PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

SST Guide for Class 8 PSEB स्त्रियां तथा सुधार Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को कब, किसने तथा किसके प्रयास से अवैध घोषित किया गया था ?
उत्तर-
सती प्रथा को 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से अवैध घोषित किया था।

प्रश्न 2.
किस वर्ष में विधवा-विवाह कराने की कानूनी तौर पर आज्ञा दी गई ?
उत्तर-
विधवा-विवाह कराने की कानूनी आज्ञा 1856 ई० में दी गई।

प्रश्न 3.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) की स्थापना कब तथा किसने की ?
उत्तर-
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 ई० में सर सैय्यद अहमद खां ने की। उस समय इसका नाम मोहम्मडन एंग्लो-ओरियेंटल कालेज था।

प्रश्न 4.
नामधारी आन्दोलन की स्थापना कब, कहां तथा किसके द्वारा हुई ?
उत्तर-
नामधारी आन्दोलन की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 को भैणी साहिब (लुधियाना) में श्री सतगुरु राम सिंह जी द्वारा हुई।

प्रश्न 5.
सिंह सभा लहर ने स्त्री शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहां-कहां शिक्षण संस्थाएं स्थापित की ?
उत्तर-
सिंह सभा ने स्त्री-शिक्षा के लिए फ़िरोज़पुर, कैरो तथा भमौड़ में शिक्षण संस्थाएं स्थापित की।

प्रश्न 6.
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध कब तथा किसके प्रयास से लगाया गया था ?
उत्तर-
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध 1872 ई० में केशव चन्द्र सेन के प्रयासों से लगाया गया था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय द्वारा स्त्रियों के उद्धार से सम्बन्धित दिए गए योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिंक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

प्रश्न 8.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

प्रश्न 9.
सर सैय्यद अहमद खां द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए किये गये प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा-प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वह समाज में प्रचलित दासता की प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

प्रश्न 10.
स्वामी दयानन्द जी द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा, अर्थात् बाल-विवाह का कड़ा विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए उन्होंने अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

प्रश्न 11.
19वीं सदी में स्त्रियों (महिलाओं) की दशा का वर्णन करें।।
उत्तर-
19वीं सदी में भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय थी। उस समय भारत में सती प्रथा, कन्या हत्या, दास प्रथा, पर्दा, प्रथा, विधवा विवाह निषेध तथा बहु-विवाह आदि कुरीतियों ने महिलाओं का जीवन दूभर बना दिया था। भारतीय समाज में से इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए 19वीं शताब्दी में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन आरम्भ किये गये।
स्त्रियों की दशा को दयनीय बनाने वाली मुख्य कुरीतियां-

1. कन्या-वध-समाज में कन्या के जन्म को अशुभ समझा जाता था, जिसके कई कारण थे। प्रथम, कन्याओं के . विवाह पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था जो आम आदमी के वश की बात नहीं थी। दूसरे, माता-पिता को अपनी कन्याओं के लिए योग्य वर खोजना कठिन हो जाता था। तीसरे, यदि कोई माता-पिता अपनी कन्या का विवाह नहीं कर पाते थे तो इसे बुरा माना जाता था। अतः अनेक लोग कन्या को जन्म लेते ही मार देते थे।

2. बाल-विवाह-कन्याओं का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इसलिए कन्याएं प्रायः अनपढ़ (अशिक्षित) ही रह जाती थीं। यदि किसी लड़की का पति छोटी आयु में ही मर जाता था तो उसे सती कर दिया जाता था या फिर उसे जीवन भर विधवा ही रहना पड़ता था।

3. सती-प्रथा-सती-प्रथा के अनुसार यदि किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसे जीवित ही पति की चिता पर जला दिया जाता था।

4. विधवा-विवाह निषेध-समाज की ओर से विधवा-विवाह पर कड़ी रोक लगाई गई थी। विधवा का समाज में अनादर किया जाता था। उनके केश काट दिये जाते थे और उन्हें सफेद वस्त्र पहना दिए जाते थे।

5. पर्दा-प्रथा-पर्दा-प्रथा के अनुसार महिलाएं सदा पर्दा करके ही रहती थीं। इसका उनके स्वास्थ्य एवं विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता था।

6. दहेज-प्रथा-दहेज-प्रथा के अनुसार विवाह के समय पर कन्या को दहेज दिया जाता था। निर्धन लोगों को दहेज देने के लिए साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था। अतः कई कन्याएं आत्म-हत्या कर लेती थीं।

7. महिलाओं को अशिक्षित रखना- अधिकतर लोगों द्वारा कन्याओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। उनको शिक्षित करना व्यर्थ माना जाता था, ताकि शिक्षा द्वारा उन्हें आवश्यकता से अधिक स्वतन्त्रता न मिल सके। कन्याओं को शिक्षित करना समाज के लिए भी हानिकारक माना जाता था।

8. हिन्दू समाज में महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार न देना-हिन्दू समाज में महिलाओं को अपनी पैतृक सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 12.
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में अलग-अलग समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में भिन्न-भिन्न समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन इस प्रकार है

1. राजा राममोहन राय-राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज-सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा-प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

2. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अनथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

3. सर सैय्यद अहमद खां-सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समृद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वे समाज में प्रचलित दास प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

4. स्वामी दयानन्द सरस्वती-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा अर्थात् बालविवाह का कड़ा विरोध किया। वह विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। उन्होंने असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

5. श्रीमती ऐनी बेसेंट-श्रीमती ऐनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्य थीं। इस संस्था ने स्त्री जाति के उद्धार के लिए बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह के पक्ष में आवाज़ उठाई। शिक्षा के विकास के लिए इस संस्था ने स्थान-स्थान पर बालक-बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में इसने बनारस में हिन्दू कॉलेज स्थापित किया। यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की शिक्षा भी दी जाती थी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 13.
बहुत से सुधारकों ने स्त्रियों की दशा की ओर विशेष ध्यान क्यों दिया ?
उत्तर-
अनेक समाज-सुधारकों ने महिलाओं की समस्याओं पर निम्नलिखित कारणों से विशेष ध्यान दिया-

  • विभिन्न समाज-सुधारकों का कहना था कि समाज द्वारा महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं जिन्हें रोकना अनिवार्य है।
  • समाज-सुधारकों का विचार था कि समाज में वर्तमान बुराइयों को समाप्त करने के लिए महिलाओं को शिक्षित करना आवश्यक है।
  • उन्होंने अनुभव किया कि यदि देश को विदेशी राजनीतिक दासता से स्वतन्त्र करवाना है तो सर्वप्रथम अपने घर और समाज का सुधार करना होगा।
  • उन्होंने यह भी अनुभव किया कि समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम महिलाओं की दशा सुधारना आवश्यक है।
  • समाज-सुधारकों का मानना था कि देश की लोकतन्त्र प्रणाली समाज में समानता के बिना अधूरी है। अत: उन्होंने महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान अधिकार दिलाने का प्रयास किया।

प्रश्न 14.
महाराष्ट्र के समाज सुधारकों द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए दिए गए योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
महाराष्ट्र में समाज सुधारकों ने विभिन्न संस्थाएं स्थापित की। इन्हीं संस्थाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए विशेष अभियान चलाये जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परमहंस सभा-19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के समाज सुधारकों ने समाज में जागृति लाने के लिए आन्दोलन आरम्भ किये। 1849 ई० में परमहंस मण्डली की स्थापना की गई। इसने मुम्बई में धार्मिक-सामाजिक सुधार आन्दोलन आरम्भ किये। इसका मुख्य उद्देश्य मूर्ति-पूजा तथा जाति-प्रथा का विरोध करना था। इस सभा ने नारी-शिक्षा के लिए कई स्कूलों की स्थापना की। इसने सायंकाल को शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं की भी स्थापना की। ज्योतिबा फुले ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पिछड़ी जाति की कन्याओं के लिए पुणे में एक स्कूल खोला। उन्होंने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए भी प्रयत्न किये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में सरकार ने विधवा-पुनर्विवाह कानून पास कर दिया। उन्होंने विधवाओं के बच्चों के लिए एक अनाथालय खोला। महाराष्ट्र के एक अन्य प्रसिद्ध समाज सुधारक गोपाल हरि देशमुख थे जोकि लोक-हितकारी के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने समाज की बुराइयों का खण्डन किया तथा समाज सुधार पर बल दिया।

2. प्रार्थना समाज-1867 ई० में महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर इस समाज के प्रसिद्ध नेता थे। उन्होंने जाति प्रथा तथा बाल-विवाह का विरोध किया। वह विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने विधवा-विवाह संघ की स्थापना की। उन्होंने कई स्थानों पर शिक्षण संस्थाएं तथा अनाथाश्रम खोले। उनके प्रयत्नों से 1884 ई० में दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना हुई, जिसने पुणे में दक्कन कॉलेज की स्थापना की।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. हिन्दू समाज में स्त्रियों को …………… सम्पत्ति लेने का अधिकार नहीं था।
2. अपने भाई की पत्नी के सती हो जाने के पश्चात् ………… के जीवन में एक नया मोड़ आया।
3. 1872 ई० में केशवचन्द्र सेन द्वारा ………… पर पाबंदी लगायी गई।
4. तलाक प्रथा का ………….. ने विरोध किया।
5. ………. 1886 ई० में इंग्लैंड में थियोसिफीकल सोसाइटी में शामिल हई।
उत्तर-

  1. पैतृक
  2. राजा राममोहन राय
  3. दूसरे विवाह
  4. सर सैय्यद अहमद खां
  5. श्रीमती ऐनी बेसेंट।

III. सही जोड़े बनाएं:

क – ख
1. स्वामी विवेकानंद – 1. नामधारी लहर
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – 2. रामकृष्ण मिशन
3. सिंह सभा लहर – 3. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
4. सर सैय्यद अहमद खां – 4. मंजी साहिब (अमृतसर)
उत्तर-
1. स्वामी विवेकानंद – रामकृष्ण मिशन
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – नामधारी लहर
3. सिंह सभा लहर – मंजी साहिब (अमृतसर)
4. सर सैय्यद अहमद खां – अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

PSEB 8th Class Social Science Guide स्त्रियां तथा सुधार Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को (1829 ई०) अवैध घोषित किया-
(i) लार्ड डलहौज़ी
(ii) लार्ड विलियम बैंटिक
(ii) लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज़
(iv) लार्ड मैकाले।
उत्तर-
लार्ड विलियम बैंटिक

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प्रश्न 2.
नामधारी आंदोलन की स्थापना हुई.
(i) मंजी साहिब (अमृतसर)
(ii) मिठू बस्ती (जालंधर)
(iii) भैणी साहिब (लुधियाना)
(iv) शकूरगंज।
उत्तर-
भैणी साहिब (लुधियाना)

प्रश्न 3.
अहमदिया लहर की नींव रखी
(i) सर सैय्यद अहमद खां
(ii) श्री सतिगुरु राम सिंह जी
(iii) बाबा दयाल सिंह ।
(iv) मिर्जा गुलाम अहमद।
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद

प्रश्न 4.
दूसरे विवाह पर प्रतिबंध लगवाया-
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
(ii) केशव चन्द्र सेन
(iv) स्वामी दयानन्द।
उत्तर-
केशव चन्द्र सेन

प्रश्न 5.
‘आनंद विवाह’ की प्रणाली प्रथा आरम्भ की-
(i) श्री सतिगुरु राम सिंह
(ii) बाबा दयाल सिंह
(iii) मिर्जा गुलाम अहमद
(iv) प्रो० गुरुमुख सिंह।
उत्तर-
श्री सतिगुरु राम सिंह

प्रश्न 6.
सती प्रथा को किसके प्रयत्नों से समाप्त किया गया ?
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) सर सैय्यद अहमद खाँ
(iii) वीर सलिंगम
(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती।
उत्तर-
राजा राम मोहन राय

प्रश्न 7.
नामधारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ?
(i) स्वामी विवेकानंद
(ii) श्रीमती एनीबेसेंट
(iii) सतिगुरु राम सिंह
(iv) बाबा दयाल सिंह।
उत्तर-
सतिगुरु राम सिंह।

(ख) सही कथन पर (✓) तथा गलत कथन पर (✗) का निशान लगाएं :

1. 1854 ई० के वुड डिस्पैच में स्त्री शिक्षा पर जोर दिया गया।
2. केशवचन्द्र सेन आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता थे।
3. प्रार्थना समाज ने विधवा पुनः विवाह का विरोध किया।
उत्तर-

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी के भारतीय समाज में प्रचलित किन्हीं चार कुरीतियों के नाम बताओ, जिन्होंने स्त्रियों की दशा को दयनीय बना दिया।
उत्तर-
सती प्रथा, कन्या वध, पर्दा प्रथा तथा बहु विवाह आदि।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में लोग कन्याओं का वध क्यों करते थे ? कोई दो कारण लिखो।
उत्तर-

  1. लड़कियों के विवाह पर बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता था।
  2. माता-पिता को अपनी लड़कियों के लिए योग्य वर ढूंढ़ने में कठिनाई होती थी।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी में लोग लड़कियों को शिक्षा क्यों नहीं दिलवाते थे ?
उत्तर-
लोग लड़कियों को शिक्षा दिलवाना उन्हें अधिक आजादी देने के बराबर मानते थे। इसके अतिरिक्त वे लड़कियों की शिक्षा को समाज के लिए हानिकारक भी मानते थे।

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज से जुड़े दो नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
राजा राममोहन राय तथा केशवचन्द्र सेन।

प्रश्न 5.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती।

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प्रश्न 6.
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना किसने, कहां और क्यों की ?
उत्तर-
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना सर सैय्यद अहमद खां ने अलीगढ़ में की। इसकी स्थापना विज्ञान के एक ग्रंथ का उर्दू में अनुवाद करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 7.
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ? उन्होंने किस रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया ?
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उन्होंने गुरुमत की रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 8.
‘आनन्द विवाह’ की प्रणाली (प्रथा) किसने चलाई ? इसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर-
आनन्द विवाह की प्रणाली (प्रथा) श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने चलाई। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में ही विवाह हो जाता था।

प्रश्न 9.
सिंह सभा लहर की नींव कब और कहां रखी गई ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर की नींव अक्तूबर 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई।

प्रश्न 10.
लाहौर में सिंह सभा की शाखा कब स्थापित की गई ? इसका प्रधान किसे बनाया गया ?
उत्तर-
लाहौर में सिंह सभा की शाखा 1879 ई० में स्थापित की गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया।

प्रश्न 11.
अहमदिया लहर की नींव कब, कहां और किसने रखी ?
उत्तर-
अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने जिला गुरदासपुर में रखी।

प्रश्न 12.
समकृष्ण मिशन की स्थापना कब, किसने और किसकी याद में की ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 ई० में स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की याद में की।

प्रश्न 13.
संगत सभा की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
संगत सभा की स्थापना 1860 ई० में केशवचन्द्र सेन ने की।

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प्रश्न 14.
श्रीमती ऐनी बेसेंट कब भारत आईं ? उनका सम्बन्ध किस संस्था से था ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1893 ई० में भारत आईं। उनका सम्बन्ध थियोसोफिकल सोसायटी से था।

प्रश्न 15.
प्रार्थना समाज की स्थापना कब हुई ? इसके दो मुख्य नेता कौन-कौन थे ?
उत्तर-
प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ई० में हुई। इसके दो प्रमुख नेता महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर थे।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निरंकारी आन्दोलन तथा बाबा दयाल जी पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उस समय समाज में कन्या के जन्म को अपशकुन समझा जाता था। अतः अनेक कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। महिलाओं में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा तथा सती प्रथा आदि बुराइयां प्रचलित थीं। विधवा के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उसे पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती थी। बाबा दयाल जी ने इन सभी बुराइयों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने कन्या वध तथा सती प्रथा का विरोध किया। उन्होंने लोगों को अपने बच्चों के विवाह गुरुमत के अनुसार करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 2.
नामधारी लहर की स्थापना कब और किसने की ? इसके द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लहर की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 ई० को श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने भैणी साहिब (लुधियाना) में की। उन्होंने समाज में प्रचलित बुराइयों का विरोध किया।

  1. उन्होंने बाल-विवाह, कन्या-वध तथा दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का प्रबल विरोध किया।
  2. उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें पुरुषों के समान अधिकार देने पर बल दिया।
  3. उन्होंने विवाह के समय किये जाने वाले व्यर्थ के व्यय का खण्डन किया। श्री सतिगुरु राम सिंह
  4. उन्होंने विवाह की एक प्रणाली चलाई जिसे आनन्द विवाह का नाम दिया गया। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में विवाह की रस्म पूरी कर दी जाती थी। वह जाति-प्रथा में भी विश्वास नहीं रखते थे।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार 1

प्रश्न 3.
केशवचन्द्र सेन कौन थे ? समाज सुधार के क्षेत्र में उनके योगदान का वर्णन करो।
उत्तर-
केशवचन्द्र सेन ब्रह्म समाज के एक प्रसिद्ध नेता थे। वह 1857 ई० में ब्रह्म समाज में सम्मिलित हुए थे। 1860 ई० में उन्होंने संगत सभा की स्थापना की, जिसमें धर्म सम्बन्धी विषयों पर विचार-विमर्श होता था। केशव चन्द्र सेन ने नारीशिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने बाल-विवाह तथा बहु-विवाह आदि प्रथाओं की घोर निन्दा की। केशवचन्द्र सेन के प्रयत्नों से 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके दूसरे विवाह पर रोक लगा दी।

प्रश्न 4.
समाज सुधार के क्षेत्र में श्रीमती ऐनी बेसेंट तथा थियोसोफिकल सोसायटी का क्या योगदान है ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1886 ई० में इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसायटी में सम्मिलित हुईं। 1893 ई० में वह भारत आ गईं। उन्होंने भारत का भ्रमण किया तथा भाषण दिये। उन्होंने पुस्तकें तथा लेख लिखकर सोसायटी के सिद्धान्तों का प्रचार किया। थियोसोफिकल सोसायटी ने अनेक सामाजिक सुधार भी किये। इसने बाल-विवाह तथा जाति-प्रथा का विरोध किया। इसने पिछड़े लोगों तथा विधवाओं के उद्धार के लिए प्रयत्न किये। सोसायटी ने शिक्षा के विकास के लिए स्थान-स्थान पर बालकों तथा बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में बनारस में सैंट्रल हिन्दू कॉलेज स्थापित किया गया, जहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की श्री शिव को राती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार तथा नारी उद्धार के लिए सिंह सभा लहर, अहमदिया लहर तथा स्वामी विवेकानन्द (रामकृष्ण मिशन) द्वारा किये गये कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
सिंह सभा लहर-सिंह सभा लहर की नींव 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई। इसका उद्देश्य सिख धर्म तथा समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करना था। सरदार ठाकुर सिंह संधावालिया को इसका प्रधान तथा ज्ञानी ज्ञान सिंह को सचिव नियुक्त किया गया। देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सिख सिंह सभा के सदस्य बन सकते थे। 1879 ई० में लाहौर में सिंह सभा की एक अन्य शाखा खोली गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया। धीरे-धीरे पंजाब में अनेक सिंह सभा शाखाएं स्थापित हो गईं। सिंह सभा के प्रचारकों ने समाज में प्रचलित जातिप्रथा, अस्पृश्यता तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का जोरदार खण्डन किया।

इस लहर ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के लिए प्रबल प्रचार किया। इसने महिलाओं में प्रचलित पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा विधवा-विवाह निषेध आदि बुराइयों की निन्दा की। सिंह सभा ने विधवाओं की देखभाल के लिए विधवा-आश्रम स्थापित किये। इसने नारी-शिक्षा की ओर भी विशेष ध्यान दिया। सिख कन्या महाविद्यालय फिरोज़पुर, खालसा भुजंग स्कूल कैरो तथा विद्या भण्डार भमौड़ आदि प्रसिद्ध कन्या विद्यालय थे जो सर्वप्रथम सिंह सभा के अधीन स्थापित हुए।

अहमदिया लहर-अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने कादियां जिला गुरदासपुर में रखी। उन्होंने लोगों को कुरान शरीफ के उपदेशों पर चलने के लिए कहा। उन्होंने परस्पर भाईचारे (भ्रातृभाव) तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रचार किया। उन्होंने धर्म में प्रचलित झूठे रीति-रिवाज़ों, अन्ध-विश्वासों और कर्मकाण्डों का त्याग करने का प्रचार किया। उन्होंने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा देने का समर्थन भी किया। उन्होंने कई स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द तथा राम कृष्ण मिशन-स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई० में अपने गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस की स्मृति में ‘राम कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित अन्ध-विश्वासों और व्यर्थ के रीति-रिवाजों की निन्दा की। वे जाति-प्रथा तथा अस्पृश्यता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए विशेष प्रयत्न किये। वे महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार,दिये जाने के पक्ष में थे। उन्होंने कन्यावध, बाल-विवाह, दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने नारी-शिक्षा के लिए प्रचार किया तथा कई स्कूल एवं पुस्तकालय स्थापित किये।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के सुधार आन्दोलनों के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सुधारकों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने कई सामाजिक बुराइयों पर कानूनी रोक लगा दी। महिलाओं की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया।

  1. 1795 ई० तथा 1804 ई० में कानून पास करके कन्या-वध पर रोक लगा दी गई।
  2. 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने कानून द्वारा सती प्रथा पर रोक लगा दी।
  3. सरकार ने 1843 ई० में कानून पास करके भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया।
  4. बंगाल के महान् समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयत्नों से 1856 ई० में विधवा-पुनर्विवाह को कानून द्वारा मान्यता दे दी गई।
  5. सरकार ने 1860 ई० में कानून पास करके बालिकाओं के लिए विवाह की आयु कम-से-कम 10 वर्ष निश्चित की। 1929 ई० में शारदा एक्ट के अनुसार बालकों के विवाह के लिए कम-से-कम 16 साल और बालिकाओं के लिए 14 साल की आयु निश्चित की गई।
  6. 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकृति दे दी। (7) 1854 ई० के वुड डिस्पैच में महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया गया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

स्त्रियां तथा सुधार PSEB 8th Class Social Science Notes

  • धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन -19वीं शताब्दी में भारतीय समाज के सभी समुदायों के धार्मिक और सामाजिक सुधार के धार्मिक और सामाजिक सुधार के आन्दोलनों का आरम्भ हुआ। धर्म के क्षेत्र में इन आन्दोलनों ने कट्टरता, अन्धविश्वासों तथा पुरोहितों के आधिपत्य पर प्रहार किए। सामाजिक जीवन में इनका उद्देश्य जाति-प्रथा, बाल-विवाह तथा अन्य सामाजिक असमानताओं को दूर करना था।
  • राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज – राजा राममोहन राय (1772-1833) ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की उन्होंने सती-प्रथा तथा बाल-विवाह की समाप्ति के लिए अभियान चलाया। केशवचन्द्र सेन के नेतृत्व में ब्रह्म समाज का नाम पूरे देश में फैल गया।
  • सुधार आन्दोलनों का प्रसार – देश के अन्य भागों में भी ऐसे ही आन्दोलन आरम्भ हो गए। 1867 ई० में बम्बई (मुम्बई) में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। महादेव गोविन्द रानाडे (1842-1901) जैसे अनेक राष्ट्रीय नेता इसमें सम्मिलित हुए। महाराष्ट्र में अनुसूचित जातियों के जागरण में महात्मा ज्योतिबा फुले ने सक्रिय भूमिका निभाई। .
  • आर्य समाज – आर्य समाज की स्थापना 1875 में स्वामी दयानन्द ने की। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा तथा दहेज प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई।।
  • सिक्ख सुधार आन्दोलन सिक्खों से सम्बन्धित दो मुख्य सुधार आन्दोलन चले-नामधारी (कूका) आन्दोलन तथा सिंह सभा आन्दोलन। इनमें से सिंह सभा आन्दोलन ने शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की।
  • अन्य सुधार आन्दोलन – स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रसार के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। श्रीमती ऐनी बेसेंट ने 1893 में थियोसोफिकल आन्दोलन को फिर से मज़बूत बनाने का प्रयास किया। मुसलमानों में सुधार आन्दोलन का आरम्भ नवाब अब्दुल लतीफ ने किया। मुसलमानों में सबसे प्रभावशाली आन्दोलन सैय्यद अहमद खान (1817-98) ने आरम्भ किया। उनका सबसे बड़ा कार्य 1875 में मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियन्टल कॉलेज की स्थापना करना था।
  • सुधार आन्दोलनों के प्रभाव – सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप स्त्री उद्धार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, राष्ट्रवाद का उदय हुआ तथा जनता में एकता की भावना पैदा हुई।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

SST Guide for Class 8 PSEB सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. भारत एक ……… राज्य है।
2. भारत में मानव अधिकार कमीशन ……….. की रक्षा करता है।
3. बुढ़ापा, दुर्घटना तथा बेकारी के समय मिलने वाली सुविधा को ………… कहा जाता है।
4. गांवों को लिंक सड़कों के साथ …………. योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है।
5. स्कूलों में दोपहर का खाना ………. योजना के अन्तर्गत दिया जा रहा है।
उत्तर-

  1. कल्याणकारी
  2. मानव अधिकारों
  3. सामाजिक सुरक्षा
  4. प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क
  5. मिड डे मील।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ :

1. जन उपयोगी सेवाओं से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है। – (✓)
2. अच्छी शिक्षा तथा सेहत की सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है। – (✗)
3. आज भारत में सामाजिक व आर्थिक असमानताएं समाप्त हो चुकी हैं। – (✗)
4. भारत में ‘कार्य का अधिकार’ मौलिक अधिकार है। – (✗)
5. पंजाब के सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य नहीं है। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
मिड-डे-मील स्कीम के अंतर्गत किस श्रेणी तक मुफ्त खाना दिया जाता है ?
(क) पांचवीं
(ख) आठवीं
(ग) दसवीं
(घ) पहली से आठवीं तक।
उत्तर-
पहली से आठवीं तक।

प्रश्न 2.
आज तक भारत में कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं ?
(क) 5
(ख) 12
(ग) 13
(घ) 14
उत्तर-
12

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
जन-उपयोगी सेवाएं किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर आदि की सुविधाएं दी गई हैं। इन्हें जन-उपयोगी सेवाएं कहते हैं। इनका उद्देश्य लोगों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सामाजिक समानता का अर्थ है-सामाजिक स्तर पर लोगों का बराबर होना। दूसरे शब्दों में समाज में किसी प्रकार की ऊंच-नीच न हो। रंग, जाति, नसल, जन्म, धनी, निर्धन आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ है, बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में नागरिकों की सहायता करना। शारीरिक रूप से अपाहिज बच्चों को आवश्यक सहायता देना भी सामाजिक सुरक्षा में शामिल है। सामाजिक सुरक्षा सामाजिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 4.
कोई दो मानवीय अधिकार लिखो।
उत्तर-
(1) जीवन का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार, (3) समानता का अधिकार, (4) मानवीय गौरव का अधिकार।
नोट-विद्यार्थी कोई दो लिखें।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सरकार की सामाजिक क्रियाओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
सरकार की सामाजिक क्रियाओं से लोगों का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास अवश्य हुआ है। सरकार ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। फिर भी देश में सच्चे अर्थों में सामाजिक समानता नहीं आ सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है।

प्रश्न 2.
सरकार के सामाजिक और नैतिक सुधारों पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरकार द्वारा सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गये। उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे मुसीबत के समय अपने बच्चों का पालन-पोषण स्वयं कर सकें। इससे उन्हें अपने अन्य पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने तथा अपने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने में भी सहायता मिली।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए। सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे । बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष ज़रूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

PSEB 8th Class Social Science Guide सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  2. उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ? .
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए।
सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे। बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष जरूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  • उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ?
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत क्यों महसूस की गई ? इस उद्देश्य से क्या कदम उठाए गए ?
उत्तर-
भारत शताब्दियों तक परतन्त्र रहा था। इसके कारण भारत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुका था। इसलिए देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की ज़रूरत महसूस की गई। इस उद्देश्य से निम्नलिखित पग उठाए गए.

  • मौलिक अधिकारों में समानता के अधिकार को शामिल किया गया।
  • देश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की गईं।
  • विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त अपनाया गया।
  • भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।

प्रश्न 2.
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर इत्यादि की सुविधाएं प्रदान की गईं। इन जन उपयोगी सेवाओं का उद्देश्य लोगों के दैनिक जीवन के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना था। भारत को विकसित देशों की तुलना में लाना भी सरकार का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए सरकार ने योजनाओं का निर्माण किया। तकनीकी कृषि, चिकित्सा, शिक्षा तथा कला सम्बन्धी शैक्षिक संस्थाओं की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त गांवों तथा कस्बों में पीने के पानी तथा बिजली का प्रबन्ध किया गया। गांवों तथा सड़कों का निर्माण भी किया गया ताकि उन्हें शहरों से जोड़ा जा सके।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों का लोगों पर क्या प्रभाव है ? .
उत्तर-
सरकार ने समाज में स्वतन्त्रता तथा समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष पग उठाए हैं। इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। इन्हें लागू करने के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। इन अधिकारों से लोगों का सर्वपक्षीय विकास अवश्य हुआ है, परन्तु समाज में सच्चे अर्थों में समानता नहीं लाई जा सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है। उनके लिए आज भी सार्वजनिक कुओं तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करना निषेध है। उन्हें मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इस प्रकार आज भी स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों का लाभ जरूरतमन्द लोगों को नहीं मिल पाता। इसके लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत एक कल्याणकारी राज्य – भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, ताकि देश को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया जा सके।
  • सामाजिक असमानता को दूर करना – इस उद्देश्य से संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकार शामिल किए गए हैं। छुआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  • जन-उपयोगी सेवाएं – लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यातायात तथा संचार सेवाओं का विस्तार किया गया है। इसके साथ-साथ कृषि, चिकित्सा, कला आदि से सम्बन्धित शिक्षा संस्थाओं का विस्तार किया गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा – लोगों को बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • मानव अधिकार – मुख्य मानव अधिकार हैं-जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, समानता का अधिकार तथा मानवीय गौरव का अधिकार। इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

SST Guide for Class 9 PSEB निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें :

  1. विश्व की कुल निर्धन जनसंख्या के ………… से अधिक निर्धन -(ग़रीब) भारत में रहते है।
  2. निर्धनता निर्धन लोगों में ………… की भावना उत्पन्न करती है।
  3. ………… लोगों को ………….. से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है।
  4. पंजाब राज्य उच्च …………… दर के विकास की सहायता से निर्धनता कम करने में सफल रहा है।
  5. जिंदगी की मुख्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए न्यूनतम आय को मापने के ढंग को………… कहते हैं।
  6. ………… निर्धनता के मापदंड का एक कारण है।

उत्तर-

  1. 1/5
  2. असुरक्षा
  3. ग्रामीण, शहरी
  4. कृषि
  5. निर्धनता रेखा
  6. सापेक्ष।

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता में रहने वाले लोगों की संख्या कितनी है ?
(क) 20 करोड़
(ख) 26 करोड़
(ग) 26 करोड़
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं ।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं ।

प्रश्न 2.
ग़रीबी का अनुपात …………. में कम है।
(क) विकसित देशों में
(ख) विकासशील देशों में
(ग) अल्प विकसित देशों में
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-
(क) विकसित देशों में

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 3.
भारत में सबसे अधिक निर्धन राज्य कौन-सा है ?
(क) पंजाब
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) बिहार
(घ) राजस्थान।
उत्तर-
(ग) बिहार

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय किसका सूचक है ?
(क) ग़रीबी रेखा
(ख) जनसंख्या
(ग) सापेक्ष निर्धनता
(घ) निरपेक्ष निर्धनता।
उत्तर-
(ग) सापेक्ष निर्धनता

सही/गलत :

  1. विश्वव्यापी ग़रीबी में तीव्र गति से कमी आई है।
  2. कृषि क्षेत्र में छिपी हुई बेकारी होती है।
  3. गांव में शिक्षित बेकारी अधिक होती है।
  4. राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन (NSSO) सर्वेक्षण करके जनसंख्या में हो रही वृद्धि का अनुमान लगाता हैं।
  5. सबसे अधिक ग़रीबी वाले राज्य बिहार और ओडिशा है।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सापेक्ष ग़रीबी क्या है ?
उत्तर-
सापेक्ष ग़रीबी का अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।

प्रश्न 2.
निरपेक्ष ग़रीबी क्या है ?
उत्तर-
निरपेक्ष ग़रीबी से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है।

प्रश्न 3.
सापेक्ष निर्धनता के दो निर्धारकों के नाम लिखें।
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय सापेक्ष निर्धनता के ही माप हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 4.
ग़रीबी रेखा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ग़रीबी वह रेखा है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
ग़रीबी रेखा को निर्धारित करने के लिए भारत के योजना आयोग ने क्या मापदण्ड अपनाया है ?
उत्तर-
भारत का योजना आयोग ग़रीबी रेखा का निर्धारण आय व उपभोग स्तर पर सकता है।

प्रश्न 6.
ग़रीबी के दो मापदण्डों (निर्धारकों) के नाम लिखें।
उत्तर-
आय तथा उपभोग ग़रीबी के दो निर्धारक हैं।

प्रश्न 7.
ग़रीब परिवारों में सर्वाधिक दुःख किसे सहन करना पड़ता है ?
उत्तर-
गरीब परिवारों में बच्चे सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के दो सबसे अधिक ग़रीब राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर-
ओडिशा तथा विहार दो निर्धन राज्य हैं।

प्रश्न 9.
केरल राज्य में निर्धनता को सबसे कम कैसे किया है ?
उत्तर-
केरल राज्य मानव संसाधन विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।

प्रश्न 10.
पश्चिमी बंगाल को ग़रीबी कम करने में किसने सहायता की है ?
उत्तर-
भूमि सुधार उपायों ने पश्चिम बंगाल में ग़रीबी को कम करने में सहायता की है।

प्रश्न 11.
उच्च कृषि वृद्धि दर से ग़रीबी कम करने वाले दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर-
पंजाब और हरियाणा।

प्रश्न 12.
चीन व दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश निर्धनता कम करने में सफल कैसे हुए ?
उत्तर-
चीन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों ने तीव्र आर्थिक संबृद्धि तथा मानव संसाधन विकास में निवेश से निर्धनता को कम किया है।

प्रश्न 13.
निर्धनता के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. निम्न आर्थिक संवृद्धि
  2. उच्च जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 14.
निर्धनता कम करने वाले कोई दो कार्यक्रमों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
  2. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

प्रश्न 15.
राजकीय विद्यालयों में निःशुल्क भोजन प्रदान करने वाले कार्यक्रम का नाम क्या है ?
उत्तर-
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

(रव) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या अभिप्राय है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
निर्धनता से अभिप्राय है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता। इस न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएं शामिल होती हैं। इस न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं के पूरा न होने से मनुष्यों को कष्ट उत्पन्न होता है। स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता की हानि होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि करना तथा भविष्य में निर्धनता से छुटकारा पाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 2.
सापेक्ष व निरपेक्ष निर्धनता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है। अर्थशास्त्रियों ने इस संबंध में निर्धनता की कई परिभाषाएं दी हैं, परंतु अधिकतर देशों में प्रति व्यक्ति उपभोग की जाने वाली कैलौरी तथा प्रति व्यक्ति न्यूनतम उपभोग व्यय स्तर द्वारा निर्धनता को मापने का प्रयत्न किया गया है जबकि दूसरी ओर, सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आकार पर निर्धनता से है। जिस देश की प्रति व्यक्ति आय-अन्य देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में काफी कम है वह देश सापेक्ष रूप से निर्धन है।

प्रश्न 3.
निर्धन लोगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर-
निर्धन लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे- सूखा, अपवर्जन, भूखमरी आदि। अपवर्जन से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कुछ लोग कुछ सुविधाओं, लाभों के अपवर्जित हो जाते हैं जो कि लोग अभोग करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में ग़रीबी रेखा का अनुमान कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर-
भारत में ग़रीबी रेखा का अनुमान करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकताओं, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं आदि पर विचार किया जाता है। इस भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी की आवश्यकताओं पर आधारित है।

प्रश्न 5.
निर्धनता के मुख्य निर्धारकों का वर्णन करें।
उत्तर-
निर्धनता के अनेक पहलू हैं, सामाजिक वैज्ञानिक उसे अनेक सूचकों के माध्यम से देखते हैं। सामान्यत प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे हैं, जो आय और उपयोग के स्तर से संबंधित हैं, लेकिन अब निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कुपोषण
के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोज़गार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुंच की कमी आदि जैसे अन्य सामाजिक सूचकों के माध्यम से को भी देखा जाता है।

प्रश्न 6.
1993-94 ई० से भारत में निर्धनता के रूझान का वर्णन करें।
उत्तर-
पिछले दो दशकों से निर्धनता रेखा को नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। अतः शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में निर्धन लोगों की संख्या में काफी कमी आई है।
1993-94 में 4037 मिलियन लोग या 44.3% जनसंख्या निर्धनता रेखा को नीचे रह रही थी। निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लेगों की संख्या जो 2004-05 में 37.2% थी वह 2011-12 में और कम होकर 21.7% रह गई।

प्रश्न 7.
भारत में निर्धनता (ग़रीबी) में अंतराज्य असमानताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में राज्यों के बीच निर्धनता का असमान रूप देखने को मिलता है। भारत में वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत कम होकर 21.7 हो गया है परंतु ओडिशा व बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहां निर्धनता का प्रतिशत क्रमश: 32.6 तथा 33.7 है। इसके दूसरी ओर केरल, हिमाचल प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, हरियाणा आदि कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर निर्धनता काफी कम हुई है। इन राज्यों ने कृषि संवृद्धि दर तथा मानव पूंजी संवृद्धि में निवेश करके निर्धनता को कम किया है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 8.
भारत में निर्धनता के तीन प्रमुख कारण कौन-से हैं ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता के कारण निम्न हैं

1. जनसंख्या का अधिक दबाव (Heavy Pressure of Population)-भारत में जनसंख्या में तीव्रता स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अधिक हो गई। सन् 1951 के पश्चात् के समय को जनसंख्या विस्फोट का समय भी कहा जाता है क्योंकि उस समय जनसंख्या में तीव्रता आई। 1941-51 में जनसंख्या 1.0% थी जो 1981-91 में बढ़कर 2.1 प्रतिशत हो गई। 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गई। शताब्दी के अंत तक हमारी जनसंख्या 100 करोड़ पहुंच चुकी है। देश की सम्पति का मुख्य भाग इस बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की संतुष्टि में खर्च हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप देश के विकास के लिए अन्य कार्यों में धन कम पड़ जाता है। यहीं नहीं निरंतर बढ़ती जनसंख्या से निर्भर जनसंख्या अधिक तथा कार्यशील जनसंख्या में कमी आ रही है जिस कारण उत्पादन के लिए कार्यशील जनसंख्या कम तथा निर्भर जनसंख्या अधिक है जो देश को और निर्धन बना देती है।

2. बेरोज़गारी (Unemployment)-भारत में जिस तरह जनसंख्या बढ़ रही है उसी तरह बेरोज़गारी भी निरंतर बढ़ती जा रही है। यह बढ़ती बेरोज़गारी निर्धनता को जन्म देती है जो देश के लिए अभिशाप साबित हो रही है। भारत में न केवल शिक्षित बेरोज़गारी बल्कि अदृश्य बेरोज़गारी की समस्या भी पनपती जा रही है। भारत में 2011-12 में लगभग 234 करोड़ लोग बेरोज़गार थे। वर्ष 2016-17 तक 0.59 करोड़ बेरोज़गार रहने का अनुमान है।

3. विकास की धीमी गति (Slow Growth of Development) भारत का विकास जो धीमी गति से हो रहा है इस कारण से भी निर्धनता बढ़ती जा रही है। योजनाओं की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर लगभग 4 प्रतिशत रही है परंतु जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 1.76 प्रतिशत होने से प्रतिशित आय में वृद्धि केवल 2-3 प्रतिशत हो गई है। 2013-14 में विकास दर 4.7% के लगभग प्राप्त की गई। भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर 1.76 प्रतिशत रही है। जनसंख्या की इस वृद्धि के अनुरूप विकास की गति धीमी है।

प्रश्न 9.
निर्धनता बेरोज़गारी को प्रकट करती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि से दीर्घकालिक बेरोज़गारी तथा अल्प रोज़गार की समस्या उत्पन्न हुई है। दोनों सरकारी तथा निजी क्षेत्र रोज़गार संभावनाएं उत्पन्न करने में असफल रहे हैं। अनियमित निम्न आय, निम्न आवास सुविधाएं निर्धनता को बढ़ा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में शैक्षिक बेरोज़गारी पाई जाती है जबकि गांवों में अदृश्य बेरोज़गारी पाई जाती है जो कृषि क्षेत्र से संबंधित है। इस तरह निर्धनता, बेरोज़गारी का मात्र एक प्रतिबंब है।

प्रश्न 10.
आर्थिक वृद्धि में प्रोत्साहन निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम में सहायक है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में निर्धनता को दूर करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय आर्थिक विकास की गति को तीव्रता से बढ़ाता है। जब संवृद्धि की दर को बढ़ावा दिया जाता है, तो कृषि तथा औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में रोज़गार बढ़ते गए हैं, आर्थिक रोज़गार का अर्थ है कम निर्धनता। अस्सी के दशक से भारत की संवृद्धि दर विश्व में एक उभरती हुई संवृद्धि दर है। आर्थिक-संवृद्धि ने मानव विकास में निवेश द्वारा रोज़गार की संभावनाओं को बढ़ाया है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार अधिनियम-2005 की मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (NREGA) 2005 वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देते हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को रोज़गार की सुरक्षा देता है इसमें कुल रोज़गार का 1/3 भाग महिलाओं के लिए आरक्षित है। केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर रोज़गार गारंटी के लिए कोष का निर्धारण करेंगी।

प्रश्न 12.
भारत सरकार द्वारा संचालित किन्हीं तीन ग़रीबी कम करने के कार्यक्रमों को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत सरकार पंचवर्षीय योजनाओ के अंतर्गत निम्नलिखित उन्मूलन कार्यक्रम लागू कर रही है-

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)-इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन हेतु ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के सदस्य को वर्ष में 100 दिन का रोज़गार प्रदान किया जाता है। इस कार्यक्रम के लिए ₹ 33.000 करोड़ खर्च किए जाएंगे। वर्ष 2013-14 में 475 करोड़ परिवारों को 219.72 करोड़ रोज़गार के व्यक्ति दिवस प्रदान किये गए।
  2. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2024-25 तक ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक ग़रीब परिवार को एक महिला सदस्य की स्वयं सहायता समूह (SHGs) का सदस्य बनाना है ताकि वे गरीबी रेखा से ऊपर रह सके। इस मिशन में 97.391 गाँवों को कवर करते हुए 20 लाख स्वयं सहायता समूह बनाए हैं जिसमें से 3.8 लाख नए SHGs हैं। वर्ष 2013-14 के दौरान ₹ 22121.18 करोड़ को बैंक शाख इन SHGs को प्रदान की जा चुकी है। वर्ष 2014-15 में NREM के लिए ₹ 3560 करोड़ की राशि आबंटित की गई है।
  3. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) सितम्बर, 2013 में स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना (SISRY) को बदलकर इसका नाम NULM रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य शहरी गरीब परिवारों को कौशल निर्माण तथा प्रशिक्षण द्वारा लाभदायक रोज़गार के अवसर प्रदान करता है तथा शहरी बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करना। वर्ष 201314 में NULM के अंतर्गत ₹720.43 करोड़ प्रदान किये गए हैं। इससे 6,83,542 लोगों का कौशल प्रशिक्षण हुआ है और 1,06,205 लोगों को स्वरोजगार प्रदान किया गया है।

अन्य अभ्यास के प्रश्न

आइए चर्चा करें :

प्रश्न 1.
चर्चा करें कि आपके गांव अथवा नगर में गरीब परिवार किन दशाओं में रहते हैं ?
उत्तर-
हमारे गांव अथवा नगर में निर्धन परिवारों को अनियमित रोज़गार अवसर, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, रहने की खराब दशाएं हैं तथा अपने बच्चे को पाठशालाओं में भी नहीं भेजते हैं।

प्रश्न 2.
ग्रामीण व नगरीय निर्धनता के दिए गए उदाहरणों के अध्ययन के पश्चात् निर्धनता के निम्नलिखित कारणों पर चर्चा करके मालूम करें कि कहानी में दिए गए परिवारों की निर्धनता का कारण निम्नलिखित कारणों में है अथवा कोई अन्य कारण है।

  • भूमिहीन परिवार
  • बेरोज़गारी
  • परिवार का दीर्घ (बड़ा आकार)
  • अशिक्षा
  • कमज़ोर स्वास्थ्य और कुपोषित।

उत्तर-
भूमिहीन परिवार-दोनों ही मामलों में परिवार भूमिहीन हैं। उनके पास कृषि के लिए भूमि नहीं है जिसके कारण वे गरीब हैं।
बेरोज़गारी-ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के दोनों ही मामलों में लोग बेरोज़गार हैं । वे बहुत ही कम मज़दूरी पर कार्य कर रहे हैं जिसमें उनका पेट भी नहीं भरता।
बड़ा परिवार-उनके परिवारों का आकार भी बड़ा है जो कि उनकी गरीबी का कारण है।
अशिक्षा-परिवार अशिक्षित हैं। वे अपने बच्चों को भी पाठशाला नहीं भेज पा रहे जिससे वे गरीबी में जकड़े हुए हैं।
कमज़ोर स्वास्थ्य और कुपोषित-गरीबी के कारण उनका स्वास्थ्य कमज़ोर है क्योंकि खाने को भरपेट नहीं मिलता। बच्चे कुपोषित हैं उनके लिए जूते, साबुन एवं तेल जैसी वस्तुएं भी आरामदायक वस्तुओं की श्रेणी में आती हैं।
ग्राफ 3.1 वर्ष 2011-12 दौरान चयन
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता भारत के सम्मुख एक चुनौती
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 वित मंत्रालय, भारत सरकार

आइए चर्चा करें

  1. ग्राफ 3.1 को देखिए, पांच सबसे अधिक निर्धन लोगों की प्रतिशतता वाले राज्यों के नाम लिखिए।
  2. उन राज्यों के नाम बताइए जहां निर्धनता के अनुमान 22% में कम तथा 15% से अधिक है।
  3. उन राज्यों के नाम बताइए जहां सबसे अधिक तथा सबसे कम निर्धनता प्रतिशतता है।

उत्तर-

  1. पांच राज्य जिनमें सबसे अधिक निर्धनता की प्रतिशतता है
    • बिहार
    • उड़ीसा
    • आसाम
    • महाराष्ट्र
    • उत्तर प्रदेश।
  2.  ऐसे राज्य पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र तथा गुजरात हैं।
  3. सबसे अधिक निर्धनता प्रतिशतता बिहार तथा सबसे कम केरल में है।

PSEB 9th Class Social Science Guide निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1993-94 में भारत में निर्धनों का प्रतिशत था :
(क) 44.3%
(ख) 32%
(ख) 19.3%
(ग) 38.3%.
उत्तर-
(क) 44.3%

प्रश्न 2.
इनमें कौन निर्धनता निर्धारण का मापक है ?
(क) व्यक्ति गणना अनुपात
(ख) सेन का सूचकांक
(ग) निर्धनता अंतराल सूचकांक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) सेन का सूचकांक

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 3.
किस देश में डॉलर में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है ?
(क) U.S.A.
(ख) स्विट्ज़रलैंड
(ग) नार्वे
(घ) जापान।
उत्तर-
(ग) नार्वे

प्रश्न 4.
किस प्रकार की निर्धनता दो देशों में तुलना को संभव बनाती है ?
(क) निरपेक्ष
(ख) सापेक्ष
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) सापेक्ष

प्रश्न 5.
कौन-सा राज्य भारत में सबसे अधिक निर्धन राज्य है ?
(क) ओडिशा
(ख) बिहार
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) ओडिशा

रिक्त स्थान भरें:

  1. ……….. से अभिप्राय है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।
  2. ……….. निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से
  3. ………….. निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति-आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।
  4. निर्धनता के ………….. प्रकार है।
  5. ………… वह है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है. जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकता को संतुष्ट कर सकते हैं।

उत्तर-

  1. निर्धनता
  2. सापेक्ष
  3. निरपेक्ष
  4. दो
  5. निर्धनता रेखा।

सही/गलत :

  1. निर्धनता के दो प्रकार हैं-सापेक्ष व निरपेक्ष निर्धनता।
  2. निर्धनता भारत की मुख्य समस्या है।
  3. व्यक्ति गणना अनुपात निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या को दर्शाती है।
  4. बढ़ रही जनसंख्या बढ़ रही निर्धनता को प्रकट करती है।
  5. व्यक्ति गणना अनुपात तथा निर्धनता प्रमाण अनुपात समान मदें हैं।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत में विश्व जनसंख्या का कितना भाग निवास करता है ?
उत्तर-
भारत में विश्व का \(\frac{1}{5}\) भाग निवास करता है।

प्रश्न 2.
UNICEF के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु के मरने वाले बच्चों की संख्या क्या है ?
उत्तर-
लगभग 2.3 मिलियन बच्चे।

प्रश्न 3.
वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत क्या था ?
उत्तर-
21.7 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
निर्धनता के प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-

  1. निरपेक्ष निर्धनता
  2. सापेक्ष निर्धनता।

प्रश्न 5.
कैलोरी क्या होती है ?
उत्तर-
एक व्यक्ति एक दिन में जितना भोजन करता है उसमें प्राप्त शक्ति को कैलोरी करते हैं।

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लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के सामने भावी चुनौती क्या है ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता में निश्चित रूप में कमी आई है परंतु प्रगति के बावजूद निर्धनता उन्मूलन भारत की एक सबसे बाध्यकारी चुनौती है। भावी चुनौती निर्धनता की अवधारणा का विस्तार ‘मानव निर्धनता’ के रूप में होने से है। अतः भारत के सामने सभी को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार सुरक्षा उपलब्ध कराना, लैंगिक समता तथा निर्धनों का सम्मान जैसी बड़ी चुनौतियां होंगी।

प्रश्न 2.
ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्र में कैलोरी में अंतर क्यों है ?
उत्तर-
यह अंतर इसलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग शारीरिक काम अधिक करते हैं जिससे उन्हें अधिक थकावट होती है। नगरीय लोगों की तुलना में उन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
निर्धनता दूर करने के लिए उपाय बताएं।
उत्तर-
निर्धनता को निम्नलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है-

  1. लघु व कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन।
  2. भारी उद्योग व हरित क्रांति के लिए प्रोत्साहन
  3. जनसंख्या नियंत्रण
  4. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करना।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम’ को 2004 में सबसे पिछड़े 150 जिलों में निर्धनता उन्मूलन के लिए लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण कार्यक्रमों के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध करवाये जा रहे हैं।

प्रश्न 5.
निर्धनताग्रस्त कौन लोग हैं ?
उत्तर-
अनुसूचित जनजातियां, अनुसूचित जातियां, ग्रामीण खेतिहर मज़दूर, नगरीय अनियमित मज़दूर, वृद्ध लोग, ढाबों में काम करने वाले बच्चे, झुग्गियों में रहने वाले लोग, भिखारी आदि निर्धनताग्रस्त लोग हैं।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम क्या है ?
उत्तर-
यह विधेयक सितंबर, 2005 में पारित किया गया है जो प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। बाद में इसका विस्तार 600 जिलों में किया जाएगा। इसमें एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम क्या है ? ।
उत्तर-
इस कार्यक्रम को वर्ष 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

प्रश्न 8.
प्रधानमंत्री रोजगार योजना पर नोट लिखें।
उत्तर-
यह योजना वर्ष 1993 में आरंभ की गई है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जाती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम पर नोट लिखें।
उत्तर-
इसे वर्ष 1995 में आरंभ किया गया है जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों व छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 25 लाख नए रोज़गार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रश्न 10.
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना का वर्णन करें।
उत्तर-
इसका आरंभ वर्ष 1999 में किया गया है जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।

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प्रश्न 11.
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना क्या है ?
उत्तर-
इसे वर्ष 2000 में आरंभ किया गया है। इसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
वैश्विक निर्धन परिदृश्य पर नोट लिखें।
उत्तर-
विकासशील देशों में अत्यंत आर्थिक निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन 1 डॉलर से कम पर जीवन-निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 28.प्रतिशत से गिरकर 2001 में 21 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन, इसमें बृहत्त क्षेत्रीय भिन्नताएं पाई जाती हैं।

प्रश्न 13.
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर-
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण आय अथवा उपभोग स्तरों के आधार पर किया जाता है। आय आकलन के आधार पर 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 328 प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में ₹ 454 प्रतिमाह किया गया था। उपभोग आकलन के आधार पर भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।

प्रश्न 14.
निर्धनता के मुख्य आयाम क्या हैं ?
उत्तर-
निर्धनता के मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं-

  1. निर्धनता का अर्थ भूख एवं आवास का अभाव है।
  2. निर्धनता का अर्थ शुद्ध जल की कमी एवं और सफाई सुविधाओं का अभाव है।
  3. निर्धनता एक ऐसी स्थिति है, जब माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पाते या कोई बीमार आदमी इलाज नहीं करवा पाता।
  4. निर्धनता का अर्थ नियमित रोज़गार की कमी भी है तथा न्यूनतम शालीनता स्तर का अभाव भी है।
  5. निर्धनता का अर्थ असहायता की भावना के साथ जीना है।

प्रश्न 15.
अगले दस या पंद्रह वर्षों में निर्धनता के उन्मूलन में प्रगति होगी। इसके लिए उत्तरदायी कुछ कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सार्वभौमिक निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा वृद्धि पर ज़ोर देना।
  2. आर्थिक संवृद्धि।
  3. जनसंख्या संवृद्धि में गिरावट।
  4. महिलाओं की शक्तियों में वृद्धि।

प्रश्न 16.
निर्धनता विरोधी कार्यक्रमों का परिणाम मिश्रित रहा है। कुछ कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अति जनसंख्या।
  2. भ्रष्टाचार।
  3. कार्यक्रमों के उचित निर्धारण की कम प्रभावशीलता।
  4. कार्यक्रमों की अधिकता।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-

  1. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम सन् 2004 में देश के 150 सबसे अधिक पिछड़े जिलों में शुरू किया गया।
  2. यह कार्यक्रम सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं।
  3. इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है।

प्रश्न 18.
भारत में निर्धनता के कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में निर्धनता के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर।
  2. वैकल्पिक व्यवसाय न होने के कारण ग्रामीण लोगों की मात्र कृषि पर निर्भरता होना।
  3. आय की असमानताएं।
  4. जनसंख्या वृद्धि।
  5. सामाजिक कारण जैसे-निरक्षरता, बड़ा परिवार, उत्तराधिकार कानून और जाति-प्रथा आदि।
  6. सांस्कृतिक कारण जैसे-मेलों, त्योहारों आदि पर फिजूलखर्ची।
  7. आर्थिक कारण-ऋण लेकर उसे न चुका पाना।
  8. अक्षमता एवं भ्रष्टाचार के कारण निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से न लागू होना।

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प्रश्न 19.
निर्धनता उन्मूलन के कोई चार कार्यक्रमों का उल्लेख करें।
उत्तर-
ये निम्नलिखित हैं

  1. प्रधानमंत्री रोजगार योजना-इसे 1993 में प्रारंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। .
  2. ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1995 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 25 लाख नए रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।
  3. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-इसका आरंभ 1999 में किया गया जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्व-सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।
  4. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना-इसका आरंभ 2000 में किया गया जिसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण, आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्रश्न 20.
निर्धनता का सामाजिक अपवर्जन क्या है ?
उत्तर-
इस अवधारणा के अनुसार निर्धनता को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि निर्धनों को बेहतर माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में रहने वाले संपन्न लोगों की सामाजिक समता से अपवर्जित रहकर केवल निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना पड़ता है। सामान्य अर्थ में सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण व परिणाम दोनों हो सकता है। मोटे तौर पर यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों से अपवर्जित रहते हैं, जिनका उपभोग दूसरे करते हैं। इसका एक विशिष्ट उदाहरण भारत में जाति-व्यवस्था की कार्यशैली है, जिसमें कुछ जातियों के लोगों को समान अवसरों से अपवर्जित रखा जाता है।

प्रश्न 21.
निर्धनता की असुरक्षा धारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदाय या व्यक्तियों के भावी वर्षों में निर्धन होने या निर्धन बने रहने की अधिक संभावना जताता है। असुरक्षा का निर्धारण परिसंपत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती अवसरों के रूप में जीविका खोजने के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है। इसके अलावा, इसका विश्लेषण प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद आदि मामलों में इन समूहों के समक्ष विद्यमान बड़े जोखिमों के आधार पर किया जाता है। अतिरिक्त विश्लेषण इन जोखिमों से निपटने की उनकी सामाजिक और आर्थिक क्षमता के आधार पर किया जाता है। वास्तव में, जब सभी लोगों के लिए बुरा समय आता है, चाहे कोई बाढ हो या भूकंप या फिर नौकरियों की उपलब्धता में कमी, दूसरे लोगों की तुलना में अधिक प्रभावित होने की बड़ी संभावना का निरूपण ही असुरक्षा है।

प्रश्न 22.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय असमानताएं क्या हैं ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता का एक और पहलू है। प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। यद्यपि 1970 के दशक के प्रारंभ से राज्य स्तरीय निर्धनता में सुदीर्घकालिक कमी हुई है, निर्धनता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। हाल के अनुमान दर्शाते हैं कि 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम है। दूसरी ओर, निर्धनता अब भी उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश की एक गंभीर समस्या है। इसकी तुलना में केरल, जम्मू व कश्मीर, आंध्र प्रदेश, गुजरात राज्यों में निर्धनता में कमी आई है।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय ग्रामीण बेरोज़गारी उन्मूलन विधेयक (NREGA) की, गरीबी उन्मूलन में सहायक प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय बेरोज़गारी उन्मूलन विधेयक की मुख्य विशेषताएं हैं-

  1. यह विधेयक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। यह विधेयक 600 जिलों में लागू करने का प्रस्ताव है जिससे निर्धनता को हटाया जा सके।
  2. प्रस्तावित रोज़गारों का एक तिहाई रोज़गार महिलाओं के लिए आरक्षित है।
  3. कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोज़गार भत्ते का हकदार होगा।

प्रश्न 24.
निर्धनता के समक्ष निरूपाय दो सामाजिक तथा दो आर्थिक समुदायों के नाम लिखिए। इस प्रकार के समुदाय के लिए और अधिक बुरा समय कब आता है ?
उत्तर-
निर्धनता के समक्ष निरूपाय दो सामाजिक समुदायों के नाम हैं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार जबकि आर्थिक समुदाय में ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियप्त मज़दूर परिवार हैं। इन समुदायों के लिए और अधिक बुरा समय तब आता है जब महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को भी सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुंच से वंचित किया जाता है।

प्रश्न 25.
भारत में निर्धनता को कम करने के किन्हीं तीन उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सरकार द्वारा निर्धनता को कम करने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम अपनाए हैं

  1. राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना, 2005 को सितंबर में पारित किया गया। यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है।
  2. दूसरा, राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम है जिसे 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था।
  3. प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक रोजगार सृजन योजना है, जिसे 1993 में आरंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।

प्रश्न 26.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की किन्हीं तीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मुख्य विशेषताएं हैं-

  1. सार्वजनिक वितरण – प्रणाली भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है।
  2. राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह अनाज की एक अनुबंधित मात्रा निकटवर्ती राशन की दुकानों से खरीद सकता है।
  3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सस्ता अनाज पहुंचाना था।

प्रश्न 27.
परिवारों के सदस्यों के मध्य आय की असमानता किस प्रकार प्रतिबिंबित होती है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परिवार के विभिन्न सदस्यों की आय भिन्न-भिन्न होती है तो यह आय की असमानता को प्रतिबिंबित करती है। उदाहरण के लिए एक परिवार में 5 सदस्य हैं। उनकी आय का विवरण निम्नलिखित है-

परिवार के सदस्य मासिक आय (₹ में)
1 40,000
2 25,000
3 20,000
4 10,000
5 3,000

उपरोक्त तालिका में स्पष्ट है कि इस परिवार के सदस्यों के बीच आय की असमानता अधिक है। पहले सदस्य की आय जहां ₹ 40,000 मासिक है वहीं पाँचवें सदस्य की आय ₹ 3,000 मासिक है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 28.
भारत में निर्धनता उन्मूलन के लिए विकसित किए गए किन्हीं पांच कार्यक्रमों पर नोट लिखिए।
उत्तर-
भारत में निर्धनता विरोधी पांच कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-

  1. प्रधानमंत्री रोजगार योजना-इसे 1993 में प्रारंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।
  2. ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1995 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।
  3. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-इसे 1999 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।
  4. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना-इसे 2000 में आरंभ किया गया जिसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्रारंभिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
  5. अंत्योदय अन्न योजना-यह योजना दिसंबर, 2000 में शुरू की गई थी जिसके अंतर्गत लक्षित वितरण प्रणाली में आने वाली निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई है।

प्रश्न 29.
“दो अग्रभागों पर असफलता : आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाना तथा जनसंख्या नियंत्रण के कारण निर्धनता का चक्र स्थिर है।” इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
निम्नलिखित कारणों से निर्धनता का चक्र स्थिर है।

  1. राज्यों की असमान वृद्धि दरें।
  2. औद्योगिक की दर का जनसंख्या वृद्धि दर से कम होना।
  3. शहरों की ओर प्रयास।
  4. ऋण-ग्रस्तता के ऊंचे स्तर।
  5. सामाजिक बंधन।
  6. भूमि का असमान वितरण।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण कैसे होता है ? .
उत्तर-
योजना आयोग ने “गरीबी रेखा की भौतिक उत्तरजीविता” (Physical survival) की संघटना को छठी योजना तक अपनाया, जिसके अनुसार उसने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक दिन में एक व्यक्ति के लिए 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों के लिए एक दिन में 2100 कैलोरी की न्यूनतम पौषिक आवश्यकताओं के आधार पर परिभाषित किया। इस कैलोरी अन्तर्ग्रहण को फिर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय में परिवर्तित किया जाता है। योजना आयोग को एक विधि एक अध्ययन समूह, जिसमें डी० आर, गाडगिल, पी० एस० लोकनाथ, बी० एन० गांगुली और अशोक मेहता थे, ने सुझाई। इस समूह ने राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि 1960-61 कीमतों पर ₹ 20 प्रति व्यक्ति प्रति मास निजी उपभोग व्यय न्यूनतम निर्वाह स्तर है। यह राशि चौथी योजना के लिए निश्चित की गई। बाद की योजनाओं में कीमतों के बढ़ने से यह राशि ऊँचे स्तर पर निश्चित की गई जो उन योजनाओं में गरीबी रेखा निर्धारित की गई। छठी योजना में ₹ 77 प्रति व्यक्ति प्रति मास ग्रामीण जनसंख्या के लिए ₹ 88 प्रति व्यक्ति मास शहरी जनसंख्या के लिए गरीबी रेखा का स्तर निर्धारित किया। इस आधार पर 1977-78 में 50.82 प्रतिशत ग्रामीण तथा 38.19 शहरी जनसंख्या निर्धन थी। दोनों को इकट्ठा कर लेने पर कुल जनसंख्या 48.13 प्रतिशत निर्धन थी।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा अपने 55वें दौर के सर्वेक्षण (जुलाई 1999-जून 2000) में उपभोक्ता व्यय के सम्बन्ध में उपलब्ध कराए गए अद्यतन वृहद् नमूना सर्वेक्षण आँकड़ों के अनुसार 30 दिवसीय प्रत्यावहन के आधार पर देश में गरीबी अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में 27.09 प्रतिशत अनुमानित है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात में वर्ष 1973-74 में 54.54% से निरन्तर गिरावट आई है जो वर्ष 1991-2000 में 27.09 प्रतिशत के स्तर तक पहँच गई। इस तरह, देश में अभी भी लगभग 20 करोड़ ग्रामीण जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत कर रही है। यद्यपि देश में गरीबी में व्यापक स्तर पर गिरावट आई है। फिर भी ग्रामीण गरीबी अनुपात अभी भी उड़ीसा, बिहार तथा उत्तरी पूर्व राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक है।

प्रश्न 2.
निर्धनता को दूर करने के उपाय बताएं।
उत्तर-
ये उपाय निम्न हैं

1. पूँजी निर्माण की दर को बढ़ाना (High Rate of Capital Formation)-यह तो सब जानते हैं कि पूँजी निर्माण की दर जितनी ऊँची होगी, साधारणतया आर्थिक विकास भी उतनी ही तीव्र गति से सम्भव हो सकेगा। इसका कारण यह है कि विकास के प्रत्येक कार्यक्रम के लिए चाहे उसका सम्बन्ध कृषि की उत्पादकता में वृद्धि लाने से हो अथवा औद्योगीकरण या शिक्षा या स्वास्थ्य की व्यवस्था बढ़ने से हो, अधिकाधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। यदि पर्याप्त मात्रा में पूँजी उपलब्ध है तो विकास का कार्य ठीक प्रकार से चल सकेगा अन्यथा नहीं। अतः देश में पूँजी निर्माण की ओर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। पूँजी निर्माण के लिए आवश्यक है कि लोग अपनी कुल आय को वर्तमान उपभोग पर व्यय न करके उसके एक भाग को बचाएँ और उसे उत्पादन कार्यों में विनियोग करें अथवा लगाएं। इस दृष्टि से हमें चाहिए कि हर ढंग से लोगों को प्रोत्साहित करें कि वे उपभोग के स्तर को सीमित करें। फिजूलखर्चों से बचें और आय के अधिकाधिक भागों को बचाकर उत्पादन क्षेत्र में लगाएँ। देश में साख मुद्रा और कर सम्बन्धी नीतियों में ठीक परिवर्तन लाकर पूँजी निर्माण की दर को ऊपर उठाया जा सकता है।

2. उत्पादन नीतियों में सुधार (Improved Methods of Production) उत्पादन की आधुनिक विधियाँ और साज समान को अपनाना चाहिए, तभी उत्पादन की मात्रा में अधिकाधिक वृद्धि लाकर लोगों का जीवन-स्तर ऊपर उठाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करते समय हमें अपनी विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। केवल उन्नत देशों की नकल से काम नहीं चलेगा। कारण, उनकी और हमारी परिस्थितियों में बहुत बड़ा अन्तर है। हमें चाहिए कि ऐसे नए तरीकों और साज-समान को अपनाएँ जिनमें अपेक्षाकृत बहुत अधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता न पड़ती हो और श्रम की अधिक खपत हो सकती हो।

3. न्यायोचित वितरण (Better Distribution)-पूँजी-निर्माण की दर को ऊँचा करने तथा उत्पादन के नए तरीकों को अपनाने से उत्पादन को मात्रा में निश्चय ही भारी वृद्धि होगी। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि लाने से ही सर्वसाधारण की ग़रीबी दूर न होगी, उनका जीवन स्तर ऊपर न उठ सकेगा। साथ ही उसके ठीक विभाजन व वितरण के लिए भी आर्थिक व्यवस्था करना आवश्यक है जिससे आय और सम्पत्ति की विषमता घटे और देश में आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण सम्भव हो सके। हमें ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे जिन लोगों की आय बहुत कम है, उन की आय बढ़े और उन्हें अधिक लाभप्रद अवसर मिलें और साथ ही जिससे धन का संचय एक स्थान पर न होने पाए तथा समृद्धिशालियों के साधनों में अपेक्षाकृत कमी हो।

4. जनसंख्या पर नियन्त्रण (Population Control)-देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए हमें एक और कार्य करना होगा। वह है तेज़ी से बढ़ती हुई देश की भारी जनसंख्या पर नियन्त्रण करना। जब लोगों की आय और व्यय का स्तर नीचा होता है और जनसंख्या में वृद्धि का क्रम ऊँचा होता है तो आर्थिक विकास की गति में भारी रुकावट पैदा होती है। कारण, ऐसी परिस्थिति में श्रमिकों को बढ़ती हुई संख्या के लिए उपभोक्ता पदार्थों (Consumer’s goods) की आवश्यकताएँ और लाभप्रद रोज़गार की कमी है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती PSEB 9th Class Economics Notes

  • निर्धनता – निर्धनता एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी मानव को अपने जीवनयापन के लिए भोजन वस्त्र और मकान जैसी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करने में भी कठिनाई होती है।
  • सामाजिक अपवर्जन – सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं लाभों और अवसरों से अपवर्तित करते हैं, जिनका उपभोग दूसरे करते हैं।
  • असुरक्षा – निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कछ विशेष समुदाओं या व्यक्तियों के भावी वर्गों से निर्धनता या निर्धन वने रहने की अधिक समानता जताना है।
  • निर्धनता के माप –
    • निरपेक्ष निर्धनता
    • सापेक्ष निर्धनता।
  • सापेक्ष निर्धनता – इससे अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।
  • निरपेक्ष निर्धनता – इससे अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है।
  • निर्धनता रेखा – निर्धनता रेखा वह रेखा है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं।
  • कैलोरी – यह एक व्यक्ति को एक दिन के खाने से मिलने वाली ऊर्जा है।
  • निर्धनता के कारण –
    •  निम्न आर्थिक समृद्धि
    • भारी जनसंख्या दबाव
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता उन्मूलन माप –
    • आर्थिक समृद्धि का विकास
    • निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
  • निर्धनता के वैश्विक माप – विश्व के लगभग 1/5 भाग के निर्धन भारत में रहते हैं।
  • कैलोरी मापदंड – इस विचारधारा के अनुसार भारत में ग्रामीण क्षेत्र के प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रतिदिन प्राप्त होनी चाहिए।
  • दैनिक भोगीश्रम – वह श्रमिक जो दैनिक आधार पर मज़दूरी प्राप्त करता है।
  • उपभोग – उपयोगिता का भक्षण उपभोग है।
  • आय – निवेश या कार्य के नियमित तौर पर किए जाने पर प्राप्त होने वाली मुद्रा आय है।
  • निवेश – आगे उत्पादन करने के लिए किया जाने वाला व्यय निवेश है।
  • असमानता – असमानता से अभिप्राय धन व आय के असमान वितरण से है।
  • लिंग विभेद – लिंग, जाति या अन्य आधारों पर होने वाला विभेद लिंग विभेद है।
  • भारत के निर्धन राज्य – ओडिशा व बिहार।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

SST Guide for Class 9 PSEB भारत में अन्न सुरक्षा Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

  1. बढ़ रही कीमतों के कारण सरकार ने ग़रीबी के लिए कम मूल्यों पर ……….. प्रणाली आरम्भ की।
  2. 1943 में भारत के ……… राज्य में बहुत बड़ा अकाल पड़ा।
  3. ……… एवम् ……. कुपोषण का अधिक शिकार होते हैं।
  4. ……… कार्ड बहुत निर्धन वर्ग के लिए जारी किया जाता है।
  5. फसलों की पूर्व घोषित कीमत को …….. कीमत कहा जाता है।

उत्तर-

  1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  2. बंगाल
  3. महिलाएं व बच्चे
  4. राशन
  5. न्यूनतम समर्थन ।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को कौन-सा कार्ड जारी किया जाता है ?
(क) अन्त्योदय कार्ड
(ख) BPL कार्ड
(ग) APL कार्ड
(घ) CPL कार्ड।
उत्तर-
(ख) BPL कार्ड

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

प्रश्न 2.
अन्न सुरक्षा का एक सूचक है।
(क) दूध
(ख) पानी
(ग) भूख
(घ) वायु।
उत्तर-
(ग) भूख

प्रश्न 3.
फसलों को पूर्व घोषित मूल्य (कीमत) को क्या कहा जाता है ?
(क) न्यूनतम समर्थन मूल्य
(ख) निर्गम मूल्य
(ग) न्यूनतम मूल्य
(घ) उचित मूल्य।
उत्तर-
(क) न्यूनतम समर्थन मूल्य

प्रश्न 4.
बंगाल अकाल के अतिरिक्त अन्य किस राज्य में अकाल जैसी स्थिति पैदा हुई।
(क) कर्नाटक
(ख) पंजाब
(ग) ओडिशा
(घ) मध्य प्रदेश।
उत्तर-
(ग) ओडिशा

प्रश्न 5.
कौन-सी संस्था गुजरात में दूध तथा दूध निर्मित पदार्थ बेचती है ?
(क) अमूल
(ख) वेरका
(ग) मदर डेयरी
(घ) सुधा।
उत्तर-
(क) अमूल

सही/गलत चुने :

  1. अन्न के उपलब्ध होने से अभिप्राय है कि देश के भीतर उत्पादन नहीं किया जाता है।
  2. भूख अन्न सुरक्षा का एक सूचक है।
  3. राशन की दुकानों को उचित मूल्य पर सामान बेचने वाली दुकानें भी कहा जाता है।
  4. मार्कफैड पंजाब भारत में सबसे बड़ी खरीद करने वाली सहकारी संस्था है।

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

(उत्तर एक पंक्ति या एक शब्द में हों)

प्रश्न 1.
अन्न सुरक्षा क्या है ?
उत्तर-
अन्न सुरक्षा का अर्थ है, सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुंच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य है।

प्रश्न 2.
अन्न सुरक्षा क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
अन्न सुरक्षा की आवश्यकता लगातार और तीव्र गति में बढ़ रही जनसंख्या के लिए है।

प्रश्न 3.
अकाल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अकाल का अर्थ है खाद्यान्न में होने वाली अत्यधिक दुर्लभता।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

प्रश्न 4.
महामारी के दो उदाहरणे दें।
उत्तर-

  1. भारत में 1974 में चेचक।
  2. भारत में 1994 में प्लेग।

प्रश्न 5.
बंगाल में अकाल किस वर्ष पड़ा ?
उत्तर-
1943 में।

प्रश्न 6.
बंगाल के अकाल के दौरान कितने लोग मारे गए ?
उत्तर-
30 लाख लोग।

प्रश्न 7.
अकाल के दौरान कौन-से लोग अधिक पीड़ित होते हैं ?
उत्तर-
बच्चे और औरतें अकाल में सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।

प्रश्न 8.
‘अधिकार’ शब्द किस व्यक्ति ने अन्न सुरक्षा के साथ जोड़ा।
उत्तर-
डॉ० अमर्त्य सेन ने।

प्रश्न 9.
अन्न असुरक्षित लोग कौन-से हैं ?
उत्तर-
भूमिहीन लोग, परंपरागत कारीगर, अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग आदि।

प्रश्न 10.
उन राज्यों के नाम लिखें जहां अन्न असुरक्षित लोग अधिक संख्या में कहते है ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, झारखण्ड, बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश का कुछ भाग।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

(उत्तर 70 से 75 शब्दों में हों)

प्रश्न 1.
हरित क्रांति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरित क्रांति से अभिप्राय भारत में खाद्यान्न में होने वाली उस वृद्धि से है जो 1966-67 में कृषि में नई तकनीकें लगाने से उत्पन्न हुई थी। इससे कृषि उत्पादन 25 गुणा बढ़ गया था। यह वृद्धि किसी क्रांति से कम नहीं थी। इसलिए इसे हरित क्रांति का नाम दे दिया गया।

प्रश्न 2.
बफर भण्डार की परिभाषा दें।
उत्तर-
बफर भण्डार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूं और चावल का भंडार है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूं और चावल खरीदते हैं। किसानों को उनकी उपज के बदले पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य कहते हैं।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। अब अधिकांश गांवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं। देशभर में लगभग 4.6 लाख राशन की दुकानें हैं। राशन की दुकानें जिन्हें उचित मूल्य की दुकानें कहा जाता है, चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल के भंडार हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

प्रश्न 4.
न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या होता है ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में से किसानों से गेहूं और चावल खरीदते हैं। किसानों को उनकी उपज के बदले पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थन मूल्य कहते हैं। इन फसलों को अधिक उत्पादित करवाने के लिए बुआई के मौसम से पहले सरकार न्यूनतम समर्थन कीमत की घोषणा कर देती है।

प्रश्न 5.
मौसमी भूख और मियादी भूख से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दीर्घकालिक भुख मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। ग़रीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण मियादी भुख से ग्रस्त होते हैं। मौसमी भुख फसल उपजाने और काटने के चक्र से संबंधित है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है।

प्रश्न 6.
अधिक (बफर) भण्डारण सरकार की तरफ से क्यों रखा जाता है ?
उत्तर-
सरकार का बफर स्टॉक बनाने का मुख्य उद्देश्य कमी वाले राज्यों या क्षेत्रों में और समाज के ग़रीब वर्गों में
बाज़ार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं। यह खराब मौसम में या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता है।

प्रश्न 7.
निर्गम मूल्य (इशू कीमत) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार का मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न कमी वाले क्षेत्रों में खाद्यन्न उपलब्ध करवाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार बफर स्टॉक बनाती है ताकि समाज के गरीब वर्ग को बाजार कीमत से कम कीमत पर खाद्यान्न उपलब्ध हो सके। इस न्यूनतम कीमत को ही निर्गम कीमत कहा जाता है।

प्रश्न 8.
सस्ते मूल्य की दुकानों के कामकाज की समस्याओं की व्याख्या करो। .
उत्तर-
सस्ते मूल्य की दुकानों के मालिक कई बार अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को खुले बाज़ार में बेच देते हैं, कई बार घटिया किस्म की उपज बेचते हैं, दुकानें अधिकतर बंद रखते हैं। इसके अलावा एफ०सी०आई० के गोदामों में अनाज का विशाल स्टॉक जमा हो रहा है जो लोगों को प्राप्त नहीं हो रहा। हाल के वर्षों में कार्ड भी तीन प्रकार के कर दिए गए हैं जिससे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

प्रश्न 9.
अन्न की पूर्ति के लिए सहकारी संस्थाओं की भूमिका की व्याख्या करो।
उत्तर-
भारत में विशेषकर देश के दक्षिण और पश्चिम भागों में सहकारी समितियां भी खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । सहकारी समितियां निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती है। जैसे तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात, पंजाब आदि राज्यों में सहकारी समितियां हैं जो लोगों को सस्ता दूध, सब्जी, अनाज आदि उपलब्ध करवा रही हैं।

अन्य अभ्यास के प्रश्न

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा 1
चित्र 4.1 बंगाल अकाल

आइए चर्चा करें

  1. चित्र 4.1 में आप क्या देखते हैं ?
  2. क्या आप कह सकते हैं कि चित्र में दर्शाया गया परिवार एक ग़रीब परिवार है ? यदि हां, तो क्यों ?
  3. क्या आप चित्र से दर्शाये व्यक्ति की आजीविका का साधन बता सकते है ? अपने अध्यापक से चर्चा करें।
  4. राहत कैंप में प्राकृतिक आपदा के शिकार लोगों को कौन-से प्रकार की सहायता दी जा सकती है ?

उत्तर-

  1. चित्र 4.1 के अवलोकन से ज्ञात हो रहा है कि लोग अकाल, सूखा तथा प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त होने के कारण भूखे, नंगे, प्यासे व बिना आश्रय के हैं।
  2. हाँ, चित्र में दर्शाया गया परिवार एक निर्धन परिवार है। उनके पास खाने व पीने के लिए कुछ भी नहीं है जिससे वे भूखे व बीमार हैं।
  3. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा दी गई सहायता अत्यंत लाभदायक होती है। बाहर से आने वाली खाद्य सामग्री, कपड़े, दवाइयां इसमें अत्यंत लाभदायक हो सकती हैं।
  4. राहत कैंप में आपदा के शिकार लोगों को भोजन, वस्त्र, दवाइयाँ, बिस्तर, टैंट की सहायता दी जा सकती है। उसके बाद उनके पुनर्स्थापन की व्यवस्था की जा सकती हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा 2
ग्राफ 4.1 भारत में खाद्यान्नों का उत्पादन (मिलियन टन में)

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

आओ चर्चा करें :

ग्राफ 4.1 का अध्ययन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) हमारे देश में किस वर्ष 200 मिलियन टन प्रति वर्ष अन्न की मात्रा के उत्पादन का लक्ष्य पूरा किया ?
(ii) किस वर्ष दौरान भारत में अन्न का उत्पादन सर्वाधिक रहा ?
(iii) क्या वर्ष 2000-01 से लेकर 2016-17 तक अन्न के उत्पादन में वृद्धि हुई अथवा नहीं ?

उत्तर-

  1. वर्ष 2000-01 में भारत ने 200 मिलियन टन खाद्यान्न के उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया था।
  2. वर्ष 2016-17 में भारत में खाद्यान्न का उत्पादन सबसे अधिक रहा।
  3. नहीं, वर्ष 2000-01 से लेकर 2016-17 तक लगातार खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत में अन्न सुरक्षा Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें:

  1. ………… का अर्थ, सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुंच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य।
  2. ………… ने भारत को चावल और गेहूं में आत्मनिर्भर बनाया है।
  3. ……….. वह कीमत है जो सरकार बुआई से पहले निर्धारित करती है।
  4. ………… भुखमरी खाद्यान्न के चक्र से संबंधित है।
  5. ……….. ने ‘पात्रता’ शब्द का प्रतिपादन किया है।

उत्तर-

  1. खाद्य सुरक्षा,
  2. हरित क्रांति,
  3. न्यूनतम समर्थन कीमत,
  4. मौसमी,
  5. डॉ० अमर्त्य सेन।

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
खाद्य सुरक्षा का आयाम क्या है ?
(a) पहुंच
(b) उपलब्धता
(c) सामर्थ्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
खाद्य असुरक्षित कौन है ?
(a) अनुसूचित जाति
(b) अनुसूचित जनजाति
(c) अन्य पिछड़ा वर्ग
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कब घोषित की गई ?
(a) 1991
(b) 1992
(c) 1994
(d) 1999
उत्तर-
(b) 1992

प्रश्न 4.
बंगाल का भयंकर अकाल कब पड़ा ?
(a) 1943
(b) 1947
(c) 1951
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(a) 1943

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सही/गलत :

  1. पहुंच का अर्थ है सभी लोगों को खाद्यान्न मिलता रहे।
  2. खाद्य सुरक्षा का प्रावधान खाद्य अधिकार 2013 अधिनियम में किया गया है।
  3. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम वर्ष 2009 में शुरू हुआ।
  4. न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा घोषित की जाती है।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही।।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भुखमरी क्या है ?
उत्तर-
भुखमरी खाद्य असुरक्षा का एक आयाम है। भुखमरी खाद्य तथा पहुंच की असमर्थता है।

प्रश्न 2.
खाद्य सुरक्षा किस तत्व पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर निर्भर है।

प्रश्न 3.
भारत में राशनिंग प्रणाली कब शुरू की गई ?
उत्तर-
भारत में राशनिंग प्रणाली 1940 में शुरू की गई, इसकी शुरुआत बंगाल के अकाल के बाद हुई।

प्रश्न 4.
‘पात्रता क्या है ?
उत्तर-
पात्रता, भुखमरी से ग्रस्त लोगों को खाद्य की सुरक्षा प्रदान करेगी।

प्रश्न 5.
ADS क्या है ?
उत्तर-
ADS का अर्थ है Academy of Development Science.

प्रश्न 6.
खाद्य सुरक्षा के आयाम क्या हैं ?
उत्तर-

  1. खाद्य की पहुंच,
  2. खाद्य का सामर्थ्य,
  3. खाद्य की उपलब्धता।

प्रश्न 7.
खाद्य सुरक्षा किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर करती है।

प्रश्न 8.
खाद्य सुरक्षा के आयाम क्या हैं?
उत्तर-
ये निम्नलिखित हैं-

  1. खाद्य उपलब्धता से अभिप्राय देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज भंडारों के स्टॉक से है।
  2. पहुंच से अभिप्राय प्रत्येक व्यक्ति को खाद्य मिलने से है।
  3. सामर्थ्य से अभिप्राय पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए उपलब्ध धन से है।

प्रश्न 9.
निर्धनता रेखा से ऊपर लोग खाद्य असुरक्षा से कब ग्रस्त हो सकते हैं ?.
उत्तर-
जब देश में भूकंप, सूखा, बाढ़, सुनामी, फ़सलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि से राष्ट्रीय आपदाएँ आती हैं तो निर्धनता रेखा से ऊपर लोग भी खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 10.
अकाल की स्थिति कैसे बन सकती है ?
उत्तर-
व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है।

प्रश्न 11.
प्रो० अमर्त्य सेन ने खाद्य सुरक्षा के संबंध में किस पर जोर दिया है ?
उत्तर-
प्रो० अमर्त्य सेन ने खाद्य सुरक्षा में एक नया आयाम जोड़ा है जो हकदारियों के आधार पर खाद्य तक पहुंच पर ज़ोर देता है। हकदारियों का अर्थ राज्य या सामाजिक रूप से उपलब्ध कराई गई अन्य पूर्तियों के साथ-साथ उन वस्तुओं से . है, जिनका उत्पादन और विनिमय बाज़ार में किसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 12.
भारत में भयानक अकाल कब और कहां पड़ा था ?
उत्तर-
भारत में सबसे भयानक अकाल 1943 में बंगाल में पड़ा था जिससे बंगाल प्रांत में 30 लाख लोग मारे गए थे।

प्रश्न 13.
बंगाल के अकाल में सबसे अधिक कौन लोग प्रभावित हुए थे ?
उत्तर-
इससे खेतिहर मज़दूर, मछुआरे, परिवहन कर्मी और अन्य अनियमित श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।

प्रश्न 14.
बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण हुआ था। क्या आप इससे सहमत हैं ?
उत्तर-
हां, बंगाल के अकाल का मुख्य कारण चावल की कम पैदावार ही था जिससे भुखमरी हुई थी।

प्रश्न 15.
किस वर्ष में खाद्य उपलब्धता में भारी कमी हुई ?
उत्तर-
1941 में खाद्य उपलब्धता में भारी कमी हुई।

प्रश्न 16.
अनाज की उपलब्धता भारत में किस घटक के कारण और भी सुनिश्चित हुई है ?
उत्तर-
बफर स्टॉक एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कारण।

प्रश्न 17.
देशभर में लगभग राशन की दुकानें कितने लाख हैं ?
उत्तर-
4.6 लाख।

प्रश्न 18.
‘एकीकृत बाल विकास सेवाएँ’ प्रायोगिक आधार पर किस वर्ष शुरू की गईं ?
उत्तर-
1975.

प्रश्न 19.
‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम कब शुरू हुआ था ?
उत्तर-
1965-66 में।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम कब लागू किया गया ?
उत्तर-
2004 में।

प्रश्न 21.
संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कब लागू की गई ?
उत्तर-
1997 में।

प्रश्न 22.
अन्नपूर्णा योजना कब लागू हुई ?
उत्तर-
2000 में।

प्रश्न 23.
अन्नपूर्णा योजना में लक्षित समूह कौन है ?
उत्तर-
दीन वरिष्ठ नागरिक।

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प्रश्न 24.
अंत्योदय अन्न योजना में लक्षिक समूह कौन हैं ?
उत्तर-
निर्धनों में सबसे निर्धन।

प्रश्न 25.
अन्नपूर्णा योजना में खाद्यान्नों की आद्यतन मात्रा प्रति परिवार कितने किलोग्राम निर्धारित की गई है ?
उत्तर-
10 किलोग्राम।

प्रश्न 26.
इनमें से कौन भूख का आयाम है ?
(क) मौसमी
(ख) दीर्घकालिक
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) (क) तथा (ख) दोनों।

प्रश्न 27.
इनमें से कौन-सी फसलें हरित क्रांति से संबंधित हैं ?
(क) गेहूँ, चावल
(ख) कपास, बाजरा
(ग) मक्की , चावल
(घ) बाजरा, गेहूँ।
उत्तर-
(क) गेहूँ, चावल।

प्रश्न 28.
‘लक्षित सार्वजनिक वितरण-प्रणाली’ कब लागू हुई ?
(क) 1992
(ख) 1995
(ग) 1994
(घ) 1997.
उत्तर-
(घ) 1997.

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के ग़रीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी०डी०एस०) कहते हैं।

प्रश्न 2.
खाद्य सुरक्षा में किसका योगदान है ?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली, दोपहर का भोजन आदि विशेष रूप से खाद्य की दृष्टि से सुरक्षा के कार्यक्रम हैं। अधिकतर ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी खाद्य सुरक्षा बढ़ाते हैं।

प्रश्न 3.
संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है ?
उत्तर-
यह सार्वजनिक वितरण-प्रणाली का संशोधित रूप है जिसे 1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था। इसमें 20 किलोग्राम तक खाद्यान्न प्रति परिवार जिसमें गेहूँ ₹ 2.80 प्रति किलोग्राम तथा चावल ₹ 3.77 प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपलब्ध करवाए जाते थे।

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प्रश्न 4.
अन्नपूर्णा योजना क्या है ?
उत्तर-
यह भोजन ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों पर लक्षित योजना है जिसे वर्ष 2000 में लागू किया गया है। इस योजना में ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों को 10 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति परिवार निःशुल्क उपलब्ध करवाने का प्रावधान है।

प्रश्न 5.
राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
राशन कार्ड तीन प्रकार होते हैं-

  1. निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय कार्ड,
  2. निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए बी०पी०एल० कार्ड और
  3. अन्य लोगों के लिए ए०पी०एल० कार्ड।

प्रश्न 6.
किसी आपदा के समय खाद्य सुरक्षा कैसे प्रभावित होती है ?
उत्तर-
किसी प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्र में खाद्य की कमी हो जाती है। खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद पाते। अगर आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है।

प्रश्न 7.
बफर स्टॉक क्या होता है ? .
उत्तर-
बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (IFC) के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है। IFC अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फ़सल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है।

प्रश्न 8.
विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन 1995 में क्या घोषणा की गई थी?
उत्तर-
विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन 1995 में यह घोषणा की गई थी कि “वैयक्तिक, पारिवारिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा का अस्तित्व तभी है, जब सक्रिय और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आहार संबंधी ज़रूरतों और खाद्य पदार्थों को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य तक सभी लोगों की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच सदैव हो।”

प्रश्न 9.
खाद्य असुरक्षित कौन है ?
उत्तर-
यद्यपि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परंतु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं- भूमिहीन जो थोड़ी-बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं, पारंपरिक दस्तकार, पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, अपना काम करने वाले कामगार तथा भिखारी। शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्राय: वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम बाज़ार में काम करते हैं।

प्रश्न 10.
राशन व्यवस्था क्या होती है ?
उत्तर-
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 के दशक में हुई। हरित क्रांति से पूर्व भारी खाद्य संकट के कारण 60 के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनर्जीवित की गई। गरीबी के उच्च स्तरों को ध्यान में रखते हुए 70 के दशक के मध्य N.S.S.O. की रिपोर्ट के अनुसार तीन कार्यक्रम शुरू किए गए।

  1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  2. एकीकृत बाल विकास सेवाएँ
  3. काम के बदले अनाज।

प्रश्न 11.
वे तीन बातें क्या हैं जिनमें खाद्य सुरक्षा निहित है ?
उत्तर-
किसी देश में खाद्य सुरक्षा केवल तभी सुनिश्चित होती है, जब-

  1. सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो।
  2. सभी लोगों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ खरीदने की क्षमता हो।
  3. खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा न हो।

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प्रश्न 12.
बफर स्टॉक क्या होता है ? सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है ?
उत्तर-
बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूं और चावल का भंडार है जिसमें खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। सरकार बफर स्टॉक की कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के ग़रीब वर्गों में बाज़ार कीमत से कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करवाने के लिए तथा आपदा काल में अनाज की समस्या को हल करने के लिए बनाती है।

प्रश्न 13.
वर्णन करें कि पिछले वर्षों के दौरान भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आलोचना क्यों होती रही है ?
उत्तर-
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आलोचना इसलिए हुई है क्योंकि यह अपने लक्ष्य में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। अनाजों से ठसाठस भरे अन्न भंडारों के बावजूद भुखमरी की घटनाएँ हो रही हैं। एफ०सी०आई० के भंडार अनाज से भरे हैं। कहीं अनाज सड़ रहा है तो कुछ स्थानों पर चूहे अनाज खा रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के धारक अधिक कमाने के लिए अनाज को खुले बाजार में बेचते हैं। इन सभी तथ्यों के आधार पर सार्वजनिक वितरण-प्रणाली की आलोचना हो रही है।

प्रश्न 14.
न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या होता है ? बढ़ाए हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्य संग्रहण का क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर-
न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा किसानों को उनकी उपज के लिए दिया गया मूल्य है जो कि सरकार द्वारा पहले ही घोषित किया जा चुका होता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से विशेष तथा खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों को अपनी भूमि पर मोटे, अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेहूँ उपजाने के लिए प्रेरित किया है, जबकि मोटा अनाज ग़रीबों का प्रमुख भोजन है।

प्रश्न 15.
खाद्य सुरक्षा के विभिन्न आयामों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा के विभिन्न आयाम हैं-

  1. खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश के भंडारों में संचित अनाज तथा खाद्य उत्पादन से है।
  2. पहुँच का अर्थ है कि खाद्य प्रत्येक व्यक्ति को मिलता रहे।
  3. सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास अपनी भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध हो।

प्रश्न 16.
एक प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण अधोसंरचना शायद प्रभावित हो लेकिन इससे खाद्य सुरक्षा अवश्य ही प्रभावित होगी। उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को न्यायसंगत बनाएँ।
उत्तर-

  1. किसी प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आई है। इससे प्रभावित क्षेत्र में खाद्य की कमी होने के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है तो भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिससे अकाल की स्थिति बन सकती है।
  2. उदाहरणार्थ-1943 में बंगाल का अकाल।

प्रश्न 17.
‘उचित दर वाली दुकानें किस प्रकार से खाद्य वितरण में सहायक होती हैं ?
उत्तर-
‘उचित दर वाली दुकानें भारत में निम्नलिखित प्रकार से खाद्य वितरण में सहायक होती हैं-

  1. देश भर में लगभग 4.6 लाख दुकानें हैं।
  2. राशन की दुकानों में चीनी, खाद्यान्न तथा खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है।
  3. उचित दर वाली दुकानें ये सब बाज़ार कीमत से कम कीमत पर लोगों को बेचती हैं।

प्रश्न 18.
अंत्योदय अन्न योजना पर विस्तृत नोट लिखें।
उत्तर-
अंत्योदय अन्न योजना यह योजना दिसंबर 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। संबंधित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने ग़रीबी रेखा से नीचे के ग़रीब परिवारों को सर्वेक्षण के द्वारा चुना।₹ 2 प्रति किलोग्राम गेहूँ और ₹ 3 प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्त दर पर प्रत्येक पात्र परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ा कर 35 किलोग्राम कर दी गई। जून 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 5050 लाख अतिरिक्त बी०पी०एल० परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।

प्रश्न 19.
खाद्य सुरक्षा के आयामों का वर्णन करें।
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा के निम्नलिखित आयाम हैं-

  1. खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज भंडारों में संचित पिछले वर्षों के स्टॉक से है।
  2. पहुँच का अर्थ है कि खाद्य प्रत्येक व्यक्ति को मिलता रहना चाहिए।
  3. सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास अपनी भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।

किसी देश में खाद्य सुरक्षा केवल तभी सुनिश्चित होती है जब

  1. सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो,
  2. सभी लोगों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य-पदार्थ खरीदने की क्षमता हो और
  3. खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा न हो।

प्रश्न 20.
सहकारी समितियों की खाद्य सुरक्षा में भूमिका क्या है?
उत्तर-
भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं। उदाहरणार्थ, तमिलनाडु में जितनी राशन की दुकानें हैं, उनमें से करीब 94 प्रतिशत सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत सहकारी समितियों के और अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराई है।

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प्रश्न 21.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कदम है। प्रारंभ में यह प्रणाली सबके लिए थी और निर्धनों और गैर-निर्धनों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता था। बाद के वर्षों में PDS को अधिक दक्ष और अधिक लक्षित बनाने के लिए संशोधित किया गया। 1992 में देश में 1700 ब्लाकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में PDS से लाभ पहुँचाना था।

जून, 1997 से सभी क्षेत्रों में ग़रीबी को लक्षित करने के सिद्धांतों को अपनाने के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) प्रारंभ की गई। इसके अलावा 2000 में दो विशेष योजनाएँ अंत्योदय अक्ष योजना तथा अन्नपूर्णा योजना प्रारंभ की गई।

प्रश्न 22.
भारत में खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर-
70 के दशक के प्रारंभ में हरित क्रांति के आने के बाद से मौसम की विपरीत दशाओं के दौरान भी देश में अकाल नहीं पड़ा है। देश भर में उपजाई जाने वाली विभिन्न फ़सलों के कारण भारत पिछले तीस वर्षों के दौरान खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई। इस व्यवस्था के दो घटक हैं-1. बफर स्टॉक, 2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

प्रश्न 23.
प्रतिरोधक भंडार (बफर स्टॉक) शब्द की व्याख्या कीजिए।खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में यह किन दो विधियों से प्रयक्त होता है ?
उत्तर-
प्रतिरोधक भंडार (बफर स्टॉक) भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है। खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में यह निम्न प्रकार से प्रयुक्त होता है-

  1. अनाज की कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के ग़रीब वर्गों में बाज़ार कीमत से कम कीमत पर अनाज का वितरण करने के लिए।
  2. खराब मौसम में या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या को हल करता है।

प्रश्न 24.
भूख के दो आयामों में अंतर स्पष्ट कीजिए। प्रत्येक प्रकार की भूख कहां अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
भूख के दो आयाम दीर्घकालिक और मौसमी आयाम होते हैं। दीर्घकालिक भूख मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। निर्धन लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भूख से ग्रस्त होते हैं। मौसमी भूख फ़सल उपजाने और काटने के चक्र के संबद्ध है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियंत्रित श्रम के कारण होती है। प्रत्येक प्रकार की भूख ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है।

प्रश्न 25.
भारत के विभिन्न वर्गों के लोगों की, जो खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असरक्षित हैं, उनकी स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की प्राप्ति से असुरक्षित है, परंतु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं; भूमिहीन जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं, पारंपरिक दस्तकार, पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार और निराश्रित तथा भिखारी। शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम बाज़ार काम करते हैं।

प्रश्न 26.
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत द्वारा खाद्यान्नों मे आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए उठाए गए कदमों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नीति निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए। भारत ने कृषि में एक नई रणनीति अपनाई, जिसकी परिणति हरित क्रांति में हुई, विशेषकर, गेहूँ और चावल के उत्पादन में। बहरहाल, अनाज की उपज में वृद्धि समानुपातिक नहीं थी। पंजाब और हरियाणा में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई, यहाँ अनाजों का उत्पादन 1964-65 के 72.3 लाख टन की तुलना में बढ़कर 1995-96 में 3.03 करोड़ टन पर पहुँच गया। दूसरी तरफ, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
भारत में खाद्य सुरक्षा के विस्तार में सार्वजनिक वितरण प्रणाली किस प्रकार सर्वाधिक कारगर सिद्ध
उत्तर–
सार्वजनिक वितरण-प्रणाली खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कदम है। प्रारंभ में यह प्रणाली सबके लिए थी और निर्धनों और गैर-निर्धनों के मध्य कोई भेद नहीं किया जाता था। बाद के वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए संशोधित किया गया। 1992 में देश के 1700 ब्लाकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण-प्रणाली से लाभ पहुंचाना था।

प्रश्न 28.
सहकारी समिति क्या काम करती है ? सहकारी समितियों के दो उदाहरण दीजिए तथा बताइए कि सुरक्षा सुनिश्चित करने में उनका क्या योगदान है ?
उत्तर-
सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं । सहकारी समितियों के उदाहरण हैं-दिल्ली में मदर डेयरी, गुजरात में अमूल दुग्ध उत्पादन समिति । दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धनता नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है। गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। उसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है। इस तरह सहकारी समितियों ने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराई है।

प्रश्न 29.
कौन लोग खाद्य सुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं ?
उत्तर-

  1. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति व कुछ अन्य पिछड़े वर्ग के लोग जो भूमिहीन थोड़ी बहुत कृषि भूमि पर निर्भर हैं।
  2. वे लोग भी खाद्य की दृष्टि से शीघ्र असुरक्षित हो जाते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हैं और जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है।
  3. खाद्य असुरक्षा से ग्रसित आबादी का बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।

प्रश्न 30.
जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-

  1. आपदा के समय खाद्य आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित होता है।
  2. किसी प्राकृतिक आपदा जैसे, सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है।
  3. आपदा के समय खाद्यान्न की उपज में कमी आ जाती है तथा कीमतें बढ़ जाती हैं।
  4. यदि वह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है।
  5. भारत में आपदा के समय खाद्यन्नों की कमी हो जाती है जिससे जमाखोरी व कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 31.
राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर-
राशन की दुकानों के संचालन की समस्याएं निम्नलिखित हैं-

  1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली धारक अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को खुले बाज़ार में बेचना, राशन दुकानों में घटिया अनाज़ बेचना, दुकान कभी-कभार खोलना जैसे कदाचार करते हैं।
  2. राशन दुकानों में घटिया किस्म के अनाज का पड़ा रहना आम बात है जो बिक नहीं पाता। यह एक बड़ी समस्या साबित हो रही है।
  3. जब राशन की दुकानें इन अनाजों को बेच नहीं पातीं तो एफ०सी०आई० (FCI) के गोदामों में अनाज का विशाल स्टॉक जमा हो जाता है। इससे भी राशन की दुकानों के संचालन में समस्याएं आती हैं।
  4. पहले प्रत्येक परिवार के पास निर्धन या गैर-निर्धन राशन कार्ड था जिसमें चावल, गेहूं, चीनी आदि वस्तुओं का एक निश्चित कोटा होता था पर अब जो तीन प्रकार के कार्ड और कीमतों की श्रृंखला को अपनाया गया है। अब तीन भिन्न कीमतों वाले टी० पी० डी० एस० की व्यवस्था में निर्धनता रेखा से ऊपर वाले किसी भी परिवार को राशन दुकान पर बहुत कम छूट मिलती है। ए०पी०एल० परिवारों के लिए कीमतें लगभग उतनी ही ऊँची हैं जिनकी खुले बाज़ार में, इसलिए राशन की दुकान से इन चीज़ों की खरीदारी के लिए उनको बहुत कम प्रोत्साहन प्राप्त है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

प्रश्न 32.
यदि खाद्य सुरक्षा न हो तो क्या होगा ?
उत्तर-
यदि खाद्य सुरक्षा न हो तो निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न होंगी-

  1. देश में आने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे से खाद्यान्नों की कुल उपज में गिरावट आएगी।
  2. खाद्य सुरक्षा न होने से यदि आपदा में खाद्यान्नों की कमी होती है तो कीमत स्तर बढ़ जाएगा।
  3. खाद्य सुरक्षा न होने से देश में कालाबाजारी बढ़ती है।
  4. खाद्य सुरक्षा न होने से प्राकृतिक आपदा आने से देश में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 33.
यदि सरकार बफर स्टॉक न बनाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
यदि सरकार बफर स्टॉक न बनाए तो निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो जाएंगी-

  1. बफर स्टॉक न बनाए जाने से देश में खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  2. बफर स्टॉक न बनाए जाने की स्थिति में कम खाद्यान्न वाले क्षेत्रों को अनाज महँगा प्राप्त होगा।
  3. बफर स्टॉक न बनाए जाने पर अधिप्राप्त अनाज गल-सड़ जाएगा।
  4. बफर स्टॉक न होने से कालाबाजारी में वृद्धि होगी।
  5. इससे आपदा काल में स्थिति अत्यधिक गंभीर हो सकती है।

प्रश्न 34.
किसी देश के लिए खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. कोई देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर इसलिए होना चाहता है ताकि किसी आपदा के समय देश में खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न न हो।
  2. कोई देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर इसलिए भी होना चाहता है ताकि उसे खाद्यान्न विदेशों से न खरीदना पड़े।
  3. देश में कालाबाजारी को रोकने और कीमत स्थिरता बनाए रखने के लिए भी कोई भी देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बनाना चाहता है।

प्रश्न 35.
सहायिकी क्या है ? सरकार सहायिकी क्यों देती है ?
उत्तर-
सहायिकी वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। सहायिकी से घेरलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए, उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है। सरकार द्वारा सहायिकी देने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. निर्धनों को वस्तुएं सस्ती प्राप्त हो सकें।
  2. लोगों का न्यूनतम जीवन-स्तर बना रहे।
  3. उत्पादक को सरकार द्वारा किसी उत्पाद की बाज़ार कीमत की अनुपूर्ति के लिए भी सहायिकी दी जाती है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता क्या है ?
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता निम्न कारणों से है-

  1. खाद्य असुरक्षा का भय दूर करना (To Avoid Food insecurity) खाद्य सुरक्षा व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि जन सामान्य के लिए दीर्घकाल में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध है। इसके अन्तर्गत बाढ़, सूखा, अकाल, सुनामी, भूचाल, आंतरिक युद्ध या अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध जैसी स्थिति से निपटने के लिए खाद्य भंडार रिजर्व में रखे जाते हैं। इससे खाद्य असुरक्षा का भय दूर हो जाता है।
  2. पोषण स्तर को बनाए रखना (Maintainance of Nutritional Standards)-खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के अन्तर्गत उपलब्ध करवाए गए खाद्य पदार्थों की मात्रा व गुणवत्ता स्तर स्वास्थ्य विशेषज्ञों व सरकारी एजेंसियों द्वारा निर्धारित प्रमापों के अनुसार होता है। इससे जनसामान्य में न्यूनतम पोषण स्तर को बनाए रखने में सहायता मिलती है।
  3. निर्धनता उन्मूलन (Poverty Alleviation)-खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे लोगों को कम कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे निर्धनता उन्मूलन होता है।
  4. सामाजिक न्याय (Social Justice)-खाद्य सुरक्षा के अभाव में सामाजिक न्याय संभव ही नहीं है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। अतः सरकार का यह कर्त्तव्य है कि सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति व समावेशी विकास हेतु समाज के निर्धन वर्ग को पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न कम कीमतों पर उपलब्ध कराए जाएं।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था क्या है ?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का तात्पर्य ‘उचित कीमत दुकानों’ (राशन डिपो) के माध्यम से लोगों को आवश्यक मदें ; जैसे- गेहूँ, चावल, चीनी, मिट्टी का तेल, आदि के वितरण से है। इस व्यवस्था के द्वारा निर्धनता रेखा से नीचे रह रही जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है। इसके अंतर्गत अनुदानित कीमतों पर राशन की दुकानों के माध्यम से खाद्यान्नों का वितरण किया जाता है। निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में इस व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस समय भारत में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के अन्तर्गत 5.35 लाख उचित कीमत दुकानें अनुदानित कीमतों पर खाद्यान्नों के वितरण का काम कर रही हैं। भारतीय सार्वजनिक वितरण व्यवस्था विश्व की विशाल खाद्यान्न वितरण व्यवस्थाओं में से एक है। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें मिल कर इस व्यवस्था को चलाती हैं। केंद्र सरकार खाद्यान्नों को खरीदने, स्टोर करने व इसके विभिन्न स्थानों पर परिवहन का काम करती है। राज्य सरकारें इन खाद्यान्नों को ‘उचित कीमत दुकानों’ (राशन डिपुओं) के माध्यम से लाभार्थियों को वितरण का कार्य करती हैं। निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे परिवारों की पहचान करना, उन्हें राशन कार्ड जारी करना, उचित कीमत दुकानों के कार्यकरण का पर्यवेक्षण करना, आदि की जिम्मेवारी राज्य सरकार की होती है।

सरकार निर्धनता के उन्मूलन के लिए निर्धन व जरूरतमंद परिवारों को अनुदानित कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाती है। इन खाद्यान्नों के वितरण में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का बहुत महत्त्व है। इसका मुख्य उद्देश्य निर्धन वर्ग को खाद्य सुरक्षा (Food Security) सुनिश्चित करना है। इसके अंतर्गत समाज के विभिन्न कमजोर वर्गों; जैसे- भूमिहीन कृषि मज़दूर, सीमांत किसान, ग्रामीण शिल्पकार, कुम्हार, बुनकर (Weavers), लोहार, बढ़ई, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले व्यक्तियों, दैनिक वेतन पर काम करने वालों, जैसे-रिक्शा चालकों, फुटपाथ पर सामान बेचने वाले छोटे विक्रेताओं, बैलगाड़ी चलाने वाले व्यक्तियों, आदि को अनुदानित कीमतों पर एक निश्चित मात्रा में राशन डिपुओं के माध्यम से खाद्यान्न व कुछ अन्य आवश्यक मदें वितरित की जाती हैं। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए ‘सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (नियंत्रण) आदेश’ 2001 [Public Distribution System (Control) Order 2001] जारी किए गए। इसके अंतर्गत सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए नियम बनाए गए हैं। PDS के मुख्य उद्देश्य हैं-(i) खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, (ii) निर्धनता उन्मूलन करना।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में अन्न सुरक्षा

भारत में अन्न सुरक्षा PSEB 9th Class Economics Notes

  • अन्न सुरक्षा – अन्न सुरक्षा का अर्थ है, सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुंच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य।
  • अन्न सुरक्षा के आयाम –
    • उपलब्धता
    • पहुंच
    • सामर्थ्य
  • उपलब्धता – अन्न उपलब्धता का अर्थ है देश में अन्न उत्पादन, अन्न आयात और सरकारी अनाज भंडारों में संचित पिछले वर्षों का स्टॉक।
  • पहुंच – पहुंच का अर्थ है कि अन्न प्रत्येक व्यक्ति को मिलता रहे।
  • सामर्थ्य – सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, पर्याप्त व पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।
  • बफर स्टॉक – बफर स्टॉक भारतीय अन्न नियम (FCI) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूं व चावल का भंडार है।
  • आपदा – कोई प्राकृतिक समस्या जो सूखे या बाढ़ आदि के रूप में आती है।
  • हरित क्रांति – हरित क्रांति खाद्यान्न में होने वाली वह कुल वृद्धि है जो वर्ष 1966-67 में कृषि की नई तकनीकें अपनाने के द्वारा संभव हुई थी।
  • आत्म निर्भरता – इसका अर्थ जीवन जीने के लिए किसी भी प्रकार की सहायता, आवश्यकता, सहायिकी के अभाव से है जिसमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहा जाता।
  • उचित मूल्य दुकानें – यह वितरण प्रणाली है जो सरकार के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं को निर्धन व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए खोली गई हैं।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली – भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के ग़रीब वर्गों में वितरण करना सार्वजनिक वितरण प्रणाली है।
  • प्राकृतिक आपदा – कोई प्राकृतिक विपत्ति जैसे बाढ़, अकाल, भूकंप जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है।
  • राशन कार्ड – एक सरकारी दस्तावेज जो धारक को राशन प्राप्त करने के लिए प्रदान किया जाता है।
  • संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली – यह सरकारी कार्यक्रम है जो 1992 को शुरू किया गया।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य – यह एक ऐसी कीमत है जो सरकार द्वारा किसानों को उन्हें हतोत्साहित होने से बचाने के लिए निर्धारित की जाती है।
  • अधिकतम मूल्य – वह मूल्य जिस पर बफर स्टॉक में रखे गए उत्पादन को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बेचा जाता है।
  • दीर्घकालिक भुखमरी – गुण व मात्रा के रूप में भोजन में होने वाली लगातार अपर्याप्तता।
  • मौसमी भुखमरी – यह खाद्यान्न उत्पादन में होने वाली कमी है।
  • खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता – यह ग़रीबी व भुखमरी के कारण होती है जो अधिक कीमत गुणात्मक व मात्रात्मक उपायों से उत्पन्न होती है।
  • संस्थाएं – यह बाज़ार संगठनों का एक प्रकार है जिसमें कुछ लोग मिलकर वस्तुओं का विक्रय करते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ Notes.

PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕਢਾਈ ਕਿਉਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਪੜਿਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੁੰਦਰ ਅਤੇ ਆਕਰਸ਼ਕ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਘਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਕਢਾਈ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਕੁਝ ਕੱਪੜਿਆਂ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੇਜ਼ ਪੋਸ਼, ਕੁਸ਼ਨ ਕਵਰ, ਪਲੰਘ ਪੋਸ਼, ਨੈਪਕਿਨ, ਪਰਦੇ ਆਦਿ ।

PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕਢਾਈ ਲਈ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਾਦਾ ਜਾਂ ਖੜ੍ਹਾ ਟਾਂਕਾ
  2. ਬਖੀਆ
  3. ਭਰਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕੇ (ਸਾਟਨ ਸਟਿਚ) ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਟਾਂਕਾ ਲੌਂਗ ਐਂਡ ਸ਼ਾਰਟ ਸਟਿਚ)
  4. ਜੰਜ਼ੀਰੀ ਟਾਂਕਾ (ਚੈਨ ਸਟਿਚ)
  5. ਕਾਜ ਟਾਂਕਾ (ਬਟਨ ਹੋਲ ਸਟਿਚ)
  6. ਲੇਜ਼ੀ ਡੇਜ਼ੀ ਟਾਂਕਾ (ਲੇਜ਼ੀ ਡੇਜ਼ੀ ਸਟਿਚ)
  7. ਮੱਛੀ ਟਾਂਕਾ
  8. ਚੋਪ ਦਾ ਟਾਂਕਾ
  9. ਫੁਲਕਾਰੀ ਦਾ ਟਾਂਕਾ
  10. ਦਸੂਤੀ ਟਾਂਕਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਡੰਡੀ ਟਾਂਕੇ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਿੱਥੇ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਫੁੱਲਾਂ ਦੀਆਂ ਡੰਡੀਆਂ ਭਰਨ ਵਿਚ ।

ਪਸ਼ਨ 5.
ਸਾੜੀ ਦੁਪੱਟੇ ਆਦਿ ਤੇ ਪੀਕੋ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਿਸ ਨਾਲ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਧਾਗੇ ਨਾ ਨਿਕਲਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਕਢਾਈ ਵਿਚ ਗੰਢਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੰਢਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਯੋਗ ਨਾਲ ਕਢਾਈ ਸੁੰਦਰ ਨਹੀਂ ਲਗਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਢਾਈ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਢਾਈ ਰੰਗ-ਬਿਰੰਗੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਕੱਪੜਿਆਂ ਤੇ ਨਮੂਨਾ ਉਤਾਰਨ ਦੀਆਂ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਵਿਧੀਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਿੰਨ-

  1. ਕਾਰਬਨ ਪੇਪਰ ਦੁਆਰਾ
  2. ਠੱਪਿਆਂ ਦੁਆਰਾ
  3. ਬਟਰ ਪੇਪਰ ਦੁਆਰਾ ।

ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕਢਾਈ ਲਈ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਸਾਮਾਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਢਾਈ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਾਮਾਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-

  • ਸੂਈ – ਮਹੀਨ ਨੋਕ ਵਾਲੀ, ਬਿਨਾਂ ਜੰਗਾਲ ਲੱਗੇ, ਪੱਕੀ ਧਾਤੁ ਦੀ ਅਤੇ ਚੀਕਣੀ ।
  • ਡੋਰੇ – ਸਾਰੇ ਰੰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਰੇਸ਼ਮੀ ਲਛੀਆਂ ਅਤੇ ਸੂਤੀ ਡੋਰੇ ।

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  • ਕੈਂਚੀ – ਤੇਜ਼ਧਾਰ ਵਾਲੀ ਨੁਕੀਲੀ ।
  • ਫਰੇਮ- ਵੱਖ-ਵੱਖ ਨਾਪ ਦੇ ਲੱਕੜੀ, ਲੋਹੇ ਜਾਂ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੇ ।
  • ਪੈਨਸਿਲ – ਨਮੂਨਾ ਉਤਾਰਨ ਲਈ, ਪੱਕੇ ਸਿੱਕੇ ਦੀ ਸਖ਼ਤ ।
  • ਕਾਰਬਨ ਪੇਪਰ – ਨਮੂਨਾ ਉਤਾਰਨ ਲਈ ।
  • ਆਲਪਿਨ ਅਤੇ ਰਬੜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਟਰੇਅ ਦਾ ਕਵਰ ਕਿਵੇਂ ਬਣਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? ਚਿਤਰ ਸਹਿਤ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ-ਟਰੇਅ ਵਿਚ ਖਾਣਾ ਪਰੋਸ ਕੇ ਇਕ ਥਾਂ ਤੋਂ ਦੂਸਰੀ ਥਾਂ ਤੇ ਲਿਜਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਟਰੇਅ ਦੇ ਉੱਪਰ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਵਿਛਾ ਲਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਇਸ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਟਰੇਅ ਨੂੰ ਦਾਗ਼ ਲੱਗਣ ਤੋਂ ਬਚਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਬਲਕਿ ਟਰੇਅ ਵਿਚ ਕੱਪੜਾ ਵਿਛਾਉਣ ਨਾਲ ਪਰੋਸਿਆ ਹੋਇਆ ਭੋਜਨ ਆਕਰਸ਼ਕ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਖਾਣ ਨੂੰ ਮਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
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ਟਰੇਅ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਲਈ ਮੋਟਾ ਕੱਪੜਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਖੱਦਰ, ਦਸੂਤੀ ਜਾਂ ਕੇਸਮੈਂਟ ਲਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਰੰਗ ਬਹੁਤ ਗੁੜਾ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ | ਟਰੇਅ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਲਈ ਹਲਕਾ ਨੀਲਾ, ਬਦਾਮੀ ਜਾਂ ਮੋਤੀਆ ਰੰਗ ਲਓ । ਕੱਪੜੇ ਦਾ ਆਕਾਰ ਅਤੇ ਸ਼ਕਲ ਟਰੇਅ ਦੇ ਆਕਾਰ ਅਤੇ ਸ਼ਕਲ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਟਰੇਅ ਦੀ ਲੰਬਾਈ 40 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਅਤੇ ਚੌੜਾਈ 30 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਲੰਬਾਈ ਅਤੇ ਚੌੜਾਈ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸਿਓਂ ਕੱਪੜੇ ਤੋਂ 5 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਫ਼ਾਲਤੂ ਕੱਟੋ ਤਾਂ ਕਿ ਚਾਰੋਂ ਪਾਸੇ ਬੀਡਿੰਗ ਕਰਨ ਨਾਲ ਕੱਪੜੇ ਦਾ ਸਾਈਜ਼ ਛੋਟਾ ਨਾ ਹੋ ਜਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕਢਾਈ ਲਈ ਧਾਗਿਆਂ ਦੇ ਰੰਗਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਗੱਲਾਂ ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਢਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਧਾਗਿਆਂ ਦੇ ਰੰਗਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ-

  • ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਤੇ ਬਣਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਨਮੂਨਿਆਂ ਤੇ ਚਟਕੀਲੇ ਅਤੇ ਵਿਰੋਧੀ ਸੰਗਤ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਧਾਗਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਗਾੜੇ ਰੰਗ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਤੇ ਹਲਕੇ ਰੰਗ ਦੇ ਧਾਗਿਆਂ ਅਤੇ ਹਲਕੇ ਰੰਗ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਉੱਤੇ ਗਾੜ੍ਹੇ ਰੰਗ ਦੇ ਧਾਗਿਆਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਵੱਡੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਤੇ ਕਢਾਈ ਦੇ ਆਲੇਖਨ ਵਿਚ ਸਹਿਯੋਗੀ ਰੰਗਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਰੰਗੀ ਰੰਗ ।

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ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕਢਾਈ ਦੇ ਮੁੱਖ ਟਾਂਕਿਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਭਰਾਈ ਦਾ ਟਾਂਕਾ ਜਾਂ ਸਾਟਨ ਸਟਿਚ – ਇਸ ਟਾਂਕੇ ਨੂੰ ਗੋਲ ਕਢਾਈ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੁਆਰਾ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਗੋਲ ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਪੱਤੀਆਂ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਐਪਲੀਕ ਕਾਰਜ ਵੀ ਇਸੇ ਟਾਂਕੇ ਨਾਲ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕਟ ਵਰਕ, ਨੈੱਟ ਵਰਕ ਵੀ ਇਸੇ ਟਾਂਕੇ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਪੰਛੀ ਆਦਿ ਵੀ ਇਸੇ ਟਾਂਕੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸੁੰਦਰ ਲੱਗਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਨੂੰ ਫੈਂਸੀ ਟਾਂਕਾ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਛੋਟੀਆਂ ਫੁੱਲ ਪੱਤੀਆਂ ਜੋ ਗੋਲ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ) ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਟਾਂਕਾ ਵੀ ਸੱਜੇ ਪਾਸਿਉਂ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਵੱਲ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਰੇਖਾ ਦੇ ਉੱਪਰ ਜਿੱਥੋਂ ਨਮੂਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨਾ ਹੈ, ਸੁਈ ਉੱਥੇ ਹੀ ਲੱਗਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਕਾ ਵੇਖਣ ਵਿਚ ਦੋਹੀਂ ਪਾਸੀਂ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਲਗਦਾ ਹੈ |

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2. ਜ਼ੰਜੀਰ ਟਾਂਕਾ – ਇਸ ਟਾਂਕੇ ਨੂੰ ਹਰ ਇਕ ਥਾਂ ਤੇ ਵਰਤੋਂ ਕਰ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਡੰਡੀਆਂ ਪੱਤੀਆਂ, ਫੁੱਲਾਂ ਅਤੇ ਪੰਛੀਆਂ ਆਦਿ ਸਭ ਵਿਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਜਿਹੇ ਟਾਂਕੇ ਸੱਜੇ ਪਾਸਿਓਂ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਅਤੇ ਖੱਬੇ ਪਾਸਿਉਂ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਲਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ 1 ਕੱਪੜੇ ਤੇ ਸੂਈ ਇਕ ਬਿੰਦੂ ਤੋਂ ਕੱਢ ਕੇ ਸੁਈ ‘ਤੇ ਇਕ ਧਾਗਾ ਲਪੇਟਦੇ ਹੋਏ ਦੁਬਾਰਾ ਉਸੇ ਥਾਂ ਤੇ ਸੁਈ ਲਾ ਕੇ ਅੱਗੇ ਵੱਲ ਇਕ ਹੋਰ ਲਪੇਟਾ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਇਹ ਟਾਂਕਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੂਮ ਨਾਲ ਇਕ ਗੋਲਾਈ ਵਿਚ ਦੂਸਰੀ ਗੋਲਾਈ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਅੱਗੇ ਵੱਲ ਟਾਂਕਾ ਲਾਉਂਦੇ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
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3. ਲੇਜ਼ੀ-ਡੇਜ਼ੀ ਟਾਂਕਾ – ਇਸ ਟਾਂਕੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਬਾਰੀਕ ਪੱਤੀ ਦੀ ਹਲਕੀ ਕਢਾਈ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਟਾਂਕੇ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਨਾਲ ਲਗਾਤਾਰ ਗੁੱਥੇ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੇ ਸਗੋਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਫੁੱਲ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰੋਂ ਧਾਗਾ ਕੱਢ ਕੇ ਸੂਈ ਉਸੇ ਥਾਂ ਤੇ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਗੋਲ ਪੱਤੀ ਜਿਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪੱਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਥਾਂ ਸਥਿਰ ਕਰਨ ਲਈ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਗੰਢ ਪਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।
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4. ਹੇਮ ਸਟਿਚ (ਬੀਡਿੰਗ) – ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਟਾਂਕੇ ਮੇਜਪੋਸ਼ ਆਦਿ ਕੱਢਣ ਦੇ ਕੰਮ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਕਿਨਾਰਿਆਂ ਤੇ ਫੁਦਨੇ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਟਾਂਕੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲਈ ਮੋਟਾ ਸੂਤੀ ਕੱਪੜਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜਿੰਨੇ ਚੌੜੇ ਕਿਨਾਰੇ ਬਣਾਉਣੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਓਨੀ ਚੌੜਾਈ ਨਾਲ ਲੱਗੇ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਧਾਗੇ ਖਿੱਚ ਲਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਧਾਗੇ ਕੱਢਣ ਨਾਲ ਬਾਕੀ ਧਾਗੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਇਸ ਲਈ ਕਈ ਧਾਗਿਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਾ ਕੇ ਬੰਨ੍ਹ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਟੀਕੇ ਨਾਲ ਬੀਡਿੰਗ ਵੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।
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5. ਬਲੈਂਕਟ (ਕੰਬਲ) ਟਾਂਕੇ – ਇਸ ਟਾਂਕੇ ਵਿਚ ਡੇਰਾ ਥੱਲੇ ਦੀ ਰੇਖਾ ਤੇ ਕੱਢਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸੂਈ ਨੂੰ ਉੱਪਰਲੀ ਰੇਖਾ ਤੋਂ ਥੱਲੇ ਵੱਲ ।

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6. ਕਾਜ ਟਾਂਕਾ – ਕਢਾਈ ਵਿਚ ਇਸ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਫੁੱਲ ਪੱਤੀਆਂ ਦੇ ਸਿਰੇ ਭਰਨ, ਪੇਚ ਲਾਉਣ, ਛੋਟੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨੂੰ ਭਰਨ ਅਤੇ ਕੱਟ ਵਰਕ ਵਿਚ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਕਿਨਾਰੇ ਪੱਕੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
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7. ਉਲਟਾ ਬਖੀਆ – ਇਹ ਟਾਂਕਾ ਫੁੱਲ ਪੱਤੀ ਦੀ ਡੰਡੀ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਕੰਮ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਬਾਹਰਲੀ ਰੇਖਾ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਵੀ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਟਾਂਕੇ ਕੁੱਝ ਟੇਢੇ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਲਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਕ ਟਾਂਕਾ ਜਿੱਥੇ ਖ਼ਤਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉੱਥੇ ਦੂਜਾ ਟਾਂਕਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਕ ਟਾਂਕਾ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਹੀ ਵਾਰ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਟਾਂਕਾ ਸਿੱਧੀ ਰੇਖਾ ਵਿਚ ਹੀ ਲਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
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8. ਦਸੂਤੀ ਟਾਂਕਾ-ਇਹ ਟਾਂਕਾ ਉਸੇ ਕੱਪੜੇ ਤੇ ਹੀ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਬੁਣਤੀ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਿ ਕਢਾਈ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਗੇ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਗਿਣੇ ਜਾ ਸਕਣ । ਜੇਕਰ ਤੰਗ ਬੁਣਤੀ ਵਾਲੇ ਕੱਪੜੇ ਤੇ ਇਹ ਕਢਾਈ ਕਰਨੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕੱਪੜੇ ਤੇ ਪਹਿਲਾਂ ਨਮੂਨਾ ਛਾਪ ਲਓ ਅਤੇ ਫਿਰ ਨਮੂਨਾ ਦੇ ਉੱਪਰ ਹੀ ਬਿਨਾਂ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਧਾਗੇ ਗਿਣੇ ਕਢਾਈ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਟਾਂਕਾ ਦੋ ਵਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਬਣਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਵਿਚ ਇਕਹਿਰਾ ਟਾਂਕਾ ਬਣਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਕਿ ਟੇਢੇ ) ਟਾਂਕਿਆਂ ਦੀ ਇਕ ਲਾਈਨ ਬਣ ਜਾਏ ਅਤੇ ਦੂਸਰੀ ਵਾਰੀ ਵਿਚ ਇਸ ਲਾਈਨ ਦੇ ਤਰੋਪਿਆਂ ਉੱਤੇ ਦੁਸਰੀ ਲਾਈਨ ਬਣਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਸਤੀ ਟਾਂਕਾ (×) ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸੂਈ ਨੂੰ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਦੇ ਕੋਨੇ ਵਲੋਂ ਟਾਂਕੇ ਦੇ ਹੇਠਲੇ ਸਿਰੇ ਤੇ ਕੱਢਦੇ ਹਨ । ਉਸੇ ਟਾਂਕੇ ਦੇ ਉੱਪਰਲੇ ਖੱਬੇ ਕੋਨੇ ਵਿਚ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਦੁਸਰੇ ਟਾਂਕੇ ਦੇ ਹੇਠਲੇ ਸੱਜੇ ਕੋਨੇ ਤੋਂ ਕੱਢਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੇ ਜਾਓ ਤਾਂ ਕਿ ਪੂਰੀ ਲਾਈਨ ਟੇਢੇ ਤਰੋਪਿਆਂ ਦੀ ਬਣ ਜਾਏ ।

ਹੁਣ ਸੁਈ ਅਖੀਰੀ ਤਰੋਪੇ ਦੇ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਵਾਲੇ ਥੱਲਵੇਂ ਕੋਨੇ ਤੋਂ ਨਿਕਲੀ ਹੋਈ ਹੋਣੀ | ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਹੁਣ ਸੂਈ ਨੂੰ ਉਸੀ ਤਰੋਪੇ ਦੇ ਸੱਜੇ ਉੱਪਰਲੇ ਕੋਨੇ ਤੋਂ ਪਾਓ ਅਤੇ ਅਗਲੇ ਤਰੋਪੇ ਤੇ ਹੇਠਲੇ ਖੱਬੇ ਕੋਨੇ ਤੋਂ ਕੱਢੋ ਤਾਂ ਕਿ (×) ਪੂਰਾ ਬਣ ਜਾਏ ।
PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ 9
9. ਦੂਹਰੀ ਬੀਡਿੰਗ – ਇਸ ਨੂੰ ਕਰਨ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਢੰਗ ਅਨੁਸਾਰ ਇਕ ਪਾਸੇ ਕਰੋ ਅਤੇ ਫਿਰ ਉਸੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੱਪੜੇ ਦੇ ਧਾਗੇ ਕੱਢੇ ਹੋਏ ਥਾਂ ਦੇ ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਤੇ ਵੀ | ਬੀਡਿੰਗ ਕਰੋ ।
PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ 10
10. ਤਿਰਛੀ ਬੀਡਿੰਗ – ਧਾਗੇ ਕੱਢੀ ਥਾਂ ਦੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ਸਾਦੀ ਬੀਡਿੰਗ ਕਰੋ । ਚੁੱਕੇ ਹੋਏ ਧਾਗਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਰਾਬਰ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਹੁਣ ਧਾਗੇ ਕੱਢੀ ਹੋਈ ਥਾਂ ਦੇ ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ | ਬੀਡਿੰਗ ਕਰੋ | ਪਰ ਧਾਗੇ ਸੂਈ ਚੁੱਕਣ ਵੇਲੇ ਇਹ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖ ਕੇ ਅੱਧੇ ਧਾਗੇ ਇਕ ਟਾਂਕੇ ਅਤੇ ਅੱਧੇ ਦੂਸਰੇ ਟਾਂਕੇ ਦੇ ਚੁੱਕੇ ਜਾਣ ਤਾਂ ਕਿ ਵਲਾਦੇਂਦਾਰ ਟਾਂਕੇ ਬਣਨ ।
PSEB 7th Class Home Science Practical ਕਢਾਈ ਦੇ ਟਾਂਕਿਆਂ ਨਾਲ ਟਰੇਅ ਦਾ ਕੱਪੜਾ ਬਣਾਉਣਾ 11

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैन धर्म के आरंभ के बारे आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो। (What do you know about the origin of Jainism ? Explain.)
उत्तर-
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसका साधुओं वाला मार्ग और योग की रीतियों का आरंभ हड़प्पा काल में से ढूँढा जा सकता है। वैदिक साहित्य में जैन आचार्यों का वर्णन मिलता है। इससे पता चलता है कि जैन धर्म उस समय प्रचलित था। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार ऋषभनाथ जो कि उनका पहला तीर्थंकर था वह पहला व्यक्ति था जिससे मनुष्य की सभ्यता का आरंभ हुआ। इस तरह सभ्यता के आरंभ के समय पर ही जैन धर्म मौजूद था।
जैन शब्द संस्कृत के शब्द जिन से निकला है जिससे भाव है विजेता। विजेता से भाव उस व्यक्ति से है जिसने अपनी इंद्रियों और मन को जीत लिया हो। जैन धर्म को आरंभ में निरग्रंथ के नाम से जाना जाता है। निरग्रंथ से भाव था बंधनों से रहित अथवा मुक्त। जैन आचार्यों को तीर्थंकर भी कहा जाता है। तीर्थंकर से भाव है पुल बनाने वाला अथवा संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन दर्शन को अर्हत दर्शन भी कहा जाता है। अर्हत से भाव है पूजनीय। जैन धर्म को मानने वाले जैनी कहलाते हैं। जैन 24 तीर्थंकरों में विश्वास रखते हैं। इनके नाम ये हैं:—

  1. ऋषभनाथ
  2. अजित
  3. संभव
  4. अभिनंदन
  5. सुमति
  6. पद्मप्रभु
  7. सुपार्श्व
  8. चंद्रप्रभु
  9. पुष्पदंत
  10. शीतल
  11. श्रेयांसम
  12. वासुपूज्य
  13. विमल
  14. अनंत
  15. धर्म
  16. शाँति
  17. कुंथ
  18. अरह
  19. मल्लि
  20. मुनिसुव्रत
  21. नामि
  22. नेमि
  23. पार्श्वनाथ
  24. महावीर

जैनी ऋषभनाथ को जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार उनका जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने कई वर्षों तक राज्य किया। बाद में उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और स्वयं संसार त्याग कर तपस्या में लग गये। अंत में उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इस ज्ञान के बारे लोगों को उपदेश दिया। इस तरह वह पहले तीर्थंकर कहलाये। ऋषभनाथ के बाद होने वाले 21 तीर्थंकरों को ऐतिहासिक बताना संभव नहीं है, परंतु जैनियों की पवित्र अनुश्रुतियों में इनका वर्णन आता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर ऐतिहासिक व्यक्ति थे। स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊंट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

स्वामी महावीर ने इन चार असूलों में एक और असूल जोड़ा जिसको ब्रह्मचर्य कहा जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वामी महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि सुधारक थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 2.
(क) जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए हैं ?
(ख) भगवान् महावीर के जीवन पर प्रकाश डालें।
[(a) Give the total number of Tirthankaras in Jainism.
(b) Throw light on the life of Lord Mahavira.]
अथवा
महावीर की माता का क्या नाम था ? भगवान् महावीर के जन्म से पहले उनकी माता को कितने स्वप्न आए थे? भगवान महावीर के जीवन पर एक नोट लिखें।
(Give the name of Mahavir as mother. How many dreams Lord Mehavira’s mother had before giving birth to Mahavira ? Write a note on the life of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म में कितने तीर्थंकर हुए हैं ? 24वें तीर्थंकर के जीवन पर नोट लिखें।
(Give the number of Tirthankaras in Jainism. Write a note on the life of 24th Tirthankara.)
अथवा
भगवान् महावीर जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे ? उनके जीवन के संबंध में जानकारी दें।
(What was Lord Mahavira’s number among Jain Tirthankaras ? Write about Mahavira’s life.)
उत्तर-
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर के जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ 1
LORD MAHAVIRA

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

प्रश्न 3.
जैन धर्म के आरंभ तथा विकास के बारे में प्रकाश डालें। (Discuss the origin and development of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसका साधुओं वाला मार्ग और योग की रीतियों का आरंभ हड़प्पा काल में से ढूँढा जा सकता है। वैदिक साहित्य में जैन आचार्यों का वर्णन मिलता है। इससे पता चलता है कि जैन धर्म उस समय प्रचलित था। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार ऋषभनाथ जो कि उनका पहला तीर्थंकर था वह पहला व्यक्ति था जिससे मनुष्य की सभ्यता का आरंभ हुआ। इस तरह सभ्यता के आरंभ के समय पर ही जैन धर्म मौजूद था।
जैन शब्द संस्कृत के शब्द जिन से निकला है जिससे भाव है विजेता। विजेता से भाव उस व्यक्ति से है जिसने अपनी इंद्रियों और मन को जीत लिया हो। जैन धर्म को आरंभ में निरग्रंथ के नाम से जाना जाता है। निरग्रंथ से भाव था बंधनों से रहित अथवा मुक्त। जैन आचार्यों को तीर्थंकर भी कहा जाता है। तीर्थंकर से भाव है पुल बनाने वाला अथवा संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन दर्शन को अर्हत दर्शन भी कहा जाता है। अर्हत से भाव है पूजनीय। जैन धर्म को मानने वाले जैनी कहलाते हैं। जैन 24 तीर्थंकरों में विश्वास रखते हैं। इनके नाम ये हैं:—

  1. ऋषभनाथ
  2. अजित
  3. संभव
  4. अभिनंदन
  5. सुमति
  6. पद्मप्रभु
  7. सुपार्श्व
  8. चंद्रप्रभु
  9. पुष्पदंत
  10. शीतल
  11. श्रेयांसम
  12. वासुपूज्य
  13. विमल
  14. अनंत
  15. धर्म
  16. शाँति
  17. कुंथ
  18. अरह
  19. मल्लि
  20. मुनिसुव्रत
  21. नामि
  22. नेमि
  23. पार्श्वनाथ
  24. महावीर

जैनी ऋषभनाथ को जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार उनका जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने कई वर्षों तक राज्य किया। बाद में उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और स्वयं संसार त्याग कर तपस्या में लग गये। अंत में उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इस ज्ञान के बारे लोगों को उपदेश दिया। इस तरह वह पहले तीर्थंकर कहलाये। ऋषभनाथ के बाद होने वाले 21 तीर्थंकरों को ऐतिहासिक बताना संभव नहीं है, परंतु जैनियों की पवित्र अनुश्रुतियों में इनका वर्णन आता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर ऐतिहासिक व्यक्ति थे। स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊंट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

स्वामी महावीर ने इन चार असूलों में एक और असूल जोड़ा जिसको ब्रह्मचर्य कहा जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वामी महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि सुधारक थे।

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 4.
जैन धर्म की बुनियाद नैतिक शिक्षाएँ हैं चर्चा करो।
(“Ethical teachings are the foundation of Jainism.” Discuss.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं के विषय में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की बुनियादी शिक्षाओं के विषय में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण जानकारी दीजिए।
(Describe in brief but meaningful the basic teachings of Jainism.)
अथवा
“नैतिक मूल्य जैन धर्म का आधार हैं।” प्रकाश डालिए।
(“Moral values are the basis of Jainism.” Elucidate.)
अथवा
जैन सदाचार पर एक विस्तृत नोट लिखो।
(Write a detailed note on Jain Ethics. )
अथवा
जैन धर्म के सदाचारक गुणों संबंधी जानकारी दो। (Discuss the Ethical values of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं की चर्चा करो।
(Discuss the main teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं संबंधी जानकारी दो। (Give information about moral teachings of Jainism.)
अथवा
भगवान् महावीर की नैतिक शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की शिक्षाओं के बारे में बताएँ।
(Write the teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक कीमतों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Ethical values of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss about the Ethical teachings of Jainism.)
अथवा
भगवान् महावीर की मूल शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the basic teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की मुख्य सदाचारक कीमतें कौन-सी हैं ? प्रकाश डालें। (What were the main Ethical values of Jainism ? Elucidate.)
अथवा
जैन धर्म की सदाचारक शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म की अथवा महावीर जी की मुख्य नैतिक शिक्षाओं ने भारतीय संस्कृति को एक ऐसी देन दी जिस पर हमें आज भी गर्व है। जैन धर्म ने लोगों को त्रि-रत्न, अहिंसा, शुद्ध आचरण और आपसी भाइचारे का पाठ पढ़ाया। इसने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। इसका यज्ञों, बलियों, वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं था। इसने मनुष्य को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। निस्संदेह जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं ने भारतीय समाज को एक नई दिशा देने का एक महान् कार्य किया।—

1. त्रि-रत्न (Tri-Ratna)-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करना है। इसको प्राप्त करने के लिए जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रि-रत्नों पर चलना अति ज़रूरी है। ये तीन रत्न हैं-सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों, नौ सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यह तीर्थंकरों के उपदेशों के गहरे अध्ययन से प्राप्त होता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। आत्मा द्वारा प्राप्त ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं और वह ज्ञान जो इंद्रियों के द्वारा प्राप्त होता है उसको परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान की पाँच किस्में हैं, जिनके नाम इस तरह हैं-मति ज्ञान, श्रुति ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनपर्याय ज्ञान और केवल्य ज्ञान। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सच्चा आचार वह है जिसकी शिक्षा जैन धर्म देता है। ये तीनों रत्न साथ-साथ चलते हैं। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंजिल तक नहीं पहुँचा सकती। उदाहरण के तौर पर जैसे एक दीये को प्रकाश देने के लिए उसमें तेल, बाती और आग का होना ज़रूरी है। यदि इसमें से एक भी वस्तु की कमी हो तो वह प्रकाश नहीं दे सकता।

2. अहिंसा (Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत जोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है, सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैनी लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये। बी० एन० लूनीया के अनुसार,
“अहिंसा जैन धर्म की आधारशिला है।”1

3. नौ सच्चाइयाँ (Nine Truths)-जैन दर्शन नौ सच्चाइयों की शिक्षा देता है। ये सच्चाइयाँ हैं(1) जीव-जैन दर्शन में आत्मा को जीव कहा गया है। यह चेतन सुरूप है। यह शरीर के कर्मों के अच्छे-बुरे फल भुगतता है और आवागमन के चक्र में पड़ता है। (2) अजीव-यह जंतु पदार्थ है। यह निर्जीव है और इनमें समझ नहीं होती। इनकी दो श्रेणियाँ हैं रूपी और अरूपी। (3) पुण्य-यह अच्छे कर्मों का नतीजा है। इसके नौ साधन हैं। (4) पाप-यह जीव के बंधन का मुख्य कारण है। इसके परिणामस्वरूप घोर सज़ायें मिलती हैं। (5) अशर्व-यह वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है। कर्म 8 किस्मों के होते हैं। (6) संवर-कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को संवर कहते हैं। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं। (7) बंध-इससे भाव बंधन है। यह जीव (आत्मा) का पुदगल (परमाणु) से मेल है। बंध के लिए पाँच कारण जिम्मेवार हैं। (8) निर्जर-इस से भाव है दूर भगाना। यह कर्मों को नष्ट करने और जला देने का कार्य करता है। (9) मोक्ष-इसमें जीव कर्मों के जंजाल से मुक्त हो जाता है। यह पूर्ण शाँति की अवस्था है जिसमें हर तरह के दुःखों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है।

4. कर्म सिद्धांत (Karma Theory)-जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस सिद्धांत के अनुसार, “जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसे बीजोगे वैसा काटोगे, यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा, किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा।” जैसे ही हमारे मन में कोई अच्छा या बुरा विचार आता है वह तुरंत जीव (आत्मा) से उसी तरह जुड़ जाता है, जैसे तेल लगे हुए शरीर में धूलि कण चिपक जाते हैं। ये कर्म आठ प्रकार के हैं-(1) ज्ञानवर्णीय कर्म-यह आत्मा के ज्ञान को रोकते हैं। (2) दर्शनवर्णीय कर्म-यह आत्मा की इच्छा शक्ति को रोकते हैं। (3) वैदनीय कर्म-ये सुख-दुःख उत्पन्न करने वाले कर्म हैं। (4) मोहनीय कर्म-ये आत्मा को मोह माया में फंसाने वाले कर्म हैं। (5) आयु कर्मये कर्म मनुष्य की आय को निर्धारित करते हैं। (6) नाम कर्म-ये कर्म मनुष्य की आय को निर्धारित करते हैं। (7) गोत्र कर्म-ये व्यक्ति के गोत्र और समाज में उसके ऊँचे या नीचे स्थान को निर्धारित करते हैं। (8) अंतरीय कर्म-ये अच्छे कर्म को रोकने वाले कर्म हैं।
कर्मों के कारण मनुष्य आवागमन के चक्रों में फंसा रहता है। कर्मों का नाश करके ही मनुष्य इससे छुटकारा प्राप्त कर सकता है।

5. अनेकांतवाद (The Doctrine of Manyness)-अनेकांतवाद जैन दर्शन का एक अनोखा दार्शनिक सिद्धांत है। अनेकांत शब्द किसी भी पदार्थ के अनेक धर्मों या गुणों का संकेत करता है। इसका भाव यह है कि जिस वस्तु का ज्ञान हमें जिस रूप में होता है, उसी वस्तु का ज्ञान किसी अन्य व्यक्ति को किसी और रूप में हो सकता है। उदाहरणतया जैसे एक बच्चे को उसकी माँ पुत्र समझती है, बहन भाई समझती है, दादी पोता समझती है, नानी दोहता समझती है और बच्चे उसको अपना मित्र समझते हैं। कहने से.भाव यह है कि हर पदार्थ अनेकांत या अनेक गुणों वाला है। इसी कारण हर पदार्थ के बारे में हमारा ज्ञान आंशिक होता है। इसको स्यादवाद कहा जाता है। यह अनेकांतवाद का दूसरा रूप है।

6. पाँच अणुव्रत अथवा महाव्रत (Five Annuvartas or Mahavartas)-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में पाँच अणुव्रतों अथवा महाव्रतों की पालना करनी चाहिए। इनके अनुसार (i) मनुष्य को सदा अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए। (ii) उसको हमेशा सत्य बोलना चाहिए। (iii) उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो। (iv) उसको अपने पास धन नहीं रखना चाहिए। (v) उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
इनमें से पहले चार सिद्धांतों का प्रचलन पार्श्वनाथ ने किया जबकि पाँचवां सिद्धांत महावीर जी ने शामिल किया। डॉक्टर के० सी० सौगानी के अनुसार,
“इन पाँच अणुव्रतों का पालन व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति लाने में सहायक है।’2

7. शुद्ध आचरण (Good Character) स्वामी महावीर ने शुद्ध आचरण को विशेष महत्त्व दिया। उन्होंने कहा कि हमें चोरी, झूठ, चुगली, लालच आदि बुराइयों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को पापी से नहीं, बल्कि पाप से नफरत करनी चाहिए।

8. चौबीस तीर्थंकरों की पूजा (Worship of Twenty Four Tirthankaras) जैन धर्म को मानने वाले अपने 24 तीर्थंकरों को देवते मान कर उनकी पूजा करते हैं। उनका विश्वास है कि तीर्थंकरों में पक्का विश्वास रखने से मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति होती है।

9. समानता में विश्वास (Belief in Equality)-जैन धर्म समानता के सिद्धांत में विश्वास रखता है। इसके अनुसार सारे मनुष्य बराबर हैं। इसलिए मनुष्यों को अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आदि का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

10. यज्ञों, बलियों आदि में अविश्वास (Disbelief in Yajnas and Sacrifices etc.)—जैन धर्म यज्ञों, बलियों और अन्य झूठे रीति-रिवाजों को एक अन्य ढोंग मात्र ही बताता है। उनके अनुसार कोई भी मनुष्य धर्म के बाह्य दिखावे से निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए जैन धर्म के लोगों को इन अंध-विश्वासों से दूर रहने को कहा।

11. वेदों और संस्कृत भाषा में अविश्वास (Disbelief in Vedas and Sanskrit Language)-स्वामी महावीर जी हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ-वेदों में कोई विश्वास नहीं रखते थे। उनका कहना था कि वेदों की रचना ईश्वरीय ज्ञान से नहीं हुई। इसलिए वेदों के मंत्रों को पढ़ना बिल्कुल व्यर्थ है। वह संस्कृत भाषा की पवित्रता में भी विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने सारी भाषाओं को पवित्र माना। उन्होंने अपने उपदेशों का प्रचार उस समय में प्रचलित अर्धमगधी भाषा में किया।

12. ईश्वर में अविश्वास (Disbelief in God)-जैन धर्म ईश्वर की उपस्थिति में विश्वास नहीं रखता है। इसके अनुसार ईश्वर संसार की रचना, इसकी पालना और समाप्ति करने वाला नहीं है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए ईश्वर की कोई जरूरत नहीं है। मनुष्य की आत्मा ही उसकी महान् शक्ति है। मनुष्य सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करके निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है।

13. निर्वाण (Nirvana) ‘महावीर जी के अनुसार मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है। जैनमत में निर्वाण से भाव आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है। निर्वाण प्राप्ति के बाद मनुष्य का इस संसार में जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है और उसको स्थाई शाँति मिलती है।

1. “Ahimsa is the sheet anchor of Jainism.” B.N. Luniya, Life and Culture in Ancient India (Agra : 1982) p. 162.
2. “The observance of these five vows is capable of bringing about individual as well as social progress.” Dr. K.C. Sogani, Jainism (Patiala : 1986) p. 65.

प्रश्न 5.
भगवान् महावीर का जीवन तथा प्रसिद्ध शिक्षाएँ बताएँ।
(Describe the life and important teachings of Bhagwan Mahavira.)
उत्तर-
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर के जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 6.
जैन धर्म में त्रि-रत्न से क्या अभिप्राय है ? चर्चा करें।
(What is meant by three Jewels in Jainism ? Discuss.)
अथवा
‘त्रि-रत्न’ की व्याख्या करो और बताओ कि यह किस धर्म से संबंधित है ? (Explain Tri-Ratna and tell to which religion, do they belong.)
अथवा
जैन मत के तीन हीरों की व्याख्या करें।
(Explain the three Jewels of Jainism.).
अथवा
जैन धर्म के त्रि-रत्नों के बारे में चर्चा करो।
(Discuss the Tri-Ratnas of Jainism.)
उत्तर-
जैन दर्शन के सिद्धांतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पहले जीव (आत्मा) शुद्ध रूप में होता है। बाद में यह कार्मिक पदार्थों के कारण दूषित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को घोर दुःखों का सामना करना पड़ता है। यदि कार्मिक पदार्थों का नाश कर दिया जाये तो व्यक्ति इस भवसागर से पार उतर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। जैन दर्शन मोक्ष प्राप्ति को मनुष्य के जीवन का सबसे ऊँचा उद्देश्य मानता है। कोई भी व्यक्ति बिना किसी जाति, लिंग, धर्म, वर्ग या आयु पर इस मार्ग पर चल सकता है। इस मार्ग पर चलने के लिए जैन धर्म में त्रि-रत्न निर्धारित किये गये हैं। ये त्रि-रत्न हैं-(1) सच्चा विश्वास (2) सच्चा ज्ञान (3) सच्चा आचार। ये त्रि-रत्न मोक्ष प्राप्ति के तीन भिन्न-भिन्न मार्ग नहीं हैं, बल्कि एक मार्ग के तीन साथ-साथ चलने वाले रास्ते हैं। यदि इनमें से एक की भी कमी हो तो व्यक्ति अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति ने अपने मकान की छत पर जाना हो तो उसको सीढ़ी लगानी पड़ेगी और यदि इस सीढ़ी के सिरे पर लगे दो और बीच में लगे डंडों में से एक चीज़ की भी कमी हो तो व्यक्ति किसी भी स्थिति में ऊपर नहीं पहुँच सकता। त्रि-रत्नों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है—

1. सच्चा विश्वास (Right Belief)-जैन दर्शन के त्रि-रत्नों में सच्चा विश्वास नामक रत्न को पहला अथवा प्रमुख स्थान दिया गया है। क्योंकि यदि व्यक्ति में सच्चा विश्वास न हो तो वह सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार कभी प्राप्त नहीं कर सकता। सच्चा विश्वास से भाव यह है कि जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, उसे 24 जैन तीर्थंकरों, नौ महान् सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में पक्की श्रद्धा होनी चाहिए। जैन शास्त्रों के अनुसार सच्चा विश्वास तभी पूरा हो सकता है यदि संबंधित व्यक्ति 8 अंगों को धारण करे। ये 8 अंग हैं—

  • जैन धर्म के सिद्धांतों के बारे कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
  • सांसारिक वस्तुओं से कोई प्यार नहीं होना चाहिए।
  • शरीर में चाहे अनगिनत बुराइयाँ हैं, परंतु इसके प्रति कोई तिरस्कार की भावना नहीं होनी चाहिए।
  • गलत मार्ग की ओर कोई झुकाव नहीं होना चाहिए।
  • पवित्र व्यक्तियों की प्रशंसा की जानी चाहिए, परंतु दूसरे व्यक्तियों की निंदा नहीं की जानी चाहिए।
  • जो व्यक्ति धर्म की राह से भटक गये हों उनको ठीक मार्ग दर्शाना चाहिए।
  • धार्मिक व्यक्तियों का पूरा आदर किया जाना चाहिए।
  • जैन सिद्धांतों के प्रचार के लिए पूरे यत्न करने चाहिए।

सच्चा विश्वास किसी भी व्यक्ति द्वारा तब ही प्राप्त किया जा सकता है यदि वह तीन प्रकार के अंध-विश्वासों और आठ प्रकार के घमंडों से दूर रहे। तीन तरह के अंध-विश्वास ये हैं—

  • पहाड़ पर चढ़कर, नदी में नहाकर या आग पर चल कर अपने आप को पवित्र समझना।
  • झूठे देवी-देवताओं में विश्वास करना।
  • झूठे तपस्वियों का सत्कार करना।

आठ प्रकार के घमंड ये हैं—

  • ज्ञान का घमंड
  • पूजा का घमंड
  • परिवार का घमंड
  • जाति का घमंड
  • शक्ति का घमंड
  • दौलत का घमंड
  • तप का घमंड
  • सुंदर शरीर का घमंड।

सच्चा विश्वास हमारे लिए समृद्धि तथा मोक्ष का आधार तैयार करता है।

2. सच्चा ज्ञान (Right Knowledge)-सच्चा विश्वास ही सच्चे ज्ञान की आधारशिला है। इस कारण सच्चा विश्वास और सच्चे ज्ञान के मध्य गहरा संबंध है। सच्चा ज्ञान वह है जो जैन शास्त्रों में दिया गया है। जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता है उसके लिए सच्चे ज्ञान को प्राप्त करना अति ज़रूरी है। यह ज्ञान बाहर से नहीं आता बल्कि जीव पर पड़े कर्म पदार्थों के पर्दे को दूर हटाने से उत्पन्न हो जाता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। वह ज्ञान जो आत्मा द्वारा सीधा प्राप्त किया जाता है प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है और वह ज्ञान जो इंद्रियों के रास्ते से प्राप्त होता है परोक्ष ज्ञान कहलाता है।
जैनी ज्ञान को पाँच तरह का बताते हैं—

  • मति ज्ञान-यह ज्ञान इंद्रियों द्वारा प्राप्त किया जाता है और यह सीमित होता है।
  • श्रुती ज्ञान-यह ज्ञान शास्त्रों को पढ़ने और या सुनने से प्राप्त होता है। इससे भूत, वर्तमान और भविष्य संबंधी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। यह ज्ञान भी इंद्रियों के द्वारा जाना जा सकता है।
  • अवधि ज्ञान-दूर के समय या स्थान के बारे जो ज्ञान आत्मा के द्वारा होता है उसको अवधि ज्ञान कहते हैं।
  • मनपर्याय ज्ञान-यह वह ज्ञान है जिस द्वारा व्यक्ति किसी दूसरे के मन के विचारों को जान सकता है। यह ज्ञान भी आत्मा द्वारा होता है।
  • कैवल्य ज्ञान-यह पूर्ण सच्चा ज्ञान है। इसको परमार्थिक ज्ञान भी कहा जाता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को सिद्ध कहा जाता है।

ज्ञान दोष तीन तरह से पैदा होता है—

  • इंद्रियों की गलती के कारण।
  • गलत अध्ययन के कारण।
  • अस्पष्ट दृष्टिकोण के कारण।

जैसे दूध की भारी मात्रा में थोड़ा-सा खट्टा डाल दिया जाये तो वह सारे दूध को खट्टा कर देता है। ठीक उसी तरह यदि व्यक्ति द्वारा प्राप्त ज्ञान में थोड़ा-सा भी दोष आ जाये तो वह सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।

3. सच्चा आचार (Right Conduct)-मोक्ष को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति के लिए सच्चा विश्वास और सच्चा ज्ञान होने के बाद सच्चा आचार का होना अति ज़रूरी है। व्यक्ति का सच्चा आचार ही जीव के कार्मिक पदार्थों का नाश करता है और उसके लिए मोक्ष का मार्ग तैयार करता है। सच्चे आचार पर चलने के लिए जैन धर्म में कुछ नियम निर्धारित किये गये हैं। ये नियम यद्यपि समान रूप में आम लोगों और जैन मुनियों पर लागू होते हैं परंतु उन पर सख्ती का अंतर है । जैन मुनियों को इन नियमों की सख्ती से पालना करनी पड़ती है जबकि आम लोगों को कुछ छूट दी गई है। इन नियमों को पाँच महाव्रत या पाँच अणुव्रत कहा जाता है इनके अनुसार—

  • मनुष्य को कभी किसी जीव को दु:ख नहीं देना चाहिए और उसको अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए।
  • उसको सदा सत्य बोलना चाहिए। उसके बोल मीठे और हितकारी होने चाहिए।
  • उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो।
  • उसको सांसारिक वस्तुओं से मोह नहीं करना चाहिए।
  • उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

ऊपरलिखित त्रि-रत्नों पर चलने के कारण जीव के कर्म पदार्थ धीरे-धीरे नष्ट होने शुरू हो जाते हैं और वह अपने परम उद्देश्य मोक्ष को प्राप्त करता है। अंत में हम प्रसिद्ध लेखक जे० पी० सुधा के इन शब्दों से सहमत हैं,
“जैनियों के अनुसार सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार जो त्रि-रत्नों के तौर पर जाने जाते हैं उस मार्ग का निर्धारण करते हैं जो जीव अपने अंदर कार्मिक पदार्थों को आने से रोकते हैं और व्यक्ति को आवागमन के बंधनों से मुक्त करते हैं।”3

3. “According to the three jewels of right faith, right knowledge and right conduct, known as Triratna constitute the path which prevents fresh Karmic matter from entering the soul and frees the individual from the bonds of rebirth.” J.P. Sudha, Religions in India (New Delhi : 1978) p. 211.

प्रश्न 7.
जैन धर्म में अहिंसा पर नोट लिखें। (Write a note on Ahimsa (non-violence) of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांत के बारे में प्रकाश डालें।
(Throw light on the Jain principle of Ahimsa.)
अथवा
अहिंसा से क्या भाव है ? जैन धर्म में इसका क्या महत्त्व है ? (What is meant by Ahimsa ? What is its importance in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांत पर नोट लिखें।
(Write a note on the concept of Ahimsa in Jainism.)
उत्तर-
1. अहिंसा से अभिप्राय (Meaning of Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा की नीति को जितना महत्त्व दिया गया है उतना विश्व के किसी अन्य धर्म में नहीं दिया गया। यदि अहिंसा को जैन धर्म की आधारशिला कह दिया तो इसमें कोई अतिकथनी नहीं होगी। अहिंसा से अभिप्राय है किसी भी जीवित चीज़ को कोई कष्ट न देना। जीवित जीवों को कस के बाँधने, उनको मारने-पीटने, उनकी हिम्मत से अधिक भार जोतने, उनको खुराक और पानी से वंचित रखने में जैन धर्म में मनाही है। इनके अतिरिक्त उनको अपने भोजन के लिए मारना बिल्कुल अनुचित है।
जैन दर्शन के अनुसार वृक्षों और पत्थरों आदि में भी जान होती है। इसलिए हमें उनको भी किसी किस्म का दु:ख नहीं देना चाहिए। आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना जीवन प्यारा है, सभी सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सभी जीने की इच्छा रखते हैं।” इसलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है।

2. दो प्रकार की हिंसा (Two types of Ahimsa)-हिंसा दो प्रकार की होती है-विचार या मन से हिंसा और कर्म से भाव शारीरिक और बाहरी हिंसा। बाहरी हिंसा के व्यवहार में आने से पहले मनुष्य के विचारों में हिंसा आती है। जब मनुष्य के मन में आवेग उठते हैं और इन आवेगों के प्रति विचार उत्पन्न होते हैं तो व्यक्ति पाप करता है और हिंसा का दोषी बन जाता है। मनुष्य संसार के लालचों में फंसकर अपनी काम वासना को पूरा करने के लिए , किसी को धोखा देने के लिए, किसी से अपना बदला लेने के लिए हिंसा करता है। जब इससे संबंधित विचार व्यक्ति के मन में आते हैं तो वह पहले अपनी आत्मा को दूषित करता है। वह यहाँ ही बस नहीं करता और बाद में बाहरी हिंसा के द्वारा दूसरों को दुःख पहुँचाता है और स्वयं भी दुःखी होता है। हिंसा को रोकने के लिए व्यक्ति का अपने विचारों को शुद्ध करना ज़रूरी है। महावीर ने अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए कहा, “हे श्रमणो, पहले अपने आप से युद्ध करो और आत्म शुद्धि की ओर कदम बढ़ाओ। बाहरी युद्ध से कुछ नहीं होगा।”

3. अहिंसा जीवन का एक मार्ग (Ahimsa is a way of Life)-जैन दर्शन में अहिंसा को जीवन का एक मार्ग कहा गया है। किसी भी व्यक्ति द्वारा अहिंसा के प्रति प्रतिज्ञा का पूरी तरह पालन तभी संभव है यदि उसको हिंसा की किस्मों और रूपों के बारे में पूर्ण ज्ञान हो। जैनी सूत्रों में 108 प्रकार की हिंसा का वर्णन मिलता है जिन्हें चार वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहले वर्ग में हिंसा तीन स्तर की है। हिंसा व्यक्ति स्वयं कर सकता है, यह दूसरों से करवाई जा सकती है और यह उसकी अपनी सहमति के द्वारा की जा सकती है। व्यक्ति मन, वाणी और शरीर द्वारा हिंसा कर सकता है। दूसरे वर्ग में तीन स्तरीय हिंसा नौ स्तरीय बन जाती है क्योंकि यह मन, वाणी और शरीर रूपी तीन साधनों में प्रत्येक साधन द्वारा की जा सकती है। तीसरे वर्ग में नौ स्तरीय हिंसा सताईस स्तरीय बन जाती है क्योंकि हिंसा की तीन स्थितियाँ हैं, भाव हिंसा के बारे में सोचना, हिंसा के लिए तैयारी करना और फिर उस को व्यावहारिक रूप देना। चौथे वर्ग में सत्ताईस स्तरीय हिंसा 108 स्तरीय हिंसा बन जाती है क्योंकि यह चार मनोवेगों में से किसी न किसी से उत्तेजित होती है।

4. हिंसा से बचने के साधन (Ways to Escape Ahimsa)-हिंसा के सभी रूपों में किसी से बचना आसान नहीं है। फिर भी जैनी अपने जीवन में इनसे बचने के लिए अनेक नियमों का पालन करते हैं। वे नंगे पाँव चलते हैं ताकि कोई कीड़ा उनके पाँवों के नीचे आकर मर न जाये। वे मुँह पर पट्टी बाँध कर रखते हैं ताकि कोई कीटपतंगा सांस से उनके अंदर न चला जाए। इस उद्देश्य से वे पानी छान कर पीते हैं और सूर्य ढलने के बाद भोजन नहीं करते। जैनी ज्यादातर व्यापार का धंधा करते हैं और खेतीबाड़ी बिल्कुल नहीं करते क्योंकि उनका विचार है कि खेतीबाड़ी करते समय अनेक जीवों की हत्या हो जाती है।
जैन धर्म में व्यक्ति के मन में हिंसा के विचारों को उभरने से रोकने के लिए शराब और दूसरी नशीली वस्तुओं के सेवन, माँस खाने और युद्ध करने की मनाही है। नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने से हमारे अंदर काम वासना और अन्य कई वासनाएँ उत्तेजित होती हैं। इनसे पाप की भावना और हिंसा उत्पन्न होती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति लापरवाही में ही हिंसा कर देता है। माँस का प्रयोग करने पर इसलिए पाबंदी लगाई गई है ताकि मनुष्य पशुओं और पक्षियों को अपने भोजन के लिए न मारे और न ही वह हिंसा का भागीदार बने। युद्ध के दौरान व्यक्ति अपने दुश्मनों को मार कर बहुत बहादुरी का काम समझता है परंतु जैन दर्शन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मारना बिल्कुल अयोग्य है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

ऊपरलिखित विवरण से स्पष्ट है कि जैन धर्म में अन्य नियमों के मुकाबले अहिंसा के सिद्धांत पर अधिक बल दिया गया है। डॉक्टर ज्योति प्रसाद जैन का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“अहिंसा का जीवन सारी नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बुराइयों का राम बाण इलाज है। अहिंसा सर्वोच्च धर्म है और जहाँ अहिंसा है वहाँ जीत है।”4

4. “The Ahimstic way of life is the sure panacea for all moral, social, economic and political ills. Ahimsa is the highest religion, and where there is Ahimsa, there is victory.” Dr. Jyoti Prasad Jain, Religion and Culture of the Jains (New Delhi : 1983) p. 101.

प्रश्न 8.
जैन धर्म की नौ सच्चाइयों से क्या भाव है ? इनका संक्षेप वर्णन करो। (What is meant by Nine Truths of Jainism ? Explain briefly.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तत्त्व कौन से हैं ? चर्चा करें।
(Which are the nine tatvas in Jainism ? Discuss.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तथ्यों पर एक नोट लिखो।
(Write a note on nine tatvas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तत्त्वों से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
(What do we learn from nine tatvas of Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म के नौ रत्नों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Nine Rattans of Jainism.)
उत्तर-
नौ सच्चाइयों अथवा तत्त्वों को जैन दर्शन में केंद्रीय स्थान प्राप्त है। वह व्यक्ति जो निर्वाण प्राप्त करने का चाहवान है उसके लिए इन नौ सच्चाइयों के बारे जानकारी होना अति जरूरी है। ये नौ सच्चाइयाँ हैं—
(i) जीव
(ii) अजीव
(iii) पुण्य ”
(iv) पाप
(v) आश्रव
(vi) बंध
(vii) संवर
(viii) निर्जर
(ix) मोक्ष।

दिगंबर संप्रदाय के अनुसार सात सच्चाइयाँ हैं । वे पाप और पुण्य को अलग नहीं मानते। उनके अनुसार ये अश्रव और बंध में शामिल हैं। इन सच्चाइयों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. जीव (Jiva)-जीव शब्द का अर्थ है आत्मा। यह चेतन तथ्य है। जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के हैं। इनको सांसारिक जीव और मुक्त जीव कहा जाता है। सांसारिक जीव को बंधन जीव भी कहते हैं। यह जीव आवागमन के चक्र में रहता है और अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और अपने अच्छे बुरे फल भुगतता है। मुक्त जीव वह जीव है जो पुनर्जन्म से रहित है। यह जीव अनंत ज्ञान वाला, अनंत शक्ति वाला और अनंत गुणों वाला होता है। यह जीव कर्मों के जाल से मुक्त होता है।

2. अजीव (Ajiva)-अजीव से भाव उन जड़ पदार्थों से है जिनमें चेतना नहीं होती जैसे पुस्तक, कागज़, मेज़ और स्याही आदि। उदाहरण के तौर पर ऊँट के शरीर में जीव फैल कर ऊँट जितना बड़ा हो जाता है और कीड़ी के शरीर में सिकुड़ कर कीड़ी जितना हो जाता है। यह जीव तब नहीं दिखाई देता है परंतु शरीर की क्रियाओं के आधार पर इसकी उपस्थिति का ज्ञान हो जाता है। परंतु जब शरीर का अंत हो जाता है तो जीव लोप हो जाता है। जीव जिस शरीर को धारण करता है वह उस के आकार का ही हो जाता है। अजीव दो प्रकार के होते हैं रूपी और अरूपी । रूपी वह हैं जो दिखाई देते हैं जैसे कुर्सी, पैन, घड़ा आदि। अरूपी वह हैं जो दिखाई नहीं देते जैसे समय, चिंता और खुशी आदि। जैन दर्शन में अजीवों के पाँच अचेतन तत्त्व बताए गए हैं। इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है

  • पुदगल (Pudgala)-पुदगल से भाव पदार्थ या परमाणु है। यह पुदगल रूप, स्पर्श, रस और गंध-चार गुणों वाले होते हैं। अग्नि के पुदगल रूप गुण वाले, वायु के पुदगल स्पर्श गुण वाले, जल के पुदगल रस गुण वाले और पृथ्वी के पुदगल गंध गुण वाले होते हैं। पुदगलों के दो रूप माने गए हैं-अणु रूप वाले और स्कंध रूप वाले। अणु रूप वाले पुदगल जीवों के भोग के लायक नहीं होते हैं जबकि स्कंध रूप वाले होते हैं। पुदगलों को सारे भौतिक जगत् की रचना का मूल आधार माना जाता है।
  • धर्म (Dharma) यह तत्त्व जीव और पुदगलों में गति पैदा करता है और उनके आपसी सहयोग में सहायक माना जाता है। जैसे मछली की गति के लिए पानी की ज़रूरत अति आवश्यक है ठीक उसी प्रकार जीवों और पुदगलों की गति के लिए धर्म की ज़रूरत अति आवश्यक है। धर्म के बिना गति पैदा नहीं हो सकती।
  • अधर्म (Adharma)-इसका स्वरूप और कार्य धर्म से बिल्कुल उल्ट है। यह जीवों की ओर पुदगलों की गति में रुकावट पैदा करता है। परंतु अधर्म को धर्म का विरोधी नहीं समझा जाता। अधर्म के द्वारा गति में पाई गई रुकावट जीव के आराम के लिए सहायक मानी गई है।
  • आकाश (Akasha)-आकाश से भाव वह स्थान है जिसमें जीव, मुदगल, धर्म और अधर्म सारे विस्तार वाले तत्त्व रहते हैं। इन तत्त्वों के आधार पर ही आकाश की उपस्थिति का अनुमान किया जाता है। जैन दर्शन के अनुसार आकाश दो प्रकार के हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश। लोकाकाश उस आकाश को कहा गया है जिस भाग में भौतिक लोक की स्थिति है और उससे ऊपर जो आकाश है उसको अलोकाकाश कहा गया है।
  • काल (Kala)-काल से भाव समय है। यह विस्तार वाला तत्त्व नहीं है। इसकी उपस्थिति का ज्ञान अनुमान के द्वारा प्राप्त होता है। काल को जगत् के परिवर्तन का मूल कारण माना गया है। भूत, वर्तमान, भविष्य से काल का संबंध है। काल को आदि और अंत वाला तत्त्व कहा जाता है।

3. पुण्य (Punya)-पुण्य वह कर्म है जो अच्छे अमलों से कमाये जाते हैं। पुण्य कमाने के अलग-अलग ढंग हैं। भूखे को खाना देना, प्यासे को पानी पिलाना, नंगे को कपड़ा देना, हाथों से सेवा करनी, मीठा बोलना आदि पुण्य के काम हैं, पुण्य को मानने के 42 साधन हैं। अच्छी सेहत, आर्थिक समृद्धि, प्रसिद्धि, अच्छा वैवाहिक जीवन, अच्छे रिश्तेदारों और दोस्तों का मिलना, अच्छी पढ़ाई और उच्च पदवियों पर नियुक्ति आदि अच्छे पुण्यों का ही नतीजा है। पुण्य को आत्मा का सहायक माना जाता है क्योंकि इससे खुशी प्राप्त होती है।

4. पाप (Papa)-पाप को जीव के बंधन का मुख्य कारण माना जाता है। जीवों को मारना, झूठ, चोरी, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, धोखा, नशा और दुश्मनी आदि सब पापों के भार में वृद्धि करते हैं। पापियों को घोर सजाएँ . मिलती हैं। आपने देखा होगा कि एक ही घर में पैदा हुए दो सगे भाइयों के जीवन में भारी अंतर होता है। एक ऊँची पदवी पर सुशोभित होता है और उसको प्रसिद्धि प्राप्त होती है। दूसरा दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है, चोरियाँ करता है और बदनामी कमाता है। ऐसा क्यों होता है ? जैन दर्शन के अनुसार ऐसा व्यक्ति के पुण्य और पाप कमाने का कारण होता है। पापी मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता और उसको अपने जीवन में घोर संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा भी तड़पती रहती है। जैन सूत्रों के अनुसार पापों के 82 अलग-अलग परिणाम निकलते हैं।

5. आशरव (Asrava) ब्रह्मांड में अनगिनत सूक्ष्म अणु (कार्मिक पदार्थ) घूमते रहते हैं जिनको आत्मा अपने अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार अपनी ओर खींचती है। इस अंदर आने की कारवाई को आश्व कहते हैं। मनुष्य के कर्म आत्मा में उसी तरह शामिल होते हैं जैसे एक सुराख के रास्ते से नाव में पानी। कर्म जीव के बंधन का एक मुख्य कारण है। कर्म जड़ हैं। इसलिए आप जीव में प्रवेश नहीं करते, वे मन, वचन और शरीर की सहायता से जीव में प्रवेश करते हैं। कर्म दो प्रकार के हैं शुभ और अशुभ। यदि शुभ कर्म जीव में प्रवेश होंगे तो उसको सुख की प्राप्ति होगी और यदि कर्म अशुभ होंगे तो जीव को कष्ट होगा। इसलिए कर्मों का शुभ अथवा अशुभ होना व्यक्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

6. बंध (Bandha)-जब कर्म पदार्थ का पर्दा जीव के शुद्ध स्वरूप पर पड़ जाता है तो वह दूषित हो जाता है। यह जीव के बंधन का कारण बनता है। जैन दर्शन के अनुसार इस दिशा की ओर ले जाने वाले पाँच कारण हैं।

  • मिथ्या दर्शन-इससे भाव गलत विश्वास है।
  • आवृत्ति-इससे भाव है प्रतिज्ञा की कमी।
  • प्रसाद-इससे भाव है लापरवाही।
  • काश्य-इससे भाव है काम वासना।
  • योग-इससे भाव है शरीर, मन और बोल की प्रक्रिया।
    बंध चार प्रकार के हैं—
  • प्रकृति-जीव से जुड़े कर्म पदार्थों का स्वरूप।
  • स्थिति-कर्म पदार्थ जीव से कितने समय के लिए जुड़े हैं।
  • अनुभाग-कर्म पदार्थ सख्त चरित्र के हैं या नर्म चरित्र के। (घ) प्रदेश जीव-जीव से जुड़े कर्म पदार्थों में अणुओं की संख्या।
    कर्मों के जाल में फंस कर जीव का व्यावहारिक रूप नष्ट हो जाता है और वह बंधन में फंस जाता है। इस कारण वह बार-बार जन्म लेता है और शरीर रूपी कैद भोगता है।

7. संवर (Sanvara)—योग क्रिया के द्वारा कर्म पदार्थ जीव की ओर खींचे आते हैं। मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस क्रिया को रोकना अति ज़रूरी है। इसको संवर कहते हैं। इसको आश्व निरोध भी कहते हैं, जिससे भाव है कर्मों का हमारे अंदर प्रवेश करने से रुक जाना। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं। इनमें आत्म संयम, शुभ विचार, लोभ, मोह, अहंकार, क्रोध और पापों से परहेज़ आदि शामिल हैं। इस कारण जीव के इर्द-गिर्द एक ऐसी ऊँची दीवार बन जाती है जिसके अंदर कर्म पदार्थों का दाखिल होना असंभव है। जैसे एक तालाब में जिस नाली के द्वारा पानी जा रहा है उसको रोकना संभव है ठीक उसी प्रकार कर्म पदार्थों को संवर के द्वारा जीव में प्रवेश करने से रोकना संभव है।

8. निर्जर (Nirjara)-निर्जर से भाव कर्म पदार्थों को जीव से दूर हटाना है। यह जीव के द्वारा संचित कर्मों को नष्ट करने का एक मुख्य साधन है। संवर द्वारा जीव में कर्मों के बढ़ने और प्रवेश को रोका जाता है। परंतु पुराने कर्मों को जिन का जीव के भीतर आश्व हो गया है निर्जर के द्वारा नाश किया जा सकता है। निर्जर में तपस्या शामिल है। तपस्या अग्नि की तरह कर्म पदार्थों के इकट्ठे हुए ढेर को जला कर राख कर देती है। इसी प्रकार जब जीव पर से कर्म पदार्थों का पड़ा पर्दा हट जाता है तो उसका शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है। जैसे बिलौर के सामने काला कपड़ा रखने से वह काला नज़र आने लग जाता है। परंतु जब कपड़ा हटा लिया जाता है तो उसकी अपनी चमक दुबारा प्रकट हो जाती है।

9. मोक्ष (Moksha)-जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण को प्राप्त करना है। इसमें जीव कर्मों के सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। कर्मों की समाप्ति से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। इसलिए संवर और निर्जर आवश्यक है। कर्मों के बंधन को तोड़ने के लिए जैनी तीन सद्गुणों के पालन की सिफ़ारिश करते हैं, जिनको त्रि-रत्न कहा जाता है। ये हैं सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। मोक्ष जीव की प्राप्ति की सर्वोच्च अवस्था है। जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है उसको सिद्ध कहते हैं । सिद्ध पुरुष जन्म, मृत्यु, सुख और दुःख से दूर है। वह ब्रह्मांड में चिरंजीवी शाँति प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 9.
जैन धर्म के पाँच महाव्रतों के महत्त्व का उल्लेख करें। (Describe the importance of Five Mahavartas in Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच महाव्रतों के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the Five Mahavartas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का क्या महत्त्व है ? प्रकाश डालिए।
(What is the importance of Five Mahavartas in Jainism ? Elucidate.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच अणुव्रतों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the Five Anuvartas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच अणुव्रतों का क्या महत्व है ? प्रकाश डालें।
(What is the importance of Five Anuvartas of Jainism ? Elucidate.) ।
उत्तर-
जैन धर्म में पाँच महाव्रतों को विशेष स्थान प्राप्त है। इन नियमों की पालना करनी प्रत्येक जैनी के लिए आवश्यक है। ये नियम बहुत कठोर हैं। ये नियम जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए बनाए गए थे। गृहस्थियों के लिए ये नियम इतने कठोर नहीं थे। इनके लिए बनाए गए नियमों को पाँच अणुव्रत (Five Anuvartas) कहा जाता है। इन पाँच महाव्रतों या अणुव्रतों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. अहिंसा (Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत ज़ोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैन लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये। बी० एन० लूनीया के अनुसार,
“अहिंसा जैन धर्म की आधारशिला है।”5

2. सत्य (Satya)-जैन धर्म में सत्य बोलने पर बहुत बल दिया गया है। हमें हमेशा सत्य और मीठे वचन बोलने चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति दूसरे के मन को मोह लेता है। झूठ बोलने से आत्मा को दुःख होता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। वास्तव में झूठ बोलने से कलह-क्लेश बढ़ता है और इसका अंत नहीं होता। विवश होकर अंत में व्यक्ति को सत्य मानना ही पड़ता है। झूठ के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। हमें किसी के डर के कारण, लालच के कारण अथवा हंसी-मज़ाक में भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। इसलिए हमें हमेशा सोच-समझ कर बोलना चाहिए। गुस्सा आने पर शांत बने रहना चाहिए। जैन धर्म में इस बात पर भी बल दिया गया है कि हमें किसी पर भी झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए। हमें किसी के साथ भी धोखा नहीं करना चाहिए। हमें किसी को भी गलत परामर्श देकर उसे मार्ग से विचलित नहीं करना चाहिए। झूठ बोलकर किसी का रिश्ता तय नहीं करना चाहिए। पंचायत अथवा किसी भी और स्थान पर झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए। झूठ ही हिंसा को जन्म देता है। सत्य अहिंसा का आधार है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

3. अस्तेय (Asteya)—जैन धर्म में अस्तेय को बहुत महत्त्व दिया गया है। अस्तेय का भाव है चोरी न करना। जैन धर्म में चोरी का अर्थ बहुत विशाल है। किसी की वस्तु चुरा लेनी एक सीधा अपराध है, लेकिन जैन धर्म में उसको चोरी ही माना गया है जो कोई भी व्यक्ति किसी द्वारा भूली हुई वस्तु का प्रयोग भी करता है। हमें किसी की वस्तु उसके मालिक की आज्ञा के बिना नहीं लेनी चाहिए। हमें किसी के घर में भी बिना आज्ञा के प्रवेश नहीं करना चाहिए। गुरु की स्वीकृति के बिना भिक्षा में प्राप्त अनाज को ग्रहण नहीं करना चाहिए। बिना स्वीकृति के हमें किसी के घर निवास नहीं करना चाहिए। यदि घर में रहने की स्वीकृति मिले तो उसकी आज्ञा के बिना उसकी वस्तु को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार चोरी के दो प्रकार हैं। ये हैं-सूक्ष्म चोरी और स्थूल चोरी। सूक्ष्म चोरी उसको कहते हैं जिस में मनुष्य अपने परिवार के हित के लिए संयम स्वभाव से काम करता है। जैसे जंगल में लकड़ी और फल आदि प्राप्त करना। समाज और कानून की नज़रों में जिस चोरी को दंड योग्य माना जाता है उसको स्थूल चोरी कहा जाता है। मिलावट करनी, चोर की सहायता करनी, चोरी का माल खरीदना, कम मापदंड करना, लोगों से धोखे के सा. अधिक ब्याज प्राप्त करने को स्थूल चोरी कहा जाता है। एक बार चोरी करने वाला मनुष्य ग़रीब घर में जन्म लेता है बार-बार चोरी करने वाला मनुष्य अगले जन्म में गुलाम के रूप में जन्म लेगा।

4. अपरिग्रह (Aparigraha) जैन धर्म में अपरिग्रह महाव्रत को बहुत महत्ता दी गई है। अपरिग्रह से भाव है सांसारिक वस्तुओं के प्रति मोह न रखना। ये सामान्य देखने में आता है कि गृहस्थी लोग आवश्यक वस्तुओं को आवश्यकता से ज्यादा इकट्ठा करते हैं। जीवन की आवश्यक वस्तुओं को इकट्ठा करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक भंडार इकट्ठा करना वास्तव में अन्य लोगों के अधिकार को मारना है। जितनी अधिक वस्तुओं को इकट्ठा करने की आकांक्षा बढ़ेगी उतना ही मन अशांत रहेगा। ऐसा मनुष्य कभी भी मोक्ष प्राप्त – * कर सकता। आवश्यकता से ज्यादा संपत्ति इकट्ठा करना भी एक अनुचित कर्म है। जैन साधुओं को आवप्रगकता से अधिक भोजन करने, कपड़े पहनने और बिस्तर आदि रखने की मनाही है। इस महाव्रत की पालना करने वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।

5. ब्रह्मचर्या (Brahmacharya)—जैन धर्म में ब्रह्मचर्या महाव्रत को विशेष महत्त्व प्राप्त है। इससे भाव है काम वासना से दूर रहना। जैन साधुओं के लिए इस सम्बन्धी कठोर नियम बनाए गए हैं। उनके लिए ये आवश्यक कि वे किसी स्त्री की ओर न देखें, उनसे बातें न करें, किसी भी स्त्री के साथ भूतकाल में बिताए समय को याद न करें। ऐसे किसी घर में न जाए जहाँ कोई स्त्री अकेली रहती हो। शुद्ध और थोड़ा भोजन खाना चाहिए। इस तरह जैन साधवियों के लिए भी नियम निश्चित हैं। उनके लिए किसी पुरुष के साथ बातचीत करने और उनके बारे में सोचने की मनाही है। ग्रहस्थियों के लिए केवल अपनी स्त्री का साथ करना ही ब्रह्मचर्या है। जैन धर्म में काम को वास्तव में जीवन को समाप्त करने वाला रोग माना गया है।
उपरोक्त पाँच महाव्रतों की पालना करने वाला व्यक्ति संयमी बन जाता है और निर्वाण अथवा मोक्ष प्राप्त करता है। डॉ० के० सी० सोगानी के अनुसार,
“इन पाँच महाव्रतों की पालना व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के लिए सहायक है।”6

5. “Ahimsa is the sheet anchor of Jainism.” B.B. Luniya, Life and Culture in Ancient India (Agra : 1982) p. 162.
6. “The observance of these five rows is capable of bringing about individual as well as social progress.”: Dr. K.C. Sogani, op. cit., p, 65.

प्रश्न 10.
प्रमुख जैन संप्रदायों के बारे में जानकारी दें।
(Write about the main sects in Jainism.)
उत्तर-
जैनी अनेक संप्रदायों में बंटे हुए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख संप्रदायों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार—

1. अजीविक (The Ajivika)-इस संप्रदाय का संस्थापक गोशाल था। वह स्वामी महावीर का शिष्य था और 6 वर्षों के पश्चात् उनसे अलग हो गया था। यह संप्रदाय अपने नियति (किस्मत) के विशेष सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है। इसके अनुसार हर वस्तु की किस्मत पहले से ही निश्चित है। इस को मनुष्य के यत्नों के द्वारा बदला नहीं जा सकता। गोशाल के द्वारा प्रचारित धर्म भारत में 13वीं शताब्दी तक प्रफुल्लित रहा और बाद में लोप हो गया।

2. दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय (The Digambara and Shvetambra Sects)-जैन धर्म के सब संप्रदायों में से दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय मगध में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए भद्रबाहु जो जैनी भिक्षुकों का नेता था अपने साथ बहुत सारे भिक्षुओं को लेकर मैसूर (कर्नाटक) चला गया। जो भिक्षुक मगध में रह गये थे उन्होंने स्थूलभद्र को अपना मुखिया चुन लिया। इन भिक्षुकों ने पाटलिपुत्र में एक सभा का आयोजन किया और अपने साहित्य को एक नया रूप दिया। इस साहित्य को उन्होंने अंग का नाम दिया। इसके अतिरिक्त इन भिक्षुओं ने नंगे रहने की प्रथा को त्याग दिया और सफ़ेद कपड़े पहनने शुरू कर दिये। 12 वर्षों के पश्चात् जब भद्रबाहु अपने अन्य भिक्षुकों के साथ दुबारा मगध आया तो उसने स्थूलभद्र द्वारा किए गए परिवर्तनों को स्वीकार न किया। परिणामस्वरूप जैनी दो संप्रदायों दिगंबर और श्वेतांबर में बाँटे गए। दिगंबर से भाव था नग्न रहने वाले और श्वेतांबर से भाव था सफ़ेद वस्त्र पहनने वाले। इन दोनों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं—

  • दिगंबर संप्रदाय वाले नंगे रहते थे जबकि श्वेतांबर जाति वाले सफ़ेद वस्त्र पहनते थे।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेती। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  • दिगंबर संप्रदाय वाले स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं देते। दूसरी ओर श्वेतांबर संप्रदाय वाले स्त्रियों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाते। उनका कहना था कि 19वीं तीर्थंकर मल्ली एक स्त्री थी। दिगंबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वाले यह मानते हैं कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रियादर्शना था।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का यह मत है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की ज़रूरत नहीं रहती जबकि श्वेतांबर मत वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  • दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय वालों का धार्मिक साहित्य अलग-अलग है।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज होती हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को कपड़े पहनाये जाते हैं और उनको गहनों से सजाया जाता है।

3. लोक संप्रदाय (Lonka Sect)-इस संप्रदाय का मुखिया लोंक सा था। वह अहमदाबाद का रहने वाला था। 1474 ई० में एक जैनी साधु ज्ञान जी ने कुछ धार्मिक जैनी ग्रंथों का उतारा करने के लिए लोक सा को कहा। इन ग्रंथों को पढ़ते समय लोंक सा ने देखा कि मूर्ति पूजा का वर्णन कहीं भी नहीं आया जबकि जैनी कई सदियों से मूर्ति पूजा करते आ रहे थे। इसलिए उसने जैन धर्म में प्रचलित मूर्ति पूजा का खंडन किया। इससे जैनियों में एक बड़ा विवाद शुरू हो गया ? भानाजी लोंक सा के मत से सहमत हुआ और इस तरह वह लोंक सा संप्रदाय का पहला आचार्य बना।

4. स्थानकवासी (Sthanakvasi)-इस संप्रदाय का संस्थापक वीराजी था। वह सूरत का रहने वाला था। इस नए संप्रदाय का नाम स्थानकवासी इसलिए पड़ा क्योंकि इस संप्रदाय के साधु मंदिरों की जगह मठों में रहते थे। वे बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्राओं में विश्वास नहीं रखते थे।

5. तेरा पंथ (Terapanth)-इंस संप्रदाय के संस्थापक मारवाड़ के भीखनजी थे। इसकी स्थापना 1706 ई० में की गई थी। इस संप्रदाय के तेरह धार्मिक नियम थे जिस कारण इस संप्रदाय का नाम तेरा पंथ पड़ा। यह संप्रदाय भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता। यह तप और अनुशासन पर बहुत ज़ोर देता है।

6. तारना पंथ (Taranapanina)-इस पंथ की स्थापना स्वामी तारना ने ग्वालियर में की थी। इस पंथ को मानने वाले मूर्ति पूजा, धर्म के बाहरी दिखावे और जाति भेदों के विरुद्ध हैं। उनके अपने अलग मंदिर हैं जिनमें मूर्तियाँ ही नहीं बल्कि पवित्र धार्मिक ग्रंथों की पूजा भी की जाती है।

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प्रश्न 11.
जैन मत के प्रमुख संप्रदाय कौन से हैं ? उनके मध्य समानताएँ तथा भिन्नताएँ स्पष्ट करें।
(What are the main sects in Jainism ? Explain their similarities and differences.)
अथवा
जैन धर्म के फिरके दिगंबर और श्वेतांबर के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the sects Digambara and Shvetambra of Jainism.)
उत्तर-
दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय (The Digambara and Shvetambra Sects)-जैन धर्म के सब संप्रदायों में से दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय मगध में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए भद्रबाहु जो जैनी भिक्षुकों का नेता था अपने साथ बहुत सारे भिक्षुओं को लेकर मैसूर (कर्नाटक) चला गया। जो भिक्षुक मगध में रह गये थे उन्होंने स्थूलभद्र को अपना मुखिया चुन लिया। इन भिक्षुकों ने पाटलिपुत्र में एक सभा का आयोजन किया और अपने साहित्य को एक नया रूप दिया। इस साहित्य को उन्होंने अंग का नाम दिया। इसके अतिरिक्त इन भिक्षुओं ने नंगे रहने की प्रथा को त्याग दिया और सफ़ेद कपड़े पहनने शुरू कर दिये। 12 वर्षों के पश्चात् जब भद्रबाहु अपने अन्य भिक्षुकों के साथ दुबारा मगध आया तो उसने स्थूलभद्र द्वारा किए गए परिवर्तनों को स्वीकार न किया। परिणामस्वरूप जैनी दो संप्रदायों दिगंबर और श्वेतांबर में बाँटे गए। दिगंबर से भाव था नग्न रहने वाले और श्वेतांबर से भाव था सफ़ेद वस्त्र पहनने वाले। इन दोनों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं—

  1. दिगंबर संप्रदाय वाले नंगे रहते थे जबकि श्वेतांबर जाति वाले सफ़ेद वस्त्र पहनते थे।
  2. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेती। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  3. दिगंबर संप्रदाय वाले स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं देते। दूसरी ओर श्वेतांबर संप्रदाय वाले स्त्रियों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाते। उनका कहना था कि 19वीं तीर्थंकर मल्ली एक स्त्री थी। दिगंबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  4. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वाले यह मानते हैं कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रियादर्शना था।
  5. दिगंबर संप्रदाय वालों का यह मत है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की ज़रूरत नहीं रहती जबकि श्वेतांबर मत वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  6. दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय वालों का धार्मिक साहित्य अलग-अलग है।
  7. दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज होती हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को कपड़े पहनाये जाते हैं और उनको गहनों से सजाया जाता है।

प्रश्न 12.
जैन संघ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो। (Explain the salient features of Jain Sangha.)
अथवा
जैन धर्म के संघ-अनुशासन के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the Sangha discipline of Jainism.)
उत्तर-
जैन संघ की स्थापना स्वामी महावीर जी ने पावा नगर में की थी। इसने जैन धर्म के प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

1. सदस्य (Member)-जैन संघ में चार प्रकार के लोग शामिल होते हैं जिनको भिक्षु और भिक्षुणियाँ तथा श्रावक और श्राविका कहा जाता था। भिक्षु और भिक्षुणियाँ वे थे जिन्होंने संसार का त्याग कर दिया था। श्रावक और श्राविका वे थे जो गृहस्थी का जीवन व्यतीत करते थे।

2. दीक्षा (Initiation)—जो व्यक्ति संघ में शामिल होना चाहता था उसको अपने माता-पिता और संरक्षक से आज्ञा लेनी पड़ती थी। इसके बाद वह अपना मुंडन करके, स्नान करके, सफ़ेद कपड़े पहन के भिक्षा का बर्तन लेकर किसी प्रमुख जैन आचार्य के पास जा कर दीक्षा लेता था। इस संस्कार को निष्कर्म संस्कार कहते थे। स्त्रियाँ भी जैन संघ में शामिल हो सकती थीं। जैन संघ के दरवाज़े सभी जातियों के लिए खुले थे। केवल अधर्मी व्यक्तियों को संघ में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी।

3. अनुशासित जीवन (Disciplined Life)-दीक्षा प्राप्त करने के बाद भिक्षु-भिक्षुणियों को बहुत अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। उनको पाँच महाव्रतों, अहिंसा, सुनित, अस्तेय, अपरिगृह और ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता था। उनको मन, वचन और शरीर से किसी को भी हिंसा पहुँचाने की मनाही थी। उनको झूठ बोलने, चोरी करने, अपने पास संपत्ति रखने, सुगंधित वस्तुओं का प्रयोग करने, जूते, छाता, पलंग और कुर्सी आदि का प्रयोग करने, बिना आज्ञा किसी के घर जाने, गृहस्थी के बर्तनों में भोजन करने, अधिक खाने, रात हो जाने के बाद भोजन करने, किसी की निंदा करने, किसी स्त्री के साथ बातचीत करने, जिस घर में स्त्री हो वहाँ ठहरने आदि की सख्त मनाही थी। गृहस्थी व्यक्तियों को भी यद्यपि इन नियमों का पालन करने के लिए कहा गया है, परंतु उन पर इतनी सख्ती लागू नहीं की गई थी।

4. प्रतिदिन जीवन (Daily Life)-प्रत्येक भिक्षु अथवा भिक्षुणी अपने रोज़ाना जीवन को 8 भागों में बाँटता था। इनमें 4 भाग धार्मिक ग्रंथों की पढ़ाई के लिए, 2 तप के लिए, 1 खाने के लिए और 1 आराम करने के लिए निश्चित होता था। वे अपना भोजन प्रतिदिन माँग कर खाते थे। उनको एक से अधिक घर से भिक्षा लेने की मनाही थी। जैन संघ के सारे सदस्य वर्षा के चार महीनों में एक स्थान पर रह कर जैन धर्म का प्रचार करते थे। बाकी के आठ महीने वे अलग-अलग स्थानों पर जा कर जैन धर्म के प्रचार में व्यतीत करते थे।

5. जैन संघ का मुखिया (Chief of the Jain Sangha)-जैन संघ का मुखिया आचार्य कहलाता था। वह संघ के सारे भिक्षुओं पर नियंत्रण रखता था। केवल उसी को ही दीक्षा देने, संघ का सदस्य बनाने अथवा किसी को सज़ा देने का अधिकार था। इस पदवी के लिए बहुत ही सुलझे हुए और उच्च चरित्र के व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था। स्त्रियों के अपने अलग संघ होते थे। इसके प्रमुख को प्रवर्तिनी कहा जाता था। उसका प्रमुख कार्य जैन संघ में अनुशासन स्थापित रखना था।

6. जैन संघ की भूमिका (Role of Jain Sangha)-जैन संघ ने भारत में जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैन संघ में सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों ने जैन धर्म के प्रसार के लिए कोई प्रयास शेष नहीं छोड़ा। प्रसिद्ध लेखक एस० सी० रैचौधरी के अनुसार,

“वास्तव में जैन संघ के प्रयासों के कारण जैन धर्म ने भारत की भूमि में अपनी गहरी जड़ें बना लीं तथा यह आज भी कायम हैं।”7

7. “In fact, it is mainly due to their efforts that Jainism took root into Indian soil and still survives,” S.C. Raychoudhary, History of Ancient India (Delhi : 2006) p. 107.

प्रश्न 13.
जैन धर्म ग्रंथों की भाषा क्या है ? जैन धर्म ग्रंथों के बारे में प्रारंभिक जानकारी दें।
(What is the language of Jain scriptures ? Give preliminary information about Jain scriptures.)
अथवा
जैन धर्म ग्रंथों के बारे में प्रारंभिक जानकारी दें।
(Give preliminary information about the major Jain scriptures.)
अथवा
जैन मत के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों की जानकारी दो। (Give information about the prominent scriptures of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथों के बारे में आप क्या जानते हो ?
(What do you know about the prominent scriptures of Jainism ?)
अथवा
प्रमुख जैन धार्मिक ग्रंथों पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the prominent Jain scriptures.)
उत्तर-
जैनियों ने अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की। इनमें से जो ग्रंथ हमें आज उपलब्ध हैं उनकी संख्या 45 है। ये सारे ग्रंथ जैन धर्म के श्वेतांबर संप्रदाय के साथ संबंधित हैं। ये ग्रंथ प्राकृत अथवा अर्ध मगधी जो उस समय लोगों की बोलचाल की आम भाषा थी में लिखे गए हैं। इन ग्रंथों को गुजरात में वल्लभी के स्थान पर 5वीं शताब्दी में लिखित रूप दिया गया। इनको एक प्रसिद्ध जैनी साधु देवरिद्धी ने संपूर्ण किया। इन ग्रंथों को 6 वर्गों में बाँटा गया है। इनके नाम हैं—
(1) 12 अंम
(2) 12 उपांग
(3) 10 प्राकिरण
(4) 6 छेदसूत्र
(5) 4 मूलसूत्र
(6) 2 विविध पुस्तकें।
इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. 12 अंग (The Twelve Angas)-जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंगों को सब से अधिक पवित्र समझा जाता है। इन अंगों के नाम और उनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है

  • आचारांग सूत्र-इसमें जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियमों का वर्णन किया गया है। इसमें महावीर के जीवन का भी वर्णन मिलता है।
  • सूत्रक्रितांग- इसमें कर्म और अहिंसा के सिद्धांतों के बारे में और नरक के दु:खों के बारे में वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इसमें विरोधी धर्मों के सिद्धांतों का खंडन इस उद्देश्य से किया गया है ताकि जैनियों का अपने धर्म में पक्का विश्वास रहे।
  • स्थानांग-इसमें जैन धर्म के अलग-अलग विषयों के बारे जानकारी दी गई है।
  • समवायांग-इसमें जैन सिद्धांतों का संख्यात्मक ढंग से वर्णन किया गया है।
  • भगवती सूत्र-इसको जैन धार्मिक साहित्य का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ समझा जाता है। इसमें जैन सिद्धांतों का प्रश्न-उत्तर रूप में वर्णन किया गया है। ये प्रश्न स्वामी महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम इंद्रभूति द्वारा पूछे गये थे और इनका उत्तर स्वामी महावीर ने स्वयं दिया था।
  • ज्ञात धर्म कथा-इसमें जैन धर्म से संबंधित प्रसिद्ध कथाओं का वर्णन मिलता है। इन कथाओं को उदाहरणों सहित समझाया गया है।
  • उपासकदशा-इसमें स्वामी महावीर के समय के 10 उन अमीर व्यक्तियों की कहानियाँ दी गई हैं जो महावीर के शिष्य बन गए थे और जिन्होंने कठोर तपस्या के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
  • अंतक्रिदशा-इसमें उन जैन मुनियों के जीवन का वर्णन मिलता है जिन्होंने कठोर तप के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
  • अनउत्तरोपपातिक-इसमें भी कुछ जैन मुनियों के जीवन का वर्णन मिलता है।
  • प्रश्न व्याकरण- इसमें पाँच महाव्रतों और पाँच अणुव्रतों का वर्णन किया गया है।
  • विपाकसूत्र-इसमें अच्छे या बुरे कर्मों से मिलने वाले फलों का वर्णन किया गया है।
  • दृष्टिवाद-यह अंग अब लोप हो चुका है। अन्य ग्रंथों में से इस अंग से संबंधित मिलते विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें विभिन्न सिद्धांतों का संक्षेप वर्णन किया गया था।

2. 12 उपांग (The Twelve Upangas)-प्रत्येक अंग का एक-एक उपांग है। इनमें मिथिहासिक कथाओं का अधिक वर्णन मिलता है। इनसे ज्योतिष, भूगोल और ब्रह्मांड आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। कहीं-कहीं ऐतिहासिक घटनाओं का भी जिक्र आता है। 12 उपांगों में राज्य प्रश्नीय नामक उपांग सब से अधिक प्रसिद्ध है। इसमें जैन मुनी केश और पायोस नामक राजा के मध्य हुई वार्तालाप का विवरण लिखा हुआ है।

3. 10 प्राकिरण (The Ten Prakirans)-इनमें जैन धर्म से संबंधित विभिन्न विषयों को पद्य रूप में लिखा गया है। इनसे स्वामी महावीर के जीवन और उसके उपदेशों संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

4. 6 छेदसूत्र (The Six Chhedasutras)-इनमें जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचार से संबंधित नियमों का वर्णन किया गया है। छेदसूत्रों में कल्पसूत्र को सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। इसकी रचना भद्रबाह ने की थी। इसमें स्वामी महावीर की जीवन कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

5. 4 मूलसूत्र (The Four Mulasutras)-4 मूलसूत्रों को जैनी साहित्य में बहुमूल्य समझा जाता है। इनमें जैन धर्म से संबंधित कथाओं और उनसे मिलने वाली शिक्षा, जैन संघ के नियमों और कुछ जैन मुनियों के जीवन तथा उनके उपदेशों के बारे जानकारी प्राप्त होती है। ये सारे मूलरूप में लिखे गये हैं। मूलसूत्रों में उत्तर अध्ययन नामक सूत्र को सबसे महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।

6. 2 विविध पुस्तकें (Two Miscellaneous Texts)—इनमें नंदीसूत्र और अनुयोगद्वार नामक पुस्तकें शामिल हैं। ये एक प्रकार से विश्वकोष हैं। इनमें जैन धर्म की विभिन्न शाखाओं, धार्मिक सिद्धांतों, अर्थशास्त्र और काम शास्त्र के विषयों के संबंध में जानकारी दी गई है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 14.
जैन धर्म का भारतीय सभ्यता को क्या योगदान है ? (What is the Legacy of Jainism to Indian Civilization ?)
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की तरह उन्नत हो सका परंतु फिर भी इसने भारत में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी गहरी छाप छोड़ी।।

1. सामाजिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Social Field) सामाजिक क्षेत्र में जैनियों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। छठी शताब्दी में हिंदू धर्म में जाति प्रथा बड़ी कठोर हो गई थी। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से सख्त नफ़रत करते थे। शूद्र जाति के लोगों के साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता था। महावीर ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने धर्म में प्रत्येक धर्म से संबंधित लोगों को शामिल किया। उन्होंने लोगों में आपसी भाईचारे और बराबरी का प्रचार किया। परिणामस्वरूप वह लोगों में फैली आपसी घृणा को काफी सीमा तक दूर करने में सफल हुए। इस प्रकार जैनियों ने भारतीय समाज को एक नया रूप दिया।

2. धार्मिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Religious Field)-धार्मिक क्षेत्र में भी जैनियों का योगदान बहुत प्रशंसनीय था। जैन धर्म ने लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। जैन धर्म में फ़िजूल के रीति-रिवाजों, यज्ञों और बलियों आदि के लिए कोई स्थान नहीं था। जैन धर्म के यत्नों के कारण धार्मिक क्षेत्र में फैले बहुत सारे अंध-विश्वासों का अंत हो गया। जैन धर्म की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को देखकर हिंदू धर्म के नेताओं ने अपने धर्म को सुरजीत करने के उद्देश्य से अपने धर्म में आवश्यक सुधार किए।

3. सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Cultural Field)—सांस्कृतिक क्षेत्र में भी जैन धर्म का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। जैन धर्म के सिद्धांतों ने अपने ग्रंथ प्राकृत, गुजराती, हिंदी, मराठी, कन्नड़ और तामिल भाषाओं में लिखे। परिणामस्वरूप इन क्षेत्रीय भाषाओं को बहुत उत्साह मिला। इन ग्रंथों में यद्यपि धर्म से संबंधित बातें लिखी गई हैं पर फिर भी इनसे हमें उस समय की भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इस कारण इन जैनी ग्रंथों को भारतीय इतिहास का एक अमूल्य स्रोत माना जाता है। जैनियों ने कई प्रभावशाली और प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों में कई बहुत मनमोहक मूर्तियाँ रखी जाती थीं। राजस्थान में माऊँट आबू और कर्नाटक में श्रावण बेलगोला में बने जैनियों के मंदिर अपनी भूवन निर्माण कला के कारण न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त जैनियों ने भारत में कई प्रसिद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया।

4. लोक कल्याण के क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Field of Public Welfare)-स्वामी महावीर ने अपने शिष्यों को समाज सेवा का उपदेश दिया था। इसी कारण जैनमत वालों ने लोगों की सहायता के लिए बहुत सी धर्मशालाएँ बनाईं। शिक्षा के प्रचार के लिए शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की, मनुष्यों और पशुओं के इलाज के लिए कई अस्पताल खुलवाए और कई अन्य लोक कल्याण के कार्य भी किए। जैनियों द्वारा स्थापित की गई कई शिक्षा संस्थाएँ आज भी प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा खोले गए अस्पतालों में आज भी ग़रीब रोगियों का मुफ्त इलाज होता है और जानवरों की देखभाल की जाती है।

5. राजनीतिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Political Field) जैन मत में अहिंसा के सिद्धांत पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। इसने लोगों को शांतमयी जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप कई राजाओं ने लड़ाई में हिस्सा लेना बंद कर दिया ताकि निर्दोष लोगों का खून न बहाया जाये। वे शांतिप्रिय बन गए। इसी कारण भारत में काफी समय तक शाँति और खुशहाली का वातावरण रहा परंतु दूसरी ओर इसका भारतीय राजनीति पर कुछ बुरा प्रभाव भी पड़ा। युद्धों में भाग न लेने के कारण भारतीय सेना कमजोर हो गई। परिणामस्वरूप वह बाद में होने वाले विदेशी आक्रमणों का डट कर मुकाबला न कर सकी। इसी कारण भारतीयों को सैंकड़ों वर्षों तक गुलामी का जीवन व्यतीत करना पड़ा।

समूचे रूप में हम यह कह सकते हैं कि जैनियों ने भारतीय समाज को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया। अंत में हम डॉक्टर वी० ए० मंगवी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“वास्तव में भारत में जैनियों की सबसे प्रमुख विशेषता भारतीय संस्कृति को दिया गया उनका बहुमूल्य योगदान का रिकार्ड है। उनकी सीमित एवं थोड़ी जनसंख्या को देखते हुए जैनियों ने जो योगदान भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों को दिया वह वास्तव में महान् है।”8

8. “In fact, the most outstanding characteristic of Jainism in India is their very impressive record of contributions to Indian culture in comparison with the limited and small population of Jains, the achievements of Jains in enriching the various aspects of Indian culture are re great.” Dr. V.A. Sangve, Aspects of Jaina Religion (New Delhi: 1990) p. 98.

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तीर्थंकर से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Tirthankara ?)
उत्तर-
जैन आचार्यों को तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर से अभिप्राय है संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। पहले तीर्थंकर का नाम ऋषभनाथ था। 23वां तीर्थंकर पार्श्वनाथ था। वह स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले हुए। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर थे। उनको जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उनके समय में जैन धर्म ने अद्वितीय विकास किया।

प्रश्न 2.
पार्श्वनाथ। (Parshvanatha.)
उत्तर-
पार्श्वनाथ जैन धर्म का 23वां तीर्थंकर था। उसकी मुख्य शिक्षाएँ यह थीं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊँट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया।

प्रश्न 3.
स्वामी महावीर। (Lord Mahavira.)
उत्तर-
स्वामी महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ। आपके पिता जी का नाम सिद्धार्थ तथा माता जी का नाम त्रिशला था। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था। महावीर की शादी एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से हुई। महावीर ने 30 वर्षों की आयु में गृह त्याग दिया था। उन्होंने 12 वर्ष तक घोर तपस्या के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया। आपने 30 वर्षों तक अपने ज्ञान का प्रसार किया। राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथला, विदेह तथा अंग उनके प्रसिद्ध प्रचार केंद्र थे। 527 ई० पू० उन्होंने पावा में निर्वाण प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
भगवान महावीर की शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss about the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
स्वामी महावीर की शिक्षाएँ। (Teachings of Lord Mahavira.)
उत्तर-
स्वामी महावीर ने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों पर चलने के लिए कहा। उन्होंने कठोर तप, अहिंसा तथा उच्च आचरण पर जोर दिया। वह समानता, आवागमन तथा कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। वह ईश्वर, यज्ञों, बलियों, वेद तथा संस्कृत में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार प्रत्येक जैनी को अपने जीवन में पाँच महाव्रतों की पालना करनी चाहिए। उनके अनुसार मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है।

प्रश्न 5.
त्रि-रत्न। (Tri-Ratna.)
अथवा
त्रि-रत्न क्या हैं ? (What is Tri-Ratna ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी ने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों पर चलने के लिए कहा। ये त्रि-रत्न थे-सच्ची श्रद्धा, सच्चा ज्ञान तथा शुद्ध आचरण। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तथा इनको व्यर्थ के रीति-रिवाज़ों में विश्वास नहीं रखना चाहिए। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। इनमें से किसी एक ही अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंज़िल तक नहीं पहुँचा सकती।

प्रश्न 6.
अहिंसा। (Ahimsa.)
उत्तर-
जैन धर्म में अहिंसा की नीति को जितना महत्त्व दिया गया है, उतना विश्व के किसी अन्य धर्म में नहीं दिया गया। अगर अहिंसा को जैन धर्म की आधारशिला कहा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा। अहिंसा से अभिप्राय है कि किसी भी जैव वस्तु को कष्ट न देना। जैन दर्शन के अनुसार मनुष्यों और पशुओं के अतिरिक्त वृक्षों तथा पत्थरों में भी आत्मा का निवास होता है। इस कारण हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी उद्देश्य से जैनी नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और सूर्य छिपने के पश्चात् भोजन नहीं करते।

प्रश्न 7.
स्वामी महावीर की शिक्षा के अनुसार एक जैन भिक्षु को कैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता था ? (According to the teachings of Lord Mahavira how a Jaina monk led his life ?)
उत्तर-

  1. स्वामी महावीर की शिक्षा के अनुसार जैन भिक्षुओं को बहुत स्वच्छ जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
  2. प्रत्येक भिक्षु को पाँच प्रतिज्ञाओं की पालना करनी पड़ती थी।
  3. प्रत्येक भिक्षु को सदैव सत्य बोलना चाहिए। उनको अहिंसा की नीति की पालना करनी पड़ती थी।
  4. प्रत्येक भिक्षु के लिए आवश्यक था कि उनकी वेशभूषा और खाना-पीना बिल्कुल सादा हो।

प्रश्न 8.
स्वामी महावीर जी की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
(What was the importance of the teachings of Lord Mahavira in the life of a common man ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी की शिक्षाएँ साधारण मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण थीं। भगवान् महावीर ने अपने धर्म में बिना किसी भेद-भाव के प्रत्येक वर्ग के लोगों को शामिल किया। इससे समाज में प्रचलित परस्पर घृणा बहुत सीमा तक दूर हुई और लोगों में परस्पर बंधुत्व एवं प्रेम-भाव बढ़ गया। स्वामी महावीर जी ने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। साधारण लोग भी इन परंपराओं के विरुद्ध थे। इसलिए उनके हृदयों पर स्वामी महावीर जी की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। स्वामी महावीर जी ने लोगों को समाज सेवा का उपदेश दिया।

प्रश्न 9.
स्वामी महावीर ने कौन-सी धार्मिक तथा सामाजिक बुराइयों का खंडन किया ? (Which religious and social evils were condemned by Lord Mahavira ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर ने यज्ञों, बलियों, पुरोहितवाद तथा धर्म के बाहरी दिखावों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वह मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। उनको वेदों तथा संस्कृत भाषा की पवित्रता में विश्वास नहीं था। वह जाति प्रथा तथा समाज में प्रचलित अन्य रूढ़िवादी विचारों के घोर विरोधी थे। उन्होंने इन रीतियों को एक ढोंग बताया तथा कहा कि कोई भी व्यक्ति इनका पालन करने से निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता।

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प्रश्न 10.
दिगंबर। (Digambaras.)
उत्तर-
दिगंबर जैनियों का एक प्रमुख संप्रदाय है। दिगंबर से अभिप्राय है नग्न रहने वाले। इस संप्रदाय के भिक्षु नग्न रहते हैं। इस संप्रदाय को मानने वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं, लेतीं। उन्हें जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। इस संप्रदाय का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। इनका अपना अलग साहित्य है।

प्रश्न 11.
श्वेतांबर। (Svetambaras.)
उत्तर-
श्वेतांबर जैन धर्म का एक प्रमुख संप्रदाय है। श्वेतांबर से अभिप्राय है सफेद वस्त्र धारण करने वाले। इस कारण इस संप्रदाय के लोग सफेद वस्त्र पहनते हैं। इस संप्रदाय के लोगों का कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में ही मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं। वे स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा देते थे। उनका कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। इस संप्रदाय का अपना अलग साहित्य है।

प्रश्न 12.
जैन धर्म भारत में लोकप्रिय क्यों नहीं हो सका ? (Why could not Jainism become popular in India ?)
उत्तर-
जैन धर्म की शिक्षाएँ यद्यपि सरल थीं, परंतु कई कारणों से यह धर्म लोगों में लोकप्रिय न हो सका। पहला, जैन धर्म वालों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया। दूसरा, जैन धर्म को बौद्ध धर्म की भाँति राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हो सका। तीसरा, जैन धर्म वाले कठोर तप, शरीर को अत्यधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। इसके अतिरिक्त उनका अहिंसा में आवश्यकता से अधिक विश्वास था। जन सामान्य के लिए इन नियमों का पालन करना बहुत कठिन था। चौथा, बौद्ध धर्म के सिद्धांत सरल थे। परिणामस्वरूप लोगों ने जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को अपनाना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 13.
जैन संघ के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Jain Sangha ?)
उत्तर-
जैन संघ की स्थापन स्वामी महावीर जी ने की थी। इसमें शामिल होने वाले प्रत्येक भिक्षु तथा भिक्षुणियों को अपने माता-पिता और संरक्षक से आज्ञा लेनी पड़ती थी। उनको बहुत अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। जैन संघ के सारे सदस्य वर्षा के चार महीनों को छोड़कर बाकी समय अलग-अलग स्थानों पर जाकर धर्म प्रचार करने में व्यतीत करते थे। जैन संघ का मुखिया आचार्य कहलाता था। स्त्रियों के अपने अलग संघ होते थे।

प्रश्न 14.
जैन मत की देन। (Legacy of Jainism.)
अथवा
जैन मत का प्रभाव। (Effects of Jainism.)
उत्तर-
जैन मत ने भारतीय सभ्यता को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य देन दी। उन्होंने परस्पर भ्रातृत्व तथा समानता का प्रचार किया। जैन मत ने लोगों को सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। जैन धर्म के विद्वानों ने अनेक भाषाओं में अपने ग्रंथ लिखे। इस कारण क्षेत्रीय भाषाओं को उत्साह मिला। जैनियों ने अनेक प्रभावशाली तथा प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इस कारण भारतीय भवन निर्माण कला को एक नया उत्साह मिला। जैन धर्म ने शांति का संदेश दिया।

प्रश्न 15.
स्वामी पार्श्वनाथ पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on Lord Parshvanatha.)
उत्तर-
स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊँट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

प्रश्न 16.
स्वामी महावीर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के महत्त्व को दर्शाइए।
(Describe the importance of 24th Tirthankar of Jainism.)
उत्तर-
स्वामी महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उनका जन्म 599 ई० पू० वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ। उनके पिता जी का नाम सिद्धार्थ तथा माता जी का नाम त्रिशला था। महावीर का बचपन का नाम वर्द्धमान था। वे शुरू से ही बहुत विचारशील थे। वे सांसारिक कार्यों में बहुत कम रुचि लेते थे। महावीर की शादी एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से की गई। उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया जिसका नाम प्रियदर्शना अथवा अनोजा रखा गया। महावीर ने 30 वर्षों की आयु में गृह त्याग दिया था। उन्होंने 12 वर्ष तक घोर तपस्या के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने लोगों में फैले अंधकार को दूर करने के लिए अपने ज्ञान का प्रसार किया। राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथला, विदेह तथा अंग उनके प्रसिद्ध प्रचार केंद्र थे। महावीर ने त्रि-रत्न अहिंसा, कठिन तप, शुद्ध आचरण आदि पर बल दिया। वह यज्ञों, बलियों, वेदों, संस्कृत भाषा तथा ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते थे। 527 ई० पू० उन्होंने पावा में निर्वाण प्राप्त किया। निस्संदेह जैन धर्म के विकास में उनका योगदान बहुमूल्य था।

प्रश्न 17.
भगवान महावीर की शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss about the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
स्वामी महावीर की शिक्षाएँ का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Discuss briefly the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की मुख्य शिक्षाएँ क्या थीं?
(What were the main teachings of Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the pre-eminent teaching of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म का आधार उसकी नैतिक कीमतें हैं। संक्षिप्त चर्चा करें।
(The base of Jainism is their Ethical values. Discuss in brief.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक कीमतों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the moral-values of Jainism.)
अथवा
नैतिक कीमतें जैन धर्म में प्रमुख हैं। चर्चा कीजिए।
(Moral values are supreme in Jainism. Discuss.)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी की शिक्षाएँ अत्यंत सरल एवं प्रभावशाली थीं। उनके अनुसार मानव जीवन का परम उद्देश्य निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करना है। अतः उन्होंने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों—

  1. सच्ची श्रद्धा,
  2. सच्चा ज्ञान,
  3. और शुद्ध आचरण पर चलने के लिए कहा।

वे कठोर तप में विश्वास रखते थे। वे अहिंसा पर बहुत ज़ोर देते थे। उनके अनुसार मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त हमें पेड़-पौधों और पक्षियों आदि को भी कष्ट नहीं देना चाहिए। वे आवागमन और कर्म सिद्धांतों में विश्वास रखते थे। उन्होंने समानता व आपसी भाईचारे का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने हिंदू धर्म में फैले झूठे रीति-रिवाजों और यज्ञों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वे वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने अपना प्रचार लोगों की साधारण भाषा में किया। वे परमात्मा के अस्तित्व में भी विश्वास नहीं रखते थे। उनका कथन था कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। अतः उसे ईश्वर की सहायता की आवश्यकता नहीं है। जैसा मनुष्य कर्म करेगा उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। वे तीर्थंकरों की उपासना में विश्वास रखते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 18.
त्रि-रत्न से क्या भाव है ? इसका क्या महत्त्व है ? (What is meant by Tri-Ratnas ? What is its importance ?)
अथवा
त्रि-रत्न से क्या भाव है ?
(What is meant by Tri-Ratnas ?)
अथवा
आप त्रि-रत्न के बारे में क्या जानते हैं ? (What do you understand by Tri-Ratna ?)
अथवा
जैन धर्म के तीन रत्नों का उल्लेख करें। (Write about the Tri-Ratnas of Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करना है। इसको प्राप्त करने के लिए जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रि-रत्नों पर चलना अति ज़रूरी है। ये तीन रत्न हैंसच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों, नौ सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यह तीर्थंकरों के उपदेशों के गहरे अध्ययन से प्राप्त होता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। आत्मा द्वारा प्राप्त ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं और वह ज्ञान जो इंद्रियों के द्वारा प्राप्त होता है उसको परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सच्चा आचार वह है जिसकी शिक्षा जैन धर्म देता है। ये तीनों रत्न साथ-साथ चलते हैं। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंज़िल तक नहीं पहुँचा सकती। उदाहरण के तौर पर जैसे एक दीये को प्रकाश देने के लिए उसमें तेल, बाती और आग का होना ज़रूरी है। यदि इसमें से एक भी वस्त की कमी हो तो वह प्रकाश नहीं दे सकता।

प्रश्न 19.
जैन धर्म में अहिंसा का क्या महत्त्व है ? (What is the importance Ahimsa in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के महत्त्व का वर्णन करें।
(Explain the importance of Ahimsa in Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत ज़ोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारंग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है, सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों .और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैनी लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये।

प्रश्न 20.
जैन धर्म की नौ सच्चाइयों पर नोट लिखो। (Write a short note on the Nine Truths of the Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के नौ-तत्त्वों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the Nine Tatvas of Jainism.)
उत्तर-
जैन दर्शन नौ सच्चाइयों की शिक्षा देता है। ये सच्चाइयाँ हैं—

  1. जीव-जैन दर्शन में आत्मा को जीव कहा गया है। यह चेतन सुरूप है। यह शरीर के कर्मों के अच्छे-बुरे फल भुगतता है और आवागमन के चक्र में पड़ता है।
  2. अजीव-यह जंतु पदार्थ है। यह निर्जीव है और इनमें समझ नहीं होती। इनकी दो श्रेणियाँ हैं रूपी और अरूपी।
  3. पुण्य-यह अच्छे कर्मों का नतीजा है। इसके नौ साधन हैं।
  4. पाप-यह जीव के बंधन का मुख्य कारण है। इसके परिणामस्वरूप घोर सजायें मिलती हैं।
  5. अशर्व-यह वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है। कर्म 8 किस्मों के होते हैं।
  6. संवर-कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को संवर कहते हैं। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं।
  7. बंध-इससे भाव बंधन है। यह जीव (आत्मा) का पुदगल (परमाणु) से मेल है। बंध के लिए पाँच कारण जिम्मेवार हैं।
  8. निर्जर-इस से भाव है दूर भगाना। यह कर्मों को नष्ट करने और जल देने का कार्य करता है।
  9. मोक्ष-इसमें जीव कर्मों के जंजाल से मुक्त हो जाता है। यह पूर्ण शाँति की अवस्था है जिसमें हर तरह के दुःखों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 21.
जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Karma Theory in Jain Philosophy ?)
अथवा
जैन धर्म का कार्य सिद्धांत के बारे में क्या विचार है ? (What is meant by Karma Theory of Jainism ?)
उत्तर-
जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस सिद्धांत के अनुसार, “जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे, यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा, किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा।” जैसे ही हमारे मन में कोई अच्छा या बुरा विचार आता है वह तुरंत जीव (आत्मा) से उसी तरह जुड़ जाता है, जैसे तेल लगे हुए शरीर से धूलि कण चिपक जाते हैं। ये कर्म आठ प्रकार के हैं-

  1. ज्ञानवर्णीय कर्म- यह आत्मा के ज्ञान को रोकते हैं।
  2. दर्शनवीय कर्म- यह आत्मा की इच्छा शक्ति को रोकते हैं।
  3. वैदनीय कर्म-ये सुख-दुःख उत्पन्न करने वाले कर्म हैं।
  4. मोहनीय कर्म-ये आत्मा को मोह माया में फंसाने वाले कर्म हैं।
  5. आयु कर्म-ये कर्म मनुष्य की आयु को निर्धारित करते हैं।
  6. नाम कर्म-ये कर्म मनुष्य के व्यक्तित्व को निर्धारित करते हैं।
  7. गोत्र कर्म-ये व्यक्ति के गोत्र और समाज में उसके ऊँचे या नीचे स्थान को निर्धारित करते हैं।
  8. अंतरीय कर्म-ये अच्छे कर्म को रोकने वाले कर्म हैं।

प्रश्न 22.
जैन धर्म में जीव एवं अजीव से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Jiva and Ajiva in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में जीव से क्या अभिप्राय है?
(What is meant by Jiva in Jainism ?)
उत्तर-
1. जीव-जीव शब्द का अर्थ है आत्मा। यह चेतन तथ्य है। जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के हैं। इनको सांसारिक जीव और मुक्त जीव कहा जाता है। सांसारिक जीव को बंधन जीव भी कहते हैं। यह जीव आवागमन के चक्र में रहता है और अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और अपने अच्छे बुरे फल भुगतता है। मुक्त जीव वह जीव है जो पुनर्जन्म से रहित है। यह जीव अनंत ज्ञान वाला, अनंत शक्ति वाला और अनंत गुणों वाला होता है। यह जीव कर्मों के जाल से मुक्त होता है।

2. अजीव-अजीव से भाव उन जड़ पदार्थों से है जिनमें चेतना नहीं होती जैसे पुस्तक, कागज़, मेज़ और स्याही आदि। उदाहरण के तौर पर ऊँट के शरीर में जीव फैल कर ऊँट जितना बड़ा हो जाता है और कीड़ी के शरीर में सिकुड़ कर कीड़ी जितना हो जाता है । यह जीव तब नहीं दिखाई देता है परंतु शरीर की क्रियाओं के आधार पर इसकी उपस्थिति का ज्ञान हो जाता है। परंतु जब शरीर का अंत हो जाता है तो जीव लोप हो जाता है। जीव जिस शरीर को धारण करता है वह उस के आकार का ही हो जाता हैं।

प्रश्न 23.
जैन धर्म में पाप एवं पुण्य से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Papa and Punya in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में पाप से क्या अभिप्राय है ?
(What is meant by Paap in the Jainism ?)
उत्तर-
1. पाप-पाप को जीव के बंधन का मुख्य कारण माना जाता है। जीवों को मारना, झूठ, चोरी, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, धोखा, नशा और दुश्मनी आदि सब पापों के भार में वृद्धि करते हैं। पापियों को घोर सजायें मिलती हैं। आपने देखा होगा कि एक ही घर में पैदा हुए दो सगे भाइयों के जीवन में भारी अंतर होता है। एक ऊँची पदवी पर सुशोभित होता है और उसको प्रसिद्धि प्राप्त होती है। दूसरा दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है, चोरियाँ करता है और बदनामी कमाता है। ऐसा क्यों होता है ? जैन दर्शन के अनुसार ऐसा व्यक्ति के पुण्य और पाप कमाने का कारण होता है। पापी मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता और उसको अपने जीवन में घोर संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा भी तड़पती रहती है। जैन सूत्रों के अनुसार पापों के 82 अलगअलग परिणाम निकलते हैं।

2. पुण्य-पुण्य वह कर्म है जो अच्छे अमलों से कमाये जाते हैं। पुण्य कमाने के अलग-अलग ढंग हैं। भूखे को खाना देना, प्यासे को पानी पिलाना, नंगे को कपड़ा देना, हाथों से सेवा करनी, मीठा बोलना आदि पुण्य के काम हैं, पुण्य को मानने के 42 साधन हैं। अच्छी सेहत, आर्थिक समृद्धि, प्रसिद्धि, अच्छा वैवाहिक जीवन, अच्छे रिश्तेदारों और दोस्तों का मिलना, अच्छी पढ़ाई और उच्च पदवियों पर नियुक्ति आदि अच्छे पुण्यों का ही नतीजा है। पुण्य को आत्मा का सहायक माना जाता है क्योंकि इससे खुशी प्राप्त होती है।

प्रश्न 24.
महावीर जी की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Mahavira’s teachings in the life of a common man ?)
उत्तर-
महावीर जी की शिक्षाएँ साधारण मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण थीं। उस समय हिंदू धर्म में जाति प्रथा बहुत कठोर हो गई थी। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से घृणा करते थे। भगवान महावीर ने अपने धर्म में _बिना किसी भेद-भाव के प्रत्येक वर्ग के लोगों को शामिल किया। इससे समाज में प्रचलित परस्पर घृणा बहुत सीमा तक दूर हुई और लोगों में परस्पर बंधुत्व एवं प्रेम-भाव बढ़ गया। महावीर जो ने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। साधारण लोग भी इन परंपराओं के विरुद्ध थे। इसलिए उनके हृदयों पर महावीर जी की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। महावीर जी की अहिंसा नीति के कारण लोगों को युद्ध से घृणा हो गई और वे शाँति को पसंद करने लगा। महावीर जी ने लोगों को समाज सेवा का उपदेश दिया। परिणामस्वरूप जैन मत वालों ने लोगों की सहायता के लिए बहुत-सी धर्मशालाएँ बनवाईं। शिक्षा प्रचार के लिए शिक्षा संस्थाएँ और मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा के लिए अस्पताल खोले।

प्रश्न 25.
महावीर की शिक्षा के अनुसार एक जैन भिक्षु को कैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता था ?
(What type of life a Jain monk had to lead according to the teachings of Mahavira ?)
उत्तर-
महावीर की शिक्षा के अनुसार जैन भिक्षुओं को बहुत स्वच्छ जीवन व्यतीत करना पड़ता था। प्रत्येक भिक्षु को पाँच प्रतिज्ञाओं की पालना करनी पड़ती थी।

  1. प्रत्येक भिक्षु को सदैव सत्य बोलना चाहिए।
  2. उसको अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए।
  3. उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो।
  4. उसको अपने पास धन नहीं रखना चाहिए।
  5. उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

इनके अतिरिक्त भिक्षु के लिए आवश्यक था कि उनकी वेश-भूषा और खाना-पीना बिल्कुल सादा हो। उनके लिए छाता और सुगंध देने वाली वस्तुओं के प्रयोग करने पर प्रतिबंध था। भिक्षु के लिए किसी स्त्री से बातचीत करने पर भी प्रतिबंध था। उनको सदैव मीठे वचन बोलने के लिए कहा गया था जिससे किसी को दुःख न पहुँचे। उनको इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता था कि उनके चलने से या खान-पीने में किसी जीव की हत्या न हो।

प्रश्न 26.
दिगंबर और श्वेतांबर पर एक नोट लिखें। (Write a note on Digambara and Svetambara.)
अथवा
दिगंबर तथा श्वेतांबर से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you understand by Digambara and Svetambara ?)
उत्तर-
जैन धर्म के सभी संप्रदायों में से दिगंबर तथा श्वेतांबर संप्रदायों को प्रमुख स्थान प्राप्त है। दिगंबर से अभिप्राय था नग्न रहने वाले तथा श्वेतांबर से अभिप्राय था श्वेत (सफ़ेद) वस्त्र धारण करने वाले। इन दोनों संप्रदायों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित अनुसार थे—

  1. दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी नग्न रहते हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के अनुयायी सफ़ेद वस्त्र धारण करते हैं।
  2. दिगंबर संप्रदाय स्त्रियों को जैन संघ में सम्मिलित होने की आज्ञा नहीं देता जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वाले ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाते।
  3. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियां तब एक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेतीं। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कथन है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  4. दिगंबर संप्रदाय वालों का यह कथन है कि स्वामी महावीर जी ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वालों का यह कथन है कि स्वामी महावीर जी ने विवाह करवाया था तथा उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम प्रियदर्शना था।
  5. दिगंबर संप्रदाय वालों का कथन है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  6. दिगंबर तथा श्वेतांबर संप्रदायों का साहित्य भी अलग-अलग है।
  7. दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को वस्त्र पहनाए जाते हैं तथा उन्हें गहनों से सुसज्जित किया जाता है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 27.
जैन धर्म भारत में लोकप्रिय क्यों नहीं हो सका ? (Why could not Jainism become popular in India ?)
उत्तर-
जैन धर्म की शिक्षाएँ यद्यपि सरल थीं, परंतु कई कारणों से यह धर्म लोगों में लोकप्रिय न हो सका। पहला, जैन धर्म वालों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया। किसी भी धर्म की सफलता के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक होता है। दूसरा, जैन धर्म को बौद्ध धर्म की भाँति राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हो सका। यह सही है कि बिंबिसार, अजातशत्रु और खारवेल जैसे शासकों ने जैन धर्म को अपना संरक्षण दिया, परंतु वे बौद्ध धर्म की भाँति जैन धर्म को प्रगति के शिखर तक पहुँचाने में विफल रहे। तीसरा, जैन धर्म वाले कठोर तप, शरीर को अत्यधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। इसके अतिरिक्त उनका अहिंसा में आवश्यकता से अधिक विश्वास था। वे मुँह पर पट्टी बाँधते थे, नंगे पाँव चलते थे और पानी छान कर पीते थे ताकि किसी जीव की मृत्यु न हो जाए। वे वृक्षों और पत्थरों को भी प्राणवान् मानते थे। इसलिए इन्हें कष्ट देना भी पाप समझा जाता था। वे बीमार पड़ने पर औषधि का भी प्रयोग नहीं करते थे। जन सामान्य के लिए इन नियमों का पालन करना बहुत कठिन था। चौथा, जैन धर्म के लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी था कि उस समय बौद्ध धर्म के सिद्धांत भी बहुत सरल थे। परिणामस्वरूप लोगों ने जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को अपनाना आरंभ कर दिया। पाँचवां, समय के साथ-साथ जैन लोगों ने हिंदू धर्म के कई सिद्धांतों को अपना लिया। परिणामस्वरूप वे अपने अलग अस्तित्व को न बनाए रख सके।

प्रश्न 28.
जैन स्रोत। (The Jaina Sources.)
उत्तर-
जैन स्रोत प्राचीन भारत के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। जैनियों ने अनेक ग्रंथों की रचना की। ये ग्रंथ प्राकृत अथवा अर्द्ध मगधी जो उस समय लोगों की बोलचाल की आम भाषा थी में लिखे गए हैं। जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंशों को सबसे महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र समझ जाता है। इनमें महावीर के जीवन तथा जैन धर्म के सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है। जैन धर्म के 12 उपांग भी हैं। इनमें अधिकाँश मिथिहासिक कथाओं का वर्णन मिलता है। जैन धर्म के 10 प्राकिरणों से महावीर के जीवन एवं उसके उपदेशों संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 6 छेदसूत्रों में जैन भिक्षु एवं भिक्षुणियों के नियमों का वर्णन किया गया है। जैनी साहित्य में 4 मूलसूत्रों को बहुमूल्य समझा जाता है। इनसे जैन धर्म से संबंधित कथाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।

प्रश्न 29.
जैन मत की भारतीय सभ्यता को क्या देन है ? (What is the legacy of Jainism to the Indian Civilization ?)
उत्तर-
जैन मत ने भारतीय सभ्यता को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य देन दी। महावीर ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने धर्म में प्रत्येक जाति से संबंधित लोगों को शामिल किया। उन्होंने परस्पर भ्रातृत्व तथा समानता का प्रचार किया। परिणामस्वरूप समाज में फैली घृणा को काफ़ी सीमा तक दूर किया जा सका। जैन मत ने लोगों को सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। इसके प्रयत्नों के कारण लोगों में फैले बहुत-से धार्मिक अंध-विश्वासों का अंत हो गया। जैन धर्म की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को देख कर हिंदू धर्म के नेताओं ने इसमें आवश्यक सुधार किए। जैन धर्म के विद्वानों ने अनेक भाषाओं में अपने ग्रंथ लिखे। इस कारण क्षेत्रीय भाषाओं को उत्साह मिला। ये ग्रंथ भारतीय इतिहास के बहुमूल्य स्रोत हैं। जैनियों ने अनेक प्रभावशाली तथा प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इस कारण भारतीय भवन निर्माण कला को एक नया उत्साह मिला। जैन धर्म ने लोगों के कल्याण के लिए अनेक धर्मशालाएँ, शौक्षिक संस्थाएँ तथा अस्पतालों आदि की स्थापना की जो आज भी जारी हैं। जैन धर्म ने शाँति का संदेश दिया। यह युद्धों के विरुद्ध था। इसका भारतीय राजनीति पर बुरा प्रभाव पड़ा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. ‘जैन’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-विजेता।

प्रश्न 2. जैन धर्म को आरंभ में क्या नाम दिया गया था ?
उत्तर-निग्रंथ।

प्रश्न 3. निग्रंथ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-बंधनों से मुक्त।

प्रश्न 4. जैन आचार्यों को किस अन्य नाम से जाना जाता था ?
उत्तर-तीर्थंकर।

प्रश्न 5. तीर्थंकर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-संसार के भवसागर से पार कराने वाला गुरु।

प्रश्न 6. जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए हैं ?
उत्तर-24 तीर्थंकर।।

प्रश्न 7. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का क्या नाम था ?
अथवा
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम बताओ।
उत्तर-ऋषभदेव।

प्रश्न 8. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर-पार्श्वनाथ।

प्रश्न 9. स्वामी पार्श्वनाथ जैन धर्म के कौन-से तीर्थंकर थे ?
उत्तर-23वें।

प्रश्न 10. स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-बनारस में।

प्रश्न 11. स्वामी पार्श्वनाथ के पिता जी कौन थे ?
उत्तर- बनारस के राजा अश्वसेन।

प्रश्न 12. स्वामी पार्श्वनाथ ने जब अपना घर त्याग दिया उस समय उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 13. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर-83 दिनों के।

प्रश्न 14. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया ?
उत्तर-स्वामी पार्श्वनाथ ने चार सिद्धांतों का प्रचलन किया।

प्रश्न 15. स्वामी पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-चातुर्याम।

प्रश्न 16. स्वामी पार्श्वनाथ का कोई एक सिद्धांत बताएँ।
उत्तर-कभी झूठ न बोलो।

प्रश्न 17. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने वर्ष प्रचार किया ?
उत्तर-स्वामी पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष प्रचार किया।

प्रश्न 18. स्वामी पार्श्वनाथ ने कब निर्वाण प्राप्त किया?
उत्तर-777 ई० पू०।

प्रश्न 19. जैन धर्म का संस्थापक कौन था और वह कितना तीर्थंकर था ?
उत्तर-जैन धर्म का संस्थापक स्वामी महावीर था और वह 24वां तीर्थंकर था।

प्रश्न 20. जैन धर्म का अंतिम तीर्थंकर कौन था ?
अथवा
जैन धर्म का 24वां तीर्थंकर कौन था ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी।

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प्रश्न 21. जैन धर्म के पहले व आखिरी तीर्थंकर का नाम बताएँ।
उत्तर-जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम ऋषभदेव था तथा आखिरी तीर्थंकर का नाम स्वामी महावीर था।

प्रश्न 22. स्वामी महावीर जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-599 ई० पू० कुंडग्राम में।

प्रश्न 23. स्वामी महावीर जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर-कुंडग्राम में।

प्रश्न 24. स्वामी महावीर जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-सिद्धार्थ।

प्रश्न 25. स्वामी महावीर जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-त्रिशला।

प्रश्न 26. भगवान् महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता को कितने स्वप्न आए थे ?
उत्तर-14.

प्रश्न 27. स्वामी महावीर जी का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-वर्धमान।

प्रश्न 28. स्वामी महावीर जी का संबंध किस कबीले के साथ था ?
उत्तर-जनत्रिका।

प्रश्न 29. स्वामी महावीर जी का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर-यशोदा से।

प्रश्न 30. स्वामी महावीर जी की पुत्री का क्या नाम था ?
उत्तर-प्रियदर्शना।

प्रश्न 31. घर त्याग के समय स्वामी महावीर जी की आयु कितनी थी?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 32. स्वामी महावीर जी ने कितने वर्षों तक कठोर तप किया ?
उत्तर-12 वर्ष।

प्रश्न 33. स्वामी महावीर जी ने कौन-सी आयु में ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर-42 वर्ष की।

प्रश्न 34. कैवल्य ज्ञान से क्या भाव है ?
उत्तर-सर्वोच्च सत्य।

प्रश्न 35. स्वामी महावीर जी ने कितने वर्षों तक प्रचार किया ?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 36. स्वामी महावीर जी के कोई दो प्रसिद्ध प्रचार केंद्रों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. राजगृह
  2. वैशाली।

प्रश्न 37. स्वामी महावीर जी ने कब निर्वाण प्राप्त किया?
उत्तर-527 ई० पू०।

प्रश्न 38. स्वामी महावीर जी ने कहाँ निर्वाण प्राप्त किया था ?
उत्तर-पावा में।

प्रश्न 39. स्वामी महावीर जी ने जब निर्वाण प्राप्त किया तब उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर-72 वर्ष।

प्रश्न 40. जैन धर्म की बुनियादी कीमतें किसने निर्धारित की ?
उत्तर-स्वामी महाबीर जी ने।

प्रश्न 41. जैन धर्म की कोई एक प्रमुख शिक्षा बताएँ।
उत्तर-जैन धर्म अहिंसा में विश्वास रखता था।

प्रश्न 42. त्रिरत्न किस धर्म के साथ संबंधित है ?
उत्तर-जैन धर्म के साथ।

प्रश्न 43. जैन धर्म के तीन रत्न कौन-से हैं ?
अथवा
जैन धर्म के त्रिरत्नों के नाम बताएँ।
अथवा
जैन धर्म के तीन रत्न क्या हैं ?
उत्तर-

  1. सत्य-श्रद्धा
  2. सत्य-ज्ञान
  3. सत्य-आचरण।

प्रश्न 44. जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का सिद्धांत किसने प्रचलित किया ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी ने।

प्रश्न 45. जैन धर्म दर्शन में कितने तत्त्व माने गए हैं ?
उत्तर-9.

प्रश्न 46. जैन धर्म की कोई दो सच्चाइयाँ बताएँ।
उत्तर-

  1. पाप
  2. पुण्य।

प्रश्न 47. जैन दर्शन में आत्मा को क्या कहा गया है ?
उत्तर-जीव।

प्रश्न 48. जैन दर्शन में अजीव की कौन-सी दो श्रेणियाँ हैं ?
उत्तर-

  1. रूपी
  2. अरूपी

प्रश्न 49. जैन दर्शन में कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को क्या कहते हैं ?
उत्तर-संवर।

प्रश्न 50. जैन धर्म में अशर्व के क्या अर्थ है ?
उत्तर-वह प्रक्रिया जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है।

प्रश्न 51. जैन धर्म में पुदगल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-परमाणु।

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प्रश्न 52. जैन धर्म के अनुसार कर्म कितनी प्रकार के हैं ?
उत्तर-8 प्रकार के।

प्रश्न 53. जैन धर्म के किसी एक प्रकार के कर्म का नाम बताएँ।
उत्तर-ज्ञानवर्णनीय कर्म।

प्रश्न 54. जैन धर्म में जीव से क्या भाव है ?
उत्तर-आत्मा।

प्रश्न 55. जैन धर्म में अजीव से क्या भाव है ?
उत्तर-जड़ पदार्थ।

प्रश्न 56. जैन दर्शन में कितनी प्रकार की हिंसा का वर्णन मिलता है ?
उत्तर-108 प्रकार की।

प्रश्न 57. जैन दर्शन में पुण्य को मानने के कितने साधन हैं ?
उत्तर-42.

प्रश्न 58. जैन दर्शन के अनुसार पाप के कितनी प्रकार के परिणाम निकलते हैं ?
उत्तर-82 प्रकार के।

प्रश्न 59. अनेकांतवाद का सिद्धांत किस धर्म के साथ संबंधित है ?
उत्तर-जैन धर्म के साथ।

प्रश्न 60. जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में कितने अणुव्रतों की पालना करनी चाहिए ?
उत्तर-पाँच अणुव्रतों की।

प्रश्न 61. जैन धर्म में निर्वाण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-आवागमन के चक्र से मुक्ति।

प्रश्न 62. जैन धर्म को नास्तिक धर्म क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-क्योंकि यह धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता।

प्रश्न 63. अजीविक संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-गौशाल।

प्रश्न 64. अजीविक संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांत क्या था ?
उत्तर-इस संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांत नियति (किस्मत) था।

प्रश्न 65. जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय कौन-से हैं ?
उत्तर-जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदायों के नाम दिगंबर एवं श्वेतांबर है।

प्रश्न 66. दिगंबर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-दिगंबर से अभिप्राय है नग्न रहने वाला।

प्रश्न 67. श्वेतांबर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-श्वेतांबर से अभिप्राय है श्वेत वस्त्र धारण करने वाला।

प्रश्न 68. लोंक सा कौन था ?
उत्तर-लोक सा लोंक संप्रदाय का मुखिया था।

प्रश्न 69. स्थानकवासी संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-वीराजी।

प्रश्न 70. तेरा पंथ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-भीखनजी।

प्रश्न 71. जैन संघ में कितनी तरह के लोग शामिल होते हैं ?
उत्तर-चार तरह के।

प्रश्न 72. जैन संघ में किन्हें सम्मिलित होने की आज्ञा नहीं थी ?
उत्तर- अधर्मी व्यक्तियों को।

प्रश्न 73. जैन धर्म में सम्मिलित होने वाले स्त्री एवं पुरुषों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-

  1. भिक्षुणियाँ
  2. भिक्षु।

प्रश्न 74. जैन धर्म ग्रंथों की भाषा क्या है ?
उत्तर-प्राकृत अथवा अर्ध मगधी।

प्रश्न 75. जैन धर्म में सर्वाधिक पवित्र पुस्तकें कौन-सी हैं ?
उत्तर-12 अंग।

प्रश्न 76. जैन धर्म के किसी एक अंग का नाम बताएँ।
उत्तर-आचारांग सूत्र।

प्रश्न 77. जैन धर्म के किस ग्रंथ में जैन भिक्षुओं से संबंधित नियम दिए गए हैं ?
उत्तर-आचारांग सूत्र में।

प्रश्न 78. जैन धर्म में कितने उपांग हैं ?
उत्तर-12 उपांग।

प्रश्न 79. कल्पसूत्र की रचना किसने की थी ?
उत्तर-भद्रबाहू ने।

प्रश्न 80. कल्पसूत्र का विषय क्या है ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी का जीवन।

प्रश्न 81. जैन धर्म में कितने छेदसूत्र हैं ?
उत्तर-जैन धर्म में 6 छेदसूत्र हैं।

प्रश्न 82. जैन धर्म से संबंधित मूलसूत्र कितने हैं ?
उत्तर-4.

प्रश्न 83. जैन धर्म के दिगंबर से संबंधित कितनी पुस्तकें उपलब्ध हैं ?
उत्तर-4.

प्रश्न 84. दिगंबर संप्रदाय से संबंधित एक पुस्तक का नाम बताएँ।
उत्तर-पर्थमानु योग।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1. जैन धर्म को आरंभ में ………….. के नाम से जाना जाता था।
उत्तर-निग्रंथ

प्रश्न 2. जैन धर्म में कुल ………. तीर्थंकर थे।।
उत्तर-24

प्रश्न 3. जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम ………… था।
उत्तर-ऋषभनाथ

प्रश्न 4. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर …………… थे।
उत्तर- पार्श्वनाथ

प्रश्न 5. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर …………… थे।
उत्तर-स्वामी महावीर

प्रश्न 6. स्वामी महावीर का जन्म ……….. में हुआ।
उत्तर-599 ई०पू०

प्रश्न 7. स्वामी महावीर की माता जी का नाम ………. था।
उत्तर-त्रिशला

प्रश्न 8. स्वामी महावीर के जन्म से पहले उनकी माता जी को ………… स्वप्न आए थे।
उत्तर-14

प्रश्न 9. स्वामी महावीर जी की पुत्री का नाम ………. था।
उत्तर-प्रियदर्शना

प्रश्न 10. ज्ञान प्राप्ति के समय स्वामी महावीर जी की आयु ………. थी।
उत्तर-42 वर्ष

प्रश्न 11. स्वामी महावीर जी ने ………. में निर्वाण प्राप्त किया।
उत्तर-527 ई० पू०

प्रश्न 12. जैन धर्म ……….. रत्नों में विश्वास रखता है।
उत्तर-तीन

प्रश्न 13. जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का सिद्धांत ………. ने प्रचलित किया।
उत्तर-स्वामी महावीर

प्रश्न 14. जैन धर्म ………… सच्चाइयों में विश्वास रखता है।
उत्तर-नौ

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 15. जैन धर्म के अनुसार ………. वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने आंतरिक कर्मों को संचित करती रहती है।
उत्तर-अशर्व

प्रश्न 16. जैन धर्म ………. प्रकार के कर्मों में विश्वास रखता है।
उत्तर-आठ

प्रश्न 17. अनेकांतवाद को ………… के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-स्यादवाद

प्रश्न 18. जैन धर्म ………… महाव्रतों में विश्वास रखता है।
उत्तर-पाँच

प्रश्न 19. जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च उद्वेश्य …………. प्राप्त करना है।
उत्तर-निर्वाण

प्रश्न 20. जैन धर्म के अनुसार पुदगल से भाव ……….. है।
उत्तर-परमाणु

प्रश्न 21. अजीविक संप्रदाय का संस्थापक ………… था।
उत्तर-गौशाल

प्रश्न 22. अजीविक संप्रदाय ……….. के सिद्धांत में विश्वास रखता था।
उत्तर-नियति

प्रश्न 23. ………. संप्रदाय वाले श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
उत्तर-श्वेतांबर

प्रश्न 24. लोक संप्रदाय का संस्थापक ………. था।
उत्तर-लोक सा

प्रश्न 25. तेरा पंथ संप्रदाय का संस्थापक ……….. था।
उत्तर-भीखनजी

प्रश्न 26. जैन धर्म का संस्थापक ……….. कहलाता था।
उत्तर-आचार्य

प्रश्न 27. जैन धर्म ………… अंगों में विश्वास रखता है।
उत्तर-12

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1. जैन धर्म कुल 20 तीर्थंकरों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 2. जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम विमल था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 3. स्वामी पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 4. स्वामी पार्श्वनाथ को 23 दिनों के कठिन तप के पश्चात् ज्ञान प्राप्त हुआ था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 5. स्वामी पार्श्वनाथ की शिक्षा को चातुरयाम कहते हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 6. स्वामी महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 7. स्वामी महावीर का जन्म 567 ई०पू० में हुआ था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 8. स्वामी महावीर जी के बचपन का नाम वर्धमान था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 9. स्वामी महावीर जी की माता का नाम महामाया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 10. ज्ञान प्राप्ति के समय स्वामी महावीर जी की उनकी आयु 42 वर्ष थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 11. स्वामी महावीर जी ने पावा में निर्वाण प्राप्त किया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 12. जैन धर्म त्रि-रत्नों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 13. जैन धर्म अहिंसा में विश्वास नहीं रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 14. जैन धर्म के अनुसार तत्व नौ प्रकार के हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 15. जैन धर्म तीन प्रकार के कर्मों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 16. जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में पाँच अनुव्रतों की पालना करनी चाहिए।
उत्तर-ठीक

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 17. जैन धर्म के अनुसार मानवीय जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 18. जैन धर्म के अनुसार सच्चा विश्वास सच्चे ज्ञान की आधारशिला है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 19. जैन धर्म के अनुसार ज्ञान पाँच प्रकार का होता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 20. जैन धर्म के अनुसार हिंसा आठ प्रकार की होती है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 21. जैन धर्म में जीव शब्द का अर्थ है ‘आत्मा’।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 22. जैन धर्म के अनुसार पुण्य प्राप्त करने के 42 साधन हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 23. जैन धर्म के अनुसार कर्म को रोकने की 57 विधियां हैं। .
उत्तर-ठीक

प्रश्न 24. जैन धर्म चार महाव्रतों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 25. अजीविक संप्रदाय किस्मत के सिद्धांत में विश्वास रखता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 26. तारना संप्रदाय का संस्थापक भीखनजी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 27. स्थानकवासी संप्रदाय का संस्थापक वीराजी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 28. जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंगों को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
उत्तर-ठीक

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चनें—

प्रश्न 1.
जैन धर्म कुल कितने तीर्थंकरों में विश्वास रखता है ?
(i) 20
(ii) 23
(iii) 24
(iv) 25
उत्तर-
(iii) 24

प्रश्न 2.
जैन धर्म का पहला तीर्थंकर कौन था ?
(i) पार्श्वनाथ
(ii) महावीर
(iii) विमल
(iv) ऋषभनाथ।
उत्तर-
(iv) ऋषभनाथ।

प्रश्न 3.
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर कौन थे ?
(i) विमल
(ii) अनंत
(iii) ऋषभनाथ
(iv) पार्श्वनाथ।
उत्तर-
(iv) पार्श्वनाथ।

प्रश्न 4.
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे ?
(i) अभिनंदन
(ii) महावीर
(iii) पुष्पदंत
(iv) अजित।
उत्तर-
(ii) महावीर

प्रश्न 5.
स्वामी महावीर जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 566 ई० पू०
(ii) 567 ई० पू०
(iii) 569 ई० पू०
(iv) 599 ई० पू०।
उत्तर-
(iv) 599 ई० पू०।

प्रश्न 6.
स्वामी महावीर जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) लुंबिनी में
(ii) कुंडग्राम में
(iii) कुशीनगर में
(iv) कपिलवस्तु में।
उत्तर-
(ii) कुंडग्राम में

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 7.
स्वामी महावीर जी के पिता जी का नाम क्या था ?
(i) सिद्धार्थ
(ii) राहुल
(iii) वर्धमान
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i) सिद्धार्थ

प्रश्न 8.
स्वामी महावीर जी की माता जी का नाम क्या था ?
(i) त्रिशला
(ii) यशोधरा
(iii) महामाया
(iv) प्रजापति गौतमी।
उत्तर-
(i) त्रिशला

प्रश्न 9.
स्वामी महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता जी को कितने स्वप्न आए थे ?
(i) 8
(ii) 10
(iii) 12
(iv) 14.
उत्तर-
(iv) 14.

प्रश्न 10.
स्वामी महावीर जी के बचपन का नाम क्या था ?
(i) वर्धमान
(ii) सिद्धार्थ
(ii) राहुल
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i) वर्धमान

प्रश्न 11.
स्वामी महावीर जी की ज्ञान प्राप्ति के समय उनकी आयु कितनी थी ?
(i) 20 वर्ष
(ii) 30 वर्ष
(iii) 35 वर्ष
(iv) 42 वर्ष।
उत्तर-
(iv) 42 वर्ष।

प्रश्न 12.
स्वामी महावीर जी को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई थी ?
(i) जरिमबिक गाँव
(ii) बौद्ध गया
(ii) वैशाली
(iv) कुंडग्राम।
उत्तर-
(i) जरिमबिक गाँव

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में कौन-सा स्वामी महावीर जी का प्रचार केंद्र नहीं था ?
(i) राजगृह
(ii) वैशाली
(iii) अंग
(iv) पुरुषपुर।
उत्तर-
(iv) पुरुषपुर।

प्रश्न 14.
स्वामी महावीर जी को कहाँ निर्वाण प्राप्त हुआ था ?
(i) विदेह
(ii) अंग
(iii) राजगृह
(iv) पावा।
उत्तर-
(iv) पावा।

प्रश्न 15.
स्वामी महावीर जी की निर्वाण प्राप्ति के समय उनकी आयु कितनी थी ?
(i) 60 वर्ष
(ii) 62 वर्ष
(iii) 72 वर्ष
(iv) 80 वर्ष।
उत्तर-
(iii) 72 वर्ष

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म त्रि-रत्नों में विश्वास रखता था ?
(i) बौद्ध धर्म
(ii) जैन धर्म
(iii) ईसाई धर्म
(iv) पारसी धर्म।
उत्तर-
(ii) जैन धर्म

प्रश्न 17.
जैन धर्म कितनी सच्चाइयों में विश्वास रखता है ?
(i) 3
(i) 5
(iii) 7
(iv) 9.
उत्तर-
(iv) 9.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 18.
जैन धर्म जीव के बंधन का मुख्य कारण किसे मानते हैं ?
(i) पाप
(ii) पुण्य
(iii) मोक्ष
(iv) अजीव।
उत्तर-
(i) पाप

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से कौन-सी स्वामी महावीर जी की शिक्षा नहीं है ?
(i) वह अहिंसा में विश्वास रखते थे
(ii) वह कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे ।
(iii) वह समानता में विश्वास रखते थे
(iv) वह ईश्वर में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
(iv) वह ईश्वर में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 20.
जैन धर्म कितने अनुव्रतों में विश्वास रखता है ?
(i) 3
(ii) 5
(iii) 7
(iv) 9.
उत्तर-
(ii) 5

प्रश्न 21.
जैन धर्म के अनुसार हिंसा कितने प्रकार की होती है ?
(i) 2
(ii) 3
(iii) 4
(iv) 5.
उत्तर-
(i) 2

प्रश्न 22.
कौन-सा तत्व जीव और पुदगल के मध्य गति पैदा करता है ?
(i) पुदगल
(ii) धर्म
(iii) अधर्म
(iv) पाप।
उत्तर-
(ii) धर्म

प्रश्न 23.
अजीविक संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
(i) गोशाल
(ii) स्वामी महावीर
(iii) वीराजी
(iv) भीखनजी।
उत्तर-
(i) गोशाल

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन जैन धर्म के साथ संबंधित संप्रदाय नहीं हैं ?
(i) दिगंबर
(ii) श्वेतांबर
(iii) लोंक
(iv) महायान।
उत्तर-
(iv) महायान।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म जैन धर्म के साथ संबंधित नहीं है ?
(i) दीपवंश
(ii) कल्पसूत्र
(iii) भगवती सूत्र
(iv) आचारंग सूत्र।
उत्तर-
(i) दीपवंश

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा जंगली जीवन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 1a भारत : आकार व स्थिति Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 1a भारत : आकार व स्थिति

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : आकार व स्थिति Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखाचित्र में भरें(i) कुदरती वनस्पति के कोई 3 किस्म के क्षेत्र। (ii) किसी पांच राज्यों में राष्ट्रीय पार्क। (iii) पंजाब की सुरक्षित जलगाहें (पंजाब के रेखाचित्र में)।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
निम्न दी गई तस्वीरों में वृक्ष पहचान कर वनस्पति की प्रकार बताएं।
PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (1)
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र के 10 वृक्षों, 5 जानवरों तथा 5 पक्षियों की तस्वीरें चार्ट पर लगाकर नाम लिखें।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी स्वयं करें।

(ख) निम्न के उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में दें:

  1. पौधे ………. की ……….. से ………… विधि द्वारा अपना भोजन तैयार करते हैं।
  2. पंजाब का ………… फीसदी क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि ……….. वर्ग किलोमीटर है।
  3.  …………. मंडल में वनस्पति उगती है और ……… की प्रकार ……… पर असर डालती है।

उत्तर-

  1. सूर्य, किरणें, फोटोसिंथेसिस
  2. 6.07%, 3058.
  3. जीव, मिट्टी, वनस्पति।

प्रश्न 4.
पृथ्वी का वो कौन-सा मंडल है जिसमें जीवन है :
(i) वायु मंडल
(ii) थल मंडल
(iii) जल मंडल
(iv) जीव मंडल।
उत्तर-
(iv) जीव मंडल में।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-से जिले में सबसे अधिक वन मिलते हैं ?
(i) मानसा
(ii) रूपनगर
(iii) अमृतसर
(iv) बठिंडा।
उत्तर-
(ii) रूपनगर में।

प्रश्न 6.
चिंकारा कौन-से जानवर की प्रकार है ?
उत्तर-
चिंकारा एक छल्लेदार सींगों वाला हिरन है।

प्रश्न 7.
बीड़ क्या होती है ?
उत्तर-
कुछ क्षेत्रों में घनी वनस्पति होती थी तथा इसके छोटे बड़े टुकड़ों को बीड़ कहते हैं।

प्रश्न 8.
उप उष्ण झाड़ीदार वनस्पति में मिलती घास का नाम लिखें।
उत्तर-
यहां लंबी प्रकार का घास-सरकंडा मिलता है।

प्रश्न 9.
पंजाब के कुल क्षेत्रफल का कितने फीसदी क्षेत्र वनों के अधीन है ?
उत्तर-
6.07%.

प्रश्न 10.
झाड़ियां व कांटेदार वनस्पति वाले क्षेत्रों में कौन-से जानवर मिलते हैं ?
उत्तर-
यहां ऊंट, शेर, बब्बर शेर, खरगोश, चूहे इत्यादि मिलते हैं।

(ग) इन प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें :

प्रश्न 1.
फलोरा व फौना क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
किसी विशेष क्षेत्र में मिलने वाले पौधों के लिए फलोरा शब्द प्रयोग किया जाता है। उस क्षेत्र के पौधे उस क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी, वर्षा इत्यादि पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार किसी क्षेत्र में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियों को फौना कहा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियां भी अलग-अलग होती हैं।

प्रश्न 2.
वनों की रक्षा क्यों आवश्यक है, लिखें।
उत्तर-

  1. वन जलवायु पर नियंत्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अंदर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शांति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केंद्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार है। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोजा आदि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
सदाबहार वनों की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. सदाबहार वनों के सभी पत्ते एक साथ नहीं झड़ते तथा हमेशा हरे रहते हैं।
  2. यह वन गर्म तथा नमी वाले क्षेत्रों में मिलते हैं जहां पर 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
  3. सदाबहार वनों के पेड़ 60 मीटर या उससे ऊंचे भी जा सकते हैं।
  4. यह वन घने होने के कारण एक छतरी (Canopy) बना लेते हैं। जहां से कई बार तो सूर्य की किरणें धरातल तक नहीं पहुंच पातीं।
  5. पेड़ों के नीचे बहुत-से छोटे-छोटे पौधे उग जाते हैं तथा आपस में उलझ जाते हैं जिस कारण इनमें निकलना मुश्किल होता है।

प्रश्न 4.
पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति से जान-पहचान करवाएं।
उत्तर-
इस समय पंजाब के कुल क्षेत्रफल का केवल 6.07% हिस्सा ही वनों के अंतर्गत आता है। इसका काफी बड़ा भाग मनुष्यों द्वारा उगाया जा रहा है। पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति को कई भागों में बांटा जा सकता है

  1. हिमालय प्रकार की सीधी शीत उष्ण वनस्पति
  2. उपउष्ण झाड़ीदार पर्वतीय वनस्पति
  3. उपउष्ण झाड़ीदार वनस्पति वनस्पति
  4. उष्ण शुष्क पतझड़ी वनस्पति
  5. उष्ण कांटेदार वनस्पति।

प्रश्न 5.
आंवला, तुलसी तथा सिनकोना के क्या लाभ हो सकते हैं, लिखें।
उत्तर-

  1. आंवला-आंवला विटामिन सी से भरा होता है तथा यह व्यक्ति की पाचन शक्ति को ठीक करने में सहायता करता है। आंवला कब्ज, शूगर तथा खांसी को दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  2. तुलसी-अगर किसी को बुखार, खांसी या जुकाम हो जाए तो तुलसी काफी लाभदायक होती है।
  3. सिनकोना-सिनकोना के पौधे की छाल को कुनीन बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे मलेरिया ठीक करने के लिए दिया जाता है।

(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दें:

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति मानव समाज के फेफड़े होते हैं, कैसे ?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि प्राकृतिक वनस्पति मानवीय समाज के फेफड़े होते हैं। अग्रलिखित बिंदुओं से यह स्पष्ट हो जाएगा

  1. जंगल बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं तथा कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं। यह ऑक्सीजन जानवरों तथा मनुष्यों को जीवन देती है।
  2. जंगल पृथ्वी में मौजूद पानी के स्तर को ऊंचा करने में काफी सहायता करते हैं।
  3. जंगल के पेड़ों में मौजूद पानी सूर्य की गर्मी के कारण वाष्प बनकर उड़ता रहता है जो वायु के तापमान को कम करने में सहायता करता है।
  4. जंगलों में बहुत-से जीव रहते हैं तथा उन्हें भोजन तथा रहने का स्थान जंगल में ही मिलता है।
  5. हमारे वातावरण को सुंदर तथा स्वस्थ बनाने में भी जंगल काफी सहायक होते हैं।
  6. पवन की गति को कम करने, ध्वनि प्रदूषण को कम करने तथा सूर्य में चमक को कम करने में जंगल काफी सहायता करते हैं।
  7. वृक्ष की जड़ें मिट्टी के कणों को पकड़ कर रखती हैं जिस कारण जंगलों से भूमि क्षरण नहीं होती।
  8. वर्षा करवाने में भी जंगल काफी सहायक होते हैं।
  9. जंगलों से हम कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त करते हैं।
  10. जंगलों के कारण ही कई प्रकार के उद्योगों का विकास हो पाया है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति को कौन-से भौगोलिक तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत-सी भौगोलिक विभिन्नताएं होती हैं जिस कारण वहां की प्राकृतिक वनस्पति भी अलग-अलग होती है। इस कारण प्राकृतिक वनस्पति को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

  1. भूमि अथवा धरातल (Land on Relief)-किसी भी क्षेत्र की भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मैदानों, पर्वतों, डैल्टा इत्यादि की वनस्पति एक समान नहीं हो सकती। भूमि के स्वभाव का वनस्पति पर प्रभाव पड़ता है। ऊंचे पर्वतों पर लंबे वृक्ष मिलते हैं परंतु मैदानों पर पर्णपाती (Deciduous) वृक्ष मिलते हैं।
  2. मृदा (Soil)-मृदा पर ही वनस्पति पैदा होती है। अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की मिट्टी मिलती है, जो अलग-अलग प्रकार की वनस्पति का आधार है। जैसे कि मरुस्थल में रेतली मिट्टी मिलती है जिस कारण वहां पर कांटेदार झाड़ियां मिलती हैं। नदियों के डैल्टे पर बढ़िया प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। पर्वतों की ढलानों पर मिट्टी की परत गहरी होती है जिस कारण वहां पर लंबे पेड़ मिलते हैं।
  3. तापमान (Temperature) वनस्पति की विविधता तथा विशेषता तापमान तथा वायु की नमी पर निर्भर करती है। हिमालय पर्वत की ढलानों तथी दक्षिणी पठार के पर्वतों पर 915 मीटर की ऊंचाई से ऊपर तापमान में नयी वनस्पति के उगने तथा बढ़ने को प्रभावित करती है। इस कारण वहां की वनस्पति मैदानी क्षेत्रों से अलग होती है।
  4. सूर्य की रोशनी (Sunlight) किसी भी क्षेत्र में कितनी सूर्य की रोशनी आती है, इस पर भी वनस्पति निर्भर करती है। किसी भी स्थान पर कितनी सूर्य की रोशनी आएगी यह वहां की अक्षांश रेखाओं (Parallels of Latitudes) तथा भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र तल से ऊंचाई तथा ऋतु पर निर्भर करता है। गर्मियों में अधिक रोशनी मिलने के कारण वृक्ष तेजी से बढ़ते हैं।
  5. वर्षा (Rainfall)-जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है वहां पर सदाबहार वन मिलते हैं। वह घने भी होते हैं। परंतु वहां कम वर्षा होती है जहां पर पर्णपाती वन (Deciduous Forests) मिलते हैं। जहां पर बहुत ही कम वर्षा होती है, जैसे कि मरुस्थल, वहां पर जंगल भी काफी कम या न के समान होते हैं। इस प्रकार वर्षा की मात्रा पर भी वनस्पति का प्रकार निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
भारतीय जंगलों को जलवायु के आधार पर बांटें व वृक्षों के नाम भी लिखें।
उत्तर-
भारतीय जंगलों को जलवायु के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है जिसका वर्णन इस प्रकार है

  1. उष्ण सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)-इस प्रकार के वन मुख्य रूप से अधिक वर्षा (200 सें०मी० से अधिक) वाले भागों में मिलते हैं। इसलिए इन्हें बरसाती वन भी कहते हैं। ये वन अधिकतर पूर्वी हिमालय के तराई प्रदेश पश्चिमी घाट, पश्चिमी अंडमान, असम, बंगाल तथा ओडिशा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष महोगनी, ताड़, बांस, रबड़, चपलांस, मैचोलश तथा कदंब हैं।
  2. पतझड़ी अथवा मानसूनी वन (Tropical Deciduous or Monsoon Forests)-पतझड़ी या मानसूनी वन भारत के उन प्रदेशों में मिलते हैं जहां 100 से 200 सें.मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। भारत में ये मुख्य रूप से हिमालय के निचले भाग, छोटा नागपुर, गंगा की घाटी, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानों तथा तमिलनाडु क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष सागवान, साल, शीशम, आम, चंदन, महुआ, ऐबोनी, शहतूत तथा सेमल हैं। गर्मियों में ये वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहते हैं।
  3. झाड़ियां या कांटेदार जंगल (The Scrubs and Thorny Forest)-इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वार्षिक वर्षा का मध्यमान 20 से 60 सें० मी० तक होता है। भारत में ये वन राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिणपश्चिमी पंजाब और गुजरात में पाए जाते हैं। इन वनों में रामबांस, खैर, पीपल, बबूल, थोअर और खजूर के वृक्ष प्रमुख हैं।
  4. ज्वारीय वन (Tidal Forests)-ज्वारीय वन नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ होती है और पानी भी अधिक मात्रा में मिल जाता है। भारत में इस प्रकार के वन महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि के डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। यहां की वनस्पति को मैंग्रोव अथवा सुंदर वन भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में ताड़, कैंस, नारियल इत्यादि के वृक्ष भी मिलते हैं।
  5. पर्वतीय वन (Mountains Forests) – इस प्रकार को वनस्पति हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण में नीलगीर की पहाड़ियों पर पायी जाती हैं। इस वनस्पति में वर्षा की मात्रा तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ अंतर आता है। कम ऊंचाई पर सदाबहार वन पाये जाते हैं, तो अधिक ऊंचाई पर केवल घास तथा कुछ फूलदार पौधे ही मिलते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (2)

प्रश्न 4. पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति के वर्गीकरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर-पंजाब के अलग-अलग भागों में धरातल, जलवायु तथा मिट्टी की प्रकार अलग-अलग होने के कारण यहां अलग-अलग प्रकार की वनस्पति मिलती है तथा इनका वर्णन इस प्रकार है

1. हिमालय प्रकार की आर्द्र शीत-उष्ण वनस्पति (Himalayan Type Moist Temperate Vegetation)पंजाब के पठानकोट की धार कलां तहसील में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। पंजाब के इस हिस्से में वर्षा भी अधिक होती है तथा यह पंजाब के अन्य भागों से ऊंचाई पर भी स्थित है। यहां कई प्रकार के वृक्ष मिल जाते हैं जैसे कि कम ऊंचाई वाले चील के वृक्ष, शीशम, शहतूत, पहाड़ी बबूल, आम इत्यादि।

2. उप उष्ण चील वनस्पति (Sub Tropical Pine Vegetation)—पंजाब के कई जिलों की कई तहसीलों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है जैसे कि पठानकोट जिले की पठानकोट तहसील तथा होशियारपुर जिले की मुकेरियां, दसूहा तथा होशियारपुर तहसीलें। यहां चील के वृक्ष काफी कम मिलते हैं तथा उनकी प्रकार भी बढ़िया नहीं होती। यहां शीशम, खैर, शहतूत तथा अन्य कई प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं।

3. उप उष्ण झाड़ीदार पर्वतीय वनस्पति (Sub Tropical Scrub Hill Vegetation)-होशियारपुर तथा रूपनगर ज़िलों के पूर्वी भागों तथा पठानकोट जिले के बाकी बचे भागों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। इस क्षेत्र में आज से चार-पांच सदियों पहले तक काफी घने जंगल मिलते हैं परंतु काफी अधिक वृक्षों की कटाई, जानवरों के चरने, जंगलों की आग तथा भूमि-क्षरण के कारण यहां की वनस्पति झाड़ीदार हो गई है। यहां कई प्रकार के वृक्ष मिलते हैं जैसे कि शीशम, खैर, बबूल, शहतूत, बकायन, नीम, सिंबल, बांस, अमलतास इत्यादि। यहां लंबी घास भी उगती है जिसे सरकंडा कहते हैं जिसे रस्सियों तथा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

4. उष्ण-शुष्क पतझड़ी वनस्पति (Tropical Dry Deciduous Vegetation)-पंजाब के शुष्क तथा गर्म क्षेत्रों में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। कंडी क्षेत्र के मैदान, पंजाब के लहरदार तथा ऊंचे नीचे मैदान तथा मध्यवर्तीय मैदानों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। किसी समय यहां पर घनी वनस्पति हुआ करती थी। आज भी घनी वनस्पति के कुछ छोटे बड़े टुकड़े मिल जाते हैं जिन्हें बीड़, झंगीया झिड़ी के नाम से पुकारा जाता है। एस०ए०एस० नगर तथा पटियाला के क्षेत्रों में भी घने वृक्षों वाले क्षेत्र मिलते हैं जिन्हें बीड़ कहा जाता है। बीड़ भादसों, छत्तबीड़, बीड़ भुन्नरहेड़ी, बीड़ मोती बाग इत्यादि इनमें प्रमुख हैं। यहां नीम, टाहली, बरगद, पीपल, आम, बबूल, निम्ब इत्यादि के वृक्ष मिलते हैं। यहां सफैदा तथा पापुलर के पेड़ भी लगाए जाते हैं।

5. उष्ण कांटेदार वनस्पति (Tropical Thorny Vegetation)—पंजाब के कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां कम वर्षा होती है तथा वहां इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। बठिंडा, मानसा, फाजिलका के कई भागों, फिरोजपुर तथा फरीदकोट के मध्य दक्षिण भागों में कांटेदार वनस्पति मिलती है। यहां के कई क्षेत्रों में तो वनस्पति है ही नहीं। कांटेदार झाड़ियां, थोहर (Cactus), शीशम, जण्ड, बबूल इत्यादि वृक्ष यहां पर मिलते हैं।

प्रश्न 5.
जंगली जीवन व उसकी सुरक्षा विधियों पर विस्तार से लिखें।
उत्तर-
वनस्पति की तरह ही हमारे देश में जीव-जंतुओं की काफी विभिन्नता है। भारत में इनकी 89000 प्रजातियां मिलती हैं। देश के ताज़ा तथा खारे पानी में 2500 से अधिक प्रकार की मछलियां मिलती हैं। इस प्रकार पक्षियों की भी 2000 से ऊपर प्रजातियां पाई जाती हैं। हमारे वनों में काफी महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी मिलते हैं। परंतु अफसोस की बात है कि पक्षियों तथा जानवरों की अनेक प्रजातियां देश में से लुप्त हो चुकी हैं। इस कारण जंगली जीवों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काट कर तथा जानवरों का शिकार करके एक दुखद स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बंदर, शेर इत्यादि काफी कम संख्या में मिलते हैं।

इस कारण प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह जंगली जीवों की रक्षा करे।
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जंगली जीवों की सुरक्षा विधियां-

  1. वैसे तो सरकार ने कई राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभ्यारण्य बनाए हैं परंतु और राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभ्यारण्य बनाए जाने की आवश्यकता है।
  2. वन्य जीवों के शिकार पर कठोर पाबंदी लगाई जानी चाहिए तथा इस पाबंदी को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए।
  3. राष्ट्रीय उद्यानों तथा वन्य जीव अभ्यारण्यों में जीवों के खाने का उचित प्रबंध होना चाहिए।
  4. जो प्रजातियां खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं उन्हें संभालने तथा बचाने की तरफ विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  5. जंगलों तथा राष्ट्रीय उद्यानों में शिकारियों तथा चरवाहों को दाखिल होने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।
  6. अभ्यारण्यों तथा राष्ट्रीय उद्यानों में जीवों के लिए मैडिकल सुविधाएं भी होनी चाहिए ताकि किसी बिमारी होने की स्थिति में उन्हें बचाया जा सके।
  7. बड़े स्तर पर प्रशासकीय निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि इन्हें बचाने के निर्णय जल्दी लिए जा सकें। 8. आम जनता में जंगली जीवों को संभालने के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए सैमीनार करवाए जाने चाहिए।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : आकार व स्थिति Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
किसी क्षेत्र में मौजूद सभी प्राणियों को ……… कहा जाता है।
(क) फौना
(ख) फलौरा
(ग) वायुमंडल
(घ) जलमंडल।
उत्तर-
(क) फौना

प्रश्न 2.
भारतीय जंगल सर्वेक्षण विभाग का हैडक्वाटर कहां पर है ?
(क) मंसूरी
(ख) देहरादून
(ग) दिल्ली
(घ) नागपुर।
उत्तर-
(ख) देहरादून

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा तत्त्व प्राकृतिक वनस्पति की भिन्नता के लिए उत्तरदायी है ?
(क) भूमि
(ख) मिट्टी
(ग) तापमान
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
उष्ण सदाबहार वन के पत्ते हमेशा ………….. रहते हैं।
(क) हरे
(ख) पीले
(ग) झड़ते
(घ) लाल।
उत्तर-
(क) हरे

प्रश्न 5.
कौन-से जंगलों के वृक्ष 60 मीटर या उससे ऊपर जा सकते हैं ?
(क) उष्ण पतझड़ी जंगल
(ख) उष्ण सदाबहार जंगल
(ग) ज्वारीय जंगल
(घ) कांटेदार जंगल।
उत्तर-
(ख) उष्ण सदाबहार जंगल

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सा वृक्ष हमें कोणधारी जंगलों में मिलता है ?
(क) स्परूस
(ख) चील
(ग) फर
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
घनी वनस्पति के छोटे-बड़े टुकड़ों को पंजाब में क्या कहते हैं ?
(क) झांगी
(ख) झिड़ी
(ग) बीड़
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
पंजाब का कितना क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत आता है ?
(क) 5.65%
(ख) 3.65%
(ग) 4.65%
(घ) 6.65%.
उत्तर-
(ख) 3.65%

प्रश्न 9.
पंजाब के किस जिले में सबसे अधिक प्राकृतिक वनस्पति है ?
(क) बठिंडा
(ख) पटियाला
(ग) रूपनगर
(घ) फरीदकोट।
उत्तर-
(ग) रूपनगर

प्रश्न 10.
पंजाब के जंगलात विभाग में लगभग …… लोग कार्य कर रहे हैं।
(क) 5500
(ख) 6500
(ग) 7500
(घ) 8500.
उत्तर-
(ख) 6500

प्रश्न 11.
भारत में सबसे बड़ा स्तनधारी प्राणी कौन-सा है ?
(क) हाथी
(ख) गैंडा
(ग) हिप्पो
(घ) जिराफ।
उत्तर-
(क) हाथी

प्रश्न 12.
……….. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है।
(क) कबूतर
(ख) मोर
(ग) कोयल
(घ) फलैमिंगो।
उत्तर-
(ख) मोर

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

  1. भारत में ………. राष्ट्रीय उद्यान तथा ……… वन्यजीव अभ्यारण्य बनाए गए हैं।
  2.  ………. विटामिन सी से भरपूर होता है।
  3. ……… की गुठलियां शूगर कंट्रोल करने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
  4. नीम को संस्कृत में ……… कहा जाता है।
  5. पृथ्वी पर जीवन के चार मंडल-जीव मंडल, …………. , ………….. तथा वायु मंडल के कारण ही संभव है।
  6. मनुष्य के चारों मंडलों का एक-दूसरे पर निर्भर होना ही ……………… कहलाता है।

उत्तर-

  1. 103, 544
  2. आंवला
  3. जामुन
  4. सर्व रोग निवारक
  5. थलमंडल, जलमंडल
  6. ईको सिस्टम।

सही/ग़लत:

  1. जंगली जीव सुरक्षा कानून 1972 में बना था।
  2. किसी क्षेत्र की संपूर्ण वनस्पति को फलौरा कहते हैं।
  3. भारत की प्राकृतिक वनस्पति को आठ श्रेणियों में बांटा गया है।
  4. ऊष्ण पतझड़ी वनस्पति में वृक्ष सारा साल हरे-भरे रहते हैं।
  5. भारत का 21.53% हिस्सा ही जंगलों के अंतर्गत आता है।
  6. ज्वारी जंगल नमकीन पानी में रह सकते हैं।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के चार मंडल कौन-से हैं ?
उत्तर-
थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल तथा जीवमंडल।

प्रश्न 2.
जीव मंडल क्या है ?
उत्तर-
जीव मंडल पृथ्वी का वह मंडल है जिसमें कई प्रकार के जीव रहते हैं।

प्रश्न 3.
फौना (Fauna) क्या है ?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में किसी समय पर रहने वाले सभी प्राणियों को फौना कहा जाता है।

प्रश्न 4.
फ्लौरा (Flora) क्या है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र या समय में मौजूद संपूर्ण वनस्पति को फलौरा कहा जाता है।

प्रश्न 5.
ईकोसिस्टम कैसे बनता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र में प्राणियों तथा पौधों की एक-दूसरे पर निर्भर प्रजातियां ईकोसिस्टम का निर्माण करती है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति क्या होती है ?
उत्तर-
वह वनस्पति जो स्वयं तथा बिना किसी मानवीय प्रभाव के उत्पन्न होती है उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक वनस्पति कौन-से तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति भूमि, मृदा, तापमान, सूर्य की रोशनी का समय, वर्षा इत्यादि पर निर्भर करती है।

प्रश्न 8.
ऊंचे पहाड़ों पर कौन-से वक्ष उगते हैं ?
उत्तर-
ऊंचे पहाड़ों पर चील तथा स्परूस के वृक्ष उगते हैं।

प्रश्न 9.
कौन-सी मिट्टी में बहुत घनी वनस्पति उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
डैल्टाई मिट्टी में बहुत घनी वनस्पति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 10.
प्रकाश संश्लेषण क्या होता है ?
उत्तर-
पौधों की सूर्य की रोशनी से भोजन तैयार करने की विधि को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है।

प्रश्न 11.
भारतीय वनस्पति को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
भारतीय वनस्पति को पांच श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 12.
उष्ण सदाबहार जंगलों की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
यहां वृक्षों के पत्ते एक साथ नहीं झड़ते जिस कारण यह संपूर्ण वर्ष हरे ही रहते हैं।

प्रश्न 13.
ऊष्ण सदाबहार जंगल किन क्षेत्रों में मिलते हैं ?
उत्तर-
जो भाग गर्म तथा नम होते हैं तथा जहां वार्षिक 200-300 सैंटीमीटर वर्षा होती है।

प्रश्न 14.
कौन से जंगलों को वर्षा वन कहा जाता है ?
उत्तर-
ऊष्ण सदाबहार वनों को वर्षा वन कहा जाता है।

प्रश्न 15.
ऊष्ण सदाबहार वनों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-
महोगनी, रोज़वुड, ऐबोनी, बांस, शीशम, रबड़, सिनकोना, मैगवोलिया इत्यादि।

प्रश्न 16.
सिनकोना वृक्ष की छाल कहाँ पर प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
सिनकोना वृक्ष की छाल कुनीन की दवा बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।

प्रश्न 17.
ऊष्ण सदाबहारी वन किन प्रदेशों में मिलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों, उत्तर-पूर्व भारत की पहाड़ियों, तमिलनाडु तट, पश्चिमी बंगाल के कुछ हिस्से, ओडिशा, अंडेमान निकोबार, लक्षद्वीप।

प्रश्न 18.
ऊष्ण पतझड़ी वन कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं ?
उत्तर-
70 से 200 सैंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 19.
ऊष्ण पतझड़ी जंगलों की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
इन जंगलों में ऋतु के हिसाब से पत्ते झड़ते हैं।

प्रश्न 20.
ऊष्ण पतझड़ी जंगल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
दो प्रकार-नम तथा शुष्क पतझड़ी जंगल।

प्रश्न 21.
नम पतझड़ी जंगल कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में होते हैं ?
उत्तर-
100 से 200 सैंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 22.
नम पतझड़ी जंगल कहां पर मिलते हैं ?
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी राज्यों में, पश्चिमी घाट, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में।

प्रश्न 23.
नम पतझड़ी जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-
साल, टीक, देओदार, संदलवुड, शीशम, खैर इत्यादि।

प्रश्न 24.
शुष्क पतझड़ी जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ? ।
उत्तर-
पीपल, टीक, नीम, सफ़ेदा, साल इत्यादि।

प्रश्न 25.
झाड़ियां तथा कांटेदार जंगल कहां पर मिलते हैं ?
उत्तर-
यह जंगल उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 70 सैंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

प्रश्न 26.
झाड़ियां तथा कांटेदार जंगल कौन-से राज्यों में मिलते हैं ?
उत्तर-
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 27.
कौन-सी नदियों के डैल्टा में ज्वारी जंगल होते हैं ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 28.
सुंदरवन क्या है ?
उत्तर-
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के डैल्टा क्षेत्र में मिलने वाले जंगलों को सुंदरवन कहा जाता है क्योंकि यहां सुंदरी वृक्ष काफी मिलते हैं।

प्रश्न 29. पर्वतीय जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-चील, स्परूस, दियार, फर, ओक, अखरोट इत्यादि।

प्रश्न 30.
पर्वतीय जंगलों में कौन-से जानवर मिलते हैं ?
उत्तर-
हिरन, याक, बर्फ में रहने वाला चीता, बारासिंगा, भालू, जंगली भेड़ें, बकरियां इत्यादि।

प्रश्न 31.
पंजाब में कौन-सी मृदाएं मिलती हैं ?
उत्तर-
जलोढ़ी मृदा, रेतली मृदा, चिकनी मृदा, दोमट मृदा, पर्वतीय मृदा तथा खारी मृदा।

प्रश्न 32.
अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनस्पति को बचाने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
उन्होंने जंगलों की हदबंदी की तथा पशुओं के चरने पर रोक लगाई।

प्रश्न 33.
पंजाब में कौन-से प्रकार की वनस्पति मिलती है ?
उत्तर-
हिमालय प्रकार की आई शोत ऊष्ण वनस्पति, उप ऊष्णू चील वनस्पति, उप ऊष्ण झाड़ेदार पर्वतीय वनस्पति, ऊष्ण खुष्क पतझड़ी वनस्पति तथा ऊष्ण कांटेदार वनस्पति।

प्रश्न 34.
बीड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
मैदानों में घनी वनस्पति के कुछ छोटे-बड़े टुकड़े मिलते हैं जिन्हें बीड़ कहा जाता है।

प्रश्न 35.
पंजाब का कितना क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत आता है ?
उत्तर-
केवल 6.07%।

प्रश्न 36.
पंजाब के किस जिले में प्राकृतिक वनस्पति सबसे अधिक है ?
उत्तर-
रूपनगर जिले में – 37.19%.

प्रश्न 37.
जंगलों का एक महत्त्व बताएं।
उत्तर-
वृक्ष कार्बन-डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं जो मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 38.
जंगली जीवन क्या होता है ?
उत्तर-
प्राकृतिक अरण्यों अर्थात् वनों में मौजूद जानवरों, पक्षियों तथा कीड़े-मकौड़े इत्यादि को जंगली जीवन कहा जाता है।

प्रश्न 39.
हमारे देश में जानवरों की कितनी प्रजातियां रहती हैं ?
उत्तर-
हमारे देश में जानवरों की 89,000 प्रजातियां रहती हैं जो विश्व के जानवरों की प्रजातियों का 6.5% बनता है।

प्रश्न 40.
भारतीय जंगलों में मिलने वाले जानवरों के नाम लिखें।
उत्तर-
हाथी, गैंडे, बारासिंगा, शेर, बंदर, लंगूर, लोमड़ी, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए इत्यादि।

प्रश्न 41.
किस जानवर को ‘बर्फ का बैल’ कहा जाता है ?
उत्तर-
याक को।

प्रश्न 42.
कस्तूरी किस जानवर से प्राप्त होती है ?
उत्तर-
कस्तूरी थम्मन नामक हिरन से प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
भारत में पक्षियों की कितनी प्रजातियां रहती हैं ?
उत्तर-
लगभग 2000 प्रजातियां।

प्रश्न 44.
शीत ऋतु में भारत आने वाले कुछ प्रवासी पक्षियों के नाम लिखें।
उत्तर-
साइबेरियाई सास, ग्रेटर फलैमिंगो, स्टालिंग, रफ्फ, रोज़ी पैलीकन, आमटील इत्यादि।

प्रश्न 45.
जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड कब तथा क्यों स्थापित किया गया था ?
उत्तर-
1972 में ताकि लोगों को जंगली जानवरों को संभालने के लिए जागृत किया जा सके।

प्रश्न 46.
आरक्षित जीव मंडल क्या है ?
उत्तर-
यह बहुउद्देशीय सुरक्षित क्षेत्र हैं जिनका कार्य ईकोसिस्टम में प्रवृत्ति की अनेकता को संभाल कर रखता है।

प्रश्न 47.
बिल को क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
बिल को कब्ज तथा दस्त ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 48.
सर्पगंधा को क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
रक्त प्रवाह में सुधार करने के लिए।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवमंडल पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी के चार मंडल होते हैं तथा उनमें से जीव मंडल ऐसा मंडल है जहां कई प्रकार के जीव रहते हैं। यह एक जटिल क्षेत्र है जहां पर बाकी तीन मंडल आपस में मिलते हैं। क्योंकि इस मंडल में जीवन मौजूद है, इस कारण इसका हमारे जीवन में काफी महत्त्व है। इसमें बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव से लेकर हाथी जैसे बड़े जीव रहते हैं। सभी प्रकार के जीवों को दो भागों में विभाजित किया जाता है तथा वह हैं-वनस्पति जगत् तथा प्राणी जगत्। वनस्पति जगत् को फ्लौरा कहा जाता है जिसमें प्रत्येक प्रकार की वनस्पति आ जाती है। प्राणी जगत् को फौना कहा जाता है जिसमें जीव मंडल में मौजूद सभी प्राणी आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग क्यों होती है ?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है क्योंकि प्राकृतिक वनस्पति को अलगअलग भौगोलिक तत्त्व प्रभावित करते हैं। किसी स्थान पर जिस प्रकार के भौगोलिक तत्त्व होंगे, वहां उस प्रकार की वनस्पति ही उत्पन्न होगी। प्राकृतिक वनस्पति को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं जैसे कि:

  1. भूमि (Land)
  2. मृदा (Soil)
  3. तापमान (Temperature)
  4. वर्षा (Rainfall)
  5. सूर्य की रोशनी का समय (Duration of Sunlight)।

प्रश्न 3.
ऊष्ण सदाबहार जंगलों की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. ऊष्ण सदाबहार जंगल वह क्षेत्र होते हैं जहां 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
  2. वृक्षों के पत्ते इकट्ठे नहीं झड़ते जिस कारण यह संपूर्ण वर्ष हरे रहते हैं।
  3. यह घने जंगल गर्म तथा नम क्षेत्रों में मिलते हैं।
  4. इन जंगलों के वृक्ष 60 मीटर से भी ऊंचे हो जाते हैं तथा घने होने के कारण यह एक छतरी (Canopy) बना लेते हैं। इस कारण कई स्थानों पर सूर्य की रोशनी भूमि तक भी नहीं पहुंच पाती।
  5. महोगनी, रोज़वुड, ऐबोनी, बांस, शीशम, सिनकोना रबड़ इत्यादि इस क्षेत्र में मिलने वाले वृक्ष हैं।
  6. यह पश्चिमी घाट की ढलानों, उत्तर पूर्वी भारत की पहाड़ियों, पश्चिमी बंगाल तथा ओडिशा के कुछ भागों, लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार में मिलते हैं।

प्रश्न 4.
ऊष्ण पतझड़ी अथवा मानसूनी जगलों की कुछ विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. ऊष्ण पतझड़ी जंगल उन क्षेत्रों में होते हैं जहां 70 से 200 सैंटीमीटर तक वर्षा होती है।
  2. इन जंगलों के वृक्षों के पत्ते मौसम के अनुसार झड़ते हैं जो गर्मियों में लगभग छ: से आठ हफ्तों के बीच होता है।
  3. यह जंगल दो प्रकार के होते हैं-नम पतझड़ी जंगल (100 से 200 सैंटीमीटर वर्षा) तथा शुष्क पतझड़ी जंगल (70-100 सैंटीमीटर वर्षा)।
  4. यहां टीक, संदलवुड, साल, शीशम, देओदार, खैर, पीपल, नीम, टीक, सफैदा इत्यादि वृक्ष उगते हैं।
  5. यह सदाबहार जंगलों की तरह घने तो नहीं होते परंतु फिर भी काफी घने होते हैं।

प्रश्न 5.
पंजाब में मिलने वाली मिट्टियों (मृदाओं) के नाम बताएं।
उत्तर-
पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में मिट्टी के कई प्रकार मिलते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं :

  1. जलोढ़ या दरियाई मिट्टी (Alluvial or River Soil)
  2. रेतली मिट्टी (Sandy Soil)
  3. चिकनी मिट्टी (Clayey Soil)
  4. दोमट मिट्टी (Loamy Soil)
  5. पर्वतीय मिट्टी अथवा कंडी की मिट्टी (Hill Soil or Kandi Soil)
  6. सोडिक अथवा ख़ारी मिट्टी. (Sodic and Saline Soil)।

प्रश्न 6.
अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनस्पति को बचाने के लिए कौन-से प्रयास किए ?
उत्तर-
वृक्षों की लगातार कटाई के कारण, पशुओं के चरने तथा कानूनों की कमी के कारण पंजाब में वनस्पति का क्षेत्र काफी तेजी से कम हो रहा था। इस कारण अंग्रेजों ने वनस्पति को बचाने के लिए कुछ प्रयास किए जैसे कि :

  1. जंगलों की हदबंदी की गई तथा जंगलों को कई भागों में विभाजित किया गया।
  2. जंगलों में पशुओं के चरने पर रोक लगा दी गई ताकि प्राकृतिक वनस्पति बची रह सके।
  3. कृषि को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त वनस्पति को साफ किया गयाँ तथा भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। इससे अधिक अनाज पैदा करके जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की गई।

प्रश्न 7.
भारत के जंगली जीवन पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
जो जंगली जीव, पक्षी तथा कीड़े-मकौड़े, प्राकृतिक आरण्य अर्थात् जंगलों में रहते हैं, उन्हें जंगली जीवन कहा जाता है। भारत में कई प्रकार की प्राकृतिक स्थितियों के मिलने के कारण तथा मिट्टी के प्रकार के अंतर होने के कारण यहां कई प्रकार के प्राकृतिक आरण्य मिलते हैं। इस कारण यहां जंगली जीवन भी कई प्रकार का मिलता है। भारत में 89,000 से अधिक जानवरों की प्रजातियां मिलती हैं जोकि संसार में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियों का लगभग 6.5% बनता है। इस प्रकार हमारे देश में पक्षियों की 2000 प्रजातियां, मछलियों की 2546 प्रजातियां, रेंगने वाले जीवों की 458 प्रजातियां तथा कीड़े-मकौड़ों की 60,000 से भी अधिक प्रजातियां मिल जाती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में सर्दियों में कौन-से प्रवासी पक्षी आते हैं ?
उत्तर-
सर्दियों में कई अन्य देशों से प्रवासी पक्षी हमारे देश में आते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :

  1. ग्रेटर फलैमिंगो
  2. साइबेरिआई सारस
  3. काले पंखों वाली स्टिलट
  4. आम ग्रीन सारक
  5. रफ़ल
  6. रोज़ी पैलीकन
  7. लांगबिल्ड।
  8. आम टील
  9. गढ़वाल।

प्रश्न 9.
भारत में गर्मियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत में गर्मियों में कई प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :

1. ब्लु चीकड बी ईटर
2. कूम्ब डक
3. कुकु (कोयल)
4. ब्लु टेल्ड बी ईटर
5. युरेशियन गोलफन ओरीओल
6. एशियन कोयल।
7. ब्लैक क्राऊनड नाइट हैरोन।

प्रश्न 10.
जंगली जीवों को बचाने के सरकारी प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. 1952 में सरकार ने जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड का गठन किया जिसका कार्य सरकार को जीवों को संभालने की सलाह देना, लोगों को जंगली जानवरों को संभालने के लिए जागृत करना तथा जंगली जीव अभ्यारण्य इत्यादि का निर्माण करना है।
  2. 1972 में जंगली जीव सुरक्षा कानून बनाया गया ताकि खत्म होने की कगार तक पहुंच चुके जंगली जीवों की संभाल तथा उनका शिकारियों से बचाव किया जा सके।
  3. देश में कई आरक्षित जीव मंडल (Biosphere Reserves) का निर्माण किया गया ताकि जानवरों की अनेकता को संभाल कर रखा जा सके। अब तक 18 आरक्षित जीव मंडल बनाए जा चुके हैं।
  4. जंगली जीवों को बचाने के लिए तथा उन्हें संभालने के लिए देश में 103 राष्ट्रीय उद्यान तथा 555 जंगली जीव अभ्यारण्य बन चुके हैं जहां शिकार करना गैर कानूनी है।

प्रश्न 11.
हमारी प्राकृतिक वनस्पति का वास्तव में प्राकृतिक न रहने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
हमारी प्राकृतिक वनस्पति वास्तव में प्राकृतिक नहीं रही। यह केवल देश के कुछ ही भागों में दिखाई पड़ती है। अन्य भागों में इसका बहुत बड़ा भाग या तो नष्ट हो गया है या फिर नष्ट हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. तेजी से बढ़ती हुई हमारी जनसंख्या
  2. परंपरागत कृषि विकास की प्रथा
  3. चरागाहों का विनाश या अति चराई
  4. ईंधन व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अंधाधुंध कटाव
  5. विदेशी पौधों में बढ़ती हुई संख्या।

प्रश्न 12.
देश के वन क्षेत्र का क्षेत्रीय तथा राज्यों के स्तर पर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देश के विकास तथा वातावरण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए देश की कम-से-कम 33 प्रतिशत भूमि पर वन अवश्य होने चाहिएं। परंतु भारत की केवल 22.7 प्रतिशत भूमि ही वनों के अधीन है। राज्यों के स्तर पर इसका वितरण बहुत ही असमान है, जो निम्नलिखित ब्योरे से स्पष्ट है-

  1. त्रिपुरा (59.6%), हिमाचल प्रदेश (48.1%), अरुणाचल प्रदेश (45.8%), मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ (32.9%) तथा असम (29.3%) में अपेक्षाकृत अधिक वन क्षेत्र हैं।
  2. पंजाब (2.3%), राजस्थान (3.6%), गुजरात (8.8%), हरियाणा (12.1%), पश्चिमी बंगाल (12.5%) तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 15% से भी कम भूमि वनों के अधीन है।
  3. केंद्रीय शासित प्रदेशों में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में सबसे अधिक (94.6%) तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सबसे कम (2.1%) वन क्षेत्र हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (4)

प्रश्न 13.
पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उपभागों में बांटा जा सकता है।

  1. आई पतझड़ वन-इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहां पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 से० मी० तक होती है।
    इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परंतु इनकी ऊंचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चंदन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। .
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति-इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें. मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
    इसकी लंबी पट्टी पंजाब से आरंभ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

प्रश्न 14.
पूर्वी हिमालय में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है ?
उत्तर-
पूर्वी हिमालय में 4000 किस्म के फूल और 250 किस्म की फर्न मिलती है। यहां की वनस्पति पर ऊंचाई के बढ़ने से तापमान और वर्षा में आए अंतर का गहरा प्रभाव पड़ता है।

  1. यहां 1200 मीटर की ऊंचाई तक पतझड़ी वनस्पति के मिश्रित वृक्ष अधिक मिलते हैं।
  2. यहां 1200 से लेकर 2000 मीटर की ऊंचाई तक घने सदाबहार वन मिलते हैं। साल और मैंगनोलिया इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इनमें दालचीनी, अमूरा, चिनोली तथा दिलेनीआ के वृक्ष भी मिलते हैं। .
  3. यहां पर 2000 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक तापमान कम हो जाने के कारण शीतोष्ण प्रकार (Temperate type) की वनस्पति पाई जाती है। इसमें ओक, चेस्टनट, लॉरेल, बर्च, मैपल तथा ओलढर जैसे चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलते हैं।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक वनस्पति के अंधाधुंध कटाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक वनस्पति की अंधाधुंध कटाई की गई है। इस कटाई से हमें निम्नलिखित हानियां हुई हैं

  1. प्राकृतिक वनस्पति की कटाई से वातावरण का संतुलन बिगड़ गया है।
  2. पहाड़ी ढलानों और मैदानी क्षेत्रों के वनस्पति विहीन होने के कारण बाढ़ व मृदा अपरदन की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  3. पंजाब के उत्तरी भागों में शिवालिक पर्वतमालाओं के निचले भाग में बहने वाले बरसाती नालों के क्षेत्रों में वनकटाव से भूमि कटाव की समस्या के कारण बंजर जमीन में वृद्धि हुई है।
  4. मैदानी क्षेत्रों का जल-स्तर भी प्रभावित हुआ है जिससे कृषि को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

प्रश्न 16.
मिट्टी कटाव के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मिट्टी का कटाव मुख्य रूप से दो कारणों से होता है-

  1. भौतिक क्रियाओं द्वारा तथा मानव क्रियाओं द्वारा। आज के समय में मानव क्रियाओं से मिट्टियों के कटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।
  2. भौतिक तत्त्वों में उच्च तापमान, बर्फीले तूफान, तेज़ हवाएं, मूसलाधार वर्षा तथा तीव्र ढलानों की गणना होती है। ये मिट्टियों के कटाव के प्रमुख कारक हैं। मानवीय क्रियाओं में जंगलों की कटाई, पशुओं की बेरोकटोक चराई, स्थानांतरी कृषि की दोषपूर्ण पद्धति, खानों की खुदाई आदि तत्त्व आते हैं।

प्रश्न 17.
शुष्क पतझड़ी वनस्पति पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 से० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
क्षेत्र-इसकी एक लंबी पट्टी पंजाब से लेकर हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, काठियावाड़, दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई है।
प्रमुख वृक्ष-इस वनस्पति में शीशम या टाहली, बबूल, बरगद, हलदू जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें चंदन, महुआ, सीरस तथा सागवान जैसे कीमती वृक्ष भी मिलते हैं। ये वृक्ष प्रायः गर्मियां शुरू होते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 18.
वन्य प्राणियों की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य क्यों है ?
उत्तर-
हमारे वनों में बहुत-से महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी पाए जाते हैं। परंतु खेद की बात यह है कि पक्षियों और जानवरों की अनेक जातियां हमारे देश से लुप्त हो चुकी हैं। अत: वन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काटकर तथा जानवरों का शिकार करके दुःखदायी स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बंदर, शेर और सारंग नामक पशु-पक्षी बहुत ही कम संख्या में मिलते हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वन्य प्राणियों की रक्षा करे।

प्रश्न 19.
हमारे जीवन में पशुओं का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
हमारे देश में विशाल पशु धन पाया जाता है, जिन्हें किसान अपने खेतों पर पालते हैं। पशुओं से किसान को गोबर प्राप्त होता है, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में उसकी सहायता करता है। पहले किसान गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, परंतु अब प्रगतिशील किसान गोबर को ईंधन और खाद दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। खेत में गोबर को उर्वरक के रूप में प्रयोग करने से पहले वे उससे गैस बनाते हैं जिस पर वे खाना बनाते हैं और रोशनी प्राप्त करते हैं। पशुओं की खालें बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं। पशुओं से हमें ऊन प्राप्त होती है।

प्रश्न 20.
वन्य जीवों के संरक्षण पर एक संक्षेप टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वन्य जीवों का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं। उनकी उचित देखभाल न होने से जीवों की कई एक जातियां या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने वाली हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपाय किये जा रहे हैं। नीलगिरि में भारत का पहला जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया। यह कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। नीलगिरि के पश्चात् 1988 ई० में उत्तराखंड (वर्तमान) में नंदा देवी का जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया। उसी वर्ष मेघालय में तीसरा ऐसा ही क्षेत्र स्थापित किया गया। एक और जीव आरक्षित क्षेत्र अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात तथा असम में भी जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
“देश में उष्ण सदाबहार वनस्पति से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का क्रम मिलता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
भारत की वनस्पति में व्यापक विविधता देखने को मिलती है। इसका मुख्य कारण है-देश में पाई जाने वाली विविध प्रकार की जलवायु दशाएं तथा धरातलीय असमानता। केवल पर्वतीय क्षेत्रों में ही ऊंचाई के साथ-साथ एक के बाद एक वनस्पति क्षेत्र पाए जाते हैं। यहां उष्ण सदाबहार वनस्पति से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक देखने को मिलती है। निम्नलिखित विवरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी-

  1. शिवालिक श्रेणियों के वन-हिमालय की गिरिपाद शिवालिक श्रेणियों में ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से इन वनों का सबसे महत्त्वपूर्ण वृक्ष साल हैं। यहां पर बांस भी बहुत होता है।
  2. 1200 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले वन-समुद्र तल से 1200 से लेकर 2000 मीटर तक की ऊंचाई पर घने सदाबहार वन पाए जाते हैं। इन वनों में सदा हरित चौड़ी पत्ती वाले साल तथा चेस्टनट के वृक्ष सामान्य रूप में मिलते हैं। ऐश तथा बीच इन वनों के अन्य वृक्ष हैं।
  3. 2000 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाने वाले वन-समुद्र तल से 2000 से लेकर 2500 मीटर की ऊंचाई तक शीतोष्ण कटिबंध के शंकुधारी वन पाए जाते हैं। इन वनों में मुख्य रूप से बीच, चीड़, सीडर, सिल्वर, फ़र तथा स्परूस के वृक्ष मिलते हैं। हिमालय की आंतरिक श्रेणियों में तथा अपेक्षाकृत शुष्क भागों में देवदार का वृक्ष भलीभांति पनपता है।
  4. 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाये जाने वाले वन-समुद्र तल से 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर अल्पाइन वन पाये जाते हैं। सिल्वर, फ़र, चीड़, भुर्ज (बर्च) तथा जूनिपर (हपूशा) इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इसके पश्चात् अल्पाइन वनों का स्थान झाड़ियां, गुल्म तथा घास-भूमियां ले लेती हैं।
    दक्षिणी पठार के पहाड़ी भागों में भी पर्वतीय वनस्पति मिलती है। यहां के नीलगिरि पर्वतीय क्षेत्रों में 200 सें० मी० से अधिक वर्षा होती है। इसी कारण यहां पर चौड़े-पत्तों वाले सदाबहार वन 1800 मीटर तक की ऊंचाई पर मिल जाते हैं। दक्षिण भारत में इनको ‘शोला वन’ कहा जाता है। इनमें जामुन, मैचीलस, मैलियोसोमा, सैलटिस आदि प्रमुख वृक्ष हैं। परंतु 1800 से 3000 की ऊंचाई पर शीतोष्ण कोणधारी वनस्पति मिलती है। इसमें सिल्वर, फर, चीड़, बर्च, पीला चम्पा जैसे वृक्ष मिलते हैं। इससे अधिक ऊंचाई पर छोटी-छोटी घास मिलती है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति (वनों) के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें कई प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभ होते हैं।
प्रत्यक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. वनों से हमें कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है, जिसका प्रयोग इमारतें, फ़र्नीचर, लकड़ी-कोयला इत्यादि बनाने में होता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भी होता है।
  2. खैर, सिनकोना, कुनीन, बहेड़ा व आंवले से कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।
  3. मैंग्रोव, कंच, गैंबीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और बबूल इत्यादि के पत्ते, छिलके व फलों को सूखाकर चमड़ा रंगने का पदार्थ तैयार किया जाता है।
  4. पलाश व पीपल से लाख, शहतूत से रेशम, चंदन से तुंग व तेल और साल से धूपबत्ती व बिरोज़ा तैयार किया जाता है।

परोक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से हमें निम्नलिखित परोक्ष लाभ होते हैं-

  1. वन जलवायु पर नियंत्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अंदर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शांति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केंद्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार हैं। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोज़ा इत्यादि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय मिट्टियों की किस्मों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। इनके गुणों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है-

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान, राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिण के तटीय मैदानों में सामान्य रूप से मिलती है। इसमें रेत, गाद तथा मृत्तिका मिली होती है। जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैखादर तथा बांगर।
    जलोढ़ मिट्टियां सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों में पोटाश, फॉस्फोरस अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। परंतु इनमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।-
  2. काली अथवा रेगड़ मिट्टी (Black Soil)—इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत लाभदायक है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है। यह मिट्टी दक्कन ट्रैप प्रदेश की प्रमुख मिट्टी है। यह पश्चिम में मुंबई से लेकर पूर्व में अमरकंटक पठार, उत्तर में गुना (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बेलगाम तक त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई है।
    काली मिट्टी नमी को अधिक समय तक धारण कर सकती है। इस मृदा में लौह, पोटाश, चूना, एल्यूमीनियम तथा मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। परंतु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की मात्रा कम होती है।
  3. लाल मिट्टी (Red Soil)-इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के रवेदार तथा परिवर्तित चट्टानों में बदल जाने के कारण होता है। इसका विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, दक्षिणी बिहार, झारखंड, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों में है। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन तथा चूने की कमी, परंतु मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम तथा लोहे की मात्रा अधिक होती है।।
  4. लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil) इस मिट्टी में नाइट्रोजन, चूना तथा पोटाश की कमी होती है। इसमें लोहे तथा एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका स्वभाव तेज़ाबी हो जाता है। इसका विस्तार विंध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, ओडिशा पश्चिमी बंगाल की बैसाल्टिक पर्वतीय चोटियों, दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार के उत्तरी तथा पूर्वी भाग में है।
  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)—इस मिट्टी का विस्तार पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में अरावली पर्वतों तक है। यह राजस्थान, दक्षिणी पंजाब व दक्षिणी हरियाणा में फैली हुई है। इसमें घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है। परंतु इसमें नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की बहुत कमी होती है। इसमें 92% रेत व 8% चिकनी मिट्टी का अंश होता है। इसमें सिंचाई की सहायता से बाजरा, ज्वार, कपास, गेहूं, सब्जियां आदि उगाई जा रही हैं।
  6. खारी व तेजाबी मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)—यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है। खारी मिट्टियों से सोडियम भरपूर मात्रा में मिलता है। तेज़ाबी मिट्टी में कैल्शियम व नाइट्रोजन की कमी होती है। इसी लवणीय मिट्टी को उत्तर प्रदेश में औसढ़’ या ‘रेह’, पंजाब में ‘कल्लर’ या ‘थुड़’ तथा अन्य भागों में ‘रक्कड़’ कार्ल और ‘छोपां’ मिट्टी भी कहा जाता है।
  7. पीट एवं दलदली मिट्टी (Peat & Marshy Soil)-इसका विस्तार सुंदरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। इसका रंग जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण काला तथा तेजाबी स्वभाव वाला होता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण कहीं-कहीं इसका रंग नीला भी है।
  8. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)—इस मिट्टी में रेत, पत्थर तथा बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसमें चूना कम लेकिन लोहे की मात्रा अधिक होती है। यह चाय की खेती के लिए अनुकूल होती है। इसका विस्तार असम, लद्दाख, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, दार्जिलिंग, देहरादून, अल्मोड़ा, गढ़वाल व दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में है।

प्रश्न 4.
भारत में पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का वर्णन करो।
उत्तर-
वनस्पति की भांति ही हमारे देश के जीव-जंतुओं में भी बड़ी विविधता है। भारत में इनकी 81,000 जातियां पाई जाती हैं। देश के ताज़े और खारे पानी में 2500 जातियों की मछलियां मिलती हैं। इसी प्रकार यहां पर पक्षियों की भी 2000 जातियां पाई जाती हैं। मुख्य रूप से भारत के वन्य प्राणियों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. हाथी-हाथी राजसी ठाठ-बाठ वाला पशु है। यह ऊष्ण आर्द्र वनों का पशु है। यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। इन स्थानों पर भारी वर्षा के कारण बहुत घने वन मिलते हैं।
  2. ऊंट-ऊंट गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाया जाता है।
  3. जंगली गधा-जंगली गधे कच्छ के रण में मिलते हैं।
  4. एक सींग वाला गैंडा-एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों के दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  5. बंदर-भारत में बंदरों की अनेक जातियां मिलती हैं। इनमें से लंगूर सामान्य रूप से पाया जाता है। पूंछ वाला बन्दर (मकाक) बड़ा ही विचित्र जीव है। इसके मुंह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक प्रभामण्डल के समान दिखाई देते हैं।
  6. हिरण-भारत में हिरणों की अनेक जातियां पाई जाती हैं। इनमें चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं। यहां हिरणों की कुछ अन्य जातियां भी मिलती हैं। इनमें कश्मीरी बारहसिंघा, दलदली मृग, चित्तीदार मृग, कस्तूरी मृग तथा मूषक मृग उल्लेखनीय हैं।
  7. शिकारी जंतु-शिकारी जंतुओं में भारतीय सिंह का विशिष्ट स्थान है। अफ्रीका के अतिरिक्त यह केवल भारत में ही मिलता है। इसका प्राकृतिक आवास गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वनों में है। अन्य शिकारी पशुओं में शेर, तेंदुआ, लामचिता (क्लाउडेड लियोपार्ड) तथा हिम तेंदुआ प्रमुख हैं।
  8. अन्य जीव-जंतु-हिमालय की श्रृंखलाओं में भी अनेक प्रकार के जीव-जंतु रहते हैं। इनमें जंगली भेड़ें तथा पहाड़ी बकरियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारतीय जंतुओं में भारतीय मोर, भारतीय भैंसा तथा नील गाय प्रमुख हैं। भारत सरकार कुछ जातियों के जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।

प्राकृतिक वनस्पति तथा जंगली जीवन Notes

  • पृथ्वी के चार मंडल – पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन मौजूद है। इसके चार मंडल हैं थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल तथा जीवमंडल। जीवमंडल में कई प्रकार के जीव रहते हैं। किसी क्षेत्र में मौजूद सभी प्राणियों को फौना तथा वनस्पति को फलौरा कहा जाता है।
  • प्राकृतिक वनस्पति – मनुष्य में हस्तक्षेप के बिना उगने वाली वनस्पति को प्राकृतिक वनस्पति कहा जाता है। यह स्वयं ही अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार विकसित हो जाती है।
  • प्राकृतिक वनस्पति के लिए उत्तरदायी तत्व – किसी भी क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति के लिए कई प्रकार के भौगोलिक तत्व उत्तरदायी होते हैं जैसे कि भूमि, मिट्टी, तापमान, सूर्य की रोशनी, वर्षा इत्यादि।
  • पौधों की विविधता – भारत की प्राकृतिक वनस्पति में वन, घास-भूमियां तथा झाड़ियां सम्मिलित हैं। भारत में पौधों की 45,000 जातियां पाई जाती हैं।
  • वनस्पति प्रदेश – हिमालय प्रदेश को छोड़कर भारत के चार प्रमुख वनस्पति क्षेत्र हैं-उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन, उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, कंटीले वन और झाड़ियां तथा ज्वारीय वन|
  • पर्वतीय प्रदेशों में वनस्पति की पेटियां – पर्वतीय प्रदेशों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक सभी प्रकार की वनस्पति बारी-बारी से मिलती है। ये सभी पेटियां केवल छ: किलोमीटर की ऊंचाई में ही समाई हुई हैं।
  • जीव-जंतु – हमारे देश में जीव-जंतुओं की लगभग 89000 जातियां मिलती हैं। देश के ताज़े और खारे पानी में 2546 प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं। यहां पक्षियों की भी 2,000 जातियां हैं।
  • जैव-विविधता की सुरक्षा और संरक्षण – जैव सुरक्षा के उद्देश्य से देश में 103 राष्ट्रीय उद्यान, 544 वन्य प्राणी अभ्यारण्य तथा 177 प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) बनाए गए हैं।
  • मृदा (मिट्टी) – मूल शैलों के विखंडित पदार्थों से मिट्टी बनती है। तापमान, प्रवाहित जल, पवन इत्यादि तत्त्व इसके विकास में सहायता करते हैं।
  • पंजाब की मृदाएं – पंजाब में कई प्रकार की मृदाएं या मिट्टियां पाई जाती हैं जैसे कि जलोढ मिट्टी, चिकनी मिट्टी, दोमट मिट्टी, पर्वतीय मिट्टी, सोडिक और खारी मिट्टी इत्यादि।
  • पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति – पंजाब में कई प्रकार की मिट्टी मिलने के कारण यहां पर कई प्रकार की वनस्पति भी मिल जाती है जैसे कि हिमालय प्रकार की आर्द्र शीत उष्ण वनस्पति, उपउष्णचील वनस्पति, उपउष्ण झाड़ीदार पर्वतीय वनस्पति, उष्ण शुष्क पतझड़ी वनस्पति तथा उष्ण कांटेदार वनस्पति।
  • जंगलों का महत्त्व – जंगलों का हमारे लिए काफी महत्त्व है जैसे कि जंगलों से हमें लकड़ी मिलती है, जंगल वर्षा करवाने तथा भूमि क्षरण को रोकते हैं, यह हमें आक्सीजन देते हैं, यह हमारे वातावरण को स्वस्थ बनाते हैं इत्यादि।
  • प्रवासी पक्षी – हमारे देश में कई प्रकार के प्रवासी पक्षी भी आते हैं जैसे कि साइबेरिआई सारस, आमटील, गड़वाल, स्टालिंग, कुंब डक, ऐशियाई कोयल इत्यादि।
  • औषधिक पौधे – हमारे देश में बहुत-से ऐसे पौधे मिलते हैं जो दवाइयां बनाने में सहायता करते हैं जैसे कि आंवला, सर्पगंधा, तुलसी, नीम, चंदन, बिल, जामुन इत्यादि।

PSEB 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 The d-and f-Block Elements

Punjab State Board PSEB 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 The d-and f-Block Elements Important Questions and Answers.

PSEB 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 The d-and f-Block Elements

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Why first ionisation enthalpy of Cr is lower than that of Zn?
Answer:
Ionisation enthalpy of Cr is less than that of Zn configuration. In case of zinc, electron comes out from completely filled 4s-orbital. So, removal of electron from zinc requires more energy as compared to the chromium.

Question 2.
Zn, Cd and Hg are soft metals. Why?
Answer:
Because they have one or more typical metallic structures at normal temperatures.

Question 3.
Although fluorine is more electronegative than oxygen, but the ability of oxygen to stabilise higher oxidation states exceeds that of fluorine. Why?
Answer:
Oxygen can form multiple bonds with metals, while fluorine can’t form multiple bond with metals. Hence, oxygen has more ability to stabilise higher oxidation state rather than fluorine.

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Question 4.
Mn shows the highest oxidation state of + 7 with oxygen but with fluorine it shows the highest oxidation state of +4. Why?
Answer:
This is due to ability of oxygen to form pπ – dπ bond.

Question 5.
Mn2O7 is acidic whereas MnO is basic.
Answer:
Mn has +7 oxidation state in Mn2O7 and +2 in MnO. In low oxidation state of the metal, some of the valence electrons of the metal atom are not involved in bonding. Hence, it can donate electrons and behave as a base. On the other hand, in higher oxidation state of the metal, valence electrons are involved on bonding and are not available. Instead effective nuclear charge is high and hence it can accept electrons and behave as an acid.

Question 6.
Copper atom has completely filled d-orbitals in its ground state but it is a transition element. Why?
Answer:
Copper exhibits +2 oxidation state wherein it has incompletely filled d orbitals (3d9 4s0) hence a transition elements.

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Question 7.
Why is zinc not regarded as a transition element?
Answer:
As zinc atom has completely filled d-orbitals (3d10) in its ground state as well as oxidised state, therefore, it is not regarded as transition element.

Question 8.
Zn2+ salts are white while Cu2+ salts are coloured. Why?
Answer:
Cu2+(3d94s0) has one unpaired electron in d-subshell which absorbs radiation in visible region resulting in d-d transition and hence Cu2+ salts are coloured. Zn2+(3d104s0) has completely filled d-orbitals. No radiation is absorbed for d-d transition and hence Zn2+ salts are colourless.

Question 9.
The second and third row of transition elements resemble each other much more than they resemble the first row. Explain, why?
Answer:
Due to lanthanoid contraction, the atomic radii of the second and third row transition elements is almost same. So, they resemble each other much more as compared to first row elements and show similar character.

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Question 10.
Why does copper not replace hydrogen from acids?
Answer:
Because Cu shows E positive value.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Why do transition elements show variable oxidation states? How is the variability in oxidation states of d-block different from that of the p-block elements?
Answer:
In transition elements, the energies of (n – 1)d orbitals and ns orbitals are nearly same. Therefore, electrons from both can participate in bond formation and hence show variable oxidation states.

In transition elements, the oxidation states differ from each other by unity e.g., Fe2+ and Fe3+, Cu+ and Cu2+ etc., while in p-block elements the oxidation state differ by units of two, e.g., Sn2+ and Sn4+, Pb2+ and Pb4+ etc. In transition elements, the higher oxidation states are more stable for heavier elements in a group e.g., Mo(VI) and W(VI) are more stable than Cr(VI) in group 6 whereas in p-block, elements the lower oxidation states are more stable for heavier elements due to the inert pair effect, e.g., Pb(II) is more stable than Pb(IV) in group 16.

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Question 2.
When a chromite ore (A) is fused with sodium carbonate in free excess of air and the product is dissolved in water, a yellow solution of compound (B) is obtained. After treatment of this yellow solution with sulphuric acid, compound (C) can be crystallised from the solution. When compound (C) is treated with KC1, orange crystals of compound (D) crystallise out. Identify A to D and also explain the reactions.
Answer:
K2Cr2O7 is an orange compound. It is formed when Na2Cr2O7 reacts with KCl. In acidic medium, yellow coloured \(\mathrm{CrO}_{4}^{2-}\) (chromate ion) changes into dichromate.
The given process is the preparation method of potassium dichromate from chromite ore.
A = FeCr2O4; B = Na2CrO4; C = Na2Cr2O7; D = K2Cr2O7
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Question 3.
Mention the type of compounds formed when small atoms like H, C and N get trapped inside the crystal lattice of transition metals. Also give physical and chemical characteristics of these compounds.
Answer:
When small atoms like H, C and N get trapped inside the crystal lattice of transition metals.
(a) Such compounds are called interstitial compounds.
(b) Their characteristic properties are :

  1. They have high melting point, higher than those of pure metals.
  2. They are very hard.
  3. They retain metallic conductivity.
  4. They are chemically inert.

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Question 4.
On the basis of lanthanoid contraction, explain the following:
(i) Nature of bonding in La2O3 and Lu2O3.
(ii) Trends in the stability of oxosalts of lanthanoids from La to Lu.
(iii) Stability of the complexes of lanthanoids.
(iv) Radii of 4d and 5d block elements.
(v) Trends in acidic character of lanthanoid oxides.
Answer:
(i) As the size decreases covalent character increases. Therefore, La2O3 is more ionic and Lu2O3 is more covalent.
(ii) As the size decreases from La to Lu, stability of oxosalts also decreases.
(iii) Stability of the complexes increases as the size of lanthanoids decreases.
(iv) Radii of 4d and 5d block elements will be almost same.
(v) Acidic character of oxides increases from La to Lu.

Question 5.
A solution of KMnO4 on reduction yields either a colourless solution of a brown precipitate or a green solution depending on pH of the solution. What different stages of the reduction do these represent and how are they carried out?
Answer:
Oxidising behaviour of KMnO4 depends on pH of the solution.
In acidic medium (pH < 7),
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Question 6.
Identify the following:
(i) Oxoanion of chromium which is stable in acidic medium.
(ii) The lanthanoid element that exhibits + 4 oxidation state.
Answer:
(i) Cr2O7
(ii) Cerium

Question 7.
The magnetic moments of few transition metal ions are given below:

Metal ion Metal ion
Sc3+ 0.00
Cr2+ 4.90
Ni2+ 2.84
Ti3+ 1.73

(at no. Sc = 21, Ti = 22, Cr = 24, Ni = 28)
Which of the given metal ions :
(i) has the maximum number of unpaired electrons?
(ii) forms colourless aqueous solution?
(iii) exhibits the most stable + 3 oxidation state?
Answer:
(i) Cr2+
(ii) Sc3+
(iii) Sc3+

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Question 8.
Consider the standard electrode potential values (M2+/M) of the elements of the first transition series.
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Explain:
(i) E0 value for copper is positive.
(ii) E0 value of Mn is more negative as expected from the trend.
(iii) Cr2+ is a stronger reducing agent than Fe2+.
Answer:
(i) E0 value for copper is positive because the high energy to transform Cu(s) to Cu2+(aq) is not balanced by its hydration enthalpy.
(ii) E0 value of Mn is more negative as expected from the trend because Mn2+ has d5 configuration i. e., stable half-filled configuration.
(iii) Cr2+ is a stronger reducing agent than Fe2+ because d4 to d3 occurs in case of Cr2+ to Cr3+ (more stable \(t_{2 g}^{3}\)) while it changes from d6 to d5 in case of Fe2+ to Fe3+.

Long Answer Type Questions

Question 1.
Write similarities and differences between the chemistry of lanthanoids and that of actinoids.
Answer:
Similarities between lanthanoids and actinoids :

  1. Both lanthanoids and actinoids mainly show an oxidation state of +3.
  2. Actinoids show actinoid contraction like lanthanoid contraction is exhibited by lanthanoids.
  3. Both lanthanoids and actinoids are electropositive.

Differences between lanthanoids and actinoids :

  1. The members of lanthanoid exhibit less number of oxidation states than the corresponding members of actinoid series.
  2. Lanthanoid contraction is smaller than the actinoid contraction.
  3. Lanthanoids except promethium cure non-radioactive metals while actinoids are radioactive metals.

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Question 2.
(a) Assign reasons for the following:
(i) Zr and Hf have almost identical radii.
(ii) The PSEB 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 4, value for copper is positive (+0.34 V).
(b) Although +3 oxidation state is the characteristic oxidation state of lanthanoids but cerium shows +4 oxidation state also. Why?
Answer:
(a) (i) This is due to filling of 4/ orbitals which have poor shielding effect (lanthanoid contraction).
(ii) This is because the sum of enthalpies of sublimation and ionisation is not balanced by hydration enthalpy.
(b) It is because after losing one more electron Ce acquires stable 4f0 electronic configuration.

Question 3.
(a) How do you prepare :
(i) K2MnO4 from MnO2?
(ii) Na2Cr2O7 from Na2CrO4?
(b) Account for the following :
(i) The enthalpy of atomisation is lowest for Zn in 3d series of the transition elements.
(ii) Actinoid elements show wide range of oxidation states.
Answer:
(a) (i) Pyrolusite is fused with KOH in the presence of atmospheric oxygen to give K2MnO4.
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(b) (i) In the formation of metallic bonds, no electrons from 3d-orbitals are involved in case of zinc, while in all other metals of the 3d series, electrons from the d-orbitals are always involved in the formation of metallic bonds. That is why the enthalpy of atomisation of zinc is the lowest in the series.
(ii) This is due to comparable energies of 5f, 6d and 7s orbitals.

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Punjab State Board PSEB 12th Class Chemistry Book Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 8 The d-and f-Block Elements

PSEB 12th Class Chemistry Guide The d-and f-Block Elements InText Questions and Answers

Question 1.
Write down the electronic configuration of:
(i) Cr3+
(ii) Cu+
(iii) Co2+
(iv) Mn2+
(v) Pm3+
(vi) Ce4+
(vii) Lu2+
(viii) Th4+
Answer:
(i)Cr3+ = [Ar] 3d3
(ii) Cu+ = [Ar] 3d10
(iii) Co2+ = [Ar] 3d7
(iv) Mn2+ = [Ar] 3d5
(v) Pm3+ = [Xe] 4f4
(vi) Ce4+ = [Xe]
(vii) Lu2+ = [Xe] 4f145d1
(viii) Th4+ = [Rn]

Question 2.
Why are Mn2+ compounds more stable than Fe2+ towards oxidation to their + 3 state?
Answer:
Electronic configuration of Mn2+ is [Ar]18 3d5
Electronic configuration of Fe2+ is [Ar]18 3d6
It is known that half-filled and fully-filled orbitals are more stable. Therefore, Mn in (+ 2) state has a stable d5 configuration. This is the reason Mn2+ shows resistance to oxidation to Mn3+. Also, Fe2+ has 3d6 configuration and by losing one electron, its configuration changes to a more stable 3d5 configuration. Therefore, Fe2+ easily gets oxidised to Fe3+ oxidation state.

Question 3.
Explain briefly how +2 state becomes more and more stable in the first half of the first row transition elements with increasing atomic number?
Answer:
As the atomic number increases from 21 to 25, the number of electrons in the 3d-orbital also increases from 1 to 5. +2 oxidation state is attained by the loss of the two 4s electrons by these metals. Sc does not exhibit +2 oxidation state. As the number of d-electrons in +2 state increases from Ti to Mn, the stability of +2 state increases (d-orbital gradually becoming half filled). Mn(+2) has d5 electrons which is highly stable.

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Question 4.
To what extent do the electronic configurations decide the stability of oxidation states in the first series of the transition elements? Illustrate your answer with examples.
Answer:
The stability of oxidation states in the first series of the first transition elements are related to their electronic configurations.

The first five elements of the first transition series upto Mn in which the 3d-subshell is not more than half-filled, the minimum oxidation state is given by fife number of electrons in the outer s-subshell and the maximum oxidation state is given by the sum of the outer s and d-electrons. For example, Sc does not show +2 oxidation state. Its electronic configuration is 4s2 3d1. It loses all the three electrons to form SC3+.+3 oxidation state is very stable as by losing all three electrons, it attains the stable configuration of Argon. For Mn, +2 oxidation state is very stable, as after losing two 4s electrons, the d-orbitals become half-filled.

Question 5.
What may be the stable oxidation state of the transition elements with the following d-electron configurations in the ground state of their atoms?
3d3, 3d5, 3d8 and 3d4
Answer:
Stable oxidation states:
3d3 (vanadium): +2, +3, +4, +5
3d5 (chromium): +3, +4, +6
3d5 (manganese): +2, +4, +6, +7
3d8 (cobalt) : +2, +3 (in complexes)
3d4 : There is no d4 configuration in the ground state.

Question 6.
Name the oxometal anions of the first series of the transition metals in which the metal exhibits the oxidation state equal to its group number.
Answer:
(i) Vanadate, \(\mathrm{VO}_{3}^{-}\)
Oxidation state of V is + 5.

(ii) Chromate, \(\mathrm{CrO}_{4}^{2-}\)
Oxidation state of Cr is + 6.

(iii) Permanganate, \(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\)
Oxidation state of Mn is + 7.

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Question 7.
What is lanthanoid contraction? What are the consequences of lanthanoid contraction?
Answer:
As we move along the lanthanoid series, the atomic number increases gradually by one. This means that the number of electrons and protons present in an atom also increases by one. As electrons are being added to the same shell, the effective nuclear charge increases. This happens because the increase in nuclear attraction due to the addition of proton is more pronounced than the increase in the interelectronic repulsions due to the addition of electron. Also, with the increase in atomic number, the number of electrons in the 4f orbital also increases. The 4f electrons have poor shielding effect. Therefore, the effective nuclear charge experienced by the outer electrons increases. Consequently, the attraction of the nucleus for the outermost electrons increases. This results in a steady decrease in the size of lanthanoids with the increase in the atomic number. This is termed as lanthanoid contraction.
Consequences of lanthanoid contraction

  1. There is similarity in the properties of second and third transition series.
  2. Separation of lanthanoids is possible due to lanthanoid contraction.
  3. It is due to lanthanoid contraction that there is variation in the basic strength of lanthanoid hydroxides. (Basic strength decreases from La(OH)3 to Lu(OH)3.)

Question 8.
What are the characteristics of the transition elements and why are they called transition elements? Which of the d-block elements may not he regarded as the transition eledaents?
Answer:
Characteristics of the Transition Elements (d-Block)
1. Electronic configuration : General electronic configuration of these elements is (n -1) d1-10 ns1-2.

2. Physical properties : These elements have metallic properties such as metallic lustre, high tensile strength, ductility, malleability, high thermal and electrical conductivity, low volatility (except Zn, Cd, Hg), hardness, etc. Their melting points are high.

3. Atomic and ionic size : In a given series, there is a progressive decrease in radius with increasing atomic number.

4. Ionisation enthalpies : Due to an increase in nuclear charge which accompanies the filling of inner d-orbitals, there is an increase in ionisation enthalpy along each series of the transition elements from left to right.

5. Oxidation states : These elements exhibit variable oxidation states.
e.g.,1 Transition series:
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6. Trends in M2+/M values: The general trend towards less negative E0 values across the series is related to the general increase in the sum of the first and second ionisation enthalpies.

7. Trends in M3+/M2+E values : Low value of Ee shows the stability of ion (either d5 or d10 configuration).

8. Magnetic properties : These elements show diamagnetism and paramagnetism.
9. Formation of coloured salts : The compounds of transition elements form coloured ions, e.g., Mn3+ violet; Fe2+ green, etc.

10. Complex formation : These elements form complex compounds due to their small size and high charge density, e.g., [PtCl4]2-

11. Catalyst: Many of these elements are used as catalyst e.g., V2O5 is used as a catalyst in contact process for the manufacture of H2SO4.

12. Interstitial compound formation : Transition elements form interstitial compounds. It means the compounds in which H, C or N etc. are trapped inside the crystal lattices of metals.

13. Alloy formation : Because of similar radii and other characteristics alloys are readily formed by these metals.
The d-block elements are called transition elements because these elements represent change or transition in properties from s-block to p-block elements.
The electronic configuration of Zn, Cd and Hg is represented by the general formula (n – 1)d10ns2. These elements have completely filled d-orbitals in ground state as well as in their common oxidation states. Therefore, they may not be regarded as the transition elements.

Question 9.
In what way is the electronic configuration of the transition elements different from that of the non-transition elements?
Answer:
Transition elements contain incompletely filled d-subshell, Le., their electronic configuration is (n – 1)d1-10ns1-2 whereas non-transition elements have no d-subshell or their subshell is completely filled and have ns1-2 or ns2np1-6 in their outermost shell.

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Question 10.
What are the different oxidation states exhibited by the lanthanoids?
Answer:
In the lanthanoid series, + 3 oxidation state is most common i.e., Ln(III) compounds are predominant. However, + 2 and + 4 oxidation states can also be found in the solution or in solid compounds.

Question 11.
Explain giving reasons:
(i) Transition metals and many of their compounds show paramagnetic behaviour.
(ii) The enthalpies of atomisation of the transition metals are high.
(iii) The transition metals generally form coloured compounds.
(iv) Transition metals and their many compounds act as good catalyst.
Answer:
(i) Transition metals and many of their compounds show paramagnetic behaviour. Paramagnetism arises due to the presence of unpaired electrons with each electron having a magnetic moment associated with its spin angular momentum and orbital angular momentum. However, in the first transition series, the orbital angular momentum is quenched. Therefore, the resulting paramagnetism is only because of the unpaired electron.

(ii) Transition metals have high effective nuclear charge and a large number of valence electrons. Therefore, they form very strong metallic bonds. As a result, the enthalpy of atomisation of transition metals is high.

(iii) Formation of coloured compounds by transition metals is due to partial adsorption of visible light. The electron absorbs the radiation of a particular frequency (of visible region) and jumps into next orbital.

(iv) Catalysts, at the solid surface, involve the formation of bonds between reactants molecules and atoms of the surface of the catalyst (I row transition metals utilised 3d and 4s-electrons for bonding). This has the effect of increasing the concentration of the reactants at the catalyst surface and also lowering of the activation energy.
Transition metal ions show variable oxidation states so they are effective catalysts, e.g.
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Mechanism of catalysing action of Fe3+ in the above reaction
(a) 2Fe3+ + 2I → 2Fe2+ + I2
(b) 2Fe2+ + \(\mathrm{S}_{2} \mathrm{O}_{8}^{2-}\) → 2Fe3+ + \(2 \mathrm{SO}_{4}^{2-}\)

Question 12.
What are interstitial compounds? Why are such compounds well known for transition metals?
Answer:
Interstitial compounds are those in which small atoms occupy the interstitial sites in the crystal lattice. Interstitial compounds are well known for transition metals because small-sized atoms of H, B, C, N, etc., can easily occupy position in the voids present in the crystal lattices of transition metals.

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Question 13.
How is the variability in oxidation states of transition metals different from that of the non-transition metals? Illustrate with examples.
Answer:
The oxidation states of transition elements differ from each other by unity e.g., Fe2+ and Fe3+, Cu+ and Cu2+ (due to incomplete filling of d-orbitals) whereas oxidation states of non-transition elements normally differ by two units e.g., Pb2+ and Pb4+, Sn2+ and Sn4+ etc.

Question 14.
Describe the preparation of potassium dichromate from iron chromite ore. What is the effect of increasing pH of a solution of potassium dichromate?
Answer:
Potassium dichromate is prepared from chromite ore FeCr2O4 as follows :
Step I: Conversion of chromite ore to sodium chromate.
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Effect of pH : The chromates and dichromates can interconverted to each other in aqueous solution by increasing the pH of the solution.
\(\mathrm{CrO}_{4}^{2-}\) + 2OH ⇌ \(2 \mathrm{CrO}_{4}^{2-}\) + H2O

Question 15.
Describe the oxidising action of potassium dichromate and write the ionic equations for its reaction with
(i) iodide
(ii) iron (H) solution and
(iii) H2S.
Answer:
(i) \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) + 14H+ + 6I → 2Cr3+ + 7H2O + 3I2
(ii) \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) + 14H+ + 6Fe2+ → 2Cr3+ + 7H2O + 6Fe3+
(iii) \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) + 8H+ + 3H2S → Cr3+ + 7H2O + 3S

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Question 16.
Describe the preparation of potassium permanganate. How does the acidified permanganate solution reacts with
(i) iron
(ii) ions
(iii) SO2 and
(iii) oxalic acid? Write the ionic equations for the reactions.
Answer:
Preparation of potassium permanganate, KMnO4: Potassium permanganate is prepared by the fusion of MnO2 (pyrolusite) with potassium hydroxide and an oxidising agent such as KNO3 to form potassium manganate which disproportionate in a neutral or acidic solution to form permanganate.
2MnO2 + 4KOH + O2 → 2K2MnO4 + H2O
\(3 \mathrm{MnO}_{4}^{2-}\) + 4H+ → \(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + MnO2 + H2O
On large scale : It is prepared by the alkaline oxidative fusion of MnO2 to form potassium manganate. The electrolytic oxidation of potassium manganate in alkaline solution produces KMnO4, at the anode.
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Reaction of KMnO4 in acidic medium
(a) Oxidises iron (II) ions to iron (III) ions.
\(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + 5Fe2+ + 8H2+ → Mn2+ + 5Fe3+ + 4H2O
(b) Oxidises SO2 to sulphuric acid.
\(2 \mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + 5SO2 + 2H2O → 2Mn2+ + 5SO2 + 4H2O
(c) Oxidises oxalic acid to carbon dioxide.
\(2 \mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + \(5 \mathrm{C}_{2} \mathrm{O}_{4}^{2-}\) + 16H+ → 2Mn2+ + 10CO2 + 8H2O

Question 17.
For M2+/M and M3+/M2+ systems, the E values for some metals are as follows:
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Use this data to comment upon :
(i) the stability of Fe3+ in acid solution as compared to that of Cr3+ or Mn3+ and
(ii) the ease with which iron can be oxidised as compared to a similar process for either chromium or manganese metal.
Answer:
(i) Higher the reduction potential of a species, greater is the tendency for its reduction to take place. Therefore, Mn3+ with highest reduction potential would be readily reduced to Mn2+ and hence is the least stable.
Thus, from the value of reduction potential, it is clear that the stability of Fe3+ in acidic solution is more than Mn3+ but less than that of Cr3+.

(ii) Lower the reduction potential or higher the oxidation potential of a species, greater the ease with which its oxidation will take place. Thus, order of tendency to undergo oxidation is Fe < Cr < Mn.

Question 18.
Predict which of the following will be coloured in aqueous solution?
Ti3+, V3+, Cu+, Sc3+, Mn2+, Fe3+ and Co2+. Give reasons for each.
Answer:
Only those ions will be coloured which have incompletely filled d-orbitals. Those with fully-filled or empty d-orbitals are colourless. Due to d-d transition, Ti3+, V3+, Mn2+, Fe3+ and Co2+ are coloured.

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Question 19.
Compare the stability of + 2 oxidation state for the elements of the first transition series.
Answer:
The decreasing negative electrode potentials of M2+/M+1 in the first transition series shows that in general, the stability of +2 oxidation state decrease from left-to right (exception being Mn and Zn). The decrease in the negative electrode potentials is due to increase in the sum IE2 + IE2.

Question 20.
Compare the chemistry of actinoids with that of the lanthanoids with special reference to :
(i) electronic configuration
(ii) oxidation states
(iii) atomic and ionic sizes and
(iv) chemical reactivity.
Answer:
(i) Electronic configuration : The general electronic configuration of lanthanoids is [Xe]54 4f1-14 5d0-16s2 whereas that of actinoids is [Rn]865f1-146d0-17s2. Thus, lanthanoids belong to 4/-series whereas actinoids belong to 5/-series.

(ii) Oxidation states : Lanthanoids show limited oxidation states (+2, +3, +4), out of which, +3 is most common. This is because of a large energy gap between 4/, 5d and 6s subshells. On the other hand, actinoids show a large number of oxidation states because of small energy gap between 5/, 6d and 7s subshells.

(iii) Atomic and ionic sizes : Both show decrease in size of their atoms or ions in +3 oxidation state. In lanthanoids, the decrease is called lanthanoid contraction whereas in actinoids, it is called actinoid contraction. However, the contraction is greater from element to element in actinoids due to poorer shielding by 5/-electrons.

(iv) Chemical reactivity : In general, the earlier members of the lanthanoid series are quite reactive (similar to calcium) but with increasing atomic number, they behave more like aluminium.
Values for E for the half-reaction :
Ln3+ (aq) + 3e → Ln(s)
are in the range of -2.2 to -2.4 V except for Eu for which the value is -2.0 V. This is of course, a small variation.

The metals combine with hydrogen when gently heated in the gas. The carbides, Ln3C , Ln2C3 and LnC2 are formed when the metals are heated with carbon. They liberate hydrogen from dilute acids and bum in halogens to form halides. They form oxides and hydroxides —M2O3 and M(OH)3. The hydroxides are definite compounds, not just hydrated oxides, basic like alkaline earth metal oxides and hydroxides.
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 6
The actinoids are highly reactive metals, especially when finely divided. For example, the action of boiling water on them, gives a mixture of oxide and hydride and combination with most non-metals takes place at moderate temperatures. Hydrochloric acid attacks all metals but most are slightly affected by nitric acid owing to the formation of protective oxide layers; alkalis have no action.

PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements

Question 21.
How would you account for the following:
(i) Of the d4 species, Cr2+ is strongly reducing while manganese (III) is strongly oxidising.
(ii) Cobalt (II) is stable in aqueous solution but in the presence of complexing reagents, it is easily oxidised.
(iii) The d1 configuration is very unstable in ions.
Answer:
(i) E value for Cr3+ /Cr2+ is negative (-0.41 V) whereas E value for Mn3+/Mn2+ is positive (+1.57 V). Thus, Cr2+ ions can easily undergo oxidation to give Cr3+ ions and, therefore, act as strong reducing agent. On the other hand, Mn3+ can easily undergo reduction to give Mn2+ and hence act as oxidising agent.

(ii) Co(III) has greater tendency to form coordination complexes than Co (II). Thus, in the presence of ligands, Co (II) charges to Co (III), i.e., it easily oxidised.

(iii) The ions with d1 configuration have the tendency to lose the only electron present in d-subshell to acquire stable d0 configuration. Therefore, they are unstable and undergo oxidation or disproportionation.

Question 22.
What is meant by ‘disproportionation’? Give two examples of disproportionation reaction in aqueous solution.
Answer:
Disproportionation reactions are those reactions in which the same substance undergoes oxidation as well as reduction. In disproportion reaction, oxidation number of an element increases as well as decreases to form two different products, e.g.,
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 7

Question 23.
Which metal in the first series of transition metals exhibits +1 oxidation state most frequently and why?
Answer:
Copper has electronic configuration 3d10 4s1 will attain a completely filled d-orbital and a stable configuration on losing 4s1 electron i.e., [Ar] 3d10.

PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements

Question 24.
Calculate the number of unpaired electrons in the following gaseous ions: Mn3+, Cr3+, V3+ and Ti3+. Which one of these is the most stable in aqueous solution?
Answer:
Mn3+ = 3d4 = 4 unpaired electrons
Cr3+ = 3d3 = 3 unpaired electrons
V3+ = 3d2 = 2 unpaired electrons
Ti3+ = 3d1 =1 unpaired electron
Out of these species Cr3+ is the most stable in aqueous solution due to its tendency of complex formation.

Question 25.
Give examples and suggest reasons for the following features of the transition metal chemistry :
(i) The lowest oxide of transition metal is basic, the highest is amphoteric/acidic.
(ii) A transition metal exhibits higher oxidation state in oxides and fluorides.
(iii) The highest oxidation state is exhibited in oxo-anions of a metal.
Answer:
(i) The lowest oxide of transition metal is basic because the metal atom has low oxidation state. This means that it can donate valence electrons which are not involved in bonding to act like a base. Whereas the highest oxide is amphoteric/acidic due to the highest oxidation state as the valence electrons are involved in bonding and are unavailable. For example, MnO is basic whereas Mn2O7 is acidic.

(ii) A transition metal exhibits higher oxidation states in oxides and fluorides because oxygen and fluorine are highly electronegative elements, small in size (and strongest oxidising agents). For example, osmium shows an oxidation state of +6 in O2F6 and vanadium shows an oxidation state of +5 in V2O5.

(iii) Oxometal anions have the highest oxidation state, e.g., Cr in \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) has an oxidation state of +6 whereas Mn in \(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\) has an oxidation state of +7. This is again due to the combination of the metal with oxygen, which is highly electronegative and oxidising element.

Question 26.
Indicate the steps in the preparation of:
(i) K2Cr2O7 from chromite ore.
(ii) KMnO4 from pyrolusite ore.
Answer:
(i) Potassium dichromate is prepared from chromite ore FeCr2O4 as follows :
Step I: Conversion of chromite ore to sodium chromate.
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 3
Effect of pH : The chromates and dichromates can interconverted to each other in aqueous solution by increasing the pH of the solution.
\(\mathrm{CrO}_{4}^{2-}\) + 2OH ⇌ \(2 \mathrm{CrO}_{4}^{2-}\) + H2O
(ii) Preparation of potassium permanganate, KMnO4: Potassium permanganate is prepared by the fusion of MnO2 (pyrolusite) with potassium hydroxide and an oxidising agent such as KNO3 to form potassium manganate which disproportionate in a neutral or acidic solution to form permanganate.
2MnO2 + 4KOH + O2 → 2K2MnO4 + H2O
\(3 \mathrm{MnO}_{4}^{2-}\) + 4H+ → \(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + MnO2 + H2O
On large scale : It is prepared by the alkaline oxidative fusion of MnO2 to form potassium manganate. The electrolytic oxidation of potassium manganate in alkaline solution produces KMnO4, at the anode.
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 4
Reaction of KMnO4 in acidic medium
(a) Oxidises iron (II) ions to iron (III) ions.
\(\mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + 5Fe2+ + 8H2+ → Mn2+ + 5Fe3+ + 4H2O
(b) Oxidises SO2 to sulphuric acid.
\(2 \mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + 5SO2 + 2H2O → 2Mn2+ + 5SO2 + 4H2O
(c) Oxidises oxalic acid to carbon dioxide.
\(2 \mathrm{MnO}_{4}^{-}\) + \(5 \mathrm{C}_{2} \mathrm{O}_{4}^{2-}\) + 16H+ → 2Mn2+ + 10CO2 + 8H2O

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Question 27.
What are alloys? Name an important alloy which contains some of the lanthanoid metals. Mention its uses.
Answer:
An alloy is a homogeneous mixture of two or more metals, or metals and non-metals. An important alloy containing lanthanoid metals is misch metal which contains 95% lanthanoid metals and 5% iron along with traces of S, C, Ca and Al. It is used in Mg-based alloy to produce bullets, shells and lighter flints.

Question 28.
What are inner-transition elements? Decide which of the following atomic numbers are the atomic numbers of the inner-transition elements:
29, 59, 74, 95, 102, 104.
Answer:
The f-block elements, i.e., in which the last electron enters into /-subshell are called inner-transition elements. These include lanthanoids (58-71) and actinoids (90-103). Thus, elements with atomic numbers 59, 95 and 102 are inner-transition elements.

Question 29.
The chemistry of the actinoid elements is not so smooth as that of the lanthanoids. Justify this statement by giving some examples from the oxidation state of these elements.
Answer:
Lanthanoids show a limited number of oxidation state, viz., +2, +3 and +4 (out of which +3 is the most common). This is because of a large energy gap between 4/, 5d and 6s subshells. The dominant oxidation state of actinoids is also +3 but they show a number of other oxidation states also, e.g., uranium(Z = 92) and plutonium (Z = 94), show +3, +4, +5 and +6, neptunium (Z = 94) shows +3, +4, +5 and +7, etc. This is due to small energy difference between 5/, 6 d and 7s subshells of the actinoids.

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Question 30.
Which is the last element in the series of the actinoids? Write the electronic configuration of this element. Comment on the possible oxidation state of this element.
Answer:
The last element in the actinoid series is lawrencium (Lr). Its atomic number is 103 and its electronic configuration is [Rn]5f14 6d1 7s2. The most common oxidation state displayed by it is + 3; because after losing 3 electrons it attains stable f14 configuration.

Question 31.
Use Hund’s rule to derive the electronic configuration of Ce3+ ion and calculate its magnetic moment on the basis of spin only formula.
Answer:
58Ce =[Xe]54f15d16s2
Ce3+ = [Xe]544f1, i.e., there is only one unpaired electron, i.e., n = 1. Hence, p = \(\sqrt{n(n+2)}\) = \(\sqrt{1(1+2)}\) = \(\sqrt{3}\) = 1.73 BM

Question 32.
Name the members of the lanthanoid series which exhibit +4 oxidation states and those which exhibit +2 oxidation states. Try to correlate this type of behaviour with the electronic configurations of these elements.
Answer:
+4 = 58Ce , 59Pr, 60Nd, 65Tb, 66Dy
+2 = 60Nd, 62Su 63Eu, 69Tm, 70Yb
+2 oxidation state is exhibited when the lanthanoid has the configuration 5d06s2, so that 2 electrons are easily lost. +4 oxidation state is exhibited when the configuration left is close to 4f0 (e.g., 4f0, 4f1, 4f2) or close to 4f7 (e.g., 4f7or 4f8)

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Question 33.
Compare the chemistry of the actinoids with that of lanthanoids with reference to:
(i) electronic configuration
(ii) oxidation states and
(iii) chemical reactivity.
Answer:

Characteristics Lanthanoids Actinoids
(i) Electronic configuration [Xe] 4/1-145d0-16s2 [Rn] 5/114 6d0_1 7s2
(ii) Oxidation states Besides +3 oxidation state lanthanoids show +2 and +4 oxidation state only in a few cases. Besides +3 oxidation state, actinoids show higher oxidation state of +4, +5, +6, +7 also because of smaller energy gap between 5/, 6d and 7s subshell.
(iv) General chemical reactivity elements These are less reactive metals.

Lesser tendency towards complex formation.

Do not form oxacation. Compounds are less basic.

These are highly reactive metals

Greater tendency towards complex formation.

Form oxocation.Compounds are more basic.

Question 34.
Write the electronic configurations of the elements with the atomic numbers 61, 91,101 and 109.
Answer:
Z = 61 (Promethium, Pm), electronic configuration [Xe] 4f55d06s2
Z = 91 (Protactium, Pa), electronic configuration = [Rn] 5f26d1s2
Z = 101 (Mendelevium, Md), electronic configuration = [Rn] 5f136d07s2
Z =109 (Meitnerium, Mt), electronic configuration = [Rn] 5f146d7 7s2

Question 35.
Compare the general characteristics of the first series of the transition metals with those of the second and third series metals in the respective vertical columns. Give special emphasis on the following points :
(i) Electronic configurations,
(ii) Oxidation states,
(iii) Ionisation enthalpies and
(iv) Atomic sizes
Answer:
(i) Electronic configurations : The elements in the same vertical column generally have similar electronic configurations. Although the first series shows only two exceptions, i.e., Cr = 3d54s1 and Cu = 3d104s1 but the second series shows more exceptions, e.g., Mo(42) = 4ds5s1,Tc(43) = 4d65s1,Ru(44) = 4d75s1 Rh(45) = 4d85s1, Pb(46) = 4d105s0, Ag(47) = 4d105s1. Similarly, in the third series, W(74) = 5d46s2, Pt(78) = 5d96s1 and Au(79) = 5d10 6d1. Hence, in the same vertical column, in a number of cases, the electronic configuration of the three series are not similar.

(ii) Oxidation states : The elements in the same vertical column generally show similar oxidation states. The number of oxidation states shown by the elements in the middle of each series is maximum and minimum at the extreme ends.

(iii) Ionisation enthalpies : The first ionisation enthalpies in each series generally increase gradually as we move from left to right though some exceptions are observed in each series. The first ionisation enthalpies of some elements in the second (4d) series are higher while some of them have lower value than the elements of 3d series in the same vertical column. However, the first ionisation enthalpies of third (5d) series are higher than those of 3d and 4d series. This is because of weak shielding of nucleus of 4/-electrons in the 5d-series.

(iv) Atomic sizes : Generally, ions of the same charge or atoms in a given series show progressively decrease in radius with increasing atomic number though the decrease is quite small. But the size of the atoms of the 4d-series is larger than the corresponding elements of the 3d-series whereas those of corresponding elements of the 5d-series are nearly the same as those of 4d-series due to lanthanoid contraction.

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Question 36.
Write down the number of 3d electrons in each of the following ions:
Ti2+, V2+, Cr3+, Mn2+, Fe2+, Fe3+, Co2+, Ni2+ and Cu2+. Indicate how would you expect the five 3d-orbitals to be occupied for these hydrated ions (octahedral).
Answer:
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Question 37.
Comment on the statement that elements of the first transition series possess many properties different from those of heavier transition elements.
Answer:
The given statement is true. Some evidences in support of this statement are given below :

  1. Atomic radii of the heavier transition elements (4 d and 5d series) are larger than those of the corresponding elements of the first transition series though those of 4d and 5d series are very close to each other.
  2. Ionisation enthalpies of 5d series are higher than the corresponding elements of 3d and 4d series.
  3. Enthalpies of atomisation of 4d and 5d series are higher than the corresponding elements of first series.
  4. Melting and boiling points of heavier transition elements are greater than those of the first transition series due to stronger intermetallic bonding.

Question 38.
What can be inferred from the magnetic moment values of the following complex species?

Example Magnetic Moment (BM)
K4[Mn(CN)6] 2.2
[Fe(H2O)6]2+ 5.3
K2[Mncl4] 5.9

Answer:
Magnetic moment (μ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
For n = 1, μ = \(\sqrt{1(1+2)}\) = \(\sqrt{3}\) = 1.73;
For n = 2, μ = \(\sqrt{2(2+2)}\) = \(\sqrt{8}\) = 2.83;
For n = 3, μ = \(\sqrt{3(3+2)}\) = \(\sqrt{15}\) = 3.87;
For n = 4, μ = \(\sqrt{4(4+2)}\) = \(\sqrt{24}\) = 4.90;
For n = 5, μ = \(\sqrt{5(5+2)}\) = \(\sqrt{35}\) = 5.92
K4[Mn(CN)6]
Here, Mn is in +2 oxidation, state, i.e., as Mn2+. μ = 2.2 BM shows it has only one unpaired electron.
Hence, when CN ligands approach Mn2+ion, the electrons in 3d pair up
Hence, CN is a strong ligand. The hybridisation involved is d2sp3 forming inner orbital octahedral complex.
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 10
[Fe(H2O)6]2+
Here, Fe is in +2 oxidation state, i.e., as Fe2+. μ = 5.3 BM shows that there are four unpaired electrons. This means that the electrons in 3d do not pair up when the ligand H2O molecules approach. Hence, H2O is a weak ligand. To accommodate the electrons donated by six H20 molecules, the hybridisation will be sp3d2.
Hence, it will be an outer orbital octahedral complex.
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K2[MnCl4]
Here, Mn is in +2 oxidation state, i.e., as Mn2+. μ = 5.9 BM shows that there are five unpaired electrons. Hence, the hybridisation involved will be sp3 and the complex will be tetrahedral.
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Chemistry Guide for Class 12 PSEB The d-and f-Block Elements Textbook Questions and Answers

Question 1.
Silver atom has completely filled d-orbitals (4d10) in its ground state. How can you say that it is a transition element?
Answer:
Silver (Z = 47) can show +2 oxidation state in which it has incompletely filled d-subshell (4d9 configuration). So, silver is a transition element.

Question 2.
In the series Sc (Z = 21) to Zn (Z = 30), the enthalpy of atomisation of zinc is the lowest i.e., 126 kJ mol-1. Why?
Answer:
In the first series of transition elements Sc to Zn, all elements have one or more unpaired electrons except zinc which has no unpaired electron as its outer electronic configuration is 3d104s2. Hence, interatomic metallic bonding (M-M bonding) is weaker in zinc. Therefore, enthalpy of atomisation is lowest.

Question 3.
Which of the 3d series of the transition metals exhibits the largest number of oxidation states and why?
Answer:
Mn (atomic number = 25) has electronic configuration[Ar] 3d5 4s2.
Mn has the maximum number of unpaffed electrons present in the d-subshell (5 electrons). Hence, Mn exhibits the largest number of oxidation states, i.e., + 2 to + 7 in its compounds.

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Question 4.
The E(M2+/M) value for copper is positive (+0.34 V). What is possible reason for this? (Hint: Consider its high △aH and low △hydH)
Answer:
E (M2+/M) for any metal is related to the sum of the enthalpy change taking place in the following steps:
M(s) + △aH → M(g), (△aH = Enthalpy of atomisation)
M(g) + △iH → M2+(g) (△iH = Ionisation enthalpy)
M2+(g) + aq → M2+(aq) + △hydH
(△hydH = Hydration enthalpy)
Copper has high enthalpy of ionisation and relatively low enthalpy of hydration. So, E(Cu2+/Cu) is positive. The high energy to transform Cu(s) to Cu2+(aq) is not balanced by its hydration enthalpy.

Question 5.
How would you account for the irregular variation of ionisation enthalpies (first and second) in the first series of the transition elements?
Answer:
Irregular variation of ionisation enthalpies is mainly attributed to varying degree of stability of different 3d configuration (e.g., d0, d5, d10 are exceptionally stable).

Question 6.
Why is the highest oxidation state of a metal exhibited in its oxide or fluoride only?
Answer:
Oxygen and fluorine have small size and high electronegativity. Hence, they can oxidise the metal to the highest oxidation state.

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Question 7.
Which is a stronger reducing agent Cr2+ or Fe2+ and why?
Answer:
The following reactions are involved when Cr2+ and Fe2+ act as reducing agents.
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 13
The PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 14 value is -0.41 V and PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 15 value is +0.77 V. This means that Cr2+ can be easily oxidised to Cr3+, but Fe2+ does not get oxidised to Fe3+ easily. Therefore, Cr2+ is a better reducing agent that Fe2+.

Question 8.
Calculate the spin only magnetic moment of M2+ (aq) ion (Z = 27).
Answer:
Electronic configuration of M atom with Z = 27 is [Ar] 3d7 4s2.
∴ Electronic configuration of M2+ = [Ar]3d7, i.e.,
PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements 16
Hence, it has three unpaired electrons.
∴ Spin only magnetic moment (μ) = \(\sqrt{n(n+2)}\)
= \(\sqrt{3(3+2)}\)
= \(\sqrt{15}\)
= 3.87 BM

Question 9.
Explain why Cu+ ion is not stable in aqueous solutions.
Answer:
In aqueous solutions Cu+ undergoes disproportionation to form a more stable Cu2+ ion.
2Cu+(aq) > Cu2+(aq) + Cu(s)
The higher stability of Cu2+ in aqueous solutions may be attributed to its greater negative △hyd.H0 than that of Cu+. It compensates the second ionisation enthalpy of Cu+ involved in the formation of Cu2+ ions.

PSEB 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 The d-and f-Block Elements

Question 10.
Actinoid contraction is greater from element to element than lanthanoid contraction. Why?
Answer:
In actinoids, 5f orbitals are filled. These 5f orbitals have a poorer shielding effect than 4f orbitals (in lanthanoids). Thus, the effective nuclear charge experienced by electrons in valence shells in case of actinoids is much more than that experienced by lanthanoids. Hence, the size contraction in actinoids is greater as compared to that in lanthanoids.

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई

Punjab State Board PSEB 5th Class Hindi Book Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 5 Hindi Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई (2nd Language)

बुराई नहीं, भलाई अभ्यास

नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ो और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करो :

  • ਬੁਰਾਈ = बुराई
  • ਜੋੜਾ = जोड़ा
  • ਬੰਦਰ = बंदर
  • ਹਿਰਣ = हिरण
  • ਭਲਾਈ = भलाई
  • ਭੋਲੂ = भोलू

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई

नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ो और हिंदी शब्दों को लिखो :

  • ਇੱਕ = एक
  • ਵੇਲ = लता
  • ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ = लज्जित
  • ਵਰਤਾਵ = व्यवहार
  • ਮਾਂ-ਪਿਓ = माता-पिता
  • ਸ਼ਰਾਰਤੀ = नटखट

पढ़ो, समझो और लिखो

(क) म् + ह = म्ह = तुम्हारा
व् + य = व्य = व्यवहार
न् + ह = न्ह = नन्हा
च् + च = च्च = बच्चा
ल् + ल = ल्ल = चिल्ला
म् + म = म्म = हिम्मत
ज् + ज = ज्ज = लज्जित
उत्तर :
विद्यार्थी उपरोक्त शब्दों के सही और शुद्ध उच्चारण का अभ्यास करें।

बताओ

प्रश्न 1.
पेड़ पर कौन रहता था?
उत्तर :
पेड़ पर बन्दर और बंदरिया, अपने नटखट बेटे भोलू के साथ रहते थे।

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई

प्रश्न 2.
भोलू का स्वभाव कैसा था?
उत्तर :
भोलू बड़ा ही नटखट स्वभाव का था। वह अपनी शरारतों से हमेशा दूसरों को दु:खी करता था।

प्रश्न 3.
भोलू ने हिरण के साथ क्या शरारत की?
उत्तर :
भोलू ने हिरण को देखकर उसे अपने को पकड़ने के लिए कहा। जब हिरण तेज़ी से दौड़ कर उसे पकड़ने लगा तो वह झट से पेड़ पर चढ़ गया और हिरण दलदल में गिर गया।

प्रश्न 4.
भोलू के माता-पिता ने लाली को कैसे बचाया?
उत्तर :
भोलू के पिता ने पेड़ पर लिपटी एक मज़बूत लता को खींचा और उसे लाली की ओर फेंका। लाली ने उसे मुँह से पकड़ लिया और भोलू के पिता ने उसे खींच कर बाहर निकाल लिया। इस प्रकार उन्होंने लाली को बचा लिया।

प्रश्न 5.
हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
उत्तर :
हमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

पढ़ो और समझो

(क) पेड़ = वृक्ष
मुँह = मुख
हिरण = मृग
डर = भय
उत्तर :
उपरोक्त रेखांकित शब्दों के पर्यायवाची शब्द उनके सामने लिखे गए हैं। विद्यार्थी इन्हें कण्ठस्थ कर लें।

(ख) बंदर = बंदरिया
माता = पिता
उत्तर :
उपरोक्त रेखांकित शब्दों के विपरीत लिंगी शब्द सामने लिखे गए हैं।

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(ग) बुराई = भलाई
बुरा व्यवहार = भला व्यवहार
अन्दर = बाहर
धीरे-धीरे = तेजी से
दुःखी= सुखी
एक = अनेक
उत्तर :
उपरोक्त रेखांकित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द सामने दिए गए हैं। विद्यार्थी इन्हें स्मरण रखें।

इनसे नये शब्द बनाओ

च्च, ल्ल, म्म, ज्ज
उत्तर :
च्च = बच्चा, कच्चा।
ल्ल = हल्ला, बल्ला।
म्म = अम्मा, निकम्मा।
ज्ज = लज्जा, सज्जा।

रचनात्मक अभिव्यक्ति

चित्र में दिखाई गई बातों के आधार पर चित्र के नीचे भली आदत/बुरी आदत लिखें।
PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई 1

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
अगर ‘बंदर’ का ‘बंदरिया’ है तो ‘माता’ का है:
(i) पिता
(ii) दादा
(iii) दादी
(iv) रानी।
उत्तर :
(i) पिता

प्रश्न 2.
अगर ‘बुराई’ ‘भलाई’ है ‘अन्दर’ का है
(i) बंदर
(ii) सुंदर
(iii) बाहर
(iv) शहर।।
(iv) रोक।
उत्तर :
(iii) बाहर

प्रश्न 3.
अगर दुखी’ का ‘सुखी है तो ‘एक’ का है
(i) अनेक
(ii) शेर
(iii) शेर
उत्तर :
(i) अनेक

प्रश्न 4.
भोलू का स्वभाव कैसा था?
(i) नटखट
(ii) खटपट
(iii) शैतानी
(iv) निडर।
उत्तर :
(i) नटखट।

बुराई नहीं, भलाई Summary in Hindi

किसी पेड़ पर बन्दर और बन्दरिया का जोड़ा रहता था। उनका एक छोटा बच्चा भी था, जिसका नाम भोलू था। वह बड़ा ही नटखट था। वह ऐसी शरारतें करता था जिससे दूसरों को परेशानी होती थी। उसकी इस आदत से सभी दुखी थे। एक बार की बात है कि भोल और उसके मातापिता आपस में बातें कर रहे थे तभी अचानक भोलू उनसे नज़रें बचाकर चला गया। उसने एक दलदल देखी।

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई

PSEB 5th Class Hindi Solutions Chapter 7 बुराई नहीं, भलाई 2

इसे देख उसके मन में शरारत सूझी। उसने देखा कि सामने से हिरण का बच्चा ‘लाली’ आ रहा है। उसने लाली को कहा, “लाली ! मुझे पकड़ो।” लाली भोलू को पकड़ने के लिए दौड़ा। भोलू दौड़ता हुआ जैसे ही दलदल के समीप पहुँचा वह झट से – पेड़ पर. चढ़ गया लेकिन उसके पीछे आ रहा लाली – संभल न पाया और दलदल में गिर गया। लाली दलदल में फँसता जा रहा था। यह देखकर भोलू भी घबरा गया और सहायता के लिए चिल्लाने लगा।

उसकी आवाज़ सुनकर उसके माँ-बाप दौड़ते हुए आए। उन्होंने जल्दी से पेड़ से लिपटी एक मज़बूत लता को खींचा और उसे लाली की ओर फेंका। लाली ने उसे पकड़ लिया और इधर इन्होंने उसे खींच कर दलदल से बाहर निकाल लिया। इस तरह लाली की जान बच गई।

भोलू अपने किए पर शर्मिंदा था। उसके पिता जी ने उसे समझाते हुए कहा कि बेटा, हमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को नुकसान हो। भोलू के मन पर इन बातों का बहुत असर हुआ और उसने शरारतें करनी करनी छोड़ दीं। अब वह बदल गया था।

शब्दार्थ

  • नटखट = शरारती
  • लता = बेल
  • दलदल = कीचड़
  • नुकसान = हानि
  • धड़ाम = ज़ोर की आवाज़
  • व्यवहार = बर्ताव
  • लजित = शर्मिदा
  • भलाई – दूसरे का हित करना
  • लपककर = सहसा तेज़ी से आगे बढ़ना