PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 समय नहीं मिला

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 18 समय नहीं मिला Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 18 समय नहीं मिला

Hindi Guide for Class 12 PSEB समय नहीं मिला Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कौन-से लोग बड़े हैं ?
उत्तर:
ऐसे बहुत से लोग हैं जो शीघ्र पत्रोत्तर न देने का बहाना यह कहकर देते हैं कि समय नहीं मिला। इस प्रकार लिखने का कुछ फैशन ही हो गया है। लोग भूल जाते हैं कि बड़े आदमी तो पत्रोत्तर देने में देरी कर सकते हैं, काम की अधिकता के कारण, किन्तु दूसरे लोग भी जो पत्रोत्तर देरी से देते हैं अपने आपको बड़ा समझने लगते हैं।

प्रश्न 2.
भारत और विदेश में समय की पाबंदी के सन्दर्भ में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किये हैं ?
उत्तर:
लेखक लिखते हैं कि भारत में कोई सम्मेलन हो, कोई सभा हो, कोई मीटिंग हो, कभी सभा समय पर शुरू नहीं होती। कहीं भी समय की पाबन्दी का ध्यान नहीं रखा जाता। मीटिंग में दिए गए समय से घण्टा दो घण्टा बाद ही सभासद या सदस्य पहुँचते हैं, जबकि इंग्लैंड और यूरोप के दूसरे देशों में सभाएँ समय पर होती हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 श्रीमन्नारायण

प्रश्न 3.
विदेशों में लोग समय को किस प्रकार बर्बाद करते हैं ?
उत्तर:
विदेशों में लोग सिनेमा और थियेटर के टिकट लेने के लिए दो-दो, तीन-तीन घण्टे लगातार कतारों में खड़े रहकर समय बर्बाद करते हैं। यही हाल टेनिस या फुटबाल मैच देखने के टिकट घरों के सामने लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े व्यक्तियों का है। इन कतारों में जवान-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी दिखाई देते हैं।

प्रश्न 4.
इस निबन्ध से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध से हमें पहली शिक्षा तो यह मिलती है कि किसी मित्र या रिश्तेदार का पत्र प्राप्त होने पर उसका तुरन्त उत्तर देना चाहिए, यह बहाना कभी न बनाना चाहिए कि समय नहीं मिला। दूसरी शिक्षा यह मिलती है कि सदा समय को धन समझते हुए उसकी उपयोगिता और महत्त्व को समझना चाहिए।

प्रश्न 5.
लेखक ने समय के सदुपयोग के लिए क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर:
लेखक का सुझाव है कि हमें अपने जीवन पर गहरी और तीखी नज़र डालकर यह देखना चाहिए कि हमने कितना समय नष्ट किया है और उसका क्या सदुपयोग हो सकता है। यदि केवल सुबह जल्दी उठना शुरू कर दें तो हम काफ़ी समय बचा सकेंगे और दिन भर स्फूर्ति भी महसूस करेंगे।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 6.
‘समय नहीं मिला’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार।

प्रश्न 7.
समय धन से भी कहीं ज्यादा अहम चीज़ है-लेखक के इस कथन से आप कहां तक सहमत हैं ?
उत्तर:
लेखक के इस कथन से कि समय ही धन है, हम पूरी तरह सहमत हैं। क्योंकि धन को तो हाथों का मैल माना जाता है और हमारे हाथ काफ़ी मैले रहते ही हैं। इसका अर्थ यह है कि धन तो कभी भी कमाया जा सकता है और धन तो घटता-बढ़ता रहता है। इसीलिए शायद लक्ष्मी को चंचला कहा गया है कि यह एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठती। किन्तु समय के महत्त्व से इनकार नहीं किया जा सकता। दिन में समय 24 घण्टों का ही रहेगा इसे न कम किया जा सकता है न बढ़ाया जा सकता है। गया हुआ धन तो लौट कर फिर आ सकता है किन्तु गया हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। जब चिड़ियाँ खेत चुग जाती हैं तो पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रहता।

कहते हैं वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन इसीलिए हार गया था क्योंकि उसने पाँच मिनट समय को नहीं समझा। कहा तो यह भी जाता है कि आषाढ़ का चूका किसान और डाल से चूका बन्दर कहीं का नहीं रहता। ऐसा इसलिए है कि समय का निज़ाम सबके लिए एक जैसा है। किसी चित्रकार ने समय का चित्र बनाते समय उसके माथे पर बालों का गुच्छा बनाया था और पीछे से उसका सिर गंजा दिखाया था। इस चित्र का आशय यही है कि समय को सामने से आते हुए पकड़ो नहीं तो उसके गुजर जाने पर हाथ उसके गंजे सिर पर ही पड़ेगा। समय को जिसने धन मान लिया, समझ लिया वही जीवन में सफल है। भौतिक धन तो आज है कल नहीं भी हो सकता। अतः समय को ही धन समझना चाहिए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. मेरा तो यह भी अनुभव है कि जो लोग सचमुच बड़े हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं उनका पत्र व्यवहार भी बहुत व्यवस्थित रहता है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमन्नारायण द्वारा लिखित निबन्ध ‘समय नहीं मिला’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने समय के सदुपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
लेखक बड़े आदमियों की व्यस्तता के कारण उनके पत्रोत्तर में देरी को उचित मानते हुए कहते हैं कि उसका यह अनुभव है जो लोग सचमुच बड़े हैं और व्यस्त रहते हैं उनका पत्र व्यवहार अर्थात् पत्रोत्तर देने का स्वभाव अत्यन्त ठीक हालत में रहता है।

विशेष:

  1. लेखक कहना चाहते हैं कि बड़े लोगों का जीवन क्योंकि नियमित रहता है इसलिए उनका पत्रोत्तर भी निहायत व्यवस्थित रहता है। इसी कारण वे बड़े लोग कहलाते हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली आत्मकथात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 श्रीमन्नारायण

2. धन की दुनिया में अमीर-गरीब, बादशाह-कंगाल का फर्क है। पर खुशकिस्मती से समय के साम्राज्य में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है। वक्त के निज़ाम में सब बराबर हैं, उसमें आदर्श लोकतंत्र है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमन्नारायण द्वारा लिखित निबन्ध ‘समय नहीं मिला’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक धन और समय की तुलना करता हुआ समय को आदर्श लोकतन्त्र के समान बता रहा है।

व्याख्या:
लेखक समय ही धन की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि धन तो घटता-बढ़ता रहता है किन्तु समय को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। दूसरे धन की दुनिया में किसी के पास अधिक धन है तो वह अमीर है, बादशाह है और किसी के पास धन कम है तो वह ग़रीब या कंगाल है किन्तु खुशकिस्मती से समय के साम्राज्य में ऊँच-नीच का छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं है। समय के सम्मुख सभी बराबर हैं। उसमें आदर्श लोकतन्त्र है जिसमें सबको बराबर के अधिकार हैं। समय सबके लिए एक जैसा होता है, कोई उसकी उपयोगिता को समझ लेता है तो कोई नहीं।

विशेष:

  1. समय सब के लिए बराबर अवसर प्रदान करता है। वह भेदभाव नहीं करता।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Guide समय नहीं मिला Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘समय नहीं मिला’ किस के द्वारा रचित निबंध है?
उत्तर:
श्री मन्नारायण।

प्रश्न 2.
श्री मन्नारायण का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर:
इटावा में सन् 1912 ई० में।

प्रश्न 3.
श्री मन्नारायण ने किन-किन पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया था?
उत्तर:

  1. सबकी बोली
  2. राष्ट्र भाषा प्रचार।

प्रश्न 4.
श्री मन्नारायण किसकी विचारधारा से प्रभावित थे?
उत्तर:
गांधी जी की विचारधारा से।

प्रश्न 5.
श्री मन्नारायण जी के द्वारा रचित तीन रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रोटी का राग, मानव, सेवांग।

प्रश्न 6.
‘समय नहीं मिला’ निबंध का मूलभाव क्या है ?
उत्तर:
समय का सदुपयोग।

प्रश्न 7.
लेखक की शैली में किस तत्व की प्रधानता है?
उत्तर:
व्यंग्यात्मकता।

प्रश्न 8.
किस ने कहा था कि यदि भोजन करने का समय हो सकता है तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का भी समय मिल सकता है?
उत्तर:
अंग्रेजी साहित्यकार डॉ० जॉनसन ने।

प्रश्न 9.
लेखक ने किस कहावत की व्याख्या की थी?
उत्तर:
‘समय ही धन’।

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प्रश्न 10.
लेखक ने अपने निबंध में किसे बधाई दी है ?
उत्तर:
उन लोगों को जो समय को बर्बाद नहीं करते और समय का पूरा लाभ उठाते हैं।

प्रश्न 11.
लेखक ने कभी भी न कहने के लिए क्या कहा था?
उत्तर:
‘समय नहीं मिलता।

प्रश्न 12.
किन देशों में सभाएँ सदा समय पर ही होती हैं ?
उत्तर:
इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों में।

प्रश्न 13.
विदेशों में लोग समय कैसे बर्बाद करते हैं ?
उत्तर:
सिनेमा, थियेटर और मैच देखकर।

प्रश्न 14.
लेखक ने ‘समय नहीं मिलता’ में क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
सदा समय का महत्त्व समझो और कभी झूठे बहाने न बनाओ।

प्रश्न 15.
‘समय बचाने’ के लिए लेखक ने क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर:
सुबह जल्दी उठने से काफी समय बचाया जा सकता है।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 16.
……अमीर ग़रीब, बादशाह-कंगाल का फर्क है।
उत्तर:
धन की दुनिया में।

प्रश्न 17.
………………में सब बराबर है।
उत्तर:
वक्त के निज़ाम।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
लेखक का मानना है कि अधिक व्यस्त लोगों का पत्र व्यवहार अधिक व्यवस्थित होता है?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
समय के साम्राज्य में ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
समय ही धन है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 21.
विदेशों में लोगों के द्वारा समय अधिक खराब किया जाता है।
उत्तर:
नहीं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 श्रीमन्नारायण

प्रश्न 22.
लेखक ने निबंध में व्यंग्य का सहारा नहीं लिया है।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 23.
समय ही धन है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. सब की बोली तथा राष्ट्र भाषा प्रचार पत्रिकाओं के संपादक कौन थे ?
(क) श्री मन्नारायण
(ख) श्रीमान नारंग
(ग) श्री प्रफुल्ल पटेल
(घ) श्री हंस।
उत्तर:
उत्तर:

2. ‘समय नहीं मिला’ रचना की विद्या क्या है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) निबंध
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(ग) निबंध

3. ‘समय नहीं मिला’ कैसी रचना है ?
(क) व्यंग्यात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) आत्म कथात्मक।
उत्तर:
(क) व्यंग्यात्मक

4. लेखक के अनुसार सबसे बड़ा धन क्या है ?
(क) पैसा
(ख) समय
(ग) धन
(घ) सोना
उत्तर:
(ख) समय

5. समय नहीं मिला निबंध का मूलभाव है
(क) समय का सदुपयोग
(ख) समय की मांग
(ग) धन का उपयोग
(घ) धन की मांग
उत्तर:
(क) समय का सदुपयोग

कठिन शब्दों के अर्थ

मशगूल = व्यस्त। यथा समय = निश्चित समय पर। बेशुमार = अनगिनत। व्यवस्थित = ठीक हालत में। अस्त-व्यस्त = बिखरा हुआ। ख्याल = विचार। अक्सर = प्रायः । दिलासा = तसल्ली। इन्तजाम = प्रबन्ध। अहम = महत्त्वपूर्ण । कुदरत = प्रकृति । ज्वारभाटा = समुद्री तूफान । निज़ाम = बन्दोबस्त, प्रबन्ध। शरीक = शामिल। लालसा = इच्छा। तितर-बितर हो जाना = इधर-उधर बिखर जाना। हताश = निराश। बदकिस्मती = दुर्भाग्य। इक्के-दुक्के = कोई-कोई, कम संख्या में। अपवाद = नियमों के उल्लंघन करने का उदाहरण। मुकर्रर = निश्चित किया हुआ। जाहिर करना = प्रकट करना। संयोजक = सभा या मीटिंग का आयोजन करने वाला। अमुक = फलां, कोई खास । लतीफ़ा = चुटकला, हंसी की बात। हमदर्दी = सहानुभूति। मुमकिन = सम्भव, जो हो सके। प्रतिनिधि = नुमाइंदा। मुबारकबाद = बधाई। स्फूर्ति = ताज़गी। खुश मिजाज = हंसमुख।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 श्रीमन्नारायण

समय नहीं मिला Summary

समय नहीं मिला जीवन परिचय

श्रीमन्नारायण जी का जीवन-परिचय लिखिए।

श्रीमन्नारायण का जन्म सन् 1912 में इटावा में हुआ था। एम०ए० करने के बाद आप ‘सबकी बोली’ तथा ‘राष्ट्र भाषा प्रचार’ पत्रिकाओं के सम्पादक रहे। बाद में आप राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के महामन्त्री भी रहे। आप . गाँधीवादी विचारधारा से विशेष रूप से प्रभावित रहे। कांग्रेस के आन्दोलनों में आप शुरू से ही सक्रिय भाग लेते रहे। इनकी प्रमुख रचनाएँ-रोटी का राग, मानव, सेवांग का सन्त हैं। दैनिक जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं पर आप ने बहुत से छोटे-छोटे शिक्षाप्रद निबन्ध भी लिखे हैं।

समय नहीं मिला निबन्ध का सार

‘समय नहीं मिला’ निबन्ध का सार लगभग 150 शब्दों में लिखो।

प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने समय के सदुपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। लेखक ने बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से उन लोगों पर प्रहार किया है जो समय नहीं मिला का बहाना बनाते हैं कि ‘मुझे आपका काम तो याद है पर क्या करूँ बिल्कुल समय ही नहीं मिला’ कुछ इसी तरह का बहाना लोग पत्रोत्तर देने में करते हैं। लेखक ने उदाहरण देते हुए बताया कि एक व्यक्ति ने प्रसिद्ध अंग्रेजी के साहित्यकार डॉ० जानसन से जाकर कहा कि उसे धार्मिक पुस्तकें पढने का समय नहीं मिलता। साहित्यकार ने समझाया कि यदि भोजन करने का समय हो सकता है तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का भी समय मिल सकता है।

लेखक ने ‘समय ही धन’ कहावत की व्याख्या करते हुए बताया है कि हम पैसा तो जितनी मेहनत करें कमा सकते हैं किन्तु समय को घटा या बढ़ा नहीं सकते। समय का प्रबंध सबके लिए बराबर है किन्तु फिर भी हम उसके महत्त्व को नहीं समझते। हम काम के घण्टे कम करने का शोर मचाते हैं पर यह नहीं सोचते कि खाली समय में लोग करेंगे क्या। क्या वे अपना समय सिनेमा का टिकट पाने के लिए बर्बाद न करेंगे।

लेखक उन लोगों को बधाई देता है जो समय का पूरा लाभ उठाकर एक मिनट भी बर्बाद नहीं करते। लेखक की सलाह है खुशमिजाज रहकर अपने समय का जितना अच्छा उपयोग कर सकें, उतनी ही आपकी प्रशंसा है। किन्तु आज से यह किसी से न कहें कि समय नहीं मिला।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़

Hindi Guide for Class 12 PSEB अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
जलियांवाले बाग में सभा का आयोजन किस उद्देश्य से किया गया ?
उत्तर:
रविवार का दिन था, वैशाखी का त्योहार था। 13 अप्रैल, सन् 1919 की संध्या के साढ़े चार बजे जलियांवाले बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ था। उस समय शहर की जो बुरी स्थिति थी उस पर विचार करने के उद्देश्य से सभा का आयोजन हुआ था। लोग चाहते थे कि शांति स्थापना के साधनों की खोज की जाए। सब लोग बहुत गम्भीर थे। वे किसी प्रकार की शरारत करना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिश फौज के बाग में प्रवेश का चित्रात्मक वर्णन करो।
उत्तर:
जलियांवाले बाग की विशाल जनसभा अभी शुरू भी नहीं होने पाई थी कि कुछ दूरी पर घुड़सवार पुलिस, उसके पीछे फौजी गाड़ी में बैठा जनरल डायर, उसके पीछे मशीनगनें, तोप ले जाने वाली गाड़ियाँ और फिर मार्च करती हुई फौजें-सब चले जा रहे थे। सैनिकों के बूटों की आवाज़ गूंज रही थी। हाल्ट’ का आदेश मिलने पर कानों को फाड़ने वाला शब्द हुआ। सैनिकों ने मोर्चा सम्भाला और घुटने झुकाकर बन्दूकों में कारतूस भरने लगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 3.
जलियांवाले बाग में गोलियों की बौछार से बचने के लिए लोगों ने क्या किया ?
उत्तर:
जलियांवाले बाग के भीषण नरसंहार में सैनिकों की गोलियों से बचने के लिए लगभग बारह व्यक्ति एक वृक्ष के पीछे जा छिपे थे। सैनिकों ने उन्हें मार गिराया। कुछ लोग बाग़ की दीवारों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। लोग लाशों पर पैर रखकर दीवार को फाँद रहे थे। बाग में एक कुआँ था। घबरा कर लोग उसमें कूद पड़े। लोग कूदते गए, उसमें गिरते, कुचले जाते और मर जाते।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 4.
जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार एक अमानवीय घटना थी। स्पष्ट करें।
उत्तर:
रविवार का दिन, वैशाखी का त्योहार, 13 अप्रैल, सन् 1919 समय संध्या के साढ़े चार बजे जलियांवाला बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया था। यह जनसभा ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत की जनता पर किये जा रहे अत्याचारों के विरोध करने के लिए बुलाई गई थी। जनसभा अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि जनरल डायर मशीनगनों और तोपों से लैस फौज को लेकर वहाँ पहुँच गया और अचानक निहत्थे और शान्त लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगा। क्षण भर में वहाँ लाशों के ढेर लग गए। प्राण रक्षा के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे।

कोई वृक्ष की आड़ में छिप गए, कुछ दीवारें फाँदने का प्रयास करने लगे। बहुत-से लोग जलियांवाला बाग में स्थित एक कुएँ में घबरा कर छलाँगें मारने लगे। सारा सभास्थल घायलों की चीखों पुकार से भर उठा था। गोलियाँ चलनी बन्द होते ही और अन्धेरा उतरते ही लोग बाग के आँगन में आकर अपने रिश्तेदारों और मित्रों की तलाश करने लगे। ऐसा दृश्य पहले कभी न देखा गया था। इस नरसंहार की अमानवीय घटना ने आजादी की लड़ाई को और भी तेज़ कर दिया और आखिरकार अंग्रेज़ों को भारत छोड़कर जाना ही पड़ा।

प्रश्न 5.
लेखक ने जलियांवाले बाग में घायल हुए लोगों की तथा मृत लोगों के परिजनों की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
जलियांवाले बाग में जब जनरल डायर के आदेश से सैनिकों ने अन्धाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी तो क्षण भर में हताहतों की चीख-पुकार, लहूलुहान कपड़े, लाशों से पटती धरती, प्राण रक्षा के लिए भागते भयाक्रांत नागरिक। तभी बारह वर्ष का एक छोटा-सा बालक गोली लगने पर नीचे आ गिरा। फिर दूसरे छज्जे पर बैठा एक बालक और गिरा। एक वृक्ष के पीछे लगभग 12 व्यक्ति जा छिपे थे। सैनिकों ने एक-एक करके उन सबको मार डाला। घायलों की चीख पुकार से कान फट रहे थे। लोग प्राण बचाने के लिए दीवारों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे।

दोनों ओर लाशों के ढेर थे। बहुत-से लोग भीड़ में कुचले गए थे। जलियांवाले बाग में एक कुआँ था। घबरा कर लोग उसमें कूद पड़े। कूदने वालों का तांता लग गया। अन्धेरा उतरते ही लोग डरते-काँपते घटनास्थल पर अपने रिश्तेदारों और मित्रों की तलाश में आने लगे। एक सिक्ख युवक, जिसकी आंतें बाहर बिखरी थीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था ‘गुरु के नाम पर मुझे मार डालो।’ एक हिन्दू युवक रोता हुआ अपने भाई की लाश पीठ पर लादे जा रहा था। एक औरत अपने पति की लाश को सारी रात अपनी गोद में लेकर पत्थर की मूर्ति बनी वहाँ बैठी रही।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. ऊपर उड़ता हुआ एक हवाई जहाज़….. पाश्व सत्ता का प्रतीक, नीचे मैं-चारों ओर से मंज़िलों, इमारतों से घिरा हुआ। बाहर निकलने के एकमात्र मार्ग पर फौजी पहरा और ऊपर चबूतरे से गोली बरसाती फौज। काश, मैं गोलियों और जनता के बीच अड़ जाता। पर मैं तो जड़ बन कर रह गया था।
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा आत्मकथा शैली में लिखे गए निबन्ध ‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में जलियांवाला बाग़ सन् 1919 में हुए नरसंहार की घटना का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
जलियांवाला बाग़ अपने आँगन में हुए नरसंहार की घटना का उल्लेख करते हुए कहता है कि जब जनरल डायर के आदेश पर सैनिक निहत्थे व शान्त लोगों पर गोलियाँ बरसा रहे थे उस समय अंग्रेज़ी हकूमत की पाशविकता का प्रतीक हवाई जहाज़ ऊपर आसमान में उड़ रहा था और नीचे मैं बहुमंजिली इमारतों से घिरा हुआ। मेरे आँगन से बाहर निकलने का एकमात्र मार्ग था उस पर भी फौजी पहरा लगा हुआ था अर्थात् कोई भी व्यक्ति उस रास्ते से गोलीबारी से बचने के लिए बाहर नहीं निकल सकता था और मेरे ऊपर जो चबूतरे थे वहाँ से फौजी लोग गोलियाँ बरसा रहे थे। जलियांवाला बाग सोचता है कि काश, उस समय वह गोलियों और जनता के बीच आकर जनता को बचा पाते किन्तु मैं तो उस भयानक दृश्य को देखकर पहले ही जड़ हो चुका था।

विशेष:

  1. जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार का यथार्थ चित्रण किया गया है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण और शैली आत्मकथात्मक है।

2. मरते हुए व्यक्तियों की सिसकियाँ और आहें बता रही थीं किं जैसे चारों ओर मौत का साम्राज्य है। मेरा सारा शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था, लेकिन मैं आसानी से मरने वाला नहीं था। काश, यदि मर जाता तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा आत्मकथा शैली में लिखे गए निबन्ध ‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में जलियांवाला बाग सन् 1919 में हुई नरसंहार की घटना का वर्णन करते हुए अपने ऊपर होने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना के बाद की स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है कि इस भीषण नरसंहार में मारे जाने वाले व्यक्तियों की सिसकियाँ और आहों से यह पता चल रहा था कि यहाँ मौत का चारों ओर साम्राज्य रहा है। उस समय मेरे सारे शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया गया। किन्तु मैं आसानी से मरने वाला नहीं था। काश, यदि मर जाता तो यह भयावह दृश्य तो न देखता।

विशेष:

  1. लेखक की मानसिक पीड़ा और हताशा शब्दों के माध्यम से स्पष्ट दिखाई देती है।
  2. भावात्मक शैली, तत्सम तद्भव शब्दावली और स्वाभाविकता व्यक्त हुई है।

PSEB 12th Class Hindi Guide अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ पाठ के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर:
विष्णु प्रभाकर।

प्रश्न 2.
श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
उनका जन्म सन् 1912 ई० में मुजफ्फर नगर के एक गाँव में हुआ था।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 3.
श्री विष्णु प्रभाकर ने स्नातक स्तर की शिक्षा किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी?
उत्तर:
पंजाब विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 4.
श्री विष्णु प्रभाकर ने किसका संपादन कार्य किया था ?
उत्तर:
पत्र-पत्रिकाओं का।

प्रश्न 5.
श्री प्रभाकर पर किस व्यक्ति का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा था?
उत्तर:
महात्मा गांधी का।

प्रश्न 6.
किस धार्मिक संस्था से विष्णु प्रभाकर बहुत प्रभावित हुए थे?
उत्तर:
आर्य समाज से।

प्रश्न 7.
विष्णु प्रभाकर की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अवारा मसीहा, जाने-अनजाने।

प्रश्न 8.
आप के पाठ्यक्रम में श्री विष्णु प्रभाकर की कौन-सी रचना संकलित है?
उत्तर:
अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’।

प्रश्न 9.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ किस साहित्यिक विधा से संबंधित रचना है?
उत्तर:
निबंध विधा।

प्रश्न 10.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ किस शैली में रचित है?
उत्तर:
आत्म कथात्मक।

प्रश्न 11.
जलियाँवाला बाग की घटना किस त्योहार के दिन घटित हुई थी?
उत्तर:
वैशाखी के दिन (13 अप्रैल, सन् 1919)।

प्रश्न 12.
निबंध के अनुसार किसका चित्र कुर्सी पर रखा हुआ था?
उत्तर:
डॉ० किचलू का।

प्रश्न 13.
देशव्यापी हड़ताल किसके आह्वान पर और क्यों की गई थी?
उत्तर:
महात्मा गांधी के आह्वान पर रोल्ट एक्ट के विरोध में।

प्रश्न 14.
जलियाँवाला बाग में कौन-सा जनरल फौज़ लेकर आया था?
उत्तर:
जनरल डायर।

प्रश्न 15.
लोग गोलियों से बचने के लिए कहाँ कूद गए थे?
उत्तर:
कुएं में।

प्रश्न 16.
जलियाँवाला बाग में से बाहर निकलने के कितने रास्ते थे ?
उत्तर:
केवल एक।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 17.
ऊपर उड़ता हुआ एक हवाई जहाज……….
उत्तर:
पाश्व सत्ता का प्रतीक।

प्रश्न 18.
मेरा सारा शरीर गोलियों से………………..
उत्तर:
छलनी हो चुका था।

प्रश्न 19.
………………………..तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।
उत्तर:
काश, यदि मर जाता तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।

प्रश्न 20.
“गुरु के नाम पर…………………।”
उत्तर:
गुरु के नाम पर मुझे मार डालो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 21.
जनरल डायर के आदेश से सैनिकों ने अंधाधुध गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 22.
चारों ओर मौत का साम्राज्य नहीं था।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 23.
दूसरे छज्जे पर बैठा एक बालक और गिरा।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 24.
वृक्ष के पीछे लगभग 12 व्यक्ति जा छिपे थे।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. विष्णु प्रभाकर पर किसके जीवन दर्शन का प्रभाव पड़ा ?
(क) आर्य समाज का
(ख) महात्मा गांधी का
(ग) आर्य समाज एवं महात्मा गांधी का
(घ) देव का।
उत्तर:
(ग) आर्य समाज एवं महात्मा गांधी का

2. ‘अगर ये बोल पाते’ किस विधा की रचना है ?
(क) आत्मकथात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) व्यंग्यात्मक
(घ) हास्यात्मक।
उत्तर:
(क) आत्मकथात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

3. जलियांवाला बाग की घटना कब घटित हुई ?
(क) 13 अप्रैल 1918
(ख) 13 अप्रैल 1919
(ग) 13 अप्रैल 1920
(घ) 13 अप्रैल 19211
उत्तर:
(ख) 13 अप्रैल 1919

4. जलियांवाला बाग के हत्याकांड को करने के लिए किसने गोलियां चलाने का आदेश दिया था ?
(क) जनरल डायर ने
(ख) अंग्रेज़ ने
(ग) डगलस ने
(घ) डबलस ने
उत्तर:
(क) जनरल डायर ने

कठिन शब्दों के अर्थ

स्तब्ध = हैरान। मिसाल = उदाहरण। ऐलान = घोषणा। परिपाटी = सिलसिला, प्रथा, रीति। न भूतो न भविष्यति = जो कभी पहले हुआ न आगे होगा। जुल्म = अत्याचार। हाल्ट = रुको। कर्ण भेदी = कानों को फाड़ने वाले। निनाद = शब्द, ध्वनि। हतप्रभ = जिसकी कांति क्षीण हो गई हो। अप्रत्याशित = अचानक, जिसकी आशा न रही हो। हता हतो = मरने वालों और घायलों। पाशव सत्ता = पशुओं जैसी सत्ता। प्रतीक = चिह्न, नमूना। धराशायी = धरती पर गिरना। छेदना = बींधना। बेतहाशा = बिना सोचे विचारे, बदहवास होकर। क्रंदन = चीख पुकार। मादरे वतन = मातृ भूमि। सरजमी = धरती। वीरांगना = बहादुर स्त्री। लोमहर्षक = रौंगटे खड़े करने वाला, रोमांचकारी। बर्बर = असभ्य। आकांक्षा = इच्छा, कामना।

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Summary

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ जीवन परिचय

विष्णु प्रभाकर जी का जीवन परिचय लिखिए।

विष्णु प्रभाकर का जन्म जून, सन् 1912 में मुजफ्फर नगर के एक गाँव में हुआ। पंजाब विश्वविद्यालय से बी०ए० करने के बाद आप हरियाणा में सरकारी सेवा में आ गए। नौकरी के साथ-साथ आप साहित्य सृजन में भी संलग्न रहे। आप कई वर्षों तक आकाशवाणी के नाटक विभाग से भी जुड़े रहे। कुछ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। आपके जीवन पर आर्य समाज तथा महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन का गहरा प्रभाव है।

रचनाएँ:
प्रभाकर जी ने हिन्दी साहित्य को कहानियाँ, उपन्यास, निबन्ध, नाटक और एकांकी दिये। जाने-अनजाने और आवारा मसीहा इनकी गद्य रचनाएँ हैं।

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ निबन्ध का सार

‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग़’ निबन्ध का सार लगभग 150 शब्दों में लिखें।

प्रस्तुत निबन्ध आत्मकथा शैली में लिखा गया है। जलियांवाले बाग अपनी कहानी अपनी जुबानी सुना रहा है।
जलियांवाला बाग कहता है कि रविवार का दिन, वैशाखी का त्योहार 13 अप्रैल, सन् 1919 संध्या के साढ़े चार बजे थे। मेरे आँगन में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ था। डॉ०, किचलू का चित्र कुर्सी पर रखा था। गाँधी जी ने रोल्ट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था। अंग्रेजी सरकार ने सभा से एक दिन पहले मार्शल लॉ लागू कर दिया था। सारे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। इस पर भी सभा हुई। सभा अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि जनरल डायर फौज को लेकर वहाँ आया और बिना चेतावनी दिये अन्धाधुंध गोलियाँ चला दीं। लोगों ने गोलियों की बौछार से बचने के लिए वृक्षों की आड़ ली। दीवारों पर चढ़ने की कोशिश की।

मेरे आँगन में एक कुआँ था लोग घबरा कर उसी में कूदने लगे। इस नरसंहार में हज़ारों लोग हताहत हुए। इनमें हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख सभी थे। गोलियाँ बरसनी थमते ही लोगों ने अपने-अपने परिजनों को तलाशने की कोशिश की। यह भयानक दृश्य देखकर मेरा पत्थर दिल भी चीत्कार कर उठा। इस बर्बर हत्याकांड के कारण ही आज़ादी की लड़ाई तेज़ हुई। मेरे आँगन में होने वाले उस महान् बलिदान की नींव . पर ही स्वाधीनता का महल खड़ा हुआ। मुझे गर्व है कि मेरा देश आज़ाद हुआ। आओ, हम उस बलिदान को याद करते हुए देश की स्वाधीनता की रक्षा करें।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए? Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Hindi Guide for Class 12 PSEB क्या निराश हुआ जाए? Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
आजकल चिन्ता का क्या कारण है ?
उत्तर:
आज देश में आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है कि कोई ईमानदार आदमी रहा ही नहीं। जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर है, उसमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। जो व्यक्ति कुछ करेगा उसके कार्य में कोई न कोई दोष तो होगा ही किन्तु उसके गुणों को भुलाकर दोषों को ही देखना निश्चय ही चिन्ता का विषय है।

प्रश्न 2.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर:
आज देश में कुछ ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके रोटी रोज़ी कमाने वाले भोले-भाले मज़दर पिस रहे हैं और झठ और फरेब का धन्धा करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी मूर्खता समझी जाने लगी है और सच्चाई केवल कायर और बेबस लोगों के पास रह गयी है। ऐसी हालत में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था हिलने लगी है।

प्रश्न 3.
वे कौन-से विकार हैं जो मनुष्य में स्वाभाविक रूप में विद्यमान रहते हैं ?
उत्तर:
लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते पर इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा नीच आचरण है। हमारे यहाँ इन विकारों को संयम के बन्धन में बाँधकर रखने का प्रयत्न किया जाता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 4.
धर्म और कानून में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जबकि कानून को दिया जा सकता है। भारत वर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। कानून की त्रुटियों से लाभ उठाया जा सकता है जबकि धर्म में आस्था रखने वाला ऐसा नहीं करता। .

प्रश्न 5.
किसी ऐसी घटना का वर्णन करो जिससे लोक चित्त में अच्छाई की भावना जागृत हो।
उत्तर:
कुछ महीने पहले की बात है कि मैं अपने मम्मी पापा के साथ टेक्सी में कही जा रहा था। टैक्सी से उतरते समय मेरी मम्मी टैक्सी में अपना पर्स भूल गईं। उसमें तीन हजार रुपए और मम्मी के कुछ गहने और मोबाइल था। हम सभी हैरान थे कि अब क्या किया जाए हमने तो टैक्सी का नम्बर और टैक्सी ड्राइवर का नाम भी नहीं पूछा था। थोड़ी देर बाद हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वही टैक्सी ड्राइवर हमारे पास मम्मी का पर्स लौटने आ पहुँचा। मम्मी और पापा ने उसे सौ रुपया पुरस्कार देना चाहा तो उसने इन्कार करते हुए कहा-यह तो मेरा फर्ज़ था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में लिखो।

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ निबन्ध का सार लिखो।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार ।

प्रश्न 2. इस निबन्ध में द्विवेदी जी ने कुछ घटनाएँ दी हैं जो सच्चाई और ईमानदारी को उजागर करती हैं। उनमें से किसी एक घटना का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
द्विवेदी जी एक बार सपरिवार बस में यात्रा कर रहे थे। उनकी बस गंतव्य से पाँच मील पहले एक सूनी निर्जन जगह पर खराब हो गई। उस समय रात के दस बजे थे सभी यात्री घबरा गए। कंडक्टर बस के ऊपर से साइकल उठाकर चला गया। उसके जाने पर यात्रियों को संदेह हुआ कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। एक यात्री ने चिन्ता जताते हुए कहा कि यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले ही एक बस को लूटने की घटना हुई है। द्विवेदी जी परिवार सहित अकेले यात्री थे। बच्चे पानी के लिए चिल्ला रहे थे और पानी का कहीं ठिकाना न था।

इसी बीच कुछ नवयुवक यात्रियों ने ड्राइवर को पीटने का मन बनाया। जब लोगों ने उसे पकड़ा तो वह घबराकर । द्विवेदी जी से उसे लोगों से बचाने की प्रार्थना करने लगा। ड्राइवर ने कहा कि हम लोग बस का कोई उपाय कर रहे
हैं।

द्विवेदी जी लोगों को समझा-बुझा कर उसे पिटने से तो बचा लेते हैं किन्तु लोगों ने ड्राइवर को बस से उतार कर घेर लिया और कोई घटना होने पर पहले उसे मारना ही उचित समझा। इतने में यात्रियों ने देखा कि कंडक्टर एक खाली बस लिए चला आ रहा है। आते ही उसने बताया कि अड्डे से नयी बस लाया हूँ। फिर वह कंडक्टर द्विवेदी जी के पास आकर लोटे में पानी और थोडा दुध दिया। उसने कहा कि बच्चे का रोना उससे देखा न गया। सब यात्रियों ने उसे धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा माँगी। रात बारह बजे से पहले ही वे बस अड्डे पहुंच गए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 3.
मानवीय मूल्य से सम्बन्धित यदि कोई ऐसी ही घटना आपके साथ घटित हुई हो, तो उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
पिछले महीने की बात है कि मैं साइकिल पर जा रहा था कि एक ट्रक पीछे से आया और मुझे टक्कर मारकर चला गया। मैं सड़क पर जख्मी हालत में पड़ा था। मेरे पास से कई स्कूटर, कई कारें गुजरे किन्तु किसी ने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया। मैं घायल अवस्था में सड़क के किनारे कोई एक घण्टा तक पड़ा रहा। मेरे शरीर से खून बह रहा था। चोट अधिकतर टांगों और बाहों पर लगी थी। मैंने सहायता के लिए कई लोगों को पुकारा भी किन्तु किसी को भी मेरी हालत पर दया नहीं आई। लगता था कि लोग पुलिस के डर से मेरी सहायता नहीं कर रहे थे। क्योंकि आजकल पुलिस वाले उलटे सहायता करने वाले पर ही केस बना देती है। कहती है एक्सीडेंट तुम्हीं ने किया है। मैं निराश होकर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।

तभी अचानक मेरे पास आकर एक कार रुकी। कार में दो व्यक्ति सवार थे। वे दोनों कार से उतरे। दोनों ने मिलकर मुझे अपनी कार में डाला और तुरन्त निकट के अस्पताल में ले गए। मेरी साइकिल जो बुरी तरह टूट चुकी थी, उन्होंने वही छोड़ दी। अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि इस रोमी को कम से कम एक बोतल खून की ज़रूरत है। उन दोनों व्यक्तियों ने बिना हिचक के अपना खून देने की रजामंदी प्रकट की। प्रभु कृपा से उन दोनों का खून मेरे खून के ग्रुप से मिल गया। तुरन्त उनमें से छोटी आयु के व्यक्ति ने अपना खून दिया। मेरे घावों की मरहम पट्टी कर दी गई थी। दो दिन के इलाज के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मुझे डॉक्टरों से पता चला कि वे सज्जन मेरे इलाज का सारा खर्चा अदा कर गए हैं। मैं उन दोनों व्यक्तियों को भगवान् समझता हूँ किन्तु खेद है कि मैं उनका नाम तक नहीं जानता।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें

1. “जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि आज देश में ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई केवल डरपोक और बेबस लोगों के पास रह गयी ऐसी स्थिति में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के प्रति आस्था डाँवाडोल होने लगी है।

2. “धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं भारत वर्ष में सदा कानून को धर्म माना जाता रहा है किन्तु आज कानून और धर्म में अन्तर आ गया है। लोग यह जानते हैं कि धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जब कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण . धर्म से डरने वाले लोग भी कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

3. ‘अच्छाई को उजागर करना चाहिए, बुराई में रस नहीं लेना चाहिए।’
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि दोषों से पर्दा उठाना बुरी बात नहीं है। लेकिन किसी की बुराई करते समय जब उसमें रस लिया जाता और उसे कर्त्तव्य मान लिया जाता है तो यह बुरी बात है और इससे भी बुरी बात वह जब अच्छाई को उतना ही रस लेकर प्रकट न करना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

4. सामाजिक कायदें-कानून कभी युग-युग से परीक्षत आदर्शों से टकराते हैं, इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से लिया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि सामाजिक नियम और कानून समाज के हित को ध्यान में रखकर मनुष्य द्वारा ही बनाये जाते हैं। उनकी ठीक सिद्ध न होने पर उन्हें बदल दिया जाता है। ये नियम-कानून सबके लिए होते हैं परन्तु कोईकोई नियम सबके लिए सुखकर नहीं होता। जब सामाजिक नियम-कानून युगों से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं तो जो हलचल होती है वह ऊपरी सतह पर ही होती है। वह हलचल भीतरी सतह में नहीं होती अतः इस हलचल को देखकर निराश हो जाना ठीक नहीं है।

PSEB 12th Class Hindi Guide क्या निराश हुआ जाए? Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए?’ किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी।

प्रश्न 2.
आचार्य द्विवेदी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? ।
उत्तर:
सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘आरत दुबे का छपर गाँव में’।

प्रश्न 3.
आचार्य द्विवेदी को भारत सरकार ने किस अलंकार से सम्मानित किया था ?
उत्तर:
पद्म भूषण से।

प्रश्न 4.
आचार्य द्विवेदी किन-किन विश्वविद्यालयों के हिंदी-विभागाध्यक्ष बने थे?
उत्तर:
हिंदू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 5.
द्विवेदी जी के द्वारा रचित उपन्यासों में से किन्हीं दो का नाम लिखिए।
उत्तर:
अनामदास का पोथा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख।

प्रश्न 6.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ किस प्रकार का निबंध है?
उत्तर:
विचारात्मक निबंध।

प्रश्न 7.
इस निबंध में किस प्रकार की बुराइयों पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
सामाजिक बुराइयों पर।

प्रश्न 8.
जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी क्यों होता है?
उत्तर:
उसके काम में कोई दोष ही नहीं निकल पाता।

प्रश्न 9.
वर्तमान में कौन पिस रहा है और कौन फल-फूल रहा है ?
उत्तर:
वर्तमान में मज़दूर पिस रहे हैं और धोखेबाज फल-फूल रहे हैं।

प्रश्न 10.
भारतवासियों ने आत्मा को क्या महत्त्व दिया था?
उत्तर:
भारतवासियों ने आत्मा को चरण और परम माना था।

प्रश्न 11
द्विवेदी जी ने लोभ-मोह को क्या कहा है ?
उत्तर-:
उन्हें विकार कहा है।

प्रश्न 12.
कानून को भारत में क्या महत्त्व दिया गया है?
उत्तर:
कानून को धर्म का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 13.
लोग किसी दुर्घटना में वाहन के चालक को ही ज़िम्मेदार क्यों मानते हैं ?
उत्तर:
लोगों को लगता है कि वाहन के कल-पुर्जा, चालन, देख-रेख आदि सभी की ज़िम्मेदारी वाहन के चालकी होती है, जो कि पूरी तरह से ठीक नहीं है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 14.
वर्तमान में ईमानदारी को क्या समझा जाता है?
उत्तर:
वर्तमान में ईमानदारी को मूर्खता का पर्यायवाची समझा जाता है। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
ईमानदारी को…. .पर्याय समझा जाने लगा है।
उत्तर:
मूर्खता।

प्रश्न 16.
भारतवर्ष ने कभी भी………………के संग्रह क. अधिक महत्त्व नहीं दिया।
उत्तर:
भौतिक वस्तुओं।

प्रश्न 17.
बुराई में……………लेना बुरी बात है।
उत्तर:
रस।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. द्विवेदी जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस कृति पर मिला ?
(क) आलोक पर्व
(ख) आलोकित
(ग) आलोक
(घ) पर्व।
उत्तर:
(क) आलोक पर्व

2. ‘अशोक के फूल’ किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) रेखाचित्र
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(क) निबंध

3. द्विवेदी जी का साहित्य किसका संगम है ?
(क) मानवतावाद का
(ख) भारतीय संस्कृति का
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का

4. ‘क्या निराश हुआ जाए’ कैसा निबंध है ?
(क) सकारात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) प्रेरणात्मक
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

क्या निराश हुआ जाए? गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. क्या यही भारतवर्ष है, जिसका सपना तिलक और गाँधी ने देखा था ? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान् संस्कृति-सभ्य भारतवर्ष किस अतीत के गह्वर में डूब गया ? आर्य और द्रविड़, हिन्दू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन-भूमि ‘मानव महासमुद्र’ क्या सूख गया ? मेरा मन कहता है ऐसा हो नहीं सकता। हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित’ “क्या निराश हुआ जाए ?” शीर्षक निबंध में से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक अपने इस विश्वास को प्रकट करता है कि अनेक विकृतियों के आ जाने के बावजूद भी भारतवर्ष से प्राचीन मानवीय आदर्श विलुप्त नहीं हुए हैं।

व्याख्या:
द्विवेदी जी कहते हैं कि आज चारों ओर भ्रष्टाचार, अनैतिकता, शोषण, बेईमानी आदि का बोलबाला है। वह प्रश्न करते हैं कि क्या यह वही भारतवर्ष है जिसका सपना हमारे महापुरुषों ने देखा था ? क्या इसी भारतवर्ष का स्वप्न कर्मयोगी लोकमान्य तिलक ने देखा था अथवा क्या यह राष्ट्रपति महात्मा गांधी के सपनों का भारत है ? संस्कृति से सभ्य यह रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का देश है। यहां की संस्कृति अत्यंत प्राचीन है और अध्यात्म प्रधान है। इस सुसंस्कृत और सुसभ्य देश को न जाने क्या हुआ है ? लगता है कि यह किसी अतीत की गुफा में लुप्त हो गया। भाव यह है कि वर्तमान भारत में उसका सुसंस्कृत और सभ्य रूप नहीं मिलता।

रवींद्रनाथ ठाकुर इस भारतवर्ष को ‘मानव महासमुद्र’ कहते थे। इसमें अनेकानेक जातियों के मनुष्य रहते हैं और वे नदियों की भांति इस महासमुद्र में लीन हैं। आर्य और द्रविड़, संस्कृति, हिंदू और मुस्लिम संस्कृति, भारतीय और यूरोपीय संस्कृति के आदर्शों और सिद्धान्तों का यह संगम स्थल है। क्या यह ‘महासमुद्र’ सूख गया है ? लेखक की मान्यता है कि ऐसा संभव नहीं है। आज भी यह महान् विचारकों, ऋषियों एवं दार्शनिकों के स्वप्नों और कल्पनाओं का देश है और भविष्य में भी इसी रूप में रहेगा।

विशेष:

  1. लेखक ने भारत के सुसंस्कृत भविष्य के प्रति आशा व्यक्त की है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और स्वाभाविक है।

2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत के दोषपूर्ण वातावरण का यथार्थ चित्रण किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि आज इस देश के वातावरण में भ्रष्टाचार और अनैतिकता का बोलबाला है। आज ऐसा माहौल बन चुका है कि ईमानदारी और सच्चाई की कद्र नहीं है। ईमानदारी से मेहनत करके अपने जीवन का निर्वाह करने वाले भोले-भाले और सीधे-साधे लोगों का शोषण हो रहा है। उनकी मेहनत-मज़दूरी के बदले में उन्हें इतना कम पैसा मिलता है कि वह पेट भर भोजन भी नहीं पा सकते। इसके विपरीत असत्य तथा छल-कपट का व्यवहार करने वाले लोग समुन्नत और समृद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार ईमानदारी पूर्ण श्रम पर झूठ और कपट हावी हो रहे हैं।

आज ईमानदारी और मूर्खता समानार्थक हो गए हैं। भाव यह है कि ईमानदारी को मूर्ख समझा जाने लगा है। इसी प्रकार जो व्यक्ति सच्चाई से काम लेते हैं उन्हें धर्मभीरु तथा लाचार कहा जाता है। इस प्रकार आज ऐसा माहौल हो गया है कि जीवन के उच्च मूल्यों, मानवीय एवं सांस्कृतिक आदर्शों के बारे में लोगों का विश्वास डगमगाने लगा है।

विशेष:

  1. आज के भ्रष्टाचारी वातावरण में साधारण लोगों की जीवन के आदर्शों से आस्था टूट रही है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और प्रवाहमयी है।।

3. सदा मनुष्य-बुद्धि नयी परिस्थितियों का सामना करने के लिए नये सामाजिक विधि-निषेधों को बनाती है, उनके ठीक साबित न होने पर उन्हें बदलती है। नियम कानून सबके लिए बनाए जाते हैं, पर सबके लिए कभीकभी एक ही नियम सुखकर नहीं होते। सामाजिक कायदे-कानून कभी युग-युग से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में सें अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि युग-परिवर्तन के साथ जब नये नियम बनाए जाते हैं, तब उनका पुराने परखै नियमों के साथ टकराव भी होता है, जिससे समाज में उथल-पुथल होती है, परन्तु इससे निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि मनुष्य हमेशा ही नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपनी बुद्धि द्वारा कार्यालय सम्बन्धी नियम बनाता है। यह प्रत्येक युग के अनुकूल करने योग्य एवं न करने योग्य’ सामाजिक नियमों की प्रतिष्ठा करता है। इन सामाजिक विधि-निषेधों के उचित होने पर वे समाज द्वारा अपना लिए जाते हैं और ठीक न सिद्ध होने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है। मनुष्य की बुद्धि उन्हें बदलती है ये विधि-निषेध के नियम कायदे सामान्य होते हैं। सबके लिए होते हैं, परन्तु एक ही नियम कई बार सबके लिए उपयोगी और सुखदायक नहीं होता।

ये सामाजिक विधिनिषेध के कायदे-कानून पुराने परखे नियमों से टकराते भी हैं और वर्तमान नये नियमों और पुराने परीक्षित मूल्यों में संघर्ष होता है। इससे समाज की बाहरी सतह पर हलचल भी होती है, परंतु यह नई बात नहीं है। यह पहले भी होता आया है और आगे भी होता रहेगा। अतः वर्तमान माहौल को देखकर निराश होना उचित नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक है फिर यह नयी बात नहीं है।

विशेष:

  1. पुराने सामाजिक कायदे-कानून तथा नये कायदे-कानून में संघर्ष होता ही रहता है। इससे निराश नहीं होना चाहिए।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

4. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आन्तरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम क्रोध आदि विकास मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत निकृष्ट आचरण है।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ से अवतरित है। इसमें बताया गया है कि भारत में भौतिक चीजें इकट्ठी करने को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि भारतवर्ष में किसी भी युग में दुनियावी चीजें एवं इंद्रिय सुख के भौतिक पदार्थों को इकट्ठा करने को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया है। यहां सुख-साधन जुटाना बहुत ही सीमित रहा है। भारतीय मनीषियों ने आंतरिक तत्व को अधिक महत्त्व दिया है। उनकी दृष्टि शरीर की अपेक्षा आत्म तत्व पर अधिक रही है जो स्थिर एवं नित्य है। उसे ही यहां श्रेष्ठतम माना गया है। वे हमारे देश की संस्कृति भौतिक मूल्यों के स्थान पर आत्मिक, मानवीय एवं नैतिक मूल्यों को महत्त्व देती रही है। भौतिक पदार्थ नश्वर हैं तथा आंतरिक मानवीय मूल्य परम सत्य है।

इसमें संदेह नहीं कि मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों का अस्तित्व स्वाभाविक है, परन्तु इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना उचित नहीं है। इन्हें मन और बुद्धि पर हावी होने देना अथवा इन्हें मनमानी करने देना क्षुद्र आचरण कहा जायेगा। यह सदाचरण अथवा उच्चारण नहीं हो सकता।

विशेष:

  1. भारतीय विचारधारा में भौतिक वस्तुओं के संग्रह की अपेक्षा मनुष्य के भीतर के परम तत्व को जानने पर बल दिया गया है।
  2. भाषा-शैली तत्सम प्रधान होते हुए भी सुबोध है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

5. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्धाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से उद्धृत किया गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि किसी के दोषों को सबके समक्ष लाने में कोई बुराई नहीं, बुराई इस बात में है कि साथ-साथ गुणों को उजागर नहीं किया जाता।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि किसी व्यक्ति के दोषों को उजागर करने में कोई विशेष बुराई नहीं। बुराई तो इस बात में है कि किसी व्यक्ति की बुराइयों को उजागर करने में ही रस लिया जाता है तथा दोषों को उजागर करने वाला यह समझने लगता है कि उसका कर्तव्य तो अमुक व्यक्ति की बुराइयों को उद्घाटित करना मात्र है। मनुष्य किसी के गुणों को उजागर करने में कतई रस नहीं लेता। आज यह उसका स्वभाव ही बन गया है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, मगर किसी की अच्छाई को उतना ही रस लेकर लोगों के सामने प्रकट न करना उससे भी बुरी बात है।

विशेष:

  1. लेखक के अनुसार केवल दोषों को ही नहीं गुणों को भी उजागर किया जाना चाहिए। बुराई में रस लेना बुरी बात है।
  2. भाषा-शैली सरल और प्रवाहपूर्ण है।

6. मैं भी बहुत भयभीत था, पर ड्राइवर को किसी तरह मार-पीट से बचाया। डेढ़-दो घंटे बीत गए। मेरे बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे। मेरी और पत्नी की हालत बुरी थी। लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं, पर उसे बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा। कोई भी दुर्घटना होती है तो पहले ड्राइवर को समाप्त कर देना उन्हें उचित जान पड़ा। मेरे गिड़गिड़ाने का कोई विशेष असर नहीं पड़ा। इसी समय क्या देखता हूँ कि एक खाली बस चली आ रही है और उस पर हमारा बस कंडक्टर भी बैठा हुआ है।।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत में प्रत्येक मानव पर संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।

व्याख्या:
यहां लेखक का कहना है कि बस के अचानक सुनसान जगह पर रुक जाने के कारण वह बहुत डरा हुआ था, किन्तु बस के ड्राइवर को बड़ी ही कठिनाई से पिटने से बचा लिया। बस को रुके लगभग डेढ़ से दो घंटे बीत चुके थे। बच्चे भूख से बेहाल और पानी के लिए तड़प रहे थे। स्वयं मेरी और मेरी धर्मपत्नी की दशा अत्यन्त विकट हो रही थी। यात्रियों ने ड्राइवर को मारने की बजाय, उसे नीचे उतारकर एक स्थान पर चारों ओर से उसे घेर लिया ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि यदि कोई अप्रिय बात होती तो वे सबसे पहले ड्राइवर को ही मृत्युदंड देते। लेखक पुनः कहता है कि उसकी प्रार्थना और विनय का कोई विशेष प्रभाव यात्रियों पर नहीं पड़ा। सहसा लेखक देखता है कि एक खाली बस हमारी ओर चली आ रही है और उस पर कंडक्टर भी बैठा हुआ है।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य को संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।
  2. शब्द एवं वाक्य योजना सटीक है। भाषा सरल सहज एवं भावों के अनुरूप है।

कठिन शब्दों के अर्थ

मन बैठ जाना = उदास हो जाना, निराश हो जाना। तस्करी = स्मग्लिंग–किसी प्रतिबन्धित वस्तु का दूसरे से देश में अवैध तरीके से चोरी छिपे लाना। भ्रष्टाचार = बुरा आचरण, बेईमानी। आरोप-प्रत्यारोप = एक-दूसरे पर दोष लगाना। अतीत = बीता हुआ समय। निरीह = बेचारा, निर्दोष। गह्वर = गुफा, खोह। मनीषियों = विद्वानों। माहौल = वातावरण। श्रमजीवी = मज़दूर। फरेब = धोखा। पर्याय = बदल। भीरू = डरपोक। आस्था = श्रद्धा, विश्वास। मनुष्य-निर्मित = मनुष्य द्वारा बनाई गई। त्रुटियों = गलतियों, कमियों। विधि-निषेध = कानून द्वारा निषिद्ध, यह करो वह न करो। साबित = प्रमाणित । कायदे = नियम। आलोड़ित = मथा हुआ। हताश = निराश। निकृष्ट = नीच। गुमराह = भटका हुआ। दरिद्रजनों = ग़रीबों। कोटि-कोटि = करोड़ों। सुविधा = आराम। पैमाना = स्तर। विधान = कानून। विकार = दोष। विस्तृत = बढ़ना, फैलना। दकियानूसी = पुराने विचारों का। धर्मभीरू = धार्मिक दृष्टि से डरपोक। संकोच = झिझक। पर्याप्त = काफी। आक्रोश = क्रोध। साबित करना = प्रमाणित करना। प्रतिष्ठा = सम्मान । पर्दाफाश करना == भेद खोलना। उद्घाटित करना = खोलकर सामने रखना। दोषोद्घाटन = दोषों को प्रकट करना। उजागर करना = प्रकट करना। गंतव्य = जहां पहुंचना/जाना हो। हिसाब बनाना = मन बनाना। कातर = व्याकुल, भयभीत।

क्या निराश हुआ जाए? Summary

क्या निराश हुआ जाए? जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय लिखें।

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म गाँव आरतदुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में सन् 1907 में हुआ। संस्कृत विश्वविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा तथा हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर काशी विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष रहे। इन्हें ‘आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण अलंकार से सम्मानित किया गया था। इनका साहित्य मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति से युक्त है। सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हो गया।
अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुटज, आलोक पर्व इनके निबन्ध संग्रह हैं। चारूचन्द्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, अनामदास का पोथा इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। सूर-साहित्य, हिन्दी-साहित्य की भूमिका इनके आलोचनात्मक ग्रन्थ हैं।

क्या निराश हुआ जाए? निबन्ध का सार

‘क्या निराश हुआ जाए ?’ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित विचारात्मक निबन्ध है, जिसमें लेखक ने देश की सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि समाचार पत्रों को बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए। लेखक का मन समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार पढ़कर कभी-कभी बैठ जाता है। इन्हें पढ़कर लगता है कि देश में ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है। लेखक को एक बड़े आदमी ने एक बार कहा था कि जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी है क्योंकि उसके किए काम में कोई दोष नहीं निकालता। लेखक को भारत की ऐसी हालत देखकर दुःख होता है किन्तु लेखक को विश्वास है कि हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा। यह सच है कि इन दिनों कुछ ऐसा वातावरण बन रहा है कि ईमानदारी करके कमाने वाले मज़दूर पिस रहे हैं और धोखे का धन्धा करने वाले फल फूल रहे हैं।

लेखक का विचार है जो ऊपर से दिखाई देता है वह मनुष्य द्वारा ही बनाया गया है। मनुष्य सामाजिक नियमों को परिस्थिति अनुसार बदलता भी रहता है। इस बदलाव को देखकर निराश होना ठीक नहीं है। भारत वर्ष ने कभी भी सांसारिक वस्तुओं के संग्रह को महत्त्व नहीं दिया बल्कि उसने आत्मा को चरम और परम माना। लोभ-मोह आदि विकारों के वश में होना उसने कभी उचित नहीं माना। इन विचारों को संयम के बँधन से बाँधने का प्रयत्न किया। परन्तु भूख की, बीमार के लिए दवा की और भटके हुए को रास्ते पर लाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

लेखक कहते हैं कि व्यक्ति का चित्त हर समय आदर्शों पर नहीं चलता। मनुष्य ने जितने भी उन्नति के कानून बनाए उतने ही लोभ-मोह आदि विकार बढ़ते गए। आदर्शों का मजाक उड़ाया गया और संयम को दकियानूसी कहा गया। परन्तु इससे भारतीय आदर्श अधिक स्पष्ट और महान् दिखाई देने लगे।

भारतवर्ष में कानून को धर्म का दर्जा दिया गया किन्तु कानून और धर्म में अन्तर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण से धर्मभीरू कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। भारतवर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। भ्रष्टाचार आदि के प्रति लोगों का क्रोध यह सिद्ध करता है कि लोग इसे गलत समझते हैं। सैंकड़ों घटनाएँ आज भी घटती हैं जो लोक-चित्त में अच्छाई की भावना को जगाती हैं। लेखक ने ऐसी दो घटनाओं का उल्लेख किया जिनमें पहली रेलवे के एक टिकट बाबू की ईमानदारी और दूसरी एक बस कंडक्टर की मानवीयता को उजागर करने वाली घटना शामिल है। इन घटनाओं का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि निराश होने की ज़रूरत नहीं है। भारत में अब भी सच्चाई और ईमानदारी मौजूद है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 15 सच्ची वीरता

Hindi Guide for Class 12 PSEB सच्ची वीरता Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
सच्चे वीर पुरुष का स्वभाव कैसा होता है ?
उत्तर:
सच्चा वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होता है। उसके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। वे सत्वगुण के क्षीरसागर में ऐसे डूबे रहते हैं जिसकी दुनिया को खबर ही नहीं होती।

प्रश्न 2.
‘वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है’ लेखक पूर्ण सिंह की इस उक्ति का क्या भाव है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ यह है कि वीर पुरुष भले ही सामने न आए, किन्तु अपने प्रेम से लोगों के दिलों पर राज करता है, जिससे वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है। उसका मन सबका मन हो जाता है अर्थात् जैसे वह सोचता है या करता है सब वैसा ही सोचते या करते हैं।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 3.
‘सच्ची वीरता’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 4.
जापान के ओशियो की वीरता का उदाहरण प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर लिखो।
उत्तर:
ओशियो जापान के एक छोटे से गाँव की एक झोंपड़ी में रहता था। वह बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था। वह कडे स्वभाव का स्थिर, धीर और अपने ही विचारों में डूबा रहने वाला पुरुष था। लोग उसे मामूली आदमी समझते थे। एक बार संयोग से दो तीन साल फसलें न होने के कारण देश में अकाल पड़ गया। लोग लाचार होकर उसके पास मदद माँगने गए। वह उनकी मदद करने को तैयार हो गया। पहले वह अमीर और भद्र पुरुषों के पास गया और उससे मदद माँगी। उन्होंने मदद का वादा किया पर निभाया नहीं। ओशो ने अपने कपड़े और किताबें बेच कर प्राप्त धन को किसानों में बाँट दिया। पर उससे भी कुछ न हुआ। इस पर ओशियो ने लोगों को विद्रोह करने के लिए तैयार किया और बादशाह के महल की ओर कूच किया।

सिपाहियों ने गोली चलानी चाही लेकिन बादशाह ने ऐसा करने से रोक दिया। ओशियो किले में दाखिल हुआ। उसे सरदार पकड़ कर बादशाह के पास ले गया। ओशियो ने बादशाह से कहा कि वह अन्न से भरे राज भण्डार ग़रीबों की मदद के लिए खोल दे। उसकी आवाज़ में दैवी शक्ति थी। बादशाह ने अन्न भण्डार खोलने की आज्ञा दी और सारा अन्न ग़रीबों में बाँटने का आदेश दिया। ओशियो ने जिस काम के लिए कमर बाँधी थी उसे पूरा कर दिया था।

प्रश्न 5.
‘सच्चे वीर पुरुष मुसीबत को मखौल समझते हैं।’ ईसा मसीह, मीराबाई और गुरु नानक देव जी के जीवन से उदाहरण देते हुए प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
संसार जिस बात को मुसीबत समझता है सच्चे वीर उसे मखौल समझते हैं। अमर ईसा को जब सूली पर चढ़ाया गया, उससे भारी सलीब उठवाई गई जिस कारण वह कभी गिरता, ज़ख्मी भी होता और कभी बेहोश हो जाता है। कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता, वह उस मुसीबत को मज़ाक समझता है। इसी प्रकार राणा जी ने मीराबाई को ज़हर के प्याले से डराना चाहा। मीरा उस ज़हर को अमृत समझ कर पी गई। उसे शेर और हाथी के सामने डाला गया, लेकिन वह डरी नहीं।

प्रेम में मस्त हाथी और शेर ने उस देवी के चरणों की धूल को माथे से लगाया और अपनी राह ली। वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं मरते हैं। इसी प्रकार बाबर के सिपाहियों ने जब लोगों के साथ गुरु नानक देव जी को बेगार में पकड़ लिया और उनके सिर पर बोझ रखकर कहा कि चलो। आप चल पड़े। डरे नहीं, घबराए नहीं, बल्कि मर्दाना से कहा कि सारंगी बजाओं हम गाते हैं। उस भीड़ में सारंगी बज रही थी और गुरु जी गा रहे थे। वे उस मुसीबत को मुसीबत न समझ कर मज़ाक समझते हैं।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्व गुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती।
उत्तर:

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताया है।

व्याख्या:
लेखक कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताते हुए कहते हैं कि यह सच है कि वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती क्योंकि वे सात्विक प्रवृत्तियों के दूध के सागर में ऐसे डूबे रहते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर ही नहीं रहती अर्थात् वे अपने में ही सदा मस्त रहते हैं।

प्रश्न 7.
कायर पुरुष कहते हैं-‘आगे बढ़े चलो।’ वीर कहते हैं ‘पीछे हट चलो।’ कायर कहते हैं”उठाओ तलवार।’ वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो।’

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीर और कायर पुरुष की तुलना करता हुआ कहता है कि कायर पुरुष दिखावे के लिए आगे बढ़ने की बात करता है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि कायर पुरुष कहते हैं कि आगे बढ़े चलो। उनका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है जबकि वीर कहते हैं कि पीछे हट चलो। उनका ऐसा कहना जीवन की तुच्छता या नश्वरता की ओर संकेत करता है। कायर कहते हैं कि ‘उठाओ तलवार’ अर्थात् उसका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है। वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो’ उनका ऐसा कहना उनके आत्म त्याग की भावना के कारण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 8.
मगर वाह रे प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया। इसके वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं, मरते हैं।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक श्रीकृष्ण भक्त मीरा बाई की प्रेम भावना का उदाहरण देते हुए सच्चे वीर की विशेषताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक वीर लोगों द्वारा मुसीबत को मखौल समझने की व्याख्या करते हुए कृष्ण भक्त मीराबाई का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मीरा को डराने के लिए राणा जी ने विष का प्याला भेजा, जिसे वह अमृत समझकर पी गई। मीरा शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे उनका सच्चा प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने मीरा के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया अर्थात् वहाँ से चल दिए। यही कारण है कि वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं। अपने हृदय के भीतर ही ध्यान करते हैं। वह किसी को मारते नहीं, स्वयं मरते हैं।

प्रश्न 9.
पेड़ तो ज़मीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझ में कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीरता के कारनामों का वीर लोग अपनी दिनचर्या में शामिल न करने की बात को पेड़ का उदाहरण देकर स्पष्ट कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक वीर लोगों के अन्दर ही अन्दर बढ़ने और सत्य के भाव पर स्थिर रहने की बात को एक पेड़ के उदाहरण से स्पष्ट करते हुए कहता है कि पेड़ तो धरती से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे इस बात की सोच नहीं होती कि उसमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब खिलेंगे। उसका काम तो अपने आपको सत्य में रखना है।

PSEB 12th Class Hindi Guide सच्ची वीरता Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबंध किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
सरदार पूर्ण सिंह।

प्रश्न 2. सरदार पूर्ण सिंह के जन्म और मृत्यु के वर्ष लिखिए।
उत्तर:
जन्म-सन् 1881 ई०, मृत्यु-सन् 1931 ई०।

प्रश्न 3.
सरदार पूर्ण सिंह के द्वारा रचित चार अन्य निबंधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
आचरण की सभ्यता, मज़दूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, नयनों की गंगा।

प्रश्न 4.
सच्चे वीरों की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
धीर, वीर, गंभीर और स्वतंत्र।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 5.
सच्चे वीरों का व्यक्तित्व कैसा होता है?
उत्तर:
दिव्य।

प्रश्न 6.
शासकों/सम्राटों को सच्चा वीर क्यों नहीं मान सकते?
उत्तर:
वे शोषण से महान् बनते हैं और सदा अपने पापों से कांपते रहते हैं।

प्रश्न 7.
सच्चा वीर क्या त्यागने में एक पल भी नहीं व्यतीत करते?
उत्तर:
अपने जीवन का बलिदान।

प्रश्न 8.
सच्चे वीरों का जीवन किस भाव से सदा भरा रहता है?
उत्तर:
परोपकार का भाव।

प्रश्न 9.
महात्मा बुद्ध सच्चे वीर क्यों माने जाते हैं?
उत्तर:
उन्होंने गूढ़ तत्व और सत्य की खोज के लिए ऐश्वर्य त्याग दिया था।

प्रश्न 10.
वीर पुरुष किस का प्रतिनिधि होता है?
उत्तर:
वीर पुरुष समाज का प्रतिनिधि होता है।

प्रश्न 11.
कोई व्यक्ति वास्तव में वीर किस प्रकार बनता है?
उत्तर:
वह अपनी अंतः प्रेरणा से ही अपना निर्माण स्वयं करता है।

प्रश्न 12.
स्वभाव से वीर पुरुष कैसे होते हैं?
उत्तर:
स्वभाव से वीर पुरुष धीर-गंभीर होते हैं वे आडंबर रहित होते हैं।

प्रश्न 13.
सच्चे वीर अपने वीरत्व को कब प्रकट करते हैं?
उत्तर:
सच्चे वीर उचित समय आने पर ही अपने वीरत्व को प्रकट करते हैं।

प्रश्न 14.
सच्चा वीर बनने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चा वीर बनने के लिए हमें अपने भीतर के गुणों का विकास करना चाहिए।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और………..होते हैं।
उत्तर:
आजाद।

प्रश्न 16.
वीरता एक प्रकार का…………….या….. ……..प्रेरणा है।
उत्तर:
इहलाम, दैवी।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 17.
वे………के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखूद पैदा होते हैं।
उत्तर:
देवदार।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
वीरों का स्वभाव सदा छिपे रहने का नहीं होता।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
आकाश उनके ऊपर बादल के छाते नहीं लगाता।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 20.
सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘सच्ची वीरता’ किस विद्या की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) कविता
उत्तर:
(क) निबंध

2. अध्यापक पूर्ण सिंह के निबंधों का आधार क्या है ?
(क) मानवीय दृष्टि
(ख) आध्यात्मिक चेतना
(ग) ये दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) ये दोनों

3. अध्यापक पूर्ण सिंह किसकी पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे ?
(क) मानव के आचरण
(ख) मानवता
(ग) बुद्धि कौशल
(घ) मेहनत।
उत्तर:
(क) मानव के आचरण

4. ‘सच्ची वीरता’ कैसा निबंध है ?
(क) संवेदनशील
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) संवादात्मक।
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

5. लेखक के अनुसार मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है
(क) वीरता
(ख) न्याय
(ग) कर्म
(घ) सत्य।
उत्तर:
(क) वीरता

सच्ची वीरता गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं। उनके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में उन्होंने वीरता के व्यापक क्षेत्र का उल्लेख करते हुए वीरों की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। यहाँ वे सच्चे वीर के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं।

व्याख्या:
सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, गम्भीर एवं स्वतन्त्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता एवं शान्ति की तुलना समुद्र की विशालता एवं गहराई से तथा आकाश की स्थिरता एवं अचलता से की जाती है। सच्चे वीर कभी चंचल नहीं होते। भाव यह है कि वीर पुरुष स्वभाव से दृढ़ होते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीरों के गुणों का उल्लेख है।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।

2. सत्वगुण के समुद्र में जिनका अन्तःकरण निमग्न हो गया, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिए संसार के सब अगम्य मार्ग साफ़ हो जाते

प्रसंग:
प्रस्तुत अवतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक सच्चे वीरों की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि सात्विक गुणों के सागर में जिनका हृदय डूब जाता है, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं अर्थात् सच्चे वीर स्वाभाव से सात्विक होते हैं। सच्चे वीर अपने सांसारिक तुच्छ जीवन का परित्याग कर ऐसा दिव्य अथवा अलौकिक जीवन प्राप्त करते हैं कि उनके लिए संसार के सभी अगम्य मार्ग सुगम बन जाते हैं। भाव यह है कि सच्चा वीर अपने साधनामय जीवन के द्वारा ईश्वरीय रूप प्राप्त कर लेते हैं। उनके लिए संसार के सभी कार्य सरल बन जाते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीर दिव्यगणों से सम्पन्न होते हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली विचार प्रधान है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

3. आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती है। हमारे असली और सच्चे राजा वे ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चांदी के जर्क-बर्क सिंहासन पर बैठने वाले दुनिया के राजाओं की तो, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिंडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये ज़री, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हर दम कांपते रहते हैं। क्यों न हो, उनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। .

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्ची वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि सात्विक जीवन व्यतीत करने वाले पुरुष ही सच्चे वीर होते हैं। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। आकाश उनके सिर पर बादलों के छाते तानता है। प्रकृति उनके सुन्दर मस्तक पर राज तिलक लगाती है। हमारे लिए असली एवं सच्चे राजा ऐसे ही वीर पुरुष हैं जिनका आचरण पवित्र है। जो लोग हीरे और लाल से जड़े हुए तथा सोने एवं चाँदी के निर्मित सिंहासनों पर बैठते हैं जो गरीब किसानों की मेहनत से कमाई दौलत छीनकर अपने शरीर को पुष्ट करते हैं तथा ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते हैं ऐसे शासकों को लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है लेखक ने यहां ऐसे लोगों को वीरों की कोटि में नहीं रखा जो दूसरों के बल पर ऐश कर जीवन जीते हैं।

ये ज़री, मखमल एवं गहनों से लदे हुए मांस के पुतले हैं जो अपने कुकर्मों के कारण हमेशा डर से कांपते रहते हैं। ये लोग जनता के हृदयों पर शासन नहीं करते। संसार के राजाओं के बल की पहुँच लोगों के शरीर तक है। सच्चे वीरों के चरित्र में एक अद्भुत आकर्षण होता है जो दूसरों को अपने सद्गुणों के बल पर मोहित कर लेते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीर अपनी वीरता से सब का सम्मान प्राप्त करते हैं तथा सबके आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं।
  2. भाषा तत्सम, तद्भव शब्दों से युक्त तथा शैली भावपूर्ण है।

4. वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है। कभी तो उसका विकास लड़ने मरने में, खून बहाने में, तलवारतोप के सामने जान गंवाने में होता है, कभी प्रेम के मैदान में उसका झण्डा खड़ा होता है। कभी साहित्य और संगीत में वीरता खिलती है। कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते हैं। कभी किसी आदर्श पर और कभी किसी वीरता पर अपना फरहरा लहराती है। परन्तु वीरता एक प्रकार का इलहाम या दैवी प्रेरणा है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।

व्याख्या:
लेखक वीरता के व्यापक क्षेत्र पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता का विकास अनेक रूपों में होता है। कभी तो इस वीरता का विकास युद्धभूमि में बलिदान के रूप में, खून बहाने में तथा तलवार-तोप के सामने निडरता से जान की बाज़ी लगा देने में होता है। कभी यह वीरता प्रेम के मैदान में अपना कमाल दिखाती है और इसकी विजय का झण्डा लहराती है।

कभी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में इसका चमत्कार देखने को मिलता है। कभी आध्यात्मिक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए बुद्ध जैसे राजा सब कुछ त्यागकर वैरागी बनकर जीवन के गूढ़ रहस्य को सुलझाने तथा सत्य की खोज में अपना जीवन झण्डा लहराती है। आगे लेखक कहता है कि वीरता का गुण सहज नहीं। वास्तव में यह एक दैवी प्रेरणा है।

विशेष:

  1. इन पंक्तियों में लेखक ने वीरता के विविध क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है। वीरता का सम्बन्ध केवल युद्ध से ही नहीं जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।

5. वीरता देशकाल के अनुसार संसार में जब कभी प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते ही सब लोग चकित हो गए-कुछ न बन पड़ा और वीरता के आगे सिर झुका दिया।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।

व्याख्या:
लेखक वीरता के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार जब कभी प्रकट हुई है तभी एक नया रूप लेकर आई है, जिसे देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए। यदि लोगों से उन वीरों की स्तुति में ओर कुछ न बन पड़ा तो श्रद्धा से भरकर उनके आगे सिर झुका दिया।

विशेष:

  1. इस कथन के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीरता का उदय देश की आवश्यकता के अनुसार होता है। सच्चे वीरों के आगे लोग श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।

6. वीरों के बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते। वे देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक आकर खड़े हो जाते हैं। उनका सारा जीवन अन्दर ही अन्दर होता है। बाहर तो जवाहरात की खानों की ऊपरी जमीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता। वीर की ज़िन्दगी मुश्किल से कभी-कभी बाहर नज़र आती है। उसका स्वभाव छिपे रहने का नहीं है।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में अध्यापक पूर्ण सिंह जी ने यह स्पष्ट किया है कि वीरों का उदय बड़े स्वाभाविक रूप से होता है। वीरों के बनाने के कारखाने स्थापित नहीं किए जा सकते। सच्चे वीरों की तुलना देवदार के वृक्षों से की जा सकती है। देवदार के वृक्ष जंगल में स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के हाथ लगाए स्वयं फलते-फूलते हैं। उसी प्रकार वीर पुरुष भी बिना किसी के दूध पिलाए तथा रक्षा किए अपना पथ आप बनाते हैं। वीर का जीवन भीतर ही भीतर पनपता है। वह आडम्बर की भावना से मुक्त होता है।

आवश्यकता पड़ने पर ऐसे वीर अचानक इस दुनिया के मैदान में आकर खड़े हो जाते हैं और अपना चमत्कार दिखाने लगते हैं। उनका सारा जीवन भीतरी गुणों के विकास में तल्लीन रहता है। जैसे खानों की ऊपर की सतह पर कुछ नहीं होता। उनके भीतर ही बहुमूल्य हीरे-जवाहरात छिपे रहते हैं। इसी प्रकार वीर का जीवन भी बाहर कठिनाई से ही दिखाई देता है। उसका स्वभाव तो छिपकर अपने गुणों का विकास करता है।

विशेष:

  1. सच्चे वीर आत्म-निर्भर होते हैं। वे आडम्बर से दूर रहते हैं। वे आन्तरिक गुणों के विकास पर बल देते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।

7. इस वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। अन्दर ध्यान करते हैं। मारते नहीं मरते हैं। वीर क्या टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठण्डा हो जाता है ? सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हज़ारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठण्डी हो। उसे खुद गरम और सर्द होने से क्या मतलब ?

प्रसंग:
यह गद्यावतरण द्विवेदीयुगीन प्रसिद्ध लेखक श्री पूर्ण सिंह द्वारा रचित ‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित हैं। इसमें लेखक ने सच्चे वीर के स्वभाव पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
धीरे, गम्भीर और स्वतन्त्र प्रकृति के वीरों का स्वभाव संसार के सामान्य पुरुषों से भिन्न होता है। ईश्वरीय प्रेम में निमग्न सच्चे वीर पुरुष बढ़ने की अपेक्षा पीछे हटते हैं अर्थात् वे त्याग और बलिदान के पथ पर बढ़ते हैं। वे अपनी आत्मा को विशाल बनाते हैं। वे योगी की भान्ति आत्मलीन रहते हैं। त्याग की भावना को अपना आदर्श मानने वाले वीर पुरुष किसी को मारते नहीं, बल्कि स्वयं मरते हैं। वीर का स्वभाव टीन के बर्तन की भान्ति नहीं होता, जो शीघ्र ही गर्म अथवा ठण्डा हो जाता है। वह सदा अडिग और गम्भीर रहता है।

उसके नीचे सदियों तक आग जलती रहे तो भी गरम नहीं होता तथा सदियों उसके ऊपर जमा देने वाली बर्फ पड़ती रहे तो भी वह ठण्डा नहीं होता। उसकी वाणी सदियों तक संसार के कानों में गूंजती रहती है अर्थात् उनकी वाणी का प्रभाव सरलता से समाप्त नहीं होता।

विशेष:

  1. यहां वीर पुरुष के आन्तरिक गुणों का उल्लेख है।
  2. भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।

8. प्यारे, अन्दर के केन्द्र की ओर अपनी चाल उल्टो और इस दिखावटी और बनावटी जीवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हो और वीरता के काम नहीं तो धीरे-धीरे अपने अन्दर वीरता के परमाणुओं को जमा करो।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्चे वीरों का गुणगान किया है। यहां स्पष्ट किया गया है कि सच्चे वीर वही हैं जो आडम्बरपूर्ण जीवन को छोड़ कर मानसिक तथा आत्मिक विकास की ओर ध्यान देते हैं।

व्याख्या:
लेखक वीरता के पथ पर बढ़ने वालों को लक्ष्य कर कहता है कि यदि तुम वीर बनना चाहते हो तो भीतरी गुणों के विकास पर बल दो अर्थात् वीरता का सम्बन्ध मन की दृढ़ता तथा इच्छा शक्ति की प्रबलता से है। आडम्बर पूर्ण एवं बनावटी जीवन की चंचलता में अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट न करो। यदि तुम वीर नहीं बन सकते तो वीरों के अनुयायी बन जाओ।

अगर वीरस को प्रकट करने वाले असाधारण काम नहीं कर सकते तो धीरे-धीरे अपने भीतर वीरता के परमाणु इकट्ठे करो। अभिप्राय यह है कि अगर हम वीरता जैसे देवी गुण से वंचित हैं तो दूसरे वीरों के अनुगामी बनकर अपने भीतर वीरता के .गुण जमा कर सकते हैं और इस प्रकार हम भी असाधारण काम करने में असमर्थ हो सकते हैं।

विशेष:

  1. मन की दृढ़ता से वीरता के गुणों का विकास होता है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

9. टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो और सच्चाई की चट्टानों पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। अपनी ज़िन्दगी किसी और के हवाले करो ताकि ज़िन्दगी को बचाने की कोशिशों में कुछ भी समय व्यर्थ न करो। इसलिए बाहर की सत्ता को छोड़कर जीवन के अन्दर की तहों में घुस जाओ, तब नए रंग खुलेंगे।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने वीरता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
लेखक पाठकों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो अर्थात् टीन के बर्तन के खोखले एवं आडम्बरपूर्ण स्वभाव को छोड़कर सच्चाई की ठोस चट्टानों पर दृढ़ता के साथ खड़े हो जाओ। अपने जीवन को किसी दूसरे के हित के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि हम इसे बचाने की कोशिश में अपना थोड़ा-सा समय भी नष्ट न करें।

अत: आवश्यकता इस बात की है कि तुम लोग जीवन के बाहरी अस्तित्व को त्याग कर अन्दर की तहों में वास करो तभी नए रंग खुलेंगे। भाव यह है कि जीवन विकास के लिए मनुष्य को चरित्र बल की आवश्यकता है। चरित्र बल को अर्जित करने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने भीतर के गुणों का विकास करे।

विशेष:

  1. यहां वीरों के स्वभावानुसार धीरता, गम्भीरता और दृढ़ता को अपनाने की प्रेरणा दी गई है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

10. पेड़ तो ज़मीन से इसे ग्रहण करने में लगा रहता है, उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे ?

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबंध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं जिसमें सच्ची वीरता की विशेषताएं बताई गई हैं।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि किस प्रकार वीर अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं। लेखक पेड़ का उदाहरण देकर समझाता है कि पेड़ सदा धरती से जल रूपी रस ग्रहण कर हरा-भरा बना रहता है। उसे यह कभी विचार नहीं आता कि उस पर कितने फल या फूल लगेंगे तथा कब लगेंगे। उसी प्रकार से वीर भी अपने वीरतापूर्ण कार्य करता रहता है परन्तु उनके विषय में सोचता नहीं है।

विशेष:
सच्चे वीर प्रचार-प्रसार से दूर रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से अपना कार्य करते रहते हैं।

11. सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर नहीं रहती।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने सच्चे वीरों के गुणों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि सच्चे वीर निश्चित भाव से सोते हैं। यह सत्य है कि सच्चे वीरों की नींद भी आसानी से नहीं खुलती क्योंकि उनका अंत: करण सदा निर्मल होता है। वे सोते समय अपने सत्वगुण रूपी क्षीर-सागर में ऐसे डूब जाते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। उनकी नींद भी उन्हीं की तरह मस्ती से भरी होती है, जो आसानी से नहीं टूटती है।

विशेष:
सच्चे वीर गहरी नींद में चिंतामुक्त होकर सोते हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

कठिन शब्दों के अर्थ

स्थिर = एक जगह ठहरा हुआ। अचल = न हिलने वाला। अन्तः करण = हृदय। निमग्न = लीन। अगम्य = जहाँ न पहुँचा जा सके, कठिन। हुकूमत = शासन। तिरस्कार = अपमान। सत्कार = आवभगत, आदर। विरक्त = उदास। फरहरा = झण्डा। दैवी = ईश्वरीय। संकल्प = दृढ़ निश्चय। अरण्य = जंगल, वन। कंदरा = गुफ़ा, गार। स्तुति = प्रशंसा। बुज़दिली = कायरता। फिजूल = व्यर्थ । मरकज = केन्द्र। शांहशाह-ए-हकीकी = वास्तविक राजा, ईश्वर । सल्तनत = राज्य। मिज़ाज = स्वभाव। खयालात = विचार। निखट्ट = जो कोई काम न करे। दुर्भिक्ष = अकाल। एक दफा = एक बार। इत्तिफाक = संयोग। धनाढ्य = अमीर। बग़ावत = विद्रोह। सब्ज = हरे। वर्कों = पृष्ठों। दरिद्र = गरीब। अनुगामी = पीछे चलने वाला। चिरस्थायी = देर तक रहने वाला। जाया = नष्ट।

सच्ची वीरता Summary

सच्ची वीरता जीवन परिचय

अध्यापक पूर्ण सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखें।

अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म सन् 1881 ई० में तथा मृत्यु सन् 1931 में हुई। अध्यापक होने के नाते इनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया है। ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मज़दूरी और प्रेम’, ‘सच्ची वीरता’ और ‘नयनों की गंगा’ इनके प्रसिद्ध निबन्ध हैं। इनके निबन्धों का आधार मानवीय दृष्टि एवं आध्यात्मिक चेतना है। पूर्ण सिंह ऐसे संवेदनशील व्यक्ति थे जो औद्योगिक क्रान्ति की अपेक्षा मानव के आचरण की पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे। इन्होंने अपने निबन्धों को दृष्टान्तों के माध्यम से सरल और रोचक बनाने का प्रयास किया। इनकी भाषा प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक शब्दावली से युक्त है।

सच्ची वीरता निबन्ध का सार

‘सच्ची वीरता’ निबन्ध के रचयिता अध्यापक पूर्ण सिंह जी हैं। यह उनका एक विचारात्मक निबन्ध है जिसमें लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वीरता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। रणक्षेत्र में अपना बलिदान देने वाले योद्धा ही वीरों की कोटि में नहीं आते वरन् किसी पवित्र ध्येय, आदर्श और कार्य के लिए अपना जीवन होम कर देने वाले व्यक्ति भी सच्चे वीर हैं, वीरों के कार्यों की गूंज शताब्दियों तक गूंजती रहती है। वीरों का निर्माण किसी बाहरी प्रेरणा से नहीं होता, वे तो अपनी आन्तरिक प्रेरणा से ही सत्कार्यों में लीन होते हैं। मानवता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देने वाले सब से बड़े वीर हैं।।

सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, वीर, गंभीर एवं स्वतंत्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता सागर के समान विशाल एवं गहरी अथवा आकाश के सामान स्थिर होती है। उनके कार्य दूसरों को प्रेरणा देते हैं। जिनका मन सात्विक वृत्तियों के सागर में डूब जाता है वे ही सच्चे वीर, महात्मा एवं साधु कहलाते हैं। उनका व्यक्तित्व दिव्य होता है। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। सच्चे वीर ही असली राजा हैं, सोने के सिंहासनों पर बैठने वाले लोग असली शासक नहीं क्योंकि वे तो निर्धनों का शोषण कर महान् बने हैं। वे अपने पापों के कारण हमेशा कांपते रहते हैं। लेखक के कहने का भाव यह है कि सरलता तथा साधुता के पथ पर चलने वाले लोग ही सच्चे वीर कहलाने के अधिकारी हैं।

सच्चे वीरों को कोई पराजित नहीं कर सकता। वे बड़े-बड़े बादशाहों को भी ताकत की हद दिखला देते हैं। बादशाह शरीर पर शासन करता है जबकि वीर व्यक्ति अपने कारनामों से लोगों के दिलों पर शासन करते हैं। सच्चा वीर अपने जीवन का उत्सर्ग करने में विलम्ब नहीं करता।

वीर पुरुष हर समय अपने आपको महान् बनाने में लीन रहता है। वह न तो अपने कारनामों का गुणगान करता है और न ही उन्हें याद रखता है। वह तो उस वृक्ष के समान होता है.जो पृथ्वी से रस लेकर अपने आपको पुष्ट करता है। वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि उस पर फल कब लगेंगे और कौन उनको खाएगा। उसका लक्ष्य तो अपने अन्दर सत्य को कूट-कूट-कूट कर भरना है। सच्चे वीरों का जीवन परोपकार के लिए होता है। वीरता का विकास विभिन्न क्षेत्रों में होता है। कभी युद्ध के मैदान में, कभी प्रेम के क्षेत्र में वीरता अपना कमाल दिखाती है और कभी जीवन के किसी गूढ़ तत्व एवं सत्य की खोज में बुद्ध जैसे राजा ऐश्वर्य का परित्याग कर आगे बढ़ते हैं।

वीरता एक प्रकार का दैवी गुण है, वीरता की नकल सम्भव नहीं। जापानी वीरता की मूर्ति की पूजा करते हैं। वीर पुरुष अपने समाज का प्रतिनिधि होता है। उसका मन सब का मम तथा उसके विचार सबके विचार बन जाते हैं। लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीर बनाने से नहीं बनते। ये तो अपनी अन्तः प्रेरणा से अपना निर्माण आप करते हैं। “वे तो देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में अपने-आप पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं।”

सच्चे वीर आत्मोत्सर्ग में विश्वास करते हैं। वे अपने अन्दर की शक्ति के विकास में लीन रहते हैं। वीर पुरुष स्वभाव से धीरे एवं गम्भीर होते हैं। वे न तो जल्दी चंचल बनते हैं और न ही उनके साहस एवं ओज को शीघ्र दबाया जा सकता है। आगे लेखक कहता है कि वीरों को आडम्बर अथवा दिखावे का आश्रय नहीं लेना चाहिए। अपने भीतर ही भीतर वीरत्व को संजोना चाहिए और समय आने पर उसे प्रकट करना चाहिए।

अन्त में लेखक कहता है कि जब कभी हम वीरों की कहानियां सुनते हैं तो हमारे अन्दर भी वीरता की लहरें उठती हैं लेकिन वे चिरस्थायी नहीं होतीं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस धैर्य एवं साहस की आवश्यकता होती है उसका प्रायः हमारे हृदय में अभाव होता है। इसलिए हम वीरता की कल्पना करके रह जाते हैं। टीन जैसे बर्तन का स्वभाव छोड़कर हमें अपने भीतर निवास करना चाहिए। अपने जीवन को दूसरे के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि इसकी रक्षा की चिन्ता से मुक्त हो जाए। सच्चा वीर बनने के लिए यह आवश्यक है कि अपने भीतर के गुणों का विकास किया जाए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 गीता डोगरा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 14 गीता डोगरा

Hindi Guide for Class 12 PSEB गीता डोगरा Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘कच्चे रंग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवयित्री के अपने अतीत अर्थात् गाँव, पगडंडी, देवदार के वृक्ष, जंगल के गुम हो जाने का दुःख है। शहर में तो उसे संवेदनाशून्य व्यक्ति ही मिलते हैं। अब वह प्रकृति की गोद में निशंक नहीं जा सकती। गाँव में प्यार था, अपनापन था, जो शहर में नहीं है। इसलिए, वह फिर से उन कच्चे रंगों को पाना चाहती है जिसमें अपनापन हो, प्यार हो। वह अपने भविष्य के टूटने से भी चिन्तित है।

प्रश्न 2.
‘कच्चे रंग’ कविता का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ?
उत्तर:
‘कच्चे रंग’ शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है क्योंकि यह अपनेपन और प्यार मुहब्बत को दर्शाता है। नगरीय सभ्यता में इसका लोप हो गया है। शहरी लोग तो संवेदन-शून्य हैं, मुर्दादिल हैं। भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की इसी स्थिति को प्रस्तुत कविता में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 3.
‘कच्चे रंग’ कविता का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कवयित्री को अफ़सोस है कि अतीत से तो वह पूरी तरह कट चुकी है और फिक्र है कि कहीं उसका भविष्य भी वर्तमान से कट न जाए। कहीं उसकी अपनी बेटी भी इस संवेदनाशून्य वातावरण से हताश होकर लौट न जाए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

प्रश्न 4.
‘कच्चे रंग’ कविता में कौन-कौन से मानवीय रिश्तों का विवरण है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में दादी और बेटी के मानवीय रिश्तों का विवरण है। दादी गाँव में नानकशाही ईंटों से बने मकान की दीवारों पर हर वर्ष कच्चे रंगों से उन सबके नाम लिखती है जिनसे उसे प्रेम था। वह कवयित्री का प्यार से माथा भी चूमती थी और हाथ भी। इसी तरह वह अपनी बेटी के बारे में भी चिन्ता व्यक्त करती है कि वह कहीं उसकी तरह टूट कर निराश होकर उसके द्वार से न लौट जाए।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
अब शहर ………. सिमट जाती थी।
उत्तर:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

प्रश्न 6.
सब कुछ बदल गया ……. कितना डरती हूँ मैं।
उत्तर:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

PSEB 12th Class Hindi Guide गीता डोगरा Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गीता डोगरा का जन्म किस वर्ष व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
सन् 1955 में; पंजाब के फिरोज़पुर में।

प्रश्न 2.
गीता डोगरा के द्वारा रचित काव्य संबंधी दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
धूप उदास, दहलीज, अगले पड़ाव तक।

प्रश्न 3.
गीता डोगरा के द्वारा रचित उपन्यास कौन-सा है ?
उत्तर:
बंद दरवाज़े।

प्रश्न 4.
लेखिका वर्तमान में कहां कार्यरत है?
उत्तर:
समाचार दैनिक जागरण-जालंधर।

प्रश्न 5.
कवयित्री के परिवेश में क्या-क्या खो गया है?
उत्तर:
गाँव, पगडंडी, देवदारु के वृक्ष पर्वत और जंगल।

प्रश्न 6.
कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था?
उत्तर:
पर्वत।

प्रश्न 7.
कवयित्री का पुराना घर किन ईंटों से बना हुआ था?
उत्तर:
नानकशाही ईंटों से।

प्रश्न 8.
कवयित्री की बड़ी माँ किन रंगों से दीवारों पर लिखा करती थी?
उत्तर:
कच्चे रंगों से।

प्रश्न 9.
कवयित्री को अपने अतीत के प्रति कैसा विश्वास है?
उत्तर:
कवयित्री अपने अतीत के प्रति शंका ग्रस्त है।

प्रश्न 10.
कवयित्री किस से डरती है?
उत्तर:
कवयित्री अपने भविष्य में होने वाले परिवर्तनों से डरती है।

प्रश्न 11.
कवयित्री की भाषा कैसी है?
उत्तर:
सीधी-सरल, भावपूर्ण और प्रतीकात्मकता के गुण से संपन्न।

प्रश्न 12.
‘कच्चे रंग’ कविता किस कवि की रचना है ?
उत्तर:
गीता डोगरा।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
जहाँ से गुजरते-गुजरते….
उत्तर:
कविता मुझसे मिली थी।

प्रश्न 14.
खो गए हैं पर्वत भी..
उत्तर:
जो गुप-चुप आवाज़ देते थे मुझे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

प्रश्न 15.
मेरा वह पुराना घर…….
उत्तर:
नानकशाही ईंट वाला।

प्रश्न 16.
……………..मैं वहाँ से भी लौट आई।
उत्तर:
छितरे-छितरे हो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवयित्री को कहीं भी अपनत्व का भाव दिखाई नहीं देता।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
कवयित्री की बड़ी माँ पक्के-गहरे रंगों से लिखा करती थी।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बन्द दरवाजे’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) रेखाचित्र
उत्तर:
(क) उपन्यास

2. ‘धूप उदास है’ की विधा क्या है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) काव्य
(घ) गद्य।
उत्तर:
(ग) काव्य

3. ‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने किसके अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है ?
(क) मानवीय संबंधों के
(ख) प्रेम के
(ग) घृणा के
(घ) विश्वास के।
उत्तर:
(क) मानवीय संबंधों के

4. कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था ?
(क) पर्वत
(ख) नदी
(ग) नाले
(घ) वन।
उत्तर:
(क) पर्वत

गीता डोगरा सप्रसंग व्याख्या

कच्चे रंग

1. खो गया है मेरा गाँव
वह पगडंडी
देवदार के पेड़
वह जंगल भी
जहाँ से गुजरते गुजरते
कविता मुझ से मिली थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
पगडंडी = छोटा रास्ता।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती गीता डोगरा द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘सप्तसिन्धु’ में संकलित कविता ‘कच्चे रंग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि इस बदलते परिवेश में मेरा वह गाँव कहीं खो गया है। उस गाँव की वह पगडंडी देवदार के वृक्ष तथा वह जंगल भी आज खो गया है। जहाँ से गुजरते हुए मेरी कविता से भेंट हुई थी अर्थात् कविता लिखनी शुरू की थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अतीत खो गया प्रतीत होता है क्योंकि अब वहाँ वैसा कुछ नहीं है जैसा पहले होता था।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. अब शहर ………….
सड़कें …… गलियाँ हैं
खो गए हैं पर्वत भी
जो गुपचुप आवाज़ देते थे मुझे
तो मैं थकी हारी
धूल सने पाँव सहित……..
उसकी आगोश में सिमट जाती थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
गुपचुप = खामोशी से। धूल सने = धूल में लिपटे, धूल भरे। आगोश = गोद।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं, जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

विशेष:

  1. वर्तमान परिवेश में संबंधों की गरिमा के नष्ट होने पर कवयित्री चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा लाक्षणिक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

3. मेरा वह पुराना घर
नानकशाही ईंट वाला
जहाँ हर वर्ष बड़ी माँ
कच्चे रंगों से लिखती थी
सबका नाम ………
प्यार से चूमती थी मेरा माथा
मेरे हाथ ………

कठिन शब्दों के अर्थ:
नानकशाही ईंट = पुराने जमाने की छोटी ईंट। बड़ी माँ = दादी या नानी।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अपने खो गए गाँव को याद करती हुई कहती है कि गाँव में मेरा पुराने जमाने की छोटी ईंटों से बना घर था। जहाँ हर वर्ष मेरी दादी कच्चे रंगों से दीवारों पर सबके नाम लिखती थी और प्यार से कभी मेरा माथा और कभी मेरा हाथ चूमती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अत्यंत मोहक लगता है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा सहज है।

4. वे रिश्ते भी खो गए
अब रहता है वहाँ भी
सीमेंट पत्थर का आदमी
जो रिश्तों को तराजू पर
तोलता है
और पटक देता है………
छितरे-छितरे हो
मैं वहाँ से भी लौट आई।

कठिन शब्दों के अर्थ:
सीमेंट पत्थर का आदमी = मुर्दादिल, संवेदनाशून्य आदमी। छितरे-छितरे हो = टुकड़ेटुकड़े होकर, बिखर कर।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री नगरीय सभ्यता की चर्चा करती हुई कहती हैं कि शहर में आने पर गाँवों के से वे रिश्ते भी टूट गए हैं क्योंकि शहरों में तो सीमेंट पत्थर का अर्थात् संवेदनाशून्य आदमी रहता है जो रिश्तों को स्वार्थ के तराजू पर तौलता है और उस पर पूरा न उतरने पर वह रिश्तों को पटक देता है, उन्हें धरती पर फेंक देता है। इसलिए वह वहाँ से टूटकर तथा निराश होकर लौट आई है।

विशेष:

  1. नगरीय सभ्यता की संवेदनशन्यता पर व्यंग्य है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

5. सब कुछ बदल गया
जंगल, पर्वत, पगडंडी
घर भी
शेष बची मैं।
आज भी खोजती हूँ, कच्चे रंग
जिससे लिख पाऊँ
मैं उन सबके नाम
जो मेरे अपने हो सके

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री वर्तमान में भी अतीत को चाहती है, जो संबंधों की गरिमा से युक्त था।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

6. और सोचती हूँ
गलती से जन न बैठूँ
कोई सीमेंट पत्थर का आदमी
कि कहीं
मेरी बेटी भी छितरे-छितरे हो
लौट जाए
मेरी दहलीज से ……..
सच कितना डरती हूँ मैं।

कठिन शब्दों के अर्थ:
जन न बैठूँ = जन्म न दे दूँ। दहलीज = द्वार। .

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां गीता डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अतीत के टूट जाने पर भविष्य के प्रति अपनी शंका व्यक्त करती हुई कहती हैं कि मैं यह सोचती हूँ कि कहीं भूल से ऐसे व्यक्ति को जन्म न दे दूँ जो सीमेंट पत्थर का बना हो अर्थात् संवेदनाशून्य और मुर्दादिल हो। मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं मेरी बेटी भी, मेरी तरह टुकड़े-टुकड़े होकर मेरे द्वार से लौट न जाए। कवयित्री कहती हैं कि सच ही मैं भविष्य में टूटने से बड़ा डरती हूँ।

विशेष:

  1. कवयित्री इस भौतिकतावादी युग में भविष्य कहे और भी अधिक संवेदन शून्य होने की संभावना से चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

गीता डोगरा Summary

गीता डोगरा जीवन परिचय

गीता डोगरा जी का जीवन परिचय लिखिए।

गीता डोगरा का जन्म सन् 1955 में फिरोज़पुर (पंजाब) में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य की कविता, उपन्यास एवं आलोचना विधा में अपना योगदान दिया। अगले पड़ाव तक, धूप उदास है तथा दहलीज आपके काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। बन्द दरवाजे’ शीर्षक एक उपन्यास भी प्रकाशित हो चुका है। आपको अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। आपकी कुछ रचनाएँ, बांग्ला, गुजराती और तमिल भाषा में अनुदित हुई हैं। आजकल आप जालन्धर से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र दैनिक जागरण में काम कर रही हैं।

गीता डोगरा कविता का सार

‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने मानवीय संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है। उसे लगता है कि इस भौतिकतावादी परिवेश में वह अपने अतीत को खो बैठी है तथा भविष्य भी उसे उसके वर्तमान से टूटता लगता है। सर्वत्र संवेदनहीनता के दर्शन हो रहे हैं। कहीं भी अपनत्व नहीं दिखाई देता।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

Hindi Guide for Class 12 PSEB 12 डॉ० चन्द्र त्रिखा Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘जुगनू की दस्तक’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि घृणा के वातावरण में जुगनू की रोशनी भी पर्याप्त होती है। नदी कितनी ही काली हो किनारे कभी नज़रों से ओझल नहीं हो सकते। क्योंकि काली नदी की सीमाओं के आस-पास ही हरे-भरे, प्रदूषणरहित जंगल मौजूद हैं। अतः हमें यह कामना करनी चाहिए कि साहित्य की गर्मी से एक नई पौध अंकुरित होगी।

प्रश्न 2.
‘जुगनू की दस्तक’ एक आशावादी प्रतीकात्मक कविता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में घृणा और निराशा को अँधी गुफाओं एवं जुगनू को आशावाद का प्रतीक माना गया है। इसी तरह काली नदी आतंकवाद का प्रतीक है और सुख-समृद्धि हरे भरे जंगल और प्रदूषण को घुटन और संत्रास का प्रतीक माना गया है। कवि ने सम्भावना की पतवारें चलाते रहने से, जुगनू की रोशनी से, किनारा मिलने की अर्थात् घृणा, निराशा एवं आतंकवाद के समाप्त होने की आशा व्यक्त की है अतः कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता एक आशावादी प्रतीकात्मक कविता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

प्रश्न 3.
‘जीने को कुछ मानी दे’ कविता में कवि क्या माँग रहा है ? अपने शब्दों में लिखो।
अथवा
जीने को कुछ मानी दे’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
कवि जीने को नया अर्थ प्रदान करने के लिए एक नई कहानी माँग रहा है। कुछ ऐसे तूफानी क्षण माँग रहा है जिससे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके। कवि संसार के दुःखों को समाप्त करने के लिए सातों समुद्रों का पानी माँग रहा है तथा अपने मन की व्यथा को मिटाने के लिए कोई पुरानी गज़ल माँग रहा है ताकि उसे गाकर वह अपने मन की व्यथा को अभिव्यक्त कर सके।

प्रश्न 4.
‘जीने को कुछ मानी दे’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में जीवन को नया अर्थ देने की कामना की गई है। कवि ने अपने साथी, अपने गुरु से जीवन को नए अर्थ देने की माँग की है। कवि उससे सारी धरती की प्यास बुझाने के लिए पानी की माँग कर रहा है ताकि धरती पर समृद्धि छा सके। शीर्षक भले ही प्रतीकात्मक है किन्तु सार्थक बन पड़ा है। .

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
यह काली नदी …….. नयी पौध।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि आतंकवाद की काली नदी कितनी ही बड़ी अर्थात् सीमा रहित हो किन्तु इसकी सीमा का कोई न कोई छोर तो होगा ही अर्थात् आतंकवाद को एक न एक दिन तो समाप्त होना ही है। कवि कामना करता है कि इस आतंकवाद के समाप्त होने के बाद निश्चय ही आपसी सौहार्द्र और भ्रातृभाव का हरा-भरा जंगल आएगा। जिसमें घुटन और संत्रास के प्रदूषण का नाम तक न होगा। कवि कहता है कि आओ मिलकर यह कामना करें कि अच्छे साहित्य रूपी अलाव की गर्मी से आपसी भाईचारे की पौध अंकुरित होगी और मानवता की भावना सब के दिलों में फिर से भर जाएगी। अतः हमें छोटी-से-छोटी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

प्रश्न 6.
जीने को कुछ ……. तूफानी दे।
उत्तर:
कवि कामना करता है कि उसे जीने के लिए एक नई कहानी मिल जाए। वह इतना प्यासा अर्थात् दुःखी है कि उस प्यास को बुझाने के लिए एक नहीं सात समुद्रों के पानी की ज़रूरत है। धूप अभी तक नंगी है. अतः इसे ढकने के लिए कोई धान के रंग की (हरी) चुनरी दो अर्थात् संघर्ष के साथ-साथ समृद्धि में भी बढ़ोत्तरी हो सके। कवि कहता है कि मेरा मन बहुत दुःखी है यह अपने दुःख को भुलाने को कोई गीत गाना चाहता है। इसलिए इसे कोई पुरानी गज़ल दो। हे ईश्वर ! तू मुझे कुछ ऐसा दे जैसा तू है मुझे जीने के लिए कुछ तूफानी क्षण प्रदान करो जिससे मेरे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके।

PSEB 12th Class Hindi Guide डॉ० चन्द्र त्रिखा Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० चन्द्र त्रिखा का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
7 जुलाई, सन् 1945 में।

प्रश्न 2.
डॉ० त्रिखा की विशेष रुचि किसमें है?
उत्तर:
पत्रकारिता के क्षेत्र में।

प्रश्न 3.
डॉ० त्रिखा के द्वारा प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पाषाण युग, शब्दों का जंगल, दोस्त ! अब पर्दा गिराओ।

प्रश्न 4.
कवि ने किस के लिए प्रयत्नशील बने रहने की प्रेरणा दी है?
उत्तर:
समाज से घृणा दूर करने की।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘काली नदी’ किसे कहा है?
उत्तर:
आतंकवाद को।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

प्रश्न 6.
कवि ने समाज में जागरण को किसके माध्यम से लाना चाहता है?
उत्तर:
साहित्यकारों के माध्यम से।

प्रश्न 7.
कवि ने किसे नंगी कहकर चूनरधानी देने की बात कही है?
उत्तर:
धूप को नंगी कहकर।

प्रश्न 8.
कवि ने अलाव किसे कहा है?
उत्तर:
साहित्य को-जो समाज में भाईचारा और सौहार्द को बढ़ा दे।

प्रश्न 9.
‘जीने को कुछ मानी दे’-इसमें ‘मानी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
मानी = अर्थ।

प्रश्न 10.
कवि का भीगा मन क्या करना चाहता है?
उत्तर:
गाना चाहता है।

प्रश्न 11.
कवि कैसी गज़ल को पाने की कामना करता है?
उत्तर:
पुरानी गजल की।

प्रश्न 12.
कैसे क्षणों की प्राप्ति कवि चाहता है?
उत्तर:
तूफ़ानी। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
किनारे आखिर नज़रों से…….
उत्तर:
बच नहीं पाएंगे।

प्रश्न 14.
साहित्य के अलाव की गर्मी से………………
उत्तर:
अंकुरित हो गई नयी पौध।

प्रश्न 15.
सात समन्दर लेकर आ………………………..।
उत्तर:
प्यासा हूँ कुछ पानी दे।

प्रश्न 16. …………………कोई गज़ल पुरानी दे।
उत्तर:
भीगा है मन गाएगा।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवि के अनुसार आतंकवाद को प्रेम से दूर किया जा सकता है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
हमें उम्मीद का आंचल छोड़ देना चाहिए।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 19.
कवि किसी पुरानी गज़ल को मांगता है।
उत्तर:
हाँ।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

प्रश्न 20.
कवि अपने जीवन में परिवर्तन चाहता है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘पाषाण युग’ रचना के रचनाकार कौन हैं ?
(क) डॉ० चन्द्र त्रिखा
(ख) डॉ० धर्मवीर भारती
(ग) निराला
(घ) पंत
उत्तर:
(क) डॉ० चन्द्र त्रिखा

2. ‘जुगनू की दस्तक’ किस विद्या की रचना है ?
(क) कविता
(ख) गद्य
(ग) खंड काव्य
(घ) महाकाव्य।
उत्तर:
(क) कविता

3. ‘जुगनू की दस्तक’ में कवि ने कैसे भविष्य की कल्पना की है ?
(क) सुंदर
(ख) धनी
(ग) सुनहले
(घ) शक्तिशाली।
उत्तर:
(ग) सुनहले

4. कवि ने आतंकवाद को किसकी संज्ञा दी है ?
(क) काली नदी
(ख) सामेर नदी
(ग) बड़ी नदी
(घ) छोटी नदी
उत्तर:
(क) काली नदी

डॉ० चन्द्र त्रिखा सप्रसंग व्याख्या

जुगनू की दस्तक

1. नफरत की अन्धी गुफाओं में
कई बार काफ़ी होती है
एक जुगनू की भी दस्तक
सम्भावनाओं की पतवारें
चलाते रहो साथियो!
किनारे आखिर नज़रों से
बच नहीं पाएंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ:
नफरत = घृणा। अन्धी गुफ़ाओं = अँधेरी गुफ़ाओं। दस्तक = दरवाजा खटखटाने की क्रिया। पतवारें = चप्पू।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध पत्रकार डॉ० चन्द्र त्रिखा द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ’ में संकलित कविता ‘जुगनू की दस्तक’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने घृणा, आतंक को समाप्त कर देश के सुनहले भविष्य की कल्पना की है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि घृणा की अँधेरी गुफ़ाओं में कई बार एक जुगनू का द्वार खटखटाना अर्थात् आना काफ़ी होता है। अतः हे साथियो ! तुम सम्भावनाओं के चप्पू चलाते रहो। क्योंकि किनारे कभी भी नज़रों से बच न पाएँगे। कवि का कहना है कि घृणा की अंधेरी रात में आशा और प्रकाश का प्रतीक छोटे से जुगनू का टिमटिमाना भी काफ़ी होता है। अत: तुम उम्मीद का दामन मत छोड़ो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समाज से घृणा दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहो। लक्ष्य तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा।

विशेष:

  1. कवि ने सदा आशावादी बने रहने की प्रेरणा दी है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है। प्रतीकात्मकता विद्यमान है।

2. कितनी ही असीम हो
यह काली नदी
पर सीमाओं की मौजूदगी को
नकार तो नहीं पाएगी।
बस इन्हीं सीमाओं के आस पास
मौजूद है हरे भरे जंगल
जहाँ प्रदूषण का, कहीं दूर तक नाम नहीं है।
आइए करें कामना
साहित्य के अलाव की गर्मी से
अंकुरित हो नयी पौध।

कठिन शब्दों के अर्थअसीम = सीमा रहित । काली नदी = आतंक की प्रतीक। नकारना = इन्कार करना। अंकुरित होना = फूटना, उगना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० चन्द्र त्रिखा द्वारा रचित कविता ‘जुगनू की दस्तक’ में से ली गई, जिसमें कवि ने घृणा को प्रेम में बदलने के लिए प्रयत्नशील रहने के लिए कहा है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि आतंकवाद की काली नदी कितनी ही बड़ी अर्थात् सीमा रहित हो किन्तु इसकी सीमा का कोई न कोई छोर तो होगा ही अर्थात् आतंकवाद को एक न एक दिन तो समाप्त होना ही है। कवि कामना करता है कि इस आतंकवाद के समाप्त होने के बाद निश्चय ही आपसी सौहार्द्र और भ्रातृभाव का हरा-भरा जंगल आएगा। जिसमें घुटन और संत्रास के प्रदूषण का नाम तक न होगा। कवि कहता है कि आओ मिलकर यह कामना करें कि अच्छे साहित्य रूपी अलाव की गर्मी से आपसी भाईचारे की पौध अंकुरित होगी और मानवता की भावना सब के दिलों में फिर से भर जाएगी। अतः हमें छोटी-से-छोटी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

विशेष:

  1. कवि सदा आशावादी बनने का संदेश देता है क्योंकि आशा के माध्यम से ही हमें अपना लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

जीने को कुछ मानी दे…….

जीने को कुछ मानी दे
ऐसी एक कहानी दे।
सात समन्दर लेकर आ
प्यासा हूँ कुछ पानी दे।
धूप अभी तक नंगी है
इसको चूनर धानी दे।
भीगा है मन गाएगा
कोई गज़ल पुरानी दे।
दे कुछ तू रब्ब जैसा है
लम्हें कुछ तूफानी दे।

कठिन शब्दों के अर्थ:
मानी = अर्थ। चूनर = चूनरी, दुपट्टा । धानी = धान के रंग का अर्थात् हरा। भीगा = दुःखी। लम्हें = क्षण।

प्रसंग:
प्रस्तुत कविता ‘जीने को कुछ मानी दे’ कवि डॉ० चन्द्र त्रिखा के काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ’ में से ली गई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन को नए अर्थ प्रदान करने की कामना की है जिससे वह संसार के सब दुःखों को दूर कर सके।

व्याख्या:
कवि कामना करता है कि उसे जीने के लिए एक नई कहानी मिल जाए। वह इतना प्यासा अर्थात् दुःखी है कि उस प्यास को बुझाने के लिए एक नहीं सात समुद्रों के पानी की ज़रूरत है। धूप अभी तक नंगी है. अतः इसे ढकने के लिए कोई धान के रंग की (हरी) चुनरी दो अर्थात् संघर्ष के साथ-साथ समृद्धि में भी बढ़ोत्तरी हो सके। कवि कहता है कि मेरा मन बहुत दुःखी है यह अपने दुःख को भुलाने को कोई गीत गाना चाहता है। इसलिए इसे कोई पुरानी गज़ल दो। हे ईश्वर ! तू मुझे कुछ ऐसा दे जैसा तू है मुझे जीने के लिए कुछ तूफानी क्षण प्रदान करो जिससे मेरे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके।

विशेष:

  1. कवि ने जीवन को सार्थक बनाने की कामना की है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।

डॉ० चन्द्र त्रिखा Summary

डॉ० चन्द्र त्रिखा जीवन परिचय

डॉ० चन्द्र त्रिखा जी का जीवन परिचय लिखिए।

चन्द्र त्रिखा का जन्म 7 जुलाई, सन् 1945 ई० को पाकिस्तान के जिला साहिलवाल के पाकपट्टन नामक स्थान पर हुआ। विभाजन के बाद आपका परिवार फिरोजपुर आ गया। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अबोहर-फाजिल्का में हुई। आपने अम्बाला के एस०डी० कॉलेज से हिन्दी विषय में एम०ए० एवं पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की। पत्रकारिता में आपकी विशेष रुचि थी। आपने क्षेत्र के सभी दैनिक पत्रों में लगभग 30 वर्ष तक कार्य किया। आजकल आप स्वतन्त्र रूप से साहित्य सृजन कर रहे हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ पाषाणयुग, शब्दों का जंगल, दोस्त, अब पर्दा गिराओ हैं। इन्हें हरियाणा सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया जा चुका है।

डॉ० चन्द्र त्रिखा कविताओं का सार

‘जुगन की दस्तक’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि नफ़रत, घृणा और निराशा की अंधेरी रात में आशा का जुगनू भी उजाला सकता है। आतंकवाद प्रेम और सौहार्द्र द्वारा दूर किया जा सकता है तथा मानवता की भावना को जगाया जा सकता है। ‘जीने को कुछ मानी दें’ में कविता में कवि जिंदगी के नए अर्थ मांगता है। जिससे उसके जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके तथा सर्वत्र समृद्धि छा जाए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 12 धर्मवीर भारती

Hindi Guide for Class 12 PSEB 12 धर्मवीर भारती Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘बाँध बाँधना’ निर्माण योजना का प्रथम चरण है। कवि किस प्रकार का बाँध बाँधकर कौन-सी शक्ति पैदा करना चाहता है ?
उत्तर:
नदियों के जल पर बाँध बाँधने से बिजली पैदा होती है। सिंचाई आदि के लिए काम में आती है। किन्तु कवि तो घृणा की नदी पर बाँध बाँधने अर्थात् रोकने की बात कहता है क्योंकि इससे जो शक्ति बनती है वह आग की तरह भस्म कर देने वाली है। यदि इस शक्ति को नियन्त्रित कर लिया जाए तो यह लाभकारी भी हो सकती है। घृणा को यदि आपसी सहयोग और सहानुभूति की भावना में बदल दिया जाए तो वह एक शक्ति बन सकती है जो जनकल्याण में सहायक सिद्ध हो सकती है।

प्रश्न 2.
‘यातायात’ में स्वच्छन्द विचारधारा को फलने-फूलने का मौका देने की बात की गई है-इसे स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि का मानना है यातायात की सुविधाएँ तभी साकार हो सकती हैं जब जीवन की राह में चलते हुए निराश हुए व्यक्ति को उसे उसकी इच्छानुसार नए गीतों को रचने और अपने विचारों को बिना किसी रोक-टोक के अभिव्यक्त करने की सुविधा प्राप्त हो जाए। तभी यातायात की उन्नति के लिए चलाई जा रही योजनाएँ सफल हो सकेंगी।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

प्रश्न 3.
‘कृषि’ में कवि ने विषमता रूढ़िवादिता की फसलें काटने की बात की है ? कवि किस प्रकार की खेती करना चाहता है और कैसे ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि का मानना है कि हमारे बुजुर्गों ने जाने अनजाने जो विषमता और असमानता की फसलें बोई थीं। इन्हें काटना चाहिए क्योंकि इन्होंने समाज के दामन को तार-तार कर डाला है। उसकी जगह हमें आपसी प्रेम-प्यार, हमदर्दी, सुख-दुःख बाँटने की फसलें बोनी चाहिएँ क्योंकि भूमि सबकी है और दर्द सबका साँझा है।

प्रश्न 4.
‘स्वास्थ्य’ में भारती जी ने निर्माण योजना के अन्तिम चरण के रूप में अहम् के शिकार रोगियों के लिए अस्पतालों की व्यवस्था करने की बात की है। कवि का विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि के मतानुसार निर्माण योजना तभी सफल हो सकती है जब हमारा नेता वर्ग स्वस्थ हो और वह स्वस्थ समाज का निर्माण कर सके और अतः समाज को चाहिए कि नेता वर्ग की इस बीमारी-अहम् की बीमारी का इलाज करने के लिए नए अस्पताल खोलने चाहिए अर्थात् ऐसे उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे हमारा नेता वर्ग स्वस्थ होकर देश की सेवा कर सके और देश को उन्नति और विकास के मार्ग पर आगे ले जा सके।

प्रश्न 5.
‘निर्माण योजना’ कविता का सार लिखो।
उत्तर:
‘सात गीत वर्ष’ काव्य संग्रह में संकलित ‘निर्माण योजना’ कविता में कवि ने निर्माण योजना को बाँध, यातायात, कृषि तथा स्वास्थ्य चार भागों में विभक्त किया है। बाँध शीर्षक कविता में कवि घृणा की नदी पर बाँध बनाने की बात कही है ताकि उससे पैदा होने वाली शक्ति हानिकारक न होकर लाभकारी सिद्ध हो सके। घृणा को आपसी प्रेम प्यार, हमदर्दी में बदला जाना चाहिए।

‘यातायात’ कविता में कवि ने मानव को, किसान को, कवि को मन मुताबिक चलने की सुविधा प्राप्त करने की बात कही है ताकि वे सब देश की उन्नति और विकास में योगदान दे सकें।

कृषि शीर्षक कविता में कवि ने समाज में उत्पन्न भेदभाव की फसलों को काटकर ऐसी खेती करने की सलाह देता है जिसमें आपसी प्रेम प्यार हो, आपसी सुख-दुःख बाँटने की बात हो, जिससे यह संसार, यह धरती फिर से हरी भरी हो जाए। क्योंकि धरती सबकी साँझी है और दर्द भी सबका साँझा होना चाहिए।
‘स्वास्थ्य’ शीर्षक कविता में कवि नेता वर्ग के अहम्भाव पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि जिस तरह से नेता लोग मंच पर जाकर भाषण देते हैं और व्यर्थ की बातें करते हैं उनसे लगता है कि वे अहम् रोग से पीड़ित हैं। समाज को ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जिससे नेता वर्ग का यह रोग दूर हो सके और वे भी देश के लिए समाज के लिए हितकारी काम कर सकें।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
बाँधो …. घृणा की है।
उत्तर:
कवि कहता है कि यह घृणा की नदी है काली चट्टानों की छाती चीर कर फूट निकली है और इसका गवाह अन्धकारमय विषैली गुफाओं में से उबल-कर बाहर आया है। नदी के इस भयानक प्रवाह को बाँधने की आवश्यकता है। ऐसी नदी पर ही हमें बाँध बाँधना चाहिए।

यह घृणा की नदी है अतः आग की तरह भस्म कर देने की शक्ति इसमें है। यदि इसे बढ़ने दिया गया तो इसकी लपेट में आकर बड़े-बड़े और हरे-भरे पेड़ भी जलकर राख का ढेर हो जाएंगे। केवल इतना जान लेने से कि यह घृणा की नदी है, यह बेमतलब नहीं है यदि इस को बाँध लिया जाए अर्थात् इस पर काबू पा लिया जाए तो यही नदी लाभकारी भी सिद्ध हो सकती है।

प्रश्न 7.
ये फसलें ………. दर्द सबका है।
उत्तर:
कवि धरती को, समाज को सुधारने के लिए भेदभाव पैदा करने वाले विचारों को दूर कर, आपसी भाईचारा, प्रेम, प्यार एवं एक-दूसरे से सहानुभूति पैदा करने का सन्देश देता हुआ कहता है कि जाने अनजाने हमारे पूर्वजों ने समाज के विभिन्न वर्गों में भेदभाव उत्पन्न करने की जो भावना भरी थी, समाज की भलाई के लिए हमें उस विषैली खेती को काट देना चाहिए भाव यह है समाज का, व्यक्ति का कल्याण इन भावनाओं को नष्ट करने में ही है बल्कि हमें तो आज मेहनत के, समान दुःख की भावना के, आपसी प्रेम प्यार के, एक दूसरे से सहानुभूति रखने वाले भावों को बढ़ावा देना चाहिए। हमें ऐसी सीमाएँ नहीं बाँधनी हैं जिससे समाज विभिन्न वर्गों में बँट जाए बल्कि इसके विपरीत कार्य करना चाहिए क्योंकि यह धरती सबकी है, दर्द सबके साँझे हैं।

PSEB 12th Class Hindi Guide धर्मवीर भारती Additional Questions and Answers

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० धर्मवीर भारती का जन्म कब और कहाँ पर हुआ था?
उत्तर:
डॉ० भारती का जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1926 में इलाहाबाद में हुआ था।

प्रश्न 2.
डॉ० भारती ने किस हिंदी पत्रिका का संपादन कार्य किया था?
उत्तर:
साप्ताहिक धर्मयुग।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

प्रश्न 3.
डॉ० भारती के द्वारा रचित दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अंधायुग, कनुप्रिया।

प्रश्न 4.
‘निर्माण योजना’ कविता के कितने अंश हैं?
उत्तर:
चार।

प्रश्न 5.
‘निर्माण योजना’ के अंशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बाँध, यातायात, कृषि, स्वास्थ्य।

प्रश्न 6.
कवि ने काली चट्टानों से निकली नदी को क्या नाम दिया है ?
उत्तर:
घृणा की नदी।

प्रश्न 7.
घृणा की नदी के छते ही कौन सड़ जाएंगे?
उत्तर:
हरे-भरे वृक्ष सड़ जायेंगे।

प्रश्न 8.
घृणा की नदी में कौन सोये हुए हैं ?
उत्तर:
बिजली के शक्तिवान घोड़े सोये हुए हैं।

प्रश्न 9.
कवि ने पसीने से सींची हुई फसलों को कहाँ से लेकर कहाँ तक पहुंचाने की सुविधा मांगी है?
उत्तर:
खेतों से आंतों तक।

प्रश्न 10.
अतीत में कैसे बीज समाज में बोये गए थे?
उत्तर:
विषमता/भेदभाव के बीज समाज में बोये गए थे।

प्रश्न 11.
लेखक ने आज के सभी नेताओं को क्या माना है?
उत्तर:
लेखक ने उन्हें रोगी माना है जो अहम् से पीड़ित हैं।

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प्रश्न 12.
‘निर्माण योजना’ किस संकलन से ली गई है?
उत्तर:
‘सात गीत वर्ष’ से।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
इनके छूते ही……..
उत्तर:
हरे वृक्ष सड़ जायेंगे।

प्रश्न 14.
इनकी लहरों में…………..
उत्तर:
बिजली के शक्तिवान घोड़े हैं सोये हुए।

प्रश्न 15.
सिंची हुई फसलों को………………।
उत्तर:
खेतों से आंतों तक जाने की सुविधा दो।

प्रश्न 16.
बस्ती-बस्ती में………..।
उत्तर:
नये अहम् के अस्पताल खुलवाओ।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवि ने बीमार राजनीति पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. धर्मवीर भारती किस पत्रिका के संपादक रहे ?
(क) धर्मात्मा
(ख) धर्मयग
(ग) धर्म
(घ) धर्माधिकारी।
उत्तर:
(ख) धर्मयग

2. धर्मवीर भारती को भारत सरकार ने किस सम्मान से अलंकृत किया ?
(क) पद्मश्री
(ख) पद्मभूषण
(ग) पद्मविभूषण
(घ) पद्मालंकार।
उत्तर:
(क) पद्मश्री

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

3. ‘निर्माण योजना’ कविता के कितने अंश हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(घ) चार

4. कवि के अनुसार अतीत में समाज में कैसे बीज बोये गये थे ?
(क) विषमता
(ख) अविषमता
(ग) घृणा
(घ) अंतर।
उत्तर:
(क) विषमता

धर्मवीर भारती सप्रसंग व्याख्या

बांध

1. बाँधो।
नदी यह घृणा की है
काली चट्टानों के
सीने से निकली है
अन्धी जहरीली गुफाओं से
उबली है।
इसको छते ही
हरे वृक्ष सड़ जायेंगे
नदी यह घृणा की है।
लेकिन नहीं है निरर्थक यह
बँधने से इसको भी अर्थ मिल जाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
घृणा = नफरत। सीना = छाती। जहरीली = विषैली। निरर्थक = व्यर्थ, बेमतलब।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्री धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘सात गीत वर्ष’ में संकलित ‘निर्माण योजना’ शीर्षक के अन्तर्गत लिखी कविता ‘बाँध’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश की आर्थिक अवस्था को सुधारने के लिए कई निर्माण योजनाओं पर कार्य चल रहा है। नदियों पर बाँध बाँधे जा रहे हैं जिससे जल को, सिंचाई के लिए और बिजली पैदा करने के लिए. प्रयोग में लाया जा सके।

कवि ने यहाँ किसी प्राकृतिक नदी पर बाँध बाँधने की आवश्यकता पर बल नहीं दिया बल्कि मानव मात्र में एक दूसरे के प्रति जो घृणा भाव पैदा हो गया है उसके भयानक प्रवाह पर मानव को बाँध लगाने की अर्थात् उस पर नियन्त्रण पाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि यह घृणा की नदी है काली चट्टानों की छाती चीर कर फूट निकली है और इसका गवाह अन्धकारमय विषैली गुफाओं में से उबल-कर बाहर आया है। नदी के इस भयानक प्रवाह को बाँधने की आवश्यकता है। ऐसी नदी पर ही हमें बाँध बाँधना चाहिए।

यह घृणा की नदी है अतः आग की तरह भस्म कर देने की शक्ति इसमें है। यदि इसे बढ़ने दिया गया तो इसकी लपेट में आकर बड़े-बड़े और हरे-भरे पेड़ भी जलकर राख का ढेर हो जाएंगे। केवल इतना जान लेने से कि यह घृणा की नदी है, यह बेमतलब नहीं है यदि इस को बाँध लिया जाए अर्थात् इस पर काबू पा लिया जाए तो यही नदी लाभकारी भी सिद्ध हो सकती है।

विशेष:

  1. कवि का तात्पर्य यह है संसार में कुछ अच्छा या बुरा नहीं होता उसके अच्छा या बुरा होने की कसौटी उसके सद्पयोग अथवा मानवीय हित सापेक्ष होने में है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।

2. इसकी ही लहरों में ।
बिजली के शक्तिवान घोड़े हैं सोये हुए।
जोतो उन्हें खेतों में, हलों में
भेजो उन्हें नगरों में, कलों में
बदलो घृणा को उजियाले में
ताकत में,
नये-नये रूपों में साधो
बाँधो
नदी यह घृणा की है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
शक्तिवान घोड़े = यहाँ भाव हार्स पावर से है। साधो = सिद्ध करो, बदलो।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता निर्माण योजना के प्रथम खंड बांध से ली गई हैं, जिसमें कवि ने घृणारूपी नदी पर बाँध बनाकर (प्रेम की सरिता)बहाने का संदेश दिया है।

व्याख्या:
कवि घृणा का सद्पयोग कर उसे मानवीय हित सापेक्ष बनाने की सलाह देता हुआ कहता है कि-कौन नहीं जानता कि नदी के प्रवाह में बिजली के शक्तिशाली घोड़ों की ताकत छिपी हुई है उस ताकत का प्रयोग हम खेतों में, हल जोतने में, नगरों में, कल कारखानों में प्रयोग कर सकते हैं कवि का संकेत जल से प्राप्त ऊर्जा की ओर है। कवि संदेश देते हुए कहता है कि उस ऊर्जा रूपी घृणा को हम उजाला पैदा करने वाली बना सकते है। उसकी शक्ति को हम विभिन्न रूपों में विकसित कर सकते हैं जिससे मानवता का कल्याण हो सके। अतः इस घृणा की नदी को स्वतन्त्र मत छोड़ो। इस पर नियन्त्रण करो। इस पर ऐसा बाँध बनाओ जो कल्याणकारी हो न कि विनाशकारी।

विशेष:

  1. कवि का तात्पर्य यह है कि यदि हम घृणा के वश में हो जाएँगे तो यह मनोवृत्ति विनाशकारी हो जाएगी और यदि हम इसे अपने वश में कर लेंगे तो यह हमारे लिए कल्याणकारी बन जाएगी।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है। पुनरुक्ति प्रकाश तथा रूपक अलंकार हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

यातायात

1. बिना किसी बाधा के
नित नयी दिशाओं में
जाने की
सुविधा दो
बिना किसी बाधा के
श्रम के पसीने से
सिंची हुई फसलों को
खेतों से आंतों तक जाने की सुविधा दो।

कठिन शब्दों के अर्थ:
बाधा = रुकावट। सविधा = सहूलियत। श्रम = मेहनत।

प्रसंग;
प्रस्तुत पद्यांश श्री धर्मवीर भारती जी की काव्यकृति ‘सात गीत वर्ष’ में संकलित ‘निर्माण योजना’ शीर्षक के अन्तर्गत लिखी कविता ‘यातायात’ में से लिया गया है। देश में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आर्थिक विकास के लिए अनेक निर्माण योजनाओं को शुरू किया गया जिनमें यातायात के क्षेत्र में भी विकास के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गयी हैं किन्तु कवि का मानना है कि ‘यातायात’ केवल ट्रैफिक अथवा वाहनों की सुकर और सुविधापूर्वक गमन-आगमन की सुविधा नहीं, अपितु प्राप्त अवसरों के अधिकतम और आरोपित बँधनों से रहित, बन्धनहीन प्रयोग से है।

व्याख्या:
कवि सब के लिए आवागमन की सुविधाओं के लिए कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह पूरी सुविधा प्राप्त होनी चाहिए कि वह जिस भी नयी दिशा की ओर आगे बढ़ना चाहे उसे उस पर चलने के लिए बढ़ने के लिए कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। समाज में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो किसान अपनी मेहनत के पसीने से अपनी फसलों को सींचता है। उन फसलों की पैदावार बिना किसी रोक-टोक के उसके पेट की आँतों तक पहुँच कर उसकी भूख मिटा सके। यह न हो कि सारे समाज की भूख मिटाने वाला, अन्न उपजाने वाला किसान स्वयं भूखा रहे।

विशेष:

  1. कवि सब के लिए समान तथा स्वच्छन्द विचरण की सुविधाएँ चाहता है।
  2. भाषा भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है। अनुप्रास अलंकार है।

2. बिना किसी बँधन के
हर चलते राही को
यात्रा में
अक्सर थक जाने पर
मनचाहे नये गीत गाने की
सुविधा दो
कभी कभी अजब सी रहस्यमयी पुकारों पर
मन को अपरिचित नक्षत्रों की राहों में
जाकर खो जाने की सुविधा दो।

कठिन शब्दों के अर्थ:
अक्सर = प्रायः । अजब सी = विचित्र सी।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्री धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना’ के यातायात खंड से ली गई हैं, जिसमें कवि सब के लिए स्वच्छन्द विचरण की कामाना की हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की राह पर चलते हुए जब कभी थक जाए अर्थात् निराश हो जाए तो उसे बिना किसी बन्धन के मनचाहे नये गीत गाने की सहूलियत होनी चाहिए और जब कभी रहस्यमयी विचित्र-सी पुकारों को सुनकर व्यक्ति का मन अनजाने नक्षत्रों की राहों पर बढ़ने के लिए लालायित हो उठे, तो उसे ऐसा करने की सुविधा मिलनी चाहिए।

विशेष:

  1. कवि ने अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों को पर्याप्त सुविधा प्रदान करने की बात कही है जिससे वे अपने देश की ही नहीं समूची मानवता की सेवा कर सकें।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

कृषि

ये फसलें काटो ……………
पिछले जमाने में
बीज जो बोये विषमता के
आज वहाँ साँपों की खेती उग आई है।
धरती को फिर से सँवारो
क्यारी में बीज नये डालो
पसीने के, आँसू के,
प्यार के, हमदर्दी के,
मेंड़ें मत बाँधो,
भूमि सबकी
दर्द सबका है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
जमाने में = युग में, समय में। विषमता = भेद-भाव। हमदर्दी = सहानुभूति। मेंहें = खेत की हदबन्दी, सिंचाई के लिए खेत में बनाया गया मिट्टी का घेरा, यहाँ भाव अवरोध या रुकावट खड़ी करने से है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्री धर्मवीर भारती द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘सात गीत वर्ष’ में संकलित ‘निर्माण योजना’ शीर्षक के अन्तर्गत लिखी ‘कृषि’ कविता से लिया गया है, जिसमें कवि उन भेदभावों और असमानताओं की फसलों को काटने का आह्वान करता है जिन्हें जाने अनजाने हमारे पूर्वजों ने बो दिया था और जिसने समाज के दामन को तार-तार कर दिया है। अतः अब हमारे सामने एकमात्र यही एक रास्ता है कि उन फसलों को काट कर परिश्रम, प्यार और हमदर्दी की फसल के बीज बोये जायें क्योंकि भूमि सबकी है और दर्द भी सबका साँझा है।

व्याख्या:
कवि धरती को, समाज को सुधारने के लिए भेदभाव पैदा करने वाले विचारों को दूर कर, आपसी भाईचारा, प्रेम, प्यार एवं एक-दूसरे से सहानुभूति पैदा करने का सन्देश देता हुआ कहता है कि जाने अनजाने हमारे पूर्वजों ने समाज के विभिन्न वर्गों में भेदभाव उत्पन्न करने की जो भावना भरी थी, समाज की भलाई के लिए हमें उस विषैली खेती को काट देना चाहिए भाव यह है समाज का, व्यक्ति का कल्याण इन भावनाओं को नष्ट करने में ही है बल्कि हमें तो आज मेहनत के, समान दुःख की भावना के, आपसी प्रेम प्यार के, एक दूसरे से सहानुभूति रखने वाले भावों को बढ़ावा देना चाहिए। हमें ऐसी सीमाएँ नहीं बाँधनी हैं जिससे समाज विभिन्न वर्गों में बँट जाए बल्कि इसके विपरीत कार्य करना चाहिए क्योंकि यह धरती सबकी है, दर्द सबके साँझे हैं।

विशेष:

  1. कवि ने समस्त प्रकार के भेदभावों को मिटाकर कर समतावादी समाज की स्थापना की कामना की है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 12 धर्मवीर भारती

स्वास्थ्य

वे सब बीमार हैं,
वे जो उन्मादग्रस्त रोगी से
मंचों पर जाकर चिल्लाते हैं
बकते हैं
भीड़ में भटकते हैं
वात पित्त कफ़ के बाद
चौथे दोष अहम् से पीड़ित हैं।
बस्ती-बस्ती में
नये अहम् के अस्पताल खुलवाओ।
वे सब बीमार हैं।
डरो मत-तरस खाओ।

कठिन शब्दों के अर्थ:
उन्मादग्रस्त = पागलपन।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्री धर्मवीर भारती के काव्य संग्रह ‘सात गीत वर्ष’ में ‘निर्माण योजना’ शीर्षक के अन्तर्गत रचित ‘स्वास्थ्य’ कविता से लिया गया है। स्वास्थ्य निर्माण योजना का अन्तिम पड़ाव है। कवि ने वर्तमान युग के नेता वर्ग पर व्यंग्य करते हुए बताया है कि आज के नेता अहम् रोग के शिकार हैं अतः उनके इलाज के लिए भी नए अस्पताल खुलवाने चाहिए।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि आज के नेता सभी बीमार हैं जो एक पागल रोगी के समान मंचों पर जाकर चिल्लाते हैं और बकवास करते हैं अर्थात् व्यर्थ की बातें करते हैं और जनता की भीड़ में मारे-मारे फिरते हैं। वे रोग ग्रस्त हैं। वे वात, पित्त और कफ रोगों के अतिरिक्त चौथे रोग अहम् से भी पीड़ित हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि इन नेताओं के इलाज के लिए बस्ती-बस्ती में अहम् का इलाज करने वाले नए अस्पताल खोले जाएँ जिससे ये समाज का स्वस्थ निर्माण कर सकें। इसके लिए हमें उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना चाहिए। इन नेताओं से हमें डरना नहीं चाहिए क्योंकि ये सब तो बीमार हैं। हमें तो इन पर तरस खाना चाहिए। अर्थात् इनके प्रति सहानुभूति दर्शानी चाहिए क्योंकि ये अस्वस्थ हैं, बीमार हैं।

विशेष:

  1. कवि ने बीमार राजनीति पर चिंता व्यक्त करते हुए उसे सही दिशा देने की प्रेरणा दी है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

धर्मवीर भारती Summary

धर्मवीर भारती जीवन परिचय

धर्मवीर भारती जी का जीवन परिचय लिखिए।

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1926 में इलाहाबाद में हुआ। यहीं से आपने हिन्दी विषय में एम० ए० तथा ‘सिद्ध साहित्य’ पर डी० फिल० की उपाधि प्राप्त की तथा इलाहाबाद में ही प्राध्यापक की नौकरी की। इनकी विशेष रुचि पत्रकारिता में थी। सन् 1960 में आप साप्ताहिक धर्मयुग के सम्पादक बन कर मुम्बई आ गए और सेवानिवृत्त होकर यहीं बस गए। यहीं 4 सितंबर, सन् 1997 को इनकी मृत्यु हो गई। भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया था। ठंडा लोहा, अंधा युग, सात मीत वर्ष और कनुप्रिया आपके प्रसिद्ध काव्यसंग्रह हैं।

निर्माण योजना कविताओं का सार

‘निर्माण योजना’ कविता के चार अंश हैं। प्रथम अंश ‘बाँध’ में कवि ने समाज में व्याप्त घृणा रूपी नदी को बाँध कर उसे प्रेम में परेशत कर मानव कल्याण का संदेश दिया है। ‘यातायात’ में कवि ने समाज को बन्धन मुक्त होकर स्वच्छंदतापूर्वक जीवनयापन करने की सुविधा प्रदान करने के लिए कहा है। ‘कृषि’ में समस्त भेदभाव समाप्त कर समाज को सुख की खेती करने का संदेश दिया है तथा अंतिम अंश ‘स्वास्थ्य’ में अहंकार को त्याग कर वास्तविकता को पहचानने पर बल दिया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

Hindi Guide for Class 12 PSEB गिरिजा कुमार माथुर Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘आदमी का अनुपात’ कविता में कवि ने मानव की संकीर्ण सोच और उसकी अहम् की भावना का चित्रण किया है-अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवि ने प्रस्तुत कविता में दो व्यक्तियों के एक ही कमरे में रहते हुए अलग-अलग रास्ते पर चलने, मिलजुल कर न रह सकने को उसकी संकीर्ण सोच का कारण बताया है। उसमें आपसी सहयोग की कमी भी इसी भाव के अन्तर्गत . आती है। मानव कल्याण के लिए यह मानसिक संकीर्णता उपयुक्त नहीं है।

प्रश्न 2.
विशाल संसार में मनुष्य का अस्तित्व क्या है ? प्रस्तुत कविता के आधार पर लिखो।
उत्तर:
इस विशाल संसार के अनेक ब्रह्माण्डों में से एक में मनुष्य रहता है। इस विशाल संसार में अनेक पृथ्वियाँ, भूमियाँ और सृष्टियाँ हैं। अतः आदमी का इस संसार में स्थान बहुत छोटा है। इतना छोटा कि वह किसी सूरत में विशाल संसार की बराबरी नहीं कर सकता। उसका अस्तित्व अत्यन्त तुच्छ है।

प्रश्न 3.
‘आदमी का अनुपात’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
कवि का मानना है कि आदमी का अस्तित्व उस विराटःसत्ता के सामने तुच्छ है। आदमी इस बात को समझता हुआ भी ईर्ष्या, अभिमान, स्वार्थ, घृणा और अविश्वास में पड़कर मानव कल्याण के रास्ते में रुकावटें खड़ी कर रहा है। वह अपने को दूसरों का स्वामी समझता है। ऐसे में भला वह दूसरों से कैसे मिलजुल कर रह सकता है। देश तो एक है किन्तु आज का आदमी इतने संकुचित दृष्टिकोण वाला, इतना व्यक्तिवादी हो गया है कि एक कमरे में रहने वाले दो व्यक्ति भी आपस में मिलजुल कर नहीं रह सकते। उन दोनों के रास्ते अलग और विचार अलग हैं। मानवता के कल्याण के लिए यह भावना सर्वथा अनुपयुक्त है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

प्रश्न 4.
‘पन्द्रह अगस्त’ माथुर जी की राष्ट्रीयवादी कविता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
श्री माथुर जी के द्वारा रचित कविता पन्द्रह अगस्त एक राष्ट्रवादी कविता है। इसमें कवि ने राष्ट्रवादियों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्र की स्वतन्त्रता को बनाए रखने एवं उसकी सुरक्षा करने का आह्वान किया है। भले ही हम अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गए हैं किन्तु उनका प्रभाव बराबर बना हुआ है। इस पर हमें बाहरी और भीतरी शत्रुओं का भय भी बना हुआ है। बाहरी शत्रु कभी भी हम पर आक्रमण कर सकता है। उससे हमें लड़ना होगा और भीतरी शत्रु जैसे अभाव, ग़रीबी, बेरोज़गारी, साम्प्रदायिकता से भी हमें लड़ना होगा। किन्तु कवि को विश्वास है कि जन आन्दोलन राष्ट्र को सदा गतिशील बनाए रखेगा।

प्रश्न 5.
‘पन्द्रह अगस्त’ कविता का सार लिख कर इस का प्रतिपाद्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
माथुर जी के काव्य संग्रह ‘धूप के धान’ में संकलित ‘पन्द्रह अगस्त’ शीर्षक कविता में शताब्दियों की दासता से मुक्ति के दिन पन्द्रह अगस्त, सन् 1947 के दिन के संदर्भ में नव-निर्माण की चिन्ता और सावधानी का स्वर मुखरित हुआ है। – कवि कहते हैं कि पन्द्रह अगस्त जीत की रात है। इस दिन कड़े संघर्ष के बाद अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति पाई थी। स्वतन्त्र होने पर देश में निर्माण के अनेक मार्ग खुल गए हैं किन्तु हे भारतवासियो ! तुम्हें सावधान रहना होगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश का यह पहला चरण ही है।

इस स्वतन्त्रता को जन आन्दोलन से प्राप्त किया गया है और इसकी पहली रत्नमयी हिलोर उठी है। जीवन रूपी मोतियों के इस सूत्र में अभी सुख-समृद्धि के अनेक मोती पिरोये जाने शेष हैं। किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संघर्ष के दौरान झेले जाने वाले कष्टों, दुःखों की याद किसी काले किनारे के समान अभी तक बनी हुई है अर्थात् पुराने दुःखों का इतिहास अभी समाप्त नहीं हुआ है। अतः हे भारतवासियो ! तुम्हें गम्भीर सागर से महान् बन कर समय की पतवार को अपने हाथों में थामना होगा।

भले ही आज पराधीनता की जंजीरें टूट गई हैं। पुराने साम्राज्य के सारे चिह्न मिट गए हैं। किन्तु अभी तक शत्रु, बाहरी और भीतरी, का खतरा बना हुआ है। अंग्रेज भले ही चले गए परन्तु अभी उनका प्रभाव नष्ट नहीं हुआ। भारतीय स्वतन्त्रता अभी तक भयमुक्त नहीं हुई है। किन्तु हमें विश्वास है कि स्वाधीनता के साथ जन जीवन में नई चेतना, नई ज़िन्दगी का संचार होगा। प्रस्तुत कविता में स्वाधीनता दिवस के हर्षोल्लास को प्रकट करते हुए नव-निर्माण की चिन्ता और सावधानी के स्वर प्रवलतर हैं। हर्ष और भय, उल्लास और चिन्ता के द्वन्द्व से निर्मित जटिल राग बोध के निरूपण की दृष्टि से प्रस्तुत कविता उल्लेखनीय है।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
ऊँची हुई मशाल …… सावधान रहना।
उत्तर:
कवि कहता है कि स्वतन्त्रता प्राप्त करके हमारी मशाल ऊँची हो गई है किन्तु आगे रास्ता बड़ा कठिन है। अंग्रेज़ रूपी शत्रु तो चले गए हैं परन्तु अभी उनका प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ तात्पर्य यह है कि भारतीय स्वतन्त्रता अभी तक पूरी तरह भयमुक्त नहीं हुई है, अभी तक बाहरी और भीतरी शत्रु का भय बना हुआ है। हमारा समाज अंग्रेज़ी दमन के कारण मुर्दे के समान हो चुका है.। इस पर हमारा अपना घर भी कमज़ोर है किन्तु हम में एक नई ज़िन्दगी आ रही है यह अमर-विश्वास है। आज जनता रूपी गंगा में तूफान उठ रहा है अतः अरी लहर तुम गतिशील रहना। हे भारतवासियो ! अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए तुम सदा सावधान रहना, जागरूक रहना।

प्रश्न 7.
इस पर भी आदमी………दो दुनिया रचाता है।
उत्तर:
कवि कहता है कि यह जान लेने पर भी कि आदमी उस विराट के आगे बहुत छोटा है, वह ईर्ष्या, अहंकार स्वार्थ, घृणा और अविश्वास में डूबा रहता है और अनगिनत शंख के समान कठोर दीवारें खड़ी करता है अर्थात् मानवता के विकास में अनेक बाधाएँ खड़ी करता है। वह अपने को दूसरों का स्वामी बताता है। ऐसी हालत में देशों की बात कौन कहे आदमी एक कमरे में भी दो दुनिया बनाता है अर्थात् एक कमरे में रहने वाले दो व्यक्ति भी मिल कर नहीं रह सकते। दोनों ही अपने-अपने रास्ते पर चलते हैं, एक-दूसरे से परे रहते हैं। मानव कल्याण के लिए यह स्थिति उपयुक्त नहीं है।

PSEB 12th Class Hindi Guide गिरिजा कुमार माथुर Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिजा कुमार माथुर का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर:
मध्य प्रदेश के अशोक नगर में, 22 अगस्त, सन् 1919 ई० में।

प्रश्न 2.
श्री माथुर की प्रमुख चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
नाश और निर्माण, धूप के धाम, शिलापंख चमकीले, जन्म कैद।

प्रश्न 3.
श्री माथुर का देहांत कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
इनका देहांत 10 जनवरी, सन् 1994 ई० में दिल्ली में हुआ था।

प्रश्न 4.
‘आदमी का अनुपात’ कविता में इन्सान को कैसा बताया है ?
उत्तर:
अहंकारी, स्वार्थी, अविश्वासी, ईर्ष्या से भरा हुआ।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

प्रश्न 5.
इन्सान अपनी ईर्ष्या-अहंकार के कारण क्या करता है?
उत्तर:
इन्सान ईर्ष्या के कारण मानवता के विकास में बाधाएँ खड़ी करता है।

प्रश्न 6.
‘पंद्रह अगस्त’ कविता में कवि ने किस चिंता को व्यक्त किया है?
उत्तर:
कवि ने अपनी इस कविता में नवनिर्माण की चिंता और सावधानी बनाने के भावों को व्यक्त किया है।

प्रश्न 7.
कवि ने देश की स्वतंत्रता के बाद किन से डरने की चेतावनी दी है ?
उत्तर:
कवि ने देश के बाहरी और भीतरी शत्रुओं से डरने की चेतावनी दी है। हमारा देश अंग्रेजी साम्राज्य के कारण कमज़ोर हो चुका है।

प्रश्न 8.
मानव कल्याण के लिए कवि ने किसे उचित नहीं माना?
उत्तर:
कवि ने मानसिक संकीर्णता को मानव कल्याण के लिए उचित नहीं माना।

प्रश्न 9.
इस विशाल संसार में मनुष्य का अस्तित्व कैसा है?
उत्तर:
इस विशाल संसार में मनुष्य का अस्तित्व अति तुच्छ है।

प्रश्न 10.
कवि की दृष्टि में आधुनिक इन्सान कैसा हो गया है?
उत्तर:
आधुनिक इन्सान ईर्ष्या से भरा हुआ, घमंडी, अविश्वासी और घृणा के भावों से युक्त है। वह स्वयं दूसरों का स्वामी बनना चाहता है। वह व्यक्तिवादी और संकुचित सोच वाला है।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 11.
लाखों ब्रह्माण्डों में……
उत्तर:
अपना एक ब्रह्मांड।

प्रश्न 12.
इस पर भी आदमी..
उत्तर:
ईर्ष्या, अहं, स्वार्थी, घृणा, अविश्वास लीन।

प्रश्न 13.
………………खुली समस्त दिशाएँ।
उत्तर:
विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

प्रश्न 14.
लहर, तुम प्रवहमान रहना…………….
उत्तर:
पहरुए, सावधान रहना।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 15.
जीत की रात में पहरुए आराम से रहना।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 16.
इन्सान एक कमरे में भी दो दुनिया बनाता है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 17.
लाखों ब्रह्माण्डों में अपना एक बह्माण्ड।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘नाश और निर्माण’ किस विधा की रचना है ?
(क) काव्य
(ख) गद्य
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास
उत्तर:
(क) काव्य

2. कवि को कहां का सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया ?
(क) भारत में
(ख) नेपाल में
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ में
(घ) संसद में।
उत्तर:
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ में

3. कवि को किसका उपनिदेशक नियुक्त किया गया ?
(क) आकाशवाणी लखनऊ का
(ख) आकाशवाणी दिल्ली का
(ग) सदन का
(घ) लोकसभा का।
उत्तर:
(क) आकाशवाणी लखनऊ का

4. कवि के अनुसार ब्राह्मांड कितने हैं ?
(क) लाखों
(ख) हज़ारों
(ग) सैंकड़ों
(घ) असंख्य।
उत्तर:
(क) लाखों

5. कवि के अनुरूप लाखों ब्रह्मांडों में आदमी का अनुपात कितना है ?
(क) तुच्छ
(ख) बड़ा
(ग) छोटा
(घ) भारी।
उत्तर:
(ग) छोटा

6. ‘पंद्रह अगस्त’ कविता में कवि ने देशवासियों को किसकी रक्षा के लिए सचेत किया है ?
(क) धन
(ख) स्वतंत्रता
(ग) परतंत्रता
(घ) देश
उत्तर:
(ख) स्वतंत्रता

गिरिजा कुमार माथुर सप्रसंग व्याख्या

आदमी का अनुपात

1. दो व्यक्ति कमरे में
कमरे से छोटे
कमरा है घर में
घर है मुहल्ले में
मुहल्ला नगर में
नगर है प्रदेश में
प्रदेश कई देश में
देश कई पृथ्वी पर
अनगिन नक्षत्रों में
पृथ्वी एक छोटी
करोड़ों में एक ही
सबको समेटे है
परिधि नभ-गंगा की

कठिन शब्दों के अर्थ:
आदमी का अनुपात = आदमी का अस्तित्व । अनगिन = असंख्य। परिधि = सीमा, घेरा। नभ गंगा = आकाश गंगा।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश प्रगतिवादी कवि गिरिजा कुमार माथुर द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘शिलापंख चमकीले,’ में संकलित कविता ‘आदमी का अनुपात’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने मानव की मानव के प्रति संकीर्ण सोच और व्यक्तिवादिता पर प्रकाश डालते इसे मानवता के कल्याण के लिए घातक बताया है।

व्याख्या:
कवि आदमी के अस्तित्व की विराट ब्रह्मांड से तुलना करते हुए कहता है कि दो व्यक्ति कमरे में रहते हैं। आकार की दृष्टि से वे कमरे से भी छोटे हैं। कमरा घर में है, घर मुहल्ले में, मुहल्ला नगर में, नगर प्रदेश (राज्य) में, प्रदेश देश में, देश पृथ्वी पर और पृथ्वी असंख्य नक्षत्रों की तुलना में बहुत छोटी प्रतीत होती है और आकाश गंगा अपनी सीमा में करोड़ों नक्षत्रों को समेटे हुए है।

विशेष:

  1. कवि ने इस विराट ब्रह्मांड में आदमी की स्थिति का मूल्यांकन किया है।
  2. भाषा तत्सम एवं भावपूर्ण प्रधान है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

2. लाखों ब्रह्माण्डों में
अपना एक ब्रह्माण्ड
हर ब्रह्माण्ड में
कितनी ही पृथ्वियाँ
कितनी ही भूमियाँ
कितनी ही सृष्टियाँ
यह है अनुपात
आदमी का विराट में।

कठिन शब्दों के अर्थ:
ब्रह्माण्ड = सम्पूर्ण विश्व।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गिरिजा कुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘आदमी का अनुपात’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने आदमी की वास्तविकता चित्रित की है।

व्याख्या:
विराट स्वरूप ब्रह्माण्ड के सामने आदमी को बहुत छोटा बतलाते हुए कवि कहता है कि संसार में लाखों ब्रह्माण्ड हैं जिनमें आदमी का भी एक ब्रह्माण्ड है, जिसमें वह रहता है। हर ब्रह्माण्ड में कितनी ही पृथ्वियाँ हैं, कितनी ही भूमियाँ हैं और कितनी ही सृष्टियाँ हैं, अतः आदमी का ब्रह्माण्ड इन ब्रह्माण्डों के सामने बहुत छोटा है। वह उसकी बराबरी कभी नहीं कर सकता।

विशेष:

  1. मनुष्य की अकिंचन स्थिति का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा सहज तथा भावपूर्ण है।

3. इस पर भी आदमी
ईर्ष्या, अहं, स्वार्थ, घृणा, अविश्वास लीन
संख्यातीत शंख-सी दीवारें उठाता है
अपने को दूजे का स्वामी बताता है
देशों की कौन कहे
एक कमरे में
दो दुनियां रचाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
लीन = लगा हुआ, मस्त। संख्यातीत = अनगिनत।

प्रसंग:
प्रस्तुत पक्तियाँ गिरिजा कुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘आदमी का अनुपात’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने आदमी की वास्तविकता चित्रित की है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि यह जान लेने पर भी कि आदमी उस विराट के आगे बहुत छोटा है, वह ईर्ष्या, अहंकार स्वार्थ, घृणा और अविश्वास में डूबा रहता है और अनगिनत शंख के समान कठोर दीवारें खड़ी करता है अर्थात् मानवता के विकास में अनेक बाधाएँ खड़ी करता है। वह अपने को दूसरों का स्वामी बताता है। ऐसी हालत में देशों की बात कौन कहे आदमी एक कमरे में भी दो दुनिया बनाता है अर्थात् एक कमरे में रहने वाले दो व्यक्ति भी मिल कर नहीं रह सकते। दोनों ही अपने-अपने रास्ते पर चलते हैं, एक-दूसरे से परे रहते हैं। मानव कल्याण के लिए यह स्थिति उपयुक्त नहीं है।

विशेष:

  1. मनुष्य अपने अहंकार के कारण ही परस्पर झगड़ता रहता है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है।

पन्द्रह अगस्त

1. आज जीत की रात
पहरुए सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंजिल का छोर
इस जन-मंथन में उठ आई
पहली रत्न हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता डोर
क्योंकि नहीं मिट याई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि महान रहना
पहरुए, सावधान रहना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
जीत की रात = स्वतन्त्रता प्राप्ति की रात। पहरुए = देश वासी, देश के रक्षक। सावधान रहना = सचेत रहना। अचल = स्थिर। छोर = किनारा। हिलोर = तरंग। जीवन-मुक्ता = जीवन रूपी मोतियों की। विगत = बीती हुई। साँवली-अँधेरी = प्राचीन दुःखों और कष्टों भरा गुलामी का इतिहास । जल-मंथन = जन आन्दोलन। कोर = किनारा। अंबुधि = समुद्र।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजा कुमार माथुर जी की काव्यकृति ‘धूप के धान’ में संकलित कविता ‘पन्द्रह अगस्त’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद बाहरी ओर भीतर शत्रुओं से सावधान रह कर स्वतन्त्रता की रक्षा करने की बात कही है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि आज जीत की रात है अर्थात् वर्षों की गुलामी के बाद संघर्ष करके हम ने स्वतन्त्रता प्राप्त की है अतः हे देशवासियो ! इस स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए तुम सावधान अर्थात् सचेत रहना। देश के द्वार खुल गए हैं अर्थात् देश पराधीनता से मुक्त हो गया है इसलिए तुम स्थिर दीपक बन कर रहना। इन नए स्वर्ग का अर्थात् स्वतन्त्र भारत का यह पहला चरण है और लक्ष्य का प्रारम्भ है। इस जन आन्दोलन से अर्थात् जनता के निरन्तर संघर्ष से स्वतन्त्रता की यह रत्नों से युक्त लहर उठी है। अभी जीवन रूपी मोतियों के इस सूत्र में अनेक मोती पिरोये जाने शेष हैं। क्योंकि अभी तक बीते हुए काले किनारे अर्थात् परतन्त्रता के दिनों के दुःख भरे चिह्न बाकी हैं। अतः हे भारतवासियो ! समय की पतवार लेकर महान् समुद्र के समान बन कर रहना है। हे भारतवासियो ! तुम्हें अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए जागरूक रहना है।

विशेष:

  1. कवि देशवासियों को अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सावधान रहने के लिए कह रहा है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान भावपूर्ण है। रूपक अलंकार है।

2. विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभजन बनकर चलती
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्न चिह्न बन खड़ी हो गई
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठत है तूफान, इन्दु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
विषम श्रृंखलाएँ = पराधीनता की भयानक जंजीरें। प्रभंजन = आँधी, तूफान । पुराने सिंहासन = पुरानी मान्यताएँ या पुराने साम्राज्य-अंग्रेज़ी शासक। टूट रही प्रतिमाएँ = मूर्तियाँ टूट रही हैं अर्थात् अंग्रेजी शासन के चिह्न नष्ट हो रहे हैं। इंदु = चन्द्रमा। दीप्तिमान रहना = जग मगाते रहना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गिरिजा-कुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘पन्द्रह अगस्त’ से ली गई हैं, जिसमें कवि देशवासियों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि पराधीनता की भयानक जंजीरें टूट गई हैं-भारत अब स्वतन्त्र हो गया है और निर्माण और प्रगति के सारे मार्ग खुल गए हैं किन्तु अभी तक बाहरी शत्रु जो हमारी सीमाओं पर खड़ा है कि जब भी हम असावधान हुए वह आक्रमण कर सकता है। जो तूफ़ानी हवा बन कर बह रहा है। आज हमारी सीमाएँ प्रश्न चिह्न बन कर खड़ी हो गई हैं। ये सीमाएँ हमारे निकट आ गई हैं। आज भले ही अंग्रेजी शासन की सभी मूर्तियाँ टूट रही हैं अर्थात् उसके सभी चिह्न नष्ट हो गए हैं किन्तु भीतरी शत्रु-अभावग्रस्तता, ग़रीबी, बेरोज़गारी, साम्प्रदायिक वैमनस्य की भावना रूपी तूफान अभी उठ रहा है। अतः हे चन्द्रमा ! तुम जगमगाते रहना। हे भारतवासियो ! तुम इन बाहरी और भीतरी शत्रुओं से सावधान रहना, जागरूक रहना।

विशेष:

  1. कवि ने देशवासियों को बाहरी तथा आंतरिक शत्रुओं से सावधान रहने के लिए कहा है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर

3. ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से मृत है समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई जिन्दगी
यह विश्वास अमर है
जनगंगा में ज्वार,
लहर, तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
डगर = रास्ता। शत्रु = अंग्रेज़। शोषण = दमन। मृत = मुर्दा । ज्वार = तूफान। प्रवाहमान = गतिशील।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गिरिजा कुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘पन्द्रह अगस्त’ से ली गई हैं, जिसमें कवि देशवासियों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि स्वतन्त्रता प्राप्त करके हमारी मशाल ऊँची हो गई है किन्तु आगे रास्ता बड़ा कठिन है। अंग्रेज़ रूपी शत्रु तो चले गए हैं परन्तु अभी उनका प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ तात्पर्य यह है कि भारतीय स्वतन्त्रता अभी तक पूरी तरह भयमुक्त नहीं हुई है, अभी तक बाहरी और भीतरी शत्रु का भय बना हुआ है। हमारा समाज अंग्रेज़ी दमन के कारण मुर्दे के समान हो चुका है.। इस पर हमारा अपना घर भी कमज़ोर है किन्तु हम में एक नई ज़िन्दगी आ रही है यह अमर-विश्वास है। आज जनता रूपी गंगा में तूफान उठ रहा है अतः अरी लहर तुम गतिशील रहना। हे भारतवासियो ! अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए तुम सदा सावधान रहना, जागरूक रहना।

विशेष:

  1. कवि देशवासियों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेरित किया है।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। उद्बोधनात्मक स्वर है।

गिरिजा कुमार माथुर Summary

गिरिजा कुमार माथुर जीवन परिचय

गिरिजा कुमार माथुर जी का जीवन परिचय लिखिए।

गिरिजा कुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त, सन् 1919 ई० को मध्यप्रदेश के अशोक नगर में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम० ए० तथा एल० एल० बी० पास करके आपने झाँसी में कुछ समय तक वकालत की और बाद में आकाशवाणी में नौकरी कर ली। सन् 1950 में आपको संयुक्त राष्ट्र संघ में सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया। सन् 1953 में वापस आकर इन्हें आकाशवाणी लखनऊ के उपनिदेशक पद पर नियुक्त किया गया। इन्होंने आकाशवाणी जालन्धर में भी कार्य किया और दिल्ली केन्द्र से उप महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। इनका निधन 10 जनवरी, सन् 1994 को नई दिल्ली में हो गया था।

इनकी नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बंध नहीं सका, भीतरी नदी की यात्रा, जन्म कैद आदि प्रमुख रचनाएँ हैं।

गिरिजा कुमार माथुर कविताओं का सार

आदमी का अनुपात कविता में कवि ने अहंकारी मनुष्य को बताया है कि लाखों ब्रह्मांडों के मध्य उसका अनुपात कितना तुच्छ है, फिर भी वह स्वार्थवश अपनी अलग दुनिया रचना चाहता है, यहाँ तक कि एक कमरे में दो आदमी भी मिलकर नहीं रह पाते। ‘पन्द्रह अगस्त’ कविता ने देशवासियों को अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सचेत रहने के लिए कहा है क्योंकि हमारी स्वतंत्रता पर बाहरी सीमा से शत्रु तथा आंतरिक रूप से देश की समस्याएं आक्रमण कर सकती हैं। इसलिए हमें सदा सजग प्रहरी बनकर इनसे जूझना होगा।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

Hindi Guide for Class 12 PSEB शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘चलना हमारा काम है’ कविता आशा और उत्साह की कविता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने गतिशीलता को ही जीवन माना है। स्थिरता को उसने मृत्यु समान माना है। गतिशील जीवन ही जीवन पथ में आने वाली बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने की हिम्मत रखता है। जब व्यक्ति के पैरों में चलने की शक्ति है तो वह किनारे पर खड़ा क्यों देखता रहे । जीवन में सुख-दुःख, आशा-निराशा तो आते ही रहते हैं किन्तु जीवन रुकना नहीं चाहिए। स्पष्ट है कि कविता में आशा और उत्साह बनाए रखने की बात कही गई है।

प्रश्न 2.
‘चलना हमारा काम है’ कविता का सार लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में गतिशीलता को जीवन और स्थिरता को मृत्यु बताया गया है। गतिशील जीवन में बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने की हिम्मत होती है। कवि कहते हैं कि जब मेरे पैरों में चलने की शक्ति है तो मैं दूर खड़ा क्यों देखता रहूँ। जब तक मैं अपनी मंज़िल न पा लूँ मैं रुकूँगा नहीं। जीवन में सुख-दुःख तो आते ही रहते हैं किन्तु भाग्य को दोष देकर मुझे रुकना नहीं है चलते ही जाना है। भले ही जीवन की इस यात्रा में कुछ लोग रास्ते से ही लौट गए किंतु जीवन तो निरंतर चलता ही रहता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

प्रश्न 3.
‘मानव बनो, मानव ज़रा’ कविता का शीर्षक क्या सन्देश देता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता का शीर्षक यह सन्देश देता है कि मानव कल्याण के लिए जियो अथवा अपना जीवन लगाओ ताकि मानवता तुम पर गर्व कर सके।

प्रश्न 4.
‘मानव बनो, मानव जरा’ कविता का सार लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में मनुष्य को आत्मनिर्भर होने की बात कही गई है। कवि का कहना है प्यार करना और उसमें खुशामद करना तथा किसी दूसरे का आश्रय ग्रहण करना तुम्हारी भूल है, इससे कोई लाभ न होगा। न ही आँसू बहाने और न ही किसी के आगे हाथ फैलाने से कोई लाभ होगा। कष्टों में हाय तौबा करना या कराहना तुम्हें शोभा नहीं देता। अपने इन आँसुओं का सदुपयोग करते हुए विश्व के कण-कण को सींच कर हरा-भरा कर देना है। अब पछताओ मत बल्कि यदि तुम्हें जलना ही है तो अपनी भस्म से इस धरती को उपजाऊ बनाओ।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया।
जो बंद कर पलकें सहज
दो घूट हँस कर पी गया।
जिसमें सुधा मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि जो मिट जाता है वही जी जाता है। जो स्वाभाविक रूप से आँखें बन्द करके सुख-दुःख ऐसे दो घुट हँसकर पी जाता है जिसमें अमृत मिश्रित विष होता है अर्थात् सुख के साथ दुःख भी होते हैं वही वास्तव में साकी का दिया हुआ शराब का प्याला है।

प्रश्न 6.
उफ़ हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हें देता नहीं
इन आँसुओं से सींच कर दो
विश्व का कण-कण हरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि कष्ट में कराहना-हाय तौबा करना तुम्हें शोभा नहीं देता बल्कि तुम्हें चाहिए कि अपने इन आँसुओं से सींच कर विश्व के कण-कण को हरा कर दो अर्थात् धरती का कण-कण अपनी संवेदना से भर दो। अत: हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बन कर देखो।

PSEB 12th Class Hindi Guide शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने उच्च शिक्षा किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी?
उत्तर:
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 2.
सुमन जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर प्राप्त हुआ था?
उत्तर:
मिट्टी की बारात पर।

प्रश्न 3.
कवि के विचार से जीवन और मृत्यु क्या है?
उत्तर:
कवि के विचार से गतिशीलता जीवन है और स्थिरता मृत्यु है।

प्रश्न 4.
इन्सान को अपने जीवन में शक्ति की प्राप्ति किससे होती है?
उत्तर:
इन्सान को गतिशील जीवन में बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने से शक्ति प्राप्त होती है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

प्रश्न 5.
कवि के सामने तय करने के लिए कैसा रास्ता पड़ा है ?
उत्तर:
लंबा रास्ता।

प्रश्न 6.
जीवन की राह को किस तरह आसानी से काटा जा सकता है?
उत्तर:
एक-दूसरे से सुख-दुख को बांटते हुए जीवन की राह को आसानी से काटा जा सकता है।

प्रश्न 7.
जीवन की राह पर बढ़ते हुए इन्सान सदा किस से घिरा रहता है?
उत्तर:
वह निराशा से घिरा रहता है।

प्रश्न 8.
इन्सान का मूल कार्य क्या है?
उत्तर:
जीवन की राह में आगे बढ़ते जाना।

प्रश्न 9.
कवि ने दुनिया को क्या कहा है?
उत्तर:
सुंदर संसार रूपी सागर।

प्रश्न 10.
संसार में सभी को क्या सहने ही पड़ते हैं ?
उत्तर:
संसार में सभी को दु:ख सहने ही पड़ते हैं।

प्रश्न 11.
कवि पूर्णता की खोज में कहाँ-कहाँ भटकता रहा?
उत्तर:
कवि पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता रहा।

प्रश्न 12.
जीवन की राह में सफलता की प्राप्ति किसे होती है?
उत्तर:
जीवन की राह में सफलता की प्राप्ति निरंतर आगे बढ़ने वालों को ही प्राप्त होती है।

प्रश्न 13.
कवि ने इन्सान को क्या न करने की सलाह दी है?
उत्तर:
कवि ने इन्सान को कष्टों से डरने, व्यर्थ पछताने, रोने-पीटने और निराशावादी न बनने की सलाह दी है।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 14.
जब तक न मंजिल पा सकूँ…………
उत्तर:
तब तक न मुझे विराम है।

प्रश्न 15.
इस विशद विश्व प्रवाह में,
उत्तर:
किसको नहीं बहना पड़ा।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

प्रश्न 16.
कर दो धरा को उर्वरा,
उत्तर:
मानव बनो, मानव बनो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
अपने हृदय की राख से धरती को उपजाऊ बना दो।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
कवि जीवन की पूर्णता के लिए दर-दर भटकता फिरा।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
कवि अपूर्ण जीवन लेकर कवि सब कुछ प्राप्त करता रहा।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 20.
आपस में कहने-सुनने से बोझ कम नहीं होता।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. सुमन को ‘मिट्टी की बारात’ कृति पर कौन सा पुरस्कार मिला ?
(क) साहित्य अकादमी
(ख) पद्मश्री
(ग) पद्मभूषण
(घ) पद्मविभूषण
उत्तर:
(क) साहित्य अकादमी

2. कवि को देव पुरस्कार किस काव्य संग्रह पर मिला ?
(क) आपका विश्वास
(ख) विश्वास बढ़ता ही गया
(ग) विश्वास
(घ) धूप
उत्तर:
(ख) विश्वास बढ़ता ही गया

3. कवि के अनुसार गतिशीलता क्या है ?
(क) जीवन
(ख) भाव
(ग) भावना
(घ) चलना
उत्तर:
(क) जीवन

4. कवि के अनुसार स्थिरता क्या है ?
(क) ठहरना
(ख) मृत्यु
(ग) जीवन
(घ) जीवन-मृत्यु
उत्तर:
(ख) मृत्यु

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

5. कवि के अनुसार संसार में वह किसकी खोज में दर-दर भटकता है ?
(क) पूर्णता
(ख) अपूर्णता
(ग) ईश्वर
(घ) शांति
उत्तर:
(क) पूर्णता

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ सप्रसंग व्याख्या

चलना हमारा काम है !

1. गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर-दर खड़ा,
है रास्ता इतना पड़ा।
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक न मुझे विराम है,
चलना हमारा काम है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
गति = चाल। प्रबल = बलशाली, ज़ोर की। मंज़िल = ठिकाना, लक्ष्य। विराम = रुकना, आराम।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि गतिशीलता जीवन है और स्थिरता मृत्यु । गतिशील जीवन में बाधाओं को लाँघते हुए आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जीवन चलते रहने का नाम है रुकने का नहीं। इसी तथ्य की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं कि जब मेरे पैरों में चलने की बलशाली शक्ति है तो फिर मैं क्यों जीवन-पथ पर जगह-जगह रुकता रहूँ। जब मैं यह जानता हूँ कि मेरे सामने बड़ा लम्बा रास्ता पड़ा है तो फिर मैं क्यों रुकूँ। मुझे तो तब तक चलना होगा जब तक मैं अपनी मंज़िल, अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लूँ। मुझे रुकना नहीं है क्योंकि चलना ही हमारा काम है।

विशेष:

  1. कवि का मानना है जब तक मनुष्य को अपना लक्ष्य न प्राप्त हो जाए, उसे निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।
  3. उद्बोधनात्मक शैली है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया,
कुछ बोझ अपना बँट गया।
अच्छा हुआ तुम मिल गई,
कुछ रास्ता ही कट गया।
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है।
चलना हमारा काम है!

कठिन शब्दों के अर्थ:
राही = रास्ते पर चलने वाला।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य को निरंतर गतिमान रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जीवन की डगर पर चलते समय अपनी जीवन संगिनी का साथ होने की बात कह रहे हैं। कवि कहते हैं कि जीवन का रास्ता तब कटता है जब साथी मुसाफिरों से व्यक्ति कुछ अपने दिल की बात या दु:ख दर्द की बात कहे और कुछ उनके दुःख दर्द की बात सुने। इस तरह रास्ता आसानी से कट जाता है। जीवन यात्रा में मनुष्य यदि दूसरों से सुख-दुःख बाँटता हुआ चले तो रास्ता आसानी से कट जाता है। कवि अपनी प्रियतमा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि अच्छा हुआ तुम मुझे मिल गईं, तुम्हारे साथ के कारण मेरा रास्ता तो सुखपूर्वक कट गया। क्या रास्ते में ही मैं अपना परिचय तुम्हें दूँ ? मेरा परिचय तो बस इतना ही समझ लो कि मैं भी तुम्हारी तरह रास्ता चलने वाला एक राही हूँ। हमें तो बस चलते ही जाना है क्योंकि चलना ही हमारा काम है।

विशेष:

  1. जीवन-संघर्ष में साथी के मिल जाने से डगर सहज हो जाती है।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।

3. जीवन अपूर्ण लिए हुए,
पाता कभी, खोता कभी
आशा-निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी,
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है।
चलना हमारा काम है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
अपूर्ण जीवन = अधूरा जीवन । पाना = प्राप्त करना। खोना = गँवाना। गति-मति = चाल और बुद्धि। अवरुद्ध = रुका हुआ, बन्द। आठो याम = आठों पहर-दिन के चौबीस घंटों में आठ पहर होते हैं, हर समय।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य को निरंतर गतिमान रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि अधूरा जीवन लेकर मनुष्य कभी कुछ प्राप्त कर लेता है और कभी कुछ खो देता है। वह सदा आशा-निराशा से घिरा रहता है। कभी वह हँसता है तो कभी रोता है अर्थात् कभी उसके जीवन में खुशियाँ आती हैं तो कभी दुःख आते हैं। इन सब के होते हुए यदि आठों पहर इस बात का ध्यान रहे कि कहीं हमारी चाल या हमारी बुद्धि में कोई रुकावट न आए तभी हम जीवन रूपी मार्ग पर अच्छी तरह चल सकेंगे। क्योंकि चलते रहना ही हमारा काम है।

विशेष:

  1. मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण है। ओज गुण प्रेरक स्वर है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

4. इस विशद विश्व प्रवाह में,
किस को नहीं बहना पड़ा।
सुख-दुःख हमारी ही तरह
किस को नहीं सहना पड़ा।
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ;‘मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है !

कठिन शब्दों के अर्थ:
विशद = स्वच्छ, सुन्दर। विश्व-प्रवाह = संसार रूपी सागर का बहाव। व्यर्थ = बेकार में। विधाता = भाग्य। वाम = उलटा, विपरीत। – प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि इस सुन्दर संसार रूपी सागर के स्वच्छ प्रवाह में किस को नहीं बहना पड़ा अर्थात् जिसने संसार में जन्म लिया है उसे संसार के दुःख-सुख तो भोगने ही पड़े हैं। हमारी तरह हर किसी को दुःख सहने पड़े हैं। फिर मैं ही बेकार में यह कहता फिरूँ कि भाग्य मेरे विपरीत है अर्थात् मेरा मन्द भाग्य है। हमारा काम तो चलते ही रहना है।

विशेष:

  1. संसार में सबको सुख-दुःख सहना पड़ता है।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।

5. मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा,
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा,
पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है।
चलना हमारा काम है !

कठिन शब्दों के अर्थ:
दर-दर भटकना = जगह-जगह मारे-मारे फिरना। पग = कदम। रोड़ा अटकना = बाधा पड़ना, रुकावट पड़ना। निराश = आशा छोड़ना, ना उम्मीद होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि मैं तो जीवन की पूर्णता की खोज में जगह-जगह मारा-मारा फिरता रहा। तब मैंने पाया कि मुझे हर कदम पर कुछ न कुछ रुकावटें आती रहीं, परन्तु इन रुकावटों से विघ्न बाधाओं से क्या मुझे निराश हो जाना चाहिए ? अर्थात् कभी नहीं क्योंकि जीवन तो इसी का नाम है। अतः हमें विघ्न बाधाओं से निराश नहीं होकर जीवन में सदा चलते रहना चाहिए क्योंकि जीवन तो चलते रहने का नाम है।

विशेष:

  1. मनुष्य को बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार हैं।

6. कुछ साथ में चलते रहे,
कुछ बीच ही से फिर गये,
पर गति न जीवन की रुकी,
पर जो गिर गये सो गिर गये
चलता रह शाश्वत, उसी की सफलता अभिराम है।
चलना हमारा काम है !

कठिन शब्दों के अर्थ:
फिर गये = लौट गये। शाश्वत = निरन्तर। अभिराम = सुन्दर।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गति को जीवन माना है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं जीवन की इस यात्रा में कुछ लोग साथ-साथ चलते रहे, कुछ बीच से ही निराश-हताश होकर लौट गये परन्तु जीवन की गति कभी रुकी नहीं। जीवन-यात्रा तो निरन्तर चलती रही जो लोग मार्ग में गिर गये वह समझो गिर गये, नष्ट हो गये। किन्तु जो निरन्तर चलता रहा है उसी की सफलता सुन्दर कहलाती है। अत: चलते जाओ क्योंकि चलना ही हमारा काम है।

विशेष:

  1. जीवनपथ पर साथी से मिलते-बिछड़ते रहते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है।

7. मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
जो बन्दकर पलकें सहज
दो घूट हँसकर पी गया
जिसमें सुधा-मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है।
चलना हमारा काम है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
फ़कत = केवल। सहज = स्वाभाविक रूप से। सुधा = अमृत। गरल = विष। साकिया = शराब परोसने वाली लड़की। जाम = प्याला।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गति को जीवन माना है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि जो मिट जाता है वही जी जाता है। जो स्वाभाविक रूप से आँखें बन्द करके सुख-दुःख ऐसे दो घुट हँसकर पी जाता है जिसमें अमृत मिश्रित विष होता है अर्थात् सुख के साथ दुःख भी होते हैं वही वास्तव में साकी का दिया हुआ शराब का प्याला है।

विशेष:

  1. कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति जीवन में सुख-दुःख को सहज भाव से लेता है। उसी का जीवन है।
  2. भाषा उर्दू शब्दों युक्त भावपूर्ण है।

मानव बनो, मानव ज़रा

1. है भूल करना प्यार भी
है भूल यह मनुहार भी
पर भूल है सबसे बड़ी
करना किसी का आसरा
मानव बनो, मानव ज़रा।

कठिन शब्दों के अर्थ:
मनुहार = खुशामद, चापलूसी। आसरा = सहारा, आश्रय।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘मानव बनो, मानव जरा’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को आत्म-निर्भर होने की बात कही है। कवि का मानना है कि आँसू बहाने, किसी का आश्रय ग्रहण करने या किसी के सामने हाथ फैलाने का कोई लाभ नहीं है। अगर जलना ही है तो धरती के कल्याण के लिए जलो।

व्याख्या:
कवि मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने का संदेश देते हुए कहते हैं कि प्यार करना भी भूल है और किसी की खुशामद करना भी भूल है। परन्तु इन सबसे बड़ी भूल है किसी दूसरे का आश्रय लेना अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो, ज़रा मानव बन कर देखो।

विशेष:

  1. कवि ने आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।

2. अब अश्रु दिखलाओ नहीं
अब हाथ फैलाओ नहीं
हुंकार कर दो एक जिससे
थरथरा जाए धरा
मानव बनो, मानव ज़रा।

कठिन शब्दों के अर्थ:
हुँकार = गर्जन। धरा = पृथ्वी।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो जरा’ से ली गई हैं, जिसमे कवि ने. मनुष्य का मानवतावाद का संदेश दिया है।

व्याख्या:
कवि मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने का सन्देश देते हुए कहता है कि अब तुम आँसू बहा कर मत दिखाओ और न ही किसी के सामने हाथ फैलाओ बल्कि ऐसी गर्जना करो कि जिस से पृथ्वी काँप उठे। अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो, ज़रा मानव बनकर देखो।

विशेष:

  1. मनुष्य को किसी के सम्मुख हाथ नहीं फैलाना चाहिए।
  2. भाषा सरल भावपूर्ण हैं।

3. उफ़ हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हें देता नहीं
इन आँसुओं से सींच कर दो
विश्व का कण-कण हरा
मानव बनो, मानव ज़रा।

कठिन शब्दों के अर्थ:
उफ़ हाय करना = कष्ट में कराह उठना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो ज़रा’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य का मानवतावाद का संदेश दिया है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि कष्ट में कराहना-हाय तौबा करना तुम्हें शोभा नहीं देता बल्कि तुम्हें चाहिए कि अपने इन आँसुओं से सींच कर विश्व के कण-कण को हरा कर दो अर्थात् धरती का कण-कण अपनी संवेदना से भर दो। अत: हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बन कर देखो।

विशेष:

  1. मनुष्य को दुःख में धैर्य धारण करना चाहिए।
  2. भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

4. अब हाथ मत अपने मलो
जलना अगर ऐसे जलो
अपने हृदय की भस्म से
कर दो धरा को उर्वरा
मानव बनो, मानव ज़रा।

कठिन शब्दों के अर्थ:
उर्वरा = उपजाऊ। हाथ मलना = पछताना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो ज़रा’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य का मानवतावाद को संदेश दिया है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि अब पछताने से कोई लाभ न होगा। तुम्हें यदि जलना ही है तो अपने हृदय की भस्म से धरती को उपजाऊ बना दो अर्थात् धरती के कल्याण के लिए जलो जिस से मानवता तुम पर गर्व कर सके। अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बनकर तो देखो।

विशेष:

  1. मनुष्य को लोककल्याण करने की प्रेरणा दे रहा है।
  2. भाषा सरल मुहावरेदार है। उद्बोधनात्मक स्वर है।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Summary

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जीवन परिचय

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी का जीवन परिचय दीजिए।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गाँव में 16 अगस्त, सन् 1916 ई० को हुआ था। आप की आरम्भिक शिक्षा रीवां और ग्वालियर में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आपने हिन्दी विषय में एम० ए० और डी० लिट० की उपाधियां प्राप्त की। इन्होंने हाई स्कूल के अध्यापक पद से लेकर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति पद पर कार्य किया। सन् 1956-61 तक आपने नेपाल में भारत सरकार के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के तौर पर कार्य किया। आपको ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ काव्य संग्रह पर देव पुरस्कार, ‘पर आँखें नहीं भरीं’ पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नवीन पुरस्कार, ‘मिट्टी की बारात’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, तथा सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनकी अन्य रचनाएँ हिल्लोक, प्रणय सृजन, जीवन के गान हैं।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ कविताओं का सार

चलना हमारा काम है कविता ने मनुष्य को सांसारिक जीवन में आने वाले सुख-दुःखों को समभाव से ग्रहण करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी है क्योंकि कठिनाइयों का सामना करना ही जीवन है। कुछ साथी मिलेंगे, कुछ बिछड़ेंगे-परन्तु उत्साह और हिम्मत से आगे बढ़ते रहना चाहिए।

‘मानव बनो, मानव जरा’ कविता में कवि ने मनुष्य को आंसू बहाने, पराश्रित होने घबरा जाने के स्थान पर आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है तथा संसार को संवेदनापूर्ण बनाकर लोककल्याण का मार्ग अपनाने पर बल दिया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

Hindi Guide for Class 12 PSEB सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
‘साँप’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता आधुनिक नागरिक सभ्यता पर एक तीखा व्यंग्य है। कवि के अनुसार आज का सभ्य नगर निवासी पूरी तरह आत्म केन्द्रित हो चुका है। स्वार्थपरता उस पर इस सीमा तक हावी हो चुकी है कि उसकी सहज मानवीयता पूरी तरह लुप्त हो गई है। यही नहीं उसे दूसरों को पीड़ित करने और यातना देने में विशेष सुख प्राप्त होने लगा है।

प्रश्न 2.
‘साँप’ कविता तथाकथित सभ्य व नगर समाज पर एक करारी चोट है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर:
हम कवि से पूर्णतः सहमत हैं क्योंकि नगर में रहने वाला तथाकथित सभ्य समाज आज इतना स्वार्थी और आत्म केन्द्रित हो गया है कि उसे किसी दुःख दर्द की परवाह ही नहीं। भौतिकवाद और नकली चेहरे का मुखौटा ओढ़े हुए वह भीतर से इतना विषैला हो गया है जितना जंगल में रहने वाला साँप वह दूसरों को उसमें से चोट पहुँचाने में जरा भी नहीं हिचकता।

प्रश्न 3.
‘जो पुल बनाएँगे’ कविता में कवि ने प्राचीन प्रतीकों के माध्यम से आज के युग सत्य को प्रकट किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि ने प्राचीन प्रतीकों नल-नील, श्रीराम और रावण के प्रतीकों द्वारा आज के इस सत्य का उद्घाटन किया है कि पुल बनाने वाले मजदूरों का नाम नहीं होता, नाम होता है इंजीनियर का। लड़ती सेना है नाम सरदार का होता है। वास्तविक निर्माता इतिहास के पन्नों में मिट कर रह जाता है। इतिहास में उसका कोई उल्लेख नहीं होता। नींव की ईंट की भूमिका को नज़रअंदाज कर दिया जाता है और उस नींव पर खड़े भवन को याद किया जाता है। लोग ताजमहल को याद करते हैं उसे बनाने वाले मजदूरों, कारीगरों को नहीं, बस यही कहते हैं कि इसे शाहजहाँ ने बनवाया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

प्रश्न 4.
‘साँप’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया गया है। आधुनिक सभ्यता में व्यक्ति स्वार्थी हो गया है जिसके कारण वह जंगली साँप की तरह एक-दूसरे को काटने और निगल जाने पर उतारू हो गया है। कवि के अनुसार इस प्रवृत्ति का आधार वर्तमान पूँजी व्यवस्था है और शोषण उसे सुरक्षित रखता है।

प्रश्न 5.
‘जो पुल बनाएँगे’ कविता का भाव अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में इतिहास के एक सत्य का उद्घाटन किया है कि इतिहास का वास्तविक निर्माता अनाम ही रह जाता है। नींव की ईंट की भूमिका को इतिहास नज़रअन्दाज कर देता है। ‘लड़े फौज नाम हो सरदार का’ वाली बात हो जाती

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं……विष कहाँ पाया ?”
उत्तर:
कवि साँप को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम तो जंगली हो अर्थात् जंगलों में रहने वाले प्राणी हो अतः तुम अभी तक अपने को सभ्य नहीं कह सकते क्योंकि तुम्हें नगरों में बसना नहीं आया और नगरों में बसने वाले ही अपने आप को सभ्य कहलाते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है आधुनिक सभ्यता और संस्कृति के केन्द्र नगर में साँप पूरी तरह सभ्य नहीं हो सका अर्थात् साँप ने अभी तक नागरिक सभ्यता को स्वीकार नहीं किया। .. कवि साँप से पूछता है तुम सभ्य भी नहीं हुए, नगरों में बसना भी तुम्हें नहीं आया। फिर तुमने विष कहाँ से पाया है और कहाँ से दूसरों को काटने की कला सीखी ? क्योंकि ये गुण तो सभ्य कहलाने वाले शहरियों में हैं। तात्पर्य यह है कि नागरिक सभ्यता को स्वीकार किये बिना उसने कैसे शहरी जीवन की पूंजीवादी शोषण की प्रवृत्ति को पहचान लिया।

प्रश्न 7.
जो पुल बनाएँगे……..बन्दर कहलाएँगे।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि जो लोग पुल बनाएँगे वे अवश्य ही पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ उस पुल से पार हो जाएँगी और रावण मारे जाएँगे तथा श्रीराम विजयी होंगे। परन्तु पुल का निर्माण करने वाले नल और नील इतिहास में बन्दर ही कहलाएँगे। कवि का संकेत रामेश्वरम् में समुद्र पर बनाए गए पुल की ओर है जिसको पार कर श्रीराम की सेना ने रावण पर विजय प्राप्त की। किन्तु इतिहास में पुल निर्माता अनाम ही रह गए।

PSEB 12th Class Hindi Guide सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अज्ञेय जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
7 मार्च, सन् 1911 ई० को बिहार के जिला देवरिया के ‘कसया’ में।

प्रश्न 2.
अज्ञेय जी का देहावसान कब हुआ था?
उत्तर:
4 अप्रैल, सन् 1987 में।

प्रश्न 3.
अज्ञेय का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
सच्चिदानन्द हीरानंन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

प्रश्न 4.
अज्ञेय के द्वारा रचित चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
कितनी नावों में कितनी बार, हरी घास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, पूर्वा।

प्रश्न 5.
अज्ञेय के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नदी के द्वीप, शेखर एक जीवनी।

प्रश्न 6.
‘साँप’ कविता कैसी है?
उत्तर:
प्रयोगवादी-छोटी कविता।

प्रश्न 7.
‘साँप’ कविता की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
प्रतीकात्मक भाषा, व्यंग्यात्मक शैली।

प्रश्न 8.
कवि ने साँप के प्रतीक से क्या व्यक्त करने की कोशिश की है?
उत्तर:
आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव-मूल्यों पर खेद की अभिव्यक्ति।

प्रश्न 9.
कवि ने व्यंग्य से किसे पहचानने की तरफ संकेत किया है?
उत्तर:
कवि ने शहरी जीवन की पूँजीवादी शोषण प्रवृत्ति को पहचानने की तरफ संकेत किया है।

प्रश्न 10.
अपने आप को सभ्य कौन कहलाना चाहता है?
उत्तर:
नगरवासी।

प्रश्न 11.
पूर्ण रूप से आत्मकेंद्रित कौन हो चुके हैं ?
उत्तर:
स्वार्थ भावों से भरे हुए नगरवासी।

प्रश्न 12.
कवि ने ‘साँप’ कविता में किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर:
व्यंग्यात्मक शैली।

प्रश्न 13.
‘जो पुल बनायेंगे’ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
अज्ञेय जी।

प्रश्न 14.
कवि ने ‘जो पुल बनायेंगे’ कविता में किन के प्रति अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त किया है?
उत्तर:
मज़दूरों और शोषितों के प्रति।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
तब कैसे सीखा डसना…………
उत्तर:
विष कहां पाया?

प्रश्न 16.
सेनाएं हो जाएंगी पार………….
उत्तर:
मारे जायेंगे रावन।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

प्रश्न 17.
जो निर्माता रहे………….
उत्तर:
इतिहास में बंदर कहलायेंगे।]

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
साँप ने डसना और विष प्राप्त करना सीख लिया है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
पुल बनाने वाले अवश्य ही पीछे रह जाएंगे।
उत्तर:
हाँ।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
साँप कविता के कवि का नाम लिखें।
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

प्रश्न 2.
कवि अज्ञेय का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. अज्ञेय को ‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता पर पुरस्कार मिला ?
(क) ज्ञानपीठ
(ख) साहित्य अकादमी
(ग) पद्मश्री
(घ) पद्मभूषण।
उत्तर:
(क) ज्ञानपीठ

2. अज्ञेय किस काल के कवि माने जाते हैं ?
(क) प्रयोगवाद के
(ख) प्रगतिवाद के
(ग) छायावाद के
(घ) निराशावाद के।
उत्तर:
(क) प्रयोगवाद के

3. ‘सांप’ किस भाषा पर आधारित कविता है ?
(क) आशावाद
(ख) निराशावाद
(ग) व्यंग्य
(घ) हास्य।
उत्तर:
(ग) व्यंग्य

4. अज्ञेय को किसका प्रवर्तक कवि माना जाता है ?
(क) प्रगतिवाद का
(ख) प्रयोगवाद का
(ग) तार सप्तक का
(घ) छायावाद का।
उत्तर:
(ग) तार सप्तक का

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

5. ‘नदी के द्वीप’ किस विधा की रचना है ?
(क) काव्य
(ख) गद्य
(ग) उपन्यास
(घ) कहानी।
उत्तर:
(ग) उपन्यास

सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ सप्रसंग व्याख्या

साँप

साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछू-(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहाँ पाया?

प्रसंग:
‘साँप’ कविता प्रयोगवादी कविता के प्रवर्तक अज्ञेय जी की एक छोटी कविता है जो उनके काव्य संग्रह ‘इन्द्र धनुष रौंदे हुए’ में संकलित है। इस कविता में अज्ञेय जी ने आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया है। शहरी जीवन में आधुनिकता की विकृति सभ्यता के नाम पर व्यक्ति को अकेला छोड़ती हुई, पछाड़ती हुई तेजी से फैल रही है। आज का समाज भी उसी को नवीन संस्कृति मान कर प्राचीन संस्कारों, मूल्यों और आदर्शों को नकार रहा है।
साँप का प्रतीक लेकर नये व्यक्ति की व्याख्या में अज्ञेय जी ने आधुनिक नागरिक सभ्यता की प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है जिसका आधार पूँजीवादी व्यवस्था है और शोषण उसे सुरक्षित रखने का आधार।

व्याख्या:
कवि साँप को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम तो जंगली हो अर्थात् जंगलों में रहने वाले प्राणी हो अतः तुम अभी तक अपने को सभ्य नहीं कह सकते क्योंकि तुम्हें नगरों में बसना नहीं आया और नगरों में बसने वाले ही अपने आप को सभ्य कहलाते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है आधुनिक सभ्यता और संस्कृति के केन्द्र नगर में साँप पूरी तरह सभ्य नहीं हो सका अर्थात् साँप ने अभी तक नागरिक सभ्यता को स्वीकार नहीं किया। .. कवि साँप से पूछता है तुम सभ्य भी नहीं हुए, नगरों में बसना भी तुम्हें नहीं आया। फिर तुमने विष कहाँ से पाया है और कहाँ से दूसरों को काटने की कला सीखी ? क्योंकि ये गुण तो सभ्य कहलाने वाले शहरियों में हैं। तात्पर्य यह है कि नागरिक सभ्यता को स्वीकार किये बिना उसने कैसे शहरी जीवन की पूंजीवादी शोषण की प्रवृत्ति को पहचान लिया।

विशेष:

  1. कवि के कहने का भाव यह है कि अपने आप को सभ्य कहलाने वाला नगर निवासी पूरी तरह आत्म केन्द्रित हो चुका है। स्वार्थपरता उस पर इस सीमा तक हावी हो गयी है कि उसकी सहज मानवीयता पूर्ण रूप से लुप्त हो गई है। यही नहीं उसे तो दूसरों को पीड़ित करने और यातना देने में विशेष सुख प्राप्त होता है। इस तरह कवि ने आधुनिक सभ्यता के ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया है।
  2. भाषा प्रतीकात्मक तथा भावपूर्ण है। शैली व्यंग्यात्मक है।

जो पुल बनायेंगे

जो पुल बनायेंगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जायेंगे।
सेनाएं हो जायेंगी पार
मारे जायेंगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे,
इतिहास में
बन्दर कहलायेंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ:
अनिवार्यतः = अवश्य ही, यकीनन। जयी = विजेता। निर्माता = बनाने वाले।

प्रसंग:
‘जो पुल बनायेंगे’ कविता प्रयोगवादी कवि अज्ञेय जी के काव्य संग्रह ‘पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ’ में संकलित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने इतिहास के निर्माता अर्थात् नींव की ईंट के अनाम रह जाने की त्रासदी का उल्लेख किया है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जो लोग पुल बनाएँगे वे अवश्य ही पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ उस पुल से पार हो जाएँगी और रावण मारे जाएँगे तथा श्रीराम विजयी होंगे। परन्तु पुल का निर्माण करने वाले नल और नील इतिहास में बन्दर ही कहलाएँगे। कवि का संकेत रामेश्वरम् में समुद्र पर बनाए गए पुल की ओर है जिसको पार कर श्रीराम की सेना ने रावण पर विजय प्राप्त की। किन्तु इतिहास में पुल निर्माता अनाम ही रह गए।

विशेष:

  1. आधुनिक युग की भी यही त्रासदी है कि नींव की ईंट अर्थात् इतिहास निर्माता अनाम ही रह जाता है। आधुनिक युग में पुल बनाने वाले मजदूरों का कहीं नाम नहीं होता, नाम होता है तो इंजीनियर का।
  2. भाषा प्रतीकात्मक तथा भावपूर्ण है।

सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Summary

सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जीवन परिचय

‘अज्ञेय’ जी का जीवन परिचय दीजिए।

करतारपुर के भणोत सारस्वत ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखने वाले सच्चिदानंद का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 ई० को बिहार के जिला देवरिया के ‘कसया’ नामक स्थान पर हुआ। वहाँ इनके पिता हीरानन्द शास्त्री पुरातत्व विभाग में काम करते थे। पिता के साथ इन्होंने अनेक प्रदेशों का भ्रमण किया। इन्होंने सन् 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास करके यहीं से सन् 1929 में बी० एससी० की परीक्षा पास की। एम० ए० अंग्रेज़ी में दाखिला लिया किन्तु स्वतन्त्रता युद्ध में कूद पड़ने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और क्रान्तिकारी साथियों के साथ पकड़े गए।

इस अवधि में ये चार वर्ष तक जेल में भी रहे और यहीं से आपने अपना साहित्यिक जीवन आरम्भ किया। अपने जीवन में आपने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और अनेक नौकरियाँ की और छोड़ी तथा देश-विदेश की कई यात्राएँ कीं।

इन्हें इनकी काव्यकृति ‘आंगन के पार. द्वार’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘कितनी नावों में कितनी बार’ भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा इंटरनेशनल पोएट्री एवार्ड से सम्मानित किया गया था। 4 अप्रैल, सन् 1987 को अज्ञेय जी का निधन हो गया। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ, हरी घास पर क्षणभर, बाबरा अहेरी, पूर्वा इन्द्रधनुष रौंदे हुए तारसप्तक हैं। शेखर एक जीवनी तथा नदी के द्वीप उनके प्रमुख उपन्यास हैं।