामी ने बंगाल कला स्कूल को प्रफुल्लित करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। इस स्कूल के प्रसिद्ध चित्रकारों ने भारतीय पौराणिक कथाओं, महाकाव्यों तथा पुरातन साहित्य पर आधारित चित्र बनाये। उन्होंने जल रंगों से छोटे चित्र बनाये। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने जापानी तकनीक में जल रंगों का उपयोग किया। उन्होंने शान्ति-निकेतन में कला-भवन की स्थापना की।

3. अमृता शेरगिल तथा जॉर्ज कीट- अमृता शेरगिल तथा जॉर्ज कीट भी प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे। उन्हें आधुनिक यूरोपियन कला, आधुनिक जीव-आत्मा तथा हाव-भाव के बारे में अधिक जानकारी थी। अमृता शेरगिल के तैलचित्रों के शीर्षक भिन्न-भिन्न थे तथा उनके रंग विचित्र थे। परन्तु उनमें भारतीय नारियों की आकृतियां बनाई गई थीं। जॉर्ज कीट द्वारा पित्रों में प्रयुक्त रंग-शैली बहुत ही प्रभावशाली थी।

4. रवीन्द्र नाथ टैगोर-रवीन्द्र नाथ टैगोर के चित्र उनके अपने अनुभव पर आधारित थे। उन्होंने जल रंगों तथा रंगदार चाक से रेखांकित अनेक चित्र बनाए।

5. बम्बई के प्रसिद्ध कलाकार-फ्रांसिस न्यूटन सुज़ा इस स्कूल का एक प्रसिद्ध कलाकार था। उसने प्रभावशाली रंगों से विभिन्न नमूनों (मॉडलों) के चित्र बनाए। के० एच० अरा द्वारा बनाए गए फूलों तथा नारियों के चित्र अपने रंगों तथा विलक्षणता के कारण प्रसिद्ध हैं। एस० के० बेकर, एच० ए० गेड तथा एम० एफ० हुसैन आदि बम्बई के अन्य प्रसिद्ध चित्रकार हैं।

6. बड़ौदा (बड़ोदरा) यूनिवर्सिटी का आर्ट स्कूल-जी० आर० सन्तोष, गुलाम शेख, शान्ति देव आदि इस स्कूल के प्रसिद्ध चित्रकार हैं। प्रत्येक कलाकार का चित्र बनाने का अपना ही ढंग है; परन्तु प्रत्येक कलाकार के काम में आधुनिकता के दर्शन होते हैं।

7. मद्रास का कला स्कूल-यह स्कूल स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डी० आर० चौधरी तथा के० सी० एस० पणिकर के मार्गदर्शन में प्रफुल्लित हुआ। इस स्कूल के अन्य प्रसिद्ध कलाकार सतीश गुजराल, राम कुमार, के० जी० सुब्रह्मण्यम
इन सब कला स्कूलों के अतिरिक्त नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में आधुनिक कला के नमूने देखने को मिलते हैं। ललित कला अकादमी ने वज़ीफ़े (छात्रवृत्तियां), ग्रांटें (अनुदान) आदि प्रदान करके कलाकारों को प्रोत्साहित किया है।

प्रश्न 2.
19वीं तथा 20वीं सदी के आरम्भ में प्रेस के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
अंग्रेजी राज से पूर्व भारत में कोई छापाखाना नहीं था। मुग़लों के शासन-काल में अख़बार (समाचार-पत्र) हाथ से लिखे होते थे, जिन्हें मुग़ल बादशाह तथा धनी व्यापारी अपने उपयोग के लिए तैयार करवाते थे। भारत में सर्वप्रथम छापाखाना 1557 ई० में पुर्तगालियों ने स्थापित किया। परन्तु उनका उद्देश्य केवल ईसाई साहित्य छाप कर ईसाई मत का प्रचार करना था।

1857 तक प्रेस का विकास-

(1) लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ की प्रेस सम्बन्धी उदार नीति के कारण कलकत्ता तथा दूसरे नगरों में कई समाचार-पत्र छपने लगे। एक प्रसिद्ध पत्रकार जे० एस० ने 1818 ई० में ‘कलकत्ता जरनल’ नाम का समाचार-पत्र छापना आरम्भ किया। इसी समय ही सेरामपुर में जी० सी० मार्शमैन ने ‘दर्पण’ तथा ‘दिग्दर्शन’ नाम के समाचार-पत्र छापने आरम्भ किये।

(2) 1821 ई० में राजा राम मोहन राय ने बंगला भाषा में ‘संवाद-कौमुदी’ तथा 1822 ई० में फ़ारसी भाषा में ‘मिरत-उल-अख़बार’ नाम के दो समाचार-पत्र छापने आरम्भ किये। इसी समय फ़रदूनज़ी मुरज़बान ने गुजराती भाषा में ‘बंबे समाचार’ नाम का अख़बार छापना शुरू किया।

1857 ई० के बाद प्रेस का विकास-1857-58 ई० में भारत के भिन्न-भिन्न भागों में काफ़ी संख्या में नये समाचार-पत्र छपने लगे। तत्पश्चात् 1881-1907 ई० के काल में प्रेस का बहुत अधिक विकास हुआ। उदाहरण के लिए बाल गंगाधर तिलक ने मराठी भाषा में ‘केसरी’ तथा अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ नामक अखबार छापने शुरू किये। बंगाल – में घोष भाइयों के प्रयत्नों से ‘युगान्तर’ तथा ‘वन्दे मातरम्’ नाम के समाचार-पत्र छपने आरम्भ हुए जो अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध आवाज़ उठाने लगे। इस काल में कई मासिक-पत्र भी छपने लगे। इनमें 1899 ई० से ‘दि-हिन्दुस्तान-रिव्यू’, 1900 ई० से ‘दि-इण्डियन रिव्यू’ तथा 1907 ई० से ‘दि-मॉडर्न-रिव्यू’ आदि शामिल थे।

प्रश्न 3.
विषय अध्ययन-मुम्बई तथा चेन्नई का वर्णन करें।
उत्तर-
बम्बई को आजकल मुम्बई तथा मद्रास को चेन्नई कहा जाता है। ये दोनों नगर अंग्रेज़ी शासन काल में प्रमुख प्रेजीडेंसियां बन गई थीं। शीघ्र ही ये नगर राजनीतिक, व्यापारिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र भी बन गये। इन दोनों नगरों ने ललित कलाओं (संगीत तथा नृत्य आदि) में बहुत अधिक उन्नति की।

1. मुम्बई-1668 ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन बम्बई राजनीतिक तथा व्यापारिक गतिविधियों के स्थान पर सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया था। इस नगर को शाही संरक्षण मिलने के कारण यहां कई नये स्कूल तथा कॉलेज खोले गये। सभी ललित कलाओं-संगीत, नृत्य तथा नाटक का सर्वपक्षीय विकास हुआ। नई लेखन-कला का विकास होने से साहित्य के क्षेत्र में तीव्र गति से वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त साहित्य, चित्रकला तथा भवन निर्माण कला की नई शैलियों का विकास हुआ।

मुंबई के भवन-मुम्बई के भवन-निर्माण कला के विभिन्न नमूने आज भी हमें उपनिवेशवादी (अंग्रेज़ी) शासकों की याद दिलाते हैं। ये सभी भवन भारतीय-यूरोपियन शैली में बने हुए हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

(i) प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम-प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम को आजकल ‘छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तुसंग्रहालय’ कहा जाता है। यह गेटवे ऑफ़ इण्डिया के समीप दक्षिणी मुम्बई में स्थित है। इसे 20वीं शताब्दी के आरम्भ में प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ तथा ब्रिटेन के शासक एडवर्ड सातवें की भारत यात्रा की याद में बनाया गया था। इसे बनाने का काम 1909 ई० में एक प्रसिद्ध शिल्पकार जॉर्ज विलटेट को सौंपा गया था। यह भवन 1915 ई० में बनकर तैयार हुआ। इस अजायबघर की निर्माण कला में भवन-निर्माण सम्बन्धी कई तत्त्वों का सुन्दर मिश्रण है। इस प्रमुख भवन की तीन मंज़िलें हैं तथा सबसे ऊपर गुम्बद बना हुआ है। यह गुम्बद आगरे के ताजमहल के गुम्बद से मिलता-जुलता है। इसकी बाहर निकली हुई बाल्कोनियां तथा जुड़े हुए फर्श मुग़लों के महलों (प्रासादों) से मेल खाते हैं। इस अजायबघर में सिन्धु घाटी की सभ्यता की कारीगरी के नमूने तथा प्राचीन भारत के स्मारक देखे जा सकते हैं।

(ii) गेटवे ऑफ़ इण्डिया गेटवे ऑफ़ इण्डिया, अरब सागर के तट पर प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम के समीप स्थित है। इसे जॉर्ज विलटेट तथा उसके मित्र जॉन बेग ने बनाया था। इसका निर्माण 1911 ई० में जॉर्ज पंचम तथा रानी मैरी की भारत में दिल्ली दरबार यात्रा की याद में किया गया था।

(iii) विक्टोरिया टर्मिनस-विक्टोरिया टर्मिनस 1888 ई० में बना था। अब यह छत्रपति शिवाजी के नाम से जाना जाता है। आरम्भ में इसका नाम ब्रिटेन की शासिका क्वीन विक्टोरिया के नाम पर रखा गया था। इसका नमूना प्रसिद्ध अंग्रेज़ शिल्पकार एफ० डब्ल्यू स्टारस (स्टीवन्स) द्वारा तैयार किया गया था। इसे बनाने में लगभग 10 साल का समय लगा था। मार्च 1996 ई० में इसे ‘छत्रपति शिवाजी टर्मिनस’ का नाम दिया गया। 2 जुलाई, 2004 ई० को इसे ‘यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर (विरासत)’ में सम्मिलित कर लिया गया।

(iv) मुम्बई के अन्य भवन-पीछे लिखे भवनों के अतिरिक्त मुम्बई में अन्य महत्त्वपूर्ण भवन-जनरल पोस्ट ऑफिस, म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, राजाभाई टावर, बम्बई यूनिवर्सिटी, एल्फाइन स्टोन कॉलेज आदि हैं। ये सभी भवन 19वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरम्भ में बनाए गए थे।

2. चेन्नई-चेन्नई (मद्रास) का निर्माण 1639 ई० में स्थानीय राजा से भूमि लेकर किया गया था। 1658 ई० में यह एक महानगर के रूप में विकसित हुआ और एक प्रेजीडेंसी बन गया। इस नगर में दक्षिण भारत की सभी प्रकार की कलाओं जैसे कि संगीत तथा नृत्य आदि का विकास हुआ। 19वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक चेन्नई में .. बहुत-से भवनों का निर्माण किया गया। यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्नलिखित हैं

(i) चेन्नई के समुद्री तट-चेन्नई के समुद्री तट बहुत प्रसिद्ध हैं। इनमें से मैरीना समुद्री तट विशेष रूप से विख्यात है। यह लगभग 6 किलोमीटर लम्बा है। इसके सामने कई प्रमुख भवन स्थित हैं। वी० जी० पी० गोल्डन बीच एक अन्य प्रसिद्ध बीच है। यहां खिलौना रेलगाड़ी होने के कारण प्रायः बच्चों की भीड़ लगी रहती है।

(ii) फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज-फोर्ट सेंट जॉर्ज भारत में प्रथम अंग्रेज़ी किला था। इसका निर्माण 1639 ई० में किया गया था और इसका नाम सेंट जॉर्ज के नाम पर रखा गया। यह शीघ्र ही अंग्रेजों की व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों का कर्नाटक क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने में इस किले का विशेष योगदान रहा। आजकल इस भवन में तमिलनाडु राज्य की विधानसभा तथा सचिवालय के दफ्तर स्थित हैं। टीपू सुल्तान के चित्र इस किले की चारदीवारी की शोभा बढ़ाते हैं।

(iii) वार मेमोरियल-वार मेमोरियल भी एक सुन्दर भवन है जिसे चेन्नई में बनाया गया था। इसका निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में किया गया था।

(iv) हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय)-चेन्नई में हाई कोर्ट का भवन 1892 ई० में बनाया गया था। यह संसार का दूसरा प्रसिद्ध न्यायिक काम्प्लेक्स है। इसके गुंबद तथा बरामदे भारत-यूरोपियन भवन-निर्माण कला के उत्तम नमूने हैं।

(v) अन्य प्रसिद्ध भवन-चेन्नई में बने ब्रिटिश काल के अन्य प्रसिद्ध भवन जॉर्ज टावर, सन्त टॉमस (थॉमस) कैथेडरल बैसीलिका (सेंट टॉमस कैथेडरल बेसीलिका), प्रेजीडेंसी कॉलेज, रिपन बिल्डिंग, चेन्नई सेंट्रल स्टेशन, दक्षिणी रेलवे हैडक्वार्टर्ज़ आदि हैं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 20 कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन

कलाएं-चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला आदि में परिवर्तन PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत में कलाएं तथा साहित्य – भारत में चित्रकारी, साहित्य, भवन-निर्माण कला, संगीत-नृत्य तथा सिनेमा आदि ललित कलाओं का शोभायमान इतिहास है। 19वीं शताब्दी में तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत की राजनीतिक सत्ता में परिवर्तन होने के कारण विशेष रूप से साहित्य एवं ललित कलाओं के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ।
  • उपन्यास – उपन्यास को बंकिम चन्द्र चटर्जी, शरतचन्द्र चटर्जी, मधुसूदन दत्त, दीनबन्धु मित्र, केशवचंद्र सेन आदि उपन्यासकारों ने समृद्ध बनाया।
  • ललित कलाएं – इन कलाओं में मुख्य रूप से संगीत तथा नृत्य आदि शामिल हैं। अंग्रेज़ी काल में इन कलाओं में काफ़ी विकास हुआ।
  • मुम्बई तथा चेन्नई में भवन-निर्माण – अंग्रेजों ने मुम्बई तथा चेन्नई में कई शानदार भवन बनवाये। इनमें से अधिकांश भवन भारतीय-यूरोपीय शैली में बने हैं।
  • मुम्बई के मुख्य भवन – प्रिंस ऑफ़ वेल्ज़ म्यूज़ियम, गेटवे ऑफ इण्डिया, विक्टोरिया टर्मिनस, राजाबाई टावर
    आदि।
  • चेन्नई के दर्शनीय स्थल मेरीनो तट तथा वी० जी० बी० गोल्डन बीच, फोर्ट सेंट जार्ज, वार मैमोरियल, हाइकोट इत्यादि।