Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 रूसी क्रांति
SST Guide for Class 9 PSEB रूसी क्रांति Textbook Questions and Answers
(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
रूस की क्रांति के दौरान बोलश्विकों का नेतृत्व किसने किया ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेडरिक एंजल्स
(ग) लैनिन
(घ) ट्रोस्टकी।
उत्तर-
(ग) लैनिन
प्रश्न 2.
रूस की क्रांति द्वारा समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार सबसे महत्त्वपूर्ण है ?
(क) समाजवाद
(ख) राष्ट्रवाद
(ग) उदारवाद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) समाजवाद
प्रश्न 3.
मैनश्विक समूह का नेता कौन था ?
(क) ट्रोस्टकी
(ख) कार्ल मार्क्स
(ग) ज़ार निकोल्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) ट्रोस्टकी
प्रश्न 4.
किस देश ने अपने आप को पहले विश्व युद्ध से बाहर निकला लिया.और जर्मनी से संधि कर ली ?
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर-
(ख) रूस
(ख) रिक्त स्थान भरो:
- ………… ने रूसी क्रांति के समय रूस के बोलश्विक संगठन का नेतृत्व किया।
- ………… का अर्थ है-परिषद् अथवा स्थानीय सरकार।
- रूस में चुनी गई सलाहकार संसद् को …………… कहा जाता था।
- ज़ोर का शाब्दिक अर्थ है ……………
उत्तर-
- लैनिन
- सोवियत
- ड्यूमा
- सर्वोच्च
(ग) अंतर बताओ :
प्रश्न 1.
1. बोलश्विक और मैनश्विक
2. उदारवादी और रूढ़िवादी
उत्तर-
1. बोलश्विक और मैनश्विक-बोलश्विक और मैनश्विक रूस के दो राजनीतिक दल थे। ये दल औद्योगिक मजदूरों के प्रतिनिधि थे। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर यह था कि मैनश्विक संसदीय प्रणाली के पक्ष में थे, जबकि बोलश्विक संसदीय प्रणाली में विश्वास नहीं रखते थे। वे ऐसी पार्टी चाहते थे जो अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए कार्य करे।
2. उदारवादी और रूढ़िवादी-उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिका में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।
रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।
(घ) सही मिलान करें:
1. लैनिन – मैनश्विक
2. ट्रोस्टकी – समाचार पत्र
3. मार्च की रूस की क्रांति – रूसी पार्लियामैंट
4. ड्यूमा – बोलश्विक
5. प्रावदा – 1917
उत्तर-
- बोलश्विक
- मैनश्विक
- 1917 ई०
- रूसी पार्लियामैंट
- समाचार पत्र।
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार महत्त्वपूर्ण माना गया ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विचार ‘समाजवाद’ को माना गया।
प्रश्न 2.
‘ड्यूमा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी।
प्रश्न 3.
मार्च 1917 ई० की क्रांति के समय रूस का शासक कौन था ?
उत्तर:-
ज़ार निकोल्स।
प्रश्न 4.
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण था-ज़ार को याचिका देने के लिए जाते हुए मज़दूरों पर गोली चलाया जाना।
प्रश्न 5.
1905 ई० में रूस की पराजय किस देश द्वारा हुई ?
उत्तर-
जापान से।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
अक्तूबर 1917 ई० की रूसी क्रांति के तत्कालीन परिणामों का वर्णन करो।
उत्तर-
रूस में 1917 की क्रांति के पश्चात् जिस अर्थव्यवस्था का निर्माण आरंभ हुआ उसकी विशेषताएं निम्नलिखित थीं
- मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं।
- जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं और सारी भूमि किसानों की समितियों को सौंप दी गई।
- व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
- काम का अधिकार संवैधानिक अधिकार बन गया और रोजगार दिलाना राज्य का कर्त्तव्य बन गया।
- शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की समितियों (सोवियत) के हाथों में आ गई।
- अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया गया।
प्रश्न 2.
मैनश्विक और बोलश्विक पर नोट लिखो।
उत्तर-
- मैनश्विक-मैनश्विक ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मज़दूर पार्टी’ का अल्पमत वाला भाग था। यह दल ऐसी पार्टी के पक्ष में था जैसी फ्रांस तथा जर्मनी में थी। इन देशों की पार्टियों की तरह मैनश्विक भी देश में निर्वाचित संसद् की स्थापना करना चाहते थे।
- बोलश्विक-1898 ई० में रूस में ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मजदूर पार्टी’ का गठन हुआ था। परंतु संगठन तथा नीतियों के प्रश्न पर यह पार्टी दो भागों में बंट गई। इनमें से बहुमत वाला भाग ‘बोलश्विक’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस दल का मत था कि संसद् तथा लोकतंत्र के अभाव में कोई भी दल संसदीय सिद्धान्तों द्वारा परिवर्तन नहीं ला सकता है। यह दल अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए काम करने के पक्ष में था। इस दल का नेता लेनिन था।
प्रश्न 3.
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के निम्नलिखित कारण थे
- युद्ध से अलग न करना-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
- लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
- खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
- देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।
प्रश्न 4.
लैनिन का अप्रैल प्रस्ताव क्या था ?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विकों के नेता थे जो निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। अप्रैल 1917 में वह रूस लौट आये। उनके नेतृत्व में बोलश्विक 1914 से ही प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि अब सोवियतों को सत्ता अपने हाथों में ले लेनी चाहिए। ऐसे में लेनिन ने सरकार के सामने तीन मांगें रखीं-
- युद्ध समाप्त किया जाए।
- सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए।
- बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। इन तीनों मांगों को लेनिन की ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद रूस में कृषि के क्षेत्र में क्या परिवर्तन आए ?
नोट : इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 1 पढ़ें। केवल कृषि संबंधी बिंदु ही पढ़ें।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
1905 ई० की क्रांति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवस्था का वर्णन करें।
उत्तर-
19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। कई देश गणराज्य थे, तो कई संवैधानिक राजतंत्र । सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और सामंतों का स्थान नए मध्य वर्गों ने ले लिया था। परंतु रूस अभी भी ‘पुरानी दुनिया’ में जी रहा था। यह बात रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशा से स्पष्ट हो जायेगी
- रूसी किसानों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। वहां कृषि दास-प्रथा अवश्य समाप्त हो चुकी थी, फिर भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं आया था। उनकी जोतें बहुत ही छोटी थीं और उन्हें विकसित करने के लिए उनके पास पूंजी भी नहीं थी। इन छोटी-छोटी जोतों को पाने के लिए भी उन्हें अनेक दशकों तक मुक्ति कर के रूप में भारी धन राशि चुकानी पड़ी।
- किसानों की भांति मज़दूरों की दशा भी खराब थी। देश में अधिकतर कारखाने विदेशी पूंजीपतियों के थे। उन्हें मजदूरों की दशा सुधारने की कोई चिंता नहीं थी। उनका एकमात्र उद्देश्य अधिक-से-अधिक मुनाफ़ा कमाना था। रूसी पूंजीपतियों ने भी मज़दूरों का आर्थिक शोषण किया। इसका कारण यह था कि उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी। वे मजदूरों को कम वेतन देकर पैसा बचाना चाहते थे और इस प्रकार विदेशी पूंजीपतियों का मुकाबला करना चाहते थे। मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। उनके पास इतने साधन भी नहीं थे कि वे कोई मामूली सुधार लागू करवा सकें।
राजनीतिक दशा-
- रूस का जार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। वह निरंकुशतंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखते थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
- रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार रूस में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
- राज परिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता. बहुत दु:खी थी।
इस प्रकार रूस में क्रांति के लिए स्थिति परिपक्व थी।
प्रश्न 2.
औद्योगीकरण के रूस के आम लोगों पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
औद्योगिक क्रांति रूस में सबसे बाद में आई। वहां खनिज पदार्थों की तो कोई कमी नहीं थी, परंतु पूंजी तथा स्वतंत्र श्रमिकों के अभाव के कारण वहां काफ़ी समय तक औद्योगिक विकास संभव न हो सका। 1867 ई० रूस ने कृषि दासों को स्वतंत्र कर दिया। उसे विदेशों से पूंजी भी मिल गई। फलस्वरूप रूस ने अपने औद्योगिक विकास की ओर ध्यान दिया। वहां उद्योगों का विकास आरंभ हो गया, परंतु इनका पूर्ण विकास 1917 ई० की क्रांति के पश्चात् ही संभव हो सका।
प्रभाव-औद्योगिक क्रांति का रूस के आम लोगों के जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव पड़ा। औद्योगिक क्रांति के प्रभाव निम्नलिखित थे
- भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति ने छोटे-छोटे कृषकों को अपनी भूमि बेचकर कारखानों में काम करने पर बाध्य कर दिया। अत: भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
- छोटे कारीगरों का मज़दूर बनना-औद्योगिक क्रांति के कारण अब मशीनों द्वारा मज़बूत व पक्का माल बड़ी शीघ्रता से बनाया जाने लगा। इस प्रकार हाथ से बने अथवा काते हुए कपड़े की मांग कम होती चली गई। अतः छोटे कारीगरों ने अपना काम छोड़ कर कारखाने में मजदूरों के रूप में काम करना आरंभ कर दिया।
- स्त्रियों तथा छोटे बच्चों का शोषण-कारखानों में स्त्रियों तथा कम आयु वाले बच्चों से भी काम लिया जाने लगा। उनसे बेगार भी ली जाने लगी। इसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ा।
- मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव-मजदूरों के स्वास्थ्य पर खुले वातावरण के अभाव के कारण बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। अब वे स्वच्छ वायु की अपेक्षा कारखानों की दूषित वायु में काम करते थे।
- बेरोजगारी में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति का सबसे बुरा प्रभाव यह हुआ कि इसने घरेलू दस्तकारियों का अंत कर दिया। एक अकेली मशीन अब कई आदमियों का काम करने लगी। परिणामस्वरूप हाथ से काम करने वाले कारीगर बेकार हो गए। .
- नवीन वर्गों का जन्म-औद्योगिक क्रांति से मज़दूर तथा पूंजीपति नामक दो नवीन वर्गों का जन्म हुआ। पूंजीपतियों ने मजदूरों के बहुत कम वेतन पर काम लेना शुरू कर दिया। परिणामस्वरुप निर्धन लोग और निर्धन हो गए तथा देश की समस्त पूंजी कुछ एक पूंजीपतियों की तिजोरियों में भरी जाने लगी। इस विषय में किसी ने कहा है, “औद्योगिक क्रांति ने धनिकों को और भी अधिक धनी तथा निर्धनों को और भी निर्धन कर दिया।”
प्रश्न 3.
समाजवाद पर एक विस्तारपूर्वक नोट लिखो। .
उत्तर-
समाजवाद की दिशा में कार्ल मार्क्स (1818-1882) और फ्रेडरिक एंगेल्स (1820-1895) ने कई नए तर्क पेश किए। मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘पूंजीवादी’ समाज है। कारखानों में लगी पूंजी पर पूंजीपतियों का अधिकार है और पूंजीपतियों का मुनाफ़ा मज़दूरों की मेहनत से पैदा होता है। मार्क्स का मानना था कि जब तक निजी पूंजीपति इसी प्रकार मुनाफ़े का संचय करते रहेंगे तब तक मजदूरों की दशा में सुधार नहीं हो सकता। अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मज़दूरों को पूंजीवाद तथा निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा। मार्क्स का कहना था पूंजीवादी शोषण से मुक्ति पाने के लिए मज़दूरों को एक बिल्कुल अलग तरह का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण और स्वामित्व हो। उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया। मार्क्स को विश्वास था कि पूंजीपतियों के साथ होने वाले संघर्ष में अंतिम जीत मजदूरों की ही होगी।
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
- इसमें मजदूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
- उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।
प्रश्न 4.
किन कारणों से सामान्य जनता ने बोलश्विकका समर्थन किया ? .
उत्तर-
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से रूस में समाजवादी विचारों का प्रसार आरंभ हो गया था और कई एक समाजवादी संगठनों की स्थापना की जा चुकी थी। 1898 ई० में विभिन्न समाजवादी दल मिलकर एक हो गए और उन्होंने “रूसी समाजवादी लोकतांत्रिक मज़दूर दल” का गठन किया। इस पार्टी में वामपक्ष का नेता ब्लादीमीर ईलिच उल्यानोव था जिसे लोग लेनिन के नाम से जानते थे। 1903 ई० में इस गुट का दल में बहुमत हो गया और इनको बोलश्विक कहा जाने लगा। जो लोग अल्पमत में थे और उन्हें मैनश्विक के नाम से पुकारा गया।
बोलश्विक पक्के राष्ट्रवादी थे। वे रूस के लोगों की दशा में सुधार करना चाहते थे। वे रूस को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में देखना चाहते थे। अपने इस स्वप्न को साकार करने के लिए उन्होंने जो उद्देश्य अपने सामने रखे। वे जनता के दिल को छू गए। इसलिए सामान्य जनता भी बोलश्विकों के साथ हो गई।
- समाजवाद की स्थापना-बोलशिवक लोगों का अंतिम उद्देश्य रूस में समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना था। इसके अतिरिक्त उनके कुछ तत्कालीन उद्देश्य भी थे।
- जार के कुलीनतंत्र का अंत करना-बोलश्विक यह भली-भांति जानते थे कि ज़ार के शासन के अंतर्गत रूस के लोगों की दशा को कभी नहीं सुधारा जा सकता। अत: वे जार के शासन का अंत करके रूस में गणतंत्र की स्थापना करना चाहते थे।
- गैर-रूसी जातियों के दमन की समाप्ति-बोलश्विक रूसी साम्राज्य के गैर-रूसी जातियों के दमन को समाप्त करके उन्हें आत्म-निर्णय का अधिकार देना चाहते थे।
- किसानों के दमन का अंत-वे भू-स्वामित्व की असमानता का उन्मूलन और सामंतों द्वारा किसानों के दमन का अंत करना चाहते थे।
प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद बोलश्विक सरकार की ओर से क्या परिवर्तन किए गए ? विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के पश्चात् बोलश्विकों द्वारा रूस में मुख्यतः निम्नलिखित परिवर्तन किए गए
- नवंबर 1917 में अधिकांश उद्योगों तथा बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। फलस्वरूप इनका स्वामित्व एवं प्रबंधन सरकार के हाथों में आ गया।
- भूमि को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया। किसानों को अनुमति दे दी गई कि वे सरदारों तथा जागीरदारों की भूमि पर कब्जा कर लें।
- शहरों में बड़े मकानों में मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़ कर शेष मकान के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए गये ताकि बेघर लोगों को रहने की जगह दी जा सके।
- निरंकुशतंत्र द्वारा दी गई पुरानी उपाधियों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई। सेना तथा सैनिक अधिकारियों के लिए नई वर्दी निश्चित कर दी गई।
- बोलश्विक पार्टी का नाम बदल कर रशियन कम्युनिस्ट पार्टी (बोलश्विक) रख दिया गया।
- व्यापार संघों पर नई पार्टी का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया।
- गुप्तचर पुलिस ‘चेका’ (Cheka) को ओगपु (OGPU) तथा नकविड (NKVD) के नाम दिए गए। इन्हें बोलश्विकों की आलोचना करने वाले लोगों को दंडित करने का अधिकार दिया गया।
- मार्च, 1918 में अपनी ही पार्टी के विरोध के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोवस्क (Brest Litovsk) के स्थान पर जर्मनी से शांति संधि कर ली।
PSEB 9th Class Social Science Guide रूसी क्रांति Important Questions and Answers
I. बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
यूरोप के अतिवादी (radicals) किस के विरोधी थे ?
(क) निजी संपत्ति के
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के
(ग) महिलाओं को मताधिकार देने के
(घ) बहुमत जनसंख्या की सरकार के।
उत्तर-
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के
प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में यूरोप के रूढ़िवादियों (Conservative) के विचारों में क्या परिवर्तन आया ?
(क) क्रांतियां लाई जाएं
(ख) संपत्ति का बंटवारा समान हो
(ग) महिलाओं को संपत्ति का अधिकार न दिया जाए
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।
उत्तर-
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।
प्रश्न 3.
औद्योगिकीकरण से कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई ?
(क) आवास
(ख) बेरोज़गारी
(ग) सफ़ाई
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
मेज़िनी राष्ट्रवादी था
(क) इटली का
(ख) फ्रांस का
(ग) रूस का
(घ) जर्मनी का।
उत्तर-
(क) इटली का
प्रश्न 5.
समाजवादी सभी बुराइयों की जड़ किसे मानते थे ?
(क) धन के समान वितरण को
(ख) उत्पादन के साधनों पर समाज के अधिकार को
(ग) निजी संपत्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) निजी संपत्ति
प्रश्न 6.
राबर्ट ओवन कौन था
(क) रूसी दार्शनिक
(ख) फ्रांसीसी क्रांतिकारी
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी
प्रश्न 7.
फ्रांसीसी समाजवादी कौन-सा था ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेड्रिक एंगल्ज़
(ग) राबर्ट ओवन
(घ) लुई ब्लांक
उत्तर-
(घ) लुई ब्लांक
प्रश्न 8.
कार्ल मार्क्स तथा फ्रेड्रिक एंगल्ज़ कौन थे ?
(क) समाजवादी
(ख) पूंजीवादी
(ग) सामंतवादी
(घ) वाणिज्यवादी।
उत्तर-
(क) समाजवादी
प्रश्न 9.
समाजवाद का मानना है
(क) सारी संपत्ति पर पूंजीपतियों का अधिकार होना चाहिए
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए
(ग) सारा मुनाफ़ा उद्योगपतियों को मिलना चाहिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए
प्रश्न 10.
द्वितीय इंटरनेशनल का संबंध था
(क) साम्राज्यवाद से
(ख) पूंजीवाद से ।
(ग) समाजवाद से
(घ) सामंतवाद से।
उत्तर-
(ग) समाजवाद से
प्रश्न 11.
ब्रिटेन में मज़दूर दल की स्थापना हुई
(क) 1900
(ख) 1905
(ग) 1914
(घ) 1919.
उत्तर-
(ख) 1905
प्रश्न 12.
रूसी साम्राज्य का प्रमुख धर्म था
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च
(ख) कैथोलिक
(ग) प्रोटेस्टैंट
(घ) इस्लाम।
उत्तर-
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च
प्रश्न 13.
क्रांति से पूर्व रूस की अधिकांश जनता का व्यवसाय था
(क) व्यापार
(ख) खनन
(ग) कारखानों में काम करना
(घ) कृषि।
उत्तर-
(घ) कृषि।
प्रश्न 14.
क्रांति से पूर्व रूस के सूती वस्त्र उद्योग में हड़ताल हुई
(क) 1914 ई०
(ख) 1896-97 ई०
(ग) 1916 ई०
(घ) 1904 ई०
उत्तर-
(ख) 1896-97 ई०
प्रश्न 15.
1914 से रूस में निम्नलिखित दल अवैध था
(क) रूसी समाजवादी वर्क्स पार्टी
(ख) बोलश्विक दल
(ग) मैनश्विक दल
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 16.
रूसी साम्राज्य में मुस्लिम धर्म सुधारक क्या कहलाते थे ?
(क) ड्यूमा
(ख) उलेमा
(ग) जांदीदिस्ट
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) जांदीदिस्ट
प्रश्न 17.
निम्नलिखित भिक्षु रूस की ज़ारीना (जार की पत्नी) का सलाहकार था जिसने राजतंत्र को बदनाम किया
(क) रास्पुतिन
(ख) व्लादिमीर पुतिन
(ग) केस्की
(घ) लेनिन।
उत्तर-
(क) रास्पुतिन
प्रश्न 18.
पूंजीपति के लिए मज़दूर ही मुनाफ़ा कमाता है, यह विचार दिया था
(क) कार्ल मार्क्स ने
(ख) लेनिन ने
(ग) केरेंस्की ने
(घ) प्रिंस ल्योव ने।
उत्तर-
(क) कार्ल मार्क्स ने
प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किसकी विचारधारा रूसी क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुई?
(क) मुसोलिनी
(ख) हिटलर
(ग) स्टालिन
(घ) कार्ल मार्क्स।
उत्तर-
(घ) कार्ल मार्क्स।
प्रश्न 20.
1917 की रूसी क्रांति का आरंभ कहां से हुआ?
(क) ब्लाडीवास्टक
(ख) लेनिनग्राड
(ग) पीट्रोग्राड
(घ) पेरिस।
उत्तर-
(ग) पीट्रोग्राड
प्रश्न 21.
1917 की रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण था
(क) ज़ार का निरंकुश शासन
(ख) जनता की दुर्दशा
(ग) 1905 की रूसी क्रांति
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।
उत्तर-
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।
प्रश्न 22.
1917 की रूसी क्रांति को जिस अन्य नाम से पुकारा जाता है
(क) फ्रांसीसी क्रांति
(ख) मार्क्स क्रांति
(ग) ज़ार क्रांति
(घ) बोलश्विक क्रांति।
उत्तर-
(घ) बोलश्विक क्रांति।
प्रश्न 23.
रूस में लेनिन ने किस प्रकार के शासन की घोषणा की?
(क) मध्यवर्गीय प्रजातंत्र
(ख) एकतंत्र
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार
(घ) संसदात्मक गणतंत्र।
उत्तर-
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार
प्रश्न 24.
इनमें से रूस के जार निकोलस ने किस प्रकार की सरकार को अपनाया ?
(क) निरंकुश
(ख) समाजवादी
(ग) साम्यवादी
(घ) लोकतंत्र।
उत्तर-
(क) निरंकुश
प्रश्न 25.
मैनश्विकों का नेता था
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की
(ख) ट्रोटस्की
(ग) लेनिन
(घ) निकोलस द्वितीय।
उत्तर-
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की
प्रश्न 26.
रूस की अस्थायी सरकार का तख्ता कब पलटा गया ?
(क) अगस्त, 1917
(ख) सितंबर, 1917
(ग) नवंबर, 1917
(घ) दिसंबर, 1917
उत्तर-
(ग) नवंबर, 1917
प्रश्न 27.
नवंबर 1917 की क्रांति का नेतृत्व किया था
(क) निकोलस द्वितीय
(ख) लेनिन
(ग) एलेक्जेंडर केरेंस्की
(घ) ट्रोटस्की।
उत्तर-
(ख) लेनिन
प्रश्न 28.
रूसी क्रांति का कौन-सा परिणाम नहीं था ?
(क) निरंकुश शासन का अंत
(ख) श्रमिक सरकार
(ग) पूंजीपतियों का अंत
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।
उत्तर-
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।
रिक्त स्थान भरो:
- समाजवादी ……………. को सभी बुराइयों की जड़ मानते थे।
- …………….. फ्रांसीसी समाजवादी था।
- 1917 ई० में रूसी क्रांति का आरंभ …………………. से हुआ।
- 1917 ई० की रूसी क्रांति को …………………. क्रांति के नाम से पुकारा गया।
- …………………..मैनश्विकों का नेता था।
- रूसी क्रांति ……………… के शासनकाल में हुई।
उत्तर-
- निजी संपत्ति
- लुई ब्लांक
- पीट्रोग्राड
- बोलश्विक
- एलैक्जेंडर केरेंस्की
- ज़ार निकोलस द्वितीय।।
III. सही मिलान करो :
(क) – (ख)
1. मेज़िनी – (i) निरंकुश
2. राबर्ट ओवन – (ii) बोलश्विक क्रांति
3. जार निकोलस – (iii) इटली
4. रूसी क्रांति – (iv) फ्रांसीसी समाजवादी
5. लुई ब्लांक – (v) अंग्रेज़ समाजवादी
उत्तर-
- मेजिनी-इटली
- राबर्ट ओवन-अंग्रेज़ समाजवादी
- जार निकोलस-निरंकुश
- रूसी क्रांति| बोलश्विक क्रांति
- लुई ब्लांक-फ्रांसीसी समाजवादी।
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :
प्रश्न 1.
रूस में बोलश्विक अथवा विश्व की प्रथम समाजवादी क्रांति कब हुई ?
उत्तर-
1917 में।
प्रश्न 2.
रूसी क्रांति किस ज़ार के शासनकाल में हुई ?
उत्तर-
ज़ार निकोलस द्वितीय के।
प्रश्न 3.
रूसी क्रांति से पूर्व कौन-से दो प्रसिद्ध दल थे?
उत्तर-
मैनश्विक तथा बोलश्विक।
प्रश्न 4.
रूस में अस्थाई सरकार किसके नेतृत्व में बनी थी?
उत्तर-
केरेंस्की
प्रश्न 5.
रूसी क्रांति का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
ज़ार का निरंकुश शासन।
प्रश्न 6.
रूसी क्रांति की पहली उपलब्धि क्या थी?
उत्तर-
निरंकुश शासन की समाप्ति तथा चर्च की शक्ति का विनाश।
प्रश्न 7.
1917 से पूर्व रूस में किस सन् में क्रांति हुई थी?
उत्तर-
1905 में।
प्रश्न 8.
रूस में वर्कमैन्स सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी कब स्थापित हुई ?
उत्तर-
1895 में।
प्रश्न 9.
रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध।
प्रश्न 10.
प्रथम महायुद्ध में रूस जर्मनी से किस वर्ष में पराजित हुआ?
उत्तर-
1915 में।
प्रश्न 11.
रूसी क्रांति का झंडा सर्वप्रथम कहां बुलंद किया गया?
उत्तर-
पैत्रोग्राद।
प्रश्न 12.
रूस में जार को सिंहासन त्यागने के लिए किसने बाध्य किया?
उत्तर-
ड्यूमा ने।
प्रश्न 13.
रूस में जार के शासन त्यागने के पश्चात् जो अंतरिम सरकार बनी थी, उसमें किस वर्ग का प्रभुत्व था?
उत्तर-
मध्यवर्ग का।
प्रश्न 14.
बोलश्विकों का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर-
लेनिन।
प्रश्न 15.
रूस में क्रांति के परिणामस्वरूप समाज के किस वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हुआ?
उत्तर-
कृषक एवं श्रमिक वर्ग।
प्रश्न 16.
रूस की क्रांति को विश्व इतिहास की प्रमुख घटना क्यों माना जाता है?
उत्तर-
समाजवाद की स्थापना के कारण।
प्रश्न 17.
रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप रूस का क्या नाम रखा गया?
उत्तर-
सोवियत समाजवादी रूसी संघ।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। उचित उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-1. ज़रूरी चीज़ों के मूल्य इतनी तेज़ी से बढ़े कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई। 2. उसी समय मजदूर संगठनों की सदस्यता में भी तेजी से वृद्धि हुई। 1904 में ही गठित की गई असेंबली ऑफ़ रशियन वर्कर्स (रूसी श्रमिक सभा) के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वर्क्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मज़दूरों ने आंदोलन छेड़ने की घोषणा कर दी। 3. अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 110,000 से अधिक मजूदर काम के घंटे घटाकर आठ घंटे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की मांग करते हुए हड़ताल पर चले गए।
प्रश्न 2.
“रूसी जनता की समस्त समस्याओं का हल रूसी क्रांति में ही निहित था।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं चार कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूसी जनता का जीवन बड़ा कष्टमय था।
- रूस का जार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी राजा था। रूस की जनता उससे तंग आ चुकी थी।
- समाज में जन-साधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। किसानों तथा मजदूरों में रोष फैला हुआ था। अब लोग इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।
- राजपरिवार में नैतिक पतन व्याप्त था। राज्य का शासन एक ढोंगी साधु रास्पुतिन चला रहा था। परिणामस्वरूप पूरे शासनतंत्र में भ्रष्टाचार फैला हुआ था।
- प्रथम विश्व युद्ध में रूस को भारी सैनिक क्षति उठानी पड़ रही थी। अत: सैनिकों में भारी असंतोष बढ़ रहा था। इन समस्त समस्याओं का एक ही हल था-‘क्रांति’।
प्रश्न 3.
रूस को फरवरी 1917 की क्रांति की ओर ले जाने वाली किन्हीं तीन घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
- 22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फ़ैक्टरी में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फ़ैक्टरी के मज़दूरों के समर्थन में पचास फैक्टरियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। बहुत-से कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं।
- मज़दूरों ने सरकारी इमारतों को घेर लिया तो सरकार ने कयूं लगा दिया। शाम तक प्रदर्शनकारी तितर-बितर हो गए। परंतु 24 और 25 तारीख को वे फिर इकट्ठे होने लगे। सरकार ने उन पर नज़र रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
- रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को भंग कर दिया। 26 फरवरी को बहुत बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी बाएं तट के इलाके में इकट्ठे हो गए। 27 फरवरी को उन्होंने पुलिस मुख्यालयों पर आक्रमण करके उन्हें ध्वस्त कर दिया। रोटी, वेतन, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए।
सिपाही भी उनके साथ मिल गए। उन्होंने मिलकर पेत्रोग्राद ‘सोवियत’ (परिषद) का गठन किया।
- अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल ज़ार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने ज़ार को राजगद्दी छोड़ देने की सलाह दी। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को उसने गद्दी छोड़ दी। सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली। इसे 1917 की फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।
(कोई तीन लिखें।)
प्रश्न 4.
अक्तूबर 1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के योगदान का किन्हीं तीन बिंदुओं के आधार पर वर्णन कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति लेनिन के नाम से क्यों जुड़ी हुई है ? .
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था और क्रांति काल के दौरान वह निर्वासित जीवन बिता रहा था। अक्तूबर, 1917 की रूसी क्रांति में उसके योगदान का वर्णन इस प्रकार है-
- अप्रैल, 1917 में लेनिन रूस लौट आए। उन्होंने बयान दिया कि युद्ध समाप्त किया जाए, सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
- इसी बीच अंतरिम सरकार और बोलश्विकों के बीच टकराव बढ़ता गया। सितंबर में बोलश्विकों ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह के बारे में चर्चा शुरू कर दी। सेना और फैक्टरी सोवियतों में मौजूद बोलश्विकों को इकट्ठा किया गया। सत्ता पर अधिकार के लिए लियॉन ट्रोटस्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया।
- 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया। प्रधानमंत्री केरेस्की ने इसे दबाने का प्रयास किया, परंतु वह असफल रहा।
- शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ गया और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें बहुमत ने बोलश्विकों की कार्रवाई का समर्थन किया।
प्रश्न 5.
रूसी क्रांति की तत्कालीन उपलब्धियां क्या थी?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1917 ई० की रूसी क्रांति विश्व-इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसने न केवल रूस में निरंकुश शासन को समाप्त किया अपितु पूरे विश्व की सामाजिक तथा आर्थिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप रूस में ज़ार का स्थान ‘सोवियत समाजवादी गणतंत्र का संघ’ नामक नई राजसत्ता ने ले लिया। इस नवीन संघ का उद्देश्य प्राचीन समाजवादी आदर्शों को प्राप्त करना था। इसका अर्थ था-प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाए और काम के अनुसार उसे पारिश्रमिक (मज़दूरी) दी जाए।
प्रश्न 6.
समाजवाद की तीन विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
- इसमें मज़दूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
- उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।
प्रश्न 7.
1914 में रूसी साम्राज्य के विस्तार की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1914 में रूस और उसके परे साम्राज्य पर ज़ार निकोलस II का शासन था। मास्को के आसपास के भूक्षेत्र के अतिरिक्त आज का फ़िनलैंड, लातविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया तथा पोलैंड, यूक्रेन तथा बेलारूस के कुछ भाग रूसी साम्राज्य का अंग थे। यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था। आज के मध्य एशियाई राज्यों के साथ-साथ जॉर्जिया, आर्मेनिया तथा अज़रबैजान भी इसी साम्राज्य में शामिल थे। रूस में ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च से उत्पन्न शाखा रूसी ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियैनिटी को मानने वाले लोग बहुमत में थे। परंतु इस साम्राज्य के अंतर्गत रहने वालों में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम और बौद्ध भी शामिल थे।
प्रश्न 8.
1905 की रूसी क्रांति के बाद ज़ार ने अपना निरंकुश शासन स्थापित करने के लिए क्या-क्या पग उठाए ? कोई तीन लिखिए।
उत्तर-
1905 की क्रांति के दौरान ज़ार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद् अर्थात् ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी। परंतु क्रांति के तुरंत बाद उसने बहुत से निरंकुश पग उठाए-
- क्रांति के समय कुछ दिन तक फैक्ट्री मज़दूरों की बहुत सी ट्रेड यूनियनें और फ़ैक्ट्री कमेटियां अस्तित्व में रही थीं। परंतु 1905 के बाद ऐसी अधिकतर कमेटियां और यूनियनें अनधिकृत रुप से काम करने लगीं क्योंकि उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। राजनीतिक गतिविधियों पर भारी पाबंदियां लगा दी गईं।
- ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और फिर से निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया।
- ज़ार अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था। इसलिए उसने मतदान कानूनों में हेर-फेर करके तीसरी ड्यूमा में रूढिवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों और क्रांतिकारियों को पूरी तरह बाहर रखा गया।
प्रश्न 9.
प्रथम विश्व युद्ध क्या था ? रूसियों की इस युद्ध के प्रति क्या प्रतिक्रियां थी?
उत्तर-
1914 में यूरोप के दो गठबंधनों (धड़ों) के बीच युद्ध छिड़ गया। एक धड़े में ऑस्ट्रिया और तुर्की (केंद्रीय शक्तियां) थे तथा दूसरे धड़े में फ्रांस, ब्रिटेन व रूस थे। बाद में इटली और रूमानिया भी इस धड़े में शामिल हो गए। इन सभी देशों के पास संसार भर में विशाल साम्राज्य थे, इसलिए यूरोप के साथ-साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था। इसी युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है।
आरंभ में इस युद्ध को रूसियों का काफ़ी समर्थन मिला। जनता ने पूरी तरह ज़ार का साथ दिया। परंतु जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता गया, ज़ार ने ड्यूमा की मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। इसलिए उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा। जर्मन-विरोधी भावनाएं भी दिन-प्रतिदिन बलवती होने लगी। इसी कारण ही लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदल कर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था। ज़ारीना अर्थात् ज़ार की पत्नी अलेक्सांद्रा के जर्मन मूल के होने और रास्पुतिन जैसे उसके घटिया सलाहकारों ने राजशाही को और अधिक अलोकप्रिय बना दिया।
प्रश्न 10.
1918 के पश्चात् लेनिन ने ऐसे कौन-से कदम उठाये जो रूस में अधिनायकवाद सहज दिखाई देते थे? कलाकारों और लेखकों ने बोलश्विक दल का समर्थन क्यों किया?
उत्तर-
- जनवरी 1918 में असेंबली ने बोलश्विकों के प्रस्तावों को रद्द कर दिया। अतः लेनिन ने असेंबली भंग कर दी।
- मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोव्सक में जर्मनी से संधि कर ली।
- आने वाले वर्षों में बोलश्विक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई। अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद् का दर्जा दे दिया गया था। इस प्रकार रूस एक-दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया।
- ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण रहता था।
- गुप्तचर पुलिस बोलश्विकों की आलोचना करने वाले को दंडित करती थी। फिर भी बहुत से युवा लेखकों और कलाकारों ने बोलश्विक दल का समर्थन किया क्योंकि यह दल समाजवाद और परिवर्तन के प्रति समर्पित था।
प्रश्न 11.
रूस के लोगों की वे तीन मांगें बताओ जिन्होंने ज़ार का पतन किया।
उत्तर-
रूस के लोगों की निम्नलिखित तीन मांगों ने जार का पतन किया-
- देश में शांति की स्थापना की जाए और प्रत्येक कृषक को अपनी भूमि दी जाए।
- उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण हो।
- गैर-रूसी जातियों को समान दर्जा मिले और सोवियत को पूरी शक्ति दी जाए।
प्रश्न 12.
प्रथम विश्वयुद्ध ने रूस की फरवरी क्रांति (1917) के लिए स्थितियां कैसे उत्पन्न की ? तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
- प्रथम विश्वयुद्ध में 1917 तक रूस के 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
- युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो वैसे भी बहुत कम थे। अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई, क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी औद्योगिक सामान आते थे उस पर जर्मनी का अधिकार हो चुका था।
- पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु सेना वहां टिक न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इन दशाओं ने सरकार और ज़ार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
इस प्रकार क्रांति का वातावरण तैयार हुआ।
प्रश्न 13.
विश्व पर रूसी क्रांति के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-
- रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप विश्व में समाजवाद एक व्यापक विचारधारा बन कर उभरा। रूस के बाद अनेक देशों में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुईं।
- जनता की दशा सुधारने के लिए राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन के विचार को बल मिला।
- विश्व में श्रम का गौरव बढ़ा। अब बाइबल का यह विचार फिर से जीवित हो उठा कि “जो काम नहीं करता, वह खाएगा भी नहीं।”
- रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। पूरे विश्व में साम्राज्यवाद के विनाश के लिए एक अभियान चल पड़ा।
प्रश्न 14.
1917 की क्रांति के बाद रूस विश्व-युद्ध से क्यों अलग हो गया?
उत्तर-
1917 ई० के बाद रूस निम्नलिखित कारणों से युद्ध से अलग हो गया-
- रूसी क्रांतिकारी आरंभ से ही लड़ाई का विरोध करते आ रहे थे। अतः क्रांति के बाद रूस युद्ध से हट गया।
- लेनिन के नेतृत्व में रूसियों ने युद्ध को क्रांतिकारी युद्ध में बदलने का निश्चय कर लिया था।
- रूसी साम्राज्य को युद्ध में कई बार मुंह की खानी पड़ी थी जिससे इसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी।
- युद्ध में 6 लाख से भी अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे।
- रूस के लोग किसी दूसरे के भू-भाग पर अधिकार नहीं करना चाहते थे।
- रूस के लोग पहले अपनी आंतरिक समस्याओं का समाधान करना चाहते थे।
प्रश्न 15.
रूस द्वारा प्रथम विश्व युद्ध से हटने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
1917 ई० में रूस प्रथम विश्व युद्ध से हट गया। रूसी क्रांति के अगले ही दिन बोलश्विक सरकार ने शांतिसंबंधी अज्ञाप्ति (Decree on Peace) जारी की। मार्च, 1918 में रूस ने जर्मनी के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किये। जर्मनी की सरकार को लगा कि रूसी सरकार युद्ध को जारी रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जर्मनी ने रूस पर कठोर शर्ते लाद दीं। परंतु रूस ने उन्हें स्वीकार कर लिया। त्रिदेशीय संधि में शामिल शक्तियां रूसी क्रांति और रूस के युद्ध से अलग होने के निर्णय के विरुद्ध थीं। वे रूसी क्रांति के विरोधी तत्त्वों को पुनः उभारने का प्रयत्न करने लगीं। फलस्वरूप रूस में गृह-युद्ध छिड़ गया जो तीन वर्षों तक चलता रहा। परंतु अंत में विदेशी शक्तियों तथा क्रांतिकारी सरकार के विरुद्ध हथियार उठाने वाले रूसियों की पराजय हुई और गृह-युद्ध समाप्त हो गया।
प्रश्न 16.
समाजवादियों के अनुसार ‘कोऑपरेटिव’ क्या थे ? कोऑपरेटिव निर्माण के विषय में रॉबर्ट ओवन तथा लूइस ब्लॉक के क्या विचार थे ?
उत्तर-
समाजवादियों के अनुसार कोऑपरेटिव सामूहिक उद्यम थे। ये ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफ़े को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बांट लेते थे। कुछ समाजवादियों की कोऑपरेटिव के निर्माण में विशेष रुचि थी। इंग्लैंड के जाने-माने उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन (1771-1858) ने इंडियाना (अमेरिका) में नया समन्वय (New Harmony) के नाम से एक नयी प्रकार के समुदाय की रचना का प्रयास किया। कुछ समाजवादी मानते थे कि केवल व्यक्तिगत प्रयासों से बहुत बड़े सामूहिक खेत नहीं बनाए जा सकते। वे चाहते थे कि सरकार अपनी ओर से सामूहिक खेती को बढ़ावा दे। उदाहरण के लिए, फ्रांस में लुईस ब्लांक (18131882) चाहते थे कि सरकार पूंजीवादी उद्यमों की जगह सामूहिक उद्यमों को प्रोत्साहित करे।
प्रश्न 17.
स्तालिन कौन था ? उसने खेतों के सामूहीकरण का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर-
स्तालिन रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का नेता था। उसने लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाली थी। 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था। सरकार ने अनाज की कीमत निश्चित कर दी थी। कोई भी उससे अधिक कीमत पर अनाज नहीं बेच सकता था। परंतु किसान उस कीमत पर सरकार को अनाज बेचने के लिए तैयार नहीं थे। स्थिति से निपटने के लिए स्तालिन ने कड़े पग उठाए। उसे लगता था कि धनी किसान और व्यापारी कीमत बढ़ने की आशा में अनाज नहीं बेच रहे हैं। स्थिति से निपटने के लिए सट्टेबाजी पर अंकुश लगाना और व्यापारियों के पास जमा अनाज को जब्त करना ज़रूरी था। अतः 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया। उन्होंने किसानों से ज़बरदस्ती अनाज खरीदा और ‘कुलकों’ (संपन्न किसानों) के ठिकानों परं छापे मारे। जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो स्तालिन ने खेतों के सामूहिकीकरण का फैसला लिया। इसके लिए यह तर्क दिया गया कि अनाज की कमी इसलिए है, क्योंकि खेत बहुत छोटे हैं।
प्रश्न 18.
क्रांति से पूर्व रूस में औद्योगिक मजदूरों की शोचनीय दशा के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर-
- विदेशी पूंजीपति मज़दूरों का खूब शोषण करते थे। यहां तक कि रूसी पूंजीपति भी उन्हें बहुत कम वेतन देते थे।
- मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। उनके पास मामूली सुधार लागू करवाने के लिए भी साधन नहीं थे।
प्रश्न 19.
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक कौन था? उसके शासनतंत्र के कोई दो दोष बताओ।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं दो राजनीतिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक ज़ार निकोलस द्वितीय था। उसके शासनतंत्र में निम्नलिखित दोष थे जो रूसी क्रांति का कारण बने।
- वह राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था तथा निरंकुश तंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था।
- नौकरशाही के सदस्य किसी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि विशेषाधिकार प्राप्त वर्षों से चुने जाते थे।
प्रश्न 20.
रूस में जार निकोलस द्वितीय क्यों अलोकप्रिय था? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
रूस में ज़ार निकोलस द्वितीय के अलोकप्रिय होने के निम्नलिखित कारण थे-
- ज़ार निकोलस एक निरंकुश शासक था।
- ज़ार के शासनकाल में किसानों, मज़दूरों और सैनिकों की दशा बहुत खराब थी।
प्रश्न 21.
लेनिन कौन था? उसने रूस में क्रांति लाने में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था। मार्क्स और एंगल्ज़ के पश्चात् उसे समाजवादी आंदोलन का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उसने बोलश्विक पार्टी द्वारा रूस में क्रांति लाने के लिये अपना सारा जीवन लगा दिया।
प्रश्न 22.
“1905 की रूसी क्रांति 1917 की क्रांति का पूर्वाभ्यास थी।” इस कथन के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-
- 1905 ई० की क्रांति ने रूसी जनता में जागृति उत्पन्न की और उसे क्रांति के लिए तैयार किया।
- इस क्रांति के कारण रूसी सैनिक तथा गैर-रूसी जातियों के लोग क्रांतिकारियों के घनिष्ठ संपर्क में आ गए।
प्रश्न 23.
लेनिन ने एक सफल क्रांति लाने के लिये कौन-सी दो मूलभूत शर्ते बताईं ? क्या ये शर्ते रूस में विद्यमान थीं?
उत्तर-
लेनिन द्वारा बताई गई दो शर्त थीं
- जनता पूरी तरह समझे कि क्रांति आवश्यक है और वह उसके लिए बलिदान देने को तैयार हो।
- वर्तमान सरकार संकट से ग्रस्त हो ताकि उसे बलपूर्वक हटाया जा सके। रूस में यह स्थिति निश्चित रूप से आ चुकी थी।
प्रश्न 24.
ज़ार का पतन किस क्रांति के नाम से जाना जाता है और क्यों? रूस की जनता की चार मुख्य मांगें क्या थीं?
उत्तर-
ज़ार के पतन को फरवरी क्रांति के नाम से जाना जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को हुई थी।
रूस की जनता की चार मांगें थीं-शांति, जोतने वालों को ज़मीन, उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी राष्ट्रों को बराबरी का दर्जा।
प्रश्न 25.
बोलश्विक पार्टी का मुख्य नेता कौन था? इस दल की दो नीतियां कौन-कौन सी थीं?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
बोलश्विक पार्टी का नेता लेनिन था। लेनिन के नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी की नीतियां (उद्देश्य) थीं-
- सारी सत्ता सोवियतों को सौंपी जाए।
- सारी भूमि किसानों को दे दी जाए।
प्रश्न 26.
रूसी क्रांति कब हुई? सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस कब हुई? इसने सबसे पहला काम कौन-सा किया?
उत्तर-
रूसी क्रांति 7 नवंबर, 1917 को हुई। इसी दिन सोवियतों की एक अखिल रूसी कांग्रेस हुई। इसने सबसे पहला काम यह किया कि संपूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली।
प्रश्न 27.
समाजवाद की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
- समाजवाद के अनुसार समाज के हित प्रमुख हैं। समाज से अलग निजी हित रखने वाला व्यक्ति समाज का सबसे बड़ा शत्रु है।
- राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं।
प्रश्न 28.
साम्यवाद की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
- साम्यवाद समाजवाद का उग्र रूप है।
- इसका उद्देश्य उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों पर श्रमिकों का कठोर नियंत्रण स्थापित करना है।
प्रश्न 29.
रूसी क्रांति के दो अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
- रूस में किसानों तथा मजदूरों की सरकार स्थापित होने से विश्व के सभी देशों में किसानों और मजदूरों के सम्मान में वृद्धि हुई।
- क्रांति के पश्चात् रूस में साम्यवादी सरकार की स्थापना की गई। इसका परिणाम यह हआ कि संसार के अन्य देशों में भी साम्यवादी सरकारें स्थापित होने लगीं।
प्रश्न 30.
रूसी क्रांति का साम्राज्यवाद पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
रूसी क्रांतिकारी साम्राज्यवाद के विरोधी थे। अत: रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। रूस के समाजवादियों ने साम्राज्यवाद के विनाश के लिए पूरे विश्व में अभियान चलाया।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी ?
अथवा
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर-
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से निम्नलिखित बातों में भिन्न थी
- रूस की अधिकांश जनता कृषि करती थी। वहां के लगभग 85 प्रतिशत लोग कृषि द्वारा ही अपनी रोज़ी कमाते थे। यह यूरोप के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक था। उदाहरण के लिए फ्रांस और जर्मनी में यह अनुपात क्रमश: 40 प्रतिशत तथा 50 प्रतिशत ही था।
- यूरोप के कई अन्य देशों में औद्योगिक क्रांति आई थी। वहां कारखाने स्थानीय लोगों के हाथों में थे। वहां श्रमिकों का बहुत अधिक शोषण नहीं होता था। परंतु रूस में अधिकांश कारखाने विदेशी पूंजी से स्थापित हुए। विदेशी पूंजीपति रूसी श्रमिकों का खूब शोषण करते थे। जो कारखाने रूसी पूंजीपतियों के हाथों में थे, वहां भी श्रमिकों की दशा दयनीय थी। ये पूंजीपति विदेशी पूंजीपतियों से स्पर्धा करने के लिए श्रमिकों का खून चूसते थे।
- रूस में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा बहुत ही कम वेतन दिया जाता था। बच्चों से भी 10 से 15 घंटों तक काम लिया जाता था। यूरोप के अन्य देशों में श्रम-कानूनों के कारण स्थिति में सुधार आ चुका था।
- रूसी किसानों की जोतें यूरोप के अन्य देशों के किसानों की तुलना में छोटी थीं।
- रूसी किसान ज़मींदारों तथा जागीरदारों का कोई सम्मान नहीं करते थे। वे उनके अत्याचारी स्वभाव के कारण उनसे घृणा करते थे। यहाँ तक कि वे प्रायः लगान देने से इंकार कर देते थे और ज़मींदारों की हत्या कर देते थे। इसके विपरीत फ्रांस में किसान अपने सामंतों के प्रति वफ़ादार थे। फ्रांसीसी क्रांति के समय वे अपने सामंतों के लिए लड़े थे।
- रूस का कृषक वर्ग एक अन्य दृष्टि से यूरोप के कृषक वर्ग से भिन्न था। वे एक संमय-अवधि के लिए अपनी जोतों को इकट्ठा कर लेते थे। उनकी कम्यून (मीर) उनके परिवारों की ज़रूरतों के अनुसार इसका बंटवारा करती थी।
प्रश्न 2.
1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया ?
अथवा
रूस में फरवरी 1917 की क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां।
उत्तर-
रूस से ज़ार शाही को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां उत्तरदायी थीं-
- रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। निरंकुश तंत्र की रक्षा करना वह अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखने वाले लोग ही थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
- रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार देश में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
- राजपरिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता बहुत दु:खी थी।
- ज़ार ने अपनी साम्राज्यवादी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देश को प्रथम विश्व-युद्ध में झोंक दिया। परंतु वह राज्य के आंतरिक खोखलेपन के कारण मोर्चे पर लड रहे सैनिकों की ओर पूरा ध्यान न दे सका। परिणामस्वरूप रूसी सेना बुरी तरह पराजित हुई और फरवरी, 1917 तक उसके 6 लाख सैनिक मारे गये। इससे लोगों के साथ-साथ सेना में असंतोष फैल गया। अतः क्रांति द्वारा जार को शासन छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया। इसे फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।
प्रश्न 3.
दो सूचियां बनाइए-एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ज़ार की गलत नीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा साधारण जनता एवं सैनिकों की दुर्दशा के कारण रूस में क्रांति का वातावरण तैयार हो चुका था। एक छोटी-सी घटना ने इस क्रांति का श्रीगणेश किया और यह दो चरणों में पूर्ण हुई। ये दो चरण थे–फरवरी क्रांति तथा अक्तूबर क्रांति। संक्षेप में क्रांति के पूरे घटनाक्रम का वर्णन निम्नलिखित है-
1. फरवरी क्रांति-इस क्रांति का आरंभ रोटी खरीदने का प्रयास कर रही औरतों के प्रदर्शन से हुआ। फिर मजदूरों की एक आम हड़ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोग भी सम्मिलित हो गए। 12 मार्च, 1917 को राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग क्रांतिकारियों के हाथों में आ गई। क्रांतिकारियों ने शीघ्र ही मास्को पर भी अधिकार कर लिया। ज़ार शासन छोड़ कर भाग गया और 15 मार्च को पहली अस्थायी सरकार केरेंस्की के नेतृत्व में बनी। ज़ार के पतन की इस घटना को फरवरी क्रांति कहा जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को घटित हुई थी। परंतु ज़ार का पतन क्रांति का आरंभ मात्र था।
2. अक्तूबर क्रांति-जनता की चार मांगें सबसे महत्त्वपूर्ण थीं–शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर रूसी जातियों को समानता का दर्जा । रूस की अस्थाई सरकार इनमें से किसी भी मांग को पूरा न कर सकी अतः उसने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन जो फरवरी की क्रांति के समय स्विट्ज़रलैंड में निर्वासन का जीवन बिता रहा था, अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को ज़मीन देने तथा “सारे अधिकार सोवियतों को देने” की स्पष्ट नीतियां सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी।
लेनिन ने कभी रूसी साम्राज्य को “राष्ट्रों का कारागार” कहा था और यह घोषणा की थी कि सभी गैर-रूसी जनगणों को समान अधिकार दिये बिना कभी भी वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती। उन्होंने रूसी साम्राज्य के जनगणों सहित सभी जनगणों के आत्मनिर्णय के अधिकार की घोषणा की।
केरेंस्की सरकार की अलोकप्रियता के कारण 7 नवंबर, 1917 को उसका पतन हो गया। इस दिन उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों के एक दल ने अधिकार कर लिया। 1905 की क्रांति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला लियोन त्रात्सकी भी मई, 1917 में रूस लौट आया था। पेत्रोग्राद सोवियत के प्रमुख के रूप में नवंबर के विद्रोह का वह एक प्रमुख नेता था। उसी दिन सोवियतों की अखिल-रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली। 7 नवंबर को होने वाली इस घटना को अक्तूबर क्रांति’ कहा जाता है, क्योंकि उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्तूबर का दिन था।
इस क्रांति के पश्चात् देश में लेनिन के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ जिसने समाजवाद की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाये। इस प्रकार 1917 की रूसी क्रांति विश्व की प्रथम सफल समाजवादी क्रांति थी।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :
- कुलक (Kulaks)
- ड्यूम-
- 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार
- उदारवादी
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर-
कुलक-कुलक सोवियत रूस के धनी किसान थे। कृषि के सामूहीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत स्तालिन ने इनका अंत कर दिया था।
ड्यूमा-ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी। रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में बदल दिया था। इसमें केवल अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रांतिकारियों को इससे दूर रखा गया।
1900 से 1930 के बीच महिला कामगार-रूस के कारखानों में महिला कामगारों (श्रमिकों) की संख्या भी पर्याप्त थी। 1914 में यह कुल श्रमिकों का 31 प्रतिशत थी। परंतु उन्हें पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी। यह पुरुष श्रमिक की मजदूरी का आधा अथवा तीन चौथाई भाग होती थी। महिला श्रमिक अपने साथी पुरुष श्रमिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहती थीं।
उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।
स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम-1929 में स्तालिन की साम्यवादी पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। अधिकांश ज़मीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुल कर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बांट दिया जाता था। इस निर्णय से क्रुद्ध किसानों ने सरकार का विरोध किया। विरोध जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप 1929 से 1931 के बीच जानवरों की संख्या में एक-तिहाई कमी आ गई। सरकार की ओर से सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कड़ा दंड दिया जाता था। बहुत-से लोगों को निर्वासन अथवा देश-निकाला दे दिया गया। सामूहिकीकरण का विरोध करने वाले किसानों का कहना था कि वे न तो धनी हैं और न ही समाजवाद के विरोधी हैं। वे बस विभिन्न कारणों से सामूहिक खेतों पर काम नहीं करना चाहते।
सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। इसके विपरीत 1930-1933 की खराब फसल के बाद सोवियत इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इसमें 40 लाख से अधिक लोग मारे गए।
प्रश्न 5.
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के कौन-कौन से तीन समूह (वर्ग) थे? उनके विचारों में क्या भिन्नता थी?
अथवा
रूस के उदारवादियों, रैडिकलों तथा रूढ़िवादियों के विचारों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के तीन समूह अथवा वर्ग थे-उदारवादी रैडिकल तथा रूढ़िवादी।
उदारवादी-रूस के उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का दर्जा मिले तथा सभी का समान रूप से उदार हो। उस समय के यूरोप में प्रायः किसी एक धर्म को ही अधिक महत्त्व दिया जाता था। उदारवादी वंशआधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के समर्थक थे। उनका मानना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार चाहता था। जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त हो। शासन-कार्य न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। इतना होने पर भी यह समूह लोकतंत्रवादी नहीं था। वे लोग सार्वभौलिक वयस्क मताधिकार अर्थात् सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे।
रैडिक्ल-इस वर्ग के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की जनसंख्या के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो। इनमें से बहुत-से महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे। उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े ज़मींदारों और धनी उद्योगपतियों के विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। परंतु वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे वे केवल कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति का संकेंद्रण का विरोध करते थे।।
रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।
प्रश्न 6.
रूसी क्रांति के कारणों का विवेचन कीजिए। रूस द्वारा प्रथम विश्व-युद्ध में भाग लेने का रूसी क्रांति की सफलता में क्या योगदान है?
उत्तर-
रूसी क्रांति 20वीं शताब्दी के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह क्रांति मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में तेज़ी से बढ़ती हुई समाजवादी विचारधारा का परिणाम थी। इसलिए इसका महत्त्व राजनीतिक दृष्टि से कम, परंतु आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से अधिक था। इस क्रांति से रूस में एक ऐसे समाज की स्थापना हुई, जो जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक कार्ल मार्क्स के विचारों के अनुरूप था। रूस की इस महान् क्रांति के कारणों का वर्णन निम्न प्रकार है-
1. ज़ार की निरंकुशता-रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी था। उसे असीम अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त थीं जिन पर कोई नियंत्रण नहीं था। वह इनका प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता था। उच्च वर्ग के लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त थे, परंतु जन-साधारण की दशा बड़ी शोचनीय थी। उन्हें न तो कोई अधिकार प्राप्त था और न ही शासन में उनका हाथ था। अत: वे ज़ार के निरंकुश शासन का अंत कर देना चाहते थे।
2. रूस में मार्क्सवाद का प्रसार-रूस में औद्योगिक क्रांति आरंभ होने के कारण मजदूरों की दशा बड़ी खराब हो गई। उद्योगपति उनका जी भरकर शोषण कर रहे थे। मज़दूरों को न तो अच्छे वेतन मिलते थे और न ही रहने के लिए अच्छे मकान। इन परिस्थितियों में मज़दूरों का झुकाव मार्क्सवाद की ओर बढ़ने लगा। वे समझने लगे थे कि मार्क्सवादी सिद्धान्तों को अपनाकर ही देश में क्रांति लाई जा सकती है और उनके जीवन-स्तर को उन्नत किया जा सकता है। इस उद्देश्य से उन्होंने ‘सोशलिस्ट डैमोक्रेटिक पार्टी’ नामक एक संगठन स्थापित किया। 1903 ई० में यह संगठन दो भागों में बंट गया-बोल्शेविक तथा मैनश्विक। इनमें बोलश्विक क्रांतिकारी विचारों के थे। वे शीघ्र-से-शीघ्र देश में मजदूरों की तानाशाही स्थापित करना चाहते थे। इसके विपरीत मेनश्विक नर्म विचारों के थे। वे अन्य दलों के सहयोग से ज़ार की तानाशाही समाप्त करने के पक्ष में थे। उनका उद्देश्य देश में शांतिमय साधनों द्वारा धीरे-धीरे क्रांति लाना था। इस प्रकार रूस में क्रांति का पूरा वातावरण तैयार हो चुका था।
3. जन-साधारण की शोचनीय दशा-समाज में जनसाधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक रूस के समाज में दो वर्ग थे-उच्च वर्ग तथा दास कृषक। उच्च वर्ग के अधिकांश लोग भूमि के स्वामी थे। राज्य के सभी उच्च पदों पर वे ही आसीन थे। इसके विपरीत दास-कृषक (Serfs) लकड़ी काटने वाले तथा पानी भरने वाले ही बनकर रह गए थे। अत: वे अब इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।
4. दार्शनिकों तथा लेखकों का योगदान–’ज़ार’ के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पाश्चात्य जगत् के उदार विचारों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। टॉलस्टाय, तुर्गनोव तथा दास्तोवस्की के उपन्यासों ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी थी। देश में मार्क्स, बाकूनेन तथा क्रोपटकिन की विचारधाराएं भी प्रचलित थीं। इन विचारों से प्रभावित होकर लोगों ने ऐसे अधिकारों तथा सुविधाओं की मांग की जो कि पाश्चात्य देशों के लोगों को प्राप्त थीं। ज़ार ने जब उनकी मांगें ठुकराने का प्रयत्न किया तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया।
5. रूस-जापान युद्ध-1904-1905 ई० में रूस तथा जापान के बीच एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस की हार हुई। जापान जैसे छोटे-से देश के हाथों परास्त होने के कारण रूसी जनता ज़ार के शासन की विरोधी बन गई। उन्हें विश्वास हो गया कि इस पराजय का एकमात्र कारण ज़ार की सरकार है जो युद्ध का ठीक प्रकार से संचालन करने में असफल रही है।
6. 1905 ई० की क्रांति-‘ज़ार’ के निरंकुश तथा अत्याचारी शासन के विरुद्ध 1905 ई० में रूस में एक क्रांति हुई। ‘ज़ार’ इस क्रांति का दमन करने में असफल रहा। विवश होकर उसने जनता को सुधारों का वचन दिया। राष्ट्रीय सभा अथवा ड्यूमा (Duma) बुलाने की घोषणा कर दी गई। परंतु निरंकुश शासन तथा संसदीय सरकार के मेल का यह नया प्रयोग असफल रहा। क्रांतिकारियों की आपसी फूट और मतभेदों का लाभ उठाकर ज़ार ने प्रतिक्रियावादी नीति का सहारा लिया। उसने ड्यूमा को परामर्श समिति मात्र बना दिया। ज़ार के इस कार्य से जनता में और भी अधिक असंतोष फैल गया।
7. प्रथम विश्व युद्ध-1914 ई० में प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण बना। इस युद्ध में रूस बुरी तरह पराजित हो रहा था और इस युद्ध का देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। लड़ाई के कारण कीमतें बढ़ गईं। इस पर पूंजीपतियों ने मनमानी करके स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना दिया। इन परिस्थितियों को देखकर ड्यूमा ने उत्तरदायी शासन की मांग की। परंतु ज़ार ने उसे अस्वीकार कर दिया और उसके सदस्यों को जेलों में बंद कर दिया। दूसरी ओर रूसी सेनाओं की लगातार पराजय हो रही थी। अतः लोगों को यह विश्वास हो गया कि सरकार युद्ध का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर रही है। इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि देश में मजदूरों ने हड़तालें करनी आरंभ कर दी, किसानों ने लूट-मार मचा दी और स्थान-स्थान पर दंगे होने लगे।
प्रश्न 7.
रूस में अक्तूबर क्रांति (दूसरी क्रांति) के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन करो। इसका रूस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
- अस्थायी सरकार की विफलता-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
- लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
- खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
- देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।
घटनाएं-सर्वप्रथम मार्च, 1917 ई० में रूस के प्रसिद्ध नगर पैट्रोग्राड (Petrograd) से क्रांति का आरंभ हुआ। यहां श्रमिकों ने काम करना बंद कर दिया और साधारण जनता ने रोटी के लिए विद्रोह कर दिया। सरकार ने सेना की सहायता से विद्रोह को कुचलना चाहा। परंतु सैनिक लोग मज़दूरों के साथ मिल गए और उन्होंने मज़दूरों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। मज़दूरों तथा सैनिकों की एक संयुक्त सभा बनाई गई, जिसे सोवियत (Soviet) का नाम दिया गया। विवश होकर ज़ार निकोलस द्वितीय ने 25 मार्च, 1917 को राजगद्दी छोड़ दी। देश का शासन चलाने के लिए मिल्यूकोफ की सहायता से एक मध्यम वर्गीय अंतरिम सरकार बनाई गई। नई सरकार ने सैनिक सुधार किए। धर्म, विचार तथा प्रेस को स्वतंत्र कर दिया गया और संविधान सभा बुलाने का निर्णय लिया गया। परंतु जनता रोटी, मकान और शांति की मांग कर रही थी। परिणाम यह हुआ कि यह मंत्रिमंडल भी न चल सका और इसके स्थान पर नर्म विचारों के दल मैनश्विकों (Mansheviks) ने सत्ता संभाल ली, जिसका नेता केरेस्की (Kerensky) था।
नवंबर, 1917 में मैनश्विकों को भी सत्ता छोड़नी पड़ी। अब लेनिन के नेतृत्व में गर्म विचारों वाले दल बोलश्विक ने सत्ता संभाली। लेनिन ने रूस में एक ऐसे समाज की नींव रखी जिसमें सारी शक्ति श्रमिकों के हाथों में थी। इस प्रकार रूसी क्रांति का उद्देश्य पूरा हुआ।
रूस पर प्रभाव-
- मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं। उनके लिए सैनिक शिक्षा भी अनिवार्य कर दी गई।
- जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं।
- व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
- देश के सभी कारखाने श्रमिकों की देख-रेख में चलने लगे।
- शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की सभाओं (सोवियत) के हाथों में आ गई।
प्रश्न 8.
प्रथम विश्वयुद्ध से जनता जार (रूस) को क्यों हटाना चाहती थी ? कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध रूसियों के लिए कई मुसीबतें लेकर आया। इसलिए जनता ज़ार को प्रथम विश्वयुद्ध से हटाना चाहती थी। इस बात की पुष्टि के लिए निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-
- प्रथम विश्वयुद्ध में ‘पूर्वी मोर्चे’ (रूसी मोर्चे) पर चल रही लड़ाई ‘पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक जो फ्रांस की सीमा पर बनी खाइयों से ही लड़ाई लड़ रहे थे वहीं पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफ़ी दूरी तय कर ली थी। इस मोर्चे पर बहुत से सैनिक मौत के मुँह में जा चुके थे। सेना की पराजय ने रूसियों का मनोबल तोड़ दिया था।
- 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। 1917 तक लगभग 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
- पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु की सेना वहां टिक ही न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश के कारण रूस में 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इस स्थिति ने सरकार और जार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
- युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो पहले ही बहुत कम थे, अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई। क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी सामान आता था उस पर जर्मनी का नियंत्रण हो चुका था।
- यूरोप के बाकी देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण भी अधिक तेज़ी से बेकार होने लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं।
- हृष्ट-पुष्ट पुरुषों को युद्ध में झोंक दिया गया था। अतः देश भर में मजदूरों की कमी पड़ने लगी, और ज़रूरी सामान बनाने वाली छोटी-छोटी वर्कशॉप्स बंद होने लगीं। अधिकतर अनाज सैनिकों का पेट भरने के लिए मोर्चे पर भेजा जाने लगा। अतः शहरों में रहने वालों के लिए रोटी और आटे का अभाव पैदा हो गया। 1916 की सर्दियों में रोटी की दुकानों पर बार-बार दंगे होने लगे।
प्रश्न 9.
1870 से 1914 तक यूरोप में समाजवादी विचारों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक के आरंभ तक समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे।
- अपने प्रयासों में तालमेल लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनैशनल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
- इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपने जीवन तथा कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरु कर दिया था। इन संगठनों ने संकट के समय अपने सदस्यों को सहायता पहुंचाने के लिए कोष स्थापित किए और काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ इन संगठनों के काफ़ी गहरे संबंध थे। वे संसदीय चुनावों में पार्टी की सहायता भी करते थे।
- 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों तथा ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।
- फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया। परंतु 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाए। यद्यपि संसदीय चुनावों में उनके प्रतिनिधि बड़ी संख्या में जीतते रहे और उन्होंने कानून बनवाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, तो भी सरकारों में रूढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकलों का ही दबदबा बना रहा।
रूसी क्रांति PSEB 9th Class History Notes
- रूस की क्रांति – 1917 में रूस में विश्व की सबसे पहली समाजवादी क्रांति हुई। यह क्रांति शांतिपूर्ण थी।
- क्रांति के कारण – क्रांति से पूर्व रूस का सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण क्रांति के अनुकूल था। किसानों तथा मजदूरों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। रूस का ज़ार निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी था। साधारण जनता को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। इसलिए लोग ज़ार के विरुद्ध थे। ज़ार ने रूस को प्रथम विश्व-युद्ध में झोंक कर एक अन्य बड़ी गलती की। इस युद्ध में सैनिकों की दुर्दशा के कारण सैनिक भी ज़ार के विरुद्ध हो गए।
- लेनिन – लेनिन को मार्क्स तथा एंगेल्स के बाद समाजवादी आंदोलन का महानतम् विचारक माना जाता है। उसने देश में बोल्शेविक दल को संगठित करने तथा क्रांति को सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई।
- 1905 की क्रांति – 1905 में ज़ार को याचिका देने के लिए जाते हुए मजदूरों के समूह पर गोली चला दी गई। इस घटना ने क्रांति का रुप धारण कर लिया। इस क्रांति के दौरान संगठन का एक नया रूप विकसित हुआ। यह था सोवियत या मज़दूरों के प्रतिनिधियों की परिषद् । इस क्रांति ने 1917 की क्रांति की भूमिका तैयार की।
- क्रांति का प्रारंभ – रूसी क्रांति का विस्फोट स्त्रियों के प्रदर्शन के कारण हुआ। उसके बाद मज़दूरों की एक आम हड़ताल हुई। 15 मार्च, 1917 को ज़ार द्वारा राज सिंहासन त्यागने के बाद रूस में प्रथम अस्थायी सरकार की स्थापना हुई। रूसी पंचांग के अनुसार इसे फरवरी क्रांति कहते हैं और इसका आरंभ 27 फरवरी से मानते हैं।
- क्रांति की सफलता – पहली अंतरिम सरकार के पतन (7 नवंबर, 1917) के बाद लेनिन सरकार सत्ता में आई। इसे अक्तूबर क्रांति (रूसी पंचांग के अनुसार 25 अक्तूबर) के नाम से जाना जाता हैं।
- सोवियत – 1905 की रूसी क्रांति के दौरान संगठन का एक नया रूप उभरा। इसे ‘सोवियत’ कहते हैं। सोवियत का अर्थ है मज़दूरों के प्रतिनिधियों की परिषद्। प्रारंभ में ये परिषदें हड़ताल चलाने वाली कमेटियां थीं, परंतु बाद में ये राजनीतिक सत्ता के साधन बन गईं। कुछ समय बाद किसानों की सोवियतों का निर्माण भी हुआ। रूसी सोवियतों ने 1917 की क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- फरवरी क्रांति – रूस में औरतों के प्रदर्शन के बाद मजदूरों की हड़ताल हुई। मज़दूरों ने 12 मार्च को राजधानी पीटर्सबर्ग पर अधिकार कर लिया। शीघ्र ही उन्होंने मास्को पर भी अधिकार कर लिया। ज़ार सिंहासन छोड़कर भाग गया और 15 मार्च को अंतरिम सरकार की स्थापना हुई। रूस की यह क्रांति पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 27 फरवरी, 1917 को हुई थी। इसलिये इसे फरवरी क्रांति के नाम से पुकारा जाता है।
- अक्तूबर क्रांति – अक्तूबर क्रांति वास्तव में 7 नवंबर, 1917 को हुई थी। उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्तूबर का दिन था। इसलिए इस क्रांति को ‘अक्तूबर क्रांति’ का नाम दिया जाता है। इस क्रांति के परिणामस्वरूप केरेंस्की सरकार का अपनी अलोकप्रियता के कारण पतन हो गया। उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों के एक दल ने अधिकार कर लिया। उसी दिन सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली।
- खूनी रविवार – 1905 ई० में रूसी क्रांतिकारी आंदोलन बल पकड़ रहा था। इसी दौरान पादरी गैथॉन के नेतृत्व में मजदूरों का एक जलूस जार के महल (विंटर पैलेस) के सामने पहुंचा तो उन पर गोलियां चलाई गईं। इस गोलीकांड में 100 से अधिक मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को ‘खूनी रविवार’ कहा जाता है। 1905 की क्रांति की शुरुआत इसी घटना से हुई थी।
- कम्युनिस्ट इंटरनेशनल – कम्युनिस्ट इंटरनेशनल अथवा कामिंटर्न का संगठन 1919 में प्रथम और द्वितीय इंटरनेशनल की भांति किया गया था। इसीलिए इसे तृतीय इंटरनेशनल भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रांतियों को बढ़ावा देना था। प्रथम महायुद्ध के समय समाजवादी आंदोलन में फूट पड़ गई थी। इससे अलग होने वाला वामपंथी दल कम्युनिस्ट गुट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कामिंटर्न का संबंध इसी गुट से था। यह एक ऐसा मंच था जो विश्व भर की कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए नीतियां निर्धारित करता था।
- समाजवाद – समाजवाद वह राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर राज्य का अधिकार होता है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक साधनों का समान वितरण है। इस व्यवस्था में समाज के किसी वर्ग का शोषण नहीं किया जाता। यह पूंजीवाद के बिलकुल विपरीत है।
- 1850-1889 – रूस में समाजवाद पर वाद-विवाद
- 1898 – रूसी समाजवादी प्रजातांत्रिक वर्क्स पार्टी का गठन
- 1905 – खूनी रविवार तथा रूस में क्रांति
- 1917
- 2 मार्च – ज़ार का सत्ता से हटना
- 24 अक्तूबर – पैत्रोग्राद में बोलश्विक क्रांति
- 1918-20 – रूस में गृह-युद्ध
- 1919 – कोमिंटर्न की स्थापना
- 1929 – सामूहीकरण का आरंभ