PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 तत्सत्

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 तत्सत् Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 22 तत्सत्

Hindi Guide for Class 12 PSEB तत्सत् Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पशु और पेड़-पौधे वन के नाम से भयातुर क्यों होने लगे थे ?
उत्तर:
जंगल में आने वाले शिकारियों ने कहा था कैसा भयानक जंगल है और कितना घना वन है। उनकी बातों में जंगल की भयानकता की बात सुनकर वन के सभी पशु और पेड़-पौधे डर गए। उन्हें लगा कि अवश्य ही वन कोई शेर-चीतों से बढ़कर भयानक होगा।

प्रश्न 2.
शिकारी प्रमुख द्वारा अपने साथियों की सलाह न मानने का क्या कारण था ?
उत्तर:
जंगल के पेड़-पौधों और वनचरों ने आदमियों से जब जंगल दिखाने के लिए कहा नहीं तो उनकी खैर नहीं। इस पर शिकारी के साथियों ने कहा कि यार कह दो जंगल नहीं है। इस पर शिकारी प्रमुख ने मरने से न डरते हुए कहासदा कौन जिया है ? इससे इन भोले प्राणियों को भुलावे में क्यों रखें ? इसी कारण शिकारी प्रमुख ने अपने साथियों की सलाह मानने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 3.
शिकारी जब पुन: वन में आए तो पश और वनस्पतियाँ भड़क उंठीं. क्यों ?
उत्तर:
शिकारी जन जब दोबारा जंगल में आए तो सारा जंगल जाग उठा। वे सब तरह-तरह की बोली बोलकर अपना विरोध दर्शाने लगे। मानो आदमियों की भर्त्सना कर रहे थे। वे सभी इसलिए भड़क उठे क्योंकि आज तक उन्होंने जंगल नाम की कोई वस्तु नहीं देखी थी। आदमियों ने उसे भयानक भी कहा था। इसलिए वे भयानक वस्तु के बारे में जानना चाहते थे।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर लिखें:

प्रश्न 4.
तत्सत् कहानी का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखें पाठ के आरम्भ में दिया गया कहानी का सार।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 5.
‘तत्सत्’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘प्रस्तुत’ कहानी में जैनेन्द्र जी ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि आज का व्यक्ति इतना व्यक्तिवादी हो गया है कि उसे अपने सिवा और कुछ सूझता ही नहीं। वह यह नहीं समझता कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खण्ड के समान उसी प्रकार है जैसे किसी बाग में किसी फूल का। लेखक ने अपने इस उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए पशुओं और पेड़-पौधों का सहारा लिया है जिन्हें अपने-अपने अलग अस्तित्व का तो बोध है किन्तु अपने समग्र रूप जंगल से वे अनजान हैं। अपनी इसी अज्ञानता के कारण वे सभी अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग अलापते रहते हैं। अन्त में जब उन्हें समग्रता का बोध होता है तो वे वन की सत्ता को स्वीकार कर लेते हैं।

प्रश्न 6.
‘तत्सत्’ कहानी के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
तत्सत्’ कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है। इसमें लेखक ने कथा निर्माण के लिए वनचरों एवं वनस्पतियों की संवेदना को आधार बना कर किया है। जैनेन्द्र जी ने प्रायः सोद्देश्य शीर्षकों का चयन अधिक किया है। चाहे शीर्षक ‘तत्सत्’ कहानी के शीर्षक की तरह प्रतीकात्मक हों किन्तु यह शीर्षक सार्थक, आकर्षक एवं जिज्ञासा एवं कुतूहल भरा है। लेखक ने इस कहानी के कथानक द्वारा यह सिद्ध किया है कि यह जगत् सत्य नहीं है, अपितु वह ब्रह्म ही सत्य है तथा वही सर्वत्र व्याप्त है। अतः हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है। शीर्षक सारगर्भित भी है, रोचक और संक्षिप्त एवं आकर्षक भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस शीर्षक में एकजुटता का संदेश भी छिपा है जो हमारी वर्तमान राजनीतिक अवस्था के लिए अत्यन्त ज़रूरी है। देश है तो हम हैं अतः देशहित के लिए हमें निजी स्वार्थों को भूलकर एक हो जाना चाहिए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें :

7. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखाओं पर भी चलते चले जाते हैं।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बड़ के वृक्ष ने शीशम के वृक्ष से उस समय कही हैं जब शीशम पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ?

व्याख्या:
जब शीशम के पेड़ ने जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ से उन शिकारियों के बारे में पूछना चाहा कि वे कौन थे, जिन्होंने जंगल को भयानक कहा था, तो बड़ ने उत्तर देते हुए कहा कि जब मैं छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ होते हैं जिनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना होता है। तुमने देखा नहीं कि ये लोग कैसे चलते हैं ? अपने तने की दो टहनियों पर ही चलते चले जाते हैं। विशेष-एक पेड़ की आदमी के बारे में जानकारी पर प्रकाश डाला गया है।

8. “मालूम होता है, हवा मेरे भीतर के रिक्त में वन-वन-वन ही कहती हुई घूमती रहती है। पर ठहरती नहीं। हर घड़ी सुनता हूँ, वन है, वन है पर मैं उसे जानता नहीं हूं। क्या वह किसी को दिखा है ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बाँस के पेड़ ने जंगल के दूसरे पेड़ों से कहीं हैं।

व्याख्या:
जब सब पेड़ों ने बाँस के पेड़ से पूछा कि वह उन्हें वन के बारे में बताए कि वह क्या है तो बाँस के पेड़ ने कहा कि ऐसा मालूम होता है कि हवा मेरे अन्दर के खाली स्थान में वन-वन-वन कहती घूमती रहती है, पर ठहरती नहीं। मैं हर घड़ी यह तो सुनता हूँ किं वन है, पर मैं उसे जाना नहीं हूँ। क्या वह किसी को दिखाई दिया है ? विशेष-वन के बारे में बांस के पेड़ की प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला गया है।

9. “ओ सिंह भाई, तुम बड़े पराक्रमी हो। जाने कहां कहां छापा मारते हो। एक बात तो बताओ, भाई ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ ने जंगल के सबसे शक्तिशाली पशु सिंह से वन के बारे में बताने के लिए कही

व्याख्या:
बड़ को जब जंगल के किसी पेड़ ने वन के बारे कुछ बताने से इन्कार कर दिया तो उसने वहाँ आए सिंह से यही प्रश्न पूछने के लिए प्रस्तुत पंक्तियाँ कहीं है। बड़ ने कहा-अरे सिंह भाई, तुम बड़े बहादुर हो। जाने कहाँ-कहाँ शिकार हासिल करने के लिए छापे मारते हो। एक बात तो बताओ भाई ? बड़ सिंह से वन के बारे में पूछना चाहता है कि क्या उसने कभी वन को देखा है ? विशेष-सिंह से वन के संबंध में बड़दादा पूछ रहे हैं।

PSEB 12th Class Hindi Guide तत्सत् Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैनेन्द्र कुमार का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के कौडियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ था।

प्रश्न 2.
जैनेन्द्र ने किन-किन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की थी?
उत्तर:
पंजाब विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 3.
जैनेन्द्र की शिक्षा अधूरी क्यों रह गई थी?
उत्तर:
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने के कारण।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 4.
जैनेन्द्र को किस विश्वविद्यालय ने डी० लिट० की उपाधि प्रदान की थी?
उत्तर:
दिल्ली विश्वविद्यालय ने।

प्रश्न 5.
जैनेन्द्र के कहानी संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ध्रुव यात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फांसी।

प्रश्न 6.
जैनेन्द्र के चार उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी।

प्रश्न 7.
‘तत्सत’ किस शैली में रचित कहानी है?
उत्तर:
प्रतीक शैली।

प्रश्न 8.
जैनेंद्र कैसे दार्शनिक और विचारक थे?
उत्तर:
बुद्धिवादी, दार्शनिक और विचारक।

प्रश्न 9.
कितने शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे थे?
उत्तर:
दो शिकारी।

प्रश्न 10.
किस पेड़ ने दूसरे पेड़ को ‘दादा’ कहा था?
उत्तर:
शीशम के पेड़ ने बरगद के पेड़ को ‘दादा’ कहा था।

प्रश्न 11.
बबूल ने बड़दादा से क्या प्रश्न किया था?
उत्तर:
बबूल ने बड़दादा से प्रश्न किया था कि क्या उन्होंने कभी वन देखा था।

प्रश्न 12.
जंगल के प्राणियों ने मनुष्य के बारे में क्या निर्णय किया था?
उत्तर:
उन्होंने निर्णय किया था कि मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं।

प्रश्न 13.
बड़दादा ने प्राणियों को ‘वन’ के बारे में क्या समझाया था ?
उत्तर:
बडदादा में प्राणियों को समझाते हुए कहा था कि ‘यह वन ही है हम नहीं’ हम सब ही वन हैं।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 14.
अपने तन की दो शाखों पर ही……..
उत्तर:
चलते चले जाते हैं।

प्रश्न 15.
आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस…………
उत्तर:
उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 16.
तब सबने घास से पूछा…………
उत्तर:
घास री घास, तू वन को जानती है।

प्रश्न 17.
चढ़ते-चढ़ते वह उसकी…….
उत्तर:
सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
तत्सत् प्रतीक शैली में रचित है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जंगल में आदमी को देखने की बात बड़ ने स्वीकार की थी?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
“दादा ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है?”-घास ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 21.
बरगद ने सीटी-सी आवाज़ देखकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ।”
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 22.
“मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”-बबूल ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. जैनेन्द्र कुमार कैसे कहानीकार हैं ?
(क) मनोवैज्ञानिक
(ख) विचारपरक
(ग) आत्मकथात्मक
(घ) विवेचनात्मक
उत्तर:
(क) मनोवैज्ञानिक

2. तत्सत् किस प्रकार की कहानी है ?
(क) आत्मकथात्मक
(ख) प्रतीकात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) व्यंग्यात्मक
उत्तर:
(ख) प्रतीकात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

3. शीशम के पेड़ ने किसको दादा कहा ?
(क) बरगद
(ख) पीपल
(ग) वट
(घ) नीम
उत्तर:
(क) बरगद

4. लेखक के अनुसार आज व्यक्ति कैसा बन गया है ?
(क) संस्कारी
(ख) व्यक्तिवादी
(ग) भाववादी
(घ) निराशावादी
उत्तर:
(ख) व्यक्तिवादी

जैनेन्द्र कुमार सप्रसंग व्याख्या

1. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते हैं।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से मानव के व्यक्तिवादी होने पर व्यंग्य करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खंड जैसा है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब शीशम जंगल के सब से बड़े वृक्ष बड़ से यह पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ? तब बड़ उत्तर देते हुए कहता है कि जब वह छोटा था तब उसने इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ हैं जिनके पत्ते नहीं होते, केवल तना ही तना होता है। वह शीशम से कहता है कि उसने देखा नहीं कि वे कैसे चलते हैं ? वे अपने तने की दो टहनियों के सहारे ही चलते चले जाते हैं। विशेष-लेखक ने मनुष्य के संबंध में वनस्पतियों की भावनाओं का चित्रण किया है।

2. बड़दादा ने कहा, “हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़ें नहीं होती। बढ़े तो काहे पर ? इससे वे इधर-उधर चलते रहते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं आता। बिना जड़, न जाने वे जीते किस तरह हैं !” इतने में बबूल, जिसमें हवा साफ़ छनकर निकल जाती थी, रुकती नहीं थी और जिसके तन पर काँटे थे, बोला, “दादा, ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है ? ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। तुमने उस भयावने वन को देखा है ?”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थों में इतना अधिक लिप्त हो गया है कि वह यह भी भूल गया है कि वह उस विराट का ही एक अंश है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब दो शिकारी वन की सघनता और भयानकता का वर्णन करके चले जाते हैं तो वन के वृक्ष आपस में बातें करते हैं। शीशम बड़ से पूछता है कि मनुष्य इतने छोटे कद के क्यों होते हैं ? तब बड़दादा उत्तर देते हैं कि इन मनुष्यों की उनके समान जड़ें नहीं होती हैं इसलिए ये बढ़ते नहीं हैं छोटे ही रहते हैं। ये इधर-उधर चलते-फिरते रहते हैं ऊपर की ओर ये बढ़ना नहीं जानते। बड़ को भी आश्चर्य होता है कि वे बिना जड़ के कैसे जी रहे हैं। तभी बबूल ने कहा कि दादा बड़ आपने तो बहुत समय देखा है। आप बतायें कि क्या आपने किसी वन को भी देखा है ? ये लोग किस वन की बात कर रहे थे ? क्या आपने उस भयानक वन को देखा है ? बबूल के शरीर पर काँटे थे और हवा उसमें से छन कर निकल जाती थी।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य की ओछी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है तथा बताया है कि आज का मनुष्य किस प्रकार अपने स्वार्थ में लिप्त हो गया है कि वह ऊपर उठना ही नहीं चाहता। अपने स्वार्थों में ही डूबा रहना चाहता है।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक तथा शैली प्रतीकात्मक है। यहाँ संवादात्मक शैली के दर्शन होते हैं।

3. इसी तरह उनमें बातें होने लगीं। वन को उनमें कोई नहीं जानता था। आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। वन को कोई मानना नहीं चाहता था। किसी को उसका कुछ पता नहीं था। पर अज्ञात भाव से उसका डर सबको था। इतने में पास ही जो बाँस खड़ा था और जो ज़रा हवा चलने पर खड़-खड़, सन्-सन् करने लगता था, उसने अपनी जगह से ही सीटी-सी आवाज़ देकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ, क्या बात है । मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने स्वार्थों में लिप्त होकर यह भी भूल गया है कि वह स्वयं कुछ न होकर उस विराट का एक अंश मात्र है।

व्याख्या:
लेखक बताता है कि जब दो शिकारी वन की सघनता और भयंकरता का वर्णन करके चले गए तो वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों में परस्पर बातचीत होने लगी कि यह सघन और भयानक वन क्या किसी ने देखा है ? परन्तु उनमें से वन को कोई भी नहीं जानता था। वन के साल, सेंमर, सिरस आदि वृक्ष भी इस वार्तालाप में भाग लेने लगे। कोई भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि वन भी कुछ होता है। किसी को भी वन का कुछ भी पता नहीं था कि वन क्या होता है ? पर उन सबके मन में एक अनजाना-सा भय अवश्य छा गया था कि न जाने वन कैसा भयंकर होगा ? तभी पास उगा हुआ बाँस अपनी जगह से सीटी-सी आवाज़ करते हुए पूछने लगा कि मुझे बताओ कि क्या बात है ? मैं भीतर से खोखला होते हुए भी बहुत कुछ जानता हूँ। बाँस ज़रा-सी हवा के चलने पर ही खड़-खड़, सन्-सन् की आवाज़ करने लगता था।

विशेष:

  1. वन्य जीवों तथा वनस्पति.जगत् में व्याप्त भयंकर वन के काल्पनिक भय का सजीव चित्रण करते हुए लेखक इस ओर संकेत करता है कि मनुष्य भी कई बार अज्ञात भय से भयभीत हो जाता है।
  2. भाषा सहज, सरल, ध्वनि अर्थ व्यंजन से युक्त, प्रवाहमयी है। शैली में संवादात्मकता तथा प्रतीकात्मकता है। बाँस का पोलापन उन लोगों पर व्यंग्य है जो कुछ न जानते हुए भी सर्वज्ञ बनने का ढोंग करते हैं।

4. तब सबने घास से पूछा, “घास री घास, तू वन को जानती है ?”

घास ने कहा, “नहीं तो दादा, मैं उन्हें नहीं जानती। लोगों की जड़ों को ही मैं जानती हूँ। उनके फल मुझसे ऊँचे रहते हैं। पदतल के स्पर्श से सबका परिचय मुझे मिलता है। जब मेरे सिर पर चोट ज्यादा पड़ती है, समझती हूँ यह ताकत का प्रमाण है। धीमे कदम से मालूम होता है, यह कोई दुखियारा जा रहा है।” “दुःख से मेरी बहुत बनती है, दादा ! मैं उसी को चाहती हुई यहाँ से वहाँ तक बिछी रहती हूँ। सभी कुछ मेरे ऊपर से निकलता है। पर वन को मैंने अलग करके कभी नहीं पहचाना।” ।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वह अपने में लीन रह कर यह भूल जाता है कि वह किसी विराट का अंश मात्र है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में लेखक वन के वन्य जीवों तथा वनस्पति जगत् में व्याप्त इस भय को अभिव्यक्ति प्रदान करता है जो उन्हें दो शिकारियों से यह सुनकर हो रहा था कि वन घना और भयंकर है। किसी ने आज तक वन को नहीं देखा था। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से वन के बारे में पूछने के बाद तथा उनसे नकारात्मक उत्तर पा कर घास से पूछा कि क्या वह वन को जानती है ? घास ने भी यही उत्तर दिया कि वह वन को नहीं जानती। वह तो केवल उन लोगों को जानती है जिन की जड़ें होती हैं। बाकी सब कुछ उससे बहुत ऊँचा होता है, इसलिए वह उन्हें नहीं जान पाती।

वह तो सब के पैरों के तलवों के स्पर्श से ही सबको पहचानती है। जब किसी के उसके ऊपर चलने से उसे चोट पहुँचती है तो वह उसे समझती है कि यह इस की ताकत का प्रमाण है जो उसे कुचल रहा है। जब कोई धीमे-धीमे कदमों से उसके ऊपर चलता है तो उसे लगता है कि वह कोई दुःखी है जो इस प्रकार चल रहा है। वह दुःखियों की मददगार है क्योंकि दुःख उसे बहुत प्रिय है। दुःखियों की सेवा के लिए वह बिछी रहती है। सब उसके ऊपर से निकल जाते हैं परन्तु उसने वन को अलग से नहीं पहचाना है।

विशेष:

  1. लेखक ने शक्तिशाली द्वारा अशक्त को कुचले जाने पर व्यंग्य किया है तथा दुःखियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।
  2. भाषा सहज परन्तु तत्सम शब्दों से युक्त भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक एवं प्रतीकात्मक है।

5. बड़दादा तो चुप रहे, लेकिन औरों ने कहा कि सिंहराज, तुम्हारे भय से बहुत-से जंतु छिपकर रहते हैं। वे मुँह नहीं दिखाते। वन भी शायद छिपकर रहता हो। तुम्हारा दबदबा कोई कम तो नहीं है। इससे तो साँप धरती में मुँह गाड़कर रहते हैं, ऐसी भेद की बातें उनसे पूछनी चाहिएं। रहस्य कोई जानता होगा, तो अँधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाला साँप जैसा जानवर ही जानता होगा। हम पेड़ तो उजाले में सिर उठाए खड़े रहते हैं। इसलिए हम बेचारे क्या जानें।

शेर ने कहा कि जो मैं कहता हूँ, वही सच है। उसमें शक करने की हिम्मत ठीक नहीं है। जब तक मैं हूँ, कोई डर न करो। कैसा साँप और जैसा कुछ और। क्या कोई मुझसे ज्यादा जानता है ?

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का व्यक्ति अपने स्वार्थों में लीन हो कर यह भूल गया है कि उस की अपनी कोई सत्ता नहीं है वह तो उस विराट का अंशमात्र है अतः उसे स्वार्थ सिद्ध के स्थान पर जन कल्याण करना चाहिए।

व्याख्या:
जब वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों से वन का कोई पता नहीं चलता तो कुछ वनस्पतियों ने साँप से वन के विषय में पता करने के लिए सिंह से कहा। उनका मानना था कि शायद सिंह के भय से वन भी अन्य जन्तुओं के समान कहीं छिपकर रहता होगा। वह भी सिंह को अपना मुँह नहीं दिखाना चाहता होगा। वे मानते हैं कि सिंह का बहुत रौब है। उसके इसी प्रभाव से भयभीत होकर अन्य जीव जन्तु उससे मुँह छिपाते फिरते हैं। उन्हें लगता है कि साँप सदा धरती के अन्दर मुँह गाड़कर रहता है इसलिए इस प्रकार की रहस्य पूर्ण बातें उसी में पूछनी चाहिएं।

वह अवश्य ही जानता होगा कि वन क्या है ? वनस्पतियाँ स्वयं को उजाले में सिर उठा कर खड़ी रहने वाली मानती हैं इसलिए वे भेदभाव से दूर रहती हैं। साँप जैसे अंधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाले ही भेदभाव की नीति से परिचित हो सकते हैं। शेर उन्हें वन से भय न करने के लिए कहता है तथा उन्हें सांत्वना देता है कि जब तक वह है उन्हें किसी से भयभीत नहीं होना चाहिए। चाहे वह साँप का अन्य कोई क्यों न हो ? सिंह स्वयं को इन सबसे अधिक जमने वाला मानता है।

विशेष:

  1. लेखक ने सिंह जैसे घमंडियों तथा साँप जैसे आस्तीन के साँप लोगों पर व्यंग्य किया है जो अपने सामने किसी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक, मुहावरों से युक्त, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक तथा व्यंग्यात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

6. उनमें सबको ही अपना-अपना ज्ञान था। अज्ञानी, कोई नहीं था। पर उस वन का जानकार कोई नहीं था। वह नहीं जाने, दो नहीं जानें, दस-बीस नहीं जानें, लेकिन जिसको कोई नहीं जानता, ऐसी भी भला कोई चीज़ कभी हुई है या हो सकती है ? इसलिए उन जंगली जंतुओं में और वनस्पतियों में खूब चर्चा हुई, खूब चर्चा हुई। दूर-दूर तक उनकी तू-तू मैं-मैं सुनाई देती थी। ऐसी चर्चा हुई, ऐसी चर्चा हुई कि विद्याओं पर विद्याएँ उसमें से प्रस्तुत हो गईं। अंत में तय पाया कि दो टाँगों वाला आदमी ईमानदार जीव नहीं है। उसने तभी वन की बात बनाकर कह दी है। वन बन गया है । सच में वह नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया कि वास्तविकता को जानने के कारण मनुष्य उसी प्रकार भटकता रहता है जैसे वन के विषय में जानकर वन्य प्राणी तथा वन की वनस्पतियाँ भयभीत हो रही थीं।

व्याख्या:
दो शिकारी व्यक्तियों द्वारा वन की भयानकता के विषय में सुनकर सभी वनस्पतियां तथा वन्य प्राणी वन को जानने के लिए व्याकुल हो उठते हैं कि वन है क्या ? परन्तु कोई भी वन को नहीं जानता था। सभी अपना-अपना पक्ष रखते हैं परन्तु समझदार होते हुए भी कोई नहीं बता पाया कि वन क्या है ? वन के विषय में किसी को भी कुछ नहीं पता था। वे सभी इस बात से परेशान थे कि उन में से जब कोई भी वन को नहीं जानता तो क्या वह हो भी सकता है ? उन में खूब तर्क-वितर्क होता है और दूर-दूर तक उन की बहस सुनाई देती है। प्रत्येक अपने कथन के पक्ष में अनेक तर्क प्रस्तुत करता है और एक से एक गहरी बातें करता है। जब कोई समाधान नहीं हुआ तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह दो टांगों वाला जीव जो आदमी कहलाता है ईमानदार नहीं है। उसने अपने मन से ही बना कर वन की बात कही है और हम इसे सच मान बैठे जबकि वास्तव में वन कहीं नहीं है।

विशेष:

  1. लेखक ने तर्क-वितर्क की व्यर्थता की ओर संकेत किया है तथा मनुष्य की बेईमानी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक है। शैली व्यंग्यात्मक तथा वर्णनात्मक है।

7. उस समय आदमी और बड़दादा में कुछ ऐसी धीमी-धीमी बातचीत हुई कि वह कोई सुन नहीं सका। बातचीत के बाद वह पुरुष उस विशाल बड़ के वृक्ष के ऊपर चढ़ता दिखाई दिया। चढ़ते-चढ़ते वह उसकी सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया। वहाँ दो नए-नए पत्तों की जोड़ी खुले आसमान की तरफ़ मुसकराती हुई देख रही थी। आदमी ने उन दोनों को बड़े प्रेम से पुचकारा। पुचकारते समय ऐसा मालूम हुआ, जैसे मंत्ररूप में उन्हें कुछ संदेश भी दिया है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है किस प्रकार वास्तविकता से परिचित न होने पर हम भटक जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के व्यर्थ के वाद-विवादों में फँस जाते हैं जैसे कि वन के अस्तित्व से अनजान वन की वनस्पतियों और वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि जब दुबारा वे शिकारी उस जंगल में आते हैं तो वनस्पतियां उनसे वन के बारे में पूछती हैं। तब वे उन्हें बताते हैं कि वे सब मिलाकर वन हैं। उन्हें इस कथन पर विश्वास नहीं होता। तब बड़दादा और शिकारी में धीरे धीरे कुछ बातचीत होती है। इसे अन्य वनस्पतियां नहीं सुन पातीं। बड़दादा से बातचीत करके वह शिकारी उस विशाल बड़ के पेड़ के ऊपर चढ़ता है और चढ़ते-चढ़ते उसकी सबसे ऊपर वाली फुनगी तक पहुँच जाता है। वह वहाँ देखता है कि दो नए-नए पत्ते खुले आकाश की ओर देख रहे हैं। उन का देखना उसे ऐसा लगा जैसे वे आकाश को देखकर मुस्करा रहे हैं। वह शिकारी उन्हें प्रेमपूर्वक पुचकारता है। जब वह उन्हें ‘पुचकार रहा था तो ऐसा लग रहा था जैसे वह उन्हें मन्त्र के रूप में कोई संदेश भी दे रहा है।

विशेष:

  1. यहाँ लेखक ने प्रकृति के प्रति मानवीय प्रेम को व्यक्त किया है। वह वन संरक्षण का संदेश देता है।
  2. भाषा सहज, सरस, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा काव्यात्मक है। शैली चित्रात्मक तथा भावात्मक है।

8. वन के प्राणी यह सब-कुछ स्तब्ध भाव से देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ में न आ रहा था। देखते-देखते पत्तों की वह जोड़ी उद्ग्रीव हुई। मानो उसमें चैतन्य भर आया। उन्होंने अपने आस-पास और नीचे देखा। जाने उन्हें क्या दिखा कि वे काँपने लगे। उनके तन में लालिमा व्याप गई। कुछ क्षण बाद मानो वे एक चमक से चमक आए। जैसे उन्होंने खंड को कुल में देख लिया। देख लिया कि कुल है, खंड कहाँ है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गयी हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि वास्तविकता से परिचित न होने पर मनुष्य उसी प्रकार से भटक जाता है जैसे वन के अस्तित्व से अनजान वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक उस समय का वर्णन करता है जब एक शिकारी विशाल बड़ के वृक्ष की फुनगी तक पहुँचकर उसे पुचकारता है। वन के समस्त प्राणी यह दृश्य टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उन्होंने देखा कि बड़ के पत्तों की वह जोड़ी उस शिकारी द्वारा पुचकारे जाने पर इस प्रकार ऊपर की ओर उठी जैसे उस में चेतनता आ गयी हो। वे अपने आस-पास और नीचे भी देखने लगीं। यह सब तथा कुछ अनजाना-सा देखकर वे काँप उठीं। उनका शरीर भय से लाल हो गया। परन्तु कुछ ही क्षणों के बाद वे एक अनोखी चमक से चमकने लगीं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने अपने अंश अथवा खंड को उस पूर्ण में देख लिया है। जिस की वे अंश हैं। उन्होंने सम्पूर्ण को देखने के बाद यह अनुभव किया कि वे उस सम्पूर्ण की ही खंड मात्र हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्य का अस्तित्व इस संसार में उस विराट के एक खंड के रूप में उसी प्रकार से है जैसे वाटिका में एक पुष्प-पादप। इसी प्रकार से समस्त वनस्पतियां और वन्य प्राणी भी विशाल वन के एक खंड मात्र हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा प्रतीकात्मक है। शैली भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है।

कठिन शब्दों के अर्थ

तत्सत् = उस का सत्य। गहन = घना। वन = जंगल। टोह = खोज। दहशत = भय, डर। अजब = विचित्र। ओछे = छोटे कद वाले, तुच्छ। प्रीति = प्रेम। पोला = खोखला। दीखा = दिखाई देना। पदतल = पैरों के तलवे। वाग्मी = वाचाल, बहुत बोलने वाला, घमंडी। वंश = बाँस। जिज्ञासु = जानने के इच्छुक। दबदबा = रौब। मंथर = धीमी। अतिशय = बहुत अधिक। श्याम = काला। छिद्र = सुराख। अंतर्भेद = अन्दर का हाल, रहस्य। फ़र्जी = नकली। रोज़ = दिन। भर्त्सना = फटकारना। निर्धम = भ्रम रहित, शंकाओं से मुक्त। उद्ग्रीव = ऊपर उठना। अभ्यंतराभ्यंतर = अंत:करण।

तत्सत् Summary

तत्सत् जीवन परिचय

जैनेन्द्र कुमार का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।

जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के कौड़ियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ। इनकी आरम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर जिला मेरठ में हुई। इन्होंने सन् 1919 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, किन्तु गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर पढाई छोड कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। इन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने डी० लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। इनकी रचनाओं में मनोभावों तथा संवेदनाओं का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। जीविका चलाने के लिए व्यापार किया, नौकरी भी की किन्तु सफल न हो सके और स्वतन्त्र लेखन को ही जीवन का ध्येय बना लिया। ध्रुवयात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फाँसी इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी आदि उनके उपन्यास हैं। सन् 1989 ई० में इनका निधन हो गया था।

तत्सत् कहानी का सार

श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित ‘तत्सत्’ नामक कहानी प्रतीक शैली में लिखी हुई है। इसमें जीवन के सूक्ष्म अनुभवों के स्वतंत्र मौलिक चिंतन द्वारा गूढ प्रश्नों का समाधान दार्शनिक दृष्टिकोण से किया गया है। जैनेन्द्र कुमार बुद्धिवादी दार्शनिक एवं विचारक हैं। वैयक्तिक स्थितियों के आंतरिक चित्रण का सुंदर और सहज रूप इस कहानी में उपलब्ध होता है। – एक घने जंगल में दो शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे । दोनों पुराने शिकारी थे पर इतना भयानक वन उन्होंने आज तक न देखा था। एक बड़े पेड़ की छाँह में बैठकर उस भयानक और घने वन के संबंध में बात करते हुए, कुछ देर विश्राम करने के बाद वह दोनों चले गये। उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने उस.पेड़ से कहा कि.ए बड़ दादा अभी तुम्हारी छाँह में कौन बैठे थे, वे गये। बड़दादा उसे बताते हैं कि वे आदमी कहलाते हैं। उनके न पत्ते होते हैं न जड़ें, बस तना ही तना होता है। अपने तने की दो शाखों पर चलते हैं, इधर-उधर चलते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं

आता। तभी बबूल ने बड़दादा से पूछा कि क्या आपने वन देखा है। अभी ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। बड़दादा ने कहा कि मैंने शेर, चीता, भालू, हाथी, भेड़िया सभी जानवर देखे हैं पर वन नाम के जानवर को मैंने अब तक नहीं देखा। आदमी एक टूटी-सी टहनी से आग की लपट छोड़कर शेर-चीतों को मार देता है। उन्हें ऐसे मरते अपने सामने हमने देखा है पर वन की लाश हमने नहीं देखी। वह ज़रूर कोई बड़ा भयानक जानवर होगा।

बड़दादा, शीशम और बबूल में इसी प्रकार बातें हो रही थीं। आस-पास के साल, सेंमर, सिरस, बाँस, घास आदि पेड़ भी इस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। उनमें से कोई भी वन को नहीं जानता था। पर सभी अज्ञात रूप से वन से डरने लगे थे। सबमें काफ़ी बहस हुई पर कोई भी यह न बता सका कि वन कौन-सा जानवर है। तभी वहां सिंह आया। बड़दादा ने उससे वन के सम्बन्ध में पूछा। पर सिंह भी न बता सका कि वन कौन है। लोग सलाह करते हैं कि साँप से इस सम्बन्ध में पूछना चाहिए। संयोग से एक नाग भी उधर आ निकला। वन के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की कल्पना की गई पर इसका निश्चय नहीं हो सका कि वह कौन जानवर है। सभी जीव-जन्तु और पेड़-पौधों ने आपस में पूछताछ की और अंत में यह तय हुआ कि दो पैर वाले मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं। मनुष्य ईमानदार जीव नहीं है। तभी उसने वन की बात कह दी पर वास्तव में वह कुछ नहीं है। बड़दादा ने कहा कि उन आदमियों को फिर आने दो तब उनसे पूछा जायेगा कि वन क्या है ?

एक दिन वे दोनों शिकारी फिर उधर आ निकले। उनके आने पर जंगल के सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तरह-तरह की आवाज़ों में बोलकर मानों उनका विरोध करने लगे। इस विचित्र स्थिति में अपने को पाकर आदमियों ने अपनी बंदूकें सम्भाली पर बड़दादा ने बीच में पड़कर जंगल के प्राणियों को शांत किया और उन आदमियों से पूछा कि जिस जंगल की तुम बात किया करते हो बताओ कि वह कहाँ है। आदमियों ने कहा कि जहाँ हम सब हैं यह जंगल ही तो है। इस पर किसी को भला कैसे विश्वास हो सकता था। वह सेंमर है, वह सिरस है, वह घास है, वह सिंह है, वह पानी है फिर भला जंगल कहाँ है। आदमी ने कहा यह सब कुछ जंगल ही है। पर सभी अपना नाम बताते और जंगल या वन कौन है यह कोई मानने को तैयार न था। आदमी और बड़दादा में थोड़ी देर तक धीमी आवाज़ में बातचीत होती रही। इसके बाद बड़दादा ने अन्य प्राणियों को बताया है कि यह वन ही है हम नहीं, हम सब ही वन हैं। समग्रता का बोध होने पर ही बड़दादा वन की सत्ता स्वीकार कर लेता है और अन्य वन्य प्राणियों को भी वन की सत्ता स्वीकार करने के लिए कहता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 21 मधुआ

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 21 मधुआ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 21 मधुआ

Hindi Guide for Class 12 PSEB मधुआ Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
‘मधुआ’ कहानी में लेखक ने एक बालक द्वारा शराबी के हृदय परिवर्तन का सुन्दर चित्रांकन किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
मधुआ कहानी में लेखक ने बालक मधुआ के रोने-सिसकने की आवाज़ सुनकर एक शराबी के हृदय में उस बालक के प्रति संवेदना, सहानुभूति जागृत होने की बात कहकर एक शराबी, आलसी, निकम्मे व्यक्ति का हृदय परिवर्तन दिखाया है। बालक की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर आने के कारण वह फिर से कर्मठ बन जाता है और अपने पुराने धन्धे सान धरने का काम करना शुरू कर देता है। इसके लिए वह शराब पीने से तौबा भी कर लेता है।

प्रश्न 2.
‘मधुआ’ कहानी का नामकरण कहाँ तक सार्थक है ?
उत्तर:
कहानी का शीर्षक उसके मूलभाव, मूल संवेदना, मार्मिक घटना आदि का परिचायक होता है। इसी कारण शीर्षक कहानी का सम्पूर्ण अंशों में प्रतिनिधित्व करता है। ‘मधुआ’ कहानी का शीर्षक सरल, सुबोध, संक्षिप्त एवं आकर्षक है। जो उस बालक से सम्बद्ध होने के कारण और भी कुतूहलपूर्ण एवं रोचक है, जिसने एक शराबी के जीवन को कर्मण्यता की ओर प्रेरित करके उसे नया जीवन प्रदान किया। इसलिए प्रस्तुत कहानी का नामकरण अत्यन्त सार्थक एवं सोद्देश्य है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 21 जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 3.
मधुआ कहानी द्वारा लेखक ने मद्यपान के कुप्रभावों को सामने रखते हुए दायित्व और स्नेह द्वारा इस समस्या का अनूठा समाधान ढूँढ़ा है-आपके इस विषय में क्या विचार हैं ?
उत्तर:
हमारा विचार है कि मानवीय मनोविज्ञान का एक सत्य यह भी है कि जब व्यक्ति पर कोई दायित्व आ जाता है, तब उसके भीतर से एक ऐसी प्रेरणा प्रस्फुटित होती है, जो उसके जीवन की दिशा को बदल देती है। शराब पीने की लत से निष्क्रिय बने शराबी पर जब मधुआ की ज़िम्मेदारी आ पड़ती है तो उसे शराब छोड़कर फिर से काम धन्धे पर लग जाना पड़ता है। वह फिर से घरवारी बन जाता है।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 4.
मधुआ कहानी के आधार पर मधुआ का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर:
मधुआ ठाकुर सरदार सिंह के बेटे के बंगले पर लखनऊ में नौकरी करता है। वह कुंवर साहब का ओवर कोट उठाए दिनभर खेल में उनके साथ रहा करता था। एक दिन ऐसा संयोग हुआ कि खेल से जब कुंवर साहब सात बजे लौटे तो उसे घर का कुछ और काम भी करना पड़ा। काम करते हुए उसे रात के नौ बज गए। आटा वह रख नहीं सका था इसलिए रोटी न बना सका। सारा दिन भूखा रहने की शिकायत करने जब वह कुंवर साहब के नौकर के पास गया तो नौकर ने उसे इतनी डाँट पिलाई कि उसकी आँखों में आँसू छलक आए।

मधुआ को रोता हुआ देखकर शराबी के दिल में उसके प्रति हमदर्दी जागी, वह उसे साथ लेकर फाटक के बाहर चला आया। रात के दस बजे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों चुपचाप चलने लगे। शराबी ने मधुआ के फिर से सिसकने की आवाज़ सुनी। पूछने पर मधुआ ने बताया कि वह दिनभर का भूखा है। यह सुनकर शराबी उसे अपनी कोठरी में बिठाकर पूरे एक रुपए की मिठाई, पूरी आदि लेकर वापिस आया। गले में तरावट आते ही मधुआ हँसने लगा। दूसरे दिन सवेरे शराबी ने मधुआ की सुन्दर और कोमल काया से प्रभावित होकर कर्मठ बनने की बात सोची। मधुआ दूसरे दिन से शराबी के साथ सान धरने की मशीन पर काम करने लगा। उसने शराबी को यह बताया कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं है।

प्रश्न 5.
‘मधुआ’ कहानी के आधार पर शराबी का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
‘मधुआ’ कहानी का शीर्षक भले ही एक बालक के नाम पर दिया गया है किन्तु इस कहानी का केन्द्रीय पात्र शराबी है। शराबी को शराब पीने की लत है। उसकी सारी माया, ममता शराब की बोतल पर ही टिकी है। इस शराब की लत के कारण ही उसने सान धरने का धन्धा भी छोड़ रखा है। अब तो वह रईसजादों को कहानियाँ सुनाकर उनसे मिलने वाले पैसों से शराब पीता है। एक दिन सात दिनों तक चने चबाने पर गुज़ारा करके भरपेट पीने की आस लेकर ठाकुर सरदार सिंह के पास पहुँचा। ठाकुर के यह कहने पर कि सात दिन भूखा रहकर आज तुम्हें पीने की बात क्यों सूझी है। इस पर शराबी ने अपना जीवन दर्शन बताते हुए कहा-‘सरदार ! मौज बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दुःखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिए जा सकते हैं। शराबी एक संवेदनशील हृदय रखने वाला व्यक्ति है। तभी तो उसकी कहानियों में दुखियों की दर्द भरी आहे, रंग महलों में घुट-घुट कर मरने वाली बेगमों की पीड़ा छिपी होती है। वह उसी दर्द को भूलाने के लिए शराब पीने की बात भी कहता है।

शराबी का हृदय मानवीय गुणों से भरपूर है। जब वह मधुआ को डाँट खाकर रोते हुए देखता है तो वह केवल उसके आँसू नहीं पोंछता, दुलार से उसे अपने साथ लेकर फाटक के बाहर आ जाता है। जब उसे पता लगता है कि बालक मधुआ सारे दिन का भूखा है तो वह ठाकुर साहब से मिले एक रुपए की पूरियाँ, मिठाई खरीद लाता है हालाँकि बाज़ार में जाकर कुछ देर के लिए उसकी नीयत डोलती है किन्तु उसके अन्दर का जागा हुआ इन्सान उसे पूरे एक रुपए का सामान लेकर मधुआ के पास आने पर विवश कर देता है। – शराबी उसी बालक के लिए घरबारी बनने को तैयार हो जाता है। वह ममत्व से उत्पन्न ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए पुनः कार्य आरम्भ कर देता है।

प्रश्न 6.
‘मधुआ’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘मधुआ’ प्रसाद जी की एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इस कहानी में प्रसाद जी ने यह कहना चाहा है कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में दया, ममता, सहानुभूति आदि के गुण मौजूद रहते हैं, जो समय आने पर या उचित परिस्थितियाँ मिलने पर व्यक्ति में यह गुण जागृत हो जाते हैं। यही कहानीकार का उद्देश्य है। कहानी का चरित्र नायक एक शराबी और गैर-ज़िम्मेदार आदमी है। पर कुंवर साहब के अत्याचार से पीड़ित एक बालक के आँसू उससे वह करवा लेते हैं जो भूख नहीं करवा सकी थी। प्रसाद जी ने शराबी को एक संवेदनशील हृदय रखने वाला व्यक्ति दिखाकर ही उसे निष्क्रिय से कर्मठ इन्सान बनता दिखाता है। ठाकुर सरदार सिंह को जो कहानियाँ शराबी सुनाता है वह दुःख-दर्द से भरी होती हैं, जो शराबी को शराब पीने पर विवश भी करती हैं। नहीं तो शराबी के अनुसार इस बुरी बला को कौन अपने गले लगाता।

प्रसाद जी का उद्देश्य एक साथ एक व्यक्ति में दया, ममता, सहानुभूति आदि गुणों के उजागर होने की बात सिद्ध करना है। शराबी का हृदय रोते हुए मधुआ को देखकर पसीज उठता है। वह बड़े दुलार के साथ उसे अपने साथ ले आता है। शराबी की इस मौन सहानुभूति को बालक ने स्वीकार कर लिया। जब शराबी को यह पता चलता है कि बालक मधुआ दिनभर का भूखा है तो वह मानसिक द्वन्द्व पर विजय पाकर मधुआ के लिए पूरे एक रुपए की पूरी मिठाई खरीद लाता है। मानसिक द्वन्द्व में पड़ा शराबी फिर से घरबारी बनने को तैयार हो जाता है क्योंकि अब उसके ऊपर मधुआ की ज़िम्मेदारी आ गई थी। इस तरह परिस्थितियों ने एक निष्क्रिय व्यक्ति को एक कर्मठ, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं त्यागपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति बना दिया। यही प्रसाद जी का उद्देश्य है जिसमें वे पूर्ण रूप से सफल हुए हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 21 जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 7.
मधुआ कहानी के माध्यम से प्रसाद जी ने समाज की कई समस्याओं का समाधान किया है-आपके विचार में वे समस्याएँ क्या हैं और लेखक ने उन्हें कैसे हल किया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में सबसे पहली समस्या जिसे प्रसाद जी ने पाठकों के सम्मुख रखा है वह है शराब पीने की समस्या। शराब पीने की लत लग जाने पर व्यक्ति किस प्रकार निष्क्रिय हो जाता है कि सान धरने की कला में निपुण शराबी भी अपनी कला को भूल बैठता है। वह शराब पीने के लिए सात दिनों तक चने चबाने पर गुजारा करता है। उसका तर्क यह है कि मौज़ बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दु:ख पूर्ण जीवन से अच्छी है, उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिए जा सकते हैं। प्रसाद जी ने एक शराबी को कर्मठ कर्त्तव्य परायण व्यक्ति में बदलने के लिए उसमें मानवीय गुणों का जागना दिखाकर इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है।

प्रसाद जी ने समाज में व्याप्त दूसरी समस्या जिसकी ओर इशारा किया है वह है अमीर लोगों द्वारा अपने भोले-भाले नौकरों पर अत्याचार करने की प्रवृत्ति। मधुआ कुंवर साहब के यहाँ खेल के मसय उनका ओवर कोट उठाने की नौकरी करता है। सारा-सारा दिन वह उनका ओवर कोट उठाए कुंवर साहब के साथ बना रहता है, किन्तु न तो कुंवर साहब को तथा न ही उनके किसी दूसरे नौकर को इस बात का ध्यान आता है कि बालक सारे दिन का भूखा है। मधुआ जब इस बात की शिकायत कुंवर साहब के नौकर से करता है तो उसे डाँट खानी पड़ती है। विपरीत इसके शराबी, मधुआ को वह सब कुछ खिलाता है जो वह खिला सकता था। प्रसाद जी ने इस समस्या का समाधान संकेत रूप में यह दिया है कि ऐसी नौकरी करने की अपेक्षा कोई छोटा-मोटा काम-धन्धा करना बेहतर रहेगा क्योंकि इससे किसी दूसरे की गुलामी तो न सहनी पड़ेगी।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. ‘मौज बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दुःखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिए जा सकते हैं।’
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित कहानी ‘मधुआ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ शराबी ने ठाकुर सरदार सिंह को उस समय कही हैं जब ठाकुर साहब उससे पूछते हैं कि सात दिन तक चने चबाने पर गुजारा करने के बाद अच्छा भोजन करने की बजाए वह पेट भर पीना क्यों चाहता है ?

व्याख्या:
शराबी जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहता है कि एक लम्बे दुःखपूर्ण जीवन से सुख की एक घड़ी अच्छी है। उसके कहने का भाव यह है कि उस लम्बे जीवन से क्या फायदा जिसमें दुःख-दर्द, मुसीबतें और चिन्ताएँ हों। इसके विपरीत हर्षोल्लास का एक दिन श्रेष्ठ है। उस एक क्षण की मस्ती में जीवन के दुःख भरे दिन काटे जा सकते हैं।

विशेष:

  1. शराबी अपने जीवन दर्शन को स्पष्ट कर रहा है। शराब पीने को वह दुःखों को भुलाने का साधन मानता है। साथ ही वह यह भी कहना चाहता है कि सुखद क्षणों के लिए दुःख भरे दिन काटे जा सकते हैं।
  2. भाषा काव्यात्मक, सहज तथा भावानुरूप है।

2. “सोचा था, आज सात दिन पर भर भेट पीकर सोऊंगा, लेकिन वह छोटा-सा रोना पाजी न जाने से आ धमका।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी कहानी ‘मधुआं’ में से ली गई हैं। जब शराबी भोले-भाले बालक मधुआ को अपनी कोठरी में ले आता है तो बालक को दिनभर का भूखा जानकर उसके लिए पूरे एक रुपए की मिठाई-पूरी लाकर खिलाता है। मधुआ तो खा-पीकर सो जाता है किन्तु शराबी सोने की कोशिश करता हुआ प्रस्तुत पंक्तियाँ सोचता है।

व्याख्या:
शराबी अपने बदले हुए हालात पर विचार करता हुआ कहता है कि सात दिन तक शराब न पीने के बाद आज ठाकुर सरदार सिंह से मिलने वाले एक रुपए की शराब खरीद कर भर पेट पीकर सो जाता लेकिन यह छोटा-सा रोता हुआ पाजी बालक न जाने बीच में कहाँ से आ धमका।

विशेष:

  1. शराबी के मानसिक द्वन्द्व की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा प्रसंगानुकूल है।

3. “बैठे बिठाये यह हत्या कहाँ से लगी। अब तो शराब न पीने की मुझे भी सौगन्ध लेनी पड़ेगी।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित कहानी ‘मधुआ’ में से ली गई हैं। जब मधुआ की ज़िम्मेदारी सिर पर आ पड़ने से शराबी अपना पुराना धन्धा सान धरने का काम शुरू करना चाहता है तो मधुआ के इस दृढ़ निश्चय को कि वह अब ठाकुर की नौकरी न कर सकेगा शराबी प्रस्तुत पंक्तियाँ मन ही मन सोचता है।

व्याख्या:
मधुआ के इस निर्णय को जानकर कि वह अब उसी के साथ रहना चाहता है शराबी मन ही मन सोचने लगा-बैठे बिठाए हत्या कहाँ से लगी। शराबी के कहने का तात्पर्य उसके अन्दर का शराबी मर गया था। इसलिए उसने सोचा अब तो शराब नहीं पीने की उसे सौगन्ध लेनी ही पड़ेगी।

विशेष:

  1. मधुआ के कारण शराबी की शराब पीने की लत समाप्त हो जाती है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।

PSEB 12th Class Hindi Guide मधुआ Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जन्म कहाँ और कब हुआ था ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी में सन् 1889 ई० में हुआ था।

प्रश्न 2.
प्रसाद जी ने किस कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की थी?
उत्तर:
प्रसाद जी ने केवल आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की थी।

प्रश्न 3.
प्रसाद जी ने अपने घर में रह कर किन-किन भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था?
उत्तर:
प्रसाद जी ने अपने घर में रहकर संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।

प्रश्न 4.
प्रसाद जी की पहली कविता कब और कहाँ छपी थी?
उत्तर:
सन् 1911 ई० में ‘इन्दु’ नामक पत्रिका में।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 21 जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 5.
प्रसाद जी के द्वारा रचित उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
तितली, कंकाल और इरावती।

प्रश्न 6.
प्रसाद जी के द्वारा रचित कहानी संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रसाद जी के पाँच कहानी संग्रह हैं-आकाशदीप, आंधी, प्रतिध्वनि, छाया और इंद्रजाल।

प्रश्न 7.
प्रसाद जी ने कितने नाटक लिखे थे?
उत्तर:
लगभग एक दर्जन।

प्रश्न 8.
प्रसाद जी की कौन-सी रचना उनकी ख्याति की आधार है?
उत्तर:
कामायनी (महाकाव्य)।

प्रश्न 9. ‘मधुआ’ किस प्रकार की कहानी है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक कहानी।

प्रश्न 10.
कहानी सुनने का चस्का किसे था?
उत्तर:
ठाकुर सरदार सिंह को।

प्रश्न 11.
ठाकुर ने शराबी को कहानी सुनाने के लिए कितने पैसे दिए थे?
उत्तर:
एक रुपया।

प्रश्न 12.
उस लड़के का नाम क्या था? जो शराबी को मिला था।
उत्तर:
मधुआ।

प्रश्न 13.
मधुआ क्यों रो रहा था?
उत्तर:
मधुआ भूख के कारण रो रहा था।

प्रश्न 14.
शराबी ने एक रुपया क्या खरीदने में खर्च कर दिया था?
उत्तर:
मिठाई, पूरी और नमकीन खरीदने पर।

प्रश्न 15.
शराबी ने किस काम को करना पुनः आरंभ कर दिया था?
उत्तर:
सान धरने का कार्य।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 16.
उसकी खुमारी में…………
उत्तर:
रूखे दिन काट लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 17.
……………सौगंध लेनी पड़ेगी।
उत्तर:
अब तो शराब न पीने की।

प्रश्न 18.
बैठे बिठाये यह हत्या………………
उत्तर:
कहाँ से लगी।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 19.
ठाकुर का नाम सरदार सिंह था।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
‘मधुआ’ मनोवैज्ञानिक कहानी है।
उत्तर:
हाँ।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 21 जयशंकर प्रसाद

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. जयशंकर प्रसाद की कीर्ति का आलोक स्तंभ कौन सा महाकाव्य है ?
(क) कामायनी
(ख) लहर
(ग) झरना
(घ) आँसू।
उत्तर:
(क) कामायनी

2. लेखक के कितने कहानी संग्रह हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(घ) पाँच

3. मधुआ किस विद्या की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) निबंध
(ग) उपन्यास
(घ) रेखाचित्र
उत्तर:
(क) कहानी

4. मधुआ कैसी कहानी है ?
(क) व्यंग्यात्मक
(ख) मनोवैज्ञानिक
(ग) विचारात्मक
(घ) विवेचनात्मक
उत्तर:
(ख) मनोवैज्ञानिक

5. ठाकुर सरदार सिंह को क्या सुनने का शौक था ?
(क) कहानी
(ख) भाषण
(ग) कविता
(घ) व्यंग्य
उत्तर:
(क) कहानी

कठिन शब्दों के अर्थ

महक = बदबू। खुमारी = मस्ती, नशा। दिल्लगी = हंसी-मज़ाक । कंगाल = गरीब। सुकुमार = कोमल। कर्कश = कठोर, तीव्र । ढेबरी = दीया जलाने वाली टीन की डिबिया। गढ़ा भरना = पेट भरना। आलोक = प्रकाश, रोशनी। दारिद्रय = गरीबी। नियति = भाग्य। इन्द्रजाल = जादू। सान धरने की कल = चाकू, छुरी तेज़ करने की मशीन।

मधुआ Summary

मधुआ जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।

जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई० में वाराणसी के एक धनी वैश्य परिवार में हुआ। इन्होंने स्कूल में केवल आठवीं तक ही शिक्षा पाई थी, तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। इनकी सर्वप्रथम कहानी ‘गाय’ सन् 1911 में ‘इन्दु’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आकाशदीप, आँधी, प्रतिध्वनि, छाया
और इन्द्रजाल इनके पाँच कहानी संग्रह हैं। तितली, कंकाल और इरावती इनके उपन्यास हैं। इन्होंने लगभग दर्जन-भर नाटक भी लिखे हैं, जिनमें चन्द्रगुप्त, स्कन्धगुप्त अजातशत्रु और ध्रुवस्वामिनी प्रमुख हैं। ‘कामायनी’ महाकाव्य इनकी कीर्ति का आलोक स्तम्भ है। सन् 1937 ई० में इनका निधन हो गया था।

मधुआ कहानी का सार

प्रस्तुत कहानी में एक गरीब व्यक्ति के चारित्रिक विकास के माध्यम से सामाजिक विषमताओं और अन्यायों का चित्र खींचा गया है। यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है जिसमें एक कोमल, सुन्दर किन्तु पीड़ित बालक के दुःख से भरे जीवन से प्रभावित होकर एक निष्क्रिय शराबी भी कर्मठ बन जाता है। ठाकुर सरदार सिंह को कहानी सुनने का चस्का था। एक शराबी उन्हें तरह-तरह की कहानियाँ सुनाकर बदले में शराब के लिए पैसे लेता है। एक दिन शराबी ठाकुर साहब के पास कहानी सुनाने पहुँचता है और कहता है कि आज उसे सात दिन से ऊपर हो गए हैं, एक बूंद भी गले में नहीं उतरी। कहानी सुनाने से पहले ही ठाकुर साहब को नींद सताने लगी। उन्होंने उसे एक रुपया देकर अपने नौकर लल्लू को भेजने का आदेश देकर उसे विदा किया।

शराबी लल्लू को ढूँढ़ता हुआ जब उसकी कोठरी के पास पहुँचा तो उसने अन्दर से एक बालक के सिसकने का शब्द सुना। लल्लू उस बालक को डाँट रहा था। जब उसकी डाँट खाकर बालक बाहर निकला तो उसकी आँखों में आँसू देखकर शराबी ने उसे बड़े दुलार से उसकी आँखें पोंछते हुए उसे साथ लेकर फाटक के बाहर चला आया। बालक को पुनः रोता देख जब शराबी ने उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह दिन भर से भूखा है। मार तो वह रोज ही खाता है लेकिन आज खाना भी नहीं मिला।

बालक की बात सुनकर शराबी उसे अपनी गन्दी कोठरी में ले गया और उसे वहाँ बैठाकर स्वयं उसके लिए कुछ लेने के लिए चला गया। शराबी की जेब में एक रुपया था, वह शराब पीना चाहता था किन्तु न जाने किस दैवीय शक्ति के कारण उसने पूरे एक रुपए की मिठाई, पूरी और नमकीन खरीदी और बालक को खाने के लिए दी। इसे खाकर बालक मुस्कुराने लगा। . . . दूसरे दिन सवेरे उठकर शराबी ने अपनी कोठरी में बिखरी हुई दरिद्रता को देखा और उसने बालक मधुआ के लिए फिर से गृहस्थी बनने की बात सोची और फिर से अपना पुराना सान धरने का धन्धा शुरू कर दिया। बालक भी उस की गठरी उठाकर उसके साथ चल पड़ा।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह

Hindi Guide for Class 12 PSEB गुरु गोबिन्द सिंह Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘जफ़रनामा’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गुरु जी ने दीना नामक गाँव से मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को फ़ारसी में एक पत्र लिखा जिसे जफ़रनामा कहते हैं। यह गुरु जी की एक उत्कृष्ट एवं विख्यात कविता है । इस कविता या पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब की धर्मान्धता, संकीर्णता और अत्याचारों पर बड़ी फटकार बताई है।

प्रश्न 2.
गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय कैसे मिलता है ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
गुरु जी ने भाई कन्हैया को कहा हुआ था कि युद्ध में प्रत्येक को जल पिलाओ चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। मित्र हो या शत्रु। इतना ही नहीं मरहम पट्टी करने वालों को भी उनका यही आदेश था कि मित्र और शत्रु के भेद को भुला कर घायलों का उपचार किया जाए। इस आदेश से गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय मिलता है।

प्रश्न 3.
बन्दा वैरागी कौन था ? गुरु जी से उसकी भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर:
बन्दा वैरागी का असली नाम माधवदास था। वह दक्षिण में गोदावरी के किनारे रहता था। गुरु जी उस योगी और वैरागी से मिले। वह भी गुरु जी से प्रभावित हुआ और उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उन्हें अत्याचार का विनाश करने के लिए पंजाब भेजा। बन्दा वैरागी के रूप में उन्होंने वीरतापूर्वक ढंग से अपने कर्त्तव्य को निभाने का प्रयत्न किया।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह के जन्म के समय की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए उनके बाल्यकाल का वर्णन करो।
उत्तर:
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म सन् 1666 में नवम् गुरु तेग़ बहादुर के घर पटना में हुआ। उस समय औरंगजेब के अत्याचारों से भारतीय जनता दुःखी थी। गुरु जी का जन्म हिन्दू धर्म की रक्षा करने और उनका उद्धार करने के लिए हुआ था। बचपन से ही गुरु जी निडर, साहसी और आत्मविश्वासी थे। उन्हें बहादुरी के खेल खेलने का शौक था। पटना में नवाब की सवारी को देखकर चौबदार ने उन्हें खड़े होकर नवाब को सलाम करने को कहा। स्वाभिमानी गुरु जी ने न केवल स्वयं सलाम करने से इन्कार किया बल्कि अपने साथियों को भी सलाम न करने को कहा। बचपन में उन्होंने आनन्दपुर साहब आकर अपने पिता को यह कह कर बलिदान देने के लिए प्रेरित किया कि आप से बढ़कर महान् कौन हो सकता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 5.
‘खालसा पंथ की साजना’ गुरु जी के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
सन् 1699 का वैशाखी का दिन था। गुरु जी ने सब शिष्यों की एक सभा बुलाई और घोषणा की कि धर्म की रक्षा के लिए कुछ व्यक्तियों के बलिदान की आवश्यकता है। सभा में सन्नाटा छा गया। तभी गुरु जी की ललकार को सुनकर लाहौर का दयाराम सामने आया। गुरु जी उसे लेकर पास के एक तम्बू में गए और खून से भरी तलवार लेकर वे तम्बू से बाहर आए और बलिदान के लिए और भेंट माँगी। तब दिल्ली का धर्मदास सामने आया। गुरु जी उसे भी तम्बू में ले गए और खून की सनी हुई तलवार लेकर बाहर आए और तीसरा बलिदान माँगा।

तब द्वारिका का मोहकम चंद, बीदर (दक्षिण) का साहिबचन्द और जगन्नाथपुरी का हिम्मत राय बारी-बारी सामने आए। गुरु जी उन्हें भी बारी-बारी तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद वे उन पाँचों को साथ लेकर तम्बू से बाहर आए और सारी सभा के सामने उन्हें प्रस्तुत कर उन्हें ‘पंज प्यारे’ की संज्ञा दी। गुरु जी ने पहले उन पाँचों को दीक्षित किया फिर आप उनसे दीक्षित हुए। इस प्रकार उन्होंने ‘खालसा पंथ’ की नींव रखी और अपने शिष्यों को अपने नाम के आगे सिंह लगाने का आदेश दिया। स्वयं भी गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह हो गए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
गुरु जी को चिन्तित देखकर बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा। कारण सुनकर बालक गोबिन्द राय एक दम बोल उठा, “पिता जी, आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा अपने पिता को बलिदान देने की प्रेरणा देने की घटना का उल्लेख है।

व्याख्या:
मुग़लों के अत्याचारों से दुःखी होकर कश्मीर के कुछ ब्राह्मण गुरु तेग़ बहादुर जी की शरण में आए और उनसे अपने धर्म की और अपनी रक्षा की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर गुरु जी इस परिणाम पर पहुँचे कि इस समय धर्म की रक्षा के लिए किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। अपने पिता को चिन्तित देखकर पास बैठे बालक गोबिन्दराय ने कहा कि आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।

विशेष:

  1. बालक गोबिन्द राय पिता को आत्मबलिदान की प्रेरणा देते हैं।
  2. भाषा सरल, सहज तथा उद्बोधनात्मक है।

प्रश्न 7.
इसी समय वे स्वयं गुरु गोबिन्दराय से गुरु गोबिन्द सिंह बन गए। इस प्रकार गुरु नानक की परम्परा में जो धर्म अब तक आध्यात्मिक प्रधान था, उसे गुरु ने वीरता का पाठ भी पढ़ा दिया।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में गुरु जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखने के बाद की घटना का उल्लेख किया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि खालसा पंथ की नींव रखने के बाद गुरु जी ने अपने नाम के साथ सिंह शब्द जोड़ दिया इस तरह वे गुरु गोबिन्द राय से गुरु गोबिन्द सिंह हो गए। इस तरह उन्होंने सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी की परम्परा में अब तक जो आध्यात्मिकता प्रधान थी उसमें वीरता भी जोड़कर सिक्ख धर्म को एक नया पाठ पढ़ाया।

विशेष:

  1. गुरु जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखने के बाद स्वयं को ‘सिंह’ कहने की परंपरा का वर्णन है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।

प्रश्न 8.
गुरु जी ने इन 40 शूरवीरों को चालीस मुक्ते की उपाधि दी और उस स्थान का नाम, जहाँ वे वीर शहीद हुए थे, मुक्तसर रखा।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित ‘गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने खिद्राणा नामक स्थान पर आनन्दपुर साहब में गुरु जी का साथ छोड़ गए 40 शिष्यों द्वारा अपने कुकृत्य पर पछताते हुए वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करने की घटना के बाद गुरु.जी द्वारा उनके प्रति आदर व्यक्त करने की बात कही गई है।

व्याख्या:
खिद्राणा के युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए 40 शिष्यों के वीरगति प्राप्त करने पर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने उन 40 शूरवीरों को 40 मुक्ते की उपाधि प्रदान की और उस स्थान को, जहाँ वे शहीद हुए थे, मुक्तसर नाम दिया।

विशेष:

  1. मुक्तसर नगर के नामकरण का कारण स्पष्ट किया है।
  2. भाषा सहज तथा भावपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 9.
इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार।
चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हजार।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित ‘गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु जी ने कहे जब उन से उनके पुत्रों की मृत्यु के बारे में पूछा था।

व्याख्या:
गुरु जी ने उत्तर देते हुए कहा कि मैंने अपने शिष्यों की रक्षा करने के लिए अपने चार पुत्रों को न्यौछावर कर दिया है। इन चारों की मृत्यु से कुछ न होगा बल्कि इनके बलिदान के कारण कई हजार वीर शिष्य पैदा हो जाएँगे।

विशेष:

  1. प्रस्तुत उक्ति से गुरु जी के त्यागपूर्ण, उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण का पता चलता है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है। शैली ओजपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Guide गुरु गोबिन्द सिंह Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘गुरु गोबिंद सिंह’ शीर्षक निबंध किस के द्वारा रचित है?
उत्तर:
डॉ० धर्मपाल मैनी।

प्रश्न 2.
डॉ० मैनी ने अपनी उच्च शिक्षा कहाँ-कहाँ से प्राप्त की थी?
उत्तर:
पटियाला और बनारस से।

प्रश्न 3.
डॉ० मैनी ने किन-किन भाषाओं में साहित्य की रचना की है ?
उत्तर:
हिंदी, पंजाबी और अंग्रेज़ी।

प्रश्न 4.
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब-एक परिचय’ किस के द्वारा रचित है?
उत्तर:
डॉ० धर्मपाल मैनी।

प्रश्न 5.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कब और किस नगर में हुआ था?
उत्तर:
सन् 1666 ई०, पटना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 6.
गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
गुरु जी के बचपन का नाम गोबिन्दराय था।

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने किस की रक्षा में अपना बलिदान दे दिया था?
उत्तर:
धर्म की रक्षा में।

प्रश्न 8.
बालक गोबिंदराय ने कितने वर्ष की अवस्था में गुरु गद्दी संभाली थी?
उत्तर:
नौ वर्ष की अवस्था में।

प्रश्न 9.
गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना कब और कहाँ की थी?
उत्तर:
गुरु जी ने सन् 1699 में वैशाखी के दिन आनन्दपुर साहब में खालसा पंथ की स्थापना की थी।

प्रश्न 10.
गुरु जी किस दिन गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह हो गए थे?
उत्तर:
जिस दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी–सन् 1699 में वैशाखी के दिन।

प्रश्न 11.
किस नदी के निकट मुग़ल सैनिकों ने अपना वादा तोड़ते हुए हमला किया था?
उत्तर:
सरसा नदी के निकट।

प्रश्न 12.
गुरु जी ने 40,मुक्त की उपाधि किन्हें दी थी?
उत्तर:
जिन चालीस सिखों ने खिदराणा में गुरु जी की ओर से लड़ते हुए शहीदी पाई थी।

प्रश्न 13.
गुरु जी किस बादशाह के करीब आ गए थे?
उत्तर:
बादशाह बहादुर शाह के।

प्रश्न 14.
गुरु जी किस दिन ज्योति-जोत समा गए थे? .
उत्तर:
सन् 1708 में। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
गुरु जी को चिन्तित देखकर…
उत्तर:
बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा।

प्रश्न 16.
इन पुत्रन के सीस पर बार दिए सुत चार, ………….।
उत्तर:
चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हज़ार।

प्रश्न 17.
इस प्रकार गुरु नानक की परंपरा में जो धर्म अब तक आध्यात्मिक प्रधान था,……
उत्तर:
उसे गुरु जी ने वीरता का पाठ भी पढ़ा दिया।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
गुरु जी को चिन्तित देखकर बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
गुरु जी ने कहा, “पिता जी, आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।”
उत्तर:
हाँ।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के कौन-से गुरु थे ?
(क) सातवें
(ख) आठवें
(ग) नवम्
(घ) दशम्
उत्तर:
(घ) दशम्

2. गुरु गोबिन्द सिंह जी का बचपन का नाम क्या था ?
(क) गोबिन्द राय
(ख) मुकुल राय
(ग) सुरेन्द्र
(घ) शिवेन्द्र।
उत्तर:
(क) गोबिन्द राय

3. गुरु जी ने सन् 1699 में वैशाखी के दिन किस पंथ की स्थापना की ?
(क) खालसा पंथ
(ख) निर्गुण पंथ
(ग) सगुण पंथ
(घ) निराकार पंथ
उत्तर:
(क) खालसा पंथ

4. गुरु जी की भक्ति किसके प्रति समर्पित है ?
(क) निर्गुण के
(ख) सगुण के
(ग) अकाल पुरुष के
(घ) निराकार के
उत्तर:
(ग) अकाल पुरुष के

कठिन शब्दों के अर्थ

निर्भीकता = निडरता। द्वेष = कलह । टक्कर लेना = मुकाबला करना। साजना = सजाना, निर्माण करना। अदम्य = अद्भुत, अत्यन्त । नवरक्त = नया खून। आवेश = जोश। दीक्षा देना = गुरुमन्त्र देना। समता = बराबरी। कुकृत्य = बुरा कर्म । उत्कृष्ट = श्रेष्ठ। विख्यात = प्रसिद्ध। संकीर्णता = तंगदिली। टीला = ऊंचा स्थान। कलह = झगड़ा। अभाव = कमी। विधिवत = उचित तरीके से। आत्मीय = अपनापन। विकृत = बिगड़ा हुआ। चिल्ला चढ़ाना = धनुष की डोरी खींचना।

गुरु गोबिन्द सिंह Summary

गुरु गोबिन्द सिंह जीवन परिचय

डॉ० धर्मपाल मैनी जी का जीवन परिचय लिखिए।

डॉ० धर्मपाल मैनी का जन्म सन् 1929 में हुआ। महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला से हिन्दी में एम० ए० करने के बाद हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आप एस० डी० राजकीय कॉलेज, लुधियाना में तथा पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे। फिर आप गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में रीडर भी रहे। पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से सेवानिवृत्त होकर आप चण्डीगढ़ में ही बस गए हैं। आपने हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में लिखा है। इनकी प्रमुख रचनाएँ ‘संतो के धार्मिक विश्वास श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक परिचय, गुरु गोबिन्द सिंह के काव्य में भारतीय संस्कृति हैं’

गुरु गोबिन्द सिंह निबन्ध का सार

‘गुरु गोबिन्द सिंह’ निबन्ध का सार 150 शब्दों में लिखें।

‘गुरु गोबिन्द सिंह’ का जन्म सन् 1666 में सिक्खों के नवम् गुरु तेग़ बहादुर जी के घर पटना में हुआ। आपका बचपन का नाम गोबिन्दराय था। पाँच वर्ष तक पटना में रहने के बाद आप विभिन्न तीर्थों की यात्रा करते हुए आनन्दपुर साहब पहुँचे। वहीं एक दिन इनके पिता ने धर्म की रक्षा के लिए किसी महान् व्यक्ति के बलिदान की बात कही। तब बालक गोबिन्द राय ने अपने पिता से कहा कि आप से बढ़कर महान् व्यक्ति और कौन हो सकता है। गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। फलस्वरूप बालक गोबिन्दराय को नौ वर्ष की अवस्था में ही गुरु गद्दी सम्भालनी पड़ी। गद्दी सम्भालते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुग़ल सरदारों को इनसे वैर और ईर्ष्या होने लगी। गढ़वाल के राजा फतेहशाह के साथ पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर गुरु जी को युद्ध करना पड़ा। नादौन में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की सहायता करते हुए जम्मू के सूबेदार मियाँ खान के सेनापति से युद्ध किया।

सन् 1699 के वैशाखी के दिन गुरु जी ने आनन्दपुर साहब में खालसा पंथ की स्थापना की और हर सिक्ख को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया। आप भी उसी दिन से गोबिन्दराय से गोबिन्द सिंह हो गए। अप्रैल सन् 1704 को लाहौर और सरहिन्द के सूबेदारों ने आनन्दपुर साहब में गुरु जी को घेर लिया। आठ महीने की इस घेराबन्दी के दौरान 40 सिक्ख आपको छोड़कर चले गए। दिसम्बर 1704 में गुरु जी आनन्दपुर साहब छोड़कर निकले तो सरसा नदी के पास मुग़ल सैनिकों ने वादा तोड़ते हुए आप पर आक्रमण कर दिया। गुरु के सिंह बड़ी वीरता से लड़े। गुरु जी कुछ सिक्खों के साथ चमकौर पहुँचे और वहाँ कच्ची गढ़ी में मोरचा लगा लिया।

गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख थे बाहर दुश्मन ने घेरा डाल लिया। इसी युद्ध में गुरु जी के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। गुरु जी रात को वहाँ से निकल मालवा प्रान्त की ओर बढ़े। सरसा के युद्ध में उनका परिवार उनसे बिछुड़ गया था। उनकी माता गुजरी अपने दो पोतों-जोरावर सिंह और फतेह सिंह को लेकर अपने रसोइए गंगू के साथ उसके गाँव में चली गई। गंगू ने धोखे से धन के लालच में आकर दोनों साहबजादों को सरहिन्द के नवाब को सौंप दिया जिसने उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा। साहबजादों के इन्कार करने पर उन्हें जीवित दीवार में चिनवा दिया गया।

गुरु जी का साथ छोड़ गए 40 सिक्ख अपनी करनी पर पछता रहे थे। उन्होंने खिद्राणा के स्थान पर युद्ध में गुरु जी की ओर से लड़ते हुए शहीदी पाई। गुरु जी ने उन्हें 40 मुक्ते की उपाधि दी और उस स्थान का नाम मुक्तसर रख दिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु जी बादशाह बहादुरशाह के करीब आ गए। इसी से ईर्ष्या करते हुए सरहिन्द के नवाब ने गुरु जी की हत्या करने की ज़िम्मेदारी दो पठानों को सौंपी जिनमें से एक ने एक दिन नन्देड़ (दक्षिण) में उनके पेट में छुरा घोंप दिया। उसी घाव के टांके एक दिन चिल्ला चढ़ाते समय खुल गए जिसके फलस्वरूप सन् 1708 में आप ज्योति-जोत समा गए।

गुरु गोबिन्द सिंह जी का साहित्यिक परिचय दीजिए। सिख धर्म के दशम् गुरु गोबिन्द सिंह जी अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य प्रेम के कारण ही उस समय के अनेक कवि उनके आश्रय में रहते थे। उनके द्वारा रचित साहित्य को डॉ० जय भगवान गोयल ने तीन भागों में बांटा है

  1. भक्ति प्रधान एवं आध्यात्मिक विचारों से युक्त रचनाएँ-जापु साहिब, अकाल उस्तुति, ज्ञान प्रबोध, श्रीमुख वक सवैये-आदि।
  2. वीर रसात्मक रचनाएँ-बिचित्र नाटक, चौबीस अवतार कथाएँ, चंडी चरित्र (उक्ति विलास), चंडी-चरित्र द्वितीय, चंडी दी वार, शस्त्र नाम माला।
  3. उपख्यान चरित्र-इसमें नारी के प्रेम, शौर्य और प्रवंचना का विषद् वर्णन करते हुए उसके चरित्र का उद्घाटन किया गया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

साहित्यिक विशेषताएँ:
गुरु जी के साहित्य में भक्ति भावना की प्रधानता है। कुछ विद्वान् चाहे उन्हें युद्ध वीर के रूप में देखते हैं लेकिन वास्तव में वे पहले धर्म संस्थापक थे और बाद में योद्धा। उन्होंने अनेक स्थानों पर अवतारवाद
और मूर्ति पूजा का खंडन किया था। वे ईश्वर को निर्गुण, निराकार और अकाल पुरुष मानते थे। वे कहते हैं कि ईश्वर प्राप्ति का सरल एवं सहज. मार्ग उस ब्रह्म और उसके जीव-जन्तुओं से प्रेम करने में निहित हैं।
गुरु जी ने अपने साहित्य में भक्ति और वीरता का समन्वय किया था। चंडी चरित्र (उक्ति विलास) में उन्होंने ऐसी ही प्रार्थना की थी।

देहि शिवा वर मोहि इहै शुभ करमन ते कबहूँ न टरौं।
न डरों अरिसों जब जाय लरौ निश्चय कर अपनी जीत करों।

गुरु जी की भक्ति भावना की विशेषता है कि वे ‘अकाल पुरुष’ के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। इन्होंने अन्य भक्तोंकवियों की तरह विनय पद लिखे हैं। उनके काव्य में ब्रह्म की कृपालुता, भक्तिवत्सलता, दीनबंधुता आदि का वर्णन किया गया है। गुरु जी के काव्य में शक्ति की वंदना की गई है। उन्होंने भक्ति और वीरता का समन्वय करते हुए अपने शिष्यों के सामने आदर्श की स्थापना भी की थी। ‘चंडी-चरित्र’ (उक्त विलास) में गुरु जी ने ऐसा ही चित्रण किया है। गुरु जी ने आडंबरों का विरोध किया और पाखंडों का खंडन किया। उन्होंने मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए जातिपाति और भेदभाव का खंडन किया। वे भाई-चारे में विश्वास करते थे।

गुरु जी को फारसी, पंजाबी और ब्रजभाषा का गहरा ज्ञान था। दोहा, चौपाई, सवैया आदि छंदों का प्रयोग करते हुए उन्होंने तत्कालीन लोक भाषाओं का प्रयोग किया था। उसमें तत्कालीन विदेशी भाषाओं का प्रयोग भी किया गया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 शार्टकट सब ओर

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 19 शार्टकट सब ओर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 19 शार्टकट सब ओर

Hindi Guide for Class 12 PSEB शार्टकट सब ओर Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
शार्टकट को जीवन दर्शन के रूप में अपनाने का श्रीगणेश कब हुआ ?
उत्तर:
एक प्राचीन कथा के आधार पर शार्टकट की इस नवीन प्रणाली को जन्म देने का श्रेय पार्वती जी को है, जिन्होंने अपने प्रिय पुत्र गणेश जी को, युवराज पद के संघर्ष में भगवान् शंकर के प्रिय पुत्र कार्तिकेय जी की अपेक्षा, यह सलाह दी कि तीनों लोकों की परिक्रमा करने की बजाए, अपने वाहन चूहे पर सवार होकर भगवान् शंकर की परिक्रमा कर लें। क्योंकि भगवान् शंकर भी तो त्रिलोकीनाथ हैं। त्रिलोक की परिक्रमा उनके सामने क्या महत्त्व रखती है। इसी शार्टकट को अपना कर गणेश जी ने विजय प्राप्त की।

प्रश्न 2.
शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रहे शार्टकट का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में शार्टकट के कारण पाठ्य-पुस्तकों की जगह कुंजियों, नोट्स की धूम मची है। मॉडल पेपर और टैस्ट पेपर छपते हैं जो एक सप्ताह, एक दिन, एक घंटा परीक्षा से पहले पढ़ लेने पर पास होने के पासपोर्ट समझे जाते हैं। आजकल तो परीक्षा से पाँच मिनट पूर्व शीर्षक की पुस्तकें भी छपनी शुरू हो गई हैं। इसी तरह ग्रेजुएट बनने के लिए भी वाया बठिण्डा नामक शार्टकट का चलन हो गया है। प्रभाकर, ज्ञानी या शास्त्री की परीक्षा पास कर केवल अंग्रेजी में एक पर्चा देकर ग्रेजुएट बना जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में भी बड़ी-बड़ी पुस्तकों की बजाए उनके लघु संस्करण छपने लगे हैं। प्रबन्ध काव्य की जगह मुक्तक काव्य ने ले ली है। एक नाटक की जगह एकांकी और कहानी की जगह छोटी कहानी की जगह शार्टकट के कारण ही ले रही है। यही नहीं साहित्य की प्रत्येक विधा को शार्टकट ने अपने शिकंजे में कस रखा है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

प्रश्न 3.
‘शार्टकट सब ओर’ में लेखक ने व्यंग्य के द्वारा शार्टकट के कुप्रभावों की ओर कैसे संकेत किया है ?
उत्तर:
लेखक ने शार्टकट की संस्कृति के प्रभाव स्वरूप आगे बढ़ने की होड़ में बेतहाशा भागना शुरू कर दिया है। स्त्रियों ने टाइट ड्रैस पहननी शुरू कर दी है और बाल कटवाने शुरू कर दिये हैं। पाठ्य-पुस्तकों की बजाए कुंजियों, नोट्स और मॉडल टैस्ट पेपरों ने ले ली है। विवाह के झंझट से बचने के लिए प्रेम विवाह होने लगे हैं। ये सब शार्टकट के कुप्रभाव ही तो हैं।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 4.
‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध आज के युग का यथार्थ चित्रण है। इसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शार्टकट अपना कर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में हास्य के पुट के साथ आधुनिक युग के गम्भीर यथार्थ को सामने रखा है। आज मनुष्य कामकाज के बोझ से इतना दब गया है कि शार्टकट के बिना उसकी गाड़ी चल ही नहीं सकती। उसके हर काम में हर क्षेत्र में शार्टकट का ही बोल बाला है। टाइट ड्रैस और हेयर कट इसी शार्टकट का ही परिणाम हैं। साहित्य के क्षेत्र में भी शार्टकट का सहारा लिया जाने लगा है। आज बड़ी-बड़ी पुस्तकें कोई नहीं पढ़ता। लघु संस्करणों ने उनकी जगह ले ली है। पाठ्य-पुस्तकों के स्थान पर कुंजियाँ, नोट्स, मॉडल पेपर, टैस्ट पेपर लोग पढ़ते हैं और अब तो ऐसी पुस्तकें भी बाज़ार में आ गई हैं जो परीक्षा से एक सप्ताह पहले, एक घण्टा पहले और पाँच मिनट पहले शीर्षक वाली हैं। ये सब शार्टकट का ही तो परिणाम है। उपन्यास की जगह कहानी, छोटी कहानी, नाटक की जगह एकांकी और महाकाव्य की जगह मुक्तक काव्य ने ले ली है। सच्चाई यह है कि आज शार्टकट ने साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने शिकंजे में ले लिया है।

शादी के सिलसिले में प्रेम विवाह भी इसी शार्टकट की देन है। शिक्षा के क्षेत्र में वाया बठिण्डा ग्रेजुएट होने के लिए शार्टकट का सहारा लिया जाता है। लेखक ने शार्टकट के कारण गागर में सागर भरने की बात को स्पष्ट करते हुए कहा है कि आजकल लोगों के पास बात । तक करने की भी फुर्सत नहीं है इसलिए वे शार्टकट का सहारा लेकर इशारों ही इशारों में बात करते हैं। – इस तरह लेखक ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए शार्टकट का सहारा लेने की बात कही है। प्रश्न 5. ‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखो। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार। (ग) सप्रसंग व्याख्या करें

प्रश्न 6.
एक गम्भीर दौड़ छिड़ गई है। हर कोई एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में है। यह दौड़ कछुए और खरगोश की नहीं बल्कि सिर्फ खरगोशों की दौड़ है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक शार्टकट के माध्यम से लोगों के एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ की चर्चा कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि शार्टकट आधुनिक संस्कृति का दूसरा नाम बन जाने के कारण लोगों में एक गम्भीर दौड़ छिड़ गई है। हर कोई एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है। यह दौड़ कोई कछुए और खरगोश की दौड़ नहीं जिसमें कछुआ तो धीरे-धीरे चलता है और खरगोश कुलाचे भरता हुआ सरपट दौड़ता है परन्तु यह दौड़ तो केवल खरगोशों की दौड़ है जिसमें हर कोई तेज़ी से भाग रहा है और एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है।

विशेष:

  1. आधुनिक युग में हर कोई शार्टकट कर रहा है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

प्रश्न 7.
मुक्तक रचना ने प्रबन्ध की कमर तोड़ दी है। एकांकी नाटक के प्राण हर रहा है। छोटी कहानी बड़ी का गला दबोच रही है। सच्चाई यह है कि साहित्य की प्रत्येक विधा को शिकंजे में कस कर शार्टकट किया जा रहा है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक साहित्य पर शार्ट के प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक शार्टकट के साहित्य पर पड़ने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं शार्टकट के कारण मुक्तक काव्य की रचना होने लगी जिसने प्रबन्ध काव्य की कमर तोड़ दी अर्थात् उसकी रचना बन्द हो गई। इसी तरह एकांकी ने नाटक के प्राण हर लिए अर्थात् शार्टकट के कारण नाटक के स्थान पर एकांकी का प्रचलन शुरू हो गया। इसी तरह छोटी कहानी ने कहानी का गला दबोच लिया अर्थात् कहानी के स्थान पर छोटी कहानी लिखी जाने लगी। सच तो यह है कि साहित्य की प्रत्येक विधा को निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र-आदि को शार्टकट ने अपने शिकंजे में कस लिया है अर्थात् साहित्य की सभी विधाएँ इसके प्रभाव में आ गई हैं।

विशेष:

  1. साहित्य के क्षेत्र में मुक्तकों, कहानी, एकांकी को शार्टकट माना गया है।
  2. भाषा सहज तथा मुहावरों से युक्त है।

प्रश्न 8.
ये महानुभाव अपने समग्र कार्य व्यापार आँखों के इशारों से चलाते हैं। इसके पास बात करने की फुर्सत कहाँ। किसी उर्दू शायर ने सम्भवतः इनकी इस अदा पर कुर्बान होकर ही यह शेयर पढ़ा हैजमाने को फुरसत नहीं गुफ़तगू की
अरुसे सुखन ये इशारों के दिन हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं।

प्रस्तुत:
पंक्तियाँ में लेखक ने बातचीत पर भी शार्टकट के प्रभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक मौन व्रत को शार्टकट सम्प्रदाय का बहुत बड़ा अनुष्ठान मानते हुए कहते हैं कि ये लोग, जो मौन व्रत के समर्थक हैं, अपना सारा कार्य व्यापार आँखों के इशारों से चलाते हैं। उनके पास बात तक करने की फुर्सत नहीं है। किसी उर्दू कवि ने शायद इनकी इसी अदा पर न्योछावर होते हुए यह शेयर पढ़ा था जिसका अर्थ है कि ज़माने को बातचीत करने की भी फुर्सत नहीं है क्योंकि दुल्हन से बातचीत इशारों से करने के दिन हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने मौन को भी वार्तालाप का शार्टकट माना है।
  2. भाषा बोलचाल की उर्दू शब्दों से युक्त है।

PSEB 12th Class Hindi Guide शार्टकट सब ओर Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० संसार चंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
डॉ० संसार चंद का जन्म जम्मू के मीरपुर गाँव में सन् 1917 में हुआ था।

प्रश्न 2.
डॉ० संसार चंद के अधिकतर निबंध किस तरह के हैं ?
उत्तर:
व्यग्यात्मक।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

प्रश्न 3.
डॉ० संसार चंद के द्वारा रचित कुछ निबंध संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सोने के दाँत, बातें या झूठी, तिनकों के घाट, महामूर्ख मंडल।

प्रश्न 4.
लेखक ने आज की संस्कृति को दूसरा नाम क्या दिया है?
उत्तर:
शार्टकट।

प्रश्न 5.
शार्टकट का इतिहास कैसा है?
उत्तर:
बहुत पुराना।

प्रश्न 6.
गणेश जी ने शार्टकट कैसे मारकर विजय प्राप्त कर ली थी?
उत्तर:
उन्होंने भगवान् शंकर की परिक्रमा करके विजय प्राप्त कर ली थी।

प्रश्न 7.
साहित्य के क्षेत्र में आजकल कौन-से शार्टकट के उदाहरण हैं ?
उत्तर:
मॉडल पेपर, टैस्ट पेपर, कुंजियां, नोट्स, लघु संस्करण।

प्रश्न 8.
लेखक के अनुसार कहानी किसका शार्टकट है?
उत्तर:
उपन्यास का।

प्रश्न 9.
मुक्तक किसके शार्टकट माने जाते हैं ?
उत्तर:
प्रबंध काव्य के।

प्रश्न 10.
‘वाया बठिंडा’ क्या है?
उत्तर:
शिक्षा से संबंधित डिग्री प्राप्त करने के लिए टुकड़ों में प्राप्त की गई शिक्षा।

प्रश्न 11.
लेखक की दृष्टि में आजकल सब तरफ किसका बोलबाला है?
उत्तर:
शार्टकट का।

प्रश्न 12.
लेखक की दृष्टि में कौन-सा मुहावरा शार्टकट की तरफ संकेत करता है?
उत्तर:
गागर में सागर भरना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
हर कोई एक-दूसरे से..
उत्तर:
आगे बढ़ने की दौड़ में है।

प्रश्न 14.
…………….नाटक के प्राण हर रहा है।
उत्तर:
एकांकी।

प्रश्न 15.
छोटी कहानी बड़ी कहानी……………..।
उत्तर:
का गला दबोच रही है।

प्रश्न 16.
ये महानुभाव अपने समग्र कार्य.. ………….. …….से चलाते हैं।
उत्तर:
आँखों के इशारों।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
शिक्षा के क्षेत्र में शार्टकट बढ़ रहे हैं।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
मुक्तक रचना ने प्रबंध की कमर तोड़ दी है।
उत्तर:
हाँ।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शार्टकट सब ओर’ निबंध के लेखक का नाम लिखें।
उत्तर:
डॉ० संसार चंद।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘शार्टकट सब ओर’ किस विद्या की रचना है ?
(क) निबंध
(ख). कहानी
(ग) संस्मरण
(घ) रेखाचित्र।
उत्तर:
(क) निबंध

2. ‘शार्टकट सब ओर’ कैसा निबंध है ?
(क) विचारात्मक
(ख) व्यंग्यात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) आत्म कथात्मक।
उत्तर:
(ख) व्यंग्यात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

3. लेखक के अनुसार शार्टकट को जन्म देने का श्रेय किसकों है ?
(क) पार्वती को
(ख) शिव को
(ग) गणेश को
(घ) महादेवी को
उत्तर:
(क) पार्वती को

4. शार्टकट के कारण मुक्तक ने किसकी जगह ली ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) प्रबंध काव्य
(घ) काव्य
उत्तर:
(ग) प्रबंध काव्य

5. शार्टकट का इतिहास कितना पुराना है ?
(क) बहुत पुराना
(ख) सौ साल पुराना
(ग) दो सौ साल पुराना
(घ) पचास साल पुराना
उत्तर:
(क) बहुत पुराना

कठिन शब्दों के अर्थ

शार्टकट = छोटा रास्ता। अबाध गति = बिना रुकावट के चाल। कुलाचें भरना = छलांगें मारना। सरपट भागना = तेज़ भागना । गर्जे कि = यहाँ तक कि। सिक्का मानना = प्रभाव मानना। श्रीगणेश करना = आरम्भ करना। परिक्रमा करना = चारों ओर चक्कर लगाना। द्रुतगामी = तेज़ चलने वाला। वाहन = सवारी। बिसात = हैसियत, सामर्थ्य । शिल्पविधि = रचना का तरीका। जनाज़ा = अर्थी । शार्ट = छोटा। किस्सा = कहानी। काबिले गौर = ध्यान देने योग्य। धूर्तराज = धोखेबाज़ों का राजा। मज़मून = विषय। बिलबिलाना = तड़पना । लबरेज़ होना = पूरा भरना। सब्र = सन्तोष। दामन = आँचल। फ़िलासफी = दर्शन। जेहाद = संघर्ष। बुलन्द करना = ऊँचा उठाना। अबूर करना = पार करना। ईजाद = आविष्कार। दुश्वार = कठिन। हनूज दिल्ली दूर अस्त = अभी दिल्ली दूर है। बेतकल्लुफ़ = निस्संकोच, बेधड़क, अनौपचारिक। तफ़रीह = दिल्लगी, हँसी। कारगर = उपयोगी। खारिज = अलग किया हुआ। जौक = एक प्रसिद्ध उर्दू कवि। हकीकत = वास्तविकता। बयान करना = वर्णन करना। चन्द एक = कुछ एक।वृहद् = बड़ा। भौन = भवन, घर। गुफ़तगू = बातचीत।

शार्टकट सब ओर Summary

शार्टकट सब ओर जीवन परिचय

डॉ० संसार चन्द्र जी का जीवन परिचय लिखिए।

डॉ० संसार चन्द्र का जन्म सन् 1917 में जम्मू के मीरपुर नामक गाँव में हुआ। हिन्दी संस्कृत में एम० ए० करने के बाद आपने पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच०डी० एवं डी०लिट् की उपाधि प्राप्त की। आपने जम्मू में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। फिर सनातन धर्म कॉलेज (लाहौर) अम्बाला छावनी में हिन्दी संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर पद पर काम किया। सन् 1970 में जम्मू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। यहीं से 1977 में आप सेवानिवृत्त होकर चण्डीगढ़ में बस गए। आपने अधिकतर व्यंग्यात्मक निबन्ध लिखे हैं। आपके प्रसिद्ध निबन्ध संग्रहों में सोने के दाँत, अपनी डाली के काँटे, बातें ये झूठी हैं, गंगा जब उल्टी बहे, महामूर्ख मण्डल, तिनकों के घाट, लाख रुपए की बात उल्लेखनीय हैं।

शार्टकट सब ओर निबन्ध का सार

‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध का सार 150 शब्दों में लिखिए।

प्रस्तुत व्यंग्यपरक निबन्ध में डॉ० संसार चन्द्र ने आधुनिक युग के एक गम्भीर यथार्थ को प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि आज की संस्कृति का दूसरा नाम शार्टकट है। इसके पीछे हम बेतहाशा दौड़ रहे हैं। हर कोई जीवन के हर क्षेत्र में शार्टकट को अपना रहा है। शार्टकट का इतिहास बहुत पुराना है। इसे जन्म देने का श्रेय पार्वती जी को है जिन्होंने गणेश जी को तीनों लोकों की परिक्रमा का शार्टकट यह बताया कि वे भगवान् शंकर की परिक्रमा कर लें। शार्टकट अपना कर गणेश जी विजयी हुए।

साहित्य के क्षेत्र में भी आज लघु संस्करणों, कुंजियों, नोटों, मॉडल पेपर और टैस्ट पेपर का युग है। परीक्षा से एक सप्ताह पहले, एक घण्टा पहले शार्टकट का ही परिणाम है। इस दिशा में परीक्षा से पाँच मिनट पहले के शार्टकट निकल चुके हैं। इसी तरह नाटक की जगह एकांकी और उपन्यास की जगह कहानी, प्रबन्ध काव्य की जगह मुक्तक का प्रचलन शार्टकट का ही परिणाम है।

शादी के क्षेत्र में भी प्रेम विवाह शार्टकट के कारण प्रचलन हुआ है। आज माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आने पर ही फल लगने की कौन प्रतीक्षा करता है। शिक्षा के क्षेत्र में वाया बठिण्डा परीक्षा पास करना शार्टकट के कारण ही सम्भव हो सका है। स्पष्ट है कि आज के युग में शार्टकट का ही बोलबाला है। गागर में सागर भरने मुहावरे का भी यही अर्थ है कि व्यक्ति थोड़े में बहुत कुछ कह जाता है अर्थात् शार्टकट से काम लेता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 समय नहीं मिला

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 18 समय नहीं मिला Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 18 समय नहीं मिला

Hindi Guide for Class 12 PSEB समय नहीं मिला Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कौन-से लोग बड़े हैं ?
उत्तर:
ऐसे बहुत से लोग हैं जो शीघ्र पत्रोत्तर न देने का बहाना यह कहकर देते हैं कि समय नहीं मिला। इस प्रकार लिखने का कुछ फैशन ही हो गया है। लोग भूल जाते हैं कि बड़े आदमी तो पत्रोत्तर देने में देरी कर सकते हैं, काम की अधिकता के कारण, किन्तु दूसरे लोग भी जो पत्रोत्तर देरी से देते हैं अपने आपको बड़ा समझने लगते हैं।

प्रश्न 2.
भारत और विदेश में समय की पाबंदी के सन्दर्भ में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किये हैं ?
उत्तर:
लेखक लिखते हैं कि भारत में कोई सम्मेलन हो, कोई सभा हो, कोई मीटिंग हो, कभी सभा समय पर शुरू नहीं होती। कहीं भी समय की पाबन्दी का ध्यान नहीं रखा जाता। मीटिंग में दिए गए समय से घण्टा दो घण्टा बाद ही सभासद या सदस्य पहुँचते हैं, जबकि इंग्लैंड और यूरोप के दूसरे देशों में सभाएँ समय पर होती हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 18 श्रीमन्नारायण

प्रश्न 3.
विदेशों में लोग समय को किस प्रकार बर्बाद करते हैं ?
उत्तर:
विदेशों में लोग सिनेमा और थियेटर के टिकट लेने के लिए दो-दो, तीन-तीन घण्टे लगातार कतारों में खड़े रहकर समय बर्बाद करते हैं। यही हाल टेनिस या फुटबाल मैच देखने के टिकट घरों के सामने लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े व्यक्तियों का है। इन कतारों में जवान-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी दिखाई देते हैं।

प्रश्न 4.
इस निबन्ध से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध से हमें पहली शिक्षा तो यह मिलती है कि किसी मित्र या रिश्तेदार का पत्र प्राप्त होने पर उसका तुरन्त उत्तर देना चाहिए, यह बहाना कभी न बनाना चाहिए कि समय नहीं मिला। दूसरी शिक्षा यह मिलती है कि सदा समय को धन समझते हुए उसकी उपयोगिता और महत्त्व को समझना चाहिए।

प्रश्न 5.
लेखक ने समय के सदुपयोग के लिए क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर:
लेखक का सुझाव है कि हमें अपने जीवन पर गहरी और तीखी नज़र डालकर यह देखना चाहिए कि हमने कितना समय नष्ट किया है और उसका क्या सदुपयोग हो सकता है। यदि केवल सुबह जल्दी उठना शुरू कर दें तो हम काफ़ी समय बचा सकेंगे और दिन भर स्फूर्ति भी महसूस करेंगे।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 6.
‘समय नहीं मिला’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार।

प्रश्न 7.
समय धन से भी कहीं ज्यादा अहम चीज़ है-लेखक के इस कथन से आप कहां तक सहमत हैं ?
उत्तर:
लेखक के इस कथन से कि समय ही धन है, हम पूरी तरह सहमत हैं। क्योंकि धन को तो हाथों का मैल माना जाता है और हमारे हाथ काफ़ी मैले रहते ही हैं। इसका अर्थ यह है कि धन तो कभी भी कमाया जा सकता है और धन तो घटता-बढ़ता रहता है। इसीलिए शायद लक्ष्मी को चंचला कहा गया है कि यह एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठती। किन्तु समय के महत्त्व से इनकार नहीं किया जा सकता। दिन में समय 24 घण्टों का ही रहेगा इसे न कम किया जा सकता है न बढ़ाया जा सकता है। गया हुआ धन तो लौट कर फिर आ सकता है किन्तु गया हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। जब चिड़ियाँ खेत चुग जाती हैं तो पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रहता।

कहते हैं वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन इसीलिए हार गया था क्योंकि उसने पाँच मिनट समय को नहीं समझा। कहा तो यह भी जाता है कि आषाढ़ का चूका किसान और डाल से चूका बन्दर कहीं का नहीं रहता। ऐसा इसलिए है कि समय का निज़ाम सबके लिए एक जैसा है। किसी चित्रकार ने समय का चित्र बनाते समय उसके माथे पर बालों का गुच्छा बनाया था और पीछे से उसका सिर गंजा दिखाया था। इस चित्र का आशय यही है कि समय को सामने से आते हुए पकड़ो नहीं तो उसके गुजर जाने पर हाथ उसके गंजे सिर पर ही पड़ेगा। समय को जिसने धन मान लिया, समझ लिया वही जीवन में सफल है। भौतिक धन तो आज है कल नहीं भी हो सकता। अतः समय को ही धन समझना चाहिए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. मेरा तो यह भी अनुभव है कि जो लोग सचमुच बड़े हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं उनका पत्र व्यवहार भी बहुत व्यवस्थित रहता है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमन्नारायण द्वारा लिखित निबन्ध ‘समय नहीं मिला’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने समय के सदुपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
लेखक बड़े आदमियों की व्यस्तता के कारण उनके पत्रोत्तर में देरी को उचित मानते हुए कहते हैं कि उसका यह अनुभव है जो लोग सचमुच बड़े हैं और व्यस्त रहते हैं उनका पत्र व्यवहार अर्थात् पत्रोत्तर देने का स्वभाव अत्यन्त ठीक हालत में रहता है।

विशेष:

  1. लेखक कहना चाहते हैं कि बड़े लोगों का जीवन क्योंकि नियमित रहता है इसलिए उनका पत्रोत्तर भी निहायत व्यवस्थित रहता है। इसी कारण वे बड़े लोग कहलाते हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली आत्मकथात्मक है।

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2. धन की दुनिया में अमीर-गरीब, बादशाह-कंगाल का फर्क है। पर खुशकिस्मती से समय के साम्राज्य में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है। वक्त के निज़ाम में सब बराबर हैं, उसमें आदर्श लोकतंत्र है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमन्नारायण द्वारा लिखित निबन्ध ‘समय नहीं मिला’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक धन और समय की तुलना करता हुआ समय को आदर्श लोकतन्त्र के समान बता रहा है।

व्याख्या:
लेखक समय ही धन की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि धन तो घटता-बढ़ता रहता है किन्तु समय को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। दूसरे धन की दुनिया में किसी के पास अधिक धन है तो वह अमीर है, बादशाह है और किसी के पास धन कम है तो वह ग़रीब या कंगाल है किन्तु खुशकिस्मती से समय के साम्राज्य में ऊँच-नीच का छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं है। समय के सम्मुख सभी बराबर हैं। उसमें आदर्श लोकतन्त्र है जिसमें सबको बराबर के अधिकार हैं। समय सबके लिए एक जैसा होता है, कोई उसकी उपयोगिता को समझ लेता है तो कोई नहीं।

विशेष:

  1. समय सब के लिए बराबर अवसर प्रदान करता है। वह भेदभाव नहीं करता।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Guide समय नहीं मिला Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘समय नहीं मिला’ किस के द्वारा रचित निबंध है?
उत्तर:
श्री मन्नारायण।

प्रश्न 2.
श्री मन्नारायण का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर:
इटावा में सन् 1912 ई० में।

प्रश्न 3.
श्री मन्नारायण ने किन-किन पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया था?
उत्तर:

  1. सबकी बोली
  2. राष्ट्र भाषा प्रचार।

प्रश्न 4.
श्री मन्नारायण किसकी विचारधारा से प्रभावित थे?
उत्तर:
गांधी जी की विचारधारा से।

प्रश्न 5.
श्री मन्नारायण जी के द्वारा रचित तीन रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रोटी का राग, मानव, सेवांग।

प्रश्न 6.
‘समय नहीं मिला’ निबंध का मूलभाव क्या है ?
उत्तर:
समय का सदुपयोग।

प्रश्न 7.
लेखक की शैली में किस तत्व की प्रधानता है?
उत्तर:
व्यंग्यात्मकता।

प्रश्न 8.
किस ने कहा था कि यदि भोजन करने का समय हो सकता है तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का भी समय मिल सकता है?
उत्तर:
अंग्रेजी साहित्यकार डॉ० जॉनसन ने।

प्रश्न 9.
लेखक ने किस कहावत की व्याख्या की थी?
उत्तर:
‘समय ही धन’।

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प्रश्न 10.
लेखक ने अपने निबंध में किसे बधाई दी है ?
उत्तर:
उन लोगों को जो समय को बर्बाद नहीं करते और समय का पूरा लाभ उठाते हैं।

प्रश्न 11.
लेखक ने कभी भी न कहने के लिए क्या कहा था?
उत्तर:
‘समय नहीं मिलता।

प्रश्न 12.
किन देशों में सभाएँ सदा समय पर ही होती हैं ?
उत्तर:
इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों में।

प्रश्न 13.
विदेशों में लोग समय कैसे बर्बाद करते हैं ?
उत्तर:
सिनेमा, थियेटर और मैच देखकर।

प्रश्न 14.
लेखक ने ‘समय नहीं मिलता’ में क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
सदा समय का महत्त्व समझो और कभी झूठे बहाने न बनाओ।

प्रश्न 15.
‘समय बचाने’ के लिए लेखक ने क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर:
सुबह जल्दी उठने से काफी समय बचाया जा सकता है।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 16.
……अमीर ग़रीब, बादशाह-कंगाल का फर्क है।
उत्तर:
धन की दुनिया में।

प्रश्न 17.
………………में सब बराबर है।
उत्तर:
वक्त के निज़ाम।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
लेखक का मानना है कि अधिक व्यस्त लोगों का पत्र व्यवहार अधिक व्यवस्थित होता है?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
समय के साम्राज्य में ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
समय ही धन है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 21.
विदेशों में लोगों के द्वारा समय अधिक खराब किया जाता है।
उत्तर:
नहीं।

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प्रश्न 22.
लेखक ने निबंध में व्यंग्य का सहारा नहीं लिया है।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 23.
समय ही धन है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. सब की बोली तथा राष्ट्र भाषा प्रचार पत्रिकाओं के संपादक कौन थे ?
(क) श्री मन्नारायण
(ख) श्रीमान नारंग
(ग) श्री प्रफुल्ल पटेल
(घ) श्री हंस।
उत्तर:
उत्तर:

2. ‘समय नहीं मिला’ रचना की विद्या क्या है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) निबंध
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(ग) निबंध

3. ‘समय नहीं मिला’ कैसी रचना है ?
(क) व्यंग्यात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) आत्म कथात्मक।
उत्तर:
(क) व्यंग्यात्मक

4. लेखक के अनुसार सबसे बड़ा धन क्या है ?
(क) पैसा
(ख) समय
(ग) धन
(घ) सोना
उत्तर:
(ख) समय

5. समय नहीं मिला निबंध का मूलभाव है
(क) समय का सदुपयोग
(ख) समय की मांग
(ग) धन का उपयोग
(घ) धन की मांग
उत्तर:
(क) समय का सदुपयोग

कठिन शब्दों के अर्थ

मशगूल = व्यस्त। यथा समय = निश्चित समय पर। बेशुमार = अनगिनत। व्यवस्थित = ठीक हालत में। अस्त-व्यस्त = बिखरा हुआ। ख्याल = विचार। अक्सर = प्रायः । दिलासा = तसल्ली। इन्तजाम = प्रबन्ध। अहम = महत्त्वपूर्ण । कुदरत = प्रकृति । ज्वारभाटा = समुद्री तूफान । निज़ाम = बन्दोबस्त, प्रबन्ध। शरीक = शामिल। लालसा = इच्छा। तितर-बितर हो जाना = इधर-उधर बिखर जाना। हताश = निराश। बदकिस्मती = दुर्भाग्य। इक्के-दुक्के = कोई-कोई, कम संख्या में। अपवाद = नियमों के उल्लंघन करने का उदाहरण। मुकर्रर = निश्चित किया हुआ। जाहिर करना = प्रकट करना। संयोजक = सभा या मीटिंग का आयोजन करने वाला। अमुक = फलां, कोई खास । लतीफ़ा = चुटकला, हंसी की बात। हमदर्दी = सहानुभूति। मुमकिन = सम्भव, जो हो सके। प्रतिनिधि = नुमाइंदा। मुबारकबाद = बधाई। स्फूर्ति = ताज़गी। खुश मिजाज = हंसमुख।

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समय नहीं मिला Summary

समय नहीं मिला जीवन परिचय

श्रीमन्नारायण जी का जीवन-परिचय लिखिए।

श्रीमन्नारायण का जन्म सन् 1912 में इटावा में हुआ था। एम०ए० करने के बाद आप ‘सबकी बोली’ तथा ‘राष्ट्र भाषा प्रचार’ पत्रिकाओं के सम्पादक रहे। बाद में आप राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के महामन्त्री भी रहे। आप . गाँधीवादी विचारधारा से विशेष रूप से प्रभावित रहे। कांग्रेस के आन्दोलनों में आप शुरू से ही सक्रिय भाग लेते रहे। इनकी प्रमुख रचनाएँ-रोटी का राग, मानव, सेवांग का सन्त हैं। दैनिक जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं पर आप ने बहुत से छोटे-छोटे शिक्षाप्रद निबन्ध भी लिखे हैं।

समय नहीं मिला निबन्ध का सार

‘समय नहीं मिला’ निबन्ध का सार लगभग 150 शब्दों में लिखो।

प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने समय के सदुपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। लेखक ने बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से उन लोगों पर प्रहार किया है जो समय नहीं मिला का बहाना बनाते हैं कि ‘मुझे आपका काम तो याद है पर क्या करूँ बिल्कुल समय ही नहीं मिला’ कुछ इसी तरह का बहाना लोग पत्रोत्तर देने में करते हैं। लेखक ने उदाहरण देते हुए बताया कि एक व्यक्ति ने प्रसिद्ध अंग्रेजी के साहित्यकार डॉ० जानसन से जाकर कहा कि उसे धार्मिक पुस्तकें पढने का समय नहीं मिलता। साहित्यकार ने समझाया कि यदि भोजन करने का समय हो सकता है तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का भी समय मिल सकता है।

लेखक ने ‘समय ही धन’ कहावत की व्याख्या करते हुए बताया है कि हम पैसा तो जितनी मेहनत करें कमा सकते हैं किन्तु समय को घटा या बढ़ा नहीं सकते। समय का प्रबंध सबके लिए बराबर है किन्तु फिर भी हम उसके महत्त्व को नहीं समझते। हम काम के घण्टे कम करने का शोर मचाते हैं पर यह नहीं सोचते कि खाली समय में लोग करेंगे क्या। क्या वे अपना समय सिनेमा का टिकट पाने के लिए बर्बाद न करेंगे।

लेखक उन लोगों को बधाई देता है जो समय का पूरा लाभ उठाकर एक मिनट भी बर्बाद नहीं करते। लेखक की सलाह है खुशमिजाज रहकर अपने समय का जितना अच्छा उपयोग कर सकें, उतनी ही आपकी प्रशंसा है। किन्तु आज से यह किसी से न कहें कि समय नहीं मिला।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 17 अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़

Hindi Guide for Class 12 PSEB अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
जलियांवाले बाग में सभा का आयोजन किस उद्देश्य से किया गया ?
उत्तर:
रविवार का दिन था, वैशाखी का त्योहार था। 13 अप्रैल, सन् 1919 की संध्या के साढ़े चार बजे जलियांवाले बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ था। उस समय शहर की जो बुरी स्थिति थी उस पर विचार करने के उद्देश्य से सभा का आयोजन हुआ था। लोग चाहते थे कि शांति स्थापना के साधनों की खोज की जाए। सब लोग बहुत गम्भीर थे। वे किसी प्रकार की शरारत करना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिश फौज के बाग में प्रवेश का चित्रात्मक वर्णन करो।
उत्तर:
जलियांवाले बाग की विशाल जनसभा अभी शुरू भी नहीं होने पाई थी कि कुछ दूरी पर घुड़सवार पुलिस, उसके पीछे फौजी गाड़ी में बैठा जनरल डायर, उसके पीछे मशीनगनें, तोप ले जाने वाली गाड़ियाँ और फिर मार्च करती हुई फौजें-सब चले जा रहे थे। सैनिकों के बूटों की आवाज़ गूंज रही थी। हाल्ट’ का आदेश मिलने पर कानों को फाड़ने वाला शब्द हुआ। सैनिकों ने मोर्चा सम्भाला और घुटने झुकाकर बन्दूकों में कारतूस भरने लगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 3.
जलियांवाले बाग में गोलियों की बौछार से बचने के लिए लोगों ने क्या किया ?
उत्तर:
जलियांवाले बाग के भीषण नरसंहार में सैनिकों की गोलियों से बचने के लिए लगभग बारह व्यक्ति एक वृक्ष के पीछे जा छिपे थे। सैनिकों ने उन्हें मार गिराया। कुछ लोग बाग़ की दीवारों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। लोग लाशों पर पैर रखकर दीवार को फाँद रहे थे। बाग में एक कुआँ था। घबरा कर लोग उसमें कूद पड़े। लोग कूदते गए, उसमें गिरते, कुचले जाते और मर जाते।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 4.
जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार एक अमानवीय घटना थी। स्पष्ट करें।
उत्तर:
रविवार का दिन, वैशाखी का त्योहार, 13 अप्रैल, सन् 1919 समय संध्या के साढ़े चार बजे जलियांवाला बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया था। यह जनसभा ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत की जनता पर किये जा रहे अत्याचारों के विरोध करने के लिए बुलाई गई थी। जनसभा अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि जनरल डायर मशीनगनों और तोपों से लैस फौज को लेकर वहाँ पहुँच गया और अचानक निहत्थे और शान्त लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगा। क्षण भर में वहाँ लाशों के ढेर लग गए। प्राण रक्षा के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे।

कोई वृक्ष की आड़ में छिप गए, कुछ दीवारें फाँदने का प्रयास करने लगे। बहुत-से लोग जलियांवाला बाग में स्थित एक कुएँ में घबरा कर छलाँगें मारने लगे। सारा सभास्थल घायलों की चीखों पुकार से भर उठा था। गोलियाँ चलनी बन्द होते ही और अन्धेरा उतरते ही लोग बाग के आँगन में आकर अपने रिश्तेदारों और मित्रों की तलाश करने लगे। ऐसा दृश्य पहले कभी न देखा गया था। इस नरसंहार की अमानवीय घटना ने आजादी की लड़ाई को और भी तेज़ कर दिया और आखिरकार अंग्रेज़ों को भारत छोड़कर जाना ही पड़ा।

प्रश्न 5.
लेखक ने जलियांवाले बाग में घायल हुए लोगों की तथा मृत लोगों के परिजनों की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
जलियांवाले बाग में जब जनरल डायर के आदेश से सैनिकों ने अन्धाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी तो क्षण भर में हताहतों की चीख-पुकार, लहूलुहान कपड़े, लाशों से पटती धरती, प्राण रक्षा के लिए भागते भयाक्रांत नागरिक। तभी बारह वर्ष का एक छोटा-सा बालक गोली लगने पर नीचे आ गिरा। फिर दूसरे छज्जे पर बैठा एक बालक और गिरा। एक वृक्ष के पीछे लगभग 12 व्यक्ति जा छिपे थे। सैनिकों ने एक-एक करके उन सबको मार डाला। घायलों की चीख पुकार से कान फट रहे थे। लोग प्राण बचाने के लिए दीवारों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे।

दोनों ओर लाशों के ढेर थे। बहुत-से लोग भीड़ में कुचले गए थे। जलियांवाले बाग में एक कुआँ था। घबरा कर लोग उसमें कूद पड़े। कूदने वालों का तांता लग गया। अन्धेरा उतरते ही लोग डरते-काँपते घटनास्थल पर अपने रिश्तेदारों और मित्रों की तलाश में आने लगे। एक सिक्ख युवक, जिसकी आंतें बाहर बिखरी थीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था ‘गुरु के नाम पर मुझे मार डालो।’ एक हिन्दू युवक रोता हुआ अपने भाई की लाश पीठ पर लादे जा रहा था। एक औरत अपने पति की लाश को सारी रात अपनी गोद में लेकर पत्थर की मूर्ति बनी वहाँ बैठी रही।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

1. ऊपर उड़ता हुआ एक हवाई जहाज़….. पाश्व सत्ता का प्रतीक, नीचे मैं-चारों ओर से मंज़िलों, इमारतों से घिरा हुआ। बाहर निकलने के एकमात्र मार्ग पर फौजी पहरा और ऊपर चबूतरे से गोली बरसाती फौज। काश, मैं गोलियों और जनता के बीच अड़ जाता। पर मैं तो जड़ बन कर रह गया था।
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा आत्मकथा शैली में लिखे गए निबन्ध ‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में जलियांवाला बाग़ सन् 1919 में हुए नरसंहार की घटना का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
जलियांवाला बाग़ अपने आँगन में हुए नरसंहार की घटना का उल्लेख करते हुए कहता है कि जब जनरल डायर के आदेश पर सैनिक निहत्थे व शान्त लोगों पर गोलियाँ बरसा रहे थे उस समय अंग्रेज़ी हकूमत की पाशविकता का प्रतीक हवाई जहाज़ ऊपर आसमान में उड़ रहा था और नीचे मैं बहुमंजिली इमारतों से घिरा हुआ। मेरे आँगन से बाहर निकलने का एकमात्र मार्ग था उस पर भी फौजी पहरा लगा हुआ था अर्थात् कोई भी व्यक्ति उस रास्ते से गोलीबारी से बचने के लिए बाहर नहीं निकल सकता था और मेरे ऊपर जो चबूतरे थे वहाँ से फौजी लोग गोलियाँ बरसा रहे थे। जलियांवाला बाग सोचता है कि काश, उस समय वह गोलियों और जनता के बीच आकर जनता को बचा पाते किन्तु मैं तो उस भयानक दृश्य को देखकर पहले ही जड़ हो चुका था।

विशेष:

  1. जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार का यथार्थ चित्रण किया गया है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण और शैली आत्मकथात्मक है।

2. मरते हुए व्यक्तियों की सिसकियाँ और आहें बता रही थीं किं जैसे चारों ओर मौत का साम्राज्य है। मेरा सारा शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था, लेकिन मैं आसानी से मरने वाला नहीं था। काश, यदि मर जाता तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा आत्मकथा शैली में लिखे गए निबन्ध ‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में जलियांवाला बाग सन् 1919 में हुई नरसंहार की घटना का वर्णन करते हुए अपने ऊपर होने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या:
जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना के बाद की स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है कि इस भीषण नरसंहार में मारे जाने वाले व्यक्तियों की सिसकियाँ और आहों से यह पता चल रहा था कि यहाँ मौत का चारों ओर साम्राज्य रहा है। उस समय मेरे सारे शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया गया। किन्तु मैं आसानी से मरने वाला नहीं था। काश, यदि मर जाता तो यह भयावह दृश्य तो न देखता।

विशेष:

  1. लेखक की मानसिक पीड़ा और हताशा शब्दों के माध्यम से स्पष्ट दिखाई देती है।
  2. भावात्मक शैली, तत्सम तद्भव शब्दावली और स्वाभाविकता व्यक्त हुई है।

PSEB 12th Class Hindi Guide अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ पाठ के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर:
विष्णु प्रभाकर।

प्रश्न 2.
श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
उनका जन्म सन् 1912 ई० में मुजफ्फर नगर के एक गाँव में हुआ था।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 3.
श्री विष्णु प्रभाकर ने स्नातक स्तर की शिक्षा किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी?
उत्तर:
पंजाब विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 4.
श्री विष्णु प्रभाकर ने किसका संपादन कार्य किया था ?
उत्तर:
पत्र-पत्रिकाओं का।

प्रश्न 5.
श्री प्रभाकर पर किस व्यक्ति का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा था?
उत्तर:
महात्मा गांधी का।

प्रश्न 6.
किस धार्मिक संस्था से विष्णु प्रभाकर बहुत प्रभावित हुए थे?
उत्तर:
आर्य समाज से।

प्रश्न 7.
विष्णु प्रभाकर की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अवारा मसीहा, जाने-अनजाने।

प्रश्न 8.
आप के पाठ्यक्रम में श्री विष्णु प्रभाकर की कौन-सी रचना संकलित है?
उत्तर:
अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’।

प्रश्न 9.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ किस साहित्यिक विधा से संबंधित रचना है?
उत्तर:
निबंध विधा।

प्रश्न 10.
‘अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग’ किस शैली में रचित है?
उत्तर:
आत्म कथात्मक।

प्रश्न 11.
जलियाँवाला बाग की घटना किस त्योहार के दिन घटित हुई थी?
उत्तर:
वैशाखी के दिन (13 अप्रैल, सन् 1919)।

प्रश्न 12.
निबंध के अनुसार किसका चित्र कुर्सी पर रखा हुआ था?
उत्तर:
डॉ० किचलू का।

प्रश्न 13.
देशव्यापी हड़ताल किसके आह्वान पर और क्यों की गई थी?
उत्तर:
महात्मा गांधी के आह्वान पर रोल्ट एक्ट के विरोध में।

प्रश्न 14.
जलियाँवाला बाग में कौन-सा जनरल फौज़ लेकर आया था?
उत्तर:
जनरल डायर।

प्रश्न 15.
लोग गोलियों से बचने के लिए कहाँ कूद गए थे?
उत्तर:
कुएं में।

प्रश्न 16.
जलियाँवाला बाग में से बाहर निकलने के कितने रास्ते थे ?
उत्तर:
केवल एक।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 17 विष्णु प्रभाकर

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 17.
ऊपर उड़ता हुआ एक हवाई जहाज……….
उत्तर:
पाश्व सत्ता का प्रतीक।

प्रश्न 18.
मेरा सारा शरीर गोलियों से………………..
उत्तर:
छलनी हो चुका था।

प्रश्न 19.
………………………..तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।
उत्तर:
काश, यदि मर जाता तो वह दृश्य तो नहीं देख पाता।

प्रश्न 20.
“गुरु के नाम पर…………………।”
उत्तर:
गुरु के नाम पर मुझे मार डालो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 21.
जनरल डायर के आदेश से सैनिकों ने अंधाधुध गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 22.
चारों ओर मौत का साम्राज्य नहीं था।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 23.
दूसरे छज्जे पर बैठा एक बालक और गिरा।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 24.
वृक्ष के पीछे लगभग 12 व्यक्ति जा छिपे थे।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. विष्णु प्रभाकर पर किसके जीवन दर्शन का प्रभाव पड़ा ?
(क) आर्य समाज का
(ख) महात्मा गांधी का
(ग) आर्य समाज एवं महात्मा गांधी का
(घ) देव का।
उत्तर:
(ग) आर्य समाज एवं महात्मा गांधी का

2. ‘अगर ये बोल पाते’ किस विधा की रचना है ?
(क) आत्मकथात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) व्यंग्यात्मक
(घ) हास्यात्मक।
उत्तर:
(क) आत्मकथात्मक

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3. जलियांवाला बाग की घटना कब घटित हुई ?
(क) 13 अप्रैल 1918
(ख) 13 अप्रैल 1919
(ग) 13 अप्रैल 1920
(घ) 13 अप्रैल 19211
उत्तर:
(ख) 13 अप्रैल 1919

4. जलियांवाला बाग के हत्याकांड को करने के लिए किसने गोलियां चलाने का आदेश दिया था ?
(क) जनरल डायर ने
(ख) अंग्रेज़ ने
(ग) डगलस ने
(घ) डबलस ने
उत्तर:
(क) जनरल डायर ने

कठिन शब्दों के अर्थ

स्तब्ध = हैरान। मिसाल = उदाहरण। ऐलान = घोषणा। परिपाटी = सिलसिला, प्रथा, रीति। न भूतो न भविष्यति = जो कभी पहले हुआ न आगे होगा। जुल्म = अत्याचार। हाल्ट = रुको। कर्ण भेदी = कानों को फाड़ने वाले। निनाद = शब्द, ध्वनि। हतप्रभ = जिसकी कांति क्षीण हो गई हो। अप्रत्याशित = अचानक, जिसकी आशा न रही हो। हता हतो = मरने वालों और घायलों। पाशव सत्ता = पशुओं जैसी सत्ता। प्रतीक = चिह्न, नमूना। धराशायी = धरती पर गिरना। छेदना = बींधना। बेतहाशा = बिना सोचे विचारे, बदहवास होकर। क्रंदन = चीख पुकार। मादरे वतन = मातृ भूमि। सरजमी = धरती। वीरांगना = बहादुर स्त्री। लोमहर्षक = रौंगटे खड़े करने वाला, रोमांचकारी। बर्बर = असभ्य। आकांक्षा = इच्छा, कामना।

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ Summary

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ जीवन परिचय

विष्णु प्रभाकर जी का जीवन परिचय लिखिए।

विष्णु प्रभाकर का जन्म जून, सन् 1912 में मुजफ्फर नगर के एक गाँव में हुआ। पंजाब विश्वविद्यालय से बी०ए० करने के बाद आप हरियाणा में सरकारी सेवा में आ गए। नौकरी के साथ-साथ आप साहित्य सृजन में भी संलग्न रहे। आप कई वर्षों तक आकाशवाणी के नाटक विभाग से भी जुड़े रहे। कुछ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। आपके जीवन पर आर्य समाज तथा महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन का गहरा प्रभाव है।

रचनाएँ:
प्रभाकर जी ने हिन्दी साहित्य को कहानियाँ, उपन्यास, निबन्ध, नाटक और एकांकी दिये। जाने-अनजाने और आवारा मसीहा इनकी गद्य रचनाएँ हैं।

अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग़ निबन्ध का सार

‘अगर ये बोल पाते : जलियांवाला बाग़’ निबन्ध का सार लगभग 150 शब्दों में लिखें।

प्रस्तुत निबन्ध आत्मकथा शैली में लिखा गया है। जलियांवाले बाग अपनी कहानी अपनी जुबानी सुना रहा है।
जलियांवाला बाग कहता है कि रविवार का दिन, वैशाखी का त्योहार 13 अप्रैल, सन् 1919 संध्या के साढ़े चार बजे थे। मेरे आँगन में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ था। डॉ०, किचलू का चित्र कुर्सी पर रखा था। गाँधी जी ने रोल्ट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था। अंग्रेजी सरकार ने सभा से एक दिन पहले मार्शल लॉ लागू कर दिया था। सारे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। इस पर भी सभा हुई। सभा अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि जनरल डायर फौज को लेकर वहाँ आया और बिना चेतावनी दिये अन्धाधुंध गोलियाँ चला दीं। लोगों ने गोलियों की बौछार से बचने के लिए वृक्षों की आड़ ली। दीवारों पर चढ़ने की कोशिश की।

मेरे आँगन में एक कुआँ था लोग घबरा कर उसी में कूदने लगे। इस नरसंहार में हज़ारों लोग हताहत हुए। इनमें हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख सभी थे। गोलियाँ बरसनी थमते ही लोगों ने अपने-अपने परिजनों को तलाशने की कोशिश की। यह भयानक दृश्य देखकर मेरा पत्थर दिल भी चीत्कार कर उठा। इस बर्बर हत्याकांड के कारण ही आज़ादी की लड़ाई तेज़ हुई। मेरे आँगन में होने वाले उस महान् बलिदान की नींव . पर ही स्वाधीनता का महल खड़ा हुआ। मुझे गर्व है कि मेरा देश आज़ाद हुआ। आओ, हम उस बलिदान को याद करते हुए देश की स्वाधीनता की रक्षा करें।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए? Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Hindi Guide for Class 12 PSEB क्या निराश हुआ जाए? Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
आजकल चिन्ता का क्या कारण है ?
उत्तर:
आज देश में आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है कि कोई ईमानदार आदमी रहा ही नहीं। जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर है, उसमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। जो व्यक्ति कुछ करेगा उसके कार्य में कोई न कोई दोष तो होगा ही किन्तु उसके गुणों को भुलाकर दोषों को ही देखना निश्चय ही चिन्ता का विषय है।

प्रश्न 2.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर:
आज देश में कुछ ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके रोटी रोज़ी कमाने वाले भोले-भाले मज़दर पिस रहे हैं और झठ और फरेब का धन्धा करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी मूर्खता समझी जाने लगी है और सच्चाई केवल कायर और बेबस लोगों के पास रह गयी है। ऐसी हालत में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था हिलने लगी है।

प्रश्न 3.
वे कौन-से विकार हैं जो मनुष्य में स्वाभाविक रूप में विद्यमान रहते हैं ?
उत्तर:
लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते पर इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा नीच आचरण है। हमारे यहाँ इन विकारों को संयम के बन्धन में बाँधकर रखने का प्रयत्न किया जाता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 4.
धर्म और कानून में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जबकि कानून को दिया जा सकता है। भारत वर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। कानून की त्रुटियों से लाभ उठाया जा सकता है जबकि धर्म में आस्था रखने वाला ऐसा नहीं करता। .

प्रश्न 5.
किसी ऐसी घटना का वर्णन करो जिससे लोक चित्त में अच्छाई की भावना जागृत हो।
उत्तर:
कुछ महीने पहले की बात है कि मैं अपने मम्मी पापा के साथ टेक्सी में कही जा रहा था। टैक्सी से उतरते समय मेरी मम्मी टैक्सी में अपना पर्स भूल गईं। उसमें तीन हजार रुपए और मम्मी के कुछ गहने और मोबाइल था। हम सभी हैरान थे कि अब क्या किया जाए हमने तो टैक्सी का नम्बर और टैक्सी ड्राइवर का नाम भी नहीं पूछा था। थोड़ी देर बाद हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वही टैक्सी ड्राइवर हमारे पास मम्मी का पर्स लौटने आ पहुँचा। मम्मी और पापा ने उसे सौ रुपया पुरस्कार देना चाहा तो उसने इन्कार करते हुए कहा-यह तो मेरा फर्ज़ था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में लिखो।

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ निबन्ध का सार लिखो।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार ।

प्रश्न 2. इस निबन्ध में द्विवेदी जी ने कुछ घटनाएँ दी हैं जो सच्चाई और ईमानदारी को उजागर करती हैं। उनमें से किसी एक घटना का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
द्विवेदी जी एक बार सपरिवार बस में यात्रा कर रहे थे। उनकी बस गंतव्य से पाँच मील पहले एक सूनी निर्जन जगह पर खराब हो गई। उस समय रात के दस बजे थे सभी यात्री घबरा गए। कंडक्टर बस के ऊपर से साइकल उठाकर चला गया। उसके जाने पर यात्रियों को संदेह हुआ कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। एक यात्री ने चिन्ता जताते हुए कहा कि यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले ही एक बस को लूटने की घटना हुई है। द्विवेदी जी परिवार सहित अकेले यात्री थे। बच्चे पानी के लिए चिल्ला रहे थे और पानी का कहीं ठिकाना न था।

इसी बीच कुछ नवयुवक यात्रियों ने ड्राइवर को पीटने का मन बनाया। जब लोगों ने उसे पकड़ा तो वह घबराकर । द्विवेदी जी से उसे लोगों से बचाने की प्रार्थना करने लगा। ड्राइवर ने कहा कि हम लोग बस का कोई उपाय कर रहे
हैं।

द्विवेदी जी लोगों को समझा-बुझा कर उसे पिटने से तो बचा लेते हैं किन्तु लोगों ने ड्राइवर को बस से उतार कर घेर लिया और कोई घटना होने पर पहले उसे मारना ही उचित समझा। इतने में यात्रियों ने देखा कि कंडक्टर एक खाली बस लिए चला आ रहा है। आते ही उसने बताया कि अड्डे से नयी बस लाया हूँ। फिर वह कंडक्टर द्विवेदी जी के पास आकर लोटे में पानी और थोडा दुध दिया। उसने कहा कि बच्चे का रोना उससे देखा न गया। सब यात्रियों ने उसे धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा माँगी। रात बारह बजे से पहले ही वे बस अड्डे पहुंच गए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 3.
मानवीय मूल्य से सम्बन्धित यदि कोई ऐसी ही घटना आपके साथ घटित हुई हो, तो उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
पिछले महीने की बात है कि मैं साइकिल पर जा रहा था कि एक ट्रक पीछे से आया और मुझे टक्कर मारकर चला गया। मैं सड़क पर जख्मी हालत में पड़ा था। मेरे पास से कई स्कूटर, कई कारें गुजरे किन्तु किसी ने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया। मैं घायल अवस्था में सड़क के किनारे कोई एक घण्टा तक पड़ा रहा। मेरे शरीर से खून बह रहा था। चोट अधिकतर टांगों और बाहों पर लगी थी। मैंने सहायता के लिए कई लोगों को पुकारा भी किन्तु किसी को भी मेरी हालत पर दया नहीं आई। लगता था कि लोग पुलिस के डर से मेरी सहायता नहीं कर रहे थे। क्योंकि आजकल पुलिस वाले उलटे सहायता करने वाले पर ही केस बना देती है। कहती है एक्सीडेंट तुम्हीं ने किया है। मैं निराश होकर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।

तभी अचानक मेरे पास आकर एक कार रुकी। कार में दो व्यक्ति सवार थे। वे दोनों कार से उतरे। दोनों ने मिलकर मुझे अपनी कार में डाला और तुरन्त निकट के अस्पताल में ले गए। मेरी साइकिल जो बुरी तरह टूट चुकी थी, उन्होंने वही छोड़ दी। अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि इस रोमी को कम से कम एक बोतल खून की ज़रूरत है। उन दोनों व्यक्तियों ने बिना हिचक के अपना खून देने की रजामंदी प्रकट की। प्रभु कृपा से उन दोनों का खून मेरे खून के ग्रुप से मिल गया। तुरन्त उनमें से छोटी आयु के व्यक्ति ने अपना खून दिया। मेरे घावों की मरहम पट्टी कर दी गई थी। दो दिन के इलाज के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मुझे डॉक्टरों से पता चला कि वे सज्जन मेरे इलाज का सारा खर्चा अदा कर गए हैं। मैं उन दोनों व्यक्तियों को भगवान् समझता हूँ किन्तु खेद है कि मैं उनका नाम तक नहीं जानता।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें

1. “जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि आज देश में ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई केवल डरपोक और बेबस लोगों के पास रह गयी ऐसी स्थिति में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के प्रति आस्था डाँवाडोल होने लगी है।

2. “धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं भारत वर्ष में सदा कानून को धर्म माना जाता रहा है किन्तु आज कानून और धर्म में अन्तर आ गया है। लोग यह जानते हैं कि धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जब कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण . धर्म से डरने वाले लोग भी कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

3. ‘अच्छाई को उजागर करना चाहिए, बुराई में रस नहीं लेना चाहिए।’
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि दोषों से पर्दा उठाना बुरी बात नहीं है। लेकिन किसी की बुराई करते समय जब उसमें रस लिया जाता और उसे कर्त्तव्य मान लिया जाता है तो यह बुरी बात है और इससे भी बुरी बात वह जब अच्छाई को उतना ही रस लेकर प्रकट न करना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

4. सामाजिक कायदें-कानून कभी युग-युग से परीक्षत आदर्शों से टकराते हैं, इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से लिया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि सामाजिक नियम और कानून समाज के हित को ध्यान में रखकर मनुष्य द्वारा ही बनाये जाते हैं। उनकी ठीक सिद्ध न होने पर उन्हें बदल दिया जाता है। ये नियम-कानून सबके लिए होते हैं परन्तु कोईकोई नियम सबके लिए सुखकर नहीं होता। जब सामाजिक नियम-कानून युगों से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं तो जो हलचल होती है वह ऊपरी सतह पर ही होती है। वह हलचल भीतरी सतह में नहीं होती अतः इस हलचल को देखकर निराश हो जाना ठीक नहीं है।

PSEB 12th Class Hindi Guide क्या निराश हुआ जाए? Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए?’ किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी।

प्रश्न 2.
आचार्य द्विवेदी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? ।
उत्तर:
सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘आरत दुबे का छपर गाँव में’।

प्रश्न 3.
आचार्य द्विवेदी को भारत सरकार ने किस अलंकार से सम्मानित किया था ?
उत्तर:
पद्म भूषण से।

प्रश्न 4.
आचार्य द्विवेदी किन-किन विश्वविद्यालयों के हिंदी-विभागाध्यक्ष बने थे?
उत्तर:
हिंदू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय।

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प्रश्न 5.
द्विवेदी जी के द्वारा रचित उपन्यासों में से किन्हीं दो का नाम लिखिए।
उत्तर:
अनामदास का पोथा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख।

प्रश्न 6.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ किस प्रकार का निबंध है?
उत्तर:
विचारात्मक निबंध।

प्रश्न 7.
इस निबंध में किस प्रकार की बुराइयों पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
सामाजिक बुराइयों पर।

प्रश्न 8.
जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी क्यों होता है?
उत्तर:
उसके काम में कोई दोष ही नहीं निकल पाता।

प्रश्न 9.
वर्तमान में कौन पिस रहा है और कौन फल-फूल रहा है ?
उत्तर:
वर्तमान में मज़दूर पिस रहे हैं और धोखेबाज फल-फूल रहे हैं।

प्रश्न 10.
भारतवासियों ने आत्मा को क्या महत्त्व दिया था?
उत्तर:
भारतवासियों ने आत्मा को चरण और परम माना था।

प्रश्न 11
द्विवेदी जी ने लोभ-मोह को क्या कहा है ?
उत्तर-:
उन्हें विकार कहा है।

प्रश्न 12.
कानून को भारत में क्या महत्त्व दिया गया है?
उत्तर:
कानून को धर्म का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 13.
लोग किसी दुर्घटना में वाहन के चालक को ही ज़िम्मेदार क्यों मानते हैं ?
उत्तर:
लोगों को लगता है कि वाहन के कल-पुर्जा, चालन, देख-रेख आदि सभी की ज़िम्मेदारी वाहन के चालकी होती है, जो कि पूरी तरह से ठीक नहीं है।

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प्रश्न 14.
वर्तमान में ईमानदारी को क्या समझा जाता है?
उत्तर:
वर्तमान में ईमानदारी को मूर्खता का पर्यायवाची समझा जाता है। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
ईमानदारी को…. .पर्याय समझा जाने लगा है।
उत्तर:
मूर्खता।

प्रश्न 16.
भारतवर्ष ने कभी भी………………के संग्रह क. अधिक महत्त्व नहीं दिया।
उत्तर:
भौतिक वस्तुओं।

प्रश्न 17.
बुराई में……………लेना बुरी बात है।
उत्तर:
रस।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. द्विवेदी जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस कृति पर मिला ?
(क) आलोक पर्व
(ख) आलोकित
(ग) आलोक
(घ) पर्व।
उत्तर:
(क) आलोक पर्व

2. ‘अशोक के फूल’ किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) रेखाचित्र
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(क) निबंध

3. द्विवेदी जी का साहित्य किसका संगम है ?
(क) मानवतावाद का
(ख) भारतीय संस्कृति का
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का

4. ‘क्या निराश हुआ जाए’ कैसा निबंध है ?
(क) सकारात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) प्रेरणात्मक
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

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क्या निराश हुआ जाए? गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. क्या यही भारतवर्ष है, जिसका सपना तिलक और गाँधी ने देखा था ? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान् संस्कृति-सभ्य भारतवर्ष किस अतीत के गह्वर में डूब गया ? आर्य और द्रविड़, हिन्दू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन-भूमि ‘मानव महासमुद्र’ क्या सूख गया ? मेरा मन कहता है ऐसा हो नहीं सकता। हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित’ “क्या निराश हुआ जाए ?” शीर्षक निबंध में से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक अपने इस विश्वास को प्रकट करता है कि अनेक विकृतियों के आ जाने के बावजूद भी भारतवर्ष से प्राचीन मानवीय आदर्श विलुप्त नहीं हुए हैं।

व्याख्या:
द्विवेदी जी कहते हैं कि आज चारों ओर भ्रष्टाचार, अनैतिकता, शोषण, बेईमानी आदि का बोलबाला है। वह प्रश्न करते हैं कि क्या यह वही भारतवर्ष है जिसका सपना हमारे महापुरुषों ने देखा था ? क्या इसी भारतवर्ष का स्वप्न कर्मयोगी लोकमान्य तिलक ने देखा था अथवा क्या यह राष्ट्रपति महात्मा गांधी के सपनों का भारत है ? संस्कृति से सभ्य यह रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का देश है। यहां की संस्कृति अत्यंत प्राचीन है और अध्यात्म प्रधान है। इस सुसंस्कृत और सुसभ्य देश को न जाने क्या हुआ है ? लगता है कि यह किसी अतीत की गुफा में लुप्त हो गया। भाव यह है कि वर्तमान भारत में उसका सुसंस्कृत और सभ्य रूप नहीं मिलता।

रवींद्रनाथ ठाकुर इस भारतवर्ष को ‘मानव महासमुद्र’ कहते थे। इसमें अनेकानेक जातियों के मनुष्य रहते हैं और वे नदियों की भांति इस महासमुद्र में लीन हैं। आर्य और द्रविड़, संस्कृति, हिंदू और मुस्लिम संस्कृति, भारतीय और यूरोपीय संस्कृति के आदर्शों और सिद्धान्तों का यह संगम स्थल है। क्या यह ‘महासमुद्र’ सूख गया है ? लेखक की मान्यता है कि ऐसा संभव नहीं है। आज भी यह महान् विचारकों, ऋषियों एवं दार्शनिकों के स्वप्नों और कल्पनाओं का देश है और भविष्य में भी इसी रूप में रहेगा।

विशेष:

  1. लेखक ने भारत के सुसंस्कृत भविष्य के प्रति आशा व्यक्त की है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और स्वाभाविक है।

2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत के दोषपूर्ण वातावरण का यथार्थ चित्रण किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि आज इस देश के वातावरण में भ्रष्टाचार और अनैतिकता का बोलबाला है। आज ऐसा माहौल बन चुका है कि ईमानदारी और सच्चाई की कद्र नहीं है। ईमानदारी से मेहनत करके अपने जीवन का निर्वाह करने वाले भोले-भाले और सीधे-साधे लोगों का शोषण हो रहा है। उनकी मेहनत-मज़दूरी के बदले में उन्हें इतना कम पैसा मिलता है कि वह पेट भर भोजन भी नहीं पा सकते। इसके विपरीत असत्य तथा छल-कपट का व्यवहार करने वाले लोग समुन्नत और समृद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार ईमानदारी पूर्ण श्रम पर झूठ और कपट हावी हो रहे हैं।

आज ईमानदारी और मूर्खता समानार्थक हो गए हैं। भाव यह है कि ईमानदारी को मूर्ख समझा जाने लगा है। इसी प्रकार जो व्यक्ति सच्चाई से काम लेते हैं उन्हें धर्मभीरु तथा लाचार कहा जाता है। इस प्रकार आज ऐसा माहौल हो गया है कि जीवन के उच्च मूल्यों, मानवीय एवं सांस्कृतिक आदर्शों के बारे में लोगों का विश्वास डगमगाने लगा है।

विशेष:

  1. आज के भ्रष्टाचारी वातावरण में साधारण लोगों की जीवन के आदर्शों से आस्था टूट रही है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और प्रवाहमयी है।।

3. सदा मनुष्य-बुद्धि नयी परिस्थितियों का सामना करने के लिए नये सामाजिक विधि-निषेधों को बनाती है, उनके ठीक साबित न होने पर उन्हें बदलती है। नियम कानून सबके लिए बनाए जाते हैं, पर सबके लिए कभीकभी एक ही नियम सुखकर नहीं होते। सामाजिक कायदे-कानून कभी युग-युग से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में सें अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि युग-परिवर्तन के साथ जब नये नियम बनाए जाते हैं, तब उनका पुराने परखै नियमों के साथ टकराव भी होता है, जिससे समाज में उथल-पुथल होती है, परन्तु इससे निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि मनुष्य हमेशा ही नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपनी बुद्धि द्वारा कार्यालय सम्बन्धी नियम बनाता है। यह प्रत्येक युग के अनुकूल करने योग्य एवं न करने योग्य’ सामाजिक नियमों की प्रतिष्ठा करता है। इन सामाजिक विधि-निषेधों के उचित होने पर वे समाज द्वारा अपना लिए जाते हैं और ठीक न सिद्ध होने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है। मनुष्य की बुद्धि उन्हें बदलती है ये विधि-निषेध के नियम कायदे सामान्य होते हैं। सबके लिए होते हैं, परन्तु एक ही नियम कई बार सबके लिए उपयोगी और सुखदायक नहीं होता।

ये सामाजिक विधिनिषेध के कायदे-कानून पुराने परखे नियमों से टकराते भी हैं और वर्तमान नये नियमों और पुराने परीक्षित मूल्यों में संघर्ष होता है। इससे समाज की बाहरी सतह पर हलचल भी होती है, परंतु यह नई बात नहीं है। यह पहले भी होता आया है और आगे भी होता रहेगा। अतः वर्तमान माहौल को देखकर निराश होना उचित नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक है फिर यह नयी बात नहीं है।

विशेष:

  1. पुराने सामाजिक कायदे-कानून तथा नये कायदे-कानून में संघर्ष होता ही रहता है। इससे निराश नहीं होना चाहिए।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

4. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आन्तरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम क्रोध आदि विकास मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत निकृष्ट आचरण है।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ से अवतरित है। इसमें बताया गया है कि भारत में भौतिक चीजें इकट्ठी करने को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि भारतवर्ष में किसी भी युग में दुनियावी चीजें एवं इंद्रिय सुख के भौतिक पदार्थों को इकट्ठा करने को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया है। यहां सुख-साधन जुटाना बहुत ही सीमित रहा है। भारतीय मनीषियों ने आंतरिक तत्व को अधिक महत्त्व दिया है। उनकी दृष्टि शरीर की अपेक्षा आत्म तत्व पर अधिक रही है जो स्थिर एवं नित्य है। उसे ही यहां श्रेष्ठतम माना गया है। वे हमारे देश की संस्कृति भौतिक मूल्यों के स्थान पर आत्मिक, मानवीय एवं नैतिक मूल्यों को महत्त्व देती रही है। भौतिक पदार्थ नश्वर हैं तथा आंतरिक मानवीय मूल्य परम सत्य है।

इसमें संदेह नहीं कि मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों का अस्तित्व स्वाभाविक है, परन्तु इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना उचित नहीं है। इन्हें मन और बुद्धि पर हावी होने देना अथवा इन्हें मनमानी करने देना क्षुद्र आचरण कहा जायेगा। यह सदाचरण अथवा उच्चारण नहीं हो सकता।

विशेष:

  1. भारतीय विचारधारा में भौतिक वस्तुओं के संग्रह की अपेक्षा मनुष्य के भीतर के परम तत्व को जानने पर बल दिया गया है।
  2. भाषा-शैली तत्सम प्रधान होते हुए भी सुबोध है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

5. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्धाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से उद्धृत किया गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि किसी के दोषों को सबके समक्ष लाने में कोई बुराई नहीं, बुराई इस बात में है कि साथ-साथ गुणों को उजागर नहीं किया जाता।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि किसी व्यक्ति के दोषों को उजागर करने में कोई विशेष बुराई नहीं। बुराई तो इस बात में है कि किसी व्यक्ति की बुराइयों को उजागर करने में ही रस लिया जाता है तथा दोषों को उजागर करने वाला यह समझने लगता है कि उसका कर्तव्य तो अमुक व्यक्ति की बुराइयों को उद्घाटित करना मात्र है। मनुष्य किसी के गुणों को उजागर करने में कतई रस नहीं लेता। आज यह उसका स्वभाव ही बन गया है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, मगर किसी की अच्छाई को उतना ही रस लेकर लोगों के सामने प्रकट न करना उससे भी बुरी बात है।

विशेष:

  1. लेखक के अनुसार केवल दोषों को ही नहीं गुणों को भी उजागर किया जाना चाहिए। बुराई में रस लेना बुरी बात है।
  2. भाषा-शैली सरल और प्रवाहपूर्ण है।

6. मैं भी बहुत भयभीत था, पर ड्राइवर को किसी तरह मार-पीट से बचाया। डेढ़-दो घंटे बीत गए। मेरे बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे। मेरी और पत्नी की हालत बुरी थी। लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं, पर उसे बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा। कोई भी दुर्घटना होती है तो पहले ड्राइवर को समाप्त कर देना उन्हें उचित जान पड़ा। मेरे गिड़गिड़ाने का कोई विशेष असर नहीं पड़ा। इसी समय क्या देखता हूँ कि एक खाली बस चली आ रही है और उस पर हमारा बस कंडक्टर भी बैठा हुआ है।।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत में प्रत्येक मानव पर संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।

व्याख्या:
यहां लेखक का कहना है कि बस के अचानक सुनसान जगह पर रुक जाने के कारण वह बहुत डरा हुआ था, किन्तु बस के ड्राइवर को बड़ी ही कठिनाई से पिटने से बचा लिया। बस को रुके लगभग डेढ़ से दो घंटे बीत चुके थे। बच्चे भूख से बेहाल और पानी के लिए तड़प रहे थे। स्वयं मेरी और मेरी धर्मपत्नी की दशा अत्यन्त विकट हो रही थी। यात्रियों ने ड्राइवर को मारने की बजाय, उसे नीचे उतारकर एक स्थान पर चारों ओर से उसे घेर लिया ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि यदि कोई अप्रिय बात होती तो वे सबसे पहले ड्राइवर को ही मृत्युदंड देते। लेखक पुनः कहता है कि उसकी प्रार्थना और विनय का कोई विशेष प्रभाव यात्रियों पर नहीं पड़ा। सहसा लेखक देखता है कि एक खाली बस हमारी ओर चली आ रही है और उस पर कंडक्टर भी बैठा हुआ है।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य को संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।
  2. शब्द एवं वाक्य योजना सटीक है। भाषा सरल सहज एवं भावों के अनुरूप है।

कठिन शब्दों के अर्थ

मन बैठ जाना = उदास हो जाना, निराश हो जाना। तस्करी = स्मग्लिंग–किसी प्रतिबन्धित वस्तु का दूसरे से देश में अवैध तरीके से चोरी छिपे लाना। भ्रष्टाचार = बुरा आचरण, बेईमानी। आरोप-प्रत्यारोप = एक-दूसरे पर दोष लगाना। अतीत = बीता हुआ समय। निरीह = बेचारा, निर्दोष। गह्वर = गुफा, खोह। मनीषियों = विद्वानों। माहौल = वातावरण। श्रमजीवी = मज़दूर। फरेब = धोखा। पर्याय = बदल। भीरू = डरपोक। आस्था = श्रद्धा, विश्वास। मनुष्य-निर्मित = मनुष्य द्वारा बनाई गई। त्रुटियों = गलतियों, कमियों। विधि-निषेध = कानून द्वारा निषिद्ध, यह करो वह न करो। साबित = प्रमाणित । कायदे = नियम। आलोड़ित = मथा हुआ। हताश = निराश। निकृष्ट = नीच। गुमराह = भटका हुआ। दरिद्रजनों = ग़रीबों। कोटि-कोटि = करोड़ों। सुविधा = आराम। पैमाना = स्तर। विधान = कानून। विकार = दोष। विस्तृत = बढ़ना, फैलना। दकियानूसी = पुराने विचारों का। धर्मभीरू = धार्मिक दृष्टि से डरपोक। संकोच = झिझक। पर्याप्त = काफी। आक्रोश = क्रोध। साबित करना = प्रमाणित करना। प्रतिष्ठा = सम्मान । पर्दाफाश करना == भेद खोलना। उद्घाटित करना = खोलकर सामने रखना। दोषोद्घाटन = दोषों को प्रकट करना। उजागर करना = प्रकट करना। गंतव्य = जहां पहुंचना/जाना हो। हिसाब बनाना = मन बनाना। कातर = व्याकुल, भयभीत।

क्या निराश हुआ जाए? Summary

क्या निराश हुआ जाए? जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय लिखें।

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म गाँव आरतदुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में सन् 1907 में हुआ। संस्कृत विश्वविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा तथा हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर काशी विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष रहे। इन्हें ‘आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण अलंकार से सम्मानित किया गया था। इनका साहित्य मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति से युक्त है। सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हो गया।
अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुटज, आलोक पर्व इनके निबन्ध संग्रह हैं। चारूचन्द्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, अनामदास का पोथा इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। सूर-साहित्य, हिन्दी-साहित्य की भूमिका इनके आलोचनात्मक ग्रन्थ हैं।

क्या निराश हुआ जाए? निबन्ध का सार

‘क्या निराश हुआ जाए ?’ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित विचारात्मक निबन्ध है, जिसमें लेखक ने देश की सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि समाचार पत्रों को बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए। लेखक का मन समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार पढ़कर कभी-कभी बैठ जाता है। इन्हें पढ़कर लगता है कि देश में ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है। लेखक को एक बड़े आदमी ने एक बार कहा था कि जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी है क्योंकि उसके किए काम में कोई दोष नहीं निकालता। लेखक को भारत की ऐसी हालत देखकर दुःख होता है किन्तु लेखक को विश्वास है कि हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा। यह सच है कि इन दिनों कुछ ऐसा वातावरण बन रहा है कि ईमानदारी करके कमाने वाले मज़दूर पिस रहे हैं और धोखे का धन्धा करने वाले फल फूल रहे हैं।

लेखक का विचार है जो ऊपर से दिखाई देता है वह मनुष्य द्वारा ही बनाया गया है। मनुष्य सामाजिक नियमों को परिस्थिति अनुसार बदलता भी रहता है। इस बदलाव को देखकर निराश होना ठीक नहीं है। भारत वर्ष ने कभी भी सांसारिक वस्तुओं के संग्रह को महत्त्व नहीं दिया बल्कि उसने आत्मा को चरम और परम माना। लोभ-मोह आदि विकारों के वश में होना उसने कभी उचित नहीं माना। इन विचारों को संयम के बँधन से बाँधने का प्रयत्न किया। परन्तु भूख की, बीमार के लिए दवा की और भटके हुए को रास्ते पर लाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

लेखक कहते हैं कि व्यक्ति का चित्त हर समय आदर्शों पर नहीं चलता। मनुष्य ने जितने भी उन्नति के कानून बनाए उतने ही लोभ-मोह आदि विकार बढ़ते गए। आदर्शों का मजाक उड़ाया गया और संयम को दकियानूसी कहा गया। परन्तु इससे भारतीय आदर्श अधिक स्पष्ट और महान् दिखाई देने लगे।

भारतवर्ष में कानून को धर्म का दर्जा दिया गया किन्तु कानून और धर्म में अन्तर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण से धर्मभीरू कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। भारतवर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। भ्रष्टाचार आदि के प्रति लोगों का क्रोध यह सिद्ध करता है कि लोग इसे गलत समझते हैं। सैंकड़ों घटनाएँ आज भी घटती हैं जो लोक-चित्त में अच्छाई की भावना को जगाती हैं। लेखक ने ऐसी दो घटनाओं का उल्लेख किया जिनमें पहली रेलवे के एक टिकट बाबू की ईमानदारी और दूसरी एक बस कंडक्टर की मानवीयता को उजागर करने वाली घटना शामिल है। इन घटनाओं का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि निराश होने की ज़रूरत नहीं है। भारत में अब भी सच्चाई और ईमानदारी मौजूद है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 15 सच्ची वीरता

Hindi Guide for Class 12 PSEB सच्ची वीरता Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
सच्चे वीर पुरुष का स्वभाव कैसा होता है ?
उत्तर:
सच्चा वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होता है। उसके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। वे सत्वगुण के क्षीरसागर में ऐसे डूबे रहते हैं जिसकी दुनिया को खबर ही नहीं होती।

प्रश्न 2.
‘वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है’ लेखक पूर्ण सिंह की इस उक्ति का क्या भाव है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ यह है कि वीर पुरुष भले ही सामने न आए, किन्तु अपने प्रेम से लोगों के दिलों पर राज करता है, जिससे वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है। उसका मन सबका मन हो जाता है अर्थात् जैसे वह सोचता है या करता है सब वैसा ही सोचते या करते हैं।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 3.
‘सच्ची वीरता’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 4.
जापान के ओशियो की वीरता का उदाहरण प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर लिखो।
उत्तर:
ओशियो जापान के एक छोटे से गाँव की एक झोंपड़ी में रहता था। वह बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था। वह कडे स्वभाव का स्थिर, धीर और अपने ही विचारों में डूबा रहने वाला पुरुष था। लोग उसे मामूली आदमी समझते थे। एक बार संयोग से दो तीन साल फसलें न होने के कारण देश में अकाल पड़ गया। लोग लाचार होकर उसके पास मदद माँगने गए। वह उनकी मदद करने को तैयार हो गया। पहले वह अमीर और भद्र पुरुषों के पास गया और उससे मदद माँगी। उन्होंने मदद का वादा किया पर निभाया नहीं। ओशो ने अपने कपड़े और किताबें बेच कर प्राप्त धन को किसानों में बाँट दिया। पर उससे भी कुछ न हुआ। इस पर ओशियो ने लोगों को विद्रोह करने के लिए तैयार किया और बादशाह के महल की ओर कूच किया।

सिपाहियों ने गोली चलानी चाही लेकिन बादशाह ने ऐसा करने से रोक दिया। ओशियो किले में दाखिल हुआ। उसे सरदार पकड़ कर बादशाह के पास ले गया। ओशियो ने बादशाह से कहा कि वह अन्न से भरे राज भण्डार ग़रीबों की मदद के लिए खोल दे। उसकी आवाज़ में दैवी शक्ति थी। बादशाह ने अन्न भण्डार खोलने की आज्ञा दी और सारा अन्न ग़रीबों में बाँटने का आदेश दिया। ओशियो ने जिस काम के लिए कमर बाँधी थी उसे पूरा कर दिया था।

प्रश्न 5.
‘सच्चे वीर पुरुष मुसीबत को मखौल समझते हैं।’ ईसा मसीह, मीराबाई और गुरु नानक देव जी के जीवन से उदाहरण देते हुए प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
संसार जिस बात को मुसीबत समझता है सच्चे वीर उसे मखौल समझते हैं। अमर ईसा को जब सूली पर चढ़ाया गया, उससे भारी सलीब उठवाई गई जिस कारण वह कभी गिरता, ज़ख्मी भी होता और कभी बेहोश हो जाता है। कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता, वह उस मुसीबत को मज़ाक समझता है। इसी प्रकार राणा जी ने मीराबाई को ज़हर के प्याले से डराना चाहा। मीरा उस ज़हर को अमृत समझ कर पी गई। उसे शेर और हाथी के सामने डाला गया, लेकिन वह डरी नहीं।

प्रेम में मस्त हाथी और शेर ने उस देवी के चरणों की धूल को माथे से लगाया और अपनी राह ली। वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं मरते हैं। इसी प्रकार बाबर के सिपाहियों ने जब लोगों के साथ गुरु नानक देव जी को बेगार में पकड़ लिया और उनके सिर पर बोझ रखकर कहा कि चलो। आप चल पड़े। डरे नहीं, घबराए नहीं, बल्कि मर्दाना से कहा कि सारंगी बजाओं हम गाते हैं। उस भीड़ में सारंगी बज रही थी और गुरु जी गा रहे थे। वे उस मुसीबत को मुसीबत न समझ कर मज़ाक समझते हैं।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्व गुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती।
उत्तर:

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताया है।

व्याख्या:
लेखक कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताते हुए कहते हैं कि यह सच है कि वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती क्योंकि वे सात्विक प्रवृत्तियों के दूध के सागर में ऐसे डूबे रहते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर ही नहीं रहती अर्थात् वे अपने में ही सदा मस्त रहते हैं।

प्रश्न 7.
कायर पुरुष कहते हैं-‘आगे बढ़े चलो।’ वीर कहते हैं ‘पीछे हट चलो।’ कायर कहते हैं”उठाओ तलवार।’ वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो।’

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीर और कायर पुरुष की तुलना करता हुआ कहता है कि कायर पुरुष दिखावे के लिए आगे बढ़ने की बात करता है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि कायर पुरुष कहते हैं कि आगे बढ़े चलो। उनका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है जबकि वीर कहते हैं कि पीछे हट चलो। उनका ऐसा कहना जीवन की तुच्छता या नश्वरता की ओर संकेत करता है। कायर कहते हैं कि ‘उठाओ तलवार’ अर्थात् उसका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है। वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो’ उनका ऐसा कहना उनके आत्म त्याग की भावना के कारण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 8.
मगर वाह रे प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया। इसके वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं, मरते हैं।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक श्रीकृष्ण भक्त मीरा बाई की प्रेम भावना का उदाहरण देते हुए सच्चे वीर की विशेषताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक वीर लोगों द्वारा मुसीबत को मखौल समझने की व्याख्या करते हुए कृष्ण भक्त मीराबाई का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मीरा को डराने के लिए राणा जी ने विष का प्याला भेजा, जिसे वह अमृत समझकर पी गई। मीरा शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे उनका सच्चा प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने मीरा के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया अर्थात् वहाँ से चल दिए। यही कारण है कि वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं। अपने हृदय के भीतर ही ध्यान करते हैं। वह किसी को मारते नहीं, स्वयं मरते हैं।

प्रश्न 9.
पेड़ तो ज़मीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझ में कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीरता के कारनामों का वीर लोग अपनी दिनचर्या में शामिल न करने की बात को पेड़ का उदाहरण देकर स्पष्ट कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक वीर लोगों के अन्दर ही अन्दर बढ़ने और सत्य के भाव पर स्थिर रहने की बात को एक पेड़ के उदाहरण से स्पष्ट करते हुए कहता है कि पेड़ तो धरती से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे इस बात की सोच नहीं होती कि उसमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब खिलेंगे। उसका काम तो अपने आपको सत्य में रखना है।

PSEB 12th Class Hindi Guide सच्ची वीरता Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबंध किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
सरदार पूर्ण सिंह।

प्रश्न 2. सरदार पूर्ण सिंह के जन्म और मृत्यु के वर्ष लिखिए।
उत्तर:
जन्म-सन् 1881 ई०, मृत्यु-सन् 1931 ई०।

प्रश्न 3.
सरदार पूर्ण सिंह के द्वारा रचित चार अन्य निबंधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
आचरण की सभ्यता, मज़दूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, नयनों की गंगा।

प्रश्न 4.
सच्चे वीरों की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
धीर, वीर, गंभीर और स्वतंत्र।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

प्रश्न 5.
सच्चे वीरों का व्यक्तित्व कैसा होता है?
उत्तर:
दिव्य।

प्रश्न 6.
शासकों/सम्राटों को सच्चा वीर क्यों नहीं मान सकते?
उत्तर:
वे शोषण से महान् बनते हैं और सदा अपने पापों से कांपते रहते हैं।

प्रश्न 7.
सच्चा वीर क्या त्यागने में एक पल भी नहीं व्यतीत करते?
उत्तर:
अपने जीवन का बलिदान।

प्रश्न 8.
सच्चे वीरों का जीवन किस भाव से सदा भरा रहता है?
उत्तर:
परोपकार का भाव।

प्रश्न 9.
महात्मा बुद्ध सच्चे वीर क्यों माने जाते हैं?
उत्तर:
उन्होंने गूढ़ तत्व और सत्य की खोज के लिए ऐश्वर्य त्याग दिया था।

प्रश्न 10.
वीर पुरुष किस का प्रतिनिधि होता है?
उत्तर:
वीर पुरुष समाज का प्रतिनिधि होता है।

प्रश्न 11.
कोई व्यक्ति वास्तव में वीर किस प्रकार बनता है?
उत्तर:
वह अपनी अंतः प्रेरणा से ही अपना निर्माण स्वयं करता है।

प्रश्न 12.
स्वभाव से वीर पुरुष कैसे होते हैं?
उत्तर:
स्वभाव से वीर पुरुष धीर-गंभीर होते हैं वे आडंबर रहित होते हैं।

प्रश्न 13.
सच्चे वीर अपने वीरत्व को कब प्रकट करते हैं?
उत्तर:
सच्चे वीर उचित समय आने पर ही अपने वीरत्व को प्रकट करते हैं।

प्रश्न 14.
सच्चा वीर बनने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चा वीर बनने के लिए हमें अपने भीतर के गुणों का विकास करना चाहिए।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और………..होते हैं।
उत्तर:
आजाद।

प्रश्न 16.
वीरता एक प्रकार का…………….या….. ……..प्रेरणा है।
उत्तर:
इहलाम, दैवी।

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प्रश्न 17.
वे………के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखूद पैदा होते हैं।
उत्तर:
देवदार।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
वीरों का स्वभाव सदा छिपे रहने का नहीं होता।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
आकाश उनके ऊपर बादल के छाते नहीं लगाता।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 20.
सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘सच्ची वीरता’ किस विद्या की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) कविता
उत्तर:
(क) निबंध

2. अध्यापक पूर्ण सिंह के निबंधों का आधार क्या है ?
(क) मानवीय दृष्टि
(ख) आध्यात्मिक चेतना
(ग) ये दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) ये दोनों

3. अध्यापक पूर्ण सिंह किसकी पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे ?
(क) मानव के आचरण
(ख) मानवता
(ग) बुद्धि कौशल
(घ) मेहनत।
उत्तर:
(क) मानव के आचरण

4. ‘सच्ची वीरता’ कैसा निबंध है ?
(क) संवेदनशील
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) संवादात्मक।
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

5. लेखक के अनुसार मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है
(क) वीरता
(ख) न्याय
(ग) कर्म
(घ) सत्य।
उत्तर:
(क) वीरता

सच्ची वीरता गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं। उनके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में उन्होंने वीरता के व्यापक क्षेत्र का उल्लेख करते हुए वीरों की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। यहाँ वे सच्चे वीर के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं।

व्याख्या:
सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, गम्भीर एवं स्वतन्त्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता एवं शान्ति की तुलना समुद्र की विशालता एवं गहराई से तथा आकाश की स्थिरता एवं अचलता से की जाती है। सच्चे वीर कभी चंचल नहीं होते। भाव यह है कि वीर पुरुष स्वभाव से दृढ़ होते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीरों के गुणों का उल्लेख है।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।

2. सत्वगुण के समुद्र में जिनका अन्तःकरण निमग्न हो गया, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिए संसार के सब अगम्य मार्ग साफ़ हो जाते

प्रसंग:
प्रस्तुत अवतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक सच्चे वीरों की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि सात्विक गुणों के सागर में जिनका हृदय डूब जाता है, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं अर्थात् सच्चे वीर स्वाभाव से सात्विक होते हैं। सच्चे वीर अपने सांसारिक तुच्छ जीवन का परित्याग कर ऐसा दिव्य अथवा अलौकिक जीवन प्राप्त करते हैं कि उनके लिए संसार के सभी अगम्य मार्ग सुगम बन जाते हैं। भाव यह है कि सच्चा वीर अपने साधनामय जीवन के द्वारा ईश्वरीय रूप प्राप्त कर लेते हैं। उनके लिए संसार के सभी कार्य सरल बन जाते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीर दिव्यगणों से सम्पन्न होते हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली विचार प्रधान है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

3. आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती है। हमारे असली और सच्चे राजा वे ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चांदी के जर्क-बर्क सिंहासन पर बैठने वाले दुनिया के राजाओं की तो, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिंडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये ज़री, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हर दम कांपते रहते हैं। क्यों न हो, उनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। .

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्ची वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि सात्विक जीवन व्यतीत करने वाले पुरुष ही सच्चे वीर होते हैं। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। आकाश उनके सिर पर बादलों के छाते तानता है। प्रकृति उनके सुन्दर मस्तक पर राज तिलक लगाती है। हमारे लिए असली एवं सच्चे राजा ऐसे ही वीर पुरुष हैं जिनका आचरण पवित्र है। जो लोग हीरे और लाल से जड़े हुए तथा सोने एवं चाँदी के निर्मित सिंहासनों पर बैठते हैं जो गरीब किसानों की मेहनत से कमाई दौलत छीनकर अपने शरीर को पुष्ट करते हैं तथा ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते हैं ऐसे शासकों को लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है लेखक ने यहां ऐसे लोगों को वीरों की कोटि में नहीं रखा जो दूसरों के बल पर ऐश कर जीवन जीते हैं।

ये ज़री, मखमल एवं गहनों से लदे हुए मांस के पुतले हैं जो अपने कुकर्मों के कारण हमेशा डर से कांपते रहते हैं। ये लोग जनता के हृदयों पर शासन नहीं करते। संसार के राजाओं के बल की पहुँच लोगों के शरीर तक है। सच्चे वीरों के चरित्र में एक अद्भुत आकर्षण होता है जो दूसरों को अपने सद्गुणों के बल पर मोहित कर लेते हैं।

विशेष:

  1. सच्चे वीर अपनी वीरता से सब का सम्मान प्राप्त करते हैं तथा सबके आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं।
  2. भाषा तत्सम, तद्भव शब्दों से युक्त तथा शैली भावपूर्ण है।

4. वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है। कभी तो उसका विकास लड़ने मरने में, खून बहाने में, तलवारतोप के सामने जान गंवाने में होता है, कभी प्रेम के मैदान में उसका झण्डा खड़ा होता है। कभी साहित्य और संगीत में वीरता खिलती है। कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते हैं। कभी किसी आदर्श पर और कभी किसी वीरता पर अपना फरहरा लहराती है। परन्तु वीरता एक प्रकार का इलहाम या दैवी प्रेरणा है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।

व्याख्या:
लेखक वीरता के व्यापक क्षेत्र पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता का विकास अनेक रूपों में होता है। कभी तो इस वीरता का विकास युद्धभूमि में बलिदान के रूप में, खून बहाने में तथा तलवार-तोप के सामने निडरता से जान की बाज़ी लगा देने में होता है। कभी यह वीरता प्रेम के मैदान में अपना कमाल दिखाती है और इसकी विजय का झण्डा लहराती है।

कभी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में इसका चमत्कार देखने को मिलता है। कभी आध्यात्मिक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए बुद्ध जैसे राजा सब कुछ त्यागकर वैरागी बनकर जीवन के गूढ़ रहस्य को सुलझाने तथा सत्य की खोज में अपना जीवन झण्डा लहराती है। आगे लेखक कहता है कि वीरता का गुण सहज नहीं। वास्तव में यह एक दैवी प्रेरणा है।

विशेष:

  1. इन पंक्तियों में लेखक ने वीरता के विविध क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है। वीरता का सम्बन्ध केवल युद्ध से ही नहीं जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।

5. वीरता देशकाल के अनुसार संसार में जब कभी प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते ही सब लोग चकित हो गए-कुछ न बन पड़ा और वीरता के आगे सिर झुका दिया।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।

व्याख्या:
लेखक वीरता के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार जब कभी प्रकट हुई है तभी एक नया रूप लेकर आई है, जिसे देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए। यदि लोगों से उन वीरों की स्तुति में ओर कुछ न बन पड़ा तो श्रद्धा से भरकर उनके आगे सिर झुका दिया।

विशेष:

  1. इस कथन के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीरता का उदय देश की आवश्यकता के अनुसार होता है। सच्चे वीरों के आगे लोग श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।

6. वीरों के बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते। वे देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक आकर खड़े हो जाते हैं। उनका सारा जीवन अन्दर ही अन्दर होता है। बाहर तो जवाहरात की खानों की ऊपरी जमीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता। वीर की ज़िन्दगी मुश्किल से कभी-कभी बाहर नज़र आती है। उसका स्वभाव छिपे रहने का नहीं है।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में अध्यापक पूर्ण सिंह जी ने यह स्पष्ट किया है कि वीरों का उदय बड़े स्वाभाविक रूप से होता है। वीरों के बनाने के कारखाने स्थापित नहीं किए जा सकते। सच्चे वीरों की तुलना देवदार के वृक्षों से की जा सकती है। देवदार के वृक्ष जंगल में स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के हाथ लगाए स्वयं फलते-फूलते हैं। उसी प्रकार वीर पुरुष भी बिना किसी के दूध पिलाए तथा रक्षा किए अपना पथ आप बनाते हैं। वीर का जीवन भीतर ही भीतर पनपता है। वह आडम्बर की भावना से मुक्त होता है।

आवश्यकता पड़ने पर ऐसे वीर अचानक इस दुनिया के मैदान में आकर खड़े हो जाते हैं और अपना चमत्कार दिखाने लगते हैं। उनका सारा जीवन भीतरी गुणों के विकास में तल्लीन रहता है। जैसे खानों की ऊपर की सतह पर कुछ नहीं होता। उनके भीतर ही बहुमूल्य हीरे-जवाहरात छिपे रहते हैं। इसी प्रकार वीर का जीवन भी बाहर कठिनाई से ही दिखाई देता है। उसका स्वभाव तो छिपकर अपने गुणों का विकास करता है।

विशेष:

  1. सच्चे वीर आत्म-निर्भर होते हैं। वे आडम्बर से दूर रहते हैं। वे आन्तरिक गुणों के विकास पर बल देते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।

7. इस वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। अन्दर ध्यान करते हैं। मारते नहीं मरते हैं। वीर क्या टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठण्डा हो जाता है ? सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हज़ारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठण्डी हो। उसे खुद गरम और सर्द होने से क्या मतलब ?

प्रसंग:
यह गद्यावतरण द्विवेदीयुगीन प्रसिद्ध लेखक श्री पूर्ण सिंह द्वारा रचित ‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित हैं। इसमें लेखक ने सच्चे वीर के स्वभाव पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
धीरे, गम्भीर और स्वतन्त्र प्रकृति के वीरों का स्वभाव संसार के सामान्य पुरुषों से भिन्न होता है। ईश्वरीय प्रेम में निमग्न सच्चे वीर पुरुष बढ़ने की अपेक्षा पीछे हटते हैं अर्थात् वे त्याग और बलिदान के पथ पर बढ़ते हैं। वे अपनी आत्मा को विशाल बनाते हैं। वे योगी की भान्ति आत्मलीन रहते हैं। त्याग की भावना को अपना आदर्श मानने वाले वीर पुरुष किसी को मारते नहीं, बल्कि स्वयं मरते हैं। वीर का स्वभाव टीन के बर्तन की भान्ति नहीं होता, जो शीघ्र ही गर्म अथवा ठण्डा हो जाता है। वह सदा अडिग और गम्भीर रहता है।

उसके नीचे सदियों तक आग जलती रहे तो भी गरम नहीं होता तथा सदियों उसके ऊपर जमा देने वाली बर्फ पड़ती रहे तो भी वह ठण्डा नहीं होता। उसकी वाणी सदियों तक संसार के कानों में गूंजती रहती है अर्थात् उनकी वाणी का प्रभाव सरलता से समाप्त नहीं होता।

विशेष:

  1. यहां वीर पुरुष के आन्तरिक गुणों का उल्लेख है।
  2. भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।

8. प्यारे, अन्दर के केन्द्र की ओर अपनी चाल उल्टो और इस दिखावटी और बनावटी जीवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हो और वीरता के काम नहीं तो धीरे-धीरे अपने अन्दर वीरता के परमाणुओं को जमा करो।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्चे वीरों का गुणगान किया है। यहां स्पष्ट किया गया है कि सच्चे वीर वही हैं जो आडम्बरपूर्ण जीवन को छोड़ कर मानसिक तथा आत्मिक विकास की ओर ध्यान देते हैं।

व्याख्या:
लेखक वीरता के पथ पर बढ़ने वालों को लक्ष्य कर कहता है कि यदि तुम वीर बनना चाहते हो तो भीतरी गुणों के विकास पर बल दो अर्थात् वीरता का सम्बन्ध मन की दृढ़ता तथा इच्छा शक्ति की प्रबलता से है। आडम्बर पूर्ण एवं बनावटी जीवन की चंचलता में अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट न करो। यदि तुम वीर नहीं बन सकते तो वीरों के अनुयायी बन जाओ।

अगर वीरस को प्रकट करने वाले असाधारण काम नहीं कर सकते तो धीरे-धीरे अपने भीतर वीरता के परमाणु इकट्ठे करो। अभिप्राय यह है कि अगर हम वीरता जैसे देवी गुण से वंचित हैं तो दूसरे वीरों के अनुगामी बनकर अपने भीतर वीरता के .गुण जमा कर सकते हैं और इस प्रकार हम भी असाधारण काम करने में असमर्थ हो सकते हैं।

विशेष:

  1. मन की दृढ़ता से वीरता के गुणों का विकास होता है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

9. टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो और सच्चाई की चट्टानों पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। अपनी ज़िन्दगी किसी और के हवाले करो ताकि ज़िन्दगी को बचाने की कोशिशों में कुछ भी समय व्यर्थ न करो। इसलिए बाहर की सत्ता को छोड़कर जीवन के अन्दर की तहों में घुस जाओ, तब नए रंग खुलेंगे।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने वीरता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
लेखक पाठकों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो अर्थात् टीन के बर्तन के खोखले एवं आडम्बरपूर्ण स्वभाव को छोड़कर सच्चाई की ठोस चट्टानों पर दृढ़ता के साथ खड़े हो जाओ। अपने जीवन को किसी दूसरे के हित के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि हम इसे बचाने की कोशिश में अपना थोड़ा-सा समय भी नष्ट न करें।

अत: आवश्यकता इस बात की है कि तुम लोग जीवन के बाहरी अस्तित्व को त्याग कर अन्दर की तहों में वास करो तभी नए रंग खुलेंगे। भाव यह है कि जीवन विकास के लिए मनुष्य को चरित्र बल की आवश्यकता है। चरित्र बल को अर्जित करने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने भीतर के गुणों का विकास करे।

विशेष:

  1. यहां वीरों के स्वभावानुसार धीरता, गम्भीरता और दृढ़ता को अपनाने की प्रेरणा दी गई है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

10. पेड़ तो ज़मीन से इसे ग्रहण करने में लगा रहता है, उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे ?

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबंध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं जिसमें सच्ची वीरता की विशेषताएं बताई गई हैं।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि किस प्रकार वीर अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं। लेखक पेड़ का उदाहरण देकर समझाता है कि पेड़ सदा धरती से जल रूपी रस ग्रहण कर हरा-भरा बना रहता है। उसे यह कभी विचार नहीं आता कि उस पर कितने फल या फूल लगेंगे तथा कब लगेंगे। उसी प्रकार से वीर भी अपने वीरतापूर्ण कार्य करता रहता है परन्तु उनके विषय में सोचता नहीं है।

विशेष:
सच्चे वीर प्रचार-प्रसार से दूर रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से अपना कार्य करते रहते हैं।

11. सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर नहीं रहती।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने सच्चे वीरों के गुणों का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि सच्चे वीर निश्चित भाव से सोते हैं। यह सत्य है कि सच्चे वीरों की नींद भी आसानी से नहीं खुलती क्योंकि उनका अंत: करण सदा निर्मल होता है। वे सोते समय अपने सत्वगुण रूपी क्षीर-सागर में ऐसे डूब जाते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। उनकी नींद भी उन्हीं की तरह मस्ती से भरी होती है, जो आसानी से नहीं टूटती है।

विशेष:
सच्चे वीर गहरी नींद में चिंतामुक्त होकर सोते हैं।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता

कठिन शब्दों के अर्थ

स्थिर = एक जगह ठहरा हुआ। अचल = न हिलने वाला। अन्तः करण = हृदय। निमग्न = लीन। अगम्य = जहाँ न पहुँचा जा सके, कठिन। हुकूमत = शासन। तिरस्कार = अपमान। सत्कार = आवभगत, आदर। विरक्त = उदास। फरहरा = झण्डा। दैवी = ईश्वरीय। संकल्प = दृढ़ निश्चय। अरण्य = जंगल, वन। कंदरा = गुफ़ा, गार। स्तुति = प्रशंसा। बुज़दिली = कायरता। फिजूल = व्यर्थ । मरकज = केन्द्र। शांहशाह-ए-हकीकी = वास्तविक राजा, ईश्वर । सल्तनत = राज्य। मिज़ाज = स्वभाव। खयालात = विचार। निखट्ट = जो कोई काम न करे। दुर्भिक्ष = अकाल। एक दफा = एक बार। इत्तिफाक = संयोग। धनाढ्य = अमीर। बग़ावत = विद्रोह। सब्ज = हरे। वर्कों = पृष्ठों। दरिद्र = गरीब। अनुगामी = पीछे चलने वाला। चिरस्थायी = देर तक रहने वाला। जाया = नष्ट।

सच्ची वीरता Summary

सच्ची वीरता जीवन परिचय

अध्यापक पूर्ण सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखें।

अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म सन् 1881 ई० में तथा मृत्यु सन् 1931 में हुई। अध्यापक होने के नाते इनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया है। ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मज़दूरी और प्रेम’, ‘सच्ची वीरता’ और ‘नयनों की गंगा’ इनके प्रसिद्ध निबन्ध हैं। इनके निबन्धों का आधार मानवीय दृष्टि एवं आध्यात्मिक चेतना है। पूर्ण सिंह ऐसे संवेदनशील व्यक्ति थे जो औद्योगिक क्रान्ति की अपेक्षा मानव के आचरण की पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे। इन्होंने अपने निबन्धों को दृष्टान्तों के माध्यम से सरल और रोचक बनाने का प्रयास किया। इनकी भाषा प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक शब्दावली से युक्त है।

सच्ची वीरता निबन्ध का सार

‘सच्ची वीरता’ निबन्ध के रचयिता अध्यापक पूर्ण सिंह जी हैं। यह उनका एक विचारात्मक निबन्ध है जिसमें लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वीरता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। रणक्षेत्र में अपना बलिदान देने वाले योद्धा ही वीरों की कोटि में नहीं आते वरन् किसी पवित्र ध्येय, आदर्श और कार्य के लिए अपना जीवन होम कर देने वाले व्यक्ति भी सच्चे वीर हैं, वीरों के कार्यों की गूंज शताब्दियों तक गूंजती रहती है। वीरों का निर्माण किसी बाहरी प्रेरणा से नहीं होता, वे तो अपनी आन्तरिक प्रेरणा से ही सत्कार्यों में लीन होते हैं। मानवता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देने वाले सब से बड़े वीर हैं।।

सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, वीर, गंभीर एवं स्वतंत्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता सागर के समान विशाल एवं गहरी अथवा आकाश के सामान स्थिर होती है। उनके कार्य दूसरों को प्रेरणा देते हैं। जिनका मन सात्विक वृत्तियों के सागर में डूब जाता है वे ही सच्चे वीर, महात्मा एवं साधु कहलाते हैं। उनका व्यक्तित्व दिव्य होता है। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। सच्चे वीर ही असली राजा हैं, सोने के सिंहासनों पर बैठने वाले लोग असली शासक नहीं क्योंकि वे तो निर्धनों का शोषण कर महान् बने हैं। वे अपने पापों के कारण हमेशा कांपते रहते हैं। लेखक के कहने का भाव यह है कि सरलता तथा साधुता के पथ पर चलने वाले लोग ही सच्चे वीर कहलाने के अधिकारी हैं।

सच्चे वीरों को कोई पराजित नहीं कर सकता। वे बड़े-बड़े बादशाहों को भी ताकत की हद दिखला देते हैं। बादशाह शरीर पर शासन करता है जबकि वीर व्यक्ति अपने कारनामों से लोगों के दिलों पर शासन करते हैं। सच्चा वीर अपने जीवन का उत्सर्ग करने में विलम्ब नहीं करता।

वीर पुरुष हर समय अपने आपको महान् बनाने में लीन रहता है। वह न तो अपने कारनामों का गुणगान करता है और न ही उन्हें याद रखता है। वह तो उस वृक्ष के समान होता है.जो पृथ्वी से रस लेकर अपने आपको पुष्ट करता है। वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि उस पर फल कब लगेंगे और कौन उनको खाएगा। उसका लक्ष्य तो अपने अन्दर सत्य को कूट-कूट-कूट कर भरना है। सच्चे वीरों का जीवन परोपकार के लिए होता है। वीरता का विकास विभिन्न क्षेत्रों में होता है। कभी युद्ध के मैदान में, कभी प्रेम के क्षेत्र में वीरता अपना कमाल दिखाती है और कभी जीवन के किसी गूढ़ तत्व एवं सत्य की खोज में बुद्ध जैसे राजा ऐश्वर्य का परित्याग कर आगे बढ़ते हैं।

वीरता एक प्रकार का दैवी गुण है, वीरता की नकल सम्भव नहीं। जापानी वीरता की मूर्ति की पूजा करते हैं। वीर पुरुष अपने समाज का प्रतिनिधि होता है। उसका मन सब का मम तथा उसके विचार सबके विचार बन जाते हैं। लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीर बनाने से नहीं बनते। ये तो अपनी अन्तः प्रेरणा से अपना निर्माण आप करते हैं। “वे तो देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में अपने-आप पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं।”

सच्चे वीर आत्मोत्सर्ग में विश्वास करते हैं। वे अपने अन्दर की शक्ति के विकास में लीन रहते हैं। वीर पुरुष स्वभाव से धीरे एवं गम्भीर होते हैं। वे न तो जल्दी चंचल बनते हैं और न ही उनके साहस एवं ओज को शीघ्र दबाया जा सकता है। आगे लेखक कहता है कि वीरों को आडम्बर अथवा दिखावे का आश्रय नहीं लेना चाहिए। अपने भीतर ही भीतर वीरत्व को संजोना चाहिए और समय आने पर उसे प्रकट करना चाहिए।

अन्त में लेखक कहता है कि जब कभी हम वीरों की कहानियां सुनते हैं तो हमारे अन्दर भी वीरता की लहरें उठती हैं लेकिन वे चिरस्थायी नहीं होतीं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस धैर्य एवं साहस की आवश्यकता होती है उसका प्रायः हमारे हृदय में अभाव होता है। इसलिए हम वीरता की कल्पना करके रह जाते हैं। टीन जैसे बर्तन का स्वभाव छोड़कर हमें अपने भीतर निवास करना चाहिए। अपने जीवन को दूसरे के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि इसकी रक्षा की चिन्ता से मुक्त हो जाए। सच्चा वीर बनने के लिए यह आवश्यक है कि अपने भीतर के गुणों का विकास किया जाए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 गीता डोगरा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 14 गीता डोगरा

Hindi Guide for Class 12 PSEB गीता डोगरा Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘कच्चे रंग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवयित्री के अपने अतीत अर्थात् गाँव, पगडंडी, देवदार के वृक्ष, जंगल के गुम हो जाने का दुःख है। शहर में तो उसे संवेदनाशून्य व्यक्ति ही मिलते हैं। अब वह प्रकृति की गोद में निशंक नहीं जा सकती। गाँव में प्यार था, अपनापन था, जो शहर में नहीं है। इसलिए, वह फिर से उन कच्चे रंगों को पाना चाहती है जिसमें अपनापन हो, प्यार हो। वह अपने भविष्य के टूटने से भी चिन्तित है।

प्रश्न 2.
‘कच्चे रंग’ कविता का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ?
उत्तर:
‘कच्चे रंग’ शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है क्योंकि यह अपनेपन और प्यार मुहब्बत को दर्शाता है। नगरीय सभ्यता में इसका लोप हो गया है। शहरी लोग तो संवेदन-शून्य हैं, मुर्दादिल हैं। भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की इसी स्थिति को प्रस्तुत कविता में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 3.
‘कच्चे रंग’ कविता का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कवयित्री को अफ़सोस है कि अतीत से तो वह पूरी तरह कट चुकी है और फिक्र है कि कहीं उसका भविष्य भी वर्तमान से कट न जाए। कहीं उसकी अपनी बेटी भी इस संवेदनाशून्य वातावरण से हताश होकर लौट न जाए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

प्रश्न 4.
‘कच्चे रंग’ कविता में कौन-कौन से मानवीय रिश्तों का विवरण है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में दादी और बेटी के मानवीय रिश्तों का विवरण है। दादी गाँव में नानकशाही ईंटों से बने मकान की दीवारों पर हर वर्ष कच्चे रंगों से उन सबके नाम लिखती है जिनसे उसे प्रेम था। वह कवयित्री का प्यार से माथा भी चूमती थी और हाथ भी। इसी तरह वह अपनी बेटी के बारे में भी चिन्ता व्यक्त करती है कि वह कहीं उसकी तरह टूट कर निराश होकर उसके द्वार से न लौट जाए।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
अब शहर ………. सिमट जाती थी।
उत्तर:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

प्रश्न 6.
सब कुछ बदल गया ……. कितना डरती हूँ मैं।
उत्तर:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

PSEB 12th Class Hindi Guide गीता डोगरा Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गीता डोगरा का जन्म किस वर्ष व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
सन् 1955 में; पंजाब के फिरोज़पुर में।

प्रश्न 2.
गीता डोगरा के द्वारा रचित काव्य संबंधी दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
धूप उदास, दहलीज, अगले पड़ाव तक।

प्रश्न 3.
गीता डोगरा के द्वारा रचित उपन्यास कौन-सा है ?
उत्तर:
बंद दरवाज़े।

प्रश्न 4.
लेखिका वर्तमान में कहां कार्यरत है?
उत्तर:
समाचार दैनिक जागरण-जालंधर।

प्रश्न 5.
कवयित्री के परिवेश में क्या-क्या खो गया है?
उत्तर:
गाँव, पगडंडी, देवदारु के वृक्ष पर्वत और जंगल।

प्रश्न 6.
कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था?
उत्तर:
पर्वत।

प्रश्न 7.
कवयित्री का पुराना घर किन ईंटों से बना हुआ था?
उत्तर:
नानकशाही ईंटों से।

प्रश्न 8.
कवयित्री की बड़ी माँ किन रंगों से दीवारों पर लिखा करती थी?
उत्तर:
कच्चे रंगों से।

प्रश्न 9.
कवयित्री को अपने अतीत के प्रति कैसा विश्वास है?
उत्तर:
कवयित्री अपने अतीत के प्रति शंका ग्रस्त है।

प्रश्न 10.
कवयित्री किस से डरती है?
उत्तर:
कवयित्री अपने भविष्य में होने वाले परिवर्तनों से डरती है।

प्रश्न 11.
कवयित्री की भाषा कैसी है?
उत्तर:
सीधी-सरल, भावपूर्ण और प्रतीकात्मकता के गुण से संपन्न।

प्रश्न 12.
‘कच्चे रंग’ कविता किस कवि की रचना है ?
उत्तर:
गीता डोगरा।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
जहाँ से गुजरते-गुजरते….
उत्तर:
कविता मुझसे मिली थी।

प्रश्न 14.
खो गए हैं पर्वत भी..
उत्तर:
जो गुप-चुप आवाज़ देते थे मुझे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

प्रश्न 15.
मेरा वह पुराना घर…….
उत्तर:
नानकशाही ईंट वाला।

प्रश्न 16.
……………..मैं वहाँ से भी लौट आई।
उत्तर:
छितरे-छितरे हो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवयित्री को कहीं भी अपनत्व का भाव दिखाई नहीं देता।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
कवयित्री की बड़ी माँ पक्के-गहरे रंगों से लिखा करती थी।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बन्द दरवाजे’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) रेखाचित्र
उत्तर:
(क) उपन्यास

2. ‘धूप उदास है’ की विधा क्या है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) काव्य
(घ) गद्य।
उत्तर:
(ग) काव्य

3. ‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने किसके अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है ?
(क) मानवीय संबंधों के
(ख) प्रेम के
(ग) घृणा के
(घ) विश्वास के।
उत्तर:
(क) मानवीय संबंधों के

4. कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था ?
(क) पर्वत
(ख) नदी
(ग) नाले
(घ) वन।
उत्तर:
(क) पर्वत

गीता डोगरा सप्रसंग व्याख्या

कच्चे रंग

1. खो गया है मेरा गाँव
वह पगडंडी
देवदार के पेड़
वह जंगल भी
जहाँ से गुजरते गुजरते
कविता मुझ से मिली थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
पगडंडी = छोटा रास्ता।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती गीता डोगरा द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘सप्तसिन्धु’ में संकलित कविता ‘कच्चे रंग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि इस बदलते परिवेश में मेरा वह गाँव कहीं खो गया है। उस गाँव की वह पगडंडी देवदार के वृक्ष तथा वह जंगल भी आज खो गया है। जहाँ से गुजरते हुए मेरी कविता से भेंट हुई थी अर्थात् कविता लिखनी शुरू की थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अतीत खो गया प्रतीत होता है क्योंकि अब वहाँ वैसा कुछ नहीं है जैसा पहले होता था।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. अब शहर ………….
सड़कें …… गलियाँ हैं
खो गए हैं पर्वत भी
जो गुपचुप आवाज़ देते थे मुझे
तो मैं थकी हारी
धूल सने पाँव सहित……..
उसकी आगोश में सिमट जाती थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
गुपचुप = खामोशी से। धूल सने = धूल में लिपटे, धूल भरे। आगोश = गोद।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं, जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

विशेष:

  1. वर्तमान परिवेश में संबंधों की गरिमा के नष्ट होने पर कवयित्री चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा लाक्षणिक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

3. मेरा वह पुराना घर
नानकशाही ईंट वाला
जहाँ हर वर्ष बड़ी माँ
कच्चे रंगों से लिखती थी
सबका नाम ………
प्यार से चूमती थी मेरा माथा
मेरे हाथ ………

कठिन शब्दों के अर्थ:
नानकशाही ईंट = पुराने जमाने की छोटी ईंट। बड़ी माँ = दादी या नानी।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अपने खो गए गाँव को याद करती हुई कहती है कि गाँव में मेरा पुराने जमाने की छोटी ईंटों से बना घर था। जहाँ हर वर्ष मेरी दादी कच्चे रंगों से दीवारों पर सबके नाम लिखती थी और प्यार से कभी मेरा माथा और कभी मेरा हाथ चूमती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अत्यंत मोहक लगता है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा सहज है।

4. वे रिश्ते भी खो गए
अब रहता है वहाँ भी
सीमेंट पत्थर का आदमी
जो रिश्तों को तराजू पर
तोलता है
और पटक देता है………
छितरे-छितरे हो
मैं वहाँ से भी लौट आई।

कठिन शब्दों के अर्थ:
सीमेंट पत्थर का आदमी = मुर्दादिल, संवेदनाशून्य आदमी। छितरे-छितरे हो = टुकड़ेटुकड़े होकर, बिखर कर।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री नगरीय सभ्यता की चर्चा करती हुई कहती हैं कि शहर में आने पर गाँवों के से वे रिश्ते भी टूट गए हैं क्योंकि शहरों में तो सीमेंट पत्थर का अर्थात् संवेदनाशून्य आदमी रहता है जो रिश्तों को स्वार्थ के तराजू पर तौलता है और उस पर पूरा न उतरने पर वह रिश्तों को पटक देता है, उन्हें धरती पर फेंक देता है। इसलिए वह वहाँ से टूटकर तथा निराश होकर लौट आई है।

विशेष:

  1. नगरीय सभ्यता की संवेदनशन्यता पर व्यंग्य है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

5. सब कुछ बदल गया
जंगल, पर्वत, पगडंडी
घर भी
शेष बची मैं।
आज भी खोजती हूँ, कच्चे रंग
जिससे लिख पाऊँ
मैं उन सबके नाम
जो मेरे अपने हो सके

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री वर्तमान में भी अतीत को चाहती है, जो संबंधों की गरिमा से युक्त था।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

6. और सोचती हूँ
गलती से जन न बैठूँ
कोई सीमेंट पत्थर का आदमी
कि कहीं
मेरी बेटी भी छितरे-छितरे हो
लौट जाए
मेरी दहलीज से ……..
सच कितना डरती हूँ मैं।

कठिन शब्दों के अर्थ:
जन न बैठूँ = जन्म न दे दूँ। दहलीज = द्वार। .

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां गीता डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अतीत के टूट जाने पर भविष्य के प्रति अपनी शंका व्यक्त करती हुई कहती हैं कि मैं यह सोचती हूँ कि कहीं भूल से ऐसे व्यक्ति को जन्म न दे दूँ जो सीमेंट पत्थर का बना हो अर्थात् संवेदनाशून्य और मुर्दादिल हो। मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं मेरी बेटी भी, मेरी तरह टुकड़े-टुकड़े होकर मेरे द्वार से लौट न जाए। कवयित्री कहती हैं कि सच ही मैं भविष्य में टूटने से बड़ा डरती हूँ।

विशेष:

  1. कवयित्री इस भौतिकतावादी युग में भविष्य कहे और भी अधिक संवेदन शून्य होने की संभावना से चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

गीता डोगरा Summary

गीता डोगरा जीवन परिचय

गीता डोगरा जी का जीवन परिचय लिखिए।

गीता डोगरा का जन्म सन् 1955 में फिरोज़पुर (पंजाब) में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य की कविता, उपन्यास एवं आलोचना विधा में अपना योगदान दिया। अगले पड़ाव तक, धूप उदास है तथा दहलीज आपके काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। बन्द दरवाजे’ शीर्षक एक उपन्यास भी प्रकाशित हो चुका है। आपको अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। आपकी कुछ रचनाएँ, बांग्ला, गुजराती और तमिल भाषा में अनुदित हुई हैं। आजकल आप जालन्धर से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र दैनिक जागरण में काम कर रही हैं।

गीता डोगरा कविता का सार

‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने मानवीय संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है। उसे लगता है कि इस भौतिकतावादी परिवेश में वह अपने अतीत को खो बैठी है तथा भविष्य भी उसे उसके वर्तमान से टूटता लगता है। सर्वत्र संवेदनहीनता के दर्शन हो रहे हैं। कहीं भी अपनत्व नहीं दिखाई देता।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

Hindi Guide for Class 12 PSEB 12 डॉ० चन्द्र त्रिखा Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘जुगनू की दस्तक’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि घृणा के वातावरण में जुगनू की रोशनी भी पर्याप्त होती है। नदी कितनी ही काली हो किनारे कभी नज़रों से ओझल नहीं हो सकते। क्योंकि काली नदी की सीमाओं के आस-पास ही हरे-भरे, प्रदूषणरहित जंगल मौजूद हैं। अतः हमें यह कामना करनी चाहिए कि साहित्य की गर्मी से एक नई पौध अंकुरित होगी।

प्रश्न 2.
‘जुगनू की दस्तक’ एक आशावादी प्रतीकात्मक कविता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में घृणा और निराशा को अँधी गुफाओं एवं जुगनू को आशावाद का प्रतीक माना गया है। इसी तरह काली नदी आतंकवाद का प्रतीक है और सुख-समृद्धि हरे भरे जंगल और प्रदूषण को घुटन और संत्रास का प्रतीक माना गया है। कवि ने सम्भावना की पतवारें चलाते रहने से, जुगनू की रोशनी से, किनारा मिलने की अर्थात् घृणा, निराशा एवं आतंकवाद के समाप्त होने की आशा व्यक्त की है अतः कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता एक आशावादी प्रतीकात्मक कविता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 13 डॉ० चन्द्र त्रिखा

प्रश्न 3.
‘जीने को कुछ मानी दे’ कविता में कवि क्या माँग रहा है ? अपने शब्दों में लिखो।
अथवा
जीने को कुछ मानी दे’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
कवि जीने को नया अर्थ प्रदान करने के लिए एक नई कहानी माँग रहा है। कुछ ऐसे तूफानी क्षण माँग रहा है जिससे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके। कवि संसार के दुःखों को समाप्त करने के लिए सातों समुद्रों का पानी माँग रहा है तथा अपने मन की व्यथा को मिटाने के लिए कोई पुरानी गज़ल माँग रहा है ताकि उसे गाकर वह अपने मन की व्यथा को अभिव्यक्त कर सके।

प्रश्न 4.
‘जीने को कुछ मानी दे’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में जीवन को नया अर्थ देने की कामना की गई है। कवि ने अपने साथी, अपने गुरु से जीवन को नए अर्थ देने की माँग की है। कवि उससे सारी धरती की प्यास बुझाने के लिए पानी की माँग कर रहा है ताकि धरती पर समृद्धि छा सके। शीर्षक भले ही प्रतीकात्मक है किन्तु सार्थक बन पड़ा है। .

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
यह काली नदी …….. नयी पौध।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि आतंकवाद की काली नदी कितनी ही बड़ी अर्थात् सीमा रहित हो किन्तु इसकी सीमा का कोई न कोई छोर तो होगा ही अर्थात् आतंकवाद को एक न एक दिन तो समाप्त होना ही है। कवि कामना करता है कि इस आतंकवाद के समाप्त होने के बाद निश्चय ही आपसी सौहार्द्र और भ्रातृभाव का हरा-भरा जंगल आएगा। जिसमें घुटन और संत्रास के प्रदूषण का नाम तक न होगा। कवि कहता है कि आओ मिलकर यह कामना करें कि अच्छे साहित्य रूपी अलाव की गर्मी से आपसी भाईचारे की पौध अंकुरित होगी और मानवता की भावना सब के दिलों में फिर से भर जाएगी। अतः हमें छोटी-से-छोटी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

प्रश्न 6.
जीने को कुछ ……. तूफानी दे।
उत्तर:
कवि कामना करता है कि उसे जीने के लिए एक नई कहानी मिल जाए। वह इतना प्यासा अर्थात् दुःखी है कि उस प्यास को बुझाने के लिए एक नहीं सात समुद्रों के पानी की ज़रूरत है। धूप अभी तक नंगी है. अतः इसे ढकने के लिए कोई धान के रंग की (हरी) चुनरी दो अर्थात् संघर्ष के साथ-साथ समृद्धि में भी बढ़ोत्तरी हो सके। कवि कहता है कि मेरा मन बहुत दुःखी है यह अपने दुःख को भुलाने को कोई गीत गाना चाहता है। इसलिए इसे कोई पुरानी गज़ल दो। हे ईश्वर ! तू मुझे कुछ ऐसा दे जैसा तू है मुझे जीने के लिए कुछ तूफानी क्षण प्रदान करो जिससे मेरे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके।

PSEB 12th Class Hindi Guide डॉ० चन्द्र त्रिखा Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० चन्द्र त्रिखा का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
7 जुलाई, सन् 1945 में।

प्रश्न 2.
डॉ० त्रिखा की विशेष रुचि किसमें है?
उत्तर:
पत्रकारिता के क्षेत्र में।

प्रश्न 3.
डॉ० त्रिखा के द्वारा प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पाषाण युग, शब्दों का जंगल, दोस्त ! अब पर्दा गिराओ।

प्रश्न 4.
कवि ने किस के लिए प्रयत्नशील बने रहने की प्रेरणा दी है?
उत्तर:
समाज से घृणा दूर करने की।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘काली नदी’ किसे कहा है?
उत्तर:
आतंकवाद को।

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प्रश्न 6.
कवि ने समाज में जागरण को किसके माध्यम से लाना चाहता है?
उत्तर:
साहित्यकारों के माध्यम से।

प्रश्न 7.
कवि ने किसे नंगी कहकर चूनरधानी देने की बात कही है?
उत्तर:
धूप को नंगी कहकर।

प्रश्न 8.
कवि ने अलाव किसे कहा है?
उत्तर:
साहित्य को-जो समाज में भाईचारा और सौहार्द को बढ़ा दे।

प्रश्न 9.
‘जीने को कुछ मानी दे’-इसमें ‘मानी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
मानी = अर्थ।

प्रश्न 10.
कवि का भीगा मन क्या करना चाहता है?
उत्तर:
गाना चाहता है।

प्रश्न 11.
कवि कैसी गज़ल को पाने की कामना करता है?
उत्तर:
पुरानी गजल की।

प्रश्न 12.
कैसे क्षणों की प्राप्ति कवि चाहता है?
उत्तर:
तूफ़ानी। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
किनारे आखिर नज़रों से…….
उत्तर:
बच नहीं पाएंगे।

प्रश्न 14.
साहित्य के अलाव की गर्मी से………………
उत्तर:
अंकुरित हो गई नयी पौध।

प्रश्न 15.
सात समन्दर लेकर आ………………………..।
उत्तर:
प्यासा हूँ कुछ पानी दे।

प्रश्न 16. …………………कोई गज़ल पुरानी दे।
उत्तर:
भीगा है मन गाएगा।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवि के अनुसार आतंकवाद को प्रेम से दूर किया जा सकता है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
हमें उम्मीद का आंचल छोड़ देना चाहिए।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 19.
कवि किसी पुरानी गज़ल को मांगता है।
उत्तर:
हाँ।

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प्रश्न 20.
कवि अपने जीवन में परिवर्तन चाहता है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘पाषाण युग’ रचना के रचनाकार कौन हैं ?
(क) डॉ० चन्द्र त्रिखा
(ख) डॉ० धर्मवीर भारती
(ग) निराला
(घ) पंत
उत्तर:
(क) डॉ० चन्द्र त्रिखा

2. ‘जुगनू की दस्तक’ किस विद्या की रचना है ?
(क) कविता
(ख) गद्य
(ग) खंड काव्य
(घ) महाकाव्य।
उत्तर:
(क) कविता

3. ‘जुगनू की दस्तक’ में कवि ने कैसे भविष्य की कल्पना की है ?
(क) सुंदर
(ख) धनी
(ग) सुनहले
(घ) शक्तिशाली।
उत्तर:
(ग) सुनहले

4. कवि ने आतंकवाद को किसकी संज्ञा दी है ?
(क) काली नदी
(ख) सामेर नदी
(ग) बड़ी नदी
(घ) छोटी नदी
उत्तर:
(क) काली नदी

डॉ० चन्द्र त्रिखा सप्रसंग व्याख्या

जुगनू की दस्तक

1. नफरत की अन्धी गुफाओं में
कई बार काफ़ी होती है
एक जुगनू की भी दस्तक
सम्भावनाओं की पतवारें
चलाते रहो साथियो!
किनारे आखिर नज़रों से
बच नहीं पाएंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ:
नफरत = घृणा। अन्धी गुफ़ाओं = अँधेरी गुफ़ाओं। दस्तक = दरवाजा खटखटाने की क्रिया। पतवारें = चप्पू।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध पत्रकार डॉ० चन्द्र त्रिखा द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ’ में संकलित कविता ‘जुगनू की दस्तक’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने घृणा, आतंक को समाप्त कर देश के सुनहले भविष्य की कल्पना की है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि घृणा की अँधेरी गुफ़ाओं में कई बार एक जुगनू का द्वार खटखटाना अर्थात् आना काफ़ी होता है। अतः हे साथियो ! तुम सम्भावनाओं के चप्पू चलाते रहो। क्योंकि किनारे कभी भी नज़रों से बच न पाएँगे। कवि का कहना है कि घृणा की अंधेरी रात में आशा और प्रकाश का प्रतीक छोटे से जुगनू का टिमटिमाना भी काफ़ी होता है। अत: तुम उम्मीद का दामन मत छोड़ो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समाज से घृणा दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहो। लक्ष्य तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा।

विशेष:

  1. कवि ने सदा आशावादी बने रहने की प्रेरणा दी है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है। प्रतीकात्मकता विद्यमान है।

2. कितनी ही असीम हो
यह काली नदी
पर सीमाओं की मौजूदगी को
नकार तो नहीं पाएगी।
बस इन्हीं सीमाओं के आस पास
मौजूद है हरे भरे जंगल
जहाँ प्रदूषण का, कहीं दूर तक नाम नहीं है।
आइए करें कामना
साहित्य के अलाव की गर्मी से
अंकुरित हो नयी पौध।

कठिन शब्दों के अर्थअसीम = सीमा रहित । काली नदी = आतंक की प्रतीक। नकारना = इन्कार करना। अंकुरित होना = फूटना, उगना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० चन्द्र त्रिखा द्वारा रचित कविता ‘जुगनू की दस्तक’ में से ली गई, जिसमें कवि ने घृणा को प्रेम में बदलने के लिए प्रयत्नशील रहने के लिए कहा है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि आतंकवाद की काली नदी कितनी ही बड़ी अर्थात् सीमा रहित हो किन्तु इसकी सीमा का कोई न कोई छोर तो होगा ही अर्थात् आतंकवाद को एक न एक दिन तो समाप्त होना ही है। कवि कामना करता है कि इस आतंकवाद के समाप्त होने के बाद निश्चय ही आपसी सौहार्द्र और भ्रातृभाव का हरा-भरा जंगल आएगा। जिसमें घुटन और संत्रास के प्रदूषण का नाम तक न होगा। कवि कहता है कि आओ मिलकर यह कामना करें कि अच्छे साहित्य रूपी अलाव की गर्मी से आपसी भाईचारे की पौध अंकुरित होगी और मानवता की भावना सब के दिलों में फिर से भर जाएगी। अतः हमें छोटी-से-छोटी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

विशेष:

  1. कवि सदा आशावादी बनने का संदेश देता है क्योंकि आशा के माध्यम से ही हमें अपना लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।

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जीने को कुछ मानी दे…….

जीने को कुछ मानी दे
ऐसी एक कहानी दे।
सात समन्दर लेकर आ
प्यासा हूँ कुछ पानी दे।
धूप अभी तक नंगी है
इसको चूनर धानी दे।
भीगा है मन गाएगा
कोई गज़ल पुरानी दे।
दे कुछ तू रब्ब जैसा है
लम्हें कुछ तूफानी दे।

कठिन शब्दों के अर्थ:
मानी = अर्थ। चूनर = चूनरी, दुपट्टा । धानी = धान के रंग का अर्थात् हरा। भीगा = दुःखी। लम्हें = क्षण।

प्रसंग:
प्रस्तुत कविता ‘जीने को कुछ मानी दे’ कवि डॉ० चन्द्र त्रिखा के काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ’ में से ली गई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन को नए अर्थ प्रदान करने की कामना की है जिससे वह संसार के सब दुःखों को दूर कर सके।

व्याख्या:
कवि कामना करता है कि उसे जीने के लिए एक नई कहानी मिल जाए। वह इतना प्यासा अर्थात् दुःखी है कि उस प्यास को बुझाने के लिए एक नहीं सात समुद्रों के पानी की ज़रूरत है। धूप अभी तक नंगी है. अतः इसे ढकने के लिए कोई धान के रंग की (हरी) चुनरी दो अर्थात् संघर्ष के साथ-साथ समृद्धि में भी बढ़ोत्तरी हो सके। कवि कहता है कि मेरा मन बहुत दुःखी है यह अपने दुःख को भुलाने को कोई गीत गाना चाहता है। इसलिए इसे कोई पुरानी गज़ल दो। हे ईश्वर ! तू मुझे कुछ ऐसा दे जैसा तू है मुझे जीने के लिए कुछ तूफानी क्षण प्रदान करो जिससे मेरे जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके।

विशेष:

  1. कवि ने जीवन को सार्थक बनाने की कामना की है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।

डॉ० चन्द्र त्रिखा Summary

डॉ० चन्द्र त्रिखा जीवन परिचय

डॉ० चन्द्र त्रिखा जी का जीवन परिचय लिखिए।

चन्द्र त्रिखा का जन्म 7 जुलाई, सन् 1945 ई० को पाकिस्तान के जिला साहिलवाल के पाकपट्टन नामक स्थान पर हुआ। विभाजन के बाद आपका परिवार फिरोजपुर आ गया। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अबोहर-फाजिल्का में हुई। आपने अम्बाला के एस०डी० कॉलेज से हिन्दी विषय में एम०ए० एवं पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की। पत्रकारिता में आपकी विशेष रुचि थी। आपने क्षेत्र के सभी दैनिक पत्रों में लगभग 30 वर्ष तक कार्य किया। आजकल आप स्वतन्त्र रूप से साहित्य सृजन कर रहे हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ पाषाणयुग, शब्दों का जंगल, दोस्त, अब पर्दा गिराओ हैं। इन्हें हरियाणा सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया जा चुका है।

डॉ० चन्द्र त्रिखा कविताओं का सार

‘जुगन की दस्तक’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि नफ़रत, घृणा और निराशा की अंधेरी रात में आशा का जुगनू भी उजाला सकता है। आतंकवाद प्रेम और सौहार्द्र द्वारा दूर किया जा सकता है तथा मानवता की भावना को जगाया जा सकता है। ‘जीने को कुछ मानी दें’ में कविता में कवि जिंदगी के नए अर्थ मांगता है। जिससे उसके जीवन में एक नया परिवर्तन आ सके तथा सर्वत्र समृद्धि छा जाए।