PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गान्धी जी के राजनीतिक विचारों की व्याख्या करो।
(Explain the Political ideas of Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गान्धी जी के राजनीतिक विचारों का विस्तार सहित वर्णन करो।
(Describe Political ideas of Mahatama Gandhi Ji in detail.)
अथवा
महात्मा गान्धी के मुख्य राजनीतिक विचारों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Explain briefly the main Political Ideas of Mahatma Gandhi.)
उत्तर-
गान्धी जी वह महान् आत्मा थे जिन्होंने भारत की आत्मा को जगाया। उन्होंने अपने उच्च सिद्धान्तों, उद्देश्यों और आदर्श जीवन द्वारा राजनीतिक जीवन को नया मार्ग दिखाया। गान्धी जी के उन विचारों को, जोकि वे समय-समय पर राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक ढांचे के बारे में प्रकट करते रहे, उनको इकट्ठा करके लोगों ने गान्धीवाद का नाम दिया। गान्धीवाद सिद्धान्तों, मतों, नियमों तथा आदर्शों का समूह नहीं, बल्कि यह एक जीवन युक्ति है। हम इसे एक जीवन मार्ग भी कह सकते हैं।
गान्धी जी के राजनीतिक विचार इस प्रकार हैं-

1. राजनीति का अध्यात्मीकरण (Spiritualisation of Politics)-गोपाल कृष्ण गोखले के समानं गान्धी जी राजनीति का अध्यात्मीकरण करना चाहते थे। उन्होंने राजनीति के प्रचलित मूल्यों को अस्वीकार किया और राजनीति में शुद्ध धार्मिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए पूरा प्रयास किया। गान्धी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे और उन्होंने घोषणा की कि धर्म के बिना राजनीति पाप है। गान्धी जी का कहना था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से पृथक् नहीं किया जा सकता। वे चाहते थे कि राजनीतिक अनैतिकता से दूर रहे। राजनीति उनकी दृष्टि में धर्म और नैतिकता की एक शाखा थी। धर्म से अलग होकर राजनीति एक मृत देह के समान है जिसको जला देना ही उचित है। गान्धी जी का कहना है, “बहुत-से धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिला हूँ, छुपे हुए राजनीतिज्ञ हैं परन्तु मैं तो राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ, वास्त में धार्मिक हूँ।” गान्धी जी का राजनीति के अध्यात्मीकरण का केवल विचारही नहीं रहा बल्कि उन्होंने तो इसका अपने जीवनकाल में भी प्रयोग करके दिखाया।

2. अहिंसा सम्बन्धी विचार (Views about Non-Violence)-गान्धी जी अहिंसा के पुजारी थे और उन्होंने अहिंसा को अपने जीवन के कार्यक्रम का एक अंग बनाया हुआ था।
गान्धी जी ने अहिंसा को आत्मिक और ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा का अर्थ कायरता या हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहना नहीं है। अत्याचार को चुपचाप सहन करना भी अहिंसा नहीं कहा जा सकता। अहिंसा आत्म-बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख उठाने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। यह नकारात्मक शक्ति नहीं है। यह एक सकारात्मक शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ और ईथर से भी अधिक शक्तिशाली है। बड़ी-से-बड़ी हिंसा का विरोध भी बड़ी-से-बड़ी अहिंसा से किया जा रहा है।’

3. साधनों की पवित्रता पर विश्वास (Faith in the Purity of Means)—व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गान्धी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। यह सारे सिद्धान्त एक-दूसरे में शामिल हैं और एक-दूसरे के सहायक तथा पूरक हैं। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। अच्छे नतीजों की प्राप्ति के लिए वह नैतिक साधनों का प्रचार करते रहे। उनका विश्वास था कि यदि कोई साधनों का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।

4. सत्याग्रह (Satyagraha)-अहिंसा के साधनों के प्रयोग द्वारा सच्चे आदर्शों की प्राप्ति के प्रयासों को सत्याग्रह कहा जाता है या दूसरे शब्दों में सत्य और अहिंसा के संगठन द्वारा बुराई का विरोध करना तथा अन्याय को दूर करवाने का नाम सत्याग्रह है। सत्याग्रह का अर्थ है ‘सत्य के साथ चिपटे रहना’ अर्थात् ‘सत्य की शक्ति’ । गान्धी जी का विश्वास इस आत्मिक शक्ति की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। सत्याग्रही मारने की अपेक्षा मरना अच्छा समझता है। उनका विश्वास था कि कायरता और अहिंसा इकट्ठे नहीं रह सकते। एक कायर खतरे से दूर दौड़ता है। गान्धी जी ने एक बार बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि उन्हें कायरता और अहिंसा में से चुनाव करना हो तो अवश्य ही अहिंसा को चुनेंगे। असहयोग, हड़ताल, धरना, भूख-हड़ताल या व्रत सत्याग्रह के विभिन्न रूप हैं।

5. राज्य सम्बन्धी विचार (Views about State)-गान्धी जी को प्रायः अराजकतावादी दार्शनिक कहा गया है। उनके विचार अनुसार जो आज्ञा देता है और जो कुछ आज्ञा के रूप में किया जाता है, उसकी कोई नैतिक कीमत नहीं हो सकती। केवल स्वतन्त्र इच्छा से किया गया काम ही नैतिक कहला सकता है। राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि है। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्म-रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गान्धी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है।

6. गान्धी जी राज्य को साध्य न मान कर साधन मानते हैं (State is not end but a means)-आदर्शवादी राज्य को साध्य और व्यक्ति को साधन मानते हैं परन्तु गान्धीवाद राज्य को साधन और व्यक्ति को साध्य मानता है। राज्य की उत्पत्ति मनुष्य के लिए हुई है न कि मनुष्य की राज्य के लिए। गान्धीवादी दर्शन राज्य की उत्पत्ति तथा अस्तित्व में कोई रहस्यात्मक पवित्रता स्वतन्त्रता हीगल की भान्ति नहीं देखता। गान्धी जी राज्य को जन-कल्याण का एक साधन मानते थे। गान्धीवादी दर्शन राज्य का स्वतन्त्र तथा उच्च स्तर व्यक्तित्व स्वीकार नहीं करता। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई कहा है।

7. राज्य का कार्यक्षेत्र (Sphere of State-Activity)-व्यक्तिवादियों की तरह गान्धीवादी भी राज्य को कमसे-कम कार्य सौंपना चाहते हैं । गान्धी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कामों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। फ्रीमैन की भान्ति गान्धी जी का भी यह विचार था कि सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करती है।

8. साध्य और साधन दोनों ही श्रेष्ठ होने चाहिएं (Both ends and means Should be good)-आदर्शवादी दर्शन साध्य को महत्त्व देता है और साधन ही नाम-मात्र भी चिन्ता नहीं करता। प्रायः सभी भौतिकवादी दर्शन साध्य पर ही जोर देते हैं; परन्तु गान्धी जी केवल साध्य की महानता से ही सन्तुष्ट नहीं थे। गान्धी जी ने साध्य और साधन दोनों के महत्त्व पर बल दिया है। उनके अनुसार, बुरे साधनों द्वारा अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। साधनों का पवित्र होना अति आवश्यक है।

9. व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल (Stress on the moral purity of the individual)-गान्धी जी के अनुसार मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याएं मूल रूप में नैतिक समस्याएं ही हैं और इनका हल भी नैतिक साधनों द्वारा होना चाहिए। जब तक मनुष्य स्वार्थ भावना से ऊपर नहीं उठता तब तक उसका नैतिक विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास के लिए व्यक्ति का सच्चरित्र होना आवश्यक है। इसीलिए गान्धी जी कहा करते थे कि चरित्र की महानता बुद्धि की महानता से अधिक है।

10. स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार (Views about Freedom)—गान्धी जी के हृदय में नैतिक तथा आध्यात्मिक स्वतन्त्रताओं के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार जब तक कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र नहीं है तो उसके लिए राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का कोई लाभ नहीं है। गान्धी जी के अनुसार, “व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का बलिदान करके किसी समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता।” (“No Society can possibly be built on a denial of individual freedom.”) परन्तु वे राजनीतिक स्वतन्त्रता को भी आवश्यक मानते थे। गान्धी जी राज्य को सत्य, जिसको वह ईश्वर मानते थे, का ही अंश मानते थे। उनके विचारानुसार राजनीतिक स्वतन्त्रता कठिन परिश्रम करने तथा दुःख उठाने के पश्चात् ही प्राप्त हो सकती है।

11. स्वतन्त्रता का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है (Sole Object of liberty is all round development of the individual)-गान्धी जी के अनुसार स्वतन्त्रता का एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक, चारों प्रकार की स्वतन्त्रताएं मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करती हैं। व्यक्तिवादियों की भान्ति गान्धी जी निर्बाध स्वतन्त्रता में विश्वास नहीं करते और न ही वे आदर्शवादियों की भान्ति व्यक्ति की सच्ची स्वतन्त्रता राजकीय आज्ञाओं का पालन करने में मानते हैं। गान्धीवादी दर्शन को स्वतन्त्रता व्यक्तिवाद और आदर्शवाद के बीच की वस्तु है।

12. राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता में कोई संघर्ष नहीं (No Clash between Nationalism and Internationalism)—आदर्शवादी, फासीवादी और नाजीवादी अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करते थे। वे राष्ट्र को अन्तिम लक्ष्य मानते हैं, परन्तु गान्धी जी अन्तर्राष्ट्रीयता के अन्य विचारकों के विचारों से भिन्न है। अन्य अन्तर्राष्ट्रीयवादी राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीयता में विरोध मानते हैं। उनके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के रास्ते में राष्ट्रीयता एक महान् बाधक है, परन्तु गान्धी जी राष्ट्रीयता को एक बाधा नहीं समझते। गान्धी जी के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए राष्ट्रीयता आधार अन्तर्राष्ट्रीयता का पहला कदम राष्ट्रीयता है। यदि इन दोनों में संघर्ष होता है तो इसका कारण यह है कि हम राष्ट्रीयता का अर्थ संकुचित रूप में लेते हैं। गान्धी जी देश भक्ति में विश्वास करते हैं, परन्तु वे अपने राष्ट्र के हित के लिए दूसरे राष्ट्र का अहित करने के पक्ष में नहीं हैं।

13. विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था (Decentralised Economy)-गान्धी जी के अनुसार पूंजीवाद के दोषों से बचने का सबसे अच्छा उपाय आर्थिक विकेन्द्रीकरण है। विकेन्द्रीकरण में गांवों की जनता को अधिक लाभ होगा। आर्थिक क्षेत्र में प्रत्येक गाँव एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करेगा। प्रत्येक इकाई अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं का उत्पादन कर सकेगी। इसीलिए गान्धीवाद कुटीर उद्योग के पक्ष में है। गान्धी जी स्वदेशी खद्दर के पक्ष में थे। खद्दर उद्योग के द्वारा ग़रीबों को काम मिलता है और पैसा भी विदेशों में नहीं जाता। इसलिए गान्धी जी ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया।

14. साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध (Against the Policy of Imperialism-गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे। साम्राज्यवाद मानवता का विरोधी है। विश्व-युद्धों का एकमात्र कारण साम्राज्यवाद है। साम्राज्यवादी हिंसावादी हैं। गान्धी जी साम्राज्यवाद के समर्थकों को आर्थिक राक्षस मानते हैं। अतः गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।

15. पूंजीवाद को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं (Not in favour of fully abolishing Capitalism)-गान्धीवाद पूंजीवादी को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं है। पूंजीवाद का स्वरूप समाप्त करने से उद्योग-धन्धे बन्द हो जाएंगे, एक क्रान्ति उत्पन्न हो जाएगी, अनावश्यक रक्त बहेगा। पूंजीपतियों को समाजोपयोगी बनाया जा सकता है। समाज के ट्रस्टी के रूप में वे कार्य कर सकते हैं। गान्धी जी के शब्दों में, “प्रत्येक पूंजी दोष नहीं है। पूंजी की किसी-न-किसी रूप में सदैव आवश्यकता रहेगी।”

16. अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक बल (More stress on duties than the Rights)-गान्धी जी अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक ज़ोर देते हैं। कर्त्तव्य पालन से अधिकारों की प्राप्ति होती है। गान्धी जी के शब्दों में, “जो कर्तव्यों का पालन करता है अधिकार उसे स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। वास्तव में अपने कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार ही केवल एक ऐसा अधिकार है जो मृत्यु और जीवित रहने के योग्य है।”

17. वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त में विश्वास नहीं (No faith in the theory of class struggle)-साम्यवादियों की तरह गान्धी जी वर्ग-संघर्ष में विश्वास नहीं करते। गान्धी जी के विचारानुसार, वर्ग-संघर्ष हिंसात्मक है। श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्ध में हिस्सेदार बनना चाहिए। यदि व्यक्ति अमीरों के सम्पर्क में रहेगा तो उनकी बुद्धि का लाभ उठा सकेगा। गान्धी जी का विचार है कि श्रमिक वर्ग पूंजीपतियों से पृथक् रहने की अपेक्षा उनके साथ रहने से अधिक लाभ उठा सकता है।

18. बहुमत के सिद्धान्त का विरोध (Opposed to the principle of majority) गान्धी जी लोकतन्त्र में विश्वास रखते हैं, परन्तु वे लोकतन्त्र के बहुमत के सिद्धान्त को नहीं मानते। गान्धी जी के अनुसार बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के सहयोग से शासन चलाना चाहिए। बहुमत वर्ग को अन्य वर्गों के विचारों का सम्मान करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि बहुमत का निर्णय सदैव ठीक हो। लोकतन्त्र का अर्थ है, सबका हित न कि किसी विशेष वर्ग का हित।

19. प्रतिनिधि प्रणाली, संसदीय व्यवस्था आदि पर विचार (Viws about Representative System, Parliamentary System etc.)-गान्धी जी प्रतिनिधित्व लोकतन्त्रात्मक प्रणाली के पक्ष में है। गान्धी जी चुनावों के विरुद्ध नहीं थे। उनके अनुसार-जनता को उन्हीं उम्मीदवारों को चुनना चाहिए जो योग्य, अनुभवी, नि:स्वार्थी तथा ईमानदार हों। गान्धी जी वयस्क मताधिकार के समर्थक थे, परन्तु उनका कहना था कि उसी नागरिक को वोट का अधिकार होना चाहिए जो अपनी रोजी स्वयं कमाता हो। दूसरे शब्दों में गान्धी जी श्रमिक मताधिकार के पक्ष में थे।

20. पुलिस तथा फ़ौज (Police and Military)-गान्धी जी के आदर्श राज्य में पुलिस और फ़ौज का कोई स्थान नहीं है, परन्तु वर्तमान राज्य में गान्धीवादी पुलिस और फ़ौज की आवश्यकता महसूस करते हैं। गान्धीवादियों के अनुसार पुलिस और फ़ौज के कर्मचारी अहिंसावादी होंगे, उनके पास हथियार होंगे, पर उनका प्रयोग बहुत कम किया जाएगा। पुलिस और फ़ौज में बदले की भावना नहीं होगी और इसका मुख्य उद्देश्य जनता का कल्याण होगा।

21. न्याय और जेल (Justice and Jails)-गान्धी जी के अनुसार न्याय शीघ्र और सस्ता होना चाहिए। राजसत्ता की भान्ति न्याय का भी विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। पंचायत को न्याय करने का अधिकार होना चाहिए। गान्धी जी न्यायाधीश और वकीलों के तिरस्कार की दृष्टि से देखा करते थे। गान्धी जी दण्ड को एक आवश्यक बुराई मानते थे। उनके अनुसार दण्ड के दो उद्देश्य हैं-प्रथम यह कि दण्ड अपराधी को दोबारा अपराध करने से रोके और द्वितीय, भविष्य में उस प्रकार के अपराधों को रोकना है। गान्धी जी के अनुसार अपराधियों को घृणा की नज़र से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम करना चाहिए। जेलों को अस्पताल और जेल के कर्मचारियों को अपराधियों से डॉक्टर तथा नौं जैसा बर्ताव करना चाहिए। अपराधियों को अच्छे जीवन की सुरक्षा देनी चाहिए, ताकि अपराधी सज़ा समाप्त होने के पश्चात् अच्छा नागरिक बन सके। गान्धी जी जेलों को सुधार घर बनाने के पक्ष में थे।

22. आदर्श समाज की कल्पना-गान्धी जी एक आदर्श समाज की स्थापना करने के पक्ष में हैं। गान्धी जी का आदर्श समाज राम राज्य था। उनकी कल्पना के समाज में सत्य का साम्राज्य होना चाहिए। जनता का जीवन नैतिक तथा आध्यात्मिक आधार पर होना चाहिए। उनके आदर्श समाज की नींव प्रेम, आपसी सहयोग, स्वेच्छा से काम और कर्त्तव्य का पालन था। ऐसे समाज में प्रत्येक व्यक्ति सत्याग्रही, सत्य का खोजी तथा अहिंसक होना चाहिए। इस तरह के समाज की कल्पना में कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

(i) राज्य की कम-से-कम शक्ति-राज्य प्रकृति से ही अत्याचारी और निजी आज़ादी का नाशक है। गान्धी जी के आदर्श समाज में राज्य को न्यूनतम शक्तियां प्राप्त होनी चाहिएं। आदर्श समाज में सरकार ग्राम-पंचायतों को अधिक अधिकार देगी। पुलिस शक्ति होगी तो सही, परन्तु पुलिस के सिपाही जनता के सेवक होंगे, स्वामी नहीं, दण्ड-सुधारक होंगे। जेलों को सुधार-गृहों में बदल दिया जाएगा, जहां अपराधियों का सुधार चिकित्सा तथा शिक्षा होगी।।

(ii) न्यूनतम ज़रूरतमन्द वाला समाज-जहां तक हो सके मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को कम करना चाहिए और सत्य के साक्षात्कार करने के सर्वोत्तम उद्देश्य को सामने रखकर न्यूनतम ज़रूरत से ही सन्तुष्ट रहना चाहिए। सभ्यता का वास्तविक अर्थ जरूरतों की वृद्धि, बल्कि उन्हें इच्छापूर्वक काम करना है।

(iii) समान अवसर-गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति करने के समान अवसर देना चाहते थे। वे धन की असमान बांट को समाप्त करना ज़रूरी समझते थे। जरूरत से अधिक धन को समाज की अमानत समझा जाना चाहिए और उसे जनकल्याण के लिए प्रयोग में लाना चाहिए।

(iv) गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक श्रम करने के लिए कहते थे और वे ग्रामीण आर्थिकता में विश्वास करते थे। उनकी नज़र में मशीन तथा ऊंचे स्तर का उत्पादन ही संसार में दुःख तथा शोषण के कारण हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की विधियों का वर्णन करो।
(Describe methods of Satyagraha of Mahatama Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह के विभिन्न ढंगों का वर्णन कीजिए। (Discuss Mahatma Gandhiji’s Various methods of Satyagraha.)
उत्तर-
आधुनिक भारत के सामाजिक तथा राजनीतिक चिन्तकों में गान्धी जी का स्थान बहुत ऊंचा है। उन्होंने समस्त विश्व के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। यह उनका सत्याग्रह का सिद्धान्त था। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन का समस्त विश्व पर प्रभाव पड़ा और इसका प्रयोग अफ्रीका तथा अमेरिका में भी किया गया। आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है। जहां एक ओर परमाणु बमों का आविष्कार किया गया है और वहां दूसरी ओर गान्धी जी ने लड़ने के लिए सत्याग्रह का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इसकी शक्ति भौतिक न होकर नैतिक है और गान्धी जी ने इसी शक्ति द्वारा भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाई। गान्धी जी का कहना था कि “सत्याग्रह मानव आत्म की शक्ति की राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभुत्व के विरुद्ध दृढ़ोक्ति है।”

सत्याग्रह के स्रोत (Sources of Satyagrah)—गान्धी जी का प्रारम्भ से ही झुकाव सत्य की खोज की तरफ था। उन्होंने सभी धर्मों पर गहरा अध्ययन किया और सत्याग्रह का सिद्धान्त निकाला। वे गीता और बाइबिल से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। उन्हें ईसा मसीह का यह उपदेश कि, “यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चांटा मारे तो अपना बायां गाल भी उसके सामने कर दो”, अहिंसा का पवित्र मन्त्र प्रतीत हुआ था। गान्धी जी ने जे० जे० डोके (J. J. Doke) को बताया कि “न्यू टेस्टामैंट और विशेषकर सरमन ऑन दी माउण्ट (Sermon on the Mount) ने उन्हें सत्याग्रह की शुद्धता और उसके महत्त्व के प्रति जागृत किया।” गान्धी जी का कहना था कि ईसा मसीह सबसे उच्चकोटि के सत्याग्रही थे।

गान्धी जी ने अफ्रीका में जब अंग्रेजों के अत्याचार को भारतीय जनता के ऊपर होते देखा तो उनके मन में पहली बार सत्याग्रह का विचार आया। उन्होंने वहां की जनता को अहिंसात्मक ढंग से आन्दोलन करने के लिए तैयार किया। उन्हीं दिनों गान्धी जी ने एच० डी० थ्यूरी का ‘सविनय अवज्ञा’ (Civil Disobedience) का एक लेख पढ़ा और वह इस लेख से बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होंने लिखा, “इस पुस्तक ने मेरी सत्याग्रह की धारणा को वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान किया है।”

सत्याग्रह का अर्थ (Meaning of Satyagrah)-सत्याग्रह का वास्तविक अर्थ अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह है। अहिंसा के साथ सत्य को मिला देने से एक नई स्थिति पैदा हो जाती है। सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है। दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। लेकिन सत्याग्रह में बड़ी से बड़ी हिंसक शक्ति को झुकाने की सामर्थ्य होती है। सत्याग्रह स्वयं ही सहन करने की इच्छा का नाम है। इसलिए इसमें वैर-भावना नहीं होती। गान्धी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठाकर सत्य की रक्षा करना। (Satyagrah is the vindication of truth, not by the infliction of suffering on the opponent buton one’s own self.”) “यह सच्चाई के लिए तपस्या है।”

(“Satyagrah is nothing but Tapasya for truth.”) गान्धी जी कहते थे कि “मैंने इसे प्रेम शक्ति या आत्म शक्ति (Soul force) भी कहा है। सत्याग्रह प्रयोग की प्रारम्भिक अवस्थाओं में मैंने यह अनुभव किया कि सत्य मार्ग का अनुसरण विरोधी पर हिंसा-प्रयोग की स्वीकृति नहीं देता है। सत्याग्रह ही अपने विरोधी को कभी कष्ट नहीं पहुंचाता और हमेशा कोमल तर्क द्वारा या तो उसकी बुद्धि को प्रेरित करता है या आत्म-बलिदान द्वारा उनके हृदय को। सत्याग्रह दोहरा वरदान है, यह उसके लिए भी वरदान है जो इसका आचरण करता है और उसके लिए भी जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जाए। सत्याग्रही हारना तो जानता ही नहीं क्योंकि बिना थके-हारे सत्य के लिए लड़ता है। इस संग्राम में सत्य मोक्ष होता है और कारागृह स्वतन्त्रता का द्वार।” डॉ० पट्टाभि सीतारमैया ने सत्याग्रह की रचनात्मक भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा था, “सत्याग्रह एक विधेयात्मक एवं अप्रतिहत शक्ति के रूप में कार्य करता है। इसका प्रभाव अनुभव सिद्ध है।” संक्षेप में, सत्याग्रह सत्य व निरापद खोज है और गान्धी जी राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी इस अस्त्र के द्वारा तय करना चाहते थे।

गान्धी जी का सत्याग्रह का शस्त्र कितना महान् था इसे समझने के लिए हमें सत्याग्रह का अर्थ बराबर ध्यान में रखना चाहिए। ‘सत्य’ का अर्थ सच्चाई और ‘आग्रह’ का अर्थ किसी वस्तु को मज़बूती से पकड़ लेने का है। अतः सत्याग्रह का अर्थ है सच्चाई पर अड़े रहना और उसे कभी न छोड़ना चाहे उसके लिए हमें कितनी भी तकलीफें या मुसीबतें क्यों न उठानी पड़ें।

सत्याग्रह निर्बलों का शस्त्र नहीं (Satyagrah not a weapon of the weak)—गान्धी जी के अनुसार, “सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है।” सत्याग्रह के नाम पर अपनी कायरता छिपानी अनुचित है। सत्याग्रह एक शक्तिशाली के द्वारा किया जा सकता है और शक्ति निर्भीकता में निहित है न कि मनुष्य के मांस और पट्टों में। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। महात्मा गांधी कहते थे कि “कायरता और अहिंसा इसी तरह इकट्ठी नहीं चल सकती जैसा कि पानी और आग।” (“Satyagrah, is a quality of the brave. Cowardice and Ahimsa do not go together any more than water and fire.”)

सत्याग्रही के लिए नियम (Rules for Satyagrahi)-सत्याग्रह के इस गांधीवादी दर्शन में किसी भी आन्दोलन के प्रतिफल उस आन्दोलन में ही छिपे रहते हैं। एक सच्चा सत्याग्रहीं समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। ऐसे सत्याग्रही को निराशा कभी नहीं मिलती और आखिर में वह सबल एवं शक्तिशाली बन जाता है। जिस तरह सूर्य का पूरी तरह वर्णन नहीं किया जा सकता वैसी ही स्थिति एक सच्चे सत्याग्रही की है। सत्याग्रह सत्य और प्रेम पर टिका हुआ है और दरअसल सत्याग्रह की सम्पूर्ण पद्धति पारिवारिक जीवन का राजनीतिक क्षेत्र में विस्तार कर देती है जिसमें प्रत्येक समस्या का हल आपसी सद्भाव द्वारा निकाला जाता है। यह पद्धति आत्म निर्भर होने के साथ-साथ मानव जाति के सन्तुलित विकास और सभ्यता की प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है। इसका प्रयोग कर पाना कुछ लोगों की बपौती नहीं है बल्कि सभी लोग सत्याग्रह के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं बशर्ते कि वे सत्य और अहिंसा की शक्ति में विश्वास करते हों। यह संघर्ष का ऐसा तरीका है जिसका प्रयोग अचानक नहीं किया जाता। जब अन्य सभी उपाय नाकामयाब हो जाते हैं तभी इसका सहारा समाज में सामूहिक हित के लिए लिया जाता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता। ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा रखनी ज़रूरी है हालांकि संख्या बल का कोई विचार इसकी सफलता के लिए आवश्यक नहीं है। सत्याग्रह प्रयोग करने वाले और जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जा रहा हो दोनों का ही भला करता है।

सत्याग्रही में सत्याग्रह के सिद्धान्त का पालन करने के लिए कुछ विशेषताएं होनी चाहिएं। इन विशेषताओं के होने पर ही कोई व्यक्ति सच्चा सत्याग्रही बन सकता है। ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • सत्याग्रही को क्रोध नहीं करना चाहिए।
  • उसे अपने विरोधी के क्रोध को सहन करना चाहिए।
  • उसे दण्ड के भय से झुकना नहीं चाहिए। उसे निडर होना चाहिए।
  • यदि कोई सरकारी अधिकारी सत्याग्रही को गिरफ्तार करना चाहे तो सत्याग्रही स्वेच्छा से गिरफ्तार हो जाए।
  • यदि किसी सत्याग्रही के पास कोई ट्रस्ट की सम्पत्ति है तो उसके लिए बलिदान देने के लिए तैयार होना चाहिए।
  • सत्याग्रही न मारेगा, न कसम खाएगा और न गाली देगा।
  • सत्याग्रही अपने विरोधी का अपमान नहीं करेगा और न वह ऐसे नारे लगाएगा जिससे हिंसा की बू आती हो।

सत्याग्रहियों के लिए योग्यताएं (Qualifications for the Satyagrahis)-1930 में गांधी जी ने सत्याग्रही के लिए 9 नियम बताए थे जिनका पालन करना उसके लिए बहुत आवश्यक था-

  • सत्याग्रही को ईश्वर में अटल विश्वास होना चाहिए।
  • सत्याग्रही को सत्य तथा अहिंसा में पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
  • वह शुद्ध जीवन बिताने वाला हो अर्थात् उसमें आन्तरिक शुद्धि हो तथा वह खुशी से अपनी सम्पत्ति तथा जीवन को उद्देश्य की प्राप्ति के लिए त्याग करने वाले होना चाहिए।
  • सत्याग्रही सद्भाव वाला तथा खद्दर पहनने वाले और सूत कातने वाला होना चाहिए।
  • वह नशीली वस्तुओं से दूर रहे जिनसे इसकी बुद्धि चंचल होती है।
  • अनुशासन के नियमों का पालन करना चाहिए।
  • उसे जेल के नियमों का भी तब तक पालन करना चाहिए जब तक वे उसके सम्मान को भंग न करें।
  • शत्रु के प्रति मन, वचन तथा कर्म से हिंसा का भाव नहीं होना चाहिए।
  • उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बलिदान देने वाला हो।

सत्याग्रह की विशेषताएं (Characteristics of Satyagraha)-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • सत्याग्रह व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है (Satyagraha is the birth right of Everyone)-गांधी जी के अनुसार भ्रष्टाचारी एवं असंवैधानिक सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करना. प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है।
  • सत्याग्रह दूसरों को प्रार्थना द्वारा बदलने की विधि (Satyagraha is a method to change the opponent through an appear)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह, का उद्देश्य दूसरों को क्षति पहुंचाना नहीं होता, बल्कि प्रार्थना द्वारा उसको प्रभावित करना तथा सही रास्ते पर लाना है।
  • स्वयं कष्ट सहना (Self Suffering)-गान्धी जी के अनुसार स्वयं कष्ट सहना सत्याग्रह का एक महत्त्वपूर्ण भाग है इसके द्वारा दूसरों की आत्मा को सुधारा जा सकता है।
  • सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है (Moral Power is the basis of Satyagraha)—गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है। एक सच्चा सत्याग्रही नैतिक शक्ति के आधार पर सभी बाधाओं को पार कर जाता है।
  • सामाजिक कल्याण (Social Welfare)गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होता है। गांधी जी का मानना है कि एक व्यक्ति का कल्याण निजी स्वार्थों से प्रेरित होता है, जबकि सामाजिक कल्याण सामूहिक कल्याण की भावना से प्रेरित होता है।
  • हिंसा का विरोध (Opoose to Violence)-गान्धी जी हिंसा का विरोध करते हैं। उनके अनुसार हिंसा तथा सत्याग्रह परस्पर विरोधी है। गान्धी जी के अनुसार हिंसा द्वारा किसी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता।
  • सत्याग्रह का व्यापक प्रयोग (Wider use of Satyagraha)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह एक ऐसी आत्मशक्ति है, जिसका प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता (Transperacy)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह में पारदर्शिता पाई जाती है। गान्धी जी के अनुसार जो कार्य चोरी छिप किये जाते हैं वे कार्य प्रायः उचित नहीं होते। इसलिए गान्धी जी सत्याग्रह के माध्यम से प्रत्येक गतिविधि खुले रूप में करने का समर्थन करते हैं।

सत्याग्रह के स्वरूप (Forms of Satyagrah)-सत्याग्रह के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित हैं –

(1) बातचीत (Negotiations)
(2) आत्मपीड़न (Self-suffering)
(3) असहयोग (Non-co-operation)
(4) सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)
(5) हड़ताल (Strike)
(6) उपवास या व्रत (Fasting)
(7) धरना (Picketing)
(8) सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)
(9) स्वेच्छा से पलायन (Hijrat)

1. बातचीत का सिद्धान्त (Principle of Negotiation)-सत्याग्रही को किसी व्यक्ति का विरोध करने से पहले उसे यह अच्छी प्रकार समझा देना चाहिए कि वह गलती पर है। हो सकता है कि उस व्यक्ति ने वह गलती निजी स्वार्थ या अज्ञानता के कारण की हो। यदि विरोधी फिर भी न समझे तो किसी मध्यस्थ के द्वारा समझा-बुझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए। गान्धी जी कहते हैं “यदि समझाने बुझाने से वह न माने तो सत्याग्रही को कोई कठोर पग उठाना चाहिए।”

2. आत्म-पीड़न (Self-suffering)-महात्मा गांधी के अनुसार यदि विरोधी किसी मध्यस्थ द्वारा भी समझौते के लिए तैयार नहीं होता और अपना गलत रास्ता नहीं छोड़ता तो सत्याग्रही को उसके विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। ठोस कदम से गान्धी जी का अभिप्राय यह नहीं कि सत्याग्रही को अपने विरोधी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना चाहिए या उसे हानि पहुंचानी चाहिए बल्कि इसका अर्थ है स्वयं कष्ट सहना चाहिए। आत्म-पीड़न (अपने आपको कष्ट देने से है) विरोधी के हृदय में दया और सद्भावना जागृत करती है।

3. असहयोग Non-co-operation)-गान्धी जी के मतानुसार जो, लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों, उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए और उन्हें यह अनुभव कराना चाहिए कि वे अकेले हैं। इस प्रकार के हालातों में ही अन्यायी और दमन करने वाला व्यक्ति आन्दोलनकारियों की उचित मांगों को सुनने के लिए तैयार होता है। लेकिन असहयोग का सहारा लेने के लिए, साहस और आत्म बलिदान की ज़रूरत होती है जिसके बिना असहयोगी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता।

4. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ़ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गान्धी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।

5. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमनकर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल भी है। प्रत्येक कारखाने में मजदूरों को उद्योगपतियों के विरुद्ध लड़ने के लिए संगठित होना ज़रूरी है। पर मजदूरों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ऐसे साधनों का उद्देश्य मज़दूरों के उचित अधिकारों को प्राप्त करना और श्रम की गरिमा स्थापित करना है। इसी तरह हड़तालें पूरी तरह अहिंसक होनी चाहिएं।

6. उपवास या व्रत (Fasting)-गांधी जी के जीवन में विशुद्ध सात्विकता का प्रवेश जिस रूप में हुआ है, उसे उपवास जैसे विलक्षण साधनों ने और भी अधिक शक्ति प्रदान की है। गांधी जी के अनुसार उपवास, सत्याग्रह का ही एक रूप है। उपवास आत्म-शुद्धि का एक साधन है। उनके मतानुसार जब उपवास सामूहिक मांगों को मनवाने के लिए किया जाए तो केवल उसी समय किया जाना चाहिए जब कि अन्य साधन समाप्त हो चुके हों।

7. सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)-सामाजिक बहिष्कार का प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। इसका प्रयोग या तो उन लोगों के विरुद्ध होना चाहिए जो जनमत की अवहेलना करते हैं या फिर सरकार के पिहुओं के विरुद्ध।

8. धरना (Picketing)-धरना बहिष्कार का एक ढंग है। इसका प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। जो लोग शराब, अफीम, अन्य नशीली वस्तुएं तथा विदेशी कपड़ा बेचते थे गांधी जी उनके विरुद्ध धरने की आज्ञा देते हैं।

9. हिज़रत (Hijrat)–गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 3.
गान्धी जी के आदर्श राज्य की विशेषताएं लिखो। (Write down the characteristics of the ideal state of Gandhiji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के आदर्श राज्य की विशेषताओं का वर्णन करो। (Write down the feature of Mahatama Gandhiji’s Ideal State.)
अथवा
गांधी जी के आदर्श राज्य की मुख्य विशेषताएं लिखो। (Write down the feature of Gandhiji’s Ideal State.)
उत्तर-
जब हम गान्धी जी के धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों के आधार पर नए समाज के विषय में विचार करने बैठते हैं तो एक अत्यन्त कठिन समस्या हमारे सामने उपस्थित होती है। इसका कारण यह है कि वे एक कर्मयोगी थे। अतः अपने आदर्श राज्य की स्थापना का विस्तार से वर्णन उन्होंने कभी नहीं किया। जब कभी कोई उनसे उनके नवीन समाज की बात करता तो वे चुप हो जाते थे। एक बार न्यूमैन से उन्होंने कहा था-“मैं दूरस्थ लक्ष्य देखने की कामना नहीं करता। मेरे लिए तो एक कदम काफ़ी है।” (“I do not ask to see the distant scence ; one step is enough for me.”) इस विषय में 11 फरवरी, 1933 के ‘हरिजन’ में उन्होंने लिखा था –

“अहिंसा पर टिके हुए समाज में राज्य और सरकार की रूप-रेखा क्या होगी ? उनकी चर्चा मैं जानबूझ कर नहीं करता रहा हूँ।……जब समाज का निर्माण अहिंसा के नियमों के अनुसार किया जाएगा तो उसका रूप आज के समाज के मूलरूप से भिन्न होगा। मैं पहले से ही यह नहीं कह सकता कि पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित आदर्श राज्य या सरकार का स्वरूप क्या होगा।

इस प्रकार गांधी जी अपने नवीन समाज की कोई स्पष्ट रूप-रेखा प्रस्तुत न कर सके। यह काम उन्होंने जनता पर छोड़ दिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् जिस संविधान सभा का निर्माण हुआ, उसमें गान्धी जी ने भाग नहीं लिया। यदि वे भाग ले भी लेते तो वे संविधान सभा द्वारा अहिंसात्मक सरकार की स्थापना करने में सफल न होते क्योंकि संविधान सभा के कई सदस्य अहिंसा में पूर्ण विश्वास नहीं रखते थे।

गान्धी जी के नवीन समाज की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. राज्य विहीन व्यवस्था-महात्मा गांधी हिंसा को जड़ से काट डालना चाहते थे। वह हिंसा को किसी क्षेत्र में भी पनपने देना नहीं चाहते थे। वे राज्य की सत्ता को हिंसा का प्रतीक समझते थे। गान्धी जी अहिंसा के पुजारी हैं, वे राज्य का विरोध इसलिए करते हैं कि यह हिंसा मूलक है। राज्य का विरोध करते हुए गान्धी जी कहते हैं-“मुझे जो बात ना पसन्द है, वह है बल के आधार पर बना हुआ संगठन, राज्य ऐसा ही संगठन है।” गान्धी जी की दृष्टि में राज्य हिंसा का प्रतीक होने के बावजूद व्यक्ति की अपूर्णता का द्योतक है। इसलिए वह ऐसी व्यवस्था की कल्पना करते हैं जब राज्य अपने आप समाप्त हो जाएगा।

2. आदर्श समाज या राज्यविहीन लोकतन्त्र स्वशासी तथा सत्याग्रही ग्रामों का संघ होगा (The ideal society or stateless democracy will be a federation of mover or les self-suffering and self-governing Satyagrahi Village Communities) गान्धी जी का राज्यविहीन समाज आपसी सहयोग पर आधारित गणराज्य होगा अथवा अनेकों पंचायतों का एक समूह या संघ होगा। ऐसे राज्य की अपनी कोई केन्द्रित शक्ति नहीं होगी, बल्कि उनकी शक्ति इन पंचायतों में बिखरी रहेगी। इस प्रकार का संघ लोगों की स्वतन्त्र इच्छा पर आधारित होगा।

3. व्यक्ति और समाज के आपसी सम्बन्ध (Relationship between the Individual and the State)गान्धीवादी व्यवस्था में व्यक्ति को साध्य माना गया है। समाज के सभी क्रिया-कलापों का केन्द्र व्यक्ति ही होगा। राज्य एक साधन माना गया है। राज्य व्यक्ति का सेवक होगा, स्वामी नहीं। पर समाज की प्रगति की ज़रूरतों के अनुसार मनुष्य को भी अपने आपको बनाना पड़ेगा। व्यक्ति को स्वतन्त्रता देने के बावजूद भी वह यह नहीं भूलते कि वह एक सामाजिक प्राणी है।

गान्धी जी के अनुसार व्यक्ति की आजादी और समाज के कर्तव्यों के बीच संघर्ष का असली कारण राज्य का अहिंसा पर आधारित स्वरूप है। उसमें लोगों का शोषण करने का अवसर कुछ व्यक्तियों को मिल जाता है। यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जितना ही लोग अहिंसा, सत्य और प्रेम को हृदयंगम करेंगे और आपसी सेवा एवं सहयोग के लिए तत्पर रहेगे उतना ही ऐसे संघर्ष समाप्त हो जाएंगे।

4. विकेन्द्रीकरण (Decentralisation)-गान्धी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बन कर रह जाएगी।

आर्थिक विकेन्द्रीकरण के क्षेत्र में बड़े स्तर के उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा। बल्कि कुटीर उद्योग घर-घर स्थापित किए जाएंगे। इससे सामाजिक और आर्थिक समता स्थापित करने में मदद मिलेगी। आधुनिक जगत् से जहां कहीं हिंसा की बातें दिखाई पड़ती हैं उनका मुख्य कारण राज्यों का बहुत अधिक केन्द्रीकृत और सशक्त होना है। आर्थिक विकेन्द्रीकरण से मज़दूरों का शोषण भी नहीं होगा क्योंकि उत्पादन के साधनों और उत्पादित धन के स्वामी वे स्वयं होंगे।

5. वर्ण-व्यवस्था-गान्धी जी के आदर्श राज्य में वर्ण-व्यवस्था के आधार पर काम किया जाएगा। प्रत्येक मनुष्य पुरखों से चला आ रहा काम करेगा जिससे इस व्यवस्था को कोई नुकसान न पहुंचे। इससे समाज के जीवन में होड़ की भावना नहीं उठेगी क्योंकि लोग अपना धन्धा कुछ मर्यादाओं के अन्दर रहकर करेंगे। गान्धी जी के अनुसार वर्ण के नियम ने विशेष प्रकार की योग्यता वाले मनुष्यों के लिए कार्य क्षेत्र स्थापित कर दिया। इससे अनुचित प्रतियोगिता (Unworthy Competition) दूर हो गई। वर्ण नियम ने मनुष्यों की मर्यादाओं को तो माना किन्तु ऊंच-नीच को स्थान न दिया।

गान्धी जी की वर्ण व्यवस्था में सभी उद्योगों को समानता दी जाएगी। ऊंच-नीच के भेदभाव नहीं होंगे1 दूसरी बात यह है कि पुरखों से चले आ रहे काम केवल जीविका चलाने और सामाजिक हित की भावना से ही किए जाएंगे। लाभ कमाना उनका लक्ष्य न होगा।

6. अपरिग्रह (Non-possession)-गान्धीवाद राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। स्वयं गान्धी जी ने वस्तुएं कभी भी इकट्ठी नहीं की। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है। अगर हमें ईश्वर पर भरोसा है तो वह हमारी सन्तुष्टि के लिए हमें वस्तुएं अवश्य देगा।

7. न्यासी (Trusteeship)-गान्धीवादी राज्य में जब लोग अपनी ज़रूरत से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करेंगे तो सभी लोग सुख और शान्ति से रह सकेंगे। गान्धी जी का कहना था कि सम्पत्ति का उत्पादन किया जाए और उसके उत्पादन में काम करने वालों को समान हिस्सा मिले। किसी के पास कितनी भी सम्पत्ति क्यों न हो वह समाज की न्यास सम्पत्ति (Trust) समझी जाए। गान्धी जी का कहना था कि ट्रस्टीशिप सिद्धान्त में आपस के झगड़े समाप्त हो जाएंगे।

8. जीविका के लिए श्रम (Bread-labour)-गान्धी जी का विचार था कि प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य को अपनी जीविका कमाने के लिए शारीरिक श्रम करना ज़रूरी है। वे तो कहा करते थे कि बौद्धिक काम करने वालों को भी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। इससे श्रम को आदर मिलेगा और समाज में ऊंच-नीच की भावना का विकास नहीं होगा।

9. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा (Ideal Society will be predominantly agricultural)-गान्धी जी के अनुसार, “ जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह कृषि प्रदान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा। आर्थिक जीवन में पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और मालिक नौकर के बनावटी सम्बन्धों का अन्त हो जाएगा। उत्पादन ग्रामीण उद्योग-धन्धों द्वारा होगा।” यद्यपि गान्धी जी सभी प्रकार की मशीनों के विरुद्ध नहीं थे परन्तु उनका विचार था मुनाफे के लिए लगाए जाने वाले बड़े-बड़े मिल-कारखानों के साथ-साथ सत्याग्रही सभ्यता का विकास असम्भव है।

10. आदर्श समाज में खेती सहकारी ढंग से होगी (Agriculture will be an Co-operative basis in an ideal Society)—गान्धी जी के अनुसार, “खेती स्वेच्छा पर आधारित पद्धति से होनी चाहिए। महात्मा गान्धी की सहकारिता की धारणा यह भी थी कि ज़मीन किसानों के सहकारी स्वामित्व में हो और जुताई तथा खेती सहकारी नीति से हो। इससे श्रम, पूंजी और औज़ारों आदि की बचत होगी। भूमि के स्वामी सहकारिता से कार्य करेंगे और पूंजी,
औज़ार, पशु, बीज इत्यादि के सहकारी स्वामी होंगे। उनकी धारणा थी कि सहकारी कृषि देश का रूप बदल देगी और किसानों के बीच से निर्धनता और आलस्य को दूर कर देगी।”

11. आदर्श समाज में यातायात के भारी साधन, बड़े नगर, वकील और अदालतें नहीं होंगी (No heavy transport, big cities, courts and lawyers in an Ideal society)— it oft otot farari e forti, “आदर्श समाज में न तो यातायात के भारी साधन होंगे, न वकील और कचहरियां होंगी, न आजकल डॉक्टर और दवाइयां होंगी और न बड़े नगर होंगे।”

12. आदर्श समाज में प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा (Emphasis on natural treatment will be put in ideal society)—गान्धी जी के आदर्श समाज में पेशेवर डॉक्टर नहीं होंगे और न ही दवाइयों का बड़ा उत्पादन होगा बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा।

13. धर्म-निरपेक्षता (Secularism)-गान्धीवाद धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करता है। गान्धी जी के अनुसार राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होना चाहिए। इसके साथ-साथ सभी नागरिकों को कोई भी धर्म अपनाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

14. अपराध, सजा एवं न्याय (Crime, Punishment and Justice)-गान्धीवाद के अनुसार अपराध समाज में एक बीमारी के समान है और इस बीमारी से हमें छुटकारा तभी मिल सकता है, जब हम अपराधियों के प्रति घृणा एवं बदले की भावना न रखें तथा उन्हें सुधारने का प्रयास करें।

निष्कर्ष (Conclusion)-अब प्रश्न उठता है कि क्या गान्धीवादी राज्य की स्थापना कर पाना सम्भव है? इस बारे में बहुत-से आलोचकों का कहना यह है कि गान्धी जी के राज्य व्यवस्था के सम्बन्धी विचार प्लेटो के काल्पनिक विचारों की तरह ही हैं। उन्हें व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। वस्तुतः सच्चाई यह है कि लोग ऐसा कहते हैं वे मनुष्य को एक दैनिक प्राणी न मान कर एक बर्बर प्राणी ही समझते हैं जो जंगलीपन से ऊपर नहीं उठ सकता। इसके विपरीत गान्धी जी का दृष्टिकोण यह था कि मनुष्य में दैवी अंश मौजूद है। अतः उनका जीवन कानून, सत्य, प्रेम और अहिंसा के आधार पर चलना चाहिए किन्तु जिन लोगों का दृष्टिकोण भौतिक है और आत्मा एवं परमात्मा की सत्ता में जिन्हें विश्वास ही नहीं है उनको इन सिद्धान्तों के विषय में विश्वास दिला पाना बहुत अधिक कठिन है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गांधी जी के धर्म और राजनीति के सम्बन्धों के बारे में मौलिक दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार “धर्म तथा राजनीति का परस्पर सम्बन्ध है।” वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गांधी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे। गांधी जी का विश्वास था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता है। गांधी जी चाहते थे कि राजनीति अनैतिकता से दूर रहे। उनकी नज़र में राजनीति, धर्म और नैतिकता की शाखा थी। धर्म से अलग होने पर राजनीति एक शव की भान्ति है जिसको जला देना चाहिए। गांधी जी के शब्दों में, “बहुत सारे धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिलता हूँ वह छुपे हुए राजनीतिज्ञ होते हैं, परन्तु मैं जो एक राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ वास्तव में धार्मिक हूँ।”

प्रश्न 2.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह से क्या अभिप्राय है?
अथवा
सत्याग्रह से गांधी जी का क्या भाव है ? सत्याग्रह की विधियों का नाम बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने सार्वजनिक विरोध के लिए सत्याग्रह के सिद्धान्त का आविष्कार किया। सत्याग्रह का अर्थ है अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह । सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है, दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। गांधी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठा कर सत्य की रक्षा करना।” यह सच्चाई के लिए तपस्या है। गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। एक सच्चा सत्याग्रही समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता।

सत्याग्रह की विधियां-

  1. असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  2. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  3. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  4. उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है। प

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प्रश्न 3.
सत्याग्रह की चार विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  • सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  • हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  • उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है।

प्रश्न 4.
गांधी जी के चार महत्त्वपूर्ण विचार लिखो।
उत्तर-

  • अहिंसा सम्बन्धी विचार-गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। गांधी जी ने अहिंसा को आत्मिक तथा ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा, आत्म बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख भोगने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। सत्य, प्रेम, निर्भीकता, व्रत, नि:स्वार्थ भावना, आन्तरिक पवित्रता आदि अहिंसा के आधार हैं।
  • साधनों की पवित्रता पर विश्वास-व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गांधी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। गांधी जी का विश्वास था कि यदि कोई साधन का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।
  • राज्य का कार्य क्षेत्र-गांधी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कार्यों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करे। गांधी जी राज्य को कम-से-कम कार्य सौंपना चाहते थे।
  • गांधी जी ने व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल दिया है।

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प्रश्न 5.
राज्य सम्बन्धी गांधी जी के विचार लिखिए।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि हैं। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्मा रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गांधी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गांधी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया, क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है। राज्य के विरोध में गांधी जी का यह भी तर्क था कि अहिंसा पर आधारित किसी भी आदर्श समाज में राज्य अनावश्यक है। अतः गांधी जी राज्य की शक्ति का अन्त करना चाहते थे, परन्तु वह राज्य की व्यवस्था का तुरन्त अन्त करने के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 6.
महात्मा गांधी जी के अहिंसा सम्बन्धी विचारों पर विस्तार से वर्णन करें। (P.B. 2017)
अथवा
गांधी जी के अनुसार अहिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
गांधी जी पूरे संसार में अहिंसा के लिए प्रसिद्ध है। गांधी जी का अहिंसा से अभिप्राय है-“सृष्टि पर सब प्राणियों को मन, वाणी और कर्म से किसी प्रकार की कोई हानि न पहुंचाई जाए।” गांधी जी के अनुसार, अहिंसा का अर्थ है कि किसी को क्रोध में अथवा निजी स्वार्थ के लिए उसको चोट पहुंचाने के इरादे से दुःख न दिया जाए और न ही हत्या की जाए। अहिंसा से अभिप्राय सत्य के आग्रह से है। अहिंसा का अर्थ खतरे के समय कायरता दिखाना या हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहना नहीं है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा ऐसी शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ है और ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। भीषण से भीषण हिंसा का सामना ऊंची से ऊंची अहिंसा द्वारा किया जा सकता है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा उन व्यक्तियों का शस्त्र है जो भौतिक रूप से कमज़ोर, परन्तु नैतिक रूप से बलवान् हैं। अहिंसा का मूल आधार सत्य है। प्रेम, आन्तरिक पवित्रता, व्रत, निर्भीकता, अपरिग्रह इत्यादि अहिंसा के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 7.
गांधी जी के आदर्श राज्य (राम राज्य) की चार विशेषताएं लिखिए।
अथवा
गाँधी जी के आदर्श राज्य की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
महात्मा गांधी के आदर्श राज्य के सिद्धांत की व्याख्या करो।
उत्तर-
1. विकेन्द्रीकरण-गांधी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीयकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बनकर रह जाएगी। गांधी जी आर्थिक व राजनीतिक शक्ति के विकेन्द्रीकरण के महान् समर्थक रहे हैं।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

3. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा-गांधी जी के अनुसार, “जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह खेती प्रधान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा।” किन्तु गांधी जी ऐसे सादे औज़ारों और मशीनों का स्वागत करते थे जो बिना बेकारी बढ़ाए लाखों ग्रामीणों के बोझ को हल्का करते हैं। 4. धर्म-निरपेक्षता-गांधी जी के अनुसार राज्य धर्म-निरपेक्ष होना चाहिए।

प्रश्न 8.
गांधी जी का अमानती सिद्धात क्या है ?
अथवा
अमानतदारी प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त समाज की वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को समता व्यवस्था में बदलने का एक साधन है। यह पूंजीवाद को बढ़ावा नहीं देता तथा पूंजीपतियों को अपना सुधार करने का अवसर देता है। वह सम्पत्ति के व्यक्तिगत स्वामी बनने के सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। उसके अनुसार देश की सारी भूमि, सम्पत्ति व उत्पादन के साधन सारे राष्ट्र अथवा समाज के हैं। यद्यपि उन पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को समाज के हितों को ध्यान में रखे बिना अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करने में स्वतन्त्र नहीं होगा। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 9.
महात्मा गांधी कौन थे ?
उत्तर-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वास्तव में एक युग पुरुष थे। गांधी जी के नेतृत्व में भारत ने अपनी स्वतन्त्रता की लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी तथा अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को आधुनिक गुजरात राज्य में स्थित पोरबन्दर नामक रियासत में हुआ। मोहनदास के पिता का नाम कर्मचन्द था तथा उनकी माता का नाम पुतली बाई था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन चलाकर भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद कराया।

प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन सम्बन्धी गांधी जी के विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार सिविल अवज्ञा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गांधी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए। लोगों में ऐसे बुरे और अन्यायी कानूनों को बुरा बताने का साहस होना ज़रूरी है। उन्हें ऐसे सभी कानूनों को अमान्य कर जो भी कष्ट या दण्ड उन्हें दिया जाए, उसे सहने के लिए उस समय तक तैयार रहना चाहिए, जब तक कि उन कानूनों को रद्द न कर दिया जाए। गांधी जी के शब्दों में, “मेरा यह निश्चित मत है कि हमारा पहला कर्त्तव्य यह है कि हम स्वेच्छा से कानूनों का पालन करें पर ऐसा करते समय मैं इस नतीजे पर भी पहुंचा हूं कि जो कानून असत्य और अन्याय को बढ़ावा देते हों उनको तोड़ना भी हमारा आवश्यक कर्त्तव्य है।”

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प्रश्न 11.
‘हिजरत’ से गांधी जी का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हिज़रत गांधी जी द्वारा प्रस्तुत सत्याग्रह के अनेक रूपों में से एक है। गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और यह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है। पर इसके इस्तेमाल करने वाले में भी बहुत साहस की ज़रूरत होती है। उसकी वजह यह है कि अपने पूर्वजों के स्थान पर जहां उसका जन्म हुआ, पल कर बड़ा हुआ, अपनी उस मातृभूमि के प्रति अत्यधिक लगाव की भावना उसमें पैदा हो जाती है। अतः अपने देश, रिश्तेदारों और दोस्तों आदि.से सम्बन्ध तोड़ कर दूर जाने का निश्चय करना अत्यन्त साहस की बात है। पर इसका सहारा भी बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए और जो ऐसा करें, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नौकरशाही, शब्द के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी फ्रांसीसी भाषा के शब्द ब्यूरो से बना है जिसका अर्थ है-डेस्क या लिखने की मेज़। अतः इस शब्द का अर्थ हुआ डेस्क सरकार। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ डेस्क पर बैठकर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है।

दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन। नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 2.
नौकरशाही की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. मार्शल ई० डीमॉक (Marshall E. Dimock) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
  2. मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसकी विशेषताविशेषज्ञ, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”

प्रश्न 3.
नौकरशाही के कोई दो और नाम बताएं।
उत्तर-

  1. दफ्तरशाही
  2. अफसरशाही।

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प्रश्न 4.
नौकरशाही की दो मुख्य विशेषताओं को लिखो।
उत्तर-

  • निश्चित अवधि-नौकरशाही का कार्यकाल निश्चित होता है। सरकार के बदलने पर नौकरशाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मन्त्री आते हैं और चले जाते हैं, परन्तु नौकरशाही के सदस्य अपने पद पर बने रहते हैं। लोक सेवक निश्चित आयु पर पहुंचने पर ही रिटायर होते हैं।
  • निर्धारित वेतन तथा भत्ते-नौकरशाही के सदस्यों को निर्धारित वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं। पदोन्नति के साथ उनके वेतन में भी वृद्धि होती रहती है। अवकाश की प्राप्ति के पश्चात् नौकरशाही के सदस्यों को पेन्शन मिलती है।

प्रश्न 5.
नौकरशाही के किन्हीं दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. प्रशासकीय कार्य (Administrative Functions)—प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की है।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीज़ इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

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प्रश्न 7.
अमानतदारी प्रणाली (न्यासिता सिद्धान्त) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ने आर्थिक विषमता को दूर करने और समाज में भाईचारे की भावना बनाए रखने के लिए ट्रस्टीशिप (अमानतदारी) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उसके अनुसार उत्पादन एवं सम्पत्ति पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है. उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात में हुआ।

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प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि किसने दी ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दी।

प्रश्न 3.
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखें।
उत्तर-
सत्याग्रह की एक विधि असहयोग है।

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प्रश्न 4.
महात्मा गांधी जी के जीवन पर प्रभाव डालने वाले दो धार्मिक ग्रन्थों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. गीता
  2. बाइबल।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य किस प्रकार का है ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य राम राज्य जैसा है।

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प्रश्न 6.
महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ।

प्रश्न 7.
गांधी जी के अहिंसा के बारे में विचार लिखो।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार अहिंसा सकारात्मक एवं गतिशील अवधारणा है, जोकि सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया एवं सद्भावना की अभिव्यक्ति है।

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प्रश्न 8.
सिविल-ना-फरमानी से गांधी जी का क्या भाव था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार के गलत कानूनों को सामूहिक रूप से मानने से इन्कार करना।

प्रश्न 9.
हिज़रत से गांधी जी का क्या भाव है ?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही अच्छा है।

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प्रश्न 10.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

प्रश्न 11.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की दो विधियों के नाम लिखो।
अथवा
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखो।
उत्तर-

  1. असहयोग
  2. धरना देना।

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प्रश्न 12.
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब किसने दिया था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था।

प्रश्न 13.
गांधी जी के आदर्श राज्य की एक विशेषता लिखो। .
उत्तर-
गांधी जी का आदर्श राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा।

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प्रश्न 14.
गांधी जी किस व्यक्ति से प्रभावित थे ?
उत्तर-
गांधी जी रस्किन, टॉलस्टाय तथा थ्योरो से अत्यधिक प्रभावित थे।

प्रश्न 15.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. महात्मा गांधी को भारत का ……………….. कहा जाता है।
2. महात्मा गांधी का जन्म ……………….. 1869 को हुआ।
3. महात्मा गांधी की पत्नी का नाम ..
था। 4. महात्मा गांधी एक मुकद्दमे की पैरवी करने के लिए सन् 1893 में ………………. गए।
5. महात्मा गांधी सन् ……… में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापिस आए।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपिता
  2. 2 अक्तूबर
  3. कस्तूरबा गांधी
  4. दक्षिण अफ्रीका
  5. 1915

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें

1. गांधी जी साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते थे।
2. गांधी जी राज्य को साधन न मानकर साध्य मानते थे।
3. गांधी जी व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल देते थे।
4. गांधी जी केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में विश्वास रखते थे।
5. गांधी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह के स्वरूप हैं
(क) बातचीत
(ख) आत्मपीड़न
(ग) असहयोग
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
गांधी जी का राजनीतिक गुरु कौन था ?
(क) फिरोज़ शाह मेहता
(ख) गोपाल कृष्ण गोखले
(ग) दादा भाई नौरोजी
(घ) मौलाना अबुल कलाम।
उत्तर-
(ख)

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प्रश्न 3.
चम्पारण सत्याग्रह कब शुरू हुआ ?
(क) 1916 में
(ख) 1917 में
(ग) 1919 में
(घ) 1914 में ।
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 4.
निर्धन ग्रामीणों के उत्थान के लिए गांधी जी ने कौन-सा विचार दिया था ?
(क) सर्वोदय
(ख) अन्त्योदय
(ग) निर्धनता उन्मूलन
(घ) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख)

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प्रश्न 5.
गांधी जी के अनुसार लोकतन्त्र की क्या विशेषता है ?
(क) विकेन्द्रित लोकतन्त्र
(ख) अहिंसावादी लोकतन्त्र
(ग) जनता वास्तविक सत्ता की स्वामी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

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