PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 6 जयशंकर प्रसाद

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 जयशंकर प्रसाद Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 6 जयशंकर प्रसाद

Hindi Guide for Class 12 PSEB जयशंकर प्रसाद Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
मित्रता और शिष्टाचार में प्रसाद जी ने क्या अन्तर बतलाया है ?
उत्तर:
मित्रता व्यक्ति को भवसागर से पार उतरने में सहायक होती है, उसे सांसारिक दुःखों से छुटकारा दिलाती की बात करता है, वह दिखावटी बातें होती हैं जबकि सच्ची मित्रता सच्चे प्रेम पर आधारित होती है।

प्रश्न 2.
‘सच्ची मित्रता’ क्या है ? प्रस्तुत कविता के माध्यम से व्यक्त करें।
उत्तर:
सच्ची मित्रता इस स्वार्थ भरे संसार में किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होती है। सच्चा मित्र मुसीबत के समय व्यक्ति के काम आता है। अपनी सच्चाई और प्रेम से व्यक्ति को भवसागर से किसी मल्लाह की तरह पार लगा देता है। सच्चा मित्र निष्कपट और निस्वार्थ भाव से व्यवहार करता है।

प्रश्न 3.
‘याचना’ कविता में कवि ने प्रभु से क्या वरदान माँगा है ?
उत्तर:
‘याचना’ कविता में कवि ने प्रभु से यह वरदान माँगा है कि हे प्रभो ! जीवन में चाहे कितने ही दुःख आएँ, कितनी विपरीत परिस्थितियाँ क्यों न हों, चाहे अपने पराये सभी साथ छोड़ जाएँ मैं कभी भी ईश्वरी प्रेम से विमुख न होऊँ। सदा तुम्हारे प्रेम मार्ग पर तुम्हारे दिखाए प्रकाश में चलता रहूँ।

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प्रश्न 4.
प्राकृतिक आपदाओं के समय हमारी मनोदशा कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाओं के समय हम सदा प्रभु के चरण कमलों में ध्यान लगाये रखें। हमारा मन प्रभु की प्रेमधारा के बंधन की ओर खिंचता रहे। हमारा मन रूपी भंवरा प्रभु के चरण कमलों में विश्वास रखकर प्रसन्न रहे तथा हम प्रभु के प्रेम पथ में ही उसी के दिखाये प्रकाश में चलें।

प्रश्न 5.
‘याचना’ कविता में जयशंकर प्रसाद ने ईश्वर को किन-किन विशेषणों से अलंकृत किया है ?
उत्तर:
‘याचना’ कविता में कवि जयशंकर प्रसाद ने ईश्वर को पद्म पद, प्रेमधारा में बहने वाला, चरण-अरविन्द तथा प्रेम पथ एवं आलोक युक्त विशेषणों से अलंकृत किया है।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. कहीं तुम्हारा स्वार्थ लगा है……….मित्र रूप में रंगा हुआ।
उत्तर:
स्वार्थी मित्रों के सम्बन्ध में बताते हुए कवि लिखते हैं कि आजकल थोड़ी देर में अच्छे मित्र, पक्के मित्र या साथी के समान लोग बन जाते हैं और वे कहते हैं कि तुम प्यारे हो, बहुत प्यारे हो और तुम्हीं सब कुछ हो किन्तु ऐसा वे काम पड़ने पर ही कहते हैं अर्थात् काम पड़ने पर ही परिचय प्राप्त करते हैं। कवि कहते हैं मित्र बनाने में कहीं उनका मतलब है तो कहीं लोभ, कहीं तुम्हारी इज्ज़त बनी है तो कहीं रूप है जो मित्रता के रंग में रंगा हुआ है। स्वार्थ के कारण मित्रता दिखाने वाला व्यक्ति कहीं स्वार्थ के कारण ऐसा करता है तो कहीं लोभ के कारण अपने रंग बदलता है।

2. हम हों सुमन की सेज पर…………तव आलोक में।
उत्तर:
कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! हम चाहे फूलों के बिछौने पर सो रहे हों या काँटों की झाड़ी पर परन्तु हे स्वामी ! आप हमारे हृदय की ओट में छिपे रहना। हम चाहे इस लोक में हों या परलोक में हों या फिर पृथ्वी लोक में हों, हम सदा तुम्हारे ही दिखाये प्रेम के रास्ते पर चलें और तुम्हारे ही दिखाये प्रकाश में चलें।

PSEB 12th Class Hindi Guide जयशंकर प्रसाद Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस हिंदी-साहित्यकार को ‘सूंघनी साहू’ नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद को।

प्रश्न 2.
जयशंकर प्रसाद का जन्म किस सन में हुआ था?
उत्तर:
सन् 1889 ई० में।

प्रश्न 3.
जयशंकर प्रसाद की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
कामायनी (महाकाव्य)।

प्रश्न 4.
प्रसाद जी के अनुसार आधुनिक युग में किसका मिलना बहुत कठिन है?
उत्तर:
अच्छे-सच्चे मित्र का मिलना।

प्रश्न 5.
प्रायः मित्र किस कारण साथ छोड़ जाते हैं ?
उत्तर:
स्वार्थ और लालच के कारण।

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प्रश्न 6.
‘सच्ची मित्रता’ किस के द्वारा रचित कविता है?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद।

प्रश्न 7.
‘हृदय खोल मिलने वाले’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निस्वार्थ भाव से मिलने वाले मित्र।

प्रश्न 8.
सच्चा मित्र दुखी हृदय के लिए कैसा व्यवहार करता है?
उत्तर:
सच्चा मित्र दुखी हृदय के लिए सदा सुख देने वाला साथी होता है और हर संकट में अपने मित्र का सहायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 9.
‘याचना’ कविता किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद के द्वारा।

प्रश्न 10.
याचना कविता में कवि क्या कामना करता है?
उत्तर:
वह कामना करता है कि वह किसी भी स्थिति में परमात्मा से विमुख न हो और वह सदा ईश्वर के द्वारा दिखलाए गए पथ पर बढ़ता रहे।

प्रश्न 11.
कवि प्राकृतिक आपदाओं में अपना ध्यान सदा कहाँ लगाना चाहता है?
उत्तर:
प्रभु के चरण कमलों में। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 12.
कहाँ मित्रता, कैसी बातें ?……..
उत्तर:
कहाँ मित्रता, कैसी बातें? अरे कल्पना है सब में।।

प्रश्न 13.
कहीं तुम्हारा ‘स्वार्थ’ लगा है,……………….
उत्तर:
कहीं ‘लोभ’ है मित्र बना।

प्रश्न 14.
पर प्राणधन ………………..
उत्तर:
तुम छिपे रहना इस हृदय की आड़ में। हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 15.
जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि थे।
उत्तर:
हाँ।

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प्रश्न 16.
ध्रुवस्वामिनी, कंकाल और अजात शत्रु प्रसाद जी के काव्य संग्रह हैं।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 17.
प्रसाद जी ने सुख-दुख में प्रभु स्मरण करने की प्रेरणा दी है।
उत्तर:
हाँ।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ‘प्रसाद’ का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. जयशंकर प्रसाद किस धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं ?
(क) प्रगतिवाद
(ख) प्रयोगवाद
(ग) छायावाद
(घ) हालावाद
उत्तर:
(ग) छायावाद

2. प्रसाद को किस कृति पर मंगला प्रसाद पारितोषिक मिला ?
(क) कामायनी
(ख) आँसू
(ग) झरना
(घ) लहर
उत्तर:
(क) कामायनी

3. कवि के अनुसार आज के युग में किसका मिलना कठिन है ?
(क) अच्छे एवं सच्चे मित्र का
(ख) धन का
(ग) रिश्तों का
(घ) पत्नी का
उत्तर:
(क) अच्छे एवं सच्चे मित्र का

4. ‘याचना’ कविता के कवि कौन हैं ?
(क) निराला
(ख) प्रसाद
(ग) पंत
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(ख) प्रसाद

5. कवि हर समय किसके चरणों में लीन रहना चाहते हैं ?
(क) प्रभु के
(ख) शिव के
(ग) श्री राम के
(घ) श्री कृष्ण के
उत्तर:
(क) प्रभु के

जयशंकर प्रसाद सप्रसंग व्याख्या

1. सच्ची मित्रता कविता का सार

इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि आधुनिक युग में सच्चे मित्र का मिलना अत्यन्त कठिन है। आजकल मित्रता के नाम पर लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। वे सामने तो प्रशंसा करते हैं परन्तु पीठ पीछे निन्दा करते हैं। ये मतलबी होते हैं। सच्ची तथा निःस्वार्थ भाव से मित्रता करने वाले लोग बहुत मुश्किल से मिलते हैं। जिसे ऐसा सच्चा मित्र मिल जाता है, वह अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है तथा उसका जीवन सच्चा मित्र प्राप्त कर धन्य हो जाता है।

1. कहाँ मित्रता, कैसी बातें ? अरे कल्पना है सब ये
सच्चा मित्र कहाँ मिलता है ? दुखी हृदय को छाया-सा।
जिसे मित्रता समझ रहे हो, क्या वह शिष्टाचार नहीं ?
मुँह देखने की मीठी बातें, चिकनी-चुपड़ी ही सुन लो।
जिसे समझते हो तुम अपना मित्र भूल कर वही अभी।
जब तुम हट जाते हो, तुमको पूरा मूर्ख बनाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
कल्पना = मन-गढंत बात। छाया-सा = छाया के समान। शिष्टाचार = दिखावटी सभ्य व्यवहार।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित काव्यकृति ‘प्रेम पथिक’ में संकलित ‘सच्ची मित्रता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने स्वार्थ भरे इस संसार में सच्चा मित्र कठिनाई से मिलने की बात कही है।

व्याख्या:
असली मित्र और नकली मित्र कौन होता है इस विषय पर विचार प्रकट करते हुए कवि कहते हैं कि आज कल सच्ची मित्रता कहाँ देखने को मिलती है ? सच्ची मित्रता सम्बन्धी जितनी भी बातें हैं वे सब मन की कपोल कल्पनाएँ हैं। आज के इस स्वार्थ भरे संसार में सच्चा मित्र कहाँ मिलता है ? जो मित्र दुःखी को सुख देने वाला तथा छाया के समान शीतलता प्रदान करने वाला हो। आज जिसे तुम मित्रता समझ रहे हो क्या वह औपचारिक व्यवहार तो नहीं है ? वह व्यक्ति जिसे तुम मित्र समझ रहे हो मुँह देखे की मीठी-मीठी बातें तो नहीं करता और तुम्हें उस की चिकनी चुपड़ी बातें ही सुनने को मिलती हैं। यही नहीं जिसे तुम भूल कर अपना मित्र समझते हो वह तुम्हारे सामने से हट जाने पर अर्थात् तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हें पूरा मूर्ख कहता है अथवा तुम्हें मूर्ख बनाने की कोशिश करता है।

विशेष:

  1. कवि के कहने का भाव यह है कि आज के मित्र अवसरवादी होते हैं। दिखावे की या चिकनी चुपड़ी बातें करके वे अपना प्रभाव बना लेते हैं किन्तु जब तक आप की जेब में पैसा है तब तक वे आपके मित्र हैं। मुँह पर आपकी प्रशंसा करेंगे किन्तु पीछे-पीछे आपकी निन्दा करेंगे। अत: मित्र के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, सहज तथा भावपूर्ण है। सम्बोधनात्मक शैली है।
  3. अनुप्रास, प्रश्न तथा उपमा अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

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2. क्षण भर में ही बने मित्रवर अंतरंग या सखा समान
प्रिय हो, ‘प्रियवर’ हो सब तुम हो, काम पड़े पर परिचित हो।
कहीं तुम्हारा ‘स्वार्थ’ लगा है, कहीं ‘लोभ’ है मित्र बना।
कहीं ‘प्रतिष्ठा’ कहीं रूप है-मित्ररूप में रंगा हुआ।

कठिन शब्दों के अर्थ:
मित्रवर = अच्छे मित्र। अंतरंग = पक्का, हृदय से परिचित। सखा = मित्र, साथी। प्रियवर = अच्छे प्रिय। स्वार्थ = मतलब। प्रतिष्ठा = मान, इज्जत।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘सच्ची मित्रता’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने स्वार्थी मित्रों से बचने तथा सच्चे मित्रों के गुणों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
स्वार्थी मित्रों के सम्बन्ध में बताते हुए कवि लिखते हैं कि आजकल थोड़ी देर में अच्छे मित्र, पक्के मित्र या साथी के समान लोग बन जाते हैं और वे कहते हैं कि तुम प्यारे हो, बहुत प्यारे हो और तुम्हीं सब कुछ हो किन्तु ऐसा वे काम पड़ने पर ही कहते हैं अर्थात् काम पड़ने पर ही परिचय प्राप्त करते हैं। कवि कहते हैं मित्र बनाने में कहीं उनका मतलब है तो कहीं लोभ, कहीं तुम्हारी इज्ज़त बनी है तो कहीं रूप है जो मित्रता के रंग में रंगा हुआ है। स्वार्थ के कारण मित्रता दिखाने वाला व्यक्ति कहीं स्वार्थ के कारण ऐसा करता है तो कहीं लोभ के कारण अपने रंग बदलता है।

विशेष:

  1. कवि ने स्वार्थी मित्रों के लक्षण बताते हुए उनसे सावधान रहने के लिए कहा है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, सहज तथा भावपूर्ण है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।

3. हृदय खोलकर मिलने वाले बड़े भाग्य से मिलते हैं
मिल जाता है जिस प्राणी को सत्य-प्रेममय मित्र कहीं
निराधार भवसिन्धु बीच वह कर्णधार को पाता है
प्रेम-नाव खेकर जो उसको सचमुच पार लगाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ:
हृदय खोलकर मिलना = दिल खोलकर अर्थात् निस्वार्थ भाव से मिलना। सत्यप्रेममय = सच्चाई और प्रेम से भरा। निराधार = आधार-सहारे के बिना। भवसिन्धु = संसार रूपी समुद्र । कर्णधार = पार लगाने वाला, मल्लाह।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘सच्ची मित्रता’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने स्वार्थी मित्रों से बचने तथा सच्चे मित्रों के गुणों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
सच्चे मित्र के गुणों और विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कवि कहते हैं कि दिल खोल कर अर्थात् निःस्वार्थ भाव से मिलने वाले मित्र बड़े भाग्य से मिलते हैं और जिस भी व्यक्ति को सच्चाई और प्रेम से भरा मित्र मिल जाए समझो उसे बिना सहारे के व्यक्ति को संसार रूपी सागर के बीच पार ले जाने वाला मल्लाह मिल गया है। जो प्रेम रूपी नाव को खेकर उसे सचमुच पार लगा देता है।

विशेष:

  1. कवि के कहने का भाव यह है कि सच्चा मित्र बड़े भाग्य से मिलता है और जिसे सच्चा मित्र मिल जाता है। वह आसानी से संसार रूपी समुद्र से पार हो जाता है। क्योंकि सच्चा मित्र एक मल्लाह की तरह सांसारिक कठिनाइयों से पार उतार देता है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, सहज तथा भावपूर्ण है।
  3. रूपक अलंकार है।

2. याचना कविता का सार

प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को सदा आशावादी बने रहने की प्रेरणा देते हुए लिखा है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुसीबतें आएं हमें घबराना नहीं चाहिए। प्रलय हो जाए, पर्वत टूटकर गिरें, महानाशकारी वर्षा हो, मित्र-सम्बन्धी साथ छोड़ दें, अनेक कठिनाइयां झेलनी पड़ें परन्तु फिर भी हम सदा ईश्वर के दिखाए हुए सद्मार्ग पर चलते रहें और उस परमात्मा के प्रति निष्ठावान रहें।

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1. जब प्रलय का हो समय, ज्वाला मुखी निजमुख खोल दे,
सागर उमड़ता आ रहा हो, शक्ति-साहस बोल दे,
ग्रह गण सभी हों, केन्द्रच्युत, लड़कर परस्पर भग्न हों
इस समय भी हम हे प्रभु ! तव पद्म-पद में लग्न हों।

कठिन शब्दों के अर्थ:
प्रलय = महानाश। साहस बोल दे = साहस जवाब दे जाए। ग्रह गण = ग्रहों के समूह । केन्द्रच्युत = अपने स्थान से हटना। भग्न हों = टूट जाएं। पद्म-पद = चरण कमल।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित कविता ‘याचना’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने संदेश दिया है कि हमें दुःख हो या सुख हर हाल में ईश्वर को नहीं भुलाना चाहिए।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जब महानाश का समय हो, ज्वालामुखी फूट पड़े, सागर उमड़ता आ रहा हो, हमारी शक्ति और साहस जवाब दे गए हों, सभी ग्रह अपने-अपने स्थान से हट गए हों और आपस में टकरा कर टूट चुके हों। ऐसे समय भी हे प्रभो ! हम आपके चरण कमलों में ही ध्यान लगाये रखें।

विशेष:

  1. कवि ने प्रलय जैसी कठिन स्थिति में भी प्रभु को स्मरण करते रहने पर बल दिया है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है।
  3. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार हैं। विनय का भाव है। शान्त रस है।

2. जब शैल के सब श्रंग विद्युद-वृन्द के आघात से
हो गिर रहे भीषण मचाते विश्व में व्याघात से
जब घिर रहे हों प्रलय-घन अवकाश-गत आकाश में,
तब भी प्रभो ! यह मन खिंचे तब प्रेम-धारा पाश में।

कठिन शब्दों के अर्थ:
शैल = पर्वत। श्रृंग = चोटियाँ। विद्युद्-वृन्द = बिजलियों के समूह। भीषण = भयंकर। व्याघात = प्रहार, चोट, विघ्न । प्रलय-धन = महानाश के बादल। अवकाश-गत = खाली। प्रेमधारा-पाश = प्रेम की धारा का बन्धन।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘याचना’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रत्येक स्थिति में सदा ईश्वर को स्मरण करते रहने की प्रेरणा देते हुए कठिन से कठिन परिस्थिति का भी धैर्यपूर्वक सामना करने के लिए कहा है।

व्याख्या:
कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि जब पर्वत की सब चोटियाँ बिजलियों के समूह के प्रहार से भयंकर शोर मचाते हुए गिर रही हों और संसार में विघ्न डाल रहे हों। जब खाली आकाश में महानाश के बादल घिर रहे हों, तब भी हे प्रभो ! हमारा यह मन तुम्हारी ही प्रेम की धारा के बन्धन की ओर खिंचा रहे।

विशेष:

  1. कवि ने प्रत्येक कठिन स्थिति में प्रभु स्मरण पर बल दिया है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है।
  3. अनुप्रास, रूपक अलंकार, शान्त रस तथा विनय का भाव है।

3. जब छोड़कर प्रेमी तथा सन्मित्र सब संसार में,
इस घाव पर छिड़कें नमक, हो दुःख खड़ा आकार में,
करुणानिधे ! हो दुःख सागर में कि हम आनन्द में,
मन मधुप हो विश्वस्त-प्रमुदित तब चरण-अरविन्द में।

कठिन शब्दों के अर्थ:
सन्मित्र = अच्छे मित्र। आकार में = रूप धारण करके। करुणानिधे = दया के भण्डारईश्वर। साबर में = अधिकता में। मन-मधुप = मन रूपी भंवरा। प्रमुदित = प्रसन्न। चरण-अरविन्द = चरण कमल।

प्रसंग:
यह काव्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘याचना’ से अवतरित है। इसमें कवि ने प्रत्येक विकट परिस्थिति में धैर्य तथा आशा रखते हुए प्रभु के चरणों में अपना मन लगाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि जब हमें इस संसार में सभी प्रेमीजन और अच्छे मित्र छोड़ कर चले जाएँ और हमारे जख्मों पर नमक छिडकने लगें अर्थात् हमारे दुःखों को, कष्टों को और भी बढा दें तथा जब दुःख साकार रूप धारण करके हमारे सामने खड़ा हो जाए। तब हे दया के भण्डार प्रभो ! हम चाहे अत्यधिक दुःख के सागर में हों या कि आनन्द में, हमारा मन रूपी भंवरा आप में विश्वास रखता हुआ आपके चरण कमलों में लीन रह कर प्रसन्न रहे।

विशेष:

  1. सगे-सम्बन्धियों के साथ छोड़ देने पर भी मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए तथा प्रभु के चरणों में अपना मन लगाना चाहिए।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शांत रस है।
  3. रूपक, अनुप्रास अलंकार है।

4. हम हों सुमन की सेज पर कण्टकों की बाड़ में ।
पर प्राणधन ! तुम छिपे रहना इस हृदय की आड़ में
हम हों कहीं इस लोक में, उस लोक में, भूलोक में,
तब प्रेम पथ में ही चलें, हे नाथ ! तब आलोक में।

कठिन शब्दों के अर्थ:
सुमन = फूल। सेज = बिछौना। बाड़ = झाड़ी। प्राणधन = स्वामी, ईश्वर। आड़ = ओट। लोक = संसार। उस लोक = परलोक, स्वर्ग। भू-लोक = पृथ्वी। तब = तुम्हारे। हे नाथ = हे स्वामी, ईश्वर! आलोक = प्रकाश।

प्रसंग:
यह अवतरण जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘याचना’ से अवतरित है। इसमें कवि ने प्रत्येक विकट परिस्थिति में धैर्य तथा आशा रखते हुए प्रभु के चरणों में अपना मन लगाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या:
कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! हम चाहे फूलों के बिछौने पर सो रहे हों या काँटों की झाड़ी पर परन्तु हे स्वामी ! आप हमारे हृदय की ओट में छिपे रहना। हम चाहे इस लोक में हों या परलोक में हों या फिर पृथ्वी लोक में हों, हम सदा तुम्हारे ही दिखाये प्रेम के रास्ते पर चलें और तुम्हारे ही दिखाये प्रकाश में चलें।

विशेष:

  1. कवि ने सुख-दुःख में सदा प्रभु स्मरण की प्रेरणा दी है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, शान्त रस तथा विनय भाव है।
  3. रूपक तथा अनुप्रास अलंकार एवं लाक्षणिकता विद्यमान है।

जयशंकर प्रसाद Summary

जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय लिखिए।

जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई० में वाराणसी के सुंघनी साहू नामक वैश्य परिवार में हुआ था। सबसे छोटी सन्तान होने के कारण प्रसाद जी को माता-पिता का विशेष स्नेह प्राप्त था लेकिन पन्द्रह वर्ष की अवस्था होतेहोते इनके माता-पिता और बड़े भाई का देहान्त हो गया। परिवार का सारा बोझ इन्हीं के कन्धों पर आ पड़ा। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ये कॉलेज की पढ़ाई नहीं कर सके। रुचि के अनुसार इन्होंने घर पर ही शिक्षा प्राप्त की। __ प्रसाद जी की आरम्भिक रचनाएँ ‘इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। इन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध और एकांकी लिखे हैं। कामायनी, आँसू, झरना, लहर, प्रेम-पथिक, ध्रुवस्वामिनी, अजातशत्रु, कंकाल इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। इन्हें ‘कामायनी’ पर ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक से सम्मानित किया गया था। सन् 1937 ई० में इनका देहांत हो गया था।

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