PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नागरिक की परिभाषा दीजिए।
(Give the definition of citizen.)
उत्तर-
नागरिक शब्द का अर्थ (Meaning of the word Citizen)-नागरिक शब्द अंग्रेज़ी के ‘सिटीजन’ (Citizen) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जिसका अर्थ है नगर निवासी। इस अर्थ में नागरिक वह व्यक्ति होता है जो किसी नगर की निश्चित परिधि के अन्दर निवास करता है। अतः इस अर्थ के अनुसार जो व्यक्ति गांवों में रहते हैं उन्हें हम नागरिक नहीं कह सकते। परन्तु नगारिक शास्त्र में ‘नागरिक’ शब्द का विशेष अर्थ है। नागरिक शास्त्र में उस व्यक्ति को नागरिक कहा जाता है जिसे राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हों। भारत में 18वर्ष के पुरुष और स्त्री को मत देने का अधिकार प्राप्त है।

प्राचीन यूनान में छोटे-छोटे नगर-राज्य होते थे। जिन व्यक्तियों को शासन के कार्यों में भाग लेने का अधिकार होता था, उन्हीं को नागरिक कहा जाता था। समस्त जनता को शासन के कार्यों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता था। उन दिनों यूनान में दास प्रथा प्रचलित थी। दासों को नागरिकों की सम्पत्ति समझा जाता था। स्त्रियां, बच्चे, शिल्पकार और व्यापारी लोग नगर-निवासी होते हुए भी नागरिक नहीं समझे जाते थे।

परन्तु आजकल नागरिक शब्द का विस्तृत अर्थ लिया जाता है। आज राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को, जिसे सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं, नागरिक कहा जाता है।

नागरिक की परिभाषाएं (Definitions of Citizen)—विभिन्न लेखकों ने ‘नागरिक’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। जिनमें से कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसे राज्य के शासन-प्रबन्ध या न्याय-विभाग में भाग लेने का पूर्ण अधिकार हो।” (“He, who has the power to take part in the deliberative or judicial administration of any state, is a citizen.”) अरस्तु की परिभाषा वर्तमान राज्यों में लागू नहीं होती। आज राज्य इतने बड़े हैं कि सारी जनता राज्य के शासन तथा न्याय विभाग में भाग नहीं ले सकती। जनता का कुछ भाग ही शासन में भाग लेता है। आज नागरिक का विस्तृत अर्थ लिया जाता है।

2. वाटल (Vattal) के अनुसार, “नागरिक किसी राज्य के सदस्य होते हैं, जो कुछ कर्तव्यों द्वारा राजनीतिक समाज में बन्धे होते हैं तथा उससे प्राप्त होने वाले लाभ के बराबर के हिस्सेदार होते हैं।”

3. श्रीनिवास शास्त्री (Shriniwas Shastri) के अनुसार, “नागरिक राज्य का वह सदस्य है जो इसमें रह कर एक तरफ से अपनी उन्नति के विकास के लिए प्रयत्न करता है और दूसरी ओर सारे समाज की भलाई के लिए सोचता है।”

4. प्रो० लॉस्की (Laski) के अनुसार, “नागरिक वह व्यक्ति है जो संगठित समाज का सदस्य ही नहीं वरन् आदेशों को प्राप्त करने वाला तथा कतिपय कर्तव्यों का पालन करने वाला बुद्धिमान् व्यक्ति है।” ।

5. प्रो० ए० के० सीयू (A.K. Sew) के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहा जाता है जो राज्य के प्रति वफादार हो। जिसको राज्य राजनीतिक व सामाजिक अधिकार देता है और जिसमें मनुष्य की सेवा की भावना पाई जाती है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आधुनिक दृष्टि से नागरिक वह व्यक्ति है, जो राज्य के प्रति निष्ठा रखता हो और जिसे सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों।

नागरिक की विशेषताएं (Characteristics of a Citizen)-नागरिक को मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. नागरिक किसी राज्य के सदस्य को कहते हैं।
  2. नागरिक अपने राज्य में स्थायी रूप से रहता है या रह सकता है। राज्य उसे वहां से निकलने को नहीं कह सकता।
  3. नागरिक को राज्य की ओर से कुछ अधिकार मिले होते हैं, जिन्हें वह अपने और समाज कल्याण के लिए प्रयोग कर सकता है।
  4. नागरिक को कुछ कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। उसे राज्य के कानूनों का पालन करना पड़ता है।
  5. नागरिक राज्य के प्रति भक्ति की भावना रखता है और उसकी रक्षा के लिए वचनबद्ध होता है और यदि आवश्यकता पड़े, तो उसे अनिवार्य सैनिक सेवा भी करनी पड़ती है।

प्रश्न 2.
नागरिकता का क्या अर्थ है ? नागरिकता के प्रकार और इसको प्राप्त करने के ढंग बताएं।
(What is the meaning of Citizenship ? Define its kinds and methods of acquiring citizenship.)
अथवा
नागरिकता का क्या अर्थ है ? नागरिकता प्राप्त करने के तरीकों का वर्णन करो।
(What is the meaning of Citizenship ? Describe the methods of acquiring Citizenship.)
उत्तर-
नागरिकता का अर्थ एवं परिभाषाएं-नागरिकता की धारणा उतनी ही प्राचीन है, जितनी कि यूनानी नगर राज्य तथा संस्कृति । नागरिकता का अर्थ सदैव एक-जैसा नहीं रहा है बल्कि समय के अनुसार बदलता रहा है। यूनानी नगर-राज्य में नागरिकता का अधिकार सीमित व्यक्तियों को प्राप्त था। प्राचीन नगर-राज्य में नागरिकता उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त थी, जो नगर-राज्यों के शासन प्रबन्ध में हिस्सा लेते थे। स्त्रियों, गुलामों और विदेशियों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था। अतः वे नागरिक नहीं थे।

अरस्तु (Aristotle) ने केवल “उस व्यक्ति को ही नागरिक की पदवी दी है जिसको किसी नगर की न्यायापलिका (Judiciary) या कार्यपालिका में भाग लेने का अधिकार हो।” अरस्तु श्रमिकों को नागरिकता प्रदान नहीं करता क्योंकि उसके मतानुसार श्रमिकों के पास नागरिक के अधिकारों के प्रयोग के लिए न तो योग्यता और न ही पर्याप्त अवकाश होता है। उसका नागरिकता सम्बन्धी विचार वास्तव में कुलीनतन्त्रात्मक है।

आधुनिक युग में नागरिकता की धारणा बहुत व्यापक है-आज नागरिकता केवल राज्य के प्रशासन में भाग लेने वाले को प्राप्त न होकर बल्कि निवास के आधार पर प्राप्त होती है। समस्त व्यक्ति बिना जाति-पाति, लिंग या ग्राम या नगर के निवास तथा सम्पत्ति के, भेदभाव के आधुनिक राज्यों के नागरिक माने जाते हैं। राज्य के प्रशासन में प्रत्यक्ष तौर पर भाग लेना अनिवार्य नहीं है।
नागरिकता की आधुनिक परिभाषाएं (Modern Definitions of Citizenship)—नागरिकता उस वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध का नाम है जो व्यक्ति को उस राज्य के साथ जिसका वह सदस्य है, सम्बद्ध करता है।

लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “अपनी सुलझी हुई बुद्धि को जनहितों के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।” (“Citizenship is the contribution of one’s instructed judgement to public good.”)

गैटल (Gettel) के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जिसके कारण वह अपने राज्य में राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का उपयोग कर सकता है और अपने कर्तव्यों के पालन के लिए तैयार रहता है।” (“Citizenship is that condition of individual due to which he can use national and political rights in his state and is ready to fulfil obligation.”)

बायड (Boyd) के अनुसार, “नागरिकता अपनी वफ़ादारियों को ठीक निभाना है।” (“Citizenship consists in the right ordering of loyalities.”) इस प्रकार किसी राज्य और उसके नागरिकों के उन आपसी सम्बन्धों को ही नागरिकता कहा जाता है जिससे नागरिकों को राज्य की ओर से सामाजिक और राजनीतिक अधिकार मिलते हैं तथा वे राज्य के प्रति कुछ कर्त्तव्यों का पालन करते हैं।

नागरिकता की विशेषताएं (Characteristics of Citizenship) उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर नागरिकता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. राज्य की सदस्यता (Membership of the State) नागरिकता की प्रथम विशेषता यह है कि नागरिक को किसी राज्य का सदस्य होना आवश्यक होता है। एक राज्य का सदस्य होते हुए भी वह किसी दूसरे राज्य में अस्थायी तौर पर निवास कर सकता है।
  2. सर्वव्यापकता (Comprehensive)-आधुनिक नागरिकता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सर्वव्यापकता है। यह न केवल नगर निवासी बल्कि ग्रामों के लोगों, स्त्रियों व पुरुषों को भी प्राप्त होती है। नागरिकता प्रदान करते समय ग़रीबअमीर, जाति-पाति आदि को नहीं देखा जाता।
  3. राज्य के प्रति भक्ति (Allegiance to the State)-नागरिकता की तीसरी विशेषता यह है कि नागरिक अपने राज्य के प्रति वफ़ादारी रखता है।
  4. अधिकारों का उपयोग (Use of Rights)-नागरिक को राज्य की ओर से कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं। ये अधिकार राजनीतिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार के होते हैं। साम्यवादी देशों में नागरिकों को आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं।
  5. कर्तव्यों का पालन (Performance of Duties) नागरिकता की एक अन्य विशेषता यह है कि नागरिकों को राष्ट्र और समाज की उन्नति के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। राज्य के कानूनों का निष्ठापूर्वक पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होता है।
  6. सक्रिय योगदान (Active Participation)-आधुनिक नागरिकता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सामाजिक कल्याण के लिए सक्रिय योगदान देना है।

नागरिकता के प्रकार (Kinds of Citizenship)-नागरिकता दो प्रकार की होती है-जन्मजात और राज्यकृत। जन्मजात नागरिकता जन्म के नियम से नियमित होती है और जब विदेशियों को दूसरे देश की नागरिकता मिलती है, उसे राज्यकृत नागरिकता कहते हैं।

नागरिकता प्राप्त करने का ढंग (Methods to Acquire Citizenship)-

(क) जन्मजात नागरिकता की प्राप्ति (Acquisition of Natural born Citizenship)-जन्मजात नागरिकता दो तरीकों से प्राप्त होती है-

1. रक्त सम्बन्धी सिद्धान्त (Blood Relationship)—जन्मजात नागरिकता प्राप्त करने का प्रथम ढंग रक्त सम्बन्ध है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके माता-पिता की नागरिकता से होता है। बच्चे का जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हो, उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। भारत में इसी सिद्धान्त को अपनाया गया है। एक भारतीय नागरिक का बच्चा कहीं भी पैदा हो, चाहे जापान में, चाहे अमेरिका में, वह भारतीय ही कहलाएगा। इसी तरह एक अंग्रेज़ का बच्चा कहीं भी पैदा हो चाहे फ्रांस में, चाहे भारत में, अंग्रेज़ ही कहलाएगा। एक जर्मन का बच्चा चाहे कहीं भी उत्पन्न हो, जर्मन ही कहलाएगा। फ्रांस, इटली, स्विट्ज़रलैंड तथा स्वीडन में भी इसी सिद्धान्त को अपनाया गया है।

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2. जन्म-स्थान सिद्धान्त (Birth-place)-इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके जन्मस्थान के आधार पर किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त होती है जिस देश की भूमि पर उसका जन्म हुआ हो। बच्चे के पिता की नागरिकता को ध्यान में नहीं रखा जाता। अर्जेण्टाइना में यह सिद्धान्त लागू है। अर्जेण्टाइना में यदि कोई विदेशी सैर के लिए जाते हैं और उनकी सन्तान अर्जेण्टाइना में उत्पन्न होती है तो बच्चे को अर्जेण्टाइना की नागरिकता प्राप्त होती है। एक भारतीय की सन्तान को जिसका जन्म जापान में हुआ हो, जापानी नागरिक माना जाएगा।

दोहरा नियम (Double Principle)-कई देशों में दोनों सिद्धान्तों को अपनाया गया है। इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका में रक्त-सम्बन्धी सिद्धान्त तथा जन्म-स्थान सिद्धान्त दोनों प्रचलित हैं। दोहरे नियम के सिद्धान्त के अनुसार जो बच्चे अंग्रेज़ दम्पति से उत्पन्न हों, चाहे बच्चे का जन्म भारत में हो, चाहे जापान में, अंग्रेज़ कहलाता है और उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त यदि किसी विदेशी के इंग्लैंड में सन्तान पैदा होती है, उसे भी इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

सिद्धान्तों के दोष (Defects of these Principles)-इन सिद्धान्तों के कई दोष हैं। जैसे कि एक व्यक्ति एक समय में दो राज्यों का नागरिक भी बन सकता है और यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को किसी देश की नागरिकता प्राप्त ही न हो। इन दोनों दोषों की व्याख्या इस प्रकार है-

1. दोहरी नागरिकता (Double Citizenship)-कई बार एक बच्चे को दो राज्यों की नागरिकता भी मिल जाती है। यदि एक अंग्रेज़ दम्पति के अमेरिका में सन्तान उत्पन्न हो तो जो बच्चा जन्म लेगा उसे दोहरी नागरिकता प्राप्त होगी। रक्त-सम्बन्धी सिद्धान्त के अनुसार अंग्रेज़ दम्पति के बच्चे को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त होगी और जन्म-स्थान सिद्धान्त के अनुसार अमेरिका की नागरिकता प्राप्त होगी। इसी तरह यदि एक जर्मन दम्पति के इंग्लैंड में बच्चा पैदा हो जाता है तो उस बच्चे को जर्मनी तथा इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। रक्त सम्बन्धी सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को जर्मनी की नागरिकता प्राप्त होती है और जन्म-स्थान सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त होती है। दोहरी नागरिकता एक समस्या है। यदि दो देशों में युद्ध आरम्भ हो जाए तो समस्या उत्पन्न हो जाती है कि वह किस देश का नागरिक है। ऐसी दशा में नागरिक का बुरा हाल होता है क्योंकि दोनों देश उस नागरिक को शंका की नज़र से देखते हैं। इस समस्या को समाप्त करने के दो ढंग हैं

  • प्रथम, यदि माता-पिता बच्चे के जन्म के पश्चात् अपने देश ले जाएं और रहना शुरू कर दें तो बच्चे को अपने पिता की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  • दूसरे विचार के अनुसार बच्चा वयस्क (Adult) हो कर अपनी नागरिकता का स्वयं निर्णय कर सकता है। वह दोनों में से किसी एक राज्य की नागरिकता को छोड़ सकता है।

2. नागरिकता विहीन या राष्ट्रीयता विहीन (Statelessness)-किसी समय ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि बच्चे को किसी भी देश की नागरिकता प्राप्त न हो। अर्जेण्टाइना (Argentina) में जन्म-स्थान सिद्धान्त और फ्रांस (France) में रक्त सिद्धान्त को अपनाया गया है। अर्जेण्टाइना के नागरिक नव-दम्पत्ति की जो सन्तान फ्रांस में उत्पन्न होगी वह न तो अर्जेण्टाइना और न ही फ्रांस की नागरिकता प्राप्त कर सकेगी। ऐसी स्थिति का हल करने के लिए देशीयकरण का साधन प्रयोग में लाया जा सकता है।

कौन-सा सिद्धान्त अच्छा है ? (Which Principle is better ?)-आम मत यह है कि जन्म-स्थान सिद्धान्त की अपेक्षा रक्त-सिद्धान्त अधिक अच्छा है। जन्म-स्थान सिद्धान्त में संयोगवश अप्रत्याशित अवसर अधिक है। इसके साथ-साथ रक्त-सिद्धान्त के अनुसार प्राप्त नागरिकता की दशा में नागरिक में अपने राज्य और देश के प्रति भक्ति, स्नेह और श्रद्धा की भावनाओं का अधिक प्रबल होना स्वाभाविक है। अतः रक्त सिद्धान्त ही उचित दिखाई पड़ता है।

(ख) राज्यकृत नागरिकता प्राप्त करने के तरीके (How the Naturalised Citizenship is Acquired ?)राज्यकृत नागरिक वे नागरिक होते हैं जिन्हें नागरिकता जन्म-जात सिद्धान्त से प्राप्त नहीं होती, बल्कि जिन्हें नागरिकता सरकार की तरफ से प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति अपने देश को छोड़ कर किसी दूसरे देश में जा कर बस जाता है और कुछ समय पश्चात् उस देश की नागरिकता को प्राप्त कर लेता है तो उस व्यक्ति को राज्यकृत नागरिक कहा जाता है। नागरिकता देना अथवा न देना राज्य पर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति किसी राज्य को नागरिकता देने के लिए मज़बूर नहीं कर सकता। ऐसी नागरिकता प्रार्थना-पत्र देकर प्राप्त की जाती है। कई भारतीय विदेशों में जा कर बस गए हैं और उन्होंने वहां की नागरिकता प्राप्त कर ली है। नागरिकता की प्राप्ति निम्नलिखित ढंगों से की जा सकती है-

1. निश्चित समय के लिए निवास (Resident for Certain Period) यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश में जाकर बहुत समय के लिए रहे तो वह प्रार्थना-पत्र देकर वहां की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। सभी देशों में निवास की अवधि निश्चित है। इंग्लैंड और अमेरिका में निवास की अवधि पांच वर्ष है जबकि फ्रांस में दस वर्ष है। भारत में निवास की अवधि पांच वर्ष है।

2. विवाह (Marriage) विवाह करने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। यदि कोई स्त्री किसी दूसरे देश के नागरिक से शादी कर लेती है तो उसे अपने पति की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। भारत का नागरिक यदि इंग्लैंड की स्त्री से शादी कर लेता है तो उस स्त्री को भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। जापान में इसके उलट नियम है। यदि कोई विदेशी जापान की स्त्री से शादी कर लेता है तो उसे जापान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

3. सम्पत्ति खरीदना (Purchase of Property)-सम्पत्ति खरीदने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ब्राजील, पीरू और मैक्सिको में ऐसा नियम प्रचलित है। यदि कोई विदेशी पीरू में सम्पत्ति खरीद लेता है तो उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

4. गोद लेना (Adoption)-जब एक राज्य का नागरिक किसी दूसरे राज्य के नागरिक को गोद ले लेता है, तो गोद लिए जाने वाले व्यक्ति को अपने पिता की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

5. सरकारी नौकरी (Government Service)-कई राज्यों में यह नियम है कि यदि कोई विदेशी सरकारी नौकरी कर ले तो उसे वहां की नागरिकता मिल जाती है। उदाहरणस्वरूप यदि कोई भारतीय इंग्लैंड में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

6. विद्वानों को (For Scholars)-कई देशों में विदेशी विद्वानों को नागरिक बनाने के लिए विशेष सुविधाएं दी जाती हैं। विदेशी विद्वानों के निवास की अवधि दूसरे विदेशियों की निवास अवधि से कम होती है। फ्रांस में वैज्ञानिकों या विशेषज्ञों के लिए वहां की नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक वर्ष का निवास ही काफ़ी है।

7. विजय द्वारा (By Victory)-जब एक राज्य दूसरे राज्य को विजय करके अपने राज्य में मिला लेता है तो परास्त राज्य के नागरिकों को विजयी राज्य की नागरिकता मिल जाती है।

8. प्रार्थना-पत्र द्वारा (Through Application)-किसी देश के द्वारा निश्चित की गई कानूनी शर्ते पूरी करके प्रार्थना-पत्र देकर उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को अच्छे चरित्र और देश के प्रति वफ़दारी रखने का प्रमाण देना पड़ता है।

9. गैर कानूनी बच्चे (Illegitimate Children) यदि कोई नागरिक किसी विदेशी स्त्री से अनुचित सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, तो उसके बच्चे गैर-कानूनी कहलाते हैं। परन्तु यदि उन बच्चों के माता-पिता परस्पर शादी कर लेते हैं तो उन बच्चों को अपने पिता की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

10. राजनीतिक शरणागत (Political Asylum)-कई राज्यों में दूसरे देश के पीड़ित राजनीतिज्ञों को नागरिकता प्रदान करने की विशेष व्यवस्था है। चीन के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अपनी समाजवादी कार्यवाहियों और विचारों के कारण अपनी सरकार से पीड़ित हो तो चीन में शरण प्राप्त कर सकता है।

11. दोबारा नागरिकता की प्राप्ति (To accept Citizenship Again) यदि कोई नागरिक अपने देश की नागरिकता को छोड़ कर दूसरे राज्य की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसे दूसरे राज्य का नागरिक माना जाता है। परन्तु यदि वह चाहे तो अपने राज्य की नागरिकता कुछ शर्ते पूरी करके दोबारा प्राप्त कर सकता है।

संक्षेप में, नागरिकता कई तरीकों से प्राप्त की जा सकती है। परन्तु कई देशों में जन्म-जात नागरिकों तथा राज्यकृत नागरिकों को एक समान अधिकार नहीं दिए जाते। जिन देशों में दोनों तरह के नागरिकों को समान अधिकार नहीं दिए जाते, वहां प्रायः राज्यकृत नागरिकों को कम अधिकार प्राप्त होते हैं । अमेरिका में राज्यकृत नागरिक राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकते। राष्ट्रपति का चुनाव जन्म-जात नागरिक ही लड़ सकते हैं।

प्रश्न 3.
नागरिकता किस प्रकार खोयी जा सकती है ?
(How can citizenship be lost ?)
उत्तर-
जिस तरह नागरिकता को प्राप्त किया जा सकता है इसी तरह नागरिकता को खोया भी जा सकता है। प्रत्येक देश ने इसके लिए नियम बनाए हुए हैं। पर कई नियम प्रायः सभी देशों में एक समान हैं। नागरिकता को निम्नलिखित तरीकों से खोया जा सकता है-

1. लम्बे समय तक अनुपस्थिति (Long Absence)-कई देशों में यह नियम है कि यदि उनका नागरिक लम्बे समय तक बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। उदाहरणस्वरूप यदि फ्रांस का कोई नागरिक लगातार 10 वर्ष से अधिक समय के लिए फ्रांस से अनुपस्थित रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।

2. विवाह (Marriage)-स्त्रियां विदेशी नागरिकों से शादी करके अपने देश की नागरिकता खो बैठती हैं। भारत का नागरिक जापानी स्त्री से शादी करके जापान की नागरिकता प्राप्त कर लेता है परन्तु स्त्री को अपने देश की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।

3. विदेश में सरकारी नौकरी (Government Service Abroad)–यदि एक देश का नागरिक किसी दूसरे देश में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसकी अपने देश की नागरिकता समाप्त हो जाती है।

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4. स्वेच्छा से नागरिकता का त्याग (Voluntary Renunciation of Citizenship)-कई देशों की सरकारें अपने नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार किसी दूसरे देश का नागरिक बनने की आज्ञा प्रदान कर देती हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी जन्मजात नागरिकता त्याग कर अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं।

5. पराजय द्वारा (By Defeat)-जब एक देश दूसरे देश को जीत कर उसके क्षेत्र को अपने देश में मिला लेता है तो पराजित देश के नगारिक अपनी नागरिकता खो बैठते हैं और उन्हें विजयी देश की नागरिकता मिल जाती है।

6. सेना से भाग जाने से (Desertion from Army)- यदि कोई नागरिक सेना से भाग कर दूसरे देश में चला जाता है तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।

7. दोहरी नागरिकता प्राप्त होने का अर्थ है एक देश की नागरिकता को छोड़ना (Acquisition of Double Citizenship means the loss of citizenship of one country)— a fost afara at at poest ost नागरिकता प्राप्त हो जाती है तब उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।

8. देश-द्रोह (Treason)-जब कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध विद्रोह अथवा क्रान्ति करता है तो उसकी नागरिकता छीन ली जाती है। परन्तु देश-द्रोह के आधार पर उन्हीं नागरिकों की नागरिकता को छीना जा सकता है जो राज्यकृत नागरिक हों।

9. गोद लेना (Adoption) यदि कोई बच्चा किसी विदेशी द्वारा गोद ले लिया जाए, तो बच्चे की नागरिकता समाप्त हो जाती है और वह अपने नए मां-बाप की नागरिकता प्राप्त कर लेता है।

10. विदेशी सरकार से सम्मान प्राप्त करना (Acceptance of honour from Foreign Government)यदि कोई नागरिक अपने देश की आज्ञा के बिना किसी विदेशी सरकार द्वारा दिए गए सम्मान को स्वीकार कर लेता है, तो वह अपनी मूल नागरिकता से वंचित कर दिया जाता है।

11. विदेश में सम्पत्ति खरीदना (Purchase of Property in Foreign Land)–यदि किसी देश का नागरिक मैक्सिको या पीरू आदि देशों में सम्पत्ति खरीद ले तो वह उस देश का नागरिक बन जाएगा और उसकी अपने देश की नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

12. न्यायालय के निर्णय द्वारा (Judgement by the Judiciary) कई देशों में यह नियम अपनाया गया है कि वहां की न्यायपालिका किसी भी नागरिक को दण्ड के रूप में देश-निकाले का आदेश दे सकती है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की नागरिकता स्वयं समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 4.
आदर्श नागरिक के अनिवार्य गुणों का वर्णन करें।
(Explain the qualities essential for ideal citizen.)
अथवा
एक अच्छे नागरिक के क्या गुण हैं ?
(What are the qualities of a good citizen ?)
उत्तर-
कोई भी देश उस समय तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक कि उस देश के नागरिक अच्छे न हों। राज्य की उन्नति नागरिकों पर निर्भर है। अच्छे नागरिक से अभिप्राय ऐसे नागरिक से है जो अपने कर्तव्यों को पहचाने और उनका पालन करे, जो अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो और उनका पूरा-पूरा प्रयोग करे, जो औरों की स्वतन्त्रता का आदर उसी तरह से करे जैसा वह चाहता है कि अन्य लोग उसकी स्वतन्त्रता का आदर करें, जो केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए जीता है और जो मानव सभ्यता के विकास और प्रगति में अपना पूरा-पूरा योगदान देता है। लॉर्ड ब्राइस ने आदर्श नागरिक के लिए तीन गुण-बुद्धि, आत्मसंयम और उत्तरदायित्व पर जोर दिया है। डॉ० ई० एम० व्हाइट के अनुसार, “सामान्य बुद्धि, ज्ञान तथा कर्तव्य पालन अच्छी नागरिकता के गुण हैं।”

एक आदर्श नागरिक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएं-

1. शिक्षा (Education)-अच्छा नागरिक बनने के लिए व्यक्ति का सुशिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा ही अच्छे जीवन का आधार मानी गई है। नागरिक को शिक्षा के द्वारा अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान होता है और ज्ञान प्राप्त होने पर ही वह अधिकारों का प्रयोग कर सकता है तथा कर्तव्यों का पालन कर सकता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति का मानसिक विकास भी होता है और उनमें उदारता व नैतिकता की भावनाएं जागृत होती हैं। शिक्षा प्राप्त करने पर उसकी बुद्धि का विकास होता है जिससे वह देश की समस्याओं को समझने, उन पर विचार करने तथा उनको सुलझाने में अपनी राय बनाने तथा प्रकट करने के योग्य बनता है। शिक्षा के बिना लोकतन्त्र सफलतापूर्वक नहीं चल सकता।

2. सामाजिक भावना (Social Spirit) एक अच्छे नागरिक में सामाजिक भावना का होना भी आवश्यक है। नागरिक व्यक्ति पहले है और वह भी सामाजिक। समाज के बिना उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा जीवन का विकास नहीं हो सकता। अच्छे नागरिक केवल अपनी भलाई और स्वार्थ के लिए ही कार्य नहीं करते बल्कि मिल-जुल कर कार्य करते हैं और समस्त समाज के हित में कार्य करते हैं। यदि कोई व्यक्ति केवल अपना ही भला सोचता है तो वह एक अच्छा या आदर्श नागरिक नहीं कहा जा सकता। यदि कोई नागरिक केवल अपने ही कल्याण की बात सोचता रहे, दूसरों के साथ मिल-जुल कर चलने की बजाए सबसे अलग रहता हो, दूसरों के काम में हाथ न बंटाता हो, दूसरों के दुःख-सुख में भाग न लेता हो अर्थात् दूसरों से सम्बन्ध न रखता हो वह भी अच्छा नागरिक नहीं कहा जा सकता। लॉस्की (Laski) के अनुसार, “शिक्षित बुद्धि को सार्वजनिक हित में प्रयोग करना ही नागरिकता है।” (“Citizenship is the contribution of one’s instructed judgement to public good.”)

3. कर्त्तव्यपरायणता (Dutifulness)-अच्छे नागरिकों को अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहना और ईमानदारी से पालन करना आवश्यक है। जिस किसी के प्रति भी उनका कोई कर्त्तव्य है, उसे पूरी तरह से निभाएं। एक लेखक का कहना है, “अच्छी नागरिकता कर्त्तव्यों को उचित ढंग से निभाने में ही निहित है।” (“Citizenship consists in the right ordering of loyalities.”) यदि सब नागरिक अपने-अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें तो अधिकार स्वयं प्राप्त हो जाएंगे और लड़ाई-झगड़े भी अपने आप बन्द हो जाएंगे। नागरिकों के कर्त्तव्य केवल राज्य के प्रति ही नहीं होते बल्कि परिवार, पड़ोस, मुहल्ले, शहर, प्रान्त तथा देश के प्रति भी हैं और इन सभी कर्तव्यों का उन्हें ईमानदारी से पालन करना चाहिए। जिस देश के नागरिक अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन नहीं करते, वह देश कभी प्रगति नहीं कर सकता।

4. आत्मसंयम तथा सहनशीलता (Self-control and Tolerance)-एक अच्छे नागरिक को अपने ऊपर संयम होना चाहिए तथा उसमें सहनशीलता की भावना भी होनी चाहिए। देश में उसका सम्पर्क विभिन्न विचारों और मतों के व्यक्तियों से होता है, वे सब विचार उसे सुनने पड़ते हैं। विरोधी विचारों को सुन कर उसे जोश और गुस्सा नहीं आना चाहिए। इससे देश में लड़ाई-झगड़े ही बढ़ते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने का पूर्ण अधिकार है। दूसरों की बातें उसे शान्ति से सुननी चाहिएं और दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। दूसरों के विचारों पर प्रभाव दलीलों द्वारा ही डालना चाहिए। विचारों के अदल-बदल से ही समाज की प्रगति होती है। (“Conflict of ideas is more creative than the clash of arms.”) उसका हृदय भी उदार होना चाहिए तथा ऊंच-नीच, छुआछूत, जातिभेद आदि की भावनाएं नहीं होनी चाहिएं। उसे उच्च तथा उदार विचार रखते हुए दूसरों के साथ मिल-जुलकर समस्त समाज के कल्याण के कार्य करने चाहिएं।

5. प्रगतिशीलता (Progressive outlook)—अच्छे नागरिक की अच्छाई केवल यहां तक ही सीमित नहीं है कि वह सामाजिक ढांचे के प्रति श्रद्धा रखे और राजनीतिक व सामाजिक नियमों का पालन करे बल्कि अपने समाज की कुरीतियों और प्रतिक्रियावादी रूढ़ियों को शान्तिपूर्ण ढंग से बदलने के लिए क्रियात्मक प्रयत्न करे। वर्तमान से असन्तुष्टि और सुधार के लिए उमंग एक अच्छे नागरिक के गुण हैं। मानव-सभ्यता और ज्ञान में प्रगति और विकास लाना हर नागरिक का कर्त्तव्य होता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

6. परिश्रम (Hard Work)-अपने हर कर्त्तव्य के पालन के लिए, अपनी आजीविका कमाने के लिए और मानवसभ्यता में विकास लाने के लिए परिश्रम अत्यावश्यक है। आलस्य और काम-चोरी एक अच्छे नागरिक के महान् शत्रु हैं। परिश्रम के द्वारा अन्य के गुणों को क्रियाशील और साकार किया जा सकता है। कार्लाइल Carlyle) के शब्द बहुत उचित है, “काम ही पूजा है।” (“Work is worship.”) पंडित नेहरू भी कहा करते थे कि, “आराम हराम है।” संसार भर के महान् व्यक्तियों की जीवन गाथाएं इस बात को सिद्ध करती हैं कि उनकी सफलता का प्रमुख कारण परिश्रम ही था। इस कथन के अनुसार, “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।” (“Hard work is the key to success.”)

7. अच्छा स्वास्थ्य (Good Health)-अच्छा नागरिक बनने के लिए स्वास्थ्य भी ठीक होना आवश्यक है। जिस देश के नागरिक कमज़ोर, दुबले-पतले तथा डरपोक होंगे, वह देश अधिक दिन स्वतन्त्र नहीं रह सकता। स्वस्थ नागरिक अपनी रक्षा भी करता है, साथ ही देश की भी। कमज़ोर व्यक्ति अधिक परिश्रम भी नहीं कर सकता। इसके साथ ही बीमार नागरिक विकास भी नहीं कर सकता क्योंकि स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में (Sound mind in a sound body) ही रह सकता है। बीमार और कमज़ोर नागरिकों का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है और उन्हें क्रोध भी जल्दी आने लगता है। बीमार नागरिक देश की समस्या पर अच्छी प्रकार से विचार नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि अच्छे शरीर के बिना नागरिक कोई काम ठीक प्रकार से नहीं कर सकता, जिस देश के नागरिक अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन नहीं करते वह देश कभी प्रगति नहीं कर सकता।

8. मत का उचित प्रयोग (Proper use of Vote)-प्रजातान्त्रिक सरकार में प्रत्येक नागरिक को अपना मत देने का अधिकार प्राप्त होता है। वोट का उचित प्रयोग करके नागरिक अपने इस कर्त्तव्य को पूर्ण कर सकता है। नागरिकों को वोट का अधिकार प्रयोग करते समय धर्म, भाषा, जात-पात आदि से ऊंचा उठना चाहिए। उन्हें वोट उस उम्मीदवार को देना चाहिए जो देश सेवक, ईमानदार तथा योग्य हो। आदर्श नागरिक का यही गुण होता है कि वह वोट का प्रयोग देश के हित के लिए करता है। योग्य उम्मीदवारों को वोट देकर ही कुशल शासन की उम्मीद रखी जा सकती है। इसीलिए तो कहा जाता है कि प्रजातन्त्र प्रणाली में जैसे नागरिक होते हैं वैसी ही सरकार होती है।

9. कानूनों का पालन (Obedience to Law) आदर्श नागरिक कानूनों का पालन करता है। प्रायः यह देखा जाता है कि लोग कानून के पालन में लापरवाही कर जाते हैं। परन्तु यह राष्ट्रीय हित में नहीं है। एक अच्छा नागरिक कानूनों के प्रति पूरी निष्ठा रखता है।

10. निष्काम सेवा (Selfless Service) आदर्श नागरिक अपने स्वार्थ को त्याग कर दूसरों की निष्काम सेवा करता है। लोक-कल्याण उसका उद्देश्य होता है।

11. स्वदेश भक्ति ! Patriotism)—प्रत्येक नागरिक को अपने देश और राज्य के प्रति वफ़ादार होना चाहिए। देशभक्ति की भावना जितनी अधिक नागरिकों में होगी, उतना ही अधिक उस देश का कल्याण होगा। देश की रक्षा और उन्नति के लिए नागरिक को तन-मन-धन सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अपने बड़े-से-बड़े लाभ को भी त्याग देना चाहिए यदि उससे अपने देश का थोड़ा भी अहित हो। देश-द्रोह सब से बड़ा अपराध है। देश का हित ही व्यक्ति का हित होना चाहिए। जिस देश के नागरिक सच्चे देश-भक्त होंगे, वह देश न तो कभी दूसरों का गुलाम बन सकता है और न ही किसी क्षेत्र में पिछड़ा हुआ रह सकता है।

12. प्रेम की भावना (Spirit of Love)-आदर्श नागरिक में प्रेम की भावना होती है। वह दूसरे मनुष्यों से प्रेम करता है और प्रत्येक से सद्व्यवहार करता है। वह ग़रीब तथा पिछड़ी जातियों के लोगों से नफरत नहीं करता। जो नागरिक दूसरे व्यक्तियों से लड़ता, झगड़ता रहता है वह अच्छा नागरिक नहीं है।

13. अनुशासन (Discipline) आदर्श नागरिक में अनुशासन का होना आवश्यक है। मनुष्यों की ज़िन्दगी नियमों के अधीन बंधी होती है। नियम का पालन करना ही अनुशासन है। आदर्श नागरिक सदैव समाज तथा राज्य के नियमों का पालन करता है। जिस राज्य के नागरिकों में अनुशासन की भावना नहीं होती, उस राज्य की समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती हैं और भविष्य की समस्याओं को हल करना अति कठिन हो जाता है। देश की उन्नति के लिए नागरिकों में अनुशासन का होना अति आवश्यक है।

14. अच्छा चरित्र (Good Character)-अच्छा चरित्र भी एक नागरिक का बहुत बड़ा गुण है। चरित्रवान् व्यक्ति में बहुत से गुण अपने आप आ जाते हैं। जीवन में उन्नति करने और नाम कमाने में चरित्र का बड़ा प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश के नागरिक बेईमान, धोखेबाज़, व्यभिचारी और शराबी होंगे तो वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता। हमारी भारतीय संस्कति में भी चरित्र को सब से अधिक मूल्यवान् माना गया है। चरित्रवान् व्यक्ति में आज्ञा पालन, अनुशासन का होना अति आवश्यक है।

15. सचेतता (Vigilance)—एक आदर्श नागरिक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने अधिकारों के लिए सचेत रहे। आलस्य तथा लापरवाही आदर्श नागरिक के शत्रु हैं। लॉस्की (Laski) ने सर्वसिद्ध बात कही है, “निरन्तर सतर्कता स्वतन्त्रता का मूल्य है।” (“Eternal vigilance is the price of liberty.”) अपनी स्वतन्त्रता के प्रति उदासीनता एक नागरिक के लिए आत्म-हत्या के समान है। भले ही देश में प्रजातन्त्रीय शासन हो और नागरिकों के अधिकार संविधान द्वारा सुरक्षित हों, परन्तु ये सब बातें महत्त्वहीन होंगी यदि नागरिक अपनी जागरूकता का प्रदर्शन करने में कोई भी ढील करेंगे।

16. आत्मनिर्भरता (Self-sufficient)-आदर्श नागरिक यथासम्भव आत्मनिर्भर होता है। आत्मनिर्भरता व्यक्ति को स्वावलम्बी बना कर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिवर्तित करती है जो किसी भी परिस्थिति में अपने पथ से विचलित नहीं हो सकता। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए वरदान होते हैं।

17. रचनात्मक दृष्टिकोण (Constructive Attitude)-आदर्श नागरिक का दृष्टिकोण रचनात्मक होता है। वह आलोचना केवल आलोचना के लिए ही नहीं करता बल्कि सरकारी नीति का संशोधन करने तथा उसे लागू करने में आलोचना द्वारा सरकार की सहायता करता है। उसका कार्य केवल अवगुण ढूंढना नहीं होता बल्कि उसे दूर करने के लिए सुझाव भी देना होता है।

18. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना (Spirit of Internationalism)-आदर्श नागरिक में अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का होना आवश्यक है। नागरिक को अपने देश से ही प्यार नहीं होना चाहिए बल्कि मानव जाति से प्यार होना चाहिए। आदर्श नागरिक दूसरे राज्य के नागरिकों को अपना भाई मानते हैं और उनसे मित्रता का व्यवहार करते हैं। आदर्श नागरिक का यह गुण है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहता है। वह देश के हित से बढ़ कर विश्व के हित के लिए कार्य करता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट हो जाता है कि केवल मात्र नागरिक होना ही काफ़ी नहीं है बल्कि एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है। लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) ने आदर्श नागरिक के गुण “बुद्धि, आत्म संयम और सच्चाई” (Intelligence, self-control and conscience) कहे हैं। डॉ० विलियम ने “नागरिकता को वफ़ादारियों का उचित क्रम बताया है।” (“Citizenship consists in the right ordering of loyalities.”)

उपर्युक्त गुणों का विकास कोई कठिनाई की बात नहीं है। इन गुणों के विकास के लिए दृढ़ निश्चय और अभ्यास की ज़रूरत है। एक बार गुणों के पनपने के बाद सारी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं और इन गुणों का प्रयोग स्वाभाविक सा हो जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नागरिक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
‘नागरिक’ का शाब्दिक अर्थ है किसी नगर का निवासी, परन्तु नागरिक शास्त्र में ‘नागरिक’ शब्द का विशेष अर्थ है। नागरिक शास्त्र में उस व्यक्ति को नागरिक कहा जाता है जिसे राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हों। विभिन्न लेखकों ने नागरिक की विभिन्न परिभाषाएं की हैं-

  • अरस्तु के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहा जाता है, जिसे राज्य के शासन प्रबन्ध विभाग तथा न्यायविभाग में भाग लेने का पूर्ण अधिकार है।”
  • वाटल के अनुसार, “नागरिक किसी राज्य के सदस्य होते हैं, जो कुछ कर्त्तव्यों द्वारा राजनीतिक समाज में बन्धे होते हैं तथा इससे प्राप्त होने वाले लाभ के बराबर के हिस्सेदार होते हैं।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 2.
नागरिक की कोई चार विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
नागरिक के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-

  1. नागरिक किसी राज्य का सदस्य होता है।
  2. नागरिक अपने राज्य में स्थायी रूप से रह सकता है।
  3. नागरिक को सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
  4. नागरिक को कुछ कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है।

प्रश्न 3.
नागरिक और विदेशी में चार अन्तर बताएं।
उत्तर-
नागरिक तथा विदेशी में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • स्थिति के आधार पर-नागरिक राज्य का सदस्य होता है, जिस कारण उसे निश्चित नागरिकता तथा कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं परन्तु विदेशी राज्य का सदस्य नहीं होता। वह कुछ उद्देश्यों के लिए राज्य में रहता है। उसका उद्देश्य व्यापार-प्रसार या अपनी सरकार का प्रतिनिधित्व करना हो सकता है।
  • राज्य भक्ति के आधार पर-नागरिक को अपने राज्य के प्रति वफादार होना पड़ता है, परन्तु विदेशी उस राज्य के प्रति वफादारी नहीं दिखाता जहां कि वह रहता है बल्कि वह उस राज्य के प्रति वफादार रहता है, जहां से वह आया है।
  • अधिकारों के आधार पर-नागरिक को सामाजिक और राजनीतिक दोनों प्रकार के अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु विदेशियों को केवल सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं। विदेशियों को वोट डालने, चुनाव लड़ने, सरकारी पद सम्भालने इत्यादि अधिकार प्राप्त नहीं होते।
  • युद्ध के समय विदेशियों को राज्य की सीमा से बाहर जाने के लिए कहा जा सकता है, परन्तु नागरिक को देश से नहीं निकाला जा सकता।

प्रश्न 4.
नागरिकता का अर्थ तथा परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
आज नागरिकता केवल राज्य के प्रशासन में भाग लेने वाले को प्राप्त न होकर बल्कि विकास के आधार पर प्राप्त होती है। समस्त व्यक्ति बिना जात-पात, लिंग या ग्राम या नगर के निवास तथा सम्पत्ति के भेद-भाव के बिना आधुनिक राज्यों के नागरिक माने जाते हैं। राज्य के प्रशासन में प्रत्यक्ष तौर पर भाग लेना अनिवार्य नहीं है। नागरिकता उस वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध का नाम है जो व्यक्ति को उस राज्य के साथ, जिसका वह नागरिक है, सम्बद्ध करता है।

लॉस्की के शब्दों में, “अपनी सुलझी हुई बुद्धि को जन-हितों के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।”

गैटेल के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जिसके कारण वह अपने राज्य में राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग कर सकता है और कर्त्तव्य के पालन के लिए तैयार रहता है।”

बायड के अनुसार, “नागरिकता अपनी वफ़ादारियों को ठीक निभाना है।”
इस प्रकार किसी राज्य और उसके नागरिकों के आपसी सम्बन्धों को ही नागरिकता कहते हैं जिससे राज्य की ओर से नागरिकों को कुछ सामाजिक व राजनीतिक अधिकार मिलते हैं तथा वे राज्य के प्रति कुछ कर्त्तव्यों का पालन करते हैं।

प्रश्न 5.
नागरिकता की चार प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
नागरिकता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. राज्य की सदस्यता-नागरिकता की प्रथम विशेषता यह है कि नागरिक को किसी राज्य का सदस्य होना आवश्यक होता है। एक राज्य का सदस्य होते हुए भी वह किसी दूसरे राज्य में अस्थायी तौर पर निवास कर सकता है।
  2. सर्वव्यापकता-आधुनिक नागरिकता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सर्वव्यापकता है। यह न केवल नगर निवासी बल्कि ग्रामों के लोगों, स्त्रियों व पुरुषों को भी प्राप्त होती है। नागरिकता प्रदान करते समय ग़रीब-अमीर, जाति-पाति आदि को नहीं देखा जाता।
  3. राज्य के प्रति भक्ति-नागरिकता की तीसरी विशेषता यह है कि नागरिक अपने राज्य के प्रति वफ़ादारी रखता है।
  4. नागरिक को राज्य की ओर से कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 6.
जन्मजात नागरिकता प्राप्त करने के ढंग लिखें।
उत्तर-
जन्मजात नागरिकता दो तरीकों से प्राप्त होती है-

1. रक्त सम्बन्धी सिद्धान्त-जन्मजात नागरिकता प्राप्त करने का प्रथम ढंग रक्त सम्बन्ध है। इसके अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके माता-पिता की नागरिकता से होता है। बच्चे का जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हो, उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। एक भारतीय नागरिक का बच्चा दुनिया के किसी भी देश में पैदा हो, वह भारतीय ही कहलाएगा। फ्रांस, इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, स्विट्ज़रलैण्ड तथा स्वीडन में भी इसी सिद्धान्त को अपनाया गया है।

2. जन्म स्थान सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके जन्म स्थान के आधार पर किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त होती जहां उसका जन्म होता है। बच्चे के पिता की नागरिकता को ध्यान में नहीं रखा जाता है। यह सिद्धान्त अर्जेन्टाइना में प्रचलित है। एक भारतीय की सन्तान को जिसका जन्म जापान में हुआ हो तो जापानी नागरिक माना जाएगा।

प्रश्न 7.
राज्यकृत नागरिकता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राज्यकृत नागरिक वे नागरिक होते हैं जिन्हें नागरिकता जन्मजात सिद्धान्त से प्राप्त नहीं होती बल्कि सरकार की तरफ से प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति अपने देश को छोड़कर किसी दूसरे देश में बस जाता है और कुछ समय पश्चात् उस देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो वह राज्यकृत नागरिक कहलाता है। नागरिकता देना अथवा न देना राज्य पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति, किसी राज्य को नागरिकता देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। ऐसी नागरिकता प्रार्थना-पत्र देकर प्राप्त की जा सकती है। कई भारतीय विदेशों में जाकर बस गए हैं और उन्होंने वहां की नागरिकता प्राप्त कर ली है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 8.
नागरिकता प्राप्त करने के चार ढंग लिखो।
उत्तर-
नागरिकता प्राप्ति के मुख्य ढंग निम्नलिखित हैं-

  • निश्चित समय के लिए निवास- यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश में जाकर बहुत समय के लिए रहे तो वह प्रार्थना-पत्र देकर वहां की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। सभी देशों में निवास की अवधि निश्चित है। इंग्लैण्ड और अमेरिका में निवास की अवधि 5 वर्ष है। फ्रांस में 10 वर्ष और भारत में 5 वर्ष है।
  • विवाह-विवाह करने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। यदि कोई स्त्री किसी दूसरे देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। परन्तु जापान में इसके उलट नियम है। जापान में यदि कोई पुरुष जापानी लड़की से शादी कर ले तो उसे जापान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  • सम्पत्ति द्वारा सम्पत्ति खरीदने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ब्राज़ील, पीरू और मैक्सिको में ऐसा नियम प्रचलित है कि यदि कोई विदेशी वहां सम्पत्ति खरीद लेता है तो उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  • जब एक राज्य का नागरिक किसी दूसरे राज्य के नागरिक को गोद ले लेता है, तो गोद लिए जाने वाले व्यक्ति को अपने पिता के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
नागरिकता किन चार कारणों द्वारा छीनी जा सकती है ?
उत्तर-
नागरिकता को निम्नलिखित कारणों से छीना जा सकता है-

  • लम्बे समय तक अनुपस्थिति-कई देशों में यह नियम है कि यदि उनका नागरिक लम्बे समय तक बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। यदि फ्रांस का कोई नागरिक 10 वर्ष से भी अधिक लम्बे समय तक फ्रांस से अनुपस्थित रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।
  • विवाह-स्त्रियां विदेशी नागरिकों से विवाह करके अपनी नागरिकता खो बैठती हैं। भारत का नागरिक जापानी स्त्री से विवाह करके जापान की नागरिकता प्राप्त कर लेता है। परन्तु स्त्री को अपनी नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
  • विदेश में सरकारी नौकरी-यदि एक देश का नागरिक दूसरे देश में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसकी अपने देश की नागरिकता समाप्त हो जाती है।
  • यदि कोई नागरिक सेना से भाग कर दूसरे देश में चला जाता है, तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 10.
जन्मजात नागरिकता के जन्म स्थान सिद्धान्त का वर्णन करें।
उत्तर-
जन्मजात नागरिकता के जन्म स्थान सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके जन्म-स्थान के आधार पर किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त होती है जिस देश की भूमि पर उसका जन्म हुआ हो। बच्चे के पिता की नागरिकता को ध्यान में नहीं रखा जाता। अर्जेन्टाइना में यह सिद्धान्त लागू है। अर्जेन्टाइना में यदि कोई विदेशी सैर के लिए जाते हैं तो उनकी सन्तान अर्जेन्टाइना में उत्पन्न होती है तो बच्चे को अर्जेन्टाइना की नागरिकता प्राप्त होती है। एक भारतीय की सन्तान को जिसका जन्म जापान में हुआ हो, जापानी नागरिक माना जाएगा।

प्रश्न 11.
रक्त-सम्बन्धी सिद्धान्त के अनुसार नागरिकता कैसे प्राप्त होती है ?
उत्तर-
इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का वर्णन उसके माता-पिता की नागरिकता से होता है। बच्चे का जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हो, उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। भारत में इस सिद्धान्त को अपनाया गया है। एक भारतीय नागरिक का बच्चा कहीं भी पैदा हो, चाहे जापान में, चाहे अमेरिका में, वह भारतीय ही कहलायेगा। इसी तरह एक अंग्रेज़ का बच्चा कहीं भी पैदा हो चाहे फ्रांस में, चाहे भारत में, अंग्रेज़ ही कहलायेगा। एक जर्मन का बच्चा चाहे कहीं उत्पन्न हुआ हो, जर्मनी ही कलगाएगा। फ्रांस, इटली, स्विट्ज़रलैण्ड तथा स्वीडन में भी इस सिद्धान्त को अपनाया गया है।

प्रश्न 12.
आदर्श नागरिकता के चार गुण लिखें।
उत्तर-
एक आदर्श नागरिक में अग्रलिखित गुण होने चाहिएं-

  • शिक्षा-अच्छा नागरिक बनने के लिए व्यक्ति का सुशिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा द्वारा नागरिक को अपने अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति का मानसिक विकास भी होता है और उसमें उदारता व नैतिकता की भावनाएं जागृत होती हैं।
  • सामाजिक भावना-एक अच्छे नागरिक में सामाजिक भावना का होना भी आवश्यक है। नागरिक समाज में पहले आया तथा राज्य में बाद में। समाज के बिना उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा विकास नहीं हो सकता।
  • कर्त्तव्यपरायणता-अच्छे नागरिकों को अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहना और उनका ईमानदारी से पालन करना अति आवश्यक है। यदि सब नागरिक अपने-अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें तो सभी अधिकार स्वयं प्राप्त हो जाएंगे। जिस देश के नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन ठीक ढंग से नहीं करते वह देश कभी प्रगति नहीं करता।
  • नागरिक परिश्रमी होना चाहिए।

प्रश्न 13.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली चार बाधाओं का वर्णन करें।
उत्तर-
आदर्श नागरिकता के मार्ग में निम्नलिखित बाधाएं आती हैं :-

  • अनपढ़ता-शिक्षा एक अच्छे जीवन का आधार है। शिक्षा के बिना व्यक्ति को अपने अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान नहीं होता और न ही देश की समस्याओं को समझ कर उनमें सहयोग देने योग्य बन पाता है। अशिक्षित व्यक्ति न तो अपने वोट का ठीक प्रयोग कर सकता है और न ही शासन में भाग ले सकता है।
  • अकर्मण्यता या आलस्य-आलसी व्यक्ति भी एक अच्छा नागरिक नहीं बन पाता। ऐसा व्यक्ति अपना पेट भरने के अतिरिक्त किसी काम में रुचि नहीं लेता। आलसी व्यक्ति इतना परिश्रम एवं पुरुषार्थ भी नहीं करता जितना वह कर सकता है। अतः देश के उत्थान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • ग़रीबी-ग़रीबी भी एक अच्छे नागरिक के मार्ग में बहुत बड़ी रुकावट है। ग़रीब व्यक्ति 24 घण्टे रोटी कमाने के चक्कर में लगा रहता है अतः उसके पास देश की समस्याओं पर विचार करने के लिए समय नहीं होता। ग़रीब व्यक्ति लालच में लाकर अपने मत का भी दुरुपयोग करता है।
  • आदर्श नागरिकता के मार्ग में बेरोज़गारी एक बड़ी बाधा है।

प्रश्न 14.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के चार उपाय लिखो।
उत्तर-

  • शिक्षा का प्रसार-अनपढ़ता सभी बुराइयों की जड़ है अतः इसे समाप्त करने के लिए शिक्षा का प्रसार होना चाहिए। जनता को शिक्षित करने के लिए अधिक संख्या में स्कूल-कॉलेज खोले होने जाने चाहिएं।
  • आर्थिक सुधार-ग़रीबी को दूर करने और लोगों की आर्थिक दशा में सुधार करने से भी अच्छे नागरिकों की संख्या बढ़ेगी। सरकार को लोगों में परिश्रम करने व आलस्य छोड़ने का प्रचार करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह अधिक मात्रा में उद्योग-धन्धे स्थापित करे और लोगों को रोज़गार प्रदान करे।
  • सामाजिक भावना-नागरिकों में सामाजिक भावना के महत्त्व पर विचार किया जाना चाहिए। सामाजिक भावना के जागृत होने से ही व्यक्ति का स्वार्थ नष्ट होता है और वह अपने स्वार्थ की ओर ध्यान न देकर समाज के हितों का ध्यान रखने लगता है।
  • बेरोजगारी को दूर करना चाहिए।

प्रश्न 15.
नागरिक कितने तरह के होते हैं ?
उत्तर-
नागरिक दो तरह के होते हैं-

  1. जन्मजात नागरिक (Natural Citizens)
  2. राज्यकृत नागरिक (Naturalised Citizens) ।

1. जन्मजात नागरिक (Natural Citizens)-पैदायशी या जन्मजात नागरिक वह है, जो जन्म से ही राज्य के नागरिक बनते हैं और स्वाभाविक रूप से ही नागरिकता प्राप्त करते हैं। ऐसे नागरिकों को जन्म स्थान या रक्त सिद्धान्त के आधार पर वहां की नागरिकता प्राप्त होती है।

2. राज्यकृत नागरिक (Naturalised Citizens)-राज्यकृत नागरिक जन्म से किसी अन्य देश का नागरिक होता है परन्तु राज्य में बस जाने के कारण और दूसरी शर्ते पूरी करने पर सरकार द्वारा उन्हें राज्य का नागरिक मान लिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में नागरिकता के सम्बन्ध में किन नियमों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-
संविधान में भारतीय नागरिकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियमों का वर्णन किया गया है-

  • संविधान के लागू होने पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म भारत में हुआ है और भारत में रहता है, भारत का नागरिक है।
  • ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ है परन्तु जिसके माता या पिता में से किसी का जन्म भारत के राज्य क्षेत्र में हुआ है, तो वह भारत का नागरिक है।
  • ऐसे व्यक्ति जो संविधान लागू होने के पांच वर्ष से भारत में रहते हैं भारत के नागरिक होंगे।
  • पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों के लिए संविधान में वर्णन किया गया है कि 19 जुलाई, 1948 से पूर्व आने वाले ऐसे व्यक्ति जिनका माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या इनमें से कोई एक अथवा स्वयं अविभाजित भारत में जन्मे हों, तो उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। 19 जुलाई, 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी को नागरिकता प्राप्त करने के लिए प्रार्थनापत्र देना होगा।
  • विदेशों में बसने वाले ऐसे भारतीय जिनका स्वयं का, अथवा जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी में से किसी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ है और वे भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं तो ऐसे भारतीय अपना नाम भारतीय दूतावास में दर्ज करा लें। ऐसा करने पर उन्हें भारत की नागरिकता प्राप्त हो जायेगी।

प्रश्न 17.
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की मुख्य व्यवस्थाएं लिखो।
अथवा भारतीय नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्राप्ति के सम्बन्ध में भारतीय संसद् ने 1955 में ‘नागरिकता अधिनियम’ (Citizenship Acquisition Act) पारित किया। इस अधिनियम में निम्नलिखित व्यवस्थाएं हैं-

  • भारत की नागरिकता प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति किसी ऐसे देश का नागरिक नहीं होना चाहिए जो भारतीयों को नागरिकता प्रदान नहीं करता।
  • भारत की नागरिकता प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति नागरिकता के लिए प्रार्थना-पत्र देने की तारीख से पहले वह या तो एक वर्ष तक भारत में निवास करता रहा हो अथवा सरकारी सेवा में रहा हो।
  • उपर्युक्त एक वर्ष से पहले के सात वर्षों के भीतर वह भारत में कुल मिलाकर कम-से-कम 4 वर्ष रहा हो या 4 वर्ष तक सरकारी सेवा में रहा हो।
  • भारत की नागरिकता प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति अच्छे चरित्र का व्यक्ति हो।
  • संविधान की 8वीं अनुसूची में दी गई भाषाओं में से किसी एक भाषा का ज्ञान होना चाहिए।
  • भारत की नागरिकता प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह या तो भारत में निवास करने अथवा यहां किसी सरकारी सेवा में बने रहने का इरादा रखता हो।
  • यदि किसी विदेशी ने विज्ञान, कला, दर्शन, साहित्य, विश्व-शान्ति अथवा मानव विकास के क्षेत्र में कोई विशेष योग्यता प्राप्त कर ली है तो उसे उपर्युक्त शर्तों को पूरा किए बिना भारत का नागरिक बनाया जा सकता है।

प्रश्न 18.
नागरिक और देशीय शब्द में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
साधारण भाषा में नागरिक उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी नगर की निश्चित परिधि के अन्दर निवास करता है। अतः इस अर्थ के अनुसार जो व्यक्ति गांवों में रहते हैं, उन्हें नागरिक नहीं कहा जा सकता। परन्तु आधुनिक युग में नागरिक शब्द का यह अर्थ नहीं लिया जाता है। नागरिक उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसे राज्य में राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं। भारत में 18 वर्ष के पुरुष और स्त्री को मत देने का अधिकार प्राप्त है। वह व्यक्ति नगर निवासी भी हो सकता है और ग्रामीण भी।

देशीय (National) राज्य का सदस्य होता है परन्तु उसे वे सारे अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं जोकि एक नागरिक को प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए देशीय को सामाजिक तथा आर्थिक अधिकार तो प्राप्त होते हैं परन्तु उसे राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। जब उसे राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तो वह नागरिक बन जाता है। प्राय: यह अधिकार एक निश्चित आयु जैसे भारत में 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर मिल जाता है। भारत में 18 वर्ष की आयु से कम आयु वाले व्यक्ति देशीय हैं, इन्हें नागरिक नहीं कहा जा सकता है।

प्रश्न 19.
विदेशी कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
विदेशी तीन प्रकार के होते हैं

  1. स्थायी विदेशी (Resident Aliens)—स्थायी विदेशी उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में बस जाते हैं। वे अपना व्यवसाय वहीं आरम्भ कर देते हैं। उनमें अपने देश वापिस जाने की इच्छा नहीं होती अर्थात् उनका निश्चय स्थायी रूप से वहीं रहने का होता है। जब उन्हें नागरिकता मिल जाती है तब वे उस राज्य के नागरिक बन जाते हैं। भारत के अनेक नागरिक कनाडा, इंग्लैंड तथा दक्षिणी अफ्रीका में जाकर स्थायी रूप से बस गए हैं।
  2. अस्थायी विदेशी (Temporary Aliens) अस्थायी विदेशी उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो सैर करने के लिए या किसी उद्देश्य के लिए दूसरे राज्य में थोड़े समय के लिए जाते हैं और फिर अपने देश वापिस लौट आते
  3. राजदूत (Ambassadors)-एक राज्य के दूसरे राज्यों के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध होते हैं। इन सम्बन्धों की स्थापना राजदूतों के आदान-प्रदान करके होती है। दूसरे देशों के राजदूत हमारे देश में आकर रहते हैं और हमारे देश के राजदूत दूसरे देशों में जाकर रहते हैं। परन्तु राजदूतों पर उनके देश का ही कानून लागू होता है। राजदूत भी विदेशी होते हैं। परन्तु राजदूतों को अन्य विदेशियों की अपेक्षा सरकार से बहुत सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नागरिक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
‘नागरिक’ का शाब्दिक अर्थ है किसी नगर का निवासी, परन्तु नागरिक शास्त्र में ‘नागरिक’ शब्द का विशेष अर्थ है। नागरिक शास्त्र में उस व्यक्ति को नागरिक कहा जाता है जिसे राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हों।

प्रश्न 2.
नागरिक की कोई दो परिभाषाएं दीजिए।
उत्तर-

  1. अरस्तु के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहा जाता है, जिसे राज्य के शासन प्रबन्ध विभाग तथा न्याय-विभाग में भाग लेने का पूर्ण अधिकार है।” ।
  2. वाटल के अनुसार, “नागरिक किसी राज्य के सदस्य होते हैं, जो कुछ कर्तव्यों द्वारा राजनीतिक समाज में बन्धे होते हैं तथा इससे प्राप्त होने वाले लाभ के बराबर के हिस्सेदार होते हैं।”

प्रश्न 3.
नागरिक की कोई दो विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
नागरिक के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-

  1. नागरिक किसी राज्य का सदस्य होता है।
  2. नागरिक अपने राज्य में स्थायी रूप से रह सकता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 4.
नागरिक और विदेशी में दो अन्तर बताएं।
उत्तर-

  1. नागरिक राज्य का सदस्य होता है, जिस कारण उसे निश्चित नागरिकता तथा कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं परन्तु विदेशी राज्य का सदस्य नहीं होता।
  2. नागरिक को अपने राज्य के प्रति वफादार होना पड़ता है, परन्तु विदेशी उस राज्य के प्रति वफादारी नहीं दिखाता।

प्रश्न 5.
नागरिकता का अर्थ लिखें।
उत्तर-
आज नागरिकता केवल राज्य के प्रशासन में भाग लेने वाले को प्राप्त न होकर बल्कि विकास के आधार पर प्राप्त होती है। समस्त व्यक्ति बिना जात-पात, लिंग या ग्राम या नगर के निवास तथा सम्पत्ति के भेद-भाव के बिना आधुनिक राज्यों के नागरिक माने जाते हैं। राज्य के प्रशासन में प्रत्यक्ष तौर पर भाग लेना अनिवार्य नहीं है। नागरिकता उस वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध का नाम है जो व्यक्ति को उस राज्य के साथ, जिसका वह नागरिक है, सम्बद्ध करता है।

प्रश्न 6.
नागरिकता की कोई दो परिभाषा दें।
उत्तर-
लॉस्की के शब्दों में, “अपनी सुलझी हुई बुद्धि को जन-हितों के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।” गैटेल के अनुसार “नागरिकता व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जिसके कारण वह अपने राज्य में राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग कर सकता है और कर्त्तव्य के पालन के लिए तैयार रहता है।” बायड के अनुसार “नागरिकता अपनी वफ़ादारियों को ठीक निभाना है।”

प्रश्न 7.
नागरिकता की दो प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. राज्य की सदस्यता-नागरिकता की प्रथम विशेषता यह है कि नागरिक को किसी राज्य का सदस्य होना आवश्यक होता है।
  2. सर्वव्यापकता-आधुनिक नागरिकता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सर्वव्यापकता है। यह न केवल नगर निवासी बल्कि ग्रामों के लोगों, स्त्रियों व पुरुषों को भी प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
नागरिकता प्राप्त करने के दो ढंग लिखो।
उत्तर-

  1. निश्चित समय के लिए निवास-यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश में जाकर बहुत समय के लिए रहे तो वह प्रार्थना-पत्र देकर वहां की नागरिकता प्राप्त कर सकता है।
  2. विवाह-विवाह करने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। यदि कोई स्त्री किसी दूसरे देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
नागरिकता किन दो कारणों द्वारा छीनी जा सकती है ?
उत्तर-

  1. लम्बे समय तक अनुपस्थिति-कई देशों में यह नियम है कि यदि उनका नागरिक लम्बे समय तक बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।
  2. विवाह-स्त्रियां विदेशी नागरिकों से विवाह करके अपनी नागरिकता खो बैठती हैं।

प्रश्न 10.
आदर्श नागरिकता के दो गुण लिखें।
उत्तर-

  1. शिक्षा-अच्छा नागरिक बनने के लिए व्यक्ति का सुशिक्षित होना आवश्यक है।
  2. सामाजिक भावना-एक अच्छे नागरिक में सामाजिक भावना का होना भी आवश्यक है। नागरिक समाज में पहले आया तथा राज्य में बाद में। समाज के बिना उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा विकास नहीं हो सकता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. नागरिक को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-नागरिक को अंग्रेज़ी में सिटीज़न (Citizen) कहते हैं।

प्रश्न 2. सिटीजन का क्या अर्थ लिया जाता है ?
उत्तर-सिटीज़न का अर्थ है-नगर-निवासी।

प्रश्न 3. आदर्श नागरिक के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर-

  1. सामाजिक भावना से परिपूर्ण
  2. प्रगतिशील तथा परिश्रमी।

प्रश्न 4. आदर्श नागरिक के मार्ग में आने वाली कोई दो बाधाएं लिखें।
उत्तर-

  1. अनपढ़ता
  2. सांप्रदायिकता।

प्रश्न 5. आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के कोई दो उपाय लिखें।
उत्तर-

  1. शिक्षा का प्रसार
  2. समान अधिकारों की प्राप्ति।

प्रश्न 6. “नागरिक वह व्यक्ति है, जिसको राज्य के कानून सम्बन्धी विचार-विमर्श और न्याय प्रबन्ध में भाग लेने का अधिकार है।” यह कथन किसका है?
उत्तर- अरस्तु।

प्रश्न 7. ‘अपनी सुलझी हुई बुद्धि को जनहितों के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।’ यह कथन किसका है?
उत्तर-लॉस्की।

प्रश्न 8. किन्हीं दो साधनों के नाम लिखें, जिनसे राज्यकृत नागरिकता प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर-

  1. विवाह
  2. सरकारी नौकरी ।

प्रश्न 9. किन्हीं दो साधनो का नाम लिखें, जिनसे नागरिकता समाप्त हो सकती है?
उत्तर-

  1. लंबी अनुपस्थिति
  2. पराजय द्वारा।

प्रश्न 10. नागरिकता के उदारवादी सिद्धान्त का समर्थन किसने किया?
उत्तर-टी० एच० मार्शल।

प्रश्न 11. नागरिकता के स्वेच्छातंत्रवादी सिद्धान्त का समर्थन किसने किया?
उत्तर-राबर्ट नॉजिक।

प्रश्न 12. नागरिकता के बहुलवादी सिद्धान्त का समर्थन किसने किया?
उत्तर-डेविड हैल्ड ने।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 13. नागरिक की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-नागरिक को राज्य की ओर से कुछ अधिकार मिले होते हैं, जिन्हें वह अपने और समाज कल्याण के लिए प्रयोग करता है।

प्रश्न 14. नागरिकता की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-नागरिकता सर्वव्यापक होती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. नागरिक शब्द को अंग्रेज़ी में …………. कहते हैं।
2. दीर्घ निवास नागरिकता प्राप्त करने का एक ……….. है।
3. पराजय द्वारा …………… समाप्त हो सकती है।
4. नागरिकता का उदारवादी सिद्धान्त …………… ने दिया।
5. नागरिकता का स्वेच्छातंत्रवादी सिद्धान्त …………. ने दिया।
6. नागरिकता का बहुलवादी सिद्धान्त …………… ने दिया।
उत्तर-

  1. सिटीज़न
  2. साधन
  3. नागरिकता
  4. टी० एच० मार्शल
  5. राबर्ट नॉजिक
  6. डेविड हैल्ड।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. नागरिक को राज्य की ओर से कुछ अधिकार मिले होते हैं।
2. नागरिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते।
3. नागरिक अपने राज्य के प्रति वफादारी रखता है।
4. ब्राजील में सम्पत्ति खरीदने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
5. एक अच्छे नागरिक में सामाजिक भावना का होना आवश्यक नहीं है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
“नागरिक वह व्यक्ति है जिसको राज्य के कानून संबंधी विचार-विमर्श और न्याय प्रबंध में भाग लेने का अधिकार है।” यह कथन किसका है ?
(क) अरस्तु
(ख) श्री निवास शास्त्री
(ग) प्लेटो
(घ) वाटल।
उत्तर-
(क) अरस्तु।

प्रश्न 2.
“अपनी सुलझी हुई बुद्धि को जनहित के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है”-यह कथन किसका है ?
(क) डेविस हैल्ड
(ख) लॉस्की
(ग) गैटल
(घ) श्री निवास शास्त्री।
उत्तर-
(ख) लॉस्की।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नागरिक और नागरिकता

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा राज्यकृत नागरिकता प्राप्त करने का साधन है ?
(क) विवाह
(ख) सरकारी नौकरी
(ग) दीर्घ निवास
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा नागरिकता खोने का साधन है ?
(क) दीर्घ निवास
(ख) सरकारी नौकरी
(ग) सेना में भर्ती
(घ) लंबी अनुपस्थिति।
उत्तर-
(घ) लंबी अनुपस्थिति।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

SST Guide for Class 9 PSEB श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम
(क) बीबी भानी
(ख) सभराई देवी
(ग) बीबी अमरो
(घ) बीबी अनोखी।
उत्तर-
(क) बीबी भानी

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी के बड़े पुत्र का नाम
(क) महादेव
(ख) अर्जन देव
(ग) पिरथी चन्द
(घ) हरगोबिंद।
उत्तर-
(ग) पिरथी चन्द

प्रश्न 3.
गुरु हरिगोबिंद जी को जहांगीर ने कौन-से किले में कैद किया था ?
(क) ग्वालियर
(ख) लाहौर
(ग) दिल्ली
(घ) जयपुर।
उत्तर-
(क) ग्वालियर

प्रश्न 4.
खुसरो गुरु अर्जन देव जी को कहां मिला ?
(क) गोइंदवाल
(ख) हरिगोबिंदपुर
(ग) करतारपुर
(घ) संतोखसर।
उत्तर-
(क) गोइंदवाल

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी को जहांगीर द्वारा कब शहीद किया गया ?
(क) 24 मई, 1606 ई०
(ख) 30 मई, 1606 ई०
(ग) 30 मई, 1581 ई०
(घ) 24 मई, 1675 ई०
उत्तर-
(ख) 30 मई, 1606 ई०

(ख) रिक्त स्थान भरो :

1. श्री गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल …….. से …….. तक था।
2. 1590 ई० में श्री गुरु अर्जन देव जी ने ………. नामक सरोवर बनावाया।

उत्तर-

  1. 1581 ई०-1606 ई०
  2. तरनतारन।

(ग) सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी – 1. जहांगीर
2. मीरी पीरी – 2. 30 मई 1606 ई०
3. साईं मियां मीर – 3. श्री गुरु हरिगोबिंद जी
4. खुसरो – 4. श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना।

उत्तर-

  1. 30 मई 1606 ई०
  2. श्री गुरु हरिगोबिंद जी
  3. श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना
  4. जहांगीर।

(घ) अंतर बताओ :

मीरी और पीरी
उत्तर-‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें थीं-जो श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने धारण की थीं। इनमें ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व को प्रतीक दर्शाती थी।

अति लघु उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्खों के पांचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 2.
श्री हरिमंदर साहिब जी की नींव कब और किसने रखी ?
उत्तर-
श्री हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी फकीर मियां मीर जी ने रखी।

प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को किससे लिखवाया ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी से।

प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 5.
नक्शबंदी नामक लहर का नेता कौन था ?
उत्तर-
शेख अहमद सरहंदी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 6.
श्री हरिमंदर साहिब के पहले ग्रंथी कौन थे ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।

प्रश्न 7.
‘दसवंध’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दसवंध से भाव यह है कि प्रत्येक सिख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी किसे और कब सौंपी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को अपने तीनों पुत्रों में से एक को गुरु पद सौंपना था। उन्होंने तीनों के विषय में काफी सोच-विचार किया। उनमें से एक (महादेव) फकीर था। उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव न था। अतः गुरु जी ने उसे गुरु पद देना उचित न समझा। उनका दूसरा पुत्र पृथीचंद अथवा पृथिया भी इस पद के अयोग्य था क्योंकि वह धोखेबाज तथा षड्यंत्रकारी था। इन परिस्थितियों में गुरु रामदास जी ने 1581 ई० में अपने छोटे पुत्र अर्जन देव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुगल सम्राट जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और 30 मई 1606 ई० को अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया। सिख परम्परा में गुरु अर्जन देव जी को ‘शहीदों का सिरताज’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘जहांगीर की धार्मिक असहष्णुिता’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के विपरीत सम्राट जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था। वह अपने धर्म को बढ़ाना चाहता था। परंतु उस समय हर जाति व धर्म के लोग सिक्ख धर्म की उदारता और सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर सिक्ख धर्म को अपना रहे थे। जहांगीर सिख धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को सहन नहीं कर सका और वह गुरु अर्जन देव जी से ईर्ष्या करने लगा। अंततः इसी कारण गुरु जी की शहादत हुई।

प्रश्न 4.
चंदूशाह कौन था और वह श्री गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों हो गया ?
उत्तर-
चंदूशाह लाहौर दरबार (मुग़ल राज्य) का प्रभावशाली अधिकारी.था। उसकी पुत्री का विवाह गुरु अर्जन देव जी के पुत्र हरगोबिंद के साथ होना निश्चित हुआ था, परंतु चंदू शाह अहंकारी था। गुरु जी ने संगत की सलाह मानते हुए इस रिश्ते से साफ इंकार कर दिया। चंदूशाह ने इसे अपना अपमान समझा और गुरु जी का विरोधी बन बैठा। उसने बादशाह अकबर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया, परंतु वह असफल रहा। बाद में उसने मुग़ल बादशाह जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उकसाया, जोकि अंततः गुरु जी की शहादत का कारण बना।

प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तत्कालीन कारण क्या था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी मुग़ल सम्राट् जहांगीर के समय में मई, 1606 ई० में हुई। इस शहीदी के पीछे मुख्यत: जहांगीर की कट्टर धार्मिक नीति का हाथ था। गुरु जी ने जहांगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो को आशीर्वाद दिया था। उन्होंने गुरु घर में आने पर उसका आदर-सम्मान किया और उसे लंगर भी छकाया। गुरु जी का यह कार्य राजनीतिक अपराध माना गया। गुरु जी द्वारा आदि ग्रंथ साहिब की रचना ने जहांगीर का संदेह और भी बढ़ा दिया। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध काफी कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को दरबार में बुलावा भेजा। उसने गुरु जी को आदेश दिया कि वे इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिखें परंतु गुरु जी ने इस संबंध में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया। यह उत्तर सुनकर मुग़ल सम्राट ने गुरु अर्जन देव जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद करने डालने का आदेश जारी कर दिया।

प्रश्न 6.
मसंद प्रथा का सिख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-मसंद प्रथा से अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेंटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदवाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए काफ़ी धन चाहिए था। अतः उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ। सिक्खों के लिए मसंद प्रथा बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। इस प्रथा द्वारा गुरु जी को एक निश्चित आय प्राप्त होने लगी और धर्म प्रचार का कार्य भी सुचारु रूप से चलने लगा। परंतु आगे चलकर मसंद कपटी और भ्रष्टाचारी हो गए। इसलिए दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस प्रथा का अंत कर दिया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी संभालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरिमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. हरिमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में सूफ़ी फ़कीर मीयां मीर जी ने रखी। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया। बाबा बुड्ढा जी यहां के पहले ग्रंथी बने। गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह स्थान सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।

2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।

4. हरगोबिंदपुर तथा छहरटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।

5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।

6. मसंद प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसंदों को जमा कराएं। मसंद वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केंद्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे।

7. आदि ग्रंथ साहिब का संकलन-श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जुन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरु कर दी थी। इस लिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफी-संतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था।। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य सम्पूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदिर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया।

8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए

  • उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
  • इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।

9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रंथ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरिमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

1. सिक्ख-धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरिमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।

2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। वह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।

3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परंतु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदृशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।

4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर-मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण, अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अतः अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काना शुरु कर दिया।

5. चंदू शाह की शत्रुता-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इंकार कर दिया था। अत: उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।

6. आदि ग्रंथ साहिब का संचलन-गुरु जी ने आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रंथ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रंथ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रंथ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परंतु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।

7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परंतु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया गया।

8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गई। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० में गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

  • गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अत: शांतिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘संत सिपाही’ बन गए।
  • गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
  • इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
    नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शांतिप्रिय सिक्खों को संत सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।

प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का सिक्ख धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा ? वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास की एक बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना है। इस शहीदी से यों तो सारी हिंदू जाति प्रभावित हुई परंतु सिक्खों पर इसका विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। इस विषय में डॉ० ट्रंप ने लिखा है-“गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख संप्रदाय के विकास के लिए एक युग प्रवर्तक थी। उस समय एक ऐसा सघर्ष आरंभ हुआ जिसने सुधार आंदोलन के पूर्ण स्वरूप को ही बदल दिया। गुरु अर्जन देव जी अन्याय को सहन न कर सके और उन्होंने मुग़ल सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का बड़े साहस तथा निर्भीकता से विरोध किया और अंत में अपने प्राणों तक की बलि दे दी। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का महत्त्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाता है

1. सिक्ख संप्रदाय में महान् परिवर्तन : गुरु हरगोबिन्द साहिब की नयी नीति-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्ख संप्रदाय में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया। शहीदी के पश्चात् सिक्खों ने अनुभव किया कि वे बिना शस्त्र उठाये धर्म की रक्षा नहीं कर सकते। कहते हैं कि अपनी शहीदी से पूर्व गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र को एक
संदेश भेजा था जो इस प्रकार था, “उसे पूर्णतया सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए और अपनी योग्यता अनुसार – सेना रखनी चाहिए।” अतः अपने पिता जी के उपदेश के अनुसार सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के बाद नई नीति अपनाई। उन्होंने ‘मीरी’ तथा ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। कुछ समय बाद उन्होंने सिक्खों को राजनीतिक तथा सैनिक कार्यों के लिए संगठित किया तथा एक भवन का निर्माण कराया जो आज ‘अकाल तख्त’ के नाम से प्रसिद्ध है। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने अमृतसर नगर की रक्षा के लिए किलाबंदी भी कराई। परंतु सेना के लिए अभी शस्त्रों तथा घोड़ों की बड़ी आवश्यकता थी। अतः उन्होंने अपने शिष्यों को घोड़ों तथा शस्त्र भेंट देने का आदेश दिया। शीघ्र ही सिक्खों को सैनिक प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया गया। इस प्रकार सिक्ख भक्तों ने संत सैनिकों का रूप धारण कर लिया।
1. “The Death of Guru Arjun is therefore, the great turning point in the development of the Sikh community.”
-Dr. E. Trump

2. सिक्खों तथा मुग़लों के संबंधों में टकराव-मुग़ल सम्राट अकबर बड़ा उदार हृदय था और उसके विचार धार्मिक थे। वह सिक्ख गुरु साहिबान का बड़ा आदर करता था। अतः उसके समय में मुग़लों तथा सिक्खों के संबंध बड़े मैत्रीपूर्ण रहे। परंतु जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध हो गया। उसने गुरु जी को अनेक शारीरिक यातनाएं दी और बड़ी निर्दयतापूर्वक उनको शहीद करा दिया। इससे सिक्खों में रोष की लहर दौड़ गई और उनके मुग़लों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध शत्रुता में बदल गये। इस संबंध में इतिहासकार लतीफ ने लिखा है, “इससे सिक्खों की धार्मिक भावनाएं भड़क उठी थीं और इस सब से गुरु नानक देव जी के सच्चे अनुयायियों के हृदय में मुसलमान शक्ति के प्रति घृणा के ऐसे बीज बो गए जिनकी जड़ें बड़ी गहरी थीं।” सिक्ख अब यह भली-भांति समझ गए थे कि धर्म की रक्षा के लिए उन्हें मुग़लों का मुकाबला करना पड़ेगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने सैनिक तैयारियां आरंभ कर दी। इस प्रकार मुग़लों तथा सिक्खों में संघर्ष बिल्कुल अनिवार्य हो गया और गुरु हरगोबिंद जी के समय में खुले रूप में युद्ध छिड़ गया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

3. सिक्खों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् मुग़ल शासकों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किये। शाहजहां के समय में सिक्खों तथा मुग़लों के संबंध और भी खराब हो गये। गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया गया। छठे गुरु जी के काल में मुग़लों तथा सिक्खों के बीच कई युद्ध लड़े गये। 1675 ई० में गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उनको शहीद करा दिया। दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में भी सिक्खों पर मुग़लों के अत्याचार जारी रहे। मुग़ल सम्राट ने सिक्खों का दमन करने के लिए विशाल सेनाएं भेजीं। सिक्खों तथा मुग़ल सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्र लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके दो पुत्रों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया। बंदा बहादुर की पराजय के पश्चात् 740 सिक्खों को पकड़ कर इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो उनका वध कर दिया गया। 1716 ई० से 1746 ई० तक भाई मनी सिंह, भाई तारा सिंह, भाई बूटा सिंह तथा भाई महताब सिंह आदि अनेक सिक्खों को शहीद कर दिया गया।

4. सिक्खों में एकता-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न हुई। गुरु जी की शहीदी व्यर्थ नहीं गई बल्कि इससे सिक्खों को एक नया उत्साह तथा एक नई शक्ति मिली। वे अत्याचारों का विरोध करने के लिए एकत्रित हो गये। श्री खुशवंत सिंह ने लिखा है, “गुरु अर्जन देव जी का रक्त सिक्ख संप्रदाय तथा पंजाबी राज्य का बीज सिद्ध हुआ।”2 सच तो यह है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों का अपने धार्मिक नेता में विश्वास और भी बढ़ गया। सिक्ख संप्रदाय अब पहले से कहीं अधिक संगठित हो गया। धर्म की रक्षा के लिये अब सिक्ख अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो गए।

5. भावी सिक्ख इतिहास पर प्रभाव-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का भावी सिक्ख इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी शहीदी के परिणामस्वरूप ही सिक्खों ने अत्याचार का विरोध करने के लिये शस्त्र उठाने का निश्चय किया। उन्होंने शक्तिशाली मुग़ल शासकों से टक्कर ली और युद्धों में अपने साहस, निर्भीकता तथा वीरता का परिचय दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी के पश्चात् सिक्खों ने साहस न छोड़ा और बंदा बहादुर के नेतृत्व में उन्होंने पंजाब के अधिकतर भागों पर अधिकार कर लिया। सिक्खों की शक्ति निरंतर बढ़ती गई और 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उन्होंने बारह स्वतंत्र राज्य स्थापित किए जो ‘मिसलों’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ समय पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों तथा मिसल सरदारों को पराजित करके पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी भावी सिक्ख इतिहास को निर्धारित करने का एक बहुत बड़ा कारण सिद्ध हुई।
1. “A struggle was thus becoming, more or less inevitable and it openly broke out under Guru Arjun’s son and successor, Guru Hargobind.”
-Dr. Indu Bhushan Banerjee
2.“Arjun’s blood became the seed of the Sikh Church as well as of the Punjabi nation.”-Khuswant Singh

PSEB 9th Class Social Science Guide श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने
(ग) गुरु रामदास जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया
(क) भाई पृथिया को
(ख) श्री महादेव जी को
(ग) बाबा बुड्डा जी को
(घ) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(ग) बाबा बुड्डा जी को

प्रश्न 3.
छहरटा का निर्माण करवाया
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 4.
मीरी और पीरी नामक तलवारें धारण की
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने

प्रश्न 5.
जहाँगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(क) गुरु अंगद देव जी
(ख) गुरु अमरदास जी
(ग) गुरु अर्जन देव जी
(घ) गुरु तेग बहादुर जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी

II. रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु अर्जन देव जी को अपने सबसे बड़े भाई ……. की शत्रुता का सामना करना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को ……….. में हुआ।
  3. ………. शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे।
  4. हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य ……… ई० में पूरा हुआ।
  5. ………….. सिक्खों के छठे गुरु थे।

उत्तर-

  1. पृथिया अथवा पिरथिया
  2. गोइंदवाल साहिब
  3. गुरु अर्जन साहिब
  4. 1601
  5. गुरु हरगोबिंद जी।।

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III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. हरिमंदर साहिब – (i) आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
2. मीरी – (ii) तरनतारन
3. श्री गुरु अर्जन देव जी – (iii) सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
4. पीरी – (iv) मसंद प्रथा
5. दसवंद – (v) प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर

उत्तर-

  1. प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर
  2. सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
  3. तरनतारन
  4. आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
  5. मसंद

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

(I)

प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर ने रखी।

प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के मध्य में किस शहर की नींव रखी तथा कब ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच 1590 ई० में तरनतारन नगर की नींव रखी।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिंदपुर तथा छहरटा।

प्रश्न 5.
‘दसवंध’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
‘दसवंध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करें।

प्रश्न 6.
लाहौर की बाऊली (जल स्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।

प्रश्न 7.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ या सुन सकें।

प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी के समय में घोड़ों के व्यापार का कोई एक लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खजाने में भी धन की वृद्धि हुई।
अथवा
इससे जाति-प्रथा को करारी चोट लगी।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के संबंधों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे।

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प्रश्न 11.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था ?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिंदुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।

प्रश्न 12.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने कलगी, छत्र, तख्त और दो तलवारें धारण की और ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की।

प्रश्न 14.
अमृतसर की किलेबंदी के बारे में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने अंतिम दस वर्ष कहां और कैसे व्यतीत किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म-प्रचार में व्यतीत किए।

प्रश्न 16.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।।

प्रश्न 17.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी किस मुग़ल शासक के काल में हुई ?
उत्तर-
औरंगज़ेब।

प्रश्न 18.
सिक्खों के पांचवें मुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 19.
अमृतसर में हरिमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 20.
‘मीणा’ सम्प्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
पृथी चंद (पिरथिया) ने।

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(II)

प्रश्न 1.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का संबंध किस प्रथा से है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।

प्रश्न 2.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन (सम्पादन) कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
उत्तर-
1606 ई० में।

प्रश्न 5.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी का पठान सेनानायक कौन था ?
उत्तर-
पैंदा खां।

प्रश्न 7.
अकाल तख़त का निर्माण, सिक्खों के किस गुरु ने किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 8.
अमृतसर की किलाबंदी किसने करवाई ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 9.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी ?
उत्तर-
राजा कल्याण चंद ने।

प्रश्न 10.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहांगीर ने।

प्रश्न 11.
गुरुगद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।

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प्रश्न 12.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।

प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के संबंध बिगड़ गए।

प्रश्न 14.
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।

प्रश्न 15.
हरिमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 16.
मसंद कौन थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे ?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसनद कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किन्होंने किया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ।

प्रश्न 19.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब को अमृतसर के हरिमंदर साहिब में स्थापित किया गया।

प्रश्न 20.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी बाबा बुड्डा जी को नियुक्त किया गया।

(III)
प्रश्न 1.
‘आदि ग्रंथ साहिब में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी ?
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
आत्म रक्षा तथा धर्म की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक गोइंदवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।

प्रश्न 6.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसंद’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचंद, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया ?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।

प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसंद न आई।
अथवा चंदू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई ?
उत्तर-
52 बंदी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी के राय में मुग़लों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए ? यह युद्ध कब और कहां हुए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम अलमस्त, ‘फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब के बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रंथी बने।
हरिमंदर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए ‘मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

प्रश्न 2.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हज़ारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”

प्रश्न 3.
मसंद प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों जाना जा सकता है

  1. गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा संतोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य संपन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
  2. मसंद प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बंदूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों में प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

प्रश्न 6.
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन अथवा सम्पादना पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरू कर दी थी। इसलिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफीसंतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य संपूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार सिक्खों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ मिल गया।

प्रश्न 7.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब हरिमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अंदर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।

प्रश्न 8.
मसंद प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से हमारा अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए भी काफ़ी धन चाहिए था। परंतु सिक्ख संगतों से चढ़ावे के रूप में पर्याप्त तथा निश्चित धनराशि प्राप्त नहीं होती थी। अत: उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे संबंध थे, परंतु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

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प्रश्न 10.
आदि ग्रंथ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रामाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रंथ को साक्षी मान कर संपन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रंथ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भंडार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
आदि ग्रंथ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यंत ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निंदा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।

प्रश्न 12.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता
    था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था।
  2. पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा।
  3. गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मांधता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।

प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की सिक्खों पर महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई-

  1. गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिंद के नाम यह संदेश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अंतिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। अब सिक्ख ‘संत सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।
  2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे मुग़ल-सिक्ख संबंधों में टकराव पैदा हो गया।
  3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है-

  1. गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसंद प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिंदपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
  3. उन्होंने ‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन करके एक महान् संपादक होने का परिचय दिया।
  4. उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहाँ रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।

प्रश्न 15.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया

  1. मुग़लों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिंद जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया
    और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
  3. गुरु अर्जन देव जी के अंतिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने संदेश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरंभ कर दी।
  4. जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतंत्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।

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प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ को एक नया मोड़ दिया।

  1. उन्होंने गुरुंगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण कीं। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।।
  2. उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  3. जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परंतु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बंदी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
  4. गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मसंद प्रथा के आरंभ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरंभ-मसंद प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरंभ किया। जब गुरु जी ने संतोखसर तथा अमृतसर नामक तालाबों की खुदवाई आरंभ की तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चंदा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसंद कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसंद प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरंतर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित तरीकों द्वारा मसंद प्रथा का रूप निखारा

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवंद) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
  2. गुरु अर्जन देव जी ने दसवंद की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसंद कहा जाता था। ये मसंद एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसंदों को रसीद दी जाती थी।
  3. इन मसंदों ने दसवंद एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवंद एकत्रित करके मसंदों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
  4. मसंद अथवा संगतिये दसवंद की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
  5. ये मसंद न केवल अपने क्षेत्र में दसवंद एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसंदों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।

महत्त्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष योगदान रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है

  1. गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
  2. पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट देने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में ही दरबार जैसा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली। सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसंद प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। यह नीति गुरु अर्जन देव की शहीदी का परिणाम थी। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शांतिप्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-

  1. राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना-नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरंभ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बंद कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर लीं। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
  2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिंद जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने संत सिक्खों को संत सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
  3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरिमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परंतु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
  4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन भी नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी थी।
  5. घोड़ों तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक संभव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई।
  6. अमृतसर की किलेबंदी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
  7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
  8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परंतु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 3.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरुगद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चंद गुरु हरगोबिंद साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
    PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी 1
  1. पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिंद साहब ने अनेक.पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। यहां तक कि कई पहाड़ी राजे भी उनके सिक्ख बन गए। परंतु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिंदू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरंभ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
  2. गुरु हरगोबिंद जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिंद साहब के मुग़ल सम्राट जहांगीर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए। इस शांतिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं कीं। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहां पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहां पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
    गुरु हरगोबिंद जी ननकाना साहब भी गए। वहां से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहां से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोज़पुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए।
  3. धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने भाई विधिचंद को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
  4. हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अंतिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिंद जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी PSEB 9th Class History Notes

  • गुरु अर्जन देव जी – गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने अमृतसर में हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरिमंदर साहिब में स्थापित किया। बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रंथी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया। गुरु साहिब ने तरनतारन तथा करतारपुर नामक नगरों की नींव भी रखी।
  • मसंद प्रथा – ‘मसंद’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।
  • आदि ग्रंथ का संकलन – आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया। गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ।
  • तरनतारन की स्थापना – गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  • करतारपुर की नींव रखना – गुरु जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
  • मसंद प्रथा में सुधार – गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा में सुधार लाने की आवश्यकता अनुभव की। उन्होंने सिक्खों को आदेश दिया कि वह अपनी आय का 1/10 भाग आवश्यक रूप से मसंदों को जमा कराएं। मसंद वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केंद्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे। दशांश इकट्ठा करने के अतिरिक्त मसंद उस क्षेत्र में सिक्ख धर्म का प्रचार भी करते थे।
  • लाहौर में बावली का निर्माण – गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बावली का निर्माण करवाया। इसके निर्माण से बावली के निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हई।
  • हरगोबिंदपुर तथा छहरटा की स्थापना – गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छरहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
  • मीरी तथा पीरी – गुरु हरगोबिंद साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण की। उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।
  • अकाल तख्त साहिब – गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् गुरु हरगोबिन्द जी ने 1606 ई० में अमृतसर में अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया।
  • 1581 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
  • 1588 ई० -हरिमंदर साहिब की नींव प्रसिद्ध सूफी फकीर मियां मीर जी ने रखी।
  • 1590 ई० -गुरु अर्जन देव जी ने माझे के खारा गांव में तरनतारन नामक सरोवर बनवाया।
  • 1593 ई० -करतारपुर की स्थापना की और गंगसर सरोवर का निर्माण।
  • 1595 ई० -व्यास नदी के किनारे हरगोबिंदपुर नगर बसाया।
  • 1604 ई० -आदि ग्रंथ साहिब जी का संपादन कार्य पूर्ण हुआ।
  • 1606 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी ने गुरु हरिगोबिंद जी को सिक्खों का छठा गुरु नियुक्त किया।
  • 30 मई, 1606 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

SST Guide for Class 8 PSEB बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
आदिवासी समाज के लोग अधिक संख्या में कौन-से राज्यों में रहते हैं ?
उत्तर-
आदिवासी समाज के लोग राजस्थान, गुजरात, बिहार तथा उड़ीसा में अधिक संख्या में रहते हैं।

प्रश्न 2.
आदिवासी समाज के लोगों के मुख्य व्यवसाय कौन-से हैं ?
उत्तर-
आदिवासी समाज के लोगों के मुख्य व्यवसाय पशु पालना, शिकार करना, मछली पकड़ना, भोजन इकट्ठा करना तथा खेती करना है।

प्रश्न 3.
आदिवासी समाज के लोगों ने कौन-कौन से राज्यों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया ?
उत्तर-
आदिवासी समाज के लोगों ने मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मेघालय, बंगाल आदि राज्यों में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह किये।

प्रश्न 4.
खासी कबीले का मुखिया कौन था ?
उत्तर-
खासी कबीले का मुखिया तिरुत सिंह था।

प्रश्न 5.
छोटा नागपुर के क्षेत्र में सबसे पहले किस कबीले ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया ?
उत्तर-
छोटा नागपुर के क्षेत्र में सबसे पहले 1820 ई० में कोल कबीले के लोगों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह किया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

प्रश्न 6.
अंग्रेजों द्वारा किस व्यक्ति को खरोधा लोगों का मुखिया बनाया गया ?
उत्तर-
खरोधा कबीले में एक व्यक्ति को देश निकाला दिया गया था। अंग्रेजों ने उसे वापस बुला कर उसे खरोधा लोगों का मुखिया बनाया।

प्रश्न 7.
आदिवासी समाज पर नोट लिखें।
उत्तर-
आदिवासी समाज अथवा आदिवासी लोग भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या लगभग 1600 लाख थी। इन कबीलों का एक बड़ा भाग राजस्थान, गुजरात, बिहार, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में रहता था। मध्य प्रदेश की जनसंख्या का 23.22% भाग इन्हीं कबीलों के लोग थे। कुछ आदिवासी कबीले छोटे-छोटे राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों में भी रहते थे, जैसे-सिक्किम, गोवा, मिज़ोरम, दादरा-नगर हवेली तथा लक्षद्वीप आदि। इन आदिवासी लोगों में से अधिकतर का सम्बन्ध गोंड, भील, संथाल, मिज़ो आदि कबीलों से था।

प्रश्न 8.
बिरसा मुण्डा पर नोट लिखें।
उत्तर-
बिरसा मुण्डा बिहार (छोटा नागपुर क्षेत्र) के मुण्डा कबीले के विद्रोह का नेता था। वह एक शक्तिशाली व्यक्ति था। उसे परमात्मा का दूत माना जाता था। उसने उन गैर-कबिलाई लोगों के विरुद्ध धरना दिया जिन्होंने मुण्डा लोगों की ज़मीने छीन ली थीं। मुण्डा लोग साहूकारों तथा ज़मींदारों से भी घृणा करते थे क्योंकि वे उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। बिरसा मुण्डा ने मुण्डा किसानों से कहा कि वे ज़मींदारों का किराया चुकाने से इन्कार कर दें।

छोटा नागपुर प्रदेश में मुण्डा लोगों ने अंग्रेज़ अधिकारियों, मिशनरियों तथा पुलिस स्टेशनों को अपना निशाना बनाया। परन्तु अंग्रेजों ने बिरसा मुण्डा को गिरफ्तार कर लिया और उसके विद्रोह को दबा दिया।

प्रश्न 9.
मुण्डा कबीले द्वारा किए गए विद्रोह के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
मुण्डा विद्रोह एक शक्तिशाली विद्रोह था। अतः विद्रोह को दबा देने के बाद सरकार मुण्डा लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान देने लगी। कुल मिलाकर इस विद्रोह के निम्नलिखित परिणाम निकले

  • अंग्रेज़ी सरकार ने छोटा नागपुर एक्ट 1908 पास किया। इसके अनुसार छोटे किसानों को ज़मीनों के अधिकार मिल गए।
  • छोटा नागपुर प्रदेश के लोगों में सामाजिक तथा धार्मिक जागृति आई। अनेक लोग बिरसा मुण्डा की पूजा करने लगे।
  • अनेक नये सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन शुरू हो गए। (4) कबिलाई लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगे।

प्रश्न 10.
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में आदिवासी समाज द्वारा किए गए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
खासी विद्रोह-उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सबसे पहला विद्रोह खासी कबीले ने किया। पूर्व में जैंतिया की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में गारो की पहाड़ियों तक उनका अधिकार था। तिरुत सिंह इस कबीले का संस्थापक था। उसके नेतृत्व में खासी लोग अपने प्रदेश से बाहरी लोगों को भगाना चाहते थे। 5 मई, 1829 ई० को खासी कबीले के लोगों ने गारो लोगों की सहायता से बहुत से यूरोपियों तथा बंगालियों को मार डाला। यूरोपीय कॉलोनियों को आग लगा दी गई। तिरुत सिंह भोटस, सिंगफोस आदि कुछ अन्य पहाड़ी कबीलों को भी विदेशी शासन से मुक्त करवाना चाहता था। अत: उसने अपने 10,000 साथियों की सहायता से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज़ सैनिकों ने खासीस गांवों को एक-एक करके आग लगा दी। अन्त में 1833 ई० में तिरुत सिंह ने ब्रिटिश सेना के आगे हथियार डाल दिए।

सिंगफोस विद्रोह-जिस समय अंग्रेज़ सैनिक खासी कबीले के विद्रोह को दबाने में व्यस्त थे, उसी समय सिंगफोस नामक पहाड़ी कबीले ने विद्रोह कर दिया। इन दोनों कबीलों ने खपती, गारो, नागा आदि कबायली कबीलों को विद्रोह में शामिल होने का निमन्त्रण दिया। सभी ने मिलकर असम में ब्रिटिश सेना पर आक्रमण कर दिया और कई अंग्रेज़ों को मार डाला। परन्तु अन्त में उन्हें हथियार डालने पड़े क्योंकि वे अंग्रेजों के आधुनिक शस्त्रों का सामना न कर सके।

अन्य विद्रोह-

  • 1839 ई० में खासी कबीले ने फिर से विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेज़ों के राजनीतिक दूत कर्नल वाइट तथा अन्य कई अंग्रेजों की हत्या कर दी।
  • 1844 में नागा नामक एक अन्य उत्तर-पूर्वी कबीले ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह दो-तीन साल तक चलता रहा।
  • मणिपुर के पहाड़ी प्रदेशों में कुकियों का विद्रोह भी लम्बे समय तक चला। उनकी संख्या 7000 के लगभग थी। उन्होंने 1826, 1844 तथा 1849 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किए। उन्होंने कई अंग्रेज़ अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया। परन्तु अन्त में अंग्रेज़ी सरकार ने उनके विद्रोह को दबा दिया। पकड़े गए कुकियों को तरह-तरह की यातनाएं दी गईं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करो :

1. आदिवासी समाज भारत की जनसंख्या का एक ………… भाग है।।
2. आदिवासी समाज ……….. या …………. कमरों वाली झोंपड़ियों में रहते थे।
3. पूर्व में जयंतिया पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में गारो पहाड़ियों तक के क्षेत्र में ………… कबीले का अधिकार
(शासन) था।
4. जब बर्तानवी सैनिक खासी कबीले के विद्रोह का मुकाबला कर रहे थे, तब उसी समय ही एक अन्य पहाड़ी
कबीले ………….. ने बगावत कर दी।
उत्तर-

  1. महत्त्वपूर्ण
  2. एक, दो
  3. खासी
  4. सिंगफोस।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाओ :

1. आदिवासी कबीलों में गोंड कबीले की संख्या सबसे कम है। – (✗)
2. दिवासी समाज के लोगों की सबसे प्रारंभिक सामाजिक इकाई परिवार है। – (✓)
3. बर्तानवी शासकों ने अफीम तथा नील की खेती करने के लिए आदिवासी क्षेत्रों की जमीन पर कब्जा कर – (✓)
लिया।
4. बिरसा मुण्डा ने किसानों से कहा कि वे ज़मींदारों को टैक्स (कर) दे दें। – (✗)

PSEB 8th Class Social Science Guide बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए:

प्रश्न 1.
बिरसा मुंडा ने विद्रोह किया-.
(i) कोरोमंडल में
(ii) छोटा नागपुर में
(iii) गुजरात में
(iv) राजस्थान में।
उत्तर-
छोटा नागपुर में

प्रश्न 2.
छोटा नागपुर एक्ट कब पास हुआ ?
(i) 1906 ई०
(ii) 1846 ई०
(iii) 1908 ई०
(iv). 1919 ई०।
उत्तर-
1908 ई०

प्रश्न 3.
अंग्रेजों के विरुद्ध किस कबीले ने विद्रोह किया ?
(i) नागा
(ii) सिंगफोस
(iii) कूकी
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी।

(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. खरोध कबीले का विद्रोह – 1855 ई०
2. संथाल कबीले का विद्रोह – 1846 ई०
3. मुण्डा विद्रोह – 1899-1900 ई०
4. कोल विद्रोह – 1820 ई०
उत्तर-

  1. 1846 ई०
  2. 1855 ई०
  3. 1899-1900 ई०
  4. 1820 ई० ।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कबिलाई समाज से क्या भाव है ?
उत्तर-
कबिलाई समाज से भाव भारत के आदिवासी लोगों से है।

प्रश्न 2.
भारत में आदिवासी लोग मुख्य रूप से किन-किन कबीलों से सम्बन्ध रखते हैं ? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
गोंड, भील, संथाल, मिज़ो आदि।

प्रश्न 3.
कबिलाई लोगों का क्षेत्रीय वितरण बताओ।
उत्तर-
आदिवासी लोगों में से 63% लोग पहाड़ी भागों में, 2.2% लोग द्वीपों में तथा 1.6% लोग अर्द्ध खण्ड के ठण्डे प्रदेशों में रहते हैं। अन्य लोग विभिन्न शहरी तथा ग्रामीण प्रदेशों में बिखरे हुए हैं।

प्रश्न 4.
उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कबिलाई लोगों के विद्रोहों का मूल कारण क्या था ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध कबायली लोगों के विद्रोहों का मूल कारण अंग्रेज़ी सरकार की गलत नीतियां थीं। उनकी ज़मीन हथिया ली गई थी और उनकी आजीविका के साधन चौपट कर दिए गए थे।

प्रश्न 5.
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में नागा विद्रोह कब हुआ ? यह कब तक चलता रहा ?
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में नागा विद्रोह 1844 ई० में हुआ। यह दो-तीन साल तक चलता रहा।

प्रश्न 6.
अंग्रेज़ी सरकार ने कबिलाई लोगों की जमीनें क्यों हथिया ली थीं ?
उत्तर-
फ़सलों के वाणिज्यीकरण के कारण अंग्रेज़ किसानों से अफ़ीम तथा नील की खेती करवाना चाहते थे। इसलिए सरकार ने कबिलाई लोगों की जमीनें हथिया ली थीं।

प्रश्न 7.
विभिन्न कबिलाई विद्रोहों के किन्हीं चार नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
तिरुत सिंह (खासीस), सिंधु तथा कान्ह (संथाल) और बिरसा मुण्डा (मुण्डा कबीला)।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कबिलाई लोगों के घरों तथा काम-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कबिलाई लोग बिना किसी योजना के बनी एक-दो कमरों वाली झोंपड़ियों में रहते हैं। ये झोंपड़ियां दो या चार लाइनों में एक-दूसरे के सामने बनी होती हैं। इन झोंपड़ियों के आसपास वृक्षों के झुण्ड होते हैं। ये लोग भेड़बकरियां तथा पालतू पशु पालते हैं। ये स्थानीय प्राकृतिक तथा भौतिक साधनों पर निर्भर हैं। इनके अन्य काम-धन्धों में शिकार करना, मछली पकड़ना, भोजन इकट्ठा करना तथा बैलों की सहायता से हल चलाना आदि शामिल हैं। .

प्रश्न 2.
कबिलाई समाज के परिवार पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
कबिलाई लोगों की सबसे पहली सामाजिक इकाई परिवार है। परिवार के घरेलू कामकाज में स्त्रियां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्त्रियों के मुख्य कार्य खाना बनाना, लकड़ियां इकट्ठी करना, सफ़ाई करना तथा कपड़े धोना है। वे खेती के कार्यों में पुरुषों का हाथ बंटाती हैं। इन कामों में भूमि को समतल करना, बीज बोना, फसल काटना आदि शामिल हैं। पुरुषों के मुख्य कार्य जंगल काटना, भूमि को समतल करना तथा हल चलाना है। क्योंकि स्त्रियां आर्थिक कार्यों में पुरुष की सहायता करती हैं, इसलिए कबिलाई समाज में बहुपत्नी प्रथा प्रचलित है। .

प्रश्न 3.
देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में खासीस कबीले के विद्रोह पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सबसे पहला विद्रोह खासीस कबीले ने किया। पूर्व में जैंतिया पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में गारो की पहाड़ियों तक उनका अधिकार था। तिरुत सिंह इस कबीले का संस्थापक (मोढी) था।

उसके नेतृत्व में खासी लोग अपने प्रदेश से बाहरी लोगों को भगाना चाहते थे। 5 मई, 1829 ई० को खासीस कबीले के लोगों ने गारो लोगों की सहायता से बहुत से यूरोपियों तथा बंगालियों को मार डाला। यूरोपीय कॉलोनियों को आग लगा दी गई। तिरुत सिंह कुछ अन्य पहाड़ी कबीलों को भी विदेशी शासन से मुक्त करवाना चाहता था। अतः उसने अपने 10,000 साथियों की सहायता से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज़ सैनिकों ने खासीस गांवों को एक-एक करके आग लगा दी। अन्त में 1833 ई० में तिरुत सिंह ने ब्रिटिश सेना के आगे हथियार डाल दिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कबिलाई समाज तथा उसकी आर्थिक दशा में हुए परिवर्तनों का वर्णन करो। (P.B. 2009 Set-A)
उत्तर-
कबिलाई समाज-कबिलाई समाज अथवा आदिवासी लोग भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं। इनकी जनसंख्या 1600 लाख से भी अधिक थी। इन कबीलों का एक बड़ा भाग राजस्थान, गुजरात, बिहार, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में रहता था। मध्य प्रदेश की जनसंख्या का 23.22% भाग इन्हीं कबीलों के लोग थे। कुछ आदिवासी कबीले छोटे-छोटे राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों में भी रहते थे, जैसे-सिक्किम, गोवा, मिज़ोरम, दादरा-नगर हवेली तथा लक्षद्वीप आदि। इन आदिवासी लोगों में से अधिकतर का सम्बन्ध गोंड, भील, संथाल, मिज़ो आदि कबीलों से था।
इन आदिवासी लोगों में से 63% लोग पहाड़ी भागों, 2.2% लोग द्वीपों में तथा 1.6% लोग अर्द्ध खण्ड के ठण्डे प्रदेशों में रहते थे। अन्य लोग विभिन्न शहरी तथा ग्रामीण प्रदेशों में बिखरे हुए हैं। ये लोग बिना किसी योजना के बनी एकदो कमरों वाली झोंपड़ियों में रहते हैं। ये झोंपड़ियां दो या चार लाइनों में एक-दूसरे के सामने बनी होती हैं। इन झोंपड़ियों के आसपास वृक्षों के झुण्ड होते हैं। ये लोग भेड़-बकरियां तथा पालतू पशु पालते हैं। ये स्थानीय प्राकृतिक तथा भौतिक साधनों पर निर्भर हैं। इनके अन्य काम-धन्धों में शिकार करना, मछली पकड़ना, भोजन इकट्ठा करना तथा बैलों की सहायता से हल चलाना आदि शामिल हैं।

परिवार-कबिलाई लोगों की सबसे पहली सामाजिक इकाई परिवार है। परिवार के घरेलू कामकाज में स्त्री महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्त्रियों के मुख्य कार्य खाना बनाना, लकड़ियां इकट्ठी करना, सफ़ाई करना तथा कपड़े धोना है। वे खेती के कार्यों में पुरुषों का हाथ बंटाती हैं। इन कामों में भूमि को समतल करना, बीज बोना, फसल काटना आदि शामिल हैं। पुरुषों के मुख्य कार्य जंगल काटना, भूमि को समतल करना तथा हल चलाना है। क्योंकि स्त्रियां आर्थिक कार्यों में पुरुष की सहायता करती हैं, इसलिए कबिलाई समाज में बहपत्नी प्रथा प्रचलित है। ___ कबिलाई समाज की आर्थिक दशा में परिवर्तन-19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के समय कबिलाई समाज के लोग सबसे ग़रीब थे। ब्रिटिश शासन ने इन लोगों के जीवन पर और भी बुरा प्रभाव डाला। अंग्रेजों द्वारा पुराने सामाजिक तथा आर्थिक ढांचे को बदल दिया गया। इसका सबसे बुरा प्रभाव कबिलाई समाज तथा उनकी आर्थिकता पर पड़ा। अंग्रेज़ी सरकार ने अपने आर्थिक हितों के कारण फ़सलों का व्यापारीकरण (वाणिज्यीकरण) कर दिया। सरकार ने अफ़ीम तथा नील की खेती करने के लिए कबिलाई लोगों की जमीन हथिया ली। फलस्वरूप कबिलाई लोग मजदूरी करने के लिए विवश हो गए। परन्तु उन्हें बहुत कम मजदूरी दी जाती थी। अतः उन्हें अपना गुजारा करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी आर्थिक दशा बहुत ही खराब हो गई।

कबिलाई लोग इन सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तनों के विरुद्ध थे। अत: उनमें ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष फैला हुआ था।

प्रश्न 2.
कबिलाई समाज के लोगों द्वारा छोटा नागपुर क्षेत्र में किए गए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध छोटा नागपुर प्रदेश के विद्रोह काफ़ी महत्त्वपूर्ण थे। इनमें से मुण्डा जाति के विद्रोह का विशेष महत्त्व है। इन विद्रोहों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :

1. कोल कबीले का विद्रोह-छोटा नागपुर प्रदेश में सबसे पहले 1820 ई० में कोल कबीले के लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया। उन्हें अपने प्रदेश में अंग्रेज़ी राज्य का विस्तार सहन नहीं था। विद्रोहियों ने कई गांव जला दिए। कोल विद्रोही भी बड़ी संख्या में मारे गए। इसलिए उन्हें 1827 ई० में अंग्रेज़ों के आगे हथियार डालने पड़े।

2. मुण्डा कबीले का विद्रोह-1830-31 में छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा कबीले ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा फहरा दिया। कोल कबीले के लोग भी इस विद्रोह में शामिल हो गए। शीघ्र ही यह विद्रोह रांची, हज़ारी बाग, पलामू तथा मनभूम तक फैल गया। अंग्रेज़ी सेना ने लगभग 1000 विद्रोहियों को मार डाला, फिर भी वह विद्रोह को पूरी तरह से न दबा सकी। अंततः अनेक सैनिक कार्रवाइयों के पश्चात् 1832 ई० में इस विद्रोह को कुचला जा सका, फिर भी मुण्डा तथा कोल लोगों की सरकार विरोधी गतिविधियां जारी रहीं।

3. खोड़ अथवा खरोधा कबीले का विद्रोह-छोटा नागपुर क्षेत्र में 1846 ई० में खरोधा कबीले ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेज़ कैप्टन मैकफ़र्सन के कैम्प पर धावा बोल दिया और उसे अपने 170 साथियों सहित हथियार डालने पर मजबूर कर दिया। अन्य पड़ोसी कबीलों के लोग भी खरोधा लोगों के साथ आ मिले। परन्तु अंग्रेजों ने उसी वर्ष इस विद्रोह को कुचल दिया। उन्होंने देश-निकाला प्राप्त एक खरोधा नेता को वापस बुलाया और उसे खरोधा लोगों का मुखिया बना दिया। इस प्रकार खरोधा लोग शान्त हो गए।

4. संथाल विद्रोह-संथालों ने 1855 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया। इनकी संख्या लगभग 10,000 थी। इनका नेतृत्व सिंधु तथा कान्ह नामक दो भाइयों ने किया। संथालों ने भागलपुर तथा राजमहल के पहाड़ी प्रदेश के बीच रेल सेवाएं ठप कर दीं। उन्होंने तलवारों तथा ज़हरीले तीरों से अंग्रेजों के बंगलों पर आक्रमण किए। रेलवे तथा पुलिस के कई अंग्रेज़ कर्मचारी उनके हाथों मारे गए। अंग्रेज़ी सेना ने उनका पीछा किया। परन्तु वे जंगलों में छिप गए। उन्होंने 1856 ई० तक अंग्रेज़ सैनिकों का सामना किया। अन्त में विद्रोही नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कड़ी यातनाएं दी गईं।

5. मुण्डा जाति का दूसरा विद्रोह-मुण्डा कबीला बिहार का एक प्रसिद्ध कबीला था। ब्रिटिश काल में बहुत से गैर-कबिलाई लोग कबायली प्रदेशों में आकर बस गये थे। उन्होंने कबिलाई लोगों से उनकी ज़मीन छीन ली थी। इसलिए इन लोगों को गैर-कबिलाई लोगों के पास मज़दूरी करनी पड़ती थी। तंग आकर मुण्डा लोगों ने अपने नेता बिरसा मुण्डा के अधीन विद्रोह कर दिया। प्रमुख विद्रोह 1899-1900 ई० में रांची के दक्षिणी प्रदेश में शुरू हुआ। इस विद्रोह का मुख्य उद्देश्य वहां से अंग्रेज़ों को भगाकर मुण्डा राज्य स्थापित करना था।
बिरसा मुण्डा ने उन गैर-कबिलाई लोगों के विरुद्ध धरना दिया जिन्होंने मुण्डा लोगों की जमीनें छीन ली थीं। मुण्डा लोग साहूकारों तथा ज़मींदारों से घृणा करते थे, क्योंकि वे उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। बिरसा मुण्डा ने मुण्डा किसानों से कहा कि वे ज़मींदारों का किराया चुकाने से इन्कार कर दें।

मुण्डा लोगों ने अंग्रेज़ अधिकारियों,मिशनरियों  तथा पुलिस स्टेशनों को अपना निशाना बनाया। परन्तु अंग्रेज़ों ने बिरसा मुण्डा को गिरफ्तार कर लिया और उसके विद्रोह को दबा दिया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 13 बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज

बस्तीवाद तथा कबिलाई समाज PSEB 8th Class Social Science Notes

  • कबिलाई समाज – कबिलाई समाज से अभिप्राय देश के आदिवासी लोगों से है। ये मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, बिहार, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के पहाड़ी प्रदेशों में रहते हैं।
  • प्रमुख कबीले – भारत के प्रमुख आदिवासी कबीले गोंड, भील, संथाल, मिज़ो आदि हैं।
  • कबिलाई लोगों के विद्रोह -19वीं शताब्दी में अनेक कबिलाई लोगों ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। इसलिए देश के अनेक भागों में कबिलाई विद्रोह हुए। मध्य प्रदेश में भीलों ने, बिहार में मुण्डा लोगों ने, उड़ीसा में गोंडों ने तथा बिहार-बंगाल में संथालों ने भारी विद्रोह किये।
  • बिरसा मुण्डा – बिरसा मुण्डा, मुण्डा कबीले का नेता था। वह एक शक्तिशाली व्यक्ति था।
  • संथालों का विद्रोह – राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले संथाल कबीले के लोगों ने सिंधु और कान्ह नामक
    दो व्यक्तियों के नेतृत्व में 1855 में विद्रोह कर दिया। उन्होंने कम्पनी के शासन का अन्त करके स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। सैनिक कार्यवाही के बाद अंग्रेज़ 1856 में स्थिति पर नियन्त्रण कर पाये। सरकार ने संथाल लोगों को प्रसन्न करने के लिए संथाल परगना नामक एक अलग ज़िला स्थापित किया।
  • कबिलाई लोगों के विद्रोहों के परिणाम – इन विद्रोहों के परिणामस्वरूप कबिलाई लोग सामाजिक तथा धार्मिक रूप से जागरूक हुए।

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Source Based Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Source Based Questions and Answers

Question 1.
Punjab is also the land of the great Sikh Gurus. It is the place where Sri Guru Nanak Dev Ji gave the message of humanity to the world and Sri Guru Gobind Singh Ji established the ‘Khalsa Panth’. Inspired by Guru Gobind Singh Ji, Banda Singh Bahadur led Sikhs to face Mughal tyranny with courage and sacrifice to establish the Sikh rule. Later on, on these very foundations, Maharaja Ranjit Singh was able to build a sovereign Sikh empire. The contribution of Punjab’s martyrs and freedom fighters is also remarkable in Indian National Movement.
(а) ‘Punjab is the land of the great Sikh Gurus’. Give two examples in favour of the statement.
Answers:

  • It is the place where Sri Guru Nanak Dev Ji gave the message of humanity to the world.
  • On this land, Guru Gobind Singh Ji established Khalsa Panth.

(b) How and who founded a sovereign Sikh empire in Punjab?
Answer:
A sovereign Sikh empire in Punjab was founded by Maharaja Ranjit Singh. First of all, by taking inspiration from Guru Gobind Singh Ji, Banda Singh Bahadur led Sikhs to face Mughal tyranny with courage and sacrifice to establish the Sikh rule. Later on, on these very foundations, Maharaja Ranjit Singh was able to build a sovereign Sikh empire.

Question 2.
At the time of independence, Indian Punjab (Eastern Punjab) had Ambala, Amritsar, Bhatinda, Ferozepur, Jullundur, Gurdaspur, Gurgaon (Gurugram), Hissar, Hoshiarpur, Kangra, Kapurthala, Mohindergarh, Patiala, Rohtak, Sangrur and Simla disticts.
On 1 November 1966, District Ambala, Karnal, Rohtak, Hissar, Gurgaon, Mohindergarh and Jind Tehsil became a part of Haryana State. District Simla, Kangra and Una Tehsil became a part of Union territory of Himachal Pradesh of that time.
(a) What is meant by Eastern Punjab at the time of independence? Name four districts included in it.
Answer:
At the time of independence, areas of Punjab which became part of India, were given the name of Eastern Punjab. It included drainage system of the Sutlej and Beas rivers. Now it is known as Punjab. Four districts of this region are Ambala, Amritsar, Bathinda and Jalandhar.

(b) Which areas were included in Punjab at the time of reorganization of states in 1956?
Answer:
In 1956, Malwa region was dismantled and was made a part of Punjab. This region is spread from Sutlej to Ghagar rivers.

(c) When was Punjab reorganised on linguistic basis? What was its impact on Punjab?
Answer:
On 1st Nov. 1966, Punjab was reorganized on a linguistic basis. According to it, Haryana was carved out of Punjab. Some mountainous regions of Punjab were given to Himachal Pradesh.

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Question 3.
Dialects of Punjabi
According to a survey conducted by Punjabi University, Patiala, there are 28 dialects of Punjabi language. These include Indian Punjabi dialects like Majhi, Doabi, Malwai, Puadhi and Dogri. Majhi is spoken in Gurdaspur, Pathankot, Amritsar and Tarn Taran districts of Punjab. The Taksali version of Punjabi is the closest to this language. Doabi is spoken in Jalandhar, Shaheed Bhagat Singh Nagar, Kapurthala and Hoshiarpur districts. Ferozepur, Fazilka, Faridkot, Sri Muktsar Sahib, Moga, Bathinda, Barnala, Mansa and Ludhiana districts are the areas where mainly Malwai dialect is spoken. The areas of Puadhi dialect are Ropar, Mohali, Fatehgarh Sahib and Patiala. Dogri is predominantly spoken in the Jammu region of Jammu and Kashmir province.
(a) How many dialects of Punjabi language are there? Which of these is the main Indian Punjabi dialect?
Answer:
There are 28 dialects of Punjabi. Out of all these only Majhi, Malwai, Puadhi and Dogri are the main Indian Punjabi dialects.

(b) Which version of Punjabi is closest to this language? In which districts of Punjab, this dialect is spoken?
Answer:
The Majhi version of Punjabi is closest to this language. This dialect is mainly spoken in Gurdaspur, Pathankot, Amritsar and Tarn Taran districts.

(c) Name three districts each where Doabi, Malwai and Puadhi are spoken.
Answer:

  • Doabi: Jalandhar, Kapurthala and Hoshiarpur.
  • Malwai: Firozepur, Moga and Bathinda.
  • Puadhi: Mohali, Fatehgarh Sahib and Patiala.

Question 4.
Sacred Thread Ceremony
At the age of nine, according to the Hindu traditions, (Janeu) the sacred thread ceremony was performed. When the family purohit Pandit Hardyal wanted to put the sacred thread, Guru Nanak Dev Ji refused to wear it. In this way at the age of 9, he challenged the religious and social orthodoxy.
(a) When was the sacred thread ceremony performed?
Answer:
According to the Hindu traditions, at the age of nine, the sacred thread ceremony was performed with Guru Nanak Dev Ji.

(b) Explain the sacred thread ceremony performed with Guru Nanak Dev Ji.
Answer:
Guru Nanak Dev Ji had not yet completed his early education when it was decided to perform the sacred thread ceremony for Guru Nanak Dev Ji by his parents. A day was fixed for the ceremony as an auspicious day. All the relatives and Brahmins were invited. Pandit Hardyal recited the hymns (mantras) and asked Guru Nanak Dev Ji to sit before him and wear the sacred thread. Guru Nanak Dev Ji refused to wear the thread. Guru Sahib said that he did not need any such thread for his physical body but a permanent thread for his soul. Guru Sahib further stated that he needed such a thread which was not made of cotton yarn but of the yarn of right virtues.

Question 5.
In order to get him interested in worldly affairs, his father Mehta Kalu gave Sri Guru Nanak Dev Ji some rupees. He sent him to the nearest town-Chuharkana to do business. On his way, the Guru met a group of Faqirs (ascetics) who were huftgry for several days. Sri Guru Nanak Dev Ji spent all the money in feeding them. When Sri Guru Nanak Dev Ji returned home and narrated the incident to his father, he was very disappointed. This incident is called the Sacha Sauda (True Transaction).
(a) What is meant by Sacha Sauda?
Answer:
The meaning of Sacha Sauda is True Transaction which Guru Nanak Dev ji did by spending his Rs. 20 in feeding the hungry Faqirs.

(b) What professions did Guru Nanak Dev Ji adopt in his early life?
Answer:
Guru Nanak Dev Ji had started showing disinterest in his education and worldly affairs at a very young age. His father engaged him in cattle grazing to divert his interest to worldly affairs. While on cattle-grazing rounds, he remained engrossed in deep meditation and his cattle strayed into fields of the other people. Troubled by the complaints of neighbouring farmers, his father decided to put him in business. He gave him twenty rupees to start some business but Guru Nanak Dev Ji spent all the money in feeding the saints and wanderers. This incident of his life is popular as ‘Sachha Sauda’ or the Pious Deal.

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Question 6.
Guru Nank Dev Ji visited the holy place at Mecca. Guru Nanak Dev Ji went off to sleep with his feet towards Kabba. The qazi (Ruknaudin) objected to this, calling Guru Ji a Kafir. Guru Nanak Dev Ji very politely told him to move his feet in the direction where Allah did not exist. The qazi did not have an answei ) this and realized his mistake. In this way, Guru Nanak Dev Ji spread the message that God is Omnipresent. When the qazi asked him which religion was better Hinduism or Islam, Guru Ji replied that without good deeds, both will weep and wail.
(a) Which places did Guru Nanak Dev Ji visit during his 9th udasi?
Answer:
Guru Ji completed his fourth Udasi from 1517-1521 A.D. During this Udasi, he visited western Asia. He visited places such as Multan, Mecca, Madina, Baghdad, Qandhar, Kabul, Jalalabad, Peshawar etc.

(b) Which incident did happen with Guru Ji at Mecca? What message did Guru ji give to the people?
Answer:
Guru ji reached Mecca while preaching during his Journey. Mecca is a religious place of Muslims. There he fell asleep with his feet towards Kabba. Qazi Rukandin objected to it but Guru Ji remained calm. Then he said, “You put my feet on the side where Allah is not there.” Then Qazi started thinking and realised his mistake. With this incident, Guru gave a massage that God is omnipresent.

Question 7.
Guru Nanak Dev Ji reached Hasan Abdal after visiting Mecca Madina. An arrogant Muslim Faqir named Wali Qandhari lived on a steep hill there. He had stopped the flow of water from reaching the town below the hill. Despite the pleas of the town people, he did not allow the flow of water. He also refused water to Bhai Mardana. When Guru Nanak Dev Ji came to know of it he pushed aside a rock nearby and a fountain of water sprang up. In a fit of rage Wali Qandhari threw a rock at Guru Nanak Dev Ji but Guru Nanak Dev Ji halted the stone with his hand and shattered Wali Qandhari’s ego. This place is known as Gurudwara Sri Panja Sahib (now in Pakistan).
(a) What name is given to the Journeys of Guru Nanak Dev Ji? What was the objective of these Journeys?
Answer:
The Journeys of Guru Nanak Dev Ji are known as Udasis. The main objective of these Journeys was to remove superstitions and to show the people correct path of religion.

(b) Discuss in short the incident happened with Guru Ji at Hasan Abdal.
Answers :
Guru Ji reached Hasan Abdal after visiting Mecca. Here Guru Ji encountered an arrogant Muslim Faqir Wali Qandhari. He had stopped the flow of water from reaching the town below the hill. Guru Ji pushed aside the rock nearby and a fountain of water sprang up. Wali Qandhari became angry and threw a rock at Guru Ji but Guru Ji halted the stone with his hand and shattered Wali Qandhari’s ego. Then he became a disciple of Guru Ji.

Question 8.
Event of Sayyidpur (Eminabad)
During the fourth travel (Udasi) in 1520 A.D. when Guru Nanak Dev Ji was at Sayyidpur (Emnabad), Babur invaded it. Mughal soldiers committed a lot of atrocities on the people of Sayyidpur and looted them. They imprisoned numerous people. In his bani, Guru Nanak Dev Ji mentioned about the atrocities committed by Babur on the people of Punjab.
(a) What was the earlier name of Sayyidpur? When did Guru Ji reached here during his fourth Udasi?
Answer:
The earlier name of Sayyidpur was Emnabad. During his fourth Udasi, Guru Ji reached here in 1520 A.D.

(b) Explain Babur’s attack on Sayyidpur. From which Guru’s Bani do we get its information?
Answer:
We get information about Babur’s attack on Sayyidpur from Guru Nanak Dev Ji’s Bani. When Guru Ji reached here, Babur had already attacked Sayyidpur. His soldiers mercilessly killed many females, males and children and looted everything. The people of Sayyidpur were also subject to cruelties. Many of them were made slaves.

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Question 9.
The full name of Babur is Zahir-ud-din Mohammad. Babur, who had conquered Central Asia, was the first Mughal Emperor in India. He was the descendant of Taimur on his father’s side and Genghis Khan on his mother’s side. He wrote his autobiography, Tuzk-i-Baburi in his mother tongue, Turkey.
(a) Give a brief description of Babur. When did he first attack on India?
Answer:
The full name of Babur is Zahir-ud-din Mohammad Babur. He lived in Central Asia. He was the descendent of Taimur from his father’s side and Genghis Khan on his mother’s side. He was the first Mughal Emperor whose first attack on India was in 1519 A.D.

(b) What is the name of autobiography of Babur? In which language it is written?
Answer:
The name of autobiography of Babur is Tuzk-i-Baburi and it is written in Turkish language. It is also known as Babur-Nama.

Question 10.
True Service yields Fruit in the End
At Khadoor Sahib Sri Guru Amardas ji led a life of service and devotion. He took up the service of fetching water from the river Beas everyday to bathe Sri Guru Angad Dev Ji. Sri Guru Angad Dev ji was impressed by the devotion of Sri Guru Amardas ji and made him his successor. On the other hand, Dattu and Dassu, the sons of Sri Guru Angad Dev ji, considered themselves as suitable for Guruship and were jealous of Sri Guru Amar Das ji. Baba Buddha ji told the two that Guruship is not an ancestral property, only true service yields fruit in the end. Due to intense and selfless devotion of Sri Guru Amar Das ji, Sri Guru Angad Dev ji appointed him the successor of Gurudom.
(a) When did Guru Amardas Ji get Gurgaddi? What was his age at that time?
Answer:
Guru Amardas Ji became third Guru in 1552 A.D. and he was of 73 years of age at that time.

(b) How did Guru Amardas Ji get Gurgaddi?
Answer:
Guru Amardas Ji was a disciple Sikh of Guru Angad Dev Ji. Even in’his old age, he was always busy in serving Guru Angad Dev Ji. He took up the service of fetching water from the river Beas everyday to bathe Guru Angad Dev Ji. At this time, Dattu and Dassu, the sons of Guru Angad Dev Ji considered themselves as suitable for Guruship. They were jealous of Guru Amardas ji. On the instane of Baba Buddha Ji true service yielded fruit and Guru Angad Dev ji appointed Guru Amardas Ji as the successor of Gurudom.

Question 11.
Guru Ji established manji system to spread and promulgate Sikhism. He established 22 Manjis. The head of the Manji was called a Manjidar. These Manjidars used to act as a bridge between Guru ji and Sikh Sangat. The Sangat used to send their offerings to Guru Ji through these Manjidars. Thus, the Sangat of distant areas was connected with the Guru Ji. This system contributed a lot in the systematic development of Sikhism.
(a) Which Guru Ji started Manji System? Briefly explain.
Answer:
The Manji System was founded by Guru Amar Das Ji . The number of his Sikh followers had increased immensely by the time of Guru Amar Das Ji. However, Guru Ji was very old and it was difficult for him to visit his large spiritual empire of Sikh followers in order to spread his teachings. Hence, Guru Sahib divided his spiritual empire into 22 regions called the Manjis. Each Manji was further divided into Pidees.

(b) Which two Manjis were kept under women devotees? Name them.
Answer:
The Manjis of Kabul and Kashmir were kept under women devotees. They were Mai Seva and Mai Bhagbari respectively.

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Question 12.
Having failed in his various attempts to attain Guruship Prithia (Prithi Chand) started a new sect known as ‘Meena Sect’. Prithia’s son Mehrbaan, was a great scholar. He was the successor of the Meena Sect after his father. He composed the ‘Janam Sakhi’ of Sri Guru Nanak Dev Ji, which is considered an important work.
Questions :
(а) Who was Prithia (Prithi Chand)? Why did he not get Gurugaddi?
Answer:
Prithia was the eldest son of Guru Arjan Dev Ji. He considered his right over Gurudom but he was selfish, dihonest and deceiver. That’s why Guru Ram Das Ji refused to give him Gurudom.

(b) Briefly describe the functions of Mehrbaan, the son of Prithia.
Answer:
Mehrbaan was a great scholar. He was the successor of the Meena Sect after his father Prithia. He collected the information about the life of Guru Nanak Dev Ji and composed the Janam Sakhi. His Janam Sakhi is considered as an important work.

Question 13.
There are 1430 pages (organs) of Shri Guru Granth Sahib Ji. Guru Granth contains the Bani (hymns) of six Gurus, 15 saints, 11 Bhattas, 4 Sikhs. It includes 974 hymns of Guru Nanak Dev Ji, 63 hymns, of Guru Angad Dev Ji, 907 hymns of Guru Amardas Ji, 679 hymns of Guru Ram Das Ji, 2218 hymns and 116 Shabads of Guru Arjan Dev Ji, 116 Shabads and 2 Shalokas of Guru Tegh Bahadur Ji. The Bani of Kabir (weaver), Farid (Sufi Saint), Ravidas (Cobbler), Surdas (Brahmin), Namdev (Dyer), Jaidev (Brahmin), Trilochan (Vaish), Dhanna (Peasant), Pipa (Masons), Sain (Barber), Sadna (Bucther), Parmanand, Ramanand etc. also included in the Shri Guru Granth Sahib Ji. They all belonged to different castes and religion. It includes hymns of Bal, Dal, Nal, Sal, Ganga Das, Mathura, Bheekha, Kirt, Harbans (Bhatts) and compositions of Guru Sikhs Mardana, Satta, Balwand and Sundar.
(а) How many pages are there in Shri Guru Granth Sahib Ji? What name is given to them?
Answer:
There are 1430 pages in Shri Guru Granth Sahib Ji. They are known as organs.

(b) Write a note on the compilation of Shri Adi Granth Sahib Ji?
Answer:
Guru Arjan Dev Ji bestowed upon the Sikhs a sacred and religious book by compiling the Adi Granth Sahib. Guru Arjan Dev Ji compiled Adi Granth Sahib at Ramsar. Bhai Gurdas Ji assisted Guru Sahib in its compilation. The work of compilation was completed in 1604. Guru Sahib included the hymns of the first four Gurus followed by the hymns of Bhakti Saints and finally the sayings of Bhatt Bahiyah. Guru Arjan Dev Ji included his own Bani in the holy book.

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Question 14.
Ancient Regime (French ‘Old Order’)
Before the French Revolution, the Bourbon family of kings ruled France. Political and social system of France prior to the French Revolution under the regime, everyone was a subject of the king of France as well as a member of an estate and province. French society was divided into three orders : clergy, nobility and others (the third estate).
(a) When did the French Revolution take place? Which dynasty ruled over France before the revolution?
Answer:
The French Revolution took place in 1780 A. D. and the Bourbon family ruled over France before its revolution.

(b) What type of social condition of France was there at that time?
Answer:
Before the French Revolution, French Society was divided into three classes First Estate i.e. the Clergy, Second Estate i.e. Nobility and Third Estate i.e. the General Public :

  • The First Estate included the Clergy. They did not pay any taxes. They were on the higher posts even without having the ability.
  • The Second Estate included major Nobles who had large pieces of land.
  • The Third Estate included lawyers, doctors, teachers etc. They did not get any of the higher posts even if they had the ability to do so. The common public was also included in this. They had to pay taxes to the state as well as to the Church. They had to do begar and were exploited for many years.

Question 15.
Enlightenment: Age of Reason
The 18th century has been called the “Age of Reason”. The French philosophers asserted that man was not born to suffer as Christianity preached, but he was born
to be happy. The man can attain happiness if reason is allowed to destroy prejudice. They either denied the existence of God or ignored Him and asserted the doctrine of ‘Nature’ and understood its laws and faith in ‘Reason’.
(а) Why is the 18th century known as the Age of Reason. Name three French philosophers attached with this age.
Answer:
18th century is known as the age of reason because nothing in this age was accepted with reason or challenge. Everything was checked on the basis of reason.

(b) Which views were given by the French philosophers of this age?
Answer:
The French philosophers believed that man was not born to suffer but he was born to be happy. The man can attain happiness if reason is allowed to destroy prejudice. They either denied the existence of God or ignored him and asserted the doctrine of ‘Nature’.

Question 16.
The Bastille was an ancient fortress in Paris that had long been used to house political prisoners. It was a symbol of old regime.
(a) What was Bastille? Which day is known as Bastille day and why?
Answer:
The Bastille was an ancient fortress in Paris that had long been used to house political prisoners. 14th July is celebrated as the Bastille day because on this day people attacked Bastille and it fell down.

(b) Discuss the fall of Rastille in the French Revolution and its importance.
Answer:
On 14th July 1789, angry mob attacked the Bastille-prison at Paris. This prison was the symbol of the autocratic powers of monarchy. On the same day, the king ordered the army to enter the city. A rumour spread that the king was about to order the army to fire the poeple. So, around 7000 men and women assembled in front of the town hall. They organised a public army. In search of arms, they forcibly entered the public buildings. So, hundreds of people stormed into the prison of Bastille where they expected lot of arms and ammunition. In this conflict, the commander of Bastille died. Political prisoners were released although they were only seven in number. Fortress of Bastille was destroyed.

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Question 17.
Olympe de Gouges
She was one of the most important among the politically active women in revolutionary France. She protested against the Constitution and the Declaration of Rights of Man and Citizen as they excluded women from basic rights that each human being was entitled to. She criticized the Jacobins government for closing down the women’s clubs. She was tried by the National Convention, which charged her with treason. Soon after this she was executed.
(a) Who was Olympe de Gouges? How did she die?
Answer:
Olympe de Gouges was one of the most important politically active women in revolutionary France. She was tried by the National convention which charged her with treason. Soon after this, she was executed.

(b) Write briefly about her political activities.
Answer:
Olympe de Gouges opposed the Declaration of Rights of Men and Citizens. It was so because, it excluded women from basic rights that each human being was entitiled to. She also criticised the Jacobins government for closing down the women’s clubs. That’s why she was tried by the National Convention finally executed.

Question 18.
Liberalism-These responses are basically the responses of thise people who accepted and wanted radical restructuring as well as transformation in the system.
Conservatism-These people were in the favour of change but they wanted that it should be introduced gradually without altering the basic structure of the society.
Socialism-It gives stress on the welfare of whole society. Instead of individual profit, it stresses on social welfare.
(a) Define Conservatism.
Answer:
Conservatism:Conservatism never likes changes but if change is necessary then it should be introduced gradually and due respect should be given to the old regime or it should come without changing the basic structure of society.

(b) Define Liberalism.
Answer:
Liberalism:Liberalism believes in bringing change in society and its radical restructuring as well as transformation in the system.

Question 19.
Industrialization in Russia
In order to make Russia a great power the Tsar began a policy of rapid industrialisation in late 19th century. A number of steel, iron and other industries were established in and around Moscow and Urals. Mostly foreign owned these industries emoployed a number of workers. Men, women and children started going to factories due to industrialization. Poor working conditions, low wages etc., combined with a new sense of common identity fostered by Socialism led most of these workers to form unions of their own.
(a) What is meant by the word Tsar? When did the system of Tsar start in Russia?
Answer:
The word ‘Tsar’ literally meant ‘Supreme ruler’. Tsardom in Russia began in 1547 A.D.

(b) With what objective, the Tsar started the industrialisation in Russia? What was its impact on the labour class?
Answer:
At the time of Russian Revolution, Russia was ruled by Tsar Nicholas II. To make Russia a great power, he began a policy of rapid industrialisation in the late 19th century. Many iron, steel and other industries were established in and around Moscow and Urals. But most of these industries were owned by foreign industrialists. They employed many Russian workers who were greatly exploited. Poor working conditions and low wages combined these labourers. Under the influence of Socialism, they formed their unions and a sense of common identity.

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Question 20.
Duma: derived from the Russian word meaning ‘to think’, the Russian parliament. The Revolution of 1905 shook the Tsar so much that he agreed to the formation of a Duma in 1906 to advise him and to create legislation. The present day, Russian Parliament is also known as Duma.
(a) What is meant by the word ‘Duma’? Why did the Tsar of Russia establish Duma?
Answer:
Duma is a Russian word which means ‘to think’. The Revolution of 1905 shook the Tsar and he was forced to form the Duma.

(b) What was Duma? What were its functions?
Answer:
Its function was to advice the Tsar and to make laws for the Russian people. Duma was an elected Parliament which advised the Tsar to perform his functions. But Tsar only let conservatives to enter Duma. He kept liberals and revolutionaries away from Duma.

Question 21.
Bolsheviks Party Leader Lenin
The Bolsheviks, another group, were convinced that in a country like Russia where there were no democratic rights, no parliament, such a party organized on Parliamentary lines could not work and could not be effective. The leader was Lenin who devoted himself to the task of organizing the Bolshevik Party. He was influenced by the ideas of Karl Marx and Engels, and was regarded as the greatest leader of the Socialist Movement after Marx.
(a) Who was Lenin?
Answer:
Lenin was the leader of Bolshevik party in Russia. He is considered as the greatest leader of the Socialist Movement, after Karl Marx.

(b) Explain briefly the work done by Lenin. What was his April thesis?
Answer:
After the fall of Czar, he returned to Russia in April 1917 and united the peasants and workers under the Bolshevik Party and organized the revolution against the Provisional Government. He described the Russian empire as a prison of nation.

Under the leadership of Lenin, the Bolshevik Party put forward clear policies

  • to end the war,
  • to transfer land to the tillers, besides
  • giving all powers to the Soviets and equal status to all. This was April’s Thesis.

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Question 22.
Industrial Revolution
Industrial Revolution refers to rapid technical changes in the process of production of a number of goods, during 1750-1850 (First in England and later in other countries of Europe and U.S.A.). With the invention of new sources of power and machines, the production got replaced by machines instead of doing it by hand or tools. Industrial Revolution increased the need of raw material and food, this led to substantial deforestation in most of the regions of the world. The tremendous deforestation has deeply affected the life of forest dwellers and the Environment.
(а) What is meant by the Industrial Revolution?
Answer:
Industrial revolution was a technological revolution that took place during 1750’s to 1850’s. Many changes came in the production system during this period in England and other European countries.

(b) What was the impact of the industrial revolution on forests, forest society and atmosphere?
Answer:
Due to the industrial revolution, handmade tools were replaced by machines which increased the production of goods to a great extent. The demand of raw materials was greatly increased in the industrial nations of Europe. The demand of food items also increased with increase in population. Finally, for the development of agriculture, there started cutting down of forests. Deforestation started everywhere which had a really bad effect on the atmosphere.

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 25 धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 25 धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून

SST Guide for Class 8 PSEB धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. प्रस्तावना को संविधान की …………… भी कहा जाता है।
2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद ……………… तक …………… अधिकार दर्ज हैं।
3. संविधान की 42वीं शोध द्वारा प्रस्तावना में ………….. शब्द दर्ज किया गया।
4. सभी धर्मों को समान समझना …………… है।
उत्तर-

  1. संविधान के निर्माताओं के मन की कुंजी
  2. 14 से 18, समानता के मौलिक
  3. समानता तथा बंधुत्व (भाईचारा)
  4. हमारा कर्त्तव्य।

II. निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या ग़लत (✗) के चिन्ह लगाओ :

1. प्रस्तावना का आरम्भ ‘हम भारत के लोग’ शब्द से होता है। – (✓)
2. प्रस्तावना में समानता शब्द शामिल नहीं किया गया है। – (✗)
3. संविधान के अनुसार धर्म, जाति, लिंग, नस्ल के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है। – (✗)
4. मत (वोट) का अधिकार राजनीतिक न्याय प्रदान करता है। – (✓)
5. प्रस्तावना को भारतीय संविधान के अन्त लिखा गया है। – (✗)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के कौन-से भाग में है ?
(क) पहला भाग
(ख) दूसरा भाग
(ग) तीसरा भाग
(घ) चौथा भाग।
उत्तर- तीसरे भाग

प्रश्न 2.
आदर्शों के लिए कानून कहां पर दर्ज हैं ?
(क) कानून की किताबों में
(ख) प्रस्तावना में
(ग) भारतीय संविधान में
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
भारतीय संविधान में

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प्रश्न 3.
संविधान के कौन-से अनुच्छेद द्वारा भारतीय नागरिकों को छः प्रकार की आज़ादी प्राप्त है ?
(क) अनुच्छेद 18
(ख) अनुच्छेद 14
(ग) अनुच्छेद 19
(घ) अनुच्च्छेद 17
उत्तर-
अनुच्छेद 19.

IV. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर 1-15 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
धर्म-निरपेक्षता का अर्थ लिखें।
उत्तर-
धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य अथवा सरकार का अपना कोई धर्म नहीं है। राज्य की दृष्टि में सभी . धर्म समान होते हैं। धर्म के आधार पर राज्य किसी से कोई भेद-भाव नहीं करता।

प्रश्न 2.
धर्म-निरपेक्षता का कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
हमारे देश में समय-समय पर भिन्न-भिन्न धर्मों के राष्ट्रपति रहे हैं। इसी प्रकार प्रधानमन्त्री तथा अन्य उच्च पदों पर भी भिन्न-भिन्न धर्मों के लोग रहे हैं।

प्रश्न 3.
संविधान में शामिल आदर्शों से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संविधान के मुख्य उद्देश्य तथा मौलिक सिद्धान्त दिए गए हैं। इन्हें संविधान के आदर्श कहा जाता है। ये आदर्श भारत राष्ट्र के स्वरूप को निश्चित करते हैं।

प्रश्न 4.
प्रस्तावना में शामिल आदर्शों को पूरा कैसे किया गया है ?
उत्तर-
संविधान के आदर्शों को कानूनी रूप देकर पूर्ण किया गया है। उदाहरण के लिए समानता के आदर्श को पाने के लिए छुआछूत को अवैध घोषित किया गया है।

प्रश्न 5.
प्रस्तावना क्या है ?
उत्तर-
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। इसमें संविधान के मूलभूत लक्ष्य तथा आदर्श दिए गए हैं।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दे :

प्रश्न 1.
न्याय से क्या तात्पर्य है ? इस आदर्श को कैसे लागू किया गया है ? .
उत्तर-
न्याय से भाव यह है कि भारत में सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय मिले। इसके लिए सभी को समान अवसर प्रदान करना आवश्यक है। इस उद्देश्य से संविधान के तीसरे अनुभाग में धर्म, नस्ल, रंग आदि के आधार पर भेदभाव को निषेध माना गया है। इसी अनुभाग में मौलिक अधिकारों द्वारा सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गई है। यह समानता आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक न्याय की गारंटी है। इस समानता को बनाये रखने के लिए विशेष कानून बनाये गए हैं। इन कानूनों का उल्लंघन करने वालों को दण्ड दिया जाता है।

प्रश्न 2.
समानता से क्या तात्पर्य है ? संविधान अनुसार कौन-कौन सी समानताएं दी गई हैं ?
उत्तर-
समानता से भाव यह है कि राज्य के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी जाति या धर्म से सम्बन्ध रखते हों, समान हैं। संविधान में निम्नलिखित समानताएं दी गई हैं-

  1. कानून के सामने सभी लोग समान हैं।
  2. अस्पृश्यता को अवैध घोषित कर दिया गया है, ताकि सामाजिक समानता को सुनिश्चित किया जा सके।
  3. सैनिक तथा शैक्षिक उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी उपाधियां समाप्त कर दी गई हैं।
  4. किसी भी धर्म, जाति, नस्ल या वर्ग को कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है।
  5. समानताओं को लागू करने के लिए न्यायपालिका को विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं।

प्रश्न 3.
संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्त्व है ? ।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना संविधान के आरम्भ में दी गई है। यह संविधान के मुख्य उद्देश्य मूल सिद्धान्तों तथा आदर्शों पर प्रकाश डालती है। प्रस्तावना के अनुसार संविधान के मुख्य आदर्श हैं-

  1. प्रभुसत्ता सम्पन्न
  2. धर्मनिरपेक्षता, सबके लिए समान न्याय,
  3. स्वतन्त्रता तथा समानता,
  4. भाईचारा तथा
  5. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता। इन आदर्शों को कानूनी रूप दिया गया गया है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय एकता व अखण्डता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता का अर्थ यह है कि पूरा भारत एक राष्ट्र है। देश के सभी वर्गों, जातियों तथा धर्मों के लोग एक ही राष्ट्र का निर्माण करते हैं। देश की कोई भी इकाई इससे अलग नहीं है। हमारे संविधान निर्माता राष्ट्रीय एकता के इच्छुक थे। इस आदर्श को संविधान के 42वें संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में सम्मिलित किया गया है। इस आदर्श की प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न कानून बनाये गए हैं। यदि कोई इन कानूनों को तोड़ता है, तो उसे कठोर दण्ड दिया जाता है। परन्तु आज कुछ असामाजिक तथा अलगाववादी तत्त्व देश की एकता तथा अखण्डता को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ विदेशी शक्तियां भी भारत की एकता को भंग करने की ताक में रहती हैं। हमें इन तत्त्वों तथा शक्तियों से कठोरता से निपटना होगा। हमें पूरी आशा है कि हम अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहेंगे।

प्रश्न 5.
सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. सामाजिक न्याय-सामाजिक न्याय से भाव है किसी नागरिक से जाति, धर्म, रंग तथा नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव न करना। सामाजिक न्याय को ‘समानता के मूल अधिकार’ द्वारा सुनिश्चित बना गया है।
  2. आर्थिक न्याय-इसका भाव है समाज में आर्थिक असमानता को दूर करके आर्थिक समानता लाना। इस उद्देश्य से सभी नागरिकों को रोजी-रोटी कमाने के लिए बराबर अवसर तथा एक समान काम के लिए समान मज़दूरी की व्यवस्था की गई है।
  3. राजनीतिक न्याय-भारतीय नागरिकों को राजनीतिक न्याय देने के लिए यह व्यवस्था की गई है-(1) सभी को बिना भेदभाव के वोट देने का अधिकार, (2) चुने जाने का अधिकार, (3) सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार तथा (4) सरकार की आलोचना की स्वतन्त्रता।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून

PSEB 8th Class Social Science Guide धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए:

1. भारतीय संविधान का प्रारंभ – समानता का रूप
2. भारतीय संविधान का एक आदर्श – प्रस्तावना
3. छुआछूत की समाप्ति – समान न्याय।
उत्तर-

  1. प्रस्तावना
  2. समान न्याय
  3. समानता का रूप।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में कौन-से आदर्श हैं ?
उत्तर-

  1. सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न,
  2. धर्म-निरपेक्ष,
  3. सभी को समान न्याय,
  4. स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व,
  5. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता,
  6. गणराज्य ।

प्रश्न 2.
धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व-लिखें।
उत्तर-
धर्म-निरपेक्षता राज्य का एक महत्त्वपूर्ण आदर्श है। ऐसे राज्य में सभी धर्मों के लोग शान्ति एवं सद्भावना से रह सकते हैं। इससे देश की एकता एवं अखण्डता बनी रहती है।

प्रश्न 3.
चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत के संविधान किस-किस विचारधारा पर आधारित हैं ?
उत्तर-
चीन का संविधान साम्यवादी विचारधारा पर जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान पूंजीवादी विचारधारा पर आधारित है। परन्तु भारत का संविधान किसी विशेष विचारधारा पर आधारित नहीं है।

प्रश्न 4.
अंग्रेज़ी शासन में देश को धार्मिक संकीर्णता के कौन-कौन से परिणाम भुगतने पड़े ? कोई दो परिणाम बताओ।
उत्तर-

  1. धर्म के नाम पर देश में झगड़े तथा दंगे-फसाद होते रहे जिसके कारण भीषण रक्तपात हुआ।
  2. 1947 में देश का विभाजन कर दिया गया।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना कहां अंकित की गई है ? इसका क्या महत्त्व होता है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान के प्रारम्भ में दी गई है। प्रस्तावना एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जिसमें संविधान के मुख्य उद्देश्य तथा मौलिक सिद्धान्त दिए होते हैं। यह विधान निर्माताओं के मन की कुंजी होती है।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान का प्रथम आदर्श ( उद्देस्श्य ) क्या था ? क्या हमने इस आदर्श को पा लिया है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान का प्रथम उद्देश्य आंतरिक तथा बाह्य स्वतन्त्रता प्राप्त करना था। हमने इस आदर्श को पा लिया है क्योंकि आज हम किसी विदेशी शक्ति के दास नहीं हैं। आज सम्पूर्ण शक्ति लोगों के पास है। विदेशी मामलों में भी हम पूरी तरह स्वतन्त्र हैं।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान के स्वतन्त्रता के आदर्श का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना में अभिव्यक्ति, विश्वास तथा उपासना की स्वतन्त्रता दी गई है। स्वतन्त्रता को मौलिक अधिकारों के रूप में सुरक्षा प्रदान की गई है। इन अधिकारों की प्राप्ति के लिए नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं।

प्रश्न 8.
हम अभी तक संविधान के आदर्शों को पूरा करने में क्यों सफल नहीं हो पाये ? कोई दो कारण बताइए।
उत्तर-

  1. अभी भी लोग जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र के नाम पर आपस में झगड़ते हैं। ।
  2. कुछ प्रान्त आज भी भारत से अलग होने की मांग कर रहे हैं।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्म-निरपेक्षता का सिद्धान्त भारतीय संविधान में क्यों सम्मिलित किया गया है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता के सिद्धान्त को सम्मिलित करने का मुख्य कारण भारत की परतन्त्रता था। भारत शताब्दियों तक अंग्रेज़ों का दास रहा। अंग्रेज़ों ने कभी भारत के एक धर्म को उकसाया तो कभी दूसरे धर्म को ताकि देश में आर्थिक सद्भावना न रह सके। कभी हमारा देश नक्सलवादी विचारधारा का शिकार रहा। इस प्रकार देश में धार्मिक संकीर्णता का वातावरण बना रहा जिसने हमारे देश का विभाजन कर दिया। धर्म के नाम पर दंगे-फसाद भी होते रहे। ऐसे में राज्य को धर्म-निरपेक्ष बनाना अनिवार्य था। इसी कारण भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता के सिद्धान्त को सम्मिलित किया गया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून

प्रश्न 2.
संविधान में आदर्शों को क्यों सम्मिलित किया गया है ?
उत्तर-
संविधान द्वारा किसी देश के प्रशासन के स्वरूप तथा राज्य एवं नागरिकों के बीच सम्बन्धों को निश्चित किया जाता है। राज्य को कल्याणकारी बनाने तथा विदेशों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए भी कुछ सिद्धान्त निश्चित किए जाते हैं। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि देश में सामाजिक तथा धार्मिक भाईचारा बना रहे, सभी वर्गों को न्याय मिले और देश की एकता एवं अखण्डता को कोई आंच न आये। इसी उद्देश्य से संविधान में कुछ लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इन्हें संविधान के आदर्श भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के ‘भ्रातृत्व’ के आदर्श पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीय संविधान में दिए गए भ्रातृत्व के आदर्श का उद्देश्य नागरिकों में भाईचारे की भावना विकसित करना है। भारत में भिन्न-भिन्न धर्मों तथा जातियों के लोग रहते हैं। देश की एकता एवं अखण्डता के लिए इनके बीच भाईचारे (भ्रातृत्व) की भावना होना आवश्यक है। सामाजिक सद्भावना बनाए रखने के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव अनिवार्य है। इसलिए संविधान के भिन्न-भिन्न अनुच्छेदों द्वारा धर्म, जाति, लिंग तथा नस्ल आदि के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया है।

धर्म-निरपेक्षता का महत्त्व तथा आदर्श के लिये कानून PSEB 8th Class Social Science Notes

  • राष्ट्रीय लक्ष्य अथवा आदर्श – प्रत्येक राष्ट्र के कुछ निश्चित लक्ष्य होते हैं जो राष्ट्र की एकता, उन्नति तथा समृद्धि के लिए निश्चित किये जाते हैं। इन्हें राष्ट्रीय लक्ष्य कहते हैं। भारत के भी अपने राष्ट्रीय लक्ष्य हैं।
  • संविधान के आदर्श – धर्म-निरपेक्षता, न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, भ्रातृत्व तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता हमारे संविधान के मुख्य आदर्श हैं।
  • धर्म-निरपेक्ष राज्य – हमारा देश एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। यहां सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन करने और अपने ढंग से उपासना करने की स्वतन्त्रता है।
  • आर्थिक समानता – आर्थिक समानता का अर्थ है कि राज्य में अमीर-गरीब का अन्तर कम-से-कम हो।
  • राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता – भारत एक विशाल देश होने के कारण अनेक भाषाओं, संस्कृतियों तथा धर्मों की भूमि है। सभी को अपनी-अपनी संस्कृति विकसित करने की छूट है। परन्तु कई क्षेत्रों के लोग अपनी भाषा या क्षेत्र के हितों को राष्ट्रीय हितों से अधिक महत्त्व देने लगते हैं। इससे देश की मूलभूत एकता पर प्रहार होता है। अतः राष्ट्रीय एकीकरण को बनाए रखना | हमारा लक्ष्य है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS).

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सामाजिक आन्दोलन की कौन-सी विशेषता नहीं है ?
(क) सामूहिक चेतना
(ख) निश्चित विचारधारा
(ग) सामूहिक गतिशीलता
(घ) केवल स्वभाव में हिंसक प्रवृत्ति ।
उत्तर-
(घ) केवल स्वभाव में हिंसक प्रवृत्ति ।

प्रश्न 2.
सत्यशोधक आन्दोलन का किसने प्रतिनिधित्व किया ?
(क) ज्योतिराँव फूले
(ख) डॉ० अम्बेदकर
(ग) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
(घ) नारायण गुरु।
उत्तर-
(क) ज्योतिराव फूले।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा जाति आधारित आन्दोलन नहीं है ?
(क) माहर आन्दोलन
(ख) SNDP आन्दोलन
(ग) सत्यशोधक आन्दोलन
(घ) नील आन्दोलन।
उत्तर-
(घ) नील आन्दोलन।

प्रश्न 4.
आत्म सम्मान आन्दोलन किसने आरम्भ किया ?
(क) पेरियार ई० वी० रामास्वामी
(ख) डॉ० अम्बेदकर
(ग) श्री नारायण गुरु
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) पेरियार ई० वी० रामास्वामी।

प्रश्न 5.
जब लोग वर्तमान सामाजिक व्यवस्था से सन्तुष्ट नहीं होते व सारी सामाजिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने की वकालत करते हो तो इस प्रकार के आन्दोलन को कहते हैं-
(क) पुनः रुत्थानवादी आन्दोलन
(ख) सुधार आन्दोलन
(ग) क्रान्तिकारी आन्दोलन
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) क्रान्तिकारी आन्दोलन।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. SEWA से अभिप्राय ……….. है।
2. वर्ग आन्दोलन में ………. एवं ………. आन्दोलन शामिल हैं।
3. ……… ने मानवता के लिए एक धर्म व एक ईश्वर का नारा दिया।
4. ………. ने सती प्रथा की रोकथाम के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए।
5. किसानों को ………….. कृषि करने को विवश किया गया जिसके परिणामस्वरूप नील आन्दोलन हुआ।
उत्तर-

  1. Self Employed Women’s Association
  2. कामगार, स्त्री
  3. श्री नारायण गुरु
  4. राजा राम
  5. मोहन राय
  6. नील की।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. सामाजिक आन्दोलन में लगातार सामूहिक गतिशीलता, औपचारिक अथवा अनौपचारिक संगठन द्वारा होती है।
2. सामाजिक आन्दोलन हमेशा स्वभाव में शान्तिपूर्वक होते हैं।
3. मेहर आन्दोलन का आधार है-हिन्दू जाति के धर्म को पूरी तरह से अस्वीकारना।
4. SNDP आन्दोलन ज्योतिरॉव फूले द्वारा संस्थापित हुआ।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आत्म सम्मान आन्दोलन — चण्डी प्रसाद भट्ट
मेहर आन्दोलन — मेधा पाटेकर
चिपको आन्दोलन — पैरियार० ई० वी० रामास्वामी
ब्रह्म समाज — राजा राम मोहन राय
नर्मदा बचाओ आन्दोलन — डॉ० अम्बेदकर।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ –कॉलम ‘बी’
आत्म सम्मान आन्दोलन –पैरियार० ई० वी० रामास्वामी
मेहर आन्दोलन –डॉ० अम्बेदकर।
चिपको आन्दोलन — चण्डी प्रसाद भट्ट
ब्रह्म समाज –राजा राम मोहन राय
नर्मदा बचाओ आन्दोलन — मेधा पाटेकर

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. श्री नारायण धर्म परिपालन आन्दोलन की नींव किसने रखी ?
उत्तर- श्री नारायण गुरु ने।

प्रश्न 2. मज़दूर महाजन संघ की नींव किसने रखी ?
उत्तर-महात्मा गांधी ने।

प्रश्न 3. ब्रह्म समाज की नींव किसने रखी ?
उत्तर-राजा राम मोहन राय ने।

प्रश्न 4. चिपको आन्दोलन का जनक कौन है ?
उत्तर-चण्डी प्रसाद भट्ट।

प्रश्न 5. चिपको आन्दोलन के किस महापुरुष को उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए ‘पदम् श्री’ विभूषण से नवाज़ा गया ?
उत्तर-सुन्दर लाल बहुगुणा को।

प्रश्न 6. चिपको आन्दोलन के नेता कौन थे ?
उत्तर-चण्डी प्रसाद भट्ट तथा सुन्दर लाल बहुगुणा।

प्रश्न 7. किन्हीं दो जाति आधारित आन्दोलनों के नाम दें।
उत्तर-सत्यशोधक आन्दोलन तथा श्री नारायण धर्म परिपालना जाति आन्दोलन।

प्रश्न 8. किसान किन्हें कहा जाता है ?
उत्तर-वह व्यक्ति जो अपनी भूमि पर कृषि करके फसल का उत्पादन करता है, उसे किसान कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 9. SEWA का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-SEWA शब्द को Self Employed Women’s Association के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10. ब्रह्म समाज की नींव किसने रखी ?
उत्तर-राजा राम मोहन राय ने।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन को चिपको क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
सरकार ने गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों को ठेकेदारों को दे दिया ताकि वे पेड़ काट सकें। चण्डी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी तथा सुन्दर लाल बहुगुणा ने इस आन्दोलन को चलाया था। जब ठेकेदार पेड़ काटने आते तो स्त्रियां पेड़ों को चिपक कर उनसे आलिंगन कर लेती थीं। इस कारण इसे चिपको आन्दोलन कहते हैं।

प्रश्न 2.
जाति आन्दोलन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जाति आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य निम्न जातियों के संघर्ष को सामने लाना था। यह आन्दोलन इस कारण चलाए गए थे ताकि न केवल आर्थिक शोषण से छुटकारा मिल सके बल्कि अस्पृश्यता जैसी प्रथाओं तथा इससे सम्बन्धित विचारधारा को समाज में से खत्म किया जा सके।

प्रश्न 3.
वर्णन करें: (a) किसान आन्दोलन (b) नारी आन्दोलन।
उत्तर-
(a) किसान आन्दोलन-किसान आन्दोलन मुख्य रूप से पंजाब के क्षेत्र में चलाए गए थे। इनका मुख्य उद्देश्य किसानों के कर्जे तथा करों को कम करना था। यह आन्दोलन उस समय तक चलते रहे जब तक कि इससे संबंधित कानून नहीं पास हो गए।
(b) नारी आन्दोलन-सदियों से स्त्रियों को दबाया जा रहा था। समाज में उनकी स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में कई आन्दोलन चले। राजा राम मोहन राय, ईश्वर-चन्द्र विद्यासागर, जी० के० कार्वे इत्यादि इन आन्दोलनों के प्रमुख नेता थे।

प्रश्न 4.
वर्ग आन्दोलन से आपका क्या अभिप्राय है ? किन्हीं वर्ग आन्दोलन के नाम दें।
उत्तर-
वर्ग आन्दोलन में श्रमिकों के आन्दोलन तथा किसानों के आन्दोलन आ जाते हैं। श्रमिकों तथा किसानों की मुख्य माँग थी कि उन्हें आर्थिक शोषण से छुटकारा दिलाया जा सके। श्रमिक संघ आन्दोलन वर्ग आन्दोलन का ही एक प्रकार हैं।

प्रश्न 5.
वर्ग आन्दोलन के उद्भव के लिए उत्तरदायी घटकों की संक्षेप में चर्चा करें।
उत्तर-
वर्ग आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों को आर्थिक शोषण से छुटकारा दिलाना था। कम आय, अधिक कार्य करने के घण्टे, कार्य करने के गंदे हालात, देशी तथा विदेशी पूँजीपतियों के हाथों होता शोषण इन आन्दोलनों को शुरू करने का मुख्य कारण था।

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IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आप पर्यावरण आन्दोलन से क्या समझते हैं ? इस प्रकार के आन्दोलन के आरम्भ होने का कारण स्पष्ट करें।
उत्तर-
पर्यावरण आन्दोलन कई सामाजिक समूहों के इकट्ठे होकर संघर्ष करने का एक बहुत बढ़िया उदाहरण है। यह आंदोलन वातावरण को बचाने के लिए चलाए गए थे। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य स्रोतों पर नियंत्रण, स्थानीय लोगों का अपनी संस्कृति को बचाने का अधिकार, पर्यावरण की सुरक्षा तथा पर्यावरण के संतुलन को बना कर रखने के लिए चलाए गए थे। वास्तव में आधुनिक समय में विकास पर काफ़ी ज़ोर दिया जाता है तथा यह विकास प्राकृतिक स्रोतों के शोषण से ही हो सकता है। परन्तु इस विकास का प्रकृति पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए पर्यावरण आन्दोलन चलाए गए थे ताकि पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके तथा इसके सन्तुलन को बना कर रखा जा सके।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो जाति आन्दोलनों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • सत्यशोधक आन्दोलन-यह आन्दोलन सत्य शोधक समाज ने चलाया था जिसे ज्योतिराव फूले ने शुरू किया था। उन्होंने मुख्य रूप से कहा था कि महाराष्ट्र में मुख्य विभाजन एक तरफ ब्राह्मण हैं तथा दूसरी तरफ निम्न जातियां हैं। इस प्रकार इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणों के प्रत्येक प्रकार के विशेषाधिकार खत्म करना था ताकि निम्न जातियों को भी समाज में उच्च स्थान मिल सके।
  • श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन-यह आन्दोलन 1895 में श्री नारायण गुरु ने केरल में चलाया था। वह स्वयं इज़ावा जाति से संबंध रखते थे जिन्हें अस्पृश्य समझा जाता था। इस जाति को मूर्ति पूजा या जानवरों की बलि नहीं देने दी जाती थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य इज़ावा लोगों का उत्थान तथा अस्पृश्यता की प्रथा को खत्म करना था। साथ ही ऐसे मन्दिरों का निर्माण करना था जो सभी जातियों के लिए खुले हों।

प्रश्न 3.
पंजाब में किसान आन्दोलन के तत्त्वों की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में किसान आन्दोलन मुख्य रूप से जालंधर, अमृतसर, होशियारपुर, लायलपुर तथा शेखुपुरा जिलों में ही सीमित थे। इन जिलों में केवल वे सिख किसान रहते थे जो स्वयं कृषि करते थे। पंजाब के राजघरानों ने किसानों के गुस्से का सामना किया। पटियाला में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण आन्दोलन चला जिसका मुख्य उद्देश्य उस भूमि को वापिस लेना था जिसे ज़मींदारों तथा सरकारी अफसरों के गठजोड़ ने हड़प ली थी। ज़मीदारों की भूमि पर कार्य करने वाले किसानों ने ज़मींदारों को फसल का हिस्सा देने से मना कर दिया। इस आन्दोलन के प्रमुख नेता भगवान् सिंह लौंगोवालिया, जागीर सिंह जग्गो तथा बाद में तेजा सिंह स्वतन्त्र थे। यह आन्दोलन उस समय तक चलता रहा जब तक कानून पास नहीं हो गए तथा भूमि पर काश्त करने वाले काश्तकारों को ही भूमि का मालिक नहीं बना दिया।

प्रश्न 4.
नारी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ? कोई एक ऐसे आन्दोलन का नाम बताएं।
अथवा
नारी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ? कोई दो आन्दोलनों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
वैदिक काल के दौरान स्त्रियों की स्थिति बहुत बढ़िया थी तथा उन्हें प्रत्येक प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। परन्तु समय के साथ-साथ उन से सभी अधिकार छीन लिए गए। समाज की अधिकतर बुराइयां उनसे ही संबंधित थीं। इस कारण उनकी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए 19वीं शताब्दी के शुरू से ही आन्दोलन चलना शुरू हो गए थे जिन्हें नारी आन्दोलन कहा जाता है। सबसे पहले आन्दोलन ब्रह्मो समाज ने शुरू किया जिसे राजा राम मोहन राय ने चलाया था। उन्होंने उस समय चल रही सती प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन चलाया था। उनके प्रयासों के कारण ही 1829 में लार्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा निषेध अधिनियम, 1829 पास किया तथा सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस प्रकार ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने भी विधवा विवाह के लिए आन्दोलन किया तथा 1856 में विधवा विवाह कानून पास करवाया।

प्रश्न 5.
स्वतंत्रता पूर्व एवं स्वतंत्रता पश्चात् नारियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर-
1947 में भारत को अंग्रेजों से स्वतन्त्रता मिल गई तथा अगर इससे पहले तथा बाद की स्थिति की तुलना करें तो हमें पता चलता है कि दोनों समय में नारियों की स्थिति में काफ़ी अन्तर आया है। 1947 से पहले उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे, वे पढ़-लिख नहीं सकती थीं। चाहे उनके लिए स्कूल भी खोले गए परन्तु उन्हें सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त नहीं था तथा उन्हें पढ़ने-लिखने नहीं दिया जाता था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् जब संविधान बना तथा स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार दिए गए। उन्हें अपने पिता तथा पति की सम्पत्ति में अधिकार दिया गया। वे पढ़ने-लिखने लग गईं तथा नौकरियां करने लग गईं। 2011 में उनकी साक्षरता दर 65% थी। अब वह प्रत्येक क्षेत्र में भाग ले रही हैं तथा अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा कर रही हैं।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आन्दोलन तथा इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
सामाजिक आन्दोलन तथा इसकी विशेषताओं पर नोट लिखो।
उत्तर–
किसी भी समाज में सामाजिक आन्दोलन तब जन्म लेता है जब वहाँ के व्यक्ति समाज में पाई जाने वाली सामाजिक परिस्थितियों से असंतुष्ट होते हैं तथा उसमें परिवर्तन लाना चाहते हैं। किसी भी तरह का सामाजिक आंदोलन बिना किसी विचारधारा (Ideology) के विकसित नहीं होता है। कभी-कभी सामाजिक आंदोलन किसी परिवर्तन के विरोध के लिए भी विकसित होता है। प्रारंभिक समाज-शास्त्री सामाजिक आंदोलन को परिवर्तन लाने का एक प्रयास मानते थे, परंतु आधुनिक समाज शास्त्री, आंदोलनों को समाज में परिवर्तन करने या फिर उसे परिवर्तन को रोकने के रूप में लेते हैं। विभिन्न विचारकों ने अपने-अपने दृष्टिकोणों से सामाजिक आंदोलन को निम्नलिखित रूप से समझाने का प्रयास किया है-

  • मैरिल एवं एल्ड्रिज (Meril and Eldridge) के अनुसार “सामाजिक आंदोलन रूढ़ियों में परिवर्तन के लिए अधिक या कम मात्रा में चेतन रूप से किए गए प्रयास हैं।”
  • हर्टन व हंट (Hurton and Hunt) के शब्दों में “सामाजिक आंदोलन समाज अर्थात् उसके सदस्यों में परिवर्तन लाने या उसका विरोध करने का सामूहिक प्रयास है।”
  • रॉस (Rose) के शब्दानुसार, “सामाजिक आंदोलन सामाजिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों की एक बड़ी संख्या के एक औपचारिक संगठन को कहते हैं, जो अनेक व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास से प्रभुत्ता संपन्न, संस्कृत स्कूलों संस्थाओं या एक समाज के विशिष्ट वर्गों को संशोधित अथवा स्थानांतरित करता है।”

हरबर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) के अनुसार, “सामाजिक आंदोलन जीवन की एक नयी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयास कहा जा सकता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक आंदोलन समाज में व्यक्तियों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक व्यवहार है, जिसका उद्देश्य प्रचलित संस्कृति एवं सामाजिक संरचना में परिवर्तन करना होता है या फिर हो रहे परिवर्तन को रोकना होता है। अतः सामाजिक आंदोलन को सामूहिक प्रयास और सामाजिक क्रिया के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है।

विशेषताएं-सामाजिक आंदोलनों की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है

  • सामूहिक चेतना-किसी भी सामाजिक आन्दोलन की पहली विशेषता उसमें सामूहिक चेतना का होना है। एक-दूसरे के साथ होने की चेतना एकता को बढ़ाती है। इस कारण अधिक से अधिक लोग इसमें भाग लेते हैं।।
  • सामूहिक प्रयास-सामूहिक आन्दोलन केवल एक या दो व्यक्ति शुरू नहीं कर सकते इसके लिए बहुत से व्यक्तियों का इकट्ठे होना तथा उनके सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। अगर सामूहिक प्रयास नहीं होंगे तो आन्दोलन भी शुरू नहीं होगा।
  • पक्की विचारधारा-सामाजिक आन्दोलन शुरू करने के लिए आवश्यक है कि इसकी एक विचारधारा हो जिसमें सभी सदस्य विश्वास करते हों। अगर विचारधारा ही नहीं होगी तो आन्दोलन कहाँ से शुरू होगा। साथ ही यह विचारधारा लगातार चलती रहनी चाहिए ताकि आन्दोलन अपने उद्देश्य से न भटक जाए।
  • परिवर्तन को प्रोत्साहित करना-सामाजिक आन्दोलन दो कारणों की वजह से होता है। पहला यह समाज की मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहता है तथा दूसरा यह परिवर्तन का विरोध भी कर सकता है। दोनों ही स्थितियों में परिवर्तन तो आता ही है। इस प्रकार सामाजिक आन्दोलनों से किसी-न-किसी प्रकार का परिवर्तन तो आता ही है।
  • नई व्यवस्था सामने लाना-सामाजिक आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तन लाना होता है। इस परिवर्तन से प्राचीन व्यवस्था का स्थान लेने के लिए एक नई व्यवस्था सामने आती है जोकि अपने आप में ही एक परिवर्तन का प्रतीक है।
  • हिंसक अथवा अहिंसक-यह आवश्यक नहीं है कि सामाजिक आन्दोलन केवल अहिंसक हो। यह हिंसक भी हो सकता है। कभी-कभी जनता मौजूदा व्यवस्था के इतने विरुद्ध हो जाती है कि वह उसे परिवर्तित करने के लिए हिंसक रास्ता भी अपना लेती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 2.
सामाजिक आन्दोलन से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकारों की चर्चा करें।
उत्तर-
सामाजिक आन्दोलन का अर्थ-देखें पिछला प्रश्न। सामाजिक आन्दोलन के प्रकार–सामाजिक आन्दोलन के निम्नलिखित प्रकार हैं
(i) सुधारवादी आन्दोलन-सुधारवादी आन्दोलन वे होते हैं जो समाज की मौजूदा व्यवस्था से या तो संतुष्ट होते हैं परन्तु वे पूर्ण समाज में नहीं बल्कि समाज के कुछ हिस्सों में परिवर्तन लाना चाहते हैं। प्रैस तथा चर्च जैसी संस्थाओं को सामाजिक आन्दोलन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए भारत में चले समाज सुधार आन्दोलन जिनमें ब्रह्मो समाज प्रमुख आन्दोलन थे। इसने देश में से कई सामाजिक बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया जैसे कि सती प्रथा, अन्तर्जातीय विवाह का न होना, विवाह संबंधी कई प्रकार के प्रतिबन्ध इत्यादि।

(ii) क्रान्तिकारी आन्दोलन-क्रान्तिकारी आन्दोलन मौजूदा सामाजिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होते। ऐसे आन्दोलन समाज में अचानक परिवर्तन लाने के लिए चलाए जाते हैं। क्योंकि वे मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होते इसलिए वे पूर्ण सामाजिक व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। उदाहरण के लिए 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति तथा 1917 की रूसी क्रान्ति जिन्होंने मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को उखाड़ कर नई सामाजिक व्यवस्था को स्थापित किया।

(iii) पुनरुत्थानवादी आन्दोलन-इन आन्दोलनों को Reactionary आन्दोलन भी कहा जाता है। इस प्रकार के आन्दोलन का मुख्य तत्त्व भी असंतुष्टता में छुपा हुआ है। इनके सदस्यों को कई परिवर्तन ठीक नहीं लगते तथा ये प्राचीन मूल्यों को दोबारा स्थापित करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए गाँधी जी की तरफ से चलाया गया खादी ग्रामोद्योग का आन्दोलन।

प्रश्न 3.
वर्ग व जाति आन्दोलन का अन्तर स्पष्ट करते हुए उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जाति आन्दोलन-जाति आन्दोलन निम्न जातियों तथा पिछड़े वर्गों में संघर्ष को सामने लाने के लिए चलाए गए थे। यह आंदोलन न केवल आर्थिक शोषण को खत्म करने के लिए चलाए गए थे बल्कि अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराई तथा उससे संबंधित परम्परागत विचारधारा को खत्म करने के लिए चलाए गए थे। निम्न जातियों को सदियों से दबाया जा रहा था, उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे, उन्हें केवल सफाई का कार्य दिया जाता था जिससे काफ़ी कम आय होती थी। इस कारण वह काफ़ी निर्धन थे। उनका प्रत्येक प्रकार से शोषण होता था।

इसलिए समय-समय पर कई प्रकार के आन्दोलन चले ताकि उनकी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाया जा सके। सबसे पहले ज्योतिराव फूले ने महाराष्ट्र में सत्यशोधक आन्दोलन चलाया था ताकि प्रत्येक प्रकार की उच्च जातियों की सत्ता को दूर किया जा सके तथा निम्न जातियों को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त हो सके। इसके पश्चात् 1895 में श्री नारायण गुरु ने केरल में श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन चलाया ताकि इज़ावा समुदाय को समाज में अधिकार प्राप्त हो सकें। वह चाहते थे कि समाज में से अस्पृश्यता जैसी बुराइयां खत्म हो सकें तथा ऐसे मंदिर बनाए जाएं जो सभी जातियों के लिए खुले हों। उन्होंने सम्पूर्ण मनुष्य जाति के लिए ‘एक धर्म व एक भगवान्’ का भी नारा दिया। उनके पश्चात् 1925 में पैरियार रामास्वामी ने तमिलनाडु में आत्मसम्मान आंदोलन चलाया जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना था यहां पिछड़ी जातियों को समान अधिकार प्राप्त हो सकें। डॉ० बी० आर० अंबेदकर ने भी महार जाति की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए कई आन्दोलन चलाए।

वर्ग आधारित आन्दोलन-वर्ग आधारित आन्दोलन में हम श्रमिक आन्दोलन तथा किसानों के आन्दोलन ले सकते हैं। श्रमिकों तथा किसानों की यह माँग थी कि उनके आर्थिक शोषण का खात्मा हो। देश में कई श्रमिक सभाएं बनी जिनसे हमें पता चलता है कि उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों की क्या मांगें थीं। अंग्रेजों के समय के दौरान ही देश में जूट उद्योग, कपास उद्योग, चाय उद्योग के कारखाने लगने शुरू हो गए तथा निर्धन लोगों को इनमें काम मिलना शुरू हो गया। उन्हें अधिक समय कार्य करना पड़ता था, कम वेतन मिलता था, कार्य करने के हालात अच्छे नहीं थे तथा पूँजीपति उनका शोषण करते थे। अलग-अलग समय में वर्करों के लिए कई प्रकार के कानून पास किए गए परन्तु उनकी स्थिति में कोई सुधार न हुआ। इस कारण श्रमिक संघ बनाए गए ताकि उनकी स्थिति में सुधार किया जा सके। इस प्रकार किसानों का भी शोषण होता था।

जमींदार अपनी भूमि किसानों को किराए पर देते थे तथा बिना कोई परिश्रम किए किसानों से उनके उत्पादन का बड़ा हिस्सा ले जाते थे। वास्तविक परिश्रम करने वाले किसान भूखे रह जाते थे तथा बिना परिश्रम करने वाले जमींदार ऐश करते थे। इस कारण पंजाब व कई अन्य क्षेत्रों में इससे संबंधित कई आंदोलन चले जिस कारण देश की स्वतंत्रता के पश्चात् कई कानून बनाए गए तथा जमींदारी व्यवस्था को खत्म कर दिया गया। वास्तविक कृषि करने वाले किसानों को ही भूमि का मालिक बना दिया गया।

प्रश्न 4.
किसान आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके निर्धारक घटकों का वर्णन करते हए किसी किसान आन्दोलन की चर्चा करें।
उत्तर-
कृषक या किसान आंदोलनों का संबंध किसानों तथा कृषि कार्यों के बीच पाए जाने वाले संबंधों से है। जब कृषि कार्यों को करने वालों तथा भूमि के मालिकों के बीच तालमेल ठीक नहीं बैठता तो कृषि करने वाले आंदोलनों का रास्ता अपना लेते हैं तथा यहीं से किसान आंदोलन की शुरुआत होती है। असल में यह आंदोलन किसानों के शोषण के कारण होते हैं।

इनका मूल आधार वर्ग संघर्ष है तथा यह श्रमिक आंदोलन से अलग हैं। डॉ० तरुण मजूमदार ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा है कि, “कृषि कार्यों से संबंधित हरेक वर्ग के उत्थान तथा शोषण मुक्ति के लिए किए गए साहसी प्रयत्नों को कृषक आंदोलन की श्रेणी में रखा गया है।” – इन आन्दोलनों का महत्त्वपूर्ण आधार कृषि व्यवस्था होती है। भूमि व्यवस्था की विविधता तथा कृषि संबंधों ने खेतीहर वर्गों के बीच एक विस्तृत संरचना का विकास किया है। यह संरचना अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रही है। भारत में खेतीहर वर्ग को तीन भागों में बांट सकते हैं-(i) मालिक (Owner), (ii) किसान (Farmer), (iii) मज़दूर (Labourer)।

मालिक को भूमि का मालिक या भूपति भी कहते हैं। संपूर्ण भूमि का मालिक यही वर्ग होता है जिस पर खेती का कार्य होता है। किसान का स्थान भूपति के बाद आता है। किसान वर्ग में छोटे-छोटे भूमि के टुकड़ों के मालिक तथा काश्तकार होते हैं। यह अपनी भूमि पर स्वयं ही खेती करते हैं। तीसरा वर्ग मज़दूर का है जो खेतों में काम करके जीविका कमाता है। इस वर्ग में भूमिहीन, कृषक, ग़रीब काश्तकार तथा बटईदार आते हैं।

किसान आंदोलन अनेकों कारणों की वजह से अलग-अलग समय पर शुरू हुए। औद्योगीकरण के कारण जब खेतीहर मजदूरों की जीविका पर असर पड़ता है तो आंदोलनों की मदद से खेतीहर मज़दूर विरोध करते हैं। इसके साथ ही खेती से संबंधित चीज़ों के दाम बढ़ने, मालिकों द्वारा ज्यादा लाभ प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की खेती करवाना, अधिकारियों की नीतियां तथा शोषण की आदत का पाया जाना, खेतीहर मजदूरों को बंधुआ मज़दूर रख कर उनसे अपनी मर्जी का कार्य करवाना आदि ऐसे कारण रहे हैं जिनकी वजह से कृषक आंदोलन शुरू हुए।

पंजाब में किसान आन्दोलन-पंजाब किसान गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। 1930 में किसान सभा सामने आई। इनकी मुख्य माँग कर्जे तथा भूमि कर में कमी से संबंधित थी। इसके अतिरिक्त एक अन्य मुद्रा जिसने सभी का ध्यान खींचा वह था अमृतसर तथा लाहौर जिलों में भूमि कर की Resettlement करना था। जिले के मुख्यालय में जत्थे भेजे गए तथा प्रदर्शन किए गए। इस आंदोलन की चरम सीमा 1939 में लाहौर किसान मोर्चे के सामने आने से हुई। राज्य के कई जिलों से सैंकड़ों किसानों को गिरफ्तार किया गया।

पंजाब में किसान आन्दोलन मुख्य रूप से जालंधर, अमृतसर, होशियारपुर, लायलपुर तथा शेखुपुरा ज़िलों तक ही सीमित था। इन जिलों में केवल वह सिक्ख किसान ही रहते थे जो अपनी कृषि करते थे। पंजाब के राज घरानों ने भी किसानों के गुस्से का सामना किया। पटियाला में भी एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन चला जिसका मुख्य उद्देश्य उस भूमि को वापस लेना था जिसके ऊपर जमींदारों तथा सरकारी अफसरों के गठजोड़ ने कब्जा कर लिया था। ज़मींदारों की ज़मीनों पर कृषि करने वाले किसानों ने भी ज़मींदारों को फसल का हिस्सा देने से मना कर दिया। इस आंदोलन के प्रमुख नेता भगवान् सिंह लौंगोवालिया, जगीर सिंह जग्गो तथा बाद में तेजा सिंह स्वतंत्र थे। यह आंदोलन उस समय तक चलते रहे जब तक कानून पास नहीं हो गए तथा ज़मीनों पर काश्त करने वाले काश्तकारों को भूमि का मालिक नहीं बना दिया गया।

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प्रश्न 5.
भारत में नारी जाति की स्थिति का वर्णन करें। नारी आन्दोलनों ने किस प्रकार नारी जाति की स्थिति में सुधार लाने का कार्य किया है ?
उत्तर-
दुनिया तथा भारत में लगभग आधी जनसंख्या स्त्रियों की है पर अलग-अलग देशों में स्त्रियों की स्थिति समान नहीं है। हिंदू शास्त्रों में स्त्री को अर्धांगिनी माना गया है तथा हिन्दू समाज में इनका वर्णन लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती इत्यादि के रूप में किया गया है। स्त्री को भारत में भारत माता कह कर भी बुलाते हैं तथा उसके प्रति अपना आभार तथा श्रद्धा प्रकट करते हैं। यहां तक कि कई धार्मिक यज्ञ तथा कर्मकाण्ड स्त्री के बगैर अधूरे माने जाते हैं। उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी पर मध्य युग आते-आते स्त्रियों की स्थिति काफ़ी दयनीय हालत में पहंच गई। 19वीं शताब्दी में बहुत-से समाज सुधारकों ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने का प्रयास किया। 20वीं सदी में स्त्रियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गईं तथा उन्होंने आज़ादी के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसी के साथ उनके दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया तथा इनकी राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र में काफ़ी भागीदारी बढ़ गई।

फिर भी इन परिवर्तनों, जोकि हम आज देख रहे हैं, के बावजूद समाज में स्त्रियों की स्थिति अलग-अलग कालों में अलग-अलग रही है जिनका वर्णन निम्नलिखित है

1. वैदिक काल (Vedic Age) वैदिक काल को भारतीय समाज का स्वर्ण काल भी कहा जाता है। इस युग में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी। उस समय का साहित्य जो हमारे पास उपलब्ध है उसे पढ़ने से पता चलता है कि इस काल में स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने, विवाह तथा सम्पत्ति रखने के अधिकार पुरुषों के समान थे। परिवार में स्त्री का स्थान काफ़ी अच्छा होता था तथा स्त्री को धार्मिक तथा सामाजिक कार्य पूरा करने के लिए बहुत ज़रूरी माना जाता था। इस समय में लड़कियों की उच्च शिक्षा पर काफ़ी ध्यान दिया जाता था। उस समय पर्दा प्रथा तथा बाल विवाह जैसी कुरीतियां नहीं थीं, चाहे बह-पत्नी विवाह अवश्य प्रचलित थे पर स्त्रियों को काफ़ी सम्मान से घर में रखा जाता था। विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था। सती प्रथा का कोई विशेष प्रचलन नहीं था इसलिए विधवा औरत सती हो भी सकती थी तथा नहीं भी। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान ही थी। इस युग में स्त्री का अपमान करना पाप समझा जाता था तथा स्त्री की रक्षा करना वीरता का काम समझा जाता था। भारत में स्त्री की स्थिति काफ़ी उच्च थी तथा पश्चिमी देशों में वह दासी से ज़्यादा कुछ नहीं थी। यह काल 4500 वर्ष पहले था।

2. उत्तर वैदिक काल (Post Vedic Period)-यह काल ईसा से 600 वर्ष पहले (600 B.C.) शुरू हुआ तथा ईसा के 3 शताब्दी (300 A.D.) बाद तक माना गया। इस समय में स्त्रियों को वह आदर-सत्कार, मान-सम्मान न मिल पाया जो उनको वैदिक काल में मिलता था। इस समय बाल-विवाह प्रथा शुरू हुई जिस वजह से स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति में कठिनाई होने लगी। शिक्षा न मिल पाने की वजह से उनका वेदों का ज्ञान खत्म हो गया या न मिल पाया जिस वजह से उनके धार्मिक संस्कारों में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस काल में स्त्रियों के लिए पति की आज्ञा मानना अनिवार्य हो गया तथा विवाह करना भी ज़रूरी हो गया। इस काल में बहु-पत्नी प्रथा बहुत ज्यादा प्रचलित हो गई थी तथा स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न हो गई थी। इस काल में विधवा विवाह पर नियन्त्रण लगना शुरू हो गया तथा स्त्रियों ‘का काम सिर्फ घर के उत्तरदायित्व पूर्ण करना रह गया था। इस युग में आखिरी स्तर पर आते-आते स्त्रियों की स्वतंत्रता तथा अधिकार काफ़ी कम हो गए थे तथा उनकी स्वतन्त्रता पर नियन्त्रण लगने शुरू हो गए थे।

3. स्मृति काल (Smriti Period)-इस काल में मनु स्मृति में दिए गए सिद्धान्तों के अनुरूप व्यवहार करने पर ज्यादा ज़ोर देना शुरू हो गया था। इस काल में बहुत-सी संहिताओं जैसे मनु संहिता, पराशर संहिता तथा याज्ञवल्क्य संहिता रचनाओं की रचना की गई। इसलिए इस काल को धर्म शास्त्र काल के नाम से भी पुकारा जाता है। इस काल में स्त्रियों की स्थिति पहले से भी ज्यादा निम्न हो गई। स्त्री का सम्मान सिर्फ माता के रूप में रह गया था। विवाह करने की उम्र और भी कम हो गई तथा समाज में स्त्री को काफ़ी हीन दृष्टि से देखा जाता था। मनुस्मृति में तो यहां तक लिखा है कि स्त्री को हमेशा कड़ी निगरानी में रखना चाहिए, छोटी उम्र में पिता की निगरानी में, युवावस्था में पति की निगरानी में तथा बुढ़ापे में पुत्रों की निगरानी में रखना चाहिए। इस काल में विधवा विवाह पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया गया तथा सती प्रथा को ज्यादा महत्त्व दिया जाने लगा। स्त्रियों का मुख्य धर्म पति की सेवा माना गया। विवाह 10-12 साल की उम्र में ही होने लगे। स्त्री का अपना कोई अस्तित्व नहीं रह गया था। स्त्रियों के सभी अधिकार पति या पुत्र को दे दिए गए। पति को देवता कहा गया तथा पति की सेवा ही उसका धर्म रह गया था।

4. मध्य काल (Middle Period) मध्यकाल में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना के बाद तो स्त्रियों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई। ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म की रक्षा, स्त्रियों की इज्जत तथा रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए स्त्रियों के लिए काफ़ी कठोर नियमों का निर्माण कर दिया था। स्त्री शिक्षा काफ़ी हद तक खत्म हो गई तथा पर्दा प्रथा काफ़ी ज्यादा चलने लगी। लड़कियों के विवाह की उम्र भी घटकर 8-9 वर्ष ही रह गई। इस वजह से बचपन में ही उन पर गृहस्थी का बोझ लाद दिया जाता था। सती प्रथा काफ़ी ज्यादा प्रचलित हो गई थी तथा विधवा विवाह पूरी तरह बन्द हो गए थे। स्त्रियों को जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुष के अधीन कर दिया गया तथा उनके सारे अधिकार छीन लिए गए। मध्य काल का समय स्त्रियों के लिए काला युग था। परिवार में उसकी स्थिति शून्य के समान थी तथा उसे पैर की जूती समझा जाता था। स्त्रियों को ज़रा-सी ग़लती पर शारीरिक दण्ड दिया जाता था। उनका सम्पत्ति का अधिकार भी वापस ले लिया गया था।

5. आधुनिक काल (Modern Age)-अंग्रेजों के आने के बाद आधुनिक काल शुरू हुआ। इस समय औरतों के उद्धार के लिए आवाज़ उठनी शुरू हुई तथा सबसे पहले आवाज़ उठाई राजा राममोहन राय ने जिनके यत्नों की वजह से सती प्रथा बन्द हुई तथा विधवा विवाह को कानूनी मंजूरी मिल गई। फिर और समाज सुधारक जैसे कि दयानन्द सरस्वती, गोविन्द रानाडे, रामाबाई रानाडे, विवेकानंद इत्यादि ने भी स्त्री शिक्षा तथा उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। इनके यत्नों की वजह से स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार होने लगा। स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त होने लगी तथा वे घर की चार-दीवारी से बाहर निकल कर देश के स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लेने लगीं। शिक्षा की वजह से वे नौकरी करने लगी तथा राजनीतिक क्षेत्र में भी हिस्सा लेने लगीं जिस वजह से वे आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर होने लगीं। आजकल स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी है क्योंकि शिक्षा तथा आत्म निर्भरता की वजह से स्त्री को अपने अधिकारों का पता चल गया है। आज से संपत्ति रखने, पिता की जायदाद से हिस्सा लेने तथा हर तरह के वह अधिकार प्राप्त हैं जो पुरुषों को प्राप्त हैं।

स्त्रियों की स्थिति ऊपर उठाने के प्रयास (Efforts to uplift the Status of Women)-देश की आधी जनसंख्या स्त्रियों की है। इसलिए देश के विकास के लिए यह भी ज़रूरी है कि उनकी स्थिति में सुधार लाया जाए। उनसे संबंधित कुप्रथाओं तथा अन्धविश्वासों को समाप्त किए गए। स्वतन्त्रता के बाद भारत के संविधान में कई ऐसे प्रावधान किये गये जिनसे महिलाओं की स्थिति में सुधार हो। उनकी सामाजिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए। आजादी के बाद देश की महिलाओं के उत्थान, कल्याण तथा स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं-

1. संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)-महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान हैं

(a) अनुच्छेद 14 के अनुसार कानून के सामने सभी समान हैं।
(b) अनुच्छेद 15 (1) द्वारा धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भारतीय से भेदभाव की मनाही
(c) अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य महिलाओं तथा बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करें।
(d) अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य रोज़गार तथा नियुक्ति के मामलों में सभी भारतीयों को समान अवसर प्रदान करें।
(e) अनुच्छेद 39 (A) के अनुसार राज्य पुरुषों तथा महिलाओं को आजीविका के समान अवसर उपलब्ध करवाए।
(f) अनुच्छेद 39 (D) के अनुसार पुरुषों तथा महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
(g) अनुच्छेद 42 के अनुसार राज्य कार्य की न्यायपूर्ण स्थिति उत्पन्न करें तथा अधिक-से-अधिक प्रसूति सहायता प्रदान करें।
(h) अनुच्छेद 51 (A) (E) के अनुसार स्त्रियों के गौरव का अपमान करने वाली प्रथाओं का त्याग किया जाए।
(i) अनुच्छेद 243 के अनुसार स्थानीय निकायों-पंचायतों तथा नगरपालिकाओं में एक तिहाई स्थानों को महिलाओं
के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है।

2. कानून (Legislations)-महिलाओं के हितों की सुरक्षा तथा उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए कई कानूनों का निर्माण किया गया जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(a) सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1829, 1987 (The Sati Prohibition Act)
(b) हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 (The Hindu Widow Remarriage Act)
(c) बाल विवाह अवरोध अधिनियम (The Child Marriage Restraint Act)
(d) हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्ति पर अधिकार (The Hindu Women’s Right to Property Act) 1937.
(e) विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) 1954.
(f) हिन्दू विवाह तथा विवाह विच्छेद अधिनियम (The Hindu Marriage and Divorce Act) 1955 & 1967.
(g) हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम (The Hindu Succession Act) 1956.
(h) दहेज प्रतिबन्ध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) 1961, 1984, 1986.
(i) मातृत्व हित लाभ अधिनियम (Maternity Relief Act) 1961. 1976.
(j) मुस्लिम महिला तलाक के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम (Muslim Women Protection of Rights of Divorce) 1986.

ऊपर लिखे कानूनों में से चाहे कुछ आज़ादी से पहले बनाए गए थे पर उनमें आजादी के बाद संशोधन कर लिए गए हैं। इन सभी विधानों से महिलाओं की सभी प्रकार की समस्याओं जैसे दहेज, बाल विवाह, सती प्रथा, सम्पत्ति का उत्तराधिकार इत्यादि का समाधान हो गया है तथा इनसे महिलाओं की स्थिति सुधारने में मदद मिली है।

3. महिला कल्याण कार्यक्रम (Women Welfare Programmes)-स्त्रियों के उत्थान के लिए आज़ादी के बाद कई कार्यक्रम चलाए गए जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(a) 1975 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया तथा उनके कल्याण के कई कार्यक्रम चलाए गए।
(b) 1982-83 में ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक तौर पर मज़बूत करने के लिए डवाकरा कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
(c) 1986-87 में महिला विकास निगम की स्थापना की गई ताकि अधिक-से-अधिक महिलाओं को रोज़गार के अवसर प्राप्त हों।
(d) 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग का पुनर्गठन किया गया ताकि महिलाओं के ऊपर बढ़ रहे अत्याचारों को रोका जा सके।

4. देश में महिला मंडलों की स्थापना की गई। यह महिलाओं के वे संगठन हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के कल्याण के लिए कार्यक्रम चलाते हैं। इन कार्यक्रमों पर होने वाले खर्च का 75% पैसा केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड देता है।

5. शहरों में कामकाजी महिलाओं को समस्या न आए इसीलिए सही दर पर रहने की व्यवस्था की गई है। केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने होस्टल स्थापित किए हैं ताकि कामकाजी महिलाएं उनमें रह सकें।

6. केन्द्रीय समाज कल्याण मण्डल ने सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम देश में 1958 के बाद से चलाने शुरू किए ताकि ज़रूरतमंद, अनाथ तथा विकलांग महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके। इसमें डेयरी कार्यक्रम भी शामिल हैं।

इस तरह आज़ादी के पश्चात् बहुत सारे कार्यक्रम चलाए गए हैं ताकि महिलाओं की सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाया जा सके। अब महिला सशक्तिकरण में चल रहे प्रयासों की वजह से भारतीय महिलाओं का बेहतर भविष्य दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 6.
आप पर्यावरण आन्दोलन से क्या समझते हैं ? किन्हीं दो पर्यावरण आन्दोलन की विस्तार से चर्चा करें।
अथवा
पर्यावरणीय आन्दोलन से सम्बन्धित चिपको आन्दोलन तथा नर्मदा बचाओ आन्दोलन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक समय में विकास पर अत्यधिक जोर दिया जा रहा है। विकास की बढ़ती माँग के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक शोषण एवं अनियंत्रित उपयोग के कारणों के फलस्वरूप विकास के ऐसे प्रतिमान पर चिंता प्रकट की जा रही है। वर्तमान समय में यह माना जाता रहा है कि विकास से सभी वर्गों के लोगों को लाभ पहुंचेगा परंतु वास्तव में बड़े-बड़े उद्योग, धंधे कृषकों को उनकी आजीविका तथा घरों दोनों से दूर कर रहे हैं। उद्योगों के उत्तरोत्तर विकास के बढ़ने के कारण औद्योगिक प्रदूषण जैसी भयंकर समस्या सामने आ रही है। औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव को देखते हुए इससे बचाव कैसे किया जा सकता है। इसके लिए अनेक पारिस्थितिकीय आंदोलन शुरू हुए।

पर्यावरण आंदोलन को हम कई सामाजिक समूहों के इकट्ठे होकर कोई कठोर कदम उठाने की क्रिया के रूप में देख सकते हैं। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य साधनों पर नियन्त्रण, वातावरण की सुरक्षा तथा पर्यावरण संतुलन बनाकर रखना था। 1970 तथा 1980 के दशकों में देश को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए कई संघर्ष शुरू हुए ताकि बड़े बाँधों को बनने से रोका जा सके तथा जिन्हें उनकी भूमि से उजाड़ा गया है उन्हें कहीं और बसाया जा सके।

(i) चिपको आन्दोलन-चिपको आंदोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (उस समय उत्तर प्रदेश) के पहाड़ी इलाकों में शुरू हुआ। यहाँ के जंगल वहाँ पर रहने वाले गाँववासियों की रोजी-रोटी का साधन थे। लोग जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना जीवनयापन करते थे। सरकार ने इन जंगलों को राजस्व प्राप्त करने के लिए ठेके पर दे दिया। जब लोग जंगलों से चीजें, लकड़ी इकट्ठी करने गए तो ठेकेदारों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि ठेकेदार स्वयं जंगलों को काटकर पैसा कमाना चाहते थे। कई गाँवों के लोग इसके विरुद्ध हो गए तथा उन्होंने मिलकर संघर्ष करना शुरू कर दिया। जब ठेकेदार जंगलों के वृक्ष काटने आते तो लोग पेड़ों के इर्द-गिर्द लिपट जाते या चिपक जाते थे ताकि वह पेड़ों को न काट सकें। महिलाओं तथा बच्चों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। प्रमुख पर्यावरणवादी सुंदर लाल बहुगुणा भी इस आंदोलन से जुड़ गए। लोगों के पेड़ों से चिपकने के कारण ही इस आंदोलन को चिपको आंदोलन कहा गया। अंत में आंदोलन को सफलता प्राप्त हुई तथा सरकार ने हिमालयी क्षेत्र के पेड़ों की कटाई पर 15 वर्ष की रोक लगा दी।

(ii) नर्मदा बचाओ आंदोलन-नर्मदा बचाओ आंदोलन को मेधा पाटेकर तथा बाबा आम्टे ने कई अन्य लोगों के साथ मिलकर शुरू किया था। नर्मदा बचाओ आंदोलन एक बहुत ही शक्तिशाली आंदोलन था जिसे 1985 में शुरू किया गया था। यह आंदोलन गुजरात की नर्मदा नदी के ऊपर बन रहे सरदार सरोवर डैम के विरुद्ध शुरू हुआ था। 1978 में नर्मदा Water Dispute Tribunal ने नर्मदा वैली प्रोजैक्ट को मान्यता दे दी। सबसे अधिक विवाद वाला डैम सरदार सरोवर प्रोजैक्ट था। इस डैम के बनने से लगभग 40 लाख लोगों को उनके घरों, भूमि से हटाया जाना था।

मेधा पाटेकर इस आंदोलन की प्रमुख नेता थी तथा उन्होंने भारत की सुप्रीम कोर्ट में एक केस किया ताकि सरदार सरोवर डैम को बनने से रोका जा सके। शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलन के हक में निर्णय दिया तथा बाँध का कार्य बंद हो गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित राज्यों से कहा कि पहले उजाड़े गए लोगों को दोबारा किसी अन्य स्थान पर बसाया जाए। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ बाँध का कार्य को शुरू करने की आज्ञा दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था की कि लोगों को बसाने के कार्य का निरीक्षण किया जाए। चाहे नर्मदा बचाओ आन्दोलन बाँध के बनने से रोकने के कार्य को पूर्णतया रोकने में सफल नहीं हो पाया परन्तु इसने लोगों को वातावरण के प्रति तथा उजाड़े गए लोगों को दोबारा बसाने के प्रति काफ़ी जागरूक किया।

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अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तानष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कौन-सा आन्दोलन शुरू होता है ?
(क) सुधारवादी आन्दोलन
(ख) रुत्थानवादी आन्दोलन
(ग) क्रान्तिकारी आन्दोलन
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) सुधारवादी आन्दोलन।

प्रश्न 2.
चिपको आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका किसने निभाई थी ?
(क) चण्डी प्रसाद भट्ट
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(ग) मेधा पाटेकर
(घ) अरुन्धति राय।
उत्तर-
(क) चण्डी प्रसाद भट्ट।

प्रश्न 3.
किसे चिपको आन्दोलन में योगदान के लिए पद्म विभूषण का सम्मान मिला था ?
(क) मेधा पाटेकर
(ख) सुन्दर लाल बहुगुणा
(ग) चण्डी प्रसाद भट्ट
(घ) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर।
उत्तर-
(ख) सुन्दर लाल बहुगुणा।।

प्रश्न 4.
सत्यशोधक आन्दोलन किसने चलाया था ?
(क) राजा राम मोहन राय
(ख) सुन्दर लाल बहुगुणा
(ग) ज्योतिराव फूले
(घ) दयानंद सरस्वती।
उत्तर-
(ग) ज्योतिराव फूले।

प्रश्न 5.
महार आन्दोलन किसने चलाया था ?
(क) ज्योतिराव फूले
(ख) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
(ग) राजा राम मोहन राय
(घ) डॉ० बी० आर० अम्बेदकर।
उत्तर-
(घ) डॉ० बी० आर० अम्बेदकर।

प्रश्न 6.
सती प्रथा को गैर-कानूनी किसने घोषित करवाया था ?
(क) राजा राम मोहन राय
(ख) डॉ० अम्बेदकर
(ग) ज्योतिराव फूले
(घ) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर।
उत्तर-
(क) राजा राम मोहन राय।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. डॉ० अंबेदकर ………… जाति से सम्बन्ध रखते थे।
2. सत्य शोधक समाज ………… ई० में स्थापित किया गया था।
3. आत्म सम्मान आन्दोलन ………. ने शुरू किया था।
4. श्री नारायण गुरु ……….. जाति से सम्बन्ध रखते थे। ।
5. मज़दूर महाजन सभा ………… ने शुरू की थी।
उत्तर-

  1. महार,
  2. 1873,
  3. पैरियार रामास्वामी,
  4. इज़ावा,
  5. महात्मा गाँधी।

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C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. डॉ० अम्बेदकर ने जैन धर्म अपना लिया था।
2. पैरियार रामास्वामी ने केरल में आत्मसम्मान आन्दोलन चलाया था।
3. सत्यशोधक समाज महाराष्ट्र में चलाया गया था।
4. आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस 1920 में शुरू हुई थी।
5. ब्रह्मो समाज राजा राम मोहन राय ने चलाया था।
6. सामाजिक आन्दोलन की प्रकृति हमेशा शांतिपूर्वक होती है।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. गलत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. सही,
  6. गलत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. किसे आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है ?
उत्तर-राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 2. सबसे पहले शब्द सामाजिक आन्दोलन किसने तथा कहाँ प्रयोग किया था ?
उत्तर-जर्मन विद्वान् Lorenz Van Stein ने अपनी पुस्तक ‘History of the French Social Movement : From 1789 to the present’ में सन् 1850 में।

प्रश्न 3. फ्रांसीसी क्रान्ति कब हुई थी ?
उत्तर-फ्रांसीसी क्रान्ति 1789 में हुई थी।

प्रश्न 4. सामाजिक आंदोलन का एक आवश्यक तत्त्व बताएं।
उत्तर-सामूहिक चेतना सामाजिक आंदोलन का एक आवश्यक तत्त्व है।

प्रश्न 5. सामाजिक आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या होता है ?
उत्तर-प्राचीन व्यवस्था को बदल कर नई व्यवस्था स्थापित करना।

प्रश्न 6. कौन से आंदोलन में तेजी से परिवर्तन आता है ?
उत्तर-क्रान्तिकारी आंदोलन में तेजी से परिवर्तन आता है।

प्रश्न 7. सत्यशोधक समाज किसने तथा कब शुरू किया था ?
उत्तर-सत्यशोधक समाज ज्योतिराव फूले ने 1873 में शुरू किया था।

प्रश्न 8. सत्यशोधक समाज का मुख्य मुद्दा क्या था ?
उत्तर-सत्यशोधक समाज का मुख्य मुद्दा प्रत्येक प्रकार से ब्राह्मणों की सत्ता का खात्मा करना था।

प्रश्न 9. श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन कब, कहाँ तथा किसने शुरू किया था ?
उत्तर-श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन श्री नारायण गुरु ने 1895 में केरल में शुरू किया था।

प्रश्न 10. श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन क्यों शुरू किया गया था
उत्तर-इज़ावा जाति की सामाजिक स्थिति को ऊँचा करने के लिए तथा अस्पृश्यता जैसी बुराई को दूर करने के लिए।

प्रश्न 11. आत्म-सम्मान आन्दोलन किसने, कब तथा कहाँ शुरू किया था ?
उत्तर-आत्म-सम्मान आन्दोलन पैरियार ई० वी० रामास्वामी ने 1925 में तमिलनाडु में शुरू किया था।

प्रश्न 12. आत्म-सम्मान आन्दोलन का मुख्य मुद्दा क्या था ?
उत्तर- इस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा जाति आधारित समाज में पिछड़ी जातियों में आत्म सम्मान की भावना को जगाना था।

प्रश्न 13. डॉ० अंबेदकर ने कब तथा कौन-सा धर्म अपना लिया था ?
उत्तर-डॉ० अंबेदकर ने 1956 ई० में बौद्ध धर्म अपना लिया था।

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प्रश्न 14. वर्ग आधारित आन्दोलन में क्या कुछ शामिल होता है ?
उत्तर-वर्ग आधारित आन्दोलन में श्रमिकों के आन्दोलन तथा किसानों के आन्दोलन शामिल होते हैं।

प्रश्न 15. मज़दूर महाजन संघ की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर- मज़दूर महाजन संघ की स्थापना महात्मा गांधी ने की थी।

प्रश्न 16. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना कब तथा कहाँ हुई थी ? ।
उत्तर-इसकी स्थापना 1920 में बंबई में हुई थी तथा लाला लाजपत राय इसके प्रथम प्रधान थे।

प्रश्न 17. 1866-68 में नील विद्रोह कहाँ हुआ था ?
उत्तर-1866-68 में नील विद्रोह दरभंगा तथा चंपारन में हुआ था।

प्रश्न 18. किसान आन्दोलन मुख्य रूप से कहाँ शुरू हुए थे ?
उत्तर-किसान आन्दोलन मुख्य रूप से पंजाब में शुरू हुआ था।

प्रश्न 19. सती प्रथा को किसने खत्म करवाया था ?
उत्तर-सती प्रथा को राजा राम मोहन राय ने लार्ड विलियम बैंटिंक की सहायता से शुरू करवाया था।

प्रश्न 20. SEWA बैंक कब शुरू हुआ था ?
उत्तर-SEWA बैंक 1974 में शुरू हुआ था।

प्रश्न 21. चिपको आन्दोलन कब तथा कहाँ शुरू हुआ था ?
उत्तर-चिपको आन्दोलन गढ़वाल क्षेत्र में मार्च 1973 में शुरू हुआ था।

प्रश्न 22. चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर-चण्डी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी व सुन्दर लाल बहुगुणा इसके प्रमुख नेता थे।

प्रश्न 23. एपीको आन्दोलन कब तथा कहाँ शुरू हुआ था ?
उत्तर-एपीको आन्दोलन कर्नाटक में सितंबर 1983 में शुरू हुआ था।

प्रश्न 24. नर्मदा बचाओ आन्दोलन कहाँ तथा क्यों शुरू हुआ था ?
उत्तर- यह गुजरात में पर्यावरण को बचाने के लिए तथा लोगों को बसाने के लिए शुरू हुआ था।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आन्दोलन क्या होते हैं ?
अथवा
सामाजिक आन्दोलन।
उत्तर-
समाज के कुछ अनावश्यक हालात होते हैं जो सदियों से चले आ रहे होते हैं। इन स्थितियों में कुछ लोग इकट्ठे होकर सामाजिक व्यवस्था को बदलने का सामूहिक प्रयास करते हैं। इन सामूहिक प्रयासों को ही सामाजिक आन्दोलन कहते हैं। आन्दोलन के सदस्य अलग-अलग ढंगों से संबंधित मुद्दे सामने लाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक आन्दोलन की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  • सामूहिक चेतना सामाजिक आन्दोलन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है। लोगों के बीच चेतना जागती है तो ही आन्दोलन जन्म लेता है।
  • सामाजिक आन्दोलन एक विचारधारा के साथ चलता है। बिना निश्चित विचारधारा के आन्दोलन नहीं चल सकता।

प्रश्न 3.
सत्यशोधक आन्दोलन।
उत्तर-
यह एक गैर-ब्राह्मण आन्दोलन था जिसे ज्योतिबा फूले ने सत्यशोधक समाज के माध्यम से चलाया था। उनका कहना था कि ब्राह्मणों ने परंपरा के आधार पर अपनी सत्ता स्थापित की हुई है। इसलिए इनकी प्रत्येक प्रकार की सत्ता खत्म होनी चाहिए तथा निम्न जातियों को ऊपर उठाया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन।
उत्तर-
इस आन्दोलन को श्री नारायण गुरु ने केरल में चलाया था। वह स्वयं इज़ावा समुदाय से संबंध रखते थे जिसे निम्न जाति समझा जाता था। वह अस्पृश्यता को खत्म करना चाहते थे तथा ऐसे मन्दिरों का निर्माण करना चाहते थे जो सभी समुदायों के लिए खुले हों।

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प्रश्न 5.
आत्म सम्मान आन्दोलन।
उत्तर-
इस आन्दोलन को 1925 में पैरीयार स्वामी ने तमिलनाडु में चलाया था। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य जाति आधारित समाज में पिछड़ी जातियों को ऊँचा उठाना तथा उनके लिए आत्म-सम्मान उत्पन्न करना था। उन्होंने कर्म व धर्म जैसे सामाजिक सिद्धान्त के विरुद्ध आन्दोलन चलाया था।

प्रश्न 6.
महार जाति।
उत्तर-
महार जाति महाराष्ट्र की एक निम्न जाति थी। बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले यह वहां की जनसंख्या का बहुत बड़ा समूह था। महार लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति काफ़ी निम्न थी। वह महाराष्ट्र में ही अलग रहते थे तथा यह माना जाता था कि उनके स्पर्श करने से अन्य लोग अपवित्र हो जाएंगे। वह निम्न स्तर के कार्य करते थे।

प्रश्न 7.
नील आन्दोलन।
उत्तर-
मुख्य रूप से नील आन्दोलन बिहार के दरभंगा तथा चंपारन जिलों में चला था क्योंकि अंग्रेज़ नील उगाने वाले किसानों का काफ़ी शोषण करते थे। उनसे जबरदस्ती नील उगवाया जाता था तथा नील सस्ते दामों पर खरीदा जाता था। इस शोषण से दुखी होकर वहां के किसानों ने आंदोलन चलाए थे।

प्रश्न 8.
ब्रह्मो समाज।
उत्तर-
ब्रह्मो समाज को राजा राम मोहन राय ने 1828 में कलकता में शुरू किया था। वह आधुनिक पश्चिमी विचारों से काफी प्रभावित थे। ब्रह्मो समाज सती प्रथा के विरुद्ध था जिस कारण इनके प्रयासों की वजह से अंग्रेज़ी सरकार ने इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इसने स्त्रियों की शिक्षा तथा सम्पत्ति अधिकार पर भी बल दिया।

प्रश्न 9.
पर्यावरण आन्दोलन।
उत्तर-
हमारे देश में पर्यावरण को खराब होने से बचाने के लिए समय-समय पर कई आन्दोलन चले। इस आन्दोलन में बहुत से लोगों ने इकट्ठे भाग लिया तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाया। चिपको आन्दोलन, एपिको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन इसकी प्रमुख उदाहरणें हैं जिनसे पर्यावरण को खराब होने से बचाया गया।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
समाज सुधार आंदोलनों की मदद से हम क्या परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तर-
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसमें हर किसी को समान अवसर उपलब्ध होते हैं। पर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के जीवन को सुखमय बनाना है, पर यह तभी संभव है अगर समाज में फैली हुई कुरीतियों तथा अंध-विश्वासों को दूर कर दिया जाए। इनको दूर सिर्फ समाज सुधारक आंदोलन ही कर सकते हैं। सिर्फ कानून बनाकरकुछ हासिल नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में सुधार ज़रूरी हैं। कानून बना देने से सिर्फ कुछ नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बच्चों से काम न करवाना इन सभी के लिए कानून हैं पर ये सब चीजें आम हैं। हमारे समाज के विकास में ये चीजें सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। अगर हमें समाज का विकास करना है तो हमें समाज सुधार आंदोलनों की जरूरत है। इसलिए हम समाज सुधार आंदोलनों के महत्त्व को भूल नहीं सकते।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलन की कोई चार विशेषताएं बताओ।
अथवा सामाजिक आंदोलन के दो लक्षण बताएँ।
उत्तर-

  • सामाजिक आंदोलन हमेशा समाज विरोधी होते हैं।
  • सामाजिक आंदोलन हमेशा नियोजित तथा जानबूझ कर किया गया प्रयत्न है।
  • इसका उद्देश्य समाज में सुधार करना होता है।
  • इसमें सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत होती है क्योंकि एक व्यक्ति समाज में परिवर्तन नहीं ला सकता।

प्रश्न 3.
सामाजिक आंदोलन की किस प्रकार की प्रकृति होती है ?
उत्तर-

  • सामाजिक आंदोलन संस्थाएं नहीं होते हैं क्योंकि संस्थाएं स्थिर तथा रूढ़िवादी होती हैं तथा संस्कृति का ज़रूरी पक्ष मानी जाती हैं। यह आंदोलन अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद खत्म हो जाते हैं।
  • सामाजिक आंदोलन समितियां भी नहीं हैं क्योंकि समितियों का एक विधान होता है। यह आंदोलन तो अनौपचारिक, असंगठित तथा परंपरा के विरुद्ध होता है।
  • सामाजिक आंदोलन दबाव या स्वार्थ समूह भी नहीं होते बल्कि यह आंदोलन सामाजिक प्रतिमानों में बदलाव की मांग करते हैं।

प्रश्न 4.
सामाजिक आंदोलन के स्तरों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • सामाजिक आंदोलन के पहले स्तर पर जनता में असन्तोष होता है। बिना असन्तोष के आन्दोलन नहीं चल सकता। इसे अशांति का स्तर भी कहा जा सकता है।
  • इस स्तर को popular stage भी कह सकते हैं क्योंकि लोगों का असन्तोष उन्हें इकट्ठा कर देता है। लोगों का नेता उनकी समस्याएं दूर करने का वायदा करता है।
  • तीसरा स्तर रस्मीकरण की प्रक्रिया है। संगठन अपनी विचारधारा बताता है तथा अगर इसे मान लिया जाता है तो सामूहिक प्रयास किया जाता है। इसे आन्दोलन की शुरुआत भी कह सकते हैं।
  • चौथा स्तर संस्थाकरण का होता है तथा आन्दोलन के बीच बस जाता है। आन्दोलन के उद्देश्य को समाज द्वारा मान लिया जाता है।
  • पाँचवां स्तर आन्दोलन का खात्मा है। कई बार उद्देश्य की पूर्ति के पश्चात् आन्दोलन खत्म हो जाता है या कई बार आन्दोलन अपने आप ही खत्म हो जाता है।

प्रश्न 5.
सत्यशोधक आन्दोलन।
उत्तर-
सत्यशोधक आन्दोलन एक गैर-ब्राह्मण आन्दोलन था। इसका प्रतिनिधित्व सत्यशोधक समाज ने किया जिसे 1873 में ज्योतिराव फूले ने शुरू किया था। वह माली जाति से संबंध रखते थे। इस जाति के अधिकतर सदस्य माली थे जो फूल, फल तथा सब्जियाँ उगाते थे। फूले तथा उनके साथियों का कहना था कि महाराष्ट्र के लोगों का विभाजन दो ढंग से होता था। एक तरफ ब्राह्मण थे तथा दूसरी तरफ पिछड़ी जातियों के लोग थे। ब्राह्मण लोग अपनी परंपरागत सत्ता तथा ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान प्राप्त नई सत्ता के आधार पर समाज का विभाजन कर देते थे। इस आन्दोलन की विचारधारा इस विचार पर टिकी थी कि ब्राह्मणों की प्रत्येक प्रकार की सत्ता को खत्म कर दिया जाए। निम्न जातियों के उत्थान की यह सबसे पहली तथा आवश्यक शर्त थी।

प्रश्न 6.
श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन।
उत्तर-
श्री नारायण धर्म परिपालना आन्दोलन को श्री नारायण गुरु ने 1893 में केरल में शुरू किया था। श्री नारायण गुरु स्वयं इज़ावा समुदाय से संबंध रखते थे। इज़ावा जाति को अशुद्ध जाति समझा जाता था। इज़ावा लोगों को मूर्ति पूजा तथा जानवरों की बलि देने की आज्ञा नहीं थी। इस आंदोलन में दो मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया गया। पहला बिन्दु था अस्पृश्यता का खात्मा तथा दूसरा था ऐसे मंदिरों का निर्माण करना जो सभी जातियों के लिए खुले हों। उन्होंने विवाह, धार्मिक पूजा पाठ तथा अंतिम संस्कार से संबंधित नियम बनाने का भी प्रयास किया। उन्होंने एक नया नारा भी दिया, “सम्पूर्ण मानवता के लिए एक धर्म तथा एक भगवान्।”

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प्रश्न 7.
आत्म-सम्मान आन्दोलन।
उत्तर-
1925 में पैरियार ई० वी० रामास्वामी ने तमिलनाडु में आत्म-सम्मान आन्दोलन की शुरुआत की। इस आन्दोलन का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना था जिसमें पिछड़ी जातियों के लोगों के पास भी समान अधिकार हो। इस आन्दोलन का एक अन्य उद्देश्य पिछड़ी जातियों के लिए जाति आधारित समाज में आत्म सम्मान की स्थापना करना था। तमिलनाडु में यह आन्दोलन काफ़ी प्रभावशाली रहा। इस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा आर्थिक व सामाजिक समानता स्थापित करना था। इस आन्दोलन ने धर्म तथा कर्म के नाम पर चल रही सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की तरफ भी ध्यान केन्द्रित किया। पैरियार ने यह भी कहा कि इस आन्दोलन का संस्थाकरण किया जाना चाहिए ताकि अपने उद्देश्य प्राप्त किए जा सकें।

प्रश्न 8.
नील आन्दोलन।
उत्तर-
हमारे देश में किसान विद्रोह अंग्रेजों के समय से चले आ रहे हैं। नील विद्रोह 1859-60 में बंगाल में शुरू हुआ था। नील की कृषि पर यूरोप के लोगों का आधिपत्य था। यूरोप में नील की काफ़ी माँग थी जिस कारण इसकी कृषि में काफ़ी लाभ था। किसानों को गेहूँ, चावल के स्थान पर नील उगाने के लिए बाध्य किया जाता था तथा उनका कई ढंग से शोषण किया जाता था। 1859 में किसानों ने हथियारबंद विद्रोह कर दिया क्योंकि अब वह शारीरिक अत्याचार नहीं सहन कर सकते थे। बंगाल के बुद्धिजीवी वर्ग ने उनका लड़ाई में साथ दिया। सरकार ने एक कमीशन भी बनाया ताकि व्यवस्था में से उनका शोषण कम किया जा सके। परन्तु किसानों का विरोध जारी रहा। 1866-68 में दरभंगा तथा चंपारन के नील किसानों ने बड़े स्तर पर विद्रोह भी किया।

प्रश्न 9.
ब्रह्मो समाज।
उत्तर-
राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है तथा उन्होंने 1828 ई० में ब्रह्मो समाज का गठन किया था। वह काफ़ी पढ़े-लिखे तथा समझदार व्यक्ति थे तथा उन्हें एक दर्जन से अधिक भाषाएं आती थी। ब्रह्मो समाज आधुनिक पश्चिमी विचारों से काफी प्रभावित थे। उन दिनों में सती प्रथा काफ़ी चल रही थी। उन्होंने धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा कहा कि इस प्रथा का जिक्र धार्मिक ग्रन्थों में है ही नहीं। इसलिए उन्होंने उस समय के गवर्नर-जनरल को इस प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने के लिए प्रेरित किया जिस कारण 1829 में ‘सती प्रथा निषेध अधिनियम पास किया गया। इस समाज ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए उनकी शिक्षा पर काफ़ी बल दिया। इस समाज ने उन विधवा स्त्रियों की स्थिति सुधारने की तरफ बल दिया जो काफ़ी बुरे हालातों में जी रही थी। इस समाज ने स्त्रियों के लिए उत्तराधिकार तथा उनके लिए सम्पत्ति की भी माँग की।’

प्रश्न 10.
एपीको आन्दोलन क्या है ?
उत्तर-
उत्तराखण्ड के इलाकों में चिपको आन्दोलन चला था जिससे प्रभावित होकर कर्नाटक के एक जिले के किसानों ने वृक्षों को बचाने के लिए उस प्रकार का आन्दोलन चलाया। दक्षिण भारत में इस प्रकार के आन्दोलन को एपीको आन्दोलन का नाम दिया गया। कर्नाटक की स्थानीय भाषा में इसे आलिंगन या एपीको कहा जाता है। सितंबर 1983 में सलकानी क्षेत्र के लोगों ने पाण्डुरंग हेगड़े की अगुवाई में कालस जंगल के पेड़ों के आलिंगन किया। यह आन्दोलन दक्षिण भारत में फैल गया। इस आंदोलन में लोगों को जागृत करने के लिए कई तरीकों को अपनाया गया जैसे कि लोक-नाच, नुक्कड़ नाटक इत्यादि। इस आन्दोलन को काफी हद तक सफलता भी मिल गई तथा राज्य सरकार ने बहुत से जंगलों में हरे वृक्षों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया। केवल सूखे वृक्षों को स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही काटा जा सकता था।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में चले स्त्री आन्दोलन की व्याख्या करें।
उत्तर-
भारतीय समाज में समय-समय पर अनेक ऐसे आंदोलन शुरू हुए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य स्त्रियों की दशा में सुधार करना रहा है। भारतीय समाज एक पुरुष-प्रधान समाज है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने अपने शोषण, उत्पीड़न इत्यादि के लिए अपनी स्थिति में सुधार के लिए आवाज़ उठाई है। पारंपरिक समय से ही महिलाएं बाल-विवाह, सती-प्रथा, विधवा विवाह पर रोक, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती आई हैं। महिलाओं को इन सब शोषणात्मक कुप्रथाओं से छुटकारा दिलवाने के लिए देश के समाज सुधारकों ने समय-समय पर आंदोलन चलाए हैं।

इन आंदोलनों में समाज सुधारक तथा उनके द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय रहे हैं। इन आंदोलनों की शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही हो गई ती। राजा राजमोहन राय, दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, ऐनी बेसेंट इत्यादि का नाम इन समाज सुधारकों में अग्रगण्य है। सन् 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना तथा 1829 में सती प्रथा अधिनियम का बनाया जाना उन्हीं का प्रयास रहा है। स्त्रियों के शोषण के रूप में पाए जाने वाले बाल-विवाह पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रचलित कराने का जनमत भी उन्हीं का अथक प्रयास रहा है। इसी तरह महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी ने भी कई ऐसे ही प्रयास किए जिनका प्रभाव महिलाओं के जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ा है। महर्षि कर्वे स्त्री-शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के समर्थक रहे। इसी प्रकार केशवचंद्र सेन एवं ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों के अंतर्गत ही 1872 में ‘विशेष विवाह अधिनियम’ तथा 1856 में विधवा-पुनर्विवाह अधिनियम बना। इन अधिनियमों के आधार पर ही विधवा पुनर्विवाह एवं अंतर्जातीय विवाह को मान्यता दी गई। इनके साथ ही कई महिला संगठनों ने भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए कई आंदोलन शुरू किए।

महिला आंदोलनकारियों ही कई महिला संगठनों ने भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए कई आंदोलन शुरू किए। महिला आंदोलनकारियों में ऐनी बेसेंट, मैडम कामा, रामाबाई रानाडे, मारग्रेड नोबल आदि की भूमिका प्रमुख रही है। भारतीय समाज में महिलाओं को संगठित करने तथा उनमें अधिकारों के प्रति साहस दिखा सकने का कार्य अहिल्याबाई व लक्ष्मीबाई ने प्रारंभ किया था। भारत में कर्नाटक में पंडिता रामाबाई ने 1878 में स्वतंत्रता से पूर्व पहला आंदोलन शुरू किया था तथा सरोज नलिनी की भी अहम् भूमिका रही है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व प्रचलित इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही अनेक ऐसे अधिनियम पास किए गए जिनका महिलाओं की स्थिति सुधार में योगदान रहा है। इसी प्रयास के आधार पर स्वतंत्रता पश्चात् अनेक अधिनियम बनाए गए जिनमें 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 का हिंदू उत्तराधिकार का अधिनियम एवं 1961 का दहेज निरोधक अधिनियम प्रमुख रहे हैं। इन्हीं अधिनियमों के तहत स्त्री-पुरुष को विवाह के संबंध में समान अधिकार दिए गए तथा स्त्रियों को पृथक्करण, विवाह-विच्छेद एवं विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय समाज में समय-समय पर और भी ऐसे कई आंदोलन चलाए गए हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य स्त्रियों को शोषण का शिकार होने से बचाना रहा है।

वर्तमान समय में स्त्री-पुरुष के समाज स्थान व अधिकार पाने के लिए कई आंदोलनों के माध्यम से एक लंबा रास्ता तय करके ही पहुँच पाई है। समय-समय पर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा महिला संगठनों के प्रयासों के आधार पर ही वर्तमान महिला जागृत हो पाई है। इन सब प्रथाओं के परिणामस्वरूप ही 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया गया। इसके साथ ही विभिन्न राज्यों में महिला विकास निगम (Women Development Council (WDC) का निर्माण किया गया है जिसका उद्देश्य महिलाओं को तकनीकी सलाह देना तथा बैंक या अन्य संस्थाओं से ऋण इत्यादि दिलवाना है। वर्तमान समय में अनेक महिलाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। आज स्त्री सभी वह कार्य कर रही है जो कि एक पुरुष करता है। महिलाओं के अध्ययन के आधार पर भी वह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में महिला की परिस्थिति, परिवार में भूमिका, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं कानूनी भागीदारी में काफ़ी परिवर्तन आया है।

आज महिला स्वतंत्र रूप से किसी भी आंदोलन, संस्था एवं संगठन से अपने आप को जोड़ सकती है। महिलाओं की विचारधारा में इस प्रकार के परिवर्तन अनेक महिला स्थिति सुधारक आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही संभव हो पाए हैं। आज महिला पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती हैं तथा इसके साथ ही महिला सभाओं एवं गोष्ठियों का भी संचालन किया जा रहा है जिसका प्रभाव महिला की स्थिति पर पूर्ण रूप से सकारात्मक पड़ रहा है।
विभिन्न महिला आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की स्थिति सुधार में ही भूमिका निभाई है, बल्कि इन आंदोलनों के आधार पर समाज में अनेक परिवर्तन भी आए हैं, अतः महिला आंदोलन परिवर्तन का भी एक उपागम रहा है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 2.
कामगारों के आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
कामगारों का आंदोलनों तथा कृषक आंदोलन वर्ग पर आधारित दो महत्त्वपूर्ण आंदोलन रहे हैं। भारतवर्ष में कारखानों के आधार पर उत्पादन सन् 1860 से प्रारंभ हुआ था। औपनिवेशिक शासन काल में यह व्यापार का एक सामान्य तरीका था जिसमें कच्चे माल का उत्पादन भारतवर्ष में किया जाता था। कच्चे माल से वस्तुएं निर्मित की जाती थीं तथा उन्हें उपनिवेश में बेचा जाता था। प्रारंभिक काल में इन कारखानों को बंदरहगाह वाले शहरों जैसे बंबई एवं कलकत्ता में स्थापित किया गया तथा उसके पश्चात् धीरे-धीरे यह कारखाने मद्रास इत्यादि बड़े शहरों में भी स्थापित कर दिए गए।

औपनिवेशक काल के प्रारंभ में सरकार ने मजदूरों के कार्यों एवं वेतन को लेकर किसी भी प्रकार की कोई योजना नहीं बनाई थी जिसके फलस्वरूप उस काल में मज़दूरी बहुत सस्ती थी। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ कामगारों ने अपने शोषण को देखते हुए सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया था अर्थात् मज़दूर संघ भी विकसित हुए लेकिन विरोध पहले से ही प्रारंभ हो चुका था। देश में कुछ एक राष्ट्रवादी नेताओं ने उपनिवेश विरोधी आंदोलनों में मजदूरों को भी शामिल करना प्रारंभ कर दिया था। देश में युद्ध के समय उद्योगों का बड़े स्तर पर विकास तो हुआ लेकिन इसके साथ ही साथ वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो गई जिससे लोगों को खाने की भी कमी हो गई। परिणामस्वरूप हड़तालें होने लगीं तथा बड़े-बड़े उद्योग एवं मिलें बंद हो गईं जैसे बंबई की कपड़ा मिल, कलकत्ता में पटसन कामगारों ने भी अपना काम बंद कर दिया। इसी तरह अहमदाबाद की कपड़ा मिल के कामगारों ने भी 50% वेतन वृद्धि की माँग को लेकर अपना काम बंद कर दिया।

कामगारों के इस विरोध को देखते हुए अनेक मज़दूर संघ स्थापित हुए। देश में पहला मज़दूर संघ सन् 1918 में बी० पी० वाडिया के प्रयास से स्थापित हुआ। उसी वर्ष महात्मा गांधी ने भी टेक्साइल लेबर एसोसिएशन (टी० एल० ए०) की भी स्थापना की। इसी तर्ज पर सन् 1920 में बंबई में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (All India Trade Union Congress), (ए० आई० ई० टी० सी०, एटक) की स्थापना भी की गई । एटक संगटन के साथ विभिन्न विचारधाराओं वाले लोग संबंधित हुए जिसमें साम्यवादी विचारधारा मुख्य थी और इन विचारधारओं के समर्थक राष्ट्रवादी नेता जैसे लाला लाजपत राय तथा पं० जवाहर लाल नेहरू जैसे लोग भी शामिल थे।

एटक एक ऐसा संगठन उभर कर सामने आया जिसने औपनिवेशिक सरकार को मज़दूरों के प्रति व्यवहार को लेकर जागरूक कर दिया तथा फलस्वरूप कुछ रियासतों के आधार पर मजदूरों ने पनपे असंतोष को कम करने का प्रयास किया। इसके साथ ही सरकार ने सन् 1922 में चौथा कारखाना अधिनियम पारित किया जिसके अंतर्गत मज़दूरों की कार्य अवधि को घटाकर दस घंटे तक निर्धारित कर दिया। सन् 1926 में मज़दूर संघ अधिनियम के तहत मज़दूर संघों के पंजीकरण का भी प्रावधान किया गया। ब्रिटिश शासन काल के अंत तक कई संघों की स्थापना हो चुकी थी तथा साम्यवादियों ने एटक पर काफ़ी नियंत्रण भी पा लिया था।

राष्ट्रीय स्तर पर कामगार वर्ग के आंदोलन के फलस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् क्षेत्रीय दलों ने भी अपने स्वयं के कई संघों का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया। सन् 1966-67 जो कि अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर था, में उत्पादन एवं रोज़गार दोनों में कमी आई जिसके परिणामस्वरूप सभी ओर असंतोष ही असंतोष था। इसके कई उदाहरण सामने थे जैसे 1974 में रेल कर्मचारियों की बहुत बड़ी हड़ताल, 1975-77 में आपात्काल के दौरान सरकार ने मज़दूर संघों की गतिविधियों पर रोक लगा दी। धीरे-धीरे भूमंडलीकरण के प्रभाव के परिणामस्वरूप कामगारों को स्थिति में काफ़ी परिवर्तन हो रहे हैं जोकि कामगारों की स्थिति में सुधारात्मक परिवर्तन हैं। इन सुधारात्मक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ही देश की अर्थव्यवस्था को एक मज़बूत आधार मिल सकता है।

सामाजिक आन्दोलन PSEB 12th Class Sociology Notes

  • अगर हम सभी समाजों को ध्यान से देखें तो हमें बहुत सी समस्याएं मिल जाएंगी। इन सामाजिक समस्याओं को सामने लाने तथा खत्म करने में सामाजिक आंदोलन काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • समाज में बहुत सी अनावश्यक स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे समाज के हालात खराब हो जाते हैं। इन
    अनावश्यक स्थितियों को दूर करने के लिए कुछ संगठित यत्नों की आवश्यकता होती है जिन्हें सामाजिक आंदोलन कहा जाता है।
  • सामाजिक आंदोलन की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि इसमें सामूहिक चेतना होती है, इसमें संगठित प्रयास होते हैं, इनमें एक पक्की विचाराधारा होती है, ये परिवर्तन लाने के पक्ष में होते हैं, इनसे नई सामाजिक व्यवस्था सामने आती है, यह हिंसात्मक व अहिंसात्मक हो सकते हैं इत्यादि।
  • सामाजिक आंदोलनों के कई प्रकार होते हैं जैसे कि सुधारवादी, क्रान्तिकारी, रुत्थानवादी आंदोलन। सुधारवादी
    आंदोलन पूर्ण समाज को बदले बिना कुछ परिवर्तन लाना चाहते हैं। क्रान्तिकारी आंदोलन सम्पूर्ण समाज को परिवर्तित करने के लिए चलाए जाते हैं। रुत्थानवादी आंदोलन प्राचीन मूल्यों को दोबारा स्थापित करने के लिए चलाए जाते हैं।
  • हमारे समाज में समय-समय पर कई आंदोलन चले। जाति आधारित आंदोलन उन आंदोलनों में से एक था।
    जाति आधारित आंदोलन निम्न जातियों के संघर्ष को सामने लाने की कहानी है। ज्योतिबा फूले, श्री नारायण गुरु, पैरियार रामास्वामी, डॉ० बी० आर० अम्बेडकर ने निम्न जातियों के उत्थान के लिए देश के अलग-अलग भागों में कई आंदोलन चलाए थे।
  • वर्ग आंदोलन में कार्य करने वाले श्रमिकों व किसानों को शामिल किया जाता है। श्रमिक तथा किसान दोनों ही शोषण से छुटकारा चाहते थे जिस कारण इनके लिए आंदोलन चले थे। समय-समय पर श्रमिक संघ आंदोलन भी चले जिनका मुख्य उद्देश्य उद्योगों में कार्य करते श्रमिकों के लिए अच्छे हालातों तथा अच्छे वेतन की मांग करना था।
  • स्त्रियों को भी सदियों से दबाया जा रहा था। उनकी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए समय-समय पर कई आंदोलन चलाए गए। उन्नीसवीं शताब्दी में राजा राम मोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, डी० के० कार्वे इत्यादि ने कई स्त्री आंदोलन चलाए जिनसे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार होने लगा।
  • देश में कई पर्यावरण आंदोलन भी चले जिनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को बचाना था। चिपको आंदोलन, ऐपिको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर्यावरण आंदोलन के ही प्रकार हैं।
  • सुधारवादी आन्दोलन (Reformist Movements)—वे आन्दोलन जो परम्परागत मान्यताओं में सुधार लाने के लिए चलाए गए थे।
  • क्रान्तिकारी आन्दोलन (Revolutionary Movements)—वह आन्दोलन जो समाज में अचानक परिवर्तन लाए जिससे समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाए।
  • विचारधारा (Ideology)-विचारधारा एक समूह की तरफ से रखे गए विचारों का एकत्र है।
  • औपचारिक संगठन (Formal Organisations)—वे संगठित समूह जिनके नियम, उद्देश्य औपचारिक रूप से बनाए जाते हैं तथा उनके सदस्यों को निश्चित भूमिकाएं दी जाती हैं।
  • पुनरुत्थानवादी आन्दोलन (Revivalist Movements)—वे आन्दोलन जो प्राचीन मूल्यों को दोबारा स्थापित करने के लिए चलाए जाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्वास में परिवर्तन कहलाता है:
(क) संरचनात्मक परिवर्तन
(ख) सांस्कृतिक परिवर्तन
(ग) दोनों
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) संरचनात्मक परिवर्तन।

प्रश्न 2.
परिवर्तन की सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ हैं:
अथवा
इनमें से कौन-सा सांस्कृतिक परिवर्तन का संसाधक है ?
अथवा
इनमें से कौन-सी परिवर्तन की सांस्कृतिक प्रक्रियाएं हैं ?
(क) पश्चिमीकरण
(ख) संस्कृतिकरण
(ग) दोनों
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) दोनों।

प्रश्न 3.
वह कौन-सी प्रक्रिया है जिसके द्वारा जातीय पदक्रमानुसार व्यवस्था में परम्परागत रूप से निम्न पद प्राप्त जाति उच्च पद प्राप्त करने का प्रयास करती है:
(क) पश्चिमीकरण
(ख) सांस्कृतिकरण
(ग) आधुनिकीकरण
(घ) वैश्वीकरण।
उत्तर-
(ख) सांस्कृतिकरण।

प्रश्न 4.
यह कथन किसने दिया है “पश्चिमीकरण ब्रिटिश शासन के 150 वर्षों से अधिक राज्य के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में धीरे-धीरे आए परिवर्तन हैं और ये वे परिणाम हैं जो विभिन्न क्षेत्रों, तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं व मूल्यों में हुए हैं।”
(क) योगेन्द्र सिंह
(ख) एम० एन० श्रीनिवास
(ग) के० एल० शर्मा
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) एम० एन० श्रीनिवास।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. ब्रिटिश व भारतीय को ……………….. के वाहक माना जाता है।
2. ………… का अर्थ जाति, धर्म, आर्थिक स्तर, आयु व लिंग का भेदभाव किए बिना सबका कल्याण करना है।
3. जाति के प्रबल होने के लिए इसमें ………………….. और ……………….. शामिल हैं।
4. केवल ………………… अनुकरणीय का विषय नहीं है।
उत्तर-

  1. पश्चिमीकरण
  2. सुधार आंदोलन
  3. अधिक भूमि, अधिक संख्या, उच्च स्थिति
  4. ब्राह्मण।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. भारत में पश्चिमीकरण का रूप व स्थान एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र व जनसंख्या के एक भाग से दूसरे भाग तक एक जैसा है।
2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं।
3. संस्कृतिकरण ऐसी प्रक्रिया है जहाँ ऊर्ध्वगामी गतिशीलता होती है जिसमें व्यक्ति निम्न स्तर की ओर जाता है।
4. एक जाति को प्रबल होने के लिए इसके पास स्थानीय स्तर पर हल चलने योग्य उचित आकार की कमी है।
उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ —कॉलम ‘बी’
पदक्रमानुसार — संदर्भ समूह
उच्च जाति — पद परिवर्तन
संस्कृतिकरण — दर्जों की श्रेणी बद्धता
पश्चिमीकरण — सर्वकल्याण
मानवतावाद — मूल्यों की प्राथमिकता।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ —कॉलम ‘बी’
पदक्रमानुसार — दर्जों की श्रेणी बद्धता
उच्च जाति — संदर्भ समूह
संस्कृतिकरण — पद परिवर्तन
पश्चिमीकरण — मूल्यों की प्राथमिकता।
मानवतावाद — सर्वकल्याण

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. किसी जाति द्वारा पदानुसार व्यवस्था में उच्च पद प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर-इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 2. किसी एक ऐसी प्रक्रिया का नाम लिखें, जिसके द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन होते हैं।
उत्तर-पश्चिमीकरण।

प्रश्न 3. किस काल को पश्चिमीकरण के आरम्भ का सूचक माना जा सकता है ?
उत्तर-ब्रिटिश काल को।

प्रश्न 4. अनुसरण की प्रक्रिया द्वारा किस प्रकार की उर्धगामी गतिशीलता संभव होती है ?
उत्तर-संस्कृतिकरण।

प्रश्न 5. कौन-सी सांस्कृतिक प्रक्रिया जाति संरचना के बाहर कार्य करती है ?
उत्तर-ब्राह्मणीकरण।

प्रश्न 6. किस समय से पश्चिमीकरण के उद्भव का पता लगाया गया ?
उत्तर-मुग़लों के बाद ब्रिटिश काल से पश्चिमीकरण के उद्भव का पता लगाया गया।

प्रश्न 7. पश्चिमीकरण प्रक्रिया के वाहक किसे कहा गया है ?
उत्तर-सिपाही तथा वह लोग जो उच्च पदों पर बैठे थे, व्यापारी, बागों के मालिक, ईसाई मिशनरी इत्यादि।

प्रश्न 8. ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किसने किया ?
उत्तर-ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग एम० एन० श्रीनिवास ने किया था।

प्रश्न 9. ब्रिटिश काल के कोई दो समूहों के नाम लिखें जो पश्चिमीकरण के प्रसार के कार्य में सहायक हुए ?
उत्तर-पढ़े-लिखे भारतीय, समाज सुधारक, ईसाई मिशनरी इत्यादि।

प्रश्न 10. एम० एन० श्रीनिवास द्वारा प्रबल जाति की पहचान का कोई एक मापदण्ड लिखें।
उत्तर-अधिक जनसंख्या, कृषि योग्य अधिक भूमि की मल्कीयत इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पश्चिमीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
पश्चिमीकरण।
उत्तर-
एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग ब्रिटिश राज्य के दौरान भारतीय समाज व संस्कृति में आए परिवर्तनों के लिए किया। उनके अनुसार पश्चिमी देशों की संस्कृति, रहने-सहने के ढंग, खाने-पीने तथा पहरावे इत्यादि के प्रभाव से भारतीय लोगों में बहुत से परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
क्या पश्चिमीकरण सामाजिक सुधार की ओर अग्रसर है ?
उत्तर-
जी हाँ, पश्चिमीकरण सामाजिक सुधार की ओर अग्रसर है क्योंकि यह प्राचीन परम्पराओं को छोड़ कर नई परम्पराओं, मूल्यों इत्यादि को अपनाने को प्रेरित करता है। साथ में यह समाज में व्याप्त कुरीतियों को छोड़ कर नए समाज के निर्माण के भी प्रयास करता है।

प्रश्न 3.
‘संस्कृतिकरण’ से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
संस्कृतिकरण।
उत्तर-
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसके साथ सामूहिक रूप से निम्न जाति उच्च पद प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से उच्च जाति के रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा जीवन के ढंगों को अपना लेती है। इससे एक दो पीढ़ियों के बाद उनकी स्थिति स्वयं ही ऊपर उठ जाती है।

प्रश्न 4.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मानवतावाद का अर्थ है सबका कल्याण चाहे वे किसी भी जाति, आयु, लिंग, धर्म, आर्थिक स्थिति इत्यादि से सम्बन्ध रखते हों। 19वीं शताब्दी के प्रथम उत्तरार्ध में मानवतावाद अंग्रेजों द्वारा लाए गए बहुत से सुधारों का आधार बन गया।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विभिन्न स्तरों को दर्शाइए।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के साथ कई प्रकार के परिवर्तन आए जैसे कि जातिगत अंतर कम हो गए, लोग पढ़ने-लिखने लग गए, लोगों के खाने-पीने तथा रहने-सहने के ढंगों में परिवर्तन आ गया, स्त्रियों की स्थिति ऊँची हो गई, सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन आ गए इत्यादि।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के लिए विभिन्न पूर्व अपेक्षित धारणाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति परिवर्तन तो होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। समाज की संरचना उस प्रकार बनी रहती है।
  • संस्कृतिकरण में अनुकरण एक आवश्यक तत्त्व है। इसका अर्थ है कि लोग जिस प्रकार अपनी आदर्श जाति को करते हुए देखते हैं, उस प्रकार स्वयं भी करना शुरू कर देते हैं।
  • संस्कृतिकरण ऊर्ध्वगामी गतिशीलता है क्योंकि जब लोग उच्च जाति की जीवन शैली अपना लेते हैं तो एक दो पीढ़ियों के पश्चात् उनकी स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन तो आ जाता है परन्तु उसकी जाति में नहीं। उसकी जाति वह ही रहती है।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर-
भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने परम्परागत सामाजिक संरचना में सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए संस्कृतिकरण संकल्प का प्रयोग किया। यह वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामूहिक रूप से निम्न जाति उच्च पद प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से उच्च जाति के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रिवाजों इत्यादि को अपना लेती है। इस प्रक्रिया के द्वारा निम्न जाति के व्यक्ति अपनी स्वयं की परम्पराओं, रिवाजों इत्यादि का भी त्याग कर देते हैं।

प्रश्न 3.
ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण को प्राथमिकता क्यों दी जाती है ?
उत्तर-
संस्कृतिकरण को ब्राह्मणीकरण पर प्राथमिकता देने का एक कारण था। वास्तव में ब्राह्मणीकरण में निम्न जाति के लोग ब्राह्मण जाति के लोगों के रहने-सहने के तरीकों, खाने-पीने के तरीकों इत्यादि को अपना लेते थे। परन्तु संस्कृतिकरण में ऐसा नहीं है। संस्कृतिकरण में निम्न जाति के लोग अपने क्षेत्र में रहने वाली उच्च जाति के लोगों के रहने-सहने तथा खाने-पीने के तरीकों को अपना लेते हैं तथा यह उच्च जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य तीनों में से कोई भी जाति हो सकती थी। इस प्रकार संदर्भ समूह प्रथम तीन जातियों में से कोई भी हो सकती थी। इस तरह संस्कृतिकरण एक खुला तथा बड़ा संकल्प है जबकि ब्राह्मणीकरण एक तंग घेरे वाला संकल्प है।

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के वाहकों/साधनों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-
अंग्रेजों के साथ-साथ भारतीयों को भी पश्चिमीकरण के वाहक के रूप में माना जाता है। अंग्रेज़ों के तीन समूह थे जिन्होंने पश्चिमीकरण के विस्तार में सहायता की तथा वे थे-

  • सिपाही तथा वह अफ़सर जो उच्च पदों पर तैनात थे।
  • व्यापारी तथा बागों के मालिक।
  • ईसाई मिशनरी/इनके अतिरिक्त दूसरी तरफ भारतीय भी थे जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के सम्पर्क में थे। वह थे
    • वे भारतीय जो अंग्रेज़ों के रहने-सहने के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आए। इन्होंने या तो अंग्रेज़ों के घरों में कार्य किया या फिर हिंदू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया।
    • वह भारतीय जो अंग्रेजों के साथ अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित हो गए। यह वह थे जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण की, व्यापार करने लग गए या फिर सरकारी नौकरियां करने लगे।

प्रश्न 5.
संस्कृतिकरण व्यवस्था में मात्र परिवर्तन लाती है एवं कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं करती। चर्चा करें।
उत्तर-
यह सत्य है कि इस प्रक्रिया से व्यक्ति की स्थिति में परिवर्तन होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तो परिवर्तित हो जाती है परन्तु जाति नहीं। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति चाहे किसी अन्य जाति के रहने-सहने, खाने-पीने के ढंगों को तो अपना लेता है परन्तु अपनी जाति को छोड़ कर दूसरी जाति में शामिल नहीं हो सकता। व्यक्ति को तमाम आयु उस जाति में रहना पड़ता है जिसमें उसने जन्म लिया है। चाहे किसी जनजाति का व्यक्ति किसी जाति के व्यक्ति के जीवन जीने के ढंगों को तो अपना लेता है परन्तु वह जाति का सदस्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 6.
पश्चिमीकरण व संस्कृतिकरण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का दृष्टिकोण धर्म निष्पक्ष होता है जबकि संस्कृतिकरण में पवित्र अपवित्र का दृष्टिकोण प्रधान होता है।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में विकास होता है तथा ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है जबकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में अनुकरण (नकल) की वजह से ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया जाति की संरचना से बाहर अपना कार्य करती है जबकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति की संरचना के अंदर कार्य करती है।
  • पश्चिमीकरण से सम्पूर्ण समाज की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है। जबकि संस्कृतिकरण से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पश्चिमीकरण एवं इसकी विशेषताओं पर विस्तारपूर्वक निबन्ध लिखें।
अथवा
पश्चिमीकरण पर नोट लिखो।
अथवा
पश्चिमीकरण की विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 2.
‘प्रबल जाति’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
प्रबल जाति का संकल्प एम० एन० श्रीनिवास ने दिया था। यह शब्द उन्होंने पहली बार लिखे Essay on the Social System of a Mysore Village में प्रयोग किया था। श्रीनिवास ने इस संकल्प को उस समय बताया जब वह कर्नाटक के मैसूर शहर के नज़दीक रामपुर गाँव का अध्ययन कर रहे थे। प्रबल जाति का अर्थ है गाँव की वह जाति जिसके पास-

  • काफ़ी अधिक कृषि योग्य भूमि स्थानीय स्तर पर मौजूद हो।
  • जनसंख्या काफ़ी अधिक हो तथा।
  • स्थानीय संस्तरण में उच्च स्थान हो। इनके अतिरिक्त कुछ नए कारण भी सामने आ रहे हैं, जैसे कि
  • पश्चिमी शिक्षा।
  • प्रशासन में नौकरियां।
  • नगरीय आय के स्रोत। .

श्रीनिवास का कहना था कि प्रबल जाति केवल रामपुर गाँव तक ही सीमित नहीं थी। यह देश के अन्य गाँवों में भी मौजूद है। परम्परागत रूप से वह जातियां जिनकी जनसंख्या कम होती है, जिनके पास पैसा, अधिक भूमि तथा राजनीतिक सत्ता होती है, गाँव की प्रबल जाति बन जाती है। उनके अनुसार परम्परागत रूप से उच्च जातियों का प्रभाव भी होता है क्योंकि उन्हें तो पश्चिमी शिक्षा तथा उनसे मिलने वाली सुविधाएं भी मिल जाती हैं। पहले जातियों की जनसंख्या का महत्त्व नहीं था परन्तु वयस्क मताधिकार के आने से कई जातियां प्रबल जातियां बन जाती हैं।

श्रीनिवास का कहना था कि चाहे प्रबल जाति के होने के लिए आधार सामने आ रहे हैं परन्तु परम्परागत आधार अभी पूर्णतया खत्म नहीं हुए हैं तथा न ही अधिक जनसंख्या वाली जातियां प्रबल जातियां बन जाती हैं परन्तु मुख्य रूप से प्रबल जाति होने के लिए ऊपर दिए गए आधार ही काफ़ी होते हैं।

प्रश्न 3.
आप सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या समझते हैं ? परिवर्तन की दो सांस्कृतिक प्रक्रियाओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर-
संस्कृति का अर्थ उस सब से है जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के मानसिक तथा बौद्धिक क्षेत्र में से प्राप्त करता है। इस तरह संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। सबसे पहले हम सांस्कृतिक पिछड़ेपन के बारे में जानेंगे कि यह क्या होता है।

सांस्कृतिक पिछड़ापन शब्द का प्रयोग कई विद्वानों जैसे कि समनर, आगबर्न, लेयर इत्यादि ने अपनी पुस्तकों में किया है। असल में शब्द सांस्कृतिक पिछड़ेपन का प्रयोग आगबर्न ने अपनी किताब Social Change में किया है। आगबर्न के अनुसार, संस्कृति के दो हिस्से हैं— भौतिक तथा अभौतिक। आजकल के समय में संस्कृति में परिवर्तन की गति प्रत्येक जगह अलग-अलग पाई जाती है। जहां कहीं भी भौतिक संस्कृति का बोलबाला है वहां पर परिवर्तन भी बहुत तेज़ गति से होता है। उदाहरणतः मशीनों, बर्तनों, औज़ारों इत्यादि से भौतिक संस्कृति का पता चलता है तथा धर्म, परिवार, शिक्षा इत्यादि अभौतिक संस्कृति से जुड़े हुए हैं। समाज में नए आविष्कारों के कारण भौतिक संस्कृति में तेजी से परिवर्तन आता है परन्तु अभौतिक संस्कृति इस परिवर्तन की दौड़ में पीछे रह जाती है। इस प्रकार दोनों संस्कृतियों में जब एक में तेज़ी से परिवर्तन आ जाता है तथा दूसरी संस्कृति पहले वाली से पीछे रह जाती है। इस पीछे रह जाने की प्रक्रिया को सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। यह सांस्कृतिक पिछड़ापन हमें आजकल कई जगह पर नज़र आता है। पिछड़ने का मुख्य कारण परिवर्तन की अलग-अलग गति का होना है।

भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन की गति का कम या तेज़ होने का एक कारण यह है कि हमारी अभौतिक संस्कृति का समाज में ज़्यादा सम्मान होता है। जब भी आविष्कारों के द्वारा समाज के भौतिक हिस्से में तेजी से परिवर्तन आता है तो अभौतिक संस्कृति का हिस्सा अपने आप को इन परिवर्तनों की तेज़ गति में शामिल नहीं कर सकता तथा पीछे रह जाता है। इस तरह सांस्कृतिक पिछड़ेपन का अर्थ संस्कृति के एक हिस्से का दूसरे हिस्से से आगे निकल जाना होता है। आगबर्न के अनुसार, “जबकि विश्लेषण के लिए भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति में अन्तर करना ज़रूरी होता है परन्तु यह ध्यान देना भी ज़रूरी होता है कि वह विस्तृत इकाई सामाजिक संस्थाओं के अन्तर्सम्बन्धित भाग होते हैं।”

आगबर्न ने सांस्कृतिक पिछड़ेपन की परिभाषा अपने शब्दों में दी है तथा कहा है कि, “आधुनिक संस्कृति के अलगअलग भागों में परिवर्तन समान गति से नहीं होता। एक भाग में दूसरे भाग से परिवर्तन ज़्यादा तेज़ गति से होता है। परन्तु संस्कृति एक व्यवस्था है जो अलग-अलग अंगों से मिलकर बनती है तथा इन अलग-अलग अंगों में आपसी निर्भरता तथा सम्बन्धता होती है। संस्कृति की यह व्यवस्था तभी बनी रह सकती है जब इसके सभी हिस्सों में समान गति से परिवर्तन आए। वास्तव में होता यह है कि जब संस्कृति का एक हिस्सा किसी आविष्कार के प्रभाव से बदल जाता है तो उससे सम्बन्धित या उस पर निर्भर भागों में भी परिवर्तन होता है परन्तु दूसरे भाग में परिवर्तन होने में काफ़ी समय लग जाता है। दूसरे भाग में परिवर्तन होने में कितना समय लगेगा यह उस दूसरे भाग की प्रकृति पर निर्भर करता है। यह पिछड़ापन कई साल तक चल सकता है। संस्कृति के दो सम्बन्धित या अन्तर्निर्भर भागों के परिवर्तन में पिछड़ापन ही सांस्कृतिक पिछड़ापन होता है।

इस तरह दिए गए विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि आगबन के अनुसार भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आसानी से इसलिए आता है क्योंकि भौतिक संस्कृति के तत्त्वों की कुछ निश्चित उपयोगिता होती है। जब भी व्यक्ति ने भौतिक संस्कृति के तत्त्वों को अपनाना हो उसे अपने विश्वासों, कीमतों, भावनाओं इत्यादि को छोड़ना नहीं पड़ता। इसके विपरीत व्यक्ति साधारणतः प्राचीन परम्पराओं को छोड़ने को तैयार नहीं होता। इस कारण भौतिक संस्कृति में परिवर्तन तेज़ गति से आता है तथा अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है। इसको ही सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। हमारे भारतीय समाज में भी भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति के परिवर्तनों की गति अलग-अलग होती है। आधुनिक समय में व्यक्ति ने नई तकनीक को तो अपना लिया है परन्तु वह अपने रीति-रिवाजों या परम्पराओं से पीछे नहीं हटा है। इस तरह संस्कृति के अलग-अलग हिस्सों में परिवर्तन अलग-अलग गति से आता है। परिवर्तन की दो सांस्कृतिक प्रक्रियाएं-संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण-

अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।
इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
आप पश्चिमीकरण से क्या समझते हैं ? इसके भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तृत व्याख्या करें।
अथवा पश्चिमीकरण के प्रभावों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
पश्चिमीकरण का अर्थ-

अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

पश्चिमीकरण का प्रभाव-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने हमारे भारतीय समाज को गहरे रूप से प्रभावित किया तथा इस प्रक्रिया से हमारे समाज में बहुत से परिवर्तन आए। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया की मदद से आए परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-

1. जाति प्रथा में परिवर्तन (Changes in Caste System)-भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण आधार रहा है जाति व्यवस्था। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने जाति प्रथा पर गहरा प्रभाव डाला। इस प्रक्रिया की मदद से लोगों में भौतिकवाद, व्यक्तिवाद इत्यादि जैसी भावनाओं का विकास हुआ। पहले उत्पादन घरों में होता था जिस कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे। पश्चिमीकरण के प्रभाव से लोग पेशे की तलाश में घरों से बाहर निकल आए जिस कारण परम्परागत पेशे का महत्त्व कम हो गया। लोगों के घरों से बाहर निकलने से जाति प्रथा के बंधन अपने आप ही टूटने लग गए। लोगों के लिए पैसे का महत्त्व बढ़ना शुरू हो गया। अब व्यक्ति वह ही कार्य करता है जिसमें उसे अधिक लाभ प्राप्त होता है। धनवान व्यक्ति को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त होती है। अब व्यक्ति को पैसे के आधार पर स्थिति प्राप्त होती है।

इस प्रक्रिया ने तो जाति प्रथा को बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया है। जाति प्रथा के हरेक प्रकार के बंधन खत्म हो गए। अब व्यक्ति अपनी ही मर्जी से किसी भी जाति में विवाह करवा लेता है। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने जाति प्रथा के बन्धनों को तोड़ कर इसे बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया है।

2. शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन (Changes in the field of education)—प्राचीन समय में लोगों को शिक्षा धर्म के आधार पर दी जाती थी तथा शिक्षा देने का कार्य ब्राह्मण लोग करते थे। जाति व्यवस्था के नियमों के अनुसार सिर्फ उच्च जाति के लोग ही शिक्षा ले सकते थे। निम्न जाति का कोई भी व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता था। सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही दी जाती थी। अगर निम्न जाति का व्यक्ति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करता था तो वह सिर्फ अपने परिवार से ही प्राप्त करता था। अंग्रेजों ने भारत आने के बाद शिक्षा तन्त्र में दोष देखे तथा अपने तरीके से शिक्षण संस्थाओं का विकास किया। उनके सामने सभी भारतीय समान थे जिस कारण उन्होंने हरेक जाति के व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के समान मौके प्रदान किए। उन्होंने विज्ञान तथा तर्क पर आधारित शिक्षा देनी शुरू की। शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी रख दिया गया। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले गए। स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए उनके लिए अलग स्कूल, कॉलेज खोले गए। इन शिक्षण संस्थाओं में हरेक जाति का व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सकता था। – इस तरह अंग्रेज़ी सरकार ने शिक्षा का स्वरूप ही बदल दिया। अब शिक्षा धर्म की जगह आधुनिक लीकों पर विकसित हो गई। इस शिक्षा से लोगों का ज्ञान भी बढ़ा तथा समाज में मिलने वाले बहुत से वहम-भ्रम भी ख़त्म हो गए। लोगों में चेतनता विकसित हो गई।

अंग्रेजों ने सभी जातियों के लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर प्रदान किए। उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा देकर उनकी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाने के बहुत से प्रयत्न किए। उनके ही प्रयासों से स्त्रियां घरों की चारदिवारी से बाहर निकल आई तथा उन्होंने नौकरियां करनी शुरू कर दी। बहुत से स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, पेशेवर कॉलेज खोले गए। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन आए। इस कारण लोगों में चेतनता का विकास हुआ तथा उन्होंने इकट्ठे होकर आज़ादी के आन्दोलन में अंग्रेजों के विरुद्ध बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। यहां तक कि स्त्रियां भी पीछे न रही।

3. विवाह की संस्था में परिवर्तन (Changes in the institution of marriage)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से विवाह की संस्था में भी बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने पश्चिमी संस्कृति की कद्रों कीमतों को भारत में फैलाना शुरू कर दिया जिससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गए। औरतों के लिए शिक्षा के अलग से संस्थान खुल गए जिस कारण स्त्रियों को घर की चारदिवारी से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। विवाह के सम्बन्ध में उन्होंने विचार प्रकट करने शुरू कर दिए। उन्होंने जाति प्रथा के अन्तर्विवाह के बन्धन को नकार दिया। अब वह अपनी मर्जी से विवाह करवाती है। बाल विवाह की प्रथा खत्म हो गई। विधवा पुनर्विवाह शुरू हो गए। अन्तर्जातीय विवाह शुरू हो गए तथा उन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने विवाह की संस्था को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया।

4. परिवार में परिवर्तन (Changes in the family) अगर हम ध्यान से देखें तो हमारी सभी गतिविधियां परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती है। प्राचीन समय में तो परिवार सामाजिक नियन्त्रण का बहुत बड़ा साधन होता था। परिवार अपने सदस्यों के लिए कुछ नियम बनाता था तथा सभी व्यक्ति इन नियमों के अनुसार ही जीवन जीते थे। प्राचीन समय में तो व्यक्ति को परिवार के पेशे को ही अपनाना पड़ता था। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के हमारे देश में आने के बाद इसने सभी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया जिसमें परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। पश्चिमीकरण के कारण बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए जिस कारण लोगों को अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण स्त्रियों ने शिक्षा प्राप्त करनी शुरू की। इससे उनकी स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हो गया। स्त्रियों ने पढ़ लिखकर नौकरी करना शुरू कर दिया जिस कारण उन्हें अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। इस कारण संयुक्त परिवार टूटने शुरू हो गए। केन्द्रीय परिवार आगे आ गए। स्त्रियां नौकरी करने लग गई जिस कारण उनकी स्थिति मर्दो के समान हो गई। उनके सम्बन्ध उच्च निम्न के नहीं बल्कि समानता से भरपूर हो गए। पारिवारिक नियन्त्रण कम हो गया। प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह भी बढ़ गए।

प्राचीन समय में लोग अपने परम्परागत पेशे अपनाते थे तथा यह पेशा तो व्यक्ति के जन्म के साथ ही निश्चित हो जाता था। परन्तु पश्चिमीकरण के कारण परिवार का यह कार्य भी खत्म हो गया। अब लोग अपने परिवार का परम्परागत पेशा नहीं अपनाते परन्तु अब लोग अपनी योग्यता के अनुसार पेशा अपनाते हैं। समाज में असंख्य पेशे उपलब्ध हैं तथा व्यक्ति अपनी योग्यता तथा शिक्षा के अनुसार ही पेशा अपनाता है।

पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण संयुक्त परिवार की तानाशाही की कीमतों का खात्मा हो गया है तथा लोकतान्त्रिक कीमतें जैसे कि स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारा सामने आ गए हैं। पश्चिमीकरण के कारण लोगों में व्यक्तिवादी भावनाएं विकसित हुई जिस कारण लोग व्यक्तिवादी हो गए। उन्होंने परिवार की जगह अपने हितों की तरफ देखना शुरू कर दिया। संयुक्त परिवार तो बिल्कुल ही विघटित हो गए। संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवार सामने आ गए। पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करने के कारण पुरानी तथा नई पीढ़ी के विचारों में टकराव होना शुरू हो गया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पश्चिमीकरण के कारण परिवार नाम की संस्था गहरे रूप से प्रभावित हुई।

5. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect) जब अंग्रेज़ भारत में आए तो उस समय भारत सैंकड़ों छोटे-बड़े राज्यों में बंटा हुआ था। उन्होंने भारत के इन छोटे-बड़े राज्यों को तेज़ी से जीता तथा भारत का राजनीतिक एकीकरण किया। उस समय शासन व्यवस्था प्राचीन ढंग से चलती थी। उन्होंने इसमें परिवर्तन किए तथा यहां पर पाई जाने वाली अलग-अलग शासन व्यवस्थाओं को ख़त्म कर दिया। उन्होंने देश में एक ही शासन व्यवस्था शुरू की जोकि पश्चिमी संस्कृति पर आधारित थी। इसमें उन्होंने धर्म अथवा जाति की जगह योग्यता को महत्त्व दिया। उन्होंने भारत में यातायात तथा संचार के साधन विकसित करने शुरू कर दिए। इससे भारत के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आना शुरू हो गए।

अंग्रेज़ों ने भारत में पश्चिमी ढंगों के अनुसार कई प्रकार की लोकतान्त्रिक संस्थाएं विकसित की जिससे राजनीतिक रूप से देश प्रगति करने लगा। इस कारण देश में उन्होंने बहुत से स्कूल कॉलेज खोले, स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित किया। पढ़ने-लिखने के कारण भारत के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित हुई तथा लोग देश की आज़ादी की लड़ाई में जुट गए।

6. संस्कृति पर प्रभाव (Effect on Culture)-जब अंग्रेज़ हमारे देश में आए तो वह अकेले नहीं आए बल्कि अपने साथ अपनी संस्कृति भी साथ लाए। जब भारतीय लोग अंग्रेजों की संस्कृति के सम्पर्क में आए तो उन्होने भी धीरेधीरे इसे अपनाना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि पश्चिम की संस्कृति उनकी संस्कृति से बिल्कुल ही अलग है। उन्होंने इस अलग संस्कृति को अपनी संस्कृति में मिश्रित करना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में हमारे देश में बहुत से अन्धविश्वास वहम-भ्रम इत्यादि प्रचलित थे। परन्तु पश्चिमीकरण तथा पश्चिमी संस्कृति के कारण उन्होंने इन वहमों, अन्धविश्वासों को छोड़ना शुरू कर दिया तथा अब वह हरेक बात को तर्क की कसौटी पर तोलने लगे। उन्होंने अपने जीवन जीने के ढंगों को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति के जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर दिया। पश्चिमीकरण के कारण भारतीय लोगों की परम्पराएं, रीति-रिवाज, मूल्य इत्यादि पूर्णतया बदल गए। पहले लोग नीचे बैठ कर खाना खाते थे अब वह मेज़ कुर्सी पर बैठकर खाने लग गए। उनके कपड़े पहनने, घर बनाने तथा उसकी सजावट करने के ढंग भी बदल गए। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण हमारी संस्कृति पर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा।

7. आर्थिक संस्थाओं पर प्रभाव (Effect on Economic Institutions)-प्राचीन समय में हमारे देश में जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) चलती थी। इसका अर्थ है कि लोग केवल अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए ही उत्पादन करते थे तथा उन्हें मण्डी व्यवस्था के बारे में कुछ भी पता नहीं होता था परन्तु पश्चिमी संस्कृति के आने से उन्हें मण्डी आर्थिकता का पता चलना शुरू हो गया। लोगों ने अब मण्डी के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया। श्रम विभाजन में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया। प्राचीन समय में श्रम-विभाजन जाति व्यवस्था पर आधारित था परन्तु पश्चिमीकरण के कारण अब यह योग्यता पर आधारित हो गया। लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन करने लग गए ताकि अधिक उत्पादन को मण्डी में बेचकर पैसा कमाया जा सके। उस पैसे से वह अपने जीवन स्तर को सधारने लग गए।

अंग्रेजों ने भारतीय कृषि का व्यापारीकरण करना शुरू कर दिया। कृषि के उत्पाद को मण्डी से खरीद कर यातायात के माध्यमों से दूर क्षेत्रों में भेजा जाने लग गया तथा इससे किसानों तथा सरकार को अधिक लाभ होने लग गया। गेहूं, चावल इत्यादि के अतिरिक्त किसान और चीजें भी उगाने लग गए जैसे कि गन्ना, कपास, फल, फूल इत्यादि। यह सब पश्चिमी तकनीक के हमारे देश में आने के कारण ही हुआ था।
अंग्रेजों ने भूमि सुधारों पर भी विशेष ध्यान दिया। उन्होंने ज़मींदारी, महलवाड़ी प्रथाओं की जगह सीधा किसानों से सम्पर्क करना शुरू कर दिया ताकि बिचौलियों को खत्म किया जा सके। इस प्रकार पश्चिमीकरण के प्रभाव से हमारे देश की अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक संस्थाओं में बहुत से परिवर्तन आ गए।

8. धर्म पर प्रभाव (Effect on Religion)-प्राचीन समय से ही भारतीय लोगों के जीवन पर धर्म का बहुत प्रभाव रहा है। जीवन का हरेक क्षेत्र धर्म से प्रभावित था तथा लोग सभी कार्य धर्म के अनुसार ही किया करते थे। धर्म के बिना तो लोग जीवन जीने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। धर्म तो सामाजिक नियन्त्रण का एक प्रमुख साधन था।

परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण धर्म-निष्पक्षता हमारे देश में आनी शुरू हो गई। लोगों के जीवन में से धर्म का प्रभाव कम होना शुरू हो गया। अन्धविश्वास, वहम इत्यादि खत्म होने लग गए तथा लोग हरेक बात को तर्क की कसौटी पर तोलने लग गए। पश्चिमी शिक्षा के कारण लोगों ने और पेशे अपनाने शुरू कर दिए तथा उनके पास धर्म के लिए समय कम होना शुरू हो गया। धार्मिक कर्म काण्ड छोटे होने शुरू हो गए। लोग अपनी सुविधा के अनुसार धर्म को मानने लग गए। धार्मिक कट्टड़वाद ख़त्म हो गया तथा धार्मिक सहनशीलता बढ़नी शुरू हो गई। अलग-अलग धर्मों, जातियों के लोग इकट्ठे रहना शुरू हो गए। लोगों ने धर्म की जगह मनोरंजन को समय देना शुरू कर दिया।

प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी तथा धार्मिक ग्रन्थों की शिक्षा दी जाती थी। परन्तु पश्चिमी शिक्षा के कारण धार्मिक शिक्षा खत्म हो गई तथा लोगों की धार्मिक मनोवृत्ति धर्म निष्पक्ष होनी शुरू हो गई। धर्म की जगह पैसे का महत्त्व भी बढ़ गया।

9. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव (Impact on the status of women)-पश्चिमीकरण ने भारतीय स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार किया है। प्राचीन समय में स्त्रियों को मर्दो की दासी समझा जाता था। परन्तु अब पश्चिमीकरण के कारण शिक्षा लेकर स्त्रियां मर्दो की दासी नहीं बल्कि उनकी मित्र तथा जीवन साथी बन गई हैं। अब वह घर की स्वामिनी बन गई है। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार हो रहा है जिस कारण उन्हें अपने महत्त्व का पता लग गया है। 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के समाज सुधारकों के प्रयासों से तथा औद्योगिकीकरण और नगरीकरण के कारण स्त्रियों ने बहुत अधिक प्रगति की है। अपनी दुर्दशा जैसी स्थिति से ऊपर उठ कर वह अब शिक्षा प्राप्त करती रही है। वह दफ्तरों में नौकरियां कर रही हैं तथा बड़े-बड़े व्यापारिक संगठन चला रही है। वह मर्दो के कन्धे से कन्धे मिलाकर कार्य कर रही है। अगर हम शिक्षा के परिणामों की तरफ देखें तो पता चलेगा कि लड़कियां लड़कों से अधिक पढ़-लिख रही हैं तथा अधिक अंक प्राप्त कर रही हैं। इस प्रकार यह सब कुछ केवल पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण ही हो रहा है।

10. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास (Development of means of transport and communication)-पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप हमारे देश में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए हैं। उद्योगों के कारण व्यापार बढ़ा है तथा विकास हुआ है। व्यापार के बढ़ने से सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता पड़ी। इसलिए ट्रकों, मोटरों, जहाज़ों, रेलगाड़ियों, डाक तार का जाल भारत में बिछ गया। टेलीफोन, मोबाइल इत्यादि का विकास हुआ। आजकल कोई भी मोबाइल फोन रख सकता है। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण यातायात तथा संचार के साधनों का काफ़ी विकास हुआ है।

प्रश्न 5.
संस्कृतिकरण पर निबन्ध लिखें।
अथवा
संस्कृतिकरण क्या है ?
अथवा
संस्कृतिकरण से आपका क्या भाव है ? ।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।
इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

प्रश्न 6.
आपका संस्कृतिकरण से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रभावों की विस्तारपूर्वक व्याख्या करें।
अथवा
समाज पर संस्कृतिकरण के प्रभावों को बताइए।
अथवा
संस्कृतिकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
संस्कृतिकरण का अर्थ-
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।

इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

संस्कृतिकरण के प्रभाव-संस्कृतिकरण सामाजिक परिवर्तन लाने में काफ़ी सहायक होता है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

  • संस्कृतिकरण से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां ऊपर वाले स्थानों पर मौजूद जातियों की नकल करके अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास करती हैं। इससे सम्पूर्ण समाज का जीवन स्तर ऊँचा हो जाता है।
  • संस्कृतिकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता उत्पन्न होती है जोकि समाज के विकास के लिए आवश्यक है। जितनी अधिक गतिशीलता समाज में होगी, उतना अधिक समाज ऊपर उठेगा।
  • इस प्रक्रिया में शोषित जातियों के व्यक्तियों को अपने आपको ऊँचा उठाने के मौके मिल जाते हैं जिस कारण वह निराशा का शिकार नहीं होते तथा कई प्रकार की समस्याओं से बच जाते हैं।
  • इससे व्यक्ति की अन्दरूनी निराशाएं तथा विवाद खत्म हो जाते हैं तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्ति अपने आप को ऊँचा उठाकर निराशाओं से बच सकता है।
  • संस्कृतिकरण के कारण व्यक्ति को समाज में उसकी वर्तमान स्थिति से उच्च स्थिति प्राप्त हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति इस प्रयास में लगा होता है कि किस प्रकार उसे ऊँचा दर्जा प्राप्त हो।
  • संस्कृतिकरण के कारण समाज में कई प्रकार के परिवर्तन आ जाते हैं जोकि आज के नियमित रूप से चलने के लिए बहुत आवश्यक है।
  • संस्कृतिकरण के कारण व्यक्ति के जीवन स्तर तथा रहने-सहने के स्तर में काफ़ी अन्तर आ जाता है क्योंकि वह अपने आप को ऊँचा साबित करने के प्रयास में लगा होता है। इस कारण वह अपने जीवन स्तर को भी ऊँचा उठाने के प्रयास करता है तथा साधारणतया वह सफल भी हो जाता है।
  • इस संस्कृतिकरण के कारण सामाजिक दर्जेबन्दी में भी कई तरह के परिवर्तन आ जाते हैं तथा विशेष जातियां अथवा आदर्श जातियों में भी परिवर्तन आ जाते हैं। जातियों के बीच ही कई उपजातियां बन जाती हैं तथा उपजातियां में भी संस्तरण उत्पन्न हो जाता है।
  • इस प्रक्रिया में शोषित जातियां आदर्श जातियों में ही मिल जाती हैं जिस कारण उन्हें अन्य जातियों की तरफ से सम्मान मिलना शुरू हो जाता है। इससे बराबरी तथा समानता वाली भावनाएं आनी शुरू हो जाती हैं।
  • क्योंकि अलग-अलग जातियां आपस में मिल जाती हैं इसलिए उन सभी में एकता आ जाती है जो देश के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध होती है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जतियों के लोग उच्च जातियों का अनुकरण करना शुरू कर
देते हैं ?
(क) पश्चिमीकरण
(ख) संस्कृतिकरण
(ग) धर्म निष्पक्षता
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(ख) संस्कृतिकरण।

प्रश्न 2.
जब किसी देश के समाज या संस्कृति में परिवर्तन होना शुरू हो जाए तो उसे क्या कहते हैं ?
(क) सामाजिक परिवर्तन
(ख) धार्मिक परिवर्तन
(ग) सांस्कृतिक परिवर्तन
(घ) उद्विकासीय परिवर्तन।
उत्तर-
(ग) सांस्कृतिक परिवर्तन।

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सी पुस्तक एम० एन० श्रीनिवास ने लिखी थी ?
(क) Cultural Change in India
(ख) Social Change in Modern India
(ग) Geographical Change in Modern India
(घ) Regional Change in Modern India.
उत्तर-
(ख) Social Change in Modern India.

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण का सिद्धान्त किसने दिया था ?
(क) श्रीनिवास
(ख) मजूमदार
(ग) घूर्ये
(घ) मुखर्जी।
उत्तर-
(क) श्रीनिवास।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण का हमारे देश पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(क) जाति प्रथा कमजोर हो गई
(ख) तलाक बढ़ गए
(ग) केंद्रीय परिवार सामने आए
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
प्रबल जाति के लिए क्या आवश्यक है ?
(क) अधिक जनसंख्या
(ख) कृषि योग्य अधिक भूमि
(ग) जातीय संस्तरण में ऊँचा स्थान
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. पश्चिमीकरण का सिद्धान्त ……… …. ने दिया था।
2. पश्चिमीकरण में …………………… को मॉडल माना जाता है।
3. …………………… तथा ……………… ने भारतीय समाज में बहुत से परिवर्तन ला दिए।
4. प्रथम तीन जातियों को …………………… संस्कार से गुजरना पड़ता था।
5. श्रीनिवास ने …………………… के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया।
6. श्रीनिवास ने …………………… लोगों का अध्ययन किया था।
उत्तर-

  1. श्रीनिवास,
  2. ब्रिटिश,
  3. राजा राम मोहन राए, रविन्द्र नाथ टैगोर,
  4. उपनयन,
  5. ब्राह्मणीकरण,
  6. कुर्ग।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. श्रीनिवास घूर्ये के विद्यार्थी थे।
2. पढ़े-लिखे भारतीय पश्चिमीकरण के वाहक थे।
3. पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में बहुत परिवर्तन लाए।
4. संस्कृतिकरण में उच्च जाति के रहन-सहन के ढंग अपनाए जाते हैं।
5. प्रबल जाति के लिए अधिक भूमि का होना आवश्यक है।
6. श्रीनिवास ने दक्षिण भारत के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर ।

प्रश्न 1. संस्कृतिकरण की धारणा किसने दी थी ?
उत्तर-एम० एन० श्रीनिवास ने।

प्रश्न 2. पश्चिमीकरण की धारणा किसने दी थी ?
उत्तर-एम० एन० श्रीनिवास ने।

प्रश्न 3. संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक बताएं।
उत्तर-औद्योगीकरण तथा नगरीकरण।

प्रश्न 4. श्रीनिवास ने किस पुस्तक में संस्कृतिकरण की व्याख्या की है ?
उत्तर-Social Change in Modern India.

प्रश्न 5. सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-जब किसी समाज या देश की संस्कृति में परिवर्तन होने लग जाए तो उसे सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 6. पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-जब हमारे देश में पश्चिमी देशों के विचारों, तौर-तरीकों को अपनाया जाता है तो उसे पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 7. संस्कृतिकरण क्या होता है ?
उत्तर-जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति की नकल करके उनके तौर-तरीकों को अपना कर अपनी स्थिति को ऊँचा कर लें तो उसे संस्कृतिकरण कहते हैं ?

प्रश्न 8. पश्चिमीकरण में किस देश को मॉडल माना जाता है ?
उत्तर-पश्चिमीकरण में ब्रिटेन को मॉडल माना जाता है।

प्रश्न 9. कौन-से समाज सुधारक भारतीय समाज में कई सुधार लाए ?
उत्तर- राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फूले, विवेकानंद इत्यादि।

प्रश्न 10. गुरुकुल क्या होता है ?
उत्तर-पुराने समय में बच्चों को गुरूकुल में शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 11. किन जातियों को द्विज कहा जाता है ?
उत्तर-ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य।

प्रश्न 12. कुर्ग लोग कहां रहते हैं ?
उत्तर-कुर्ग लोग मैसूर (कर्नाटक) के नज़दीक रहते हैं।

प्रश्न 13. मैसूर की निम्न जातियों ने किसके जीवन जीने के ढंगों को अपनाया था ?
उत्तर- उन्होंने लिंगायत लोगों के ढंगों को अपनाया था।

प्रश्न 14. श्रीनिवास ने किस गाँव के अध्ययन के समय प्रबल जाति शब्द का जिक्र किया था ?
उत्तर-रामपुरा गाँव जोकि मैसूर (कर्नाटक) के पास स्थित है।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों का अनुकरण करना शुरू कर दें अर्थात् उनके जीवन जीने, रहने-सहने के ढंगों को अपनाना शुरू कर दें ताकि वह अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा कर सकें तो इसे संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. संस्कृतिकरण में निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपना लेते हैं। इस प्रकार इसमें अनुकरण एक आवश्यक तत्त्व है।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें निम्न जातियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 3.
पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार, “पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजों के 150 वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा यह शब्द कई स्तरों-तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा मूल्यों इत्यादि में परिवर्तनों से संबंधित है।”

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण के हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-

  1. पश्चिमीकरण ने जाति प्रथा के बंधनों को तोड़ दिया जिस कारण वह कमज़ोर हो गई।
  2. पश्चिमीकरण के कारण स्त्रियों ने पढ़ना-लिखना शुरू कर दिया तथा वे घरों से बाहर निकल कर नौकरी करने लग गईं।

प्रश्न 5.
प्रबल जाति क्या होती है ?
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार गांवों में प्रबल जाति मौजूद होती हैं तथा यह वह जाति होती है जिसके पास गाँव के स्तर पर कृषि करने योग्य काफ़ी भूमि होती है, जनसंख्या अधिक होती है तथा स्थानीय संस्तरण में उनकी स्थिति ऊंची होती है।

प्रश्न 6.
उपनयन संस्कार क्या होता है ?
उत्तर-
प्रथम तीन जातियों के बच्चों को जनेऊ धारण करना पड़ता था जिसे उपनयन संस्कार कहा जाता था। यह संस्कार पूर्ण होने के पश्चात् इनके बच्चे गुरुकुल में पढ़ने के लिए जा सकते थे। यह हिंदू धर्म का प्रमुख संस्कार था जिसे निम्न जातियां नहीं कर सकती थीं।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण।
उत्तर-
शब्द संस्कृतिकरण का प्रयोग सबसे पहले श्रीनिवास ने किया था तथा इस शब्द का प्रयोग उन्होंने निम्न जातियों के लोगों द्वारा उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंग अपनाने के लिए किया था। इस प्रकार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का अर्थ है जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया से उनकी स्थिति ऊँची हो जाती है। इसमें सबसे पहले वह अपनी जाति की प्रथाओं, मूल्यों, परम्पराओं को त्याग देते हैं तथा उच्च जातियों की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की विशेषताएं।
उत्तर-

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है क्योंकि यह केवल एक ही जाति से सम्बन्धित नहीं थी बल्कि इस का प्रभाव तो सम्पूर्ण भारतीय समाज पर था।
  • संस्कृतिकरण में स्थिति परिवर्तन तो होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता अर्थात् जाति का पदक्रम उसी प्रकार बना रहता है।
  • संस्कृतिकरण में नकल अथवा अनुकरण आवश्यक तत्त्व है क्योंकि इस प्रक्रिया में निम्न जातियों के लोग शुरू से ही उच्च जातियों के लोगों की जीवन शैली का अनुकरण करने लग जाते हैं।
  • इस प्रक्रिया में सामूहिक गतिशीलता होती है क्योंकि यह एक व्यक्ति अथवा समाज को प्रभावित नहीं करती बल्कि सम्पूर्ण समूह को प्रभावित करती है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण के स्रोत।
उत्तर-

  • संचार तथा यातायात के साधनों के विकसित होने से लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आना शुरू हो गए तथा यह प्रक्रिया बढ़ने लग गई।
  • नगरीकरण के बढ़ने से अलग-अलग जातियों के लोगों नगरों में इकट्ठे रहने लगे तथा एक-दूसरे के रीतिरिवाजों, परम्पराओं इत्यादि को अपनाने लग गए।
  • पश्चिमी शिक्षा के बढ़ने से सभी जातियों के लोग इकट्ठे मिल कर शिक्षा ग्रहण करने लग गए तथा इससे भी संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुई।

प्रश्न 4.
सामाजिक कानून तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के बाद नई कानून व्यवस्था शुरू हुई तथा नया संविधान बना जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला। सरकार ने निम्न जातियों को आरक्षण दिया तथा बहुत से कानून बनाए जिससे जाति व्यवस्था प्रभावित हुई। 1955 में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम बना जिससे अस्पृश्यता को अपराध घोषित किया गया। 1954 में विशेष विवाह अधिनियम पास हुआ तथा अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता प्राप्त हुई। संविधान ने किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव करने से मनाही कर दी। निम्न जातियों को बहुत-सी सुविधाएं दी। इस प्रकार सामाजिक कानूनों से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुई।

प्रश्न 5.
अनुकरण-संस्कृतिकरण का आवश्यक तत्त्व।
उत्तर-
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों को जिस प्रकार जीवन जीता हुआ देखते हैं उसी प्रकार स्वयं भी करना शुरू कर देते हैं। इस प्रकार नकल अथवा अनुकरण संस्कृतिकरण का आवश्यक तत्त्व है। इसका अर्थ है कि निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के रहने-सहने, जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं। यह प्रक्रिया तो शुरू ही नकल से होती है जिसमें निम्न जातियों के लोग उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली की नकल करना शुरू कर देते हैं। इस कारण धीरे-धीरे निम्न जातियों के लोगों की स्थिति ऊँची होनी शुरू हो जाती है।

प्रश्न 6.
नए पेशों का प्रभाव तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
अंग्रेजों के भारत आने के बाद देश के बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए। उत्पादन घरों से निकलकर कारखानों में चला गया जिससे बहुत से नए देशों का जन्म हुआ। कारखानों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को महत्त्व प्राप्त हुआ। लोग अपनी इच्छा तथा योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करके पेशा अपनाने लगे जिससे समाज में बहुत से पेशे सामने आए। इस प्रकार बहुत से पेशों के आगे आने से जाति प्रथा का पेशे का बन्धन कमज़ोर पड़ गया जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 7.
यातायात के साधन तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
औद्योगिकीकरण के विकास के साथ-साथ यातायात के साधनों का भी विकास होने लगा। इस प्रकार नए पैमाने के उद्योग स्थापित होने लग गए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आसान हो गया था। इस प्रकार यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच सम्पर्क स्थापित किया। वह एक-दूसरे से मिलकर बसों, रेलगाड़ियों में सफर करने लग गए। उच्च तथा निम्न जातियों के लोगों में संस्कृति का आदान-प्रदान होने लग गया। पवित्रता तथा अपवित्रता के संकल्प में कमी आ गई। रेल गाड़ियों तथा बसों में मिलकर सफर करना पड़ता था जिस कारण अस्पृश्यता के भेदभाव को कायम रखना असम्भव हो गया। इस प्रकार संस्कृतिकरण के बढ़ने में यातायात के साधनों का काफ़ी बड़ा हाथ था।

प्रश्न 8.
धार्मिक और सामाजिक आंदोलन तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
प्राचीन भारतीय समाज में पाई जाने वाली जाति प्रथा से बहुत से लोग तंग थे। कोई भी जाति के बंधनों को तोड़ता नहीं था। नियमों को तोड़ने वाले को जाति से बाहर निकाल दिया जाता था। निम्न जाति के लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार होता था तथा वह तरक्की नहीं कर सकते थे। इस जाति प्रथा का विरोध करने के लिए कई समाज सुधारक उठ खड़े हुए। राजा राम मोहन राए, स्वामी दयानन्द जैसे सुधारकों ने कई आंदोलन शुरू कर दिए। इन आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा के प्रभाव को कमज़ोर करना था। उन्होंने स्त्रियों की दशा को सुधारने के प्रयत्न किए। महात्मा गांधी ने भी इस भेदभाव को खत्म करने के प्रयास किए। आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज के आन्दोलनों ने जाति प्रथा के भेदभाव का सख्त विरोध किया। उन्होंने स्थान-स्थान पर जाकर लोगों को उपदेश दिए तथा लोगों में जागृति उत्पन्न की। अन्तर्जातीय विवाह का नियम भी आंदोलन के प्रभाव के कारण ही पड़ा है। इस कारण इन आन्दोलनों के प्रभाव के कारण निम्न जातियों के लोगों ने उच्च जातियों के लोगों की आदतें अपना ली तथा संस्कृतिकरण को आगे बढ़ाया।

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण।
उत्तर-
जब पूर्व के देशों जैसे कि भारत, बर्मा, श्रीलंका इत्यादि पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहनेसहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 10.
पश्चिमीकरण की दो परिभाषाएं।
उत्तर-

  • श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैं पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेज़ी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग करता हैं तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाएं, विचारधाराएं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”
  • लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक, खाने-पीने के ढंग, शिक्षा विधियां तथा खेल, कदरों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

प्रश्न 11.
पश्चिमीकरण की विशेषताएं।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लायी गयी संस्कृति है तथा पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आयी।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है। व्यक्ति कई बार न चाहते हुए भी बहुत-सी चीज़ों को अपना लेता है तथा कई बार अपने-आप ही बहुत-सी चीजें अपना लेता है।
  • पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहु-स्तरीय धारणा है। इस प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है।

प्रश्न 12.
पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर।
उत्तर-
पश्चिमीकरण वह प्रक्रिया थी जिसे अंग्रेज़ अपने साथ भारत लाए तथा जिसने भारतीय लोगों को सामाजिक जीवन के अलग-अलग पक्षों पर काफ़ी गहरा प्रभाव डाला था। परन्तु, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी देशों के लोगों से सम्पर्क से शुरू हुई तथा इस में केवल मौलिक दिशा के परिवर्तनों को स्वीकार किया गया। आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण के बिना भी हो सकता है तथा इसके परिणाम हमेशा ही अच्छे होते हैं।

प्रश्न 13.
पश्चिमीकरण के परिणाम।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण के कारण जाति प्रथा, परिवार, विवाह की संस्था में बहुत से परिवर्तन आए।
  • पश्चिमीकरण के आने से आधुनिक शिक्षा का प्रसार हुआ तथा स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय इत्यादि खोले गए।
  • पश्चिमीकरण के कारण विवाह की संस्था में परिवर्तन आए। पहले विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता था परन्तु पश्चिमीकरण के कारण अब उसे समझौता समझा जाता है।
  • पश्चिमीकरण के कारण देश की शासन व्यवस्था में भी परिवर्तन आया तथा देश में एक ही शासन व्यवस्था लागू की गई।

प्रश्न 14.
जाति प्रथा तथा पश्चिमीकरण।
उत्तर-
पश्चिमीकरण के कारण उत्पादन घरों से निकलकर उद्योगों में चला गया तथा लोगों को पैसे कमाने के लिए अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। इसलिए परम्परागत पेशे का महत्त्व कम हो गया। लोगों के घरों से बाहर निकलने के कारण जाति प्रथा के बंधन टूटने लगे तथा पैसे का महत्त्व बढ़ना शुरू हो गया। पश्चिमीकरण ने जाति प्रथा को बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया तथा इसके हरेक प्रकार के बंधन खत्म हो गए। अब व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी भी जाति में विवाह कर सकता है।

प्रश्न 15.
आर्थिक संस्थाओं पर पश्चिमीकरण का प्रभाव।
उत्तर-

  • प्राचीन समय में हमारे देश में जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) चलती थी परन्तु पश्चिमीकरण के कारण लोगों ने केवल अपनी जगह मण्डी के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया।
  • पश्चिमीकरण के कारण भारतीय कृषि का व्यापारीकरण होना शुरू हो गया तथा कृषि के उत्पाद दूर-दूर स्थानों पर भेजे जाने लग गई। इससे किसानों को अधिक लाभ होने लग गया।
  • पश्चिमीकरण के कारण भूमि सुधारों पर विशेष ध्यान दिया गया तथा उन्होंने जमींदारी, महलवारी इत्यादि प्रथाओं को खत्म करके किसानों से सीधा सम्पर्क करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 16.
पश्चिमीकरण एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन भी है तथा अचेतन भी। यह चेतन प्रक्रिया इस प्रकार होती है कि व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देते हैं क्योंकि कुछ चीजें उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। जैसे वह अंग्रेज़ी कपड़ों का प्रयोग अपनी इच्छा से करते हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अचेतन इस प्रकार होती है कि व्यक्ति अपनी इच्छा के बिना भी पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आ जाता है। इसका कारण यह है कि कुछ चीजों को हम देखते रहते हैं तो अचानक ही हम उनकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं। इस प्रकार पश्चिमीकरण की संस्कृति में भी ऐसा आकर्षण है कि हम स्वयं उसकी तरफ खींचे चले जाते हैं।

प्रश्न 17.
पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बह-स्तरीय धारणा है।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ तो पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लेखक तक का काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पाया गया है। इस कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तकनीक आदर्श, विचार, धर्म, कला, कदरें-कीमतें भी इसके प्रभाव में आकर परिवर्तित हो गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंग भी बदल गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठ कर पत्तलों में भोजन किया करते थे तथा भोजन सम्बन्धी कई विचार प्रचलित थे। परन्तु अब यह सभी रिवाज़ बदल गए हैं। अब लोग मेज़ कुर्सी पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में खाना खाते हैं। इस प्रकार जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 18.
पश्चिमीकरण तथा शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन।
उत्तर-
प्राचीन भारतीय समाज में शैक्षिक संस्थाओं पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व था, क्योंकि जाति प्रथा के नियमों के अनुसार शिक्षा केवल उच्च जातियों के व्यक्तियों तक ही सीमित थी। केवल धार्मिक शिक्षा ही प्रदान की जाती थी। निम्न जाति के व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। अंग्रेजों के आने से शिक्षा का पश्चिमीकरण हो गया। अंग्रेजी सरकार ने शैक्षिक संस्थाओं का लोकतान्त्रिकरण कर दिया। हरेक जाति के व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के मौके दिए गए। वह धर्म निष्पक्ष शिक्षा प्रदान करते थे। अंग्रेज़ों ने शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेज़ी कर दिया। बड़े-बड़े शहरों में विश्वविद्यालय खोले गए। स्त्रियों के स्तर को ऊँचा उठाने तथा उन्हें शिक्षित करने के पूर्ण प्रयत्न किए गए। उच्च तथा निम्न जातियों के लोग मिलकर शिक्षा प्राप्त करने लगे। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण भारतीय शिक्षा का स्वरूप बदल गया तथा आधुनिक और पश्चिमी शिक्षा का विकास हुआ।

प्रश्न 19.
पश्चिमीकरण तथा विवाह की संस्था में परिवर्तन।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने अपनी पश्चिमी सामाजिक कदरों-कीमतों को फैलाना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने परम्परागत शिक्षा में परिवर्तन किया। लड़के तथा लड़कियों के लिए शिक्षा के केन्द्र खोले गए जिससे स्त्रियों को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। वह विवाह के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने लग गई। बाल-विवाह की प्रथा के कारण विधवा पुनर्विवाह शुरू किया गया। अन्तर्विवाह के नियम के अनुसार व्यक्ति केवल अपनी ही उपजाति में विवाह कर सकता था। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन ला दिया तथा अन्तर्विवाह के नियम में परिवर्तन आ गया। अन्तर्जातीय विवाह को अधिक महत्त्व प्राप्त होने लग गया। इस प्रकार पश्चिमी कद्रों-कीमतों ने विवाह की संस्था में परिवर्तन ला दिया।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न –

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सर्वव्यापक प्रक्रिया है (The process of Sanskritization is a universal process)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल एक ही जाति अथवा जाति प्रथा से ही सम्बन्धित नहीं थी बल्कि इस प्रक्रिया का प्रभाव तो सम्पूर्ण भारतीय समाज पर भी था। यह प्रक्रिया तो अन्य धर्मों में भी पाई जाती थी। यह प्रक्रिया सम्पूर्ण देश के प्रत्येक हिस्से में पाई जाती थी तथा भारतीय इतिहास की एक प्रमुख प्रक्रिया है। यह ठीक है कि यह प्रक्रिया किसी युग में अधिक प्रबल रही हो तथा किसी में कम तथा लोगों का संस्कृतिकरण भी हुआ हो, परन्तु बिना किसी शक के हम कह सकते हैं कि यह प्रक्रिया सर्वव्यापक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तो कबीलों तथा अर्धकबीलों में भी पाई जाती है। साधारणतया जनजातियां मुख्य धारा तथा हिन्दू समाजों से अलग रहती थीं तथा इन्हें जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों से भी निम्न स्थान दिया जाता था। परन्तु कबाइली लोग स्वयं को हिन्दू समाज से ऊँचा समझते थे। कई जनजातियों ने तो अपने नज़दीक की हिन्दू जाति के रहने-सहने, खाने-पीने इत्यादि के तौर तरीके तथा जीवन शैलियाँ अपना ली थीं। इस प्रकार न केवल मध्य तथा निम्न जातियों के लोग बल्कि जनजातियों के लोग भी इस प्रक्रिया को अपना रहे हैं।

2. इसमें स्थिति परिवर्तन होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता (Positional change does happen in it but not the structural change)-संस्कृतिकरण में कुछ जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों को अपना लेते हैं तथा उनकी स्थिति में परिवर्तन आ जाता है। इससे उनकी स्थिति अपनी जाति के लोगों से तो ऊँची हो जाती है, परन्तु इससे जाति व्यवस्था अथवा इसकी संरचना में कोई परिवर्तन नहीं आता है। जातियों का पदक्रम नहीं बदलता बल्कि इसी प्रकार बना रहता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि लोग अपनी आदर्श जाति की जीवन-शैली, रीति-रिवाजों को तो ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जाति के सदस्य नहीं बन सकते। इसका कारण यह है कि जाति तो जन्म पर आधारित होती है तथा व्यक्ति इसे परिवर्तित नहीं कर सकता।

3. संस्कृतिकरण में नकल अथवा अनुकरण आवश्यक तत्व है (Imitation is a necessary element of Sanskritization)—संस्कृतिकरण में लोग जिस तरह अपनी आदर्श जाति को करता हुआ देखते हैं स्वयं भी वैसा ही करना शुरू कर देते हैं। इसका अर्थ यह है कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां अपनी आदर्श जाति के लोगों की जीवन शैली की नकल करना शुरू कर देते हैं। इसके कारण धीरे-धीरे उनकी स्थिति ऊँची होनी शुरू हो जाती है। दूसरे शब्दों में, जाति के आधार पर परिवर्तन आता है तथा जाति में गतिशीलता सम्भव होती है।

4. संस्कृतिकरण सापेक्ष परिवर्तन की प्रक्रिया है (Sanskritization is a process of relative change)संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में तो यह भी देखा गया है कि उच्च जातियों के लोग कबीलों के लोगों की नकल करते हैं। वास्तव में समाज में मौजूद अलग-अलग सामाजिक समूहों की संस्कृतियों में काफ़ी अन्तर होता है। इसलिए अगर एक समूह को दूसरे समूह की संस्कृति में से कुछ भी पसंद आता है तो वह उसे अपना लेता है। इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि आदर्श समूह किस जाति से सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सापेक्ष प्रक्रिया है।

5. ब्राह्मणों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the status of Brahmins)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में न केवल जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों की स्थिति बल्कि ब्राह्मणों की स्थिति में भी परिवर्तन आता है। ब्राह्मणों ने भी अपने आपको पश्चिमी सभ्यता के अनुसार बदलना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में उच्च जातियों के लोगों पर भी कई प्रकार के प्रतिबंध थे जैसे कि मदिरा तथा माँस का प्रयोग न करना, ब्लेड का प्रयोग न करना, तड़कभड़क वाले कपड़े न पहनना इत्यादि। परन्तु जब उन्होंने अपने आप को पश्चिमी शिक्षा तथा सभ्यता के अनुसार बदलना शुरू कर दिया तो उनकी स्थिति में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया।

6. ऊपर की तरफ गतिशीलता (Upward Mobility)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में कुछ जातियों के लोग अपनी आदर्श जातियों के लोगों की जीवन शैली को अपनाना शुरू कर देते हैं तथा उनकी स्थिति उच्च होनी शुरू हो जाती है तथा यह ही संस्कृतिकरण की मुख्य विशेषता है। इस प्रक्रिया में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों अथवा कबीलों के लोग अपनी आदर्श जाति के लोगों के ढंगों के अनुसार अपने आप को बदलते हैं। परन्तु फिर भी उनकी स्थिति आदर्श जाति के बराबर नहीं होती। इस प्रकार यह ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है।

7. सामाजिक स्थिति में परिवर्तन परन्तु जाति में नहीं (Change in social status but not in caste)संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तो बदल जाती है, परन्तु जाति नहीं। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति चाहे किसी अन्य जाति के ढंगों को तो अपना लेता है, परन्तु वह अपनी जाति को छोड़कर दूसरी जाति में शामिल नहीं हो सकता। व्यक्ति को उस जाति में तमाम आयु रहना पड़ता है जिसमें उसने जन्म लिया है। चाहे किसी कबीले का व्यक्ति किसी जाति के व्यक्ति के जीवन जीने के ढंगों को अपना ले, परन्तु वह उस जाति का सदस्य नहीं बन सकता।

8. संस्कृतिकरण सामहिक गतिशीलता है (Sanskritization is a group mobility)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक व्यक्ति अथवा परिवार से सम्बन्धित नहीं होती बल्कि एक समूह अथवा जाति से सम्बन्धित होती है। इस प्रक्रिया की सहायता से सामूहिक तौर पर कोई जाति, जनजाति अथवा समूह जातीय संस्तरण के पदक्रम में अपनी वर्तमान स्थिति से ऊँचा उठ कर ऊँची स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह एक व्यक्तिगत प्रक्रिया नहीं बल्कि सामूहिक प्रक्रिया है।

9. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता से सम्बन्धित होती है (Sanskritization is related with social mobility)-संस्कृतिकरण का सम्बन्ध सामाजिक गतिशीलता से होता है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया गतिशीलता को जन्म देती है। गतिशीलता प्रत्येक प्रकार के समाजों, बंद समाजों जैसे कि भारत तथा खुले समाजों जैसे कि अमेरिका, में भी मिलती है। इसके परिणामस्वरूप कई बार व्यक्ति समाज में अपनी वर्तमान स्थिति से ऊपर की स्थिति की तरफ अधिकार जताने लग जाता है। वह होते तो किसी जाति के हैं तथा लिखते किसी अन्य जाति के हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण के स्रोतों का वर्णन करें।।
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कई स्रोत हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. संचार तथा यातायात के साधनों का विकास (Development of means of communication and transport)-भारतीय समाज में औद्योगीकरण के बढ़ने से यातायात तथा संचार के साधन भी विकसित होने शुरू हो गए जिस कारण देश के अलग-अलग भागों में उद्योगों का विकास होना शुरू हो गया। उद्योगों के विकास से यातायात के साधन विकसित होने शुरू हो गए जिससे लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से जाना शुरू हो गए। इससे अलग-अलग जातियों में सम्पर्क शुरू हो गए तथा वह इकट्ठे मिल कर रेलगाड़ियों, बसों में सफर करने लग गए। इस प्रकार अलग-अलग जातियों की संस्कृतियों के बीच विचारों, ढंगों का लेनदेन शुरू हुआ जिससे जातियों के सात्मीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई। क्योंकि लोग इकट्ठे सफर करने लग गए इसलिए जाति प्रथा की पवित्रता अपवित्रता के संकल्प को कायम रखना मुश्किल हो गया।

इस प्रकार यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ सम्पूर्ण देश में इस प्रक्रिया को प्रभावित किया। इन साधनों की सहायता से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सम्पूर्ण देश में फैल गई। अब हम कोई भी चीज़ खरीदने से पहले दुकानदार से यह नहीं पूछते कि वह किस जाति का है। इन साधनों की सहायता से लोग अपने घरों से बाहर निकल आए तथा दूर-दूर के लोगों से सम्पर्क रखने लग गए। इस प्रकार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को फैलाने में इन साधनों की काफ़ी बड़ी भूमिका रही है।

2. शहरीकरण का बढ़ना (Increasing Urbanization)-1947 के बाद भारत में उद्योगों का विकास तेज़ी से हुआ जिस कारण कई शहर अस्तित्व में आए। शहरों में बहुत-सी जातियों, धर्मों के लोग रहते हैं तथा वहां की जनसंख्या भी काफ़ी अधिक होती है। शहरों में रहने वाले लोगों को यह तक पता नहीं होता कि उनका पड़ौसी कौन है तथा वह किस जाति का है। इन स्थितियों का फायदा उन्होंने उठाया जो जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर थे। वह जब शहरों की तरफ गए तो उन्होंने अपने आप को आदर्श जाति का सदस्य बताना शुरू कर दिया। उन्होंने आदर्श जाति के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर दिया। शहरों में वर्ग व्यवस्था का अधिक महत्त्व होता है तथा लोग व्यक्ति की जाति नहीं बल्कि उसकी सामाजिक स्थिति को देखकर उसका सम्मान करते हैं। इस प्रकार शहरीकरण की प्रक्रिया के बढ़ने से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया काफ़ी प्रभावित हुई है।

3. धार्मिक तथा सामाजिक सुधार आन्दोलन (Socio-religious reform movements)—जाति प्रथा ने भारतीय समाज को हजारों वर्षों से जकड़ा हुआ था। इसके बंधन इतने मज़बूत थे कि कोई भी इस व्यवस्था के विरुद्ध नहीं जा सकता था। अगर कोई इसके विरुद्ध जाता था तो उसे जाति से बाहर निकाल दिया जाता था। वह जातियां तो बहुत ही तंग थीं जिनका सदियों से शोषण होता आया था। जाति व्यवस्था के प्रतिबंधों के कारण ही यह लोग सामाजिक व्यवस्था में भी ऊपर नहीं उठ सकते थे। इसलिए जाति प्रथा के विरुद्ध कई सामाजिक तथा धार्मिक आन्दोलन शुरू हुए तथा बहुत से समाज सुधारकों ने इनका विरोध किया। राजा राम मोहन राए, स्वामी दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फूले इत्यादि ने भी कई सामाजिक आन्दोलन शुरू किए। यह सभी सामाजिक आन्दोलन जाति प्रथा को कमजोर करना चाहते थे।
उन्होंने शोषित जातियों तथा स्त्रियों की स्थिति को ऊपर उठाने के बहुत प्रयास किए। महात्मा गांधी तथा डॉ० बी० आर० अंबेदकर ने भी इस कार्य में काफ़ी योगदान दिया। महात्मा गांधी ने शोषित जातियों को ‘हरिजन’ का नया नाम दिया। आर्य समाज तथा ब्रह्मों समाज ने जाति प्रथा तथा भेदभाव का काफ़ी विरोध किया। उन्होंने उच्च जातियों की सर्वोच्चता खत्म करने के प्रयास किए। इन समाज सुधारकों ने लोगों को जागृत करने के प्रयास किए। अन्तर्जातीय विवाह भी इन आन्दोलनों के कारण शुरू हुए। इस प्रकार जाति प्रथा के बंधनों में कमी आई तथा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को उत्साह प्राप्त हुआ।

4. पश्चिमी शिक्षा (Western Education) अंग्रेजों के भारत आने से पहले शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी। परन्तु अंग्रेजों ने भारत आने के बाद सबसे पहले भारत में अपनी संस्कृति को लागू करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी जातियों के लोगों के साथ समानता का व्यवहार करना शुरू किया। उन्होंने स्कूल, कॉलेज खोले तथा प्रत्येक जाति के व्यक्तियों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध किया। अंग्रेज़ों से पहले भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी, परन्तु उन्होंने पश्चिमी शिक्षा देनी शुरू की जो कि विज्ञान तथा तर्क के ऊपर आधारित थी। उन्होंने बहुत-सी शैक्षिक संस्थाएं शुरू की जहां प्रत्येक जाति का व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सकता था। उनसे पहले स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था, परन्तु अंग्रेज़ों ने लड़कियों के लिए स्कूल, कॉलेज शुरू किए। बहुत से स्कूलों, कालेजों में लड़के, लड़कियाँ इकट्ठे शिक्षा प्राप्त करते थे। इस प्रकार पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था ने जाति प्रथा के भेदभाव तथा उच्चता निम्नता की भावना को खत्म किया। इससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को उत्साह प्राप्त हुआ तथा प्राचीन भारतीय सामाजिक कीमतों में परिवर्तन आया।

5. अलग-अलग पेशे (Different Occupations)-जाति व्यवस्था की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता थी कि इसमें व्यक्ति को अपनी जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। उसका पेशा उसकी इच्छा पर नहीं बल्कि उसकी जाति पर निर्भर करता था। वह तमाम आयु उस पेशे को बदल नहीं सकता था। परन्तु अंग्रेज़ों के आने के पश्चात् भारत में बड़े-बड़े उद्योग शुरू हुए। उत्पादन घरों से निकल कर कारखानों में चला गया। इससे समाज में पूंजीवादी व्यवस्था शुरू हुई तथा बहुत से पेशे अस्तित्व में आ गए। उद्योगों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को महत्त्व हुआ। अब प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता तथा इच्छा के अनुसार पेशे को अपना सकता है। व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा लेकर तथा उसके अनुसार पेशे को अपना सकता है। समाज में बहुत से पेशे सामने आए। इस प्रकार बहुत से पेशों के आगे आने के कारण जाति प्रथा में बंधन कमज़ोर पड़ गए जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला।

6. नयी आर्थिक व्यवस्था (New Economic System)-भारतीय समाज को बदलने में अंग्रेज़ी सरकार की बहुत बड़ी भूमिका रही है। अंग्रेजों से पहले व्यक्ति को अपनी जाति का पेशा अपनाना पड़ता था। व्यक्ति ने जिस जाति में जन्म लिया है, उसे उस जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। परन्तु अंग्रेजों के भारत आने के पश्चात् यहां बहुत से उद्योग स्थापित हुए। उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। उद्योगों के कारण घरेलू उत्पादन खत्म हो गया जिस कारण उन्हें घरों से बाहर निकलकर अन्य पेशों को अपनाना पड़ गया।

इससे समाज में पैसे का महत्त्व बढ़ गया। व्यक्ति अब पैसा कमाने के लिए कोई भी कार्य कर लेता है। व्यक्ति को अब पैसे के आधार पर सामाजिक स्थिति प्राप्त होती है। इस प्रकार व्यक्ति की स्थिति पैसे से जुड़ गई है। जिस व्यक्ति के पास अधिक पैसा होता है उसकी स्थिति तथा सम्मान समाज में अधिक होता है। व्यक्ति को पैसा कमाने के बहुत से मौके प्राप्त हुए। इससे लोगों के रहने-सहने के स्तर में काफ़ी अन्तर आ गया। इस नई आर्थिक व्यवस्था से अस्पृश्यता जैसी समस्या तो बिल्कुल ही खत्म हो गई। अलग-अलग जातियों के बीच में से अन्तर भी खत्म हो गया। नई आर्थिक व्यवस्था ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल दिया तथा इसका प्रभाव बढ़ गया।

7. नई कानून व्यवस्था (New Legal System)-भारत में आने के पश्चात् अंग्रेजों ने नई कानून व्यवस्था शुरू की तथा प्रत्येक जाति के लोगों से समानता का व्यवहार करना शुरू किया। प्राचीन भारतीय समाज में एक ही अपराध के लिए अलग-अलग जातियों के लोगों को अलग-अलग सज़ा मिलती थी। अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया। 1947 के बाद तो इस व्यवस्था को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया। भारत का नया संविधान बनाया गया जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला। सरकार ने शोषित वर्गों को ऊँचा उठाने के बहुत प्रयास किए। उनके लिए सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थाओं में स्थान आरक्षित रखे गए तथा उन्हें नौकरियां भी दी गईं।

बहुत से कानून बनाए गए जिससे जाति व्यवस्था प्रभावित हुई। 1955 में Untouchability Offence Act पास हुआ जिसके अनुसार अस्पृश्यता को कानूनी तौर पर अपराध घोषित कर दिया गया। 1954 में Special Marriage Act के पास होने से अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता प्राप्त हुई तथा अन्तर्विवाह के नियम को खत्म करने का प्रयास किया गया। 1937 में Arya Marriage Validation Act पास हुआ जिसके अनुसार दो आर्य समाजियों को आपस में विवाह करवाने की मंजूरी मिल गई। संविधान ने किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव करने की पाबंदी लगा दी। शोषित जातियों के लोगों को बहुत-सी सुविधाएं दी गईं। इस प्रकार नई कानून व्यवस्था ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को प्रभावित किया।

8. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect) स्वतन्त्रता के बाद भारत में नई लोकतान्त्रिक कद्रों-कीमतों का विकास हआ। संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कई प्रकार के राजनीतिक अधिकार दिए। पिछड़ी जातियों के लोगों को आगे बढ़ने के बहुत से मौके प्राप्त हुए। जाति प्रथा के भेदभावों को खत्म करने के लिए राजनीतिक जागति को लाया गया। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए कई राजनीतिक दल बनाए गए जिनमें सभी जातियों के लोगों ने मिलजुल कर भाग लिया। लोग इकट्ठे मिल कर जेलों में गए तथा इकट्ठे ही रहे। इस स्थिति में जाति व्यवस्था के भेदभावों का खात्मा होना शुरू हो गया। अब पिछड़े वर्ग की राजनीतिक तौर पर बहुत महत्ता है। इतनी संख्या काफी अधिक है जिस कारण इन्हें काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। इनके लिए संसद् तथा राज्य विधान सभाओं में स्थान आरक्षित रखे गए हैं। यही कारण था कि पिछड़े तथा शोषित वर्गों के लिए अपने आदर्श वर्गों के जीवन ढंगों को अपनाना आसान हो गया तथा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया काफ़ी बढ़ गई।

9. आधुनिक शिक्षा (Modern Education)-प्राचीन समय में शिक्षा धर्म के आधार पर दी जाती थी। अंग्रेज़ों ने भारत आने के पश्चात् पश्चिमी शिक्षा के ऊपर काफ़ी बल दिया तथा बहुत से स्कूल, कॉलेज शुरू किए। स्वतन्त्रता के बाद संविधान में भी कहा गया कि शिक्षा धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सैकुलर आधार पर दी जाएगी। इस कारण अब शिक्षा सैकुलर आधार पर दी जाती है। नई शिक्षा का सबसे पहला मूल मन्त्र यह है कि सभी व्यक्ति समान हैं। शिक्षा से ही व्यक्ति जाति प्रथा के बन्धनों को तोड़ कर बाहर निकलता है। शिक्षा से व्यक्ति उच्च पद प्राप्त कर लेता है तथा अपनी स्थिति भी बदल लेता है। शिक्षा लेकर व्यक्ति धीरे-धीरे समाज में अपनी स्थिति तथा जाति को सुधार लेता है। इस प्रकार आधुनिक शिक्षा भी संस्कृतिकरण का स्रोत है।

पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण PSEB 12th Class Sociology Notes

  • संस्कृति स्वयं उत्पन्न नहीं होती बल्कि यह सीखा हुआ व्यवहार है। पश्चिमीकरण तथा संस्कृतिकरण ऐसी दो सांस्कृतिक प्रक्रियाएं हैं जिन्होंने भारतीय समाज को काफ़ी अधिक प्रभावित किया है।
  • पश्चिमीकरण का सिद्धांत एम० एन० श्रीनिवास (M. N. Srinivas) ने दिया था। उनके अनुसार पश्चिमीकरण वह प्रक्रिया है जिसने पिछले 150 वर्षों के दौरान अंग्रेज़ी शासन के समय भारतीय समाज के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कि तकनीक, संस्थाएं, विचारधारा, मूल्यों इत्यादि में परिवर्तन ला दिया था।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया जनसंख्या के किसी विशेष समूह तक ही सीमित नहीं थी। जिन लोगों ने पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की तथा जिन्होंने सरकारी नौकरियां करनी शुरू कर दी, वह इस प्रक्रिया से काफ़ी अधिक प्रभावित हुए।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में बहुत-से समाज-सुधारकों ने काफ़ी बड़ी भूमिका अदा की। उन्होंने कई समाज सुधार आंदोलन चलाए तथा समाज में बहुत से परिवर्तन आए।
  • पश्चिमीकरण का भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव पड़ा जैसे कि जातिगत अंतरों की कमी, शिक्षा का बढ़ना, रहने-सहने तथा खाने-पीने में परिवर्तन, यातायात व संचार के साधनों का विकास, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन इत्यादि।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है तथा यह संकल्प भी एम० एन० श्रीनिवास ने दिया था। उनके अनुसार जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के रहने सहने, खाने-पीने के ढंगों को अपनाकर अपनी जाति परिवर्तन करने का प्रयास करती है तो इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।
  • श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि जिस जाति की नकल की जा रही है, वह ब्राह्मण ही हो। वह क्षत्रिय या वैश्य भी हो सकते हैं।
  • भारतीय ग्रामीण समाज में एक अन्य संकल्प सामने आता है जिसे प्रबल जाति कहते हैं। श्रीनिवास के अनुसार
    प्रबल जाति वह है जिसके पास गाँव की सबसे अधिक भूमि होती है, जिसकी जनसंख्या अधिक होती है तथा जो स्थानीय संस्तरण में ऊँचा स्थान रखती है।
  • संदर्भ समूह (Reference Group)—वह समूह जिसके अनुसार व्यक्ति अपने व्यवहार के तौर-तरीकों, खाने-पीने के ढंग, रहने के ढंग इत्यादि के अनुसार ढालता है।
  • द्विज (Twice Born)-हिंदू समाज की प्रथम तीन जातियों को द्विज कहा जाता है। उन्हें जनेऊ संस्कार पूर्ण करना पड़ता था।
  • ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility) ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है व्यक्तियों अथवा समूहों का एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना। इसमें वर्ग, व्यवसाय तथा स्थिति में परिवर्तन शामिल है।
  • पदक्रम (Hierarchy)—समूह में स्थितियों की वह व्यवस्था जिससे व्यक्तियों की स्थिति निश्चित होती थी।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
परिवर्तन की संरचनात्मक प्रक्रिया है :
(क) केवल आधुनिकीकरण
(ख) केवल वैश्वीकरण
(ग) आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में किसका विचार था कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया वैयक्तिक बंधनों से अवैयक्तिक सम्बन्धों की ओर जाती है :
(क) दुर्थीम
(ख) वैबर
(ग) कार्ल मार्क्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) वैबर।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसका विचार था कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया यांत्रिक एकता से जैविक एकता की ओर परिवर्तन है :
(क) दुर्थीम
(ख) वैबर
(ग) कार्ल मार्क्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) दुर्थीम।

प्रश्न 4.
वस्तुओं व सेवाओं के सीमा पार लेन-देन की मात्रा व प्रकार में वृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसार के द्वारा विश्व के देशों में बढ़ रही अन्तर्निर्भरता को कहते हैं :
(क) पश्चिमीकरण
(ख) आधुनिकीकरण
(ग) आधुनिकीकरण
(घ) वैश्वीकरण।
उत्तर-
(घ) वैश्वीकरण। .

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण का अर्थ है :
(क) व्यापार बाधाओं में कटौती
(ख) तकनीकी का स्वतन्त्र प्रवाह
(घ) कोई नहीं।
(ग) दोनों
उत्तर-
(ग) दोनों।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. एक करिश्माई नेता वह है जो अपने व्यक्तित्व द्वारा लोगों को प्रभावित करने का ………….. रखता है।
2. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में,…………………. स्तर व्यक्ति के दृष्टिकोण व व्यक्तित्व के विशिष्ट लक्षणों में परिवर्तन दिखाता है।
3. एल० पी० जी० का अभिप्राय लिब्राइजेशन, ……….. तथा ………. है।
4. सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्वामित्व के हस्तान्तरण में परिवर्तन ……………………… कहलाता है।
5. …………………. विश्वभर के देशों में बढ़ रही आर्थिक अन्तर्निर्भरता है।
उत्तर-

  1. सामर्थ्य,
  2. सामाजिक,
  3. प्राइवेटाइज़ेशन, ग्लोब्लाइज़ेशन,
  4. निजीकरण,
  5. वैश्वीकरण।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाए-

1. आधुनिकीकरण की गति एक समाज से दूसरे समाज में भिन्न होती है।
2. ब्रिटिश नीति का लघु स्तर पर कम-से-कम हस्तक्षेप होने के कारण समाज में औद्योगीकरण, नगरीकरण व न्याय व्यवस्था में न्यूनतम अथवा बिल्कुल ही परिवर्तन नहीं आया।
3. आधुनिकीकरण एक क्रमगत प्रक्रिया है जिससे एक क्षेत्र में परिवर्तन से दूसरे क्षेत्र में परिवर्तन होता है।।।
4. वैश्वीकरण की प्रक्रिया विश्व के विभिन्न देशों में भिन्न होती है।
5. वैश्वीकरण अन्तर्निर्भरता पर जोर नहीं देता है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. गलत।

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D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आधुनिकीकरण — अवैयक्तिक बंधन
वैश्वीकरण — यांत्रिक एकता
दुर्थीम– वैश्विक गाँव
वैबर — तकनीकी परिवर्तन
मार्शल मैक्ल्यूहन — अन्तर्निर्भरता
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आधुनिकीकरण — तकनीकी परिवर्तन
वैश्वीकरण — अन्तर्निर्भरता
दुर्थीम — एकता
वैबर — अवैयक्तिक बंधन
मार्शल मैक्ल्यूहन — वैश्विक गाँव

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्विक गाँव की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-मार्शल मैक्ल्यूहन ने।

प्रश्न 2. यांत्रिक तथा जैविक एकता की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-इमाईल दुर्शीम ने।

प्रश्न 3. सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्वामित्व के हस्तांतरण का नियंत्रण क्या कहलाता है ?
उत्तर-निजीकरण।

प्रश्न 4. एक प्रक्रिया बाजार सिद्धान्तों की दिशा में अर्थव्यवस्था नवीकरण की प्रक्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर-उदारीकरण।

प्रश्न 5. करिश्माई नेता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-वह नेता जो अपने व्यक्तित्व से जनता को प्रभावित करता है उसे करिश्माई नेता कहते हैं।

प्रश्न 6. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में चार क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर-तकनीक, कृषि, उद्योग तथा वातावरण आधुनिकता के चार क्षेत्र हैं।

प्रश्न 7. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के तीन कारण लिखें।
उत्तर-नगरीकरण, औद्योगीकरण, आधुनिक शिक्षा, आधुनिकीकरण के सामने आने के कारण हैं।

प्रश्न 8. आधुनिकीकरण की दो विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर-

  1. यह लगातार तथा लम्बे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है।
  2. इससे समाज के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन आता है।

प्रश्न 9. वैश्वीकरण की दो विशेषताओं का उल्लेख करें।
अथवा
वैश्वीकरण की विशेषताओं के दो नाम लिखो।
उत्तर-

  1. इस प्रक्रिया से अलग-अलग देशों में अन्तर्निर्भरता बढ़ती है।
  2. इससे लोगों का, तकनीक व विचारों का मुक्त प्रवाह होता है।

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प्रश्न 10. करिश्माई नेता से आप क्या समझते है ?
उत्तर-वह नेता जो अपने व्यक्तित्व से जनता को प्रभावित करता है उसे करिश्माई नेता कहते हैं।

प्रश्न 11. एल० पी० जी० (LPG) का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-L- Liberalisation (उदारीकरण), P-Privatisation (निजीकरण) तथा G-Globalisation (वैश्वीकरण)।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिकीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आधुनिकीकरण का अर्थ जीवन जीने के आधुनिक तथा नए ढंगों व नए मूल्यों को अपना लेना। पहले इसका अर्थ काफ़ी तंग घेरे में लिया जाता था, परन्तु अब इसमें कृषि आर्थिकता तथा औद्योगिक आर्थिकता में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण की किन्हीं दो विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-

  1. यह एक क्रान्तिकारी प्रक्रिया है जिस में समाज परंपरागत से आधुनिक हो जाता है। इसमें लोगों के जीवन जीने के ढंगों में पूर्ण परिवर्तन आ जाता है।
  2. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें परंपरागत रूप से आधुनिक रूप में परिवर्तित होने में कई पीढ़ियां लग जाती हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण के दो कारणों का संक्षेप में उल्लेख करें।
अथवा
आधुनिकीकरण के तीन कारणों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • पश्चिमी शिक्षा के आने से लोगों ने पढ़ना लिखना शुरू किया जिससे उन्होंने पश्चिमी देशों के आधुनिक विचारों को अपनाना शुरू कर दिया।
  • औद्योगीकरण के कारण इस क्षेत्र में नए आविष्कार हुए जिस कारण मनुष्यों का कार्य मशीनों ने ले लिया। इससे आधुनिकीकरण आ गया।
  • अंग्रेजों ने भारत में अपनी संस्कृति को फैलाना शुरू किया जिस कारण यहां पर आधुनिकीकरण आना शुरू हुआ।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
वैश्वीकरण।
उत्तर-
वैश्वीकरण का साधारण शब्दों में अर्थ है अलग-अलग देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, विचारों, सूचना, लोगों तथा पूँजी का बेरोक-टोक प्रवाह। इससे उन देशों की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सीमाओं के बंधन टूट जाते हैं। यह सब कुछ संचार के विकसित साधनों के कारण मुमकिन हुआ है।

प्रश्न 5.
निजीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सरकार ने कई निगमों का निर्माण किया है जिन्हें वह कई बार व्यक्तिगत हाथों में बेच देते हैं। इस प्रकार जनतक क्षेत्र की या सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेचने की प्रक्रिया को निजीकरण कहते हैं। उदाहरण के लिए नाल्को (NALCO), वी० एस० एन० एल० (V.S.N.L.) इत्यादि।

प्रश्न 6.
उदारीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अनावश्यक प्रतिबन्धों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार से अनावश्यक प्रतिबन्धों को हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रगतिशील, मुक्त तथा Competitive बन सके, उदारीकरण कहलाता है। यह आर्थिक प्रक्रिया व समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

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IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
पारम्परिक व आधुनिक समाज में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • परंपरागत समाजों में गुज़ारे पर आधारित आर्थिकता होती है अर्थात् उत्पादन केवल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए किया जाता है जबकि आधुनिक समाजों में बाजार को देख कर किया जाता है।
  • परंपरागत समाजों में काफी साधारण रूप का श्रम विभाजन पाया जाता है जोकि लिंग पर आधारित होता है जबकि आधुनिक समाजों में श्रम विभाजन विशेषीकरण पर आधारित होती है जिसमें कई आधार होते हैं।
  • परंपरागत समाजों के लोग स्थानीय रूप से अन्तर्निर्भर होते हैं। जबकि आधुनिक समाजों में सम्पूर्ण विश्व के लोग वैश्विक रूप से अन्तर्निर्भर होते हैं।
  • परंपरागत समाजों में तकनीक बिल्कुल साधारण स्तर की होती है जबकि आधुनिक समाजों में तकनीक काफ़ी अधिक विकसित होती है।

प्रश्न 2.
यांत्रिक व जैविक एकता में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • यांत्रिक एकता व्यक्ति को समाज के साथ बिना किसी बिचौलिए के जोड़ देती है। आंगिक एकता में व्यक्ति समाज पर इस कारण निर्भर हो जाता है क्योंकि वह अन्य व्यक्तियों पर निर्भर होता है।
  • यांत्रिक एकता समानताओं पर आधारित होती है जबकि जैविक एकता का आधार श्रम विभाजन है।
  • यांत्रिक एकता की शक्ति सामूहिक चेतना की शक्ति में होती है। जैविक एकता की उत्पत्ति कार्यात्मक भिन्नता पर आधारित होती है।
  • यांत्रिक एकता व्यक्तित्व के विकास के विरुद्ध है जबकि जैविक एकता व्यक्तित्व के विकास का पूर्ण मौका प्रदान करती है।
  • यांत्रिक एकता आदिम तथा प्राचीन समाजों में मिलती है जबकि जैविक एकता आधुनिक समाजों की विशेषता है जिनका प्रमुख लक्षण श्रम विभाजन है।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण क्या है ? इसके दोनों स्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर-
आधुनिकीकरण का अर्थ है जीवन जीने के आधुनिक तथा नए ढंगों तथा नए मूल्यों को अपना लेना। पहले इसका अर्थ काफी तंग घेरे में लिया जाता था परन्तु अब इसमें कृषि आर्थिकता से औद्योगिक आर्थिकता में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है। इसने परंपरागत लोगों तथा पुराने बंधनों में बंधे हुए लोगों को वर्तमान स्थितियों के अनुसार बदल दिया है। इससे लोगों की विचारधारा, पसंद, जीवन जीने के ढंगों में बहुत से परिवर्तन आए। दूसरे शब्दों में वैज्ञानिक तथा तकनीकी आविष्कारों ने सामाजिक संबंधों की सम्पूर्ण व्यवस्था में बहुत से परिवर्तन ला दिए तथा परंपरागत विचारधारा के स्थान पर नई विचारधारा सामने आ गई। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रत्येक समाज की आवश्यकताओं तथा स्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ? दो प्रकार के वैश्वीकरण की व्याख्या करें।
उत्तर-
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। साधारण शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तुओं, सेवाओं, व्यक्तियों के बीच बेरोक-टोक आदान-प्रदान को वैश्वीकरण कहा जाता है। इस प्रक्रिया की सहायता से अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाएं एकदूसरे के सम्पर्क में आती हैं। देशों में व्यापार का मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार विश्व की अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। वैश्वीकरण के कई प्रकार होते हैं जैसे कि आर्थिक वैश्वीकरण जिसमें विश्व की अलग-अलग अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं तथा तकनीकी वैश्वीकरण जिसमें एक देश में आविष्कार हुई तकनीक अन्य देशों में पहुँच जाती है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण की अवधारणा को उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। साधारण शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तुओं, सेवाओं, व्यक्तियों के बीच बेरोक-टोक आदान-प्रदान को वैश्वीकरण कहा जाता है। इस प्रक्रिया की सहायता से अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाएं एकदूसरे के सम्पर्क में आती हैं। देशों में व्यापार का मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार विश्व की अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। वैश्वीकरण के कई प्रकार होते हैं जैसे कि आर्थिक वैश्वीकरण जिसमें विश्व की अलग-अलग अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं तथा तकनीकी वैश्वीकरण जिसमें एक देश में आविष्कार हुई तकनीक अन्य देशों में पहुँच जाती है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
आधुनिकीकरण पर एक नोट लिखो।
अथवा
आधुनिकीकरण की विशेषताओं की विस्तृत रूप में व्याख्या करो।
उत्तर-
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिक समाजों के विकसित होने पर ही पाई जाती है। भारतीय समाज के ऊपर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ अंग्रेज़ों के भारत पर राज्य करने के पश्चात् हुआ जब लोग पश्चिमीकरण (पश्चिमी संस्कृति) के सम्पर्क में आए तो उनमें कई प्रकार के परिवर्तन आ गए। आधुनिकीकरण आधुनिक समाज की एक विशेषता है। एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार,” आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण इन दोनों में अन्तर पाया जाता है। उनके अनुसार पश्चिमीकरण का संकल्प आधुनिकीकरण के संकल्प से अधिक नैतिक दृष्टिकोण से निरपेक्षता संकल्प है। इससे किसी भी संस्कृति के अच्छे व बुरे होने का ज्ञान नहीं होता है जबकि आधुनिकीकरण एक कीमत रहित संकल्प नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण को सदैव उचित, ठीक एवं अच्छा ही माना जाता है। इस कारण ही श्रीनिवास ने आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण के प्रयोग को ही महत्त्व दिया। इन दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं बतलाया। परन्तु श्रीनिवास जी ने पश्चिमीकरण को ही सदैव महत्त्व दिया है। इस प्रकार उनके विचारों से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रगतिवादी होती है। इस प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिए अनेक समाजशास्त्रियों ने अपने विचार प्रकट किए हैं-

1. मैरियन जे० लैवी (Marrion J. Levy) के अनुसार, “आधुनिकीकरण की मेरी परिभाषा शक्ति के बेजान साधनों एवं हथियारों का प्रयोग जो गतिविधियों के परिणामों को बढ़ाते हैं के ऊपर आधारित है। मैं इन दोनों तत्त्वों के बीच प्रत्येक को अटूट क्रम का आधार समझता हूं। एक समाज का कम या अधिक आधुनिक होना तब तक समझा जाता है जब तक इसके सदस्य शक्ति के बेजान साधनों का प्रयोग अपनी गतिविधियों के परिणामों को बढ़ाने के लिए करते हैं। इन दोनों में से कोई भी तत्त्व समाज विशेष में न तो पूरक एवं गायब है, न ही विशेष तौर पर उपस्थित होता है।”

2. वीनर (Veiner) के अनुसार, आधुनिकीकरण के कई पक्ष हैं-

  • राजनीतिक आधुनिकीकरण (Political Modernization)—इसमें महत्त्वपूर्ण संस्थाएं, राजनीतिक दलों, सांसदों, वोट अधिकार तथा गुप्त वोटों जो सहभागी निर्णय को मिलने में समर्थ हों, का विकास शामिल है।
  • सांस्कृतिक आधुनिकीकरण (Cultural Modernization)-प्रतिपूरक रूप से धर्म-निष्पक्षता तथा विचारधाराओं से लगाव पैदा करना है।
  • आर्थिक आधुनिकीकरण (Economic Modernization)—यह औद्योगीकरण से भिन्न होता है।

3. डॉ. योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogender Singh) के अनुसार, “साधारणत: आधुनिक होने का तात्पर्य ‘फैशनेबल’ से लिया गया है। आधुनिकीकरण एक सांस्कृतिक धारणा है जिसमें तार्किक, सर्वव्यापक दृष्टिकोण, हमदर्दी, वैज्ञानिक विश्व दृष्टि, मानवता, तकनीकी प्रगति आदि शामिल हैं।”

4. आईनस्टैड (Eienstadt) के अनुसार, “ऐतिहासिक तौर पर आधुनिकीकरण एक परिवर्तन की प्रक्रिया है। उस किस्म की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था की तरफ उन्मुख है, जो 17वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोपीय देशों एवं अमेरिका में विकसित हुआ और धीरे-धीरे सम्पूर्ण यूरोपीय देशों में फैल गया। 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में जिनका प्रसार दक्षिण अमेरिका, एशिया एवं अफ्रीका के महाद्वीप में हुआ।” ।

इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन आ जाता है। उसके स्थान पर नई एवं अच्छी व्यवस्था स्थान ले लेती है। यह प्रक्रिया किसी भी समाज में पाई जाती है और इसकी मात्रा अलग-अलग समाजों में अलग-अलग होती है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Modernization)-

1. इस प्रक्रिया के साथ शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण का विकास होता है (It leads to the development of Urbanization & Industrialization)-शहरों के साथ औद्योगिकीकरण भी पाया जाता है। जहां-जहां पर भी उद्योगों की स्थापना हुई, वहीं-वहीं पर शहरों का भी विकास होने लग गया। गांवों की भी अधिक-से-अधिक जनसंख्या शहरों की तरफ जाने लगी। शहरों में प्रत्येक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त होती हैं। व्यवसायों की भी अधिकता पाई जाती है। संचार एवं यातायात के साधनों के विकसित होने के कारण शहरी समाज में काफ़ी परिवर्तन आया है। इस कारण शहरों के परिवारों, जाति इत्यादि संस्थाओं में भी काफ़ी परिवर्तन आया। इस कारण ही शहरीकरण एवं संस्कृतिकरण में हम भेद समझते हैं। जहां भी शहरों का विकास हुआ, वहां आधुनिकता पाई जाने लगी। इसी कारण शहर गांवों से अधिक विकसित हुए।

2. इस प्रक्रिया के साथ शिक्षा का प्रसार होता है (This process develops the education)-शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ तेजी से विकास हुआ। तकनीकी शिक्षा में काफ़ी प्रगति हुई। प्राचीन काल में केवल ऊंची जाति के ही लोगों को शिक्षा दी जाती थी परन्तु समाज में जैसे प्रगति हुई, उसी प्रकार तकनीकी संस्थाओं की भी आवश्यकता पड़ने लगी। इसी कारण कई तकनीकी केन्द्र भी स्थापित हुए। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व भी बढ़ा। जो व्यक्ति जिस कार्य को करने की शिक्षा प्राप्त करता था, उसको वही काम ही मिल जाया करता था। इस कारण आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी परिवर्तन लाया।

3. इस प्रक्रिया से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध भी बढ़ते हैं (It Increases the International relations)आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा विभिन्न देशों में सहयोगिता आरम्भ हुई। यू० एन० ओ० (U.N.O.) के अस्तित्व में आने के पश्चात् प्रत्येक देश की सुरक्षा का भी प्रबन्ध किया जाने लग पड़ा है। संसार में आपसी सम्बन्ध व शांति का वातावरण पैदा करना काफ़ी आवश्यक था। यू० एन० ओ० द्वारा मानवीय अधिकारों को सुरक्षित रखने का यत्न किया गया। इस संस्था द्वारा किसी भी देश की निजी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी यत्न किए गए। शांति को बरकरार रखना ही इसका एकमात्र उद्देश्य है। जब भी दो देशों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा होती है तो U.N.O. की कोशिश के साथ दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारे जाते हैं। इस प्रकार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ सहयोगिता का वातावरण बना दिया गया है।

4. इस प्रक्रिया के कारण सामाजिक विभेदीकरण का विकास होता है (This process develops & increases the process of Social differentiation)-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ जैसे-जैसे हमारा समाज जटिल होता गया, तो समाज में विभेदीकरण की प्रक्रिया और भी तेज़ होती गई। समाज में भौतिक क्रान्ति के साथ-साथ सामाजिक विभेदीकरण में भी वृद्धि हो गई। इस प्रक्रिया के द्वारा हमें उस स्थिति का ज्ञान हो जाता है, जिस कारण समाज विभिन्न भागों में बंटा होता है। यह प्रक्रिया मानव एवं मानव के बीच और समूह एवं समूह के बीच वैर भाव की भावनाओं को विकसित ही नहीं होने देती है। इस प्रकार जब भी समाज साधारण अवस्था से कठिन अवस्था की तरफ बढ़ता है तो विभेदीकरण अवश्य पाया जाता है। कई प्रकार की सामाजिक आवश्यकताएं होती हैं। इस प्रक्रिया के बिना हम समाज में श्रम-विभाजन नहीं कर सकते। इस प्रकार आधुनिकीकरण में जैसे-जैसे विकास होता है तो समाज के प्रत्येक क्षेत्र जैसे कि धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक इत्यादि में उन्नति होने लग जाती है। इस कारण विभेदीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हो जाती है।

5. इससे सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है (It increases Social Mobility)—सामाजिक गतिशीलता आधुनिक समाजों की मुख्य विशेषता होती है। शहरी समाज में श्रम विभाजन, विशेषीकरण, देशों की भिन्नता, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन तथा संचार के साधनों इत्यादि ने सामाजिक गतिशीलता को बढ़ा दिया है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, बुद्धि इत्यादि के साथ ग़रीब से अमीर बन सकता है। व्यक्ति जिस पेशे में लाभ देखता है उसी को अपनाना शुरू कर देता है। पेशे के सम्बन्ध में वह स्थान परिवर्तन भी कर लेता है। इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया के द्वारा परम्परागत कीमतों की जगह नई कद्रों-कीमतों का भी विकास हुआ है।

6. इससे समाज सुधारक लहरें आगे आई हैं (Social reform movements came into being due to this) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा समाज सुधारक लहरों का विकास होना शुरू हो गया। समाज में जब भी परिवर्तन आता है तो उसका समाज पर प्रभाव अच्छा तथा गलत भी होता है। जब हम इस प्रभाव के अच्छे गुणों की तरफ देखते हैं तो हमें समाज में प्रगति होती नज़र आती है। जब हम इसकी बुराइयों की तरफ देखते हैं तो हमें समाज के विघटन के बारे में पता चलना शुरू हो जाता है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा कई समाज सुधारक लहरें पैदा हुईं जिनका मुख्य उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली बुराइयों को समाप्त करना होता है ताकि समाज में सन्तुलन बना रहे। इससे समाज में और प्रगति होती है। समाज सुधारक लहरों तथा आन्दोलनों की मदद से समाज में मिलने वाली उन कीमतों को खत्म किया जाता है जो समाज को गिरावट की तरफ ले जाती है। इस तरह इस प्रक्रिया के द्वारा समाज में परिवर्तन आ जाता है।

7. इसके साथ व्यक्ति की स्थिति में परिवर्तन हो जाता है (It changes the status of Individual)आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा स्थिति परिवर्तन भी पाया गया है। सर्वप्रथम हम यह देखते हैं कि प्राचीन समय में जाति विशेष व्यवसाय को अपनाना आवश्यक था। परन्तु आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा एक तरफ के व्यवसायों की अधिकता पाई गई। दूसरी तरफ विशेषीकरण की स्थिति पैदा हो गई। इस प्रकार व्यक्ति की परिस्थितियों में तत्काल परिवर्तन आ गए। जाति प्रथा अलोप हो गई और उसके स्थान पर वर्ग व्यवस्था पैदा होने लग पड़ी। व्यक्ति को स्थिति उसकी योग्यतानुसार प्राप्त होने लगी। इस प्रकार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा सामाजिक संगठन और विभिन्न समूहों की स्थितियों में परिवर्तन आने लग गया।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण पर निबन्ध लिखें।
उत्तर-
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिक समाजों के विकसित होने पर ही पाई जाती है। भारतीय समाज के ऊपर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ अंग्रेज़ों के भारत पर राज्य करने के पश्चात् हुआ जब लोग पश्चिमीकरण (पश्चिमी संस्कृति) के सम्पर्क में आए तो उनमें कई प्रकार के परिवर्तन आ गए। आधुनिकीकरण आधुनिक समाज की एक विशेषता है। एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार,” आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण इन दोनों में अन्तर पाया जाता है। उनके अनुसार पश्चिमीकरण का संकल्प आधुनिकीकरण के संकल्प से अधिक नैतिक दृष्टिकोण से निरपेक्षता संकल्प है। इससे किसी भी संस्कृति के अच्छे व बुरे होने का ज्ञान नहीं होता है जबकि आधुनिकीकरण एक कीमत रहित संकल्प नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण को सदैव उचित, ठीक एवं अच्छा ही माना जाता है। इस कारण ही श्रीनिवास ने आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण के प्रयोग को ही महत्त्व दिया। इन दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं बतलाया। परन्तु श्रीनिवास जी ने पश्चिमीकरण को ही सदैव महत्त्व दिया है। इस प्रकार उनके विचारों से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रगतिवादी होती है। इस प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिए अनेक समाजशास्त्रियों ने अपने विचार प्रकट किए हैं-

1. मैरियन जे० लैवी (Marrion J. Levy) के अनुसार, “आधुनिकीकरण की मेरी परिभाषा शक्ति के बेजान साधनों एवं हथियारों का प्रयोग जो गतिविधियों के परिणामों को बढ़ाते हैं के ऊपर आधारित है। मैं इन दोनों तत्त्वों के बीच प्रत्येक को अटूट क्रम का आधार समझता हूं। एक समाज का कम या अधिक आधुनिक होना तब तक समझा जाता है जब तक इसके सदस्य शक्ति के बेजान साधनों का प्रयोग अपनी गतिविधियों के परिणामों को बढ़ाने के लिए करते हैं। इन दोनों में से कोई भी तत्त्व समाज विशेष में न तो पूरक एवं गायब है, न ही विशेष तौर पर उपस्थित होता है।”

2. वीनर (Veiner) के अनुसार, आधुनिकीकरण के कई पक्ष हैं-

  • राजनीतिक आधुनिकीकरण (Political Modernization)—इसमें महत्त्वपूर्ण संस्थाएं, राजनीतिक दलों, सांसदों, वोट अधिकार तथा गुप्त वोटों जो सहभागी निर्णय को मिलने में समर्थ हों, का विकास शामिल है।
  • सांस्कृतिक आधुनिकीकरण (Cultural Modernization)-प्रतिपूरक रूप से धर्म-निष्पक्षता तथा विचारधाराओं से लगाव पैदा करना है।
  • आर्थिक आधुनिकीकरण (Economic Modernization)—यह औद्योगीकरण से भिन्न होता है।

3. डॉ. योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogender Singh) के अनुसार, “साधारणत: आधुनिक होने का तात्पर्य ‘फैशनेबल’ से लिया गया है। आधुनिकीकरण एक सांस्कृतिक धारणा है जिसमें तार्किक, सर्वव्यापक दृष्टिकोण, हमदर्दी, वैज्ञानिक विश्व दृष्टि, मानवता, तकनीकी प्रगति आदि शामिल हैं।”
4. आईनस्टैड (Eienstadt) के अनुसार, “ऐतिहासिक तौर पर आधुनिकीकरण एक परिवर्तन की प्रक्रिया है। उस किस्म की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था की तरफ उन्मुख है, जो 17वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोपीय देशों एवं अमेरिका में विकसित हुआ और धीरे-धीरे सम्पूर्ण यूरोपीय देशों में फैल गया। 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में जिनका प्रसार दक्षिण अमेरिका, एशिया एवं अफ्रीका के महाद्वीप में हुआ।” ।

इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन आ जाता है। उसके स्थान पर नई एवं अच्छी व्यवस्था स्थान ले लेती है। यह प्रक्रिया किसी भी समाज में पाई जाती है और इसकी मात्रा अलग-अलग समाजों में अलग-अलग होती है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Modernization)-

1. इस प्रक्रिया के साथ शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण का विकास होता है (It leads to the development of Urbanization & Industrialization)-शहरों के साथ औद्योगिकीकरण भी पाया जाता है। जहां-जहां पर भी उद्योगों की स्थापना हुई, वहीं-वहीं पर शहरों का भी विकास होने लग गया। गांवों की भी अधिक-से-अधिक जनसंख्या शहरों की तरफ जाने लगी। शहरों में प्रत्येक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त होती हैं। व्यवसायों की भी अधिकता पाई जाती है। संचार एवं यातायात के साधनों के विकसित होने के कारण शहरी समाज में काफ़ी परिवर्तन आया है। इस कारण शहरों के परिवारों, जाति इत्यादि संस्थाओं में भी काफ़ी परिवर्तन आया। इस कारण ही शहरीकरण एवं संस्कृतिकरण में हम भेद समझते हैं। जहां भी शहरों का विकास हुआ, वहां आधुनिकता पाई जाने लगी। इसी कारण शहर गांवों से अधिक विकसित हुए।

2. इस प्रक्रिया के साथ शिक्षा का प्रसार होता है (This process develops the education)-शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ तेजी से विकास हुआ। तकनीकी शिक्षा में काफ़ी प्रगति हुई। प्राचीन काल में केवल ऊंची जाति के ही लोगों को शिक्षा दी जाती थी परन्तु समाज में जैसे प्रगति हुई, उसी प्रकार तकनीकी संस्थाओं की भी आवश्यकता पड़ने लगी। इसी कारण कई तकनीकी केन्द्र भी स्थापित हुए। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व भी बढ़ा। जो व्यक्ति जिस कार्य को करने की शिक्षा प्राप्त करता था, उसको वही काम ही मिल जाया करता था। इस कारण आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी परिवर्तन लाया।

3. इस प्रक्रिया से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध भी बढ़ते हैं (It Increases the International relations)आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा विभिन्न देशों में सहयोगिता आरम्भ हुई। यू० एन० ओ० (U.N.O.) के अस्तित्व में आने के पश्चात् प्रत्येक देश की सुरक्षा का भी प्रबन्ध किया जाने लग पड़ा है। संसार में आपसी सम्बन्ध व शांति का वातावरण पैदा करना काफ़ी आवश्यक था। यू० एन० ओ० द्वारा मानवीय अधिकारों को सुरक्षित रखने का यत्न किया गया। इस संस्था द्वारा किसी भी देश की निजी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी यत्न किए गए। शांति को बरकरार रखना ही इसका एकमात्र उद्देश्य है। जब भी दो देशों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा होती है तो U.N.O. की कोशिश के साथ दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारे जाते हैं। इस प्रकार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ सहयोगिता का वातावरण बना दिया गया है।

4. इस प्रक्रिया के कारण सामाजिक विभेदीकरण का विकास होता है (This process develops & increases the process of Social differentiation)-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ जैसे-जैसे हमारा समाज जटिल होता गया, तो समाज में विभेदीकरण की प्रक्रिया और भी तेज़ होती गई। समाज में भौतिक क्रान्ति के साथ-साथ सामाजिक विभेदीकरण में भी वृद्धि हो गई। इस प्रक्रिया के द्वारा हमें उस स्थिति का ज्ञान हो जाता है, जिस कारण समाज विभिन्न भागों में बंटा होता है। यह प्रक्रिया मानव एवं मानव के बीच और समूह एवं समूह के बीच वैर भाव की भावनाओं को विकसित ही नहीं होने देती है। इस प्रकार जब भी समाज साधारण अवस्था से कठिन अवस्था की तरफ बढ़ता है तो विभेदीकरण अवश्य पाया जाता है। कई प्रकार की सामाजिक आवश्यकताएं होती हैं। इस प्रक्रिया के बिना हम समाज में श्रम-विभाजन नहीं कर सकते। इस प्रकार आधुनिकीकरण में जैसे-जैसे विकास होता है तो समाज के प्रत्येक क्षेत्र जैसे कि धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक इत्यादि में उन्नति होने लग जाती है। इस कारण विभेदीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हो जाती है।

5. इससे सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है (It increases Social Mobility)—सामाजिक गतिशीलता आधुनिक समाजों की मुख्य विशेषता होती है। शहरी समाज में श्रम विभाजन, विशेषीकरण, देशों की भिन्नता, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन तथा संचार के साधनों इत्यादि ने सामाजिक गतिशीलता को बढ़ा दिया है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, बुद्धि इत्यादि के साथ ग़रीब से अमीर बन सकता है। व्यक्ति जिस पेशे में लाभ देखता है उसी को अपनाना शुरू कर देता है। पेशे के सम्बन्ध में वह स्थान परिवर्तन भी कर लेता है। इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया के द्वारा परम्परागत कीमतों की जगह नई कद्रों-कीमतों का भी विकास हुआ है।

6. इससे समाज सुधारक लहरें आगे आई हैं (Social reform movements came into being due to this) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा समाज सुधारक लहरों का विकास होना शुरू हो गया। समाज में जब भी परिवर्तन आता है तो उसका समाज पर प्रभाव अच्छा तथा गलत भी होता है। जब हम इस प्रभाव के अच्छे गुणों की तरफ देखते हैं तो हमें समाज में प्रगति होती नज़र आती है। जब हम इसकी बुराइयों की तरफ देखते हैं तो हमें समाज के विघटन के बारे में पता चलना शुरू हो जाता है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा कई समाज सुधारक लहरें पैदा हुईं जिनका मुख्य उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली बुराइयों को समाप्त करना होता है ताकि समाज में सन्तुलन बना रहे। इससे समाज में और प्रगति होती है। समाज सुधारक लहरों तथा आन्दोलनों की मदद से समाज में मिलने वाली उन कीमतों को खत्म किया जाता है जो समाज को गिरावट की तरफ ले जाती है। इस तरह इस प्रक्रिया के द्वारा समाज में परिवर्तन आ जाता है।

7. इसके साथ व्यक्ति की स्थिति में परिवर्तन हो जाता है (It changes the status of Individual)आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा स्थिति परिवर्तन भी पाया गया है। सर्वप्रथम हम यह देखते हैं कि प्राचीन समय में जाति विशेष व्यवसाय को अपनाना आवश्यक था। परन्तु आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा एक तरफ के व्यवसायों की अधिकता पाई गई। दूसरी तरफ विशेषीकरण की स्थिति पैदा हो गई। इस प्रकार व्यक्ति की परिस्थितियों में तत्काल परिवर्तन आ गए। जाति प्रथा अलोप हो गई और उसके स्थान पर वर्ग व्यवस्था पैदा होने लग पड़ी। व्यक्ति को स्थिति उसकी योग्यतानुसार प्राप्त होने लगी। इस प्रकार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा सामाजिक संगठन और विभिन्न समूहों की स्थितियों में परिवर्तन आने लग गया।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण के विभिन्न कारणों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
आधुनिकीकरण के चार कारण लिखो।
अथवा
आधुनिकीकरण के लिए नगरीकरण ओर औद्योगिकीकरण उत्तरदायी कारण हैं, चर्चा कीजिए।
उत्तर-
वैसे तो आधुनिकीकरण के बहुत से कारण हो सकते हैं, परन्तु उनमें से प्रमुख कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. नगरीकरण (Urbanisation)-अंग्रेज़ों के भारत आने से भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया का विकास शुरू हुआ। उन्होंने कई बड़े नगर बसाए जैसे कि कलकत्ता, मद्रास तथा बम्बई। स्वतन्त्रता के बाद तो नगरीकरण की प्रक्रिया का विकास तेज़ गति से हुआ। यह कहा जाता है कि नगरीय क्षेत्रों में गाँवों की तुलना में काफ़ी अधिक Infrastructure होता है। व्यक्ति नगरों में अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है। यह कारण है कि पिछले कुछ दशकों में काफ़ी बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग नगरों में जाकर रहने लग गए ताकि वहां पर मौजूद अधिक रोज़गार के मौकों, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, शैक्षिक संस्थाओं, मनोरंजन के साधनों का लाभ उठाया जा सके। इस प्रकार नगरीकरण की प्रक्रिया ने नगरों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायता की।

2. औद्योगीकरण (Industrialisation)-औद्योगीकरण की प्रक्रिया का अर्थ है उद्योगों के विकास की प्रक्रिया। औद्योगिक क्रान्ति के कारण बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए तथा समय के साथ-साथ उद्योगों में प्रयोग होने वाली मशीनों में बहुत से परिवर्तन आए। नई तथा आधुनिक मशीनों ने उत्पादन की प्रक्रिया को काफ़ी तेज़ कर दिया। यह सब मशीनें तथा तकनीक सभी देशों में फैल गई। उत्पादन मानवीय हाथों से निकलकर मशीनों के पास चला गया जिसने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाने में काफ़ी बड़ी भूमिका अदा की।

3. शिक्षा (Education) शिक्षा व्यक्ति के अंदर छिपी हुई योग्यता को बाहर निकाल देती है तथा उनमें ज्ञान का भंडार भर देती है। शिक्षा के कारण ही लोग तकनीकी आविष्कार करते हैं। इसे विकास की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण सूचक माना जाता है। क्योंकि शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् लोग नए आविष्कार करते हैं, इस कारण इसे आधुनिकीकरण लाने में काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

4. करिश्माई नेता (Charismatic Leader)—करिश्माई नेता वह नेता होता है जो लोगों को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करता है। उसमें लोगों को प्रभावित करने का सामर्थ्य होता है जिस कारण वे उसके अनुयायी बन जाते हैं। ऐसे नेता अपने करिश्माई व्यक्तित्व से अपने अनुयायियों को आधुनिक विचारों व मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे समाज में आधुनिकीकरण आता है।

5. जनसम्पर्क के साधन (Means of Mass Media)-जनसम्पर्क के साधनों में हम समाचार-पत्र, मैगज़ीन, पुस्तकें, टी० वी०, रेडियो, फिल्में, इंटरनैट इत्यादि को लेते हैं। इन जनसम्पर्क के साधनों ने समाज में आम जनता के लिए नए विचारों, व्यवहारों तथा सूचनाओं को खोलकर रख दिया है। नई सूचना लाने में जनसम्पर्क के साधन एक महत्त्वपूर्ण साधन बनकर सामने आए हैं जिससे आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने में काफ़ी सहायता मिली है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

प्रश्न 4.
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पर नोट लिखें।
उत्तर-
आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। इसमें समय के साथ-साथ नई व्यवस्था का विस्तार भी शामिल होता है जिसने सामाजिक संरचना तथा मनोवैज्ञानिक तथ्यों को भी परिवर्तित कर दिया है। क्योंकि समाज अधिक उत्पादक तथा प्रगतिशील बन जाता है इसलिए यह सामाजिक तथा सांस्कृतिक पक्ष से और भी जटिल बन जाता है। इस बारे मैक्स वैबर ने ठीक कहा है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में परिवर्तन आने से व्यक्तिगत रिश्ते अवैयक्तिक संबंधों में परिवर्तित हो जाते हैं। यहां इमाईल दुर्शीम भी कहते हैं कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में परिवर्तन आने से समाज की यान्त्रिक एकता जैविक एकता में परिवर्तित हो जाती है।

औद्योगीकरण के आने से समाज के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन आ गया तथा समाज परंपरागत से आधुनिक में बदल गया। यह सब कुछ मुमकिन हुआ है जब कम विकसित क्षेत्रों के लोग विकसित क्षेत्रों में जाने लग गए। इससे पहले कि कोई समाज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ करे, उसे कुछ बातों को मानना आवश्यक है जैसे कि नई शैक्षिक व्यवस्था को अपनाना, नई तकनीक को अपनाने की इच्छा इत्यादि। समाजशास्त्रियों ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में चार अन्तर्सम्बन्धित प्रक्रियाओं के बारे में बताया है तथा वे हैं

  • तकनीकी क्षेत्र में परिवर्तन की प्रक्रिया साधारण से वैज्ञानिक तकनीक की तरफ सामने आती है। उदाहरण के लिए हैण्डलूम से पावरलूम का परिवर्तन।
  • कृषि के क्षेत्र में भी यह परिवर्तन निर्वाह आर्थिकता के बाजार आर्थिकता में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण के लिए अब बड़े किसान मज़दूरों की सहायता से नकद फसलों को बाज़ार में बेचने के लिए ही पैदा करते हैं।
  • औद्योगिक क्षेत्र में यह मानवीय श्रम से मशीनी श्रम में परिवर्तित हो गया है। उदाहरण के लिए पहले हल बैल से कृषि होती थी, अब यह ट्रैक्टर से होती है।
  • वातावरण के क्षेत्र में भी लोग गाँवों से नगरों की तरफ जा रहे हैं। उदाहरण के लिए उद्योगों के नज़दीक के गाँवों में रहने वाले लोग उद्योगों में कार्य करने के लिए नगरों की तरफ जाते हैं।

आधुनिकीकरण को दो स्तरों पर देखकर समझा जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति के व्यवहार तथा उसके विशेष व्यक्तिगत गुणों में परिवर्तन आ जाता है। नए विचारों को मानना, तर्कसंगत दृष्टिकोण तथा अपने विचार प्रकट करने की इच्छा में भी परिवर्तन आ जाता है। आधुनिक व्यक्ति योजना बनाने, संगठन बनाने पर बल देता है। व्यक्ति का विज्ञान तथा तकनीक में विश्वास होता है। आजकल आधुनिकता पर बल देना सम्पूर्ण विश्व में फैल रहा है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण की विस्तार सहित चर्चा करें।
उत्तर-
वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक व्यापक आर्थिक प्रक्रिया है जोकि सभी समाजों एवं देशों में फैली हुई होती है। इसमें भिन्न-भिन्न देशों में आपस में मुक्त व्यापार एवं आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। वास्तव में कोई भी देश अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं होता। उसको अपनी एवं अपने लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उस देश के ऊपर भी अन्य देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहते हैं। इस प्रकार आपस में निर्भरता के कारण अलग-अलग देशों में आपसी सम्बन्ध स्थापित हुए और एक विचार आया कि क्यों न एक-दूसरे देशों के बीच मुक्त व्यापार सम्बन्ध स्थापित किए जाएं। इन बढ़ते हुए आर्थिक सम्बन्धों एवं मुक्त व्यापार के विचार को ही वैश्वीकरण का नाम दे दिया गया है। वैश्वीकरण की धारणा में उदारीकरण (Liberalisation) की धारणा है जिसमें विभिन्न देश, अपने देश में व्यापार करने के लिए अन्य देशों के लिए रास्ते खोल देते हैं। यह वैश्वीकरण की धारणा कोई बहुत पुरानी धारणा नहीं है बल्कि यह तो 10-15 वर्ष पुरानी धारणा है, जिसने सम्पूर्ण दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। आज इसी कारण ही दुनिया सिमट रही है या छोटी हो रही है। हम अपने देश में ही या अपने ही शहर में दूसरे देशों में बनी वस्तुएं खरीद सकते हैं। उदाहरणतः कोई भी क्षेत्र देख लें, हमारे देश में विदेशी कारें, Merceedes, General Motors, Rolls Royce, Ferrari, Honda, Mitsubishi, Hyundai, Skoda etc.

आ गई हैं। जबकि आज से 25 वर्ष पहले ये सभी कारें हमारे देश में दिखाई नहीं पड़ती थीं। यह केवल वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है, जिस कारण हमारे देश का बाज़ार विदेशी कम्पनियों के लिए खुल गया है। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में देसी एवं विदेशी वस्तुओं की भरमार हो गई है। यह भी वैश्वीकरण होता है, जिसमें भिन्नभिन्न देश अन्य देशों में कम्पनियों के लिए अपने रास्ते खोल देते हैं और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं। आज दुनिया सिमट कर छोटा-सा गांव या फिर शहर बनकर रह गई है। सरकार प्रत्येक वर्ग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) बढ़ा रही है। यह ही वैश्वीकरण होता है।

20वीं शताब्दी खत्म होते-होते एक नई प्रक्रिया सामने आई जिसने अन्तर्निर्भरता तथा आपसी लेन-देन के आधार पर सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं। वैश्वीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। आजकल विश्व एक वैश्विक गाँव बन गया है। अब हमें कुछ पलों में ही पता चल जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में क्या हो रहा है। आजकल संसार एक समाज में परिवर्तित हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण लोग एक देश को छोड़कर अन्य देशों में जा रहे हैं। आजकल संचार के साधनों की सहायता से हम विश्व के किसी भी कोने में बैठकर आसानी से बातचीत कर सकते हैं। यह वैश्वीकरण तथा इंटरनैट के कारण ही मुमकिन हो पाया है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण क्या है ? इसके प्रकारों की विस्तार सहित चर्चा करें।
अथवा तकनीकी वैश्वीकरण को वैश्वीकरण के प्रकार के रूप में लिखें।
उत्तर-
वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक व्यापक आर्थिक प्रक्रिया है जोकि सभी समाजों एवं देशों में फैली हुई होती है। इसमें भिन्न-भिन्न देशों में आपस में मुक्त व्यापार एवं आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। वास्तव में कोई भी देश अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं होता। उसको अपनी एवं अपने लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उस देश के ऊपर भी अन्य देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहते हैं। इस प्रकार आपस में निर्भरता के कारण अलग-अलग देशों में आपसी सम्बन्ध स्थापित हुए और एक विचार आया कि क्यों न एक-दूसरे देशों के बीच मुक्त व्यापार सम्बन्ध स्थापित किए जाएं। इन बढ़ते हुए आर्थिक सम्बन्धों एवं मुक्त व्यापार के विचार को ही वैश्वीकरण का नाम दे दिया गया है। वैश्वीकरण की धारणा में उदारीकरण (Liberalisation) की धारणा है जिसमें विभिन्न देश, अपने देश में व्यापार करने के लिए अन्य देशों के लिए रास्ते खोल देते हैं। यह वैश्वीकरण की धारणा कोई बहुत पुरानी धारणा नहीं है बल्कि यह तो 10-15 वर्ष पुरानी धारणा है, जिसने सम्पूर्ण दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। आज इसी कारण ही दुनिया सिमट रही है या छोटी हो रही है। हम अपने देश में ही या अपने ही शहर में दूसरे देशों में बनी वस्तुएं खरीद सकते हैं। उदाहरणतः कोई भी क्षेत्र देख लें, हमारे देश में विदेशी कारें, Merceedes, General Motors, Rolls Royce, Ferrari, Honda, Mitsubishi, Hyundai, Skoda etc.

आ गई हैं। जबकि आज से 25 वर्ष पहले ये सभी कारें हमारे देश में दिखाई नहीं पड़ती थीं। यह केवल वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है, जिस कारण हमारे देश का बाज़ार विदेशी कम्पनियों के लिए खुल गया है। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में देसी एवं विदेशी वस्तुओं की भरमार हो गई है। यह भी वैश्वीकरण होता है, जिसमें भिन्नभिन्न देश अन्य देशों में कम्पनियों के लिए अपने रास्ते खोल देते हैं और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं। आज दुनिया सिमट कर छोटा-सा गांव या फिर शहर बनकर रह गई है। सरकार प्रत्येक वर्ग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) बढ़ा रही है। यह ही वैश्वीकरण होता है।

20वीं शताब्दी खत्म होते-होते एक नई प्रक्रिया सामने आई जिसने अन्तर्निर्भरता तथा आपसी लेन-देन के आधार पर सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं। वैश्वीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। आजकल विश्व एक वैश्विक गाँव बन गया है। अब हमें कुछ पलों में ही पता चल जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में क्या हो रहा है। आजकल संसार एक समाज में परिवर्तित हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण लोग एक देश को छोड़कर अन्य देशों में जा रहे हैं। आजकल संचार के साधनों की सहायता से हम विश्व के किसी भी कोने में बैठकर आसानी से बातचीत कर सकते हैं। यह वैश्वीकरण तथा इंटरनैट के कारण ही मुमकिन हो पाया है।

वैश्वीकरण के प्रकार-वैश्वीकरण के कई प्रकार होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. पर्यावरणीय वैश्वीकरण (Ecological Globalisation)-वैश्वीकरण के इस प्रकार में हम वातावरण प्रदूषण को ले सकते हैं जिससे ओजोन परत प्रभावित हो रही है। इससे विश्व-तापीकरण भी बढ़ रहा है। सांसारिक स्तर पर इस समस्या से निपटने के प्रयास किए जा रहे हैं। अलग-अलग देशों में समझौतें हो रहे हैं ताकि वातावरण प्रदूषण को रोका जा सके। ओजोन परत को बचाने के लिए Montreal Protocol भी बनाया गया ताकि वातावरण में छोडी जाने वाली कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को कम किया जा सके।

2. सांस्कृतिक वैश्वीकरण (Cultural Globalisation)-सांस्कृतिक वैश्वीकरण का अर्थ है संसार के एक हिस्से में मौजूद नियमों, विचारों, मूल्यों इत्यादि का दूसरे हिस्से में हस्तांतरण। यह हस्तांतरण इंटरनैट, मीडिया, घूमने इत्यादि के कारण मुमकिन हो पाया है। इससे अलग-अलग संस्कृतियों के लोगों के बीच अन्तक्रिया बढ़ गई तथा सांस्कृतिक प्रथाओं का आदान-प्रदान शुरू हो गया।

3. आर्थिक वैश्वीकरण (Economic Globalisation) आर्थिक, वैश्वीकरण का अर्थ है सम्पूर्ण विश्व में वस्तुओं, सेवाओं तथा पूँजी के आदान-प्रदान के कारण उत्पन्न हुई अन्तर्निर्भरता। इस अन्तर्निर्भरता के कारण एक देश की आर्थिकता का गलत प्रभाव विश्व स्तर पर देखने को मिल जाता है। उदाहरण के लिए 2009 में एक वैश्विक संकट आया जिसने विश्वभर में देशों को प्रभावित किया।

4. तकनीकी वैश्वीकरण (Technological Globalisation)-तकनीकी वैश्वीकरण का अर्थ है संचार के साधनों में आए क्रान्तिकारी परिवर्तन जिनसे संसार का एक हिस्सा बाकी हिस्सों से आसानी से जुड़ गया। आधुनिक यातायात के साधनों ने भौगोलिक अन्तरों को कम कर दिया है तथा कई प्रकार के लेन-देन शुरू हो गए। उदाहरण के लिए मोबाइल, इंटरनैट इत्यादि।

5. राजनीतिक वैश्वीकरण (Political Globalisation) राजनीतिक वैश्वीकरण में एक समान नीतियों को चारों तरफ अपनाया जाता है। अपनी-अपनी समस्याओं के कारण अलग-अलग देश एक-दूसरे से सन्धियां करते हैं। इस कारण ही कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठन भी अस्तित्व में आए हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण की विशेषताओं का विस्तार सहित उल्लेख करें।
अथवा
वैश्वीकरण की विशेषताओं की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वैश्वीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Globalisation) विश्वव्यापीकरण वास्तव में भिन्न-भिन्न देशों की आपस में निर्भरता होने पर अस्तित्व में आया है। वास्तव में विभिन्न देश अपनी-अपनी आवश्यकताओं के कारण विभिन्न देशों पर निर्भर होते हैं। इसी कारण वह एक-दूसरे के साथ आयात-निर्यात करते हैं। इस कारण वैश्वीकरण का सिद्धान्त अस्तित्व में आया।

1. विश्व व्यापार (World Trade)—वैश्वीकरण की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक विशेषता है विश्व व्यापार। यह दुनिया के व्यापार का सबसे मज़बूत आधार है। यह भिन्न क्षेत्रों एवं देशों में रहने वालों को आपस में जोड़ता है और उनको आपस में व्यापार करवाता है। जैसे–भारतवर्ष में चाय का उत्पादन सबसे अधिक होता है, इसी कारण विभिन्न देश भारत से चाय का व्यापार करते हैं और अरब देशों में तेल के भण्डार अधिक होने पर विभिन्न देश वहां से तेल के ऊपर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार विभिन्न देश, विभिन्न वस्तुओं के लेन-देन के कारण आपस में निर्भर रहते हैं। भारत के लोग अरब के लोगों और अरब के लोग भारत के लोगों पर निर्भर करते हैं। इससे विश्व व्यापार बढ़ा एवं वैश्वीकरण भी बढ़ा।

2. आर्थिक वैश्वीकरण (Economic Globalisation)-वैश्वीकरण ने संसार में नई आर्थिकता पैदा की है। अब एक देश की आर्थिकता दूसरे देश की आर्थिकता पर निर्भर करती है। इस कारण विश्व आर्थिकता (World Economy) का सिद्धान्त हमारे सामने आया। विभिन्न देश आर्थिकता के कारण आपस में जुड़ गए हैं। उनमें इसी कारण सांस्कृतिक तत्त्वों का आदान-प्रदान भी आरम्भ हो गया। निवेश, लेन-देन, श्रम-विभाजन, विशेषीकरण, उत्पादन, खपत आदि का इस व्यापार में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भाग है। आर्थिक वैश्वीकरण ने पूंजीवाद को काफ़ी आगे बढ़ाया है। अब अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिकता की संरचना के बारे में लोग सोच रहे हैं।

3. बाज़ार का वैश्वीकरण (Globalisation of Market)—वैश्वीकरण ने बाज़ार को भी बढ़ा दिया है। प्रत्येक बाज़ार का उत्पादन के तौर पर ही नहीं, बल्कि खपत के आधार पर भी वैश्वीकरण हो गया है। अब कई देशों की कम्पनियां दूसरे देशों के बाजारों को ध्यान में रख कर वस्तुओं का उत्पादन करने लग गई हैं। इस प्रकार उत्पादन एवं खपत विदेशी बाजार की आवश्यकताओं पर निर्भर रहने लग पड़े हैं। इसके कारण देश का अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ता है और विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) देश में आती है। इस प्रकार बाज़ार भी विदेशों के ऊपर निर्भर रहने लग पड़े हैं। बाजार में विदेशी वस्तुओं की अधिकता हो गई है। यहां तक कि खाने-पीने की डिब्बा बंद वस्तुएं भी विदेशों से आने लग गई हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण ने बाज़ार को भी व्यापक बना दिया है।

4. श्रम विभाजन (Division of Labour)-वैश्वीकरण ने श्रम विभाजन को भी काफ़ी बढ़ाया है। अब लोग कोई कोर्स सीख कर ही विदेशों में जाते हैं। उदाहरणतः लोग विदेशों में जाने से पूर्व कम्प्यूटर के कई-कई प्रकार के कोर्स (Course) करते हैं ताकि वह विदेशों में जाकर पैसे कमा सकें। अखबारों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्तियों की आवश्यकताओं के बारे में भी लिखा हुआ पाया जाता है जोकि किसी भी क्षेत्र में निपुण हो। श्रम विभाजन इस कारण बढ़ गया है और विभिन्न क्षेत्रों में निपुण व्यक्तियों की आवश्यकता भी बढ़ गई है। यह केवल वैश्वीकरण की ही देन है कि इसने श्रम विभाजन को बढ़ाया है।

5. श्रमिकों का एक देश से दूसरे देश में जाना (Migration of labourers to other countries)वैश्वीकरण की एक और विशेषता है कि श्रमिकों का एक देश से दूसरे देश की ओर कार्य के लिए जाना। साधारणतः दक्षिण एशिया के भिन्न-भिन्न व्यवसायों में निपुण लोग पश्चिम देशों में कार्य हेतु जाते हैं क्योंकि एशिया के लोगों को पश्चिमी देशों की कमाई अधिक लगती है। दुनिया भर के श्रमिक विभिन्न देशों में जाकर पैसे कमाते हैं और कार्य करते हैं। इसलिए वैश्वीकरण के कारण ही श्रमिक विदेशों में जाकर कार्य करके धन प्राप्त करते हैं।

6. विश्व-आर्थिकता (World Economy)-वैश्वीकरण की एक अन्य विशेषता आर्थिकता का बढ़ना है। अब एक देश की आर्थिकता केवल एक देश तक सीमित होकर नहीं रह गई है क्योंकि उस देश की आर्थिकता के ऊपर अन्य देशों की आर्थिकता का प्रभाव पड़ता है। भिन्न-भिन्न देशों में व्यापार बढ़ने पर आर्थिकता की एक-दूसरे के ऊपर निर्भरता बढ़ी है। इस तरह अन्तर्निर्भरता के कारण विश्व आर्थिकता एवं विश्व व्यापार में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया पर विस्तृत नोट लिखें।
उत्तर-
वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक व्यापक आर्थिक प्रक्रिया है जोकि सभी समाजों एवं देशों में फैली हुई होती है। इसमें भिन्न-भिन्न देशों में आपस में मुक्त व्यापार एवं आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। वास्तव में कोई भी देश अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं होता। उसको अपनी एवं अपने लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उस देश के ऊपर भी अन्य देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहते हैं। इस प्रकार आपस में निर्भरता के कारण अलग-अलग देशों में आपसी सम्बन्ध स्थापित हुए और एक विचार आया कि क्यों न एक-दूसरे देशों के बीच मुक्त व्यापार सम्बन्ध स्थापित किए जाएं। इन बढ़ते हुए आर्थिक सम्बन्धों एवं मुक्त व्यापार के विचार को ही वैश्वीकरण का नाम दे दिया गया है। वैश्वीकरण की धारणा में उदारीकरण (Liberalisation) की धारणा है जिसमें विभिन्न देश, अपने देश में व्यापार करने के लिए अन्य देशों के लिए रास्ते खोल देते हैं। यह वैश्वीकरण की धारणा कोई बहुत पुरानी धारणा नहीं है बल्कि यह तो 10-15 वर्ष पुरानी धारणा है, जिसने सम्पूर्ण दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। आज इसी कारण ही दुनिया सिमट रही है या छोटी हो रही है। हम अपने देश में ही या अपने ही शहर में दूसरे देशों में बनी वस्तुएं खरीद सकते हैं। उदाहरणतः कोई भी क्षेत्र देख लें, हमारे देश में विदेशी कारें, Merceedes, General Motors, Rolls Royce, Ferrari, Honda, Mitsubishi, Hyundai, Skoda etc.

आ गई हैं। जबकि आज से 25 वर्ष पहले ये सभी कारें हमारे देश में दिखाई नहीं पड़ती थीं। यह केवल वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है, जिस कारण हमारे देश का बाज़ार विदेशी कम्पनियों के लिए खुल गया है। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में देसी एवं विदेशी वस्तुओं की भरमार हो गई है। यह भी वैश्वीकरण होता है, जिसमें भिन्नभिन्न देश अन्य देशों में कम्पनियों के लिए अपने रास्ते खोल देते हैं और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं। आज दुनिया सिमट कर छोटा-सा गांव या फिर शहर बनकर रह गई है। सरकार प्रत्येक वर्ग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) बढ़ा रही है। यह ही वैश्वीकरण होता है।

20वीं शताब्दी खत्म होते-होते एक नई प्रक्रिया सामने आई जिसने अन्तर्निर्भरता तथा आपसी लेन-देन के आधार पर सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं। वैश्वीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। आजकल विश्व एक वैश्विक गाँव बन गया है। अब हमें कुछ पलों में ही पता चल जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में क्या हो रहा है। आजकल संसार एक समाज में परिवर्तित हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण लोग एक देश को छोड़कर अन्य देशों में जा रहे हैं। आजकल संचार के साधनों की सहायता से हम विश्व के किसी भी कोने में बैठकर आसानी से बातचीत कर सकते हैं। यह वैश्वीकरण तथा इंटरनैट के कारण ही मुमकिन हो पाया है।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक व्यापक आर्थिक प्रक्रिया है जोकि सभी समाजों एवं देशों में फैली हुई होती है। इसमें भिन्न-भिन्न देशों में आपस में मुक्त व्यापार एवं आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। वास्तव में कोई भी देश अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं होता। उसको अपनी एवं अपने लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उस देश के ऊपर भी अन्य देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहते हैं। इस प्रकार आपस में निर्भरता के कारण अलग-अलग देशों में आपसी सम्बन्ध स्थापित हुए और एक विचार आया कि क्यों न एक-दूसरे देशों के बीच मुक्त व्यापार सम्बन्ध स्थापित किए जाएं। इन बढ़ते हुए आर्थिक सम्बन्धों एवं मुक्त व्यापार के विचार को ही वैश्वीकरण का नाम दे दिया गया है। वैश्वीकरण की धारणा में उदारीकरण (Liberalisation) की धारणा है जिसमें विभिन्न देश, अपने देश में व्यापार करने के लिए अन्य देशों के लिए रास्ते खोल देते हैं। यह वैश्वीकरण की धारणा कोई बहुत पुरानी धारणा नहीं है बल्कि यह तो 10-15 वर्ष पुरानी धारणा है, जिसने सम्पूर्ण दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। आज इसी कारण ही दुनिया सिमट रही है या छोटी हो रही है। हम अपने देश में ही या अपने ही शहर में दूसरे देशों में बनी वस्तुएं खरीद सकते हैं। उदाहरणतः कोई भी क्षेत्र देख लें, हमारे देश में विदेशी कारें, Merceedes, General Motors, Rolls Royce, Ferrari, Honda, Mitsubishi, Hyundai, Skoda etc.

आ गई हैं। जबकि आज से 25 वर्ष पहले ये सभी कारें हमारे देश में दिखाई नहीं पड़ती थीं। यह केवल वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है, जिस कारण हमारे देश का बाज़ार विदेशी कम्पनियों के लिए खुल गया है। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में देसी एवं विदेशी वस्तुओं की भरमार हो गई है। यह भी वैश्वीकरण होता है, जिसमें भिन्नभिन्न देश अन्य देशों में कम्पनियों के लिए अपने रास्ते खोल देते हैं और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं। आज दुनिया सिमट कर छोटा-सा गांव या फिर शहर बनकर रह गई है। सरकार प्रत्येक वर्ग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) बढ़ा रही है। यह ही वैश्वीकरण होता है।

20वीं शताब्दी खत्म होते-होते एक नई प्रक्रिया सामने आई जिसने अन्तर्निर्भरता तथा आपसी लेन-देन के आधार पर सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं। वैश्वीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। आजकल विश्व एक वैश्विक गाँव बन गया है। अब हमें कुछ पलों में ही पता चल जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में क्या हो रहा है। आजकल संसार एक समाज में परिवर्तित हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण लोग एक देश को छोड़कर अन्य देशों में जा रहे हैं। आजकल संचार के साधनों की सहायता से हम विश्व के किसी भी कोने में बैठकर आसानी से बातचीत कर सकते हैं। यह वैश्वीकरण तथा इंटरनैट के कारण ही मुमकिन हो पाया है।

वैश्वीकरण के प्रकार-वैश्वीकरण के कई प्रकार होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. पर्यावरणीय वैश्वीकरण (Ecological Globalisation)-वैश्वीकरण के इस प्रकार में हम वातावरण प्रदूषण को ले सकते हैं जिससे ओजोन परत प्रभावित हो रही है। इससे विश्व-तापीकरण भी बढ़ रहा है। सांसारिक स्तर पर इस समस्या से निपटने के प्रयास किए जा रहे हैं। अलग-अलग देशों में समझौतें हो रहे हैं ताकि वातावरण प्रदूषण को रोका जा सके। ओजोन परत को बचाने के लिए Montreal Protocol भी बनाया गया ताकि वातावरण में छोडी जाने वाली कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को कम किया जा सके।

2. सांस्कृतिक वैश्वीकरण (Cultural Globalisation)-सांस्कृतिक वैश्वीकरण का अर्थ है संसार के एक हिस्से में मौजूद नियमों, विचारों, मूल्यों इत्यादि का दूसरे हिस्से में हस्तांतरण। यह हस्तांतरण इंटरनैट, मीडिया, घूमने इत्यादि के कारण मुमकिन हो पाया है। इससे अलग-अलग संस्कृतियों के लोगों के बीच अन्तक्रिया बढ़ गई तथा सांस्कृतिक प्रथाओं का आदान-प्रदान शुरू हो गया।

3. आर्थिक वैश्वीकरण (Economic Globalisation) आर्थिक, वैश्वीकरण का अर्थ है सम्पूर्ण विश्व में वस्तुओं, सेवाओं तथा पूँजी के आदान-प्रदान के कारण उत्पन्न हुई अन्तर्निर्भरता। इस अन्तर्निर्भरता के कारण एक देश की आर्थिकता का गलत प्रभाव विश्व स्तर पर देखने को मिल जाता है। उदाहरण के लिए 2009 में एक वैश्विक संकट आया जिसने विश्वभर में देशों को प्रभावित किया।

4. तकनीकी वैश्वीकरण (Technological Globalisation)-तकनीकी वैश्वीकरण का अर्थ है संचार के साधनों में आए क्रान्तिकारी परिवर्तन जिनसे संसार का एक हिस्सा बाकी हिस्सों से आसानी से जुड़ गया। आधुनिक यातायात के साधनों ने भौगोलिक अन्तरों को कम कर दिया है तथा कई प्रकार के लेन-देन शुरू हो गए। उदाहरण के लिए मोबाइल, इंटरनैट इत्यादि।

5. राजनीतिक वैश्वीकरण (Political Globalisation) राजनीतिक वैश्वीकरण में एक समान नीतियों को चारों तरफ अपनाया जाता है। अपनी-अपनी समस्याओं के कारण अलग-अलग देश एक-दूसरे से सन्धियां करते हैं। इस कारण ही कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठन भी अस्तित्व में आए हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र।

वैश्वीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Globalisation) विश्वव्यापीकरण वास्तव में भिन्न-भिन्न देशों की आपस में निर्भरता होने पर अस्तित्व में आया है। वास्तव में विभिन्न देश अपनी-अपनी आवश्यकताओं के कारण विभिन्न देशों पर निर्भर होते हैं। इसी कारण वह एक-दूसरे के साथ आयात-निर्यात करते हैं। इस कारण वैश्वीकरण का सिद्धान्त अस्तित्व में आया।

1. विश्व व्यापार (World Trade)—वैश्वीकरण की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक विशेषता है विश्व व्यापार। यह दुनिया के व्यापार का सबसे मज़बूत आधार है। यह भिन्न क्षेत्रों एवं देशों में रहने वालों को आपस में जोड़ता है और उनको आपस में व्यापार करवाता है। जैसे–भारतवर्ष में चाय का उत्पादन सबसे अधिक होता है, इसी कारण विभिन्न देश भारत से चाय का व्यापार करते हैं और अरब देशों में तेल के भण्डार अधिक होने पर विभिन्न देश वहां से तेल के ऊपर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार विभिन्न देश, विभिन्न वस्तुओं के लेन-देन के कारण आपस में निर्भर रहते हैं। भारत के लोग अरब के लोगों और अरब के लोग भारत के लोगों पर निर्भर करते हैं। इससे विश्व व्यापार बढ़ा एवं वैश्वीकरण भी बढ़ा।

2. आर्थिक वैश्वीकरण (Economic Globalisation)-वैश्वीकरण ने संसार में नई आर्थिकता पैदा की है। अब एक देश की आर्थिकता दूसरे देश की आर्थिकता पर निर्भर करती है। इस कारण विश्व आर्थिकता (World Economy) का सिद्धान्त हमारे सामने आया। विभिन्न देश आर्थिकता के कारण आपस में जुड़ गए हैं। उनमें इसी कारण सांस्कृतिक तत्त्वों का आदान-प्रदान भी आरम्भ हो गया। निवेश, लेन-देन, श्रम-विभाजन, विशेषीकरण, उत्पादन, खपत आदि का इस व्यापार में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भाग है। आर्थिक वैश्वीकरण ने पूंजीवाद को काफ़ी आगे बढ़ाया है। अब अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिकता की संरचना के बारे में लोग सोच रहे हैं।

3. बाज़ार का वैश्वीकरण (Globalisation of Market)—वैश्वीकरण ने बाज़ार को भी बढ़ा दिया है। प्रत्येक बाज़ार का उत्पादन के तौर पर ही नहीं, बल्कि खपत के आधार पर भी वैश्वीकरण हो गया है। अब कई देशों की कम्पनियां दूसरे देशों के बाजारों को ध्यान में रख कर वस्तुओं का उत्पादन करने लग गई हैं। इस प्रकार उत्पादन एवं खपत विदेशी बाजार की आवश्यकताओं पर निर्भर रहने लग पड़े हैं। इसके कारण देश का अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ता है और विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) देश में आती है। इस प्रकार बाज़ार भी विदेशों के ऊपर निर्भर रहने लग पड़े हैं। बाजार में विदेशी वस्तुओं की अधिकता हो गई है। यहां तक कि खाने-पीने की डिब्बा बंद वस्तुएं भी विदेशों से आने लग गई हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण ने बाज़ार को भी व्यापक बना दिया है।

4. श्रम विभाजन (Division of Labour)-वैश्वीकरण ने श्रम विभाजन को भी काफ़ी बढ़ाया है। अब लोग कोई कोर्स सीख कर ही विदेशों में जाते हैं। उदाहरणतः लोग विदेशों में जाने से पूर्व कम्प्यूटर के कई-कई प्रकार के कोर्स (Course) करते हैं ताकि वह विदेशों में जाकर पैसे कमा सकें। अखबारों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्तियों की आवश्यकताओं के बारे में भी लिखा हुआ पाया जाता है जोकि किसी भी क्षेत्र में निपुण हो। श्रम विभाजन इस कारण बढ़ गया है और विभिन्न क्षेत्रों में निपुण व्यक्तियों की आवश्यकता भी बढ़ गई है। यह केवल वैश्वीकरण की ही देन है कि इसने श्रम विभाजन को बढ़ाया है।

5. श्रमिकों का एक देश से दूसरे देश में जाना (Migration of labourers to other countries)वैश्वीकरण की एक और विशेषता है कि श्रमिकों का एक देश से दूसरे देश की ओर कार्य के लिए जाना। साधारणतः दक्षिण एशिया के भिन्न-भिन्न व्यवसायों में निपुण लोग पश्चिम देशों में कार्य हेतु जाते हैं क्योंकि एशिया के लोगों को पश्चिमी देशों की कमाई अधिक लगती है। दुनिया भर के श्रमिक विभिन्न देशों में जाकर पैसे कमाते हैं और कार्य करते हैं। इसलिए वैश्वीकरण के कारण ही श्रमिक विदेशों में जाकर कार्य करके धन प्राप्त करते हैं।

6. विश्व-आर्थिकता (World Economy)-वैश्वीकरण की एक अन्य विशेषता आर्थिकता का बढ़ना है। अब एक देश की आर्थिकता केवल एक देश तक सीमित होकर नहीं रह गई है क्योंकि उस देश की आर्थिकता के ऊपर अन्य देशों की आर्थिकता का प्रभाव पड़ता है। भिन्न-भिन्न देशों में व्यापार बढ़ने पर आर्थिकता की एक-दूसरे के ऊपर निर्भरता बढ़ी है। इस तरह अन्तर्निर्भरता के कारण विश्व आर्थिकता एवं विश्व व्यापार में वृद्धि हुई है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जो परिवर्तन पर आधारित है तथा जो किसी वस्तु के अच्छे या बुरे होने के बारे में बताती है ?
(क) संस्कृतिकरण
(ख) औद्योगीकरण
(ग) नगरीकरण
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(घ) आधुनिकीकरण।

प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण के लिए क्या आवश्यक है ?
(क) शिक्षा का उच्च स्तर
(ख) यातायात तथा संचार के साधनों का विकास
(ग) उद्योगों को प्राथमिकता देना।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में आधुनिकीकरण लाने के लिए कौन उत्तरदायी है ?
(क) मुग़ल शासक
(ख) भारत सरकार
(ग) अंग्रेजी सरकार
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) मुग़ल शासक।

प्रश्न 4.
उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें अलग-अलग देशों के बीच मुक्त व्यापार, सेवाएं, पूंजी निवेश तथा लोगों का आदान-प्रदान होता है ?
(क) निजीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) आधुनिकीकरण
(घ) उदारीकरण।
उत्तर-
(ख) वैश्वीकरण।

प्रश्न 5.
सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेचने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?
(क) निजीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) उदारीकरण
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(क) निजीकरण।

प्रश्न 6.
नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अनावश्यक प्रतिबन्धों को हटाने को क्या कहते हैं?
(क) निजीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) उदारीकरण
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(ग) उदारीकरण।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. सांस्कृतिक पिछड़ेपन का सिद्धान्त …………….. ने दिया था।
2. जापानी लोग वैश्वीकरण को ….. कहते हैं।
3. …….. ने वैश्वीकरण के चार आधार दिए हैं।
4. नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अनावश्यक प्रतिबन्ध हटाने को ……………… कहते हैं।
5. सार्वजनिक कंपनियों को व्यक्तिगत हाथों में देने की प्रक्रिया को …………….. कहते हैं।
उत्तर-

  1. विलियम आगबर्न,
  2. Gurobaruka,
  3. Giddens,
  4. उदारीकरण,
  5. निजीकरण।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. वैश्वीकरण में पूँजी तथा सेवाओं का आदान-प्रदान नहीं होता।
2. वैश्वीकरण में संसार एक वैश्विक गाँव बनकर रह गया है।
3. वैबर के अनुसार आधुनिकीकरण से व्यक्तिगत संबंध अवैयक्तिक बन जाते हैं।
4. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में कम पूँजी निवेश से आधुनिकता आ जाती है।
5. आधुनिकीकरण से तकनीक साधारण से वैज्ञानिक हो जाती है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. आधुनिकीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-आधुनिक जीवन जीने के तरीकों तथा मूल्यों को अपनाने की प्रक्रिया को आधुनिकीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2. आधुनिकीकरण ने कौन-से प्रमुख क्षेत्रों का विकास किया है ?
उत्तर-उद्योगों, यातायात व संचार के साधन, स्वास्थ्य व शैक्षिक सुविधाएं इत्यादि।

प्रश्न 3. आधुनिक समाजों की प्रमुख विशेषता क्या होती है ?
उत्तर-आधुनिक समाज एक-दूसरे पर अपनी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर होते हैं।

प्रश्न 4. सबसे पहले किसने शब्द आधुनिकीकरण का प्रयोग किया था ?
उत्तर- डेनियल लर्नर ने।

प्रश्न 5. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया लंबी क्यों है ?
उत्तर-क्योंकि समाज के आधुनिक होने में कई पीढ़ियां लग जाती हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

प्रश्न 6. सांस्कृतिक पिछड़ापन का सिद्धांत किसने दिया था ?
उत्तर-सांस्कृतिक पिछड़ापन का सिद्धांत विलियम एफ० आगबन ने दिया था।

प्रश्न 7. दुर्थीम ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के बारे में क्या कहा था ?
उत्तर-दुर्थीम के अनुसार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में यान्त्रिक एकता जैविक एकता में बदल जाती है।

प्रश्न 8. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में एक रुकावट बताएं।
उत्तर-कम विकसित देशों में औपनिवेशिक शासन।

प्रश्न 9. आधुनिकीकरण का एक कारण बताएं।
उत्तर-नगरीकरण का बढ़ना, उद्योगों का विकसित होना, शिक्षा का प्रसार।

प्रश्न 10. वैश्विक ग्राम का संकल्प किसने दिया था ?
उत्तर- वैश्विक ग्राम का संकल्प मार्शल मैक्ल्यूहन ने दिया था।

प्रश्न 11. वैश्वीकरण को इंडोनेशिया में क्या कहते हैं ?
उत्तर-वैश्वीकरण को इंडोनेशिया में globalisari कहते हैं।

प्रश्न 12. वैश्वीकरण की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-वैश्वीकरण में स्थानीय कार्य विश्व के स्तर पर फैल जाते हैं।

प्रश्न 13. LPG का क्या अर्थ है ?
उत्तर-Liberalisation, Privatisation तथा Globalisation.

प्रश्न 14. वैश्वीकरण का एक कारण बताएं।
उत्तर-वैश्वीकरण यातायात व संचार के साधनों के कारण मुमकिन हो सका है।

प्रश्न 15. वैश्वीकरण का एक परिणाम बताएं।
उत्तर-इससे देश में विदेशी पूँजी निवेश बढ़ता है।

प्रश्न 16. FDI का क्या अर्थ है ?
उत्तर-FDI का अर्थ है Foreign Direct Investment (विदेशी पूँजी निवेश)।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिकीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
आधुनिकीकरण का अर्थ है जीवन जीने के आधुनिक व नए तरीकों तथा मूल्यों को अपना लेना। समाज तथा व्यक्ति को आधुनिक होने के लिए कई पीढ़ियां लग जाती हैं क्योंकि वह आधुनिक वस्तुओं को तो आसानी से अपना लेता है परन्तु अपने विचारों को आसानी से नहीं बदलता।

प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण के तीन नकारात्मक प्रभाव बताएं।।
उत्तर-

  • आधुनिकीकरण के कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार सामने आ रहे हैं।
  • ऐश करने की वस्तुएं बढ़ रही हैं जिसका नई पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ रहा है।
  • इस कारण अनैतिकता बढ़ रही है तथा समाज में अनैतिक कार्य बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-

  • इसके लिए शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए।
  • यातायात तथा संचार के साधनों का अच्छा विकास होना चाहिए।
  • देश में कृषि के स्थान पर उद्योगों का अधिक विकास होना चाहिए।

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प्रश्न 4.
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ जोड़ा जाता है। इसका अर्थ है कि एक देश का अन्य देशों के साथ वस्तुओं, पूँजी तथा श्रम का बेरोक-टोक आदान-प्रदान होता है। व्यापार का देशों में मुक्त आदान-प्रदान होता है।

प्रश्न 5.
उदारीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों व व्यापार से अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धी, प्रगतिशील तथा मुक्त बन सके। इसे ही उदारीकरण कहते हैं । यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

प्रश्न 6.
निजीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक देशों में मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक कंपनियां होती हैं जो सरकार के नियंत्रण में होती हैं। इन सार्वजनिक कंपनियों को निजी हाथों में देना ताकि वे अधिक लाभ कमा सकें, निजीकरण होता है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के कौन-से तीन मुख्य पक्ष हैं ?
उत्तर-

  • सकारात्मक पक्ष जिसमें वैश्वीकरण के बहुत से लाभ होते हैं।
  • निष्पक्षता जिसके अनुसार वैश्वीकरण विकास की एक आवश्यक प्रक्रिया है।
  • नकारात्मक पक्ष जो आर्थिक मुश्किलें व आय में असमानता लाता है।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
आधुनिकीकरण।
उत्तर-
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का अर्थ वह परिवर्तन है जो पश्चिमीकरण के प्रभाव अधीन होता है परन्तु यह सिर्फ मौलिक दिशा में पाया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा विभिन्न प्रकार की भारतीय संस्थाओं ने नया रूप धारण किया तथा आधुनिक समय में परिवर्तन आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही पाया जाता है तथा इस प्रक्रिया के परिणाम हमेशा प्रगतिशील पाए गए हैं।

प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  • सामाजिक भिन्नता-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के कारण समाज के विभिन्न क्षेत्र काफ़ी Complex हो गए तथा व्यक्तिगत प्रगति भी पाई गई। इस वजह से विभेदीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हो गई।
  • सामाजिक गतिशीलता-आधुनिकीकरण के द्वारा प्राचीन सामाजिक, आर्थिक तत्त्वों का रूपान्तरण हो जाता है; मनुष्यों के आदर्शों की नई कीमतें स्थापित हो जाती हैं तथा गतिशीलता बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण द्वारा लाए गए दो परिवर्तन।
उत्तर-

  • धर्म-निरपेक्षता- भारतीय समाज में धर्म-निरपेक्षता का आदर्श स्थापित हुआ। किसी भी धार्मिक समूह का सदस्य देश के ऊंचे से ऊंचे पद को प्राप्त कर सकता है। प्यार, हमदर्दी, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों का विकास समाज में समानता पैदा करता है। यह सब आधुनिकीकरण की वजह से है।
  • औद्योगीकरण-औद्योगीकरण की तेजी के द्वारा भारत की बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतें पूरी करनी काफ़ी आसान हो गईं। एक तरफ बड़े पैमाने के उद्योग शुरू हुए तथा दूसरी तरफ घरेलू उद्योग तथा संयुक्त परिवारों का खात्मा हुआ।

प्रश्न 4.
आधुनिकीकरण तथा सामाजिक गतिशीलता।
उत्तर-
सामाजिक गतिशीलता आधुनिक समाजों की मुख्य विशेषता है। शहरी समाज में कार्य की बांट, विशेषीकरण, कार्यों की भिन्नता, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन तथा संचार के साधनों इत्यादि ने सामाजिक गतिशीलता को काफ़ी तेज़ कर दिया। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, बुद्धि के साथ गरीब से अमीर बन जाता है। जिस कार्य से उसे लाभ प्राप्त होता है वह उस कार्य को करना शुरू कर देता है। कार्य के लिए वह स्थान भी परिवर्तित कर लेता है। इस तरह सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया के द्वारा परम्परावादी कीमतों की जगह नई कीमतों का विकास हुआ। इस तरह निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि आधुनिकीकरण से सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है।

प्रश्न 5.
आधुनिकीकरण से नए वर्गों की स्थापना होती है।
उत्तर-
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति को प्रगति करने के कई मौके प्रदान करती है। इस वजह से कई नए वर्गों की स्थापना होती है। समाज में यदि सिर्फ एक ही वर्ग होगा तो वह वर्गहीन समाज कहलाएगा। इसलिए आधुनिक समाज में कई नए वर्ग अस्तित्व में आए हैं। आधुनिक समाज में सबसे ज्यादा महत्त्व पैसे का होता है। इसलिए लोग जाति के आधार पर नहीं बल्कि राजनीति तथा आर्थिक आधारों पर बंटे हुए होते हैं। वर्गों के आगे आने का कारण यह है कि अलग-अलग व्यक्तियों की योग्यताएं समान नहीं होतीं। मजदूर संघ अपने हितों की प्राप्ति के लिए संघर्ष का रास्ता भी अपना लेते हैं। अलग-अलग कार्यों के लोगों ने तो अलग-अलग अपने संघ बना लिए हैं।

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प्रश्न 6.
आधुनिकीकरण/ मशीनीकरण।
उत्तर-
भारत में मशीनीकरण के द्वारा कृषि से सम्बन्धित कार्यों में काफ़ी परिवर्तन पाया गया। शुरू में हमारा देश काफ़ी लम्बे समय तक खाद, अनाज इत्यादि के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता था। मशीनीकरण तथा आधुनिकीकरण की वजह से हमारा देश आत्म-निर्भरता की स्थिति में पहुँच चुका है तथा बाकी हिस्सों में भी काफ़ी परिवर्तन पाया गया

प्रश्न 7.
आधुनिकीकरण / सामाजिक परिवर्तन।
उत्तर-
आधुनिकीकरण ने सामाजिक परिवर्तन की काफ़ी तेज़ गति से हमारे समाज में कई प्रकार के परिवर्तन ला दिए। औरतों की शिक्षा पर तो काफ़ी प्रभाव डाला है। इसके अलावा विधवा विवाह, दहेज प्रथा तथा औरतों की स्थिति इत्यादि में भी काफ़ी परिवर्तन ला दिया। इसके सम्बन्ध में अनेक कानून पास हुए। इस प्रकार सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए यह प्रक्रिया काफ़ी प्रभावशाली सिद्ध हुई है।

प्रश्न 8.
औद्योगीकरण।
उत्तर–
प्रत्येक समाज को अपने लोगों की ज़रूरतें पूर्ण करने के लिए औद्योगीकृत बनना पड़ता है। प्रत्येक क्षेत्र में उद्योगों का विकास होना ही औद्योगीकरण कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य बड़े पैमाने पर उत्पादन करना है। औद्योगीकरण केन्द्रों में आबादी इस कारण भी अधिक होती है। पूँजीवाद भी औद्योगीकरण के आने से ही आरम्भ हुआ था।

प्रश्न 9.
शहरीकरण।
उत्तर-
शहरीकरण भी औद्योगीकरण के साथ ही बढ़ा है। शहरीकरण के द्वारा समाज में कई तरह के परिवर्तन पाए गए। जनसंख्या का बढ़ना, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक संस्थाओं के स्वरूपों में परिवर्तन, मनोरंजन के साधनों का बढ़ना इत्यादि भी शहरीकरण के कारण ही पाए गए। गांवों पर भी शहरीकरण का प्रभाव पड़ा तथा गांवों के लोग शहरों में आकर रहने लगे। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन शहरीकरण के परिणामस्वरूप पाया गया।

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण।
उत्तर-
वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक व्यापक आर्थिक प्रक्रिया है जो सभी समाजों में फैली होती है। इसमें अलगअलग देशों के बीच मुक्त व्यापार तथा आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। सभी देश अपनी ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं जिस वजह से अलग-अलग देशों में मुक्त व्यापार पर आधारित आर्थिक सम्बन्धों का विचार हमारे सामने आया। इस विचार को वैश्वीकरण कहते हैं।

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इस प्रक्रिया में पूरी दुनिया में व्यापार चलता है।
  • इससे दुनिया में नई आर्थिकता कायम हुई है।
  • इसमें बाज़ार बढ़ कर पूरी दुनिया में हो गया है।
  • इससे श्रम विभाजन बढ़ा है।
  • इससे विशेषज्ञ एक देश से दूसरे देश में जाने लग गए हैं।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव।
उत्तर-

  • भारत के विश्व निर्यात में बढ़ौतरी हुई।
  • भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है।
  • भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ा है।
  • भारत का सफ़ल घरेलू उत्पाद बढ़ा है।
  • तकनीकी तथा शैक्षिक सुधार हुए हैं।
  • औद्योगिक कार्यों का विकास हुआ है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
आधुनिकीकरण के भारतीय समाज पर प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अंग्रेज़ी सरकार के भारत आने के बाद शुरू हुई। अंग्रेज़ों ने वास्तव में अपनी संस्कृति को भारत में लागू करने के लिए कई परिवर्तन किए। एक तरफ उन्होंने भारतीय समाज के अन्दरूनी राज्यों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए यातायात के साधनों का विकास किया तथा दूसरी तरफ संचार के साधनों द्वारा दूर-दूर के लोगों से सम्पर्क स्थापित किया। प्रैस को भी सम्पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। भारत के दूसरे देशों से भी सम्पर्क स्थापित हो गए। इसके अलावा अंग्रेजों ने परम्परागत विचारों को ख़त्म करके नए विचारों का समाज में संचार करना शुरू कर दिया। इस प्रकार भारतीय समाज में आधुनिकता आनी शुरू हो गई। भारतीय समाज की परम्परागत सामाजिक संस्थाओं; जैसे कि जाति व्यवस्था, परिवार व्यवस्था, विवाह व्यवस्था इत्यादि में परिवर्तन आने शुरू हो गए। इस प्रक्रिया द्वारा समाज में बहुत-से परिवर्तन आए जिनका वर्णन निम्नलिखित है

1. धर्म-निष्पक्षता (Secularization)-धर्म-निष्पक्षता की प्रक्रिया को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा लोगों तक पहुंचाया गया। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में सभी धर्मों के लोगों को बराबर समझा गया। प्रत्येक व्यक्ति समाज के बीच किसी भी स्थिति को प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक धर्म के व्यक्तियों को दूसरे व्यक्तियों के साथ प्यार एवं सहनशीलता वाले सम्बन्ध स्थापित करने के बारे में चेतन किया जाने लगा। विभिन्न धर्मों की धार्मिक क्रियाओं, आदर्शों आदि का आदर किया जाने लगा। इस प्रकार लोगों में एकता की भावना पैदा होने लग गई। धर्म-निष्पक्षता का सिद्धान्त प्रत्येक क्षेत्र में लागू किया जाने लगा।

2. पश्चिमीकरण (Westernization)—पश्चिमीकरण से ही सम्बन्धित आधुनिकीकरण की प्रक्रिया है। पश्चिमीकरण का प्रभाव भारतीय समाज के ऊपर अंग्रेज़ी सरकार के आने के उपरान्त ही आरम्भ हुआ और पश्चिमीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे आधुनिकीकरण में परिवर्तित होने लग पड़ी। श्री निवास के अनुसार, “भारतीय लोगों ने अन्धाधुन्ध या सोचेसमझे बिना पूर्ण पश्चिमी संस्कृति को ही नहीं अपनाया, बल्कि कुछ एक ने इसे ग्रहण किया, कुछ एक ने इसका त्याग कर दिया। पश्चिमी संस्कृति के वह तत्त्व जिन्हें भारतीय लोगों ने ग्रहण किया उनका भी भारतीय रूपान्तर (Transformation) भी हुआ। जहां अंग्रेज़ी संस्कृति और जीवन शैली के कुछ तत्त्वों ने भारतीयों को अपनी तरफ आकर्षित किया वहां अंग्रेज़ी संस्कृति के विभिन्न पक्ष, भारतीय जनसंख्या के विभिन्न भागों को आकर्षित करने लग गए। इस प्रकार भारतीय लोगों का आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ परिवर्तित होने का मुख्य कारण पश्चिमीकरण की गतिशीलता के साथ भी सम्बन्धित है।

3. औद्योगीकरण (Industrialization)-औद्योगीकरण आधुनिक समाज की मुख्य विशेषता है। भारत में औद्योगीकरण का पाया जाना पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण है। भारत में कई बड़े उद्योग, विदेशों की सहायता के साथ ही स्थापित किए गए हैं। जैसे कि हम देख रहे हैं कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि Geometrically होती है अर्थात् 7×7 = 49 है और उत्पादन में वृद्धि Arithmetically होता है अर्थात् 7+7 = 14। इस तरह जिस प्रकार जनसंख्या की तेजी के साथ वृद्धि हुई है, उसी प्रकार औद्योगिक विकास का होना भी आवश्यक हो गया है। वास्तव में औद्योगीकरण का सम्बन्ध बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से होता है। औद्योगीकरण के विकास के साथ ही समाज में पूंजीवाद का विकास सम्भव हुआ। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि वह इस प्रकार का कार्य करे, कि उसे अधिक-से-अधिक लाभ की प्राप्ति हो। समाज में औद्योगिक क्रान्ति ने नए तकनीकी व्यवसायों को जन्म दिया। औद्योगीकृत समाजों में व्यक्ति को समाज में उसकी जाति के आधार पर नहीं बल्कि उसकी योग्यता पर आधारित कार्य मिलने लगा गया। इस कारण पैतृक व्यवसाय को अपनाने वाली परम्परागत प्रथा का भी खात्मा हुआ। औद्योगिक शहरों में रहने से लोगों के जीवन जीने के ढंगों में बिल्कुल ही परिवर्तन आ गया। गांवों में पाए जाने वाले घरेलू उद्योग तो औद्योगीकरण के विकास से बिल्कुल ही ठप्प हो गए। इस कारण गांवों में प्राचीन समय से चली आ रही संयुक्त परिवार की व्यवस्था तो बिल्कुल ही ख़त्म हो गई। भारत की आर्थिक व्यवस्था भी बदल गई। प्रत्येक क्षेत्र में उद्योगों का विकास होने लग गया। ब्रिटेन, जापान, अमेरिका इत्यादि जैसे कई देशों ने भारत में अपने उद्योग स्थापित किए। इस तरह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा हमारे समाज में औद्योगीकरण की प्रगति हुई।

4. शहरीकरण (Urbanization)-औद्योगीकरण के विकास से ही शहरीकरण की प्रक्रिया भी सामने आई। जहां भी उद्योग विकसित हुए, उन स्थानों पर शहरों का विकास होना शुरू हो गया। गांवों के लोग रोज़गार की तलाश में शहरों में आकर रहने लगे। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत ही शहरों के विकास द्वारा हुई। शहरों में घनी आबादी तथा ज्यादा सामाजिक गतिशीलता पाई गई। यातायात तथा संचार के साधनों के विकास से गांवों तथा शहरों में सम्पर्क स्थापित हो गया। इस प्रकार शहरीकरण के द्वारा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का तो नक्शा ही बदल गया। औरतों की स्थिति में बहुत तेजी से परिवर्तन आए। वह प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी करने लग गई। शहरों में संयुक्त परिवार की जगह केन्द्रीय परिवारों को ज़्यादा मान्यता प्राप्त हुई। केन्द्रीय परिवारों में स्त्रियों तथा मर्दो को समान स्थिति प्राप्त हुई। यदि हम आधुनिक समय में शिक्षा के क्षेत्र की तरफ देखें तो स्त्रियां मर्दो से ज़्यादा पढ़ी-लिखी हैं। औरतें प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं। अब वह अपने आपको आदमी के ऊपर निर्भर नहीं समझती बल्कि वह अब स्वयं ही पैसे कमा रही है तथा आत्म-निर्भर हो गई है।

शहरों में लोगों के रहने-सहने का स्तर भी काफ़ी ऊँचा है। लोग ज़्यादा सुविधाएं प्राप्त करने की तरफ आकर्षित रहते हैं। इस कारण उनका दृष्टिकोण भी व्यक्तिवादी हो गया है। देश के सम्बन्ध में बहुत ज्यादा गतिशीलता पाई गई है क्योंकि जाति प्रथा का पेशे से सम्बन्ध ख़त्म ही हो गया है। शहरीकरण के कारण वर्ग व्यवस्था अस्तित्व में आई। व्यक्ति को समाज में स्थिति उसकी योग्यता के अनुसार प्राप्त होने लगी। पैसे की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी।
इस प्रकार शहरों में पैसे, स्थिति तथा शिक्षा का महत्त्व ज़्यादा पाया जाने लगा। शहरों में विज्ञान का प्रभुत्व होने के कारण धर्म का प्रभाव भी बहुत कम हो गया। शहरों में द्वितीयक समूहों का बढ़ता महत्त्व, जनसंख्या का बढ़ना, आधुनिकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सुविधाओं इत्यादि को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न करता है। इस कारण व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध रस्मी तथा अस्थिर होते हैं।
शहरी लोग ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं जिस कारण वह नई परिस्थितियों को समझ कर उनको जल्दी अपना लेते हैं। कुछ समस्याएं भी शहरीकरण से पाई जाती हैं जैसे बेरोज़गारी, गन्दी बस्तियां, ज़्यादा तलाक दर, आत्महत्या इत्यादि। परन्तु कई सामाजिक बुराइयों का खात्मा भी हुआ जैसे कि जाति प्रथा, बाल-विवाह, सती प्रथा इत्यादि।

5. नई श्रेणियों की स्थापना (Establishment of New Classes) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने व्यक्तियों को प्रगति करने के कई अवसर प्रदान किए। इस कारण कई नए वर्गों की स्थापना हुई। समाज में यदि एक वर्ग होगा तो वह वर्गहीन समाज कहलाएगा। इस कारण आधुनिक समाज के बीच कई वर्ग अस्तित्व में आए। नए वर्गों के अस्तित्व में आने का एक कारण यह भी होता है कि विभिन्न व्यक्तियों की योग्यताएं एक जैसी नहीं होती हैं। इस कारण वह धन, शिक्षा, व्यवसाय आदि के दृष्टिकोण से अलग होते हैं। इस कारण ही नए वर्ग अस्तित्व में आते हैं।

आधुनिक समाज में सबसे ज्यादा महत्त्व पैसे का होता है। इस कारण लोग जाति के आधार पर नहीं बल्कि राजनीति तथा आर्थिक आधार पर विभिन्न वर्गों में बंटे हुए हैं। औद्योगिक क्षेत्र में पूंजीपतियों का मुकाबला करने के लिए मज़दूर संघ स्थापित हो गए हैं। यह मजदूर संघ अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष का रास्ता भी अपना लेते हैं। आधुनिक समय में तो अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए अलग-अलग पेशों से सम्बन्धित लोगों ने संघ बना लिए हैं।

6. कृषि के क्षेत्र में विकास (Development in Agricultural Area)-भारत के गांवों की अधिकतर जनसंख्या कृषि के व्यवसाय को अपनाती है। कृषि करने के लिए प्राचीन भारतीय समाज में तो शारीरिक मेहनत का ही प्रयोग होता है, परन्तु आधुनिक काल में तो कृषि करने के लिए नई-नई मशीनों एवं तकनीकों का आविष्कार हो गया है। बड़े-बड़े खेतों में ट्रैक्टरों के साथ खेतीबाड़ी की जाने लग पड़ी है। नई-नई रासायनिक खादों का प्रयोग होने लग पड़ा है जिस कारण उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। फसल को काटने हेतु कम्बाइनों का प्रयोग किया जाने लग पड़ा है। इन सब कारणों के कारण कृषि में कम परिश्रम के होने पर भी उत्पादन में वृद्धि हो गई है। इस कारण ही कई लोग बेरोज़गार हो गए और कारखानों में जाकर कार्य करने लग पड़े। __ कृषि के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के साथ-साथ मशीनीकरण भी हुआ है। सर्वप्रथम भारत उर्वरक के क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भर करता था। परन्तु हरित क्रान्ति (Green Revolution) के साथ-साथ वह आत्मनिर्भर हो गया। इससे ग्रामीण लोगों की आर्थिक स्थिति एवं जीवन शैली में भी काफ़ी परिवर्तन हुआ है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण

7. कल्याणकारी राज्यों की स्थापना (Establishment of Welfare States)—स्वतन्त्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुसार हमारे देश में कल्याणकारी राज्यों की धारणाओं को अपनाया गया जिस कारण राज्यों के कार्य काफ़ी बढ़ गए। इस कारण ही सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया दिनों-दिन तेज़ होती जा रही है। भारत की केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकार इस बात की कोशिश कर रही है कि व्यापारियों की, उपभोक्ताओं की, पूंजीपतियों की, उद्यमियों की, बड़े एवं कुटीर उद्योगों सभी की साझे तौर पर रक्षा की जाए। देश के धन का समान विभाजन किया जाए एवं यह सुरक्षित किया जाए कि उत्पादन केवल सीमित हाथों में न रह जाए। इसके लिए आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ही ज़िम्मेदार है।

8. लोकतंत्रीकरण (Democratization)-राजनीति में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया आधुनिकीकरण के कारण ही आई। भारत को संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्रीकरण देश कहा गया है, क्योंकि भारत में उन सभी को वोट देने का अधिकार है, जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक है। कानून के दृष्टिकोण से सभी एक समान हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, जिनको कोई नहीं छीन सकता। देश में आर्थिक असमानताएं दूर की जा रही हैं। संविधान के बीच राज्यों की नीतियों के कुछ निर्देशित सिद्धान्त दिए गए हैं, ताकि राज्य इन सिद्धान्तों के अनुसार ही नियम बनाए। लोगों को इस बात का अधिकार है कि यदि उन्हें सरकार का कार्य पसन्द नहीं है तो वह सरकार को बदल सकते हैं। इस प्रकार भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली काफ़ी मज़बूत है और यह सब कुछ आधुनिकीकरण की ही देन है।

9. कई अन्य परिवर्तन (Many Other Changes)-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के द्वारा सरकार ने भी अपनी नीतियों में परिवर्तन किया है। समाज की प्रगति हेतु पूर्व निश्चित योजनाएं बना ली जाती हैं। इन योजनाओं के अधीन ऐसे योजनाबद्ध परिवर्तन किए जाते हैं, जिसके द्वारा परिवर्तन की प्रक्रिया को स्वाभाविक रूप से क्रियात्मक रहने की स्वतन्त्रता नहीं दी जाती है बल्कि उसके स्थान पर प्राप्त साधनों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन लाने की योजना बनाई जाती है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के परिणामों का वर्णन करें।
अथवा समाज पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
वैश्वीकरण के परिणाम (Consequences of Globalisation)-भारत में 1991 में आर्थिक सुधार आरम्भ हुए और भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो गई। वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर भिन्न-भिन्न भागों के ऊपर प्रभाव एवं परिणाम निम्नलिखित हैं

1. भारत के विश्व निर्यात के हिस्से में वृद्धि (Increase of Indian Share in World Export)वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत के विश्व निर्यात में वृद्धि हुई। 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में भारत की वस्तुओं और सेवाओं में 125% वृद्धि हुई। 1990 में भारत का विश्व की वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में हिस्सा 0.55% था जोकि 1999 में बढ़कर 0.75% हो गया था।

2. भारत में विदेशी निवेश (Foreign Investment in India) विदेशी निवेश में वृद्धि भी वैश्वीकरण का एक लाभ है क्योंकि विदेशी निवेश के साथ अर्थव्यवस्था के साथ उत्पादन की क्षमता बढ़ती है। 1995-96 से 2016 में इससे काफ़ी अधिक बढोत्तरी हुई। इस समय के दौरान वार्षिक औसत के साथ लगभग 1140 मिलियन डालर का विदेशी लाभ हुआ।

3. विदेशी मुद्रा भण्डार (Foreign Exchange Kesernes) आयात के लिए विदेशी मुद्रा आवश्यक है। जून, 1991 में विदेशी मुद्रा भण्डार 1 Billion डॉलर था जिसके साथ केवल 2 सप्ताह की आयात आवश्यकताएं पूरी की जा सकती थीं। इसके पश्चात् भारत में नई आर्थिक नीतियों को अपनाया गया। वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की नीतियों को बढ़ावा दिया गया, जिस कारण देश के विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग 390 Billion Dollars के आसपास हैं।

4., सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर (Growth of Gross Domestic Product)—वैश्वीकरण के कारण देश के सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई। 1980 में 5.63% जो 2005 के बाद 8-9% हो गई। आजकल यह 7% के करीब है।

5. बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment)-भूमण्डलीकरण के साथ बेरोज़गारी में वृद्धि होती है। 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, थाईलैण्ड, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, मलेशिया के बीच
वैश्वीकरण के कारण आर्थिक संकट आया है। इस कारण लगभग 1 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए और वह ग़रीबी की रेखा के नीचे आ गए। 1990 के दशक के आरम्भ में बेरोजगारी की दर 6% थी जोकि 2000 तक 7% हो गई।

6. कृषि के ऊपर प्रभाव (Impact on Agriculture) देश के सकल घरेलू उत्पाद में खेती एवं इससे सम्बन्धित कार्यों का हिस्सा 20% है जबकि अमेरिका में 2% है फ्रांस एवं जापान के बीच 5% है। यदि श्रम शक्ति को देखो तो भारत की 69% श्रम शक्ति को खेती के विकास से सम्बन्धित कार्यों से रोज़गार प्राप्त है जबकि अमेरिका एवं इंग्लैण्ड में ऐसे कार्यों में 2.6% श्रम शक्ति है। विश्वव्यापार के नियमों के अनुसार दुनिया को इस संगठन के सभी सदस्य देश को खेती क्षेत्र के निवेश के लिए दुनिया के प्रत्येक देश के लिए योजना है। इस प्रकार आने वाला समय भारत की खेती एवं अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण रहने की सम्भावना है।

7. तकनीकी एवं शिक्षात्मक सुधार (Educational & Technical Development)-वैश्वीकरण एवं उदारीकरण का शिक्षा के ऊपर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा। लेकिन तकनीकी क्षेत्र में तो काफ़ी चमत्कार भी हुआ। संचार एवं यातायात के साधनों के कारण दुनिया की दूरी काफ़ी कम हो गई है। Internet and Computers ने तो इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी विकास कार्य किए हैं।

आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण PSEB 12th Class Sociology Notes

  • साधारण शब्दों में आधुनिकीकरण का अर्थ है जीवन जीने के आधुनिक तथा नए तरीकों व नए मूल्यों को अपना लेना। पहले इसका अर्थ काफ़ी तंग घेरे में लिया जाता था, परन्तु अब इसमें कृषि आर्थिकता व औद्योगिक आर्थिकता में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।
  • सबसे पहले आधुनिकीकरण शब्द का प्रयोग Daniel Lerner ने मध्य-पूर्वीय समाजों का अध्ययन करते हुए किया। उनके अनुसार आधुनिकीकरण परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जो गैर पश्चिमी देशों में पश्चिमी देशों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबधों के कारण आती है।
  • आधुनिकीकरण की कई विशेषताएं हैं जैसे कि यह एक क्रान्तिकारी तथा जटिल प्रक्रिया है, यह काफ़ी लंबा समय चलने वाली प्रक्रिया है, इसे वापस नहीं किया जा सकता, इससे समाज में प्रगति आती है, इत्यादि।
  • आधुनिकीकरण के आने के कई कारण हैं जैसे कि नगरों का बढ़ना, बड़े-बड़े उद्योगों का सामने आना, शिक्षा के स्तर का बढ़ना, संचार के साधनों का विकास, किसी करिश्माई नेता द्वारा समाज में परिवर्तन लाना इत्यादि।
  • आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का हमारे समाज के प्रत्येक हिस्से पर प्रभाव पड़ा जैसे कि जाति प्रथा के बंधन ___ कमज़ोर पड़ गए, परिवारों का स्वरूप बदल गया, पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव बढ़ गया, नई कानून व्यवस्था सामने आई, समाज में बहुत से सुधार हुए इत्यादि।
  • आज के संसार को एक वैश्विक ग्राम के नाम से जाना जाता है क्योंकि वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने सभी देशों को एक-दूसरे के नज़दीक ला दिया है। आजकल हमें घर बैठे ही पता चल जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में क्या हो रहा है ?
  • वैश्वीकरण का साधारण शब्दों में अर्थ है अलग-अलग देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, विचारों, सूचना, लोगों तथा पूँजी का बेरोक-टोक प्रवाह। इससे उन देशों की आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सीमाओं के बंधन टूट जाते हैं। यह सब कुछ संचार के विकसित साधनों के कारण मुमकिन हुआ है।
  • वैश्वीकरण की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि स्थानीय कार्यों का वैश्विक स्तर पर आना, प्रत्येक कार्य में तेजी का होना, सम्पूर्ण संसार में एक स्तर पर वस्तुओं की मौजूदगी, देशों के अन्तर्सम्बन्धों का बढ़ना, आदान-प्रदान का बढ़ना इत्यादि।
  • वैश्वीकरण के लिए दो प्रक्रियाओं का होना काफ़ी आवश्यक है वह है उदारीकरण व निजीकरण। उदारीकरण का अर्थ है बाज़ार के नियमों के अनुसार अपनी आर्थिकता को चलाना तथा निजीकरण का अर्थ है सरकारी कंपनियों को निजी क्षेत्र को बेच देना।
  • वैश्वीकरण के कई कारण होते हैं; जैसे कि यातायात तथा संचार में साधनों का विकास, सरकारों की तरफ से आर्थिक सीमाओं को खोल देना, बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सामने आना इत्यादि।
  • वैश्वीकरण का हमारे देश पर काफ़ी प्रभाव पड़ा जैसे कि व्यापारिक उदारीकरण का सामने आना, विदेशी पूँजी का निवेश, विदेशों से पैसे का देश में आना, तकनीक का आदान-प्रदान, आर्थिक मार्किट का सामने आना, वस्तुओं का अलग-अलग देशों में बनना इत्यादि।
  • बाहरी स्रोत (Outsourcing)—किसी अन्य कम्पनी को कार्य करने के लिए देने को बाहरी स्रोत कहते हैं।
  • विनिवेश (Disinvestment)-सरकारी अथवा जनतक क्षेत्र की कंपनियों का निजीकरण विनिवेश कहलाता है।
  • करिश्माई नेता (Charismatic Leader)—वह नेता जिसके व्यक्तित्व में कई करिश्माई गुण होते हैं तथा जो अपने व्यक्तित्व से लोगों को प्रभावित करता है।
  • धर्मनिष्पक्षता (Secularization)—वह विश्वास जिसमें राज्य, नैतिकता, शिक्षा इत्यादि धर्म के प्रभाव से काफ़ी दूर होते हैं।
  • उदारीकरण (Liberalisation)-बाज़ार पर सरकारी नियन्त्रण को कम कर देना तथा आर्थिक सीमाओं को खोल देना।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 घर का सामान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 5 घर का सामान

PSEB 9th Class Home Science Guide घर का सामान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
किसी भी उपकरण को खरीदते समय पारिवारिक बजट को ध्यान में रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
कोई उपकरण खरीदने से पहले यह देख लेना चाहिए कि क्या परिवार का बजट इतना है कि इसे खरीदा जा सके। यदि गृहिणी के पास समय तथा शक्ति हो तो उसको कम खर्च वाले उपकरण खरीद लेने चाहिएं। यदि आवश्यकता से अधिक खर्च कर लिया जाए तो घर के अन्य कार्य छूट सकते हैं।

प्रश्न 2.
दो ऐसे उपकरणों के नाम लिखो जिनसे समय और शक्ति की बचत हो सके।
उत्तर-
कपड़े धोने वाली मशीन, कुकिंग रेंज, टोस्टर, बिजली की मिक्सी, माइक्रोवेव ओवन आदि।

प्रश्न 3.
घरेलू उपकरणों की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
आज के युग में मानवीय उद्देश्य तथा ज़रूरतें बढ़ गई हैं। इसलिए समय तथा शक्ति बचाने के लिए उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। उपकरणों की मदद से कम समय में कार्य किया जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 4.
घर में रैफ्रिजरेटर की ज़रूरत क्यों होती है ?
उत्तर-
यह खाने वाले पदार्थों को ठण्डा रखने के काम आता है। इसमें फल तथा सब्जियां ताज़े रहते हैं। भोजन मिट्टी तथा धूल से बचा रहता है तथा इसका स्वाद तथा शक्ल ठीक रहती है। सब्जियां तथा फल एक बार लाये जा सकते हैं तथा बार-बार बाज़ार नहीं जाना पड़ता।

प्रश्न 5.
कपड़े धोने वाली मशीनें कौन-कौन सी हो सकती हैं ?
उत्तर-
ये मशीनें दो तरह की हो सकती हैं (i) ऑटोमैटिक (ii) नॉन-आटोमौटिक। ऑटोमैटिक मशीनें अपने आप कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं। नॉनऑटोमैटिक मशीनें केवल कपड़े धोती हैं।

प्रश्न 6.
कपड़े धोने वाली ऑटोमैटिक मशीन के दो लाभ लिखें ?
उत्तर-
ऑटोमैटिक मशीनें कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं। मशीन के प्रयोग से साबुन तथा समय दोनों की बचत होती है तथा मेहनत की भी बचत हो जाती है। अधिक वर्षा वाले इलाकों अथवा जहां कपड़ों को बाहर सुखाने का इन्तजाम नहीं हो सकता वहां ऑटोमैटिक कपड़े धोने वाली मशीन काफ़ी लाभदायक सिद्ध हुई है क्योंकि कपड़े मशीन में ही सूख जाते हैं।

प्रश्न 7.
बिजली की प्रैस घर में क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
मनुष्य का व्यक्तित्व उस द्वारा पहने हुए बढ़िया कपड़ों के कारण बढ़िया तथा बुरे कपड़ों के कारण बुरा लगता है। प्रैस से कपड़ों में से सिलवटें आदि निकल जाती हैं तथा यह पहने हए सन्दर लगते हैं। घर में प्रैस हो तो समय तथा शक्ति बचाई जा सकती
प्रैसें दो तरह की हो सकती हैं-ऑटोमैटिक तथा नॉन-ऑटोमैटिक। ऑटोमैटिक प्रैसें भाप वाली भी हो सकती हैं तथा कइयों में रेग्यूलेटर भी लगा होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
बायोगैस के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
बायोगैस जानवरों के मल-मूत्र से तैयार होती है। बायोगैस में लगभग 60% मीथेन गैस होती है जो ज्वलनशील गैस है। इसको नालियों द्वारा गांवों के घरों में भेजा जाता है। इसका प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है। बायोगैस को सिलिण्डरों में नहीं भरा जा सकता। बचा हुआ मल-मूत्र खाद के रूप में खेतों में प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
टोस्टर किस काम आता है और यह कैसा होता है ?
उत्तर-
टोस्टर-टोस्टर डबलरोटी के टुकड़ों को सीधे सेक से सेंकने तथा कुरकुरा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग साधारणत: प्रत्येक घर में किया जाता है। यह तीन तरह के होते हैं- (i) ऑटोमैटिक (ii) नॉन-ऑटोमोटिक (iii) सेमी-ऑटोमैटिक।
ऑटोमैटिक टोस्टर में ताप कण्ट्रोल, समय सूचक के रंग सूचक यन्त्र लगे होते हैं । यह भी तीन तरह के होते हैं-कुएं के आकार के-इसमें डबलरोटी तथा स्लाइस डाले जाते हैं। जब यह सेंके जाते हैं तो अपने आप बाहर आ जाते हैं। इसमें डबलरोटी के बुरादे के लिए ट्रे भी लगी होती है। भट्ठी के आकार वाले टोस्टर में बन्द तथा रोल भी गर्म किए जाते हैं। इसमें बाहर निकालने के लिए ट्रे की भी व्यवस्था होती है। तीसरा कुएं तथा भट्ठी के मिश्रण वाले टोस्टर में डबल रोटी, केक, रोल्स सेंकने के लिए कम तापमान वाला भाग बना होता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (1)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 10.
मिक्सी आजकल हर घर में ज़रूरी समझी जाती है। क्यों ?
उत्तर-
इस उपकरण में गीले तथा सूखे भोजन पदार्थ पीसे जाते हैं । हाथ से कूटने तथा पीसने से समय तथा शक्ति दोनों ही अधिक लगते हैं। परन्तु मिक्सी में कूटने पीसने अथवा पीठी बनाना आदि के लिए प्रयोग करने से गृहिणी की शक्ति तथा समय दोनों की ही बचत हो जाती है। इसलिए समय तथा शक्ति बचाने के लिए मिक्सी आजकल हर घर में आवश्यक हो गई है।

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प्रश्न 11.
यदि बिजली की मिक्सी घर में न हो तो उसके स्थान पर किस उपकरण का प्रयोग किया जाता हैं और कैसे ?
उत्तर-
यदि घर में बिजली की मिक्सी न हो तो हाथ से चलाने वाले ग्राइंडर का प्रयोग किया जाता है। इससे मसाला आदि पीसने का कार्य किया जाता है। यह लोहे का बना हुआ होता है। इसको एक पेंच की मदद से फिट किया जाता है। मसाला डालने के लिए इसके ऊपर एक मुंह सा बना होता है। इस में गीला अथवा सूखा मसाला डालकर इसको हत्थी से घुमाया जाता है। पीसा हुआ मसाला आगे नाली के रास्ते से बाहर आ जाता है। हाथ से चलाने वाली इस तरह की ही कीमा बनाने तथा जूस निकालने वाली मशीनें भी मिल जाती हैं।

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प्रश्न 12.
प्रैशर कुक्कर के क्या लाभ हैं और यह किस धातु का बना हुआ होता है ?
उत्तर-
प्रैशर कुक्कर में खाना शीघ्र पक जाता है विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में तो इसका काफ़ी महत्त्व है। क्योंकि इससे भाप बाहर नहीं निकलती, खाने के पौष्टिक तत्त्व खराब नहीं होते। खाना एक पतीले से 1/3 समय में पक जाता है। इससे मेहनत, समय तथा पैसे की भी बचत होती है। सब्जियों का स्वाद तथा रंग भी ठीक रहता है।
प्रैशर कुक्कर एल्यूमीनियम, प्रैस्ड एल्यूमीनियम अथवा स्टेनलेस स्टील का बना हो सकता है।

प्रश्न 13.
गैस के चूल्हे के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गैस का चूल्हा—गैस से खाना बनाने का काम आसान तथा सफ़ाई से होता है। क्योंकि गैस से बर्तन काले नहीं होते। गैस के चूल्हे एक, दो तथा तीन बर्नरों वाले भी मिलते हैं। गैसे के चूल्हे को रबड़ की नाली से सिलिण्डर से जोड़ा जाता है। बर्नरों के आगे रेग्यूलेटर लगे होते हैं जो सेक को अधिक, कम करने तथा चूल्हा वाल्व बन्द करने का कार्य करते हैं। सिलिण्डर पर भी रेग्यूलेटर लगा होता है जो सिलिण्डर से गैस को चूल्हे तक पहुँचाता है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (4)

कुकिंग रेंज-कुकिंग रेंज से भोजन पकाने के लिए बहुत कम समय लगता है। इसमें बेकिंग तथा ग्रिलिंग भी की जाती है। कुकिंग रेंज गैस से चलने वाले तथा बिजली से चलने वाले भी होते हैं। इसकी बॉडी स्टील की अथवा लोहे की बनी होती है। इसके ऊपर चार चूल्हे होते हैं, उसके नीचे ग्रिल, फिर ओवन होता है। गैस पावर प्लग में लगाई जाती है तथा बिजली वाले की तार पावर प्लग में लगाई जाती है। कई कुकिंग रेंज में ओवन के नीचे एक और डिब्बा बना होता है जिसमें भोजन पकाकर रख दो तो काफ़ी समय गर्म रहता है। इसके सामने वाली तरफ चूल्हों के नीचे रेग्यूलेटर लगे होते हैं जो तापमान को कण्ट्रोल करते हैं।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (5)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 14.
अन्य ईंधनों की अपेक्षा सौर कुक्कर कैसे लाभदायक है?
उत्तर-
सौर कुक्कर सूर्य की ऊर्जा से कार्य करता है। सूर्य की किरणें सौर कुक्कर के पैराबोलिक परावर्तक यन्त्र की सतह पर पड़ती हैं तथा ताप ऊर्जा पैदा करती हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग भोजन पकाने में होता है।

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सौर कुक्कर निम्नलिखित कारणों से लाभदायक हैं –

  1. भारत एक गर्म देश है। यहां सारा वर्ष सूर्य की रोश नी तथा गर्मी उपलब्ध रहती है। सोलर कुक्कर क्योंकि सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करता है इसलिए यहां यह कुक्कर बहुत कामयाब है। इस तरह सौर कुक्कर ऊर्जा पैदा करने का एक सस्ता साधन है।
  2. सौर कुक्कर में खाना पकाने को 3 से 7 घण्टे का समय लगता है।
  3. सौर कुक्कर में खाना पकाने से कोई भी बाई-प्रोडक्ट नहीं पैदा होता। इसलिए वातावरण में प्रदूषण पैदा नहीं करता।

प्रश्न 15.
ओवन किस काम आता है?
उत्तर-
विद्युत् ओवन-यह गोल आकार का अथवा चौकोर डिब्बे के आकार का यन्त्र होता है। यह केक, बिस्कुट, डबलरोटी, पीज़ा, तथा सब्जियां आदि बेक करने के काम आता है। गोल ओवन साधारणतः एल्यूमीनियम का बना होता है तथा चौकोर किसी जंग रहित धातु अथवा एल्यूमीनियम का होता है। इसके दो भाग होते हैं – तल तथा ढक्कन। निचले भाग में एलीमेन्ट लगा होता है। इस गोल चैम्बर के बाहर की ओर एक स्थान पर नियन्त्रण बॉक्स लगा होता है जिस पर थर्मोस्टेट, इण्डीकेटर तथा एक सॉकेट लगी होती है। थर्मोस्टेट से जितना तापमान चाहिए, कर लिया जाता है। जब ओवन इच्छित तापमान पर पहुंच जाता है तो विद्युत् प्रवाह आरभ हो जाता है। यह सिस्टम ऑटोमैटिक ओवन में ही होता है। बाजार में रेग्यूलेटर के बिना भी ओवन मिलते हैं परन्तु यह कम लाभदायक होते हैं। इनमें तापमान बहुत बढ़ने से भोजन जल जाता है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (7)

बेकिंग करते समय इसका ढक्कन निचले भाग पर फिट किया जाता है। ढक्कन के दोनों तरफ प्लास्टिक के हैण्डल लगे होते हैं। जिससे ढक्कन को उतारना तथा चढ़ाना आसान होता है। ढक्कन के ऊपरी तरफ बीच में कांच की खिड़की बनी होती है यहां से भोजन की स्थिति का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। कांच के आस-पास दो छिद्र होते हैं जिसमें कोई सूई अथवा सिलाई डालकर भोजन की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। ओवन के साथ एक गोल बर्तन तथा एक प्लेट (Base Plate) मिलती है। कोई भोजन बनाते समय यह प्लेट नीचे रखकर ऊपर गोल भोजन वाला बर्तन रखा जाता है, यह प्लेट एक सहारे का काम करती है।

प्रश्न 16.
माइक्रो ओवन किस काम आता है ?
उत्तर-
यह बिजली से चलने वाला भोजन पकाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है। सूक्ष्म-तरंग अथवा माइक्रोवेव में विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें पैदा करने के लिए एक चुम्बकीय यन्त्र मेग्नेट्रॉन लगा होता है। भोजन इन सूक्ष्म तरंगों को चूस लेता है जिससे भोजन अणु 24500 लाख प्रति सैकिण्ड की गति से कांपते हैं। इस तरह भोजन के अणु आपस में इतनी तेज़ी से रगड़ खाते हैं तथा इस तरह बहुत ज्यादा गर्मी पैदा होती है तथा मिनटों में ही भोजन पक कर तैयार हो जाता है। माइक्रोवेव में भोजन अपने में पाई जाने वाली नमी के अनुसार ही भोजन पकने के दौरान पैदा हुई विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा को सोखता है। इस तरह भोजन को एक सार पकाने में मुश्किल आती है।

प्रश्न 17.
स्टोव कितनी प्रकार के हो सकते हैं और कौन-कौन से ?
उत्तर-
स्टोव मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं-हवा भरने वाले तथा बत्तियों वाले।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (8)

बत्तियों वाला स्टोव बत्तियों वाले स्टोव की टंकी में जब तेल डाला जाता है तो बत्तियां तेल चूस कर जलती हैं तथा पम्प वाले स्टोव में टंकी में तेल भरने के पश्चात् इसका तेल वाला मुंह अच्छी तरह बन्द करके हवा भरने से तेल बर्नर पर आ जाता है, फिर आग से इसको जलाया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 18.
रसोई के बर्तन कौन-कौन सी धातुओं से बने होते हैं ?
उत्तर-
रसोई के बर्तन पीतल, तांबा, एल्यूमीनियम तथा नॉन स्टिक, चांदी, लोहा तथा स्टील आदि धातुओं तथा मिश्रित धातुओं के बने होते हैं। आजकल स्टेनलेस स्टील से बने हुए बर्तन काफ़ी प्रचलित हैं। इसका कारण है कि यह एक चमकीली धातु होने के कारण इसको बार-बार पॉलिश करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस पर तेज़ाब तथा क्षार का प्रभाव भी नहीं होता तथा इसको जंग भी नहीं लगता।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 19.
घर के सामान का चयन करते समय किन बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर-
घर के सामान के चुनाव के समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएं –
(i) कीमत, (ii) डिज़ाइन, (iii) स्तर, (iv) सम्भाल तथा रख-रखाव, (v) उपयोगिता, सेवा सुविधाएं तथा गारण्टी।
(i) कीमत-कोई भी उपकरण खरीदते समय उसकी उपयोगिता के साथ-साथ उसकी कीमत को भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। उदाहरणत: यदि मिक्सी की खरीद करनी है तो यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि वह काटने, पीसने, जूस निकालने तथा आटा गूंथना आदि सभी काम करती हो न कि विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न मशीनों को खरीदना पड़े। इसलिए ऐसी स्थिति में फूड प्रोसैसर ही ठीक रहता है। दूसरी बात यह आवश्यक नहीं कि महंगे उपकरण ही अच्छे होते हैं। कई बार स्थानिक (local) अच्छी कम्पनियां भी अपनी मशहरी के लिए कम कीमत रखती हैं। इसलिए विभिन्न स्थानों से कीमत की तुलना करनी बहुत आवश्यक है।

(ii) डिज़ाइन किसी भी उपकरण की खरीददारी के समय उसका डिज़ाइन एक महत्त्वपूर्ण विषय है। डिज़ाइन उपकरण के आकार, भार, सन्तुलन तथा पकड़ने की सुविधाओं आदि से सम्बन्धित है। उपकरण का आकार परिवार के सदस्यों की संख्या पर निर्भर करता है। डिज़ाइन हमेशा साधारण होना चाहिए ताकि साफ़ सफ़ाई करना आसान हो। भार तथा सन्तुलन ठीक होना चाहिए ताकि उपकरण को चलाते समय वह ठीक से टिका रहे। यदि उपकरण हिलता-जुलता होगा, भार सन्तुलन ठीक नहीं होगा तो उपकरण के गिरने का खतरा रहता है। उपकरण को पकड़ने के लिए कोई हैण्डल अथवा ऐसी जगह बनी हो जहां से आसानी से तथा पूरी जकड़ से पकड़ा जा सके।

(iii) स्तर–उपकरणों की खरीद हमेशा विश्वसनीय, बढ़िया तथा स्टैंडर्ड अर्थात् राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों से करनी चाहिए जैसे कि विद्वान् कहते हैं कि “महंगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार” अर्थात् बहुत बार हम कीमत कम होने के कारण वस्तु खरीद लेते हैं जो कि थोड़े समय में ही खराब हो जाती है जबकि महंगी तथा विश्वसनीय कम्पनी की चीज़ बढ़िया तथा टिकाऊ होती है।
यह समान खरीदते समय आई० एस० आई० (ISI) के मार्के का भी ध्यान रखना चाहिए। जिन कम्पनियों की वस्तुएं आई० एस० आई० (Indian Standard Institute) द्वारा प्रमाणित हों वही खरीदनी चाहिए।

(iv) सम्भाल तथा रख-रखाव-बर्तनों अथवा उपकरणों को खरीदते समय उनकी सम्भाल तथा रख-रखाव का भी बहुत महत्त्व है। यदि खरीदे गए बर्तन अथवा उपकरण की सम्भाल अधिक है तो वह गृहिणी के कार्य को आसान करने की बजाए और भी बढ़ा देता है। जैसे कि पीतल के बर्तनों की सम्भाल, स्टील के बर्तनों से अधिक है। इस तरह है बजाए कि पूरे उपकरण की सफ़ाई के। इसलिए अलग-अलग होने वाले पुों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

(v) उपयोगिता—किसी वस्तु की खरीद के समय परिवार तथा परिवार के सदस्यों के लिए उसकी उपयोगिता का ध्यान रखना चाहिए। किसी उपकरण को सामाजिक स्तर की निशानी के रूप में नहीं खरीदना चाहिए अपितु परिवार तथा गृहिणी के लिए उसकी महत्ता तथा उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करनी चाहिए। वस्तुओं के प्रयोग का सही ढंग, प्रयोग के लिए दी सावधानियां इनकी उपयोगिता को बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं। बिजली अथवा गैस से चलने वाले उपकरणों को बिजली तथा गैस की उपलब्धि को ध्यान में रखकर ही प्रयोग करना चाहिए।

(vi) सेवा सुविधाएं तथा गारण्टी-बहुत सारे उपकरणों में प्रयोग करते-करते कोईन-कोई खराबी पड़ जाती है जिससे उसके पुर्जे तथा विशेषज्ञ मकैनिकों की आवश्यकता होती है। कई स्टैण्डर्ड की कम्पनियां ये सुविधाएं बढ़िया प्रदान करती हैं, इसलिए जो कम्पनी ये सुविधाएं प्रदान कर सके उनके उपकरणों को खरीदने को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसी मरम्मत की सुविधा तथा पुर्जे न मिलने से उपकरण व्यर्थ हो जाता है। इसी तरह खरीददारी दौरान उपकरण का गारण्टी का समय तथा गारण्टी समय में किस-किस तरह की सुविधा मिल सकती है, इस बारे जानकारी भी लेना बहुत आवश्यक है। बहुतसी कम्पनियां गारण्टी समय में मुफ्त मरम्मत करती हैं तथा कई परिस्थितियों में उपकरण को बदल भी देते हैं।

प्रश्न 20.
रेफ्रिजरेटर और कपड़े धोने वाली मशीन के क्या-क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
फ्रिज के कार्य-फ्रिज का प्रयोग खाने वाली वस्तुओं को ठण्डा करके स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसमें कुछ दिनों के लिए सब्जियां तथा फल स्टोर किए जा सकते हैं, इस तरह बार-बार बाज़ार जाकर समय नष्ट नहीं होता। अन्य भी खाने वाली वस्तुएं इसमें रखी जा सकती हैं।
फ्रिज की सफ़ाई तथा देखभाल

  1. हर महीने फ्रिज की पूरी सफ़ाई करनी चाहिए। सफ़ाई करने के लिए सबसे पहले इसका विद्युत् स्विच बन्द करके तार निकाल लेनी चाहिए। फिर सभी शैल्फों, चिल ट्रे, किस्प ट्रे तथा उससे ऊपर वाला कांच आदि बाहर निकाल लेने चाहिएं। कैबिनेट का आन्तरिक हिस्सा तथा दरवाज़े की गास्टक रबड़ की लाइनिंग को साबुन वाले गर्म पानी से साफ़ करो। इसके पश्चात् इस को अच्छी तरह धोकर सुखाओ तथा कपड़े से पोंछ दें। कैबिनेट के बाहरी हिस्से को बड़े ध्यान से सोडे के गुनगुने घोल (एक बड़ा चम्मच सोडा एक लिटर पानी में ) साफ़ करो तथा धोकर सुखा दो। इसके पश्चात् इसको नर्म सूखे कपड़े से रगड़ कर चमकाया जा सकता है। इस सारी सफ़ाई को डीफ्रास्टिंग के समय करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। फ्रिज की मोटर से धूल मिट्टी उतारने के लिए लम्बे हैण्डल वाला ब्रुश प्रयोग करना चाहिए।
  2. भोजन को ठीक तापमान वाले खाने में ही रखना चाहिए जैसे कि मीट तथा मछली को पॉलीथीन के लिफ़ाफों में अच्छी तरह बन्द करके फ्रीज़र में रखना चाहिए। मक्खन तथा अण्डे आदि दरवाज़े में बनी जगह पर रखने चाहिएं।
  3. भोजन पदार्थों को ढक कर रखना चाहिए।
  4. फ्रिज को कभी भी बहुत ज्यादा न भरो क्योंकि इससे चैम्बर में हवा का प्रवाह ठीक तरह नहीं होता।
  5. दरवाज़े को बार-बार नहीं खोलना चाहिए।
  6. फ्रिज के इर्द-गिर्द हवा के प्रवाह के लिए कम-से-कम दीवार से 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। परन्तु आजकल ऐसे फ्रिज आ रहे हैं जिनके लिए बहुत थोड़ी दूरी (10 सें० मी०) भी रखी जा सकती है।
  7. बर्फ को कभी भी चाकू अथवा किसी तेज़ धार वाली चीज़ से नहीं खरोंचना चाहिए।
  8. फ्रिज को कभी भी ऐसे स्थान पर नहीं रखना चाहिए जहां सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हों।
  9. फ्रिज को हमेशा समतल फ़र्श पर रखना चाहिए नहीं तो कण्डैन्सर की मोटर ठीक तरह से कार्य नहीं करेगी तथा दरवाज़ा ठीक तरह से बन्द नहीं हो सकेगा।
  10. थर्मोस्टेट के डायल को इस स्थिति में रखना चाहिए कि जहां फ्रीज़र लगभग 18°C तापमान बनाए रखे।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (9)

कपड़े धोने वाली मशीन-यह भी बिजली से चलने वाला उपकरण है। इसमें कपड़े धोने, खंगालने तथा निचोड़ने जैसे सभी कार्य हो जाते हैं।
सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. मशीन खरीदते समय इसके साथ एक छोटी-सी किताब मिलती है जिसमें इसका प्रयोग तथा सम्भाल बारे आवश्यक निर्देश दिए होते हैं। इस किताब को अच्छी तरह पढ़कर मशीन का प्रयोग करना चाहिए।
  2. मशीन में कभी भी मशीन की क्षमता से अधिक कपड़े नहीं डालने चाहिएं।
  3. धुलाई समाप्त होते ही ‘वाश-टब’ तथा कपड़े सुखाने वाले टब को खाली कर देना चाहिए। फिर वाश टब में साफ़ पानी डालकर तथा मशीन चलाकर इसको अच्छी तरह धोकर रखना चाहिए। महीने में एक बार विलोडक को बाहर निकालकर साफ़ करके सुखाकर अगली बार प्रयोग के लिए अलग करके रख लेना चाहिए।
  4. कभी भी टब को साफ़ करने के लिए कोई सख्त ब्रुश अथवा डिटरजेंट न प्रयोग करें। टब की सफ़ाई के लिए कभी-कभी सिरके के घोल में कपड़ा भिगोकर साफ़ किया जाता है।
  5. मशीन का ढक्कन थोड़ा सा खुला रहने दें ताकि मशीन में से गन्दी बदबू न आए।
  6. पानी निकालने वाली नाली को नीचे करके सारे पानी को निकाल देना चाहिए नहीं तो धीरे-धीरे यह रबड़ की नाली खराब हो जाएगी।
  7. टब में पानी हमेशा टब में बने निशान तक ही डालना चाहिए।
  8. यदि कभी आवश्यकता हो तो मशीन की मरम्मत हमेशा किसी विश्वासपात्र दुकानदार से ही करवानी चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 21.
रसोई में काम आने वाले बिजली के दो उपकरणों के कार्य और देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
रसोई में काम आने वाले बिजली के यन्त्रों में मिक्सी तथा फ्रिज आते हैं। मिक्सी के कार्य-इस उपकरण में गीले तथा सूखे भोजन पदार्थ पीसे जाते हैं। इसमें कूटने, पीसने अथवा पीठी बनाना आदि कार्य किये जाते हैं। इससे समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है।
सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. चलती हुई मोटर पर कभी भी मिक्सी को उतारने अथवा लगाने की कोशिश न करें।
  2. जग को बहुत ज्यादा नहीं भरना चाहिए तथा कम-से-कम इतना पदार्थ अवश्य हो कि ब्लेड पदार्थ में डूबे हों।
  3. तैयार चीज़ को जग से निकालने से पहले स्विच बन्द कर देना चाहिए तथा सामान हमेशा लकड़ी की चम्मच अथवा स्पेचूला से ही निकालना चाहिए।
  4. इसको साफ़ करने के लिए गीले कपड़े से साफ़ करके फिर सूखे कपड़े से पोंछ दो। जग तथा ब्लेड को साबुन तथा गुनगुने पानी के घोल से साफ़ करके पानी से धो लें। फिर सूखे कपड़े से सुखा कर रखो।
  5. मोटर को लगातार अधिक समय के लिए न चलाएं नहीं तो गर्म होकर मोटर सड़ सकती है।
  6. सुरक्षा के तौर पर हमेशा पहले प्लग को स्विच में से निकाल देना चाहिए तथा उसके पश्चात् जग को मोटर से अलग करना चाहिए।
    नोट-फ्रिज के कार्य तथा देखभाल के लिए देखो प्रश्न नं० 20।

प्रश्न 22.
रसोई में बिजली के बिना चलने वाले दो उपकरणों के कार्य और देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
प्रैशर कुक्कर तथा गैस का चूल्हा बिजली के बगैर चलने वाले उपकरण हैं।
प्रैशर कुक्कर का कार्य-प्रैशर कुक्कर खाना पकाने के काम आता है तथा इसमें खाना जल्दी पक जाता है। इससे खाने के पौष्टिक तत्त्व भी खराब नहीं होते।
प्रैशर कुक्कर सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. कुक्कर को प्रयोग से पहले उसकी भाप नली साफ़ कर लेनी चाहिए।
  2. प्रयोग से पहले इसका सेफ्टी वाल्व चैक कर लेना चाहिए।
  3. कुक्कर को कभी भी पूरा ऊपर तक नहीं भरना चाहिए, केवल दो तिहाई हिस्सा ही भरना चाहिए।
  4. कुक्कर को बहुत समय तक आग पर नहीं रखना चाहिए।
  5. इसमें कोई भी भोजन पानी के बिना नहीं डालना चाहिए।
  6. कुक्कर को साफ़ करने के पश्चात् ढक्कन खोलकर रखना चाहिए।
  7. समय-समय पर इसकी रबड़ चैक करते रहना चाहिए।
  8. कुक्कर को कभी भी सोडे से साफ़ नहीं करना चाहिए।
  9. कुक्कर के ढक्कन को न तो आग पर ले जाना चाहिए तथा न ही आग के नज़दीक।

गैस चूल्हे का कार्य-इसका प्रयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है। इसमें सेक को अधिक, कम करने के लिए रेग्यूलेटर लगे होते हैं।
गैस चूल्हे की देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. हमेशा गैस खोलने से पहले माचिस जलानी चाहिए।
  2. इसकी लौ बर्तन से बाहर नहीं होनी चाहिए।
  3. जब काम हो जाए तो पहले सिलिण्डर से गैस बन्द करो तथा फिर चूल्हे के स्विच से। इस तरह करने से पाइप की गैस प्रयोग हो जाती है।
  4. रबड़ की नाली को समय-समय पर चैक करते रहना चाहिए नहीं तो गैस लीक होने का डर रहता है।
  5. गैस सिलिण्डर को आग वाले बर्तनों पर नहीं रखना चाहिए नहीं तो आग लगने का डर रहता है।
  6. प्रयोग के पश्चात् गैस स्टोव को अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
  7. बर्तनों को साफ़ करने के लिए कभी-कभी सोडे के पानी में उबाल लेना चाहिए।

प्रश्न 23.
आजकल गैस के चूल्हे का प्रयोग क्यों बढ़ रहा है ? यह कैसा होता है और इसकी देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
गैस का चूल्हा खाना पकाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक साफ़सुथरा तथा आसान साधन है। इसको जलाना तथा बुझाना बहुत ही असान होता है। इससे बर्तन भी काले नहीं होते। इसलिए इसका प्रयोग बढ़ रहा है।
शेष उत्तर के लिए देखें प्रश्न 13 तथा 22।

प्रश्न 24.
नॉन स्टिक बर्तन कैसे होते हैं ? किस काम आते हैं और इनकी देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
नॉन स्टिक बर्तन एल्यूमीनियम के होते हैं जिनके अन्दर टेफ्लोन की परत चढी होती है। इनमें खाने वाली चीज़ चिपकती नहीं इसलिए घी का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करके चीज़ों को पकाया जा सकता है। इसमें खाने को हिलाने के लिए धातु का चम्मच अथवा कांटे के स्थान पर लकड़ी का चम्मच प्रयोग किया जाता है ताकि टेफ्लोन की परत उतर न जाए। फ्राइपैन आदि के हैण्डल लकड़ी अथवा एक विशेष प्रकार के प्लास्टिक के होते हैं जोकि गर्म नहीं होते। हैण्डल की लम्बाई इस तरह होती है कि उसके भार से पैन उलट न जाए।
सम्भाल –

  1. गर्म बर्तन में पानी नहीं डालना चाहिए, इस तरह करने से धातु खराब हो जाती है।
  2. इस बर्तन में स्टील के चम्मच, कड़छी अथवा कांटे का प्रयोग न करके लकड़ी के चम्मच का प्रयोग करो।
  3. कोई खाने की चीज़ पैन में सड़ गई हो तो पैन में पानी तथा सोडा डालकर धीरे-धीरे गर्म करना चाहिए ताकि जला हुआ खाना जल्दी तथा बिना खरोंचे उतर जाए। इन बर्तनों को प्लास्टिक के फूंदे से साबुन वाले गुनगुने पानी से साफ़ करना चाहिए। अधिक कठोर फूंदे से इस पर खरोंचें पड़ सकती हैं तथा कोटिंग भी खराब हो सकती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 25.
रसोई के बर्तनों की देखभाल कैसे करोगे ? क्या भिन्न-भिन्न धातुओं के बर्तनों की देखभाल भी अलग-अलग की जाती है ?
उत्तर-
विभिन्न किस्मों की धातुओं की सफ़ाई

बर्तनों की किस्म विशेषताएं सफाई तथा देखभाल विशेष सावधानी सफाई के लिए चीजें
1. स्टेनलेस स्टील स्टील, लोहे तथा कार्बन के मिश्रण से बनता है । यह एक मज़बूत धातु है। इससे भोजन पकाने, परोसने तथा भोजन पदार्थ सम्भालने वाले बर्तन बनते हैं। स्टील के बर्तनों को साफ़ करना आसान होता है। किसी साबुन अथवा डिटर्जेंट तथा गर्म पानी से साफ़ करके, साफ़ पानी में धो लें। साफ़ तथा सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखा लो। बर्तन में से जले हुए दाग उतारने के लिए स्टील वूल प्रयोग की जा सकती है। चिकनाई उतारने के लिए अखबार का प्रयोग करना चाहिए। स्टील के बर्तनों को अधिक सेंक नहीं लगाना चाहिए नहीं तो काले निशान पड़ जाते हैं। कुछ मसाले भी स्टील को पीला कर देते हैं। यह दाग कच्चे आलू से उतारे जा सकते है। 1. साबुन तथा डिटर्जेंट

2. रोएं-रहित साफ़ कपड़ा

3. स्टील वूल

4. स्पंज/स्क्रबर

5. कच्चा आलू

2. पीतल यह तांबे तथा जिंक का मिश्रण है। इससे बर्तन तथा सजावट का सामान बनाया जाता है। यह भी एक मजबूत धातु है। पीतल के बर्तनों को विम अथवा राख से साफ़ करके पानी से धोएं, फिर सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखाएं। यदि दाग हों तो नींबू का रस अथवा इमली तथा नमक से रगड़ें। सजावट की चीजों के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग किया जा सकता है। खाने वाले बर्तनों की बाहर से सिरका तथा नमक के मिश्रण से पॉलिश की जा सकती है। यह बर्तन के अन्दर प्रयोग नहीं करना चाहिए। सजावट के सामान पर ब्रासो की”पॉलिश प्रयोग की जा सकती है। 1. गर्म पानी, विम, राख तथा सोडा आदि।

2. नींबू, सिरका, इमली तथा नमक आदि।

3. नर्म कपड़ा

4. ब्रासो पॉलिश

3. एल्यूमीनियम यह एक हल्की धातु होती है। इस पर ऑक्सीकरण का कोई प्रभाव नहीं होता। यह धातु हल्की तथा नर्म होती है। गर्म पानी तथा कोई नर्म डिटर्जेंट अथवा साबुन के घोल से साफ़ करना चाहिए। तेल तथा डिटर्जेंट इसका रंग खराब कर देते हैं। भोजन के सड़ने अथवा दागों को उतारने के लिए गर्म पानी में भिगो कर रख दो, फिर लकड़ी के चम्मच अथवा प्लास्टिक के स्क्रबर से साफ़ करो। लोहे की तारों वाला, स्क्रबर एल्यूमीनियम में लाइनें बना देता है। यदि एल्यूमीनियम का बर्तन काला हो जाये तो कच्चे टमाटर बर्तन में पकाओ अथवा एक गिलास में पानी, 1 चम्मच सिरका डालकर तब तक गर्म करो जब तक कालापन दूर न हो जाये। उस के पश्चात् स्टील वूल तथा साबुन से साफ़ करो। 1. गर्म पानी

2. नर्म साबुन

3. टमाटर, सिरका

4. स्टील वूल

4. लोहा लोहे को यदि पहले गर्म न किया जाए तो ऑक्सीकरण से इस पर जंग लग जाता है। यह धातु भारी तथा कठोर होती है, परन्तु गिरने पर टूट जाती है। गर्म, साबुन वाले पानी में धोना चाहिए, फिर साफ़ पानी में धोकर पोंछ कर सुखा लो अथवा फिर गर्म करके सुखाओ। जले हुए भोजन को उतारने के लिए गर्म पानी में भिगोकर लकड़ी के चम्मच से खरोंचें। जरूरत पड़ने पर बेकिंग पाऊडर छिड़क कर साफ़ किया जा सकता है अथवा फिर छनी हुई रेत से भी रगड़ा जा सकता है। कास्ट आयरन के बर्तनों की सीज़निंग आवश्यक होती है नहीं तो जंग लग जाता है तथा भोजन बर्तन के नीचे लगने लगता है। इसलिए घी अथवा रेत को धीमी आंच पर बर्तन में डालकर काफ़ी देर तक गर्म करो। यह बर्तन कुछ ते” चूस जायेगा। बचा हुआ तेल अथवा घी निकालकर अखबार से पोंछ कर साबुन वाले गर्म पानी से धो लें। लोहे पर किसी प्रकार की पॉलिश की ज़रूरत नहीं। यदि जंग के दाग हों तो मिट्टी के तेल तथा स्टील वूल से साफ़ किए जा सकते हैं। 1. साबुन

2. तारों वाला ब्रुश

3. रेत तथा स्टील वूल

4. बेकिंग सोडा

5. तेल / घी

6. मिट्टी का तेल

5. चांदी यह सफेद रंग की चमकदार धातु होती है। इस पर नमक का हानिकारक प्रभाव होता है। हवा, भोजन तथा धुएं में पाई जाने वाली गन्धक से काले धब्बे पड़ जाते हैं। इस लिए इसकी विशेष देखभाल तथा सम्भाल करनी पड़ती है। इसके गहने, बर्तन तथा सजावट की चीजें बनती हैं। साबुन वाले गर्म पानी में थोड़ा-सा सोडा मिलाकर धोना चाहिए। फिर साफ़ पानी से निकालकर अच्छी तरह पोंछकर सुखाएं। चांदी के बर्तनों में कभी भी बचा हुआ भोजन नहीं रहने देना चाहिए। उसी समय साफ़ कर देना चाहिए। यह बर्तन अधिक समय तक पानी में भी नहीं रहना चाहिए। पोंछ कर सुखाकर टिशू पेपर अथवा फलालेन के कपड़े में लपेट कर रखो। यदि लम्बे समय तक सम्भालना हो तो थोड़ी-सी वैसलीन अथवा तेल मलकर टिशू पेपर में लपेटकर फलालेन की गुथली में रखना चाहिए। पॉलिश लगाने के पश्चात् चीज़ को धीरे से लपेटना चाहिए नहीं तो उस पर उंगलियों के निशान पड़ जाते हैं। पॉलिश करने के लिए सिल्वो का प्रयोग किया जाता है। साफ़ तथा नर्म कपड़े पर लगा कर अच्छी तर चमकाना चाहिए। चांदी की पॉलिश घर में भी बनाई जा सकती है।

सूखी पॉलिश

सामान- सफेदी–8 हिस्से, जौहरी की लाली 1 हिस्सा।

विधि-दोनों चीज़ों को अच्छी तरह मिलाकर एक डिब्बे में डालकर रख लो।तरल पॉलिश सामान-(1) साबुन के टुकड़े 15 ग्राम

(2) जौहरी की लाली-8 हिस्से

(3) मैथिलेटिड स्प्रिट-2 बड़े चम्मच

(4) सफेदी-80 ग्राम

(5) अमोनिया-1 बड़ा चम्मच

(6) उबलता हुआ पानी–250

ग्राम

विधि-साबुन को गर्म पानी में घोल लें तथा ठण्डा होने को रखें। बाकी सारा सूखा सामान एक चौड़े मुंह वाली शीशी में डाल दो, इस पर साबुन का घोल डालो। बाद में अमोनिया तथा स्प्रिट डालकर बोतल का ढक्कन बन्द कर दो। प्रयोग से पहले बोतल को अच्छी तरह हिला लो।

1. साबुन

2. नर्म तथा मुलायम कपड़ा

3. पॉलिश

6. कांच तथा चीनी मिट्टी साधारणतः यह भोजन परोसने वाले बर्तन ही होते हैं पर आजकल कांच के बर्तन ताप निरोधक भी हैं जिनको गैस अथवा ओवन में प्रयोग किया जाता है। गर्म बर्तनों को ठण्डे पानी में नहीं डालना चाहिए। इन बर्तनों को गर्म, साबुन वाले पानी से धोना चाहिए। पानी में थोड़ा-सा बेकिंग सोडा डालने से जमा हुआ भोजन आसानी से उतर जाता है। यदि फ़िर भी बर्तन साफ़ न हों तो लकड़ी का चम्मच अथवा प्लास्टिक का ब्रुश प्रयोग किया जा सकता है। इन बर्तनों को रात भर गन्दे नहीं रहने देना चाहिए। इससे दाल सब्जियों के दाग़ पड़ जाते हैं। साफ़ करके सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखा कर रखें। इन बर्तनों के लिए किसी पॉलिश की ज़रूरत नहीं होती। प्रयोग से पहले यदि थोड़ा-सा घी अथवा तेल बर्तन को लगाया जाए तो भोजन नहीं चिपकता। 1. साबुन

2. बेकिंग सोडा

3. नर्म कपड़ा

7. प्लास्टिक प्लास्टिक के बर्तन भोजन परोसने तथा खाद्य पदार्थ सम्भालने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह बर्तन अधिक ताप सहन नहीं कर सकते, पिघल जाते हैं। धूप में इनका रंग भी खराब हो जाला है। गुनगुने साबुन वाले घोल में स्पंज से साफ़ करने चाहिएं। झरियों आदि में फंसी गन्दगी को साफ़ करने के लिए दांतों वाले ब्रुश का प्रयोग करो। यदि गन्दगी बहुत अधिक जमी है तो मिट्टी के तेल से साफ़ किये जा सकते हैं। धोने के पश्चात् अच्छी तरह सुखा कर पोंछ कर रखो। इन पर किसी पॉलिश की ज़रूरत नहीं। 1. नर्म साबुन

2. मिट्टी का तेल

3. नर्म कपड़ा

प्रश्न 26.
प्रैशर कुक्कर के कार्य और बनावट के बारे में बताओ।
उत्तर-
1. प्रैशर कुक्कर—यह एक बन्द प्रकार का पतीला है, जिसमें बनने वाली भाप का दबाव भोजन को थोड़े समय में पका देता है। इसमें बने भोजन की पौष्टिकता भी बनी रहती है। साथ ही गृहिणी के समय तथा शक्ति का भी बचाव होता है। इस बर्तन को प्रैशर कुक्कर कहा जाता है। यह दबाये अथवा ढाले हुए एल्यूमीनियम अथवा स्टेनलैस स्टील की चादर से बनाये जाते हैं। यह एक गहरे तल वाला बर्तन होता है, जिसकी एक तरफ हैण्डल लगा होता है। इसके ऊपर एक ढक्कन होता है, इस ढक्कन पर दबाव नली वाल्व, वेट तथा सुरक्षित वाल्व लगा होता है। ढक्कन के साथ एक रबड़ का छल्ला होता है, जो इसे अच्छी तरह बन्द करता है। यह साधारणतः दो तरह के होते हैं। पहली किस्म के कुक्कर में एक ढक्कन होता है जो निचले बर्तन (पतीले जैसे) के ऊपरी घेरे के अन्दर सरक जाता है तथा इसका हुक हैण्डल से लगाने के पश्चात् यह कुक्कर की हवा निकलने से रोक देता है (हॉकिन्स तथा यूनाइटिड प्रेशर कुक्कर आदि) दूसरी किस्म के कुक्कर में इसका ढक्कन निचले बर्तन के किनारे से बाहर की ओर लगता है। ढक्कन तथा बर्तन पर बने तीर के निशान ढक्कन बन्द करने तथा खोलने का ढंग बताते हैं। इसमें भी रबड़ का छल्ला एक मज़बूत सील का काम करता है। इसमें पकाने वाले प्रत्येक भोजन के लिए अलग-अलग समय होता है। किसी के लिए दो मिनट, किसी के लिए पांच मिनट आदि। समय पूरा होने पर कुक्कर को आग से उतार लो तथा ठण्डा करने के पश्चात् खोलना चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (10)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 27.
पीतल और चांदी के सजावटी सामान को कैसे साफ़ और पॉलिश करोगे ?

Home Science Guide for Class 9 PSEB घर का सामान Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरो

  1. कुकिंग रेंज साधारणतः …………………. चूल्हों वाले होते हैं।
  2. ………… डबलरोटी के टुकड़ों को सीधा सेंकने के लिए प्रयोग होता है।
  3. फ्रिज के बर्फ वाले खाने में तापमान …………………. °C होता है।
  4. मिक्सी को ………………. भाग से अधिक न भरें।
  5. सौर कुक्कर में खाना पकाने में …………………. घंटे का समय लगता है।

उत्तर-

  1. चार
  2. टोस्टर
  3. 7
  4. 2/3
  5. 3 से 7।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
गैस सिलेण्डर में कितनी गैस होती है ?
उत्तर-
लगभग 15 कि०ग्रा०।

प्रश्न 2.
स्टेनलेस स्टील की खोज कब की गई ?
उत्तर-
1912 में।

प्रश्न 3.
माइक्रोवेव ओवन में भोजन के अणुओं के कांपने की गति बताएं।
उत्तर-
24500 लाख प्रति सेकंड।

प्रश्न 4.
प्रैशर कुक्कर में पतीले की अपेक्षा कितने समय में खाना पक जाता
उत्तर-
एक तिहाई समय।

प्रश्न 5.
हमें कौन-सी मोहर लगी प्रेस खरीदनी चाहिए ?
उत्तर-
आई०एस०आई० मोहर लगी।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. उपकरण खरीदते समय परिवार के बजट की चिन्ता न करें।
  2. फ्रीज़ के बर्फ वाले भाग का तापमान -7°C होता है।
  3. मिक्सी को पूरा भर कर चलाएं।
  4. कुकिंग रेंज प्रायः चार चूल्हों वाले होते हैं।
  5. माइक्रोवेव ओवन में सूक्ष्म तरंगों से गर्मी पैदा होती है।
  6. माइक्रोवेव में भोजन के अणु 24500 लाख प्रति सैकंड की गति से कांपते

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ठीक
  3. ग़लत
  4. ठीक
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घर के सामान का चयन कौन-सी बातों को ध्यान में रखकर करोगे ?
(A) कीमत
(B) स्तर
(C) उपयोगिक
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं –
(A) माइक्रोवेव बिजली से चलने वाला भोजन पकाने के लिए प्रयोग होने वाला उपकरण है।
(B) मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं।
(C) स्टोव की टंकी सदा दो तिहाई ही भरनी चाहिए।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
माइक्रोवेव में भोजन के अणुयों की कंपन गति है –
(A) 20000 लाख प्रति सैकंड
(B) 24500 लाख प्रति सैकंड
(C) 50000 लाख प्रति सैकंड
(D) 10000 लाख प्रति सैकंड।
उत्तर-
(B) 24500 लाख प्रति सैकंड

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घरेलू उपकरण नज़दीक की दुकान से क्यों खरीदने चाहिएं ?
उत्तर-
कई बार जब उपकरण में कोई त्रुटि आ जाती है तो नज़दीक के दुकानदार से इसकी मरम्मत करवाना आसान रहता है।

प्रश्न 2.
घरेलू उपकरण कैसे दुकानदार से खरीदने चाहिएं ?
उत्तर-
इनको ऐसे दुकानदार से खरीदो जो कि ग्राहक को महत्ता देते हों तथा जिनके पास कम्पनी की चीज़ बेचने का लाइसैंस हो।

प्रश्न 3.
प्रैशर कुक्कर को प्रयोग करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर-

  1. यदि दो वस्तुएं इकट्ठी अर्थात् एक समय में ही पकानी चाहें तो इस बात का ध्यान रखने की ज़रूरत है कि जो वस्तुएं पकाना चाहते हो, उन्हें पकाने के लिए लगभग एक-सा समय लगे।
  2. ढक्कन बन्द करते समय यह देखना ज़रूरी है कि कहीं रबड़ का छल्ला न निकला हो।
  3. भोजन पकाते समय पानी हमेशा आवश्यक मात्रा में ही हो।
  4. जब भाप निकास नली से निकलती दिखाई दे तो दबाव को ठीक कर देना चाहिए अर्थात् सेक कम कर दो।
  5. भोजन पकाने के पश्चात् कुक्कर को कभी भी नहीं खोलना चाहिए, ऐसा करने से भाप तुरन्त तेज़ी से बाहर निकलती है तथा इससे मुंह की चमड़ी जलने का भय रहता है।

प्रश्न 4.
स्टोव की देखभाल तथा सफ़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. बत्तियों वाले स्टोव की बत्तियां ऊपर से काटते रहना चाहिए।
  2. स्टोव की टंकी हमेशा दो तिहाई ही भरनी चाहिए।
  3. रोज़ाना स्टोव को गीले कपड़े से बाहर से अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
  4. जलते हुए स्टोव में कभी भी तेल नहीं डालना चाहिए।
  5. हवा वाले स्टोव में अधिक हवा भरने से स्टोव फट सकता है।

प्रश्न 5.
टोस्टर की देखभाल तथा सफ़ाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. टोस्ट को निकालने के लिए कभी भी चाकू अथवा कांटे का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे ऐलीमेण्ट की तार को नुकसान हो सकता है।
  2. हर बार टोस्टर को प्रयोग के पश्चात् टोस्टर को उल्टा करके डबलरोटी के टुकड़ों को निकालने के लिए टोस्टर को हाथ से हल्का थपथपा दो।
  3. प्रयोग के समय हमेशा टोस्टर को तापरोधक तथा बिजली के कुचालक स्थान पर ही रखना चाहिए।
  4. काम खत्म करके टोस्टर को बिजली के सम्पर्क से अलग करके ठण्डा होने दें, फिर तार को इसके आस-पास लपेट कर रख दो।

प्रश्न 6.
कपड़े धोने वाली मशीन का चुनाव करते समय कौन-सी बातें ध्यान में रखनी चाहिएं ?
उत्तर-

  1. मशीन की लागत तथा उसे चलाते समय होने वाले खर्च की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
  2. मशीन की गारण्टी बारे जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
  3. मशीन में कोई तीखी चीज़ न हो जिससे अटक कर कपड़ों के फटने का डर हो।
  4. मशीन की तारें ताप रोकने वाली हों।
  5. मशीन पर एनेमल की परत होनी चाहिए। एल्यूमीनियम की मशीन शीघ्र खराब हो जाती है तथा स्टैनलैस स्टील की मशीन की लागत अधिक होती है।

प्रश्न 7.
उपकरण अच्छी कम्पनी का ही खरीदना चाहिए ? क्यों ?
उत्तर-
कोई भी उपकरण अच्छी कम्पनी का इसलिए खरीदना चाहिए क्योंकि अच्छी कम्पनियां अपने उपकरणों पर गारण्टी देती हैं। यदि यह खराब हो जाएं तो कम्पनी वाले उपकरण को मुफ्त ठीक कर देते हैं।

प्रश्न 8.
उपकरण ज़रूरत के अनुसार खरीदना चाहिए न कि सजावट के लिए । क्यों ?
उत्तर-
उपकरणों का प्रयोग तथा खरीद इसलिए किया जाता है ताकि समय तथा शक्ति बच जाए। इसलिए इन्हें आवश्यकतानुसार खरीदना चाहिए न कि सजावट के लिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 9.
रैफ्रिजरेटर की देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
खाने वाली चीज़ों को ठीक तापमान के अनुसार शैल्फ में रखो जैसे मांस तथा मछली को बर्फ़ वाले खाने (freezer) में तथा सब्जियों को निचली तरफ रखो। सारे फ्रिज में बदबू न फैले इसलिए मांस मछली को प्लास्टिक के लिफ़ाफे में डालकर रखो । फ्रिज में खाना हमेशा ढककर रखो। 15 दिन बाद फ्रिज की सफ़ाई अवश्य करो ताकि फालतू बर्फ़ तथा जमा हुआ पानी साफ़ हो जाए। इससे फ्रिज़ की कार्यकुशलता बढ़ती है। फ्रिज का दरवाज़ा बार-बार नहीं खोलना चाहिए। इससे फ्रिज का तापमान घटता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़े धोने वाली मशीन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
कपड़े धोने वाली मशीन-विशेषतः काम-काजी गृहणियों के लिए यह मशीन बहुत लाभदायक है। यह कपड़े धोने के कार्य को बहुत आसान कर देती है। आजकल दो तरह की कपड़े धोने की मशीनें मिलती हैं। एक विलोडक किस्म तथा दूसरी बेलनाकार। यह विलोडक मोटर के चलने से घूमता है। इसके इर्द-गिर्द ब्लेड लगे होते हैं। इन ब्लेडों की संख्या, आकार तथा बनावट अलग-अलग होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (11)

इसके अतिरिक्त ये मशीनें स्वैचालित तथा अर्द्ध-स्वैचालित भी होती हैं। फुली ऑटोमैटिक मशीनों में एक ही टब होता है। इसकी पानी लेने वाली नाली की पक्की फिटिंग पानी वाली टूटी से की जाती है जहां से मशीन चलाने पर यह अपने आप पानी लेकर, सर्फ लेकर, धोकर तथा सुखा कर ही बन्द होती है। जबकि सेमी-ऑटोमैटिक मशीन में दो टब होते हैं। एक कपड़े धोने के लिए तथा दूसरा कपड़े खंगालने तथा सुखाने के लिए। इसमें कपड़े धोने के पश्चात् कपड़ों को निकाल कर दूसरे टब में डाला जाता है तथा पानी का रुख भी दूसरे टब में करना पड़ता है। फिर यहां कपड़े खंगालने के पश्चात् पानी बन्द कर दिया जाता है तथा कपड़े अपने आप सूख जाते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत् प्रैस बारे आप क्या जानते हैं ? इसकी देखभाल तथा सफ़ाई बारे आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
विद्युत् प्रैस कपड़ों की सिलवटें निकालने तथा चमक लाने के लिए प्रैस का प्रयोग किया जाता है। प्रैसें भी कई तरह की होती हैं, जैसे-शुष्क प्रैस; वाष्प तथा शुष्क प्रैस : छिड़काव, वाष्प तथा शुष्क प्रैस। शुष्क प्रैसें सिंथैटिक कपड़ों के लिए ठीक होती हैं जबकि सूती तथा ऊनी कपड़ों के लिए छिड़काव तथा वाष्य प्रैसे बढ़िया रहती हैं। ऐसी प्रैस से कपड़े भी अच्छे प्रैस होते हैं तथा समय और शक्ति भी कम लगते हैं। इन पैसों में एक थर्मोस्टेट होता है जो तापमान को कण्ट्रोल करता है। इसके ऊपर ही विभिन्न कपड़ों के नाम भी लिखे होते हैं जैसे-सती, ऊनी, रेशमी आदि। जिस तरह के कपडे प्रेस करने हों, थर्मोस्टेट को वहां सैट किया जाता है। इन प्रैसों में पानी डालने के लिए सामने एक रास्ता बना होता है। प्रेस के साथ ही एक कप भी मिलता है जिससे पानी डाला जाता है। प्रेस के सामने हैण्डल से एक यन्त्र होता है जिसको दबाने से सामने से पानी का छिड़काव हो जाता है। इसी तरह भाप के लिए प्रैस के तल पर छिद्र होते हैं जिनके द्वारा भाप निकलती है। प्रैस के तल की प्लेट जंग रहित धातु की बनी होती है। बिजली की तार प्रेस के पीछे लगी होती है।
देखभाल तथा सफ़ाई –

1. प्रेस के प्रयोग के पश्चात् इसका प्लग स्विच से निकाल देना चाहिए।
2. प्रयोग के बाद ठण्डी होने पर तार हैण्डल के इर्द-गिर्द लपेट कर अच्छी तरह से खड़ी करके रखनी चाहिए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (12)

3. वाष्प तथा छिड़काव वाली प्रैस में हमेशा डिसटिल्ड पानी ही डालना चाहिए।
4. दाग लगने पर तल को खरोंचना नहीं चाहिए अपितु प्रैस को पूरा गर्म करके अखबार पर नमक डालकर उस पर फेरना चाहिए, दाग साफ़ हो जाएंगे।
5. अधिक गन्दी प्रैस को पैराफिन मोम से साफ़ किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
कुकिंग रेंज की देखभाल तथा सफ़ाई बारे क्या जानते हो ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. बिजली से चलने वाले कुकिंग रेंज को लकड़ी के फट्टे पर रखना चाहिए।
  2. कुकिंग रेंज को प्रयोग के पश्चात् ठण्डा होने पर साफ़ करना चाहिए।
  3. इसकी सफ़ाई के लिए पानी तथा साबुन का प्रयोग करना चाहिए तथा बाद में सूखे कपड़े से पोंछना चाहिए। यदि फिर भी सफ़ाई ठीक न हो तो सोडे का प्रयोग किया जा सकता है, पर यदि कुकिंग रेंज एल्यूमीनियम का है तो फिर सोडा प्रयोग न करें।
  4. बर्तनों की सफ़ाई के लिए कभी-कभी इन्हें सोडे के पानी में उबाल देना चाहिए। फिर ब्रुश से साफ़ करके पानी से धोकर धूप में सुखा लें।
  5. ओवन तथा ग्रिल से भोजन निकालने के पश्चात् थोड़ी देर उसके दरवाजे खुले रहने देने चाहिएं क्योंकि भोजन पकने के दौरान भाप से अन्दर नमी हो जाती है, दरवाजा खुला रखने से यह सूख जाएगी नहीं तो जंग लग सकता है।

प्रश्न 4.
घरेलू उपकरणों के सुरक्षित प्रयोग के लिए कुछ ध्यान रखने योग्य बातें बताओ।
उत्तर-

  1. जब कोई भी उपकरण खरीदते हैं तो उसके साथ एक छोटी-सी किताब मिलती है जिसमें उपकरण की बनावट तथा प्रयोग बारे जानकारी दी होती है, उसको अच्छी तरह पढ़कर उसमें दिये निर्देशों के अनुसार इनका प्रयोग करना चाहिए।
  2. बिजली वाले यन्त्रों को प्लग लगाते समय दो पिनों वाले प्लग के स्थान पर तीन पिनों वाले प्लग को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि इसमें तीसरी तार अर्थ वाली होती है। यदि कभी शार्ट सर्किट हो जाए तो उपकरण जलने से बच जाता है।
  3. बिजली वाले यन्त्रों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए।
  4. बिजली वाले यन्त्रों को कभी भी चलते समय गीले हाथ नहीं लगाने चाहिएं।
  5. प्रयोग के पश्चात् साफ़ करते समय यन्त्र की मोटर में पानी नहीं पड़ना चाहिए। उसे केवल गीले कपड़े से ही साफ़ करना चाहिए।
  6. बिजली के यन्त्र की कभी भी सीधी तारें नहीं लगानी चाहिएं। विद्युत् टेस्ट पैन तथा विद्युत् निरोधक टेप घर में अवश्य रखने चाहिएं।
  7. प्रयोग के पश्चात् पहले यन्त्र का बटन बन्द करना चाहिए तथा फिर प्लग में से शू निकालना चाहिए।
  8. गैस के चूल्हों को साफ़ रखना चाहिए। गैस वाली नाली की समय-समय पर परख करते रहना चाहिए ताकि गलने अथवा टूटने से गैस लीक न हो। हो सके तो हर छः मास पश्चात् पाइप बदल लेनी चाहिए।
  9. गैस के प्रयोग के पश्चात् इसको रेग्यूलेटर से बन्द करो तथा फिर चूल्हे के स्विच बन्द करो।
  10. गैस का सिलिण्डर बदलते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए। सिलिण्डर बदलने के पश्चात् साबुन वाला घोल अथवा गैस टैस्ट करने वाला तरल लगाकर टैस्ट कर लेना चाहिए कि गैस लीक तो नहीं कर रही। लीक करता हुआ सिलिण्डर नहीं लगाना चाहिए।
  11. बत्तियों वाले स्टोव की बत्तियां हमेशा साफ़ रखनी चाहिएं ताकि स्टोव धुआं न दें। कभी भी जलते स्टोव में तेल नहीं डालना चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

घर का सामान PSEB 9th Class Home Science Notes

  • घरेलू उपकरणों के प्रयोग से समय तथा शक्ति दोनों की बचत हो जाती है।
  • बाज़ार में सर्वेक्षण करने के पश्चात् ही सामान खरीदना चाहिए।
  • सामान ऐसे दुकानदार से खरीदो जो कम्पनी की ओर से नियत डीलर हो तथा ग्राहक को महत्ता देता हो।
  • उपकरण अच्छी कम्पनी के ही खरीदने चाहिएं।
  • उपकरण खरीदते समय पारिवारिक बजट का ध्यान रखना चाहिए।
  • फ्रिज खाने वाले पदार्थों को ठण्डा रखने के काम आता है।
  • फ्रिज बिजली से चलता है तथा इसमें 4-5 °C से भी कम तापमान होता है।
  • फ्रिज के बर्फ वाले खाने में तापमान – 7°C होता है।
  • कपड़े धोने वाली मशीन बिजली से चलती है तथा इससे कपड़े धोने का काम आसान हो जाता है।
  • यह मशीन दो तरह की होती है, ऑटोमैटिक तथा सेमी-ऑटोमैटिक।
  • ऑटोमैटिक मशीनें कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं।
  • बिजली से चलने वाली प्रैसें दो तरह की होती हैं: ऑटोमैटिक तथा सेमी ऑटोमैटिक।
  • प्रैस का जो हिस्सा कपड़े को छूता है उसे तला कहते हैं।
  • टोस्टर का प्रयोग डबलरोटी के टुकड़ों को सेंकने के लिए किया जाता है।
  • मिक्सी से मसाले पीसना, रगड़ना तथा मिलाने का काम आसानी से हो जाता
  • इससे मिल्क शेक, जूस, सूप, आदि बनाए जाते हैं।
  • विभिन्न कामों के लिए मिक्सी में अलग-अलग ब्लेड लगे होते हैं।
  • मिक्सी को 2/3 हिस्से से अधिक नहीं भरना चाहिए तथा उपरि ढक्कन बन्द करके रखना चाहिए।
  • बिजली की मिक्सी महंगी होने के कारण कुछ लोग हाथ से चलने वाला ग्राइंडर प्रयोग करते हैं। इसमें गीला अथवा सूखा मसाला डालकर पीसा जाता है।
  • प्रेशर कुक्कर दालें, सब्जियां बनाने के काम आता है। यह एल्यूमीनियम अथवा स्टील का बना होता है।
  • प्रैशर कुक्कर का ढक्कन बन्द करके इस पर एक भार लगाया जाता है, यह ध्यान रखें कि इस भार वाला सुराख खुला होना चाहिए।
  • कुक्कर में खाना पकने को एक तिहाई समय लग जाता है।
  • प्रैशर कुक्कर में भोजन के पौष्टिक तत्त्व खराब नहीं होते।
  • खाना पकाने का कार्य गैस के चूल्हे पर किया जाता है।
  • मुम्बई, कोलकाता आदि जैसे शहरों में गैस पानी की तरह पाइपों द्वारा घरों में जाती है।
  • गैस का चूल्हा खाना पकाने का एक साफ़-सुथरा तथा आसान साधन है।
  • कुकिंग रेंज साधारणतः चार चूल्हों वाले होते हैं।
  • इनके साथ भूनने, सेंकने तथा उबालने अथवा तलने का कार्य किया जा सकता है। इस तरह समय की बचत हो जाती है।
  • यदि गैस चूल्हे अथवा गैस लीकेज में समस्या आए तो विशेषज्ञ से ही खुलवाएं।
  • मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं, पम्म वाले तथा बत्तियों वाले।
  • रसोई के बर्तन कई धातुओं के बने हो सकते हैं। जैसे, पीतल, तांबा, चांदी, एल्यूमीनियम, लोहा तथा स्टील आदि।
  • बायोगैस प्लांट में जानवरों के मलमूत्र से गैस बनाई जाती है जिसे गोबर गैस कहते हैं।
  • सोलर कुक्कर. ऐसा उपकरण है जोकि सौर ऊर्जा का प्रयोग करके खाना पकाने के काम आता है।
  • ओवन बिजली अथवा गैस पर काम करने वाला उपकरण है। इसमें भोजन बेक किया जाता है तथा सेंका जाता है।
  • माइक्रोवेव ओवन एक विशेष प्रकार का ओवन होता है। इसमें विद्युत् चुम्बकीय तरंगें पैदा करने वाला चुम्बकीय यन्त्र लगा होता है। यह सूक्ष्म तरंगें (माइक्रोवेवस) पैदा करता है।
  • सूक्ष्म तरंगों को चूसने पर गर्मी पैदा होती है। भोजन के अणु 24500 लाख प्रति सैकिण्ड की गति से कांपते हैं। अणुओं को इतना तेज़ी से रगड़ने पर बहुत गर्मी पैदा होती है।
  • स्टील की सफ़ाई साबुन अथवा विम तथा पानी से की जाती है।
  • काँच के बर्तनों को गिलास, कप, प्लेट आदि को विम आदि से साफ़ किया जाता है।
  • मेल्मोवेयर नई तरह का कठोर प्लास्टिक होता है। इसकी सफ़ाई साबुन वाले पानी अथवा डिटर्जेंट के घोल में कपड़ा भिगोकर की जाती है। अधिक गन्दा होने की सूरत में सोडे का पानी (सोडा बाइकार्बोनेट) का प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता

Punjab State Board PSEB 8th Class Physical Education Book Solutions Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Physical Education Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता

PSEB 8th Class Physical Education Guide नशों के प्रति जागरूकता Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
नशीले पदार्थों के सेवन से क्या होता है?
उत्तर-
आजकल निम्नलिखित नशीले पदार्थों के कुप्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ते हैं:

  • शरीर पर कुप्रभाव-नशे के पदार्थों के सेवन से मनुष्य की पाचन प्रणाली, मांसपेशी प्रणाली, रक्त प्रणाली, स्वास्थ्य प्रणाली में कई प्रकार के रोग लग जाते हैं। लगातार नशीले पदार्थों के सेवन से हाथ, पांव कांपने लग जाते हैं और रक्त प्रभाव बढ़ जाता है।
  • सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव-नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव पड़ता है। समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं रहती। उसके साथ कोई व्यक्ति मेल-मिलाप नहीं रखना चाहता है और उसके चरित्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • व्यवहार पर कुप्रभाव-नशों के सेवन से व्यक्ति का अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। वह नशे में बिना किसी कारण के झगड़ा कर लेता है और उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता है। अपने मित्रों और परिवार से अलग रहने लग जाता है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 2.
नशे के बढ़ रहे रुझान के कौन-कौन से कारण हैं ?
उत्तर-
नशे के प्रति बढ़ रहे रुझान के भिन्न-भिन्न कारण हैं :

  • सामाजिक कारण-चल-चित्र में दिखाए जाने वाले नशों के दृश्य बच्चों को नशीले पदार्थों का सेवन करने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे हीरो और हिरोइन की नकल उतारने में अपनी शान समझते हैं।
  • तकनीक का प्रभाव-आजकल इंटरनेट में बच्चे नशे करने के नए-नए ढंग सीखते हैं। इस तरह नई तकनीक के प्रभाव के कारण बच्चे नशे के जाल में फंस जाते हैं।
  • पारिवारिक कारण-परिवार में झगड़ा, अनबन और तलाक की स्थिति का माहौल हो तो बच्चे बिगड़ जाते हैं। माता-पिता का अधिक प्यार भी बच्चों को बिगाड़ देता है। इन परिस्थितियों में बच्चों पर मानसिक दबाव रहता है और वह नशे की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।
  • मित्र मंडली का प्रभाव-बच्चा अपना अधिक-से-अधिक समय अपने मित्रों के साथ बिताता है, जिसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। यदि मित्र मंडली में कोई भी उसका साथी नशे का सेवन करता है तो उसे भी नशीले पदार्थों की आदत पड़ जाएगी।
  • अपने साथियों में दिखावा-बच्चा जब अपने मित्रों के साथ रहता है, तो दूसरे बच्चों के आर्थिक स्तर से तुलना करने की कोशिश करता है। इस प्रकार वह नशीले पदार्थों का सेवन करके अपने सिर को दूसरे बच्चों से ऊंचा दिखाना चाहता है।

प्रश्न 3.
नशों के कुप्रभाव लिखिए।
उत्तर-

  • शरीर पर कुप्रभाव-नशे मनुष्य के शरीर को खोखला कर देते हैं। नशीले पदार्थ व्यक्ति की सभी प्रणालियों पर बुरा प्रभाव डालते हैं और व्यक्ति नशों के कारण रोगी रहने लग जाता है। उसकी मांसपेशियां कमज़ोर होने लग जाती हैं। उसकी याददाश्त भी कमजोर हो जाती है। व्यक्ति को कैंसर जैसे रोग होने का डर लगा रहता है। नशे करने वाले व्यक्ति के हाथ-पांव कांपने लग जाते हैं और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है।
  • सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव-यहां नशीले पदार्थों का सेवन व्यक्ति के व्यवहार और शरीर पर कुप्रभाव डालता है वहां पर सामाजिक जीवन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • व्यवहार पर कुप्रभाव-नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्ति का अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। बिना किसी कारण नशे की हालत में लोगों से लड़ाई-झगड़ा करने लग जाता है। इस प्रकार वह अपने दोस्तों और परिवार से अलग हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशे की रोकथाम के लिए कौन-कौन से ढंग होते हैं ?
उत्तर-

  • खेलें तथा मनोरंजन क्रियाएं-खेल बच्चों के शरीर को स्वस्थ करते हैं – और उनके खाली समय का सदुपयोग होता है जिससे उनका ध्यान नशीले पदार्थों की तरफ नहीं जाता है।
  • सेमीनार लगाना-बच्चों को नशों के कुप्रभाव के बारे में जानकारी देने के लिए कॉलेज, स्कूलों में सेमीनार का आयोजन करना चाहिए। इस प्रकार सेमीनार में विशेषज्ञों को आमंत्रित करके बच्चों को नशे के कुप्रभाव के बारे में जानकारी देनी चाहिए। जानकारी मिलने पर बच्चे नशीले पदार्थों से दूर रहेंगे।
  • मनोवैज्ञानिक तैयारी-नशे करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि वह नशा करता है। इसलिए नशे करने वाले व्यक्ति के साथ मित्रता और प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए। प्यार से यदि नशा करने वाला व्यक्ति नशीले पदार्थों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाए तो उसकी सहायता करनी चाहिए।
  • परिवार की भूमिका-नशीले पदार्थों का सेवन छुड़ाने के लिए परिवार को बहुत सहायता करनी चाहिए। क्योंकि यदि नशेड़ी से प्यार न किया जाए तो वह अपने आपको अकेला महसूस करता है। इसलिए नशेड़ी व्यक्ति को परिवार की तरफ से पूर्ण सहयोग मिलना चाहिए।
  • योग अभ्यास-योग भारत की प्राचीन संस्कृति है और विश्व भर में इसकी बहुत देन है। योग द्वारा मानसिक तथा शारीरिक तनाव दूर हो जाते हैं और व्यक्ति उसके लगातार अभ्यास से शारीरिक और मानसिक रोगों से बच जाता है और नशे की आदत से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
  • प्रेरणा-बच्चों को नशीले पदार्थों का सेवन करने से दूर रखने के लिए अध्यापक और माता-पिता प्रेरणा देकर महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। उनको चाहिए कि वे समयसमय पर नशों के कुप्रभाव के बारे में बच्चों को बताते रहें, जिससे वे प्रेरणा लेकर नशों की तरफ न जाएं।

Physical Education Guide for Class 8 PSEB नशों के प्रति जागरूकता Important Questions and Answers

बहुविकल्पाय प्रश्न

प्रश्न 1.
नशे के कुप्रभाव लिखें –
(क) नशे से मनुष्य खोखला हो जाता है
(ख) कई प्रकार के रोग लग जाते हैं
(ग) पाचन और मांस पेशी प्रणाली खराब हो जाती है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
नशे के बढ़ रहे रुझान के कारण हैं –
(क) सामाजिक कारण
(ख) तकनोलजी का प्रभाव
(ग) पारिवारिक कारण ।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
नशे को रोकने के उपाय हैं –
(क) प्रेरणा
(ख) सैमीनार लगाना
(ग) मनोवैज्ञानिक तौर पर प्यार करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 4.
नशीले पदार्थों के कोई चार नाम लिखें –
(क) शराब
(ख) तम्बाकू
(ग) अफीम और गांजा
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

बहुत छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नारकोटिक्स क्या है ?
उत्तर-
यह वह पदार्थ है जिनका सेवन करने से व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक तौर पर संतुलन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 2.
नशीले पदार्थ खाने वाले मनुष्य में क्या-क्या तबदीलियां आती हैं ?
उत्तर-
यह पदार्थ खाने वाले मनुष्य में अनोखा बदलाव आता है। उसको आस-पास की सुधबुध नहीं रहती।

प्रश्न 3.
नशीले पदार्थ खाने वाले पर क्या प्रभाव पड़ते हैं ?
उत्तर-
यह नशीले पदार्थ मनुष्य के सामाजिक और आर्थिक तौर पर परिवार को बर्बाद कर देते हैं। वह अपने परिवार में अपना विश्वास खो देता है।

प्रश्न 4.
नशीले पदार्थ खाने वाले के कोई दो बुरे प्रभाव लिखो।
उत्तर-

  1. सामाजिक तौर पर व्यक्ति दुःखी हो जाता है।
  2. पारिवारिक सम्बन्ध टूट जाते हैं।

प्रश्न 5.
नशीले पदार्थ खाने से शरीर पर क्या बुरा प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
1. शरीर और मन काबू नहीं रहता।
व्यवहार बदल जाता है।

प्रश्न 6.
नशीले पदार्थ से छुटकारा पाने के लिए कोई दो तरीके लिखो।
उत्तर-

  • प्रेरणा-बच्चे को नशीले पदार्थ छुड़वाने में माता-पिता, स्कूल अध्यापक और बड़े बुजुर्ग प्रेरणा देकर बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक तरीका-नशीले पदार्थों से छुटकारा पाना बहुत कठिन है और व्यक्ति को मानसिक तौर पर नशीले पदार्थ छोड़ने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रश्न 1.
नारकोटिक्स से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नारकोटिक्स वह पदार्थ हैं, जिनके सेवन से व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है। उससे कोई मित्रता नहीं करना चाहता और उसके रिश्तेदार उससे दूर रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
नशे के प्रति बढ़ रहे रुझान के कारण लिखें।
उत्तर-

  • कई दफा बच्चे अपने आपका दूसरे परिवारों से मुकाबला करने लगते हैं। अपने आप के लिए ऊंची-ऊंची बातें करते हैं और नशीले पदार्थ लेने लग जाते हैं।
  • तकनीक का प्रभाव-आजकल इंटरनैट ने बच्चों को बहुत प्रभावित किया है और बच्चे नए-नए तरीकों से इंटरनैट से नशे करने के लिए आकर्षित हो जाते हैं।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 3.
नशे से शरीर पर बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-
नशीले पदार्थों का सेवन व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक तौर पर खोखला कर देता है। उसके साथ कोई भी दोस्ती नहीं करना चाहता और उसका सामाजिक जीवन भी बर्बाद हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशे के कुप्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशे से शरीर खोखला हो जाता है। नशीले पदार्थ के सेवन से पाचन प्रणाली में रोग लग जाते हैं। कई दफ़ा व्यक्ति को कैंसर जैसे रोग का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति का रक्त संचार बढ़ जाता है और मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं । हृदयघात की संभावना बढ़ जाती है। अधिक नशीले पदार्थ का सेवन करने से व्यक्ति के हाथ-पांव कांपने लगते हैं।