PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

PSEB 9th Class Home Science Guide कढ़ाई के टांके प्रयोगी Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कढ़ाई के दो टांकों के नाम लिखो।
उत्तर-
डण्डी टांका, जंजीरी टांका, लेज़ी डेज़ी टांका, साटन टांका, कम्बल टांका।

प्रश्न 2.
दसूती टांके के लिए किस प्रकार का कपड़ा सही रहता है?
उत्तर-
इस टांके का प्रयोग दसूती वस्त्र पर होता है । जाली वाले वस्त्रों पर इस टांके से कढ़ाई की जाती है।

प्रश्न 3.
नमूने का हाशिया आमतौर पर किस टांके के द्वारा बनाया जाता है और नमूने को किस टांके के द्वारा भरा जाता है?
उत्तर-
नमूने का हाशिया साधारणतः डंडी टांके से बनाया जाता है। कई बार नमूने में भरने का कार्य भी इसी टांके से किया जाता है। नमूनों को साटन स्टिच से भी भरा जाता है।

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प्रश्न 4.
कढ़ाई के लिए कौन-कौन सी किस्म के धागे प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
कढ़ाई के लिए निम्नलिखित धागे प्रयोग किये जाते हैं
सूती धागे, रेशमी, ऊनी, ज़री के धागे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
स्टिच के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न।

प्रश्न 6.
कम्बल टांके के बारे में नोट लिखें।
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
कढ़ाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के धागों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

प्रश्न 8.
कढ़ाई के नमूने को कपड़ों पर कैसे ट्रेस किया जा सकता है?
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

Home Science Guide for Class 9 PSEB कढ़ाई के टांके प्रयोगी Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/ग़लत बताएं

  1. लेज़ी डेज़ी टांका, जंजीरी टांके की किस्म है।
  2. साटन स्टिच एक भरवां टांका है।
  3. जालीदार कपड़े पर दसूती टांका प्रयोग किया जाता है।
  4. दसूती टांके में छोटे-छोटे फंदे बनते हैं।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. गलत।

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रिक्त स्थान भरो

  1. डंडी टांके का प्रयोग ……………. बनाने के लिए किया जाता है।
  2. नमूने को ……………. स्टिच से भी भरा जाता है।
  3. ज़री के धागे को …………… भी कहा जाता है।
  4. कंबल टांके को ………….. स्टिच भी कहा जाता है।

उत्तर-

  1. हाशिया,
  2. साटन,
  3. सलमा,
  4. लूप।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊनी धागे का प्रयोग …….. टांकों के लिए होता है।
(A) दसूती
(B) डंडी
(C) चेन
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक

प्रश्न 2.
नमूने का हाशिया प्रायः ………. टांके से बनाया जाता है।
(A) दसूती
(B) डंडी
(C) कंबल
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) डंडी

प्रश्न 3.
……… टांके में छोटे-छोटे फंदे बनते हैं।
(A) जंजीरी
(B) कंबल
(C) डंडी
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(A) जंजीरी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कढ़ाई के विभिन्न टांकों के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
डंडी टांका (Stem Stich) कढ़ाई के नमूने में फूल पत्तियों की डंडियां बनाने के । लिए इस टांके का प्रयोग किया जाता है। यह टांके बाएं से दाएं तिरछे होते हैं तथा एक-दूसरे से मिले हुए लगते हैं। जहां एक टांका समाप्त होता है वहीं से दूसरा शुरू होता है।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (1)
भराई का टांका अथवा साटन स्टिच-इस टांके को गोल कढ़ाई भी कहा जाता है। इस द्वारा छोटे-छोटे गोल फूल तथा पत्तियां बनती हैं। आजकल एप्लीक कार्य भी इसी टांके से तैयार किया जाता है। कट वर्क, नैट वर्क भी इसी टांके द्वारा बनाये जाते हैं। छोटेछोटे पंछी आदि भी इसी टांके से बहुत सुन्दर लगते हैं । इसको फैंसी टांका भी कहा जाता है। इसमें अधिक छोटी फुल पत्तियों (जो गोल होती हैं) का प्रयोग होता है। यह टांका भी दाईं तरफ से बाईं ओर लगाया जाता है। रेखा से ऊपर जहां से नमूना शुरू करना है, सूई वहीं लगनी चाहिए। यह टांका देखने में दोनों तरफ एक सा लगता है।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (2)
जंजीरी टांका-इस टांके को प्रत्येक जगह प्रयोग कर लिया जाता है। इसको डंडियां, पत्तियां, फूलों तथा पक्षियों आदि सभी में प्रयोग किया जाता है। ऐसे टांके दाईं तरफ से बाईं ओर तथा दाईं तरफ से बाईं ओर लगाये जाते हैं । वस्त्र पर सूई एक बिन्दु से निकालकर सूई पर यह धागा लपेटते हुए दोबारा उसी जगह पर सूई लगाकर आगे की ओर लपेटते हुए यह टांका लगाया जाता है। इस प्रकार क्रम से एक गोलाई में दूसरी गोलाई बनाते हुए आगे की ओर टांका लगाते जाना चाहिए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (3)
लेज़ी डेज़ी टांका-इस टांके का प्रयोग छोटे-छोटे फूल तथा बारीक पत्ती की हल्की कढ़ाई के लिए किया जाता है। ये टांके एक-दूसरे के साथ लगातार गुंथे नहीं रहते बल्कि अलग-अलग रहते हैं। फूल के बीच से धागा निकालकर सूई उसी जगह पहुंचाते हैं। इस प्रकार पत्ती सी बन जाती है। पत्ती को अपनी जगह पर स्थिर करने के लिए दूसरी तरफ गांठ लगा देते हैं।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (4)
दसती टांका-यहा टांका उसी वस्त्र पर ही बन सकता है जिसकी बुनाई खुली हो ताकि कढ़ाई करते समय धागे आसानी से गिने जा सकें। यदि तंग बुनाई वाले वस्त्र पर यह कढ़ाई करनी हो तो वस्त्र पर पहले नमूना छाप लो तथा फिर नमूने के ऊपर ही बिना वस्त्र के धागे गिने कढ़ाई करनी चाहिए। यह टांका दो बार बनाया जाता हैं। पहली बार एक एकहरा टांका बनाया जाता है, ताकि टेढ़े (/) टांकों की एक लाइन बन जाये तथा दूसरी बार में इस लाइन के टांकों पर दूसरी लाइन बनाई जाती है। इस तरह दसूती टांका (✕) बन जाता है। सूई को दाएं हाथ के कोने से टांके के निचले सिरे पर निकालते हैं। उसी टांके के ऊपरी बाएं कोने में डालते हैं तथा दूसरे टांके के निचले दाएं कोने से निकालते हैं। इस तरह करते जाओ ताकि पूरी लाइन टेढ़े टांकों की बन जाये। अब सूई आखिरी टांके के बाईं ओर निचले कोने से निकली हुई होनी चाहिए। अब सूई को उसी टांके के दाएं ऊपरी कोने से डालें तथा अगले टांके से निचले बाएं कोने से निकालो ताकि (✕) पूरा बन जाए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (5)
कंबल टांका-इस टांके का प्रयोग कंबलों के सिरों पर किया जाता है। रूमालों, मेज़ पोश, तुरपाई, कवर, आदि के किनारों पर भी इसको सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है। इस टांके को लूप-स्टिच भी कहा जाता है। इसको बनाने के लिए सूई को वस्त्र से निकालकर सूई वाले धागे से दाईं ओर सूई से नीचे करो तथा सूई को खींचकर वस्त्र से बाहर निकालो। फिर 1/8″-1/9″ स्थान छोड़कर टांका लगाओ तथा इस तरह आखिर तक करते जाओ।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

प्रश्न 2.
कढ़ाई के लिए धागों की किस्मों के बारे में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर-
कढ़ाई के लिए सूती, रेशमी, ऊनी तथा जरी के धागे प्रयोग किये जाते हैं।

  1. सूती धागे-इन धागों का प्रयोग हर किस्म की कढ़ाई के लिए होता है तथा यह हर जगह से मिल भी जाते हैं। यह तारकशी छ: तारों वाले हो सकते हैं तथा कटे हुए अथवा गुच्छों में मिलते हैं।
  2. रेशमी धागे-यह सूती धागों से कम मज़बूत होते हैं। परन्तु यह भी हर तरह की कढ़ाई के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह सिलवटों वाले बड़े धागे गुच्छों तथा रीलों में मिलते हैं। बिना सिलवटें पड़े धागे भी मिलते हैं। इन्हें पट का धागा भी कहा जाता है। पुरानी फुल्कारियों में असली रेशमी पट का ही प्रयोग होता था। अब आर्ट सिल्क (रेयॉन) की रीलें भी मिलती हैं। इस धागे का प्रयोग फुल्कारी तथा सिन्धी कढ़ाई के लिए किया जाता है।
  3. ऊनी धागे-इसका प्रयोग दसूती, डंडी टांके, चेन स्टिच, भरवी चोप आदि टांकों के लिए होता है। इन्हें मोटे वस्त्र जैसे केसमैंट, ऊनी मैटी आदि पर प्रयोग किया जाता है। यह धागे ऊन वाली दुकानों से गोलियों अथवा लच्छों में मिल सकते हैं।
  4. जरी के धागे-यह तिल्ले के धागे सीधे अथवा सिलवटों वाले होते हैं। इनको सलमा भी कहा जाता है। पहले इन धागों पर असली सोने तथा चांदी की झाल फिरी होती थी, परन्तु आजकल एल्यूमीनियम तथा नायलॉन के पॉलिश किये धागे मिलते हैं। कुछ समय पश्चात् यह पॉलिश उतर जाती है। इस धागे का प्रयोग साटन, शनील, सिल्क बनावटी रेशों से बने कपड़ों पर किया जाता है। इनको मुनियारी की दुकान से खरीदा जा सकता है।

प्रश्न 3.
कढ़ाई के नमूने को वस्त्र पर कैसे छापा जा सकता है?
उत्तर-

  1. कार्बन पेपर से छपाई-कार्बन पेपर को कढ़ाई वाले वस्त्र पर रखा जाता है। कार्बन पेपर ऊपर नमूना रख कर नमूने पर पैंसिल फेरी जाती है। इस तरह नमूना वस्त्र पर छप जाती है।
  2. मशीन से छपाई-मशीन को तेल देकर वस्त्र पर नमूने वाला कागज़ रख कर, नमूने पर खाली (बिना धागे) मशीन चलाएं। इस तरह वस्त्र पर नमूने के निशान आ जाएंगे।
  3. ट्रेसिंग पेपर में छेद करके छपाई-ट्रेसिंग पेपर पर नमूना उतार लिया जाता है और छपाई वाले स्थान पर बिना धागे के मशीन चलाई जाती है। जिससे पेपर में छेद हो जाते हैं। अब इस पेपर को वस्त्र पर रखकर छेद वाले स्थान पर तेल या नील के घोल से भीगा हुआ छोटा-सा कपड़ा फेरा जाता है। इससे नमूना वस्त्र पर छप जाता है। इस ढंग का प्रयोग तब किया जाता है जब एक ही नमूने को बार-बार छापना हो।

प्रश्न 4.
नमूने को कपड़े पर कैसे देस किया जाता है?
उत्तर-
कढ़ाई करने के लिए निम्नलिखित तरीकों से छापा जाता हैकार्बन पेपर से छपाई, मशीन से, ट्रेसिंग पेपर में छिद्र करके छपाई।

प्रश्न 5.
कढ़ाई के लिए धागों की दो किस्मों के बारे में लिखें।
उत्तर-

  1. सूती धागे-इन धागों का प्रयोग हर किस्म की कढ़ाई के लिए होता है तथा यह हर जगह से मिल भी जाते हैं। यह तारकशी छः तारों वाले हो सकते हैं तथा कटे हुए अथवा गुच्छों में मिलते हैं।
  2. रेशमी धागे-यह सूती धागों से कम मज़बूत होते हैं। परन्तु यह भी हर तरह की कढ़ाई के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह सिलवटों वाले बड़े धागे गुच्छों तथा रीलों में मिलते हैं। बिना सिलवटें पड़े धागे भी मिलते हैं। इन्हें पट का धागा भी कहा जाता है। पुरानी फुल्कारियों में असली रेशमी पट का ही प्रयोग होता था। अब आर्ट सिल्क (रेयॉन) की रीलें भी मिलती हैं। इस धागे का प्रयोग फुल्कारी तथा सिन्धी कढ़ाई के लिए किया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

कढ़ाई के टांके प्रयोगी PSEB 9th Class Home Science Notes

  • कढ़ाई से पोशाकों अथवा घर में प्रयोग होने वाले अन्य वस्त्रों की सुन्दरता बढ़ाई जा सकती है।
  • कढ़ाई के विभिन्न टांके हैं डंडी टांका, जंजीरी टांका, लेज़ी डेज़ी टांका, साटन स्टिच, कंबल टांका, दसूती टांका।
  • डंडी टांका बखीए के उलटी तरफ जैसा होता है तथा बखीए के विपरीत इसकी कढ़ाई बाईं तरफ से दाईं तरफ की जाती है।
  • डण्डी टांके का प्रयोग हाशिया बनाने के लिए किया जाता है।
  • जंजीरी टांके में छोटे-छोटे फंदे होते हैं जो आपस में जुड़-जुड़ कर जंजीर बनाते
  • लेज़ी डेज़ी टांका, जंजीरी टांके की ही एक किस्म है।
  • साटन स्टिच भरवां टांका है, इससे कढ़ाई के नमूनों में फूल, पत्ती अथवा दूसरे नमूने भरे जाते हैं।
  • दसूती टांके का प्रयोग जाली वाले वस्त्रों पर किया जाता है।
  • कढ़ाई के लिए सूती, रेशमी, ऊनी, ज़री के धागों का प्रयोग किया जाता है।
  • कढ़ाई के नमूने की वस्त्र पर कार्बन पेपर से, मशीन से तथा ट्रेसिंग पेपर में छिद्र करके छपाई की जाती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

SST Guide for Class 8 PSEB 1857 ई० का विद्रोह Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर लिखो :

प्रश्न 1.
1857 ई० के विद्रोह के कौन-से दो राजनीतिक कारण थे ?
उत्तर-

  • लार्ड डल्हौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब की पेन्शन बंद कर दी।
  • डल्हौज़ी ने अवध के नवाव वाजिद अली शाह को गद्दी से हटा कर अवध को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। इससे अवध में विद्रोह की भावना भड़क उठी।

प्रश्न 2.
बहादुरशाह ज़फ़र को क्या सज़ा दी गई थी ?
उत्तर-
बहादुरशाह ज़फ़र को बंदी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके पुत्रों को गोली मार दी गई।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के तत्कालीन कारण क्या थे ?
उत्तर-
भारतीय सैनिक अंग्रेजी सरकार से प्रसन्न नहीं थे। वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे। 1857 ई० में अंग्रेजी सरकार ने राइफलों में नये किस्म के कारतूस का प्रयोग आरम्भ किया। इन कारतूसों पर गाय तथा सूअर की चर्बी लगी हुई थी और प्रयोग करने से पहले इन्हें मुंह से छीलना पड़ता था। ऐसा करने से हिन्दू तथा मुस्लिम सैनिकों की भावनाओं को चोट पहुंचती थी। इसलिए वे भड़क उठे। सबसे पहले मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने 29 मार्च, 1857 ई० को इन कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। क्रोध में आकर उसने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या भी कर दी। यही घटना 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण बनी।

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह को और कौन-से दो नामों से जाना जाता है ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह को ‘भारत की स्वतन्त्रता का संग्राम’ तथा ‘सैनिक विद्रोह’ के नाम से भी जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों ने इसे कुछ असन्तुष्ट शासकों तथा जागीरदारों का विद्रोह कहा है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

प्रश्न 5.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो आर्थिक कारणों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) भारतीय उद्योगों तथा व्यापार का विनाश। (2) ज़मींदारों की बुरी दशा।

प्रश्न 6.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो सामाजिक कारणों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) भारत के सामाजिक रीति-रिवाजों में अंग्रेजों का हस्तक्षेप। (2) भारतीयों से अपमानजनक व्यवहार।

प्रश्न 7.
1857 ई० के विद्रोह की कोई चार घटनाओं के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) मंगल पांडे की शहीदी, (2) मेरठ की घटना, (3) दिल्ली की घटना, (4) लखनऊ की घटना।

प्रश्न 8.
1857 ई० के विद्रोह के तत्कालीन कारणों के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारतीय सैनिक अंग्रेज़ी सरकार से प्रसन्न नहीं थे। वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे। 1857 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने राइफलों में नये किस्म के कारतूस का प्रयोग आरम्भ किया। इन कारतूसों पर गाय तथा सूअर की चर्बी लगी हुई थी और चलाने से पहले इन्हें मुंह से छीलना पड़ता था। ऐसा करने से हिन्दू तथा मुस्लिम सैनिकों की भावनाओं को चोट पहुंचती थी। इसलिए वे भड़क उठे। सबसे पहले मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने 29 मार्च, 1857 ई० को इन कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। क्रोध में आकर उसने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या भी कर दी। इसी घटना से 1857 का विद्रोह आरम्भ हो गया।

प्रश्न 9.
1857 ई० के विद्रोह के समय दिल्ली की घटना के बारे संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
मेरठ की घटना के बाद 11 मई, 1857 को विद्रोही (क्रान्तिकारी) सैनिक दिल्ली पहुंचे। अंग्रेज़ सैनिक __ अधिकारियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, परन्तु उन्होंने उन अधिकारियों को मार डाला और दिल्ली में प्रवेश किया। दिल्ली में अंग्रेजी सेना के अनेक भारतीय सिपाही क्रान्तिकारियों से मिल गए। उन्होंने मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ज़फ़र को भारत का सम्राट घोषित किया और स्वतन्त्र भारत की घोषणा कर दी। इस घटना के चार-पांच दिन बाद ही दिल्ली पर पूरी तरह क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया। परन्तु 14 सितम्बर को जनरल निकलसन ने दिल्ली पर फिर से अधिकार कर लिया। बहादुर शाह ज़फ़र को बन्दी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके दो पुत्रों को गोली मार दी गई।

प्रश्न 10.
1857 ई० के विद्रोह के सामाजिक कारणों के बारे में संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
1857 ई० के सामाजिक कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. सामाजिक तथा धार्मिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप-अंग्रेज़ गवर्नर-जनरलों विलियम बैंटिंक तथा लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतीय समाज में सुधार किए। उन्होंने सती प्रथा तथा कन्या वध को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। विधवा विवाह की अनुमति दे दी गई। जाति-पाति तथा छुआछूत की मनाही कर दी गई। परन्तु इन सुधारों का भारतीयों पर विपरीत प्रभाव पड़ा। अतः वे अंग्रेजी साम्राज्य का अन्त करने की योजना बनाने लगे।

2. ईसाई धर्म का प्रचार-भारत में ईसाई पादरी लोगों को लालच देकर ईसाई बना रहे थे। इसके अतिरिक्त वे भारतीय धर्मों की निन्दा भी करते थे। इसलिए भारत के लोग अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।

3. भारतीयों से बुरा व्यवहार-अंग्रेज़ भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करते थे। उनके साथ होटलों, सिनेमाघरों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव किया जाता था। इसलिए भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष था।

प्रश्न 11.
प्रादेशिक फोकस-अवध के बारे में नोट लिखें।
उत्तर-
अवध एक समृद्ध राज्य था। वहां का नवाब वाजिद अली शाह सदा अंग्रेज़ों का वफ़ादार रहा था। परन्तु अंग्रेज़ों ने उसके राज्य में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया। उसे अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखने के लिए विवश किया गया। कुछ समय पश्चात् वहां की सारी देशी सेना को हटा कर अंग्रेज़ी सेना रख दी गई। इस सेना के खर्चे का सारा बोझ नवाब पर ही था। सेना से हटाए गए अवध के सभी सैनिक बेकार हो गए। 1856 ई० में अंग्रेज़ों ने नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर उसके राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1857 के विद्रोह में अवध के सैनिकों, किसानों तथा ताल्लुकेदारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. कारतूसों पर गाय तथा ……….. के माँस की चर्बी लगी होती थी।
2. लार्ड ………… की लैप्स की नीति के अनुसार बहुत-से भारतीय राज्य अंग्रेज़ी साम्राज्य में शामिल कर लिए गए।
3. सबसे पहले यह विद्रोह …………. नामक स्थान पर शुरू हुआ।
4. नाना साहेब का प्रसिद्ध जरनैल ………….. था।
5. भारतीयों सैनिकों ने मुग़ल बादशाह ………… को अपना बादशाह (सम्राट) घोषित कर दिया।
उत्तर-

  1. सूअर
  2. डल्हौज़ी
  3. बैरकपुर
  4. तांत्या टोपे
  5. बहादुर शाह जफ़र।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाओ :

1. अग्रेज़ी काल में भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। (✗)
2. भारतीय लोगों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता था। (✗)
3. अंग्रेज़ों ने बहुत-से सामाजिक सुधार किए। (✓)
4. भारतीय उद्योग एवं व्यापार धीरे-धीरे नष्ट होना शुरू हो गये। (✓)
5. अंग्रेजों ने ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति अपनाई। (✓)

PSEB 8th Class Social Science Guide 1857 ई० का विद्रोह Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
बहादुरशाह ज़फ़र को बंदी बना कर रखा गया-
(i) अफगानिस्तान
(ii) पाकिस्तान
(iii) रंगून
(iv) भूटान।
उत्तर-
रंगून

प्रश्न 2.
भारत का पहला सशस्त्र विद्रोह हुआ
(i) 1834 ई०
(ii) 1857 ई०
(iii) 1757 ई०
(iv) 1889 ई०।
उत्तर-
1857 ई०

प्रश्न 3.
1857 ई० में विद्रोही (क्रांतिकारी) सैनिकों ने भारत का सम्राट् घोषित किया
(i) तांत्या टोपे .
(ii) रानी लक्ष्मीबाई
(iii) नाना साहिब
(iv) बहादुर शाह ज़फ़र।
उत्तर-
बहादुर शाह जफ़र

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह का आरम्भ हुआ
(i) दिल्ली
(ii) लखनऊ
(iii) मेरठ
(iv) झांसी।
उत्तर-
मेरठ

प्रश्न 5.
लैप्स की नीति चलाई-
(i) लार्ड डलहौज़ी
(ii) निकलसन
(iii) लार्ड मैकाले
(iv) लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज़।
उत्तर-
लार्ड डलहौज़ी

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

प्रश्न 6.
नाना साहिब की पेंशन किसने बंद की ?
(i) लार्ड डल्हौज़ी
(ii) लार्ड कार्नवालिस
(iii) लार्ड विलियम बैंटिंक
(iv) लार्ड वैलजेली।
उत्तर-
लार्ड डल्हौजी

प्रश्न 7.
चर्बी वाले कारतूसों को चलाने से इन्कार करने वाला सैनिक कौन था ?
(i) बहादुर शाह जफ़र
(ii) तोत्या टोपे
(iii) नाना साहिब
(iv) मंगल पांडे।
उत्तर-
मंगल पांडे

प्रश्न 8.
1857 ई० में पंजाब में अंग्रजों के खिलाफ़ किस स्थान पर सैनिक विद्रोह हुआ ?
(i) फिरोजपुर
(ii) पेशावर
(iii) जालंधर
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी।

(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. नवाब वाजिद अली शाह – दिल्ली
2. नाना साहिब – अवध
3. बहादुर शाह ज़फ़र – कानपुर
4. सरदार अहमद – खान खरल
उत्तर-

  1. अवध
  2. कानपुर
  3. दिल्ली
  4. पंजाब।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० का विद्रोह सबसे पूर्व कहां शुरू हुआ तथा इसका पहला शहीद कौन था ?
उत्तर-
यह विद्रोह सबसे पहले बैरकपुर छावनी में शुरू हुआ था। इस विद्रोह का पहला शहीद मंगल पांडे था।

प्रश्न 2.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो धार्मिक कारण लिखें।
उत्तर-
(1) अंग्रेज़ भारत में लोगों को विभिन्न प्रकार के लालच देकर ईसाई बना रहे थे। (2) अंग्रेज़ों ने ईसाइयत के प्रसार के लिये धार्मिक अयोग्यता एक्ट (1856) पास किया।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के प्रमुख नेताओं के नाम लिखें।
उत्तर-
इस विद्रोह के मुख्य नेताओं के नाम थे-मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर, नाना साहिब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा कुंवर सिंह।

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह के कौन-से मुख्य चार केन्द्र थे ?
उत्तर-
मेरठ, दिल्ली, कानपुर तथा लखनऊ।

प्रश्न 5.
झांसी की रानी ने 1857 ई० के विद्रोह में क्यों भाग लिया था ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह में झांसी की रानी द्वारा भाग लेने का कारण यह था कि अंग्रेजों ने उसके द्वारा गोद लिए गए पुत्र को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० का विद्रोह सर्वप्रथम कहां और क्यों शुरू हुआ ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह का आरम्भ बंगाल की बैरकपुर छावनी से हुआ। वहां मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया और एक अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हसन को गोली मार दी। इस अपराध के कारण उसे फांसी दे दी गई। इस घटना का समाचार सुनकर सारे भारत में विद्रोह की भावना भड़क उठी।

प्रश्न 2.
अवध के सैनिक अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्यों हुए थे ?
उत्तर-
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सबसे अच्छी सेना बंगाल की सेना थी। इस सेना में अधिकतर सैनिक अवध के रहने वाले थे। लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया। यह बात अवध के सैनिकों को अच्छी न लगी
और वे अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये। अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना को भी भंग कर दिया जिसके कारण हज़ारों सैनिक बेकार हो गये। उन्होंने कम्पनी से बदला लेने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के सैनिक परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह के सैनिक परिणाम निम्नलिखित थे

  • कम्पनी की सेना की समाप्ति-विद्रोह से पहले दो प्रकार के सैनिक होते थे-कम्पनी द्वारा नियुक्त किये गए तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किये गए सैनिक। विद्रोह के पश्चात् दोनों सेनाओं का एकीकरण कर दिया गया।
  • यूरोपियन सैनिकों की वृद्धि-सेना में यूरोपियन सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई। भारतीय सैनिकों की संख्या कम कर दी गई। परन्तु पंजाब के सिक्खों तथा नेपाल के गोरखों को अधिक संख्या में भर्ती किया जाने लगा।
  • भारतीय सेना का पुनर्गठन-तोपखाने यूरोपियन सैनिकों के अधीन कर दिए गए। भारतीय सेना को निम्न कोटि के शस्त्र दिए जाने लगे।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन करें।
अथवा
1857 ई० के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 ई० में भारतीयों ने पहली बार अंग्रेज़ों का विरोध किया। क्रान्ति की योजना तैयार हो चुकी थी। कमल के फूलों तथा रोटियों के संकेतों द्वारा सैनिकों और ग्रामीण जनता तक क्रान्ति का सन्देश पहुंचाया गया। क्रान्ति के लिए 31 मई, 1857 ई० का दिन निश्चित किया गया, परन्तु चर्बी वाले कारतूसों की घटना के कारण क्रान्ति समय से पहले ही आरम्भ हो गई। इस क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. बैरकपुर-विद्रोह का आरम्भ बंगाल की बैरकपुर छावनी से हुआ। इसका नेतृत्व मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने किया। 29 मार्च, 1857 ई० को मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया और उसने अपने साथियों को भी ऐसा करने के लिए उत्साहित किया। उसने क्रोध में आकर एक अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हसन को गोली मार दी। मंगल पांडे को फांसी का दण्ड दिया गया। इस घटना से बैरकपुर छावनी के सभी सैनिक भड़क उठे।

2. मेरठ-10 मई, 1857 ई० को मेरठ में भी विद्रोह की आग भड़क उठी। वहां की जनता तथा सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला विद्रोह कर दिया। सारा नगर ‘मारो फिरंगी को’ के नारों से गूंज उठा। सैनिकों ने जेल के दरवाज़े तोड़ दिए और अपने बन्दी सैनिकों को मुक्त करवाया। यहां से वे दिल्ली की ओर चल पड़े।

3. दिल्ली-दिल्ली में अंग्रेजी अफसरों ने क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयत्न किया, परन्तु वे असफल रहे। विद्रोही सैनिकों ने बहादुरशाह ज़फर को अपना सम्राट घोषित कर दिया। उन्होंने चार-पांच दिन में दिल्ली पर अधिकार कर लिया परन्तु 14 सितम्बर, 1857 ई० को दिल्ली के क्रान्तिकारियों में फूट पड़ गई। इसका लाभ उठा कर अंग्रेज सेनापति निकलसन ने दिल्ली पर फिर से अपना अधिकार कर लिया। नागरिकों पर अनेक अत्याचार किए गए। बहादुरशाह को बन्दी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके दो पुत्रों को गोली मार दी गई।

4. कानपुर-कानपुर में नाना साहिब ने अपने प्रसिद्ध सेनापति तात्या टोपे की सहायता से वहां अपना अधिकार कर लिया। परन्तु 17 जुलाई, 1857 को कर्नल हैवलॉक ने नाना साहिब को पराजित करके कानपुर पर फिर से अधिकार कर लिया। तात्या टोपे ने वहां पुनः अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयत्न किया, परन्तु वह सफल न हो सका।
इसी बीच नाना साहिब ने भाग कर नेपाल में शरण ली। तात्या टोपे भाग कर झांसी की रानी के पास चला गया।

5. लखनऊ-लखनऊ अवध की राजधानी थी। अंग्रेज सेनापति हैवलॉक ने एक विशाल सेना की सहायता से लखनऊ पर आक्रमण किया। 31 मार्च, 1858 ई० को यहां पर उनका अधिकार हो गया। कुछ समय पश्चात् अवध के ताल्लुकेदारों ने भी शस्त्र डाल दिए। इस प्रकार अवध में क्रान्ति की ज्वाला बुझ गई।

6. झांसी-झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने क्रान्ति का नेतृत्व किया। उसके आगे अंग्रेजों की एक न चली। जनवरी, 1858 ई० में सर ह्यूरोज़ ने झांसी को जीतना चाहा, परन्तु वह पराजित हुआ। अप्रैल, 1858 ई० में झांसी पर फिर आक्रमण किया गया। इस बार रानी के कुछ साथी अंग्रेजों से जा मिले; परन्तु रानी ने अन्तिम सांस तक अंग्रेज़ों की सेना का सामना किया। अन्त में वह वीरगति को प्राप्त हुई और झांसी के दुर्ग पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। कुछ समय पश्चात् तांत्या टोपे पकड़ा गया। 1859 ई० में उसे फांसी दे दी गई।

7. पंजाब-भले ही पंजाब की रियासतों के कुछ शासकों ने विद्रोह में अंग्रेज़ों का साथ दिया था, फिर भी कई स्थानों पर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह भी हुए। फिरोज़पुर, पेशावर, जालन्धर आदि स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किए। अंग्रेजों ने इन विद्रोहों को दबा दिया और बहुत से सैनिकों को मार डाला।

आधुनिक हरियाणा राज्य में रेवाड़ी, भिवानी, बल्लभगढ़, हांसी आदि स्थानों के नेताओं ने भी 1857 ई० के विद्रोह में अंग्रेज़ों से टक्कर ली। परन्तु अंग्रेजों ने उनका दमन कर दिया।

प्रश्न 2.
1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक, आर्थिक तथा सैनिक कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
1857 ई० में भारतीयों ने पहली बार अंग्रेजों का विरोध किया। वे उन्हें अपने देश से बाहर निकालना चाहते थे। इस संघर्ष को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नाम दिया जाता है। इस संग्राम के राजनीतिक, आर्थिक तथा सैनिक कारण निम्नलिखित थे

I. राजनीतिक कारण

1. डलहौज़ी की लैप्स नीति-लॉर्ड डलहौज़ी भारत में ब्रिटिश राज्य का अधिक-से-अधिक विस्तार करना चाहता था। इसके लिए उसने लैप्स की नीति अपनाई। इसके अनुसार कोई भी पुत्रहीन राजा पुत्र को गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकता था। इस नीति के द्वारा उसने सतारा, नागपुर, सम्भलपुर, उदयपुर आदि राज्य ब्रिटिश राज्य में मिला लिए। इधर अंग्रेजों ने झांसी की विधवा रानी को पुत्र गोद लेने की अनुमति न दी जिसके कारण वह अंग्रेजों की कट्टर शत्रु बन गई।

2. नाना साहब के साथ अन्याय-नाना साहिब मराठों के अन्तिम पेशवा बाजीराव द्वितीय का गोद लिया हुआ पुत्र था। बाजीराव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसकी वार्षिक पेन्शन नाना साहब को देने से इन्कार कर दिया जिससे वह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।

3. बहादुरशाह का अपमान-1856 ई० में अंग्रेजों ने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह को यह चेतावनी दी कि उसकी मृत्यु के बाद लाल किले पर अधिकार कर लिया जायेगा। बहादुर शाह ने इसे अपना अपमान समझा और भारत में अंग्रेज़ी राज्य को समाप्त करने का प्रण ले लिया। इस निर्णय से बादशाह की बेग़म ज़ीनत महल को इतना क्रोध आया कि वह ब्रिटिश शासन को उलटने की योजनाएं बनाने लगी। देश की मुस्लिम प्रजा भी अकबर और औरंगज़ेब के परिवार का ऐसा निरादर होता देखकर अंग्रेजों के विरुद्ध भड़क उठी।

4. अवध का अन्यायपूर्ण विलय-अवध का नवाब वाजिद अली शाह अंग्रेज़ों का वफ़ादार था। परंतु अंग्रेजों ने नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। इसलिए नवाब अंग्रेजों से बदला लेने की सोचने लगा।

II. आर्थिक कारण

1. भारतीय उद्योग तथा व्यापार की समाप्ति-अंग्रेज़ भारत में व्यापार करने के लिए आये थे। वे भारत से कपास, पटसन आदि कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीद कर इंग्लैंड ले जाते थे और वहाँ के कारखानों का तैयार माल भारत लाकर महंगे दामों पर बेचते थे। इस प्रकार भारत का धन लगातार इंग्लैंड जाने लगा। उन्होंने भारत के उद्योगों पर भी कई पाबन्दियां लगा दी। इस प्रकार भारत के उद्योग तथा व्यापार नष्ट होने लगे। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध.रोष फैल गया।

2. नौकरियों में असमानता-अंग्रेज़ी शासन में पढ़े-लिखे भारतीयों को उच्च पद नहीं दिए जाते थे। दूसरे, भारतीय कर्मचारियों को अंग्रेज कर्मचारियों से कम वेतन दिया जाता था। इस असमानता के कारण भारतीय विद्रोह पर उतारू हो गये।

3. ज़मींदारों की दुर्दशा-ज़मींदारों तथा जागीरदारों को कुछ भूमियां बादशाह द्वारा इनाम में दी गई थीं। ये भूमियां कर मुक्त थीं। परन्तु लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने इन भूमियों पर कर लगा दिया। लगान की दर भी बढ़ा दी गई। इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी लगान इकट्ठा करते समय ज़मींदारों का कई प्रकार से शोषण करते थे। इसलिए ज़मींदारों ने विद्रोह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

III. सैनिक कारण

1. कम वेतन-भारतीय सैनिकों के वेतन बहुत कम थे। योग्य होने पर भी उन्हें उच्च पद नहीं दिया जाता था। उनके लिए पदोन्नति के अवसर भी बहुत कम थे।
2. बुरा व्यवहार-अंग्रेज़ी शासन में भारतीय सैनिकों को यूरोपीय सैनिकों से हीन समझा जाता था। अत: अंग्रेज़ अफसर भारतीय सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे।
3. 1856 ई० का सैनिक कानून-1856 ई० में लॉर्ड केनिंग ने एक सैनिक कानून पास किया जिसके अनुसार । सैनिकों को समुद्र पार भेजा जा सकता था। परन्तु भारतीय सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। सैनिकों के लिए यह आवश्यक कर दिया गया कि जहां भी उन्हें भेजा जाए, उन्हें जाना होगा, परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों में असन्तोष फैल गया।
4. अवध का विलय-बंगाल की अंग्रेज़ी सेना में अधिकतर सिपाही भारतीय थे। वे अवध को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाए जाने के कारण अंग्रेज़ों से असन्तुष्ट थे।
5. चर्बी वाले कारतूस-1856 ई० में भारतीय सैनिकों को गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गए। इनके कारण भारतीय सैनिकों में रोष बढ़ गया।
भारतीय सैनिकों में फैले इसी असन्तोष ने ही 1857 ई० में विद्रोह का रूप धारण कर लिया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के परिणामों का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. राजनीतिक परिणाम-

  • भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त हो गया, अब भारत का शासन सीधे इंग्लैंड की सरकार के अधीन आ गया।
  • भारत के गवर्नर-जनरल को वायसराय की नई उपाधि दी गई।
  • भारत में मुग़ल सत्ता का अन्त हो गया।
  • भारतीय राजाओं को पुत्र गोद लेने की अनुमति दे दी गई।
  • अंग्रेजों ने भारत के देशी राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की नीति का त्याग कर दिया।

2. सामाजिक परिणाम-

  • 1 नवम्बर, 1858 ई० को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा की। इसमें यह कहा गया कि भारत में धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी, भारतीयों को सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जायेंगी तथा उन्हें उच्च पद भी दिए जाएंगे।
  • अंग्रेज़ों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। इस नीति के अनुसार अंग्रेजों ने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को आपस में लड़ाना आरम्भ कर दिया, ताकि भारत में अंग्रेज़ी राज्य को कोई आंच न पहुंचे।

3. सैनिक परिणाम-

  • विद्रोह के पश्चात् भारतीय सैनिकों की संख्या कम करके यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई ताकि विद्रोह के खतरे को टाला जा सके।
  • तोपखाने में केवल यूरोपीय सैनिकों को ही नियुक्त किया जाने लगा।
  • जाति तथा धर्म के आधार पर सैनिकों की अलग-अलग टुकड़ियां बनाई गईं ताकि वे एक होकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध विद्रोह न कर सकें।
  • ऊंचे पदों तथा महत्त्वपूर्ण स्थानों पर यूरोपीय सैनिकों को नियुक्त किया गया। भारतीय सेना को कम महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे गए।
  • कुछ इस प्रकार की व्यवस्था की गई जिससे कि भारतीय सैनिक तथा अधिकारी प्रत्येक स्तर पर यूरोपीय सेना की निगरानी में रहें।
  • यूरोपीय सेना का खर्च भारतीय जनता पर डाल दिया गया।

4. आर्थिक परिणाम-इंग्लैंड की सरकार ने भारतीयों पर कई प्रकार के व्यापारिक प्रतिबन्ध लगा दिए। परिणामस्वरूप भारतीय व्यापार को बहुत अधिक क्षति पहुंची।

प्रश्न 4.
1857 ई० की क्रान्ति में भारतीय क्यों हारे ?
उत्तर-
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  • समय से पहले क्रान्ति का आरम्भ होना-बहरामपुर, बैरकपुर तथा मेरठ की घटनाओं के कारण क्रान्ति समय से पहले ही आरम्भ हो गई। इससे क्रान्तिकारियों की एकता भंग हो गई और अंग्रेजों को सम्भलने का अवसर मिल गया।
  • एक उद्देश्य न होना-संग्राम में भाग लेने वाले नेता किसी एक उद्देश्य को लेकर नहीं लड़ रहे थे। कोई धर्म की रक्षा के लिए, कोई अपने राज्य की रक्षा के लिए तथा कोई देश की आजादी के लिए लड़ रहा था। इसलिए क्रान्ति का असफल होना स्वाभाविक ही था।
  • संगठन का अभाव-क्रान्तिकारियों में ऐसा कोई योग्य नेता नहीं था जो सबको एकता के सूत्र में बांध सकता। अतः संगठन के अभाव में भारतीय हार गये।
  • अप्रशिक्षित सैनिक-क्रान्तिकारियों के पास प्रशिक्षित सैनिकों की कमी थी तथा पर्याप्त युद्ध सामग्री नहीं थी। उनमें अधिकतर वे लोग थे जो सेना में से निकाले गए थे। इन सैनिकों में अनुभव की कमी थी। इसलिए क्रान्ति असफल हो गई।
  • सीमित प्रदेश में फैलना–यह संग्राम केवल उत्तरी भारत तक सीमित रहा। दक्षिणी भारत के लोगों ने इसमें भाग नहीं लिया। यदि सारा भारत एक साथ अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़ा होता, तो प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम असफल न होता।
  • यातायात के साधनों पर अंग्रेजों का नियन्त्रण-रेल, डाक-तार और यातायात के साधनों पर अंग्रेजों का नियन्त्रण था। वे सैनिकों और युद्ध सामग्री को सरलतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज सकते थे।
  • क्रान्तिकारियों पर अत्याचार–अंग्रेजों ने क्रान्तिकारियों पर बड़े अत्याचार किए। नगरों को लूटकर जला दिया गया। अनेक लोगों को फांसी का दण्ड दिया गया। इन अत्याचारों से जनता भयभीत हो गई और डर के मारे कई लोगों ने संग्राम में भाग नहीं लिया।
  • आर्थिक कठिनाइयां-क्रान्तिकारियों के पास धन की कमी थी। इसलिए वे अच्छे अस्त्र-शस्त्र नहीं खरीद सकते थे। परिणामस्वरूप क्रान्तिकारी अपने उद्देश्य में असफल रहे।

1857 ई० का विद्रोह PSEB 8th Class Social Science Notes

  • 1857 का विद्रोह – 1857 में भारतीय राजाओं, सैनिकों तथा जनता ने अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए सशस्त्र विद्रोह किया। इस विद्रोह को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नाम दिया जाता है।
  • राजनीतिक कारण – अंग्रेज़ों की लैप्स तथा अन्य नीतियों के कारण भारतीय राजा (झांसी, नागपुर, सतारा, जयपुर, बिलासपुर) तथा ज़मींदार उनसे नाराज़ थेइसलिए उन्होंने मिलकर संघर्ष की योजना बनाई।
  • सामाजिक तथा आर्थिक कारण – अंग्रेजों ने सती प्रथा का अन्त किया, विधवा विवाह की आज्ञा दी तथा भारतीय उद्योग-धन्धों को नष्ट किया। इस लिए समाज के रूढ़िवादी तथा गरीब लोग उनसे | छुटकारा पाने के लिए योजना बनाने लगे।
  • सैनिक कारण – भारतीय सैनिकों को कम वेतन मिलता था तथा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता था। चर्बी वाले कारतूसों का प्रचलन क्रान्ति का तात्कालिक कारण बना। सैनिकों ने इस पर विद्रोह किया और क्रान्ति आरम्भ हो गई।
  • विद्रोह के केन्द्र – विद्रोह के मुख्य केन्द्र दिल्ली, कानपुर, झांसी; ग्वालियर, वाराणसी, लखनऊ आदि थे।
  • विद्रोह के नेता – विद्रोह के प्रमुख नेता मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहिब, तात्या टोपे आदि थे।
  • भारतीयों की असफलता – भारतीय राजाओं में आपसी तालमेल नहीं था, प्रशिक्षित सैनिक नहीं थे, संचार के साधनों का अभाव था और उनके पास अंग्रेज़ों के समान साधन नहीं थे। इसलिए भारतीय असफल रहे।
  • विद्रोह के प्रभाव – विद्रोह के कारण कम्पनी का शासन समाप्त हुआ, सेना में भारतीयों की संख्या घटी, भारतीय राजाओं के साथ अच्छे व्यवहार का दौर शुरू हुआ और हिन्दू तथा मुसलमानों में आपसी भेदभाव बढ़ गया।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

PSEB 10th Class Physical Education Guide व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांसपेशियां क्या है?
(Define Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। मांसपेशियां हड्डियों के साथ जुड़ी होती हैं। मांसपेशियों के सिकुड़ने से हड्डियों में खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
मांसपेशियों की किस्मों के नाम लिखें।
(Name the types of Muscles.)
उत्तर-

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)
  3. हृदय की मांसपेशियां (Cardiac Muscles)

प्रश्न 3.
मल निकास प्रणाली क्या है?
(What is Excretory System ?)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली ‘मल त्याग प्रणाली’ उस प्रबन्ध को कहते हैं जिसके द्व रीर से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

प्रश्न 4.
मल त्याग प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखें।
(Name the organs of excretory system.)
उत्तर-

  1. फेफड़े
  2. गुर्दे
  3. त्वचा
  4. आन्तें।

प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कोई दो कार्य लिखें।
(Write two functions of Muscles.)
उत्तर-

  1. मांसपेशियां शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. इनकी सहायता से व्यक्ति चलना, फिरना, उछलना, कूदना और सांस लेता है।

प्रश्न 6.
ऐच्छिक मांसपेशियां क्या हैं ?
(What are voluntary Muscles ?)
उत्तर-
ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं।

प्रश्न 7.
अनैच्छिक मासपेशियां क्या हैं ?
(What are involuntary Muscles ?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। वे व्यक्ति की बिना इच्छा के कार्य करती हैं।

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प्रश्न 8.
हृदय की मांसपेशियां क्या होती हैं ?
(What is are Cardiac Muscles?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां अनैच्छिक मांसपेशियों जैसी होती हैं। परन्तु लगातार काम करने पर भी इनमें थकावट नहीं आती।

प्रश्न 9.
शरीर में कितने गुर्दे होते हैं?
(How many Kidneys are there in our body ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 10.
व्यक्ति के शरीर में फेफड़ों की गिनती बताएं।
(How many Lungs a person possesses ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 11.
रक्त का कार्य लिखें।
(Write the functions of the blood.)
उत्तर-
रक्त शरीर को ऑक्सीजन देता है और व्यर्थ पदार्थों को शरीर से निकालने का मल त्याग प्रणाली द्वारा कार्य करता है।

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प्रश्न 12.
नाक द्वारा सांस लेने के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of nose breathing?)
उत्तर-
नाक द्वारा सांस लेने में वायु शुद्ध और गर्म होकर शरीर में जाती है।

प्रश्न 13.
सांस लेते समय हम कौन-सी गैस अन्दर ले जाते हैं ?
(Which Gas do we take while breathing.)
उत्तर-
ऑक्सीजन गैस।

प्रश्न 14.
शारीरिक थकावट से क्या भाव है?
(What do you mean by Physical Fatigue?)
उत्तर-
इसमें शरीर थक जाता है और कार्य करने का मन नहीं करता।

प्रश्न 15.
श्वास क्रिया द्वारा कौन-सी गैस बाहर निकालते हैं ?
(Which Gas do we take out while breathing ?)
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

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प्रश्न 16.
मानसिक थकावट क्या है?
(What is Mental Fatigue?)
उत्तर-
जब कार्य करते-करते शरीर के साथ मन भी थक जाता है तो उसे मानसिक थकावट कहते हैं।

प्रश्न 17.
प्राणायाम के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of Pranayam?)
उत्तर-
शरीर स्वस्थ तथा मन संतुष्ट रहता है। शरीर को ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त मिलती रहती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
श्वास क्रिया किसे कहते हैं ?
(What is Respiration ?)
उत्तर-
श्वास क्रिया दो क्रियाओं का मेल है। एक है सांस अन्दर ले जाने की क्रिया जिसे उच्छ्वास क्रिया (Inspiration) कहते हैं। दूसरी है सांस बाहर निकालने की क्रिया जिसे प्रश्वास क्रिया (Expiration) कहते हैं। श्वास क्रिया का मानवीय जीवन के लिए विशेष महत्त्व है। सामान्य व्यक्ति 20 से 22 सांस लेता है।

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प्रश्न 2.
रक्त किसे कहते हैं ?
(What is Blood ?)
उत्तर-
रक्त एक प्रकार का तरल पदार्थ है। यह शरीर में शिराओं (Veins) तथा. धमनियों में दिन-रात चलता रहता है। यह गाढ़े रंग का नमकीन पदार्थ है। यह व्यक्ति में उसके शरीर के 1/12 या 1/13 भाग के बराबर होता है।

प्रश्न 3.
रक्त के विभिन्न भागों के बारे में तुम क्या जानते हो ?
(What do you know about the Composition of Blood ?)
उत्तर-
रक्त में निम्नलिखित पदार्थ होते हैं-

  1. प्लाज्मा (Plasma)
  2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles)
  3. श्वेत रक्त कण (White Corpuscles)
  4. प्लेटलेट्स।

प्लाज्मा पीले रंग का नमकीन पदार्थ है। इसमें लाल तथा श्वेत रक्त कण तैरते रहते हैं। लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। इनकी आयु 115 दिन होती है। श्वेत रक्त कण शरीर की रोगों के आक्रमणों से रक्षा करते हैं। ये रंगहीन और बेडोल आकार के होते हैं। प्लेटलेट्स का आकार लाल कणों से \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होता है। ये रक्त को बहने से रोकते हैं।

प्रश्न 4.
रक्त दबाव क्या होता है ?
(What is Blood Pressure ?)
उत्तर-
शिराओं, धमनियों तथा कोशिकाओं की सहायता से रक्त शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में भ्रमण करता है। शिराओं में अशुद्ध तथा धमनियों में शुद्ध रक्त चक्कर लगाता है। इस परिभ्रमण में रक्त नलियों की दीवारों से टकराता रहता है जिससे दबाव बढ़ता है। जब यह दबाव कम होता है तो रक्त आगे को बढ़ता है। इस बढ़ने या कम होने की क्रिया को रक्त दबाव (Blood Pressure) कहते हैं। इसको सफैगनो मैनो मीटर से मापा जाता है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव 1

प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कार्य बताओ।
(Describe the functions of Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां हड्डियों से जुड़ी होती हैं। उनके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-

  1. ये शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. ये शरीर को गति करने में सहायता करती हैं।
  3. इनकी सहायता से व्यक्ति चलता, उछलता, कूदता तथा सांस आदि लेता है।
  4. मांसपेशियां छाती के पट्ठों को फैलने में सहायता देती हैं।
  5. इनके द्वारा शरीर विकास करता है।
  6. मांसपेशियां हडियों को मजबूत रखती हैं।
  7. जोड़ों का विकास करने में मांसपेशियां सहायता करती हैं।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

प्रश्न 6.
मांसपेशियां कितनी प्रकार की होती हैं ?
(Mention the types of muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां दो प्रकार की होती हैं

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)-ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं। उन्हें जैसी सूचना मिलती है वैसे ही काम करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं। ये शरीर को सम्भाल कर रखती हैं तथा इनमें गर्मी पैदा करती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में पाई जाती हैं।
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)-ये मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। ये व्यक्ति की इच्छा के बिना कार्य करती रहती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी काम करती हैं। ये दिल, जिगर तथा आंतड़ियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 7.
त्वचा के बारे में संक्षेप जानकारी दो।
(Describe briefly about Skin.)
उत्तर-
त्वचा एक प्रकार का पर्दा है जो आन्तरिक मांसपेशियों तथा अंगों को ढक कर रखती है। यह दो प्रकार की होती है-बाह्य या ऊपरी (Epidermis) तथा निचली या आन्तरिक (Endodermis)। ऊपरी त्वचा में छोटे-छोटे मुसाम होते हैं जिनमें से होकर पसीना शरीर से बाहर निकलता है। आन्तरिक या निचली त्वचा में चर्बी होती है जो शरीर में गर्मी पैदा करने में सहायता करती है।

प्रश्न 8.
गुर्दो के कार्य बताओ।
(Describe the functions of the kidneys.)
उत्तर-
गुर्दे पेट के पीछे की ओर होते हैं। ये संख्या में दो होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। इनके द्वारा यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में शरीर से बाहर आते हैं। ये रक्त में पानी की मात्रा को समान रखते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में एसिड तथा क्षार की मात्रा में समानता रहती है।

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प्रश्न 9.
फेफड़ों की शक्ति क्या है ? इस विषय में लिखो।
(What is Vital Capacity ? Write briefly.)
उत्तर-
फेफड़ों की शक्ति (Capacity of Lungs or Vital Capacity) वह क्रिया जिनके द्वारा गहरी सांस लेने से वायु की मात्रा अन्दर ले जाई जाती है और फिर ज़ोर से बाहर निकाली जाती है, उसे फेफड़ों की शक्ति (Vital Capacity) कहते हैं। (2014 A)
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साधारणतः हम लगभग 300 सी० सी० वायु अन्दर ले जाते हैं और लगभग 1500 सी०सी० वायु बाहर निकालते हैं। यदि हम ज़ोर से सांस बाहर निकालें तो 1500 सी० सी० और वायु निकाल सकते हैं। इतना करने पर भी हमारे फेफड़े वायु से शून्य नहीं हो जाते। तब भी लगभग 500 सी० सी० वायु इनमें रह जाती है। फेफड़ों की इस शक्ति अथवा सामर्थ्य को मापने के लिए स्पाइरोमीटर यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
थकावट क्या है ?
(What is Fatigue ?)
उत्तर-
मांसपेशियों में कार्य करने की शक्ति को कम होने को थकावट कहते हैं। जब हमारे शरीर की मांसपेशियां लगातार कार्य करती रहती हैं तो उनमें लैकटिक एसिड जमा हो जाता है जिस से शरीर में थकावट हो जाती है। अधिक खेलने, भागने अथवा अधिक ताकत से कार्य करने से थकावट हो जाती है। थकावट को आराम, नींद, मालिश और मनोरंजन क्रिया द्वारा दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की होती है ?
(Mention the type of Fatigue.)
उत्तर-थकावट दो प्रकार की होती है–

  1. शारीरिक
  2. मानसिक।

प्रश्न 12.
रक्त प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखो।
(Write the main organs of circulatory system.)
उत्तर-
हृदय, शिराएं, धमनियां और कोशिकाएं।

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प्रश्न 13.
मल निकास प्रणाली के प्रमुख अंगों को सामने रखते हुए व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(Discuss the main organs of Excretory System. Give the effects of exercises on Excretory System.)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली (Excretory System)—उस प्रबन्ध को मल निकास प्रणाली कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि ये व्यर्थ मल निकास प्रणाली और हानिकारक पदार्थ शरीर में ही जमा रहें तो शरीर अनेक प्रकार के रोगों का शिकार हो सकता है। इन बाहर आने वाले पदार्थों में यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना तथा पानी प्रमुख हैं। इन पदार्थों का निकास फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा (Skin) तथा आन्तों के द्वारा होता है।
व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise)—व्यायाम मल निकास प्रणाली को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती है जिसके कारण रक्त की गति तेज़ हो जाती है। शरीर में गैसों की अदला-बदली (Exchange of gases) के कारण पौष्टिक पदार्थ हज्म हो जाते हैं तथा व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है। इससे शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम के कारण शरीर की विभिन्न मांसपेशियों को काम करना पड़ता है। इससे शरीर में टूट-फूट होती रहती है जिससे त्वचा में से गन्दगी का निकास होता रहता है। इस प्रकार शरीर चर्म रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम करने से शरीर में से अनावश्यक पदार्थों के रूप में विषैली वस्तुओं का शरीर से बाहर निकास होता रहता है। इस प्रकार विषैले कीटाणु शरीर में एकत्रित नहीं होते तथा शरीर में इन विषैले कीटाणुओं के विरुद्ध संघर्ष करने की शक्ति बढ़ती है।।
  4. व्यायाम करने से गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को छान कर पेशाब के रूप में बाहर निकालते हैं। इस प्रकार ये एक छाननी का कार्य करते हैं।

प्रश्न 14.
नबज क्या है? (What is Pulse ?)
उत्तर-
रक्त की गति के कारण शिराओं और धमनियों की दीवारें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस क्रिया को नब्ज कहते हैं। जो साधारण मनुष्य में 76 से 80 बार होता है। नबज को एक हाथ द्वारा दूसरी बाजू पर अंगुलियों का दबाव डाल कर देखा जा सकता है। खिलाड़ी की नब्ज़ एक मिनट में 60 से कम भी हो सकती है।
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प्रश्न 15.
मानसिक थकावट के मुख्य कारण क्या हैं ?
(What are the main causes of mental fatigue ?)
उत्तर-

  1. भोजन में पोषटिक पदार्थों की कमी
  2. अच्छी तरह से नींद न आना
  3. व्यक्ति की समर्था से ज्यादा काम का बोझ
  4. रोग
  5. एकाग्रता की कमी।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
रक्त के भिन्न-भिन्न अंगों का वर्णन करो। रक्त के मुख्य कार्य क्या हैं ?
(What is composition of blood ? Discuss its functions.)
उत्तर-
रक्त और उसके अंग (Blood and its Parts) रक्त या खून एक प्रकार का तरल पदार्थ है जिसका निर्माण उन खाद्य पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। रक्त हमारे शरीर में एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। मनुष्य के शरीर में रक्त उसके शरीर के भार का बारहवां (\(\frac{1}{12}\) )भाग होता है। प्रायः एक नवयुवक के शरीर में रक्त की मात्रा 2 से 3 लिटर (Litre) तक होती है। कई दिशाओं में यह मात्रा कम या अधिक भी हो सकती है।

यदि हम त्वचा (Skin) के किसी भाग को काटें तो उसमें से एक तरल (Liquid) पदार्थ निकलता है। इस तरल पदार्थ का नाम ही ‘रक्त’ है। देखने में तो यह लाल रंग का प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। यदि हम इस तरल पदार्थ अर्थात् रक्त को सूक्ष्मदर्शी (Microscope) से देखें तो हमें पता चलेगा कि रक्त में असंख्य छोटे-छोटे कण होते हैं। इन कणों का रंग सफ़ेद या लाल होता है। इन्हें लाल रक्त कण (Red Corpuscles) तथा श्वेत रक्त कण (White Corpuscles) कहते हैं। ये एक प्रकार के हल्के पीले द्रव्य (Yellow Liquid) में तैरते हैं जिसे रक्तवारि अथवा प्लाज़मा (Plasma) कहते हैं।
रक्त में मुख्यतः निम्नलिखित पदार्थ होते हैं जिन्हें नीचे दी गई तालिका द्वारा इस प्रकार प्रकट किया जाता है-
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1. रक्तवारि या प्लाज्मा (Plasma) —यह रक्त का हल्के-पीले रंग का पारदर्शक (Transparent) पदार्थ होता है। इसमें लाल और सफ़ेद कण तैरते रहते हैं। इसमें 90% पानी और 10% ठोस पदार्थ घुले रहते हैं। ये ठोस पदार्थ प्रोटीन, खनिज लवण और वसा (Fat) होते हैं। प्लाज्मा (Plasma) रक्त के दबाव (Pressure) को ठीक रखता है तथा लाल और सफ़ेद रक्त कणों को जाने में सहायता करता है। इसकी प्रोटीन रक्त के बहने को रोकने में सहायता देती है।

2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles) —मनुष्य के लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। मनुष्य के एक घन मिलीमीटर रक्त में इनकी संख्या लगभग 5,000,000 होती है। ये इतने छोटे होते हैं कि यदि किनारे से किनारा मिला कर रखे जाएं तो 2.5 वर्ग सैंटीमीटर स्थान में ये लगभग 1 करोड़ आ जाएंगे। इनकी बाहरी परत एक लचीले खोल के रूप में होती है, जिसके अन्दर पीले रंग का लोहे का एक रंग (Pigment) होता है जिसे हिमोग्लोबिन (Heamoglobin) कहते हैं जो कि लोहे तथा प्रोटीन वस्तुओं से मिलकर बनती है। हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन को चूस लेता है। इससे इसका रंग चमकदार हो जाता है और यह ऑक्सी हिमोग्लोबिन (Oxy Heamoglobin) में बदल जाता है। इसी पदार्थ के कारण रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन को चूस कर शरीर के भीतरी भाग तक पहुंचता है। लड़कियों में लाल रक्त कण लड़कों की अपेक्षा कम होते हैं। अधिक व्यायाम करने से तथा ऊंचाई पर लाल रक्त कणों की संख्या बढ़ जाती है।
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चित्र-लाल और सफ़ेद रक्त कण

3. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuslces)—शरीर की तुलना एक राज्य से की जा सकती है। जिस प्रकार राज्य की रक्षा के लिए सेना का प्रबन्ध होता है, उसी प्रकार शरीर रूपी राज्य के लिए सफ़ेद रक्त कण रूपी सेना का प्रबन्ध है। सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लाल रक्त कणों की अपेक्षा कम होती है। शरीर में लगभग 600 लाल रक्त कणों के पीछे केवल 1 (एक) सफ़ेद रक्त कण होता है। एक घन मिलीमीटर में सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लगभग 8,000 से 10,000 होती है। ये रंगहीन और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनकी सहायता से शरीर रोगों का सामना करता है। इनका कार्य रोग के कीटाणुओं (germs) को घेर कर उन्हें समाप्त करना है। शरीर में चोट आदि लगने पर ये घावों को भरने में सहायक होते हैं।

4. प्लेटलेट्स (Platelets) —मनुष्य के रक्त में लाल तथा सफ़ेद रक्त कणों के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार के रक्त कण भी पाए जाते हैं जिन्हें रक्त प्लेटलेट्स (Platelets) कहते हैं। ये लाल और सफ़ेद रक्त कणों से बिल्कुल भिन्न हैं। ये लाल कणों का \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होते हैं। रक्त के एक घन मिली मीटर में इनकी संख्या लगभग 3 लाख होती है। ये सफ़ेद और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनका प्रमुख कार्य रक्त को बहने से रोकना है।
रक्त के कार्य (Functions of Blood) रक्त के निम्नलिखित कार्य होते हैं-

  1. रक्त हमारे भोजन के पचे हुए भाग को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का कार्य करता है।
  2. रक्त ही शरीर में विषैले व्यर्थ पदार्थ के निकास में सहायता देता है। यह इन पदार्थों
    को अपने अन्दर घोल कर गुर्दे में ले जाता है जहां से वे मूत्र (Urine) के रूप में बाहर निकल जाते हैं।
  3. रक्त में उपस्थित लाल रक्त कण (Red Corpuscles) फेफड़ों में ऑक्सीजन चूस कर शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में ले जाते हैं।
  4. लाल रक्त कण ही ऑक्सीजन क्रिया के बाद बनी कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) को फेफड़ों में लाकर बाहर निकालने का कार्य करते हैं।
  5. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuscles) शरीर की कीटाणुओं से रक्षा करते हैं।
  6. रक्त प्लेटलेट्स चोट लगने पर रक्त को शरीर से बाहर बह जाने से रोकने का काम करते हैं।
  7. रक्त हार्मोन्स (Harmones) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है।
  8. रक्त के द्वारा शरीर के विभिन्न अंग परस्पर मिले रहते हैं और सूख कर नष्ट होने से बच जाते हैं।
  9. रक्त के द्वारा ही शरीर के विभिन्न अंगों का तापक्रम स्थिर रहता है।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि रक्त जीवन देने वाला है। यदि किसी अंग में रक्त का प्रवाह न हो तो वह अंग पीला पड़ जाता है और कमजोर हो जाता है। अधिक समय तक इस क्रम के रहने से अंग मर भी सकता है।

प्रश्न 2.
श्वास प्रणाली के अंगों का नाम लिखो। श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Mention the main organs of Respiration. Describe the effects of exercises on Respiration System.)
उत्तर-
श्वास लेने तथा छोड़ने की क्रिया को श्वास-क्रिया (Respiration) कहते हैं। इस क्रिया द्वारा मनुष्य वायु के साथ ऑक्सीजन फेफड़ों में ले जाता है और वायु के साथ शरीर में उत्पन्न हुई कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल देता है। श्वास क्रिया में अनेक अंग जैसे नाक, श्वास नली, फेफड़े आदि काम करते हैं। श्वास प्रणाली के विभिन्न अंग निम्नलिखित हैं

  1. नाक (Nose)
  2. ग्रसनिका या पूर्वकण्ठ (Pharynx)
  3. स्वर यन्त्र अथवा कण्ठ (Larynx)
  4. श्वास नली या टेंटुआ (Wind-Pipe or Trachea)
  5. वायु नलियां (Bronchial Tubes)
  6. फेफड़े (Lungs)

हमारे शरीर में वायु नाक व मुँह दोनों में ही प्रवेश करती है, परन्तु हमें नाक से ही वायु अन्दर ले जानी चाहिए क्योंकि वायु में धूल-कण विद्यमान होते हैं। नासिकाओं में बालों द्वारा इन्हें रोककर शुद्ध वायु ग्रसनिका में पहुंचाई जाती है। वहां से टेंटुंओं के रास्ते से होते हुए फेफड़ों में जाती है। जब हम सांस लेते हैं तो छाती में स्थित खोह फैल जाती है। इससे फेफड़े भी ज्यादा वायु खींचकर फैल जाते हैं और छाती के फैले हुए भाग को घेर लेते हैं। जब छाती पोल सिकुड़ता है तो वायु का कोशिकाओं के अन्दर दबाव पड़ता है। इससे वायु कुछ वायु कोशों से होकर बाहर निकाल दी जाती है।

जब डायाफ्राम की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं तो यह चपटी हो जाती हैं जिसमें छाती खोह बढ़ जाता है और फेफड़े फैल जाते हैं जिससे ज्यादा वायु आ जाती है। इसके पश्चात् डायाफ्राम दोबारा अपनी पहली स्थिति में आ जाता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और वह सिकुड़ते हैं तथा अन्दर की वायु बाहर निकल जाती है। जब अन्दर की वायु का दबाव वायु के मुकाबले में कम हो जाता है जिससे बाहर की वायु उसका स्थान ग्रहण कर लेती है। इस प्रक्रिया का नाम दुहार क्रिया है। इसके पश्चात् डायाफ्राम एवं पसलियां सिकुड़ कर अपनी पहली स्थिति में आ जाती हैं तथा फेफड़े सिकुड़ जाते हैं जिससे हवा बाहर निकल जाती है। इस प्रक्रिया को प्रश्वास कहा जाता है। इसके पश्चात् फिर से वही क्रम शुरू हो जाता है, परन्तु इस क्रिया के दोबारा आरम्भ होने को आराम कहा जाता है।
इस पूर्ण क्रिया को (जिसमें अन्तः श्वसन, आराम तथा प्रश्वास क्रिया होती है) पूर्ण श्वास क्रिया कहा जाता है।

श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Respiratory System)
व्यायाम श्वास प्रणाली पर विशेष प्रभाव डालता है जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल पैदा होती है जिससे शरीर से विषैले पदार्थ, पसीना, मल त्याग तथा पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे शरीर रोगों से मुक्त रहता है।
  2. व्यायाम करने से फेफड़ों में वायु भरने की शक्ति में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप फेफड़ों में अधिक लचक आती है तथा ये कई रोगों से बचे रहते हैं।
  3. व्यायाम करने में शरीर से रक्त अधिक मात्रा में साफ़ होता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के भिन्न-भिन्न सैलों में श्वास-क्रिया के द्वारा रक्त अधिक मात्रा में पहुंचता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर से व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है जिससे शरीर में काम करने की शक्ति अधिक पैदा होती है।
  5. व्यायाम करने से शरीर के सभी सैलों को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। इसके फलस्वरूप शरीर स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनता है।
  6. इसके द्वारा जोर का कार्य करने से व्यक्ति की जीवन धारा. बढ़ जाती है। (7) इसके द्वारा विकास अधिक-से-अधिक किया जा सकता है।’
  7. इसके द्वारा गैसों की अदला-बदली तीव्रता और ठीक तरह से होती है। (9) इसके द्वारा शरीर की मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. व्यायाम करने से कार्बन डाइऑक्साइड के बाहर निकलने और ऑक्सीजन के अन्दर प्रवेश करने की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

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प्रश्न 3.
रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Write down the effects of Exercises on Circulatory System.)
उत्तर-
रक्त प्रणाली एक प्रकार का तरल पदार्थ (Liquid) है। इसका निर्माण उन खाद्य एवं पेय पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। मानव शरीर में रक्त उसके शरीर के कुल भार का \(\frac{1}{12}\), या \(\frac{1}{13}\) में भाग होता है। रक्त में असंख्य छोटे-छोटे लाल एवं श्वेत कण होते हैं जो कि प्लाज्मा नामक हल्के पीले रंग के द्रव्य में तैरते रहते हैं। रक्त हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में दिन-रात भ्रमण करता रहता है। रक्त की इस गति को रक्त परिवहन (Blood Circulation) कहते हैं। रक्त परिवहन में शरीर के जो अंग भाग लेते हैं, उनके समूह को रक्त प्रणाली (Circulatory System) कहते हैं।

रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Circulatory System.) रक्त प्रणाली पर व्यायाम के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करते समय हृदय मांसपेशियों को आवश्यकतानुसार अधिक रक्त देता है. जिसके फलस्वरूप छोटी रक्त नलियों तथा तन्तुओं के तनों में अधिक वृद्धि होती है।
  2. व्यायाम करने वालों के शरीर में शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त की अदला-बदली शीघ्र होती रहती है। इसके फलस्वरूप शरीर में पौष्टिक पदार्थ तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक मिलती है और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड आदि व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का पसीने तथा पेशाब के रूप में निकास हो जाता है। इससे शरीर हृष्ट-पुष्ट व नीरोग रहता है।
  3. व्यायाम करने वाले व्यक्ति का रक्त दबाव अधिक नहीं होता। उसकी मांसपेशियां सिकुड़ती और फैलती हैं। फलस्वरूप रक्त शीघ्र साफ हो जाता है।
  4. व्यायाम करते समय शरीर का प्रत्येक अंग काम करता है। इस कारण उन्हें ऑक्सीजन की अधिक आवश्यकता पड़ती है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के खून की गति साधारण व्यक्ति से दुगुनी होती है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। इसके फलस्वरूप आराम की स्थिति में हृदय की धड़कन मन्द चलती है, परन्तु रक्त की गति तेज़ होती है।
  6. व्यायाम करने वाले मनुष्य को ऑक्सीजन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ऑक्सीजन की खपत में वृद्धि होती है तथा रक्त में इसकी मात्रा बढ़ती है। इस बढ़ी हुई ऑक्सीजन के कारण लैक्टिक एसिड में वृद्धि नहीं होती। इसलिए खिलाड़ी तथा एथलीट बिना थकावट महसूस किए काफ़ी समय तक खेल में भाग ले सकते हैं।
  7. व्यायाम करते समय रक्त नलियों के मुंह खुलते और बन्द होते रहते हैं जिससे व्यायाम करते समय ऑक्सीजन अधिक मात्रा में अन्दर जाती रहती है। भारी व्यायाम तथा दौड़ते समय ऑक्सीजन 3500 घन मिली लिटर तक अन्दर चली जाती है जबकि साधारण व्यायाम करने वाले में ऑक्सीजन की मात्रा केवल 5000 से 8000 घन मिली लिटर तक होती है।
  8. व्यायाम करने वाले व्यक्ति की शिराओं (Veins) तथा धमनियों (Arteries) को अधिक काम करना पड़ता है। फलस्वरूप इनकी दीवारें मज़बूत हो जाती हैं। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के दिल की रक्त स्ट्रोक (Stroke Volume) साधारण व्यक्ति से अधिक होती है।

प्रश्न 4.
मांसपेशियां क्या हैं ? ये कितने प्रकार की हैं ? इन पर व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(What are Muscles ? Give its types. Write down the effects of exercises on muscular system.)
उत्तर-
मांसपेशियां (Muscles)-मानव शरीर का सर्वोत्तम गुण इसकी गति अथवा चलना-फिरना है। मनुष्य के घूमने-फिरने से हड्डियां धुरी की भूमिका निभाती हैं। हड्डियों के साथ मांसपेशियां जुड़ी होती हैं। ये विभिन्न आकार की होती हैं। इन मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। प्रत्येक मांसपेशी हड्डी के साथ जुड़ी होती है।
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मांसपेशियों के सिकुड़ने से हडियों में भी खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं। मांसपेशियों में 75% पानी, 18% प्रोटीन तथा शेष (वसा) चर्बी तथा नमक आदि होते हैं। रक्त तथा सुषम्ना नाड़ियां इन मांसपेशियों को सूचना पहुंचाने का काम करती
मांसपेशियों के प्रकार (Types of Muscles)—मांसपेशियां निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं—

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)

1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles) ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार कार्य करती हैं। ये हड्डियों के पिंजर के ऊपर लगी होती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में मिलती हैं। ये प्राप्त सूचना के अनुसार कार्य करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं, शारीरिक ढांचे को सम्भाल कर रखती हैं तथा शरीर में गर्मी उत्पन्न करती हैं।
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चित्र-ऐच्छिक मांसपेशियां
2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles) (2005 B)-अनैच्छिक मांसपेशियां वे मांसपेशियां हैं जो व्यक्ति के वश में नहीं होती और उसकी इच्छा के बिना ही काम करती रहती हैं। ये हृदय, जिगर तथा आन्तों आदि में पाई जाती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी कार्य करती रहती हैं। ये रक्त परिवहन तथा पाचन क्रिया में सहायता पहुंचाती हैं। इनके लक्षण सिकुड़ना, फैलाव तथा लचक आदि हैं।
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चित्र-अनैच्छिक मांसपेशियां

मांसपेशियों पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Muscles)— याम के मांसपेशियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करने वाले व्यक्तियों की मांसपेशियां अधिक काम करती हैं। इस प्रकार उन्हें ऑक्सीजन द्वारा पौष्टिक खुराक अधिक मात्रा में प्राप्त होती है। इससे ये अधिक पुष्ट और मज़बूत बन जाती है।
  2. प्रतिदिन व्यायाम करने से मांसपेशियों का आपसी ताल-मेल बढ़ता है। इनमें व्यायाम के कारण अधिक शक्ति आती है। फलस्वरूप व्यक्ति लम्बी अवधि तक काम करके भी थकावट महसूस नहीं करता है।
  3. व्यायाम करने से मांसपेशियों को अधिक काम करना पड़ता है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के अन्दर ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ जाती है। इस प्रकार मांसपेशियों में तेजी से रक्त पहुंचता रहता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती रहती है। इसमें कई व्यर्थ पदार्थों का शरीर से निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान प्रायः समान ही रहता है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियों को ग्लाइकोजन, फॉस्कोराटीन तथा पोटाशियम आदि रासायनिक पदार्थ प्राप्त होते रहते हैं। रासायनिक पदार्थ रक्त की गति में वृद्धि करते हैं।
  6. व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियों में लचक तथा स्फूर्ति आती है। इससे हमारा शरीर नीरोग तथा मजबूत,रहता है।
  7. व्यायाम करने से छाती की हड्डियों के पट्ठों के फैलने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. इसके द्वारा पट्ठों को प्रयोग के योग्य रखा जा सकता है।
  9. इसके द्वारा हमारी हड्डियां कठोर हो जाती हैं और अधिक समय तक काम कर सकती हैं।
  10. विश्राम अवस्था में व्यक्ति का रक्त चक्र पूरा होने के लिए 21 सैकिंड लगते हैं। परन्तु व्यायाम करने से यह 8.15 या 10 सैकिंड में पूरा हो जाता है।

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प्रश्न 5.
मलत्याग प्रणाली के मुख्य अंगों पर व्यायाम के प्रभाव लिखें।
(Discuss the main organs of Excretory System. Write the effects of Exercise on Excretory System.)
उत्तर-
मलत्याग प्रणाली उसको कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि यह व्यर्थ पदार्थ शरीर में ही रहें तो कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। बाहर आने वाले पदार्थ यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना और पानी हैं, जो फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा और आंतड़ियों द्वारा बाहर निकलते हैं।

  1. व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercises)-व्यायाम द्वारा रक्त की गति तेज़ हो जाती है, शरीर में गैसों के परिवर्तन के कारण पौष्टिक पदार्थ दब जाते हैं और व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम द्वारा मांसपेशियों को कार्य करना पड़ता है जिससे त्वचा द्वारा गंदगी का निकास होता रहता है जिससे शरीर त्वचा के रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम द्वारा व्यर्थ पदार्थ और ज़हरीली वस्तुएं शरीर से बाहर निकल जाती हैं और ज़हरीले कीटाणु शरीर में इकट्ठे नहीं हो सकते।
  4. व्यायाम द्वारा गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकाल देते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर नोट लिखो
(क) त्वचा के कार्य
(ख) गुर्दे
(ग) दिल
(घ) शिराएं तथा धमनियां। (अभ्यास का प्रश्न 6)
[Write a note on the following
(a) Functions of Skin
(b) Kidneys
(c) Heart
(d) Arteries and Veins.]
उत्तर-
(क) त्वचा के कार्य (Functions of Skin) त्वचा (चमड़ी) एक प्रकार का आवरण (पर्दा) है जो शरीर के आन्तरिक अंगों तथा मांसपेशियों को ढांप कर रखती है। त्वचा दो प्रकार की होती है-ऊपरी या बाह्य (Epidermic) तथा निचली या आन्तरिक (Dermis)। ऊपरी त्वचा सख्त तथा नर्म होती है। इसमें छोटे-छोटे मुसाम होते हैं, जिनसे पसीना शरीर में से बाहर निकलता रहता है। निचली या आन्तरिक त्वचा बन्धक तन्तुओं (Connective tissues) की बनी होती है। इसमें वसा (चर्बी) होती है जो गर्मी पैदा करने में सहायता प्रदान करती है। इसमें दो प्रकार की पसीना तथा चिकनाहट की ग्रन्थियां होती हैं जो शरीर के तापमान को एक समान रखने में सहायता देती हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव 9
चित्र-त्वचा

(ख) गुर्दे (Kidneys) (P.S.E.B. 2009 C, 2014 A, 2017 B)—गुर्दे संख्या में दो होते हैं। ये पेट के पीछे की ओर स्थित होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। ये पेशाब का शरीर से निकास करने में सहायता देते हैं। ये शरीर में रक्त व पानी की मात्रा एक समान रखते हैं। गुर्दे के द्वारा शरीर में से यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में निकलते रहते हैं।
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चित्र-गुर्दे

(ग) दिल (Heart)—यह शरीर का सबसे कोमल तथा रक्त परिवहन का प्रमुख अंग है। यह छाती के बाईं ओर स्थित है। इसका आकार बन्द मुट्ठी जैसा होता है। यह लम्बाई की ओर से दो भागों में बंटा होता है। प्रत्येक भाग आगे दो भागों में बंटा होता हैऊपरी भाग तथा निचला भाग। ऊपर के भाग को ऊपरी खाना (Auricle) तथा निचले भाग को निचला खाना (Ventricle) कहते हैं। शरीर में से शुद्ध वायु विभिन्न अंगों तथा
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चित्र-दिल
शिराओं के माध्यम से दिल के दाएं ऊपरी खाने (Auricle) तक पहुंचती है तथा ऊपर से त्रिकपर्दीय (Triscupid Valve) के द्वारा निचले खाने (Ventricle) में पहुंचती है। यहां से यह ऊपर वापस नहीं जा सकती। दायें निचले खाने से रक्त फेफड़ों वाली धमनी (Pulmonary Artery) से फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है तथा वापसी में ऑक्सीजन से मिश्रित शुद्ध रक्त दिल के बायें ऊपरी खाने में पहुंच जाता है। यह निचले खाने में द्विकपर्दीय (Bicuspid) द्वार के द्वारा पहुंचता है। निचले खाने से यह महाधमनी (Aorta) के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचता है। इस प्रकार रक्त परिवहन का यह चक्र निरन्तर कार्य करता रहता है।

(घ) शिराएं एवं धमनियां (Veins & Arteries)—जो नलियां रक्त को फेफड़ों तथा शरीर के अन्य भागों से फेफड़ों की ओर ले जाती हैं उन्हें शिराएं (Veins) कहते हैं। इनकी दीवारों की बनावट तो धमनियों जैसी होती है, परन्तु इनमें लचीली तथा मांसदार पेशियों की तह बहुत बारीक होती है। पलमोनरी शिरा को छोड़कर शेष सभी शिराएं अशुद्ध रक्त को ही हृदय में लाती हैं।
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चित्र-धमनियां, शिराएं, कोशिकाएं
धमनियां (Arteries) शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाती है। ये लचकदार तथा मोटी दीवार की बनी होती हैं। इसमें स्वच्छ रक्त को ले जाने वाली धमनी को पलमोनरी धमनी (Pulmonary Artery) कहते हैं। धमनियों में सबसे प्रमुख धमनी को मूल धमनी या महाधमनी (Aorta) कहते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 8 न्याय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 8 न्याय

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा दीजिए और इसके तत्त्वों की व्याख्या करें। (Define State. Discuss its elements.)
अथवा
राज्य के मूलभूत तत्त्वों की विवेचना कीजिए। (Discuss the essential elements of a State.)
उत्तर-
राज्य एक प्राकृतिक और सर्वव्यापी, मानवीय संस्था है। व्यक्ति के सामाजिक जीवन को सुखी और सुरक्षित रखने के लिए जो संस्था अस्तित्व में आई, उसे राज्य कहते हैं। मनुष्य के जीवन के विकास के लिए राज्य एक आवश्यक संस्था है। यदि राज्य न हो, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी।

राज्य शब्द की उत्पत्ति (Etymology of the word)-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द से लिया गया है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीन काल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। परन्तु धीरे-धीरे इसका अर्थ बदलता गया। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

राज्य शब्द का गलत प्रयोग (Wrong use of the word ‘State’) अधिकांश तौर पर सामान्य भाषा में ‘राज्य’ शब्द का गलत प्रयोग किया जाता है। जैसे भारत में इसकी इकाइयों जैसे-पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश एवं अमेरिका में अटलांटा, बोस्टन, न्यूयार्क एवं वाशिंगटन जैसी इकाइयों को राज्य कह दिया जाता है, जबकि ये वास्तविक तौर पर राज्य नहीं हैं।

राज्य की परिभाषाएं (Definitions of State)–विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित

1. अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर तथा समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।” (“The state is a Union of families and villages having for its end a perfect and self-sufficing life by which we mean a happy and honourable life.”) परन्तु यह परिभाषा बहुत पुरानी है और आधुनिक राज्य पर लागू नहीं होती।

2. ब्लंटशली (Bluntschli) का कहना है कि “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।” (“The state is a politically organised people of a definite territory.”)

3. अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Willson) के अनुसार, “एक निश्चित क्षेत्र में कानून की स्थापना के लिए संगठित लोगों का समूह ही राज्य है।” (“The state is a people organised for law within a definite territory.”) परन्तु यह परिभाषा भी ठीक नहीं समझी जाती क्योंकि इसमें राज्य की प्रभुसत्ता का कहीं भी उल्लेख नहीं है।

4. गार्नर (Garner) द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और सार्वजनिक कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो, बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह से लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।” (“The state, as a concept of political science and public law, is a community of persons, more or less numerous permanently occupying a definite portion of territory, independent or nearly so, of external control and possessing an organised government to which the great body of inhabitants render habitual obedience.”)

5. गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास चारों तत्त्व होंगे, उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चार तत्त्वों का होना आवश्यक है।

राज्य के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements or Attributes of State)-

राज्य के अस्तित्व के लिए चार तत्त्वों का होना आवश्यक है जो कि जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता है। इनमें से किसी एक के भी अभाव में राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। जनसंख्या (Population) और भू-भाग (Territory) को राज्य के भौतिक तत्त्व (Physical Element), सरकार (Government) को राज्य का राजनीतिक तत्त्व (Political Element) और प्रभुसत्ता (Sovereignty) को राज्य का आत्मिक तत्त्व (Spiritual Element) माना जाता है। इन तत्त्वों की व्याख्या नीचे की गई है :-

1. जनसंख्या (Population)-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। राज्य पशु-पक्षियों का समूह नहीं है। वह मनुष्यों की राजनीतिक संस्था है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर बल्कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस प्रकार बिना पति-पत्नी के परिवार, मिट्टी के बिना घड़ा और सूत के बिना कपड़ा नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना मनुष्यों के समूह के राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है। परन्तु राज्य के लिए पर्याप्त जनसंख्या होनी चाहिए। दस-बीस मनुष्य राज्य नहीं बना सकते।

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राज्य की जनसंख्या कितनी हो, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। प्लेटो (Plato) के मतानुसार, एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 होनी चाहिए। अरस्तु (Aristotle) के मतानुसार, जनसंख्या इतनी कम नहीं होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न इतनी अधिक होनी चाहिए कि भली प्रकार शासित न हो सके। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का समर्थक था, इसलिए उसने छोटे राज्यों का समर्थन किया। उसने एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 10,000 निश्चित की थी।

प्राचीन काल में नगर राज्यों की जनसंख्या बहुत कम हुआ करती थी, परन्तु आज के युग में बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके हैं।
आधुनिक राज्यों की जनसंख्या करोड़ों में है। चीन राज्य की जनसंख्या लगभग 135 करोड़ से अधिक है जबकि भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से अधिक है। परन्तु दूसरी ओर कई ऐसे राज्य भी हैं जिनकी जनसंख्या बहुत कम है। उदाहरणस्वरूप, सान मेरीनो की जनसंख्या 25 हज़ार के लगभग तथा मोनाको की जनसंख्या 32 हज़ार के लगभग है जबकि नारु की जनसंख्या 9500 है। आधुनिक काल में कुछ राज्यों में बड़ी जनसंख्या एक बहुत भारी समस्या बन चुकी है और इन देशों में जनसंख्या को कम करने पर जोर दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारत की अधिक जनसंख्या एक भारी समस्या है।

राज्यों की जनसंख्या निश्चित करना अति कठिन है, परन्तु हम अरस्तु के मत से सहमत हैं कि राज्य की जनसंख्या न इतनी कम होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न ही इतनी अधिक होनी चाहिए कि राज्य के लिए समस्या बन जाए। राज्य की जनसंख्या इतनी होनी चाहिए कि वहां की जनता सुखी तथा समृद्धिशाली जीवन व्यतीत कर सके। गार्नर के मतानुसार, “राज्य की जनसंख्या इतनी अवश्य होनी चाहिए कि वह राज्य सुदृढ़ रह सके। परन्तु उससे अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके लिए भू-खण्ड तथा राज्य साधन पर्याप्त न हों।” प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ (Prof. R.H. Soltau) के अनुसार, “राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए-साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन-स्तर और सुरक्षा उत्पादन की आवश्यकताएं।”

2. निश्चित भू-भाग (Definite Territory)-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है। बिना निश्चित भूमि के राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। खानाबदोश कबीले (Nomadic Tribes) राज्य का निर्माण नहीं कर सकते क्योंकि वे एक स्थान पर नहीं रहते बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। यही कारण है कि 1948 से पहले यहूदी लोग संसार-भर में घूमते रहते थे और उनका कोई राज्य नहीं था। यहूदी लोग (Jews) 1948 में ही स्थायी तौर पर अपना इज़राइल (Israel) नामक राज्य स्थापित कर सके। भू-भाग का निश्चित होना राज्यों की सीमाओं के निर्धारण के लिए भी आवश्यक है वरन् सीमा-सम्बन्धी झगड़े सदा ही अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष का कारण बने रहेंगे।

भूमि में पहाड़, नदी, नाले, तालाब आदि भी शामिल होते हैं। भूमि के ऊपर का वायुमण्डल भी राज्य की भूमि का भाग माना जाता है। भूमि के साथ लगा हुआ समुद्र का 3 मील से 12 मील तक का भाग भी राज्य की भूमि में शामिल किया जाता है।

राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए, इसके बारे में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। प्राचीन काल में राज्य का क्षेत्रफल बहुत छोटा होता था, परन्तु आधुनिक राज्यों का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। पर कई राज्यों का क्षेत्रफल आज भी बहुत छोटा है। रूस का क्षेत्रफल 17,075,000 वर्ग किलोमीटर है जबकि भारत का क्षेत्रफल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर है। पर सेन मेरीनो का क्षेत्रफल 61 वर्ग किलोमीटर है जबकि मोनाको का क्षेत्रफल 1.95 वर्ग किलोमीटर ही है। मालद्वीप राज्य का क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर है। आज राज्य के बड़े क्षेत्र पर जोर दिया जाता है क्योंकि बड़े क्षेत्र में अधिक खनिज पदार्थ और दूसरे प्राकृतिक साधन होते हैं, जिससे देश को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। अमेरिका, रूस, चीन अपने बड़े क्षेत्रों के कारण शक्तिशाली हैं। दूसरी ओर इंग्लैण्ड, स्विट्ज़रलैंड, बैल्जियम इत्यादि देशों का क्षेत्रफल तो कम है परन्तु इन देशों ने भी बहुत उन्नति की है। अतः यह कहना कि देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ा क्षेत्र होना चाहिए, ठीक नहीं है। राज्य के क्षेत्र के सम्बन्ध में अरस्तु का मत ठीक प्रतीत होता है। उसने कहा है कि राज्य का क्षेत्र इतना विस्तृत होना चाहिए कि वह आत्मनिर्भर हो सके और इतना अधिक विस्तृत नहीं होना चाहिए कि उस पर ठीक प्रकार से शासन न किया जा सके। अतः राज्य का क्षेत्रफल इतना होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और देश की सुरक्षा भी ठीक हो सके।

3. सरकार (Government)-सरकार राज्य का तीसरा अनिवार्य तत्त्व है। जनता का समूह निश्चित भू-भाग पर बस कर तब तक राज्य की स्थापना नहीं कर सकता जब तक उनमें राजनीतिक संगठन न हो। बिना सरकार के जनता का समूह राज्य की स्थापना नहीं कर सकता। सरकार देश में शान्ति की स्थापना करती है, कानूनों का निर्माण करती है तथा कानूनों को लागू करती है और कानून तोड़ने वाले को दण्ड देती है। सरकार लोगों के परस्पर सम्बन्धों को नियमित करती है। सरकार राज्य की एजेन्सी है जिसके द्वारा राज्य के समस्त कार्य किए जाते हैं। बिना सरकार के अराजकता उत्पन्न हो जाएगी तथा समाज में अशान्ति पैदा हो जाएगी। अत: राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।

संसार के सब राज्यों में सरकारें पाई जाती हैं, परन्तु सरकार के विभिन्न रूप हैं। कई देशों में प्रजातन्त्र सरकारें हैं, कई देशों में तानाशाही तथा कई देशों में राजतन्त्र है। उदाहरण के लिए भारत, नेपाल, इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी में प्रजातन्त्रात्मक सरकारें हैं जबकि क्यूबा, उत्तरी कोरिया, चीन आदि में कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही है। कुछ देशों में संसदीय सरकार है और कुछ देशों में अध्यक्षात्मक सरकार है। इसी तरह कुछ देशों में संघात्मक सरकार है और कुछ में एकात्मक सरकार है। सरकार का कोई भी रूप क्यों न हो, उसे इतना शक्तिशाली अवश्य होना चाहिए कि वह देश में शान्ति की स्थापना कर सके और देश को बाहरी आक्रमणों से बचा सके।

4. प्रभुसत्ता (Sovereignty)—प्रभुसत्ता राज्य का चौथा आवश्यक तत्त्व है। प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है। इसके बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। प्रभुसत्ता का अर्थ सर्वोच्च शक्ति होती है। इस सर्वोच्च शक्ति के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठा सकता। सब मनुष्यों को सर्वोच्च शक्ति के आगे सिर झुकाना पड़ता है। प्रभुसत्ता दो प्रकार की होती है-आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty) तथा बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)।

आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty)-आन्तरिक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य का अपने देश के अन्दर रहने वाले व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं पर पूर्ण अधिकार होता है। प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक समुदाय को राज्य की आज्ञा का पालन करना पड़ता है। जो व्यक्ति राज्य के कानून को तोड़ता है, उसे सज़ा दी जाती है। राज्य को पूर्ण अधिकार है कि वह किसी भी संस्था को जब चाहे समाप्त कर सकता है।

बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)-बाहरी प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य के बाहर कोई ऐसी संस्था अथवा व्यक्ति नहीं है जो राज्य को किसी कार्य को करने के लिए आदेश दे सके। राज्य पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यदि किसी देश पर किसी दूसरे देश का नियन्त्रण हो तो वह देश राज्य नहीं कहला सकता। उदाहरण के लिए सन् 1947 से पूर्व भारत पर इंग्लैण्ड का शासन था, अतः उस समय भारत एक राज्य नहीं था। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए और इसके साथ ही भारत राज्य बन गया।

क्या कोई तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है ? (Is any Element the Most Important One ?)-

राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार, प्रभुसत्ता-अनिवार्य हैं। यह कहना कि इन तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, अति कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना नहीं हो सकती। लोगों के स्थायी रूप से रहने के लिए एक निश्चित भू-भाग की भी आवश्यकता होती है। सरकार के बिना राज्य का अस्तित्व नहीं हो सकता और प्रभुसत्ता के बिना राज्य के तीनों तत्त्व अर्थहीन हो जाते हैं। प्रभुसत्ता एक ऐसा तत्त्व है जो राज्यों को अन्य समुदाओं और संस्थाओं से श्रेष्ठ बनाता है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि चारों तत्त्वों में से प्रभुसत्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रभुसत्ता राज्य की आत्मा और प्राण है। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। कोई भी तीन तत्त्व मिल कर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते। राज्यों के चारों तत्त्वों के समान महत्त्व पर बल देते हुए गैटेल (Gettell) ने कहा है कि, “राज्य न ही जनसंख्या है, न ही भूमि, न ही सरकार बल्कि इन सबके साथ-साथ राज्य के पास वह इकाई होनी आवश्यक है जो इसे एक विशिष्ट व स्वतन्त्र राजनीतिक सत्ता बनाती है।”

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”

2. गार्नर के द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

3. गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग, एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास ये चारों तत्त्व होंगे उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चारों तत्त्वों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम लिखें। किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम इस प्रकार हैं-

  1. जनसंख्या
  2. निश्चित भू-भाग
  3. सरकार
  4. प्रभुसत्ता।

1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।

2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। भू-भाग निश्चित होना इसलिए भी आवश्यक है कि सीमा-सम्बन्धी विवाद न उत्पन्न हो। राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। परन्तु राज्य का क्षेत्रफल इतना अवश्य होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और राज्य की सुरक्षा भी ठीक ढंग से हो सके।

प्रश्न 3.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  2. पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।
  3. पंजाब की अपनी सरकार तो है परन्तु वह सम्पूर्ण नहीं है। राज्य की कई महत्त्वपूर्ण शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास हैं।
  4. पंजाब के पास न तो आन्तरिक प्रभुसत्ता है और न ही बाहरी प्रभुसत्ता है। इसे दूसरे राज्यों में राजदूत भेजने, उनके साथ युद्ध या सन्धियां करने, अपना संविधान बनाने आदि के अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रमण्डल एक राज्य है ?
उत्तर-
राष्ट्रमण्डल में ब्रिटेन के अतिरिक्त वे राष्ट्र सम्मिलित हैं जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने अब स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रमण्डल राज्य नहीं है, क्योंकि उसकी न तो कोई जनसंख्या है, न भू-भाग और न ही कोई सरकार। इस मण्डल के सदस्य प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं। इसलिए राष्ट्रमण्डल के पास प्रभुसत्ता के होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। राष्ट्रमण्डल का सदस्य जब चाहे राष्ट्रमण्डल को छोड़ सकता है। अत: इसे राज्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ एक राज्य है ? यदि नहीं तो कारण बताओ।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. एक राज्य के सदस्य अप्रभुव्यक्ति (Non-sovereign Individuals) होते हैं परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य तो प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं।
  2. एक राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है, परन्तु इस संघ की नहीं।
  3. इस संघ के फैसलों को कानून का स्तर नहीं दिया जा सकता। यदि कोई सदस्य राज्य किसी फैसले को अपने हित के प्रतिकूल समझे तो वह उस आदेश की उपेक्षा कर सकता है और व्यावहारिक रूप में ऐसे कई उदाहरण हैं।
  4. इस संघ की न तो अपनी प्रजा है, न ही नागरिक और न ही कोई भू-क्षेत्र। जिस भू-भाग पर इस संघ के भवन और दफ्तर आदि स्थित हैं, वह भी इसका अपना नहीं बल्कि अमेरिका की सम्पत्ति है।
  5. इस संघ को महासभा, सुरक्षा परिषद् और दूसरे अंगों के बराबर कहना सरासर ग़लत और अमान्य है।

प्रश्न 6.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेजी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है और वह शब्द किस भाषा का है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यिावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

प्रश्न 7.
राज्य का सबसे आवश्यक तत्त्व कौन-सा है ? वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार, प्रभुसत्ता आवश्यक हैं। यह कहना कि चारों तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना तक नहीं हो सकती है। निश्चित भू-भाग के बिना भी राज्य नहीं बन सकता। सरकार के बिना समाज में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना नहीं की जा सकती। अतः सरकार ही राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति करती है। राज्य का चौथा तत्त्व प्रभुसत्ता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि राज्य के अन्य तीन तत्त्व तो दूसरे समुदायों में भी मिल जाते हैं लेकिन प्रभुसत्ता केवल राज्य के पास ही होती है और इसे राज्य तथा अन्य समुदायों के बीच बांटा जा सकता है। प्रभुसत्ता ही एक ऐसा तत्त्व है जो राज्य को अन्य समुदायों से अलग रखता है या उसे सर्वश्रेष्ठ बनाता है। इसी कारण कुछ लेखक प्रभुसत्ता को अन्य तत्वों से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना असम्भव है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेज़ी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

प्रश्न 2.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-

  • अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”
  • गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

प्रश्न 3.
राज्य के किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-

  1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।
  2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 4.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  • पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राज्य को अंग्रेजी भाषा में क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राज्य को अंग्रेज़ी भाषा में स्टेट (State) कहा जाता है।

प्रश्न 2. स्टेट (State) शब्द किस भाषा से बना है ?
उत्तर-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के स्टेट्स (Status) शब्द से बना है।

प्रश्न 3. स्टेट्स (Status) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-स्टेट्स (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है।

प्रश्न 4. राज्य की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बटलशली के अनुसार, “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।”

प्रश्न 5. राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा किसने दी है ?
उत्तर-राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा गार्नर ने दी है।

प्रश्न 6. “मनुष्य स्वभाव और आवश्यकताओं के कारण सामाजिक प्राणी है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

प्रश्न 7. “जो समाज में नहीं रहता, वह या तो पशु है या फिर देवता” किसका कथन है ?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

प्रश्न 8. प्लेटो ने राज्य की अधिक-से-अधिक जनसंख्या कितनी निश्चित की है?
उत्तर-प्लेटो ने आदर्श राज्य की जनसंख्या 5,040 बताई है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

प्रश्न 9. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, या ऐच्छिक?
उत्तर-राज्य की सदस्यता अनिवार्य है।

प्रश्न 10. किस विद्वान् ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है?
उत्तर-गार्नर ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है।

प्रश्न 11. रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या 10000 होनी चाहिए।

प्रश्न 12. किस विद्वान् की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है?
उत्तर-गार्नर की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है।

प्रश्न 13. किस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है?
उत्तर-साम्यवादी चीन की जनसंख्या सबसे अधिक है।

प्रश्न 14. क्या पंजाब राज्य है?
उत्तर-पंजाब राज्य नहीं है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य के ………….. आवश्यक तत्त्व माने जाते हैं।
2. राज्य के चार आवश्यक तत्त्व जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा ………. है।
3. प्लेटो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………. होनी चाहिए।
4. रूसो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………… होनी चाहिए।
5. ………….. के अनुसार राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए–साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन स्तर और ………… उत्पादन की आवश्यकताएं।
उत्तर-

  1. चार
  2. प्रभुसत्ता
  3. 5040
  4. 10000
  5. प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ, सुरक्षा।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राज्य का दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है।
2. निश्चित भूमि के बिना राज्य की स्थापना हो सकती है।
3. राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।
4. प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है।
5. प्रभुसत्ता चार प्रकार की होती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य के लिए आवश्यक है ?
(क) संसदीय सरकार
(ख) राजतन्त्र
(ग) गणतन्त्रीय सरकार
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ) कोई भी सरकार।

प्रश्न 2.
प्रभुसत्ता किसका आवश्यक गुण है ?
(क) राष्ट्र
(ख) राज्य
(ग) समाज
(घ) सरकार।
उत्तर-
(ख) राज्य।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ
(ख) जापान
(ग) दक्षिण कोरिया
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) भारत
(ख) नेपाल
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(ग) मध्य प्रदेश।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 रूसी क्रांति

SST Guide for Class 9 PSEB रूसी क्रांति Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
रूस की क्रांति के दौरान बोलश्विकों का नेतृत्व किसने किया ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेडरिक एंजल्स
(ग) लैनिन
(घ) ट्रोस्टकी।
उत्तर-
(ग) लैनिन

प्रश्न 2.
रूस की क्रांति द्वारा समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार सबसे महत्त्वपूर्ण है ?
(क) समाजवाद
(ख) राष्ट्रवाद
(ग) उदारवाद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) समाजवाद

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 3.
मैनश्विक समूह का नेता कौन था ?
(क) ट्रोस्टकी
(ख) कार्ल मार्क्स
(ग) ज़ार निकोल्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) ट्रोस्टकी

प्रश्न 4.
किस देश ने अपने आप को पहले विश्व युद्ध से बाहर निकला लिया.और जर्मनी से संधि कर ली ?
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर-
(ख) रूस

(ख) रिक्त स्थान भरो:

  1. ………… ने रूसी क्रांति के समय रूस के बोलश्विक संगठन का नेतृत्व किया।
  2. ………… का अर्थ है-परिषद् अथवा स्थानीय सरकार।
  3. रूस में चुनी गई सलाहकार संसद् को …………… कहा जाता था।
  4. ज़ोर का शाब्दिक अर्थ है ……………

उत्तर-

  1. लैनिन
  2. सोवियत
  3. ड्यूमा
  4. सर्वोच्च

(ग) अंतर बताओ :

प्रश्न 1.
1. बोलश्विक और मैनश्विक
2. उदारवादी और रूढ़िवादी
उत्तर-

1. बोलश्विक और मैनश्विक-बोलश्विक और मैनश्विक रूस के दो राजनीतिक दल थे। ये दल औद्योगिक मजदूरों के प्रतिनिधि थे। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर यह था कि मैनश्विक संसदीय प्रणाली के पक्ष में थे, जबकि बोलश्विक संसदीय प्रणाली में विश्वास नहीं रखते थे। वे ऐसी पार्टी चाहते थे जो अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए कार्य करे।

2. उदारवादी और रूढ़िवादी-उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिका में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।
रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।

(घ) सही मिलान करें:

1. लैनिन – मैनश्विक
2. ट्रोस्टकी – समाचार पत्र
3. मार्च की रूस की क्रांति – रूसी पार्लियामैंट
4. ड्यूमा – बोलश्विक
5. प्रावदा – 1917
उत्तर-

  1. बोलश्विक
  2. मैनश्विक
  3. 1917 ई०
  4. रूसी पार्लियामैंट
  5. समाचार पत्र।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार महत्त्वपूर्ण माना गया ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विचार ‘समाजवाद’ को माना गया।

प्रश्न 2.
‘ड्यूमा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी।

प्रश्न 3.
मार्च 1917 ई० की क्रांति के समय रूस का शासक कौन था ?
उत्तर:-
ज़ार निकोल्स।

प्रश्न 4.
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण था-ज़ार को याचिका देने के लिए जाते हुए मज़दूरों पर गोली चलाया जाना।

प्रश्न 5.
1905 ई० में रूस की पराजय किस देश द्वारा हुई ?
उत्तर-
जापान से।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अक्तूबर 1917 ई० की रूसी क्रांति के तत्कालीन परिणामों का वर्णन करो।
उत्तर-
रूस में 1917 की क्रांति के पश्चात् जिस अर्थव्यवस्था का निर्माण आरंभ हुआ उसकी विशेषताएं निम्नलिखित थीं

  1. मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं।
  2. जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं और सारी भूमि किसानों की समितियों को सौंप दी गई।
  3. व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
  4. काम का अधिकार संवैधानिक अधिकार बन गया और रोजगार दिलाना राज्य का कर्त्तव्य बन गया।
  5. शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की समितियों (सोवियत) के हाथों में आ गई।
  6. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया गया।

प्रश्न 2.
मैनश्विक और बोलश्विक पर नोट लिखो।
उत्तर-

  1. मैनश्विक-मैनश्विक ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मज़दूर पार्टी’ का अल्पमत वाला भाग था। यह दल ऐसी पार्टी के पक्ष में था जैसी फ्रांस तथा जर्मनी में थी। इन देशों की पार्टियों की तरह मैनश्विक भी देश में निर्वाचित संसद् की स्थापना करना चाहते थे।
  2. बोलश्विक-1898 ई० में रूस में ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मजदूर पार्टी’ का गठन हुआ था। परंतु संगठन तथा नीतियों के प्रश्न पर यह पार्टी दो भागों में बंट गई। इनमें से बहुमत वाला भाग ‘बोलश्विक’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस दल का मत था कि संसद् तथा लोकतंत्र के अभाव में कोई भी दल संसदीय सिद्धान्तों द्वारा परिवर्तन नहीं ला सकता है। यह दल अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए काम करने के पक्ष में था। इस दल का नेता लेनिन था।

प्रश्न 3.
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के निम्नलिखित कारण थे

  1. युद्ध से अलग न करना-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
  2. लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
  3. खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
  4. देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।

प्रश्न 4.
लैनिन का अप्रैल प्रस्ताव क्या था ?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विकों के नेता थे जो निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। अप्रैल 1917 में वह रूस लौट आये। उनके नेतृत्व में बोलश्विक 1914 से ही प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि अब सोवियतों को सत्ता अपने हाथों में ले लेनी चाहिए। ऐसे में लेनिन ने सरकार के सामने तीन मांगें रखीं-

  1. युद्ध समाप्त किया जाए।
  2. सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए।
  3. बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। इन तीनों मांगों को लेनिन की ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद रूस में कृषि के क्षेत्र में क्या परिवर्तन आए ?
नोट : इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 1 पढ़ें। केवल कृषि संबंधी बिंदु ही पढ़ें।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1905 ई० की क्रांति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवस्था का वर्णन करें।
उत्तर-
19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। कई देश गणराज्य थे, तो कई संवैधानिक राजतंत्र । सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और सामंतों का स्थान नए मध्य वर्गों ने ले लिया था। परंतु रूस अभी भी ‘पुरानी दुनिया’ में जी रहा था। यह बात रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशा से स्पष्ट हो जायेगी

  1. रूसी किसानों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। वहां कृषि दास-प्रथा अवश्य समाप्त हो चुकी थी, फिर भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं आया था। उनकी जोतें बहुत ही छोटी थीं और उन्हें विकसित करने के लिए उनके पास पूंजी भी नहीं थी। इन छोटी-छोटी जोतों को पाने के लिए भी उन्हें अनेक दशकों तक मुक्ति कर के रूप में भारी धन राशि चुकानी पड़ी।
  2. किसानों की भांति मज़दूरों की दशा भी खराब थी। देश में अधिकतर कारखाने विदेशी पूंजीपतियों के थे। उन्हें मजदूरों की दशा सुधारने की कोई चिंता नहीं थी। उनका एकमात्र उद्देश्य अधिक-से-अधिक मुनाफ़ा कमाना था। रूसी पूंजीपतियों ने भी मज़दूरों का आर्थिक शोषण किया। इसका कारण यह था कि उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी। वे मजदूरों को कम वेतन देकर पैसा बचाना चाहते थे और इस प्रकार विदेशी पूंजीपतियों का मुकाबला करना चाहते थे। मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। उनके पास इतने साधन भी नहीं थे कि वे कोई मामूली सुधार लागू करवा सकें।

राजनीतिक दशा-

  1. रूस का जार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। वह निरंकुशतंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखते थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
  2. रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार रूस में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
  3. राज परिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता. बहुत दु:खी थी।
    इस प्रकार रूस में क्रांति के लिए स्थिति परिपक्व थी।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण के रूस के आम लोगों पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
औद्योगिक क्रांति रूस में सबसे बाद में आई। वहां खनिज पदार्थों की तो कोई कमी नहीं थी, परंतु पूंजी तथा स्वतंत्र श्रमिकों के अभाव के कारण वहां काफ़ी समय तक औद्योगिक विकास संभव न हो सका। 1867 ई० रूस ने कृषि दासों को स्वतंत्र कर दिया। उसे विदेशों से पूंजी भी मिल गई। फलस्वरूप रूस ने अपने औद्योगिक विकास की ओर ध्यान दिया। वहां उद्योगों का विकास आरंभ हो गया, परंतु इनका पूर्ण विकास 1917 ई० की क्रांति के पश्चात् ही संभव हो सका।
प्रभाव-औद्योगिक क्रांति का रूस के आम लोगों के जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव पड़ा। औद्योगिक क्रांति के प्रभाव निम्नलिखित थे

  1. भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति ने छोटे-छोटे कृषकों को अपनी भूमि बेचकर कारखानों में काम करने पर बाध्य कर दिया। अत: भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
  2. छोटे कारीगरों का मज़दूर बनना-औद्योगिक क्रांति के कारण अब मशीनों द्वारा मज़बूत व पक्का माल बड़ी शीघ्रता से बनाया जाने लगा। इस प्रकार हाथ से बने अथवा काते हुए कपड़े की मांग कम होती चली गई। अतः छोटे कारीगरों ने अपना काम छोड़ कर कारखाने में मजदूरों के रूप में काम करना आरंभ कर दिया।
  3. स्त्रियों तथा छोटे बच्चों का शोषण-कारखानों में स्त्रियों तथा कम आयु वाले बच्चों से भी काम लिया जाने लगा। उनसे बेगार भी ली जाने लगी। इसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ा।
  4. मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव-मजदूरों के स्वास्थ्य पर खुले वातावरण के अभाव के कारण बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। अब वे स्वच्छ वायु की अपेक्षा कारखानों की दूषित वायु में काम करते थे।
  5. बेरोजगारी में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति का सबसे बुरा प्रभाव यह हुआ कि इसने घरेलू दस्तकारियों का अंत कर दिया। एक अकेली मशीन अब कई आदमियों का काम करने लगी। परिणामस्वरूप हाथ से काम करने वाले कारीगर बेकार हो गए। .
  6. नवीन वर्गों का जन्म-औद्योगिक क्रांति से मज़दूर तथा पूंजीपति नामक दो नवीन वर्गों का जन्म हुआ। पूंजीपतियों ने मजदूरों के बहुत कम वेतन पर काम लेना शुरू कर दिया। परिणामस्वरुप निर्धन लोग और निर्धन हो गए तथा देश की समस्त पूंजी कुछ एक पूंजीपतियों की तिजोरियों में भरी जाने लगी। इस विषय में किसी ने कहा है, “औद्योगिक क्रांति ने धनिकों को और भी अधिक धनी तथा निर्धनों को और भी निर्धन कर दिया।”

प्रश्न 3.
समाजवाद पर एक विस्तारपूर्वक नोट लिखो। .
उत्तर-
समाजवाद की दिशा में कार्ल मार्क्स (1818-1882) और फ्रेडरिक एंगेल्स (1820-1895) ने कई नए तर्क पेश किए। मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘पूंजीवादी’ समाज है। कारखानों में लगी पूंजी पर पूंजीपतियों का अधिकार है और पूंजीपतियों का मुनाफ़ा मज़दूरों की मेहनत से पैदा होता है। मार्क्स का मानना था कि जब तक निजी पूंजीपति इसी प्रकार मुनाफ़े का संचय करते रहेंगे तब तक मजदूरों की दशा में सुधार नहीं हो सकता। अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मज़दूरों को पूंजीवाद तथा निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा। मार्क्स का कहना था पूंजीवादी शोषण से मुक्ति पाने के लिए मज़दूरों को एक बिल्कुल अलग तरह का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण और स्वामित्व हो। उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया। मार्क्स को विश्वास था कि पूंजीपतियों के साथ होने वाले संघर्ष में अंतिम जीत मजदूरों की ही होगी।
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
  2. इसमें मजदूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
  3. उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।

प्रश्न 4.
किन कारणों से सामान्य जनता ने बोलश्विकका समर्थन किया ? .
उत्तर-
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से रूस में समाजवादी विचारों का प्रसार आरंभ हो गया था और कई एक समाजवादी संगठनों की स्थापना की जा चुकी थी। 1898 ई० में विभिन्न समाजवादी दल मिलकर एक हो गए और उन्होंने “रूसी समाजवादी लोकतांत्रिक मज़दूर दल” का गठन किया। इस पार्टी में वामपक्ष का नेता ब्लादीमीर ईलिच उल्यानोव था जिसे लोग लेनिन के नाम से जानते थे। 1903 ई० में इस गुट का दल में बहुमत हो गया और इनको बोलश्विक कहा जाने लगा। जो लोग अल्पमत में थे और उन्हें मैनश्विक के नाम से पुकारा गया।
बोलश्विक पक्के राष्ट्रवादी थे। वे रूस के लोगों की दशा में सुधार करना चाहते थे। वे रूस को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में देखना चाहते थे। अपने इस स्वप्न को साकार करने के लिए उन्होंने जो उद्देश्य अपने सामने रखे। वे जनता के दिल को छू गए। इसलिए सामान्य जनता भी बोलश्विकों के साथ हो गई।

  1. समाजवाद की स्थापना-बोलशिवक लोगों का अंतिम उद्देश्य रूस में समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना था। इसके अतिरिक्त उनके कुछ तत्कालीन उद्देश्य भी थे।
  2. जार के कुलीनतंत्र का अंत करना-बोलश्विक यह भली-भांति जानते थे कि ज़ार के शासन के अंतर्गत रूस के लोगों की दशा को कभी नहीं सुधारा जा सकता। अत: वे जार के शासन का अंत करके रूस में गणतंत्र की स्थापना करना चाहते थे।
  3. गैर-रूसी जातियों के दमन की समाप्ति-बोलश्विक रूसी साम्राज्य के गैर-रूसी जातियों के दमन को समाप्त करके उन्हें आत्म-निर्णय का अधिकार देना चाहते थे।
  4. किसानों के दमन का अंत-वे भू-स्वामित्व की असमानता का उन्मूलन और सामंतों द्वारा किसानों के दमन का अंत करना चाहते थे।

प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद बोलश्विक सरकार की ओर से क्या परिवर्तन किए गए ? विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के पश्चात् बोलश्विकों द्वारा रूस में मुख्यतः निम्नलिखित परिवर्तन किए गए

  1. नवंबर 1917 में अधिकांश उद्योगों तथा बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। फलस्वरूप इनका स्वामित्व एवं प्रबंधन सरकार के हाथों में आ गया।
  2. भूमि को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया। किसानों को अनुमति दे दी गई कि वे सरदारों तथा जागीरदारों की भूमि पर कब्जा कर लें।
  3. शहरों में बड़े मकानों में मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़ कर शेष मकान के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए गये ताकि बेघर लोगों को रहने की जगह दी जा सके।
  4. निरंकुशतंत्र द्वारा दी गई पुरानी उपाधियों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई। सेना तथा सैनिक अधिकारियों के लिए नई वर्दी निश्चित कर दी गई।
  5. बोलश्विक पार्टी का नाम बदल कर रशियन कम्युनिस्ट पार्टी (बोलश्विक) रख दिया गया।
  6. व्यापार संघों पर नई पार्टी का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया।
  7. गुप्तचर पुलिस ‘चेका’ (Cheka) को ओगपु (OGPU) तथा नकविड (NKVD) के नाम दिए गए। इन्हें बोलश्विकों की आलोचना करने वाले लोगों को दंडित करने का अधिकार दिया गया।
  8. मार्च, 1918 में अपनी ही पार्टी के विरोध के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोवस्क (Brest Litovsk) के स्थान पर जर्मनी से शांति संधि कर ली।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

PSEB 9th Class Social Science Guide रूसी क्रांति Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
यूरोप के अतिवादी (radicals) किस के विरोधी थे ?
(क) निजी संपत्ति के
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के
(ग) महिलाओं को मताधिकार देने के
(घ) बहुमत जनसंख्या की सरकार के।
उत्तर-
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में यूरोप के रूढ़िवादियों (Conservative) के विचारों में क्या परिवर्तन आया ?
(क) क्रांतियां लाई जाएं
(ख) संपत्ति का बंटवारा समान हो
(ग) महिलाओं को संपत्ति का अधिकार न दिया जाए
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।
उत्तर-
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।

प्रश्न 3.
औद्योगिकीकरण से कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई ?
(क) आवास
(ख) बेरोज़गारी
(ग) सफ़ाई
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
मेज़िनी राष्ट्रवादी था
(क) इटली का
(ख) फ्रांस का
(ग) रूस का
(घ) जर्मनी का।
उत्तर-
(क) इटली का

प्रश्न 5.
समाजवादी सभी बुराइयों की जड़ किसे मानते थे ?
(क) धन के समान वितरण को
(ख) उत्पादन के साधनों पर समाज के अधिकार को
(ग) निजी संपत्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) निजी संपत्ति

प्रश्न 6.
राबर्ट ओवन कौन था
(क) रूसी दार्शनिक
(ख) फ्रांसीसी क्रांतिकारी
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी

प्रश्न 7.
फ्रांसीसी समाजवादी कौन-सा था ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेड्रिक एंगल्ज़
(ग) राबर्ट ओवन
(घ) लुई ब्लांक
उत्तर-
(घ) लुई ब्लांक

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 8.
कार्ल मार्क्स तथा फ्रेड्रिक एंगल्ज़ कौन थे ?
(क) समाजवादी
(ख) पूंजीवादी
(ग) सामंतवादी
(घ) वाणिज्यवादी।
उत्तर-
(क) समाजवादी

प्रश्न 9.
समाजवाद का मानना है
(क) सारी संपत्ति पर पूंजीपतियों का अधिकार होना चाहिए
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए
(ग) सारा मुनाफ़ा उद्योगपतियों को मिलना चाहिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए

प्रश्न 10.
द्वितीय इंटरनेशनल का संबंध था
(क) साम्राज्यवाद से
(ख) पूंजीवाद से ।
(ग) समाजवाद से
(घ) सामंतवाद से।
उत्तर-
(ग) समाजवाद से

प्रश्न 11.
ब्रिटेन में मज़दूर दल की स्थापना हुई
(क) 1900
(ख) 1905
(ग) 1914
(घ) 1919.
उत्तर-
(ख) 1905

प्रश्न 12.
रूसी साम्राज्य का प्रमुख धर्म था
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च
(ख) कैथोलिक
(ग) प्रोटेस्टैंट
(घ) इस्लाम।
उत्तर-
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च

प्रश्न 13.
क्रांति से पूर्व रूस की अधिकांश जनता का व्यवसाय था
(क) व्यापार
(ख) खनन
(ग) कारखानों में काम करना
(घ) कृषि।
उत्तर-
(घ) कृषि।

प्रश्न 14.
क्रांति से पूर्व रूस के सूती वस्त्र उद्योग में हड़ताल हुई
(क) 1914 ई०
(ख) 1896-97 ई०
(ग) 1916 ई०
(घ) 1904 ई०
उत्तर-
(ख) 1896-97 ई०

प्रश्न 15.
1914 से रूस में निम्नलिखित दल अवैध था
(क) रूसी समाजवादी वर्क्स पार्टी
(ख) बोलश्विक दल
(ग) मैनश्विक दल
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 16.
रूसी साम्राज्य में मुस्लिम धर्म सुधारक क्या कहलाते थे ?
(क) ड्यूमा
(ख) उलेमा
(ग) जांदीदिस्ट
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) जांदीदिस्ट

प्रश्न 17.
निम्नलिखित भिक्षु रूस की ज़ारीना (जार की पत्नी) का सलाहकार था जिसने राजतंत्र को बदनाम किया
(क) रास्पुतिन
(ख) व्लादिमीर पुतिन
(ग) केस्की
(घ) लेनिन।
उत्तर-
(क) रास्पुतिन

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प्रश्न 18.
पूंजीपति के लिए मज़दूर ही मुनाफ़ा कमाता है, यह विचार दिया था
(क) कार्ल मार्क्स ने
(ख) लेनिन ने
(ग) केरेंस्की ने
(घ) प्रिंस ल्योव ने।
उत्तर-
(क) कार्ल मार्क्स ने

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किसकी विचारधारा रूसी क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुई?
(क) मुसोलिनी
(ख) हिटलर
(ग) स्टालिन
(घ) कार्ल मार्क्स।
उत्तर-
(घ) कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 20.
1917 की रूसी क्रांति का आरंभ कहां से हुआ?
(क) ब्लाडीवास्टक
(ख) लेनिनग्राड
(ग) पीट्रोग्राड
(घ) पेरिस।
उत्तर-
(ग) पीट्रोग्राड

प्रश्न 21.
1917 की रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण था
(क) ज़ार का निरंकुश शासन
(ख) जनता की दुर्दशा
(ग) 1905 की रूसी क्रांति
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।
उत्तर-
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।

प्रश्न 22.
1917 की रूसी क्रांति को जिस अन्य नाम से पुकारा जाता है
(क) फ्रांसीसी क्रांति
(ख) मार्क्स क्रांति
(ग) ज़ार क्रांति
(घ) बोलश्विक क्रांति।
उत्तर-
(घ) बोलश्विक क्रांति।

प्रश्न 23.
रूस में लेनिन ने किस प्रकार के शासन की घोषणा की?
(क) मध्यवर्गीय प्रजातंत्र
(ख) एकतंत्र
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार
(घ) संसदात्मक गणतंत्र।
उत्तर-
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार

प्रश्न 24.
इनमें से रूस के जार निकोलस ने किस प्रकार की सरकार को अपनाया ?
(क) निरंकुश
(ख) समाजवादी
(ग) साम्यवादी
(घ) लोकतंत्र।
उत्तर-
(क) निरंकुश

प्रश्न 25.
मैनश्विकों का नेता था
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की
(ख) ट्रोटस्की
(ग) लेनिन
(घ) निकोलस द्वितीय।
उत्तर-
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की

प्रश्न 26.
रूस की अस्थायी सरकार का तख्ता कब पलटा गया ?
(क) अगस्त, 1917
(ख) सितंबर, 1917
(ग) नवंबर, 1917
(घ) दिसंबर, 1917
उत्तर-
(ग) नवंबर, 1917

प्रश्न 27.
नवंबर 1917 की क्रांति का नेतृत्व किया था
(क) निकोलस द्वितीय
(ख) लेनिन
(ग) एलेक्जेंडर केरेंस्की
(घ) ट्रोटस्की।
उत्तर-
(ख) लेनिन

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प्रश्न 28.
रूसी क्रांति का कौन-सा परिणाम नहीं था ?
(क) निरंकुश शासन का अंत
(ख) श्रमिक सरकार
(ग) पूंजीपतियों का अंत
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।
उत्तर-
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।

रिक्त स्थान भरो:

  1. समाजवादी ……………. को सभी बुराइयों की जड़ मानते थे।
  2. …………….. फ्रांसीसी समाजवादी था।
  3. 1917 ई० में रूसी क्रांति का आरंभ …………………. से हुआ।
  4. 1917 ई० की रूसी क्रांति को …………………. क्रांति के नाम से पुकारा गया।
  5. …………………..मैनश्विकों का नेता था।
  6. रूसी क्रांति ……………… के शासनकाल में हुई।

उत्तर-

  1. निजी संपत्ति
  2. लुई ब्लांक
  3. पीट्रोग्राड
  4. बोलश्विक
  5. एलैक्जेंडर केरेंस्की
  6. ज़ार निकोलस द्वितीय।।

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. मेज़िनी – (i) निरंकुश
2. राबर्ट ओवन – (ii) बोलश्विक क्रांति
3. जार निकोलस – (iii) इटली
4. रूसी क्रांति – (iv) फ्रांसीसी समाजवादी
5. लुई ब्लांक – (v) अंग्रेज़ समाजवादी
उत्तर-

  1. मेजिनी-इटली
  2. राबर्ट ओवन-अंग्रेज़ समाजवादी
  3. जार निकोलस-निरंकुश
  4. रूसी क्रांति| बोलश्विक क्रांति
  5. लुई ब्लांक-फ्रांसीसी समाजवादी।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
रूस में बोलश्विक अथवा विश्व की प्रथम समाजवादी क्रांति कब हुई ?
उत्तर-
1917 में।

प्रश्न 2.
रूसी क्रांति किस ज़ार के शासनकाल में हुई ?
उत्तर-
ज़ार निकोलस द्वितीय के।

प्रश्न 3.
रूसी क्रांति से पूर्व कौन-से दो प्रसिद्ध दल थे?
उत्तर-
मैनश्विक तथा बोलश्विक।

प्रश्न 4.
रूस में अस्थाई सरकार किसके नेतृत्व में बनी थी?
उत्तर-
केरेंस्की

प्रश्न 5.
रूसी क्रांति का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
ज़ार का निरंकुश शासन।

प्रश्न 6.
रूसी क्रांति की पहली उपलब्धि क्या थी?
उत्तर-
निरंकुश शासन की समाप्ति तथा चर्च की शक्ति का विनाश।

प्रश्न 7.
1917 से पूर्व रूस में किस सन् में क्रांति हुई थी?
उत्तर-
1905 में।

प्रश्न 8.
रूस में वर्कमैन्स सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी कब स्थापित हुई ?
उत्तर-
1895 में।

प्रश्न 9.
रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध।

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प्रश्न 10.
प्रथम महायुद्ध में रूस जर्मनी से किस वर्ष में पराजित हुआ?
उत्तर-
1915 में।

प्रश्न 11.
रूसी क्रांति का झंडा सर्वप्रथम कहां बुलंद किया गया?
उत्तर-
पैत्रोग्राद।

प्रश्न 12.
रूस में जार को सिंहासन त्यागने के लिए किसने बाध्य किया?
उत्तर-
ड्यूमा ने।

प्रश्न 13.
रूस में जार के शासन त्यागने के पश्चात् जो अंतरिम सरकार बनी थी, उसमें किस वर्ग का प्रभुत्व था?
उत्तर-
मध्यवर्ग का।

प्रश्न 14.
बोलश्विकों का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर-
लेनिन।

प्रश्न 15.
रूस में क्रांति के परिणामस्वरूप समाज के किस वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हुआ?
उत्तर-
कृषक एवं श्रमिक वर्ग।

प्रश्न 16.
रूस की क्रांति को विश्व इतिहास की प्रमुख घटना क्यों माना जाता है?
उत्तर-
समाजवाद की स्थापना के कारण।

प्रश्न 17.
रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप रूस का क्या नाम रखा गया?
उत्तर-
सोवियत समाजवादी रूसी संघ।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। उचित उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-1. ज़रूरी चीज़ों के मूल्य इतनी तेज़ी से बढ़े कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई। 2. उसी समय मजदूर संगठनों की सदस्यता में भी तेजी से वृद्धि हुई। 1904 में ही गठित की गई असेंबली ऑफ़ रशियन वर्कर्स (रूसी श्रमिक सभा) के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वर्क्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मज़दूरों ने आंदोलन छेड़ने की घोषणा कर दी। 3. अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 110,000 से अधिक मजूदर काम के घंटे घटाकर आठ घंटे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की मांग करते हुए हड़ताल पर चले गए।

प्रश्न 2.
“रूसी जनता की समस्त समस्याओं का हल रूसी क्रांति में ही निहित था।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं चार कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूसी जनता का जीवन बड़ा कष्टमय था।

  1. रूस का जार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी राजा था। रूस की जनता उससे तंग आ चुकी थी।
  2. समाज में जन-साधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। किसानों तथा मजदूरों में रोष फैला हुआ था। अब लोग इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।
  3. राजपरिवार में नैतिक पतन व्याप्त था। राज्य का शासन एक ढोंगी साधु रास्पुतिन चला रहा था। परिणामस्वरूप पूरे शासनतंत्र में भ्रष्टाचार फैला हुआ था।
  4. प्रथम विश्व युद्ध में रूस को भारी सैनिक क्षति उठानी पड़ रही थी। अत: सैनिकों में भारी असंतोष बढ़ रहा था। इन समस्त समस्याओं का एक ही हल था-‘क्रांति’।

प्रश्न 3.
रूस को फरवरी 1917 की क्रांति की ओर ले जाने वाली किन्हीं तीन घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. 22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फ़ैक्टरी में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फ़ैक्टरी के मज़दूरों के समर्थन में पचास फैक्टरियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। बहुत-से कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं।
  2. मज़दूरों ने सरकारी इमारतों को घेर लिया तो सरकार ने कयूं लगा दिया। शाम तक प्रदर्शनकारी तितर-बितर हो गए। परंतु 24 और 25 तारीख को वे फिर इकट्ठे होने लगे। सरकार ने उन पर नज़र रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
  3. रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को भंग कर दिया। 26 फरवरी को बहुत बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी बाएं तट के इलाके में इकट्ठे हो गए। 27 फरवरी को उन्होंने पुलिस मुख्यालयों पर आक्रमण करके उन्हें ध्वस्त कर दिया। रोटी, वेतन, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए।
    सिपाही भी उनके साथ मिल गए। उन्होंने मिलकर पेत्रोग्राद ‘सोवियत’ (परिषद) का गठन किया।
  4. अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल ज़ार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने ज़ार को राजगद्दी छोड़ देने की सलाह दी। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को उसने गद्दी छोड़ दी। सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली। इसे 1917 की फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।
    (कोई तीन लिखें।)

प्रश्न 4.
अक्तूबर 1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के योगदान का किन्हीं तीन बिंदुओं के आधार पर वर्णन कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति लेनिन के नाम से क्यों जुड़ी हुई है ? .
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था और क्रांति काल के दौरान वह निर्वासित जीवन बिता रहा था। अक्तूबर, 1917 की रूसी क्रांति में उसके योगदान का वर्णन इस प्रकार है-

  1. अप्रैल, 1917 में लेनिन रूस लौट आए। उन्होंने बयान दिया कि युद्ध समाप्त किया जाए, सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
  2. इसी बीच अंतरिम सरकार और बोलश्विकों के बीच टकराव बढ़ता गया। सितंबर में बोलश्विकों ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह के बारे में चर्चा शुरू कर दी। सेना और फैक्टरी सोवियतों में मौजूद बोलश्विकों को इकट्ठा किया गया। सत्ता पर अधिकार के लिए लियॉन ट्रोटस्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया।
  3. 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया। प्रधानमंत्री केरेस्की ने इसे दबाने का प्रयास किया, परंतु वह असफल रहा।
  4. शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ गया और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें बहुमत ने बोलश्विकों की कार्रवाई का समर्थन किया।

प्रश्न 5.
रूसी क्रांति की तत्कालीन उपलब्धियां क्या थी?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1917 ई० की रूसी क्रांति विश्व-इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसने न केवल रूस में निरंकुश शासन को समाप्त किया अपितु पूरे विश्व की सामाजिक तथा आर्थिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप रूस में ज़ार का स्थान ‘सोवियत समाजवादी गणतंत्र का संघ’ नामक नई राजसत्ता ने ले लिया। इस नवीन संघ का उद्देश्य प्राचीन समाजवादी आदर्शों को प्राप्त करना था। इसका अर्थ था-प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाए और काम के अनुसार उसे पारिश्रमिक (मज़दूरी) दी जाए।

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प्रश्न 6.
समाजवाद की तीन विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
  2. इसमें मज़दूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
  3. उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।

प्रश्न 7.
1914 में रूसी साम्राज्य के विस्तार की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1914 में रूस और उसके परे साम्राज्य पर ज़ार निकोलस II का शासन था। मास्को के आसपास के भूक्षेत्र के अतिरिक्त आज का फ़िनलैंड, लातविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया तथा पोलैंड, यूक्रेन तथा बेलारूस के कुछ भाग रूसी साम्राज्य का अंग थे। यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था। आज के मध्य एशियाई राज्यों के साथ-साथ जॉर्जिया, आर्मेनिया तथा अज़रबैजान भी इसी साम्राज्य में शामिल थे। रूस में ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च से उत्पन्न शाखा रूसी ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियैनिटी को मानने वाले लोग बहुमत में थे। परंतु इस साम्राज्य के अंतर्गत रहने वालों में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम और बौद्ध भी शामिल थे।

प्रश्न 8.
1905 की रूसी क्रांति के बाद ज़ार ने अपना निरंकुश शासन स्थापित करने के लिए क्या-क्या पग उठाए ? कोई तीन लिखिए।
उत्तर-
1905 की क्रांति के दौरान ज़ार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद् अर्थात् ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी। परंतु क्रांति के तुरंत बाद उसने बहुत से निरंकुश पग उठाए-

  1. क्रांति के समय कुछ दिन तक फैक्ट्री मज़दूरों की बहुत सी ट्रेड यूनियनें और फ़ैक्ट्री कमेटियां अस्तित्व में रही थीं। परंतु 1905 के बाद ऐसी अधिकतर कमेटियां और यूनियनें अनधिकृत रुप से काम करने लगीं क्योंकि उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। राजनीतिक गतिविधियों पर भारी पाबंदियां लगा दी गईं।
  2. ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और फिर से निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया।
  3. ज़ार अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था। इसलिए उसने मतदान कानूनों में हेर-फेर करके तीसरी ड्यूमा में रूढिवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों और क्रांतिकारियों को पूरी तरह बाहर रखा गया।

प्रश्न 9.
प्रथम विश्व युद्ध क्या था ? रूसियों की इस युद्ध के प्रति क्या प्रतिक्रियां थी?
उत्तर-
1914 में यूरोप के दो गठबंधनों (धड़ों) के बीच युद्ध छिड़ गया। एक धड़े में ऑस्ट्रिया और तुर्की (केंद्रीय शक्तियां) थे तथा दूसरे धड़े में फ्रांस, ब्रिटेन व रूस थे। बाद में इटली और रूमानिया भी इस धड़े में शामिल हो गए। इन सभी देशों के पास संसार भर में विशाल साम्राज्य थे, इसलिए यूरोप के साथ-साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था। इसी युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है।
आरंभ में इस युद्ध को रूसियों का काफ़ी समर्थन मिला। जनता ने पूरी तरह ज़ार का साथ दिया। परंतु जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता गया, ज़ार ने ड्यूमा की मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। इसलिए उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा। जर्मन-विरोधी भावनाएं भी दिन-प्रतिदिन बलवती होने लगी। इसी कारण ही लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदल कर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था। ज़ारीना अर्थात् ज़ार की पत्नी अलेक्सांद्रा के जर्मन मूल के होने और रास्पुतिन जैसे उसके घटिया सलाहकारों ने राजशाही को और अधिक अलोकप्रिय बना दिया।

प्रश्न 10.
1918 के पश्चात् लेनिन ने ऐसे कौन-से कदम उठाये जो रूस में अधिनायकवाद सहज दिखाई देते थे? कलाकारों और लेखकों ने बोलश्विक दल का समर्थन क्यों किया?
उत्तर-

  1. जनवरी 1918 में असेंबली ने बोलश्विकों के प्रस्तावों को रद्द कर दिया। अतः लेनिन ने असेंबली भंग कर दी।
  2. मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोव्सक में जर्मनी से संधि कर ली।
  3. आने वाले वर्षों में बोलश्विक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई। अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद् का दर्जा दे दिया गया था। इस प्रकार रूस एक-दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया।
  4. ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण रहता था।
  5. गुप्तचर पुलिस बोलश्विकों की आलोचना करने वाले को दंडित करती थी। फिर भी बहुत से युवा लेखकों और कलाकारों ने बोलश्विक दल का समर्थन किया क्योंकि यह दल समाजवाद और परिवर्तन के प्रति समर्पित था।

प्रश्न 11.
रूस के लोगों की वे तीन मांगें बताओ जिन्होंने ज़ार का पतन किया।
उत्तर-
रूस के लोगों की निम्नलिखित तीन मांगों ने जार का पतन किया-

  1. देश में शांति की स्थापना की जाए और प्रत्येक कृषक को अपनी भूमि दी जाए।
  2. उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण हो।
  3. गैर-रूसी जातियों को समान दर्जा मिले और सोवियत को पूरी शक्ति दी जाए।

प्रश्न 12.
प्रथम विश्वयुद्ध ने रूस की फरवरी क्रांति (1917) के लिए स्थितियां कैसे उत्पन्न की ? तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में 1917 तक रूस के 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
  2. युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो वैसे भी बहुत कम थे। अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई, क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी औद्योगिक सामान आते थे उस पर जर्मनी का अधिकार हो चुका था।
  3. पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु सेना वहां टिक न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इन दशाओं ने सरकार और ज़ार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
    इस प्रकार क्रांति का वातावरण तैयार हुआ।

प्रश्न 13.
विश्व पर रूसी क्रांति के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप विश्व में समाजवाद एक व्यापक विचारधारा बन कर उभरा। रूस के बाद अनेक देशों में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुईं।
  2. जनता की दशा सुधारने के लिए राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन के विचार को बल मिला।
  3. विश्व में श्रम का गौरव बढ़ा। अब बाइबल का यह विचार फिर से जीवित हो उठा कि “जो काम नहीं करता, वह खाएगा भी नहीं।”
  4. रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। पूरे विश्व में साम्राज्यवाद के विनाश के लिए एक अभियान चल पड़ा।

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प्रश्न 14.
1917 की क्रांति के बाद रूस विश्व-युद्ध से क्यों अलग हो गया?
उत्तर-
1917 ई० के बाद रूस निम्नलिखित कारणों से युद्ध से अलग हो गया-

  1. रूसी क्रांतिकारी आरंभ से ही लड़ाई का विरोध करते आ रहे थे। अतः क्रांति के बाद रूस युद्ध से हट गया।
  2. लेनिन के नेतृत्व में रूसियों ने युद्ध को क्रांतिकारी युद्ध में बदलने का निश्चय कर लिया था।
  3. रूसी साम्राज्य को युद्ध में कई बार मुंह की खानी पड़ी थी जिससे इसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी।
  4. युद्ध में 6 लाख से भी अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे।
  5. रूस के लोग किसी दूसरे के भू-भाग पर अधिकार नहीं करना चाहते थे।
  6. रूस के लोग पहले अपनी आंतरिक समस्याओं का समाधान करना चाहते थे।

प्रश्न 15.
रूस द्वारा प्रथम विश्व युद्ध से हटने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
1917 ई० में रूस प्रथम विश्व युद्ध से हट गया। रूसी क्रांति के अगले ही दिन बोलश्विक सरकार ने शांतिसंबंधी अज्ञाप्ति (Decree on Peace) जारी की। मार्च, 1918 में रूस ने जर्मनी के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किये। जर्मनी की सरकार को लगा कि रूसी सरकार युद्ध को जारी रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जर्मनी ने रूस पर कठोर शर्ते लाद दीं। परंतु रूस ने उन्हें स्वीकार कर लिया। त्रिदेशीय संधि में शामिल शक्तियां रूसी क्रांति और रूस के युद्ध से अलग होने के निर्णय के विरुद्ध थीं। वे रूसी क्रांति के विरोधी तत्त्वों को पुनः उभारने का प्रयत्न करने लगीं। फलस्वरूप रूस में गृह-युद्ध छिड़ गया जो तीन वर्षों तक चलता रहा। परंतु अंत में विदेशी शक्तियों तथा क्रांतिकारी सरकार के विरुद्ध हथियार उठाने वाले रूसियों की पराजय हुई और गृह-युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 16.
समाजवादियों के अनुसार ‘कोऑपरेटिव’ क्या थे ? कोऑपरेटिव निर्माण के विषय में रॉबर्ट ओवन तथा लूइस ब्लॉक के क्या विचार थे ?
उत्तर-
समाजवादियों के अनुसार कोऑपरेटिव सामूहिक उद्यम थे। ये ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफ़े को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बांट लेते थे। कुछ समाजवादियों की कोऑपरेटिव के निर्माण में विशेष रुचि थी। इंग्लैंड के जाने-माने उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन (1771-1858) ने इंडियाना (अमेरिका) में नया समन्वय (New Harmony) के नाम से एक नयी प्रकार के समुदाय की रचना का प्रयास किया। कुछ समाजवादी मानते थे कि केवल व्यक्तिगत प्रयासों से बहुत बड़े सामूहिक खेत नहीं बनाए जा सकते। वे चाहते थे कि सरकार अपनी ओर से सामूहिक खेती को बढ़ावा दे। उदाहरण के लिए, फ्रांस में लुईस ब्लांक (18131882) चाहते थे कि सरकार पूंजीवादी उद्यमों की जगह सामूहिक उद्यमों को प्रोत्साहित करे।

प्रश्न 17.
स्तालिन कौन था ? उसने खेतों के सामूहीकरण का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर-
स्तालिन रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का नेता था। उसने लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाली थी। 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था। सरकार ने अनाज की कीमत निश्चित कर दी थी। कोई भी उससे अधिक कीमत पर अनाज नहीं बेच सकता था। परंतु किसान उस कीमत पर सरकार को अनाज बेचने के लिए तैयार नहीं थे। स्थिति से निपटने के लिए स्तालिन ने कड़े पग उठाए। उसे लगता था कि धनी किसान और व्यापारी कीमत बढ़ने की आशा में अनाज नहीं बेच रहे हैं। स्थिति से निपटने के लिए सट्टेबाजी पर अंकुश लगाना और व्यापारियों के पास जमा अनाज को जब्त करना ज़रूरी था। अतः 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया। उन्होंने किसानों से ज़बरदस्ती अनाज खरीदा और ‘कुलकों’ (संपन्न किसानों) के ठिकानों परं छापे मारे। जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो स्तालिन ने खेतों के सामूहिकीकरण का फैसला लिया। इसके लिए यह तर्क दिया गया कि अनाज की कमी इसलिए है, क्योंकि खेत बहुत छोटे हैं।

प्रश्न 18.
क्रांति से पूर्व रूस में औद्योगिक मजदूरों की शोचनीय दशा के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. विदेशी पूंजीपति मज़दूरों का खूब शोषण करते थे। यहां तक कि रूसी पूंजीपति भी उन्हें बहुत कम वेतन देते थे।
  2. मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। उनके पास मामूली सुधार लागू करवाने के लिए भी साधन नहीं थे।

प्रश्न 19.
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक कौन था? उसके शासनतंत्र के कोई दो दोष बताओ।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं दो राजनीतिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक ज़ार निकोलस द्वितीय था। उसके शासनतंत्र में निम्नलिखित दोष थे जो रूसी क्रांति का कारण बने।

  1. वह राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था तथा निरंकुश तंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था।
  2. नौकरशाही के सदस्य किसी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि विशेषाधिकार प्राप्त वर्षों से चुने जाते थे।

प्रश्न 20.
रूस में जार निकोलस द्वितीय क्यों अलोकप्रिय था? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
रूस में ज़ार निकोलस द्वितीय के अलोकप्रिय होने के निम्नलिखित कारण थे-

  1. ज़ार निकोलस एक निरंकुश शासक था।
  2. ज़ार के शासनकाल में किसानों, मज़दूरों और सैनिकों की दशा बहुत खराब थी।

प्रश्न 21.
लेनिन कौन था? उसने रूस में क्रांति लाने में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था। मार्क्स और एंगल्ज़ के पश्चात् उसे समाजवादी आंदोलन का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उसने बोलश्विक पार्टी द्वारा रूस में क्रांति लाने के लिये अपना सारा जीवन लगा दिया।

प्रश्न 22.
“1905 की रूसी क्रांति 1917 की क्रांति का पूर्वाभ्यास थी।” इस कथन के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-

  1. 1905 ई० की क्रांति ने रूसी जनता में जागृति उत्पन्न की और उसे क्रांति के लिए तैयार किया।
  2. इस क्रांति के कारण रूसी सैनिक तथा गैर-रूसी जातियों के लोग क्रांतिकारियों के घनिष्ठ संपर्क में आ गए।

प्रश्न 23.
लेनिन ने एक सफल क्रांति लाने के लिये कौन-सी दो मूलभूत शर्ते बताईं ? क्या ये शर्ते रूस में विद्यमान थीं?
उत्तर-
लेनिन द्वारा बताई गई दो शर्त थीं

  1. जनता पूरी तरह समझे कि क्रांति आवश्यक है और वह उसके लिए बलिदान देने को तैयार हो।
  2. वर्तमान सरकार संकट से ग्रस्त हो ताकि उसे बलपूर्वक हटाया जा सके। रूस में यह स्थिति निश्चित रूप से आ चुकी थी।

प्रश्न 24.
ज़ार का पतन किस क्रांति के नाम से जाना जाता है और क्यों? रूस की जनता की चार मुख्य मांगें क्या थीं?
उत्तर-
ज़ार के पतन को फरवरी क्रांति के नाम से जाना जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को हुई थी।
रूस की जनता की चार मांगें थीं-शांति, जोतने वालों को ज़मीन, उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी राष्ट्रों को बराबरी का दर्जा।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 25.
बोलश्विक पार्टी का मुख्य नेता कौन था? इस दल की दो नीतियां कौन-कौन सी थीं?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
बोलश्विक पार्टी का नेता लेनिन था। लेनिन के नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी की नीतियां (उद्देश्य) थीं-

  1. सारी सत्ता सोवियतों को सौंपी जाए।
  2. सारी भूमि किसानों को दे दी जाए।

प्रश्न 26.
रूसी क्रांति कब हुई? सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस कब हुई? इसने सबसे पहला काम कौन-सा किया?
उत्तर-
रूसी क्रांति 7 नवंबर, 1917 को हुई। इसी दिन सोवियतों की एक अखिल रूसी कांग्रेस हुई। इसने सबसे पहला काम यह किया कि संपूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली।

प्रश्न 27.
समाजवाद की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. समाजवाद के अनुसार समाज के हित प्रमुख हैं। समाज से अलग निजी हित रखने वाला व्यक्ति समाज का सबसे बड़ा शत्रु है।
  2. राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं।

प्रश्न 28.
साम्यवाद की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. साम्यवाद समाजवाद का उग्र रूप है।
  2. इसका उद्देश्य उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों पर श्रमिकों का कठोर नियंत्रण स्थापित करना है।

प्रश्न 29.
रूसी क्रांति के दो अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-

  1. रूस में किसानों तथा मजदूरों की सरकार स्थापित होने से विश्व के सभी देशों में किसानों और मजदूरों के सम्मान में वृद्धि हुई।
  2. क्रांति के पश्चात् रूस में साम्यवादी सरकार की स्थापना की गई। इसका परिणाम यह हआ कि संसार के अन्य देशों में भी साम्यवादी सरकारें स्थापित होने लगीं।

प्रश्न 30.
रूसी क्रांति का साम्राज्यवाद पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
रूसी क्रांतिकारी साम्राज्यवाद के विरोधी थे। अत: रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। रूस के समाजवादियों ने साम्राज्यवाद के विनाश के लिए पूरे विश्व में अभियान चलाया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी ?
अथवा
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर-
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से निम्नलिखित बातों में भिन्न थी

  1. रूस की अधिकांश जनता कृषि करती थी। वहां के लगभग 85 प्रतिशत लोग कृषि द्वारा ही अपनी रोज़ी कमाते थे। यह यूरोप के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक था। उदाहरण के लिए फ्रांस और जर्मनी में यह अनुपात क्रमश: 40 प्रतिशत तथा 50 प्रतिशत ही था।
  2. यूरोप के कई अन्य देशों में औद्योगिक क्रांति आई थी। वहां कारखाने स्थानीय लोगों के हाथों में थे। वहां श्रमिकों का बहुत अधिक शोषण नहीं होता था। परंतु रूस में अधिकांश कारखाने विदेशी पूंजी से स्थापित हुए। विदेशी पूंजीपति रूसी श्रमिकों का खूब शोषण करते थे। जो कारखाने रूसी पूंजीपतियों के हाथों में थे, वहां भी श्रमिकों की दशा दयनीय थी। ये पूंजीपति विदेशी पूंजीपतियों से स्पर्धा करने के लिए श्रमिकों का खून चूसते थे।
  3. रूस में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा बहुत ही कम वेतन दिया जाता था। बच्चों से भी 10 से 15 घंटों तक काम लिया जाता था। यूरोप के अन्य देशों में श्रम-कानूनों के कारण स्थिति में सुधार आ चुका था।
  4. रूसी किसानों की जोतें यूरोप के अन्य देशों के किसानों की तुलना में छोटी थीं।
  5. रूसी किसान ज़मींदारों तथा जागीरदारों का कोई सम्मान नहीं करते थे। वे उनके अत्याचारी स्वभाव के कारण उनसे घृणा करते थे। यहाँ तक कि वे प्रायः लगान देने से इंकार कर देते थे और ज़मींदारों की हत्या कर देते थे। इसके विपरीत फ्रांस में किसान अपने सामंतों के प्रति वफ़ादार थे। फ्रांसीसी क्रांति के समय वे अपने सामंतों के लिए लड़े थे।
  6. रूस का कृषक वर्ग एक अन्य दृष्टि से यूरोप के कृषक वर्ग से भिन्न था। वे एक संमय-अवधि के लिए अपनी जोतों को इकट्ठा कर लेते थे। उनकी कम्यून (मीर) उनके परिवारों की ज़रूरतों के अनुसार इसका बंटवारा करती थी।

प्रश्न 2.
1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया ?
अथवा
रूस में फरवरी 1917 की क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां।
उत्तर-
रूस से ज़ार शाही को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां उत्तरदायी थीं-

  1. रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। निरंकुश तंत्र की रक्षा करना वह अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखने वाले लोग ही थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
  2. रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार देश में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
  3. राजपरिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता बहुत दु:खी थी।
  4. ज़ार ने अपनी साम्राज्यवादी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देश को प्रथम विश्व-युद्ध में झोंक दिया। परंतु वह राज्य के आंतरिक खोखलेपन के कारण मोर्चे पर लड रहे सैनिकों की ओर पूरा ध्यान न दे सका। परिणामस्वरूप रूसी सेना बुरी तरह पराजित हुई और फरवरी, 1917 तक उसके 6 लाख सैनिक मारे गये। इससे लोगों के साथ-साथ सेना में असंतोष फैल गया। अतः क्रांति द्वारा जार को शासन छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया। इसे फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 3.
दो सूचियां बनाइए-एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ज़ार की गलत नीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा साधारण जनता एवं सैनिकों की दुर्दशा के कारण रूस में क्रांति का वातावरण तैयार हो चुका था। एक छोटी-सी घटना ने इस क्रांति का श्रीगणेश किया और यह दो चरणों में पूर्ण हुई। ये दो चरण थे–फरवरी क्रांति तथा अक्तूबर क्रांति। संक्षेप में क्रांति के पूरे घटनाक्रम का वर्णन निम्नलिखित है-

1. फरवरी क्रांति-इस क्रांति का आरंभ रोटी खरीदने का प्रयास कर रही औरतों के प्रदर्शन से हुआ। फिर मजदूरों की एक आम हड़ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोग भी सम्मिलित हो गए। 12 मार्च, 1917 को राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग क्रांतिकारियों के हाथों में आ गई। क्रांतिकारियों ने शीघ्र ही मास्को पर भी अधिकार कर लिया। ज़ार शासन छोड़ कर भाग गया और 15 मार्च को पहली अस्थायी सरकार केरेंस्की के नेतृत्व में बनी। ज़ार के पतन की इस घटना को फरवरी क्रांति कहा जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को घटित हुई थी। परंतु ज़ार का पतन क्रांति का आरंभ मात्र था।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति 1

2. अक्तूबर क्रांति-जनता की चार मांगें सबसे महत्त्वपूर्ण थीं–शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर रूसी जातियों को समानता का दर्जा । रूस की अस्थाई सरकार इनमें से किसी भी मांग को पूरा न कर सकी अतः उसने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन जो फरवरी की क्रांति के समय स्विट्ज़रलैंड में निर्वासन का जीवन बिता रहा था, अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को ज़मीन देने तथा “सारे अधिकार सोवियतों को देने” की स्पष्ट नीतियां सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी।

लेनिन ने कभी रूसी साम्राज्य को “राष्ट्रों का कारागार” कहा था और यह घोषणा की थी कि सभी गैर-रूसी जनगणों को समान अधिकार दिये बिना कभी भी वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती। उन्होंने रूसी साम्राज्य के जनगणों सहित सभी जनगणों के आत्मनिर्णय के अधिकार की घोषणा की।

केरेंस्की सरकार की अलोकप्रियता के कारण 7 नवंबर, 1917 को उसका पतन हो गया। इस दिन उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों के एक दल ने अधिकार कर लिया। 1905 की क्रांति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला लियोन त्रात्सकी भी मई, 1917 में रूस लौट आया था। पेत्रोग्राद सोवियत के प्रमुख के रूप में नवंबर के विद्रोह का वह एक प्रमुख नेता था। उसी दिन सोवियतों की अखिल-रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली। 7 नवंबर को होने वाली इस घटना को अक्तूबर क्रांति’ कहा जाता है, क्योंकि उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्तूबर का दिन था।

इस क्रांति के पश्चात् देश में लेनिन के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ जिसने समाजवाद की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाये। इस प्रकार 1917 की रूसी क्रांति विश्व की प्रथम सफल समाजवादी क्रांति थी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :

  • कुलक (Kulaks)
  • ड्यूम-
  • 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार
  • उदारवादी
  • स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।

उत्तर-
कुलक-कुलक सोवियत रूस के धनी किसान थे। कृषि के सामूहीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत स्तालिन ने इनका अंत कर दिया था।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति 2

ड्यूमा-ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी। रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में बदल दिया था। इसमें केवल अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रांतिकारियों को इससे दूर रखा गया।

1900 से 1930 के बीच महिला कामगार-रूस के कारखानों में महिला कामगारों (श्रमिकों) की संख्या भी पर्याप्त थी। 1914 में यह कुल श्रमिकों का 31 प्रतिशत थी। परंतु उन्हें पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी। यह पुरुष श्रमिक की मजदूरी का आधा अथवा तीन चौथाई भाग होती थी। महिला श्रमिक अपने साथी पुरुष श्रमिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहती थीं।

उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।

स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम-1929 में स्तालिन की साम्यवादी पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। अधिकांश ज़मीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुल कर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बांट दिया जाता था। इस निर्णय से क्रुद्ध किसानों ने सरकार का विरोध किया। विरोध जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप 1929 से 1931 के बीच जानवरों की संख्या में एक-तिहाई कमी आ गई। सरकार की ओर से सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कड़ा दंड दिया जाता था। बहुत-से लोगों को निर्वासन अथवा देश-निकाला दे दिया गया। सामूहिकीकरण का विरोध करने वाले किसानों का कहना था कि वे न तो धनी हैं और न ही समाजवाद के विरोधी हैं। वे बस विभिन्न कारणों से सामूहिक खेतों पर काम नहीं करना चाहते।
सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। इसके विपरीत 1930-1933 की खराब फसल के बाद सोवियत इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इसमें 40 लाख से अधिक लोग मारे गए।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 5.
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के कौन-कौन से तीन समूह (वर्ग) थे? उनके विचारों में क्या भिन्नता थी?
अथवा
रूस के उदारवादियों, रैडिकलों तथा रूढ़िवादियों के विचारों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के तीन समूह अथवा वर्ग थे-उदारवादी रैडिकल तथा रूढ़िवादी।

उदारवादी-रूस के उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का दर्जा मिले तथा सभी का समान रूप से उदार हो। उस समय के यूरोप में प्रायः किसी एक धर्म को ही अधिक महत्त्व दिया जाता था। उदारवादी वंशआधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के समर्थक थे। उनका मानना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार चाहता था। जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त हो। शासन-कार्य न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। इतना होने पर भी यह समूह लोकतंत्रवादी नहीं था। वे लोग सार्वभौलिक वयस्क मताधिकार अर्थात् सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे।

रैडिक्ल-इस वर्ग के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की जनसंख्या के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो। इनमें से बहुत-से महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे। उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े ज़मींदारों और धनी उद्योगपतियों के विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। परंतु वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे वे केवल कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति का संकेंद्रण का विरोध करते थे।।

रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।

प्रश्न 6.
रूसी क्रांति के कारणों का विवेचन कीजिए। रूस द्वारा प्रथम विश्व-युद्ध में भाग लेने का रूसी क्रांति की सफलता में क्या योगदान है?
उत्तर-
रूसी क्रांति 20वीं शताब्दी के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह क्रांति मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में तेज़ी से बढ़ती हुई समाजवादी विचारधारा का परिणाम थी। इसलिए इसका महत्त्व राजनीतिक दृष्टि से कम, परंतु आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से अधिक था। इस क्रांति से रूस में एक ऐसे समाज की स्थापना हुई, जो जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक कार्ल मार्क्स के विचारों के अनुरूप था। रूस की इस महान् क्रांति के कारणों का वर्णन निम्न प्रकार है-

1. ज़ार की निरंकुशता-रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी था। उसे असीम अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त थीं जिन पर कोई नियंत्रण नहीं था। वह इनका प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता था। उच्च वर्ग के लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त थे, परंतु जन-साधारण की दशा बड़ी शोचनीय थी। उन्हें न तो कोई अधिकार प्राप्त था और न ही शासन में उनका हाथ था। अत: वे ज़ार के निरंकुश शासन का अंत कर देना चाहते थे।

2. रूस में मार्क्सवाद का प्रसार-रूस में औद्योगिक क्रांति आरंभ होने के कारण मजदूरों की दशा बड़ी खराब हो गई। उद्योगपति उनका जी भरकर शोषण कर रहे थे। मज़दूरों को न तो अच्छे वेतन मिलते थे और न ही रहने के लिए अच्छे मकान। इन परिस्थितियों में मज़दूरों का झुकाव मार्क्सवाद की ओर बढ़ने लगा। वे समझने लगे थे कि मार्क्सवादी सिद्धान्तों को अपनाकर ही देश में क्रांति लाई जा सकती है और उनके जीवन-स्तर को उन्नत किया जा सकता है। इस उद्देश्य से उन्होंने ‘सोशलिस्ट डैमोक्रेटिक पार्टी’ नामक एक संगठन स्थापित किया। 1903 ई० में यह संगठन दो भागों में बंट गया-बोल्शेविक तथा मैनश्विक। इनमें बोलश्विक क्रांतिकारी विचारों के थे। वे शीघ्र-से-शीघ्र देश में मजदूरों की तानाशाही स्थापित करना चाहते थे। इसके विपरीत मेनश्विक नर्म विचारों के थे। वे अन्य दलों के सहयोग से ज़ार की तानाशाही समाप्त करने के पक्ष में थे। उनका उद्देश्य देश में शांतिमय साधनों द्वारा धीरे-धीरे क्रांति लाना था। इस प्रकार रूस में क्रांति का पूरा वातावरण तैयार हो चुका था।

3. जन-साधारण की शोचनीय दशा-समाज में जनसाधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक रूस के समाज में दो वर्ग थे-उच्च वर्ग तथा दास कृषक। उच्च वर्ग के अधिकांश लोग भूमि के स्वामी थे। राज्य के सभी उच्च पदों पर वे ही आसीन थे। इसके विपरीत दास-कृषक (Serfs) लकड़ी काटने वाले तथा पानी भरने वाले ही बनकर रह गए थे। अत: वे अब इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।

4. दार्शनिकों तथा लेखकों का योगदान–’ज़ार’ के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पाश्चात्य जगत् के उदार विचारों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। टॉलस्टाय, तुर्गनोव तथा दास्तोवस्की के उपन्यासों ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी थी। देश में मार्क्स, बाकूनेन तथा क्रोपटकिन की विचारधाराएं भी प्रचलित थीं। इन विचारों से प्रभावित होकर लोगों ने ऐसे अधिकारों तथा सुविधाओं की मांग की जो कि पाश्चात्य देशों के लोगों को प्राप्त थीं। ज़ार ने जब उनकी मांगें ठुकराने का प्रयत्न किया तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया।

5. रूस-जापान युद्ध-1904-1905 ई० में रूस तथा जापान के बीच एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस की हार हुई। जापान जैसे छोटे-से देश के हाथों परास्त होने के कारण रूसी जनता ज़ार के शासन की विरोधी बन गई। उन्हें विश्वास हो गया कि इस पराजय का एकमात्र कारण ज़ार की सरकार है जो युद्ध का ठीक प्रकार से संचालन करने में असफल रही है।

6. 1905 ई० की क्रांति-‘ज़ार’ के निरंकुश तथा अत्याचारी शासन के विरुद्ध 1905 ई० में रूस में एक क्रांति हुई। ‘ज़ार’ इस क्रांति का दमन करने में असफल रहा। विवश होकर उसने जनता को सुधारों का वचन दिया। राष्ट्रीय सभा अथवा ड्यूमा (Duma) बुलाने की घोषणा कर दी गई। परंतु निरंकुश शासन तथा संसदीय सरकार के मेल का यह नया प्रयोग असफल रहा। क्रांतिकारियों की आपसी फूट और मतभेदों का लाभ उठाकर ज़ार ने प्रतिक्रियावादी नीति का सहारा लिया। उसने ड्यूमा को परामर्श समिति मात्र बना दिया। ज़ार के इस कार्य से जनता में और भी अधिक असंतोष फैल गया।

7. प्रथम विश्व युद्ध-1914 ई० में प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण बना। इस युद्ध में रूस बुरी तरह पराजित हो रहा था और इस युद्ध का देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। लड़ाई के कारण कीमतें बढ़ गईं। इस पर पूंजीपतियों ने मनमानी करके स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना दिया। इन परिस्थितियों को देखकर ड्यूमा ने उत्तरदायी शासन की मांग की। परंतु ज़ार ने उसे अस्वीकार कर दिया और उसके सदस्यों को जेलों में बंद कर दिया। दूसरी ओर रूसी सेनाओं की लगातार पराजय हो रही थी। अतः लोगों को यह विश्वास हो गया कि सरकार युद्ध का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर रही है। इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि देश में मजदूरों ने हड़तालें करनी आरंभ कर दी, किसानों ने लूट-मार मचा दी और स्थान-स्थान पर दंगे होने लगे।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति 3

प्रश्न 7.
रूस में अक्तूबर क्रांति (दूसरी क्रांति) के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन करो। इसका रूस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. अस्थायी सरकार की विफलता-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
  2. लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
  3. खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
  4. देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।

घटनाएं-सर्वप्रथम मार्च, 1917 ई० में रूस के प्रसिद्ध नगर पैट्रोग्राड (Petrograd) से क्रांति का आरंभ हुआ। यहां श्रमिकों ने काम करना बंद कर दिया और साधारण जनता ने रोटी के लिए विद्रोह कर दिया। सरकार ने सेना की सहायता से विद्रोह को कुचलना चाहा। परंतु सैनिक लोग मज़दूरों के साथ मिल गए और उन्होंने मज़दूरों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। मज़दूरों तथा सैनिकों की एक संयुक्त सभा बनाई गई, जिसे सोवियत (Soviet) का नाम दिया गया। विवश होकर ज़ार निकोलस द्वितीय ने 25 मार्च, 1917 को राजगद्दी छोड़ दी। देश का शासन चलाने के लिए मिल्यूकोफ की सहायता से एक मध्यम वर्गीय अंतरिम सरकार बनाई गई। नई सरकार ने सैनिक सुधार किए। धर्म, विचार तथा प्रेस को स्वतंत्र कर दिया गया और संविधान सभा बुलाने का निर्णय लिया गया। परंतु जनता रोटी, मकान और शांति की मांग कर रही थी। परिणाम यह हुआ कि यह मंत्रिमंडल भी न चल सका और इसके स्थान पर नर्म विचारों के दल मैनश्विकों (Mansheviks) ने सत्ता संभाल ली, जिसका नेता केरेस्की (Kerensky) था।

नवंबर, 1917 में मैनश्विकों को भी सत्ता छोड़नी पड़ी। अब लेनिन के नेतृत्व में गर्म विचारों वाले दल बोलश्विक ने सत्ता संभाली। लेनिन ने रूस में एक ऐसे समाज की नींव रखी जिसमें सारी शक्ति श्रमिकों के हाथों में थी। इस प्रकार रूसी क्रांति का उद्देश्य पूरा हुआ।

रूस पर प्रभाव-

  1. मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं। उनके लिए सैनिक शिक्षा भी अनिवार्य कर दी गई।
  2. जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं।
  3. व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
  4. देश के सभी कारखाने श्रमिकों की देख-रेख में चलने लगे।
  5. शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की सभाओं (सोवियत) के हाथों में आ गई।

प्रश्न 8.
प्रथम विश्वयुद्ध से जनता जार (रूस) को क्यों हटाना चाहती थी ? कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध रूसियों के लिए कई मुसीबतें लेकर आया। इसलिए जनता ज़ार को प्रथम विश्वयुद्ध से हटाना चाहती थी। इस बात की पुष्टि के लिए निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में ‘पूर्वी मोर्चे’ (रूसी मोर्चे) पर चल रही लड़ाई ‘पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक जो फ्रांस की सीमा पर बनी खाइयों से ही लड़ाई लड़ रहे थे वहीं पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफ़ी दूरी तय कर ली थी। इस मोर्चे पर बहुत से सैनिक मौत के मुँह में जा चुके थे। सेना की पराजय ने रूसियों का मनोबल तोड़ दिया था।
  2. 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। 1917 तक लगभग 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
  3. पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु की सेना वहां टिक ही न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश के कारण रूस में 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इस स्थिति ने सरकार और जार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
  4. युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो पहले ही बहुत कम थे, अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई। क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी सामान आता था उस पर जर्मनी का नियंत्रण हो चुका था।
  5. यूरोप के बाकी देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण भी अधिक तेज़ी से बेकार होने लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं।
  6. हृष्ट-पुष्ट पुरुषों को युद्ध में झोंक दिया गया था। अतः देश भर में मजदूरों की कमी पड़ने लगी, और ज़रूरी सामान बनाने वाली छोटी-छोटी वर्कशॉप्स बंद होने लगीं। अधिकतर अनाज सैनिकों का पेट भरने के लिए मोर्चे पर भेजा जाने लगा। अतः शहरों में रहने वालों के लिए रोटी और आटे का अभाव पैदा हो गया। 1916 की सर्दियों में रोटी की दुकानों पर बार-बार दंगे होने लगे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 9.
1870 से 1914 तक यूरोप में समाजवादी विचारों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक के आरंभ तक समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे।

  1. अपने प्रयासों में तालमेल लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनैशनल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
  2. इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपने जीवन तथा कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरु कर दिया था। इन संगठनों ने संकट के समय अपने सदस्यों को सहायता पहुंचाने के लिए कोष स्थापित किए और काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ इन संगठनों के काफ़ी गहरे संबंध थे। वे संसदीय चुनावों में पार्टी की सहायता भी करते थे।
  3. 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों तथा ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।
  4. फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया। परंतु 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाए। यद्यपि संसदीय चुनावों में उनके प्रतिनिधि बड़ी संख्या में जीतते रहे और उन्होंने कानून बनवाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, तो भी सरकारों में रूढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकलों का ही दबदबा बना रहा।

रूसी क्रांति PSEB 9th Class History Notes

  • रूस की क्रांति – 1917 में रूस में विश्व की सबसे पहली समाजवादी क्रांति हुई। यह क्रांति शांतिपूर्ण थी।
  • क्रांति के कारण – क्रांति से पूर्व रूस का सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण क्रांति के अनुकूल था। किसानों तथा मजदूरों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। रूस का ज़ार निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी था। साधारण जनता को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। इसलिए लोग ज़ार के विरुद्ध थे। ज़ार ने रूस को प्रथम विश्व-युद्ध में झोंक कर एक अन्य बड़ी गलती की। इस युद्ध में सैनिकों की दुर्दशा के कारण सैनिक भी ज़ार के विरुद्ध हो गए।
  • लेनिन – लेनिन को मार्क्स तथा एंगेल्स के बाद समाजवादी आंदोलन का महानतम् विचारक माना जाता है। उसने देश में बोल्शेविक दल को संगठित करने तथा क्रांति को सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई।
  • 1905 की क्रांति – 1905 में ज़ार को याचिका देने के लिए जाते हुए मजदूरों के समूह पर गोली चला दी गई। इस घटना ने क्रांति का रुप धारण कर लिया। इस क्रांति के दौरान संगठन का एक नया रूप विकसित हुआ। यह था सोवियत या मज़दूरों के प्रतिनिधियों की परिषद् । इस क्रांति ने 1917 की क्रांति की भूमिका तैयार की।
  • क्रांति का प्रारंभ – रूसी क्रांति का विस्फोट स्त्रियों के प्रदर्शन के कारण हुआ। उसके बाद मज़दूरों की एक आम हड़ताल हुई। 15 मार्च, 1917 को ज़ार द्वारा राज सिंहासन त्यागने के बाद रूस में प्रथम अस्थायी सरकार की स्थापना हुई। रूसी पंचांग के अनुसार इसे फरवरी क्रांति कहते हैं और इसका आरंभ 27 फरवरी से मानते हैं।
  • क्रांति की सफलता – पहली अंतरिम सरकार के पतन (7 नवंबर, 1917) के बाद लेनिन सरकार सत्ता में आई। इसे अक्तूबर क्रांति (रूसी पंचांग के अनुसार 25 अक्तूबर) के नाम से जाना जाता हैं।
  • सोवियत – 1905 की रूसी क्रांति के दौरान संगठन का एक नया रूप उभरा। इसे ‘सोवियत’ कहते हैं। सोवियत का अर्थ है मज़दूरों के प्रतिनिधियों की परिषद्। प्रारंभ में ये परिषदें हड़ताल चलाने वाली कमेटियां थीं, परंतु बाद में ये राजनीतिक सत्ता के साधन बन गईं। कुछ समय बाद किसानों की सोवियतों का निर्माण भी हुआ। रूसी सोवियतों ने 1917 की क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • फरवरी क्रांति – रूस में औरतों के प्रदर्शन के बाद मजदूरों की हड़ताल हुई। मज़दूरों ने 12 मार्च को राजधानी पीटर्सबर्ग पर अधिकार कर लिया। शीघ्र ही उन्होंने मास्को पर भी अधिकार कर लिया। ज़ार सिंहासन छोड़कर भाग गया और 15 मार्च को अंतरिम सरकार की स्थापना हुई। रूस की यह क्रांति पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 27 फरवरी, 1917 को हुई थी। इसलिये इसे फरवरी क्रांति के नाम से पुकारा जाता है।
  • अक्तूबर क्रांति – अक्तूबर क्रांति वास्तव में 7 नवंबर, 1917 को हुई थी। उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्तूबर का दिन था। इसलिए इस क्रांति को ‘अक्तूबर क्रांति’ का नाम दिया जाता है। इस क्रांति के परिणामस्वरूप केरेंस्की सरकार का अपनी अलोकप्रियता के कारण पतन हो गया। उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों के एक दल ने अधिकार कर लिया। उसी दिन सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली।
  • खूनी रविवार – 1905 ई० में रूसी क्रांतिकारी आंदोलन बल पकड़ रहा था। इसी दौरान पादरी गैथॉन के नेतृत्व में मजदूरों का एक जलूस जार के महल (विंटर पैलेस) के सामने पहुंचा तो उन पर गोलियां चलाई गईं। इस गोलीकांड में 100 से अधिक मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को ‘खूनी रविवार’ कहा जाता है। 1905 की क्रांति की शुरुआत इसी घटना से हुई थी।
  • कम्युनिस्ट इंटरनेशनल – कम्युनिस्ट इंटरनेशनल अथवा कामिंटर्न का संगठन 1919 में प्रथम और द्वितीय इंटरनेशनल की भांति किया गया था। इसीलिए इसे तृतीय इंटरनेशनल भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रांतियों को बढ़ावा देना था। प्रथम महायुद्ध के समय समाजवादी आंदोलन में फूट पड़ गई थी। इससे अलग होने वाला वामपंथी दल कम्युनिस्ट गुट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कामिंटर्न का संबंध इसी गुट से था। यह एक ऐसा मंच था जो विश्व भर की कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए नीतियां निर्धारित करता था।
  • समाजवाद – समाजवाद वह राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर राज्य का अधिकार होता है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक साधनों का समान वितरण है। इस व्यवस्था में समाज के किसी वर्ग का शोषण नहीं किया जाता। यह पूंजीवाद के बिलकुल विपरीत है।
  • 1850-1889 – रूस में समाजवाद पर वाद-विवाद
  • 1898 – रूसी समाजवादी प्रजातांत्रिक वर्क्स पार्टी का गठन
  • 1905 – खूनी रविवार तथा रूस में क्रांति
  • 1917
  • 2 मार्च – ज़ार का सत्ता से हटना
  • 24 अक्तूबर – पैत्रोग्राद में बोलश्विक क्रांति
  • 1918-20 – रूस में गृह-युद्ध
  • 1919 – कोमिंटर्न की स्थापना
  • 1929 – सामूहीकरण का आरंभ

कबड्डी (Kabaddi) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions कबड्डी (Kabaddi) Game Rules.

कबड्डी (Kabaddi) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. पुरुषों के लिए कबड्डी के मैदान की लम्बाई = 13 मीटर
  2. पुरुषों के लिए मैदान की चौड़ाई = 10 मीटर
  3. महिलाओं के लिए मैदान की लम्बाई = 12 मीटर
  4. महिलाओं के लिए मैदान की चौड़ाई = 8 मीटर
  5. जूनियर लड़के और लड़कियों के लिए मैदान = 11 × 8 मीटर “
  6. टीम के कुल खिलाड़ी = 12
  7. मैच का समय पुरुषों के लिए = 20-5-20 मिनट
  8. महिलाओं के लिए मैच का समय = 15-5-15 मिनट
  9. मैच के अधिकारी = एक रैफ़री, दो अम्पाइर,
    एक स्कोरर, एक टाइम
    कीपर, दो लाइन मैन
  10. लौन के अंक = 2
  11. लाइनों की चौड़ाई = 5 सैंटी मीटर
  12. ब्लॉक का आकार पुरुषों के लिए = 1 × 8 मीटर
  13. महिलाओं के लिए ब्लॉक का आकार = 1 × 6 मीटर
  14. कबड्डी खेल में लॉबी की चौड़ाई = 1 मी०
  15. मध्य रेखा से ब्लाक रेखा की दूरी = 2.75 मी०
  16. रेखाओं की चौड़ाई = 5 सैं०मी०
  17. मैच में खिलाड़ियों की संख्या = 7
  18. मध्यांतर = 5 मिनट

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

कबड्डी खेल की संक्षेप रूप-रेखा
(Brief outline of the Kabaddi Game)

  1. प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होंगे परन्तु एक समय सात खिलाड़ी ही मैदान में उतरेंगे तथा 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. टॉस जीतने वाली टीम अपनी पसन्द का क्षेत्र चुनती है तथा आक्रमण करने का अवसर प्राप्त करती है।
  3. खेल का समय 20-5-20 मिनटों का होता है तथा स्त्रियों और जूनियरों के लिए 15-5-15 का होता है जिसमें 5 मिनट का समय आराम का होता है।
  4. यदि कोई खिलाड़ी खेल के दौरान मैदान में से बाहर चला जाता है तो वह आऊट माना जाएगा।
  5. यदि किसी खिलाड़ी का कोई अंग सीमा के बाहरी भाग को छू जाए तो वह आऊट माना जाएगा।
  6. यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं खेला जाता तो मैच दोबारा खेला जाएगा।
  7. खिलाड़ी अपने शरीर पर तेल या कोई और चिकनाहट वाली चीज़ नहीं मल सकता।
  8. खेल के समय कोई खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को कैंची (Scissors grip) नहीं मार सकता।
  9. खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में दूसरा खिलाड़ी उसके स्थान पर आ सकता
  10. ग्राऊंड से बाहर खड़े होकर खिलाड़ी को पानी दिया जा सकता है, ग्राऊंड के अन्दर आकर देना फाऊल है।
  11. कैप्टन रैफरी के परामर्श से टाइम आऊट ले सकता है, परन्तु टाउम-आऊट का समय दो मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए।
  12.  एक टीम तीन खिलाड़ी बदल सकती है।
  13. यदि कोई टीम दूसरी टीम से लोना ले जाती है तो उस टीम को दो नम्बर और दिए जाते हैं।
  14. बदले हुए खिलाड़ियों को दोबारा नहीं बदला जा सकता।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
कबड्डी के खेल के मैदान, खेल अधिकारी तथा खेल के प्रमुख नियमों का वर्णन करें।
उत्तर-
खेल का मैदान (Play Ground) खेल का मैदान समतल तथा नर्म होगा। यह मिट्टी, खाद तथा बुरादे का होना चाहिए। पुरुषों के लिए मैदान का आकार 121/2 मीटर × 10 मीटर होगा। केन्द्रीय रेखा इसे दो समान भागों में बांटेगी। प्रत्येक भाग 10 मीटर × 161/4 मीटर होगा। स्त्रियों तथा जूनियर्ज़ के लिए मैदान का नाप 11 मीटर × 8 मीटर होगा। मैदान के दोनों ओर एक मीटर चौड़ी पट्टी होगी जिसे लॉबी (Lobby) कहते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्रीय रेखा से तीन मीटर दूर उसके समानान्तर मैदान की पूरी चौड़ाई के बराबर रेखायें खींची जाएंगी। इन रेखाओं को बॉक रेखाएं (Baulk Lines) कहते हैं। केन्द्रीय रेखा स्पष्ट रूप से अंकित की जानी चाहिएं। केन्द्रीय रेखा तथा अन्य रेखाओं की अधिकतम चौड़ाई 5 सैंटीमीटर या 2 इंच होनी चाहिए।
बोनस रेखा—(Bonus Lines)

  1. यह रेखा से 10 सें० मी० के अन्तर पर होती है और सीनियर के लिए बॉक रेखा से एक मीटर के अन्तर पर होती है।
  2. जब रेडर रेखा को पार के पश्चात् यदि कोई रेडर पकड़ा जाता है तो उसे अंक दिया जाता है।
  3. बोनस रेखा को पार करने के पश्चात् यदि कोई रेडर पकड़ा जाता है तो विरोधी टीम को उसका अंक दिया जाता है।
  4. यदि कोई रेडर बोनस रेखा पार करने के पश्चात् खिलाड़ी को हाथ भी लगाकर आता है तो उसे बोनस के अतिरिक्त एक अंक अधिक मिलता है।

खेल के नियम
(Rules of Game)
(1) टॉस जीतने वाली टीम या तो अपनी पसन्द का क्षेत्र ले सकती या पहले आक्रमण करने का अवसर प्राप्त कर सकती है। मध्यान्तर के पश्चात् क्षेत्र या कोर्ट बदल लिए जाते हैं।
(2) खेल के दौरान में मैदान से बाहर जाने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा।
(3) खिलाड़ी आऊट हो जाता है।

  • यदि किसी खिलाड़ी के शरीर का कोई भी भाग मैदान की सीमा के बाहर के भाग को स्पर्श कर ले।
  • संघर्ष करते समय खिलाड़ी आऊट नहीं होगा यदि उसके शरीर का कोई अंग या तो सीधे मैदान को छुए या उस खिलाड़ी को छुए जो सीमा के अन्दर है (शरीर का कोई न कोई भाग सीमा के बीच होना चाहिए।)

(4) संघर्ष आरम्भ होने पर लॉबी का क्षेत्र भी मैदान में सम्मिलित माना जाता है। संघर्ष की समाप्ति पर वे खिलाड़ी जो संघर्ष में सम्मिलित थे, लॉबी से होते हुए अपने-अपने क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं।
यदि बचाव करने वाली टीम के किसी खिलाड़ी का पैर पीछे वाली लाइन को छू जाता है तो वह आऊट नहीं है जब तक पैर लाइन से बाहर न निकले।
(5) आक्रामक खिलाड़ी ‘कबड्डी’ शब्द का लगातार उच्चारण करता रहेगा। यदि वह ऐसा नहीं करता तो अम्पायर उसे अपने क्षेत्र में वापिस जाने का और विपक्षी खिलाड़ी को आक्रमण करने का आदेश दे सकता है। इस स्थिति में उस खिलाड़ी का पीछा नहीं किया जाएगा।
KABADDI GROUND
कबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
(6) आक्रामक खिलाड़ी को ‘कबड्डी’ शब्द बोलते हुए विपक्षी कोर्ट में प्रविष्ट होना चाहिए। यदि वह विपक्षी के कोर्ट में प्रविष्ट होने के पश्चात् ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण करता है तो अम्पायर उसे वापिस भेज देगा और विपक्षी खिलाड़ी को आक्रमण का अवसर दिया जाएगा। इस स्थिति में आक्रामक खिलाड़ी का पीछा नहीं किया जाएगा।
(7) यदि सचेत किए जाने पर कोई भी आक्रामक नियम नं0 6 का उल्लंघन करता है तो निर्णायक उसकी बारी समाप्त कर देगा और विपक्षी को एक अंक देगा, परन्तु उसे आऊट नहीं किया जाएगा।
(8) खेल के अन्त तक प्रत्येक पक्ष अपने आक्रामक बारी-बारी से भेजता रहेगा।
(9) यदि विपक्षियों द्वारा पकड़ा हुआ कोई आक्रामक उनसे बच कर अपने कोर्ट में सुरक्षित पहुंच जाता है तो उसका पीछा नहीं किया जाएगा।
(10) एक बारी में केवल एक ही आक्रामक विपक्षी कोर्ट में जाएगा। यदि एक साथ एक से अधिक आक्रामक विपक्षी कोर्ट में जाते हैं तो निर्णायक या अम्पायर उन्हें वापस जाने का आदेश देगा और उनकी बारी समाप्त कर दी जाएगी। इन आक्रामकों द्वारा छुए गए विपक्षी आऊट नहीं माने जाएंगे। विपक्षी इन आक्रामकों का पीछा नहीं करेंगे।
(11) जो भी पक्ष एक समय में एक से अधिक खिलाड़ी विपक्षी कोर्ट में भेजता है उसे चेतावनी दी जाएगी। यदि चेतावनी देने के पश्चात् भी वह ऐसा करता है तो पहले आक्रामक के अतिरिक्त शेष सभी को आऊट किया जाएगा।
(12) यदि कोई आक्रामक विपक्षी कोर्ट में सांस तोड़ देता है तो उसे आऊट माना जाएगा।
(13) किसी आक्रामक के पकड़े जाने पर विपक्षी खिलाड़ी जान-बूझ कर उसका मुंह बंद करके सांस रोकने या चोट लगने वाले ढंग से पकड़ने, कैंची या अनुचित साधनों का
प्रयोग नहीं करेंगे। ऐसा किए जाने पर अम्पायर उस आक्रामक को अपने क्षेत्र में सुरक्षित लौटा हुआ घोषित करेगा।
(14) कोई भी आक्रामक या विपक्षी एक दूसरे को सीमा से बाहर धक्का नहीं मारेगा। जो पहले धक्का देगा उसे आऊट घोषित किया जाएगा। यदि धक्का मार कर आक्रामक को सीमा से बाहर निकाला जाता है तो उसे अपने कोर्ट से सुरक्षित लौटा हुआ घोषित किया जाएगा।
(15) जब तक आक्रामक विपक्षी कोर्ट में रहेगा तब तक कोई भी विपक्षी खिलाड़ी केन्द्रीय रेखा से पार आक्रामक के अंग को अपने शरीर के किसी भाग से नहीं छुएगा। यदि वह ऐसा करता है उसे आऊट घोषित किया जाएगा।
(16) यदि नियम 15 का उल्लंघन करते हुए कोई आऊट हुआ विपक्षी आक्रामक को पकड़ता है या उसे पकड़े जाने में सहायता पहुंचाते हुए या आक्रामक को पकड़े हुए नियम का उल्लंघन करता है तो आक्रामक अपने कोर्ट में सुरक्षित लौटा घोषित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त संघर्ष दल के सभी विपक्षी सदस्य आऊट हो जाएंगे। जब कोई आक्रामक विरोधी टीम की ओर नम्बर ले कर आता है तो उसका नम्बर तब माना जाएगा यदि उसके शरीर के किसी भी अंग ने मध्य रेखा को पूरा पार किया हो।
(17) यदि कोई आक्रामक बिना अपनी बारी के जाता है तो अम्पायर उसे वापिस लौटने का आदेश देगा। यदि यह बार-बार ऐसा करता है तो उसके पक्ष को एक बार चेतावनी देने के पश्चात् विपक्षियों को एक अंक दे दिया जाएगा।
(18) नये नियमों के अनुसार बाहर से पकड़ कर पानी पीना फाऊल नहीं है।
(19) जब एक दल विपक्षी दल के सभी खिलाड़ियों को निष्कासित करने में सफल हो जाए तो उन्हें ‘लोना’ मिलता है। लोने के दो अंक अतिरिक्त होते हैं। इसके पश्चात् खेल पुनः शुरू होगा।
(20) आक्रामक को यदि अपने पक्ष के खिलाड़ी द्वारा विपक्षी के प्रति चेतावनी दी जाती है तो उसके विरुद्ध 1 अंक दिया जाएगा।
(21) किसी भी आक्रामक या विपक्षी को कमर या हाथ-पांव के अतिरिक्त शरीर के किसी भाग से नहीं पकड़ सकता। उस नियम का उल्लंघन करने वाला आऊट घोषित किया जाएगा।
(22) खेल के दौरान यदि एक या दो खिलाड़ी रह जाएं तथा विरोधी दल का कप्तान अपनी टीम को खेल में लाने के लिए उन्हें आऊट घोषित कर दे तो विपक्षियों को इस घोषणा से पहले शेष खिलाड़ियों की संख्या के बराबर अंकों के अतिरिक्त ‘लोना’ के दो अंक और प्राप्त होंगे।
(23) विपक्षी के आऊट होने पर आऊट खिलाड़ी उसी क्रम में जीवित किया जाएगा जिसमें वह आऊट हुआ था।
(24) यदि किसी चोट के कारण मैच 20 मिनट रुका रहे तो हम मैच re-play करवा सकते हैं।
(25) 5 खिलाड़ियों के साथ भी मैच आरम्भ किया जा सकता है परन्तु जब 5 खिलाड़ी आऊट हो जाएं तो हम पूरा लोना अर्थात् 5 + 2 अंक (खिलाड़ियों 1, 5 अंक और 2 अंक लोने के) देते हैं। जब दो खिलाड़ी आ जाएं तो वे टीम में डाले जा सकते हैं।
(26) लोना के दो अंक होते हैं।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
कबड्डी मैच के नियम बताएं।
उत्तर-
मैच के नियम
(Rules of Match)

  1. प्रत्येक पक्ष में खिलाड़ियों की संख्या बारह (12) होगी। एक साथ मैदान में सात खिलाड़ी उतरेंगे।
  2. खेल की अवधि पुरुषों के लिए 20 मिनट तथा स्त्रियों व जूनियरों के लिए 15 मिनट की दो अवधियां होंगी। इन दोनों अवधियों के बीच 5 मिनट का मध्यान्तर होगा।
  3. प्रत्येक आऊट होने वाले विपक्षी के लिए दूसरे पक्ष को एक अंक मिलेगा। लोना’ प्राप्त करने वाले पक्ष को दो अंक मिलेंगे।
  4. खेल की समाप्ति पर सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाले पक्ष को विजयी घोषित किया जाता है।
  5. कबड्डी का खेल बराबर रहने पर प्रत्येक टीम को पांच-पांच रेड क्रमानुसार दिये जाते हैं। सभी सात खिलाड़ी रेड के समय मैदान में रहेंगे। उस समय बॉक रेखा सभी तरह के फैसलों के लिए बोनस रेखा मानी जाएगी। इस खेल में खिलाड़ी को बॉक रेखा पार कर लेने पर एक अंक मिलेगा। रेडर बोनस रेखा जो बॉक रेखा में परिवर्तित हुई है, उसे पार कर लेता है और किसी विरोधी खिलाड़ी को हाथ भी लगा देता है तो उसे बोनस रेखा पार करने का एक अंक अधिक मिलेगा। इस अवसर पर कोई भी खिलाड़ी आऊट होने पर मैदान से बाहर नहीं जा सकता।
    रेड डालने से पहले दोनों टीमें अपने खिलाड़ियों के नम्बर और नाम क्रमानुसार रेड डालने के लिए रैफरी को देंगे और रैफरी के बुलाने पर दोनों टीमों के खिलाड़ी बारी-बारी रेड डालेंगे। उस समय टास नहीं होगा। पहले टास जीतने वाली टीम ही पहले रेड डालेगी। यद्यपि पांच-पांच रेड लाने पर भी मैच बराबर रहता है तो मैच का फैसला ‘अचानक मृत्यु (Sudden Death) के आधार पर होगा।

अचानक मृत्यु (Sudden Death)-इस अवसर पर दोनों टीमों का एक-एक रेड डालने का अवसर मिलेगा। जो भी टीम रेड डालते समय अंक बना लेती है उसे विजयी घोषित किया जाता है। इस तरह रेड डालने का सिलसिला उस समय तक चलता रहेगा, जब तक कोई एक टीम विजयी अंक प्राप्त नहीं कर लेती।

लोना (Lona)-जब एक टीम के सारे खिलाड़ी आऊट हो जाएं तो विरोधी टीम को 2 अंक अधिक मिलते हैं। उसे हम लोना कहते हैं।
टूर्नामैंट निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं—

  1. नाक आऊट (Knock Out)-इस में जो टीम हार जाती है, वह प्रतियोगिता से बाहर हो जाती है।
  2. लीग (League)-इस में यदि कोई टीम हार जाती है, वह टीम बाहर नहीं होगी। उसे अपने ग्रुप के सारे मैच खेलने पड़ते हैं। जो टीम मैच जीतती है उसे दो अंक दिये जाते हैं। मैच बराबर होने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक दिया जाएगा। हारने वाली टीम को शून्य (Zero) अंक मिलेगा।
    यदि दोनों टीमों का मैच बराबर रहता है और अतिरिक्त समय भी दिया जाता है या जिस टीम ने खेल आरम्भ होने से पहले अंक लिया होगा वह विजेता घोषित की जाएगी।
    यदि दोनों टीमों का स्कोर शून्य (Zero) है तो जिस टीम ने टॉस जीता हो वह विजेता घोषित की जाएगी।
  3. किसी कारणवश मैच न होने की दशा में मैच पुनः खेला जाएगा। दोबारा किसी और दिन खेले जाने वाले मैच में दूसरे खिलाडी बदले भी जा सकते हैं, परन्तु यदि मैच उसी दिन खेला जाए तो उसमें वही खिलाड़ी खेलेंगे जो पहले खेले थे।
  4. यदि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो उस पक्ष का कप्तान ‘समय आराम’ (Time Out) पुकारेगा, परन्तु ‘समय आराम’ की अवधि दो मिनट से अधिक नहीं होगी तथा चोट लगने वाला खिलाड़ी बदला जा सकता है। खेल की दूसरी पारी शुरू होने से पहले दो खिलाड़ी बदले जा सकते हैं। एक या दो से कम खिलाड़ियों से खेल शुरू हो सकता है। जो खिलाड़ी खेल शुरू होने के समय उपस्थित नहीं होते, खेल के दौरान किसी भी समय मिल सकते हैं। रैफरी को सूचित करना ज़रूरी है। यदि चोट गम्भीर हो तो उसकी जगह दूसरा खिलाड़ी खेल सकता है। प्रथम खेल के अन्त तक केवल दो खिलाड़ी बदले जा सकते हैं।
  5. किसी भी टीम में पांच खिलाड़ियों से कम होने की दशा में खेल शुरू किया जा सकता है, परन्तु
    • टीम के सभी खिलाड़ी आऊट होने पर अनुपस्थित खिलाड़ी भी आऊट हो जाएंगे और विपक्षी टीम को ‘लोना’ दिया जाएगा।
    • यदि अनुपस्थित खिलाड़ी आ जाएं तो वे रैफरी की आज्ञा से खेल में भाग ले सकते हैं।
    • अनुपस्थित खिलाड़ियों के स्थानापन्न कभी भी लिए जा सकते हैं परन्तु जब वे इस प्रकार लिए जाते हैं तो मैच के अन्त तक किसी भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है।
    • मैच पुनः खेले जाने पर किसी भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है।
  6. प्रलेपन की अनुमति नहीं। खिलाड़ियों के नाखून खूब अच्छी तरह कटे होने चाहिएं। खिलाड़ियों की पीठ तथा सामने की ओर कम-से-कम चार इंच लम्बा नम्बर लगाया जाएगा। खिलाड़ी के कम-से-कम वस्त्र बनियान, जांघिया या लंगोट सहित निक्कर होंगे। शरीर पर तेल आदि चिकने पदार्थ का मलना मना है। खिलाड़ी धातु की कोई वस्तु धारण नहीं करेंगे।
  7. खेल के दौरान कप्तान या नेता के अतिरिक्त कोई भी खिलाड़ी आदेश नहीं देगा। कप्तान अपने अर्द्धक में ही आदेश दे सकता है।
  8. यदि खिलाड़ी ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार से नहीं करता तथा रैफरी (Referee) द्वारा एक बार चेतावनी दिए जाने पर वह बार-बार ऐसा करता है तो दूसरी टीम को एक प्वाईंट दे दिया जाएगा, परन्तु वह खिलाड़ी बैठेगा नहीं।
  9. यदि कोई खिलाड़ी आक्रमण (Raid) करने जा रहा है और उसकी टीम का कोच या अन्य अधिकारी ऐसा करता है तो रैफरी दूसरी टीम को उसके विरुद्ध एक प्वाईंट (अंक) दे देगा।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
कबड्डी खेल में अधिकारी व खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
अधिकारी व उनके अधिकार

    • रैफरी (एक)
    • निर्णायक या अम्पायर (दो)
    • रेखा निरीक्षक (दो)
    • स्कोरर (एक)
  1. आमतौर पर निर्णायक का निर्णय अन्तिम होगा। विशेष दशाओं में रैफ़री इसे बदल भी सकता है भले ही दोनों अम्पायरों में मतभेद हो।
  2. निर्णेता (रैफरी) किसी भी खिलाड़ी को त्रुटि करने पर चेतावनी दे सकता है, उसके विरुद्ध अंक दे सकता है या मैच के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है। ये त्रुटियां इस प्रकार की हो सकती हैं—
    • निर्णय के बारे में अधिकारियों को बार-बार कहना,
    • अधिकारियों को अपमानजनक शब्द कहना,
    • अधिकारियों के प्रति अभद्र व्यवहार करना या उनके निर्णय को प्रभावित करने के लिए प्रक्रिया,
    • विपक्षी को अपमानजनक बातें कहना।

त्रुटियां
(Fouls)

  1. आक्रामक का मुंह बन्द करके या गला दबा कर उसकी सांस तोड़ने की कोशिश करना।
  2. हिंसात्मक ढंग का प्रयोग।
  3. कैंची मार कर आक्रामक को पकड़ना।
  4. आक्रामक भेजने में पांच सैकिण्ड से अधिक समय लगाना।
  5. मैदान के बारे खिलाड़ी या कोच द्वारा कोचिंग देना। इस नियम के उल्लंघन पर अम्पायर अंक दे सकता है।
  6. ऐसे व्यक्तियों को निर्णायक या रैफ़री नम्बर दे कर बाहर निकाल सकता है। आक्रमण जारी रहने पर सीटी बजाई जाएगी।
  7. जानबूझ कर बालों से या कपड़े से पकड़ना फाऊल है।
  8. जानबूझ कर आक्रामक को धक्का देना फाऊल है।

फाऊल (Foul)
अधिकारी फ़ाऊल (Foul) खेलने पर खिलाड़ियों को तीन प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो निम्नलिखित हैं
हरा कार्ड (Green Card)
यह कार्ड खिलाड़ी को किसी भी नियम का जानबूझ कर उल्लंघन करने पर चेतावनी के आधार पर दिखाया जा सकता है।
पीला कार्ड (Yellow Card)
यह कार्ड खिलाड़ी को दो मिनट के लिए मैदान से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card) यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Practical कबड्डी (Kabaddi)

प्रश्न 1.
कबड्डी के मैदान की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
कबड्डी के मैदान की लम्बाई 12.50 मीटर और चौड़ाई 10 मीटर होती है। जूनियर लड़के और लड़कियों के लिए 11 मीटर लम्बाई और 8 मीटर चौड़ाई होती है।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 2.
खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या बताओ।
उत्तर-
कबड्डी के कुल खिलाड़ियों की संख्या 12 होती है। 7 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं।

प्रश्न 3.
कबड्डी का समय कितना होता है?
उत्तर-
कबड्डी का समय 20-5-20 मिनट का होता है। जूनियर लड़के और लड़कियों के लिए 15-5-15 मिनट का समय होता है।

प्रश्न 4.
कबड्डी का खेल शुरू कैसे होता है ?
उत्तर-
कबड्डी का खेल टॉस से शुरू होता है। जो टीम टॉस जीत जाती है, वह अपनी पसन्द का क्षेत्र चुनती है।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
कबड्डी में लोना (Lona) के कितने अंक होते हैं ?
उत्तर-
कबड्डी के खेल में जब सभी खिलाड़ी मर जाते हैं तो विरोधी टीम को दो और अंक दिए जाते हैं, जिसे लोना कहा जाता है।

प्रश्न 6.
खिलाड़ी कब आऊट माना जाता है?
उत्तर-
जब हमला करने वाली टीम का खिलाड़ी विरोधी टीम के किसी खिलाड़ी को हाथ लगा दे या खिलाड़ी मैदान में से अपने-आप बाहर चला जाए तो आऊट माना जाता है।

प्रश्न 7.
कबड्डी में टाइम आऊट कितने लिए जा सकते हैं ?
उत्तर-
कबड्डी में दो टाइम आऊट लिए जाते हैं, जिसका समय 30 सैकिंड होता है।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 8.
कबड्डी में हार-जीत किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
जो टीम अधिक अंक ले जाती है, उसको विजयी माना जाता है। बराबर की हालत में 5-5 मिनट दिए जाते हैं जब तक कि फैसला नहीं हो जाता।

प्रश्न 9.
कबड्डी का खेल खिलाने वाले अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-

  1. रैफ़री – 1
  2. अम्पायर = 2
  3. लाइनमैन = 2
  4. स्कोरर – 1

प्रश्न 10.
कबड्डी खेल के मुख्य फाऊल बताओ।
उत्तर-
कबड्डी खेल के निम्नलिखित मुख्य फाऊल हैं—

  1. दम डालने वाले खिलाड़ी को कैंची मारना।
  2. बाहर से कोचिंग देना।
  3. बालों से पकड़ना।
  4. विरोधी खिलाड़ी का गला दबाना।
  5. दूसरे खिलाड़ी पर घातक आक्रमण करना।

हकबड्डी (Kabaddi) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 11.
कबड्डी खेलने के पांच मुख्य नियम लिखो।
उत्तर-
कबड्डी खेल के नियम निम्नलिखित हैं—

  1. खेल के समय यदि कोई खिलाड़ी बाहर चला जाए तो आऊट माना जाता है।
  2. यदि कोई खिलाड़ी दम डालने वाले खिलाड़ी को पकड़ते हुए बाहर चला जाए और दम डालने वाला सुरक्षित अपने क्षेत्र में चला जाए तो पकड़ने वाला आऊट माना जाएगा।
  3. कबड्डी ऊंची आवाज़ में न सुनी जा सके।
  4. किसी खिलाड़ी को जानबूझ कर धक्का मार कर बाहर नहीं निकाला जा सकता है।
  5. विरोधी कोर्ट में यदि कोई खिलाड़ी दम तोड़ देता है तो वह आऊट हो जाता है।

प्रश्न 12.
क्या कबड्डी के खेल में कोई खिलाड़ी तेल मलकर खेल सकता है ?
उत्तर-
कबड्डी के खेल में कोई भी खिलाड़ी तेल या चिकनाई वाली कोई भी चीज़ मलकर नहीं खेल सकता है।

प्रश्न 13
कबड्डी के खेल में नया परिवर्तन कौन-सा हुआ है ?
उत्तर-
कबड्डी के खेल में एक मीटर बोनस लाइन लगाई गई है।

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प्रश्न 14.
एक रेडर को बोनस का क्या लाभ है ?
उत्तर-
एक रेडर को बोनस लाइन क्रास करने पर एक नम्बर मिल जाता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत

SST Guide for Class 8 PSEB स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखें:

प्रश्न 1.
संविधान सभा की स्थापना कब हुई तथा इसके कितने सदस्य थे ?
उत्तर-
संविधान सभा की स्थापना 1946 ई० में हुई। इसके 389 सदस्य थे।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान कब पास तथा लागू हुआ ?
उत्तर-
भारतीय संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई० को पारित हुआ, तथा 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।

प्रश्न 3.
देशी रियासतों का एकीकरण करने का श्रेय किसके सिर है ?
उत्तर-
देशी रियासतों का एकीकरण करने का श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल के सिर है।

प्रश्न 4.
हैदराबाद रियासत को भारत के साथ कैसे शामिल किया गया ?.
उत्तर-
हैदराबाद रियासत को पुलिस कार्रवाही द्वारा भारत के साथ शामिल किया गया। वहां 13 सितम्बर, 1948 को भारतीय पुलिस भेजी गई तथा 17 सितम्बर, 1948 को इस रियासत को भारत संघ में शामिल कर लिया गया।

प्रश्न 5.
जूनागढ़ रियासत को कैसे भारत के साथ शामिल किया गया ?
उत्तर-
जूनागढ़ रियासत का नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। परन्तु 20 फरवरी, 1948 ई० को वहां जनमत संग्रह हुआ जिसमें जनता ने भारत के साथ मिलने की इच्छा व्यक्त की। इसलिये जूनागढ़ रियासत को भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया।

प्रश्न 6.
राज्यों का पुनर्गठन करने के लिए नियुक्त किये गये कमीशन के कितने सदस्य थे ?
उत्तर-
इस कमीशन के 3 सदस्य थे।

प्रश्न 7.
पंचशील के कोई दो सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-
(1) शान्तिमय सह-अस्तित्व (2) एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत

प्रश्न 8.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की पहली कान्फ्रेंस कब तथा कहां हुई ?
उत्तर-
आन्दोलन की पहली कान्फ्रेंस 1961 ई० में बेलग्रेड में हुई।

प्रश्न 9.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर नोट लिखो।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के शीघ्र पश्चात् संसार दो विरोधी गुटों में बंट गया था। एक गुट का नेता अमेरिका था। इसे पश्चिमी ब्लॉक कहा जाता था। दूसरे गुट का नेता रूस था। इसे पूर्वी ब्लॉक कहा जाता था। इनके बीच भयंकर शीत युद्ध चलने लगा। नाटो तथा वारसा पैक्ट जैसी सैनिक संधियों तथा समझौतों ने वातावरण को और भी तनावपूर्ण बना दिया। भारत अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए किसी भी गुट में शामिल नहीं होना चाहता था। इसलिए भारत ने दूसरे देशों के साथ मिलकर नान-अलाइंड आन्दोलन शुरू किया। इस आन्दोलन के पितामह पण्डित जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर थे।
नान-अलाइंड आन्दोलन 1961 ई० में आरम्भ हुआ। यह पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित था। भारत की तरह इसके सभी सदस्य किसी भी शक्ति गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे। इसका पहला सम्मेलन 1961 ई० में बेलग्रेड में हुआ। आरम्भ में 25 देश इसके सदस्य थे। परन्तु आज 100 से अधिक देश इसके सदस्य हैं।

प्रश्न 10.
विदेश नीति (भारत की) के बारे में आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
किसी देश द्वारा संसार के अन्य देशों के साथ संबंधों के लिए अपनाई गई नीति को उस देश की विदेश नीति कहते हैं। भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर आधारित विदेश नीति अपनाई है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

  1. भारत विश्व के सभी देशों की प्रभुसत्ता तथा स्वतन्त्रता का सम्मान करता है।
  2. भारत इस बात में विश्वास रखता है कि सभी धर्मों, राष्ट्रों तथा जातियों के लोग बराबर हैं।
  3. भारत उन देशों का विरोधी है जिसकी सरकारें रंग, जाति या श्रेणी के आधार पर लोगों के साथ भेद-भाव करती हैं। उदाहरण के लिए भारत दक्षिण अफ्रीका की सरकार का अफ्रीका के मूल निवासियों तथा एशियाई लोगों के साथ भेद-भाव पूर्ण व्यवहार का विरोध करता रहा।
  4. भारत इस बात में भी विश्वास रखता है कि सभी अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का समाधान शान्तिपूर्ण तरीकों से किया जाना चाहिए।

प्रश्न 11.
साम्प्रदायिकता (भारत में) पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है। यहां संसार के लगभग सभी धर्मों के लोग रहते हैं, जिनके अलग-अलग धार्मिक विश्वास हैं। कुछ लोगों में धार्मिक संकीर्णता के कारण देश में समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे-फसाद होते रहते हैं। इनमें से 2002 ई० में गुजरात में घटित घटना सबसे अधिक भयंकर थी। बहुत से लोगों का विचार है कि सरकार को अल्पसंख्यकों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिये भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने १ दिसम्बर, 2006 ई० को अपने भाषण में कहा था, “हम देश के विकास के फल का एक बड़ा भाग कम संख्या वाले लोगों को देने के लिये योजनाओं में परिवर्तन करने का प्रयास करेंगे।”

प्रश्न 12.
भारत तथा पाकिस्तान के सम्बन्धों का संक्षेप वर्णन करें।
उत्तर-
भारत संसार के सभी देशों विशेषकर अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का इच्छुक है। पाकिस्तान भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है। उसके साथ भारत के सम्बन्धों का वर्णन इस प्रकार है

भारत तथा पाकिस्तान-पाकिस्तान के साथ भारत आरम्भ से ही मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न कर रहा है। देशी रियासत कश्मीर (जम्मू एवं कश्मीर) के भारत के साथ विलय को पाकिस्तान ने मान्यता नहीं दी थी। तभी से कश्मीर भारत तथा पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। कश्मीर समस्या के कारण भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन प्रमुख तथा अनेक छोटे-मोटे युद्ध लड़े हैं। इनमें 1999 ई० का कारगिल युद्ध भी शामिल है।

1971 ई० के भारत-पाकिस्तान युद्ध के पश्चात् भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुल्फीकार अली भुट्टो के बीच 1972 ई० में शिमला में समझौता हुआ। इस समझौते का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवादों का शान्तिपूर्वक समाधान करना था। इसी उद्देश्य से भारत के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा पाकिस्तान प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ के मध्य लाहौर में समझौता हुआ। कुछ साल पहले दोनों देशों के मध्य बस तथा रेल सेवाएं आरम्भ की गई हैं। इन सेवाओं द्वारा दोनों देशों के लोग एक-दूसरस् के निकट आये हैं। हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री भारत आए और भारत के प्रधानमन्त्री पाकिस्तान गए।

हमें विश्वास है कि आने वाले समय में दोनों देशों के मध्य की समस्याओं का शान्तिपूर्वक समाधान कर लिया जायेगा।

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प्रश्न 13.
देशी रियासतों के एकीकरण सम्बन्धी वर्णन करें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। इनमें से एक समस्या देशी रियासतों की थी। इनकी संख्या 562 थी और इन पर भारतीय राजाओं का शासन था। 1947 ई० के एक्ट के अनुसार इन रियासतों को यह अधिकार प्राप्त था कि वे अपनी स्वतन्त्र सत्ता सुरक्षित रख सकती हैं अथवा भारत या पाकिस्तान में से किसी भी देश में शामिल हो सकती हैं। इस कारण इन देशी रियासतों के राजा स्वतन्त्र रहना ही पसन्द करते थे। परन्तु स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बुद्धि-कौशल से काम लेते हुए सभी देशी रियासतों के राजाओं को भारतीय संघ में सम्मिलित होने के लिए सहमत कर लिया।

इनमें से छोटी-छोटी रियासतों को प्रान्तों में मिला दिया गया। कुछ अन्य रियासतें सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे के साथ मेल रखती थीं तथा उनकी सीमाएँ भी आपस में मिलती थीं। इन्हें इकट्ठा करके राज्य बना दिये गये। उदाहरण के लिए काठियावाड़ की रियासतों को सौराष्ट्र के साथ मिला दिया गया, जबकि पटियाला, नाभा, फरीदकोट, जीन्द तथा मलेर-कोटला रियासतों को इकट्ठा करके पेप्सू राज्य बना दिया गया। अब केवल तीन रियासतें ऐसी रह गईं जो भारत के साथ मिलने को तैयार नहीं थीं। ये थीं-हैदराबाद, जूनागढ़ तथा कश्मीर।

हैदराबाद-हैदराबाद रियासत के निज़ाम उस्मान अली खान ने भारतीय संघ में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया। अतः 13 सितम्बर, 1948 ई०,को हैदराबाद में भारतीय पुलिस भेजी गई। इस प्रकार 17 सितम्बर, 1948 ई० को हैदराबाद की रियासत को भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया गया।

जूनागढ़-जूनागढ़ रियासत का नवाब पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता था। परन्तु 20 फरवरी, 1948 ई० को वहां जनमत संग्रह हुआ, जिसमें जनता ने भारत में मिलने की इच्छा व्यक्त की। अत: जूनागढ़ रियासत को भारत संघ में मिला लिया गया। · कश्मीर-कश्मीर का राजा भी स्वतन्त्र रहना चाहता था। परन्तु पाकिस्तान कश्मीर पर अधिकार करना चाहता था। अत: कश्मीर के शासक ने भारत से सहायता मांगी तथा अपने राज्य को भारत में मिलाने का प्रस्ताव रखा। भारत सरकार ने कश्मीर के शासक की प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपनी सेनाएं कश्मीर भेज दीं। भारत तथा पकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, परन्तु पाकिस्तान ने कश्मीर के बहुत से क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया।

अन्य रियासतें-इन रियासतों के अतिरिक्त कुछ अन्य छोटे-छोटे राज्य भी थे जिन्हें साथ लगते राज्यों में मिला दिया गया। बड़ौदा को बम्बई (मुम्बई) प्रान्त में मिलाया गया। अनेक छोटे-छोटे राज्यों को इकट्ठा करके एकीकृत राज्य की स्थापना की गई। उदाहरण के लिए मार्च, 1948 ई० में भरतपुर, धौलपुर, अलर तथा करौली आदि रियासतों को इकट्ठा करके एक संघ बनाया गया। इसके पश्चात् राजस्थान संघ भी बनाया गया, जिसमें बूंदी, तलवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुर, बांसवाड़ा, कोटा, किशनगढ़ आदि रियासतें शामिल की गईं।

प्रश्न 14.
आज़ादी के बाद भारत के आर्थिक तथा औद्योगिक विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
देश के विभाजन ने भारत के लिए अनेक आर्थिक समस्याएं पैदा कर दीं। भारत का गेहूँ तथा चावल पैदा करने वाला बहुत बड़ा क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में आ गया। बहुत बड़ा सिंचाई-योग्य भू-क्षेत्र भी पाकिस्तान में चला गया। अतः भारत में अनाज की कमी हो गई। इसी प्रकार पटसन तथा कपास उगाने वाला बहुत बड़ा क्षेत्र भी पाकिस्तान को मिल गया। इससे भारत में पटसन तथा कपड़ा उद्योग के लिए कच्चे माल की कमी हो गई। अतः स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के उपाय आरम्भ किये। इस उद्देश्य से 1950 ई० में भारत सरकार ने योजना आयोग स्थापित किया। इस प्रकार भारत के आर्थिक विकास की प्रक्रिया आरम्भ हुई जो आज भी जारी है। इसकी झलक कृषि तथा उद्योग के क्षेत्रों में हुए विकास में देखी जा सकती है।

कृषि-(1) भारत एक कृषि-प्रधान देश है। हमारी कृषि योग्य भूमि के 75% भाग पर खाद्यान्न की फसलें उगाई जाती हैं। इनमें से चावल, गेहूँ, मक्का, सरसों, मूंगफली, गन्ना आदि महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसलें हैं। (2) भारत ने कृषि के विकास के लिए कई मुख्य नदियों पर बांध बनाए हैं। ये बांध शुष्क क्षेत्रों की कृषि-योग्य भूमि को पानी देते हैं तथा बाढ़ों को रोकते हैं। ये बांध बिजली पैदा करने में सहायक हैं। इन्हें नदी-घाटी परियोजना कहा जाता है। इन परियोजनाओं में नंगल परियोजना, दामोदर-घाटी परियोजना, हरिके परियोजना, तुंगभद्रा परियोजना तथा नागार्जुन सागर परियोजना प्रमुख हैं। (3) कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किये गये हैं। कृषकों को खेती करने के नये-नये ढंग सिखाए गए हैं। सरकार किसानों को उत्तम बीज तथा खादें देती है। निर्धन किसानों को कृषि के सुधार के लिए बैंकों द्वारा ऋण दिया जाता है। इस प्रकार सरकार किसानों की दशा सुधारने का प्रयास कर रही है।

उद्योग-भारत में अंग्रेज़ी शासन काल में ही उद्योगों का विकास आरम्भ हो गया था। उस काल में कपड़ा, लोहा, चीनी, माचिस, शोरा तथा सीमेंट से सम्बन्धित उद्योगों की स्थापना हुई। परन्तु उस समय ये उद्योग अधिक उन्नति न कर सके, क्योंकि अंग्रेज़ भारत के औद्योगिक विकास में रुचि नहीं लेते थे। अतः स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने अपने औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार करना आरम्भ किया। (1) इंजीनियरिंग के उपकरण बिजली का सामान, कम्प्यूटर तथा इससे सम्बन्धित सामान, दवाइयां बनाने तथा कृषि यन्त्र बनाने के नये कारखाने आरम्भ किये गये। (2) भारत में अनेक विदेशी कम्पनियों ने बड़ी-बड़ी फैक्टरियां स्थापित कर ली हैं। ये फैक्टरियां भारत के अनेक निपुण तथा अर्द्ध-निपुण कामगारों को रोज़गार दे रही हैं। (3) भारत सरकार ने वैज्ञानिक तथा औद्योगिक आविष्कारों एवं खोजों में विशेष रुचि ली है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक खोज कौंसिल ने विश्वविद्यालयों तथा अन्य उच्च शिक्षा केन्द्रों में वैज्ञानिक खोजों का समर्थन किया है।

प्रश्न 15.
भारत के अमेरिका के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
विश्व की महान् शक्तियों में से संयुक्त राज्य अमेरिका सर्वोच्च है। भारत के साथ इसके सम्बन्ध सामान्य एवं साधारण नहीं रहे हैं। इन सम्बन्धों में समय-समय पर बदलाव आता रहा। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् कश्मीर तथा अन्य कई प्रश्नों पर इन दोनों देशों के बीच कटु सम्बन्धों का दौर आरम्भ हुआ। दोनों देशों के सम्बन्ध विकृत होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को आवश्यकता से अधिक सैनिक सहायता देनी आरम्भ कर दी। भारत ने इसका कड़ा विरोध किया, परन्तु अमेरिका ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
  • अमेरिका द्वारा बनाये गये सैनिक गुटों का पाकिस्तान तो सदस्य बना, परन्तु भारत ने इन गुटों में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया।
  • 1971 ई० में भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणामस्वरूप बंगला देश अस्तित्व में आया। इस युद्ध अमेरिका ने पाकिस्तान के पक्ष में हस्तक्षेप करने का प्रयत्न किया। भारत ने इसका बहुत बुरा माना।
  • अमेरिका ने पाकिस्तान में सैनिक अड्डे स्थापित किये हैं। हिन्द महासागर में डीगो-गार्शिया (दियागो-गर्शिया) द्वीप पर अमेरिका ने सैनिक छावनियां बना रखी हैं। भारत अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन छावनियों का प्रबल विरोधी है।
  • भारत तथा अमेरिका में परमाणु शक्ति के सम्बन्ध में मौलिक मत-भेद हैं। भारत परमाणु शक्ति का विकास कर रहा है परन्तु अमेरिका इसका विरोध करता है। इसलिए अमेरिका ने भारत को परमाणु ईंधन देना बन्द कर दिया था। परंतु अब दोनों देशों के बीच एक नया परमाणु समझौता हुआ है।
  • भारत ने परमाणु-अप्रसार (परमाणु गैर-पर्सन) सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं क्योंकि यह सन्धि भेद-भावपूर्ण है। यह सन्धि उन देशों को परमाणु शक्ति बनने की मनाही करती है जिनके पास परमाणु-शक्ति नहीं है। इसके विपरीत परमाणु-शक्ति सम्पन्न देशों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

सच तो यह है कि ऊपर दिये कारणों से भारत तथा अमेरिका के आपसी सम्बन्धों में कटुता आई है। परन्तु फिर भी हाल ही में देवयानी मामले में भी दोनों देशों के सम्बन्धों में अधिक तनाव आया है। आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में दोनों देशों ने एक-दूसरे को भारी सहयोग दिया है। हमें निकट भविष्य में और भी अच्छे सम्बन्धों की आशा है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. …………. को भारतीय संविधान तैयार करने वाली कमेटी का प्रधान बनाया गया।
2. डॉ० राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम …………. थे।
3. 1954 ई० में …………. ने पांडिचेरी, चन्द्रनगर तथा माही आदि क्षेत्र भारत को सौंप दिए।
उत्तर-

  1. डॉ० अम्बेदकर
  2. राष्ट्रपति
  3. फ्रांस।

III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं

1. स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के संविधान के निर्माण के लिए एक सात सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया। – (✓)
2. 1948 ई० के अंत तक भारत ने फ्रांसीसी तथा पुर्तगाली बस्तियां जो भारत में थीं, पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।- (✗)
3. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने अपने औद्योगिक विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। – (✗)

IV. सही जोड़े बनाएं :

  1. भारत के प्रथम गृहमंत्री –
  2. भारतीय संविधान कमेटी के सदस्य –
  3. कारगिल का युद्ध –

उत्तर-

  1. भारत के प्रथम गृहमंत्री – सात थे। ।
  2. भारतीय संविधान कमेटी के सदस्य – 1999 ई० में हुआ।
  3. कारगिल का युद्ध – सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत

PSEB 8th Class Social Science Guide स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
गुट निरपेक्ष की पहली कांफ्रेंस (1961) कहां हुई ?
(i) बम्बई
(ii) गोआ
(iii) बेलग्रेड
(iv) मैड्रिड।
उत्तर-
बेलग्रेड

प्रश्न 2.
पंचशील समझौता चीन के किस प्रधानमंत्री के साथ हुआ ?
(i) किम जोंग
(ii) चिन पांग
(iii) माओ
(iv) चाउ-इन-लाई।
उत्तर-
चाउ-इन-लाई

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय भारत के किस क्षेत्र पर पुर्तगाली शासन करते थे ?
(i) गोआ
(ii) दमन
(iii) दिऊ
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी ।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान का दस्तावेज तैयार करने वाली कमेटी के कितने सदस्य थे ? इस कमेटी का प्रधान कौन था ?
उत्तर-
भारतीय संविधान का दस्तावेज़ तैयार करने वाली कमेटी के सात सदस्य थे। इस कमेटी के प्रधान डॉ० अम्बेदकर थे।

प्रश्न 2.
भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर-
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद।

प्रश्न 3.
भारत ने छोटे राज्यों को साथ लगते राज्यों में क्यों मिला दिया ?
उत्तर-
भारत सरकार ने अनुभव किया कि छोटे राज्यों का उचित विकास नहीं हो पायेगा। इसलिए उन्हें साथ लगते राज्यों में मिला दिया गया।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय भारत के कौन-कौन से प्रदेश पुर्तगालियों के अधीन थे ? इन्हें भारत संघ में कब सम्मिलित किया गया ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय गोआ, दमन तथा दिऊ के प्रदेश पुर्तगाल के अधीन थे। इन्हें 20 दिसम्बर, 1961 ई० को भारत संघ में सम्मिलित किया गया।

प्रश्न 5.
भारत में कितने राज्य तथा कितने केन्द्र शासित प्रदेश हैं ?
उत्तर-
भारत में 29 राज्य तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

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प्रश्न 6.
राज्यों का पुनर्गठन कब किया गया तथा कितने राज्यों और कितने केन्द्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया गया ?
उत्तर-
राज्यों का पुनर्गठन नवम्बर 1956 में किया गया। उस समय 14 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 7.
भारत तथा पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर-जनरल कौन-कौन थे ?
उत्तर-
क्रमशः लार्ड माऊंटबेटन तथा मुहम्मद अली जिन्नाह।

प्रश्न 8.
भारत विभाजन का बंगाल तथा पंजाब के लोगों पर क्या कुप्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
भारत के विभाजन से बंगाल तथा पंजाब के लाखों लोग मारे गये तथा लाखों लोग बेघर हो गए। पूर्वी तथा पश्चिमी पंजाब में लगभग 80 लाख लोगों को अपनी भूमि, दुकानों तथा अन्य सम्पत्तियां छोड़नी पड़ी।

प्रश्न 9.
भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार क्या है ?
उत्तर-
शान्तिपूर्ण सहयोग।

प्रश्न 10.
इंडोनेशिया में 1955 की एफ्रो-एशियाई कान्फ्रेंस कहां हुई ? इसमें भाग लेने वाले तीन एशियाई नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
इंडोनेशिया में 1955 की एफ्रो-एशियाई कान्फ्रेंस बंदूग में हुई। इसमें भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू, चीन के चाउ-एन-लाई तथा इंडोनेशिया के सुकार्नो ने भाग लिया।

प्रश्न 11.
नान-अलाइड आन्दोलन के पितामह कौन-कौन थे ?
उत्तर-
इस आन्दोलन के पितामह भारत के पं० जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर थे।

प्रश्न 12.
नान-अलाइंड आन्दोलन कब शुरू किया गया? यह किन सिद्धान्तों पर आधारित था ?
उत्तर-
नान-अलाइंड आन्दोलन 1961 ई० में शुरू किया गया। यह पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित था।

प्रश्न 13.
सार्क की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
सार्क की स्थापना 1985 ई० में हुई। इसका पूरा नाम है ‘प्रादेशिक (क्षेत्रीय) सहयोग के लिए दक्षिणएशियाई सभा।” इसका उद्देश्य दक्षिण-एशियाई देशों के बीच शान्ति तथा आर्थिक सहयोग उत्पन्न करना है।

प्रश्न 14.
भारत की प्रमुख सामाजिक तथा आर्थिक समस्याएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद, गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता, जनसंख्या वृद्धि आदि।

प्रश्न 15.
भाषावाद की समस्या क्या है ?
उत्तर-
हमारे देश में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। इस सम्बन्ध में समस्या यह है कि कुछ लोग अपनी भाषा को अन्य भाषाओं से अच्छा मानते हैं।

प्रश्न 16.
बढ़ती हुई जनसंख्या के कोई दो कुप्रभाव बताओ।
उत्तर-

  1. बढ़ती हुई जनसंख्या गरीबी तथा बेरोज़गारी का मूल कारण बनती है।
  2. इसके कारण सरकार की विकास योजनाएं असफल हो जाती हैं या फिर उनकी गति मंद पड़ जाती है।

प्रश्न 17.
भारत तथा पाकिस्तान के बीच झगड़े का मूल कारण कौन-सा प्रदेश है ?
उत्तर-
कश्मीर।

प्रश्न 18.
शिमला समझौता कब और किस-किस के मध्य हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता 1972 ई० में भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुल्फीकार अली भुट्टो के मध्य हुआ।

प्रश्न 19.
भारत तथा चीन के बीच कब तथा किस कारण युद्ध हुआ ?
उत्तर-
भारत तथा चीन के मध्य 1962 ई० में सीमान्त झगड़ों के कारण युद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
लाहौर समझौता किस-किस के मध्य हुआ ? इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
लाहौर समझौता भारत के प्रधानमत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ के मध्य हुआ। इसका उद्देश्य भारत तथा पाकिस्तान के आपसी झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना था।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने संविधान का निर्माण करने के लिए सात सदस्यों की एक समिति स्थापित की। इसे संविधान का प्रारूप तैयार करने का काम सौंपा गया। डॉ० अम्बेदकर को इस समिति का प्रधान बनाया गया। इस समिति ने 21 फ़रवरी, 1948 ई० को संविधान का प्रारूप तैयार करके सभा में प्रस्तुत किया। इस प्रारूप पर 4 नवंबर, 1948 ई० से तर्क-वितर्क आरम्भ हुआ। इसके लिए सभा को 11 बैठकें करनी पड़ी। इस तर्क-वितर्क काल में 2473 संशोधन प्रस्तुत किये गये जिनमें से कुछ एक स्वीकार कर लिए गए। 26 नवम्बर, 1949 ई० को संविधान पारित हो गया, जिसे 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू किया गया।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर आधारित विदेश नीति अपनाई है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. भारत विश्व के सभी देशों की प्रभुसत्ता तथा स्वतन्त्रता का सम्मान करता है।
  2. भारत इस बात में विश्वास रखता है कि सभी धर्मों, राष्ट्रों तथा जातियों के लोग बराबर हैं।
  3. भारत उन देशों का विरोधी है जिसकी सरकारें रंग, जाति या श्रेणी के आधार पर लोगों के साथ भेद-भाव करती हैं। उदाहरण के लिए भारत दक्षिण अफ्रीका की सरकार का अफ्रीका के मूल निवासियों तथा एशियाई लोगों के साथ भेद-भाव पूर्ण व्यवहार का विरोध करता रहा।
  4. भारत इस बात में भी विश्वास रखता है कि सभी अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का समाधान शान्तिपूर्ण तरीकों से किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 3.
पंचशील पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
भारत ने 1954 ई० में चीन के प्रधानमन्त्री चाउ-इन-लाई के साथ एक समझौता किया। यह समझौता पंचशील के पांच सिद्धान्तों पर आधारित था। ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व को स्वीकार करना।
  2. एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  3. एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  4. आपसी हितों के लिए समानता तथा सहयोग के सिद्धान्त का पालना करना।
  5. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा प्रादेशिक अखण्डता का आदर करना।

प्रश्न 4.
भारत ने स्वतन्त्रता के पश्चात् फ्रांसीसियों तथा पुर्तगालियों के अधीन अपने क्षेत्रों को किस तरह मुक्त कराया ?
उत्तर-
भारत के गोआ, दमन तथा दिऊ क्षेत्रों पर पुर्तगालियों का शासन था। इसी प्रकार पांडिचेरी, चन्द्रनगर तथा माही के क्षेत्रों पर फ्रांस का शासन था। 1954 ई० में फ्रांस ने अपने भारतीय क्षेत्र भारत को सौंप दिये, परन्तु पुर्तगाल ने ऐसा नहीं किया। अत: भारत सरकार को पुर्तगालियों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी। परिणामस्वरूप 20 दिसम्बर, 1961 ई० को गोआ, दमन तथा दिऊ, दादरा तथा नगर हवेली की पुर्तगाली बस्तियों को भारत संघ में सम्मिलित कर लिया गया। 30 मई, 1987 ई० को गोआ को एक राज्य बना दिया गया जबकि दमन तथा दिऊ को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के पश्चात् राज्यों का पुनर्गठन क्यों और कैसे किया गया ?
उत्तर-
भारतीयों ने अंग्रेज़ी शासन काल में ही भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग करनी आरम्भ कर दी थी। भारत के स्वतन्त्र हो जाने के पश्चात् तेलगु भाषा भाषी रामुलू नाम के एक व्यक्ति ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग पूरी कराने के लिये आमरण-व्रत रखा, जिसकी भूख के कारण मृत्यु हो गई। अतः संविधान में संशोधन करके तेलगु भाषा बोलने वाले क्षेत्र को मद्रास से अलग करके उसका नाम आन्ध्र प्रदेश रख दिया गया। शेष राज्यों का पुनर्गठन करने के लिए एक कमीशन नियुक्त किया गया, जिसके तीन सदस्य थे। कमीशन की सिफ़ारिशों के आधार पर नवम्बर, 1956 ई० में राज्यों का पुनर्गठन करके 6 केन्द्र शासित प्रदेश तथा 14 राज्य बनाये गये।

प्रश्न 6.
नान-अलाइंड (गुट-निरपेक्ष) आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के शीघ्र पश्चात् संसार दो विरोधी गुटों में बंट गया था। एक गुट का नेता अमेरिका था। इसे पश्चिमी ब्लॉक कहा जाता था। दूसरे गुट का नेता रूस था। इसे पूर्वी ब्लॉक कहा जाता था। इनके बीच भयंकर शीत युद्ध चलने लगा। नाटो तथा वारसा पैक्ट जैसी सैनिक संधियों तथा समझौतों ने वातावरण को और भी तनावपूर्ण बना दिया। भारत अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए किसी भी गुट में शामिल नहीं होना चाहता था। इसलिए भारत ने दूसरे देशों के साथ मिलकर नान-अलाइंड आन्दोलन शुरू किया। इस आन्दोलन के पितामह पण्डित जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर थे।

नान-अलाइंड आन्दोलन 1961 ई० में आरम्भ हुआ। यह पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित था। भारत की तरह इसके सभी सदस्य किसी भी शक्ति गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे। इसका पहला सम्मेलन 1961 ई० में बेलग्रेड में हुआ। आरम्भ में 25 देश इसके सदस्य थे। परन्तु आज 100 से अधिक देश इसके सदस्य हैं।

प्रश्न 7.
यू० एन० ओ० में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • भारत यू० एन० ओ० का एक सक्रिय सदस्य है। भारत सरकार ने यू० एन० ओ० के कोरिया तथा अन्य कई देशों में शान्ति स्थापित करने वाले मिशनों में अपनी सेनाएं भेजी।
  • भारत ने यू० एन० ओ० की बहुत सी विशेष संस्थाओं तथा एजेंसियों में भी अपना योगदान दिया है। उदाहरण के लिए 1963 ई० में विजय लक्ष्मी पंडित यू० एन० ओ० की जनरल एसेंबली की सदस्य थीं। शशी थारूर कम्युनिकेशन तथा पब्लिक इन्फार्मेशन के अंडर सैक्रटरी रहे। उन्होंने 2001 में पब्लिक इन्फार्मेशन विभाग का नेतृत्व किया। भारत सुरक्षा कौंसल का भी सदस्य है। भारत ने भी यू० एन० ओ० से बहुत सहायता प्राप्त की है।

प्रश्न 8.
भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या बारे लिखो।
उत्तर-
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। यहां संसार के लगभग सभी धर्मों के लोग रहते हैं, जिनके अलग-अलग धार्मिक विश्वास हैं। कुछ लोगों में धार्मिक संकीर्णता के कारण देश में समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे-फसाद होते रहते हैं। इनमें से 2002 ई० में गुजरात में घटित घटना सबसे अधिक भयंकर थी। बहुत से लोगों का विचार है कि सरकार को अल्पसंख्यकों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिये भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 9 दिसम्बर, 2006 ई० को अपने भाषण में कहा था, “हम देश के विकास के फल का एक बड़ा भाग कम संख्या वाले लोगों को देने के लिये योजनाओं में परिवर्तन करने का प्रयास करेंगे।”

प्रश्न 9.
भारत में जातिवाद तथा गरीबी की समस्या पर नोट लिखो।
उत्तर-
जातिवाद की समस्या-जातिवाद की समस्या हमारी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा बनी हुई है। कुछ लोग सदैव अन्य जातियों के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। यहां तक कि राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिये जाति का सहारा लेते हैं। हमें चाहिए कि हम लोगों के साथ समान व्यवहार करें। संविधान की 17वीं धारा के अन्तर्गत किसी भी रूप में छूत-छात करने की मनाही की गई है। – ग़रीबी की समस्या-गरीबी की समस्या भारत की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। देश में बहुत से लोग इतने गरीब हैं कि उन्हें एक दिन का भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाता। गरीबी के मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या, कम कृषि उत्पादन तथा बेरोज़गारी है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् से सरकार गरीबी समाप्त करने के अनेक प्रयास कर रही है।

प्रश्न 10.
भारत में बेरोज़गारी की समस्या का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में बेरोज़गारी की समस्या गम्भीर होती जा रही है, क्योंकि देश में बेरोज़गारों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। अधिकतर बेरोज़गारी शिक्षित लोगों में पाई जाती है। इस समस्या के समाधान के लिये सरकार की ओर से कई प्रयास किये जा रहे हैं। सेवानिवृत्त सैनिकों, शिक्षित बेरोजगारों आदि को सरकार ऋण देती है, ताकि वे अपना रोज़गार खोल सकें। नौकरी में सेवानिवृत्त होने की आयु सीमा को कम किया जा रहा है, ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को रोजगार मिल सके। गांवों में भैंसे, मुर्गियां, सूअर, शहद की मक्खियां आदि पालने के सहायक व्यवसायों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए प्रशिक्षण तथा ऋण की सुविधायें दी जा रही हैं।

प्रश्न 11.
भारत में महंगाई की समस्या पर नोट लिखो।
उत्तर-
आज महंगाई एक विश्वव्यापी समस्या है। परन्तु भारत में इसने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। आज प्रत्येक वस्तु बहुत महंगी बिक रही है। वस्तुओं के मूल्य प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप हमारे देश में अधिकतर लोग जीवन की मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असमर्थ हैं । इसलिये महंगाई पर नियन्त्रण करने के लिये सरकार तथा लोगों को मिलकर ठोस कदम उठाने चाहिएं। सरकार को चाहिये कि वह देश में ऐसी योजनाएं लागू करे जिससे आम लोगों को महंगाई से राहत मिले।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निरक्षरता तथा बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्याओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. निरक्षरता- भारत के लगभग 23 करोड़ से भी अधिक लोग निरक्षर हैं। प्रति 100 महिलाओं में से 60 महिलाएं निरक्षर हैं। निरक्षरता बेरोज़गारी को जन्म देती है जोकि निर्धनता का कारण बनती है। निरक्षर व्यक्ति भारत तथा अन्य देशों में विकास तथा उन्नति के अवसरों से अनभिज्ञ रहता है। इसके अतिरिक्त लोकतन्त्र प्रणाली तभी सफल होगी यदि नागरिक पढ़े-लिखे होंगे। निरक्षर नागरिक अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के प्रति भी जागरूक नहीं हो सकता।

सरकारी प्रयास- भारत सरकार देश से निरक्षरता दूर करने के लिए कई पग उठा रही है।

  • हमारे संविधान में 14 साल तक की आयु के बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था है।
  • भारत सरकार देश के निर्धन तथा कुशल छात्रों को छात्रवृत्ति देती है।
  • भारत सरकार प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम भी आयोजित करती है। 2 अक्तूबर, 1978 ई० को राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया था। 1988 ई० में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन आरम्भ किया गया था। इसके अन्तर्गत देश के अनेक क्षेत्रों में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र स्थापित किये गये।
  • निरक्षर प्रौढ़ों के हित के लिए ऑल इंडिया रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा अनेक शिक्षा-सम्बन्धी कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। इन सब का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर तथा शिक्षित बनाना है।

2. बढ़ती हुई जनसंख्या-आज भारत को बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। भारत की जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ रही है कि सरकार के लिए इस बढ़ोत्तरी को रोक पाना कठिन हो रहा है। 2001 ई० के आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या 102.7 करोड़ थी। हमारी जनसंख्या में प्रति वर्ष 1 करोड़ 60 लाख से भी अधिक लोगों की वृद्धि हो रही है।
कारण-सरकारी रिपोर्टों के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हैं-

  • चिकित्सा की सुविधाएँ बढ़ जाने से मृत्यु-दर कम हो गयी है। आज से 25 साल पूर्व वार्षिक मृत्यु-दर 33 प्रति हज़ार थी। परन्तु अब यह कम हो कर 14 प्रति हज़ार रह गयी है। पहले प्लेग, हैजा तथा संक्रामक रोगों को रोकने के चिकित्सा सम्बन्धी साधन बहुत कम होते थे जिस कारण इन रोगों से अनेकों मौतें हो जाती थीं। परन्तु अब इन रोगों को फैलने से रोका जा सकता है।
  • कम आयु में विवाह करना बढ़ती हुई आबादी का एक अन्य कारण है। अनेक भारतीय परिवारों के, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से बच्चे होते हैं।
  • अज्ञानता तथा धार्मिक कारणों से बहुत से लोग परिवार नियोजन को नहीं अपनाते।
  • अनेक निर्धन माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे खेतों या कारखानों में काम करके परिवार की आय में वृद्धि कर सकते हैं। अत: ऐसे माता-पिता अधिक बच्चे पैदा करने के इच्छुक होते हैं।

हानियां तथा समाधान-जनसंख्या वृद्धि निर्धनता, बेरोज़गारी सहित अन्य अनेक समस्याओं का मूल कारण बनती है। सरकार की सभी विकास-योजनाएं जनसंख्या वृद्धि के कारण निष्फल हो जाती हैं।
जनसंख्या वृद्धि से पैदा होने वाली समस्याओं का समाधान सरकारी स्तर पर किया जा रहा है। डॉक्टरों के नेतृत्व में लोगों को जनसंख्या वृद्धि की हानियों से अवगत कराया जा रहा है तथा छोटे परिवार के पक्ष में प्रचार किया जा रहा है।

प्रश्न 2.
भारत के पाकिस्तान तथा चीन के साथ सम्बन्धों का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत संसार के सभी देशों विशेषकर अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का इच्छुक है। पाकिस्तान तथा चीन भारत के दो महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश हैं। इनके साथ भारत के सम्बन्धों का वर्णन इस प्रकार है
भारत तथा पाकिस्तान-पाकिस्तान के साथ भारत आरम्भ से ही मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न कर रहा है। देशी रियासत कश्मीर (जम्मू एवं कश्मीर) के भारत के साथ विलय को पाकिस्तान ने मान्यता नहीं दी थी। तभी से कश्मीर भारत तथा पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। कश्मीर समस्या के कारण भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन प्रमुख तथा अनेक छोटे-मोटे युद्ध लड़े हैं। इनमें 1999 ई० का कारगिल युद्ध भी शामिल है।

1971 ई० के भारत-पाकिस्तान युद्ध के पश्चात् भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुल्फीकार अली भुट्टो के बीच 1972 ई० में शिमला में समझौता हुआ। इस समझौते का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवादों का शान्तिपूर्वक समाधान करना था। इसी उद्देश्य से भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ के मध्य लाहौर में समझौता हुआ। अभी कुछ साल पहले ही दोनों देशों के मध्य बस तथा रेल सेवाएं आरम्भ की गई हैं। इन सेवाओं द्वारा दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के निकट आये हैं। अब तीर्थ यात्री दोनों देशों में स्थित धार्मिक स्थानों की यात्रा कर सकते हैं। भारतीय तथा पाकिस्तानी समाज-सेवक तथा लेखक एक-दूसरे देश में आ-जा सकते हैं। अत: दोनों देशों के मध्य आरम्भ की गई बस तथा रेल सेवाएं दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को मज़बूती प्रदान कर सकती हैं।

हमें विश्वास है कि आने वाले समय में दोनों देशों के मध्य की समस्याओं का शान्तिपूर्वक समाधान कर लिया जायेगा।

भारत तथा चीन-भारत और चीन के बीच प्राचीन काल से ही मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बने हुए हैं। व्यापार तथा बौद्धधर्म के कारण ये दोनों देश आपस में जुड़े हैं। 1949 ई० में, जब चीन में साम्यवादी क्रान्ति आई, तब नई सरकार को मान्यता देने वाले देशों में से भारत पहला देश था। भारत ने यू० एन० ओ० के सदस्य के रूप में चीन का समर्थन किया। 1954 में भारत ने चीन के साथ पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित एक समझौता किया परन्तु 1962 ई० में सीमा-विवाद के कारण भारत तथा चीन के बीच एक युद्ध हुआ था। इस युद्ध के पश्चात् कई वर्षों तक दोनों देशों के सम्बन्ध कटुतापूर्ण बने रहे। इसके बाद 1980 ई० में भारत तथा चीन के सम्बन्धों में सुधार आया। भारत तथा चीन के प्रधानमन्त्रियों ने निरन्तर बैठकें करके अनेक छोटी-बड़ी समस्याओं पर विचार-विमर्श किया। आज दोनों देश अपने सीमा विवादों को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 23 स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत

स्वतन्त्रता के पश्चात् का भारत PSEB 8th Class Social Science Notes

  • संविधान का निर्माण – भारतीय संविधान सभा ने जुलाई 1946 ई० में नया संविधान बनाना आरम्भ किया जो कि 26 नवम्बर, 1949 ई० को पूरा हुआ।
  • देशी-रियासतों का एकीकरण – भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को आज़ाद हुआ था परन्तु देशी रियासतों का एकीकरण भारत के लिए बहुत बड़ी समस्या थी। इस समस्या का समाधान सरदार पटेल ने बड़ी सूझबूझ से किया।
  • राज्यों का पुनर्गठन – 1956 ई० में भाषा के आधार पर भारत के राज्यों का पुनर्गठन किया गया।
  • कृषि तथा उद्योगों में विकास – स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने कृषि तथा उद्योगों में बहुत अधिक विकास किया है।
  • भारत की विदेश नीति के आधार – भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है। इसका अर्थ है कि भारत विश्व के सैनिक गुटों से दूर रहता है। हमारी विदेश नीति के अन्य आधार हैं संयुक्त राष्ट्र से सहयोग तथा पड़ोसी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • गुट-निरपेक्ष (नान- अलाइंड) आन्दोलन – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के आरम्भिक सदस्य भारत, यूगोस्लाविया तथा मिस्र थे। भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर ने गुट-निरपेक्षता की नीति का समर्थन किया। परन्तु आज इस नीति को अपनाने वाले देशों की संख्या बहुत अधिक हो गई है और इस नीति ने एक शक्तिशाली आन्दोलन का रूप धारण कर लिया है। इसी कारण गुट-निरपेक्ष देशों के समूह को ‘तृतीय विश्व’ या ‘तीसरी दुनिया’ कहकर पुकारा जाता है।
  • भारत तथा उसके पड़ोसी देश – हमारे मुख्य पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन, बांग्ला देश तथा श्रीलंका हैं। हमारे अन्य पड़ोसी भूटान, नेपाल तथा बर्मा (म्यनमार) हैं। भारत इनके साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, परन्तु इनके साथ हमारे सम्बन्धों के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।
  • भारत तथा पाकिस्तान – भारत तथा पाकिस्तान के बीच आपसी सम्बन्ध आरम्भ से ही तनावपूर्ण रहे हैं। परन्तु भारत अपने पड़ोसी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध चाहता है ताकि भारतीय उपमहाद्वीप में शान्ति बनी रहे। पाकिस्तान के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए भारत ने समय समय पर अनेक प्रयास किए हैं।
  • पंचशील -1954 ई० में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने विश्व-शान्ति के लिए पाँच सिद्धान्त बनाए। इसे पंचशील का नाम दिया जाता है। इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के बीच सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ाना है ताकि उनकी प्रभुसत्ता और अखण्डता बनी रहे।
  • भारत तथा संयुक्त राष्ट्र- भारत संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से विश्वशान्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। भारत की संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों में पूरी आस्था है। इसलिए भारत की विदेश नीति का एक लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र को विश्वशान्ति की स्थापना तथा विवादों को आपसी बातचीत द्वारा सुलझाने में सहयोग देना भी है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

SST Guide for Class 8 PSEB स्त्रियां तथा सुधार Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को कब, किसने तथा किसके प्रयास से अवैध घोषित किया गया था ?
उत्तर-
सती प्रथा को 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से अवैध घोषित किया था।

प्रश्न 2.
किस वर्ष में विधवा-विवाह कराने की कानूनी तौर पर आज्ञा दी गई ?
उत्तर-
विधवा-विवाह कराने की कानूनी आज्ञा 1856 ई० में दी गई।

प्रश्न 3.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) की स्थापना कब तथा किसने की ?
उत्तर-
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 ई० में सर सैय्यद अहमद खां ने की। उस समय इसका नाम मोहम्मडन एंग्लो-ओरियेंटल कालेज था।

प्रश्न 4.
नामधारी आन्दोलन की स्थापना कब, कहां तथा किसके द्वारा हुई ?
उत्तर-
नामधारी आन्दोलन की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 को भैणी साहिब (लुधियाना) में श्री सतगुरु राम सिंह जी द्वारा हुई।

प्रश्न 5.
सिंह सभा लहर ने स्त्री शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहां-कहां शिक्षण संस्थाएं स्थापित की ?
उत्तर-
सिंह सभा ने स्त्री-शिक्षा के लिए फ़िरोज़पुर, कैरो तथा भमौड़ में शिक्षण संस्थाएं स्थापित की।

प्रश्न 6.
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध कब तथा किसके प्रयास से लगाया गया था ?
उत्तर-
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध 1872 ई० में केशव चन्द्र सेन के प्रयासों से लगाया गया था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय द्वारा स्त्रियों के उद्धार से सम्बन्धित दिए गए योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिंक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

प्रश्न 8.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

प्रश्न 9.
सर सैय्यद अहमद खां द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए किये गये प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा-प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वह समाज में प्रचलित दासता की प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

प्रश्न 10.
स्वामी दयानन्द जी द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा, अर्थात् बाल-विवाह का कड़ा विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए उन्होंने अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

प्रश्न 11.
19वीं सदी में स्त्रियों (महिलाओं) की दशा का वर्णन करें।।
उत्तर-
19वीं सदी में भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय थी। उस समय भारत में सती प्रथा, कन्या हत्या, दास प्रथा, पर्दा, प्रथा, विधवा विवाह निषेध तथा बहु-विवाह आदि कुरीतियों ने महिलाओं का जीवन दूभर बना दिया था। भारतीय समाज में से इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए 19वीं शताब्दी में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन आरम्भ किये गये।
स्त्रियों की दशा को दयनीय बनाने वाली मुख्य कुरीतियां-

1. कन्या-वध-समाज में कन्या के जन्म को अशुभ समझा जाता था, जिसके कई कारण थे। प्रथम, कन्याओं के . विवाह पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था जो आम आदमी के वश की बात नहीं थी। दूसरे, माता-पिता को अपनी कन्याओं के लिए योग्य वर खोजना कठिन हो जाता था। तीसरे, यदि कोई माता-पिता अपनी कन्या का विवाह नहीं कर पाते थे तो इसे बुरा माना जाता था। अतः अनेक लोग कन्या को जन्म लेते ही मार देते थे।

2. बाल-विवाह-कन्याओं का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इसलिए कन्याएं प्रायः अनपढ़ (अशिक्षित) ही रह जाती थीं। यदि किसी लड़की का पति छोटी आयु में ही मर जाता था तो उसे सती कर दिया जाता था या फिर उसे जीवन भर विधवा ही रहना पड़ता था।

3. सती-प्रथा-सती-प्रथा के अनुसार यदि किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसे जीवित ही पति की चिता पर जला दिया जाता था।

4. विधवा-विवाह निषेध-समाज की ओर से विधवा-विवाह पर कड़ी रोक लगाई गई थी। विधवा का समाज में अनादर किया जाता था। उनके केश काट दिये जाते थे और उन्हें सफेद वस्त्र पहना दिए जाते थे।

5. पर्दा-प्रथा-पर्दा-प्रथा के अनुसार महिलाएं सदा पर्दा करके ही रहती थीं। इसका उनके स्वास्थ्य एवं विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता था।

6. दहेज-प्रथा-दहेज-प्रथा के अनुसार विवाह के समय पर कन्या को दहेज दिया जाता था। निर्धन लोगों को दहेज देने के लिए साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था। अतः कई कन्याएं आत्म-हत्या कर लेती थीं।

7. महिलाओं को अशिक्षित रखना- अधिकतर लोगों द्वारा कन्याओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। उनको शिक्षित करना व्यर्थ माना जाता था, ताकि शिक्षा द्वारा उन्हें आवश्यकता से अधिक स्वतन्त्रता न मिल सके। कन्याओं को शिक्षित करना समाज के लिए भी हानिकारक माना जाता था।

8. हिन्दू समाज में महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार न देना-हिन्दू समाज में महिलाओं को अपनी पैतृक सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 12.
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में अलग-अलग समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में भिन्न-भिन्न समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन इस प्रकार है

1. राजा राममोहन राय-राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज-सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा-प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

2. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अनथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

3. सर सैय्यद अहमद खां-सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समृद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वे समाज में प्रचलित दास प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

4. स्वामी दयानन्द सरस्वती-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा अर्थात् बालविवाह का कड़ा विरोध किया। वह विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। उन्होंने असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

5. श्रीमती ऐनी बेसेंट-श्रीमती ऐनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्य थीं। इस संस्था ने स्त्री जाति के उद्धार के लिए बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह के पक्ष में आवाज़ उठाई। शिक्षा के विकास के लिए इस संस्था ने स्थान-स्थान पर बालक-बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में इसने बनारस में हिन्दू कॉलेज स्थापित किया। यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की शिक्षा भी दी जाती थी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 13.
बहुत से सुधारकों ने स्त्रियों की दशा की ओर विशेष ध्यान क्यों दिया ?
उत्तर-
अनेक समाज-सुधारकों ने महिलाओं की समस्याओं पर निम्नलिखित कारणों से विशेष ध्यान दिया-

  • विभिन्न समाज-सुधारकों का कहना था कि समाज द्वारा महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं जिन्हें रोकना अनिवार्य है।
  • समाज-सुधारकों का विचार था कि समाज में वर्तमान बुराइयों को समाप्त करने के लिए महिलाओं को शिक्षित करना आवश्यक है।
  • उन्होंने अनुभव किया कि यदि देश को विदेशी राजनीतिक दासता से स्वतन्त्र करवाना है तो सर्वप्रथम अपने घर और समाज का सुधार करना होगा।
  • उन्होंने यह भी अनुभव किया कि समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम महिलाओं की दशा सुधारना आवश्यक है।
  • समाज-सुधारकों का मानना था कि देश की लोकतन्त्र प्रणाली समाज में समानता के बिना अधूरी है। अत: उन्होंने महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान अधिकार दिलाने का प्रयास किया।

प्रश्न 14.
महाराष्ट्र के समाज सुधारकों द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए दिए गए योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
महाराष्ट्र में समाज सुधारकों ने विभिन्न संस्थाएं स्थापित की। इन्हीं संस्थाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए विशेष अभियान चलाये जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परमहंस सभा-19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के समाज सुधारकों ने समाज में जागृति लाने के लिए आन्दोलन आरम्भ किये। 1849 ई० में परमहंस मण्डली की स्थापना की गई। इसने मुम्बई में धार्मिक-सामाजिक सुधार आन्दोलन आरम्भ किये। इसका मुख्य उद्देश्य मूर्ति-पूजा तथा जाति-प्रथा का विरोध करना था। इस सभा ने नारी-शिक्षा के लिए कई स्कूलों की स्थापना की। इसने सायंकाल को शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं की भी स्थापना की। ज्योतिबा फुले ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पिछड़ी जाति की कन्याओं के लिए पुणे में एक स्कूल खोला। उन्होंने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए भी प्रयत्न किये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में सरकार ने विधवा-पुनर्विवाह कानून पास कर दिया। उन्होंने विधवाओं के बच्चों के लिए एक अनाथालय खोला। महाराष्ट्र के एक अन्य प्रसिद्ध समाज सुधारक गोपाल हरि देशमुख थे जोकि लोक-हितकारी के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने समाज की बुराइयों का खण्डन किया तथा समाज सुधार पर बल दिया।

2. प्रार्थना समाज-1867 ई० में महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर इस समाज के प्रसिद्ध नेता थे। उन्होंने जाति प्रथा तथा बाल-विवाह का विरोध किया। वह विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने विधवा-विवाह संघ की स्थापना की। उन्होंने कई स्थानों पर शिक्षण संस्थाएं तथा अनाथाश्रम खोले। उनके प्रयत्नों से 1884 ई० में दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना हुई, जिसने पुणे में दक्कन कॉलेज की स्थापना की।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. हिन्दू समाज में स्त्रियों को …………… सम्पत्ति लेने का अधिकार नहीं था।
2. अपने भाई की पत्नी के सती हो जाने के पश्चात् ………… के जीवन में एक नया मोड़ आया।
3. 1872 ई० में केशवचन्द्र सेन द्वारा ………… पर पाबंदी लगायी गई।
4. तलाक प्रथा का ………….. ने विरोध किया।
5. ………. 1886 ई० में इंग्लैंड में थियोसिफीकल सोसाइटी में शामिल हई।
उत्तर-

  1. पैतृक
  2. राजा राममोहन राय
  3. दूसरे विवाह
  4. सर सैय्यद अहमद खां
  5. श्रीमती ऐनी बेसेंट।

III. सही जोड़े बनाएं:

क – ख
1. स्वामी विवेकानंद – 1. नामधारी लहर
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – 2. रामकृष्ण मिशन
3. सिंह सभा लहर – 3. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
4. सर सैय्यद अहमद खां – 4. मंजी साहिब (अमृतसर)
उत्तर-
1. स्वामी विवेकानंद – रामकृष्ण मिशन
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – नामधारी लहर
3. सिंह सभा लहर – मंजी साहिब (अमृतसर)
4. सर सैय्यद अहमद खां – अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

PSEB 8th Class Social Science Guide स्त्रियां तथा सुधार Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को (1829 ई०) अवैध घोषित किया-
(i) लार्ड डलहौज़ी
(ii) लार्ड विलियम बैंटिक
(ii) लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज़
(iv) लार्ड मैकाले।
उत्तर-
लार्ड विलियम बैंटिक

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प्रश्न 2.
नामधारी आंदोलन की स्थापना हुई.
(i) मंजी साहिब (अमृतसर)
(ii) मिठू बस्ती (जालंधर)
(iii) भैणी साहिब (लुधियाना)
(iv) शकूरगंज।
उत्तर-
भैणी साहिब (लुधियाना)

प्रश्न 3.
अहमदिया लहर की नींव रखी
(i) सर सैय्यद अहमद खां
(ii) श्री सतिगुरु राम सिंह जी
(iii) बाबा दयाल सिंह ।
(iv) मिर्जा गुलाम अहमद।
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद

प्रश्न 4.
दूसरे विवाह पर प्रतिबंध लगवाया-
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
(ii) केशव चन्द्र सेन
(iv) स्वामी दयानन्द।
उत्तर-
केशव चन्द्र सेन

प्रश्न 5.
‘आनंद विवाह’ की प्रणाली प्रथा आरम्भ की-
(i) श्री सतिगुरु राम सिंह
(ii) बाबा दयाल सिंह
(iii) मिर्जा गुलाम अहमद
(iv) प्रो० गुरुमुख सिंह।
उत्तर-
श्री सतिगुरु राम सिंह

प्रश्न 6.
सती प्रथा को किसके प्रयत्नों से समाप्त किया गया ?
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) सर सैय्यद अहमद खाँ
(iii) वीर सलिंगम
(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती।
उत्तर-
राजा राम मोहन राय

प्रश्न 7.
नामधारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ?
(i) स्वामी विवेकानंद
(ii) श्रीमती एनीबेसेंट
(iii) सतिगुरु राम सिंह
(iv) बाबा दयाल सिंह।
उत्तर-
सतिगुरु राम सिंह।

(ख) सही कथन पर (✓) तथा गलत कथन पर (✗) का निशान लगाएं :

1. 1854 ई० के वुड डिस्पैच में स्त्री शिक्षा पर जोर दिया गया।
2. केशवचन्द्र सेन आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता थे।
3. प्रार्थना समाज ने विधवा पुनः विवाह का विरोध किया।
उत्तर-

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी के भारतीय समाज में प्रचलित किन्हीं चार कुरीतियों के नाम बताओ, जिन्होंने स्त्रियों की दशा को दयनीय बना दिया।
उत्तर-
सती प्रथा, कन्या वध, पर्दा प्रथा तथा बहु विवाह आदि।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में लोग कन्याओं का वध क्यों करते थे ? कोई दो कारण लिखो।
उत्तर-

  1. लड़कियों के विवाह पर बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता था।
  2. माता-पिता को अपनी लड़कियों के लिए योग्य वर ढूंढ़ने में कठिनाई होती थी।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी में लोग लड़कियों को शिक्षा क्यों नहीं दिलवाते थे ?
उत्तर-
लोग लड़कियों को शिक्षा दिलवाना उन्हें अधिक आजादी देने के बराबर मानते थे। इसके अतिरिक्त वे लड़कियों की शिक्षा को समाज के लिए हानिकारक भी मानते थे।

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज से जुड़े दो नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
राजा राममोहन राय तथा केशवचन्द्र सेन।

प्रश्न 5.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती।

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प्रश्न 6.
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना किसने, कहां और क्यों की ?
उत्तर-
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना सर सैय्यद अहमद खां ने अलीगढ़ में की। इसकी स्थापना विज्ञान के एक ग्रंथ का उर्दू में अनुवाद करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 7.
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ? उन्होंने किस रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया ?
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उन्होंने गुरुमत की रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 8.
‘आनन्द विवाह’ की प्रणाली (प्रथा) किसने चलाई ? इसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर-
आनन्द विवाह की प्रणाली (प्रथा) श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने चलाई। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में ही विवाह हो जाता था।

प्रश्न 9.
सिंह सभा लहर की नींव कब और कहां रखी गई ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर की नींव अक्तूबर 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई।

प्रश्न 10.
लाहौर में सिंह सभा की शाखा कब स्थापित की गई ? इसका प्रधान किसे बनाया गया ?
उत्तर-
लाहौर में सिंह सभा की शाखा 1879 ई० में स्थापित की गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया।

प्रश्न 11.
अहमदिया लहर की नींव कब, कहां और किसने रखी ?
उत्तर-
अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने जिला गुरदासपुर में रखी।

प्रश्न 12.
समकृष्ण मिशन की स्थापना कब, किसने और किसकी याद में की ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 ई० में स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की याद में की।

प्रश्न 13.
संगत सभा की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
संगत सभा की स्थापना 1860 ई० में केशवचन्द्र सेन ने की।

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प्रश्न 14.
श्रीमती ऐनी बेसेंट कब भारत आईं ? उनका सम्बन्ध किस संस्था से था ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1893 ई० में भारत आईं। उनका सम्बन्ध थियोसोफिकल सोसायटी से था।

प्रश्न 15.
प्रार्थना समाज की स्थापना कब हुई ? इसके दो मुख्य नेता कौन-कौन थे ?
उत्तर-
प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ई० में हुई। इसके दो प्रमुख नेता महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर थे।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निरंकारी आन्दोलन तथा बाबा दयाल जी पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उस समय समाज में कन्या के जन्म को अपशकुन समझा जाता था। अतः अनेक कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। महिलाओं में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा तथा सती प्रथा आदि बुराइयां प्रचलित थीं। विधवा के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उसे पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती थी। बाबा दयाल जी ने इन सभी बुराइयों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने कन्या वध तथा सती प्रथा का विरोध किया। उन्होंने लोगों को अपने बच्चों के विवाह गुरुमत के अनुसार करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 2.
नामधारी लहर की स्थापना कब और किसने की ? इसके द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लहर की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 ई० को श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने भैणी साहिब (लुधियाना) में की। उन्होंने समाज में प्रचलित बुराइयों का विरोध किया।

  1. उन्होंने बाल-विवाह, कन्या-वध तथा दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का प्रबल विरोध किया।
  2. उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें पुरुषों के समान अधिकार देने पर बल दिया।
  3. उन्होंने विवाह के समय किये जाने वाले व्यर्थ के व्यय का खण्डन किया। श्री सतिगुरु राम सिंह
  4. उन्होंने विवाह की एक प्रणाली चलाई जिसे आनन्द विवाह का नाम दिया गया। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में विवाह की रस्म पूरी कर दी जाती थी। वह जाति-प्रथा में भी विश्वास नहीं रखते थे।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार 1

प्रश्न 3.
केशवचन्द्र सेन कौन थे ? समाज सुधार के क्षेत्र में उनके योगदान का वर्णन करो।
उत्तर-
केशवचन्द्र सेन ब्रह्म समाज के एक प्रसिद्ध नेता थे। वह 1857 ई० में ब्रह्म समाज में सम्मिलित हुए थे। 1860 ई० में उन्होंने संगत सभा की स्थापना की, जिसमें धर्म सम्बन्धी विषयों पर विचार-विमर्श होता था। केशव चन्द्र सेन ने नारीशिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने बाल-विवाह तथा बहु-विवाह आदि प्रथाओं की घोर निन्दा की। केशवचन्द्र सेन के प्रयत्नों से 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके दूसरे विवाह पर रोक लगा दी।

प्रश्न 4.
समाज सुधार के क्षेत्र में श्रीमती ऐनी बेसेंट तथा थियोसोफिकल सोसायटी का क्या योगदान है ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1886 ई० में इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसायटी में सम्मिलित हुईं। 1893 ई० में वह भारत आ गईं। उन्होंने भारत का भ्रमण किया तथा भाषण दिये। उन्होंने पुस्तकें तथा लेख लिखकर सोसायटी के सिद्धान्तों का प्रचार किया। थियोसोफिकल सोसायटी ने अनेक सामाजिक सुधार भी किये। इसने बाल-विवाह तथा जाति-प्रथा का विरोध किया। इसने पिछड़े लोगों तथा विधवाओं के उद्धार के लिए प्रयत्न किये। सोसायटी ने शिक्षा के विकास के लिए स्थान-स्थान पर बालकों तथा बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में बनारस में सैंट्रल हिन्दू कॉलेज स्थापित किया गया, जहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की श्री शिव को राती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार तथा नारी उद्धार के लिए सिंह सभा लहर, अहमदिया लहर तथा स्वामी विवेकानन्द (रामकृष्ण मिशन) द्वारा किये गये कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
सिंह सभा लहर-सिंह सभा लहर की नींव 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई। इसका उद्देश्य सिख धर्म तथा समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करना था। सरदार ठाकुर सिंह संधावालिया को इसका प्रधान तथा ज्ञानी ज्ञान सिंह को सचिव नियुक्त किया गया। देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सिख सिंह सभा के सदस्य बन सकते थे। 1879 ई० में लाहौर में सिंह सभा की एक अन्य शाखा खोली गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया। धीरे-धीरे पंजाब में अनेक सिंह सभा शाखाएं स्थापित हो गईं। सिंह सभा के प्रचारकों ने समाज में प्रचलित जातिप्रथा, अस्पृश्यता तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का जोरदार खण्डन किया।

इस लहर ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के लिए प्रबल प्रचार किया। इसने महिलाओं में प्रचलित पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा विधवा-विवाह निषेध आदि बुराइयों की निन्दा की। सिंह सभा ने विधवाओं की देखभाल के लिए विधवा-आश्रम स्थापित किये। इसने नारी-शिक्षा की ओर भी विशेष ध्यान दिया। सिख कन्या महाविद्यालय फिरोज़पुर, खालसा भुजंग स्कूल कैरो तथा विद्या भण्डार भमौड़ आदि प्रसिद्ध कन्या विद्यालय थे जो सर्वप्रथम सिंह सभा के अधीन स्थापित हुए।

अहमदिया लहर-अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने कादियां जिला गुरदासपुर में रखी। उन्होंने लोगों को कुरान शरीफ के उपदेशों पर चलने के लिए कहा। उन्होंने परस्पर भाईचारे (भ्रातृभाव) तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रचार किया। उन्होंने धर्म में प्रचलित झूठे रीति-रिवाज़ों, अन्ध-विश्वासों और कर्मकाण्डों का त्याग करने का प्रचार किया। उन्होंने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा देने का समर्थन भी किया। उन्होंने कई स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द तथा राम कृष्ण मिशन-स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई० में अपने गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस की स्मृति में ‘राम कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित अन्ध-विश्वासों और व्यर्थ के रीति-रिवाजों की निन्दा की। वे जाति-प्रथा तथा अस्पृश्यता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए विशेष प्रयत्न किये। वे महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार,दिये जाने के पक्ष में थे। उन्होंने कन्यावध, बाल-विवाह, दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने नारी-शिक्षा के लिए प्रचार किया तथा कई स्कूल एवं पुस्तकालय स्थापित किये।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के सुधार आन्दोलनों के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सुधारकों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने कई सामाजिक बुराइयों पर कानूनी रोक लगा दी। महिलाओं की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया।

  1. 1795 ई० तथा 1804 ई० में कानून पास करके कन्या-वध पर रोक लगा दी गई।
  2. 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने कानून द्वारा सती प्रथा पर रोक लगा दी।
  3. सरकार ने 1843 ई० में कानून पास करके भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया।
  4. बंगाल के महान् समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयत्नों से 1856 ई० में विधवा-पुनर्विवाह को कानून द्वारा मान्यता दे दी गई।
  5. सरकार ने 1860 ई० में कानून पास करके बालिकाओं के लिए विवाह की आयु कम-से-कम 10 वर्ष निश्चित की। 1929 ई० में शारदा एक्ट के अनुसार बालकों के विवाह के लिए कम-से-कम 16 साल और बालिकाओं के लिए 14 साल की आयु निश्चित की गई।
  6. 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकृति दे दी। (7) 1854 ई० के वुड डिस्पैच में महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया गया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

स्त्रियां तथा सुधार PSEB 8th Class Social Science Notes

  • धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन -19वीं शताब्दी में भारतीय समाज के सभी समुदायों के धार्मिक और सामाजिक सुधार के धार्मिक और सामाजिक सुधार के आन्दोलनों का आरम्भ हुआ। धर्म के क्षेत्र में इन आन्दोलनों ने कट्टरता, अन्धविश्वासों तथा पुरोहितों के आधिपत्य पर प्रहार किए। सामाजिक जीवन में इनका उद्देश्य जाति-प्रथा, बाल-विवाह तथा अन्य सामाजिक असमानताओं को दूर करना था।
  • राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज – राजा राममोहन राय (1772-1833) ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की उन्होंने सती-प्रथा तथा बाल-विवाह की समाप्ति के लिए अभियान चलाया। केशवचन्द्र सेन के नेतृत्व में ब्रह्म समाज का नाम पूरे देश में फैल गया।
  • सुधार आन्दोलनों का प्रसार – देश के अन्य भागों में भी ऐसे ही आन्दोलन आरम्भ हो गए। 1867 ई० में बम्बई (मुम्बई) में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। महादेव गोविन्द रानाडे (1842-1901) जैसे अनेक राष्ट्रीय नेता इसमें सम्मिलित हुए। महाराष्ट्र में अनुसूचित जातियों के जागरण में महात्मा ज्योतिबा फुले ने सक्रिय भूमिका निभाई। .
  • आर्य समाज – आर्य समाज की स्थापना 1875 में स्वामी दयानन्द ने की। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा तथा दहेज प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई।।
  • सिक्ख सुधार आन्दोलन सिक्खों से सम्बन्धित दो मुख्य सुधार आन्दोलन चले-नामधारी (कूका) आन्दोलन तथा सिंह सभा आन्दोलन। इनमें से सिंह सभा आन्दोलन ने शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की।
  • अन्य सुधार आन्दोलन – स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रसार के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। श्रीमती ऐनी बेसेंट ने 1893 में थियोसोफिकल आन्दोलन को फिर से मज़बूत बनाने का प्रयास किया। मुसलमानों में सुधार आन्दोलन का आरम्भ नवाब अब्दुल लतीफ ने किया। मुसलमानों में सबसे प्रभावशाली आन्दोलन सैय्यद अहमद खान (1817-98) ने आरम्भ किया। उनका सबसे बड़ा कार्य 1875 में मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियन्टल कॉलेज की स्थापना करना था।
  • सुधार आन्दोलनों के प्रभाव – सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप स्त्री उद्धार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, राष्ट्रवाद का उदय हुआ तथा जनता में एकता की भावना पैदा हुई।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

SST Guide for Class 8 PSEB सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. भारत एक ……… राज्य है।
2. भारत में मानव अधिकार कमीशन ……….. की रक्षा करता है।
3. बुढ़ापा, दुर्घटना तथा बेकारी के समय मिलने वाली सुविधा को ………… कहा जाता है।
4. गांवों को लिंक सड़कों के साथ …………. योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है।
5. स्कूलों में दोपहर का खाना ………. योजना के अन्तर्गत दिया जा रहा है।
उत्तर-

  1. कल्याणकारी
  2. मानव अधिकारों
  3. सामाजिक सुरक्षा
  4. प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क
  5. मिड डे मील।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ :

1. जन उपयोगी सेवाओं से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है। – (✓)
2. अच्छी शिक्षा तथा सेहत की सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है। – (✗)
3. आज भारत में सामाजिक व आर्थिक असमानताएं समाप्त हो चुकी हैं। – (✗)
4. भारत में ‘कार्य का अधिकार’ मौलिक अधिकार है। – (✗)
5. पंजाब के सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य नहीं है। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
मिड-डे-मील स्कीम के अंतर्गत किस श्रेणी तक मुफ्त खाना दिया जाता है ?
(क) पांचवीं
(ख) आठवीं
(ग) दसवीं
(घ) पहली से आठवीं तक।
उत्तर-
पहली से आठवीं तक।

प्रश्न 2.
आज तक भारत में कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं ?
(क) 5
(ख) 12
(ग) 13
(घ) 14
उत्तर-
12

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
जन-उपयोगी सेवाएं किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर आदि की सुविधाएं दी गई हैं। इन्हें जन-उपयोगी सेवाएं कहते हैं। इनका उद्देश्य लोगों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सामाजिक समानता का अर्थ है-सामाजिक स्तर पर लोगों का बराबर होना। दूसरे शब्दों में समाज में किसी प्रकार की ऊंच-नीच न हो। रंग, जाति, नसल, जन्म, धनी, निर्धन आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ है, बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में नागरिकों की सहायता करना। शारीरिक रूप से अपाहिज बच्चों को आवश्यक सहायता देना भी सामाजिक सुरक्षा में शामिल है। सामाजिक सुरक्षा सामाजिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 4.
कोई दो मानवीय अधिकार लिखो।
उत्तर-
(1) जीवन का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार, (3) समानता का अधिकार, (4) मानवीय गौरव का अधिकार।
नोट-विद्यार्थी कोई दो लिखें।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सरकार की सामाजिक क्रियाओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
सरकार की सामाजिक क्रियाओं से लोगों का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास अवश्य हुआ है। सरकार ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। फिर भी देश में सच्चे अर्थों में सामाजिक समानता नहीं आ सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है।

प्रश्न 2.
सरकार के सामाजिक और नैतिक सुधारों पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरकार द्वारा सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गये। उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे मुसीबत के समय अपने बच्चों का पालन-पोषण स्वयं कर सकें। इससे उन्हें अपने अन्य पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने तथा अपने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने में भी सहायता मिली।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए। सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे । बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष ज़रूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

PSEB 8th Class Social Science Guide सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  2. उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ? .
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए।
सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे। बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष जरूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  • उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ?
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत क्यों महसूस की गई ? इस उद्देश्य से क्या कदम उठाए गए ?
उत्तर-
भारत शताब्दियों तक परतन्त्र रहा था। इसके कारण भारत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुका था। इसलिए देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की ज़रूरत महसूस की गई। इस उद्देश्य से निम्नलिखित पग उठाए गए.

  • मौलिक अधिकारों में समानता के अधिकार को शामिल किया गया।
  • देश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की गईं।
  • विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त अपनाया गया।
  • भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।

प्रश्न 2.
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर इत्यादि की सुविधाएं प्रदान की गईं। इन जन उपयोगी सेवाओं का उद्देश्य लोगों के दैनिक जीवन के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना था। भारत को विकसित देशों की तुलना में लाना भी सरकार का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए सरकार ने योजनाओं का निर्माण किया। तकनीकी कृषि, चिकित्सा, शिक्षा तथा कला सम्बन्धी शैक्षिक संस्थाओं की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त गांवों तथा कस्बों में पीने के पानी तथा बिजली का प्रबन्ध किया गया। गांवों तथा सड़कों का निर्माण भी किया गया ताकि उन्हें शहरों से जोड़ा जा सके।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों का लोगों पर क्या प्रभाव है ? .
उत्तर-
सरकार ने समाज में स्वतन्त्रता तथा समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष पग उठाए हैं। इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। इन्हें लागू करने के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। इन अधिकारों से लोगों का सर्वपक्षीय विकास अवश्य हुआ है, परन्तु समाज में सच्चे अर्थों में समानता नहीं लाई जा सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है। उनके लिए आज भी सार्वजनिक कुओं तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करना निषेध है। उन्हें मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इस प्रकार आज भी स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों का लाभ जरूरतमन्द लोगों को नहीं मिल पाता। इसके लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत एक कल्याणकारी राज्य – भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, ताकि देश को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया जा सके।
  • सामाजिक असमानता को दूर करना – इस उद्देश्य से संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकार शामिल किए गए हैं। छुआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  • जन-उपयोगी सेवाएं – लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यातायात तथा संचार सेवाओं का विस्तार किया गया है। इसके साथ-साथ कृषि, चिकित्सा, कला आदि से सम्बन्धित शिक्षा संस्थाओं का विस्तार किया गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा – लोगों को बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • मानव अधिकार – मुख्य मानव अधिकार हैं-जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, समानता का अधिकार तथा मानवीय गौरव का अधिकार। इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

SST Guide for Class 9 PSEB निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें :

  1. विश्व की कुल निर्धन जनसंख्या के ………… से अधिक निर्धन -(ग़रीब) भारत में रहते है।
  2. निर्धनता निर्धन लोगों में ………… की भावना उत्पन्न करती है।
  3. ………… लोगों को ………….. से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है।
  4. पंजाब राज्य उच्च …………… दर के विकास की सहायता से निर्धनता कम करने में सफल रहा है।
  5. जिंदगी की मुख्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए न्यूनतम आय को मापने के ढंग को………… कहते हैं।
  6. ………… निर्धनता के मापदंड का एक कारण है।

उत्तर-

  1. 1/5
  2. असुरक्षा
  3. ग्रामीण, शहरी
  4. कृषि
  5. निर्धनता रेखा
  6. सापेक्ष।

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता में रहने वाले लोगों की संख्या कितनी है ?
(क) 20 करोड़
(ख) 26 करोड़
(ग) 26 करोड़
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं ।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं ।

प्रश्न 2.
ग़रीबी का अनुपात …………. में कम है।
(क) विकसित देशों में
(ख) विकासशील देशों में
(ग) अल्प विकसित देशों में
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-
(क) विकसित देशों में

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 3.
भारत में सबसे अधिक निर्धन राज्य कौन-सा है ?
(क) पंजाब
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) बिहार
(घ) राजस्थान।
उत्तर-
(ग) बिहार

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय किसका सूचक है ?
(क) ग़रीबी रेखा
(ख) जनसंख्या
(ग) सापेक्ष निर्धनता
(घ) निरपेक्ष निर्धनता।
उत्तर-
(ग) सापेक्ष निर्धनता

सही/गलत :

  1. विश्वव्यापी ग़रीबी में तीव्र गति से कमी आई है।
  2. कृषि क्षेत्र में छिपी हुई बेकारी होती है।
  3. गांव में शिक्षित बेकारी अधिक होती है।
  4. राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन (NSSO) सर्वेक्षण करके जनसंख्या में हो रही वृद्धि का अनुमान लगाता हैं।
  5. सबसे अधिक ग़रीबी वाले राज्य बिहार और ओडिशा है।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सापेक्ष ग़रीबी क्या है ?
उत्तर-
सापेक्ष ग़रीबी का अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।

प्रश्न 2.
निरपेक्ष ग़रीबी क्या है ?
उत्तर-
निरपेक्ष ग़रीबी से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है।

प्रश्न 3.
सापेक्ष निर्धनता के दो निर्धारकों के नाम लिखें।
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय सापेक्ष निर्धनता के ही माप हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 4.
ग़रीबी रेखा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ग़रीबी वह रेखा है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
ग़रीबी रेखा को निर्धारित करने के लिए भारत के योजना आयोग ने क्या मापदण्ड अपनाया है ?
उत्तर-
भारत का योजना आयोग ग़रीबी रेखा का निर्धारण आय व उपभोग स्तर पर सकता है।

प्रश्न 6.
ग़रीबी के दो मापदण्डों (निर्धारकों) के नाम लिखें।
उत्तर-
आय तथा उपभोग ग़रीबी के दो निर्धारक हैं।

प्रश्न 7.
ग़रीब परिवारों में सर्वाधिक दुःख किसे सहन करना पड़ता है ?
उत्तर-
गरीब परिवारों में बच्चे सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के दो सबसे अधिक ग़रीब राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर-
ओडिशा तथा विहार दो निर्धन राज्य हैं।

प्रश्न 9.
केरल राज्य में निर्धनता को सबसे कम कैसे किया है ?
उत्तर-
केरल राज्य मानव संसाधन विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।

प्रश्न 10.
पश्चिमी बंगाल को ग़रीबी कम करने में किसने सहायता की है ?
उत्तर-
भूमि सुधार उपायों ने पश्चिम बंगाल में ग़रीबी को कम करने में सहायता की है।

प्रश्न 11.
उच्च कृषि वृद्धि दर से ग़रीबी कम करने वाले दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर-
पंजाब और हरियाणा।

प्रश्न 12.
चीन व दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश निर्धनता कम करने में सफल कैसे हुए ?
उत्तर-
चीन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों ने तीव्र आर्थिक संबृद्धि तथा मानव संसाधन विकास में निवेश से निर्धनता को कम किया है।

प्रश्न 13.
निर्धनता के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. निम्न आर्थिक संवृद्धि
  2. उच्च जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 14.
निर्धनता कम करने वाले कोई दो कार्यक्रमों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
  2. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

प्रश्न 15.
राजकीय विद्यालयों में निःशुल्क भोजन प्रदान करने वाले कार्यक्रम का नाम क्या है ?
उत्तर-
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

(रव) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या अभिप्राय है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
निर्धनता से अभिप्राय है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता। इस न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएं शामिल होती हैं। इस न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं के पूरा न होने से मनुष्यों को कष्ट उत्पन्न होता है। स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता की हानि होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि करना तथा भविष्य में निर्धनता से छुटकारा पाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 2.
सापेक्ष व निरपेक्ष निर्धनता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है। अर्थशास्त्रियों ने इस संबंध में निर्धनता की कई परिभाषाएं दी हैं, परंतु अधिकतर देशों में प्रति व्यक्ति उपभोग की जाने वाली कैलौरी तथा प्रति व्यक्ति न्यूनतम उपभोग व्यय स्तर द्वारा निर्धनता को मापने का प्रयत्न किया गया है जबकि दूसरी ओर, सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आकार पर निर्धनता से है। जिस देश की प्रति व्यक्ति आय-अन्य देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में काफी कम है वह देश सापेक्ष रूप से निर्धन है।

प्रश्न 3.
निर्धन लोगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर-
निर्धन लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे- सूखा, अपवर्जन, भूखमरी आदि। अपवर्जन से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कुछ लोग कुछ सुविधाओं, लाभों के अपवर्जित हो जाते हैं जो कि लोग अभोग करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में ग़रीबी रेखा का अनुमान कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर-
भारत में ग़रीबी रेखा का अनुमान करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकताओं, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं आदि पर विचार किया जाता है। इस भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी की आवश्यकताओं पर आधारित है।

प्रश्न 5.
निर्धनता के मुख्य निर्धारकों का वर्णन करें।
उत्तर-
निर्धनता के अनेक पहलू हैं, सामाजिक वैज्ञानिक उसे अनेक सूचकों के माध्यम से देखते हैं। सामान्यत प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे हैं, जो आय और उपयोग के स्तर से संबंधित हैं, लेकिन अब निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कुपोषण
के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोज़गार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुंच की कमी आदि जैसे अन्य सामाजिक सूचकों के माध्यम से को भी देखा जाता है।

प्रश्न 6.
1993-94 ई० से भारत में निर्धनता के रूझान का वर्णन करें।
उत्तर-
पिछले दो दशकों से निर्धनता रेखा को नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। अतः शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में निर्धन लोगों की संख्या में काफी कमी आई है।
1993-94 में 4037 मिलियन लोग या 44.3% जनसंख्या निर्धनता रेखा को नीचे रह रही थी। निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लेगों की संख्या जो 2004-05 में 37.2% थी वह 2011-12 में और कम होकर 21.7% रह गई।

प्रश्न 7.
भारत में निर्धनता (ग़रीबी) में अंतराज्य असमानताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में राज्यों के बीच निर्धनता का असमान रूप देखने को मिलता है। भारत में वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत कम होकर 21.7 हो गया है परंतु ओडिशा व बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहां निर्धनता का प्रतिशत क्रमश: 32.6 तथा 33.7 है। इसके दूसरी ओर केरल, हिमाचल प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, हरियाणा आदि कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर निर्धनता काफी कम हुई है। इन राज्यों ने कृषि संवृद्धि दर तथा मानव पूंजी संवृद्धि में निवेश करके निर्धनता को कम किया है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 8.
भारत में निर्धनता के तीन प्रमुख कारण कौन-से हैं ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता के कारण निम्न हैं

1. जनसंख्या का अधिक दबाव (Heavy Pressure of Population)-भारत में जनसंख्या में तीव्रता स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अधिक हो गई। सन् 1951 के पश्चात् के समय को जनसंख्या विस्फोट का समय भी कहा जाता है क्योंकि उस समय जनसंख्या में तीव्रता आई। 1941-51 में जनसंख्या 1.0% थी जो 1981-91 में बढ़कर 2.1 प्रतिशत हो गई। 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गई। शताब्दी के अंत तक हमारी जनसंख्या 100 करोड़ पहुंच चुकी है। देश की सम्पति का मुख्य भाग इस बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की संतुष्टि में खर्च हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप देश के विकास के लिए अन्य कार्यों में धन कम पड़ जाता है। यहीं नहीं निरंतर बढ़ती जनसंख्या से निर्भर जनसंख्या अधिक तथा कार्यशील जनसंख्या में कमी आ रही है जिस कारण उत्पादन के लिए कार्यशील जनसंख्या कम तथा निर्भर जनसंख्या अधिक है जो देश को और निर्धन बना देती है।

2. बेरोज़गारी (Unemployment)-भारत में जिस तरह जनसंख्या बढ़ रही है उसी तरह बेरोज़गारी भी निरंतर बढ़ती जा रही है। यह बढ़ती बेरोज़गारी निर्धनता को जन्म देती है जो देश के लिए अभिशाप साबित हो रही है। भारत में न केवल शिक्षित बेरोज़गारी बल्कि अदृश्य बेरोज़गारी की समस्या भी पनपती जा रही है। भारत में 2011-12 में लगभग 234 करोड़ लोग बेरोज़गार थे। वर्ष 2016-17 तक 0.59 करोड़ बेरोज़गार रहने का अनुमान है।

3. विकास की धीमी गति (Slow Growth of Development) भारत का विकास जो धीमी गति से हो रहा है इस कारण से भी निर्धनता बढ़ती जा रही है। योजनाओं की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर लगभग 4 प्रतिशत रही है परंतु जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 1.76 प्रतिशत होने से प्रतिशित आय में वृद्धि केवल 2-3 प्रतिशत हो गई है। 2013-14 में विकास दर 4.7% के लगभग प्राप्त की गई। भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर 1.76 प्रतिशत रही है। जनसंख्या की इस वृद्धि के अनुरूप विकास की गति धीमी है।

प्रश्न 9.
निर्धनता बेरोज़गारी को प्रकट करती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि से दीर्घकालिक बेरोज़गारी तथा अल्प रोज़गार की समस्या उत्पन्न हुई है। दोनों सरकारी तथा निजी क्षेत्र रोज़गार संभावनाएं उत्पन्न करने में असफल रहे हैं। अनियमित निम्न आय, निम्न आवास सुविधाएं निर्धनता को बढ़ा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में शैक्षिक बेरोज़गारी पाई जाती है जबकि गांवों में अदृश्य बेरोज़गारी पाई जाती है जो कृषि क्षेत्र से संबंधित है। इस तरह निर्धनता, बेरोज़गारी का मात्र एक प्रतिबंब है।

प्रश्न 10.
आर्थिक वृद्धि में प्रोत्साहन निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम में सहायक है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में निर्धनता को दूर करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय आर्थिक विकास की गति को तीव्रता से बढ़ाता है। जब संवृद्धि की दर को बढ़ावा दिया जाता है, तो कृषि तथा औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में रोज़गार बढ़ते गए हैं, आर्थिक रोज़गार का अर्थ है कम निर्धनता। अस्सी के दशक से भारत की संवृद्धि दर विश्व में एक उभरती हुई संवृद्धि दर है। आर्थिक-संवृद्धि ने मानव विकास में निवेश द्वारा रोज़गार की संभावनाओं को बढ़ाया है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार अधिनियम-2005 की मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (NREGA) 2005 वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देते हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को रोज़गार की सुरक्षा देता है इसमें कुल रोज़गार का 1/3 भाग महिलाओं के लिए आरक्षित है। केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर रोज़गार गारंटी के लिए कोष का निर्धारण करेंगी।

प्रश्न 12.
भारत सरकार द्वारा संचालित किन्हीं तीन ग़रीबी कम करने के कार्यक्रमों को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत सरकार पंचवर्षीय योजनाओ के अंतर्गत निम्नलिखित उन्मूलन कार्यक्रम लागू कर रही है-

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)-इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन हेतु ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के सदस्य को वर्ष में 100 दिन का रोज़गार प्रदान किया जाता है। इस कार्यक्रम के लिए ₹ 33.000 करोड़ खर्च किए जाएंगे। वर्ष 2013-14 में 475 करोड़ परिवारों को 219.72 करोड़ रोज़गार के व्यक्ति दिवस प्रदान किये गए।
  2. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2024-25 तक ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक ग़रीब परिवार को एक महिला सदस्य की स्वयं सहायता समूह (SHGs) का सदस्य बनाना है ताकि वे गरीबी रेखा से ऊपर रह सके। इस मिशन में 97.391 गाँवों को कवर करते हुए 20 लाख स्वयं सहायता समूह बनाए हैं जिसमें से 3.8 लाख नए SHGs हैं। वर्ष 2013-14 के दौरान ₹ 22121.18 करोड़ को बैंक शाख इन SHGs को प्रदान की जा चुकी है। वर्ष 2014-15 में NREM के लिए ₹ 3560 करोड़ की राशि आबंटित की गई है।
  3. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) सितम्बर, 2013 में स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना (SISRY) को बदलकर इसका नाम NULM रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य शहरी गरीब परिवारों को कौशल निर्माण तथा प्रशिक्षण द्वारा लाभदायक रोज़गार के अवसर प्रदान करता है तथा शहरी बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करना। वर्ष 201314 में NULM के अंतर्गत ₹720.43 करोड़ प्रदान किये गए हैं। इससे 6,83,542 लोगों का कौशल प्रशिक्षण हुआ है और 1,06,205 लोगों को स्वरोजगार प्रदान किया गया है।

अन्य अभ्यास के प्रश्न

आइए चर्चा करें :

प्रश्न 1.
चर्चा करें कि आपके गांव अथवा नगर में गरीब परिवार किन दशाओं में रहते हैं ?
उत्तर-
हमारे गांव अथवा नगर में निर्धन परिवारों को अनियमित रोज़गार अवसर, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, रहने की खराब दशाएं हैं तथा अपने बच्चे को पाठशालाओं में भी नहीं भेजते हैं।

प्रश्न 2.
ग्रामीण व नगरीय निर्धनता के दिए गए उदाहरणों के अध्ययन के पश्चात् निर्धनता के निम्नलिखित कारणों पर चर्चा करके मालूम करें कि कहानी में दिए गए परिवारों की निर्धनता का कारण निम्नलिखित कारणों में है अथवा कोई अन्य कारण है।

  • भूमिहीन परिवार
  • बेरोज़गारी
  • परिवार का दीर्घ (बड़ा आकार)
  • अशिक्षा
  • कमज़ोर स्वास्थ्य और कुपोषित।

उत्तर-
भूमिहीन परिवार-दोनों ही मामलों में परिवार भूमिहीन हैं। उनके पास कृषि के लिए भूमि नहीं है जिसके कारण वे गरीब हैं।
बेरोज़गारी-ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के दोनों ही मामलों में लोग बेरोज़गार हैं । वे बहुत ही कम मज़दूरी पर कार्य कर रहे हैं जिसमें उनका पेट भी नहीं भरता।
बड़ा परिवार-उनके परिवारों का आकार भी बड़ा है जो कि उनकी गरीबी का कारण है।
अशिक्षा-परिवार अशिक्षित हैं। वे अपने बच्चों को भी पाठशाला नहीं भेज पा रहे जिससे वे गरीबी में जकड़े हुए हैं।
कमज़ोर स्वास्थ्य और कुपोषित-गरीबी के कारण उनका स्वास्थ्य कमज़ोर है क्योंकि खाने को भरपेट नहीं मिलता। बच्चे कुपोषित हैं उनके लिए जूते, साबुन एवं तेल जैसी वस्तुएं भी आरामदायक वस्तुओं की श्रेणी में आती हैं।
ग्राफ 3.1 वर्ष 2011-12 दौरान चयन
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता भारत के सम्मुख एक चुनौती
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 वित मंत्रालय, भारत सरकार

आइए चर्चा करें

  1. ग्राफ 3.1 को देखिए, पांच सबसे अधिक निर्धन लोगों की प्रतिशतता वाले राज्यों के नाम लिखिए।
  2. उन राज्यों के नाम बताइए जहां निर्धनता के अनुमान 22% में कम तथा 15% से अधिक है।
  3. उन राज्यों के नाम बताइए जहां सबसे अधिक तथा सबसे कम निर्धनता प्रतिशतता है।

उत्तर-

  1. पांच राज्य जिनमें सबसे अधिक निर्धनता की प्रतिशतता है
    • बिहार
    • उड़ीसा
    • आसाम
    • महाराष्ट्र
    • उत्तर प्रदेश।
  2.  ऐसे राज्य पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र तथा गुजरात हैं।
  3. सबसे अधिक निर्धनता प्रतिशतता बिहार तथा सबसे कम केरल में है।

PSEB 9th Class Social Science Guide निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1993-94 में भारत में निर्धनों का प्रतिशत था :
(क) 44.3%
(ख) 32%
(ख) 19.3%
(ग) 38.3%.
उत्तर-
(क) 44.3%

प्रश्न 2.
इनमें कौन निर्धनता निर्धारण का मापक है ?
(क) व्यक्ति गणना अनुपात
(ख) सेन का सूचकांक
(ग) निर्धनता अंतराल सूचकांक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) सेन का सूचकांक

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 3.
किस देश में डॉलर में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है ?
(क) U.S.A.
(ख) स्विट्ज़रलैंड
(ग) नार्वे
(घ) जापान।
उत्तर-
(ग) नार्वे

प्रश्न 4.
किस प्रकार की निर्धनता दो देशों में तुलना को संभव बनाती है ?
(क) निरपेक्ष
(ख) सापेक्ष
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) सापेक्ष

प्रश्न 5.
कौन-सा राज्य भारत में सबसे अधिक निर्धन राज्य है ?
(क) ओडिशा
(ख) बिहार
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) ओडिशा

रिक्त स्थान भरें:

  1. ……….. से अभिप्राय है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।
  2. ……….. निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से
  3. ………….. निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति-आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।
  4. निर्धनता के ………….. प्रकार है।
  5. ………… वह है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है. जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकता को संतुष्ट कर सकते हैं।

उत्तर-

  1. निर्धनता
  2. सापेक्ष
  3. निरपेक्ष
  4. दो
  5. निर्धनता रेखा।

सही/गलत :

  1. निर्धनता के दो प्रकार हैं-सापेक्ष व निरपेक्ष निर्धनता।
  2. निर्धनता भारत की मुख्य समस्या है।
  3. व्यक्ति गणना अनुपात निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या को दर्शाती है।
  4. बढ़ रही जनसंख्या बढ़ रही निर्धनता को प्रकट करती है।
  5. व्यक्ति गणना अनुपात तथा निर्धनता प्रमाण अनुपात समान मदें हैं।

उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत में विश्व जनसंख्या का कितना भाग निवास करता है ?
उत्तर-
भारत में विश्व का \(\frac{1}{5}\) भाग निवास करता है।

प्रश्न 2.
UNICEF के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु के मरने वाले बच्चों की संख्या क्या है ?
उत्तर-
लगभग 2.3 मिलियन बच्चे।

प्रश्न 3.
वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत क्या था ?
उत्तर-
21.7 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
निर्धनता के प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-

  1. निरपेक्ष निर्धनता
  2. सापेक्ष निर्धनता।

प्रश्न 5.
कैलोरी क्या होती है ?
उत्तर-
एक व्यक्ति एक दिन में जितना भोजन करता है उसमें प्राप्त शक्ति को कैलोरी करते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के सामने भावी चुनौती क्या है ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता में निश्चित रूप में कमी आई है परंतु प्रगति के बावजूद निर्धनता उन्मूलन भारत की एक सबसे बाध्यकारी चुनौती है। भावी चुनौती निर्धनता की अवधारणा का विस्तार ‘मानव निर्धनता’ के रूप में होने से है। अतः भारत के सामने सभी को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार सुरक्षा उपलब्ध कराना, लैंगिक समता तथा निर्धनों का सम्मान जैसी बड़ी चुनौतियां होंगी।

प्रश्न 2.
ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्र में कैलोरी में अंतर क्यों है ?
उत्तर-
यह अंतर इसलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग शारीरिक काम अधिक करते हैं जिससे उन्हें अधिक थकावट होती है। नगरीय लोगों की तुलना में उन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
निर्धनता दूर करने के लिए उपाय बताएं।
उत्तर-
निर्धनता को निम्नलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है-

  1. लघु व कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन।
  2. भारी उद्योग व हरित क्रांति के लिए प्रोत्साहन
  3. जनसंख्या नियंत्रण
  4. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करना।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम’ को 2004 में सबसे पिछड़े 150 जिलों में निर्धनता उन्मूलन के लिए लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण कार्यक्रमों के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध करवाये जा रहे हैं।

प्रश्न 5.
निर्धनताग्रस्त कौन लोग हैं ?
उत्तर-
अनुसूचित जनजातियां, अनुसूचित जातियां, ग्रामीण खेतिहर मज़दूर, नगरीय अनियमित मज़दूर, वृद्ध लोग, ढाबों में काम करने वाले बच्चे, झुग्गियों में रहने वाले लोग, भिखारी आदि निर्धनताग्रस्त लोग हैं।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम क्या है ?
उत्तर-
यह विधेयक सितंबर, 2005 में पारित किया गया है जो प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। बाद में इसका विस्तार 600 जिलों में किया जाएगा। इसमें एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम क्या है ? ।
उत्तर-
इस कार्यक्रम को वर्ष 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

प्रश्न 8.
प्रधानमंत्री रोजगार योजना पर नोट लिखें।
उत्तर-
यह योजना वर्ष 1993 में आरंभ की गई है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जाती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम पर नोट लिखें।
उत्तर-
इसे वर्ष 1995 में आरंभ किया गया है जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों व छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 25 लाख नए रोज़गार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रश्न 10.
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना का वर्णन करें।
उत्तर-
इसका आरंभ वर्ष 1999 में किया गया है जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।

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प्रश्न 11.
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना क्या है ?
उत्तर-
इसे वर्ष 2000 में आरंभ किया गया है। इसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
वैश्विक निर्धन परिदृश्य पर नोट लिखें।
उत्तर-
विकासशील देशों में अत्यंत आर्थिक निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन 1 डॉलर से कम पर जीवन-निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 28.प्रतिशत से गिरकर 2001 में 21 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन, इसमें बृहत्त क्षेत्रीय भिन्नताएं पाई जाती हैं।

प्रश्न 13.
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर-
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण आय अथवा उपभोग स्तरों के आधार पर किया जाता है। आय आकलन के आधार पर 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 328 प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में ₹ 454 प्रतिमाह किया गया था। उपभोग आकलन के आधार पर भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।

प्रश्न 14.
निर्धनता के मुख्य आयाम क्या हैं ?
उत्तर-
निर्धनता के मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं-

  1. निर्धनता का अर्थ भूख एवं आवास का अभाव है।
  2. निर्धनता का अर्थ शुद्ध जल की कमी एवं और सफाई सुविधाओं का अभाव है।
  3. निर्धनता एक ऐसी स्थिति है, जब माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पाते या कोई बीमार आदमी इलाज नहीं करवा पाता।
  4. निर्धनता का अर्थ नियमित रोज़गार की कमी भी है तथा न्यूनतम शालीनता स्तर का अभाव भी है।
  5. निर्धनता का अर्थ असहायता की भावना के साथ जीना है।

प्रश्न 15.
अगले दस या पंद्रह वर्षों में निर्धनता के उन्मूलन में प्रगति होगी। इसके लिए उत्तरदायी कुछ कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सार्वभौमिक निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा वृद्धि पर ज़ोर देना।
  2. आर्थिक संवृद्धि।
  3. जनसंख्या संवृद्धि में गिरावट।
  4. महिलाओं की शक्तियों में वृद्धि।

प्रश्न 16.
निर्धनता विरोधी कार्यक्रमों का परिणाम मिश्रित रहा है। कुछ कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अति जनसंख्या।
  2. भ्रष्टाचार।
  3. कार्यक्रमों के उचित निर्धारण की कम प्रभावशीलता।
  4. कार्यक्रमों की अधिकता।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-

  1. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम सन् 2004 में देश के 150 सबसे अधिक पिछड़े जिलों में शुरू किया गया।
  2. यह कार्यक्रम सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं।
  3. इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है।

प्रश्न 18.
भारत में निर्धनता के कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में निर्धनता के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर।
  2. वैकल्पिक व्यवसाय न होने के कारण ग्रामीण लोगों की मात्र कृषि पर निर्भरता होना।
  3. आय की असमानताएं।
  4. जनसंख्या वृद्धि।
  5. सामाजिक कारण जैसे-निरक्षरता, बड़ा परिवार, उत्तराधिकार कानून और जाति-प्रथा आदि।
  6. सांस्कृतिक कारण जैसे-मेलों, त्योहारों आदि पर फिजूलखर्ची।
  7. आर्थिक कारण-ऋण लेकर उसे न चुका पाना।
  8. अक्षमता एवं भ्रष्टाचार के कारण निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से न लागू होना।

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प्रश्न 19.
निर्धनता उन्मूलन के कोई चार कार्यक्रमों का उल्लेख करें।
उत्तर-
ये निम्नलिखित हैं

  1. प्रधानमंत्री रोजगार योजना-इसे 1993 में प्रारंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। .
  2. ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1995 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 25 लाख नए रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।
  3. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-इसका आरंभ 1999 में किया गया जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्व-सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।
  4. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना-इसका आरंभ 2000 में किया गया जिसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण, आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्रश्न 20.
निर्धनता का सामाजिक अपवर्जन क्या है ?
उत्तर-
इस अवधारणा के अनुसार निर्धनता को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि निर्धनों को बेहतर माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में रहने वाले संपन्न लोगों की सामाजिक समता से अपवर्जित रहकर केवल निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना पड़ता है। सामान्य अर्थ में सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण व परिणाम दोनों हो सकता है। मोटे तौर पर यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों से अपवर्जित रहते हैं, जिनका उपभोग दूसरे करते हैं। इसका एक विशिष्ट उदाहरण भारत में जाति-व्यवस्था की कार्यशैली है, जिसमें कुछ जातियों के लोगों को समान अवसरों से अपवर्जित रखा जाता है।

प्रश्न 21.
निर्धनता की असुरक्षा धारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदाय या व्यक्तियों के भावी वर्षों में निर्धन होने या निर्धन बने रहने की अधिक संभावना जताता है। असुरक्षा का निर्धारण परिसंपत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती अवसरों के रूप में जीविका खोजने के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है। इसके अलावा, इसका विश्लेषण प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद आदि मामलों में इन समूहों के समक्ष विद्यमान बड़े जोखिमों के आधार पर किया जाता है। अतिरिक्त विश्लेषण इन जोखिमों से निपटने की उनकी सामाजिक और आर्थिक क्षमता के आधार पर किया जाता है। वास्तव में, जब सभी लोगों के लिए बुरा समय आता है, चाहे कोई बाढ हो या भूकंप या फिर नौकरियों की उपलब्धता में कमी, दूसरे लोगों की तुलना में अधिक प्रभावित होने की बड़ी संभावना का निरूपण ही असुरक्षा है।

प्रश्न 22.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय असमानताएं क्या हैं ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता का एक और पहलू है। प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। यद्यपि 1970 के दशक के प्रारंभ से राज्य स्तरीय निर्धनता में सुदीर्घकालिक कमी हुई है, निर्धनता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। हाल के अनुमान दर्शाते हैं कि 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम है। दूसरी ओर, निर्धनता अब भी उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश की एक गंभीर समस्या है। इसकी तुलना में केरल, जम्मू व कश्मीर, आंध्र प्रदेश, गुजरात राज्यों में निर्धनता में कमी आई है।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय ग्रामीण बेरोज़गारी उन्मूलन विधेयक (NREGA) की, गरीबी उन्मूलन में सहायक प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय बेरोज़गारी उन्मूलन विधेयक की मुख्य विशेषताएं हैं-

  1. यह विधेयक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। यह विधेयक 600 जिलों में लागू करने का प्रस्ताव है जिससे निर्धनता को हटाया जा सके।
  2. प्रस्तावित रोज़गारों का एक तिहाई रोज़गार महिलाओं के लिए आरक्षित है।
  3. कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोज़गार भत्ते का हकदार होगा।

प्रश्न 24.
निर्धनता के समक्ष निरूपाय दो सामाजिक तथा दो आर्थिक समुदायों के नाम लिखिए। इस प्रकार के समुदाय के लिए और अधिक बुरा समय कब आता है ?
उत्तर-
निर्धनता के समक्ष निरूपाय दो सामाजिक समुदायों के नाम हैं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार जबकि आर्थिक समुदाय में ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियप्त मज़दूर परिवार हैं। इन समुदायों के लिए और अधिक बुरा समय तब आता है जब महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को भी सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुंच से वंचित किया जाता है।

प्रश्न 25.
भारत में निर्धनता को कम करने के किन्हीं तीन उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सरकार द्वारा निर्धनता को कम करने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम अपनाए हैं

  1. राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना, 2005 को सितंबर में पारित किया गया। यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है।
  2. दूसरा, राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम है जिसे 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था।
  3. प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक रोजगार सृजन योजना है, जिसे 1993 में आरंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।

प्रश्न 26.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की किन्हीं तीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मुख्य विशेषताएं हैं-

  1. सार्वजनिक वितरण – प्रणाली भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है।
  2. राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह अनाज की एक अनुबंधित मात्रा निकटवर्ती राशन की दुकानों से खरीद सकता है।
  3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सस्ता अनाज पहुंचाना था।

प्रश्न 27.
परिवारों के सदस्यों के मध्य आय की असमानता किस प्रकार प्रतिबिंबित होती है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परिवार के विभिन्न सदस्यों की आय भिन्न-भिन्न होती है तो यह आय की असमानता को प्रतिबिंबित करती है। उदाहरण के लिए एक परिवार में 5 सदस्य हैं। उनकी आय का विवरण निम्नलिखित है-

परिवार के सदस्य मासिक आय (₹ में)
1 40,000
2 25,000
3 20,000
4 10,000
5 3,000

उपरोक्त तालिका में स्पष्ट है कि इस परिवार के सदस्यों के बीच आय की असमानता अधिक है। पहले सदस्य की आय जहां ₹ 40,000 मासिक है वहीं पाँचवें सदस्य की आय ₹ 3,000 मासिक है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

प्रश्न 28.
भारत में निर्धनता उन्मूलन के लिए विकसित किए गए किन्हीं पांच कार्यक्रमों पर नोट लिखिए।
उत्तर-
भारत में निर्धनता विरोधी पांच कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-

  1. प्रधानमंत्री रोजगार योजना-इसे 1993 में प्रारंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।
  2. ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1995 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।
  3. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-इसे 1999 में आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।
  4. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना-इसे 2000 में आरंभ किया गया जिसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्रारंभिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
  5. अंत्योदय अन्न योजना-यह योजना दिसंबर, 2000 में शुरू की गई थी जिसके अंतर्गत लक्षित वितरण प्रणाली में आने वाली निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई है।

प्रश्न 29.
“दो अग्रभागों पर असफलता : आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाना तथा जनसंख्या नियंत्रण के कारण निर्धनता का चक्र स्थिर है।” इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
निम्नलिखित कारणों से निर्धनता का चक्र स्थिर है।

  1. राज्यों की असमान वृद्धि दरें।
  2. औद्योगिक की दर का जनसंख्या वृद्धि दर से कम होना।
  3. शहरों की ओर प्रयास।
  4. ऋण-ग्रस्तता के ऊंचे स्तर।
  5. सामाजिक बंधन।
  6. भूमि का असमान वितरण।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण कैसे होता है ? .
उत्तर-
योजना आयोग ने “गरीबी रेखा की भौतिक उत्तरजीविता” (Physical survival) की संघटना को छठी योजना तक अपनाया, जिसके अनुसार उसने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक दिन में एक व्यक्ति के लिए 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों के लिए एक दिन में 2100 कैलोरी की न्यूनतम पौषिक आवश्यकताओं के आधार पर परिभाषित किया। इस कैलोरी अन्तर्ग्रहण को फिर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय में परिवर्तित किया जाता है। योजना आयोग को एक विधि एक अध्ययन समूह, जिसमें डी० आर, गाडगिल, पी० एस० लोकनाथ, बी० एन० गांगुली और अशोक मेहता थे, ने सुझाई। इस समूह ने राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि 1960-61 कीमतों पर ₹ 20 प्रति व्यक्ति प्रति मास निजी उपभोग व्यय न्यूनतम निर्वाह स्तर है। यह राशि चौथी योजना के लिए निश्चित की गई। बाद की योजनाओं में कीमतों के बढ़ने से यह राशि ऊँचे स्तर पर निश्चित की गई जो उन योजनाओं में गरीबी रेखा निर्धारित की गई। छठी योजना में ₹ 77 प्रति व्यक्ति प्रति मास ग्रामीण जनसंख्या के लिए ₹ 88 प्रति व्यक्ति मास शहरी जनसंख्या के लिए गरीबी रेखा का स्तर निर्धारित किया। इस आधार पर 1977-78 में 50.82 प्रतिशत ग्रामीण तथा 38.19 शहरी जनसंख्या निर्धन थी। दोनों को इकट्ठा कर लेने पर कुल जनसंख्या 48.13 प्रतिशत निर्धन थी।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा अपने 55वें दौर के सर्वेक्षण (जुलाई 1999-जून 2000) में उपभोक्ता व्यय के सम्बन्ध में उपलब्ध कराए गए अद्यतन वृहद् नमूना सर्वेक्षण आँकड़ों के अनुसार 30 दिवसीय प्रत्यावहन के आधार पर देश में गरीबी अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में 27.09 प्रतिशत अनुमानित है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात में वर्ष 1973-74 में 54.54% से निरन्तर गिरावट आई है जो वर्ष 1991-2000 में 27.09 प्रतिशत के स्तर तक पहँच गई। इस तरह, देश में अभी भी लगभग 20 करोड़ ग्रामीण जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत कर रही है। यद्यपि देश में गरीबी में व्यापक स्तर पर गिरावट आई है। फिर भी ग्रामीण गरीबी अनुपात अभी भी उड़ीसा, बिहार तथा उत्तरी पूर्व राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक है।

प्रश्न 2.
निर्धनता को दूर करने के उपाय बताएं।
उत्तर-
ये उपाय निम्न हैं

1. पूँजी निर्माण की दर को बढ़ाना (High Rate of Capital Formation)-यह तो सब जानते हैं कि पूँजी निर्माण की दर जितनी ऊँची होगी, साधारणतया आर्थिक विकास भी उतनी ही तीव्र गति से सम्भव हो सकेगा। इसका कारण यह है कि विकास के प्रत्येक कार्यक्रम के लिए चाहे उसका सम्बन्ध कृषि की उत्पादकता में वृद्धि लाने से हो अथवा औद्योगीकरण या शिक्षा या स्वास्थ्य की व्यवस्था बढ़ने से हो, अधिकाधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। यदि पर्याप्त मात्रा में पूँजी उपलब्ध है तो विकास का कार्य ठीक प्रकार से चल सकेगा अन्यथा नहीं। अतः देश में पूँजी निर्माण की ओर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। पूँजी निर्माण के लिए आवश्यक है कि लोग अपनी कुल आय को वर्तमान उपभोग पर व्यय न करके उसके एक भाग को बचाएँ और उसे उत्पादन कार्यों में विनियोग करें अथवा लगाएं। इस दृष्टि से हमें चाहिए कि हर ढंग से लोगों को प्रोत्साहित करें कि वे उपभोग के स्तर को सीमित करें। फिजूलखर्चों से बचें और आय के अधिकाधिक भागों को बचाकर उत्पादन क्षेत्र में लगाएँ। देश में साख मुद्रा और कर सम्बन्धी नीतियों में ठीक परिवर्तन लाकर पूँजी निर्माण की दर को ऊपर उठाया जा सकता है।

2. उत्पादन नीतियों में सुधार (Improved Methods of Production) उत्पादन की आधुनिक विधियाँ और साज समान को अपनाना चाहिए, तभी उत्पादन की मात्रा में अधिकाधिक वृद्धि लाकर लोगों का जीवन-स्तर ऊपर उठाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करते समय हमें अपनी विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। केवल उन्नत देशों की नकल से काम नहीं चलेगा। कारण, उनकी और हमारी परिस्थितियों में बहुत बड़ा अन्तर है। हमें चाहिए कि ऐसे नए तरीकों और साज-समान को अपनाएँ जिनमें अपेक्षाकृत बहुत अधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता न पड़ती हो और श्रम की अधिक खपत हो सकती हो।

3. न्यायोचित वितरण (Better Distribution)-पूँजी-निर्माण की दर को ऊँचा करने तथा उत्पादन के नए तरीकों को अपनाने से उत्पादन को मात्रा में निश्चय ही भारी वृद्धि होगी। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि लाने से ही सर्वसाधारण की ग़रीबी दूर न होगी, उनका जीवन स्तर ऊपर न उठ सकेगा। साथ ही उसके ठीक विभाजन व वितरण के लिए भी आर्थिक व्यवस्था करना आवश्यक है जिससे आय और सम्पत्ति की विषमता घटे और देश में आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण सम्भव हो सके। हमें ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे जिन लोगों की आय बहुत कम है, उन की आय बढ़े और उन्हें अधिक लाभप्रद अवसर मिलें और साथ ही जिससे धन का संचय एक स्थान पर न होने पाए तथा समृद्धिशालियों के साधनों में अपेक्षाकृत कमी हो।

4. जनसंख्या पर नियन्त्रण (Population Control)-देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए हमें एक और कार्य करना होगा। वह है तेज़ी से बढ़ती हुई देश की भारी जनसंख्या पर नियन्त्रण करना। जब लोगों की आय और व्यय का स्तर नीचा होता है और जनसंख्या में वृद्धि का क्रम ऊँचा होता है तो आर्थिक विकास की गति में भारी रुकावट पैदा होती है। कारण, ऐसी परिस्थिति में श्रमिकों को बढ़ती हुई संख्या के लिए उपभोक्ता पदार्थों (Consumer’s goods) की आवश्यकताएँ और लाभप्रद रोज़गार की कमी है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती

निर्धनता : भारत के सम्मुख एक चुनौती PSEB 9th Class Economics Notes

  • निर्धनता – निर्धनता एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी मानव को अपने जीवनयापन के लिए भोजन वस्त्र और मकान जैसी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करने में भी कठिनाई होती है।
  • सामाजिक अपवर्जन – सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं लाभों और अवसरों से अपवर्तित करते हैं, जिनका उपभोग दूसरे करते हैं।
  • असुरक्षा – निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कछ विशेष समुदाओं या व्यक्तियों के भावी वर्गों से निर्धनता या निर्धन वने रहने की अधिक समानता जताना है।
  • निर्धनता के माप –
    • निरपेक्ष निर्धनता
    • सापेक्ष निर्धनता।
  • सापेक्ष निर्धनता – इससे अभिप्राय विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना के आधार पर निर्धनता से है।
  • निरपेक्ष निर्धनता – इससे अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है।
  • निर्धनता रेखा – निर्धनता रेखा वह रेखा है जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं।
  • कैलोरी – यह एक व्यक्ति को एक दिन के खाने से मिलने वाली ऊर्जा है।
  • निर्धनता के कारण –
    •  निम्न आर्थिक समृद्धि
    • भारी जनसंख्या दबाव
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता उन्मूलन माप –
    • आर्थिक समृद्धि का विकास
    • निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
  • निर्धनता के वैश्विक माप – विश्व के लगभग 1/5 भाग के निर्धन भारत में रहते हैं।
  • कैलोरी मापदंड – इस विचारधारा के अनुसार भारत में ग्रामीण क्षेत्र के प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रतिदिन प्राप्त होनी चाहिए।
  • दैनिक भोगीश्रम – वह श्रमिक जो दैनिक आधार पर मज़दूरी प्राप्त करता है।
  • उपभोग – उपयोगिता का भक्षण उपभोग है।
  • आय – निवेश या कार्य के नियमित तौर पर किए जाने पर प्राप्त होने वाली मुद्रा आय है।
  • निवेश – आगे उत्पादन करने के लिए किया जाने वाला व्यय निवेश है।
  • असमानता – असमानता से अभिप्राय धन व आय के असमान वितरण से है।
  • लिंग विभेद – लिंग, जाति या अन्य आधारों पर होने वाला विभेद लिंग विभेद है।
  • भारत के निर्धन राज्य – ओडिशा व बिहार।