PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 3 नगरीय समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 3 नगरीय समाज

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाजों में आवास हीनता के कारण नहीं हैं-
(क) आवास की कमी
(ख) आवास का अधिकार मिलना
(ग) भूमि का अधिकार मिलना .
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में लोगों का स्थान परिवर्तन कहलाता है :
(क) नगरीय समाज
(ख) ग्रामीण समाज
(ग) नगरवाद
(घ) नगरीकरण।
उत्तर-
(घ) नगरीकरण।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3.
नगरीय समाज में झुग्गी-झोंपड़ी (स्लमज) की वृद्धि का कारण है :
(क) निर्धनता
(ख) बढ़ती जनसंख्या
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) दोनों में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) (क) तथा (ख) दोनों।

प्रश्न 4.
कौन-सी सामाजिक समस्याएं नगरीय समाज में पाई जाती हैं?
(क) अपराध
(ख) नशीली दवाओं का सेवन
(ग) शराबखोरी
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज में आवासहीनता का क्या कारण है ?
(क) आवास की कमी
(ख) स्वयं निर्भरता
(ग) विकास
(घ) मंडीकरण।
उत्तर-
(क) आवास की कमी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. नगरीय समाज आकार में ……………. तथा स्वभाव में ………………. होता है।
2. नगरीय समाज अपने ………………. श्रम विभाजन के लिए जाना जाता है।
3. नगरीय समाज में सामाजिक नियन्त्रण के ………………. साधन पाए जाते हैं।
4. आवास समस्या ………………. के नाम से भी जानी जाती है।
5. ………………. नगरीय जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
6. ………………. एवम ………………. नगरीय समाज की समस्याएं हैं।
उत्तर-

  1. बड़े, जटिल
  2. विशेषीकरण
  3. औपचारिक
  4. बेघर होना
  5. नगरवाद
  6. रहने की समस्या, झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. नगरीय समाज आकार में छोटे होते हैं।
2. व्यापार, उद्योग व वाणिज्य नगरीय आर्थिकता के मुख्य स्तम्भ हैं।
3. नगरीय समाज में सामाजिक गतिशीलता के अवसर कम हैं।
4. महानगर आवास समस्या के शिकार हैं।
5. झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां ग्रामीण समाज का अंग होती हैं।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आवास की कमी — मलिन बस्तियाँ
नगरीय जीवन की शैली — शहरी समाज
अस्तरीय आवास संरचना — विजायतीयता
विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों का अतः मिश्रण — नगरवाद
रस्मी संबंध — आवासहीनता
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
आवास की कमी — आवासहीनता
नगरीय जीवन की शैली — नगरवाद
अस्तरीय आवास संरचना — मलिन बस्तियाँ
विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों का अतः मिश्रण — विजायतीयता

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. नगर का वह भू-खण्ड जहां निर्धनता तथा निम्न स्तर की जीवन दशाएं हों उसे क्या कहते हैं ? ।
उत्तर-झुग्गी-झोंपड़ी या झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां।

प्रश्न 2. भीड़-भाड़, गलियों का दोषपूर्ण होना, समुचित प्रकाश व्यवस्था का न होना आदि किस प्रकार के समाज की विशेषताएं हैं ?
उत्तर-ये सभी नगरीय समाज के लक्षण हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3. बड़े स्तर पर श्रम का विभाजन एवं विशिष्टीकरण किस समाज में पाया जाता है ?
उत्तर-नगरीय समाज में।

प्रश्न 4. वह दृष्टिकोण जहाँ वैयक्तिक हित, सामूहिक हितों पर हावी हो जाते हैं क्या कहलाता है ?
उत्तर-व्यक्तिवादिता (Individualism).

प्रश्न 5. अधिक व्यक्तियों में रहकर भी सबसे अनजान रहना क्या कहलाता है ?
उत्तर-औपचारिकता।

प्रश्न 6. नगरीय समाज में कौन-से संबंध प्रभावी होते हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज में औपचारिक संबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 7. जनजातीय समाज में किस प्रकार की आर्थिकता पाई जाती है ?
उत्तर-जनजातीय समाज में निर्वाह आर्थिकता देखने को मिलती है।

प्रश्न 8. नगरीय जनसंख्या का आकार क्या है ?
उत्तर-भारत में 37.7 करोड़ लोग या 32% जनसंख्या नगरों में रहती है।

प्रश्न 9. भारतीय जनगणना के अनुसार, नगरीय क्षेत्र क्या है ?
उत्तर- भारत की जनगणना के अनुसार वह क्षेत्र नगरीय समाज है जहां पर Municipality, कार्पोरेशन, कैन्ट क्षेत्र या Notified Town Area Committee है।

प्रश्न 10. नगरीय जनसंख्या का आकार क्या है ?
उत्तर-देखें प्रश्न 8.

प्रश्न 11. भारत में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों (स्लमज़) के लिए प्रयोग किए जाने वाले भिन्न नाम लिखें।
उत्तर-झुग्गी-झोपड़ी या मलिन बस्तियां।

प्रश्न 12. स्लमज़ में दो प्रकार के आपराधिक व्यवहारों के नाम लिखें।
उत्तर-अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, नशाखोरी, मद्यपान इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
नगरीय समाज से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नगरीय समाज वह समाज होता है जिसमें लोगों के बीच औपचारिक संबंध होते हैं, जहां अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों के लोग इकट्ठे रहते हैं, जो आकार में बड़े होते हैं व जहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर कृषि कार्यों में लगी होती है।

प्रश्न 2.
गैर-कृषि व्यवसाय की चर्चा करें।
उत्तर-
वह पेशे जो कृषि से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं होते उन्हें गैर कृषि पेशे कहा जाता है। ऐसे पेशे नगरों में आम मिल जाते हैं जहां की 75% जनसंख्या ग़ैर-कृषि पेशे अपनाती है। उदाहरण के लिए नौकरी, उद्योग, व्यापार इत्यादि।

प्रश्न 3.
व्यक्तिवाद क्या है ?
अथवा
व्यक्तिवादिता
उत्तर-
जब व्यक्ति केवल अपने बारे, अपनी सुख-सुविधाओं इत्यादि के बारे में सोचता है तो इस प्रक्रिया को व्यक्तिवाद कहते हैं। इसमें व्यक्ति को समाज या किसी अन्य की परवाह नहीं होती। वह केवल अपने बारे ही सोचता है तथा केवल अपने लाभ के ही कार्य करता है।

प्रश्न 4.
आप आवास से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आवास का अर्थ उस इमारत से है जिसमें लोग रहते हैं। यह वह भौतिक संरचना है जो हमें आँधी, तूफान, बारिश से सुरक्षा प्रदान करती है। आवास का स्तर कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि परिवार का आकार, आय, जीवन जीने का स्तर इत्यादि।

प्रश्न 5.
भीड़-भाड़ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भीड़-भाड़ का अर्थ है काफ़ी अधिक लोगों का होना। ग्रामीण लोग नगरों की तरफ जाते हैं जिस कारण नगरों की जनसंख्या बढ़ जाती है व वहां रहने के स्थान की कमी हो जाती है। एक ही कमरे में बहुत-से लोगों को रहना पड़ता है। इसे ही भीड़-भाड़ कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 6.
स्लमज (झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां) क्या होती है ?
उत्तर-
स्लमज वे बस्तियां होती हैं जहाँ मज़दूर व निर्धन लोग गंदे हालातों में तथा बिना किसी सुविधाओं के रहते हैं। साधनों की कमी के कारण इन्हें गंदे हालातों व झुग्गी-झोंपड़ियों में रहना पड़ता है जिसका उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
आप नगरीकरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें ग्रामीण लोग नगरों की तरफ जाते हैं, वहाँ बस जाते हैं तथा नगरों का विकास हो जाता है। इसमें लोग न केवल अपने गांव छोड़ देते हैं बल्कि अपने विचार, आदर्श, आदतें इत्यादि भी बदल देते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
नगरीय समाज की दो विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  • जनसंख्या का आकार-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि यहां की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। अधिक रोजगार की मौजूदगी, शिक्षा, स्वास्थ्य व मनोरंजन सुविधाओं की मौजूदगी ग्रामीण लोगों को नगरों की तरफ आकर्षित करती है।
  • गैर-कृषि पेशे-नगरीय समाज की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर-कृषि पेशों में लगी होती है। यहां श्रम विभाजन व विशेषीकरण की प्रधानता होती है।

प्रश्न 2.
आवास की समस्या के तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • घरों की कमी-नगरों में रहने वाले घरों की कमी होती है जिस कारण वहां घरों की समस्या बनी रहती है।
  • निर्धनता-नगरों की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है जिनमें बहुत से लोग निर्धन होते हैं जो घर नहीं खरीद सकते। इस कारण घरों की समस्या बनी रहती है।
  • अधिक जनसंख्या-जिस तेज़ी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है उतनी तेज़ी से नए घर नहीं बढ़ रहे हैं। इस वजह से भी घरों की समस्या बनी रहती है।

प्रश्न 3.
नगरीय समाज में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों (स्लमज) के लिए ज़िम्मेदार तीन कारणों का उल्लेख करें।
अथवा
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां (स्लमज) नगरीय समाज की सामाजिक समस्या है। विवेचना कीजिए।
उत्तर-

  • ग्रामीण-नगरीय प्रवास-ग्रामीण लोग नगरों में काम की तलाश में प्रवास करते हैं परन्तु उनके पास नगरों में रहने का स्थान नहीं होता। इस कारण उन्हें मलिन बस्तियों में रहना पड़ता है।
  • नगरीकरण-नगरों में बहुत-सी सुविधाएं मिलती हैं जिस कारण ग्रामीण लोग इनकी तरफ आकर्षित होते हैं। इन लोगों को रहने का अन्य स्थान नहीं मिलता जिस कारण इन्हें झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है।
  • निर्धनता-निर्धनता झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों को बढ़ाने में सहायता करती है। लोगों के पास अपना घर खरीदने के लिए पैसा नहीं होता जिस कारण वे मलिन बस्तियों में रहते हैं।

प्रश्न 4.
नगरीय समाज में दो मुख्य परिवर्तनों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • नगरीय समाज में धीरे-धीरे पेशे बढ़ रहे हैं। पहले कुछ ही पेशे मौजूद होते थे परन्तु औद्योगीकरण व पढ़ने-लिखने के कारण पेशे बढ़ रहे हैं। लोग उन्हें अपना रहे हैं तथा बेरोज़गारी को दूर कर रहे हैं।
  • नगरीय समाज में व्यक्तिवादिता बढ़ रही है। अब लोगों को यह भी नहीं पता होता कि उनके पड़ोस में कौन रह रहा है। उन्हें केवल अपने हितों के बारे में पता होता है जिस कारण वह कुछ भी करने को तैयार होते हैं।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
नगरीय समाज एक ऐसा समाज है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैला होता है, जहाँ की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है, जहाँ बहुत-से पेशों की भरमार होती है; जहाँ लोगों में काफ़ी अधिक विविधता होती है, जहाँ व्यक्तिवादिता का बोलबाला होता है; जहाँ सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन होते हैं तथा जहाँ पारिवारिक रिश्तों का काफी कम महत्त्व होता है। यहाँ पर केंद्रीय परिवार पाया जाता है जहाँ स्त्रियों को उच्च स्थिति प्राप्त होती है। इस समाज में व्यक्ति केवल स्वयं के लिए ही जीता है तथा व्यक्तिवादिता के साथ ही जीता है।

प्रश्न 6.
आप नगरीय समाज से क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर-

  • जनसंख्या का आकार-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि यहां की जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। अधिक रोजगार की मौजूदगी, शिक्षा, स्वास्थ्य व मनोरंजन सुविधाओं की मौजूदगी ग्रामीण लोगों को नगरों की तरफ आकर्षित करती है।
  • गैर-कृषि पेशे-नगरीय समाज की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां की 75% या अधिक जनसंख्या गैर-कृषि पेशों में लगी होती है। यहां श्रम विभाजन व विशेषीकरण की प्रधानता होती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाज पर विस्तारपूर्वक टिप्पणी लिखें।
अथवा
नगरीय समाज को परिभाषित कीजिए। नगरीय समाज की मुख्य विशेषताओं की विस्तृत रूप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में शहर तथा शहरों में रहने वाले लोग तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में आजकल के समय में 5000 से भी अधिक शहर तथा कस्बे हैं। शहरों में बढ़ रही जनसंख्या के कारण वहां के लोगों का जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ है। मध्य तथा उच्च वर्ग के लोगों की आवश्यकताएं तो पूर्ण हो जाती हैं परन्तु निम्न वर्ग के लोगों के लिए अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करना काफ़ी मुश्किल हो जाता है।

साधारण शब्दों में शहर एक ऐसा औपचारिक तथा फैला हुआ समुदाय है जिसका निर्धारण एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर तथा शहरी विशेषताओं के आधार पर होता है। शब्द ‘शहर’ अंग्रेज़ी भाषा के शब्द CITY का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ है नागरिकता। इस प्रकार अंग्रेजी भाषा का शब्द URBAN लातिनी भाषा के शब्द URBANUS से निकला है जिसका अर्थ भी शहर ही है। शहर शब्द के अर्थ को अच्छी तरह समझने के लिए अलगअलग विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है :

जनसंख्या के आधार पर परिभाषा (Definition on the basis of Population)-अमेरिका के जनगणना ब्यूरो (Census Bureau of America) के अनुसार शहर ऐसे स्थान को कहते हैं जहां की जनसंख्या 25,000 अथवा इससे अधिक हो। इस प्रकार मित्र में 11,000 तथा फ्रांस में 2,000 से ऊपर जनसंख्या वाले स्थानों को शहर का नाम दिया जाता है। हमारे देश भारत में 5,000 से अधिक जनसंख्या वाले समुदाय को शहरी क्षेत्र कहा जाता है जहां की जनसंख्या का घनत्व 400 अथवा इससे अधिक हो तथा 75% या इससे अधिक लोग गैर कृषि के कार्यों में लगे हुए हों।

पेशे के आधार पर परिभाषाएं (Definitions on the basis of Occupation)-ऐसा क्षेत्र जहां लोगों का मुख्य पेशा कृषि नहीं बल्कि और कुछ होता है, उसको शहर माना जाता है।

  • विलकाक्स (Willcox) के अनुसार, “शहर का अर्थ उन सभी क्षेत्रों से है जहां प्रति वर्ग मील में जनसंख्या का घनत्व 1000 व्यक्तियों से अधिक हो तथा वहां व्यावहारिक रूप में कृषि न की जाती हो।”
  • बर्गल (Bergal) के अनुसार, “शहर एक ऐसी संस्था है जहां के अधिकतर निवासी कृषि के कार्यों के अतिरिक्त
    और उद्योगों में लगे हों।”
  • आनंद कुमार (Anand Kumar) के अनुसार, “शहरी समुदाय वह जटिल समुदाय है जहां अधिक जनसंख्या होती है, द्वितीय संबंध होते हैं जो कि साधारणतया पेशागत वातावरणिक अंतरों पर आधारित होते हैं।”
  • लइस ममफोर्ड (Lewis Mumford) के अनुसार, “शहर वह केन्द्र है जहां समुदाय की अधिक-से-अधिक शक्ति तथा संस्कृति का केन्द्रीकरण होता है।”
  • लुइसवर्थ (Louisworth) के अनुसार, “शहर में सामाजिक भिन्नता वाले लोग एक अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में रहते हैं।”
  • थिऔडोरसन तथा थिऔडोरसन (Theodorson and Theodorson) के अनुसार, “शहर एक ऐसा समुदाय है जिसमें गैर कृषि पेशों की प्रमुखता, जटिल श्रम विभाजन से पैदा हुआ विशेषीकरण तथा स्थानीय सरकार की औपचारिक व्यवस्था मिलती है।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि शहरी समुदाय आकार में बड़े होते हैं, द्वितीय संबंधों की प्रधानता होती है, बहुत अधिक पेशे होते हैं, श्रम विभाजन, विशेषीकरण तथा सामाजिक गतिशीलता जैसे लक्षण पाए जाते हैं।

विशेषताएं (Characteristics) हमारे देश में जिस भी क्षेत्र की जनसंख्या 5000 से अधिक हो तथा 75% से अधिक जनसंख्या गैर कृषि के कार्यों में लगी हो, उसको नगर का नाम दिया जाता है। नगरीय समाज की कुछ विशेषताएं अथवा लक्षण होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. अधिक जनसंख्या (Large Population)-नगरीय समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या में घनत्व का अर्थ है कि प्रतिवर्ग कि०मी० में कितने लोग रहते हैं। दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व 9200 लोगों के करीब है। कम या अधिक जनसंख्या के आधार पर नगरीय को अलग-अलग वर्गों जैसे कि छोटे नगर, मध्यम नगर अथवा महानगरों में बांटा जा सकता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि जैसे महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ से भी अधिक है जबकि भारत के कई राज्यों की जनसंख्या एक करोड़ से भी कम है। नगरों में औद्योगिक घरानों, शिक्षा संस्थाओं, व्यापारिक केन्द्रों तथा वाणिज्य केन्द्रों की भरभार होती है जिस कारण नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण ही नगर में निर्धनता, बेरोज़गारी, अपराध, भुखमरी, झुग्गी झोपड़ी बस्तियों इत्यादि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

2. रहने के स्थान की कमी (Less place of Living)–नगरों की एक और मुख्य विशेषता रहने के स्थानों की कमी होती है। यह इस कारण है कि नगरों की जनसंख्या बहुत अधिक होती है। बड़े-बड़े नगरों में तो यह बहुत ही गंभीर समस्या है। बहुत-से गरीब लोग सड़कों के किनारे, पेड़ों के नीचे या फिर मुर्गियों की झोंपड़ियों में अपनी रातें व्यतीत करते हैं। नगरों में रहते हुए मध्य वर्गीय परिवार एक छोटे से घर में ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं जहां न तो बच्चों के लिए खेलने की जगह होती है तथा न ही बच्चों के सोने या पढ़ने के लिए अलग कमरा होता है। इस कारण ही कई बार बच्चे वह सब भी देख लेते हैं जोकि उन्हें नहीं देखना चाहिए। इस प्रकार नगरों में रहने के लिए स्थान बहुत ही कम होता है।

3. द्वितीय तथा औपचारिक संबंध (Secondary and Formal Relations)-नगरीय समाजों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण सभी लोगों के आपस में प्राथमिक संबंध या आमने-सामने के संबंध नहीं होते हैं। नगरों में लोगों में अधिकतर औपचारिक संबंध विकसित होते हैं। यह संबंध अस्थायी होते हैं। व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर और व्यक्तियों से संबंध स्थापित कर लेते हैं तथा आवश्यकता पूर्ण होने के बाद इन संबंधों को खत्म कर लेते हैं। इस प्रकार द्वितीय तथा औपचारिक संबंध नगरीय समाज का आधार होते हैं।

4. अलग-अलग पेशे (Different Occupations) नगर अलग-अलग पेशों के आधार पर ही विकसित हैं। नगरों में बहुत-से उद्योग, पेशे तथा संस्थाएं पाई जाती है जिनमें बहुत-से व्यक्ति अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं। डॉक्टर, मैनेजर, इंजीनियर विशेषज्ञ मज़दूर तथा परिश्रम करने वाले मजदूर इत्यादि ऐसे हज़ारों पेशे या कार्य शहरी समाजों में मौजूद होते हैं। इन अलग-अलग पेशों की पूर्ति के लिए अधिक जनसंख्या का होना बहुत आवश्यक है।

5. आर्थिक वर्ग विभाजन (Division in Economic Classes)–नगरीय समुदाय में व्यक्ति की जाति, धर्म अथवा रंग को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता परन्तु जनसंख्या को आर्थिक आधारों पर कई आर्थिक वर्गों में बांटा जाता है। शहरों में जनसंख्या को केवल पूँजीपति तथा मज़दूर दो वर्गों में ही नहीं बाँटा जाता बल्कि बहुत-से छोटे-छोटे वर्ग तथा उपवर्ग भी आर्थिक स्थिति के आधार पर पाए जाते हैं। वर्गीय आधार पर उच्च-निम्न का अंतर भी शहरों में पाया जाता है।

6. प्रतियोगिता (Competition)-नगरीय समुदाय में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के मौके प्राप्त होते हैं। नगरों में पढ़े-लिखे तथा योग्य व्यक्ति भी बहुसंख्या में मिल जाते हैं इस कारण ही शहरों की शैक्षिक संस्थाओं में दाखिला प्राप्त करने के लिए, नौकरी प्राप्त करने के लिए तथा नौकरी में उन्नति प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रतियोगिता होती है। औद्योगिकीकरण के विकसित होने से तो नगरों में प्रतियोगिता और बढ़ गई है।

7. व्यक्तिवादिता (Individualism)-नगरीय समुदाय में रहने वाले लोगों में व्यक्तिवादिता का गुण भी देखने को मिलता है। नगरों में लोगों के बीच सामुदायिक भावना की जगह व्यक्तिवादिता की भावना देखने को मिल जाती है। नगरों में व्यक्ति केवल अपने तथा अपने हितों के बारे में सोचता है। व्यक्ति अपने जीवन का एक ही उद्देश्य मानता है तथा वह है अधिक-से-अधिक पैसे इकट्ठे करना तथा अधिक-से-अधिक सुख सुविधाओं के साधन प्राप्त करना। व्यक्ति में इस व्यक्तिवादिता का गुण केवल आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पारिवारिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी यह आ चुका है।

8. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरों में अधिक सामाजिक गतिशीलता पाई जाती है। नगरों में लोग अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए या अच्छी नौकरी के लिए एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लोगों में स्थानीय गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक गतिशीलता देखने को भी मिल जाती है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उसके जीवन में कई बार समाज में उसकी स्थिति उच्च या निम्न होती रहती है।

9. स्त्रियों की उच्च स्थिति (Higher Status of Women) नगरीय समाजों में स्त्रियों की स्थिति ग्रामीण समाजों की तुलना में काफी उच्च होती है। नगरीय समाजों में हम स्त्रियों को बिना किसी प्रतिबंध के पुरुषों की तरह ही प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हुए देख सकते हैं। नगरों में पर्दा प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों को शिक्षा न देना, स्त्रियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध इत्यादि बहुत ही कम या न के बराबर होते हैं। इस कारण ही नगरों में स्त्रियों को अपना व्यक्तित्व विकसित करने का मौका प्राप्त हो जाता है। नगरों में स्त्रियों को मर्दो के जैसे प्रत्येक क्षेत्र में मों जैसी भूमिकाएं निभाते हुए देखा जा सकता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

10. कम पारिवारिक नियंत्रण (Less Family Control)-नगरीय समाजों के प्राथमिक संबंध कम होते हैं तथा सामुदायिक भावना की भी कमी होती है। नगरों में व्यक्ति को खाना बनाने, कपड़े धोने तथा बच्चों की देख-रेख के लिए क्रेचों इत्यादि की सुविधा प्राप्त हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए परिवार के और सदस्यों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इस कारण ही नगरों में स्त्रियां घर के कार्य छोड़ कर दफ्तरों में नौकरियां करती हैं। इस का कारण यह है कि स्त्रियों की बच्चों तथा परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों को और संस्थाओं ने संभाल लिया है। इस प्रकार पारिवारिक संबंधों का स्थान पैसे ने ले लिया है। इस कारण ही परिवार की अपने सदस्यों पर नियंत्रण में कमी आयी है।

11. सामाजिक समस्याओं का केन्द्र (Centre of Social Problems)-नगरीय समाजों ने भी कई प्रकार की समस्याओं को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आजकल के समाजों में जितनी भी समस्याएं हैं, उनमें से बहुत-सी समस्याएं नगरों के कारण ही हैं। अपराध, भ्रष्टाचार, शराबखोरी, निर्धनता, बेरोज़गारी, पारिवारिक विघटन, अलग-अलग वर्गों में संघर्ष नैतिक कीमतों में कमी इत्यादि जैसी बहुत-सी समस्याओं का केन्द्र नगर ही है। शहरों की जनसंख्या तथा शहरों का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है तथा इस कारण सभी समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं।

प्रश्न 2.
आवास से क्या अभिप्राय है ? आवास के उत्तरदायी विभिन्न कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
आवास का अर्थ है वह इमारत जिसमें लोग रहते हैं। इसका अर्थ है वह भौतिक संरचना जो लोगों को तूफान, अंधेरी, बारिश इत्यादि से सुरक्षा प्रदान करती है। अगर आवास न हो तो लोगों को खुले आसमान के नीचे रहना पड़ेगा तथा वह किसी भी प्रकार से अपनी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे। किसी के भी आवास का स्तर कई कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि परिवार की आय कम है या अधिक है, परिवार छोटे आकार का है या बड़े आकार का है, उनका जीवन जीने का तरीका क्या है तथा परिवार का शिक्षा स्तर कितना है।

हमारा देश भारत अभी भी लाखों लोगों की मूलभूत घर की आवश्यकता पूर्ण नहीं कर पा रहा है। रहने का स्थान व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। स्वतन्त्रता के 69 वर्ष बाद भी हमारा देश घरों की समस्या, विशेषतया निर्धन लोगों के लिए से जूझ रहा है। देश की बढ़ती नगरीय जनसंख्या ने इस समस्या को और बढ़ाया है। काम की तलाश में ग्रामीण जनता का नगरों की तरफ प्रवास भी नगरीय आवास तथा मूलभूत सुविधाओं पर काफ़ी अधिक प्रभाव डालता है। इस कारण नगरों में माँग तथा सप्लाई में अंतर बढ़ जाता है तथा आवास या घरों की कमी हो जाती है।

पिछले कुछ समय से नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है कि प्रत्येक व्यक्ति को घर प्रदान करना लगभग नामुमकिन हो गया है। इस कारण आवास की समस्या, जिसे आवासहीनता भी कहा जाता है, नगरों में काफ़ी बड़ी समस्या बनती जा रही है। नगरों में रहने वाले स्थानों पर इतना दबाव होता है कि बहुत-से लोग सड़कों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन व झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में रहने को बाध्य होते हैं। यह कहा जाता है कि नगरों की आधी जनसंख्या या तो गंदे घरों में रहती है या उन्हें अपनी आय का लगभग 20% घर के किराएं के रूप में देना पड़ता है। बड़े नगर जैसे कि मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली व चेन्नई इस समस्या से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं।

आवास की समस्या के कई कारण होते हैं, जैसे कि-

  • घरों की कमी।
  • भूमि की मलकीयत।
  • बेघर व्यक्ति की व्यक्तिगत स्थिति।
  • घर की मलकीयत।

प्रश्न 3.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती क्या है ? विस्तारपूर्वक टिप्पणी करें।
उत्तर-
हमारे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इस जनसंख्या के बढ़ने से हमारे नगरों में बहुत-सी समस्याएं बढ़ रही हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या जो कि हमें बहुत अधिक तंग कर रही है वह है शहरों में रहने की समस्या। शहरों में लोगों को रहने के लिए घर नहीं मिलते तथा अगर मिलते भी हैं तो वह भी बहुत महंगे रेटों पर मिलते हैं जोकि एक आदमी या ग़रीब व्यक्ति खरीद नहीं सकता है, परन्तु उनको अपने कार्य के लिए शहरों में रहना ही पड़ता है। इसलिए उन्हें झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। इस प्रकार झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां नगरों में एक महत्त्वपूर्ण तथा गंभीर समस्या बनकर उभरी है। उनको झुग्गियां, चालें, झोंपड़पट्टी, बस्तियां इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है।

इस तरह हम झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि, “गंदे घरों या इमारतों का वह समूह जहां ज़रूरत से अधिक लोग जीवन न जीने के हालातों में रहते हैं, जहां निकासी का सही प्रबन्ध न होने के कारण या सुविधाओं के न होने के कारण लोगों को गंदे वातावरण में रहना पड़ता है तथा जिससे उन के स्वास्थ्य और समूह में रहने वाले लोगों की नैतिकता पर ग़लत असर पड़ता है।”

इस तरह से झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती नगर में एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां रहने का स्थान बहुत ही घटिया होता है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों को हम एक सामाजिक तथ्य के रूप में भी देख सकते हैं। इस प्रकार झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में हम निम्नलिखित चीज़ों को आसानी से देख सकते हैं

  1. जनसंख्या का अधिक घनत्व (More density of population)
  2. लोगों की भीड़ (Crowd of people)
  3. गंदे पानी की निकासी न होना (No Sanitation)
  4. गंदे घर (Substandard Houses)
  5. अपराध (Crime)
  6. निर्धनता (Poverty)।

इस तरह से झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में बहुत-से लोग इकट्ठे मिल कर जीवन न जीने वाले वातावरण में रहते हैं, जहां बहुत अधिक निर्धनता, गंदे घर होते हैं, जहां गंदे पानी की निकासी नहीं होती है। यह ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां कि व्यक्ति जीवन नहीं जी सकता तथा जहां का वातावरण इस लायक नहीं होता कि व्यक्ति अच्छी तरह जीवन जी सके।

2001 के Census के अनुसार झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती वह है-

  • जिसको कि राज्य सरकार, स्थानीय सरकार अथवा केन्द्रशासित प्रशासन द्वारा झुग्गी-झोंपड़ी बस्ती घोषित कर दिया गया है।
  • वह तंग क्षेत्र जहां कम-से-कम 300 लोग रहते हैं अथवा जहां 60-70 घर गंदे ढंग से बने हुए हैं, जहां का वातावरण स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता है, जहां का Infrastructure बहुत घटिया होता है तथा जहां पीने के पानी और निकासी की समस्या होती है।

झुग्गी-झोंपड़ी की विशेषताएं (Characteristics of Slums)-

1. रहने के स्थान की समस्या (Problem of place of living)—झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की सबसे पहली महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन में रहने के स्थान मिलने की समस्या होती है। लोग नगरों में कार्य की तलाश में अपने गांव के घर बार छोड़ कर आते हैं। उनको नगर में कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहने का स्थान या घर नहीं मिलता है। इन बस्तियों में एक ही कमरे में 8-10 व्यक्ति बहुत ही बुरे हालातों में रहते हैं तथा खाना बनाते हैं। इस प्रकार से इन बस्तियों में रहने के स्थानों की समस्या होती है।

2. अपराधों से भरपूर (Full of Crimes)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां अपराधों से भरपूर होती हैं। यहां रहने वाले लोगों में से अधिकतर लोगों के व्यवहार विघटित होते हैं। विघटित व्यवहार में हम अपराध वेश्यावृत्ति, बाल अपराध, आत्म हत्या, पारिवारिक विघटन, शराबनोशी, नशे का प्रयोग इत्यादि ले सकते हैं । झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में नैतिकता नाम की कोई चीज़ नहीं होती है। वहां रहने वाले लोगों में अनपढ़ता अधिक होती है तथा गलत व्यवहार की तरफ खुलापन अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में आमतौर पर अपराध की तरफ जाने के मौके व्यक्ति के लिए अधिक होते हैं।

3. सुविधाओं की कमी (Lack of Facilities)–झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में सुविधाओं की कमी होती है। यह बस्तियां आमतौर पर गैर-कानूनी होती हैं तथा किसी ओर की भूमि पर कब्जा करके बनायी होती है। गैर-कानूनी होने के कारण यहां सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधाएं जैसे कि बिजली, पानी, नालियां, सड़कें, गंदे पानी की निकासी इत्यादि भी नहीं मिलती है। इन सुविधाओं के न मिलने के कारण यहां रहने वाले लोगों के पास सुविधाओं की कमी होती है जिस कारण उन्हें नर्क जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है। यहां का वातावरण रहने लायक नहीं होता है तथा गंदगी से भरपूर होता है। गंदा पानी तथा बिजली का न होना इन बस्तियों की प्रमुख विशेषता है। बच्चे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं तथा कई बार मर भी जाते हैं। यहां पैदा होने वाले बच्चों को गम्भीर बीमारियां लगने के मौके काफ़ी अधिक होते हैं। गंदे पानी की निकासी नहीं होती तथा स्वास्थ्य सुविधाएं भी बहुत कम होती हैं।

4. बहुत अधिक जनसंख्या (Over Populated)-आमतौर पर झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बड़े-बड़े नगरों जैसे कि दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि में मिलती हैं। लोग गाँवों में अपने घर बार छोड़कर या छोटे शहरों से अच्छे कार्य की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं। शहरों में कोई न कोई कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहने की अच्छी जगह नहीं मिलती है। अच्छी जगह वाले फ्लैट या घर का किराया बहुत अधिक होता है तथा आम आदमी इतना अधिक किराया नहीं दे सकता है। इस कारण उसको रहने की सस्ती जगह ढूंढ़नी पड़ती है तथा सस्ती जगह तो बस्तियों में ही मिलती है लोग बहुत अधिक संख्या में यहां रहने के लिए आ जाते हैं तथा यहां की जनसंख्या बढ़ जाती है यहां तक कि एक ही कमरे में 8-10 लोग रहते भी हैं तथा खाना भी बनाते हैं।

5. सभ्य समाज से दूर (Away from Civilized Society)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहने वाले लोग सभ्य समाज से दूर गंदे वातावरण में रहते हैं। उन लोगों का सभ्य समाज से कोई सम्पर्क का साधन नहीं होता है। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को यह भी पता होता है कि यहां रहना उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है तथा यहां का वातावरण काफ़ी गंदा और दूषित है। परन्तु उन लोगों के पास वहां रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। वह तमाम उम्र ही गरीबी, बेरोज़गारी, अपराधों से संघर्ष करते रहते हैं तथा अपने आपको बेसहारा महसूस करते हैं। अच्छी सुविधाएं तो उनसे बहुत ही दूर होती हैं।

6. समस्याओं की भरमार (Full of Problems)-झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में प्रत्येक प्रकार की सामाजिक समस्या मिल जाती है। गरीबी, बेरोज़गारी, वेश्यावृत्ति, अपराध, बाल अपराध, हिंसा, नशों का प्रयोग, झुग्गी-झोंपड़ी आदतें, विघटित व्यवहार इत्यादि ऐसी समस्याएं हैं जो यहां मिल जाती हैं। रोज़ पैसे कमाने वाले मज़दूर रेहड़ी खींचने वाले, छोटे-मोटे चोर अपराधी इत्यादि यहां पर रहते हैं। एक ही कमरे में माता-पिता, बच्चे इत्यादि रहते हैं। छोटी आयु में ही बच्चे वह सब कुछ देख लेते हैं जोकि उन्हें नहीं देखना चाहिए। फिर वह उन कार्यों में प्रति खींचे चले जाते हैं तथा छोटी उम्र में ही अपराध की तरफ बढ़ जाते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बड़े शहरों में मिलने वाले वह स्थान हैं जहां हज़ारों लोग कम स्थान पर गंदे वातावरण में रहते हैं। इन बस्तियों में अपराधों तथा समस्याओं की भरमार होती है तथा यहां का वातावरण अच्छा जीवन जीने के लायक नहीं होता है।

प्रश्न 4.
नगरीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का विस्तारपूर्वक वर्णन करो।
उत्तर-
आधनिक समय में नगरों में प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन आ रहे हैं क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहे हैं, उसी तरह से नगरीय व्यवस्था भी बदल रही है। नगरीय परिवार तथा अन्य संस्थाओं की बनावट
और कामों पर नए हालातों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। अब हम देखेंगे कि नगरों के ढांचे और कामों में किस तरह के परिवर्तन आए हैं

1. पारिवारिक ढांचे में परिवर्तन (Change in Family Structure)—शुरू के समाजों में संयुक्त परिवार की ज्यादा महानता रही है। पुराने ज़माने में हर जगह पर संयुक्त परिवार पाए जाते थे। पर आधुनिक समय में परिवार के ढांचे में बहुत बड़ा परिवर्तन यह आया है कि अब संयुक्त परिवार काफ़ी हद तक खत्म हो रहे हैं और इनकी जगह केन्द्रीय परिवार आगे आ रहे हैं। केन्द्रीय परिवार के आने से समाज में भी कुछ परिवर्तन आए हैं।

2. परिवारों का टूटना (Breaking up of Families)-पुराने समय में लड़की के जन्म को श्राप माना जाता था। उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए, औरत ने भी शिक्षा लेनी प्रारम्भ कर दी। पहले विवाह के बाद औरत सिर्फ़ पति पर ही निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफ़ी औरतें आर्थिक पक्ष से आजाद हैं और वह पति पर कम निर्भर हैं। कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज्यादा है। इन हालातों में पारिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहंकार एक-दूसरे से नीचा नहीं होता। इसके कारण दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण हैं जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे काफ़ी बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

3. शैक्षिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Educational Functions) समाज में परिवर्तन आने के साथ इसकी सभी संस्थाओं में भी परिवर्तन आ रहे हैं। परिवार जो भी काम पहले अपने सदस्यों के लिए करता था उनमें भी बहुत परिवर्तन आया है। शुरू के प्राचीन समाजों में बच्चा शिक्षा परिवार में ही लेता था और शिक्षा भी परिवार के परम्परागत काम से सम्बन्धित होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी और जो काम पिता करता था वही काम पुत्र भी करता था और पिता के अधीन पुत्र भी उस काम में माहिर हो जाता था। धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण बच्चा पढ़ाई करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में जाने लग गया और इसके कारण वह अब परिवार के परम्परागत कामों से दूर होकर कोई अन्य कार्य अपनाने लग गया है। इस तरह परिवार का शिक्षा का परम्परागत काम उसे कट कर शिक्षण संस्थाओं के पास चला गया है।

4. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Economic Functions)-पहले समय में परिवार आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र होता था। रोटी कमाने का सारा काम परिवार ही करता था ; जैसे-आटा पीसने का काम, कपड़ा बनाने का काम, आदि। इस तरह जीने के सारे साधन परिवार में ही उपलब्ध थे। पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके साथ-साथ परिवार के यह सारे काम बड़े-बड़े उद्योगों ने ले लिए हैं, जैसे कपड़ा बनाने का काम कपड़े की मिलें कर रही हैं, आटा चक्की पर पीसा जाता है इत्यादि। इस तरह परिवार के आर्थिक काम कारखानों में चले गए हैं। इस तरह आर्थिक उत्पादन की ज़िम्मेदारी परिवार से दूसरी संस्थाओं ने ले ली है।

5. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन (Changes in Religious Functions)-पुराने समय में परिवार का एक मुख्य काम परिवार के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा देना होता है। परिवार में ही बच्चे को नैतिकता और धार्मिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं। पर जैसे-जैसे नई वैज्ञानिक खोजें और आविष्कार सामने आएं, वैसे-वैसे लोगों का दृष्टिकोण बदलकर धार्मिक से वैज्ञानिक हो गया। पहले ज़माने में धर्म की बहुत महत्ता थी, परन्तु विज्ञान ने धार्मिक क्रियाओं की महत्ता कम कर दी है। इस प्रकार परिवार के धार्मिक काम भी पहले से कम हो गए हैं।

6. सामाजिक कामों में परिवर्तन (Changes in Social Functions)-परिवार के सामाजिक कार्यों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है। पुराने समय में पत्नी अपने पति को परमेश्वर समझती थी। पति का यह फर्ज़ होता था कि वह अपनी पत्नी को खुश रखे। इसके अलावा परिवार अपने सदस्यों पर सामाजिक नियन्त्रण रखने का भी काम करता था, पर अब सामाजिक नियन्त्रण का कार्य अन्य एजेंसियां, जैसे पुलिस, सेना, कचहरी आदि, के पास चला गया है। इसके अलावा बच्चों के पालन-पोषण का काम भी परिवार का होता था। बच्चा घर में ही पलता था और बड़ा हो जाता था और घर के सारे सदस्य उसको प्यार करते थे। पर धीरे-धीरे आधुनिकीकरण के कारण औरतों ने घर से निकलकर बाहर काम करना शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश के लिए क्रैच आदि खुल गए, जहां बच्चों को दूसरी औरतों द्वारा पाला जाने लग गया। इस तरह परिवार के इस काम में भी कमी आ गई है।
इसके अतिरिक्त पहले परिवार में बुजुर्गों की रक्षा होती थी, उनका पूरा सम्मान होता था पर आजकल पति-पत्नी दोनों काम करते हैं और उनकी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि उनके पास बुजुर्गों का ध्यान रखने के लिए समय ही नहीं होता। आजकल तो बुजुर्गों के लिए भी Old Age Homes खुल गए हैं, जहां उनका ध्यान बढ़िया तरीके से रखा जाता है। यहां बुजुर्ग अन्य बुजुर्गों को मिलते हैं और अपना समय आराम से व्यतीत कर लेते हैं इस तरह परिवार के सामाजिक कामों में काफ़ी कमी आई है।

7. पारिवारिक एकता में कमी (Lack in Family Unity)—पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे, पर आजकल परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए हैं। हर किसी के अपने-अपने आदर्श हैं। कोई एकदूसरे की दखल अन्दाजी पसन्द नहीं करता। इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं, खाते-पीते हैं पर एक-दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते उनमें एकता का अभाव होता है।

8. व्यक्तिवादी दृष्टिकोण (Individualistic Approach)-आजकल के समय में समाज के सभी सदस्यों में दृष्टिकोण व्यक्तिगत हो गए हैं। प्रत्येक सदस्य केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचता है। प्राचीन समय में तो ग्रामीण समाजों में परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को दबा देता था। व्यक्तिवादिता पर सामूहिकता हावी थी। व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छा की कोई कीमत नहीं होती थी। परन्तु आज कल के शहरी समाजों में ये चीजें बिलकुल ही बदल गई हैं। व्यक्ति अपनी इच्छा के आगे परिवार की इच्छा को दरकिनार कर देता है। उसके लिए समाज की इच्छा का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। उसके लिए केवल उसकी इच्छा का ही महत्त्व है। व्यक्ति का दृष्टिकोण अब व्यक्तिवादी हो गया है।

9. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the status of Women) शहरी स्त्रियों की स्थिति में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है। पहले ग्रामीण समाजों में स्त्रियों का जीवन नर्क से भी बदतर था। उसको सारा जीवन घर की चारदीवारी में ही रहना पड़ता था। सारा जीवन उसको परिवार तथा पति के अत्याचार सहन करने पड़ते थे। उसकी स्थिति नौकर या गुलाम जैसी थी परन्तु शहरी परिवारों की स्त्री पढ़ी-लिखी स्त्री है। पढ़ लिखकर वह दफ्तरों, फैक्टरियों, स्कूलों, कॉलेजों में नौकरी कर रही है तथा आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है। वह परिवार पर बोझ नहीं है बल्कि परिवार को चलाने वाली सदस्य है। यदि पति को कुछ हो जाए तो वह ही परिवार का पेट पालती है। इस कारण उसकी स्थिति मर्द के समान हो गई है। अब वह पति तथा ससुराल वालों के जुल्म नहीं सहती है, बल्कि तलाक लेकर पति से अलग होना पसन्द करती है। वैसे तो सरकार ने स्त्रियों की स्थिति ऊँचा करने के लिए कई प्रकार के कानून बनाए हैं। यदि पति या उसके घर वाले स्त्री का शोषण करते हैं तो वह उनको जेल में कैद भी करवा सकती है। आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर तथा साक्षर स्त्री को अपने अधिकारों का पता चल गया है तथा वह अब अपने अधिकारों के लिए समाज से लड़ सकती है। इस प्रकार शहरी परिवार की स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आ गया है तथा इस कारण ही शहरी परिवारों में तलाकों की संख्या बढ़ रही है।

9. रहने-सहने का उच्च स्तर (Higher Standard of Living) शहरी परिवारों में रहने-सहने का स्तर भी काफ़ी ऊँचा हो गया है। शहरी परिवार आकार में छोटे होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। इस कारण ही इसको केन्द्रीय परिवार कहा जाता है। ग्रामीण समाजों में व्यक्ति की सारी आय परिवार के पालन-पोषण में ही खर्च हो जाती है। बेकार सदस्य भी घर में बैठकर खाते हैं जिस कारण परिवार के रहने-सहने का स्तर काफ़ी निम्न होता है परन्तु शहरी परिवार आकार में छोटे होते हैं जिस कारण व्यक्ति की सम्पूर्ण आय में से कुछ पैसा बच जाता है। इसके साथ ही उसकी पत्नी भी नौकरी करती है या फिर कोई कार्य करती है जिस कारण परिवार की आर्थिक स्थिति काफ़ी अच्छी हो जाती है। अच्छी आर्थिक स्थिति के कारण परिवार ऐशो आराम के सारे सामान खरीद लेते हैं जिस कारण परिवार के रहने-सहने का स्तर काफ़ी ऊँचा हो जाता है।

10. सम्पत्ति का बराबर विभाजन (Equal distribution of Property) संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या काफ़ी अधिक होती है जिस कारण उनको परिवार की सम्पत्ति में से कुछ हिस्सा ही मिल पाता है। वह हमेशा ही ज्यादा हिस्से के लिए लड़ते रहते हैं परन्तु शहरी परिवारों से सदस्यों की संख्या कम होती है। घर में एक या दो बच्चे होते हैं। इस कारण ही परिवार में सम्पत्ति के विभाजन के समय कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होता है। आराम से ही सम्पत्ति का बराबर विभाजन हो जाता है। सभी बच्चों को समान हिस्सा मिल जाता है।

प्रश्न 5.
जनजातीय, ग्रामीण व नगरीय समाज में अंतर को विस्तार सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज 1

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS) –

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरों के लिए कौन-सा आधार सही है ?
(क) बड़ा आकार
(ख) अधिक जनसंख्या घनत्व
(ग) व्यक्तिवादिता
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सी विशेषता नगरीय समाज की नहीं है ?
(क) कम जनसंख्या घनत्व
(ख) खुला संगठन
(ग) जटिल जीवन
(घ) द्वितीय सामाजिक सम्बन्ध।
उत्तर-
(क) कम जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 3.
हमारे देश की कितनी जनसंख्या नगरों में रहती है ?
(क) 68%
(ख) 32%
(ग) 70%
(घ) 30%.
उत्तर-
(ख) 32%.

प्रश्न 4.
भारत की जनसंख्या कितनी है ?
(क) 102 करोड़
(ख) 112 करोड़
(ग) 121 करोड़
(घ) 131 करोड़।
उत्तर-
(ग) 121 करोड़।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 5.
नगरों का जनसंख्या घनत्व कम-से-कम …………. व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए।
(क) 200
(ख) 300
(ग) 100
(घ) 400.
उत्तर-
(क) 200.

प्रश्न 6.
………. नगरीय रहन-सहन का तरीका दर्शाता है।
(क) नगरवाद
(ख) नगरीकरण
(ग) संस्कृतिकरण
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(क) नगरवाद।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. 2011 में ……………. लोग नगरों में रहते थे।
2. …………….. समाज में आधुनिक सामाजिक जीवन की सभी सुविधाएं मौजूद होती हैं।
3. नगरीय समाजों में गतिशीलता ……………. होती है।
4. नगरीय समाजों में ……………… का महत्त्व होता है।
5. नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के ……………… साधन मिलते हैं।
6. नगरों में ……………. परिवार मिलते हैं।
उत्तर-

  1. 37.7 करोड़
  2. नगरीय
  3. अधिक
  4. व्यक्तिवादिता
  5. औपचारिक
  6. केंद्रीय।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. नगरों की 30% जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में लगी होती है।
2. नगरों में विशेषीकरण व श्रम विभाजन की कमी होती है।
3. नगरीय समाजों की जनसंख्या में विविधता पाई जाती है।
4. नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं।
5. नगरों में केंद्रीय परिवारों के स्थान पर संयुक्त परिवार सामने आ रहे हैं।
6. नगरों की प्रमुख समस्याएं झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों का होना है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. नगरीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-जब गांव के लोग नगरों में रहने के लिए चले जाएं तथा वहां के आदर्श, मूल्य, आदतें इत्यादि अपना लें तो इसे नगरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2. नगरवाद क्या है ?
उत्तर-नगरवाद नगरों में जीवन जीने का तरीका है जिसमें बाहर से आने वाले लोग उसे अपना लेते हैं।

प्रश्न 3. नगर क्या है ?
उत्तर-वह भौगोलिक क्षेत्र जहां 75% से अधिक जनसंख्या गैर-कृषि में लगी हो, उसे नगर कहते हैं।

प्रश्न 4. नगर की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-नगरों में श्रम विभाजन व विशेषीकरण पाया जाता है।

प्रश्न 5. कस्बा क्या होता है ?
उत्तर-जो क्षेत्र गाँव से बड़ा हो परन्तु नगर से छोटा हो उसे कस्बा कहते हैं।

प्रश्न 6. देश की कितनी जनसंख्या नगरों में रहती है ?
उत्तर-देश की लगभग 32% जनसंख्या या 37.7 करोड़ जनता नगरों में रहती है।

प्रश्न 7. नगर की जनसंख्या कम-से-कम कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-नगर की जनसंख्या कम-से-कम 5000 होनी चाहिए।

प्रश्न 8. नगरों का जनसंख्या घनत्व कितना होना चाहिए ?
उत्तर-नगरों का जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए।

प्रश्न 9. नगरीय समाजशास्त्र का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर-जार्ज सिम्मेल को नगरीय समाजशास्त्र का पिता माना जाता है।

प्रश्न 10. नगरीय समाज आकार में कैसे होते हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज आकार में बड़े होते हैं क्योंकि वहां की जनसंख्या अधिक होती है।

प्रश्न 11. नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के कौन-से साधन होते हैं ?
उत्तर-नगरों में सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन होते हैं जैसे कि पुलिस, कानून, न्यायालय इत्यादि।

प्रश्न 12. नगरों में किस प्रकार के परिवार मिलते हैं ?
उत्तर-नगरों में केंद्रीय परिवार मिलते हैं जो आकार में छोटे होते हैं।

प्रश्न 13. नगरीय अर्थव्यवस्था किस पर आधारित होती है ?
उत्तर-नगरीय अर्थव्यवस्था गैर-कृषि पेशों पर आधारित होती है।

प्रश्न 14. नगरीय समाज में कौन-से मुख्य मुद्दे हैं ?
उत्तर-नगरीय समाज के दो मुख्य मुद्दे हैं-घरों की समस्या व झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां।

प्रश्न 15. आवास की समस्या का एक कारण लिखो।
उत्तर-काफ़ी अधिक जनसंख्या आवास की समस्या का प्रमुख कारण है।

प्रश्न 16. स्लमज के अलग-अलग नाम बताएं।
उत्तर-झुग्गी-झोंपड़ी, चाल, अहाता, झोपड़पट्टी इत्यादि।

प्रश्न 17. झुग्गी-झोंपड़ी की एक प्रमुख विशेषता बताएं।
उत्तर-काफी अधिक निर्धनता तथा बेरोज़गारी झुग्गी-झोंपड़ी की प्रमुख विशेषताएं हैं।

प्रश्न 18. 2011 की जनगणना के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र क्या है?
उत्तर- सारे स्थान जैसे नगरपालिका, नगर निगम, सैनिक छावनी बोर्ड, कस्बा जिनमें कई विशेषताएं होती हैं, अधिसूचित क्षेत्र की परिधि में आते हैं।

प्रश्न 19. लूइसवर्थ ने नगरवाद की कौन-सी चार विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर-लूइसवर्थ के अनुसार अस्थायीपन, प्रदर्शन, गुमनामी व वैयक्तिकता नगरवाद की चार विशेषताएं हैं।

प्रश्न 20. नगरीय समाज की अर्थव्यवस्था किस पर आधारित होती है?
उत्तर-नगरीय समाज की अर्थव्यवस्था मुख्यत: गैर कृषि व्यवसायों पर आधारित होती है।

प्रश्न 21. 1991 में भारत के कितने लोग झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहते थे?
उत्तर-1991 में भारत के 46.78 मिलियन लोग झुग्गी-झोंपडी बस्तियों में रहते थे।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस क्षेत्र को नगरीय क्षेत्र माना जाता है ?
उत्तर-
वह क्षेत्र जहां पर

  • कम-से-कम जनसंख्या 5000 हो।
  • 75% से अधिक जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में लगी हो।
  • जनसंख्या घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।

प्रश्न 2.
किसे नगरीय समाजशास्त्र का जनक माना जाता है तथा क्यों ?
उत्तर-
जार्ज सिम्मेल को नगरीय समाजशास्त्र का जनक माना जाता है। ऐसा इस कारण है कि उन्होंने नगरीय समाजशास्त्र के क्षेत्र में काफी अधिक योगदान दिया विशेषतया उनकी 1903 में छपी पुस्तक ‘The Metropolis and Mental Life’ के कारण।

प्रश्न 3.
नगरीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब गांवों की जनसंख्या नगरों की तरफ जाना शुरू कर दे तो इसे नगरीकरण कहते हैं। यह द्वि-पक्षीय प्रक्रिया है। इसमें न केवल लोग गांवों से नगरों की तरफ प्रवास करते हैं बल्कि इससे उनके पेशे, आदतों, व्यवहार, मूल्यों इत्यादि में भी परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 4.
नगरवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
नगरवाद नगरीय समाज का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है जो यहां के लोगों की पहचान तथा व्यक्तित्व को ग्रामीण व जनजातीय समाज से अलग करता है। यह जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है। यह नगरीय संस्कृति के प्रसार तथा नगरीय समाज के उद्विकास के बारे में बताता है।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज की सामाजिक विविधता।
उत्तर-
नगरीय समाज में अलग-अलग धर्मों, जातियों, संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के साथ मिल कर रहते हैं। इनके बीच अन्तक्रियाओं के कारण नई संस्कृति का विकास होता है। यह लोग अलग-अलग स्थानों से आकर नगरों में रहते हैं तथा अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। इसे ही सामाजिक विविधता कहते हैं।

प्रश्न 6.
श्रम विभाजन।
उत्तर-
नगरीय समाज में काफ़ी अधिक श्रम विभाजन देखने को मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति सभी कार्य नहीं कर सकता जिस कारण कार्य को विभाजित कर दिया जाता है। व्यक्ति जिस कार्य को सबसे बढ़िया ढंग से करता है उसे ही वह कार्य दिया जाता है। इसे ही श्रम विभाजन कहा जाता है।

प्रश्न 7.
नगरीय परिवार।
उत्तर-
नगरीय परिवार संयुक्त नहीं बल्कि केंद्रीय परिवार होते हैं जिसमें माता-पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। इनमें कम सहयोग होता है तथा नियन्त्रण भी कम होता है। इन परिवारों में माता-पिता के पास अपने बच्चों के साथ व्यतीत करने के लिए काफी कम समय होता है।

प्रश्न 8.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां।
उत्तर-
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां वह कालोनी होती है जिसे प्रवासी मज़दूरों ने बसाया होता है जो इतने निर्धन होते हैं कि वह अपना कार्य भी नहीं कर सकते। इन बस्तियों में रहने वाले लोग गंदे हालातों में रहते हैं क्योंकि उनके पास साधनों की कमी होती है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां नगरीय जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न ।

प्रश्न 1.
शहर का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
साधारण शब्दों में, शहर एक ऐसा रस्मी तथा फैला हुआ समुदाय है जिसका निर्धारण एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर तथा शहरी विशेषताओं के आधार पर होता है। शहर शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द CITY का हिन्दी रूपान्तर है। CITY शब्द लातीनी भाषा के शब्द CIVITAS से बना है जिसका अर्थ है नागरिकता। इस प्रकार शब्द URBAN भी लातीनी भाषा के शब्द URBANUS से निकला है जिसका अर्थ भी शहर ही है।

प्रश्न 2.
शहर की दो परिभाषाएं।
उत्तर-

  1. विलकाक्स (Willcox) के अनुसार, “शहर का अर्थ उन सभी क्षेत्रों से है जहां प्रति वर्ग मील में
  2. आनन्द कुमार (Anand Kumar) के अनुसार, “शहरी समुदाय वह जटिल समुदाय है जहां अधिक जनसंख्या होती है, द्वितीय सम्बन्ध होते हैं जोकि साधारणतया पेशागत वातावरणिक अन्तरों पर आधारित होते हैं।”

प्रश्न 3.
नगरीकरण।।
उत्तर-
नगरीकरण की प्रक्रिया से शहरों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होती है। शहर अचानक विकसित नहीं होते हैं, बल्कि ग्रामीण समुदाय धीरे-धीरे शहरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इस प्रकार जब ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे परिवर्तनों के कारण जब शहरों की विशेषताओं का विकास हो जाता है तो इन परिवर्तनों को नगरीकरण कहते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 4.
शहरी समाज-अधिक जनसंख्या।
उत्तर-
शहरी समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता वहां जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या के घनत्व का अर्थ है कि प्रति वर्ग किलोमीटर में कितने लोग रहते हैं। दिल्ली की जनसंख्या का घनत्व 9200 के करीब है। कम या अधिक जनसंख्या के आधार पर ही शहरों को अलग-अलग वर्गों जैसे कि छोटे शहर, मध्यम शहर अथवा महानगर में बांटा जा सकता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि महानगरों की जनसंख्या 1 करोड़ से भी अधिक है जबकि भारत में 13 राज्यों की जनसंख्या 1 करोड़ से भी कम है। शहरों में उद्योगों, शैक्षिक संस्थाओं, व्यापारिक केन्द्रों तथा वाणिज्य केन्द्रों की भरमार होती है जिस कारण शहरों में जनसंख्या का घनत्व काफ़ी अधिक होता है।

प्रश्न 5.
शहरी समाज-द्वितीय तथा औपचारिक सम्बन्ध।
उत्तर-
शहरी समाजों में जनसंख्या काफ़ी अधिक होती है। जनसंख्या के अधिक होने के कारण सभी लोगों के आपसी सम्बन्ध प्राथमिक अथवा आमने-सामने में नहीं होते। शहरों में लोगों में अधिकतर औपचारिक सम्बन्ध विकसित होते हैं। यह सम्बन्ध अस्थायी होते हैं। व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर और व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है तथा आवश्यकता पूर्ण हो जाने के बाद इन सम्बन्धों को ख़त्म कर लेता है। इस प्रकार द्वितीय तथा औपचारिक सम्बन्ध शहरी समाज का आधार होते हैं।

प्रश्न 6.
शहरी समाज-पेशों की भरमार।
उत्तर-
शहर अलग-अलग पेशों के आधार पर ही विकसित हुए हैं। शहरों में बहुत-से उद्योग-धन्धे तथा संस्थाएं पाई जाती हैं जिनमें बहुत-से व्यक्ति अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं। डॉक्टर, मैनेजर, इन्जीनियर, विशेषज्ञ मज़दूर, परिश्रम करने वाले मज़दूर, टीचर, प्रोफेसर, चपड़ासी व्यापारी इत्यादि जैसे अनगिनत कार्य अथवा पेशे शहरी समाजों में मौजूद होते हैं। इन अलग-अलग पेशों की पूर्ति के लिए अधिक जनसंख्या का होना भी बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
शहरी समाज-वर्गों में विभाजन।
उत्तर-
शहरी समुदाय में व्यक्ति की जाति, धर्म अथवा पेशे को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता परन्तु जनसंख्या को आर्थिक आधारों पर कई आर्थिक वर्गों में बांटा जाता है। शहर में जनसंख्या को केवल पूंजीपति तथा मज़दूर दो वर्गों में ही नहीं बांटा जाता बल्कि बहुत-से छोटे-छोटे वर्ग तथा उपवर्ग भी आर्थिक स्थिति के अनुसार पाए जाते हैं। वर्गीय आधार पर उच्च तथा निम्न का अन्तर भी शहरों में पाया जाता है।

प्रश्न 8.
शहरी समाज-अधिक सामाजिक गतिशीलता।
उत्तर-
लाभ प्राप्त करने के लिए अथवा अच्छी नौकरी के लिए एक स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लोगों में स्थानीय गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक गतिशीलता देखने को मिल जाती है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उसके जीवन में कई बार समाज में उसकी स्थिति उच्च अथवा निम्न होती रहती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण तथा शहरी समाज में अन्तर।
उत्तर-

  • ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार होते हैं जिसमें परिवार के सभी सदस्य मिल कर रहते हैं तथा शहरी समाज में केन्द्रीय परिवार पाए जाते हैं जिनमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं।
  • शहरी समाजों में पड़ोस का काफ़ी कम महत्त्व होता है तथा लोग अपने पड़ोसियों को जानते तक नहीं होते हैं। परन्तु ग्रामीण समाजों में पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है तथा बच्चे तो पलते भी वहीं हैं।
  • शहरी समाजों में विवाह को एक धार्मिक संस्कार न मानकर एक समझौता समझा जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है परन्तु ग्रामीण समाजों में विवाह को एक धार्मिक संस्कार समझा जाता है जिसे कभी नहीं तोड़ा जा सकता है।
  • शहरों में अधिक पेशे पाए जाते हैं परन्तु शहरों में कम पेशे पाए जाते हैं। (v) शहरों की जनसंख्या अधिक होती है परन्तु गांवों की जनसंख्या कम होती है।

प्रश्न 10.
नगरवाद।
उत्तर-
नगरवाद नगरीकरण का ही एक रूप है। नगरीकरण ऐसी प्रक्रिया है जो वास्तव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से शहरी अर्थ-व्यवस्था की तरफ परिवर्तन दिखाती है परन्तु नगरवाद की प्रक्रिया में लोगों की प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ से हटकर नगरों की तरफ बढ़ जाती है। वह गांवों को छोड़ कर शहरों की तरफ जाना चाहते हैं तथा यह चाहत ही नगरवाद की प्रक्रिया को उत्साहित करती है।

प्रश्न 11.
शहरी परिवार।
उत्तर-
शहरी परिवार ग्रामीण परिवारों के विपरीत होते हैं। शहरी परिवार संयुक्त नहीं, बल्कि केन्द्रीय परिवार होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। शहरी परिवारों के सदस्यों के बीच के सम्बन्ध ग्रामीण परिवारों की तरह गर्मजोशी से भरपूर नहीं होते। शहरी परिवारों के बहुत-से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए हैं। शहरी परिवार व्यक्ति की सभी ज़रूरतें पूर्ण नहीं करता है। शहरी परिवार को तलाक अथवा दूर जाने से किसी भी समय तोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 12.
शहरी परिवार-सीमित आकार।
उत्तर-
शहरी परिवार आकार में सीमित होते हैं क्योंकि यह केन्द्रीय परिवार होते हैं। केन्द्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना अलग ही केन्द्रीय परिवार बसा लेते हैं। शहरों में हमें बड़े परिवार देखने को नहीं मिलते हैं। कोई विशेष परिवार ही संयुक्त परिवार होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार न होने के कारण तथा केन्द्रीय परिवार होने के कारण इनका आकार सीमित होता है।

प्रश्न 13.
शहरी परिवारों में आ रहे परिवर्तन।
उत्तर-

  1. शहरी परिवार संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवारों में परिवर्तित हो रहे हैं।
  2. परिवार के शैक्षिक कार्य खत्म हो गए हैं तथा यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों इत्यादि ने ले लिए हैं।
  3. परिवार के धार्मिक कार्यों का महत्त्व कम हो गया है तथा लोगों के पास धार्मिक कार्य करने के लिए समय नहीं है।
  4. शहरी परिवार के सदस्यों पर व्यक्तिवादिता हावी हो गई है। व्यक्ति परिवार के स्थान पर केवल अपने बारे ही सोचता है।
  5. शहरी परिवारों में स्त्रियों की स्थिति भी बदल गई है। पढ़ने-लिखने तथा नौकरी करने के कारण उसकी स्थिति ऊंची हो गई है।

प्रश्न 14.
शहरी परिवारों के टूटने के कारण।
उत्तर-

  • पैसे का महत्त्व बढ़ जाने से परिवार बिखरने शुरू हो गए हैं।
  • लोगों में पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से उनकी मानसिकता बदल रही है जिस कारण परिवार टूट रहे हैं।
  • स्वतन्त्रता तथा समानता के आदर्श आगे आ रहे हैं जिस कारण घरों में टकराव बढ़ रहे हैं तथा परिवार टूट रहे हैं।
  • शहरों में सामाजिक गतिशीलता बढ़ गई है। लोग कामकाज करने के लिए घरों को भी छोड़ देते हैं जिस कारण परिवार टूट जाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 15.
विवाह अब धार्मिक संस्कार नहीं है। कैसे ?
उत्तर-
प्राचीन समय में विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि व्यक्ति धर्म की पूर्ति के लिए विवाह करवा रहा है। धर्म के अनुसार पुत्र-प्राप्ति, यज्ञ पूर्ण करने तथा ऋण उतारने व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। इसलिए व्यक्ति इन सभी कार्यों के लिए विवाह करवाता था। जिस स्त्री के साथ वह धार्मिक रीतियों के अनुसार विवाह करवाता था उसको वह तमाम उम्र छोड़ नहीं सकता था। परन्तु आजकल के समय में प्रेम विवाह हो रहे हैं, कचहरी में विवाह हो रहे हैं। अब विवाह को धार्मिक संस्कार नहीं समझा जाता बल्कि समझौता समझा जाता है जिसे किसी भी समय तोड़ा जा सकता है। अब विवाह में धर्म तथा धार्मिक संस्कार वाला महत्त्व खत्म हो गया है। विवाह को अब अच्छा जीवन जीने का साधन समझा जाता है।

प्रश्न 16.
शहरी अर्थव्यवस्था।
अथवा
नगरीय समाज की आर्थिक व्यवस्था पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
औद्योगिक क्रान्ति ने सबसे पहले यूरोप पर प्रभाव डाला तथा फिर एशिया के देशों पर अपना प्रभाव डाला। इससे लोगों ने गांव छोड़कर शहरों में जाना शुरू कर दिया तथा लोगों के आपसी सम्बन्ध बिल्कुल ही बदल गए। समाज ने तेजी से विकास करना शुरू कर दिया। उद्योग तेज़ी से लगने लग गए। मण्डियों का तेजी से विकास शुरू हुआ। इस कारण ही शहरी अर्थव्यवस्था भी विकसित हुई। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था वह होती है जिसमें बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, बड़े-बड़े उद्योग होते हैं, पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण होता है, लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है तथा पेशों की विभिन्नता होती है।

प्रश्न 17.
औद्योगिक अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
शहरी अर्थव्यवस्था को औद्योगिक अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर ही आधारित होती है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए होते हैं जिनमें हजारों लोग कार्य करते हैं। बड़े उद्योग होने के कारण उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। इन बड़े उद्योगों के मालिक निजी व्यक्ति होते हैं। उत्पादन मण्डियों के लिए होता है। यह मण्डियां न केवल देसी बल्कि विदेशी भी होती हैं। कई बार तो उत्पादन केवल विदेशी मण्डियों को ही ध्यान में रखकर किया जाता है। बड़े-बड़े उद्योगों के मालिक अपने लाभ के लिए ही उत्पादन करते हैं तथा मजदूरों का शोषण भी करते हैं।

प्रश्न 18.
श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण।
उत्तर-
शहरी समाजों में पेशों की भरमार तथा विभिन्नता पाई जाती है। प्राचीन समय में परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। सभी कार्य परिवार में ही हो जाया करते थे। परन्तु शहरों के बढ़ने से हज़ारों प्रकार के उद्योग विकसित हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर एक बड़ी फैक्टरी में हज़ारों प्रकार के कार्य होते हैं तथा प्रत्येक प्रकार का कार्य करने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है। उस कार्य को केवल वह व्यक्ति ही कर सकता है जिसे उस कार्य में महारत हासिल है। इस प्रकार शहरों में कार्य अलग-अलग लोगों के पास बंटे हुए होते हैं जिस कारण श्रम विभाजन बहुत अधिक प्रचलित है। लोग अपने-अपने कार्य में माहिर होते हैं तथा इस कारण ही विशेषीकरण का भी बहुत महत्त्व है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण अंग श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण हैं।

प्रश्न 19.
व्यावसायिक भिन्नता।
उत्तर-
प्राचीन समय में परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। उदाहरण के तौर पर गांव में परिवार ही कपास का उत्पादन करता था, कपास से धागा बनाता था तथा धागे को खड्डी पर चढ़ा कर कपड़ा बुनता था। इस ढंग से परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने कार्य में माहिर होता था। उनको कोई भी कार्य करने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था। परन्तु आजकल के समय में, चाहे गांव हो या शहर, प्रत्येक व्यक्ति अपना अलग ही कार्य करता है तथा वह उस कार्य का माहिर होता है। इस प्रकार समाज में मिलने वाले अलग-अलग देशों को व्यक्तियों द्वारा अपनाए जाने को व्यावसायिक भिन्नता का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 20.
शहरी समाज में व्यावसायिक भिन्नता के आधार पर मिलने वाली श्रेणियां।
उत्तर-
व्यावसायिक भिन्नता के आधार पर शहरी समाज में तीन प्रकार की श्रेणियां पाई जाती हैं तथा वे हैं-

  1. निम्न श्रेणी (Lower Class)
  2. EZT Suit (Middle Class)
  3. उच्च श्रेणी (Higher Class)।

प्रश्न 21.
निम्न श्रेणी।
उत्तर-
औद्योगिक क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्ति, मजदूर, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले मज़दूर, शहरों में रेहड़ी रिक्शा खींचने वाले लोग इत्यादि इस श्रेणी का हिस्सा होते हैं। उनका जीवन स्तर निम्न होता है क्योंकि वह अपने हाथों से कार्य करते हैं तथा उनके पास अपना परिश्रम बेचने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है। उनकी आय भी निम्न होती है जिस कारण यह लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते तथा इनके बच्चे भी निर्धन ही रह जाते हैं। यह लोग अनपढ़ होते हैं तथा उनको कानूनी सुरक्षा का पता नहीं होता है। वह अलग-अलग जातियों, धर्मों, इत्यादि से सम्बन्ध रखते हैं तथा वह कार्य भी अलग-अलग ही करते हैं। यह लोग गन्दी बस्तियों में रहते हैं। इस वर्ग को असंगठित वर्ग भी कहते हैं।

प्रश्न 22.
मध्य वर्ग।
उत्तर-
अमीर व्यक्तियों तथा निर्धन व्यक्तियों के बीच एक और श्रेणी आती है जिसको मध्य श्रेणी का नाम दिया जाता है। इस श्रेणी में साधारणतया नौकरी पेशा श्रेणी अथवा छोटे दुकानदार तथा व्यापारी होते हैं। यह श्रेणी उच्च श्रेणीके लोगों के पास नौकरी करती है अथवा सरकारी नौकरी करती है। छोटे-बड़े व्यापारी, छोटे-बड़े दुकानदार, क्लर्क, चपड़ासी, छोटे बड़े अफ़सर, छोटे-बड़े किसान, ठेकेदार, ज़मीन-जायदाद का कार्य करने वाले लोग, कलाकार इत्यादि सभी इस श्रेणी में आते हैं। उच्च श्रेणी इस श्रेणी की सहायता से ही निम्न श्रेणी पर अपना प्रभुत्त्व कायम रखती है।

प्रश्न 23.
उच्च श्रेणी।
उत्तर-
उच्च श्रेणी में बहुत अमीर व्यक्ति आ जाते हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति, बडे-बडे नेता इस श्रेणी में आ जाते हैं। उद्योगपतियों के पास पैसा होता है। वह अपने पैसे को निवेश करके बड़े-बड़े उद्योग स्थापित करते हैं, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग के लोगों को वहां पर नौकरी देते हैं। उद्योगपति का पैसे निवेश करने का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना होता है। बड़े-बड़े नेताओं के हाथ में देश की सत्ता होती है जिस कारण यह उच्च श्रेणी में होते हैं। इन सभी का जीवन स्तर ऊंचा होता है तथा रहने-सहने का स्तर भी काफ़ी ऊंचा होता है। अधिक पैसा तथा सत्ता हाथ में होने के कारण यह उच्च श्रेणी का हिस्सा होते हैं।

प्रश्न 24.
गन्दी बस्तियां।
उत्तर-
गन्दी बस्तियों को हम ढंग से परिभाषित कर सकते हैं कि गन्दी बस्तियां गन्दे घरों अथवा इमारतों का वह समूह होता है जहां आवश्यकता से अधिक लोग जीवन न जीने के हालातों में रहते हैं, जहां गन्दे पानी की निकासी का ठीक प्रबन्ध न होने के कारण अथवा सुविधाओं के न होने के कारण लोगों को गन्दे वातावरण में रहना पड़ता है तथा जिससे उनके स्वास्थ्य और समूह में रहने वाले लोगों की नैतिकता पर बुरा असर पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 25.
गन्दी बस्तियों की विशेषताएं।
उत्तर-

  • गन्दी बस्तियों में रहने के स्थान की समस्या होती है क्योंकि यहां पर काफ़ी अधिक जनसंख्या में लोग रहते हैं।
  • गन्दी बस्तियां अपराधों से भरपूर होती हैं क्योंकि यहां पर रहने वाले लोगों के व्यवहार बहुत विघटित होते हैं।
  • यहां पर रहने वाले लोगों के पास सुविधाओं की काफ़ी कमी होती है क्योंकि ये बस्तियां गैर-कानूनी ढंग से बनी होती हैं।
  • यहां की जनसंख्या काफी अधिक होती है क्योंकि निम्न श्रेणी के लोग शहर में कार्य करने आते हैं तथा पैसे न होने के कारण उन्हें यहीं पर रहना पड़ता है।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीकरण का क्या अर्थ है ? इसमें निर्धारित तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
नगरीकरण (Urbanization)-नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हैं। इस नगरीकरण की प्रक्रिया से शहरों की जनसंख्या बढ़ती है। शहर एक दम तथा एक तरफा ही विकसित नहीं होते हैं। बल्कि ग्रामीण समुदाय धीरे-धीरे शहरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इसलिए शहर की पहली अवस्था गांव ही है। इस प्रकार जब ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे परिवर्तनों के कारण शहरों की विशेषताओं का विकास हो जाता है तो इन परिवर्तनों को ही नगरीकरण कहते हैं।
बर्गल (Bergal) के अनुसार, “हम ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों में बदलने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।”
एंडरसन (Anderson) के अनुसार, “नगरीकरण एक तरफा प्रक्रिया नहीं बल्कि दो तरफा प्रक्रिया है। इसमें न केवल गांवों से शहरों की तरफ जाना तथा कृषि पेशों से कारोबार, व्यापार, सेवाओं तथा और पेशों की तरफ परिवर्तन ही शामिल हैं, बल्कि प्रवासियों की मनोवृत्तियां, विश्वासों, मूल्यों तथा व्यावहारिक प्रतिमानों में भी परिवर्तन शामिल होता है।”

साधारणतया नगरीकरण या शहरीकरण एक प्रक्रिया है जो असल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से शहरी अर्थव्यवस्था की तरफ परिवर्तन दिखाती है। जब ग्रामीण क्षेत्रों में धीरे-धीरे उद्योग, शैक्षिक संस्थाओं तथा व्यापारिक केन्द्रों इत्यादि का विकास हो जाता है तो अलग-अलग जातियों, वर्गों, धर्मों तथा सम्प्रदायों के लोग आकर बस जाते हैं जनसंख्या बढ़ जाती है तथा अलग-अलग रोज़गार के साधन विकसित हो जाते हैं। बड़े स्तर पर उत्पादन, यातायात तथा संचार के साधनों का विकास हो जाता है। इसके साथ ही संबंधों की संरचना भी बदल जाती है। द्वितीय संबंध विकसित हो जाते हैं। उस समय यह नगरीकरण की प्रक्रिया कहलानी शुरू हो जाती है। संसार के और देशों की तुलना में भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया अधिक विकसित नहीं हो सकी है क्योंकि यहां ग्रामीण समुदाय बहुत अधिक हैं तथा उनका मुख्य पेशा कृषि है।

नगरीकरण में निर्धारक तत्त्व (Determinants of Urbanization)-नगरीकरण को निर्धारित करने वाले तत्त्व अलग-अलग होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. अनुकूल भौगोलिक वातावरण (Favourable Geographical Environment) किसी भी शहर का विकास करने के लिए यह आवश्यक है कि वहां का भौगोलिक वातावरण सही हो। जहां कहीं भी भौगोलिक वातावरण अच्छा होता है वहां शहर विकसित हो जाते हैं। अच्छा भौगोलिक वातावरण होने से व्यक्ति अपनी रोज़ाना की आवश्यकताओं को आसानी से पूर्ण कर लेते हैं। हमारे अपने देश भारत में बहुत-से प्राचीन शहर गंगा, यमुना, सिंध इत्यादि नदियों के किनारे विकसित हुए थे। गंगा नदी के किनारों पर तो 100 से अधिक शहरों तथा कस्बों का विकास हुआ है।।

2. यातायात के साधनों की खोज (Invention of the means of Transport) प्राचीन समय में गांवों से अतिरिक्त भोजन को शहरों तक पहुँचाने के लिए पहिए, नावों, पशुओं इत्यादि का प्रयोग किया जाता था। धीरे-धीरे समय के साथ-साथ यातायात के और साधन विकसित हो गए जिस कारण शहर विकसित होने शुरू हो गए। इस प्रकार यातायात के साधनों ने भी शहरों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. अधिक खाद्य सामग्री (Surplus Food Products)-गांव के लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है। जब गांवों में लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक है। जब गांवों में लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक खाद्य सामग्री पैदा करने लग गए तो वहां अधिक लोगों ने रहना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इन जगहों पर जनसंख्या के बढ़ने के साथ नए उद्योगों तथा मण्डियों का विकास होना शुरू हो गया। इस कारण गांव शहरों में बदलने लग गए।

4. शहरों का आकर्षण (Attraction of the Cities) अपने जीवन को अधिक-से-अधिक सुखी तथा खुशहाल बनाने के लिए, शिक्षा प्राप्त करने लिए तथा रोजगार प्राप्त करने के लिए लोग दूर-दूर के क्षेत्रों से शहरों की तरफ खिंचे चले आते हैं। इस कारण ही शहरों का अधिक विकास हुआ। भारत में पाटलीपुत्र शहर के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय के कारण विकसित हुआ।

5. धार्मिक महत्त्व (Religious Importance)-भारत में कई स्थान ऐसे हैं जो धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाते हैं। इन स्थानों की धार्मिक उपयोगिता के कारण ही कई शहर विकसित हो गए। हरिद्वार, मथुरा, काशी, प्रयाग, आनंदपुर साहिब इत्यादि ऐसे शहर हैं जो धार्मिक उपयोगिता के कारण भी विकसित हुए।

6. सांस्कृतिक तथा आर्थिक महत्त्व (Cultural and Economic Importance) किसी भी शहर के विकास में उस क्षेत्र की सांस्कृतिक तथा आर्थिक सुविधाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे देश में भी कई शहर इस सांस्कृतियों तथा आर्थिक महत्त्व के कारण ही विकसित हुए; जैसे पाटलिपुत्र या आजकल के पटना का विकास नालंदा विश्वविद्यालय के कारण हुआ तथा ढाका व्यापारिक कारणों के कारण विकसित हुआ। इस प्रकार मुरादाबाद, बरेली इत्यादि शहर भी इन कारणों के कारण ही विकसित हुए। प्राचीन भारत में कई शहर इस कारण ही प्रचलित हुए क्योंकि वहां विशेष प्रकार के औद्योगिक पेशे अथवा दस्तकारी के कार्य प्रचलित थे।

7. सैनिक छावनियों की स्थापना (Establishment of Army Camps)-प्राचीन समय में साधारणतया जीतने वाला राजा हारे हुए राजा पर नियंत्रण रखने के लिए गांवों के इर्द-गिर्द सैनिक छावनियां स्थापित कर लेते थे। धीरे-धीरे इन गांवों के इर्द-गिर्द सैनिक छावनियों ने शहरों का रूप धारण कर लिया। दिल्ली, कलकत्ता, आगरा इत्यादि जैसे शहर इस कारण ही विकसित हुए।
इस प्रकार इन तत्त्वों को देखकर हम कह सकते हैं कि यह तत्त्व शहरों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2.
नगरीय परिवार की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1. केन्द्रीय परिवार (Nuclear Family) ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार पाए जाते हैं जिसमें दादादादी, माता-पिता, विवाहित तथा बिन ब्याहे बच्चे, चाचा-चाची, ताया-तायी, उनके बच्चे रहते हैं। इस प्रकार के परिवार को विस्तृत परिवार भी कहा जा सकता है। परन्तु शहरी परिवार इतने बड़े नहीं होते। वह बहुत ही छोटे तथा केन्द्रीय परिवार होते हैं जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना ही अलग घर बसा लेते हैं। इस तरह यह परिवार केन्द्रीय ही रहता है। बड़े-बड़े शहरों में इस प्रकार के परिवार साधारणतया ही देखने को मिल जाते हैं।

2. कम बच्चे (Less number of Children) शहरी परिवारों में बच्चों की संख्या कम होती है। शहरी मातापिता पढ़े-लिखे होते हैं तथा उनको अपनी जिम्मेदारियां, कर्तव्यों इत्यादि के बारे में पता होता है। शहरी परिवार अपने कार्यों के प्रति चेतन होते हैं। इसके साथ ही शहरों में खर्चे भी बहुत होते हैं तथा माता-पिता को पता होता है कि वह अधिक बच्चों को अच्छी परवरिश नहीं दे सकते। इसलिए वह कम बच्चे (एक या दो) ही रखते हैं ताकि उनको अच्छी परवरिश देकर अच्छा भविष्य दिया जा सके तथा देश का अच्छा नागरिक बनाया जा सके।

3. सीमित आकार (Limited Size)-शहरी परिवार आकार में सीमित होते हैं क्योंकि यह केन्द्रीय परिवार होते हैं। केन्द्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। बच्चे विवाह के बाद अपना अलग ही केन्द्रीय परिवार बसा लेते हैं। शहरों में हमें बड़े परिवार देखने को नहीं मिलते हैं। कोई हज़ारों में एक परिवार ही संयुक्त परिवार होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार के न होने तथा केन्द्रीय परिवार के होने के कारण इनका आकार सीमित होता है।

4. व्यक्तिवादिता (Individualism) शहरी परिवार के सदस्यों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है। वह केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। प्राचीन समय में परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार के भले के बारे में ही सोचता था। परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को दबा लेता था। दूसरे शब्दों में, व्यक्तिवादिता पर सामूहिकता भारी थी। परन्तु आजकल के शहरी परिवारों में परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को नहीं छोड़ता, बल्कि अपनी इच्छा पूर्ण कर लेता है। आजकल सामूहिकता पर व्यक्तिवादिता हावी है। कई बार तो व्यक्ति की इच्छा के आगे परिवार को ही झुकना ही पड़ता है। आजकल के Practical समाज में व्यक्ति का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी है।

5. कम नियन्त्रण (Less Control)-शहरी परिवारों में परिवार का अपने सदस्यों पर कम नियन्त्रण होता है। ग्रामीण समाजों में तो व्यक्ति की इच्छा पर सामूहिकता हावी होती है। व्यक्ति पर परिवार का बहुत नियन्त्रण होता है तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य को परिवार के मुखिया का कहना मानना पड़ता है। परन्तु शहरी परिवार इसके बिल्कुल विपरीत हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है। वह केवल परिवार के सदस्यों की सलाह लेता है परन्तु मर्जी वह अपनी ही चलाता है। कोई उस पर अपनी मर्जी नहीं थोपता है। इस प्रकार शहरी परिवारों में परिवार का अपने सदस्यों पर काफ़ी कम नियन्त्रण होता है।

6. स्त्रियों की समान स्थिति (Equal status of Women) शहरी समाजों में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान होती है जबकि ग्रामीण परिवारों में स्त्रियों की स्थिति निम्न होती है। शहरी स्त्री पढ़ी-लिखी होती है तथा उसको अपने अधिकारों के बारे में पता होता है। इसके साथ ही अधिकतर शहरी स्त्रियां बाहर कार्य करती हैं। वह दफ्तरों, फैक्टरियों, स्कूलों, कॉलेजों इत्यादि में कार्य करती हैं तथा पुरुषों के समान पैसे कमाती है। कई स्थितियों में तो स्त्री की आय पुरुष से भी अधिक होती है। घर की अर्थिक तौर पर सहायता करने के कारण वह यह चाहती है कि उसको भी पुरुषों के बराबर अधिकार मिलें। यदि पुरुष ऐसा नहीं करते तो वह तलाक लेकर अलग भी हो सकती है। इस प्रकार शहरी स्त्री को उसकी पढ़ाई-लिखाई तथा आर्थिक स्थिति के कारण मर्दो के समान स्थिति प्राप्त होती है।

7. औपचारिक सम्बन्ध (Formal Relations)-शहरी परिवारों में सदस्यों के बीच सम्बन्ध औपचारिक तथा अव्यक्तिगत होते हैं। परिवार के सदस्यों का एक-दूसरे पर इस कारण नियन्त्रण कम होता है क्योंकि उनके आपसी सम्बन्धों में गर्मजोशी नहीं होती है। लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है इसलिए वह एक-दूसरे से केवल काम की बात करते हैं। यहां तक कि एक-दूसरे के सुख-दुःख में कम ही साथ देते हैं। केवल पति-पत्नी ही एक-दूसरे का साथ देते हैं। उनके आपसी सम्बन्ध औपचारिक होते हैं तथा केवल स्वार्थ भरे सम्बन्ध होते हैं।

8. धर्म का कम होता प्रभाव (Decreasing influence of Religion)-शहरी परिवारों में धर्म का महत्त्व काफ़ी कम हो गया है। ग्रामीण परिवारों में धर्म का बहुत महत्त्व होता है तथा उनकी प्रत्येक गतिविधि में धर्म का प्रभाव देखने को मिल जाता है। जन्म, विवाह, मृत्यु के समय तो धार्मिक संस्कार अच्छी तरह पूर्ण किए जाते हैं परन्तु शहरी परिवारों पर धर्म का प्रभाव काफ़ी कम हो गया है। शहरी लोग पढ़े-लिखे होते हैं तथा प्रत्येक कार्य को तर्क की कसौटी पर तोलते हैं। वह किसी भी कार्य को करने से पहले यह जानना चाहते हैं कि यह कार्य क्यों हो रहा है तथा धर्म इस बारे में सब कुछ नहीं बता सकता है। शहरों में धार्मिक गतिविधियां काफ़ी कम हो गई हैं। जन्म, विवाह, मृत्यु इत्यादि के समय बहुत ही कम धार्मिक संस्कार पूर्ण किए जाते हैं। पण्डित एक-डेढ़ घण्टे में ही विवाह करवा देता है या मृत्यु की रस्में भी बहुत ही जल्दी पूर्ण करवा देता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

प्रश्न 3.
शहरी परिवारों के टूटने के क्या कारण हैं ? वर्णन करो।
उत्तर-
शहरी परिवार टूट रहे हैं। ये टूटने का जो सिलसिला है, एक-दो वर्षों में नहीं हुआ, बल्कि यह बदलाव कई वर्षों के परिवर्तन का नतीजा है। यह सभी परिवर्तन कई भिन्न-भिन्न कारणों से आए, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों की बनावट और उसके रूप में अद्भुत बदलाव देखने को मिलते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं, जिनको हम विस्तारपूर्वक इस सन्दर्भ में देखेंगे

1. पैसों का महत्त्व (Importance of Money)-आधुनिक समाज में व्यक्ति ने पैसों को कमाकर अपनी जीवन शैली में कई तरह के परिवर्तन ला दिए हैं और इस शैली को कायम रखने के लिए उसे हमेशा ज्यादा से ज्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ती है और इस प्रक्रिया में वह अपनी योग्यता के अनुसार अपनी कमाई में बढ़ौतरी करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके रहने-सहने का तरीका बदलता जा रहा है और ऐश्वर्य की सभी वस्तुएं आज उसके जीवन के लिए सामान्य और आवश्यकता की वस्तुएं बनती जा रही हैं और इन सभी को पूरा करने के लिए पैसा अति आवश्यक है। इस तरह हम कह सकते हैं कि वह उन सीमित साधनों से ज्यादा सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इस कारण शहरी परिवारों का महत्त्व कम हो रहा है और आदमी अपने परिवारों से अलग रहना पसन्द करता है। यह उसकी ज़रूरत भी है और मज़बूरी भी। इस कारण वह अपने परिवारों से अलग रहने लग पड़ा है।

2. पश्चिमी प्रभाव (Impact of Westernization)-भारत में अंग्रेजों के शासनकाल और उसके बाद भारतीय समाज में कई तरह से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए, जिससे कि हमारी संस्कृति और व्यवहार इत्यादि में कई तरह परिवर्तन आए, जिनके कारण व्यक्तिवाद का जन्म होने लगा। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों के जीवन को स्वतन्त्र तरीके से रहने के तरीके सिखाएं। इस तरह से भौतिकतावादी सोच के कारण, आधुनिकता की चकाचौंध से लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया और लोगों में संयुक्त परिवार से लगाव कम होना शुरू हो गया। इसका अंत में नतीजा यह निकला कि संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने लगे और इकाई अथवा केन्द्रीय परिवार का उद्भव शुरू हो गया। लोगों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली और स्त्रियों की स्वतन्त्रता के कारण, नौकरी करने वालों का शहरों में पलायन ने संयुक्त परिवारों का अस्तित्व समाप्त करना शुरू कर दिया और टूटना दिन-प्रतिदिन जारी हैं।

3. औद्योगिकीकरण (Industrialization)-आधुनिक समाज को आज औद्योगिक समाज की संज्ञा दी जाती है। जगह-जगह पर कारखानों और नए-नए तरीकों से समाज में परिवर्तन नज़र आते हैं। हर रोज़ नए-नए आविष्कारों के कारण समाज में कार्य करने के तरीकों एवं मशीनीकरण का चलन बढ़ता जा रहा है। घरों में कार्य करने वाले लोग अब कारखानों में काम करने लगे हैं। लोग अब अपने पैतृक कार्यों को छोड़कर उद्योगों में जा रहे हैं। लोगों ने महसूस करना शुरू कर दिया है कि इस दौड़ में अगर रहना है तो मशीनों का सहारा लेना ही पड़ेगा और इस बदलाव के कारण, शहरीकरण और भौगोलिक दृष्टि से कारखानों का बढ़ना इत्यादि लोगों को पलायन करवाता है। इस कारण लोगों ने संयुक्त परिवारों को छोड़कर, जहां पर उन्हें रोटी-रोज़ी मिली, वे उधर चल पड़े और यह सभी कुछ हुआ, उद्योगों के लगने की वजह से। इस तरह औद्योगीकरण के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, जिससे यह बात साफ हो जाती है कि इकाई परिवारों का चलन या अस्तित्व, उद्योगों की वजह से बढ़ रहा है। बच्चे नौकरियां करने के लिए शहर जाने लग गए तथा शहरी परिवार भी टूटने लग गए हैं।

4. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)-आधुनिक समाज में व्यक्ति की स्थिति, उसकी योग्यता के आधार पर आंकी जाती है। इसलिए उसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और ज्यादा धन कमाना पड़ता है। हर व्यक्ति समाज में ऊपर उठना चाहता है। संयुक्त परिवार में व्यक्ति की स्थिति उसकी योग्यता के आधार पर न होकर अपने परिवार की हैसियत के अनुसार आंकी जाती है। इस प्रकार वह परिश्रम ही नहीं करता। औद्योगीकरण और शिक्षा के प्रसार ने व्यक्ति को गतिशील कर दिया है। यातायात के साधनों और संचार के माध्यम से आदमी के लिए दूरियां कम हो गई हैं। उसका सोचने का तरीका बदलता जा रहा है। इस नए समाज में उसके ज़िन्दगी के मूल्य भी बदल गए और वह भौतिकवाद की ओर अग्रसर है और उसी प्रक्रिया में उसमें भी तेजी आनी स्वाभाविक है और इस कारण वह संयुक्त परिवार के बन्धनों से मुक्त होना चाहता है। इसी कारण से भी शहरी परिवारों का टूटना निरन्तर जारी है।

5. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of Transport)—यही पर बस नहीं आधुनिक यातायात के साधनों में आया बदलाव भी अपने आप में इस सोच का कारण बना है। व्यक्ति को इन्हीं सुविधाओं के कारण ही नई राहों पर चलना आसान हो गया है। हर क्षेत्र में काम करने की संभावनाओं को इन्हीं साधनों ने बढ़ा दिया है, आज कोई भी व्यक्ति पचास-सौ किलोमीटर को कुछ भी नहीं समझता। प्राचीन काल में ये सुविधाएं नहीं थीं या बहुत ही कम थीं, इस कारण से लोग एक ही जगह पर रहना पसन्द करते थे। आज के युग में इन साधनों ने व्यक्ति की दूरियों को कम कर दिया है। इनकी वजह से भी आदमी बाहर अपने काम-धन्धों को आसानी से कर पाता है और संयुक्त परिवार का मोह छोड़कर केन्द्रीय परिवार की सभ्यता को अपना रहा है।

6. जनसंख्या में बढ़ौतरी (Increase in Population)-भारत में जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इससे कुछ ही समय में ही प्रत्येक परिवार में ऐसी स्थिति आ जाती है कि परिवार की भूमि या जायदाद सारे सदस्यों के पालनपोषण के लिए काफ़ी नहीं होती और नौकरी या व्यवसाय की खोज में सदस्यों को परिवार छोड़ना पड़ता है। इसलिए भी शहरी परिवारों में विघटन हो रहा है।’

7. शहरीकरण और आवास की समस्या (Problem of Urbanization and Housing) संयुक्त परिवारों के टूटने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण देश का तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण है, जिससे लोग गांव छोड़कर शहरों में आ रहे हैं। जबकि शहरों में मकानों की भारी कमी है। शहरों में मकान कम ही नहीं छोटे भी होते हैं। इसलिए मकानों की समस्या के कारण ही शहरों में परिवारों में विघटन हो रहा है।

8. स्वतन्त्रता और समानता के आदर्श (Ideals of Independence & Equality)—संयुक्त परिवार एक तरह से तानाशाही राजतन्त्र है जिसमें परिवार के मुखिया का निर्देश शामिल होता है। इसका कहना सबको मानना पड़ता है व कोई उसके विरुद्ध बोल नहीं सकता। इसलिए यह आधुनिक विचारधारा के विरुद्ध है। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से नए नौजवान लड़के और लड़कियों में समानता और स्वतन्त्रता की भावना से शहरी परिवार टूट रहे हैं।

9. वैधानिक कारण (Legislative Reasons) ब्रिटिश शासन में अनेकों नए अधिनियमों से संयुक्त परिवारों में विघटन हुआ है। 1929 के हिन्दू उत्तराधिकार कानून (The Hindu Law of Inheritance Amendment Act 1929)
और 1937 के हिन्दू औरतों के सम्पत्ति पर अधिकार के कानून (Hindu Women’s Right of Property Act of 1937) से संयुक्त परिवार के विघटन को उत्साह मिला। चूंकि परिवार की सम्पत्ति का विभाजन होने लगा। कुछ कानूनों से परिवार के कार्यकर्ता को ज़मीन आदि बेचने या गिरवी रखने का अधिकार मिल गया। इस प्रकार शहरी परिवार की साझी सम्पत्ति बिखरने लगी और उसका विघटन होने लगा।

प्रश्न 4.
शहरी समाज की अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
यदि हम ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था तथा शहरी समाज की अर्थव्यवस्था की तुलना करें तो हमें पता चलेगा कि शहरी समाज की अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था में से ही निकली है। शहर पहले गांव ही थे परन्तु समय के साथ-साथ गांवों की जनसंख्या बढ़ गई। जनसंख्या के बढ़ने से उनका आकार बड़ा होता गया। आकार बड़ा होने के साथ-साथ वहां अलग-अलग नए प्रकार के देशों का जन्म हुआ। पहले छोटे उद्योग स्थापित हुए तथा धीरे-धीरे बड़े उद्योग भी स्थापित हो गए। उत्पादन छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर होने लग गया। गांवों ने कस्बों का रूप ले लिया तथा धीरे-धीरे कस्बे शहर बन गए। बहुत अधिक जनसंख्या के बढ़ने के कारण शहरों ने महानगरों का रूप ले लिया। पहले लोग केवल अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए ही चीज़ों का उत्पादन किया करते थे। परन्तु जनसंख्या के बढ़ने के कारण लोगों ने बाजार के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया। शहरों ने बहुत बड़ी मण्डी का रूप ले लिया। आजकल के शहर इस प्रकार के ही है जहां पेशों की भरमार होती है। लोग उत्पादन अपने लिए नहीं बल्कि बेचने के लिए करते हैं।

यदि शहरों में उत्पादन बड़े स्तर पर होने लग गया है तो इस के पीछे औद्योगिक क्रान्ति की सबसे बड़ी भूमिका है। औद्योगिक क्रान्ति यूरोप में 18वीं सदी के दूसरे भाग में शुरू हुई। सबसे पहले इसने यूरोप में अपना प्रभाव डाला तथा उपनिवेशवाद के कारण यह 19वीं शताब्दी में एशिया के देशों में भी आनी शुरू हो गई। औद्योगिक क्रान्ति के साथ लोगों के आपसी संबंध बिल्कुल ही बदल गए। समाज ने तेजी से विकास करना शुरू कर दिया। उद्योग तेजी से बढ़ने लग गए। मण्डियों का तेजी से विकास हुआ। इस कारण ही शहरी अर्थव्यवस्था भी विकसित हुई। इस प्रकार से 19वीं शताब्दी के बाद तो शहरी अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन आए। आज की शहरी अर्थव्यवस्था इन सभी पर ही आधारित है। जहां बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, बड़े-बड़े उद्योग होते हैं, पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण होता है, लोगों का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी होता है, पेशों की विभिन्नता होती है। इन सब को देख कर हम शहरी समाज की कुछ विशेषताओं का जिक्र कर सकते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगिक अर्थव्यवस्था (Industrial Economy)-शहरी अर्थव्यवस्था को औद्योगिक अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर ही आधारित होती है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे होते हैं जिनमें हज़ारों लोग कार्य करते हैं। बड़े उद्योग होने के कारण उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। इन बड़े उद्योगों के मालिक निजी व्यक्ति होते हैं। उत्पादन मण्डियों के लिए होता है। यह मण्डियां न केवल देसी बल्कि विदेशी भी होती हैं। कई बार तो उत्पादन केवल विदेशी मण्डियों को ध्यान में रख कर किया जाता है। बड़े-बड़े उद्योगों के मालिक अपने लाभ के लिए ही उत्पादन करते हैं तथा मजदूरों का शोषण भी करते हैं।

2. श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण (Division of Labour and Specialization)-शहरी समाजों में पेशों की भरमार तथा विभिन्नता पाई जाती है। प्राचीन समय में तो परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। सारे कार्य परिवार में ही हुआ करते थे। परन्तु शहरों के बढ़ने के कारण हज़ारों प्रकार के पेशे तथा उद्योग विकसित हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर एक बड़ी फैक्टरी में सैंकड़ों प्रकार के कार्य होते हैं तथा प्रत्येक कार्य को करने के लिए एक विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है। उस कार्य को केवल वह व्यक्ति ही कर सकता है जिस को उस कार्य में महारत हासिल हो। इस प्रकार शहरों में कार्य अलग-अलग लोगों के पास बटे हुए होते हैं जिस कारण श्रम विभाजन बहुत अधिक प्रचलित है। लोग अपने-अपने कार्य में माहिर होते हैं जिस कारण विशेषीकरण का बहुत महत्त्व होता है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण अंग श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण हैं।

3. बड़े स्तर पर उत्पादन (Production on a Large Scale)-शहरी अर्थव्यवस्था में उत्पादन बड़े स्तर पर होता है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए होते हैं। जहां हज़ारों मज़दूर, क्लर्क, अफसर इत्यादि कार्य करते हैं। इन बड़े उद्योगों में पैसे भी बहुत लगे हुए होते हैं। मालिक तो ही लाभ कमा सकता है यदि उस उद्योग में उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाए। यह उत्पादन न केवल देसी मार्किट बल्कि विदेशी मार्किट के लिए भी होता है। कई औद्योगिक इकाइयां तो उत्पादन केवल विदेशी मार्किट को मुख्य रख कर ही करती हैं। उत्पादन को पूर्ण लाभ के साथ विदेशी मार्किट में बेचा जाता है ताकि सभी को कुछ लाभ मिल सके। यह उद्योग बड़े स्तर पर उत्पादन करने के लिए दिनरात कार्य में लगे रहते हैं।

4. पेशों की विभिन्नता (Occupational Diversity) किसी भी शहरी समाज या औद्योगिक समाज की मुख्य विशेषता वहां पेशों की भरमार का होना है। शहरों में हजारों की संख्या में पेशे मिल जाते हैं। कोई अफसर है, कोई चपड़ासी, अध्यापक, बढ़ई, लोहार, मजदूर, रिक्शा खींचने वाले, रेहड़ी वाले, सब्जी तथा फलों की दुकान इत्यादि जैसे हज़ारों पेशे हैं जो कि शहरों में मिल जाते हैं। एक उद्योग में ही हमें सैंकड़ों प्रकार के कार्य मिल जाएंगे। इस प्रकार हम प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं कि शहरों में पेशे बहुसंख्या में होते हैं।

5. अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति (Nature of getting more Profit)-शहरी अर्थव्यवस्था का एक और महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यहां लोगों में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है। उद्योगपति कमसे-कम पैसे लगाकर अपनी वस्तु को अधिक-से-अधिक लाभ से बेचना चाहता है। दुकानदार ग्राहक से अपनी चीज़ की अधिक-से-अधिक कीमत प्राप्त करना चाहता है। कई कार्यों में तो 100% या 200% तक भी लाभ हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है जिस कारण वह सही या गलत ढंग अपनाने के प्रयास भी करता है। मज़दूर अधिक-से-अधिक मज़दूरी प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अमीर बनने की इच्छा होती है जिस कारण उन में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।

6. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) सामाजिक गतिशीलता का अर्थ होता है अपनी एक सामाजिक स्थिति को छोड़ कर दूसरी सामाजिक स्थिति की तरफ जाना। शहरों में सामाजिक गतिशीलता बहुत पाई जाती है। नगरों में बहुत-से व्यक्ति नौकरी करते हैं, यदि किसी व्यक्ति को किसी और नौकरी में अधिक वेतन तथा अच्छी स्थिति मिल जाती है तो वह पहली नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी की तरफ चला जाता है। छोटे दुकानदार उन्नति करके बड़ी दुकान बना लेते हैं। लोग एक घर को छोड़कर दूसरे घर में चले जाते हैं। यह गतिशीलता ही है। इस के साथ ही नगरों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण बहुत होता है। माहिर व्यक्तियों की बहुत मांग होती है। माहिर व्यक्ति तो साल बाद ही नौकरी बदल लेते हैं। इस कारण उनके मेल-जोल का सामाजिक दायरा भी बढ़ता है। इस कारण व्यक्ति अपने रहने-सहने का स्तर भी ऊंचा कर लेता है तथा यह भी गतिशीलता है। इस प्रकार नगरीय अर्थव्यवस्था में गतिशीलता बहुत अधिक होती है।

7. प्रतियोगिता (Competition)-नगरीय अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता बहुत अधिक देखने को मिलती है। शहरों में लोग पढ़-लिख रहे हैं तथा अलग-अलग प्रकार के कोर्स कर रहे हैं और ट्रेनिंग ले रहे हैं। एक नौकरी को प्राप्त करने के लिए 15-20 लोग खड़े होते हैं। इसके साथ-साथ बड़े-बड़े उद्योगों में अपना माल बेचने के लिए प्रतियोगिता होती है। वह मूल्य कम करके अपनी चीज़ बेचने की कोशिश करते हैं जिससे ग्राहक का लाभ होता है। इस प्रकार छोटे बड़े दुकानदार भी एक-दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं ताकि उनका माल अधिक-से-अधिक बिक सके। इसलिए वह अपने माल पर सेल लगाने से भी पीछे नहीं हटते। कई दुकानदार तथा कंपनियां 50% तक की छूट तथा इससे ऊपर भी 60% या 70% तक की छूट भी दे देती है ताकि अधिक-से-अधिक माल बेचा जा सके। उनको देख कर और कंपनियों को भी अपना माल इतनी ही छूट से बेचना पड़ता है जिसका असली लाभ ग्राहक को होता है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक प्रतियोगिता देखने को मिल जाती है।

8. अधिक जनसंख्या (More Population)-नगरीय अर्थव्यवस्था का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण अधिक जनसंख्या का होना है। जहां कहीं भी उद्योग विकसित हुए हैं वहां पर शहर बस गए हैं। लोग इन उद्योगों में कार्य करने के लिए अपना घर, गांव तक छोड़ कर नगर में आ जाते हैं। यदि उद्योगों में कार्य मिल जाए तो ठीक है नहीं तो वे कोई और कार्य करने लग जाते हैं। धीरे-धीरे शहर की जनसंख्या बढ़ जाती है। जनसंख्या के बढ़ने से उसकी आवश्यकताएं भी बढ़ जाती हैं जिनकी पूर्ति करना आवश्यक हो जाती है। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दुकानें तथा मण्डियां खुल जाती हैं, सरकारी तथा निजी दफ्तर खुल जाते हैं। बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल, कॉलेज खुल जाते हैं। जनसंख्या को नियन्त्रण में रखने के लिए पुलिस की स्थापना हो जाती है। इस प्रकार धीरे-धीरे नगर एक महानगर बन जाता है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता इत्यादि इसी प्रकार के महानगर हैं।

9. अपराध (Crimes)–यदि शहर बढ़ते हैं तो उनके साथ-साथ अपराध भी बढ़ जाते हैं। जनसंख्या में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जोकि परिश्रम से नहीं बल्कि छीन कर खाना पसन्द करते हैं। चोर, डकैत, ठग, लुटेरे इत्यादि इस श्रेणी में आते हैं। लोगों को रहने के लिए घर नहीं मिलते जिस कारण झुग्गी झोपड़ी बस्तियां स्थापित हो जाती हैं। इन बस्तियों में ही सबसे अधिक अपराध होते हैं। चोरी, कत्ल, डकैती, बलात्कार, वसूली, मार पिटाई इत्यादि सभी कुछ यहां आम होता है।

10. अधिक पूंजी निवेश (More Capital Investment)-शहरी आर्थिकता में अधिक पूंजी निवेश की बहुत आवश्यकता होती है। नगरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित होते हैं जिनको स्थापित करने के लिए हज़ारों करोड़ों रुपयों की ज़रूरत होती है। जो व्यक्ति इन उद्योगों को चलाता है वह सारा पैसा निवेश करता है। कच्चा माल लाने के लिए, उत्पादन करने के लिए, उत्पादित माल बेचने के लिए, पैसे इकट्ठे करने के लिए बहुत बड़े नैटवर्क की ज़रूरत होती है। इस कारण पूंजी का अधिक निवेश होता है जो व्यक्ति इतना पैसा निवेश करता है वह उस से लाभ भी कमाता है। ___11. पैसे का महत्त्व (Importance of Money)–नगरीय अर्थव्यवस्था में पैसे का बहुत अधिक महत्त्व होता है क्योंकि आजकल तो प्रत्येक कार्य पैसे से ही होता है। यहां तक कि सामाजिक स्थिति भी पैसे से ही प्राप्त होती है। जिन लोगों के पास अधिक पैसा होता है उनकी सामाजिक स्थिति काफ़ी ऊंची होती है तथा जिन के पास पैसा नहीं होता उनकी सामाजिक स्थिति निम्न होती है। अमीर व्यक्तियों, नेताओं इत्यादि की स्थिति बहुत ऊंची होती है क्योंकि इनके पास पैसा होता है परन्तु निर्धन व्यक्ति को कोई पूछता भी नहीं है।

प्रश्न 5.
झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने के क्या कारण हैं ? इनमें सुधार कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
यदि हम ध्यान से देखें तो हमें पता चलेगा कि झग्गी झोपडी बस्तियां आधुनिक समाजों के कारण ही सामने आई हैं। आधुनिक समाजों को बनाने के लिए आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाएं सामने आई। औद्योगिकीकरण के कारण बड़े-बड़े उद्योग बन गए तथा उद्योगों के इर्द-गिर्द बस्तियां तथा शहर बन गए। लोग बाहर के क्षेत्रों से उद्योगों में कार्य करने आए तथा शहरों में ही रहने लग गए। कम आय के कारण उनको बस्तियों में ही रहना पड़ा। बस्तियों में सुविधाओं के न होने के कारण वहां का वातावरण प्रदूषित होना शुरू हो गया तथा धीरे-धीरे इन बस्तियों ने झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों का रूप ले लिया। इस प्रकार झुग्गी झोंपड़ी बस्तियां सामने आ गईं। ये बस्तियां किसी एक या दो कारणों के कारण नहीं बल्कि कई कारणों के कारण सामने आई जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. आर्थिक कारण (Economic Reasons)-यदि हम ध्यान से देखें तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने का कारण ही आर्थिक है। लोग गरीबी के कारण अपने गांवों को छोड़कर पैसे कमाने नगरों में आते हैं तथा पैसे कमाने के लिए शहर में ही रह जाते हैं। अपने भोजन के साथ-साथ उनके लिए गांव में बैठे अपनी पत्नी तथा बच्चों के लिए पैसे बचाना ज़रूरी होता है। आय कम होती है परन्तु खर्चे अधिक होते हैं। इस कारण वह महंगे मकानों में रह नहीं सकते तथा उन्हें झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। उनको अपनी खराब स्थिति को मजबूरी में सहन करना पड़ता है। वह जहां रहते हैं वहां धीरे-धीरे गंदा वातावरण होना शुरू हो जाता है क्योंकि जनसंख्या बढ़ जाती है इस प्रकार से वह सभी ही कम पैसे खर्च करके इन बस्तियों में रहने को मजबूर होते हैं।

2. औद्योगिकीकरण (Industrialization)-झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बसने में सबसे बड़ा हाथ औद्योगिकीकरण का होता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि जहां कहीं भी उद्योग बनने शुरू हुए थे उसके इर्द-गिर्द लोगों ने रहना शुरू कर दिया था। लोग गांवों में घर बार छोड़ कर शहरों में इन उद्योगों में कार्य की तलाश में आते हैं। उनको काम तो मिल जाता है परन्तु आय कम होती है जिस कारण वह महंगे घरों में नहीं रह सकते। इस कारण ही उनको झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है जहां एक ही कमरे में 8-10 लोग रहते हैं। इन बस्तियों का वातावरण तथा रहने का स्थान काफ़ी दूषित होता है जिस कारण उन्हें कई समस्याओं तथा बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार से औद्योगिकीकरण के कारण झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बस जाती हैं।

3. राजनीतिक कारण (Political Reasons)-हमारे देश में लोकतन्त्र है तथा हमारे देश में झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के सामने आने का कारण राजनीतिक दल हैं। ये राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए हमेशा लड़ते रहते हैं। गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए उनके अपने कार्यक्रम तथा अपनी ही विचारधारा होती है। परन्तु उनके अपने जीवन में गरीबी की कोई जगह नहीं होती है तथा वह गरीबों की मुश्किलों से बहुत दूर होते हैं। चाहे यह दल गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए कार्यक्रम बनाते रहते हैं परन्तु असल में कुछ करते नहीं हैं। ये कार्यक्रम केवल इन लोगों के वोट प्राप्त करने के लिए बनाए जाते हैं। इनके हालात सुधारने के लिए बहुत ही कम कोशिशें होती हैं। राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को बचाने के लिए इनको उनकी जगह से छोड़ना नहीं चाहते हैं। इस तरह हमारी राजनीतिक व्यवस्था भी झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों के लिए जिम्मेदार हैं।

4. सामाजिक व्यवस्था (Social System) हमारे समाज की मौजूदा सामाजिक व्यवस्था भी झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बनने के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं है। हमारी सामाजिक व्यवस्था में गरीबों तथा कमज़ोर लोगों की कोई जगह नहीं है। ग़रीब लोग शहरों में उन स्थानों पर रह रहे हैं जहां कि जानवर भी रहना पसन्द नहीं करते। उनको मजबूरी में उस अमानवीय वातावरण में रहना पड़ता है। उनको समाज, सरकार तथा उद्योगपतियों द्वारा ग़ैर-ज़रूरी समझा जाता है। सरकार तथा उद्योगपति तो अपने स्वार्थों के कारण इनसे काम लेते हैं तथा इनको ऊँचा उठने नहीं देते। यदि यह ऊंचा उठ गए तो यह उच्च वर्ग के लिए खतरा बन जाएंगे। इस प्रकार हमारी सामाजिक व्यवस्था भी इसके लिए दोषी है।

5. प्रशासकीय कारण (Administrative Causes) स्थानीय प्रशासन भी झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों के बनने के लिए ज़िम्मेदार है। स्थानीय प्रशासन को हमेशा ही भ्रष्ट तथा अयोग्य समझा जाता है क्योंकि यह लोगों के लिए आर्थिक प्रशासकीय तथा सामाजिक नीतियां सही प्रकार से नहीं बना सके। सम्पूर्ण शहर के विकास के लिए एक मास्टर प्लान बनाया जाता है परन्तु किसी कारणवश मास्टर प्लान में या तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता या फिर इनको जानबूझ कर छोड़ दिया जाता है। कम वित्तीय साधन भी इस प्लान के पूर्ण न होने के लिए उत्तरदायी हैं। यदि सीमित वित्तीय साधनों को भी सही ढंग से प्रयोग किया जाए तो झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों का सुधार हो सकता है। परन्तु इस तरह होता नहीं है तथा जिस कारण झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां बढ़ती जाती हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 नगरीय समाज

सुधार के तरीके (Ways of Improvement)– कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जोकि हल न हो सके। इस प्रकार अगर हमारी सरकार, नेता तथा अफ़सर सही प्रकार से कार्य करें तो यह झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की समस्या भी हल हो सकती है। झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में सुधार करने के कुछ तरीकों का वर्णन इस प्रकार हैं-

  • इन बस्तियों में सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है लोगों को साफ़ पानी पीने के लिए नहीं मिलता है। जिस कारण उन्हें गंदे पानी पर ही गुज़ारा करना पड़ता है। सरकार को 24 घंटे के लिए इन बस्तियों में साफ़ पानी पहुंचाने की प्रबन्ध करना चाहिए।
  • इसी प्रकार से गंदे पानी की निकासी भी बहुत बड़ी समस्या है। यदि गंदे पानी की निकासी हो तो इन बस्तियों में से बीमारियों को दूर किया जा सकता है। सरकार को पक्की गलियों, सीवरेज़, पाखानों इत्यादि का प्रबन्ध करके बस्तियों को बीमारियों से दूर रखना चाहिए।
  • इन बस्तियों में बिजली न होना भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इन इलाकों में बिजली की तारें डालकर बिजली देने का भी प्रबन्ध करना चाहिए।
  • उद्योगों को भी इन बस्तियों की स्थिति सुधारने के लिए आगे आना चाहिए जो भी मज़दूर उद्योगों में कार्य करते हैं उन्हें उद्योगों की तरफ से पक्के मकान रहने के लिए देने चाहिए ताकि बस्तियों की जनसंख्या न बढ़े।
  • हमारे नेताओं, अफसरों तथा सरकार को राजनीति के क्षेत्र से ऊंचा उठकर समाज की सेवा करने के लिए अपने स्वार्थों को छोड़ कर कार्य करना चाहिए। इनको ईमानदारी से इन बस्तियों के उत्थान के लिए कार्य करने चाहिए ताकि यह भी समाज में अच्छा जीवन जी सकें।
  • इनके क्षेत्रों में रहने के पक्के घरों का भी प्रबन्ध करना चाहिए ताकि लोग झुग्गियों-झोंपड़ियों से बाहर निकल कर अच्छा जीवन जी सकें। __इस प्रकार से अगर सरकार, नेता तथा अफसर सही ढंग से कार्य करें तो इन झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों की बहुत-सी समस्याओं को दूर करके इनमें रहने वाले लोगों को अच्छा जीवन दिया जा सकता है।

नगरीय समाज PSEB 12th Class Sociology Notes

  • पिछले कुछ समय से देश की ग्रामीण जनसंख्या नगरों की तरफ बढ़ रही है जिस कारण नगरीय जनसंख्या में काफ़ी बढ़ौतरी हो रही है। नगरों में काफ़ी सुविधाएँ होती हैं जिस कारण लोग नगरों की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।
  • 2011 के जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार, “देश की 121 करोड़ जनसंख्या में 37.7 करोड़ लोग या 32% जनसंख्या नगरों में रहती थी। इस सर्वेक्षण के अनुसार वह सभी क्षेत्र जहां नगरपालिका, कारपोरेशन, कैंटोनमैंट बोर्ड या Notified Town Area Committee है, नगरीय क्षेत्र हैं।”
  • जब ग्रामीण लोग गाँवों को छोड़कर नगरों की तरफ बढ़ने लग जाएं तो इस प्रक्रिया को नगरीकरण अथवा शहरीकरण कहा जाता है। इस प्रक्रिया ने नगरीय समाजों की प्रगति में काफ़ी योगदान दिया है। यह एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें न केवल लोग नगरों की तरफ बढ़ते हैं तथा उनके पेशों में परिवर्तन आता है बल्कि उनके रहन-सहन आदतों, विचारों में भी परिवर्तन आ जाता है।
  • नगरवाद नगरीय समाज का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो नगरीय समाज के लोगों की पहचान तथा व्यक्तित्व को ग्रामीण समाज या जनजातीय समाज के लोगों से अलग करता है। यह जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है।
  • नगरीय समाज की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि अधिक जनसंख्या, असमानता, सामाजिक नियन्त्रण के द्वितीय साधन, सामाजिक गतिशीलता, लोगों का कृषि छोड़कर कोई अन्य कार्य करना, श्रम विभाजन, विशेषीकरण, व्यक्तिवाद इत्यादि।
  • ग्रामीण समाजों में संयुक्त परिवार मिलते हैं परन्तु नगरों में केंद्रीय परिवार मिलते हैं। व्यक्तिवादिता के कारण लोग केंद्रीय परिवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • नगरीय अर्थव्यवस्था व्यावसायिक भिन्नता (Occuptional Diversity) तथा गतिशीलता पर निर्भर करती है। अलग-अलग कार्य एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं जिस कारण लोग एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर होते हैं।
  • वैसे तो नगरीय समाज में काफ़ी समस्याएं मिलती हैं परन्तु रहने की समस्या तथा झुग्गी झोपड़ियों या मलिनvबस्तियों की समस्या काफ़ी प्रमुख है। नगरीकरण के बढ़ने से भी यह समस्याएं काफ़ी बढ़ती जा रही है।
  • गाँव से लोग नगरों में रहने तथा कार्य की तलाश में जाते हैं। उन्हें वहां पर कार्य तो मिल जाता है परन्तु रहनेvका स्थान नहीं मिल पाता जिस कारण उन्हें मलिन झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में रहना पड़ता है। इन बस्तियों के कारण ही नगरों में कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
  • नगरीय समाज (Urban Society)—वह समाज जहां असमानता द्वितीय संबंध, नकलीपन, गतिशीलता तथा गैर-कृषि पेशों की प्रधानता होती है। यह आकार में बड़े होते हैं तथा लोग प्रगतिशील होते हैं।
  • नगरीकरण (Urbanisation)-नगरीकरण ग्रामीण लोगों की नगरों की तरफ जाने की प्रक्रिया है जिससे नगरों का आकार बड़ा हो जाता है। यह वह प्रक्रिया भी है जिससे ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • नगरवाद (Urbanism)-नगरवाद जीवन जीने के ढंगों को दर्शाता है। यह नगरीय संस्कृति के फैलाव तथा नगरीय समाज के उद्विकास के बारे में भी बताता है।
  • निर्धनता (Poverty)—निर्धनता एक प्रकार की स्थिति है जिसमें लोग अपनी रोटी, कपड़ा व मकान की आवश्यकता भी पूर्ण नहीं कर सकते।
  • आवास (Housing)—किसी भी सभ्य समाज की प्रथम आवश्यकता घर की होती है क्योंकि यह व्यक्ति को रहने का स्थान देती है।
  • झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियां (Slums)-झुग्गी-झोंपड़ी नगरों में रहने का वह स्थान है जहां लोग मलिन बस्तियों में झुग्गी-झोंपड़ी की स्थितियों में रहते हैं। प्रत्येक नगर में इन बस्तियों का आकार अलग-अलग होता है तथा इनमें साफ-सफाई, साफ पीने वाले पानी, बिजली इत्यादि की कमी होती है। इनमें साधारण मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

PSEB 12th Class Geography Guide प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित में सही उत्तर चुनें-

(क) जनसंख्या विभाजन दिखाने के लिए कौन-सा नक्शा बनाया जाता है ?
(A) वर्णात्मक नक्शा
(B) सममूल्य नक्शा
(C) बिंदु नक्शा
(D) वर्गमूल्य नक्शा।
उत्तर-
(C) बिंदु नक्शा।

(ख) जनसंख्या की दशक वृद्धि को दिखाने के लिए कौन-सा तरीका उचित है ?
(A) पंक्ति ग्राफ
(B) बार चित्र
(C) लकीरी चित्र
(D) बहाव नक्शा ।
उत्तर-
(C) लकीरी ग्राफ।

(ग) बहु-ग्राफ प्रदर्शित करता है ?
(A) केवल एक परिवर्तनशील तत्व
(B) केवल दो परिवर्तनशील तत्व
(C) दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(C) दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

(घ) इनमें से किसके गत्यात्मक नक्शा कहा जाता है ?
(A) बिंदु नक्शा
(B) वर्णात्मक नक्शा
(C) सममूल्य नक्शा
(D) बहाऊ नक्शा ।
उत्तर-
(D) बहाऊ नक्शा।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

(i) विषयगत नक्शा क्या होता है ?
उत्तर-
आंकड़ों की विशेषताएँ दर्शाने के लिए और तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए ग्राफ और चित्र एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं लेकिन क्षेत्रीय परिदृश्य को दिखाने के लिए चित्र और ग्राफ असफल रहते हैं। इसलिए स्थानीय भिन्नता को दिखाने के लिए और क्षेत्रीय विभाजन को अच्छी तरह समझने के लिए कई तरह के नक्शे बनाए जाते हैं। इनको विषयगत और वितरण नक्शे कहा जाता है।

(ii) बहु-बार ग्राफ और मिश्रित बार ग्राफ में क्या अंतर है ?
उत्तर-
बहु-बार ग्राफ और मिश्रित बार ग्राफ में अंतर निम्नलिखित हैं-
बहु-बार ग्राफ- इनको दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने और तुलना करने उद्देश्य से बनाया जाता है।
मिश्रित बार ग्राफ – मिश्रित बार ग्राफ अलग-अलग इलाकों में हिस्सेदारी/समानता दिखाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

(iii) बिंदु नक्शा बनाने के लिए क्या-क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
बिंदु नक्शा बनाने के लिए आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं-

  • संबंधित क्षेत्र का प्रबंधकीय सीमा के साथ नक्शे का खाका तैयार करना।
  • संबंधित क्षेत्र के विषय संबंधी आंकड़े एकत्रित करना।
  • बिंदु की कीमत के लिए नक्शों का चुनाव करना।
  • संबंधित क्षेत्र का प्राकृतिक नक्शा तैयार करना।

(iv) यातायात बहाव नक्शा बनाने का तरीका बताओ।
उत्तर-
यातायात बहाव नक्शे दो किस्म के आंकड़ों को पेश करने के लिए बनाए जाते हैं-
(i) गाड़ियों की उनके पहुंच के स्थान की तरफ संख्या
(ii) यात्रियों/परिवहन की जाने वाले वस्तुओं की संख्या।

इस प्रकार का नक्शा (मानचित्र) बनाने के लिए हमें वस्तुओं, सेवा गाड़ियों की संख्या इत्यादि के संबंधित आंकड़े, जिले में उनसे संबंधित वस्तुओं इत्यादि की उपज तथा स्थान बताया हो तथा आवश्यकता के पैमाने का चुनाव करके, जिस द्वारा आंकड़े बहाव नक्शे पर पेश किया जाना होता है, काफ़ी आवश्यक है तथा ज़रूरत अनुसार ट्रांसपोर्ट रूट का रूट नक्शा जिस पर स्टेशन दिखाये गए हों काफ़ी आवश्यक है।

नोट (Method)-कागज़ पर X बिंदु बना लो तथा सही पैमाने से सही दिशा की तरफ अ-ग-बिंदु लगा लो। मानो कि पैमाना है 1 cm : 10 km बिंदु x के उत्तर दिशा की तरफ 5.7 सैं०मी० लम्बी एक रेखा खींच लो। यह बिंदु अ की स्थिति दिखायेगी। इस प्रकार बिंदु ‘ग’ तक आवश्यकता अनुसार लंबाई की रेखाएं उनकी ही दिशा की तरफ लगा दो। बसों की संख्या का एक पैमाना बना लो तथा निर्धारित करो जोकि 6 से 10 की संख्या दिखा सके। इस पैमाने अनुसार मोटी तथा पट्टी संबंधित दिशाओं की तरफ को बना दो।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

(v) सममान नक्शा क्या है ? वृद्धि कैसे की जाती है ?
उत्तर-
Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है (Iso + Plethron) Iso शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है। मूल्य इस प्रकार सममान रेखाएं वह रेखाएं हैं जिनका मूल्य तीव्रता तथा घनत्व समान हो। यह रेखा उन स्थानों को आपस में जोड़ती है जिनका मूल्य समान हो।

मिलावट/वृद्धि करने के तरीके- दो स्थानों के दर्ज मुख्य में बीच के मुख्य को पाने को मिलावट/वृद्धि कहते हैं। इसको पाने के लिए दो तरीके प्रयोग किये जाते हैं।

  1. दिए जाने वाले नक्शों का अधिक से अधिक तथा कम-से-कम मूल्य निर्धारित करके।
  2. दोनों मूल्यों का फैलाव ज्ञात करके।
  3. फैलाव के आधार पर अंतराल निर्धारित करके जैसे कि 5,10 या 15 इत्यादि।

(vi) वर्णात्मक नक्शा बनाने की विधि (ढंग) बताओ।
उत्तर-
वर्णात्मक नक्शे बनाने का ढंग इस प्रकार है-
1. किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े इकट्ठे करो। आंकड़ों को बढ़ते घटते क्रम में करो। 2. यह आंकड़े औसत रूप में हो या प्रतिशत के रूप में हो। 3. आंकड़ों को समूहों, बहुत अधिक, मध्यम, कम तथा बहुत कम में विभाजित कर लो। 4. चुने गये समूहों को दर्शाने वाले रंग या गहराई बढ़ते या घटते क्रम में लिखो। 5. हर एक शासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार से छायाकरण करके नक्शे तैयार किये जाते हैं।

(vii) पाई चार्ट के साथ आंकड़ा पेशकारी का ढंग बताओ।
उत्तर-
पाई चार्ट आंकड़ा पेशकारी की एक अच्छा ढंग है। यह दिये गये तत्व को सम्पूर्ण रूप में एक चक्र के द्वारा पेश करती है। आंकड़ों के उपभागों को दिखाने के लिए चक्र को बनते कोणों के अनुसार काटा तथा विभाजित किया जाता है।

  • आंकड़ों को घटते क्रम में लिखकर अलग-अलग भूमि उपयोगों का कोण पता किया जाता है।
  • चक्र बनाने के लिए जरूरत अनुसार चुनाव बहुत आवश्यक है। दिये आंकड़ों के लिए 3, 4 या 5 सैं०मी० का अर्धव्यास चुना जाना चाहिए।
  • एक लाइन केन्द्र से लेकर अर्धव्यास तक खींच लेनी चाहिए ताकि अर्ध-व्यास केंद्र को दिखाया जा सके।
  • चक्र की चाप से हर एक भूमि उपयोग श्रेणी के कोणों के अनुसार छोटे कोण से शुरू करके घड़ी की सुइयों की दिशा में कोण चिह्न लगाओ।
  • लकीरों को लगाकर चित्र पूरा कर दो।
  • फिर संकेत, शीर्षक, उपशीर्षक इत्यादि बना दो।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न III. दिए गए विकल्पों में सही विकल्प चुनो :

(i) निम्नलिखित आंकड़ों के लिए कौन-सा चित्र उचित रहेगा ? भारतीय राज्यों का कच्चा लोहा उत्पादन में प्रतिशत अनुपात :

मध्य प्रदेश 23.44
गोवा 21.82
कर्नाटक 20.95
बिहार 16.98
उड़ीसा 16.30
आन्ध्र प्रदेश 0.45
महाराष्ट्र 0.04

(i) लाइन ग्राफ
(ii) बहुविकल्पीय बार ग्राफ
(iii) पाई चार्ट
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(iii) पाई चार्ट।

(ii) किसी राज्य के अलग-अलग जिले स्थानीय आंकड़ों के तौर पर किस प्रकार दर्शाए जाएंगे ?
(i) बिंदुओं के साथ
(ii) लाइनों के साथ
(iii) बहुभुजों के साथ
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(iii) बहुभुजों के साथ।

(iii) निम्नलिखित में कौन-सा आपरेटर एक्शल फार्मूले में पहले हल होगा ?
(i) +
(ii) –
(iii) /
(iv) =
उत्तर-
(iv) =

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

(iv) एक्शल में फंक्शन विजार्ड आपको किसके योग्य बनाती है ?
(i) रेखाचित्र बनाने के
(ii) गणितज्ञ या संख्यात्मक क्रिया के लिए
(iii) नक्शे बनाने के लिए
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii) गणितज्ञ या संख्यात्मक क्रिया के लिए।

प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
कंप्यूटर (संगणक) के अलग-अलग हिस्सों के क्या काम हैं ?
उत्तर-
संगणक (कम्यूटर) एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। आमतौर पर हम इस प्रणाली को दो हिस्सों में विभाजित करते हैं
I. यंत्र सामग्री (Hardware)-सारे कंप्यूटर के भाग जिनको हाथ से छुआ जा सके।
II. प्रक्रिया सामग्री (Software) कंप्यूटर के जिस हिस्से को हाथ से छुआ न जा सके।

I. यंत्र सामग्री (Hardware)-कंप्यूटर के भौतिक हिस्से जिनको हम देख या छू सकते हैं, वह हार्डवेयर कहलाते हैं। यह भाग मशीनी, इलैक्ट्रॉनिक या इलैक्ट्रीकल हो सकते हैं। यह संगणक के यंत्र सामग्री कहलाते हैं। हर संगणक की यंत्र सामग्री अलग-अलग हो सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि संगणक किस उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके तथा व्यक्ति की आवश्यकता क्या है। एक कंप्यूटर में विभिन्न तरह के हार्डवेयर होते हैं जैसे कि सी०पी०यू०, हार्ड डिस्क, रैम, प्रोसैसर, मोनीटर, मदर बोर्ड, फ्लापी ड्राइव इत्यादि।
संगणक के सिर्फ पावर सप्लाई यूनिट की बोर्ड, माऊस इत्यादि भी यंत्र सामग्री के अंतर्गत आते हैं।

II. प्रक्रिया सामग्री (Software)-संगणक हमारी तरह हिन्दी या अंग्रेजी भाषा नहीं समझता। हम संगणक को जो निर्देश देते हैं वह एक नियत भाषा होती है इसको मशीनी लैंग्वेज़ (भाषा) या मशीन की भाषा कहते हैं। संगणक सॉफ्टवेयर लिखित प्रोग्रामों का एक समूह है जो कि संगणक की भंडार शाखा में जमा हो जाता है। आजकल कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें संगणक का उपयोग नहीं होता। आज संगणक का प्रयोग हर कार्यालय में किया जाता है।

संगणक के भाग हैं-

1. निवेश एवं निर्गत उपकरण (Input Output Device)-इन उपकरणों का प्रयोग संगणक में निवेश करने के लिए तथा संगणक द्वारा निर्गत दिखाने के लिए किया जाता है। निवेश उपकरण जैसे की बोर्ड का प्रयोग, आंकड़ों तथा प्रोग्रामों को संगणक स्मृति में भरने के लिए किया जाता है। दूसरी प्रकार चूंकि एक कंप्यूटर के भीतर सभी आँकड़ों, कार्यक्रमों को कोड स्वरूप में वैद्युत् धारा में संचित किया जाता है, निर्गत उपकरणों जैसे प्रिंटर, प्लाटर, इत्यादि का प्रयोग इन आंकड़ों की सूचनाओं के रूप में बदलने के लिए किया जाता है जिनका मानव द्वारा उपयोग किया जा सके।

2. सिस्टम यूनिट (System Unit)–सिस्टम यूनिट को सिस्टम कैबिनेट भी कहा जाता है। कंप्यूटर के इस भाग के कई हिस्से हैं जैसे मदरबोर्ड, रैम तथा प्रोसैसर सिस्टम यूनिट के अंदर ही आते हैं।

3. मैमोरी (Memory) कंप्यूटर में मैमोरी का प्रयोग प्रोग्राम तथा डाटा को संग्रहित करने के लिए होता है, ताकि बाद में ज़रूरत के अनुसार उसका प्रयोग किया जा सके। मैमोरी किसी भी कंप्यूटर का एक काफी महत्त्वपूर्ण अंग होता है। मैमोरी का उपयोग परिणामों को संग्रहित करने के लिए भी किया जाता है। मैमोरी दो प्रकार की ‘होती है।

  • रोम (Rom)—इसको Read Only Memory कहते हैं। इसमें जो जानकारी होती है उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता बस सिर्फ उसे पढ़ा जा सकता है।
  • रैम (Ram)-Random Access Memory इसका प्रयोग तब होता है जब कंप्यूटर पर काम करते हैं । यह जानकारी सिर्फ तब तक रहती है जब तक आपका कंप्यूटर काम कर रहा होता है। कंप्यूटर को बंद करते ही रैम की जानकारी नष्ट हो जाती है।

4. संग्रहक उपकरण (Storage Unit)—एक कंप्यूटर में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेट, आप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज इत्यादि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आंकड़ों तथा कार्यक्रम-निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आंकड़ा-संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइड (MB) से गीगावाइट (GB) तक होती है।

5. संचार (Communication) संचार के लिए काफी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन यंत्रों का उपयोग एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर के साथ जोड़ने के लिए तथा इंटरनैट का प्रयोग करने के लिए किया जाता है। वाई फाई रिसीवर, मोडम इत्यादि इस वर्ग में शामिल हैं।

6. सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा आँकड़ा प्रक्रिया की पेशकारी के लिए, प्रयोग के लिए तथा कंप्यूटर के माध्यम में तालमेल बिठाता है। तत्वों को क्रमवार करने के लिए, अशुद्धियों को हटाने के लिए, आंकड़ों के जोड़-तोड़ तथा संभाल इत्यादि काम सॉफ्टवेयर द्वारा किये जाते हैं। प्रमुख सॉफ्टवेयर हैं—MS-Excel, Spreadsheet, Lotus-1,2,3, तथा D-Base, Arc-view, Are GIS-Geomedia इत्यादि। इनके द्वारा सॉफ्टवेयर नक्शे बनाने के लिए अध्ययन किया जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए लुभावने तरीके के मुकाबले संगणक प्रयोग करने के क्या फायदे हैं ?
उत्तर-
आंकड़ा प्रक्रिया के परिणाम हासिल करने के लिए संगणक प्रक्रिया में से गुजरना पड़ता है। संगणक तकनीक ने पिछले एक दशक से इतना विकास कर लिया है कि आंकड़ों को मनचाहे ढंग के साथ पेश किया जा सकता है। इसके द्वारा आंकड़ा प्रक्रिया तथा पेशकारी तथा संचालन का काम अच्छे ढंग के साथ किया जा सकता है। संगणक की सहायता के साथ आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के साथ अधिक अच्छे ढंग से जोड़ घटाव से लेकर तर्क के साथ हल होने वाले साधारण तथा जटिल सवाल भी हल किये जा सकते हैं। संगणक की सहायता के साथ आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों की ही आवश्यकता होती है। संगणक के सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा आंकड़े प्रक्रिया तथा आंकड़ों की पेशकारी के लिए प्रयोग योग्य तथा कंप्यूटर के मध्य में तालमेल बिठाता है।

इसके द्वारा आसानी के साथ तत्वों को क्रमशः से करना, अशुद्धियों को हटाना, आंकड़ों के जोड़-तोड़ तथा संभाल इत्यादि का काम जल्दी हो जाता है। कंप्यूटर तकनीक के विकास के साथ आंकड़ों को मनचाहे ढंग के साथ पेश भी किया जा सकता है। इसके द्वारा स्क्रीन के हिस्से को बड़ा करके देखा जा सकता है, रंग तबदील किये जा सकते हैं, तीन-पसारी तथा परिपेक्ष्य प्रदर्शन किया जा सकता है। विविध विषयों का ऐच्छिक अध्ययन किया जा सकता है। बहुभुज शेडिंग, लाइन स्टाइलिंग तथा प्वाइंट मेकर प्रदर्शित किया जा सकता है। इसके बिना प्रिंटर प्लाटर, स्पीकर इत्यादि के साथ तालमेल बिठाने में कोई मुश्किल नहीं आती। इसलिए हम कह सकते हैं कि आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए लुभावने तरीके के मुकाबले कंप्यूटर प्रयोग करने के फ़ायदे अधिक हैं।

प्रश्न 3.
वर्कशीट (कार्यपत्रक) क्या है ?
उत्तर-
वर्कशीट (कार्यपत्रक) आमतौर पर एक कागज़ की शीट होती है जिस पर विद्यार्थियों के लिए कुछ प्रश्न लिखे होते हैं तथा उत्तर लिए जाते हैं। एक्सल वर्कशील एकहरी स्प्रेडशीट होती है जिसका प्रयोग आंकड़ा प्रक्रिया नक्शे तथा रेखाचित्र इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है। वर्कशीट टर्म का प्रयोग एक स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर के तौर पर भी किया जाता है तथा एक एकांऊटैंट की तरफ से प्रयोग किए गये एक पेपर जिस पर कोई रिकार्ड लिखा हैं, को वर्कशीट का नाम दिया जाता है। वर्कशीट शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1900 में किया गया।

एक कक्षा के कमरे में वर्कशीट से भाव उन कागजों की शीटों से है, जिन पर प्रश्न तथा कुछ अभ्यास योग्य प्रश्न विद्यार्थी के लिए पूरा करने तथा जवाब रिकार्ड करने के लिए बनाई गई होती हैं। अकाऊंट में वर्कशीट का अर्थ है, एक खुले पन्ने होते हैं जिसमें वर्क शैड्यूल, काम का समय, खास हिदायतों इत्यादि का रिकार्ड रखा जाता है तथा कंप्यूटर में एक्सल वर्कशीट में आंकड़े बहुत ही सरल तरीके के साथ दाखिल तथा जमा किये जा सकते हैं। आंकड़ों की नकल की जा सकती है या एक सैल से दूसरे सैल में भेजे जाते हैं। इसके द्वारा आंकड़े मिटाये जा सकते हैं। इस वर्कशीट द्वारा काम के आंकड़े स्थाई तौर पर संभाले जा सकते हैं। इस तरह आंकड़े सरलता से दाखिल किये जाते हैं। कालम बनाकर आंकड़े दाखिल करने के समय नंबर-पैड के साथ ऐंटर की या डाऊन-चिह्नित का प्रयोग किया जाता है। स्तरों में आंकड़ों को दाखिल करते समय नंबर पैड के साथ राइट चिन्हित का भी प्रयोग किया जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
स्थानिक तथा गैर-स्थानिक आंकड़ों में क्या अन्तर है ? उदाहरणों सहित बताओ।
उत्तर-
स्थानिक तथा गैर-स्थानिक आंकड़ों में अंतर निम्नलिखित हैं –

स्थानिक आंकड़े-

  1. स्थानीय आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते हैं। यह धरती पर किसी स्थान को दर्शाता है।
  2. स्थानीय आंकड़ों में किसी क्षेत्र जैसे अस्पताल, स्कूल इत्यादि क्षेत्रों की भौगोलिक विशेषताओं के बारे में दिखाया जाता है।
  3. इनको तैयार करना थोड़ा मुश्किल होता है।
  4. इसमें लकीरों की सहायता के साथ नदियों, रेलवे लाइन इत्यादि दिखाये जाते हैं।
  5. जब नक्शे के ऊपर केवल स्कूल को दिखाया जाता है उसको स्थानीय आँकड़े कहते हैं।
  6. Shx तथा Shq फाइलों में स्थानिक आंकड़े होते हैं।

गैर-स्थानिक आंकड़े-

  1. x`जब कोई डाटा/आंकड़ा हमें धरती की किसी जगह के बारे ज्ञान की करवाए वह गैर-स्थानीय आंकड़े कहलाते हैं।
  2. गैर-स्थानिक आंकड़ों में नंबर, अंक, व्यक्ति या श्रेणियों की संख्या इत्यादि को दिखाया जाता है।
  3. गैर-स्थानीय आंकड़े तैयार करने आसान होते हैं।
  4. गैर-स्थानीय आंकड़ों की सहायता के साथ आंकड़ों की विशेषता बारे दिखाया जाता है।
  5. अगर स्कूल का नाम, कक्षा, कक्षों तथा विद्यार्थियों की संख्या के बारे बताया जाए। तब वह गैर स्थानीय आंकड़े कहलाते हैं।
  6. dbf एक dbase फाइल होती है जो कि Shx तथा Shp फाइलों से जुड़े होते हैं।

उदाहरण-जब हम किसी स्कूल, कस्बे, गाँव, इत्यादि की भौगोलिक विशेषता को बिन्दुओं, बहुभुजों या लकीरों की सहायता से नक्शे पर दिखाते हैं, तो उसे स्थानीय आंकड़े कहते हैं तथा अगर हम स्कूल का नाम, कक्षा, बच्चों की संख्या, गांव/कस्बे में घर, घरों में व्यक्तियों की संख्या का अध्ययन करते हैं, तब वह गैर-स्थानीय आंकड़ों की उदाहरण मानी जाती है।

प्रश्न 2.
भौगोलिक आंकड़ों के तीन रूप कौन-से हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक आंकड़े कई तरह की जानकारी का संग्रह होते हैं। यह हमें किसी दृढ़ विषय के विभाजन तथा घनत्व के बारे जानकारी देता है। भौगोलिक आंकड़े कई प्रकार के होते हैं। अब भूगोल प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों ही पक्षों को हल करता है। भौगोलिक आंकड़ों में हम धरती पर चट्टानों, मौसम, फसलों, उद्योगों, जानवरों तथा मानवीय आंकड़ों तथा इनकी विशेषता के बारे ज्ञान हासिल करते हैं। भौगोलिक आंकड़े गुणवाचक तथा परिमाणवाचक दोनों रूपों में हमें मिलते हैं। भौगोलिक आंकड़े समधर्मी (Analogue) तथा डिजीटल रूप में मिलते हैं। नक्शे के लिए जब चित्र आसमान से लिए जाते हैं तो वे समधर्मी आंकड़ों की उदाहरणे हैं तथा जब स्कैन करके कंप्यूटर में डाला जाता चित्र होता तो वह डिजीटल आंकड़े की उदाहरण होती है। भौगोलिक डाटा के मुख्य रूप हैं-

1. भौगोलिक (स्थानीय ) वर्गीकरण-यह वर्गीकरण भौगोलिक आंकड़ों तथा स्थानों में अंतर पर निर्भर करता है। इसको स्पष्ट करने के लिए हमें आंकड़े इकट्ठे करने होते हैं जैसे कि कितनी फर्मे (Firms) भारत में साइकिल बना रही हैं।

Number of Firms Producing Bicycles in 2013 Across Different Locations.

Place Number of Firms
Punjab 20
Haryana U.P. 25

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 1

2. समयानुसार या ऐतिहासिक वर्गीकरण (Chronological Classification)-जब आंकड़ों का समय के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है उसे Chronological वर्गीकरण कहते हैं। इसको निम्नलिखितानुसार स्पष्ट कर सकते हैं-

Sales of a Firm (2011-2013)

Year Sales(Rs)
2011 80 Lakhs
2012 90 Lakhs
2013 95 Lakhs

3. गुणवाचक वर्गीकरण (Qualitative Classification)—यह वर्गीकरण गुण या विशेषता के आंकड़ों के अनुसार होता है, जैसे कि डाटा को जनसंख्या के पेशे, धर्म तथा योग्यता के स्तरों के अनुसार विभाजित किया जाता है। इससे दो तरीकों से विभाजित किया जा सकता है

1. Simple Classification
2. Manifold Classification.

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 3.
संगणक की सहायता से उपयुक्त तरीका प्रयोग करते हुए आंकड़ों की पेशकारी करो तथा ग्राफ का विश्लेषण करो।
उत्तर-
आंकड़ा प्रक्रिया तथा पेशकारी के लिए कई प्रकार के तरीके प्रयोग किये जाते हैं पर ये तरीके काफी समय लेने वाले तथा मुश्किल होते हैं। आधुनिक युग में कंप्यूटर की सहायता के साथ आकडों की पेशकारी की जा रही है तथा इसके साथ यह बोझिल तथा समय खराब करने वाले काम आप आसानी से कर सकते हैं। कंप्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसमें हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर दो हिस्से होते हैं तथा आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए हम इन दोनों हिस्सों का प्रयोग करते हैं। आंकड़ों की पेशकारी अलग-अलग तरीकों से की जाती है। जैसे कि बार ग्राफ, हिस्टोग्राफ, पाई-चार्ट इत्यादि। अब हम आंकड़ों की पेशकारी के लिए उपयुक्त ढंग का प्रयोग करेंगे। हम एक्सल में इनकी पेशकारी तथा ग्राफ बनाने का विश्लेषण करेंगे-

  1. हर एक चित्र को क्रमानुसार नंबर देना आवश्यक है।
  2. हर एक चित्र का एक उपयुक्त शीर्षक बनाना चाहिए तथा शीर्षक ऐसा होना चाहिए जिसमें आंकड़ों का समय तथा स्थान भी स्पष्ट हो जाए।
  3. शीर्षक तथा उपशीर्षक, इकाइयों के यूनिट भी लिखे जाने चाहिए।
  4. शीर्षक, उपशीर्षक, इकाइयां इत्यादि को दर्शाने के लिए फौंट का ख्याल रखना चाहिए। फौंट ऐसा होना चाहिए कि हर एक चीज उपयुक्त स्थान पर मिल जाए। कंप्यूटर में आंकड़ों की पेशकारी के लिए अलग-अलग तरीके जैसे कि बार ग्राफ, हिस्टोग्राफ, मिश्रित बार चित्र, पाई चार्ट इत्यादि बनाये जाते हैं तथा कंप्यूटर पर इनका प्रयोग करना काफ़ी आसान तथा स्पष्ट हो जाता है। हम कंप्यूटर की सहायता से मिश्रित बार ग्राफ का प्रयोग करके आंकड़ों की पेशकारी करेंगे तथा ग्राफ का विश्लेषण करेंगे। सबसे पहले आँकड़े इकट्ठे करके एक सारणी बनाई जाए तथा फिर Excel पर एक बार ग्राफ बनाया जाए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 2

  1. इसके लिए सबसे पहले Excel Open करेंगे फिर Spreadsheet को खोलेंगे जिसमें चार्ट बनाया जाएगा।
  2. फिर पूरे आंकड़े (Data) जिसको चार्ट में शामिल करना है उसको Select करो। Column तथा Row बना लो। जैसे कि बार चार्ट में सारणी बनाया जाता है। इसके बाद Chart Wizard टूलबार बटन पर क्लिक करो तथा Insert मीनू में चार्ट की किस्म Select कर लो। इसके बाद एक बार ग्राफ की सबटाइप चुन लो तथा फिर Next पर क्लिक करो।
  3. यह देख लो कि Data जो लिया है वह ठीक हो तथा Data Range भी चुन लो फिर Next पर क्लिक करो।
  4. इसके बाद (Title) शीर्षक चार्ट के लिए प्रवेश करो जो xaxis या yaxis के लिए आपने देना है।
  5. इसके बाद Finish पर क्लिक करो। आपका बार ग्राफ बन जाएगा।
  6. आखिर पर कोई बदलाव करने के लिए आप Chart Toolbar का प्रयोग कर सकते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 3

Geography Guide for Class 12 PSEB प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रारंभिक आंकड़ों का स्रोत नहीं है ?
(A) इंटरव्यू
(B) शैड्यूल
(C) निजी निरीक्षण
(D) अखबार।
उत्तर-
(D) अखबार।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
नक्शा कला के डिजाइन के नीचे लिखे महत्त्वपूर्ण भागों में से कौन-सा भाग शामिल नहीं किया जाता है ?
(A) संकेत
(B) सही पैमाने का चुनाव
(C) शीर्षक
(D) दिशा।
उत्तर-
(B) सही पैमाने का चुनाव

प्रश्न 3.
जनसंख्या में वृद्धि जन्म दर तथा मृत्यु दर दिखाने के लिए कौन-से ग्राफ बनाये जाते हैं ?
(A) लकीरी ग्राफ
(B) साधारण बार चित्र
(C) बहु-बार चित्र
(D) पाई चित्र।
उत्तर-
(A) लकीरी ग्राफ

प्रश्न 4.
बहाव चार्ट क्या है ?
(A) नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल
(B) नक्शे तथा डाटा का सुमेल
(C) आंकड़ों का सुमेल
(D) नक्शों का सुमेल।
उत्तर-
(A) नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 5.
किस विधि से सड़कों, रेलमार्गों इत्यादि लम्बे तथा कम चौड़े क्षेत्र के नक्शे को बड़ा या छोटा किया जाता है ?
(A) बिन्दु विधि
(B) समरूप त्रिभुजाकार विधि
(C) पैटोग्राफ के साथ
(D) फोटोग्राफिक कैमरे के साथ।
उत्तर-
(B) समरूप त्रिभुजाकार विधि

प्रश्न 6.
किस विधि के द्वारा वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आंकड़ों को बिन्दुओं के रूप में दिखाया जाता है ?
(A) बिन्दु नक्शे
(B) वितरण नक्शे
(C) समरूपी नक्शे
(D) लकीरी ग्राफ।
उत्तर-
(A) बिन्दु नक्शे

प्रश्न 7.
किस पद्धति को Choropleth Method कहते हैं ?
(A) वितरण नक्शे
(B) वर्णमात्री नक्शे
(C) यांत्रिक पद्धति
(D) विशेषतः नक्शे।
उत्तर-
(B) वर्णमात्री नक्शे

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 8.
Isopleth कौन से शब्दों का मेल से बनता है?
(A) Iso +pleth
(B) Isoe + pletho
(C) Iso + plethron
(D) Iso + Plethron.
उत्तर-
(C) Iso + plethron

प्रश्न 9.
Ctrl + N दबाने के साथ क्या होता है ?
(A) नई एक्शल फाइल खुलती है।
(B) कंप्यूटर में मौजूद हर फाइल खुल जाती है।
(C) पेस्ट करने के लिए दबाया जाता है।
(D) फाइल को कंप्यूटर में संभाला जाता है।
उत्तर-
(A) नई एक्शल फाइल खुलती है।

प्रश्न 10.
बिन्दुओं की सहायता के साथ निम्नलिखित में से कौन-से स्थानीय आंकड़े दिखा सकते हैं ?
(A) ज़िले
(B) स्कूल
(C) रेलवे स्टेशन
(D) जंगल।
उत्तर-
(B) स्कूल

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

B. खाली स्थान भरें :

1. जीओ-सिनक्रोसिन सैटेलाइट (GSLY) को ……….. द्वारा तैयार किया गया है।
2. इंडियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम में ……….. उपग्रह हैं।
3. लांच व्हीकल दो तरह के होते हैं PSLV तथा ………….।
4. दो पसारी चित्रों में …………… तथा …………. शामिल होते हैं।
5. बहु बार चित्र ……….. या ……….. अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने के लिए बनाये जाते हैं।
उत्तर-

  1. इसरो
  2. सात
  3. GSLV
  4. पाई चित्र, आयताकार
  5. दो या दो से।

C. निम्नलिखित कथन सही (√) है या गलत (x) :

1. पुरुषों तथा औरतों की जनसंख्या कुल ग्रामीण तथा शहरी आबादी को दर्शाने के लिए बहु बार चित्र बनाये जा सकते हैं।
2. बहाव चार्ट नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल होते हैं।
3. विशेषत नक्शे आमतौर पर मात्रात्मक तथा गैर मात्रात्मक किस्मों में विभाजित किए जाते हैं।
4. Ctrl + z दबाने के साथ चुने हुए सैल में आंकड़े मिट जाते हैं।
5. पुलाडी हिस्से में 27 उपग्रह होते हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले उत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
डाटा क्या है ?
उत्तर-
भिन्न प्रकार के आंकड़े जैसे कि वस्तु की मात्रा, गुण, गुणवत्ता, वितरण इत्यादि को स्पष्ट किया जाता है। संख्या पर आधारित जानकारी डाटा कहलाती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
आंकड़ा/डाटा कौन से स्रोतों से प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर-
प्रारंभिक स्रोतों तथा गौण स्रोतों से डाटा प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 3.
दूसरे दर्जे के गौण आंकड़ों के स्त्रोतों में कौन-से स्रोत शामिल हैं ?
उत्तर-
इन स्रोतों में सरकारी प्रकाशनाएं, दस्तावेज, रिपोर्ट तथा प्रकाशित या अप्रकाशित स्रोत शामिल हैं।

प्रश्न 4.
रेखा ग्राफ किसको प्रदर्शित करने के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि, जन्म दर तथा मृत्यु दर को।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 5.
अलग-अलग परिवर्तनशील तत्वों को दिखाने के लिए कौन-से रैखिक नमूने प्रयोग किये जाते हैं ?
उत्तर-
सीधी रेखा (-), विभाजित रेखा (—), बिन्दु रेखा (….) या मिश्रित रेखा में विभाजित तथा बिन्दु रेखा।

प्रश्न 6.
दण्ड आरेख को और किस नाम से बुलाया जाता है ?
उत्तर-
कालमी चित्र।

प्रश्न 7.
तुरन्त तुलना के लिए कौन से चित्र बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
साधारण दण्डचित्र।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 8.
बहु-बार चित्र किस उद्देश्य के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने तथा तुलना करने के लिए।

प्रश्न 9.
भारत की 1951 की साक्षरता दर कितनी थी ?
उत्तर-
18.33 प्रतिशत।

प्रश्न 10.
अगर आंकड़ा प्रतिशत रूप में ही तब कोण प्राप्त करने के लिए कौन सा फार्मूला प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 4

प्रश्न 11.
बहाव नक्शे किस किस्म के आंकड़े पेश करने के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
गाड़ियों की उनके पहुंच स्थान की तरफ की संख्या तथा बारंबारता के लिए तथा मुसाफिरों तथा परिवहन की जाने वाली वस्तुओं की संख्या के लिए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 12.
बिन्दु नक्शे किसलिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
यह नक्शे जनसंख्या, पशुओं की संख्या, फसलों की किस्मों इत्यादि के उपयोगों का विभाजन दिखाने के लिए बनाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
बिन्दु नक्शे का कोई एक दोष बताओ।
उत्तर-
इनको बनाने में काफी समय लगता है तथा यह एक मुश्किल काम है।

प्रश्न 14.
सममान रेखाओं की किस्में बताओ।
उत्तर-
समदाब रेखाएं, समताप रेखाएं, समवर्षा रेखाएं, सम उच्च रेखाएं, सममेघ रेखाएं।

प्रश्न 15.
वर्णमात्री नक्शे किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस पद्धति में किसी एक वस्तु के वितरण को नक्शे के अलग-अलग शेडों या रंगों के द्वारा दर्शाया जाता है। किसी रंग की तुलना में Black and White Shading का प्रयोग करना अच्छा समझा जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 16.
कंप्यूटर के हिस्सों को कौन से भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
साफ्टवेयर तथा हार्डवेयर।

प्रश्न 17.
जी०पी०एस० के तीन हिस्से कौन-से हैं ?
उत्तर-
पुलाड़ी हिस्सा, नियंत्रण हिस्सा, उपयोगी हिस्सा।

प्रश्न 18.
पुलाड़ी हिस्से में कितने उपग्रह हैं ?
उत्तर-
24 उपग्रह, 2016 में इनकी संख्या बढ़ाकर 32 कर दी गई है।

प्रश्न 19.
लांच व्हीकल की किस्में बताओ।
उत्तर-
पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV) तथा जीओ सिनक्रोसन सैटेलाइट लांच व्हीकल (GSLV) ।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 20.
भारतीय नेवीगेशन सिस्टम का नाम बताओ।
उत्तर-
इण्डियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम।

प्रश्न 21.
PSLV को किस द्वारा तैयार किया गया है?
उत्तर-
ISRO द्वारा।

प्रश्न 22.
वितरण नक्शे से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
यह वे नक्शे हैं जो धरती के किसी भाग पर किसी तत्व के वितरण के मूल्य को या घनत्व को प्रकट करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
डाटा की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र के फसली पैटर्न के अध्ययन के लिए उस क्षेत्र के फसली क्षेत्र, उपज, उत्पादन का अध्ययन करने के लिए सिंचाई के अधीन क्षेत्र, वर्षा की मात्रा, खादें तथा कीटनाशक दवाइयां इत्यादि के प्रयोग संबंधी अंकात्मक/डाटा जानकारी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा भौगोलिक विश्लेषण संबंधी डाटा की भी अहम् भूमिका होती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
ग्राफ, चित्र तथा नक्शे बनाने के लिए आम नियम कौन से हैं ?
उत्तर-
ग्राफ, चित्र तथा नक्शे बनाने के लिए आम नियम निम्नलिखित हैं-

  • सही तरीके का चुनाव
  • सही पैमाने का चुनाव
  • रूपरेखा तैयार करना इस शीर्षक, संकेत तथा दिशा शामिल है।

प्रश्न 3.
बार ग्राफ (दण्ड आरेख) की रचना के लिए कौन-से नियमों में ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-
दण्ड आरेख को कालमी चित्र भी कहते हैं। इसके मुख्य नियम हैं-

  • सारे बार समान चौड़ाई के होने चाहिए।
  • सारे बार एक समान दूरी पर होने चाहिए।
  • सारे बार अलग-अलग रंगों द्वारा आकर्षित तथा एक-दूसरे से अलग दिखाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
आंकड़ा चित्रों के लाभ बताओ।
उत्तर-
आंकड़ा चित्रों के लाभ इस प्रकार हैं-

  • आंकड़ों का सजीव रूप–प्रायः किसी विषय सम्बन्धी आंकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  • सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है।
  • अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लम्बे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टिक सहायता का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  • विश्लेषण में उपयोगी-शोधकार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  • साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी-साधारण व्यक्ति आंकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 5.
चक्र चित्र (Pie Diagram) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यह वृत्त चित्र (Circular Diagram) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों को जोड़ कर एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र, पहिया चित्र या सिक्का चित्र भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
वृत्त चक्र के गुण-दोष बताओ।
उत्तर-

  1. चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  2. ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखाया जाता है।
  3. इसका चित्रीय प्रभाव भी अधिक है।
  4. इसमें पूरे आँकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करनी कठिन होती है।

प्रश्न 7.
बहाव नक्शों के लिए कौन-सी जरूरतमंद वस्तुएं आवश्यक चाहिए ?
उत्तर-
बहाव नक्शों के लिए-

  • जरूरतमंद ट्रांसपोर्ट रूट का नक्शा जिस पर स्टेशन दिखाया गया हो उसकी आवश्यकता होती है।
  • वस्तुओं, सेवाओं, गाड़ियों की संख्या इत्यादि सम्बन्धी डाटा, जिनमें उनके संबंधित वस्तुओं की उपज तथा पहुंच का स्थान बताना बहुत आवश्यक है।
  • ज़रूरत के पैमाने का चुनाव भी आवश्यक है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 8.
वर्णमात्री नक्शे बनाने के सिद्धान्त क्या हैं ?
उत्तर-
जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है। उसी प्रकार आभा भी अधिक गहरी होती जाती हैं। आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  • बिन्दुओं का आकार बड़ा करके।
  • रेखाओं को मोटा करके।
  • रेखाओं को निकट करके।
  • रेखा जाल बनाकर।
  • रंगों को गहरा करके।

प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of Shades का एक सूचक दिया जाता है।

प्रश्न 9.
विषयगत नक्शे कौन से हैं ?
उत्तर-
जिन नक्शों के द्वारा आँकड़ों की विशेषता दर्शाने के लिए तथा तुलना करने के लिए ग्राफ तथा चित्र एक अहम् भूमिका निभाते हैं, विषयगत नक्शे होते हैं पर इनमें क्षेत्रीय परिदृश्य दिखाने के लिए चित्र तथा ग्राफ असफल होते हैं। इसलिए स्थानिक भिन्नता को तथा क्षेत्रीय वितरण को समझने के लिए इस तरह के नक्शे बनाये जाते हैं।

प्रश्न 10.
कंप्यूटर क्या कर सकता है ?
उत्तर-
कंप्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसके अपने कई हिस्से होते हैं जिनमें कुछ हैं, मैमोरी, माइक्रो प्रोसैसर, निवेश एवं निर्गत उपकरण। कंप्यूटर के यह सारे हिस्से मिलकर बहुत ही अधिक प्रभावशाली उपकरण मतलब कंप्यूटर का निर्माण करते हैं। इसके द्वारा आंकड़ा पेशकारी, प्रक्रिया तथा संचालन का काम अच्छे ढंग के साथ किया जा सकता है। कंप्यूटर की सहायता के साथ जोड़ तथा घटाव से लेकर तर्क से हल करने वाले सारे साधारण तथा जटिल प्रश्न हल किये जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
MS-Excel या स्प्रेडशीट क्या है ?
उत्तर-
यह कुछ ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी हम आंकड़ा प्रक्रिया के लिए सबसे अधिक उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग नक्शे तथा रेखाचित्र बनाने में करते हैं। इसको रेखाचित्र या नक्शे बनाने वाले प्रोग्राम या स्प्रेडशीट के नाम से पहचाना जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 12.
स्थानीय आंकड़े कौन से होते हैं ?
उत्तर-
जो आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते उनको स्थानीय आंकड़े कहते हैं। इसे आमतौर पर बिन्दु रेखाओं तथा बहुर्भुज के रूप में मिलते हैं। इसमें ट्यूवबैल, कस्बे, गाँव, अस्पताल इत्यादि बिन्दुओं की सहायता के साथ, रेल की लाइनों, नदियों इत्यादि रेखाओं की सहायता के साथ तथा भूमि, तालाब, झीलों, जंगल, ज़िले इत्यादि बहुभुजों की सहायता से दिखाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
Sun-Synchronerus Circular Orbit क्या है ?
उत्तर-
Sun-Synchronerus Circular Orbit होता है जब पृथ्वी के केन्द्रीय पार्ट को उपग्रह के साथ मिलाने वाली एक रेखा तथा पृथ्वी के केन्द्र को सूर्य के साथ मिलाने वाली रेखा के मध्य में बनने वाले कोण स्थाई हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बिन्दु नक्शे बनाने के लिए मुख्य आवश्यकताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
बिन्दु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं-बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है-

  • निश्चित आंकड़े (Definite an Detailed Data)-जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही सही आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर होने चाहिए जैसे जनसंख्या तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।
  • रूपरेखा मानचित्र (Outline Map) उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें जिले या राज्य इत्यादि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप पर बना हो।
  • धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, thills, marshes, इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।
  • जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।
  • मृदा मानचित्र (Soil Map)—विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी की उपजाऊपन विभिन्न होता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
विषयगत नक्शों का महत्त्व वर्णन करो।
उत्तर-
विषयगत नक्शों का महत्त्व निम्नलिखितानुसार है-

  • यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन के लिए विशेष रूप में महत्त्व रखता है। पृथ्वी पर अलग-अलग साधन तथा मनुष्य के सम्बन्ध में इन शक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सकता है।
  • आंकड़ों की लम्बी-लम्बी तालिकाओं को याद रखना मुश्किल हो जाता है पर वितरण नक्शे किसी तत्व की दिमाग पर स्थाई छाप छोड़ देते हैं।
  • इनका उपयोग शिक्षा संबंधी कामों के लिए किया जाता है।
  • इन नक्शों के द्वारा एक नज़र में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है। यह स्पष्ट हो जाता है कि कौन सी वस्तु कौन से क्षेत्र में अधिक तथा कौन से क्षेत्र में कम होती है।
  • इन नक्शों के द्वारा क्षेत्रफल तथा उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।
  • वितरण नक्शे वास्तविक आंकड़ों के स्थान नहीं ले सकते। असल में नक्शों के द्वारा एक भूगोलकार सिर्फ तत्त्व ही दर्शा सकता है।

प्रश्न 3.
आंकड़ा डाटा के प्रारंभिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
आंकड़ा डाटा के प्रारंभिक स्रोत इस प्रकार हैं-

  • निजी निरीक्षण-यह निरीक्षण किसी समूह, संस्था, व्यक्ति या क्षेत्र से सीधे निरीक्षण द्वारा जानकारी इकट्ठी की जाती है। क्षेत्रीय कार्य के द्वारा स्थल रूपों, प्रवाह प्रणाली, मिट्टी की किस्में तथा वनस्पति, जनसंख्या संरचना इत्यादि की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • साक्षात्कार-इस द्वारा खोज की जानकारी पर वार्तालाप किया जाता है तथा इस पर्यावरण द्वारा जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • स्टेडले-इसमें कुछ सवाल तथा उनके जवाब एक कागज़ पर लिखे जाते हैं तथा प्रश्नों के जवाब देने वाले को उनको अपने चुनाव के अनुसार चुनना होता है। जिस स्थान पर जवाब देने के दो विचारों का चुनाव होता हैं उस स्थान पर कागज़ पर आवश्यकता अनुसार जगह छोड़ी जाती होती है। इस तरीके से बड़े क्षेत्र की जानकारी इकट्ठी की जाती है। पर सिर्फ पढ़े-लिखे व्यक्ति से ही इस तरीके की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • अन्य तरीके-मिट्टी किट तथा पानी गुणवत्ता किट से भी सीधे तौर पर जल तथा मिट्टी की गुणवत्ता संबंधी आँकड़े इकट्ठे किये जा सकते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 4.
आंकड़े को प्रदर्शित करने की कौन-कौन सी विधियां हैं ?
उत्तर-
आंकड़े रेखाचित्रों तथा वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। आँकड़ों के विस्तार तथा प्रकृति के अनुसार ये रेखाचित्र निम्न प्रकार के हैं-

  1. रेखा आरेख चित्र (Line Graph)
  2. दण्डारेख चित्र (Bargraph)
  3. चलाकृति चित्र (Wheel diagram)
  4. तारक चित्र (Star Diagram)
  5. क्लाइमोग्राफ (Climograph)
  6. हीथर ग्राफ (Hythergraph)
  7. चित्रीय आरेख (Pictorial diagram)
  8. आयत चित्र (Rectangular Diagram)
  9. मुद्रिक चित्र (Ring Diagram)
  10. मेखला चित्र (Circular Diagram)

प्रश्न 5.
रेखाग्राफ की रचना तथा महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
सांख्यिकी चित्रों में रेखाग्राफ का महत्त्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है। यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं। ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा पर किसी वस्तु के मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिन्दु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिन्दुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है। ये रेखा ग्राफ दो प्रकार के होते हैं।

  1. जब किसी निरन्तर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार इत्यादि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा से दिखाया जाता है।
  2. जब किसी रुक रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

महत्त्व-रेखा ग्राफ से तापमान, जनसंख्या वृद्धि, जन्म दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखा ग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 6.
दण्ड आरेख (Bar Diagram) के गुण तथा दोष लिखो।
उत्तर-
गुण-दोष (Merits and Demerits)

  • यह आंकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  • इसके द्वारा तुलना करना आसान है।
  • दण्ड चित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  • जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अन्तर हो, तो दण्ड चित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 7.
वृत्त चक्र (Pie Diagram) की रचना के बारे में बताओ।
उत्तर-
यह वृत्त चित्र का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र, पहिया चित्र या सिक्का चित्र भी कहते हैं।
रचना-इस चित्र में वृत्त का अर्द्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केंद्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 5
कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड कर दिए जाते हैं।

प्रश्न 8.
विषयगत नक्शे बनाने के लिए जरूरतमंद वस्तुओं तथा आम नियमों के बारे में बताओ।
उत्तर-
आंकड़ों की तुलना करने तथा विशेषताएं दर्शाने के लिए बनाये ग्राफ तथा चित्र इसमें अहम् भूमिका निभाते हैं। विषय नक्शे बनाने के लिए आवश्यकता की वस्तुएं हैं-

  • चुने हुए विषय संबंधी जिले स्तर पर आंकड़े।
  • चुने हुए क्षेत्र का प्रबंधन सीमाओं सहित नक्शा।
  • संबंधित क्षेत्र का भौतिक नक्शा।

विषयगत नक्शे बनाने के लिए मुख्य नियम-

  • इन नक्शों को योजना बंदी तरीके के साथ तथा सावधानी के साथ तैयार किया जाना चाहिए। पूर्ण रूप में तैयार नक्शा निम्न जानकारी देता है, जैसे कि क्षेत्र का नाम, विषय का शीर्षक, आंकड़े का स्रोत तथा साल, चिन्हों, प्रतीकों, रंगों की गहराइयों इत्यादि की सूचना।
  • विषयगत: नक्शों के साथ सही तरीके का चुनाव होना बहुत आवश्यक है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 9.
वर्णमात्री नक्शे बनाने की विधि के बारे में बताओ।
उत्तर-
इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। किसी रंग की अपेक्षा Black and White shading को प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

विधि (Procedure)

  • किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े प्राप्त करो। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  • ये आंकड़े औसत के रूप में हो या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे जनसंख्या का घनत्व।
  • घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अन्तराल चुन लेना चाहिए।
  • अन्तराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  • यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  • प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
सममान नक्शे किसे कहते हैं ? इनके गुण बताओ।
उत्तर-
Isopleth शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है (Iso + Plethron) Iso का अर्थ है समान तथा plethron शब्द का अर्थ है मान रेखाएं अर्थात् वह रेखाएं हैं जिनका मूल्य तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान समान हो।

गुण (Merits)

  • सममान रेखायें वर्षा, तापमान इत्यादि आंकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखायें किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिन्दु मानचित्र तथा वर्णमात्री को समान रेखा मानचित्र में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों में कोई सम्बन्ध नहीं होता।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 11.
संगणक सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर बारे बताओ।
उत्तर-
संगणक के भौतिक हिस्से जिनको हम देख सकते हैं तथा छू सकते हैं वे हार्डवेयर कहलाते हैं। यह भाग मशीनी, इलैक्ट्रॉनिक या इलैक्ट्रीकल हो सकते हैं। ये कंप्यूटर के हार्डवेयर अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि कंप्यूटर किस उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके तथा व्यक्ति की आवश्यकता क्या है। एक कंप्यूटर में विभिन्न तरह के हार्डवेयर होते हैं जिसमें सी०पी०यू०, हार्ड डिस्क, रैम, प्रोसैसर, मॉनीटर, मदरबोर्ड, फ्लापी ड्राइव कंप्यूटर के सिर्फ पावर संचालित यूनिट की बोर्ड, माऊस इत्यादि भी हार्डवेयर के अंतर्गत आते हैं। कंप्यूटर हमारी तरह हिन्दी या अंग्रेजी भाषा नहीं समझता। हम कंप्यूटर को जो निर्देशन देते हैं उसकी एक नियत भाषा होती है इसको मशीन लैंगवेज़ या मशीन भाषा कहते हैं। कंप्यूटर साफ्टवेयर लिखित प्रोग्राम का एक समूह है जो कि कंप्यूटर की भंडार शाखा में जमा हो जाता है। इसमें MS-Excel, जी०पी०एस० इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 12.
राकेट या लांच व्हीकल पर नोट लिखो।
उत्तर-
राकेट या लांच व्हीकल की सहायता से उपग्रह को अंतरिक्ष में दागा जा सकता है। कुछ दूरी पर पहुंच कर राकेट उपग्रह से अलग हो जाता है। उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंच जाता है तथा राकेट समुद्र या बंजर धरती पर वापिस आ जाता है। राकेट या लांच व्हीकल दो किस्मों के होते हैं-

  • पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV)—इस व्हीकल को ISRO की तरफ से तैयार किया गया है। इस व्हीकल की सहायता से 1750 कि०ग्रा० तक के भार के Earth Observation उपग्रहों को 600-900 कि०मी० ऊंचाई तक के Sun-Synchronous Circular Polar Orbit में डाला जाता है।
  • जीऊ सिनक्रोसन सैटेलाइट लांच व्हीकल (GSLV)-इस व्हीकल को ISRO ने तैयार किया है। इसके मुख्य तीन पड़ाव होते हैं। इसकी तीसरी पड़ाव में क्रायोजनिक इंजन होता है। इसकी सहायता के साथ 2500 कि०ग्रा० या इससे भी भारे उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा स ते हैं।

प्रश्न 13.
भौगोलिक जानकारी तंत्र क्या है ?
उत्तर-
विद्वानों ने भौगोलिक जानकारी तंत्र का अलग-अलग तरीकों से वर्णन किया है। यह एक ऐसा तंत्र है जिस द्वारा हमें GPS उपग्रहों के द्वारा भेजे गये आंकड़ों को जान सकते हैं क्योंकि यह आंकड़े अंतरिक्ष से होते हैं। इनको पूरी तरह से समझना मुश्किल होता है। इन निरोल आंकड़ों को एक खास सिस्टम में निकाल कर आम मनुष्य की समझ में लाया जा सकता है। जी०पी०एस० तथा मनुष्य में तालमेल बिठाने का काम भौगोलिक जानकारी तंत्र ही करता है। इसकी सहायता के साथ स्थानिक तथा गैर-स्थानिक दोनों ही आंकड़ों को इकट्ठा किया जा सकता है। यह तंत्र आंकड़ों को इकट्ठा करता है उनको संभालता है तथा एक प्रतिक्रिया में से निकाल कर उसको उपयोग योग्य बनाता है। भौगोलिक जानकारी तंत्र की सहायता से शहरों तथा क्षेत्रों का योजनाबद्ध निर्माण भी किया जाता है। यह नक्शे तथा रेखाचित्रों के आगे की चीज है। कंप्यूटर तथा सूचना तकनीक में हो चुके विकास कारण इस तंत्र के साथ मौजूदा प्रबंधन की समस्याओं का हल किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 14.
ग्लोबल पोजीशनिंग योजना (GPS) पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम )(GPS) संयुक्त राज्य सेना द्वारा विकसित भूमंडलीय स्थितीय तंत्र सर्व ऋतु-रेडियो नौकायन प्रणाली है, जिसमें उपग्रह से नीचे प्रक्षेपित आँकड़ों का व्यक्तिगत यंत्र (रिसीवर) द्वारा प्रक्रमण होता है। यह विश्व में प्रतिदिन चौबीसों घंटे तीन आयामी स्थिति बताता है। अंतरिक्षीय उपग्रह प्रणाली की वृत्तीय कक्षा के परिक्रम पथ में 24 उपग्रह सम्मिलित होते हैं, तथा इसकी कक्षा में परिक्रमा अवधि 12 घंटे की होती है। यह परिक्रमा पथ 55° के कोण पर झुका होता है। उपग्रहों पर एक आण्विक घड़ी लगी होती है, जो घूर्णन के साथ स्थायी रूप से संकेत पैदा करती रहती है। ये संकेत उपग्रह के समय तथा पंचांग (किसी निश्चित समय बिंदु पर उपग्रह की स्थिति) में सम्बन्धित सूचना का वहन करती है। इसमें अक्षांश, देशान्तर तथा किसी भी स्थानीय इकाई की ऊँचाई प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, भूमंडलीय स्थितीय तंत्र का स्थानीय मानचित्रण के क्षेत्र में अत्यधिक योगदान है।

प्रश्न 15.
भूमि उपयोग निरीक्षण के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
कृषि भारतीय लोगों का मुख्य पेशा है। इसलिए सही भूमि उपयोग को समझना बहुत आवश्यक है। इस भूमि उपयोग के द्वारा हम कुछ त्रुटियों के बारे में जान सकते हैं तथा इन खामियों को दूर करके स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव पेश कर सकते हैं। भूमि उपयोग निरीक्षण का मुख्य उद्देश्य एक कृषि के क्षेत्र में सही भूमि के उपयोग के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरा गाँव या गाँव का एक हिस्सा उसके आकार के अनुसार लिया जा सकता है। हम अपने उद्देश्य की पूर्ति को नंबर अलाट करके उनमें बीजी गई फसलों को भर कर तथा सम्बन्धित क्षेत्र का भूमि-उपयोग नक्शा तैयार करके कर सकते हैं। इसके लिए हमें मिट्टी, पानी के निकास, सिंचाई की सुविधाओं, खादों के सही उपयोग के बारे सही तथा स्पष्ट जानकारी इकट्ठी करनी बहुत आवश्यक है। इसके लिए खेतों के नंबर तथा गाँव के पास सीमाबंदी के नक्शे मिल सकते हैं जिससे ज़रूरत अनुसार जानकारी इकट्ठी की जा सकती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आंकड़ा (डाटा) क्या है ? इसकी ज़रूरत क्यों होती है ? इसके मुख्य स्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-
डाटा-संख्या पर आधारित इकट्ठी की गई जानकारी डाटा कहलाती है। जैसे हम कई बार सुनते हैं कि लुधियाना में 60 सें०मी० तक लगातार वर्षा हुई तथा कर्नाटक में 24 घंटों में 40 सें०मी० वर्षा हुई इत्यादि। जब संख्या पर आधारित ऐसी जानकारी इकट्ठी की जाती है उसे डाटा कहते हैं।

डाटा की ज़रूरत-भूगोल के अध्ययन के लिए नक्शों की काफी आवश्यकता है।

  • किसी क्षेत्र के फ़सली पैटर्न का अध्ययन डाटा द्वारा करना आसान होता है। क्षेत्र के फ़सली पैटर्न का अध्ययन करने के लिए क्षेत्र का फसली क्षेत्र, फसल, उपज, उत्पादन, सिंचाई की सुविधा, वर्षा की मात्रा, खाद तथा कीटनाशक दवाइयों इत्यादि के प्रयोग सम्बन्धी आंकड़ात्मक जानकारी की आवश्यकता होती है।।
  • किसी शहर के विकास का अध्ययन करना शहर की आबादी, लोगों के पेशे, वेतन, उद्योगों, यातायात के साधनों इत्यादि सम्बन्धी आंकड़ों की आवश्यकता पड़ती है।
  • तथ्यों को जानने के लिए डाटा इकट्ठा करना बहुत आवश्यक है।

आँकड़ा/डाटा के स्रोत डाटा मुख्य रूप में निम्न दो स्रोतों से प्राप्त किया जाता है-

I. प्राथमिक स्रोत (Primary Source)—जो किसी व्यक्ति । संस्था द्वारा इकट्ठे किया जाए।
II. गौण स्त्रोत (Secondary Source)—किसी प्रकाशित या अप्रकाशित स्रोत से इकट्ठे किया जाए।

I. प्राथमिक स्त्रोत (Primary Sources)-

1. निजी प्रेक्षण (Personal Observation)–निजी प्रेक्षण किसी व्यक्ति या ग्रुप द्वारा सीधे प्रेक्षण द्वारा जानकारी इकट्ठा करने से सम्बन्धित है। क्षेत्री कार्यों के द्वारा स्थल रूपों, प्रवाह प्रणाली, मिट्टी की किस्मों, लिंग अनुपात, आयु संरचना, साक्षरता, यातायात के साधन, शहरी, ग्रामीण बस्तियाँ इत्यादि की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 6
2. इंटरव्यू (Interview)-इस तरीके से खोजकर्ता सीधी जानकारी जवाब देने वाले से बातचीत द्वारा इकट्ठा कर . सकता है। इस प्रकार इंटरव्यू लेने वाला निम्नलिखित सावधानियों को इंटरव्यू लेते समय ध्यान में रखे-

  • इंटरव्यू लेने वाले द्वारा प्रश्नों की एक लिस्ट बना लेनी चाहिए ताकि बातचीत द्वारा अच्छी जानकारी इकट्ठी की जा सके।
  • इंटरव्यू लेने वाला इंटरव्यू का संचालन करने के उद्देश्य से पूरी तरह परिचित होना चाहिए तथा उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम करता हो।
  • इंटरव्यू लेने वाले को जवाबदेह व्यक्ति को अपने विश्वास में लेना आवश्यक है।
  • प्रश्नों की भाषा स्पष्ट तथा सादी होनी चाहिए।
  • ऐसे प्रश्नों से परहेज करना चाहिए जो किसी जवाबदेह की भावनाओं को दुःख पहुंचाएं।

3. प्रश्नावली (Questionnaire) इस तरीके में सरल प्रश्न तथा उनके योग्य उत्तर एक साफ पेपर पर लिख लेने चाहिए तथा जवाबदेह को अपनी योग्यता तथा समझ के अनुसार उन उत्तरों का चुनाव करना चाहिए। जिस स्थान पर जवाब देने वाले के विचारों को जानने की आवश्यकता होती है वहां कागज़ पर ज़रूरत अनुसार जगह दी होती है। इस प्रकार के तरीके के साथ बड़े क्षेत्र की जानकारी हासिल करनी अधिक उपयुक्त है। इस तरीके की सीमा की कमी यह है कि सिर्फ पढ़े लिखे तथा शिक्षित व्यक्ति की ही जानकारी इस द्वारा इकट्ठी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त मिट्टी तथा जल की गुणवत्ता के सम्बन्ध में आंकड़े सीधे तौर पर मिट्टी, धूल तथा जल गुणवत्ता जांच की सहायता से इकट्ठे किए जा सकते हैं।

II. दूसरे दों के स्त्रोत (Secondary Sources of Data)-दूसरे दों में प्रकाशित तथा अप्रकाशित रिकार्ड जो कि सरकारी प्रकाशनायों, दस्तावेजों तथा रिपोर्टों के रूप में होते हैं।

प्रकाशित स्त्रोत (Published Sources)

  • सरकारी प्रकाशन (Government Publications)—इनमें भारत सरकार तथा राज्य की सरकारों के अलग अलग मंत्रालयों तथा विभागों के प्रकाशन तथा जिला बुलेटिन सबसे अधिक अच्छे स्रोत हैं। इन स्रोतों में भारतीय जनगणना, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे की रिपोर्ट, भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट, राज्य सरकार के आंकड़ासार तथा अलग-अलग कमीशन की रिपोर्ट आती हैं।
  • अर्धसरकारी प्रकाशन (Quasi Government Publications)-इस श्रेणी में शहरी विकास अथारिटी, नगर निगमों तथा जिला परिषदों इत्यादि की रिपोर्टों को शामिल किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन (International Publications)—इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की अलग-अलग एजैंसियों जैसे कि यूनेस्को/संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम, यू०एन०डी०पी०, विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य तथा कृषि संगठन इत्यादि की रिपोर्ट आती हैं।
  • निजी प्रकाशन (Private Publications)-इसमें अलग-अलग अखबारों, सर्वे, संस्थानों द्वारा प्रकाशित रिपोर्टो, मोनोग्राफ तथा वार्षिक बुक इत्याद शामिल हैं।
  • अखबार तथा पत्रिका (Newspaper and Magazines). दैनिक अखबार तथा साप्ताहिक तथा मासिक पत्रिका इत्यादि इस कैटेगरी में शामिल हैं।
  • इलैक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media)-आज के समय में इसका खासकर इंटरनैट के आंकड़ों का मुख्य स्रोत के तौर पर उभरा हुआ रूप है।

अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources)-

  1. सरकारी दस्तावेज (Government Documents)-अप्रकाशित रिपोर्टों मोनोग्राफ, दस्तावेज गौण स्रोतों का एक रूप है। उदाहरण के तौर पर पटवारियों का रिकार्ड किसी गाँव की जानकारी के लिए एक बहुत अच्छा स्रोत है।
  2. अर्धसरकारी दस्तावेज (Quasi-government Records)-अलग-अलग नगर निगम की रिपोर्टों तथा विकास प्रोग्राम इत्यादि की रिपोर्ट इस भाग में आती है।
  3. निजी दस्तावेज़ (Private Documents)-इनमें ट्रेड कंपनियां, ट्रेड यूनियनें, राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक संस्थाएं इत्यादि की रिपोर्ट शामिल होती हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 2.
आंकड़ा चित्र से क्या अभिप्राय है ? इनके लाभ तथा सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
आंकड़ा चित्र (Stastical Diagram)-आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आंकड़ों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आंकड़े किसी वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व, वितरण इत्यादि को स्पष्ट करते हैं। ये आंकड़े अनेक तथ्यों की पुष्टि करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा इत्यादि के आंकड़ों का भी अध्ययन किया जाता हैं। इन आंकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं। परन्तु इस विश्लेषण के लिए अनुभव, समय तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। बड़ी-बड़ी तालिकाओं को याद करना बहुत कठिन तथा नीरस होता है। लम्बी-लम्बी सारणियां कई बार भ्रम उत्पन्न कर देती हैं। उन्हें सरल और स्पष्ट बनाने के लिए ये आंकड़े रेखाचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। इन सांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित रेखाचित्रों तथा आलेखों को सांख्यिकीय आरेख कहा जाता है।

“सांख्यिकीय आंकड़ों को चित्रात्मक ढंग से प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों को सांख्यिकीय आरेख कहते हैं।” इन विधियों में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय आकृतियां, रेखाएं, वक्र रेखाएं रचनात्मक ढंग से प्रयोग की जाती हैं। ये आंकड़ों को एक दर्शनीय रूप देकर मस्तिष्क पर गहरी छाप डालते हैं।

सांख्यिकीय आरेखों के लाभ (Advantages of Statistical Diagram)-

  • आंकड़ों का सजीव रूप-प्रायः किसी विषय सम्बन्धी आंकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  • सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है।
  • अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लम्बे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टि की सहायता का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  • विश्लेषण में उपयोगी-शोध कार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  • साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी-साधारण व्यक्ति आंकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।
  • समय की बचत-रेखाचित्रों द्वारा तथ्यों को शीघ्र ही समझा जा सकता है जिसमें समय की बचत होती है।

ग्राफ चित्र बनाने के लिए आम नियम-

1. सही तरीके का चुनाव-आंकड़े, अलग-अलग विषयों जैसे कि तापमान, जनसंख्या में वृद्धि तथा वितरण, उत्पादन अलग-अलग वस्तुओं का वितरण तथा व्यापार इत्यादि को पेश करते हैं। आंकड़ों की इन विशेषताओं को सही तरीके से चुनने के लिए सही चित्रात्मक तरीके की आवश्यकता होती है।
2. सही पैमाने का चुनाव-पैमाना किसी नक्शे या चित्र पर आंकड़े के प्रदर्शन के लिए मापक के तौर पर प्रयोग में आता है। इस प्रकार सही पैमाने का चुनाव भी काफ़ी आवश्यक है।
3. रूपरेखा/डिजाइन-यह नक्शे कला का महत्त्वपूर्ण गुण है। नक्शा कला के डिजाइन के कुछ भाग इस प्रकार हैं –

  • शीर्षक-नक्शे के शीर्षक क्षेत्र के नाम तथा प्रयोग किए आंकड़ों के सम्बन्ध को दर्शाते हैं। यह भाग अलग-अलग आकार तथा मोटाई के अक्षरों तथा नंबरों के रूप में दिखाये जाते हैं।
  • संकेत-संकेत चित्र का महत्त्वपूर्ण भाग हैं। यह नक्शों में प्रयोग किए गये रंग, रंग की गहराई, चिन्हों इत्यादि की व्याख्या करता है।
  • दिशा-क्योंकि नक्शे में धरती के किसी हिस्से को दिखाया जाता है इसलिए यह विषय केन्द्रित होना आवश्यक है। इसलिए दिशा चिन्ह आवश्यक है।

चित्रों की रचना-आँकड़े लम्बाई चौड़ाई मात्रा इत्यादि मापने योग्य तरीकों पर आधारित होते हैं। इसको मुख्य रूप में तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. एक पसारी जैसे कि लकीरी ग्राफ, बहुलकीरी ग्राफ, दण्ड आरेख, हिस्टोग्राफ इत्यादि।
  2. दो पसारी जैसे कि वृत्त-चक्र तथा आयताकार चित्र।
  3. तीन पसारी जैसे कि घन तथा गोला चित्र इत्यादि।

आकंड़ो चित्रों की सीमाऍ (Limitations of Statistical Diagrams)—

  • आंकड़ों का शुद्ध रूप से निरूपण का सम्भव न होना-रेखाचित्र आंकड़ों को कई बार शुद्ध रूप में प्रदर्शित नहीं करते। इनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन किया जाता है।
  • आरेख आंकड़ों के प्रतिस्थापन नहीं हैं-मापक के अनुसार रेखाचित्रों का आकार बदल जाता है तथा कई भ्रम उत्पन्न हो जाते हैं।
  • बहुमुखी आंकड़ों का निरूपण सम्भव नहीं है-एक ही रेखाचित्र पर एक से अधिक प्रकार के आंकड़े नहीं दिखाए जा सकते हैं। इसके द्वारा एक ही इकाई में मापे जाने वाले समान गुणों वाले आंकड़ों को ही दिखाया जा सकता है।
  • उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में अधिक अन्तर-जब उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में बहुत अधिक अन्तर हो तो रेखाचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • भ्रमात्मक परिणाम-उपयुक्त आरेख का प्रयोग न करने से गलत तथा भ्रमात्मक परिणाम निकलने की सम्भावना होती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 3.
लकीरी ग्राफ (रेखाग्राफ) क्या है ? इसकी रचना तथा महत्त्व बताओ तथा निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से अमृतसर नगर के तापमान का लाइन ग्राफ बनाओ।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 7
उत्तर-
रेखा ग्राफ रेखा ग्राफ आमतौर पर समय श्रृंखला सम्बन्धित आंकड़े होते हैं जैसे की तापमान, वर्षा, जनसंख्या की वृद्धि, जन्म दर, मृत्यु दर, जंगलों अधीन क्षेत्र इत्यादि दिखाने के लिए बनाये जाते हैं।
अमृतसर नगर के तापमान का लाइन चित्र-ग्राफ पेपर पर आधार रेखा लगाओ। इस पर पांच-पांच लकीरों के अंतर के 12 महीने दिखाओ। इसको लेटवा पैमाना कहते हैं। लंबरेखा पर तापमान के लिए पैमाना बनाओ। हर एक वर्ग की दस रेखाओं 10° C तापमान प्रकट करती हैं। हर एक महीने के तापमान के लिए बिन्दु लगाओ। इन 12 बिन्दुओं को मिलाने के लिए एक वर्ग आकार का रेखाचित्र बनेगा।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 8
रेखा ग्राफ-सांख्यिकी चित्रों में रेखा ग्राफ का महत्त्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है। यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं। ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा पर किसी वस्तु के मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिन्दु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिन्दुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है। ये रेखा ग्राफ दो प्रकार के होते हैं-

  • जब किसी निरन्तर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार इत्यादि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा से दिखाया जाता है।
  • जब किसी रुक-रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

महत्त्व (Importance)-रेखाग्राफ से तापमान, जनसंख्या, वृद्धि, जन्म दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखा ग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 4.
बहुरेखा ग्राफ क्या होता है ? इसकी रचना तथा महत्त्व बताओ। निम्नलिखित 1980 से 2011 तक के आंकड़ों की सहायता से पंजाब अधीन अलग-अलग फसली रकबे (600 हैक्टेयर) का बहुरेखा ग्राफ बनाओ।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 9
उत्तर-
बहु-रेखाग्राफ भी रेखिक ग्राफ की तरह है जिसमें दो या फिर दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व एक समान संख्या की लाइनों के द्वारा, तुरन्त तुलना करने के लिए दिखाये जाते हैं। इन बहु रैखिक ग्राफी के द्वारा अलग-अलग देशों/राज्यों में अलग-अलग फसलें जैसे कि चावल, गेहूं, दालों की उपजें, जन्म तथा मृत्यु दर, जीवन आस, लिंग अनुपात, लकीरों के द्वारा दिखाये जाते हैं। यह लकीरें कई तरह के होती हैं जैसे कि सीधी रेखा (-), विभाजित रेखा (—) तथा बिन्दु रेखा (….) इत्यादि या फिर अलग-अलग रंगों की रेखाएं इन तत्वों को दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 10
बहुरैखिक ग्राफ की रचना :

  • सबसे पहले X धुरा बनाओ तथा इससे 4 भागों में विभाजित कर लो (1980-81, 1990-91, 2000-2001, 2010-11) इत्यादि दोनों सिरों पर दो Y धुरे बनाओ।
  • इसके दाहिने तरफ Y धुरे पर सही पैमाना को निश्चित करके 5° या 10° के फर्क से फसली रकबे को दिखाओ।

महत्त्व-बहुरैखिक ग्राफ की सहायता से तापमान, जनसंख्या, वर्षा, फसलों का रकबा। जन्म दर, मृत्यु दर इत्यादि तत्व दिखाये जाते हैं। यह समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रकट करते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 5.
दण्ड आरेख (Bar Diagrams) क्या होते हैं ? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
दण्ड आरेख (Bar Diagrams)-आंकड़े दिखाने की यह सबसे सरल विधि है। इसमें आंकड़ों को समान चौड़ाई वाले दण्डों या स्तम्भों (Columns) द्वारा दिखाया जाता है। इन दण्डों की लम्बाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। प्रत्येक दण्ड किसी एक वस्तु की कुल मांग को प्रदर्शित करता है। इन आरेखों के प्रयोग से संख्याओं का तुलनात्मक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

दण्ड आरेखों की रचना (Drawing of Bar Diagrams)—दण्ड चित्र बनाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है-

1. मापक (Scale)-वस्तु की मात्रा के अनुसार मापक निश्चित करना चाहिए। मापक तीन बातों पर निर्भर करता
(क) कागज़ का विस्तार। (ख) अधिकतम संख्या। (ग) न्यूनतम संख्या।
मापक अधिक बड़ा या अधिक छोटा नहीं होना चाहिए।

2. दण्डों की लम्बाई (Length of Bars)—दण्डों की चौड़ाई समान रहती है, परन्तु लम्बाई मात्रा के अनुसार घटती-बढ़ती है।
3. शेड करना (Shading)–दण्ड रेखा खींचने के पश्चात् उसे काला कर दिया जाता है।
4. मध्यान्तर-दण्ड रेखाओं के मध्य अन्तर समान रखा जाता है।
5. आंकड़ों को निश्चित करना-सर्वप्रथम आंकड़ों को संख्या के अनुसार क्रमवार तथा पूर्णांक बना लेना चाहिए।

गुण-दोष (Merits and Demerits)-

  • यह आंकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  • इनके द्वारा तुलना करना आसान है।
  • दण्ड चित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  • जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अन्तर हो, तो दण्ड चित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

दण्ड आरेखों के प्रकार (Types of Bar Diagrams)–दण्ड आरेख मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

1. क्षैतिज दण्ड आरेख (Horizontal Bars)—ये सरल दण्ड आरेख हैं। इन दण्डों से किसी वस्तु का कुछ वर्षों का वार्षिक उत्पादन, जनसंख्या इत्यादि दिखाए जाते हैं। ये समान चौड़ाई के होते हैं। ये आसानी से पढ़े जा सकते हैं।

2. लम्बवत् दण्ड आरेख (Vertical Bars)—ये आरेख किसी आधार रेखा के ऊपर खड़े दण्डों के रूप में बनाए जाते हैं। आधार रेखा को शून्य माना जाता है, दण्डों की ऊंचाई पैमाने के अनुसार मापी जाती है। इन दण्डों से वर्षा का वितरण भी दिखाया जाता है। जब उच्चतम तथा न्यूनतम संख्याओं में अन्तर बहुत अधिक हो तो दण्ड आरेख प्रयोग नहीं किए जाते। दण्ड की लम्बाई कागज़ के विस्तार से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि दण्डों की संख्या अधिक हो तो भी ये आरेख प्रयोग नहीं किए जाते।

3. संश्लिष्ट दण्ड आरेख (Compound Bars)-यदि एक दण्ड को अनेक भागों में विभाजित कर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो संश्लिष्ट दण्ड का निर्माण होता है। विभिन्न भागों में अलग-अलग Shade कर दिए जाते हैं ताकि विभिन्न वस्तुएं स्पष्टतया अलग दृष्टिगोचर हों। इस विधि से जल सिंचाई के विभिन्न साधन, शक्ति के विभिन्न साधन इत्यादि दिखाये जाते हैं।

4. प्रतिशत दण्ड आरेख (Percentage Bar)-किसी वस्तु के विभिन्न भागों को उस वस्तु के कुल मूल्य के प्रतिशत अंश के रूप में दिखाना हो तो प्रतिशत दण्ड बनाए जाते हैं। दण्ड की कुल लम्बाई 100% को प्रकट करती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 6.
भारत में अनाज के कुल उत्पादन के आंकड़ों को दण्ड रेखाचित्र से प्रकट करो।

वर्ष उत्पादन (लाख मी० टन) ।
1982-83 1300
1983-84 1525
1984-85 1450
1985-86 1500
1986-87 1530

उत्तर-
रचना-

  • सबसे पहले एक आधार रेखा खींचो। इसके सिरों पर लम्ब रेखाएं खींचो।
  • बाईं ओर की लम्ब रेखा पर उत्पादन की मापनी निश्चित करो। जैसे 1″ = 500 लाख मी० टन।
  • आधार रेखा पर समय का पैमाना निश्चित करके विभिन्न वर्षों की स्थिति दिखाओ।
  • मापक के अनुसार प्रत्येक वर्ष के उत्पादन के लिए दण्ड रेखा की ऊंचाई ज्ञात करो।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 11

वर्ष उत्पादन दण्ड रेखा की लम्बाई
1982-83 1300 2.60″
1983-84 1525 3.05″
1984-85 1450 2.90″
1985-86 1500 3.00″
1986-87 1530 3.06″

आधार रेखा पर समान चौड़ाई वाले दण्ड खींचो तथा इन्हें काली छाया से सजाओ।

प्रश्न 7.
वृत्त चित्र किसे कहते हैं ? इनकी रचना तथा गुण-दोष बताओ।
उत्तर-
चक्र चित्र (Pie Diagram)-यह वृत्त चित्र (Circular Diagram) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न चित्र के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों (Sectors) में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र (Pie Diagram) पहिया चित्र (Wheel Diagram) या सिक्का चित्र (Coin Diagram) भी कहते हैं।

रचना-
इस चित्र में वृत्त का अर्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केन्द्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 12
कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड (छायांकन) कर दिए जाते हैं।

गुण-दोष (Merits-Demerits)-

  • चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  • ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखाया जाता है।
  • इसका चित्रीय प्रभाव (Pictorial Effect) भी अधिक है।
  • इसमें पूरे आंकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करना कठिन होता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 8.
भारत में भूमि उपयोग के आंकड़ों को चलाकृति चित्र से दिखाओ।

उपयोग क्षेत्रफल (लाख हेक्टेयर में)
(i) वन 650
(ii) कृषि अयोग्य भूमि 470
(iii)जोतरहित भूमि 330
(iv) परती भूमि 220
(v) अप्राप्य भूमि 230
(vi) बोयी गयी भूमि योग 1400
योग 3300

 

रचना-प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात करो जब कि कुल योग के लिए कोण 360° है।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 13
एक वृत्त बनाकर प्रत्येक कोण काट कर उपविभाग करके, हर वृत्त खण्ड में छायांकन करके नाम लिखो।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 14

प्रश्न 9.
विषयक नक्शे (Thematic Maps) से क्या अभिप्राय है ? इनमें ज़रूरत की वस्तुएं बनाने के लिए तरीके, ज़रूरत तथा महत्ता का वर्णन करो।
उत्तर-
विषयक नक्शे-आंकड़ों की विशेषताएं दर्शाने के लिए तथा तुलना करने के लिए ग्राफ तथा चित्र एक महत्त्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। पर क्षेत्रीय परिदृश्य दिखाने के लिए चित्र तथा ग्राफ सफल नहीं रहते। इसलिए स्थानीय भिन्नता को दिखाने के लिए क्षेत्र विभाजन को समझने के लिए कई तरह के नक्शे बनाये जाते हैं। विषयक नक्शे वह नक्शे हैं जो धरती के किसी भाग के किसी तत्त्व के वितरण की मूल्य अथवा घनत्व को प्रकट करते हैं।

I. विषयक नक्शे बनाने के लिए ज़रूरत की वस्तुएँ (Requirement for Making Thematic Maps)

  1. चुने हुए क्षेत्र सम्बन्धी आंकड़े।
  2. ज़रूरत के क्षेत्र का प्रबंधन सीमाओं रहित नक्शा
  3. सम्बन्धित क्षेत्र का भौतिक नक्शा।

विषयक नक्शे बनाने के लिए आम नियम (Rules for Making Thematic Maps)-विषयक नक्शे सावधानी से योजना बना कर बनाये जाने आवश्यक हैं। पूर्ण तौर पर तैयार नक्शा निम्नलिखित जानकारी देता है-

  1. क्षेत्र का नाम पता चलता है।
  2. विषय का शीर्षक
  3. आंकड़ों के स्रोत तथा वर्ष
  4. चिह्न, प्रतीकों, रंगों की गहराइयां, इत्यादि की सूचना ।
  5. पैमाना

II. विषयक नक्शे के लिए योग्य तरीके का चुनाव (To choose Appropriate ways for Thematic Maps)-

विषयक नक्शे की ज़रूरत (Need for Thematic Maps)—शुरू में किसी वस्तु के वितरण को दर्शाने के लिए नाम लिखने की विधि का प्रयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में जो चीज़ पैदा होती थी, वहाँ उस चीज़ का नाम लिख दिया जाता था। जिस प्रकार भारत में चावल का उत्पादन दिखाने के लिए गंगा के डेल्टा में Rice लिखा जाता है। पर इस विधि के द्वारा न तो चीज़ के कुल उत्पादन तथा न ही उत्पादन क्षेत्र का सही पता चलता था। इसलिए विषयक नक्शे बनाए गए जिनमें वैज्ञानिक शुद्धता हो। भूगोल में अलग-अलग तथ्यों की पुष्टि करने के लिए कई तरह के आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। यह आंकड़े तालिकाओं के रूप में दिखाए जाते हैं। इन आंकड़ों का अध्ययन बड़ा नीरस तथा मुश्किल होता है तथा बहुत समय में ही नष्ट होता है। आंकड़ों को इकट्ठा देखकर किसी नतीजे पर पहुँचना मुश्किल होता है। इसलिए इन आंकड़ों को वितरण नक्शों के द्वारा
दर्शाकर दिमाग पर एक वास्तविक चित्र की छाप छोड़ी जाती है।

गुण (Advantages)-

  • यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन के लिए विशेष रूप में महत्त्वपूर्ण है। धरती के अलगअलग साधन तथा मनुष्य का संबंध इन शक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप में दर्शाया जा सकता है।
  • इन नक्शों द्वारा कारण तथा प्रभाव का नियम स्पष्ट हो जाता है। वस्तु विशेष के वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक तथ्य समझ में आ जाते हैं।
  • आंकड़ों की लम्बी-लम्बी तालिकाओं को याद रखना मुश्किल हो जाता है पर विषयक नक्शे किसी तथ्य की दिमाग पर स्थाई छाप छोड़ते हैं।
  • इनका उपयोग शिक्षा सम्बन्धी कामों के लिए किया जाता है।
  • इन नक्शों द्वारा एक नज़र में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।
  • इन नक्शों द्वारा क्षेत्रफल तथा उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 10.
बिन्दु मानचित्र से क्या अभिप्राय है ? इसकी रचना के लिए क्या आवश्यकताएं हैं ? इसकी रचना सम्बन्धी समस्याओं का वर्णन करो तथा गुण दोष बताओ।
उत्तर-
बिन्दु मानचित्र (Dot Maps)-इस विधि के अन्तर्गत किसी वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आंकड़ों को बिन्दुओं द्वारा प्रकट किया जाता है। ये बिन्दु समान आकार के होते हैं। प्रत्येक बिन्दु द्वारा एक निश्चित संख्या (Specific Value) प्रकट की जाती है। जब किसी वस्तु की निश्चित संख्या तथा मात्रा (Absolute Figures) उपलब्ध हों। वितरण मानचित्र बनाने की यह सबसे अधिक प्रचलित सर्वोत्तम विधि है। (This is the most common method used for showing the distribution of population, livestock, crops, minerals etc.)

बिन्दु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं (Requirements for drawing Dot Maps)-बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है।
1. निश्चित आंकड़े (Definite and Detailed Data)—जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही सही आंकड़े उपलब्ध होने चाहिएं। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) के आधार पर होने चाहिए। जैसे जनसंख्या, तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।

2. रूप रेखा मानचित्र (Outline Map)-उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें ज़िले या राज्य इत्यादि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप (Equal Area Projection) पर बना हो।

3. धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, Hills, Marshes इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।

4. जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।

5. मृदा मानचित्र (Soil Map)–विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी का उपजाऊपन विभिन्न होता है।

6. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map)-जनसंख्या के वितरण के लिए भूपत्रक मानचित्रों की आवश्यकता होती है जिनमें शहरी (Urban) तथा ग्रामीण (Rural Settlements), नगर, आवागमन के साधन और नहरें इत्यादि प्रकट की होती हैं।

रचना विधि (Procedure)-

  • वितरण मानचित्र की सभी आवश्यक सामग्री को इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  • मानचित्र पर प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) को दिखाओ।
  • राजनीतिक या प्रशासनिक इकाइयों के विस्तार को देखकर तथा आंकड़ों के कम-से-कम और अधिक-से अधिक मूल्य को देखकर बिन्दु का मूल्य ज्ञात करो।
  • प्रत्येक इकाई के लिए बिन्दुओं की संख्या गिनकर पूर्ण अंक बनाओ।
  • प्रत्येक इकाई में बिन्दुओं की संख्या हल्के हाथ से पेंसिल से लिख दो।
  • धरातल, जलवायु और मिट्टी के मानचित्रों की सहायता से उस क्षेत्र में नकारात्मक प्रदेश (Negative Areas) को ज्ञात करो और मानचित्र में पेंसिल से अंकित करो ताकि इन स्थानों को रिक्त छोड़ा जा सके।
  • बिन्दुओं के आकार को समान कर लो।
  • घनत्व के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बिन्दु प्रकट करके मानचित्र बनाओ।

बिन्दु मानचित्र की समस्याएं (Problems of Dot Map)

1. बिन्दुओं का मान (Value of Dot)—बिन्दुओं को अंकित करने से पहले एक बिन्दु का मूल्य निश्चित कर लेना चाहिए। (The success of the map depends upon the choice of the value of a dot.) मानचित्र को प्रभावशाली बनाने के लिए बिन्दु का मूल्य ध्यानपूर्वक निश्चित करना चाहिए। कई बार गलत मूल्य के कारण बिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है या बहुत थोड़ी रह जाती है। मापक या मूल्य ऐसा निश्चित करना चाहिए जिसमें क्षेत्र में बिन्दुओं की संख्या इतनी अधिक न हो कि उन्हें गिनना कठिन हो जाए। बिन्दुओं की संख्या इतनी कम भी न हो कि कुछ प्रदेश खाली रह जायें। मूल्य का चुनाव निश्चित करना तीन बातों पर निर्भर करता है-

  1. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)
  2. अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़े (Maximum of Minimum Figures)
  3. प्रदर्शित तत्त्व का प्रकार (Type of the Element)

1. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)–यदि मानचित्र लघु मापक (Small Scale) पर बना हुआ है तो बिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए। एक बिन्दु का मूल्य अधिक होना चाहिए ताकि बिन्दुओं की संख्या इतनी हो जो उस छोटे मानचित्र में अंकित की जा सके नहीं तो अधिक बिन्दुओं के कारण मानचित्र
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 15
का प्रभाव स्पष्ट नहीं होगा। (The areas having low density will also appear dark and give a misleading idea.) यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर हो तो एक बिन्दु का मूल्य बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। एक बिन्दु के अधिक मूल्य के कारण कई क्षेत्रों में बिन्दुओं की संख्या बहुत कम होगी। (With very few dots the map will look blank.)

2. बिन्दुओं को लगाना (Placing of Dots)-बिन्दु मानचित्र बनाते समय ऋणात्मक क्षेत्र (Negative Areas) में बिन्दु नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे क्षेत्र प्रायः दलदली भागों में, मरुस्थलों में, पर्वतों पर या बंजर भूमि में मिलते हैं। ये क्षेत्र धरातलीय मानचित्र, मृदा मानचित्र तथा जलवायु मानचित्र की सहायता से मानचित्र पर लगाये जा सकते हैं। इन स्थानों को रिक्त छोड़ दिया जाता है क्योंकि यहां उत्पादन असम्भव होता है। दीर्घ मापक मानचित्र पर क्षेत्र आसानी से दिखाये जा सकते हैं परन्तु लघु मापक मानचित्रों पर इन्हें दिखाना बहुत कठिन होता है।

  • बिन्दुओं की अधिक संख्या के कारण बिन्दु एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। (Dots should not merge together) इसमें मानचित्र पर संख्या गिनना असम्भव हो जाता है।
  • बिन्दु बिखरे हुए रूप में लगाना चाहिए अन्यथा नियमित बिन्दुओं के कारण समान वितरण दिखाई देगा (Straight rows of dots should be avoided.) जैसे कि शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में दिखाई देता है। यह भौगोलिक नियम के विपरीत भी है। क्योंकि उत्पादन में विभिन्नता होती है।
  • गुरुत्वीय केन्द्र (Centre of Gravity)-बिन्दु अंकित करते समय प्रत्येक बिन्दु अपने चित्र के आकर्षण केन्द्र को प्रकट करे जैसे जनसंख्या मानचित्र में बिन्दुओं के केन्द्र नगरों के स्थान पर लगाने चाहिए।
  • अधिक उत्पादन के क्षेत्रों में इकट्ठे होने चाहिए।

3. बिंदुओं का आकार (Size of the Date)-बिन्दु मानचित्र की शुद्धता और सुन्दरता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रत्येक बिन्दु समान आकार का हो। इनका आकार दो बातों पर निर्भर करता है –

(a) मानचित्र मापक (Scale of the Map)
(b) बिन्दुओं की संख्या (Number of Dots)

यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर बना हुआ है तो बिन्दु कुछ बड़े हो सकते हैं, परन्तु लघु मापक मानचित्रों पर बिन्दुओं का आकार अपेक्षाकृत छोटा होगा। इसी प्रकार यदि बिन्दुओं की संख्या अधिक है तो भी बिन्दु का आकार छोटा होगा। बिन्दुओं को समान आकार करने के लिए विशेष प्रकार की निब प्रयोग की जाती है जैसे

गुण (Merits)-

  • यह मानचित्र किसी वस्तु के क्षेत्रफल के साथ-साथ उसका मूल्य या मात्रा भी प्रकट करते (This method is both Quantitative and qualitative.)
  • मानचित्रों में नकारात्मक क्षेत्रों को खाली छोड़ा जा सकता है (Waste land can be avoided.)।
  • यह मानचित्र मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ जाते हैं कि कहां उत्पादन अधिक है और कहां कम है। (It gives visual impression)।
  • इन मानचित्रों में रंग का गहरापन उत्पादन की मात्रा के अनुसार होता है। इसलिए ये मानचित्र वितरण के स्वरूप (Pattern of Distribution) को ठीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इस विधि द्वारा बिन्दुओं को सरलतापूर्वक गिना जा सकता है और बिन्दुओं को पुनः आंकड़ों में बदला जा सकता है। इस प्रकार किसी वस्तु की मात्रा का भी – सही ज्ञान हो जाता है।
  • इन मानचित्रों को शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में बदला जा सकता है। अधिक बिन्दुओं वाले क्षेत्र को शेड (Shade) में पूरा दिखाया जा सकता है। एक ही मानचित्र कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसे Markets Fairs, Coal Fields, Villages इत्यादि दिखाने के लिए यह एक शुद्ध विधि है जिनमें वितरण तथा तीव्रता ठीक प्रकार से दिखाई जा सकती है।

दोष (Demerits)-

  • एक ही मानचित्र पर एक से अधिक वस्तुओं का वितरण नहीं दिखाया जा सकता।
  • इनके बनाने में काफ़ी समय लगता है और यह कठिन कार्य है।
  • इनका प्रयोग शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में किया जाता है, परन्तु वैज्ञानिक कार्यों के लिए समान रेखा विधि (Isopleth) का प्रयोग किया जाता है।
  • यह मानचित्र अनुपातों, प्रतिशत तथा औसत आंकड़ों के लिए प्रयोग नहीं किए जा सकते। (This method cannot be used for ratios and percentages and average figures.)
  • बिन्दु अधिक स्थान घेरते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)

प्रश्न 11.
वर्णमात्री मानचित्र किसे कहते हैं ? इसका सिद्धान्त क्या है ? इसकी रचना, विधि तथा गुण-दोष का वर्णन करो।
उत्तर-
वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)-इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। (In this method distribution of an element is shown by different shades.) forest 3412 Black and white shading को प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

सिद्धान्त (Principle of Shading)-जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है उसी प्रकार आभा (Shade) भी अधिक गहरी होती जाती है। (The lighter shades show lower densities and deeper shades show higher densities.) आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  • बिन्दुओं का आकार बड़ा करके (Be enlarging the dots)
  • रेखाओं को मोटा करके (By thickening the lines)
  • रेखाओं को निकट करके (By bringing the lines closed together)
  • रेखा जाल बनाकर (By crossing the lines)।
  • रंगों को गहरा करके (By increasing the depth of the colour) प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of shades का एक सूचक (Index) दिया जाता है।

रचना विधि (Procedure)-

  • किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े प्राप्त करो। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  • ये आंकड़े औसत के रूप में हों या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे जनसंख्या का घनत्व।
  • घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अन्तराल (Interval) चुन लेना चाहिए।
  • अन्तराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  • यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  • प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

समस्याएं (Problems) –

1. प्रशासकीय इकाई का चुनाव (Choice of Administrative Unit)-प्रायः आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों .. के आधार पर एकत्रित किए जाते हैं, जिसे ज़िले या तहसील के अनुसार मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 16

प्रशासकीय इकाई का चुनाव करना होता है। प्रशासकीय इकाई न बड़ी होनी चाहिए और न बहुत छोटी। यदि काफ़ी बड़ी इकाई को चुन लिया जाए तो मानचित्र से भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र में समान वितरण है। कई बार कई आंकड़े छोटी इकाइयों के आधार पर उपलब्ध नहीं होते इसलिए उस दशा में बड़ी
इकाइयां चुनी जाती हैं :

2. अन्तराल का चुनाव (Choice of Intervals)-घनता के अनुसार शेडिंग में अन्तर रखा जाता है। इसी अन्तर के अनुसार Scheme of Shading या Scale of Densities या सूचक बनाया जाता है। इस उद्देश्य के लिए सारे आंकड़ों को कुछ वर्गों में बांटा जाता है। यह वर्ग बनाते समय इन आंकड़ों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  • अधिकतम संख्या (Maximum Figures)
  • निम्नतम संख्या (Minimum Figures)
  • मध्यम संख्या (Intermediate Figures)

श्रेणियों की संख्या काफ़ी होनी चाहिए ताकि प्रत्येक इकाई का सापेक्षित महत्त्व (Comparative importance) स्पष्ट रूप से दिखाई दे। बहुत अधिक श्रेणियां नक्शे पर गड़बड़ कर देती हैं और बहुत कम श्रेणियों के कारण वितरण की विभिन्नता प्रकट नहीं होती। (Too many categories can be confusing and too few categories can result in little differentiation.) प्रायः अंतराल नियमित (Regular) होता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि हर श्रेणी में अन्तर समान हो।

गुण (Merits)-

  • इस विधि के द्वारा किसी वस्तु के क्षेत्रीय घनत्व (Areal Density) के औसत वितरण को प्रकट किया जा सकता है। (It is useful for showing average figures of percentage or ratios.)
  • यह विधि अधिकतर फसलें, पशु, भू-उपयोग और जनसंख्या घनत्व को प्रकट करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसके लिए क्षेत्रफल की प्रत्येक इकाई (Per unit area) के औसत आंकड़े दिए जाते हैं जैसे Number of persons per sq. km. 41 Number or livestock per sq. km 4 Yield of a crop per hectare.
  • एक जैसे प्रभाव के कारण यह रंग विधि से मिलता-जुलता है। (This method is somewhat similar to colour method.)
  • विभिन्न रंग प्रयोग करने से ये मानचित्र मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। (It gives visual impression to the Mind.)
  • यह मानचित्र गुणात्मक होते हैं जिनमें केवल क्षेत्रफल के साथ-साथ आंकड़ों का ज्ञान हो जाता है।
  • इस विधि से विभिन्न प्रकार के अन्य मानचित्र भी बनाए जा सकते हैं।
  • जनसंख्या के घनत्व को प्रकट करने के कारण इसे मानवीय भूगोल का मुख्य उपकरण कहा जाता है।
    (Choropleth map is the Chief tool of human Geography.)

दोष (Demerits)-

  • ऐसे मानचित्रों के लिए आंकड़े इकट्ठे करना कठिन होता है।
  • इन मानचित्रों से केवल औसत का ही पता चलता है तथा कुल उत्पादन का अनुमान लगाना कठिन है।
  • इस विधि द्वारा किसी क्षेत्र में समान वितरण (Uniform Distribution) प्रकट किया जाता है जोकि भौगोलिक नियम के अनुसार नहीं है। किसी क्षेत्र के विभिन्न भागों में उत्पादन विभिन्न होता है।
  • प्रायः अधिक घनत्व वाले छोटे क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण दिखाई देते हैं जबकि किसी बड़े क्षेत्र में बहुत अधिक उत्पादन है, परन्तु औसत घनत्व कम है। ऐसा क्षेत्र अधिक उत्पादन होते हुए भी कम महत्त्वपूर्ण दिखाई देगा।
  • इस विधि द्वारा ऋणात्मक प्रदेश में भी उत्पादन प्रकट किया जाता है। जैसे मरुस्थल, दलदल, झील इत्यादि ऐसे क्षेत्रों में कुछ भी उत्पन्न नहीं होता, परन्तु वहां उत्पादन अंकित होता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 12.
सम मान रेखा मानचित्र किसे कहते हैं ? इसके विभिन्न प्रकार बताओ। इन मानचित्रों की रचना कैसे की जाती है ? इनके गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर-
सम मान रेखाएं (Isopleths)-शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है (Isos + plethron) | Isos शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है मान। इस प्रकार समान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं । जनका मान (Value) समान हो। (Isopleths are lines of equal value in the form of quantity, intensity and density.)

ससमान रेखाओं के प्रकार (Types of Isopleths)-विभिन्न तत्त्वों को दिखाने वाली सम मान रेखाओं को निम्नलिखित नामों से पुकारा जाता है।

  • समदाब रेखाएं (Isobars)-समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समदाब रेखा कहते हैं।
  • समताप रेखाएं (Isotherms)—समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते
  • समवृष्टि रेखा (Isohyetes)—समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समवृष्टि रेखा कहते हैं।
  • समोच्च रेखाएं (Contours) समान ऊंचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं।
  • सममेघ रेखा (Iso Neph) समान मेघावरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को सममेघ रेखा कहते हैं।
  • अन्य (Others)-जैसे समगम्भीरता रेखा (Isobath), समलवणता रेखा (Iso-Haline) समभूकम्प रेखा (Iso Seismal), समधूप रेखा (Isohets) अन्य उदाहरण हैं।

समान रेखाओं की रचना (Drawings of Isopleths)-

  • सम्बन्धित क्षेत्र का रूपरेखा मानचित्र (Outline Map) की आवश्यकता होती है। इस मानचित्र पर सभी स्थानों की स्थिति अंकित हो।
  • इस क्षेत्र के अधिक-से-अधिक स्थानों के आंकड़े प्राप्त होने चाहिएं।
  • अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़ों के अनुसार इन रेखाओं के मध्य अन्तराल (Interval) चुनना चाहिए। अन्तराल या समान रेखाओं की संख्या न तो कम हो और न ही अधिक हो।
  • अन्तराल का चुनाव किसी तत्त्व के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है। बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर स्थित रेखाएं मन्द परिवर्तन प्रकट करती हैं। यदि परिवर्तन दर तीव्र हो तथा क्षेत्र कम हो तो ये रेखाएं उपयोगी सिद्ध नहीं होती।
  • समान मान वाले स्थानों को मिलाकर समान रेखाएं खींची जाती हैं। यदि समान मूल्य वाले स्थान प्राप्त न हों तो विभिन्न मूल्य वाले स्थानों के बीच समानुपात दूरी पर इन रेखाओं का अन्तर्वेशन किया जाता है।
  • कई बार विभिन्न मूल्य क्षेत्रों को अलग-अलग स्पष्ट करने के लिए इन आभाओं (Shades) या रंगों का प्रयोग भी किया जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 17

गुण (Merits)-

  • समान रेखाएं वर्षा, तापमान इत्यादि आंकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखाएं किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिन्दु मानचित्र तथा वर्णमात्री को समान रेखा मानचित्रों में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों में कोई सम्बन्ध नहीं होता।

दोष (Demerits)-

  • सममान रेखाओं का अन्तर्वेशन एक कठिन कार्य है।
  • यदि आंकड़े अनेक स्थानों पर प्राप्त न हों तो ये मानचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • घनत्व में अधिक तथा तीव्र परिवर्तन हो, तो ये मानचित्र अर्थपूर्ण नहीं रहते।
  • सममान रेखा मानचित्रों पर ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या को एक साथ नहीं दिखाया जा सकता।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 18

उपयोग (Uses)-

  • इन मानचित्रों का उपयोग जलवायु सम्बन्धी आंकड़े दिखाने के लिए किया जाता है।
  • इन रेखाओं द्वारा प्रतिशत या अनुपात के आंकड़े भी दिखाए जाते हैं।
  • इन मानचित्रों पर जनसंख्या घनत्व प्रतिवर्ग किलोमीटर, पशु संख्या, प्रति संख्या, प्रति एकड़ उत्पादन इत्यादि आंकड़े भी दिखाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) पर नोट लिखो।
उत्तर-
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम एक सैटेलाइट आधारित नेवीगेशन सिस्टम है। जो किसी स्थान तथा समय जैसी सूचना प्रदान करती हैं। यह सिस्टम यू० एस० ए० के एक डिपार्टमैंट ऑफ़ डीफैंस द्वारा बनाया गया था जो कि 24 से 32 मीडीयम अर्थ ओरबिट सैटेलाइट के Microweight को बिल्कुल सही जानकारी देने के काम आता है। GPS का सबसे पहले सिर्फ Miltary Applications के उपयोग के लिए बनाया गया था। परंतु 1983 में US सरकार ने सिस्टम को पब्लिक प्रयोग के लिए खोलने की घोषणा कर दी तथा 1994 में पब्लिक के लिए खोल दिया गया। GPS स्थान तथा समय के साथ ही किसी भी जगह का पूरे दिन का मौसम बताने के भी काम आता है।
आजकल हम टैक्नोलॉजी का उपयोग स्मार्टफोन के लिए भी कर रहे हैं। जिसके द्वारा हम अपनी Location पता कर सकते हैं। यह सिस्टम ऐयरक्राफ्ट, रेलों तथा बसों जैसे यातायात के साधनों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ है। अगर हम किसी अज्ञात नंबर के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो हमें GPS की सहायता के साथ नंबर ट्रेस कर सकते

GPS कैसे काम करता है ?
GPS रिसीवर के साथ काम करता है जो सैटेलाइट में मिले डाटा को गिनता है। इस काऊंट (Count) को Traingulation कहते हैं। यहाँ पोजीशन को कम-से-कम एक बार में तीन सैटेलाइट की सहायता से पता किया जाता है। Position Longitude तथा Latitude के साथ दिखाई जाती है। यह 10 से 100 मीटर की रेंज में सही होती है। इसको अलग ऐप्लीकेशन तथा सॉफ्टवेयर अपने हिसाब से काम में लेते हैं।

जी०पी०एस० के मुख्य रूप में तीन हिस्से होते हैं-

  • अंतरिक्ष हिस्सा (Space Segment)—इसमें 24 उपग्रह शामिल हैं जो कि लगातार धरती के आस-पास घूमते-फिरते हैं। फरवरी 2016 में उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर 32 कर दी गई है। इनमें से 31 उपग्रह लगातार सिग्नल भेजते रहते हैं। समय तथा मौसम का इनके काम पर कोई असर नहीं होता। जी०आई०एस० को सब तरह की जानकारी की ज़रूरत अनुसार दर्शाया जाता है। इसकी सहायता से जनसंख्या, आमदन, शिक्षा इत्यादि सम्बन्धी आंकड़ों का अध्ययन किया जाता है।
  • कंट्रोल हिस्सा (Control Segment)-इस हिस्से की सहायता से सारा जी०पी० एस० सिस्टम कंट्रोल किया जाता है। यह कंट्रोल अमेरिका की सरकार के हाथ में है।
  • उपयोगी हिस्सा (User Segment)-इस हिस्से में वह सारे उपकरण आते हैं जिनके द्वारा जी०पी०एस० सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। यह उपकरण कार, मोबाइल, घड़ी इत्यादि भी हो सकते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 14.
क्षेत्रीय प्रेक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी ज़रूरत तथा कार्य प्रणाली पर नोट लिखो।
उत्तर-
क्षेत्रीय प्रेक्षण-अन्य विज्ञानों की तरह भूगोल भी एक क्षेत्रीय विज्ञान भी है। इसलिए एक अच्छी तथा योजनाबद्ध क्षेत्रीय प्रेक्षण भौगोलिक जांच के पूरक होते हैं। इस प्रकार का प्रेक्षण स्थानिक वितरण तथा स्थानिक स्तर तथा उनके सम्बन्धों के प्रति हमारी समझ को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय प्रेक्षण स्थानिक स्तर की जानकारी इकट्ठी करने में भी हमारी सहायता करता है जिसको दूसरे दर्जे के स्रोतों से हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए क्षेत्रीय प्रेक्षण ज़रूरत अनुसार जानकारी इकट्ठी करने के लिए किए जाते हैं।

भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की ज़रूरत-भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की काफ़ी महत्ता है।

  • इस प्रेक्षण के द्वारा स्थानिक वितरण तथा स्थानिक स्तर पर उनके सम्बन्ध प्रति हमारी समझ में वृद्धि होती है।
  • कई बार प्रकाशित आंकड़े भौगोलिक वैज्ञानिक के लिए पूरे नहीं होते इस समय सामाजिक-आर्थिक अलग अलग पक्षों का ज्ञान आवश्यक होता है. ऐसा ज्ञान हमें क्षेत्रीय प्रेक्षण द्वारा ही पता चलता है।
  • हम भौगोलिक प्रेक्षण द्वारा फस्टहैंड जानकारी एकत्र कर सकते हैं। इसलिए मनुष्य का पर्यावरण के साथ सम्बन्ध इत्यादि को समझने के लिए भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की ज़रूरत है।

क्षेत्रीय प्रेक्षण की कार्य प्रणाली-इसकी कार्य प्रणाली को निम्नलिखित हिस्सों में विभाजित किया जाता है-

  • समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem)-सबसे पहले जिस समस्या का अध्ययन करना होता है उसको अच्छी तरह परिभाषित किया जाता है। समस्या स्वरूप को संक्षिप्त रूप से बताने वाले वाक्यों के साथ ऐसा किया जाता है। इसको प्रेक्षण के शीर्षक या उप शीर्षक से दर्शाया जाना चाहिए।
  • उद्देश्य (Objective)-उद्देश्यों को निर्धारित करना इस प्रेक्षण का दूसरा कार्य है। क्योंकि इस प्रेक्षण की रूप रेखा होते हैं तथा इनके द्वारा ही आंकड़े एकत्र करने के ढंग तथा विश्लेषण के तरीके का चुनाव होता है।
  • क्षेत्र (Scope)-अध्ययन किए जाने वाले भौगोलिक क्षेत्र जांच का समय तथा अगर आवश्यकता हो तो अध्ययनों का विषय निर्धारित करना भी किसी हद तक आवश्यक होता है। यह निर्धारण पहले निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति, नतीजों तथा उनके अमल के लिए भी उपयोगी है।

उपकरण तथा तकनीकें (Tools and Techniques of Information Collection)-असलियत में चुनी हुई समस्या की जानकारी एकत्र करने को क्षेत्रीय प्रेक्षण का नाम दिया जाता है। इसके लिए हमें कई उपकरणों की आवश्यकता होती है। इनमें नक्शे, आंकड़े, क्षेत्रीय निरीक्षण, सवाल, सारणी इत्यादि प्रारम्भिक तथा दूसरे दर्जे के स्रोतों को शामिल किया जाता है जैसे कि-

  • दर्ज तथा प्रकाशित आंकड़े (Recorded and Published Data)-इन आंकड़ों द्वारा हमें आंकड़ों के सम्बन्धी आधारभूत जानकारी प्राप्त होती है। यह आंकड़े हमें सरकारी संगठनों, एजेंसियों इत्यादि से मिलते हैं।
  • क्षेत्रीय सर्वेक्षण (Field Observations)-इस सर्वेक्षण का उत्तम होना खोजी निरीक्षण द्वारा जानकारी एकत्र करने की योग्यता पर आधारित है। क्षेत्रीय सर्वेक्षण का असल उद्देश्य भौगोलिक व्यवहारों के लक्षणों तथा संबंधों का निरीक्षण करना होता है। निरीक्षण के पूरक के तौर पर भी जानकारी एकत्र करने के लिए कुछ तकनीकों की जैसा कि स्कैच तथा फोटोग्राफी का प्रयोग किया जाता है।
  • माप-कुछ क्षेत्रीय सर्वेक्षण के लिए घटनाओं इत्यादि के लिए माप की आवश्यकता पड़ती है। इस द्वारा विस्तार के साथ विश्लेषण किया जा सकता है।

इंटरव्यू-जो सर्वेक्षण सामाजिक मुद्दों के साथ सम्बन्ध रखते हों की जानकारी निजी इंटरव्यू द्वारा एकत्र की जाती है। परंतु इस प्रकार जानकारी एकत्र करना, इंटरव्यू लेना, बल की क्षमता, समझ, व्यवहार तथा सम्बन्धों पर निर्भर करती है।

1. उपकरण (Tools) इंटरव्यू के लिए प्रश्न सारणियां तथा शैड्यूल बनाने चाहिए।

2. आधारभूत जानकारी-इंटरव्यू करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे कि स्थानों, इंटरव्यू देने वाले व्यक्ति का सामाजिक इतिहास इत्यादि नोट करना आधारभूत जानकारी है।

3. फैलाव (Coverage)-सर्वेक्षक को तय करना चाहिए कि सर्वेक्षण सारी जनसंख्या का होगा या नमूने पर आधारित होगा।

4. अध्ययन की इकाइयां-अध्ययन के तत्त्वों को विस्तार तथा स्पष्टता के साथ परिभाषित करना आवश्यक है इसके साथ ही अध्ययन के फैलाव का फैसला भी आवश्यक है।

5. नमूने का खाका (Sample of Design)-सैंपल सर्वेक्षण का खाका, सर्वेक्षण के उद्देश्य, जनसंख्या विभिन्नताओं, समय तथा खर्च का ध्यान रखना भी आवश्यक है।

6. सावधानियां-इंटरव्यू इत्यादि अधिक संवेदनशील क्रियाएं हैं। इसलिए इनको अधिक ध्यान तथा सावधानी के साथ करना चाहिए। क्योंकि इसमें मानवीय समूह शामिल होते हैं। सही जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको जाहिर करना पड़ेगा कि आप उनमें ही हो। इंटरव्यू करते समय इस बात का ध्यान रखो कि कोई व्यक्ति अपनी मौजूदगी कारण कोई दखलअंदाजी न करे।

7. संकलन तथा लेखा (Compilation and Computation)-निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति तथा एकत्र की गई जानकारी को संगठित करना पड़ता है। अध्ययन के उपविषयों के अनुसार लिखित, स्कैच, फोटो अध्ययनों इत्यादि को संगठित किया जाता है तथा प्रश्न-सारणी तथा शैड्यू पर आधारित जानकारी को सारणीबद्ध भी किया जाता है।

8. मानचित्रकारी प्रसंगता (Cartographic Application) हम नक्शे, चित्र, ग्राफ बनाने तथा उन्हें सही तथा साफ बनाने के लिए कम्प्यूटर के प्रयोग के बारे में भी सीख चुके हैं। व्यवहारों में विभिन्नताओं का दिशा प्रभाव प्राप्त करने के लिए चित्र तथा ग्राफ बहुत फायदेमंद हैं।

9. पेशकारी-क्षेत्रीय अध्ययन की संपूर्ण तथा स्पष्ट रिपोर्ट में कार्यशैली, प्रयोग में लाये उपकरण तथा तकनीकों का विस्तार सहित वर्णन होना आवश्यक है। रिपोर्ट का बड़ा भाग एकत्र की गई जानकारी की सारणियों, चार्टी, नतीजों, नक्शों तथा संदेशों समेत विश्लेषण तथा व्याख्या से सम्बन्धित होना चाहिए। रिपोर्ट के अंत में अध्ययन का सार होना चाहिए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 15.
भूमि उपयोग सर्वेक्षण पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। किसी क्षेत्र में कृषि की विशेषताएं, प्रकार तथा भूमि उपयोग की जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी एक गांव को इकाई मानकर भूमि उपयोग सर्वेक्षण किया जाता है। इस सर्वेक्षण के द्वारा हम कुछ कमियों के बारे जान सकते हैं तथा फिर इन कमियों को जानकर इनको दूर करने के लिए सुझाव इत्यादि बता सकते हैं।

सर्वेक्षण के मुख्य उद्देश्य-इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यही है कि भूमि उपयोग के बारे में जानना ताकि कृषि को प्रभावशाली बनाया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरा गाँव या इसका आधा हिस्सा, आकार के अनुसार सर्वेक्षण के लिए लिया जा सकता है। हम अपने उद्देश्य की पूर्ति खेतों को नंबर लगा करके तथा उनकी बोई गई फसलें

भरकर तथा सम्बन्धित क्षेत्र के भूमि उपयोग के नक्शे को तैयार कर सकते हैं। इसके लिए हमें मुख्य तौर पर मिट्टी, पानी के निकास, सिंचाई की सुविधाएं तथा खादों के प्रयोग की जानकारी इकट्ठी करनी आवश्यक है। गाँव के नक्शे की सहायता के साथ खेतों के नंबर तथा सीमाबंदी के बारे में पता लगाया जा सकता है।

विधि (Method)—सबसे पहले पटवारी से गांव का भू-कर मानचित्र प्राप्त किया जाता है जिस पर प्रत्येक खेत की सीमा तथा खसरा नंबर लिखा जाता है। इस मानचित्र की कई प्रतिलिपियाँ तैयार की जाती हैं। गांव की स्थिति निर्धारित की जाती है। इसके पश्चात् गांव के पटवारी के रिकॉर्ड से जानकारी प्राप्त की जाती है।

सर्वेक्षण की कार्य विधि-निर्धारित किए समय तथा तिथि को किसानों के साथ निजी पहचान कायम करो क्योंकि सर्वेक्षण के लिए यह बहुत आवश्यक है तथा फायदेमंद भी हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप जब एक निश्चित बिन्दु से एक खेत से दूसरे खेत में जाते हो तो नक्शे पर भूमि-उपयोग की किस्मों को भी दर्शाते जाओ। यह दर्शाए निश्चित बिन्दु नक्शे पर सर्वेक्षण शुरू करने से पहले ही निर्धारित किए जाने चाहिए। खासकर कोड नंबर को विस्तार लिखित का प्रयोग भूमि उपभोग के लिए पड़ता है। जैसे कि गेहूँ के लिए, चावल के लिए, कपास के लिए इत्यादि।

इसके बाद एक अलग नक्शा ले लो तथा उस रंग तथा बनावट के अनुसार मिट्टी की किस्म लिखो तथा खेत की आम विशेषताओं जैसे कि ढलान तथा निकास, सिंचाई या सिंचाई के बिना वाली फसल इत्यादि के बारे नोटिस लगाओ। इसके बाद किसान को भूमि उपयोग सम्बन्धी पूछो। इसके लिए आपको एक शैड्यूल बनाने की ज़रूरत होगी। जिसमें आप यह जानकारी दर्ज करो।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 19
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 20

V. आंकड़ों की सारणी तथा प्रक्रिया-ऊपर दिए शैड्यूल को तैयार करने के पश्चात् आवश्यकता के अनुसार आंकड़ों की सारणी बनाओ। यह भूमि के प्रयोग तथा खेतों की संख्या के पक्ष से करना चाहिए।

VI. मानचित्र बनाना-अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग रंग या शेड प्रयोग करके गांव की भूमि उपयोग का नक्शा तैयार करो। सिंचित तथा अनसिंचित फसलों को सही रंगों का प्रयोग करके दिखाओ। खेतों में रेत की किस्म, मात्रा तथा खाद के प्रयोग को दिखाता एक नक्शा भी तैयार करो।

VII. विश्लेषण-सारी इकट्ठी की जानकारी का विश्लेषण इस तरह करो-

  1. कृषि वाली भूमि का क्षेत्र/रकबा
  2. खेतों की कुल संख्या
  3. औसतन खेतों का रकबा
  4. मिट्टी की किस्में
  5. खरीफ की फसलों अधीन रकबा
  6. खरीफ की कुल फसलें
  7. रबी की फसलों के अधीन रकबा तथा कुल फसलें
  8. मध्य ऋतु की फसलें/रकबा
  9. सिंचित ऋतु की फसलें/रकबा
  10. रेत तथा खादों का प्रयोग।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल PSEB 12th Class Geography Notes

  • अंत में निष्कर्ष को पेश करो। इसमें भूमि का मूल्यांकन, दोष तथा सुधार करने के सुझाव भी बताओ।
  • आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आंकड़ों का विशेष महत्त्व है। अलग प्रकार के आंकड़े किसी वस्तु की । मात्रा, गुण, घनत्व और वितरण इत्यादि को स्पष्ट करते हैं।
  • डाटा/आंकड़े की संख्या के आधार पर हम कह सकते हैं कि जो असली दुनिया के बीच/मध्य माप को परिभाषित करती है। डट्टम एक एकहरा (Single) माप है। जब हम लगातार हो रही वर्षा इत्यादि के । आधार पर संख्या और जानकारी एकत्र करते हैं वह आंकड़े/डाटा कहलाता है।
  • डाटा/आंकड़ा के स्रोत को मुख्य रूप में प्रारंभिक स्रोत (निजी सर्वेक्षण, साक्षात्कार, शैड्यूल इत्यादि) और गौण स्रोत (सरकारी प्रकाशन, निजी प्रकाशन, अखबार और पत्रिका इत्यादि) में विभाजित किया जाता है।
  • ग्राफ, चित्र और मानचित्र बनाने के लिए आम नियम जैसे कि सही तरीके का चुनाव करना, सही पैमाना और डिज़ाइन इत्यादि का चुनाव आवश्यक है।
  • आंकड़ों की रेखीय पेशकारी में पसारी चित्र, दो पसारी और तीन व पांच पसारी चित्रों में की जाती है। आमतौर पर बनाए जाने वाले इन मानचित्रों, चित्रों और उनकी रचना के तरीकों के आधार पर इनको लकीरी ग्राफ, बार ग्राफ, पाई चार्ट, तारा चित्र, बहाव चार्ट इत्यादि में विभाजित किया जाता है।
  • बहु लकीरी ग्राफ, लकीरी ग्राफ की ही एक किस्म है जिसमें दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व एक समान संख्या की लकीरों द्वारा, एकदम तुलना के लिए दिखाए जाते हैं।
  • विषय से संबंधित मानचित्रों की विशेषताएँ दर्शाने वाले और तुलना करने के लिए ग्राफ और चित्र एक अहम् भूमिका अदा करते हैं। स्थानीय अंतराल को दिखाने के लिए और श्रेणी विभाजन को अच्छी तरह समझने के लिए। कंप्यूटर एक बिजली यंत्र है। इसके अनेक भाग होते हैं। जैसे मैमोरी माइक्रो प्रोसेसर, इनपुट, आउटपुट सिस्टम इत्यादि।
  • कंप्यूटर की मदद से साधारण जोड़ घटाव से लेकर तर्क से हल होने वाले साधारण और जटिल प्रश्न भी हल किए जा सकते हैं। कंप्यूटर हार्डवेयर (यंत्र सामग्री) और सॉफ्टवेयर (प्रक्रिया सामग्री) की सहायता से नक्शे भी बनाए जा सकते हैं।
  • भौगोलिक सूचना तंत्र एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिससे हम जी०पी०एस० उपग्रह के द्वारा भेजे गए आकड़ों और तथ्य को समझ सकते हैं।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग योजना एक ऐसा नेवीगेशन सिस्टम है जो कि पूरे संसार के अलग-अलग कामों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। जी०पी०एस० में 24 उपग्रह होते हैं। जी०पी० एस० के तीन भाग हैं-
    • अंतरिक्ष भाग
    • नियंत्रण भाग
    • प्रयोग योग्य भाग
  • आंकड़ा (Data)—अलग-अलग प्रकार के आंकड़े जैसे वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व और वितरण इत्यादि को , स्पष्ट करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा इत्यादि के आंकड़ों का भी अध्ययन किया जाता है। संख्या के आधार पर यह जानकारी आंकड़ा अथवा डाटा कहलाती है।
  • लकीरी ग्राफ (Liner Graph)-जब समय से संबंधित सूचना जैसे कि तापमान, वर्षा, आबादी में वृद्धि,
    जन्म दर, मृत्यु दर इत्यादि को प्रदर्शित करने का ग्राफ बनाया जाता है उसे लकीरी ग्राफ कहा जाता है।
  • पाई चित्र (Pie Diagram)—यह आंकड़ों की ग्राफिक पेशकारी का ही एक तरीका है। यह तत्वों को एक चक्र द्वारा पेश करती है। आँकड़ों के उप-भाग को दिखलाने के लिए वक्र को बनते हुए कोणों के मुताबिक हिस्सों/भागों में विभाजित किया जाता है। इसलिए इसे चक्र चित्र भी कहा जाता है।
  • वर्णात्मक नक्शे (Choropleth Maps)-इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को नक्शे पर अलग अलग रंगों द्वारा दर्शाया जाता है। किसी रंग की तुलना में Black and White Shading का प्रयोग करना अच्छा माना जाता है।
  • सममूल्य नक्शे (Isopleth Maps)-Isopleth शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। (Iso + Plethron) Iso
    शब्द का अर्थ समान है और Plethron शब्द का अर्थ है मूल्य। इस तरह सममूल्य रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता और घनत्व समान हो। यह रेखाएं उन स्थानों को आपस में मिलाती हैं जिनका मूल्य समान होता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गान्धी जी के राजनीतिक विचारों की व्याख्या करो।
(Explain the Political ideas of Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गान्धी जी के राजनीतिक विचारों का विस्तार सहित वर्णन करो।
(Describe Political ideas of Mahatama Gandhi Ji in detail.)
अथवा
महात्मा गान्धी के मुख्य राजनीतिक विचारों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Explain briefly the main Political Ideas of Mahatma Gandhi.)
उत्तर-
गान्धी जी वह महान् आत्मा थे जिन्होंने भारत की आत्मा को जगाया। उन्होंने अपने उच्च सिद्धान्तों, उद्देश्यों और आदर्श जीवन द्वारा राजनीतिक जीवन को नया मार्ग दिखाया। गान्धी जी के उन विचारों को, जोकि वे समय-समय पर राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक ढांचे के बारे में प्रकट करते रहे, उनको इकट्ठा करके लोगों ने गान्धीवाद का नाम दिया। गान्धीवाद सिद्धान्तों, मतों, नियमों तथा आदर्शों का समूह नहीं, बल्कि यह एक जीवन युक्ति है। हम इसे एक जीवन मार्ग भी कह सकते हैं।
गान्धी जी के राजनीतिक विचार इस प्रकार हैं-

1. राजनीति का अध्यात्मीकरण (Spiritualisation of Politics)-गोपाल कृष्ण गोखले के समानं गान्धी जी राजनीति का अध्यात्मीकरण करना चाहते थे। उन्होंने राजनीति के प्रचलित मूल्यों को अस्वीकार किया और राजनीति में शुद्ध धार्मिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए पूरा प्रयास किया। गान्धी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे और उन्होंने घोषणा की कि धर्म के बिना राजनीति पाप है। गान्धी जी का कहना था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से पृथक् नहीं किया जा सकता। वे चाहते थे कि राजनीतिक अनैतिकता से दूर रहे। राजनीति उनकी दृष्टि में धर्म और नैतिकता की एक शाखा थी। धर्म से अलग होकर राजनीति एक मृत देह के समान है जिसको जला देना ही उचित है। गान्धी जी का कहना है, “बहुत-से धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिला हूँ, छुपे हुए राजनीतिज्ञ हैं परन्तु मैं तो राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ, वास्त में धार्मिक हूँ।” गान्धी जी का राजनीति के अध्यात्मीकरण का केवल विचारही नहीं रहा बल्कि उन्होंने तो इसका अपने जीवनकाल में भी प्रयोग करके दिखाया।

2. अहिंसा सम्बन्धी विचार (Views about Non-Violence)-गान्धी जी अहिंसा के पुजारी थे और उन्होंने अहिंसा को अपने जीवन के कार्यक्रम का एक अंग बनाया हुआ था।
गान्धी जी ने अहिंसा को आत्मिक और ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा का अर्थ कायरता या हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहना नहीं है। अत्याचार को चुपचाप सहन करना भी अहिंसा नहीं कहा जा सकता। अहिंसा आत्म-बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख उठाने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। यह नकारात्मक शक्ति नहीं है। यह एक सकारात्मक शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ और ईथर से भी अधिक शक्तिशाली है। बड़ी-से-बड़ी हिंसा का विरोध भी बड़ी-से-बड़ी अहिंसा से किया जा रहा है।’

3. साधनों की पवित्रता पर विश्वास (Faith in the Purity of Means)—व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गान्धी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। यह सारे सिद्धान्त एक-दूसरे में शामिल हैं और एक-दूसरे के सहायक तथा पूरक हैं। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। अच्छे नतीजों की प्राप्ति के लिए वह नैतिक साधनों का प्रचार करते रहे। उनका विश्वास था कि यदि कोई साधनों का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।

4. सत्याग्रह (Satyagraha)-अहिंसा के साधनों के प्रयोग द्वारा सच्चे आदर्शों की प्राप्ति के प्रयासों को सत्याग्रह कहा जाता है या दूसरे शब्दों में सत्य और अहिंसा के संगठन द्वारा बुराई का विरोध करना तथा अन्याय को दूर करवाने का नाम सत्याग्रह है। सत्याग्रह का अर्थ है ‘सत्य के साथ चिपटे रहना’ अर्थात् ‘सत्य की शक्ति’ । गान्धी जी का विश्वास इस आत्मिक शक्ति की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। सत्याग्रही मारने की अपेक्षा मरना अच्छा समझता है। उनका विश्वास था कि कायरता और अहिंसा इकट्ठे नहीं रह सकते। एक कायर खतरे से दूर दौड़ता है। गान्धी जी ने एक बार बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि उन्हें कायरता और अहिंसा में से चुनाव करना हो तो अवश्य ही अहिंसा को चुनेंगे। असहयोग, हड़ताल, धरना, भूख-हड़ताल या व्रत सत्याग्रह के विभिन्न रूप हैं।

5. राज्य सम्बन्धी विचार (Views about State)-गान्धी जी को प्रायः अराजकतावादी दार्शनिक कहा गया है। उनके विचार अनुसार जो आज्ञा देता है और जो कुछ आज्ञा के रूप में किया जाता है, उसकी कोई नैतिक कीमत नहीं हो सकती। केवल स्वतन्त्र इच्छा से किया गया काम ही नैतिक कहला सकता है। राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि है। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्म-रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गान्धी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है।

6. गान्धी जी राज्य को साध्य न मान कर साधन मानते हैं (State is not end but a means)-आदर्शवादी राज्य को साध्य और व्यक्ति को साधन मानते हैं परन्तु गान्धीवाद राज्य को साधन और व्यक्ति को साध्य मानता है। राज्य की उत्पत्ति मनुष्य के लिए हुई है न कि मनुष्य की राज्य के लिए। गान्धीवादी दर्शन राज्य की उत्पत्ति तथा अस्तित्व में कोई रहस्यात्मक पवित्रता स्वतन्त्रता हीगल की भान्ति नहीं देखता। गान्धी जी राज्य को जन-कल्याण का एक साधन मानते थे। गान्धीवादी दर्शन राज्य का स्वतन्त्र तथा उच्च स्तर व्यक्तित्व स्वीकार नहीं करता। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई कहा है।

7. राज्य का कार्यक्षेत्र (Sphere of State-Activity)-व्यक्तिवादियों की तरह गान्धीवादी भी राज्य को कमसे-कम कार्य सौंपना चाहते हैं । गान्धी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कामों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। फ्रीमैन की भान्ति गान्धी जी का भी यह विचार था कि सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करती है।

8. साध्य और साधन दोनों ही श्रेष्ठ होने चाहिएं (Both ends and means Should be good)-आदर्शवादी दर्शन साध्य को महत्त्व देता है और साधन ही नाम-मात्र भी चिन्ता नहीं करता। प्रायः सभी भौतिकवादी दर्शन साध्य पर ही जोर देते हैं; परन्तु गान्धी जी केवल साध्य की महानता से ही सन्तुष्ट नहीं थे। गान्धी जी ने साध्य और साधन दोनों के महत्त्व पर बल दिया है। उनके अनुसार, बुरे साधनों द्वारा अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। साधनों का पवित्र होना अति आवश्यक है।

9. व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल (Stress on the moral purity of the individual)-गान्धी जी के अनुसार मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याएं मूल रूप में नैतिक समस्याएं ही हैं और इनका हल भी नैतिक साधनों द्वारा होना चाहिए। जब तक मनुष्य स्वार्थ भावना से ऊपर नहीं उठता तब तक उसका नैतिक विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास के लिए व्यक्ति का सच्चरित्र होना आवश्यक है। इसीलिए गान्धी जी कहा करते थे कि चरित्र की महानता बुद्धि की महानता से अधिक है।

10. स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार (Views about Freedom)—गान्धी जी के हृदय में नैतिक तथा आध्यात्मिक स्वतन्त्रताओं के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार जब तक कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र नहीं है तो उसके लिए राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का कोई लाभ नहीं है। गान्धी जी के अनुसार, “व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का बलिदान करके किसी समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता।” (“No Society can possibly be built on a denial of individual freedom.”) परन्तु वे राजनीतिक स्वतन्त्रता को भी आवश्यक मानते थे। गान्धी जी राज्य को सत्य, जिसको वह ईश्वर मानते थे, का ही अंश मानते थे। उनके विचारानुसार राजनीतिक स्वतन्त्रता कठिन परिश्रम करने तथा दुःख उठाने के पश्चात् ही प्राप्त हो सकती है।

11. स्वतन्त्रता का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है (Sole Object of liberty is all round development of the individual)-गान्धी जी के अनुसार स्वतन्त्रता का एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक, चारों प्रकार की स्वतन्त्रताएं मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करती हैं। व्यक्तिवादियों की भान्ति गान्धी जी निर्बाध स्वतन्त्रता में विश्वास नहीं करते और न ही वे आदर्शवादियों की भान्ति व्यक्ति की सच्ची स्वतन्त्रता राजकीय आज्ञाओं का पालन करने में मानते हैं। गान्धीवादी दर्शन को स्वतन्त्रता व्यक्तिवाद और आदर्शवाद के बीच की वस्तु है।

12. राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता में कोई संघर्ष नहीं (No Clash between Nationalism and Internationalism)—आदर्शवादी, फासीवादी और नाजीवादी अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करते थे। वे राष्ट्र को अन्तिम लक्ष्य मानते हैं, परन्तु गान्धी जी अन्तर्राष्ट्रीयता के अन्य विचारकों के विचारों से भिन्न है। अन्य अन्तर्राष्ट्रीयवादी राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीयता में विरोध मानते हैं। उनके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के रास्ते में राष्ट्रीयता एक महान् बाधक है, परन्तु गान्धी जी राष्ट्रीयता को एक बाधा नहीं समझते। गान्धी जी के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए राष्ट्रीयता आधार अन्तर्राष्ट्रीयता का पहला कदम राष्ट्रीयता है। यदि इन दोनों में संघर्ष होता है तो इसका कारण यह है कि हम राष्ट्रीयता का अर्थ संकुचित रूप में लेते हैं। गान्धी जी देश भक्ति में विश्वास करते हैं, परन्तु वे अपने राष्ट्र के हित के लिए दूसरे राष्ट्र का अहित करने के पक्ष में नहीं हैं।

13. विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था (Decentralised Economy)-गान्धी जी के अनुसार पूंजीवाद के दोषों से बचने का सबसे अच्छा उपाय आर्थिक विकेन्द्रीकरण है। विकेन्द्रीकरण में गांवों की जनता को अधिक लाभ होगा। आर्थिक क्षेत्र में प्रत्येक गाँव एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करेगा। प्रत्येक इकाई अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं का उत्पादन कर सकेगी। इसीलिए गान्धीवाद कुटीर उद्योग के पक्ष में है। गान्धी जी स्वदेशी खद्दर के पक्ष में थे। खद्दर उद्योग के द्वारा ग़रीबों को काम मिलता है और पैसा भी विदेशों में नहीं जाता। इसलिए गान्धी जी ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया।

14. साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध (Against the Policy of Imperialism-गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे। साम्राज्यवाद मानवता का विरोधी है। विश्व-युद्धों का एकमात्र कारण साम्राज्यवाद है। साम्राज्यवादी हिंसावादी हैं। गान्धी जी साम्राज्यवाद के समर्थकों को आर्थिक राक्षस मानते हैं। अतः गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।

15. पूंजीवाद को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं (Not in favour of fully abolishing Capitalism)-गान्धीवाद पूंजीवादी को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं है। पूंजीवाद का स्वरूप समाप्त करने से उद्योग-धन्धे बन्द हो जाएंगे, एक क्रान्ति उत्पन्न हो जाएगी, अनावश्यक रक्त बहेगा। पूंजीपतियों को समाजोपयोगी बनाया जा सकता है। समाज के ट्रस्टी के रूप में वे कार्य कर सकते हैं। गान्धी जी के शब्दों में, “प्रत्येक पूंजी दोष नहीं है। पूंजी की किसी-न-किसी रूप में सदैव आवश्यकता रहेगी।”

16. अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक बल (More stress on duties than the Rights)-गान्धी जी अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक ज़ोर देते हैं। कर्त्तव्य पालन से अधिकारों की प्राप्ति होती है। गान्धी जी के शब्दों में, “जो कर्तव्यों का पालन करता है अधिकार उसे स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। वास्तव में अपने कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार ही केवल एक ऐसा अधिकार है जो मृत्यु और जीवित रहने के योग्य है।”

17. वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त में विश्वास नहीं (No faith in the theory of class struggle)-साम्यवादियों की तरह गान्धी जी वर्ग-संघर्ष में विश्वास नहीं करते। गान्धी जी के विचारानुसार, वर्ग-संघर्ष हिंसात्मक है। श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्ध में हिस्सेदार बनना चाहिए। यदि व्यक्ति अमीरों के सम्पर्क में रहेगा तो उनकी बुद्धि का लाभ उठा सकेगा। गान्धी जी का विचार है कि श्रमिक वर्ग पूंजीपतियों से पृथक् रहने की अपेक्षा उनके साथ रहने से अधिक लाभ उठा सकता है।

18. बहुमत के सिद्धान्त का विरोध (Opposed to the principle of majority) गान्धी जी लोकतन्त्र में विश्वास रखते हैं, परन्तु वे लोकतन्त्र के बहुमत के सिद्धान्त को नहीं मानते। गान्धी जी के अनुसार बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के सहयोग से शासन चलाना चाहिए। बहुमत वर्ग को अन्य वर्गों के विचारों का सम्मान करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि बहुमत का निर्णय सदैव ठीक हो। लोकतन्त्र का अर्थ है, सबका हित न कि किसी विशेष वर्ग का हित।

19. प्रतिनिधि प्रणाली, संसदीय व्यवस्था आदि पर विचार (Viws about Representative System, Parliamentary System etc.)-गान्धी जी प्रतिनिधित्व लोकतन्त्रात्मक प्रणाली के पक्ष में है। गान्धी जी चुनावों के विरुद्ध नहीं थे। उनके अनुसार-जनता को उन्हीं उम्मीदवारों को चुनना चाहिए जो योग्य, अनुभवी, नि:स्वार्थी तथा ईमानदार हों। गान्धी जी वयस्क मताधिकार के समर्थक थे, परन्तु उनका कहना था कि उसी नागरिक को वोट का अधिकार होना चाहिए जो अपनी रोजी स्वयं कमाता हो। दूसरे शब्दों में गान्धी जी श्रमिक मताधिकार के पक्ष में थे।

20. पुलिस तथा फ़ौज (Police and Military)-गान्धी जी के आदर्श राज्य में पुलिस और फ़ौज का कोई स्थान नहीं है, परन्तु वर्तमान राज्य में गान्धीवादी पुलिस और फ़ौज की आवश्यकता महसूस करते हैं। गान्धीवादियों के अनुसार पुलिस और फ़ौज के कर्मचारी अहिंसावादी होंगे, उनके पास हथियार होंगे, पर उनका प्रयोग बहुत कम किया जाएगा। पुलिस और फ़ौज में बदले की भावना नहीं होगी और इसका मुख्य उद्देश्य जनता का कल्याण होगा।

21. न्याय और जेल (Justice and Jails)-गान्धी जी के अनुसार न्याय शीघ्र और सस्ता होना चाहिए। राजसत्ता की भान्ति न्याय का भी विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। पंचायत को न्याय करने का अधिकार होना चाहिए। गान्धी जी न्यायाधीश और वकीलों के तिरस्कार की दृष्टि से देखा करते थे। गान्धी जी दण्ड को एक आवश्यक बुराई मानते थे। उनके अनुसार दण्ड के दो उद्देश्य हैं-प्रथम यह कि दण्ड अपराधी को दोबारा अपराध करने से रोके और द्वितीय, भविष्य में उस प्रकार के अपराधों को रोकना है। गान्धी जी के अनुसार अपराधियों को घृणा की नज़र से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम करना चाहिए। जेलों को अस्पताल और जेल के कर्मचारियों को अपराधियों से डॉक्टर तथा नौं जैसा बर्ताव करना चाहिए। अपराधियों को अच्छे जीवन की सुरक्षा देनी चाहिए, ताकि अपराधी सज़ा समाप्त होने के पश्चात् अच्छा नागरिक बन सके। गान्धी जी जेलों को सुधार घर बनाने के पक्ष में थे।

22. आदर्श समाज की कल्पना-गान्धी जी एक आदर्श समाज की स्थापना करने के पक्ष में हैं। गान्धी जी का आदर्श समाज राम राज्य था। उनकी कल्पना के समाज में सत्य का साम्राज्य होना चाहिए। जनता का जीवन नैतिक तथा आध्यात्मिक आधार पर होना चाहिए। उनके आदर्श समाज की नींव प्रेम, आपसी सहयोग, स्वेच्छा से काम और कर्त्तव्य का पालन था। ऐसे समाज में प्रत्येक व्यक्ति सत्याग्रही, सत्य का खोजी तथा अहिंसक होना चाहिए। इस तरह के समाज की कल्पना में कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

(i) राज्य की कम-से-कम शक्ति-राज्य प्रकृति से ही अत्याचारी और निजी आज़ादी का नाशक है। गान्धी जी के आदर्श समाज में राज्य को न्यूनतम शक्तियां प्राप्त होनी चाहिएं। आदर्श समाज में सरकार ग्राम-पंचायतों को अधिक अधिकार देगी। पुलिस शक्ति होगी तो सही, परन्तु पुलिस के सिपाही जनता के सेवक होंगे, स्वामी नहीं, दण्ड-सुधारक होंगे। जेलों को सुधार-गृहों में बदल दिया जाएगा, जहां अपराधियों का सुधार चिकित्सा तथा शिक्षा होगी।।

(ii) न्यूनतम ज़रूरतमन्द वाला समाज-जहां तक हो सके मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को कम करना चाहिए और सत्य के साक्षात्कार करने के सर्वोत्तम उद्देश्य को सामने रखकर न्यूनतम ज़रूरत से ही सन्तुष्ट रहना चाहिए। सभ्यता का वास्तविक अर्थ जरूरतों की वृद्धि, बल्कि उन्हें इच्छापूर्वक काम करना है।

(iii) समान अवसर-गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति करने के समान अवसर देना चाहते थे। वे धन की असमान बांट को समाप्त करना ज़रूरी समझते थे। जरूरत से अधिक धन को समाज की अमानत समझा जाना चाहिए और उसे जनकल्याण के लिए प्रयोग में लाना चाहिए।

(iv) गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक श्रम करने के लिए कहते थे और वे ग्रामीण आर्थिकता में विश्वास करते थे। उनकी नज़र में मशीन तथा ऊंचे स्तर का उत्पादन ही संसार में दुःख तथा शोषण के कारण हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की विधियों का वर्णन करो।
(Describe methods of Satyagraha of Mahatama Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह के विभिन्न ढंगों का वर्णन कीजिए। (Discuss Mahatma Gandhiji’s Various methods of Satyagraha.)
उत्तर-
आधुनिक भारत के सामाजिक तथा राजनीतिक चिन्तकों में गान्धी जी का स्थान बहुत ऊंचा है। उन्होंने समस्त विश्व के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। यह उनका सत्याग्रह का सिद्धान्त था। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन का समस्त विश्व पर प्रभाव पड़ा और इसका प्रयोग अफ्रीका तथा अमेरिका में भी किया गया। आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है। जहां एक ओर परमाणु बमों का आविष्कार किया गया है और वहां दूसरी ओर गान्धी जी ने लड़ने के लिए सत्याग्रह का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इसकी शक्ति भौतिक न होकर नैतिक है और गान्धी जी ने इसी शक्ति द्वारा भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाई। गान्धी जी का कहना था कि “सत्याग्रह मानव आत्म की शक्ति की राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभुत्व के विरुद्ध दृढ़ोक्ति है।”

सत्याग्रह के स्रोत (Sources of Satyagrah)—गान्धी जी का प्रारम्भ से ही झुकाव सत्य की खोज की तरफ था। उन्होंने सभी धर्मों पर गहरा अध्ययन किया और सत्याग्रह का सिद्धान्त निकाला। वे गीता और बाइबिल से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। उन्हें ईसा मसीह का यह उपदेश कि, “यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चांटा मारे तो अपना बायां गाल भी उसके सामने कर दो”, अहिंसा का पवित्र मन्त्र प्रतीत हुआ था। गान्धी जी ने जे० जे० डोके (J. J. Doke) को बताया कि “न्यू टेस्टामैंट और विशेषकर सरमन ऑन दी माउण्ट (Sermon on the Mount) ने उन्हें सत्याग्रह की शुद्धता और उसके महत्त्व के प्रति जागृत किया।” गान्धी जी का कहना था कि ईसा मसीह सबसे उच्चकोटि के सत्याग्रही थे।

गान्धी जी ने अफ्रीका में जब अंग्रेजों के अत्याचार को भारतीय जनता के ऊपर होते देखा तो उनके मन में पहली बार सत्याग्रह का विचार आया। उन्होंने वहां की जनता को अहिंसात्मक ढंग से आन्दोलन करने के लिए तैयार किया। उन्हीं दिनों गान्धी जी ने एच० डी० थ्यूरी का ‘सविनय अवज्ञा’ (Civil Disobedience) का एक लेख पढ़ा और वह इस लेख से बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होंने लिखा, “इस पुस्तक ने मेरी सत्याग्रह की धारणा को वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान किया है।”

सत्याग्रह का अर्थ (Meaning of Satyagrah)-सत्याग्रह का वास्तविक अर्थ अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह है। अहिंसा के साथ सत्य को मिला देने से एक नई स्थिति पैदा हो जाती है। सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है। दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। लेकिन सत्याग्रह में बड़ी से बड़ी हिंसक शक्ति को झुकाने की सामर्थ्य होती है। सत्याग्रह स्वयं ही सहन करने की इच्छा का नाम है। इसलिए इसमें वैर-भावना नहीं होती। गान्धी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठाकर सत्य की रक्षा करना। (Satyagrah is the vindication of truth, not by the infliction of suffering on the opponent buton one’s own self.”) “यह सच्चाई के लिए तपस्या है।”

(“Satyagrah is nothing but Tapasya for truth.”) गान्धी जी कहते थे कि “मैंने इसे प्रेम शक्ति या आत्म शक्ति (Soul force) भी कहा है। सत्याग्रह प्रयोग की प्रारम्भिक अवस्थाओं में मैंने यह अनुभव किया कि सत्य मार्ग का अनुसरण विरोधी पर हिंसा-प्रयोग की स्वीकृति नहीं देता है। सत्याग्रह ही अपने विरोधी को कभी कष्ट नहीं पहुंचाता और हमेशा कोमल तर्क द्वारा या तो उसकी बुद्धि को प्रेरित करता है या आत्म-बलिदान द्वारा उनके हृदय को। सत्याग्रह दोहरा वरदान है, यह उसके लिए भी वरदान है जो इसका आचरण करता है और उसके लिए भी जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जाए। सत्याग्रही हारना तो जानता ही नहीं क्योंकि बिना थके-हारे सत्य के लिए लड़ता है। इस संग्राम में सत्य मोक्ष होता है और कारागृह स्वतन्त्रता का द्वार।” डॉ० पट्टाभि सीतारमैया ने सत्याग्रह की रचनात्मक भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा था, “सत्याग्रह एक विधेयात्मक एवं अप्रतिहत शक्ति के रूप में कार्य करता है। इसका प्रभाव अनुभव सिद्ध है।” संक्षेप में, सत्याग्रह सत्य व निरापद खोज है और गान्धी जी राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी इस अस्त्र के द्वारा तय करना चाहते थे।

गान्धी जी का सत्याग्रह का शस्त्र कितना महान् था इसे समझने के लिए हमें सत्याग्रह का अर्थ बराबर ध्यान में रखना चाहिए। ‘सत्य’ का अर्थ सच्चाई और ‘आग्रह’ का अर्थ किसी वस्तु को मज़बूती से पकड़ लेने का है। अतः सत्याग्रह का अर्थ है सच्चाई पर अड़े रहना और उसे कभी न छोड़ना चाहे उसके लिए हमें कितनी भी तकलीफें या मुसीबतें क्यों न उठानी पड़ें।

सत्याग्रह निर्बलों का शस्त्र नहीं (Satyagrah not a weapon of the weak)—गान्धी जी के अनुसार, “सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है।” सत्याग्रह के नाम पर अपनी कायरता छिपानी अनुचित है। सत्याग्रह एक शक्तिशाली के द्वारा किया जा सकता है और शक्ति निर्भीकता में निहित है न कि मनुष्य के मांस और पट्टों में। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। महात्मा गांधी कहते थे कि “कायरता और अहिंसा इसी तरह इकट्ठी नहीं चल सकती जैसा कि पानी और आग।” (“Satyagrah, is a quality of the brave. Cowardice and Ahimsa do not go together any more than water and fire.”)

सत्याग्रही के लिए नियम (Rules for Satyagrahi)-सत्याग्रह के इस गांधीवादी दर्शन में किसी भी आन्दोलन के प्रतिफल उस आन्दोलन में ही छिपे रहते हैं। एक सच्चा सत्याग्रहीं समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। ऐसे सत्याग्रही को निराशा कभी नहीं मिलती और आखिर में वह सबल एवं शक्तिशाली बन जाता है। जिस तरह सूर्य का पूरी तरह वर्णन नहीं किया जा सकता वैसी ही स्थिति एक सच्चे सत्याग्रही की है। सत्याग्रह सत्य और प्रेम पर टिका हुआ है और दरअसल सत्याग्रह की सम्पूर्ण पद्धति पारिवारिक जीवन का राजनीतिक क्षेत्र में विस्तार कर देती है जिसमें प्रत्येक समस्या का हल आपसी सद्भाव द्वारा निकाला जाता है। यह पद्धति आत्म निर्भर होने के साथ-साथ मानव जाति के सन्तुलित विकास और सभ्यता की प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है। इसका प्रयोग कर पाना कुछ लोगों की बपौती नहीं है बल्कि सभी लोग सत्याग्रह के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं बशर्ते कि वे सत्य और अहिंसा की शक्ति में विश्वास करते हों। यह संघर्ष का ऐसा तरीका है जिसका प्रयोग अचानक नहीं किया जाता। जब अन्य सभी उपाय नाकामयाब हो जाते हैं तभी इसका सहारा समाज में सामूहिक हित के लिए लिया जाता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता। ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा रखनी ज़रूरी है हालांकि संख्या बल का कोई विचार इसकी सफलता के लिए आवश्यक नहीं है। सत्याग्रह प्रयोग करने वाले और जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जा रहा हो दोनों का ही भला करता है।

सत्याग्रही में सत्याग्रह के सिद्धान्त का पालन करने के लिए कुछ विशेषताएं होनी चाहिएं। इन विशेषताओं के होने पर ही कोई व्यक्ति सच्चा सत्याग्रही बन सकता है। ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • सत्याग्रही को क्रोध नहीं करना चाहिए।
  • उसे अपने विरोधी के क्रोध को सहन करना चाहिए।
  • उसे दण्ड के भय से झुकना नहीं चाहिए। उसे निडर होना चाहिए।
  • यदि कोई सरकारी अधिकारी सत्याग्रही को गिरफ्तार करना चाहे तो सत्याग्रही स्वेच्छा से गिरफ्तार हो जाए।
  • यदि किसी सत्याग्रही के पास कोई ट्रस्ट की सम्पत्ति है तो उसके लिए बलिदान देने के लिए तैयार होना चाहिए।
  • सत्याग्रही न मारेगा, न कसम खाएगा और न गाली देगा।
  • सत्याग्रही अपने विरोधी का अपमान नहीं करेगा और न वह ऐसे नारे लगाएगा जिससे हिंसा की बू आती हो।

सत्याग्रहियों के लिए योग्यताएं (Qualifications for the Satyagrahis)-1930 में गांधी जी ने सत्याग्रही के लिए 9 नियम बताए थे जिनका पालन करना उसके लिए बहुत आवश्यक था-

  • सत्याग्रही को ईश्वर में अटल विश्वास होना चाहिए।
  • सत्याग्रही को सत्य तथा अहिंसा में पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
  • वह शुद्ध जीवन बिताने वाला हो अर्थात् उसमें आन्तरिक शुद्धि हो तथा वह खुशी से अपनी सम्पत्ति तथा जीवन को उद्देश्य की प्राप्ति के लिए त्याग करने वाले होना चाहिए।
  • सत्याग्रही सद्भाव वाला तथा खद्दर पहनने वाले और सूत कातने वाला होना चाहिए।
  • वह नशीली वस्तुओं से दूर रहे जिनसे इसकी बुद्धि चंचल होती है।
  • अनुशासन के नियमों का पालन करना चाहिए।
  • उसे जेल के नियमों का भी तब तक पालन करना चाहिए जब तक वे उसके सम्मान को भंग न करें।
  • शत्रु के प्रति मन, वचन तथा कर्म से हिंसा का भाव नहीं होना चाहिए।
  • उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बलिदान देने वाला हो।

सत्याग्रह की विशेषताएं (Characteristics of Satyagraha)-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • सत्याग्रह व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है (Satyagraha is the birth right of Everyone)-गांधी जी के अनुसार भ्रष्टाचारी एवं असंवैधानिक सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करना. प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है।
  • सत्याग्रह दूसरों को प्रार्थना द्वारा बदलने की विधि (Satyagraha is a method to change the opponent through an appear)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह, का उद्देश्य दूसरों को क्षति पहुंचाना नहीं होता, बल्कि प्रार्थना द्वारा उसको प्रभावित करना तथा सही रास्ते पर लाना है।
  • स्वयं कष्ट सहना (Self Suffering)-गान्धी जी के अनुसार स्वयं कष्ट सहना सत्याग्रह का एक महत्त्वपूर्ण भाग है इसके द्वारा दूसरों की आत्मा को सुधारा जा सकता है।
  • सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है (Moral Power is the basis of Satyagraha)—गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है। एक सच्चा सत्याग्रही नैतिक शक्ति के आधार पर सभी बाधाओं को पार कर जाता है।
  • सामाजिक कल्याण (Social Welfare)गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होता है। गांधी जी का मानना है कि एक व्यक्ति का कल्याण निजी स्वार्थों से प्रेरित होता है, जबकि सामाजिक कल्याण सामूहिक कल्याण की भावना से प्रेरित होता है।
  • हिंसा का विरोध (Opoose to Violence)-गान्धी जी हिंसा का विरोध करते हैं। उनके अनुसार हिंसा तथा सत्याग्रह परस्पर विरोधी है। गान्धी जी के अनुसार हिंसा द्वारा किसी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता।
  • सत्याग्रह का व्यापक प्रयोग (Wider use of Satyagraha)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह एक ऐसी आत्मशक्ति है, जिसका प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता (Transperacy)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह में पारदर्शिता पाई जाती है। गान्धी जी के अनुसार जो कार्य चोरी छिप किये जाते हैं वे कार्य प्रायः उचित नहीं होते। इसलिए गान्धी जी सत्याग्रह के माध्यम से प्रत्येक गतिविधि खुले रूप में करने का समर्थन करते हैं।

सत्याग्रह के स्वरूप (Forms of Satyagrah)-सत्याग्रह के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित हैं –

(1) बातचीत (Negotiations)
(2) आत्मपीड़न (Self-suffering)
(3) असहयोग (Non-co-operation)
(4) सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)
(5) हड़ताल (Strike)
(6) उपवास या व्रत (Fasting)
(7) धरना (Picketing)
(8) सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)
(9) स्वेच्छा से पलायन (Hijrat)

1. बातचीत का सिद्धान्त (Principle of Negotiation)-सत्याग्रही को किसी व्यक्ति का विरोध करने से पहले उसे यह अच्छी प्रकार समझा देना चाहिए कि वह गलती पर है। हो सकता है कि उस व्यक्ति ने वह गलती निजी स्वार्थ या अज्ञानता के कारण की हो। यदि विरोधी फिर भी न समझे तो किसी मध्यस्थ के द्वारा समझा-बुझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए। गान्धी जी कहते हैं “यदि समझाने बुझाने से वह न माने तो सत्याग्रही को कोई कठोर पग उठाना चाहिए।”

2. आत्म-पीड़न (Self-suffering)-महात्मा गांधी के अनुसार यदि विरोधी किसी मध्यस्थ द्वारा भी समझौते के लिए तैयार नहीं होता और अपना गलत रास्ता नहीं छोड़ता तो सत्याग्रही को उसके विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। ठोस कदम से गान्धी जी का अभिप्राय यह नहीं कि सत्याग्रही को अपने विरोधी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना चाहिए या उसे हानि पहुंचानी चाहिए बल्कि इसका अर्थ है स्वयं कष्ट सहना चाहिए। आत्म-पीड़न (अपने आपको कष्ट देने से है) विरोधी के हृदय में दया और सद्भावना जागृत करती है।

3. असहयोग Non-co-operation)-गान्धी जी के मतानुसार जो, लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों, उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए और उन्हें यह अनुभव कराना चाहिए कि वे अकेले हैं। इस प्रकार के हालातों में ही अन्यायी और दमन करने वाला व्यक्ति आन्दोलनकारियों की उचित मांगों को सुनने के लिए तैयार होता है। लेकिन असहयोग का सहारा लेने के लिए, साहस और आत्म बलिदान की ज़रूरत होती है जिसके बिना असहयोगी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता।

4. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ़ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गान्धी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।

5. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमनकर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल भी है। प्रत्येक कारखाने में मजदूरों को उद्योगपतियों के विरुद्ध लड़ने के लिए संगठित होना ज़रूरी है। पर मजदूरों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ऐसे साधनों का उद्देश्य मज़दूरों के उचित अधिकारों को प्राप्त करना और श्रम की गरिमा स्थापित करना है। इसी तरह हड़तालें पूरी तरह अहिंसक होनी चाहिएं।

6. उपवास या व्रत (Fasting)-गांधी जी के जीवन में विशुद्ध सात्विकता का प्रवेश जिस रूप में हुआ है, उसे उपवास जैसे विलक्षण साधनों ने और भी अधिक शक्ति प्रदान की है। गांधी जी के अनुसार उपवास, सत्याग्रह का ही एक रूप है। उपवास आत्म-शुद्धि का एक साधन है। उनके मतानुसार जब उपवास सामूहिक मांगों को मनवाने के लिए किया जाए तो केवल उसी समय किया जाना चाहिए जब कि अन्य साधन समाप्त हो चुके हों।

7. सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)-सामाजिक बहिष्कार का प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। इसका प्रयोग या तो उन लोगों के विरुद्ध होना चाहिए जो जनमत की अवहेलना करते हैं या फिर सरकार के पिहुओं के विरुद्ध।

8. धरना (Picketing)-धरना बहिष्कार का एक ढंग है। इसका प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। जो लोग शराब, अफीम, अन्य नशीली वस्तुएं तथा विदेशी कपड़ा बेचते थे गांधी जी उनके विरुद्ध धरने की आज्ञा देते हैं।

9. हिज़रत (Hijrat)–गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 3.
गान्धी जी के आदर्श राज्य की विशेषताएं लिखो। (Write down the characteristics of the ideal state of Gandhiji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के आदर्श राज्य की विशेषताओं का वर्णन करो। (Write down the feature of Mahatama Gandhiji’s Ideal State.)
अथवा
गांधी जी के आदर्श राज्य की मुख्य विशेषताएं लिखो। (Write down the feature of Gandhiji’s Ideal State.)
उत्तर-
जब हम गान्धी जी के धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों के आधार पर नए समाज के विषय में विचार करने बैठते हैं तो एक अत्यन्त कठिन समस्या हमारे सामने उपस्थित होती है। इसका कारण यह है कि वे एक कर्मयोगी थे। अतः अपने आदर्श राज्य की स्थापना का विस्तार से वर्णन उन्होंने कभी नहीं किया। जब कभी कोई उनसे उनके नवीन समाज की बात करता तो वे चुप हो जाते थे। एक बार न्यूमैन से उन्होंने कहा था-“मैं दूरस्थ लक्ष्य देखने की कामना नहीं करता। मेरे लिए तो एक कदम काफ़ी है।” (“I do not ask to see the distant scence ; one step is enough for me.”) इस विषय में 11 फरवरी, 1933 के ‘हरिजन’ में उन्होंने लिखा था –

“अहिंसा पर टिके हुए समाज में राज्य और सरकार की रूप-रेखा क्या होगी ? उनकी चर्चा मैं जानबूझ कर नहीं करता रहा हूँ।……जब समाज का निर्माण अहिंसा के नियमों के अनुसार किया जाएगा तो उसका रूप आज के समाज के मूलरूप से भिन्न होगा। मैं पहले से ही यह नहीं कह सकता कि पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित आदर्श राज्य या सरकार का स्वरूप क्या होगा।

इस प्रकार गांधी जी अपने नवीन समाज की कोई स्पष्ट रूप-रेखा प्रस्तुत न कर सके। यह काम उन्होंने जनता पर छोड़ दिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् जिस संविधान सभा का निर्माण हुआ, उसमें गान्धी जी ने भाग नहीं लिया। यदि वे भाग ले भी लेते तो वे संविधान सभा द्वारा अहिंसात्मक सरकार की स्थापना करने में सफल न होते क्योंकि संविधान सभा के कई सदस्य अहिंसा में पूर्ण विश्वास नहीं रखते थे।

गान्धी जी के नवीन समाज की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. राज्य विहीन व्यवस्था-महात्मा गांधी हिंसा को जड़ से काट डालना चाहते थे। वह हिंसा को किसी क्षेत्र में भी पनपने देना नहीं चाहते थे। वे राज्य की सत्ता को हिंसा का प्रतीक समझते थे। गान्धी जी अहिंसा के पुजारी हैं, वे राज्य का विरोध इसलिए करते हैं कि यह हिंसा मूलक है। राज्य का विरोध करते हुए गान्धी जी कहते हैं-“मुझे जो बात ना पसन्द है, वह है बल के आधार पर बना हुआ संगठन, राज्य ऐसा ही संगठन है।” गान्धी जी की दृष्टि में राज्य हिंसा का प्रतीक होने के बावजूद व्यक्ति की अपूर्णता का द्योतक है। इसलिए वह ऐसी व्यवस्था की कल्पना करते हैं जब राज्य अपने आप समाप्त हो जाएगा।

2. आदर्श समाज या राज्यविहीन लोकतन्त्र स्वशासी तथा सत्याग्रही ग्रामों का संघ होगा (The ideal society or stateless democracy will be a federation of mover or les self-suffering and self-governing Satyagrahi Village Communities) गान्धी जी का राज्यविहीन समाज आपसी सहयोग पर आधारित गणराज्य होगा अथवा अनेकों पंचायतों का एक समूह या संघ होगा। ऐसे राज्य की अपनी कोई केन्द्रित शक्ति नहीं होगी, बल्कि उनकी शक्ति इन पंचायतों में बिखरी रहेगी। इस प्रकार का संघ लोगों की स्वतन्त्र इच्छा पर आधारित होगा।

3. व्यक्ति और समाज के आपसी सम्बन्ध (Relationship between the Individual and the State)गान्धीवादी व्यवस्था में व्यक्ति को साध्य माना गया है। समाज के सभी क्रिया-कलापों का केन्द्र व्यक्ति ही होगा। राज्य एक साधन माना गया है। राज्य व्यक्ति का सेवक होगा, स्वामी नहीं। पर समाज की प्रगति की ज़रूरतों के अनुसार मनुष्य को भी अपने आपको बनाना पड़ेगा। व्यक्ति को स्वतन्त्रता देने के बावजूद भी वह यह नहीं भूलते कि वह एक सामाजिक प्राणी है।

गान्धी जी के अनुसार व्यक्ति की आजादी और समाज के कर्तव्यों के बीच संघर्ष का असली कारण राज्य का अहिंसा पर आधारित स्वरूप है। उसमें लोगों का शोषण करने का अवसर कुछ व्यक्तियों को मिल जाता है। यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जितना ही लोग अहिंसा, सत्य और प्रेम को हृदयंगम करेंगे और आपसी सेवा एवं सहयोग के लिए तत्पर रहेगे उतना ही ऐसे संघर्ष समाप्त हो जाएंगे।

4. विकेन्द्रीकरण (Decentralisation)-गान्धी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बन कर रह जाएगी।

आर्थिक विकेन्द्रीकरण के क्षेत्र में बड़े स्तर के उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा। बल्कि कुटीर उद्योग घर-घर स्थापित किए जाएंगे। इससे सामाजिक और आर्थिक समता स्थापित करने में मदद मिलेगी। आधुनिक जगत् से जहां कहीं हिंसा की बातें दिखाई पड़ती हैं उनका मुख्य कारण राज्यों का बहुत अधिक केन्द्रीकृत और सशक्त होना है। आर्थिक विकेन्द्रीकरण से मज़दूरों का शोषण भी नहीं होगा क्योंकि उत्पादन के साधनों और उत्पादित धन के स्वामी वे स्वयं होंगे।

5. वर्ण-व्यवस्था-गान्धी जी के आदर्श राज्य में वर्ण-व्यवस्था के आधार पर काम किया जाएगा। प्रत्येक मनुष्य पुरखों से चला आ रहा काम करेगा जिससे इस व्यवस्था को कोई नुकसान न पहुंचे। इससे समाज के जीवन में होड़ की भावना नहीं उठेगी क्योंकि लोग अपना धन्धा कुछ मर्यादाओं के अन्दर रहकर करेंगे। गान्धी जी के अनुसार वर्ण के नियम ने विशेष प्रकार की योग्यता वाले मनुष्यों के लिए कार्य क्षेत्र स्थापित कर दिया। इससे अनुचित प्रतियोगिता (Unworthy Competition) दूर हो गई। वर्ण नियम ने मनुष्यों की मर्यादाओं को तो माना किन्तु ऊंच-नीच को स्थान न दिया।

गान्धी जी की वर्ण व्यवस्था में सभी उद्योगों को समानता दी जाएगी। ऊंच-नीच के भेदभाव नहीं होंगे1 दूसरी बात यह है कि पुरखों से चले आ रहे काम केवल जीविका चलाने और सामाजिक हित की भावना से ही किए जाएंगे। लाभ कमाना उनका लक्ष्य न होगा।

6. अपरिग्रह (Non-possession)-गान्धीवाद राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। स्वयं गान्धी जी ने वस्तुएं कभी भी इकट्ठी नहीं की। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है। अगर हमें ईश्वर पर भरोसा है तो वह हमारी सन्तुष्टि के लिए हमें वस्तुएं अवश्य देगा।

7. न्यासी (Trusteeship)-गान्धीवादी राज्य में जब लोग अपनी ज़रूरत से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करेंगे तो सभी लोग सुख और शान्ति से रह सकेंगे। गान्धी जी का कहना था कि सम्पत्ति का उत्पादन किया जाए और उसके उत्पादन में काम करने वालों को समान हिस्सा मिले। किसी के पास कितनी भी सम्पत्ति क्यों न हो वह समाज की न्यास सम्पत्ति (Trust) समझी जाए। गान्धी जी का कहना था कि ट्रस्टीशिप सिद्धान्त में आपस के झगड़े समाप्त हो जाएंगे।

8. जीविका के लिए श्रम (Bread-labour)-गान्धी जी का विचार था कि प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य को अपनी जीविका कमाने के लिए शारीरिक श्रम करना ज़रूरी है। वे तो कहा करते थे कि बौद्धिक काम करने वालों को भी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। इससे श्रम को आदर मिलेगा और समाज में ऊंच-नीच की भावना का विकास नहीं होगा।

9. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा (Ideal Society will be predominantly agricultural)-गान्धी जी के अनुसार, “ जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह कृषि प्रदान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा। आर्थिक जीवन में पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और मालिक नौकर के बनावटी सम्बन्धों का अन्त हो जाएगा। उत्पादन ग्रामीण उद्योग-धन्धों द्वारा होगा।” यद्यपि गान्धी जी सभी प्रकार की मशीनों के विरुद्ध नहीं थे परन्तु उनका विचार था मुनाफे के लिए लगाए जाने वाले बड़े-बड़े मिल-कारखानों के साथ-साथ सत्याग्रही सभ्यता का विकास असम्भव है।

10. आदर्श समाज में खेती सहकारी ढंग से होगी (Agriculture will be an Co-operative basis in an ideal Society)—गान्धी जी के अनुसार, “खेती स्वेच्छा पर आधारित पद्धति से होनी चाहिए। महात्मा गान्धी की सहकारिता की धारणा यह भी थी कि ज़मीन किसानों के सहकारी स्वामित्व में हो और जुताई तथा खेती सहकारी नीति से हो। इससे श्रम, पूंजी और औज़ारों आदि की बचत होगी। भूमि के स्वामी सहकारिता से कार्य करेंगे और पूंजी,
औज़ार, पशु, बीज इत्यादि के सहकारी स्वामी होंगे। उनकी धारणा थी कि सहकारी कृषि देश का रूप बदल देगी और किसानों के बीच से निर्धनता और आलस्य को दूर कर देगी।”

11. आदर्श समाज में यातायात के भारी साधन, बड़े नगर, वकील और अदालतें नहीं होंगी (No heavy transport, big cities, courts and lawyers in an Ideal society)— it oft otot farari e forti, “आदर्श समाज में न तो यातायात के भारी साधन होंगे, न वकील और कचहरियां होंगी, न आजकल डॉक्टर और दवाइयां होंगी और न बड़े नगर होंगे।”

12. आदर्श समाज में प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा (Emphasis on natural treatment will be put in ideal society)—गान्धी जी के आदर्श समाज में पेशेवर डॉक्टर नहीं होंगे और न ही दवाइयों का बड़ा उत्पादन होगा बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा।

13. धर्म-निरपेक्षता (Secularism)-गान्धीवाद धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करता है। गान्धी जी के अनुसार राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होना चाहिए। इसके साथ-साथ सभी नागरिकों को कोई भी धर्म अपनाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

14. अपराध, सजा एवं न्याय (Crime, Punishment and Justice)-गान्धीवाद के अनुसार अपराध समाज में एक बीमारी के समान है और इस बीमारी से हमें छुटकारा तभी मिल सकता है, जब हम अपराधियों के प्रति घृणा एवं बदले की भावना न रखें तथा उन्हें सुधारने का प्रयास करें।

निष्कर्ष (Conclusion)-अब प्रश्न उठता है कि क्या गान्धीवादी राज्य की स्थापना कर पाना सम्भव है? इस बारे में बहुत-से आलोचकों का कहना यह है कि गान्धी जी के राज्य व्यवस्था के सम्बन्धी विचार प्लेटो के काल्पनिक विचारों की तरह ही हैं। उन्हें व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। वस्तुतः सच्चाई यह है कि लोग ऐसा कहते हैं वे मनुष्य को एक दैनिक प्राणी न मान कर एक बर्बर प्राणी ही समझते हैं जो जंगलीपन से ऊपर नहीं उठ सकता। इसके विपरीत गान्धी जी का दृष्टिकोण यह था कि मनुष्य में दैवी अंश मौजूद है। अतः उनका जीवन कानून, सत्य, प्रेम और अहिंसा के आधार पर चलना चाहिए किन्तु जिन लोगों का दृष्टिकोण भौतिक है और आत्मा एवं परमात्मा की सत्ता में जिन्हें विश्वास ही नहीं है उनको इन सिद्धान्तों के विषय में विश्वास दिला पाना बहुत अधिक कठिन है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गांधी जी के धर्म और राजनीति के सम्बन्धों के बारे में मौलिक दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार “धर्म तथा राजनीति का परस्पर सम्बन्ध है।” वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गांधी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे। गांधी जी का विश्वास था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता है। गांधी जी चाहते थे कि राजनीति अनैतिकता से दूर रहे। उनकी नज़र में राजनीति, धर्म और नैतिकता की शाखा थी। धर्म से अलग होने पर राजनीति एक शव की भान्ति है जिसको जला देना चाहिए। गांधी जी के शब्दों में, “बहुत सारे धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिलता हूँ वह छुपे हुए राजनीतिज्ञ होते हैं, परन्तु मैं जो एक राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ वास्तव में धार्मिक हूँ।”

प्रश्न 2.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह से क्या अभिप्राय है?
अथवा
सत्याग्रह से गांधी जी का क्या भाव है ? सत्याग्रह की विधियों का नाम बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने सार्वजनिक विरोध के लिए सत्याग्रह के सिद्धान्त का आविष्कार किया। सत्याग्रह का अर्थ है अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह । सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है, दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। गांधी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठा कर सत्य की रक्षा करना।” यह सच्चाई के लिए तपस्या है। गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। एक सच्चा सत्याग्रही समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता।

सत्याग्रह की विधियां-

  1. असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  2. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  3. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  4. उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है। प

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 3.
सत्याग्रह की चार विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  • सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  • हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  • उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है।

प्रश्न 4.
गांधी जी के चार महत्त्वपूर्ण विचार लिखो।
उत्तर-

  • अहिंसा सम्बन्धी विचार-गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। गांधी जी ने अहिंसा को आत्मिक तथा ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा, आत्म बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख भोगने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। सत्य, प्रेम, निर्भीकता, व्रत, नि:स्वार्थ भावना, आन्तरिक पवित्रता आदि अहिंसा के आधार हैं।
  • साधनों की पवित्रता पर विश्वास-व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गांधी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। गांधी जी का विश्वास था कि यदि कोई साधन का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।
  • राज्य का कार्य क्षेत्र-गांधी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कार्यों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करे। गांधी जी राज्य को कम-से-कम कार्य सौंपना चाहते थे।
  • गांधी जी ने व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल दिया है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 5.
राज्य सम्बन्धी गांधी जी के विचार लिखिए।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि हैं। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्मा रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गांधी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गांधी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया, क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है। राज्य के विरोध में गांधी जी का यह भी तर्क था कि अहिंसा पर आधारित किसी भी आदर्श समाज में राज्य अनावश्यक है। अतः गांधी जी राज्य की शक्ति का अन्त करना चाहते थे, परन्तु वह राज्य की व्यवस्था का तुरन्त अन्त करने के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 6.
महात्मा गांधी जी के अहिंसा सम्बन्धी विचारों पर विस्तार से वर्णन करें। (P.B. 2017)
अथवा
गांधी जी के अनुसार अहिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
गांधी जी पूरे संसार में अहिंसा के लिए प्रसिद्ध है। गांधी जी का अहिंसा से अभिप्राय है-“सृष्टि पर सब प्राणियों को मन, वाणी और कर्म से किसी प्रकार की कोई हानि न पहुंचाई जाए।” गांधी जी के अनुसार, अहिंसा का अर्थ है कि किसी को क्रोध में अथवा निजी स्वार्थ के लिए उसको चोट पहुंचाने के इरादे से दुःख न दिया जाए और न ही हत्या की जाए। अहिंसा से अभिप्राय सत्य के आग्रह से है। अहिंसा का अर्थ खतरे के समय कायरता दिखाना या हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहना नहीं है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा ऐसी शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ है और ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। भीषण से भीषण हिंसा का सामना ऊंची से ऊंची अहिंसा द्वारा किया जा सकता है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा उन व्यक्तियों का शस्त्र है जो भौतिक रूप से कमज़ोर, परन्तु नैतिक रूप से बलवान् हैं। अहिंसा का मूल आधार सत्य है। प्रेम, आन्तरिक पवित्रता, व्रत, निर्भीकता, अपरिग्रह इत्यादि अहिंसा के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 7.
गांधी जी के आदर्श राज्य (राम राज्य) की चार विशेषताएं लिखिए।
अथवा
गाँधी जी के आदर्श राज्य की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
महात्मा गांधी के आदर्श राज्य के सिद्धांत की व्याख्या करो।
उत्तर-
1. विकेन्द्रीकरण-गांधी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीयकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बनकर रह जाएगी। गांधी जी आर्थिक व राजनीतिक शक्ति के विकेन्द्रीकरण के महान् समर्थक रहे हैं।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

3. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा-गांधी जी के अनुसार, “जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह खेती प्रधान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा।” किन्तु गांधी जी ऐसे सादे औज़ारों और मशीनों का स्वागत करते थे जो बिना बेकारी बढ़ाए लाखों ग्रामीणों के बोझ को हल्का करते हैं। 4. धर्म-निरपेक्षता-गांधी जी के अनुसार राज्य धर्म-निरपेक्ष होना चाहिए।

प्रश्न 8.
गांधी जी का अमानती सिद्धात क्या है ?
अथवा
अमानतदारी प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त समाज की वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को समता व्यवस्था में बदलने का एक साधन है। यह पूंजीवाद को बढ़ावा नहीं देता तथा पूंजीपतियों को अपना सुधार करने का अवसर देता है। वह सम्पत्ति के व्यक्तिगत स्वामी बनने के सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। उसके अनुसार देश की सारी भूमि, सम्पत्ति व उत्पादन के साधन सारे राष्ट्र अथवा समाज के हैं। यद्यपि उन पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को समाज के हितों को ध्यान में रखे बिना अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करने में स्वतन्त्र नहीं होगा। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 9.
महात्मा गांधी कौन थे ?
उत्तर-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वास्तव में एक युग पुरुष थे। गांधी जी के नेतृत्व में भारत ने अपनी स्वतन्त्रता की लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी तथा अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को आधुनिक गुजरात राज्य में स्थित पोरबन्दर नामक रियासत में हुआ। मोहनदास के पिता का नाम कर्मचन्द था तथा उनकी माता का नाम पुतली बाई था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन चलाकर भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद कराया।

प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन सम्बन्धी गांधी जी के विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार सिविल अवज्ञा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गांधी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए। लोगों में ऐसे बुरे और अन्यायी कानूनों को बुरा बताने का साहस होना ज़रूरी है। उन्हें ऐसे सभी कानूनों को अमान्य कर जो भी कष्ट या दण्ड उन्हें दिया जाए, उसे सहने के लिए उस समय तक तैयार रहना चाहिए, जब तक कि उन कानूनों को रद्द न कर दिया जाए। गांधी जी के शब्दों में, “मेरा यह निश्चित मत है कि हमारा पहला कर्त्तव्य यह है कि हम स्वेच्छा से कानूनों का पालन करें पर ऐसा करते समय मैं इस नतीजे पर भी पहुंचा हूं कि जो कानून असत्य और अन्याय को बढ़ावा देते हों उनको तोड़ना भी हमारा आवश्यक कर्त्तव्य है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 11.
‘हिजरत’ से गांधी जी का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हिज़रत गांधी जी द्वारा प्रस्तुत सत्याग्रह के अनेक रूपों में से एक है। गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और यह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है। पर इसके इस्तेमाल करने वाले में भी बहुत साहस की ज़रूरत होती है। उसकी वजह यह है कि अपने पूर्वजों के स्थान पर जहां उसका जन्म हुआ, पल कर बड़ा हुआ, अपनी उस मातृभूमि के प्रति अत्यधिक लगाव की भावना उसमें पैदा हो जाती है। अतः अपने देश, रिश्तेदारों और दोस्तों आदि.से सम्बन्ध तोड़ कर दूर जाने का निश्चय करना अत्यन्त साहस की बात है। पर इसका सहारा भी बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए और जो ऐसा करें, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नौकरशाही, शब्द के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी फ्रांसीसी भाषा के शब्द ब्यूरो से बना है जिसका अर्थ है-डेस्क या लिखने की मेज़। अतः इस शब्द का अर्थ हुआ डेस्क सरकार। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ डेस्क पर बैठकर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है।

दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन। नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 2.
नौकरशाही की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. मार्शल ई० डीमॉक (Marshall E. Dimock) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
  2. मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसकी विशेषताविशेषज्ञ, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”

प्रश्न 3.
नौकरशाही के कोई दो और नाम बताएं।
उत्तर-

  1. दफ्तरशाही
  2. अफसरशाही।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 4.
नौकरशाही की दो मुख्य विशेषताओं को लिखो।
उत्तर-

  • निश्चित अवधि-नौकरशाही का कार्यकाल निश्चित होता है। सरकार के बदलने पर नौकरशाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मन्त्री आते हैं और चले जाते हैं, परन्तु नौकरशाही के सदस्य अपने पद पर बने रहते हैं। लोक सेवक निश्चित आयु पर पहुंचने पर ही रिटायर होते हैं।
  • निर्धारित वेतन तथा भत्ते-नौकरशाही के सदस्यों को निर्धारित वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं। पदोन्नति के साथ उनके वेतन में भी वृद्धि होती रहती है। अवकाश की प्राप्ति के पश्चात् नौकरशाही के सदस्यों को पेन्शन मिलती है।

प्रश्न 5.
नौकरशाही के किन्हीं दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. प्रशासकीय कार्य (Administrative Functions)—प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की है।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीज़ इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 7.
अमानतदारी प्रणाली (न्यासिता सिद्धान्त) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ने आर्थिक विषमता को दूर करने और समाज में भाईचारे की भावना बनाए रखने के लिए ट्रस्टीशिप (अमानतदारी) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उसके अनुसार उत्पादन एवं सम्पत्ति पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है. उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात में हुआ।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि किसने दी ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दी।

प्रश्न 3.
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखें।
उत्तर-
सत्याग्रह की एक विधि असहयोग है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी जी के जीवन पर प्रभाव डालने वाले दो धार्मिक ग्रन्थों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. गीता
  2. बाइबल।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य किस प्रकार का है ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य राम राज्य जैसा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 6.
महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ।

प्रश्न 7.
गांधी जी के अहिंसा के बारे में विचार लिखो।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार अहिंसा सकारात्मक एवं गतिशील अवधारणा है, जोकि सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया एवं सद्भावना की अभिव्यक्ति है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 8.
सिविल-ना-फरमानी से गांधी जी का क्या भाव था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार के गलत कानूनों को सामूहिक रूप से मानने से इन्कार करना।

प्रश्न 9.
हिज़रत से गांधी जी का क्या भाव है ?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही अच्छा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 10.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

प्रश्न 11.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की दो विधियों के नाम लिखो।
अथवा
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखो।
उत्तर-

  1. असहयोग
  2. धरना देना।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 12.
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब किसने दिया था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था।

प्रश्न 13.
गांधी जी के आदर्श राज्य की एक विशेषता लिखो। .
उत्तर-
गांधी जी का आदर्श राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 14.
गांधी जी किस व्यक्ति से प्रभावित थे ?
उत्तर-
गांधी जी रस्किन, टॉलस्टाय तथा थ्योरो से अत्यधिक प्रभावित थे।

प्रश्न 15.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. महात्मा गांधी को भारत का ……………….. कहा जाता है।
2. महात्मा गांधी का जन्म ……………….. 1869 को हुआ।
3. महात्मा गांधी की पत्नी का नाम ..
था। 4. महात्मा गांधी एक मुकद्दमे की पैरवी करने के लिए सन् 1893 में ………………. गए।
5. महात्मा गांधी सन् ……… में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापिस आए।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपिता
  2. 2 अक्तूबर
  3. कस्तूरबा गांधी
  4. दक्षिण अफ्रीका
  5. 1915

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें

1. गांधी जी साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते थे।
2. गांधी जी राज्य को साधन न मानकर साध्य मानते थे।
3. गांधी जी व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल देते थे।
4. गांधी जी केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में विश्वास रखते थे।
5. गांधी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह के स्वरूप हैं
(क) बातचीत
(ख) आत्मपीड़न
(ग) असहयोग
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
गांधी जी का राजनीतिक गुरु कौन था ?
(क) फिरोज़ शाह मेहता
(ख) गोपाल कृष्ण गोखले
(ग) दादा भाई नौरोजी
(घ) मौलाना अबुल कलाम।
उत्तर-
(ख)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 3.
चम्पारण सत्याग्रह कब शुरू हुआ ?
(क) 1916 में
(ख) 1917 में
(ग) 1919 में
(घ) 1914 में ।
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 4.
निर्धन ग्रामीणों के उत्थान के लिए गांधी जी ने कौन-सा विचार दिया था ?
(क) सर्वोदय
(ख) अन्त्योदय
(ग) निर्धनता उन्मूलन
(घ) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 5.
गांधी जी के अनुसार लोकतन्त्र की क्या विशेषता है ?
(क) विकेन्द्रित लोकतन्त्र
(ख) अहिंसावादी लोकतन्त्र
(ग) जनता वास्तविक सत्ता की स्वामी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु तेग बहादुर जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Tegh Bahadur Ji)

प्रश्न 1.
गुरु तेग़ बहादुर जी के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief description of the early life of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नवम् गुरु थे। उनका गुरुकाल 1664 ई० से 1675 ई० तक रहा। गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए अनेक प्रदेशों की यात्राएँ कीं। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देकर उन्होंने भारतीय इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। गुरु जी के प्रारंभिक जीवन और यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आप गुरु हरगोबिंद जी के पाँचवें तथा सबसे छोटे पुत्र थे। आपके माता जी का नाम नानकी था। आपके पिता जी ने आपके जन्म पर भविष्यवाणी की कि यह बालक सत्य तथा धर्म के मार्ग पर चलेगा तथा अत्याचार का डट कर मुकाबला करेगा। गुरु जी का यह कथन सत्य सिद्ध हुआ।

2. बाल्यकाल तथा शिक्षा (Childhood and Education)-बचपन में आपका नाम त्यागमल था। जब आप पाँच वर्ष के हुए तो आपने बाबा बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त करनी आरंभ की। आपने पंजाबी, ब्रज, संस्कृत, इतिहास, दर्शन, गणित, संगीत आदि की शिक्षा प्राप्त की। आपको घुड़सवारी तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी गई। करतारपुर की लड़ाई में आपकी वीरता देखकर आपके पिता गुरु हरगोबिंद जी ने आपका नाम त्यागमल से बदल कर तेग़ बहादुर रख दिया।

3. विवाह (Marriage)-तेग़ बहादुर जी का विवाह करतारपुर वासी लाल चंद जी की सुपुत्री गुजरी से हुआ। आपके घर 1666 ई० में एक पुत्र ने जन्म लिया। इस बालक का नाम गोबिंद राय अथवा गोबिंद दास रखा गया।

4. बाबा बकाला में निवास (Settlement at Baba Bakala)—ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हरगोबिंद जी ने अपने पौत्र हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने तेग़ बहादुर जी को अपनी पत्नी गुजरी तथा माता नानकी को लेकर बकाला चले जाने का आदेश दिया। यहाँ तेग़ बहादुर जी 20 वर्ष तक रहे।

5. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हर कृष्ण जी ने यह संकेत दिया था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है। जब यह समाचार बकाला पहुँचा तो 22 सोढियों ने अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा नामक एक सिख ने इसका समाधान ढूंढा। वह एक व्यापारी था। एक बार जब उसका समुद्री जहाज़ डूब रहा था तो उसने शुद्ध मन से गुरु साहिब के आगे अरदास की कि यदि उसका जहाज़ डूबने से बच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेंट करेगा। उसका जहाज़ किनारे लग गया। वह गुरु साहिब को 500 मोहरें भेंट करने के लिए बाबा बकाला पहुँचा। यहाँ वह 22 गुरु देखकर चकित रह गया। वास्तविक गुरु को ढूंढने के लिए उसने बारी-बारी प्रत्येक गुरु को दो-दो मोहरें भेंट की। नकली गुरु दो-दो मोहरें लेकर प्रसन्न हो गए। जब मक्खन शाह ने अंत में श्री तेग़ बहादुर जी को दो मोहरें भेंट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेंट करने का वचन दिया था,परंतु अब केवल दो मोहरें ही भेंट कर रहा है।” यह सुनकर मक्खन शाह एक मकान की छत पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा, “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” अर्थात् गुरु मिल गया है। इस प्रकार सिख संगतों ने गुरु तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। गुरु तेग़ बहादुर जी 1664 ई० से 1675 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

6. धीरमल का विरोध (Opposition of Dhir Mal)-धीरमल गुरु हरराय जी का बड़ा भाई था। बकाला में स्थापित 22 मंजियों में से एक धीरमल की भी थी। जब धीरमल को यह समाचार मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसने कुछ गुंडों के साथ गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से सिख रोष से भर उठे। वे धीरमल को पकड़कर गुरु जी के पास लाए। धीरमल द्वारा क्षमा याचना करने पर गुरु साहिब ने उसे क्षमा कर दिया।

गुरु तेग बहादुर जी की यात्राएँ
(Travels of Guru Tegh Bahadur Ji)

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी की धर्म यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the religious tours of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की धार्मिक यात्राओं का संक्षेप वर्णन करें। (Narrate the travels undertaken by Guru Tegh Bahadur Ji for preaching Sikhism.)
उत्तर-
1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान होने के शीघ्र पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब तथा पंजाब से बाहर की यात्राएँ आरंभ कर दीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को सत्य तथा प्रेम का संदेश देना था। गुरु साहिब की यात्राओं के उद्देश्य के संबंध में लिखते हुए विख्यात इतिहासकार एस० एस० जौहर का कहना है,
“गुरु तेग़ बहादुर ने लोगों को नया जीवन देने तथा उनके भीतर नई भावना उत्पन्न करना आवश्यक समझा।”1

1. “Guru Tegh Bahadur thought it necessary to infuse a new life and rekindle a new spirit among the people.” S.S. Johar, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1975) p. 104.

I. पंजाब की यात्राएँ (Travels of Punjab)
1. अमृतसर (Amritsar)—गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ 1664 ई० में अमृतसर से किया। उस समय हरिमंदिर साहिब में पृथी चंद का पौत्र हरजी मीणा कुछ भ्रष्टाचारी मसंदों के साथ मिलकर स्वयं गुरु बना बैठा था। गुरु साहिब के आने की सूचना मिलते ही उसने हरिमंदिर साहिब के सभी द्वार बंद करवा दिए। जब गुरु साहिब वहाँ पहुँचे तो द्वार बंद देखकर उन्हें दुःख हुआ। अतः वह अकाल तख्त के निकट एक वृक्ष के नीचे जा बैठे। यहाँ पर अब एक छोटा-सा गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे ‘थम्म साहिब’ कहते हैं।

2. वल्ला तथा घुक्केवाली (Walla and Ghukewali)-अमृतसर से गुरु तेग बहादुर जी वल्ला नामक गाँव गए। यहाँ लंगर में महिलाओं की अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया तथा कहा “माईयाँ रब्ब रजाईयाँ”। वल्ला के पश्चात् गुरु जी घुक्केवाली गाँव गए। इस गाँव में अनगिनत वृक्षों के कारण गुरु जी ने इसका नाम ‘गुरु का बाग’ रख दिया।

3. खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरन तारन तथा खेमकरन आदि (Khadur Sahib, Goindwal Sahib, Tarn Taran and Khemkaran etc.)-गुरु साहिब की यात्रा के अगले पड़ाव खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब तथा तरनतारन थे। यहाँ परं गुरु जी ने लोगों को प्रेम तथा भाईचारे का संदेश दिया। तत्पश्चात् गुरु साहिब खेमकरन गए। यहाँ के एक श्रद्धालु चौधरी रघुपति राय ने गुरु साहिब को एक घोड़ी भेंट की।

4. कीरतपुर साहिब और बिलासपुर (Kiratpur Sahib and Bilaspur)-माझा प्रदेश की यात्रा पूर्ण करने के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी कीरतपुर साहिब पहुँचे। वे रानी चंपा के निमंत्रण पर बिलासपुर पहुँचे। गुरु साहिब यहाँ तीन दिन ठहरे। गुरु साहिब ने रानी को 500 रुपए देकर माखोवाल में कुछ भूमि खरीदी तथा एक नए नगर की स्थापना की जिसका नाम उनकी माता जी के नाम पर “चक्क नानकी” रखा गया। बाद में यह स्थान गुरु गोबिंद सिंह जी के समय श्री आनंदपुर साहिब के नाम से विख्यात हुआ।

II. पूर्वी भारत की यात्राएँ । (Travels of Eastern India)
पंजाब की यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब ने पूर्वी भारत की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

5. सैफाबाद और धमधान (Saifabad and Dhamdhan)—अपनी पूर्वी भारत की यात्रा के दौरान सर्वप्रथम गुरु साहिब ने सैफाबाद तथा धमधान की यात्रा की। यहाँ गुरु साहिब के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आए। सिख धर्म के इस बढ़ते हुए प्रचार को देखकर औरंगजेब ने गुरु साहिब को बंदी बना लिया।

6. मथुरा और वृंदावन (Mathura and Brindaban) अंबर के राजा राम सिंह के कहने पर औरंगजेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को छोड़ दिया। छूटने के बाद गुरु साहिब दिल्ली से मथुरा तथा वृंदावन पहुंचे। इन दोनों स्थानों पर गुरु साहिब ने धर्म प्रचार किया और संगतों को उपदेश दिए।

7. आगरा और प्रयाग (Agra and Paryag)—गुरु साहिब की यात्रा का अगला पड़ाव आगरा था। यहाँ पर वह एक बुजुर्ग श्रद्धालु माई जस्सी के घर ठहरे। तत्पश्चात् गुरु साहिब प्रयाग पहुँचे। यहाँ गुरु साहिब ने संन्यासियों, साधुओं और योगियों को उपदेश देते हुए फरमाया, “साधो मन का मान त्यागो।”

8. बनारस (Banaras)—प्रयाग की यात्रा के पश्चात् गुरु साहिब बनारस पहुँचे। यहाँ सिख संगतें प्रतिदिन बड़ी संख्या में गुरु साहिब के दर्शन और उनके उपदेश सुनने के लिए उपस्थित होतीं। यहाँ के लोगों का विश्वास था कि कर्मनाशा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति के सभी अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं। गुरु साहिब ने स्वयं इस नदी में स्नान किया और कहा कि नदी में स्नान करने से कुछ नहीं होता मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।

9. ससराम और गया (Sasram and Gaya)-बनारस के पश्चात् गुरु साहिब ससराम पहुँचे। यहाँ पर एक श्रद्धालु सिख ‘मसंद फग्गू शाह’ ने गुरु साहिब की बहुत सेवा की। तत्पश्चात् गुरु साहिब गया पहुंचे। यह बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ गुरु साहिब ने लोगों को सत्य तथा परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

10. पटना (Patna)गुरु साहिब 1666 ई० में पटना पहुँचे। यहाँ पर सिख संगतों (श्रद्धालुओं) ने गुरु साहिब का भव्य स्वागत किया। गुरु साहिब ने सिख सिद्धांतों पर प्रकाश डाला तथा पटना को ‘गुरु का घर’ कहकर सम्मानित किया। गुरु साहिब ने अपनी पत्नी और माता जी को यहाँ छोड़कर स्वयं मुंघेर के लिए प्रस्थान किया।

11. ढाका (Dhaka)-ढाका पूर्वी भारत में सिख धर्म का एक प्रमुख प्रचार केंद्र था। गुरु साहिब के आगमन के कारण बड़ी संख्या में लोग सिख-धर्म में शामिल हुए। गुरु साहिब ने यहाँ संगतों को जाति-पाति के बंधनों से ऊपर उठने और नाम स्मरण से जुड़ने का संदेश दिया।

12. असम (Assam)-ढाका की यात्रा के बाद गुरु साहिब अंबर के राजा राम सिंह के निवेदन पर असम गए। असमी लोग जादू-टोनों में बहुत कुशल थे। गुरु जी की उपस्थिति में जादू-टोने वाले प्रभावहीन होने लगे और उन्हें गुरु जी का लोहा मानना पड़ा। वे गुरु जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके दर्शनों के लिए आने लगे और उन्होंने अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की। तत्पश्चात् गुरु साहिब अपने परिवार सहित पंजाब लौट आए और चक्क नानकी में रहने लगे।

III. मालवा और बांगर प्रदेश की यात्राएँ (Tours of Malwa and Bangar Region)
1673 ई० के मध्य में गुरु तेग़ बहादुर जी ने पंजाब के मालवा और बांगर प्रदेश की दूसरी बार यात्रा आरंभ की। इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब सैफ़ाबाद, मलोवाल, ढिल्लवां, भोपाली, खीवां, ख्यालां, तलवंडी, भठिंडा और धमधान आदि प्रदेशों में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब ने स्थान-स्थान पर धर्म प्रचार के केंद्र खोले और गुरु नानक जी का संदेश घर-घर पहुँचाया। गुरु साहिब के सर्वपक्षीय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए। अंत में, हम प्रसिद्ध इतिहासकार हरबंस सिंह के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं ने देश में एक तूफान-सा ला दिया। यह न तो पहले जैसा देश रहा और न ही वे लोग। उनमें नई जागृति आ चुकी थी।”2

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी के आरंभिक जीवन तथा यात्राओं का विवरण दें।
(Give an account of the early career and travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नवम् गुरु थे। उनका गुरुकाल 1664 ई० से 1675 ई० तक रहा। गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए अनेक प्रदेशों की यात्राएँ कीं। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देकर उन्होंने भारतीय इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। गुरु जी के प्रारंभिक जीवन और यात्राओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आप गुरु हरगोबिंद जी के पाँचवें तथा सबसे छोटे पुत्र थे। आपके माता जी का नाम नानकी था। आपके पिता जी ने आपके जन्म पर भविष्यवाणी की कि यह बालक सत्य तथा धर्म के मार्ग पर चलेगा तथा अत्याचार का डट कर मुकाबला करेगा। गुरु जी का यह कथन सत्य सिद्ध हुआ।

2. बाल्यकाल तथा शिक्षा (Childhood and Education)-बचपन में आपका नाम त्यागमल था। जब आप पाँच वर्ष के हुए तो आपने बाबा बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त करनी आरंभ की। आपने पंजाबी, ब्रज, संस्कृत, इतिहास, दर्शन, गणित, संगीत आदि की शिक्षा प्राप्त की। आपको घुड़सवारी तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी गई। करतारपुर की लड़ाई में आपकी वीरता देखकर आपके पिता गुरु हरगोबिंद जी ने आपका नाम त्यागमल से बदल कर तेग़ बहादुर रख दिया।

3. विवाह (Marriage)-तेग़ बहादुर जी का विवाह करतारपुर वासी लाल चंद जी की सुपुत्री गुजरी से हुआ। आपके घर 1666 ई० में एक पुत्र ने जन्म लिया। इस बालक का नाम गोबिंद राय अथवा गोबिंद दास रखा गया।

4. बाबा बकाला में निवास (Settlement at Baba Bakala)—ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हरगोबिंद जी ने अपने पौत्र हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने तेग़ बहादुर जी को अपनी पत्नी गुजरी तथा माता नानकी को लेकर बकाला चले जाने का आदेश दिया। यहाँ तेग़ बहादुर जी 20 वर्ष तक रहे।

5. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हर कृष्ण जी ने यह संकेत दिया था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है। जब यह समाचार बकाला पहुँचा तो 22 सोढियों ने अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा नामक एक सिख ने इसका समाधान ढूंढा। वह एक व्यापारी था। एक बार जब उसका समुद्री जहाज़ डूब रहा था तो उसने शुद्ध मन से गुरु साहिब के आगे अरदास की कि यदि उसका जहाज़ डूबने से बच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेंट करेगा। उसका जहाज़ किनारे लग गया। वह गुरु साहिब को 500 मोहरें भेंट करने के लिए बाबा बकाला पहुँचा। यहाँ वह 22 गुरु देखकर चकित रह गया। वास्तविक गुरु को ढूंढने के लिए उसने बारी-बारी प्रत्येक गुरु को दो-दो मोहरें भेंट की। नकली गुरु दो-दो मोहरें लेकर प्रसन्न हो गए। जब मक्खन शाह ने अंत में श्री तेग़ बहादुर जी को दो मोहरें भेंट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेंट करने का वचन दिया था,परंतु अब केवल दो मोहरें ही भेंट कर रहा है।” यह सुनकर मक्खन शाह एक मकान की छत पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा, “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” अर्थात् गुरु मिल गया है। इस प्रकार सिख संगतों ने गुरु तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। गुरु तेग़ बहादुर जी 1664 ई० से 1675 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

6. धीरमल का विरोध (Opposition of Dhir Mal)-धीरमल गुरु हरराय जी का बड़ा भाई था। बकाला में स्थापित 22 मंजियों में से एक धीरमल की भी थी। जब धीरमल को यह समाचार मिला कि सिख संगतों ने तेग़ बहादुर जी को अपना गुरु मान लिया है तो उसने कुछ गुंडों के साथ गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से सिख रोष से भर उठे। वे धीरमल को पकड़कर गुरु जी के पास लाए। धीरमल द्वारा क्षमा याचना करने पर गुरु साहिब ने उसे क्षमा कर दिया।

2. “Guru Tegh Bahadur’s tours left the country in ferment. It was not the same country again, nor the same people. A new awakening had spread.” Harbans Singh, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1982) p. 92.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान 1
GURDWARA SIS GANJ : DELHI

गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एवं महत्त्व (Martyrdom and Importance of Guru Tegh Bahadur Ji)

प्रश्न 4.
नौवें गुरु साहिब जी की शहीदी के कारणों का आलोचनात्मक अध्ययन करें। इसके परिणामों की भी चर्चा करें।
(Critically examine the circumstances leading to the martyrdom of 9th Guru. Also discuss its results.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारणों और परिणामों का वर्णन करें।
(Discuss the causes and results of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारणों तथा महत्त्व का वर्णन करें। (Describe the causes and significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के क्या कारण थे? इस शहीदी का क्या महत्त्व है?
(What were the main causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ? What is its importance ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त विवरण दें। उनके बलिदान का देश एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Give a brief account of the circumstances leading to the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji. Also explain the effects of his martyrdom on the country and the society.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किन कारणों से हुई ? इन्हें कब, कहाँ और कैसे शहीद किया गया ?
(What were the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ? When, where and how was he executed ?)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए जिम्मेवार हालात का वर्णन करें। (P.S.E.B. Sept. 2000) (Explain the circumstances which led to the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के क्या कारण थे ? उनके शहीदी का क्या प्रभाव पड़ा ?
(Describe the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji. What were the effects of his martyrdom ?)
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना है। धर्म तथा मानवता के लिए अपना बलिदान देकर गुरु साहिब ने अपना नाम चिरकाल के लिए अमर कर लिया। गुरु जी के बलिदान से जुड़े तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. बलिदान के कारण (Causes of Martyrdom)
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्न अनुसार है—
1. मुग़लों और सिखों में शत्रुता (Enmity between the Mughals and the Sikhs)-1605 ई० तक सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध चले आ रहे थे, परंतु जब 1606 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया तो ये संबंध शत्रुता में बदल गए। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण उन्हें जहाँगीर द्वारा दो वर्ष के लिए ग्वालियर के दुर्ग में नज़रबंद कर दिया गया। शाहजहाँ के काल में गुरु हरगोबिंद साहिब को चार लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। औरंगजेब के शासनकाल में सिखों और मुग़लों के बीच शत्रुता में और वृद्धि हो गई। यही शत्रुता गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बनी।

2. औरंगज़ेब की कट्टरता (Fanaticism of Aurangzeb)–औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता भी गुरु साहिब के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। औरंगज़ेब 1658 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह भारत में चारों ओर इस्लाम धर्म का बोलबाला देखना चाहता था। इसलिए उसने हिंदुओं के कई प्रसिद्ध मंदिरों को गिरवा कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं तथा उनके त्योहारों और रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिए। उसके शासनकाल में तलवार के बल पर गैर-मुसलमानों को बलपूर्वक इस्लाम धर्म में सम्मिलित किया जाने लगा। औरंगज़ेब ने यह भी आदेश दिया कि सिखों के सभी गुरुद्वारों को गिरा दिया जाए। डॉक्टर आई० बी० बैनर्जी के अनुसार,
“निस्संदेह औरंगजेब के सिंहासन पर बैठने के साथ ही साम्राज्य की सारी नीति को उलट दिया गया और एक नए युग का सूत्रपात हुआ।”3

3. नक्शबंदियों का औरंगज़ेब पर प्रभाव (Impact of Naqshbandis on Aurangzeb)-कट्टर सुन्नी मुसलमानों के नक्शबंदी संप्रदाय का औरंगज़ेब पर बहुत प्रभाव था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति असहनीय थी। नक्शबंदियों को यह खतरा हो गया कि कहीं सिख धर्म का विकास इस्लाम के लिए कोई गंभीर चुनौती न बन जाए। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध औरंगज़ेब को भडकाना आरंभ कर दिया।

4. सिख धर्म का प्रचार (Spread of Sikhism)-गुरु तेग़ बहादुर जी की सिख धर्म के प्रचार के लिए की गई यात्राओं से प्रभावित होकर हज़ारों लोग सिख मत में सम्मिलित हो गए थे। गुरु साहिब जी ने सिख मत के प्रचार में तीव्रता और योग्यता लाने के लिए सिख प्रचारक नियुक्त किए तथा उन्हें संगठित किया। सिख धर्म का हो रहा विकास तथा उसका संगठन औरंगज़ेब की सहन शक्ति से बाहर था।

5. राम राय की शत्रुता (Enmity of Ram Rai)-राम राय गुरु हर कृष्ण जी का बड़ा भाई था। गुरु हर कृष्ण जी के पश्चात् जब गुरुगद्दी तेग़ बहादुर जी को मिल गई तो वह यह सहन न कर पाया। उसने गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए कई हथकंडे अपनाने आरंभ किए। जब उसके सभी प्रयास असफल रहे तो उसने गुरु साहिब के विरुद्ध औरंगजेब के कान भरने आरंभ कर दिए।

6. कश्मीरी पंडितों की पुकार (Call of Kashmiri Pandits)-कश्मीरी ब्राह्मण अपने धर्म और प्राचीन संस्कृति के संबंधों में बहुत दृढ़ थे तथा समस्त भारत में उनका आदर होता था। औरंगज़ेब ने सोचा कि यदि ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। उसने शेर अफ़गान को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया। शेर अफ़गान ने इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार किए। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल 25 मई, 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी करुण याचना लेकर पहुँचा। गुरु साहिब के मुख पर गंभीरता देख बालक गोबिंद राय ने पिता जी से इसका कारण पूछा। गुरु साहिब ने बताया कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने झट से कहा, “पिता जी आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ?” बालक के मुख से यह उत्तर सुनकर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कश्मीरी पंडितों से कहा कि वे जाकर मुग़ल अधिकारियों को यह बता दें कि यदि वे गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बना लें तो वे बिना किसी विरोध के इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे।

3. “Necessarily, on the accession of Aurangzeb the entire policy of the Empire was reversed and a new era commenced.” Dr. I.B. Banerjee, Evolution of the Khalsa (Calcutta : 1972) Vol 2, p. 68.

II. बलिदान किस प्रकार हुआ ? (How was Guru Martyred ?)
औरंगज़ेब ने गुरु साहिब को दिल्ली बुलाने का निश्चय किया। गुरु तेग़ बहादुर जी अपने तीन साथियों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी तथा भाई दयाला जी को लेकर 11 जुलाई, 1675 ई० को चक्क नानकी (श्री आनंदपुर साहिब) से दिल्ली के लिए रवाना हुए। मुग़ल अधिकारियों ने उन्हें रोपड़ के निकट गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 4 महीने तक सरहिंद के कारावास में रखा गया तथा औरंगजेब के आदेश पर 6 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली दरबार में पेश किया गया। औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम धर्म अथवा मृत्यु में से एक स्वीकार करने को कहा। गुरु साहिब तथा उनके तीनों साथियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। मुग़लों ने गुरु जी को हतोत्साहित करने के लिए उनके तीनों साथियों भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी तथा भाई दयाला जी को उनके सम्मुख शहीद कर दिया। इसके पश्चात् गुरु जी को कोई चमत्कार दिखाने के लिए कहा गया, परंतु गुरु साहिब ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप 11 नवंबर,1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरु जी का शीश धड़ से अलग कर दिया गया। हरबंस सिंह तथा एल० एम० जोशी का यह कथन पूर्णत: ठीक है,
“यह भारतीय इतिहास की सर्वाधिक दिल दहला देने वाली एवं कंपाने वाली घटना थी।”4
जिस स्थान पर गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद किया गया उस स्थान पर गुरुद्वारा शीश गंज का निर्माण किया गया। भाई लक्खी शाह गुरु जी के धड़ को अपनी बैलगाड़ी में छुपा कर अपने घर ले आया। यहाँ उसने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने घर को आग लगा दी। इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा रकाब गंज बना हुआ है।

III. बलिदान का महत्त्व (Significance of the Martyrdom)
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान की घटना न केवल सिख इतिहास अपितु समूचे विश्व इतिहास की एक अतुलनीय घटना है। इस बलिदान से न केवल पंजाब, अपितु भारत के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े। गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के साथ ही महान् मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। डॉक्टर त्रिलोचन सिंह के शब्दों में,
“गुरु तेग़ बहादुर जी के महान् बलिदान के सिखों पर प्रभावशाली एवं दूरगामी प्रभाव पड़े।”5

4. “This was a most moving and earthshaking event in the history of India.” Harbans Singh and L.M. Joshi, An Introduction to Indian Religions (Patiala : 1973) p. 248.
5. “The impact of the great sacrifice of Guru Tegh Bahadur was extremely powerful and farreaching in its consequences on the Sikh people.” Dr. Trilochan Singh, Guru Tegh Bahadur : Prophet and Martyr (New Delhi : 1978) p. 179.

1. इतिहास की एक अद्वितीय घटना (A Unique Event of History)—संसार का इतिहास बलिदानों से भरा पड़ा है। ये बलिदान अधिकतर अपने धर्म की रक्षा अथवा देश के लिए दिए गए। परंतु गुरु तेग बहादुर जी ने मानवता तथा सत्य के लिए अपना शीश दिया। निस्संदेह संसार के इतिहास में यह एक अतुलनीय उदाहरण थी। इसी कारण गुरु तेग़ बहादुर जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।

2 सिखों में प्रतिशोध की भावना (Feeling of revenge among the Sikhs)—गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के फलस्वरूप समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। अतः सिखों ने मुग़लों के अत्याचारी शासन का अंत करने का निर्णय किया।

3. हिंदू धर्म की रक्षा (Protection of Hinduism)-औरंगजेब के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे अत्याचारों से तंग आकर बहुत-से हिंदुओं ने इस्लाम धर्म को स्वीकार करना आरंभ कर दिया था। हिंदू धर्म के अस्तित्व के लिए भारी खतरा उत्पन्न हो चुका था। ऐसे समय में गुरु तेग बहादुर जी ने अपना बलिदान देकर हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया। इस बलिदान ने हिंदू कौम में एक नई जागृति उत्पन्न की। अतः वे औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिए तैयार हो गए।

4. खालसा का सृजन (Creation of the Khalsa)—गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब धर्म की रक्षा के लिए उनका संगठित होना अत्यावश्यक है। इस उद्देश्य से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई० में बैसाखी के दिन खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा पंथ के सृजन ने ऐसी बहादुर जाति को जन्म दिया जिसने मुग़लों और अफ़गानों का पंजाब से नामो-निशान मिटा दिया।

5. बलिदानों की परंपरा का आरंभ होना (Beginning of the tradition of Sacrifice)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की, एक परंपरा आरंभ कर दी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस मार्ग का अनुसरण करते हुए अनेक कष्ट सहन किए। आपके छोटे साहिबजादों को जीवित नींवों में चिनवा दिया गया। बड़े साहिबजादे युद्धों में शहीद हो गए। गुरु साहिब के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर तथा उनके साथ सैंकड़ों सिखों ने बलिदान दिए। सिखों ने मुग़ल अत्याचारों के आगे हँस-हँस कर बलिदान दिए। इस प्रकार गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान आने वाली नस्लों के लिए एक प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ।

6. सिखों और मुग़लों में लड़ाइयाँ (Battles between the Sikhs and the Mughals)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों एवं मुग़लों के बीच लड़ाइयों का एक लंबा दौर आरंभ हुआ। इन लड़ाइयों के दौरान सिख चट्टान की तरह अडिग रहे। अपने सीमित साधनों के बावजूद सिखों ने अपनी वीरता के कारण महान् मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया। अंत में, हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के इन शब्दों से सहमत हैं,

“गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान भारतीय इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इसके बहुत गहरे परिणाम निकले। “6

6. “The Martyrdom of Guru Tegh Bahadur was an event of great significance in the history of India. It had far-reaching consequences.” S.S. Johar, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1975) p. 231.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के सिख इतिहास पर बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े। वर्णन करें।
(The martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji had far-reaching consequences on Sikh History. Discuss.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान की घटना न केवल सिख इतिहास अपितु समूचे विश्व इतिहास की एक अतुलनीय घटना है। इस बलिदान से न केवल पंजाब, अपितु भारत के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े। गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के साथ ही महान् मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। डॉक्टर त्रिलोचन सिंह के शब्दों में,
“गुरु तेग़ बहादुर जी के महान् बलिदान के सिखों पर प्रभावशाली एवं दूरगामी प्रभाव पड़े।”5

5. “The impact of the great sacrifice of Guru Tegh Bahadur was extremely powerful and farreaching in its consequences on the Sikh people.” Dr. Trilochan Singh, Guru Tegh Bahadur : Prophet and Martyr (New Delhi : 1978) p. 179.

1. इतिहास की एक अद्वितीय घटना (A Unique Event of History)—संसार का इतिहास बलिदानों से भरा पड़ा है। ये बलिदान अधिकतर अपने धर्म की रक्षा अथवा देश के लिए दिए गए। परंतु गुरु तेग बहादुर जी ने मानवता तथा सत्य के लिए अपना शीश दिया। निस्संदेह संसार के इतिहास में यह एक अतुलनीय उदाहरण थी। इसी कारण गुरु तेग़ बहादुर जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।

2. सिखों में प्रतिशोध की भावना (Feeling of revenge among the Sikhs)—गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के फलस्वरूप समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। अतः सिखों ने मुग़लों के अत्याचारी शासन का अंत करने का निर्णय किया।

3. हिंदू धर्म की रक्षा (Protection of Hinduism)-औरंगजेब के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे अत्याचारों से तंग आकर बहुत-से हिंदुओं ने इस्लाम धर्म को स्वीकार करना आरंभ कर दिया था। हिंदू धर्म के अस्तित्व के लिए भारी खतरा उत्पन्न हो चुका था। ऐसे समय में गुरु तेग बहादुर जी ने अपना बलिदान देकर हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया। इस बलिदान ने हिंदू कौम में एक नई जागृति उत्पन्न की। अतः वे औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिए तैयार हो गए।

4. खालसा का सृजन (Creation of the Khalsa)—गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब धर्म की रक्षा के लिए उनका संगठित होना अत्यावश्यक है। इस उद्देश्य से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई० में बैसाखी के दिन खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा पंथ के सृजन ने ऐसी बहादुर जाति को जन्म दिया जिसने मुग़लों और अफ़गानों का पंजाब से नामो-निशान मिटा दिया।

5. बलिदानों की परंपरा का आरंभ होना (Beginning of the tradition of Sacrifice)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की, एक परंपरा आरंभ कर दी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस मार्ग का अनुसरण करते हुए अनेक कष्ट सहन किए। आपके छोटे साहिबजादों को जीवित नींवों में चिनवा दिया गया। बड़े साहिबजादे युद्धों में शहीद हो गए। गुरु साहिब के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर तथा उनके साथ सैंकड़ों सिखों ने बलिदान दिए। सिखों ने मुग़ल अत्याचारों के आगे हँस-हँस कर बलिदान दिए। इस प्रकार गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान आने वाली नस्लों के लिए एक प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ।

6. सिखों और मुग़लों में लड़ाइयाँ (Battles between the Sikhs and the Mughals)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों एवं मुग़लों के बीच लड़ाइयों का एक लंबा दौर आरंभ हुआ। इन लड़ाइयों के दौरान सिख चट्टान की तरह अडिग रहे। अपने सीमित साधनों के बावजूद सिखों ने अपनी वीरता के कारण महान् मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया। अंत में, हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के इन शब्दों से सहमत हैं,

“गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान भारतीय इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इसके बहुत गहरे परिणाम निकले। “6

6. “The Martyrdom of Guru Tegh Bahadur was an event of great significance in the history of India. It had far-reaching consequences.” S.S. Johar, Guru Tegh Bahadur (New Delhi : 1975) p. 231.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
किस श्रद्धालु सिख ने नवम् गुरु की तलाश की और क्यों ?  (Name the devotee Sikh who searched for the Ninth Guru and why ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की तलाश किसने की ओर क्यों ? (Who found Guru Tegh Bahadur Ji and why ?)
उत्तर-
गुरु हर कृष्ण जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व सिख संगतों को यह संकेत दिया कि उनका अगला गुरु बाबा बकाला में है। इसलिए 22 सोढियों ने वहाँ अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा ने इसका हल ढूँढ़ा। एक बार जब उसका जहाज़ समुद्री तूफान में डूबने लगा था तो उसने अरदास की कि यदि उसका जहाज़ किनारे पर पहुँच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेंट करेगा। गुरु कृपा से उसका जहाज़ बच गया। वह बकाला पहुँचा। जब मक्खन शाह ने तेग़ बहादुर जी के पास जाकर दो मोहरें भेंट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेंट करने का वचन दिया था।” यह सुनकर मक्खन शाह एक मकान की छत पर चढ़ कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे” अर्थात्- गुरु मिल गया है।

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी की यात्राओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की यात्राओं के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the travels of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
उत्तर-
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी गुरुगद्दी के दौरान (1664-75 ई०) पंजाब और बाहर के प्रदेशों की अनेकं यात्राएँ कीं। गुरु साहिब की यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और सिख सिद्धांतों का प्रचार करना था। गुरु साहिब ने अपनी यात्राएँ 1664 ई० में अमृतसर से आरंभ की। तत्पश्चात् । गुरु साहिब ने पंजाब तथा पंजाब के बाहर अनेक स्थानों की यात्राएं की। गुरु साहिब की इन यात्राओं ने सिख पंथ । के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इससे गुरु साहिब की ख्याति चारों ओर फैल गई।

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के उत्तरदायी कारणों का वर्णन करें।
(Highlight the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का अध्ययन करें।
(Study the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कोई तीन कारण बताएँ। (List any three causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के क्या कारण थे? (What were the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में सबसे प्रमुख योगदान औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता का था।
  2. औरंगज़ेब सिख धर्म के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं थे।
  3. राम राय ने गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए औरंगज़ेब को गुरु तेग़ बहादुर जी के विरुद्ध भड़काया।
  4. कश्मीरी पंडितों की पुकार गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 4.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका की समीक्षा कीजिए।
(Discuss the role played by Naqshbandis in the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र सरहिंद था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति और सिख मत का बढ़ रहा प्रचार असहनीय था। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए औरंगज़ेब के कान भरने आरंभ कर दिए। उनकी कार्यवाई ने जलती पर तेल डालने का काम किया। अत: औरंगजेब ने गुरु जी के विरुद्ध कदम उठाने का निर्णय किया।

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ?
(What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी ने कश्मीरी ब्राह्मणों की सहायता क्यों की ? (Why did Guru Tegh Bahadur Ji help the Kashmiri Brahmans ?)
उत्तर-
औरंगज़ेब चाहता था कि कश्मीर के ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसी उद्देश्य से उसने ब्राह्मणों को तलवार की नोक पर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया। पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास पहुँचा। जब गुरु जी ने उनकी रौंगटे खड़े कर देने वाली अत्याचारों की कहानी सुनी तो उन्होंने अपना बलिदान देने का निर्णय कर लिया।

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
(Evaluate the historical importance of martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी की ऐतिहासिक महत्ता का वर्णन करो। (Explain the historical importance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी की महत्ता बताओ।
(Explain the importance of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर जी की इस शहीदी के कारण समूचा पंजाब क्रोध और रोष की भावना से भड़क उठा। गुरु साहिब ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक भारत में मुग़ल साम्राज्य रहेगा, तब तक अत्याचार भी बने रहेंगे। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की। तत्पश्चात् सिखों और मुग़लों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। इस संघर्ष ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के नौवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1 अप्रैल, 1621 ई० ।

प्रश्न 4.
गुरु तेग़ बहादुर जी की माता जी का नाम बताएँ।
उत्तर-
नानकी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 5.
गुरु तेग बहादुर जी के पिता जी का नाम बताएँ।
उत्तर-गुरु हरगोबिंद जी।

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादुर जी का बचपन का नाम बताएँ।
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी का पहला नाम क्या था?
उत्तर-
त्याग मल।

प्रश्न 7.
‘तेग़ बहादुर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
तलवार का धनी।

प्रश्न 8.
गुरु तेग़ बहादुर जी का विवाह किससे हुआ ?
उत्तर-
गुजरी जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम क्या था ?
उत्तर-
गोबिंद राय अथवा गोबिंद दास।

प्रश्न 10.
बाबा बकाला में सच्चे गुरु तेग़ बहादुर जी को किसने ढूँढा?
उत्तर-
मक्खन शाह लुबाणा।

प्रश्न 11.
“गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे” नामक शब्द किसने कहे थे ?
उत्तर-
मक्खन शाह लुबाणा।

प्रश्न 12.
गुरु तेग़ बहादुर जी का गुरुगद्दी काल बताएँ।
उत्तर-
1664 ई० से 1675 ई०

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 13.
पंजाब से बाहर किसी एक स्थान का नाम बताएँ जहाँ गुरु तेग़ बहादुर जी ने यात्रा की ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 14.
पंजाब के किसी एक प्रसिद्ध स्थान का नाम बताएँ जिसकी यात्रा गुरु तेग बहादुर जी ने की थी ?
उत्तर-
अमृसतर।

प्रश्न 15.
श्री आनंदपुर साहिब का पहला (प्रारंभिक) नाम क्या था ?
उत्तर-
माखोवाल अथवा चक नानकी।

प्रश्न 16.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का एक मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
औरंगजेब सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 17.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर-
कश्मीरी पंडितों की पुकार।

प्रश्न 18.
उस मुग़ल सूबेदार का नाम बताएँ जिसने कश्मीर के पंडितों पर भारी अत्याचार किए थे।
उत्तर-
शेर अफ़गान।

प्रश्न 19.
किस के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों का एक दल गुरु तेग बहादुर जी को श्री आनंदपुर साहिब में 1675 ई० में मिला था ?
उत्तर-
पंडित कृपा राम।

प्रश्न 20.
किस गुरु साहिब ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी ने।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 21.
गुरु तेग़ बहादुर जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 22.
गुरु तेग बहादुर जी को कौन-से मग़ल बादशाह ने शहीद करवाया था ?
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किस मुग़ल बादशाह के समय हुई ?
अथवा
नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के समय किस मुग़ल बादशाह का शासन था ?
उत्तर-
औरंगज़ेब।

प्रश्न 23.
गुरु तेग़ बहादुर जी को कब शहीद किया गया था ?
उत्तर-
11 नवंबर, 1675 ई०

प्रश्न 24.
गुरु तेग़ बहादुर जी के साथ उनके किन तीन श्रद्धालु सिखों को शहीद किया गया?
उत्तर-
भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 25.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के स्थान पर किस गुरुद्वारे का निर्माण किया गया ?
उत्तर-
गुरुद्वारा शीश गंज।

प्रश्न 26.
गुरुद्वारा शीश गंज का निर्माण कहाँ किया गया था ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 27.
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का कोई एक महत्त्वपूर्ण परिणाम बताएँ।
उत्तर-
सिखों और मुग़लों में संघर्ष का एक लंबा अध्याय आरंभ हुआ।

प्रश्न 28.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘रंगरेटे गुरु के बेटे’ शब्द किसके लिए प्रयोग किए थे ?
उत्तर-
भाई जैता जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 29.
‘हिंद की चादर’ नामक शब्द किस गुरु के लिए प्रयोग किए जाते हैं ?
अथवा
“हिंद की चादर’ किस गुरु साहिब को कहा जाता है ? .
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
……………….. सिखों के नवम् गुरु थे।
उत्तर-
(गुरु तेग बहादुर जी)

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म ……………. में हुआ था।
उत्तर-
(अमृतसर)

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का नाम ……………. था। ”
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 4.
गुरु तेग़ बहादुर जी की माता जी का नाम ……………..था।
उत्तर-
(नानकी)

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी का आरंभिक नाम ………… था।
उत्तर-
(त्याग मल)

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम ………… था।
उत्तर-
(गोबिंद राय)

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी की खोज ………….. ने की थी।
उत्तर-
(मक्खन शाह लुबाणा)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 8.
गुरु तेग़ बहादुर जी …………… में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
उत्तर-
(1664 ई०)

प्रश्न 9.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ ……………… से किया।
उत्तर-
(अमृतसर)

प्रश्न 10.
चक्क नानकी नगर की स्थापना ……….. ने की थी।
उत्तर-
(गुरु तेग बहादुर जी)

प्रश्न 11.
औरंगजेब ने ………….में हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगाया।
उत्तर-
(1679 ई०)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 12.
राम राय गुरु हर राय जी का बड़ा ……..था।
उत्तर-
(पुत्र)

प्रश्न 13.
गुरु तेग़ बहादुर जी को…….. के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-
(औरंगज़ेब)

प्रश्न 14.
गुरु तेग़ बहादुर जी को ……..में दिल्ली में शहीद किया गया।
उत्तर-
(11 नंवबर, 1675 ई०)

प्रश्न 15.
जिस स्थान पर गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद किया गया वहाँ…….. का निर्माण करवाया गया है।
उत्तर-
(गुरुद्वारा शीश गंज)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 16.
‘रंगरेटे गुरु के बेटे’ कह कर ………….. को गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने गले से लगाया।
उत्तर-
(भाई जैता जी)

प्रश्न 17.
गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करने वाले जल्लाद का नाम …………. था।
उत्तर-
(जलालुद्दीन)

प्रश्न 18.
…….को ‘हिंद की चादर’ के नाम से जाना जाता है।
उत्तर-
(गुरु तेग़ बहादुर जी)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म अमृतसर में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1621 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का नाम हरकृष्ण था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी की माता जी का नाम गुजरी था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादुर जी का आरंभिक नाम त्याग मल था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का नाम गोबिंद राय था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
मक्खन शाह लुबाणा ने गुरु तेग़ बहादुर जी की खोज की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
गुरु तेग़ बहादुर जी 1664 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 10.
गुरु तेग़ बहादुर जी अपनी यात्राओं के दौरान सर्वप्रथम अमृतसरं पहुँचे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ 1666 ई० में किया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 12.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने चक्क नानकी नगर की स्थापना की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
औरंगजेब ने 1664 ई० में हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगाया।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 14.
गुरु तेग बहादुर जी के समय शेर अफ़गान कश्मीर का गवर्नर था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग़ बहादुर जी को दिल्ली में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
गुरु तेग़ बहादुर जी को 11 नवंबर, 1675 ई० को शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 17.
गुरु तेग़ बहादुर जी को जिस स्थान पर शहीद किया गया था उस स्थान पर गुरुद्वारा रकाब गंज का निर्माण करवाया गया है।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
सिखों के नवम् गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हर कृष्ण जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1601 ई० में
(ii) 1621 ई० में
(iii) 1631 ई० में
(iv) 1656 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी के बचपन का क्या नाम था ?
(i) हरी मल जी
(ii) त्याग मल जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) भाई जेठा जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी
(ii) गुरु हर राय जी
(iii) गुरु हर कृष्ण जी
(iv) बाबा गुरदित्ता जी।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) गुजरी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iii) नानकी जी
(iv) गंगा देवी जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादुर जी का विवाह किसके साथ हुआ ?
(i) निहाल कौर के साथ
(ii) गुजरी के साथ
(iii) सुलक्खनी के साथ
(iv) सभराई देवी के साथ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी के पुत्र का क्या नाम था ?
(i) महादेव
(ii) अर्जन देव
(iii) राम राय
(iv) गोबिंद राय।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 8.
उस व्यक्ति का नाम बताएं जिसने यह प्रमाणित किया कि गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के वास्तविक गुरु हैं ?
(i) मक्खन शाह मसतूआना
(ii) मक्खन शाह लुबाणा
(iii) बाबा बुड्डा जी
(iv) भाई गुरदास जी।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
गुरु तेग़ बहादुर जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1664 ई० में
(iii) 1665 ई० में
(iv) 1666 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
गुरु तेग बहादुर जी अपनी यात्रा के समय सबसे पहले कहाँ पहुँचे. ?
(i) गोइंदवाल साहिब
(ii) खडूर साहिब
(iii) अमृतसर
(iv) कीरतपुर साहिब।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
1665 ई० में गुरु तेग़ बहादुर जी ने किस नए नगर की स्थापना की थी ?
(i) चक्क नानकी
(ii) बिलासपुर
(iii) साहनेवाल
(iv) कीरतपुर साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
चक्क नानकी बाद में किस नाम के साथ प्रसिद्ध हुआ ?
(i) श्री आनंदपुर साहिब
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) चमकौर साहिब
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(i)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 13.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी का मुख्य कारण क्या था ?
(i) औरंगजेब की कट्टरता
(ii) कश्मीरी पंडितों की पुकार
(iii) नक्शबंदियों का विरोध
(iv) राम राय की शत्रुता।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 14.
किस मुगल बादशाह के आदेशानुसार गुरु तेग बहादुर जी को शहीद किया गया ?
(i) जहाँगीर
(ii) शाहजहाँ
(iii) औरंगजेब
(iv) बहादुरशाह प्रथम।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
गुरु तेग बहादुर जी को कहाँ शहीद किया गया ?
(i) लाहौर में
(ii) दिल्ली में
(iii) अमृतसर में
(iv) पटना में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 16.
गुरु तेग़ बहादुर जी को कब शहीद किया गया ?
(i) 1661 ई० में
(ii) 1664 ई० में
(iii) 1665 ई० में
(iv) 1675 ई० में।
उत्तर-
(iv)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 17.
गुरु तेग़ बहादुर जी को जिस स्थान पर शहीद किया गया वहाँ पर कौन-सा गुरुद्वारा स्थित है ? ”
(i) शीश गंज
(ii) रकाब गंज
(iii) बाला साहिब
(iv) दरबार साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
‘हिंद की चादर’ नामक शब्द किस गुरु के लिए प्रयोग किए जाते हैं ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
किस श्रद्धालु सिख ने नवम् गुरु की तलाश की और क्यों ? (Name the sincere Sikh, who searched for the Ninth Guru and why ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी को किसने ढूँढ़ा और क्यों ?
(Who found Guru Tegh Bahadur Ji and why ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की तलाश किसने और क्यों की ? (Who discovered the ninth Guru Tegh Bahadur Ji and how ?)
उत्तर-
1664 ई० में दिल्ली में ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु हर कृष्ण जी ने सिख संगतों को यह संकेत दिया कि उनका अगला गुरु बाबा बकाला में है। जब यह समाचार बाबा बकाला पहुँचा कि गुरु साहिब आगामी गुरु का नाम बताए बिना ज्योति-जोत समा गए हैं तो 22. सोढियों ने वहाँ अपनी 22 मंजियाँ स्थापित कर लीं। हर कोई स्वयं को गुरु कहलवाने लगा। ऐसे समय में मक्खन शाह लुबाणा नामक एक सिख ने इसका समाधान ढूंढा। वह एक व्यापारी था। एक बार जब उसका जहाज समुद्री तूफान में घिर कर डूबने लंगा तो उसने अरदास की कि यदि उसका जहाज़ किनारे पर पहुँच जाए तो वह गुरु साहिब के चरणों में सोने की 500 मोहरें भेट करेगा। गुरु साहिब की कृपा से उसका जहाज़ बच गया। वह गुरु साहिब को 500 मोहरें भेट करने के लिए सपरिवार बाबा बकाला पहुँचा। यहाँ वह 22 गुरु देख कर चकित रह गया। उसने वास्तविक गुरु को ढूंढने की एक योजना बनाई। वह बारी-बारी प्रत्येक गुरु के पास गया तथा उन्हें दो-दो मोहरें भेट करता गया। झूठे गुरु दो-दो मोहरें लेकर प्रसन्न हो गए। जब मक्खन शाह ने अंत में तेग़ बहादुर जी के पास जाकर दो मोहरें भेट की तो गुरु साहिब ने कहा, “जहाज़ डूबते समय तो तूने 500 मोहरें भेट करने का वचन दिया था, परंतु अब केवल दो मोहरें ही भेट कर रहा है।” यह सुनकर मक्खन शाह बहुत प्रसन्न हुआ और वह एक मकान की छत पर चढ़ कर ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” अर्थात् गुरु मिल गया है। इस प्रकार सिख संगतों ने गुरु तेग़ बहादुर को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
गुरु तेग बहादुर जी की यात्राओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग बहादुर जी की यात्राओं के संबंध में आप क्या जानते हैं ? ‘ (What do you know about the travels of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर साहिब ने अपनी गुरुगद्दी के समय (1664-75 ई०) के दौरान पंजाब और पंजाब से बाहर के प्रदेशों की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और सिख धर्म का प्रचार करना था। गुरु साहिब ने अपनी यात्राएँ 1664 ई० में अमृतसर से आरंभ की। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने वल्ला, घुक्केवाली, खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, खेमकरन, कीरतपुर साहिब और बिलासपुर इत्यादि पंजाब के प्रदेशों की यात्राएँ कीं। पंजाब की यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब पूर्वी भारत की यात्राओं पर निकल पड़े। अपनी इस यात्रा के दौरान गुरु साहिब सैफाबाद, धमधान, दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा, कानपुर, प्रयाग, बनारस, गया, पटना, ढाका और असम इत्यादि स्थानों पर गए। इन यात्राओं के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर साहिब अपने परिवार सहित पंजाब आ गए। यहाँ पर आकर गुरु साहिब ने एक बार फिर पंजाब के विख्यात स्थानों की यात्राएँ की। गुरु साहिब की ये यात्राएँ सिख-पंथ के विकास के लिए बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुईं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग सिख मत में सम्मिलित हुए।

प्रश्न 3.
गुरु तेग़ बहादुर जी की किन्हीं छः यात्राओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of any six travels of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान होने के शीघ्र पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब तथा पंजाब से बाहर की यात्राएँ आरंभ कर दीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को सत्य तथा प्रेम का संदेश देना था।—
1. अमृतसर-गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी यात्राओं का आरंभ 1664 ई० में अमृतसर से किया। उस समय हरिमंदिर साहिब में पृथी चंद का पौत्र हरजी मीणा कुछ भ्रष्टाचारी मसंदों के साथ मिलकर स्वयं गुरु बना बैठा था। गुरु साहिब के आने की सूचना मिलते ही उसने हरिमंदिर साहिब के सभी द्वार बंद करवा दिए। जब गुरु साहिब वहाँ पहुँचे तो द्वार बंद देखकर उन्हें दुःख हुआ। अतः वह अकाल तख्त के निकट एक वृक्ष के नीचे जा बैठे। यहाँ पर अब एक छोटा-सा गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे ‘थम्म साहिब’ कहते हैं।

2. वल्ला तथा घुक्केवाली-अमृतसर से गुरु तेग़ बहादुर जी वल्ला नामक गाँव गए। यहाँ लंगर में महिलाओं की अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया तथा कहा “माईयाँ रब्ब रजाईयां”। वल्ला के पश्चात् गुरु जी घुक्केवाली गाँव गए। इस गाँव में अनगिनत वृक्षों के कारण गुरु जी ने इसका नाम ‘गुरु का बाग’ रख दिया।

3. बनारस-प्रयाग की यात्रा के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी बनारस पहुँचे यहाँ सिख संगतें प्रतिदिन बड़ी संख्या में गुरु साहिब के दर्शन और उनके उपदेश सुनने के लिए उपस्थित होतीं। यहाँ के लोगों का विश्वास था कि कर्मनाशा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति के सभी अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं। गुरु साहिब ने स्वयं इस नदी में स्नान किया और कहा कि नदी में स्नान करने से कुछ नहीं होता मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।

4. पटना-गुरु तेग़ बहादुर जी 1666 ई० में पटना पहुंचे। यहाँ पर सिख संगतों (श्रद्धालुओं) ने गुरु साहिब का भव्य स्वागत किया। गुरु साहिब ने सिख सिद्धांतों पर प्रकाश डाला तथा पटना को ‘गुरु का घर’ कहकर सम्मानित किया। गुरु साहिब ने अपनी पत्नी और माता जी को यहाँ छोड़कर स्वयं मुंघेर के लिए प्रस्थान किया।

5. मथुरा-गुरु तेग़ बहादुर जी दिल्ली के पश्चात् मथुरा पहुंचे। यहाँ गुरु जी ने धर्म प्रचार किया तथा संगतों को उपदेश दिए। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर बहुत सारे लोग उनके श्रद्धालु बन गए।

6. ढाका-ढाका पूर्वी भारत में सिख धर्म का एक प्रमुख प्रचार केंद्र था। गुरु तेग़ बहादुर जी के आगमन के कारण बड़ी संख्या में लोग सिख-धर्म में शामिल हुए। गुरु साहिब ने यहाँ संगतों को जाति-पाति के बंधनों से ऊपर उठने और नाम सिमरिन से जुड़ने का संदेश दिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 4.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के कारणों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का अध्ययन करें। (Study the causes responsible for the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित अनुसार है—
1. मुग़लों और सिखों में शत्रुता-1605 ई० तक सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध चले आ रहे थे, परंतु जब 1606 ई० में मुगल सम्राट् जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया तो ये संबंध शत्रुता में बदल गए। औरंगज़ेब के शासनकाल में सिखों और मुग़लों के बीच शत्रुता में और वृद्धि हो गई। यही शत्रुता गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बनी।

2. औरंगजेब की कट्टरता-औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता भी गुरु साहिब के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। औरंगज़ेब 1658 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह भारत में चारों ओर इस्लाम धर्म का बोलबाला देखना चाहता था। अतः तलवार के बल पर लोगों को बलपूर्वक इस्लाम धर्म में सम्मिलित किया जाने लगा।

3. नक्शबंदियों का औरंगजेब पर प्रभाव-कट्टर सुन्नी मुसलमानों के नक्शबंदी संप्रदाय का औरंगज़ेब पर बहुत प्रभाव था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति असहनीय थी। नक्शबंदियों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं सिख धर्म का विकास इस्लाम के लिए कोई गंभीर चुनौती न बन जाए। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध औरंगज़ेब को भड़काना आरंभ कर दिया।

4. सिख धर्म का प्रचार—गुरु तेग बहादुर साहिब की सिख धर्म के प्रचार के लिए की गई यात्राओं से प्रभावित होकर हज़ारों लोग सिख मत में सम्मिलित हो गए थे। गुरु साहिब जी ने सिख मत के प्रचार में तीव्रता और योग्यता लाने के लिए सिख प्रचारक नियुक्त किए तथा उन्हें संगठित किया। सिख धर्म का हो रहा विकास तथा उसका संगठन औरंगज़ेब की सहन शक्ति से बाहर था।

5. राम राय की शत्रुता-राम राय गुरु हर राय जी का बड़ा पुत्र था। वह स्वयं को गुरुगद्दी का अधिकारी समझता था। परंतु जब गुरुगद्दी पहले गुरु हरकृष्ण जी को तथा इसके पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी को मिली तो वह यह सहन न कर पाया। फलस्वरूप उसने औरंगजेब के गुरु तेग़ बहादुर जी के विरुद्ध कान भरने आरंभ कर दिए।

6. कश्मीरी पंडितों की पुकार-कश्मीर के गवर्नर शेर अफ़गान ने इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार किए। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल मई, 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी करुण याचना लेकर पहुँचा। उन्होंने कश्मीरी पंडितों से कहा कि वे जाकर मुग़ल अधिकारियों को यह बता दें कि यदि वे गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बना लें तो वे बिना किसी विरोध के इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे।

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका की समीक्षा कीजिए।
(Discuss the role played by Naqshbandis in the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
उत्तर-
नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। इस संप्रदाय का औरंगजेब पर बहुत प्रभाव था। इस संप्रदाय के लिए गुरु साहिब की बढ़ रही ख्याति, सिख मत का बढ़ रहा प्रचार और मुसलमानों की गुरु घर के प्रति बढ़ रही प्रवृत्ति असहनीय थी। नक्शबंदियों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं लोगों में आ रही जागृति और सिख धर्म का विकास इस्लाम के लिए कोई गंभीर चुनौती ही न बन जाए। ऐसा होने की दशा में भारत में मुस्लिम समाज की जड़ें हिल सकती थीं। इसलिए उन्होंने सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगज़ेब को भड़काना आरंभ किया। उनकी इस कार्यवाही ने जलती पर तेल डालने का कार्य किया। उस समय शेख़ मासूम नक्शबंदियों का नेता था। वह अपने पिता शेख़ अहमद सरहिंदी से भी अधिक कट्टर था। उसका विचार था कि यदि पंजाब में सिखों का शीघ्र दमन नहीं किया गया तो भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव डगमगा सकती है। परिणामस्वरूप औरंगज़ेब ने गुरु जी के विरुद्ध कदम उठाने का निर्णय किया। निस्संदेह हम कह सकते हैं कि गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी में नक्शबंदियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 6.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji ?)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी ने कश्मीरी ब्राह्मणों की सहायता क्यों की ? (Why did Guru Tegh Bahadur Ji help the Kashmiri Brahmins ?)
उत्तर-
कश्मीर में रहने वाले ब्राह्मणों का सारे भारत के हिंदू बहुत आदर करते थे। औरंगज़ेब ने सोचा कि यदि ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसी उद्देश्य से उसने शेर अफ़गान को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया। शेर अफ़गान ने ब्राह्मणों को तलवार की नोक पर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका एक दल मई, 1675 ई० में श्री आनंदपुर साहिब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी करुण याचना लेकर पहुँचा। जब गुरु जी ने उनकी रौंगटे खड़े कर देने वाली अत्याचारों की कहानी सुनी तो वह सोच में पड़ गए। गुरु साहिब के मुख पर गंभीरता देख बालक गोबिंद राय जो उस समय 9 वर्ष के थे, ने पिता जी से इसका कारण पूछा। गुरु साहिब ने बताया कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने झट से कहा, “पिता जी आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ?” बालक के मुख से यह उत्तर सुन कर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना बलिदान देने का निर्णय कर लिया। गुरु जी ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि वे जाकर मुग़ल अधिकारियों को बता दें कि यदि वे गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बना लें तो वे इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। जब औरंगज़ेब को इस बात का पता चला तो उसने गुरु जी को दिल्ली बुलाकर मुसलमान बनाने का निश्चय किया।

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए। (Evaluate the historical importance of martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के छः महत्त्वपूर्ण नतीजों का वर्णन करो। (Explain six significant results of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji.)
अथवा
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के छः परिणाम बताएँ। (What were the six results of the martyrdom of Guru Tegh Bahadur ?)
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान की घटना न केवल सिख इतिहास अपितु समूचे विश्व इतिहास की एक अतुलनीय घटना है। इस बलिदान से न केवल पंजाब, अपितु भारत के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े। गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के साथ ही महान् मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।—
1. इतिहास की एक अद्वितीय घटना–संसार का इतिहास बलिदानों से भरा पड़ा है। ये बलिदान अधिकतर अपने धर्म की रक्षा अथवा देश के लिए दिए गए। परंतु गुरु तेग बहादुर जी ने मानवता तथा सत्य के लिए अपना शीश दिया। निस्संदेह संसार के इतिहास में यह एक अतुलनीय उदाहरण थी। इसी कारण गुरु तेग़ बहादुर जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।

2. सिखों में प्रतिशोध की भावना-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के फलस्वरूप समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। अतः सिखों ने मुग़लों के अत्याचारी शासन का अंत करने का निर्णय किया।

3. हिंदू धर्म की रक्षा औरंगज़ेब के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे अत्याचारों से तंग आकर बहत-से हिंदुओं ने इस्लाम धर्म को स्वीकार करना आरंभ कर दिया था। हिंदू धर्म के अस्तित्व के लिए भारी ख़तरा उत्पन्न हो चुका था। ऐसे समय में गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपना बलिदान देकर हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया।

4. खालसा का सृजन-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने सिखों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब धर्म की रक्षा के लिए उनका संगठित होना अत्यावश्यक है। इस उद्देश्य से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई० में बैसाखी के दिन खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा पंथ के सृजन ने ऐसी बहादुर जाति को जन्म दिया जिसने मुग़लों और अफ़गानों का पंजाब से नामो-निशान मिटा दिया।

5. सिखों और मुग़लों में लड़ाइयाँ—गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों एवं मुग़लों के बीच लड़ाइयों का एक लंबा दौर आरंभ हुआ। इन लड़ाइयों के दौरान सिख चट्टान की तरह अडिग रहे। अपने सीमित साधनों के बावजूद सिखों ने अपनी वीरता के कारण महान् मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।

6. बलिदानों की परंपरा का आरंभ होना-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान के पश्चात् सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की परंपरा आरंभ हुई। गुरु गोबिंद सिंह जी चार साहिबजादे, बंदा सिंह बहादुर तथा अनेक श्रद्धालु सिखों ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिए। गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान आने वाली नस्लों के लिए अद्धितीय उदाहरण सिद्ध हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

प्रश्न 8.
भाई मती दास जी और भाई सती दास जी पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a comprehensive note on Bhai Mati Das Ji and Bhai Sati Das Ji.)
उत्तर-
सिख इतिहास शहीदियों से भरा पड़ा है। परंतु जो अद्वितीय शहीदी भाई मती दास जी तथा भाई सती दास जी ने दी उसकी कोई अन्य उदाहरण मिलना कठिन है। भाई मती दास जी तथा भाई सती दास जी दोनों भाई थे। भाई मती दास जी गुरु तेग बहादुर जी के दीवान थे जबकि भाई सती दास जी फ़ारसी के लेखक थे। जब गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी देने का निर्णय किया तो भाई मती दास जी और भाई सती दास जी भी उनके साथ हो लिए। जब शासकों ने दिल्ली में गुरु तेग़ बहादुर जी से अपमानजनक व्यवहार किया तो भाई मती दास जी इसे सहन न कर सके। उन्होंने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि यदि वह आज्ञा दें तो मुग़ल शासन को तहस-नहस कर दिया जाए। गुरु जी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उनका कथन था कि सब कुछ उस परमात्मा की आज्ञा के अनुसार हो रहा है। आप चिन्ता न करें परमात्मा उन्हें अवश्य मज़ा चखाएगा। अत्याचारी काज़ी ने भाई मती दास जी तथा भाई सती दास जी को इस्लाम कबूल करने के लिए बहुत-से प्रलोभन दिए परंतु वे अपने धर्म पर पक्के रहे। अंत में भाई मती दास जी को आरों के साथ, दो भाग कर दिया गया था तथा भाई सती दास जी को रूई में लिपटा कर आग लगा कर शहीद कर दिया गया। इनकी शहीदी ने सिख इतिहास में नए कार्तिमान स्थापित किए।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु तेग़ बहादुर जी सिखों के नवम् गुरु थे। वे 1664 ई० से लेकर 1675 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। सिख धर्म का प्रचार एवं लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने पंजाब एवं पंजाब से बाहर अनेक स्थानों की यात्राएँ की। उस समय भारत में मुग़ल सम्राट् औरंगजेब का शासन था। वह बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं को इस्लाम धर्म में सम्मिलित करने के उद्देश्य से समस्त भारत में आतंक फैला रखा था। कश्मीरी पंडित उसके अत्याचारों का सर्वाधिक शिकार हुए। गुरु तेग़ बहादुर जी ने हिंदुओं के धर्म की रक्षा के लिए 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली में अपना बलिदान दिया। गुरु साहिब के इस अद्वितीय बलिदान के बहुत दूरगामी परिणाम निकले। इसने न केवल पंजाब, बल्कि भारतीय इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान ने पंजाब में एक ऐसी चिंगारी सुलगाई जिसने शीघ्र ही ज्वाला का रूप धारण कर लिया और जिसमें शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य जलकर भस्म हो गया। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी द्वारा अपना बलिदान देने के कारण उन्हें इतिहास में ‘हिंद की चादर’ के नाम से भी स्मरण किया जाता है।

  1. गुरु तेग़ बहादुर जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
  2. गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राओं का उद्देश्य क्या था ?
  3. गुरु तेग बहादुर जी को किस मुगल बादशाह ने शहीद करने का आदेश दिया था ?
  4. गुरु तेग बहादुर जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
    • लाहौर
    • दिल्ली
    • अमृतसर
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  5. गुरु तेग़ बहादुर जी को हिंद की चादर क्यों कहा जाता है ?

उत्तर-

  1. गुरु तेग़ बहादुर जी 1664 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे।
  2. सिख धर्म का प्रचार करना।
  3. मुग़ल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद किया गया था।
  4. दिल्ली।
  5. गुरु तेग़ बहादुर जी को हिंद की चादर इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी थी।

2
कश्मीर में रहने वाले ब्राह्मण अपने धर्म और प्राचीन संस्कृति के संबंध में बहुत दृढ़ थे। सारे भारत के हिंदू उनका बहुत आदर करते थे। औरंगज़ेब ने सोचा कि यदि ब्राह्मणों को किसी प्रकार मुसलमान बना लिया जाए तो भारत के शेष हिंदू स्वयंमेव ही इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसी उद्देश्य से उसने शेर अफ़गान को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया। शेर अफ़गान ने ब्राह्मणों को इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया। इंकार करने वाले ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार किए जाते और प्रतिदिन बड़ी संख्या में उनका वध किया जाने लगा। जब उन्हें अपने धर्म के बचाव का कोई मार्ग दिखाई न दिया तो पंडित कृपा राम के नेतृत्व में उनका 16 सदस्यों का एक दल 25 मई, 1675 ई० में चक्क नानकी (श्री आनंदपुर साहिब) में गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी करुण याचना लेकर पहुंचा।

  1. शेर अफ़गान कौन था ?
  2. शेर अफ़गान क्यों बदनाम था ?
  3. किसके नेतृत्त्व अधीन कश्मीरी पंडितों का एक गुट गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी दुख भरी फरियाद लेकर पहुंचा था ?
  4. कश्मीर के ब्राह्मण गुरु तेग़ बहादुर जी को कहाँ मिले ?
    • लाहौर
    • अमृतसर
    • चक्क नानकी
    • जालंधर।
  5. चक्क नानकी का आधुनिक नाम क्या है ?

उत्तर-

  1. शेर अफ़गान कश्मीर का गवर्नर था।
  2. उसने कश्मीरी पंडितों पर भारी अत्याचार किए।
  3. पंडित कृपा राम के नेतृत्व के अधीन कश्मीरी पंडितों का एक गुट गुरु तेग़ बहादुर जी के पास अपनी दुख भरी फरियाद लेकर आया था।
  4. चक्क नानकी।
  5. चक्क नानकी का आधुनिक नाम श्री आनंदपुर साहिब है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान PSEB 12th Class History Notes

  • प्रारंभिक जीवन (Early Career)—गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ–आपके पिता जी का नाम गुरु हरगोबिंद जी तथा माता जी का नाम नानकी थागुरु तेग़ बहादुर जी ने बाबा बुड्डा जी और भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त की-गुरु जी का विवाह करतारपुर. वासी लाल चंद की सुपुत्री गुजरी से हुआ-अपने पिता जी के आदेश पर गुरु जी 20 वर्ष तक बकाला में रहे-मक्खन शाह लुबाणा द्वारा उन्हें ढूंह निकालने पर सिखों ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया-वे 1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
  • गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राएँ (Travels of Guru Tegh Bahadur Ji)-गुरु पद संभालने के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने पंजाब तथा बाहर के प्रदेशों के अनेक स्थानों की यात्राएँ की-इन यात्राओं का उद्देश्य सिख धर्म का प्रचार करना तथा सत्य और प्रेम का संदेश देना था-गुरु जी ने सर्वप्रथम 1664 ई० में पंजाब के अमृतसर, वल्ला, घुक्केवाली, खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, कीरतपुर साहिब और बिलासपुर आदि प्रदेशों की यात्रा की-इसके उपरांत गुरु जी पूर्वी भारत के सैफाबाद, धमधान, दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा, कानपुर, बनारस, गया, पटना, ढाका तथा असम की यात्रा पर गए-1673 ई० में गुरु तेग़ बहादुर ने पंजाब के मालवा और बांगर प्रदेश की दूसरी बार यात्रा की-इन यात्राओं से गुरु साहिब तथा सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।
  • गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
    • कारण (Causes)-सिखों तथा मुग़लों में शत्रुता बढ़ती जा रही थी-औरंगज़ेब बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था-नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगजेब को खूब भड़कायारामराय गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए कई हथकंडे अपना रहा था-कश्मीरी पंडितों ने गुरु साहिब से अपने धर्म की रक्षा के लिए सहायता माँगी।
    • बलिदान (Martyrdom)-गुरु तेग़ बहादुर जी को अपने तीन साथियों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी और भाई दयाला जी के साथ 6 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली दरबार में पेश किया गया-उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया जिसका उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इंकार कर दियागुरु जी के तीनों साथियों को शहीद करने के बाद 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरु साहिब को शहीद कर दिया गया।
    • महत्त्व (Importance)—समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति घृणा और प्रतिशोध की लहर दौड़ गई–हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया गया-गुरु गोबिंद सिंह जी को खालसा पंथ की स्थापना की प्रेरणा मिली-सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक परंपरा आरंभ हो गई-मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 9 निर्वाचक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 निर्वाचक

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
स्त्री मताधिकार से क्या अभिप्राय है ? स्त्री मताधिकार के विपक्ष में अपने चार तर्क दें। (What is Woman suffrage ? Write four arguments against women suffrage.) (P.B. 2017)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष और विपक्ष में तर्क दें। (Give arguments for and against the Women Franchise.)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष में तर्क दीजिए। (Give arguments for Women Suffrage.)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष व विपक्ष में तर्क दीजिए। (Make a case for and against Women Suffrage.)
उत्तर-
महिला मताधिकार का अर्थ महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार देना है। लोगों में इस बात पर काफ़ी मतभेद रहा है कि स्त्रियों को मत का अधिकार मिलना चाहिए या नहीं। आधुनिक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो स्त्रियों को मताधिकार देने के पक्ष में नहीं हैं। इंग्लैण्ड जैसे उदारवादी देश में भी स्त्रियों को समानता के आधार पर मताधिकार सन् 1928 में दिया गया था। अमेरिका में सन् 1920 में और फ्रांस में सन् 1946 में, स्विट्ज़रलैण्ड में जिसे प्रजातन्त्र का घर माना जाता है, स्त्रियों को मत डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार सन् 1971 तक प्राप्त नहीं था लेकिन भारतीय संविधान में 1950 से ही स्त्रियों को मताधिकार दिया गया है। स्त्री मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं.

स्त्री मताधिकार के विपक्ष में तर्क (Arguments against Women Suffrage)-स्त्री मताधिकार के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं
1. स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है-यदि स्त्री को मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक से ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।

2. स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति-अधिकतर स्त्रियां, अपने पति, पिता या भाई अदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।

3. घरेलू शान्ति के भंग होने का खतरा-यदि स्त्री मताधिकार लागू किया जाए तो इससे घरेलू शान्ति भंग होने का बहुत भय रहता है।

4. स्त्रियां शारीरिक तौर पर दुर्बल होती हैं-यह भी कहा जाता है कि स्त्रियां शारीरिक दृष्टि से दुर्बल होती हैं और अधिक परिश्रम नहीं कर सकतीं। वे पुरुष के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर राजनीति में भाग नहीं ले सकतीं।

5. स्त्रियां राजनीति के प्रति उदासीन रहती हैं-यह देखा गया है कि प्रायः स्त्रियां राजनीति के प्रति उदासनी रहती हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें अपने घरेलू मामलों से ही अवकाश नहीं मिलता।

6. स्त्रियों में आत्म-विश्वास नहीं होता-स्त्रियों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्णय की भावना नहीं होती क्योंकि वे पुरुषों पर निर्भर रहती आई हैं। स्त्रियों के विचार भी रूढ़िवादी होते हैं और उन्हें राजनीतिक जीवन का अनुभव भी नहीं होता।

7. भ्रष्टाचार-राजनीति में कई प्रकार की चालबाजियां प्रयोग करके ही व्यक्ति सफल होते हैं। स्त्रियों के वे गुण जिनके कारण उनका आदर-मान है, समाज में समाप्त हो जाएगा।

8. स्त्रियां रूढ़िवादी होती हैं-इस प्रकार उनको मताधिकार देने का अर्थ है प्रगति के रास्ते में बाधाएं उत्पन्न करना।

9. स्त्रियां भावुक होती हैं-भावना में बहकर स्त्रियां मताधिकार का उचित प्रयोग नहीं कर सकतीं। राजनीति में भावनाओं का कोई स्थान नहीं है।

10. स्त्रियों के सम्मान में कमी-वर्तमान समय में राजनीति में गलत आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, जिसके चलते स्त्रियां भी इस प्रकार की गंदी राजनीति से बच नहीं पायेंगी। इससे स्त्रियों के सम्मान में कमी आयेगी।

11. प्राकृतिक गुणों का नाश-स्त्रियों में दया, सहानुभूति, प्रेम, सहनशीलता तथा कोमलता जैसे प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं, राजनीति में आने के कारण इन गुणों के समाप्त होने की सम्भावना बनी रहती है। – स्त्री मताधिकार के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Woman Suffrage)-प्रायः सभी देशों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं, मत डालने का भी और चुनाव लड़ने का भी।

स्त्री मताधिकार के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं-
1. लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना उचित नहीं-मिल (Mill) का कहना है कि मत का अधिकार स्वाभाविक है, अतः स्त्री को केवल लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना न्याय-संगत नहीं है।

2. यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्त के अनुसार है। लोकतन्त्र में समस्त जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार मिलता है और जनता में जितना भाग पुरुष का है उतना ही स्त्री का

3. स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।

4. स्त्रियां दूसरे सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं-इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्रशासन के क्षेत्र में भी स्त्रियों ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। आजकल पुलिस और सेना में भी स्त्रियां काम कर रही हैं, फिर राजनीति के क्षेत्र में वे कार्य क्यों नहीं कर सकेंगी।

5. कानून मानने वालों को ही कानून बनाने का अधिकार होना चाहिए-राज्य के कानून स्त्री-पुरुष दोनों पर ही समान रूप में लागू होते हैं, दोनों पर समान रूप से ही कर लगते हैं। फिर पुरुष को ही कानून बनाने का अधिकार क्यों ? यह अधिकार दोनों को समान रूप से मिलना चाहिए।

6. स्त्रियां शान्तिप्रिय होती हैं-स्त्रियां स्वभाव से ही शान्ति-प्रिय होती हैं और इससे राजनीति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति नहीं होता-यदि स्त्री अपने पति के अनुसार ही अपना मत देती है तो उसमें हानि क्या है। स्त्री का राजनीतिक क्षेत्र में महत्त्व बना रहता है।

8. राजनीति शुद्ध होगी-स्त्रियां अपनी कोमलता, मृदु भाषण और सहानुभूति से राजनीतिक क्षेत्र में व्यस्त पुरुषों की कठोरता, निर्दयता, बेईमानी और चालबाज़ी को दूर कर देंगी।

9. मताधिकार स्त्री के प्राकृतिक कार्यों में कोई रुकावट नहीं-भारत, इंग्लैण्ड, रूस, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अनेक देशों में स्त्रियों को मताधिकार दिया गया है और इन देशों में स्त्रियां अपने प्राकृतिक कार्यों को बड़ी सफलता से पूरा कर रही हैं।

10. नागरिक अधिकार तथा राजनीतिक अधिकार साथ-साथ चलते हैं- यदि स्त्रियों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होंगे तो उनको नागरिक अधिकार देने का कोई महत्त्व नहीं रहेगा।

11. स्त्रियां पुरुषों से पीछे नहीं-अन्य क्षेत्रों की तरह राजनीति में भी स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा पीछे नहीं हैं। जिस प्रकार पुरुष जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है उसी तरह स्त्रियां भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। भारत में स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गान्धी, इंग्लैण्ड में एलिज़ाबेथ द्वितीय एवं मारग्रेट थैचर, इज़रायल में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री गोल्डा मायर और श्रीलंका की भूतपूर्व एवं स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती भण्डारनायके जैसी महिलाएं इस बात के स्पष्ट उदाहरण हैं।

12. मानसिक रूप से भी दृढ़-स्त्रियां मानसिक रूप से भी पुरुषों के समान ही दृढ़ हैं। जिस प्रकार की सुविधाएं पुरुषों को मिलती हैं, यदि वैसी ही सुविधाएं स्त्रियों को भी मिलें तो स्त्रियां बेशक पुरुषों से आगे भी जा सकती हैं। वर्तमान समय में बहुत-सी स्त्रियां अच्छी शिक्षा प्राप्त करके राजनीतिक एवं प्रशासनिक पदों पर विराजमान हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-स्त्री मताधिकार के विरोध में कई तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं, उनमें अधिक जान नहीं है। स्त्री मताधिकार के लाभ बहत होते हैं और प्रायः सभी लोकतन्त्रीय देशों में स्त्रियों को पुरुषों के साथ समान रूप से मत डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 2.
व्यस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है ? वयस्क मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में दो-दो तर्क दीजिए।
(What is meant by Adult Franchise ? Write two arguments in favour and two in against Adult Franchise.)
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दो। (Write arguments in favour of and against Adult Franchise.).
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष व विपक्ष में तर्क दो।। (Give arguments for and against Adult Franchise.)
उत्तर-
वयस्क मताधिकार किसे कहते हैं ? (What is Franchise or Adult Suffrage ?) आज प्रजातन्त्र का युग है और सभी नागरिकों को समान रूप से मत डालने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया है अर्थात् आज सभी लोकतन्त्रात्मक देशों में वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) का सिद्धान्त अपनाया गया है।

जब देश के सभी वयस्कों (Adults) जाति, धर्म, रंग, वंश, धन, स्थान आदि के आधार पर उत्पन्न भेदभाव के बिना, समान रूप से मतदान का अधिकार दे दिया जाए तो उस व्यवस्था को वयस्क मताधिकार या सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के नाम से पुकारा जाता है। वयस्क होने की उम्र राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। इंग्लैण्ड और रूस में यह आयु 18 वर्ष है जबकि स्विट्ज़रलैण्ड में यह आयु 20 वर्ष है। भारत में पहले यह आयु 21 वर्ष की थी परन्तु 61वें संशोधन द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है। निश्चित आयु होने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के मत डालने का अधिकार बन जाता है। हां, एक निश्चित समय तक निवास की शर्त भी रखी जाती है।।

वयस्क मताधिकार के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Adult Franchise)-आधुनिक युग में वयस्क मताधिकार को ही उचित तथा न्यायसंगत माना गया है। इसके पक्ष में अग्रलिखित तर्क दिए जाते हैं

1. प्रभुसत्ता जनता के पास है (Sovereignty is possessed by the People)-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। जनता में अमीर-गरीब तथा अशिक्षित-शिक्षित सभी सम्मिलित हैं। इसलिए मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।।

2. कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है (Laws of State affects all the People)-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। कानून की दृष्टि में सब नागरिक समान समझे जाते हैं और एक ही कानून सब लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सब को समान रूप से मिलना चाहिए। मिल (Mill) का कहना है कि, “लोकतन्त्र व्यक्ति की समानता का समर्थन करता है और राजनीतिक समानता उसी समय मिल सकती है जब सब नागरिकों को वोट का अधिकार दिया जाए। सरकार के कानूनों और नीतियों का सम्बन्ध सब लोगों के साथ है और जो सब पर प्रभाव डालता है। अतः इसका निर्णय सब के द्वारा होना चाहिए।”

3. समानता के सिद्धान्त पर आधारित (Based on the Principles of Equality)-संविधान नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है और समानता का सिद्धान्त लोकतन्त्र का मूल सिद्धान्त है। वयस्क मताधिकार समानता के सिद्धान्त पर आधारित है क्योंकि सभी नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना मताधिकार दिया जाता है।

4. कानूनों का प्रभाव सब पर पड़ता है (Laws effect all the people)-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। कानून की दृष्टि में सब नागरिक समान समझे जाते हैं और एक ही कानून सब लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं इसलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए। मिल (Mill) का कहना है कि, “लोकतन्त्र व्यक्ति की समानता का समर्थन करता है और राजनीतिक समानता उसी समय मिल सकती है जब सब नागरिकों को वोट का अधिकार दिया जाए। सरकार के कानूनों और नीतियों का सम्बन्ध सब लोगों के साथ है और यह सब पर प्रभाव डालता है, अतः सबके द्वारा ही उसका निर्णय होना चाहिए।”

5. व्यक्ति के विकास के लिए मताधिकार आवश्यक (Right to vote is essential for the development of an individual)-लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का विकास करने के लिए कई प्रकार के अधिकार मिलते हैं। उन अधिकारों में मताधिकार भी आवश्यक है और इनके बिना कोई भी व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता। दूसरे अधिकारों की रक्षा के लिए मताधिकार आवश्यक है। जिन लोगों के पास राजनीतिक अधिकार नहीं होते, उनके नागरिक और आर्थिक अधिकार भी सुरक्षित नहीं रह सकते।

6. सरकार को अधिक बल मिलता है (Government becomes strong)-समस्त जनता अर्थात् वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली रहती है। इसका कारण यह है कि ऐसी सरकारों को यह विश्वास रहता है कि उसके साथ समस्त जनता है और वह जो भी कार्य करेगी सभी नागरिक उसे मानेंगे। यदि कुछ नागरिकों को मत का अधिकार न होगा तो सरकार समस्त जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती और उसे भय रहेगा कि ऐसे नागरिक कहीं उसके विरुद्ध न हों।

7. लोगों में राजनीतिक जागृति (Political awakening among the people)-वयस्क मताधिकार से लोगों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न होती है और उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी मिलती है। जिस व्यक्ति को मत डालने का अधिकार नहीं मिलता, वह राजनीतिक कार्यों के प्रति उदासीन रहता है परन्तु चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल और उम्मीदवार मतदाताओं की राजनीतिक निद्रा को भंग करके उनमें सार्वजनिक कार्यों के प्रति रुचि उत्पन्न करते हैं।

8. लोगों में स्वाभिमान की जागृति (Self-respect among the people)-मताधिकार द्वारा लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत होती है। चुनावों के समय प्रत्येक उम्मीदवार को चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, धनी-निर्धनों सभी के पास जा कर वोट के लिए निवेदन करना पड़ता है। इससे लोग यह समझने लगते हैं उनका शासन में भाग है, सरकार को बनाने में उनका भी हाथ है। वे अपने को देश का महत्त्वपूर्ण अंग समझने लगते हैं। उनमें हीनता की भावना नहीं रहती।

9. राष्ट्रीय एकता (National Unity)-राष्ट्रीय एकता के लिए भी वयस्क मताधिकार का होना आवश्यक है। यदि कुछ व्यक्तियों को ही मताधिकार प्राप्त होगा तो समस्त जनता सरकार को अपना नहीं समझ सकती। जनता दो गुटों में बंट जाएगी और जिन लोगों को वोट का अधिकार न होगा, वे कभी भी सरकार का साथ देने से इन्कार कर सकते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति नहीं हो सकती, परन्तु वयस्क मताधिकार के कारण सभी नागरिक राज्य को अपना समझने लगेंगे। भारत में वयस्क मताधिकार ने राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन दिया है।

10. क्रान्ति का भय नहीं रहता (No danger of revolution)—वयस्क मताधिकार के अनुसार चुनी हुई सरकार समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है और इस सरकार के द्वारा जनता के हितों का पूरा-पूरा आदर किया जाना स्वाभाविक ही है। दूसरे, यदि सरकार जनमत का उल्लंघन करे तो लोगों के पास साधन है जिसके द्वारा यह उसे अपदस्थ कर सकते हैं। इन कारणों के परिणामवस्वरूप देश में शान्ति और व्यवस्था बनी रहती है और क्रान्ति का भय नहीं रहता। भारत में वयस्क मताधिकार के कारण क्रान्ति नहीं हुई। मताधिकार द्वारा जनता जब चाहे सरकार बदल सकती है। 1977 में जनता ने कांग्रेस सरकार को हरा कर सत्ता जनता पार्टी को सौंप दी। इसी प्रकार अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन शान्तिपूर्ण ढंग से हुआ।

11. सभी लोग कर देते हैं (All people are tax payers)-सभी लोग कर देते हैं। आज कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो कर न देता हो। बिक्री कर, उत्पादन शुल्क आदि सभी लोग देते हैं। इसलिए यह अधिकार सभी वयस्कों को मिलना चाहिए।

12. शान्ति और व्यवस्था स्थापित रहती है (Peace and order remain established)-वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को लागू करने से देश में शान्ति और व्यवस्था स्थापित होती है। कानून जनता के प्रतिनिधियों द्वारा उनकी इच्छानुसार बनाए जाते हैं। इस कारण उसका पालन सहज भाव से ही होता है। जनता का सरकार के साथ पूर्ण सहयोग होता है और इन बातों के कारण कानूनों का उल्लंघन बहुत कम होता है और शान्ति व व्यवस्था बनी रहती है।

13. अल्पसंख्यक सन्तुष्ट (Minorities feel satisfied)—प्रत्येक देश में अल्पसंख्यक पाए जाते हैं और भारत में धार्मिक, भाषायी व सांस्कृतिक अल्पसंख्यक रहते हैं। वयस्क मताधिकार के कारण अल्पसंख्यकों को अपने हितों एवं अधिकारों की रक्षा का अवसर मिल जाता है। वयस्क मताधिकार से अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व मिल जाता है। मताधिकार प्राप्त करके अल्पसंख्यक सन्तुष्ट रहते हैं और बहुसंख्यक भी उन पर किसी प्रकार की ज्यादती नहीं कर सकते हैं।

14. नागरिक-कल्याण के लिए सरकार की स्थापना (Establishment of a Government for the welfare of all) यदि मताधिकार कुछ व्यक्तियों को ही प्राप्त होगा तो सरकार केवल कुछ व्यक्तियों के कल्याण के लिए ही कानून बनाएगी परन्तु वयस्क मताधिकार के कारण सरकार सभी के कल्याण के लिए कार्य करेगी जोकि उचित भी है।

वयस्क मताधिकार के विपक्ष में तर्क (Arguments against Adult Franchise)-बहुत-से व्यक्ति ऐसे भी हैं जो वयस्क मताधिकार के विरुद्ध हैं और अपनी बात की पुष्टि के लिए बहुत-से-तर्क प्रस्तुत करते हैं-

1. शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए (Right to Vote only to the Educated)-बहुतसे लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है। मिल का कहना है कि वयस्क मताधिकार से पहले शिक्षा को अनिवार्य बनाना आवश्यक है और जिसे लिखना-पढ़ना नहीं आता उसे वोट देने का अधिकार कभी नहीं मिलना चाहिए।

2. मूों का शासन (Government of the Fools)-वयस्क मताधिकार द्वारा मूल् का शासन स्थापित हो जाता है क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूरों की संख्या अधिक होती है। सर जेम्स स्टीफेन (Sir James Stephen) का कहना है कि इससे जो वास्तविक तथा स्वाभाविक सम्बन्ध बुद्धि और मूर्खता में रहता है वह उल्ट जाएगा अर्थात् बुद्धिमानों को मूर्तों पर शासन करना चाहिए परन्तु इनसे मूर्ख बुद्धिमानों पर शासन करेंगे । (It inverts the time and national relation between wisdom and folly.) लेकी (Lecky) का भी यह मत है कि वयस्क मताधिकार द्वारा सत्ता उन व्यक्तियों के हाथों में चली जाएगी जो कंगाल, मूर्ख तथा निकम्मे हैं क्योंकि इनकी संख्या ही समाज में सबसे अधिक होती है।

3. मताधिकार सम्पत्ति के आधार पर मिलना चाहिए (Franchise should be Based on Property)कुछ लोगों का कहना है कि सम्पत्तिशाली व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए नहीं तो दूसरे लोग राष्ट्र के धन का दुरुपयोग करेंगे। मैकाले (Macaulay) का मत है कि ऐसी अवस्था में भूखे नंगे लोग सारी सम्पत्ति और वैभव को नष्ट करके आपस में छीना झपटी करके खा जाएंगे।

4. सब नागरिक समान नहीं (AII Citizens are not Equal)-इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि सभी नागरिक समान नहीं होते। प्रकृति ने सब व्यक्तियों को समान उत्पन्न नहीं किया। कुछ जन्म से मोटे, कुछ पतले, कुछ बुद्धिमान्, कुछ चतुर और कुछ बुद्धिहीन होते हैं। इसलिए समानता के आधार पर सभी वयस्कों को मताधिकार देना उचित नहीं है।

5. मत का दुरुपयोग (Misuse of Votes)–यदि अशिक्षित और निर्धन व्यक्तियों को भी मताधिकार दे दिया जाए तो वे इसका ठीक प्रयोग नहीं करेंगे। अशिक्षित व्यक्ति बिना सोचे-समझे अपने मत का प्रयोग कर अयोग्य व्यक्तियों का शासन स्थापित करेंगे और निर्धन व्यक्ति कुछ पैसों के लालच में आकर अपना वोट बेचने को तैयार हो जाएंगे। जाति, धर्म, वंश आदि के आधार पर भी मत का प्रयोग होगा और योग्यता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा।

6. स्त्रियों को मताधिकार नहीं मिलना चाहिए (No Right to Vote to Women)-कुछ लोगों का विचार है कि स्त्रियों को मत डालने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। इससे घरेलू शान्ति नष्ट होने का भय रहता है। वैसे भी स्त्रियां अपने मत का प्रयोग अपनी इच्छा से नहीं करतीं और न ही उनमें इतनी सूझ-बूझ होती है कि वे मत का उचित प्रयोग कर सकें।

7. शासन एक कला है (Governing is an Art) आज शासन.को एक कला माना जाता है जिसके सामने बहुत-सी जटिल समस्याएं होती हैं। इसलिए योग्य और अयोग्य का विचार किए बिना मताधिकार देना बुद्धिमत्ता नहीं कहा जा सकता। मत का अधिकार उसे ही दिया जाना चाहिए जो इसके योग्य हो।

8. मताधिकार एक पवित्र राष्ट्रीय कर्त्तव्य है (Franchise is a sacred National Duty) मताधिकार कोई खिलौना नहीं कि बच्चा उसके साथ जैसे चाहे खेलता रहे और जैसे चाहे उसका प्रयोग करे। मताधिकार एक राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसका प्रयोग बड़ी बुद्धिमत्ता के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि यह अधिकार सोचसमझ कर केवल योग्य नागरिकों को ही मिलना चाहिए।

9. वैज्ञानिक उन्नति के विरुद्ध (Against Scientific Progress)—सर हैनरी मेन का यह विश्वास है कि वयस्क मताधिकार वैज्ञानिक उन्नति के विरुद्ध कार्य करेगा। साधारण व्यक्तियों को गुमराह करके चालाक और रूढ़िवादी लोग सत्ता में आ जाते हैं जिनके अधीन वैज्ञानिक उन्नति नहीं हो पाती।

10. मताधिकार कोई जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं (Franchise is not a Birthright)-मिल तथा लेकी (Mill and Lecky) जैसे लेखकों का विचार था कि मतदान का अधिकार कोई जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं है। वह तो केवल उनको ही मिलना चाहिए जो इसके ठीक प्रयोग के लिए योग्यता रखते हैं।

11. केवल मताधिकार से अन्य अधिकार सुरक्षित नहीं हो जाते (Suffrage alone does not protect other rights)—यह विचार ठीक नहीं है कि मताधिकार नागरिक के अन्य अधिकारों की आधारशिला है। केवल नागरिक को मताधिकार दे देने से उसके सामाजिक तथा आर्थिक अधिकार सुरक्षित नहीं हो जाते। नागरिकों के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए नागरिकों की सतत् जागरूकता, स्वतन्त्र न्यायपालिका, स्वतन्त्र प्रेस, स्वस्थ लोकमत, संगठित विरोधी दल आदि का होना अधिक आवश्यक है।

12. अधिक खर्चीला (More Expensive)—वयस्क मताधिकार से बहुत अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त हो जाता है। चुनाव के समय सरकार को बहुत अधिक व्यापक स्तर पर मतदान केन्द्रों की व्यवस्था करनी पड़ती है और उतने अधिक चुनाव अधिकारी नियुक्त करने पड़ते हैं। इससे बहुत अधिक खर्चा होता है और यह खर्चा अन्तिम रूप से गरीब जनता पर पड़ता है। उदाहरण के लिए 16वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारत में मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ से अधिक थी, जिस कारण चुनाव पर करोड़ों रुपए खर्च हुए।

जिन व्यक्तियों को मताधिकार नहीं मिलना चाहिए (Persons who should not be given the Right to Vote)-वयस्क मताधिकार लागू करने का यह अर्थ नहीं कि सभी वयस्क नागरिकों को पूर्ण रूप से मताधिकार दिया जाए। समाज में कुछ व्यक्ति या नागरिक ऐसे भी होते हैं जिन्हें मताधिकार नहीं दिया जा सकता-

  • नाबालिग (Minors). किसी भी राज्य में नाबालिग को मताधिकार नहीं दिया जा सकता।
  • पागल (Isane Persons)-ऐसे व्यक्तियों को भी जो पागल हों मताधिकार से वंचित रखा जाता है उन्हें मत प्रयोग के बारे में पता नहीं होता।
  • घोर अपराधी (Criminals)—घोर अपराधियों को भी मताधिकार से वंचित रखा जाता है ताकि उन्हें यह बात महसूस हो और भविष्य में अपराध न करें। अपने मत का दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों को भी इस अधिकार से वंचित रखा जाता है।
  • दिवालिए (Insolvent) दिवालिए को भी मतदान का अधिकार नहीं दिया जाता।
  • सरकारी कर्मचारी (Government Officials) कुछ विद्वानों का विचार है कि सरकारी कर्मचारी को भी मताधिकार नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि इससे वे राजनीति को भ्रष्ट करते हैं, परन्तु केवल कुछ ही देशों में सरकारी कर्मचारियों को मताधिकार से वंचित किया गया है।
  • धार्मिक नेता (Religious Leaders)-धार्मिक नेताओं को भी कई देशों में मताधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • विदेशी (Aliens)-विदेशियों को भी मताधिकार प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि वे अपने देश के प्रति वफादार होते है।

निष्कर्ष (Conclusion) वयस्क मताधिकार के बिना लोकतन्त्र न तो पूर्ण है और न ही सफल हो सकता है। लोकतन्त्र जनता का शासन होता है किसी वर्ग विशेष का नहीं, इसलिए आवश्यक है कि अपनी सरकार चुनने का अधिकार सब को एक समान होना चाहिए। वयस्क मताधिकार ही प्रजातन्त्र का प्रतीक और सूचक है। आज प्रायः सभी लोकतन्त्रीय राष्ट्रों में वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त अपनाया गया है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 3.
अनुपातिक प्रतिनिधिता का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके दो गुणों व दो दोषों का वर्णन करें।
(What do you understand by the term. ‘Proportional Representation ? Describe its two merits and two demerits.)
अथवा
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के गुण और दोषों का वर्णन कीजिए। (Write down the merits and demerits of proportional representational system.)
उत्तर-
प्रजातन्त्रात्मक शासन में चुनी गई विधानपालिका के लिए आवश्यक है कि इसमें जनता के हर वर्ग और दल को पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व मिले। परन्तु चुनाव के लिए जो प्रणाली आमतौर पर अपनाई जाती है, वह इस उद्देश्य की प्राप्ति में सफल नहीं हो सकती। यह प्रणाली है एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र और साधारण बहुमत की। इस प्रणाली के अनुसार एक निर्वाचन क्षेत्र में जितने भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हों, उनमें से जिसको दूसरे से अधिक वोटें प्राप्त हों वह विजयी घोषित कर दिया जाता है। इस प्रणाली के कुछ गम्भीर दोष हैं जैसे कि-

(1) मान लो कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या एक हज़ार है और दो उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। मान लो चुनाव में एक उम्मीदवार को 501 वोटें मिली और दूसरे को 499। चूंकि पहले उम्मीदवार को दूसरे की अपेक्षा अधिक वोटें मिली हैं, वह निर्वाचित घोषित किया जाएगा। इसका दोष यह हुआ कि विधानमण्डल में 499 मतदाताओं को प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त हो सका।

(2) सन् 1971 के संसद् के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 43 प्रतिशत वोटें पड़ीं, परन्तु इसको संसद् में 68 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसी चुनाव में जनसंघ को 7 प्रतिशत वोटें पड़ी परन्तु संसद् में केवल चार प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसी प्रकार कांग्रेस (संगठन) को 10 प्रतिशत से भी अधिक वोटें पड़ीं, परन्तु संसद् में इसे केवल 3 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसका दोष यह हुआ कि संसद् भारतीय जनता का ठीक अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं करती। इन दोषों को दूर करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया जाता है।

प्रश्न 4.
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से क्या भाव है ? अल्पसंख्यओं को प्रतिनिधित्व देने वाली किन्हीं चार विधियों का वर्णन करें।
(What is meant by Minority Representation ? Explain any four methods by which minority representation can be possible.)
उत्तर-
हर देश में लोग कई आधार पर बंटे होते हैं। कई समूहों या वर्गों के लोग संख्या में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई और पारसी लोग हैं।

लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग व समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिले । उचित प्रतिनिधित्व का भाव यह है कि चुनाव प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि हर वर्ष में अपने प्रतिनिधि विधानपालिका में भिजवा सके ताकि हर वर्ग अपनी विचारधारा और दृष्टिकोण को पेश कर सके। यदि ऐसा नहीं हो सकेगा तो विधानमण्डल में कुछ ही बहुसंख्यक दलों या वर्गों के प्रतिनिधि होंगे और विधानमण्डल जनमत का दर्पण (Mirror of the Public Opinion) नहीं कहला सकेगा। मिल (Mill) ने भी कहा है कि, “लोकतन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।”

आजकल प्रायः सभी देशों में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र (Single member Constituency) है और चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। उसका एक काफ़ी बड़ा दोष है कि इस प्रणाली में बहुमत वर्ग को ही सभी क्षेत्रों में प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिलता है अर्थात् जिस वर्ग या राजनीतिक दल के मतदाताओं की संख्या बहुमत में हो उसका सभी क्षेत्रों में सफल होना स्वाभाविक है। इस तरह अल्पसंख्यक वर्ग या राजनीतिक दल के उम्मीदवार सभी क्षेत्रों में हार जाते हैं। कभी-कभी तो जहां कई राजनीतिक दल हों एक उम्मीदवार थोड़े से मत लेकर भी प्रतिनिधि चुना जाता है। मान लो एक दल को लगभग सभी क्षेत्रों में 60% मत प्राप्त होते हैं। इससे तो यह पता चलता है कि राज्य में केवल 60% मतदाताओं का ही वह दल प्रतिनिधित्व करता है और न्यायसंगत बात यह है कि संसद् में उस दल के कुल 60% सदस्य होने चाहिएं परन्तु वास्तव में उस दल को लगभग सभी स्थान प्राप्त हो जाते हैं। इसमें शेष 40 प्रतिशत लोगों को संसद् में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलता और उनके हितों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इससे लोकतन्त्र वास्तविक नहीं बन सकता। प्रजातन्त्र को वास्तविक प्रजातन्त्र बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उन 40 प्रतिशत लोगों को भी सरकार में प्रतिनिधित्व दिया जाए। एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली में तो अल्पसंख्यकों को उनकी संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिलना सम्भव नहीं और कई बार तो उन्हें प्रतिनिधित्व मिलता ही नहीं। इसलिए कुछ ऐसे तरीके निकाले गए हैं जिसके द्वारा अल्पसंख्यक, वर्गों को कुछ उनकी संख्या के अनुसार, व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सके। इन तरीकों की विस्तारपूर्वक व्याख्या नीचे दी जा रही है-

1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा सभी वर्गों या राजनीतिक दलों को उनकी संख्या के अनुपात से व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व मिलने की काफ़ी सम्भावना रहती है। बहुत ही छोटे दल या महत्त्वहीन दल को बेशक प्रतिनिधित्व न मिले, परन्तु अल्पसंख्यक कहे जाने वाले वर्गों को अवश्य स्थान मिल जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के भी दो तरीके हैं—’एकल संक्रमणीय मत प्रणाली या प्राथमिकता मत प्रणाली तथा सूची प्रणाली।’

2. सीमित मत प्रणाली (Limited Vote System)-सीमित मत प्रणाली भी अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने का तरीका है। इस प्रणाली में बहु-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होते हैं और कम-से-कम तीन सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक मतदाता को एक से अधिक परन्तु स्थानों की संख्या से कम मत दिए जाते हैं। मान लो एक क्षेत्र में 5 सदस्य चुने जाते हैं तो एक मतदाता को तीन वोटे मिलेंगे और वह अपने तीन वोट एक ही उम्मीदवार को नहीं दे सकता। बल्कि तीन अलग-अलग उम्मीदवारों को ही दे सकता है। इससे बहुसंख्यक वर्ग पांच में से तीन स्थान तो प्राप्त कर लेगा परन्तु दो स्थान फिर भी अल्पसंख्यक वर्गों को प्राप्त हो जाते हैं।

इसके गुण (Its Merits)-इस प्रणाली में कई गुण पाए जाते हैं-

(1) इस प्रणाली द्वारा अल्पसंख्यकों को व्यवस्थापिका में कुछ स्थान प्राप्त हो जाते हैं।
(2) यह तरीका आसान भी है क्योंकि इसमें मतों के संक्रमण की आवश्यकता नहीं होती। इसके दोष (Its Demerits)-इस प्रणाली के कई दोष भी हैं-

  • इससे अल्पसंख्यक वर्ग को संसद् में एक-दो स्थान बेशक मिल जाएं परन्तु अपनी संख्या के अनुपात में स्थान नहीं मिल सकते।
  • जिस देश में कई अल्पसंख्यक वर्ग हों, वहां यह प्रणाली उचित रूप से कार्य नहीं कर पाती। थोड़ी-थोड़ी संख्या वाले वर्गों को कोई स्थान प्राप्त होने की कोई सम्भावना नहीं होती, क्योंकि उनकी वोटें बंट जाती हैं।
  • यह प्रणाली एक सदस्यीय क्षेत्र में लागू नहीं हो सकती।
  • इस प्रणाली के अन्दर उप-चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं हो सकती। जापान और इटली में इस प्रणाली को कुछ समय बाद बंद कर दिया गया था।

3. संचित मत प्रणाली (Cumulative Vote System)—संचित मत प्रणाली में बहु सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते हैं। एक मतदाता को उतने ही मत मिलते हैं जितने कि सदस्य चुने जाने हों। मान लो उस क्षेत्र में 15 सदस्य चुने जाने हैं तो एक मतदाता को 15 वोट मिलते हैं। मतदाता को यह स्वतन्त्रता होती है कि वे अपने इन सभी वोटों का जैसे चाहे प्रयोग करे अर्थात् वह अपने सब वोट एक ही उम्मीदवार को दे सकता है और अलग-अलग उम्मीदवारों को भी।

इसके लाभ (Its Merits)-इस प्रणाली के कई गुण हैं। इस प्रणाली का यह लाभ है कि इसके द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को कुछ स्थान प्राप्त हो जाते हैं। अल्पसंख्यक मतदाता अपने सब मत एक ही उम्मीदवार को देंगे और इससे उसके पास काफ़ी मात्रा में वोट हो जाएंगे और उसके चुने जाने की सम्भावना हो जाएगी।

इसके दोष (Its Demerits)—इस प्रणाली में कई दोष पाए जाते हैं-

  • इस प्रणाली में भी अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी संख्या के अनुपात के अनुसार स्थान नहीं मिलते।
  • इस प्रणाली में बहुत-से मतों के व्यर्थ जाने की सम्भावना भी रहती है।
  • इस प्रणाली में राजनीतिक दलों का अच्छा संगठन होना चाहिए जिनके बिना अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता। इससे राजनीतिक दलों की बुराइयां भी बढ़ जाती हैं।

4. द्वितीय मतदान प्रणाली (Second Ballot System)–इस प्रणाली के लिए एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होना चाहिए। उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए कुल डाले गए वोटों का पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिए। यदि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो तो उस उम्मीदवार को जिसने चुनाव में सबसे कम मत प्राप्त किए हों चुनाव से निकाल दिया जाता है और दूसरी बार मतदान करवाया जाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक किसी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो जाए।

5. पृथक् निर्वाचन प्रणाली (Separate Electorate System)-अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका भारत में अंग्रेजों ने लागू किया था। इसे पृथक् निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न धर्मों और जातियों के लिए उनकी संख्या के अनुसार व्यवस्थापिका में स्थान सुरक्षित (Reserve) किए जाते हैं और उन विभिन्न धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने प्रतिनिधि अलग-अलग चुनते हैं अर्थात् मुसलमान मतदाता मुसलमान उम्मीदवारों को वोट देते हैं और दूसरे धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने उम्मीदवारों को। 1909 के एक्ट के अनुसार भारत में मुसलमानों को अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था। 1919 के एक्ट द्वारा सिक्खों को भी अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था। 1935 के एक्ट द्वारा इसे और फैलाया गया। इस प्रणाली को साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व (Communal Representation) भी कहा जाता था।

इस प्रणाली के गुण व दोष (Its Merits and Demerits)-इस प्रणाली का गुण तो केवल यही है कि प्रत्येक जाति और धर्म को लोगों के उनकी संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिल जाता है, परन्तु इस प्रणाली के दोष अधिक हैं। इससे लोगों में राष्ट्रीय एकता उत्पन्न नहीं होती बल्कि वे जाति और धर्म के नाम पर छोटे-छोटे गुटों में बंट जाते हैं। लोगों में आपसी झगड़े होते हैं जैसे कि भारत में हिन्दू और मुसलमानों में हुए और बाद में देश के दो टुकड़े हो गए।

6. सुरक्षित स्थान सहित संयुक्त निर्वाचन (Reservation of Seats with Joint Electorate)-भारत में संविधान द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका अपनाया गया है। यह तरीका पृथक् निर्वाचन प्रणाली से अच्छा माना जाता है। इस तरीके के अनुसार अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर कुछ स्थान सुरक्षित कर दिए जाते हैं। उन सुरक्षित स्थानों के लिए उम्मीदवार उसी जाति या वर्ग से खडे हो सकते हैं, परन्तु मतदाता सभी नागरिक होते हैं अर्थात् अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य समस्त मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।

इसका लाभ यह है कि इससे अल्पसंख्यक वर्ग को प्रतिनिधित्व भी मिल जाता है और राष्ट्रीय एकता भी नष्ट नहीं होने पाती, परन्तु इसका दोष यह है कि इससे ऐसी जातियों और वर्गों में हीनता की भावना आ जाती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली तथा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के गुणों तथा अवगुणों की विस्तार सहित व्याख्या कीजिए।
(Discuss in details the Merits and Demerits of Direct Election System and indirect Election system.)
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के गुणों तथा अवगुणों का वर्णन करो।
(Write merits and demerits of Direct Election System.)
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया हुआ शासन होता है। प्रजातन्त्र के दो रूप होते हैं-एक प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र तथा दूसरा अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र। प्राचीन यूनान में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र प्रचलित था। आधुनिक युग में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है क्योंकि आधुनिक राज्यों की जनसंख्या इतनी अधिक है कि इसके लिए एक स्थान पर एकत्रित होकर कानून बनाना तथा नीति का निर्माण करना असम्भव है। इसलिए सरकार का काम लोगों के प्रतिनिधियों की ओर से चलाया जाता है। जनता द्वारा एक निश्चित समय के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों को स्थानीय संस्थाओं के लिए तथा विधानसभाओं के लिए चुनकर भेजने के ढंग को चुनाव (Election) कहा जाता है। भारत में विधानसभाओं तथा संसद् के लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं। नगरपालिका, जिला परिषद् तथा पंचायतों के सदस्य भी चुने जाते हैं। बिना चुनावों के लोकतन्त्रीय शासन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। आज प्रायः सभी देशों में वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त अपनाया गया है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव। .

प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election)-प्रायः निचले अर्थात् लोकप्रिय सदनों (Popular House) का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। मतदाताओं के मतों के आधार पर ही सदस्य चुने जाते हैं। जब मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनें और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
वयस्क मताधिकार से आपका क्या भाव है ? ।
उत्तर-
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि एक निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिमा किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आयु राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। इंग्लैण्ड में पहले 21 वर्ष के नागरिक को मताधिकार प्राप्त था, परन्तु अब यह 18 वर्ष है। रूस और अमेरिका में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी, परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है। सार्वभौम मताधिकार में पागलों, दिवालियों, बच्चों, सज़ा प्राप्त व्यक्तियों इत्यादि को मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं होता। निश्चित आयु के होने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के मत डालने का अधिकारी बन जाता है, पर इसके साथ एक निश्चित समय तक निवास की शर्त भी रखी जाती है। आधुनिक युग में सार्वभौम वयस्क मताधिकार को ही उचित और न्यायसंगत माना गया है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 2.
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने से क्या अभिप्राय है ? अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाली दो विधियों के नाम लिखें।
अथवा
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश में लोग कई आधारों पर बंटे होते हैं। कई समूहों या वर्गों के लोग किसी राज्य में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई, मुस्लिम और पारसी लोग। लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग तथा समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अल्पसंख्यकों को अपनी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। एक सदस्यीय चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। अतः अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देना आवश्यक है ताकि विधानमण्डल जनमत का दर्पण कहला सके।
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाली दो विधियां-इसके लिए प्रश्न नं. 19 देखें।

प्रश्न 3.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में चार दलीलें लिखो।
उत्तर-
स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। स्त्री मताधिकार के पक्ष में मुख्यत: निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

  • यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार है। लोकतन्त्र में समस्त जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार मिलता है और जनता में जितना भाग पुरुष का है, उतना ही स्त्री का है।
  • स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।
  • स्त्रियां दूसरे सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं-इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्रशासन के क्षेत्र में स्त्रियों ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। आजकल पुलिस और सेना में भी स्त्रियां कार्य कर रही हैं, फिर राजनीति के क्षेत्र में वे कार्य क्यों नहीं कर सकेंगी।
  • स्त्रियां शान्तिप्रिय होती हैं-स्त्रियां स्वभाव से ही शान्ति प्रिय होती हैं और इससे राजनीति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 4.
स्त्री मताधिकार के विपक्ष में चार तर्क दें।
अथवा
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध चार तर्क दो।
उत्तर-
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध मुख्य तर्क निम्नलिखित दिए जाते हैं

  • स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है- यदि उसे मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।
  • स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति है-अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई आदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।
  • घरेलू शान्ति के भंग होने का खतरा–यदि स्त्री मताधिकार लागू किया जाए तो इससे घरेलू शान्ति के भंग होने का बहुत डर रहता है।
  • उदासीनता-स्त्रियां प्रायः राजनीति के प्रति उदासीन रहती हैं। इसलिए वे अपने वोट का उचित प्रयोग नहीं कर पातीं।

प्रश्न 5.
बालिग मताधिकार के पक्ष में चार तर्क दें।
अथवा
सार्वजनिक वयस्क (बालिग) मताधिकार के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
वयस्क मताधिकार के पक्ष में मुख्य निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-

  • प्रभुसत्ता जनता के पास है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। इसलिए मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।
  • कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। इसीलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए।
  • व्यक्ति के विकास के लिए मताधिकार आवश्यक-लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का विकास करने के लिए कई प्रकार के अधिकार मिलते हैं। उन अधिकारों में मताधिकार भी आवश्यक है और इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता। दूसरे अधिकारों की रक्षा के लिए मताधिकार आवश्यक है।
  • रकार को अधिक बल मिलता है-वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली होती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 6.
सार्वभौम वयस्क मताधिकार के विरोध में चार तर्क लिखिए।
उत्तर-
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध मुख्य तर्क निम्नलिखित दिए जाते हैं

  • शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए-बहुत से लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है। मिल का कहना है कि वयस्क मताधिकार से पहले शिक्षा को अनिवार्य बनाना आवश्यक है। जिसे लिखना-पढ़ना नहीं आता उसे वोट देने का अधिकार कभी नहीं मिलना चाहिए।
  • मूों का शासन-वयस्क मताधिकार द्वारा मूों का शासन स्थापित हो जाता है, क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूों की संख्या अधिक होती है।
  • मत का दुरुपयोग- यदि अशिक्षित और निर्धन व्यक्तियों को भी मताधिकार दे दिया जाए तो वे इसका ठीक प्रयोग नहीं करेंगे। अशिक्षित व्यक्ति बिना सोचे-समझे अपने मत का प्रयोग कर अयोग्य व्यक्तियों का शासन स्थापित करेंगे और निर्धन व्यक्ति कुछ पैसों के लालच में आकर अपना वोट बेचने को भी तैयार हो जाएंगे।
  • खर्चीली व्यवस्था-वयस्क मताधिकार से बहुत अधिक लोगों को मताधिकार प्राप्त हो जाता है, जिससे चुनाव प्रक्रिया बहुत खर्चीली हो जाती है।

प्रश्न 7.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
अथवा
क्षेत्रीय प्रतिनिधत्व से क्या भाव है ? क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त प्रायः सभी देशों में पाया जाता है। इसके अनुसार सारे देश के मतदाताओं को प्रादेशिक इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक या अधिक प्रतिनिधि चुने जाते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र या प्रदेश में रहने वाले सभी मतदाता उस क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और प्रतिनिधि उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि क्षेत्र के समस्त मतदाताओं की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन प्रायः भौगोलिक आधार पर किया जाता है। इन निर्वाचन क्षेत्रों का निश्चित समय के पश्चात् बढ़ती हुई जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया जाता है। यह कार्य परिसीमन आयोग के द्वारा किया जाता . है। भारत में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों का चुनाव प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।

क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के निम्नलिखित दो गुण हैं –

  1. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से प्रादेशिक एकता को बढ़ावा मिलता है।
  2. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
अथवा
प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधि निर्वाचन द्वारा चुनती है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव।
जब मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या सीधे तौर पर अपने प्रतिनिधि चुने और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोक सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं। इंग्लैण्ड में कॉमन सदन (House of Common) तथा अमेरिका में प्रतिनिधि सदन (House of Representative) के सदस्य जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कोई चार गुण लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-

  • मतदाताओं और प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्बन्ध रहता है, क्योंकि प्रतिनिधि मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्यक्ष सम्पर्क से प्रतिनिधि और मतदाता एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को समझते हैं।
  • यह प्रणाली अधिक लोकतन्त्रात्मक है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और समस्त शक्तियां अन्तिम रूप में जनता में निहित होती हैं। मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि चुनते हैं। अतः प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का सिद्धान्त लोकतन्त्र के अनुकूल है।।
  • मतदाता की प्रतिष्ठा में वृद्धि-प्रत्यक्ष चुनाव में मतदाता प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव में भाग लेते हैं। चुनाव के समय प्रत्येक उम्मीदवार को चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, धनी-निर्धन सभी के पास जाकर वोट के लिए निवेदन करना पड़ता है। इससे लोग यह समझने लगते हैं कि उनका शासन में भाग है, सरकार को बनाने में उनका भी हाथ है। इस तरह मतदाताओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
  • समानता की भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप में मताधिकार प्रयोग करने का अवसर मिलता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में अन्तर बताइए।
अथवा
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव विधि में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जब मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनें और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। परन्तु अप्रत्यक्ष चुनाव में जनता के चुने प्रतिनिधि संसद् या विधानसभा के सदस्यों का चुनाव करते हैं। संसद् के निम्न सदन का चुनाव आमतौर पर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा होता है जबकि ऊपरि सदन के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं। भारत में राज्यसभा के सदस्य इसी प्रकार से चुने जाते हैं, जबकि पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।

प्रश्न 11.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से क्या भाव है ?
उत्तर-
प्रजातन्त्र के लिए चुनाव का होना अनिवार्य है। जनता निश्चित अवधि के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव। जब वे प्रतिनिधि जिनके हाथ में शासन सत्ता रहती हो, जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जाकर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों तो उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहा जाता है। अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में जनता निर्वाचक मण्डल के सदस्यों को चुन लेती है और वे सदस्य मुख्य प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं। भारत में राज्य सभा के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति तथा राज्यों की विधान परिषदों के सदस्य भी अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 12.
चुनाव प्रणाली में अप्रत्यक्ष चुनाव के चार गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. योग्य प्रतिनिधियों के चुनाव की अधिक सम्भावना – अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत मतदाताओं की संख्या पर्याप्त कम होती है। अल्प मतदाता उम्मीदवारों की योग्यताओं सम्बन्धी परस्पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। प्रत्येक मतदाता का उम्मीदवार के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क भी सम्भव हो सकता है। इस प्रकार योग्य प्रतिनिधियों के चुनाव की अधिक सम्भावना हो सकती है।

2. राजनीतिक दलों के प्रभावों की कम सम्भावना-अप्रत्यक्ष चुनाव के अधीन राजनीतिक दलों के कुप्रभावों की सम्भावना पर्याप्त कम हो जाती है। मताधिकार अल्प-मात्र बुद्धिमान् व्यक्तियों तक ही सीमित होता है इसलिए राजनीतिक दलों को विशाल स्तर पर जलसे, जुलूस का प्रबन्ध अथवा प्रचार करने की आवश्यकता नहीं होती।

3. कम खर्चीली विधि-इस प्रणाली अधीन अत्यधिक धन व्यय नहीं किया जाता। अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाताओं की संख्या कम तथा चुनाव क्षेत्र का आकार छोटा होने के कारण अत्यधिक धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।

4. सार्वजनिक उत्तेजना की कम सम्भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्राय: लोगों को उकसाते हैं। उनमें दल गुटबन्दी की भावना इतनी अधिक होती है कि छोटे-छोटे मामलों सम्बन्धी झगड़े करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी कारण विभिन्न उम्मीदवारों के समर्थकों में दंगे-फसाद प्रायः होते रहते हैं परन्तु ऐसी स्थिति अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में कम ही सम्भव हो सकती है।

प्रश्न 13.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कोई चार दोष लिखें।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं-

  • अलोकतन्त्रीय प्रणाली-अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अलोकतन्त्रीय है, क्योंकि इस प्रणाली के द्वारा जनता को अपनी इच्छा को प्रकट करने का अवसर नहीं मिलता। सरकार के निर्माण में मतदाताओं का सीधा हाथ नहीं होता।
  • लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती-अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कारण लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती, क्योंकि प्रतिनिधियों का चुनाव जनता के हाथ में नहीं होता है। मतदाता अपने आपको शासन का अंग और भागीदार अनुभव नहीं करते और वे चुनाव के प्रति उदासीन ही रहते हैं।
  • कम खर्चीली नहीं-यह प्रणाली उतनी कम खर्चीली नहीं जितनी कि सोची जाती है। इसका कारण यह है कि पहले निर्वाचक मण्डल के सदस्यों का चुनाव किया जाता है और बाद में निर्वाचक मण्डल के सदस्य प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इस प्रकार इस प्रणाली में काफ़ी खर्चा होता है, जिस तरह प्रत्यक्ष प्रणाली में होता है।
  • इस प्रणाली में मतदाताओं एवं प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 14.
पेशेवर प्रतिनिधित्व क्या है ? पेशेवर प्रतिनिधित्व के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-
व्यावसायिक प्रतिनिधित्व का अर्थ है कि एक क्षेत्र में रहने वाले सभी नागरिक एक प्रतिनिधि न चुनें बल्कि एक व्यवसाय से सम्बन्धित सारे नागरिक अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजें और दूसरे व्यवसाय से सम्बन्धित नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनें अर्थात् सभी व्यवसायों को विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो ताकि प्रत्येक व्यवसाय के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। इस प्रणाली के अन्तर्गत डॉक्टर, अध्यापक, वकील, मज़दूर, पूंजीपति और व्यापारी अपने-अपने अलग प्रतिनिधि चुनेंगे जो उन व्यवसायों से सम्बन्धित होंगे। अतः इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक व्यवसाय को विधानमण्डल में अपना प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिल जाता है। इस प्रणाली का समर्थन सबसे पहले एक फ्रैंच लेखक ‘मिराबो’ ने किया था। फ्रांस की क्रान्ति के समय उसने यह घोषणा की थी कि विधानमण्डल को समाज के सब हितों का एक छोटा-सा दर्पण होना चाहिए। संसार के कई देशों में इस प्रणाली को लाग भी किया गया है। इस प्रणाली को पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट के चुनाव में भी अपनाया गया है।

पेशेवर प्रतिनिधित्व के दो गुण निम्नलिखित हैं-

  1. पेशेवर प्रतिनिधित्व में राष्ट्र के प्रत्येक वर्ग को प्रतिनिधत्व मिलता है।
  2. पेशेवर प्रतिनिधित्व अधिक प्रजातांत्रिक है।

प्रश्न 15.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी चुनाव प्रणाली है जिसके अनुसार जनता के हर वर्ग या दल को विधानमण्डल में उतना ही प्रतिनिधित्व मिलता है जितना उनके समर्थकों का अनुपात होता है। एक वर्ग या दल के पीछे जितने प्रतिशत मतदाता होंगे उसे विधानमण्डल में उतने ही प्रतिशत सीटें प्राप्त होंगी। इस प्रणाली के तीन मुख्य लक्षण हैं-

  • बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र-निर्वाचन क्षेत्रों का बहु-सदस्यीय (Multi-member) होना आवश्यक है। आम मत यह है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में तीन से लेकर पन्द्रह तक प्रतिनिधियों के चुने जाने की व्यवस्था है।
  • वोट की तरजीह-हर मतदाता के पास केवल एक ही वोट होती है, परन्तु पर्ची (Ballot-Paper) पर उस वोट के लिए भिन्न-भिन्न उम्मीदवारों के प्रति अपनी तरजीह या पसन्द (जैसे कि प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि) को अंकित कर सकता है।
  • वोटों की निश्चित संख्या-चुनाव में विजयी होने के लिए उम्मीदवार को वोटों की एक निश्चित संख्या (Quota) प्राप्त करनी होती है। इस संख्या को निर्धारित करने के लिए कुछ भिन्न-भिन्न नियम प्रचलित हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 16.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कोई चार गुण लिखो।
उत्तर-

  • प्रत्येक वर्ग या दल को उचित प्रतिनिधित्व-इस प्रणाली के अनुसार समाज का कोई वर्ग या देश का कोई भी दल प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रह जाता है। जिस वर्ग या दल के पीछे जितने मतदाता होते हैं उसको उसी अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
  • अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है, जिससे उनके हितों की रक्षा होती है।
  • एक राजनीतिक दल की निरंकुशता स्थापित नहीं होती-इस प्रणाली के अधीन किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता। विधानमण्डल में लगभग सभी दलों को कुछ-न-कुछ सीटें प्राप्त होती हैं जिससे कोई एक दल अपनी निरंकुशता स्थापित नहीं कर पाता।
  • कोई भी वोट व्यर्थ नहीं जाती-इस प्रणाली के अधीन प्रत्येक वोट की गिनती की जाती है।

प्रश्न 17.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कोई चार अवगुण लिखो।
उत्तर-

  • यह प्रणाली बहुत जटिल है-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण वोटर इसे समझ नहीं सकता। वोटों पर पसन्द अंकित करना, कोटा निश्चित करना, वोटों की गिनती करना और वोटों को पसन्द के अनुसार हस्तान्तरित करना आदि बातें एक साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति की समझ से बाहर हैं।
  • राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियां भी अपनी भिन्नता बनाये रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बंटकर रह जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।
  • राजनीतिक दलों का अधिक महत्त्व-आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक हो जाता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है। निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।
  • उत्तरदायित्व का अभाव-इस प्रणाली के अधीन निर्वाचन क्षेत्र बहुसदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 18.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के विरुद्ध चार तर्क दें।
उत्तर-

  • योग्य प्रतिनिधियों के निर्वाचन की कम सम्भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अधीन साधारण मतादाताओं को ग़लत प्रचार के द्वारा प्रभावित किया जा सकता है। परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष चुनाव विधि के अधीन योग्य उम्मीदवारों के निर्वाचित होने की सम्भावना होती है।
  • गुणवान् व्यक्ति ऐसे चुनावों से भयभीत होते हैं-प्रत्यक्ष चुनाव विधि के अधीन राजनीतिक गतिविधियों का स्तर निम्न स्तर पर पहुंच जाता है। ऐसी विधि के अधीन हिंसक घटनाएं भी प्रायः होती हैं। इस प्रकार की अवस्थाओं में बुद्धिमान् तथा गुणवान् व्यक्ति चुनाव लड़ने से भयभीत होते हैं।
  • यह चुनाव विधि धनवानों के लिए-इस प्रकार की चुनाव प्रणाली में अत्यधिक धन व्यय किया जाता है। ऐसी प्रणाली में कोई निर्धन गुणवान् व्यक्ति चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं करता।
  • खर्चीली विधि-यह प्रणाली बहुत अधिक खर्चीली है।

प्रश्न 19.
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की चार विधियां लिखो।
अथवा
अल्प (कम) गिनती को प्रतिनिधित्व देने की किन्हीं तीन मुख्य विधियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाले विभिन्न तरीके निम्नलिखित हैं-
1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा सभी वर्गों या राजनीतिक दलों को उनकी संख्या के अनुपात से व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व मिलने की काफ़ी सम्भावना रहती है।

2. सीमित मत प्रणाली-सीमित मत प्रणाली भी अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने का तरीका है। इस प्रणाली में बहु-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होते हैं और कम-से-कम तीन सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक मतदाता को एक से अधिक परन्तु स्थानों की संख्या से कम मत दिए जाते हैं।

3. संचित मत प्रणाली-संचित मत प्रणाली में बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते हैं। एक मतदाता को उतने ही मत मिलते हैं जितने कि सदस्य चुने जाते हैं।

4. पृथक निर्वाचन प्रणाली-अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका भारत में अंग्रेजों ने लाग किया था। इसे पृथक निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न धर्मों और जातियों के लिए उनकी संख्या के अनुसार व्यवस्थापिका में स्थान आसुरक्षित (Reserve) किए जाते हैं और उन विभिन्न धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने प्रतिनिधि अलग-अलग चुनते हैं अर्थात् मुसलमान मतदाता मुसलमान उम्मीदवारों को वोट देते हैं और दूसरे धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने उम्मीदवारों को। 1909 के एक्ट के अनुसार भारत में मुसलमानों को अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
वयस्क मताधिकार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि एक निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आयु राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है।

प्रश्न 2.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक देश में लोग कई आधार पर बंटे होते हैं। कई समूह या वर्गों के लोग किसी संस्था में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई, मुस्लिम और पारसी लोग। लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग तथा समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अल्पसंख्यकों को अपनी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 3.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दें।
उत्तर-
स्त्री मताधिकार के पक्ष में मुख्यतः निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-

  1. यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार है।
  2. स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।

प्रश्न 4.
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध दो तर्क दें।
उत्तर-

  1. स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है-यदि उसे मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।
  2. स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति है-अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई आदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 5.
सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दें।
उत्तर-

  1. प्रभुसत्ता जनता के पास है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। इसके मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।
  2. कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। इसीलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए।

प्रश्न 6.
सार्वभौम वयस्क मताधिकार के विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर-

  • शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए-बहुत से लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है।
  • मूों का शासन-वयस्क मताधिकार द्वारा मूों का शासन स्थापित हो जाता है क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूों की संख्या अधिक होती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 7.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के अनुसार सारे देश के मतदाताओं को प्रादेशिक इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक या अधिक प्रतिनिधि चुने जाते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र या प्रदेश में रहने वाले सभी मतदाता उस क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और प्रतिनिधि उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि क्षेत्र के समस्त मतदाताओं की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते
हैं।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या सीधे तौर पर अपने प्रतिनिधि चुने और वे प्रतिनिधि ही संसद या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोक सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 9.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी चुनाव प्रणाली है जिसके अनुसार जनता के हर वर्ग या दल को विधानमण्डल में उतना ही प्रतिनिधित्व मिलता है जितना उनके समर्थकों का अनुपात होता है। एक वर्ग या दल के पीछे जितने प्रतिशत मतदाता होंगे उसे विधानमण्डल में उतने ही प्रतिशत सीटें प्राप्त होंगी।

प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष चुनाव के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर-

  1. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाताओं एवं प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्बन्ध रहता है।
  2. प्रतिनिधियों में अधिक उत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
मताधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वोट डालने के अधिकार को मताधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वयस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
वयस्क मताधिकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वयस्क मताधिकार से भाव सभी बालिग व्यक्तियों को बिना किसी भेद-भाव के मताधिकार देना है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 3.
बालग मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दीजिए।
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष में कोई एक तर्क लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रजातन्त्र में सभी व्यक्ति समान माने जाते हैं।
  2. बालग मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली होती है।

प्रश्न 4.
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक दलील दीजिए।
उत्तर-
सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार देना तर्कहीन है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 5.
महिला मताधिकार का क्या भाव है ?
उत्तर-
महिला मताधिकार का अर्थ है बिना किसी भेदभाव के महिलाओं को मतदान का अधिकार देना।

प्रश्न 6.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 7.
स्त्री मताधिकार के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर-
अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं. उनमें इतनी सोच-विचार करने की क्षमता नहीं होती कि वोट किसे दी जानी चाहिए।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का क्या अर्थ है ?
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जिस चुनाव प्रणाली में मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं उसे प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहते

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का कोई एक गुण लिखिए।
उत्तर-
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।

प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के दो दोष लिखें।
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का एक दोष लिखिए।
उत्तर-

  1. आम नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव नहीं कर सकता।
  2. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अधिक खर्चीली है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 11.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का क्या अर्थ है ?
अथवा
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब वे प्रतिनिधि जिनके हाथ में शासन सत्ता रहती है, जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जा कर जनता के चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों तो उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 12.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में कोई एक तर्क दें।
उत्तर-
स्त्री को केवल लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 13.
गुप्त मतदान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुप्त मतदान मत-पत्र द्वारा मतदान की वह पद्धति है जिसमें किसी को यह पता न चले कि मत किस पक्ष अथवा उम्मीदवार को दिया गया है।

प्रश्न 14.
किसी एक आधार पर निर्वाचक सहभागिता का महत्त्व लिखिए।
उत्तर-
निर्वाचक सहभागिता से लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 15.
क्या स्त्री मताधिकार आवश्यक है ?
उत्तर-
हां, स्त्री मताधिकार आवश्यक है।

प्रश्न 16.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अल्पसंख्यकों को उनकी संख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व कहलाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 17.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।

प्रश्न 18.
चुनाव मण्डल क्या होता है ?
उत्तर-
कुल जनसंख्या का वह भाग जो प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेता है, सामूहिक रूप से निर्वाचक मण्डल कहलाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 19.
जन सहभागिता की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
जन सहभागिता से लोकतन्त्र मज़बूत होता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली ……………. प्रणाली की एक विधि है।
2. ……….. को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का घर कहा जाता है।
3. ………. विधानपालिका द्वारा बनाए गए कानूनों के विषय में लोगों की राय जानने का एक साधन होता है।
4. जब संसद् या विधानसभा का कोई स्थान किसी कारणवश खाली हो जाए तो उस स्थान की पूर्ति के लिए करवाया . गया चुनाव …………. कहलाता है।
5. चुनाव में सफल उम्मीदवार को …………………. कहा जाता है।
उत्तर-

  1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व
  2. स्विट्ज़रलैण्ड
  3. जनमत संग्रह
  4. उप-चुनाव
  5. प्रतिनिधि।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. इंग्लैण्ड में स्त्रियों को सन् 1928 में मताधिकार प्रदान किया गया।
2. अमेरिका में स्त्रियों को सन् 1950 में मताधिकार प्रदान किया गया।
3. भारतीय संविधान में सन् 1950 में ही स्त्रियों को मताधिकार दिया गया।
4. वयस्क मताधिकार से लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा नहीं होती।
5. वयस्क मताधिकार द्वारा राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
Franchise का अर्थ है
(क) चुनाव लड़ने का अधिकार
(ख) मतदान करने का अधिकार
(ग) सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार
(घ) समुदाय बनाने का अधिकार।
उत्तर-
(ख)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 2.
चुनाव प्रक्रिया वह साधन है, जिसके द्वारा
(क) नौकरशाही नियुक्त की जाती है
(ख) न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं
(ग) राजनीतिक दल कार्य करते हैं
(घ) चुनाव करवाए जाते हैं।
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 3.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का विरोध किसने किया?
(क) जे० एस० मिल
(ख) गार्नर (ग) लॉस्की
(घ) नेहरू।
उत्तर-
(क)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 निर्वाचक

प्रश्न 4.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि
(क) संपूर्ण जनसंख्या को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है
(ख) निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
(ग) केवल शिक्षित व्यक्तियों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
(घ) केवल अमीरों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा तर्क सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के विरुद्ध है-
(क) यह प्रजातन्त्रिक है
(ख) राजनीतिक समानता
(ग) राजनीतिक जागरूकता
(घ) राष्ट्र विरोधी।
उत्तर-
(घ)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

PSEB 12th Class Economics पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य कर साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है कर साधन-इन साधनों में बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान, स्टैम्प ड्यूटी तथा रजिस्ट्री, मोटर गाड़ियों पर कर, विद्यत कर, यात्रा कर इत्यादि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की दो मुख्य मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
कृषि (Agriculture)-कृषि, सहकारिता तथा पशुपालन की उन्नति के लिए सरकार व्यय करती है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर ₹ 13267 करोड़ व्यय होने का अनुमान लगाया गया।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के गैर-विकासवादी व्यय की मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य प्रबन्ध (Administration)-पंजाब सरकार को राज्य प्रबन्ध, पुलिस तथा शान्ति स्थापित करने के लिए व्यय करना पड़ता है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर व्यय करने के लिए ₹ 6954 करोड़ रखे गए।

प्रश्न 4.
पंजाब में सरकार की आय के मुख्य साधन बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान स्टैम्प ड्यूटी आदि
उत्तर-
सही।

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार की आय व्यय से अधिक है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
पंजाब सरकार द्वारा विकासवादी व्यय ……………….. पर किया जाता है।
(a) शिक्षा
(b) कृषि
(c) स्वास्थ्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार की कुल आय ………. करोड़ रुपए होने का अनुमान था।
(a) 151048
(b) 152048
(c) 153048
(d) 164048
उत्तर-
(c) 153048

प्रश्न 8.
सन् 2020-21 में पंजाब सरकार का कुल व्यय ₹ …………. करोड़ होने का अनुमान था।
(a) 152805
(b) 162805
(c) 172805
(d) 1828808
उत्तर-
(a) 152805

प्रश्न 9.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
पंजाब सरकार को सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर कम व्यय करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सुझाव दें।
उत्तर-
पंजाब को विकासवादी व्यय अधिक करना चाहिए और ग्रांटें देनी बन्द करनी चाहिए।

प्रश्न 12.
पंजाब सरकार पर 2020-21 का कुल ऋण ₹ 20 लाख करोड़ था।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के दो कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में लगभग ₹ 153048 करोड़ की कुल आय प्राप्त होने का अनुमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं-

  1. बिक्री कर (Sale Tax)-बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5575 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी।
  2. राज्य उत्पादन कर (State Excise Duty)-यह कर नशीले पदार्थों पर लगाया जाता है और 2020-21 में इस कर से ₹ 6550 करोड़ प्राप्त होने की संभावना थी।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार की आय के दो गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-

  • साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा से प्राप्त होती है। इस प्रकार ₹ 6754 करोड़ की आय पंजाब सरकार को प्राप्त होने की सम्भावना थी।
  • आर्थिक विकास (Economics Services)-आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के दो विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
विकास व्यय (Development Expenditure)-विकास व्यय में मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य उद्योग, सड़कें, विद्युत् इत्यादि पर व्यय को शामिल किया जाता है।
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किय जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13037 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

प्रश्न 4.
पंजाब सरकार के दो गैर विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)-पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।

  1. राज्य प्रशासन (Civil Administration)-पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 27629 करोड़ व्यय किए।
  2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप में ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2017-18 में लगभग ₹ 60080 करोड़ की कल आय प्राप्त होने का अनमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं –
1. जी० एस० टी० (G.S.T.)-बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5578 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 39.56% भाग थी।

2. राज्य उत्पादन कर (Excise Duty)-इस कर को आबकारी कर भी कहा जाता है। यह कर नशीली वस्तुओं जैसे कि अफीम, शराब, भांग इत्यादि पर लगाया जाता है। आबकारी कर द्वारा 2020-21 में ₹ 6250 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 9.17% भाग थी।

3. केन्द्रीय करों में भाग (Share from Central Taxes)-कुछ कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं जैसे कि आय कर, उत्पादन कर, मृत्यु कर इत्यादि। इन करों में से राज्य सरकार को भाग दिया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार को केन्द्रीय करों से ₹ 14021 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

4. भूमि लगान (Land Revenue)-भूमि के मालिए द्वारा भी सरकार को आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को इस कर द्वारा ₹ 78 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की संक्षेप व्याख्या करो।
उत्तर-
पंजाब सरकार द्वारा किए जाने वाले व्यय को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(A) विकासवादी व्यय
(B) गैर-विकासवादी व्यय।

विकासवादी व्यय की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार को शिक्षा अर्थात् स्कूल, कॉलेज तथा तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए व्यय करना पड़ता है। प्राइवेट स्कूलों तथा कॉलेजों को आर्थिक सहायता दी जाती है। वर्ष 2020-21 में शिक्षा पर ₹ 13037 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए पंजाब सरकार को व्यय करना पड़ता है। गांवों तथा शहरों में बीमार लोगों को इलाज की सुविधाएं प्रदान करने के लिए अस्पताल स्थापित किए गए हैं। वर्ष 2021 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर पंजाब सरकार ने ₹ 4532 करोड़ व्यय करने के लिए रखे थे।

3. कृषि, सहकारिता तथा पशु-पालन (Agriculture, co-operation and Animal Husbandary) – पंजाब सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए बहुत व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औजार, बढ़िया बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान की जाती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 13067 करोड़ कृषि के विकास पर व्यय करने के लिए रखे थे।

4.सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाएं (Irrigation and Multipurpose Projects)-पंजाब में सिंचाई की तरफ अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए पंजाब सरकार सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाओं पर बहुत व्यय करती है। इसलिए नहरें, ट्यूबवैल, विद्युत् घरों के विकास पर काफ़ी व्यय किया जाता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 2510 करोड व्यय करने के लिए रखे थे।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आय के गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –
1. साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा कमीशन इत्यादि से प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में कुल आय का ₹ 6754 करोड़ साधारण सेवाओं से प्राप्त होने का अनुमान था।

2. आर्थिक विकास (Economics Services)-आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

3. ऋण सेवाएं, लाभांश तथा लाभ (Debt Services, Dividends and Profits)-पंजाब सरकार को ऋण देने के बदले में ब्याज प्राप्त होता है। यह ऋण नगर पालिकाओं अथवा व्यक्तियों को दिया जाता है। इससे सरकार को ब्याज प्राप्त होता है। पंजाब सरकार को 2020-21 में इस मद द्वारा ₹ 5.2 करोड़ की आय प्राप्त होने की सम्भावना थी।

4. केन्द्रीय सरकार से प्राप्त सहायता (Aid from central Government)-राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार से सहायता प्राप्त होती है जोकि योजनाओं को लागू करने पर व्यय की जाती है। पंजाब सरकार को वर्ष 2020-21 में केन्द्र सरकार से ₹ 30113 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का वर्णन करें।
(Explain the main sources of Revenue and Heads of Expenditure of the Punjab Government.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का विवरण इस प्रकार है-
आय के मुख्य साधन (Main Sources of Revenue) –
पंजाब सरकार ने बजट 2020-21 के अनुसार पंजाब की कुल आय ₹ 153048 करोड़ होने का अनुमान था तथा कुल व्यय का अनुमान ₹ 154805 करोड़ था। पंजाब सरकार की आय के ढांचे (Pattern) को हम अग्रलिखित अनुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
अनुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
1. बिक्री कर (Sales Tax)- यह कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। इसको वस्तुओं की खरीदबेच के समय लगाया जाता है। इसको अप्रत्यक्ष कर कहते हैं। इसका अधिभार निर्भर लोगों पर अधिक पड़ता है। 2020-21 के बजट में इस कर से आय का अनुमान ₹ 5575 करोड़ था।

2. राज्य उत्पादन कर (State Excise Tax)-इसको आबकारी कर भी कहा जाता है। राज्य सरकारों की आय का यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह कर नशीले पदार्थों जैसे कि शराब, अफीम, भांग, चरस इत्यादि पर लगाया जाता है। इस कर से 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 6250 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

3. भूमि मालिया (Land Revenue)-भूमि मालिए को मालगुजारी भी कहा जाता है। यह कर किसानों पर लगाया जाता है। प्रत्येक भूमि के स्वामी को अपनी भूमि के अनुसार मालिया देना पड़ता है। मालिए की दर समय-समय पर परिवर्तित की जाती है। 2020-21 में इससे ₹ 78 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

4. स्टैंप ड्यूटी तथा रजिस्ट्रेशन (Stamp Duty and Registration) यह कर मुकद्दमेबाजी द्वारा एकत्रित किया जाता है। जब कोई मनुष्य कोई निवेदन देता है तो इस पर स्टैम्प लगाई जाती है, इसको कोर्ट फीस कहते हैं तथा रजिस्ट्री करवाते समय सरकार को फीस देनी पड़ती है। यह भी सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन होता है। 2020-21 में पंजाब सरकार को इससे ₹ 2625 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

5. मोटर गाड़ियों पर कर (Tax on Vehicles)- राज्य में चलने वाली कारों, ट्रकों, ट्रैक्टरों, स्कूटरों इत्यादि पद कर लगाया जाता है। इसके द्वारा भी सरकार को आय प्राप्त होती है। 2020-21 में इससे ₹ 2376 करोड़ की आय होने का अनुमान है।

6. विद्युत् कर (Electricity Duty)-पंजाब सरकार विद्युत् करने वालों पर कर लगाती है। इस कर द्वारा 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 2915 करोड़ आय होने का अनुमान है।

7. केन्द्रीय करों में भाग (Share in Central Taxes)-केन्द्रीय सरकार बहुत से कर लगाती है जैसे कि आय कर, उत्पादन कर, मृत्यु कर इत्यादि। इन करों के द्वारा जो आय प्राप्त होती है इसका कुछ भाग राज्य सरकारों को विभाजित किया जाता है। पंजाब सरकार को 2020-21 में केन्द्रीय करों से ₹ 14021 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

8. केन्द्र सरकार से सहायता (Aid from Central Government) – केन्द्र सरकार समय-समय पर राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करती है। 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 30133 करोड़ की सहायता प्राप्त होने का अनुमान था।

9. अन्य साधन (Other Sources)-आय के कर साधनों के अतिरिक्त गैर-कर साधन भी हैं जिनके द्वारा पंजाब सरकार को आय प्राप्त होती है जैसे कि ऋण सुविधाएं, साधारण सेवाएं, आर्थिक सेवाएं, लाभांश तथा लाभ इत्यादि द्वारा भी पंजाब सरकार को आय प्राप्त होती है। सामाजिक सेवाओं द्वारा ₹ 1466 करोड़, ब्याज प्राप्ति, लाभ तथा लाभांश द्वारा ₹ 398 करोड़ आय होने का अनुमान था। G.S.T. द्वारा ₹ 15659 करोड़ की आय प्राप्त होने की संभावना थी।

व्यय की मुख्य मदें (Main Heads of Expenditure)
पंजाब सरकार के व्यय के ढांचे को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है –
A. विकास 274 (Development Expenditure)
B. गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)

A. विकास व्यय (Development Expenditure)-विकास व्यय में मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य उद्योग, सड़कें, विद्युत् इत्यादि पर व्यय को शामिल किया जाता है।
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13267 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

3. कृषि तथा ग्रामीण विकास (Agriculture & Rural Development)-पंजाब का मुख्य व्यवसाय कृषि है। सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औज़ार, बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान किए जाते हैं। इसके लिए 2020-21 में ₹ 6547 करोड़ व्यय का अनुमान लगाया गया तथा ग्रामीण विकास पर ₹ 678 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

4. सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण (Social Security and Welfare)- पंजाब सरकार सामाजिक सुरक्षा तथा लोगों के कल्याण के लिए भी व्यय करती है। अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों तथा निर्धन लोगों को बुढ़ापा पेंशन दी जाती है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण पर व्यय करने के लिए ₹ 4728 करोड़ रखे गए थे।

5. उद्योग तथा खनिज (Industries and Minerals) पंजाब सरकार छोटे तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को सुविधाएं प्रदान करती है। इन उद्योगों को कम कीमत पर प्लाट, मशीनें, कच्चा माल तथा विद्युत् आपूर्ति की जाती है। सरकार उद्योगों के माल की बिक्री का प्रबन्ध भी करती है। 2020-21 में उद्योगों तथा खनिज पर ₹ 2473 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

B. गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)-
पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।
1. राज्य प्रशासन (Civil Administration)-पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 24639 करोड़ व्यय किए गए।

2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

3. कर वसूली पर व्यय (Direct Demand on Revenue) – पंजाब सरकार द्वारा बहुत से कर लगाए जाते हैं जैसे कि बिक्री कर, राज्य उत्पादन कर, मनोरंजन कर इत्यादि। इन करों को एकत्रित करने के लिए सरकार को व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में करों को एकत्रित करने के लिए ₹ 1800 करोड़ व्यय होने का अनुमान था। .

4. पेंशन तथा अन्य सेवाएं (Pension and other services)-पंजाब सरकार द्वारा पेंशन तथा अन्य सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में ₹ 122067 करोड़ पेंशन तथा अन्य सेवाओं पर व्यय होने का अनुमान था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

PSEB 12th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगिक ढांचे के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में अधिक उद्योग घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग हैं। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी पाई जाती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हुए हैं। 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की कार्यशील इकाइयां 1:98 लाख थीं।

प्रश्न 3.
छोटे पैमाने के उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छोटे उद्योग तथा सहायक उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें एक करोड़ रुपए की अचल पूंजी का निवेश होता है।

प्रश्न 4.
जिन उद्योगों में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी लगी होती है उनको …………. उद्योग कहा जाता है।
(a) कुटीर
(b) छोटे पैमाने के
(c) मध्यम आकार के
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 5.
पंजाब में औद्योगिक प्रगति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 6.
पंजाब में अधिक मात्रा में …………….. उद्योग लगे हुए हैं।
(a) छोटे पैमाने के
(b) मध्यम आकार के
(c) बड़े पैमाने के
(d) उपरोक्त सभी प्रकार के।
उत्तर-
(a) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 7.
पंजाब में औद्योगिक विकास की प्रगति ………….. है।
उत्तर-
धीमी।

प्रश्न 8.
पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी का कारण ……………….. है।
(a) खनिज पदार्थों की कमी
(b) बिजली की कमी
(c) सीमावर्ती राज्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
पंजाब में वित्त की कमी के कारण औद्योगिक विकास नहीं हुआ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 10.
पंजाब में अल्प उद्योगों का कम विकास हुआ है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 11.
पंजाब में औद्योगिक विकास की ज़रूरत नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-
1. संतुलित विकास (Balanced Growth)-पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोजगारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी। उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास का विवरण दें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास-

वर्ष कार्यशील इकाइयां (लाखों में) अचल पूंजी  (करोड़ ₹) उत्पादन (करोड़ ) रोज़गार (लाखों में)
1978-79 0.42 271 751 2.50
2017-18 1.72 86324 201590 15.26

प्रश्न 3.
पंजाब के कोई दो छोटे पैमाने के उद्योगों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग अग्रलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 78 हज़ार लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मालेरकोटला में स्थित है। 2015-16 में ₹ 12966 करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुों का उत्पादन किया गया। इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 4.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के दो कारण लिखें।
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab) –
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार द्वारा उद्योगों के विकास के लिए उठाए गए कोई दो कदम बताएं।
उत्तर-
1. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

2. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-
1. संतुलित विकास (Balanced Growth)-पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोज़गारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी। उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

3. सरकार की आय में वृद्धि (Increase in Income of Government)-औद्योगीकरण द्वारा भिन्न-भिन्न उद्योगों का विकास होगा। सरकार को करों द्वारा अधिक आय प्राप्त होगी इसको लोगों के कल्याण पर व्यय किया जा सकता है।

4. कृषि पर जनसंख्या के दबाव में कमी (Less Pressure of Population on Agriculture)-पंजाब में 759% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इसलिए प्रति व्यक्ति भूमि निरंतर कम हो रही है। उद्योगों के विकास से कृषि से जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।

5. श्रमिकों के जीवन स्तर में वृद्धि (Increase in Standard of Living of Labourers)-पंजाब में औद्योगिक विकास से श्रमिकों की मांग बढ़ेगी परिणामस्वरूप श्रमिकों के व्यय में वृद्धि होगी। इससे श्रमिक ऊँचा जीवन स्तर व्यतीत कर सकेंगे।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Minerals)-पंजाब में खनिज पदार्थ नहीं पाए जाते परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित किया गया है।
  2. बड़े उद्योगों की कमी (Lack of Large Scale Industries)-पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योग बहुत कम हैं। उद्यमी पंजाब में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते क्योंकि यह सीमावर्ती राज्य है। इसलिए बड़े उद्योगों की कमी को छोटे उद्योगों द्वारा पूर्ण किया गया है।
  3. परिश्रमी लोग (Hardworking People)-पंजाब के श्रमिक मेहनती तथा कुशल हैं। इन्होंने छोटे-छोटे उद्योग स्थापित किए हैं जिससे श्रमिकों का जीवन स्तर ऊँचा हो रहा है।
  4. वित्त की कमी (Lack of Finance)-पंजाब में व्यापारिक बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्त की सहूलतें कम प्रदान की गई हैं जबकि अन्य राज्यों में अधिक सहूलतें प्रदान की जाती हैं। वित्त की कमी के कारण बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे उद्योगों का महत्त्व बढ़ गया है।
  5. पंजाब सरकार की नीति (Policy of the Punjab Government)-पंजाब सरकार की औद्योगिक नीति में छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है। इसलिए पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हो गए हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 3.
पंजाब के छोटे उद्योगों की समस्याओं का वर्णन करें।
अथवा
पंजाब में छोटे उद्योगों के मंद विकास के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे उद्योगों की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-

  1. वित्त की समस्या (Problem of Finance)-पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को उचित मात्रा में वित्त प्राप्त नहीं होता। वित्त की कमी के कारण छोटे उद्योगों की विकास की गति मंद है।
  2. उत्पादन के पुराने ढंग (Old Methods of Production)-पंजाब के उद्योगों में पुराने ढंग से उत्पादन किया जाता है। इसलिए उत्पादन कम होता है तथा लागत अधिक आती है।
  3. कच्चे माल की समस्या (Problem of Raw Material)-पंजाब में उद्योगों के लिए कच्चा माल अन्य प्रान्तों से मंगवाना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है तथा उत्पादन कम होता है।
  4. बिक्री की समस्याएं (Problems of Marketing)-पंजाब के छोटे उद्योगों को अपना तैयार माल बेचने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इन उद्योगों को बड़े उद्योगों द्वारा तैयार माल से मुकाबला करना पड़ता है क्योंकि बड़े पैमाने पर तैयार माल सस्ता तथा बढ़िया होता है। इसलिए छोटे उद्योगों की बिक्री के समय कठिनाई होती है।
  5. शक्ति की समस्या (Problem of Power)-पंजाब सरकार उद्योगों से कृषि को प्राथमिकता देती है। इसलिए समय-समय पर बिजली बंद (Power cut) का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योगों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब के प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौजरी उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 में इस उद्योग में 78 हज़ार लोग कार्य करते थे तथा ₹ 3711 करोड़ का माल बनाया जाता था।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे तथा बड़े दोनों स्तरों पर कार्य करता है। इस उद्योग में साइकिल तथा इसके पुर्जे बनाए जाते हैं। यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर तथा मलेरकोटला में स्थित है। वर्ष 2015-16 में, इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 12966 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन उद्योग पंजाब में लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में है। 2015-16 में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने थे। जिनमें 13464 मजदूरों को रोज़गार प्राप्त होता था। इस उद्योग में ₹ 1254 करोड़ का वार्षिक माल तैयार होता था।

4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industries)-पंजाब में खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में है। पंजाब में बनाया गया खेलों का सामान न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। इस उद्योग में 4561 श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 267.57 लाख करोड़ का सामान बनाया जाता है।

प्रश्न 5.
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की मंद गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की धीमी गति के कारण निम्नलिखित हैं-
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों ने काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। पंजाब में खनिज पदार्थ न होने के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान से भारत का हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power)-विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि में अधिक होता है। किन्तु बड़े उद्योगों के लिए काफ़ी मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है। विद्युत् की कमी के कारण बड़े तथा मध्यम उद्योगों की गति मंद है।

4. केन्द्र सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 75% बिहार में, 12% कर्नाटक में निवेश किया है। इस कारण भी उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब के छोटे, मध्य तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रकृति तथा ढांचे का वर्णन करें। (Explain the nature and structure and small, medium and large scale industries of Punjab.)
अथवा
पंजाब के प्रमुख छोटे आकार के उद्योगों की व्याख्या करें। (Explain the main Small Scale Industries of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब का औद्योगिक ढांचा (Structure of Industries in Punjab)-
पंजाब में औद्योगिक ढांचे को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है –
A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)
B. मध्य तथा बड़े पैमाने के उद्योग (Medium & Large Scale Industries)

A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)-वर्ष 1997 के पश्चात् छोटे पैमाने के उद्योगों में उन उद्योगों को शामिल किया जाता है जिनमें ₹ 3 करोड़ तक का निवेश किया होता है। इससे पूर्व स्थिर पूंजी के निवेश की सीमा केवल ₹ 60 लाख थी। पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास कार्यशील इकाइयां अचल पूंजी उत्पादन-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 1
सूची पत्र से ज्ञात होता है कि 1978-79 में छोटे पैमाने के उद्योगों की संख्या 0.42 लाख थी जिनमें ₹ 271 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई थी। इन उद्योगों ₹ 751 करोड़ का उत्पादन किया जाता था तथा लगभग 2.50 लाख श्रमिक काम पर लगे हुए थे। वर्ष 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की इकाइयों की संख्या बढ़कर 1.72 लाख हो गई है। इन उद्योगों में ₹ 86324 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है जिनमें ₹ 201590 करोड़ का उत्पादन किया जाता है। यह उद्योग 16.21 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करते हैं।

पंजाब के मुख्य छोटे उद्योग
(Main Small Scale Industries of Punjab)
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2018-19 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 82 हजार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मलेरकोटला में स्थित है। 2018-19 में ₹ 13 हज़ार करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुजों का उत्पादन किया गया। इसमें 88.5 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन बनाने का उद्योग लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में स्थित है। 2015-16 पंजाब में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने हैं। इस उद्योग में ₹ 1356 करोड़ का माल हर वर्ष तैयार होता है तथा लगभग 13464 मजदूरों को रोजगार प्राप्त होता है।

4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industry)-खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में केन्द्रित है। पंजाब में तैयार किया खेलों का सामान न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। 2018-19 में इस उद्योग की 529 इकाइयां लगी हुई हैं जिनमें 9561 मजदूरों को रोजगार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 276.57 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

5. मोटर गाड़ियों के पुर्जे बनाने का उद्योग (Automobile Industry)-पंजाब में यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर, पटियाला तथा कपूरथला में स्थित है। इस उद्योग में मोटर गाड़ियों के पुर्जे तैयार किए जाते हैं। 2019-20 इस उद्योग में ₹ 5022 लाख का माल प्रत्येक वर्ष तैयार किया जाता है। इसमें 52857 श्रमिक कार्य करते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

पंजाब में मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योग (Medium & Large Scale Industries of Punjab)-
जिन उद्योगों में ₹ 10 करोड़ से कम पूँजी लगी होती है उसको मध्य आकार का उद्योग कहा जाता है और जिसमें ₹ 10 करोड़ से अधिक अचल पूंजी लगी होती है, उनको बड़े पैमाने के उद्योग कहा जाता है। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों की स्थिति का विवरण इस प्रकार है|
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 2
सूची-पत्र से स्पष्ट होता है कि 1978-79 में पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की 188 इकाइयां थीं जिनमें ₹ 379 करोड़ स्की अचल पूंजी लगी हुई थी। उस वर्ष ₹ 711 करोड़ का उत्पादन किया गया था तथा 91 हज़ार लोग रोज़गार पर लगे हुए थे। वर्ष 2017-18 में इन उद्योगों की संख्या बढ़ कर 898 हो गई है जिनमें ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इन उद्योगों में ₹ 104973 करोड़ का उत्पादन किया गया। इनमें 2.84 लाख श्रमिक कार्य पर लगे हुए थे।

पंजाब के मुख्य मध्यम आकार तथा बड़े पैमाने के उद्योग (Medium & Large Scale Industries of Punjab)
पंजाब के मुख्य मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. चीनी के कारखाने (Sugar Industry)-पंजाब में चीनी के 17 बड़े कारखाने हैं। यह उद्योग जालन्धर, कपूरथला, संगरूर, फरीदकोट, गुरदासपुर तथा रोपड़ जिलों में स्थित हैं। इस उद्योग में 2018-19 में ₹ 19823 करोड़ चीनी का उत्पादन हुआ। इसमें 5487 व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त था।

2. सूती कपड़े के कारखाने (Cotton Textile Industry)-पंजाब में 2018-19 धागा बनाने के 140 कारखाने हैं। एक कारखाने में धागे से कपड़ा भी बनाया जाता है। यह कारखाने फगवाड़ा, अमृतसर, बरनाला, मलेरकोटला तथा अबोहर में स्थित हैं। इस उद्योग में 16849 श्रमिक कार्य करते हैं। 166.27 मिलियन मीटर कपड़ा वार्षिक तैयार किया जाता है।

3. स्वराज व्हीकलज लिमिटेड (Swaraj Vehicles Limited)-यह कारखाना जनतक क्षेत्र में वर्ष 1985 में ₹ 60 करोड़ की लागत से स्थापित किया गया था। इसमें माल की ढुलाई के लिए टैंपू बनाए जाते हैं। यह कारखाना 9 हज़ार मज़दूरों को रोजगार प्रदान करता है। इसकी स्थापना मोहाली में की गई है।

4. गर्म कपड़े के कारखाने (Wollen Cloth Industry)- पंजाब में गर्म कपड़ा बनाने के कारखाने धारीवाल, और छहरटा अमृतसर में हैं। इस उद्योग में 1 लाख 8 हज़ार श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 354 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास को स्पष्ट करें। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के क्या कारण हैं ?
(Explain the development medium and Large Scale Industries in Punjab. What are the cause of slow progress of medium and Large Scale Industries ?)
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों के विकास का अनुमान निम्नलिखित सूची-पत्र द्वारा लगाया जा सकता है|
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग-

वर्ष कार्यशील इकाइयां(करोड़ ₹) अचल पूंजी (लाख ₹) उत्पादन रोज़गार (लाख में)
1978-79 188 379 711 0.91
2018-19 898 69591 104973 2.84

2.84 सूची-पत्र से ज्ञात होता है कि वर्ष 2018-19 में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की संख्या 469 है। इन उद्योगों में ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इनमें उत्पादन ₹ 104973 लाख का किया गया। यह उद्योग 2.84 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है परन्तु अन्य औद्योगिक राज्यों जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक इत्यादि की तरह पंजाब में इन उद्योगों की प्रगति बहुत कम रही है। मध्यम तथा बड़े उद्योगों की कम प्रगति के मुख्य कारण निम्नलिखित अनुसार हैं-

पंजाब में मध्यम तथा बडे पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab)-
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power)-विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि क्षेत्र में अधिक होता है। बड़े उद्योगों के लिए अधिक मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है किन्तु विद्युत् की कमी के कारण मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रगति धीमी है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

4. केन्द्रीय सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 15% निवेश बिहार में, 12% निवेश कर्नाटक में लगाया है। इस कारण भी पंजाब में उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

5. कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था (Agricultural Economy)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। राज्य सरकार ने भी पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया है। उद्योगों के विकास को आंखों से ओझल किया गया है। कृषि का महत्त्व अधिक होने के कारण लघु पैमाने के उद्योगों को प्राथमिकता दी गई ताकि रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें।

6. पूंजी की कमी (Lack of Capital)-बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। पंजाब में पूंजी की कमी है क्योंकि सरकार की आंतरिक सुरक्षा पर बहुत व्यय करना पड़ता है। इसलिए निवेश करने के लिए पूंजी की कमी है। निजी क्षेत्र के उद्योग विकसित नहीं हुए क्योंकि ब्याज की दर बहुत अधिक है। इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों में निवेश कम हुआ है।

7. औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Industrial Disputes)-पंजाब में अगर स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास में वृद्धि हुई है तो इससे औद्योगिक लड़ाई-झगड़े भी बढ़ गए हैं। तालाबंदी, हड़ताल आम नज़र आती है। इस कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आधुनिक उद्योग नीति का वर्णन करें। (Explain the new Industrial Policy of Government of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति (New Industrial Policy of Government of Punjab)-
पंजाब में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक नीति की घोषणा 16 फरवरी, 1972 को की गई। इसके पश्चात् सरकार ने 1979, 1987, 1989, 1991 में औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति की घोषणा 14 मार्च, 1996 में की गई। नई औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. मुख्य उद्देश्य (Main Objectives)-

  • औद्योगिक विकास की दर में वृद्धि करके 12% की जाएगी।
  • राज्य के घरेलू उत्पादन में उद्योगों का भाग बढ़ाकर 25% किया जाएगा।
  • उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक ढांचा अर्थात् सड़कें, विद्युत्, वित्त, श्रमिक, कच्चे माल की पूर्ति के लिए सहूलतें दी जाएंगी।
  • ग्रामीण बेरोज़गारों को उद्योगों तथा सम्बन्धित उद्यमों में रोजगार की सहूलतें दी जाएंगी।
  • पंजाब में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा।
  • पंजाब के छोटे, मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों के लिए फोकल प्वाइंट्स स्थापित किए जाएंगे।
  • निर्यात को उत्साहित करने के लिए नई मण्डियाँ ढूंढ़ी जाएंगी।
  • आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाएगा।
  • नए उद्योग स्थापित किए जाएंगे तथा पुराने स्थापित उद्योगों का नवीनीकरण तथा आधुनिकीकरण किया जाएगा।
  • छोटे स्तर के उद्योगों को विकसित करके रोजगार के अधिक अवसर प्रदान किए जाएंगे।

2. विकास क्षेत्र (Growth Areas)-पंजाब के भिन्न-भिन्न जिलों को औद्योगिक विकास के पक्ष से चार वर्गों में विभाजित किया गया-

  1. वर्ग A (Category A)-इस वर्ग में शामिल किए गए क्षेत्रों को सबसे अधिक रियायतें देने की घोषणा की गई। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा मानसा के ज़िले शामिल किए गए हैं।
  2. वर्ग B (Category B)-इस वर्ग में जिन क्षेत्रों में शामिल किया गया है उनको वर्ग A के क्षेत्रों से कम रियायतें दी जाएंगी। इस वर्ग में राज्य के अन्य जिलों को शामिल किया गया है।
  3. वर्ग C (Category C)-इस वर्ग में लुधियाना तथा जालन्धर के फोकल प्वाइंट्स छोड़ कर पंजाब के सब फोकल प्वाइंट्स को शामिल किया गया है। फोकल प्वाइंट्स पर अधिक-से-अधिक उद्योग स्थापित करने के प्रयत्न किए जाएंगे।
  4. वर्ग D (Category D) इस वर्ग में शामिल उद्योगों को कोई प्रोत्साहन तथा अनुदान नहीं दिया जाएगा। इस वर्ग में जालन्धर तथा लुधियाना की निगम सीमाओं के फोकल प्वाइंट्स तथा उनके ब्लाकों को शामिल किया गया है। वर्ग A तथा वर्ग B के क्षेत्रों को बहुत-सी रियायतों की घोषणा की गई है ताकि पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों का विकास हो सके।

3. कृषि आधारित उद्योगों का विकास (Incentives to Agro Based Industries)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। इसलिए कृषि विकास को बनाए रखने के लिए उन उद्योगों को विकसित किया जाएगा जिनके लिए कच्चा माल कम कीमत पर राज्य में से ही प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे उद्योगों को 10 वर्ष के लिए बिक्री कर से मुक्त किया गया है। ऋण पर ब्याज का 5% भाग सरकार द्वारा दिया जाएगा तथा स्थायी पूंजी का 30% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा जो कि अधिकतम 50 लाख रुपए तक हो सकती है।

4. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

5. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

6. छोटे उद्योगों का आधुनिकीकरण (Modernisation of Small Scale Industries)-पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित करने के लिए एक विशेष फंड की स्थापना की गई है। जो उद्यमी पुराने स्थापित किए यूनिटों का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं उनको विशेष आर्थिक सहायता दी जाएगी।

7. मध्यम तथा बड़े उद्योगों को प्रोत्साहन (Incentives to medium & Large Scale Industries)-नई औद्योगिक नीति में यह घोषणा भी की गई कि वर्ग A के क्षेत्रों में जो उद्यमी निवेश करते हैं उनके द्वारा किए गए बड़े स्तर के उद्योगों पर अचल पूंजी पर आर्थिक सहायता दी जाएगी जहां तक A तथा B वर्ग में स्थापित उद्योगों का सम्बन्ध है अगर वहां पुराने उद्योगों का विस्तार करना चाहते हैं तो मध्यम तथा बड़े उद्योगों के विस्तार पर आर्थिक सहायता दी जाएगी।

8. पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहन (Incentive to Tourism)-नई औद्योगिक नीति के अनुसार पंजाब में पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए उद्योग का दर्जा दिया गया है। पर्यटन उद्योग को वह सब सहूलतें दी जाएंगी जो अन्य साधारण उद्योगों को दी जाती हैं।

9. इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं की इकाइयों को विशेष छूट (Special Incentive to Electronics Units)-पंजाब में जो इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली इकाइयों को लगाया जाएगा उन उद्योगों को पूंजी निवेश के सम्बन्ध में आर्थिक सहायता तथा बिक्री कर की छूट दी जाएगी। इन उद्योगों को चुंगी करों में भी 6 वर्ष के लिए छूट देने के लिए कहा गया है।

10. ऊर्जा सुविधाएं (Power Facilities)-पंजाब में जो ओद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको बिजली कनेक्शन में प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसी इकाइयों को पांच साल के लिए बिजली कर से मुक्त रखा जाएगा तथा जेनरेटिंग सैंट लगाने पर 25% की आर्थिक सहायता दी जाएगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

11. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-पंजाब में जो नई औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको भूमि की खरीद में आर्थिक सहायता दी जाएगी। यदि यह इकाइयां फोकल प्वाइंट्स पर लगाई जाती हैं तो भूमि की खरीद में 33 प्रतिशत आर्थिक सहायता दी जाएगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

PSEB 12th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब की किसी एक व्यापारिक फसल का वर्णन करें।
उत्तर-
गन्ना (Sugarcane)-पंजाब में गन्ना फरवरी-अप्रैल में बोआ जाता है। गन्ने की फसल जनवरी-अप्रैल में काटी जाती है। पंजाब में गन्ना सभी जिलों में पैदा किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के कारण इस प्रकार हैं नई कृषि नीति-पंजाब में नई कृषि नीति में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, आधुनिक मशीनों तथा सिंचाई की सहूलतों में वृद्धि की गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब को भारत का अनाज भण्डार क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
2018-19 में पंजाब द्वारा केन्द्रीय भण्डार में गेहूं का योगदान 35% तथा चावल का योगदान 25% रहा।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

प्रश्न 4.
पंजाब कृषि में पिछड़ा प्रान्त है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 5.
पंजाब में 2019-20 में कुल उपज 315 लाख मीट्रिक टन हुई।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
पंजाब में कृषि विकास का कारण ……………..
(a) सिंचाई के साधन
(b) मेहनती लोग
(c) हरित क्रान्ति
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का कोई दोष नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
पंजाब को भारत के अनाज का ………………… कहा जाता है।
उत्तर-
अन्न भण्डार।

प्रश्न 9.
पंजाब की दो खाद्य फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) गेहूँ,
(ii) चावल।

प्रश्न 10.
पंजाब की दो व्यापारिक फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) कपास,
(ii) गन्ना।

प्रश्न 11.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर-
(i) सिंचाई का विस्तार,
(ii) आधुनिक खाद्य तथा बीजों का प्रयोग।

प्रश्न 12.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ है कृषि पैदावार में होने वाली भारी वृद्धि जो कि नई कृषि नीति के अपनाने से प्राप्त है।

प्रश्न 13.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में नई कृषि नीति के कारण उचित बीजों और रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण हरित क्रान्ति प्राप्त होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

प्रश्न 14.
पंजाब में सिंचाई के मुख्य तीन साधन बताएं।
उत्तर-

  • नहरें,
  • ट्यूबवैल,
  • कुएँ।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएँ।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप हवा और पानी के प्रदूषण के कारण, कैंसर का रोग फैल गया है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की स्थिति तथा महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 26.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सहूलतें प्राप्त थी जो कि कुल क्षेत्र का 56% भाग था। वर्ष 2015-16 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 41.37 लाख हेक्टेयर हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.4% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर 1052 करोड़ रुपये व्यय किए गए।

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहँ की उत्पादकता बढकर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं –

  1. असंतुलित विकास की समस्या-हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ जिले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोज़पुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
  2. बेरोज़गारी की समस्या-हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।

प्रश्न 4.
पंजाब में हरित क्रान्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई के भिन्न-भिन्न साधन कौन-से हैं ? पंजाब में सिंचाई क्षेत्र के विस्तार के कारण बताएं।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। वर्ष 2019-20 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 29% हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.96% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर ₹ 493564 करोड़ व्यय किए गए।

सिंचाई के साधन (Means of Irrigation)-पंजाब में सिंचाई के साधन निम्नलिखित हैं-
1. नहरें (Canals)-पंजाब में कुल सिंचाई क्षेत्र के 43% भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। यह सिंचाई का मुख्य साधन है। पंजाब की मुख्य नहरें-

  • भाखड़ा-नंगल नहर
  • अपर बारी दोआब नहर
  • सरहिन्द नहर
  • बिस्त दोआब नहर
  • बीकानेर नहर
  •  शाह नहर इत्यादि हैं।

इन नहरों के अतिरिक्त पंजाब में सतलुज यमुना लिंक, थीन डैम, कंडी नहर, शाह नहर, फीडर, मेलवाहा डैम तथा राष्ट्रीय परियोजना पर कार्य चल रहा है।

2. ट्यूबवैल (Tubewell) पंजाब में 50% क्षेत्र पर ट्यूबवैलों द्वारा सिंचाई की जाती है। इस समय 2019-20 में लगभग 14.76 लाख ट्यूबवैल हैं जिनमें से 13.36 लाख ट्यूबवैल विद्युत् से तथा शेष डीज़ल से चलते हैं।

3. कुएँ (Wells)-पंजाब में पहले कुओं का महत्त्व अधिक था। परन्तु अब कुओं का स्थान ट्यूबवैलों ने ले लिया है किन्तु कुछ क्षेत्रों में आज भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।

इसके अतिरिक्त तालाब इत्यादि साधनों द्वारा भी सिंचाई की जाती है। फरीदकोट जिले में सिंचाई का मुख्य साधन नहरें हैं। इसके अतिरिक्त फिरोज़पुर, अमृतसर तथा लुधियाना ज़िलों में भी नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। ट्यूबवैल लगभग सभी जिलों में सिंचाई के साधन हैं किन्तु संगरूर जिले में ट्यूबवैल सबसे अधिक हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादकता बढ़कर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

3. कृषि की उन्नत विधि-पंजाब में कृषि करने की उन्नत विधियों का प्रयोग किया गया है। पंजाब में 2019-20 में गेहूँ तथा चावल के अधीन 100% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग से बोआ गया है। मक्की अधीन 90% तथा बाजरे अधीन 60% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग द्वारा बोआ गया था।

4. व्यापारिक कृषि-पंजाब में कृषि जीवन निर्वाह के लिए नहीं की जाती बल्कि उत्पादन को मण्डियों में बेचकर अधिक लाभ प्राप्त करने का यत्न किया जाता है। इसलिए कृषि विकास के परिणामस्वरूप व्यापारिक कृषि का प्रचलन हो गया है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  1. असंतुलित विकास की समस्या–हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ ज़िले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोजपुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
  2. बेरोज़गारी की समस्या–हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।
  3. अधिक व्यय की समस्या-हरित क्रान्ति के कारण कृषि में प्रयोग होने वाले साधनों की लागत बहुत अधिक हो गई है। छोटे किसान आधुनिक मशीनों, उर्वरकों तथा नए उन्नत बीजों का प्रयोग नहीं कर सकते।
  4. अमीर किसानों को लाभ-हरित क्रान्ति का लाभ बड़े अमीर किसानों को हुआ है। इससे अमीर किसान और अमीर हो गए हैं। निर्धन किसानों की हालत और बिगड़ गई है। इस प्रकार अमीर तथा गरीब किसानों में असमानता बढ़ गई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्ष 1966 से पंजाब की कृषि के विकास की प्रकृति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Explain the main features of the nature of Agricultural development in Punjab Since 1966.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति (Nature of Agricultural Development in Punjab)पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को भाषा के आधार पर किया गया। इसके पश्चात् पंजाब की कृषि में तकनीकी क्रान्ति का आरम्भ हुआ, जिसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। डॉ० आर० एस० जौहर तथा परमिन्द्र के अनुसार, “पंजाब में विशेषतया छठे दशक के मध्य से नई कृषि तकनीक के कारण तीव्रता से रूपांतर हुआ है।” (“The Punjab Agriculture underwent a rapid transformation particularly after the mid sixties in the wake of new farm Technology.” -Dr. R.S. Johar & Parminder Singh)
पंजाब में खनिज पदार्थ प्राप्त नहीं होते। कृषि ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। पंजाब की कृषि विकास की प्रकृति का अनुमान निम्नलिखित तत्त्वों से लगाया जा सकता है –
1. उन्नत कृषि (Progressive Agriculture)-पंजाब की कृषि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उन्नत तथा प्रगतिशील है। पंजाब में पैदा होने वाली मुख्य फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की उत्पादन शक्ति से बहुत अधिक है। वर्ष 2019-20 में पंजाब में गेहूँ तथा चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्रमानुसार 5188 किलोग्राम तथा 4132 किलोग्राम था।

2. आर्थिक विकास का आधार (Basis of Economic Development) पंजाब में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य आधार बन गई है। वर्ष 1980-81 में पंजाबी कुल आय 5,025 करोड़ में कृषि का योगदान ₹ 2,422 करोड़ था। 2019-20 में पंजाब की आय ₹ 644321 करोड़ हो गई है जिसमें कृषि का योगदान 68% है। इस प्रकार पंजाब के आर्थिक विकास में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य साधन है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanised Agriculture)-पंजाब की कृषि में मशीनों का योगदान दिन प्रतिदिन बढ़ा है। पंजाब में ट्रैक्टर, हारवैस्टर, ट्यूबवैल आम नज़र आते हैं। राज्य में 85% बोए गए शुद्ध क्षेत्रफल पर एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादन शक्ति में वृद्धि हुई है।

4. कृषि साधनों का उत्तम प्रयोग (Proper Utilisation of Agricultural Resources)-पंजाब में कृषि के साधनों का उत्तम प्रयोग किया जाता है। कृषि के लिए उचित मिट्टी तथा जलवायु की आवश्यकता होती है। पंजाब में धरती समतल है। इसमें दोमट मिट्टी प्राप्त होती है जो कि फसलों की बोआई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। पंजाब में जल के लिए तीन नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी बहती हैं। इसलिए गहन कृषि की जाती है। वर्ष में एक-से-अधिक फसलें प्राप्त की जाती हैं।

5. कृषि का अधिक उत्पादन (More Agricultural Production)-पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत अधिक होता है। यह उत्पादन न केवल पंजाब राज्य की आवश्यकताएं पूर्ण करता है बल्कि देश के लिए अन्न भण्डार का साधन है। 1966 के पश्चात् हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप पंजाब में उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है। 1965-66 में चावल का उत्पादन 292 हज़ार टन किया गया जो 2019-20 में बढ़ कर 315 लाख टन हो गया है।

6. मुख्य फसलें (Main Crops)-पंजाब की कृषि मुख्यतः दो फसलों गेहूँ तथा चावल पर निर्भर है। पंजाब में बोए गए कुल क्षेत्र का 70% गेहूँ तथा चावल के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य फसलों में वृद्धि सन्तोषजनक नहीं है।

7. व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture)-पंजाब की कृषि अब केवल जीवन निर्वाह कृषि नहीं है बल्कि कृषि उत्पादन आवश्यकता से अधिक प्राप्त किया जाता है जिसको बाज़ार में बेच कर अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यत्न किए जाते हैं अर्थात् पंजाब की कृषि व्यापारिक कृषि हो गई है।

8. रोज़गार का साधन (Source of Employment)-पंजाब की कृषि में प्रत्यक्ष तौर पर 65.5% जनसंख्या निर्भर करती है जिसमें कुल कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इस प्रकार कृषि तथा इससे सम्बन्धित उद्योग राज्य के लोगों को रोज़गार की सुविधाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति के क्या कारण हैं ? इसकी सफलताओं अथवा प्रभावों की व्याख्या करें।
(What are the causes of Green Revolution in Punjab ? Discuss the achievements and effects of Green Revolution.)
अथवा
नए कृषि ढांचे से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण तथा प्राप्तियों को स्पष्ट करें। (What is new Agricultural Strategy ? Explain its causes and achievements.)
उत्तर-
पंजाब का 1 नवम्बर, 1966 को पुनर्गठन किया गया है। इस समय में नए कृषि ढांचे (New Agicultural Strategy) को अपनाया गया है। इसके परिणामस्वरूप पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत बढ़ गया तथा हरित क्रान्ति उत्पन्न हुई।

हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़ कर 315.35 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

हरित क्रान्ति के कारण (Causes of Green Revolution)-पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य कारण इस प्रकार हैं
1. भमि सधार (Land Reform)-पंजाब में कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के सुधार किए गए हैं। जैसे कि भूमि की चकबन्दी की गई है। छोटे-छोटे टुकड़ों को एक स्थान पर एकत्रित किया गया है। सिंचाई साधनों का विस्तार तथा मशीनों के प्रयोग के कारण हरित क्रान्ति के लिए भूमिका तैयार की गई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

2. कृषि अधीन क्षेत्रों का विस्तार (Extent in area Under Cultivation)-पंजाब में कृषि अधीन क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 38 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि अधीन थी जोकि 2019-20 में बढ़ कर 80 लाख हेक्टेयर की गई है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanisation of Agriculture)-कृषि में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है जैसे कि ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवैस्टर, डीज़ल इंजन इत्यादि यन्त्रों का प्रयोग होने के कारण उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है 1966-67 में पंजाब में 10,000 ट्रैक्टर थे जिनकी संख्या 2019-20 में बढ़कर 5.15 लाख हो गई है।

4. उन्नत बीज (High yielding varieties of seeds)-पंजाब में हरित क्रान्ति का एक और कारण उन्नत बीजों का अधिक प्रयोग किया जाना है। गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्की तथा ज्वार की फसलों के लिए बीजों की उन्नत किस्में बनाई गई हैं। गेहूं तथा चावल के लिए 100%, मक्की के लिए 90% तथा बाजरे के लिए 60% अधिक पैदावार देने वाले बीजों का प्रयोग 1999-2000 में किया गया।

5. रासायनिक उर्वरक (Fertilizers)-पंजाब में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण अनाज के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति आने का एक कारण उर्वरकों का अधिक प्रयोग करना है। 1966-67 में 51 हज़ार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया था। 2019-20 में 1750 हजार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया है।

6. सिंचाई (Irrigation)-पंजाब में सिंचाई की अधिक सहूलतों के कारण हरित क्रान्ति पर बहुत प्रभाव पड़ा है। पंजाब में सारा वर्ष चलने वाले तीन दरिया सतलुज, ब्यास तथा रावी हैं जिनसे विद्युत् पैदा की जाती है तथा सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। ट्यूबवैल, कुएं तथा तालाब की सिंचाई के साधन हैं। 1965-66 में 59% क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी। 2019-20 में 78.3 लाख हैक्टर क्षेत्र पर सिंचाई की जाती है।

7. साख सहूलतें (Credit Facilities) हरित क्रान्ति के लिए साख सहूलतों का योगदान बहुत अधिक है। 1967-68 में सहकारी समितियों द्वारा ₹ 75 करोड़ की साख सहूलतें प्रदान की गई थीं जो कि 2019-20 में बढ़ कर ₹ 6515 करोड़ हो गई हैं।

8. खोज (Research)-पंजाब में कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना में खोज का कार्य किया जाता है। कृषि यूनिवर्सिटी में नए बीज, भूमि की परख, उर्वरकों का प्रयोग, कीट नाशक दवाइयों के प्रयोग सम्बन्धी अल्प अवधि के कोर्स आरम्भ किए जाते हैं। इससे किसानों को फसलों की देख रेख करने सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। परिणामस्वरूप कृषि के उत्पापर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

हरित क्रान्ति की प्राप्तियां (Achievements of Green Revolution)
अथवा
हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution)
हरित क्रान्ति की मुख्य प्राप्तियां इस प्रकार हैं –
1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 33 लाख टन अनाज पैदा किया गया था। हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप वर्ष 2019-20 में कृषि का उत्पादन 315.33 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment) हरित क्रान्ति के कारण मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है। परन्तु फिर भी वर्ष में कई फसलें पैदा होने लगी हैं इसलिए रोज़गार में वृद्धि हुई है।

3. उद्योगों में वृद्धि (Increase in Industries) हरित क्रान्ति का प्रभाव उद्योगों के विकास पर अच्छा पड़ा है। पंजाब में कृषि यन्त्र हारवैस्टर, थ्रेशर इत्यादि की मांग बढ़ने के कारण बहुत से उद्योग स्थापित किए गए हैं।

4. उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Productivity) हरित क्रान्ति के पश्चात् गेहूँ तथा चावल की उत्पादन शक्ति बहुत बढ़ गई है। यद्यपि गेहूँ, मक्की, ज्वार, कपास की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है जिसका मुख्य कारण अच्छे बीजों, रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग है।

5. ग्रामीण विकास (Rural Development) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि हो गई है इसलिए ग्रामीण लोगों में उच्च जीवन स्तर व्यतीत करने की इच्छा पैदा हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब की प्रमुख फसलों का वर्णन करें। पंजाब में पुनर्गठन के पश्चात् फसलों के ढांचे में कौन-से परिवर्तन हुए हैं ?
उत्तर-
पंजाब में कई प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। इन फसलों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
A. खाद्य फसलें (Food Crops)-ये वह फसलें हैं जोकि भोजन के रूप में खाने के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे कि गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्की, दालें तथा चने इत्यादि।
B. व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)-व्यापारिक फसलें वे हैं जिनका प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। जैसे कि गन्ना, कपास, तिलहन इत्यादि।

A. खाहा फसलें (Food Crops)-पंजाब की खाद्य फसलों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है –
1. गेहूँ (Wheat)-पंजाब में गेहूँ भोजन के लिए मुख्य फसल है। गेहूँ की बिजाई नवम्बर-दिसम्बर के महीने में की जाती है जोकि अप्रैल-मई के महीने में काटी जाती है। पंजाब के सब ज़िलों में गेहूँ की बिजाई की जाती है परन्तु संगरूर, फिरोज़पुर तथा लुधियाना जिले में अन्य जिलों से गेहूँ अधिक होती है। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादन शक्ति पंजाब में 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। जबकि भारत में गेहूँ की औसत उत्पादकता 3600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। स्पष्ट है कि पंजाब में गेहूँ का उत्पादन 17613 हज़ार मीट्रिक टन है जो अन्य राज्यों से अधिक है।

2. चावल (Rice)- पंजाब में चावल की खाद्य फसलों में से प्रमुख फसल है। इसकी बिजाई मई-जून में की जाती है तथा यह अक्तूबर-नवम्बर तक तैयार हो जाती है। चावल का उत्पादन पंजाब के सब जिलों में होता है परन्तु सबसे अधिक उत्पादन अमृतसर, पटियाला, लुधियाना तथा संगरूर ज़िलों में होता है। 2019-20 में पंजाब में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जबकि समूचे भारत में औसत उत्पादकता 2708 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। पंजाब में चावल का उत्पादन 13311 हज़ार मीट्रिक टन था।

3. जौ (Barley)-पंजाब में जौ रबी की फसल है। इसको पंजाब में सितम्बर-अक्तूबर के महीने में बोआ जाता है तथा यह अप्रैल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन भटिंडा, होशियारपुर इत्यादि जिलों में होता है। 1965-66 में जौ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1030 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3017 किलोग्राम हो गई है। जौ का उत्पादन 117 हजार मीट्रिक टन हुआ था।

4. मक्की (Maize)-पंजाब में मक्की खरीफ की फसल है। मक्की जून-जुलाई के महीने में बोई जाती है तथा मक्की की फसल सितम्बर, अक्तूबर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में अधिकतर मक्की लुधियाना, जालन्धर, होशियारपुर जिलों में पैदा होती है। 1970-71 में प्रति हेक्टेयर उत्पादन शक्ति 1555 किलोग्राम थी। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3515 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। मक्की का उत्पादन 396 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

5. ज्वार तथा बाजरा (Jowar and Bazra)-ज्वार तथा बाजरा खरीफ की फसलें हैं। ज्वार मुख्यतः रूपनगर तथा मुक्तसर जिलों में पैदा की जाती है। बाजरे की फसल, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा संगरूर में होती है। बाजरे की उत्पादन शक्ति 1965-66 में 548 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जोकि 2019-20 में बढ़कर 987 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। ज्वार का उत्पादन 800 मीट्रिक टन तथा बाजरे का उत्पादन 800 मीट्रिक टन हुआ था।

6. चने (Gram)-यह रबी की फसल है जोकि अक्तूबर-नवम्बर में बोई जाती है। यह फसल अप्रैल-मई तक तैयार हो जाती है। यह फसल भटिंडा तथा मुक्तसर जिलों में होती है क्योंकि रेतीली भूमि इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसकी उत्पादकता 1245 kg प्रति हैक्टेयर और उत्पादन 3 हज़ार मीट्रिक टन था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

7. दालें (Pulses) पंजाब में लोगों के भोजन का मुख्य अंग दालें हैं। पंजाब में मांह, मोठ, मूंगी, मसर इत्यादि दालों का प्रयोग किया जाता है। दालों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। 2019-20 में दालों की पैदावार 25 हज़ार मीट्रिक टन थी।

B. व्यापारिक फसलें अथवा नकदी फसलें (Commercial Crops or Cash Crops)-पंजाब में व्यापारिक फसलें मुख्यतः निम्नलिखित है –
1. गन्ना (Sugarcane) पंजाब में गन्ना व्यापारिक खाद्य फसल है। इसका प्रयोग गुड़, शक्कर तथा चीनी तैयार करने के लिए किया जाता है। इसका बिजाई मार्च-अप्रैल तथा कटाई दिसम्बर-मार्च में की जाती है। गन्ना मुख्यतः जालन्धर, गुरदासपुर तथा रूपनगर जिलों में बोआ जाता है। पंजाब में चीनी बनाने के उद्योग के लिए कच्चा माल पंजाब में ही तैयार किया जाता है। 2019-20 में गन्ने का उत्पादन 7744 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

2. कपास (Cotton) कपास खरीफ की फसल है। यह अप्रैल से जून तक बोई जाती है जोकि सितम्बर से दिसम्बर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में भटिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर में कपास की अमेरिकन किस्म बोई जाती है जबकि अन्य जिलों में देशी कपास बोई जाती है। 2019-20 में कपास का उत्पादन 1283 हज़ार गांठें हुआ।

3. तेलों के बीज (Oil Seeds)-पंजाब में तेलों के बीज मुख्य नकदी फसल है। इसमें सरसों, तारामीरा, अलसी, तिल इत्यादि का उत्पादन होता है। इनमें से कुछ फसलें रबी की हैं तथा कुछ खरीफ की हैं। भटिंडा, फिरोजपुर तथा पटियाला में सरसों तथा तारामीरा, संगरूर में मुख्यतः तारामीरा, लुधियाना में मूंगफली का उत्पादन किया जाता है। 2019-20 में 59.6 हज़ार मीट्रिक टन तेलों के बीज का उत्पादन हुआ।

प्रश्न 4.
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के दोष बताएं और इन दोषों को दूर करने के लिये सुझाव दें।
(Discuss the defects of Agricultural Marketing on Punjab. Suggest measures to remove the defects.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –
1. ग्रेडिंग का अभाव (Lack of Grading)-पंजाब में किसान अपनी फसल की ग्रेडिंग नहीं करते। जो फसल बाज़ार में बिक्री के लिए भेजी जाती है उसमें मिलावट होने के कारण उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता।

2. उपज के भण्डार का अभाव (Lack of Storage Facilities)-किसान को अपनी उपज कटाई के बाद शीघ्र बेचनी पड़ती है क्योंकि फसलों के संग्रह करने के लिये उचित भण्डार साधन नहीं होते। इसलिए घर पर फसल रखने से उसके नष्ट होने का डर रहता है।

3. संगठन का अभाव (Lack of Organisation) पंजाब में किसानों का कोई संगठन नहीं है जो कि उपज का उचित मूल्य दिला सके। किसान अपनी-अपनी फसल मण्डियों में बेचते हैं जिस कारण उनको उपज की कम कीमत प्राप्त होती है।

4. मण्डियों में अधिक मध्यस्थ (Many Intermediaries in Mandies)-मण्डी में मध्यस्थों की अधिकता के कारण भी किसान को उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। किसान और उपभोक्ता के बीच कच्चा आढ़तिया, पक्का आढ़तिया, दलाल आदि बहुत-से मध्यस्थ होते हैं। मध्यस्थों के कारण किसान को उपज की पूरी कीमत प्राप्त नहीं होती।

5. मण्डियों में अनुचित ढंग (Malpractices in Mandies) मण्डियों में किसान को कम कीमत देने के लिये कई प्रकार के अनुचित ढंगों का प्रयोग किया जाता है। किसान की उपज को तुरन्त खरीदा नहीं जाता और किसान को कई दिन उपज की सम्भाल करनी पड़ती है। उसको उपज की उचित कीमत का ज्ञान भी नहीं दिया जाता।

6. मण्डियों के बारे में सूचना (Knowledge about Mandies) किसानों को बाज़ार की विभिन्न मण्डियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिये किसान अपनी उपज गांव के पास ही मण्डियों में कम कीमत पर बेच देता है।

7. वित्त का अभाव (Lack of Finance)-किसानों को फसल बीजने से लेकर, इस की कटाई होने तक बहुतसे वित्त की ज़रूरत होती है। पंजाब में बहुत-से किसान वित्त के लिये महाजनों तथा आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज महाजनों तथा आढ़तियों को ही बेचनी पढ़ती है। इसलिए उपज की ठीक कीमत प्राप्त नहीं होती।

8. यातायात सुविधाओं का अभाव (Lack of Transport Facilities)-पंजाब में गांव में यातायात की असुविधाएं होने के कारण किसान को अपनी उपज गांव में या नज़दीक मण्डियों में ही बेचनी पड़ती है। इसलिये किसान को अपने उत्पादन को बहुत ही प्रतिकूल समय, प्रतिकूल दरों पर, प्रतिकूल बाज़ार में बेचना पड़ता है।

9. स्वेच्छा बिक्री का अभाव (Lack of Freedom of Sale)-पंजाब में किसान अपनी उपज स्वेच्छा से बिक्री नहीं कर सकता। उसको बैंक का कर्ज, साहूकार और आढ़तियों का कर्ज देना होता है। इसलिए फसल काटने के तुरन्त बाद उसको अपनी उपज बेचनी पड़ती है।

कृषि उपज की बिक्री के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestions to Remove the Defects of Agricultural Marketing) कृषि उपज की बिक्री में बहुत से दोष हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जाते हैं –
1. वित्त की सुविधा (Facilities of Finance)-पंजाब के किसानों को वित्त की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। भारत सरकार ने इस वित्त की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किसानों पर से 2019-20 में ₹ 2000 करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया है और बैंकों में किसानों को अधिक साख देने के लिये कहा है।

2. यातायात की सुविधा (Facilities of Transport)-पंजाब में किसान की उपज को बेचने के लिये सस्ती, कुशल तथा पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिएं। इस प्रकार किसान अपनी उपज को उचित बाज़ार, उचित समय तथा उचित कीमत पर बेच सकता है।

3. संग्रह की सुविधा (Facilities of Storage)-संग्रह की सुविधा भी कृषि उपज की बिक्री के लिए बहुत • ज़रूरी है। किसान के पास गांव में फसलों को संग्रह करने के लिये गड्ढ़े या कोठियां मिट्टी के बने होते हैं। इस कारण बहुत-सी फसल नष्ट हो जाती है। इसलिए संग्रह की सुविधा सरकार द्वारा प्रदान करनी चाहिए।

4. मध्यस्थों पर नियन्त्रण (Control over Middleman)-कृषि उपज की उचित बिक्री के लिये मध्यस्थों पर नियन्त्रण आवश्यक है। मध्यस्थों पर नियन्त्रण करके किसान को उसकी उपज की ठीक कीमत दिलाई जा सकती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

5. उचित कीमत (Suitable Price)-किसान द्वारा उपज की कीमत दूसरे खरीदार लगाते हैं जबकि उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

PSEB 12th Class Economics पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या के आकार में परिवर्तन का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 2 करोड़ 77 लाख थी।

प्रश्न 2.
पंजाब में साक्षरता अनुपात पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
2011 में साक्षरता अनुपात बढ़ कर 75.8% हो गई है। साक्षर लोगों में पुरुषों का अनुपात 75.63% है, जबकि स्त्रियों में साक्षरता अनुपात 71.3% है।

प्रश्न 3.
पंजाब की जनसंख्या के लिंग अनुपात का वर्णन करें।
उत्तर-
2011 में पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात 897 था।

प्रश्न 4.
पंजाब की वन सम्पत्ति के सम्बन्ध में क्या स्थिति है?
उत्तर-
पंजाब में वन सम्पत्ति संतोषजनक नहीं है।

प्रश्न 5.
पंजाब में शहरों, तहसीलों तथा गांवों की संख्या बताएं।
उत्तर-
पंजाब में 5 डिवीज़न, 22 जिले, 91 तहसीलें, 81 सब तहसीलें, 150 विकास खण्ड, 74 शहर, 143 कस्बे तथा 12581 गांव हैं।

प्रश्न 6.
पंजाब में ऊर्जा के जल साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
जल विद्युत्-पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन दरिया बहते हैं। इनके जल से विद्युत् उत्पन्न की जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 7.
पंजाब का क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
पंजाब में स्त्री पुरुष लिंग अनुपात ……………. है।
उत्तर-
895.

प्रश्न 9.
पंजाब में जंगल सन्तोषजनक हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
पंजाब की जनसंख्या 2011 की जनगणना अनुसार …………………… .
(a) 267 लाख
(b) 277 लाख
(c) 287 लाख
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) 277 लाख।

प्रश्न 11.
पंजाब के खनिज पदार्थों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब में कोई खनिज पदार्थ नहीं मिलता।

प्रश्न 12.
पंजाब में जल बिजली और ताप बिजली ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
पंजाब में शक्ति के साधन ………………..
(a) भाखड़ा नंगल प्रोजैक्ट
(b) ब्यास प्रोजैक्ट
(c) आनंदपुर साहिब प्रोजैक्ट
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 14.
पंजाब की मुख्य फसलें गेहूँ और चावल हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन का कारण बताएँ।
उत्तर-
पंजाब में कृषि के लिए उचित और उपयुक्त वातावरण।

प्रश्न 16.
पंजाब में वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय ₹ 166830 थी।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या की वृद्धि के दो कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ऊंची जन्म दर-पंजाब में जन्म दर ऊंची है जो कि 19.9 प्रति हज़ार है। इस कारण पंजाब की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  2. कम मृत्यु दर-एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है उसको मृत्यु दर कहा जाता है।

पंजाब में मृत्यु दर निरन्तर कम हो रही है। इसके मुख्य कारण डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि, अच्छी खुराक, विवाह की अधिक आयु इत्यादि है। 1971 में मृत्यु दर 11.4 प्रति हज़ार थी। 2018-19 में मृत्यु दर कम होकर 6 प्रति हज़ार है। इस कारण जनसंख्या की वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 2.
पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण दें।
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण इस प्रकार है-

व्यवसाय उत्पादन प्रतिशत
(1) सुविधाएं कृषि (प्राथमिक क्षेत्र) 26.16
(2) उद्योग तथा निर्माण (सैकण्डरी क्षेत्र) 24.70
(3) टर्शरी क्षेत्र 35.14
14.00
कुल कार्यशील जनसंख्या 100%

प्रश्न 3.
पंजाब में वन सम्पत्ति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
वन मनुष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं। एक राज्य की जलवायु, रोजगार, वर्षा, बाढ़ नियन्त्रण इत्यादि पर वनों का बहुत प्रभाव पड़ता है। एच० कालबर्ट के अनुसार, “पंजाब की खुशहाली बहुत हद तक वनों पर निर्भर करती है क्योंकि यह भूमि कटाव को रोकते हैं।” पंजाब में वन साधन बहुत कम हैं। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के कारण वन वाला क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का भाग बन गया इसलिए पंजाब में वनों के अधीन क्षेत्र बहुत कम है। पंजाब में 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 4.
पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात पर रोशनी डालें।
उत्तर-
स्त्री-पुरुष अनुपात निरन्तर कम हो रहा है। इसका विवरण निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
स्त्री-पुरुष अनुपात

वर्षों 1951 1961 1971 1981 1991 2011
भारत 946 942 930 934 929 940
पंजाब 844 854 865 879 888 895

प्रश्न 5.
पंजाब में वनों के दो प्रत्यक्ष लाभ बताएं।
उत्तर-
प्रत्यक्ष लाभ (Direct Advantages)-

  1. इमारती लकड़ी-पंजाब के वनों से कई प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है जैसे कि शीशम, टाहली, आम, सफ़ेदा इत्यादि जो फर्नीचर तथा इमारतें बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।
  2. कच्चे माल की प्राप्ति-पंजाब के वनों से कच्चे माल की प्राप्ति भी होती है। इससे खेलों का सामान बनाने वाले उद्योग, काग़ज़ उद्योग इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंग-रोगन बनाने के लिए कच्चा माल भी वनों से प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब में वनों के दो अप्रत्यक्ष लाभ बताएं।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Advantages)-वनों में अप्रत्यक्ष लाभ इस प्रकार हैं –

  1. वनों द्वारा बाढ़ की रोकथाम होती है। वन जल की रफ़्तार काफ़ी कम कर देते हैं।
  2. वनों द्वारा भूमि के कटाव (Soil Erosion) की समस्या का हल होता है। पेड़ों की जड़ों में मिट्टी फंस जाती है इसलिए भूमि के कटाव की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या की वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ऊंची जन्म दर-पंजाब में जन्म दर ऊंची है जो कि 29.8 प्रति हज़ार है। इस कारण पंजाब की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  2. कम मृत्यु दर-एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है उसको मृत्यु दर कहा जाता है। पंजाब में मृत्यु दर निरन्तर कम हो रही है। इसके मुख्य कारण डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि, अच्छी खुराक, विवाह की अधिक आयु इत्यादि है। 1971 में मृत्यु दर 11.4 प्रति हज़ार थी। 2011 में मृत्यु दर कम होकर 7.4 प्रति हज़ार है। इस कारण जनसंख्या की वृद्धि हो रही है।
  3. अशिक्षा- पंजाब – 75.8% लोग गांवों में रहते हैं। इनमें से अधिक लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी हैं। वे छोटे परिवार के महत्त्व को नहीं समझते इसलिए परिवार नियोजन की तरफ कम ध्यान देते हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए परिवार में लोग वृद्धि करते हैं।
  4. सर्वव्यापी विवाह-पंजाब में विवाह करना सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दृष्टि से आवश्यक माना जाता है। यद्यपि कोई बच्चों का पालन-पोषण न कर सके, परन्तु विवाह करना पसन्द करता है।
  5. गर्म जलवायु-पंजाब की जलवायु गर्म है। इसलिए लड़के-लड़कियां छोटी आयु में ही विवाह योग्य हो जाते हैं। इस कारण बच्चे अधिक होते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में जनसंख्या की सघनता पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
जनसंख्या की सघनता का अर्थ है कि राज्य में प्रति वर्ग किलोमीटर में कितनी जनसंख्या निवास करती है
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन 1
पंजाब में जनसंख्या की सघनता बढ़ रही है 1961 में पंजाब की सघनता 221 थी, जोकि 2011 में बढ़कर 551 हो गई है। पंजाब में जनसंख्या की सघनता भारत में जनसंख्या की सघनता से अधिक है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं-

  1. भूमि की उपजाऊ शक्ति-जिस राज्य में भूमि की उपजाऊ शक्ति अधिक होती है। वर्षा उचित मात्रा में ठीक समय पर होती है तथा सिंचाई की सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उन क्षेत्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक होगी।
  2. उद्योगों का विकास-औद्योगिक विकास तथा व्यापारिक केन्द्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक होती है। उद्योग विकसित होने के कारण रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं, इसलिए जनसंख्या की सघनता बढ़ जाती है।
  3. सुरक्षा का वातावरण-जिन क्षेत्रों में सुख-शान्ति का वातावरण पाया जाता है तथा जान-माल की सुरक्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक पाई जाती है।
  4. राजधानियां तथा धार्मिक स्थान-साधारणतया राजधानियों तथा धार्मिक स्थानों पर जनसंख्या की सघनता अधिक होती है, क्योंकि श्रद्धालु लोग धार्मिक स्थानों पर बस जाते हैं। राजधानियों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाएं होने के कारण ऐसे स्थानों पर लोग निवास करना पसन्द करते हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब में जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन को स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन से अभिप्राय : एक राज्य के लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए कौन-से कार्य करते हैं। 2011 की जनसंख्या के अनुसार पंजाब की जनसंख्या 277 लाख है जिसमें से 30% जनसंख्या कार्यशील है। जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन को तीन भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है-
1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-इस क्षेत्र में कृषि तथा कृषि कार्यों से सम्बन्धित सब कार्य शामिल किए जाते हैं।
2. गौण क्षेत्र (Secondary Sector)-इस क्षेत्र में उद्योग, निर्माण इत्यादि कार्यों को शामिल किया जाता है।
3. तृतीय क्षेत्र (Tertiary Sector)–इस क्षेत्र में व्यापार, यातायात, बैंकिंग इत्यादि सेवाओं को शामिल किया जाता हैं।

पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण इस प्रकार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन 2

इस सूची-पत्र से स्पष्ट होता है कि –

  • कृषि-पंजाब में कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इसमें 26.16% उत्पादन होता है।
  • उद्योग तथा निर्माण-पंजाब में औद्योगिक विकास बहुत कम हुआ है जो कि पंजाब की कम उन्नति का सूचक है। उद्योगों में पंजाब की कार्यशील जनसंख्या का 18% भाग कार्य करता है। इसमें 24.70% उत्पादन होता है।
  • सेवाएं-पंजाब की जनसंख्या का 28% भाग व्यापार तथा यातायात में लगा हुआ है। इसमें 49.14% उत्पादन होता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में जनसंख्या को रोकने के लिए उठाए गए पग बताएं।
उत्तर-
पंजाब सरकार ने जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित पग उठाए हैं-
स्वास्थ्य तथा डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि-जनसंख्या को कम करने के लिए पंजाब सरकार ने शिक्षा के प्रसार का कार्य आरम्भ किया है। पंजाब सरकार की तरफ से परिवार नियोजन को सफल बनाने के लिए डॉक्टरी सुविधाओं का विस्तार किया है। गांवों में डिस्पेंसरियां तथा छोटे अस्पताल स्थापित किए हैं। इस प्रकार परिवार सीमित रखने के लिए लोगों को उत्साहित किया जाता है।

प्रश्न 5.
पंजाब की भौगोलिक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब भारत का एक कृषि प्रधान राज्य है। इसका पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। यह प्रान्त उत्तर में जम्मू-कश्मीर, दक्षिण में हरियाणा तथा राजस्थान से लगता है। इसके पूर्व में हिमाचल है तथा पश्चिम में पाकिस्तान का क्षेत्र है। यह प्रान्त उत्तर में 29° से 32° तथा पूर्व में 75° से 77° तक फैला हुआ है। इसको कृषि तथा जलवायु के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पहाड़ी क्षेत्र
  • मैदानी क्षेत्र
  • रेतीला क्षेत्र।

पंजाब के पुनर्गठन के पश्चात् इसका क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर अथवा 5036 हज़ार हेक्टेयर है। पंजाब भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.5% भाग है। पंजाब की जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 243.6 लाख है। इसमें 5 डिवीजन, 22 ज़िले, 90 तहसीलें, 81 सब-तहसीलें, 150 विकास खण्ड, 74 शहर, 143 कस्बे तथा 12581 गांव हैं। पंजाब में मुख्य तीन दरिया –

  • सतलुज
  • ब्यास
  • रावी बहते हैं।

इनके अतिरिक्त घग्गर नदी भी जल साधन का स्रोत है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 6.
पंजाब में बन सम्पत्ति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
वन मनुष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं। एक राज्य की जलवायु, रोज़गार, वर्षा, बाढ़ नियन्त्रण इत्यादि पर वनों का बहुत प्रभाव पड़ता है। एच० कालबर्ट के अनुसार, “पंजाब की खुशहाली बहुत हद तक वनों पर निर्भर करती है क्योंकि यह भूमि कटाव को रोकते हैं।’ पंजाब में वन साधन बहुत कम हैं। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के कारण वन वाला क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का भाग बन गया इसलिए पंजाब में वनों के अधीन क्षेत्र बहुत कम है। पंजाब में 3600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग है।

पंजाब में वन सम्पत्ति की विशेषताएं (Features of Forest Wealth of Punjab)-

  1. वनों के अधीन कम क्षेत्र-पंजाब में वनों के अधीन बहुत कम क्षेत्र है। पंजाब के कुल क्षेत्रफल का केवल 5.7% भाग वनों के अधीन है। प्रत्येक क्षेत्र की जलवायु को सन्तुलित रखने के लिए 33% क्षेत्रफल वनों के अधीन होना चाहिए किन्तु पंजाब में वनों के अधीन कम क्षेत्र होने के कारण इसकी जलवायु नीम शुष्क है।
  2. क्षेत्रीय असमानता-पंजाब के वनों की एक विशेषता यह है कि इसमें क्षेत्रीय असमानता पाई जाती है अर्थात् पंजाब के वनों का क्षेत्रीय विभाजन असमान है। पंजाब में अधिकतर वन होशियारपुर जिले में पाए जाते हैं जो कि कुल वनों का 33% भाग है। रोपड़ में 23% क्षेत्र वनों के अधीन है, शेष जिलों में वन बहुत कम हैं।

प्रश्न 7.
पंजाब सरकार की वन नीति पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब में भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व वनों सम्बन्धी कोई नीति नहीं बनाई गई थी। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् वन नीति की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसकी मुख्य विशेषताएं अनलिखित हैं-

  1. वन क्षेत्र विकास (Increase in Forest Area)-पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। उस समय वनों के अधीन क्षेत्र 1872 वर्ग किलोमीटर था। इस समय लगभग 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग हैं।
  2. नर्सरियों की स्थापना (Establishment of Nursaries)-पंजाब सरकार ने नर्सरियों की स्थापना की है। इस समय लगभग 150 नर्सरियां हैं जिनमें पेड़ों के बीज लगा कर छोटे पेड़ तैयार किए जाते हैं।
  3. नए पेड़ लगाना (New Plantation)-पंजाब सरकार ने अधिक पेड़ लगाओ (Grow More Trees) की नीति अपनाई है जिसके अधीन लोगों को बहुत कम कीमत पर सरकारी नर्सरियों से पौधे दिए जाते हैं।
  4. घास लगाना (Grass Plantation)-पंजाब के नीम पहाड़ी क्षेत्रों में घास लगाया जाता है। इस प्रकार भूमि के कटाव को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। वन सम्बन्धी खोज का कार्य पंजाब कृषि विद्यालय लुधियाना में किया जाता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वन लगाने के लिए सुझाव तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में वनों के विकास पर 5400 लाख रुपए व्यय किए गए थे। पंजाब में 3011 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन हैं।

प्रश्न 8.
पंजाब सरकार की वन नीति पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब में भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व वनों सम्बन्धी कोई नीति नहीं बनाई गई थी। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् वन नीति की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. वन क्षेत्र विकास (Increase in Forest Area)-पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। उस समय वनों के अधीन क्षेत्र 1872 वर्ग किलोमीटर था। इस समय लगभग 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग हैं।
  2. नर्सरियों की स्थापना (Establishment of Nursaries)-पंजाब सरकार ने नर्सरियों की स्थापना की है। इस समय लगभग 150 नर्सरियां हैं जिनमें पेड़ों के बीज लगा कर छोटे पेड़ तैयार किए जाते हैं।
  3. नए पेड़ लगाना (New Plantation)-पंजाब सरकार ने अधिक पेड़ लगाओ (Grow More Trees) की नीति अपनाई है जिसके अधीन लोगों को बहुत कम कीमत पर सरकारी नर्सरियों से पौधे दिए जाते हैं।
  4. घास लगाना (Grass Plantation)-पंजाब के नीम पहाड़ी क्षेत्रों में घास लगाया जाता है। इस प्रकार भूमि के कटाव को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। वन सम्बन्धी खोज का कार्य पंजाब कृषि विद्यालय लुधियाना में दिया जाता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वन लगाने के लिए सुझाव तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में वनों के विकास पर 5400 लाख रुपए व्यय किए गए थे। पंजाब में 3011 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन हैं।

प्रश्न 9.
पंजाब में शक्ति साधनों के महत्त्व पर नोट लिखें।
उत्तर-

  1. कृषि के लिए महत्त्व-पंजाब कृषि प्रधान प्रान्त है। कृषि उत्पादन अधिक होने के कारण इसको भारत का अन्न भण्डार कहा जाता है। कृषि के विकास के लिए बिजली का विकास बहुत महत्त्वूपर्ण है।
  2. बहु-उद्देशीय योजनाएं-पंजाब में बहु-उद्देशीय योजनाएं स्थापित की गई हैं। इन योजनाओं द्वारा बाढ़ को रोकना, भूमि की सुरक्षा, जल बिजली पैदा करना इत्यादि बहुत से उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
  3. यातायात तथा संचार के लिए महत्त्व-बिजली का विकास यातायात तथा संचार के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। पंजाब में टेलीविज़न, फ्रिज, डाक तथा तार विभाग में बिजली का प्रयोग किया जाता है।
  4. उद्योगों के लिए महत्त्व-पंजाब में उद्योगीकरण की बहुत आवश्यकता है। विशेषतया घरेलू तथा छोटे पैमाने के कृषि आधरित उद्योगों का विकास करना चाहिए। इस लक्ष्य के लिए बिजली का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब की जनसंख्या की विशेषताएं बताएं। (Explain the features of Population (Demographic features) of Punjab.)
अथवा
पंजाब की जनसंख्या पर विस्तारपूर्वक नोट लिखें। (Write a detailed note as the Population of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब प्रान्त की जनसंख्या की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. जनसंख्या का आकार तथा वृद्धि (Size and Growth of Population)-पंजाब राज्य का पुनर्गठन भाषा के आधार पर 1 नवम्बर, 1966 में किया गया। पंजाब का क्षेत्रफल सारे भारत का 1.5% भाग है।
2011 में पंजाब की जनसंख्या बढ़कर 277 लाख हो गई है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं –

  • पंजाब में जन्म दर बहुत अधिक है जो कि इस समय 24.2 प्रति हज़ार है।
  • पंजाब में मृत्यु दर तीव्रता से कम हो रही है।
  • पंजाब की प्रति व्यक्ति आय अधिक होने से जनसंख्या में वृद्धि हुई है।
  • पंजाब के 62.5% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। गांव के लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी होने के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक है।

2. जन्म दर तथा मृत्यु दर (Birth Rate and Death Rate)-जनसंख्या में वृद्धि जन्म दर तथा मृत्यु दर पर निर्भर करती है। एक वर्ष में एक हज़ार मनुष्यों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं उसको जन्म दर कहा जाता है तथा जितने व्यक्ति मर जाते हैं, उसको मृत्यु दर कहते हैं। 1970 में पंजाब की जन्म दर 33.8 प्रति हज़ार थी जो कि 2011 में कम होकर 24.2 प्रति हज़ार रह गई है। मृत्यु दर 1970 में 11.4 प्रति हज़ार थी। 2020-21 में मृत्यु दर कम होकर 7.1 प्रति हज़ार रह गई है। इस कारण जनसंख्या में वृद्धि तीव्र गति से हुई है।

3. जनसंख्या की सघनता (Density of Population)-एक वर्ग किलोमीटर में जितनी जनसंख्या रहती है, उसको जनसंख्या की सघनता कहते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन 3
पंजाब में 2011 की जनगणना के अनुसार सघनता 551 प्रति वर्ग किलोमीटर है। यदि हम भिन्न-भिन्न जिलों में सघनता के आंकड़े देखते हैं तो लुधियाना जिले की सघनता 648 है जो कि सब जिलों से अधिक है तथा मुक्तसर जिले की सघनता 252 है जो कि सबसे कम है।

4. स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio)-पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात में निरन्तर वृद्धि हो रही है। स्त्री-पुरुष अनुपात से अभिप्राय है एक हजार पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। पंजाब में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का अनुपात निरन्तर कम हो रहा है। इसका विवरण निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
स्त्री-पुरुष अनुपात

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2011
भारत 946 942 930 934 929 940
पंजाब 844 854 865 879 888 895

सूची पत्र से ज्ञात होता है कि पंजाब में स्त्री पुरुष अनुपात में निरन्तर कमी हो रही है। इसलिए पंजाब सरकार ने गर्भावस्था के समय बच्चों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके सम्बन्ध में कड़े कानून बनाए गए हैं।

5. औसत आयु (Average Age)-पंजाब में औसत आयु में वृद्धि हो रही है। 1991 की जनगणना के अनुसार पंजाब में औसत आयु 66 वर्ष आंकी गई थी। 2011 में पंजाब में औसत आयु परुष 71 वर्ष तथा स्त्रियां 74 होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

6. ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या (Rural and Urban Population)-पंजाब 2011 की जनगणना अनुसार 62.51% लोग गांवों में रहते हैं तथा 37.49% लोग शहरों में रहते हैं। नवम् पंचवर्षीय योजना के ड्रॉफ्ट के अनुसार, “राज्य के आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप ग्रामीण तथा शहरी खुशहाली के कारण शहरीकरण का रुझान बढ़ा है। इसके मुख्य कारण यह हैं कि पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग विकसित हुए हैं, किसानों की आय में वृद्धि हुई है। इसलिए पंजाब में लोगों का रुझान शहरों की तरफ बढ़ रहा है। अगर हम विकसित देशों जैसे कि जापान, अमेरिका, इंग्लैण्ड, कैनेडा को देखते हैं तो इनमें अधिकतर लोग शहरों में रहते हैं। परन्तु पंजाब कृषि प्रधान राज्य है इसलिए गांवों में अधिक लोग रहते हैं।

7. साक्षरता अनुपात (Literacy Ratio)-साक्षरता अनुपात से अभिप्राय है कि एक क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग शिक्षित हैं। किसी देश का आर्थिक विकास उस देश में साक्षरता अनुपात पर निर्भर करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में 75.8% जनसंख्या शिक्षित है। इसमें पुरुषों का साक्षरता अनुपात अधिक है क्योंकि पंजाब के 81.5% पुरुष शिक्षित हैं तथा स्त्रियों में 71.3% स्त्रियां साक्षर हैं। अगर हम अन्य राज्यों से पंजाब की साक्षरता अनुपात की तुलना करते हैं तो अन्य राज्यों के मुकाबले पंजाब की साक्षरता अनुपात 10वें स्थान पर है। अर्थात् 10 राज्यों में साक्षरता अनुपात पंजाब से अधिक है। पंजाब में 72% शहरी जनसंख्या तथा 28% ग्रामीण जनसंख्या साक्षर है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 2.
पंजाब में ऊर्जा के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं ? पंजाब की मुख्य ऊर्जा परियोजनाओं पर प्रकाश डालें।
(What are main two sources of Energy in Punjab ? Explain the energy Projects of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब की आर्थिक उन्नति के लिए शक्ति की बहुत आवश्यकता है। पंजाब में शक्ति का प्रति व्यक्ति उपभोग 684 किलोवाट घंटे प्रति वर्ष है जो कि भारत में प्रति व्यक्ति उपभोग से लगभग दो गुणा है। पंजाब में शक्ति के मुख्य दो साधन हैं-
A. जल बिजली (Hydro Electricity)
B. ताप बिजली (Thermal Electricity)

पंजाब में बिजली के उत्पादन सामर्थ्य में बहुत वृद्धि हुई है। 1966-67 में बिजली का उत्पादन सामर्थ्य 2364 मैगावाट थी। वर्ष 2020-21 में उत्पादन सामर्थ्य बढ़ कर 45713 मिलियन किलोवाट घण्टे हो गई है। बिजली के शक्ति साधनों का मुख्य विवरण इस प्रकार है-

A. जल बिजली (Hydro Electricity)-पंजाब में स्वतन्त्रता के पश्चात् विद्युत् उत्पादन के लिए निम्नलिखित परियोजनाएं स्थापित की गईं। जल बिजली द्वारा 8415 kWh बिजली पैदा की जाती है।
1. भाखड़ा-नंगल प्रोजैक्ट (Bhakhra Nangal Project)-भाखड़ा-नंगल प्रोजैक्ट 1948 में आरम्भ किया गया था। यह भारत का सबसे बड़ा पन बिजली प्रोजैक्ट है जो कि पंजाब, राजस्थान, हरियाणा तथा दिल्ली प्रान्त के संयुक्त प्रयत्न से स्थापित किया गया। इस प्रोजैक्ट में बिजली घर बनाए गए हैं जो कि कोटला, गंगूवाल तथा भाखड़ा डैम पर स्थित हैं। इस डैम की उत्पादन शक्ति 1258 मैगावाट है। इसमें से पंजाब को 736 मैगावाट बिजली का भाग मिलता है।

2. ब्यास प्रोजैक्ट (Bias Project)-यह प्रोजैक्ट पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान का संयुक्त उपक्रम है। इस प्राजैक्ट के दो भाग हैं-

  • ब्यास यूनिट I
  • ब्यास यूनिट II ।

इन दोनों यूनिटों का अब विस्तार किया गया है। इस प्रोजैक्ट की उत्पादन सामर्थ्य में से पंजाब को 566 मैगावाट बिजली मिलती है।

3. शानन प्रोजैक्ट (Shanan Project)-यह प्रोजैक्ट पंजाब का सबसे पुराना बिजली घर है जो कि जोगिन्द्र नगर में स्थित है। इस प्रोजैक्ट की स्थापना 1932 में 10 करोड़ की लागत से की गई थी। शानन प्रोजैक्ट की बिजली उत्पादन सामर्थ्य 10 मैगावाट है।

4. मुकेरियां हाइडल प्रोजैक्ट (Mukerian Hydle Project)-यह प्रोजैक्ट तलवाड़ा के निकट मुकेरियां के स्थान पर स्थापित किया गया है। इस प्रोजैक्ट पर 357 करोड़ रुपए व्यय होने का अनुमान है। इस प्रोजैक्ट में चार पावर हाउस तथा पेट्रोल पावर हाऊस में तीन इकाइयां बनाने की योजना है। इस प्रोजैक्ट के द्वितीय चरण पर कार्य हो रहा है। पूर्ण होने पर इसकी उत्पादन शक्ति 207 मैगावाट होने का अनुमान है।

5. आनन्दपुर साहिब हाइडल प्रोजैक्ट (Anandpur Sahib Hydle Project)-यह प्रोजैक्ट सतलुज नदी पर बनाया गया है। इसमें नंगल डैम से पानी लेकर बिजली बनाने का प्रयत्न किया गया है। इस प्रोजैक्ट द्वारा 134 मैगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है।

6. अपर-बारी दोआब बिजली घर (Uppar Bari Doab Power House)-यह बिजली घर मलिकपुर के स्थान पर बनाया गया है। बिजली घर के दो यूनिट हैं। प्रथम यूनिट 1973 में पूर्ण हो गया है जिसकी उत्पादन शक्ति 45 मैगावाट है। दूसरे यूनिट पर काम चल रहा है।

7. थीन डैम (Thein Dam)-इस डैम को महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर रणजीत सिंह सागर डैम भी कहा जाता है। थीन डैम माधोपुर के स्थान पर रावी नदी पर स्थित है। इस प्रोजैक्ट के चार यूनिट स्थापित किए जाएंगे जिनकी कुल उत्पादन शक्ति 600 मैगावाट होगी। इस प्रोजैक्ट पर 1.132 करोड़ रुपए व्यय होने की सम्भावना है।

B. ताप बिजली (Thermal Electricity)-ताप बिजली घरों में कोयले अथवा डीज़ल का प्रयोग करके बिजली पैदा की जाती है। पंजाब में ताप बिजली द्वारा 5204 kWh मिलियन बिजली की पैदावार की जाती है।

ताप बिजली की स्थिति इस प्रकार है –

  1. भटिण्डा ताप बिजली घर (Bathinda Thermal Plant)-भटिण्डा में गुरु नानक देव ताप बिजली घर का निर्माण 1974 में आरम्भ हुआ था। इस प्लांट की चार इकाइयां लगाई गई थीं जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 440 मैगावाट है। सातवीं योजना में इस बिजली घर की दो अन्य इकाइयां लगाने की आज्ञा दी गई थी जिनकी उत्पादन क्षमता 2748 मैगावाट होगी। यह यूनिट अब बंद हो गया है।
  2. रोपड़ थर्मल प्रोजैक्ट (Ropar Thermal Project)-यह थर्मल प्लांट रोपड़ में स्थापित किया गया है। इसकी पांच इकाइयां लगाई गई हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 9224 मैगावाट है।

प्रश्न 3.
पंजाब की वन सम्पत्ति का विवरण दें। इसके महत्त्व को स्पष्ट करें। (Discuss the forest wealth of Punjab and Explain its Importance.)
उत्तर-
वन प्रकृति की नि:शुल्क तथा महान् देन माने जाते हैं। प्रत्येक देश के विकास के लिए वनों का विकास महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वातावरण को ठीक रखने के लिए कुल भूमि का 33% भाग वनों के अधीन होना चाहिए। इससे जलवायु ठीक रहती है। पंजाब में वन साधनों की कमी पाई जाती है। पंजाब का कुल क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से 3050 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 6% भाग है।

अगर हम पंजाब की वन सम्पत्ति को देखते हैं तो वन सम्पत्ति की स्थिति सन्तोषजनक नहीं है। पंजाब के वनों का 33% भाग होशियारपुर में पाया जाता है जबकि जालन्धर, मानसा, संगरूर, कपूरथला इत्यादि में वन बहुत कम पाए जाते हैं।
वनों का वर्गीकरण (Classification of Forests)पंजाब में वनों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है-
1. कानूनी आधार के अनुसार (According to Legal Status)-पंजाब सरकार ने कानून के आधार पर वनों की तीन श्रेणियां बनाई हैं

  • आरक्षित वन (Reserve Forest)-आरक्षित वन वे वन हैं जिनको सरकार की आज्ञा के बिना कोई मनुष्य काट नहीं सकता। पंजाब सरकार ने 44 वर्ग किलोमीटर भूमि में आरक्षित वन स्थापित किए हैं। ये वन जलवायु ठीक रखने, बाढ़ की रोकथाम के लिए आवश्यक हैं।
  • सुरक्षित वन (Protective Forest)-इन वनों से औद्योगिक लकड़ी पाई जाती है। यह वन विशेष शर्तों पर व्यक्तियों को ठेके पर दिए जाते हैं। 2020-21 में 2711 वर्ग किलोमीटर पर सुरक्षित वन थे।
  • अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)-यह वन सरकार द्वारा निजी प्रयोग के लिए प्रयोग होने वाली लकड़ी के रूप में आते हैं। इन वनों का सरकार ठेका देती है।

2. स्वामित्व के आधार अनुसार (According to Ownership)-इस आधार पर वनों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  • सरकारी वन (State Forest)-यह वन सरकार के अधीन क्षेत्र में पाए जाते हैं। 1965-66 में 748 वर्ग किलोमीटर में सरकारी वन थे जोकि 2020-21 में 3315 वर्ग किलोमीटर में पाए जाते हैं।
  • निजी वन (Private Forest)-निजी स्वामित्व के अधीन 1965-66 में 1124 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र था जो 2020-21 में बढ़ कर 166 वर्ग किलोमीटर हो गया है।

वनों की किस्में (Types of Forests) वनों की मुख्य किस्में इस प्रकार हैं-

  1. पहाड़ी वन-यह वन पहाड़ी क्षेत्रों होशियारपुर में पाए जाते हैं। इन वनों में चील की लकड़ी प्राप्त होती है जो कि निर्माण के कार्य में प्रयोग की जाती है।
  2. बाँस के वन-ये वन भी होशियारपुर के क्षेत्र में स्थित हैं। इनसे बाँस को लकड़ी प्राप्त होती है।
  3. शुष्क वन-पंजाब में बबूल, टाहली, इत्यादि के पेड़ जो शिवालिक पर्वत श्रेणी में पाए जाते हैं। इनको कांटेदार वन भी कहा जाता है।
  4. फल वाले वन-ऐसे वनों की पंजाब में कमी है। इनमें आम, अंगूर, अमरूद के फल वाले पेड शामिल हैं। इसका कुछ भाग रोपड़ जिले में पाया जाता है।
  5. अन्य वन-इनमें सफेदा, शीशम, थोहर इत्यादि शामिल किए जाते हैं। ये वन पंजाब में भिन्न-भिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं।

वनों का महत्त्व अथवा लाभ (Importance or Advantages of Forest) पंजाब में वनों से दो प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं –
A. प्रत्यक्ष लाभ (Direct Advantages)
1. इमारती लकड़ी-पंजाब के वनों से कई प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है जैसे कि शीशम, टाहली, आम, सफ़ेदा इत्यादि जो फर्नीचर तथा इमारतें बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।

2. कच्चे माल की प्राप्ति-पंजाब के वनों से कच्चे माल की प्राप्ति भी होती है। इससे खेलों का सामान बनाने वाले उद्योग, काग़ज़ उद्योग इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंग-रोगन बनाने के लिए कच्चा माल भी वनों से प्राप्त किया जाता है।

3. चारा-वनों से पशुओं के लिए चारा प्राप्त किया जाता है। यह चारा हरी तथा सूखी घास, पत्तेदार झाड़ियों द्वारा प्राप्त होता है।

4. रोज़गार-वनों द्वारा लोगों को रोज़गार भी प्राप्त होता है। 2020-21 में लगभग 13068 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। यह लोग ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई इत्यादि कामों में लगे हुए हैं। 1966-67 की तुलना में वनों द्वारा रोज़गार में दो-गुणा वृद्धि हो गई है।

5. राज्य सरकार को आय-पंजाब सरकार को वनों द्वारा आय प्राप्त होती है। 2020-21 में वनों द्वारा 12 करोड़ 95 लाख की आय होने का अनुमान था।

6. वस्तुओं का उत्पादन-पंजाब के वनों से कई प्रकार की वस्तुएं उत्पादित की जाती हैं जैसे कि गोंद, कत्था, बांस, गन्दा बिरोजा इत्यादि। 2020-21 में 4 करोड़ 95 लाख रुपए की वस्तुएं प्राप्त होने का अनुमान था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

B. अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Advantages)वनों में अप्रत्यक्ष लाभ इस प्रकार हैं-
1. वनों द्वारा बाढ़ की रोकथाम होती है। वन जल की रफ्तार काफ़ी कम कर देते हैं।

2. वनों द्वारा भूमि के कटाव (Soil Erosion) की समस्या का हल होता है। पेड़ों की जड़ों में मिट्टी फंस जाती है इसलिए भूमि के कटाव की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

3. वन रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं। वन होने के कारण रेत के टीले आगे नहीं बढ़ सकते।

4. वन जलवायु को अच्छा बनाने के लिए भी लाभदायक होते हैं, गर्मियों में मौसम ठंडा रखने में सहायक होते हैं क्योंकि वनों के कारण वर्षा होती है। सर्दियों में शीत लहर को भी वन रोकते हैं।

5. तेज़ हवाएं, आंधी, तूफ़ान को रोकने के लिए भी वन सहायक होते हैं। जे० एस० कोलिन्स के शब्दों में “पेड़ पहाड़ों को रोकते हैं, वर्षा तथा तूफान को दबाते हैं, दरियाओं को सुचारु बनाते हैं, झरनों को बनाए रखते हैं, पक्षियों का पालन करते हैं।” पंचवर्षीय योजनाओं में वनों का विकास-पांचवीं पंचवर्षीय योजना में वनों पर 608 लाख रुपये खर्च किए गए। ग्यारहवीं योजना में वनों के विकास पर 2000 लाख रुपए खर्च किये गए। 2020-21 में वनों के विकास पर 1200 लाख रुपए खर्च किए गए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 31 सूचकांक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 31 सूचकांक

PSEB 12th Class Economics सूचकांक Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सूचकांक किसे कहते हैं? उत्तर-सूचकांक वह अंक है जो किसी पूर्व निश्चित तिथि की चुनी हुई वस्तुओं या वस्तु समूह की कीमतों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 2.
सूचकांकों का एक लाभ लिखिए।
उत्तर-
सूचकांकों का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इनके द्वारा समय-समय पर कीमत-स्तर में होने वाले परिवर्तन या मुद्रा के मूल्य की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तन को मापा जा सकता है।

प्रश्न 3.
सूचकांकों की एक सीमा लिखिए। .
उत्तर-
सूचकांक पूर्णतया सत्य नहीं होते। उदाहरण के लिए, कीमत सूचकांकों की सहायता से मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तन का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
सूचकांकों का व्यापारियों के लिए क्या लाभ है?
उत्तर-
उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग सूचकांकों की सहायता से कीमत-स्तर में परिवर्तन तथा सामान्य आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाता है।

प्रश्न 5.
सूचकांकों का सरकार के लिए क्या लाभ है?
उत्तर-
सरकार सूचकांकों की सहायता से ही अपनी मौद्रिक अथवा कर-नीति का निर्धारण करती है और देश के आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 6.
वह माप जिस द्वारा समय, मात्रा, स्थान अथवा किसी अन्य आधार पर चरों में होने वाले परिवर्तन ………………….. कहते हैं।
उत्तर-
सूचकांक।

प्रश्न 7.
सूचकांक का निर्माण करने की लास्पीयर तथा पाश्चे की विधियों में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
लास्पीयर मदों के भार के रूप में आधार वर्ष की मात्राओं का प्रयोग करते हैं जबकि पाश्चे चालू वर्ष की मात्राओं का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 8.
सूचकांक का यह सूत्र किस द्वारा दिया गया है ?
Po1 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\)
(a) लास्पीयर
(b) पाश्चे
(c) फिशर
(d) मार्शल।
उत्तर-
(a) लास्पीयर।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूत्र किसने दिया है ?
P01 = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{1}}} \times 100\)
(a) लास्पीयर
(b) पाश्चे
(c) फिशर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) फिशर।

प्रश्न 10.
जिस सूचकांक द्वारा थोक बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तुओं की थोक कीमतों में होने वाले सापेक्ष परिवर्तनों को मापते हैं उसको …………… कहते हैं।
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक।

प्रश्न 11.
वह सूचकांक जो औद्योगिक उत्पादन की मात्रा में होने वाले परिवर्तन को मापते हैं उनको ………….. कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक सूचकांक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 12.
मुद्रा स्फीति को थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन के रूप में मापते हैं जो कि थोक कीमतों के ……………… समय पर आधारित होते हैं।
उत्तर-
साप्ताहिक।

प्रश्न 13.
फिशर का सूचकांक समय उल्टाऊ परीक्षण तथा तत्त्व (Factor) उल्टाऊ परीक्षण पर ठीक उत्तर देता है इसलिए फिशर के सूचकांक को आदर्श सूत्र माना जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
सबसे अच्छा सूचकांक किस सांख्यिकी शास्त्री का माना जाता है ?
उत्तर-
फिशर का।

प्रश्न 15.
सरल सूचकांक की रचना चार प्रकार की होती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 16.
भारित सूचकांक के परिणाम अधिक उपयुक्त होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
समूहीकरण व्यय विधि अनुसार उपभोक्ता कीमत सूचकांक का सूत्र लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक = \(\frac{\Sigma p_{1} q_{0}}{\Sigma p_{0} q_{0}} \times 100\)

प्रश्न 18.
परिवारिक बजट विधि अनुसार उपभोक्ता सूचकांक बनाने का सूत्र लिखो।
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)

प्रश्न 19.
उपभोक्ता कीमत सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत सूचकांक भी कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
मुद्रा स्फीति की दर के माप का सूत्र लिखो।
उत्तर-
मुद्रा स्फीति की दर = \(\frac{\mathrm{A}_{2}-\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{1}} \times 100\)

प्रश्न 21.
औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक के माप का सूत्र लिखो।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक = \(\frac{\Sigma\left(\frac{p_{1}}{q_{0}}\right) W}{\Sigma W} \times 100\)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न । (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत सूचकांक से अभिप्राय किसी देश में कीमत में हुए परिवर्तन को प्रकट करना होता है। जब किसी देश में कीमत सूचकांक में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ देश की कीमत स्तर में वृद्धि हो रही है तथा मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जब कीमत सूचकांक में कमी होती है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मुद्रा अस्फीति की स्थिति है। मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति के अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हैं।

प्रश्न 2.
सूचकांक बनाने की विधि की कोई दो समस्याएँ बताएं।
उत्तर-
1. सूचकांक का उद्देश्य (Purpose of Index Numbers)-सूचकांक तैयार करने के लिए आंकड़े एकत्रित करने से पहले सूचकांक का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। यदि बिना उद्देश्य से आंकड़ें एकत्रित किए जाते हैं तो इससे आर्थिक स्थिति का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होता।

2. वस्तुओं का चयन (Selection of Commodities)-सूचकांक का निर्माण करते समय वस्तुओं का चयन भी महत्त्वपूर्ण होता है। सभी वस्तुओं को शामिल करके सूचकांकों का निर्माण नहीं किया जाता, बल्कि यह फैसला करना पड़ता है कि –

  • कितनी वस्तुओं को लेकर सूचकांकों का निर्माण किया जाए ?
  • कौन-सी वस्तुओं का चयन किया जाए ?
  • वस्तुओं की कौन-सी किस्म को शामिल किया जाए ? वस्तुओं का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सूचकांक में शामिल की वस्तुएं साधारण लोगों के उपभोग अनुसार होनी चाहिए तथा चुनी हुई वस्तुएं उच्च गुण वाली होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सूचकांक तथा मुद्रा स्फीति के सम्बन्ध को स्पष्ट करें।
उत्तर-
हमारी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों की वृद्धि का अनुभव किया जाता है। जब वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्तर में वृद्धि तीव्रता से तथा निरन्तर होती है तो इस स्थिति को मुद्रा-स्फीति कहा जाता है। मुद्रा-स्फीति के परिणामस्वरूप मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है। मुद्रा-स्फीति का सम्बन्ध थोक की कीमतों (Wholesale Prices) से है। भारत में थोक की कीमतें प्रत्येक सप्ताह मापी जाती है। इस उद्देश्य के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारित सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)-सूचकांक की भारित सूचकांक विधि अधिक प्रचलित है तथा विधि का साधारण तौर पर प्रयोग किया जाता है। इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के भार दिए होते हैं। जब वस्तुओं के भार अथवा महत्त्व को ध्यान में रखकर सूचकांक तैयार किया जाता है तो इसको भारित सूचक कहते

प्रश्न 5.
फिशर की सूचकांक माप विधि का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
फिशर की विधि (Fisher’s Method)-प्रो० इरविंग फिशर के फार्मले में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं को आधार माना जाता है। प्रो० फिशर ने सूचकांक की गणना करने के लिए लास्पेयर तथा पास्चे के सूचकांकों की रेखागणितीय औसत का प्रयोग किया है। इस सूत्र को सूचकांक की रचना का आदर्श सूत्र कहा जाता है-
P01(F) = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}}} \times 100\)

प्रश्न 6.
उपभोक्ता सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोक्ता सूचकांक वह सूचकांक है जो उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का माप करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में इन वस्तुओं तथा सेवाओं की लागत में आए परिवर्तन का माप किया जाता है। इसीलिए उपभोक्ता सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत (Cost of Living Index Number) भी कहा जाता है। यह सूचकांक परचून कीमतों (Retail Price) के आधार पर बनाया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 7.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का अर्थ बताएँ।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो हमें आधार वर्ष की तुलना में किसी देश में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा कमी को प्रकट करता है। इस सूचकांक की सहायता से किसी देश में औद्योगिक विकास का ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में 1993-94 को आधार वर्ष मान कर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना की जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
कीमत सूचकांक से अभिप्राय किसी देश में कीमत में हुए परिवर्तन को प्रकट करना होता है। जब किसी देश में कीमत सूचकांक में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ देश की कीमत स्तर में वृद्धि हो रही है तथा मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जब कीमत सूचकांक में कमी होती है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मुद्रा अस्फीति की स्थिति है। मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति के अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हैं।

कीमत सूचकांक के उद्देश्य-

  1. देश में कीमत स्तर का ज्ञान प्राप्त करना।
  2. आर्थिक प्रगति का सूचक।
  3. आर्थिक प्रगति में कीमत स्तर पर तथा वास्तविक वृद्धि का ज्ञान।

प्रश्न 2.
मात्रा सूचकांक से क्या अभिप्राय है? मात्रा सूचकांक का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
मात्रा सूचकांक वस्तुओं की मात्रा में हुई तबदीली का सूचक होता है। मात्रा सूचकांक इस बात का प्रकटावा करता है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में प्रतिशत परिवर्तन कितना हुआ है। इस द्वारा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में हुई पैदावार का ज्ञान होता है। जब मात्रा सूचकांक बढ़ता है तो इससे अभिप्राय है कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रिया बढ़ रही है-मात्रा सूचकांक घटता है तो देश में आर्थिक क्रिया में घाटे का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
आधार वर्ष से क्या अभिप्राय है ? आधार वर्ष की विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-
आधार वर्ष वह वर्ष होता है, जिसको आधार मान कर तुलना की जाती है। आधार वर्ष को 100 मानकर वर्तमान वर्ष से तुलना करते है। इसकी विशेषताएँ यह हैं-

  1. यह वर्ष परिवर्तनों रहित साधारण होना चाहिए।
  2. इस वर्ष सम्बन्धी विश्वसनीय तथा उचित आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए।
  3. आधार वर्ष तुलना के वर्ष से बहुत दूर नहीं होना चाहिए।
  4. आधार वर्ष की अवधि उचित होनी चाहिए।

कम-से-कम एक माह तथा अधिक-से-अधिक एक वर्ष।

प्रश्न 4.
सूचकांकों की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर-
सूचकांकों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  1. परिवर्तनों का सापेक्ष माप-सूचकांकों द्वारा विशेष चर अथवा चरों में सापेक्ष अथवा प्रतिशत परिवर्तनों का माप किया जाता है। जैसे कि कीमत सूचकांक आधार वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में कीमत में प्रतिशत वृद्धि अथवा घाटे को स्पष्ट करते हैं।
  2. संख्यात्मक व्याख्या- सूचकांक संख्याओं के रूप में परिवर्तनों को स्पष्ट करते हैं, जैसे कि 2000 की तुलना में 2006 में सूचकांक 115 हो गया है तो इससे अभिप्राय है कीमतों में 15% वृद्धि हो गई है।
  3. औसतों का माप-सूचकांक औसतों का माप करते हैं। इनको विभिन्न इकाइयों टन, क्विटल, मीटर में व्यक्त नहीं किया जाता, बल्कि इकाई के रूप में माप किया जाता है।

प्रश्न 5.
सूचकांकों का साधारण लोगों को क्या लाभ है ?
उत्तर-
सूचकांकों द्वारा साधारण लोगों को कई प्रकार की सूचना प्राप्त होती है।

  1. देश में कीमत स्तर में हुई वृद्धि का ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. बैंक अधिकारी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति अनुसार ब्याज की दर निश्चित करते हैं।
  3. रेल का किराया निश्चित करने में सहायक होते हैं।
  4. श्रम संघ मज़दूरों की मजदूरी में वृद्धि कीमत स्तर की वृद्धि अनुसार बढ़ाने का यत्न करते हैं।
  5. समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों तथा सट्टेबाजों को निर्णय लेने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 6.
सूचकांकों की सीमाएं बताओ।
उत्तर-
सूचकांकों की सीमाएं इस प्रकार हैं-

  • सूचकांक पूर्ण सच्चाई प्रकट नहीं करते। यह अनुमानित परिवर्तन का ज्ञान देते हैं।
  • सूचकांक विशेष उद्देश्यों अनुसार तैयार किए जाते हैं। इन को दूसरे उद्देश्यों पर लागू नहीं किया जा सकता।
  • सूचकांक थोक कीमतों (Wholesale Price) अनुसार बनाए जाते हैं। इनको परचून कीमतों पर लागू नहीं किया जा सकता।
  • सूचकांक को वज़न (Weight) देने की कोई विधि नहीं है।
  • सूचकांकों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय तुलना नहीं की जा सकती।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 7.
सूचकांक निर्माण करने की सरल सामूहिक विधि क्या है ?
उत्तर-
सरल सामूहिक विधि द्वारा सूचकांक का निर्माण करने के लिए वर्तमान वर्ष के मूल्यों के जोड़ को आधार वर्ष के मूल्यों से जोड़ने तथा विभाजित करने से 100 गुणा किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
P01 = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)
इसमें P01= कीमत सूचकांक,
ΣP = वर्तमान वर्ष में वस्तुओं की कीमतों का जोड़,
ΣP = आधार वर्ष में वस्तुओं की कीमतों का जोड़।

प्रश्न 8.
सूचकांक निर्माण करने के लिए सरल कीमत अनुपात विधि को स्पष्ट करो।
उत्तर-
सूचकांक निर्माण में सभी वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है बल्कि सैंपल के आधार पर वस्तुओं को शामिल किया जाता है। प्रत्येक वस्तु का अलग-अलग कीमत अनुपात मापा जाता है।
कीमत अनुपात P01 = \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\)
विभिन्न वस्तुओं की कीमत अनुपात का माप करने के उपरान्त उनको जोड़ कर वस्तुओं की संख्या पर विभाजित किया जाता है, जिससे सरल कीमत अनुपात सूचकांक प्राप्त हो जाता है।
P01 = \(\frac{\sum\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{N}\)
ΣN इसमें P01 = कीमत सूचकांक, P1 = वर्तमान वर्ष में कीमत, P0 = आधार वर्ष की कीमत,
N = वस्तुओं की संख्या।

प्रश्न 9.
थोक कीमत सूचकांकों से क्या अभिप्राय है ? थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन किस बात का सूचक है ?
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक से अभिप्राय उस सूचकांक से है, जिसके निर्माण में थोक कीमतों का प्रयोग किया जाता है। थोक कीमत सूचकांक को साप्ताहिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में कीमतों में परिवर्तन का माप करना होता है।

प्रश्न 10.
उपभोक्ता कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) को निर्वाह लागत सूचकांक (Cost of living Index Number) भी कहा जाता है। यह सूचकांक विभिन्न वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए तैयार किया जाता है। इसमें एक वर्ग के लोगों द्वारा वर्तमान वर्ष में आधार वर्ष की तुलना परचून कीमतों (Retail Prices) के आधार पर की जाती है। इसकी दो माप विधियां हैं-

  1. सामूहिक व्यय विधि-इस उद्देश्य के लिए लास्पेयर्स के सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
    उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा निर्वाह लागत सूचकांक = \(\frac{\Sigma p_{1} q_{0}}{\Sigma p_{0} q_{0}} \times 100\)
  2. पारिवारिक बजट विधि- इसमें आनुपातिक कीमत विधि का प्रयोग किया जाता है उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा निर्वाह लागत सूचकांक = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
    यहां R = \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) तथा W = P0q0
    सामूहिक व्यय विधि तथा पारिवारिक बजट विधि का परिणाम समान होता है।

प्रश्न 11.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका माप क्या स्पष्ट करता है ?
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो कि आधार वर्ष की तुलना में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा घाटे को व्यक्त करता है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का माप इस सूत्र द्वारा किया जाता है-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\Sigma\left(\frac{q_{1}}{q_{0}}\right) w}{\Sigma w} \times 100\)
इस सूत्र में q1 = वर्तमान वर्ष का औद्योगिक उत्पादन, q0 = आधार वर्ष का औद्योगिक उत्पादन, w = वज़न अथवा भार।

प्रश्न 12.
सूचकांक मुद्रा स्फीति का सूचक कैसे होते हैं ?
अथवा
मुद्रा-स्फीति तथा सूचकांकों के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
हमारी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों की वृद्धि का अनुभव किया जाता है। जब वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्तर में वृद्धि तीव्रता से तथा निरन्तर होती है तो इस स्थिति को मुद्रा-स्फीति कहा जाता है। मुद्रा-स्फीति के परिणामस्वरूप मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है। मुद्रा-स्फीति का सम्बन्ध थोक की कीमतों (Wholesale Prices) से है। भारत में थोक की कीमतें प्रत्येक सप्ताह मापी जाती है। इस उद्देश्य के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? सूचकांक की विशेषताएं बताओ। (What is the meaning of Index Numbers ? Explain its characteristics.)
उत्तर-
सूचकांक का अर्थ (Meaning of Index Numbers)-सूचकांक एक विशेष प्रकार की औसत होती है जोकि समय, मात्रा अथवा स्थान इत्यादि के आधार पर कीमत, उपभोग, उत्पादन, राष्ट्रीय आय इत्यादि में परिवर्तन को प्रतिशत के रूप में प्रकट करती है। सूचकांक का प्रयोग सबसे पहले जी० आर० चारली ने किया है। वह इटली के रहने वाले थे। सन् 1500 से लेकर 1750 तक कीमत स्तर में हुए परिवर्तन का अध्ययन करना उनका मुख्य उद्देश्य था।

इस प्रकार सूचकांक का प्रयोग केवल कीमत स्तर में परिवर्तनों को मापने के लिए की जाने लगी। सांख्यिकी के विकास से सूचकांक का क्षेत्र भी विशाल हो गया। सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र के प्रत्येक पहल में परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए सूचकांक एक ऐसा यन्त्र है जिस द्वारा एक चर अथवा चरों के समूहों में भिन्न-भिन्न समय में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

परिभाषाएं-

  1. प्रो० क्राक्सटन तथा काउडन के अनुसार, “सूचकांक वह यन्त्र है जिनके द्वारा सम्बन्धित तथ्यों के मूल्यों के आकार में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।” (“Index Numbers are devices for measuring difference in the magnitude of a group of related variables.” -Croxton and Cowden)
  2. प्रो० एस० आर० सपीगल के शब्दों में, “सूचकांक एक सांख्यिकी माप है, जिस द्वारा एक चर अथवा चरों के समूह में समय, स्थान अथवा अन्य विशेषताओं के आधार पर होने वाले परिवर्तनों को दर्शित करना है।” (“As Index number is a statistical measure designed to show changes in variables or a group of related variabels with respect to time, geographical location or other characteristics.” -M.R. Spiegal)
    इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सूचकांक विशेष प्रकार की औसत होती है, जिस द्वारा समय अथवा स्थान अनुसार होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।

सूचकांक की विशेषताएं (Features of Index Number)- सूचकांक की विशेषताएं निम्नलिखित अनुसार-
1. विशेष प्रकार की औसत (Special Average)-सूचकांक विशेष प्रकार के औसत होते हैं। केन्द्रीय प्रवृत्तियों के माप में भिन्न-भिन्न मदों की इकाइयां एक जैसी होती हैं, जहां भिन्न-भिन्न मदों की इकाइयां एक समान न हों, उस स्थिति में सूचकांक का प्रयोग किया जा सकता है। जब यह कहा जाता है कि सूचकांक में वृद्धि 10% हो गई है। इसका अर्थ यह नहीं कि सभी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। कुछ वस्तुओं की कीमत कम भी हो सकती है अथवा समान रहती है। परन्तु औसत वृद्धि को व्यक्त सूचकांक द्वारा किया जाता है।

2. परिवर्तन का माप (Measurement of Change)- सूचकांक द्वारा समय, स्थान अथवा दूसरे किसी आधार पर तथ्यों में होने वाले परिवर्तन का माप किया जाता है। यह माप कीमत, उत्पादन, उपभोग इत्यादि में परिवर्तन का हो सकता है।

3. तुलना में प्रयोग (Used for Comparison).- सूचकांक की एक विशेषता यह है कि इसका प्रयोग तुलना के लिए किया जाता है। समय, स्थान अथवा किसी अन्य आधार पर एक चर अथवा एक से अधिक चरों में तुलना की जा सकती है। यदि 1980 से 1990 तक कीमत स्तर में तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है तो 1980 को आधार वर्ष कहते हैं।

4. प्रतिशत में प्रदर्शन (Presented in Percentages)-सूचकांक को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। आधार वर्ष के मूल्य को 100 के समान मानकर वर्तमान वर्ष के मूल्य का अध्ययन किया जाता है। यदि सूचकांक 112 हो गया है तो कीमत स्तर में वृद्धि 12% हुई है। यदि कीमत सूचकांक 96 है तो कीमत स्तर में कमी 4% हो गई है। इस प्रकार सूचकांक को प्रतिशत रूप में व्यक्त किया जाता है।

5. सर्व-व्यापक प्रयोग (Universal Application)-सूचकांक का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र तथा प्रत्येक देश में किया जाता है। प्रत्येक देश में कीमत स्तर, उत्पादन, उपभोग, बचत, राष्ट्रीय आय में परिवर्तन का माप करने के लिए सूचकांक एक सर्व-व्यापक विधि है।

प्रश्न 2.
सूचकांक बनाने की विधि तथा इसकी समस्याओं का वर्णन करो। (Explain the method for the construction and problems of Index Numbers.)
अथवा
सूचकांक बनाते समय कौन-सी मुश्किलें आती हैं ? (What are the difficulties in the construction of Index Numbers ?)
अथवा
सूचकांक बनाने सम्बन्धी समस्याओं, फ़ैसलों अथवा निर्देशों की व्याख्या करो। (Explain the problems in the construction of Index Numbers, Decisions and Directions.)
उत्तर-
सूचकांक बनाते समय बहुत-सी समस्याएं आती हैं। अब हम उन समस्याओं से सम्बन्धित फ़ैसलों तथा निर्देशों का अध्ययन करते हैं-

  1. सूचकांक का उद्देश्य (Purpose of Index Numbers)-सूचकांक तैयार करने के लिए आंकड़े एकत्रित करने से पहले सूचकांक का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। यदि बिना उद्देश्य से आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तो इससे आर्थिक स्थिति का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
  2. वस्तुओं का चयन (Selection of Commodities)-सूचकांक का निर्माण करते समय वस्तुओं का चयन भी महत्त्वपूर्ण होता है।

सभी वस्तुओं को शामिल करके सूचकांकों का निर्माण नहीं किया जाता, बल्कि यह फैसला करना पड़ता है कि-

  • कितनी वस्तुओं को लेकर सूचकाकों का निर्माण किया जाए ?
  • कौन-सी वस्तुओं का चयन किया जाए ?
  • वस्तुओं की कौन-सी किस्म को शामिल किया जाए ?

वस्तुओं का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सूचकांक में शामिल की वस्तुएं साधारण लोगों के उपभोग अनुसार होनी चाहिए तथा चुनी हुई वस्तुएं उच्च गुण वाली होनी चाहिए।

3. कीमतों का चयन (Selection of Prices)-वस्तुओं का चयन करने के पश्चात् वस्तुओं की कीमतें एकत्रित करने की समस्याओं का सामना करना पड़ता है अर्थात् थोक की कीमतें ली जाएं अथवा परचून कीमतें लेकर सूचकांक तैयार किया जाए। इसलिए वस्तुओं की कीमतें थोक बाज़ार में से प्राप्त की जाएं अथवा परचून बाज़ार में से प्राप्त की जाएं। कीमतों में करों को शामिल किया जाए अथवा न किया जाए। यह फ़ैसले करते समय सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए । यदि सूचकांक का उद्देश्य लोगों के जीवन निर्वाह व्यय में परिवर्तन सम्बन्धी अध्ययन करना है तो सूचकांक का निर्माण करते समय परचून कीमतों का प्रयोग करना चाहिए।

4. आधार वर्ष का चयन (Selection of Base Year)-सूचकांक का निर्माण करते समय आधार वर्ष चुनना पड़ता है। जिस वर्ष से चालू वर्ष की कीमतों की तुलना की जाती है, उसको आधार वर्ष कहा जाता है। इस वर्ष के सूचकांक को 100 अंक लिया जाता है। आधार वर्ष का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि –

  • यह वर्ष साधारण हो अर्थात् इस वर्ष कोई असाधारण घटना न घटी हो जैसे कि युद्ध, जंग अथवा बाढ़ इत्यादि न आए हों।
  • यह वर्ष बहुत पुराना नहीं होना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए। भारत में 1980-81 का वर्ष सूचकांक का आधार वर्ष माना जाता है।

5. औसत चयन (Selection of Average)-सूचकांक बनाते समय यह निर्णय भी करना पड़ता है कि कौन-सी औसत समान्तर औसत अथवा रेखा गणिती औसत का प्रयोग किया जाए। चाहे रेखा गणिती औसत से अधिक विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं परन्तु व्यावहारिक तौर पर समान्तर औसत का प्रयोग किया जाता है।

6. सूचकांक की गणना (Calculation of Index Numbers)-सूचकांक की गणना करते समय आधार वर्ष की कीमतों (P1) को 100 मान लिया जाता है इसके पश्चात् वर्तमान वर्ष की कीमतों (P0) में परिवर्तन की प्रतिशत का माप किया जाता है। इस प्रकार सूचकांक (P01) अर्थात् आधार वर्ष की कीमतों की तुलना में वर्तमान वर्ष (1) की कीमतों में कितने प्रतिशत परिवर्तन हुआ है, उसको सूचकांक कहते हैं।
उदाहरणस्वरूप आधार वर्ष में दूध की कीमत 5 रु० प्रति लिटर थी। वर्तमान वर्ष की दूध की कीमत 15 रु० प्रति लिटर है तो सूचकांक |
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 1
होगा अर्थात् आधार वर्ष के सूचकांक 100 से वर्तमान वर्ष का सूचकांक 300 है तो दूध की कीमत में तीन गुणा अथवा 300% वृद्धि हो गई है। इस प्रकार सूचकांक की गणना की जाती है।

7. भार का निर्धारण (Determination of Weights)-सूचकांक में शामिल की वस्तुओं को एक समान महत्त्व नहीं दिया जाता। जैसे कि गेहूँ, दूध, सब्जियां, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं तथा स्कूटर, कार कम महत्त्वपूर्ण वस्तुएं हैं। इसलिए गेहूं, दूध, सब्जियों को अधिक भार देना चाहिए। स्कूटर का महत्त्व गांवों से अधिक शहरों में है। इसलिए भार का निर्धारण करते समय समस्या का सामना करना पड़ता है। किसी स्थान पर लोगों की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक इत्यादि स्थिति को ध्यान में रखकर वस्तुओं को भार देने चाहिए।

8. सूत्र का चयन (Selection of Formula)-सूचकांक बनाने के बहुत से सूत्र हैं। इनमें से किस सूत्र का प्रयोग किया जाए। इस सम्बन्धी फ़ैसला करने के लिए आंकड़ों की प्रकृति तथा सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। सूचकांक बनाने की मुख्य दो विधियां हैं –

A. साधारण सूचकांक (Simple Index Numbers)-साधारण सूचकांक निर्माण के दो ढंग हैं-

  • सरल समूहीकरण विधि
  • सरल कीमत अनुपात औसत विधि।

B. भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)
(i) भारित समूहीकरण विधि –
(a) लास्पेयर्स की विधि
(b) पास्चे की विधि
(c) डारब्शि तथा बाऊले की विधि
(d) फिशर की विधि।

(ii) भारित कीमत अनुपात औसत विधि-इन विधियों में से चयन की समस्या होती है। इसका निर्णय सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 3.
सूचकांक बनाने की मुख्य विधियां बताओ। (Explain the methods of Constructing Index Numbers.)
अथवा
सूचकांक की मुख्य किस्में लिखो। (Explain the main types of Index Numbers.)
उत्तर-
सूचकांक बनाने की मुख्य विधियां (Main methods of Constructing Index Numbers)सूचकांक बनाने की विधियों को सूचकांक की किस्में भी कहा जा सकता है। सूचकांक की मुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 2
पीछे दिए चार्ट अनुसार सूचकांक मुख्य तौर पर दो प्रकार के होते हैं –
A. साधारण सूचकांक
B. भारित सूचकांक।

A. साधारण सूचकांक (Simple Index Numbers)-साधारण सूचकांक निर्माण की दो विधियां हैं-
1. सरल समूहीकरण विधि (Simple Index Numbers)-सूचकांक बनाने की सरल समूहीकरण विधि में वर्तमान वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की दी हुई कीमतों का जोड़ (ΣP1 ) किया जाता है। आधार वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़ (ΣP0) किया जाता है। वर्तमान वर्ष की कीमतों के जोड़ को आधार वर्ष की कीमतों के जोड़ से विभाजित करके 100 गुणा कर दिया जाता है। इससे सूचकांक प्राप्त हो जाता है।

इस विधि द्वारा सूचकांक की गणना का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
कीमत सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)
इस सूत्र में P01 = कीमत सूचकांक, 0 = आधार वर्ष, 1 = वर्तमान वर्ष ।
ΣP1 = वर्तमान वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़।
ΣP0 = आधार वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़।

2. सरल कीमत अनुपात औसत विधि (Simple Average of Price Relative Method) – सरल कीमत अनुपात औसत विधि में पहले प्रत्येक वस्तु की कीमत अनुपात पता किया जाता है। किसी वस्तु की कीमत अनुपात वर्तमान वर्ष की कीमत (P1) तथा आधार वर्ष की कीमत (P0) का प्रतिशत अनुपात होता है। यदि दो वस्तुओं की कीमत अनुपात का प्रतिशत निकालकर वस्तुओं की संख्या से विभाजित किया जाए तो हमारे पास कीमत अनुपात सूचकांक प्राप्त हो जाता है।

कीमत अनुपात सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}}=\frac{\Sigma \mathrm{R}}{\mathrm{N}}\)

B. भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)-सूचकांक की भारित सूचकांक विधि अधिक प्रचलित है तथा विधि का साधारण तौर पर प्रयोग किया जाता है। इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के भार दिए होते हैं। जब वस्तुओं के भार अथवा महत्त्व को ध्यान में रखकर सूचकांक तैयार किया जाता है तो इसको भारित सूचक कहते हैं।

भारित सूचकांक निर्माण की दो विधियां हैं –
1. भारित औसत कीमत अनुपात विधि (Weighted Average of Price Relative Method)-इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमत अनुपातों को वस्तुओं के भार से गुणा करके गुणनफल का पता किया जाता है। जो गुणनफल प्राप्त होता है, उसको भार के जोड़ से विभाजित किया जाता है। इस प्रकार भारित औसत कीमत अनुपात विधि का सूत्र निम्नलिखित अनुसार होता है-
P01 = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}\)
P01 = कीमत सूचकांक
R = कीमत अनुपात \(\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)\)
w = भार (Weight)

2. भारित समूहीकरण विधि (Weighted Aggregative Method)-इस विधि में विभिन्न वस्तुओं की कीमतों को उन वस्तुओं की खरीदी गई मात्रा अनुसार भार दिया जाता है। इस विधि का निर्माण बहुत से सांख्यिकी शास्त्रियों द्वारा किया गया है। इन सांख्यिकी शास्त्रियों द्वारा दी गई विधियों में मुख्य अन्तर भार देने की विधि में है। कुछ विद्वान् आधारवर्ष की मात्रा को आधार बना कर भार देते हैं जबकि कुछ वर्तमान वर्ष की वस्तुओं की खरीदी गई मात्रा को आधार बनाकर भार देते हैं। कुछ अन्य दोनों समयों को मात्राओं का आधार बनाकर भार देते हैं।

भारित समूहीकरण की भिन्न-भिन्न विधियाँ निम्नलिखित अनुसार हैं –

  • लास्पेयर की विधि (Laspeyer’s Method)-इस विधि में प्रो० लास्पेयर ने आधार वर्ष की मात्रा (q0) को आधार बनाकर वस्तुओं को भार दिए हैं। लास्पेयर ने सूचकांक की गणना का सूत्र निम्नलिखित अनुसार दिया
    P01 (La) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{0}} \times 100\)
  • पास्चे की विधि (Pasche’s Method)-प्रो० पास्चे ने वर्तमान वर्ष की मात्रा (q1) को आधार बनाकर वस्तुओं को भार दिए हैं। पास्चे ने सूचकांक की रचना का सूत्र इस प्रकार दिया P01 (Pa) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}} \times 100\)
  • फिशर की विधि (Fisher’s Method)-प्रो० इरविंग फिशर के फार्मले में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं को आधार माना जाता है। प्रो० फिशर ने सूचकांक की गणना करने के लिए लास्पेयर तथा पास्चे के सूचकांकों की रेखा गणिती औसत का प्रयोग किया है।

इस सूत्र को सूचकांक की रचना का आदर्श सूत्र कहा जाता है-
P01 (F) = \(\sqrt{\frac{\Sigma P_{1} q_{0}}{\Sigma P_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma P_{1} q_{1}}{\Sigma P_{0} q_{1}}} \times 100\)

इस सूत्र को निम्नलिखित कारणों से आदर्श सूत्र कहा जाता है –

  • यह सूत्र पक्षपात से मुक्त है।
  • इस सूत्र में रेखा गणिती औसत द्वारा गणना की जाती है। इसलिए विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • इस सूत्र में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं दोनों को ही भार माना जाता है।
  • यह सूत्र परख की कसौटी पर ठीक उतरता है। फिशर ने परख की कसौटियों दो दी हैं।

1. समय उत्क्रामता (Time Reversal Test)-जब हम आधार वर्ष शून्य (0) जगह पर 1 तथा 1 की जगह पर शून्य (0) लिख देते हैं तथा फार्मूले को इस परिवर्तन अनुसार गुणा करते हैं तो जवाब 1 के समान होता
\(\frac{\mathrm{P}_{01} \times \mathrm{P}_{10}}{100}=\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma P_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{1}} \times \frac{\Sigma P_{0} q_{1}}{\Sigma P_{1} q_{1}} \times \frac{\Sigma P_{0} q_{0}}{\Sigma P_{1} q_{0}}}=1\)

2. साधन उत्क्रामता (Factor Reversal Test)-जब फार्मूले में P की जगह पर q तथा की जगह पर के समान P लिखते हैं तो जवाबः\(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}}\) के समान होता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 3
यह परख केवल फिशर के फार्मूले में ठीक लागू होती है। लास्पेयर तथा पास्चे की विधि पर ठीक लागू नहीं होती। इसलिए फिशर के सूत्र को आदर्श सूत्र कहा जाता है।

साधारण कीमत सूचकांक की रचना (Construction of Simple Index Numbers)
साधारण कीमत सूचकांक की रचना दो विधियों द्वारा की जाती है –
(i) सरल समूहीकरण विधि (Simple Aggregative Method) माप विधि (Measurement Method)-

  1. इस विधि द्वारा सूचकांक ज्ञात करने के लिए भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आधार वर्ष की कीमतों का जोड़ (ΣP0) पता करो।
  2. भिन्न-भिन्न वस्तुओं के वर्तमान वर्ष की कीमतों का जोड़ (ΣP) किया जाता है।
  3. वर्तमान वर्ष की कीमतों के जोड़ को आधार वर्ष की कीमतों के जोड़ से विभाजित करो तथा 100 से गुणा करो।
    अर्थात् निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करें-
    P01 = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से सरल समूहीकरण विधि द्वारा 1981 को आधार वर्ष मान कर कीमत सूचकांक का पता करो।

वस्तुएं A B C D E
1999 की कीमतें (रु०) प्रति किलोग्राम 20 15 35 26 5
2006 की कीमतें (रु०) प्रति किलोग्राम 30 18 34 30 12

हल (Solution) :
साधारण कीमत सूचकांक की रचना (सरल समूहीकरण विधि)-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 4

कीमत सूचकांक (P01)= \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\) = \(\frac{124}{101} \times100 \)
= 122.77
P01 = 122.77 उत्तर

आधार वर्ष के सूचकांक 100 की तुलना में 2006 की वर्तमान कीमतों का सूचकांक 122.77 हो गया है। इन वस्तुओं की कीमतों में औसतन 122.77 % वृद्धि हो गई है। इस विधि में सभी वस्तुओं का मूल्य एक माप किलोग्राम, मीटर इत्यादि में दिया होता है।

(ii) सरल कीमत अनुपात औसत विधि (Simple Average of Price Relative Method)-
माप विधि

  • इस विधि में प्रत्येक वस्तु के कीमत अनुपात P01= \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) का पता किया जाता है।
  • कीमत अनुपातों का जोड़ \(\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) का पता किया जाता है।
  • वस्तुओं की संख्या (N) से कीमत अनुपातों के जोड़ को विभाजित करो। इससे सूचकांक प्राप्त हो जाता है। इसका सूत्र निम्नलिखित अनुसार है
    P01 = \(\frac{\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}} \text { or } \frac{\Sigma \mathrm{R}}{\mathrm{N}}\)
  • इस विधि का माप उस समय किया जाता है जब भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमत भिन्न-भिन्न माप (किलोग्राम, मीटर, लिटर) में दी हो।

प्रश्न 5.
कीमत अनुपात विधि द्वारा निम्नलिखित आंकड़ों का सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 5
हल (Solution) :
सरल कीमत अनुपात विधि द्वारा सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 6
सरल कीमत अनुपात सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}}\) = \(\frac{765}{5}\) = 153
इसका अभिप्राय यह है कि ऊपर दी वस्तुओं की कीमतों में सरल कीमत अनुपात विधि अनुसार 53 प्रतिशत वृद्धि हो गई है।

भारित सूचकांकों की रचना

भारित सूचकांक अधिक प्रचलित हैं। वस्तुओं के महत्त्व अनुसार उनको भार दिया जाता है, जैसे कि गेहूँ तथा चावल का महत्त्व फलों से अधिक है। इसलिए गेहूँ तथा चावल को अधिक महत्त्व अथवा भार दिया जाएगा तथा फलों को कम भार दिया जाएगा। भार अनुसार सूचकांक की रचना को भारित सूचकांक कहा जाता है। इसकी गणना की दो विधियां हैं –

(iii) भारित औसत कीमत अनुपात विधि माप विधि-

  1. भारित सूचकांक का माप करने के लिए भिन्न-भिन्न वस्तुओं के कीमत अनुपात R = \(\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)\) पत्ता|
  2. कीमत अनुपात (R) को भार (W) से गुणा करके गुणनफल (RW) निकालो।
  3. कीमत अनुपात तथा भाग के गुणनफलों का जोड़ = (ΣRW) करो।
  4. गुणनफल के जोड़ को भागों के जोड़ (ΣW) से विभाजित करो। भारित सूचकांक ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करो-
    Po1 = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}\)
  5. सभी वस्तुओं को सूचकांक बनाने में शामिल नहीं किया जाता बल्कि वस्तुओं का सैंपल के तौर पर चयन करके सूचकांक का निर्माण किया जाता है, जोकि सभी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तनों को समझने के लिए सहायक होता है।

प्रश्न 6.
कीमत अनुपात विधि द्वारा निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से 1991 को आधार वर्ष मानकर 2005 का भारित सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 7
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 8
भारित सूचकांक
Po1 = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
= \(\frac{4325}{25}\) = 173 उत्तर
इससे अभिप्राय यह है कि अध्ययन अधीन वस्तुओं की औसतन भारित कीमतों में परिवर्तन 73 प्रतिशत हो गया है। इसलिए भारित सूचकांक 100 से 173 हो गया है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

(iv) भारित समूहीकरण विधि (Weighted Aggregative Method)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) लास्पेयर
(ii) पास्चे
(iii) फिशर की विधि द्वारा सूचकांक पता करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 9
हल (Solution) :
भारित सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 10
1. लास्पेयर विधि अनुसार सूचकांक
P01 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\)
P01 = \(\frac{170}{62} \times 100\) = 274.19 उत्तर

2. पास्चे विधि अनुसार सूचकांक
P01 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}} \times 100\)
P01 = \(\frac{305}{225} \times 100\) = 135.55 उत्तर

3. फिशर विधि अनुसार सूचकांक
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 11
P01 = 192.75 उत्तर
लास्पेयर विधि अनुसार सूचकांक 274.19 है जो यह बताता है कि कीमतों में परिवर्तन लगभग पौने तीन गुणा है। पास्चे की विधि अनुसार कीमतों में परिवर्तन 33.55 प्रतिशत है परन्तु फिशर अनुसार कीमतों में परिवर्तन लगभग दो गुणा हो गया है जोकि 192.75% वृद्धि को प्रकट करता है। फिशर की विधि का परिणाम उचित है।

सूचकांकों की किस्में (Types of Index Numbers)
ऊपर हम सूचकांकों का अर्थ तथा माप विधि का अध्ययन कर चुके हैं। भारत में कई किस्म के सूचकांक तैयार किए जाते हैं। इनमें से तीन महत्त्वपूर्ण सूचकांक निम्नलिखित अनुसार हैं, जिनके बारे अध्ययन किया जाएगा।

A. थोक कीमत सूचकांक (Wholesale Price Index)
B. उपभोक्ता कीमत सूचकांक (Consumer’s Price Index)
C. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Industrial Production Index).

A. थोक कीमत सूचकांक [Wholesale Price Index (W. P. I.)]

प्रश्न 8.
थोक कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? थोक कीमत सूचकांक की निर्माण विधि को स्पष्ट करो। इसका महत्त्व बताओ।
(What is meant by Wholesale Price Index ? Explain the method for the construction of Wholesale Price Index. Give its importance.)
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक का अर्थ-थोक कीमत सूचकांक वह सूचकांक है जिसके निर्माण में थोक कीमतों का प्रयोग किया जाता है। साधारण तौर पर किसी देश में कीमतों के परिवर्तन के लिए इस सूचकांक का प्रयोग किया जाता है। भारत में प्रत्येक सप्ताह के अन्त में थोक कीमत सूचकांक तैयार किया जाता है। इस समय 1993-94 की कीमतों को आधार वर्ष मान कर सूचकांक तैयार किया जाता है। इसमें वस्तुओं को तीन कॉलमों में विभाजित किया गया है |

  1. प्राथमिक वस्तुएं-इनमें चावल, दालें, कपास इत्यादि 98 वस्तुओं को शामिल किया गया है।
  2. बिजली गैस तेल-इनमें 19 वस्तुएं शामिल हैं।
  3. निर्माण वस्तुएं-इनमें कपड़ा, चीनी, मशीनें इत्यादि 318 वस्तुएं शामिल हैं। इन वस्तुओं को महत्त्वानुसार वज़न (weights) दिए जाते हैं।

थोक कीमत सूचकांकों का महत्त्व (Importance of W.P.I.) –
1. वास्तविक मूल्य का अनुमान-थोक कीमत सूचकांकों द्वारा राष्ट्रीय आय, बचत, राष्ट्रीय निवेश इत्यादि के वास्तविक मूल्यों का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। जब हम राष्ट्रीय आय का माप करते हैं तो इसको प्रचलित कीमतों अनुसार मापते हैं। राष्ट्रीय आय में परिवर्तन को स्थिर कीमतें (Constant Prices) तथा माप के पता किया जाता है। प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय को स्थिर कीमतों में परिवर्तन करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 12
थोक कीमत सूचकांक इस प्रकार वास्तविक मूल्य वृद्धि अथवा कमी का पता लग जाता है।

2. मांग तथा पूर्ति का अनुमान-थोक कीमत सूचकांक द्वारा किसी देश में मांग तथा पूर्ति का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि थोक कीमत सूचकांक बढ़ रहा है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मांग अधिक है। यदि थोक कीमत सूचकांक घट रहा है तो इसका अर्थ है कि वस्तुओं की पूर्ति अधिक है।

3. मुद्रा स्फीति दर का सूचक-थोक कीमत सूचकांक का प्रयोग मुद्रा-स्फीति दर ज्ञात करने के लिए भी किया जाता है। इससे पता चलता है कि समय के साथ कीमत में कितना परिवर्तन हुआ है। इसको उदाहरण से स्पष्ट करते हैं। मान लो प्रथम सप्ताह में थोक सूचकांक P1 है, द्वितीय सप्ताह में थोक कीमत सूचकांक P2 हो जाता है तो थोक कीमत सूचकांक का माप इस प्रकार किया जाएगा।
\(\frac{\mathrm{P}_{2}-\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{1}} \times 100\)
उदाहरणस्वरूप प्रथम सप्ताह थोक सूचकांक 100 है। द्वितीय सप्ताह सूचकांक 105 हो जाता है तो इस समय में थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन का माप इस प्रकार किया जाता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 13

मुद्रा स्फीति दर = \(\frac{P_{2}-P_{1}}{P_{1}} \times 100=\frac{105-100}{100} \times 100\) = 5 %
इसी तरह वार्षिक मुद्रा स्फीति की दर का माप किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 9.
1993-94 की कीमतों को आधार वर्ष मानकर 2005-06 के लिए थोक कीमत सूचकांक (W.P.I.) 215 है। वर्ष 2005-06 की राष्ट्रीय आय प्रचलित कीमतों पर 47527 करोड़ रु० है। आधार वर्ष की कीमतों पर राष्ट्रीय आय का मूल्य ज्ञात करो।
हल (Solution)-
2005-06 का थोक कीमत सूचकांक = 215
2005-06 की प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय = 47527 करोड़ रु०
प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय 1993-94 की कीमतों अनुसार वास्तविक राष्ट्रीय आय = img
\(\frac{47527}{215} \times 100\) = 22105.58 करोड़ रु० उत्तर

B. उपभोक्ता कीमत सूचकांक [Consumer Price Index (C.P.I.)]

प्रश्न 10.
उपभोक्ता सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? उपभोक्ता सूचकांक का निर्माण कैसे किया जाता है ? इसका महत्त्व तथा मुश्किलें बताओ।
(What is meant by Consumer Price Index ? What is the method for the construction of Consumer Price Index. Explain its importance & Problems.)
उत्तर-
उपभोक्ता सूचकांक वह सूचकांक है जो उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का माप करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में इन वस्तुओं तथा सेवाओं की लागत में आए परिवर्तन का माप किया जाता है। इसीलिए उपभोक्ता सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत (Cost of Living Index Number) भी कहा जाता है।

यह सूचकांक परचून कीमतों (Retail price) के आधार पर बनाया जाता है। भारत में तीन प्रकार के उपभोगी समूहों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक तैयार किए जाते हैं-

  1. औद्योगिक मज़दूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।
  2. कृषि मजदूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।
  3. शहरी दिमागी कार्य करने वाले मजदूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।

उपभोक्ता कीमत सूचकांक की निर्माण विधि-उपभोक्ता कीमत सूचकांक बनाने के लिए मज़दूर वर्ग का चयन किया जाता है। उन द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं तथा उन वस्तुओं की खरीदी जाने वाली मात्रा का पता लगाया जाता है। इन वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय का पता लगाकर निम्नलिखित दो सूत्रों का प्रयोग किया जाता है-
1. कुल व्यय विधि (Aggregate Expenditure Method)—यह विधि लास्पेयर की विधि है। इसमें निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\) इसमें P1 का अर्थ वर्तमान वर्ष की कीमतें, P0 का अर्थ आधार वर्ष की कीमतें तथा Q0 का अर्थ आधार वर्ष में खरीदी वस्तुओं की मात्रा।

2. पारिवारिक बजट विधि (Family Budget Method)-इस विधि में उपभोक्ता कीमत सूचकांक के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = [/latex]\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}[/latex]
इस सूत्र में कीमत अनुपात (R) = \(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\)
सभी वस्तुओं पर व्यय = वज़न (W) = P0q
कुल व्यय विधि तथा पारिवारिक बजट विधि का परिणाम एक समान होता है।

महत्त्व (Importance)-

  1. इनकी सहायता से कीमत नीति का निर्माण किया जाता है।
  2. लागत में वृद्धि होने के कारण मजदूरी में वृद्धि की जाती है।
  3. रु० के वास्तविक मूल्य का पता लगता है।
  4. बाज़ार में मांग तथा पूर्ति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. राष्ट्रीय आय में शुद्ध वृद्धि अथवा कमी का ज्ञान प्राप्त होता है।

मुश्किलें (Difficulties)

  • भिन्न-भिन्न उपभोगी वर्गों के लिए एक उपभोगी कीमत सूचकांक नहीं बनाया जा सकता।
  • परचून कीमतों अनुसार इसका निर्माण होता है जोकि भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न मदों पर एक अनुपात में व्यय नहीं करते।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर
(i) कुल व्यय विधि
(ii) पारिवारिक बजट विधि द्वारा उपभोक्ता कीमत सूचकांक की गणना करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 14
उपभोक्ता सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\sum \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\sum \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100[/ltex]
= [latex]\frac{900}{590} \times 100\)
= 152.54 वर्तमान वर्ष में आधार वर्ष 2000 की परचून कीमतों की तुलना में 52.54 % वृद्धि हुई है।

2. पारिवारिक बजट विधि–उपभोक्ता कीमत सूचकांक की गणना-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 16
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
= \(\frac{9000}{590}\) = 152.54
दोनों विधियों द्वारा एक समान परिणाम प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
भारत के एक मध्य वर्ग परिवार के सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचना के आधार पर उपभोक्ता कीमत सूचकांक ज्ञात करो।
अथवा
निम्नलिखित सूचना के आधार पर 2005 को आधार वर्ष मानकर 2006 के जीवन निर्वाह लागत सूचकांक की गणना करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 17
हल (Solution) :
उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा जीवन निर्वाह लागत सूचकांक की गणना वज़न (weights) दिए गए हैं। इसी लिए परिवार बजट विधि का प्रयोग किया जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 18

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक | (Industrial Production Index Number)

प्रश्न 13.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक से क्या अभिप्राय है? औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण कैसे किया जाता है ? इसके महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो हमें आधार वर्ष की तुलना में किसी देश में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा कमी को प्रकट करता है। इस सूचकांक की सहायता से किसी देश में औद्योगिक विकास का ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में 1993-94 को आधार वर्ष मान कर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना की जाती है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण करते समय उद्योगों का वर्गीकरण

  • खाने तथा खनन
  • निर्माण उद्योग
  • बिजली उत्पादन इत्यादि में किया जाता है।

इन क्षेत्रों सम्बन्धी प्रत्येक माह, तिमाही अथवा वार्षिक आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इनके महत्त्व अनुसार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों को वज़न दिए जाते हैं। इसके पश्चात् निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\sum\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{q_{0}}\right) \mathrm{W}}{\sum \mathrm{W}}\)
इसमें q1 = वर्तमान वर्ष का उत्पादन स्तर, q0 = आधार वर्ष का उत्पादन स्तर, W = वज़न।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 19
हल (Solution) :
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 20
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}=\frac{16500}{100}\) = 165
इसका अर्थ है कि 2005 की तुलना में 2006 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि 65% हुई है।

प्रश्न 15.
मुद्रा स्फीति और सूचकांक में क्या सम्बन्ध है ? मुद्रा स्फीति की दर और कीमत स्तर में सम्बन्ध स्पष्ट करें।
उत्तर-
मुद्रा स्फीति का माप थोक कीमत सूचकांक में होने वाले परिवर्तन के रूप में किया जाता है। जो कि बाज़ार में थोक कीमतों की साप्ताहिक तबदीली को प्रकट करती है। मुद्रा स्फीति वह स्थिति होती है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि लम्बे समय के दौरान दिखाई जाती है। आजकल प्रत्येक व्यक्ति मुद्रा स्फीति की दर का ध्यान रखता है। जैसा कि हम जानते हैं कि, “सूचकांक वह यंत्र है जिसके द्वारा सम्बन्धित तथ्यों के मूल्यों के आकार में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।” सूचकांक की गणना करते समय किसी साधारण वर्ष को आधार साल मान कर उसको 100 मान लेते हैं।

जैसा कि भारत में 2001 साल को आधार साल मान लिया गया है तथा आधार साल की तुलना में 2008 में यदि सूचकांक 200 हो गया है तो हम कह सकते हैं कि भारत में 2001 से 2008 तक मुद्रा स्फीति के कारण मुद्रा के मूल्य में गिरावट आ गई है अथवा मुद्रा की खरीद शक्ति निरन्तर कम हो रही है। परन्तु यह भी देखना चाहिए कि लोगों की आय में कोई तबदीली हुई है या नहीं। यदि लोगों की आय भी इस समय में दो गुणा बढ़ गई है तो इससे मुद्रा स्फीति का लोगों पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता । मुद्रा स्फीति के मापने के लिए प्रति सप्ताह में थोक कीमत में परिवर्तन इस प्रकार मापते हैं :
मुद्रा स्फीति की दर = \(\frac{A_{2}-A_{1}}{A_{1}} \times 100\)
इसमें
A1 = पहले सप्ताह के थोक कीमत सूचकांक
A2 = दूसरे सप्ताह के थोक कीमत सूचकांक
इस प्रकार प्रति सप्ताह सूचकांक का माप सरकार द्वारा किया जाता है। थोक कीमत सूचकांक में एक लम्बे समय के दौरान होने वाली वृद्धि स्फीति को दर्शाती है। इस प्रकार मुद्रा स्फीति को थोक कीमतों के सूचकांक के परिवर्तन द्वारा मापा जाता है जिससे हमें थोक कीमतों में परिवर्तन का ज्ञान होता है।

मुद्रा स्फीति और कीमत स्तर का सम्बन्ध (Relationship between Inflation and Price Level)
जब मुद्रा स्फीति की दर में परिवर्तन होता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि बाजार में कीमत स्तर भी उसी अनुपात में परिवर्तित हो रहा है। बाजार में यदि मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होती है तो हो सकता है कि कुछ वस्तुओं की कीमत पहले जैसी स्थिर हो जबकि थोड़ी सी वस्तुओं की कीमत में वृद्धि हो सकती है। जब देश में मुद्रा स्फीति में बढ़ोत्तरी हो जाती है तो लोग अधिक वेतन की मांग करते हैं। इससे स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट कीमत स्तर में होने वाली कमी को नहीं दर्शाती।